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CLASSICAL MUSIC OF
AGRA GHARANA &
LUCKNOW GHARANA

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अवलोकन / Overview -

• संगीत कला (शास्त्रीय गायन)

• आगरा घराना

• लखनऊ घराना

संगीत कला (शास्त्रीय गायन)

उत्तर प्रदे श में संगीत कला का शुभारम्भ धार्मि क प्रेरणा से हुआ, र्िसका प्रमाण हमें उत्तर वै दिक कालीन
सामवे ि से प्राप्त होता है ।

भरत मु र्ि िे नाटयशास्त्र की रचिा की, र्िसे संगीत का बाइदबल कहा िाता है ।

िातकों के अिुसार भगवाि बुध्द के समकालीि कौशाम्बी नरे श वीणा के दनपुण वािक थे ।

राज्य में छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक की अवर्ध में संगीत के क्षे त्र में कश्यप, शािुु ल, िदत्तल,
मातं गम, अदिनवगुप्त तथा हररपाल आर्द कुछ र्वश्रुत संगीतज्ों के िाम उल्लेखिीय हैं ।

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मध्यकालीि संगीत परम्परा में अमीर खुसरों का महत्त्वपूणि स्थाि हें इिका िन्म 1223 ई. में कासगंज दजले
के पदटयाली गांव में हुआ था।

खुसरो िे उस समय दे श में प्रचर्लत ध्रु वपद गायि शैली में ईरािी शैली का सम्म्श््श्रणकर ख्याल गायन शैली
को प्रचदलत दकया।

खुसरों िे ‘तबला’ व ‘दसतार’ का अर्वष्कार र्कया। उिका र्सतार ‘दितन्त्र वीणा’ का ही एक समु न्न रूप था।

मध्यकाल में एक तरफ भक्ों द्वारा तो दू सरी तरफ रािाश्रय में संगीत का र्वकास हुआ।

वल्लिाचायु िे संगीतबद्ध भिि व पदों के गायि को मं दिरों में अचुना पध्िदत के रूप में प्रचदलत दकया।
इिके र्शष्य परम्परा में िो अष्टछाप कदव आते हैं , वे कर्व के साथ् -साथ संगीतकार भी थे।

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स्वामी हररिासजी का िन्म अलीगढ़ के हररदासपुर ग्राम में हुआ था, ले र्कि इन्ोंिे अपिा िीवि वृ न्दावन के
दनदिवन िामक स्थाि पर व्यतीत र्कया।

वृन्दावि में प्रत्ये क वर्ि स्वामी हररिास संगीतसम्मेलन व ध्रुवपि मेले का आयोिि होता है।

िौिपुर के शासक सुल्तान हुसैन शकी िे कव्वाली की िु न पर ‘बड़ा ख्याल’ का प्रवति ि र्कया और टप्पा
शैली का भी प्रचलि र्कया

आगरा घराना – मु गलकाल में आगरा संगीत का सबसे बड़ा केन्द्र था। इस घरािे का सूत्रपातकताि श्यामरं ग
और सरसरं ग को मािा िाता है । िबर्क कुछ लोग इस घरािे की उत्पर्त अलखिास- मलूकिास से हुई मािते
हैं ।

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खुदशुि अली खााँ लखिऊ ख्याल गायकी के दपतामह माने िाते हैं ।

र्मया गुलाम िबी शौरी िे टप्पा शैली का प्रवति ि र्कया।

गिल की बेगम अख्तर इसी घरािे की थीं।

कार्िम अली, प्यार खां , वासत खााँ , बहादु र खााँ आर्द प्रर्सध्द रबादबये थे ।

वार्िद अलीशाह के काल से ठु मरी को काफी लोकर्प्रयता र्मलिे लगी।

नवाब वादजि अलीशाह ‘रहसनृ त्य’ का र्वशाल आयोिि करते और कृष्ण की भू र्मका स्वयं र्िभाते थे ।
इिके दरबार में होर्लकोत्सव भी भव्यता से मिाया िाता था।

र्बन्दादीि के बाद शम्भू महराज, लछू महराज, दबरजू महाराज, कालका महराज, अच्छन महराज आर्द िे
कथक शैली को ियी र्दशा दी।

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