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मोहन राकेश का व्यक्तित्व एवं कृतित्व prt final prt 10
मोहन राकेश का व्यक्तित्व एवं कृतित्व prt final prt 10
कृ तित्व
मोहन राके श को मसीहा सम्बोधित करके "आधुनिक नाटक का मसीहा
मोहन राके श’’नामक शीर्षक से पुस्तक ही लिख डाली। इसी सन्दर्भ में
जयदेव तनेजा का यह कथन सार्थक है कि –“यदि जीवन के प्रति
अगाध, अटू ट आस्था और मानव-जीवन की अपूर्णता के भीतर से
सम्पूर्णता को पाने की अन्तहीन तलाश को कोई सार्थक नाम दिया
जा सकता है तो वह नाम है मोहन राके श।" 13 मोहन राके श का
सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में ही व्यतीत हुआ | यह संघर्ष उनके सम्पूर्ण
कृ तित्व में एक तीखी संवेदना के दर्शन कराते हैं|
1 उपन्यास - मोहन राके श ने उपन्यासों की रचना की है । कु छ का तो प्रकाशन हो चुका है और कु छ उपन्यास उनके
अभी प्रकाशधीन उपन्यास है “अंधेरे बंद कमरे’’ मोहन राके श का उपन्यास ‘अंधेरे बंद कमरे’ लगभग साढ़े चार सौ पृष्ठों
इस उपन्यास को क्या कहूँ.. आज की दिल्ली का रूप रेखाचित्र ? पत्त्रकार मधुसूदन की आत्मकथाएँ हरवंस और
का उपयोग पर्याप्त मात्रा में किया है। स्कू ल के वातावरण को उपन्यास की कहानी के के न्द्र में रखने का मुख्य कारण यही
कठिनाई यह है कि देव श्यामा की स्मृति में निरन्तर उपस्थित रहता है और यह उसमें कई तरह के काम्पलेक्स पैदा कर
देता है |" 16 2- कहानी -"मोहन राके श का कृ तित्व बहुआयामी है बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न
|
साहित्यकार मोहन राके श ने हिन्दी जगत् के सर्वप्रथम कहानीकार के रूप में ही दस्तक दी थी रचनाकार के रूप में मोहन
राके श की प्रतिष्ठा की शुरुआत कहानियों से ही मानी जाती है सर्वप्रथम राके श की कहानियों की यात्रा का प्रारम्भ सन्
अप्रकाशित ही रह गई परन्तु उनके मरणोपरांत सारिका' पत्रिका में मार्च 1973 में प्रकाशित की गयी| मोहन राके श
की कहानी 'भिक्षु के नाम से सन् 1946 में प्रकाशित हुयी थी। और ये कहानी मोहन की पहली कहानी थी जो प्रकाशित
हुयी थी | 3 नाटक - हिन्दी नाट्य साहित्य में मोहन राके श का नाम गर्व तथा चर्चा का विषय है। मोहन राके श
ने बहुत कम नाटक लिखें हैं लेकिन प्रसिद्ध बहुत .
हुए हैं।
आधे अधूरे - 'आधे अधूरे ' नाटक को समकालीन जिंदगी का पहला सार्थक हिन्दी नाटक माना जाता है 'आधे
अधूरे ' नाटक को 'मील का पत्थर भी कहा जाता है |तथा एक अपूर्ण नाटक ‘पैर तले की जमीन' है इस
अपूर्ण नाटक को मोहन राके श के ‘'अवसानोपरांत ‘कमलेश्वर’ द्वारा पूरा किया गया|’’17 इसका
भारतीय नाटक में समकक्ष लाने में मोहन राके श के नाटक उल्लेखनीय है।’’18 ० उनके नाटक सामाजिक
यथार्थ के परिदृश्य को उभारते हैं मोहन राके श के एक सम्पूर्ण नाटक इस बात के साक्षी हैं कि हिन्दी नाट्य
साहित्य में पहली बार एक नई दृष्टि की शुरुआत हुई एक नवीन चेतना का विकास हुआ|
4 - ,
एकांकी मोहन राके श नई दिशा दी ने जहाँ हिन्दी नाट्य साहित्य और 17-डॉ. सुषमा अग्रवाल
.मोहन राके श व्यक्तित्व और कृ तित्व, पंचशील प्रकाशन फिल्म
कॉलोनी, जयपुर 1986 पृष्ठ 6
18-गिरीश रस्तोगी, हिंदी नाटक और रंगमंच नई दिशाएँ नये प्रश्न,
ग्रंथम प्रकाशन, कानपुर 1966, पृष्ठ -32
,
रंगमंच अपने नये नाट्य से एक नई दिशा दी वही पूर्ण नाटक के अतिरिक्त एकांकी और कु छ नये नाटक विधाओं का
प्रयोग जिसके माध्यम हिन्दी नाटय साहित्य को एक और दिशा मिल गयीं मोहन राके श की एकांक्रियों उनके नाटकों के
मोहन राके श की एकांकी संग्रह दो कृ तियो के रूप में सामने आती है। इस एकांकी संग्रह में चार एकांकी हैं|
बीज नाटक को वस्तुतः लघु नाटक कहा जाता है अर्थात बीज नाटक लघु आकार के ऐसे नाट्य प्रयोग होते हैं जिनमें
i शायद
ii हं: !
19-डॉ. सुषमा, मोहन राके श पंचशील प्रकाशन, फिल्म कॉलोनी, जयपुर
1986, पृष्ठ-170