MAHARASA

You might also like

Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 17

RASASHASHTRA – MAHARASA

अभ्रवैक्रांतभरऺीकववभररद्रिजसस्मकभ । चऩरो यसकश्चेती ऻरत्वर अष्टौ सांग्रहे िसरन ॥ ( य य. स. 2 / 1 )


 यसह्रदम तंत्र के अनस
ु ाय ऩायद के सभान गण
ु होने से इन द्रव्मो को भहायस कहा गमा हे ।
 भहायस के द्रव्मो का ऩायद के अष्टादश संस्काय भे उऩयस औय साधायण यास की अऩेऺा से भुख्म
उऩमोगी हे ।
 साधायण यस औय उऩयस की अऩेऺा ऩायद के गण
ु ो का वधधन भहायस अधधक कयता हे ।
 यसामान कभध भे उतभ होने से भहायस एसा नाभ दीमा गमा हे ।
सरभरन्म शोधन एवां सत्वऩरतन :
सूमरावताककदरी वन््मर कोशरतकी च सुयदररी । शशग्रश्ु च वज्रकन्दो नीयकणरकरकभरची च ॥
आसरभेकयसेन तु रवणऺरयरम्रबरववतर फहुश: ॥ शु््मांतत यसोऩयसर्भरतर भुांचतत सत्वरनी ॥
( य य. स. 3 / 118 - 119 )
 शोधन : अशुध्ध भहायस को उऩमक्
ुध त स्वयस / क्वाथ की रवण, ऺाय औय अम्र द्रव्म भे बावना
 सत्वऩातन : शुध्ध भहायस को कोष्ठी भे धभन कयने से

अभ्रक ( Mica )
ऩमराम : अभ्र, अांफय, अनांतऩत्रक, गगन, शुभ्र, ख, गगरयज, आकरश, अम्फय, भेघ, अांतरयऺ, गगयीजरभर वज्र,
गयज्वज, व्मोभ, गौयीतेज, अनांतक, बग
ृ ,ां घन, फहुऩत्रां, अभर, वज्रक VD. DHAVAL DHOLAKIYA
उत्ऩतत : दे व्मो यजो बवेद गन्धो धातु: शुक्रं तथाभ्रकभ । ( य य. स. 2 / 2 ) 8980925520
प्रकाय – 1. अभ्रं ससतारुणश्माभऩीतवणधववबेदत: । चतुववाधां सभाख्मातं कृष्णां तत्र गदरऩहभ ॥
वऩनाकनागभंडूकवज्राह्मववबेदत: । चतुववधधंतु कृष्णरभ्रां भतां यसववशरयदे : ॥ ( य. त. 10 / 3–4 )
वणाधनस
ु ाय – 4 श्वेत, वऩत, यक्त, कृष्ण
2. वऩनाकनागभंडूकवज्रसभत्मभ्रकं भतभ । श्वेताददवणधबेदेन प्रत्मेकां तच्चतुववाधभ ॥
( य य. स. 2 / 4 )
Types of Abhraka Reaction on Heat Effect
वऩनरक ववभुांचती दरोच्चमभ भरां फ्धर भरयमत्मेव भरनवभ
नरग नरगवद कुमराद ्वतन भांडर कुष्ठ
भांडू़ उत््रत्ु मोत््रत्ु म असर्म अश्भयी योग
वज्र तनभुाक्तरशेषवैकृतभ दे हरोहकयां व सवायोगहयां

 अभ्रक का सवध प्रथभ उल्रेख कौटील्म अथधशास्त्र भे सभरता हे ।


 सवाप्रथभ गचककत्सर भे उऩमोग अष्टरांग ह्रदम भे करशससरदी तैर भे ककमर गमर हे । ( अ. ह्र. 8
/ 15 )
 सत
ु ेन्िफन्धी – अभ्रक ऩरयद कर तनमभन
ग्राह्म रऺण : स्स्नग्धां ऩथ
ृ ुदरां वणासन्मक्
ु तां बरयतो अगधकभ ।
सुखतनभोच्मऩत्रां च तरदभ्रां शस्तांभीरयतभ ॥ ( य य. स. 2 / 11 )
 नीररांजनोऩभां स्स्नग्धं बायऩण
ू ध भहोज्जज्जवरभ ।
तनभोच्मऩत्रं भद
ृ र
ु ं त्वभ्रं श्रेष्ठं सभहोच्मते ॥ ( य. त. 10 / 13 )

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 1


RASASHASHTRA – MAHARASA

 यरजहस्तरदधस्तरद मत्सभानीतं धनं खने : ।


बवेत तदक्
ु तपरदां तन:सत्वां तनष्परां ऩयभ ॥ ( य य. स. 2 / 3 )
अभ्रक शोधन : प्रतप्तं स्तवरयणी तनक्षऺ्तां करांजीके अभ्रकभ ।
तनदोषं जामते नन
ू ं प्रक्षऺप्तं वा अवऩ गोजरे ।
त्रत्रपररक्वगथते चावऩ गवरां दग्ु धे ववशेषत: ॥ ( य य. स. 2 / 16 - 17 )
अशुध्ध अभ्रक को कांजी मा गौभुत्र मा त्रत्रपरा क्वाथ मा गौदग्ु ध भे 7 वाय तनवाधऩ कयने से
शुध्ध होता हे ।

धरन्मरभ्रक : चूणाधबं शरशरसन्मक्


ु तां वस्त्रफध्धं दह करांस्जके ।
तनमाधतं भदध नाद्वस्त्राद्धान्माभ्रसभतत कथ्मते ।। ( य य. स. 2 / 21 )
अभ्रं कम्फरभध्मस्थं सधान्मं ऩरयभदध नात ।
धान्मेभ्मो तनगधतं मस्भात तस्भाततस्भाद्धान्माभ्रभुच्मते ॥ ( य. त. 10 / 25 )
ऩरदरांश शरशरसन्मक्
ु तां अभ्रकं कम्फरोदये ।
VD. DHAVAL DHOLAKIYA
त्रत्रयरत्रां स्थरऩमेन्नीये तस्त्क्रन्नं भदध मेत दृढभ ॥
8980925520
कम्फराद गसरतं श्रक्ष्णं फारुकायदहतश्च मत ।
तद्धान्माभ्रसभतत प्रोक्तभभ्रभरयणशस्धमे ॥ ( यसेन्द्र साय संग्रह 1 / 153 – 154 )
शु्ध अभ्रक ( 1 बरग ) + शररी ( 4 बरग ) की ऩोटरी फनरकय 3 यरत्री तक करांजी भे
यखकय भद्रदा त कयने ऩय जो अभ्रक ऩोटरी से फहरय प्रर्त होतर हे उसे धरन्मरभ्र कहते हे ।

भरयण : 1. धरन्मरभ्रां करसभदा स्म यसेन ऩरयभददध तभ । ऩट


ु ीतां दशवरये ण सिमते नात्र संशम: ॥
तद्वन्भुस्तरयसेनरवऩ तांडुरीम यसेन च ।। ( य य. स. 2 / 22 )
धरन्मभ्रक को करसभदा मर भस्
ु तर मर तांडुरीम स्वयस भे ऩरयभद्रदा त कय 10 गजऩट
ु दे ने से
अभ्रक बष्भ फनती हे ।
2. गन्धवा ऩत्रतोमेन गड
ु ेन सह बरववतभ ।
अधोध्वध वटऩत्ररणी तनश्चन्द्रं त्रत्रऩट
ु ै : खगभ ॥ ( य य. स. 2 / 26 )
शुध्ध अभ्रक को एयं डऩत्र स्वयस औय गड
ु की बावना दे कय चक्रक्रका फनाकय वट ऩत्र के फीच
यखकय 3 ऩट
ु दे ने से तनश्चन्द्र अभ्रक बष्भ फनती हे ।

अभ्रक बष्भ गण
ु : तनश्चन्िश्चररुणां स्वच्छां सुसूक्ष्भां स्ऩशाकोभरां ।
अभ्रं भत
ृ ं ववजानीमाद्रसतंत्रववचऺण: ॥ ( य. त. 10 / 55 )
तनश्चन्द्र, अरुणवणध, स्वच््, सुक्ष्भ, स्ऩशध भे कोभर
अभ्रक अभतृ तकयण : 1. त्रत्रपरोत्थकषरमस्म ऩररन्मादाम षोडश ।
गोघत
ृ स्म ऩररन्मरष्टौ भत
ृ ाभ्रस्म ऩररन दश ॥
एकीकृत्म रोहऩरत्रे ऩाचमेन्भद
ृ न
ु ास्ग्नना ।
िवे जीणे सभादाम सवायोगेषु मोजमेत ॥ ( यसेन्द्र धचंताभणी 4 / 32 – 33 )

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 2


RASASHASHTRA – MAHARASA

त्रत्रपराक्वाथ ( 16 ऩर ) + गौघत
ृ ( 8 ऩर ) + अभ्रक बष्भ ( 10 ऩर ) – रोह ऩात्र भे द्रव
के जीणध होने ऩय भद
ृ ु अस्ग्न दे ने से अभ्रक का अभतृ तकयण होता हे ।
2. भत
ृ ाभ्रसंसभतं गव्मभरज्जमां दत्वाभ्रकं ऩचेत ।
अभतृ तकृतभेवत
ं ु घनं कामेषु मोजमेत ॥ ( य. त. 10 / 71 )
अभ्रक बष्भ ( 1 बाग ) + गोघत
ृ ( 1 बाग ) रोह ऩात्र भे द्रव के जीणध होने ऩय भद
ृ ु अस्ग्न
दे ने से अभ्रक का अभतृ तकयण होता हे ।

अभ्रक रोहीतीकयण : गरांगेरुकी बिभुस्तर वटऺीयां तथैव च । वटभूरजरां वरवऩ हरयिरमर िवस्तथर ॥
सभांगरक्वगथतश्चैव धनभेसब: सुऩेषमेत ॥ ऩट
ु द्वमां त्रमां वावऩ ववतये तिषजां वय: ॥
तनश्चस्न्द्रकश्च भद
ृ र
ु ं यक्तोत्ऩरसभप्रबभ । गगनस्म बवेिष्भ तत: कामेषु मोजमेत ॥
( य. त. 10 / 65 – 67 )
अभ्रक बष्भ ( 1 बाग ) गांगेरुकी, बद्रभुस्ता, वटऺीय तथा वटभूरस्वयस / हयीद्रा स्वयस &
भंजीष्ठा क्वाथ भे ऩेषण कयके 2 मा 3 गजऩट
ु दे ने से तनश्चन्द्र, भद
ृ ,ु यक्तोत्ऩर वणध अभ्रक बष्भ फनती हे ।

सत्वऩरतरन : ऩरदरांशटां ़णोऩेतां भुसरीयसभदीतां । रुन्ध्मात्कोष्ठमां दृढं ध्भातं सत्वरुऩं बवेध्दनभ ॥


( य. य. स. 2 / 28 )
शुध्ध अभ्रक ( 1 बाग ) + टं कण ( ¼ बाग ) को भुसरी स्वयस भे भदीत कयके कोष्ठी भे
तीव्रास्ग्न दे ने ऩय अभ्रक का सत्वऩातन होता हे ।

सत्वशोधन : 1. अथ सत्वकणांस्तास्तु क्वाथतमतव्मा अम्रकरांजीकै: । VD. DHAVAL DHOLAKIYA


शोधतनमगणोऩेतं भूषाभध्मे तनरुध्म च ॥ 8980925520
सम्मग्द्रत
ु ं सभाहत्मं द्वववरयां प्रधभेद्धनभ ।
इतत शुध्धं बवेत्सत्वं मोज्जमां यसयसरमने ॥ ( य. य. स. 2 / 36 - 37 )
अभ्रक सत्व को अम्र कांजी भे उफारकय शोधनीम गण की औषधधमो के साथ भूषा भे
द्रवीबूत होने तक ततव्रास्ग्न दे कय मही प्रक्रक्रमा को ऩन
ु : कयने ऩय अभ्रक सत्व का शोधन होता हे ।
2. त्रत्रपररसशररे वावऩ वटभूरकषरमत: ।
अम्रेन करांस्जकैवरावऩ खसत्वं शोधमेतिषक ॥ ( य. त. 10 / 103 )
अभ्रक सत्व को त्रत्रपरा क्वाथ / वटभर
ू क्वाथ / अम्र कांजी भे तनवाधऩ कयने से अभ्रक सत्व
का शोधन होता हे

सत्व भद
ृ क
ु यणभ : भधुतैरवसरज्जमेषु िरववतां ऩरयवरवऩतां ।
भद
ृ ु स्मा दशवरये ण सत्वं रोहाददकं खयभ ॥ ( य. य. स. 2 / 38 )
शुध्ध अभ्रक सत्व भूषा भे यखकय द्रवीबूत कयके भधु, तैर, वसा, घत
ृ भे क्रभश: 10 वाय
ऩरयवाऩीत कयने से अभ्रक सत्व का भद
ृ क
ु यण होता हे ।

अभ्रक द्रतु त : अगत्स्मऩत्र तनमरासै: धान्माभ्रं भददध तं तथा । शयणोदयभ्मे तु तनक्षऺप्तं रेवऩतं भद
ृ ा ॥
गोष्ठबूशभां खतनत्वर तु हस्तभरत्रभध: क्षऺऩेत । भरसरांतमद्ध
ु तां ततु जामते ऩरयदोऩभरभ ॥

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 3


RASASHASHTRA – MAHARASA

( यस जर तनधी )
धान्माभ्रक को अगत्स्मऩत्र स्वयस भे भदीत कय वटक फनाकय सूयण कन्द भे यख के कऩडऩट्टी
कयके जहा गाम को यखते हे वह बूसभ को हस्तभात्र खनन कयके उस भे 1 भास तक यखने से ऩायद जैसी
अभ्रक द्रतु त फनती हे ।
अभ्रकस्म ऩांचववध सांस्करय : संस्काय: ऩंचधा प्रोक्तो घनस्म ऩयभेश्वयी ।
धरन्मरभ्रकयणां सत्वऩरतनां तनभारकक्मर ॥
सुभतृ तकयणां चैव त्वभतृ तकयणां तथा ।
भायणे घनसत्वस्म घनऩत्रस्म भायणे ॥ ( आनन्द कन्द क्रक्रमाकयण ववश्रांतत )
1. धान्माभ्रक तनभाधण
2. अभ्रक सत्वऩातन
3. अभ्रक बष्भ तनभाधण
4. अभ्रक अभतृ तकयण
5. अभ्रक शोधन एवं सत्वं शोधन

अभ्रक गण
ु : अभ्रं स्स्नग्धं ऩयभशशशशयां स्वाद ु चामष्ु य़भग्र्मं केश्मं वर्ण्य़ं रुधचकयभरं दीऩनं चाततफल्मभ ।
नेत्र्मं भेधां जनमतततयां स्तन्मसांवधानश्च ऺेत्रे स्थैर्यमध ववतयतत ऩयां दीऩनां ऩष्ु ऩकेतो : ॥
( य. त. 10 / 72 )
दोषशरांती : उभरपरां जरे वऩष््वा सेवते मो द्रदनत्रमभ । अशुध्धाभ्रकदोषेण ववभुक्त: सुखभेधते ॥ ( य.ज.नी. )
अतसीपर को जर के सरथ वऩसकय ततन द्रदन सेवन कयने से अशु्ध अभ्रक सेवन से हुए
दोषो की शरांती होती हे ।
अऩथ्म : ऺायम्रं द्ववदरश्चैव ककधटीकायवेल्रकभ । वत
ंृ ाकश्च कयीयश्च तैरं चाभ्रे वववजधमेत ॥ ( य.ज.नी. )

VD. DHAVAL DHOLAKIYA


8980925520
वैक्रांत ( Tourmaline )
ऩमराम : ववक्रांत, जीणावज्रक, कुवज्रक, चुणावज्रक, जीणाऩत्रक, ऺुिकुशरश, शोबरभणी, दग्धहीयक, नीचवज्र,
तरम्रयत्न, तरम्ररश्भ, तरम्रकभ, ऩर
ु क
प्रकरय - श्वेतो यक्तश्च वऩतश्च नीर: ऩायावात्छवी: । श्माभर: कृष्णवणधश्च कफयुध श्चअष्टधर द्रह स ॥
( य. य. स. 2 / 54 )
श्वेत: ऩीतस्तथा यक्तो नीर: ऩायावतप्रब: । भमयू कंठसदृशश्चान्मो भयकतप्रब: ॥ ( य. य. स. 2 / 61 )
ग्ररह्मतर : अष्टरस्रश्चरष्टपरक: षटकोणो भसण
ृ ो गरु
ु ।
शुस्््भगितवणैश्च मक्
ु तो वैक्रांत उच्मते ॥ ( य. य. स. 2 / 53 )
 शभगित वणा वररर वक्रांत िेष्ठ औय नीर – ऩरयरवतप्रब वणा कर वैक्रांत वजानीम हे ।
 यक्त तथर भयकतवणा कर वैक्रांत सांऩण
ू ा शस्ध दरतर हे ।
 ववष्नो यसयरजस्म – वैक्रांत ववष कर नरश कयने वररर तथर यसो कर यरजर हे ।
 वैक्रांत: वज्रसदृशो – दे ह्रोहकयोभत : ।
 आमव
ु ेद संदहताओ भे अभ्रक व वैक्रांत का वणधन नही ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 4


RASASHASHTRA – MAHARASA

शोधन : वैक्रांतका: मस्ु स्त्रद्रदनां ववशुध्धा: संस्वेदीता: ऺरयऩटूतन दत्वर ।


अम्रेषु भूत्रेषु कुरत्थयां बतनये अथवा कोिववररयऩक्वर ॥
कुरत्थक्वरथ संस्स्वन्नो वैक्रांत: ऩरयशुध्मतत ॥ ( य. य. स. 2 / 65 - 66 )
अशध्
ु ध वैक्रांत को ऺाय व ऩंचरवण सभधश्रत अम्र द्रव्म / भत्र
ु / कुरत्थ क्वाथ भे 3 ददन
स्वेदन कयने से मा केवर कुरत्थ क्वाथ भे स्वेदन कयने से शुध्ध होता हे ।

भरयण : 1. सिमतेअष्टऩट
ु ै गन्ा ध तनम्फक
ु िव सन्मक्
ु त: । ( य. य. स. 2 / 67 )
शुध्ध वैक्रांत को शुध्ध अभ्रक औय तनफु स्वयस के सरथ 8 गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ फनती हे|
2. वैक्रांतेषु च तप्तेषु हमभूत्रां ववतनक्षऺऩेत ।
ऩौन: ऩन्ु मेन वा कुमाधद द्रवं दत्वा ऩट
ु ं त्वनु ॥
बस्स्भबूतं तु वैक्रांतं वज्रस्थरने तनमोजमेत ॥ ( य. य. स. 2 / 67 - 68 )
शुध्ध वैक्रांत को अश्वभूत्र भे वायं वाय तनवाधऩ कयके अश्वभूत्र भे भदध न कय चक्रक्रका फनाकय
गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ तैमाय होती हे ।
सत्वऩरतन : सत्वऩरतनमोगेश्च भददध तश्च वटीकृत: ।
भूषास्थो धद्रटकर्भरतो वैक्रांत: सत्वभुत्सज
ृ ेत ॥ ( आमव
ु ेद प्रकाश 5 / 171 )
शध्
ु ध वैक्रांत को गग्ु गर
ु ु, घत
ृ , भध,ु टं कण ( सत्वऩातान मोग ) के साथ भदीत कय चक्रक्रका
फनाकय भूषा भे यखके कोष्ठी भे 3 घंटे तक गयभ कयने ऩय सत्व ऩातीत होता हे ।
वैक्रांत गण
ु : ततन्भहरगदहय: ऩयभश्च भे्मो वस्ह्नप्रददऩकयो अततयसरमन ।
दोषत्रमरऩहयणो फहुमोगवरही वैक्रांतस्तु गददत: खरु वज्रतुल्म: ॥ ( य. त. 23 / 167 )

अशु्ध वैक्रांत सेवनजन्म दोष : अशुध्धो वज्रवैक्रांतो ककररसां दरहसांतततभ ।


तथा ऩरांडुां कुरुतस्तो ववशोधमेत ॥ ( आमव
ु ेद प्रकाश 5 / 168 )

वैक्रांत यसरमन : सूतबष्भरधासंमक्


ु तं नीरवैक्रांतबष्भकभ ।
भत
ृ ाभ्रसत्वभबमोस्तुसरतं ऩरयभददध तभ ॥ ( य. य. स. 2 / 74 )
ऩायद बष्भ (1/2 बाग ) + नीर वैक्रांत बष्भ ( 1बाग ) + अभ्रक सत्व बष्भ ( 1½ बाग )
को भधु तथा घत
ृ के साथ ऩयीभदीत कयने ऩय वैक्रांत यसामन तैमाय होता हे ।

VD. DHAVAL DHOLAKIYA


8980925520
भरऺीक ( Chalcopyrite )
ऩमराम : स्वणाभरऺीक - हे भभरक्षऺक, धरतुभरक्षऺक, तर्म, तरवऩज, भधुधरतु
यजतभरऺीक - ववभर, यजतभरक्षऺक तरयभरक्षऺक, तरयज, श्वेतभरक्षऺक, तरम्रगन्धरमस

उतऩतत : सुवणधशैरप्रबवो ववष्णुना कांचनो यस: । तर्मरां ककयरतचीनेषु तनसभधत: । ताप्म: सूमस
ध ंतप्तो भाध्वे भासस
दृश्मंते ॥ ( वैशरख भरस भे ददखने वारा )
प्रकाय - भाक्षऺको द्ववववधो हे भभाक्षऺक्स्तायभाक्षऺक: । ( य. य. स. 2 / 81 )
स्वणध भाक्षऺक – इषतसुवणधसादहत्मात्सुवणधगण
ु साम्मत: ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 5


RASASHASHTRA – MAHARASA

सुवणधध्मतु तभत्वाद्वा स्वणधभाक्षऺकभुच्मते ॥ ( य. त. 21 / 2 – 3 )


सुवणध की तयह दीखने से, सुवणध की तयह चभकने से, सुवणध के जैसे गण
ु होने से औय इस भे
थोडा सुवणध होने से इसे स्वणधभाऺीक कहते हे ।
मशोधय बट्ट ने स्वणाभरक्षऺक को नवसव
ु णावत व यसवरग्बट्ट ने इसे ऩांचसव
ु णावत कहर हे ।

यजत भाक्षऺक – इषद्रौप्मस्म सादहत्माद वा यौप्मगण


ु साम्मत : ।
यौप्मवदध्मतु तभत्वाद्वा यौप्मभाक्षऺकभुच्मते ॥ ( य. त. 21 / 56 )
यजत की तयह दीखने से , यजत की तयह चभकने से , यजत के जैसे गण
ु होने से औय इस भे
थोडा यजत होने से इसे स्वणधभाऺीक कहते हे ।

ग्राह्मता – स्वणध भाक्षऺक -:


स्स्नग्धं गरु
ु श्मरभरकरांतत क्रकं धचत कषे सुवणा्मतु तसुप्रकरशभ ।
कोणोस्झझतं स्वणासभरनवणा सुवणधभाक्षऺकसभह प्रशस्तभ ॥ ( य. त. 21 – 4 )
कषे सुवणा्मतु तसुप्रकरशभ – ऩत्थय ऩय धीसने ऩय सुवणा वत छरऩ छोडतर हे ।

स्वणाधबं स्वणधभाक्षऺकं तनष्कोणां गरु


ु तामत
ु भ । करशरभरां ववककये ततु घष्ृ टां न सांशम: ॥
स्वणधवणध गरु
ु स्स्नग्धं इषन्नीरस्च्वव स्पुटभ । कषेकनकवद घष्ृ टं तद्वयं हे भभाक्षऺकभ ॥
( आमव
ु ेद प्रकाश 4 / 8 )
करशरभरां ववककये ततु घष्ृ टां न सांशम: - हाथ ऩय घीसने ऩय कारीभा छोडता हे ।

यौप्म भाक्षऺक :-
स्स्नग्धं सकोणां गरु
ु च वतार
ु ां यजतोज्जज्जवरभ । यौ्मवच्चरकगचक्मरढ्मां जात्मं तद्रौप्मभाक्षऺकभ ॥
( य. त. 21 – 57 )
अग्ररह्मतर : स्वणा भरक्षऺक :-
खयं ऩयं वै गरु
ु ता ववदहनं प्रवत
ृ कोणं खयरोहकाबभ ।
प्रक्रकततधतं तत्ऩरयहे मभेव सुवणधभाक्षऺकसभहाभमऻै: ॥ ( य. त. 21 – 5 )
यजत भरक्षऺक :- VD. DHAVAL DHOLAKIYA
सभरं रघु रुऺश्च कषेअततभशरनच्छवव । 8980925520
अवतुधरं वववणधश्च हे मं स्माद्रौप्मभाक्षऺकभ ॥ ( य. त. 21 – 58 )
शोधन : एयां डतैल्रुांग़रांफशु स्दां शुध्मतत भाक्षऺकभ ।
ससद्धं वा कदरीकांद्तोमेन घद्रटकरद्वमभ ॥
तप्तं क्षऺप्तं वयरक्वरथे शुस्ध्धभामतत भाक्षऺकभ ॥ ( य. य. स. 2 / 83 )
अशुध्ध भाऺीक को भातुरुंग स्वयस मा कदरी स्वयस से ससध्ध एयं डतैर भे 2 घटीका तकस्वेदन कयने
से मा त्रत्रपरा क्वाथ भे तनवाधऩ कयने से शध्
ु ध होता हे ।

भरयण : भरतुरुांगरांफग
ु न्धाभ्मां वऩष्टं भूषोदये स्स्थतभ ।
ऩांचक्ोडऩट
ु ै दाग्धां सिमते भाक्षऺकं खरु ॥ ( य. य. स. 2 / 84 )

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 6


RASASHASHTRA – MAHARASA

शुध्ध भाक्षऺक + शुध्ध गन्धक को भातुरुंग स्वयस भे वऩसकय 5 वायाह ऩट


ु दे ने से भाक्षऺक बष्भ
फनती हे । भाऺीक बष्भ यक्तवणध की होता हे ।
सत्वऩरतन : त्रत्रशरांशनरगसन्मक्
ु तां ऺरयै म्रेश्च भददध तभ । ध्भातं प्रकटभूषामां सत्वं भुंचतत भाक्षऺकभ ॥
स्तवरयां ऩरयद्राव्मं क्षऺप्तं तनगड
ुंु ीकरयसे । भाक्षऺकसत्वसस्म्भश्रं नरगां नश्मतत तनस्श्चतभ ॥
( य. य. स. 2 / 87 - 88 )
शुध्ध भाक्षऺक ( 1बाग ) + शुध्ध नाग ( 1/30 बाग ) को ऺाय व अम्र द्रव्मो के साथ भदध न कयके
भूषा भे यखकय कोष्ठी भे ततव्रास्ग्न दे ने से भाक्षऺकसत्व भीरता हे । जीस को तनगड
ुं ी सत्व भे 7 फाय द्राव्म कयने
से सत्व भे से नाग का नाश होता हे ।
गण
ु : भधुय: करांचनरबरस: सरम्रो यजतसस्न्नब: । क्रकं धचत कषामभधुय: शीत: ऩाके कटुरधघु ॥
तत्सेवनरज्जजयरव्मरगधववषैना ऩरयबम
ू ते । भाक्षऺकधातु: सकररभम्न: प्ररणो यसेन्िस्म ऩयां द्रह वष्ृ य़: ॥
दभ
ु ेररोहद्वमभेरनश्च गण
ु ोतय: सवायसरमनरग्रम: । ( य. य. स. 2 / 79 – 80 )

अशुध्ध भाक्षऺक सेवन जन्म दोष : अशोधधतं वा अभत


ृ भप्मशुध्दं तनषेववतं भाक्षऺकभक्षऺफरधनभ ।।
भन्दरनरां कुष्ठहरीभकरदीनकोष्ठरतनरां वै जनमेस्न्नतांतभ ॥

VD. DHAVAL DHOLAKIYA

ववभर ( Iron Pyrite )


8980925520

सवधप्रथभ यसाणधव ग्रंथ भे उल्रेख भीरता हे ।


प्रकाय - ववभरस्स्त्रववध: प्रोक्तो हे भाध्मस्तायऩव
ू क
ध : ।
ततृ तम: कांस्म ववभरस्ततत्करांत्मर स रक्ष्मते ॥ ( य. य. स. 2 / 95 )
स्वणधववभर – स्वणधसभान कांती – हे भक्रक्रमा भे उऩमोग
यजत ववभर – यजत सभान कांती – यौप्मक्रक्रमा भे उऩमोग
कांस्म ववभर – कांस्म सभान कांती – बेषज भे उऩमोग
ग्राह्मता - वतुार: कोणसांय़क्
ु त: स्स्नग्धश्च परकरांववत: । ( य. य. स. 2 / 96 )
शोधन - आटरुषजरे स्स्वन्नो ववभरो ववभरो बवेत ।
जांफीयस्वयसे स्स्वन्नो भेषिांग
ृ ीयसे अथवा ॥
आमातत शुस्ध्धं ववभरो धातवश्च मथाऩये ॥ ( य. य. स. 2 / 98 - 99 )
अशध्
ु ध ववभर को वासा स्वयस मा जंफीय तनम्फु स्वयस मा भेषशंग
ृ ी स्वयस भे स्वेदन कयने से शध्
ु ध
होता हे ।
भायण – गन्धरश्भरकुचरम्रैश्च सिमते दशशब: ऩट
ु ै : । ( य. य. स. 2 / 100 )
शुध्ध ववभर + शुध्ध गन्धक को रकुच स्वयस भे वऩसकय 10 ऩट
ु दे ने से ववभर बष्भ फनती हे ।
सत्वऩातन - सटां करकुचिरवैभेषशांग
ृ माश्च बष्भना । वऩष्टो भूषोदये सरप्त: संशोष्म च तनरुध्म च ॥
षटप्रस्थकोककरैध्भाधतो ववभर: सीससस्न्नब: । सत्वं भुंच्चतत तध्मक्
ु तो यस: स्मात्स यसामन: ॥
( य. य. स. 2 / 101 – 102 )
शुध्ध ववभर + शुध्ध टं कण + भेषशंग
ृ ी बष्भ को रकुच स्वयस के साथ वऩस्ष्ट फनाकय भूषा के अन्दय
सरप्त कयके सूखने ऩय कोष्ठी भे अस्ग्न दे ने से सससे के सभान सत्वऩातन होता हे ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 7


RASASHASHTRA – MAHARASA

गण
ु : भरुस्त्ऩतहयो वष्ृ य़ो ववभरो अततयसरमन: । ( य. य. स. 2 / 96 )

शीररजतु ( Mineral Pitch - Black Bitumen )


ऩमराम : शशररजतु, शशररभम, शैरज, शशररतनमरास, शशररस्वेद, अश्भज, अश्भजतुक, अद्रिज, अश्भोत्थ,
अश्भररऺर, अश्भसरय, शैरेम, शैरधरतु, अततथी, गगयीज, गैयेम
सुमस
ध ंताऩसंतप्ता: सशरा: शैराधधऩस्म मद । गाढं भुंचतत तनमाधसं तस्च्छराजतु कीततधतभ ॥
शैराधधऩसशरासायो तनगधतो अववताऩत: । शुष्क: सन्भूतधतां मात: सशराजतु तनगध्मते ॥ ( य. त. 22 / 62 – 63 )
गग्रष्भे तीव्राकधतप्तेभ्म: ऩादे भ्मो दहभबूबत
ृ : । स्वणधरुप्माकधगभेभ्म: सशराधातुववतन:सये त ॥ ( य. य. स. 2 / 110 )
गग्रष्भ ऋतु भे सम
ू ा के सांतरऩ से गभा हुए ऩवात मर द्रहभररम से जो गरढ तनमरास तनकरतर हे उसे
शशररजतु कहते हे ।
प्रकाय :- प्रास्प्तस्थान के अनस
ु ाय :
(अ) हे भश्च यजतरतरम्रद्वयरत कृष्णरमसरदवऩ । यसामनं तद्ववधधसबस्तद वष्ृ य़ं तच्च योगनत
ु ।।
सौवणध याजतं तािं रौहच्चेतत ववबेदत: । सशराजतु सभाख्मातं सबषस्ग्बस्तु चतुववाधभ ॥ ( य. त. 22 /
64 )
(फ) त्रप्वादीनां तु रोहानां षण्णरभन्मतभरांवमभ ॥ ( स.ु धच. 13 / 5 )
(क) सशराजतु द्ववधर ऻेमं तत्राध्मं गगरयसांबवभ । VD. DHAVAL DHOLAKIYA
द्ववततमं स्मरदष
ू यरमरां भतृ तकरांजरमोगत: ॥ ( यस जर तनधी ) 8980925520
रुऩगन्धानस
ु ाय :
(ड) सशराजतु: द्ववधर प्रोक्तो गोभूत्राध्मो यसरमन : । कऩयूध ऩव
ू क
ध चान्मस्तत्राध्मो द्ववववध: ऩन
ु : ॥
ससत्वच्चैव तन:सत्वस्तमो: ऩव
ू ो गण
ु ाधधक: ॥ ( य. य. स. 2 / 109 )
(इ) बानत
ु ाऩी शीराजीत व अस्ग्नताऩी शीराजीत
ग्राह्मता : जतुप्रकरशां स्वयसां सशराभ्म: प्रस्रवंतत दह । ( सु. धच. 13 / 4 )
जत्वरबांभद
ृ भ
ु त
ृ स्नरच्छां मन्भरं तस्च्छराजतु ॥
मस्तु गग्ु गर
ु ुकरबरससततक्तको रवणरांववतभ ॥
गौभुत्र गन्धम: सवा सवाकभासु मोजमेत ॥ ( यस जर तनधी )
ऩरण्डुयां शसक्तरकरयां कऩयूध ाध्मं सशराजतु । ( य. य. स. 2 / 123 )

शुध्ध सशराजीत ऩरयऺा :


वह्नौ क्षऺप्तं बवे्मतस्ल्रांगरकरयभधूभकभ । सशररेअ्मववरीनां च तच्छुद्धं दह सशराजतु ॥
( य. य. स. 2 / 114 )
तण
ृ ाध्मग्रे कृतं सवाभधो गरतत तांतुवत । ( यस जर तनधी )
1) ऩरनीभे डररने से सुक्ष्भ तांतु के सभरन ऩरनी भे फेठनर ।
2) आगऩय डररने से पुरकय शरांगरकृतत हो जरमेगर ।
3 ) धुम्रयद्रहत एवां इस की यरख जर भे अववरेम हे ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 8


RASASHASHTRA – MAHARASA

शोधन : 1. ऺायाम्रगोजरैधौतं शुध्मत्मेव सशराजतु । ( य. य. स. 2 / 117 )


अशु्द शीररजीत को ऺरय, अम्र िव्म औय गौभूत्र भे िरवीत कयने ऩय शु्ध होतर हे ।

2. सशराधातु च दग्ु धेन त्रत्रपराभाकधवद्रवे: ।


रोहऩात्रे ववतनक्षऺप्म शोधमेदतत मत्नत: ॥ ( य. य. स. 2 / 117 )
अशु्ध शीररजीत को दग्ु ध मर त्रत्रपरर क्वरथ मर बांग
ृ यरज स्वयस भे रोहऩरत्र भे िरववत कयने ऩय शु्ध
होतर हे ।
3. सशराजतुसभं क्वाथ: जरभष्टग्गण
ु ं तत: । ऩादांशशेवषत: क्वाथ: सशराभमववशुद्धमे ॥
( य. त. 22 / 79 )
तनरुक्तएनैव ववधधना क्वाथस्थाने तु गोजरभ । दत्वाह्रता शशररररऺर शस्ु ध्दभामात्मसंशमभ ॥
( य. त. 22 / 80 )
अशुध्ध शीराजीत को रोह ऩात्र भे सभबाग त्रत्रपरा क्वाथ मा गौभूत्र औय 8 गन
ु ा जर भे अस्ग्न
सन्मोग से द्रावीत कयने ऩय द्रव के उऩय संतातनकावत शुध्ध शीराजीत प्राप्त होता हे ।

4. सूमत
ध ाऩी शीराजीत – अशुध्ध शीराजीत को दो गन
ु ा जर भे सूमध आतऩ सन्मोग से आधा
होने तक गयभ कयने ऩय द्रव के उऩय जो कृष्ण वणध की संतातनका प्राप्त होती हे उसे दस
ू ये ऩात्र भे
रेकय इस ववधी को ऩन
ु : ऩन
ु : तफ तक के जफ तक जर ववशुध्ध हो – इस ववधी से शीराजीत शुध्ध
होता हे ।
5. कऩयूध शीराजतु : एरातोमेन सस्म्बन्न ससद्धं शुस्ध्धभुऩतै त तत ।
नैतस्म भरयणां सत्वऩरतन ववद्रहतां फध
ु ै: ॥
( य. य. स. 2 / 124 )
अश्
ु ध कऩयाू गन्धी शीररजीत एरर क्वरथ भे भदा न कयने ऩय श्
ु ध होतर हे ।

भरयण : सशरमा गन्धताराभ्मां भातुरुंगयसेन च । ऩदु टतो दह सशराधातुसिमते अष्टगगरयण्डकै: ॥


( य. य. स. 2 / 119 )
शुध्ध शीराजीत + शुध्ध भन:शीर + शुध्ध गन्धक + शुध्ध हयतार को भातुरुंग स्वयस के साथ 8
वन्मोऩर से ऩट
ु दे ने से शीराजीत बष्भ होती हे ।
VD. DHAVAL DHOLAKIYA
सत्वऩातान : वऩष्टवा द्रावणवगेण साम्रेन धगरयसंबवभ । 8980925520
क्षऺप्त्वा भूषोदये रुद्धवा गाढै ध्भाधतं दह कोक्रकरै: ॥
सत्वं भुंचेस्च्छराधातुस्तत्ऺणरल्रोहसस्न्नबभ ॥ ( य. य. स. 2 / 112 )
शुध्ध शीराजीत + द्रावण वगध के द्रव्मो के साथ अम्र द्रव्मो के सातह वऩसकय भूषा भे यखके
कोष्ठी भे अस्ग्न दे नेऩय रोह सभान सत्वऩातन होता हे ।

गण
ु : सशराजतु गतं ततक्ते ववऩाके कटुके तथा । भूत्ररश्च ववशेषेण मोगवरही यसरमनभ ॥( य. त. 22 / 84 )
स्वणधगबधधगये जाधतो जऩरऩष्ु ऩतनबो गरु
ु : । योप्मगबधधगये जाधतं भधुयं ऩार्ण्डुयं गरु
ु ।
तािगबधधगये जाधतं नीरवणध घनं गरु
ु ॥ ( य. य. स. 2 / 111 - 113 )

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 9


RASASHASHTRA – MAHARASA

शीररजतु प्रकरय वणा यस गण



स्वणा जऩरऩष्ु ऩतनब स्वल्ऩ ततक्त गरु

यजत ऩरांडुय ततक्त गरु

तरम्र नीर ततक्त गरु

अशु्ध शशररजीत सेवनजन्म दोष – दरह, भूच्छरा, भ्रभ, यक्तवऩत, अस्ग्नभरन््म, ववडग्रह ( यसजरनेधी )
दोष शरांती – भयीच + घत
ृ – 7 दीन सेवन ( यसजरनेधी )

VD. DHAVAL DHOLAKIYA

तुत्थ ( Blue Vitriol ) 8980925520

ऩमराम : तत्ु थ, तत्ु थक, ववतन्


ु नक, शशखखगग्रव, भमयु क, अभत
ृ रसांग, तरम्रगबा
ऐततहाससक ग्रंथो के अनस
ु ाय गरुड ने ववष ऩीकय पीय अभत
ृ ऩान कीमा औय भयकत ऩवधत ऩय वभन कय दीमा जो
फाद भे जभकय सस्मक तनभाधण हुआ । सस्मक तुत्थ का प्राकृततक स्रोत हे जफ की तुत्थ कृत्रत्रभ रुऩ से फनामा
जाता हे ।
प्रकाय – 1) सस्मक – Peacock Ore ( Cu5FeS4 ) & 2) तुत्थ – Copper Sulphate ( CuSO4 5H2O )
ग्राह्मता – शशखखकांठसभच्छरमां गरु
ु स्स्नग्धं भहोज्जज्जवरभ । तुत्थकं शस्मते ववऻैयन्मद्धीनगण
ु ं भतभ ॥
( य. त. 21 / 72 )
तनभधरीकयण : सुचूर्णधतं तुत्थकं तु दशतोरकसांशभतभ । क्षऺऩेदत्मष्ु णससररे ऩांचतोरकसांशभते ॥
तत: सायकऩत्रेण सायमेद्वाससाथवा । सारयतं ससररं ववऻ: करचऩरत्रतरगथतभ ॥
तावत्संस्थाऩमेध्मावन्नैतत तत्कणरुऩताभ । एवं कणत्वभरऩरन्नां तुत्थं शुद्धमै तनमोजमेत ॥
( य. त. 21 / 73 – 75 )
चूणीत अशुध्ध तुत्थ ( 1 बाग ) को उष्णोदक ( ½ बाग ) भे द्राववत कयके वस्त्र से गारीत कयके इस
द्रव को काचऩात्र भे यखने ऩय तर भे जो कणरुऩ प्राप्त होता हे उस से तत्ु थ तनभधरीकयण होता हे ।
शोधन : 1. तुत्थं ववचूर्ण्मध खल्वे नवतनम्फक
ु ोत्थवरयर । ऩरयऩेषमेद द्ववमाभं यसतंत्रकभधववऻ: ॥
ववधधना ह्रनेन तुत्थं ऩरयशोधधतं तु नन
ू भ ॥ अववरस्म्फतं ववशुस्ध्द सभुऩतै त तनववधशेषाभ ॥
( य. त. 21 / 106 – 107 )
अशु्ध तुत्थ चूणा को तनांफु स्वयस भे 2 मरभ तक वऩसने ऩय शु्ध तुत्थ प्रर्त होतर हे ।
2. दोररमांत्रेण सुस्स्वन्नं सस्मकं प्रहयत्रमभ । गोभद्रहषरज्जमभूत्रेषु शुद्ध्मते तुत्थखऩधयभ ॥
( य. य. स. 2 / 130 )
अशुध्ध तुत्थ को दोरामंत्र भे गौभूत्र, भरद्रहषभूत्र, अजरभूत्र, 3 प्रहय तक स्वेदन कयने से शुध्ध होता हे ।
भायण : 1. रकुचिरवगन्धरश्भटां कणेन सभंववतभ । तनरुध्म भूवषकाभध्मे सिमते कौक्कुटै : ऩट
ु े : ।।
( य. य. स. 2 / 131 )
शुध्ध टं कण + शुध्ध गन्धक + शु. टं कण को रकुच स्वयस भे वऩसकय भूषा भे कुक्कुट ऩट
ु दे ने से
तुत्थ बष्भ तैमाय होती हे ।
2. ऩरोस्न्भतां तत्ु थकां तु गन्धकांतु ऩररिा कभ । शयावसम्ऩट
ु े न्मस्म भद
ृ ा च ऩरयरेऩमेत ॥
ऩट
ु त्रमां प्रदातव्मं स्वल्ऩैयेव वनोत्ऩरै: । तुत्थकं भतृ तभाप्नोतत वांततभ्रांत्माददवस्जधतभ ॥

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 10


RASASHASHTRA – MAHARASA

( य. त. 21 / 125 – 126 )
शुध्ध तुत्थ 1 बाग + शुध्ध गन्धक ½ बाग को शयावसंऩट
ु ीत कयके 3 स्वल्ऩ ऩट
ु दे ने से तुत्थ बष्भ
तनभाधण होती हे ।
सत्वऩातन : तनम्फि
ु रल्ऩटां करभमरां भष
ू ाभध्मे तनरुध्म च । तरम्ररुऩां ऩरयध्भातं सत्वं भंच
ु तत सस्मकभ ॥
( य. य. स. 1 / 134 )
शुध्ध तुत्थ 1 बाग + टं ़ण ¼ बाग तनम्फस्
ु वयस भे वऩसकय भूषा भे यखके कोष्ठी द्वाया ततव्रास्ग्न दे ने
ऩय ताि रुऩ सत्व प्राप्त होता हे ।
गण
ु : तुत्थकं रेखनं बेदी कषरमां भधुयां रघु । कृसभध्नभथ चऺुष्य़ां भेह्भेदोहयां ऩयभ ॥
कपवऩतहयं फल्मं शूरह्रत्कुष्ठनाशनभ ॥ स्श्वत्ररऩहां त्वम्रवऩतहयां चैव यसरमनभ ॥
तत्ु थं सांकोचनकयां नरडीनरां फरकृत ऩयभ । त्वग्दोषशभनं काभं ववशेषरिगु चयां भतभ ॥
( य. त. 21 / 127 -129 )

चऩर ( Bismuth Ore – Selenium )


प्रकरय – गौय औय श्वेत – ववशेषाद यसफन्धन:, अरुण व कृष्ण औय राऺा के सदृश्म शीघ्र द्रवीत होने वारा
औय तनष्पर VD. DHAVAL DHOLAKIYA
ग्ररह्मतर – फांगविवते वह्नौ चऩरस्तेन क्रकततधत: । ( य. य. स. 2 / 143 ) 8980925520
अस्ग्न ऩय फंग की तयह जल्दी से द्रवीते होने के कायण इसे चऩर कहते हे ।
चऩर: स्पदटकच्छाम: षडस्र: स्स्नग्धको गरु
ु : । त्रत्रदोषध्नो अततवष्ृ य़श्च यसफन्धववधरमक: ॥
( य. य. स. 2 / 145 )
शोधन : जंफीयककोटकशंग
ृ वेयैववधबावनासबश्चाऩरस्म शुवद्ध: । ( य. य. स. 2 / 147 )
अशु्ध चऩर को जांफीय स्वयस / क़ोटक स्वयस / शांग
ृ वेय स्वयस की बरवनर दे ने से शु्ध होतर हे ।
भरयण : चऩरेन सभ: सत
ू ो तनगड
ुंु ीयसभद्रदा त: । ऩाधचतो वारक
ु ामंत्रे यक्तबष्भ प्रजामते ॥ ( यसेन्द्र संबव )
शु्ध चऩर 1 बरग + शु्ध ऩरयद 1 बरग को तनगड
ुुं ी स्वयस की बरवनर दे कय वररुकर मांत्र भे अस्ग्न
दे ने से यक्त वणा की चऩर बष्भ फनती हे ।
सत्वऩरतन : शैरां तु चूणधतमत्वा तु धरन्मरम्रोऩववषैववाष:ै ।
वऩंडं फद्ध्वा तु ववधधवत्ऩातमेच्चऩरं स्तथा ॥ ( य. य. स. 2 / 148 )
शुध्ध चऩर चूणध कांजी / उऩववष मा ववष द्रव्मो के क्वाथ से वऩर्ण्ड फनाकय ऩातार कोष्ठी भे
ववधीवत सत्व प्राप्त होता हे ।
गण
ु : चऩरो रेखन: स्स्नग्धो दे हरोहकयो भत: । यसयरजसहरम: स्माततक्तोष्णभधुयो भत:॥ (य. य. स. 2/144 )

यसक ( Calamine – Zink Ore )


ऩमराम : खऩाय, यऺोद्भव, नेत्रयोगरयी, तरम्रयां जक, मशदकरयण, यीततकृत, गोबट्ट, क्षऺततककट्ट, गोबट्ट
प्रकाय – 2 प्रकाय
यसको द्ववववध: प्रोक्तो ददा यु : करयवेल्रक: । सदरो दद
ु ा य: प्रोक्तो तनदा रो करयवेल्रक: ॥
सत्वऩरते शुब: ऩव
ू ो द्ववततमश्चौषधरद्रदषु ॥ ( य. य. स. 2 / 149 – 150 )

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 11


RASASHASHTRA – MAHARASA

3 प्रकाय – भतृ तकाब ( ZnO ), गड


ु ाब ( ZnS ), ऩाषाणाब ( ZnCO3 )
भतृ तकरग़डु ऩरषरणबेदतो यसकस्स्त्रधा । ऩीतस्तु भतृ तकरकरयो भतृ तकरयसको वय: ॥
ऺीमते नरवऩ वस्ह्नस्थ: सत्वरुऩो भहरफर: । गड
ु ाबो भध्मभो ऻेम: ऩाषाणाब: कतनस्ष्ठक: ॥
( यसाणाधव 7 / 28 – 29 )
ग्राह्मता : खऩधयो अततखयश्चैव सदरो तनदा रस्तथर भतृ तकाबश्च ऩीताबो बायाढ्मश्चेह शस्मते ॥
( य. त. 21 / 182 )
तुत्थं कस्म्ऩल्रको अभत
ृ ासंऻ: । ( च. धच. 7 / 114 – चक्रऩाणी टीका )
आचरमा चक्ऩरणी ने भमयु तुत्थ औय खऩाय तुत्थ ( अभत
ृ रसांऻ ) दो प्रकरय फतरमे हे ।

तत्ु थभत
ु भभ ॥ ( स,ु उ. 18 / 94 ) – आचरमा डल्हण ने “ भमयु गग्रव ” तत्ु थ को उतभ कहर हे जफ की
सरधरयण तुत्थ को खऩायीकर तुत्थ कहर हे ।
यसजरतनधी अनस
ु ाय खऩधय का सत्व नरग सभरन होता हे जफकी यस चुडाभाणी अनस
ु ाय फांग के सभरन
होता हे ।
शोधन : कटुकरररफु तनमरास आरोड्म यसकं ऩचेत । शुद्धं दोषववतनभुधक्तं ऩीतवणे च जामते ॥
( य. य. स. 2 / 154 )
अशध्
ु ध यसक को कटुक अराफु स्वयस भे ऩाचीत कयने ऩय वऩत वणध का शध्
ु ध यसक सभरता हे ।

भरयण : 1. खऩधयो ववभर:शुद्धस्तुल्मतररकऩेवषत: । सम्ऩट


ु स्थस्स्त्रऩद्रु टत: सवधथा भतृ तभाप्नम
ु ात ॥
( य. त. 21 / 193 )
शुध्ध यसक 1 बाग + शुध्ध हयतार 1 बाग को ऩाने के साथ ऩेषीत कय 3 ऩट
ु दे ने से यसक बष्भ
तनभाधण होता हे ।
2. खऩधयं ऩरयदै नेव चण
ू धमीतव्मा द्रदनां ऩचेत । वारक
ु ामंत्रभध्मस्थं शोणां बष्भ प्रजामते ॥
शुध्ध यसक + शुध्ध ऩायद को चूणीत कयके वारुका मंत्र भे 1 दीन ऩाचन कयने से यक्त वणध की यसक
बष्भ प्राप्त होती हे ।
सत्वऩरतन : सरबमरजतुबूनरग तनशरधूभज टां कणभ । भूकभूषागतं ध्भातं सत्वं भुंचतत खऩधयभ ॥
( य. य. स. 2 / 163 )
शुध्ध खऩधय 1 बाग + हयीतकी, शीराजीत, बूनाग, हयीद्रा, गह
ृ धूभ, टं कण ( हय एक ¼ फाग ) को भूषा
भे यखके कोष्ठी भे अस्ग्न दे ने ऩय खऩधय सत्व भीरता हे ।
गण
ु : सुभत
ृ : खऩधय: शीत: कपवऩताऩह: ऩयभ । चऺुष्म: सवाभेह्नो यक्तप्रदयनरशन: ॥
यक्तवऩताश्भयीश्वासगद
ु ाभमतनषद
ू न: । जीणाज्जवयहय: काभं त्वतीसायतनफहधण: ॥
मोगवरही ववशेषेण त्रत्रदोष्नो ववषरऩह: । ववचधचधकाकुष्ठहयो फरवीमधवववस्ृ ध्धकृत ॥
( य. त. 21 / 193 )

भहरयस ऩमराम
1. अभ्रक अभ्र, अंफय, अनंतऩत्रक, गगन, शुभ्र, ख, धगरयज, आकाश, अम्फय, भेघ, अंतरयऺ,
धगयीजाभर वज्र, गयजध्वज, व्मोभ, गौयीतेज, अनंतक, बग
ृ ,ं घन, फहुऩत्रं, अभर, वज्रक
2. वैक्रांत ववक्रांत, जीणधवज्रक, कुवज्रक, चुणधवज्रक, जीणधऩत्रक, ऺुद्रकुसरश, शोबाभणी, दग्धहीयक,

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 12


RASASHASHTRA – MAHARASA

नीचवज्र, ताियत्न, तािाश्भ, तािकभ, ऩर


ु क
3 स्वणाभरक्षऺक हे भभाक्षऺक, धातुभाक्षऺक, ताप्म, तावऩज, भधुधातु
4 यौ्मभरक्षऺक ववभर, यजतभाक्षऺक तायभाक्षऺक, तायज, श्वेतभाक्षऺक, तािगन्धामस
5 ववभर ववभर, ताऩीज, ताप्मज
6 शशररजीत सशराजतु, सशराभम, शैरज, सशरातनमाधस, सशरास्वेद, अश्भज, अश्भजतुक, अदद्रज,
अश्भोत्थ, अश्भराऺा, अश्भसाय, शैरेम, शैरधात,ु अततथी, धगयीज, गैयेम
7 सस्मक तुत्थ, तुत्थक, ववतुन्नक, सशर्खधग्रव, भमयु क, अभत
ृ ासंग, तािगबध,
8 यसक खऩधय, यऺोिव, नेत्रयोगायी, ताियं जक, मशदकायण, यीततकृत, गोबट्ट, क्षऺततक्रकट्ट, गोबट्ट
VD. DHAVAL DHOLAKIYA
8980925520
भहरयस प्रकरय
1. अभ्रक ( 4 ) – वऩनाक – अस्ग्न ऩय तऩाने से ऩत्रो को अरग कय दे ता हे । भरावयोध उत्ऩन्न
कयता हे
नाग – अस्ग्न ऩय तऩाने से नाग की तयह पुत्काय कयता हे । भंडर कुष्ठ उत्ऩन्न
कयता हे ,
भंडुक – भेढक जैसे कुदता हे । अश्भरय उत्ऩन्न कयता हे ।,
वज्र – अऩरयवततधत यहता हे । सवधयोगहय होता हे ।
वणधबेद से ( 16 ) – श्वेत ( 4 ), ऩीत ( 4 ), यक्त ( 4 ), कृष्ण ( 4 )
2. वैक्रांत ( 8 ) 1. श्वेत, 2. वऩत, 3. यक्त, 4. कृष्ण, 5. नीर, 6. श्माभ, 7. ऩायावतप्रब, 8. कफयुध
3 स्वणाभरक्षऺक ( 3 ) 1. स्वणधभाक्षऺक, 2. यजतभाक्षऺक, 3. कांस्मभाक्षऺक
4 ववभर ( 3 ) 1. हे भ - स्वणध तनभाधण भे श्रेष्ठ, 2. यौप्म – यजत तनभाधण भे भध्म,
3. कांस्म – औषधकामधहेतु श्रेष्ठ
5 शशररजीत गन्धबेद से ( 2 ) – गौभुत्रगन्धी ( 1. स्वस्थ – ससत्व औय 2. अस्वस्थ – तनसत्व ) &
कऩयुध गन्धी
आचामध चयक के अनस
ु ाय – ( 4 ) स्वणध, यजत, ताि, रौह
आचामध वाग्बट्ट व सुश्रत
ृ ानस
ु ाय – ( 6 ) स्वणधदद्रज, यजतदद्रज, ताि, रौह, नाग व फंग
यसाणधव के अनस
ु ाय – ( 2 ) ऩाततत & अऩाततत
6 सस्मक यसजरतनधी के अनस
ु ाय ( 2 ) स्वबावज ( सस्मक ) & कृत्रत्रभ ( तत्ु थ )
7 चऩर वणधबेद से ( 4 ) 1. श्वेत – यसफन्धनाथध
2. ऩांडु – यसफन्धनाथध
3. अरुण – Melt on heating
4. कृष्ण - Melt on Heating
सभुत्थान बेद से ( 2 ) 1. नाग सभुत्थ – It is silver only
2. फंग सभुत्थ – ऩायदफन्धनाथध
यसयाजरस्क्ष्भ व यसकाभधेनु अनस
ु ाय ( 6 ) 1. स्वणधचऩर 2. तायचऩर 3. तािचऩर
4. नागचऩर 5. फंगचऩर 6. तीक्ष्णचऩर
8 यसक यसाणधव के अनस
ु ाय वणधबेद से ( 3 ) 1. भतृ तकाब ( Calamine ) ऩांडु / वऩत वणध – उतभ
2. ग़डु ाब ( Zincate ) गड
ु वणध – भध्मभ
3. ऩाषाणाब ( Zinc Blande ) ऩाषाणवणध – अधभ
यसयत्न सम्भुच्चम अनस
ु ाय ( 2 ) 1. दद
ु ध य – दरमक्
ु त - सत्वऩातनाथध
2. कायवेल्रक – दरयदहत – औषधौऩमोगी

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 13


RASASHASHTRA – MAHARASA

भहरयस English Name Chemical Composition औषध भरत्रर


1 अभ्रक Mica H2Kao3(SiO4)3H2NalAl3(SiO4)3 1 – 2 यती
2 वैक्रांत Tourmaline KAl2O3 – 6SiO2 1/24 -1/12 यती
3 स्वणाभरऺीक Copper pyrite / CuFeS2 ½ - 1 यती
Chalcopyrite
4 यजतभरऺीक Iron Pyrite Fe2S3 ½ - 1 यती
5 ववभर Iron Pyrite / Cubic FeS2
Sulphide of Iron
6 गौभोत्रगन्धी Black Bitumen / - प्रवय – 4 तोरा
शशररजीत
Mineral Pitch भध्म – 2 तोरा
7 कऩयुा गन्धी Potassium Nitrate KNO3 अवय – 1 तोरा
शशररजीत ( क्रभश: 7,3,1
सप्ताह तक )
8 तुत्थ Blue Vitriol / Copper CuSO4 5H2O ½ - 2 यती
Sulphate
9 सस्मक Peacock Ore Cu5FeS4 1/8 – ¼ यती
10 यसक ( दद
ु ा य, Calamine ZnCO3
करयवेल्रक,
भतृ तकरब )
11 यसक ( गड
ु रब ) Zincite / Zinc ZnO
Sulphide
12 यसक ( ऩरषरणरब Zinc Silicate ZnS
)

Minerals of Maharasa :
1) अभ्रक :- A) Alkali Mica –श्वेताभ्रक B) Ferro Magnesium Mica – यक्त / कृष्णाभ्रक
1) Muscovite – श्वेत एवं ऩायदशधक अभ्रक 2) Paragonite – श्वेत एवं ऩायदशधक अभ्रक
3) Phlogopite – यक्त अभ्रक 4 ) Biotite – कृष्ण अभ्रक
5 ) Lepidolite – ऩीत अभ्रक
2) वैक्रांत :- 1). Tourmeline 2). Flourspar 3). Calcium Fluorite 4). Rock Crystal
3) भाऺीक :- 1) Charcol Pyrite – स्वणधभाऺीक (CuFeS2 ) 2) Iron Pyrite – यजत भाऺीक (Fe2S3 )
3) Iron Pyrite – कांस्म भाऺीक (Fe2S2), सस्मक – Peacock Ore
4) चऩर :- 1). Bismuth – श्वेत चऩर 2) Bismuth Oxide – गौय वणध 3) Bismuth Sulphide – अरुणवणध
4) Bismuth Sulphide + Iron Sulphide – कृष्ण वणध
5) यसक / खऩधय :- 1). Calamine 2). Smithsonite VD. DHAVAL DHOLAKIYA
8980925520

भहरयस शोधन
1. अभ्रक अशुध्ध अभ्रक को कांजी मा गौभुत्र मा त्रत्रपरा क्वाथ मा गौदग्ु ध भे 7 वाय तनवाधऩ कयने से
शध्
ु ध होता हे ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 14


RASASHASHTRA – MAHARASA

धरन्मरभ्रक - शुध्ध अभ्रक ( 1 बाग ) + शारी ( 4 बाग ) की ऩोटरी फनाकय 3 यात्री तक


कांजी भे यखकय भददध त कयने ऩय जो अभ्रक ऩोटरी से फहाय प्राप्त होता हे उसे धान्माभ्र
कहते हे ।
अभतृ तकयण – 1. त्रत्रपराक्वाथ ( 16 ऩर ) + गौघत
ृ ( 8 ऩर ) + अभ्रक बष्भ ( 10 ऩर )
– रोह ऩात्र भे द्रव के जीणध होने ऩय भद
ृ ु अस्ग्न दे ने से अभ्रक का अभतृ तकयण होता हे ।
2. अभ्रक बष्भ ( 1 बाग ) + गोघत
ृ ( 1 बाग ) रोह ऩात्र भे द्रव के जीणध होने ऩय भद
ृ ु
अस्ग्न दे ने से अभ्रक का अभतृ तकयण होता हे ।

रोहीतीकयण - अभ्रक बष्भ ( 1 बाग ) गांगेरुकी, बद्रभुस्ता, वटऺीय तथा वटभूरस्वयस /


हयीद्रा स्वयस & भंजीष्ठा क्वाथ भे ऩेषण कयके 2 मा 3 गजऩट
ु दे ने से तनश्चन्द्र, भद
ृ ,ु
यक्तोत्ऩर वणध अभ्रक बष्भ फनती हे ।
अभ्रक ितु त - धान्माभ्रक को अगत्स्मऩत्र स्वयस भे भदीत कय वटक फनाकय सूयण कन्द भे
यख के कऩडऩट्टी कयके जहा गाम को यखते हे वह बूसभ को हस्तभात्र खनन कयके उस भे 1
भास तक यखने से ऩायद जैसी अभ्रक द्रतु त फनती हे ।
2. वैक्रांत अशुध्ध वैक्रांत को ऺाय व ऩंचरवण सभधश्रत अम्र द्रव्म / भुत्र / कुरत्थ क्वाथ भे 3 ददन
स्वेदन कयने से मा केवर कुरत्थ क्वाथ भे स्वेदन कयने से शध्
ु ध होता हे ।
3 स्वणाभरक्षऺक अशुध्ध भाऺीक को भातुरुंग स्वयस मा कदरी स्वयस से ससध्ध एयं डतैर भे 2 घटीका
तकस्वेदन कयने से मा त्रत्रपरा क्वाथ भे तनवाधऩ कयने से शुध्ध होता हे ।
4 ववभर अशध्
ु ध ववभर को वासा स्वयस मा जंफीय तनम्फु स्वयस मा भेषशंग
ृ ी स्वयस भे स्वेदन कयने
से शुध्ध होता हे ।
5 शशररजीत 1. अशुध्द शीराजीत को ऺाय, अम्र द्रव्म औय गौभूत्र भे द्रावीत कयने ऩय शुध्ध होता हे ।
2. अशुध्ध शीराजीत को दग्ु ध मा त्रत्रपरा क्वाथ मा बंग
ृ याज स्वयस भे रोहऩात्र भे द्राववत
कयने ऩय शुध्ध होता हे ।
3. अशध्
ु ध शीराजीत को रोह ऩात्र भे सभबाग त्रत्रपरा क्वाथ मा गौभत्र
ू औय 8 गन
ु ा जर भे
अस्ग्न सन्मोग से द्रावीत कयने ऩय द्रव के उऩय संतातनकावत शुध्ध शीराजीत प्राप्त होता हे

4. सूमत
ध ाऩी शीराजीत – अशुध्ध शीराजीत को दो गन
ु ा जर भे सूमध आतऩ सन्मोग से आधा
होने तक गयभ कयने ऩय द्रव के उऩय जो कृष्ण वणध की संतातनका प्राप्त होती हे उसे दस
ू ये
ऩात्र भे रेकय इस ववधी को ऩन
ु : ऩन
ु : तफ तक के जफ तक जर ववशध्
ु ध हो – इस ववधी से
शीराजीत शुध्ध होता हे ।
5. कऩयूध शीराजतु : अशुध्ध कऩयूध गन्धी शीराजीत एरा क्वाथ भे भदध न कयने ऩय शुध्ध होता
हे ।
6 सस्मक 1. अशध्
ु ध तत्ु थ चण
ू ध को तनंफु स्वयस भे 2 माभ तक वऩसने ऩय शध्
ु ध तत्ु थ प्राप्त होता हे ।
2. अशुध्ध तुत्थ को दोरामंत्र भे गौभूत्र, भादहषभूत्र, अजाभूत्र, 3 प्रहय तक स्वेदन कयने से
शुध्ध होता हे ।
7 चऩर अशुध्ध चऩर को जंफीय स्वयस / क़ोटक स्वयस / शंग
ृ वेय स्वयस की बावना दे ने से शुध्ध
होता हे ।
8 यसक ( खऩाय अशुध्ध यसक को कटुक अराफु स्वयस भे ऩाचीत कयने ऩय वऩत वणध का शुध्ध यसक सभरता
) हे ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 15


RASASHASHTRA – MAHARASA

भहरयस भरयण
1. अभ्रक 1. धान्मभ्रक को कासभदध मा भुस्ता मा तंडुरीम स्वयस भे ऩरयभददध त कय 10 गजऩट
ु दे ने से
अभ्रक बष्भ फनती हे ।
2. शुध्ध अभ्रक को एयं डऩत्र स्वयस औय गड
ु की बावना दे कय चक्रक्रका फनाकय वट ऩत्र के
फीच यखकय 3 ऩट
ु दे ने से तनश्चन्द्र अभ्रक बष्भ फनती हे ।
2. वैक्रांत 1. शुध्ध वैक्रांत को शुध्ध अभ्रक औय तनफु स्वयस के साथ 8 गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ
फनती हे
2. शध्
ु ध वैक्रांत को अश्वभत्र
ू भे वायं वाय तनवाधऩ कयके अश्वभत्र
ू भे भदध न कय चक्रक्रका फनाकय
गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ तैमाय होती हे ।
3 स्वणाभरक्षऺक शुध्ध भाक्षऺक + शुध्ध गन्धक को भातुरुंग स्वयस भे वऩसकय 5 वायाह ऩट
ु दे ने से भाक्षऺक
बष्भ फनती हे । भाऺीक बष्भ यक्तवणध की होता हे ।
4 ववभर शुध्ध ववभर + शुध्ध गन्धक को रकुच स्वयस भे वऩसकय 10 ऩट
ु दे ने से ववभर बष्भ
फनती हे ।
5 शशररजीत शुध्ध शीराजीत + शुध्ध भन:शीर + शुध्ध गन्धक + शुध्ध हयतार को भातुरुंग स्वयस के
साथ 8 वन्मोऩर से ऩट
ु दे ने से शीराजीत बष्भ होती हे ।
6 सस्मक 1. शुध्ध टं कण + शुध्ध गन्धक + शु. टं कण को रकुच स्वयस भे वऩसकय भूषा भे कुक्कुट
ऩट
ु दे ने से तुत्थ बष्भ तैमाय होती हे ।
2. शुध्ध तुत्थ 1 बाग + शुध्ध गन्धक ½ बाग को शयावसंऩट
ु ीत कयके 3 स्वल्ऩ ऩट
ु दे ने से
तुत्थ बष्भ तनभाधण होती हे ।
7 चऩर शध्
ु ध चऩर 1 बाग + शध्
ु ध ऩायद 1 बाग को तनगड
ंु ी स्वयस की बावना दे कय वारक
ु ा मंत्र
भे अस्ग्न दे ने से यक्त वणध की चऩर बष्भ फनती हे ।
8 यसक ( खऩाय 1. शुध्ध यसक 1 बाग + शुध्ध हयतार 1 बाग को ऩाने के साथ ऩेषीत कय 3 ऩट
ु दे ने से
) यसक बष्भ तनभाधण होता हे ।
2. शध्
ु ध यसक + शध्
ु ध ऩायद को चण
ू ीत कयके वारक
ु ा मंत्र भे 1 दीन ऩाचन कयने से यक्त
वणध की यसक बष्भ प्राप्त होती हे ।

VD. DHAVAL DHOLAKIYA


8980925520

भहरयस सत्वऩरतन
1. अभ्रक शुध्ध अभ्रक ( 1 बाग ) + टं कण ( ¼ बाग ) को भुसरी स्वयस भे भदीत कयके कोष्ठी भे
तीव्रास्ग्न दे ने ऩय अभ्रक का सत्वऩातन होता हे ।
अभ्रक सत्वशोधन – 1. अभ्रक सत्व को अम्र कांजी भे उफारकय शोधनीम गण की
औषधधमो के साथ भूषा भे द्रवीबूत होने तक ततव्रास्ग्न दे कय मही प्रक्रक्रमा को ऩन
ु : कयने ऩय
अभ्रक सत्व का शोधन होता हे ।
2. अभ्रक सत्व को त्रत्रपरा क्वाथ / वटभूर क्वाथ / अम्र कांजी भे तनवाधऩ कयने से अभ्रक
सत्व का शोधन होता हे
अभ्रक सत्व भद
ृ क
ु यण - शुध्ध अभ्रक सत्व भूषा भे यखकय द्रवीबूत कयके भधु, तैर, वसा,
घत
ृ भे क्रभश: 10 वाय ऩरयवाऩीत कयने से अभ्रक सत्व का भद
ृ क
ु यण होता हे ।
2. वैक्रांत शुध्ध वैक्रांत को गग्ु गर
ु ु, घत
ृ , भधु, टं कण ( सत्वऩातान मोग ) के साथ भदीत कय चक्रक्रका
फनाकय भूषा भे यखके कोष्ठी भे 3 घंटे तक गयभ कयने ऩय सत्व ऩातीत होता हे ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 16


RASASHASHTRA – MAHARASA

3 स्वणाभरक्षऺक शुध्ध भाक्षऺक ( 1बाग ) + शुध्ध नाग ( 1/30 बाग ) को ऺाय व अम्र द्रव्मो के साथ
भदध न कयके भूषा भे यखकय कोष्ठी भे ततव्रास्ग्न दे ने से भाक्षऺकसत्व भीरता हे । जीस को
तनगड
ंु ी सत्व भे 7 फाय द्राव्म कयने से सत्व भे से नाग का नाश होता हे ।
4 ववभर शुध्ध ववभर + शुध्ध टं कण + भेषशंग
ृ ी बष्भ को रकुच स्वयस के साथ वऩस्ष्ट फनाकय भूषा
के अन्दय सरप्त कयके सूखने ऩय कोष्ठी भे अस्ग्न दे ने से सससे के सभान सत्वऩातन होता हे
5 शशररजीत शुध्ध शीराजीत + द्रावण वगध के द्रव्मो के साथ अम्र द्रव्मो के सातह वऩसकय भूषा भे
यखके कोष्ठी भे अस्ग्न दे नेऩय रोह सभान सत्वऩातन होता हे ।
6 सस्मक शुध्ध तुत्थ 1 बाग + टं ़ण ¼ बाग तनम्फस्
ु वयस भे वऩसकय भूषा भे यखके कोष्ठी द्वाया
ततव्रास्ग्न दे ने ऩय ताि रुऩ सत्व प्राप्त होता हे ।
7 चऩर शुध्ध चऩर चूणध कांजी / उऩववष मा ववष द्रव्मो के क्वाथ से वऩर्ण्ड फनाकय ऩातार कोष्ठी
भे ववधीवत सत्व प्राप्त होता हे ।
8 यसक ( खऩाय शुध्ध खऩधय 1 बाग + हयीतकी, शीराजीत, बूनाग, हयीद्रा, गह
ृ धूभ, टं कण ( हय एक ¼ फाग
) ) को भूषा भे यखके कोष्ठी भे अस्ग्न दे ने ऩय खऩधय सत्व भीरता हे ।

सिध्धे रिे कररष्य़ासि सनर्द्ाा ररर्द्यगदं जगत । Page 17

You might also like