फलित ज्योतिष सीखें

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ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले व्यक्ति को ज्योतिषी, ज्योतिर्विद, कालज्ञ, त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ

आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है। इन सब के अतिरिक्त देवज्ञ शब्द भी ज्योतिषी के लिए प्रयुक्त किए
जाते हैं। दैवज्ञ दो शब्दों से मिलकर बना है दैव+अज्ञ।‘दैव’ का अर्थ होता है भाग्य और ‘अज्ञ’ का अर्थ होता है
जानने वाला अर्थात् भाग्य को जानने वाले को दैवज्ञ कहते है।

आचार्य वाराह मिहिर द्वारा लिखित बृहत् संहिता में दैवज्ञ के निम्नलिखित गुण बताये है :
इसके अनुसार देवज्ञ को शांत, विद्या विनय से संपन्न, शास्त्र के प्रति समर्पित, परोपकारी, जितेन्द्रीय,
वचन पालक, सत्यवादी, सत्चरित्र, आस्तिक व पर निन्दा विमुख होना चाहिये।
इसके अतिरिक्त वह दुर्व्यसनों से दूर, पवित्र अन्तःकरण वाला, चतुर, सभा में आत्मविश्वास के साथ बोलने
वाला, प्रतिभाशाली, देशकाल व परिस्थिति को जानने वाला, निर्मल हृदय वाला, ग्रह शान्ति के उपायों को
जानने वाला, मन्त्रपाठ में दक्ष, पौष्टिक कर्म को जानने वाला, अभिचार मोहन विद्या को जानने वाला,
देवपूजन, व्रत-उपवासों को निरंतर, प्राकृ तिक शुभाशुभों के संके तों को समझाने वाला, ग्रहों की गणित का
ज्ञाता होना चाहिये। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एक दैवज्ञ को ज्योतिष के तीनों स्कं न्धों (सिद्धांत, होरा,
संहिता) का ज्ञान होना आवश्यक है।

ज्योतिष की उत्पत्ति का काल निर्धारण आज तक कोई नही कर सका क्योंकि ज्योतिष को वेद का नेत्र माना
जाता है और वेद की प्राचीनता सर्व मान्य है संसार का सबसे प्रचीन ग्रंथ वेद माने जाते हैं और वेद के छः अंग
है।
1. शिक्षा
2. कल्प
3. निरूक्त
4. छं द
5. व्याकरण
6. ज्योतिष

मान्यताओं के अनुसार वेद ही सब विद्याओं का उद्गम है अतः यह स्पष्ट है कि ज्योतिष की उत्पत्ति


उतनी ही प्रचीन है जितनी वेदों की।

ज्योतिष का उपयोग अर्थ के निमित्त या धनार्जन के लिए नहीं अपितु जनसेवा की भावना से तथा
मनुष्यों के मार्गदर्शन के लिए करना चाहिए ।
पुराणों के अनुसार ऋषि मुनियों ने आकाश का विभाजन 12 भागों में कर दिया था, जिन्हें हम 12 अलग-
अलग राशियों – मेष, वृष, मिथुन, कर्क , सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक,धनु, मकर, कु म्भ, मीन – के नाम से
जानते हैं। इसके और सूक्ष्‍म अध्‍ययन के लिए उन्होंने इसको 27 भागों में बांट दिया, ज्योतिष शास्त्र में
सही और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए नक्षत्रों और उनके स्वाभाव का अध्ययन आवश्यक है। इन बारह
राशियों और सत्ताइस नक्षत्रों के स्वामी नवग्रह हैं इसलिए नवग्रहों के स्वभाव और कारकत्व के विषय में
ज्ञान होने से फलित करना सरल हो जाता है। जन्म कु ण्डली को बारह भागों में विभाजित किया गया है इन
बारह भावों से भिन्न-भिन्न बातों का विचार किया जाता है। सरल भाषा में कहें तो जन्म कु ण्डली का फलित
सही प्रकार से करने की लिए बारह राशियों , सत्ताईस नक्षत्रों, नौ ग्रहों तथा बारह भावों सम्बंधित जानकारी
होना अति आवश्यक है।

बारह राशियां तथा उनके स्वामी इस प्रकार हैं :

1. मेष - मंगल
2. वृष - शुक्र
3. मिथुन - बुध
4. कर्क - चन्द्रमा
5. सिंह - सूर्य
6. कन्या - बुध
7. तुला - शुक्र
8. वृश्चिक - मंगल
9. धनु - गुरु
10. मकर - शनि
11. कु म्भ - शनि
12. मीन - गुरु

सत्ताईस नक्षत्र, उनके स्वामी तथा देवता इस प्रकार हैं:

1. अश्विनी – के तु - अश्विनी कु मार


2. भरणी – शुक्र - काल
3. कृ त्तिका – सूर्य - अग्नि
4. रोहिणी – चन्द्र - ब्रह्मा
5. मृगशिरा – मंगल - चन्द्र
6. आर्द्रा – राहु - रूद्र
7. पुनर्वसु – गुरु - अदिति
8. पुष्य – शनि - बृहस्पति
9. आश्लेषा – बुध - सर्प
10. मघा – के तु - पितृ
11. पूर्वाफाल्गुनी – शुक्र - भग
12. उत्तराफाल्गुनी – सूर्य - आर्यमान
13. हस्त – चन्द्र - सूर्य
14. चित्रा – मंगल - विश्वकर्मा
15. स्वाति - राहु - वायु
16. विशाखा – गुरु - इंद्राग्नि
17. अनुराधा – शनि - मित्र
18. ज्येष्ठा – बुध - इंद्र
19. मूल – के तु - निऋति
20. पूर्वाषाढ़ा – शुक्र - वरुण (जल)
21. उत्तराषाढ़ा – सूर्य - विश्वेदेव
22. श्रवण – चन्द्र - विष्णु
23. धनिष्ठा – मंगल - वसु
24. शतभिषा – राहु - वरुण
25. पूर्वाभाद्रपद – गुरु - अजैकपाद
26. उत्तराभाद्रपद – शनि - अहिर्बुधन्य
27. रेवती – बुध - पूषाण

दीप्त ग्रह की दशान्तर्दशा मे राज्य लाभ, अधिकार प्राप्ति, धन, वाहन, स्त्री, पुत्रादि का लाभ, आदर सत्कार व
राज्य सम्मान प्राप्त होता है।
स्वस्थ अर्थात स्वक्षेत्री ग्रह की दशान्तर्दशा मे स्वास्थ लाभ, धन, सुख, विद्या, वाहन, स्त्री, भूमि आदि का
लाभ होता है।

मुदित अवस्था (अधिमित्र की राशि) में स्तिथ ग्रह की दशान्तर्दशा मे वस्त्र, आभूषण, पुत्र, धन, वाहन, आदि
का सुख प्राप्त होता है।

शांत अवस्था (मित्रराशि) में स्तिथ ग्रह की दशान्तर्दशा मे सुख, धर्म, भूमि, पुत्र, स्त्री, वाहन, सम्मान आदि
प्राप्त होता है।

दीनाअवस्था (समराशि) में स्तिथ ग्रह की दशान्तर्दशा मे स्थान परिवर्तन, बन्धु बांधवों से विरोध निन्दित,
हीनस्वाभाव, मित्रों के साथ छोड़ देने तथा रोगादि होने की संभावना होती है।

दुखावस्था (शत्रुराशि) में स्तिथ ग्रह की दशान्तर्दशा मे जातक को कष्ट प्राप्त होते हैं, विदेश गमन, चोरी,
अग्नि या रोगादि से धनहानि होने की संभावना होती है।

विकलावस्था (पापयुक्त ग्रह) में ग्रह की दशान्तर्दशा मे मन में हीनभावना,मित्रों तथा परिवार जनों की
मृत्यु, , स्त्री, पुत्र, वाहन, भूमि, वस्त्रादि की हानि होती है।

खलावस्था (शत्रुग्रह की ) में स्तिथ ग्रह की दशान्तर्दशा मे कलह, वियोग(बन्धु, माता या पिता आदि की
मृत्यु), शत्रुओं से पराजय, धन, राशिवाहन, भूमि की हानि होती है।

कोपीअवस्था (सूर्य से अस्त) ग्रह की दशान्तर्दशा मे अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं, विद्या, धन, वाहन, भूमि,
पुत्र, स्त्री, तथा बंधुओं से पीड़ा होती है।

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