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ANCIENT HISTORY

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उत्तर प्रदे श – एक ऐतिहातिक अध्ययन

इतिहाि का विभाजन िीन भागों में ककया गया हैं | यथा – प्रागौतिहाि (Pre-History), आद्य – इतिहाि
(Proto-History) िथा हतिहाि (History)। प्रागौतिहाि में उन िभ्यिाओं का अध्ययन ककया जािा है
जजनमें मानि लेखन कला िे अपररतिि का और पाषाण तनतमिि उपकरणों पर तनभिर करिा था। जजन
िभ्यिाओं में धािुओं का प्रयोग हुआ हो, तलवप का ज्ञान रहा हो, लेककन कोई तलजखि िाक्ष्य उपलब्ध ि हो,
का अध्ययन आद्य-इतिहाि के अन्िगिि ककया जािा हैं । जबकक तलजखि िाक्ष्य िाले िभ्यिाओं एिं घटनाओं
का अध्ययन इतिहाि के अन्िगिि ककया जािा है ।

प्रागौतिहातिक काल (पाषाण काल)

भारि भें पाषाजणक िभ्यिाओं के खोज की शुरूआि 1863 िे होिी है , जबकक भारिीय भूित्ि ििेक्षण के
विशन राबटि ब्रूि फुट को पल्‍
लिरम (ितमलनाडु ) िे एक पाषाणोपकरण तमला। अब िक उ.प्र. िकहि भारि
के कई राज्यों में पाषाजणक िंस्कृ ति के अिशेष तमल िुके हैं । पाषाजणक िंस्कृ ति को िीन भागों में बांटा गया
है । यथा - पुरा, मध्य िथा निपाषाण काल।

 उत्तर प्रदे श में पुरापाषाणकालीन िभ्यिा के िाक्ष्य इलाहाबाद के बेलन घाटी, िोनभद्र के तिंगरौली
घाटी िथा िन्दौली के िककया नामक पुरास्थलो िे प्राप्त हुए हैं । बेलन नदी घाटी के पुरास्थलों की
खोज और खुदाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. जी .आर .शमाि के तनदे शन में कराया गया| बेलन
घाटी के लोहदा नाला क्षेत्र नामक स्थल िे पाषाण उपकरणों के िाथ-िाथ एक अजस्थ तनतमिि मािृ
दे िी की प्रतिमा भी तमली है | इि िभ्यिा के प्राय: िभी उपकरण क्िाटि जाइट पत्थरों िे तनतमिि हैं | इन
स्थलों के िाक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा िकिा है की इन्हें आग, कृ वष‍कायि, गृह‍तनमािण‍आकद‍
का‍ज्ञान‍नहीं‍था, जबकक‍कुछ‍मात्रा‍में‍पशुपालन‍िे‍पररतिि‍होने के‍िाक्ष्य‍तमलिे‍हैं ।
 राज्य‍में‍मध्यपाषाण‍कालीन‍िंस्कृ ति‍के िाक्ष्य‍तमजािपुर-िोनभद्र‍के‍मोरहना‍पहाड़, बघरीखोर,
लेखकहया‍आकद‍स्थलों, प्रयागराज‍के मेजा, करछना, फूलपुर, कोरांि, बारा‍आकद‍िहिीलों में‍जस्थि‍
पुरास्थलों; प्रिापगढ़‍के‍िरायनाहर, महदहा, दमदमा‍आकद‍पुरास्थलों‍िे‍प्राप्त‍हुए‍हैं ।‍इि‍
िंस्कृ ति के‍उपकरण‍पुराषाषाणकाल‍की‍अपेक्षा‍िूक्ष्म, तिकने और‍िुन्दर‍हैं ।‍िरायनाहर‍िे‍15‍
शिाधान‍तमले‍हैं , जजनमें‍मृिक‍का‍तिर‍पजिम‍की‍ओर‍है ।‍प्रयागराज के‍मेजा‍िहिील‍के‍
िोपनीमाण्डों‍पुरास्थल‍िे‍झोपकड़यों, तमट्टी‍के‍बििनों‍के‍अिशेष‍तमले‍हैं ।‍महदहा‍स्थल‍िे
उपकरणों‍के‍िाथ-िाथ‍तिल-लोढ़े , गिि‍िूल्हें , अजस्थ एिं‍िींग‍के‍आभूषणों‍के‍िाक्ष्य‍तमले‍हैं ।‍
अिः‍स्पष्ट है ‍कक‍पुरापाषाण‍काल‍की‍अपेक्षा‍इि‍काल‍का मानि‍थोड़े -बहुि‍कृ वष‍एिं‍
पशुपालन‍करने, मृिक‍की‍अन्त्येवष्ट‍करने‍िथा‍आग‍पर‍भोजन‍पकाने‍िे पररतिि‍था।
 उत्तर‍प्रदे श‍में‍निपाषाण‍कालीन‍िभ्यिा के िाक्ष्य‍प्रयागराज़‍(बेलन‍घाटी‍जस्थि‍कोलकडहिा,
महगड़ा‍िथा‍पंिोह‍स्थलों), तमजािपुर-िोनभद्र, प्रिापगढ़‍आकद‍जजलों‍के‍वितभन्‍
न‍स्थलों‍िे‍

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प्राप्त‍होिे‍हैं ।‍इि‍काल‍के‍पाषाण‍उपकरण‍मध्यपाषाण काल‍की‍अपेक्षा‍अतधक‍िूक्ष्म,‍तिकने‍


और‍िेज‍हैं । बेलन‍घाटी‍के‍निपाषाजणक‍स्थलों‍िे‍झोपकड़यााँ‍बनाने, कृ वष‍ककये‍जाने, तमट्टी‍
के‍बििन‍बनाने‍िथा‍पशुपालन करने‍के‍िाक्ष्य‍तमले‍हैं ।‍अिः‍स्पष्ट‍है ‍कक‍निपाषाजणक
िंस्कृ ति‍अपनी‍पूिग
ि ामी‍िंस्कृ तियों‍की‍अपेक्षा‍अतधक विकतिि‍थी।‍इि‍काल‍का‍मानि‍
कृ वष-कमि‍के िाथ-िाथ‍पशुपालन‍करने, तमट्ठी‍के‍बििन‍बनाने िथा‍उि‍पर‍तित्रकारी‍और‍
पातलश‍करने, आिाि बनाने, जानिरों‍की‍खालों‍िे‍िस्त्र‍बनाने‍आकद कियाओं‍िे‍पररतिि‍था।‍

आद्य-ऐतिहातिक‍काल

(िाम्र-पाषाण‍एिं‍िाम्र-कांस्य)

पाषाण‍यूग‍की‍िमातप्त‍के‍बाद‍धािुओं‍के प्रयोग‍का‍युग‍प्रारम्भ‍हुआ।‍िबिे‍पहले‍मनुष्य‍ने िााँबे‍


का‍प्रयोग‍ककया, कफर‍कााँिे‍का‍िथा‍अंि में‍लोहे ‍का।‍पाषाण‍िंस्कृ ति‍के‍ठीक‍बाद‍और िैन्धि‍
िंस्कृ ति‍िे‍पहले‍की‍िंस्कृ ति‍को‍िाम्र‍पाषाजणक िंस्कृ ति‍कहा‍जािा‍है , जजिमें‍पाषाण‍िथा‍िााँबे‍के
उपकरणों‍का‍प्रयोग‍िाथ-िाथ‍ककया‍गया।‍िैन्धि िभ्यिा‍िाले‍पुरास्थलों‍के‍तनिले‍स्िर‍िे‍िाप्र‍
पाषाजणक िभ्यिा‍के‍िाक्ष्य‍तमले‍हैं ।‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍िाम्र‍पाषाजणक िभ्यिा‍के‍िाक्ष्य‍मेरठ‍एिं‍
िहारनपुर‍के‍पुरास्थलों िे‍प्राप्त‍हुए‍हैं ।

 िाम्र-पाषाजणक‍िभ्यिा‍के‍बाद‍िाम्र-कांस्य िभ्यिा‍का‍उदय‍हुआ।‍िैन्धि‍िभ्यिा‍िाम्र-
कांस्य‍िभ्यिा‍का‍ही‍प्रतितनतधत्ि‍करिी‍है ।‍यह िभ्यिा‍2500‍ई.पू.‍के‍आि-पाि‍अपनी‍
पूण‍ि विकतिि अिस्था‍में‍प्रकट‍होिी‍है ।‍इि‍नगरीय‍िभ्यिा‍के िाक्ष्य‍पाककस्िान‍के‍
बलूतिस्िान, तिन्ध‍एिं‍पंजाब प्रान्िों‍िथा‍भारि‍के‍पंजाब, हररयाणा, राजस्थान, गुजराि, जम्मू-
कश्मीर‍एिं‍पजिमी‍उत्तर‍प्रदे श िे‍तमलिे‍हैं ।‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍इि‍िभ्यिा‍के‍िाक्ष्य
आलमगीरपुर‍(मेरठ), बड़ागााँि‍और‍हुलाि (िहारनपुर)‍आकद‍स्थलों‍िे‍अि‍होिे‍हैं ।‍नयी खोजों‍
के‍अनुिार‍बुलन्दशहर‍के भटपुरा एिं मानपुरा‍स्थलों; मुजफ्फरनगर‍के‍मांडी‍गााँि‍िथा कैराना‍
क्षेत्र‍िे‍भी‍इि‍िभ्यिा‍के‍िाक्ष्य‍तमलिे‍है ।
 िैन्धि‍िभ्यिा‍के‍बाद‍और‍िैकदक‍िभ्यिा िे‍पूि‍ि की‍िभ्यिा‍को‍उत्तर‍िैन्धि‍िभ्यिा‍कहा
जािा‍है ।‍पाककस्िान‍के‍बलूतिस्िान, तिन्ध‍िथा पंजाब‍और‍भारि‍के‍पंजाब, गुजराि,
राजस्थान, हररयाणा‍के‍िाथ‍ही‍उत्तर‍प्रदे श‍िे‍उत्तर‍िैन्धि िभ्यिा‍के‍िाक्ष्य‍आलमगीरपुर‍
(मेरठ)‍िथा‍हुलाि (िहारनपुर)‍स्थलों‍िे‍प्राप्त‍हुए‍हैं ।‍उपरोक्त‍स्थलों‍के अलािा‍कानपुर,
उन्‍नाि, तमजािपुर, मथुरा‍आकद‍जजलों िे कुछ‍िाम्र‍िस्िुएं‍तमली‍हैं ‍जजन्हें ‍उत्तर‍िैन्धि‍अध्यिा‍
में‍जोड़ा‍गया‍है ।‍आलमगीरपुर‍के‍उत्तर िैन्धि‍कालीन‍लोग‍कपाि‍की‍खेिी‍करिे‍थे।‍इि
िभ्यिा‍के‍लोग‍नगरों‍के‍बजाय‍गांिों‍में‍रहिे‍थे।

ऐतिहातिक‍काल‍(लौह‍काल)

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िैन्धि‍और‍उत्तर‍िैन्धि‍िभ्यिा‍के‍पिाि ् भारि‍में‍जजि‍निीन‍िभ्यिा‍का‍विकाि‍हुआ‍उिे िैकदक‍


अथिा‍आयि‍िभ्यिा‍के‍नाम‍िे‍जाना जािा‍है ।‍भारि‍का‍इतिहाि‍एक‍प्रकार‍िे‍आयि जाति‍का‍ही‍
इतिहाि‍है ।‍िैकदक‍िभ्यिा‍की‍विकाि यात्रा‍लगभग‍1500‍ई.पू.‍िे‍शुरू‍होकर‍750 ई.पू.‍िक‍िली‍
और‍इिका‍फैलाि‍तिन्धु‍नदी‍क्षेत्र (पाककस्िान)‍िे‍बंगाल‍(भारि)‍िक‍रहा।‍इि‍िम्यिा को‍दो‍
भागों‍में‍बांदा‍गया‍हैं ।‍यथा‍–‍(i)‍पूि‍ि या ऋग्िैकदक‍काल‍और‍(ii) उत्तर‍िैकदक‍काल।

ऋग्िैकदक‍काल‍में‍आयि‍िभ्यिा‍केिल‍पंजाब िथा‍तिंध‍क्षेत्र‍में‍ही‍िीतमि‍थी‍जहााँ‍पंिजनों‍का
तनिाि‍था।‍पंिजनों‍में‍अनु, द्रह्य
ु , यद,ु पुरू‍िथा िुिि
ि ‍िजम्मतलि‍थे।‍प्रत्येक‍जन‍के‍अतधपति‍को
राजा‍कहा‍जािा‍था।‍इि‍काल‍के‍इतिहाि‍को जानने‍का‍मुख्य‍स्त्रोि‍केिल‍ऋग्िेद‍िंकहिा‍है ।

ऋग्िेद‍िंस्कृ ति‍की‍पृष्ठभूतम‍पर‍ही‍उत्तर िैकदक‍कालीन‍िंस्कृ ति‍का‍विकाि‍हुआ।‍इि िमय‍िक‍


िैकदक‍िंस्कृ ति‍का‍विस्िार‍उत्तर‍प्रदे श िकहि‍लगभग‍िमस्ि‍उत्तरी‍भारि‍में‍बंगाल‍िक‍हो िुका‍
था।‍उत्तर‍िैकदक‍िंस्कृ ति‍का‍मुख्य‍केन्द्र मध्य‍दे श‍(उत्तर‍प्रदे श)‍था‍जो‍िरस्ििी‍िे लेकर‍गंगा‍के‍
दोआब‍िक‍विस्िृि‍था।‍इिमें कुरू, पंिाल‍जैिे‍विशाल‍राज्य‍थे।‍इन‍दो‍राज्यें‍के‍अलािा‍और‍भी‍
छोटे -छोटे ‍राज्य‍थे।‍िभी‍ने‍अपनी‍स्थायी‍राजधातनयों‍एिं‍मौतलक‍शािन प्रणातलयों‍का‍विकाि‍कर‍
तलया‍था।‍कुरू‍राज्य का‍आतधपत्य‍मेरठ, कदल्ली‍ि‍थानेश्वर‍िक‍विस्िृि था‍और‍राजधानी‍आिंदीिि ्‍
थी।‍परीजक्षि‍और‍जनमेजय‍इिी‍राज्य‍के‍राजा‍थे।‍जबकक‍पांिालों का‍विस्िार‍बरे ली, बदायूाँ,
फखुख
ि ाबाद‍आकद‍क्षेत्रों िक‍था‍और‍इिकी‍राजधानी‍काजम्पल्य‍थी।‍कुरू‍पांिाल‍क्षेत्रों‍में‍ही‍भारद्वाज,
याज्ञिल्क्य, ितशष्ठ,‍विश्वातमत्र,‍बाल्मीकक‍आकद‍महान‍ऋवषयों‍के‍िपस्थली रहे ।‍इि‍काल‍के‍िार‍
प्रकार‍के‍मृद‍भाण्डों‍(काला-लाल, काली‍लेपयुक्त‍तिवत्रि‍धूिर‍और‍लाल‍मृदभांड) में‍िे‍लाल‍मृदभांडों‍
के‍अिशेष‍िमूिे‍उत्तर‍प्रदे श िे‍तमले‍हैं ।‍इि‍काल‍का‍इतिहाि‍हमें‍ऋग्िेंद‍के आधार‍पर‍ही‍
विकतिि‍िंकहिाओं‍(िामिेद, यजुिद
े िथा‍अथिििेद), ब्राह्मण, आरण्यक‍िथा‍उपतनषदों‍िे ज्ञाि‍होिा‍है ‍
जजनका‍िमय‍लगभग‍ई.पू.‍1000‍िे 600‍िक‍माना‍जािा‍है ।

महाकाव्य‍काल

उत्तर‍िैकदक‍काल‍के‍अजन्िम‍िरणों‍में‍उत्तर प्रदे श‍में‍दो‍अतिवितशष्ट‍महाकाव्यों-रामायण‍एिं‍


महाभारि‍का‍प्रणयन‍हुआ,‍जो‍िात्कालीन‍इतिहाि‍के‍मुख्य‍स्त्रोि‍हैं |‍इि‍काल‍िक‍आिे-आिे‍
आयि‍िभ्यिा‍का‍प्रिार‍पूि‍ि की‍ओर‍अंग‍िक‍हो‍गया‍था|‍इि‍युग‍के‍विशाल‍राज्यों‍में‍कुरु,‍
पांिाल,‍कौशाम्बी,‍कोशल,‍काशी,‍विदे ह,‍मगध,‍अंग‍आकद‍थे|‍रामायण‍कथा‍कौशल‍(अयोध्या)‍
राज्य‍के‍इं क्ष्िाकु‍िंश‍िे‍िम्बजन्धि‍है , जबकक‍महाभारि‍के‍कथा‍हजस्िनापुर‍के‍कुरू‍िंश‍िे।‍
रामायण‍की‍रिना‍िाल्मीकक‍जी‍ने‍ब्रह्याििि‍(विठु र-कानपुर)‍में‍के‍थी|‍महाभारि‍के‍रिनाकार‍व्याि‍
जी‍थे।‍इन‍दोनों‍महाकाव्यों‍िे‍िात्कालीन‍िमाज‍के‍आतथिक,‍िामाजजक, धातमिक‍िथा‍राजनीतिक‍
जस्थतियों‍की,‍जानकारी‍तमलिी‍है ।

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महाजनपद‍काल

बौद्ध‍ग्रन्थ‍अंगुत्तरतनकाय‍िे‍ज्ञाि‍होिा‍है ‍कक 6िीं‍शिाब्दी‍ई.पू.‍के‍प्रारम्भ‍में‍िमस्ि‍उत्तरी‍भारि‍


16‍बड़े ‍राज्यों‍में‍विभाजजि‍था।‍यद्यवप‍ये‍राज्य‍उत्तर-िैकदक‍कालीन‍राज्यों‍की‍अपेक्षा‍अतधक‍
विस्िृि‍िथा‍शवक्तशाली‍थे‍िथावप‍इनमें‍िे‍कोई‍भी‍दे श‍को‍राजनैतिक‍एकिा‍िूत्र‍में‍िंगकठि‍करने‍
में‍िमथि‍नहीं‍था।‍इन‍16‍महाजनपदों‍में‍िे‍कई‍उत्तर‍िैकदक‍काल िे‍ही‍अजस्ित्ि‍में‍थे।‍उत्तर‍
भारि‍के‍इन‍16 महाजनपदों‍में‍िे‍8‍िििमान‍उत्तर‍प्रदे श‍िाले‍भू-भाग‍में‍अिजस्थि‍थे, जजनका‍
वििरण‍इि‍प्रकार‍है ।

महाजनपद राजधानी विस्िार

पांिाल अकहक्षत्र (बरे ली) बरे ली, बहयूाँ एंि


और काजम्पल्य फरुि खाबाद के
(राजिंत्र)
(फरुि खाबाद) आि-पाि

कुरु (राजिंत्र) इन्द्रप्रस्थ (कदल्ली) मेरठ, कदल्ली,


थानेश्वर के आि-
पाि

ित्ि (राजिंत्र) कौशाम्बी प्रयागराज के


(प्रयागराज) आि-पाि

शूरिेन (राजिंत्र) मथुरा मथुरा के आि-


पाि

कोशल (राजिंत्र) िाकेि (अयोध्या) अिध के आि-


श्रािस्िी पाि

मल्ल (गणिंत्र) कुशीनगर कुशीनगर,


दे िररया के आि-
पाि

काशी (राजिंत्र) िाराणिी िाराणिी के


आि-पाि

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िेकद (राजिंत्र) शुवक्तमिी (बांदा) बांदा के आि-


पाि

उपरोक्त 8 महाजनपदों के अतिररक्त उत्तर प्रदे श क्षेत्र के अन्िगिि दो और गणराज्य थे – कवपलिस्िु के शाम्य
और िमिुमेरतगरी (िुनार) के भग्ग|

जैन, बौद्ध‍एिं‍अन्य‍धमि

6िीं‍शिाब्दी‍ई.पू.‍में‍दो‍नय‍धमों‍का‍उदय हुआ‍जजनका‍मध्य‍दे श‍(उत्तर‍प्रदे श)‍पर‍व्यापक प्रभाि‍


पड़ा।‍यद्यवप‍जैन‍धमि‍के‍24िें‍िीथिकर‍महािीर स्िामी‍का‍जन्म‍िैशाली‍(वबहार)‍में‍हुआ‍लेककन‍उत्तर‍
प्रदे श‍में‍उनके‍अनुयावियों‍की‍िंख्या‍अतधक‍थी।‍महािीर‍स्िामी‍िे‍पहले‍पाश्विनाथ‍(िाराणिी),‍
िम्भरनाथ, िन्द्रप्रभा‍आकद‍प्रतिद्ध‍िीथंकरों‍का‍जन्म‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍ही‍हुआ‍था।‍उत्तरी‍भारि‍में‍जैन‍
धमि‍के‍दो‍प्रमुख‍केन्द्रों‍(मथुरा‍और‍उज्जैन)‍में‍िे‍एक‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍ही‍अिजस्थि‍था।‍कुषाणकाल‍
में‍भी‍मथुरा‍जैनधमि‍का‍एक‍िमृद्ध‍केन्द्र‍था।‍मथुरा‍िे‍जैन‍धमि‍िे‍िम्बजन्धि‍अनेक‍िाक्ष्य‍प्राप्त‍
हुए‍है ।

बौद्ध‍धमि‍के‍प्रिििक‍गौिम‍बुद्ध‍का‍जन्म‍नेपाल‍में‍लुम्बनी‍नामक‍स्थान‍पर‍हुआ‍था।‍इनके‍वपिा‍
शुद्धोधन‍एक‍छोटे ‍गणराज्य‍कवपलिस्िु‍के‍तनिाितिि‍राजा‍और‍गणत़िांवत्रक‍शाक्यों‍के‍प्रधान‍थे।‍
कवपलिस्िु‍िििमान‍उत्तर‍प्रदे श‍के‍तिद्धाथिनगर‍जजले‍में‍अिजस्थि‍है ।‍उनकी‍मािा‍माया‍दे िी‍
रामग्राम‍(गोरखपुर)‍के‍कोतलय‍गणराज्य‍की‍कन्या‍थी।‍गौिम‍बुद्ध‍ने‍29‍िषि‍की‍आयु‍में‍गृह‍
त्याग‍ककया‍(महापतभतनष्िमण)‍और‍बोधगया‍में‍उन्हें ‍ज्ञान‍प्राप्त‍हुआ।‍उन्होंने‍अपना‍पहला‍उपदे श‍
िारनाथ‍(ऋवषपत्तन‍या‍मृगदाि)‍में‍कदया।‍इिे‍‘धमििि-प्रिििन’ कहा‍गया।‍बुद्ध‍ने‍अपने‍जीिन‍के‍
ििाितधक‍उपदे श‍कोशल‍दे श‍की‍राजधानी‍श्रािस्िी‍में‍कदये।‍बुद्ध‍का‍महातनिािण‍80‍िषि‍की‍अिस्था‍
में‍कुशीनारा‍(िििमान‍कुशीनगर)‍में‍483‍ई.पू.‍में‍हुआ।‍बुद्ध‍का‍जन्म, ज्ञान‍प्रातप्त‍और‍महातनिािण,
िीनों‍िैशाख‍पूजणिमा‍को‍ही‍हुआ।‍गौिम‍बुद्ध‍का‍अतधकांश‍िन्यािी‍जीिन‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍ही‍व्यिीि‍
होने‍के‍कारण‍इि‍प्रदे श‍को‍“बौद्ध‍धमि‍का‍पालना” कहा‍जािा‍है ।‍बुद्ध‍काल‍में‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍7‍
मुख्य‍गणराज्य‍थे‍-‍कवपलिस्िु‍के‍शाक्य,‍िमिुमेर‍पििि‍(िुनार)‍के‍भग्ग, केलपुत्त‍के‍कालाम,‍
रामग्राम‍के‍कोतलय, कुशीनारा‍के‍मल्ल, पािा‍के‍मल्ल‍िथा‍वपप्पतलिन‍के‍मोररय।‍इि‍काल‍में‍
नगरों‍का‍िेजी‍िे‍विकाि‍हुआ।‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍उि‍िमय‍काशी, कौशाम्बी, मथुरा, िाकेि, श्रािस्िी,‍
हजस्िनापुर, अकहक्षत्र‍आकद‍प्रमुख‍नगर‍थे।

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जैन‍और‍बौद्ध‍धमि‍के‍अतिररक्त‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍ब्राह्मण‍धमि‍के‍दे िी-दे ििाओं‍जैिे‍–‍विष्णु,‍िािुदेि,


िूय,ि कातििकेय, िाराह, दग
ु ाि, लक्ष्मी‍आकद‍की‍प्रािीन‍मूतिियााँ‍मथुरा‍िे‍प्राप्त‍हुई‍हैं ।‍हल‍ही‍की‍िोंख‍
(मथुरा)‍की‍खुदाई‍में‍कुषाणकालीन‍मंकदर‍तमला‍है , जो‍ब्राह्मण‍धमि‍का‍द्योिक‍है ।‍िस्िुिः‍मथुरा‍को‍
भारिीय‍मूतििकला‍का‍जन्य‍स्थान‍कहा‍जा‍िकिा‍है ।‍ब्राह्मण‍धमि‍िे‍िम्बद्ध‍वितभन्‍
न‍कालों‍में‍
तनतमिि‍अन्य‍मंकदर‍िाराणिी, इलाहाबाद, बतलया,‍गाजीपुर, झांिी‍और‍कानपुर‍में‍थे।

मगध‍राज्य‍का‍उत्त्कषि
वबहार‍के‍पटना‍िथा‍गया‍जनपदों‍की‍भूतम‍में‍जस्थि‍मगध‍प्रािीन‍भारि‍का‍एक‍महत्िपूण‍ि राज्य
था‍जो‍कक‍बुद्धकाल‍में‍एक‍शवक्तशाली‍राजिंत्र‍के‍रुप‍में‍िंगकठि‍हो‍रहा‍था।‍कालान्िर‍में‍मगध‍
का‍इतिहाि‍िम्पूण‍ि भारि‍का‍इतिहाि‍बन‍गया।‍मगध‍िाम्राज्य‍के‍उत्कषि‍िे‍मौयि‍राजिंश‍की‍
स्थापना‍के‍बीि‍यहााँ‍हयिक‍बंश, शैशुनाग‍िंश‍और‍नंद‍िंश‍का‍शािन‍रहा।‍मगध‍िाम्राज्य‍का‍
िास्िविक‍िंस्थापक‍वबजम्बिार‍(हयिक‍िंश)‍था।‍विजम्बिार‍के‍बाद‍पुत्र‍अजािशत्रु‍ने‍वबहार‍के‍
िाथ-िाथ‍लगभग‍आधे‍उत्तर‍प्रदे श‍पर‍भी‍आतधपत्य‍कर‍तलया‍था।‍मगध‍िाम्राज्य‍का‍िबिे‍
शवक्तशाली‍राजा‍नन्द‍िंश‍का‍िंस्थापक‍महापदमनन्द‍था‍जजिके‍िमय‍में‍पहली‍बार‍एक‍ऐिे‍
िाम्राज्य‍की‍स्थापना‍हुई जजिका‍विस्िार‍उत्तर‍भारि‍के‍िाथ‍ही‍गुजराि, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब,
कनािटक, उड़ीिा‍िक‍था।‍इि‍काल‍में‍िम्पूण‍ि िाम्राज्य‍में‍िहुमख
ु ी‍प्रगति‍हुई।‍महापदमनन्द‍के‍
िमय‍में‍ही‍तिकन्दर‍का‍आिमण‍हुआ‍था, लेककन‍डर‍बि‍िह‍व्याि‍नदी‍िे‍आगे‍नहीं‍बढ़ा।

मौयि‍िाम्राज्य
मगध‍में‍मौयि‍िंश‍की‍स्थापना‍िन्द्रगुप्त‍मौयि‍द्वारा‍322‍ई.पू.‍में‍नन्द‍िंश‍को‍पराजजि‍करके
की‍गयी।‍इिके‍विजयों‍िे‍मगध‍िाम्राज्य‍पजिम‍में‍ईरान‍िौराष्ट्र‍िे‍लेकर‍पूि‍ि में‍बंगाल‍िक‍िथा‍
उत्तर‍में‍कहमालय‍िे‍दजक्षण‍में‍कनािटक‍िक‍विस्िृि‍था|‍िन्द्रगुप्त‍मौयि‍के‍बाद‍उिका‍पुत्र‍वबन्दि
ु ार‍
िपिाि ्‍वबन्दि
ु ार‍का‍पुत्र‍अशोक‍मौयि‍िाम्राज्य‍गद्दी‍पर‍बैठा।‍अशोक‍एक‍महान‍शािक‍था।‍गन‍
अपने‍राज्यातभषेक‍के‍आठिें‍िषि‍(261‍ई.पू.)‍कतलंग‍पर‍विजय‍प्राप्त‍ककया|‍अपने‍जीिन‍के‍
प्रराजम्भक‍िम्यों‍में‍अशोक‍ब्राह्मण‍धमि‍िे‍िम्बजन्धि‍था‍लेककन‍बाद‍में‍बौद्ध‍धमि‍ग्रहण‍कर‍तलया।‍
उिने‍लुजम्बनी‍की‍यात्रा‍ककया‍और‍िहााँ‍कुछ‍तनमािण‍कायि‍भी‍करिाया।‍अपनी‍जनिा‍के‍नैतिक‍
उत्थान‍के‍तलए‍अशोक‍ने‍जो‍आिार‍िंकहिा‍प्रस्िुि‍ककया‍िह‍‘धम्म’ के‍नाम‍िे‍जाना‍जािा‍है ।‍
विश्व‍में‍अशोक‍ऐिा‍पहला‍शािक‍था‍जजिकी‍दृवष्ट‍में‍िम्पूण‍ि जीिधारी‍िमान‍थे।‍अशोक‍के‍
इतिहाि‍का‍स्रोि‍उिके‍अतभलेख‍हैं ।‍उिके‍अभी‍िक‍40‍िे‍भी‍अतधक‍अतभलेख‍प्राप्त‍हो‍िुके‍है ।‍
इन‍40‍अतभलेखों‍में‍िे‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍तमलने‍िाले‍अतभलेख‍इि‍प्रकार‍हैं ‍(1.) अहरौरा‍(तमजािपुर)‍का‍
लघु‍तशलालेख, (2.) टोपरा‍(जखज्राबाद-िहारनपुर)‍का‍स्िम्भलेख, (3.) मेरठ‍का‍स्िम्भलेख, (4.) कौशाम्बी‍
का‍स्िम्भलेख‍िथा‍(5.) िारनाथ‍का‍लघु‍स्िम्भलेख।‍टोपरा‍एिं‍मेरठ‍स्िम्भ‍लेख‍को‍
कफरोजिुगलक‍के‍द्वारा‍कदल्ली‍में‍िथा‍कौशाम्बी‍स्िम्भलेख‍को‍अकबर‍द्वारा‍प्रयाग‍ककले‍में‍स्थावपि‍

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कराया‍गया।‍उिके िारनाथ‍स्िम्भलेख‍के‍शीषि‍पर‍बने‍तिंहों‍की‍आकृ ति‍को‍हीं‍भारि‍िरकार‍ने‍


अपना‍राजकीय‍तिन्ह‍बनाया|
अशोक‍कालीन‍पाबाण‍कलाकृ तियों‍िथा‍लेखों‍का‍तनमािण‍िुनार‍(तमजािपरु )‍के‍बलुए‍पत्थर‍िे‍ककया‍
गया‍है ।‍अशोक‍काल‍में‍हजारों‍स्िृपों‍का‍तनमािण‍कराया‍गया।‍ह्रे निांग‍ने‍उत्तर‍प्रदे श‍के‍मथुरा,
कन्नौज, कौशाम्बी, श्रािस्िी, काशी‍आकद‍स्थानों‍पर‍अनेकों‍स्िूपों‍के‍होने‍का‍उल्लेख‍ककया‍है ।
िारनाथ‍का‍धमिराजजका‍स्िूप‍आज‍भी‍विद्यमान‍है ।

शुंग‍िंश
पुष्यतमत्र‍शुग
ं ‍नामक‍एक‍ब्राह्मण‍ने‍185‍ई.पू.‍में‍अंतिम‍मौयि‍िम्राट‍बृहद्रथ‍की‍हत्या‍करके‍मौयि
िाम्राज्य‍पर‍अतधकार‍कर‍तलया‍और‍अपनी‍राजधानी‍पाटतलपुत्र‍की‍जगह‍विकदशा‍में‍बनाया।‍
अयोध्या‍के‍तशलालेख‍िे‍पिा‍िलिा‍है ‍कक‍यह‍ब्राह्मण‍धमािनुयायी‍था‍और‍पिंजतल‍की‍अध्यक्षिा‍
में‍दो‍अश्वमेध‍यज्ञ‍करिाया।‍यह‍ब्राह्मण‍धमािनुयायी‍होिे‍हुए‍भी‍िकहष्णु‍था‍और‍भरहुि‍(ििना)‍
में‍स्िूप‍का‍तनमािण‍कराया।‍शुंगकालीन‍िाम्राज्य‍िीमा‍िन्द्रगुप्त‍मौयि‍के‍िुल्य‍था।‍इि‍काल‍में‍
उत्तर‍प्रदे श‍में‍िंस्कृ ि‍भाषा,‍स्थापत्य‍कला‍िथा-ब्राह्मण‍धमि‍का‍पुनरूत्थान‍हुआ।‍
कालान्िर‍में‍शुंग‍राजिंश‍की‍नींि‍पर‍कण्ि‍िंश‍की‍शािन‍ित्ता‍स्थावपि‍हुई।‍इि‍िंश‍का‍ प्रथम‍
राजा‍ििुदेि‍था।‍उत्तर‍भारि‍पर‍इि‍िंश‍का‍शािन‍75‍ई.पू.‍िे‍लगभग‍30‍ई.पू.‍िक‍रहा|‍

कहन्द-यिन (इण्डो-ग्रीक)‍आिमण

भारि‍पर‍िबिे‍पहले‍आिमण‍उन‍यूनातनयों‍ने‍ककया‍जजिे‍कहन्द-यिन‍कहा‍जािा‍है ।‍ईिा-पूिि
दि
ू री‍शिाब्दी‍के‍आरम्भ‍में‍कहन्द‍यूनातनयों‍ने‍पजिमोत्तर‍भारि‍के‍एक‍विशाल‍क्षेत्र‍पर‍कब्जा
कर‍तलया‍था।‍लेककन‍गंगा‍घाटी‍क्षेत्र‍में‍शुंगों‍िे‍पराजजि‍होने‍के‍कारण‍इि‍क्षेत्र‍पर‍उनका‍कब्जा‍
नहीं‍हो‍पाया।‍शुंग‍एिं‍कण्ि‍िंश‍की‍िमातप्त‍के‍बाद‍ही‍ये‍आगे‍बढ़‍पाये।‍पिंजतल‍के‍महाभाष्य‍िे‍
पिा‍िलिा‍है ‍कक‍यिनों‍ने‍िाकेि‍को‍घेर‍तलया‍था‍िथा‍िे‍गंगा‍की‍घाटी‍में‍बहुि‍आगे‍िक‍बढ़‍
आये‍थ।‍इण्डो-यिन‍(यूनानी)‍शािकों‍में‍मेनाण्डर‍का‍नाम‍ििाितधक‍प्रतिद्ध‍है ।‍इिका‍िाम्राज्य‍
झेलम‍िे‍मथुरा‍िक‍विस्िृि‍था‍िथा‍शाकल‍(स्यालकोट)‍उिकी‍राजधानी‍थी।‍इि‍यिन‍िाम्राज्य‍
की‍स्थापना‍में‍जहााँ‍यूनानी‍भारिीय‍धमि‍िे‍प्रभाविि‍हुए‍िहीं‍दि
ू री‍ओर‍भारिीयों‍ने‍कला, विज्ञान,
मुद्रा, ज्योतिष‍आकद‍के‍विषय‍में‍यूनानी‍िंस्कृ ति‍िे‍बहुि‍कुछ‍िीखा।‍गान्धार‍कला‍शैली‍इन्हीं‍की‍
दे न‍है ।‍मथुरा‍कला‍में‍भी‍इनके‍कुछ‍प्रभाि‍कदखिे‍हैं ।

शक‍(क्षत्रप‍िंश)
शक‍मूलिः‍िीरदरया‍(मध्य‍एतशया)‍के‍पाि‍तनिाि‍करने‍िाली‍एक‍खानाबदोश‍िथा‍बबिर‍जाति‍
थी, जजनका‍ईरान‍िे‍होकर‍भारि‍में‍प्रिेश‍हुआ‍और‍भारि‍में‍यिन‍ित्ता‍को‍िमाप्त‍कर‍एक‍बड़े ‍
भू-भाग‍पर‍अतधकार‍कर‍तलया।‍िक्षतशला, मधुरा, महाराष्ट्र, उज्जतयनी‍आकद‍स्थानों‍पर‍इनकी‍तभन्‍
न-

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तभन्‍न‍शाखायें‍स्थावपि‍हुई।‍मथुरा‍शाखा‍का‍प्रथम‍क्षत्रप‍राजूल‍था‍जजिका‍उल्लेख‍मोरा‍(मथुरा)‍
िे‍प्राप्त‍ब्राह्मी‍में‍उत्कीणि‍लेख‍में‍हुआ‍है ।‍मथुरा‍के‍शकों‍का‍शािन‍पूिी‍पंजाब‍िे
मथुरा‍िक‍विस्िृि‍था|‍

कुषाण‍िंश‍
कुषाण‍िीन‍के‍िीमाििी‍प्रदे शों‍के‍आि-पाि‍तनिाि‍करने‍िाली‍यू-िी‍जाति‍की‍एक‍शाखा‍थी|‍ये‍
पजिमोत्तर‍भारि‍के‍पातथियनों,‍पल्लिों‍और‍आगे‍शकों‍को‍परास्ि‍कर‍भाराि‍में‍कुषाण‍िंश‍की‍
स्थापना‍ककये|‍कुषाण‍िंश‍का‍प्रथम‍शािक‍कुजुल‍कडकफिेि‍था|‍कुजुल‍के‍बाद‍विम‍कडकफिेि‍
ित्ता‍िम्भाला|‍इिके‍तिक्के‍मथुरा‍िक‍तमलिे‍हैं , जजनपर‍तशि, नन्दी‍िथा‍वत्रशूल‍की‍आकृ तियााँ‍
उत्कीणि‍हैं ।‍शायद‍यह‍शैि‍धमािनुयायी‍था।‍भारि‍के‍कुषाण‍राजाओं‍में‍िबिे‍महान‍कतनष्क‍था।‍
उिने‍78‍ई.‍िे‍शक‍िंिि ्‍की‍शुरूआि‍की, जो‍िििमान‍में‍भारि‍िरकार‍द्वारा‍प्रयोग‍में‍लाया‍जािा‍
है ।‍उत्तर‍प्रदे श‍के‍विस्िृि‍भाग‍में‍तमले‍तिक्के‍और‍उत्कीणि‍प्रलेखों‍मे‍यह‍तिद्ध‍होिा‍है ‍कक‍यह‍
क्षेत्र‍ककिी‍िमय‍कुषाण‍िाम्राज्य‍का‍अंग‍था।‍कतनष्क‍का‍िाम्राज्य‍गांधार‍िे‍अिध‍और‍िाराणिी‍
िक‍विस्िृि‍था‍और‍इिकी‍राजधानी‍पुरूषपुर‍(पेशािर)‍थी।‍मथुरा‍िे‍कुषाण‍काल‍के‍जो‍तिक्के,
अतभलेख, िंरिनाएं‍और‍मूतिियााँ‍तमलिी‍हैं ‍उनिे‍प्रकट‍होिा‍है ‍कक‍मथुरा‍भारि‍में‍कुषाणों‍की‍
कद्विीय‍राजधानी‍थी।‍इि‍िमय‍मथुरा‍व्यापार‍और‍िंस्कृ ति‍का‍प्रमुख‍केन्द्र‍था।‍कतनष्क‍के‍िमय‍
में‍कला‍के‍क्षेत्र‍में‍दो‍स्ििंत्र‍शैतलयों‍(गान्धार‍एिं‍मथुरा)‍का‍विकाि‍हुआ।‍िीिरी‍िदी‍के‍आिे-
आिे‍कुषाणों‍का‍प्रभुत्ि‍मध्य‍दे श‍िे‍िमाप्त‍हो‍िुका‍था‍और‍अनेक‍छोटे -छोटे ‍राज्य‍उभरने‍लगे‍
थे।

गुप्त‍िंश‍
कुषाण‍िाम्राज्य‍के‍विघटन‍के‍पिाि ्‍जजि‍विकेन्द्रीकण‍के‍युग‍का‍प्रारम्भ‍हुआ‍िह‍ििुथ‍ि शिाब्दी‍
ईस्िी‍के‍प्रारम्भ‍में‍गुप्त‍राजिंश‍के‍उदय‍होने‍के‍पूि‍ि िक‍िलिा‍रहा।‍इि‍बीि‍के‍काल‍में‍उत्तर‍
भारि‍िकहि‍प्रायः‍िभी‍भागों‍में‍छोटे -छोटे ‍राज्यों‍एिं‍गणराज्यों‍का‍शािन‍था।‍मगध‍में‍गुप्त‍
राजिंश‍की‍स्थापना‍275‍ई.‍में‍महाराज‍श्री‍गुप्त‍द्वारा‍की‍गयी, लेककन‍इि‍िंश‍का‍िास्िविक‍
िंस्थापक‍घटोत्कि‍था।‍घटोत्कि‍के‍बाद‍उिका‍पुत्र‍िन्द्रगुप्त‍प्रथम‍मगध‍का‍शािक‍बना।‍इिने‍
मगध‍की‍िीमा‍को‍काशी‍िथा‍कौशल‍िक‍बढ़ाया|‍इिी‍ने‍319-20‍ई.‍में‍गुप्त‍िम्िि ्‍का‍प्रिििन‍
ककया।‍िन्द्रगुप्त‍प्रथण‍के‍बाद‍उिके‍पुत्र‍िमुद्रगु ्प्त‍ने‍मगध‍िाम्राज्य‍की‍बागडोर‍िम्भाली।‍इिे‍
भारि‍का‍नेपोतलयन‍कहा‍जािा‍है ।‍इिके‍उत्तरापथ‍एिं दजक्षणापथ‍अतभयानों‍का‍उल्लेख‍प्रयाग‍
प्रशाजस्ि‍में‍ककया‍गया‍है ।‍उत्तरापथ‍के‍12 राज्यों‍में‍िे‍4

उत्तर‍प्रदे श‍में‍अिजस्थि‍हैं ।‍अिं:‍िम्पूण‍ि उत्तर‍प्रदे श‍गुप्त‍िाम्राज्य‍का‍अंग‍था।‍िमुद्रगुप्त‍के‍बाद‍


उिका‍पुत्र‍िन्द्रगुप्त‍कद्विीय‍(वििमाकदत्य)‍गद्दी‍पर‍बेठा।‍िह‍विद्या‍का‍बड़ा‍प्रेमी‍था।‍उिके‍दरबार‍
में‍नौ‍विद्वानों‍की‍एक‍मण्डली‍थी‍जजिमें‍कातलदाि,‍धनिन्िरर,‍क्षमणक,‍अमर‍तिंह,‍शंकु,‍
िेिालभट्ट,‍घटकपिर,‍िारातमकहर‍ि‍िरूिी‍िजम्मतलि‍थे।‍इिके‍शािनकाल‍को‍गुप्तकाल‍का‍स्िणि‍

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युग‍कहा‍जािा‍है ।‍मंकदर‍कला‍ि‍विकाि‍गुत्प‍काल‍में‍ही‍हुआ।‍उत्तर‍प्रदे श‍के‍भीिरगांि‍


(कानपुर),‍भीिरी‍गाजीपुर,‍दे िगढ़‍(झांिी)‍िे‍मंकदर‍के‍अिशेष‍तमलिे‍हैं ।‍गुप्तकाल‍में‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍
आतथिक,‍शैक्षजणक‍एिं‍िांस्कृ तिक‍गतिवितधयों‍में‍अकद्विीय‍विकाि‍हुआ।

गुप्तोत्तर‍काल

गुप्तकाल‍के‍पिन‍के‍बाद‍भारि‍के‍राजनीतिक‍इतिहाि‍में‍ऐिी‍प्रिृवत्त‍थी‍–‍विकेन्द्रीकरण‍और‍क्षेत्रीयिा‍की‍
भािना।‍7िीं‍िदी‍िक‍आिे-आिे‍पाटतलपुत्र‍की‍जगह‍कन्नौज‍(उत्तर‍प्रदे श)‍उत्तर‍भारि‍का‍राजनीतिक‍केन्द्र‍
बन‍गया।

उत्तर‍भारि‍में‍गुप्तकालीन‍शांति‍और‍िमृजध्द‍को‍परििी‍गुप्तनरे श‍नहीं‍बिा‍िके।‍484‍ई.‍में‍िोरमाण‍और‍
तमकहरकुल‍के‍नेित्ृ ि‍में‍उत्तर-पजिमी‍िीन‍के‍श्वेि‍हूणों‍ने‍मथुरा,‍कन्नौज‍और‍कौशाम्बी‍पर‍धािा‍बोला‍और‍
इन‍नगरों‍को‍जला‍डाला।‍इिी‍िमय‍कन्नौज‍के‍मौखररिंशीय‍शािक‍ईिानिमाि‍ने‍हूणों‍को‍पराजजि‍कर‍
उत्तर‍भारि‍को‍हूणों‍िे‍मुक्त‍कराया।‍कन्नौज‍पर‍मौखरर‍िंश‍का‍शािन‍कुछ‍ही‍िमय‍िक‍रह‍पाया‍और‍
इि‍पर‍पुष्यभूति‍(िधिन)‍िंश‍की‍ित्ता‍स्थावपि‍हो‍गयी।

पुष्यभूति‍(िधिन‍िंश)

पुष्यभूति‍(िधिन)‍िंश‍का‍िंस्थापक‍पुष्यभूति‍था।‍पुष्यभूति‍िे‍लेकर‍िमश:‍िीन‍शािक‍िामन्ि‍थे,‍लेककन‍
िौथा‍शािक‍प्रभाकरिध्दि न‍ने‍इि‍िंश‍को‍थानेश्वर‍का‍स्ििंत्र‍शािक‍बना‍कदया।‍हषि‍िध्दि न,‍प्रभाकरिध्दि न‍
का‍पुत्र‍था।‍हषि‍ने‍थानेश्वर‍की‍जगह‍कन्नौज‍को‍जीिकर‍अपनी‍राजधानी‍बनाया‍और‍उत्तर‍भारि‍को‍एक‍
बार‍कफर‍राजनीति‍के‍मुख्य‍पटल‍पर‍स्थावपि‍ककया।‍हषि‍का‍िाम्राज्य‍थानेश्वर‍िे‍लेकर‍दजक्षण‍में‍नमिदा‍
नदी‍िट‍िथा‍पूि‍ि में‍गंजाम‍िे‍लेकर‍पजिम‍में‍बल्लभी‍िक‍विस्िृि‍था।‍कन्नौज‍को‍उिकी‍िमृजध्द‍के‍
कारण‍‘महोदय‍श्री’‍कहा‍जािा‍था।‍हषि‍कालीन‍शािन‍और‍कन्नौज‍की‍िमृजध्द‍का‍उल्लेख‍ह्रे निांग‍के‍
िणिनों‍में‍तमलिा‍है ।‍हषि‍द्वारा‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍दो‍बौद्ध‍िम्मेलनों‍(कन्नौज‍और‍प्रयाग)‍का‍आयोजन‍ककया‍
गया।‍हषि‍के‍बाद‍उत्तर‍भारि‍में‍पुन:‍उथल-पुथल‍मि‍गई।

वत्रकोणात्मक‍िंघषि‍एिं‍प्रतिहार‍विजय

िधिनिंश‍के‍बाद‍कुछ‍िमय‍िक‍कन्नौज‍यशोिमिन‍नामक‍एक‍शवक्तशाली‍शािक‍के‍आधीन‍रहा।‍ित्पिाि ्‍
आयुध्दिंश‍की‍ित्ता‍स्थावपि‍हुई।‍आयुध्दिंशीय‍राजा‍इन्द्रायुध्द‍के‍िमय‍(8िीं‍शिाब्दी)‍कन्नौज‍पर‍(अथािि ्‍
उत्तरी‍भारि‍पर)‍आतधपत्य‍स्थावपि‍करने‍के‍तलए‍िात्कालीन‍िीन‍बड़ी‍शवक्तयों‍पाल,‍गुजरि ‍प्रतिहार‍िथा‍
राष्ट्रकूटों‍के‍बीि‍वत्रपक्षीय‍िंघषि‍शुरू‍हो‍गया,‍जो‍लगभग‍200‍िषों‍िक‍िलिा‍रहा।‍इि‍िंघषि‍का‍अंि‍
कन्नौज‍पर‍गुजरि ‍प्रतिहारों‍के‍अंतिम‍विजय‍िे‍हुआ।‍प्रतिहार‍नरे श‍बड़े ‍िीर‍योध्दा‍थे।‍इनका‍िाम्राज्य‍
मुल्िान‍िे‍िौराष्ट्र‍और‍वबहार‍िे‍विन्ध्य‍िक‍विस्िृि‍था।

तमकहरभोज,‍मकहपाल,‍महे न्द्रपाल‍आकद‍इि‍िंश‍के‍प्रतिध्द‍शािक‍हुए।‍इनमें‍राजा‍भोज‍ििाितधक‍शवक्तशाली‍
था।‍इिके‍िमय‍में‍िुलेमान‍भारि‍आया‍था।‍भोज‍िैष्णि‍धमािनुयायी‍था।‍9िीं‍एिं‍10िीं‍शिाब्दी‍िक‍उत्तर-

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भारि‍गुजरि -प्रतिहारों‍के‍शािन‍ित्ता‍के‍आधीन‍शांति‍एिं‍िमृजध्द‍का‍अनुभि‍करिा‍रहा।‍1018 ई.‍में‍महमूद‍


गजनिी‍ने‍प्रतिहारों‍को‍पराजजि‍का‍कदया।

प्रतिहारों‍के‍बाद‍की‍जस्थति

प्रतिहारों‍की‍पराजय‍के‍बाद‍मध्य‍दे श‍(उत्तर‍प्रदे श)‍में‍पुन:‍अराजकिा‍फैल‍गयी।‍इिी‍िमय‍उत्तर‍प्रदे श‍में‍


दो‍नये‍राजिंशों‍का‍उदय‍हुआ।‍इनमें‍िे‍एक‍महोबा‍का‍िन्दे ल‍िंश‍था‍जजिका‍शािन‍लगभग‍400‍िषों‍
िक‍रहा।‍िन्दे ल‍राजाओं‍के‍स्थापत्य‍नमूने‍अभी‍भी‍खजुराहों‍में‍विद्यमान‍हैं ।‍दि
ू रा‍कन्नौज‍और‍बनारि‍
ु ािि‍िे‍मध्य‍दे श‍में‍पुनः‍शाजन्ि‍एिं‍िुव्यिस्था‍स्थावपि‍
का‍गहड़िाल‍िंश‍था।‍इन‍दोनों‍राजिंशों‍के‍प्रादभ
हुई।‍गहड़िाल िंश‍का‍प्रथम‍राजा‍िो‍यशोविग्रह‍(1080‍िे 1085‍ई.)‍था‍लेककन‍इि‍िंश‍के‍िबिे‍
प्रमुख राजा‍गोविन्द‍िन्द्र‍(1108-1154) और‍जयिन्द्र (1170‍िे‍1193) थे।‍जयिन्द्र‍की‍पुत्री‍िंयोतगिा
का‍स्ियंिर‍िे‍पृथ्िीराज‍द्वारा‍अपहरण‍कर‍तलए‍जाने‍के‍कारण‍िराईन‍के‍युद्ध‍में‍जयिन्द्र‍ने‍
पृथ्िीराज‍के‍बजाय‍मुहम्मद‍गोरी‍का‍िाथ‍कदया‍और‍पृथ्िीराज‍िौहान‍हार‍गया।‍1194‍में‍गोरी‍ने‍
िन्द्रािर‍(इटािा)‍के‍युद्ध‍में‍जयिन्द्र‍को‍भी‍नहीं‍छोड़ा।‍धीरे -धीरे ‍मध्य‍दे श‍िुको‍के‍हाथ‍में‍आ‍
गया।

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