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36 माँ की संस्कार शाला- समय का सदुपयोग
36 माँ की संस्कार शाला- समय का सदुपयोग
मााँ की संस्कारशाला
मानवीय र्गभण –समय का सदभपयोर्ग सप्ताि क्र. 36
2| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36
दवषय सूची
मानवीय गण
ु - समय का सदुपयोग
प्रथम दिवस
व
मााँ से दनवेिन
जीवन का महल समय की—घण्टे-ममनटों की ईटोंं से मिना गया है। यमि हमें जीवन से
प्रेम है तो यही उमित है मक समय को व्यर्थ नष्ट न करें । मरते समय एक मविारशील व्यमि ने
अपने जीवन के व्यर्थ ही िले जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा—‘‘मैंने समय को नष्ट
मकया, अब समय मझु े नष्ट कर रहा है।’’
खोई िौलत मफर कमाई जा सकती है।
भल ू ी हुई मवद्या मफर याि की जा सकती है।
खोया हुआ स्वास््य मिमकत्सा द्वारा लौटाया
जा सकता है, पर खोया हुआ समय मकसी
प्रकार नहीं लौट सकता, उसके मलए के वल
पश्चाताप ही शेष रह जाता है।
मजस प्रकार धन के बिले में अभीष्ट
वस्तएु ं खरीिी जा सकती हैं, उसी प्रकार समय के बिले में मवद्या,
बमु ि, लक्ष्मी, कीमतथ, आरोग्य, सख
ु -शामतत, ममु ि आमि जो भी वस्तू रुमिकर हो खरीिी जा
सकती है। ईश्वर ने समय रूपी प्रिरु धन िेकर मनष्ु य को प्ृ वी पर भेजा है और मनिेश मिया है
मक वह इसके बिले में संसार की जो भी वस्तु रुमिकर समझे खरीि ले।
मकततु मकतने व्यमि हैं जो समय का मल्ू य समझते और उसका सिपु योग करते हैं?
अमधकांश लोग आलस्य और प्रमाि में पडे हुए जीवन के बहुमल्ू य क्षणों को यों ही बबाथि करते
रहते हैं। एक-एक मिन करके सारी आयु व्यतीत हो जाती है और अमततम समय वे िेखते है मक
उतहोंने कुछ भी प्राप्त नहीं मकया, मजतिगी के मिन यों ही मबता मिये। इसके मवपरीत जो जानते हैं
मक समय का नाम ही जीवन है वे एक एक क्षण को कीमती मोती की तरह खिथ करते हैं और
उसके बिले में बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। हर बमु िमान् व्यमि ने बमु िमत्ता का सबसे बडा
4| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36
पररिय यही मिया है मक उसने जीवन के क्षणों को व्यर्थ बबाथि नहीं होने मिया। अपनी समझ के
अनसु ार जो अच्छे से अच्छा उपयोग हो सकता र्ा, उसी में उसने समय को लगाया। उसका
यही कायथक्रम अतततः उसे इस मस्र्मत तक पहुिं ा सका, मजस पर उसकी आत्मा सततोष का
अनभु व करे । प्रमतमिन एक घण्टा समय यमि मनष्ु य मनत्य लगाया करे तो उतने छोटे समय से भी
वह कुछ ही मिनों में बडे महत्वपणू थ कायथ परू े कर सकता है। एक घण्टे में िालीस पष्ठृ पढ़ने से
महीने में बारह सौ पष्ठृ और साल में करीब पतरह हजार पष्ठृ पढ़े जा सकते हैं यह क्रम िस वषथ
जारी रहे तो डेढ़ लाख पष्ठृ पढ़े जा सकते हैं। इतने पष्ठृ ों में कई सौ ग्रतर् हो सकते हैं। यमि वे एक
ही मकसी मवषय के हों तो वह व्यमि उस मवषय का मवशेषज्ञ बन सकता है। एक घण्टा प्रमतमिन
कोई व्यमि मविेशी भाषायें सीखने में लगावें तो वह मनष्ु य मनःसतिेह तीस वषथ में इस ससं ार की
सब भाषाओ ं का ज्ञाता बन सकता है। एक घण्टा प्रमतमिन व्यायाम में कोई व्यमि लगाया करे
तो अपनी आयु को पतरह वषथ बढ़ा सकता है।
माताओ ं से मनवेिन है मक जीवन के इस समय रूपी स्वरूप से बच्िों को पररमित कराएं
एवं बच्िों को गमी की छुरियां आलस में ना मबताने िेकर उतहें उपयोगी कामों में लगाए रहें ।
महर्षि कवे की गह
ृ स्थी
एक सद्गह
ृ स्थ के तीन लड़के थे। नाम था उनका कवे। वे यह नह ीं
चाहते थे कक अपने पुत्रों को अनावश्यक धन दे कर उनको परावलींबी, आलसी
व प्रमाद बनाकर उनका भववष्य चौपट कर ददया जाए।
5| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36
6| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36
खेलकूि लेने मिया जाए , जब समय आएगा, काम-काज मसर पर आ पडेगा तो आप कर लेंगे।
अमभभावकों की यह मविार धारा बडी अवैज्ञामनक है। मजन बच्िों को शरू ु से ही र्ोडा-र्ोडा
काम में लगाया जाता रहता है उनका उस काम में एक प्रकार से प्रमशक्षण होता िलता है। उतहें
उसकी बाहरी व भीतरी बातें पता िलती हैं। उनकी रुमि बढ़ती ही जाती है और जब वे पढ़ाई
परू ी करने के बाि वह काम अपने हार्ों में लेते हैं तो वह उनके मलए बहुत नवीन या कमठन नहीं
होता।
मजन अमभभावकों की खेती
होती है, वे अवकाश के समय में
उतहें खेती के काम से पररमित
कराएाँ, सहायता लें। खेतों पर घमु ाने
ले जाएाँ, उनकी पैिावार और
कमठनाई के मवषय में अवगत कराएाँ।
मकन खेतों में पैिावार अच्छी होती है
और मकन में नहीं, इसका कारण
बतलाएाँ। हल मकस प्रकार ठीक से
जोता जाता है, बैल कौन-सी नस्ल
के अच्छे होते हैं और उनको मकस
प्रकार स्वस्र् रखकर अमधक से अमधक काम मलया जा सकता है - यह सब व्यावहाररक
अनभु व उतहें कराएाँ। ऐसा करने से उनका न।के वल ज्ञान बढ़ेगा बमल्क खेती के काम में रुमि भी
पैिा होगी, मजससे यह समस्या हल होने में सहायता ममलेगी मक बच्िे पढ़ मलखकर खेती करने
के बजाय शहरों में छोटी-मोटी नौकरी कर लेना पसति कर लेते हैं। मकसी काम की योग्यता,
उससे हार् पााँवों का पररिय और रहस्यों की जानकारी उसमें वह रुमि पैिा कर िेती है। यमि
बच्िे शरूु से ही हल, बैल ममिी, खाि, खेत आमि से तन-मन से पररमित होते रहें तो वह उनके
मलए नवीन काम न रह जाए। उनकी सारी मझझक मनकल जाए और वे उसके लाभ तर्ा
उपयोमगता से पररमित होने से सहषथ वह धतधा अङ्गीकार कर लेंगे।
7| समय का सदभपयोर्ग
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व्यापारी वगथ भी अपने धतधों में बच्िों को इसी प्रकार प्रमशमक्षत कर सकते हैं। वे उतहें
अपने सार् बाजारों में ले जाएाँ। क्रय-मवक्रय की रीमत से पररमित कराएाँ। माल की अच्छाई-
बरु ाई पहिानने की योग्यता िें। अतय व्यापाररयों के शील स्वभाव तर्ा आवश्यकताओ ं से
पररमित कराएाँ। बाजारों की आवश्यकता तर्ा ग्राहकों की मााँग व रुमि से अवगत करें । व्यापार
की तरक्की का क्या रहस्य है उसमें पतन तर्ा घाटा मजन कारणों से आता है वे बताए जा सकते
हैं और उनसे सावधान रहने की िेतावनी िी जा सकती है। इस प्रकार उनसे बाजारिारी और
िक
ु ानिारी कराकर उनको बहुत पहले से ही उस काम में रमाया जा सकता है मजससे आगे िल
कर उनका मन न लगने का प्रश्न ही न उठे । बच्िों के अवकाश का समय बेकार नहीं जाने िेना
िामहए। उसे मकसी न मकसी प्रकार उपयोग में लाना ही ठीक होगा।
वे अमभभावक मजनका अपना कुछ काम नहीं होता, बच्िों को आगे मजस काम में
लगाना िाहते हैं उस काम के मलए मकतहीं
िसू रे के पास भेज सकते हैं। मामनए
आप बच्िे को तकनीकी क्षेत्रों में
पहुिाँ ाना िाहते हैं मकततु आप स्वयं
मकसी कायाथलय में नौकरी करते हैं।
ऐसी िशा में आप बच्िे को मकसी भी
ममत्र पररमित अर्वा सम्बतधी के उस
कारखाने में भेज सकते हैं मजसमें
मशीनरी अर्वा अतय तकनीकी काम होता हो। मकसी कारखाने के मामलक मैनेजर को बच्िे से
काम लेने के मलए कह सकते हैं। शायि ही ऐसा कोई अिरू िशी मैनेजर मामलक हो जो आप की
प्रार्थना अस्वीकार कर िे। आज िेश को ज्यािा से ज्यािा तकनीमशयनों की जरूरत है। सरकार
को ही नहीं व्यमि उद्योगपमतयों तर्ा छोटे-छोटे कारखानेिारों को उनकी कमी रहती है। वे तो
खश ु ी से िाहेंगे मक लोग अपने बच्िे तकनीकी लाइन में सीखने के मलए भेजें।
इसी प्रकार जो अपने बच्िे को व्यापारी बनाना िाहते हैं , यमि बच्िे मनस्वार्थ भाव से
ईमानिारी के सार् काम तर्ा सेवा करें गे तो कोई भी व्यापारी उतहें रखने मसखाने में आपमत्त न
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मााँ की संस्कारशाला-36
करे गा। बहुत से पररवारों में उनके घरे लू उद्योग धतधे होते हैं। वे बच्िों को उसमें लगा सकते हैं।
कताई वाले कताई और मसलाई करने वाले उनको मसलाई का प्रमशक्षण िे सकते हैं। रंगाई,
मीनाकारी अर्वा कढ़ाई, छपाई का काम करने वाले उतहें अपने काम का अभ्यास करा सकते
हैं। इस प्रकार एक नहीं सैकडों काम ऐसे हो सकते हैं जो अवकाश के मिनों में बच्िों को
मसखाए और उनसे कराए जा सकते हैं। अवकाश का समय मजस प्रकार से िाहें खराब करें
बच्िों को इसकी स्वततत्रता नहीं िेनी िामहए। उन मिनों उनका सामातय मनयम बंधन भी टूट
जाता है। पढ़ाई मलखाई का काम एक तरह से स्र्मगत हो जाता है। इसमलए समय पर उठना,
स्कूल के मलए तैयारी करना, समय पर पढ़ना और समय पर खेलने के सारे मनयम मशमर्ल हो
जाते हैं, मजससे उनमें आलस्य अव्यवस्र्ा तर्ा अमनयममतता की िबु थलता पैिा हो जाती है जो
स्कूल खल ु ने के बाि बहुत-सा समय लेकर िरू हो पाती है इसमलए उनको अवकाश के मिनों
को सोने, मटरगस्ती करने अर्वा जहााँ-तहााँ मनठल्ले उठने बैठने की छूट किामप नहीं िी जानी
िामहए। आवश्यकतानसु ार उतहें मकतहीं उपयोगी काम में लगाया जाना िामहए। यह उनके
भमवष्य के मलए ही महतकारी होगा। बेकार मफरते रहने से उनमें अतय अनेक प्रकार के मवकार
व्यसन भी पैिा हो सकते हैं। इन सबकी सम्भावनाएाँ बच्िों को काम में लगाए रहने से िरू हो
जाती है।
प्रगमतशील मविेशों में छात्रों का अवकाश बेकार नहीं जाने मिया जाता है। उनमें
सस्ं र्ाओ ं तर्ा सरकार के सहयोग से छात्रों के अवकाश मशमवरों का आयोजन मकया जाता है।
उिाहरण के मलए अमेररका को ले लीमजए वहााँ के ये मशमवर बडे व्यावहाररक ढंग से िलाए
जाते हैं और प्रमतवषथ इनमें अमधकामधक छात्र आकृष्ट होते रहते हैं। उन अवकाश मशमवरों में
उतहें सतु िर आहार, उमित काम, खेलकूि और स्वस्र् मनोरंजन के अवसर मिए जाते हैं।
मनोवैज्ञामनक मनिेश, प्रार्ममक मिमकत्सा, जन-सेवा, व्यायाम, खेलकूि, तैराकी, भोजन बनाने
आमि का प्रमशक्षण मिया जाता है। उतहीं मशमवरों में उतहें नैमतकता, िेशभमि तर्ा ससं ार की
राजनीमत पर प्रविन तर्ा भाषण भी मिए जाते हैं और मिलाए भी जाते हैं। मवद्यामर्थयों में नई
स्फूमतथ, नई रुमि तर्ा नई िेतना होती है। उनका मन पढ़ाई में परू ी तरह से लगता है और वे
मशमवरों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग भी अपनी योग्यता प्रिमशथत करने में मकया करते हैं।
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प्रथम दिवस
धाक जमाना?
महु ावरा?
अमूल्य समय
एक शहर में एक अमीर व्यमि रहता र्ा उस व्यमि ने अपना सारा जीवन पैसे कमाने में
लगा मिया र्ा । उसके पास इतना धन हो गया र्ा मक वह उस शहर को भी खरीि सकता र्ा
लेमकन उसने अपने परू े जीवन भर में मकसी की भी सहायता नही की । वह अक्सर अपने बैंक
बैलेंस पर फूला नही समाता र्ा वह खिु के कमाए धन पर हमेशा गवथ महससू करता र्ा।
लेमकन कभी भी इन कमाए हुए धन का इस्तेमाल अपने ऊपर नही मकया। यहााँ तक मक उसने
इन पैसों से कभी भी अपने मन मतु ामबक कपडे, भोजन या अतय इच्छाओ पर खिथ नही मकया ।
वह मसफथ अपने सारे जीवन पैसे कमाने में ही मस्त रहा और इस तरह वह पैसे कमाने में इतना
मस्त हो गया र्ा मक उसे पता ही नही िला की वह बढू ा हो गया है और जीवन के आमखरी
पडाव पर आ गया है।
इस तरह एक रात उस व्यमि के
जीवन का अतं मनकट भी आ गया र्ा
और यमराज उसके प्राण लेने आ गये।
मजसे िेखकर वह व्यमि सहम गया तब
यमराज ने कहा – अब आपका जीवन
का समय खत्म हो िकु ा है अब मेरे सार्
िलना होगा।
मजसे सनु कर वह व्यमि सोिता रह गया और बोला – “प्रभु अभी तो मैंने अपना जीवन
भी नही जीया है मैं तो मसफथ अपने काम करने में ही व्यस्त र्ा। मझु े अपने धन िौलत का
उपयोग करने के मलए कुछ समय िामहए जो मक इन सम्पमत को मैंने काफी वषो के मेहनत के
बाि कमाया है”
मफर यमराज ने कहा – “नही मै तम्ु हे और समय नही िे सकता हाँ । जीवन का समय
मनमश्चत है जो मक बढाया नहीं जा सकता है”
मफर उस व्यमि ने कहा – “प्रभु िेमखये मेरे पास इतना धन है आप िाहो तो इस धन का
आधा महस्सा ले लीमजये लेमकन मझु े जीवन जीने के मलए एक वषथ और िे िीमजये”
इस पर यमराज ने कहा – “यह किामप सम्भव नही है”
मफर वह व्यमि बोला – “प्रभु आप िाहो तो मेरे धन का 90% ले लें लेमकन मझु े जीवन
के मलए 1 महीने का समय िे िें ”
मफर यमराज का उत्तर ना में आया।
और मफर उस व्यमि ने कहा – प्रभु आप िाहो तो मेरा सारा धन ले लीमजये लेमकन मझु े
मसफथ 1 घंटे और िे िीमजये।
इस पर यमराज ने कहा – “आप अपने जीवन के कीमती समय को धन से कभी खरीि
नही सकते है एक बार जो वि िला जाता है उसे मकसी भी धन से वापस िबु ारा नही लाया जा
सकता है”
इस प्रकार वह व्यमि मजसे अपने धन पर बडा अमभमान र्ा आज वह सब व्यर्थ लगने
लगा र्ा और इस प्रकार अपने जीवन के बहुमल्ू य समय को याँहू ी धन कमाने में मबता मिया र्ा।
आज वही धन इस समय को रोक नही सकता है और मफर िख ु ी मन से पछताते हुए बोला –
ठीक है प्रभु जैसी आपकी आज्ञा, लेमकन मेरी आमखरी इच्छा परू ी कररये।
मजसे यमराज ने स्वीकार कर मलया।
मफर उस व्यमि ने अपने शहर वामसयों के मलए एक पैगाम मलखा – मैंने मजस धन को
कमाने के मलए परू े जीवन को लगा मिया और आज वही धन मेरे जीवन के 1 सेकंड को खरीि
नही सकते है इसमलए आप सभी अपने जीवन के इस बहुमल्ू य समय को जीवन जीने में मबताएं।
और आप िाहे मकतना भी कमा ले लेमकन अपने जीवन के कीमती समय को कभी भी खरीि
नही सकते है जीवन भगवान् का मिया हुआ वो बहुमल्ू य उपहार है मजसे िसू रों के मलए जीने में
मबताये तभी आप अपने जीवन को सार्थक बना सकते है।
और इस प्रकार वह व्यमि जीवन के आमखरी क्षणों में जाते जाते सबकी आखे खोल
गया।
जीवन भगवान का मिया
हुआ वो बहुमल्ू य उपहार है जो की
पैसे से ख़रीिा नही जा सकता है
इसमलए जीवन मबताने के सार्
सार् जीवन को जीना भी िामहए,
कल क्या होगा मकसी को पता नही
लेमकन आज जो हो रहा है उसे तो
अच्छी तरह से जी सकते है।
एक इतसान अपने जीवन में िाहे मकतना भी कमा ले और मकतना भी बडा व्यमि क्यों
न बन जाये लेमकन कभी भी अपने बीते हुए जीवन के कल को वापस नही ला सकता है
इसमलए जीवन के प्रत्येक क्षण का आनति ले और हमेसा खश
ु रहना सीखे तभी आप अपने
जीवन को सार्थक तरीके से जी सकते है।
समाप्त
उदािरण – बहािरु ी के सार् िोरों का सामना करने बाि रमेश की मोहल्ले में धाक जम गई।
दितीय दिवस
जैष्ट्याय वद्ध
ृ ः अजाययाः ।
थक कर िूर होना?
महु ावरा?
समय और धैयथ
एक संत गांव के बाहर छोटी सी कुमटया में रह रहे र्े। संत मिनभर ध्यान में बैठे रहते और
बीि-बीि में जोर से मिल्लाते र्े जो िाहोगे, वो पाओगे। गावं के लोग उस कुमटया के सामने
से गजु रते और संत की ये बात सनु ते र्े। सभी सोिते र्े मक संत पागल है, इसीमलए मिल्लाते
रहता है।
गांव में एक नया व्यमि आया, जब वह संत की कुमटया की ओर गया तो उसने भी सनु ा,
जो िाहोगे, वो पाओगे। ये बात सनु कर वह कुमटया में पहुिं गया। उसने िेखा मक एक सतं
ध्यान में बैठे हुए हैं। वह व्यमि वहीं बैठ गया। र्ोडी-र्ोडी िेर में सतं यही बात बोल रहे र्े जो
िाहोगे, वो पाओगे।
जब संत ने आंखें खोली तो सामने बैठे व्यमि ने उतहें प्रणाम मकया। व्यमि ने बोला मक
गरुु िेव मैं बहुत गरीब ह।ं आप जो बोल रहे हैं, क्या उससे मेरी गरीबी िरू हो सकती है, क्या मझु े
धन ममल सकता है?
सतं ने कहा मक अगर मेरी बातें अपने
जीवन में उतार लोगे तो ये बात सि हो सकती
है। मैं तम्ु हें एक हीरा और एक मोती िगंू ा। इनकी
मिि से तमु भी धनवान बन सकते हो।
हीरे -मोती की बात सनु कर व्यमि बहुत
खश
ु हो गया। संत बोले मक अपने िोनों हार् आगे बढ़ाओ।
व्यमि ने िोनों हार् आगे बढ़ा मिए। संत ने एक हार् में अपना हार् रखा और बोले मक
ये एक हीरा है, इसे समय कहते हैं। ये िमु नया में सबसे अनमोल है। मकसी भी मस्र्मत में इसे हार्
से मनकलने मत िेना। इसे अपनी मट्ठु ी में जकड लो।
सतं ने िसू रे हार् पर हार् रखते हुए कहा मक ये एक मोती है। इसका नाम है धैयथ। जीवन
में जब भी बरु ा समय आए तो धैयथ नाम के इस मोती को धारण कर लेना। जब तक ये मोती
तम्ु हारे पास रहेगा, तम्ु हारे जीवन में िख
ु नहीं आएगा।
समय और धैयथ से ही हम जीवन में सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं।
उदािरण – हर रोज इतनी िरू यात्रा करने के बाि कोई भी र्क कर िरू हो जाएगा।
समाप्त
फूल से खिलो
\
तत
ृ ीय दिवस
पारस पत्थर
वन में मस्र्त एक आश्रम में एक ज्ञानी साधु रहते र्े । ज्ञान प्रामप्त की लालसा में िरू -िरू से
छात्र उनके पास आया करते र्े और उनके सामनध्य में आश्रम में ही रहकर मशक्षा प्राप्त मकया
करते र्े।
आश्रम में रहकर मशक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों में से एक छात्र बहुत आलसी र्ा। उसे
समय व्यर्थ गंवाने और आज का काम कल पर
टालने की बरु ी आित र्ी । साधु को इस बात का
ज्ञान र्ा । इसमलए वे िाहते र्े मक मशक्षा पणू थ कर
आश्रम से प्रस्र्ान करने के पवू थ वह छात्र आलस्य
छोडकर समय का महत्व समझ जाए।
इसी उद्देश्य से एक मिन सध्ं याकाल में
उतहोंने उस आलसी छात्र को अपने पास बल ु ाया और उसे एक पत्र्र िेते हुए कहा, “पत्रु ! यह
कोई सामातय पत्र्र नहीं, बमल्क पारस पत्र्र है । लोहे की मजस भी वस्तु को यह छू ले, वह
सोना बन जाती है। मैं तमु से बहुत प्रसतन हाँ । इसमलए िो मिनों के मलए ये पारस पत्र्र तम्ु हें िे
रहा हाँ । इन िो मिनों में मैं आश्रम में नहीं रहगं ा । मैं पडोस के गााँव में रहने वाले अपने एक ममत्र
के घर जा रहा हाँ । जब वापस आऊंगा, तब तमु से ये पारस पत्र्र ले लगंू ा। उसके पहले मजतना
िाहो, उतना सोना बना लो।”
छात्र को पारस पत्र्र िेकर साधु अपने ममत्र के गााँव िले गए। इधर छात्र अपने हार् में
पारस पत्र्र िेख बडा प्रसतन हुआ। उसने सोिा मक इसके द्वारा मैं इतना सोना बना लंगू ा मक
मझु े जीवन भर काम करने की आवश्यकता नहीं रहेगी और मैं आनंिपवू थक अपना जीवन
व्यतीत कर पाऊाँगा।
उसके पास िो मिन र्े। उसने सोिा मक अभी तो परू े िो मिन शेष हैं। ऐसा करता हाँ मक
एक मिन आराम करता ह।ाँ अगला परू ा मिन सोना बनाता रहगं ा। इस तरह एक मिन उसने आराम
करने में मबता मिया।
जब िसू रा मिन आया, तो उसने सोिा मक आज बाज़ार जाकर ढेर सारा लोहा ले
आऊंगा और पारस पत्र्र से छूकर उसे सोना बना िगंू ा । लेमकन इस काम में अमधक समय
लगेगा नहीं। इसमलए पहले भरपेट भोजन करता ह।ाँ मफर सोना बनाने में जटु जाऊंगा।
भरपेट भोजन करते ही उसे नींि आने लगी। ऐसे में उसने सोिा मक अभी मेरे पास शाम
तक का समय है। कुछ िेर सो लेता ह।ाँ जागने के बाि सोना बनाने का काम कर लंगू ा। मफर
क्या? वह गहरी नींि में सो गया। जब उसकी नींि खलु ी, तो सयू थ अस्त हो िक
ु ा र्ा और िो मिन
का समय परू ा हो िकु ा र्ा। साधु आश्रम लौट आये र्े और उसके सामने खडे र्े।
साधु ने कहा, “पत्रु ! सयू ाथस्त के सार् ही िो मिन परू े हो िक
ु े हैं। तमु मझु े वह पारस पत्र्र
वापस कर िो।”
छात्र क्या करता? आलस के कारण उसने अमल्ू य समय व्यर्थ गवं ा मिया र्ा और सार्
ही धन कमाने का एक सअ ु वसर भी। उसे अपनी गलती का अहसास हो िक ु ा र्ा और समय
का महत्व भी समझ आ गया। वह पछताने लगा। उसने उसी क्षण मनमश्चय मकया मक अब से वह
कभी आलस नहीं करे गा।
सीख :- जीवन में उतनमत करना िाहते हैं, तो आज का काम कल पर टालने की आित छोड
िें। समय अमल्ू य है, इसे व्यर्थ ना गवं ायें, क्योंमक एक बार हार् से मनकल जाने के बाि समय
कभी िोबारा वापस नहीं आता।
मभिावरे का अथु– तरु ं त भाग जाना।
समाप्त
ु थ दिवस
चतथ
मा ववदीध्यः —अथवु० ८। १। ९॥
समय का सिपु योग जो करता है उस व्यमि को समय के सार् अच्छा पररणाम ममलता
है।
ऐसा ही हुआ, जब सोनू और वाणी की वामषथक परीक्षा मनकट र्ी।
सोनू – अरे तमु अभी भी पढ़ ही रही हो? िलो, खाना खाते हैं।
वाणी – बस एक छोटा सा प्रोजेक्ट बिा है। अगर मैं इसे परू ा नहीं करुाँगी , तो मशक्षक
मझु े डांटेंगे और अगले सप्ताह से परीक्षा भी शरू ु हो रही है | वाणी बहुत मेहनती र्ी और वह
समय का सही उपयोग मकया करती र्ी । जबमक उसका भाई सोनू एक बहुत लापरवाह और
शरारती बच्िा र्ा। वह हर काम कल के मलए टाल िेता र्े।
वाणी – क्या तम्ु हारा प्रोजेक्ट तैयार है? सोनू – अभी से प्रोजेक्ट | उसे तो छठी पीररयड
में जमा करना है। अभी िो पीररयड बाकी हैं। मैं इसे झट से कर लंगू ा। अब जल्िी आओ, मझु े
भख ू लगी है। और मझु े खेलना भी है।
वाणी – अरे सनु ो! रुको ! यमि तमु
इसे परू ा नहीं करोगे, तो मशक्षक तमु को
डांटेंगे।
सोनू और वाणी के माता-मपता
हमेशा सोनू को वाणी का उिाहरण िेते हुए
समझते र्े ।
सोनू की माँ – िेखो प्यारे सोनू , तमु बडे हो गए हो। खेलकूि के सार्-सार् तमु अपनी
पढ़ाई पर भी ध्यान िो |
सोनू – हााँ मााँ, मैं इसे कल से जरूर करूाँगा।
सोनू के पापा – समय का सिपु योग करना अपनी बहन से सीखो | िेखो ! वह समय
पर पढ़ती है, समय पर खेलती है। आज का काम कल के मलए कभी नहीं टालती |
सोनू – मितं ा मत करो, वाणी । अभी तो िोपहर ही हो रही है। रात को मैं बैठ कर
फटाफट सब खत्म कर लाँगू ा। मबजली नहीं कटेगी। बमल्क बाररश के बाि पढ़ने में और मजा
आएगा। अच्छा अब मैं जाता हाँ अब मेरी बैमटंग आ गयी |
सोनू िेर शाम तक खेलता ही रहा। लेमकन उसे मितं ा तब हुई | जब अिानक से बाररश
शरू ु हो गयी । सोनू बरु ी तरह घबरा गया और घर लौट आया। घर पर आकर उसने िेखा मक घर
में ही नहीं बमल्क परू े गांव में मबजली नहीं है। यह िेखकर सोनू जोर – जोर से रोने लगा। सोनू –
कल परीक्षा में मेरा क्या होगा ? मैंने तो एक पाठ भी नहीं पढ़ा | और अब तो मबजली भी नहीं
है। मैं फे ल हो जाऊंगा।
वाणी – मैंने कहा र्ा न की अपना पाठ समय से पढ़ लो |
सोनू के पापा – मैंने तम्ु हे एक हफ्ते पहले हो कह मिया र्ा मक समय पर पढ़ लेना
लेमकन तम्ु हे कभी कुछ समझ नहीं आता । अब भोगो।
सोनू – सॉरी पापा। अब मैं क्या करू? काश ! मैंने सही समय पर ही अपने पाठ पढ़
मलए होते|
उसे समझ आ गया र्ा की उसकी लापरवाही के कारण उसके पास पढ़ने के मलए समय
नहीं बिा र्ा |
वाणी – रोने – धोने से अब कुछ नहीं होगा। अब समझ आया मक सर तम्ु हे क्यों
समझते र्े ? अब रोना बंि करो और िलो मेरे सार्। मैंने अपनी पढ़ाई समय पर ही परू ी कर ली
र्ी । मैं तम्ु हे सारा पाठ समझा िगंू ी और याि भी करवा िगंू ी | िलो |
अगले मिन, िोनों बच्िे खश ु ी-खश
ु ी परीक्षा िेने गए।
सीख – जो समय का करे सम्मान भमवष्य में वो कहलाये महान।
उदािरण – कभी भी सफलता पाने के मलए मकसी को मक्खन नहीं लगाना िामहए।
समाप्त
यों तो एक वषथ के बच्िे में बमु ि का मवकास मनोवेगों के प्रिशथन द्वारा स्पष्ट होने लगता
है, पर िो-ढाई वषथ का होने पर बालक में अनेक महत्त्वपणू थ पररवतथन दृमष्टगोिर होते हैं। पररवार
के ममु खया को िामहए मक बच्िे की पररपक्व
होती हुई मानमसक शमियों के मवकास में
सहायता प्रिान करे । तीन वषथ तक गप्तु मन
अपनी मवशेष सेवाएाँ अमपथत करता है। अतः
प्रारंमभक काल में बच्िों को डााँटने-डपटने,
मारने-पीटने, अत्यािार करने या कठोर मनयंत्रण
में रखने से गप्तु मन में जमटल मानमसक ग्रंमर्यााँ
उत्पतन होती जाती हैं। इस काल में प्यार,
सहानभु मू त तर्ा िलु ार से ही उसमें उत्साह भरना
िामहए। तमनक-सी वमृ ि या अच्छाई उत्पतन होते ही प्रशंसा मिल खोलकर करना, बच्िों को
छोटे-छोटे उपहार, िटकीले मखलौने, कुत्ते-मबल्ली के बच्िे या अतय सामान िेना उत्तम है।
बालक की ३ से ६ वषथ की अवस्र्ा में मन अपना कायथ प्रारंभ कर िेता है। प्रारंभ में उसे
जो मानमसक संवेिनाएाँ, मविार या अनभु व प्राप्त हुए हैं, वे अब स्पष्ट होने लगते हैं। बालक पर
पररमस्र्मत की छाप तो नहीं लगती, वह पररमस्र्मत को समझने लगता है। उसका व्यमित्व
स्र्ामपत होने लगता है और वह स्वयं स्फुमटत होने लगता है। उस काल में बालक हार्-पााँव से
मभतन-मभतन प्रवमृ तयााँ करना िाहता है और इतहीं के द्वारा ज्ञान ग्रहण करता है। पालने वालों की
गरीबी, योग्य मशक्षक का अभाव, अनक ु ू ल व्यवस्र्ा की कमी होने पर बच्िे का मानमसक
मवकास रुक जाता है।
(१) िाल मानस का ज्ञान; (२) पररवस्थवत की जानकारी; ३) ववर्य को सरल िनाकर
समझाने की कला।
( बालक में मकसी प्रकार की शक ं ाएाँ न रह जाएाँ, मवरोध खडा न हो। बातें उलझी व
अधसमझी हुई न रहें, प्रत्यतु वह संतष्टु हो जाए।)
६ से १० वर्ु तक का ववकास
7. मित्रकारी के मलए अमभरुमि उत्पतन की जाए। अच्छे -अच्छे मित्र, खिु ाई के काम,
मखलौनों का बनाना बालक की मछपी हुई प्रवमृ त्तयों का मवकास करे गा। बच्िों के शौकों
का मवकास करना िामहए।
बडे होने पर बच्िों को एक ममत्र की हैमसयत से रखना िामहए। िौिह वषथ की आयु में
बच्िे में एक बहुत बडा महत्त्वपणू थ पररवतथन होता है। कौमायथ समाप्त होकर यौवन का प्रवेश
होता है और मवपरीत मलंग के व्यमियों में भारी आकषथण प्रतीत होने लगता है। माता-मपता को
बडी सावधानी से इस आयु में बच्िे के मानमसक और शारीररक पररवतथन आने में सहायता
करनी िामहए। ब्रह्मियथ की पस्ु तकें पढ़ने को िी जाएाँ तर्ा कामोत्तेजक स्र्ानों, दृश्यों, गंिी
पस्ु तकों से बिाना िामहए। प्रेममय पर्-प्रिशथन से बहुत काम मनकल सकता है। तीव्र आलोिना
या सीधा हस्तक्षेप शोिनीय होगा। यमि सममलंगी अर्वा मभतनमलंगी ममत्रता अत्यमधक स्वत्व
जताने वाली हो तो ऐसा संबंध िभु ाथग्यपणू थ है और पररवार के ममु खया को इसकी मनगरानी करनी
िामहए। यमि ऐसे गमहथत संबंध की अमववेकशीलता समझा िी जाए तो काम मनकल सकता है!
काम मशक्षा की आवश्यकता से कौन इनकार कर सकता है ? पमवत्र ढंग से मकसी मवश्वासपात्र
व्यमि के द्वारा जवान बालक को मशक्षा ममलनी िामहए।
पररवार वास्तमवक रूप से घर होना िामहए, न मक होटल। जहााँ माता-मपता और यवु ा
पत्रु -पमु त्रयों में परस्पर ममत्रता और सहानभु मू त का संबंध हो,
वही प्रेममय स्र्ान घर कहा जाता है। ऐसे प्रेम और सरस
वातावरण में बालक का सतं मु लत मवकास होता है।
माता-मपता अपने बच्िे के िोस्त को भोजन, खेल
और बात-िीत के मलए घर बल ु ाएाँ, तो श्रेष्ठ है।
इससे बच्िे का घर में मवश्वास बढ़ता है।
जहााँ तक हो सके , बालकों को अपने इष्ट
ममत्रों के िनु ाव का अवसर प्रिान करना िामहए।
उसमें र्ोडे से पर्- मनिेश से काम िल सकता है।
स्मरण रमखए, यमि आप बालक के ममत्रों की अवहेलना
करें गे तो उसे अपना मवरोधी ही बना लेंगे। उनके ममत्रों के सार्
मशष्टता एवं कोमलता का व्यवहार हो, इसे आपके पत्रु -पत्रु ी पसिं करें गे।
माता-मपता को सिा समय के अनसु ार िलना िामहए। आपका मख्ु य ध्येय अनश ु ासन
नहीं, डााँट-फटकार, जरु माना नहीं, प्रत्यतु प्रेम और सहानभु मू तपणू थ ममत्रता का संबंध होना
िामहए। आपका पत्रु भी ममत्र सदृश ही है। एक सहानभु मू त- पणू थ माता-मपता के समान कौन
अच्छा ममत्र हो सकता है!
सीधे हस्तक्षेप न कर, परोक्ष तरीकों से अर्ाथत ऐसे उपायों से उनकी गलमतयााँ बतलानी
िामहए मक वे बरु ा न मान बैठें। उनके अहं और गवथ की रक्षा का ध्यान रखें। यमि वे बालक की
व्यमिगत स्वतंत्रता का अपहरण न करें तो माता- मपता तर्ा बालक के मध्य मकसी प्रकार का
सघं षथ उत्पतन नहीं होगा।
समाप्त
दस
ू रों की सहायता काफी नह ां
पंचम दिवस
एक गांव में पानी की बहुत ही समस्या रहती र्ी। वहां के जो प्रधान र्े वह आए मिन
लोगों को मजिरू ी िेकर गांव के मलए
उनसे पानी मंगवाया करते र्े। जब
यह रोज-रोज की समस्या ने ज्यािा
बडा रूप ले मलया तो उतहोंने सोिा
मक क्यों ना परमानेंट ही इसका इलाज
मकया जाए और लोगों को व्यवसाय
मिया जाए, तब उतहोंने गांव में घोषणा
करवा िी मक जो व्यमि मजतना पानी
गांव के मलए निी से लेकर आएगा उसे उसकी मेहनत की कीमत िी जाएगी। एक बाल्टी का
₹100 और प्रत्येक बाल्टी में 10 लीटर पानी होना आवश्यक र्ा।
यह खबर गांव के िो ऐसे बेरोजगार व्यमियों पर पडी मजनको काम की सि में जरूरत
र्ी और वह मिन भर अपना यंू ही बताया करते र्े। “राम और श्याम” यह िोनों जब गांव के
प्रधान के पास पानी की बाल्टी को लेने के मलए पहुिं े तब प्रधान ने कहा जो मजतनी बडी
बाल्टी लेगा उसको उतने पैसे ज्यािा ममलेंगे। तब श्याम के मन में लालि आ गया क्योंमक वह
शारीररक तौर पर भी ठीक-ठाक र्ा इसीमलए उसने भारी बाल्टी उठाने का मन ही मन मनश्चय
मकया।
वहीं िसू री ओर राम सोि रहा र्ा की मैं अपनी यर्ाशमि अनसु ार ही बाल्टी उठाऊं
तामक मझु े र्कान महससू ना हो काम करने में और समय बिा कर मैं अतय काम कर पाऊं। तो
मफर राम ने ऐसा ही मकया राम ने प्रमतमिन 10 लीटर पानी की बाल्टी को निी से लाकर गावं में
िेना शरू
ु मकया और अपने कायथ अनसु ार प्रधान जी से रुपए प्राप्त मकए। प्रमतमिन वही श्याम ने
राम से भी ज्यािा भारी बाल्टी का ियन करके प्रधान जी से पानी लेकर आने के मलए िगु नी
रकम परु स्कार में प्राप्त की और वह राम से पैसे मैं काफी अमीर हो गया। तब राम को एहसास
हुआ की यमि काम के पैसे ममलते हैं तो वह पैसे हम अपना समय िेकर ही प्राप्त करते हैं हम
मजतना समय में पानी लाते हैं और गांव का काम करते हैं प्रधान उसी समय का मल्ू य हमें िे रहा
है। बस उसी समय से राम ने मनमश्चत मकया आज से मैं पानी लाने के सार् बिे हुए समय में
आराम करने की जगह एक और नया काम करूंगा।
राम ने निी से गांव तक पानी लाने के मलए सरु मक्षत पाइप लाइन मबछाना शरू
ु कर मिया।
उसके यह कायथ को िेखकर कई लोगों
ने उसकी उपेक्षा की व यह जताया
मक यह कायथ अत्यतं कमठन है एवं
तम्ु हारे बस की बात नहीं, परंतु वह
सब की अनसनु ी करके बिे हुए
समय में अपना कायथ करने में लगा
रहा और मेहनत करता रहा। वही
ज्यािा धन प्राप्त होने के कारण श्याम
को मौज-मस्ती व धन खिथ करने की
बरु ी लत लग गई एवं वह मेहनत से कमाए हुए धन को अच्छे कायों में लगाने की जगह अतय
कामों में खिथ करने लग गया। वही राम मिन भर पानी लाता निी से जाकर एवं बिे हुए समय में
गांव के मलए निी से एक ऐसी छोटी नहर या पाइप लाइन की व्यवस्र्ा करने में लग गया
मजससे आसानी से गांव में पानी मबना मेहनत के आ सके उसका यह कायथ संपतन होते-होते उसे
3 वषथ का समय लगा, परंतु जब उसको सफलता ममली तो जो लोग गांव में उसके मखलाफ र्े,
उन सब के मंहु पर ताले भी पड गए।
राम को प्रधान की ओर से परु स्कार तो ममला ही सार् में गांव में नवीनीकरण व
शहरीकरण करने का अतय परु स्कार भी मिया गया एवं सम्मान भी। यही कारण है मक हम काम
करते वि अपने आपको र्का मानकर सीममत िायरे तक ही रहना िाहते हैं जबमक हमें अपने
समय का सिपु योग हर समय करने के मलए सोिना िामहए काम िाहे घर का हो या बाहर का,
समाप्त
षष्टम दिवस
समय की पाबंिी
बात उस समय की है जब मोहनिास करमिंि गााँधी सातवीं कक्षा में पढ़ते र्े। स्कूल के प्रधान
अध्यापक िोरबजी एिल ु जी मगमी र्े। वह बहुत अनश ु ासन मप्रय र्े और उतहोंने ऊाँिी कक्षा के मव द्यामर्थयों
के मलए व्यायाम, खेल – कूि और मक्रके ट अमनवायथ कर रखा र्ा। मोहनिास को व्यायाम और खेल –कूि
में मबल्कुल मिलिस्पी नहीं र्ी और वे मकसी में भाग नहीं लेते र्े।
मोहनिास स्कूल से सीधे घर भागते र्े क्योंमक उतहें अपने मपता की सेवा- सश्रु षु ा करनी होती र्ी।
अगर वे स्कूल में पढाई के बाि खेल – कूि के मलए रुकते तो समय से अपने मपता की सेवा- सश्रु षु ा के
मलए घर नहीं पहुिाँ पाते। मोहनिास ने प्रधान अध्यापक से इस कारण खेल – कूि में भाग लेने से छूट
मांगी।
उनकी यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की गयी। एक शमनवार को जब स्कूल प्रात: लगा, खेल – कूि के
मलए मोहनिास को िबु ारा 4 बजे सायंकाल स्कूल जाना र्ा। मोहनिास के पास घडी नहीं र्ी, आसमान
में बािल छाए हुए र्े। ठीक समय का उतहें पता नहीं िला। जब बालक स्कूल पहुिं ा, सभी लडके वापस
जा िक ु े र्े।
िसू रे मिन प्रधान अध्यापक ने मोहनिास से खेल
– कूि में गैर – हामजर होने का कारण पछ ू ा। यद्यमप
मोहनिास ने सही सही कारण बता मिया तो भी प्रधान
अध्यापक ने मवश्वास नहीं मकया और झठू बोलने के
मलए उन पर एक – िो आने का जमु ाथना कर मिया।
बालक को बडी माममथक पीडा पहुिं ी मक उनके
प्रधान अध्यापक ने उतहें झठू ा समझा। बाि में मोहनिास
के मपता द्वारा पत्र मलखे जाने पर मक मोहनिास स्कूल शाम को गया र्ा और घडी न होने की वजह से
ठीक समय का पता नहीं िल पाया र्ा, जमु ाथना माफ़ कर मिया गया। बालक ने तब समझा मक सि बोलने
के सार् सार् समय – पाबतिी भी आवश्यक है। और तब से उस बालक ने समय की पाबतिी के मामले में
कभी िक ू नहीं की।
कहानी से मशक्षा – समय की पाबतिी उतनी ही आवश्यक है मजतना मक सत्य – भाषण । बच्िों ,
यमि तमु समय पाबतिी के महत्त्व को समझोगे तो कभी भी मकसी गलतफहमी का मशकार न होगे।
बापू समय के बहुत पाबिं र्े। अपना प्रत्येक कायथ समय से करते र्े। उनके कायथक्रम इतने मनयममत
र्े मक उनके आश्रम के लोग उनके कायथक्रम को िेखकर ठीक ठीक समय बता सकते र्े और अपनी
घमडयााँ ममला सकते र्े।
प्रार्थना के पहले बापू के घमू ने का कायथक्रम रहता र्ा। एक मिन बापू गजु रात मवद्यापीठ गये। वहां
उतहें बहुत िेर हो गयी। प्रार्थना का समय मनकट आ रहा र्ा। उतहोंने िेखा मक सामने एक साइमकल पडी है।
उसे उतहोंने तरु ं त उठाया और तेजी से िलाकर ठीक समय पर वे प्रार्थना स्र्ान पर पहुिाँ गए।
उदािरण – मकसी भी माता-मपता के मलए गवथ की बात तब होती है, जब उनका बेटा पैरों पर खडा हो
जाता है।
समाप्त
शर र के छे द
सप्तम दिवस
इस पर मशक्षक ने मस्ु कुरा कर कहा,” िो िार ममनट भी िेर से आना ठीक नहीं है। लेमकन 15
ममनट पहले आकर फाटक के बाहर खडे रहना भी अच्छा नहीं है। इन ममनटों में आप अपने कमरे में कुछ
अध्ययन कर सकते र्े।” इस तरह अमरीकी अध्यापक ने भारतीय छात्र को समय के महत्व का ज्ञान
कराया।
मभिावरे का अथु– मकसी काम को करने के बाि अगर उसका पररणाम अच्छा हो जाए।
उदािरण – इतनी मेहनत के बाि मशप्रा को सफलता ममल ही गई, अब वो एक कामयाब मसंगर
बन िक
ु ी है, अतं भला तो सब भला।
समाप्त
दधीचि का अस्स्थदान
शस्ततशाल वत्र
ृ ासरु ने इींद्र को हराकर दे वलोक पर
अपना अधधकार कर शलया। उसके त्रास से सभी दे वता
भयभीत थे। अतुः ब्रह्मा जी ने बताया कक इस समय
तपस्वी श्रेष्ठ दधीधच तपस्यारत हैं, उनकी अस्स्थयों से बने
वज्र से ह वत्र
ृ ासरु मारा जा सकता है ।
गीत
प्यारा खरगोश