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यीशु और स्वर्गदूत मदद करते हैं
यीशु और स्वर्गदूत मदद करते हैं
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ईसवी सन्56 के आस-पास एक बार जब पौलुस यरूशलेम के मंदिर में था, तो एक भीड़ ने उस पर
हमला कर दिया। और लोग उसे घसीटकर मंदिर के बाहर ले गए और उसे मार डालने की कोशिश की।
अगले दिन पौलुस को महासभा के सामने लाया गया। वहाँ हालात इतने बिगड़ गए कि दुश्मन उसकी
बोटी-बोटी कर देनेवाले थे। (प्रेषि. 21:30-32; 22:30; 23:6-10) तब पौलुस ने सोचा होगा, ‘मुझे यह सब
कब तक झेलना पड़ेगा?’ पौलुस को वाकई मदद की ज़रूरत थी।
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किसने पौलुस की मदद की? जिस दिन पौलुस को महासभा के सामने लाया गया था, उसी रात
“प्रभु” यीशु ने उसे दर्शन दिया। वह उसके पास आ खड़ा हुआ और उसने कहा, “हिम्मत रख! क्योंकि
जैसे तू यरूशलेम में मेरे बारे में अच्छी तरह गवाही देता आया है, उसी तरह रोम में भी तुझे गवाही देनी
है।” (प्रेषि. 23:11) यीशु ने इस बात के लिए पौलुस की तारीफ की कि उसने यरूशलेम में अच्छी गवाही
दी है और उसे यकीन दिलाया कि वह सही-सलामत रोम पहुँचेगा और वहाँ भी अच्छी गवाही देगा। यीशु
ने बिलकु ल सही वक्त पर उसकी हिम्मत बँधायी! उसकी बात सुनकर पौलुस ने सुरक्षित महसूस किया
होगा, ठीक जैसे एक बच्चा अपने पिता की बाँहों में सुरक्षित महसूस करता है।
समुदंर में बहुत बड़ा तूफान आया हुआ है और एक स्वर्गदूत पौलुस को यकीन दिला रहा है कि जहाज़
पर सवार सब लोग बच जाएँगे (पैराग्राफ 5 पढ़ें)
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पौलुस के सामने और कौन-सी मुश्किलें आयीं? यरूशलेम में हुई उन घटनाओं के करीब दो साल बाद
जब वह एक जहाज़ से रोम जा रहा था, तो जहाज़ एक बहुत बड़े तूफान में फँ स गया। तूफान इतना
भयानक था कि नाविकों और यात्रियों ने सोचा कि वे मर जाएँगे। लेकिन पौलुस नहीं घबराया। उसने
जहाज़ में सवार लोगों से कहा, “मैं जिस परमेश्वर का हूँ और जिसकी पवित्र सेवा करता हूँ, उसका एक
स्वर्गदूत रात को मेरे पास आया था और उसने मुझसे कहा, ‘पौलुस, मत डर। तू सम्राट के सामने ज़रूर
खड़ा होगा और देख, परमेश्वर तेरी वजह से उन सबकी भी जान बचाएगा जो तेरे साथ सफर कर
रहे हैं।’” यहोवा ने एक स्वर्गदूत को भेजकर उसे फिर से उस बात का यकीन दिलाया जो यीशु ने पहले
कही थी। और वाकई ऐसा ही हुआ। पौलुस सही-सलामत रोम पहुँचा।—प्रेषि. 27:20-25; 28:16.
6. यीशु के किस वादे से हमें हिम्मत मिलती है और क्यों?
है 6 कौन हमारी मदद करता? यीशु हमारी मदद करता है जैसे उसने पौलुस की मदद की थी। उसने
हमसे वादा किया है, “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।”
(मत्ती 28:20) यीशु के इन शब्दों से हमें हिम्मत मिलती है। क्यों? क्योंकि कभी-कभी ज़िंदगी में
आनेवाला दुख सहना बहुत मुश्किल होता है। जैसे, अगर हमारे परिवार में किसी की मौत हो गयी है,
तो उसे खोने का दर्द हमें सालों तक सहना पड़ता है। कु छ लोगों के लिए बुढ़ापे की वजह से आनेवाली
तकलीफें सहना मुश्किल होता है। कु छ लोग कभी-कभी बहुत मायूस हो जाते हैं और एक-एक पल
काटना उन्हें भारी लगता है। मगर ऐसे मुश्किल वक्त को भी पार करने की हमें हिम्मत मिलती है,
क्योंकि हमें यकीन है कि यीशु हमेशा हमारे साथ है। वह उन दिनों में भी हमारे साथ होता है जब हम
अंदर से टू ट चुके होते हैं।—मत्ती 11:28-30.
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परमेश्वर का वचन बताता है कि यहोवा स्वर्गदूतों के ज़रिए भी हमारी मदद करता है। (इब्रा. 1:7, 14)
मिसाल के लिए, जब हम “हर राष्ट्र, गोत्र [और] भाषा” के लोगों को ‘राज की खुशखबरी’ सुनाते हैं, तो
स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं।—प्रकाशितवाक्य 14:6 पढ़िए; मत्ती
24:13, 14.