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ऊँ भूभुभवः स्वः तत्सववतभवुरेण्यं भर्गो देवस्य धीमवि वधयो यो नः प्रचोदयात् ।

मााँ की संस्कारशाला
मानवीय र्गभण –समय का सदभपयोर्ग सप्ताि क्र. 36

वेद वाक्य किानी अभ्यास के विन्दभ र्गीत/लोरी/खेल


मिभ ावरें मानवीय मल्ू य मनोवैज्ञावनक समाधान वपता-पभत्र/पत्रभ ी-सवं ाद ऑवियो/ववविओ

यभवा प्रकोष्ठ, अवखल ववश्व र्गायत्री पररवार, शावन्तकभंज-िररद्वार


मााँ की संस्कारशाला-36

"गुरुणामेव सवेषाां माता गुरुतरा स्मत ृ ा"


(सि र्गभरु में माता को सवुश्रेष्ठ र्गभरु माना र्गया िै।)
परम वदं नीय माता जी एवं अखिं ज्योवत के शताब्दी वर्ु के उपलक्ष्य में
“माां की सस्ां कारशाला” साप्ताविक पाठ्यक्रम आपको प्रस्तभत करते िुए िमें अत्यतं िर्ु िो
रिा िै। यि पाठ्यक्रम उन माताओ ं िेतभ तैयार वकया र्गया िै जो अपने1 से 8 वर्ु के िच्चों
को सभसस्ं कारी िनाना चािती िैं। इस िेतभ1वर्ु के वलए 365 किावनयां एवं 365 वैवदक
सद्वाक्य तथा 1 वर्ु के 52 सप्ताि िेतभ 52मानवीय मानवीय मल्ू यों तथा िर सप्ताि िालकों
के लालन-पालन में आने वाली समस्याओ ं के मनोवैज्ञावनक एवं व्याविाररक
समाधानप्रेवर्त वकए जाएर्गं े। पाठ्यक्रम प्रवत सप्ताि शवनवार के वदन प्रेवर्त वकया जाता िै।
माताएं इसका अध्ययन कर प्रवतवदन रात को सोने से पूवु एक किानी िच्चे को सनभ ाएं
तथा प्रवत सप्ताि एक मानवीय मल्ू य का अभ्यास कराए।ं अभ्यास िेतभ आवश्यक सझ भ ाव
भी वदए जा रिे िैं।
1. माताएं स्ववववेक एवं अपने अनभभव से इस पाठ्यक्रम में ववर्य वस्तभ जोड़ या घटा लें।
2. माँ अपने जीवन मे घवटत प्रसर्गं जो प्रस्ततभ मूल्य से जड़भ ा िो, वि भी िच्चों से साझा करें ।
3. प्रस्तभत पाठ्यक्रम में मनोवैज्ञावनक समाधान और अभ्यास के विन्दभ माँ के वलए िैं। माँ उन्िे
समझें और अपने तथा िच्चे के व्यविार में उतारने का प्रयास करें ।

वपछले सभी पाठ्यक्रम को िाउनलोि करने का वलंक


https://www।awgp।org/en/initiatives/education/mkss/curriculum
“माँ की संस्कार शाला”व्िाट्सप्प ग्रभप में जभिने िेतभ िमें व्िाट्सप्प न।9258360962 पर "माँ की
संस्कार शाला" वलखकर संदेश भेजें तत्पश्चात िम आपको ग्रभप से जभिने िेतभ वलंक भेजेंर्गे वजसके
माध्यम से आप िमसे जड़भ कर पाठ्यक्रम प्राप्त कर सकें र्गे ।

अवतररक्त जानकारी िेतभ सपं कु करें -यभवा प्रकोष्ठ, शावन्तकभंज, िररद्वार


Whatsapp- 9258360962 Mob। No।- 9258360652
E-mail- youthcell@awgp।org

2| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

दवषय सूची

मानवीय गण
ु - समय का सदुपयोग
प्रथम दिवस

किानी:- “अमूल्य समय”


दितीय दिवस
किानी:- “समय और धैयय”
तत
ृ ीय दिवस
किानी:- “पारस पत्थर”
ु थ दिवस
चतथ
किानी:- “समय का उचित उपयोग”
मनोवैज्ञानी एवां व्यावहाररक समाधान- बालकों के चवकास सबां ांधी समस्याएँ
पंचम दिवस
किानी:- “सहज पाके सो मीठा होय”
षष्ठम दिवस
किानी:-“ समय की पाबांदी”
सप्तम दिवस

किानी:- “समय बहुत मूल्यवान है”
र्गीत :-“ प्यार खरगोश”
3| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

मााँ से दनवेिन
जीवन का महल समय की—घण्टे-ममनटों की ईटोंं से मिना गया है। यमि हमें जीवन से
प्रेम है तो यही उमित है मक समय को व्यर्थ नष्ट न करें । मरते समय एक मविारशील व्यमि ने
अपने जीवन के व्यर्थ ही िले जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा—‘‘मैंने समय को नष्ट
मकया, अब समय मझु े नष्ट कर रहा है।’’
खोई िौलत मफर कमाई जा सकती है।
भल ू ी हुई मवद्या मफर याि की जा सकती है।
खोया हुआ स्वास््य मिमकत्सा द्वारा लौटाया
जा सकता है, पर खोया हुआ समय मकसी
प्रकार नहीं लौट सकता, उसके मलए के वल
पश्चाताप ही शेष रह जाता है।
मजस प्रकार धन के बिले में अभीष्ट
वस्तएु ं खरीिी जा सकती हैं, उसी प्रकार समय के बिले में मवद्या,
बमु ि, लक्ष्मी, कीमतथ, आरोग्य, सख
ु -शामतत, ममु ि आमि जो भी वस्तू रुमिकर हो खरीिी जा
सकती है। ईश्वर ने समय रूपी प्रिरु धन िेकर मनष्ु य को प्ृ वी पर भेजा है और मनिेश मिया है
मक वह इसके बिले में संसार की जो भी वस्तु रुमिकर समझे खरीि ले।
मकततु मकतने व्यमि हैं जो समय का मल्ू य समझते और उसका सिपु योग करते हैं?
अमधकांश लोग आलस्य और प्रमाि में पडे हुए जीवन के बहुमल्ू य क्षणों को यों ही बबाथि करते
रहते हैं। एक-एक मिन करके सारी आयु व्यतीत हो जाती है और अमततम समय वे िेखते है मक
उतहोंने कुछ भी प्राप्त नहीं मकया, मजतिगी के मिन यों ही मबता मिये। इसके मवपरीत जो जानते हैं
मक समय का नाम ही जीवन है वे एक एक क्षण को कीमती मोती की तरह खिथ करते हैं और
उसके बिले में बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। हर बमु िमान् व्यमि ने बमु िमत्ता का सबसे बडा

4| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

पररिय यही मिया है मक उसने जीवन के क्षणों को व्यर्थ बबाथि नहीं होने मिया। अपनी समझ के
अनसु ार जो अच्छे से अच्छा उपयोग हो सकता र्ा, उसी में उसने समय को लगाया। उसका
यही कायथक्रम अतततः उसे इस मस्र्मत तक पहुिं ा सका, मजस पर उसकी आत्मा सततोष का
अनभु व करे । प्रमतमिन एक घण्टा समय यमि मनष्ु य मनत्य लगाया करे तो उतने छोटे समय से भी
वह कुछ ही मिनों में बडे महत्वपणू थ कायथ परू े कर सकता है। एक घण्टे में िालीस पष्ठृ पढ़ने से
महीने में बारह सौ पष्ठृ और साल में करीब पतरह हजार पष्ठृ पढ़े जा सकते हैं यह क्रम िस वषथ
जारी रहे तो डेढ़ लाख पष्ठृ पढ़े जा सकते हैं। इतने पष्ठृ ों में कई सौ ग्रतर् हो सकते हैं। यमि वे एक
ही मकसी मवषय के हों तो वह व्यमि उस मवषय का मवशेषज्ञ बन सकता है। एक घण्टा प्रमतमिन
कोई व्यमि मविेशी भाषायें सीखने में लगावें तो वह मनष्ु य मनःसतिेह तीस वषथ में इस ससं ार की
सब भाषाओ ं का ज्ञाता बन सकता है। एक घण्टा प्रमतमिन व्यायाम में कोई व्यमि लगाया करे
तो अपनी आयु को पतरह वषथ बढ़ा सकता है।
माताओ ं से मनवेिन है मक जीवन के इस समय रूपी स्वरूप से बच्िों को पररमित कराएं
एवं बच्िों को गमी की छुरियां आलस में ना मबताने िेकर उतहें उपयोगी कामों में लगाए रहें ।

महर्षि कवे की गह
ृ स्थी

एक सद्गह
ृ स्थ के तीन लड़के थे। नाम था उनका कवे। वे यह नह ीं
चाहते थे कक अपने पुत्रों को अनावश्यक धन दे कर उनको परावलींबी, आलसी
व प्रमाद बनाकर उनका भववष्य चौपट कर ददया जाए।

अतएव उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे को एक हजार रुपया ऋण के


बतौर ददया और बी० ए० पास तक की पढाई पूर करवा द । उसे नौकर में
लगा दे ने पर उससे ककस्तवार ऋण वापस लेकर दस
ू रे को पढाया और इसी
प्रकार तीसरे को भी पढाया। तीसरे के नौकर से लगने पर एक हजार
ककस्तवार लेकर अपनी वद्
ृ धावस्था सुखपव
ू क
व काट । लड़के भी बरु ाइयों से
बच गए।

5| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

मानवीय मूल्य – समय का सिप


ु योग

बच्चों को समय का सिुपयोग दसखाएं


अवकाश का अर्थ बेकार पडे रहना अर्वा सोते रहना नहीं है और न उसका यह
ही आशय है मक मजतहें अवकाश ममला है वे बेकार में इधर-उधर बैठकर और गप लडाकर
समय नष्ट कर डालें। अवकाश का तात्पयथ है मनरततर मकए जाने वाले कायथ को कुछ समय के
मलए स्र्मगत करके कुछ ऐसा काम करना मजससे नवीनता आए, मन ममस्तष्क में कुछ पररवतथन
आए तर्ा ज्ञान ममले और मनोरंजन हो।
पढ़ने वाले लडकों को वषथ में
सब ममलाकर लगभग छः माह का
अवकाश प्राप्त होता है। इस
अवकाश में से यमि त्यौहार तर्ा
साप्तामहक छुरियााँ मनकाल िी जाएाँ
जब भी यह अवकाश का समय
िार-साढ़े िार माह का तो बि ही
सकता है। उसमें गमी की तो एक
सार् ही लगभग िो माह की छुरियााँ होती है। यह सारा अवकाश बच्िे या तो घर में पडे-पडे
सोते हुए मबताते हैं अर्वा नाते ररश्तेिारी में मववाह शािी में। इस अवकाश का कोई सममु ित
उपयोग नहीं होता। यमि हो सके तो मनमश्चत है मक इस अवमध में बच्िे बहुत-सा नया ज्ञान और
अर्थ तक उपाजथन कर सकते हैं।
नौकरीपेशा अमभभावकों को छोडकर लगभग अतय सारे अमभभावकों में से मकसी के
खेती का काम होता है तो मकसी के यहााँ रोजगार और िक
ु ानिारी होती है। ऐसे अमभभावकों को
िामहए मक वे अपने बच्िों को अवकाश के समय में उन कामों में लगाया करें । यह कभी न
सोिें मक यह तो पढ़ने मलखने वाले हैं इनका मन ममस्तष्क इसमें अभी नहीं लग सकता।

6| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

खेलकूि लेने मिया जाए , जब समय आएगा, काम-काज मसर पर आ पडेगा तो आप कर लेंगे।
अमभभावकों की यह मविार धारा बडी अवैज्ञामनक है। मजन बच्िों को शरू ु से ही र्ोडा-र्ोडा
काम में लगाया जाता रहता है उनका उस काम में एक प्रकार से प्रमशक्षण होता िलता है। उतहें
उसकी बाहरी व भीतरी बातें पता िलती हैं। उनकी रुमि बढ़ती ही जाती है और जब वे पढ़ाई
परू ी करने के बाि वह काम अपने हार्ों में लेते हैं तो वह उनके मलए बहुत नवीन या कमठन नहीं
होता।
मजन अमभभावकों की खेती
होती है, वे अवकाश के समय में
उतहें खेती के काम से पररमित
कराएाँ, सहायता लें। खेतों पर घमु ाने
ले जाएाँ, उनकी पैिावार और
कमठनाई के मवषय में अवगत कराएाँ।
मकन खेतों में पैिावार अच्छी होती है
और मकन में नहीं, इसका कारण
बतलाएाँ। हल मकस प्रकार ठीक से
जोता जाता है, बैल कौन-सी नस्ल
के अच्छे होते हैं और उनको मकस
प्रकार स्वस्र् रखकर अमधक से अमधक काम मलया जा सकता है - यह सब व्यावहाररक
अनभु व उतहें कराएाँ। ऐसा करने से उनका न।के वल ज्ञान बढ़ेगा बमल्क खेती के काम में रुमि भी
पैिा होगी, मजससे यह समस्या हल होने में सहायता ममलेगी मक बच्िे पढ़ मलखकर खेती करने
के बजाय शहरों में छोटी-मोटी नौकरी कर लेना पसति कर लेते हैं। मकसी काम की योग्यता,
उससे हार् पााँवों का पररिय और रहस्यों की जानकारी उसमें वह रुमि पैिा कर िेती है। यमि
बच्िे शरूु से ही हल, बैल ममिी, खाि, खेत आमि से तन-मन से पररमित होते रहें तो वह उनके
मलए नवीन काम न रह जाए। उनकी सारी मझझक मनकल जाए और वे उसके लाभ तर्ा
उपयोमगता से पररमित होने से सहषथ वह धतधा अङ्गीकार कर लेंगे।

7| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

व्यापारी वगथ भी अपने धतधों में बच्िों को इसी प्रकार प्रमशमक्षत कर सकते हैं। वे उतहें
अपने सार् बाजारों में ले जाएाँ। क्रय-मवक्रय की रीमत से पररमित कराएाँ। माल की अच्छाई-
बरु ाई पहिानने की योग्यता िें। अतय व्यापाररयों के शील स्वभाव तर्ा आवश्यकताओ ं से
पररमित कराएाँ। बाजारों की आवश्यकता तर्ा ग्राहकों की मााँग व रुमि से अवगत करें । व्यापार
की तरक्की का क्या रहस्य है उसमें पतन तर्ा घाटा मजन कारणों से आता है वे बताए जा सकते
हैं और उनसे सावधान रहने की िेतावनी िी जा सकती है। इस प्रकार उनसे बाजारिारी और
िक
ु ानिारी कराकर उनको बहुत पहले से ही उस काम में रमाया जा सकता है मजससे आगे िल
कर उनका मन न लगने का प्रश्न ही न उठे । बच्िों के अवकाश का समय बेकार नहीं जाने िेना
िामहए। उसे मकसी न मकसी प्रकार उपयोग में लाना ही ठीक होगा।
वे अमभभावक मजनका अपना कुछ काम नहीं होता, बच्िों को आगे मजस काम में
लगाना िाहते हैं उस काम के मलए मकतहीं
िसू रे के पास भेज सकते हैं। मामनए
आप बच्िे को तकनीकी क्षेत्रों में
पहुिाँ ाना िाहते हैं मकततु आप स्वयं
मकसी कायाथलय में नौकरी करते हैं।
ऐसी िशा में आप बच्िे को मकसी भी
ममत्र पररमित अर्वा सम्बतधी के उस
कारखाने में भेज सकते हैं मजसमें
मशीनरी अर्वा अतय तकनीकी काम होता हो। मकसी कारखाने के मामलक मैनेजर को बच्िे से
काम लेने के मलए कह सकते हैं। शायि ही ऐसा कोई अिरू िशी मैनेजर मामलक हो जो आप की
प्रार्थना अस्वीकार कर िे। आज िेश को ज्यािा से ज्यािा तकनीमशयनों की जरूरत है। सरकार
को ही नहीं व्यमि उद्योगपमतयों तर्ा छोटे-छोटे कारखानेिारों को उनकी कमी रहती है। वे तो
खश ु ी से िाहेंगे मक लोग अपने बच्िे तकनीकी लाइन में सीखने के मलए भेजें।
इसी प्रकार जो अपने बच्िे को व्यापारी बनाना िाहते हैं , यमि बच्िे मनस्वार्थ भाव से
ईमानिारी के सार् काम तर्ा सेवा करें गे तो कोई भी व्यापारी उतहें रखने मसखाने में आपमत्त न

8| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

करे गा। बहुत से पररवारों में उनके घरे लू उद्योग धतधे होते हैं। वे बच्िों को उसमें लगा सकते हैं।
कताई वाले कताई और मसलाई करने वाले उनको मसलाई का प्रमशक्षण िे सकते हैं। रंगाई,
मीनाकारी अर्वा कढ़ाई, छपाई का काम करने वाले उतहें अपने काम का अभ्यास करा सकते
हैं। इस प्रकार एक नहीं सैकडों काम ऐसे हो सकते हैं जो अवकाश के मिनों में बच्िों को
मसखाए और उनसे कराए जा सकते हैं। अवकाश का समय मजस प्रकार से िाहें खराब करें
बच्िों को इसकी स्वततत्रता नहीं िेनी िामहए। उन मिनों उनका सामातय मनयम बंधन भी टूट
जाता है। पढ़ाई मलखाई का काम एक तरह से स्र्मगत हो जाता है। इसमलए समय पर उठना,
स्कूल के मलए तैयारी करना, समय पर पढ़ना और समय पर खेलने के सारे मनयम मशमर्ल हो
जाते हैं, मजससे उनमें आलस्य अव्यवस्र्ा तर्ा अमनयममतता की िबु थलता पैिा हो जाती है जो
स्कूल खल ु ने के बाि बहुत-सा समय लेकर िरू हो पाती है इसमलए उनको अवकाश के मिनों
को सोने, मटरगस्ती करने अर्वा जहााँ-तहााँ मनठल्ले उठने बैठने की छूट किामप नहीं िी जानी
िामहए। आवश्यकतानसु ार उतहें मकतहीं उपयोगी काम में लगाया जाना िामहए। यह उनके
भमवष्य के मलए ही महतकारी होगा। बेकार मफरते रहने से उनमें अतय अनेक प्रकार के मवकार
व्यसन भी पैिा हो सकते हैं। इन सबकी सम्भावनाएाँ बच्िों को काम में लगाए रहने से िरू हो
जाती है।
प्रगमतशील मविेशों में छात्रों का अवकाश बेकार नहीं जाने मिया जाता है। उनमें
सस्ं र्ाओ ं तर्ा सरकार के सहयोग से छात्रों के अवकाश मशमवरों का आयोजन मकया जाता है।
उिाहरण के मलए अमेररका को ले लीमजए वहााँ के ये मशमवर बडे व्यावहाररक ढंग से िलाए
जाते हैं और प्रमतवषथ इनमें अमधकामधक छात्र आकृष्ट होते रहते हैं। उन अवकाश मशमवरों में
उतहें सतु िर आहार, उमित काम, खेलकूि और स्वस्र् मनोरंजन के अवसर मिए जाते हैं।
मनोवैज्ञामनक मनिेश, प्रार्ममक मिमकत्सा, जन-सेवा, व्यायाम, खेलकूि, तैराकी, भोजन बनाने
आमि का प्रमशक्षण मिया जाता है। उतहीं मशमवरों में उतहें नैमतकता, िेशभमि तर्ा ससं ार की
राजनीमत पर प्रविन तर्ा भाषण भी मिए जाते हैं और मिलाए भी जाते हैं। मवद्यामर्थयों में नई
स्फूमतथ, नई रुमि तर्ा नई िेतना होती है। उनका मन पढ़ाई में परू ी तरह से लगता है और वे
मशमवरों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग भी अपनी योग्यता प्रिमशथत करने में मकया करते हैं।

9| समय का सदभपयोर्ग
मााँ की संस्कारशाला-36

अमेररका की तरह छात्रों के


अवकाश मशमवरों का प्रिलन रूस में
भी है। रूस में इनका आयोजन मशक्षा
बोडथ की तरफ से होता है। यद्यमप
अमभभावकों से कुछ अनिु ान मलया
जरूर जाता है मकततु इनका
अमधकांश व्यय मशक्षा बोडथ ही मकया
करता है। प्रत्येक मवद्यालय अपना
समावकाश का मशमवर स्वयं
आयोमजत करता है। मकसी पवू थ मनमश्चत
स्र्ान पर बच्िों के रहने का प्रबंध झोपडों, लकडी के मकानों अर्वा परु ाने ग्रामों के खाली पडे
मनवासों में कर मिया जाता है। इन मशमवरों में स्वास््य , मवश्राम तर्ा मनोरंजन के कायथक्रमों के
मसवाय मवद्यामर्थयों को नागररकता की मशक्षा भी िी जाती है। इन मशमवरों में बच्िों की टोमलयााँ
बट जाती है जो बारी बारी से सबके मलये भोजन बनाती और मखलाने की व्यवस्र्ा करती हैं।
इस प्रकार उनको न के वल पाक मवद्या का अभ्यास होता है बमल्क प्रीमत तर्ा सहभोज का
आनति ममलता है।
अवकाश के कायथक्रमों से मनवत्तृ होकर मवद्यार्ी स्वततत्रतापवू थक अपनी मनमौज के
मनोरंजन कर सकते हैं। इस समय कोई तो पेडों पर िढ़ने का अभ्यास करता है, कोई हरी घास
पर बैठकर वाताथलाप करते हैं। कोई अपनी कूिी और रंग लेकर प्रकृमत का मित्रण मकया करता
है। कोई कमवता मलखता तो कोई संगीत का आनति लेता है। इसके अमतररि क्षेत्र की सफाई
मशमवरों की व्यवस्र्ा तर्ा िरू -िरू तक सैर सपाटों का कायथक्रम भी रहता है। मद्वतीय महायि
ु के
समय रूस के छात्रों ने सत्र की छुरियां अपने अध्यापकों की िेख रे ख में साममू हक तर्ा सहकारी
खेतों में काम करने में ही मबताई र्ी।
सन् 1942 के अवकाश के मिनों में पैतामलस लाख छात्रों और आठ लाख अध्यापकों
ने खेती में हार् बटाया र्ा। इसके अमतररि छोटे-छोटे बच्िों ने मवमभतन कायों के मलए फलों,

10| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

कुकुरमत्तु ों और औषमधयों का भी संग्रह मकया र्ा। के वल बीस प्रिेशों के बच्िों ने स्र्ानीय


अमधकाररयों को लगभग तीन सौ िवालीस टन परु वा धडका कुकुरमत्तु ा, ग्यारह सौ मतरे पन टन
बेरी और फल और ग्यारह सौ पिास टन औषमधयों का संग्रह भेंट मकया र्ा। बच्िों की यह
राष्रीय सेवा मकसी भी दृमष्टकोण से कम महत्त्वपणू थ नहीं है। कौन कह सकता है मक बच्िों की
इस िेश भमि के इस पररश्रम तर्ा इस परुु षार्थ ने स्वाधीनता की रक्षा में मकतना योगिान मकया
र्ा।
इतहीं अवकाश मशमवरों के अवसर पर, बच्िों को सहकाररता,
सहयोग, राष्रीयता तर्ा नागररकता की मशक्षा व्यावहाररक
रूप से िी जाती है। सहकारी खेती और साममू हक फाममिंग
का प्रमशक्षण मिया जाता है। इन भौमतक लाभों के
अमतररि इन मशमवरों में छात्रों को भावनात्मक
लाभ भी कम नहीं होता। इससे उनमें
पारस्पररक, प्रेम तर्ा सौहािाथ की भावना बढ़ती
है। वे सहकाररता तर्ा ममलजल ु कर काम करने
के मल्ू य को समझते हैं। उनमें भाई िारे का
भाव बढ़ता है। मकतना अच्छा हो मक भारत में भी छात्रों के अवकाश मशमवर आयोमजत मकए
जाएाँ और उनको उपयोगी काम तर्ा महान िररत्र की मशक्षा िी जाया करे । सरकार तर्ा
सस्ं र्ाओ ं से तो आशा की ही जा सकती है, सार् ही अमभभावकों से भी यह आशा करना
अनमु ित नहीं मक वे अपने बच्िों को छुरियााँ आलस में न मबताने िें। उतहें ऐसे उपयोगी कामों में
लगाते रहें मजनका सफ ु ल वे स्वयं पावें और उनका राष्र भी। अध्यापक तथा अवभभावक
वमलकर वकसी न वकसी प्रकार इस प्रकार के छोटे -छोटे छात्र वशववरों का आयोजन
कर सकते िैं और देश व समाज के वित में उन्िें करने िी चाविए। यवद भावना िो तो
सि कभछ िो सकना सम्भव िै।
पं। श्रीराम शमाु आचायु
समाप्त

11| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

प्रथम दिवस

कालो अश्वो विवत सप्तरवश्मः सिस्राक्षो अजरो भूरररेताः ।


तमा रोिवन्त कवयो ववपवश्चतस्तस्य चक्रा भभवनावन ववश्वा ।।-अधवु। 19/53/1

जो समय आज वनकल जाएर्गा वि विर आने का निीं।


समय िड़ा िलशाली िै। यि जान कर ज्ञानी लोर्ग सदैव
समय का सदभपयोर्ग करते िैं।

धाक जमाना?
महु ावरा?

12| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

अमूल्य समय

एक शहर में एक अमीर व्यमि रहता र्ा उस व्यमि ने अपना सारा जीवन पैसे कमाने में
लगा मिया र्ा । उसके पास इतना धन हो गया र्ा मक वह उस शहर को भी खरीि सकता र्ा
लेमकन उसने अपने परू े जीवन भर में मकसी की भी सहायता नही की । वह अक्सर अपने बैंक
बैलेंस पर फूला नही समाता र्ा वह खिु के कमाए धन पर हमेशा गवथ महससू करता र्ा।
लेमकन कभी भी इन कमाए हुए धन का इस्तेमाल अपने ऊपर नही मकया। यहााँ तक मक उसने
इन पैसों से कभी भी अपने मन मतु ामबक कपडे, भोजन या अतय इच्छाओ पर खिथ नही मकया ।
वह मसफथ अपने सारे जीवन पैसे कमाने में ही मस्त रहा और इस तरह वह पैसे कमाने में इतना
मस्त हो गया र्ा मक उसे पता ही नही िला की वह बढू ा हो गया है और जीवन के आमखरी
पडाव पर आ गया है।
इस तरह एक रात उस व्यमि के
जीवन का अतं मनकट भी आ गया र्ा
और यमराज उसके प्राण लेने आ गये।
मजसे िेखकर वह व्यमि सहम गया तब
यमराज ने कहा – अब आपका जीवन
का समय खत्म हो िकु ा है अब मेरे सार्
िलना होगा।
मजसे सनु कर वह व्यमि सोिता रह गया और बोला – “प्रभु अभी तो मैंने अपना जीवन
भी नही जीया है मैं तो मसफथ अपने काम करने में ही व्यस्त र्ा। मझु े अपने धन िौलत का
उपयोग करने के मलए कुछ समय िामहए जो मक इन सम्पमत को मैंने काफी वषो के मेहनत के
बाि कमाया है”

13| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

मफर यमराज ने कहा – “नही मै तम्ु हे और समय नही िे सकता हाँ । जीवन का समय
मनमश्चत है जो मक बढाया नहीं जा सकता है”
मफर उस व्यमि ने कहा – “प्रभु िेमखये मेरे पास इतना धन है आप िाहो तो इस धन का
आधा महस्सा ले लीमजये लेमकन मझु े जीवन जीने के मलए एक वषथ और िे िीमजये”
इस पर यमराज ने कहा – “यह किामप सम्भव नही है”
मफर वह व्यमि बोला – “प्रभु आप िाहो तो मेरे धन का 90% ले लें लेमकन मझु े जीवन
के मलए 1 महीने का समय िे िें ”
मफर यमराज का उत्तर ना में आया।
और मफर उस व्यमि ने कहा – प्रभु आप िाहो तो मेरा सारा धन ले लीमजये लेमकन मझु े
मसफथ 1 घंटे और िे िीमजये।
इस पर यमराज ने कहा – “आप अपने जीवन के कीमती समय को धन से कभी खरीि
नही सकते है एक बार जो वि िला जाता है उसे मकसी भी धन से वापस िबु ारा नही लाया जा
सकता है”
इस प्रकार वह व्यमि मजसे अपने धन पर बडा अमभमान र्ा आज वह सब व्यर्थ लगने
लगा र्ा और इस प्रकार अपने जीवन के बहुमल्ू य समय को याँहू ी धन कमाने में मबता मिया र्ा।
आज वही धन इस समय को रोक नही सकता है और मफर िख ु ी मन से पछताते हुए बोला –
ठीक है प्रभु जैसी आपकी आज्ञा, लेमकन मेरी आमखरी इच्छा परू ी कररये।
मजसे यमराज ने स्वीकार कर मलया।
मफर उस व्यमि ने अपने शहर वामसयों के मलए एक पैगाम मलखा – मैंने मजस धन को
कमाने के मलए परू े जीवन को लगा मिया और आज वही धन मेरे जीवन के 1 सेकंड को खरीि
नही सकते है इसमलए आप सभी अपने जीवन के इस बहुमल्ू य समय को जीवन जीने में मबताएं।
और आप िाहे मकतना भी कमा ले लेमकन अपने जीवन के कीमती समय को कभी भी खरीि

14| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

नही सकते है जीवन भगवान् का मिया हुआ वो बहुमल्ू य उपहार है मजसे िसू रों के मलए जीने में
मबताये तभी आप अपने जीवन को सार्थक बना सकते है।
और इस प्रकार वह व्यमि जीवन के आमखरी क्षणों में जाते जाते सबकी आखे खोल
गया।
जीवन भगवान का मिया
हुआ वो बहुमल्ू य उपहार है जो की
पैसे से ख़रीिा नही जा सकता है
इसमलए जीवन मबताने के सार्
सार् जीवन को जीना भी िामहए,
कल क्या होगा मकसी को पता नही
लेमकन आज जो हो रहा है उसे तो
अच्छी तरह से जी सकते है।
एक इतसान अपने जीवन में िाहे मकतना भी कमा ले और मकतना भी बडा व्यमि क्यों
न बन जाये लेमकन कभी भी अपने बीते हुए जीवन के कल को वापस नही ला सकता है
इसमलए जीवन के प्रत्येक क्षण का आनति ले और हमेसा खश
ु रहना सीखे तभी आप अपने
जीवन को सार्थक तरीके से जी सकते है।
समाप्त

मभिावरे का अथु– प्रभाव स्र्ामपत करना।

उदािरण – बहािरु ी के सार् िोरों का सामना करने बाि रमेश की मोहल्ले में धाक जम गई।

15| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

दितीय दिवस

जैष्ट्याय वद्ध
ृ ः अजाययाः ।

मनभष्य जीवन श्रेष्ठ और िड़ा िनने के वलए िै।


जीवन वदन काटने के वलए निीं, कभछ मिान कायु
करने के वलए िै।

थक कर िूर होना?
महु ावरा?

16| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

समय और धैयथ

एक संत गांव के बाहर छोटी सी कुमटया में रह रहे र्े। संत मिनभर ध्यान में बैठे रहते और
बीि-बीि में जोर से मिल्लाते र्े जो िाहोगे, वो पाओगे। गावं के लोग उस कुमटया के सामने
से गजु रते और संत की ये बात सनु ते र्े। सभी सोिते र्े मक संत पागल है, इसीमलए मिल्लाते
रहता है।
गांव में एक नया व्यमि आया, जब वह संत की कुमटया की ओर गया तो उसने भी सनु ा,
जो िाहोगे, वो पाओगे। ये बात सनु कर वह कुमटया में पहुिं गया। उसने िेखा मक एक सतं
ध्यान में बैठे हुए हैं। वह व्यमि वहीं बैठ गया। र्ोडी-र्ोडी िेर में सतं यही बात बोल रहे र्े जो
िाहोगे, वो पाओगे।
जब संत ने आंखें खोली तो सामने बैठे व्यमि ने उतहें प्रणाम मकया। व्यमि ने बोला मक
गरुु िेव मैं बहुत गरीब ह।ं आप जो बोल रहे हैं, क्या उससे मेरी गरीबी िरू हो सकती है, क्या मझु े
धन ममल सकता है?
सतं ने कहा मक अगर मेरी बातें अपने
जीवन में उतार लोगे तो ये बात सि हो सकती
है। मैं तम्ु हें एक हीरा और एक मोती िगंू ा। इनकी
मिि से तमु भी धनवान बन सकते हो।
हीरे -मोती की बात सनु कर व्यमि बहुत
खश
ु हो गया। संत बोले मक अपने िोनों हार् आगे बढ़ाओ।
व्यमि ने िोनों हार् आगे बढ़ा मिए। संत ने एक हार् में अपना हार् रखा और बोले मक
ये एक हीरा है, इसे समय कहते हैं। ये िमु नया में सबसे अनमोल है। मकसी भी मस्र्मत में इसे हार्
से मनकलने मत िेना। इसे अपनी मट्ठु ी में जकड लो।

17| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

सतं ने िसू रे हार् पर हार् रखते हुए कहा मक ये एक मोती है। इसका नाम है धैयथ। जीवन
में जब भी बरु ा समय आए तो धैयथ नाम के इस मोती को धारण कर लेना। जब तक ये मोती
तम्ु हारे पास रहेगा, तम्ु हारे जीवन में िख
ु नहीं आएगा।
समय और धैयथ से ही हम जीवन में सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं।

मभिावरे का अथु– बहुत ज्यािा र्क जाना।

उदािरण – हर रोज इतनी िरू यात्रा करने के बाि कोई भी र्क कर िरू हो जाएगा।

समाप्त

फूल से खिलो

साींसाररक परे शाननयों से त्रस्त होकर एक शशष्य


अपने गुरु के पास जाकर कहने लगा- जो भी मेरे जीवन
में मुझसे शमला, उसने मेरे शलए कााँटे ह बबखेरे।

गुरु मौन ह रहे और गुलाब के पौधे की ओर इशारा


ककया। अगणणत नुकीले कााँटों के बीच भी गुलाब हवा के
झोंकों में झूम रहा था और अपनी सुगींध व सौंदयव से
सबको तप्ृ त कर रहा था। सींकेत को समझकर शशष्य
प्रसन्न मुद्रा में घर लौट आया।

18| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

\
तत
ृ ीय दिवस

व्रतं कृणभध्वं सवि वो नपृ ाणः —अथवु० १९। ५८। ४॥

सर्गं ठन करो, उसी से तभम्िारी रक्षा िोर्गी।


आत्मरक्षा के वलए सर्गं ठन सवोपरर शस्त्र िै।

महु ावरा? नौ दो ग्यारह होना?

19| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

पारस पत्थर

वन में मस्र्त एक आश्रम में एक ज्ञानी साधु रहते र्े । ज्ञान प्रामप्त की लालसा में िरू -िरू से
छात्र उनके पास आया करते र्े और उनके सामनध्य में आश्रम में ही रहकर मशक्षा प्राप्त मकया
करते र्े।
आश्रम में रहकर मशक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों में से एक छात्र बहुत आलसी र्ा। उसे
समय व्यर्थ गंवाने और आज का काम कल पर
टालने की बरु ी आित र्ी । साधु को इस बात का
ज्ञान र्ा । इसमलए वे िाहते र्े मक मशक्षा पणू थ कर
आश्रम से प्रस्र्ान करने के पवू थ वह छात्र आलस्य
छोडकर समय का महत्व समझ जाए।
इसी उद्देश्य से एक मिन सध्ं याकाल में
उतहोंने उस आलसी छात्र को अपने पास बल ु ाया और उसे एक पत्र्र िेते हुए कहा, “पत्रु ! यह
कोई सामातय पत्र्र नहीं, बमल्क पारस पत्र्र है । लोहे की मजस भी वस्तु को यह छू ले, वह
सोना बन जाती है। मैं तमु से बहुत प्रसतन हाँ । इसमलए िो मिनों के मलए ये पारस पत्र्र तम्ु हें िे
रहा हाँ । इन िो मिनों में मैं आश्रम में नहीं रहगं ा । मैं पडोस के गााँव में रहने वाले अपने एक ममत्र
के घर जा रहा हाँ । जब वापस आऊंगा, तब तमु से ये पारस पत्र्र ले लगंू ा। उसके पहले मजतना
िाहो, उतना सोना बना लो।”
छात्र को पारस पत्र्र िेकर साधु अपने ममत्र के गााँव िले गए। इधर छात्र अपने हार् में
पारस पत्र्र िेख बडा प्रसतन हुआ। उसने सोिा मक इसके द्वारा मैं इतना सोना बना लंगू ा मक
मझु े जीवन भर काम करने की आवश्यकता नहीं रहेगी और मैं आनंिपवू थक अपना जीवन
व्यतीत कर पाऊाँगा।

20| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

उसके पास िो मिन र्े। उसने सोिा मक अभी तो परू े िो मिन शेष हैं। ऐसा करता हाँ मक
एक मिन आराम करता ह।ाँ अगला परू ा मिन सोना बनाता रहगं ा। इस तरह एक मिन उसने आराम
करने में मबता मिया।
जब िसू रा मिन आया, तो उसने सोिा मक आज बाज़ार जाकर ढेर सारा लोहा ले
आऊंगा और पारस पत्र्र से छूकर उसे सोना बना िगंू ा । लेमकन इस काम में अमधक समय
लगेगा नहीं। इसमलए पहले भरपेट भोजन करता ह।ाँ मफर सोना बनाने में जटु जाऊंगा।
भरपेट भोजन करते ही उसे नींि आने लगी। ऐसे में उसने सोिा मक अभी मेरे पास शाम
तक का समय है। कुछ िेर सो लेता ह।ाँ जागने के बाि सोना बनाने का काम कर लंगू ा। मफर
क्या? वह गहरी नींि में सो गया। जब उसकी नींि खलु ी, तो सयू थ अस्त हो िक
ु ा र्ा और िो मिन
का समय परू ा हो िकु ा र्ा। साधु आश्रम लौट आये र्े और उसके सामने खडे र्े।
साधु ने कहा, “पत्रु ! सयू ाथस्त के सार् ही िो मिन परू े हो िक
ु े हैं। तमु मझु े वह पारस पत्र्र
वापस कर िो।”
छात्र क्या करता? आलस के कारण उसने अमल्ू य समय व्यर्थ गवं ा मिया र्ा और सार्
ही धन कमाने का एक सअ ु वसर भी। उसे अपनी गलती का अहसास हो िक ु ा र्ा और समय
का महत्व भी समझ आ गया। वह पछताने लगा। उसने उसी क्षण मनमश्चय मकया मक अब से वह
कभी आलस नहीं करे गा।
सीख :- जीवन में उतनमत करना िाहते हैं, तो आज का काम कल पर टालने की आित छोड
िें। समय अमल्ू य है, इसे व्यर्थ ना गवं ायें, क्योंमक एक बार हार् से मनकल जाने के बाि समय
कभी िोबारा वापस नहीं आता।
मभिावरे का अथु– तरु ं त भाग जाना।

उदािरण – पमु लस को िेखते ही िोर नौ िो ग्यारह हो गए।

समाप्त

21| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

ु थ दिवस
चतथ

मा ववदीध्यः —अथवु० ८। १। ९॥

वचन्ता करना व्यथु।


वचन्ता करने की अपेक्षा कवठनाई का िल सोचो।

महु ावरा? मक्खन लगाना?

22| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

समय का उदचत उपयोग

समय का सिपु योग जो करता है उस व्यमि को समय के सार् अच्छा पररणाम ममलता
है।
ऐसा ही हुआ, जब सोनू और वाणी की वामषथक परीक्षा मनकट र्ी।
सोनू – अरे तमु अभी भी पढ़ ही रही हो? िलो, खाना खाते हैं।
वाणी – बस एक छोटा सा प्रोजेक्ट बिा है। अगर मैं इसे परू ा नहीं करुाँगी , तो मशक्षक
मझु े डांटेंगे और अगले सप्ताह से परीक्षा भी शरू ु हो रही है | वाणी बहुत मेहनती र्ी और वह
समय का सही उपयोग मकया करती र्ी । जबमक उसका भाई सोनू एक बहुत लापरवाह और
शरारती बच्िा र्ा। वह हर काम कल के मलए टाल िेता र्े।
वाणी – क्या तम्ु हारा प्रोजेक्ट तैयार है? सोनू – अभी से प्रोजेक्ट | उसे तो छठी पीररयड
में जमा करना है। अभी िो पीररयड बाकी हैं। मैं इसे झट से कर लंगू ा। अब जल्िी आओ, मझु े
भख ू लगी है। और मझु े खेलना भी है।
वाणी – अरे सनु ो! रुको ! यमि तमु
इसे परू ा नहीं करोगे, तो मशक्षक तमु को
डांटेंगे।
सोनू और वाणी के माता-मपता
हमेशा सोनू को वाणी का उिाहरण िेते हुए
समझते र्े ।
सोनू की माँ – िेखो प्यारे सोनू , तमु बडे हो गए हो। खेलकूि के सार्-सार् तमु अपनी
पढ़ाई पर भी ध्यान िो |
सोनू – हााँ मााँ, मैं इसे कल से जरूर करूाँगा।
सोनू के पापा – समय का सिपु योग करना अपनी बहन से सीखो | िेखो ! वह समय
पर पढ़ती है, समय पर खेलती है। आज का काम कल के मलए कभी नहीं टालती |

23| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

सोनू – आप िेखना कल से मबलकुल ऐसा ही करूाँगा | क्या मैं अब खेलने जाऊं?


प्लीज़ ।
सोनू मिन-पर-मिन अमधक लापरवाह हो रहा र्ा। और अंत में, परीक्षा के मिन नजिीक
आ गए। सोनू और वाणी की परीक्षा में मसफथ िो मिन बिे र्े।
सोनू के पापा – बच्िों , अगले सोमवार से आप की परीक्षाएं शरू ु होने जा रही हैं |
तमु लोग अपनी पढ़ाई पर ध्यान िो | परीक्षा में अच्छा करो। सोन,ू मझु े तम्ु हारी बहुत मितं ा है।
तमु हमेशा अपना काम कल के मलए टालते रहते हो। पढ़ाई कल के मलए नहीं टालना। वाणी
की तरह सभी पाठों को समय से पढ़ लेना। ठीक है !
सोनू – अरे पापा! परीक्षा में अभी परू े िो मिन बाकी हैं | मैं सब कुछ झट से पढ़ लंगू ा।।
सब कुछ | अभी मैं अब खेलने जा रहा ह।ाँ जब तक खेलंगू ा नहीं तब तक पढाई भी समझ में
नहीं आएगी।
सोनू – (सोनू जब अपना बल्ला उठाकर कर खेलने जा रहा र्ा तब ) अरे वाणी ! िेखो
न, मौसम मकतना सहु ावना मौसम हो रहा है। िलो कुछ िेर खेलते हैं। हम बाि में भी पढ़ सकते
हैं। झट से सब हो जायेगा ।
वाणी – हााँ, मौसम तो सहु ावना है पर मझु े अपना पाठ अभी परू ा करना है | कल हमारी
परीक्षा है।
सोनू – इस मौसम में तो खेलने का मजा ही कुछ और है। तमु पढ़ती रहो, मैं खेलने जा
रहा ह।ाँ
कुछ िेर बाि वाणी ने िेखा सहु ाना मौसम र्ा | धीरे -धीरे आंधी – तफ़ ू ान में बिल रहा है।
और काले बािल भी छा रहे र्े | जैसे कभी भी बाररश हो सकती है। बाररश का मौसम िेख
वाणी को मिंता होने लगी मक अगर बाररश आ गयी तो उसका पाठ कै से परू ा होगा क्योमक
बाररशो में अक्सर घर की मबजली कट जाती है |
उसने सोनू को आवाज िी । सोनू – सोनू सनु ो! मौसम िेख कर लग रहा है मक बाररश
होने वाली है। शायि , रात को मबजली भी काट जाये । खेलना बंि करो। आओ और आकर
अपना पाठ परू ा कर लो। वरना कल परीक्षा में क्या मलखोगे ?

24| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

सोनू – मितं ा मत करो, वाणी । अभी तो िोपहर ही हो रही है। रात को मैं बैठ कर
फटाफट सब खत्म कर लाँगू ा। मबजली नहीं कटेगी। बमल्क बाररश के बाि पढ़ने में और मजा
आएगा। अच्छा अब मैं जाता हाँ अब मेरी बैमटंग आ गयी |
सोनू िेर शाम तक खेलता ही रहा। लेमकन उसे मितं ा तब हुई | जब अिानक से बाररश
शरू ु हो गयी । सोनू बरु ी तरह घबरा गया और घर लौट आया। घर पर आकर उसने िेखा मक घर
में ही नहीं बमल्क परू े गांव में मबजली नहीं है। यह िेखकर सोनू जोर – जोर से रोने लगा। सोनू –
कल परीक्षा में मेरा क्या होगा ? मैंने तो एक पाठ भी नहीं पढ़ा | और अब तो मबजली भी नहीं
है। मैं फे ल हो जाऊंगा।
वाणी – मैंने कहा र्ा न की अपना पाठ समय से पढ़ लो |
सोनू के पापा – मैंने तम्ु हे एक हफ्ते पहले हो कह मिया र्ा मक समय पर पढ़ लेना
लेमकन तम्ु हे कभी कुछ समझ नहीं आता । अब भोगो।
सोनू – सॉरी पापा। अब मैं क्या करू? काश ! मैंने सही समय पर ही अपने पाठ पढ़
मलए होते|
उसे समझ आ गया र्ा की उसकी लापरवाही के कारण उसके पास पढ़ने के मलए समय
नहीं बिा र्ा |
वाणी – रोने – धोने से अब कुछ नहीं होगा। अब समझ आया मक सर तम्ु हे क्यों
समझते र्े ? अब रोना बंि करो और िलो मेरे सार्। मैंने अपनी पढ़ाई समय पर ही परू ी कर ली
र्ी । मैं तम्ु हे सारा पाठ समझा िगंू ी और याि भी करवा िगंू ी | िलो |
अगले मिन, िोनों बच्िे खश ु ी-खश
ु ी परीक्षा िेने गए।
सीख – जो समय का करे सम्मान भमवष्य में वो कहलाये महान।

मभिावरे का अथु– मकसी की िापलसू ी करना।

उदािरण – कभी भी सफलता पाने के मलए मकसी को मक्खन नहीं लगाना िामहए।

समाप्त

25| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

बच्चों के समस्याओ ं के मनोवैज्ञादनक तथा व्यावहाररक समाधान


बालकों के चवकास सबां ध
ां ी समस्याएँ

यों तो एक वषथ के बच्िे में बमु ि का मवकास मनोवेगों के प्रिशथन द्वारा स्पष्ट होने लगता
है, पर िो-ढाई वषथ का होने पर बालक में अनेक महत्त्वपणू थ पररवतथन दृमष्टगोिर होते हैं। पररवार
के ममु खया को िामहए मक बच्िे की पररपक्व
होती हुई मानमसक शमियों के मवकास में
सहायता प्रिान करे । तीन वषथ तक गप्तु मन
अपनी मवशेष सेवाएाँ अमपथत करता है। अतः
प्रारंमभक काल में बच्िों को डााँटने-डपटने,
मारने-पीटने, अत्यािार करने या कठोर मनयंत्रण
में रखने से गप्तु मन में जमटल मानमसक ग्रंमर्यााँ
उत्पतन होती जाती हैं। इस काल में प्यार,
सहानभु मू त तर्ा िलु ार से ही उसमें उत्साह भरना
िामहए। तमनक-सी वमृ ि या अच्छाई उत्पतन होते ही प्रशंसा मिल खोलकर करना, बच्िों को
छोटे-छोटे उपहार, िटकीले मखलौने, कुत्ते-मबल्ली के बच्िे या अतय सामान िेना उत्तम है।

३ से ६ वर्ु में िालक का ववकास

बालक की ३ से ६ वषथ की अवस्र्ा में मन अपना कायथ प्रारंभ कर िेता है। प्रारंभ में उसे
जो मानमसक संवेिनाएाँ, मविार या अनभु व प्राप्त हुए हैं, वे अब स्पष्ट होने लगते हैं। बालक पर
पररमस्र्मत की छाप तो नहीं लगती, वह पररमस्र्मत को समझने लगता है। उसका व्यमित्व
स्र्ामपत होने लगता है और वह स्वयं स्फुमटत होने लगता है। उस काल में बालक हार्-पााँव से
मभतन-मभतन प्रवमृ तयााँ करना िाहता है और इतहीं के द्वारा ज्ञान ग्रहण करता है। पालने वालों की
गरीबी, योग्य मशक्षक का अभाव, अनक ु ू ल व्यवस्र्ा की कमी होने पर बच्िे का मानमसक
मवकास रुक जाता है।

26| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

मैडम मांटेसरी नामक बाल मनोमवज्ञान मवशेषज्ञा का कर्न है मक ३ से ६ वषथ की आयु


में बालक मशक्षा ग्रहण करने के मलए तैयार हो जाता है, मकंतु मशक्षण का संस्कार बालक की
स्वयं प्रवमृ त्त पर ही सध सकता है अर्ाथत उसके स्व-प्रयत्न पर मनभथर होता है। उत्साह द्वारा उसे
स्वयं प्रयत्न करने के मलए प्रेररत करना िामहए। साधन द्वारा वह सस्ं कार ग्रहण करने में समर्थ
होता है। इसके अमतररि बच्िा िररत्र के मवकास के मलए भी योग्य बन जाता है, पर इस आयु
में बालक अपने द्वारा ही मवकास की बातों को ग्रहण कर सकता है। ये तत्त्व उस पर लािे नहीं
जा सकते। िररत्र-मवकास के मलए पररवार के प्रत्येक सिस्य को बालक के सामने आिशथ रखना
िामहए। वह आिशों का अनक ु रण करके सब सीखेगा। आज्ञा द्वारा भी नीमत की कई बातें सीख
सकता है। इस आयु में बालक अमधक से अमधक शब्ि मााँगता है। इन शब्िों के उच्िारण में
उसे एक अजीब रस प्रतीत होता है। उसे नए-
नए फलों, तरकाररयों, व्यमियों के नाम भी
िेने िामहए। घर की वस्तओ ु ,ं पोशाक,
मोहल्ले, गाय, भैंस, बकरी इत्यामि का उसे
मववेक प्रारंभ हो जाता है। ३ से ६ वषथ की
आयु में प्रत्यक्ष वस्तओ ु ं द्वारा नाम मसखाए
जाएाँ तो बालक उतहें कमठन और लंबे होने
पर भी ग्रहण कर लेता है।
इस समय बालक की कल्पनाशमि
भी मवकमसत हो उठती है। अतः वे पररयों,
सााँपों, जािू की कहामनयों, अद्भुत वस्तओ ु ं की बात-िीत में मवशेष रस लेते हैं। ज्यों-ज्यों आयु
बढ़ती है, इसी कल्पना द्वारा बालक अपने ज्ञान की वमृ ि करता है। पररमस्र्मत से अनभु व लेकर
उन पर कल्पना करता है। नवीन बातों की जानकारी के मलए उसकी मजज्ञासा जाग्रत होती है।
वह माता-मपता तर्ा पररवार वालों से नाना प्रकार के प्रश्न करे गा। सावधान ! ये प्रश्न िबा न मिए
जाएाँ, वरन कुछ न कुछ उत्तर अवश्य मिए जाएाँ। उत्तर िेने वालों को बालक को ग्रहणशमि का
सममु ित ध्यान रखना िामहए। उत्तर िेते समय तीन तत्त्वों की ओर मवशेष ध्यान रमखए-

27| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

(१) िाल मानस का ज्ञान; (२) पररवस्थवत की जानकारी; ३) ववर्य को सरल िनाकर
समझाने की कला।

( बालक में मकसी प्रकार की शक ं ाएाँ न रह जाएाँ, मवरोध खडा न हो। बातें उलझी व
अधसमझी हुई न रहें, प्रत्यतु वह संतष्टु हो जाए।)

६ से १० वर्ु तक का ववकास

बच्िे का मवकास और होता है, जब वह ६ से १० वषथ तक का हो जाता है। उस काल में


वह पढ़ने-मलखने में खबू मिलिस्पी लेता है। हमें
िामहए मक मनम्न रीमतयों से उसके मवकास में
सहायता प्रिान करें -

1. उत्तम पस्ु तकें , मजनमें साहमसक कहामनयााँ


हों और पणू थ पमवत्र िररत्र का मनमाथण करने
वाली हों।
2. बच्िों द्वारा छोटे-छोटे एकांकी नाटकों के अमभनय कराए जाएाँ। पौरामणक या
ऐमतहामसक घटनाओ ं को लेकर बच्िों के मलए अच्छे नाटक तैयार कराए जा सकते हैं।
3. वैराइटी शो- यह मंि बमु ि के बच्िों के मलए बडा उत्तम मशक्षा का साधन है। इसमें गाने,
अमभनय और हाव-भावों का प्रिशथन होता है।
4. वाद्य यंत्रों पर संगीत, भजन और कीतथन इत्यामि ।
5. बच्िों को सैर के मलए ले जाया जाए और उतहें भााँमत- भााँमत के जीव, पक्षी, मिमडयााँ,
कीडे-मकोडे मिखाए जाएाँ।
6. मभतन-मभतन िेश के बालकों के वणथन।

28| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

7. मित्रकारी के मलए अमभरुमि उत्पतन की जाए। अच्छे -अच्छे मित्र, खिु ाई के काम,
मखलौनों का बनाना बालक की मछपी हुई प्रवमृ त्तयों का मवकास करे गा। बच्िों के शौकों
का मवकास करना िामहए।

िच्चों के कभछ शौक इस प्रकार िैं-


(१) मटकट एकत्र करना ।
(२) बडे आिममयों के हस्ताक्षर, मित्र, िीयासलाई के लेमबल, फोटोग्राफ, पमत्तयााँ-पष्ु प एकत्र
करना।
(३) सिंु र मामसक-पत्रों तर्ा पस्ु तकों का सग्रं ह।
(४) भााँमत-भााँमत के खेलों के साधन जटु ाना।
(५) मततमलयााँ, कीडे-मकोडे, मबल्ली-कुत्ते के बच्िे, पंछी पालना।
(६) िेश-मविेश के बालकों से पत्र-व्यवहार। यह सब ज्ञानविथन का बडा अच्छा साधन है।
(७) स्र्ानीय पहाड, पडोस, अपने प्रिेश की सैर ।
ऐसे पयथटन बालक के मन में मवमभतन प्रांतों के
मध्य एकिेशीय सांस्कृमतक एकता के भाव
दृढ़ करते हैं।

प्रौढ़ अवस्था में ववकास

बडे होने पर बच्िों को एक ममत्र की हैमसयत से रखना िामहए। िौिह वषथ की आयु में
बच्िे में एक बहुत बडा महत्त्वपणू थ पररवतथन होता है। कौमायथ समाप्त होकर यौवन का प्रवेश
होता है और मवपरीत मलंग के व्यमियों में भारी आकषथण प्रतीत होने लगता है। माता-मपता को
बडी सावधानी से इस आयु में बच्िे के मानमसक और शारीररक पररवतथन आने में सहायता
करनी िामहए। ब्रह्मियथ की पस्ु तकें पढ़ने को िी जाएाँ तर्ा कामोत्तेजक स्र्ानों, दृश्यों, गंिी
पस्ु तकों से बिाना िामहए। प्रेममय पर्-प्रिशथन से बहुत काम मनकल सकता है। तीव्र आलोिना

29| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

या सीधा हस्तक्षेप शोिनीय होगा। यमि सममलंगी अर्वा मभतनमलंगी ममत्रता अत्यमधक स्वत्व
जताने वाली हो तो ऐसा संबंध िभु ाथग्यपणू थ है और पररवार के ममु खया को इसकी मनगरानी करनी
िामहए। यमि ऐसे गमहथत संबंध की अमववेकशीलता समझा िी जाए तो काम मनकल सकता है!
काम मशक्षा की आवश्यकता से कौन इनकार कर सकता है ? पमवत्र ढंग से मकसी मवश्वासपात्र
व्यमि के द्वारा जवान बालक को मशक्षा ममलनी िामहए।
पररवार वास्तमवक रूप से घर होना िामहए, न मक होटल। जहााँ माता-मपता और यवु ा
पत्रु -पमु त्रयों में परस्पर ममत्रता और सहानभु मू त का संबंध हो,
वही प्रेममय स्र्ान घर कहा जाता है। ऐसे प्रेम और सरस
वातावरण में बालक का सतं मु लत मवकास होता है।
माता-मपता अपने बच्िे के िोस्त को भोजन, खेल
और बात-िीत के मलए घर बल ु ाएाँ, तो श्रेष्ठ है।
इससे बच्िे का घर में मवश्वास बढ़ता है।
जहााँ तक हो सके , बालकों को अपने इष्ट
ममत्रों के िनु ाव का अवसर प्रिान करना िामहए।
उसमें र्ोडे से पर्- मनिेश से काम िल सकता है।
स्मरण रमखए, यमि आप बालक के ममत्रों की अवहेलना
करें गे तो उसे अपना मवरोधी ही बना लेंगे। उनके ममत्रों के सार्
मशष्टता एवं कोमलता का व्यवहार हो, इसे आपके पत्रु -पत्रु ी पसिं करें गे।
माता-मपता को सिा समय के अनसु ार िलना िामहए। आपका मख्ु य ध्येय अनश ु ासन
नहीं, डााँट-फटकार, जरु माना नहीं, प्रत्यतु प्रेम और सहानभु मू तपणू थ ममत्रता का संबंध होना
िामहए। आपका पत्रु भी ममत्र सदृश ही है। एक सहानभु मू त- पणू थ माता-मपता के समान कौन
अच्छा ममत्र हो सकता है!
सीधे हस्तक्षेप न कर, परोक्ष तरीकों से अर्ाथत ऐसे उपायों से उनकी गलमतयााँ बतलानी
िामहए मक वे बरु ा न मान बैठें। उनके अहं और गवथ की रक्षा का ध्यान रखें। यमि वे बालक की
व्यमिगत स्वतंत्रता का अपहरण न करें तो माता- मपता तर्ा बालक के मध्य मकसी प्रकार का
सघं षथ उत्पतन नहीं होगा।

30| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

मनोवैज्ञामनकों ने स्पष्टतः मनिेश मकया है मक घर तर्ा पररवार के सिस्य ही बालक के


जीवन के मवकास के साधन हैं। अनक ु रण, पररमस्र्मतयााँ, आपके भले-बरु े मनिेश, सामामजक
मस्र्मत, सभी उसके िररत्र पर अपना-अपना प्रभाव डालने वाले हैं। बात यह है मक व्यमि की
शमियों, योग्यताओ,ं भावनाओ ं और प्रकृमतयों का मवकास, एक प्रकार का सपं णू थ वातावरण
स्र्ामयत्व, सरु क्षा तर्ा शमि मााँगता है। यह सब आपके पररवार में मजतनी सिाई और पणू थता से
ममल जाता है, उतना अतयत्र िल ु थभ है। बालक के मवकास के मलए हमें सख ु ि, प्रेममय, मोिकारी
वातावरण प्रस्ततु करना िामहए।
पं। श्रीराम शमाथ आिायथ

समाप्त

दस
ू रों की सहायता काफी नह ां

ककसी जींगल में एक साधु रहता था। एक ददन एक


चह
ू ा बबल्ल के डर से उधर दौड़ा आया। साधु को दया आ
गई और उसने उसे बबल्ल बना ददया। पर बबल्ल कुत्ते से
डरती रहती थी। उसने उसे कुत्ता बना ददया। पर वह तें दए

से डरा दब
ु का बैठा रहता। साधु ने उसे तें दआ
ु बना ददया।
एक ददन शशकार उधर आए तो तें दआ
ु भी कुदटया में
आकर निप गया।

31| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

पंचम दिवस

मूधाुनं राय आरभे। —ऋर्ग० १। २४। ६। ५॥

ऐश्वयु को प्राप्त कर िड़े काम करो।


ओछे ववचार वाले ओछे िी रि जाते िैं।

रोंगटे खड़े होना?


महु ावरा?

32| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

सहज पाके सो मीठा

एक गांव में पानी की बहुत ही समस्या रहती र्ी। वहां के जो प्रधान र्े वह आए मिन
लोगों को मजिरू ी िेकर गांव के मलए
उनसे पानी मंगवाया करते र्े। जब
यह रोज-रोज की समस्या ने ज्यािा
बडा रूप ले मलया तो उतहोंने सोिा
मक क्यों ना परमानेंट ही इसका इलाज
मकया जाए और लोगों को व्यवसाय
मिया जाए, तब उतहोंने गांव में घोषणा
करवा िी मक जो व्यमि मजतना पानी
गांव के मलए निी से लेकर आएगा उसे उसकी मेहनत की कीमत िी जाएगी। एक बाल्टी का
₹100 और प्रत्येक बाल्टी में 10 लीटर पानी होना आवश्यक र्ा।
यह खबर गांव के िो ऐसे बेरोजगार व्यमियों पर पडी मजनको काम की सि में जरूरत
र्ी और वह मिन भर अपना यंू ही बताया करते र्े। “राम और श्याम” यह िोनों जब गांव के
प्रधान के पास पानी की बाल्टी को लेने के मलए पहुिं े तब प्रधान ने कहा जो मजतनी बडी
बाल्टी लेगा उसको उतने पैसे ज्यािा ममलेंगे। तब श्याम के मन में लालि आ गया क्योंमक वह
शारीररक तौर पर भी ठीक-ठाक र्ा इसीमलए उसने भारी बाल्टी उठाने का मन ही मन मनश्चय
मकया।
वहीं िसू री ओर राम सोि रहा र्ा की मैं अपनी यर्ाशमि अनसु ार ही बाल्टी उठाऊं
तामक मझु े र्कान महससू ना हो काम करने में और समय बिा कर मैं अतय काम कर पाऊं। तो
मफर राम ने ऐसा ही मकया राम ने प्रमतमिन 10 लीटर पानी की बाल्टी को निी से लाकर गावं में
िेना शरू
ु मकया और अपने कायथ अनसु ार प्रधान जी से रुपए प्राप्त मकए। प्रमतमिन वही श्याम ने
राम से भी ज्यािा भारी बाल्टी का ियन करके प्रधान जी से पानी लेकर आने के मलए िगु नी

33| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

रकम परु स्कार में प्राप्त की और वह राम से पैसे मैं काफी अमीर हो गया। तब राम को एहसास
हुआ की यमि काम के पैसे ममलते हैं तो वह पैसे हम अपना समय िेकर ही प्राप्त करते हैं हम
मजतना समय में पानी लाते हैं और गांव का काम करते हैं प्रधान उसी समय का मल्ू य हमें िे रहा
है। बस उसी समय से राम ने मनमश्चत मकया आज से मैं पानी लाने के सार् बिे हुए समय में
आराम करने की जगह एक और नया काम करूंगा।
राम ने निी से गांव तक पानी लाने के मलए सरु मक्षत पाइप लाइन मबछाना शरू
ु कर मिया।
उसके यह कायथ को िेखकर कई लोगों
ने उसकी उपेक्षा की व यह जताया
मक यह कायथ अत्यतं कमठन है एवं
तम्ु हारे बस की बात नहीं, परंतु वह
सब की अनसनु ी करके बिे हुए
समय में अपना कायथ करने में लगा
रहा और मेहनत करता रहा। वही
ज्यािा धन प्राप्त होने के कारण श्याम
को मौज-मस्ती व धन खिथ करने की
बरु ी लत लग गई एवं वह मेहनत से कमाए हुए धन को अच्छे कायों में लगाने की जगह अतय
कामों में खिथ करने लग गया। वही राम मिन भर पानी लाता निी से जाकर एवं बिे हुए समय में
गांव के मलए निी से एक ऐसी छोटी नहर या पाइप लाइन की व्यवस्र्ा करने में लग गया
मजससे आसानी से गांव में पानी मबना मेहनत के आ सके उसका यह कायथ संपतन होते-होते उसे
3 वषथ का समय लगा, परंतु जब उसको सफलता ममली तो जो लोग गांव में उसके मखलाफ र्े,
उन सब के मंहु पर ताले भी पड गए।
राम को प्रधान की ओर से परु स्कार तो ममला ही सार् में गांव में नवीनीकरण व
शहरीकरण करने का अतय परु स्कार भी मिया गया एवं सम्मान भी। यही कारण है मक हम काम
करते वि अपने आपको र्का मानकर सीममत िायरे तक ही रहना िाहते हैं जबमक हमें अपने
समय का सिपु योग हर समय करने के मलए सोिना िामहए काम िाहे घर का हो या बाहर का,

34| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

हर काम को यमि अपना उमित समय व ध्यान िेकर


मकया जाए तो कायथ सफल होने के सार्-सार् सम्मान
भी प्रिान करता है क्योंमक समय ही वह वस्तु है
मजसको साधकर हमें धन लाभ अवश्य होता है।

मभिावरे का अथु– बहुत डर जाना।

उदािरण – अंधेरे में जाते ही राहुल के रोंगटे खडे हो जाते हैं।

समाप्त

कुएँ की जगत और घडा

कुआाँ नया-नया ह बना था। एक पननहाररन ने


पानी भरने के शलए कुएाँ की जगत पर मटका रखा तो वह
लढ
ु कने लगा। कुएाँ की जगत पर लगा पत्थर हाँ सा और
घड़े को बेपेंदे का कहकर उसकी णखल्ल उड़ाने लगा। घड़ा
चप
ु रहा।

कुि ददन बाद घड़ा उस स्थान पर रखते-रखते वहााँ


पर एक गोल गड्ढा-सा बन गया। अब घड़ा स्स्थर रखा
जाने लगा। तब घड़े ने पत्थर से कहा- दे खा भाई पत्थर !
अपने ननरीं तर प्रयास से मैंने अपने कोमल अींगों की ह
रगड़ से तुम्हारे कठोर शर र में भी अपने शलए स्थान बना
ह शलया।

35| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

षष्टम दिवस

आरे द्वेर्ांवस सनभतदुधाम। —ऋर्ग० ५। ४५। ५॥

द्वेर् का पररत्यार्ग कर देना िी उवचत िै।


जो द्वेर् करता िै, उसी का अवधक अवित िोता िै।

अपने पैरों पर खड़ा िोना?


महु ावरा?

36| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

समय की पाबंिी

बात उस समय की है जब मोहनिास करमिंि गााँधी सातवीं कक्षा में पढ़ते र्े। स्कूल के प्रधान
अध्यापक िोरबजी एिल ु जी मगमी र्े। वह बहुत अनश ु ासन मप्रय र्े और उतहोंने ऊाँिी कक्षा के मव द्यामर्थयों
के मलए व्यायाम, खेल – कूि और मक्रके ट अमनवायथ कर रखा र्ा। मोहनिास को व्यायाम और खेल –कूि
में मबल्कुल मिलिस्पी नहीं र्ी और वे मकसी में भाग नहीं लेते र्े।
मोहनिास स्कूल से सीधे घर भागते र्े क्योंमक उतहें अपने मपता की सेवा- सश्रु षु ा करनी होती र्ी।
अगर वे स्कूल में पढाई के बाि खेल – कूि के मलए रुकते तो समय से अपने मपता की सेवा- सश्रु षु ा के
मलए घर नहीं पहुिाँ पाते। मोहनिास ने प्रधान अध्यापक से इस कारण खेल – कूि में भाग लेने से छूट
मांगी।
उनकी यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की गयी। एक शमनवार को जब स्कूल प्रात: लगा, खेल – कूि के
मलए मोहनिास को िबु ारा 4 बजे सायंकाल स्कूल जाना र्ा। मोहनिास के पास घडी नहीं र्ी, आसमान
में बािल छाए हुए र्े। ठीक समय का उतहें पता नहीं िला। जब बालक स्कूल पहुिं ा, सभी लडके वापस
जा िक ु े र्े।
िसू रे मिन प्रधान अध्यापक ने मोहनिास से खेल
– कूि में गैर – हामजर होने का कारण पछ ू ा। यद्यमप
मोहनिास ने सही सही कारण बता मिया तो भी प्रधान
अध्यापक ने मवश्वास नहीं मकया और झठू बोलने के
मलए उन पर एक – िो आने का जमु ाथना कर मिया।
बालक को बडी माममथक पीडा पहुिं ी मक उनके
प्रधान अध्यापक ने उतहें झठू ा समझा। बाि में मोहनिास
के मपता द्वारा पत्र मलखे जाने पर मक मोहनिास स्कूल शाम को गया र्ा और घडी न होने की वजह से
ठीक समय का पता नहीं िल पाया र्ा, जमु ाथना माफ़ कर मिया गया। बालक ने तब समझा मक सि बोलने
के सार् सार् समय – पाबतिी भी आवश्यक है। और तब से उस बालक ने समय की पाबतिी के मामले में
कभी िक ू नहीं की।

37| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

कहानी से मशक्षा – समय की पाबतिी उतनी ही आवश्यक है मजतना मक सत्य – भाषण । बच्िों ,
यमि तमु समय पाबतिी के महत्त्व को समझोगे तो कभी भी मकसी गलतफहमी का मशकार न होगे।
बापू समय के बहुत पाबिं र्े। अपना प्रत्येक कायथ समय से करते र्े। उनके कायथक्रम इतने मनयममत
र्े मक उनके आश्रम के लोग उनके कायथक्रम को िेखकर ठीक ठीक समय बता सकते र्े और अपनी
घमडयााँ ममला सकते र्े।
प्रार्थना के पहले बापू के घमू ने का कायथक्रम रहता र्ा। एक मिन बापू गजु रात मवद्यापीठ गये। वहां
उतहें बहुत िेर हो गयी। प्रार्थना का समय मनकट आ रहा र्ा। उतहोंने िेखा मक सामने एक साइमकल पडी है।
उसे उतहोंने तरु ं त उठाया और तेजी से िलाकर ठीक समय पर वे प्रार्थना स्र्ान पर पहुिाँ गए।

मभिावरे का अथु– खिु के िम पर कामयाबी हामसल करना।

उदािरण – मकसी भी माता-मपता के मलए गवथ की बात तब होती है, जब उनका बेटा पैरों पर खडा हो
जाता है।

समाप्त

शर र के छे द

युद्धभूशम में रावण मरा पड़ा था। उसे दे खने


लक्ष्मण गए। वापस आकर श्रीराम को बतलाया के
आपने तो उसे एक ह तीर मारा था, पर उसके शर र में
तो अनेक निद्र बन गए हैं।

उन्होंने लक्ष्मण सदहत अपनी वानर सेना को


समझाया कक रावण के दग
ु ण
ुव ों ने उसे िे दा है । उसके
पापकमों के कारण ह उसकी ऐसी दुःु खद मत्ृ यु हुई।

38| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

सप्तम दिवस

देवः वायं िनते। —ऋर्ग० ६। ११२॥

धन उन्िीं के पास ठिरता िै, जो सद्गभणी िैं।


दभर्गुभणी की ववपभल सपं दा भी शीघ्र नष्ट िो जाती िै।

महु ावरा? अंत भला तो सि भला?

39| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

समय बहुत मूल्यवान है

एक छात्र उच्ि मशक्षा के मलये अमरीका गया। उसका होस्टल


यमू नवमसथटी से र्ोडी ही िरू र्ा। यमू नवमसथटी का समय सबु ह 8 बजे का
र्ा। पहले मिन यह छात्र अपने कमरे में तैयार हो रहा र्ा,तभी आठ
बज गए। मफर भी वह आराम से िलता हुआ मवद्यालय पहुिं ा। वहााँ
उसने िेखा मक सब छात्र कक्षा में आ िक ु े है और पढ़ाई प्रारम्भ हो
िक ु ी है। मशक्षक ने भारतीय छात्र को कक्षा में बैठने की अनमु मत तो िे
िी लेमकन सर ने कहा मक कहा,”,आप समय पर नहीं आते।”
अगले मिन उसने समय पर कक्षा में पहुिाँ ने का प्रयास मकया,
परंतु वह पािं ममनट िेर से पहुिं ा। मशक्षक ने पनु ः कहा”, आप समय
पर नहीं आते।”
िो बार कक्षा में सबके सामने टोकने से शमथ
आई उसने िेखा मक उसके अमतररि और कोई
छात्र िेर से नहीं आता। अतः तीसरे मिन उसने
मवशेष प्रयास मकया और परं ह ममनट पहले ही
मवद्यालय पहुिाँ गया। उसने िेखा मक गेट बंि है
और वहााँ एक भी मवद्यार्ी या अध्यापक नहीं है।
जब आठ बजने में िार-पााँि ममनट रह गए तब िपरासी आया और उसने द्वार खोला। िरवाजा
खोलने के पश्चात िो-तीन ममनट में ही सारे छात्र और मशक्षक आ गए। ठीक आठ बजे घंटा बजा और
पढ़ाई आरम्भ हुई। एक भी छात्र िेर से नहीं आया।
मवद्यार्ी प्रसतन र्ा मक आज वह िेर से नहीं,समय पर कक्षा में आया है परततु उसके आश्चयथ का
मठकाना न रहा जब मशक्षक ने मफर कहा,” आप समय का ध्यान नहीं रखते। मवद्यार्ी ने कहा,” सर, आज
मैं िेर से नहीं आया, बमल्क 15 ममनट पहले ही आ गया र्ा। मफर भी आप ऐसा कह रहे है।”

40| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

इस पर मशक्षक ने मस्ु कुरा कर कहा,” िो िार ममनट भी िेर से आना ठीक नहीं है। लेमकन 15
ममनट पहले आकर फाटक के बाहर खडे रहना भी अच्छा नहीं है। इन ममनटों में आप अपने कमरे में कुछ
अध्ययन कर सकते र्े।” इस तरह अमरीकी अध्यापक ने भारतीय छात्र को समय के महत्व का ज्ञान
कराया।

मभिावरे का अथु– मकसी काम को करने के बाि अगर उसका पररणाम अच्छा हो जाए।

उदािरण – इतनी मेहनत के बाि मशप्रा को सफलता ममल ही गई, अब वो एक कामयाब मसंगर
बन िक
ु ी है, अतं भला तो सब भला।

समाप्त

दधीचि का अस्स्थदान

शस्ततशाल वत्र
ृ ासरु ने इींद्र को हराकर दे वलोक पर
अपना अधधकार कर शलया। उसके त्रास से सभी दे वता
भयभीत थे। अतुः ब्रह्मा जी ने बताया कक इस समय
तपस्वी श्रेष्ठ दधीधच तपस्यारत हैं, उनकी अस्स्थयों से बने
वज्र से ह वत्र
ृ ासरु मारा जा सकता है ।

दे वताओीं ने जाकर उनसे प्राथवना की। वे इस


परोपकार के शलए सहर्व तैयार हो गए। उनकी अस्स्थयों से
वज्र बना और असरु ों का नाश ककया गया। शर र की इससे
अधधक साथवकता और तया हो सकती है !

41| समय का सदभपयोर्ग


मााँ की संस्कारशाला-36

गीत
प्यारा खरगोश

सोनू ने वचवड़याघर देखा।


वि वदन िीता ििुत मजे का।।
था खरर्गोश िन्द वपंजरे में।
मास्टर लाया उसे खल भ े में ।।
िरी घास मास्टर ने िाली।
उसने ििुत खभशी से खाली ।।
मास्टर ति पानी ले आया।
उसे वपला सच्चा सभख पाया ।।
था खरर्गोश िड़ा िी प्यारा।
वमत्र िन र्गया सिज िमारा।।
िाल सिे द घने थे उसके ।
चलता थावि उचक-उचक के ।।
लर्गा उसे घर िम ले आयें।
अपने िाथों घास वखलायें ।।

42| समय का सदभपयोर्ग

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