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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
बयानुल
क़ु रान
हिस्सा अव्वल
तर्ुुमा व मुख़्तसर तफ़सीर
तआरुफ़े क़ु रान
अज़
डॉक्टर इसरार अिमद
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
ْ َّ ٰ ْ َّ ِ ه ْ
حيِ ن الر
ِ م ّٰللا الر
ْح ِ ِبس
ِ
अज़े मुरत्तब
क़ु रान िकीम नौए इन्सानी के हलये अल्लाि तआला का
आखरी और तकमीली (complete) पैगाम-ए-हिदायत िै,
हर्से नबी आहखरुज्ज़मान मुिम्मद रसूल अल्लाि ﷺकी
दावत व तब्लीग में मरकज़ (center) व मिवर (axis) की
िैहसयत िाहसल थी। आप ﷺने इस क़ु रान की बुहनयाद
पर ना हसर्ु दुहनया को एक हनज़ामे अद्ल इज्तमाई अता
फ़रमाया बहल्क इस आददलाना हनज़ाम पर मब्नी एक सालेि
मआशरा भी हबलर्अल क़ायम करके ददखाया। आप ﷺ
ने इस क़ु रान की रिनुमाई में इन्क़लाब के तमाम मराहिल
तय करते हुए नौए इन्सानी का अज़ीम तरीन इन्क़लाब
बरपा र्रमा ददया। चुनााँचे यि क़ु रान मिज़ एक दकताब
निीं “दकताबे इन्क़लाब” िै, और इस शऊर के बगैर क़ु रान
मर्ीद की बहुत सी अिम िक़ीक़तें क़ु रान के क़ारी पर
मुन्कहशर् (ज़ाहिर) निीं िो सकतीं।
अल्लाि तआला र्ज़ा-ए-खैर अता फ़रमाये सदर
मौहसस मरकज़ी अंर्ुमन खुद्दामुल क़ु रान लािौर और बानी-
ए-तंज़ीमे इस्लामी मोितरम डॉक्टर इसरार अिमद
िर्ीज़ुल्लाि को हर्न्िोंने इस दौर में क़ु रान िकीम की इस
िैहसयत को बड़े वसीअ पैमाने पर आम दकया िै दक यि
दकताब अपनी दीगर (अन्य) इहम्तयाज़ी िैहसयतों के साथ-
साथ मौिम्मद रसूल अल्लाि ﷺका आला-ए-इन्क़लाब
और आप ﷺके बरपा करदा इन्क़लाब के मुख्तहलर्
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
ْ َّ ٰ ْ َّ ِ ه ْ
حيِ ن الر
ِ م ّٰللا الر
ْح ِ ِبس
ِ
तक़दीम
इसरार अिमद
इन सतूर के नाचीज़ रादक़म को क़ु रान मर्ीद का
मुफ़हस्सर तो बहुत दूर की बात िै, मरव्वर्ा मफ़हूम के
ऐतबार से “आहलमे दीन” िोने का भी िरहगज़ कोई दावा
ّ ً
निीं िै, तािम (िालााँदक), खाहलसतन “( ”حتدیثا لِلنعمۃबा-
ْ ّ َ َ ّ ْ ََ
िवाला “ )” َوا ّما ِب ِنع َم ِۃ َر ِبك َف َ ِدثअल्लाि तआला की उन
नेअमतों के ऐतराफ़ व इज़िार में कोई कबाित मिसूस निीं
िोती दक उसने अपने ख़ास र्ज़ल व करम से ऐसे िालात
पैदा कर ददये दक अवाइल (early) उमर िी में क़ु राने िकीम
के साथ एक ददली उन्स (घहनष्ठ पररचय) और ज़ेिनी
मुनास्बत (सम्बन्ध) क़ायम िोती चली गयी। चुनााँचे
अव्वलन हबल्कु ल िी नौउम्री में (िाई स्कू ल के इब्तदाई
सालों के दौरान) अल्लामा इक़बाल की शायरी के ज़ररये
क़ु रान की अज़मत, हमल्लते इस्लामी की हनशाते साहनया
की उम्मीद और इसके हज़मन में क़ु रान की अिहमयत का
एक गिरा नक़्श क़ल्ब पर क़ायम र्रमा ददया, दर्र एक
खानदानी ररवायत के मुताहबक़ िाई स्कू ल की तालीम के
दौरान अरबी को एक इज़ाफ़ी मज़मून की िैहसयत से
इहख़्तयार करने की सूरत पैदा र्रमा दी हर्ससे अरबी
ग्रामर की असासात (आधार) का इल्म िाहसल िो गया। और
दर्र मेरिक के इहम्तिान के बाद र्राग़त के ददनों में, र्बदक
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
बाब अव्वल
َّ َ
ُ الظا ِه ُر َو ْال َباط
ِن ( } وआयत 3) याहन अल्लाि तआला की
शान यि िै दक वि اْلول ّ भी िै और اْلخرभी, वि الظاهر
भी िै और الباطنभी। इसी तरि अल्लामा किते िैं दक इस
क़ु रान की भी यिी शान िै। नेज़ हर्स तरि अल्लाि तआला
की हसफ़त القيومّ احلی
ّ (आयतल कु सी, सूरतुल बक़रि) िै
इसी तरि यि कलाम भी हज़न्दा व पाइन्दा िै, िमेशा रिने
वाला िै। दर्र यि हसफ़ु कलाम निीं, ख़ुद मुतकहल्लम (बात
करने वाला) िै।
यिााँ कलाम और मुतकहल्लम के माबैन (दर्मुयान) र्क़ु
के िवाले से मुतकल्लमीन दक उस बिस की तरफ़ इशारा
करना ज़रूरी मालूम िोता िै दक ज़ाते िक़ की हसफ़ात, ज़ात
से अलैिदा और मुस्तज़ाद िैं या ऐन ज़ात? अल्लामा
इक़बाल ने भी अपनी मशहूर नज़्म “इब्लीस की मर्हलस-
ए-शूरा” में इस बिस का हज़क्र दकया िै:
िैं हसफ़ाते ज़ाते िक़, िक़ से र्ुदा या एैन ज़ात?
उम्मत मरहूम की िै दकस अक़ीदे में हनर्ात?
यि इल्मे कलाम का एक हनिायत िी पेचीदा, ग़ामज़
और अमीक़ मसला िै, हर्स पर बड़ी बिसें हुईं और
हबलआहख़र मुतकल्लमीन का इस पर तक़रीबन इज्माअ
हुआ दक “یٌ ْی َوْل غ َْ َ َْ َ
ٌ ”ْل عयाहन अल्लाि की हसफ़ात को ना
उसकी ज़ात का एैन क़रार ददया र्ा सकता िै ना उसका
ग़ैर। अगर इस िवाले से ग़ौर करें तो क़ु रान िकीम भी, र्ो
अल्लाि तआला की हसफ़त िै, इसी के ज़ेल में आयेगा, याहन
ना इसे अल्लाि का ग़ैर किा र्ा सकता िै ना उसका एैन।
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
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ِ ت َر ِب
ه ِ راى ِِم اي
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18 الكْبى
तौरात की गवािी
अब ज़रा क़ु रान मर्ीद के कलामुल्लाि िोने के िवाले
से एक और बात ज़िननशीन कर लीहर्ये। तौरात में दकताबे
इस्तस्ना या सफ़रे इस्तस्ना र्ो सुहुफ़े मूसा में से एक सिीफ़ा
िै, के अट्ठारिवें बाब में नबी अकरम ﷺके हलये र्ो
पेशनगोई बयान की गयी िै उसमें अल्फ़ाज़ यिीं िै दक:
“मैं उनके भाईयों में से उनके हलये तेरी माप्नंद एक
नबी बरपा करुाँ गा और उसके मुाँि में अपना कलाम
डालूाँगा और वि उनसे विी कु छ किेगा र्ो मैं उससे
कहूाँगा।”
मैंने यिााँ ख़ास तौर पर उन अल्फ़ाज़ का िवाला ददया
िै दक “मैं उसके मुाँि में अपना कलाम डालूाँगा।” यिााँ एक तो
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42ۭ
और सूरतुल तकवीर में यि अल्फ़ाज़ वाररद हुए िैं:
ُ
َ ْ َ ْ َّ ُ ْ ْ َ ْ اِنَّ ٗه لَ َق ْول َر ُس
ذي الع ْر ِش ِ د ن ع
ِ ة و ق ي ذ
ِ ۙ 19 ْي ر
ِ ك ل و
ُ َ
ُ ْ َ ْ ُ
ُك ِِبجن ْون حب ا َ ۙ َو َما21ۭ ۙ ُّم َطاع َث َّ اَم ْْي20 َمك ِْْي
ص
ِ ِ
ۙ22
और इसी सूरि में आगे चलकर आया:
ْ َّ ْٰ َ َْ َُ َ َ
25 جيِ وما هو ِبقو ِل شيطن ر
तरि िमकलाम िोता िै! क़ु रान मर्ीद में इसकी तीन शक्लें
बयान हुई िैं।
“दकसी बशर का यि मक़ाम निीं ْ َ ن ل َب ََش ا َ َ َ َ
िै दक अल्लाि उससे रू-ब-रू ن ِ وما ًّك
बात करे । उसकी बात या तो विी َ َّ ُ ُّ َ ُ ه
يكِ َمه ّٰللا اِْل َو ْح ًيا ا ْو
(इशारे ) के तौर पर िोती िै, या
َ
पदे के पीछे से, या दर्र वि कोई ي ِِحاب ا ْو
َ ۗ َ َّ ْ
ِ ِِم ورا
पैग़म्बर (फ़ररश्ता) भेर्ता िै और
वि उसके हुक्म से र्ो कु छ वि َ ِ ُيس َل َر ُس ْو ًْل َف ُي ْو
ِح ُْ
ِ
चािता िै विी करता िै। यक़ीनन ۗ
वि बरतर और साहिबे हिकमत ٌّ َ ِب ِ ْذنِهٖ َما ي َ َشا ُء ۭ اِنَّ ٗه
لَع ِ ِ
िै।”
ْ
(सूरतुल शौरा) 51 ٌ َحكِي
नुज़ल
ू े क़ु रान की दो कै दफ़यतें : इन्ज़ाल और तन्ज़ील
सलासी मज़ीद फ़ीि के दो अबवाब याहन बाबे इर्् आल
और बाबे तफ़् ईल से यि लफ़्ज़ क़ु रान मर्ीद में बकसरत
इस्तेमाल हुआ िै। दोनों अबवाब से यि फ़े अल मुमताददी के
َ َ َْ
तौर पर बमायने “उतारना” इस्तेमाल िोता िै, याहन اَنل,
ُ ُْ ً َْ َ َّ َ ُ ّ َ ُ ً ْ َ
ْنلِ ی, اَِناْلऔर َنل, ْنل ِ ی, ْنیل
ِ ت। इन दोनों के माबैन
फ़क़ु यि िै दक बाबे इफ़् आल में कोई फ़अल दफ्फ़तन और
एकदम कर देने के मायने िोते िैं र्बदक बाबे तर्् ईल में विी
फ़े ल तदरीर्न, अितमाम, तवज्जोि और मेिनत के साथ
करने के मायने िोते िैं। इन दोनों के माबैन फ़क़ु को “ईलाम”
और “तालीम” के मायने के र्क़ु के िवाले से बहुत िी नुमाया
तौर पर और र्ाहमयत के साथ समझा र्ा सकता िै।
“ ”اِعلمके मायने िैं बता देना। याहन आपने कोई चीज़ पूछी
तो र्वाब दे ददया गया। चुनााँचे “Information Office”
को अरबी में “मकतबुल ईलाम” किा र्ाता िै। र्बदक
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َ َْ
( ” ِِبضدا ِد َھاचीज़ें अपनी अज़्दाद से पिचानी र्ाती िैं) का
उसूल दुरुस्त बैठता िै।
हिकमते तन्ज़ील
अब िम यि र्ानने दक कोहशश करते िैं दक तन्ज़ील की
हिकमत क्या िै? यि थोड़ा-थोड़ा करके क्यों नाहज़ल दकया
गया और एक िी बार क्यों ना नाहज़ल कर ददया गया?
क़ु रान मर्ीद में इसकी दो हिकमतें बयान हुई िैं।
एक तो यि दक लोग शायद इसका तिम्मुल (बरदाशत)
ना कर सकते। चुनााँचे लोगों के तिम्मुल की ख़ाहतर थोड़ा-
थोड़ा करके नाहज़ल दकया गया तादक वि इसको अच्छी
तरि समझें, इस पर गौर करें और इसे िरज़े र्ान बनाएाँ
और इसी के मुताहबक़ उनके ज़िन व दफ़क्र की सति बुलंद
िो। यि हिकमत सूरि बनी इस्राइल की आयत 106 में
बयान की गई िै:
“और िमने क़ु रान को टु कड़ों- َٗ ْ َ ُ ْٰ َ ً ٰ ُ
टु कड़ों में मुन्क़हसम कर ददया َوق ْراَن ف َرقنه لِتق َراه
तादक आप थोड़ा-थोड़ा करके ْ ُ ٰ َ َّ
ِ الن
ََ
اس لَع مكث لَع
और वक़्र्े -वक़्र्े से लोगों को
ً ْ ْ َ ُ ٰ ْ َّ َ َّ
सुनाते रिें और िमने इसे ١٠٦ ْنيًلِ وْنلنه ت
बतदरीर् उतारा।”
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ْ ً َ َ ُّ ً َ
دعا ِِم
ِ اشعا متصِ خ
َ ْ َ ه
ۭ ِخشي ِة ّٰللا
17ښ
रसूल अल्लाि ﷺको अल्लाि तआला ने अज़रािे शफ़्क़त
(प्यार से) फ़रमाया: “आप इस क़ु रान को याद करने के हलये
अपनी ज़बान को तेर्ी से िरकत न दें। इसको याद करवा
देना और पढ़वा देना िमारे हज़म्मे िै।” आप ﷺमुशक्क़त
(तकलीर्) न झेलें, यि हज़म्मेदारी िमारी िै दक िम इसे
आप ﷺके सीने मुबारक के अंदर र्मा कर देंगे और
इसकी तरतीब क़ायम कर देंगे, इसको पढ़वा देंगे। हर्स
तरतीब से यि नाहज़ल िो रिा िै उसकी ज़्यादा दफ़क्र न
कीहर्ये। असल तरतीब हर्समें इसका मुरतब्ब दकया र्ाना
िमारे पेश नज़र िै, र्ो तरतीब लौिे मिफ़ू ज़ की िै उसी
ٗ َ َ َ َ َ َّ َّ ُ
तरतीब से िम पढ़वा देगें। { 19ۭ ِن عل ْينا ب َيانه
}َث اदर्र
अग़र आपको दकसी चीज़ में इब्िाम मिसूस िो और वज़ाित
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अिसनुल िदीस
मुताशाहबि
मसाहनया َ َّ ً َ َ ُّ ً ٰ ْ
ْ َ َ َ ْ َ َ َّ َ ُ َ ه (अल् ज़ुमुर:23)
اِنَ ڰ
ِ اُبا مثِ ث ك ِتبا متشِ دي ِ ّٰللا ْنل احسن اْل
मुबारकु न ٌ َ ٰ ُ َ َ ُ ْٰ ََْ ٌ ٰ (सुआद:29)
ب اْنلنه اِل ْيك مْبك ك ِت
मुसदद्दक़ु न
َ َ َ ُْ ْ َُ
ن ما ْل يقولو
َ ي َ ْف َعل ُ ْو
٢٢٦ ن
ٰ ّ ٰ ُ َ َ ْ ُ َ ٰ َ ْ َّ َّ
अगली आयत में {....ت
ِ }اِْل ال ِذْی امنوا وَعِلوا الص ِلحके
अल्फ़ार् के साथ इस्तसना भी आया िै, और इस्तसना
क़ायदा-ए-कु हल्लया की तौसीक़ करता िै (Exception
proves the rule)--- चुनााँचे क़ु रान मर्ीद के ऐतबार से
शेर गोयी कोई अच्छी शय निीं िै, कोई ऐसी मिमूद हसफ़त
निीं िै दक र्ो अल्लाि तआला अपने रसूल को अता
फ़रमाता। बहल्क हुज़ूर अकरम ﷺका मामला तो यि था
दक आप ﷺकभी कोई शेर पढ़ते भी थे तो ग़लती िो
र्ाती थी। इसहलये दक नबी अकरम ﷺपर से अल्लाि
तआला शायरी की तोिमत िटाना चािता था, हलिाज़ा
आपके अंदर शायरी का वस्फ़ (ख़ूबी) िी पैदा निीं दकया
गया। सीरत का एक ददलचस्प वाक़या आता िै दक हुज़ूर
ﷺने एक मतुबा एक शेर पढ़ा और उसमें ग़लती हुई। इस
ُ َْ
पर िज़रत अबु बकर (रहज़०) मुस्कु राये और अज़ु की: اش َهد
ُ َ َ َّ َ
ِک ل َر ُس ْول ّٰللا “ انमैं ग़वािी देता हूाँ दक यक़ीनन आप अल्लाि
के रसूल िैं।” इसहलये दक अल्लाि ने फ़रमाया िै: { َو َما
َ َ ْْۢ َ َ َ َ ْ ّ ُ ٰ ْ َّ َ
ۭ ِغ ل ٗه
ْ ِ الشعر وما ینب ِ ( }علمنهयासीन:69) तो वादक़अतन
आपको शेर से याहन शेर के वज़न और उसकी बिर वग़ैरि
से मुनासबत निीं थी। बाक़ी र्िााँ तक शेर के मफ़हूम का
और आला मज़ामीन का ताल्लुक़ िै तो ख़ुद हुज़ूर ﷺका
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َ ِ ِم ال َب َيان ل ِس ْح ًرا َوا ِّن َ
َ ِ ))ا ِّن َ ْ َ
फ़रमान िै: ((الشع ِر حلِک َمۃ
ِ ِم ِ
याहन बहुत से बयान बहुत से ख़ुत्बे और तक़रीरें र्ादू असर
िोते िैं और बहुत से अशआर के अंदर हिकमत के ख़र्ाने
िोते िैं। बाज़ शायरों के अशआर हुज़ूर ﷺने ख़ुद पढ़े भी
िैं और उनकी तिसीन फ़रमाई िै, लेदकन क़ु रान बिरिाल
शेर निीं िै।
अलबत्ता एक बात किने की र्ुरुत कर रिा हूाँ दक क़दीम
ज़माने की शायरी हर्समें बिर, वज़न और रदीफ़ व
क़ादफ़या की पाबंदी सख़्ती के साथ िोती थीं, उसके ऐतबार
से यक़ीनन क़ु रान शेर निीं िै, लेदकन एक शायरी हर्सका
ररवार् असरे िाहज़र में हुआ िै और उसके हलये ग़ाहलबन
क़ु रान िी के अस्लूब को चुराया गया िै, हर्से आप “आज़ाद
नज़्म” (Blank Verse) किते िैं, उसके अंदर र्ो हसफ़ात
और ख़ुसूहसयात आर्कल िोती िैं उनका हमन्बा और
सरचश्मा क़ु रान िकीम िै। इसहलये दक इसमें एक ररदम
(Rythm) िोता िै, इसमें फ़वासल भी िैं, क़वानी के तज़ु
पर सौती आिंग भी िै, लेदकन वि र्ो मारूफ़ शायरी थी
उसके ऐतबार से क़ु रान बड़ी ताकीद के साथ किता िै दक
क़ु रान शेर निीं िै।
क़ु रान के अस्लूब के हज़मन में दूसरी अिम बात यि िै
दक आम मायने में क़ु रान दकताब भी निीं िै। मैं यिााँ इक़बाल
का हमसरा qoute कर रिा हूाँ, अग़रचे इसके वि मायने
निीं “ईं दकताबे नीस्त चीज़े दीग़र अस्त!”
आर् िमारा दकताब का तसव्वुर यि िै दक उसके
मुख़्तहलफ़ अबवाब (Chapters) िोते िैं। आप दकसी
दकताब या तस्नीफ़ में एक मौज़ू को एक बाब की शक़्ल देते
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َ ََ ُ
افًل ْ ا َ ْن ُفس
ۭ ُك ِ
ُ ُت ْب
َ َص ْو
21 ن ِ
मज़ीद फ़रमाया:
“अनक़रीब िम उनको अपनी َ ٰ ٰ ْ ُ َ
َّي ْم اي ِتنا ِِف
हनशाहनयााँ आफ़ाक़ में भी ِ ُنِ س
ददखायेंगे और उनके अपने नफ़्स ُ ْ َ ْٓ َ َ ْٰ
ِف انف ِس ِه ْم ِ ِ اْل
و اق ف
में भी, यिााँ तक दक उन पर यि
बात वाज़ेि िो र्ायेगी दक यि ُ َّ َ ُ َ َ َّ َ َ َ َ ه
ْي له ْم انه ّتَح يتب
क़ु रान वाक़ई बरिक़ िै।” (िा
मीम सर्दा:53) ُّ َ ْ
ۭ اْلق
अंग्रेर्ी में आयत के हलये िम लफ़्ज़ verse बोल देते िैं, मगर
verse तो शेर को किते िैं र्बदक क़ु रान की आयात ना तो
शेर िैं, ना हमसरे िैं, ना र्ुमले िैं। बस बायना लफ़्ज़ आयत
िी को आम करना चाहिये। बिरिाल कु छ आयाते आफ़ाक़ी
िैं, याहन अल्लाि की हनशाहनयााँ, कु छ आयाते अन्र्ु सी िैं,
वि भी अल्लाि की हनशाहनयााँ िैं और आयाते क़ु राहनयााँ भी
दरिक़ीक़त अल्लाि तआला की हिक़मते बालग़ा और इल्मे
काहमल की हनशाहनयााँ िैं। यि लफ़्ज़ क़ु रान की इकाई के
तौर पर इस्तेमाल हुआ िै।
र्ान लेना चाहिये दक आयात का तअय्युन दकसी ग्रामर,
बयान या नह्व (syntax) के उसूल पर निीं िै, इसमें कोई
इज्तिाद (अपनी राय) दाहख़ल निीं िै, बहल्क इसके हलये
एक इस्तलाि “तौक़ीफ़ी” इस्तेमाल िोती िै, याहन यि रसूल
अल्लाि ﷺके बताने पर मौक़ू फ़ (हनभुर) िै। चुनााँचे िम
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तरतीबे नुज़ल
ू ी और तरतीबे मुस्िफ़ का इख़्तलाफ़
क़ु रान िकीम की तरतीब के हज़मन में पिली बात र्ो
हबल्कु ल मुत्तदफ़क़ अलै और िर शक व शुबि से बाला िै वि
यि िै दक तरतीबे नुज़ूली हबल्कु ल मुख़्तहलफ़ िै और तरतीबे
मुस्िफ़ हबल्कु ल मुख़्तहलफ़ िै। अक्सर व बेशतर र्ो सूरतें
इब्तदा में नाहज़ल हुईं वि आहख़र में दर्ु िैं और हिर्रत के
बाद र्ो सूरतें नाहज़ल हुई िैं (अल् बक़रि, आले इमरान,
अल् हनसा, अल् मायदा) उनको शुरू में रखा गया िै। तो
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
ّ ُ ُ ْ َ َ ُّ َّ َ ُّ ٰ ۗ َّ َ
हबल्कु ल एक र्ैसा िै: {الن َسا َء
ِ } ٰيّيا الن ِب اِذا طلقتمऔर
َ َ ُ َّ َ َ َ ُ ّ َ ُ َ ُ َّ َ ُّ َ ٰ
ّ ِ } ٰيّيا النमज़मून के अंदर भी बड़ी
{ ب ِِل حت ِرم ما احل ّٰللا لك
गिरी मुनासबत िै। इसके बाद सूरि अस्सफ़ और सूरतुल
َ ّ
र्ुमा का र्ोड़ा िै। सूरि अस्सफ़ ِِل ِ َس ّب َحसे और सूरतुल
ُ ّ
र्ुमा ِِل ِ ي َس ِ ّب ُحके अल्फ़ाज़ से शुरु िो रिी िैं। सूरि अस्सफ़
की मरकज़ी आयत र्ो रसूल ﷺके मक़सदे बेअसत को
ُ ْ ٰ ْ َٗ َ َ َّ ُ
मुअय्यन कर रिी िै { ْی َ ْ ُ َ َ ْ ْ َ
ِ هو ال ِذي ارسل رسوله ِِبلهدى و ِد
ُّ ْ ّ َ َ ٗ َ ْ ُ َّ ْ
ْٖی ك ِه
ِ الد
ِ ( } احل ِق لِيظ ِهره لَعआयत:9) िै, र्बदक सूरतुल
र्ुमा की मरकज़ी आयत र्ो हुज़ूर ﷺके इन्क़लाब का
َ َ َّ ُ
असासी हमन्िार् मुअय्यन कर रिी िै { ه َو ال ِذ ْي َبعث ِِف
ّ ْ ّ َ ُ َ ٰ ٰ ْ ْ َْن ْم َی ْت ُل ْوا َعل
ُ ْ ْی َر ُس ْو ًْل ِّم ُْ
ِْي ْم َویُ َع ِل ُم ُه ُم
ِ ْيم ای ِتهٖ وُيكِ
َ ّ ٖ اْل ِّم
َ ْ ْ َ ٰ ْ
ب َواحلِك َمۃ ( } الكِتआयत:2) िै। बिरिाल सूरतों का र्ोड़ा
िोना, सूरतों का ग्रुप की शक्ल में िोना, इन ग्रुप्स का अपना
एक अमूद और एक मरकज़ी मज़मून िोना, दर्र इसके दो
रुख़ बन र्ाना र्ो इसकी मदक्कयात और मदहनयात में आते
िैं, क़ु रान मर्ीद के इल्म व हिकमत के ख़ज़ाने के वि दरवाज़े
िैं र्ो अब खुले िैं। इस तरि दरवाज़े िर दौर में खुलते रिे
िैं और आइन्दा भी खुलते रिेंगे। चुनााँचे क़ु रान मर्ीद पर
तज़क्कु र (याद) और तदब्बुर (सोच-हवचार) तसलसुल
(हनरंतर) के साथ र्ारी रिना चाहिये।
पीछे सात मंहज़लों और सात अिज़ाब का हज़क्र िो
चुका। अब मक्की और मदनी सूरतों के सात ग्रुप्स का बयान
हुआ। यि दोनों दक़स्म के ग्रुप दो र्गि पर आकर हमल र्ाते
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इं र्ील में हिकमत िै, अिकाम िैं िी निी। दोनों चीज़ें हमल
कर एक बात को मुकम्मल करतीं िैं। तौरात में हसफ़ु अिकाम
िैं। र्ैसे आप बच्चे को बता देते िैं दक भई खाने-पीने से रोज़ा
टूट र्ाता िै, रोज़े का मतलब यि िै दक अब ददन भर खाना-
पीना कु छ निीं िै। चािे बच्चा अभी छ: सात साल का िै, वि
यि बात समझ लेता िै। इस तरि उसे अिकाम तो दे ददये
र्ायेंगे दक यि करो, यि ना करो, यि Do’s िैं यि Donts
िैं।
चुनााँचे तौरात में अिकामे अशरा (The Ten
Commandments) दे ददये गये, लेदकन अभी इनकी
हिकमत निीं बताई गई। इसहलये दक अभी हिकमत का
तिम्मुल (समझना/धैयु) इं सान के हलये मुमदकन निीं था।
अभी नौए इं सानी का अिदे तर्ू हलयत (बचपन) था। यूाँ
समहझये दक वि आर् से साढ़े तीन िज़ार साल क़ब्ल का
इं सान था। तौरात चौदि सौ क़ब्ल मसीि में िज़रत मूसा
अलै० को दी गई। इसके चौदि सौ साल बाद िज़रत ईसा
अलै० को इं र्ील दी गई, हर्समें हसफ़ु हिकमत िै, अिकाम
िैं िी निीं। लेदकन आर् से दो िज़ार साल पिले िज़रत
मसीि अलै० के यि अल्फ़ाज़ इं र्ील में मौर्ूद िैं (अब भी
मौर्ूद िैं) दक आप अलैहिस्सलाम ने अपने िवारीन से
फ़रमाया था: “मुझे तुमसे और भी बहुत सी बातें किनी थीं,
मगर अभी तुम उनका तिम्मुल निीं कर सकोगे, र्ब वि
फ़ारक़लीत आयेगा तो तुम्िें सब कु छ बतायेगा।” यि
मुिम्मद रसूल अल्लाि ﷺकी पेशनगोई थी। िज़रत
मसीि अलै० ने फ़रमाया दक अभी तुम तिम्मुल निीं कर
सकते। गोया तुम्िारी ज़िनी बलूग़त के हलये छ: सौ बरस
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मज़ीद दरकार िैं। चुनााँचे अल् हुदा क़ु रान िकीम में आकर
मुकम्मल हुआ िै।
क़ु रान मर्ीद र्ो हिदायत देता िै उसके भी दो हिस्से
िैं। एक दफ़क्रो नज़र की हिदायत िै, हर्सका उन्वान “ईमान”
िै। इसका मौज़ू विी िै र्ो फ़लसफ़े का िै। याहन कायनात
की िक़ीकत क्या िै, हर्न्दगी की िक़ीक़त क्या िै, हज़न्दगी
का माल क्या िै, इसका आग़ाज़ क्या िै, अन्र्ाम क्या िै,
सिी क्या िै, गलत क्या िै, ख़ैर क्या िै, शर क्या िै, इल्म
क्या िै? क़ु रान मर्ीद का दूसरा मौज़ू हिदायते अमली िै,
इन्फ़रादी सति पर भी और इज्तमाई सति पर भी। यि
अवामर व नवािी (करना ना करना) और िलाल व िराम
के अिकाम पर मुश्तहमल िै। दर्र इसमें मआशी व
मआशरती अिकाम भी िैं। यि हिदायते दफ़क्रो नज़र और
हिदायते र्अल व अमल (इन्फ़रादी व इज्तमाई) क़ु रान
िकीम का मौज़ू िै।
इस हज़मन में यि बात नोट कर लीहर्ये दक साइं स और
टेिोलॉर्ी क़ु रान िकीम का मौज़ू निीं िै, क़ु रान मर्ीद
दकताबे हिदायत िै, साइं स की दकताब निीं िै, अलबत्ता
इसमें साइं सी उलूम (studies) की तरफ़ इशारे मौर्ूद िैं
और उनके िवाले मौर्ूद िैं। क़ु रान मर्ीद कायनाती
िक़ाइक़ को आयाते इलाहिया क़रार देता िै। सूरतुल बक़रि
की आयत 164 मुलाहिज़ा कीहर्ये, हर्से मैं “आयातुल
आयात” क़रार देता हूाँ:
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ٰ ْ ُّ ُ َ ُ
गया िै, तो इन मायने में {ب ِ }ھ ّن ام الكِتसे मुराद क़ानून,
शरीअत, अमली हिदायात, अवाहमर व नवािी िैं और
असल में विी मुिक्कमात िैं।
दायमी मुतशाहबिात आलमे ग़ैब और उसके हज़मन में
आलम-ए- बरज़ख, आलम-ए-आहख़रत, आलम-ए-अरवाि,
मलाइका का आलम और आलम-ए-इमसाल वग़ैरि िैं। यि
दरिक़ीक़त वि दायरे िैं र्ो िमारी हनगािों से ओझल िैं
और इसकी िक़ीक़तों को कव्व कमािक़, इस हज़न्दगी में
समझना मिाल और नामुमदकन िै। लेदकन इनका एक इल्म
ददया र्ाना ज़रूरी था। मा बाद अल् तबीअ’यात
ईमाहनयात के हलये ज़रूरी िै दक इस सबका एक इज्माली
ख़ाका सामने िो। िर इं सान ने मरना िै, मरने के फ़ौरन बाद
आलम-ए-बरज़ख में यि कु छ िोना िै, बा’अस बाद अल्
मौत (मौत के बाद उठना) िै, िश्र-नश्र िै, हिसाब-दकताब
िै, र्न्नत व दोज़ख़ िै। इन िक़ीक़तों का इज्माली इल्म
मौर्ूद ना िो तो बुहनयादी ज़रुरत के तौर पर इं सान को र्ो
फ़लसफ़ा दरकार िै वि उसको फ़रािम निीं िोगा। लेदकन
इनकी िक़ीक़तों तक रसाई इस हज़न्दगी में रिते हुए िमारे
हलये मुमदकन निीं, हलिाज़ा इनका र्ो इल्म ददया गया िै
वि आयाते मुतशाहबिात िैं, और वि दाईमन मुतशाहबिात
िी रिेंगी। िााँ र्ब उस आलम में आाँख खुलेगी तो असल
िक़ीक़त मालूम िोगी, यिााँ मालूम निीं िो सकती।
अलबत्ता मुतशाहबिात का एक दूसरा दायरा िै र्ो
तदरीर्न मुतशाहबिात से मुिक्कमात की तरफ़ आ रिा िै।
वि दायरा मज़ाहिर तबीई (Physical Phenomena) से
मुताहल्लक़ िै। आर् से िज़ार साल पिले इसका दायरा बहुत
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4) तावील-ए-आम और तावील-ए-ख़ास
क़ु रआन िकीम की दकसी एक आयत या चंद आयात के
मज्मुए या दकसी ख़ास मज़मून र्ो चंद आयात में मुक्कमल
िो रिा िै, पर ग़ौर करने में दो मरिले िमेशा पेशे नज़र
रिने चाहियें: एक तावीले ख़ास और दूसरा तावीले आम।
इस हसलहसले में याद रिे दक क़ु रआन िकीम ज़मान (समय)
व मकान के एक ख़ास तनाज़र (Perspective) में नाहज़ल
हुआ िै। इसका ज़माना-ए-नुज़ूल 610 ईस्वी से 632 ईस्वी
के अरसे पर मुिीत (शाहमल) िै और इसके नुज़ूल की र्गि
सरज़मीं हिर्ाज़ िै। इसका एक ख़ास पसमंज़र िै। ज़ाहिर
बात िै दक अगर उस वक़्त और उस इलाक़े के लोगों के
अक़ीदे व नज़ररयात और उनकी ज़िनी सति को मलहूज़
(ध्यान में) ना रखा र्ाता तो उन तक इब्लाग़
(communication) मुमदकन िी निीं था। वि तो उम्मी थे
(अहशहक्षत), पढ़े-हलखे ना थे। अगर उन्िें फ़लसफ़ा पढ़ाना
शुरू कर ददया र्ाता, साइं सी उलूम के बारे में बताया र्ाता
तो यि बातें उनके सरों के ऊपर से गुज़र र्ातीं। क़ु रआनी
आयात तो उनके ददल और ददमाग़ में पैवस्त (attached)
िो गई, क्योंदक बरािेरास्त इब्लाग़ (communication)
था, कोई barrier मौर्ूद निीं था। तो क़ु रआन िकीम का
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
5) तज़क्कु र व तदब्बुर
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
ۙĄ
ْ ُ ْ ٰ ْ َ ٰ ۗ ڔ
ۙĄْي ڒ
ِ ِبم ال ب
ِ ۙ والكǺ حـم
ِت
पिली आयत हुरूफ़े मुक़त्आत पर और दूसरी आयत क़सम
َ اِنك ل ِم َ َ َّ
पर मुश्तहमल िै। इसके बाद मुक़सम अलैए { ن
َ ْ } ْال ُم ْر َس ِلमिज़ूफ़ मानना पड़ेगा। गोयााः
ْی
َّ ْ
َ ْ ال ُم ْر َسل َ َ َّ ْ ُ ْ ٰ ْ َ ٰ ۗ ڔ
ْي( اَِن ِ َ ك ل ِم
ن ۙ )اِنĄْي ڒ ِ ِ بم ال ب ِ ۙ والكǺ حـم
ِت
ُ
ْ َّ ع َرب ايا ل َّ َعل
َ ُك َت ْعقل ُ ْو
ۙǼ ن
َ ً ٰ ْ ُ ُ ْٰ َ َ
ِ ِ جعلنه قرءَن
और:
ٓ َّ ْ َ َ َّ ْ ُ ْ ٰ ْ َ ٰ ۗ ڔ
َ ْ ال ُم ْر َسل
ْي( اَِن َ ك ل ِم
ن ۙ )اِنĄْي ڒ ب م ال ب
ِ ِ ِ ِ ۙ والكǺ حـم
ِت
ُ َّ َ َ ٰ ُّ َ ْ َ ْ ُ ٰ ْ َ ْ َ
َ ْ ك َّنا ُم ْنذر
ۙǼ ْي ِ ِ اْنلنه ِِف ليلة مْبكة اَِن
यि एक अस्लूब िै दक मुिम्मद रसूल अल्लाि ﷺकी
ररसालत को साहबत करने के हलये क़ु रआन की क़सम खाई
गई, याहन क़ु रआन की गवािी और शिादत पेश की गई।
यि इस बात को किने का एक अस्लूब िै दक हुज़ूर ﷺकी
ररसालत का असल सुबूत या आप ﷺका असल
मोअज्ज़ि क़ु रआन िै।
13
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गयी िै।” َّ َ َّ
ْ ار ال ُ َّ َ
ِت ِ فاتقوا الن
ُ َّ َ ُ ُ
َوق ْودھا الناس
ْ
ْ َّ ُ ُ َ َ
ارة ښ ا ِعدت َواْلِج
वाज़ेि िो र्ाएगी दक यि ُ َّ َ ُ َ َ َّ َ َ َ َ ه
क़ु रआन िक़ िै।” ْي له ْم انه ّتَح يتب
ُّ َ ْ
ۭ اْلق
और कम हिम्मती मुसल्लत कर َ َ ۗ َّ
दी गयी िै।” اس َو َِب ُء ْو ِبغضب
ِ الن
ُ َ
ْ َ ُضب ه َ
ت ِ ِِم ّٰللاِ و
ُ ََ ْ
ُ عل َ ْْي
َ
ۭ م ال َم ْسكنة ِ
गोया खुद अपने बल पर, अपने पााँव पर खड़े िोकर, ख़ुद
मुख्तारी की असास (self-sufficient foundation) पर
उनके हलये इज़्ज़त का मामला इस दुहनया में निीं िै। यि
क़ु रान मर्ीद की पेशनगोई िै और मौर्ूदा ररयासते
इसराइल इसका वाज़ेि सबूत िै। अमेररका अगर एक ददन
के हलये भी अपनी हिफ़ाज़त िटा ले तो इसराइल का वर्ूद
बाक़ी निीं रिेगा।
क़ु रान मर्ीद (आले ईमरान:103) में अिले ईमान से
फ़रमाया गया िै:
“अल्लाि की रस्सी को मज़बूती ه ْ َ ْ ُ اع َت
ْ َ
ِل ّٰللا
से पकड़ लो सब हमल कर।” ِ صموا ِِبب
ِ و
ً َ
ُج ْيعا
ِ
अलबत्ता “िबलुल्लाि” क्या िै? क़ु रान में इसकी सराित
(हववरण) निीं िै। और क़ु रान मर्ीद में र्ो बात पूरी तरि
वाज़ेि ना िो, मुज्मल (संहक्षप्त) िो, उसकी तशरीि
(व्याख्या) और तबयीन (समझाना) रसूल अल्लाि ﷺका
र्ज़े मन्सबी (कतुव्य) िै। अज़रुए अल्फ़ाज़े क़ु रानी:
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बयानुल क़ु रान हिस्सा अव्वल, तआरुफ़े क़ु रान (डॉक्टर इसरार अिमद)
ُ
ْ ن ر ْز َق
ُك َ ۙ َو ََتْ َعل ُ ْو81
ِ
َ ُ
82 نَ ُبْ ُ ُك ُتكذ ْ َّاَن
ِ
इस क़ु रान, इस अज़मत वाली दकताब, र्ो दकताबे करीम
िै, दकताबे मकनून िै, के बारे में तुम्िारी यि सुस्ती, तुम्िारी
यि कस्लमंदी, तुम्िारी यि नाक़री और तुम्िारा यि अमली
तअहतल (रुकावट) दक तुम इसे झुठला रिे िो! तुमने अपना
हिस्सा और नसीब यि बना हलया िै दक तुम इसकी तकज़ीब
कर रिे िो? तकज़ीब इस मायने में भी दक क़ु रान का इन्कार
दकया र्ाए, इसे अल्लाि का कलाम ना माना र्ाये--- और
तकज़ीब अमली के हज़मन में वि चीज़ भी इसके ताबेअ और
शाहमल िोगी र्ो मैं बयान कर चुका हूाँ। याहन िाहमल-ए-
दकताबे इलािी िोने के बावर्ूद उसकी हज़म्मेदाररयों को
अदा ना दकया र्ाये। अल्लाि तआला िमें इस अन्र्ाम से
मिफ़ू ज़ रखे दक िम भी ऐसे लोगों में शाहमल िों। िम में से
िर शख्स को इन हुक़ू क़ के अदा करने की अपनी इम्कानी
िद तक भरपूर कोहशश करनी चाहिये।
اقولقولیھذاواسغفرہللالیولکمالسائرالمسلمین
والمسلمات۔
❀❀❀