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Durga Chalisa: दुर्गा चगलीसग और उसकग सुुंदर भगवगर्ा

नवरात्रि के त्रिन ों में िे वी माों के भक्‍त पूरे नौ त्रिन सुबह-शाम


उनकी उपासना करते हैं । इस िौरान भक्त िु र्ाा चालीसा भी
पढ़ते हैं । िु र्ाा चालीसा में बहुत ही सरल चौपाइय ों में िे वी माों
का र्ुणर्ान त्रकया र्या है ।
इन चौपाइय ों क पढ़ना त्रितना आसान है , उतना ही सरल
इसका अर्ा समझना है । िु र्ाा चालीसा में त्रलखी चौपाइय ों का
अर्ा हमने भ पाल के पोंत्रित एवों ज्य त्रतषाचाया त्रवन ि स नी िी
से पूछा है । वह कहते हैं , ' िु र्ाा चालीसा में िे वी िी की शक्तक्तय ों
का बखान त्रकया र्या है । इस चालीसा क पढ़ने माि से मन से
भय िू र ह िाता है और सकारात्मकता महसूस ह ने लर् िाती
है ।'
पोंत्रित िी िु र्ाा चालीसा में त्रलखी चौपाइय ों का अर्ा त बताते ही
हैं , सार् ही यह भी कहते हैं त्रक िब भी आप िु र्ाा चालीसा का
पाठ करें , तब सामने एक िीपक िरूर प्रज्‍‍ज्‍व
‍ त्रलत कर लें और
त्रिर चालीसा का पाठ करें ।
नम नम िु र्े सुख करनी।
नम नम अम्बे िु ख हरनी॥
अर्ा- सुख प्रिान करने वाली हे िु र्ाा माों , मेरा नमस्कार स्वीकार
करें और मेरे सभी िु ख ों क हर लें।
त्रनराकार है ज्य त्रत तुम्हारी।
त्रतहों ल क िैली उत्रियारी॥
अर्ा- माों आपकी ज्य त्रत का प्रकाश अनोंत है और इस प्रकाश
से पृथ्वी, आकाश और पाताल तीन ों ही ल क ों में उिाला छाया
हुआ है ।
शत्रश ललाट मुख महात्रवशाला।
नेि लाल भृकुत्रट त्रवकराला॥
अर्ा- हे माता, आपका मुख इतना त्रवशाल है और चोंद्रमा के
समान चमकिार है , वहीों आपकी आों खें लाल और भौों बहुत ही
त्रवकराल हैं ।
रूप मातु क अत्रिक सुहावे।
िरश करत िन अत्रत सुख पावे॥
अर्ा- हे माों िु र्ाा आपका स्वरूप बहुत ही सुोंिर है , त्रिसे बार-
बार िे खते ही रहने का मन करता है । आपके मुख के िशान
पाकर भक्त िन ों क परम सुख की प्राक्ति ह ती है ।
तुम सोंसार शक्तक्त लय कीना।
पालन हे तु अन्न िन िीना॥
अर्ा- सोंसार में त्रितनी भी शक्तक्तयाों हैं , वह सभी आप में
समात्रहत हैं । इस िर्त क चलाने वाली और अपने बच् ों का
पालन करने वाली, हे माों िु र्ाा ! आप ही हमें अन्‍न और िन
प्रिान करती हैं ।
अन्नपूणाा हुई िर् पाला।
तुम ही आत्रि सुन्दरी बाला॥
अर्ा- हे िे वी! आप ही अन्नपूणाा माता हैं , इस िर्त की पालन
करता भी आप ही हैं । इस िर्त में सबसे खूबसूरत छत्रव त्रकसी
की है , त वह आपकी ही है ।
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम र्ौरी त्रशवशोंकर प्यारी॥
अर्ा- िब त्रवश्‍व में घ र अपराि बढ़ िाता है , त आप ही प्रलय
लाती हैं । महािे व भर्वान त्रशव की त्रप्रय र्ौरी यात्रन पावाती भी
आप ही हैं ।
त्रशव य र्ी तुम्हरे र्ुण र्ावें।
ब्रह्मा त्रवष्णु तुम्हें त्रनत ध्यावें॥
अर्ा- भर्वान त्रशव सत्रहत ब्रह्मा, त्रवष्णु और सभी य र्ी आपका
र्ुणर्ान और ध्‍यान करते हैं ।
रूप सरस्वती क तुम िारा।
िे सुबुक्ति ऋत्रष मुत्रनन उबारा॥
अर्ा- आप ही माता सरस्‍वती हैं , आपने ही अपनी शक्तक्त से
सभी ऋत्रष-मुत्रनय ों क सि् बुक्ति िी है और उनका उिािर
त्रकया है ।
िरा रूप नरत्रसोंह क अम्बा।
प्रकट हुई िाड़कर खम्बा॥
अर्ा- श्री हरर भक्त प्रहलाि क उसके राक्षस त्रपता
त्रहरण्यकश्यप से बचाने के त्रलए, आपने ही श्री नरत्रसोंह का रूप
िारण त्रकया र्ा और खोंबा िाड़ कर आप प्रकट ह र्ई र्ीों।
लक्ष्मी रूप िर िर् माहीों।
श्री नारायण अोंर् समाहीों॥
अर्ा- लक्ष्मी का रूप िारण करके आप ही श्री हरर त्रवष्णु के
सार् उनकी सोंर्नी के रूप में मौिूि हैं ।
क्षीरत्रसन्धु में करत त्रवलासा।
ियात्रसन्धु िीिै मन आसा॥
अर्ा- क्षीरसार्र में भर्वान त्रवष्णु के सार् िया की मूत्रता के रूप
में आप ही त्रवरािमान हैं और अपने सभी भक्त ों पर वहाों से
कृपा बरसाती रहती हैं ।
त्रहोंर्लाि में तुम्हीों भवानी।
मत्रहमा अत्रमत न िात बखानी॥
अर्ा- त्रहोंर्लाि की भी िे वी आप ही हैं और आपकी मत्रहमा
अनोंत है , त्रिसका बखान तीन ल क में ह ता है ।
मातोंर्ी िूमावती माता।
भुवनेश्वरी बर्ला सुखिाता॥
अर्ा-हे िे वी! आपके एक नहीों अनेक स्वरूप हैं और आप ही
मातोंर्ी िे वी, िूमावती, भुवनेश्‍वरी और बर्लामुखी माता हैं ।
आपके यह सभी रूप सुख प्रिान करते हैं ।
श्री भैरव तारा िर् ताररत्रण।
त्रछन्न भाल भव िु ुः ख त्रनवाररत्रण॥
अर्ा- आप भैरव और तारािे वी के रूप में इस िर्त का उिार
कर रही हैं , वहीों त्रछन्नमक्तिका िे वी के रूप में आप सभी भक्त ों
के िु ख और कष् ों क हर लेती हैं ।
केहरर वाहन स ह भवानी।
लाों र्ुर वीर चलत अर्वानी॥
अर्ा-हे माता! आपकी सवारी त्रसोंह है और स्वयों हनुमान िी िैसे
वीर आपकी सेवा में हर वक्त मौिूि रहते हैं ।
कर में खप्पर खि् र् त्रवरािे।
िाक िे ख काल िर भािे॥
अर्ा- िे वी िु र्ाा के हार् ों में िब काल रूपी खप्पर ह ता है , त
उसे िे ख कर स्वयों काल भी भयभीत ह िाता है ।
स है अस्त्र और त्रिशूला।
िाते उठत शिु त्रहय शूला॥
अर्ा- हार् ों में त्रिशूल िैसे शक्तक्तशाली शस्त्र क िारण करने
वाली माों िु र्ाा क िे ख कर शिुओों का हृिय तक काों प उठता
है ।
नर्रक ट में तुम्हीों त्रवराित।
त्रतहों ल क में िों का बाित॥
अर्ा- हे िे वी! नर्रक ट में तुम्हीों रहती ह और तीन ों ल क में
तुम्हारे नाम का ही िों का बिता है ।
शुम्भ त्रनशुम्भ िानव तुम मारे ।
रक्तबीि शोंखन सोंहारे ॥
अर्ा- हे माता! आपने शुम्भ-त्रनशुम्भ िैसे राक्षस ों का सोंहार
त्रकया है और रक्तबीि िैसे वरिान प्राि राक्षस का भी नाश
त्रकया है , त्रिसके रक्त की एक बूोंि त्रर्रने पर सैकड़ ों राक्षस
पैिा ह िाते र्े। इतना ही नहीों, शोंख नाम के राक्षस क भी
आपने ही मारा है ।
मत्रहषासुर नृप अत्रत अत्रभमानी
िेत्रह अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कात्रलका िारा।
सेन सत्रहत तुम त्रतत्रह सोंहारा॥
अर्ा- िब िै त्यराि मत्रहषासुर के पाप ों का घड़ा भर र्या, तब
उसके अत्रभमान क चूर-चूर करने और व्याकुल िरती के ब झ
क हल्का करने के त्रलए, आप काली का त्रवकराल रूप िारण
कर आ र्ीों और मत्रहषासुर का उसकी सेना सत्रहत सवानाश
कर त्रिया र्ा।
परी र्ाढ़ सन्तन पर िब िब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अर्ा- हे माता! िब-िब आपके भक्त ों पर मुसीबत आई है , तब-
तब आप ही उनकी सहायता करने के त्रलए आई हैं ।
अमरपुरी अरु बासव ल का।
तव मत्रहमा सब रहें अश का॥
अर्ा- हे माता! िब तक िे व ों की अमरपुरी और तीन ों ल क ों का
अक्तित्व है , तब तक आपके भक्त ों क क ई श क नहीों घेर
सकता है ।
ज्वाला में है ज्य त्रत तुम्हारी।
तुम्हें सिा पूिे नर नारी॥
अर्ा- ज्वाला की ज्य त्रत में भी तुम ही समात्रहत ह माता। तब ही
त ज्वालािी में अनोंत काल से ज्य त्रत िलती चली आ रही है ।
इसत्रलए सभी नर-नारी आपकी पूिा करते हैं ।
प्रेम भक्तक्त से ि यश र्ावे।
िु ख िाररद्रय त्रनकट नत्रहों आवे॥
अर्ा- आपके र्ुणर्ान, ि भी भक्त प्रेम और श्रिा से र्ाता है ,
िु ख एवों िररद्रता उसके नििीक नहीों आती है ।
ध्यावे तुम्हें ि नर मन लाई।
िन्म-मरण ताक छूत्रट िाई॥
अर्ा- ि प्राणी मन से आपका ध्‍यान करता है , उसे िन्‍म-मरण
के चक्र से आप त्रनत्रित ही मुक्तक्त िे िे ती हैं ।
ि र्ी सुर मुत्रन कहत पुकारी।
य र् न ह त्रबन शक्तक्त तुम्हारी॥
अर्ा- आपकी शक्तक्त के त्रबना त य र् भी नहीों सोंभव है , इसत्रलए
य र्ी, ऋत्रष-मुनी और सािु-सोंत भी आपका ही नाम पुकारते
हैं ।
शोंकर आचारि तप कीन ।
काम अरु क्र ि िीत्रत सब लीन ॥
त्रनत्रशत्रिन ध्यान िर शोंकर क ।
काहु काल नत्रहों सुत्रमर तुमक ॥
शक्तक्त रूप क मरम न पाय ।
शक्तक्त र्ई तब मन पछताय ॥
शरणार्त हुई कीत्रता बखानी।
िय िय िय िर्िम्ब भवानी॥
अर्ा- शोंकराचाया िी ने आचारि नाम का तप त्रकया और इससे
काम, क्र ि, मि, ल भ आत्रि सभी पर उनक िीत हात्रसल ह
र्ई। उन् न
ों े हर त्रिन भर्वान शोंकर का ध्यान त्रकया मर्र
आपक स्मरण नहीों त्रकया। वे यह बात समझ ही नहीों पाए त्रक
आप ही आत्रि शक्तक्त हैं । िब उनकी शक्तक्तयाों त्रछन र्ई, तब
मन ही मन उन्ें पछतावा हुआ और िब उन्‍हें आपकी शक्तक्तय ों
का अहसास हुआ, तब वह आपकी शरण में आए और आपके
भक्त बन बैठे।
भई प्रसन्न आत्रि िर्िम्बा।
िई शक्तक्त नत्रहों कीन त्रवलम्बा॥
म क मातु कष् अत्रत घेर ।
तुम त्रबन कौन हरे िु ख मेर ॥
अर्ा- हे िे वी! आपने त्रिस तरह से शोंकराचाया िी से प्रसन्न
ह कर उनकी सभी शक्तक्तयाों उन्ें वापस लौटा िी र्ीों, वैसे ही
मुझे भी ढे र ों कष‍ट ों ने घेर रखा है । इन कष् ों क केवल आप ही
िू र कर सकती हैं ।(िु र्ाा चालीसा का पाठ करने के लाभ)
आशा तृष्णा त्रनपट सतावें।
म ह मिात्रिक सब त्रवनशावें॥
शिु नाश कीिै महारानी।
सुत्रमरौों इकत्रचत तुम्हें भवानी॥
अर्ा- हे माता! नई-नई आशाएों और ज्यािा से ज्यािा त्रमलने की
प्यास मुझे सिै व सताती रहती है । मेरे अोंिर क्र ि,म ह,
अहों कार, काम और ईर्ष्ाा िैसे भाव भी हैं , ि हर घड़ी मुझे
परे शान करते हैं । यह सभी मेरे शिु हैं । हे िे वी! मैं आपका
ध्यान करता हों और आपसे त्रवनती करता हों त्रक आप इन सभी
शिुओों का नाश कर िें ।
कर कृपा हे मातु ियाला।
ऋक्ति त्रसक्ति िे करहु त्रनहाला॥
िब लत्रर् त्रिऊों िया िल पाऊों।
तुम्हर यश मैं सिा सुनाऊों॥
अर्ा- हे िया की िे वी! मुझ पर अपनी कृपा बरसाओ और मुझे
ऋक्ति-त्रसक्ति प्रिान करके मेरे िीवन क सिल बना ि । हे
माता! मैं अपनी आक्तखरी साों स तक आपके ही र्ुणर्ान र्ाऊोंर्ा,
बस आप मुझ पर अपनी कृपा दृत्रष् बनाए रखें।
िु र्ाा चालीसा ि त्रनत र्ावै।
सब सुख भ र् परम पि पावै॥
िे त्रविास शरण त्रनि िानी।
करहु कृपा िर्िम्ब भवानी॥
अर्ा- ि व्यक्तक्त त्रनयत्रमत िु र्ाा चालीसा का पाठ करता है , उसे
हर सुख की प्राक्ति ह ती है और परम आनोंि त्रमलता है ।
इसत्रलए हे माता रानी! हमें अपनी शरण में ले लीत्रिए और हम
पर अपनी कृपा बनाए रक्तखए।

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