Professional Documents
Culture Documents
MAHARASA
MAHARASA
MAHARASA
अभ्रक ( Mica )
ऩमराम : अभ्र, अांफय, अनांतऩत्रक, गगन, शुभ्र, ख, गगरयज, आकरश, अम्फय, भेघ, अांतरयऺ, गगयीजरभर वज्र,
गयज्वज, व्मोभ, गौयीतेज, अनांतक, बग
ृ ,ां घन, फहुऩत्रां, अभर, वज्रक VD. DHAVAL DHOLAKIYA
उत्ऩतत : दे व्मो यजो बवेद गन्धो धातु: शुक्रं तथाभ्रकभ । ( य य. स. 2 / 2 ) 8980925520
प्रकाय – 1. अभ्रं ससतारुणश्माभऩीतवणधववबेदत: । चतुववाधां सभाख्मातं कृष्णां तत्र गदरऩहभ ॥
वऩनाकनागभंडूकवज्राह्मववबेदत: । चतुववधधंतु कृष्णरभ्रां भतां यसववशरयदे : ॥ ( य. त. 10 / 3–4 )
वणाधनस
ु ाय – 4 श्वेत, वऩत, यक्त, कृष्ण
2. वऩनाकनागभंडूकवज्रसभत्मभ्रकं भतभ । श्वेताददवणधबेदेन प्रत्मेकां तच्चतुववाधभ ॥
( य य. स. 2 / 4 )
Types of Abhraka Reaction on Heat Effect
वऩनरक ववभुांचती दरोच्चमभ भरां फ्धर भरयमत्मेव भरनवभ
नरग नरगवद कुमराद ्वतन भांडर कुष्ठ
भांडू़ उत््रत्ु मोत््रत्ु म असर्म अश्भयी योग
वज्र तनभुाक्तरशेषवैकृतभ दे हरोहकयां व सवायोगहयां
अभ्रक बष्भ गण
ु : तनश्चन्िश्चररुणां स्वच्छां सुसूक्ष्भां स्ऩशाकोभरां ।
अभ्रं भत
ृ ं ववजानीमाद्रसतंत्रववचऺण: ॥ ( य. त. 10 / 55 )
तनश्चन्द्र, अरुणवणध, स्वच््, सुक्ष्भ, स्ऩशध भे कोभर
अभ्रक अभतृ तकयण : 1. त्रत्रपरोत्थकषरमस्म ऩररन्मादाम षोडश ।
गोघत
ृ स्म ऩररन्मरष्टौ भत
ृ ाभ्रस्म ऩररन दश ॥
एकीकृत्म रोहऩरत्रे ऩाचमेन्भद
ृ न
ु ास्ग्नना ।
िवे जीणे सभादाम सवायोगेषु मोजमेत ॥ ( यसेन्द्र धचंताभणी 4 / 32 – 33 )
त्रत्रपराक्वाथ ( 16 ऩर ) + गौघत
ृ ( 8 ऩर ) + अभ्रक बष्भ ( 10 ऩर ) – रोह ऩात्र भे द्रव
के जीणध होने ऩय भद
ृ ु अस्ग्न दे ने से अभ्रक का अभतृ तकयण होता हे ।
2. भत
ृ ाभ्रसंसभतं गव्मभरज्जमां दत्वाभ्रकं ऩचेत ।
अभतृ तकृतभेवत
ं ु घनं कामेषु मोजमेत ॥ ( य. त. 10 / 71 )
अभ्रक बष्भ ( 1 बाग ) + गोघत
ृ ( 1 बाग ) रोह ऩात्र भे द्रव के जीणध होने ऩय भद
ृ ु अस्ग्न
दे ने से अभ्रक का अभतृ तकयण होता हे ।
अभ्रक रोहीतीकयण : गरांगेरुकी बिभुस्तर वटऺीयां तथैव च । वटभूरजरां वरवऩ हरयिरमर िवस्तथर ॥
सभांगरक्वगथतश्चैव धनभेसब: सुऩेषमेत ॥ ऩट
ु द्वमां त्रमां वावऩ ववतये तिषजां वय: ॥
तनश्चस्न्द्रकश्च भद
ृ र
ु ं यक्तोत्ऩरसभप्रबभ । गगनस्म बवेिष्भ तत: कामेषु मोजमेत ॥
( य. त. 10 / 65 – 67 )
अभ्रक बष्भ ( 1 बाग ) गांगेरुकी, बद्रभुस्ता, वटऺीय तथा वटभूरस्वयस / हयीद्रा स्वयस &
भंजीष्ठा क्वाथ भे ऩेषण कयके 2 मा 3 गजऩट
ु दे ने से तनश्चन्द्र, भद
ृ ,ु यक्तोत्ऩर वणध अभ्रक बष्भ फनती हे ।
सत्व भद
ृ क
ु यणभ : भधुतैरवसरज्जमेषु िरववतां ऩरयवरवऩतां ।
भद
ृ ु स्मा दशवरये ण सत्वं रोहाददकं खयभ ॥ ( य. य. स. 2 / 38 )
शुध्ध अभ्रक सत्व भूषा भे यखकय द्रवीबूत कयके भधु, तैर, वसा, घत
ृ भे क्रभश: 10 वाय
ऩरयवाऩीत कयने से अभ्रक सत्व का भद
ृ क
ु यण होता हे ।
अभ्रक द्रतु त : अगत्स्मऩत्र तनमरासै: धान्माभ्रं भददध तं तथा । शयणोदयभ्मे तु तनक्षऺप्तं रेवऩतं भद
ृ ा ॥
गोष्ठबूशभां खतनत्वर तु हस्तभरत्रभध: क्षऺऩेत । भरसरांतमद्ध
ु तां ततु जामते ऩरयदोऩभरभ ॥
( यस जर तनधी )
धान्माभ्रक को अगत्स्मऩत्र स्वयस भे भदीत कय वटक फनाकय सूयण कन्द भे यख के कऩडऩट्टी
कयके जहा गाम को यखते हे वह बूसभ को हस्तभात्र खनन कयके उस भे 1 भास तक यखने से ऩायद जैसी
अभ्रक द्रतु त फनती हे ।
अभ्रकस्म ऩांचववध सांस्करय : संस्काय: ऩंचधा प्रोक्तो घनस्म ऩयभेश्वयी ।
धरन्मरभ्रकयणां सत्वऩरतनां तनभारकक्मर ॥
सुभतृ तकयणां चैव त्वभतृ तकयणां तथा ।
भायणे घनसत्वस्म घनऩत्रस्म भायणे ॥ ( आनन्द कन्द क्रक्रमाकयण ववश्रांतत )
1. धान्माभ्रक तनभाधण
2. अभ्रक सत्वऩातन
3. अभ्रक बष्भ तनभाधण
4. अभ्रक अभतृ तकयण
5. अभ्रक शोधन एवं सत्वं शोधन
अभ्रक गण
ु : अभ्रं स्स्नग्धं ऩयभशशशशयां स्वाद ु चामष्ु य़भग्र्मं केश्मं वर्ण्य़ं रुधचकयभरं दीऩनं चाततफल्मभ ।
नेत्र्मं भेधां जनमतततयां स्तन्मसांवधानश्च ऺेत्रे स्थैर्यमध ववतयतत ऩयां दीऩनां ऩष्ु ऩकेतो : ॥
( य. त. 10 / 72 )
दोषशरांती : उभरपरां जरे वऩष््वा सेवते मो द्रदनत्रमभ । अशुध्धाभ्रकदोषेण ववभुक्त: सुखभेधते ॥ ( य.ज.नी. )
अतसीपर को जर के सरथ वऩसकय ततन द्रदन सेवन कयने से अशु्ध अभ्रक सेवन से हुए
दोषो की शरांती होती हे ।
अऩथ्म : ऺायम्रं द्ववदरश्चैव ककधटीकायवेल्रकभ । वत
ंृ ाकश्च कयीयश्च तैरं चाभ्रे वववजधमेत ॥ ( य.ज.नी. )
भरयण : 1. सिमतेअष्टऩट
ु ै गन्ा ध तनम्फक
ु िव सन्मक्
ु त: । ( य. य. स. 2 / 67 )
शुध्ध वैक्रांत को शुध्ध अभ्रक औय तनफु स्वयस के सरथ 8 गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ फनती हे|
2. वैक्रांतेषु च तप्तेषु हमभूत्रां ववतनक्षऺऩेत ।
ऩौन: ऩन्ु मेन वा कुमाधद द्रवं दत्वा ऩट
ु ं त्वनु ॥
बस्स्भबूतं तु वैक्रांतं वज्रस्थरने तनमोजमेत ॥ ( य. य. स. 2 / 67 - 68 )
शुध्ध वैक्रांत को अश्वभूत्र भे वायं वाय तनवाधऩ कयके अश्वभूत्र भे भदध न कय चक्रक्रका फनाकय
गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ तैमाय होती हे ।
सत्वऩरतन : सत्वऩरतनमोगेश्च भददध तश्च वटीकृत: ।
भूषास्थो धद्रटकर्भरतो वैक्रांत: सत्वभुत्सज
ृ ेत ॥ ( आमव
ु ेद प्रकाश 5 / 171 )
शध्
ु ध वैक्रांत को गग्ु गर
ु ु, घत
ृ , भध,ु टं कण ( सत्वऩातान मोग ) के साथ भदीत कय चक्रक्रका
फनाकय भूषा भे यखके कोष्ठी भे 3 घंटे तक गयभ कयने ऩय सत्व ऩातीत होता हे ।
वैक्रांत गण
ु : ततन्भहरगदहय: ऩयभश्च भे्मो वस्ह्नप्रददऩकयो अततयसरमन ।
दोषत्रमरऩहयणो फहुमोगवरही वैक्रांतस्तु गददत: खरु वज्रतुल्म: ॥ ( य. त. 23 / 167 )
उतऩतत : सुवणधशैरप्रबवो ववष्णुना कांचनो यस: । तर्मरां ककयरतचीनेषु तनसभधत: । ताप्म: सूमस
ध ंतप्तो भाध्वे भासस
दृश्मंते ॥ ( वैशरख भरस भे ददखने वारा )
प्रकाय - भाक्षऺको द्ववववधो हे भभाक्षऺक्स्तायभाक्षऺक: । ( य. य. स. 2 / 81 )
स्वणध भाक्षऺक – इषतसुवणधसादहत्मात्सुवणधगण
ु साम्मत: ।
यौप्म भाक्षऺक :-
स्स्नग्धं सकोणां गरु
ु च वतार
ु ां यजतोज्जज्जवरभ । यौ्मवच्चरकगचक्मरढ्मां जात्मं तद्रौप्मभाक्षऺकभ ॥
( य. त. 21 – 57 )
अग्ररह्मतर : स्वणा भरक्षऺक :-
खयं ऩयं वै गरु
ु ता ववदहनं प्रवत
ृ कोणं खयरोहकाबभ ।
प्रक्रकततधतं तत्ऩरयहे मभेव सुवणधभाक्षऺकसभहाभमऻै: ॥ ( य. त. 21 – 5 )
यजत भरक्षऺक :- VD. DHAVAL DHOLAKIYA
सभरं रघु रुऺश्च कषेअततभशरनच्छवव । 8980925520
अवतुधरं वववणधश्च हे मं स्माद्रौप्मभाक्षऺकभ ॥ ( य. त. 21 – 58 )
शोधन : एयां डतैल्रुांग़रांफशु स्दां शुध्मतत भाक्षऺकभ ।
ससद्धं वा कदरीकांद्तोमेन घद्रटकरद्वमभ ॥
तप्तं क्षऺप्तं वयरक्वरथे शुस्ध्धभामतत भाक्षऺकभ ॥ ( य. य. स. 2 / 83 )
अशुध्ध भाऺीक को भातुरुंग स्वयस मा कदरी स्वयस से ससध्ध एयं डतैर भे 2 घटीका तकस्वेदन कयने
से मा त्रत्रपरा क्वाथ भे तनवाधऩ कयने से शध्
ु ध होता हे ।
भरयण : भरतुरुांगरांफग
ु न्धाभ्मां वऩष्टं भूषोदये स्स्थतभ ।
ऩांचक्ोडऩट
ु ै दाग्धां सिमते भाक्षऺकं खरु ॥ ( य. य. स. 2 / 84 )
गण
ु : भरुस्त्ऩतहयो वष्ृ य़ो ववभरो अततयसरमन: । ( य. य. स. 2 / 96 )
4. सूमत
ध ाऩी शीराजीत – अशुध्ध शीराजीत को दो गन
ु ा जर भे सूमध आतऩ सन्मोग से आधा
होने तक गयभ कयने ऩय द्रव के उऩय जो कृष्ण वणध की संतातनका प्राप्त होती हे उसे दस
ू ये ऩात्र भे
रेकय इस ववधी को ऩन
ु : ऩन
ु : तफ तक के जफ तक जर ववशुध्ध हो – इस ववधी से शीराजीत शुध्ध
होता हे ।
5. कऩयूध शीराजतु : एरातोमेन सस्म्बन्न ससद्धं शुस्ध्धभुऩतै त तत ।
नैतस्म भरयणां सत्वऩरतन ववद्रहतां फध
ु ै: ॥
( य. य. स. 2 / 124 )
अश्
ु ध कऩयाू गन्धी शीररजीत एरर क्वरथ भे भदा न कयने ऩय श्
ु ध होतर हे ।
गण
ु : सशराजतु गतं ततक्ते ववऩाके कटुके तथा । भूत्ररश्च ववशेषेण मोगवरही यसरमनभ ॥( य. त. 22 / 84 )
स्वणधगबधधगये जाधतो जऩरऩष्ु ऩतनबो गरु
ु : । योप्मगबधधगये जाधतं भधुयं ऩार्ण्डुयं गरु
ु ।
तािगबधधगये जाधतं नीरवणध घनं गरु
ु ॥ ( य. य. स. 2 / 111 - 113 )
अशु्ध शशररजीत सेवनजन्म दोष – दरह, भूच्छरा, भ्रभ, यक्तवऩत, अस्ग्नभरन््म, ववडग्रह ( यसजरनेधी )
दोष शरांती – भयीच + घत
ृ – 7 दीन सेवन ( यसजरनेधी )
( य. त. 21 / 125 – 126 )
शुध्ध तुत्थ 1 बाग + शुध्ध गन्धक ½ बाग को शयावसंऩट
ु ीत कयके 3 स्वल्ऩ ऩट
ु दे ने से तुत्थ बष्भ
तनभाधण होती हे ।
सत्वऩातन : तनम्फि
ु रल्ऩटां करभमरां भष
ू ाभध्मे तनरुध्म च । तरम्ररुऩां ऩरयध्भातं सत्वं भंच
ु तत सस्मकभ ॥
( य. य. स. 1 / 134 )
शुध्ध तुत्थ 1 बाग + टं ़ण ¼ बाग तनम्फस्
ु वयस भे वऩसकय भूषा भे यखके कोष्ठी द्वाया ततव्रास्ग्न दे ने
ऩय ताि रुऩ सत्व प्राप्त होता हे ।
गण
ु : तुत्थकं रेखनं बेदी कषरमां भधुयां रघु । कृसभध्नभथ चऺुष्य़ां भेह्भेदोहयां ऩयभ ॥
कपवऩतहयं फल्मं शूरह्रत्कुष्ठनाशनभ ॥ स्श्वत्ररऩहां त्वम्रवऩतहयां चैव यसरमनभ ॥
तत्ु थं सांकोचनकयां नरडीनरां फरकृत ऩयभ । त्वग्दोषशभनं काभं ववशेषरिगु चयां भतभ ॥
( य. त. 21 / 127 -129 )
तत्ु थभत
ु भभ ॥ ( स,ु उ. 18 / 94 ) – आचरमा डल्हण ने “ भमयु गग्रव ” तत्ु थ को उतभ कहर हे जफ की
सरधरयण तुत्थ को खऩायीकर तुत्थ कहर हे ।
यसजरतनधी अनस
ु ाय खऩधय का सत्व नरग सभरन होता हे जफकी यस चुडाभाणी अनस
ु ाय फांग के सभरन
होता हे ।
शोधन : कटुकरररफु तनमरास आरोड्म यसकं ऩचेत । शुद्धं दोषववतनभुधक्तं ऩीतवणे च जामते ॥
( य. य. स. 2 / 154 )
अशध्
ु ध यसक को कटुक अराफु स्वयस भे ऩाचीत कयने ऩय वऩत वणध का शध्
ु ध यसक सभरता हे ।
भहरयस ऩमराम
1. अभ्रक अभ्र, अंफय, अनंतऩत्रक, गगन, शुभ्र, ख, धगरयज, आकाश, अम्फय, भेघ, अंतरयऺ,
धगयीजाभर वज्र, गयजध्वज, व्मोभ, गौयीतेज, अनंतक, बग
ृ ,ं घन, फहुऩत्रं, अभर, वज्रक
2. वैक्रांत ववक्रांत, जीणधवज्रक, कुवज्रक, चुणधवज्रक, जीणधऩत्रक, ऺुद्रकुसरश, शोबाभणी, दग्धहीयक,
Minerals of Maharasa :
1) अभ्रक :- A) Alkali Mica –श्वेताभ्रक B) Ferro Magnesium Mica – यक्त / कृष्णाभ्रक
1) Muscovite – श्वेत एवं ऩायदशधक अभ्रक 2) Paragonite – श्वेत एवं ऩायदशधक अभ्रक
3) Phlogopite – यक्त अभ्रक 4 ) Biotite – कृष्ण अभ्रक
5 ) Lepidolite – ऩीत अभ्रक
2) वैक्रांत :- 1). Tourmeline 2). Flourspar 3). Calcium Fluorite 4). Rock Crystal
3) भाऺीक :- 1) Charcol Pyrite – स्वणधभाऺीक (CuFeS2 ) 2) Iron Pyrite – यजत भाऺीक (Fe2S3 )
3) Iron Pyrite – कांस्म भाऺीक (Fe2S2), सस्मक – Peacock Ore
4) चऩर :- 1). Bismuth – श्वेत चऩर 2) Bismuth Oxide – गौय वणध 3) Bismuth Sulphide – अरुणवणध
4) Bismuth Sulphide + Iron Sulphide – कृष्ण वणध
5) यसक / खऩधय :- 1). Calamine 2). Smithsonite VD. DHAVAL DHOLAKIYA
8980925520
भहरयस शोधन
1. अभ्रक अशुध्ध अभ्रक को कांजी मा गौभुत्र मा त्रत्रपरा क्वाथ मा गौदग्ु ध भे 7 वाय तनवाधऩ कयने से
शध्
ु ध होता हे ।
भहरयस भरयण
1. अभ्रक 1. धान्मभ्रक को कासभदध मा भुस्ता मा तंडुरीम स्वयस भे ऩरयभददध त कय 10 गजऩट
ु दे ने से
अभ्रक बष्भ फनती हे ।
2. शुध्ध अभ्रक को एयं डऩत्र स्वयस औय गड
ु की बावना दे कय चक्रक्रका फनाकय वट ऩत्र के
फीच यखकय 3 ऩट
ु दे ने से तनश्चन्द्र अभ्रक बष्भ फनती हे ।
2. वैक्रांत 1. शुध्ध वैक्रांत को शुध्ध अभ्रक औय तनफु स्वयस के साथ 8 गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ
फनती हे
2. शध्
ु ध वैक्रांत को अश्वभत्र
ू भे वायं वाय तनवाधऩ कयके अश्वभत्र
ू भे भदध न कय चक्रक्रका फनाकय
गजऩट
ु दे ने से वैक्रांत बष्भ तैमाय होती हे ।
3 स्वणाभरक्षऺक शुध्ध भाक्षऺक + शुध्ध गन्धक को भातुरुंग स्वयस भे वऩसकय 5 वायाह ऩट
ु दे ने से भाक्षऺक
बष्भ फनती हे । भाऺीक बष्भ यक्तवणध की होता हे ।
4 ववभर शुध्ध ववभर + शुध्ध गन्धक को रकुच स्वयस भे वऩसकय 10 ऩट
ु दे ने से ववभर बष्भ
फनती हे ।
5 शशररजीत शुध्ध शीराजीत + शुध्ध भन:शीर + शुध्ध गन्धक + शुध्ध हयतार को भातुरुंग स्वयस के
साथ 8 वन्मोऩर से ऩट
ु दे ने से शीराजीत बष्भ होती हे ।
6 सस्मक 1. शुध्ध टं कण + शुध्ध गन्धक + शु. टं कण को रकुच स्वयस भे वऩसकय भूषा भे कुक्कुट
ऩट
ु दे ने से तुत्थ बष्भ तैमाय होती हे ।
2. शुध्ध तुत्थ 1 बाग + शुध्ध गन्धक ½ बाग को शयावसंऩट
ु ीत कयके 3 स्वल्ऩ ऩट
ु दे ने से
तुत्थ बष्भ तनभाधण होती हे ।
7 चऩर शध्
ु ध चऩर 1 बाग + शध्
ु ध ऩायद 1 बाग को तनगड
ंु ी स्वयस की बावना दे कय वारक
ु ा मंत्र
भे अस्ग्न दे ने से यक्त वणध की चऩर बष्भ फनती हे ।
8 यसक ( खऩाय 1. शुध्ध यसक 1 बाग + शुध्ध हयतार 1 बाग को ऩाने के साथ ऩेषीत कय 3 ऩट
ु दे ने से
) यसक बष्भ तनभाधण होता हे ।
2. शध्
ु ध यसक + शध्
ु ध ऩायद को चण
ू ीत कयके वारक
ु ा मंत्र भे 1 दीन ऩाचन कयने से यक्त
वणध की यसक बष्भ प्राप्त होती हे ।
भहरयस सत्वऩरतन
1. अभ्रक शुध्ध अभ्रक ( 1 बाग ) + टं कण ( ¼ बाग ) को भुसरी स्वयस भे भदीत कयके कोष्ठी भे
तीव्रास्ग्न दे ने ऩय अभ्रक का सत्वऩातन होता हे ।
अभ्रक सत्वशोधन – 1. अभ्रक सत्व को अम्र कांजी भे उफारकय शोधनीम गण की
औषधधमो के साथ भूषा भे द्रवीबूत होने तक ततव्रास्ग्न दे कय मही प्रक्रक्रमा को ऩन
ु : कयने ऩय
अभ्रक सत्व का शोधन होता हे ।
2. अभ्रक सत्व को त्रत्रपरा क्वाथ / वटभूर क्वाथ / अम्र कांजी भे तनवाधऩ कयने से अभ्रक
सत्व का शोधन होता हे
अभ्रक सत्व भद
ृ क
ु यण - शुध्ध अभ्रक सत्व भूषा भे यखकय द्रवीबूत कयके भधु, तैर, वसा,
घत
ृ भे क्रभश: 10 वाय ऩरयवाऩीत कयने से अभ्रक सत्व का भद
ृ क
ु यण होता हे ।
2. वैक्रांत शुध्ध वैक्रांत को गग्ु गर
ु ु, घत
ृ , भधु, टं कण ( सत्वऩातान मोग ) के साथ भदीत कय चक्रक्रका
फनाकय भूषा भे यखके कोष्ठी भे 3 घंटे तक गयभ कयने ऩय सत्व ऩातीत होता हे ।
3 स्वणाभरक्षऺक शुध्ध भाक्षऺक ( 1बाग ) + शुध्ध नाग ( 1/30 बाग ) को ऺाय व अम्र द्रव्मो के साथ
भदध न कयके भूषा भे यखकय कोष्ठी भे ततव्रास्ग्न दे ने से भाक्षऺकसत्व भीरता हे । जीस को
तनगड
ंु ी सत्व भे 7 फाय द्राव्म कयने से सत्व भे से नाग का नाश होता हे ।
4 ववभर शुध्ध ववभर + शुध्ध टं कण + भेषशंग
ृ ी बष्भ को रकुच स्वयस के साथ वऩस्ष्ट फनाकय भूषा
के अन्दय सरप्त कयके सूखने ऩय कोष्ठी भे अस्ग्न दे ने से सससे के सभान सत्वऩातन होता हे
5 शशररजीत शुध्ध शीराजीत + द्रावण वगध के द्रव्मो के साथ अम्र द्रव्मो के सातह वऩसकय भूषा भे
यखके कोष्ठी भे अस्ग्न दे नेऩय रोह सभान सत्वऩातन होता हे ।
6 सस्मक शुध्ध तुत्थ 1 बाग + टं ़ण ¼ बाग तनम्फस्
ु वयस भे वऩसकय भूषा भे यखके कोष्ठी द्वाया
ततव्रास्ग्न दे ने ऩय ताि रुऩ सत्व प्राप्त होता हे ।
7 चऩर शुध्ध चऩर चूणध कांजी / उऩववष मा ववष द्रव्मो के क्वाथ से वऩर्ण्ड फनाकय ऩातार कोष्ठी
भे ववधीवत सत्व प्राप्त होता हे ।
8 यसक ( खऩाय शुध्ध खऩधय 1 बाग + हयीतकी, शीराजीत, बूनाग, हयीद्रा, गह
ृ धूभ, टं कण ( हय एक ¼ फाग
) ) को भूषा भे यखके कोष्ठी भे अस्ग्न दे ने ऩय खऩधय सत्व भीरता हे ।