Professional Documents
Culture Documents
अनुनाद TP जनवरी-मार्च 2024
अनुनाद TP जनवरी-मार्च 2024
अनुनाद TP जनवरी-मार्च 2024
मे धा नैलवाल
अनुनाद
अनुक्रम
• कववता
8. सर्ेद धुुं आ बन जाने से पहले, वह जी
1. सबको अपने विस्से की धूप र्ाविए/
लेना चाहता हो हर रुं ग/रं जना
कौशलेन्द्र की कववताएं /पृ. 02
जायसवाल की कववताऍं /पृ. 38
2. बनारस पर कववताएं /के शव शरण की
9. कै सी रिी िोगी वि भूख,कै सा रिा
कववताएं /पृ. 09 िोगा वि अभाव/ मिेश पुनेठा की
3. वमलती रिी मं ज़िलों की खबर ग़म-ए- कववताएं /पृ. 46
दौरााँ की उदाजसयों से भी/ शुभा विवेदी
• किानी
की कववताएं /पृ. 21
4. डाली पर झुका गुलाब तुम्हारी स्मृवत में 10. प ं र् लघुकथाएं /सुनील गज्जाणी /पृ.
1
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
खुली छू ि जाए
सबको अपने विस्से की धूप र्ाविए
उसके पन्ने सााँ स ले सकें
कौशलेन्द्र की कववताएं
उनकी मिक वबखरे
कलम से जलखूाँ
छद्म थोड़ी रोशनाई िाथों में लग जाए
किीं वकसी जगि कोई वतचनी रि जाए
रात की स्यािी में र्ााँ द पढ़ने वाला मुस्कुरा उठे उसके अथच में
र्ं द्रवबं दु के समान र्मक रिा था तैयार िोते कमी़ि की एक बिन खुली बनी रिे
अनवगनत तारे अनं त आकाश किीं कोई प्यार से िोक दे
़िमीं पर दूर तक िैली रेत घर से वनकलूाँ ये न सोर्ूाँ वक किीं कु छ छू ि गया!
रेत के पिाड़ वकसी पुराने साथी से वमलूाँ बवतयाता रहाँ
रेत की घावियााँ देर िो जाए
जछिक र्ााँ दनी में रेत के कण विमविमाते तारों से भरे आकाश को देखते नींद वबसर जाए
ज्ों ववशाल मरुभूवम में तारक उतर आए िों
किीं छाया किीं कांवत रि जाने में जीवन रिता िै।
भ्रम के सरोवर वदखाई देते....... ***
2
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
नींद की किावनयां रंगे र्ुं गे घरों में भी दीवारें छीज उठती िैं सीलन
से
किावनयााँ नींद को दी गयी सदाएाँ िैं बरसात के बाद
शुरू िोते िी झपने लगती िैं पलकें
किने वाले के लफ़़्ि थपकी सी देते िैं दुुः ख जीवन में इतनी िी सिजता से
इस तरि ताल में जैसे सााँ स र्लती िै लौिता िै .....बार बार
वदल धड़कता िै ***
इन जुगलबं वदयों से रक्त में घुलने लगता िै आलस
आाँ खों में उभरते िैं लाल डोरे बं धन
ख़मीर की तरि उठ आता िै नशा
नींद को आवा़ि देते विदायतों ने जीवन को
अक्सर अधूरी छू ि जाती िैं किावनयााँ उस समय तक बांधे रखा
सुनाने वाला खीझता निीं जब तलक कु छ िाजसल न था
मुस्कुरा उठता िै कु छ पा लेने की ख़ुशी में
उन्हें िू िना था
उनींदे वकस्सों की दोिर से
नींद के पााँ व छोिे िी रिते िैं िू िने छू िने के बाद
*** पूछना भी छू ि गया
इस भ्रम में वक अब उनकी जरूरत निीं,
दु:ख जिग्धता जो िर ़िरूरी बात में
िोक देती
जखली धूप में सिसा मेघ वघर आते िैं अजजचत की गयी योग्यता के ताप में
़िोर से िाँसते सूख र्ली
थोड़ी सााँ स िूल आती खााँ सी का ठसका उठता
जखलजखलाते बच्चे खेल में िी एक ऊब सी उठती
वबलख उठते िैं कभी सब कु छ अपने मन का करते,
लगातार श्रम से सजाए गए बाग़ीर्े ये एिसास देर से हुआ.......
वीरान लगते िैं वकसी मौसम में,
3
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
4
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
5
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
6
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
7
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
घने लोगों के बीर् छाए गुबारों का बहुत दूर की ररश्तेदार थी जो कभी किीं वकसी
वक ज़िंदगी रो़ि
दूर तक वबखरा हुआ िपक पड़ती
एक धुआाँ िै भीनी मुस्कान ठिर जाती
बस धुआाँ ...... क्षण भर के जलए
*** विर आाँ सू ढरक आते
कोई नाम भी आ जाता ़िबान पर
वडमेंजशया(मस्थिष्क की व्याजध)
जीवन किीं
उसे आईने में अपना र्ेिरा अजनबी वदखता बहुत पीछे छू ि गया था
वो ख़ुद से िी कु छ पूछना र्ािती वो मृत्यु से थोड़ा पिले मरकर
पर शब्द किााँ रि गए थे! बीत र्ुके की कृ तज्ञता में
मुाँ ि घुमाकर देखती जीववत थी
वबिर के र्ार पाए उसे बौनों की तरि जर्ढ़ाते ***
शुरू में र्ीख पड़ती
अब वो भी किााँ याद था ! उत्तरायण
उठती तो खड़ी रिती
र्लती तो र्लती िी पतं गों से भरे आकाश में
देर तक अवनजित िर रंग की पतं गें िैं
र्ेिरा वकसी मरुस्थल की रेतीली भूवम जजसमें यूाँ नीली विताब के
कु छ जसलविें पड़तीं, वमि जातीं रंगीन पन्ने
वो ऐसे देखती िवा से िड़िड़ाते
जैसे कोई जशशु देखता िै जछिक जाते
उसकी आाँ खों का सूनापन अंधेरे गिरे कु एाँ की
तरि डरावना था दूर जक्षवतज में
जजसमें बरसों से वकसी ने न झााँ का धुं ध सी जसमिी िै
याद अब वकसी ने बुिारकर लगाया िो जैसे
आज के जलए
8
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
9
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
10
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
11
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
12
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
13
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
14
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
15
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
16
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
17
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
18
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
िो गये आइए
िम सब वमलकर
और विर उसकी मदद करें
कु छ ऐसा हुआ वक खोजने में !
काशी के घािों से गया
वमत्र वरुणा ति : शास्त्री घाि
विर काशी के घािों पर इस नदी को
लौि आया बहुत पिले र्ाविए था
ऐसा घाि
काशी के घाि निीं बदलेंगे खुले नाट्यांगन-सा
लेवकन काशी के घाि और ववराि
क्या देंगे वकसी को ? जो इसे अब वमला िै
र्मकीले, जर्कने पत्थरों का
अिसोस, यि भव्य कलात्मक ठाठ
आदमी को जब यि कर रिी िै
मिी और मुवक्त के अलावा भी अपना अंवतम लिर-पाठ
कु छ र्ाविए
जजसे वि मुम्बई के समुं दर ति पर लेवकन, र्लो वक इसके बाद
छोड़ आया कम से कम यि घाि
19
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
20
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
21
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
उठते बढ़ते िदमोुं िे बीच ससमटती रही सज़ुं दगी टुं ग जाते हैं बसोुं, मेटरो, ऑटो और साइकिलोुं िे
हत्ोुं से
जादू और कतसलस्म से भरी दुकनया में खलती रही
शहरोुं िे किनारे र्ूट पड़ते हैं
िमी सूरज िी।
दूर दराज़ से बसोुं, टर िोुं, टरेनोुं, टेम्पो से
सज़द थी खुद से खुद ति पहुँचने िी
आयाकतत
कमलती रही मुं सज़लोुं िी खबर ग़म-ए- दौराँ िी र्ल-सल्कजज़योुं, भीड़, सामान और
उदाससयोुं से भी
22
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
23
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
और अपने ईमान पर तमाम चोटोुं सज़ल्लतोुं िो अपनी धमकनयोुं में अपनी कमट्टी से
24
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
डाली पर झुका गुलाब तुम्हारी स्मृवत में अपेजक्षत था उसका उजला िोना
जखला िै
बसं त के माथे पर जखलते िूलों को देख लौिने के सभी उपक्रमों में ज़्यादा निीं
सारी वगलिररयााँ किीं निीं जाती कोई सपना आाँ खों से बि वनकलता
डाली पर झुका गुलाब तुम्हारी स्मृवत में जखला िै पुकारे जाने के जलए ़िरूरी था
कााँ स जं गल में जखले या आाँ खों में कोई न सुने तो अके लापन
25
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
26
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
तावक अिसास न िो ़िरा भी उसे अपने सूने िोठ धीरे से बुदबुदाते उठते िैं
कानों का
“करम गवत िारे निीं िरे “
पर लगाते िी िाथ वि र्ेतन िो उठी
मैं उसके र्ेिरे को देखती हाँ और आाँ खों की कोरों ववस्थापन उनके विस्से भी आता िै
को
वे एक जगि से दूसरी जगि के बीर् की दूरी में
छु पाते हुए कोई पुराना विस्सा सुनाती हाँ
तय करती िैं सवदयों का िासला
वो मुस्कुराने भर का सुन लेती िै मेरी बात
ख़ाली कि देने से ख़ाली किााँ िोता िै कु छ
और अपनी वठठु री उाँ गजलयों से छू ती िै अपने नं गे
रात के गिन अंधकार में जब सो जाता िै
कान
अजधकांश
एक आाँ सू ढु लक पड़ता िै उसकी आाँ ख से
तो सपने वनकल पड़ते िैं नींद की यात्रा में !
***
27
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
बुं द िर कदया
िईओुं िी िचड़ा गाडी ने वा़िई म ल िे हर माल ने लूटा
28
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
छोटे थानेदार ति ने
बर्ीले, कदन िो तब्दील िर देगा
बढ़ा दी ररश्वत िी रिम
चमिते हुए, सूरज िी खनखनाती हुई
इधर कविाकपत पक्षी
रोशनी में
जो खाली जगहोुं पर अुंटिे थे
चकित हुए बगैर तुम्हारे नाम िे
जब सखुं चने लगीुं दीवारें
कबना तुम्हारे नाम िा
इदफ कगदफ
दरअसल, शहर िी िोई गीत?
हर ज़मीन िी एि िथा थी
***
वे सब किसी न किसी िी सुं पकत्त थीुं
कबिाऊ थीुं
शतें, व़िूद और सं शय में प्रेम
उन्हें बसना था
उनिे खाली रहने में िहीुं न िहीुं क्यूँ नहीुं है, मेरी सुबह, मु़िम्मल
एि उजाड़ था
खुलूस भरी
लेकिन, यह क्या हुआ?
हाससल िर लेने िे बाद तुम्हें
शहर से गुज़रना
तो ससर्फ तुम्हारी याद से गुज़रना
था………….
र्तह िर लेने िे बाद तुम्हें
***
कौन सा गीत? तुम्हारे दफ्तर चले जाने िे बाद
29
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
30
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
बर्ने के तमाम उपाय अंततुः पराजजत करने वाले शोर से भरी पृथ्वी पर ककच श िै सं गीत जो इन
िैं वदनों
बढ़ा देता िै धड़कन की गवत
बेर्ैन मन को शांवत र्ाविए जो मुस्थश्कल से
कवव बर्ना निीं र्ािता पिाड़ से वगरना र्ािता वमलती िै
िै
पूरी पृथ्वी पर िैल जाने के जलए ऐसे में तुम कै से बर्ा कर रखती िो अपनी
बनकर भाप वपघल कर पानी आवा़ि
*** अपना सं गीत
ओ रामज्ोती देवी!
लोकगीत तुम कै से बर्ा पाओगी अपना लोकगीत!
(रामज्ोती दे वी के जलए) ***
31
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
िोन नं बर
(वपता के जलए ) विलिाल तो उसके िाथों में लग गया िै
जससौंण
वपता को गए र्ार साल िो गए
िरर मृदल
ु की कववताएं
अब न उनकी आवा़ि सुनाई पड़ती िै
न मैं कु छ पूछ पाता हाँ वक कै से िैं बौज्यू
वे इस पृथ्वी पर निीं रिे
उनका नं बर लेवकन मेरे िोन में अब भी मौजूद कब से कि रिे थे वक
िै गांव ले र्लो
ले र्लो गांव बस एक बार
नं बर के साथ उनकी तस्वीर भी िै जो इसे मेरी आजखरी बार की िी यात्रा समझो
खींर्ी थी कई साल पिले लेवकन निीं सुनी वकसी ने
पिले अक्सर बात करता तो नं बर सामने िी रिता एक निीं मानी
कांपता िै कलेजा अब बौज्ू बड़बड़ाते रिे
अगर वनकल आये नं बर सामने खुद से बातें करते रिे
उस नं बर को वमिाने की विम्मत निीं हुई बात निीं समझी वकसी ने
जब कभी उनका नं बर वनकल आता िै तो
यिी लगता िै वक तो एक वदन सुबि-सुबि वनकाली बौज्ू ने
अगर िोन लगा वदया तो वकतनी तकलीि िोगी एक बहुत पुरानी एलबम
जब उधर से वपता निीं देर तक एक-एक तस्वीर वनिारी
वकसी और की आवा़ि गूं जेगी आजखरकार खोज िी जलया पिाड़ की धार में
वि नं बर वकसी और का िो र्ुका िोगा खड़ा
यि तय िै बाि जोिता वि पुश्तैनी घर
लेवकन मन निीं मानता पुरखों का घर!
जैसे मन निीं मानता वक आि! आं खों में आ गई एक अलग िी र्मक
वपता निीं रिे! उन्होंने एकबारगी इधर-उधर देखा
*** विर र्ुपके से इस घर की सांकल खोली
32
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
अब सभी ढूं ढ़ रिे वक किां गए बौज्ू 14. बौज्ू – कु माउं नी में वपता को बौज्ू
33
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
सड़ र्ुके दरवाजे
इस बार तो वववडयो िी बनाकर भेज वदया जगू मैं देख रिा था वववडयो में वक
ने कोई असर निीं पड़ा गुवन-बांदरों पर इस िांक
जगू मेरा र्र्ेरा भाई – जगदीश का
34
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
इस बं बई में िम भी एक तरि से
***
इतने-इतने गिने
मैं वववडयो में बड़े गौर से देख रिा िजारों कनिूल-िजारों गिने
गांव के गुवन-बांदरों को
35
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
वे पररवार
बस सांय-सांय िै...!
एक पेड़ था ***
िंस - परान
छाया देता - िवा देता - झपकी वाली नींद देता वि पैतृक घर भी िो र्ुका अब क्षीण-जजचर
वगरवा वदया इसे भीमकाय जेसीबी मशीन से उसी ओर उड़ पड़ने को िैं िंस-परान
***
कबखरे घमाते
सेमल िे र्ूल
अलसाये उनीुंदे
कर्र भी मुस्कुराते
सेमल िे र्ूल
लाल इतने
38
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
मानो सड़ि िी
थि िर गाकड़योुं िा िोलाहल
39
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
भागती सजुंदकगयाँ
*** वह सड़िोुं पर
उनिे घर िे पुरुष
मानो चेताना चाहते हैं उसे उसिी तकपश में तपने िे सलए
***
42
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
उसिी उुं गसलयोुं में समाकहत हो जाता बड़ी-बड़ी िजरारी आँ खोुं में
43
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
उन धागोुं िो क्योुंकि…
***
44
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
अपने जज्बातोुं िो
सचमुच…
45
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
दूसरी सुबि जब
बसं त वन में िािाकार
पता र्ला वक धूप से मुरझाकर
46
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
काकड़, घुरड़,मलपुशी,शावक.…
इतना कोमल
िर सहृदय को
48
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
मुिल्ले में वकसी का कोई काजकाम िो उसके पास किने के जलए कु छ न कु छ रिता
िै
या वकसी का कोई वनमाचण कायच र्ल रिा िो
र्ािे कु छ भी न िो पता
यि किने में देर निीं लगाता वक
तब भी तुक्के मार देता िै
जब भी कोई आजथचक जरूरत िो
वकसी भी व्यवक्त या स्थान की बात िो रिी िो
जरूर बताना
उसके साथ अपना पुराना पररर्य जोड़ देता िै
मेरे पास तो लाख दो लाख िर समय जेब में
रिते िैं जजस मिविल में खड़ा िो जाय
यि जानते हुए भी
49
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
वक झूठ बोल रिा िै उससे वमलती िैं इसकी बहुत सारी आदतें
विल्म में भी निीं बोल पाता िोगा डर लगता िै इसके आत्मववश्वास को देखकर।
या तो मूखत
च ा से पैदा िो सकता िै
या धूतत
च ा से
50
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
प ं र् लघुकथाएं
"तो क्या यि देखने के जलए तब तक ज़िंदा रिना
र्ािोगे?!"
सुनील गज्जाणी
पानी
"अच्छी र्ुिकी ली िै तुमने, काश ऐसा िोता वक
उम्र अपने विसाब से जी जाती!"
"यूाँ एक िक क्या आकाश को ताक रिे िो?"
" िम्म्म, खरी बात! आसमान की तरि िै, कु छ
"निीं, बादलों को!" तय निीं करता वक, किााँ ज़्यादा बरसना िै, किााँ
कम!"
"मगर आकाश तो एक दम सूखा िै रेवगिान की
तरि!" तभी बहुत ते़िी से एक मोिर साइवकल उनके
पास से िरचरािें से वनकला धूल का गुबार उड़ाते
"िमारे खेतों-सा भी तो तुम कि सकते िो!"
हुए!
"िााँ , सिी किा तुम ने! सिार्ि ना आकाश
"नयी मािी का जोश देखा, कै सा वनकला! "
अच्छा लगता िै ना खेत!"
"िााँ ! अपनी काया की मािी भी कभी ऐसी थी,
"जलजछया, अपनी ज़्यादा उम्र तो आकाश को
मगर इतनी ति़िीब वबसराये निीं थी!
वनिारते हुए िी बीती िै और...!"
"देखते-देखते वकतना कु छ बदल गया बस अपनी
"और लगभग अपने सूखे खेतों को भी !"
आस िी निीं बदली....!" अगले शब्द रूधे गले
िड़मान की यि बात सुन जलजछया जखलखला में रि गए और एक िक वावपस आसमान तकने
पड़ा! दोनों अपने-अपने सूखे खेतों को देखते हुए लगा!
बातें कर रिे थे!
"क्या तुम्हारे यूाँ दुखी िोने से बादल बरस पड़ेंगे?!"
"जलजछया क्या िम अपनी इस बर्ी उम्र में अपने
"निीं! मगर मेरे दुखी मन से आाँ खें तो बरसेगी
खेतों को लिलिाते हुए देख पाएं गे?!"
ना!"
51
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
"सब वकस्मत की बात िै, र्ल ििािि बतचन ''देखा था ! तेरी ज़िद ऐसे कपड़ों की िी थी ना
साि कर और भी काम अभी करना पड़ा िै।" जन्मवदन पे ! मगर तुझे पता िै अपनी िैजसयत
इतने मिंगे कपड़े खरीदने की थोड़ी ना िै तो मैंने
मााँ -बेिी बतचन मांजते हुए बातें कर रिी थीं। ..!''
52
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
***
***
53
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
मकान मालवकन (रोऑल्ड ढल)Roald चल पड़ा। वह पहले िभी बाथ नहीुं आया था।
वह किसी ऐसे िो नहीुं जानता था जो वहाँ रहता
Dahl
हो। लेकिन लुं दन में मुख्यालय में कमस्टर
ग्रीनस्लेड ने उसे िहा था कि यह एि शानदार
विंदी अनुवाद : श्रीववलास जसंि
शहर था। “अपने रहने िी जगह खुद तलाशो,”
कबली वीवर लुं दन से अपराह्न वाली धीमी गकत उन्होुंने िहा था, “और कर्र जब ठीि से
िी रेलगाड़ी से, रास्ते में ल्कस्वुंडन में गाड़ी बदलता व्यवल्कित हो जाओ तो शाखा प्रबुं धि िे पास
हुआ, यात्रा िरिे आया था। सजस समय वह जा िर ररपोटफ िरो।”
बाथ पहुँचा राकत्र िे नौ बजे िे आसपास िा कबली सत्रह साल िा था। वह नेवी जयू रुंग िा
समय हो रहा था और ससतारोुं भरे साफ आिाश नया ओवरिोट, नया कटर ल्बी हैट और भूरे रुंग िा
में चाँ द स्टे शन िे प्रवेशद्वार िे सामने वाले मिान नया सूट पहने हुए था तथा बहुत अच्छा महसूस
िे ऊपर कनिल रहा था। किुं तु माहौल मारि रूप िर रहा था और सड़ि पर र्ु ती से चल रहा था।
से ठुं डा था और हवा उसिे गालोुं पर बर्फ िी आजिल वह हर िाम र्ु तीले तरी़िे से िर रहा
िटार िी भाँ कत पड़ रही थी। था। वह इस कनणफय पर पहुँचा था कि फु तीलापन
“एक्सक्यूज़ मी,” उसने िहा, “ क्या िोई सस्ता सभी सर्ल व्यवसाकययोुं िी सामान्य कवशेषता
होटल है जो यहाँ से बहुत दूर न हो?” है। मुख्यालय िे बड़े लोग जादुई रूप से हर
समय र्ु तीले रहते थे। वे लोग अद्भतु थे।
“बेल एुं ड डर ैगन में िोसशश िरो,” िु ली ने सड़ि
िे एि ओर सुं िे त िरते हुए िहा।“वे तुम्हें ठहरा चौड़ी सड़ि पर िोई दुिान नहीुं थी और जब
सिते हैं। वह यहाँ से एि चौथाई मील िे ़िरीब वह सड़ि पर चल रहा था दोनोुं ओर बस ऊँची
दूर सड़ि िे दूसरी ओर है।”कबली ने उसिो इमारतें थी, सारी िी सारी एि जैसी। उन सभी
धन्यवाद कदया और अपना सूटिे स उठा िर बेल में पोचफ और खुं भे बने थे और चार या पाँ च
एुं ड डर ैगन िे सलए चौथाई मील िी दूरी तय िरने सीकढ़याँ थी जो सामने िे द्वार िो जाती थी और
यह बात आसानी से समिी जा सिती थी कि
54
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
किसी समय वे वैभवपूणफ आवासीय इमारतें रही खुद िमरा, जहाँ ति वह नीमअुंधरे े में देख
होुंगी। लेकिन अभी, अुंधेरे में भी, वह देख सिता था, खूबसूरत फनीचर से भरा हुआ था।
सिता था कि दरवाज़ोुं पर िे लिड़ी िे िाम से वहाँ एि बेबी ग्रैंड कपयानो, एि बड़ा सोर्ा, और
पेंट िी पपकड़याँ छू ट रही थी और उनिे सुदशफन, िई गद्दे दार िु ससफयाँ रखी थी; और एि िोने में
श्वेत अगले कहस्से कबना देखभाल िे दरारोुं से टू ट उसने देखा कि एि कपुंजरे में एि बड़ा तोता था।
रहे थे। इस तरह िी जगह में, जीव-जुं तु सामान्यतः
अच्छा सुं िे त होते िैं। कबली ने स्वयुं से िहा;
अिस्मात्, सीकढ़योुं िे नीचे िी एि सखड़िी में,
और सब िु छ िो देखते हुए, उसे लगा जैसे रहने
जो छः गज दूर ल्कित लैंप पोस्ट से शानदार तरी़िे
िे सलए यह एि िाफी अच्छी जगह होगी।
से प्रिासशत थी, कबली िी कनगाह एि छपे हुए
कनसित रूप से यह बेल एुं ड डर ैगन से असधि
नोकटस पर पड़ी जो ऊपर िे एि पल्ले िे शीशे
आरामदायि होगी। दूसरी ओर, एि पब एि
पर सचपिा हुआ था। उस पर सलखा था “बेड
बोकडिंग हाउस से असधि अनुिूल जगह होगी।
एुं ड ब्रेिर्ास्ट”। पीली गुलदाउदी िा एि लम्बा
शाम िो वहाँ बीयर और ड टफ होगा, और बात
और खूबसूरत गुलदान ठीि नोकटस िे नीचे ल्कित
िरने िे सलए ढे रोुं लोग,और सुं भवतः वह
था। उसने चलना रोि कदया। वह थोड़ा और
अपेक्षािृ त सस्ता भी होगा। वह दो रातें पहले भी
नज़दीि गया।
एि पब में रह चुिा था और वह उसे पसुं द भी
हरे पदे (किसी प्रिार िा मखमली िपड़ा)
आया था। वह िभी किसी बोकडिंग हाउस में नहीुं
सखड़िी िे दोनोुं ओर लटिे हुए थे। उनिी बग़ल
ठहरा था, और यकद पूरी ईमानदारी से िहा जाए
में गुलदाउदी िे र्ूल बहुत आियफजनि लग रहे
तो, वह उनसे थोड़ा डरता भी था। नाम से खुद
थे। वह सीधे वहाँ गया और शीशे में से भीतर
ही पानी वाली पत्तागोभी, लालची मिान
िमरे में िाँ िा और जो पहली चीज उसने देखी
मालकिनें, और सलकवुं ग रूम में एि ताितवर
वह आकतशदान में जलती चमिदार आग थी।
हाउसिीपर िी गुं ध िी छकव उभरती थी।
आग िे सामने िालीन पर एि नन्हा प्यारा सा
इस तरह दो तीन कमनट ठुं ड में िुं पिपाने िे
ड क्सैंड (िु त्ता) अपने पेट में अपनी नाि सछपाए
पिात कबली ने कनणफय सलया कि वह यहाँ िे बारे
गुड़ामुड़ा सो रहा था।
में मन बनाने से पूवफ आगे जाएगा और बेल एुं ड
डर ैगन पर एि नज़र डालेगा। वह जाने िे सलए
55
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
मुड़ा। और अब उसिे साथ एि कवसचत्र बात था। उसने घुं टी बजाई —और वह बाहर आ गई!
हुई। वह वापस लौटने और मुड िर सखड़िी से इससे वह उछल गया।
दूर जाने ही वाला था कि उसिी कनगाह एिाएि
वह लगभग पैंतालीस या पचास वषफ िी थी, और
बहुत खास तरी़िे से सचपिे छोटे से नोकटस पर
सजस समय उसने उसे देखा, मकहला उसे देख
अटि गयी जो वहाँ लगा था। उस पर बेड एुं ड
िर स्वागत में गमफजोशी से मुस्करायी।
ब्रेिर्ास्ट सलखा था। बेड एुं ड ब्रेिर्ास्ट, बेड एुं ड
“िृ पया भीतर आइए,” उसने बहुत अच्छे से
ब्रेिर्ास्ट, बेड एुं ड ब्रेिर्ास्ट। हर शब्द शीशे में
िहा। वह दरवाज़े िो पूरा खोलती हुई, एि ओर
से उसिी ओर िाँ िती बड़ी िाली आँ खोुं िी
हट गई और कबली ने स्वयुं िो स्वचासलत तरी़िे
भाँ कत उसे ताि रहा था, उसे पिड़े हुए, उसे
से मिान में आगे बढ़ते हुए पाया। बाध्यता
मजबूर िरता, जहाँ वह था वहीुं रहने िे सलए
अथवा, असधि सही िहें तो, उसिा अनुगमन
मजबूर िरता और मिान से दूर जाने से रोिता,
िरते हुए घर में जाने िी इच्छा असाधारण रूप
और अगली बात जो उसने जानी वह ये थी कि
से मज़बूत थी।
वह वास्तव में सखड़िी से हट िर मिान िे मुख्य
द्वार िी ओर जाने िो सीकढ़याँ चढ़ रहा था जो “मैंने सखड़िी में लगा नोकटस देखा था,” उसने
िालबेल ति पहुँचती थी। स्वयुं िो रोिते हुए िहा।
उसने घुं टी िा ल्कस्वच दबाया। दूर पीछे िे किसी “हाँ , मैं जानती हँ।”
िमरे में उसने घुं टी बजने िी आवा़ि सुनी और
“मैं एि िमरे िी तलाश में घूम रहा था।”
कर्र तुरुंत — यह कनिय ही तुरुंत ही हुआ होगा
क्योुंकि वह घुं टी िे बटन से अपनी उँ गली भी “यह पूरी तरह तुम्हारे सलए तैयार है,” उसने
नहीुं हटा पाया था — दरवाज़ा तेजी से खुल गया िहा। उसिा चेहरा गोल और गुलाबी था और
और एि मकहला वहाँ खड़ी थी। उसिी आँ खें नीली और बहुत कवनम्र थी।
सामान्यतः आप घुं टी बजाते हैं और िम से िम “मैं बेल एुं ड डर ैगन िे सलए जा रहा था,” कबली
आधा कमनट प्रतीक्षा िरते हैं इसिे पूवफ कि ने उससे िहा। “लेकिन आपिी सखड़िी पर लगे
56
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
“मेरे प्यारे बच्चे,” उसने िहा, “तुम ठुं ड में से हाल में िोई और हैट अथवा िोट नहीुं थे। वहाँ
भीतर क्योुं नहीुं आ जाते?” िोई छाता अथवा टहलने िी छड़ी भी नहीुं थी।
“आप कितना चाजफ िरती हैं ?” “यहाँ सब िु छ िे वल हमारे सलए है,” उसने,
जब वह उसे सीकढ़योुं से ऊपर ले जा रही थी,
“पाँ च और छः पेन्स एि रात िे , ब्रेिर्ास्ट
उसिे िुं धोुं िे ऊपर िी ओर देखते मुस्कुराते हुए
सकहत।”
िहा।
यह तो बहुत ही सस्ता था। यह तो उसिे आधे
“देखो, ऐसा अक्सर नहीुं होता जब हम अपने
से भी िम था जो भुगतान िरने िो वह इच्छु ि
नन्हें घोुंसले में किसी आगुं तुि िे आने िा आनुं द
था।
उठा पाते हैं।”
“यकद यह असधि है तो,” उसने जोड़ा, “ तो मैं
बूढ़ी लड़िी थोड़ी दीवानी है, कबली ने खुद से
थोड़ा िम भी िर सिती हँ। क्या तुम्हें ब्रेिर्ास्ट
िहा। लेकिन पाँ च और छः पेन्स एि रात िे
में अुंडा चाकहए? इस समय अुंडे महँगे हैं। कबना
किराए पर इस बात िी परवाह िौन िरता है?
अुंडे िे छः पेन्स िम हो जाएँ गे।”
– मैं सोच रहा था कि आपिे पास प्रासथफयोुं िी
“पाँ च और छः पेन्स ठीि है। उसने िहा। मुिे
भीड़ लगी होगी,” उसने कवनम्रता से िहा।
यहाँ रहना अच्छा लगना चाकहए।”
“हाँ , ऐसा है, माय कडयर, कनसित रूप से ऐसा
“मैं जानती हँ तुम्हें अच्छा लगेगा। भीतर आ
है। लेकिन समस्या यह है कि मैं थोड़ी सी इस
जाओ।”
मामले में चूजी और कवसशि हँ – तुम देख सिते
वह बहुत ही अच्छी लग रही थी। वह कबलिु ल हो मेरा क्या मतलब है।”
किसी अच्छे स्कू ली दोस्त िी माँ जैसी, किसमस
“ओह, हाँ ।”
िी छु कट्टयोुं िे दौरान अपने घर में रहने हेतु
“लेकिन मैं सदैव तैयार रहती हँ। हर चीज सदैव
स्वागत िरती सी लग रही थी। कबली ने अपना
कदन रात तैयार रहती है शायद िब बे मौ़िे िोई
हैट उतार कदया और दरवाज़े िे भीतर िदम
स्वीिायफ युवा और भद्र पुरुष आ जाये। और यह
रखा। “उसे वहाँ टाुंग दो,” उसने िहा, “और
आनुं ददायि होता है, बहुत असधि आनुं ददायि
मुिे अपना िोट उतारने में मदद िरने दो।”
होता है जब मैं यदािदा दरवाज़ा खोलती हँ और
57
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
मैं वहाँ किसी िो खड़ा हुआ पाती हँ जो कि पानी िी बोतल िा होना बहुत आरामदायि
एिदम ठीि हो।” वह सीकढ़योुं िे मध्य में थी, होता है, क्या आप सहमत नहीुं हैं? और आप
जब वह सीकढ़योुं िी रेसलुं ग पिड़ िर एि क्षण किसी भी समय यकद ठुं डि महसूस िरें तो गैस
िो रुि गई, और अपना ससर घुमा िर बदरुंग जला सिते हैं।”
होठोुं से उसिी ओर देख िर मुस्करायी। “तुम्हारे
“धन्यवाद,” कबली ने िहा। “बहुत बहुत
जैसा,” उसने जोड़ा और उसिी नीली आँ खें
धन्यवाद।” उसने नोकटस किया कि कबस्तर िो
कबली िी समूची देह पर नीचे िी ओर दौड़ गयीुं
ढिने वाली चादर हटा दी गई है और ओढ़ने िी
और पुनः ऊपर िी ओर।
चादर और िुं बल ़िरीने से एि ओर मोड़ कदए
पहली मुं सज़ल पर पहुँच िर उसने उससे िहा, गए हैं, किसी िे सोने िे सलए सब िु छ तैयार
“यह मुं सज़ल मेरी है।” है।
वे दूसरी मुं सज़ल िे सलए सीकढ़याँ चढ़ गए। “और “मैं बहुत खुश हँ कि तुम आए,” उसने कबली िे
यह तुम्हारी है,” उसने िहा। “तुम्हारा िमरा ये चेहरे िो बहुत ध्यान से देखते हुए िहा, “मैं
है। मैं आशा िरती हँ तुम इसे पसुं द िरोगे।” सचुंकतत होने लगी थी।”
वह उसे सामने िे एि छोटे किुं तु आिषफि
“सब ठीि है,” कबली ने प्रसन्ता से िहा।
शयनिक्ष में ले गई और लाइट जलाते हुए भीतर “आपिो मेरे सलए सचुंकतत नहीुं होना चाकहए।”
चली गई।
उसने अपना सूटिे स िु सी पर रख कदया और उसे
“सुबह िा सूरज सीधे सखड़िी से कदखता है, खोलने लगा।
कमस्टर पकिफ न्स। आप कमस्टर पकिफ न्स हैं, क्या
“और राकत्र िे भोजन िा क्या है, माय कडयर?
नहीुं?”
क्या तुमने यहाँ आने से पहले िु छ खा सलया
“नहीुं,” उसने िहा, “ मैं कमस्टर वीवर हँ।” था?”
“कमस्टर वीवर। बहुत बकढ़या। मैंने चादरोुं िे “मैं कबलिु ल भूखा नहीुं हँ, धन्यवाद,” उसने
बीच में एि पानी िी बोतल रख दी है, उन्हें गमफ िहा। “मैं सोचता हँ अब मैं सोऊँगा सजतना शीघ्र
रखने िे सलए, कमस्टर वीवर। एि अजनबी सम्भव हो उतनी जल्दी क्योुंकि िल सुबह मुिे
कबस्तर में साफ सुथरी चादर िे साथ एि गमफ
58
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
अपेक्षािृ त जल्दी उठना है और िायाफलय में नन्हा िु त्ता अब भी उसिे आगे सो रहा था।
ररपोटफ िरना है।” िमरा आियफजनि रूप से गमफ और आरामदायि
था। मैं भाग्यशाली हँ, उसने अपने हाथ आपस
“कर्र ठीि है। अब मैं जाऊँगी ताकि तुम अपना
में रगड़ते हुए सोचा। एि तरह से यह सब
सामान कनिाल सिो। लेकिन सोने से पूवफ क्या
एिदम ठीि है।
तुम भूतल पर बैठि में आ िर रसजस्टर में
हस्ताक्षर िरने िी िृ पा िरोगे। हर एि िो यह उसने अकतसथ पुं सजिा िो कपयानो पर खुला पड़े
िरना होता है क्योुंकि यह देश िा ़िानून है और पाया, इससलए अपनी िलम कनिाली और अपना
हम इस ल्किकत में िोई ़िानून नहीुं तोड़ना चाहते, नाम और पता सलख कदया। उसिे ऊपर पन्े पर
क्योुं?” उसने उसिी ओर हिे से हाथ कहलाया मात्र दो और प्रकवकियाँ थी, और जैसा कि िोई
और उसिे िमरे से तेज़ी से बाहर कनिलते हुए अकतसथ पुं सजिा देख िर हमेशा िरता है, वह
दरवाज़ा बुं द िर कदया। उन्हें पढ़ने लगा। एि था किस्टोफर मल्फोडफ
िाकडफफ से। और दूसरा कब्रस्टल से कग्रगोरी डजयू.
अब, इस तथ्य से कि उसिी मिान मालकिन
टे म्पल। यह बड़ा मज़ेदार है, उसने एिाएि
थोड़ी सी सखसिी हुई लग रही थी, कबली िो जरा
सोचा। किस्टोफर मल्फोडफ। यह िु छ सुना सा
भी सचुंता नहीुं थी। सब िे बाद, न िे वल वह
नाम लगा। अब किस जगह उसने यह अपेक्षािृ त
हाकनरकहत थी – इस सम्बुं ध में िोई सुं देह नहीुं
असामान्य सा नाम सुना था?
था – बल्कि वह िाफी दयालु और उदार आत्मा
भी थी। उसने अनुमान लगाया िी शायद उसने क्या वह स्कू ल में िोई लड़िा था? क्या वह
युद्ध में अपना पुत्र खो कदया है, अथवा और िु छ उसिी बहन िे अनेिोुं ब यफ़्रेंड् स अथवा कपता
ऐसा ही, और उससे िभी भी मुक्त नहीुं हो पायी िे कमत्रोुं में से िोई था? नहीुं, नहीुं, यह उन में
है। से िोई नहीुं था। उसने पुनः पुं सजिा पर नज़र
डाली। किस्टोफर मल्फोडफ, 231, िै थीडर ल रोड,
इससलए िु छ कमनट्स िे पिात, अपना सामान
िाकडफफ। ग्रेगोरी डजयू. टेम्पल, 27 सायिामोर
खोल लेने और अपने हाथ धो लेने िे बाद, वह
डर ाइव, कब्रस्टल। वास्तव में अब उसने कर्र इस
सीकढ़याँ उतर िर भूतल पर आया और बैठि में
बारे में सोचा कि वह कनसित नहीुं िह सिता था
प्रकवि हुआ। उसिी मिान मालकिन वहाँ नहीुं
थी किुं तु आकतशदान में आग जल रही थी और
59
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
कि दूसरा नाम भी उतना ही पररसचत सा नहीुं हँ। वे दोनोुं लुं बे और युवा थे और सुदशफन भी,
लग रहा सजतना कि पहला। माय कडयर, कबलिु ल तुम्हारे जैसे।”
“ग्रेगोरी टेम्पल? उसने अपनी स्मृकत में खोजते एि बार पुनः , कबली ने पुं सजिा में देखा।
हुए ज़ोर से िहा। किस्टोफर मल्फोडफ ?….
“इधर देखो,” उसने तारीख पर ध्यान देते हुए
“बहुत प्यारे लड़िे थे,” उसिे पीछे से एि िहा। “यह आसखरी प्रकवकि लगभग दो साल से
आवाज ने जवाब कदया, वह मुड़ गया और उसने पहले िी है।”
अपनी मिान मालकिन िो अपने हाथोुं में एि
“अच्छा?”
बड़ी सी चाँ दी िी चाय िी टरे सलए देखा। वह
“हाँ , कनिय ही। और किस्टोफर मुलह लैण्ड िी
उसे कबलिु ल उसिे सामने सलए हुए थी,
उससे एि साल पहले िी – तीन साल से असधि
अपेक्षािृ त ऊपर उठाए हुए, जैसे कि वह टरे किसी
पहले िी।”
सखलन्दड़े घोड़े िी लगाम हो।
“ओह,” उसने अपना ससर कहलाते और सुुं दर सी
“वे िु छ िु छ पररसचत से लग रहे हैं,” उस ने
आह भरते हुए िहा।”मैंने इस बारे में सोचा भी
िहा।
नहीुं। समय िै से हम सब से दूर उड़ जाता है, है
“अच्छा? कितनी कदलचस्प बात है।”
न कमस्टर कवल्किन्स?”
“मुिे लगभग पक्का लगता है कि मैंने ये नाम
“मैं कमस्टर वीवर हँ,” कबली ने िहा, “वी-वर।”
िहीुं पहले सुने हैं। क्या यह कवसचत्र नहीुं है? हो
“ओह, कनिय ही !” वह सोफे पर बैठते हुए
सिता है यह समाचार पत्र में रहा हो। वे किसी
सचल्लाई। “मैं कितनी बेव़िू फ हँ। मैं माफी
तरह प्रससद्ध नहीुं थे, क्या थे? मेरा मतलब है
चाहती हँ। मैं एि िान से सुन िर दूसरे से
प्रससद्ध कििे ट सखलाड़ी या र्ु टब ल सखलाड़ी
कनिाल देती हँ, कमस्टर वीवर।”
अथवा इसी तरह िे िु छ?”
“आप िु छ जानती हैं?” कबली ने िहा। “िु छ
“प्रससद्ध,” उसने सोफे िे सामने िी नीची टेबुल
जो इस सब िे बारे में असाधारण है?”
पर टरे रखते हुए िहा, “नहीुं, मैं नहीुं समिती
कि वे प्रससद्ध थे। लेकिन वे असाधारण रूप से “नहीुं, कप्रय, मैं नहीुं जानती।”
सुदशफन थे, दोनोुं ही, मैं दावे िे साथ िह सिती
60
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
61
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
“तो हम यहाँ है,” उसने िहा। कितना बकढ़या “छोड़ गया,” उसने अपनी भौुंहें टे ढ़ी िरते हुए
और आरामदायि है, क्या नहीुं?” िहा। “लेकिन मेरे प्यारे बच्चे, वह िभी छोड़
िर नहीुं गया। वह अब भी यहीुं है। कमस्टर
कबली ने अपनी चाय पीनी शुरू िर दी। उसने
टे म्पल भी यहीुं हैं। वे तीसरी मुं सज़ल पर हैं, दोनोुं
भी वही किया। आधे कमनट िे सलए दोनोुं में से
साथ साथ हैं।”
िोई िु छ नहीुं बोला। लेकिन कबली जानता था
कि वह उसे ही देख रही थी। उसिी देह आधी कबली ने धीरे से अपना प्याला टे बुल पर रखा,
कबली िी ओर मुड़ी हुई थी, और वह अपने चेहरे और मिान मालकिन िी ओर देखा। वह उसिी
पर उसिी आँ खें महसूस िर सिता था, अपने ओर देख िर मुस्करायी और कर्र उसने अपना
प्याले िे किनारे से उसे देखती हुई। बीच बीच एि सफेद हाथ उसिे घुटने पर रख िर साुंत्वना
में उसे एि कवशेष प्रिार िी महि िा अनुभव में थपथपाया।“तुम्हारी क्या उम्र है, माय
हुआ जो उसिी देह से आती हुई सी महसूस होती कडयर?” उसने पूछा।
थी। यह जरा भी अरुसचिर नहीुं थी और यह उसे
“सत्रह।”
िु छ याद कदला रही थी – वह कनसित नहीुं था
“सत्रह !” वह सचल्लाई। “ओह, यह एिदम
कि वह उसे क्या याद कदला रही थी। अखरोट िा
सही उम्र है ! कमस्टर मुलह लैंड भी सत्रह िे थे।
अचार ? नया चमड़ा ? अथवा वह किसी
लेकिन मेरे कवचार से वे तुम से थोड़ा सा िम लुं बे
अस्पताल िा गसलयारा था?
थे, वास्तव में कनसित रूप से वे िम लुं बे थे, और
“कमस्टर मुलह लैंड िो यह चाय बहुत पसुं द थी,”
उनिे दाँ त भी इतने सफेद नहीुं थे। तुम्हारे दाँ त
उसने कवस्तार से बताया। “मैंने किसी िो अपने
सबसे खूबसूरत हैं, कमस्टर वीवर, क्या तुम्हें पता
जीवन में इतनी चाय पीते नहीुं देखा सजतनी प्यारे है?”
कमस्टर मुलह लैंड पीते थे।”
“वे उतने अच्छे नहीुं हैं, सजतने कदखते हैं,” कबली
“मुिे लगता है वे अभी हाल में ही छोड़ िर गए ने िहा। “उनमें पीछे िी ओर कर्सलुं ग िराई गई
हैं,” कबली ने िहा। वह अभी भी उन दो नामोुं है।”
िे बारे में सोच रहा था। उसे अब पक्का कवश्वास
“कनिय ही, कमस्टर टे म्पल थोड़े असधि उम्र िे
हो गया था कि उसने उन्हें अखबार में देखा था
थे,” उसने कबली िी बात िो नज़रअुंदाज़ िरते
– हेडलाइन्स में।
62
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
हुए िहा। “वे वास्तव में अट्ठाइस िे थे। कर्र “आपने किया है?”
भी मैं िभी अुंदाज़ न लगा पाती यकद उन्होुंने मुिे
“कनसित रूप से,” उसने िहा। “और तुम मेरे
न बताया होता, जीवन भर भी नहीुं। उनिी देह
नन्हे ब ससल से कमले?” उसने आग िे सामने
पर इसिा एि भी सचह्न नहीुं था।”
गुडीमुड़ी बैठे ड क्सेंड िु त्ते िी ओर इशारा किया।
“क्या नहीुं था?” कबली ने िहा। कबली ने उसिी ओर देखा। और अिस्मात् उसे
भान हुआ कि यह जानवर भी उसी भाँ कत चुप
“उनिी त्वचा किसी बच्चे िी त्वचा जैसी थी।”
और गकतहीन रहा है जैसे कि तोता। उसने हाथ
एि क्षण िो सन्ाटा रहा। कबली ने अपना प्याला
बढ़ा िर उसिी पीठ िो धीरे से छु आ। पीठ
उठाया और चाय िा एि और घूँ ट सलया, कर्र
िठोर और ठुं डी थी, और जब उसने अपनी उँ गली
उसने उसे पुनः धीरे से प्लेट में रख कदया। उसने
से बालोुं िो एि ओर हटाया, वह उसिे नीचे
उसिे िु छ िहने िी प्रतीक्षा िी किुं तु लग रहा
िी त्वचा देख सिता था, भूरापन सलए िाली,
था वह पुनः अपने मौन में चली गयी थी। वह
सूखी और पूरी तरह सुं रसक्षत।
उसिी ओर सीधे देखता बैठा रहा, उसिे ठीि
“बहुत शानदार,” उसने िहा। “एिदम से
सामने, िमरे िे दूर वाले िोने में, अपना नीचे
कितना चमत्कारी।” वह दूसरी ओर मुड़ गया और
िा होुंठ चबाता हुआ।
सोफे पर बैठी मकहला िो गहरी प्रशुं सा िी दृकि
“वह तोता,” कबली ने अुंततः िहा। “आपिो
से देखने लगा। “इस तरह िी िोई ची़ि़ि
िु छ पता है? जब मैंने गली में से सखड़िी से
िरना कनिय ही सबसे िकठन रहा होगा।”
पहली बार इसे देखा था तो इसने मुिे पूरी तरह
“कबलिु ल भी नहीुं,” मकहला ने िहा। “मैं अपने
बेव़िू फ बना कदया था। मैं ़िसम खा सिता था
सभी पालतुओ ुं िो, जब वे मर जाते है,अपने हाथ
कि यह सज़ुं दा था।”
से स्टफ (भर) िरती हँ। क्या तुम एि और
“अफसोस, अब नहीुं है।”
प्याला चाय या ि फी लोगे ?”
“ऐसा बहुत भयुं िर चतुरता िे साथ किया गया
“जी नहीुं, धन्यवाद,” कबली ने िहा। चाय िा
है,” कबली ने िहा। “ यह जरा सा भी मरा हुआ
स्वाद हिा सा ‘िड़वे बादामोुं’ जैसा था लेकिन
नहीुं लगता। ऐसा किसने किया?”
उसने इसिी खास परवाह नहीुं िी।
“मैंने किया है।”
63
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
“क्या तुमने पुं सजिा में हस्ताक्षर िर कदये, अथवा र्ेतना को झकझोरते "भीड़ और भेवड़ए"
नहीुं?”
के व्यं ग्य
“जी, िर कदया।”
“कर्र ठीि है। क्योुंकि यकद बाद में ऐसा होता है आर पी तोमर
कि मैं भूल जाऊँ कि तुम्हें क्या िहते थे, मैं यहाँ
कै नेडा में वषों से रि रिे भारतवं शी व्यं ग्यकार
नीचे आ िर देख सिूँ । मैं कमस्टर मुलह लैंड िे
धमचपाल मिेंद्र जैन अब वि नाम िो गया िै,
सम्बुं ध में अब भी लगभग हर कदन ऐसा िरती हँ जजनकी पिर्ान भारत के सुप्रजसद्ध व्यं ग्यकारों में
और कमस्टर…कमस्टर…” िोती िै। उनकी व्यं ग्य रर्नाओं को आाँ ख बं द
“टे म्पल,” कबली ने िहा। “कग्रगोरी टेम्पल। मुिे करके भी खरीदा जा सकता िै। वे लं बे समय से
यह पूछने हेतु क्षमा िरे, लेकिन क्या उन दोनोुं व्यं ग्य रर्नाएं रर् रिे िैं। "भीड़ और भेवड़ए"
नामक रर्ना को भी उन्होंने बेितरीन व लीक से
िे अकतररक्त कपछले दो या तीन वषों में और िोई
ििकर जलखा िै। धमचपाल जी को उनके पिले
अकतसथ नहीुं आए?”
व्यं ग्य सं ग्रि "सर क्यों दांत िाड़ रिा िै" की
अपना चाय िा प्याला एि हाथ में ऊँचा उठाए भूवमका जलखने वाले सुप्रजसद्ध व्यं ग्यकार िररशं कर
हुए, अपना ससर थोड़ा सा बायीुं ओर िुिा परसाई जी ने किा था वक जरूरी निीं वक व्यं ग्य
िर,मकहला ने उसिी ओर अपनी आँ खोुं िे िोने पढ़कर िंसी आये। बस, उसे अपने पाठक की
से देखा और पुनः िोमलता से मुस्कुरायी। र्ेतना को झकझोरने में सक्षम िोना र्ाविए।
व्यं ग्य वि जो तुमको खुद से वमलाए, ववद्रूप और
“नहीुं, माय कडयर,” उसने िहा। “ िे वल तुम
व्यवस्था की गं दगी उघाड़ दे और पढ़कर पाठक
आए हो।” को लगे वक बदलाव िोना र्ाविए। धमचपाल जी
***** ने इन्हीं की गांठ बांधकर व्यं ग्य जलखने, समझने
और परखने की कुं जी बना ली िै। अन्य रर्नाओं
सुं िे त : (सायनाइड िा स्वाद िड़वे बादामोुं जैसा
की तरि उनकी इस वकताब में भी समकालीन
होता है।)
व्यं ग्य के उत्सवी पररदृश्यों में आज के जमाने के
िास्ट् िूड परोसने से परिेज वकया गया िै।
सुप्रजसद्ध व्यं ग्यकार ड . ज्ञान र्तुवदे ी ने भूवमका
जलखते हुए किा िै वक धमचपाल की रर्ना में
64
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
को नया अथच देने की ताकत दे पाए ऐसा उनका िैं। पाखं ड को उजागर करते िैं। उन्होंने अपनी
लक्ष्य िोता िै। वे व्यं ग्य की उस समझदार र्ुप्पी पुिक "भीड़ और भेवड़ए" में धारदार कलम र्ला
के जखलाि िैं, जो समकाल में सत्ता के खेल के कर शोवषतों की बेर्ैनी को धार दी िै। ववर्ार,
ववरुद्ध कु छ भी बोलने से बर्ती िै। तकच , कौशल से ऐसी पुिक को गढ़ा िै, जो
वािव में व्यवस्था पर र्ोि िै, पाखं ड को उजागर
धमचपाल मिेंद्र जैन के व्यं ग्य शोवषत व
करती िै और वक्त का तकाजा िै। वे अन्योवक्त
वं जर्तों की आवाज बनते लगते िैं। वे अपनी
के साथ साथचक किाक्ष करने से निीं र्ूकते।
मध्यम आवाज से नक्कारखाने के माजलकों को
ववषमताओं, ववसं गवतयों, सामाजजक कु रीवतयों पर
र्ेताने में कामयाब िोते िैं। वे "भीड़ और भेवड़ए"
वि अपने कवव एवं सिल व्यं गकार-हृदय से
में वािव में अपनी व्यं ग्य रर्नाओं से र्ेतना को
प्रभावी व धारदार प्रिार करते वदखाई देते िैं।
झकझोरते व आत्म साक्षात्कार कराते साि नजर
व्यं ग्य, किाक्ष और तीखे शास्थब्दक प्रिार िारा
आते िैं, जो व्यं ग्य की पिली मांग िै। उनकी
ववषमता के ववरुद्ध 'एक अस्त्र' वाली शैली से
व्यं ग्य रर्ना बहुत गिरी और दीघचकाजलक िै। वे
लजक्षत ववषमताओं के नासूर की शल्य वक्रया
मानते िैं वक उनका व्यं ग्य शास्थब्दक और भावषक
करता िै विर भी दुख-ददच का आभास तक निीं
अजभव्यवक्त के परे भी भावभं वगमाओं, शारीररक
िोता। अलबत्ता िंसी के िव्वारे भी छू िते िैं।
मुद्राओं, रेखीय और रूपं कर, मूतच और अमूतच कई
धमचपाल जी बेधड़क िोकर झूठ, पाखं ड, लोभ,
माध्यमों से उभरता िै। प्रवासी भारतीय धमचपाल
लाभवृवत्त की जड़ों पर र्ोि करते हुए आईना
जी की व्यं ग्य रर्नाओं में व्यं ग्य र्ेतना का वि
वदखाते िैं।
भाव स्पि पढ़ने को वमलता िै, जजसमें शब्दों और
वाक्य की सामूविक शवक्त िोती िै। व्यं ग्यकार बात सं कलन की रर्नाओं पर करें तो
धमचपाल जी खुद किते िैं वक मेरे जलए व्यं ग्य ऐसा रर्नाकार ने "भीड़ और भेवड़ए" नामक रर्ना में
प्रिार िै जो र्ेतना को गाजलयों या किु वर्नों से अवसरवावदयों पर प्रिार करते हुए राजनीवत को
65
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
वनशाना बनाया िै। उनका किना िै वक “भेड़ आ जाती िैं। उनके डंडे में सं ववधान की आत्मा
आदमी निीं बन सकती। इसका मतलब यि निीं प्रवेश कर जाती िै और उनके असले में दमदार
िै वक आदमी भेड़ निीं बन सकता। आदमी भेड़ गोजलयां। वे िवाई िायर का इशारा कर देते िैं।
क्या भेवड़या भी बन सकता िै और र्मर्माता तब समझदार भेड़ें भीड़ के भीतर से भीतर घुसती
वबस्थस्कि वदखा दो तो मेमना भी बन सकता िै। र्ली जाती िैं। वे अपने से कमजोर भेड़ों को
कोई आदमी भेवड़या बन जाए तो वि अपनी कवर् बनाकर छु प जाती िैं। कमजोरों व
जमात में सुपरलेविव िो जाता िै। वि अपेशेवरों की की िांगे िू िती िैं, उनके जसर ििते
कृ पावनधान बनकर अपने आगे-पीछे घूम रिे िैं। पुजलस सं रक्षण में एं बुलेंस उन्हें लादती िै।”
लोगों को भेड़ बन सकता िै।” वे आगे किते िैं रर्नाकार किाक्ष करते हुए अंवतम पं वक्त में किते
“भेड़ बनाने के मामले में राजनेता बेर्ारे ज्ादा िैं वक मैंने आवारा और दलबदलू कु त्ते देखे, पर
िी बदनाम िैं। वे के वल राजनीवतक रुझान वाले कभी आवारा या दलबदलू भेड़ें सड़क या
समवपचत लोगों को कु त्ता बनाने की कवायत कर ववधानसभा के आसपास निीं देखीं।
रिे िोते िैं। ऐसे में आम आदमी कु त्तों के ठाठ
प्रजातं त्र की स्थस्थवत पर एक शानदार
देखता िै और जलप्सा से िपकती कु त्तों की लार
व्यं ग्य इस तरि आता िै- “प्रजातं त्र की बस तैयार
को भी कु त्ते अवसर में बदल लेते िैं। डराने,
खड़ी िै। सरकारी गाड़ी िै इसजलए 'धक्का परेड'
धमकाने, कु छ करने और आका के रोब तले दबा
िै। धक्का लगाने में लोग जोर-शोर से जुिे िैं।
देने का ददच जनता के मन में बसा देते िैं। देखते-
एक बार गाड़ी रोल िो जाए तो डर ाइवर िस्ट्च वगयर
देखते लोग भीड़ बन जाते िैं। राजनीवत के
में उठाकर स्ट्ािच कर ले। पर बस िै वक िस से
अलावा भी भीड़ तो बनती िै।” भेड़ के बिाने
मस निीं िो रिी।” प्रजातं त्र का पूरा राजनीवतक
भीड़ के र्ररत्र पर र्लते व्यं ग्य का पिाक्षेप इस
ववज्ञान इस व्यं ग्य की जद में िै, जजसका वनष्कषच
तरि िोता िै- “भीड़ देखकर पुजलस का मनोबल
िै- “धवकयारे बड़े र्ालाक िैं। वि प्रजातं त्र का
जागृत िो जाता िै। शासकों के गड़ररए भीड़ िांक
अथच समझ गए िैं और दोनों िाथों से बिोर रिे
रिे िों तो पुजलस को नसबं दी र्ररत्र में रिना िोता
िैं। दोनों िाथ व्यि िैं तो धक्का कै से लगाएाँ ?
िै। जब वे ववरोधी गड़ररयों को िोला ले जाते हुए
बस जिां की तिां खड़ी िै। 135 करोड़ लोग बैठ
देखते िैं तो उनका वदमाग सवक्रय िो जाता िै।
गए िैं। पर बस निीं र्ल रिी। लोग दो अरब िो
उन्हें दंड ववधान की सारी धाराएं एकाएक याद
जाएं गे, वे भी इसमें ठाँ स जाएं गे। डर ाइवर का मन
66
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
बहुत करता िै वक वि धवकयारों को साि-साि "भैंस की पूं छ" रर्ना में बड़ी िी र्तुराई से
कि दे वक सब एक वदशा में धक्का लगाओ। र्ुिीली कािी गई िै। रर्नाकार धमचपाल मिेंद्र
धवकयारे उसकी निीं सुनते, वे किते िैं तुम्हारा जैन जलखते िैं वक सुरीली जी ने र्ं दन का थाल
काम आगे देखना िै, तुम आगे देखो पीछे िम मं त्रीवर के र्रणों में रख वदया और प्राथचना की
अपना-अपना देख लेंगे। प्रजातं त्र की बस वक िे नाथ, आपके र्रण इस थाल में रखकर
यथावत खड़ी िै।” वघसे हुए र्ं दन को उपकृ त करें। मं त्रीवर ने गदगद
िो वैसा िी वकया। अब मं त्रीवर के तलवों में र्ं दन
‘दो िांग वाली कु सी’ की रर्ना में
िी र्ं दन लगा था। तब रसीला जी और सुरीली
रर्नाकार ने कु सी का मित्व बताते हुए अजभनव
जी ने मं त्रीवर की जय-जयकार करते हुए किा
स्थापनाएाँ की िैं। जैस-े ऊंर्ा उठना िो तो कु सी
नाथ आपके पुण्य र्रण िमारे भाल पर रख दें।
साथ लेकर सीढ़ी से र्ढ़ना र्ाविए और मं जजल
मं त्रीवर सं स्कृ वत रक्षक थे, नरमुं डों पर नं गे पैर
पर पहुंर् कर अपनी कु सी विकानी र्ाविए। जजस
र्लने में प्रजशजक्षत थे, उन्होंने सुरीली जी व
कु सी पर आपको बैठना िो उसके जलए यवद कोई
रसीला जी के भाल पर अपने र्रण विका वदए।
उत्सुक वदखे तो अपना दावा ठोक दें। प्रवतिंदी
कलाकार की गदचन में लोर् िो, रीढ़ में लर्ीलापन
को आप खुद निीं ठोकें । अपने र्ार लोगों को
िो, घुिनों में नम्यता िो और पववत्र र्रणों पर
इशारा कर दें। वे उसकी ठु काई करेंगे और
दृवि िो तो मं त्रीवर के र्रण तक कलाकार का
आपका जोर-शोर से समथचन भी। िर कु सी में
भाल पहुंर् िी जाता िै। सुरीली जी का भाल
जसंिासन बनने की वनपुणता निीं िोती। कु छ
र्ं दन से सुशोजभत िो मिक रिा था। यि व्यं ग्य
लोग जो अपनी कु सी को नरमुं डों और मनुष्य रक्त
आज की उस िकीकत को बयान करता िै वक
की जैववक खाद देकर पोवषत कर पाते िैं, वे
वकस तरि कलाकार (सावित्यकार) अपने भाल
अपनी कु सी को जसंिासन बना पाते िैं। कु सी की
पर र्ं दन लगवाते िैं।
प्रवतिा बनाए रखना कु सी सं योजकों के िाथ में
िैं। जजन सं योजक को कु सी जमाने की तमीज "नए देवता की तलाश" में रर्नाकार
निीं िो उनके कायचक्रमों में कु सी तोड़ने निीं मनुष्य की मतलबी आस्था पर प्रिार करते िैं। वे
जाएं । कु सी का मान रखना िो तो कु जसचयों की जलखते िैं- “मेरे जलए वनिा वनवेश की तरि िै,
आभासी कमी बनाए रखना जरूरी िै। जिां ज्ादा 'ररिनच' वदखे वनिा विां लगानी िोती
िै। एक िी देवता को समवपचत िो जाने से
67
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
अजधकतम लाभ का जसद्धांत िी लुि िो जाता िै। दस-बीस ववर्ार एक साथ और आ जाते िैं और
आपको निीं लगता वक 33 करोड़ देवता बनाकर धड़ाधड़ मेरे नाम से ि रवडच िो जाते िैं। ववर्ार,
ववधाता ने देवताओं का अवमूल्यन तो वकया िी ववर्ार िैं; उनमें ज्ञान िो यि जरूरी निीं। विर
बेर्ारे मनुष्य को भी र्करवघन्नी बना वदया। भी र्ारों वदशाओं से ज्ञान आ रिा िै और शेष
देवताओं ने बड़ा कं फ्यूजन मर्ा रखा िै। वकसी छि वदशाओं से ि रवडच िो रिा िै। इसके
के पास कु छ िै, वकसी के पास दूसरा कु छ। पूरा बावजूद मैं ज्ञान के 'ओवरफ्लो' को रोक निीं पा
पैकेज वकसी के पास निीं िै। मुझे बुवद्ध र्ाविए रिा हं। ज्ञान को रोक कर रखने में खतरा िै।
और धन भी र्ाविए। ये दोनों देवता पि जाएं तो खोपड़ीनुमा बांध कमजोर िो र्ुका िै, ओवरलोड
प्रकाशक र्ाविए। प्रकाशक देवता वमल जाए तो िोकर कभी भी िि सकता िै। वदमाग की क्षमता
आलोर्क र्ाविए। ये ररझें तो प्रजसवद्ध की देवी जसकु ड़ कर ईमानदारों जजतनी रि गई िै।
प्रसन्न िो, विर सम्मान देवता प्रसन्न िो। आप इसीजलए ज्ञान को बािर वनकालने के जलए मैंने
देजखए न, ये जो गोरखधं धा सीरीज र्लती िै सारे 'फ्लड गेि' खोल वदए िैं। ज्ञान का िर
इसमें बहुतेरे देवी-देवता लगते िैं। एक देवता के खतरे के वनशान से ऊपर पहुंर् जाए तो वदमाग
भरोसे रिकर आप जलखते िो तो जसिच जलखते िी की कच्ची पुजलया का क्या भरोसा।” सधा हुआ
रिो और अंत तक पैन पकड़े रिो। पेन को पदक किाक्ष पढ़ते हुए पाठक अपने आप पर िाँसने के
बनाने वाले देवता निीं साध पाए तो बुवद्ध की जलए बाध्य िो जाता िै।
मिादेवी की शरण में रिने से क्या लाभ!”
"लार्ार मरीज और वेंविलेिर पर
मानवीय प्रवृवत्तयों की गिन छानबीन इस व्यं ग्य
सरकारें" नामक व्यं ग्य रर्ना कोववड काल में
को अनूठा बनाती िै।
सरकारी तं त्र की िालमिोली का दृश्य सामने
"इसे दस लोगों को ि रवडच करें" रर्ना लाती िै। व्यं ग्य के तीखे तीर र्लाते हुए
में आधुवनक पीढ़ी िारा सं देशों को ‘ि रवडच’ करने रर्नाकार किते िैं वक “देश बीमार िै। जनता
की कला का उल्लेख करते हुए व्यं ग्यकार किते परेशान िै, वेंविलेिर वाला बेड ढूाँ ढ रिी िै। बयान
िैं वक “इन वदनों ववर्ारों का प्रवाि वबजली-सा आ रिे िैं वक वेंविलेिरों की कमी निीं िै। सर्
िै। मां गं गा लाशों की खदान बन गई िै, विााँ िै, तीस िजार से ज्ादा वेंविलेिर खाली पड़े िैं।
रेत उड़ती िै तो आदमी वनकल आते िैं। मैं कई मेवडकल क लेजों और जजला अस्पतालों में
व्हाट्सएप में भरी वमट्टी ििा भी निीं पाता हं वक वेंविलेिर धूल खा रिे िैं और उनके खरीदी
68
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
अजधकारी माल पर्ा रिे िैं। पत्रकार खबरें ला िैं। उनकी मुस्कुरािि आपस में लुकाजछपी कर
रिे िैं वक वेंविलेिर भेजने वालों के राजनीवतक रिी िोती िै और वदमाग कु सी पर छलांगें भरने
खून का ग्रुप, पाने वाले राज्ों के राजनीवतक खून लगता िै।” व्यं ग्यकार आगे किते िैं-
से मैर् निीं िो रिा िै। इसजलए िलां-िलां “पावकिान जजसे लोकतं त्र किता िै विााँ की
राज्ों में नए वेंविलेिर र्ालू निीं िो पाए िैं। वे जनता उसे जोकतं त्र मानती िै, विााँ की िौज
किते िैं वेंविलेिर खरीदी का कमीशन खाए कोई उसे िट्टूतंत्र मानती िै क्योंवक विााँ की िौज को
और, और र्लाएाँ िम! ना बाबा ना, प्रजातं त्र में िट्टू र्लाते िैं। रूस जजसे लोकतं त्र समझता िै
ऐसा थोड़े िी िोता िै, तुम र्ारा खाओ तो तुम्हीं दुवनया उसे जासूसतं त्र किती िै। अमेररका जजसे
भैंस को समझाओ।” यि व्यं ग्य उत्तरोत्तर तीखा लोकतं त्र मानता िै वि गनतं त्र िै, विााँ पर सरकार
िो जाता िै और इलाज के अभाव में मर रिे लोगों और लोग बात-बात पर अपनी ‘गन’ वनकाल लेते
की बेबसी यूाँ बयान करता िै- “ववधायकों जैसे िैं। र्ीन में ढोल पीि-पीिकर प्रर्ार करने वालों
पववत्र लोग पााँ र् जसतारा िोिलों में वबकते िैं। ने लोकतं त्र को प्रर्ारतं त्र बना रखा िै। िांगकांग
वेंविलेिर र्ालू िो या बं द उन्हें क्या िकच पड़ता की जनता समझती िै वक यि उन्हें भ्रम में रखने
िै। उनके जलए लोग मरें तो मरें , कल मरना था वाला भ्रमतं त्र िै। कई देशों में कु छ-कु छ लोगों
वे आज मर गए। मरने वाले लाइलाज थे, इतने ने गैंग बना कर डैमोक्रेसी को गैंगतं त्र बना वदया
बीमार थे वक न रैली कर सकते थे न वोि दे सकते िै तो अफ्रीकी देशों में यि िेकतं त्र बन कर
थे। प्रजातं त्र में ऐसी नाकाम और मररयल जनता बदनाम िै। लोकतं त्र िर जगि मुस्थश्कल में िै और
को क्यों जजं दा रखना र्ाविए! जजनके िेिड़ों में इसके पररणाम वनदोष जनता को भुगतने िोते
दम निीं िो उनके जेब में तो दम िो। पर अब..., िैं।” ववजभन्न लोकतं त्रों की यथास्थस्थवत किता यि
न जेब का दम काम कर रिा िै न सत्ता का।” व्यं ग्य रोजमराच के व्यं ग्य लेखन से एकदम अलग
िै और पाठकों को वैजश्वक पररदृश्य से पररजर्त
"ए तं त्र, तू लोक का बन" में दुवनया के
कराता िै।
लोकतांवत्रक देशों का बखान करते हुए धमचपाल
जी ने उजर्त िी किा िै वक “लोकतं त्र बहुत "कोई भी िो यूवनवसचल प्रेजजडेंि" रर्ना
छजलया शब्द िै, यि तं त्र कभी लोक का हुआ िी में किा गया िै वक कोई भी बने अमेररका का
निीं। लोकतं त्र िमेशा सत्ता का रिा। सत्ता का रािर पवत, िमको क्या, उसे भी दोि बना लेंगे।
नाम आते िी राजनेताओं की आाँ खें िैल जाती वि भारत आएगा तो ताजमिल वदखाएं गे। उसके
69
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
स्वागत में ि़िारों स्कू ली बच्चों को सड़कों पर जजसमें िास्य की छिा िै। “िममें से कोई भी
उतार देंगे और बता देंगे वक ये िोनिार बच्चे कु छ अथचशास्त्री निीं िै। विर भी, िम िर मिीने बजि
साल बाद वीजा लेकर अमेररका आने वाले िैं। बनाते िैं। जर्रकाल से यि बजि घािे का रिा िै
रर्नाकार ने रर्ना में व्यं ग्य कसा वक अमेररका और रिेगा। मध्यम वगीय घरों की यिी शाश्वत
के रािर पवत का काम िै अमेररका को मिान स्थस्थत िै। घािे की पूवतच के जलए ऋण देने िेतु
बनाना। इसजलए विां कभी र्तुर-बुवद्धमान िम बैंक और क्रेवडि काडच कं पवनयों के जीवन भर
आदमी रािर पवत िोता िै तो कभी र्ालाक-भोंद।ू आभारी रिेंगे। यूं तो िमारा माजसक वेतन पांर्
भारत के रािर पवत बहुत सं वेदनशील िोते िैं, अंकों में िोता िै। पर सब कि-पीिने के बाद जो
उनके ऊपर व्यं ग्य जलखने की मनािी िै। िाथ में आता िै वि र्ार अंकों में जसमि जाता
अमेररकी रािर पवत मिाढीठ िोते िैं, उनपर कोई िै। यि जसकु ड़ा आं कड़ा बताना रािर ीय शमच की
भी व्यं ग्य कर सकता िै। "समझदार को बात िै।” बजि को लेकर रर्नाकार ने आं खें
सदाबिार इशारा" किीले किाक्ष करते हुए िमारे खोल देने वाला सर् उजागर वकया िै। "िोली
जीवन में आए मूखों का वगीकरण करता िै। कथा का आधुवनक सं स्करण" नामक रर्ना में
धमचपाल किते िैं वक ज्ञानी मूखच पिले दजे के व्यं ग्यकार िोजलका के माध्यम से व्यं ग्य करते िैं।
मूखच िोते िैं। वे िमेशा ज्ञान बांिते रिते िैं। उन्हें वे किते िैं वक “जनता सुबक-सुबक कर रो रिी
कोई मतलब निीं वक कोई उनके ज्ञान के लपेिे थी। सत्य और दया की प्रवतमूवतच प्रिलाद का दैत्य
में आ रिा िै या निीं।” ज्ञानवान बनाने वाली सम्राि के िाथों मारा जाना तय था। सम्राि के
आधुवनक जशक्षा पद्धवत पर तं ज करते हुए वे किते बाहुबल से सीआईए वाले भी डरते थे। सम्राि ने
िैं- “मैकाले आए तो ज्ञान की भाषा बदल गई। प्रिलाद के मिक को वनशाना बनाया। प्रह्लाद
आश्रमों का स्थान दुकानों ने ले जलया। सारा ज्ञान जरा सा िि गया। सम्राि के मुक्के के प्रिार से
वकताबों में घुस गया। दीमकें वकताबें र्ि करने खं भे के िुकड़े-िुकड़े िो गए। िू िे खं भे से नरजसंि
लगीं, वे ज्ञानवान िो गईं, मनुष्य ज्ञानिीन िो का रूप धारण कर जनता वनकली। जनता गा रिी
गया।” यि व्यं ग्य िमारे समय के ज्ञान पर तगड़ा थी जसंिासन खाली करो वक जनता आती िै।
प्रिार िै। धमचपाल जी के व्यं ग्य ववषयों की रेंज र्ुनाव की घोषणा िो गई। सम्राि िवा में शिर
अद्भूत िै। "शमच से जसकु ड़ा घरेलू बजि" मिंगाई दर शिर छलांगें लगाने लगे। पररणाम के वदन वे
से त्रि पररवारों के बजि पर बुना गया व्यं ग्य िै
70
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
न ववदेश में थे, न राजमिल में, वे सं सद की में जजन लोगों का जजक्र िै िंता उसी जनता में िै,
र्ौखि पर खड़े थे। तब न वदन था, न रात थी। पर उनसे बहुत ऊपर िैं। और अंत में साधारण
न ववधाता वनवमचत कोई प्राणी था, न कोई अस्त्र- जनता किती िै- िम िैं भारत के भोले लोग, िम
शस्त्र था। जनता के वोिो वगनती िो रिी थी और सब वमलजुलकर रिते िैं। यि व्यं ग्य अमीरों और
िररण्यकश्यप िार रिे थे।” पौराजणक आख्यान गरीबों के बीर् की व्यापक खाई को अपने तरीके
को समकाल से जोड़कर कथा किने के अंदाज ने से उभारता िै। "बागड़वबल्लों का नया धं धा" में
इस व्यं ग्य को यादगार बना वदया िै। सरकारी दफ्तरों की पोल खोली गई िै। रर्नाकार
किते िैं- “सरकारी दफ्तरों की र्ांदी िै, अंधेरा
"िम जीडीपी वगराने वाले" रर्ना के
िै तो सब जायज िै। काम निीं करो तो िोका-
बिाने जनता की आजथचक आधार पर नब्ज़ि ििोली
िाकी करने वाला कोई निीं िै। जजसको काम
गई िै। रर्नाकार किते िैं वक ‘वकलर’ यावन िंता
करवाना िै वि तो घुप्प अंधेरे में भी रािा ढूं ढ
लोग भारत के लोगों की सुपीररयर प्रजावत िै।
लेता िै। िर जगि अंधेरा िैलाने वाले लोग
इनका काम दजलत और साधारण जनता को
अजधक िैं, उजाला लाने वाले कम। थोड़े से लोग
न्यूनतम समथचन पर जजंदा रखना िै। ये भाग्य
जो उजाला िैलाने की विम्मत करके आते िैं,
ववधाता िैं। इनका जन्म उच्च ग्रिों की श्रेितम
अंधेरा उन्हें लील लेता िै। बागड़वबल्लों की खाल
स्थस्थवतयों में िोता िै। कोई भी पािी सरकार
बहुत मोिी िै। बेर्ारी जनता खाल किां से लाए,
बनाए, इनकी सं प्रभुता पर कोई िकच निीं पड़ता।
उसकी र्मड़ी वघस-वघसकर और पतली िो गई
बस इन्हें पुजलस और गुं डा िाइप भाइयों को
िै। बागड़वबल्लों का क्या, इनमें से बहुत-से
पालना पड़ता िै। ये िर र्ीज खरीद सकते िैं।
अपराध की दुवनया से वनकलकर सुरजक्षत स्वगच
ये िर ववर्ारधारा और सं स्कृ वत को वगरवी रखकर
की तलाश में राजनीवत में घुस आए िैं। वे जिां
आगे बढ़ सकते िैं। िर राजनेता और अजधकारी
जो वदखा अपना समझकर िड़प लेते िैं और पर्ा
का माके ि रेि इन्हें मालूम िोता िै। ... इनके
जाते िैं। भय, भ्रम और अंधेरे के मािौल में खड़ी
कु छ लोग सरकार बनाने, विलाने और वगराने में
जनता अपने समय के इं तजार में िै।” इस तरि
पारंगत िोते िैं। ये बड़े राज्ों की राजधावनयों में
व्यं ग्य अपने समय का आईना बन जाता िै।
पांर् जसतारा िोिल बनवाते िैं। विां ववधायकों
का ब्रेनवाश गारंिी से वकया जाता िै। ... सरकारी रर्नाकार धमचपाल मिेंद्र जैन िर क्षेत्र में
तं त्र वकलर वगच का गुलाम िोता िै।... सं ववधान व्यं ग्य के जलए एक जाना पिर्ाना नाम िै। "श्रेय
71
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
लेने की मिावप्रय परंपरा" रर्ना को भी उन्होंने दीवाली पर र्ािे िेिड़ों का दम वनकल जाए पर
मिान बना वदया िै। सरल अंदा़ि में बात शुरू पिाखे छोड़ने से बाज निीं आते। िम वदल्ली
िोती िै- “कल मेरे पड़ोसी के यिां र्ोरी िो गई। वाले, िम वदल वाले िैं, भगवान भरोसे रिने के
पत्नी जी को अपार िषच हुआ, बोलीं अच्छा हुआ आदी िैं। अस्पताल में बेड खाली निीं िोंगे तो
वि दोनों िाथों से समेि रिा था, आज जसमि क ररडोर में पड़े-पड़े इलाज करा लेंगे और वबना
गया। पत्नी जी घर-घर जाकर यि घिना आं खों िेिड़ों के भी अपनी जजंदगी जी लेंगे।”
देखे िाल की तरि बयां कर रिी थीं। मुझे डर शवक्तशाली लोगों से भरी वदल्ली की बेर्ारगी पर
लगने लगा वक मोिल्ले वालों से प्रशं सा पाने के इससे अजधक क्या व्यं ग्य िो सकता िै!
जलए र्ोरी का श्रेय वि खुद न ले लें। मैंने किा
“सं स्कृ वत के नशीले सं स्कार" पजिमी
भी- तुम जजतनी खुश िो रिी िो उतने खुश तो
सं स्कृ वत में गांजा पीने पर िै। “कै नेडा और
र्ोर भी निीं िोंगे। किीं सं देि में पुजलस तुम्हें
अमेररका की ठं डी िवा में मीठी-मीठी खुमारी िै।
वगरफ्तार न कर ले। वे निीं मानीं, न मानना
प्राणवायु के साथ लोगों को मैरेवाना और गांजे के
उनका स्वभाव िै। वे प्रसन्न थीं वक र्ोरों ने माल
धुएं का लुत्फ मुफ्त वमलता िै। यिां भारत जैसा
बिोरा और उन्होंने मोिल्ले में श्रेय।” रो़ि-रो़ि
भेदभाव निीं िै वक नशीले पदाथच खाना-पीना िो
की सामान्य बातें जब घने व्यं ग्य में बदल जाती
तो युवा विल्म स्ट्ारों के ि मच-िाउस में गुपर्ुप
िैं तो बरबस धमचपाल जी के व्यं ग्य कौशल की
पहुंर्ो। यिां की उदार और सविष्णु सरकारों ने
दाद देनी पड़ती िै। "वदल्ली िै वबना िेिड़ों
गांजे-भांग की प्रजावतयों कै नबस और मैरेवाना के
वालों की" वदल्ली में प्रदूषण की समस्या पर
सेवन को वैध बना रखा िै। लोग खुलआ
े म पि
तीरनुमा प्रिार करता व्यं ग्य िै। धमचपाल जी बताते
पीते िैं, ऑइल लेते िैं, बीज खाते िैं और मि
िैं वक “वदल्ली में सबसे ज्ादा न्यायाधीश रिते
रिते िैं।” वे व्यं ग्य करते किते िैं प्रजा को नशेड़ी
िैं, सबसे ज्ादा सांसद िैं, सबसे ज्ादा
बनाकर रखो तो सरकार का वनठल्लापन छु प
आईएएस रिते िैं और सबसे ज्ादा मूखच! वे जजस
जाता िै। कै नबस और मैरेवाना अब कै नेवडयन व
वदल्ली में रिते िैं विीं की िवा को जिरीली और
अमेररकी सं स्कृ वत के आधुवनक सं स्कार िैं। इनके
दमघोंिू बनाते िैं और खुश िोते िैं। वे ववषैली
अलावा अन्य व्यं ग्य रर्नाएं ‘वदमाग अपना िो या
िवा में भी सांस लेकर जजं दा िै। जीवं त गैस
दूसरों का’, ‘वाि-वाि सम्प्रदाय के तब्लीवगयों
र्ेम्बर में रिते हुए भी उफ्ि तक निीं करते िैं।
से’, ‘ऐसे साल को जाना िी र्ाविए’, ‘िाईकमान
72
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
के शीश मिल में’, ‘बेरोजगार ववपक्षी जी’, और भेवड़ए" पुिक की ववववधरूपेण रर्नाएं
‘वडमांड ज्ादा, थाने कम’, ‘वकसी के बाप का ववषमताओं, ववसं गवतयों से जूझते जनमानस की
किीर थोड़ी िै’ और ‘र्ापलूस बेरोजगार निीं भाव र्ेतना को अवश्य िी झकझोरेगी और सुकून
रिते’ ऐसी रर्नाएं िैं जजनमें नुकीले, तीखे, भी देगी। ऐसी रर्नाओं को पाठक जशरोधायच
दुधारी तलवारनुमा व्यं ग्य िैं, जजन्हें आप एकबार करेगा िी। इसके जलए धमचपाल मिेंद्र जैन जी को
पढ़ने लगेंगे तो यि पता िी निीं र्लेगा वक वदन अनं त शुभकामनाएं । मुझे उनकी अगली व्यं ग्य
से रात कै से िो गई। रर्ना का बेसब्री से इंत़िार रिेगा िी।
74
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
दे वेश : मेरे जलए सोशल मीवडया पर उपस्थस्थत सहजलयत के आधार पर प्रकाजशत कर सकते िैं।
रिना एक सं तुलन बनाए रखने का प्रयास िै। एक बात मैं जोड़ना र्ाहंगा वक अजधकतर
बतौर लेखक मेरी पिली कोजशश तो यिी िोती ऑनलाइन माध्यम अभी एक या दो व्यवक्तयों के
िै वक मैं िेसबुक की 'मांग और आपूवतच' श्रृंखला प्रयास से र्ल रिे िैं इसजलए उनके पास वकच लोड
का जशकार ना िो जाऊं। मैं उन कववयों में से बहुत िो जाता िै। सं पादक के व्यि िोने पर
निीं िोना र्ािता जो रोज एक कववता जलखते कभी-कभी काम इसीजलए ठप भी पड़ जाता िै।
िैं। मुझे उनसे जशकायत निीं जो ऐसा करते िैं यवद सं पादक मं डल में र्ार-पांर् सावित्यकारों को
लेवकन मेरी अपनी शैली उस तरि के लेखन के जोड़ा जाए तो मुख्य/प्रधान सं पादक को
अनुरूप निीं िै। मेरी एक अन्य कोजशश औसत सहजलयत रिेगी और रर्नाकारों को भी अजधक
लेखन के प्रभाव से बर्ने की िोती िै। मौका वदया जा सके गा। नए रर्नाकारों के जलए
तो यि वरदान िोगा क्योंवक वप्रंि पवत्रकाओं में
एक और वबं दु जजससे बर्ना र्ाविए वि सावित्य उनके प्रकाजशत िोने के अवसर कम िोते िैं। कई
की िुच्ची राजनीवत िै। इससे िमेशा बर्ना सं भव बार नए रर्नाकार के पास भी इतना सब्र निीं
निीं िो पाता। तो इसे मैं अपनी कमी के तौर पर िोता वक वि अपनी अप्रकाजशत रर्नाओं को वप्रं ि
लेता हाँ वक मैं सं वेदनशील िोकर कभी-कभी पवत्रका के पास साल भर रखा छोड़ सके ।
इसका जशकार िो जाता हाँ।
मेधा : इन प्रश्नों के अवतररक्त कोई ववशेष
मेधा : विन्ददी की ई-मैग़िींस और मित्वपूणच अनुभव आप साझा करना र्ािें।
ब्जल ग्स पर प्रकाशन के अपने अनुभव साझा करने
की कृ पा करें। दे वेश : जैसे-जैसे समय आगे बढ़े गा, ऑनलाइन
माध्यमों का मित्व भी बढ़ता जाएगा। आने वाले
दे वेश : मुझे लगता िै वक ई- मैग़िींस और ब्ल ग्स दशकों में तो विी मुख्यधारा िो जाएं गे। इसजलए
के ऊपर रर्नाएं प्रकाजशत करने की कोई बं वदश ़िरूरी िै वक ऑनलाइन माध्यम (वे वेबसाइि भी
निीं िै। ऐसा निीं वक िर मिीने अंक लाना िै जो भववष्य में अस्थित्व में आएं गी) अपनी
या िर रोज एक रर्नाकार को प्रकाजशत करना जजम्मेदारी को भली-भांवत मिसूस करें और
कोजशश करें वक सं कु जर्त स्वाथों से दूर रि सकें ।
िै। इसजलए ऑनलाइन माध्यम वकतनी भी कम मठाधीश िोने की लालसा से बर्ा रिना जरूरी
या अजधक रर्नाएं गुणवत्ता और सं पादक की िै।
75
जनवरी- मार्च 2024
अनुनाद
मुख्य सम्पादक
जशरीष मौयच
shirishmourya@anunad.com
सम्पादक
मेधा नैलवाल
medhanailwal@anunad.com
परामशच मं डल
िरीशर्न्दद्र पाण्डे (सं रक्षक)
harishchandrapandey@anunad.com
लीलाधर मं डलोई
leeladharmandloi@anunad.com
सुबोध शुक्ल
subodhshukla@anunad.com
76
जनवरी- मार्च 2024