Assingnment No. - 4

You might also like

Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 3

Assingnment No.

– 4
प्रश्न :- प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘कफन’ कहानी की समीक्षा अपने शब्दो में लिखिए l
जवाब :- ‘भूख’ मनुष्य की आधारभूत आवश्यकता और एक शाश्वत समस्या है , जो कभी-कभी
इंसान को जानवर तक बना दे ती है । ककसी भी चीज के लिए आसक्तत जब व्यक्तत के अंदर
अत्यधधक बढ़ जाती है , तो वह भख
ू बन जाती है। यह भख
ू कई प्रकार की हो सकती है । कोई
किा के प्रतत अनुरतत होता है तो ककसी के मन में रूप सौंदयय के लिए आसक्तत होती है।
ककसी में धन संचय की प्रबि िािसा होती है तो कोई काम वासना का भूखा होता है । पर इन
सब से बढ़कर व्यक्तत के जीवन में जो स्थान रखती है , वह मनुष्य के पेट की भूख है , रोटी
की भख
ू है और क्जसकी वववशता मनष्ु य को सभी नैततक मल्
ू यों से धिरा कर अमानवीय
व्यवहार करने पर मजबूर कर दे ती है । मुंशी प्रेमचंद ने भी ‘बड़े घर की बेटी‘ में स्वीकार ककया
है कक क्षुधा से बाविा मनुष्य जरा सी बात पर ततनक जाता है ।
मानव जीवन में पेट भरना एक बड़ी समस्या है और यह समस्या तभी शुरू हो िई थी
जब मानव ने संग्रह करना शुरू ककया था। यह पेट भरने की प्रकिया ही थी, क्जसने मानव को
असभ्य से सभ्य बनाया और उसे वापस असभ्य बनाने की भी क्षमता रखती है । भख
ू , उसे
उत्पन्न करने वािी पररक्स्थततयों, उससे उत्पन्न समस्याओं आदद का भारतीय ही नहीं वरन
ववश्व सादहत्य में धचरकाि से यथाथयपरक धचत्रण होता रहा है । समाज का पथ प्रदशयक कहे जाने
वािा सादहत्यकार या एक किाकार को भी पेट की भूख ककस तरह अपनी किा बेचने पर
मजबूर कर दे ती है इसका पता हमें दस
ू रे सप्तक के प्रमुख कवव भवानी प्रसाद लमश्र की
कववता ‘िीत फरोश‘ से चिता है ।
प्रेमचंद सादहत्य में भी ‘बूढ़ी काकी‘, ‘पंडित मोटे राम शास्त्री‘ और ‘कफन‘ उनकी ऐसी
कहातनयां हैं क्जनमें पेट की क्षुधा को ही ववषय आधार बनाया िया है । प्रेमचंद ने अपने युि
और समाज की सच्चाई को दे खा-परखा है , उसकी समस्याओं पर ध्यान केंदित ककया है और
कफर उसे अपने सादहत्य में वाणी दी है । 1936 में लिखखत कहानी ‘कफन‘ में प्रेमचंद ने घीसू
और माधव तथा उनके जैसे अनधिनत िोिों की दि
ु तय त के कारण और मनष्ु य के प्रत्यक्ष दश्ु मन
के रूप में ‘भूख‘ को प्रतीकवत प्रस्तुत ककया है । इस कहानी के केंि में वह नश
ृ ंस भूख ही है
क्जसे पराक्जत करना घीसू और माधव के बस में नहीं है । वरन ् इसके ववपरीत इस भूख के
सामने जीवन की समस्त जरूरतें पराक्जत होकर िौण हो िई हैं। भीष्म साहनी ने भी माना है
कक िरीब की दतु नया में सब कुछ िौण है , प्रसूतत में धचल्िाने और अंत में दम तोड़ जाने वािी
पत्नी िौण है, वपता-पत्र
ु और पतत-पत्नी का ररश्ता भी िौण है , भन
ु े हुए दो आिू सबसे अधधक
महत्व रखते हैं। तयोंकक ये दो आिू ही इनके (घीसू और माधव) के पेट की भूख लमटाने में
काम आने वािे हैं। अतः इनके लिए ये आिू इतने महत्त्वपूणय हो िए हैं कक इनके िािच से
ही माधव अपनी प्रसव-पीडड़ता पत्नी तक को उपेक्षक्षत कर रहा है । वह पत्नी जो वपछिे एक
साि से मेहनत कर-करके इनका पेट पाि रही थी और जो माधव के बच्चे को जन्म दे कर उसे
बाप बनने की खश
ु ी दे ने जा रही थी। परं तु उस समय माधव की भूख इतनी प्रबि रूप में
दृक्ष्टित होती है कक उसे लशवाय पेट भरने के कुछ नहीं सझ
ू ता है । यहााँ तक कक इन आिओ
ु ं
के कारण वह अपने वपता पर भी भरोसा नहीं कर पाता है और आिुओं को छोड़कर नहीं जाना
चाहता ताकक घीसू आिू पर हाथ साफ ना कर पाए- ‘‘माधव को भय था कक वह कोठरी में
िया तो घीसू आिुओं का एक बड़ा भाि साफ कर दे िा और वह अपनी पत्नी को दे खने तक
नहीं जाता है ।”
ककतने दख
ु की बात है कक पतत-पत्नी का जन्म-जन्मांतर का रािात्मक संबंध आिू के
साथ जुड़े भूख के संबंध के आिे हल्का पड़ रहा है। यहााँ तक कक बुधधया के मर जाने के बाद
भी उनका रोना इस बात के लिए तनकि कर आता है कक अब उनकी भूख की धचंता करने
वािा कोई नहीं रहा। केवि बुधधया ही थी जो जैस-े तैसे मजदरू ी करके दोनों को खखिा रही थी।
जमींदार के पास रोते हुए घीसू यही कहता है - ‘‘अब कोई एक रोटी दे ने वािा भी न रहा
मालिक। तबाह हो िए।”
इसके बाद भी दोनों बुधधया को इस कारण से याद करते हैं कक उसकी मत्ृ यु की वजह
से ही उन्हें कफन के पैसे लमिे हैं, क्जनसे भी शराब पी रहे हैं, लमठाई खा रहे हैं। अथायत उस
अतप्ृ त िािसा को तप्ृ त कर रहे हैं जो न जाने कब से दोनों के ददि में पि रही थी। हािांकक
घीसू तो पहिे भी इस प्रकार का खाना एक भोज में खा चक
ु ा था परं तु माधव के लिए तो यह
एक स्वप्न के पूरे होने जैसा था। इसलिए यह दोनों उसके िुणों का बखान करते हुए उसे स्विय
लमिने की कामना करते हैं और साथ ही अपनी भूख लमटाने के लिए उसे धन्यवाद भी दे ते हैं।
माधव कहता है - ‘‘बड़ी अच्छी थी बेचारी! मरी तो खब
ू खखिा-वपिाकर।” घीसू भी अपनी िािसा
पूरी करने के लिए उसे दआ
ु दे ता है - ‘‘हााँ बेटा, बैकंु ठ में जाएिी।... मरते-मरते हमारी क्जंदिी
की सबसे बड़ी िािसा परू ी कर िई।”
दे खा जाए तो घीसू और माधव जन्म से ही ऐसे नहीं थे बक्ल्क इस समाज ने उन्हें ऐसा
बनाया है । यह हमारा समाज, उसकी अव्यवस्था, वियित व आधथयक असमानता के साथ- साथ
सामंती व्यवस्था, महाजनी सभ्यता आदद और इनके कारण हो रहा चौतरफा शोषण ही है क्जसने
समाज में घीसू और माधव जैसे चररत्रों का तनमायण ककया है । इस शोषण ने इनका इतना नैततक
पतन ककया है कक इनके लिए सभी जीवन मल्
ू य, ररश्ते आदद भख
ू के समक्ष छोटे पड़ िए हैं
और इसके लिए एक तरह से समाज ही क्जम्मेदार है । समाज की सामंती और महाजनी व्यवस्था
ने इन को ऐसा बना ददया है कक ये अपना पेट भरने के लिए मेहनत नहीं करना चाहते थे
तयोंकक वो समाज की असलियत जान चक
ु े थे- ‘‘क्जस समाज में रात-ददन मेहनत करने वािों
की हाित उनकी हाित से कुछ अच्छी नहीं थी, और ककसानों के मुकाबिे में वे िोि जो
ककसानों की दब
ु ि
य ता ओं से िाभ उठाना जानते थे, कहीं ज्यादा संपन्न थे, वहााँ इस मनोवक्ृ त्त
का पैदा हो जाना अचरज की बात नहीं थी।” स्पष्ट है कक जहााँ ददनभर जी तोड़ पररश्रम करने
के बाद भी दो वतत की रोटी जुटाने में मुक्श्कि हो तो ऐसे में पररश्रम पर से ववश्वास उठ
जाना सामान्य सी बात है । इसीलिए घीसू और माधव दोनों ही एकदम अकमयण्य व आिसी हो
िए हैं। जब तक पेट भरने के लिए कुछ है , तब तक काम न करने की कसम खा चक
ु े हैं और
जब पास कुछ नहीं होता है और भख
ू अत्यंत बढ़ जाती है तब खाने का इंतजाम करने तनकिते
हैं और तब भी ककसी खेत से चोरी करके ही काम चिाने की कोलशश करते हैं- ‘‘मटर, आिू
की फसि में दस
ू रों के खेतों से मटर या आिू उखाड़ िाते और भून-भूनकर खाते या दस-पााँच
ऊख उखाड़ िाते और रात को चस
ू ते।‘‘
इनकी अकमयण्यता के पीछे इनका अिसीपन ही नहीं है बक्ल्क एक दाशयतनक सूझ भी
है । इसीलिए प्रेमचंद ने कहा भी है कक घीसू अन्य ककसानों से कहीं ज्यादा ववचारवान था अथायत
घीसू इस बात से भिी भााँतत पररधचत था कक जो अन्य ककसान मेहनत कर-कर के अपनी
हड्डियां तोड़ते हैं, उनको भी रोटी की, भूख की समस्या है । ऐसे में काम न करने का तनणयय
िेकर एक प्रकार से वह सही तनणयय िेता है । अधधक भूख होने पर व्यक्तत को क्षुधापूततय के
लसवाय कुछ नहीं ददखता और वह अमानवीय व्यवहार करने ििता है परं तु भूख लमटने पर या
कम होने पर उसकी मानवीयता िौट आती है । ‘कफन‘ में भी जब घीसू और माधव भख
ू े के
होते हैं और उनके हाथ में कफन के पैसे आते हैं तो वे सब कुछ भूि कर शराबखाने में दावत
उड़ाते हैं और जब उनका पेट भर जाता है तो बचा हुआ खाना एक लभखारी को दे कर जीवन में
पहिी बार दे ने के िौरव और खश
ु ी का अनुभव करते हैं।
प्रेमचंद ने भूख के व्यापक ववराट व्यक्ततत्व, उसके भयंकर प्रभाव और उसकी तीखी
प्रततकिया की बारीक छानबीन की है और इस छानबीन के तनष्कषों के प्रस्तत
ु ीकरण में इतनी
िूढ सांकेततकता, जीवन प्रकिया की िहरी जानकारी, अनुभव की प्रमाखणकता और ववश्वसनीय
स्वाभाववकता का तनयोजन ककया है I ‘कफन‘ कहानी की ‘भूख‘ साधारण भूख नहीं रह िई है , वह
तो जैसे मेहनतकश इंसानों के विय दश्ु मन का प्रतततनधध बन िई है । वह भूख शोषक व्यवस्था
के अलभशापों की एकजुट अलभव्यक्तत है , घीसू और माधव जैसे िोिों द्वारा झेिी िई अमानुवषक
यातनाओं का अलिखखत दस्तावेज है , पेट के बि रें िती हुई मानवता की वविंबना है।
भूख ‘कफन‘ कहानी का वीभत्स और खख
ूं ार रूप है ।

You might also like