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Class12 Flamingo in Hindi
Class12 Flamingo in Hindi
Class12 Flamingo in Hindi
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Day
Night
हिन्दी अनुवाद- सामान्यतया, जब स्कू ल शुरू होता था, वहाँ अत्यधिक शोर-शराबा एवं हलचलें होती थीं जिसे
बाहर गली में सुना जा सकता था, डेस्कों का खुलना एवं बन्द होना, एक स्वर में पाठों को दोहराया जाना,
ऊँ चे स्वर में, हमारे हाथ हमारे कानों पर रखे हुए ताकि हम बेहतर समझ सकते तथा अध्यापक का
डरावना डंडा मेज पर खटखटाता हुआ। लेकिन अब यह सब इतना शान्त था ! मैंने अपनी मेज तक बिना
किसी के देखे पहुँच जाने हेतु इस हलचल पर ही भरोसा किया था, लेकिन उस दिन तो प्रत्येक चीज को
रविवार की सुबह के समान ही शान्त होना था। खिड़की में से मैंने अपने सहपाठियों को देखा, जो पहले ही
अपने-अपने स्थानों पर बैठे थे, तथा एम. हेमल अपनी बाँह के नीचे अपने भयानक डंडे को रखे कक्षा में
इधर से उधर घूम रहे थे। मुझे दरवाजा खोलना था और सभी के समक्ष कमरे में प्रवेश करना था। आप
कल्पना कर सकते हैं कि मैं कै सा शर्मिन्दा था और कितना डरा हुआ।
लेकिन कु छ भी नहीं हुआ। एम. हेमल ने मुझे देखा और बड़ी दयालुता के साथ बोले, “अपने स्थान पर
जल्दी से जाओ, छोटे-से फ्रें ज । हम तुम्हारे बिना ही (पाठ) शुरू करने वाले थे।”
हिन्दी अनुवाद-मैंने अपनी बेंच के ऊपर से छलांग लगाई, तथा अपनी डेस्क के पास जा बैठा । जब मैंने
अपने भय पर थोड़ा नियन्त्रण पा लिया, तब तक मैंने यह नहीं देखा था कि, हमारे अध्यापक ने उसका
सुन्दर हरे रंग का कोट, उसकी झालरदार कमीज तथा, छोटी-सी काली रेशमी टोपी पहन रखी थी, जिस पर
सभी तरफ कढ़ाई का काम किया हुआ था। इसे वह निरीक्षण, तथा पुरस्कार वितरण के दिनों के अलावा
कभी नहीं पहनता था। इसके अतिरिक्त, सारा स्कू ल ही काफी अजीब एवं गम्भीर प्रतीत हो रहा था। किन्तु
जिस चीज ने मुझे सर्वाधिक आश्चर्यचकित किया वह थी, पीछे की बैन्चों पर, जो हमेशा खाली रहा करती
थी, गाँव के लोगों का हमारे ही समान चुपचाप बैठे होना। ये थे-.बूढा होसर जो अपना तिकोना टोप पहने
था, भूतपूर्व मेयर, भूतपर्व पोस्ट-मास्टर तथा इनके अतिरिक्त कई दूसरे। प्रत्येक व्यक्ति उदास दिखाई देता
था, तथा होसर एक पुरानी प्रथम पुस्तिका लाया था जो किनारों पर, अंगूठों से पन्ने पलटे जाने के कारण,
गंदी हो चुकी थी और वह इसे अपने भारी-भरकम चश्मे की मदद से, जो पन्नों के ऊपर आर-पार रखा था,
अपने घुटनों पर रखे हुए खोले था।
हिन्दी अनुवाद- जब मैं इस सबके बारे में आश्चर्य कर रहा था, एम. हेमल अपनी कु र्सी पर बैठ गया तथा
उसी विनम्र एवं गम्भीर स्वर में, जो उसने मेरे लिए प्रयोग किया था, कहा, “मेरे बच्चो, यह आखिरी पाठ है
जो मैं तुम्हें पढ़ाऊँ गा। बर्लिन से आदेश आया है कि, अलसेक तथा लॉरेन के स्कू लों में के वल जर्मन भाषा
ही पढ़ाई जानी है। नया अध्यापक कल आ जायेगा। यह तुम्हारा फ्रें च भाषा का आखिरी पाठ है। मैं चाहता
हूँ कि तुम मेरी बात बहुत ध्यान से सुनो।
ये शब्द मेरे लिए बिजली की कडकडाहट के समान थे।
अरे, वे दुष्ट लोग; यही बात तो उन्होंने टाउन-हॉल के सूचना-पट्ट पर लगाई थी!
मेरा आखिरी फ्रें च भाषा का पाठ! अरे, मैं तो लिखना भी मुश्किल से ही जानता था। अब मैं आगे और कु छ
भी न सीख सकूँ गा! तब, मुझे वहीं रुक जाना होगा! अरे, मैं कितना दु:खी था कि मैंने अपने पाठ नहीं सीखे
थे, कि मैं पक्षियों के अण्डे तलाशता रहता था अथवा सार पर फिसलने के लिए चला जाता था! मेरी पुस्तकें
जो कु छ समय पूर्व ही मुझे मुसीबत लगती थीं, उठाकर चलने में इतनी भारी-भरकम, मेरी व्याकरण की
पुस्तक तथा संतों के इतिहास की मेरी पुस्तक, अब मेरी पुरानी मित्र लग रही थीं जिन्हें मैं त्याग नहीं
सकता था। तथा एम. हेमल भी; इस विचार ने कि अब वह जा रहा था, कि अब मैं उसे पुन: कभी न देख
सकूँ गा, मुझे उसके डंडे तथा वह कितना सनकी था, को भूलने को बाध्य कर दिया।
बेचारा! इस आखिरी पाठ के सम्मान में ही तो, उसने अपने रविवार के अच्छे वस्त्र पहने थे, और अब – मैं
समझ गया था कि, गाँव के वृद्ध लोग कमरे में पीछे की ओर क्यों बैठे हुए थे। ऐसा इसलिए था कि वे भी
दु:खी थे कि, वे स्कू ल में और अधिक क्यों नहीं गये थे। यह इन लोगों का हमारे अध्यापक को, उसकी
चालीस वर्ष की निष्ठापूर्ण सेवा के लिए धन्यवाद देने का, तथा अपने देश के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने
का, जो देश अब उनका नहीं रह गया था, एक तरीका था।
हिन्दी अनुवाद-जब मैं इस सबके बारे में सोच रहा था तो मैंने अपना नाम पुकारे जाते हुए सुना। अब
सुनाने की मेरी बारी थी। मैं पाटिसिपल के उस भयानक नियम को शुरू से अन्त तक, ऊँ ची एवं स्पष्ट
आवाज में, बिना कोई गलती किए सुनाने के योग्य होने के लिए क्या कु छ करने को तैयार न था? लेकिन
मैं तो प्रथम शब्दों पर ही उलझ गया और वहीं खड़ा रह गया, अपनी डेस्क को पकड़े हुए, मेरा दिल जोर से
धड़कते हुए और ऊपर देखने का साहस न जुटाते हुए।
मैंने एम. हेमल को मुझ से कहते हुए सुना, “मैं तुम्हें डॉदूंगा नहीं, छोटे-से फ्रे न्ज; तुम्हें तो अवश्य बुरा लग
रहा होगा। देखो, बात ऐसी है ! हम लोगों ने रोज स्वयं से कहा है, “आह! मेरे पास काफी समय है। मैं इसे
कल सीख लूँगा।” अब देखो, हम कहाँ आ पहुँचे हैं। अरे, अलसेक के साथ (यहाँ के लोगों के साथ) यही
परेशानी है; यहाँ के लोग अपनी पढ़ाई को आने वाले कल पर छोड़ देते हैं (स्थगित कर देते हैं)। अब वे
बाहर के लोग तुम से यह कहने का अधिकार रखेंगे, “ऐसा क्यों है: तुम फ्रान्सीसी होने का दावा करते हो,
लेकिन फिर भी तुम अपनी भाषा को न तो बोल सकते हो और न ही लिख सकते हो?” लेकिन तुम सबसे
खराब नहीं हो, छोटे-से फ्रे न्ज। हम सबके पास स्वयं को धिक्कारने के लिए बहुत सारा कारण है।”
“तुम्हारे माता-पिता पर्याप्त रूप से उत्सुक नहीं थे कि तुम सीख, पढ़ सको। उन्होंने तुम्हें खेतों अथवा मिलों
पर काम करने के लिए रख देने को अधिक पसन्द किया, ताकि कु छ अधिक पैसा प्राप्त किया जा सके ।
और मैं? मैं भी दोषी हूँ। क्या मैंने तुम्हें मेरे फू लों के पौधों को पानी देने प्राय: नहीं भेजा है, बजाय अपने
पाठ याद करने के ? और जब मैंने मछली पकड़ने के लिए जाना चाहा तो क्यों मैंने तुम्हारी छु ट्टी ही नहीं
कर डाली?”
हिन्दी अनुवाद-फिर, एक चीज से दूसरी चीज पर चर्चा करते हुए, एम. हेमल फ्रे न्च भाषा के बारे में बात
करता रहा, वह यह कहते रहे कि यह दुनिया की सबसे सुन्दर भाषा था-सवाधिक स्पष्ट, सवाधिक तर्क -
संगत, कि हमें इसकी हमारे बीच सुरक्षा अवश्य करनी चाहिए तथा इसे कभी नहीं भुलाना चाहिए, क्योंकि
जब लोग गुलाम बना लिये जाते हैं, तो जब तक वे अपनी भाषा से पक्की तरह जुड़े रहते हैं तब तक
उनके लिए उनकी भाषा जेल से बाहर निकलने की चाबी सिद्ध होती है। फिर उसने व्याकरण की एक
पुस्तक खोली और हमारा पाठ पढ़ कर हमें सुनाया। मैं यह देख कर इतना अचम्भित था कि मैं इसे
कितनी अच्छी तरह समझ गया था। जो कु छ उसने कहा वह कितना सरल लगा, कितना सरल ! मैं यह भी
सोचता हूँ कि मैंने कभी भी इतने ध्यान से नहीं सुना था और कि उसने भी हर चीज को इतने धैर्य से
कभी नहीं समझाया था। ऐसा लगता था जैसे कि वह बेचारा हमें वो सब जो वह जानता था, जाने से पूर्व
दे देना चाहता है और इस सबको हमारे दिमागों में एक ही बार में डाल देना चाहता है।
हिन्दी अनुवाद- ग्रामर के बाद हमारा लेखन का पाठ हुआ। उस दिन एम. हेमल हमारे लिए नई कॉपियाँ
लाये थे, जिन पर सुन्दर एवं गोल हस्तलेख में लिखा था-फ्रांस, अलसेक, फ्रान्स, अलसेक । वे छोटे छोटे झंडों
की भाँति दिखाई दे रहे थे जो स्कू ल के कमरे में सर्वत्र लहरा रहे थे और हमारी डेस्कों के ऊपर लगी छड़ों
से लटके हुए थे। आपको देखना चाहिए था कि किस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति काम में लगा था और कै सी
शान्ति छायी हुई थी। एक मात्र आवाज थी, कागज पर पैनों के रगड़े जाने की। एक बार कु छ भौंरे उड़कर
अन्दर आ गये; लेकिन किसी ने भी उन पर ध्यान नहीं दिया, सबसे छोटे बच्चों ने भी नहीं, जो मछली
पकड़ने के कांटों के चित्र खींचने में लगे थे, जैसे इन चित्रों को खींचना भी फ्रें च भाषा हो। छत पर कबूतर
धीमे स्वर में गुटरगूं कर रहे थे, और मैंने मन ही मन सोचा, “क्या वे कबूतरों को भी जर्मन भाषा में गाने
को बाध्य करेंगे?”
जब भी मैंने लिखते हुए ऊपर की ओर देखा, मैंने एम. हेमल को बिना हिले-डु ले उसकी कु र्सी पर बैठे देखा,
कभी एक वस्तु की ओर टकटकी लगाकर देखते हुए, फिर दूसरी वस्तु की ओर, जैसे कि वह अपने दिमाग
में यह अंकित कर लेना चाहता है कि उस छोटे-से स्कू ल के कमरे में प्रत्येक वस्तु कै सी दिखाई देती थी।
जरा सोचो! चालीस वर्षों से वह उसी स्थान पर था, खिड़की से बाहर उसका बगीचा था तथा उसके समक्ष
उसकी कक्षा थी, सदैव ऐसा ही। के वल डेस्कें तथा बैंचें घिस-घिस कर चिकनी हो गयी थीं; बगीचे में अखरोट
के वृक्ष पहले की अपेक्षा अधिक ऊँ चे थे तथा जो होपवाइन (एक प्रकार की लता) जिसे उसने स्वयं ने
लगाया था खिड़कियों से लिपट कर छत तक पहुँच गयी थी। इस सब को छोड़ कर जाने की बात ने तो
उसका दिल ही तोड़ दिया होगा, बेचारा; साथ में ऊपर के कमरे में उसकी बहन की इधर-उधर चलने और
सामान को बाँधने की आवाज सुनना ! क्योंकि उन्हें तो अगले ही दिन देश छोड़ कर जाना होगा।
हिन्दी अनुवाद-किन्तु उसमें इतना साहस था कि वह प्रत्येक पाठ को अन्त तक सुन सकता था। लेखन के
बाद हमारा इतिहास का पाठ हुआ। और फिर बच्चों ने स्वर के साथ अपना बा, बे, बी, बो, बु बोला। कमरे के
पिछले हिस्से में बूढ़े हासर ने अपना चश्मा लगा लिया था तथा अपनी प्रथम पुस्तक को दोनों हाथों में
पकड़े हुए बच्चों के साथ अक्षरों को बोल रहा था। आप देख सकते थे कि वह भी रो रहा था; उसकी आवाज
भावुकता के कारण काँप रही थी और उसकी आवाज सुनना हम सबको इतना मजेदार लगा कि हम सब
हँसना और रोना चाहने लगे। अरे, मुझे कितनी अच्छी प्रकार याद है, वह आखिरी पाठ!
अचानक चर्च की घड़ी ने बारह बजा दिए। फिर एंजिलस ने (रोमन कै थोलिक चर्च में दुपहर की भक्ति के
लिए बजाये जाने वाली घण्टी एंजिलस कही जाती है।)। इसी क्षण प्रशियनों के (तुरही) हमारी खिडकियों के
नीचे बज उठे । ये प्रशियन सिपाही अपनी डिल करने के बाद वापस लौट रहे थे। एम.
कु र्सी से उठ खडा हआ. बहत पीला पडा हआ। मैंने उसे इतना ऊँ चा पहले कभी नहीं देखा था।
“मेरे मित्रो”, वह बोला, “मैं-मैं- किन्तु किसी चीज ने उसका गला अवरुद्ध कर दिया। वह आगे नहीं बोल सका।
फिर वह ब्लेकबोर्ड की ओर मुड़ा, चाक का एक टु कड़ा लिया तथा अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग करते हुए,
उसने जितना बड़ा लिख सकता था, लिखा :’
“फ्रान्स जिन्दाबाद!”
फिर वह रुका तथा उसने अपना सिर दीवार से सटा दिया, और बिना एक भी शब्द बोले, उसने हमें अपने
हाथ से इशारा किया
“स्कू ल विसर्जित किया जाता है—तुम लोग जा सकते हो।”
Chapter -2, Lost Spring Hindi Translation
Day
Night
उन्होंने कहा, “तुम्हें लगता है कि इस गैर बराबरी की लड़ाई में किसी अंग्रेज का हमारे पक्ष में होना
फायदेमन्द होगा। इससे आपके हृदय की कमजोरी प्रकट होती है। मुद्दा न्यायसंगत है और युद्ध जीतने के
लिए आपको अपने ऊपर ही निर्भर होना चाहिए। Mr Andrews जो संयोगवश एक अंग्रेज हैं, उनके रूप में
आप बैसाखी न ढूँ ढें ।” राजेन्द्र प्रसाद कहते हैं, “उन्होंने हमारे मन की बात ठीक-ठीक जान ली थी और
हमारे पास कोई उत्तर नहीं था … इस तरह गाँधीजी ने हमें स्वावलम्बन का पाठ पढ़ाया।” स्वावलम्बन,
भारत की स्वाधीनता और बँटाईदारों की सहायता ये सब एक-दूसरे से जुड़े थे।
Chapter 6 Poets and Pancakes Hindi
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Day
Night
पाठ का सारांश
भाग I
साक्षात्कार-पत्रकारिता का एक सामान्य भाग : 130 वर्षों से थोड़ा ज्यादा समय से जब से इसका
(साक्षात्कार का) आविष्कार हुआ है, साक्षात्कार पत्रकारिता में एक आम (साधारण) बात हो गयी है ।
साक्षात्कार के सम्बन्ध में विभिन्न मत : कु छ का मानना है कि साक्षात्कार सत्य का स्रोत है और व्यवहार
में एक कला है । दूसरी ओर, कु छ लोग साक्षात्कार को अपने जीवन में औचित्यहीन दखलंदाजी समझते हैं।
वे महसूस करते हैं कि किसी न किसी तरह यह (साक्षात्कार) उन्हें छोटा करता है ।
भाग – II
Umberto Eco इटली की Bologna University में एक प्रोफे सर हैं । इन्होंने semiotics (चिह्नों के
अध्ययन) पर अपने विचारों में अच्छा सम्मान हासिल किया है । उन्होंने बहुत सारी पुस्तकें लिखी हैं ।
“The Name of the Rose’ नामक उनके उपन्यास ने उनको काफी प्रसिद्धि दिलाई।
मुकु न्द प्रोफे सर Umberto से पूछते हैं कि वे एक साथ इतने कार्य किस प्रकार सम्पन्न कर लेते हैं । Eco
अपने बारे में एक रहस्य बताते हैं । वह कहते हैं कि हम सभी के जीवन में बहुत सारे खाली स्थान होते
हैं । यदि हम इन खाली स्थानों को अपने कार्य से भर देंगे तो हम अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त
कर सकते हैं ।
130 वर्ष से थोड़े ज्यादा समय से जब से इसका (साक्षात्कार का) आविष्कार हुआ है, साक्षात्कार पत्रकारिता
में एक आम बात हो गई है । आजकल, लगभग हर साक्षर आदमी ने जीवन में कभी न कभी साक्षात्कार
पढ़ा होगा, जबकि दूसरे दृष्टिकोण से, पिछले वर्षों में कई हजार प्रसिद्ध व्यक्तियों का साक्षात्कार लिया जा
चुका है, उनमें से कु छ का (साक्षात्कार) बार-बार लिया गया है ।
इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि साक्षात्कार के बारे में- उसके कार्यों के बारे में, तरीकों और गुणों के
बारे में- विचार काफी अलग-अलग हैं | कु छ लोग बहुत ही अतिशयोक्तिपूर्ण दावा कर सकते हैं कि अपने
उच्चतम रूप में यह (साक्षात्कार) सत्य का स्रोत है और व्यवहार में एक कला । (अर्थात् साक्षात्कार लेना
और देना कला है जो उच्चतम बिन्दु पर पहुँचकर सत्य का पता लगा लेता है) ।
अन्य, आम तौर पर प्रसिद्ध लोग जो अपने आपको इसका शिकार समझते हैं, इसे अपने जीवन में
अनावश्यक दखलंदाजी समझकर घृणा कर सकते हैं अथवा ऐसा महसूस करते हैं कि किसी न किसी तरह
यह (साक्षात्कार) उन्हें छोटा करता है, ठीक वैसे ही जैसा कि कु छ प्राचीन संस्कृ तियों में ऐसा विश्वास किया
जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी का फोटो खींच लेता है तो वह उस आदमी की आत्मा को चुरा रहा
होता है ।
V.S. Naipaul (वैश्विक लेखक के रूप में प्रसिद्ध, ने अपनी यात्रा संबंधी पुस्तकों तथा अपने वृत्त-चित्र की
रचनाओं में अपने पूर्वजों के देश के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये जो कि भारत है। उन्हें 2001 में
साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।) ‘महसूस करते हैं कि ‘कु छ लोग साक्षात्कारों से घायल होते हैं
और अपना कु छ हिस्सा खो देते हैं ।’
Alice in Wonderland के रचयिता Lewis Carroll के बारे में कहा जाता है कि उसे ‘साक्षात्कारकर्ता से
एक न्यायसंगत भय’ था और उसने साक्षात्कार देने को कभी हाँ नहीं की-उसका यह भय उसे बहुत महत्त्व
दिये जाने का था जो उसे सभी परिचितों, साक्षात्कारकर्ताओं और ऑटोग्राफ की माँग करने वाले अड़ियल
लोगों से विकर्षित करता था (दूर रखता था) तथा बाद में वह बड़े सन्तोष और विनोद के साथ ऐसे लोगों
को चुप रखने की अपनी सफलता की कहानी सुनाया करता था।
रुडयार्ड किपलिंग ने साक्षात्कारकर्ता के प्रति कहीं अधिक घृणापूर्ण दृष्टिकोण व्यक्त किया है । 14 अक्टू बर
1892 को उनकी पत्नी Caroline अपनी डायरी में लिखती हैं कि ‘बोस्टन से आये दो संवाददाताओं ने
उनका दिन खराब कर दिया ।’ वे लिखती हैं कि उनके पति ने संवाददाताओं से कहा,
“मैं साक्षात्कार देने से मना क्यों करता हूँ ? क्योंकि यह अनैतिक है ! यह एक अपराध है, उतना ही अपराध
जितना मेरे ऊपर किया गया आक्रमण और उतना ही दण्डनीय है । यह कायरतापूर्ण व अप्रिय है । कोई
सम्माननीय व्यक्ति साक्षात्कार लेना नहीं चाहेगा और देना तो और भी बहुत कम (चाहेगा) ।” तथापि कु छ
ही वर्ष पहले Kipling ने ऐसा ही आक्रमण Mark Twain पर किया था । सन् 1894 में H.G. Wells ने एक
साक्षात्कार में ‘साक्षात्कार की कठिन परीक्षा की ओर संके त किया है परन्तु (वे) अक्सर साक्षात्कार देते रहते
थे और चालीस वर्ष बाद (उन्होंने) स्वयं को
Joseph Stalin का साक्षात्कार लेते हुए पाया । Saul Bellow अनेक अवसरों पर साक्षात्कार देना स्वीकार
करने के बावजूद भी एक बार साक्षात्कार को अपनी श्वाँस नली पर अंगूठे के निशान जैसा (किसी के
द्वारा गला दबाये जाने जैसा) बताया । फिर भी, साक्षात्कार के दोषों के बावजूद यह संवाद का सर्वोच्च
उपयोगी माध्यम है ।
“अन्य किसी समय से ज्यादा इन दिनों हमारे समकालीन लोगों के बारे में हमारे स्पष्ट विचार साक्षात्कार
से ही बनते हैं ।” Denis Brian ने लिखा है, “लगभग हर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात हम तक एक आदमी के
दूसरे आदमी से प्रश्न पूछने के माध्यम से पहुँचती है । इसी वजह से, साक्षात्कारकर्ता अभूतपूर्व शक्ति और
प्रभाव का स्थान रखता है अर्थात् साक्षात्कारकर्ता की भूमिका बहुत ही अहम् होती है ।
Part – II
“मैं एक ऐसा प्रोफे सर हूँ जो रविवारों को उपन्यास लिखता है” – Umberto Eco. निम्न अवतरण
Umberto Eco के एक साक्षात्कार का अंश है । The Hindu के सम्पादक मुकु न्द पद्मनाभन साक्षात्कारकर्ता
हैं । इटली में Bologna विश्वविद्यालय के प्रोफे सर U. Eco उपन्यास लिखना शुरू करने से पहले
लक्षणशास्त्र, साहित्यिक व्याख्या और मध्ययुगीन सौन्दर्यशास्त्र पर अपने विचारों के लिए एक विद्वान के
रूप में अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे ।
साहित्यिक उपन्यास, अकादमिक लेखन, निबन्ध, बच्चों की पुस्तकें , समाचार-पत्र के लिए लेख- उनके द्वारा
लिखित साहित्य अत्यन्त आश्चर्यजनक रूप से विशाल और व्यापक है । सन् 1980 में The Name of the
Rose के प्रकाशन के साथ, जिसकी एक करोड़ से भी ज्यादा प्रतियाँ बिकीं, उन्हें बौद्धिक सुपरस्टार के
समकक्ष दर्जा प्राप्त हो गया। |
मुकु न्द : अंग्रेजी उपन्यासकार और विद्वान David Lodge ने एक बार कहा था, “मैं नहीं समझ सकता कि
किस तरह एक ही आदमी इतने काम करता है जितने वह (Eco) करता है” ।
Umberto Eco : हो सकता है कि मैं बहुत सी चीजें कर लेने का एहसास कराता हूँ । पर अन्त में, मैं
संतुष्ट हूँ कि मैं हमेशा वही एक चीज करता रहता हूँ ।
मुकु न्द : वह कौन-सी चीज है ?
Umberto Eco : आह, अब यह समझाना कु छ ज्यादा ही मुश्किल है। मेरी कु छ दार्शनिक रुचियाँ हैं और
उन्हें मैं अपने शैक्षणिक कार्य और उपन्यासों के माध्यम से पाने की कोशिश करता हूँ। आप देखेंगे, यहाँ
तक कि मेरी बच्चों की पुस्तकें अहिंसा और शान्ति के बारे में हैं, वही नैतिक और दार्शनिक रुचियों का
गुच्छा (समूह) ।
और फिर मेरा एक रहस्य है । क्या आपको पता है कि यदि ब्रह्माण्ड की खाली जगह को समाप्त कर
दिया जाये, सारे परमाणुओं के खाली स्थान को समाप्त कर दिया जाये तो क्या होगा? ब्रह्माण्ड मेरी मुट्ठी
जितना हो जायेगा। इसी तरह हमारे जीवन में भी बहुत सारे खाली स्थान होते है । मैं उन्हें interstices
(खाली जगह) कहता हूँ ।
मान लो आप मेरे घर आ रहे हो । आप lift में हैं और जब आप ऊपर की ओर आ रहे हो, मैं आपकी
प्रतीक्षा कर रहा हूँ । यह एक interstice है, एक रिक्त स्थान । मैं खाली जगह (रिक्तावकाश) में काम
करता हूँ। आपकी लिफ्ट के प्रथम तल से तृतीय तल तक पहुँचने की प्रतीक्षा करते समय, मैं एक लेख
पहले ही लिख चुका हूँ ! (हँसता है) |
मुकु न्द : हर आदमी सचमुच ऐसा नहीं कर सकता । आपके उपन्यासेतर (अकाल्पनिक) लेखन और
विद्वत्तापूर्ण लेखन में एक खास विनोदपूर्ण तथा वैयक्तिक गुण है । यह नियमित अकादमिक शैली से
स्पष्टतः हटकर है – जो निश्चय ही निर्वैयक्तिक तथा अक्सर शुष्क और उबाऊ है । क्या आपने जान-
बूझकर अनौपचारिक मार्ग चुना है या यह ऐसी चीज है जो स्वाभाविक रूप से आपको प्राप्त हो गयी है।
Umberto Eco – जब मैंने इटली में अपना पहला डॉक्टरेट सम्बंधी शोधप्रबन्ध प्रस्तुत किया तब एक
प्रोफे सर ने कहा, “विद्वान किसी विषय के बारे में बहुत कु छ सीखते हैं, फिर वे बहुत सारी झूठी
परिकल्पनाएँ बनाते हैं, फिर वे उन्हें ठीक करते हैं और अन्त में वे निष्कर्ष रखते हैं । इसके विपरीत, आपने
अपने शोध की कहानी सुनाई है। यहाँ तक कि अपने प्रयासों और असफलताओं को भी शामिल किया है ।”
उसी समय, उसने जाना कि मैं सही था और मेरे शोधप्रबन्ध को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया,
इसका मतलब था उसने इसे (मेरे लेखन को) सराहा ।
उस समय 22 साल की उम्र में, मैं समझ गया कि विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें उसी तरह लिखी जानी चाहिए ।
जिस तरह मैंने लिखीं थीं – शोध की कहानी कहकर । यही कारण है मेरे निबन्धों में कथात्मक पहलू होता
है और शायद यही कारण है मैंने इतनी देर से कथा-साहित्य (उपन्यास) लिखना प्रारम्भ किया- पचास वर्ष
की उम्र के आस-पास ।
मुझे याद है मेरा प्रिय मित्र Roland Barthes हमेशा इस बात से परेशान रहता था कि वह एक
निबन्धकार है, एक उपन्यासकार नहीं । वह किसी न किसी दिन रचनात्मक लेखन करना चाहता था परन्तु
ऐसा करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई । मैंने इस तरह की कु ण्ठा कभी महसूस नहीं की । मैंने
संयोगवश उपन्यास लिखना शुरु किया। एक दिन मेरे पास करने के लिए कु छ नहीं था इसलिए मैंने शुरू
कर दिया (उपन्यास लिखना) । उपन्यासों ने सम्भवतया कथा कहने की मेरी रुचि को सन्तुष्ट किया ।
मुकु न्द : उपन्यासों की बात करें, एक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री होने से लेकर आप The Name of the Rose के
प्रकाशन के बाद शानदार तरीके से प्रसिद्ध हो गये । आपने कम से कम 20 विद्वत्तापूर्ण उपन्यासेतर
लेखन के साथ-साथ अपने पाँच उपन्यास लिखे हैं।
Umberto Eco – 40 से ज्यादा । मुकु न्द : 40 से ज्यादा ! उनमें एक लक्षणशास्त्र पर किया गया
प्रभावशाली लेखन कार्य है । किन्तु ज्यादातर लोगों से Umberto Eco के बारे में पूछिए और वे कहेंगे,
“अरे, वह उपन्यासकार है।” क्या इससे आप परेशान होते हैं ? Umberto Eco – हाँ, क्योंकि मैं अपने आपको
विश्वविद्यालय का प्रोफे सर मानता हूँ जो रविवारों को उपन्यास लिखता है । यह कोई मजाक नहीं है । मैं
अकादमिक (शैक्षिक) सम्मेलनों में भाग लेता हूँ, Pen Clubs या लेखकों की सभाओं में नहीं । मेरा तादात्म्य
अकादमिक (शिक्षा के क्षेत्र में विद्वान) लोगों से है । (अर्थात् मैं स्वयं को अकादमिक व्यक्ति (शिक्षा से
संबंधित) समझता हूँ।
किन्तु, ठीक है यदि उन (अधिकांश) लोगों ने के वल उपन्यास पढ़े हैं (हँसता है, कन्धे उचकाता है) । मैं
जानता हूँ कि उपन्यास लिखकर मैं ज्यादा पाठकों तक पहुँचता हूँ । मैं यह आशा नहीं कर सकता कि
लक्षणशास्त्र के लेखन के मेरे दस लाख पाठक होंगे ।”
मुकु न्द : यह (बात) मुझे अपने अगले प्रश्न तक ले जाती है। “The Name of the Rose’ एक अत्यन्त
गम्भीर उपन्यास है । एक स्तर पर यह एक लम्बी जासूसी कहानी है किन्तु यह तत्व मीमांसा, ईश्वर
मीमांसा और मध्ययुगीन इतिहास की गहराई में भी जाती है । तथापि इसे विशाल पाठक समूह मिला ।
क्या आप इससे किसी तरह चकराए ?
Umberto Eco – नहीं । पत्रकार चकराते हैं । और कभी-कभी प्रकाशक । यह इसलिए होता है कि पत्रकार
और प्रकाशक विश्वास करते हैं कि लोगों को कू ड़ा (निम्न स्तर का साहित्य) पसन्द होता है और (वे)
कठिनाई से पढ़कर प्राप्त अनुभवों को (पढ़ना) पसन्द नहीं करते हैं । सोचो इस धरती पर 6 अरब लोग हैं ।
The Name of the Rose की 1 से 1.5 करोड़ प्रतियाँ बिकीं । अतः इस तरह मैं पाठकों के छोटे से प्रतिशत
तक ही पहुँच पाया। परन्तु ये ही वे पाठक हैं जो सरल अनुभव नहीं चाहते हैं या कम से कम हमेशा ऐसा
नहीं चाहते । मैं स्वयं डिनर के बाद नौ बजे, टेलीविजन देखता हूँ और या तो ‘Miami Vice’ या
‘Emergency Room’ देखना चाहता हूँ। मैं इसका आनन्द लेता हूँ और मुझे इसकी जरूरत है । परन्तु पूरे
दिनभर नहीं देखता हूँ । मुकु न्द : क्या इस उपन्यास की बड़ी सफलता का इस तथ्य से कु छ लेना देना है
कि इसमें मध्ययुगीन इतिहास की चर्चा है जो कि…।
Umberto Eco – यह सम्भव है । परन्तु मैं आपको एक और कहानी सुनाता हूँ, क्योंकि मैं अक्सर चीनी
बुद्धिमान आदमी की तरह कहानी सुनाता हूँ। मेरी अमेरिकन प्रकाशक ने कहा जबकि उसे मेरी पुस्तक
पसन्द थी उसने 3000 प्रतियों से ज्यादा बिकने की ऐसे देश में उम्मीद नहीं की थी जहाँ किसी ने चर्च
नहीं देखा है या कोई लैटिन नहीं पढ़ता है । अतः मुझे 3000 प्रतियों की पेशगी दी गई परन्तु अन्त में
अमेरिका में 20 से 30 लाख प्रतियाँ बिकीं ।
मेरी पुस्तक से पहले मध्ययुगीन इतिहास के बारे में बहुत सारी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं । मैं समझता हूँ
पुस्तक की सफलता एक रहस्य है । कोई इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता है । मैं समझता हूँ कि यदि
मैंने The Name of the Rose दस वर्ष पहले या दस वर्ष बाद लिखा होता तो (परिणाम) वही न होता ।
उस समय यह इतनी सफल कै से हो गई यह एक रहस्य है ।
Chapter 8 Going Places Hindi Translation
Day
Night
लेखक परिचय
A. R. Barton एक आधुनिक लेखक हैं जो Zurich में रहते हैं और अंग्रेजी में लिखते हैं । ‘Going Places’
कहानी में Barton किशोर-कल्पना और नायक-पूजा के विषय को खोजते हैं ।
पाठ का सारांश Sophie और jansie सहपाठी तथा मित्र थीं । विद्यालय से घर आते हुए वे पढ़ाई के बाद
कु छ कार्य तलाश करने की सोच रही थीं लेकिन दोनों के दृष्टिकोण (विचार) अलग-अलग थे । Sophie
हमेशा बड़े और सुन्दर कार्य करने का स्वप्न देखती थी जबकि Jansie अपने परिवार की सीधी-सादी
स्थिति के अनुसार ही कार्य करना चाहती थी ।
Sophie का भाई Geoff अपनी मोटरसाइकिल के किसी हिस्से पर तैलीय कार्य करने में व्यस्त था ! वह
उसके समीप गयी और उसने अपनी Danny Casey के साथ मुलाकात के सम्बन्ध में बताया । वह
फु टबाल का एक अद्भुत खिलाड़ी था । Sophie के परिवार के सभी सदस्य फु टबाल के दीवाने थे ।
सायंकाल को अंधेरा होने के बाद Sophie नहर के किनारे चलती हुई उस स्थान पर पहुंची जहाँ वह बचपन
में अक्सर खेलती थी । वह Danny Casey के आने की आशा में बैठी रही लेकिन वहाँ पर उसका कोई भी
चिह्न नहीं था । वह निराश हो गई । अपने घर की ओर वापस आते हुए अब भी वह Danny Casey के
आने का स्वप्न देख रही थी।
विद्यालय से घर आते हुए Sophie ने कहा, “पढ़ाई के बाद मेरा एक बुटीक होगा ।” उसकी बाँहों में बाँहें
डाले गली में चलते हुए Jansie को इस बात पर शंका हुई । “Soaf, ऐसा कु छ करने में धन खर्च होता है।”
गली में दूर घूरते हुए Sophie ने कहा, “मैं जुटा लूँगी ।’ “इतना धन जुटाने में तुम्हें बहुत समय लगेगा ।”
“ठीक है, तो हाँ सचमुच, शुरू में मैं मैनेजर बन जाऊँ गी, जब तक मेरे पास पर्याप्त (धन) न होगा ।
पर, जो कु छ भी हो, मैं जानती हूँ यह सब कै सा दिखेगा ।” “Soaf, लोग तुम्हें तुरंत ही मैनेजर नहीं बना
देंगे ।” Sophie ने कहा, “मैं Mary Quant जैसी बनूँगी । मैं अपनी योग्यता के अनुरूप कार्य करूँ गी । वे
यह शुरू से देखेंगे । मेरी बहुत ही आश्चर्यजनक दुकान होगी जैसी इस शहर में कभी नहीं रही होगी। यह
जानते हुए कि उन दोनों को तो बिस्कु ट की फै क्ट्री में काम करना था, Jansie दु:खी हो गई । वह चाहती
थी कि Sophie ऐसी बातें न कहे ।।
जब वे Sophie की गली पर पहुँची तो Jansie ने कहा, “Soaf, अब तो कु छ ही महीनों की बात है, तुम्हें,
सचमुच समझदार होना चाहिए । दुकान का काम करने के बदले में ज्यादा पैसा नहीं मिलता है, तुम यह
जानती हो, तुम्हारे पिताजी तुम्हें यह कभी नहीं करने देंगे ।”
“या फिर एक अभिनेत्री। इस काम में वास्तव में बहुत पैसा है । हाँ और हो सकता है साथ-साथ में बुटीक
भी रख लूँ। अभिनेत्रियाँ पूरे समय काम नहीं करती हैं, है ना? खैर या तो अभिनेत्री या फै शन डिजाइनर, तुम
जानती हो-कोई ऐसा ही सुन्दर काम ।” Jansie को वर्षा में खड़ी छोड़कर वह गली के खुले दरवाजे में होकर
अन्दर चली गई ।
“अगर कभी मेरे पास पैसा हो गया तो मैं एक बुटीक खरीदूंगी ।”
“हाँ, यदि तुम्हारे पास कभी पैसा हो तो…….यदि तुम्हारे पास कभी पैसा हो तो तुम हमारे रहने के लिए
आनन्ददायक सुन्दर घर खरीदोगी, बहुत-बहुत धन्यवाद ।” Sophie के पिता जितना हो सकता था उतनी
जोर से शेपड पाइ चम्मच से अपने मुँह में डाल रहे थे, उनका मांसल चेहरा अभी भी गन्दा और पसीना
भरा था दिन के काम से धुलधुसरित । “वह समझती है पैसा पेड़ों पर उगता है, है न पापा ?” छोटे Derek
ने अपने पिता की कु र्सी के पीछे लटकते हुए कहा । उनकी माँ ने आह भरी ।
Sophie ने सिंक के ऊपर अपनी माँ की झुकी हुई कमर देखी और उसके एप्रन की डोरी के ऊपर बंधे
सुन्दर फू ल की असंगतता के बारे में सोचा । सुन्दर दिखने वाला फू ल और झुकी कमर । शाम का
अन्धकार पहले ही खिड़कियों पर दिखने लगा था और छोटे कमरे में स्टोव का धुआँ भरा था तथा मेज पर
बनियान पहने खर्राटे मारता आदमी और कोने में पड़े गन्दे कपड़ों के ढेर से कमरा भरा हुआ था। Sophie
को गले में कठोरता महसूस हुई । वह अपने भाई Geoff को ढूँ ढने निकल पड़ी ।
वह कारपेट पर बिछे अखबार के ऊपर रखे मोटरसाइकिल के हिस्से से ठोका-पीटी करते हुए बगल वाले
कमरे में फर्श पर घुटनों के बल बैठा था । उसे स्कू ल छोड़े तीन वर्ष हो चुके थे, नौसिखिया मेके निक जो
शहर के दूसरे छोर पर प्रतिदिन काम के लिए जाता था । अब वह लगभग बड़ा हो गया था और वह
(Sophie) उसके जीवन के उन क्षेत्रों पर संदेह करती थी जिनके विषय में वह कु छ नहीं जानती थी, (तथा)
जिनके बारे में वह कभी भी बात नहीं करता था ।
वह अपनी मर्जी से कभी भी बिल्कु ल कु छ नहीं बोलता था । उसके अन्दर से शब्द उखाड़कर वैसे ही
निकालने पड़ते थे जैसे जमीन में से पत्थर । और वह (बहिन) उसकी चुप्पी से ईर्ष्या करती थी । जब वह
नहीं बोल रहा होता था तो लगता था जैसे वह कहीं दूर होता था, संसार के उन स्थानों पर जहाँ वह कभी
नहीं गई थी । चाहे वे शहर के बाहरी क्षेत्र थे या चारों ओर के देहात के स्थान -कौन जानता था ? उनके
प्रति उसे (Sophie को) सिर्फ इसलिए आकर्षण था क्योंकि वे उसके लिए अनजान थे और उसकी पहुँच से
परे थे ।।
शायद, वहाँ लोग भी थे, उत्तेजनात्मक, रुचिकर लोग जिनके बारे में वह कभी बात नहीं करता था- यह
सम्भव था, यद्यपि वह शान्त था और आसानी से नये मित्र नहीं बनाता था । वह उन्हें जानना चाहती थी
। वह चाहती थी कि उसे उसके भाई का ज्यादा प्यार मिले और किसी दिन वह उसे अपने साथ ले जाये ।
यद्यपि उनके पिता मना करते थे और Geoff ने (इस बारे में) कोई विचार नहीं रखा था, वह जानती थी
कि वह उसे कु छ ज्यादा ही छोटी समझता था । और वह अधीर थी ।
उसे पता था कि बाहर उसके लिए एक बड़ा संसार प्रतीक्षा कर रहा था और अन्तःप्रेरणा से उसे पता था
कि उसका मन वहाँ भी उतना ही लगेगा जितना कि उस शहर में जो सदैव उसका घर रहा था । (Sophie
अपने मन ही मन कल्पना करती है कि) यह (स्थान) आतुरता के साथ उसकी प्रतीक्षा कर रहा था ।
वह (कल्पना में) वहाँ स्वयं को Geoff के पीछे घुड़सवारी करते देखती थी । वह नये चमकीले काले चमडे
के कपड़े पहने होता था और वह पीली ड्रेस पहने होती थी जिसमें एक प्रकार का दुपट्टा था जो पीछे -पीछे
उड़ता आ रहा था। जब दुनिया उनका स्वागत करने को खड़ी होती तो जय-जयकार की ध्वनि होती थी ।
वह (Geoff) अपने हाथ में तैलीय पदार्थ (तेल से सने मोटर साइकिल के पुर्जे) को रखकर उसकी तरफ गुर्रा
रहा था, मानो यह कोई छोटा-सा गूंगा जानवर हो और वह उसे बुलवाना चाहता हो
Sophie ने कहा, “मैं Danny Casey से मिली थी।” उसने (Geoff ने) अचानक चारों ओर देखा। ‘कहाँ’ ।
“मजेदार बात यह है – गलियारे में ।” “यह कभी सच नहीं हो सकता है।” “मुझे भी यही लगा था ।”
“क्या तुमने डैडी को बताया ?” उसने ना में सिर हिलाया, उसकी अज्ञानता पर दु:ख जताया कि वह सदैव
उसके रहस्य का प्रथम भागीदार होता था। “मैं इस पर विश्वास नहीं करता ।” “मैं तो Royce की खिड़की
में कपड़ों को देख रही थी तभी कोई आया और मेरे पास खड़ा हो गया, और मैंने घूमकर देखा तो यह कोई
और नहीं बल्कि Danny Casey था ।”
हिन्दी अनुवाद – “ठीक है, वह कै सा लग रहा था ? “अरे छोड़ो, तुम्हें पता है वह कै सा लगता है ।” “मेरा
मतलब करीब-करीब ।” “अच्छा- उसकी हरी आँखें हैं । सौम्य आँखें और वह इतना लम्बा नहीं है जितना
तुम समझते हो…. ।” उसने सोचा कि क्या उसे उसके दाँतों के बारे में भी कु छ कहना चाहिए परन्तु उसने
ऐसा न करने का निश्चय किया । उनके पिता जब अन्दर आये तो वे स्नान कर चुके थे और उनका चेहरा
और बाँहें चमकीली और गुलाबी थीं और उनमें से साबुन की गन्ध आ रही थी। उन्होंने टेलीविजन चालू
किया, छोटे Derek का एक जूता अपनी कु र्सी से सोफा पर फें का और गुर्राते (तीखी आवाज के साथ) हुए
बैठ गये ।।
Geoff ने कहा, “Sophie, Danny Casey से मिली थी ।” Sohpie मेज पर बैठी छटपटाई। उसके पिता ने
अपनी मोटी गर्दन पर रखे सिर को उसकी ओर देखने के लिए घुमाया । उनका भाव घृणा का था ।
Geoff ने कहा, “यह सच है।” उसके पिता ने आदरपूर्वक टेलीविजन (टेलीविज़न से नज़रें हटाये बिना) से
कहा, “मैं एक बार ऐसे आदमी को जानता था जो Tom Finney को जानता था । परन्तु यह बहुत पुरानी
बात है ।” Geoff ने कहा, “आपने हमको बताया था ।” “किसी दिन Casey भी उतना ही अच्छा हो सकता
है ।” “उससे भी अच्छा । वह सबसे अच्छा है ।”
“यदि वह अपने दिमाग का सही प्रयोग करे (शानो-शौकत उसके सिर पर न चढ़ जाये) । यदि वे उसकी
ठीक प्रकार देखभाल करें । आजकल खेल में नवयुवकों के लिए बहुत सारी ध्यान भंग करने वाली चीजें
होती हैं ।”
“वह ठीक रहेगा, वह देश की सबसे अच्छी टीम में है ।” “अभी वह बहुत छोटा है ।” “वह मुझसे बड़ा है।”
“पहले नम्बर की टीम के हिसाब से बहुत छोटा है ।” । “आप इस तरह की योग्यता पर बहस नहीं कर
सकते हो ।” सोफी ने मेज पर से कहा, “वह एक दुकान खरीदने वाला है।” उसके पिता ने बुरा मुँह बनाया,
“तुमने यह कहाँ सुना ?” “उसने मुझे ऐसा बताया ।”
वे कु छ बड़बड़ाये जो सुना न जा सका और स्वयं को अपनी कु र्सी में समेट लिया । “यह तुम्हारी कपोल-
कल्पित कहानियों में से एक है ?’
“वह उससे गलियारे में मिली,” Geoff ने कहा और उन्हें बताया कि यह सब किस तरह हुआ था । “किसी
दिन तुम इन बातों से अपने आप को बहुत बड़ी परेशानी में डाल लोगी ।” उसके पिता ने गुस्से में कहा।
“Geoff जानता है कि यह सच है, क्या तुम नहीं जानते Geoff ?” ” वह तुम्हारा विश्वास नहीं करता –
यद्यपि वह (विश्वास करना) करना चाहेगा ।”
टेबल लैम्प, उसके भाई के बेडरूम की दीवार पर और अमेरिका की नं. 1 टीम के पोस्टर और उसके नीचे
रंगीन फोटोग्राफों की पंक्ति, जिसमें तीन फोटो आयरलैण्ड के विलक्षण प्रतिभासम्पन्न नवयुवक Casey के
थे, पर पीली भूरी चमक डाल रही थी । Sophie ने कहा, “वादा करो, किसी को नहीं बताओगे ?” “बताने को
कु छ है ही नहीं ?” “वादा करो Geoff-डैडी मुझे मार डालेंगे ।” “सिर्फ तभी जब वे यह सोचेंगे कि यह सही
था ।”
“कृ पया Geoff ।” “हे प्रभु, Sophie, तुम अभी स्कू ल में हो । Casey के पीछे लड़कियों की बड़ी संख्या होगी
।” “नहीं, उसके पीछे नहीं है ।” “तुम्हें यह कै से पता लगा ?” उसने उपहास किया । “उसने मुझे बताया, ऐसे
पता लगा।” । “मानो कोई भी किसी लड़की को ऐसी बात बतायेगा ।” “हाँ, उसने बताया । वह ऐसा नहीं है
। वह…………..शान्त है।” “उतना शान्त नहीं – जितना दिखाई पड़ता है ।”
“Geoff, ऐसा कु छ नहीं था – पहले मैंने बात शुरू की थी । जब मैंने उसे पहचान लिया तो मैंने कहा “क्षमा
करें, क्या आप Danny Casey नहीं हैं ?” और वह कु छ चकित लगा । और उसने कहा “हाँ, यह सच है ।”
और मैं जानती थी यह वही था क्योंकि उसका लहजा वैसा ही था जैसा कि तब था जब उसका टेलीविजन
पर साक्षात्कार लिया गया था । इसीलिए छोटे Derek के लिए मैंने उससे ऑटोग्राफ माँगा परन्तु हम दोनों
में से किसी के पास कागज
या पेन नहीं था । इसलिए हमने सिर्फ थोडी बातचीत की, Royce की खिड़की में रखे कपड़ों के बारे में ।
वह अके ला लग रहा था । कु ल मिलाकर, यह जगह पश्चिमी आयरलैण्ड से बहुत दूर है । और फिर, जब
वह जाने लगा, उसने कहा कि यदि मैं उससे अगले सप्ताह मिलूँगी तो तब वह मुझे autograph देगा ।
सचमुच मैंने कहा, “मैं मिलूँगी ।”
“मानो वह कभी दिखाई पडेगा ।” “अब तुम मेरा विश्वास करते हो, करते हो न ?
कु र्सी के पीछे से उसने (Geoff ने) अपनी जैके ट खींची जो चमकीली और आकृ तिविहीन (बेतरतीब) थी और
अपनी बाँहें उसमें घुसा दी । उसने (Sophie ने) चाहा वह अपने रूप स्वरूप पर ज्यादा ध्यान दे । चाहा कि
वह अपने कपड़ों पर ज्यादा ध्यान दे । वह लम्बा था, उसका चेहरा मजबूत और काला था । खूबसूरत,
उसने सोचा ।
“यह मेरे द्वारा कभी सुनी गई सर्वाधिक असम्भव बात है,” उसने (Geoff ने) कहा ।
शनिवार को वे United (टीम का नाम) को देखने अपनी साप्ताहिक तीर्थयात्रा (उनके लिए अत्यधिक रोचक
स्थान की यात्रा) पर गये । Sophie और उसके पिता और छोटा Derek गोल के पास गये – Geoff सदा की
भाँति अपने साथियों के साथ ऊपर गया । United ने 2-0 से मैच जीता और Casey ने दूसरा गोल किया,
Casey आयरलैण्ड की प्रतिभा और भोलेपन का सम्मिश्रण था, उसने पेनल्टी क्षेत्र के कोने पर दो बड़े
गोलरक्षकों के चक्कर काटकर गोल बनाया, Sophie के पिता चीखते रहे कि Casey 12 गज की दूरी से
पास दो और हिचकिचाने वाले गोलकीपर को परास्त करी ।
सोफी गर्व से चमक उठी । इसके बाद Geoff अति उल्लसित था ।
“काश, वह एक अंग्रेज होता.’ किसी ने बस में कहा ।
“आयरलैण्ट विश्व कप जीतेगा.” छोटे Derek ने अपनी माँ से उस समय कहा जब Sophie उसे घर लायी ।
उसके पिता जश्न मनाने पब (शराबघर) जा चुके थे ।
“यह क्या है जो तुम बताती रही हो (आजकल तुम क्या बातें कर रही हो) ?” अगले सप्ताह Jansie ने कहा।
“किस बारे में ?” “तुम्हारे Geoff ने हमारे फ्रे न्क को बताया कि तुम Danny Casey से मिली थीं ।” । यह
कोई जाँच नहीं थी, Jansie सिर्फ जानने को बेताब थी । परन्तु Sophie चौंक गई । “अरे, वह ।” यह जानते
हुए कि वह (Sophie) “बात’ को छिपा रही है, Jansie ने भौहें चढ़ाईं । “अच्छा-हाँ. मैं मिली थी ।”
“क्या तुम कभी नहीं मिली ?” Jansie ने विस्मय के साथ कहा । Sophie ने जमीन की ओर क्रोधपूर्वक
देखा, भाड़ में जाने दो उस Geoff को । यह Geoff की बात थी, Jansie की नहीं । यह सिर्फ उनके बीच की
विशेष बात थी । गुप्त बात । यह Jansie जैसी बात बिल्कु ल नहीं थी । बेढंगी Jansie से कु छ ऐसी बात
कह दो और पूरा पड़ोस इसे जान लेगा । भाड़ में जाये Geoff, क्या कु छ भी पवित्र नहीं था ?
“यह एक गुप्त बात है – गुप्त रखी जाने के लिए ।” “सोफ, मैं इसे गुप्त ही रखूगी, तुम जानती हो। किसी
को नहीं बताना चाहती थी, यदि मेरे पिताजी को पता चल गया तो फिर वही पुराना झंझट खड़ा हो जायेगा
।”
Jansie ने आँखें मिचकाईं “झंझट ? मैं समझती हूँ वे तो बहुत अधिक सन्तुष्ट (खुश) होंगे ।” । तब उसने
महसूस किया कि Jansie को उसके फिर से मिलने के वायदे के बारे में कु छ भी पता न था – Geoff ने
उस बारे में नहीं बताया था। उसने राहत की सांस ली । तो कु ल मिलाकर Geoff ने उसे निराश नहीं किया
था । कु ल मिलाकर उसने उस पर भरोसा किया । आखिर कु छ चीजें तो पवित्र हो ही सकती हैं । “यह
सचमुच छोटी सी बात थी । मैंने उससे autograph माँगा परन्तु हमारे पास कागज, पेन नहीं था इसलिए
इससे कोई फायदा न हुआ । Geoff ने कितना बताया ?
“हे भगवान, काश मैं वहाँ होती ।” “सचमुच, मेरे पिताजी इस पर विश्वास नहीं करना चाहते थे । तुम
जानती हो वह कितनी बड़ी मुसीबत हैं । और मैं बिल्कु ल नहीं चाहती कि उनसे पूछने के लिए हमारे घर
पर लोगों की कतार लगे, “Danny Casey वाली क्या बात है ?” वह मेरा कत्ल कर देंगे । और तुम जानती
हो मेरी माँ का क्या हाल होता है जब कोई झंझट होता है।” Jansie ने धीरे से कहा, “Soaf, तुम जानती हो,
तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो ।’
अंधेरा होने के बाद वह नहर के किनारे एक सुरक्षित मार्ग पर चली जो मात्र सामने के घाट से जल में
पड़ने वाली बल्बों की चमक से प्रकाशित था और (जहाँ) शहर की निरन्तर चलने वाली भिनभिनाहट धीमी
और दूर थी । यह वह स्थान था जहाँ वह बचपन में अक्सर खेला करती थी ।
अकले elm के वृक्ष के नीचे लकड़ी की बेन्च थी जहाँ कभी-कभी प्रेमी आते थे । वह (वहाँ) प्रतीक्षा करने के
लिए बैठ गई । उन लोगों के लिए जो दूसरों के द्वारा देखे जाना नहीं चाहते थे, उनके मिलन के लिए यह
स्थान श्रेष्ठ था, ऐसा वह हमेशा सोचती थी । उसे पता था वह (Casey) (इस स्थान को) पसंद करेगा ।
कु छ देर प्रतीक्षा करते हुए उसने कल्पना की कि वह आ रहा था । वह नहर के किनारे देखती रही, उसे
परछाइयों से निकलकर आता हुआ देखने के लिए और परिणामस्वरूप अपनी स्वयं की होने वाली
उत्तेजनाओं की कल्पना करते हुए। जब कु छ समय गुजर गया तो वह उसके न आने के बारे में भी सोचने
लगी ।।
उसने स्वयं से कहा, मैं यहाँ यह इच्छा करते हुए बैठी हूँ कि Danny आयेगा, और समय गुजरने का
अहसास उसे होता रहा । मैं अपने अन्दर संदेह के कष्टों को आन्दोलित होते महसूस कर रही हूँ, मैं उसकी
प्रतीक्षा कर रही हूँ । परन्तु अभी तक उसका कोई संके त नहीं है । मुझे याद है मैंने Geoff को यह कहते
सुना कि वह कभी नहीं आयेगा और किसी तरह जब मैंने उन्हें बताया तो किसी ने भी मेरा विश्वास नहीं
किया ।
मैं सोच रही हूँ मैं क्या करूँ गी, यदि वह नहीं आया तो मैं उन्हें क्या बता सकती हूँ ? परन्तु हम जानते हैं
कि बात क्या थी, Danny और मैं-यही मुख्य बात है । आप इसमें कु छ नहीं कर सकते कि लोग किस बात
में विश्वास करें और किस में न करें ? किन्तु फिर भी, इससे मुझे निराशा होती है, यह जानकर, मैं यह नहीं
दिखा सकूँ गी कि मुझ पर सन्देह करके उन्होंने गलती की थी। अपने अन्दर के इस प्रकार बदलावों को
भांपती, वह प्रतीक्षा करती रही । सम्पूर्ण आत्मसमर्पण यकायक नहीं हुआ।
अब मैं दुखी हो गई हँ, उसने सोचा । और इस दुःख को लादे रखना मुश्किल है । यहाँ बैठकर प्रतीक्षा
करते रहना, यह जानते हुए भी कि वह नहीं आयेगा, मैं भविष्य को देख सकती हूँ और जान सकती हूँ कि
मुझे इस बोझ के साथ कै से रहना होगा । सचमुच वे मुझ पर सन्देह करेंगे, जैसा कि उन्होंने सदैव मुझ
पर सन्देह किया है किन्तु अतीत का ध्यान रखते हुए मुझे अपना सिर ऊँ चा रखना होगा ।
पहले ही मैं देख रही हूँ कि मैं धीरे-धीरे घर लौट रही हूँ और Geoff का निराश चेहरा, जब मैं उसे बताऊँ गी,
“वह नहीं आया, वह Danny ” । और वह दरवाजा धड़ाम से बन्द करके बाहर भाग जायेगा । “परन्तु हम
जानते हैं कि बात कै सी थी ।” मैं स्वयं से कहूँगी, “Danny और मैं ।” यह उदासी बड़ी कठोर चीज है ।
उसने गली की जीर्ण-शीर्ण सीढ़ियाँ चढ़ी । शराबखाने के बाहर दीवार के सहारे रखी अपने पिता की
साइकिल के पास से गुजरी और वह खुश थी । वह जब घर पहुँचेगी वह घर पर न होंगे ।
“क्षमा करें, किन्तु क्या आप Danny Casey नहीं हैं ?” बाजार से आते हुए Royce के बाहर फिर से उसने
कल्पना की । लज्जा में थोड़ा लाल पड़ता हुआ वह मुड़ता है, “हाँ, यह सच है ।” “मैं अपने भाईयों और डैडी
के साथ आपको हर सप्ताह देखती हूँ । हमें लगता है आप महान हैं।” – “अरे, ठीक है – यह बड़ा अच्छा
है।”
“मैं जानने को उत्सुक हूँ – क्या आप एक autograph साइन करेंगे ?” उसकी आँखें उसी तल पर हैं जिस
पर आपकी अपनी । उसकी नाक पर धब्बे हैं और थोड़ी-सी ऊपर उठी है और जब वह मुस्कु राता है तो वह
शरमाते हुए छिछले दाँतों को दिखाता है
उसकी आँखें हरी हैं और वह जब आपकी ओर सीधे देखता है तो वे झिलमिलाती प्रतीत होती हैं । वे सरल
लगती हैं, लगभग डरी हुई । एक छोटे हिरन की तरह। और आप उससे निगाह हटा लें, और उसकी आँखें
जरा आपके ऊपर घूमने दें तो लौटकर देखने पर आप उन्हें थोड़ा बेचैन पाओगे ।
और वह कहता है, “लगता है मेरे पास पेन ही नहीं है ।” आप महसूस करते हो आपके पास भी नहीं है।
“मेरे भाई बहुत दुखी होंगे,” तुम कहती हो । और बाद में, तुम बाजार में कोमल, मधुर आवाज को, हरी
आँखों की झिलमिलाहट को याद करते हुए, लम्बे समय तक प्रतीक्षा करती हो वहाँ खड़े होकर जहाँ वह
खड़ा हुआ था, तुमसे ज्यादा लम्बा नहीं, तुमसे ज्यादा मोटा नहीं ।
भोला-भाला प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति महान Danny Casey और पिछले शनिवार उसने यह सब (अपनी
कल्पना में) फिर देखा – बेढंगे तरीके से धीरे-धीरे चलते हुए या मदमदाते आगे बढ़ते हुए रक्षकों के पास से
प्रेत की तरह निकलते हुए देखा, जब थोड़ी देर वह गेंद के ऊपर मंडराया, पचास हजार लोगों को सांस
थामते सुना और फिर धमाके दार आवाज (हुई) जब उसने फु र्ती से गेंद को गोल में डाला, तब अचानक
उसकी प्रशंसा में उल्लास फू ट पड़ा ।
फिल्मों में उसकी सफलता ने उसकी साहित्यिक उपलब्धियों को ढक लिया और उसे कम कर दिया – या
उसके समालोचकों को ऐसा लगता था । उसने लोक टेक पर आधारित तथा लोकभाषा में कई सचमुच
मौलिक कथा-काव्यों की रचना की तथा उसने अव्यवस्थित उपन्यास Thillana Mohanambal लिखा
जिसमें दर्जनों चरित्रों को चतुराई से उके रा गया । बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ की देवदासियों की मन:स्थिति
तथा हाव-भावों का वर्णन उसने बहुत सफलतापूर्वक किया ।
वह एक आश्चर्यजनक अभिनेता था – उसने कभी भी मुख्य भूमिका पाने की इच्छा नहीं की – किन्तु किसी
भी फिल्म में जो भी सहयोगी भूमिका अदा की, उसने तथाकथित मुख्य कलाकारों से बेहतर भूमिका अदा
की । हर मिलने वाले के प्रति उसमें सच्चा प्यार था और उसका घर पास और दूर के रिश्तेदारों और
परिचितों का स्थायी निवास था ।
वह इतने लोगों को भोजन करा रहा था और मदद कर रहा था, इस बात के प्रति जागरूक होना भी सुब्बू
के स्वभाव के विपरीत था । ऐसा दानी और फिजूलखर्ची वाला आदमी और फिर भी उसके दुश्मन थे ! क्या
यह इसलिए था कि वह बॉस के बहुत करीब लगता था ? या फिर उसका सामान्य व्यवहार जो चापलूस से
मिलता-जुलता था ? या हर चीज़ के बारे में अच्छा बोलने की उसकी तत्परता ? जो भी हो, मेक-अप विभाग
में यह आदमी (office boy) था जो सुब्बू के लिए सर्वाधिक भयानक चीजों की कामना करता था ।
सुब्बू सदा बॉस के साथ दिखाई देता था किन्तु उपस्थिति पत्रक पर उसे कथा-विभाग में शामिल किया
जाता जिसमें एक वकील और लेखकों और कवियों का एक समूह शामिल था । वकील को आधिकारिक
तौर पर कानूनी सलाहकार भी कहा जाता था, परन्तु हर कोई उसे इसके विपरीत बताता ।
एक अत्यन्त प्रतिभावान अभिनेत्री, जो बहुत अधिक तुनकमिजाज भी थी, एक बार सैट पर भड़क उठी ।
जबकि सब सन्न. खड़े थे, वकील ने चुपचाप आवाज रिकार्ड करने वाला यन्त्र चालू कर दिया । जब
अभिनेत्री साँस लेने के लिए रुकी, वकील ने उससे कहा, “एक मिनट, कृ पया,” और रिकार्ड को फिर से चालू
कर दिया ।
फिल्म निर्माता के बारे में अभिनेत्री के क्रोध पूर्ण भाषण में कु छ भी अकथनीय रूप से बुरा या दोषी दिखने
वाला नहीं था । परन्तु जैसे ही ध्वनि यन्त्र के द्वारा उसने अपनी आवाज फिर से सुनी, वह अवाक रह गई
। देहात से आई यह लड़की, संसार के अनुभवों के उन सभी स्तरों से नहीं गुजरी थी जो आमतौर पर
महत्त्व और नजाकत का वह स्थान पाने से पहले होते हैं जिसमें उसे पहुँचा दिया गया था (अर्थात् लड़की
का व्यवहार उसके वर्तमान स्तर के अनुकू ल नहीं था) ।
उस दिन उसने जिस डर का अनुभव किया वह उससे कभी उबर न सकी । यह एक संक्षिप्त और अच्छे
अभिनय करिअर का अन्त था – कानूनी सलाहकार ने जो कथा विभाग का सदस्य भी था, मूर्खतापूर्ण तरीके
से यह दु:खद अन्त कर दिया था ।
जबकि विभाग का हर दूसरा सदस्य एक प्रकार का गणवेश पहनता था – खादी की धोती और बेढंगे तरीके
से सिली हुई ढीली सी सफे द खादी की शर्ट, कानूनी सलाहकार पैण्ट और टाई पहनता था और कभी-कभी
एक ऐसा कोट जो कि कवच जैसा लगता था । अक्सर वह अके ला और असहाय दिखता था- स्वप्नद्रष्टाओं
की भीड़ में नीरस तर्क वाला आदमीगाँधीवादी और खादीवादी लोगों के दल में निरपेक्ष (व्यक्ति)।
बॉस के करीबी बहुत से लोगों की भाँति- उसे फिल्म बनाने की अनुमति दी गई और यद्यपि बहुत सारा
कच्चा माल और Pancake इसमें काम में लिया गया, लेकिन फिल्म से कु छ ज्यादा हासिल नहीं हुआ ।
फिर एक दिन बॉस ने कथा-विभाग बन्द कर दिया और शायद पूरे मानव इतिहास में यह एकमात्र
उदाहरण था जहाँ एक वकील की नौकरी इसलिए छू ट गई क्योंकि कवियों को घर जाने के लिए कह दिया
गया था ।
जैमिनी स्टू डियो SDS Yogiar (एक स्वतंत्रता सेनानी तथा एक राष्ट्रीय कवि), सांगु सुब्रमण्यम, कृ ष्णा शास्त्री
और हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय (एक कवि और नाटककार) जैसे कवियों का पसंदीदा भ्रमण-स्थल था । इसमें
एक सुन्दर भोजनालय था जिसमें सारे दिन और रात को बहुत समय तक अच्छी कॉफी मिलती थी ।
ये वे दिन थे जब कांग्रेस के शासन का मतलब पाबन्दी होती थी और कॉफी पीते हुए मिलना काफी
सन्तोषप्रद मनोरंजन होता था । दो-एक लिपिकों और आफिस बॉयज़ को छोड़कर हर आदमी खाली लगता
था जो काव्य की पूर्व शर्त है । (अर्थात् कविता लिखने के लिए लेखक के पास खाली समय होना चाहिए)।
उनमें से अधिकांश खादी पहनते थे और गाँधीजी की पूजा करते थे परन्तु इससे आगे उन्हें किसी प्रकार के
राजनीतिक विचार की जरा-सी भी समझ नहीं थी । स्वाभाविक रूप से, वे सभी कम्युनिज्म शब्द के
खिलाफ थे । एक कम्युनिस्ट एक ईश्वरहीन व्यक्ति होता था । उसके बच्चे माता-पिता को तथा पत्नी,
पति एक-दूसरे को प्यार नहीं करते,
उसे अपने माता-पिता या बच्चों की हत्या करके भी ग्लानि नहीं होती; वह हमेशा भोले और अज्ञानी लोगों
के बीच अशान्ति एवं हिंसा उत्पन्न करने और फै लाने को तैयार रहता था । ऐसे विचार जो उस समय भी
दक्षिण भारत में हर जगह फै ले थे वे स्वाभाविक रूप से, जैमिनी स्टू डियो के खादीधारी कवियों में अस्पष्ट
रूप से फै ले थे । इसका प्रमाण शीघ्र ही तैयार था अर्थात् शीघ्र ही मिल गया।
जब Frank Buchman का लगभग 200 आदमियों का दल Moral Re-Armament army, 1952 में कभी
मद्रास आया तो उन्हें भारत में जैमिनी स्टू डियो से बेहतर गर्मजोशी से स्वागत करने वाला मेज़बान कोई
और नहीं मिल सकता था । किसी ने इस दल को अन्तर्राष्ट्रीय सर्क स बताया ।
वे झूले पर अच्छा खेल नहीं दिखाते थे और पशुओं से उनका परिचय सिर्फ भोजन की मेज पर होता था ।
(अर्थात् वे पशुओं का माँस खाते थे, इसके अलावा पशुओं के बारे में कु छ नहीं जानते थे), किन्तु वे दो
नाटकों को अत्यन्त प्रशिक्षित अन्दाज में प्रस्तुत करते थे । उनके नाटक ‘Jotham Valley’ और “The
Forgotten Factor’ के मद्रास में अनेक shows हुए और शहर के अन्य नागरिकों के साथ-साथ जैमिनी
परिवार के छ: सौ लोगों ने भी इन नाटकों को बार-बार देखा ।
नाटकों का सन्देश सीधी सरल नैतिक शिक्षा होती थी किन्तु सैट और वस्त्र सज्जा अति उत्तम थी ।
मद्रास और तमिल नाटक मंडलियाँ बहुत ज्यादा प्रभावित थीं और कई वर्ष तक लगभग सारे तमिल नाटकों
में खाली मंच, पीछे की तरफ सफे द पर्दा और बाँसुरी पर बजती धुन के साथ ‘Jotham Valley’ की तर्ज पर
सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य होता था । कई वर्ष बाद मुझे पता चला कि MRA अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवाद
का एक विरोधी आन्दोलन था और मद्रास के श्री वासन जैसे बड़े आदमी उनके हाथों में खेल रहे थे अर्थात्
उनके प्रभाव में आ गए थे ।
तथापि मुझे ठीक-ठीक नहीं मालूम कि सचमुच ऐसा ही था क्योंकि इन बड़े लोगों के न बदलने वाले पक्ष
और उनके काम वैसे ही रहे, MRA तथा अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवाद के होने न होने का कोई फर्क नहीं था ।
जैमिनी स्टू डियो के स्टाफ का समय कम-से-कम 20 देशों के भिन्न-भिन्न रंग और आकार के दो सौ लोगों
का स्वागत करते हुए अच्छा गुजरा। मेक-अप विभाग में मेक-अप बॉय द्वारा मेक-अप की मोटी परत
चढ़ाये जाने की प्रतीक्षा करती भीड़ की भूमिका निभाने वाले लोगों के जमावड़े से यह बहुत अलग था ।
कु छ ही महीने बाद, मद्रास के बड़े लोगों के फोन बजे और एक बार फिर जैमिनी स्टू डियो में एक और
पर्यटक का स्वागत करने के लिए हमने पूरी स्टेज खाली कर दी । के वल इतना पता चला कि वह इंग्लैण्ड
के एक कवि थे । जैमिनी का सीधा सच्चा स्टाफ इंग्लैण्ड के जिन कवियों के बारे में जानता था या
जिनके बारे में उसने सुना था, वे थे Wordsworth और Tennyson, और अधिक पढ़े-लिखे लोग Keats,
Shelley तथा Byron के बारे में जानते थे, और एक या दो शायद Eliot नाम के किसी कवि के बारे में
थोड़ा बहुत जानते थे । अब जैमिनी स्टू डियो में आने वाला कवि कौन था ?
“वह कवि नहीं है । वह संपादक है । यही कारण है बॉस उसका इतना स्वागत कर रहे हैं।” वासन भी
सुपरिचित तमिल साप्ताहिक ‘Ananda Vikatan’ का सम्पादक था । मद्रास में जिन ब्रिटिश प्रकाशनों के
नाम पता थे अर्थात् जिन्हें जैमिनी स्टू डियो में लोग जानते थे वह उनका सम्पादक नहीं था ।
चूँकि “The Hindu’ के प्रमुख लोग पहल कर रहे थे इसलिए अन्दाज़ यह था कि वह कवि किसी दैनिक
समाचार पत्र का सम्पादक था – किन्तु वह Manchester Guardian या London Times से नहीं था ।
हम में से सर्वाधिक जानकारी रखने वाला आदमी भी बस इतना ही जानता था ।
अन्त में, दोपहर बाद लगभग 4 बजे, कवि (या सम्पादक) आया । वह एक लम्बा आदमी था, बिल्कु ल अंग्रेज,
बहुत गम्भीर और सचमुच हम सबसे बहुत अधिक अपरिचित । शूटिंग स्टेज पर रखे आधा दर्जन पंखों की
तेज हवा को झेलते हुए बॉस ने एक लम्बा भाषण पढ़ा। यह स्पष्ट था कि वह भी इस कवि (अथवा
सम्पादक) के बारे में बिल्कु ल भी नहीं जानते थे । भाषण में सामान्य शब्द थे परन्तु जहाँ-तहाँ इसमें
‘freedom’ तथा ‘democracy जैसे शब्दों का मिर्च-मसाला लगा था ।
फिर कवि बोले । वे इससे ज्यादा चकित और शान्त श्रोताओं को सम्बोधित नहीं कर सकते थे – कोई नहीं
जानता था कि वे किस बारे में बात कर रहे थे और उनकी बात को समझने के किसी भी प्रयास को उनके
बोलने की शैली (बोलने के लहजे) ने परास्त कर दिया अर्थात् उनकी बात किसी की समझ में नहीं आ रही
थी। यह सब लगभग एक घण्टे चला, फिर कवि चले गये और पूरी किं कर्तव्यविमूढ़ता में हम तितर-बितर
हो गये- हम क्या कर रहे हैं ?
एक अंग्रेज कवि का ऐसे फिल्म स्टू डियो में क्या काम है जो ऐसे सीधे-सरल लोगों के लिए तमिल फिल्म
बनाता है ? ऐसे लोग जिनके जीवन में अंग्रेजी काव्य के प्रति रुचि जाग्रत करने की सम्भावना नहीं थी ।
कवि भी काफी परेशान लग रहा था क्योंकि उसने एक अंग्रेज कवि की उत्तेजना और कष्टों के बारे में
अपने भाषण के बेतुकं पन को महसूस किया होगा । उसकी यात्रा एक अवर्णनीय रहस्य रही ।
हो सकता है संसार के महान गद्य लेखक इसे स्वीकार न करें लेकिन मेरा विचार दिनों-दिन मजबूत होता
जा रहा है कि किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति का सच्चा काम गद्य लेखन नहीं है और न ही हो सकता है।
यह धैर्यशील, दृढ़ प्रतिज्ञ और लगनशील, उबाऊ काम करने वाले व्यक्ति के लिए है जिसका हृदय इतना
सिकु ड़ा हो जिसे कु छ भी न तोड़ सके ; अस्वीकृ ति की पर्चियों का उसके लिए कोई मतलब नहीं होता है,
(अर्थात् संपादकों से उसकी रचना को अस्वीकार किए जाने पर प्राप्त अस्वीकृ ति पत्र उसे परेशान नहीं करते
हैं।) वह तुरन्त लम्बे गद्यांश की ताजा प्रति तैयार करने में जुट जाता है तथा लौटाने के लिए डाक टिकट
के साथ उसे किसी दूसरे सम्पादक के पास भेजता है । ऐसे लोगों के लिए ही हिन्दू (एक अखबार) में एक
महत्त्वहीन पेज के महत्त्वहीन कोने में छोटी-सी घोषणा प्रकाशित की गई थी- The Encounter’ नामक
अंग्रेजी पत्रिका लघुकथा प्रतियोगिता आयोजित करती है ।
वास्तव में, जैमिनी साहित्य प्रेमियों में Encounter जानी-मानी चीज नहीं थी। पाण्डु लिपि को इंग्लैण्ड भेजने
में काफी डाकखर्च करने से पहले मैं मैगजीन के बारे में जानना चाहता था । उन दिनों British Council
Library के प्रवेश द्वार पर कोई लम्बे चौड़े साइन बोर्ड या सूचना पट्ट नहीं होते थे जिससे आपको यह लगे
कि आप निषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं । और Encounter के विभिन्न अंक पाठकों द्वारा लगभग
अनछु ए इधर-उधर पड़े थे । जब मैंने सम्पादक का नाम पढ़ा तो मैंने अपने सिकु ड़े हृदय में एक घंटी
बजते हुए सुनी ।
यह वही कवि था जिसने जैमिनी स्टू डियो का भ्रमण किया था- मुझे लगा जैसे मुझे कोई पुराना बिछु ड़ा
हुआ भाई मिल गया और जब मैंने लिफाफा बन्द किया और उसका पता लिखा तो मैं गा रहा था । मैंने
महसूस किया कि वह भी इसी समय, वही गीत गा रहा होगा – भारतीय फिल्म के पुराने बिछु ड़े भाई पहली
रील और अन्तिम रील में गाये गये गीत को गाकर एक-दूसरे को ढूँढ लेते हैं । ‘Stephen Spender’ (एक
अंग्रेज कवि निबंधकार जिसने सामाजिक अन्याय तथा वर्ग संघर्ष के विषयों पर मनन किया) Stephen –
यही उसका नाम था ।
और वर्षों बाद, जब मैं जैमिनी स्टू डियो को छोड़ चुका था और मेरे पास खूब समय था परन्तु खूब पैसा
नहीं था, कोई भी घटी हुई कीमत की चीज मेरा ध्यान खींचती थी । मद्रास माउन्ट रोड पोस्ट ऑफिस के
सामने फु टपाथ पर पचास पैसे की एक के हिसाब से बिल्कु ल नई किताबों का ढेर लगा था ।
वस्तुतः वे एक ही पुस्तक की प्रतियाँ थीं, सुन्दर अमेरिकन पेपरबैक संस्करण में । रूसी आन्दोलन की
पचासवीं वर्षगाँठ के सम्बन्ध में ‘विशेष कम कीमत’ का विद्यार्थी संस्करण । मैंने पचास पैसे दिये और
“The God that Failed’ पुस्तक की एक प्रति उठा ली ।
छः प्रमुख विद्वानों ने छः अलग-अलग निबन्धों में कम्युनिज्म में अपनी यात्रा और उनकी निराशाजनक
वापसी का वर्णन किया था ; Andre Gide, (एक फ्रे न्च लेखक), जो मानववादी तथा नैतिकतावादी थे तथा
जिन्होंने 1947 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया, Richard Wright (एक अमेरिकन लेखक),
Ignazio Silone, Arthur Koestler, Louis Fischer (महात्मा गांधी की जीवनी लिखने वाला प्रसिद्ध
अमेरिकन लेखक) और Stephen Spender.
(अंग्रेज कवि और लेखक) । Stephen Spender ! अचानक इस पुस्तक ने जबर्दस्त महत्त्व ले लिया ।
Stephen Spender, कवि जो जैमिनी स्टू डियो में आया था ! एक क्षण में मुझे लगा मेरे दिमाग का अँधेरा
कक्ष धुंधले प्रकाश से जगमगा गया । जैमिनी स्टू डियो में Stephen Spender के प्रति प्रतिक्रिया अब
रहस्य नहीं रही। जैमिनी स्टू डियो के बॉस का Spender के काव्य से ज्यादा लेना-देना न रहा होगा ।
परन्तु उसकी पुस्तक “The God that Failed’ के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता अर्थात् जैमिनी स्टू डियो
का मालिक भी Stephen Spender की भाँति कम्युनिज्म के बारे में विचार रखता था ।