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भारत की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है , हिंदी एक राजभाषा है अर्थात् राज्य के कामकाज में प्रयोग की जाने

वाली भाषा। अभी हमारे बीच यह सवाल है कि क्या हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा बन सकती है ? हिंदी भारत की
सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है , अतः इसे राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार करने की मांग कु छ गलत
नहीं है।

दरअसल, आजादी के कई साल बाद भी भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रचलन रहा था। लोगों का मानना था
कि इसके जगह पर हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए। संविधान निर्माताओं के बीच इस बात को
लेकर बहस छिड़ी कि किसे राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए क्योंकि दक्षिण भारत के लोग हिंदी
भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने के खिलाफ थे। भारतीय संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा
नहीं मिला है। भारत में 22 भाषाओं को आधिकारिक दर्जा मिला है , जिसमें अंग्रेजी और हिंदी भी शामिल
है। भारतीय संविधान के अनुच्छे द 343 के खंड (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी संघ की
राजभाषा है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा में देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को भारत की
आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। इसके बाद उस समय के प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरु
ने इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का फै सला किया, हालांकि 14 सितंबर, 1953 से आधिकारिक
रूप से हिंदी दिवस मनाया जाने लगा।

हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के संबंध में हिंदी, अंग्रेजी, और उर्दू भाषा के टकराव का भी काफ़ी महत्व है।
यह एक सांस्कृ तिक और राजनीतिक विषय है जिसमें भाषा, समाज, और राष्ट्रीय एकता के सवाल शामिल
हैं। भाषा के टकराव से जो भाषा एक समय में एक होती थीं, अब अलग-अलग समूहों की भाषाएँ बन गई
हैं। भाषा किसी एक समूह की सांस्कृ तिक पहचान है इसलिए भाषा के टकराव में समस्या उत्पन्न हो
सकती है जहां किसी भाषा की पहचान को खतरा महसूस होता है। भाषा के टकराव से एक नई भाषा का
विकास भी हो सकता है , जैसे हिंदी और उर्दू के टकराव से उर्दू भाषा की उत्पत्ति हुई थी। हिंदी भारत के
लगभग हर क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। भारत की 44% जनसंख्या हिंदी बोलती है। चूंकि भारत के
कई भागों में आज भी पूर्ण रुप से ग्रहण नहीं किया गया है। भारत में के रल, तमिलनाडु , आंध्रप्रदेश,
तेलंगाना और कर्नाटक, पश्चिम में गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात, उत्तर-पश्चिम में पंजाब और जम्मू-कश्मीर,
पूर्व में ओडिशा और पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्व में सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा आदि ऐसे
राज्य हैं जहां हिंदीभाषी बहुत कम हैं।

हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने से यह अनेकता में एकता का स्रोत बन सकती है जो देश में विभिन्न भाषाओं
और संस्कृ तियों के बीच एक अटू ट संबंध बना सकती है। हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने से भारत की
अंतर्राष्ट्रीय पहचान में वृद्धि हो सकती है। यह भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिष्ठा दिला सकती
है। इससे भारतीय समाज में सामाजिक और राजनीतिक एकता बढ़ सकती है। यह एक सामान्य भाषा के
रूप में , हिंदी देशवासियों के बीच संवाद को और भी सरल बना सकती है। हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के
फायदे और नुकसान दोनों हैं। इस विषय पर सभी स्थानीय भाषाओं और संस्कृ तियों के प्रति सम्मान और
समर्थन के साथ, हमें सामान्य भाषा के महत्व को भी समझना चाहिए।

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