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Mini Training On Constitution Day2
Mini Training On Constitution Day2
Day – 2
भारतीय लोकतंत्र के अंग एवं
ववधि का शासन
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लोकतान्त्रिक व्यवस्था की अवधारणा
लोकतंत्र का अर्थ है "लोगों द्वारा शासन।“ इसकी उत्पत्ति 2400 साल पहले प्राचीन ग्रीस में हुई र्ी। एर्ेत्तनयाई लोगों ने 580 - 507 ईसा पूर्थ में
लोकतंत्र स्थापना की। क्लिस्थनीज़ को एर्ेत्तनयन लोकतंत्र के जनक के रूप में जाना जाता है ।
भारत में लोकतां त्तत्रक व्यर्स्था की शुरुआत तब हुई जब 26 जनर्री 1950 को भारत का संत्तर्धान लागू हुआ।
लोकतां त्तत्रक भारत से पता चलता है त्तक चुनार् के माध्यम से प्रत्ततत्तनत्तधयों को चुनने के त्तलए, भारत के प्रत्ये क नागररक को त्तकसी भी जात्तत, धमथ,
क्षेत्र और त्तलंग तर्ा पंर् के लोगों को त्तबना त्तकसी भेदभार् के र्ोट दे ने का अत्तधकार है । ।
भारत की लोकतां त्तत्रक व्यर्स्था स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के त्तसद्ां तों पर आधाररत है ।
भारत में, एक राज्य सरकार और एक केंद्र सरकार है त्तजसका अर्थ है त्तक यह सरकार का एक संघीय रूप है ।
सार्थभौत्तमक र्यस्क मतात्तधकार (Universal Adult Franchise) के आधार पर चुनार् आयोत्तजत त्तकए गए त्तजसके अनुसार, भारत के नागररक
जो 18 र्र्थ या 18 र्र्थ से अत्तधक हैं , उन्हें अपने धमथ, संस्कृत्तत, पंर्, त्तलंग, क्षेत्र और जात्तत आधाररत भेदभार् के त्तबना र्ोट दे ने और सरकार बनाने
का अत्तधकार है ।
भारत में पहली बार हुआ चुनार् दु त्तनया के लोकतंत्र में सबसे बडे प्रयोगों में से एक माना गया। चुनार् प्रत्तिया लगभग चार महीनों तक चली जो
25 अक्टू बर 1951 से 21 फरर्री 1952 तक र्ी। चुनार् में क्षेत्रीय दलों (63) के सार् 14 राष्ट्रीय दलों ने चुनार् लडा र्ा और कई उम्मीदर्ार स्वतंत्र
र्े। सर्ाथ त्तधक र्ोट और अत्तधकां श सीटें प्राप्त करके नेशनल कां ग्रेस पाटी ने भारत में पहली बार चुनार् जीता।
लोकतंत्र के आधार स्तम्भ
शासन के पहलु ओं के संदभथ में, लोकतं त्र आधुत्तनक समाज की आधारत्तशला के रूप में खडा है । यह एक
ऐसी प्रणाली है जो लोगों को सशक्त बनाती है और उनके अत्तधकारों को बरकरार रखती है , यह सुत्तनत्तित
करती है त्तक सरकार लोककल्याण के त्तलए काम करती है । इसके मूल में र्े स्तंभ हैं जो लोकतां त्तत्रक मशीनरी
के सुचारू कामकाज को सुत्तनत्तित करते हुए समर्थ न, शक्लक्त और संतुलन प्रदान करते हैं ।
लोकतं त्र के स्तंभ प्रमुख त्तसद्ां त और संस्थाएं हैं जो लोकतां त्तत्रक शासन को कायम रखते हैं । इनमें शात्तमल हैं :
1) कानून का शासन, समानता और न्याय सुत्तनत्तित करना;
2) स्वतंत्र और त्तनष्पक्ष चुनार्, त्तजससे नागररकों को अपने नेता चुनने का अत्तधकार त्तमलता है ;
3) मानर्ात्तधकारों की सुरक्षा, व्यक्लक्तगत स्वतंत्रता की सुरक्षा; और
4) शक्लक्तयों का पृर्क्करण, दु रुपयोग को रोकने के त्तलए सरकार की शाखाओं के बीच शक्लक्तयों का
त्तर्भाजन का त्तसद्ां त प्रत्येक अंग की स्वायिता एर्ं दात्तयत्व त्तनधाथ ररत करता है ;
5) ये स्तंभ सामूत्तहक रूप से लोकतांत्तत्रक मूल्यों और प्रर्ाओं को बनाए रखते हैं ।
लोकतंत्र के चार अंग
01 02
व्यवस्थापिका/ पवधायिका काियिालिका
संसद, लोकसभा और राज्य सभा राष्ट्रपत्तत, उपराष्ट्रपत्तत, प्रधानमंत्री एर्ं
मंररपररर्द
03 04
न्याििालिका प्रेस/ मीडििा
उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय एर्ं अन्य त्तप्रंट मीत्तिया/ इन्टरनेट मीत्तिया
क्षेत्रीय न्यायालय
केंद्रीय और राज्य स्तर पर लोकतंत्र के आधार स्तंभों से
सम्बंधधत संवैधानिक प्रावधाि
केन्द्रीि पवधान मंिि (Union Legislature) अनुच्छेद 79 - 122
संघ की न्याििालिका (उच्चतम न्यािािि) (Supreme Court of India) अनुच्छेद 124 - 147
• इं ददरा नेहरु गााँधी बनाम राजनारायण AIR 1975 में कहा गया त्तक भारतीय संत्तर्धान शक्लक्त पृर्क्करण के
त्तसद्ां त को मानता है त्तकन्तु इं ग्लैण्ड की तरह कठोरता से नहीं. राष्ट्रपत्तत को अनुच्छेद 72 के तहत क्षमादान की
शक्लक्त प्राप्त है जो एक न्यात्तयक कृत्य है , इसी प्रकार अनुच्छेद 124 के तहत अध्यादे श जारी करके त्तर्त्तध बना सकते
हैं ,जो एक त्तर्धायी कृत्य है . शक्लक्त पृर्क्करण के त्तसद्ां त को लागू करने के सार् सार् भारतीय संत्तर्धान यह भी
सुत्तनत्तित करता है त्तक कोई भी अंग त्तनरं कुश न बन जाये इसके त्तलए चेक और बेलेंस की व्यर्स्था की गयी है और
कायथपात्तलका को लोकसभा के प्रत्तत उिरदायी बनाया गया है .
• राज्यसभा एक स्थायी सदन है इसक़ा त्तर्घटन नहीं होता, इसकी सदस्य संख्या 250 है .
• लोकसभा जनता की सभा है इसके सदस्य जनता के द्वारा चुने जाते हैं , इसके सदस्यों की संख्या 545 है , 13 सदस्य
केंद्र शात्तसत प्रदे शों का प्रत्ततत्तनत्तधत्व करते हैं . 126वें संदवधान संशोधन अदधदनयम, 2019 के द्वारा एस सी एस टी
एक्ट ररसवेशन 10 साल के दलए बढ़ा ददया गया और एं ग्लो इं दियन कोटा को समाप्त कर ददया गया.
01.1 विधान मंडल
• अनुच्छेद 102 में संसद सदस्ों के दलए दनरहह ताओं का प्रावधान दकया गया है . दजसके अनुसार कोई –
• त्तर्कृत त्तचि, त्तजसके सम्बन्ध में ऐसी घोर्णा त्तकसी न्यायालय में त्तर्द्यमान है ,
• कोई त्तदर्ात्तलया
• भारत का नागररक न हो
• 52र्ें संत्तर्धान संशोधन अत्तधत्तनयम, 1985 के अनु च्छेद 122 के खंि 2 के अनु सार त्तकसी संसद या त्तर्धान सभा सदस्य की सदन की सदस्यता 10र्ी अनु सूची में बताये गए
आधारों पर समाप्त हो जाएगी.
• संसद का प्रमुख कायथ दे श के त्तलए कानून बनाना है जो एक त्तर्धायी प्रत्तिया के माध्यम से सदन में त्तर्धेयक पेश करने से प्रारम्भ होती है.
02 कार्यपाललका
• कायथ पात्तलका का मुख्य कायथ कानून के कायाथ न्वयन की त्तनगरानी और त्तनदे शन करना है ।
• कायथ पात्तलका राज्य की सामान्य नीत्ततयों को बनाने के त्तलए भी त्तजम्मेदार है । यह अस्थायी कायथ पात्तलका (temporary executive) के अंतगथ त आता है ।
• कायथ पात्तलका त्तर्त्तभन्न उच्च और सर्ोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, सं घ के अध्यक्ष और सदस्यों, राजदू तों, र्ायु से ना और नौसे ना आत्तद के प्रमुखों इत्यात्तद की
त्तनयु क्लक्त करता है ।
• कायथ पात्तलका यह तय करने के त्तलए भी त्तजम्मेदार है त्तक अन्य दे शों के सार् त्तकन सं त्तधयों पर हस्ताक्षर त्तकए जाने चात्तहए ।
• कायथ पात्तलका राज्य की त्तर्दे श नीत्तत भी बनाती है और त्तर्दे शी सं बंधों का सं चालन करती है ।
• कायथ पात्तलका का एक अन्य महत्वपूणथ कायथ दे श के त्तलए उनकी सराहनीय से र्ाओं के त्तलए लोगों को सम्मान और उपात्तध प्रदान करना है ।
• स्थायी कायथ पात्तलका (permanent executive) के अंतगथ त दे श की नौकरशाही व्यर्स्था आती है त्तजसका मुख्य कायथ दे श में त्तर्त्तध व्यर्स्था का सं चालन है । यह
लोक कल्याणकारी नीत्ततयों के कायाथ न्वयन के त्तलए भी त्तज़म्मेदार है ।
•
03
प्रो. िायसी ने त्तर्त्तध के शासन के तीन अर्थ बताये है -
विधध का शासन
• त्तर्त्तध की सर्ोच्चता — त्तर्त्तध की सर्ोच्चता से तात्पयथ त्तर्त्तध का सर्ोच्च होना ही है । सरकार द्वारा त्तर्त्तध के अनुसार कायथ त्तकया जाना, ना त्तक मनमाने तौर पर, सरकार में
मनमानी का अभार् ही त्तर्त्तध का शासन है ।
• त्तर्त्तध के समक्ष समता — त्तर्त्तध के समक्ष समता से तात्पयथ त्तर्त्तधयों के समक्ष सभी व्यक्लक्तयों का समान होना एर्ं सभी को त्तर्त्तधयों का समान सं रक्षण प्राप्त होना है ।
• त्तर्त्तधक भार्ना की प्रबलता — त्तर्त्तधयााँ मानर् अत्तधकारों के पररणामस्वरूप है , न त्तक स्रोत के रूप में। त्तर्त्तध प्रशासन का प्रयोग इस तथ्य को प्रकट करने के त्तलए त्तकया
जाता है त्तक हम लोगों के त्तलए त्तर्त्तधयााँ न्यायालयों द्वारा पररभात्तर्त एर्ं मान्य मानर् अत्तधकारों के स्रोत रूप नही ं है अत्तपतु पररणामस्वरूप है ।
• भारत के सं त्तर्धान में त्तर्त्तध का शासन - भारत के सं त्तर्धान में भी त्तर्त्तध के शासन को पूणथरूपेण अंगीकृत त्तकया गया है । हमारा सं त्तर्धान त्तर्त्तध के शासन के धरातल पर
खडा है । सं त्तर्धान में ऐसे अनेक उपबन्ध है जो त्तर्त्तध के शासन को पररलत्तक्षत करते हैं , जैसे -
(1) सं त्तर्धान की प्रस्तार्ना में सामात्तजक, आत्तर्थक एर्ं राजनीत्ततक न्याय का अर्गाहन त्तकया गया है ,
(5) त्तर्त्तध के समक्ष सभी व्यक्लक्त समान है तर्ा सभी को त्तर्त्तधयों का समान सं रक्षण प्राप्त है ,
3.1 विधध के शासन से सम्बंधधत प्रक
श्रीमती इन्दिरा नेहरू गााँधी बनाम राजनारायण (ए.आई.आर. 1975. एस.सी. 2299)
• इस प्रकरण ले में न्यायमूत्ततथ मैथ्यू द्वारा यह कहा गया है त्तक िायसी की त्तर्त्तध के शासन से सम्बक्लन्धत व्याख्या को आगामी सं स्करणों में स्थान नही ं त्तदया गया है क्ोंत्तक
उसमें –
आज त्तर्श्व में ऐसी कोई शासन पद्त्तत नही ं है त्तजसको त्तर्र्े कात्तधकार प्राप्त न हो। हमेशा ही यह सम्भर् नही ं है त्तक सरकार त्तर्त्तध से ही सं रत्तचत हो, व्यक्लक्तयों से नही।ं जबत्तक
र्ास्तत्तर्कता तो यह है त्तक समस्त सरकारें त्तर्त्तध एर्ं व्यक्लक्तयों से ही सं रत्तचत होती है ।
3.2 विधध के शासन से सम्बंधधत case laws
केस – स्टे ट ऑफ दबहार बनाम सोनावती (ए.आई. आर. 1961 एस.सी. 221)
इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है त्तक, राज्य के प्रत्येक प्रात्तधकारी का यह कतथव्य है त्तक र्ह त्तर्त्तध के अनु सार कायथ करें तर्ा अपने आपको
त्तर्त्तध के प्रत्तत कत्तटबद् समझे। न्यायालय द्वारा प्रशासत्तनक कायों का पुनत्तर्थलोकन त्तकया जा सकता है ।
ऐसे ही त्तर्चार इस मामले में अत्तभव्यक्त त्तकये गये है । इसमें यह कहा गया है त्तक, हमारे संत्तर्धान में त्तर्त्तध शासन प्रशासन के सम्पू णथ त्तर्स्तार को आच्छात्तदत
करता है । राज्य का प्रत्येक अंग त्तर्त्तध शासन से त्तर्त्तनयत्तमत एर्ं त्तनयक्लित होता है ।
केस – सुप्रीम कोटह एिवोकेट् स ऑन ररकािह एसोदसएशन बनाम यूदनयन ऑफ इन्दिया (ए.आई.आर. 1994 एस.सी. 268)
इस मामले में यह कहा गया है त्तक, त्तर्त्तध शासन में कुछ त्तर्र्ेकात्तधकार को स्थान त्तदया जाना अपेत्तक्षत है । ऐसे त्तर्र्ेकात्तधकार को समु त्तचत मानकों, मू ल्यों एर्ं
त्तनदे शनों द्वारा त्तनयक्लित त्तकया जा सकता है और उसे स्वेच्छाचाररता से बचाया जा सकता है ।
केस – दिदवजनल फोरे स्ट ऑदफसर बनाम भीम दत्त पािे (ए.आई. आर. 2016 एन.ओ.सी. 230 उत्तराखि)
इस प्रकरण में यह अत्तभत्तनधाथ ररत त्तकया गया है त्तक उच्च अत्तधकाररयों के आदे शों की पालना करना अधीनस्थ अत्तधकाररयों का कतथव्य है । ऐसे आदे शों की
अर्हे लना करना अर्ज्ञा एर्ं कदाचार है ।
Thankyou
Live and Let live with
dignity and pride.