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हंस रही उषा और जलते चलो पुनरीक्षण
हंस रही उषा और जलते चलो पुनरीक्षण
पुनरावृ त
हं स रही उषा पुनरावृ त
प्रश्न 1: बहु वकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1.1 क वता "हँस रही उषा" का मुख्य संदेश या है ?
1. रा त्र की सुंदरता
2. सुबह की खुशी
3. प्रेम की कहानी
4. प्रकृ त की बहार
1.2 "खुल गए द्वार, हँस रही उषा" का या अथर्था है ?
1. नए दन का आगमन
2. उषा की हँसी
3. सुप्रभात का समय
4. द्वार की खुलासा
2.1 क वता में उषा की हँसी का या महत्व है और उसको कैसे अनुभव कया जा सकता है ?
2.2 "हँस रही उषा" में क व ने सुबह के समय को कैसे च त्रत कया है ?
3.1 या क वता में कसी वशेष तथ्य, स्थान या घटना का संदभर्था है ? य द हाँ, तो कृ पया
बताएं।
1.2 नए दन का आगमन
2.1 "हँस रही उषा" क वता में उषा की हँसी एक सकारात्मक और उत्साही समय का प्रतीक है । उषा की हँसी
सुबह की खुशी और नए दन के आगमन की खोज में होती है , िजससे पाठक को भी आनं दत महसूस होता है ।
इससे हमें यह अनुभव होता है क हर नया दन एक नई शुरुआत का प्रतीक है और उषा की हँसी हमें उस
शुभकामना का संदेश दे ती है ।
2.2 क व ने सुबह के समय को बहु त ही सुंदरता भरे शब्दों के माध्यम से च त्रत कया है । "खुल गए द्वार, हँस
रही उषा" इस वा य से व्य त होता है क सुबह का समय एक नयी शुरुआत का समय है । द्वार का खुलासा इस
नए दन के संकेत के रूप में है और उषा की हँसी इस समय की खुशी को दशार्थाती है । इससे प्रकृ त का सौंदयर्था और
सुबह की शां त का अनुभव होता है ।
3.1 क वता में कसी वशेष तथ्य, स्थान, या घटना का संदभर्था नहीं है । यह क वता भावनाओं और
प्राकृ तक सौंदयर्था को साझा करने का प्रयास है और उषा की हँसी को एक सकारात्मक और ऊजार्थावान
रूप में प्रस्तुत कया गया है ।
3.2 क वता में भावनाओं को व्य त करने के लए व भन्न रसों का उपयोग हु आ है । सुबह के
समय की शां त और प्रकृ त की सुंदरता से जुड़े भाव को दखाने के लए रसों का सुखद मश्रण
कया गया है । अलंकारों का भी सुधा रत उपयोग कया गया है , जो क वता को और भी आकषर्थाक
बनाता है । छं दों का सही चयन करके क वता को मधुर बनाया गया है , िजससे पढ़ने वालों को भी
सुखद अनुभव हो।
उत्तर
1- अंधकार पर वजय
2- सोना
3- चुनौतीपूणर्था
4- क व इस पंि त के माध्यम से बताते हैं क यह दीपक युगों से त मर की शला पर जलाये जा रहे हैं
और यह प्र क्रिया नरं तर चल रही है । यह सद्ध करता है क दीपक की ज्यों की त्यों यात्रा चल रही है ,
वैसे ही उनका प्रकाश अंधकार को दूर करता जा रहा है । इस प्रकार, इस पंि त से क व ने दीपक की
िस्थ त को स्थायी और संगीतमय भाषा में उजागर कया है ।
5- "जलाते चलो ये दये स्नेह भर-भर कभी तो धरा का अँधेरा मटे गा।" - इस पंि त में क व ने साहस
और आशा का संदेश दया है , कहते हैं क जब हम स्नेह और प्रेम के साथ दीपक जलाते रहें गे, तो कभी
ना कभी अंधकार मटे गा और धरा को प्रकाशमय होने का संदभर्था मलेगा। यह पंि त चुनौ तयों के
सामने हमें साहस और आत्म वश्वास बनाए रखने का सुझाव दे ती है ।
6- समय साक्षी है क पवन ने अनेक दीपक बुझाये हैं।
7- स्नेह
8- अन गनत दीप अंधकार रूपी चट्टान पर जलाए गए हैं अथार्थात घोर नराशा के बीच आशा की
एक करण दखाई गई है ।
9- आशा रूपी दीपक से ही हमारे जीवन का अंधकार मटे गा और हमें नराशा से बाहर नकलने में
सहायता मलेगी।
10- य द पृथ्वी पर स्नेह रूपी एक भी दीपक जलता रहे गा तो रात होने के बाद प्रकाश अवश्य
दखाई दे गा और सवेरे की रोशनी हमें जगमगा दे गी अथार्थात नराशा रूपी अंधकार दूर हो जाएगा।