अनुनाद TP जनवरी-मार्च 2024

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शिरीष मौर्य

मे धा नैलवाल
अनुनाद

अनुक्रम

• कववता
8. सर्ेद धुुं आ बन जाने से पहले, वह जी
1. सबको अपने विस्से की धूप र्ाविए/
लेना चाहता हो हर रुं ग/रं जना
कौशलेन्द्र की कववताएं /पृ. 02
जायसवाल की कववताऍं /पृ. 38
2. बनारस पर कववताएं /के शव शरण की
9. कै सी रिी िोगी वि भूख,कै सा रिा
कववताएं /पृ. 09 िोगा वि अभाव/ मिेश पुनेठा की
3. वमलती रिी मं ज़िलों की खबर ग़म-ए- कववताएं /पृ. 46
दौरााँ की उदाजसयों से भी/ शुभा विवेदी
• किानी
की कववताएं /पृ. 21
4. डाली पर झुका गुलाब तुम्हारी स्मृवत में 10. प ं र् लघुकथाएं /सुनील गज्जाणी /पृ.

जखला िै/सीमा जसंि की कववताए/पृ. 51


25 11. मकान मालवकन (रोऑल्ड ढल)/ विंदी

5. शहर से गुज़रना तो ससर्फ तुम्हारी याद अनुवाद : श्रीववलास जसंि/ पृ. 54

से गुज़रना था/पं खुरी जसन्हा की


• आलोर्ना/समीक्षा
कववताएं /पृ. 28
12. र्ेतना को झकझोरते ‘भीड़ और भेवड़ए’
6. एक कवव और करता क्या िै दरार की
के व्यं ग्य/ आर पी तोमर/पृ. 64
नमी बनने के आलावा/ शं करानं द की
कववताएं 30 • कथेतर
7. विलिाल तो उसके िाथों में लग गया 13. विन्दी सावित्य और न्यू मीवडया /दे वश

िै जससौंण/िरर मृदल
ु की कववताएं /पृ. पथ साररया से मेधा नैलवाल का
32 साक्षात्कार/ पृ. 74

आवरण जर्त्र : विमालय दशचन

1
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

खुली छू ि जाए
सबको अपने विस्से की धूप र्ाविए
उसके पन्ने सााँ स ले सकें

कौशलेन्द्र की कववताएं
उनकी मिक वबखरे
कलम से जलखूाँ
छद्म थोड़ी रोशनाई िाथों में लग जाए
किीं वकसी जगि कोई वतचनी रि जाए
रात की स्यािी में र्ााँ द पढ़ने वाला मुस्कुरा उठे उसके अथच में
र्ं द्रवबं दु के समान र्मक रिा था तैयार िोते कमी़ि की एक बिन खुली बनी रिे
अनवगनत तारे अनं त आकाश किीं कोई प्यार से िोक दे
़िमीं पर दूर तक िैली रेत घर से वनकलूाँ ये न सोर्ूाँ वक किीं कु छ छू ि गया!
रेत के पिाड़ वकसी पुराने साथी से वमलूाँ बवतयाता रहाँ
रेत की घावियााँ देर िो जाए
जछिक र्ााँ दनी में रेत के कण विमविमाते तारों से भरे आकाश को देखते नींद वबसर जाए
ज्ों ववशाल मरुभूवम में तारक उतर आए िों
किीं छाया किीं कांवत रि जाने में जीवन रिता िै।
भ्रम के सरोवर वदखाई देते....... ***

जिााँ कु छ निीं िोता जीवन


विााँ छद्म िोता िै।
*** डारे पर पड़ा भीगा कपड़ा
बूाँ द बूाँ द िपकता
रि जाना सूखता
भार घिते
मैं निीं िोना र्ािता सिी सिीक लर्ी हुई डोरी उठने लगती
िमेशा समय पर
मैं र्ािता हाँ कभी कु छ रि जाए उतार जलया जाता
विताब पढ़ूाँ

2
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

नींद की किावनयां रंगे र्ुं गे घरों में भी दीवारें छीज उठती िैं सीलन
से
किावनयााँ नींद को दी गयी सदाएाँ िैं बरसात के बाद
शुरू िोते िी झपने लगती िैं पलकें
किने वाले के लफ़़्ि थपकी सी देते िैं दुुः ख जीवन में इतनी िी सिजता से
इस तरि ताल में जैसे सााँ स र्लती िै लौिता िै .....बार बार
वदल धड़कता िै ***
इन जुगलबं वदयों से रक्त में घुलने लगता िै आलस
आाँ खों में उभरते िैं लाल डोरे बं धन
ख़मीर की तरि उठ आता िै नशा
नींद को आवा़ि देते विदायतों ने जीवन को
अक्सर अधूरी छू ि जाती िैं किावनयााँ उस समय तक बांधे रखा
सुनाने वाला खीझता निीं जब तलक कु छ िाजसल न था
मुस्कुरा उठता िै कु छ पा लेने की ख़ुशी में
उन्हें िू िना था
उनींदे वकस्सों की दोिर से
नींद के पााँ व छोिे िी रिते िैं िू िने छू िने के बाद
*** पूछना भी छू ि गया
इस भ्रम में वक अब उनकी जरूरत निीं,
दु:ख जिग्धता जो िर ़िरूरी बात में
िोक देती
जखली धूप में सिसा मेघ वघर आते िैं अजजचत की गयी योग्यता के ताप में
़िोर से िाँसते सूख र्ली
थोड़ी सााँ स िूल आती खााँ सी का ठसका उठता
जखलजखलाते बच्चे खेल में िी एक ऊब सी उठती
वबलख उठते िैं कभी सब कु छ अपने मन का करते,
लगातार श्रम से सजाए गए बाग़ीर्े ये एिसास देर से हुआ.......
वीरान लगते िैं वकसी मौसम में,

3
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

..................एक उम्र के बाद आज भी


कु छ र्ी़िों की लत पड़ जाती िै...... कभी कभार वकसी की ़िबान पर कौंध जाता िै
*** शायरों को इस जिााँ ने
कब का ख़ाररज कर वदया
सिमी धूप वो तो 'ग़ाजलब' िै
जो िलक पर वक़्त की धुं ध की तरि छाया िै
शिर के बाग़ीर्े में ग़़िल के वमसरे आते जाते िपक पड़ते िैं
धूप अठखेलती िै आज भी कु छ लोग उन्हें बीन लेते िैं
किीं वकसी पेड़ की शाख़ पे झूलती मिविलों में सजा देते िैं
र्ौरािे में लगी पत्थर की मूरत पर दमकती बेवदली के सन्नािों से विर विी दौर गूाँ ज उठता िै
सदच मौसम में जान िूाँकती िै ***
लाल बत्ती पर ठिरी गावड़यों की छत पर नार्ती तुम्िारा शिर
वकसी घर के बाऱिे से झााँ कती, उड़ जाती
बीर्ोंबीर् पोखर के पानी में तैरकर बरसों बाद
िवा सी लिरती िै वो शिर अजनबी िोगा
जो कभी तुम्हारा था
सबको अपने विस्से की धूप र्ाविए िाईवे से किकर जाती सड़क आगे जाकर गुम िो
कै से भी जायेगी
ये जानते हुए वक वो पत्थर निीं वदखेगा जजसपर शिर के नाम के
बड़ी इमारतों की जझरी से छनकर छु पती धूप नीर्े शून्य वकलोमीिर जलखा था
अब सिमी हुई िै पेड़ जो मोड़ पर घूम जाने का जशनाख़्त था
*** जाने वकतनी कं क्रीि के नीर्े उसका ठूाँ ठ दबा
िोगा
ग़ाजलब की याद में जाने पिर्ाने अड्डे अपनी नयी शक़्लों में घूरेंगे
देर तक वनग़ाि वकसी पररजर्त र्ेिरे को ििोलेगी
बल्लीमारााँ की गली िाजसम लौि आयेगी,
पर रेख्ते का िाविला बरसों पिले आ रुका था साथ खेलने वाले
र्ााँ दनी र्ौक के सजीले बा़िारों में वम़िाच का नाम अब वो निीं िोंगे जो थे

4
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

गााँ व की गली सड़क बन र्ुकी िोगी उसका सौंधापन मिसूसना


जजसके भीतर तुम्हारा घर िै
विााँ मिान की जगि मैदान िोगा पत्तों की शादाबी निीं
उसके छू िे खण्डिरों में तुम्हारा बर्पन, उनका पीलापन छू ना
विीं किीं बाबा की आधी अधूरी र्ौकी पड़ी िोगी
उनके कमरे की जखड़की की िू िी सांकल देख लेना
सूखे नीम के पेड़ बच्चे खेलते िैं विााँ
ढिी हुई मैदान की बाउं डर ी भी पं छी र्िकते िैं
मालती की बेलों में सूने पत्ते िोंगे सााँ झ ढले.......
बड़े कुाँ ए की जगत से पीपल के छौने भीतर
पानी की ओर झांकेंगे किीं कोई गीत गुनगुनाता िै
छत की मुं डेर पर उगी पीली घास आकाश ताकती ***
रिेगी
आकाश!...... िााँ आकाश विी िोगा तृवि
ओस के साथ
एक आस िपकती बरसों से बं जर भूवम में
तुम्हारे आने की प्रतीक्षा में दूब का िररयाना
*** तपेवदक के कृ शकाय र्ेिरे में
उपर्ार से गालों का भरना
वकसी दयार पर कांवत लौिना,
मिीनों से वनद्रा के जलए जागती आाँ खों का
वकसी दयार पर जाना ववश्रांवत में सुख से सोना
तो मकााँ निीं कु म्हलाए शावकों को वठठु राते जशजशर में
उनकी दीवारों की दरारें देखना गमच स्थान का आश्रय वमलना
बाग़ों में िूल निीं जेठ की भरी दुपिरी में प्यास से आकु ल जर्वड़यों
पुराने दरख़्त ढूाँ ढना के जलए किोरी में पानी
र्ावल के दाने रखना,
वमट्टी की नमी निीं ववषाद से मुरझाए मन में जीवन की आस जागना

5
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

एक िू िते सं बं ध का छू िते िाथ को थाम लेना कु छ यादें


विर से साथ र्लना,
वनरंतर र्लते विीं आकर ठिर जाना यादों की सरिद िोती िै
जिााँ वकतनी अपनी आवा़िें पुकारकर थम गयीं उस पर बाड़ बांधते भी
वकतना कु छ बार बार आता रिता िै
इससे बड़ी तृवि अगर िै खरोर्ों में लहलुिान
मैं निीं पिर्ानता! जगि जगि से ररसता
कई बार कु छ जाने पिर्ाने यादों के स्के र्
बीत जाता िै जीवन आपके आज से मेल निीं खाते
विर भी उन्हें ििाते ़िेिन का एक विस्सा
जीवन बीत जाता िै सूना लगता िै
उत्सवों, समारोिों, शोक सभाओं में ख़ाली कमरे की तरि
यूाँ िी जजसमें उस याद की गूाँ ज
वकन्हीं औपर्ाररक गोवियों में बार बार लौिती िै
किीं यिााँ किीं किााँ ऐसी यादों को भुलाते
आदमी विााँ अक्सर वो निीं िोता ज़िन्दगी किीं गुम िो जाती िै
जैसा हुआ करता था या उन ़िरूरी िाइलों की तरि
अभी भी िै जो कु छ वमिाते कं प्यूिर की मेमोरी से वमि जाती
ये मुलािातें पूरी निीं िोतीं िैं
बातें उठती िैं ***
वकसी व्यवधान में िू ि जाती िैं
अगली बार के वायदे के साथ अरसे बाद

सिसा एक वदन इतने अरसे बाद


उन अधूरी मुलािातों के जसलजसले में समय विीं था
उस पूरी मुलािात का वादा उस छोिे शिर में अपनी स्मृवतयों को ढूाँ ढते
दम तोड़ देता िै बहुत कु छ नया वबसर रिा था
*** ववद्यालय अब स्कू ल बन र्ुका था

6
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

कक्षा एक सजा हुआ कमरा जर्ड़जर्ड़ाती यादें


िााँ पीछे की बेंर् पर प्रकाल से खींर्ा मेरा नाम
ग़दच से झांक रिा था कु छ यादों में जर्ड़जर्ड़ािि िोती िै
सौभाग्य से कु छ र्ीजों पर ववकास की दृवि निीं उनके आते िी िम स्वयं से रूठ जाते िैं
पड़ती आस पास
सड़कें इधर उधर ििल रिी थीं लोग भांप लेते िैं
थोड़े भिकाव के साथ भौंर्क रिते िैं
वमत्र जो वमले विीं थे वो सबको वदखायी देती िै
बस र्ेिरों की परतें बढ़ गयी थीं वनतांत अके ली
अतीत के जजतने खण्डिर थे और िम भी
उनमें विी प्राण थे उस अनुपस्थस्थवत में
आबोिवा में विी जसिरन स्वयं के लौि आने की प्रतीक्षा करते हुए
***
जो शिर जन्म देते िैं
वो ढूाँ ढ िी लेते िैं धुऑं (नज्म
़ )
अपनी सं तानों को
*** जीवन के धुं धलके में
रो़ि ििल पर वमल जाती िै एक भोर
मृत्यु जाने वकस गली वकस छोर
र्मक उठता िै सन्नािा
मृत्यु अपने से अजधक दूर तलक बं द बा़िारों में
अपनों की मृत्यु िै यूाँ वक जैसे अंधरे ों में वबजली कौंध जाती िै
मेरे भीतर वकसी गुमनाम की
शेष जीवन में आवा़ि लौि आती िै
मृत्यु जीववत रिती िै
सुबि की बात
मृत्यु िोने तक सुबि िी दिन कर देता हाँ
लौि आता हाँ उन्हीं धुं ध के शिसवारों सा

7
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

घने लोगों के बीर् छाए गुबारों का बहुत दूर की ररश्तेदार थी जो कभी किीं वकसी
वक ज़िंदगी रो़ि
दूर तक वबखरा हुआ िपक पड़ती
एक धुआाँ िै भीनी मुस्कान ठिर जाती
बस धुआाँ ...... क्षण भर के जलए
*** विर आाँ सू ढरक आते
कोई नाम भी आ जाता ़िबान पर
वडमेंजशया(मस्थिष्क की व्याजध)
जीवन किीं
उसे आईने में अपना र्ेिरा अजनबी वदखता बहुत पीछे छू ि गया था
वो ख़ुद से िी कु छ पूछना र्ािती वो मृत्यु से थोड़ा पिले मरकर
पर शब्द किााँ रि गए थे! बीत र्ुके की कृ तज्ञता में
मुाँ ि घुमाकर देखती जीववत थी
वबिर के र्ार पाए उसे बौनों की तरि जर्ढ़ाते ***
शुरू में र्ीख पड़ती
अब वो भी किााँ याद था ! उत्तरायण
उठती तो खड़ी रिती
र्लती तो र्लती िी पतं गों से भरे आकाश में
देर तक अवनजित िर रंग की पतं गें िैं
र्ेिरा वकसी मरुस्थल की रेतीली भूवम जजसमें यूाँ नीली विताब के
कु छ जसलविें पड़तीं, वमि जातीं रंगीन पन्ने
वो ऐसे देखती िवा से िड़िड़ाते
जैसे कोई जशशु देखता िै जछिक जाते
उसकी आाँ खों का सूनापन अंधेरे गिरे कु एाँ की
तरि डरावना था दूर जक्षवतज में
जजसमें बरसों से वकसी ने न झााँ का धुं ध सी जसमिी िै
याद अब वकसी ने बुिारकर लगाया िो जैसे
आज के जलए

8
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

उत्तरायण िोते सूयच की बनारस पर कववताएं


यात्रा का ववराम वदवस
वक अब तीव्र रस्थियों से बरसो
के शव शरण की कववताएं
तेज वबखेरो
वठठु रते प्राणों पर
आरती के पश्र्ात
गमच उच्छवास िूाँको
घाि पर
***
िमारे बैठे-बैठे
आज का वदन
गं गा से डास्थिनें ग़ायब िो गईं
गुम िो गई उस पार की िररयाली
घने कु िासे की दोिर ओढ़े
और गं गा भी मिमैली
शिर वठठु र रिा िै
सड़कें अलावों के धुएाँ िूाँकती
आरती िोने लगी
िााँ ि रिी िैं
जजसकी वदव्यता
बाजशं दे कई परतों के भीतर दबे
भारत-भर में िैली
निीं र्ािते कोई उनकी पुकार सुने
पुरानी और साँ करी काशी को तोड़-िोड़
पेड़ पौधे सदच आग के समक्ष जसर झुकाए
लम्बा-र्ौड़ा क रीडोर वनकला
थरथराते िैं
पशु पक्षी अपने खोलों में
आरती के पिात
थोड़ी थोड़ी गमी समेिे दुबके िैं
क रीडोर से
दूर तलक सन्नािा िै
िम सब अपने-अपने घर गये
बिीली िवा की वनगिबानी में
***
आज कोिरा वऩिाम िै
ऐसी सदच हुिू मतों में
वो र् ं द िी दे जखए
सुबिें निीं िोतीं
जसिच ढलती िैं
िम बैठे िैं
***
सं त रववदास घाि पर
जो लग रिा िै वक
र्ल रिा िै

9
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

जबवक घाि निीं ववरक्त साधुओ ं की िै


लिरें र्ल रिीं इसमें गृिस्थों के घर निीं
पवतत पावन गं गा की, ववरक्तों के घेरे
घाि अपने ठााँ व िै और डेरे िैं

अाँधेरे-उजाले में डू बे िीले की वमट्टी,


पानी पर लं गर डाले झावड़यों और लताओं के बीर् से
वि एक नाव िै झााँ कती अत्यं त पुरानी ईंिें
और यि दृवि का छलाव िै बता रिी िैं वे काशी नरेश के
वक वि जूता लग रिी प्रार्ीनतम विले की िैं
वकसी ववशाल देव के एक पााँ व का जिााँ से भीष्म ने
मरम्मत के जलए रखा उनकी तीन कन्याओं का िरण वकया था
रववदास जी के मं वदर के सामने
मिाभारत की तरि से इसमें दाजख़ल िोइए तो
और वो र्ााँ द िी देजखए यि काशी की पिली गली िै
सोने का कं गन ऩिर आ रिा िै ***
***

अंवतम और पिली गली मजणकजणचका घाि

वकसी िस्बे की गली-सी वनरन्तर जलते


यि काशी की अंवतम गली िै िवन कु ण्ड िैं
इसके बाद वनरन्तर जलती जर्ताएाँ
शािी नाला और भस्म िोते मुण्ड िैं
गं गा में वगरने वाला वनरन्तर बिती गं गा
वनरन्तर दाने र्ुगते
कृ ष्णमूवतच िाउं डेशन के िीले से लगी कबूतरों और गौरैयों के झुण्ड िैं
यि गली वनरन्तर लोग रस्मों में लगे िैं

10
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

वनरन्तर र्र्ाचओ ं में रमे िैं और िै


शोक में कोई निीं वदखता अाँधेरे-उजाले में बिती गं गा
यिााँ वि भी और अट्टाजलकाओं के ऊपर
जो शोक-गीत जलखता आधा र्ााँ द विमविमाता
*** यि अवसर जशव िै
साल-भर में एक बार आता
यि अवसर जशव िै जजसके पीछे
गजणकाओं की
शव न िो जीवन मोक्षगत मान्यताएाँ भी िैं
इसजलए उत्सव िोने र्ाविए ***
िर जगि
िर समय साइबेररयन पं छी

जिााँ अवसर वमले पं छी निीं िैं िम


जब अवसर वमले िमें पासपोिच र्ाविए
अवसर का लाभ लेना र्ाविए
उत्सव भाव से िम उनकी भूवम पर निीं उतर सकते
वबना पासपोिच के
निीं देखना र्ाविए वक मिािशान िै वे िमारी गं गा में
निीं देखना र्ाविए वक अठखेजलयााँ कर रिे िैं
गजणकाओं का मर्ान िै वे उन्मुक्त िैं
अवसर ववशेष िै लेवकन उनके यिााँ के लोग निीं
र्ैत नवमी में दो वदन शेष िै उनके यिााँ के लोग भी
िमारी तरि िी बाँ धे िैं
आपके सामने उत्तेजक और
उल्लजसत नृत्य-अदाएाँ भी िैं ग़नीमत िै वक
आपके सामने उनके यिााँ के लोगों की तरि
धू-धू जलती जर्ताएाँ भी िैं िम निीं

11
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

युद्ध में िाँसे िैं नागरी नािक मं डली

गुनगुनी धूप में बहुत वदनों से


काशीराज का विला देखते कु छ निीं हुआ
आराम से नाट्यशाला में
घाि पर बैठे िैं
*** न ठिाके लगे
न आं सू झरे
खुल जा जसमजसम और ररमजझम लोग डरे-डरे
घरों में
स्मारक का िािक बं द बं द रिे
शोध सं स्थान के प्रवेश िार पर ताला एक लम्बा कफ़्यूच
घर पर सााँ कल कोरोना वायरस के ववरुद्ध
लेवकन कु एाँ के
र्बूतरे पर बैठ सकते िैं सानं द लोग घरों से
वनकलने लगे िैं
यि र्बूतरा लेवकन नाट्यशाला तक
और कु आाँ पहुाँर्ने में समय लगेगा
" ठाकु र का कु आं " जलखने वाले जजस पर बाररश वगर रिी िै झमाझम
मिान कथाकार का िै सं गीत के साथ
और यि प्रांगण के पौधों के बीर्
पूस की एक धूप-सुिानी दोपिर नृत्य कर रिी िैं जल की बूाँ दें
और पीपल के भारी-भरकम पेड़ पर
खुल जा जसमजसम प्रेम-सं वाद बोल रिी िैं कोयलें
और ररमजझम का वदन िै ***
इकतीस जुलाई
***

12
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

बनारस के ग ं व िररयाली विी िै


गेहाँ के पौधों में
कच्चा मकान जो िम देखते आये िैं
और वमट्टी का दुआर जाड़ा-दर-जाड़ा
नीम और आम के साथ
पशु और नाद के साथ लुभावने िैं खेत
कु छ िी वदखते िैं जर्त्ताकषचक िै वरुणा नदी का घुमाव
बािी पक्के घर िैं इन्द्रधनुषी वत्रकोण रर्ता
जो शिरों की पाश कालोनी भारत के नक़्शे-सा
या पुराने मुिल्ले से सवच सेवा सं घ राजघाि के िीले के नीर्े
उठाकर लाये गये लगते िैं कृ ष्णामूवतच न्यास के पीछे
जजनमें रिने वालों को
शिर भी उठा ले गये िैं मैं कल्पना करता हाँ
रो़िगार का प्रलोभन भेज इस वत्रकोण में
जो ख़ूबसूरत दुवनया आबाद िै
गााँ व-गााँ व उसे आबाद रखते हुए
यिी दृश्य िै व्याि कै सी-कै सी दुवनया बसायी जा सकती िै
समाि िोते प्रेमर्ं द के लमिी से मैं कल्पना करता हाँ
गेहाँ के छोिे -छोिे पौधों से लिलिाते यि भारतमाता उद्यान िै
धूवमल के खेवली समेत जैसे भारतमाता मं वदर िै
*** काशी ववद्यापीठ कला सं काय पररसर में,
जजसके वनमाचण में
कल्पना कु छ निीं करना िै
ख़ाका तैयार िै
गेदें के िूलों में के वल भरना िै
लाली विी िै िर प्रदेश के भूगोल से
सरसों के िूलों में उसके लोक से
वपयराई विी िै इवतिास से

13
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

पत्थरों, काि और घास से जजनमें अभी विी लाली िै


जबवक नदी
वकसके वश आज और काली िै
जो पूरा भारत घूम ले ***
उसे देख-पढ़ ले
लेवकन सबके वश में िो जायेगा वनमचलीकरण
मुझे उम्मीद िै
यवद इस कल्पना को जजस मेिनत से नाववक नाव खे रिा िै
कोई गढ़ ले वि़ िमें अस्सी घाि पहुाँर्ा देगा समय से
मजणकजणचका और िररिन्द्र घाि
लेवकन सोर्ता हाँ वनकल गए पीछे
िवा में मिल बनाने जैसा िै और िम आ पहुाँर्े
इसको गढ़ना गायघाि से तुलसी घाि
इसजलए छोड़ता हाँ जजसके आगे िै बस अस्सी घाि
कल्पना करना
क्योंवक क्या िोगा जजस मेिनत से वि नाव खे रिा िै
कल्पना करके उस मेिनत से वनमचलीकरण काम करता तो
की तो थी वनमचल िो गई िोती गं गा
मोतीझील को लेकर गं गासागर तक
कवव ज्ञानेन्द्रपवत के साथ लेवकन किते िैं वक
बीर् में कोई सारा पैसा खा गया
किााँ िै अब वो
कब की पि र्ुकी िै वो अस्सी घाि आ गया
कं क्रीि के ढााँ र्ों से ***
इसजलए छोड़ता हाँ
कल्पना करना नतचकी
और बात का रुख़
गेंदे के िूलों की ओर मोड़ता हाँ वि इधर से जाते हुए

14
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

ढलान का रािा मुस्कुरा रिी थी

और उधर से आते हुए मनमोिक अंदा़ि में


र्ढ़ान का रािा वकनारे जड़े
पत्थरों से जड़ा एक पत्थर पर उके री हुई
जजस पर बरसात का पानी
झरने की तरि बिता िै कभी इसकी र्र्ाच निीं सुनी थी
वकसी-वकसी शाम जबवक यिीं हं कई साल से
मुझे बुला लेता िै कभी इसे देखा निीं था
और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जबवक इसकी बग़ल से वकतनी बार गु़िरा
छोिी-सी मूवतच के आगे शायद इसके ऊपर से भी
उतार देता िै उन ि़िारों लोगों की तरि
गााँ धी ववद्या सं स्थान के जजनमें जननेता भी थे
वनजिय पड़े पररसर में सामाजजक कायचकताच भी
जिााँ से मैं वरुणा के वकनारे पहुाँर् जाता हाँ वविान भी
आमजन और पी ए सी के जवान भी
उसी पर लौिते हुए एक वदन
धुं धलके में वि सबके पााँ वों में रिी
मैंने देखा जो और सबकी ऩिरों से छु पी रिी
अपने पााँ वों के नीर्े िैरत िै
देखता रि गया िैरत से
वि एक जीवं त औरत िै
मेरा सामना था एक औरत से जो नार् रिी िै
एक ख़ूबसरत नतचकी इस िाल में भी
जो अपनी लम्बी-लम्बी अपने पत्थर पि पर
पतली-पतली बााँ िें िैलाये और मेरे ख़याल में भी
और पैर
नृत्य की मुद्रा में लाये िै कोई उपाय
लुभा रिी थी उसे यिां से वनकालकर

15
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

भारत कला भवन जभजवा वदया जाय ? एक जैसी िोती िै


जब बाढ़ आयेगी तो
ववकास कथा
दोनों में आयेगी
जजस मिावन में जब सुखायेंगी तो
बुद्ध ववर्रे दोनों सुखायेंगी
बर्ा था वि प्रदूवषत िोंगी तो
ढाई एकड़ दोनों िोंगी
नगर बीर् स्थस्थत
पररत्यक्त राजकीय जशक्षक जशक्षण कें द्र के लेवकन जब वनमचलीकरण की
पररसर में बात िोगी तो
जिााँ वववेकानं द कोठी िम गं गा को ले लेंगे
और ववनोबा कु िी वरुणा को छोड़ देंगे
बदल गई िै खं डिर में
आज सिसा वरुणा को छोड़ देंगे
मुझे ववश्वास निीं हुआ गं गा विर भी निीं वनमचल
मैं िैरान था ***
वन जसिच आधा एकड़ बर्ा था
उसके आगे जसिच मैदान था अपना बनारस
जिााँ एक नये वनमाचण की
तैयारी र्ल रिी थी ! वनकला था
*** सारा शिर घूमने
जजसमें घूमने
दो नवदय ं सारा देश आ रिा िै
ववदेश आ रिा िै
दो नवदयााँ मगर यि नई बात निीं िै
जो एक-दूसरे से वमलती िैं नई बात िै
दोनों की दशा

16
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

शिर को अपूवच वकया जा रिा िै भारतीय सं स्कृ वत की


पववत्र आत्माएाँ
इसे नया रूप वदया जा रिा िै
मगर इसके रस पर ध्यान निीं िै क्या र्ाहाँ
जो सवदयों से इसका प्रमुख तत्व बना रिा मित्वाकांक्षाएाँ खोकर
किााँ जाऊाँ
उसकी जगि
पा मित्व रिा यिााँ का िोकर
ववकासवावदयों का ***
कोकाकोलाई जल्वा
*** मेिमान

क्या र्ाहाँ, किााँ जाऊाँ दूध में निायी


सं गमरमर की प्रवतमा-सी
वि निीं कोई भारत की बेिी िै
घाि के वकनारे बैठा बस्थि एक ववदेशी लड़की
साइबेररयन पं जछयों को देख रिा हाँ सुन्दर, उन्मुक्त
और र्ेकोस्लोवावकया के आदमी से और गररमायुक्त
बवतया रिा हाँ जो आ लेिी िै
िमारे सामने ववशाल पत्थर पर
गं गा की डास्थिन के वबना भी वक्षों को अपने उतान वकये
पारदशी पानी के बग़ैर भी उन पर
अद्भतु िै काशी नरम-नरम धूप का
अद्भतु िैं घाि गरम-गरम आसमान वकये
पथरीले सौंदयच से भरे
भारतीय जाड़े की
गुनगुनी धूप में ध्यानमग्न यि ख़ूबसूरत रुत
बैठी िैं गाएाँ जैसे उसे भी

17
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

बिच पड़ने वाली िै


उसके बिीले वातावरण से पररंदों ने जान जलया
बनारस में खींर् लायी िै किां धूप जखली िै
और साइबेररन पं जछयों की तरि किां गं गा बि रिी िै
वि भी र्ली आयी िै अधचर्ंद्राकार िोकर
गं गा वकनारे
िवा में उसके सुनिले के श िौले-िौले उड़ रिे िैं पररंदों ने जान जलया
और प्रस्थान वकया
उसके गुलाबी कपोल गुलाबों से ज़्यादा जखल रिे
िैं साइबेररया से
मगर उसके वक्ष-पुष्ों के जलए और रूस, र्ीन, पावकिान के
मुझे शब्द निीं वमल रिे िैं आसमान पार करते हुए
जजन पर िु दक रिी िै आ गये यिां
एक वततली विंदि
ु ान में
जिां गं गा बि रिी िै
वि सौंदयच , शैली और स्वतं त्रता की अधचर्ंद्राकार िोकर
एक जीती -जागती तस्वीर िै प्यारे और धूप जखली िै
लेवकन उसे और वनिारना इस तरि से सोनल-सोनल
एक तरि की असभ्यता िोगी जछछली
वबना पारपत्र के
वि मिान िै साजधकार
देश की मेिमान िै वबना नक़्शे के
*** जजसकी उन्हें कोई ़िरूरत निीं िै
उनके जलए
साइबेररयन पररंदे कोई सरिद निीं िै
ग़ैर-कु दरती
पररंदों ने जान जलया
मौसम बदलने वाला िै वसुधैव कु िुंबकम्
समि धरती

18
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

खोज ववश्व के नक़्शे में


खोज रिा िै
बम्बई के वि स्थान
समुं दर ति जिााँ मुम्बई के
मुम्बई के समुं दर ति भी िों
समुं दर ति और काशी के घाि भी

िो गये आइए
िम सब वमलकर
और विर उसकी मदद करें
कु छ ऐसा हुआ वक खोजने में !
काशी के घािों से गया
वमत्र वरुणा ति : शास्त्री घाि
विर काशी के घािों पर इस नदी को
लौि आया बहुत पिले र्ाविए था
ऐसा घाि
काशी के घाि निीं बदलेंगे खुले नाट्यांगन-सा
लेवकन काशी के घाि और ववराि
क्या देंगे वकसी को ? जो इसे अब वमला िै
र्मकीले, जर्कने पत्थरों का
अिसोस, यि भव्य कलात्मक ठाठ
आदमी को जब यि कर रिी िै
मिी और मुवक्त के अलावा भी अपना अंवतम लिर-पाठ
कु छ र्ाविए
जजसे वि मुम्बई के समुं दर ति पर लेवकन, र्लो वक इसके बाद
छोड़ आया कम से कम यि घाि

वमत्र वदलाता तो रिेगा इसके पानी की याद

19
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

जैसे ताजमिल इन गजलयों में


एक प्रेम किानी की याद इन घािों पर

इस समय बनारस में धूल सब कु छ एक साथ


बनारस में इतना नया

यि सूखे सावन का समय िै और पुराना लग रिा िै


झुस्थियााँ उजाड़ी जा रिी िैं गोया, मैं मिीनों बाद निीं
भवन वगराए जा रिे िैं कई जनम पीछे से आया हाँ
ग़रीबों को भगाया जा रिा िै और सेंिरल जेल रोड से निीं
गााँ धीवावदयों को खदेड़ा जा रिा िै साइबेररया से
इस समय बनारस में धूल मेरे साथ
मडु आडीि की ओर से निीं मेरे दो मीत िैं
राजघाि की तरि से इनके अलावा
उठ रिी िै वतचमान और अतीत िैं
मगर वकसी की जीभ साथ र्ल रिे मेरे
वकरवकरा निीं रिी िै अगल-बग़ल हुजूम िै
सवचदेशीय र्ेिरों का
बुलडोजर और बन्दूि मगर किीं निीं लं ठई िै
एक िी बात पर अड़े िमने पी रखी ठं डई िै
ववकास के जलए जगि र्ाविए
ववरोध के जलए वजि र्ाविए िम देखी हुई गजलयों में
*** भिक जा रिे िैं
गं गा को ठिरी
बा़िार, गजलय ं , घाि और घाि को र्लता पा रिे िैं
िमें इल्हाम आ रिे िैं
मिीनों बाद मैं बा़िार में कबीर
इन बा़िारों में आया हाँ िमीं िै

20
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

वमलती रिी मं ज़िलों की खबर ग़म-ए- दौरााँ


अन्तः िरण िी कनष्पक्षता
की उदाजसयों से भी
मृगशाविोुं सी नाजुिता

शुभा विवेदी की कववताएं सहज िौतुहलोुं से भरा सुुं दर मन

कततसलयोुं सी सौन्दयफबोधी दृकि


कु छ सीखें बचर्ों की बड़ों के जलए
चुं चलता कगलहररयोुं सी

कितना िु छ बचा लेते हैं तरलता मछसलयोुं सी

ये नन्हे-नन्हे हाथ: कितनी ही तदबीरोुं और

धरती भर मानवता तरिीबोुं से

अुंबर भर सुं वेदनाएँ ये खीुंच ही लाते हैं हमें

वसुं ती हवा सी उदात्तता शोि,दुख, भय िे तूर्ानोुं

बाररश भर स्नेह िी र्ु हारें से बाहर

कदये सी चमि आँ खोुं िी ठोिरें खाते, कगरते-पड़ते,

सखलसखलाती मुस्कराती धूप सी हँसी आगे बढ़ते और

सपनीले इुं द्रधनुष से सुनहले रुंग प्रकत पल िलाबासज़याँ कदखाते

सुखद सपनोुं से कदन िरते हैं जीवन िो सवफकवध आह्लाकदत

बोसिल रातोुं िी परछाइयोुं से कवरक्तता जीवन िी नेमतोुं िो सँ जोना

नाउम्मीदी में भी उम्मीदें, िोई इन हुनरमन्दोुं से सीखे!

आरज़ुओ ुं िी फेहररस्त ***

21
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

अनुभूवतयां मेरे शिर का मौसम पतझड़ िै

खुलते बुं द होते दरवाज़ोुं िे बीच धीरे-धीरे नहीुं,


और न ही किसी सुगबुगाहट िे साथ
िाँ िती रही रोशनी िी उम्मीद।
बल्कि,
चलते रहे सजन रास्तोुं पर बेखौफ सालती रही
मेरे शहर िी सुबह होती है
उन पर रुि िर ठहरने िी टीस।
एि धक्के से !
एि बदकमज़ाज उर्नतीुं नदी सी थी सज़ुं दगी िी भाग-दौड़, थिान
रफ़्तार ऊब, घुटन और िमतरी से भरा जीवन
गूँ जती रही िमी पल पल कबछड़ते ररशतोुं िी। जब अनायास

घने अरण्य में दमिते जुगनूओ ुं सी सिपिाते हुए लुं बी लुं बी


अलसाई सड़िोुं पर पसर जाता है
िोई तस्वीर उभरती रही किताबोुं िे पन्ोुं पर।
पौ र्टते ही छात्र मज़दूर िलािार
मन िे िोलाहल में ररसती रहीुं िु छ यादें
पेशेवर और बेरोज़गार
िििोरती रहीुं शोख गुलाबोुं िी खुशबूएँ । अपनी मजबूररयोुं और ख़्वाकहशोुं िा बोि लादे

उठते बढ़ते िदमोुं िे बीच ससमटती रही सज़ुं दगी टुं ग जाते हैं बसोुं, मेटरो, ऑटो और साइकिलोुं िे
हत्ोुं से
जादू और कतसलस्म से भरी दुकनया में खलती रही
शहरोुं िे किनारे र्ूट पड़ते हैं
िमी सूरज िी।
दूर दराज़ से बसोुं, टर िोुं, टरेनोुं, टेम्पो से
सज़द थी खुद से खुद ति पहुँचने िी
आयाकतत
कमलती रही मुं सज़लोुं िी खबर ग़म-ए- दौराँ िी र्ल-सल्कजज़योुं, भीड़, सामान और
उदाससयोुं से भी

22
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

कवचारोुं िो सुं भालते-सहेजते सुरक्षा िो सुकनसित िरने िा दम्भ भरते


धूल धुएँ गुं दगी से धूसररत हो चुिी
तुं त्र में साँ स र्ूँिता यह शहर
इस शानदार शहर िी भव्यता
रोता है किसी ग़ासलब खुसरो और
क़िले, गुुं बद, ऊँची-ऊँची मीनारोुं
कनज़ामुद्दीन िी ग़ैरमौजूदगी िो
और टीलोुं से छु पिर िाँ िती मरम्मत और पहचान िो तरसती

िोपलोुं में बय ुं होती है आसमान िे नीचे िी यहाँ हरेि चीज़


कदन चढ़ते सर चढ़िर बोलने लगती हैं
यह एहसास कदलाती है कि
लोगोुं िी परेशाकनयाँ , ग़ुस्सा और सलप्साएँ
सुबह से शाम ति दौड़ते-कर्रते शहर िे
साुंसाररिता और उपभोगवाद िी मीठी नीुंद में
िभी न खत्म होने वाले घुमावदार रास्तोुं में
डू बा यह शहर
आत्मीयता और ईमानदारी खोिर रह गये हैं
बेसध
ु हो उठता है भूिुंप तूफान और
िभी रोबदार रहे नीम बरगद
बेमौसम िी बाररश िी आहट मात्र से
अशोि िे पेड़ोुं िी जगह
इस शहर िी रफ़्तार, शोर और अुंधरे ोुं िे बीच
उजाड़ ठूँ ठोुं और बोनसाई ने ले ली है
एि नदी अपने होने िी सुं भावना तलाशती,
मुसाकफरोुं और खुशनुमा कफज़ाओुं िे
कबसूरती है
पैग़ाम लाने वाले पररन्दोुं िी बाट जोहते पेड़ोुं िे
जकटल आुं िड़ोुं िे सुं चयन
खाली िोटरोुं में अब हवा भी नहीुं कटिती
जीणफ शीणफ कवरासत िे सुं रक्षण
तमाशबीनोुं से भरा यह शहर हरेि कदन
और हासशये पर खड़े लोगोुं िे स्वासभमान और
एि नई सुं गीन वारदात िो

23
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

एि नई सुं गीन वारदात िो कनिलिर


ओढ लेता है अपने सज़ुं दा बचे रहने िे क़िस्से बाँ टते

और अपने ईमान पर तमाम चोटोुं सज़ल्लतोुं िो अपनी धमकनयोुं में अपनी कमट्टी से

बदाफशत िर िे भी कबछोह िी िसि िो महसूस िरिे भी

सज़ुंदा रहने िी कमसाल िायम िरता है अपने वजूद िो


शाम होते ही बच्चे औरतें और वृद्ध
इुं कडया गेट पर
थिे माँ दे पशुओ ुं िी तरह
चाँ द पर पहुँचने िे जश्न
कदखते हैं गुमसुम असहाय और चुप
सुधरती जीडीपी और तमाम कवकनुंग मोमेंट्स
कर्र िहीुं शहर िे बीचोुं-बीच से उठते
से फील गुड िराते
आरती अज़ान और गुरबानी िे सािे कमले जुले
तारोुं, र्ूलोुं और गाँ व-वतन से आती
स्वरोुं में
डू बता जाता है खुशबूओ ुं से सराबोर िरते

सुबह िा सूरज इन्तज़ार िरते


इत्मीनान से पतिड़ िे बाद
और साथ ही ससमटने लगते हैं आने वाले वसन्त िा…

दरखतोुं, नीड़ोुं, र्ु टपाथोुं ***

िोनोुं, बरसाकतयोुं और ठे िोुं में

बेचैन और बेसब्र लोग


भूख और आजीकविा िी जद्दोजहद से

24
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

डाली पर झुका गुलाब तुम्हारी स्मृवत में अपेजक्षत था उसका उजला िोना

जखला िै

सीमा जसंि की कववताएं इच्छाओं की सीमा कै से तय िो भला

वे वकतनी थोड़ी थीं और रािा लम्बा


आश्वस्थि
विर भी दुवनया सीने पर सवार रिी

बसं त के माथे पर जखलते िूलों को देख लौिने के सभी उपक्रमों में ज़्यादा निीं

लौि लौि आती िैं वततजलयााँ र्ाविए थी तो बस एक आश्वस्थि !

जबवक पूस की रातों में जुगनू निीं लौिते ***

ऋतुएाँ ले आती िैं अपने साथ मौसम का गुड़ एकालाप


वबछड़ गए पत्तों की उम्र वकसको पता भला 1)

कोंपलें भले िी लौि आए अपने समय पर स्मृवत में िोती िै बाररश

और भीग जाती िै देि

सारी वगलिररयााँ किीं निीं जाती कोई सपना आाँ खों से बि वनकलता

वे अपने िी वठिे पर लौिती िैं प्रतीक्षा के घने जं गलों में

डाली पर झुका गुलाब तुम्हारी स्मृवत में जखला िै पुकारे जाने के जलए ़िरूरी था

या साथ न जा सकने की बेबसी में वकसी आवा़ि का साथ िोना

कााँ स जं गल में जखले या आाँ खों में कोई न सुने तो अके लापन

25
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

और घिरा उठता िै ! आग्रि वकया मााँ के कान से बाजलयााँ वनकालने


का
2)

कानों में गूं जती िैं अभी भी की गई प्राथचनाएाँ


तो एकपल को भीतर तक डू ब गई
जुड़ी िथेजलयों के बीर्
सोर्ती रिी कै से वनकालूाँ उसकी बाजलयााँ
जो लौि लौि आती
वक उम्र के पैंतालीसवें बरस तक उसे जब भी
मूल्य र्ुकाने से र्ुक जाता दुख
देखा
तो अनुक्षण बना रिता सुख
बाजलयों के साथ देखा
भाषा में रर्े गए ववलोम
जीवन तप जाए तो कु न्दन िो जाता िै
जीवन में अक्सर पयाचयवार्ी की तरि वमले
बाजलयााँ इस बात की अके ली गवाि रिीं

कोई शब्द अथच से परे वमला


वे उसके जीवन में वैसे िी समावित रिीं
तो खोजा वकए रात वदन सात आसमान
जैसे देि के भीतर परछाई
पर जा र्ुके को पकड़ा निीं जा सकता

खोल कर मुट्ठी वबखेरा जा सकता िै िवाओं में !


एक बाजलयााँ िी थी जजसने कभी निीं छोड़ा

*** उसका साथ

वे सौभाग्य की तरि उसके कानों में र्मकती रिीं


बाजलयां
जब वपता निीं रिे तब भी
एम आर आई को ले जाते समय जब नसच ने
मैं आवििा से र्ाि रिी थी वनकालना बाजलयााँ

26
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

तावक अिसास न िो ़िरा भी उसे अपने सूने िोठ धीरे से बुदबुदाते उठते िैं
कानों का
“करम गवत िारे निीं िरे “
पर लगाते िी िाथ वि र्ेतन िो उठी

स्ट्रै र्र पर उसके नं गे कानों को देख रिी तो लग


मैं शब्द शून्य क्या दूाँ जवाब उसकी बात का
रिा
र्ुप बस देख रिी उसे जाते हुए मशीन के भीतर
वक वकसी ने अनावृत कर वदया अर्ानक से
मुट्ठी में दबाए उसकी दोनों बाजलयााँ !
उसका जीवन यूाँ सबके सामने
***
यिााँ इतनी भीड़ भाड़ इतनी र्िल पिल में

वकसी को क्या िी मतलब उसके सूने कानों से ववस्थापन

पर उसकी आाँ खों में उतर आया िै एक युग का


सूनापन छोड़ दी गई जगिें स्मृवतयों का बसेरा िोती िैं

मैं उसके र्ेिरे को देखती हाँ और आाँ खों की कोरों ववस्थापन उनके विस्से भी आता िै
को
वे एक जगि से दूसरी जगि के बीर् की दूरी में
छु पाते हुए कोई पुराना विस्सा सुनाती हाँ
तय करती िैं सवदयों का िासला
वो मुस्कुराने भर का सुन लेती िै मेरी बात
ख़ाली कि देने से ख़ाली किााँ िोता िै कु छ
और अपनी वठठु री उाँ गजलयों से छू ती िै अपने नं गे
रात के गिन अंधकार में जब सो जाता िै
कान
अजधकांश
एक आाँ सू ढु लक पड़ता िै उसकी आाँ ख से
तो सपने वनकल पड़ते िैं नींद की यात्रा में !

***

27
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

शहर से गुज़रना तो ससर्फ तुम्हारी याद से यहाँ िु छ मेयर िे चुनाव िी भी राजनीकत थी


गुज़रना था
उनमें से िई आये गए
किन्तु किसी से न मह्सस
ू ी
पं खुरी जसन्हा की कववताएं
पेड़ोुं िी अनुपल्किकत

स्मािच जसिी की िोड़ में

स्माटफ ससटी िी होड़ में अलबत्ता गायब पेड़ोुं में

स्माटफ नेस िी अुंधी दौड़ में िभी सखलने वाले रुंग

बहुत से शहरोुं ने ित्ल किए बनिर पररधान

अपने र्ूलते र्लते पेड़ टुं ग गए कतमुं सजले

उजाड़े बचे खुचे बाग चौमुं सजले माल्स

इन सबमें शायद उन्हें िी दुिानोुं में

कदखता हो जुं गल और िाँ िने लगे

या जुं गलीपन शीशे िे िरोखोुं से राहगीरोुं िो

और मेटरो ससटी िी म्युकनससपेसलटी िा


वाकिुं ग टरे ल्स वाला कर्र मैनेक्ीुंस भी आये

सरिारी पािफ उन्होुंने म डसलुं ग शुरू िी

यहाँ आया नहीुं और बड़ी हुई दुिानें

और अुंदर िी बात यह है माल्स में बािायदा

कि घोकषत हो जाने िे बाद स्माटफ एि फूड िोटफ खुला

बुं द िर कदया
िईओुं िी िचड़ा गाडी ने वा़िई म ल िे हर माल ने लूटा

अपना िाम लोगोुं िा कदल


शहर िे बड़े बाबू से लेिर

28
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

छोटे थानेदार ति ने
बर्ीले, कदन िो तब्दील िर देगा
बढ़ा दी ररश्वत िी रिम
चमिते हुए, सूरज िी खनखनाती हुई
इधर कविाकपत पक्षी
रोशनी में
जो खाली जगहोुं पर अुंटिे थे
चकित हुए बगैर तुम्हारे नाम िे
जब सखुं चने लगीुं दीवारें
कबना तुम्हारे नाम िा
इदफ कगदफ
दरअसल, शहर िी िोई गीत?
हर ज़मीन िी एि िथा थी
***
वे सब किसी न किसी िी सुं पकत्त थीुं
कबिाऊ थीुं
शतें, व़िूद और सं शय में प्रेम
उन्हें बसना था
उनिे खाली रहने में िहीुं न िहीुं क्यूँ नहीुं है, मेरी सुबह, मु़िम्मल
एि उजाड़ था
खुलूस भरी
लेकिन, यह क्या हुआ?
हाससल िर लेने िे बाद तुम्हें
शहर से गुज़रना
तो ससर्फ तुम्हारी याद से गुज़रना
था………….
र्तह िर लेने िे बाद तुम्हें
***
कौन सा गीत? तुम्हारे दफ्तर चले जाने िे बाद

तुम्हारी शटफ में नायाब तहें लगाती हुई


वो िौन सा गीत है
चूकड़योुं भरे हाथोुं से अपने
जो इस भयानि, ठुं ढे
या देती हुई, धोबन िो घर भर िे िपड़े

29
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

एक कवव और करता क्या िै दरार की नमी


िै द तुम्हारी शतों में
बनने के आलावा
िै द पूरी तरह?
शं करानं द की कववताएं
क्यूँ है सुबह इतनी कनस्पुं द?
नदी का पानी
जैसे िहीुं और बसे होुं सारे स्पुं दन?
(अरुण कमल के जलए )
क्यूँ है सुबह इतनी सदफ बेजान?
पिाड़ से वगरता हुआ पानी निीं जानता वक उसे
इतनी ठुं ढी खामोश? जाना किााँ िै
वि वमठास और र्मक के साथ िांदता िै वमट्टी
क्यूँ है ऐसा सन्ाटा?
की तरि
जैसे छाई हो शहर भर में मुदफनी? जिााँ से प्यास की भाप उठती िै गं ध में
सूखी ििी मिमैली गं ध
क्यूँ सुनाई नहीुं देती हैं? दसो वदशाएं उसकी देि की दरार से कांप जाती
िैं
मुिे मेरी साुंसें?
एक कवव और करता क्या िै दरार की नमी बनने
और क्यूँ न सुनने पर लग रहा है के आलावा
उसे घास र्ाविए अन्न र्ाविए अदिन र्ाविए िर
िी चलती नहीुं हो मेरी सासें?
एक मनुष्य के जलए
रोिी की मिक र्ाविए भूख से मरते हुए लोगों
की पृथ्वी पर
कि रुिने िो आयीुं मेरी साुंसें नींद और स्वप्न तो जजन्दा रिने के बाद की जरूरत
िै
क्यूँ तुम्हें हाससल न िर
उससे पिले िी सब कु छ रौंद निीं दे कोई
खुद िो पाने में हैं खोई कवव का दुुः ख एक कु दाल का दुुः ख िै
जो गलने के जलए मजबूर िै आग की भट्टी में
मेरी सुबहें?

30
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

बर्ने के तमाम उपाय अंततुः पराजजत करने वाले शोर से भरी पृथ्वी पर ककच श िै सं गीत जो इन
िैं वदनों
बढ़ा देता िै धड़कन की गवत
बेर्ैन मन को शांवत र्ाविए जो मुस्थश्कल से
कवव बर्ना निीं र्ािता पिाड़ से वगरना र्ािता वमलती िै
िै
पूरी पृथ्वी पर िैल जाने के जलए ऐसे में तुम कै से बर्ा कर रखती िो अपनी
बनकर भाप वपघल कर पानी आवा़ि
*** अपना सं गीत
ओ रामज्ोती देवी!
लोकगीत तुम कै से बर्ा पाओगी अपना लोकगीत!
(रामज्ोती दे वी के जलए) ***

गााँ व भर में एक आवाज गूं जती िै िर अवसर पर जखड़वकयां


गूं जता िै लोकगीत (रघु के जलए)
कांपते हुए कं ठ से वबखरती हुई आवा़ि
जो खनकते हुए िैल जाती िै मीलों दूर तक दीवार के बीर् जखड़की खोल देने की उसकी कला
आवा़ि जो वकसी कोने से उठ सकती िै र्वकत करती िै
उठती िै तो न जाने वकतनी आवा़ि और वि बहुत बारीकी से कर देता िै यि काम
जुड़ जाती िै एक साथ लय में रर् कर बना देता िै पत्थर के बीर् िवा का रािा
न जाने वकतनी वमठास और घुल जाती िै िवा में पूरा असमान जो विका था इस पार
अब आ गया जखड़की के पल्ले पर
अस्सी वषच की उम्र जखड़वकयााँ वकसी वकसी की जीने की वजि बन
अस्सी वषच का अनुभव जाती िैं
अस्सी वषच का सं गीत खासकर वे जस्त्रयााँ जो र्ौखि के बािर वनकल निीं
पके िल की गं ध जैसे कोई दीवार निीं मानती पातीं
वैसी िी िै आवा़ि वैसा िी िै लोकगीत रघु उनके जलए देवता िै बर्ा लेता िै दम घुं िने
से

31
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

िोन नं बर
(वपता के जलए ) विलिाल तो उसके िाथों में लग गया िै
जससौंण
वपता को गए र्ार साल िो गए

िरर मृदल
ु की कववताएं
अब न उनकी आवा़ि सुनाई पड़ती िै
न मैं कु छ पूछ पाता हाँ वक कै से िैं बौज्यू
वे इस पृथ्वी पर निीं रिे
उनका नं बर लेवकन मेरे िोन में अब भी मौजूद कब से कि रिे थे वक
िै गांव ले र्लो
ले र्लो गांव बस एक बार
नं बर के साथ उनकी तस्वीर भी िै जो इसे मेरी आजखरी बार की िी यात्रा समझो
खींर्ी थी कई साल पिले लेवकन निीं सुनी वकसी ने
पिले अक्सर बात करता तो नं बर सामने िी रिता एक निीं मानी
कांपता िै कलेजा अब बौज्ू बड़बड़ाते रिे
अगर वनकल आये नं बर सामने खुद से बातें करते रिे
उस नं बर को वमिाने की विम्मत निीं हुई बात निीं समझी वकसी ने
जब कभी उनका नं बर वनकल आता िै तो
यिी लगता िै वक तो एक वदन सुबि-सुबि वनकाली बौज्ू ने
अगर िोन लगा वदया तो वकतनी तकलीि िोगी एक बहुत पुरानी एलबम
जब उधर से वपता निीं देर तक एक-एक तस्वीर वनिारी
वकसी और की आवा़ि गूं जेगी आजखरकार खोज िी जलया पिाड़ की धार में
वि नं बर वकसी और का िो र्ुका िोगा खड़ा
यि तय िै बाि जोिता वि पुश्तैनी घर
लेवकन मन निीं मानता पुरखों का घर!
जैसे मन निीं मानता वक आि! आं खों में आ गई एक अलग िी र्मक
वपता निीं रिे! उन्होंने एकबारगी इधर-उधर देखा
*** विर र्ुपके से इस घर की सांकल खोली

32
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

और बेजझझक घुस गए इस जजचर घर में जजसमें उनका बर्पन बीता

अब सभी ढूं ढ़ रिे वक किां गए बौज्ू 14. बौज्ू – कु माउं नी में वपता को बौज्ू

किां र्ले गए इतनी सुबि किते िैं


न नाश्ता वकया • धार – पिाड़ की र्ोिी
न दवाइयां खाईं • गोठ – मकान का नीर्े का कमरा
दोपिर िोने को आई
***
वकसी को कु छ बताकर भी तो निीं गए
िद िै, वपता आजखर र्ले किां गए
जससौंण
उधर, बौज्ू ने अंदर से जर्िकनी लगा ली वक
कोई दखल न दे
कोई वदक्कत न पैदा करे दसेक साल बाद आया िोगा गांव
कोई ववघ्न न पड़े एकांत में!
यूं अब तक वदल्ली में िी मौज मनाता रिा

घर के लोग बाथरूम में देख रिे मसान लगा िो जैसे


एक रूम से दूसरे रूम जा रिे
जं गल-जं गल घूम रिा िै
बािनी में खोज रिे
छत पर जाकर ढूं ढ़ आए पता निीं वकन-वकन पौधों-पेड़ों की
आस-पड़ोस में पूछ रिे
पत्ती, ििनी, जड़ें इकट्ठा करता
गली-सड़क घूम जलए
किीं भी तो निीं वमल रिे बौज्ू किता िै इनसे िी करोड़ों कमाएगा

आज ले आया िै बोरा भरकर वबच्छू घास


किां से वमलेंगे बौज्ू
वो तो पिाड़ के अपने पुश्तैनी घर के उस गोठ जजसे पिाड़ में जससौंण किते
में
आराम िरमा रिे
बताता िै – इसे सुखाकर र्ूरन बनाएगा

33
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

एक िंकी से डायवबिीज में आराम खं डिर बनने जा रिा पुश्तैनी घर

दूसरी से ब्लडप्रेशर कं िर ोल पाथर िू ि रिे-छत से छू ि रिे

सड़ र्ुके दरवाजे

विलिाल तो उसके िाथों में लग गया िै


जससौंण
झड़ र्ुकी जखड़वकयां
जैसे बीजसयों वबच्छु ओ ं ने एक साथ मार वदए िों
गुवन-बांदरों ने डेरा डाल वदया िै घर में
डंक
'आ जाओ िो – एक बार पिाड़
सो, मारे ददच के वबलवबला रिा िै
घर अपने
पूछता विर रिा िै गांव के सयानों से
देखभाल कर जाओ िो'
वकस ववजध वमले इस पीड़ा से छु िकारा
ह्वाि्ऐप वववडयो में बड़े आत्तचस्वर में कि रिा था
क्या र्ुपड़े िाथों में, वकससे कौन सा लेप मांगे
भाई...
वक जल्द से जल्द खत्म िो यि ददच

और विर वि वदल्ली भागे


मुझे िाथ जोड़े उसने
***
विर लगाई एक जोरदार िांक

काले मुं ि के गुवनयों यानी लं गूरों को


गुवन-बांदर और लाल वपछवाड़े वाले बं दरों को – िेिेिेिे
िोिोिोिो...

इस बार तो वववडयो िी बनाकर भेज वदया जगू मैं देख रिा था वववडयो में वक
ने कोई असर निीं पड़ा गुवन-बांदरों पर इस िांक
जगू मेरा र्र्ेरा भाई – जगदीश का

34
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

मैं जरूर डर गया बीत गया वकतना तो वक्त

िो सकता िै वक यि िांक मेरे जलए िी िो!! रीत गया सारा बल

इस बं बई में िम भी एक तरि से

बारि बरस बीते गुवन-बांदर िी तो हुए

***

पिाड़ निीं जा पाया

िालांवक िर साल िी किता रिा – विसालू


इस साल तो जाना िी िै िर िाल!

बारिवें फ्लोर पर मेरा फ्लैि जैसे सोने के कनिूल


उसी को सजाने में लगा रिा इतने बरस डाली-डाली ने पिने
उधर पुश्तैनी घर का एक-एक पाथर वकसने पिनाए िोंगे इस जं गल में
वगरता रिा-िू िता रिा... इन पौधों-इन पादप को

इतने-इतने गिने
मैं वववडयो में बड़े गौर से देख रिा िजारों कनिूल-िजारों गिने
गांव के गुवन-बांदरों को

विर देर तक सोर्ता रिा – सम्मोवित सा खड़ा रिा


बसों में लिकते वकतनी िी देर
लोकल िरेनों में धक्के खाते विर ििे से छु आ एक कनिूल
सड़क-सड़क भिकते तो जैसे जादू िी िो गया

35
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

वि तत्काल विसालू बन जो अब कोमल पवत्तयों पर मुं ि मारने लग गया


िै
िपक पड़ा िथेली में
भूल गई थी वक उसका भी तो छि माि का
एक अलग िी वदव्य िल
एक बच्चा िै

एकदम बछड़े जैसा


अिा! इस अमृत िल का स्वाद अब
जजसे देखते िी उसकी छाती में दूध उतरने
मैं र्ख िी लूं
लगता था
स्मृवत में जतन से
इतनी ऊंर्ाई से जब वगरी िोगी मालू
रख िी लूं
तो बच्चे का ध्यान आया िी िोगा
***

भला कौन यकीन करेगा वक


मालू बस मुट्ठी भर घास के जलए मरी मालू

मौत से निीं डरी मालू


कै से र्ढ़ी िोगी मालू ***
इस कांठे में

वकतनी घास थी ओ राजुली


जो उसे कािनी थी

मिीनेभर पिले ब्याई गाय के सामने


दूर पिाड़ में तेरा घर
आजखर वकतनी घास डालनी थी
सबसे ऊंर्ी डांडी के पीछे
किीं उस बछड़े के जलए तो निीं र्ढ़ी थी इस
मैं यिां बं बई में समं दर वकनारे
कांठे में
36
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

सबसे ऊंर्ी वबस्थल्डंग के नीर्े एक-दो बार िी आईं वे कारें

वे पररवार

ओ राजुली! रिना राजी-खुशी दशकों पिले छोड़ वदया था जजन्होंने

मैं तुमसे वमलने जरूर आऊंगा गांव का अपना घर-बार

तुम्हें कु छ िो गया तो अब न पेड़ िै

इस समं दर में डू ब जाऊंगा न िी कई कलर की वे र्म-र्म कारें

*** अलबत्ता तेज िवा र्लती िै

बस सांय-सांय िै...!

एक पेड़ था ***

िंस - परान

पिले यिां एक र्ौड़ा खेत था

जिां यि सड़क पहुंर्ी िै बीत र्ुकी एक उमर

यिीं एक पेड़ भी था खूब घना न मां रिीं, न वपता

छाया देता - िवा देता - झपकी वाली नींद देता वि पैतृक घर भी िो र्ुका अब क्षीण-जजचर

विर भी जाने क्यों पिाड़ िी लगता

अवत उत्सावित िो गांव के एक अधेड़ ने अपना असल थान

वगरवा वदया इसे भीमकाय जेसीबी मशीन से उसी ओर उड़ पड़ने को िैं िंस-परान

वक वदल्ली, लखनऊ, र्ं डीगढ़ और िल्िानी


वालों की कारें जब आएं गी
कै सी तो यि मया जगी
तो किां खड़ी िोंगी?
37
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

नराई लगी सर्ेद धुआं बन जाने से पहले, वह जी


लगी कै सी तो आस लेना चाहता हो हर रुंग
बं बई से आया हं
रंजना जायसवाल की कववताऍं
युगों का प्यासा

अब नौले के तुड़-तुड़ पानी से

बुझेगी मेरी प्यास!


सेमल का िूल

• नराई – याद/ प्यार


• नौला – छोिा सा जलाशय चैत िे महीने में

***

कबखरे घमाते

सेमल िे र्ूल

अलसाये उनीुंदे

कर्र भी मुस्कुराते

सेमल िे र्ूल

लाल इतने

38
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

मानो सड़ि िी

गोरी िे गालोुं पथरीली धूप में

पर उतरा रुंग कबछा अपनोुं िे इुंतजार में

नवकववाकहत िी हथेली मानो खोली िों आँ खें

पर सलखा किसी नवजात ने

प्यार िा िोई छुंद सर्ेद धुआं बन जाने से पहले

पसिम में डू बता वह जी लेना चाहता हो हर रुंग

कदन िा अवसान शायद इससलए समेट लेता है

मानो दूर िहीुं वह बादलोुं िो अपने आगोश में

थि िर गाकड़योुं िा िोलाहल

र्ागुन िरता आराम तेजी से गुजरते

39
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

राहगीरोुं िा हुजूम उनिे घर िे पुरुष

भागती सजुंदकगयाँ

कर्र भी क्षण भर उनसे कितना प्रेम िरते हैं

रुिती, तिती वह बुनती रहे

भरती उस रुंग िो उनिे साथ जीवन कबताने िे सपनें

अपनी आँ खोुं में गुनती रही एि सुनहरे भकवष्य िो

और बढ़ जाती िोख में पालती रही उनिे वुं श िो

अपनी मुं सजल िी ओर और वह खचफ िरते रहे

और रह जाता छोटे -बड़े िगड़ोुं में

बस सेमल िा र्ूल उनिे नामोुं िो

*** वह सड़िोुं पर

औरतें निीं जानती थी


घसीटी जाती रही

औरतें नहीुं जानती थी


40
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

हर छोटी-बड़ी बातोुं पर स्त्री मन

किसी ना किसी रूप में चूल्हे िी धधिती

वे खचफ िरते रहे हुई आुं च में रखा

उनिे वजूद िो एि पतीला

हर कतराहे, चौराहे और मुहल्ले पर मानो मन हो स्त्री िा

और देते रहे सजसे िसिर ढि कदया हो

अपने पुरुष होने िा पररचय! समाज के रीकत-ररवाजोुं से

सचमुच! औरतें नहीुं जानती थी मन िी इच्छाएँ , सपनें और अरमान

उनिे घर िे पुरुष

उनसे कितना प्रेम िरते हैं? खदबदाते िैं


***

कनिल जाना चाहते हैं

तोड़ िर बुं कदशोुं िी कगरहोुं िो


41
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

पर सधे हुए हाथ कर्र से लिवड़याँ

उतनी ही तेजी से ढि देते हैं ठू स देते हैं चूल्हे में

उस पतीले िो और छोड़ देते हैं उसिो

मानो चेताना चाहते हैं उसे उसिी तकपश में तपने िे सलए

घुटती, िसमसाती,तड़पती और उसिे अरमानोुं िी राख

स्त्री िा मन छलि आता है वही दम तोड़ देती।

***

पतीले िी िोर से कठपुतजलयां

और कबखर जाती है सुखफ गोटेदार िपड़ोुं में

उसिी सोुंधी खुशबू वो नाचती

सारी कफजा में और दम्भ से


सधे हुए हाथ उन नचाने वाले हाथोुं िे

42
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

सचथड़े में सलपटे तन िो देखती चमि से चमिदार हो जाते

उनिा वजूद िहीुं… पर िाठ िी उन बुतोुं िी

उसिी उुं गसलयोुं में समाकहत हो जाता बड़ी-बड़ी िजरारी आँ खोुं में

महीन धागोुं से वो अनदेखे आँ सू भर आते

उसे जैसा चाहता नचाता खेला कदखािर

नहीुं जानता था वो… बन्द िर दी जाती वो

नचा तो उसे भी रहा था िोई सन्दूिोुं में

बस धागे अलग थे स्याह अुंधेरे िे बीच

और हाथ भी पर नहीुं जानती थी

वो हाथ बाहर िा अुंधरे ा

िेंिे हुए उन ससक्कोुं िी अुंदर से ज्यादा गहरा है।

43
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

आज िठपुतसलयाँ चुप थीं पर सर्र यहीुं खत्म नहीुं होता

चुप थे वे धागे भी िठपुतसलयाँ कर्र नाचेंगी

और उन धागोुं िो बस उनिे िपड़े बदले हुए होुंगे

उुं गसलयोुं में लपेटने वाले हाथ भी और नचाने वाले वो हाथ भी

क्योुंकि… पर जो नहीुं बदलेगा वो होुंगे वो धागे

उन धागोुं िो क्योुंकि…

खीुंचने वाले हाथोुं िी डोर… उनिी कनयकत यही है।

***

बेरहमी से खीुंच सलए थे पुरूष कं जूस िोते िैं

उस अदृश्य शकक्त ने पुरुष िुं जूस होते हैं

आज मृत्यु ससर्फ सही सुना आपने


एि िी नही हुई थी… पुरूष िुं जूस होते हैं

44
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

खचफ नहीुं िरते वे टू ट नहीुं सिते

वो यूँ ही बेवज़ह सजुंदगी िी जद्दोजहद से

अपने आँ सुओ ुं िो क्योुंकि उन्हें ससखाया जाता है

क्योुंकि उन्हें बताया जाता है ये िाम है िायरोुं िा

बचपन से सहेज लेते हैं

तुम मदफ हो वो अपनी आँ खोुं में

और मदफ िो िभी ददफ नहीुं होता


सछपा देते हैं मन िी किसी दराजोुं में

वे खचफ नहीुं िरते


क्योुंकि वे बेवज़ह खचफ नहीुं िरते

अपने जज्बातोुं िो

क्योुंकि उन्हें ससखाया जाता है अपने अहसासोुं िो

सचमुच…

तुम िमजोर नहीुं हो


पुरूष बहुत िुं जूस होते हैं।

क्योुंकि ये िाम है औरतोुं िा ***

45
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

कै सी रिी िोगी वि भूख,कै सा रिा िोगा आज भी र्ैत के मिीने

वि अभाव कािल वन में बोलती िैं जो

कािल पाको मैं वन र्ाखो


मिेश पुनेठा की कववताएं
मां किती िै
अभाव कथा
िां िां त्वी वन र्ाखो।

कै सी रिी िोगी वि भूख


जब भी सुनता हं ये आवाजें
कै सा रिा िोगा वि अभाव
मन उदास िो आता िै
जजसके र्लते
लेवकन सुकून िोता िै
िोकरी में कािल कम देख
र्लो वे दुबारा मानुषी निीं बनीं
एक मां ने इतना पीि वदया बेिी को
अच्छा िी वकया लोककथाकार ने।
मौत िो गई उसकी

दूसरी सुबि जब
बसं त वन में िािाकार
पता र्ला वक धूप से मुरझाकर

कम िो गए थे कािल िोकरी में


अभी अभी तो वन में
पछतावे में डू ब
बसं त का उत्सव
मां ने भी कर ली आत्मित्या
शुरू हुआ था

रंग वबरंगी पररधान पिन


लोककथा किती िै
बांज बुरुंश कािल िल्यांि.......
वक दोनों जर्वड़या बन गईं
सजे धजे खड़े थे

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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

वन मुगी,तीतर बिे र,न्यौली, कािु वा...... और उनकी माताओं को

र्िकर उनके कं धों पर र्ढ़े थे लीलती र्ली गई ।

काकड़, घुरड़,मलपुशी,शावक.…

इधर से उधर कू द िांद रिे थे जो भाग न सके

रंगों, गं धों,ध्ववनयों का कु छ झुलस गए

कोई पारावार निीं था कु छ जली लाश में बदल गए

इतना वनमचल कु छ राख िो गए

इतना कोमल

इतना रंगीन पानी तक जल गया

इतना सं गीतमय िवा आग के साथ िो गई

िर सहृदय को

अपने पास बुला रिा था र्ड़... र्ड़... र्ड़... र्ड़... तड़..तड़


..तड़...तड़...

न जाने वकस कोने से


बड़े बड़े पेड़ िू िकर वगरने लगे
एक जर्ंगारी भड़की
छोिे छोिे पौधों और घास पात की क्या किें
देखते िी देखते इधर से
वमट्टी पत्थर तक
जीभ लपलापती आग
अपनी जगि छोड़
उधर तक पहुंर् गई
घािी को भागने लगे
अनवगनत घरों
आसमान धुं ए से भर गया
उनमें रिने वाले बच्चों
47
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

देखते िी देखते लेवकन जब भी किीं को जाता वदखे

एक उत्सव िािाकार में बदल गया या किीं से आता वदखे

जिां अभी अभी बसं त आया था वबना पूछे िी कि देता िै

विां जले ठूं ठ ,लाशें, राख,काजलमा कायाचलय को जा रिा हं

और दुुः ख,क्रंदन,िशानी नीरवता, िब्धता के या कायाचलय से आ रिा हं


अलावा कु छ निीं बर्ा।
वबना प्रसं ग के
***
आपसी बातर्ीत में कायाचलय का जजक्र अवश्य
वर्चस्व की र्ाि और झूठ ले आता िै

रौब गांठने के जलए


लोग बताते िैं वक खुद को एक बड़ा अजधकारी बताता िै
उसकी असली मां गांव में रिती िै खुद को िर वक्त व्यि वदखाता िै

जैसे सारे देश का बोझ उसी पर िो


यि भी बताते िैं वक जजसे वि अपनी मां किता यि दूसरी बात िै वक
िै
अक्सर र्ौरािों पर खड़ा
कु छ साल पिले तक दीदी किता था उसे
गपशप करता पाया जाता िै
जवानी के वदनों जिां जिां वि
बातों में ईरान तुरान की िेंकता रिता िै
नौकरी में पोस्ट्े ड िोती
उसे कभी वकसी ने उसके कायाचलय में निीं
वि उसके साथ साए की तरि रिता था देखा

बर्पन से लेकर अब तक की करामातों के


वि वकसी नौकरी में निीं िै वकस्से िी वकस्से रिते िैं उसके पास

48
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

अपना प्रभाव जमाने के जलए जस्त्रयों को पुरुषों से कमतर मानता िै

बढ़ा र्ढ़ाकर सुनाता रिता िै उन्हें अल्पसं ख्यकों पर धौंस जमाता िै

पुरानी रीवत ररवाजों और मान्यताओं का


अंधसमथचन करता िै
भांवत भांवत की पोशाकें पिनने का शौक रखता
िै और बातें िमेशा लोकतं त्र की करता िै

आत्मीयता जताने को खुद को बहुत पढ़ा जलखा बताता िै

वकसी के भी गले लग जाता िै

दुवनया का कोई भी प्रसं ग क्यों न िो

मुिल्ले में वकसी का कोई काजकाम िो उसके पास किने के जलए कु छ न कु छ रिता
िै
या वकसी का कोई वनमाचण कायच र्ल रिा िो
र्ािे कु छ भी न िो पता
यि किने में देर निीं लगाता वक
तब भी तुक्के मार देता िै
जब भी कोई आजथचक जरूरत िो
वकसी भी व्यवक्त या स्थान की बात िो रिी िो
जरूर बताना
उसके साथ अपना पुराना पररर्य जोड़ देता िै
मेरे पास तो लाख दो लाख िर समय जेब में
रिते िैं जजस मिविल में खड़ा िो जाय

लेवकन वक्त जरूरत पड़ने पर उसी को लूि लेता िै

पानी तक देने में आनाकानी करता िै

यि जानते हुए भी

अपने से कमजोर को िमेशा दबाकर रखता िै

पुजलस प्रशासन को अपने जेब में समझता िै वक वि झूठ बोल रिा िै

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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

ववश्वास निीं िोता िै पूरे आत्मववश्वास के साथ

वक झूठ बोल रिा िै उससे वमलती िैं इसकी बहुत सारी आदतें

कोई कलाकार कु छ कु छ र्ेिरा भी

विल्म में भी निीं बोल पाता िोगा डर लगता िै इसके आत्मववश्वास को देखकर।

इतनी सिाई के साथ झूठ ***

बहुत सारे लोग सर् भी निीं बोल पाते िैं

इतने आत्मववश्वास के साथ

उसे यि भी निीं लगता िै वक

सामने वाले उसके झूठ को पकड़ भी सकते िैं

या सबको पता िै वक वि िेंक रिा िै

एक झूठ के बर्ाव में

उसके पास िमेशा सौ झूठ तैयार रिते िैं

झूठ बोलते हुए ऐसा आत्मववश्वास

या तो मूखत
च ा से पैदा िो सकता िै

या धूतत
च ा से

वर्चस्व का एक बड़ा िजथयार िै झूठ

इवतिास में एक तानाशाि था

सुना िै वि बोलता था झूठ

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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

प ं र् लघुकथाएं
"तो क्या यि देखने के जलए तब तक ज़िंदा रिना
र्ािोगे?!"
सुनील गज्जाणी

पानी
"अच्छी र्ुिकी ली िै तुमने, काश ऐसा िोता वक
उम्र अपने विसाब से जी जाती!"
"यूाँ एक िक क्या आकाश को ताक रिे िो?"
" िम्म्म, खरी बात! आसमान की तरि िै, कु छ
"निीं, बादलों को!" तय निीं करता वक, किााँ ज़्यादा बरसना िै, किााँ
कम!"
"मगर आकाश तो एक दम सूखा िै रेवगिान की
तरि!" तभी बहुत ते़िी से एक मोिर साइवकल उनके
पास से िरचरािें से वनकला धूल का गुबार उड़ाते
"िमारे खेतों-सा भी तो तुम कि सकते िो!"
हुए!
"िााँ , सिी किा तुम ने! सिार्ि ना आकाश
"नयी मािी का जोश देखा, कै सा वनकला! "
अच्छा लगता िै ना खेत!"
"िााँ ! अपनी काया की मािी भी कभी ऐसी थी,
"जलजछया, अपनी ज़्यादा उम्र तो आकाश को
मगर इतनी ति़िीब वबसराये निीं थी!
वनिारते हुए िी बीती िै और...!"
"देखते-देखते वकतना कु छ बदल गया बस अपनी
"और लगभग अपने सूखे खेतों को भी !"
आस िी निीं बदली....!" अगले शब्द रूधे गले
िड़मान की यि बात सुन जलजछया जखलखला में रि गए और एक िक वावपस आसमान तकने
पड़ा! दोनों अपने-अपने सूखे खेतों को देखते हुए लगा!
बातें कर रिे थे!
"क्या तुम्हारे यूाँ दुखी िोने से बादल बरस पड़ेंगे?!"
"जलजछया क्या िम अपनी इस बर्ी उम्र में अपने
"निीं! मगर मेरे दुखी मन से आाँ खें तो बरसेगी
खेतों को लिलिाते हुए देख पाएं गे?!"
ना!"

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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

साम्यवाद ''मेरा राजा बेिा, तेरी इच्छा थी ना वक वपंिू बाबा


जैसे कपड़े तू पिने ?''
"मााँ वकतना अच्छा िोता वक यवद िम भी धनी
िोते तो िमारे भी यूाँ िी नौकर-र्ाकर िोते ऐशो- ''िां अम्मा, मैंने देखा था जब आप र्ुपके से ले
आराम िोता।" रिी थी !''

"सब वकस्मत की बात िै, र्ल ििािि बतचन ''देखा था ! तेरी ज़िद ऐसे कपड़ों की िी थी ना
साि कर और भी काम अभी करना पड़ा िै।" जन्मवदन पे ! मगर तुझे पता िै अपनी िैजसयत
इतने मिंगे कपड़े खरीदने की थोड़ी ना िै तो मैंने
मााँ -बेिी बतचन मांजते हुए बातें कर रिी थीं। ..!''

"मााँ । इस घर की सेठानी थुलथुली वकतनी िै ''तभी तो आप ने अपनी मालवकन से र्ुपक-से


और बहुओं को देखो िर समय बनी-ठनी घूमती वपंिू बाबा के ये पुराने कपड़े मुझसे से ऩिर र्ुरा
रिती िैं, पतला रिने के जलए कसरतें करती िैं मांग जलए थे, मगर अम्मा विर भी मैंने देख जलया
भला घर का काम-काज, रसोई का काम, बतचन- था !''
भांडे आवद मााँ जें तो कसरत करने की ़िरूरत िी
निीं पड़े, िै ना मााँ ?" मााँ अपने नन्हे बेिे को गले लगाती रुआं सी बोली

“बात तो ठीक िै.. बस िमें भूखों मरना पड़ेगा।"
''सिी बात िै बेिा, तेरी ऐसी इच्छा भला और
*** कै से पूरा कर पाती बता ! मगर तेरे बदन के जलए
तो नए िी िै ना !''
उपिार
***
''वाि, मेरा बेिा तो एक दम अमीर लग रिा िै
ये कपड़े पिन कर, ख़ूब जर् रिे िैं तुझ पे !'' पिर्ान
''अरे अम्मा ! जर्ूं गा तो सिी, आज मेरा जन्म
वदन जो िै !''
‘‘भले िी तुम मेरी पत्नी िोकर मेरा साथ ना दो,
मगर मैं ये मानने को कतई तैयार निीं हं वक

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अनुनाद

गजनी विल्म के आवमर खान जैसा वकरदार भी सौदा


कोई ििीित में िोता िै जजसकी याददाश्त ज़सिच
पन्‍दद्रि वमनि के जलये रिती िै .. मैं इस मैगजी़न ''सािब ! मैंने ऐसा क्या कर वदया जो मुझे
में छपे आविचकल की किु आलोर्ना करता हं .. बखाचि कर वदया'' र्परासी बोला !
ड क्िर ररजवच नेर्र की मेरी पत्नी जाने कै से तुमसे
"तुमने तो जसिच अपना कतचव्य वनभाया था,
इतनी घुल-वमल गई जो इस आविचकल को लेकर
जजससे मुझे आघात पं हुर्ा''
तुम्िारा सपोिच कर रिी िै! ड क्िर, मुझे िस्पताल
से छु ट्टी कब दे रिे िो, मेरी मेवडकल ररपोिच का '' सािब ! मैं समझा निीं ? ''
क्या हुआ। ि ं..मेरी बीमारी तुम्िारे पकड़ में
आयी िै या निीं या यूं िी मुझ पर एक्सपेरीमेंि '' ना तुम बाररश में कई वदनों से भीग कर ख़राब
करे जा रिे िो, ड क्िर लोग शायद मरीज को िो रिे िनीर्र को मििू़ि जगि रखते और ना
इन्‍दसान निीं जानवर समझकर अपने वनत-नए िी नया िनीर्र खरीद की जो स्वीकृ वत वमली
प्रयोग करने की कोजशश करते िैं, ि ाँ... तो थी, वो वनरि िोती. अजधकारी ने लाल आाँ खें
ड क्िर............।'' जलए प्रत्युत्तर वदया.

***

‘‘क्या हुआ र्ुप क्यूाँ िो गए, क्या कि रिे थे, तो


ड क्टर ....?'' बौखलाई पत्नी उसके पास जाती
हुई बोली।

‘‘माि कीजजए, मैंने आपको जरा....पिर्ाना


निीं ''

पत्नी डबडबाई आाँ खें जलए अपनी शादी का


िोिो विर से पवत को वदखाने लगी।

***

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अनुनाद

मकान मालवकन (रोऑल्ड ढल)Roald चल पड़ा। वह पहले िभी बाथ नहीुं आया था।
वह किसी ऐसे िो नहीुं जानता था जो वहाँ रहता
Dahl
हो। लेकिन लुं दन में मुख्यालय में कमस्टर
ग्रीनस्लेड ने उसे िहा था कि यह एि शानदार
विंदी अनुवाद : श्रीववलास जसंि
शहर था। “अपने रहने िी जगह खुद तलाशो,”
कबली वीवर लुं दन से अपराह्न वाली धीमी गकत उन्होुंने िहा था, “और कर्र जब ठीि से
िी रेलगाड़ी से, रास्ते में ल्कस्वुंडन में गाड़ी बदलता व्यवल्कित हो जाओ तो शाखा प्रबुं धि िे पास
हुआ, यात्रा िरिे आया था। सजस समय वह जा िर ररपोटफ िरो।”
बाथ पहुँचा राकत्र िे नौ बजे िे आसपास िा कबली सत्रह साल िा था। वह नेवी जयू रुंग िा
समय हो रहा था और ससतारोुं भरे साफ आिाश नया ओवरिोट, नया कटर ल्बी हैट और भूरे रुंग िा
में चाँ द स्टे शन िे प्रवेशद्वार िे सामने वाले मिान नया सूट पहने हुए था तथा बहुत अच्छा महसूस
िे ऊपर कनिल रहा था। किुं तु माहौल मारि रूप िर रहा था और सड़ि पर र्ु ती से चल रहा था।
से ठुं डा था और हवा उसिे गालोुं पर बर्फ िी आजिल वह हर िाम र्ु तीले तरी़िे से िर रहा
िटार िी भाँ कत पड़ रही थी। था। वह इस कनणफय पर पहुँचा था कि फु तीलापन
“एक्सक्यूज़ मी,” उसने िहा, “ क्या िोई सस्ता सभी सर्ल व्यवसाकययोुं िी सामान्य कवशेषता
होटल है जो यहाँ से बहुत दूर न हो?” है। मुख्यालय िे बड़े लोग जादुई रूप से हर
समय र्ु तीले रहते थे। वे लोग अद्भतु थे।
“बेल एुं ड डर ैगन में िोसशश िरो,” िु ली ने सड़ि
िे एि ओर सुं िे त िरते हुए िहा।“वे तुम्हें ठहरा चौड़ी सड़ि पर िोई दुिान नहीुं थी और जब
सिते हैं। वह यहाँ से एि चौथाई मील िे ़िरीब वह सड़ि पर चल रहा था दोनोुं ओर बस ऊँची
दूर सड़ि िे दूसरी ओर है।”कबली ने उसिो इमारतें थी, सारी िी सारी एि जैसी। उन सभी
धन्यवाद कदया और अपना सूटिे स उठा िर बेल में पोचफ और खुं भे बने थे और चार या पाँ च
एुं ड डर ैगन िे सलए चौथाई मील िी दूरी तय िरने सीकढ़याँ थी जो सामने िे द्वार िो जाती थी और
यह बात आसानी से समिी जा सिती थी कि

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अनुनाद

किसी समय वे वैभवपूणफ आवासीय इमारतें रही खुद िमरा, जहाँ ति वह नीमअुंधरे े में देख
होुंगी। लेकिन अभी, अुंधेरे में भी, वह देख सिता था, खूबसूरत फनीचर से भरा हुआ था।
सिता था कि दरवाज़ोुं पर िे लिड़ी िे िाम से वहाँ एि बेबी ग्रैंड कपयानो, एि बड़ा सोर्ा, और
पेंट िी पपकड़याँ छू ट रही थी और उनिे सुदशफन, िई गद्दे दार िु ससफयाँ रखी थी; और एि िोने में
श्वेत अगले कहस्से कबना देखभाल िे दरारोुं से टू ट उसने देखा कि एि कपुंजरे में एि बड़ा तोता था।
रहे थे। इस तरह िी जगह में, जीव-जुं तु सामान्यतः
अच्छा सुं िे त होते िैं। कबली ने स्वयुं से िहा;
अिस्मात्, सीकढ़योुं िे नीचे िी एि सखड़िी में,
और सब िु छ िो देखते हुए, उसे लगा जैसे रहने
जो छः गज दूर ल्कित लैंप पोस्ट से शानदार तरी़िे
िे सलए यह एि िाफी अच्छी जगह होगी।
से प्रिासशत थी, कबली िी कनगाह एि छपे हुए
कनसित रूप से यह बेल एुं ड डर ैगन से असधि
नोकटस पर पड़ी जो ऊपर िे एि पल्ले िे शीशे
आरामदायि होगी। दूसरी ओर, एि पब एि
पर सचपिा हुआ था। उस पर सलखा था “बेड
बोकडिंग हाउस से असधि अनुिूल जगह होगी।
एुं ड ब्रेिर्ास्ट”। पीली गुलदाउदी िा एि लम्बा
शाम िो वहाँ बीयर और ड टफ होगा, और बात
और खूबसूरत गुलदान ठीि नोकटस िे नीचे ल्कित
िरने िे सलए ढे रोुं लोग,और सुं भवतः वह
था। उसने चलना रोि कदया। वह थोड़ा और
अपेक्षािृ त सस्ता भी होगा। वह दो रातें पहले भी
नज़दीि गया।
एि पब में रह चुिा था और वह उसे पसुं द भी
हरे पदे (किसी प्रिार िा मखमली िपड़ा)
आया था। वह िभी किसी बोकडिंग हाउस में नहीुं
सखड़िी िे दोनोुं ओर लटिे हुए थे। उनिी बग़ल
ठहरा था, और यकद पूरी ईमानदारी से िहा जाए
में गुलदाउदी िे र्ूल बहुत आियफजनि लग रहे
तो, वह उनसे थोड़ा डरता भी था। नाम से खुद
थे। वह सीधे वहाँ गया और शीशे में से भीतर
ही पानी वाली पत्तागोभी, लालची मिान
िमरे में िाँ िा और जो पहली चीज उसने देखी
मालकिनें, और सलकवुं ग रूम में एि ताितवर
वह आकतशदान में जलती चमिदार आग थी।
हाउसिीपर िी गुं ध िी छकव उभरती थी।
आग िे सामने िालीन पर एि नन्हा प्यारा सा
इस तरह दो तीन कमनट ठुं ड में िुं पिपाने िे
ड क्सैंड (िु त्ता) अपने पेट में अपनी नाि सछपाए
पिात कबली ने कनणफय सलया कि वह यहाँ िे बारे
गुड़ामुड़ा सो रहा था।
में मन बनाने से पूवफ आगे जाएगा और बेल एुं ड
डर ैगन पर एि नज़र डालेगा। वह जाने िे सलए
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अनुनाद

मुड़ा। और अब उसिे साथ एि कवसचत्र बात था। उसने घुं टी बजाई —और वह बाहर आ गई!
हुई। वह वापस लौटने और मुड िर सखड़िी से इससे वह उछल गया।
दूर जाने ही वाला था कि उसिी कनगाह एिाएि
वह लगभग पैंतालीस या पचास वषफ िी थी, और
बहुत खास तरी़िे से सचपिे छोटे से नोकटस पर
सजस समय उसने उसे देखा, मकहला उसे देख
अटि गयी जो वहाँ लगा था। उस पर बेड एुं ड
िर स्वागत में गमफजोशी से मुस्करायी।
ब्रेिर्ास्ट सलखा था। बेड एुं ड ब्रेिर्ास्ट, बेड एुं ड
“िृ पया भीतर आइए,” उसने बहुत अच्छे से
ब्रेिर्ास्ट, बेड एुं ड ब्रेिर्ास्ट। हर शब्द शीशे में
िहा। वह दरवाज़े िो पूरा खोलती हुई, एि ओर
से उसिी ओर िाँ िती बड़ी िाली आँ खोुं िी
हट गई और कबली ने स्वयुं िो स्वचासलत तरी़िे
भाँ कत उसे ताि रहा था, उसे पिड़े हुए, उसे
से मिान में आगे बढ़ते हुए पाया। बाध्यता
मजबूर िरता, जहाँ वह था वहीुं रहने िे सलए
अथवा, असधि सही िहें तो, उसिा अनुगमन
मजबूर िरता और मिान से दूर जाने से रोिता,
िरते हुए घर में जाने िी इच्छा असाधारण रूप
और अगली बात जो उसने जानी वह ये थी कि
से मज़बूत थी।
वह वास्तव में सखड़िी से हट िर मिान िे मुख्य
द्वार िी ओर जाने िो सीकढ़याँ चढ़ रहा था जो “मैंने सखड़िी में लगा नोकटस देखा था,” उसने
िालबेल ति पहुँचती थी। स्वयुं िो रोिते हुए िहा।

उसने घुं टी िा ल्कस्वच दबाया। दूर पीछे िे किसी “हाँ , मैं जानती हँ।”
िमरे में उसने घुं टी बजने िी आवा़ि सुनी और
“मैं एि िमरे िी तलाश में घूम रहा था।”
कर्र तुरुंत — यह कनिय ही तुरुंत ही हुआ होगा
क्योुंकि वह घुं टी िे बटन से अपनी उँ गली भी “यह पूरी तरह तुम्हारे सलए तैयार है,” उसने

नहीुं हटा पाया था — दरवाज़ा तेजी से खुल गया िहा। उसिा चेहरा गोल और गुलाबी था और

और एि मकहला वहाँ खड़ी थी। उसिी आँ खें नीली और बहुत कवनम्र थी।

सामान्यतः आप घुं टी बजाते हैं और िम से िम “मैं बेल एुं ड डर ैगन िे सलए जा रहा था,” कबली

आधा कमनट प्रतीक्षा िरते हैं इसिे पूवफ कि ने उससे िहा। “लेकिन आपिी सखड़िी पर लगे

दरवाज़ा खुले। लेकिन यह तो िु छ अनपेसक्षत सा नोकटस ने मेरा ध्यान आिृ ि िर सलया।

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अनुनाद

“मेरे प्यारे बच्चे,” उसने िहा, “तुम ठुं ड में से हाल में िोई और हैट अथवा िोट नहीुं थे। वहाँ
भीतर क्योुं नहीुं आ जाते?” िोई छाता अथवा टहलने िी छड़ी भी नहीुं थी।

“आप कितना चाजफ िरती हैं ?” “यहाँ सब िु छ िे वल हमारे सलए है,” उसने,
जब वह उसे सीकढ़योुं से ऊपर ले जा रही थी,
“पाँ च और छः पेन्स एि रात िे , ब्रेिर्ास्ट
उसिे िुं धोुं िे ऊपर िी ओर देखते मुस्कुराते हुए
सकहत।”
िहा।
यह तो बहुत ही सस्ता था। यह तो उसिे आधे
“देखो, ऐसा अक्सर नहीुं होता जब हम अपने
से भी िम था जो भुगतान िरने िो वह इच्छु ि
नन्हें घोुंसले में किसी आगुं तुि िे आने िा आनुं द
था।
उठा पाते हैं।”
“यकद यह असधि है तो,” उसने जोड़ा, “ तो मैं
बूढ़ी लड़िी थोड़ी दीवानी है, कबली ने खुद से
थोड़ा िम भी िर सिती हँ। क्या तुम्हें ब्रेिर्ास्ट
िहा। लेकिन पाँ च और छः पेन्स एि रात िे
में अुंडा चाकहए? इस समय अुंडे महँगे हैं। कबना
किराए पर इस बात िी परवाह िौन िरता है?
अुंडे िे छः पेन्स िम हो जाएँ गे।”
– मैं सोच रहा था कि आपिे पास प्रासथफयोुं िी
“पाँ च और छः पेन्स ठीि है। उसने िहा। मुिे
भीड़ लगी होगी,” उसने कवनम्रता से िहा।
यहाँ रहना अच्छा लगना चाकहए।”
“हाँ , ऐसा है, माय कडयर, कनसित रूप से ऐसा
“मैं जानती हँ तुम्हें अच्छा लगेगा। भीतर आ
है। लेकिन समस्या यह है कि मैं थोड़ी सी इस
जाओ।”
मामले में चूजी और कवसशि हँ – तुम देख सिते
वह बहुत ही अच्छी लग रही थी। वह कबलिु ल हो मेरा क्या मतलब है।”
किसी अच्छे स्कू ली दोस्त िी माँ जैसी, किसमस
“ओह, हाँ ।”
िी छु कट्टयोुं िे दौरान अपने घर में रहने हेतु
“लेकिन मैं सदैव तैयार रहती हँ। हर चीज सदैव
स्वागत िरती सी लग रही थी। कबली ने अपना
कदन रात तैयार रहती है शायद िब बे मौ़िे िोई
हैट उतार कदया और दरवाज़े िे भीतर िदम
स्वीिायफ युवा और भद्र पुरुष आ जाये। और यह
रखा। “उसे वहाँ टाुंग दो,” उसने िहा, “और
आनुं ददायि होता है, बहुत असधि आनुं ददायि
मुिे अपना िोट उतारने में मदद िरने दो।”
होता है जब मैं यदािदा दरवाज़ा खोलती हँ और

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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

मैं वहाँ किसी िो खड़ा हुआ पाती हँ जो कि पानी िी बोतल िा होना बहुत आरामदायि
एिदम ठीि हो।” वह सीकढ़योुं िे मध्य में थी, होता है, क्या आप सहमत नहीुं हैं? और आप
जब वह सीकढ़योुं िी रेसलुं ग पिड़ िर एि क्षण किसी भी समय यकद ठुं डि महसूस िरें तो गैस
िो रुि गई, और अपना ससर घुमा िर बदरुंग जला सिते हैं।”
होठोुं से उसिी ओर देख िर मुस्करायी। “तुम्हारे
“धन्यवाद,” कबली ने िहा। “बहुत बहुत
जैसा,” उसने जोड़ा और उसिी नीली आँ खें
धन्यवाद।” उसने नोकटस किया कि कबस्तर िो
कबली िी समूची देह पर नीचे िी ओर दौड़ गयीुं
ढिने वाली चादर हटा दी गई है और ओढ़ने िी
और पुनः ऊपर िी ओर।
चादर और िुं बल ़िरीने से एि ओर मोड़ कदए
पहली मुं सज़ल पर पहुँच िर उसने उससे िहा, गए हैं, किसी िे सोने िे सलए सब िु छ तैयार
“यह मुं सज़ल मेरी है।” है।

वे दूसरी मुं सज़ल िे सलए सीकढ़याँ चढ़ गए। “और “मैं बहुत खुश हँ कि तुम आए,” उसने कबली िे
यह तुम्हारी है,” उसने िहा। “तुम्हारा िमरा ये चेहरे िो बहुत ध्यान से देखते हुए िहा, “मैं
है। मैं आशा िरती हँ तुम इसे पसुं द िरोगे।” सचुंकतत होने लगी थी।”
वह उसे सामने िे एि छोटे किुं तु आिषफि
“सब ठीि है,” कबली ने प्रसन्ता से िहा।
शयनिक्ष में ले गई और लाइट जलाते हुए भीतर “आपिो मेरे सलए सचुंकतत नहीुं होना चाकहए।”
चली गई।
उसने अपना सूटिे स िु सी पर रख कदया और उसे
“सुबह िा सूरज सीधे सखड़िी से कदखता है, खोलने लगा।
कमस्टर पकिफ न्स। आप कमस्टर पकिफ न्स हैं, क्या
“और राकत्र िे भोजन िा क्या है, माय कडयर?
नहीुं?”
क्या तुमने यहाँ आने से पहले िु छ खा सलया
“नहीुं,” उसने िहा, “ मैं कमस्टर वीवर हँ।” था?”

“कमस्टर वीवर। बहुत बकढ़या। मैंने चादरोुं िे “मैं कबलिु ल भूखा नहीुं हँ, धन्यवाद,” उसने
बीच में एि पानी िी बोतल रख दी है, उन्हें गमफ िहा। “मैं सोचता हँ अब मैं सोऊँगा सजतना शीघ्र
रखने िे सलए, कमस्टर वीवर। एि अजनबी सम्भव हो उतनी जल्दी क्योुंकि िल सुबह मुिे
कबस्तर में साफ सुथरी चादर िे साथ एि गमफ

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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

अपेक्षािृ त जल्दी उठना है और िायाफलय में नन्हा िु त्ता अब भी उसिे आगे सो रहा था।
ररपोटफ िरना है।” िमरा आियफजनि रूप से गमफ और आरामदायि
था। मैं भाग्यशाली हँ, उसने अपने हाथ आपस
“कर्र ठीि है। अब मैं जाऊँगी ताकि तुम अपना
में रगड़ते हुए सोचा। एि तरह से यह सब
सामान कनिाल सिो। लेकिन सोने से पूवफ क्या
एिदम ठीि है।
तुम भूतल पर बैठि में आ िर रसजस्टर में
हस्ताक्षर िरने िी िृ पा िरोगे। हर एि िो यह उसने अकतसथ पुं सजिा िो कपयानो पर खुला पड़े
िरना होता है क्योुंकि यह देश िा ़िानून है और पाया, इससलए अपनी िलम कनिाली और अपना
हम इस ल्किकत में िोई ़िानून नहीुं तोड़ना चाहते, नाम और पता सलख कदया। उसिे ऊपर पन्े पर
क्योुं?” उसने उसिी ओर हिे से हाथ कहलाया मात्र दो और प्रकवकियाँ थी, और जैसा कि िोई
और उसिे िमरे से तेज़ी से बाहर कनिलते हुए अकतसथ पुं सजिा देख िर हमेशा िरता है, वह
दरवाज़ा बुं द िर कदया। उन्हें पढ़ने लगा। एि था किस्टोफर मल्फोडफ
िाकडफफ से। और दूसरा कब्रस्टल से कग्रगोरी डजयू.
अब, इस तथ्य से कि उसिी मिान मालकिन
टे म्पल। यह बड़ा मज़ेदार है, उसने एिाएि
थोड़ी सी सखसिी हुई लग रही थी, कबली िो जरा
सोचा। किस्टोफर मल्फोडफ। यह िु छ सुना सा
भी सचुंता नहीुं थी। सब िे बाद, न िे वल वह
नाम लगा। अब किस जगह उसने यह अपेक्षािृ त
हाकनरकहत थी – इस सम्बुं ध में िोई सुं देह नहीुं
असामान्य सा नाम सुना था?
था – बल्कि वह िाफी दयालु और उदार आत्मा
भी थी। उसने अनुमान लगाया िी शायद उसने क्या वह स्कू ल में िोई लड़िा था? क्या वह
युद्ध में अपना पुत्र खो कदया है, अथवा और िु छ उसिी बहन िे अनेिोुं ब यफ़्रेंड् स अथवा कपता
ऐसा ही, और उससे िभी भी मुक्त नहीुं हो पायी िे कमत्रोुं में से िोई था? नहीुं, नहीुं, यह उन में
है। से िोई नहीुं था। उसने पुनः पुं सजिा पर नज़र
डाली। किस्टोफर मल्फोडफ, 231, िै थीडर ल रोड,
इससलए िु छ कमनट्स िे पिात, अपना सामान
िाकडफफ। ग्रेगोरी डजयू. टेम्पल, 27 सायिामोर
खोल लेने और अपने हाथ धो लेने िे बाद, वह
डर ाइव, कब्रस्टल। वास्तव में अब उसने कर्र इस
सीकढ़याँ उतर िर भूतल पर आया और बैठि में
बारे में सोचा कि वह कनसित नहीुं िह सिता था
प्रकवि हुआ। उसिी मिान मालकिन वहाँ नहीुं
थी किुं तु आकतशदान में आग जल रही थी और

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अनुनाद

कि दूसरा नाम भी उतना ही पररसचत सा नहीुं हँ। वे दोनोुं लुं बे और युवा थे और सुदशफन भी,
लग रहा सजतना कि पहला। माय कडयर, कबलिु ल तुम्हारे जैसे।”

“ग्रेगोरी टेम्पल? उसने अपनी स्मृकत में खोजते एि बार पुनः , कबली ने पुं सजिा में देखा।
हुए ज़ोर से िहा। किस्टोफर मल्फोडफ ?….
“इधर देखो,” उसने तारीख पर ध्यान देते हुए
“बहुत प्यारे लड़िे थे,” उसिे पीछे से एि िहा। “यह आसखरी प्रकवकि लगभग दो साल से
आवाज ने जवाब कदया, वह मुड़ गया और उसने पहले िी है।”
अपनी मिान मालकिन िो अपने हाथोुं में एि
“अच्छा?”
बड़ी सी चाँ दी िी चाय िी टरे सलए देखा। वह
“हाँ , कनिय ही। और किस्टोफर मुलह लैण्ड िी
उसे कबलिु ल उसिे सामने सलए हुए थी,
उससे एि साल पहले िी – तीन साल से असधि
अपेक्षािृ त ऊपर उठाए हुए, जैसे कि वह टरे किसी
पहले िी।”
सखलन्दड़े घोड़े िी लगाम हो।
“ओह,” उसने अपना ससर कहलाते और सुुं दर सी
“वे िु छ िु छ पररसचत से लग रहे हैं,” उस ने
आह भरते हुए िहा।”मैंने इस बारे में सोचा भी
िहा।
नहीुं। समय िै से हम सब से दूर उड़ जाता है, है
“अच्छा? कितनी कदलचस्प बात है।”
न कमस्टर कवल्किन्स?”
“मुिे लगभग पक्का लगता है कि मैंने ये नाम
“मैं कमस्टर वीवर हँ,” कबली ने िहा, “वी-वर।”
िहीुं पहले सुने हैं। क्या यह कवसचत्र नहीुं है? हो
“ओह, कनिय ही !” वह सोफे पर बैठते हुए
सिता है यह समाचार पत्र में रहा हो। वे किसी
सचल्लाई। “मैं कितनी बेव़िू फ हँ। मैं माफी
तरह प्रससद्ध नहीुं थे, क्या थे? मेरा मतलब है
चाहती हँ। मैं एि िान से सुन िर दूसरे से
प्रससद्ध कििे ट सखलाड़ी या र्ु टब ल सखलाड़ी
कनिाल देती हँ, कमस्टर वीवर।”
अथवा इसी तरह िे िु छ?”
“आप िु छ जानती हैं?” कबली ने िहा। “िु छ
“प्रससद्ध,” उसने सोफे िे सामने िी नीची टेबुल
जो इस सब िे बारे में असाधारण है?”
पर टरे रखते हुए िहा, “नहीुं, मैं नहीुं समिती
कि वे प्रससद्ध थे। लेकिन वे असाधारण रूप से “नहीुं, कप्रय, मैं नहीुं जानती।”
सुदशफन थे, दोनोुं ही, मैं दावे िे साथ िह सिती

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अनुनाद

“अच्छा, आप देसखए – ये दोनोुं ही नाम, ऐसी चीज से असधि और िु छ िििारी नहीुं


मुलह लैण्ड और टेम्पल, मुिे ये दोनोुं अलग होता जो किसी िी स्मृकत िी सीमा रेखा िे ठीि
अलग न िे वल याद आते से लग रहे हैं, यकद बाहर रुिी रह जाती है। उसे हार मान लेने से
िहँ तो, बल्कि किसी न किसी प्रिार, किसी घृणा थी।
कवशेष तरी़िे से, वे आपस में सुं बुं सधत भी हैं।
“अब, एि कमनट प्रतीक्षा िरो,” उसने िहा।
मानोुं वे किसी एि जैसी बात िे सलए प्रससद्ध होुं,
“बस एि कमनट रुिो। मुलह लैंड… किस्टोफर
मेरा मतलब है – जैसे कि… जैसे डेम्प्सी और
मुलह लैण्ड… क्या यह एटोन िे उस छात्र िा
टू नी, उदाहरण िे सलए, अथवा चसचफल और
नाम नहीुं जो पसिमी ग्रामीण इला़िे िी पैदल
रूज़वेल्ट।”
यात्रा पर था और कर्र अिस्मात्….”
“कितना आियफजनि,” उसने िहा। “लेकिन
“दूध?” उसने पूछा। “और शक्कर?”
अभी यहाँ सोफे पर माय कडयर, मेरे पास सोफे
“हाँ , प्लीज़। और कर्र अिस्मात्…”
पर बैठो और मैं तुम्हें चाय िा बकढ़या सा प्याला
और अदरख वाले कबस्कु ट दूँगी, तुम्हारे सोने जाने “एटोन िा छात्र?” उसने िहा। “ओह, नहीुं
से पहले।” माय कडयर, यह सुं भवतः ठीि नहीुं हो सिता
क्योुंकि मेरे कमस्टर मुलह लैण्ड जब मेरे यहाँ आए
“आपिो वास्तव में परेशान नहीुं होना चाकहए,”
थे, कनसित रूप से एटोन िे छात्र नहीुं थे। वे
कबली ने िहा। “मेरा ये मतलब नहीुं था कि आप
िै ल्किज िे अवर स्नाति थे। अब यहाँ आओ और
ऐसा िु छ िरें।” वह कपयानो िे पास उसे देखता
यहाँ मेरे पास बैठो और इस प्यारी आग िे सामने
हुआ खड़ा था जब वह िप प्लेटोुं से उलिी हुई
अपने िो गमाफहट दो। आओ। तुम्हारी चाय तैयार
थी। उसने नोकटस किया कि उसिे हाथ छोटे ,
है।” उसने अपनी बग़ल में सोफे िी खाली जगह
सफेद और तेज़ी से चलते हुए थे और उँ गसलयोुं
िो थपथपाया और कबली िो देख मुस्कराती हुई
िे नाखून लाल।
बैठी उसिे आने िी प्रतीक्षा िरती रही। उसने
“मुिे पक्का लग रहा है कि उनिा नाम मैंने
धीरे से िमरे िो पार किया, और सोफे िे किनारे
अखबार में देखा था,” कबली ने िहा। मैं इस बारे
पर बैठ गया। मकहला ने उसिे सलए चाय िा
में एि सेिेंड में सोच लूँ गा। कनिय ही मैं िर
प्याला उसिे सामने टेबुल पर रख कदया।
लूँ गा।”

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अनुनाद

“तो हम यहाँ है,” उसने िहा। कितना बकढ़या “छोड़ गया,” उसने अपनी भौुंहें टे ढ़ी िरते हुए
और आरामदायि है, क्या नहीुं?” िहा। “लेकिन मेरे प्यारे बच्चे, वह िभी छोड़
िर नहीुं गया। वह अब भी यहीुं है। कमस्टर
कबली ने अपनी चाय पीनी शुरू िर दी। उसने
टे म्पल भी यहीुं हैं। वे तीसरी मुं सज़ल पर हैं, दोनोुं
भी वही किया। आधे कमनट िे सलए दोनोुं में से
साथ साथ हैं।”
िोई िु छ नहीुं बोला। लेकिन कबली जानता था
कि वह उसे ही देख रही थी। उसिी देह आधी कबली ने धीरे से अपना प्याला टे बुल पर रखा,
कबली िी ओर मुड़ी हुई थी, और वह अपने चेहरे और मिान मालकिन िी ओर देखा। वह उसिी
पर उसिी आँ खें महसूस िर सिता था, अपने ओर देख िर मुस्करायी और कर्र उसने अपना
प्याले िे किनारे से उसे देखती हुई। बीच बीच एि सफेद हाथ उसिे घुटने पर रख िर साुंत्वना
में उसे एि कवशेष प्रिार िी महि िा अनुभव में थपथपाया।“तुम्हारी क्या उम्र है, माय
हुआ जो उसिी देह से आती हुई सी महसूस होती कडयर?” उसने पूछा।
थी। यह जरा भी अरुसचिर नहीुं थी और यह उसे
“सत्रह।”
िु छ याद कदला रही थी – वह कनसित नहीुं था
“सत्रह !” वह सचल्लाई। “ओह, यह एिदम
कि वह उसे क्या याद कदला रही थी। अखरोट िा
सही उम्र है ! कमस्टर मुलह लैंड भी सत्रह िे थे।
अचार ? नया चमड़ा ? अथवा वह किसी
लेकिन मेरे कवचार से वे तुम से थोड़ा सा िम लुं बे
अस्पताल िा गसलयारा था?
थे, वास्तव में कनसित रूप से वे िम लुं बे थे, और
“कमस्टर मुलह लैंड िो यह चाय बहुत पसुं द थी,”
उनिे दाँ त भी इतने सफेद नहीुं थे। तुम्हारे दाँ त
उसने कवस्तार से बताया। “मैंने किसी िो अपने
सबसे खूबसूरत हैं, कमस्टर वीवर, क्या तुम्हें पता
जीवन में इतनी चाय पीते नहीुं देखा सजतनी प्यारे है?”
कमस्टर मुलह लैंड पीते थे।”
“वे उतने अच्छे नहीुं हैं, सजतने कदखते हैं,” कबली
“मुिे लगता है वे अभी हाल में ही छोड़ िर गए ने िहा। “उनमें पीछे िी ओर कर्सलुं ग िराई गई
हैं,” कबली ने िहा। वह अभी भी उन दो नामोुं है।”
िे बारे में सोच रहा था। उसे अब पक्का कवश्वास
“कनिय ही, कमस्टर टे म्पल थोड़े असधि उम्र िे
हो गया था कि उसने उन्हें अखबार में देखा था
थे,” उसने कबली िी बात िो नज़रअुंदाज़ िरते
– हेडलाइन्स में।
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हुए िहा। “वे वास्तव में अट्ठाइस िे थे। कर्र “आपने किया है?”
भी मैं िभी अुंदाज़ न लगा पाती यकद उन्होुंने मुिे
“कनसित रूप से,” उसने िहा। “और तुम मेरे
न बताया होता, जीवन भर भी नहीुं। उनिी देह
नन्हे ब ससल से कमले?” उसने आग िे सामने
पर इसिा एि भी सचह्न नहीुं था।”
गुडीमुड़ी बैठे ड क्सेंड िु त्ते िी ओर इशारा किया।
“क्या नहीुं था?” कबली ने िहा। कबली ने उसिी ओर देखा। और अिस्मात् उसे
भान हुआ कि यह जानवर भी उसी भाँ कत चुप
“उनिी त्वचा किसी बच्चे िी त्वचा जैसी थी।”
और गकतहीन रहा है जैसे कि तोता। उसने हाथ
एि क्षण िो सन्ाटा रहा। कबली ने अपना प्याला
बढ़ा िर उसिी पीठ िो धीरे से छु आ। पीठ
उठाया और चाय िा एि और घूँ ट सलया, कर्र
िठोर और ठुं डी थी, और जब उसने अपनी उँ गली
उसने उसे पुनः धीरे से प्लेट में रख कदया। उसने
से बालोुं िो एि ओर हटाया, वह उसिे नीचे
उसिे िु छ िहने िी प्रतीक्षा िी किुं तु लग रहा
िी त्वचा देख सिता था, भूरापन सलए िाली,
था वह पुनः अपने मौन में चली गयी थी। वह
सूखी और पूरी तरह सुं रसक्षत।
उसिी ओर सीधे देखता बैठा रहा, उसिे ठीि
“बहुत शानदार,” उसने िहा। “एिदम से
सामने, िमरे िे दूर वाले िोने में, अपना नीचे
कितना चमत्कारी।” वह दूसरी ओर मुड़ गया और
िा होुंठ चबाता हुआ।
सोफे पर बैठी मकहला िो गहरी प्रशुं सा िी दृकि
“वह तोता,” कबली ने अुंततः िहा। “आपिो
से देखने लगा। “इस तरह िी िोई ची़ि़ि
िु छ पता है? जब मैंने गली में से सखड़िी से
िरना कनिय ही सबसे िकठन रहा होगा।”
पहली बार इसे देखा था तो इसने मुिे पूरी तरह
“कबलिु ल भी नहीुं,” मकहला ने िहा। “मैं अपने
बेव़िू फ बना कदया था। मैं ़िसम खा सिता था
सभी पालतुओ ुं िो, जब वे मर जाते है,अपने हाथ
कि यह सज़ुं दा था।”
से स्टफ (भर) िरती हँ। क्या तुम एि और
“अफसोस, अब नहीुं है।”
प्याला चाय या ि फी लोगे ?”
“ऐसा बहुत भयुं िर चतुरता िे साथ किया गया
“जी नहीुं, धन्यवाद,” कबली ने िहा। चाय िा
है,” कबली ने िहा। “ यह जरा सा भी मरा हुआ
स्वाद हिा सा ‘िड़वे बादामोुं’ जैसा था लेकिन
नहीुं लगता। ऐसा किसने किया?”
उसने इसिी खास परवाह नहीुं िी।
“मैंने किया है।”
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अनुनाद

“क्या तुमने पुं सजिा में हस्ताक्षर िर कदये, अथवा र्ेतना को झकझोरते "भीड़ और भेवड़ए"
नहीुं?”
के व्यं ग्य
“जी, िर कदया।”

“कर्र ठीि है। क्योुंकि यकद बाद में ऐसा होता है आर पी तोमर
कि मैं भूल जाऊँ कि तुम्हें क्या िहते थे, मैं यहाँ
कै नेडा में वषों से रि रिे भारतवं शी व्यं ग्यकार
नीचे आ िर देख सिूँ । मैं कमस्टर मुलह लैंड िे
धमचपाल मिेंद्र जैन अब वि नाम िो गया िै,
सम्बुं ध में अब भी लगभग हर कदन ऐसा िरती हँ जजनकी पिर्ान भारत के सुप्रजसद्ध व्यं ग्यकारों में
और कमस्टर…कमस्टर…” िोती िै। उनकी व्यं ग्य रर्नाओं को आाँ ख बं द
“टे म्पल,” कबली ने िहा। “कग्रगोरी टेम्पल। मुिे करके भी खरीदा जा सकता िै। वे लं बे समय से
यह पूछने हेतु क्षमा िरे, लेकिन क्या उन दोनोुं व्यं ग्य रर्नाएं रर् रिे िैं। "भीड़ और भेवड़ए"
नामक रर्ना को भी उन्होंने बेितरीन व लीक से
िे अकतररक्त कपछले दो या तीन वषों में और िोई
ििकर जलखा िै। धमचपाल जी को उनके पिले
अकतसथ नहीुं आए?”
व्यं ग्य सं ग्रि "सर क्यों दांत िाड़ रिा िै" की
अपना चाय िा प्याला एि हाथ में ऊँचा उठाए भूवमका जलखने वाले सुप्रजसद्ध व्यं ग्यकार िररशं कर
हुए, अपना ससर थोड़ा सा बायीुं ओर िुिा परसाई जी ने किा था वक जरूरी निीं वक व्यं ग्य
िर,मकहला ने उसिी ओर अपनी आँ खोुं िे िोने पढ़कर िंसी आये। बस, उसे अपने पाठक की
से देखा और पुनः िोमलता से मुस्कुरायी। र्ेतना को झकझोरने में सक्षम िोना र्ाविए।
व्यं ग्य वि जो तुमको खुद से वमलाए, ववद्रूप और
“नहीुं, माय कडयर,” उसने िहा। “ िे वल तुम
व्यवस्था की गं दगी उघाड़ दे और पढ़कर पाठक
आए हो।” को लगे वक बदलाव िोना र्ाविए। धमचपाल जी
***** ने इन्हीं की गांठ बांधकर व्यं ग्य जलखने, समझने
और परखने की कुं जी बना ली िै। अन्य रर्नाओं
सुं िे त : (सायनाइड िा स्वाद िड़वे बादामोुं जैसा
की तरि उनकी इस वकताब में भी समकालीन
होता है।)
व्यं ग्य के उत्सवी पररदृश्यों में आज के जमाने के
िास्ट् िूड परोसने से परिेज वकया गया िै।
सुप्रजसद्ध व्यं ग्यकार ड . ज्ञान र्तुवदे ी ने भूवमका
जलखते हुए किा िै वक धमचपाल की रर्ना में
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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

एकदम स्पि िै वक वि क्या कि रिे िैं, किां खड़े


उपजी वतलवमलािि निीं देता,वरन ऐसे
िैं और पाठकों को वकस वदशा में ले जाना र्ािते
झकझोरता िै वक पाठक या श्रोता आत्म
िैं। वे लक्षणा, व्यं जना और अजभधा की बजाय
साक्षात्कार करें। उनकी व्यं ग्य रर्नाओं में प्रिारक
व्यं ग्य में गुि ऊष्मा को वपरोते हुए व्यं ग्य को व्यं ग
बनाते िैं। यि ऊष्मा ववर्ार, सं वाद और शब्द शवक्त िै। वे व्यवस्था की सड़ांध को इं वगत करते

को नया अथच देने की ताकत दे पाए ऐसा उनका िैं। पाखं ड को उजागर करते िैं। उन्होंने अपनी
लक्ष्य िोता िै। वे व्यं ग्य की उस समझदार र्ुप्पी पुिक "भीड़ और भेवड़ए" में धारदार कलम र्ला
के जखलाि िैं, जो समकाल में सत्ता के खेल के कर शोवषतों की बेर्ैनी को धार दी िै। ववर्ार,
ववरुद्ध कु छ भी बोलने से बर्ती िै। तकच , कौशल से ऐसी पुिक को गढ़ा िै, जो
वािव में व्यवस्था पर र्ोि िै, पाखं ड को उजागर
धमचपाल मिेंद्र जैन के व्यं ग्य शोवषत व
करती िै और वक्त का तकाजा िै। वे अन्योवक्त
वं जर्तों की आवाज बनते लगते िैं। वे अपनी
के साथ साथचक किाक्ष करने से निीं र्ूकते।
मध्यम आवाज से नक्कारखाने के माजलकों को
ववषमताओं, ववसं गवतयों, सामाजजक कु रीवतयों पर
र्ेताने में कामयाब िोते िैं। वे "भीड़ और भेवड़ए"
वि अपने कवव एवं सिल व्यं गकार-हृदय से
में वािव में अपनी व्यं ग्य रर्नाओं से र्ेतना को
प्रभावी व धारदार प्रिार करते वदखाई देते िैं।
झकझोरते व आत्म साक्षात्कार कराते साि नजर
व्यं ग्य, किाक्ष और तीखे शास्थब्दक प्रिार िारा
आते िैं, जो व्यं ग्य की पिली मांग िै। उनकी
ववषमता के ववरुद्ध 'एक अस्त्र' वाली शैली से
व्यं ग्य रर्ना बहुत गिरी और दीघचकाजलक िै। वे
लजक्षत ववषमताओं के नासूर की शल्य वक्रया
मानते िैं वक उनका व्यं ग्य शास्थब्दक और भावषक
करता िै विर भी दुख-ददच का आभास तक निीं
अजभव्यवक्त के परे भी भावभं वगमाओं, शारीररक
िोता। अलबत्ता िंसी के िव्वारे भी छू िते िैं।
मुद्राओं, रेखीय और रूपं कर, मूतच और अमूतच कई
धमचपाल जी बेधड़क िोकर झूठ, पाखं ड, लोभ,
माध्यमों से उभरता िै। प्रवासी भारतीय धमचपाल
लाभवृवत्त की जड़ों पर र्ोि करते हुए आईना
जी की व्यं ग्य रर्नाओं में व्यं ग्य र्ेतना का वि
वदखाते िैं।
भाव स्पि पढ़ने को वमलता िै, जजसमें शब्दों और
वाक्य की सामूविक शवक्त िोती िै। व्यं ग्यकार बात सं कलन की रर्नाओं पर करें तो
धमचपाल जी खुद किते िैं वक मेरे जलए व्यं ग्य ऐसा रर्नाकार ने "भीड़ और भेवड़ए" नामक रर्ना में
प्रिार िै जो र्ेतना को गाजलयों या किु वर्नों से अवसरवावदयों पर प्रिार करते हुए राजनीवत को

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अनुनाद

वनशाना बनाया िै। उनका किना िै वक “भेड़ आ जाती िैं। उनके डंडे में सं ववधान की आत्मा
आदमी निीं बन सकती। इसका मतलब यि निीं प्रवेश कर जाती िै और उनके असले में दमदार
िै वक आदमी भेड़ निीं बन सकता। आदमी भेड़ गोजलयां। वे िवाई िायर का इशारा कर देते िैं।
क्या भेवड़या भी बन सकता िै और र्मर्माता तब समझदार भेड़ें भीड़ के भीतर से भीतर घुसती
वबस्थस्कि वदखा दो तो मेमना भी बन सकता िै। र्ली जाती िैं। वे अपने से कमजोर भेड़ों को
कोई आदमी भेवड़या बन जाए तो वि अपनी कवर् बनाकर छु प जाती िैं। कमजोरों व
जमात में सुपरलेविव िो जाता िै। वि अपेशेवरों की की िांगे िू िती िैं, उनके जसर ििते
कृ पावनधान बनकर अपने आगे-पीछे घूम रिे िैं। पुजलस सं रक्षण में एं बुलेंस उन्हें लादती िै।”
लोगों को भेड़ बन सकता िै।” वे आगे किते िैं रर्नाकार किाक्ष करते हुए अंवतम पं वक्त में किते
“भेड़ बनाने के मामले में राजनेता बेर्ारे ज्ादा िैं वक मैंने आवारा और दलबदलू कु त्ते देखे, पर
िी बदनाम िैं। वे के वल राजनीवतक रुझान वाले कभी आवारा या दलबदलू भेड़ें सड़क या
समवपचत लोगों को कु त्ता बनाने की कवायत कर ववधानसभा के आसपास निीं देखीं।
रिे िोते िैं। ऐसे में आम आदमी कु त्तों के ठाठ
प्रजातं त्र की स्थस्थवत पर एक शानदार
देखता िै और जलप्सा से िपकती कु त्तों की लार
व्यं ग्य इस तरि आता िै- “प्रजातं त्र की बस तैयार
को भी कु त्ते अवसर में बदल लेते िैं। डराने,
खड़ी िै। सरकारी गाड़ी िै इसजलए 'धक्का परेड'
धमकाने, कु छ करने और आका के रोब तले दबा
िै। धक्का लगाने में लोग जोर-शोर से जुिे िैं।
देने का ददच जनता के मन में बसा देते िैं। देखते-
एक बार गाड़ी रोल िो जाए तो डर ाइवर िस्ट्च वगयर
देखते लोग भीड़ बन जाते िैं। राजनीवत के
में उठाकर स्ट्ािच कर ले। पर बस िै वक िस से
अलावा भी भीड़ तो बनती िै।” भेड़ के बिाने
मस निीं िो रिी।” प्रजातं त्र का पूरा राजनीवतक
भीड़ के र्ररत्र पर र्लते व्यं ग्य का पिाक्षेप इस
ववज्ञान इस व्यं ग्य की जद में िै, जजसका वनष्कषच
तरि िोता िै- “भीड़ देखकर पुजलस का मनोबल
िै- “धवकयारे बड़े र्ालाक िैं। वि प्रजातं त्र का
जागृत िो जाता िै। शासकों के गड़ररए भीड़ िांक
अथच समझ गए िैं और दोनों िाथों से बिोर रिे
रिे िों तो पुजलस को नसबं दी र्ररत्र में रिना िोता
िैं। दोनों िाथ व्यि िैं तो धक्का कै से लगाएाँ ?
िै। जब वे ववरोधी गड़ररयों को िोला ले जाते हुए
बस जिां की तिां खड़ी िै। 135 करोड़ लोग बैठ
देखते िैं तो उनका वदमाग सवक्रय िो जाता िै।
गए िैं। पर बस निीं र्ल रिी। लोग दो अरब िो
उन्हें दंड ववधान की सारी धाराएं एकाएक याद
जाएं गे, वे भी इसमें ठाँ स जाएं गे। डर ाइवर का मन
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जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

बहुत करता िै वक वि धवकयारों को साि-साि "भैंस की पूं छ" रर्ना में बड़ी िी र्तुराई से
कि दे वक सब एक वदशा में धक्का लगाओ। र्ुिीली कािी गई िै। रर्नाकार धमचपाल मिेंद्र
धवकयारे उसकी निीं सुनते, वे किते िैं तुम्हारा जैन जलखते िैं वक सुरीली जी ने र्ं दन का थाल
काम आगे देखना िै, तुम आगे देखो पीछे िम मं त्रीवर के र्रणों में रख वदया और प्राथचना की
अपना-अपना देख लेंगे। प्रजातं त्र की बस वक िे नाथ, आपके र्रण इस थाल में रखकर
यथावत खड़ी िै।” वघसे हुए र्ं दन को उपकृ त करें। मं त्रीवर ने गदगद
िो वैसा िी वकया। अब मं त्रीवर के तलवों में र्ं दन
‘दो िांग वाली कु सी’ की रर्ना में
िी र्ं दन लगा था। तब रसीला जी और सुरीली
रर्नाकार ने कु सी का मित्व बताते हुए अजभनव
जी ने मं त्रीवर की जय-जयकार करते हुए किा
स्थापनाएाँ की िैं। जैस-े ऊंर्ा उठना िो तो कु सी
नाथ आपके पुण्य र्रण िमारे भाल पर रख दें।
साथ लेकर सीढ़ी से र्ढ़ना र्ाविए और मं जजल
मं त्रीवर सं स्कृ वत रक्षक थे, नरमुं डों पर नं गे पैर
पर पहुंर् कर अपनी कु सी विकानी र्ाविए। जजस
र्लने में प्रजशजक्षत थे, उन्होंने सुरीली जी व
कु सी पर आपको बैठना िो उसके जलए यवद कोई
रसीला जी के भाल पर अपने र्रण विका वदए।
उत्सुक वदखे तो अपना दावा ठोक दें। प्रवतिंदी
कलाकार की गदचन में लोर् िो, रीढ़ में लर्ीलापन
को आप खुद निीं ठोकें । अपने र्ार लोगों को
िो, घुिनों में नम्यता िो और पववत्र र्रणों पर
इशारा कर दें। वे उसकी ठु काई करेंगे और
दृवि िो तो मं त्रीवर के र्रण तक कलाकार का
आपका जोर-शोर से समथचन भी। िर कु सी में
भाल पहुंर् िी जाता िै। सुरीली जी का भाल
जसंिासन बनने की वनपुणता निीं िोती। कु छ
र्ं दन से सुशोजभत िो मिक रिा था। यि व्यं ग्य
लोग जो अपनी कु सी को नरमुं डों और मनुष्य रक्त
आज की उस िकीकत को बयान करता िै वक
की जैववक खाद देकर पोवषत कर पाते िैं, वे
वकस तरि कलाकार (सावित्यकार) अपने भाल
अपनी कु सी को जसंिासन बना पाते िैं। कु सी की
पर र्ं दन लगवाते िैं।
प्रवतिा बनाए रखना कु सी सं योजकों के िाथ में
िैं। जजन सं योजक को कु सी जमाने की तमीज "नए देवता की तलाश" में रर्नाकार
निीं िो उनके कायचक्रमों में कु सी तोड़ने निीं मनुष्य की मतलबी आस्था पर प्रिार करते िैं। वे
जाएं । कु सी का मान रखना िो तो कु जसचयों की जलखते िैं- “मेरे जलए वनिा वनवेश की तरि िै,
आभासी कमी बनाए रखना जरूरी िै। जिां ज्ादा 'ररिनच' वदखे वनिा विां लगानी िोती
िै। एक िी देवता को समवपचत िो जाने से
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अनुनाद

अजधकतम लाभ का जसद्धांत िी लुि िो जाता िै। दस-बीस ववर्ार एक साथ और आ जाते िैं और
आपको निीं लगता वक 33 करोड़ देवता बनाकर धड़ाधड़ मेरे नाम से ि रवडच िो जाते िैं। ववर्ार,
ववधाता ने देवताओं का अवमूल्यन तो वकया िी ववर्ार िैं; उनमें ज्ञान िो यि जरूरी निीं। विर
बेर्ारे मनुष्य को भी र्करवघन्नी बना वदया। भी र्ारों वदशाओं से ज्ञान आ रिा िै और शेष
देवताओं ने बड़ा कं फ्यूजन मर्ा रखा िै। वकसी छि वदशाओं से ि रवडच िो रिा िै। इसके
के पास कु छ िै, वकसी के पास दूसरा कु छ। पूरा बावजूद मैं ज्ञान के 'ओवरफ्लो' को रोक निीं पा
पैकेज वकसी के पास निीं िै। मुझे बुवद्ध र्ाविए रिा हं। ज्ञान को रोक कर रखने में खतरा िै।
और धन भी र्ाविए। ये दोनों देवता पि जाएं तो खोपड़ीनुमा बांध कमजोर िो र्ुका िै, ओवरलोड
प्रकाशक र्ाविए। प्रकाशक देवता वमल जाए तो िोकर कभी भी िि सकता िै। वदमाग की क्षमता
आलोर्क र्ाविए। ये ररझें तो प्रजसवद्ध की देवी जसकु ड़ कर ईमानदारों जजतनी रि गई िै।
प्रसन्न िो, विर सम्मान देवता प्रसन्न िो। आप इसीजलए ज्ञान को बािर वनकालने के जलए मैंने
देजखए न, ये जो गोरखधं धा सीरीज र्लती िै सारे 'फ्लड गेि' खोल वदए िैं। ज्ञान का िर
इसमें बहुतेरे देवी-देवता लगते िैं। एक देवता के खतरे के वनशान से ऊपर पहुंर् जाए तो वदमाग
भरोसे रिकर आप जलखते िो तो जसिच जलखते िी की कच्ची पुजलया का क्या भरोसा।” सधा हुआ
रिो और अंत तक पैन पकड़े रिो। पेन को पदक किाक्ष पढ़ते हुए पाठक अपने आप पर िाँसने के
बनाने वाले देवता निीं साध पाए तो बुवद्ध की जलए बाध्य िो जाता िै।
मिादेवी की शरण में रिने से क्या लाभ!”
"लार्ार मरीज और वेंविलेिर पर
मानवीय प्रवृवत्तयों की गिन छानबीन इस व्यं ग्य
सरकारें" नामक व्यं ग्य रर्ना कोववड काल में
को अनूठा बनाती िै।
सरकारी तं त्र की िालमिोली का दृश्य सामने
"इसे दस लोगों को ि रवडच करें" रर्ना लाती िै। व्यं ग्य के तीखे तीर र्लाते हुए
में आधुवनक पीढ़ी िारा सं देशों को ‘ि रवडच’ करने रर्नाकार किते िैं वक “देश बीमार िै। जनता
की कला का उल्लेख करते हुए व्यं ग्यकार किते परेशान िै, वेंविलेिर वाला बेड ढूाँ ढ रिी िै। बयान
िैं वक “इन वदनों ववर्ारों का प्रवाि वबजली-सा आ रिे िैं वक वेंविलेिरों की कमी निीं िै। सर्
िै। मां गं गा लाशों की खदान बन गई िै, विााँ िै, तीस िजार से ज्ादा वेंविलेिर खाली पड़े िैं।
रेत उड़ती िै तो आदमी वनकल आते िैं। मैं कई मेवडकल क लेजों और जजला अस्पतालों में
व्हाट्सएप में भरी वमट्टी ििा भी निीं पाता हं वक वेंविलेिर धूल खा रिे िैं और उनके खरीदी
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अजधकारी माल पर्ा रिे िैं। पत्रकार खबरें ला िैं। उनकी मुस्कुरािि आपस में लुकाजछपी कर
रिे िैं वक वेंविलेिर भेजने वालों के राजनीवतक रिी िोती िै और वदमाग कु सी पर छलांगें भरने
खून का ग्रुप, पाने वाले राज्ों के राजनीवतक खून लगता िै।” व्यं ग्यकार आगे किते िैं-
से मैर् निीं िो रिा िै। इसजलए िलां-िलां “पावकिान जजसे लोकतं त्र किता िै विााँ की
राज्ों में नए वेंविलेिर र्ालू निीं िो पाए िैं। वे जनता उसे जोकतं त्र मानती िै, विााँ की िौज
किते िैं वेंविलेिर खरीदी का कमीशन खाए कोई उसे िट्टूतंत्र मानती िै क्योंवक विााँ की िौज को
और, और र्लाएाँ िम! ना बाबा ना, प्रजातं त्र में िट्टू र्लाते िैं। रूस जजसे लोकतं त्र समझता िै
ऐसा थोड़े िी िोता िै, तुम र्ारा खाओ तो तुम्हीं दुवनया उसे जासूसतं त्र किती िै। अमेररका जजसे
भैंस को समझाओ।” यि व्यं ग्य उत्तरोत्तर तीखा लोकतं त्र मानता िै वि गनतं त्र िै, विााँ पर सरकार
िो जाता िै और इलाज के अभाव में मर रिे लोगों और लोग बात-बात पर अपनी ‘गन’ वनकाल लेते
की बेबसी यूाँ बयान करता िै- “ववधायकों जैसे िैं। र्ीन में ढोल पीि-पीिकर प्रर्ार करने वालों
पववत्र लोग पााँ र् जसतारा िोिलों में वबकते िैं। ने लोकतं त्र को प्रर्ारतं त्र बना रखा िै। िांगकांग
वेंविलेिर र्ालू िो या बं द उन्हें क्या िकच पड़ता की जनता समझती िै वक यि उन्हें भ्रम में रखने
िै। उनके जलए लोग मरें तो मरें , कल मरना था वाला भ्रमतं त्र िै। कई देशों में कु छ-कु छ लोगों
वे आज मर गए। मरने वाले लाइलाज थे, इतने ने गैंग बना कर डैमोक्रेसी को गैंगतं त्र बना वदया
बीमार थे वक न रैली कर सकते थे न वोि दे सकते िै तो अफ्रीकी देशों में यि िेकतं त्र बन कर
थे। प्रजातं त्र में ऐसी नाकाम और मररयल जनता बदनाम िै। लोकतं त्र िर जगि मुस्थश्कल में िै और
को क्यों जजं दा रखना र्ाविए! जजनके िेिड़ों में इसके पररणाम वनदोष जनता को भुगतने िोते
दम निीं िो उनके जेब में तो दम िो। पर अब..., िैं।” ववजभन्न लोकतं त्रों की यथास्थस्थवत किता यि
न जेब का दम काम कर रिा िै न सत्ता का।” व्यं ग्य रोजमराच के व्यं ग्य लेखन से एकदम अलग
िै और पाठकों को वैजश्वक पररदृश्य से पररजर्त
"ए तं त्र, तू लोक का बन" में दुवनया के
कराता िै।
लोकतांवत्रक देशों का बखान करते हुए धमचपाल
जी ने उजर्त िी किा िै वक “लोकतं त्र बहुत "कोई भी िो यूवनवसचल प्रेजजडेंि" रर्ना
छजलया शब्द िै, यि तं त्र कभी लोक का हुआ िी में किा गया िै वक कोई भी बने अमेररका का
निीं। लोकतं त्र िमेशा सत्ता का रिा। सत्ता का रािर पवत, िमको क्या, उसे भी दोि बना लेंगे।
नाम आते िी राजनेताओं की आाँ खें िैल जाती वि भारत आएगा तो ताजमिल वदखाएं गे। उसके
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स्वागत में ि़िारों स्कू ली बच्चों को सड़कों पर जजसमें िास्य की छिा िै। “िममें से कोई भी
उतार देंगे और बता देंगे वक ये िोनिार बच्चे कु छ अथचशास्त्री निीं िै। विर भी, िम िर मिीने बजि
साल बाद वीजा लेकर अमेररका आने वाले िैं। बनाते िैं। जर्रकाल से यि बजि घािे का रिा िै
रर्नाकार ने रर्ना में व्यं ग्य कसा वक अमेररका और रिेगा। मध्यम वगीय घरों की यिी शाश्वत
के रािर पवत का काम िै अमेररका को मिान स्थस्थत िै। घािे की पूवतच के जलए ऋण देने िेतु
बनाना। इसजलए विां कभी र्तुर-बुवद्धमान िम बैंक और क्रेवडि काडच कं पवनयों के जीवन भर
आदमी रािर पवत िोता िै तो कभी र्ालाक-भोंद।ू आभारी रिेंगे। यूं तो िमारा माजसक वेतन पांर्
भारत के रािर पवत बहुत सं वेदनशील िोते िैं, अंकों में िोता िै। पर सब कि-पीिने के बाद जो
उनके ऊपर व्यं ग्य जलखने की मनािी िै। िाथ में आता िै वि र्ार अंकों में जसमि जाता
अमेररकी रािर पवत मिाढीठ िोते िैं, उनपर कोई िै। यि जसकु ड़ा आं कड़ा बताना रािर ीय शमच की
भी व्यं ग्य कर सकता िै। "समझदार को बात िै।” बजि को लेकर रर्नाकार ने आं खें
सदाबिार इशारा" किीले किाक्ष करते हुए िमारे खोल देने वाला सर् उजागर वकया िै। "िोली
जीवन में आए मूखों का वगीकरण करता िै। कथा का आधुवनक सं स्करण" नामक रर्ना में
धमचपाल किते िैं वक ज्ञानी मूखच पिले दजे के व्यं ग्यकार िोजलका के माध्यम से व्यं ग्य करते िैं।
मूखच िोते िैं। वे िमेशा ज्ञान बांिते रिते िैं। उन्हें वे किते िैं वक “जनता सुबक-सुबक कर रो रिी
कोई मतलब निीं वक कोई उनके ज्ञान के लपेिे थी। सत्य और दया की प्रवतमूवतच प्रिलाद का दैत्य
में आ रिा िै या निीं।” ज्ञानवान बनाने वाली सम्राि के िाथों मारा जाना तय था। सम्राि के
आधुवनक जशक्षा पद्धवत पर तं ज करते हुए वे किते बाहुबल से सीआईए वाले भी डरते थे। सम्राि ने
िैं- “मैकाले आए तो ज्ञान की भाषा बदल गई। प्रिलाद के मिक को वनशाना बनाया। प्रह्लाद
आश्रमों का स्थान दुकानों ने ले जलया। सारा ज्ञान जरा सा िि गया। सम्राि के मुक्के के प्रिार से
वकताबों में घुस गया। दीमकें वकताबें र्ि करने खं भे के िुकड़े-िुकड़े िो गए। िू िे खं भे से नरजसंि
लगीं, वे ज्ञानवान िो गईं, मनुष्य ज्ञानिीन िो का रूप धारण कर जनता वनकली। जनता गा रिी
गया।” यि व्यं ग्य िमारे समय के ज्ञान पर तगड़ा थी जसंिासन खाली करो वक जनता आती िै।
प्रिार िै। धमचपाल जी के व्यं ग्य ववषयों की रेंज र्ुनाव की घोषणा िो गई। सम्राि िवा में शिर
अद्भूत िै। "शमच से जसकु ड़ा घरेलू बजि" मिंगाई दर शिर छलांगें लगाने लगे। पररणाम के वदन वे
से त्रि पररवारों के बजि पर बुना गया व्यं ग्य िै

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न ववदेश में थे, न राजमिल में, वे सं सद की में जजन लोगों का जजक्र िै िंता उसी जनता में िै,
र्ौखि पर खड़े थे। तब न वदन था, न रात थी। पर उनसे बहुत ऊपर िैं। और अंत में साधारण
न ववधाता वनवमचत कोई प्राणी था, न कोई अस्त्र- जनता किती िै- िम िैं भारत के भोले लोग, िम
शस्त्र था। जनता के वोिो वगनती िो रिी थी और सब वमलजुलकर रिते िैं। यि व्यं ग्य अमीरों और
िररण्यकश्यप िार रिे थे।” पौराजणक आख्यान गरीबों के बीर् की व्यापक खाई को अपने तरीके
को समकाल से जोड़कर कथा किने के अंदाज ने से उभारता िै। "बागड़वबल्लों का नया धं धा" में
इस व्यं ग्य को यादगार बना वदया िै। सरकारी दफ्तरों की पोल खोली गई िै। रर्नाकार
किते िैं- “सरकारी दफ्तरों की र्ांदी िै, अंधेरा
"िम जीडीपी वगराने वाले" रर्ना के
िै तो सब जायज िै। काम निीं करो तो िोका-
बिाने जनता की आजथचक आधार पर नब्ज़ि ििोली
िाकी करने वाला कोई निीं िै। जजसको काम
गई िै। रर्नाकार किते िैं वक ‘वकलर’ यावन िंता
करवाना िै वि तो घुप्प अंधेरे में भी रािा ढूं ढ
लोग भारत के लोगों की सुपीररयर प्रजावत िै।
लेता िै। िर जगि अंधेरा िैलाने वाले लोग
इनका काम दजलत और साधारण जनता को
अजधक िैं, उजाला लाने वाले कम। थोड़े से लोग
न्यूनतम समथचन पर जजंदा रखना िै। ये भाग्य
जो उजाला िैलाने की विम्मत करके आते िैं,
ववधाता िैं। इनका जन्म उच्च ग्रिों की श्रेितम
अंधेरा उन्हें लील लेता िै। बागड़वबल्लों की खाल
स्थस्थवतयों में िोता िै। कोई भी पािी सरकार
बहुत मोिी िै। बेर्ारी जनता खाल किां से लाए,
बनाए, इनकी सं प्रभुता पर कोई िकच निीं पड़ता।
उसकी र्मड़ी वघस-वघसकर और पतली िो गई
बस इन्हें पुजलस और गुं डा िाइप भाइयों को
िै। बागड़वबल्लों का क्या, इनमें से बहुत-से
पालना पड़ता िै। ये िर र्ीज खरीद सकते िैं।
अपराध की दुवनया से वनकलकर सुरजक्षत स्वगच
ये िर ववर्ारधारा और सं स्कृ वत को वगरवी रखकर
की तलाश में राजनीवत में घुस आए िैं। वे जिां
आगे बढ़ सकते िैं। िर राजनेता और अजधकारी
जो वदखा अपना समझकर िड़प लेते िैं और पर्ा
का माके ि रेि इन्हें मालूम िोता िै। ... इनके
जाते िैं। भय, भ्रम और अंधेरे के मािौल में खड़ी
कु छ लोग सरकार बनाने, विलाने और वगराने में
जनता अपने समय के इं तजार में िै।” इस तरि
पारंगत िोते िैं। ये बड़े राज्ों की राजधावनयों में
व्यं ग्य अपने समय का आईना बन जाता िै।
पांर् जसतारा िोिल बनवाते िैं। विां ववधायकों
का ब्रेनवाश गारंिी से वकया जाता िै। ... सरकारी रर्नाकार धमचपाल मिेंद्र जैन िर क्षेत्र में
तं त्र वकलर वगच का गुलाम िोता िै।... सं ववधान व्यं ग्य के जलए एक जाना पिर्ाना नाम िै। "श्रेय
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लेने की मिावप्रय परंपरा" रर्ना को भी उन्होंने दीवाली पर र्ािे िेिड़ों का दम वनकल जाए पर
मिान बना वदया िै। सरल अंदा़ि में बात शुरू पिाखे छोड़ने से बाज निीं आते। िम वदल्ली
िोती िै- “कल मेरे पड़ोसी के यिां र्ोरी िो गई। वाले, िम वदल वाले िैं, भगवान भरोसे रिने के
पत्नी जी को अपार िषच हुआ, बोलीं अच्छा हुआ आदी िैं। अस्पताल में बेड खाली निीं िोंगे तो
वि दोनों िाथों से समेि रिा था, आज जसमि क ररडोर में पड़े-पड़े इलाज करा लेंगे और वबना
गया। पत्नी जी घर-घर जाकर यि घिना आं खों िेिड़ों के भी अपनी जजंदगी जी लेंगे।”
देखे िाल की तरि बयां कर रिी थीं। मुझे डर शवक्तशाली लोगों से भरी वदल्ली की बेर्ारगी पर
लगने लगा वक मोिल्ले वालों से प्रशं सा पाने के इससे अजधक क्या व्यं ग्य िो सकता िै!
जलए र्ोरी का श्रेय वि खुद न ले लें। मैंने किा
“सं स्कृ वत के नशीले सं स्कार" पजिमी
भी- तुम जजतनी खुश िो रिी िो उतने खुश तो
सं स्कृ वत में गांजा पीने पर िै। “कै नेडा और
र्ोर भी निीं िोंगे। किीं सं देि में पुजलस तुम्हें
अमेररका की ठं डी िवा में मीठी-मीठी खुमारी िै।
वगरफ्तार न कर ले। वे निीं मानीं, न मानना
प्राणवायु के साथ लोगों को मैरेवाना और गांजे के
उनका स्वभाव िै। वे प्रसन्न थीं वक र्ोरों ने माल
धुएं का लुत्फ मुफ्त वमलता िै। यिां भारत जैसा
बिोरा और उन्होंने मोिल्ले में श्रेय।” रो़ि-रो़ि
भेदभाव निीं िै वक नशीले पदाथच खाना-पीना िो
की सामान्य बातें जब घने व्यं ग्य में बदल जाती
तो युवा विल्म स्ट्ारों के ि मच-िाउस में गुपर्ुप
िैं तो बरबस धमचपाल जी के व्यं ग्य कौशल की
पहुंर्ो। यिां की उदार और सविष्णु सरकारों ने
दाद देनी पड़ती िै। "वदल्ली िै वबना िेिड़ों
गांजे-भांग की प्रजावतयों कै नबस और मैरेवाना के
वालों की" वदल्ली में प्रदूषण की समस्या पर
सेवन को वैध बना रखा िै। लोग खुलआ
े म पि
तीरनुमा प्रिार करता व्यं ग्य िै। धमचपाल जी बताते
पीते िैं, ऑइल लेते िैं, बीज खाते िैं और मि
िैं वक “वदल्ली में सबसे ज्ादा न्यायाधीश रिते
रिते िैं।” वे व्यं ग्य करते किते िैं प्रजा को नशेड़ी
िैं, सबसे ज्ादा सांसद िैं, सबसे ज्ादा
बनाकर रखो तो सरकार का वनठल्लापन छु प
आईएएस रिते िैं और सबसे ज्ादा मूखच! वे जजस
जाता िै। कै नबस और मैरेवाना अब कै नेवडयन व
वदल्ली में रिते िैं विीं की िवा को जिरीली और
अमेररकी सं स्कृ वत के आधुवनक सं स्कार िैं। इनके
दमघोंिू बनाते िैं और खुश िोते िैं। वे ववषैली
अलावा अन्य व्यं ग्य रर्नाएं ‘वदमाग अपना िो या
िवा में भी सांस लेकर जजं दा िै। जीवं त गैस
दूसरों का’, ‘वाि-वाि सम्प्रदाय के तब्लीवगयों
र्ेम्बर में रिते हुए भी उफ्ि तक निीं करते िैं।
से’, ‘ऐसे साल को जाना िी र्ाविए’, ‘िाईकमान
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के शीश मिल में’, ‘बेरोजगार ववपक्षी जी’, और भेवड़ए" पुिक की ववववधरूपेण रर्नाएं
‘वडमांड ज्ादा, थाने कम’, ‘वकसी के बाप का ववषमताओं, ववसं गवतयों से जूझते जनमानस की
किीर थोड़ी िै’ और ‘र्ापलूस बेरोजगार निीं भाव र्ेतना को अवश्य िी झकझोरेगी और सुकून
रिते’ ऐसी रर्नाएं िैं जजनमें नुकीले, तीखे, भी देगी। ऐसी रर्नाओं को पाठक जशरोधायच
दुधारी तलवारनुमा व्यं ग्य िैं, जजन्हें आप एकबार करेगा िी। इसके जलए धमचपाल मिेंद्र जैन जी को
पढ़ने लगेंगे तो यि पता िी निीं र्लेगा वक वदन अनं त शुभकामनाएं । मुझे उनकी अगली व्यं ग्य
से रात कै से िो गई। रर्ना का बेसब्री से इंत़िार रिेगा िी।

"भीड़ और भेवड़ए" नामक इस रर्ना में


व्यं ग्यकार धमचपाल मिेंद्र जैन ने 52 छोिे -बड़े ऐसे
समीजक्षत कृ वत: भीड़ और भेवड़ए
व्यं ग्यों को वपरोया िै, जो राजनीवत के छोंक के
कृ वतकार: धमचपाल मिेन्द्र जैन
साथ र्िपिे व मसालेदार िैं। अजधकांश रर्नाओं
में राजनीवत आ जाने से जसद्ध िोता िै वक आज प्रकाशकुः भारतीय ज्ञानपीठ और वाणी
राजनीवत ने बहुत गिरे तक अपनी पैठ बना ली प्रकाशन
िै। इससे घर पररवार भी अछू ते निीं रिे िैं। आज पृिुः 136 मूल्युः 260/-
ववश्व पिल पर स्वाथच पूणच राजनीवत जीवन के िर
***
पिलू में साि नजर आती िै। रर्नाकार की नजर
से सामूविक मुद्दे भी अछू ते निीं रिते। "भीड़ और
भेवड़ए" में कोववड की भयावि त्रासदी में मरीजों
की दुदचशा, सरकार की ढु लमुल नीवत,
अथचव्यवस्था पर दुष्प्रभाव सभी का उल्लेख करते
हुए पाठकों का ध्यान रर्नाकार ने सलीके से
अपनी ओर खींर्ा िै। लगभग िर रर्ना का
शीषचक र्यन, रर्नाकार की पैनी दृवि को दशाचता
िै। वकताब का शीषचक "भीड़ और भेवड़ए"
देखकर िी पाठक पुिक पढ़ने को लालावयत िो
जाता िै। मेरा शत-प्रवतशत ववश्वास िै वक "भीड़
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में सिल रिे िैं। लेवकन उतना निीं जजतना उन्हें


विन्दी सावित्य और न्यू मीवडया
िोना र्ाविए। पुिक का प्रर्ार लेखक अपने दम
पर करता िै। यि प्रकाशक का भी काम िै। कु छ
दे वेश पथ साररया से मेधा नैलवाल का
प्रकाशक इसे ठीक से करते िैं लेवकन ज्ादातर
साक्षात्कार निीं।

मेधा : प्रर्ार एवं वबक्री के नए मं र् न्यू मीवडया


मेधा : विंदी सावित्य और न्यू मीवडया के सं बं ध
ने तैयार वकए िैं। इस पर आपके क्या अनुभव
को आप वकस तरि देखते िैं ?
िैं?

दे वेश : विंदी सावित्य का न्यू मीवडया से सं बं ध


दे वेश : जैसा मैंने पिले किा- अभी गं भीर
इस बदलते तकनीकी युग में लगभग दशक भर
सावित्य को अपने प्रर्ार म डल पर और काम
पिले र्ीन्ह जलया गया था। इसमें अप्रत्याजशत
करने की ़िरूरत िै। उनके पाठक मौजूद तो िैं
प्रगाढ़ता कोववड काल के दौरान आई िै।
लेवकन उन तक प्रकाशक अभी पहुंर् निीं पा रिे
िैं।
मेधा : सोशल मीवडया पर लेखकों की उपस्थस्थवत
मेधा : लेखक, प्रकाशक और पाठक वकताब की
से पाठकों की सं ख्या पर क्या प्रभाव पड़ा िै ?
इस आधारभूत सं रर्ना में न्यू मीवडया ने नया क्या
जोड़ा िै ?
दे वेश : मुझे लगता िै वक सोशल मीवडया से
आधार बनाने वाले कववयों को सबसे अजधक
दे वेश : विंदी का आम लेखक जो अब तक
लाभ हुआ िै। लेवकन यि लाभ के वल पिर्ान
पोस्ट्र, रील, लाइव जैसे शब्दों से अनजभज्ञ था,
का िै, आजथचक निीं िै। कववता पुिकों की वबक्री
वि अब इन्हें बहुत सिजता से लेने लगा िै। यिां
में कोई बहुत िकच निीं पड़ा िै। यवद सोशल
तक वक िेसबुक भी कु छ लोगों के जलए बहुत
मीवडया से आजथचक लाभ वकसी तरि के लेखकों
जविल प्लेििामच हुआ करता था। लेवकन बदलते
को हुआ िै तो वि तथाकजथत 'नई विंदी' के
वक़्त ने उसे लोगों के जलए जरूरत बना वदया िै।
लेखकों को हुआ िै।
सावित्यकार भी इसके अपवाद निीं िैं।
मेधा : सोशल मीवडया पर आपकी उपस्थस्थवत का
मुख्यधारा के गद्यकार (नई विंदी से इतर) कु छ
आपकी रर्नाशीलता पर क्या प्रभाव पड़ा िै ?
िद तक पाठकों को अपनी वकताबों तक ले जाने

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दे वेश : मेरे जलए सोशल मीवडया पर उपस्थस्थत सहजलयत के आधार पर प्रकाजशत कर सकते िैं।
रिना एक सं तुलन बनाए रखने का प्रयास िै। एक बात मैं जोड़ना र्ाहंगा वक अजधकतर
बतौर लेखक मेरी पिली कोजशश तो यिी िोती ऑनलाइन माध्यम अभी एक या दो व्यवक्तयों के
िै वक मैं िेसबुक की 'मांग और आपूवतच' श्रृंखला प्रयास से र्ल रिे िैं इसजलए उनके पास वकच लोड
का जशकार ना िो जाऊं। मैं उन कववयों में से बहुत िो जाता िै। सं पादक के व्यि िोने पर
निीं िोना र्ािता जो रोज एक कववता जलखते कभी-कभी काम इसीजलए ठप भी पड़ जाता िै।
िैं। मुझे उनसे जशकायत निीं जो ऐसा करते िैं यवद सं पादक मं डल में र्ार-पांर् सावित्यकारों को
लेवकन मेरी अपनी शैली उस तरि के लेखन के जोड़ा जाए तो मुख्य/प्रधान सं पादक को
अनुरूप निीं िै। मेरी एक अन्य कोजशश औसत सहजलयत रिेगी और रर्नाकारों को भी अजधक
लेखन के प्रभाव से बर्ने की िोती िै। मौका वदया जा सके गा। नए रर्नाकारों के जलए
तो यि वरदान िोगा क्योंवक वप्रंि पवत्रकाओं में
एक और वबं दु जजससे बर्ना र्ाविए वि सावित्य उनके प्रकाजशत िोने के अवसर कम िोते िैं। कई
की िुच्ची राजनीवत िै। इससे िमेशा बर्ना सं भव बार नए रर्नाकार के पास भी इतना सब्र निीं
निीं िो पाता। तो इसे मैं अपनी कमी के तौर पर िोता वक वि अपनी अप्रकाजशत रर्नाओं को वप्रं ि
लेता हाँ वक मैं सं वेदनशील िोकर कभी-कभी पवत्रका के पास साल भर रखा छोड़ सके ।
इसका जशकार िो जाता हाँ।
मेधा : इन प्रश्नों के अवतररक्त कोई ववशेष
मेधा : विन्‍ददी की ई-मैग़िींस और मित्वपूणच अनुभव आप साझा करना र्ािें।
ब्जल ग्स पर प्रकाशन के अपने अनुभव साझा करने
की कृ पा करें। दे वेश : जैसे-जैसे समय आगे बढ़े गा, ऑनलाइन
माध्यमों का मित्व भी बढ़ता जाएगा। आने वाले
दे वेश : मुझे लगता िै वक ई- मैग़िींस और ब्ल ग्स दशकों में तो विी मुख्यधारा िो जाएं गे। इसजलए
के ऊपर रर्नाएं प्रकाजशत करने की कोई बं वदश ़िरूरी िै वक ऑनलाइन माध्यम (वे वेबसाइि भी
निीं िै। ऐसा निीं वक िर मिीने अंक लाना िै जो भववष्य में अस्थित्व में आएं गी) अपनी
या िर रोज एक रर्नाकार को प्रकाजशत करना जजम्मेदारी को भली-भांवत मिसूस करें और
कोजशश करें वक सं कु जर्त स्वाथों से दूर रि सकें ।
िै। इसजलए ऑनलाइन माध्यम वकतनी भी कम मठाधीश िोने की लालसा से बर्ा रिना जरूरी
या अजधक रर्नाएं गुणवत्ता और सं पादक की िै।

75
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद

प्रकाशकीय वववरण अनुनाद के जून 2024 में प्रकाश्य अगले अंक


के जलए रर्नाऍं आमं वत्रत िैं। आप कववता,
प्रकाशक
किानी, आलोर्ना/समीक्षा, कथेतर गद्य और
मेधा नैलवाल
समाज और सं स्कृ वत जुड़े आलेख िमें
medha.nailwal.anunad@gmail.com
medha.nailwal.anunad@gmail.com पर
medhanailwal@anunad.com
भेज सकते िैं।

प्रकाशकीय पता रर्नाएं यूनीकोड ि न्ट में िी प्रेवषत करें।


िारा प्रो. जशरीष मौयच, वसुन्‍दधरा ।।।, भगोतपुर
तवड़याल, पीरूमदारा, रामनगर, जजला- नैनीताल
(उत्तराखं ड) वपन- 244 715

मुख्य सम्पादक
जशरीष मौयच
shirishmourya@anunad.com

सम्पादक
मेधा नैलवाल
medhanailwal@anunad.com

परामशच मं डल
िरीशर्न्‍दद्र पाण्डे (सं रक्षक)
harishchandrapandey@anunad.com
लीलाधर मं डलोई
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सुबोध शुक्ल
subodhshukla@anunad.com

76
जनवरी- मार्च 2024

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