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मिथिलेश कु मार मिश्र

एम० एड० प्रथम वर्ष


तिलकधारी स्नातकोत्तर
महाविद्यालय जौनपुर

शिक्षकों का शोषण

शिक्षक ज्ञान का प्रसारक नहीं है। जैसे उसकी स्थिति है वह उस ज्ञान का स्थापित, स्थायी
रखने वाला है। जो उत्पन्न हो चुका है, और जो हो सकता है उसमें बाधा देने वाला है। वह
हमेशा अतीत के घेरे से बाहर नहीं उठने देना चाहता है। और इसका परिणाम यह होता है
कि हजार-हजार साल तक न मालूम किस-किस प्रकार की नासमझियां, न मालूम किस-किस
तरह के अज्ञान चलते चले जाते हैं। उनको मरने नहीं दिया जाता, उनको मरने का मौका
नहीं दिया जाता। राजनीतिज्ञ भी यह समझ गया है, इसलिए शिक्षक का शोषण राजनीतिज्ञ
भी करता है। और सबसे आश्चर्य की बात है कि इसका शिक्षक को कोई बोध नहीं है कि
उसका शोषण होता है सेवा के नाम पर, कि वह समाज की सेवा करता है, उसका शोषण
होता है-इसका शिक्षक को कोई बोध नहीं है! किस-किस तरह का शोषण होता है?

एक शिक्षक यदि राष्ट्रपति हो जाए तो इसमें शिक्षक का सम्मान क्या है? इसमें
कौन से शिक्षक का सम्मान है? मेरी समझ में आए, एक राष्ट्रपति शिक्षक हो जाए तब तो
शिक्षक का सम्मान समझ में आता है लेकिन एक शिक्षक राष्ट्रपति हो जाए इसमें शिक्षक
का सम्मान कौन सा है! एक राष्ट्रपति शिक्षक हो जाए और कह दे कि यह व्यर्थ है और मैं
शिक्षक होना चाहता हूं और शिक्षक होना आनंद है, तब तो हम समझेंगे कि शिक्षक का
सम्मान हुआ। लेकिन एक शिक्षक राष्ट्रपति हो जाए, इसमें शिक्षक का सम्मान नहीं है,
राजनीतिज्ञ का सम्मान है। इसमें राजनेता का सम्मान है। और जब एक शिक्षक सम्मानित
होता हो राष्ट्रपति होकर तो फिर बाकी शिक्षक भी अगर हेडमास्टर होना चाहें, स्कू ल
प्रधानाचार्य होना चाहें, एजुके शन के मिनिस्टर होना चाहें, तो कोई गलती है?
सम्मान तो वहां है जहां पद है, और पद वहां है जहां राज्य है। लेकिन सारा ढांचा
हमारे चिंतन का ऐसा है कि सब पीछे है, और सबके ऊपर राज्य है, सबके ऊपर राजनीति
है। राजनीतिज्ञ जाने-अनजाने शिक्षक के द्वारा अपनी विचार-स्थिति को, अपनी धारणाओं
को बच्चों में प्रवेश करवाता रहता है। धार्मिक भी करता रहा है-यही! धर्म-शिक्षा के नाम पर
यही चलता रहा है...कि हर धर्म यह कोशिश करता है, बच्चों के मन में अपनी धारणाओं
को प्रवेश करा दे, चाहे वे सत्य हों, चाहे असत्य हों। और उस उम्र में प्रवेश करवा दे जब
कि बच्चे में कोई सोच-विचार नहीं होता है। इससे घातक अपराध मनुष्य-जाति में कोई
दूसरा नहीं है और न हो सकता है। एक अबोध और अनजान बालक के मन में यह भाव
पैदा कर देना कि कु रान में जो है वह सत्य है या गीता में जो है वह सत्य है या भगवान
हैं तो मोहम्मद हैं या भगवान हैं तो महावीर हैं या कृ ष्ण हैं...ये सारी बातें एक अबोध,
अनजान, निर्दोष बच्चे के मन में प्रविष्ट करा देना...! इससे बड़ा कोई घातक अपराध नहीं
हो सकता।

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