मीरा चरित

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1

मीरा च रत
(नोट: यह स पू
ण पु तक नह है
, पु
तक का
सार मा है जो क व भ भाग म वभ ोत से
एक करके तै
यार कया गया है
।)

ले खका :
- सौभा य कु
ँवरी राणावत

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मीरा च रत

भारत केएक ां त रा य थान का ेहै मारवाड़ - जो अपने


वा सय क शू रता, उदारता, सरलता और भ केलये स रहा है ।
मारवाड़ केशासक राव दा सह बड़े तापी ए। उनकेचौथे पु
र न सह जी और उनक प नी वीर कु ंवरी जी केयहाँ मीरा का ज म
संवत 1561 (1504 ई०) म आ।
राव दा जी जै सेतलवार केधनी थे , वै
से ही वृाव था म उनम
भ छलक पड़ती थी। पु कर आनेवालेअ धकां श सं त मे ड़ता
आमंत होते और स पू ण राजप रवार स सं ग-सागर म अवगाहन कर
ध य हो जाता।
मीरा का लालन पालन दा जी क दे ख-रेख म होने लगा। मीरा
क स दय सु षमा अनु पम थी। मीरा के भ सं कार को दा जी पोषण
दे रहेथे। वष भर क मीरा नेकतने ही छोटे -छोटेक तन दा जी से
सीख लए थे । कसी भी सं त केपधारने पर मीरा दा जी क रे णा से
उ ह अपनी तोतली भाषा म भजन सु नाती और उनका आशीवाद पाती।
अपने बाबोसा क गोद म बै ठकर शांत मन से संतो सेकथा वाता सुनती।
दा जी क भ क छ छाया म धीरे -धीरेमीरा पाँ
च वष क
ई। एक बार ऐसेही मीरा राजमहल म ठहरेएक सं त केसमीप
ातःकाल जा प ँ च ी। वेउस समय अपने ठाकु र जी क पू जा कर रहे थे

मीरा णाम कर पास ही बै ठ गई और उसने ज ासा वश कतने ही
पू
छ डाले , यह छोटे सेठाकु र जी कौन है ? आप इनक कै सेपू
जा करते

3
ह ? संत भी मीरा के का एक-एक कर उ र दे ते गये। फर मीरा
बोली, "य द यह मू त आप मु झे देद तो म भी इनक पू जा कया
क ँ गी।" सं त बोले , "नह बे ट ! अपने भगवान कसी को नह दे ने
चा हए। वे हमारी साधना के सा य ह।"
मीरा क आँ ख भर आई। नराशा सेन ास छोड़ उसने ठाकुर
जी क तरफ़ दे खा और मन ही मन कहा - "य द तु म वयं ही न आ
जाओ तो म तु ह कहाँ से पाऊँ ?" और मीरा भरे मन से उस मू त केबारे
म सोचती अपने महल क ओर बढ़ गई।
सरेदन ातःकाल मीरा उन सं त केनवास पर ठाकु र जी के
दशन हे तु जा प ँच ी। मीरा णाम करके एक तरफ बै ठ गई। सं त नेपूजा
समापन कर मीरा को साद दे तेए कहा, "बे ट , तु
म ठाकु र जी को पाना
चाहती हो न !" मीरा : बाबा, क तु यह तो आपक साधना केसा य है
(मीरा ने कां
पतेवर म कहा)। बाबा : अब ये तुहारेपास रहना चाहते ह।
तुहारी साधना के सा य बनकर, ऐसा मु झेइ होने कल रात व म कहा
क अब मु झे मीरा को दे दो। (कहते -कहते बाबा केनेभर आये ) इनके
सामनेकसक चले ? मीरा : या सच ? (आ य म त स ता से
बोली जै से उसेअपने कान पर व ास ही नह आ।) बाबा : (भरे क ठ
सेबोले ) हाँ
। पू
जा तो तु मने देख ही ली है। पू
जा भी या, अपनी ही तरह
नहलाना, धु लाना, व पहनाना और ृ ं
गार करना, खलाना- पलाना।
केवल आरती और धू प वशे ष है। मीरा: क तु वे म , जो आप बोलते ह,
वेतो मुझे नह आते । बाबा : म क आव यकता नह है बे
ट । येम
केवश म नह रहते । ये तो मन क भाषा समझते ह। इ ह वश म करने
का एक ही उपाय हैक इनकेस मु ख दय खोलकर रख दो। कोई
छपाव या दखावा नह करना। ये धातुकेदखते हैपर ह नह । इ ह
अपने जैसा ही मानना।
मीरा ने संत केचरण म सर रखकर णाम कया और ज म-
ज म केभू खेक भाँ त अं ज ल फै ला द । सं त नेअपने ाणधन
ठाकुरजी को मीरा को दे तेए उसकेसर पर हाथ रखकर गदगद क ठ
से आशीवाद दया। "भ महारानी अपने पु ान और वै रा य स हत
तुहारे दय म नवास कर, भुसदा तु हारेसानुकू ल रह।" मीरा
ठाकुरजी को दोन हाथ से छाती से लगाये उन पर छ क भां त थोड़ी
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झुक गई और स ता से डगमगाते पद से वह अ तःपुर क ओर चली।
कृपण केधन क भाँ त मीरा ठाकुरजी को अपने सेचपकाये माँ
केक म आ गई। वहाँ एक झरोखे म लकड़ी क चौक रख उस पर
अपनी नई ओढ़नी बछा ठाकु रजी को वराजमान कर दया। थोड़ी र
बै
ठ उ ह नहारने लगी। रह-रह कर आँ ख से आँ सूझरने लगे।
आज क इस उपल ध केआगे सारा जगत तु छ हो गया। जो
अब तक अपने थे वेसब पराये हो गये और आज आया आ यह
मुकुराता आ चे हरा ऐसा अपना आ जै सा अब तक कोई न था। सारी
हँ
सी खुशी और खे ल तमाशे सब कुछ इन पर यौछावर हो गया। दय म
मान उ साह उफन पड़ा क ऐसा या क ँ , जससे यह स हो। अहा,
कैसेदेख रहा हैमेरी ओर ? अरे मु
झसे भूल हो गई। तुम तो भगवान हो
और म आपसे तूतुम कर बात कर गई। आप कतने अ छे ह जो वयं
कृपा कर उस सं त से मे
रेपास चले आये। मुझसे कोई भूल हो जाये तो
आप ठना नह , बस बता दे ना।
मीरा केयूँअचे त होनेसे माँकुछ ाकु ल सी गई और उ ह ने
अपनी च ता करतेए सब बात रतन सह जी को बताई। वीर
कु
ंवरी चाहती थी क मीरा महल म और राजकु मा रय क तरह
श ा यास, राजनी त, घु ड़सवारी और घर गृ ह थी केकाय सीखे ता क
वह ससु राल म जा कर ये क प र थ त का सामना कर सके । पर इधर
दा जी के सं
र ण म मीरा ने योग और सं गीत क श ा ार भ कर द ।
मीरा का झु काव ठाकु र पूजा म दन त दन बढ़ता दे ख माँको
वाभा वक च ता होती।
मीरा को पूजा और श ा केबाद जतना अवकाश मलता वह
दाजी केसाथ बै ठ ी गदाधर जोशी जी से ी मदभागवत सु नती।
आने वाले ये क संत का स संग लाभ ले ती। उसकेभ यु को
सु
नकर सब मीरा क तभा से आ यच कत हो जाते । माँको मीरा का
यू
ँसंतो से बात करना उनकेसम भजन गाना ब कु ल अ छा नह
लगता था पर दाजी जी क लाड़ली मीरा को कु छ कहते भी नह बनता
था।
दाजी क छ छाया म मीरा क भ बढ़ने लगी। वृ दंावन से
पधारेबाबा बहारीदास जी से मीरा क नय मत सं गीत श ा भी ार भ
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हो गई। र नवास म यही चचा होती - अहा, इस प गु ण क खान को
अ दाता कम न जानेय साधु बना रहेह?
एक दन मीरा दाजी से बोली, "बाबोसा, मुझे अपनेगरधर के
लए अलग क चा हए, माँकेमहल म छोरे -छोरी मलकर उनसे
मलकर छे ड़छाड़ करते ह।"
दाजी ने अपनी लाडली केसर पर ने ह से हाथ फे रतेए कहा, "हाँ
बेट य नह ।"
और सरे ही दन महल केपरकोटे म लगी फु लवारी केम य गरधर
गोपाल केलए म दर का नमाण आर भ हो गया।
एक दन मीरा अपनेगरधर क पू जा सेनवृहो माँ केपास
बैठ थ तो अचानक बाहर से आने वाले संगीत सेउसका यान बं ट गया।
वह झट से बाहर झरोखे से दे
खने लगी। भाबू ! यह इतने लोग सज धज
करके गाजे बाजे केसाथ कहाँ जा रहे ह?
यह तो बारात आई है बे
टा ! यह उ र दे तेमाँक आँ ख म सौ-सौ सपने
तैर उठे। बारात या होती है भाबू ! यह इतने गहने पहन कर हाथी पर
कौन बै ठा है ?
यह तो ब द ( हा) है बेट । ब को याहने जा रहा है। अपने नगर से ठ
जी क बे ट सेववाह होगा। माँ ने हे क तरफ दे खतेये कहा। सभी
बे टय केवर होते ह या ? सभी सेयाह करने ब द आते ह ? मीरा ने
पूछा। हाँ बेटा ! बेटय को तो याहना ही पड़ता है । बेट बाप केघर म
नह खटती। चलो, अब नीचे चले। माँ नेमीरा को झरोखे सेउतारने का
उप म कया।
मीरा ने अपनी ही धु न म म न कहा, "तो मे रा ब द कहाँ है भाबू ?"
"तेरा वर ?" माँ हँ
स पड़ी।" म कै से जानू ँबे
ट क ते रा वर कहाँ है, जहाँ के
वधाता ने ले ख लखे ह गे
, वह जाना पड़े गा। मीरा उछल कर र खड़ी
हो गई और जद करती बोली, "आप मु झे बताइये मेरा वर कौन है ?"
उसक आँ ख म आँ सूभर आये थे। माँमीरा क ऐसी जद दे खआ य
म पड़ गई और बात बनातेये बोली, "बड़ी माँ से या अपने बाबोसा से
पूछना। "नह म कसी से नह पू छु ँ
गी, बस आप ही मु झे बतलाईये " मीरा
रोते-रोतेभू म पर लोट गई।
माँ नेमीरा को मनातेए उठाया और बोल , "अ छा म बताती ँ
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तेरा वर। तूरो मत। इधर दे ख, ये कौन है ?" "ये?" येतो मेरेगरधर
गोपाल ह। "अरी पागल, यही तो ते रेवर ह। उठ, कब से एक ही बात क
रट लगाई है। "माँ
नेबहलातेये कहा।
" या सच भाबू? सुख भरे आ य से मीरा नेपूछा। "सच नह तो
या झूठ है? चल मुझेदे
र हो रही है
।" मीरा ने गरधर क तरफ ऐसे दे
खा,
मान आज उ ह पहली बार ही दे खा हो, ऐसे चाव और आ य से दे
खने
लगी। मीरा रोना भू
ल गई। माँ का सहज ही कहा एक-एक श द उसक
नय त भी थी और जीने केलये स बल और आ ासन भी।
मे
रेतो गरधर गोपाल सरो न कोई।।
मे
रेतो गरधर गोपाल सरो न कोई।।
जाकेसर मोर मु कुट मेरो प त सोई।
तात मात ात बं धुआपनो न कोई।।
छांड दई कु लक का न कहा क रहै कोई।
संतन ढग बै ठ बैठ लोकलाज खोई।।
अंसु
वन जल सी च सी च म े बेल बोई।
अब तो बेल फै ल गई आंणद फल होई।।
ध क मथ नयाँबड़े म े सेबलोई।
माखन जब का ढ़ लयो छाछ पये कोई।।
भग त दे ख राजी ई जगत दे ख रोई।
दासी मीरा लाल गरधर तारो अब मोही।।
महल केपरकोटे म लगी फु लवारी केम य गरधर गोपाल के
लए म दर बन कर दो महीन म तै यार हो गया। धूमधाम सेगरधर
गोपाल का गृह वे श और व धपू वक ाण- त ा । म दर का नाम
रखा गया " याम कुज"। अब मीरा का अ धकतर समय याम कुज म
ही बीतनेलगा।
ऐसेही धीरे
-धीरेसमय बीतने लगा। मीरा पू
जा करने के प ात्
भी
याम कुज म ही बै ठे ठेसु
-बै नी और पढ़ ई लीला केच तन म
ायः खो जाती। वषा केदन थे। चार ओर ह र तमा छायी ई थ । ऊपर
गगन म मेघ उमड़-घु मड़ कर आ रहे थे
। आँख मू ँ
देये मीरा गरधर के
स मुख बैठ है। बं
द नयन केसम उमड़ती ई यमु ना केतट पर मीरा
7
हाथ से भरी ई मटक को थाम बै ठ है । यमु ना के जल म याम सु ं
दर क
परछाई दे ख वह पलक झपकाना भू ल गई। यह प, ये कारेकजरारे दघ
ने। मटक हाथ से छू
ट गई और उसके साथ न जाने वह भी कै से जल म
जा गरी। उसे लगा कोई जल म कू द गया और फर दो सश भु जा ने
उसे ऊपर उठा लया और घाट क सी ढ़याँ चढ़तेए मु कुरा दया। वह
यह नणय नह कर पाई क कौन अ धक मारक है - या मु कान ?
नणय हो भी कै से? बु तो लोप हो गई, ल जा ने देह को जड़ कर
दया और मन, ? मन तो बै री बन उनक आँ ख म जा समाया था। उसे
शला केसहारे घाट पर बठाकर वह मु कुरातेए जल से उसका घड़ा
नकाल लाये । हँ
सतेये अपन व सेकतने ही पू
छ डाले उ ह नेज
भाषा म। अमृ त सी वाणी वातावरण म रस सी घोलती तीत ।
"थोड़ा व ाम कर ले , फर म ते रो घड़ो उठवाय ँ गो। कहा नाम
है री ते
रो ? बोलेगी नाय ? मो पैठ हैया ? भू ख लगी है का ? तेरी मैया
ने कछु खवायो नाय ? ले , मो पैफल ह। खावे गी ?" उ ह ने फट से बड़ा
सा अम द और थोड़े जामुन नकाल कर मे रे हाथ पर धर दये - "ले
खा।"
म या कहती, आँ ख से दो आँ सू ढुलक पड़े । ल जा ने जैसे वाणी
को बाँ ध लया था। "कहा नाम है तेरो ?" "मी....रा" ब त ख च कर बस
इतना ही कह पाई। वेखल खला कर हँ स पड़े । " कतना मधु र वर है
तेरो री।"
" याम सु ं
दर ! कहाँगये ाणाधार !" वह एकाएक चीख उठ ।
समीप ही फु लवारी से च पा और चमे ली दौड़ी आई और दे खा मीरा
अ तशय ाकु ल थ और आँ ख से आँ सू झर रहे थे
। दोन नेमल कर
शै या बछाई और उस पर मीरा को य न से सुला दया।
सांयकाल तक जाकर मीरा क थ त कु छ सु धरी तो वह तानपु रा
लेगरधर केसामने जा बै ठ । फर दय केउदगार थम बार पद के
प म स रत हो उठे -
मे
हा बरसब करे रे
, आज तो रमै या हाँरेघरे रे

ना ह ना ह बू

ंमे
घघन बरसे , सू
खा सरवर भरे रे॥
घणा दनाँ सू
ँीतम पायो, बछु ड़न को मो ह डर रे

8
मीरा कहे
अ त ने
ह जु
ड़ ाओ, म लयो पु
रबलो वर रे

पद पू
रा आ तो मीरा का दय भी जै सेकु
छ ह का हो गया। पथ
पाकर जै
से जल दौड़ पड़ता हैवै
सेही मीरा क भाव स रता भी श द म
ढलकर पद के प म उ ाम बह नकली।
या मोहन के प लु
भानी।
सु

दर बदन कमलदल लोचन, बां क चतवन मं द मुसकानी॥
जमना के नीरे
तीरे
धेनु चरावै, बं
सी म गावैमीठ बानी।
तन मन धन गरधर पर बा ं , चरणकं वल मीरा लपटानी॥
मीरा अभी भी तानपु
रा लेगरधर केस मु
ख याम कुज म ही
बै
ठ थी। वह द घ कजरारे ने, वह मु
कान, उनकेव ह क मदमाती
सु
ग ध और वह रसमय वाणी सब मीरा के मृ त पटल पर बार-बार
उजागर हो रही थी।
मे
रेनयना नपट बं
क छ व अटके।
दे
खत प मदनमोहन को पयत पीयू ख न भटके।
बा रज भवाँ
अलक टेढ़ मनो अ त सु
ग ध रस अटके

टे
ढ़ क ट टे ढ़ कर मु रली टे
ढ़ पाग लर लटके ।
मीरा भुके प लु भानी गरधर नागर नटके ॥
मीरा को स दे खकर मथु ला समीप आई और घु टन केबल
बै
ठकर धीमेवर म बोली - "जीमण पधराऊँबाईसा (भोजन लाऊँ ) ?"
"अहा मथु ला ! अभी थोड़ा ठहर जा।" मीरा के दय पर वही छ व बार-
बार उबर आती थी। फर उसक उं ग लय केपश से तानपु
रेकेतार
झंकृत हो उठे -
न दन दन दठ ( दख) प ड़या माई,
साँ
..........वरो............. साँ
.........वरो।
न दन दन दठ प ड़या माई,
छाड़या सब लोक लाज,
साँ
..........वरो.............. साँ
.........वरो।
मोरच का करीट, मु कु ट जब सु हाई।

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केसररो तलक भाल, लोचन सु खदाई।
साँ
..........वरो.............. साँ
.........वरो।
कुडल झलकाँकपोल, अलका लहराई,
मीरा तज सरवर जोऊ,मकर मलन धाई।
साँ
..........वरो...... ....... साँ.........वरो।
नटवर भु वे
श ध रया, प जग लु भाई,
गरधर भुअं ग अं ग, मीरा ब ल जाई।
साँ
..........वरो............... साँ
.........वरो।
"अरी मथु ला, थोड़ा ठहर जा। अभी भु को रझा ले नेदे
। कौन
जाने ये परम वतंह, कब भाग नकल ? आज भु आय ह तो यह य
न रख ल ?"
मीरा जैसेध या तध य हो उठ । लीला च तन के ार खु ल गये
और अनु भव क अ भ केभी। दन पर दन उसके भजन पू जन का
चाव बढ़ने लगा। वह नाना भाँत सेगरधर का ृ ं
गार करती कभी फू ल
सेऔर कभी मो तय से । सु

दर पोशाक बना धारण कराती। भाँ त-भाँ त
केभोग बना कर ठाकु र को अपण करती और पद गा कर नृ य कर उ ह
रझाती। शीत काल म उठ-उठ कर उ ह ओढ़ाती और ग मय म रात को
जागकर पं खा झलती। तीसरे -चौथेदन ही कोई न कोई उ सव होता।
मीरा क भ और भजन म बढ़ती च दे खकर र नवास म
च ता ा त होने लगी। एक दन वीरमदे व जी (मीरा केसबसे बड़े
काका ) को उनक प नी ी ग रजा जी ने कहा, "मीरा दस वष क हो
गई है, इसक सगाई - स ब ध क च ता नह करते आप ?" वीरमदे व जी
बोले, " च ता तो होती हैपर मीरा का व, तभा और च
असधारण है -- फर बाबोसा मीरा केयाह केबारे म कै सा सोचते ह--
पू
छना पड़े गा।" बड़ी माँनेकहा, "बे ट क च साधारण हो या
असधारण - पर ववाह तो करना ही पड़े गा।" वीरमदे व जी ने कहा, "पर
मीरा केयो य कोई पा यान म हो तो ही म अ दाता म से बात
क ँ ।" बड़ी माँ बोल , "एक पा तो मेरेयान म है । मेवाड़ केमहाराज
कु
ँवर और मे रेभतीजे भोजराज।" " या कहती हो, हँसी तो नह कर रही ?
अगर ऐसा हो जाये तो हमारी बे
ट केभा य खु ल जाय। वै से मीरा हैभी

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उसी घर के यो य।" स हो वीरमदे व जी ने कहा। ग रजा जी ने अपनी
तरफ़ से पूण य न करने का आ ासन दया।
मीरा क सगाई क बात मे वाड़ केमहाराज कु ंवर से होने क
चचा र नवास म चलने लगी। मीरा ने भी सु ना। वह प थर क मू तक
तरह थर हो गई थोड़ी दे र तक। वह सोचने लगी, माँ ने ही बताया था
क ते रा वर गरधर गोपाल है ; और अब माँ ही मेवाड़ केराजकु मार के
नाम से इतनी स ह, तब कससे पू
छुँ
? वह धीमे कदम सेदाजी के
महल क ओर चल पड़ी। पलं ग पर बै ठेदाजी जप कर रहे थे। मीरा को
यूँअ स सा दे ख बोले , " या बात है बे
टा ?" "बाबोसा ! एक बे ट के
कतने ब द होते ह ?" दाजी नेने ह से मीरा केसर पर हाथ रखा और
हँ
स कर बोले , " य पू छती हो बे ट ! वै
से एक बे ट केएक ही ब द होता
है
। एक ब द केब त सी बीन णयाँ तो हो सकती ह पर कसी भी तरह
एक क या केएक से अ धक वर नह होते । पर य ऐसा पू छ रही हो ?"
"बाबोसा ! एक दन मने बारात देख माँ से पू
छा था क मे रा ब द कौन है ?
उ ह ने कहा क ते रा ब द गरधर गोपाल है । और आज... आज...।
(उसने हल कय के साथ रोतेए अपनी बात पू री करतेये कहा) आज
भीतर सब मु झे मे
वाड़ के राजकु वं
र को याहने क बात कर रहे ह।"
दाजी ने अपनी लाडली को चु प करातेए कहा- "तू ने भाबू से
पू
छा नह ?" "पू छा ! तो वह कहती ह क- "वह तो तु झे बहलाने केलए
कहा था। पीतल क मू रत भी कभी कसी का प त होती है ? अरी बड़ी
माँ केपै र पूज। य द मे वाड़ क राजरानी बन गई तो भा य खु ल गया
समझ। आप ही बताईये बाबोसा ! मेरेगरधर या के वल पीतल क मू रत
ह ? संत ने कहा था न क यह व ह (मू त) भगवान क तीक है । तीक
वै
से ही तो नह बन जाता ? कोई हो, तो ही उसका तीक बनाया जा
सकता है । जैसे आपका च कागज भले हो, पर उसे कोई भी दे खते ही
कह दे गा क यह दाजी राठौड़ ह। आप ह, तभी तो आपका च बना
है
। य द गरधर नह है तो फर उनका तीक कै सा ? भाबू कहती ह -
"भगवान को कसने दे
खा है ? कहाँ है
? कैसे ह ? म कहती ँ बाबोसा वो
कह भी ह , कै सेभी हो, पर ह, तभी तो मू रत बनी है , च बनते ह। ये
शा , ये सं
त सब झू ठे ह या ? इतनी बड़ी उ म आप य रा य का

11
भार बड़े
कु
ंवरसा पर छोड़कर माला फे रतेह ? य म दर पधारते ह?
य स सं
ग करते ह ? य लोग अपने यजन को छोड़ कर उनको पाने
केलए साधुहो जातेह ? बताईये
न बाबोसा ?" मीरा ने
रोते
-रोते
कहा।
हे
री हा दरद दवाणौ, हारा दरद ना जा याँ
कोय।
घायल री गत घायल जा याँ, हबडो अगण संजोय॥
जौहर क गत जौहरी जाणै , या जा याँ
जण खोय।
मीरा री भुपीर मटाँगा, जब वैद साँ
वरो होय॥
राव दाजी अपनी दस वष क पौ ी मीरा क बात सु नकर
च कत रह गये । कुछ ण तो उनसे कु
छ बोला नह गया। "आप कु छ तो
क हये बाबोसा" ! मेरा जी घबराता है । कससे पू
छुँयह सब ? भाबू ने
पहले मु झेय कहा क गरधर ही मे रेवर ह और अब वयं ही अपने
कहे पर पानी फे र रही ह ? जो हो ही नह सकता, उसका या उपाय है ?
आप ही बताईये - या तीन लोक केधणी ( वामी) से भी बड़ा मे वाड़
का राजकु मार है? और य द है तो होने
दो, मुझेनह चा हए।"
"तूरो मत बे टा ! धै
य धर ! उ ह नेप े केछोर से मीरा का मुँ

प छा - तूच ता मत कर। म सबको कह ँ गा क मेरेजीते जी मीरा का
ववाह नह होगा। ते रेवर गरधर गोपाल ह और वही रहगे , क तु मे
री
लाड़ली ! म बू ढ़ा ँ । कैदन का मे हमान ? मेरेमरनेकेप ात य द ये लोग
तेरा याह कर द तो तू घबराना मत। स चा प त तो मन का ही होता है ।
तन का प त भले कोई बने , मन का प त ही प त है । गरधर तो ाणी
मा का धणी है , अ तयामी है उनसे तेरेमन क बात छपी तो नह है
बेटा। तून त रह।" "सच फरमा रहे ह, बाबोसा ?" "सव साँ च ी बे
टा।"
"तो फर मु झे तन का प त नह चा हए। मन का प त ही पया त है ।"
दाजी से आ ासन पाकर मीरा के मन को राहत मली।
दाजी केमहल से मीरा सीधेयाम कुज क ओर चली। कु छ
ण अपनेाणारा य गरधर गोपाल क ओर एकटक दे खती रही। फर
तानपु रा झंकृत होने लगा। आलाप ले कर वह गाने लगी .....
आओ मनमोहना जी, जोऊँ थाँ री बाट।
खान पान मो ह ने
क न भावे
,नै
णन लगेकपाट॥

12
तु
म आयाँबन सु
ख नह मे रेदल म ब त उचाट।
मीरा कहेम भई रावरी, छाँ
ड़ ो ना ह नराट॥
भजन पू रा आ तो अधीरतापू वक नीचे झु
क कर दोन भु जा म
सहासन स हत अपनेदयधन को बाँ ध चरण म सर टे क दया। ने से
झरते आँ सू उनका अ भषे क करने लगे
। दय पु कार रहा था - "आओ
सव व ! इस तु छ दासी क आतु र ती ा सफल कर दो। आज तु हारी
साख और त ा दाँ व पर लगी है।"
उसे फूट-फू ट कर रोते दे
ख मथु ला ने धीरज धराया। कहा क,
" भु तो अ तयामी ह, आपक था इनसेछपी नह है ।" " मथुला, तुह
लगता है वेमे
री सु ध लगे ? वे तो ब त बड़े ह। मेरी या गनती ? मु झ
जैसेकरोड़ जन बल बलाते रहते ह। क तुमथु ला ! मे
रे तो केवल वही
एक अवल ब ह। न सु न,ेन आय, तब भी मे रा या वश है ?" मीरा ने
मथुला क गोद म मु ँ
ह छपा लया। "पर आप य भू ल जाती ह बाईसा
क वेभ व सल ह, क णासागर ह, द नब धु ह। भ क पीड़ा वे नह
सह पाते , दौड़ेआते है
।" " क तु म भ कहाँँमथु ला ? मु झसे भजन
बनता ही कहाँ है ? मु
झे तो केवल वह अ छे लगते ह। वे मेरेपतह-म
उनक ँ । वेया कभी अपनी इस दासी को अपनाये ग ? उनके तो सोलह
हजार एक सौ आठ प नयाँ ह उनकेबीच मे री म ेहीन खी-सू खी
पुकार सुन पायगेया ? तु झेया लगता हैमथु ला ! वे कभी मे री ओर
दे
खगे भी या ?" मीरा अचे त हो मथु ला क गोद म लु ढ़क गई।"
हे
री हारा दरद दवाणौ, हारा दरद ना जा याँ
कोय।
घायल री गत घायल जा याँ , हबडो अगण सं जोय॥
जौहर क गत जौहरी जाणै , या जा याँजण खोय।
मीरा री भुपीर मटाँ गा, जब वैद साँवरो होय॥
आज ी कृण ज मा मी है । राजम दर म और याम कुज म
ातःकाल से ही उ सव क तै
या रयाँहोनेलग । मीरा का मन वकल है
पर कह आ ासन भी हैक भु आज अव य पधारे ग। बाहर गयेये
लोग, भलेही नौकरी पर गये
हो, सभी पुष तीज तक घर लौट आते ह।
फर आज तो उनका ज म दन है । कै
से न आयगे भला ? प त केआने पर

13
याँकतना ृ ं
गार करती ह, तो म या ऐसे ही र ँगी ? तब.... म भी
य न पहले से ही ृं
गार धारण कर लू ँ
? कौन जाने , कब पधार जाव वे !"
मीरा ने मं
गला से कहा, "जा मे रेलए उबटन, सु गधंऔर ृ ंगार
क सब साम ी ले आ।" और च पा से बोली क माँ सेजाकर सबसे सु ं
दर
काम वाली पोशाक और आभू षण ले आये । सभी को स ता क
मीरा आज ृ ं
गार कर रही है।
बाबा बहारी दास जी क इ छा थी क आज रात मीरा
चारभुजानाथ के यहाँहोनेवाले भजन क तन म उनका साथ द। बाबा क
इ छा जान मीरा असमं जस म पड़ गई। थोड़े सोचने केबाद बोली -
"बाबा रा के थम हर म राजम दर म रह आपक आ ा का पालन
क ँ गी और फर अगर आप आ ा द तो म ज म केसमय याम कुज
म आ जाऊँ ?" "अव य बे ट !" उस समय तो तु ह याम कुज म ही होना
चा हए "बाबा ने मीरा केमन के भाव को समझतेये कहा।" मे री तो यह
इ छा थी क तु म मेरेसाथ एक बार म दर म गाओ। बड़ी होने पर तो
तु
म महल म बं द हो जाओगी। कौन जाने , ऐसा सुयोग फर कब मले ।"
मीरा आज नख सेशख तक ृ ंगार कये चारभु जानाथ के म दर
म राव दाजी और बाबा बहारी दास जी के बीच तानपुरा लेकर बै ठ ई
पदगायन म बाबा का साथ दे रही है
। मीरा के प स दय केअतु लनीय
भ डार के ार आज ृ ं
गार ने उदघा टत कर दए थे । नवबालवधु के
प म मीरा को दे ख कर सभी राजपुष केमन म यह वचार फु रत
होनेलगा क मीरा कसी ब त ग रमामय घर - वर के यो य है। वीरमदे व
जी भी आज अपनी बे ट का प दे ख च कत रह गये और मन ही मन
ढ़ न य कया क च ौड़ क महारानी का पद ही मीरा केलए उ चत
थान है।
ट ! अब तु
"बे म अपने संगीत के ारा से वा करो।" बाबा बहारी
दास जी ने गव से अपनी यो य श या को कहा। मीरा ने उठकर पहले
गुचरण म णाम कया। फर चारभु जानाथ और दाजी आ द बड़
को णाम कर गायन ार भ कया। आलाप क तान ले मीरा ने स पूण
वातावरण को बाँ ध दया
बसो मे
रे
नै
नन म न दलाल।

14
मो हनी मू
रत साँ
वरी सू
रत, नै
ना बनेवशाल।
अधर सु धारस मु
रली राजत उर वैजत
ंी माल॥
छुघं टका क टतट शो भत नूपरुसबद रसाल।
मीरा भु सं
तन सु
खदायी, भगत बछल गोपाल॥
वहाँ उप थत सब भ जन मीरा केगायन से म मु ध हो गये।
बहारी दास जी स हत दाजी मीरा का वह वर चत पद वण कर
च कत एवंस हो उठे । दोन आन दत हो गदगद वर म बोले -"वाह
बे
ट !" मीरा नेसं
कोच वश अपने नेझुका लये
। बाबा ने
उमं
ग से मीरा
से एक और भजन गाने का आ ह कया तो उसनेफर से तानपुरा
उठाया। अब क मीरा नेठाकुर जी क क णा का बखान करतेये पद
गाया।
सु
ण लीजो बनती मोरी, म सरण गही भुतोरी।
तु
म तो प तत अनेक उधारे , भवसागर सेतारे

मीरा भुतुहरे
रं
ग राती, या जानत सब नयाई॥
दाजी नेमू ंद कर एका होकर वण कर रहे थे
। भजन पूरा
होनेपर उ ह ने आँख खोली, शं सा भरी से मीरा क ओर दे खा और
बोले, "आज मे रा जीवन ध य हो गया। बे टा, तू
ने अपने वं
श, अपनेपता
पतृ को ध य कर दया।" फर मीरा केसर पर हाथ रखतेए अपने
वीर पु को दे खतेये अ ुवग लत वर से बोले, "इनक च ड
वीरता और दे श म ेको कदा चत लोग भू ल जाय, पर मीरा ते री भ
और ते रा नाम अमर रहे गा, बे
टा ......अमर रहेगा।" उनक आँ ख छलक
पड़ी।
मीरा यू ँत याम कुज म अपनेगरधर को रझाने केलये
त दन ही गाती थी -पर आज ी कृण ज मा मी केदन राजम दर
म सावज नक प से उसने पहली बार ही गायन कया। सब घर प रवार
और बाहर केमीरा क असधारण भ एवं संगीत तभा दे खआ य
च कत हो गये ।
अ तशय भावु क येदाजी को णाम करतेए मीरा बोली,
"बाबोसा म तो आपक ँ , जो कु छ है वह तो आपका ही है और रहा

15
संगीत, यह तो बाबा का साद है ।" मीरा नेबाबा बहारी दास क ओर
दे
खकर हाथ जोड़े । थोड़ा क कर वह बोली -"अब म जाऊँबाबा ?"
"जाओ बे ट ! ी कशोरी जी तु हारा मनोरथ सफल कर।" भरे क ठ से
बाबा ने आशीवाद दया। सभी को णाम कर मीरा अपनी स खय -
दा सय केसाथ याम कुज चल द । बाबा बहारी दास जी का
आशीवाद पाकर वह ब त स थी, फर भी रह-रह कर उसका मन
आशं कत हो उठता था- "कौन जाने , भु इस दासी को भू ल तो न गये
ह गे? क तु नह , वेव बर ह, उनको सबक खबर है , पहचान है

आज अव य पधारे ग अपनी इस चरणा ता को अपनाने । इसक बाँह
पकड़ कर भवसागर म डू बती ई को ऊपर उठाकर ...।" आगे क
क पना कर वह आन दानु भूत म खो जाती।
स खय -दा सय केसहयोग से मीरा नेआज याम कुज को
फूल माला क ब दनवार से अ यंत सजा दया था। अपनेगरधर
गोपाल का ब त आकषक ृ ं
गार कया। सब काय सु ं
दर री त से कर
मीरा नेतानपु
रा उठाया।
आय मलो मो ह ीतम यारे। हमको छाँ
ड़ भयेयू
ँयारे॥
ब त दन सेबाट नहा ँ । ते
रेऊपर तन मन वा ँ ॥
तु
म दरसन क मो मन माह । आय मलो करपा कर साई॥
मीरा के भु गरधर नागर। आय दरस ो सु
ख के
सागर॥
मीरा क आँख सेआँसु क झड़ी लग गई। रोते
-रोते
मीरा फर
गाने
लगी। च पा ने
मृ
दं
ग और मथु
ला ने
मं
जीरे
सं
भाल लए।
जोहनेगु
पाल क ँऐसी आवत मन म।
अवलोकत बा रज वदन बबस भई तन म॥
मु
रली कर लकुट लेऊँपीत वसन धा ँ ।
पं
खी गोप भे
ष मुकुट गोधन सँग चा ँ॥
हम भई गुल काम लता वृ दावन रैना।
पसुपंछ मरकट मु न वण सु नत बैना॥
गुजन क ठन का न कास री क हये ।
मीरा भुगरधर मली ऐसेही र हये ॥

16
गान व मत आ तो मीरा क नमी लत पलक तले लीला -
सृ व तार पाने लगी। वह गोप सखा केवे श म आँ ख पर प बाँ धे
याम सुं
दर को ढूँ
ढ रही है
। उसके हाथ म ठाकु र को ढूँ
ढते-ढू
ँढते कभी तो
वृका तना, कभी झाड़ी केप े और कभी गाय का मु ख आ जाता है ।
वह थक गयी, ाकु ल हो पुकार उठ - "कहाँ हो "गो व द ! आह, म ढू ँ

नह पा रही ँ । याम सु दर ! कहाँहो...कहाँ हो...कहाँहो..?"
ी कृण ज मा मी का समय है । मीरा याम कुज म ठाकु र के
आने क ती ा म गायन कर रही है । उसे लीला अनु भू त ई क वह
गोप सखा वे श म आँ ख पर प बाँ धेयामसु दर को ढू ँ
ढ रही है ।
तभी गढ़ पर से तोप छूट । चारभु जानाथ के म दर के नगारे , शंख,
शहनाई एक साथ बज उठे । समवेत वर म उठती जय व न ने दशा
को गुज
ँा दया - "चारभुजानाथ क जय ! ग रधरण लाल क जय।" उसी
समय मीरा ने देखा - जै सेसूय-च भू म पर उतर आयेह , उस
महा काश केम य शां त न ध यो त व प मोर मु कु ट पीता बर
धारण कए सौ दय-सु षमा-सागर यामसु दर खड़े मु कुरा रहे ह।। वे
आकण द घ ग, उनक वह दय को मथ दे ने वाली , वे कोमल
अ ण अधर-प लव, बीच म त नक उठ ई सु घड़ ना सका, वह पृ हा-
के वशाल व , पीन ल ब भु जाय, कर-प लव, बजली सा क धता
पीता बर और नू परुम डत चा चरण। एक म जो दे खा जा सका..
फर तो तीखी धार-कटार से उन ने म उलझ कर रह ग । या
आ ? या दे खा ? कतना समय लगा ? कौन जाने ? समय तो बे च ारा
भु और उनके े मय केमलन के समय ाण ले कर भाग छू टता है ।
"इतनी ाकु लता य , या म तु मसे कह र था ?" यामसु दर
नेनेहा स वर म पूछा। मीरा ातःकाल तक उसी लीला अनु भू तम
ही मूछत रही। सबह मू छा टूटने पर उसने दे
खा क स खयाँ उसे घेर
करकेक तन कर रही ह। उसने तानपु रा उठाया। स खयाँ उसे सचे त ई
जानकार स ई। क तन ब द करके वेमीरा का भजन सु नने लग -
हाँ
रा ओल गया घर आया जी।
तन क ताप मट सु ख पाया, हल मल मं
गल गाया जी॥
घन क धु न सुन मोर मगन भया, यू
ँ मे
रेआन द छाया जी।

17
मगन भई मल भुअपणा सू ँ
, भ का दरद मटाया जी॥
चंद को नरख कु मु
द ण फू
लै, ह रख भई मे री काया जी।
रग रग सीतल भई मे री सजनी, ह र मे
रेमहल सधाया जी॥
सब भ न का कारज क हा, सोई भु म पाया जी।
मीरा बरह ण सीतल भई, ख दं र नसाया जी॥
हाँ
रा ओल गया घर आया जी॥
इस कार आन द ही आन द म अ णोदय हो गया। दा सयाँ
उठकर उसेन यकम केलए ले चली।
ीकृण ज मो सव स प होने केप ात बाबा बहारी दास जी
नेवृ दावन जाने क इ छा कट क । भारी मन सेदाजी नेवीकृ त
द । मीरा को जब मथु ला ने बाबा केजाने केबारे म बताया तो उसका
मन उदास हो गया। वह बाबा केक म जाकर उनकेचरण म णाम
कर रोते रोते बोली, "बाबा आप पधार रह है ।" "हाँबेट ! वृ आ अब
ते
रा यह बाबा। अं तम समय तक वृ दावन म ी राधामाधव केचरण म
ही रहना चाहता ँ ।" "बाबा ! मु
झे यहाँ कुछ भी अ छा नह लगता। मु झे
भी अपने साथ वृ दावन ले च लए न बाबा।" मीरा ने दोन हाथ से मु


ढाँ
पकर सु बकतेए कहा।
" ी राधे ! ी राधे! बहारी दास जी कु छ बोल नह पाये । उनक
आँ ख से भी अ ु पात होनेलगा। कु छ देर प ात उ ह ने मीरा केसर पर
हाथ फे रतेये कहा -"हम सब वत नह है पुी। वे जब जै सा रखना
चाहे, उनक इ छा म ही स रहे । भगव े रणा से ही म इधर आया।
सोचा भी नह था क श या के प म तु म जै सा र न पा जाऊँ गा।
तुहारी श ा म तो म न म मा रहा। तु हारी बु , ा, ल न और
भ ने मुझेसदा ही आ य च कत कया है । तु हारी सरलता, भोलापन
और वनय नेदय केवा स य पर एका धप य था पत कर लया। राव
दाजी के म े, वनय और सं त-सेवा केभाव इन सबने मु
झ वर को
भी इतने दन बाँध रखा। क तु बेटा ! जाना तो होगा ही।"
"बाबा ! म या क ँ? मु झे आप आशीवाद द जयेक...।" मीरा
क रोते -रोतेहचक बँ ध गई...,"मु
झे भ ा त हो, अनु राग ा त हो,
यामसु दर मुझ पर स हो।" उसने बाबा केचरण पकड़ लए। बाबा
18
कुछ बोल नह पाये , बस उनक आँ ख से झर-झर आँ सू चरण पर पड़ी
मीरा को स करते रहे
। फर भरे क ठ से बोले, " ी कशोरी जी और
यर यामसु दर तुहारी मनोकामना पू ण कर, पर म एक तरफ जब
तु हारी भाव भ और सरी ओर समाज के बँधन का वचार करता ँ
तो मेरेाण ाकु ल हो उठते है
। बस ाथना करता ँक तु हारा मं
गल
हो। च ता न करो पुी! तु हारेतो र क वयं गरधर है।"
अगलेदन जब बाबा याम कुज म ठाकु र को णाम करने आये
तो मीरा और बाबा क झरती आँ ख ने वहाँ
उप थत सब जन को ला
दया। मीरा अ ु से भीगी वाणी म बोली, "आप वृ दावन जा रहे ह
बाबा ! मेरा एक संदेश लेजायगे ?" "बोलो बेट ! तु हारा सं
देश-वाहक
बनकर तो म भी कृ ताथ हो जाऊँ गा।" मीरा ने क म डाली।
दा सय -स खय केअ त र दाजी व रायसल काका भी थे । लाज के
मारेया कहती। शी ता से कागज कलम लेलखने लगी। दय के भाव
तरंग क भां त उमड़ आने लगे ; आँसु से धु ँ
धला जाती। वह
ओढ़नी से आँसूप छ फर लखने लगती। लख कर उसने मन ही मन
पढ़ा
गो व द....!, गो व द कब ँमलैपया मेरा।
चरण कँ वल को हँ स हँ
स दे ख,ू
ँराखू
ँनैणा नेरा।
नरखन का मो ह चाव घणे रौ, कब दे
खू
ँमु
ख ते रा॥
ाकुल ाण धरत नह धीरज, मल तू मीत सवे रा।
मीरा के भुगरधर नागर, ताप तपन ब ते रा॥
प को समे ट कर और सु दर रे
शमी थै
ली म रखकर मीरा ने
पूण
व ास से उसेबाबा क ओर बढ़ा दया। बाबा ने उसेलेकर सर चढ़ाया
और फर उतने ही व ास से गो व द को दे
नेकेलए अपने झोले म
सहे
ज कर रख लया। गरधर को सबनेणाम कया। मीरा ने पु
नः
णाम कया। बहारी दास जी के जानेसेऐसा लगा, जै
सेगु, म और
सलाहकार खो गया हो।
कल गुपू णमा है । मीरा याम कुज म बै ठ ई सोच रही है,
सदा सेइस दन गु-पू जा करते आ रहे ह। शा कहते ह क गुके
बना ान नह होता, वही परमत व का दाता है। तब मे
रेगुकौन ? वह
19
एकदम से उठकर दाजी के पास चल पड़ी। वहाँ जयमल, (वीरमदे व जी
के पुऔर मीरा के छोटे भाई) दाजी से तलवारबाजी के दाव पच सीख
रहे थे
। मीरा दाजी को णाम कर भाई क बात ख म होने क ती ा
करते बैठ गई। पर जयमल तो यु, घोड़ और धनु ष तलवार केबारे म
वीरता सेदाजी सेकतने ही पूछते जा रहे थे
। मीरा ने भाई को
टोकतेए कहा, "बाबोसा से मुझे कुछ पूछना था। पूछ लू ँतो फर भाई,
आप बाबोसा केसाथ पु नः महाभारत ार भ कर ले ना। तलवार जतने
तो आप हो नह अभी और यु पर जाने क बात कर रहे हो।" जयमल
और दाजी दोन मीरा क बात पर हँ स पड़े । मीरा अपनी ज ासा
रखती ई बोली, "बाबोसा ! शा और सं त कहते हैक गुकेबना
ान नह होता। मे रे
गुकौन ह ?"
"ह तो सही, बाबा बहारी दास और योगी नवृ तनाथ जी।"
जयमल ने कहा। "नह बे टा ! वे दोन मीरा केश ा गु ह, एक सं गीत
केऔर सरे योग के, पर वे द ा गु नह । सु नो बेट ! इस ेम
अ धकारी कभी भी वं चत नह रहता। तृ षत य द वयं सरोवर केपास
नह प ँ च पाता तो सरोवर ही यासे केसमीप प ँ च जाता है । बे
ट ! तु

अपने गरधर सेाथना करो, वे उ चत ब ध कर दग।"
"गुहोना आव यक तो है न बाबा ?" "आव यकता होने पर
अव य ही आव यक है । गुतो एक ऐसी जलता आ दया है जो
तु हारा भी अ या मक पथ का शत कर दे तेह। फर गुकेहोने से
उनक कृ पा तु हारेसाथ जु ड़ जाती है । य तो तु हारेगरधर वयं
जगदगु है ।"
"वो तो ह बाबोसा पर म ?" उसके इस पर दाजी हँ स दये,
"भगवान का ये क नाम म है बे
ट । उनका नाम उनसे भी अ धक
श शाली है , यही तो अभी तक सु नते आये ह।" "वह कान को य
लगता है बाबोसा ! पर आँ ख तो यासी रह जाती ह।" अनायास ही मीरा
केमु ख सेनकल पड़ा पर बात का मम समझ म आते ही सकु चा गई
और उसनेदाजी क ओर पीठ फे र ली। "उसम(भगवान केनाम म)
इतनी श हैक आँ ख क यास बु झाने वाले को भी ख च लाये ।"
उसक पीठ क ओर दे खतेये मु कुरा कर दाजी ने कहा। "जाऊँ
बाबोसा ?" मीरा ने सकु चा कर पू छा। "हाँ, जाओ बे ट ।" जयमल ने
20
आ य से पूछा, "बाबोसा ! जीजा नेयह या कहा और उ ह लाज य
आई ?" "वह तु हारे ेक बात नह है बे
टा। बात इतनी सी हैक
भगवान केनाम म भगवान से भी अ धक श है और उस श का
लाभ नाम लेनेवाले को मलता है ।"
मीरा याम कुज लौट आई और ठाकु र सेनवेदन कर बोली,
"कल गुपू णमा है , अतः कल जो भी सं त हमारेघर पधारे
ग, वे
ही भु
आपके ारा नधा रत गु ह गे ।" मीरा नेअपना तानपुरा उठाया और
गाने
लगी...
मो ह लागी लगन गुचरणन क ।
चरण बना मोहेकछु न ह भावे
,
जग माया सब सपनन क ॥
भवसागर सब सू ख गयो है ,
फकर नह मोही तरनन क ॥
मीरा के भु गरधर नागर,
आस लगी गु सरनन क ॥
मोहेलागी लगन गु चरणन क ।
रा म मीरा नेव दे खा क महाराज युध र क सभा म
उठा क थम पू य, सव ेकौन हैजसका थम पू जन कया जाय।
चार तरफ़ से एक ही नणय आ -"कृणं वं
दे
जगदगुम।" यु ध र ने
सप रवार अ तशय वन ता सेीकृण केचरण को धोया। सु बह ई
तो मीरा सोचनेलगी - " गरधर वेसब स य कह रहेथेक तु ह ही तो
स चे गुहो। आज तु म जस सं त के प म पधारोगे, म उनको ही
अपना गुमान लू ँ
गी।"
आज गु पू णमा है। मीरा नेगरधर गोपाल को नया ृ ं
गार
धारण कराया, गुभाव से उनक पूजा क और गानेलगी...।
हाँ
रा सतगु बे
गा आजो जी। हारे
सु
ख री सीर बहाजो जी॥
अरज करैमीरा दासी जी। गु पद रज क यासी जी॥
सारा दन बीत गया। सायं
काल अक मात वचरतेए काशी के
सं
त रै
दास जी का मे
ड़तेम पधारना आ। दाजी ब त स ये और

21
उ ह नेश भर उनका स कार कया और आवास दान कया। मीरा
को बुलाकर उनका प रचय दया। मीरा स हो उठ । मन ही मन उ ह
गुवत बु सेणाम कया। उ ह ने भी कृपा से उसेनहारतेये
आशीवाद दया -" भु चरण म दनानु दन तु हारी ी त बढ़ती रहे।"
आशीवाद सु नकर मीरा केनेभर आये । उसने कृत ता से उनक ओर
दे
खा। उस असाधारण नमल और मुख केभाव दे ख कर संत सब
समझ गये । उसकेजाने केप ात उ ह नेदाजी से मीरा केबारेम पू
छा।
सब सु नकर वे बोले- "राजन ! तुहारे
पु योदय से घर म गंगा आई है।
अवगाहन कर लो जी भरकर। सबके सब तर जाओगे ।"
रात को राजमहल केसामने वालेचौगान म सावज नक स सं ग
समारोह आ। रै दास जी केउपदे श-भजन ए। दाजी केआ ह से
मीरा नेभी भजन गाकर उ ह सु नाये

लागी मो ह राम खु
मारी हो।
रम झम बरसैमे हरा भीजैतन सारी हो।
च ँदस दमकैदामणी, गरजै घन भारी हो॥
सतगु भे द बताईया खोली भरम कवारी हो।
सब घर द सैआतमा सब ही सू ँयारी हो॥
द पक जोऊँयान का चढँ अगम अटारी हो।
मीरा दासी राम क इमरत ब लहारी हो॥
मीरा के सं
गीत- ान, पद रचना और वर माधु री सेसं
त बड़ेस
ये। उ ह ने पूछा -"तु
हारेगुकौन ह बे ट ?" "कल मनेभु केसामने
नवे दन कया था क मे रेलए गुभे ज और फर न य कया क आज
गुपू णमा है , अतः जो भी संत आज पधारेग, वेही भुारा नधा रत
गुह गे । कृपा कर इस अ ानी को श या के प म वीकार कर !" मीरा
नेरै
दास जी केचरण म गरकर णाम कया तो उसक आँ ख से आँसू
नकल उनके चरण पर गर पड़े ।
मीरा ने जब इतनी दैयता और दन करतेए रै दास जी सेउसे
श या वीकार करने क ाथना क तो वे भी भावुक हो उठे। स त ने
मीरा केसर पर हाथ रखतेए कहा, "बे ट ! तुह कुछ अ धक कहने -
सु
नने क आव यकता नह है । नाम ही नसे
नी (सीढ़ ) हैऔर लगन ही
22
यास, अगर दोन ही बढ़ते जाय तो अगम अटारी घट म का शत हो
जायेगी। इ ह के सहारेउसम प ँ
च अमृ तपान कर लोगी। समय जै सा भी
आये , पाँ
व पीछे न हट, फर तो बे
ड़ ा पार है
।" इतना कह वह ने ह से
मुकु रा दये।
झे
"मु कु
छ साद देने क कृ पा कर।" मीरा ने हाथ जोड़ कर
ाथना क । स त ने एक ण सोचा। फर गले से अपनी जप-माला और
इकतारा मीरा केफै लेहाथ पर रख दये । मीरा ने उ ह सर सेलगाया,
माला गले म पहन ली और इकतारे केतार पर पर उँ गली रखकर उसने
रै
दास जी क ओर दे खा। उसकेमन क बात समझ कर उ ह ने इकतारा
मीरा के हाथ सेलया और बजातेये गानेलगे...।
भु
जी, तु
म च दन हम पानी। जाक अँग अँ
ग बास समानी॥
भु
जी, तु
म घन बन हम मोरा। जै
सेचतवत च चकोरा॥
भु
जी, तु
म द पक हम बाती। जाक जोत बरेदन राती॥
भु
जी, तु
म मोती हम धागा। जैसेसोन ह मलत सुहागा॥
भु
जी, तु
म वामी हम दासा। ऐसी भग त करेरै दासा॥
रै
दास जी ने भजन पू
रा कर अपना इकतारा पु
नः मीरा को पकड़ा
दया, जो उसने जीवन पय त गुकेआशीवाद क तरह अपने साथ
सहेज कर रखा। गुजी के इंगत करने
पर मीरा ने
उसे बजातेए गायन
ार भ कया ...।
कोई कछुकहेमन लागा।
ऐसी ीत लगी मनमोहन, यु ँ सोने म सु हागा।
जनम जनम का सोया मनु वा, सतगु सबद सु न जागा।
मात- पता सु
त कु
टुब कबीला, टू
ट गया यू
ँ तागा।
मीरा के भु गरधर नागर, भाग हमारा जागा।
कोई कुछ कहेमन लागा॥
चार ओर द आन द सा छा गया। उप थत सब जन एक
नमल आन द धारा म अवगाहन कर रहे
थे। मीरा ने
पु
नः आलाप क
तान ली....।
पायो जी मने
राम र न धन पायो।
23
व तुअमोलक द मे रेसतगु, करपा कर अपनायो॥
जनम जनम क पू ज
ँी पाई, जग म सभी खु
वायो॥
खरच न खू टे
, चोर न लू
टे
, दन दन बढ़त सवायो॥
सत क नाव खे व टया सतगु, भवसागर तैरायो॥
मीरा के भुगरधर नागर, हरख हरख जस गायो॥
पायो जी मने
राम र न धन पायो॥
रै
दास जी मीरा का भजन सु नकर अ यं त भाव वभोर हो उठे । वे
मीरा सी श या पाकर वयं को ध य मान रहे थे। उ ह ने उसे को टश
आशीवाद दया। दाजी भी सं त क कृ पा पाकर कृ त कृय ये ।
संत रै
दास जी दो दन मे ड़ता म रहे। उनकेजाने से मीरा को सू ना
सू
ना लगा। वह सोचने लगी क, "दो दन स सं ग का कै सा आन द रहा ?
स संग म बीतने वाला समय ही साथक है ।"
त दन क तरह मीरा पू जा स प कर याम कुज म बै ठ
भजन गा रही थी। माँ , वीरकु ँवरी जी आई तो ठाकु र जी को णाम करके
बै
ठ गई। मीरा ने भजन पू रा होने पर तानपुरा रखते समय माँ को देखा तो
चरण म सर रखकर णाम कया।
माँनेजब बे ट का अ ु स मु ख दे खा तो पीठ पर ने ह से हाथ
रखतेए बोली, "मीरा! या भजन गा-गा कर ही आयु पू
री करनी है बेट?
जहाँववाह होगा, वह लोग या भजन सु नने केलए तु झे ले जायगे ?"
" जसका ससु राल और पीहर एक ही ठौर हो भाबू ! उसेच ता
करने क या आव यकता है ?" " म समझी नह बे ट !" माँने कहा।
"महल म मे रा पीहर हैऔर याम कुज ससु राल।" मीरा ने
सरलता से कहा।
झे
"तु कब समझ आये गी बे ट ! कुछ तो जगत वहार सीख। बड़े
बड़े घर म तु हारेस ब ध क चचा चल रही है । इधर र नवास म हम
लोग का च ता केमारे बुरा हाल है । यह रात दन गाना-बजाना, पू जा-
पाठ और रोना-धोना इन सबसे संसार नह चलता। ससु राल म सास-ननद
का मन रखना पड़ता है , प त को परमेर मानकर उसक से वा टहल
करनी पड़ती है । मीरा ! सारा प रवार तु हारे लए च तत है ।"
"भाबू! प त परमेर है , इस बात को तो आप सबके वहार को

24
दे
खकर म समझ गई ँ । येगरधर गोपाल मे रेप त ही तो ह और म इ ह
क से वा म लगी रहती ँ , फर आप ऐसा य फरमाती है ?"
"अरे पागल लड़क ! पीतल क मू रत भी या कसी का प त हो
सकती है ? म तो थक गई ँ । भगवान ने एक बे ट द वह भी आधी
पागल।" "माँ! आप य अपना जी जलाती ह सोच-सोच कर। बाबोसा ने
मुझेबताया हैक मे रा ववाह हो गया है । अब सरा ववाह नह होगा।"
"कब आ ते रा ववाह ? हमने न दे
खा, न सु ना। कब ह द चढ़ , कब
बारात आई, कब ववाह- वदाई ई ? न ही कसने क यादान कया ? यह
तुझेबाबोसा ने ही सर चढ़ाया है ।"
"य द आपको लगता हैक ववाह नह आ तो अभी कर
द जए। न तो वर को कह से आना है न क या को। दोन आपके स मुख
ह सरी तै यारी ये लोग कर दगी। दो जनी जाकर पु रो हत जी और कु वँ

सा ( पता जी) को बु ला लायेग ।" मीरा नेकहा।
"हे भगवान ! अब म या क ँ? र नवास म सब मु झे ही दोषी
ठहराते हैक बे ट को समझाती नह और यहाँ यह हाल हैक इस
लड़क केम त क म मे री एक बात भी नह घु सती।" फर थोड़ा शां त
हो कर यार से वीरकु वं
री जी मनातेए कहने लगी, "बे
टा नारी का स चा
गुप त होता है ।"
"पर भाबू ! आप मु झेगरधर सेवमु ख य करती ह ? ये तो
आपके सुझायेये मे
रेप त हैन?"
"अहा ! जस वधाता ने इतना सु दर प दया उसे इतनी भी
बु नह द क यह सजीव मनु य म और पीतल क मू रत म अ तर ही
नह समझती। वह तो उस समय तूजद कर रही थी, इस लए तु झे
बहलाने केलए कह दया था।"
"आप ही तो कहती ह क क ची हाँ ड ी पर ख ची रे
खा मटती नह
और पक हाँ ड ी पर गारा ठहरता नह । उस समय मे रे क ची बु म
बठा दया क गरधर ते रेप त है और अब दस वष क होने पर कहती ह
क वह बात तो बहलाने केलये कही थी। भाबू ! पर सब सं त यही कहते
हैक मनु य शरीर भगव ा त केलए मला है इसे थ काय म नह
लगाना चा हए।"
वीरकु वं
री जी उठकर चल द । सोचती जाती थ - ये शा ही
25
आज बै री हो गये
- मे
री सु
कुमार बे
ट को यह बाबा वाला पथ कैसे
पकड़ा दया। उनक आँ ख म च ता सेआँ सूआ गये

मीरा माँक बात सोचतेए कु छ देर एकटक गरधर क ओर
नहारती रही। फर रै
दास जी का इकतारा उठाया और गाने
लगी -
मे
रेतो गरधर गोपाल सरो न कोई।
जाकेसर मोर मुकुट मे
रो प त सोई॥
कोई कहेकालो, कोई कहेगोरो,
लयो है म आँयाँ खोल।
कोई कहेहलको, कोई कहेभारो
लयो है तराजू तोल॥
कोई कहेछाने , कोई कहेचवड़े
लयो है बं जता ढोल।
तनका गहणा म सब कु छ द नाँ
दयो है बाजू बद
ँ खोल॥
मीरा के भु गरधर नागर,
पू
रब जनम को है कौल॥
य तो मे ड़तेकेर नवास म ग रजा जी, वीरमदेव जी ( दा जी के
सबसे बड़े बेटे
) क तीसरी प नी थ , क तु पटरानी वही थ । उनका
ऐ य दे खते ही बनता था। पीहर सेउनकेववाह केसमय म पचास
दास दा सयाँ साथ आये थेऔर परम तापी ह आ सू य महाराणा
साँ
गा क लाडली बहन का वै भव एवंस मान यहाँ सबसे अ धक था। पू रे
र नवास म उनक उदार वहा रकता म भी उनका ऐ य उप थत
रहता।
मीरा उनक ब त लारी बे ट थी। येउसक सु दरता, सरलता पर
जैसेयौछावर थ । बस, उ ह उसका आठ हर ठाकु र जी सेचपके
रहना नह सु हाता था। कसी दन योहार पर भी मीरा को याम कुज से
पकड़ कर लाना पड़ता। मीरा को बाँ धने केतो दो ही पाश थे ,भ -
भगवत चचा अथवा वीर गाथा। जब भी ग रजा जी मीरा को पात , उसे
बठाकर अपनेपू वज क शौय गाथा सु नात । मीरा को वीर और
भ मय च र चकर लगते ।

26
रात ठाकु र जी को शयन करा कर मीरा उठ ही रही थी क
ग रजा जी क दासी ने आकर सं दे
श दया -"बड़े कुँवरसा आपको बु लवा
रहेहै।" " य अभी ही ?" मीरा ने च कत हो पूछा और साथ ही चल द ।
उसने महल म जाकर दे खा क उसकेबड़ेपताजी और बड़ी माँ दोन
स चत बै ठेथे। मीरा भी उ ह णाम कर बै ठ गई।
"मीरा तु ह अपनी यह माँ कैसी लगती ह ?" वीरमदे व जी ने
मु कु
रा कर पू छा। "माँतो माँ होती है
। माँकभी बुरी नह होती।" मीरा ने
मु कु
रा कर कहा। "और इनकेपीहर का वं श, वह कै सा है?" "य तो इस
वषय म मु झसे अ धक आप जानते ह गे। पर जतना मु झे पता है तो
ह आ सू य, मे
वाड़ का वं श संसार म वीरता, याग, कत पालन और
भ म सव प र है । मे री समझ म तो बाव जी कम ! आर भ म सभी
वंश े ही होते ह उसकेकसी वं शज के कम केकारण अथवा
ह क जगह ववाह-स ब ध से लघुता आ जाती है ।"
"बेट , तुहारेइन माँ केभतीजे ह भोजराज। प और गु ण क
खान...." "मने सु
ना है।" मीरा ने बीच म ही कहा। "वं श और पा म कह
कोई कमी नह है । ग रजा जी तु झे अपने भतीजे क ब बनाना चाहती
ह।" "बाव जी कम !" मीरा नेसर झु का लया -"ये बात ब च से तो
करने क नह ह।"
"जानता ँ बे
ट ! पर दादा कम ने फरमाया हैक मे रेजी वत
रहते मीरा का ववाह नह होगा। बे ट बाप केघर म नह खटती बे टा !
य द तुम मान जाओ तो दादा कम को मनाना सरल हो जाये गा। बाद म
ऐसा घर-वर शायद न मले । मुझे भी तु
मसे ऐसी बात करना अ छा नह
लग रहा है , क तु क ठनाई ही ऐसी आन पड़ी है तु हारी माताएँ कहती ह
क हमसे ऐसी बात कहते नह बनती। पहले योग-भ सखाई अब
ववाह केलये पूछ रहे ह। इसी कारण वयं पू
छ रहा ँ बे
ट ।"
'बावजी कम !' ं धे कंठ से मीरा केवल स बोधन ही कर पायी।
ढलने को आतु र आं सु से भरी बड़ी-बडी आँ ख उठाकर उसने अपने
बड़ेपता क और दे खा। दय केआवे ग को अद य पाकर वह एकदम
से उठकर माता- पता को णाम कयेबना ही दौड़ती ई क से बाहर
नकल गयी।

27
वीरमदे वजी न देखा - मीरा के र वहीन मु खपर ा के पंजे म
फँसी गाय केसमान भय, ववशता और नराशा केभाव और मरते पशु
के आतनाद सा वकल वर 'बावजी कम' कान म पड़ा तो वेवच लत
हो उठे । वे रण म लयं कर बन कर शव से धरती पाट सकते ह ; नश
ा से लड़ सकते ह, क तु अपनी पुी क आँ ख म ववशता नह दे ख
सक। उ ह तो ात ही नह आ क मीरा "बाव जी कम" कहते कब
क से बाहर चली गई।
बड़ेपताजी और बड़ी माँ केयू
ँमीरा से सीधे -सीधे ही मेवाड़ के
राजकु वं र भोजराज सेववाह के ताव पर मीरा का दय ववशता से
दन कर उठा। वह शी ता पू वक क से बाहर आ सी ढ़याँ उतरती
चली गई। वह नह चाहती थी क कोई भी उसक आँ ख म आँ सू भी
दे
ख।ेजसने उसे दौड़तेए दे खा, च कत रह गया, बब क पु कारा भी,
पर मीरा ने कसी क बात का उ र नह दया।
मीरा अपनेदय केभाव को बाँ धे अपने क म गई और ध म
से पलं ग पर धी गर पड़ी। दय का बाँ ध तोड़ कर दन उमड़ पड़ा -
"यह या हो रहा है मे
रेसव-समथ वामी ! अपनी प नी को सरे केघर
दे
नेअथवा जानेक बात तो साधारण-से -साधारण, कायर-से -कायर
राजपू त भी नह कर सकता। शायद तु मने मुझेअपनी प नी वीकार ही
नह कया, अ यथा ......। हेग रधर ! य द तु म अ पश होतेतो म
तुह दोष नह दे ती। तब तो यही स य है न क तु मने मुझेअपना माना ही
नह ....। न कया हो, वत हो तु म। कसी का ब धन तो नह है तुम
पर।"
"हेाणनाथ ! पर मने तो तु ह अपना प त माना है ...., म कैसे अब
सरा प त वर लू ँ
? और कु छ न सही, शरणागत केस ब ध से ही र ा
करो.....र ा करो। अरे ऐसा तो नबल-से - नबल राजपू त भी नह होने
दे
ता। य द कोई सु न भी लेता हैक अमु क कु मारी ने उसेवरण कया है
तो ाण ण से वह उसे बचाने का, अपने यही लाने का य न करता है ।
तु हारी श तो अन त है , तु
म तो भ -भयहारी हो। हेभु ! तुम
तो क णाव णालय हो, शरणागतव सल हो, प ततपावन हो, द नब धु
हो........कहाँ तक गनाऊँ .....। इतनी अनी त मत करो मोहन .......मत
करो। मे रेतो तुह एकमा आ य हो.. र क हो.......तु ह सव व हो, म
28
अपनी र ा केलये
तुह छोड़ कसे
पु
का ँ
...... कसे
पु
का ँ
...... कसे
.?
जो तुम तोड़ो पया, म नह तोडू ं

तोस ीत तोड़ कृण, कौन सं ग जोडूं

तु
म भयेत वर, म भई पं खया।
तु
म भयेसरोवर, म ते री म छया॥
तु
म भये ग रवर, म भई चारा।
तु
म भयेच दा, म भई चकोरा॥
तु
म भये मोती, भुहम भये धागा।
तु
म भयेसोना, हम भयेसु हागा॥
मीरा कहे भु बृ ज केवासी।
तु
म मेरेठाकु र मु
झेते री दासी॥
जो तुम तोड़ो पया, म नह तोडू ं

तोसो ीत तोड़ कृण, कौन संग जोडूं

राव दाजी अब अ व थ रहने लगे थे
। अपना अं त समय समीप
जानकर उनक ममता मीरा पर अ धक बढ़ गयी थी। उसकेमु ख से
भजन सु नेबना उ ह दन सू ना लगता। मीरा भी समय मलते ही दाजी
केपास जा बै ठती। उनकेसाथ भगवत चचा करती। अपने और अ य
संतो के रचेए पद सु नाती।
ऐसे ही उस दन मीरा गरधर क से वा पू
जा कर बैठ ही थी क
गंगा ने बताया क दाजी ने आपको याद फरमाया है । मीरा नेजाकर
दे
खा तो उनकेपलं ग केपास पाँ च पु, द वान जी, राजपु रो हत और
राजवैजी सब वह थे । सहसा आँ ख खोल कर दाजी ने पु
कारा,
"मीरा....। "जी म हा जर ँ बाबोसा।" मीरा उनकेपास आ बोली। "मीरा
भजन गाओ बे ट !"
मीरा नेठाकुर जी क भ व सलता का एक पद गाया। पद पू रा
होने पर दाजी ने चारभुजानाथ केदशन क इ छा कट क । तु रत
पालक मं गवाई गई। उ ह पालक म पौढ़ा कर चार पुकहार बने ।
वीरमदे व जी छ ले कर पताजी केसाथ चले । दो घड़ी तक दशन करते
रहे। पुजारी जी ने चरणामृ त, तुलसी माला और साद दया। वहाँ से
लौटतेयाम कुज म गरधर गोपाल के दशन कए और मन ही मन कहा,
29
"अब चल रहा ँवामी ! अपनी मीरा को सं भाल ले ना भु ।" महल म
वा पस लौट कर थोड़ी दे र आँ ख मूं
द कर ले टे रहे। फर अपनी तलवार
वीरमदे
व जी को दे तेये कहा, " जा क र ा का और रा य के सं
च ालन
का पू
ण दा य व तु हारे
सबल क ध वाहन करे ।" मीरा और जयमल को
पास बु
ला कर आशीवाद दे तेये कहने लगे, " भु कृ
पा से, तु
म दोन के
शौय व भ से मेड़ तया कु ल का यश सं सार म गाया जाये गा। भारत
क भ माल म तु म दोन का सु यश पढ़ सु नकर लोग भ और शौय
पथ पर चलने का उ साह पायगे । उनक आँ ख से मान आशीवाद
व प आँ सू झरने लगे। वीरमदेव जी नेदाजी सेवन ता से पूछा,
"आपक कोई इ छा हो तो आ ा द।" "बे टा ! सारा जीवन सं त से
वा का
सौभा य मलता रहा। अब सं सार छोड़ते समय बस सं त दशन क ही
लालसा है। पर यह तो भु केहाथ क बात है ।" वीरमदेव जी ने उसी
समय पु कर क ओर सवार दौड़ाये संत क खोज म। मीरा आ ा पाकर
गानेलगी ......
नह ऐसो जनम बार बार।
या जानूँकुछ पु य गटेमानु सा अवतार॥
बढ़त पल पल घटत दन दन जात न लागे बार।
बरछ के य पात टू टेलगे न ह पु
न डार॥
भवसागर अ त जोर क हयेवषम ऊं डी धार।
राम नाम का बाँ ध बेड़ ा उतर परलेपार॥
ान चौसर मँड ी चौहटेसु रत पासा सार।
या नया म रची बाजी जीत भावै हार॥
साधुसंत मंहत ानी चलत करत पु कार।
दास मीरा लाल गरधर जीवणा दन चार॥
पद पूरा करकेमीरा ने
अभी तानपुरा रखा ही था क ारपाल ने
आकर नवे दन कया- "अ दाता ! द ण सेी चै त यदास नाम केसं त
पधारेह।" उसक बात सु ननेही दाजी एकदम चै त य हो गये
। मानो
बु
झतेए द पक क लौ भभक उठ हो। आँ ख खोल कर उ ह ने संत को
स मान सेपधरानेका संकेत कया। सब राजपुरो हत जी केसाथ उनके
वागत केलया बढ़े ही थेक ार पर ग भीर और मधु र वर सुनाई

30
दया ....'राधे याम'
मीरा के दाजी, परम वै णव भ आज अपने जीवन केअं तम
पड़ाव पर ह। लगभग सम त प रवार उनके क म जु टा आ है , पर उ ह
लालसा हैक म सं सार छोड़ते समय सं त दशन कर पाऊँ । उसी समय
ार सेमधु र वर सु नाई दया....... राधे याम ! दाजी म जै से चेतना लौट
आई। सब क उस ओर उठ गई। म तक पर घनकृण के श, भाल पर
तलक , कं ठ और हाथ तु लसी माला सेवभू षत, े त व , भ मु ख
वै णव सं त के दशन ए। सं त के मुख से राधेयाम, यह यतम का नाम
सुनकर उ ला सत हो मीरा ने उ ह णाम कया। फर दाजी से बोली,
"आपको सं त-दशन क इ छा थी न बाबोसा ? दे खये , भु ने कैसी कृपा
क ।" सं त ने मीरा को आशीवाद दया और प र थ त समझतेयेवयं
दाजी के समीप चले गये । बेट ने संके
त पा पता को सहारे सेबठाया।
णाम कर बोले , "कहाँ से पधारना आ महाराज ?" "म द ण से आ
रहा ँ राजन। नाम चै त यदास है । कुछ समय पहले गौड़ दे श के म ेी
स यासी ी कृण चै त य तीथाटन करतेये मे
रेगाँ
व पधारे और मु झ पर
कृ पा कर ी वृ दंावन जाने क आ ा क ।"
" ी कृण चै त य स यासी हो कर भी म ेी ह महाराज" ? मीरा ने
उ सु कता सेपू छा। सं त बोले , "य तो उ ह नेबड़े -बड़ेद वजयी
वेदा तय को भी परा जत कर दया है , पर तु उनका स ां त हैक सब
शा का सार भगव े म है और सब साधन का सार भगवान का नाम
है। याग ही सु ख का मू ल है । त तकां चन गौरवण सु दर सु कु मार दे
ह,
बृजरस म छके ीकृण चै त य का दशन करकेलगता है मानो वयं
गौरांग कृण ही हो। वे जा त-पा त, ऊँ च-नीच नह दे खते । 'ह र को भजे
सो ह र का होय' मानतेए सबको ह र-नामामृ त का पान कराते ह।
अपनेदय केअनु राग का ार खोलकर सबको मु प सेम ेदान
करते है।" इतना कहते -कहते उनका कं ठ भाव से भर आया। मीरा और
दाजी दोन क आँ ख इतना रसमय स सं ग पाकर आँ सु से भर आई।
फर सं त कहने लगे , "म द ण से प डरपु र आया तो वहाँ मुझे एक वृ
स यासी के शवान द जी मले । जब उ ह ात आ क म वृ दंावन जा रहा
ँ तो उ ह ने मुझे एक साद माला दे तेये कहा क तु म पु कर होतेये
मेड़ते जाना और वहाँ केराजा दाजी राठौड़ को यह माला दे तेये
31
कहना क वे इसे अपनी पौ ी को दे द। प डरपुर से चल कर म पु कर
आया और दे खए भु नेमु
झे सही समय पर यहाँ प ँच ा दया।" ऐसा
कह सं त ने अपने झोले सेमाला नकाल दाजी क ओर बढ़ाई।
दाजी ने संकेत सेमीरा को उसे ले
नेको कहा। उसने बड़ी ा
और स ता से उसे अंज ल म ले कर उसेसर से लगाया। दाजी ले ट
गयेऔर कहने लगे, "केशवान द जी मीरा के ज म से पूव पधारे थे।उह
केआशीवाद का फल है यह मीरा। महाराज आज तो आपके प म
वयंभगवान पधारे ह। य तो सदा ही सं त को भगव व प समझ कर
जैसी बन पड़ी, से वा क है , क तु आज महा याण केसमय आपने
पधार कर मे रा मरण भी सु धार दया।" उनके ब द ने क कोर से आँ सू
झरने लगे । "पर ऐसे कत परायण और वीर पु, फु लवारी सा यह मे रा
प रवार, भ म त पौ ी मीरा, अ भम यु सा पौ जयमल, ऐसे भरे-पूरे
प रवार को छोड़कर जाना मे रा सौभा य है।" फर बोले , "मीरा !" "हकम
बाबोसा !" "जाते समय एक भजन तो सु ना देबे
टा !" मीरा ने आ ा पा
तानपुरा उठाया और गाने लगी .....
म तो तेरी शरण पड़ी रेरामा, यू
ँजाणेसो तार।
अड़सठ तीरथ म म आयो, मन नह मानी हार।
या जग म कोई नह अपणा, सु णयो वण कु मार।
मीरा दासी राम भरोसे
, जम का फे रा नवार।
मधु
र संगीत और भावमय पद वण करकेचै त य दास वयं को
रोक नह पाये -"ध य, ध य हो मीरा। तु हारा आलौ कक म े, संत पर
ा, भ क लगन, मो हत करने वाला क ठ, म ेरस म पगे यह ने
- इन सबको तो देख लगता है - मानो तु
म कोई जगो पका हो। वे जन
भा यशाली ह गे जो तु हारी इस भ - म ेक वषा म भीगकर आन द
लूटग। ध य हैआपका यह वं श, जसम यह नारी र न कट आ।" मीरा
नेसर नीचा कर णाम कया और अ तशय वन ता से बोली, "कोई
अपने से
कुछ नह होता महाराज ......।" संत कुछ आहार ले चलने को
तु
त ए। रा बीती। दाजी का अं तमन चै त य था पर शरीर श थल
हो रहा था। -मुत म मीरा ने दा सय केसाथ धीमे -धीमेसंक तन
आर भ कया।
32
जय चतु
भु
जनाथ दयाल। जय सु
दर गरधर गोपाल॥
उनके मु ख से अ फु ट वर नकले -
" ......भु ...... ह.....। ज.....य .....हो"। पु
.....प......धार.......रहे रो हत
जी ने तुलसी म त चरणामृ त दया। मीरा क भ सं कार को पोषण
दे
ने वाले , मे ड़ता रा य केसं थापक, परम वै णव भ , वीर शरोम ण
राव दाजी पचह र वष क आयु म यह भव छोड़कर गोलोक सधारे ।
दाजी केजाने केबाद मीरा ब त ग भीर हो गई। उसकेसबसे
बड़े सहायक और अवल ब उसकेबाबोसा केन रहने से उसे अके लापन
खलने लगा। यह तो भु क कृ पा और दाजी क भ का ताप था
क पु कर आने वाले संत मे ड़ता आकर दशन दे त।ेइस कार मीरा को
अनायास स सं ग ा त होता। पर धीरे -धीरेर नवास म इसका भी वरोध
होने लगा - "लड़क बड़ी हो गई है , अतः इस कार दे र तक साधु के
बीच म बै ठे रहना और भजन गाना अ छा नह है ।" "सभी साधु तो अ छे
नह होते । पहले क बात ओर थी। तब अ दाता कम साथ रहते थेऔर
मीरा भी छोट ही थी। अब वह चौदह वष क हो गई है । आ ख़र कब
तक कु ंवारी रखगे ?"
एक दन माँ ने फर याम कुज आकर मीरा को समझाया -"बे ट
अब तू बड़ी हो गई है इस कार साधु केपास दे र तक मत बै ठा कर।
उन बाबा केपास ऐसा या है जो कसी सं त केआने क बात सु नते
ही तू दौड़ जाती है । यह रात-रात भर रोना और भजन गाना, या
इस लए भगवान ने तु ह ऐसे प गु ण दये ह ?"
"ऐसी बात मत फरमाओ भाबू ! भगवान को भू लना और स सं ग
छोड़ना दोन ही अब मे रे बस क बात नह रही। जस बात केलए
आपको गव होना चा हए, उसी केलए आप मन छोटा कर रही है ।" मीरा
नेतानपु रा उठाया ..
हाँ
ने
मत बरजेऐ माय साधाँ
दरसण जाती।
राम नाम हरदैबसेमा हलेमन माती॥
मीरा ाकुल बरह ण, अपनी कर लीजे॥
माता उठकर चली गई। मीरा को समझाना उनकेबस का न रहा।

33
सोचती - अब इसकेलए जोगी राजकु वंर कहाँ सेढूँ
ढ ? मीरा भी उदास
हो गयी। बार-बार उसेदाजी याद आते ।
इ ह दन अपनी बु आ ग रजा जी को ले नेचतौड़ से कुँ
वर
भोजराज अपने प रकर केसाथ मे ड़ता पधारे ; प और बल क सीमा,
धीर-वीर, समझदार बीसे क वष का नवयु वक। जसने भी दे खा, शं सा
कए बना नह रह पाया। जहाँ देखो, महल म यही चचा करते -"ऐसी
सु दर जोड़ी द पक ले कर ढू ँ
ढने पर भी नह मले गी। भगवान ने मीरा को
जैसे प - गु ण से संवारा है , वैसा भा य भी दोन हाथ सेदया है ।"
भीतर ही भीतर यह तय आ क ग रजा जी केसाथ यहाँ से
पुरो हत जी जायँ बात करने । और अगर वहाँ साँ
गा जी अनु कूल लगे तो
ग रजा जी को वा पस लवाने केसमय वीरमदे व जी बात प क कर
लगन क त थ न त कर ल। हवा केपं ख पर उड़ती येबात मीरा
केकान तक भी प ँ च ी। वह ाकु ल हो उठ । मन क था कससे
कहे ? ज मदा ी माँ ही जब सर केसाथ जु ट गई है तो अब रहा ही
कौन ? मन केमीत को छोड़कर मन क बात समझे भी और कौन ? पर
वो भी या समझ रहे ह ? भारी दय और धाँ क ठ ले उसने म दर म
वेश कया -"मे रेवामी ! मे रेगोपाल ! मे रे सव व ! म कहाँ जाऊँ?
कससे क ँ ? मु
झे बताओ, यह तु ह अ पत तन-मन या अब सर क
स प बनगे ? म तो तु हारी ँ ....... या तो मुझे सं
भाल लो अथवा आ ा
दो म वयं को बखे र ँ....... पर अनहोनी न होने दो मे
रे यतम !" झरते
ने से मीरा अपनेाणाधार को उनक क णा का मरण दला मनाने
लगी .........
हाँ
री सु
ध लीजो द नानाथ।
जल डू बत गजराज उबारायो जल म पकड़यो हाथ।
जन ाद पता ख द नो नर सघ भया य नाथ॥
नरसी मे हता रेमायरेराखी वाँ री बात।
मीरा के भुगरधर नागर भव म पकड़ो हाथ॥
हाँ
री सु
ध लीजो द नानाथ॥
कु

वर भोजराज पहली बार बु
आ ग रजा केससु राल आये थे

भु
वा के लार क सीमा न थी। एक तो मे
वाड़ केउ रा धकारी, सरे

34
ग रजा जी केलाडले भतीजे और तीसरे मेड़ते केभावी जमाई होने के
कारण पल-पल महल म सब उनक आवभगत म जु टेथे ।
जयमल और भोजराज क सहज ही मैी हो गई। दोन ही इधर-
उधर घू मते -घामते फुलवारी म आ नकले । सुदर याम कुज म दर को
दे
खकर भोजराज केपाँ व उसी ओर उठने लगे। मीठ रा गनी सु नकर
उ ह ने उ सुकता से जयमल क ओर दे खा। जयमल ने कहा, "मे री बड़ी
बहन मीरा है । इनके रोम-रोम म भ बसी ई है ।"
"जैसे आपकेरोम-रोम म वीरता बसी ई है ।" भोजराज ने हँस
कर कहा, "भ और वीरता, भाई बहन क ऐसी जोड़ी कहाँमले गी ?
ववाह कहाँआ इनका ?" " ववाह ? ववाह क या बात फरमाते ह
आप ? ववाह का तो नाम भी सु नतेही जीजा (द द ) क आँ ख से
आँ सु केझरने बहने लगते ह। आ य क कसी बारात को दे खकर
जीजा ने काक सा से पू
छा क हाथी पर यह कौन बै ठा है ? उ ह ने
बतलाया क नगर से ठ क लड़क का वर है । यह सु नकर इ होने जद क
क मे रा वर बताओ। काक सा ने इ ह चुप कराने केलए कह दया क
तेरा वर गरधर गोपाल है । बस, उसी समय से इ ह ने भगवान को अपना
वर मान लया है । रात- दन बस भजन-पू जन, भोग-राग, नाचने -गाने म
लगी रहती ह। जब यह गाने बै
ठती ह तो अपने आप मु ख से भजन
नकलते जाते ह। बाबोसा केदे हां
त केप ात पु नः इनकेववाह क
र नवास म चचा होने लगी है। इस लए अलग रह याम-कुज म ही
अ धक समय बताती ह।" जयमल ने बाल वभाव से ही सहज ही सब
बात भोजराज को बताई।
"य द आ ा हो तो ठाकु र जी और राठौड़ क इस वभू त का म
भी दशन कर लू ँ?" भोजराज नेभा वत होकर सवथा अनहोनी सी बात
कही। न चाहतेये भी केवल उनका स मान रखने केलए ही जयमल
बोले , "हाँहाँ अव य, पधारो।" उन दोन ने फुलवारी क बहती नाली म
ही हाथ पाँ व धोयेऔर म दर म वे श कया। सी ढ़याँचढ़ते ये
भोजराज ने उस क णा के पद क अं तम पं सु नी...........
मीरा के भुगरधर नागर भव म पकड़ो हाथ॥
वह भजन पू
रा होते
ही बे
खबर मीरा ने
अपनेाणाधार को मनाते
35
येसरा भजन आर भ कर दया .....
गरधर लाल ीत म त तोड़ो।
गहरी न दया नाव पु
रानी अध बच म काँ
ई छोड़ो॥
थ ही हाँरा सेठ बोहरा याज मू
ल काँई जोड़ो।
मीरा के भुगरधर नागर रस म वष काँ ई घोल॥
अ ु स मु ख और भरे क ठ से मीरा दय क बात, सं गीत के
सहारे अपने आरा य से कह रही थी। ठाकु र को उ ह के गु
ण का वा ता
दे कर, उ ह ही एकमा आ य मान कर,अ य त द न भाव से कृ पा क
गुहार लगा रही थी। मीरा अपने भाव म इतनी त मय थ क कसी के
आने का उसेात ही नह आ।
एक मूत पर डालकर भोजराज ने उ ह णाम कया।
गा यका पर पड़ी तो दे खा क उसकेने से अ वराम आँ सू बह रहे
थे, जससे बरबस ही मीरा का फू ल सा मु ख कुहला सा गया था। यह
देख कर यु वक भोजराज ने अपना आपा खो दया। भजन पू रा होते ही
जयमल ने चलने का संकेत कया। तब तक मीरा ने इकतारा एक ओर
रख आँ ख खोली और त नक फेर पू
छा, "कौन है ?"
भोजराज को पीछे ही छोड़ कर आगे बढ़ कर ने ह यु वर म
जयमल बोले , "म ँ जीजा।" समीप जाकर और घु टन के बल पर बै ठकर
अं ज ल म बहन का आँ सु से भीगा मुख ले तेए आकु ल वर म पू छा,
" कसनेख दया आपको ?" बस भाई केतो पू छने क देर भर थी क
मीरा के दन का तो बाँ ध टू
ट पड़ा। वह भाई के क ठ लग फू ट-फू ट कर
रोने लगी। "आप मु झसे क हये तो जीजा, जयमल ाण दे कर भी आपको
सुखी कर सकेतो वयं को ध य माने गा।" दस वष का बालक जयमल
जै से आज बहन का र क हो उठा। मीरा या कहे , कैसेकहे ? उसका
यह लारा छोटा भाई कै से जानेगा क म े-पीर या होती है ?
जयमल जब भी बहन केपास आता या कभी महल म रा ते म
मल जाता तो मीरा कतनी ही आशीष भाई को दे ती न थकती - "जीवता
रीजो जग म, काँ टा नी भाँ
गेथाँका पग म !"और" ँ , ब लहारी हाँ रा वीर
थाँरा ई प माथे ।" सदा हँसकर सामने आने वाली बहन को यू ँरोते दे

जयमल तड़प उठा, "एक बार, जीजा आप कहकर तो दे खो, म आपको
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यूँरोतेनह दे ख सकता।"
"भाई ! आप मु झे बचा ली जए, बचा ली जए, मीरा भरे क ठ से
ह कय के म य कहने लगी - "सभी लोग मु झे मेवाड़ के महाराज कुँवर
सेयाहना चाहते है
। ी का तो एक ही प त होता है भाई ! अब गरधर
गोपाल को छोड़ ये मुझेसरे को स पना चाहते ह। मु
झे इस पाप से बचा
ली जए भाई ; आप तो इतने वीर ह। मु झे आप तलवार केघाट उतार
द जए। मु झसे यह :ख नह सहा जाता। म आपसे मेरी राखी का मूय
माँग रही ँ । भगवान आपका भला करगे ।"
जयमल बहन क बात सु नकर स रह गये । एक तरफ बहन का
:ख और सरी तरफ़ अपनी असमथता। जयमल :ख से अवश होकर
बहन को बाँ हो म भर रोतेये बोले, "मे रे
वीर व को ध कार हैक
आपकेकसी काम न आया।........यह हाथ आप पर उठ, इससे पूव
जयमल के ाण दे ह न छोड़ दगे ? मुझे मा कर द जये जीजा। मे रे
वीर व को ध कार हैक आपकेकसी काम न आया.......।"
दोन भाई बहन को भावना म बहते , रोतेात ही नह आ क
याम कुज के ार पर एक पराया एवं स माननीय अ त थ खड़ा आ य
से उ ह देख और सु न रहा है

याम कुज म मीरा और जयमल, दोन भाई बहन एक सरे के
क ठ लगे दन कर रहे ह। जयमल वयं को अ तशय असहाय मान रहे
ह जो बहन क कै सेभी सहायता करने म असमथ पा रहे ेह।
भोजराज याम कुज के ार पर खड़े उन दोन क बात आ य
से सुन रहे थे। वे थोड़ा समीप आते ही सीधे मीरा को ही स बो धत करते
ए बोले, "देवी !" उनका वर सु नते ही द नो ही च क कर अलग हो गये ।
एक अ जान क उप थ त से बे खबर मीरा ने मु

ह फे र कर उघड़ा
आ सर ढक लया। पलक झपकते ही वह समझ गई क यह अ जान,
त नक :ख और ग रमा यु वर और कसी का नह , मे वाड़ के
राजकु मार का है । थोड़ेसंकोच के साथ उसने उनक ओर पीठ फे र ली।
"देवी ! आ मह या महापाप है । और फर बड़ो क आ ा का
उ लं घन भी इससे कम नह । आपनेजस च ौड़ केराजकु वं
र का नाम
लया, वह अभागा अथवा सौभा यशाली जन आपके सामने उप थत है ।
मुझ भा यहीन केकारण ही आप जै सी भ मती कु मारी को इतना
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प रताप सहना पड़ रहा है । उ चत तो यह हैक म ही दे ह छोड़ ँ ता क
सारा क ही कट जाये , क तुया इससे आपक सम या सु लझ जाये गी?
म नह तो मे रा भाई - या फर कोई और - राजपू त म वर क या कमी ?
हम लोग का अपने गुजन पर बस नह चलता। वे भी या कर ? या
कभी कसी ने सुना हैक बे ट बाप केघर कु ंवारी बै
ठ रह गई हो ?
पी ढ़य से जो होता आया है , उसी केलए तो सब य नशील है ।"
भोजराज ने अ यंत वन ता से अपनी बात समझातेये कहा, "हे
देवी ! कभी कसी केघर आप जै सी क याएँउप हैक कोई अ य
माग उनकेलए नधा रत आ हो ? मु झेतो इस उलझन का एक ही हल
समझ म आया है । और वो यह क माता- पता और प रवार केलोग जो
करे, सो करने द जए और अपना ववाह आप ठाकु र जी केसाथ कर
ली जए। य द ई र ने मुझेन म बनाया तो म वचन दे ता ँक के वल
नया क म ब द बनू ग
ँा आपकेलए नह । जीवन म कभी भी
आपक इ छा केवपरीत आपक दे ह को पश भी नह क ँ गा।
आरा य मू त क तरह ....।" भोजराज का गला भर आया। एक ण
ककर वे बोले , "आरा य मू त क भाँ त आपक से वा ही मे
रा कत
रहेगा। आपकेप त गरधर गोपाल मे रेवामी और आप ... आप.... मे री
वा मनी।"
भी म त ा कर, भोजराज प लेसे आँ सू प छतेये पलट
करकेम दर क सी ढ़याँ उतर गये । एक हारेये जुआरी क भाँ त पाँ

घसीटतेये वे पानी क नाली पर आकर बै ठे
। दोन हाथ से अंज ल भर
भर करकेमु ँह पर पानी केछ टे मारनेलगे ता क आतेये जयमल से
अपने आँसु और उनक वजह छु पा पाय। पर मन ने तो आज ने क
राह से आज बह जाने क ठान ही ली थी। वे अपनी सारी श समे ट
उठे और चल पड़े ।
जयमल शी तापू वक उनकेसमीप प ँ च।ेउ ह ने दे
खा, आते
समय तो भोजराज स थे , पर तु अब तो उदासी मु ख से झर रही है ।
उसने सोचा संभवतः जीजा के :ख से:खी ए ह, तभी तो ऐसा वचन
दया। कु छ भी हो, जीजा इनसेववाह कर सु खी ही ह गी। और
भोजराज ? वे चलतेये जयमल से बीच से ही वदा ले मुड़ गये ता क
कह एका त पा अपने मन का अ तदाह बाहर नकाल।
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भोजराज याम कुज से त ा कर अपने डेरेलौट आये । वहाँ
आकर कटे वृक भाँ त पलं ग पर जा पड़े। पर चै न नह पड़ रहा था।
कमर म बं धी कटार चुभी, तो यान से बाहर नकाल धार दे खतेये
अनायास ही अपने व पर तान ली। एक ण म ही लगा जै सेबजली
चमक हो। अं तर म मीरा आ खड़ी । उदास मु ख, कमल-प पर ठहरे
ओस-कण से आँ सूगाल पर चमक रहे ह। जलहीन म या (मछली) सी
आकु ल मानो कह रही हो - आप ऐसा करगे - तो मेरा या होगा?
भोजराज ने तड़पकर कटार र फक द । मे वाड़ का उ रा धकारी,
लाख वीर का अ णी, जसका नाम सु नकर ही श ु के ाण सू ख
जातेह और द न- खी ा से जय-जयकार कर उठते ह, जसे देख माँ
क आँ ख म सौ-सौ सपने तैर उठतेह, वही मे दपाट का भावी नायक
आज घायल शू र क भाँत धरा पर पड़ा है। आशा-अ भलाषा और यौवन
क मान अथ उठ गई हो। उनका धीर-वीर दय म ेपीड़ा से कराह
उठा। उ ह इस :ख म भाग बाँ टने
वाला कोई दखाई नह दे ता। उनके
कान म मीरा क गरधर को क ण पु कार .......
हाँ
रा से
ठ बोहरा, याज मू
ल काँ
ई जोड़ो। गरधर लाल ी त म त तोड़ो॥
गूज
ँ रही है......। "हाय ! कै
सा भा य है इस अभागे मन का ?
कहाँजा लगा यह ? जहाँ इसक र ी भर भी परवाह नह । पाँ व तले
ँदने
का भा य लखाकर आया है बदनसीब !"
'मीरा' कतना मीठा नाम है यह, जैसेअमृत सेस चत हो। अ छा
इसका अथ या है भला ? कससे पू
छुँ
?" "अब तो उ ह से पूछना होगा।
उनकेच ौड़ आने पर।" उनकेह ठ -पर मु कान, दय म व ु त तरं

थरक गई। वे मीरा से मान य बात करने लगे झे
-"मु केवल तु हारे
दशन का अ धकार चा हए। तु म स रहो। तु हारी सेवा का सु
ख पाकर
यह भोज नहाल हो जाये गा। मु
झे और कुछ नह चा हए .. कुछ भी नह ।"
अगलेदन ही भोजराज नेग रजा बु आ से और वीरमदे व जी से
घर जानेक आ ा माँ गी। ग रजा जी ने भतीजे का मु ख थोड़ा म लन
दे
ख पूछा तो भोजराज ने हँ
स कर बात टाल द । हालां क वेमेड़ता म
सबका स मान करते पर अब उनका यहाँ मन न लग रहा था।
भोजराज च ौड़ आ गये पर उनका मन अब यहाँ भी नह लगता
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था। न जानेय अब उ ह एका त य लगने लगा। एका त मलते ही
उनका मन याम कुज म प ँ च जाता। रोकते -रोकते भी वह उन बड़ी-
बड़ी झु क आँ ख , वण गौर वण, कपोल पर ठहरी अ ु बूद
ँ, सुघर
ना सका, उसम लगी हीरक क ल, कान म लटकती झू मर वह आकु ल
ाकुल , उस मधु र कं ठ- वर केच तन म खो जाता।
वेसोचते , "एक बार भी तो उसने आँ ख उठाकर नह दे खा मेरी
ओर। पर य दे खे ? या पड़ी है उसे ? उसका मन तो अपने अरा य
गरधर म लगा है । यह तो तू ही है
, जो अपना दय उनकेचरण म पु प
क तरह चढ़ा आया है , जहाँवीकृ त के कोई आसार भी नह और न ही
आशा।"
मे
ड़ता से गये पुरो हत जी केसाथ च ौड़ केराजपु रो हत और
उनक प नी मीरा को दे खने आये । राजमहल म उनका आ त य स कार
हो रहा है
। पर मीरा को तो जै सेवह सब द खकर भी दखाई नह दे रहा
है
। उसे न तो कोई च है न ही कोई आकषण।
सरेदन माँ सु दर व ाभू षण ले कर एक दासी के साथ मीरा के
पास आई। आ ह सेथ त समझातेये मीरा को सब पहनने को कहा।
मीरा नेबे
मन से कहा, "आज जी ठ क नह है , भाबू! रहनेद जये , कसी
और दन पहन लू ँ
गी।" माँख हो कर उठकर चली ग । तो मीरा ने
उदास मन से तानपुरा उठाया और गाने लगी -
राम नाम मे
रेमन ब सयो र सयो राम रझाऊँ
ए माय।
मीरा के भुगरधर नागर रज चरणन क पाऊँए माय॥
भजन व ाम कर वह उठ ही थी क माँ और काक सा केसाथ
च ौड़ के राजपुरो हत जी क प नी नेयाम कुज म वे श कया। मीरा
उनको यथायो य णाम कर बड़े संकोच के साथ एक ओर हटकर ठाकु र
जी को नहारती खड़ी हो गई। पु
रो हतानी जी नेतो ऐसे प क
क पना भी न क थी। वह, ल जा सेसकु चाई मीरा केस दय से
वमो हत सी हो गई और उनसेणाम का उ र, आशीवाद भी प प
से दे
ते न बना। वे कु
छ देर मीरा को एकटक नहारते ही बै
ठ रही।
दा सय ने आगे ब ढ़या चरणामृ त साद दया। कु छ समय और यू ँही
म मु ध बै
ठ फर काक सा के साथ चली गई।
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माँ ने सबके जानेके बाद फर मीरा से कहा, "तेरा या होगा, यह
आशं का ही मु झे मारेडालती है । अरेवनोद म कहेये भगवान से
ववाह करने क बात सेया जगत का वहार चले गा ? साधु-सं
ग नेतो
मेरी कोमलां गी बेट को बैरागन ही बना दया है । म अब कससे जा कर
बेट के सु ख क भ ा माँ गू ?"
"माँ आप य :खी होती ह ? सब अपने भा य का लखा ही पाते
ह। य द मे रे भा य म :ख लखा है तो या आप रो-रो कर उसे सुखम
पलट सकती ह ? तब जो हो रहा है उसी म सं
तोष मा नये । मु
झेएक बात
समझ म नह आती भाबू ! जो ज मा है वह मरे
गा ही, यह बात तो आप
अ छ तरह जानती ह। फर जब आपक पुी को अ वनाशी प त मला
हैतो आप य :ख मना रही ह ? आपक बे ट जैसी भा यशा लनी और
कौन है , जसका सु हाग अमर है ।"
वीरकु वंरी जी एक बार फर मीरा केतक केआगे चु
प हो चली
गई। मीरा याम कुज म अके ली रह गई। आजकल दा सय को भी
काम क श ा द जा रही हैय क उ ह भी मीरा केसाथ चतौड़
जाना है । मीरा नेएका त पा फर आत मन से ाथना आर भ
क ............
तु
म सुनो दयाल हाँ
री अरजी।
भवसागर म बही जात ँकाढ़ो तो थाँ री मरजी।
या संसार सगो नह कोई साँ च ा सगा रघुबर जी॥
मात पता अर कु टु
म कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा क भु अरजी सुण लो, चरण लगावो थाँ
री मरजी॥
मीरा याम कुज म एका त म गरधर केसम बै ठ है।
आजकल दो ही भाव उस पर बल होते है - या तो ठाकुर जी क
क णा का मरण कर उनसे वह कृ
पा क याचना करती है और या फर
अपने ही भाव-रा य म खो अपनेयामसु दर से बै
ठे बात करती रहती
है
। इस समय सरा भाव अ धक बल है । मीरा गोपाल से बै
ठेनहोरा
कर रही है-
थाँ
ने
काँ
ई काँ
ई कह समझाऊँ
, हाँ
रा सां
वरा गरधारी।

41
पू
रब जनम क ी त हाँ री, अब नह जात नवारी॥
सुदर बदन जोवताँ सजनी, ी त भई छेभारी।
हाँ
रेघराँपधारो गरधर, मं गल गाव नारी॥
मोती चौक पू राऊँ हाला, तन मन तो पर वारी।
हाँ
रो सगपण तो सू
ँसाँ
व रया, जग सू
ँनह वचारी॥
मीरा कहेगो पन को हालो, हम सूँभयो चारी।
चरण शरण हैदासी थाँ री, पलक न क जेयारी॥
मीरा गाते-गाते अपने भाव जगत म खो गई। वह सर पर छोट
सी कलशी लए यमु ना जल ले कर लौट रही है । उसकेतृ षत नेइधर-
उधर नहार कर अपना धन खोज रहे ह। वो यह कह ह गे , आयगे , नह
आयगे , बस इसी ऊहापोह म धीरे -धीरेचल रही थी क पीछे सेकसी ने
मटक उठा ली। उसने अचकचाकर ऊपर दे खा तो - कद ब पर एक हाथ
से डाल पकड़े और एक हाथ म कलशी लटकाये मनमोहन बै ठे हँ
स रहे
है। लाज केमारे उसक ठहर नह रही। ल जा नीचे और म े
उ सुकता ऊपर दे खने को ववश कर रही है । वे एकदम वृ से उसके
स मुख कू द पड़े । वह च ककर चीख पड़ी, और साथ ही उ ह दे ख लजा
गई।
"डर गई न ?" उ ह ने हँ
सतेए पू छा और हाथ पकड़ कर कहा -
"चल आ, थोड़ी दे र बैठकर बात कर।" सघन वृ तले एक शला पर
दोन बै ठ गये । मु कुरा कर बोले, "तुझेया लगा - कोई वानर कू द पड़ा है
या ? अभी पानी भरने का समय हैया ? दोपहर म पता नह घाट
नता त सू ने रहते ह। जो कोई सचमु च वानर आ जाता तो?"
म हो न।" उसकेमु
"तु ख सेनकला। "म या यहाँ ही बैठा ही
रहता ँ ? गईयाँ नह चरानी मु झे?"
"एक बात क ँ ?" मै
नेसर नीचा कए ये कहा। "एक नह सौ
कह, पर माथा तो ऊँ चा कर ! ते
रो मुख ही नाय दख रहो मोकू ।" उ ह ने
मुख ऊँ चा कया तो फर लाज ने आ घेरा। "अ छो-अ छो मु ख नीचो ही
रहने दे। कह, का बात है ?"
"तुह कै सेस कया जा सकता है ?" ब त क ठनाई से मने
कहा। "तो सखी ! तोहे म अ स द ख रहयो ँ ।" "नह , मे
रा वो मतलब
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नह था। सु ना है तुम म ेसे वश म होते हो।"
"मोको वश म करके या करे गी सखी ! नाथ डाले गी क पगहा
बाँधेगी ? मे
रे वश ये बना ते रो कहा काज अट यो है भला ?"
"सो नह यामसु दर !" "तो फर या ? कब से पू
छ रहो ँ । ते
रो
मोहढ (मु ख) तो पू रो खु ले नाय। एक बात पू री नाय नकसै । अब म
भोरो-भारो कै सेसमझू ग
ँो?"
नो यामसु
"सु दर ! 'मने आँख मू ँ
दकर पू रा ज़ोर लगाकर कह दया'
"मुझे तु हारेचरण म अनु राग चा हए।" "सो कहा होय सखी ?" उ ह ने
अ जान बनतेये पूछा। अपनी ववशता पर मे री आँ ख म आँ सू भर
आये । घुटन म सर दे म रो पड़ी।
"सखी, रोवै म त।" उ ह ने मेरेआँ सूप छतेये पूछा -"और ऐसो
अनु राग कै सो होवे री ?" "सब कहते ह, उसम अपने सुख क आशा-इ छा
नह होती।" "तो और कहा होय ?" यामसु दर ने पूछा। "बस तु हारेसुख
क इ छा।" "और कहा अब तू मोकू:ख दे रही है ?" ऐसा कह हँसतेये
मेरी मटक लौटातेये बोले , "ले अपनी कलशी ! बावरी कह क !" और
वह वन क ओर दौड़ गये । म वह सर पर मटक ठगी सी बै ठ रही।
ववाह केउ सव घर म होने लगे - हर तरफ कोलाहल सु नाई देता
था। मे ड़ते म हष समाता ही न था। मीरा तो जै सी थी, वै
सी ही रही।
ववाह क तै यारी म मीरा को पीठ (ह द ) चढ़ । उसके साथ ही दा सयाँ
गरधरलाल को भी पीठ करने और गीत गाने लगी।
मीरा को कसी भी बात का कोई उ साह नह था। कसी भी री त
- रवाज केलए उसेयाम कुज से ख च कर लाना पड़ता था। जो करा
लो, सो कर दे ती। न कराओ तो गरधर लाल केवागे (पोशाक), मुकुट,
आभू षण सं वारती, याम कुज म अपनेन य केकाय म म लगी
रहती। खाना पीना, पहनना उसे कुछ भी नह सु हाता। याम कुज
अथवा अपने क का ार बं द करके वह पड़ी-पड़ी रोती रहती।
मीरा का वरह बढ़ता जा रहा है । उसकेवरह केपद जो भी
सुनता, रोयेबना न रहता। क तु सुनने का, दे
खने का समय ही कसके
पास है ? सब कह रहे हैक मे ड़ता केतो भाग जगे ह क ह आ सू रज
का यु वराज इस ार पर तोरण व दन करने आये गा। उसकेवागत म ही

43
सब बावलेयेजा रहेह। कौन दे
ख-े
सु
ने क मीरा या कह रही है
?
वह आ मह या क बात सोचती -
लेकटारी कं
ठ ची ँकर लऊँम अपघात।
आवण आवण हो र ा रे
नह आवण क बात॥
क तुआशा मरने नह दे ती। जया भी तो नह जाता, घड़ी भर
भी चैन नह था। मीरा अपनी दा सय -स खय से पू
छती क कोई सं त
भु का सं
देशा ले
कर आये ह ? उसक आँ ख सदा भरी-भरी रहत । मीरा
का वरह बढ़ता जा रहा है
। उसकेवरह के पद जो भी सु
नता, रोयेबना
न रहता।
कोई क हयो रेभु
आवन क , आवन क मनभावन क ॥
आप न आवै लख नह भेज,ेबान पड़ी ललचावन क ।
ऐ दोऊ नै
ण क ो नह मानै
, न दया बहैजै
सेसावन क ॥
कहा क ँकछुबस न ह मेरो, पाँ
ख नह उड़ जावन क ।
मीरा के भुकबरेमलोगे , चेरी भई ते
रेदाँ
वन क ॥
कोई क हयो रेभु
आवन क , आवन क मनभावन क ॥
मीरा का वरह बढ़ता जा रहा था। इधर महल म, र नवास म जो
भी री त रवाज चल रहे थे, उन पर भी उसका कोई वश नह था। मीरा
को एक घड़ी भी चै न नह था। ऐसे म न तो उसका ढं
ग सेकुछ खानेको
मन होता और न ही कसी ओर काय म च। सारा दन ती ा म ही
नकल जाता। शायद ठाकु र कसी सं त को अपना संदे
श देभे
ज या कोई
संके
त कर मु झेकुछ आ ा द, और रा कसी घायल क तरह रो-रो कर
नकलती। ऐसे म जो भी गीत मुख रत होता वह वरह केभाव सेस
होता।
घड़ी एक नह आवड़ेतु म दरसण बन मोय।
जो म ऐसी जाणती रे ी त कयाँ ख होय।
नगर ढढोरा फेरती रे ी त न क जो कोय।
पं
थ नहा ँ डगर बु हा ँऊभी मारग जोय।
मीरा के भु
कबरेमलोगा तु
म म लयाँ
सु
ख होय।
(ऊभी अथात कसी थान पर क कर ती ा करनी)
44
कभी मीरा अ त था से ाकु ल होकर अपनेाणधन को प
लखने बै
ठती। कौवेसे कहती- "तूलेजाये
गा मे
री पाती, ठहर म लखती

।" क तु एक अ र भी लख नह पाती। आँ ख से आँ सु क झड़ी
कागज को भगो दे ती -
प तयांम कै सेलखू ँलखी ही न जाई॥
कलम धरत मे रो कर काँ पत हय न धीर धराई॥
मु
ख सो मो ह बात न आवै नै
न रहेझराई॥
कौन वध चरण ग ँम सब ह अं ग थराई॥
मीरा के भुआन मल तो सब ही ख बसराई॥

मीरा दन पर दन बली होती जा रही थी। दे ह का वण फ का हो


गया, मान हमदाह से मुरझाई कु मुदनी हो। वीरकुवंरी जी नेपता
रतन सह को बताया तो उ ह ने वैको भे जा। वैजी ने नरी ण करके
बताया - "बाईसा को कोई रोग नह , केवल बलता है ।" वैजी गये तो
मीरा मन ही मन म कहने लगी - "यह वैतो अनाड़ी है , इसको मे
रे
रोग
का मम या समझ म आये गा।" मीरा नेइकतारा लया और अपनेदय
क सारी पीड़ा इस पद म उड़े लद -
ऐ री म तो म े द वानी, मे
रो दरद न जाणे कोय।
सू
ली ऊपर से ज हमारी, सोवण कस वध होय।
गगन मँडल पर से
ज पया क , कस वध मलना होय॥
घायल क ग त घायल जाणे , जो कोई घायल होय।
जौहर क ग त जौहरी जाणे , और न जाणे कोय॥
दरद क मारी बन बन डोलू ँ
, वै
द म या नह कोय।
मीरा क भुपीर मटैजब, वै द साँ
व रया होय॥
मीरा याम कुज म अपनेगरधर केसम बै ठ उह अ ुस
नेसेनहोरा कर रही थी।
"बाईसा ! बाईसा कम !" के
सर दौड़ी ई आयी। उसका मु ख
स ता सेखला आ था। "बाईसा ज ह ने आपको गरधरलाल ब शे
थेन, वे सं
त नगर म दर म पधारे ह।" एक ही सां
स म के
सर ने
सब

45
बतलाया। "ठाकु र ने बड़ी कृ पा क जो इस समय सं त दशन का सु योग
बनाया।" मीरा नेस तापू वक कहा। "जा के सर उ ह राजम दर म बु ला
ला ! म तेरा अहसान मानू ग
ँी।"
"अहसान या बाईसा कम ! म तो आपक चरण रज ँ । म तो
अपने घर से आ रही थी तो वे मु
झे रा तेम मले , उ ह ने मु
झसे सब बात
कहकर यह साद तु लसी द और कहा क मु झे एक बार मे रेठाकुर जी
केदशन करा दो। अपने ठाकुर जी का नाम ले तेही उनक आँ ख से
आँ सू बहने लगे
। बाईसा ! उनका नाम भी गरधरदास है ।" मीरा शी ता से
उठकर महल म भाई जयमल केपास गई और उनसे सारी बात कही।
"उन सं त को आप कृ पया कर याम कुज ले पधा रये भाई।"
"जीजा ! कसी को ात आ तो गजब हो जाये गा। आजकल तो
राजपु रो हत जी नगर केम दर से ही आने वाले संतो का स कार कर
वदा कर दे ते
ह। सब कहते ह, इन सं त बाबा ने ही मीरा को बगाड़ा
है।" " ँ आप रे पगाँ पड भाई ! मीरा रो पड़ी।" भगवान आपरो भलो
करे ला।"
"आप पधारो जीजा ! म उ ह ले कर आता ँ । क तुकसी को
ात न हो। पर जीजा, मने तो सुना हैक आप जीमण (खाना) नह
आरोगती, आभू षण नह धारण नह करती। ऐसे म म अगर साधु ले
आऊँऔर आप गाने -रोनेलग गई तो सब मु झ पर ही बरस पड़े ग।" "नह
भाई ! म अभी जाकर अ छे व आभू षण पहन ले ती ँ। और गरधर का
साद भी रखा है । संत को जीमा कर म भी पा लू ँ
गी। और आप जो भी
कह, म करने को तैयार ँ।"
"और कु छ नह जीजा ! बस ववाह केसब री त रवाज सहज से
कर ली जएगा। आपको पता है जीजा आपकेकसी हठ क वजह से
बात यु तक भी प ँ च सकती है । आपका ववाह और वदाई सब
न व न हो जाये - इसक च ता महल म सबको हो रही है ।" "बहन-बेट
इतनी भारी होती है भाई ? मीरा ने भरे मन से कहा।" "नह जीजा !"
जयमल के वल इतना ही बोल पाये ।
"आप उन सं त को ले आईये भाई ! म वचन दे ती ँक ऐसा कु छ
न क ँ गी, जससेमे री मातृ भूम पर कोई सं कट आयेअथवा मे रे

46
प रजन का मु ख नीचा हो। आप सबक स ता पर मीरा यौछावर है ।
बस अब तो आप सं त दशन करा द जये भाई !"
गरधरदास जी ने जब याम कुज म वे श कया तो वहाँ का
य देखकर वेच वत रह गये । चार वष क मीरा अब प ह वष क
होनेवाली थी। सु दर व आभू षण से स जत उसका प खल उठा
था। सु दर साड़ी केअ दर काले के श क मोट ना गन सी चोट लटक
रही थी। अधर पर मु कान और म ेमद से छकेनयन म वल ण ते ज
था। याम कुज दे वागं
ना जैसे उसके प सेभा सत था। गरधर दास
उसे दे
खकर ठाकु र जी के दशन करना भू ल गये ।
संत को णाम करने जैसे ही मीरा आगे बढ़ , उसकेनू परु क
झंकार से वेसचे त ये । वर प म सजेगरधर गोपाल के दशन कर उ ह
लगा - मान वह वृ दावन क कसी नभृ त नकुज म आ खड़ेये ह।
उ ह देखकर जै से एकाएक याम सु दर ने मूत का प धारण कर लया
और कोई जव नता अचकचाकर वै सेही खड़ी रह गई हो। उनक
आँ ख म आँ सू भर आये । याम कुज का वै भव और उस द ां गना मे
पु
जा रन को दे ख कर उ ह ने ठाकु र जी से कहा -"इस रमते साधु केपास
सूखेटकड़ और म ेहीन दयक से वा ही तो मलती थी तु ह ! अब यहाँ
आपका सु ख दे खकर जी सु खी आ। क तु लालजी ! इस म ेवै भव म
इस दास को भु ला मत देना।"
अपनेगरधर के , दय नेभर दशन कर ले ने केप ात बाबा
व -खं ड से आँसू प छतेये बोले ट ! तु
, "बे हारी मेसे वा देख मन
गदगद आ। म तो भु केआदे श सेा रका जा रहा ँ । य द कभी
ा रका आओगी तो भट होगी अ यथा ...। लालजी केदशन क
अ भलाषा थी, सो मन तृ त आ।"
" गरधर गोपाल क बड़ी कृ पा हैमहाराज ! आशीवाद द जयेक
सदा ऐसी ही कृ पा बनाए रख। ये मुझेमले या न मले , म इनसेमली
र ँ
। आप बराजे महाराज !" उसने के सर सेसाद लाने को कहा और
वयं तानपु रा ले
कर गाने लगी -

साँ
वरा................... , साँ
वरा, हाँ
री ीत नभा यो जी।
मीरा ने सदा क तरह गीत केमा यम से अपने भाव गरधर के
47
सम तु
त कये
...
साँ
वरा ............, साँ
वरा हाँ
री ीत नभा यो जी।
थ छो हाँ रा गु ण रा सागर, औगण हाँ रा म त जा यो जी।
लोकन धीजैहाँ रो मन न पतीजै, मु
खड़ा रा सबद सु णा यो जी॥
ह तो दासी जनम जनम क , हाँ रेआँ गण रमता आ यो जी।
मीरा के भु गरधर नागर, बे
ड़ ा पार लगाजयो जी॥
भजन क मधु रता और म ेभरे भाव सेगरधरदास जी त मय
हो गये। कु छ दे र बाद आँ ख खोलकर उ ह ने सजल ने से मीरा क ओर
देखा। उसकेसर पर हाथ रखकर अ त थल से मौन आशीवाद दया।
केसर ारा लाया गया साद हण कया और चलने को तु त ये ।
जाने से पहले एक बार फर मन भर कर अपने ठाकु र जी क छ व को
अपने ने म भर लया। णाम करकेवे बाहर आये । मीरा ने झु
ककर
उनके चरण म म तक रखा तो दो बू दँअ ु सं
त के ने सेनकल उसके
म तक पर टपक पड़े ।
"अहा ! सं त केदशन और स सं ग सेकतनी शां त -सु ख मलता
है? यह म इन लोग को कै से समझाऊँ ? वे कहते हैक हम भी तो
वचन सु नते ही है पर हम तो कथा म रोना-हँ सना कु छ भी नह आता।
अरे, कभी खाली होकर बै ठ, तब तो कु छ दय म भीतर जाय। बड़ी कृ पा
क भु ! जो आपने संत दशन कराये । और जो हो, सो हो, जीवन जस
भी दशा म मु ड़े, बस आप अपने यजन - नजजन -सं त- े मय का
संग दे
ना भु !
उनकेअनु भव, उनकेमु ख से झरती तु हारे प, गु ण, माधुरी क
चचा ाण म फर से जीनेका उ साह भर दे ती है, ाण म नई तरं गक
ह लोर उठा दे ती है । जगत केताप से त त मन- ाण तु हारी कथा से
शीतल हो जाते है। "म तो तुहारी ँ। तुम जैसा चाहो, वै से ही रखो। बस
मैन तो अपनी अ भलाषा आपके चरण म अपण कर द है ।"
अ य तृ तीया का भात। ातःकाल मीरा पलं ग से सोकर उठ
तो दा सयाँ च कत रह गई। उ ह ने दौड़ कर माँ वीरकु वंरी जी और पता
र न सह जी को सू चना द । उ ह ने आकर दे खा क मीरा ववाह के


गार से सजी है ।
48
बाह म खाँ च ो समे त दाँ त का चंदरबायी का चू ड़ला है, ( ववाह के
समय वर केयहाँ से वधू को पहनाने केलए वशे ष सोने केपानी से
च कारी कया गया चू ड़ ा जो कोहनी से ऊपर (खाँ च) तक पहना जाता
है
)। गले म तम य , (ससु राल से आने वाला गले का मंगल आभू षण),
नाक म नथ, सर पर रखड़ी ( शरोभू षण), हाथ म रची महद , दा हने
हथे ली म ह त मलाप का च और साड़ी केप लूम पीता बर का
गठबं धन, चोट म गू थ
ँे फूल, क म फै ली द सु ग ध, मान मीरा पलं ग
से नह ववाह के म डप से उठ रही हो।
"यह या मीरा ! बारात तो आज आये गी न ?" र न सह राणावत
जी ने हड़बड़ाकर पू छा।"
"आप सबको मु झेयाहने क ब त रीझ थी न, आज पछली रात
मेरा ववाह हो गया।" मीरा नेसर नीचा कए पाँ व केअगू ठ
ँे से धरा पर
रे
ख ख चतेये कहा - " भु ने कृपा कर मझे अपना लया भाभा कम !
मेरा हाथ थामकर उ ह ने मुझे भवसागर से पार कर दया।" कहते -कहते
उसक आँ ख से हष के आँ सूनकल पड़े ।
"येगहने तो अमूय ह मीरा ! कहाँ से आये ?" माँ ने घबरा कर
पूछा। "पड़ले (वर प से आने वाली साम ी या वरी) म आये है भाबू!
ब त सी पोशाक, ृ ं
गार, मे वा और साम ी भी है । वे सब इधर रखे है

आप दे खकर सँ भाल ले भाबू !" मीरा नेलजातेये धीरे
-धीरेकहा।
पोशाक आभू षण दे ख सबक आँ ख फै ल ग । जरी केव पर
हीरे-जवाहरत का जो काम कया गया था, वह अं धेरेम भी चमचमा रहा
था। वीरमदे व जी ने भी सु ना तो वह भाईय केसाथ आये । उ ह ने सब
कुछ दे खा, समझा और आ य च कत ये । वीरमदे व जी मीरा के
आलौ कक म ेऔर उसकेअटू ट व ास को समझ कर मन ही मन
वचार करने लगे -" य ववाह करकेहम अपनी सु कुमार बे ट को :ख
देरहे ह ? क तु अब तो घ ड़याँ घट रही ह। कुछ भी बस म नह रहा अब
तो।" वे न ास छोड़ बाहर चले गये ।
मीरा याम कुज म जाकर न य क ठाकु र सेवा म लग गई। माँ
ने लाड़ लड़ातेये समझाया -"बे ट ! आज तो ते रा ववाह है । चलकर
स खय , का कय भौजाईय के बीच बैठ ! खाओ, खे लो, आज यह भजन

49
जन रहने
-पू दे
।"
"भाबू! म अपनेको अ छेलगनेवाला ही काम तो कर रही ँ ।
सबको एक से खे
ल नह अ छे लगते
। आज यह पड़ला और मे री हथे
ली
का च देखकर भी आपको व ास नह आ तो सु नए ........
माई हाँ नेसु पना म पर या गोपाल।
राती पीली चूनर औढ़ महद हाथ रसाल॥
काँई कराँऔर सं ग भावँ
र हाँ
नेजग जंजाल।
मीरा भुगरधर लाल सू ँकरी सगाई हाल॥
(पर या -प रणय अथात ववाह।)
ने
"तू तो मुझे कह दया जग जं जाल है पर बेटा तुझे पता हैक
तेरी त नक-सी ना कतना अनथ कर दगी मे ड़ता म ? तलवार यान से
बाहर नकल आयगी।" माँ नेच तत हो कहा। "आप च ता न कर, माँ !
जब भी कोई री त करनी हो मु झे बु
ला ली जएगा, म आ जाऊँ गी।"
"वाह, मेरी लाड़ली ! तू
नेतो मेरा सब :ख ही हर लया।" कहती
ई स मन से माँझाली जी चली गई।
भोजराज ने ग भीर मीठेवर म मीरा से कहा, "आप च ता न
कर। जगत और जीवन म मु झे आप सदा अपनी ढाल पायगी।" थोड़ा
हँसकर वे पुनः बोले, "यह मु

ह दखाई का ने ग, इसेकहाँ रखू ँ
?" उ ह ने
खीसे म सेहार नकालकर हाथ म ले तेये कहा।
मीरा नेहाथ से झरोखे क ओर सं केत कया। और सोचने लगी -
"एक लग (भगवान शव जो च ौड़गढ़ म इ दे व है ।) केसे वक पर
अ व ास का कोई कारण तो नह दखाई दे ता पर मेरेर क कह चले
तो नह गये है
।" मीरा नेआँ चल केनीचे सेगोपाल को नकालकर उसी
झरोखे म वराजमान कर दया।
" कम हो तो चाकर भी इनक चरण व दना कर ले !" भोजराज ने
कहा। मीरा ने मु कुरा कर वीकृ त म माथा हलाया। "एक लग नाथ ने
बड़ी कृ पा क । च ौड़ के महल भी आपक चरणरज से प व ह गे । शै

( शव भ ) ससौ दया भी वै णव के संग सेप व ता का पाठ सीखगे ।"
उ ह ने वह हार गरधर गोपाल को धारण करा दया। "आपने मु
झे सेवा
का अवसर दान कया भु ! म कृताथ आ। इस अ न परी ा म साथ
50
देना, मेरेवचन और अपने धन क र ा करना मे रेवामी !" फर मीरा क
ओर मु कुरातेये बोले, "यह घू ँ
घट ?" मीरा ने मु कुरा कर घूँ
घट उठा
दया। वह अतु ल परा श दे खकर भोजराज च कत रह गये , पर उ ह ने
पलक झु का ली।
ातः कु
ंवर कले वा पर पधारे तो य ने हँसी मजाक म क
बौछार कर द । भोजराज ने धैय से सब का उ र दया। र न सह
(भोजराज केछोटे भाई) ने भोजराज और मीरा केबीच गरधर को बै ठा
देखा तो धीरे से पू
छा, "यह या टोटका है ?" "टोटका नह , यह तु हारी
भाभीसा केभगवान ह।" भोजराज ने हँ स कर कहा। "भगवान तो म दर
म रहते ह। यहाँय ?"
"ब द ( हा) है तो ब दनी केपास ही तो बै ठगे न ! भोजराज
मु कु राये। र न सह हँ स पड़े , "पर भाई ब द आप ह क ये ?" "ब द तो
यही ह। म तो टोटका ँ । धीरे-धीरेतुम समझ जाओगे ।" भोजराज ने धैय
से कहा। " य भाभीसा ! दादोसा या फरमा रहे है ?" र न सह ने मीरा से
पूछा तो उसनेवीकृ त म सर हला दया।
वदाई का दन भी आ गया। माँ , काक ने नारी धम क श ा द ।
पता बे ट केगले लग रो पड़े । वीरमदे व जी मीरा केसर पर हाथ रख
बोले , "तुम वयं समझदार हो, पतृ और प त दोन कु ल का स मान बढ़े ,
बेटा वै सा वहार करना।" फर भोजराज क तरफ हाथ जोड़ वीरमदे व
जी बोले , "हमारी बे
ट म कोई अवगु ण नह है , पर भ के आवे श म इसे
कुछ नह सू झता। इसक भलाई बु राई, इसक लाज आपक लाज है ।
आप सब सं भाल ली जएगा।" भोजराज ने उ ह आँ ख से ही आ ासन
दया।
उसी समय रोती ई माँ मीरा केपास आई और बोली, "बे ट ते रे
दाता कम (वीरमदे व जी) ने दहे
ज म कोई कसर नह रखी पर लाडो,
कुछ और चा हए तो बोल ..."। मीरा ने कहा............
दैरी अब हाँ
को गरधरलाल।
यारेचरण क आन कर त हाँऔर न दे
म ण लाल॥
नातो सगो प रवारो सारो हाँ नेलागेकाल।
मीरा के भुगरधर नागर छ व ल ख भई नहाल॥

51
माँनेमीरा सेजब पू छा क बे ट मायकेसे कुछ और चा हए तो
बता - तो मीरा नेकहा, "बस माँ मेरे ठाकुर जी दे दो। मु
झेऔर कसी भी
व तु क इ छा नह है ।" "ठाकु र जी को भले ही ले जा बे
टा, पर उनके
पीछे पगली होकर अपना कत न भू ल जाना। दे ख, इतनेगुणवान और
भ प त मले ह। सदा उनक आ ा म रहकर ससु राल म सबक से वा
करना" माँ नेकहा।
बहन नेमल कर मीरा को पालक म बठाया। मं गला ने
सहासन स हत गरधरलाल को उसकेहाथ म देदया। दहे ज क
बेशुमार साम ी केसाथ ठाकु र जी क भी पोशाक और ृ ं
गार सब से वा
का ताम-झाम भी साथ चला। व ाभू षण से लद एक सौ एक दा सयाँ
साथ गई।
बड़ी धूमधाम से बारात च ौड़ प ँ च ी। राजपथ क शोभा दे खते
ही बनती थी। वा क मं गल व न म मीरा ने महल म वे श कया। सब
री त- रवाज सु दर ढंग से सहष स प ये
। दे र स धया गये मीरा को
उसकेमहल म प ँ च ाया गया। मथु ला, च पा क सहायता से उसने
गरधरलाल को एक क म पधराया। भोग, आरती करकेशयन से पू

वह ठाकु र केलए गाने लगी..........
होता जाजो राज हाँ रे
महलाँ, होता जाजो राज।
म औगु णी मे
रा सा हब सौ गु
णा, सं
त सँवारेकाज।
मीरा के भुम दर पधारो, करके केस रया साज।
मीरा केमधुर क ठ क मठास स पू ण क म घु ल गई।
भोजराज ने शयन क म साफा उतारकर रखा ही था क मधुर रा गनी ने
कान को पश कया। वे अ भम त नाग से उस ओर चल दये । वहाँ
प ँ
चकर उनक आँ ख मीरा केमुख-कंज क मर हो अटक । भजन
पू
रा आ तो उ ह चेत आया। भु को र सेणाम कर वह लौट आये ।
अगलेदन मीरा क मु ँ
ह दखाई और कई र म । पर मीरा
सु
बह से ही अपनेठाकुर जी क रागसे
वा म लग जाती। अव य ही अब
इसम भोजराज क प रचया एवं समय पर सासु क चरण-व दना भी
समा हत हो गई। नई हन केगाने क चचा महल सेनकल कर
महाराणा केपास प ँच ी। उनक छोट सास कमावती ने महाराणा से
52
कहा, "य तो बीणनी से गाने को कहे तो कहती है मु
झे नह आता और
उस पीतल क मू त के सम बाबा क तरह गाती है ।"
"महाराणा ने कहा, "वह हम नह तीन लोक के वामी को
रझाने केलए नाचती-गाती है । मने सु
ना हैक जब वह गाती है , तब
आँख से सहज ही आँ सू बहने लगतेह। जी चाहता है , ऐसी म ेमूत के
दशन म भी कर पाता।"
"हम ब त भा यशाली ह जो हम ऐसी ब ा त ई। पर अगर
ऐसी भ ही करनी थी तो फर ववाह य कया ? ब भ करे गी तो
महाराज कु मार का या ?"
वराज चाह तो एक या दस ववाह कर सकते
"यु ह। उ ह या
प नय क कमी है ? पर इस सु ख म या धरा है ? य द कु मार म थोड़ी
सी भी बु होगी तो वह बीनणी सेश ा ले अपना जीवन सु धार लगे।
मीरा को च ौड़ म आये कुछ मास बीत गये । गरधर क रागसे वा
नय मत चल रही है । मीरा अपने क म बै ठेगरधरलाल क पोशाक पर
मोती टाँक रही थी। कुछ ही री पर मसनद के सहारे भोजराज बै ठेथे।
ना है
"सु आपने योग क श ा ली है । ान और भ दोन ही
आपकेलए सहज है । य द थोड़ी-ब त श ा से वक भी ा त हो तो यह
जीवन सफल हो जाये ।" भोजराज ने मीरा सेकहा।
ऐसा सु नकर मु कुरा कर भोजराज क तरफ दे खती ई मीरा
बोली, "यह या फरमाते ह आप ? चाकर तो म ँ । भु ने कृपा क क
आप मले । कोई सरा होता तो अब तक मीरा क चता क राख भी
नह रहती। चाकर आप और म, दोन ही गरधरलाल के ह।"
"भ और योग म से कौन ेहै ?" भोजराज ने पूछा। "देखये ,
दोन ही अ या म केवत माग ह। पर मु झे योग म यान लगा कर
परमान द ा त करने से अ धक चकर अपनेाण-सखा क से वा
लगी।" "तो या भ म, से वा म योग से अ धक आन द है ?" "यह तो
अपनी च क बात है , अ यथा सभी भ ही होते सं
सार म। योगी ढू ँ
ढे
भी न मलते कह ।"
झे
"मु एक बात अज करनी थी आपसे " मीरा नेकहा। "एक य ,
दस क हये । भोजराज बोले । "आप जगत- वहार और वं श चलाने के

53
लए सरा ववाह कर ली जए।" "बात तो सच है आपक , क तु सभी
लोग सब काम नह कर सकते । उस दन याम कुज म ही मे री इ छा
आपके चरण क चे री बन गई थी। आप छो ड़ए इन बात म या रखा है ?
य द इनम थोड़ा भी दम होता तो ............ "। बात अधू री छोड़ कर वे
मीरा क ओर दे ख मु कु राये
। " प और यौवन का यह क पवृ च ौड़
केराजकु वं
र को छोड़कर इस मू त पर यौछावर नह होता और भोज
श और इ छा का दमन कर इन चरण का चाकर बनने म अपना
गौरव नह मानता। जाने द जये - आप तो मे रेक याण का सो चए। लोग
कहते ह - ई र नगु ण नराकार है । इन थू ल आँ ख से नह दे खा जा
सकता, मा अनु भव कया जा सकता है । सच या है , समझ नह
पाया।"
"वह नगुण नराकार भी है और सगु ण साकार भी।" मीरा ने
ग भीर वर म कहा -" नगु ण प म वह आकाश, काश क भां त है जो
चेतन प से सृ म ा त है । वह सदा एकरस है । उसे अनु भव तो कर
सकते ह, पर दे
ख नह सकते । और ई र सगु ण साकार भी है । यह मा

ेसे बस म होता है , और तुभी होता है । दय क पु कार भी
सुनता है और दशन भी दे ता है।" मीरा को एकाएक कहते -कहते रोमां

आ।
यह देख भोजराज थोड़े च कत ए। उ होने कहा, "भगवान के
ब त नाम - प सु ने जाते ह। नाम - प केइस ववरण म मनु य
भटक नह जाता?"
"भटकने वाल को बहान क कमी नह रहती। भटकाव से बचना
हो तो सीधा उपाय हैक जो नाम - प वयं को अ छा लगे , उसे पकड़
ले और छोड़े नह । सरे नाम- प को भी स मान द। य क सभी थ ं,
सभी स दाय उस एक ई र तक ही प ँ चने का पथ सु झाते ह। मन म
अगर ढ़ व ास हो तो उपासना फल दे ती है
।"
अ य त वन ता से भोजराज मीरा से भगवान केसगु ण साकार
व प क ा त केलए ज ासा कर रहे है। वह बोले , "तो आप कह
रही ह क भगवान उपासना सेा त होते ह। वह कै से ? म समझा नह ?"
"उपासना मन क शु का साधन है । संसार म जतने भी नयम ह ;

54
संयम, धम, त, दान-सब केसब ज म ज मा तर से मन पर जम ये
मै
ले सं कार को धोने केउपाय मा ह। एकबार वे धु
ल जाय तो फर
भगवान तो सामने वैसे ही है जै सेदपण केव छ होते ही अपना मु ख
उसम दखने लगता है ।" मीरा नेने ह से कहा, "दे खए, भगवान को कह
सेआना थोड़े ही हैजो उ ह वल ब हो। भगवान न उपासना के वश म ह
और न दान धम के । वे तो कृपा-सा य ह, म े-सा य ह। बस उ ह अपना
समझ कर उनकेस मु ख दय खोल द। अगर हम उनसे कोई लुकाव-
छपाव न कर तो भगवान से अ धक नकट कोई भी हमारे पास नह और
य द यह नह है तो उनक री क कोई सीमा भी नह ।"
"पर मनु य केपास अपनी इ य को छोड़ अनु भव का कोई
अ य उपाय तो है नह , फर जसे दे
खा नह , जाना नह , वहार म बरता
नह , उससेम ेकै से स भव है ?"
"हमारे पास एक इ य ऐसी है , जसके ारा भगवान दय म
साकार होते है
। और वह इ य है कान। बार बार उनके प-गु ण का
वणन वण करने सेव ास होता है और वेहय म का शत हो उठते
है
। व ह क पू जा-भोग-राग करकेहम अपनी साधना म उ साह बढ़ा
सकते है।" "पर बना दे खेतीक ( व ह) कै सेबने गा ? या आपने कभी
सा ात दशन कए ?"
सु नकर मीरा क आँ ख भर आई और गला ँ ध गया। घड़ी
भर म अपने को सं भाल कर बोली -"अब आपसेया छपाऊँ ?य प
यह बात कहने -सुनने क नह होती। मन से तो वह प पलक झपकने
जतने समय भी ओझल नह होता, क तु अ य तृ तीया के भात से पू

मु
झेव आया क भु मेरेब द ( हा) बनकर पधारे ह, और दे वता,
ा रका वासी बारात म आये । दोन ओर चं वर डुलाये जा रहेथे। वे
सुस जत े त अ पर जसकेके वल कान काले थे, पर वराजमान थे ।
य प मने आपकेराजकरण अ केसमान शु भल ण और सु दर अ
नह दे खा तथा आपकेसमान कोई सु दर नर नह दखाई दया
पर.......पर....... उस प केस मु ख ......कुछ भी नह ।" मीरा बोलते
बोलते क गई। उनक आँ ख कृण प माधु री केमरण म थर हो
गई और दे ह जै से कँ
पकँ पा उठ ।
भोजराज मीरा का ऐसा म ेभाव दे ख त ध रह गये । उ ह ने
55
वयंका भाव समे ट कर शी ता सेमथु ला को मीरा को सं भालने केलए
पुकारा।
मीरा भु का ब द व प मरण करते करते भाव म नम न हो
गई। मथु ला ने जल पा मु ख से लगाया तो वह सचे त । " फर ? आप
बता रही थ क भु अ य तृ तीया को ब द बनकर पधारे थे.......।"
भोजराज ने पूछा। मीरा नेक चत लजातेये कहा, "जी कम ! मे रा
और भु का ह त- मलाप आ। उनकेपीता बर से मे
री साड़ी क गाँ ठ
बाँ
धी गयी। भाँ वरो म, म उनके अ ण मृल चा चरण पर लगाये
उनका अनु सरण कर रही थी। हम महल म प ँ च ाया गया। यह....... यह
हीरे
कहार ...।" 'उसने एक हाथ से अपने गले म पड़े हीरे केहार को
दखाया' "यह भु नेमुझे पहनाया और मे रा घू ँ
घट ऊपर उठा दया।"
"यह....... यह वह नह है , जो मने नजर कया था ?" भोजराज ने
सावधान होकर पु छा। "वह तो गरधर गोपाल के गले म है।" मीरा ने कहा
और हार म लटकता च दखाया -"यह, इसम भु का च है ।" "म दे ख
सकता ँ इसे ?" भोजराज च कत हो उठे । "अव य !" मीरा ने हार खोल
कर भोजराज क हथे ली पर रख दया। भोजराज ने ा से देखा, सर
से लगाया और वा पस लौटा दया।" आगेया आ ?" उ ह नेज ासा
क।
"म भु केचरण पश को जै से ही झु क -उ ह ने मु
झे बाँह म भर
उठा लया।" मीरा क आँ ख आन द से मुं
द ग । वाणी अव होने
लगी।......"हा हाँ रा सर..... सव व ..... ँ ......थारी चेरी (दासी)।"
मीरा क अपा थव से आन द अ ु बन ढलकने लगा। ऐसा
लगा जै से आँ सू-मोती क ल ड़या बनकर टू ट कर झड़ रहे हो। उसेवयं
क सु ध न रही। भोजराज को मन आ उठकर जल पला द पर अपनी
ववशता मरण कर बै ठे रहे । कुछ ण के प ात जब मीरा ने नमी लत
खोली तो क चत सं कु चत होतेए बोली, "म तो बाँ वरी ँ , कोई
अशोभनीय बात तो नह कह द ।"
"नह ! नह ! आप ठाकु र जी सेववाह क बात बता रही थी क
क म पधारने पर आपनेणाम कया और.......।" "जी।" मीरा जै से
खोये सेवर म बोली - "वह मे रे समीप थे , वह सु ग धत ास, वह दे ह

56
ग ध, इतना आन द म कै सेसंभाल पाती ! ातःकाल सबने दे
खा, वह
गँठजोड़ा, हथले वे का च ह, गहने , व , चू ड़ ा। च ौड़ से आया चू ड़ ा तो
मने पहना ही नह - गहने , व सब य केय रखे ह।" " या म वहाँ से
आया पड़ला दे ख सकता ँ ?" भोजराज बोले ।" "अभी मं गवाती ँ ।"
मीरा नेमंगला और मथु ला को पु कारा। " मथु ला, थूँ
जो ा रका शू ँ
आयो
पड़ला कणी पे ट म है ? और च ौड़ शू ँ
पड़ला वा ऊँ चा ला दोन तो
मंगला।"
द न पे टयाँ आयी तो दा सय ने दोन क साम ी खोलकर अलग
-अलग रख द । आ य से भोजराज ने देखा। सब कु छ एक सा था।
गनती, रंग पर फर भी च ौड़ केमहाराणा का सारा वै भव ा रका से
आये पड़ले केसम तु छ था। ा पूवक भोजराज ने सबको छु आ,
णाम कया। सब यथा थान पर रख दा सयाँ चली गई तो भोजराज ने
उठकर मीरा केचरण म माथा धर दया। "अरे यह, यह या कर रहे ह
आप ?" मीरा ने च ककर कहा और पाँ व पीछे हटा लए। "अब आप ही
मेरी गुह, मु झ म तहीन को पथ सु झाकर ठौर- ठकाने प ँच ा दे
ने क
कृपा कर।" गदगद क ठ से वह ठ क से बोल नह पा रहे थे, उनकेने
से अ ु क बू द
ँे मीरा के अमल धवल चरण का अ भषे क कर रहे थे ।
भोजराज सजल ने से अ तशय भावु क एवंवन हो मीरा के
चरण म ही बै ठे उनसे माग दशन क ाथना करने लगे। मीरा का हाथ
सहज ही भोजराज के माथे पर चला गया - "आप उठकर वरा जये । भु
क अपार साम य है । शरणागत क लाज उ ह ही है । कातरता भला
आपको शोभा दे ती है ? कृ पा करकेउ ठये ।" भोजराज ने अपने को
सँभाला। वे वा पस ग पर जा वराजे और साफेसे अपने आँ सू प छने
लगे । मीरा नेउठकर उ ह जल पलाया।
"आप मु झे कोई सरल उपाय बताय। पू जा-पाठ, नाचना-गाना,
मँजीरे या तानपु रा बजाना मे रे बस का नह है ।" भोजराज ने कहा। "यह
सब आपकेलए आव यक भी नह है ।" मीरा हँस पड़ी। "बस आप जो
भी कर, भु केलए कर और उनकेकम से कर, जैसेसे वक वामी क
आ ा से अथवा उनका ख दे खकर काय करता है । जो भी दे ख, उसम
भु केहाथ क कारीगरी दे ख। कु छ समय केअ यास से सारा ही काय

57
उनक पू जा हो जायेगी।"
"यु भू म मश ु सं
हार, यायासन पर बै ठकर अपरा धय को
द ड दे ना भी या उ ह केलए है ?" "हाँकम ! मीरा ने ग भीरता से
कहा- "नाटक केपा मरने और मारने का अ भनय नह करतेया ?
उ ह पा क भा त आप भी समझ ली जए क न म मारता ँ न वेमरते
ह, केवल म भु क आ ा से उ ह मु दला रहा ँ । यह जगत तो भु
का रंगमं च है। य भी वही है और ा भी वही है । अपने को कता
मानकर थ बोझ नह उठाय। क ा बनने पर तो कमफल भी भु गतना
पड़ता है , तब य न से वक क तरह जो वामी चाहे वही कया जाये ।
मज री तो कता बनने पर भी उतनी ही मलती है , जतनी मज र बनने
पर, पर ऐसे म वामी क स ता भी ा त होती है । हाँएक बात अव य
यान रखने क हैक जो पा ता आपको दान क गयी है , उसके
अनु सार आपके अ भनय म कमी न आने पाये।"
मीरा ने थोड़ा ककर फर कहा, " या उ चत हैऔर या
अनु चत, यह बात कसी और से सुनने क आव यकता नह होती।
भीतर बै ठा अ तयामी ही हम उ चत अनु चत का बोध करा दे ता है।
उसक बात अनसु नी करने सेधीरे-धीरेवह भीतर क व न धीमी पड़ती
जाती है , और न य सु नने सेऔर उसपर यान दे कर उसकेअनु सार
चलने पर अ त:करण क बात प होती जाती है । फर तो कोई अड़चन
नह रहती। कत -पालन ही राजा केलए सबसे बड़ी पू जा और तप या
है
।"
मीरा ससु राल म समय-समय पर बीच म सबकेचरण पश कर
आती, पर कह अ धक दे र तक न ठहर पाती। य क इधर ठाकु र जी के
भोग का समय हो जाता। फर स धया म वह जोशी जी से शा -पु राण
सुनती। महल म मीरा केसबसे अलग थलग रहने पर आलोचना होती,
पर अगर कोई मीरा को वयंमलने पधारता, तो वह अ तशय ने ह और
अपन व से उनक आवभगत करती।
ावण आया। तीज का योहार। च ौड़गढ़ केमहल म शाम
होतेही यौहार क हलचल आर भ हो गई। सु दर झू ला डाला गया। पू रा
प रवार एक ही थान पर एक त आ। बारी-बारी से सब जोड़े से झूले

58
पर बैठते, और सकु चाते
, लजातेएक सरे का नाम लेत।ेभोजराज और
मीरा क भी म से बारी आई। महाराणा और बड़े लोग भोजराज का
सं
कोच दे ख थोड़ा पीछे हट गये
। भाई र न सह ने आ ह कया, "य द
आपनेवल ब कया तो म उतरने नह ँ गा। शी बता द जए भाभीसा
का नाम !"
"मे ड़ तया घर री थाती मीराँआभ रो फू ल (आकाश का फू ल
अथात ऐसा पु प जो वयं म द और सु दर तो हो पर अ ा य हो।)बस
अब तो ?" र न सह भाई केश द पर वचार ही करते रह गये
। मीरा को
य ने घे
रकर प त का नाम पू छा तो उसने मुकुराते
, लजातेए
बताया -
राजा हैनं
दरायजी जाँको गोकु
ल गाँ म।
जमना तट रो बास हैगरधर यारो नाम॥
"यह या कहा आपने ? हम तो कुँ
वरसा का नाम पू
छ रही ह।"
"इनका नाम तो भोजराज है
। बस, अब म जाऊँ ? मीरा अपनेमहल क
तरफ चल पड़ी। उसकेमन म अलग सी तरं ग उठ रही थी। न ह -न ह
बूद
ँेपड़नेलगी। वह गु
नगु
नानेलगी......
हड रो पड़यो कदम क डाल, हाँ
ने
झोटा दे
नं
दलाल॥
भ के ावण का भावरस वहा रक जगत सेकतना अलग
होता है
। उ ह कृ त क येक या म ठाकु र का ही कोई सं के

दखाई दे
ता है
। र कह पपीहा बोला तो मीरा को लगा मानो वह " पया
पया" बोल वह उसको चढ़ा रहा हो। " पया" श द सु नतेही जै से
आकाश म ही नह उसकेदय म भी दा मनी लहरा गई -
पपीहरा काहे
मचावत शोर।
पया पया बोले जया जरावत मोर॥
अंबवा क डार कोय लया बोले
र ह र ह बोले
मोर।
नद कनारे सारस बो यो म जाणी पया मोर॥
मे
हा बरसेबजली चमकेबादल क घनघोर।
मीरा के भुवेग दरस दो मोहन च के चोर॥

59
वषा क फुहार म दा सय केसं ग मीरा भीगती महल प ँच ी।
उसके दय म आज गरधर के आनेक आस सी जग रही है । वे
क म
आकर अपनेाणारा य केस मुख बै
ठ गानेलगी ........

बरसेबू ँ
दया सावन क , सावन क मनभावन क ।
सावन म उम यो मेरो मनवा, भनक सुनी ह र आवन क ।
उमड़ घुमड़ च ँद स सेआयो, दामण दमके झर लावन क ॥
ना ह ना ह बू

ँन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन क ।
मीरा के भु गरधर नागर, आनँ द मंगल गावन क ॥
ावण क मं गल फु हार ने यतम केआगमन क सु ग ध चार
दशा म ापक कर द । मीरा को ण- ण ाणनाथ केआने का
आभास होता। वह ये क आहट पर च क उठती। वह गरधर केसम
बै
ठेफर गाने
लगी .......
सुनो हो म ह र आवन क अवाज।
महल चढ़ चढ़ जोऊँ मे
री सजनी, कब आवै महाराज।
सुनो हो म ह र आवन क अवाज॥
दादर मोर पपइया बोलै , कोयल मधु रेसाज।
उमँ यो इंच ँद स बरसै , दाम ण छोड़ी लाज॥
धरती प नवा-नवा ध रया, इं मलण के काज।
मीरा के भुह र अ बनासी, बे ग मलो सरताज॥
भजन पू रा करकेमीरा ने जैसेही आँ ख उघाड़ी, वह हष से
बावली हो उठ । स मु ख चौक पर यामसु दर बै
ठेउसक ओर दे खते
येमं
द-मंद मुकुरा रहेथे
। मीरा क पलक जै सेझपकना भूल गई। कुछ
ण केलए दे ह भी जड़ हो गई। फर हाथ बढ़ा कर चरण पर रखा यह
जाननेकेलए क कह यह व तो नह ? उसकेहाथ पर एक अ ण
करतल आ गया। उस पश ....... म मीरा जगत को ही भूल गई।
"बाईसा कम !" मं गला नेएकदम वे श कया तो वा मनी को यू ँ
कसी से बात करतेठठक गई। मीरा ने पलक उठाकर उसक ओर
दे
खा। "मं
गला ! आज भु पधारे ह। जीमण (भोजन) क तै यारी कर।
चौसर भी यही लेआ। तू महाराज कुमार को भी नवे
दन कर आ।"
60
मीरा क हष- व ल दशा दे खकर मं गला स भी ई और
च कत भी। उसने शी ता से दा सय म सं दे
श सा रत कर दया। घड़ी
भर म तो मीरा के महल म गाने -बजाने क धू म मच गई। चौक म दा सय
को नाचते दे
ख भोजराज को आ य आ। मं गला सेपू
छने पर वह बोली,
"कु

वरसा ! आज भु पधारे ह।" भोजराज च कत सेगरधर गोपाल के
क क ओर मु ड़ गये। वहाँार से ही मीरा क म े-हष- व ल दशा
दशन कर वह त भत से हो गये । मीरा कसी से हँ
सतेये बात कर रही
थी - "बड़ी कृ पा ........क भु, .....आप पधारे री तो
, .....मे
आँख,......पथरा गई थी,...... ती ा म।" भोजराज सोच रहे थे
, " भु
आये ह, अहोभा य ! पर हाय ! मु झेय नह दशन नह हो रहे ?"
मीरा क उनपर पड़ी। "पधा रये महाराजकुमार ! देखए, मे
रे
वामी आयेह। येहै ा रकाधीश, मे रेप त। और वामी, यह ह
च ौड़गढ़ के महाराजकु मार, भोजराज, मे रेसखा।"
"मुझेतो यहाँकोई दखाई नह दे रहा।" भोजराज ने सकुचातेए
कहा। मीरा फर हँ सतेये बोली "आप पधार ! ये फरमा रहे ह क
आपको अभी दशन होने म समय है ।" भोजराज असमं जस म कु छ ण
खड़े रहेफर अपने शयनक म चले गये । मीरा गाने
लगी -
आज तो राठौड़ीजी महलाँरं
ग छायो।
आज तो मे ड़तणीजी केमहलाँरं ग छायो।
को टक भानुवौ काश जाणे केगरधर आया॥
सु
र नर मुनजन यान धरत ह वे द पु
राणन गाया।
मीरा के भुगरधर नागर घर बैठय पय पाया॥
आज मीरा क स ता क सीमा नह है । आज उसकेघर भव-
भव केभरतार पधारे ह उसक साधना, उसका जीवन सफल करने ।
यामसु दर का हाथ पकड़ कर वह उठ खड़ी ई -"झू ले
पर पधारे
ग आप ?
आज तीज है ।"
दोन नेहडोला झू ला और फर महल म लौट कर भोजन लया।
मीरा बार-बार यामसु दर क छ व नहार ब लहारी हो जाती। आज
रँ
गीले राजपूत केवेश मे ह भु , के
स रया साफा, के
स रया अंगरखा,
लाल कनारी क के स रया धोती और वै
सा ही प ा। शरोभूषण म लगा
61
मोरपं ख, कान म हीरे के कुडल गले के कं ठे
म जड़ा पदमराग कौ तुभ,
मुा और वै जय ती माल, र न ज टत कमरब द, हाथ म गजमु ख कं
गन
और सु दर भुजब द, चरण म लं गर और हाथ म हीरे -प ेक अँगूठयाँ

और इन सबसे ऊपर वह प, कै सेउसका कोई वणन कर ! असीम को
अ र म कै सेबाँ
धे? बड़ी से बड़ी उपमा भी जहाँ छोट पड़ जाती है

ुतयाँ ने
त-नेत कहकर चु पी साध ले ती ह, क पना केपं ख समीप
प ँचने सेपू
व ही थककर ढ ले पड़ जाते ह, वह तो अपनी उपमा वयंही
ह, इस लए तो उनके प को अतु लनीय कहा है । वह प इतना मधु र
.......... या त य.........सु
वा सत..... नयना भराम हैक या कहा
जाये ? मीरा भी के
वल इतना ही कह पाई........
थाँ
री छ व यारी लागे , राज राधावर महाराज।
रतन ज टत सर पच कलं गी, के
श रया सब साज॥
मोर मुकु
ट मकराकृत कुडल, र सक रा सरताज।
मीरा के भुगरधर नागर, हाँनेमल गया जराज॥
च ौड़ केर नवास म मीरा के वहार को ले कर कु छ अस तोष
सा है
। पर मीरा को अवकाश कहाँ हैयह सब दे
खने का ? वह प माधु री
केदशन से पहले ही, वह अपूव रसभरी वाणी के वण से पहले ही लोग
पागल हो जाते ह तो मीरा सब देख सु नकर वयं को संभालेये है। यह
भी छोट बात नह थी। पर वह अपने ही भाव-रा य म रहती जहाँ
वहा रकता का कोई वे श नह था।
समय मलने पर भोजराज कभी-कभी माँ तथा ब हन उदयकु ँ
वर
(उदा) केपास बै ठते या फर भाई र न सह ही वयं आ जाते । पर धीरे-
धीरेभोजराज पर भी भ का रं ग चढ़ने लगा। लोग ने दे
खा क उनके
माथेपर के शर-च दन का तलक और गले म तुलसी माला। रहन-सहन
सादा हो गया है और उ ह सा वक भोजन अ छा लगता। थ केखे ल
तमाशे अब छू ट गये है। कोई कु
छ इस बदलाव का कारण पू छ लेता तो
वह हँसकर टाल दे त।े
बात महाराणा तक प ँ च ी तो उ ह नेपूरणमल के ारा सरे
ववाह का पु छवाया। भोजराज नेभी पताजी को कहला भे जा -
गातट पर रहने
"गं वाल को नाली-पोखर का गं दा पानी पीनेका मन नह
62
होता। आप अब र न सह का ववाह करवा द, जससे र नवास का ोभ
र हो।" महाराणा ने भी सोच लया - "हम यु वराज क च ता य हो ?
भोजराज अपने कत म माद नह करते , तो ठ क है ; दे
खा दे खी ही
सही, भ करने दो। मानव जीवन सु धर जाये गा।"
भोजराज कु छ मीरा के त समपण से और कु छ उसक भ
का व प समझ कर वयं उसक ढाल बन गये । उदा अगर मीरा क
शकायत ले प ँ च ी, तो भोजराज बहन को समझातेये बोले , "भ को
अपने भगवान केअ त र कह कु छ दखाई नह दे ता। वही उनकेसगे
ह। और उसी तरह भगवान भी भ केसामने नया भू ल जाते ह।
भ का बु रा करने और सोचने पर यह न हो क हम भगवान को भी
नाराज कर द। इस लए म तो कहता ँक जो हो रहा है होने द। और
बाईसा ! लोग तो भ के दशन करने केलए कतनी र- र दौड़ेफरते
है
। अपने तो घर म ही गं गा आ गई और या चा हए हम ?"
ववाह केछः मास प ात च ौड़ समाचार आया क मे ड़ता म
मीरा क माँ वीरकु वंरी जी का देहां
त हो गया है। सुनकर मीरा क आँ ख
भर आ - "मे रेसु ख केलए कतनी च तत रहती थ । इतनी भोली और
सरल क यह जानतेये भी क बे ट जो कर रही है , उ चत ही है , फर
भी सर केकहने पर मुझे समझाने चली आती। भाबू ! आपक आ मा
को शां त मले , भगवान मं गल करे ।" नान, आचमन कर उ ह ने पातक
उतारा और ठाकु र जी क से वा म वृ । र नवास म भी सब है रान तो
ये पर मीरा ने अज कया, " भु क इ छा से माँका धरती पर इतने दन
ही अ जल बदा था। जाना तो सभी को है आगेक पीछे । जो चले गये
,
उनक या च ता कर। अपनी ही सं वार लेतो ब त है ।"
गणगौर का यौहार आया। ये क यौहार पर मीरा का वरह बढ़
जाता- फर कह दय म ाणधन केआने क उमं ग भी ह लोर भरने
लगती। मीरा मं गल समय ठाकु र को उठाते अपने मन के भाव गीत म भर
गानेलगी..........
जागो वं शीवारेलालना जागो मेरेयारे

उठो लालजी भोर भयो हैसु
र नर ठाड़ेारे

गोपी दही मथत सुनयत है
कंगना के
झंकारे

63
यारेदरसन द यो आय, तु म बन र ो न जाय॥
जल बन कमल चं द बन रजनी, ऐसे तु
म देयाँबन सजनी।
आकु ल याकु ल फ ँ रै न दन, बरह कले जो खाय॥
दवस न भू ख न द न ह रै
ना, मु
खसूँकथत न आवै बै
ना।
कहा क ँकछुकहत न आवै , मलकर तपत बु झाय॥
यूँतरसावो अं
तरजामी, आय मलो करपा कर वामी।
मीरा दासी जनम - जनम क , पड़ी तु हारेपाय॥
एक दन, मीरा ने भोजराज से कहा, "आपक आ ा हो तो एक
नवे दन क ँ ।" " य नह ? फरमाइए।" भोजराज ने अ त वन ता से
कहा। "मे ड़ते म तो संत आते ही रहते थे। वहाँस सं ग मला करता था।
भु के े मय केमु ख से झरती उनक प-गु ण-सु धा केपानसे सु

ा त होता है, वह जोशीजी के सुखसे पु
राण कथा सु नने म नह मलता।
यहाँ स सं ग का आभाव मु झेसदा अनु भव होता है ।"
भोजराज ग भीर हो गये - "यहाँ महल म तो सं तो के वे शक
आ ा नह है । हाँ
, कले म संत महा मा आते ही रहते ह, क तु आपका
बाहर पधारना कै से हो सकता है ?" "स सं ग बना तो ाण तृ षा ( यास)
से मर जाते ह।" मीरा ने उदास वर म कहा। "ऐसा करते है, क कुभ
याम केमं दर केपास एक और मं दर बनवा द। वहाँ आप न य दशन
केलए पधारा कर। म भी य न क ँ गा क गढ़ म आने वाले संत वहाँ
मं दर म प ँ च।ेइस कार म भी सं त दशन करकेलाभ ले पाऊंगा और
थोडा ब त ान मु झे भी मले गा।" "जै सा आप उ चत समझ" -मीरा ने
स ता से कहा।
महाराणा (मीरा केससु र) का आदे श मलते ही मं दर बनना
आर भ हो गया। अ त: पु र म मंदर का नमाण चचा का वषय बन गया।
"महल म थान का सं कोच था या ?" "यह बाहर म दर यू ँबन
रहा है ?" "अब पू जा और गाना-बजाना बाहर खु ले म होगा?" " ससौ दय
का वजय वज तो फहरा ही रहा है , अब भ का वज फहराने के
लए यह भ त भ बन रहा है ।" जतने मुँ
ह उतनी बात। मं दर बना
और शु भ मुत म ाण- त ा ई। धीरे -धीरे
, स सं ग क धारा बह चली।
उसकेसाथ ही साथ मीरा का यश भी शीत क सु नहरी धूप-सा सुहावना
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हो कर फै लने लगा। मीरा केमं दर पधारने पर उसकेभजन और उसक
ान वाता सुननेकेलए भ सं तो का मे
ला लगने लगा। बाहर से आने
वाले संतो केभोजन, आवास और आव यकता क व था भोजराज
क आ ा से जोशीजी करते ।
गुतचर सेम दर म होनेवाली सब ग त व धय क बात
महाराणा बड़े चाव से सुनते । कभी-कभी वे सोचते - "बड़ा होना भी
कतना खदायी है ? य द म महाराणा या मीरा का ससु र न होता, मा
कोई साधारण जन होता तो सबकेबीच बै ठकर स सं ग -सुधा का म भी
नसंकोच पान करता। म तो ऐसा भा यहीन ँक अगर म वे श भी बदलू ँ
तो पहचान लया जाऊँ गा।"
जैसे-जै
सेबाहर मीरा का यश व तार पाने लगा, राजकु लक ी
-समाज उनक न दा म उतना ही मु खर हो उठा। क तु मीरा इन सब
बात से बेखबर अपने पथ पर ढ़तापू वक पग धरतेये बढ़ती जा रही
थी। उ ह ात होता भी तो कै से? भोजराज सचमु च उनक ढाल बन गये
थे। प रवार के ोध और अपवाद के भालेवेअपनी छाती पर झे ल ले त।े
इ ह दन र न सह का ववाह हो गया और र नवास क य का यान
मीरा क ओर से हटकर नव ववा हता वधू क ओर जा लगा।
एक दन भोजराज और र न सह दोन भाई बै ठेहास प रहास
कर रहे थे। र न सह ने ब त दन केबाद भाई को यू ँ
खु ले मन से हंसते
येदेखा तो ब त स आ। एक जो उसकेमन म कई दन से
खटक रहा था, उसने , ने
ह से पर आदर और अ धकार से पूछ ही डाला,
"उस दन आपने झूले पर भाभीसा का नाम आकाश का फू ल य
कहा ?" र न सह भाई केमु ख पर आने वाले उतार चढ़ाव का नरी ण
करते रहे और कहने लगे , "भाई ! सा ह य क समझ केअनु सार तो
इसका अथ तो है सुदर पर अ ा य।"
भोजराज केनेभी भाई क ने ह पूण ज ासा दे ख सजल हो
गये। न न करते भी उ ह ने कह दया, "य द तु ह ात हो जायेक जस
को तुम याह कर लाये हो, वह पर- ी है तो तु
म या करोगे ?" "पर- ी?
पर कै से
? या मे ड़ते वालो ने धोखा कया हमारे साथ ?"
भोजराज ने भाई को शां त करतेये उसेववाह से पहले मीरा को
याम कुज म ठाकु र केसम वचन दे नेक बात से ले
कर ा रका से
65
आये पड़ले तक का ववरण बताया। र न सह केतो पाँ वो तले जमीन
खसक गई। उसके आँसू कते न क रहे थे। कभी वह अपने भाई क
वचनब ता, महानता और ववशता का सोचता और कभी मीरा क
भ केव प का च तन करता।
"यहाँसेगया पड़ला य का य रखा है , और ा रका के
व ाभू षण इतने मूयवान ह क अनु मान भी लगाना क ठन है । मने
दोन ही देखे ह। अभी तीज क रा म भी ठाकु र जी पधारेथे।" "आपने
दे
खा या उ ह ?" आ य से र न सह ने कहा। "नह , मु झेदशन तो नह
ये, पर जो कु छ देख पाया उससे लग रहा था क कोई तीसरा भी वहाँ
था।"
र न सह ने साहस से अपना भाव समे टा और कहा, "ठ क है ,
थ त पर जो आपनेकया वह सबकेबस का नह और अतु लनीय है,
पर अभी भी या क ठनाई है , हाँ
भाभीसा सी अ न सु दरी न सही,
इनसे कुछ यू न तो मल ही सकती है ।" भोजराज का वर भारी हो गया-
"इतना ने ह करते हो अपने भाई से? सभी बात का समाधान कर रहे हो,
तो बताओ, इस मन का भी या समाधान क ँजो पहलेदन से ही
तुहारी भाभीसा के चरण से बँध गया है । और उ ह अपनी वा मनी मान
उनक स ता म ही अपना भा य मानता है ।"
र न सह वयं को स भाल नह पाये और भाई क गोद म सर
रख ससकने लगे। कुछ अ ुब भोजराज क आँ ख से ढ़लक कर
र न सह केके श म कह उलझ से गये । पर शी ही उ ह ने अपने को
सँभाल लया।
"भाई ! च ौड़ केराजकु वं
र यू ँतन-मन क पीड़ा से नह रोते ।"
वह र न सह क आँ ख म दे खकर मु कुराये - "हम कत , जा, दे श,
धम क स प ह। हम अपनेलए नह जीते मरते। इस लए हमारा
जीवन धरोहर और मृ युमं
गल उ सव होती है । ऐसी बलता हम शोभा
नह दे ती। उठो, चले । और यान रहे , आज क बातचीत यह गाढ़ दे ना,
इतनी गहरी क कभी ऊपर नह आये ।"
मीरा का अ धकां श समय भावावे श म ही बीतने लगा। वरहावे श
म उसेवयं का ान ही न रहता। थ ं केपृ-पृ-म वह अपनेलए
ठाकु र का सं केत पाने का यास करती। कभी ऊँ चे चढ़कर पु कारने
66
लगती और कभी सं केत कर पास बु लाती। कभी हष केआवे श म वह
इस कार दौड़ती क भू ल ही जाती क स मु ख सी ढ़याँ ह। कई बार
टकराकर वह ज मी हो जात । दा सयाँ साथ तो रहती पर कभी-कभी
मीरा क वरा का साथ दे ना उनकेलए अस भव हो जाता। जो मीरा क
मनो थ त समझते , वेउसक सराहना करते , उसक चरण-रज सर पर
चढ़ाते। नासमझ लोग हँ सते और ं य करते । भोजराज दे खतेक होली
केउ सव केदन म महल म बै ठ ई मीरा क साड़ी अचानक रं ग से
भीज गई है , और वह च ककर 'अरे ' कहती ई भाग उठती कसी
अनदे खे से उलझने केलए। कभी वे छत पर टहल रहे होतेऔर अ जाने
म ही कसी और से बात करने लग जाती। कभी ऐसा भी लगता क
कसी ने मीरा क आँ ख मू ँ
द ली ह , और ऐसेकसी का हाथ थामकर वह
च पा, पाटला, व ा येअनसु नेनाम ले कर थककर कहती " ी
कशोरीजू !" और पीछे घूम कर आन द व ल होकर कह उठत - "मे रे
ाणधन! मे रेयामसु दर !"
भोजराज केआदे श से च पा उनकेमु ख सेनझ रत भजन को
एक पोथी म लखती जाती। भोजराज को मीरा क अ य धक च ता हो
जाती। जब भी वह कह बाहर जाते , वा पसी पर उनका अ ती ग त
से भाग छू टता। सौ-सौ शं कायेसर उठाकर उ ह भयभीत कर दे ती -
कह वह झरोखे से न गर पड़ी हो ? कह कोई कु छ खला- पला न द,
वह सब पर सरलता सेव ास कर ले ती है
। उस दन भीत से टकरा गई
थी तो म तक से र बहने लगा था। अब जाकर न जाने कस अव था म
पाऊँगा ? मीरा क सु र ा क च ता म, भोजराज का उनम मोह बढ़ने
लगा। जस दन भोजराज वजय ा त कर लौटते तो ठाकुर को कई
म ा भोग लगते और दास-दा सय को पु र कार मलते ।
एक दन भोजराज कहने लगे , "आपका पू जा-पाठ, स संग और
भावावेश दे खता ँ , तो बु कहती हैक यह सब नरथक नह है । क तु
इतने पर भी ई र पर व ास नह होता। म व ास करना तो चाहता ँ -
पर अनु भव केबना व ास के पै
र नह जमते ।" "कोई वशे ष हो तो
बताय ? शायद म कु छ समाधान कर पाऊँ ?" मीरा नेकहा।
"नह , बस यही क कहाँ ह ? कसने दे
खा है ? और है तो या
माण है ? म को शश तो करता ँ अपने को समझाने क पर दे खए
67
बना व ास केक गई साधना अपने को और अ य को धोखा दे ना है।"
"पहले आप मु झे बतलाईयेक आपको या क ठनाई होती है ?" मीरा ने
पूछा।
"आपको बु रा लगेगा।" भोजराज ने सं
कोच से कहा- "ब त य न
केप ात भी यान म स मु ख मू त ही सहासन पर दखाई दे ती है
। बस
केवल एक बार दशन क लालसा..............।" "पर या आप भु का
मरण करते ह ?" मीरा ने पूछा।
"सुना है, भगवान भ क बात नह टालते । तब तो आपक
कृपा ही कुछ कर दखाये तो बात सफल हो, अ यथा आप स य मा नये ,
मेरेन य नयम के वल नीरस होकर रह गये ह। म जीवन सेनराश सा
होता जा रहा ँ ।" कहते -कहते भोजराज क आँ ख भर आ । वेसरी
ओर दे ख अपने आँ सू को छपाने का य न करने लगे । भोजराज
एक लगनाथ के उपासक थे । मीरा क भ के भाव म बहते -बहते उनके
अपनेनयम तो यू ँकेयूँधरे रह गये थे। और मीरा को ावहा रक और
पा रवा रक प से भोजराज के प म एक ऐसी ढाल मल गई थी जो
उसकेऔर जगत केम य खड़ी थी, सो मीरा क भ भाव का रा य
वक सत हो रहा था। मीरा तो गरधर क ी त के साथ ही बड़ी थी -
सो उसकेलये यह सब अनु भव वाभा वक भी थे और सहज भी। पर
भोजराज केलए सब प रवे श नया था। आँ ख जो देख रही थ , मन उस
पर व ास करना तो चाहता पर वयं कु
छ भी गत अनु भव के
आभाव सेवह व ास कु छ दे र केबाद डाँ वाडोल हो जाता। सो
भोजराज क भ क थ त प रप व न होने के कारण उसे सही दशा
नह मल रही थी।और वह इसी कारण जीवन सेनराश सा हो मीरा से
कृपा क याचना कर रहे ह।
" या मेरी स ता केलए भी आप भु का मरण नह कर
सकते ।" मीरा ने पूछा। "वही तो करने का य न कर रहा ँ अब तक।
जैसेीगीता जी म व णत हैक वराट पुष क दे ह म ही संसार है, वै
से
ही आपक पृभू म म मु झे अपना कत , राजकाय दखाई दे ते ह,
क तु कभी भगवान नह दखाई दे त।े
"
" ढ़ सं क प हो तो मनु य केलए लभ या है ? "मीरा ने

68
ग भीरता से कहा -" देखये मे
रेमन म आपका ब त मान-स मान है । पर
म आपकेसां सा रक वषय केबीच ढाल क तरह आ ग ँ । अब वह
सब आपको ा त नह हो सकते । सरा ववाह आपको वीकार नह है ।
तो चलना तो अब भगवद अराधना केपथ पर ही होगा।" "म कब इस
पथ पर चलने सेइ कार कर रहा ँ । क तु अँधे
रे म पथ टटोलते -टटोलते
थक गया ँअब तो। आप कृ पा कर या कोई सीधा सादा माग
बतलाईये ।" भोजराज ने हताश वर म कहा। "हम कह जाना हो, पर हम
पथ नह जानते । कसी से पू
छने पर जो पथ उसने बताया, तो उस पथ
पर चलने केबदले हम पथ बताने वाले को ही पकड़ ल और समझ ल
क हम तो ग त (मं जल) मल गया, या कहगे उसे आप, मू ख या
बु मान ? म होऊँया कोई और, आपको पथ ही सु झा सकते ह। चलना
तो, करना तो, आपको ही पड़े गा। गुबालक को अ र बता सकते ह,
उसको घोटकर तो नह पला सकते । अ यास तो बालक को वयं ही
करना पड़े गा।" मीरा नेग भीर वर से कहा।
मीरा ने समझातेयेफर कहा, "दे खये, जब तक सं सार म या
उसक कसी भी व तु म मह व बु है , तब तक ई र का मह व या
उसका अभाव बु -मन म नह बै ठे
गा। जब तक अभाव न जगे , ाण ण
से उसकेलए चेा भी न होगी। आस अथवा मोह ही सम त बु राइय
क जड़ है ।" "आस कसे कहते ह ?" भोजराज ने पू
छा।
"हम जससे मोह हो जाता है
, उसकेदोष भी गु ण दखाई दे तेह।
उसेस करने केलए कै सा भी अ छा-बु रा काम करने को हम तैयार
हो जातेह। हम सदा उसका यान बना रहता है । उसकेसमीप रहने क
इ छा होती है । उसक से वा म ही सु ख जान पड़ता है । य द यही मोह
अथवा आस भगवान म हो तो क याण कारी हो जाती हैय क हम
जसका च तन करते ह उसकेगु ण-दोष हमम अ जाने म ही आ जाते
ह। अतः जसक आस भ म होगी, वह भी भ हो जाये गा।
य क अगर उसक आस का के भ सचमु च भ है तो वह
अपने अनु गत को स ची भ दान कर ही देगा। गु-भ का रह य
भी यही है। गुक दे ह भले पा चभौ तक हो, उसम जो गुत व है , वह
शव है
। गुके त आस अथवा भ उस शव त व को जगा दे ती

69
है
, उसी से परम त व ा त हो जाता है । गुऔर श य म से एक भी
य द स चा है तो दोन का क याण न त है ।"
"य द भ म आस होने से क याण सं भव है तो फर मु झे
च ता करनेक कोई आव यकता नह जान पड़ती। आप परम
भ मती हैऔर मु झम आस केसभी ल ण जान पड़तेह।"
भोजराज ने संकोच सेसर झु कातेये कहा यु गलचरणो म आप सभी
क ी त न य- नर तर बढ़ती रहे ।
मीरा ने भोजराज को आस केबारे म बताया क य तो
आस बु
राइय क जड़ है , पर अगर यही आस भ या कसी
स चे भ म हो जाये तो क याणकारी हो सकती है ।
"य द भ म आस होने सेक याण स भव है तो फर मु झे
च ता करने क आव यकता नह । आप परम भ मती ह और मु झम
आस केसारे ल ण जान पड़ते ह।" भोजराज ने सं
कोच से कहा।
"मनु य का जीवन बाजी जीतने केलए मलता है । कोई हारने क बात
सोच ही ले तो फर उपाय या है ?" मीरा ने
कहा।
" व ास क बात न फरमाइये गा। वह मु झम नह है । उसकेलए
तो आपको ही मु झ पर दया करनी पड़े गी। मे
रे यो य कोई सरल उपाय हो
तो बताने क कृ पा कर।" भोजराज ने कहा। "भगवान का जो नाम मन
को भाये, उठते -बैठते, चलते - फरते और काम करते लेतेरह। मन म भु
का नाम ले ना अ धक अ छा है , क तु मन धोखा दे नेकेअने क उपाय
जानता है । ब त बार साँ स क ग त ही ऐसी हो जाती हैक हम जान
पड़ता हैक मान मन नाम ले रहा है। अ छा है , आर भ मु ख से ही कया
जाये। इसकेसाथ ही य द स भव हो तो जसका नाम ले ते ह, उसक
छ व का, प-माधु री का, यान कया जाये , उसक लीला-माधु री के
च तन क चेा क जाये । एक तो इस कार मन खाली नह रहे गा और
सरे मन म उ टे सीधेवचार नह आ पायगे ।" "जी ! अब ऐसा ही य न
क ँ गा।" भोजराज ने समझतेये कहा।
भोजराज कसी रा य केकाय से उठकर गये तो देवर र न सह
भाई को ढू ढँते इधर आ नकले । उस दन भाई सेई वाता केप ात
र न सह क म अपनी भाभीसा का व प पहले सेकह अ धक

70
स माननीय एवंपू जनीय हो गया था। मीरा नेझटपट दा सय क
सहायता से जलपान और सरे म ा ने ह सेदए। "अरोगो लालजीसा !
इस राजप रवार म अपनी भौजाई को 'औगणो' ही समझ ली जए।
गरधरलाल क से वा म रहने केकारण अ धक कह आ जा नह पाती।
भली-बु री जैसी भी ँ , आप सभी क दया है , नभा रहे ह।" "ऐसा य
फरमाती ह आप ?" र न सह नेसाद ले तेये कहा। "हमारा तो सौभा य
हैक हम आपकेबालक ह। लोग तीथ और भ केदशन केलए र
र तक भटकतेफरते ह। हम तो वधाता ने घर बै
ठेही आपकेव प
म तीथ सु लभ कराये है
। मे
रा तो आपसे हाथ जोड़ कर यही नवे दन है
क जो आपको न समझ पाये और जो कोई कु छ कह भी दे , तो उ ह
नासमझ मानकर आप उनपर कृ पा र खये।"
"यह या फरमाते ह आप ? कसपर नाराज होऊँलालजीसा !
अपने ही दाँ
त से जीभ कट जाये तो या हम दाँ त को तोड़ देते ह ? सृ
के सभी जन मे रेभु के ही सरजायेये ही तो ह। इनम सेकसको बु रा
क ँ ?" र न सह नेने ह सेअपनी अ या मक ज ासा रखतेये कहा,
"एक बात पू छ
ँूभाभीसा कम ? अगर सम त जगत ई र से ही बना है,
तो आप गरधर गोपाल क मू त के त ही इतनी सम पत यू ँह ? हम
सबम भी उतना ही भगवान हैजतना उस मू त म, फर उसका इतना
आ ह य और सर क इतनी उपेा य ? सं त केसाथ का उ साह
य , और सर के साथ का अलगाव का भाव य ?"
"आ खर मे वाड़ केराजकु वंर म तहीन कै सेह गे?" मीरा हँसद,
"ब त सु दर पूछा हैआपने लालजीसा ! जै सेइस स पू ण देह क रग-
रग म आप ह और इसका कोई भी अं ग आपसे अछूता नह है - इतने पर
भी आप सभी अं ग और इ य से एक सा वहार नह करते । ऐसा
य भला ? आपको कभी अनु भव आ क पै र सेमुँ
ह जैसा वहार न
करकेउनक उपेा कर रहे ह ? गीता म भी भगवान ने समदशन का
उपदेश दया है समवतन का नह । चाहने पर भी हम वै सा नह कर
सकगे । वैसे भी यह जगत स व, रज और तम इन तीन गु ण का वकार
है
। इन तीन केसम वय से ही पूण सृ का सृ जन आ है ।" र न सह
धैय से भाभीसा का कहा एक-एक श द का भावाथ दयं गम करते जा

71
रहे थे

मीरा नेफर सहजता से ही कहा, "अ छा और बु रा या है ? यह
समझना उतना ही मह वपू ण हैजतना यह क आप उसको कहाँ और
कससे जोड़ते ह। रावण और कं स आ द ने तो बु
राई पर ही कमर बाँ धी
और मु ही नह , उसकेवामी को भी पा लया।"
"पर अगर म अपनी समझ से क ँ तो अपने सहज वभावानु सार
चलना ही ेहै । ान, भ और कम सरल साधन है । इ ह अपनाने
वाला इस ज म म नह तो अ य कसी ज म म अपना ल य पा ही ले गा।
जैसे छोटा बालक उठता- गरता-पड़ता अं त म दौड़ना सीख ही ले ता है,
वैसेही मनु य सत्के माग पर चलकर भु को पा ही लेता है
।"
र न सह म मु ध सा मीरा केउ चा रत ये क श द का आन द
ले रहा था और अ जाने म ही मीरा क म ेभ धारा म एक और सू
जुड़ता जा रहा था, और र न सह भी चाहे बेखबर ही, पर इस भ पथ
पर अ सर होने का शुभार भ कर चु का था।
मीरा अ धक समय अपनेभावावे श म ही रहती। एक रा
अचानक मीरा के दन से भोजराज क न द उचट गई। वे हड़बड़ाकर
अपने पलं ग सेउठेऔर भीतरी क क और दौड़े जहाँमीरा सोई थी।
" या आ ? या आ ? कहते -कहते वे भीतर गये । पलं ग पर
धी पड़ी मीरा पानी म सेनकाली मछली क भाँ त तड़फड़ा रही थी।
ह कयाँ लेलेकर वह रो रही थी। बड़ी-बड़ी आँ ख से आँ सु केमोती
ढ़लक रहे थे
। भोजराज मन म ही सोचने लगे - "आज इनक वषगाँ ठ
और शरद पू नम क महारास का दन होने सेदो-दो उ सव थे । मीरा का
आज हष उफना पड़ता था। आधी रात केबाद तो सब सोये । अचानक
या हो गया ?" उ ह ने देखा क मीरा क आकु ल ाकु ल कसी को
ढू
ँढ रही है। झरोखे से शरद पू णमा का च मा अपनी शीतल करण क
म बखे र रहा था।
भोजराज अभी समझ नह पा रहे थे क वह या कर, कै सेधीरज
बँधाये, या कह ? तभी मीरा उठकर बै ठ गई और हाथ सामने फैला कर
वह रोतेए गाने लगी ..........
पया कँ
हा गयो ने
हड़ा लगाय।

72
छा ड़ गयो अब कौन बसासी, म ेक बाती बलाय।
बरह समँ द म छाँ
ड़ गयौ हो, ने
ह क नाव चलाय।
मीरा के भुकबरेमलोगे , तु
म बन र ो न जाय।
पद केगान का व ाम आ तो मीरा दोन हाथ से मु

ह ढाँ
पकर
फफक-फफक कर रोने लगी। भोजराज समझ नह पायेक या कर,
कैसेधीरज बँ धाये , या कह ? इससे पहलेवह कु छ सोच पाते , वह
पछाड़ खाकर धरती पर गर पड़ी। भोजराज घबराकर उ ह उठाने के
लए बढ़े, नीचेझु के पर तुअपना वचन और मयादा का सोच ठठक गये ।
तु
र त क से बाहर जाकर उ ह नेमथु ला को पुकारा। उसने आकर
अपनी वा मनी को सं भाला।
ऐसे ही मीरा पर कभी अनायास ही ठाकु र सेवरह का भाव बल
हो उठता। एक ी म क रा म, छत पर बै ठे येभोजराज क
अ या मक ज ासा का समाधान मीरा कर रही थी। कु छ ही देर म
भोजराज का अनु भव आ क उनक बात का उ र दे नेकेबदले मीरा
द घ ास ले रही है । " या आ ? आप व थ तो ह ?" भोजराज ने पूछा।
तभी कह से पपीहे क व न आई तो ऐसा लगा जै से
बा द म च गारी
पड़ गई हो। वह उठकर छत क ओट के पास चली गई। ँ धेये गले से
कहने लगी.............
पपइया रे! कद को बै
र चताय ।
म सूती छ भवन आपने पय पय करत पु
काय ॥
दाझया ऊपर लू ण लगायो हवड़े करवत साय ।
मीरा के भुगरधर नागर ह र चरणा चत धाय ॥
" ह थारो कई बगाड़यो रे पं
छ ड़ा! या तू ने
मेरेसयेघाव उधेड़े?
य मेरी सोती पीर जगाई ? अरे ह यारे! अगर तुम वरहणी केसम
आकर " पया- पया" बोलोगे तो वह तु हारी च च न तोड़ डाले
गी या ?"
फर अगले ही ण आशा वत हो कहने लगी, "दे
ख पपीहरे !
अगर तुम मेरेगरधर के आगमन का सु हावना संदे
श लेकर आये हो तो म
ते
री च च को चाँ द से मढ़वा ँ गी।" फर नराशा और वरह का भाव
बल हो उठा - "पर तुम मु
झ वरहणी का यू ँसोचोगे? मे
रेपय र ह।

73
वेा रका पधार गये , इसी सेतुझे ऐसा कठोर वनोद सू झा? यामसु दर !
मे
रेाण ! दे खते ह न आप इस पं छ क ह मत ? आपसे र हत जानकर
येसभी जै सेमुझसे पू व ज म का कोई बै र चु
काने को उतावले हो उठे ह।
पधारो-पधारो मे रे नाथ ! यह शीतल पवन मु झेसुखा दे गी, यह च मा
मु
झे जला दे गा। अब और......... नह .......सहा........
जाता .....नह .......स......हा.....जा.......ता।"
भोजराज मीरा का भुवरहभाव दशन कर अवाक हो गये ।
तु
र त च पा को बु ला कर, मीरा को जल पलाया, उ हे पंखा करने को
कहा। भोजराज मन म सोचने लगे - "मु झ अधम पर कब कृ पा होगी भु !
कहते ह भ केपश से ही भ कट हो जाती है , पर भा यहीन भोज
इससे भी वं चत है ।"
भोजराज ने मं गला और च पा को आ ा द क अब से वेअपनी
वा मनी के पास ही सोया कर। और वयं वह सरी ओर चले गये। मीरा
क दा सयाँ उसका वरहावे श समझती थ ...... और उसेथ त अनु सार
सं
भालती भी थ । पर मीरा के ने म न द कहाँ थी। वह फर हाथ सामने
बढ़ा गाने लगी........
हो रमै
या बन, न द न आवै
, वरह सतावे
................।
मीरा क अव था कभी दो-दो दन और कभी तीन-चार दन तक
भी सामा य नह रहती थी। वे कभी तो भगवान सेमलने केहष और
कभी वरह केआवे श म जगत और दे ह क सुध को भू ली रहती थ ।
कभी यू ँही बै
ठे
-बैठेखल खला कर हँसती, कभी मान करकेबै ठ रहती
और कभी रोते -रोतेआँख सुजा ले
त । य द ऐसेदन म भोजराज को
च ौड़ से बाहर जानेका आदेश मलता तो - यू
ँतो वह रण म स ता
सेजाते, पर मीरा केआवेश क च ता कर उनके ाण पर बन आती।
आगरा केसमीप सीमा पर भोजराज घायल हो गये । स भवतः
श ुने वष बु झेश का हार कया था। राजवैने दवा भरकर प याँ
बाँ
धी। औष ध पलाई और ले प कये जाने सेधीरे
-धीरेघाव भी भरने
लगा।
एक शीत क रा । कु वँ
र अपने क म और मीरा भीतर अपने
क म थी। रा काफ बीत चु क थी, पर घाव म चीस केकारण
74
भोजराज क न द रह-रह करकेखु ल जाती। वे मन ही मन ीकृण,
ीकृण, ीकृण नाम जप कर रहे थे । उ ह मीरा के क से उसक जै से
न द म बड़बड़ाने क आवाज सु नाई द । मीरा खल खला कर हँ सती ई
बोली, "चोरजारपतयेनम: आप तो सब चोर केशरोम ण ह। पर
आपका यह यारा रस- प ही मु झे भाता है । रसो वै स: आप त नक भी
मेरी आँ ख सेर ह - मु झसे सहा नह जाता।"
भोजराज ने अपने पलं ग से ही बैठे-बैठेदेखा, मीरा भी बै ठकर
बात कर रही थी, पर जा त अव था म हो ऐसा नह तीत हो रहा था।
उ ह लगा मीरा भु सेवातालाप कर रही है । भोजराज को थोड़ी दे र तक
झपक आ गई तो वह सो गये ।
" यामसु दर ! मेरे नाथ ! मेरेाण ! आप कहाँ ह ? इस दासी को
छोड़ कर कहाँ चले गये?"
भोजराज क न द खु ल गई। उ ह ने देखा क मीरा यामसु दर
को पु कारती ई झरोखे क ओर दौड़ी। भोजराज ने सोचा क कह
झरोखे से टकराकर येगर जायगी - तो उ ह ने चोटक आशं का से चौक
पर पड़ी ग उठाकर आड़ी कर द । पर मीरा तो अपनी भाव तरं गम
उस झरोखे पर ही चढ़ गई। मीरा ने भावावे श म हाथ के एक ही झटके से
झरोखे से पदा हटाया और बाँ ह फैलायेये रेभु
- "मे ! मेरेसव व !
कहती ई एक पाँ व झरोखे केबाहर बढ़ा दया। सोचने का समय भी
नह था, बस पलक झपकते ही उछलकर भोजराज झरोखे म चढ़े और
शी ता से मीरा को भीतर क म ख च लया। एक ण का भी वल ब
हो जाता तो मीरा क दे ह नीचे च ान पर गरकर बखर जाती। मीरा
अचे तन हो गई थी। उसक दे ह को उठायेये वेनीचे उतरे। भोजराज ने
ममता भरे मन से उ ह उनके पलं ग पर रखा। मीरा के अ ु स च मु ख
पर आँ सु क तो मान रे खाएँ खच गई थी। तभी
"ओह हाँ रा नाथ ! तु हारे बना म कै से जी वत र ँ ?" मीरा के मु

से येअ फु ट श द सु नकर भोजराज मान च क उठे , जैसेन द से वेजागे
ह ......"यह .........यह या कया मने ?" या कया ? म अपने वचन का
नवाह नह कर पाया। मे रा वचन टू ट गया।" वचन टू टनेकेपछतावे से
भोजराज का मन तड़प उठा।
ातःकाल सबने सुना क महाराजकु मार को पु नः वर चढ़ आया
75
है। बाँ
ह का सया आ घाव भी उधड़ गया। फर से दवा-लेप सब होने
लगा, क तु रोग दन- दन बढ़ता ही गया। य तो सभी उनक से वा म एक
पैर पर खड़े रहते थे, क तु मीरा नेरात- दन एक कर दया। उनक भ
ने मान पं ख समे ट लए हो। पू जा समट गई और आवे श भी दब गया।
भोजराज बार-बार कहते , "आप आरोग ल। अभी तक आप
व ाम करने नह ग ? म अब ठ क ँ ; अब आप व ाम कर ली जए।
अभी पीड़ा नह है । आप च ता न कर।" मीरा को न द आ जाती तो
भोजराज दाँ त से ह ठ दबाकर अपनी कराह को भीतर ढ़के ल देत।े
ऐसे ही कतनेदन-मास नकलते गये। पर भोजराज क थ त
म ब त सु धार नह आ। फर भी मु कुरातेये एक दन उ सव का
समय जान कहने लगे , "आज तो वसं त पं चमी है। ठाकु र जी को फाग
नह खे लाय ? य भला ? आप पधा रये , उ ह चढ़ाकर गु लाल का साद
मुझे भी द जये ।"
एक दो दन केबाद उ ह ने मीरा से कहा - आज स सं ग य
रोक दया ? यह तो अ छा नह आ। आप पधा रये , म तो अब ठ क हो
गया ँ ।" वे
कहते , मु कराते पर उनके घाव भर नह रहे थे

"आपसे कु छ अज करना चाहता ँ म।" एक दन एका त म
भोजराज ने मीरा से कहा। "जी फरमाईये " समीप क च क पर बै ठतेये
मीरा ने कहा। "म आपका अपराधी ँ । मेरा आपको दया वचन टू ट
गया।" भोजराज ने अटकती वाणी म नेनीचे कए ये कहा - "आप जो
भी द ड ब श, म झे लने को तु त ँ । के वल इतना नवे दन हैक यह
अपराधी अब परलोक-पथ का प थक है । अब समय नह रहा पास म।
द ड ऐसा हो क यहाँ भुगता जा सके । अगले ज म तक ऋण बाक न
रहे।" उ ह ने हाथ जोड़कर सजल नेसे मीरा क ओर दे खा।
, यह या ? आप यू
"अरे ँहाथ न जो ड़ये ।" फर ग भीर वर म
बोली -"म जानती ँ । उस समय तो म अचे त थी, क तुातः साड़ी र
से भरी दे खी तो समझ गई क अव य ही कोई अटक आ पड़ी होगी।
इसम अपराध जै सा या आ भला ?" "अटक ही आ पड़ी थी।"
भोजराज बोले - या तो आपको झरोखे सेगरते देखता या वचन तोड़ता।
इतना समय नह था क दा सय को पु कारकर उठाता। य वचन तोड़ा,

76
इसका त नक भी प ाताप नह है , क तुभोज अं त म झू ठा ही
रहा........।" भोजराज का क ठ भर आया। त नक क कर वे बोले ,
"द ड भु गते बना यह बोझ मे रेदय पर रहे गा।"
"दे खये , मे
रेमन म त नक भी रोष नह है । म तो अपने ही भाव म
बह गर रही थी। तो मरतेये को बचाना पु य हैक पाप ? मे री
असावधानी से ही तो यह आ। य द द ड मलना ही है तो मुझेमलना
चा हए, आपको य ?"
"नह , नह । आपका या अपराध है इसम ?" भोजराज ाकु ल
वर म बोले -"हेा रकाधीश ! येनद ष है । खोटाई करनहार तो म ँ ।
ते
रे दरबार म जो भी द ड तय आ हो, वह मु झे देदो। इस नमल आ मा
को कभी मत ख दे ना भु !" भोजराज क आँ ख से आँ सू बह चले ।
"अब आप यू ँ
गुजरी बात पर आँ सूबहाते रहगे तो कैसेव थता
लाभ करे ग ? आप स य मा नये , मु
झे तो इस बात म अपराध जै सा कु छ
लगा ही नह ।" मीरा नेने ह से कहा। "आपने मुझे मा कर दया, मे रे
मन से बोझ उतर गया।" भोजराज थोड़ा क कर फर अ तशय दै यता
से बोले , "म यो य तो नह , क तु एक नवे दन और करना चाहता था।"
"आप ऐसा न कहे , आदे श द जए, मु झे पालन कर स ता
होगी।" "अब अ त समय नकट है । एक बार भुका दशन पा
लेता...........।"
मीरा क बड़ी-बड़ी पलक मु ँ
द गई। भोजराज को लगा क उनक
आँ ख के सामने सैकड़ च मा का काश फै ला है । उसके बीच म खड़ी
वह साँ वरी मू रत, मान प का समुहो, वह सलोनी छ व ने म अथाह
नेह भरकर बोली - "भोज ! तु मने मीरा क नह , मे री सेवा क है ।म
तु
मसेस ँ ।"
"मे रा अपराध भु !" भोजराज अटकती वाणी म बोले । वह मू रत
हँ
सी, जै से प केसमुम लहर उठ ह । " वाथ सेकए गये काय
अपराध बनते ह भोज ! न वाथ सेकए गये काय का कमफल तो मु झे
ही अ पत होता है । तु
म मे
रे हो भोज ! अब कहो, या चा हए तु ह ?" उस
मो हनी मू त ने दोन हाथ फै ला कर भोजराज को अपनेदय से लगा
लया।

77
आन द केआवे ग से भोजराज अचे त हो गये । जब चेत आया तो
उ ह नेहाथ बढ़ा कर मीरा क चरण रज माथे चढ़ायी। पारस तो लोहे को
सोना ही बना पाता है , पर यह पारस लोहे को भी पारस बना दे ता है

दोन ही भ आलौ कक आन द म म न थे ।
"र न सह ! तु हारी भाभी का भार म तु ह स प रहा ँ । मु
झे वचन
दो क उ ह कभी कोई कोई क नह होने दोगे।" एका त म भोजराज ने
र न सह से कहा। "यह या फरमा रहे ह आप बावजी कम !" वह भाई
केगले लग रो पड़े । "वचन दो भाई ! अ यथा मे रेाण सहज नह नकल
पायगे। अब अ धक समय नह रहा।"
र न सह ने भाई केपाँ वो को छू कर ँ धेये क ठ से बोले -
"भाभीसा मे रेलए कु लदेवी बाणमाता से भी अ धक पू य है
। इनका हर
आदे श ी जी ( पता - महाराणा सां घा) केआदे श से भी बढ़कर होगा।
इनके ऊपर आने वाली ये क वप को र न सह क छाती झे ल ले गी।"
भोजराज ने हाथ बढ़ा कर भाई को छाती से लगा लया। सरे ही दन
भोजराज ने शरीर छोड़ दया।
राजमहल और नगर म उदासी छा गई। मीरा केने म एकबार
आँ सू क झड़ी लगी और सरेदन ही वह उठकर अपने सदै व के
न यकम म, ठाकु र जी क से वा म लग गई।
कुछ बूढ़ औरत कु छ र म करने आ तो मीरा ने कसी भी ृ ं
गार
उतारने से मना कर दया क मे रे
प त गरधर तो अ वनाशी ह। और जब
उ ह नेपू छा, "तो महाराजकु मार भोजराज ?" मीरा नेकहा,
"महाराजकु मार तो मेरेसखा थे । वे मुझेयहाँलेआये तो म आ गई। अगर
आप मु झे वा पस भे जना चाह तो चली जाऊँ गी। पर म अपने प त के
रहतेचू ड़याँयू ँउता ँ ?"
बात सबकेकान म प ँ च ी तो एकबार तो सब भ ा गये । क तु
र न सह ने आकर नवे दन कया - "भाभीसा तो आर भ से ही यह
फरमाती रही ह क मे रेप त ठाकु र जी ह। अब उ ह ने ऐसा नया या
कह दया क सब बौखलाये -सेफर रहे ह ? अगर उ ह यह सब उ चत
नह लग रहा तो कसी को भी उनसे जोर-जबरद ती करने क कोई
आव यकता नह ।" ऐसा कहकर र न सह ने र नवास क य को डाँ ट
कर शा त कर दया।
78
जसने भी सु ना, वह आ य म डू ब गया। य केसमाज म थू -
थू होनेलगी। उसी दन से मेड़तणी मीरा प रवार म उपेता ही नह
घृणता भी हो गई। सरी ओर सं त समाज म उनका मान स मान बढ़ता
जा रहा था। पु कर आने वालेसंत मीरा केदशन-स सं ग केबना अपनी
या ा अधू री मानते थे। उनकेसरल सीधे -सादेक तुमा मक भजन
जनसाधारण केदय म थान बनाते जा रहे थे।
बाबर ने राजपू त पर हमला बोल दया। यही न य आ क
मेवाड़ केमहाराणा साँ गा क अ य ता म सभी छोटे -मोटे शासक बाबर
से यु कर। श क झं कार से राजपू ती उ साह उफन पड़ा। सबके
दल म वीर भोजराज का अभाव कसक रहा था। र न सह वीर ह, क तु
उनक च कला क ओर अ धक झु क है । महाराणा सां गा यु केलए
गये और र न सह को रा य ब ध केलए च ौड़ ही रह जाना पड़ा।
एक दन र न सह ने भाभी से पूछा, "जब सं सार म सब मनु य
भगवान ने बनाए ह, उनकेवभाव और प गु ण कला भी भगवान का
ही दया है तो मनु य य मे रा-मे
रा कर सरे को मारता और मरता है ?
मनु य को मारना कहाँ का धम है भाभीसा ?"
लालजीसा ! जसने मनु य और उनकेगु ण वभाव बनाये ह उसी
नेकत , धम और याय भी बनाये ह। इनका सामना करने केलए उसी
नेपाप अधम और अ याय क भी रचना क है । धम क ग त ब त सूम
हैलालजीसा ! बड़े -बड़े मनीषी भी सं शय म पड़ जाते ह, य क जो कम
एक केलए धम क प र ध म आता है , वही कम सरे केलए अधम के
घर जा बैठता है। जैसेस यासी केलए भ ाटन धम है , क तुगृह थ के
लए अधम। ा ण केलए याचना धम हो सकता है , क तु य के
लए अधम। ऐसे ही अपनेवाथवश कसी को मारना ह या है और यु
म मारना धम स मत वीरता है । समय के साथ नी त-धम बदलते रहते है
।"
आगरा केपास हो रहे यु से आये समाचार से पता लगा क
महाराणा सांगा एक वषबु झे बाण से मू छत हो गये ह। उ ह जयपु र के
पास कसी गाँ व म च क सा द जाने लगी। उ ह हठ था क बाबर को
जीतेबना म च ौड़ वा पस नह जाऊँ गा, और वह व थ होने लगे।
राजपूत क वीरता दे खकर बाबर भी एकबारगी सोच म पड़ गया। पर
कसी व ासघाती ने महाराणा को वष देदया। महाराणा केनधन से
79
ह आ सू य अ त हो गया। मे वाड़ क राजग पर कु ँवर र न सह
आसीन ये ।
महाराणा सांगा क धमप नी धनाबाई केपुथे र न सह और
उनक सरी प नी कमावती बाई केपुथे - व मा द य और कु ंवर
उदय सह। रानी कमावती क तरफ महाराणा का वशे ष झुकाव था और
उसने कुछ जागीर अपने पु केनाम पहले से ही लखवा ली थ और
अब उसक मे
वाड़ क राजग पर थी।
यह प रवा रक वै मन य र न सह केकोमल दय केलए
ाणघातक स आ। और र न सह के साथ ही उनक प नी पँ वार जी
सती हो गई। इनके एक पुी थी याम कु ँ
वर बाईसा जसे अपनी बड़ी माँ
मीरा सेखूब ने ह मला।
च ौड़ क ग पर बै ठे क लयु ग केअवतार राणा व मा द य।
वह अ व ासी और ओछेवभाव केथे जो सदा खदमतगार , कु टल
और मू ख लोग सेघरे रहते। जन व वसनीय साम त पर पू ण रा य
टका था, उ ह ध क म खी क तरह बाहर नकाल दया गया।
राणा व मा द य ने एक दन बड़ी बहन उदयकु ँवर को बुला
कहा, "जीजा ! भाभी हाँरा को अज कर द क नाचना-गाना हो तो महल
म ही करने क कृ पा कर। वहाँ म दर म चौड़े चौगान , बाबा क भीड़
म अपने घाघरा फहराती ई अपनी कला न दखाय। यह रीत इनके
पीहर म होगी, हम ससौ दय के यहाँ नह है ।"
उदयकुँवर बाईसा ने मीरा केपास आकर अपनी ओर से नमक
मच मला कर सब बात कह द । "पहले तो अ दाता और भाईसा
आपको कु छ नह कहते थेपर भाभी हाँ रा ! राणा जी यह सब न सहे ग,
वह तो आज ब त ोध म थे । सो दे खए आपका फज हैक इ ह स
रख। और अब से आप म दर न पधारा कर।" इसका उ र मीरा ने
तानपुरा उठाकर गाकर दया ..........
राणाजी म तो गो वद केगुण गासूँ

राजा ठै , नगरी राखै। ह र ठयो कहाँ जासू

?
ह र म दर म नृ य करासू ँ
, घु

घ रया धमकासूँ

यह संसार बाढ़ का काँटा, जीया संगत नह जासू

80
मीरा कहेभुगरधर नागर, नत उठ दरसन पासू ँ

राणाजी म तो गो वद के गुण गाऊं सूँ

उदयकु ँवर तो मीरा का भजन सु नकर और ो धत हो उठ -"अरे ,
राणाजी व मा द य बाव जी कम भोजराज नह ह जो वष केघू ँ

भीतर ही भीतर पीकर सू ख गये । एक दन भी आपने मे
रेभाई को सुख
सेनह रहने दया। जब से आपने इस घर म पाँव रखा है हमारेघरानेक
लाज केझं डे फहराती रही हो। अरे , अपने माँ
-बाप को ही कह दे ती क
कसी बाबा को ही याह दे त।ेमेरेभीम और अजु न जै से वीर भाई तो
न ास छोड़-छोड़ कर न मरते ।" फर उदयकु ँवर हाथ जोड़ कर बोली -
"अब तो दे खने को बस, ये दो भाई रह गयेह। आपकेहाथ जोडू ँ
ल मी !
इ ह :खी न करो, अपने ताँ
गड़े त बूरे
लेकर घर म बैठो, हम मत राँ
धो।"
मीरा ने धैय से सब आरोप सु नेऔर कसी का भी उ र दे ना
आव यक न समझा। ब क वयं क भजन म थ त और भ म ढ़
रहनेकेसं क प को बताते येमीरा नेफर तानपु रेपर उँ गली
फेरी..........
बरजी म का क ना ह र ँ ।
सु
ण री सखी तु म चेतन होय केमन क बात क ँ॥
साधुसं ग त कर ह र सुख दले ऊँजग सूँर र ँ

तन मन मे रो सब ही जावौ भल मेरो सीस ल ॥
मन मेरो लागो सु मरन सेती सब का बोल स ँ।
मीरा के भु ह र अ वनासी सतगु चरण ग ँ ॥
तु
नक करकेउदयकु ँवर बाईसा चली ग । राणाजी ने ब हन को
समझाया - " गरधर गोपाल क मू त ही य न चु रा ली जाये
। सब अनथ
क जड़ यही बला ही तो है।"
सरेदन सचमु च ही मीरा ने देखा क ठाकु र जी का सहां सन
खाली पड़ा है तो उसका कले जा ही बै ठ गया। कहते ह न गलहरी क
दौड़ पीपल तक ! मीरा कसको कहे और या ? उसने तानपुरा उठाया
और ँ धे
क ठ से वाणी फूट पड़ी .........
हाँ
री सु
ध यू

जाणो यू

लीजो।
पल पल ऊभी पं थ नहा ँदरसन हाँ
नेद जो।
81
म तो ँब औगु णवाली औगु ण सब हर लीजो॥
म तो दासी चरणकँ
वल क मल बछड़न मत क जो।
मीरा के भुगरधर नागर ह र चरणाँचत द जो॥
(ऊभी -अथात कसी क ती ा म खड़े रहना)
झर-झर आँ सू से मीरा केव भीग रहे थे। दा सयाँ
इधर-उधर
खड़ी आँ सू बहाती ववशता सेहाथ मल रही थ । मीरा का गान न का।
एक केबाद एक वरह का पद मीरा गाती जा रही है - आँसू क तो
मान बाढ़ ही आ गई हो। तभी मथु ला ने उतावलेवर म कहा - "बाईसा
कम, बाईसा कम !"
मीरा क आकु ल मथु ला क ओर उठ तो उसनेसहासन
क ओर सं केत कया। उस ओर दे खते ही हष के मारेमीरा नेसहासन से
उठाकर गरधर केव ह को दय से लगा लया। आँ सु सेगरधर को
अ भ ष करती ई कहने लगी- "मे
रेनाथ ! मेरेवामी ! मु
झ खया के
एकमा आधार ! मु झेछोड़कर कहाँ चले गये थे आप ? ँ धेयेक ठ से
वह ठाकुर को उलाहना दे
ते
न थक रही थी......
म तो थाँ
रे
भजन भरोसेअ वनासी।
तीरथ बरत तो कु
छ नह क णो, बन फरे
हैउदासी॥
जंतर मं
तर कुछ नह जाणू,ँ
वे
द पढ़ नह कासी॥
मीरा के भुगरधर नागर, भई चरण क दासी॥
"येभागवत पुराण सब स चे ह या, बाईसा कम ?" एक बार
मथुला ने पू
छा। " य , तु
झे झू
ठेलगते ह या ?" मीरा नेहँ
सकर कहा।
"इनम लखी बात अनहोनी लगती ह। रावण केदस माथे थे
। ऋ षय म
इतनी स क वह ोध म ाप भी दे दे
तेथे
।" "कालच केसाथ
संसार, इसके ाणी और उनक श याँ - प आ द सब कु छ बदलते
रहतेह। आज हम जो कु छ दे
ख रहेह, स भवतः पाँ
च सौ वष केप ात
लोग इसे झू
ठ या अनहोनी कहने लग जाय।"
ना है
"सु बाईसा कम, क भु का वधान सदा मं गलमय होता है
और उसी म जीव का भी मं गल न हत होता है
। फर आप जै सी ानी
और भ केसाथ इतना अ याय य ? खोटे लोग आराम पाते ह और

82
भले लोग :ख क वाला म झु लसते रहते ह। लोग कहते ह क धमा मा
को भगवान तपाते ह, ऐसा य कम ? इससे तो भ का उ साह ठं डा
पड़ता है ।" मथु ला नेह मत जु टाकर मीरा केपास अपनी ग सरकाते
ये कहा। फर हाथ जोड़ कर बोली, "ब त बरस से मन क यह उथल
पुथल मु झेखा रही है। य द कृ पा हो तो ............।"
"कृपा क इसम या बात है ।" मीरा ने कहा -"जो सचमु च जानना
चाहता है उसे न बताना जानने वाले केलए भी दोष है ।" "हाँ
, भगवान के
वधान म जीव का उसी कार मं गल है , जस कार माँ केहर वहार
म बालक का मं गल न हत है । वह बालक को खलाती, पलाती, सु लाती
अथवा मारती भी है तो उसकेभले केलए ही, उसी कार ई र भी
सदै व जीव का मं गल ही करते ह।"
"पर कम ! आपने तो कभी कसी का बु रा नह कया, फर य
:ख उठाने पड़ रहे ह ?" "बता तो, चौमासे म बोयी फसल कब काट
जाती है ?" मीरा नेहँसकर पू छा। "आ न-का तक म। "और का तक म
बोयी ई को ?" "चै- वशाख म।" तो फर कम क खे ती तुर त कै सेपक
जाये गी ? वह भी इस ज म का कमफल अगले ज म म मले गा। कोई
कोई बल कम अव य तु र त फलदायी होते है।"
" क तुकम ! अगले ज म तक तो कसी को याद ही नह रहता।
इसी कारण अपने:ख केलए मनु य सरे लोग को अथवा ई र को
दोषी ठहराने लगता है । हाथ -हाथ कमफल मल जाये तो श ा भी मल
जाये और मन-मु टाव भी कम हो जाये ।"
"यह भूल न होती मथु ला ! तो अपने कम का बोझ उठाये मनु य
कैसे जी पाता ? य द हाथ -हाथ कमफल मल जाये तो उसेाय त
करने का अवसर कब मले गा? भगवान केवधान म सजा नह सु धार है
,
मथु ला ! जैसेबालक ग दे क चड़ म गरकर पू रा लथपथ होकर घर आये ,
माँ केमन म अथाह वा स य होतेये भी जब तक माँ उसे नहलाकर
व छ नह कर ले ती, तब तक गोद म नह ले ती। अब नासमझ बालक
यह न समझ पाये और रोये - च लाये , माँ को भला बु रा कहे तो या माँ
बुरा मानती है ? वह तो बालक को व छ करकेही मानती है । और हम
सब उस बालक जै से ही ह, जो अपना अ छा बु रा नह समझते ह।
83
मथु ला, च पा और सरी दा सयाँ धै
य से अपनी बाईसा सेान
क बात सु न रही थ । मीरा नेफर कहा, "इस सं सार म कह भी सु ख
नह है । सुख और आन द जु ड़वाँभाई ह, इनके मु
ख क आकृ त भी एक
सी है, पर वभाव एक सरे सेवपरीत है। मानव ढूँ
ढता तो है आन द को,
क तु मुख-सा य केकारण सु ख को ही आन द जानकर अपना ले ता है

और इस कार, आन द क खोज म वह ज म ज मा तर तक भटकता
रहता है ।" "इनकेवभाव म या वपरीतता है ?" मथु ला ने ज ासा क ।
"आन द सदा एक सा रहता है । इसम घटना बढ़ना नह है । पर
सु ख मलने के साथ ही घटना आर भ हो जाता है । इस कार मनु यक
खोज पू री नह होती और जीवन के ये क पड़ाव पर वह सु खी होनेका
व दे खता रहता है ।" एक बात और सु न मथु ला ! इस सु ख का एक
म भी है और यह दोन म एक ही वभाव केह। उसका नाम है
:ख। :ख भी सु ख के समान ही मलते ही घ ने लग जाता है अतः य द
सु ख आये गा तो उसका हाथ थाम :ख भी चला आये गा।" "आन द क
कोई पहचान बाईसा ? उसका ठौर ठकाना कै से ात हो क पाने का
य न कया जाये ।"
"पहचान तो यही हैक वह इकसार है , वह ई र का प है ।ई र
वयं आन द व प ह। जै से सुख केसाथ :ख आता है , उसी कार
आन द से ई र क ती त होती है । इसे पानेकेबाद यह खोज समा त
हो जाती है । अब रही ठौर ठकाने क बात, तो वह गुऔर सं तो क
कृ पा सेा त होता है । उसकेलए स सं ग आव यक है । सं त जो कहे ,
उसे सु नना और मनन- च तन करना और भी आव यक है ।"
मीरा धै य सेमथु ला क ज ासा केउ र म कतने ही भ के
का समाधान करती जा रही ह। फर मीरा ने आगे कहा, " :ख और
सु ख दोन का मू ल इ छा है और इ छा का मू ल मोह है । एक इ छा क
पू त होते ही उसी क कोख से कई और इ छाय ज म ले लेती ह। यही
तृ णा है और इसका कह भी अ त नह ।" मीरा ने थोड़ा ककर फर
कहा, "अब हम आन द का भी व प समझ। जै से हम सरे सुखी
दखाई दे ते ह, पर वे सु
खी ह नह । उसी कार जनको आन द मलता है ,
वे बाहर से:खी दखाई दे नेपर भी :खी नह होते ।"

84
"बाईसा कम ! एक बात बतलाइये , या भ और अ छे लोग
पछले ज म म कम ही करके आये ह क वतमान म :ख पाना उनका
भा य बन गया, और सभी खोटे लोग पछले ज म म धमवान थेक इस
ज म म मनमानी करतेयेपछले कम केबल पर मौज मना रहे ह ?"
"अरे नह , ऐसा नह होता। शु भ, अशुभ और म त तीन कार केकम
होते ह। जैसे पापी के वल पाप ही नह , कभी जाने -अ जाने म पु य भी
करते ह, उसी तरह पु या मा के ारा भी कोई न कोई अ जाने म
अपराध हो जाता है । तुमने दे
खा होगा मथु ला ! माता- पता अपनी संतान
म त नक सी भी खोट सह नह पाते ह। य द दो बालक खे लतेये लड़
पड़े तो माता-बाप अपने ही ब चेको डाँटतेह क तू उसकेसाथ खे लने
य गया ? ठ क वै से ही भु अपने भ म त नक सी का लख भी नह
दे
ख-सह पाते ।" मीरा नेसमझातेये कहा।
फर मीरा ने आगे कहा, "जब ार ध बनने का समय आता है तो
भ केसं चत कम से ढूँ
ढ-ढूँ
ढ करकेबु रे
कमफल का समावे श कया
जाता है , क शी -से -शी यह सब समा त हो जाय और वह भु के
आन द को ा त कर सक। सरी तरफ, पा पय पर दया करकेशु भ
कम का फल ार ध - भोग म समावे शत कया जाता हैक कसी भी
कार यह स सं ग पाकर सु धर जाये। य क भ के पास तो भगवान के
नाम पी च ताम ण हैजसकेबल से वह क ठन ;ख और वप य
को सह जाता है । फर भु क उसपर से जरा भी नह हटती। यही
कारण हैक भ स जन ;खी और जन सु खी दखाई दे तेह।"
"जगत म इतने लालच ह बाईसा कम ! य द भ नामक जीव
अशे ष :ख उठाकर प र थ तय क शला सेफसल गया, तो वह
बेच ारा तो दोन ओर से गया।" मथु ला केऐसा कहने पर सरी दा सय
नेमु करातेये हाँ
म हाँमलाई।
मीरा नेइस सं शय का समाधान करतेये कहा, "य द इस पथ का
प थक वच लत होकर सं सार के वषय के लोभन सेअथवा
प र थ तय क शला सेफसल भी जाये तब भी भगवान उसके जीवन
म कई ऐसेसं ग उप थत करते ह, जससे वह सं भल जाये । य द वह
नह सं भल पाये तो अगला ज म ले नेपर जहाँ से उसने साधना छोड़ी थी,

85
वह से वह आगे चल पड़े गा। मथु ला ! कहाँ तक क णासागर भगवान
क क णा का बखान क ँ , उसकेअरा य बार-बार फसलने का खतरा
उप थत ही नह होने देत।ेअपने भ क सं भाल भुवयं करते ह।"
मीरा ान, वै रा य और भ के क ठन वषय को सरल श द म
अ त ने ह से समझाती ई बोली, " मथु ला ! अगर भगवान प र थ तय
म नज जन को डालते ह तो ण- ण उसक सं भाल का दा य व भी
वयं ले
तेह। देखो, :ख क सृ मनु य को उजला करने केलए ई है ,
य क :ख से ही वैरा य का ज म होता है और भु सु
ख ा त केलए
कए गये ये क य न को नर त कर दे ते ह। हार थककर वह सं सार
क ओर पीठ दे कर चलने लगता है । फर तो या कह ? सं त, शा और
वेसभी उपकरण, जो उसक उ त म आव यक ह, एक-एक करके भु
जुटा दे
ते ह। इस कार एक बार इस भ केपथ पर पाँ व धरने के
प ात ल य केशखर तक प ँ चना आव यक हो जाता है , भले दौड़कर
प ँच या पं
गु क भां त सरकते - खसकते प ँच।"
" जसने एक बार भी स चे मन से चाहा क ई र कौन है ? अथवा
म कौन ँ , उसका नाम भ क सू च ी म लखा गया। उसकेलए सं सार
के ार ब द हो गये । अब वह सरी ओर जाने केलए चाहेजतना
य न करे कभी सफल नह हो पाये गा। गर- गर कर उठना होगा। भू ल-
भूल कर पुनः भ का पथ पकड़ना होगा। पहले और पछले कम म से
छाँ
ट-छूँ
ट करके वेकमफल ार ध बनगे , जो उसे ल य क ओर ठे ल द।"
"जैसेवणकार वण को, जब तक खोट न नकल जाये , तब तक
बार-बार भ म पघला कर ठं डा करता है और फर कू ट-पीट कर,
छ लकर और नाना र न से सजाकर सु दर आभू षण तै
यार कर दे ता है,
वै
से ही भु भी जीव को तपा-तपा कर महादे व बना देते
ह। एक बार चल
पड़ा फर तो आन द ही आन द है ।"
"परस एक महा माजी फरमा रहे थेक कमफल या तो ान क
अ न म भ म होते ह अथवा भोग कर ही समा त कया जा सकता है ,
तीसरा कोई उपाय नह है ।" च पा ने पू छा, "बाईसा कम ! भ य द
मु पा ले तो उसके संचत कम का या होगा?"
"ये कम भ का भला बु रा करने वाल म और कहने वाल म बँ ट

86
जायगे । समझी ?" मीरा अपनी दा सय क ज ासा सेस हो मु कुरा
कर बोली, "आजकल च पा ब त गु ननेलगी है ।" च पा सर झु का कर
बोली, "सरकार क चरण-रज का का ताप है । लगता है , मने भी कसी
ज म म, 'ई र कौन है ' यह स य जानने क इ छा क होगी जो भु ने
कृपा करके आप जै सी वा मनी के चरण का आ य दान कया है ।"
राणा व मा द य का ोध मीरा पर दन पर दन बढ़ता जा रहा
था। र नवास क याँभी दो भाग म बँ ट ई थ - कु छ मीरा क ओर
और कु छ कमावती बाई एवं उदयकु ँ
वर बाईसा क ओर। इस दल को
महाराणा क भी शह मली ई थी। कभी-कभी तो कमावती कहती,
"जब से यह मेड़तणी का हमारे का यहाँ पाँ
व पड़ा है - क क सीमा
नह , यह मरे तो रा य म सु ख शां त आये ।"
एक दन उदयकु ँवर केप त पधारे तो उ ह ने उलाहना दया,
"तुहारी भाभी बाबा केबीच नाचती गाती है - यह कै सी री त हैह
प त राणा केघर क ?" उदयकु ँ
वर नेसरे ही दन मन क सारी भड़ास
मीरा पर नकाल द -"आपको पता है भाभी हाँ रा, आपकेजँ वाईसा
पधारे ह और आपकेकारण मु झे उनकेकतने उलाहने , कतनी बात
सुननी पड़ रही है ।"
मीरा नेशांत मन से कहा, "बाईसा ! जनसे मेरा कोई प रचय या
ने
ह का स ब ध ही नह , उनके ारा दए गये उलाहन का कोई भाव
मु
झ पर नह होता।" मीरा का शां त और उपेत उ र सु न उदयकु वँर
मन ही मन जल उठ - " क तु भाभी आप इन बाबा का सं ग छोड़ती
युँ
नह ? सारे सगे -स ब धय म थू -थूहो रही है। जब बावजी कम का
कैलाश वास आ तब तो आप सोलह ृ ं
गार कर आप शोक मनाती रही
और अब ये तु
लसी क माला को हाथ और गले म बाँ धेफरती ह
जैसे कोई नधन औरत हो। पू रा राजप रवार आपके वहार केकारण
लाज से मरा जा रहा है ।"
मीरा ने
उसी तरह शां त वर म कहा, " जसने शील और सं तोष के
गहने पहन लए हो, उसे सोने और हीरे -मो तय क आव यकता नह
रहती बाईसा।" उदयकु ँवर और ो धत होकर कहने लगी, " कसी ब -
बे
ट को कोई ढं ग से सुस जत हो मलने आये तो कसी को अ छा भी
लगे पर आपको तो मलने वाले तो कोई करताल खड़काते , गेआ व
87
पहने, वभू त लगाये , मुडत म तक, तु लसी और ा क मालाय
पहने, जटा वाले बाबा का ही झु ड
ंआता दखाई दे ता है
, जैसेशव
जी क बारात आ रही हो।" उदा ने मुँ
ह बचकाया।
मीरा मु कराई, "बाईसा ! यहाँशव एक लग नाथ ही ह तो उनक
बारात से ल जत होना तो अ छ बात नह है । म तो अपने झर ख से
झाँ
ककर जब इन साधु बाबा को दे खती ँ तो फूली नह समाती,
ब क अपना भा य सराहती ँ । साधु-सं
ग तो जगत से तार देता है
बाईसा !" उदयकु ँ
वर ो धत हो चली गई।
इधर मीरा का यश बढ़ता जा रहा था। म दर म और महल क
ोढ़ पर या य और सं त क भीड़ लगी रहती। मीरा जब भी म दर
पधारत मथु ला, च पा साथ ही रहती। जो मीरा केभजन लखना चाहते ,
वेच पा को घे रेरहतेय क भजन क पुतका उसी केपास रहती।
मीरा ने ठाकुर जी को णाम कया और फर आयेये संत भ को
भी। एक साधु ने मीरा केदशन कर गदगद क ठ से आ ह कया, "माँ !
कुछ कृ पा हो जाये।" मीरा नेवन ता से गाना ार भ कया ......
राम क हए, गो बद कही मे
र,ेराम क हए, गो बद कही मे
र।े
संतो कम क ग त यारी ..संतो॥
बड़े बड़ेनयन दए मृ गनको, बन बन फरत उठारी।
उ जवल बरन द न बगलन को, कोयल करती नठारी।
संतो करम क ग त यारी...सं तो॥
और नद पण जल नमल क नी, समु ंकर दनी खारी..
संतो कम क ग त यारी...संतो॥
मुख को तु
म राज द यत हो, पं डत फरत भखारी..
संतो कम क ग त यारी.....संतो॥
इ ह दन मे ड़ते से कु
ँवर जयमल और उनकेछोटे पुभँ वर
मु
कु द दास मीरा को ले
नेच ौड़ पधारे । दस वष केमु
कुद दास क
वीरता इतनी क राजपू ती गौरव ही देह धारण कर आया हो। दोन
प रवार केवचार वमश से र न सह क छः वष क पुी यामकु ँ
वर का
याह मु
कु द दास केसाथ कर दया। नयी ब उसक धाय माँ और मीरा
केसाथ नई ब का सारा समान मे ड़ता रवाना आ।
88
मुकु द दास नेकम दाता वीरमदे व जी को च ौड़ का सब
वृ
ता त सु नातेये महाराणा व मा द य केओछेवभाव केबारे म
बताया और कहा, "वह सारा समय भाँ ड और गवै यो केसाथ राग-रं गम
डूबे नशा करते ह। सारेरा य क बागडोर हली ई है । और राणाजी
बु
वासा और उनक भ से ब त नाराज ह।"
"मेरेफू फासा (भोजराज) कै से थे बाबोसा ?" " या क ँ बेटा ! जै
से
शांत रस प म घु लकर एक हो जाये , जैसे सोने म सु ग ध मल जाये ।
जैसे कत और भ मल जाय, वै से ही प, गु ण और वीरता का
भंड ार था मेरा जवाई। जै से तेरी बु
वासा भ करती है , कोई और होता
तो कतनेववाह कर ले ता। मे वाड़ केराजकु वंर को बीनणी क या
कमी थी पर उ ह ने पहले से ही सरेववाह केलए मना कर दया था।
याम कुंभ के पास जो म दर है न, वह ते रेफूफोसा ने ही बुवासा केलए
बनवाया था।"
मीरा इतने बरस केबाद मे ड़ता आई। मायकेम न च ता करने
वाली माँ थी और न पता जी। वह कु छ बरस पहले ही यु म मातृ भूम
केलए वीरग त को ा त हो गये थे। मेड़ता म आकर मीरा ने जगत का
प रवतनशील प दे खा। जस महल म उसका बचपन माँ के साथ बीता
था उसम जयमल और उनक प नी रहती है । छोटे-छोटे बालक जवान हो
गये थेऔर जवान केववाह और बालक हो गये । दाता कम (वीरम
दे
व जी) थोड़े -थोड़ेदाजी क तरह ही दखने लगे थे। वैसेही दाजी के
पलं ग पर वराज कर माला फे रतेये अपनी काली धोली दाढ़ को
सँवारते पोते पो तय से ब तयाते । मीरा को मरण हो आया अपना
बचपन - जब पाँ च बरस क मीरा आँ ख म आँ सू भरे पलं ग के पास खड़ी
पू
छ रही है - "बाबोसा ! एक बेट केकतने ब द होते ह ?"
उसक आँ ख म आँ सू और ह ठ पर हँ सी तैर गई। बाबोसा उसके
सुघड़ श पी, उ ह ने ही तो गढ़ा था उसे । वे ही तो जगत म उसकेपहले
और सबसे बड़े अवल ब थे । और सरे महाराजकु मार (भोजराज), दोन
ही छोड़ गये ।
"दाता कम ! आप तो बाबोसा जै सेदखने लगे ह !" मीरा नेवयं
को सं भालतेये कहा। "अब तो बु ढ़ापा आ ही गया है बे
टा ! च ौड़ के
या हाल सु न रहा ँ । कहते ह राणा जी राग-रं ग म डू बेरहते ह। चौ कयाँ
89
भी सब ढ ली है ।" "बाबोसा ! राजमद सब पचा नह पाते
।" मीरा नेकहा।
वीरमदे व जी ने मीरा को नई न ह ब दनी याम कु ँ
वर का वशे ष
यान रखने का कहा ता क वह उदास न हो। मीरा बाबोसा को णाम
कर नकली तो उसके पग वभावतः याम कुज क ओर बढ़ चले । मीरा
और गरधर केआने सेयाम कुज फर से आबाद हो गया था, मान
उसके ाण ही लौट आये ह । मीरा ने
पहलेक तरह ही अपने गरधर के
लए तान छे ड़ ी....
ऐ री म तो म
ेद वानी ........
मीरा के
आने सेमेड़ते म भ क भागीरथी उमड़ पड़ी। मीरा के
दशन-स सं ग केलए च ौड़ गये , संत-महा मा लौटकर मे ड़ता आने
लगे। याम कुज क रौनक दे खते ही बनती थी। मेड़तेसे एक वष के
प ात मीरा नेच ौड़ पधारने केलए थान कया।
च ौड़ क सीमा पर मीरा को दखाई दए उजड़ेए गाँ व जले
ए खे त, उजड़ेये खेत और सतायेये मनु य और पशु । ऊपर से
सैनक उ ह कर केलए और परे शान कर रहे थे
। चार ओर अराजकता
दे
ख मीरा को ब त :ख आ। उसनेजा को यू ँववश और :खी दे ख
अपने और दा सय केगहने उतरवा कर सै नक केदेदये । मीरा के
च ौड़ प ँ चते
ही ो धत होकर राणा उनकेमहल म प ँ च बरस पड़ा -
"आज अज कर रहा ँक मु झे मे
रा काम करने द। अब कभी बीच म न
प ड़येगा। नह तो मुझसे बु
रा कोई न होगा। चार ओर बदनामी हो रही है
क मेवाड़ क कु वं
रानी बाबा क भीड़ म नाचती है । सुन-सु
न कर
हमारेकान पक गये , पर आपको या च ता ?"
एक भ को अपने ठाकुर जी से जु
ड़ ी हर बात य लगती है
यहाँतक क इस भ के स ब ध सेमली बदनामी भी वह मधु र अमृत
क तरह वीकार कर ले ता है। शा त, अ वच लत, धीर, ग भीर समुक
सी मुखमुा धारण कए, मीरा ने अपना सदा का अवल बन तानपु रा
उठाया और गानेलगी ........
या बदनामी लागे
मीठ हो ह प त राणा।
मीरा कहे भु गरधर नागर,

90
चढ़ गयो रं ग मजीठ हो ह प त राणा॥
(मजीठ - प का रंग, जसके ऊपर कोई और रं ग न चढ़ सके )
महाराणा का ोध मीरा केलए षडय केजाल बु नने लगा।
एक दन उदयकु ँवर बाईसा नेआकर मीरा से कहा, "राणाजी ने आपक
सेवा म यह दा सयाँ भे
जी ह।" "बाईसा ! मे
री या सेवा है? मेरेपास तो
एक ही दो पया त ह।" मीरा नेहँ
स कर कहा। "चलो लालजीसा ने भे
जी
हैतो छोड़ पधारो।"
दस बारह दन बाद मथु ला क सारी देह म दाह उ प हो गया।
वैजी आये और उ ह नेकहा क छोरी बचे गी नह । जाने-अ जाने म पेट
म वष उतर गया है । उस दन मीरा म दर म नह पधारी। रसोई बं द रही।
दा सय केसाथ समवे त वर म क तन केबोल से महल गू ज
ँता रहा।
मथुला का सर गोद म लेकर मीरा गाने लगी-
ह र मे
रे
जीवन ाण अधार।
और आसरो नाह तु म बन तीन लोक मँ झार॥
तु
म बन मो ह कछुन सुहावैनर यो सब सं
सार।
मीरा कहेम दासी रावरी द जो मती बसार॥
"बाईसा कम !" मथु ला नेटू
टतेवर म कहा, "आशीवाद द जये
क ज म-ज मा तर आपकेचरण क से वा ा त हो।" " मथु ला ! तू
भा यवान है ।" मीरा ने
उसकेसर पर हाथ फै रतेये कहा। " भु तुझे
अपनी से वा म बुला रहेह। उनका यान कर, मन म उनकेनाम का जप
कर। सरी ओर से मन हटा ले। जातेसमय या ा का ल य ही यान म
रहना चा हए, अ यथा या ा न फल होती है ।" मीरा ने मथु
ला के मुखम
चरणामृत डाला।
"बाईसा कम ! दे ह म ब त जलन हो रही है । यान टूट-टू
ट जाता
है
।" "पीड़ा देह क हैमथु ला ! तूतो भु क दासी है । अपना व प
पहचान। पीड़ा क या मजाल है ते
रेपास प ँचने क ? देह क पीड़ा
आ मा को पश नह करती पगली ! दे ख, यान से सुन, म पद गाती ँ, तू
इसके अनु सार भु क छ व का च तन करने का यास कर.........
जब स मो ह न दन दन पय माई।

91
तब त लोक - परलोक कछुन सोहाई॥
मोरन क चँ कला सीस मु कुट सोहे।
केसर को तलक भाल तीन लोक मोहे ॥
कुडल क झलक अलक कपोलन पै छाई।
मनो मीन सरवर त ज मकर मलन आई॥
कुटल भृकुट तलक भाल चतवन म टोना।
खंजन अ मधु प मीन भूलेमृ ग छौना॥
सुदर अ त ना सका सुीव तीन रे खा।
नटवर भुभे ष धर प अ त वसे षा॥
अधर ब ब अ ण नै न मधुर मंद हाँ
सी।
दसन दमक दा ड़म त चमके चपला सी॥
छु घंट ककणी अनू प धु न सुहाई।
गरधर केअं ग - अंग मीरा ब ल जाई॥
मथुला नेी कृण का नाम ले दे
ह याग द । मथु ला केयू ँ
जाने
से च पा चमे ली को ात हो गया था क आने वाली दा सयाँ कैसी ह।
उ ह नेमलकर म णा कर सतकता से अपनी वा मनी केसारे काय
वयं ही बाँ
ट लये । पर फर भी आयेदन कु छ न कुछ राणा क सा जश
से घट ही जाता।
मीरा क म े-भ , भजन-व दन क स फै लती जा रही थी।
महाराणा व मा द य ने ब त य न कया क उनका स सं ग छूट जाये
,
पर तु पानी केबहाव को और मनु य केउ साह को कौन रोक पाता है ।
सारंगपुर केनवाब ने मीरा क या त सु नी तो वह अपने मन को रोक
नह पाया। अतः वह वे श बदल कर अपने वजीर केसाथ वह मीरा के
दशन करने केलए हा जर आ।
दोन वे श बदल कर घोड़े पर आये और म दर म आकर साधु -
स त केपीछे बै
ठ गये। मीरा म दर क वेद केसम बाँ यी ओर अपनी
दा सय केसाथ वरा जत थ । घू ँ
घट न होतेये भी सर केप लू से
उसने म तक तक वयं को ढक रखा था। च पा और अ य कई साधु
लखने क साम ी और पोथी ले कर बै
ठेए थे। पदा खुलते ही सब लोग
उठ खड़ेये ।

92
"बोल गरधरलाल क जय !" "साँ व रया सेठ क जय !"
मीरा केतानपु रा उठातेही च पा केसाथ-ही-साथ कइय क
कलम कागज पर चलने लग । मधुर राग- वर क मो हनी नेसबकेमन
को बाँध लया। भावावे ग से मीरा क बड़ी-बड़ी आँ ख मु

द ग । शां

कैसी होती है, यह तो ऐसे सा वक वातावरण म बै ठेब त लोग नेपहली
बार ही जाना। शाह के दय म तो सु ख और शां त का समुजै सेहलोर
लेनेलगा। यह उसकेलये एक आलौ कक अनु भव था।
म तो साँ
वरेकेरं
ग राची..........॥
सा ज सगार बाँ ध पग घु ँ
घ , लोक लाज त ज ना च रे........॥
गई कु म त, लई साधुक सं ग त, भगत प भई साँ च ी।
गायेगायेह र केगु ण नस दन, काल ाल स बा च रे . ..........॥
उन बन सब जग खारो लागत, और बाट सब बाँ च रे ।
मीरा ी गरधरन लाल क , भक त रसीली जाँ च रे ......॥
म तो साँ
वरेकेसं
ग राची.........॥
मीरा के दय का हष फू ट पड़ा था। उसक आँ खो सेझरते आँ सू
तानपुरेपर गर मो तय क तरह चमक रहे थे। रा गनी धीमी होती ठहर
ग । सभी केमन धु लेये दपण क तरह व छ उजले हो चमक उठे ।
भजन पू रा होनेपर भी उसक आँ ख न उघड़ी। शाह म ेभ का यह
व प दे ख असमं जस म था। वह उस म ेक ऊँ चाईय को मापने का
य न कर रहा था जसम खु दा केलये यूँ
झर-झर आँ सूझरते ह।
मीरा का गान व मत आ तो एक साधु नेगदगद क ठ से कहा,
"थोड़ी कृ पा और हो जाये ।" "अब आप ही कृ पा कर बाबा ! भु के प-
गुण का बखान कर यासेाण क तृ षा को शांत करने क कृ पा हो !"
मीरा ने वन ता से कहा। "यह तृ षा कहाँशांत होती है?" सरे संत बोले
- "यह तो जतनी बढ़े और दावानल का प ले ले, इसी म लाभ है। आप
ही ी यामसु दर के प माधु री का पद सुनाईये।"
मीरा नेतानपुरा उठा फर तान छे ड़ ी। समय एकबार फर मधु र
रा गनी क झं कार सेबँ
ध गया ........
बृ
ज को बहारी हाँ
रे
हवड़े
ब यो छे

93
क ट पर लाल काछनी काछे , हीरा मोती वालो मु
कु
ट धरयो छे

ग ह र ो डाल कदम क ठाड़ो, मोहन मो तन हे र हँयो छे॥
मीरा के भुगरधर नागर, नर ख गन म नीर भरयो छे ॥
भजन पू रा होनेकेप ात भी कु छ देर तक वातावरण म
आन दा धक से स ाटा रहा। फर मीरा ही ने एक सं त क ओर दे खकर
कहा, "आप कु छ फरमाईये क सब लोग लाभा वत हो।"
तो कसी ने ज ासा क - "गु कौन ? कहाँमल ? कै सेमल ?"
संत कहने लगे, "सबसे पहले तो यह समझ क गुका व प या है ?
परम गु शव ही ह। हम गुको दे ह प म भले देखते ह , पर उसम जो
गुत व है वह शव ही है । यह ठ क वै से ही है
जैसेशव लग म शव ह।
हम पूजा अचना शव लग क करते ह, क तु उस पू जा को वीकार
करनेवालेशव वयं ह, और वही हमारा क याण करते ह। गुक
पा चभौ तक दे ह, पूजा-भ - ा का मा यम हैक तुउपदे श दे
ने
वालेया स - होनेवालेशव ही ह।"
"अब यह हैक गुकै सेमल ? शव सव ह। य द सचमु च
म आपको आव यकता है , आतु रता है , तो वह कसी भी व प म
मलगे ही, इसम स दे ह नह । अब घर बै ठेमले या, खोज से ? गुक
आव यकता होने पर वे चाहे भी तो चै न से बै
ठ नह पायगे -वेअपनी
समझ से अपनेेम खोज करगे और इसम भटक भी सकते ह। क तु
खोज अगर स ची है तो गुअव य मलगे । जो खोज नह कर सकते
उनकेलए ाथना और ती ा ही अवल ब है । उ ह वह वयं उपल ध
ह गे
, कस प म होग, कहा नह जा सकता, पर उनका मनोरथ अव य
पूण होगा।"
"अब कै सेात हो क ये संत ह, गुह ? जनके सा न य-सामी य
से अपने इ क दय म वयंफू त हो, वह सं त है। और भगव ाम
सुनकर जसका दय वत हो जाये , वह है साधक। यह आव यक है
क अपनी च का इ और अ धकार के अनुप गुहो, अ यथा लाभ
होना क ठन है ।" संत नेज ासा अनु सार सब का उ र दे कर
कतने ही और पहलु पर काश डालतेये कहा।
इतना आलौ कक वातावरण, भावभ पू ण सं गीत और फर ान

94
से भरी कथा-वाता वण कर नवाब का म तक ा से झुक गया।
उसकेलए यह अनु भव नया था। उसने अपना आप सं भाला और धीरे -
धीरेमीरा केस मु ख जाकर हाथ जोड़कर गदगद क ठ से बोला, " नर
(कला), नूर (ते
ज) और उसकेऊपर खु दाई मुह बत यह सब एक साथ
नह मलते और न ही एक जदगी क ब शीश (एक ज म का फल) हो
सकते ह। आज आपका द दार करकेऔर खु दा का ऐसा क र मा
दे
खकर यह नाचीज सु ख आ। अपने खुदा केलये इस नाचीज क
छोट सी भट कबू ल करकेमु झ पर एहसान फरमाईये ।" उसने जे ब से
हीर का हार नकाला और अं ज ल म लेकर नीचे झु
का।
"येजैसे मे
रे ह, वैसेही आपकेभी ह, क तुये शु मन के
न छल भाव केभू खे ह। यह जा का धन आप गरीब म से वा म
लगाये। इ ह धन नह , के वल भ चा हए।" मीरा ने कहा। "पर दल क
बात कसी न कसी चीज के ज रयेही तो रोशन होती है
। मेहरबानी होगी
आपक !" कहतेए उसने माला धरती पर रख द और आँ सू प छतेये
वह म दर से बाहर नकल आया।
नवाब और वजीर दोन बाहर आ घोड़े ले अपनी सरहद क तरफ
रवाना ये । वजीर ने कहा, "आपने ठ क नह कया जहाँ पनाह ! आपने
वहाँबोलकर और वह तोहफा नजर कर एक तरह से खुद को रोशन ही
कर दया। आपको भू लना न चा हए था क हम मन केइलाकेम ह।"
"ठ क कहते हो खान ! म अपने आप को ज त न कर सका। ओह, म तो
अभी तक सोच रहा ँक नया का कोई कलावं त ऐसा भी गा
सकता है ? लेकन गाये गा भी कै
से ? वह सब लोग को खु श करने के
लए गाते ह और यह म लका खु दा केलए गाती है । सच सब कु छ
बेनजीर है खान ! मेरा यह सफर कामयाब रहा। बड़े खुशनसीब ह यह
च ौड़ केबा श देज ह ऐसी म लका नसीब ई। अगर अब राजपू त
आ भी जाय और म मारा भी जाऊं तो मुझे अफसोस न होगा।"
हीर केहार और नवाब क बोली ने म दर म बैठे लोग म थोड़ी
खलबली मचा द क आने वाले मु
सलमान थे । मीरा केकहा, "सबको
एक ही भगवान ने बनाया है और बे टेकेआने सेबाप का घर भृनह
होता।" पर यह खबर महाराणा तक प ँ चने म दे
र न लगी। महाराणा का
ोध सातव आसमान पर था। वह उदयकु ँवर केपास प ँ च ा और ोध
95
सेतमतमाते येउसने सारी बात बतलाई -"जीजा ! आप सोचो,
सारंगपु
र केनवाब ने म दर म बै ठकर भाभी हाँ रा केभजन भी सु ने
और बातचीत भी क । उसने हीरेक क ठ भी भट क ।"
उदयकु ँ
वर ने भय और आ य से भाई को देखा। "ब त सबर कर
लया। अब तो या म र ँ गा या फर मे ड़तणीजीसा रहगी। इ ह ने तो
हमारी पाग ही उछाल द है । पहले तो बाबा और महा मा ही आते थे
,
अब तो वध मय ने भी रा ता दे ख लया। अरे हीरे
, मोती ही चा हए थे
तो मुझसे कह दे त । कह बोलने यो य नह छोड़ा इन कु ल णी ने तो।
जब म घर म ही अनु शासन नह रख पा रहा तो रा य कै से चलाऊँ गा?"
महाराणा ने राजवैको बु लाया और दयाराम पं ड ा केहाथ सोने
केकटोरे म जग ाथ जी का चरणामृ त कह मीरा केलए भजवाया।
दयाराम केपीछे -पीछे उदयकु ँवर बाईसा भी चली। मीरा भु केआगे
भोग पधरा रही थ । दयाराम ने कटोरा स मु ख रख काँ पतेवर से कहा,
"राणाजी नेी जग ाथजी का चरणामृ त भजवाया है आपकेलये ।"
"अहा ! आज तो सोने का सू य उदय आ पं ड ाजी ! लालजीसा ने
बड़ी कृपा क । यह कहतेये मीरा नेकटोरा उठा लया और उसेभु के
चरण म रखतेये बोली, "ऐसी कृ पा करो भुक राणाजी को सु मत
आये ।" फर पं ड ाजी से पूछा, "कौन आया है जग ाथपु री से ?" "म नह
जानता सरकार ! कोई पं ड ा या या ी आये होग।"
च पा, गोमती आ द दा सयाँ थोड़ी र खड़ी ई भय और लाचारी
से दे
ख रही थी इन चरणामृ त लाने वाल को और कभी अपनी वा मनी
के भोलेपन को। उनक आँ ख भर-भर आत , " य सताते ह इस दे वी को
यह रा स ? या चाहते ह ?" उदा भी भाभी का वह शां त- व प,
न छल मु कुराहट, दपण क तरह उ वल दय और भगवान पर
अथाह व ास दे ख आ य च कत थी।
मीरा ने तानपु रा उठाया और तार पर उँ गली फे रतेये उसने
आँ ख बंद कर ल ........
तु
म को शरणागत क लाज।
भाँ
त भाँ
त केचीर पु राये
पां
च ाली केकाज॥
त ा तोड़ी भी म केआगेच धय य राज।

96
मीरा के भुगरधर नागर द नब धुमहाराज॥
मीरा क भ और व ास दे ख उदयकु ँ
वर बाईसा के दय म
वचार का एक उफान सा उमड़ आया। मन म आया - "भाभी हाँ रा को
एक बार भी यान नह आया क महाराणा उनसेकतने ह ? मथु ला
क मौत ने उ ह चे तावनी नह द क उनक भी यही दशा होने वाली है ?
फर भी कतनी न त ह भगवान केभरोसे ? कहते ह, भ और
भगवान दो नह होते , ये
अ भ होते ह, और इ ह भ का अ न करने
पर राणाजी तु लेहै। और म, म भी तो उ ह का साथ दए जा रही ँ ।यद
भाभी मर जाये तो मु झेया मलने वाला है? केवल पाप ही न ? और
य द नह मरी तो? भगवान का कोप उतरे गा।"
उदयकु ँ
वर के मन म वयं केलयेला न भर गई, वह सोचने लगी
- "यह ज म तो वृ था ही चला गया। मे रेभा य सेघर बै ठेगंगा आई - और
म म तहीन राणाजी का साथ दे भाभीसा का वरोध कर अपने पाप क
पोटली भारी करती रही। चे त जा, अभी भी ाय त कर ले उदा ! मानव
जीवन अलोना बीता जा रहा है , इसे संवार कर ाय त कर ले । तू लोहा
है उदा ! इस पारस का पश पाकर वण बन जाये गी। य द कपू र उड़ गया
तो तू सड़ी खाद क तरह गं धाती रह जाये गी। दाजीराज और बावजी
कम या पागल थे जो इ ह सब सु वधाएँ दे
कर स रखने का य न
करते थे। उस समय राजकाय भी ठ क से चलता था। और अब सब
अ त- त सा हो रहा है । चे
त...उदा ! अवसर बीतने पर केवल पछतावा
ही शेष रह जाता है ।"
भजन पू रा आ और मीरा ने कटोरा ह ठ से लगाया। तभी
उदयकु ँवर चीख पड़ी - "भाभी हाँ रा ! क जाइये ।" " या आ बाईसा ?"
मीरा ने नेखोलकर पू छा। "यह वष है भाभी हाँरा ! आप मत आरोगो!"
उसने समीप जाकर भाभी का हाथ पकड़ लया।
" वष ?" वह खल खला कर हँ स पड़ी - "आप जागतेये भी कोई
सपना दे ख रही ह या ? यह तो लालजीसा ने जग ाथजी का चरणामृ त
भेजा है । देखये न, अभी तो पंड ाजी भी मे रे
सामने खड़े ह।"
"म कुछ नह जानती। यह जहर है , आप मत आरोगो।" उदयकु ँवर
नेँ धेये क ठ से आ ह कया। "यह या फरमाती ह आप ! चरणामृ त

97
न लूँ? लालजीसा को कतने दन बाद भगवान और भाभी क याद आई
और म उनक सौगात वा पस भे ज ँ? और वो भी चरणामृ त ? अगर वष
था भी, तो अब भु को अपण कर वै से भी चरणामृ त बन गया है। आप
च ता मत कर बाईसा, मे रेभु क लीला अपार है । जसे वे जी वत
रखना चाह, उ ह कौन मार सकता है? आप न त रह।"
दा सयाँ
भी हैरान थ । पर मीरा नेदेखते-दे
खते कटोरा उठाया
और पलक झपकाते ही खाली कर पंड ाजी को लौटा दया। मीरा नेफर
इकतारा उठाया और एक हाथ म करताल ले खड़ी हो गई। च पा ! घु


ला ! आज तो भु केस मुख म नाचूग
ँी।" च पा नेचरण म घु ँ
घ बाँ धे
और मीरा पद भू म पर छ -छ ातेए वयं को ताल देगानेलगी..
पग घुँ
घ बाँध मीरा नाची रे

म तो मेरेसाँ
व रया क आप ही हो गई दासी रे ।
लोग कह मीरा भई बावरी यात कहेकु लनासी रे॥
वष को यालो राणाजी ने भेयो पीवत मीरा हाँ
सी रे

मीरा के भुगरधर नागर सहज मलया अ वनासी रे ॥
मीरा को यूँनृय करते दे
ख दा सयाँआँ ख म आँ सूभरकर
न ास छोड़ रही थ और उदयकु ँ
वर बाईसा केआ य क सीमा न थी।
भजन पू रा होनेपर मीरा ने धोक द । उदयकु ँ
वर उठकर धीरे सेबाहर
चली ग ।
"बाईसा कम ! बाईसा कम !" दा सयाँ उदयकु ँवर केजाते ही
रोती ई एक साथ ही अपनी वा मनी के चरण म जा पड़ - "यह आपने
या कया ? अब या होगा? हम या कर ?"
" या हो गया बावरी ! य रो रही हो तु
म सब क सब ?" मीरा ने
च पा क पीठ सहलातेए कहा। "आपने जहर य आरोग लया ?"
मीरा हँ
स पड़ी - जहर कब पया पागल ! मने तो चरणामृत पया।
वष होता तो मर न जाती अब तक। उठो, चता मत करो। भगवान पर
व ास करना सीखो। ाद को तो सां
प से डँ
सवाया गया, हा थय के
पाँ
व तले कुचलवाया गया और आग म जलाया गया, पर या आ ? यह
जान लो क मारने वालेसेबचाने वाला ब त बड़ा है
।"
"बाईसा कम ! हम सब अपने मे
ड़ते चलेजायगे ।"- च पा ने
आँ सू
98
ढ़रकातेये कहा। " य भला ? भु मेड़ते म ह और च ौड़ म नह
बसते ? यह सारी धरती और इसपर बसने वाले जीव भगवान केही
उपजाय ये ह। तुम भय याग दो। भय और भ साथ नह रहते ।"
उधर जब राणा को जब पता लगा क मीरा पर वष का कोई
भाव नह आ ब क वह तो और भ केउ साह म नम न हो नृ य
कर रही है तो वह आ य च कत रह गया। राणा ने तु
र त वैजी को बु ला
भेजा।
वैजी को दे खते ही महाराणा उफन पड़े म तो कहते
, "तु थेक
इस वष से आधी घड़ी म हाथी मर जाये गा, क तु यहाँ तो मनु य का
रोम भी गम न आ।"
"यह नह हो सकता सरकार ! मनु य केलए तो उसक दो बू द
ँही
काफ ह मु झेबताने क कृ पा कर हजू र ! म भी आ य म ँक ऐसा
कौन सा लोहे का मनु य है?" वैजी ने कहा। "चु प रह नीच !" राणा ने
दाँ
त पीसतेए कहा- "मे रा ही दया खाता है और मु झसे ही चतु राई ?
जैसे तुझेपता ही नह क भाभी हाँ रा केलए यह वष बनवाया था और
वह तो आन द म नाच गा रही ह।"
वैजी स य सु नकर भीतर तक काँ प गये। फर ह मत जु टाकर
बोले, "भ का र क तो भगवान ह अ दाता ! जहाँ चार हाथवाला र ा
करने केलए खड़ा हो, वहाँ दो हाथवाल क या बसात ? अ यथा
मनु य केलए तो इस कटोरे म शेष बची ये दो बू

ँेही काफ ह।"
महाराणा गरज उठा- "मु झे भरमाता है ? ये दो बू

ँेतू पी और म
फर जानू ँ क तेरी बात म कतनी स चाई है ?" वैजी ब त गड़ गड़ाये ,
"यह हलाहल है अ दाता ! मेरेबू
ढ़े माँबाप का और छोटे ब च का कौन
धणी है ?" पर राणा ने एक न सु नी। वैजी ने काँपते हाथ से कटोरा
उठाया और भगवान से मा याचना करते बोला, "हे नारायण ! तु हारे
भ के अ न म मने सहयोग दया, उसी का द ड हाथ -हाथ मल गया
भु! पर म अ जान था। मे रेप रवार पर कृ पा बनायेरखना।" उसने
कटोरा उठाया, और जै सेही शेष दो बूद
ँे जीभ पर टप-टप गरी, वैजी
च कर खा गर गये और आँ ख फट सी रह ग ।
उदयकु ँ
वर बाईसा व मा द य महाराणा केक म पीछे खड़ी
सब दे ख रही थ । दोन बार वष पीने का य उसक आँ ख केसामने
99
घटा। जस कटोरे भरे जहर से मे
ड़तणीजी का रोयाँ भी न काँ पा, उसी
कटोरे क पदे म बची दो बू द
ँो सेवैजी मर गये । मीरा क भ का
ताप और राणाजी क कु बु दोन ही उदयकु ँ
वर केसामने आग ।
वह सोचने लगी - "इस बे च ारेको य मारा ? कसी कुे या ब ली को
पलाकर य नह दे ख लया। मने ब त बु रा कया जो इस म तहीन का
साथ दे ती रही।"
महाराणा ने पहले तो समझा क वैनखरे कर रहा हैक तु जब
गदन एक तरफ लु ढ़क गई तो उसकेमु ख सेनकला - "अरे ! यह या
सचमु च मर गया ?" उसनेहरी को वैजी को उठा ले जाने केलए
उनके घर समाचार भे जा।
उदयकु ँ
वर ने धीरे-धीरे अपने महल क ओर पद बढाये । वहाँ
प ँ च कर दासी से कहा, "तू कह ऐसी जगह जाकर खड़ी हो जा, जहाँ
कोई तु झे दे
ख न सके । जब वैजी केघर वाले उ ह ले कर जाने लग तो
उ ह कहना क वैजी को मे ड़तणीजी केमहल म ले जाओ, वह इ ह
जी वत कर दगी।" वह वयं भी मीरा केमहल क ओर चली। "भाभी
हाँरा ! मुझेमा कर, मने आपको ब त :ख दये ह।" उदा ने सुबकते
ए मीरा क गोद म सर रख दया।
"यह न क हये बाईसा ! :ख-सु ख तो मनु य को अपनेार ध से
ा त होता है । मुझे तो कोई :ख नह आ। भु केमरण से समय बचे
तो सरी अलाबला समीप आ पाये ।" मीरा ने ननद केसर पर ने ह से
हाथ फे रतेयेकहा। "मु झे भी कुछ बताईये , जससेज म सु धरे।"
उदयकु ँवर आँ सूढ़रकाती ई बोली।
"मेरेपास या है ? कु छ तो बताईये , जससे मेरा ज म सु धरे।"
उदयकु ँवर आँ सू ढरकाती ई बोली। "मे रे पास या है बाईसा ! बस
भगवान का नाम है , सो आप भी ली जए। भु पर व ास र खये और
सभी को भगवान का प, कारीगरी या चाकर मा नये । और तो म कु छ
नह जानती। येसं त महा मा जो कहतेह, उसेसु नए और मनन
क जए। बस आप भगवान केचरण को व ास से पक ड़ये , वही
सवसमथ है ।"
"म कसी को नह जानती भाभी हाँ रा ! आप मे री ह और म
आपक बालक ँ । मेरेअपराध मा करकेमु झे अपना ल। मने भगवान
100
को नह दे खा कभी। म तो आपको जानती ँ बस।" उदयकु ँ
वर ने
रोते
ए कहा। "जब आपक सगाई ई, पीठ चढ़ , तब आपने जवाँ
ईसा को
दे
खा था या ? पर बना दे खे ही आपको उनपर व ास और म ेथा न ?"
मीरा नेसमझातेए कहा, 'जै सेबना दे खेही ब द पर व ास- म ेहोता
है
, उसी तरह व ास करने पर भगवान भी मलते है।"
" क तु ब द को तो ब त से लोग ने देखा होता है और बात भी
क होती है । इसी सेब द पर व ास होता ह पर भगवान को कसने
दे
खा है?" "य द म क ँक मने देखा हैतो? मने ही या, ब त ने दे
खा है
उ ह। अ तर के वल इतना हैक कोई-कोई ही पहचानते ह, सब नह
पहचानते ।" उदयकु ँ
वर मीरा क बात सु न और उनका अ वच लत व ास
अनु भव कर त ध रह गई।
मीरा ने तानपु
रा लेआलाप ले तान छेड़ ी .................
हाँ
रा तो गरधर गोपाल..........।
उदयकु ँवर बाईसा मीरा से भ ान क बात वण कर रही थी,
उसक आँ ख से आँ सु क धाराय बहकर उसके दय का क मष धो
रही थ । तभी कु छ लोग केरोने क आवाज से उनका यान बँटा। मीरा
नेकहा, "अरी गोमती! जरा दे ख तो! या क है ?"
"कुछ नह भाभी हाँ रा ! आपको वष से न मरतेदे
खकर राणा ने
समझा क वैजी ने दगा कया है । उ ह नेउस याले म बची वष क दो
बूद
ँेवैजी को पला द । वे मर गये ह। लगता हैउनका शव ले कर घर के
लोग जा रहे ह गे
।" उदा नेकहा।
"वैजी को महाराणा जी ने जहर पला दया। उनका शव ले कर
घरवाले आपकेपास अज करने आये ह।" इधर से गोमती नेभी आकर
नवेदन कया। "हे मेरेभु ! यह या आ ? मे रे
कारण ा ण क मृ यु
?
कतने लोग का अवल ब टू टा ? इससे तो मे
री ही मृयु े
य कर थी।"
मीरा नेभारी मन सेन ास छोड़तेए कहा।
मीरा सोच ही रही थी क वैजी के घरवाले उनका शव लेकर आ
प ँ च।ेवैजी क माँ आते ही मीरा के चरण म गर पड़ - "हे अ दाता!
हम अनाथ को सनाथ क जए। हम कौन कमा कर खलाये गा ?

101
महाराणा जी ने
हम य जहर नह पला दया ? हम आपक शरण म ह !
या तो हम इनका जीवन दान द जए अ यथा हम भी मर जायगे ।"
वृ माँकेआँ सूदेख मीरा क आँ ख भी भर आ । कै सी भी
थ त हो, उसेतो बस गरधर का ही आ य था और स य म जसको
उसका आ य हो उसेकसी और ठौर क आव यकता भी या ? मीरा ने
सबको धीरज रखने को कहा और इकतारा उठाया .............
ह र तु
म हरो जन क पीर।
ौपद क लाज राखी तु रत बढ़ायो चीर॥
भ कारन प नरह र धरयो आप सरीर।
हरणक यप मार लीनो धरयो ना हन धीर॥
बूढ़तो गजराज रा यो कयो बाहर नीर।
दासी मीरा लाल गरधर चरनकमल पर सीर॥
चार घड़ी तक राग का अमृ त बरसता रहा। मीरा क ब द आँ ख
सेआँ सूझरते रहे । सब लोग मीरा क क ण पु कार म वयं केभाव
जोड़ रहे थे
। कसी को ात ही न आ क वैजी कब उठकर बै ठ गये
और वह भी तन-मन क सु ध-भूल कर इस अमृ त सागर म डूब गये ह।
भजन पू रा आ तो सबने वैजी को बै ठा आ दे खा। उनकेमु ख से
अपने आप हष का अ प वर फू ट पड़ा। उन सभी ने धरती पर सर
टे
ककर मीरा क और गरधर गोपाल क व दना क । च पा ने सबको
चरणामृत और साद दया। वैजी क प नी ने मीरा केचरण पकड़
लये
। उसकेमन केभाव को वाणी नह मल रही थी, सो भाव ही
आँसु क धारा बनकर मीरा के चरण धोने लगे

"आप यह या करती ह ? आप ा ण है । मु
झे दोष लगता है
इससे। उ ठये! भु नेआपका मनोरथ पू ण कया है । इसम मे रा या
लगा? भगवान का यश गाईये ।" सबको नेह से भोजन करा और बालक
को लार करकेवदा कया।
डयोढ़ तक प ँ चते
-प ँचतेसबकेहष को मानो वाणी मल गई-
ड़तणीजीसा क जय ! मीराबाई क जय ! भ और भगवान क जय !"
"मे
"यह या मं गला ! दौड़ कर जा तो उ ह कह क के वल भगवान क जय
बोल। यह या कर रहे ह सब ?" "बोलने द जए भाभी हाँ रा ! उनके
102
अ तर केसु ख और भीतर केहष को कट होने द जए। लोग ने ,
राजप रवार ने अब तक यही जाना हैक मे ड़तणीजी कु ल णी है । इनके
आने सेसब मर-खु टेह। उ ह जानने द जयेक मे ड़तणीजी जी तो गं गा
क धारा ह, जो इस कु ल का और :खी ा णय का उ ार करने आई
ह।" उदयकु ँ
वर बाईसा ने कहा।
"वैराज जी जी वत हो गयेकम !" द वान ने महाराणा से
आकर नवे दन कया। "ह या ?" महाराणा च क पड़े । फर सं भल कर
बोले, "वह तो मरा ही न था। य ही मरने का बहाना कए पड़ा था डर के
मारे
। मु झे ही ोध आ गया था, सो हरी को उसे आँ ख केसामने से
हटाने को कह दया। भू ल अपनी ही थी क मु झेही उसे अ छे सेदे
खकर
उसे भे जना चा हए था। वह वष था ही नह - वष होता तो दोन कै से
जी वत रह पाते ?"
साम त और उमराव मीरा को वष दे ने क बात से ो धत हो
महाराणा को समझाने आये तो उ टा व मा द य उनसे ही उलझ गया -
"वह वष था ही नह , वो तो मै नेकसी कारणवश मने वैजी को डाँ टा
तो वह भय के मारेअचेत हो गये। घर के लोग उठाकर भाभीसा के पास
ले आये तो वे भजन गा रही थ । भजन पू रा आ तब तक उनक चे तना
लौट आ गई। और बाहर यह बात फै ला द क मने वैजी को मार डाला
और भाभी जी ने उनको जी वत कर दया।"
महाराणा केवभाव म कोई अ तर न था। उनको तो यह लग रहा
था मानो वह एक ी से हार रहेह , जैसे उनका स मान दाँ व पर लगा
हो। वे एका त म भी बै ठे कुछ न कुछ मीरा को मारने केषडय बनाते
रहते। एक दन रानी हाँ ड ी जी नेभी बेटेको समझाने का यास कया,
"मीरा आपक माँ केबराबर बड़ी भाभी ह, फर उनक भ का भी
ताप है। दे खए, स मान तो श ु का भी करना चा हए। जस राजग
पर आप वराजमान ह, उसका और अपने पूवज का स मान कर। ओछे
लोग क सं ग त छोड़ द जये । सं
ग का रंग अ जाने म ही लग जाता है ।
दा , भाँ ग, अफ म और धतू रेका सेवन करने से जब नशा चढ़ता है , तब
मनु य को मालू म हो जाता हैक नशा आ रहा है , क तु संग का नशा तो
इ सान को गा फल करके चढ़ता है। इस लए बे टा, हमारेयहाँतो कहावत

103
हैक "काले केसाथ सफे द को बाँधे, वह रं
ग चाहे न लेपर ल ण तो
लेगा ही।" आप साम तो क सलाह से रा य पर यान द। आप मीरा को
नजरअ दाज कर, मानो वह जगत म है ही नह ।"
उधर मीरा क दा सयाँ रोती और सोचत , " या हमारे अ दाता
(वीरमदेवजी) जानते ह गेक बड़े घर म ऐसे मारनेकेषडय होते
ह गे
। ऐसी सीधी, सरल आ मा को भला कोई सताता है ? बस भ
छोड़ना उनके बस का काम नह । भगवान के अ त र उ ह कु छ सूझता
ही नह , मनु य का बु
रा सोचने का उनकेपास समय कहाँ ? पर इनक
भ केबारे म जानतेये यह स ब ध वीकार कया था अब उसी
भ को छु ड़वाने का यास य ? छोटे मु
ँह बड़ी बात हैपर, च ौड़
केभा य से ऐसा संयोग बना था क घर बै ठेसबका उ ार हो जाता, पर
भा य ऐसा जागा क कहा नह जाता। र- र से लोग सुनकर दौड़े
दशन को आ रहे ह और यहाँ आँख दे खी बात का भी इ ह व ास नह
हो रहा। भगवान या करगे , सो तो भगवान ही जान, क तु इ तहास
ससौ दय को मा नह करे गा।"
इधर मीरा भ भाव मे सब बात से अ जान बहती जा रही थी।
भगवा व और तु लसी माला धारण कर वह स सं ग म अबाध प से
रम गई। जब म दर म भजन होते तो वह देह-भान भू ल कर नाचने गाने
लगती .........
म तो साँ
वरे
केरं
ग राची......
राजमाता पु

ँार जी मीरा को द जाने वाली यातना क भनक
पड़ रही थी। उ ह मन आ क एक बार वयं जाकर मीरा को मल कर
कह क वह पीहर चली जाय।
मीरा केमहल राजमाता पधार और स ने ह कहने लग "बेट !
तुह दे
खती ँ तो आ य होता हैक तु ह राणाजी ने:ख दे नेम कोई
कसर नह रखी, पर एक तु हारा ही धै
य और भ म अटू ट व ास है
जो तु
म अपने पथ पर मे न ा से बढ़ती जा रही हो। बस अपने ग रधर
क से वा म रहतेये न तो अपने क का ही भान है और न ही भूख
यास का।"
मीरा ने
सासूमाँको आदर दे तेये कहा, "ब त बार कसी काम म
104
लगे होनेपर मनु य को चोट लग जाती हैकम ! क तु मन काम म लगे
होने केकारण उस पीड़ा का ान उसे होता ही नह । बाद म चोट का
थान दे खकर वह वचार करता हैक यह चोट उसे कब और कहाँ लगी,
पर मरण नह आता य क जब चोट लगी, तब उसका मन पू णतः
सरी ओर लगा था। इसी कार मन को दे ह क ओर से हटाकर सरी
ओर लगा लया जाय तो दे ह केसाथ या हो रहा है , यह हम त नक भी
ात नह होगा।"
"पर बीनणी ! राणा जी न य ही तु ह मारने केलए यास करते
ही रहते ह। कसी दन सचमु च ही कर गु जरगे । सु न-सु
न करकेजी
जलता है , पर या क ँ? रानी हाँ ड ी जी केअ त र तो यहाँ हमारी
कसी क चलती नह । म तो सोचती ँक तु म पीहर चली जाओ"
राजमाता ने कहा।
"हम कह भी जाय, कु छ भी कर, अपना ार ध तो कह भी
भोगना पड़े गा कम ! :ख दे नव
ेालेको ही पहलेख सताता है , ोध
करने वाले को ही पहले ोध जलाता है , य क जतनी पीड़ा वह सरे
को दे ना चाहता है, उतनी वही पीड़ा उसेवयं को भोगनी पड़ती है ।"
मीरा ने हँसतेये कहा- "अगर मु झ जै सेको कोई पीड़ा दे और म उसे
वीकार भी न क ँतो ? आप स य मा नये , मु
झे राणाजी सेकसी तरह
का रोष नह । आप चता न कर। भु क इ छा केबना कोई भी कु छ
नह कर सकता और भु क स ता म म स ँ ।"
"इतना व ास, इतना धै य तु
मम कहाँ सेआया बीनणी ?" "इसम
मेरा कुछ भी नह हैकम ! यह तो सं त क कृ पा है । स संग ने
ही मुझे
सखाया हैक भु ही जीव केसबसेनकट और घ न आ मीय है ।
वही सबसे बड़ी स ा ह। तब भु केहोते भय का थान कहाँ ? भु के
होतेकसी क आव यकता कहाँ ? फर कम ! सं त क चरण रज म,
उनक वाणी और कृ पा म ब त श हैकम।"
"तुम स य कहती हो बीनणी! तभी तो तु म इतने:ख झे लकर भी
स सं ग नह छोड़ती। पर एक बात मु झे समझ नह आती, भगवान के घर
म यह कै सा अंधे
र हैक नरपराध मनु य तो अ याय क घानी म पलते
रहते ह और अपराधी लोग मौज करते रहते ह। तु म नह जानती, यह

105
हाँ
ड ीजी राजनी त म ब त पटु ह। हमारेलए या इसने कम अं गारे
बछाये सारी उ और अब व मा द य को भी तु ह परेशान कए बना
शां त नह ।"
"आप मे री च ता न कर कम ! बीती बात को याद करके :खी
होने म या लाभ है ? वे तो चली ग , अब तो लौटगी नह । आने वाली भी
अपने बस म नह , फर उ ह सोचकर य च तत होना ? अभी जो
समय है , उसका ही उ चत ढं ग से उपयोग कर सर के दोष से हम या ?
उनका घड़ा भरे गा तो फू ट भी जाये गा। याय कसी का सगा नह है
कम ! भगवान सबके सा ी ह। समय पाकर ही कम क खे ती फल दे ती
है
। अपने:ख, अपने ही कम केफल ह। :ख-सु ख कोई व तु नह जो
हम कोई दे सके । सभी अपनी ही कमाई खाते ह, सरे तो केवल न म
ह।" मीरा ने सासू माँ केआँ सू प छ, उ ह ान क बात समझा कर स ने ह
वदा कया।
ावण क फु हार त त धरती को भगो म क स धी सु गध
हवा म बखे र रही है । रा के बढ़ने केसाथसाथ वषा क झड़ी भी बढ़ने
लगी। भ केलए कोई ऋतु क सु ग ध हो या उ सव का उ साह,
उनकेलए तो वह सब यालाल जी क लीला से जुड़ ा रहता है ।
मीरा बाहर आं गन म आ भीगने लगी। दा सय ने ब त य न कया क
वेमहल म पधार जाये , क तु भाव तरंगो पर बहती ई वह लाप करने
लगी।
"सखी ! म अपनी स खय का सं दे
श पाकर यामसु ं
दर को ढू ँढते
ये वन क ओर नकल गयी। जानती हो, वहाँया दे खा ? एक हाथ म
वंशी और सरे हाथ से सघन तमाल क शाखा थाम येयामसु दर
मान कसी क ती ा कर रहे ह। अहा......... कै
सी छटा है ...........
या क ँ .....! ऊपर गगन म याम मे घ उमड़ रहे थे
। उनम रह-रहकर
दा मनी दमक जाती थी। पवन के वे
ग से उनका पीता बर फहरा रहा था।
हेसखी ! म उस प का म कै सेवणन क ँ? कहाँ से आर भ क ँ?
शखी प छ (मोर के पंख) से या अ ण चा चरण से ? वह ल ब बा
(घुटन तक ल बी भु जाएँ), वह वशाल व , वह सु ं
दर ीवा, वह
ब बाधर, वह नाहर सी क ट (शे र सी क ट), जहाँ जाती है वह

106
उलझ कर रह जाती है । उनकेसघन घु ँ
घराले के
श पवन केवे ग से दौड़
दौड़ करके कुडल म उलझ जाते है
।"
"आज एक और आ य दे खा, मान घन-दा मनी तीन ठौर पर
साथ खे ल रहेह । गगन म बादल और बजली, धरा पर घन याम और
पीता बर तथा यतम केमु ख म डल म घनकृण कु ंतल (घुँ
घराली
अलकाव ल) और वण कुडल।"
"म उ ह वशे ष आ य से दे
ख रही थी क उनकेअधर पर
मु कान खे ल गई। इधर-उधर दे खतेए उनकेकमल क पं खड़ुी सेदघ
नेमु झ पर आ ठहरे । र म डोर से सजे वे नयन, वह चतवन, या
क ँ ? सृ म ऐसी कौन सी कु मारी होगी जो इ ह दे ख वयं को न भूल
जाये। इस प के सागर को अ र क सीमा म कोई कै सेबाँ
धे
?"
"इधर र त ल जा ने कौन जाने कब का बै र याद कया क ने
म जल भर आया, पलक मन-मन भर क होकर झु क ग । म अभी वयं
को सँभाल भी नह पाई थी क यामसु दर के नु
परू
, कंकण और करघनी
क मधु र झं
कार से म च क गई। अहो, कै सी मू ख ँ म ? म तो ी जू का
संदे
श ले कर आई थी। ी यामसु दर को झू लन केलये बु
लानेकेलये
और यहाँ अपने ही झमेले म ही फँस गई। एकाएक म धीरे सेधीमेवर म
याजी का संकेत समझातेये गाने लगी......
हाँ
रे
हदेहदण हालो बहारी, हरदै
ने
ह हलोर जी।
ावण क रा म, बाहर आं गन म खड़ी मीरा भीग रही थी।
अपनी भाव तरं ग म बहते -बहते वह लीला मृ त म खो गई। वह ी
राधारानी का ी यामसु दर केलये झूलन का सं दे
श लेकर आई थी पर
र से ही ी कृण का प माधु य दशन कर वयं क सुध-बुध खो बै
ठ।
" ी वा मनी जूने कहा था, " क हेी यामसु दर ! मे
रेदय म
आपके संग झू
ला झूलन क तरं ग हलोर ले रही है
। ऐसे
म आप कहाँ हो ?
देखए न ! बरसाना केसारे उपवन म चार ओर ह र तमा ही ह र तमा
छा रही है। कोयल, पपीहा गा गाकर और मोर नृ य कर हम कृ त का
सौ दय दशन केलये आम त कर रहे ह। हेयामसु दर ! आपकेसं ग
से ही मुझे ये क उ सव मधु र लगता है । हेराधा केनयन केचकोर !

107
आप इतनी भावमय ऋतु म कहाँहो ? म कब सेस खय केसं
ग यहाँ
नकुज म आपक ती ा कर रही ँ । यतम केदशन केबना मेरा
दय अ तश य ाकु ल हो रहा है
और मे रेतृ
षत नेअपने चतचोर क
कबसे बाट नहार रहे ह।" यह सब ी वा मनी जू का सं
दे
श कहना था
और यहाँ म अपने ही झमे लेम उलझ गई। एकाएक याजी का सं दे

मीरा गा उठ .........
हाँ
रेहदेहदण हालो बहारी, हरदै ने
ह हलोर जी।
बरसाने रा ह रया बाँ
गा, ह रयाली च ँओर जी॥
बाट जोवती कद आसी जी, कद आसी चतचोर जी॥
" य री ! कबक खड़ी इधर-उधर ताकेजा रही है और अब
जाकर तुझेमरण आया हैक "राधे नेसंदे
श भजवाया है - " हाँ
रेहदे
हदण हालो बहारी" चल ! कहाँ चलना है ?" कहतेये मेरा हाथ पकड़
कर वेचल पड़े ।
"हेसखी ! वहाँहम सब स खय नेव भ - व भ रं ग से
सुस जत कर रे शम क डोर से कद ब क डाली पर झू ला डाला। उस
झूलेपर ी राधागो व द वरा जत ये । दोन तरफ से हम सब स खयाँ
सब गीत गाते येउ ह झु लानेलग । दोन हँ सते येमधु र-मधु र
वातालाप करतेये अ तशय आन द म नम न थे । हम यालाल जी के
आन द से आन दत थे ।
सुदर फू ल से लद कद ब क डारी पर झू ला पड़ा है । मीरा भी
अपनी भाव तरं ग म अ य स खय केसं ग गाती ी राधामाधव को
झूला झुला रही है
। झूलते -झू
लतेजभी बीच म सेयामसु दर मे री ओर
देख पड़ते तो म ल जा भरी ऊहापोह म गाना भी भू ल जाती। थोड़ी दे र
बाद यामसु दर झूलेसे उतर पड़े और कशोरीजू को झूलाने लगे। एक
हर हास-प रहास राग-रं ग म बीता। इसकेप ात स खय केसाथ
कशोरी जी चली ग । यामसु दर भी गाय को एक त करने चले गये ।
तब म झु रमुट म सेनकलकर और झू ले पर बैठकर धीरे -धीरे
झूलनेलगी। नयन और मन यालाल जी क झू लन लीला क पु नरावृ त
करने म लगे थे। कतना समय बीता, मु झेयान न रहा। मे रा यान बँ टा
जब कसी ने पीछे सेमेरी आँख मूँ
द ली। मनेसोचा क कोई सखी होगी।
108
म तो अपने ही च तन म थी, सो अ छा तो नह लगा उस समय कसी
का आना, पर जब कोई आ ही गया हो तो या हो ? मने कहा, "आ सखी!
तू भी बै
ठ जा! हम दोन साथ-साथ झू लगी।"
वह भी मे री आँ ख छोड़कर आ बै ठ मे रेपास। झू लेका वेग थोड़ा
बढ़ा। अपने ही वचार म म न मने सोचा क यह सखी बोलती य नह ?
" या बात है सखी! बोले गी नाय ?" मने जै सेही यह पूछा और त काल ही
ना सका ने सूचना द क कमल, तु लसी, च दन और के सर क मली
जुली सु ग ध कह समीप ही है । एकदम मु ड़तेये मने कहा, "सखी !
यामसु दर कह समीप ही .......... ओ......ह........!" मने हथे ली से
अपना मु ँ
ह दबा लया य क मे रेसमीप बै ठ सखी नह यामसु दर थे ।
"कहा भयो री ! कबसे मोहे सखी-सखी कहकर बतराये रही हती।
अब दे खते ही चुप काहे हो गई ?" म ल जा से लाल हो गई। मुझे झू लेपर
वा पस पकड़ कर बठातेये बोले ठ ! अब म तु
, "बै झेझुलाता ँ ।" मेरेतो
हाथ पाँ व ढ ले पड़ने लगे । एक तो यामसु दर का पश और उनक
सुग ध मु झे म कए जा रही थी। उ ह ने जो झूला बढ़ाना आर भ कया
तो या क ँसखी, "चढ़ता तो द खे वैकुठ, उतरताँ जधाम। यहाँ
अपना ही आप नह दखाई दे रहा था। लगता था, जै सेअभी पाँ व छू टेके
छूटे। जगत का य लोप हो गया था। बस ीकृण क मु झेचढ़ाती
हँ
सी क लह रयाँ , उनके ी अं ग क सु ग ध एवं वह द पश ही मु झे
घेरेथा। अक मात एक पाँ व छू टा और ण भर म म धरा पर जा गरती
पर ठाकु र ने मु
झे सं
भाल लया। पर म अचे त हो गई। न जानेकतना
समय नकल गया, जब चे त आया तो दे खा ह क -ह क फु हार पड़ रही
है और यामसु दर मे रे चे
तना म आने क ती ा कर रहे थे
। मुझे आँ ख
खोलतेस हो बोले , " य री ! यह यू ँअचे त हो जाने का रोग कब से
लगा ? ऐसे रोग को पाल कर झू ला झू लने लगी थी? कह गरती तो ? मे रे
ही माथे आती न ? आज ही सां झ को चल ते री मैया सेक ँगा। इसे घर से
बाहर न जाने दो। अचे त होकर कह यमु ना म जा पड़ी तो जय-जय सीता
राम हो जाये गा।" वे खु ल कर हँ स पड़े । म उठ बै ठ तो वह बोले , "अब
कैसा जी है ते
रा ?" हाँ बोलूँक न, बस दय न त नह कर पा रहा था
इस आशं का से कह ठाकु र चले न जाय, बस सोच ही रही थी क आँ ख

109
केआगे से वह प-रस-सु धा का सरोवर लु त हो गया। हाय ! म तो अभी
कुछ कह भी न पाई थी, नयन भी यू ँअतृ त सेरह गये ............।
मीरा अपने भाव आवे श म ही थी। ी यामसु दर उससे हँ
स-हँस
कर बात कर रहे थे । वह ल जा वश अभी कु छ मन क कह भी न पाई
थी क यामसु दर न जाने कहाँचले गये। नयन और दय अतृ त ही रह
गयेऔर वह प-रस का सरोवर लु त हो गया। अभी तक तो दा सयाँ
उसेबाहर बरखा म भावावे श म स ता से भीगता आ दे ख रही थ ।
अब उ ह मीरा का वरह लाप सु नाई दया, "हे नाथ ! मुझे आप यू ँयहाँ
अकेलेछोड़ कर यू ँपरदेस चले गये? दे
खो, ावण म सब कृ त स
दखाई पड़ती है , पर आपकेदशन केबना मु झेकुछ भी नह सु हाता।
मे
रा दय धै य नह धारण कर पा रहा नाथ ! मने अपने आँ सु म भीगे
आपको कतने ही सं देश, कतने ही प लख भे जेह, म कब से आपक
बाट नहारती ँ ...... आप कब घर आयगे ? हे मे
रेगरधर नागर ! आप
मु
झे कब दशन दगे ?"
दा सयाँवा मनी को कसी कार भीतर ले ग , क तु मीरा के
भावसमुक उ ाल तरं गे थमती ही न थ । "आप मु झे भू ल गये न नाथ !
आपने तो वचन दया था क शी ही आऊँ गा। अपना वह वचन भी भू ल
गये? नम ही ! तु हारेबन अब म कै से जीऊँ ? स खय ! यामसु दर
कतने कठोर हो गये ह ?"
दे
खो सइयाँह र मन काठ कयो।
आवन कहगयो अज ँ न आयो क र क र वचन गयो।
खान-पान सुध-बु
ध सब बसरी कैसे क र म जयो॥
वचन तु हारेतुम ह बसारे
मन मे रो ह र लयो।
मीरा कहे भुगरधर नागर तुम बन फटत हयो॥
दा सयाँय न करकेथक गई, क तु मीरा ने
अ का कण तक न
हण कया। रह-रह कर जब बादल गरज उठते और मोर पपीहा गाते
तो
वह भागकर बाहर क ओर भागती- " हे
मतवारे
बादल ! या तुम र दे

सेउड़कर मुझ वरहणी केलए मेरे यतम का सं दे
श लाये
हो ?"
मतवारे
बादल आये
रे
, ह र का सं
दे
सो कब ँन लाये
रे

110
दा र मोर पपीहा बोले , कोयल सबद सु नाये
रे

कारी अंधयारी बजु
री चमक, बरह ण अ त डरपाये
रे

गाजे बाजेपवन मधु रया, मे
हा म त झड़ लायेरे

कारो नाग बरह अ त जारी, मीरा मन ह र भाये
रे

इधर न उसक आँख सेबरसती झड़ी थमती थी और न गगन से
बादल क झड़ी। उसी समय कड़कड़ाहट करती ई बजली चमक और
बादल भयं कर प से
गजन कर उठे
। ावण क भीगी रा म ी कृण
केवरहरस म भीगी मीरा भयभीत हो क ह बाँ ह क शरण ढू ँ
ढने
लगी........
बादल देख डरी ह याम म बादल देख डरी।
काली पीली घटा उमड़ी बर यो एक घड़ी।
जत जोऊँतत पाणी पाणी ई ई भौम हरी॥
जाकाँपय परदे स बसत है भीजे
बाहर खरी।
मीरा के भु
ह र अ वनाशी क जो ी त खरी॥
बादल दे
ख डरी ह याम म ....
ावण क रा म मीरा ी कृण केवरह म ाकु ल अपने
महल केबाहर आं गन म झर-झर झरती बू द
ँ को देख रही है
। उसे महल
केभीतर रहना जरा भी सुहा नह रहा। दा सयाँ उसेव ाम केलए कह
कहकर थक गई ह, पर वह अपलक वषा क फु हार को नहारेजा रही
है
। मेी दय का पार पाना, उसे समझना ब त क ठन होता है । य क
भीतर क मनो थ त ही म ेी केबाहर का वहार न त करती है ।
अभी तो मीरा को बादल गरज-गरज कर और बजु रया चमक-चमक कर
भयभीत कर रहे थे। और अभी एकाएक मीरा क वचार क धारा
पलट , उसे सब कृ त स और सु दर धु ली ई दखने लगी। मीरा
भाव आवे श म पुनः बरसानेकेउपवन म प ँ च कर यालाल जी क
झूलन लीला दशन करने लगी। कद ब क शाखा पर अ त सु स जत
रे
शम क डोरी से सुदर झू
ला पड़ा आ है । स खय ने झू
ले को नाना
कार केरं ग और सु गंधत फूल से सु दर री त से आलं कृ
त कया है ।
ीराधारानी और न द कशोर झू ले पर वरा जत ह और स खयाँ मधुर

111
मधुर ताल के साथ तान लेपं
चम वर म गा रही ह। कोयल और पपीहरा
मधुर रा गनी म वर मला कर स खय का साथ दे रहेह। शुक सा रका
और मोर व वध नृ य भंगमा से या- यतम क स ता म
उ ल सत हो रहे ह।
हेसखी ! ऐसी द यु गल जोड़ी के चरण म मेरा मन ब लहार हो
रहा है
।" बरसती बरखा म ी राधा यामसु दर केइस वहार को वह
मुध मन सेनहारते गाने
लगी........
आयो सावन अ धक सुहावना, बनम बोलन लागे मोर॥
उमड़ घु मड़ कर कारी बद रयाँ
, बरस रही च ँऔर।
अमुवाँक डारी बोले
कोय लया, करे प पीहरा शोर॥
च पा जू ही बे
ला चमेली, गमक रही च ँओर।
नमल नीर बहत यमु ना को, शीतल पवन झकोर॥
वृ
दं
ावन म खे ल करत ह, राधेनं द कशोर।
मीरा कहे भुगरधर नागर, गो पयन को चतचोर॥
चार-चार, छ:-छ: दन तक मीरा का आवे श नह उतरता। दा सय
केसतत्य न से ही थोड़ा पे
य अथवा नाम-मा का भोजन साद
उनके गले उतर पाता।
महाराणा व मा द य केमन का प रताप, ोध मीरा के त
बढ़ता ही जा रहा था। वह अपनी ये क राजनी तक असफलता केलए,
प रवा रक स ब ध क कटु ता केलए मीरा को ही दोषी ठहरा रहा था।
सौहाद से शूय वातावरण को दे खकर मीरा के मन क उदासीनता बढ़ती
जा रही थी। ाणारा य क भ तो छूटने सेरही, भले ही सारे अय
स ब ध टू ट जाए। प रवार क वकट प र थ त म या कया जाये ,
कससे राय ली जाये, कु
छ सू
झ नह रहा था। मायकेया ससु राल म उसे
कोई ऐसा अपना नह दखाई दे रहा था, जससे वह मन क बात कह
कोई सुझाव ले सके । भ को तो एकमा गुजन का या सं तो का ही
आ य होता है । मीरा नेकु
छ ही दन पहले रामभ गो वामी तु लसीदास
जी क भ -म हमा और यश-चचा केबारे म सु
ना था। एक भ क
थ त को एक भ या सं त ही सही समझ सकता है , अप र चत होते ही
भी दो भ म एक च होने सेएक आलौ कक अपन व का स ब ध
112
रहता है
। सो, मीरा ने
उनसे पथ दशन केआशय से
अपनेदय क
वधा को प म लख भे जा .........।
व त ी तु लसी कुल भूषण षण हरण गु स
ँाई।
बार ह बार णाम करऊँअब हर सोक समु दाई॥
घर के वजन हमारे जेतेसबन उपा ध बढ़ाई।
साधु-संग अ भजन करत मो ह दे त कले
स महाई॥
बालपन म मीरा क ह गरधर लाल मताई।
स तो अब छू टत न ह य ँ लगी लगन ब रयाई॥
मेरे मात पता सम तुम हो ह रभ न सुखदाई।
म को कहा उ चत क रबो अबसो ल खयो समु
झाई॥
प लखकर मीरा नेी सु खपाल ा ण को बु लवाया और कहा
"पं डत जी ! आप यह प महाराज ी तु लसीदास गुस
ँाई जी को जाकर
द जये गा। उनसे हाथ जोड़ कर मेरी ओर सेवनती कर क हये गा क मने
पतासम मानकर मने उनसे राय पू
छ है , अतः मेरेलए जो उ चत लगे ,
सो आदे श द जये । बचपन से ही भ क जो लौ लगी है , सो तो अब
कै सेछूट पायेगी। वह तो अब ाण केसाथ ही जाये गी। भ के ाण
स सं ग ह और घर केलोग स सं ग केबै री हैसं
त केसाथ मे रा उठना-
बैठना, गाना नाचना और बात करना उ ह घोर कलं क केसमान लगता
है
। न य ही मु झेले श दे
नेकेलए नये -नये उपाय ढू

ढते रहते है
। ी का
धम हैक घर नह छोड़े , कु
लका न रखे , शील न छोड़े, अनी त न करे ,
इनकेवचार केअनु सार मनेघर केअ त र सब कु छ छोड़ दया है ।
अब आप कम कर क मे रेलए करणीय या है ? मे रेनवे दन को
सुनकर वे जो कह, वह उ र ले कर आप शी पधारने क कृ पा कर, म
पथ जोहती र ँ गी।
मीरा च ौड़ क प र थ त से , प रवा रक वहार से उदासीन
थी। सो, उसने अपने मन क वधा को एक प म लखा और अ यं त
अपन व से माग दशन पू छतेए उसने सुखपाल ा ण को तु लसीदास
गो वामी जी केलए प दया और उ ह शी उ र ले कर आने क
ाथना भी क । "पण कम ! तु लसी गुस
ँाई हाँ नेमलेगा कठै (कहाँ)? वे
इण वकत कठैबराजे ?" पंडत जी नेपूछा। "परस च कू ट से एक सं त

113
पधारे थे
। उ ह ने भी मु वर से सराहना करतेये मु
झे तुलसी गु स
ँाई
जी क भ , वै रा य, क वत श आ द केवषय म बताया था। उनका
जीवन वृकहकर बताया क इस समय वे भ शरोम ण च कू टम
वराज रह है। आप वह पधार ! जै सेतृषत जल क राह तकता है , वैसे
ही म आपक ती ा क ँ गी।" इतना कहते-कहतेमीरा क आँ ख भर
आ । "सं त पर साँ ई उभो हैकम ! (स चे लोग का साथ सदा भगवान
दे
ते ह) आप च ता न कर।" ी सु खपाल ा ण मीरा को आशीवाद
दे
कर चल पड़े ।
कुछ दन क ती ा केप ात जब वह ा ण तु लसीदास जी
का प लाये तो वह प पढ़कर मीरा का रोम-रोम पु ल कत हो उठा।
उसने आन द से आँ ख ब द कर ली तो ब द ने से हष केमोती झरने
लगे। उसने तु
लसीदास जी के प का पु नः पु
नः मनन कया ............
जाके य न राम बै
दे
ही।
त जयेता ह को ट बै री सम ज प परम ने ही॥
त यो पता ाद वभीषण बं धुभरत महतारी।
ब ल गुत यो कंत जब नत न भये मु
द मं
गलकारी॥
नातो ने
ह राम स म नयत सुद सु से ल ।
अंजन कहा आँ ख जेह फू टे
ब तक कह कहाँल॥
तु
लसी सो सब भाँत परम हत पू य ाण तेयारो।
जासो बढ़ेसने ह राम पद ऐसो मतो हमारो॥
मीरा तु
लसीदास जी केलखे श द क स यता सेअ तशय
आन दत ई -" जसका सया राम जी सेने ह का स ब ध न हो, वह
चाहेकतना भी अपना हो, उसे अपने बै
री केसमान समझ कर
याग कर देना चा हये
। जस कार ाद नेपता हर यक शपु का,
वभीषण ने भाई रावण का,भरत नेमाँ कैकयी का, राजा ब ल नेगु
शुाचाय का, और ज क गो पय ने प त का याग कया तथा ये याग
इन सबकेलए अ त मं गलकारी आ। ऐसे अंजन के योग सेया लाभ
जससे कल को आँ ख ही फूट जायेतथा ऐसे स ब ध का या लाभ
जससे हम अपने इ सेवमु ख होना पड़े। तु
लसीदास तो शा के
आधार पर यही सु म त दे
तेह क हमारे अपने और हतकारी तो इस

114
जगत म बस वही हैजनकेसु संग से हमारी भ ी सीता राम जी के
चरण म और गाढ़ हो।"
मीरा नेउठकर ी सु खपाल ा ण केचरण म सर रखा और
अ तशय आभार कट करतेये बोल , " या नज़र क ँ? इस उपकार
के बदले म आपको कु छ दे पाऊँ-ऐसी कोई व तु नज़र नह आती।" फर
उसने भरे क ठ से कहा, "आपने मेरी फाँ
सी काट है । भु आपक भव-
फाँसी काटगे। आपक द र ता को र करके भु अपनी लभ भ
आपको दान कर, यह मं गल कामना है । यह थोड़ी सी द णा है । इसे
वीकार करने क कृ पा कर।" मीरा ने उ ह भोजन कराकर तथा द णा
दे
कर वदा कया।
संत तुलसीदास जी से अनु म त एवं आशीवाद पा मीरा ने उसी
नद शत राह पर पग बढ़ाने का न य कया। च ौड़ केलोग , महल ,
चौबार से और वशे षतः भोजराज ारा बनाए गये म दर आ द सभी से
मीरा अपना मन उधे ड़ने लगी। मेड़ते म मीरा का प प ँ च ा तो वीरमदेव
जी नेतुर त जयमल केपुमु कु द दास और याम कु ँ
वर (मीरा केदे वर
र न सह क पुी) को च ौड़ मीरा को लवाने केलए भजवाया।
वीरमदेव जी का आशय था क बीनणी मायकेम सबको मल भी ले गी
और जमाई मु कु द दास के साथ राणा मीरा को बना कसी तक के शांत
सेमेड़ते जानेभी देगा। जब मुकु द दास और याम कु ँवर मीरा के महल
मप ँ चेतो मीरा नेमम व क खु ली बाँह से दोन को वागत कया। एक
म भाई जयमल क छ व थी तो सरे म दे
वर र न सह क । यामकु ंवर ने
माँऔर पता केजाने केप ात मीरा को ही माँ जाना था। मीरा ने दोन
को अ छे सेलारा, खलाया पलाया और कहा, "थोड़ा व ाम कर लो
तो काक सा और दाद सा को भी मल आना। उनकेलए भी तो दे खने
को बस तु ह हो। म तो तुहारेसाथ ही अब मे ड़ता चलू ँ
गी।"
यामकुँ
वर माँ क गोद म सर रखकर रोतेई बोली, "मे रेतो
यजन और सगे स ब धी आपकेचरण ही ह होटा माँ ! आपका कम
हैतो सबसेमल आऊँ गी। अपने माता- पता तो मु
झेमरण ही नह ह।
मने तो आपको और दाद सा को ही माता- पता जाना है । वहाँ सुना
करती थी क काकोसा कम आपको ब त ;ख दे ते ह, तो म ब त रोती
थी। पता नह कस पु य ताप से आप च ौड़ को ा त पर मे रे
115
पतृ-वंश का भा य को दे खए, जो घर आई गं गा का लाभ भी नह ले
पा रहे है
। वहाँ भी म मन ही मन पु कारा करती थी क मे री होटा माँ को
ख मत दो..... भु !"
बेट केआँ सू प छतेये मीरा ने कहा, "मु
झे कोई :ख नह मे री
लाडली पू त ! तूऐसे ही अपने मन को छोटा कर रही है । उठ ! गरधर का
साद ले !" यामकु ँवर नेसाद लया और फर ससकने लगी, "इस
साद क याद करके न जाने कतनी बार छप- छप कर आँ सू बहाये ह।
कतने बरस के बाद यह वाद मला है ?"
"बेटा ! तु
म मुझे ब त य हो। तु हारी आँख म आँ सूमुझसे दे
खे
नह जाते । अब उठो ! नान कर गरधर के दशन करो !" मीरा के बार-बार
कहने पर याम कु ँवर नेनान कर गरधर केदशन कए तो फर उसक
आँ ख से आँ सू बह चले , " हाँ
रा वीरा ! अगर तु म ही मुझेबसार दोगे तो
म कसक आस क ँ गी ?" अपने लोक नाथ भाई केचरण को उसने
आँ सु से धोकर मन के उलाहने आँ ख के रा तेबहा दये ।
राणा का मीरा के त वहार बे ट और जमाई केआने से
एकदम बदल गया। कभी वह वयंगरधर के दशन केलए आ जाता या
कभी भगवान केलए कु छ न कु छ उपहार भजवा दे ता। मीरा ने सोचा
शायद लालजीसा म प रवतन आ गया है पर दा सय को कभी भी
राणाजी पर व ास नह आता था। उ ह महल से आई ये क व तु पर
शंका होती थी और वह सावधानी से सबक परख वयं करती।
याम कु ंवर ने काकोसा का यह बदला वहार दे खा तो उसे
ब त आ य आ। मीरा केमहल म होली केउ सव क तै या रयाँ चल
रही है। मीरा नेयाम कु ंवर क मनोधारा बदलतेए उसे भी उ सव का
उ साह दलाया। याम कु ंवर को ी कृण क वे शभू षा पहनाई गई, मीरा
वयं बनी राधा और दा सयाँ स खय के प म थ ही। होली क पद
पदावली का गायन आर भ आ। थोड़ी ही दे र म सब जगह रं ग क ही
फुहार पड़ रही थी..........
साँ
वरो होली खे
ल न जाँ
ण।ेखेल न जाणे खेलाये
न जाँ
ण॥

बन सेआवैधू म मचावे, भली बु री नह जाँ ण।े
गोरस के मस सब रस चाखे , भोर ही आँ
ण जगावै

116
ऐसी रीत पर घर हाँण,ेसाँवरो होली खे ल न जाँण॥

छै
ल - छबीलो महाराज साँव रया, हाई नंद क न माँ
ण।े
मीरा के भु गरधर नागर, तट यमु ना केटाँ ण॥

मे
रो मन न रह गयो ठकाँण,ेसाँ
वरो होली खेल न जाँ
ण॥

होली खेलते खेलते मीरा केअं ग श थल हो गये और नयन थर
हो गये । वह भाव रा य म वे श कर दे खती ह.........
"वह बरसाना जा रही है । आज होरी है । शी ता से वह पद बढ़ाये
जा रही है । याम जू केसं ग होरी खे लने केलए स खय ने बुलाया है

यामसु ं
दर भी सखा के साथ प ँ चते ही ह गेबरसाने ,......... कह राह
म ही न भट हो जाए, ............ म अके ली ँ और वे ब त से । कैसेपार
पड़े गी ? तभी दाऊ दादा क डफ केसाथ कई क ठ से समवे त वर
सुनाई दयो - "होरी खे लन को आयो री नागर न द कु मार।" म च क कर
एक झाड़ी क ओट म हो गई और दे खा सब तो वहाँ थे पर एक याम न
हते। वशाल दादा के केसर पर रं ग को घड़ा और सबके कं ध पर अबीर
गु
लाल क झोरी। सब ब त उ साह म नाचते -गातेफरक ले तेबढ़ रहे
थे। सबकेपीठ पै ढाल बंधे थी। वे आगे चले गये तो मने सं तोष क सां स
ली और जै से ही चलने को उ त ई, कसी ने पीछे से आकर मु ख पर
गु
लाल मल द । म च क कर खीजतेई बोली, "अरे , कौन है लं गर (ढ ठ) ?
मीरा केमहल म रं गीली होली का उ सव है । यामकु ँ
वर ने
यामसु दर क वे शभूषा पहनी है , मीरा ने राधारानी क । भावावे श म
मीरा बरसाने क होली केलए जा रही हैक राह म पीछे से आकर
कसी ने मुख पर गुलाल मल द - "अरे , कौन है रेलंगर ?"
म सचमु च खीज ग थी। उधर प ँ चनेक ज द थी, वहाँ
कशोरीजू और का हा जू केसाथ होली जो खे लनी थी।" और यह कौन
आ गया बीच म मू सरचंद।" एकदम प ट म। दे खा तो ! यामजू दोन
हाथ म गु लाल लए हँ सते खड़े थे- "सो लं गर तो म ँ सखी ! मन न भरा
हो तो एक-दो गाली और दे दे।" उनको दे ख कर एकबार तो लाज के मारे
पलक झु क ग । फर होरी म लाज को या काज है , सोचकर मै न नजर
उठाई, म .......भी तोको गु
लाल लगायेँ ?" मेरी बात पर वे ठठाकर हँ स
पड़े । "अरे होली म कोई पू छकर रं ग लगाता है भला ? यह होरी तो

117
बरजोरी का यौहार है । जो म कह ँ नह लगाना ? मान जाये गी या ?"
वह और जोर से हँसने लगे। "तो.......तो ......" मनेएक ही ण सोचा पर
खीज म झपटकर उ ह क झोली से दो मुय म अबीर और गु लाल
भरा, और इससे पहलेक वे पीछे हट, उनकेमु ख पर अ छे सेगु
लाल
मल दया। बस हाथ म अभी नीचे भी नह कर पाई थी क यामसु दर ने
मे
रे दोन हाथ पकड़ लये और बोले , "ठहर, अब मे री बारी है
।" थोड़ा
ख चातनी ई तो हाथ तो छु ड़ा लए और म भागी पर इसी बीच मे री
ओढ़नी का छोर उनकेहाथ म आ गया। म ल जा से दौड़ कर आम के
वृ केपीछेछपकर खड़ी हो गई। "ऐ मीरा ! यह ले चु
नरी अपनी। म
इसका या क ँ गा ?" उ ह ने कहा। "वह धर दो, म ले लूँ
गी।" मनेलाज
से धीमे से कहा। "लेनी है तो आकर ले जा। नह तो म बरसाने जा रहा

।" " नह ! तु ह यहाँ आकर दे जाओ।" मनेवनय क । "अ छा ! यह ले
पकड़।" उ ह ने कहा। म याम जू से बचने केलए वृ केतने क
प र मा-सी करने लगी। वे इधर तो म उधर। आ खर झ ला कर खड़े हो
गये। "समझ गया। तु झे चुनरी नह चा हए। मु झे दे
र हो रही है
, अभी कोई
न कोई सखा मु झे ढूँ
ढता आता होगा।" उ ह ने जै
से ही जाने केलए पीठ
फेरी, मनेदबेपाँ व उनका उ रीय (पटका) ख च लया और
भागी .......म पू
रेाण का जोर लगा कर, बरसाना क ओर। "ए बं द रया !
ठहर जा। अभी पकड़ता ँ । "ऐसा कहते वह मे रे
पीछे दौड़े। जब बरसाना
पास आया तो म लाज केमारे सोचने लगी - "ऐसे कैसेबना चु नरी के
जाऊँ ?" पहले सोचा क यामसु दर का प ा ओढ़ लू ँ
, पर नह । यह
कैसे हो सकता है ? यह तो मने कशोरीजू केलए लया है । म ओढ़ लू ँ
गी
तो उ ह या ँ गी ? मने पथ बदला और सखी क णा केघर क तरफ
चली। उसी केयहाँ से कोई चु नरी ले लूँ
गी। पीछे देखा तो कोई न था।
यामसु दर स भवतः अपने सखा केसाथ सरी ओर चले गये थे।
फर भी मने अपनी ग त म द न होने द । उस छ लया का या भरोसा ?
कौन जाने कस ओर से आ जाये ?
होली केरागरं ग म मीरा भावावे श म बरसाना जा रही है ।
यामसु दर राह म मल गयेऔर मीरा को रं ग दया। होरी क
छ नाझपट म मीरा क चु नरी ीकृण केपास और उनका प ा मीरा
केपास है । मीरा का हा जी को प ा कशोरीजू को नजर करना चाहती
118
है। राह म सखी क णा केघर से चुनरी ले जब वह बरसाना प ँ चती है
तो उसे महल म रा नयाँ और दा सय केअ त र कोई नह द खता।
मन म उ सु कता थी क कशोरीजू कहाँ ह ? म उनके क म गई तो वहाँ
दया बै ठ मे री ती ा कर रही थी - "आ गई तू ? कहाँ रह गई थी ? चल
अब ज द !"
म उसकेसाथ ग रराज प रसर म प ँ च ी। होली क धू म मच रही
थी वहाँ । एक ओर बड़े -बड़े कलश म लाल पीला हरा रं ग घोला आ
था। स खय केक ध पर टं गी झो लय म और हाथ पर अबीर गु लाल
था। दोन ओर क ठन होड़ थी। कभी न दगाँ व से आयेयेयामसु दर
केसखा और वे पीछे हटते और कभी कशोरीजू स हत हम पीछे हटना
पड़ता। पचका रय क बौछार से और गु लाल क फु हार सेसबके मुख-
व रं गेथे। कसी को भी पहचानना क ठन हो रहा था। मने उस रं गक
घनघोर बौछार म वशाखा जीजी को पहचान लया। वेकशोरी जी क
बाँय ओर थ । समीप जाकर मने धीमे से उनकेकान म प े क बात
कही, क तु उसी समय याम जू और उनके सखा ने इतनी जोर से हा-
हा - क क जीजी बात सु न ही न पाई। मनेप ा नकाल कर उ ह
दखाना चाहा, तभी पचकारी क ती धार मे रे मुँ
ह पर पड़ी। मने उधर
देखा तो यामसु दर ने मुँ
ह बचकाकर अँ गठ
ूा दखा दया। सरे ही ण
उ ह ने डोलची से मे
री पीठ पर इतनी जोर से रंग वाले पानी क बौछार
क क म पीड़ा से दोहरी हो गई। वशाखा जीजी हाथ पकड़ कर मु झेर
ले ग - "अब कह या आ ?"
"यह देखो, का हा जू का उ रीय "मनेप ा उनकेहाथ म दे ते
ये कहा। "यह कहाँ , कैसेमला ?" जीजी ने पूछा। मने सब बात कह
सुनाई तो वह स हो हँ स पड़ी - "सु न अब यामसु दर को पकड़ पाये
तो बात बने । बार-बार हमारी मोचाबं द को उनके सखा तोड़ दे तेह।"
"जीजी ! आज याम जू मुझसेचढ़ेये ह, अतः मुझे ही अ धक
परेशान करगे । म आगे र ँतो अव य मु झे वे रं
गने या गराने का यास
करगे । म कु छ आगे बढू ँ
गी तो वह भी आगे बढ़ेग। जै सेही वेमुझे गुलाल
लगाने लग, बस तभी दोन ओर से स खयाँ उ ह घे रकर पकड़ ल।"
"बात तो उ चत लगती है तेरी। पर यह उ रीय पहले कह छपा
कर रख ँ ।" जीजी नेस होतेये कहा। मे री राय सबको पस द आई।
119
ी कशोरीजू को सं ग ले कर म आगे आ गई और हँ स-हँ स कर उनके
ऊपर रं ग डालने लगी। मे री हँ
सी उ ह चढ़ा रही थी। मे री चुनरी से उ ह ने
अपनी क ट म फट बाँ ध रखी थी। म थोड़ा यामसु दर को ललकारती
आगे बढ़ती ई बोली, " ह मत है तो अब रं ग लगा केदखाओ ! म भी
देख,ू
ँकतना दम है तुम म !"
"ठहर जा तू !" दोन हाथ क मुय म गु लाल भर कर जै सेही
मेरी ओर बढ़े , पीछे से सखा भी आ गये । "अहा, हाँ ब लहार जाऊँऐसी
ह मत पर।" मै न चढ़ा कर हँ सतेये कहा - "सखा क फौज ले कर
पधार रह ह महाराज ! मु झसेनपटने ! अरे , तुमसे तो म ही अ छ ँ जो
क अके ली ललकार रही ँ । आओ जरा दे ख भला कौन जीते और कौन
हारे?"
ीकृण वाकई चढ़ गये थे। सखा को बरज करकेवे अके ले
ही दौड़े आगे आये । म एक-दो पद पीछे हट गई, और जोश म आ ती
ग त सेयाम जू ने मु झे अ छे सेपकड़ कर रं ग दया। मे रेहाथ म थमी
अबीर बखर गई। अपना मु ख बचाने केलए मने उनकेकं धे पर धर
दया।
मीरा केमहल म होली का उ सव है । वह भावावे श म ग रराज
प रसर म कशोरीजू क स खय केसं ग मल यामसु दर केसाथ होली
खे ल रही है । वशाखा से प रमश कर वह ठाकु र क घे राब द केलए
उनक ह मत को ललकारती आगे बढ़ तो ल लत नागर ने उसेही पकड़
कर अ छे सेरंग दया।
मेरे हाथ म थमी अबीर बखर गई और अपना मु ख बचाने के
लए मने उनकेकं धे पर धर दया। "ए, मे रा उ रीय कहाँछपाया है
तूने?" उ ह ने एक हाथ से मुझेपकड़ेये और सरे हाथ से मुझे गु
लाल
मलतेये कहा। मु झे कहाँ इतना होश था क कसी बात का जवाब दे
पाऊँ । ये ध य ण, यह लभ अवसर, कह छोटा न पड़ जाये , खो न
जाये रे
......मे हाथ पाँ व ढ ले पड़ रहे थे, मन तो जै से डूब रहा था उस
पश, सु वास, प और वचन माधु री म।
"ए, न द ले रही हैया मज़े से?" उ ह ने मुझे झकझोर दया -"म
या कह रहा ँ , सुनती नह ?" फर धीरे से कहा, "कहाँ है देदेन, यह ले
तेरी चुनरी......ले ......।"
120
मेरा सुझाव काम कर गया। मु झसे उलझे रहने सेयाम जू को
पता ही नह चला क कब चार ओर से स खय ने उ ह घेर लया। "यह
तो हम से धोखा कया।" उ ह ने और सखा नेच ला कर कहा, पर
सुनेकौन ? स खयाँ उ ह पकड़ कर ग रराज नकुज म ले चल । जाते -
जाते मेरी ओर दे खकर ऐसे संकेत कया - "ठहर जा, कभी बताऊँ गा
तु
झ।े "
स खय नेमलकर याम जू को लहं गा फ रया पहना उ ह छोरी
बनाया और फर ीदाम भै या सेउनक गाँ ठ जोड़ी। दोन का याह
रचाया। खू ब धू म मची। स खय ने तो अपनी वजय क स ता म
कतना हो-ह ला कया। गाजे -बाजे केसाथ बनोली नकली। स खयाँ
गीत गा रही थी। उनकेसखा बाराती बन ीदाम केसाथ चले । याम जू
बे
च ारे- ववश से चलते लहं गा-फ रया म रह-रहकर उलझ जाते ।
ल लता जीजी हन क बाँ ह पकड़े संभाले थ । याह केबाद
हा- हनको ी कशोरीजू केचरण म णाम कराया तो याजी ने
भी उदार मन से दोन को शगु ण और आशीवाद दया। हम सब हँ स-हँस
कर दोहरी हो रही थ । स धया म सबने मल-मल कर नान कया और
रं
ग उतारा। कशोरीजू नेउ ह नकुज म पधराया और स खय ने भोजन
कराया। उनकेसखा जीम-जू ठकर स हो वदा ए। भोजन केसमय
भी व वध वनोद होते रहे
। ी कशोरीजू नेस हो मे रा हाथ थामकर
समीप ख चा - "आज क बाजी ते रेहाथ रही ब हन !" कहकर उ ह ने
ने
ह से च मच म बची खीर मे रेमु
ख म दे द।
"अहा सखी ! उसका वाद कै से बताऊँतु ह ? उस वाद-सु धा के
आन द को सं भाल पाना मेरेबस म न रहा और म अचे त हो गई।"
मीरा अभी भी भावावे श म ही है
। कशोरीजू नेहोली के उ सव म
यामसु दर पर वजय पाई। मीरा क से वा और समपण सेस हो जब
याजी ने मीरा को अपना साद दया तो वह आन द केवे ग को न
संभाल पाने से अचेत हो गई। कतनी दे र अचे त रही, ात नह । जब
संभली तो दे खा क वशाखा जीजी ीकृण का उ रीय, मे री रं
ग भरी
चु
नरी और कशोरीजू के साद व , सब मु झे दे
ती ई बोल - "त नक
चे
त कर बहन! सां झ हो रही है
।"
"न द ाम जाओगी ब हन?" ी कशोरीजू नेपू
छा। या उ र ँ ?
121
मन भर आया था। म रोतेये याजी केचरण सेलपट गई - "इन
चरण सेर जाने क कसे इ छा होगी वा मनी जू ?" याजी ने मु
झे
अपनी बाँ ह म भरतेये कहा, "तु म मुझसेर नह हो ब हन। पर तु हारे
वहाँहोने सेहम बड़ी सु वधा है, वहाँके समाचार मलते रहतेह।"
" ीजू ! या क ँ ? म कसी यो य नह । बस आपक चरणरज क
सेवा म बनाए रखने क कृ पा हो ! जैसी-तैसी बस म आपक ँ .......।" म
फर उनके चरण म लु ढ़क गई।
"म घर जाय रहयो ँ , तू भी साथ चले गी या ? रा ते म तू अपने
घर चली जाना, ते री माँच ता करती होये गी।" यामसु दर नेहाथ पकड़
कर उठातेये कहा तो मु झेचे त आ। कशोरीजू क आ ा से स खय
नेमुझे उनके साद व और आभू षण से अलं कृत कया। दय से
लगाकर राधारानी ने मुझेयाम जू के साथ वदा कया।
रा ृ
"ते ं
गार कसने कया री?" यामसु दर ने राह म मु
झसे चलते -
चलते पूछा। "मालूम नह ! मेरी आँ ख म तो याजी के चरण समाये ह।"
"म नह दखता री तु झे ?"
"समझ म नह पड़ता याम जू ! कभी तु म, कभी कशोरीजू । वही
तु
म, तुम वही, कभी आप दोन एक हो, कभी अलग।"
"तूतो बड़ी स हो गई है री, जो इती बड़ी-बड़ी बात बोल रही
है
। पर तेरो तलक कछु ठ क ना ह लागे मोहे....... ठ क कर ँया ?"
बस मीरा उसी समय मू त क तरह जड़ हो गई। वह च ौड़ म
अपने महल म, शरीर म वा पस तो लौट आई थी पर मन कह छू ट गया
था। कभी पागल सी हँ सती, कभी रोती......। मीरा क यह दशा दे ख
यामकुंवर बाईसा उदयकु ं
वर बाईसा सेलपट कर रोने लग । "मे री बड़ी
माँको यह या हो गया ?"
"कुछ नह बे टा ! इनको जब जब भगवान् के दशन होते ह, ये ऐसी
ही हो जाती ह। तु म धीरज रखो ! अभी भाभी हाँ रा ठ क हो जायगी"
उदयकु ँ
वर ने बेट केसर पर हाथ फे रतेए कहा।
यामकु ँ
वर नेमीरा को ऐसी दशा म कभी दे खा नह था। पु ल कत
दे
ह, सतत आँ सू क धारा से अधखु ले ने, मु ख पर अ नवचनीय
आन द। वह दौड़ कर गरधर गोपाल सेबलखतेयेाथना करने लगी-
"ऐ रेहाँ रा वीरा ! होटा माँही मे री सब कु छ ह। इ ह मु झसे मत
122
.....छ नो .....मत छ नो।" च पा, चमे
ली आ द दा सयाँ
नेयामकु

वर को
नेह सेसमझाया और सब मीरा के समीप बै
ठ सं
क तन करनेलग -
"मोहन मु
कुद मु
रारे
कृण वासु
दे
व हरे
"
दो घड़ी केप ात मीरा केपलक-पटल धीरे -धीरेउघड़ेक तु
आन द केवे ग से पुनः मुं
द जाते । क तन के वर केसाथ-साथ मीरा
सामा य ई तो यामकु ँवर ने भी स हो माँ क गोद म सर रख दया।
मीरा नेभी बेट को लारा।
दा सयाँ उठकर रं ग केकुडेपचका रयाँ साफ करने म लग ग ।
मीरा नेअपनी ओढ़नी से कुछ नकाल कर ने ह सेयामकुँवर केहाथ म
थमा दया। उसने मुयाँ खोलकर दे खा तो वन के
तक केदो पु प और
एक पे ड़ ा। उसने सा भ ाय माँ क तरफ़ दे खा। " भु नेदये ह। साद
खा लो और फू ल को सं भाल कर रखना।" मीरा ने उ र दया।
सबके जानेके बाद मीरा ने जब अपनी साड़ी पर रंग दे
खा तो उसे
वापस उसी द लीला का मरण हो आया। कतना हास-प रहास,
कतना हँ सी वनोद और सब स खय क भीड़ ......। पर वह अपने
वतमान म अपने को यू ँअके ला पा उदास हो गई और उसकेमन क
पीड़ा वर बन झं कृत हो उठे..........
कनु
सं
ग खे
लू

होली........, पया तज गये
ह अके
ली......।
मीरा और यामकु ँ
वर दोन गरधर क से वा म लगी थ , क एक
कुमकुम नाम क दासी बड़ी सी बाँ स क छाब ले कर आई और बोली,
"महाराणा जी नेआपकेलए शा ल ाम जी और फू ल क माला
भजवाई हैकम !"
"शा लगराम कौन लाया ? कोई पशु प तनाथ या मु नाथ के
दशन करकेआया हैया ?" मीरा ने अपनेसदा केमीठेवर म पू छा।
"मुझेनह मालू म अ दाता ! मु
झेजो कम आ, उसे पालन केलए म
हा जर हो गई। वै
सेभी ब त समय से मे
रे
मन म आप जू र के दशन क
लालसा थी। आज महामाया ने पू
री क । मु
झ गरीब पर मे हर रखाव
सरकार, हम तो बड़ेलोग का कम बजाने वाले छोटेलोग ह सरकार !"
कुमकुम नेभरे क ठ सेकहा।

123
"ऐसा कोई वचार मत करो। हम सब ही चाकर ह उस होटे धणी
(भगवान) के । जसक चाकरी म ह, उसम कोई चू क न पड़ने द, बस।
हम सब का ठाकु र सबणे जाणे और सब दे खे है
, उससे कुछ छपा नह
रहता।" मीरा नेने ह सेसमझातेये कहा, "गोमती ! इ ह साद दे तो।"
फर यामकु ँ
वर क ओर दे खती ई मीरा बोली, "बे ट ! इस छाब क
डो रय को खोलो तो, तु हारेगरधर केसाथ इनक भी पू जा कर लू ँ

कोई लालजीसा केलए पशु प तनाथ या मु नाथ से शा ल ाम भट म
लाया होगा तो उ ह ने मे
री काम क चीज समझ कर यहाँ भेज दए ह।"
जै से ही यामकु ँ
वर ने डोरी खोलने को हाथ बढ़ाया तो च पा बोल
पड़ी - "ठह रये बाईसा ! इसे हाथ मत लगाईये । जस तरह से यह दासी
इसे ला रही थी, यह छाब भारी तीत होती थी और शा ल ाम तथा फू ल
का भार ही कतना होता है ?"
"तू तो पगली है च पा ! उधर से हवा भी आये तो तूवहम से भर
जाती है । तु म खोलो बे टा !" मीरा नेयामकु ँवर से कहा। यामकु ँ
वर
खोलने लगी तो कु मकुम साद को ओढ़नी म बाँ ध आगे बढ़ आई,
"सरकार ! ब त मजबू ती से बँधी है
। आपकेहाथ छल जायगे , लाईयेम
खोले दे
ती ँ ।"
उसने डो रय को खोल जै सेही छाब का ढ कन उठाया, फू कार
करतेये दो बड़े -बड़े काले भुजगंचौड़े फण उठाकर खड़े हो गये।
दा सय और यामकु ँ
वर केमु ख से चीख नकल पड़ी। कु मकु म क
आँ ख आ य से फट सी ग , और वह घबराकर अचे त हो गई। मीरा तो
मु करातेये ऐसे देख रही थी मान बालक का खे ल हो। देखते ही
दे
खते एक साँ प छाब म सेनकलकर मीरा क गोद म होकर उसकेगले
म माला क भां त लटक गया।
"बड़ा कम !" यामकु ँवर ाकु ल वर म चीख सी पड़ी। "डरो
मत बे टा ! मेरेसाँवरे क लीला दे खो।" पलक झपके , तब तक तो छाब म
बै
ठा नाग एक बड़े शा लगराम के प म और मीरा के गले म लटका नाग
र नहार के प म बदल गया।
"गोमती ! कु मकुम बाई को थोड़ा पं खा झल तो ! थोड़ा चरणामृ त
भी दे। बे च ारी डर केमारे अचे त हो गई है।" मीरा ने शांत वर म कहा।
चमेली ु ध वयं म बोली - "मरने भी द जए अभागी को जो आपके
124
लए सर पर मौत उठाकर लायी। हमारा वहम तो झू ठा नह नकला,
क तु सरकार के भोले पन केसामने वहम का या बस चले ?"
"ऐसी बात मत कह चमे ली ! यह बेच ारी कुछ जानती होती तो
वयं आगे बढ़ कर छाब क डो रयाँयू ँ
खोलती ? और य द जानती भी
होती तो अपना या बगड़ गया ? ले ! ये
चरणामृ त द तो इसके मु
ख म !"
अथाह ने हपूवक दोन हाथ सेछाब म फू ल केऊपर रखे ये
शा ल ाम जी को मीरा ने उठाया और एकबार सर से लगाकर सहासन
पर पधरातेये वे बोल , "मे
रेभु ! कतनी क णा है आपक इस दासी
पर !"
दा सय नेऔर यामकु ँवर नेजयघोष कया - "शा ल ाम
भगवान क जय ! गरधरलाल क जय !"
राणा व मा द य ने मीरा को बाँस क छाब म दो काले भुजग

भजवाये और कहलवाया क शा ल ाम जी और फू ल ह। छाब का
ढ कन खोलते ही नाग नकले , ले कन दे
खते ही देखते एक ने शा ल ाम
का व प लेलया और एक ने र न के हार का।
जब दासी कु मकुम को चे त आया तो वह मीरा केचरण म सर
रखकर रो पड़ी - "म कु छ नह जानती अ दाता ! मु झे तो महाराणा के
सेवक ने यह छाब पकड़ाई और कहा क शा ल ाम जी और फू लहम
आपकेयहाँ प ँचा ँ । य द म इस साजीश केबारे म जानती होऊँतो
भगवान इसी समय मे रेाण हर ल।" फर एकाएक च क कर बोली, - "वे
कहाँ गये दोन काल गढ़ ?"
"येरहे।" मीरा नेएक हाथ से शा ल ाम जी को और सरे से गले
म पड़े हार को छू तेये बताया - "तुम डरो मत ! मेरेसाँवरे समथ ह।"
यामकु ँवर ब त ो धत ई यह सब दे खकर और बोली, "अभी जाकर
काकोसा से पूछती ँक यह सब या है ? अभी तक तो सु नते ही थेपर
आज तो आँ ख के सम सब दे ख लया।" पर मीरा ने बेट को शां त कर
समझाया, "कु छ नह पू छना है और हमारे पास माण भी कहाँ हैक
उ ह ने साँ प भेज।ेफर साँ प ह कहाँ ? ब क गोमती, जा ! जोशी जी को
बु
ला ला, बोलना शा ल ाम भु पधारेह। ाण त ा करनी है । और
च पा ! भु केआगमन पर उ सव भोग क तै यारी करो, और सब महल
म साद भी बं टे
गा।"
125
यामकुँवर तो यह सब दे ख सकते म आ गई एक शरणागत का,
एक भ का कसी भी थ त को दे खने का, उस थ त को सं भालने
का ही नह ब क उसेभु क लीला मान उसे उ सव का व प दे दे
ना
कतना भावभीना कोण है !"
"और मे रेलए या आ ा हैकम ?" कु मकुम रो पड़ी। "जो यह
साद मे रेप ले म न बँ धा होता तो वे नाग मु झे अव य डस गये होते।
अब वहाँ जाकर या अज क ँ ?"
"केवल यही कहना क छाब को म कु ंवराणी केपास रख आई ँ
और अज कर दया हैक शा ल ाम और फू ल केहार ह। इ छा हो तो
उ सव के प ात आकर तु म साद ले जाना।" मीरा ने कहा।
"न जानेकस ज म केपाप का उदय आ क ऐसे काय म
न म बनी। य द आपको कु छ हो जाता अ दाता ! तो मु झेनरक म भी
ठकाना न मलता। जू र आप तो पीहर पधार रही ह....... मु झेभी कोई
से
वा दान कर दे त !" दासी ने आँ सूप छतेये कहा।
री या से
"मे वा? सेवा तो ठाकु र जी क है । उनका जो नाम अ छा
लगे, उठते -बैठते काम करतेये लेती रहो। जीभ को न तो खाली रहने दो
और न फालतू बात म उलझायो। यह कोई क ठन काम नह है , पर
आदत नह होने सेार भ म क ठन लगे गा। आदत बनने पर तो लोग
घोड़े-ऊँ ट पर भी न द ले लेतेहै। बस इतना यान रखना क नयम छू टे
नह ।" मीरा ने कहा।
झे
"मु .......भी एक ......ठाकु र जी .......ब शाव। ँ लायक तो
कोय न, पण जर री दया सूँतर जाऊँ ली।" कु मकुम ने सं
कोच से
आँचल फै ला कर कहा।
मीरा उसकेभाव सेस हो बोली, "ब त भा यशाली हो जो
ठाकु र जी क से वा क इ छा जगी। साद ले नेआवोगी तो जोशीजी
भगवान और नाम दोन दे दगे । इनकेनाम म सारी मु सीबत केफं द
काटने क श है । य द तुम नाम भगवान को पकड़े रहोगी तो आगे -से
-
आगे राह वयं सूझती जाये गी और वह वयं भी आकर तु हारेदय म,
नयन म बस जायगे ।" "आज तो मे रा भा य खु ल गया।" कहतेये उसने
अपने आँ सु से मीरा के चरण पखार दए।
शा ल ाम जी केपधारने का उ सव आ। जब जोशी जी ने
126
शा ल ाम भगवान का पं च ामृ
त अ भषेक आ तो यामकु ँ
वर और
दा सय ने जयघोष कर मीरा का उ साह व न कया। मीरा भगवान के
वयं घर पधारनेसेस च मुा म पर अ तशय भावु क हो वन ता
से शीश नवाया। और दय के सम त भाव से यतम का वागत करने
म त मय हो ग .........
हाँ
रे
घर आयो यतम यारा ...........
मीरा जी केमहल म भु शा ल ाम जी केआगमन का उ सव
व धवत स प आ। पहले ठाकुर जी का शं खनाद केसाथ अ भषे क,
भजन सं क तन, भोज और फर साद। सबके महल म साद बँ टा।
उदयकु ँ
वर बाईसा को साद पाकर ब त आ य आ तो वह
वयं मीरा केयहाँ उ सव का कारण पू छने चली आई। यामकु ँवर और
मीरा साद पाने बैठनेही लगे थे
। तो मीरा ने दासी को कह उदयकु ँवर
बाईसा क भी थाली साथ ही लगवा ली।
"आज कै सा उ सव है भाभी हाँ रा ?" उदयकु ँ
वर नेज ासा वश
पूछा। "आज शा लगराम भु पधारेह बाईसा !" मीरा नेस ता से कहा।
यामकु ँवर ने साद पाते -पातेसारा वृ ता त बु आ को कह सु नाया।
उदयकु ँ
वर सांप केपटारे क बात सु नकर ब त ो धत ई, "म त
समझी थी क महाराणा को अब अकल आ गई है । वेभाभीसा को अब
पहचान गये ह। क तु कुछ भी नह बदला है । म जाकर पू छती ँक यह
या कया आपने , या मे
ड़ तय को श ु बना कर मानगे ?"
"नह बाईसा ! कु छ नही कसी से भी पू छना है। भाई जयमल के
पुमु कु द दास भी अभी यह है । मेड़ता म जरा सा भी भनक पड़ गई
तो दोन तरफ क तलवार भड़ जाये ग । मे रा तो कुछ बगड़े गा नह , पर
हमारी बे ट का पीहर खो जाये गा।" मीरा नेयामकु ँवर केसर पर हाथ
रखतेये कहा।" और रही बात मे री, वो तो वै सेभी परस म जा ही रही
ँ।" उदयकु ँ
वर व ल वर म भौजाई सेलपटतेये बोली, "आप समं दर
हो भाभी हाँ रा!"
तभी कु मकु म ठाकु र जी को ले नेआ गई। मीरा उसेऔर
यामकु ँवर को ले म दर पधारी तो जोशीजी को उसक इ छा बताई।
"तुमको कौन से ठाकु र जी अ छे लगते ह, रामजी, कृणजी, एक लगनाथ,
127
माता जी या कोई और ?" मीरा ने पू
छा। "मु
झेअ छे बु
रेलगने क अकल
कहाँ हैसरकार !" कुमकु म वन ता से बोली।
"भगवान से एक र ता जोड़ना पड़ता है , इस लए पू छ रही ँ ।
तुह बालक चा हये क ब द, मा लक चा हए क चाकर, यह बताओ।"
" हारेतो ना हा लाला चावेकम !" मीरा ने बालमुकु द जी को
उठाकर जोशीजी केहाथ म दया। जोशीजी उसे कुमकु म केहाथ म दे ते
ये बोले मसे
- "तु जैसी बन पाये, वै
सी पूजा करना और छोटे बालक क
तरह ही सार-सं भाल करना। आज से ये ते
रेलाला ह। अपने बालक क
तरह ही लाड़-गु सा भी करना। इ ह खला कर ही खाना-पीना, इन पर
पू
रा भरोसा करना।"
उसके कान म लाला का गोपाल नाम दे तेए कहा - "इस नाम को
कभी नह भू लना मत, जबान को नाम सेव ाम मत दे ना, समझी ?"
कुमकु म ने आँसु से भरी आँ ख से जोशीजी क ओर दे खकर सर
हलाया। प लू से चाँद का एक पया खोलकर जोशीजी केपाँ व के
पास रख णाम कया। वहाँ बै
ठे सबको णाम कर अ त म उसने मीरा
केदोन चरण पकड़ रोतेये कहा, "म पा पन आपकेलए मौत क
साम ी ले कर आई थी और आपने मे
रेलए वै कुठ केदरवाजे खोले ।
बस इस दासी पर सदा कृ पा करना, भूल मत जाना।"
मीरा नेसर पर हाथ फे र आ ासन दया। जोशीजी केआ ह से
मीरा नेम दर म गरधर के सम , जाने सेपहले एक पद गाया.......
म गो व द के
गुण गाणा।
राजा ठैनगरी राखै , ह र ठयाँकह जाणा॥
राणा भेया जहर पयाला, इम रत क र पी जाणा॥
ड बया म भेया ई भुजग ंम, सा लगराम कर जाणा॥
मीरा तो अब म े दवानी, साँ व रया वर पाणा॥
म गो व द के
गुण गाणा॥
सं
वत १५९१ वै शाख मास (1534) म सदा केलए च ौड़
छोड़कर मीरा मे
ड़ते क ओर चली। एक दन भोजराज के प ेसेगाँ

जोड़कर इसी वैशाख मास म गाजे
-बाजे
केसाथ वे
इस महल क देहली
पर पालक से उतरी थी। आज सबसेमलकर इस देहली सेवदाई ले
128
रही है। येवेमहल-चौबारे थे
, जहाँ उसने कई उ सव कए थे , जहाँउसके
गरधरलाल नेअने क चम कार दखायेथे , जहाँउसके य सखा
क लयु ग म ापर के भी म से भी अ धक भीषण त ा का पालन करने
वाले महाभी म भोजराज ने दे
ह छोड़ी थी और जहाँव मा द य ने
उसकेव कई षडय रचाय थे ।
एकबार भरपू र नजर से उसने सबको दे खा, उस क म जहाँ
भोजराज वराजते थे....वेवहाँजाकर खड़ी हो ग । पं चरं
गी लह रये का
साफा, गले म जड़ाऊ क ठा-पदक पहने , कटार-तलवार बाँ धे
, हँ
सते-
मु कराते भोजराज मान उसकेस मु ख खड़े हो गये थे
। मीरा क आँ ख
भर आई - "सीख ब शा , महाराजकु मार ! वदा, वदा मे रेसखा ! मेरे
सुढ़ कवच ! मु झसे जो भू ल, जो अपराध ये ह , उनकेलए म मा
याचना करती ँ ।" कहतेये मीरा नेम तक धरती पर रख भोजराज को
णाम कया - "म अभा गनी आपको कोई सु ख नह प ँ च ा सक , कोई
सेवा नह कर सक । अपने गु
ण और धीर-ग भीर वभाव से आपने जो
मेरी सहायता क और सदा ढाल बनकर रहे , जो भी म त ा आपने क
और अं त तक उसेनभाया, उसकेबदले म अ कचन आपको या नजर
क ँ? क तु हे मेरेसखा ! मे रेवामी सव समथ ह। वे दगेआपको
अपनी इस दासी क सहायता का तफल। आपका मं गल हो...आप
जहाँ भी ह ....मेरा आपको णाम।" उसने आँ सु से भरी आँ ख से
पुनः धरती पर णाम कया।
ब त दे र से च पा वा मनी को यू ँभावुक हो रोतेये देख रही थी-
"बाईसा कम ! नीचे पालक आ गई है , सबसेमलने पधार।" आँ सू
प छकर मीरा उस क से बाहर आ गई। आव यक सामान और गरधर
क पोशाक आभू षण सब गा ड़य पर लदकर जा चु का था। मीरा केजो
सेवक और दा सयाँ जो च ौड़ म ही पीछे रह रहे थे
, उनकेलए
और जी वका का ब ध कर दया था। सभी मन ही मन जानते थेक
अब मीरा वापस च ौड़ क ओर मु ख न करे गी, सो उसके यजन के
ाण ाकु ल थे ।
मीरा अपनी सास और गुजन क चरणव दना करने पधारी।
सब उसे भारी मन सेमले । धनाबाई सास तो उसेदय से लगा बलख
पड़ी तो मीरा ने उ ह आ त कया। हाड़ी जी ( व मा द य क माता)
129
को मीरा नेणाम कर अपने अ जाने म अपराध केलए मा माँ गी।
हाँड ीजी बोली, "पहले म समझती थी क तु म जानबू झ कर हम सबक
अव ा करती हो बीनणी! क तु बाद म म समझ गई क भ के आवे श
म तु ह कसी का यान नह रहता। तु मसे प ला फैला एक भ ा माँ गती
ँ.......दोगी? हमारे कए अपराध को मन म ..............।"
मीरा नेने ह सेसास का प ला हटाकर उनकेदोन हाथ
पकड़कर माथे से लगातेये बोली, "ये हाथ कसी केसामने फै लानेके
लए नह बने है ये हाथ आ त पर छ छाया करने और मु झ जै सी
अबोध को आशीवाद दे नेकेलए बने ह। यह च ौड़ क जननी केहाथ
ह, आपकेऐसा करने सेआपकेराजमाता केपद का अपमान होता है ।"
"नह ! मु झे कहने दो बीणनी !" कहते -कहते हाड़ी जी क आँ ख से आँसू
बहने लगे ।
"नह कम ! कु छ मत फरमाइये आप। मे रेमन म कभी कसी के
लए रोष नह आया। मनु य अपने कम का ही फल भोगता है । सरा
कोई भी उसे:ख या सु ख नह दे सकता, यह मे रा ढ़ व ास है । आप
न त रह। भगवान कभी कसी का बु रा नह करते । उसकेवधान म
सबका हत, सबका मं गल ही छपा होता है ।" मीरा नेने ह से सास को
दय से लगाया तथा णाम कर चलने क आ ा माँ गी।
मीरा राजमाता जी के महल सेनकल दास दा सय को यथायो य
अ भवादन करती पालक म आ बै ठ । सब मु क ठ से मीरा क
शं सा कर रहे थे। तभी ननद उदयकु ँ
वर बाईसा उसकेचरण से आकर
लपट गई तो मीरा ने उसेदय से लगा आ त कया।
"भाभी हाँ रा ! म आपक ँ , आप मु झेभूल मत जाइये गा। मेरे
ठाकु र जी तो आप ही हो। म कसी और को नह जानती।" रोते -रोतेउदा
ने कहा। "धै य र खये । आप हाँ रा और ँ आपरी ँ बाईसा। थाप मारने
से पानी अलग नह हो जाता। पर मनु यक श कतनी ? आप उस
सव समथ ठाकु र जी पर व ास क जए, उनकेचरण म मन लगाईये ,
उसकेनाम का आ य ली जए।" मीरा ने समझाया। उदयकु ँवर मुँ
ह ढाँ

कर जै सेही एक तरफ ई तभी कु मकु म आकर मीरा केचरण म पड़
गई। उसक आँ ख से झरता जल मीरा के पाँ
व पखारने लगा।
"उठो, तुम पर तो ब त कृ पा क हैभु ने। अपनी सं
सार
130
और इसकेसु ख क ओर नह , भु क ओर रखना। मन केसभी परदे
उनकेसामने खोल दे ना। दय म उनसेछपा कु छ रह न जाए, यह यान
रखना।"
मीरा क पालक भोजराज केबनवायेये म दर क ओर चली
भुके दशन कर जब वह ां गण म खड़ी तो उसेाण त ा का वो
दन मरण हो आया जब वह भोजराज केसाथ पू जा केलए बै ठ थ -
"कैसा अनोखा व था भोजराज का ! लोग केअपवाद, मु खर
ज ाय उनकेपलक उठाकर दे खते ही तालू सेचपक जाती थ । तन
और मन क सारी उमं ग, सारेउ साह को मे री स ता पर यौछावर
करने वालेहे महावीर नर सह ! भु आपकेमानव जीवन का चरम फल
ब शग।" उसे ात ही नह आ क कब उसक आँ ख से नीर बहने
लगा। आँ सू प छ वे नीचेझुक और ागं ण क रज उठा मीरा ने सीस
चढ़ाई। " कतने संत , भ क चरण रज है यह।"
जोशीजी ने मीरा को चरणामृत दया तो उसने ठाकु र जी क पूजा
सेवा का ब ध ठ क से रखने क ाथना क । बाहर आते उसे न ह दे
वर
उदय सह मल गये तो उसेलार कर उसकेसर पर हाथ रखा। म दर
सेमलेसाद क क णका मु ख म रख थोड़ा उदय सह के मुख म डाला।
बाक साद उसक धाय प ा राजपू त को दे कर कहा, "बड़े सेबड़ा
मूय चु का कर भी इस वट बीज क र ा करना। कल यह वशाल घना
वृबनकर मे वाड़ को छाया देगा।"
ा ण को दान, गरीब को अ व दे मीरा पालक म सवार
ई - मान च ौड़ का जीवं त सौभा य वदा हो रहा हो। कु छ याँ
वदाई केगीत गाती साथ चली पर मीरा ने सबको समझा बु झा कर
लौटाया। महराणा और उमराव नगर के बाहर तक प ँ च ानेपधारे। सवारी
ठहरने पर महराणा व मा द य पालक केसमीप प ँ च।ेहाथ जोड़कर
वह झु केऔर बोले ; "ख माधणी!"
मीरा नेहँ
सकर हाथ जोड़े ; "सदा केलए वदा द जये अपनी इस
खोट भौजाई को। अब ये आपको क दे नेपुन: हा ज़र नह होगी।
मुझसे जाने अ जाने म जो अपराध बने हो, उनकेलए मा ब शाव !"
महाराणा घबराकर बोल उठे , "येया फरमाती ह भाभी हाँ रा !
कुल कान क खा तर, जो कु छ कभी कभार अज कर दे ता था, उसके

131
लए मुझेही मा मांगनी चा हए।"
"भगवान आपको सु म त ब शे !" मीरा ने हाथ जोड़े रे
, "मे मन म
कभी आपका कोई काय अथवा बात अपराध जै सी लगी ही नह । फर
माफ कै सी लालजीसा ! यह राज जै सेअ दाता कम चलाते थे
, वै
सेही
आप भी चलाय ,यही सब क कामना है ।
मु
कु द दास और यामकु ँ
वर ने भी सबसेवदा ली। मीरा क कु छ
दा सयाँसप रवार साथ थी ह । जो साथ नह चल सकते थे, जनक जड़े
अब च ौड़ म जम चु क थ , उ ह मीरा नेने ह से समझा कर वा पस
भेजा। क तु सं
त और या य क टोली तो साथ ही चली।
मीरा का ल य उसे अपनी तरफ़ पु कार रहा था। वह धीरे -धीरे
पछल र त को स मान दे कर आगे बढ़ने लगी......... उसके दय म
कह र से एक ही संगीत व न सु नाई दे रही थी ...............
चालाँ
वाही दे
स...........
तीस वष क आयु म मीरा नेच ौड़ का प र याग करकेपु नः
मे
ड़ता म नवास कया। उसकेहतै षी वजन , चाकर और दा सय को
मान बन माँ गेवरदान मला। हष और न तता से उनकेआशं कत-
आतं कत मन खल उठे । मे
ड़तेका यामकुज पु नः आबाद आ। कथा-
वाता, उ सव और स सं ग क सीर खुल गई।
मे
ड़ता का याम कुज उ सव और स सं ग क उ लास भरी उमं ग
से एकबार पु नः खल खला उठा। क तु मीरा केगरधर गोपाल क
योजना कु छ और ही थी। उसके ाणधन यामसु दर को अपनी य ेसी
का अपने धाम सेर रहना नह सु हाता था। मीरा नेच ौड़ छोड़ दया,
केवल इतने मा से वेसंतुनह थे । वेइकलखोर दे वता जो ठहरे।उह
चाहने वाला सर क आस कर, यह वे त नक भी सह नह पाते । ले
ना-
दे
ना सब का सब पू रा चा हए उ ह। जसे उ ह ने अपना लया, उसका
और कोई अपना रहे ही य ? बस ठाकु र जी क इ छा से राजनै तक
प र थ तयाँ करवट बदलने लगी।
मीरा केच ौड़ याग के बाद बहा रशाह ने च ौड़ पर आ मण
कर दया। राजपू त वीर ने घमासान यु कया पर सफलता नह मल
पाई। इस यु म ब ीस हजार राजपू त वीरग त को ा त ये और ते रह
132
हजार याँराजमाता हाड़ीजी केसाथ जौहर क वाला म कू दकर
वाहा हो ग । इ ह बीच पासवान पुवनवीर क रा य- ल सा बढ़ चली
और उसने एक रात महाराणा व मा द य को तलवार से मार डाला।
रा य को अकं टक बनाने क लोलु पता म वह वनवीर तो महाराणा के
छोटे भाई उदय सह को भी मार डालना चाहता था, पर तु प ा धाय ने
अपने पुक ब ल दे कर उदय सह के ाण क र ा क ।
उधर मे ड़ता क थ त भी अ छ नह थी, उस पर भी भीषण
वप टू ट पड़ी। मीरा को मे ड़ता आयेये अभी दो वष ही ये थेक
जोधपु र केमालदे व ने मेड़ता पर चढ़ाई कर द । साम त केसमझाया,
"पर पर म थ का सं घष उ चत नह । जब उनका आवे श शांत हो
जाये गा, तब हम सब लोग उ ह समझा कर आपको मे ड़ता वा पस
दलवा दगे ।" सरल दय वीरमदे व जी उन साम त पर व ास करके
मेड़ता छोड़ अजमे र आ गये , और वहाँसेनराणा तथा फर पु कर। भा य
क रे खाएँ व थी जो उनको जगह-जगह भटकना पड़ रहा था। मीराबाई
भी प रवार के साथ ही थी।
सन् 1595 म पु कर म नवास करते समय मीरा केच तन म
मोड़ आया। रे णा दे
नवेाले भी वही जीवन अरा य गोपाल ही थे । मीरा
सोचने लगी क दर-दर ठोकर खाने क अपेा यही उ चत हैक अपने
ाण- यतम केदे श वृ दावन म वास कया जाए। उसे मन ही मन बड़ी
ला न हो रही थी क ऐसा न य वे अब तक य नह कर पाई। कु छ
सै नक और अपनी दा सय केसाथ वह तीथ या य क टोली केसं ग
वृ दावन क तरफ़ चल पड़ी ........
"चाला वाही देस" क सं गीत लह रयाँ
उसके दय म हलोर ले ने
लग । आज उसका एक-एक व साकार प ले ने को तै यार था। वह
बार बार वृ दावन नाम का उ चारण मन ही मन करते पुल कत हो
उठती ..... उसक भावना को पं ख से लग गयेथे......वह आज अपने
यतम गरधरलाल केदे स जा रही थी और उनकेलए आज उनक
बैरागन बनना ही उसका सौभा य था .......
बाला म बै
रागन ँ गी।
जन भे षाँमेरो सा हब रीझो सो ही भे
ष ध ँ
गी॥

133
कहो तो कसू मल साड़ी रँ
गावाँ, कहो तो भगवा भे
स॥
कहो तो मो तयन माँ
ग पुरावाँ
, कहो छटकावा के स॥
मीरा के भुगरधर नागर, सु ण यो बड़द नरे स॥
मीरा क अपने यतम केदे श, अपने दे
शप ँ चनेक सोयी ई
लालसा मान दय का बाँ ध तोड़कर गगन छू नेलगी। य - य वृ दावन
नकट आता जाता था, मीरा के दय का आवे ग अद य होता जाता।
क ठन यास से वेवयं को थाम रही थी। उसकेबड़े -बड़ेनेआसपास
केवन म अपने ाण आरा य क खोज म इधर-उधर चं चलता से
प र मा सी करने लगते । मान वह कह यामसु दर वं शीवादन करते
येकसी वृके नीचेखड़ेदख जायगे ।
मीरा बार-बार पालक , रथ कवाकर बना पद ाण (खड़ाऊँ )
पहने पै दल चलने लगती। बड़ी क ठनाई से च पा, चमे ली केसर आ द
उ ह समझा कर मनु हार कर केयह भय दखा पाती क अ यास न होने
से वह धीरे चल रही ह और अ तःत साथ म चल रहे सब या य को
असु वधा होती है । इसके बाद भी मीरा पै दल चलने सेवरत नह हो रही
थ । उनकेपद छल गये थे, उनम छाले उभरकर फू ट गये थे
, क तु वह
इन सब क से बेखबर थी। दा सय , से वक क आँ ख भर आती। मीरा
हँसकर उन सभी को अपनी सौग ध दे रथ पर या गाड़ी पर बैठा दे
ती।
मीरा भजन गाती, करताल बजाती चल रही है , क तुदा सय को
केवल वह र छाप दखाई दे ती है
, और उसके ये क पद पर उनके
दय कराह उठते । जब उनक यह पीड़ा असहनीय हो गयी तो च पा रथ
से कू
द पड़ी और वा मनी के चरण सेलपट गयी।
झसे
''मु जो भी अपराध ए ह बाईसा कम ! इतनी क ठन सजा
मत द जयेक अभा गनी च पा सह न सके । हम पर दया कर
वा मनी ...दया कर .........।" वह अचे त सी हो वा मनी केचरण म
लुढ़क गयी।
" या आ तु झे?" कहती ई मीरा नीचे बै
ठ गय । च पा को गोद
म भरकर उसकेआँ सू प छती बोली। "अपने पदतल तो दे खए बाईसा
कम !" चमेली ने जैसे ही मीरा केपाँव को छुआ मीरा क दद से ह क
सी कराह नकल गई।

134
''म तो ठ क ँ पगली तु म य घबराय ? य द कु छ आ भी तो
साथक आ ये मांस पड, भु के धाम क तरफ़ चलने से। हा न या ई
भला ?''
"हा न तो हमारी ई हैकम ! हम अभा ग नय को, जो सदा से वा
क अ यासी ह उनको तो सवारी पर चढ़ने क आ ा और हमारी
सुमन सु कु मारी वा मनी पां व से चल, हम उनके घाव से र बहता दे ख
और सवारी का सु ख ल, इससे बड़ा द ड तो यमराज क शासन पुतका
म भी नह होगा।" च पा के इस कथन के साथ ही सभी बरबस हो जोर से
रो पड़ी।
जो या ी यह य दे ख रहे थे
, वेभी अपने आँसू रोक नह सके ।
रात होने पर, पड़ाव केखे म म, जब चमे ली मीरा केघायल तलव पर
औषध ले प लगाने लगी, तब भी मीरा का एक ही आ ह था, "जा ! अरे ,
यह सब छोड़ ! जा, जरा कसी या ी से पू
छकर तो आ क वृ दावन अब
कतनी र रह गया है ?" वृदावन समीप जानकर एकदम से चलने को
उ त हो उठती। जो या ी पहले वृदावन गये थे, उ ह बुलवाकर री
पूछती, वहाँ केघाट, वन और कुज का ववरण पू छती, यमु ना, गोवधन
और म दर का हाल पू छती, वहाँक म हमा कभी वयं बखान करती
और कभी सर के मु
ख से सु
नती।
सु बह, जब सब या य क टोली चली तो मीरा केपाँ व मन क
ग त पा उड़ने से लगे
। उसका पु ल कत दय श द म आन द उड़े लने
लगा ...............
चलो मन गंगा -जमना तीर॥
गं
गा - जमना, नरमल पाणी सीतल होत सरीर।
बं
सी बजावत गावत का हो संग लयाँबलबीर॥
मोर मुकु
ट पीतांबर सोहैकुडल झलकत हीर।
मीरा के भुगरधर नागर चरण कँ
वल पर सीर॥
कह एक साथ नद , पवत और वन दे खती तो मीरा को वृ दावन
क फु रणा हो आती। वह गाती-नृ य करती और णपात ( णाम)
करनेलग जाती। दा सयाँ पद-पद पर मीरा क सं भाल करती। ब त
क ठनाई से
समझा पाती - "बाईसा ! अभी वृ
दावन थोड़ी र है.......।
135
ज क सीमा पर प ँ च कर या ा रोक देनी पड़ी। मीरा धरा पर
लोट ही गई। अपना घर.......अपना दे स देखते ही उसकेसं यम केबाँ ध
टू
ट गये । ववेक तो जै सेम ेसेता ड़त होकर कह जा बका। आँ ख
से बहती गंगा-यमु ना जभू म का अ भषे क करने लगी। सारी देह धूल
धू
स रत हो उठ । थोड़ी दे र तक मीरा को दा सय नेक ठनाई से
स भाला। स धया होते -होतेसबने वृदावन म वे श कया। मीरा और
उसकेदास दा सयाँ या ी दल से यहाँसे पृ
थक हो गये और वृ दावन म
थम रा वास उ ह नेी यामसु दर क लीला थली कुड पर
कया।
कुड पर वह रा पय त नर तर अ प क ठ से अपने
ाण यतम को पु कारती, नहोरा करने लग । ब त य न करने पर भी
वह कृ त थ नह । कसी कार भी उ ह दो कौर अ और दो घू ँ

पानी नह पलाया जा सका। अपनी म ेद वानी वा मनी को घे रकर
दा सयाँ सारी रात संक तन करती रही।
च पा ने कसी को डाँ टकर तो कसी को यार से भोजन करने को
समझाया - "चाहे मन हो या न हो पर वयं को से
वा केलयेव थ रखने
केलए हम इस दे ह को पु रखना है । अ यथा हमारा से वक धम
कलं कत होगा।"
ातः होते ही मीरा नेयमु
ना- नान क रट लगा ली। यमु ना अभी
र है, कहकर उ ह पालक पर चढ़ाया गया। च पा साथ बै ठ । ले कन
मीरा के दय म इतनी वरा थी क बै ठेरहना उसे सुहा नह रहा था। वह
जद कर फर उतर पड़ी - " क नज घर म भी कोई पालक म सवार
होता है भला ? जरज का तो जतना हम पश पाये उतना ही हमारा
सौभा य है।"
"वृदावन धाम ! यह तो है ही मे-परवश ाण का आधार, उनके
दय सव व क लीला थली, र सक का नवास- थल। र- र सेयासे
ाण इस लीलाधाम को ताकतेये चले आते ह। बड़े -बड़ेराजा के
मु
कु ट यहाँधू ल म लोटतेनजर आतेह। महान द वजयी व ान
रज नान करकेवृ सेलपटकर आँ सूबहातेयेदखते ह। कह ने
मू

देये आँ सू बहाते, क पत पु ल कत दे ह, कसी घाट पर या कसी

136
वृक छाया म, या कसी एका त कु टया म मेी जन लीला दशन सु ख
म नम न है । जस वृ दावन क म हमा महा मय केवणन म वयं
जराज कशोर अपने को असमथ पाते है, उसेम मूढ़ शु क दय कै से
क ँ ?"
सेवाकुज के पीछेक गली म एक घर ले कर दो सेवक और तीन
दा सय के साथ मीरा रहने लगी। य प वह ार भ से ही नह चाहती थी
क वृ दावन या ा म कोई भी उसकेसाथ आये , पर ज ह ने अपनी
जदगी क डोर उसकेचरण म उलझा द थी, उ ह वह कै सेपीछे छोड़
आती?
वृदावन म मीरा का मन पहले सेही रमा आ था। फर भ म
वछ दता, कसी भी तरह क वहा रकता से परे का वातावरण, कोई
ब दश नह मान मीरा क म ेभ को उड़ने केलयेव तृ त आकाश
मल गया हो। उसे वृ
दावन म ई ठाकु र जी क लीला क मृ त
अनायास ही हो आती। कभी ठाकु र क गो पय से छेड़छाड़ क लीला
तो कभी माधु य भाव क लीला। वह उन भाव को सं गीत म वभा वक
ही बाँ
ध देती...........
या ज म कछुदेयो री टोना॥
लेमटक सर चली गु ज रया। आगेमले बाबा न द जी केछोना॥
द ध को नाम बस र गयो यारी। "लेले री कोउ याम सलोना॥
ब ाबन क कु ं
ज ग लन म। आँ ख लगाय गयो मनमोहना॥
मीरा के भु गरधर नागर। सु दर याम सु घर रस लोना॥
मीरा का आवास थान से वाकुज केसमीप ही गली म ही था।
से
वाकुज तो वयंस पीठ हैमानो तो जै सेवृ दावन का दय,
यालाल जी क न य रास थली। फर पास म ी यमु ना महारानी जो
यालाल जी क न य रसके ल क चर सा ी है। चार तरफ म दर,
स संग-मीरा का उ साह तो पल-पल म उफान ले रहा था। वह कसी
सरेही जगत म थी। वृदावन वास केदवा न श भी इस जगत के कहाँ
थे? मीरा को कुछ खाने-पीने
क भी सुध कहाँथी ? पर हाँ....उसक
आ मा अव य पुहो रही थी।
मीरा क ऐसी थ त म अ दर बाहर का सारा काय दा सयाँ ही
137
संभाल रही थी। चमे ली बाई अपने प त शंकर और के सर बाई अपने पत
केशव को साथ ले कर वृ दावन केलए थान करते समय मीरा के पीछे
चल द थी। चमे ली के कोई स तान नह थी और के सर ने अपना एकमा
पुगोमती को स पा। जब के सरबाई वा मनी केपीछे -पीछे चली तो
केशव भी चला आया। मीरा ने जब के सर केपुगो व द को माँ केलए
रोतेदे
खा तो के सर से लौट जाने को ब त आ ह कया। पर के सर ने
हाथ जोड़ कर नवे दन कया -"माँ बाप ने सरकार केववाह केसमय
मुझेइन चरण म स पा था। से वा म पटु न होने पर भी ऐसा या महान
अपराध बन पड़ा कम क इस दासी को आप अनाथ कर रही ह ? बस
एक अनु रोध है, वृदावन म आप जहाँ भी रहगी, म आपके र से ही
दशन कर लया क ँ गी। बस, इतनी नयामत ब श आप इस
ककरी को !" चमे ली ने भी कहा "वहाँ तो सब सीधे -सीधेमले गा नह ।
च पा ी चरण क से वा करे गी, तो म और के सर लकड़ी लाना, आटा
पीसना, कपड़े धोना, बतन मां जना बु हारी लगाना आ द काय सं भाल
लगी। इतना जीवन आपक से वा म बीता है तो बाक का य अ भशाप
बन?" मीरा दोन क से वाभावना सेन र हो गई।
च पा नेववाह कया ही नह था। वह मीरा क दासी ही नह ,
अंतरं
ग सखी भी थी, उसकेभाव क वा हका, अनु गा मनी, अनु चरी।
कभी-कभी जब अं तरं
ग भाव क चचा होती तो उसकेभाव क
उ कृता देखकर मीरा च कत हो उठती। च पा से मीरा को वयंच तन
म सहायता मलती। वे पूछत , "च पा ! कहाँ सेपा गई तूयह र नकोष ?"
वह हँसती - "सब कु छ इ ह चरण से पाया हैसरकार ! और कसी को
तो जानती नह म।"
कथा, स सं ग, म दर केदशन, भजन, क तन नृ य आ द का
उ लास और उ साह ऐसा था क मान परमान द सागर म डु बक -पर-
डुबक लग रही ह । मीरा क भजन या त वृ दावन म फै लने लगी थी।
जसने भी सु ना, वही दौड़ा-दौड़ा आता। आकर कोई तो णाम करता
और कोई आशीवाद दे ता। ज केसं त सेवचार- व नमय और भाव
चचा करकेमीरा ती तापू वक साधन-सोपान पर चढ़ने लगी। य प
मीरा वयं स ा सं त थ , पर यहाँ इस पथ म भला इ त कहाँ है
?
मीरा का मन पू णतः वृ दावन म रच बस गया था। उसे कभी
138
मरण भी नह होता क वह ार भ सेयहाँ नह थी। उसे
वृदावन भा
गया था और वहाँ
क सा वकता और घर-घर म सहज और वभा वक
भ दे ख उसका मन उ लास से
गा उठता..........
आली हाँ नेलागे
वृदावन नीको।
घर - घर तु
लसी ठाकुर पू
जा दरसण गो व दजी को॥
नरमल नीर बहेजमु ना को भोजन ध दही को।
रतन सघासण आप वरा या मु कट धय तु लसी को॥
कुं
जन - कु
ंजन फ ँसाँ वरा सबद सु
णत मु रली को।
एक दन कसी से पू य ी जीव गो वामी पाद का नाम, उनक
ग रमा, उनक त ा सु नकर मीरा उनकेदशन केलए पधारी। से वक
के ारा उनक भजन कु ट र म सूचना भे
जकर वे बाहर बै ठकर ती ा
करने लगी। से वक ने कु टया से बाहर आकर कहा, "गो वामी पाद कसी
ी का दशन नह करते ।"
मीरा हँस कर खड़ी होतेये बोल , "ध य ह ी गो वामी पाद !
मे
रा शत-शत णाम नवे दन करके उनसेअज कर क मु झ अ दासी से
भूल हो गई जो दशन केलए वनती क । मने अब तक यही सु ना था क
वृदावन म पुष तो एकमा र सकशे खर जेन दन ी कृण ही ह।
अ य तो जीव मा कृ त व प नारी है । आज मे री भूल को सु धार
करकेउ ह ने बड़ी कृ पा क । ात हो गया क वृ दावन म कोई सरा
पुष भी है !" अं तम वा य कहते -कहतेमीरा ने पीठ फे रकर चलने का
उप म कया।
मीरा ारा से वक को कही गई बात भजन कु ट र म बै ठे ी जीव
गो वामी जी ने सुनी। "कृया मा कर मातः !" ऐसा कहतेए गो वामी
पाद वयं कु टया से बाहर आये और मीरा के चरण म णाम कया।
"आप उठ आचाय !" वे इकतारा एक ओर रखकर हाथ जोड़तेये
झुक - "मने तो कोई नई बात नह कही भु ! यह तो सव व दत स य है
क वृ दावन म पुष के वल एक ही है - जेन दन ीकृण ! और हम
सब साधक तो गोपी व प ह ! बस ऐसा ही सं त के मुख से सुना है
।"
"स य है , स य है ! पर स य और सव व दत होने पर भी जब तक

139
हम कसी बात को वहार म नह उतारते , जानकारी अधू री रहती है माँ
!
और अधू रा ान अ ान से बढ़कर :खदायी होता है ।" उ ह ने दोन हाथ
से कुटया क ओर सं केत करतेयेवन वर म कहा -"पधार कर दास
को कृताथ कर।"
"ऐसी बात न फरमाय ी गो वामी पाद ! आप तो ा ण कु ल-
भूषण ही नह , ी चैत य महा भु केलाड़ले प रकर ह। मे री य कुल
म उ प दे ह आपक चरण-रज पश क अ धकारी है ।" कहतेये मीरा
ने झु
ककर ी जीव गो वामी पाद केचरण केसमीप ा से म तक
रखा। ी पाद "ना-ना" ही कहते रह गये।
"अब कृ पा करकेपधारे ।" ी पाद ने अनुरोध कया। "आगे आप,
गुजन केपीछे चलना ही उ चत है ।" मीरा ने मु करातेये कहा। "म
तो बालक ँ । पुतो सदा माँ केआँ चल से लगा पीछे -पीछे ही चलता
है
।" अ तशय वन ता सेी पाद बोले ।
इस समय तक कई सं त महानुभाव एक त हो गये थे। वेदोन
का वनय- म े-पूण अनुरोध और आ ह दे खकर गदगद हो गये । एक वृ
संत केसुझाव पर कु टया केबाहर चबू तरे पर सब बै ठ गये । सबने मीरा
से आर भ करने का आ ह कया।
मीरा ने ी जीव गो वामी पाद केइ ी गौरां ग महा भु के
स यास व प और अपने इ ीकृण केव प का सम वय बै ठाते
येवभा वक ही एक ऐसे पद का गान कर दया, जसका वण कर
सब भ जन के ाण झं कृत हो उठे। इस गान म जहाँ चैत य महा भु
क जीवमा केउ ार केलये उनक क णा थी वह ीकृण क
वृदावन लीला का अ त भावपू ण च ण था। आ य क बात तो यह थी
क मीरा ने पद गाया तो वभावतः ही, पर एक-एक पं म दोन
लीला का 'गौरलीला' और ' ीकृण लीला' का अ त ुस म ण भी था
और दोन लीला के धान गु ण-गौरलीला केवरह, क णा और
ीकृण लीला क र सकता भी।
अब तो ह र नाम लौ लागी।
सब जग को यह माखन चोरा नाम धय बै रागी॥
कत छोड़ी वह मोहन मु रली कत छोड़ी वह गोपी।
140
मू

ड़ मुँ
ड़ ाई डोरी क ट बाँ
धेमाथे मोहन टो पी॥
मात जसोम त माखन कारन बाँ धैजाकेपाँ व।
याम कसोर भये नव गौरा चै
त य जाको नाँ
व॥
पीता बर को भाव दखावै क ट कोपीन कसै ।
गौर कृण क दासी मीरा रसना कृण बसै ॥
सब बै ठे ये भ जन म से कोई ऐसा न था जो ी गौरां ग
महा भु क जीवमा केउ ार केलए क णा अनु भव कर आँ सु से
अ भ ष न आ हो। "ध य हो ! साधु !अ त ु! वाह !" सब सं त जन ने
शं सा करतेये अनु मोदन कया। मीरा नेवन ता से सबको णाम
कया और ी जीव गो वामी पाद सेी चै त य महा भु केस ां त और

ेभ केवषय म कु छ सुनानेका आ ह कया। ी पाद केसाथ
अ य सं त ने भी चचा म भाग लया। एक भ पू ण गो ी हो गई। ी
पाद मीरा केवचार क वशदता, भ क अन यता और म ेक
गाढ़ता से ब त भा वत ये । पु
नः पधारने केआ ह केसाथ कु छ र
तक मीरा को प ँ च ा कर उ ह वदाई द ।
एक रा मीरा क न द अचानक से उचट गई। उ ह लगा क जै से
कोई खटका सा आ है । म क द वार और खपरै ल क छत से बने
इस साधारण से क म भू म पर ही मीरा केसोने का बछौना था। पै र
क ओर तीन दा सयाँ सोयी थी। दोन सेवक आगे वालेसरे क म
थे। अं
धेरेसे अ यसत हो जाने म आँ ख को दो ण लगे ।
मीरा ने दे
खा क च पा अपनी श या से उठ खड़ी ई है , क तु
या यह वही उनक य दासी और सखी च पा है ? हाँ और नह भी।
वृदावन आते समय उनकेवयं क और दा सय क दे ह पर एक भी
अलं कार नह था। सबकेव सादे और साधारण क म केथे , क तु
इस समय तो च पा द र न ज ड़त व आभू षण से अलं कृ
त खड़ी
थी। वैसेभी च पा गौरवणा थी, क तु इस समय उसका वण वण च पा
केसमान था। उसका गु ज रया केसमान ऊँ चा घेरदार घाघरा, कं चु

और ओढ़नी, पै र म मोटे घु

घ के नू
परुगूथ
ँेछड़े, हाथ म मोटे -मोटेवण
कंगन के बीच हीरक ज टत चू ड़याँथ , उसके मुख क शोभा के स मुख
मीरा का अपना सौ दय फ का लग रहा था। उसके नेम कै सी सरलता..।

141
मीरा ने दे
खा क च पा उसक ओर बढ़ उसक थम पद प ेसे
नुपरूक ीण मधु र झंकार ने ही उ ह जगाया था। दो पद आगे बढ़कर
वह नीचे झु
क और मीरा का हाथ थामकर बोली - "माधवी! उठ चल !"
मीरा च कत रह गई। च पा सदा उ ह आदरपू ण श द से
स बो धत करती रही है । य प मीरा उसे दासी सेअ धक सखी मानती
थ , पर उसने अपने को दासी से अ धक कभी कु छ नह समझा। वही
च पा आज इस कार बोल रही है और यह माधवी कौन है ? ण भर म
येसब वचार उसके म त क म घू म गये ।
च पा नेफर उसे उठने का सं केत कया तो वह उठकर खड़ी हो
गई। मीरा ने कुछ कहना चाहा तो, च पा ने अपनी सु दर अं गठ
ू से
वभू षत तजनी अं गलुी को अपने अ ण अधर पर धरकर चु प रहने का
संकेत कया। ऐसा लगता था क इस समय च पा वा मनी है और मीरा
मा दासी। वे दोन धीरे -धीरे चलकर ार केसमीप आ । अपने आप
ार-कपाट उदघा टत हो गये और वे दोन बाहर आ ग ।
मीरा नेदेखा क जस वृ दावन म वह रहती है , घू
मती है, यह वै
सा
नह है । वृ, लता, पु प सब द ह। पवन, धरा और गगन भी द ह।
इस सबक उपमा कै से द ? य क यह सब इस जगत का नह ब क
सब द , आलौ कक है । हवा चलती है तो ऐसा लगता हैक जै सेकान
केसमीप मान चु पके -चुपकेकोई भगव ाम ले रहा हो। वृ केप े
हलते ह तो मान क तन के श द मु ख रत होते ह। रा होने पर भी भंवरे
गुनगुना रहे ह और वह गु नगु
नाहट और कु छ नह भगव ाममयी ही है ।
त नक यान दे ने पर लगता हैक स पू ण कृ त ी राधा-माधव- म े-रस
म नम न है ।
सघन वन पार कर केवे दोन ग रराज क तरहट म प ँ च।
ग रराज क नाना र नमयी शला सेकाश वक ण हो रहा था।
तरहट म कद ब वृ सेघरा आ नकु भवन दखाई दया। कै सा
आ य ? इस भवन क भी तयाँ , वातायन ( खड़ कयाँ एवं रोशनदान)
आ द सब कु छ कमल, मालती, चमे ली और मोगरे केपु प सेन मत है ।
ग रराज जी का दशन करते ही मीरा को कु छ दे
खा-देखा सा लगा ऐसा
लगता था मान उसक मृ त पर ह का सा पतला पदा पड़ा आ है ।
अभी याद आया, अभी याद आया क ऊहापोह म वह चलती
142
गई..........।
द वृ दावन क एक द रा म च पा और मीरा ग रराज
जी क तरहट म प ँ च ी है
। पु प सेन मत एक नकु ार पर प ँ च
मीरा को सब वातावरण पहले सेही पहचाना सा ही लग रहा है ।
नकु ार पर खड़ी एक पसी ने च पा को अ तशय ने ह के
साथ आ लगन करतेए पू छा, "अरे च पा ! आ गई तू ?" " य ब त दन
हो गये न ?" च पा ने भी उतने ही ने ह से गले लगेये कहा। "नह
अ धक कहाँ ? अभी कल परस ही तो गई थी तू ? यह कौन ? माधवी है न
?" माधवी ? यह सब मु झेमाधवी य कहते ह ? मीरा केअ तर म एक
ण केलए यह वचार आया और फर जै से बु लु त हो गई हो।
" ी कशोरीजू , ी यामसु दर .................! च पा नेबात
अधू री छोड़ कर उसक ओर दे खा। "आओ न ! भीतर तु म दोन क ही
ती ा हो रही है । म तो तु हारी अगवानी केलए ही यहाँ खड़ी थी।"
"चलो प ! कल और आज दो ही दन म ऐसा लगता हैक मान
दो युग बीत गये ह । पर बताओ क यालाल जी स तो ह न ?" च पा
प के साथ चलतेये बोली।
"हाँ! दोन ब त स ह। कशोरीजू तो तु हारे याग और म ेक
शंसा करती रहती ह।" "मे री या शं सा प ! और या याग ? हमारे
ाणधन यामसु दर और ाणेरी ी कशोरीजूजसम स रहे वही
हमारा सव व है ।" इ ह आते देख ब त सी स खयाँ हँसती ई उठ ग -
"चलो ! भीतर कशोरीजूती ा कर रही ह।"
अगले क म वे श करते ही जैसे मीरा, मीरा न रही। म ेपीयूष
से उसका दय य ही सदा छलकता रहता था, पर आज इस ण तो
जैसे उसका रोम-रोम रस-सागर बन गया। सामनेवरा जत नीलघन ु त
मयूरमुकु ट यामसु दर और वण च पकवण या ी कशोरीजू क
उस पर पड़ने सेवह आपा भू ल गई। प और सौरभ क छटा का दशन
हो वह मु ध सी हो अपना अ त व खो बै ठ । नेउस घन याम वपु के
सौ दय- सधु क थाह पाने म असमथ-थ कत होकर डोलना भू ल गये ।
ना सका सौरभ स धु म खो गई। और कण ? तभी आकषण क सीमा
पार कर वे द घ नेउसक ओर ये और कण म मठास घोलतेये

143
बोले - "माधवी ! तु झेमाधवी क ँक मीरा ?" वह कहतेये हँसे
, और
उनके श द और हँ सी क माधु री च ँदशा म फै ल गई।
ी कशोरीजू केसं केत पर च पा मीरा को ले कर उनकेसमीप
गई। मीरा और च पा दोन ने रा श-रा श केउदगम उन चरण पर सर
रखा। ी राधारानी केसौ दय ने तो मीरा क चे तना ही हर ली। जब ने
खुले तो याजी का करकमल उसकेम तक पर था। मीरा केने से
आँ सु क धाराय बह चल ।
"सुन माधवी!" अ तशय ने ह सेस स बोधन सु न मीरा नेआँ सू
से भरी आँ ख उठाकर ठाकु र क तरफ़ दे खा। "सुन माधवी! अभी ते री दे

रहेगी कुछ समय तक सं सार म।" उ ह ने कहा।
वह ऐसे च क पड़ी मान जलतेये अं
गार पर पैर पड़ गया हो।
उसने मौन पलक उठाकर भु क ओर दे खा। जै सेपीड़ा का महासागर
ही लहरा उठा हो मान उस म। मीरा नेदन वर म कहा, "म ज म
ज म क अपरा धनी ँ , पर आप क णासागर हो, दया नधान हो, मे रे
अपराध को नह , अपनी क णा को ही दे खकर अपनी माधवी को इन
चरण म पड़ी रहने दो। जगत क मीरा को मर जाने दो। अब और वरह
नह सहा जाता ........नह सहा जाता भु ।"
मीरा, ी ग रराज जी क तरहट केभीतर पु प सेन मत
नकु भवन म यालाल जी केदशन पा अ तशय भावु क एवं
आन दत है । पर एकाएक भु केमुख से अपने संसार म अभी कु छ
समय और रहने क बात से मीरा च क कर भु सेवयं को अपने चरण
म थान दे नेकेलए वनती करती ह।
'माधवी!' भु का क ठ भर आया। क णाणव भु केने से
कई बू द
ँेचरण म पड़ी मीरा के म तक पर गरी तो च ककर मीरा ने सर
उठाया। भु क आँ ख म आँ सू दे
ख मीरा व ल हो उठ - अरे , यह मने
या कह दया ? भु को मु झ तु छ जीव केलए यह क ? मीरा नेवयं
को ध कारतेए मन म सोचा, "यह तो शरणाग त क प रभाषा नह ?"
"म र ँ गी-र ँ
गी....जो भी आप मे रेलए नधा रत कर भु , वही
रह लूँ
गी; भु , आप स रह, आपकेनणय म, याय म ही मे री स ता
और मं गल न हत हैभु !" मीरा नेझट से आँ चल से अपने आँ सूभु से
छपातेये कहा।
144
यामसु दर मधु र वर सेफर बोले , " ाकृत देह से , यहाँ मेरी
कृ पा केबना कोई वे श नह कर सकता माधवी ! यहाँ केवल भावदे ह
अथवा च मयदे ह का ही वे श हो पाता ह। पर तु माधवी अब तु हारी
दे
ह पू णत: ाकृ त नह रही। यहाँवे श पाकर अब यह दे ह आलौ कक हो
गयी है । देखने म भले ही साधारण लगे , पर माधवी अब तु हारी दे
ह को
ना अ न जला सकती है , ना जल डु बा सकता है , ना पवन सु खा सकता
है
। वष तक पड़ी रहने पर भी यह दे ह वकृ त नह होगी। ते री यह देह
धरा पर पड़े रहने के यो य नह ह क तु .......
" क तुया मे रेभु ! अपनी से वका सेया सं कोच ? जो भी हो
नःसंकोच क हये । दासी वही करे गी, जो ाणसं जीवन को य हो।"
"संसार म रहकर कु छ वष तक भ भागीरथी - वा हत कर,
माधवी ! ते री आलौ कक ी त, भ , वर , और ाण-प र याग-लीला
को दे खकर घोर क लकाल म भी भ क और लोग आक षत ह ग।
मीरा तु हारा नाम पढ़-सु नकर केलोग क ठन से क ठन यातना सहकर
भी भ करगे । तुहारी ढ़ता उ ह वै रा य क अ सधार पर चढ़ने क
रे
णा दे गी। लोक-क याण केलए बस कु छ समय और ...!" कहतेए
कं ठ भर आया नजजन ाण यामसु ं
दर का।
"लोक-क याण केलए नह ाणधन ! आपक इ छा केलए
र ँगी। जब तक आप चाहगे , तब तक र ँ गी। आपक आ ा शरोधाय
भु! आप मे री ओर सेन त रह और त नक भी खे द न कर !"- मीरा
वयं को संभालतेये घुटन के बल बै ठ गयी
"खेद नह माधवी ! मु झेवयं ते
रा वयोग अस हो जाता ह। मने
ही तो तु झे इस आनं द - सागर सेर जा पटका। अ यं त कठोर ँ म !" -
ठाकु र ँ धेये क ठ से बोले।
मीरा यामसु दर केरतनारे ने म आँ सु को फर से लहराते
दे
ख घबरा गई। और फर बल जु टाकर वयं और भु को आ ासन दे ते
ये कहने लगी, "जीव अपने ही कम से क पाता हैभु ! आपने तो पल
-पल मे री सं
भाल क है । आपक कृ पा ने ही तो ये क वप को फू ल
बना दया।" मीरा उठकर जाने को तु त ई। मन-ही-मन मीरा कहने
लगी - "इस द दे
श म वे श ! अहा ! ठाकु र आपक क णा क थाह

145
कहाँ है?"
यामसु ं
दर ने मीरा केदोन हाथ को अपने हाथ म लया और
पुछा -"कु छ चा हये , माधवी !" "बस भु ! सहन-श , आपका मधु र नाम
और यह आपक मनोहारी मू त मेरेनयन म बसी रहे , बस यही ...यही
एक अ भलाषा हैभु !" मीरा ने कहा।
"यह तो पहले से ही तेरेअ धकार म ह। म और या य क ँ
तेरा !" "मुझेभुला ना दे ना भु !" कहते -कहते मीरा के नेपु न: भर आये ।
ठाकु र नेवयं को सं यत कर कहा, "च पा अब यही रहे गी।" वह अपनी
इ छा से इतने दन तु हारेसाथ रही।"
ी यामसु दर क आ ा से च पा उसी द वातावरण म ही
न य नकु से वा म ही रह गई और मीरा उस द जगत के दशन कर
अभी कु छ समय और क लयु ग म भ भागीरथी वा हत करने हेतु
धरती पर ही रहे गी। च पा ने स नेह मीरा को आ लगन कर आ त
कया। मीरा ने कृत ता से च पा को सर नवाया और कहा, "आपके मेरे
साथ रहने सेमुझे ब त सं बल था।"
तभी ठाकु र क न ध वाणी वातावरण म घु ल गई, "ल लते !"
तुर त ही ल लता सखी ी राधारानी के क से उप थत तो ठाकु र ने
फर कहा, "ल लते ! माधवी को प ँ च ा आ और न य त रा इसे साथ
ले कर यहाँ क लीला- थ लय केदशन करा दे ना। यदा-कदा यहाँ भी
लाती रहना।"
"जी! और वा मनी जू का आ ह हैक म माधवी को समय,
थान दे खकर पू व जीवन क भी मृ त करा ँ ।" ल लता ने ठाकु र से
नवे दन कया। "हाँ ! यह उ चत होगा।" ीकृण ने कहा।
मीरा ाणधन को णाम कर चली तो जै से उसके पाँ
व म कसी ने
मन भार बाँ ध दया हो। ऐसेद नकु केसा ात दशन करने के
प ात, कस का दय अपनेवामी वा मनी जू सेवलग होने पर भारी
नह होगा ? पर वह लीलाधारी क लीला पर आ य च कत थी क च पा
इतने वष उसकेसाथ रही और वह उसका व प पहचान न पाई और
........ कहाँ मेड़ता ..... फर च ौड़ और आज मु झे यहाँमेरेगत
न य द वृ दावन तक प ँ च ा कर ..........।" मीरा नेच तन धारा को

146
वह वराम दे भरे क ठ से ल लता जू सेकहा, "एक बार कशोरीजू के
दशन हो जाते ........ !"
"चलो हाँ हाँयू ँनह सखी ?" कहकर ल लता उसेनकु
महल के ार क ओर चली। "हे क णामयी " कहते मीरा नेवा मनी जू
केअमल धवल चरण पर अपना म तक रख दया।
"उठ ब हन ! ते रेकलु ष का नवारण आ।" कहते ए ी
कशोरीजू ने
मीरा केसर पर ने ह से हाथ फे रा। "जब तक तु म वृदावन
म हो, तब तक ल लता तु झे सब कु छ समझाये गी और दखाये गी। तु

अधीर न होना। यामसु दर क णाव णालय ह। उनके ये क वधान
म जीव का मं गल ही मं गल न हत है , अतः घबराना नह । अ त म तु म
मु
झे ही ा त होओगी।" ी जी ने अपने मुख का सु वा सत साद पान
दे
कर पूछा -"कु छ और चा हये माधवी?"
"ऐसी उदार वा मनी से म या माँ ग,ूजो सब कु छ देकर भी
पू
छती ह क या चा हये ? अब तो बस मा आपक चरणरज का
आ य ही चा हये ।" कहतेए मीरा ने उनकेचरण केनीचे क रज मु
म उठाकर अपनी ओढ़नी के छोर म बाँध ली।
ातःकाल जब मीरा उठ तो चमे ली ने पूछा, "च पा कह दखाई
नह देती बाईसा कम ! आपको कु छ कहकर गई है ?" मीरा क देह और
मन म रात केदशन क खु मारी भरी ई थी। वे कुछ ठ क से सु
न नह
पा । पर च पा का नाम सु नतेही मीरा ने अपनी ओढ़नी का छोर टटोला।
गाँ
ठ खोलकर एक चु टक रज मु ख म डाली और थोड़ी मु ख पर, दय
पर मल ली। चमे ली समझ नह पाई। फर उसने सोचा -"शायद कसी
महा माजी क चरणरज होगी। पर यह सु बह-सु बह च पा कहाँ चली गई ?"
मीरा तो उ मा दनी हो गई। आलौ कक जगत का यू ँसा ा कार
पाकर कोई फर वयं को कैसेसंभाले - लौ कक सं सार क उसे कैसे सु

रहे? मीरा केमानस ने केसम सारा समय रा के य का
पु
नरावतन होता रहता, वह कभी भाव म हँ सती, कभी रोती और कभी
गानेलगती। उस द अ नवचनीय प केदशन क मृ त म मीरा के
ने क पु त लयाँथर हो जाती, पलक अपना काय भू ल जाती। दय
केआन द स धु म वार उठने लगता और उसक उ ाल तरं गो पर

147
उसक अवश दे ह डूबती उतरती रहती। मीरा आतु रता पू
वक रा क
ती ा म रहती और भरी दोपहरी म ही वह चमे ली से पू
छती - "रात हो
गई या ? अभी तक ल लता य नह आई ?"
मीरा चमेली को ही ल लता - च पा कहकर पु कारती। चमेली क
था का पार नह था। वह अपनी वा मनी केउ माद रोग केकारण
खी होती - "हे भगवान ! यह या कया तू ने ? घर से इतनी र लाकर
इ ह बीमार कर दया। अब इस अ जान जगह म कससे सहायता माँगू?
अब इस क ठन घड़ी म यह च पा भी न जाने कहाँ चली गई, वह बाईसा
को ठ क से समझ ले ती थी, अब कहाँ ढू

ढू
ँउसे ?"
वह अपने प त शं कर सेकसी वैको, च पा को ढू ँ
ढ कर लाने
को कहती और उसकेअसफल लौटने पर खूब झगड़ती - "जै सा तुहारा
नाम है वै
से ही हो गये हो तु
म ! खायेबना ही भाँ ग धतूरेका नशा चढ़ा
रहता है तुह।" बीच म ही के सरबाई आकर टोकती - "जीजी ! ऐसे धैय
खोने सेकाम नह चले गा। तु
म सारा ोध, :ख च ता जीजाजी पर
नकाल दे ती हो। आँ धी तूफान क तरह इन पर बरसने सेपहले उनक
हालत तो दे खो ! सारा दन अ जान थान पर हम सब केलये मेहनत
कर कमा कर लाव क अब च पा को ढू ँ
ढे ?" और के सर चमे ली को
समझातेयेवयं भी रोनेलगी।
केसर को रोती देख चमे ली ने उसेदय से लगा शां
त कया -" या
क ँबहन ! वहाँ तो हम गढ़ क बड़ी-बड़ी दवार केभीतर रहने के
आद थे और बाईसा भी। च ौड़ और मे ड़ता म तो येफर भी बँ धी
रहती थ । यहाँ आकर तो जै से चार दशा केकपाट खु ल गये ह।
जहाँ कह सं त का समाचार पाया क त बू रा उठाकर पधारने लगती ह।
इनकेचरण दे खे ह तुमने? जब से यहाँआई ह पगरखी तो भू ल से भी
कभी धारण नह क ।" फर वयं ही सोचती ई बोली - "आवे श तो पहले
भी इ ह आता था, पर ऐसा नह क कभी हाथ पाँ व ल बेहो जाय और
कभी कछु आ क तरह सकु ड़ कर गठरी हो जाय। बाईसा क हालत
दे
खकर मे रेाण सू ख जाते ह।"
चमेली च ता करती फर से कहने लगी, "और इसपर एक
बात और क घड़ी-घड़ी म यह बाबा लोग दशन को चले आते ह कहते
ये- "महाभागा मीरा माँ कहाँ है?" "संत शरोम ण मीरा क जय हो !"
148
और ये बाबा बाईसा कम क दशा नह समझते , उ ह आशीवाद नह
दे
त,ेउनक चता करने केबदले उ टेध य हो, ध य हो कहते इनके
चरण म लोटने लगते ह, इनक चरण धू ल सर पर चढ़ाने लगते ह। तब
तो मु
झे लगता हैके सर, म पागल हो जाऊँ गी। इनक जस दशा से हम
चता सेसू
खी जा रही ह, वही उनके हष का कारण है । ऐसे म च पा होती
तो वह सं
भाल लेती, पर उसेभी अपनी भोली वा मनी पर दया नह आई
जो हम सब को यूँछोड़कर न जाने कहाँबै
ठ है ? .......या तो कोई ढं

का वैही मल जाता इस परदे स म !" कहते -कहते चमे ली का धैय टूट
गया और वह रोने लगी। उसे यूँ रोते दे
ख केसर, शं कर और कशन क
भी आँख भर आई।
मीरा क केभीतर अधमु ँ
दे ने सेअपनेदय का वरह गीत म
उड़ेल गरधर को सुना रही थी........
ऐ री म तो म
ेद वानी .... मे
रो दद न जाने
कोय.....
एक दन एक वयोवृ, े त व पहने , हाथ म कम डलुलए
तेजोद त सं त पधारे। ार से ही उ ह नेपु
कार क - "जय जय ी राधे !"
चमेली ने रसोई सेउठ कर ार खोला तो सं त क भ , शां त स मु ख
मुा दशन कर च कत रह गई। क ठ और भु जा म तु लसी जी क
माला और नेसे मान कृ पा क वषा हो रही हो। ऐसे ते
ज वी संत के तो
उसने आज तक दशन नह कए। शी ता सेणाम कर आसन बछाया,
कशन को बु ला चरण धु लाये और साद पाने केलए करब ाथना
क।
आशीवाद दे कर सं त ने आसन हण करतेये पूछा - "हमारी
बेट मीरा कहाँ ह ? हम तो बड़ी र से बे
ट मीरा का यश वण करके
आये ह।" तब तक कशन शबत बना लाया तो सं त नेउसेसहष वीकार
कया। और फर मीरा के बारे म पूछा। कशन और चमे ली स मान पूवक
संत को भीतर मीरा केम दर वाले क म ले गये और उ ह वह आसन
दया।
मीरा क म े त आसन पर नयन मू ँ
देबै ठ है। दा हनी ओर
इकतारा रखा है । वे ेत व धारण कए ये है
। हाथ क कलाईय
और गले म तु
लसी क माला बँ धी है
। आयु तीस वष पार कर गई है पर
149
सौ दय ने मान आयु केचरण म मे ख जड़ द हो। वे अभी बाईस-
प चीस वष से अ धक नह लगती। शुललाट पर गोपी च दन क गोल
ब द लगी है । काले भँ
वर सम के श क मोट वे णी पीठ से बाँये पाशव
म होकर बाँ ये घु
टने पर पड़ी है। वेणी नीचेसेथोड़ी खुली है
। मु ँ
द ई
पलक से दो चार अ ुब झर पड़ते ह, क तुमुख लान नह है ब क
अधर पर एक अ नवचनीय मु कान है
। वेबा ान शू य है।
संत ने दे
खा क क म साधारण सी चटाई केऊपर चौकोर
ग याँ पड़ी थी और उसकेपीछे द वार पर एक च लगा है , जसम
यामसु दर यमु ना केतट पर एक चरण पर सरा चरण चढ़ाये हाथ म
वंशी लए सामने देखतेए शला पर वराजमान ह। महा मा च को
दे
खकर मु कुराये। मीरा केसम ही द वार केसाथ लगी चौक पर
सु दर मखमल केऊपर गरधर गोपाल का सहासन है । धूप द प अभी
व लत था।
चमे ली को लगा क यह सं त अव य ही बाईसा कम को व थ
कर सकते ह। उसने संत केचरण म ाथना क -"महाराज ! हमारी
वा मनी को व थ कर दो। इनकेबना हम सब जी वत भी मृ त के
समान ह। कृ पा कर महाराज !" कहते -कहते चमेली का गला ँ ध गया।
संत ने हँसकर उसकेसर पर हाथ रखा - " चता मत कर बे ट ! यह तो
पंथ ही ऐसा हैक अपनी सु ध नह रहती, और क कहाँ चले ? ये अभी
चैत य ई जाती है । तुम महाभा यवान हो जो ऐसी वा मनी क से वा
मली। अपने भ क से वा भी भगवान वयंवीकार करते ह।"
उ ह ने आगे बढ़कर मीरा केम तक पर हाथ रखकर नेमू ँद
लए। दो ण प ात मीरा क पलक हली और धीरे -धीरेउसने ने
खोले । मीरा ने संत दशन कर वभाव वश णाम कया। सामने खड़ी
दा सय और से वक केतो जै सेस ता सेाण ही लौट आय हो। मीरा
केइं गत करने पर चमे ली नेगरधर गोपाल को भोग लगाकर सं त को
जमाया। फर सं त के आ ह से मीरा और बाक सब ने भी साद पाया।
साद केउपरा त सं त नेहँसतेए कहा, "बे ट मीरा बड़ी र से
तु हारा यश सु नकर आया ँ । जो सुना, यहाँआकर उससे बढ़कर ही
पाया। म तो तु हारी भावधारा म बहने और तु ह बहानेआया ँ ।" "पहले
आप कु छ फरमाय !" मीरा नेवन ता से कहा। "न बे ट ! तु ह कु छ
150
सु
नाओ, इसी आशा म तो कतनी र से आया ँ

मीरा नेइकतारेकेतार को झं कृ
त कया और आलाप ले गाने
लग ...... गाते
-गाते
अभी भी उसक आँ ख बीच म मु

द जात , राग
श थल होती तो वह सं भाल ले
ती......

चाकर राखो जी ......... याम ! हाँ


ने
चाकर राखो जी..
मीरा को गातेदेख चमे ली ने
ढोलक सं भाली और के
सर ने
म ीरे । जहाँबीच म मीरा का भाव बल हो वर श थल होता तो सं

बीच बीच म सुदर आलाप ले उसका साथ दे
त.े
......
याम हाँ नेचाकर राखो जी॥
चाकर रह यू ँबाग लगा यू
ँनत उठ दरसण पा यू ।ँ
ब दराबन क कु ंज गली म गो ब द लीला गा यू॥ँ
चाकरी म दरसण पा यू ँसुमरण पा यू ँखरची।
भाव भग त जागीरी पा यू ँ तीन बाताँसरसी॥
मोर मु गट
ुपीता बर सोहेगल बै ज ती माला।
ब दराबन म धे नुचरावेमोहन मु रली वाला॥
हरी - हरी नव कुंज लगा यू
ँबीच बीच राखूँ
बारी।
साँ
व रया रो दरसण पा यू ँपहर कु सुबी सारी॥
जोगी आया जोग करण कू ँतप करणे स यासी।
हरी भजन को साधुआया ब दराबन रा बासी॥
आधी रात भुदरसण द हा जमना जी रे तीरा।
मीरा रेभुगरधर नागर हवड़ो घणो अधीरा॥
भजन व मत आ तो सं त वभोर हो झू
मने
लगे
, नेबँ द कर वे
दोन हाथ उठाकर मीरा क गाई पं य को दोहराने
लगे
.........
चाकरी म दरसण पा यूँ
सुमरण पा यू

खरची।
भाव भग त जागीरी पा यू
ँतीनू

बाताँ
सरसी॥
तु
मने तो बेट इतनी वन ता से अपना दा य धम भी बतला दया
और कतनी चतु राई से अपनी च केअनु सार ठाकुर सेअपनी पगार
भी माँ
ग ली......वाह...... कसी भी भ केलए कतनी श ा द बात
151
कह डाली, "हेयामसु दर ! म ी वृ दावन वास करती ई, आपके
उपवन का यान रखती ई आपक सरस, मधु र लीला का गु णगान
क ँ गी और आप मे रेआपकेलए गये इस काय क पगार के प म।
अपने दशन, अपनेमरण क हाथ म खरची और अपने भाव भ क
जागीर बस मु झेदेदे
ना।"
"वाह ! ध य-ध य मीरा ! आज म ध य हो गया। वृ दावन क

ेमयी धरा और तु म सी म ेमू त केदशन पाकर म सचमु च ध य हो
गया।" "ऐसा य फरमाते ह महाराज ! म ेभ म या जानू ँ? मुझेतो
अपनेगरधरलाल बस अ छे लगते ह। उनक बात करने वाले अ छे
लगते ह, उनक चचा अ छ लगती है ....बस ठाकु र सेस ब धत सभी
कुछ अ छा लगता है । बस या अ छा लगना ही म ेहोता है ?" मीरा ने
भोलेपन और सरलता से कहा - " म ेी तो आप ह भगवन ! न जाने कहाँ
सेइस अन धका रणी को दशन दे कर कृ ताथ करने पधारेह।"
"बेट ! जसकेअ त र तु ह कु छ और दखाई न दे , जसम
तुहारी सारी दनचया, सारे या कलाप समट जाय, उसी का नाम,
उसी क से वा, उसी का च तन ही हर पल भाये - यही तो मेभ है ।"
संत नेने ह से समझातेये कहा।
संत क सादगी और अपन व ने , उनकेआलाप-क ठ क गहराई
और राग- वर क शुता ने मीरा को च कत कर दया था। मीरा ने
स मान स हत कहा, "अब तो महाराज हम भी आप कु छ वण
कराईये ।"
" यू ँथक गई हो बे टा ?" संत बोले । "नह महाराज ! ह र गुणगान
से तो थकान उतरती है , चढ़ती नह । फर सं त केदशन और स सं गम
तो मे
रेाण बसते है
। य द पा समझे तो कृया अपना प रचय द जये न
बाबा !" "साधु का या प रचय पुी !" वह सरलता से हँ
स दए - "कभी
सचमु च आव यकता पड़ी तो वयं जान जाओगी।" महा मा फर हँ से,
"तो फर बे ट एक भजन और सु नाओ ! आज म तु ह अ छे से थकाये
दे
ता ँ ।" "यह सहज स भव नह है बाबा !" मीरा ने हँ
सकर उ र दया
और कर प लव म करताल खड़-खड़ा उठ ।
जब एक च के दो लोग मले तो समय का कहाँ भान रहता है ?
और जहाँ ठाकुर को यार करने वालेमल जाय तो वह स सं ग हो जाता
152
है
। मीरा सं
त केआ ह पर पु नः कर-प लव म करताल ले आलाप ले
नृय केलए खड़ी हो गई।
उसी समय ी जीव गो वामी पाद आ गये । पर पर नमन के
प ात उ ह नेवृ संत को णाम कया और के सरबाई के ारा बछाई
ग पर बै ठ गये
। के
सर ने मीरा केइं गत पर उनकेचरण म नु परूबाँधे
और वह मं जीरे
लेकर चमेली केपास बै ठ गई। ी जीव गो वामी पाद
स संग का जमा जमाया वातावरण पाकर अ त आन दत हो उठे । मीरा
नेगोपी व प से नृय करतेए ी यामसु दर क माधुरी का एक
अ तश य भावपूण पद गाया ..........
आली रेहाँ
रेनै
नन बान पड़ी।
च चढ़ हाँ रेमाधु
री मू
रत हय बच आन गड़ी।
कब क ठाढ़ पं थ नहा ँअपने भवन खड़ी॥
अट या ाण साँ वरी सूरत जीवन मू
ल जड़ी।
मीरा गरधर हाथ बकाणी लोग कहेबगड़ी॥
आली री हाँ
रेनै
नन बान पड़ी.....
अ तम पं क पु नरावृत करतेए संत नेकतनेही व भ
व भ भाव से सुदर आलाप लए। उनकेक ठ क सरसता से सब
आ म वभोर हो उठे । मीरा को तो भावावे
श हो आया। सं
त और
गो वामी जी वभोर- व ल थे । मीरा नेबना केनाचतेए सरा
शरणाग त का पद आर भ कया ..........
म गरधर के घर जाऊँ ।
गरधर हाँरो साँच ो ीतम दे खत प लु भाऊँ

रै
ण पड़े तब ही उ ठ जाऊँ भोर भयेउठ आऊँ ।
रै
ण दना वाँ के संग खे लू
ँयू
ँयूँता ह लुभाऊँ

जो प हरावै सो ही प ह ँजो दे सोई खाऊँ।
हाँ
री वाँ
क ीत पु राणी उण बन पल नू रहाऊँ

जहाँबठाव ततही बै ठँ
ूबै
चे तो बक जाऊँ ।
मीरा के भुगरधर नागर बार-बार ब ल जाऊँ ॥
पद-गायन केबीच म ही वृ सं
त ने
ललक करकेचमे
ली केहाथ

153
से ढोलक ले ली और ी जीव गो वामी पाद ने केसर से म ीर दे नेका
संकेत कया। दोन ही उमं ग केसाथ बजाने लगे। कभी-कभी महा माजी
बीच म ल बा आलाप ले तेऔर सम पर लाकर छोड़ते ही सब झू म जाते ।
मीरा भाव केअनु सार मंद, म यम और ती ग त म नृ य कर रही थी।
उसक कनक व लरी सी कोमल दे ह और मृल मृ णाल सी बा यु गल
सुदर भाव भ क साथकता दशा रही थी। मीरा केमु खक द
का त उसकेकसी अ य लोक म होने क सा ी दे रही थी। ने क
वषा कभी थमती और कभी ती होती। कभी मीरा केसु दर नयन
समपण केभावा ध य म मु ँ
द जाते और कभी दशन केआ लाद म
व फु रत हो पलक को झपकाना भू ल जाते
। दनम ण ढ़ल गये तो मीरा
नेकरताल रखकर सं त को णाम कया।
वृदावन म मीरा क म ेभ एक नया मोड़ ले रही थी। दन, या
तो स सं ग म बीतता या रा केदशन केआन द म। मीरा रा होते ही
ल लता जू क ती ा म सतक हो बै ठती। वह उनका सं केत पाते ही
उठकर चल दे ती। ल लता जू मीरा को न य नवीन लीला थली म नव-नव
लीला दशन कराती। वे लीला-दशन केलए जाती तो रा म ही पर
क तु लीला य द दन क है जै
से धेण-ु
चारण, का लय दमन, माखन चोरी,
दान लीला, पनघट लीला इन सबका दशन करते समय उ ह दन ही
दखाई दे ता। वे भूल जात क अभी अधरा म वह श या से उठकर
आयी ह। वे केवल देखती ही नह , उन लीला म स म लत भी होती।
ल लता उ ह सदा अपने समीप रखती। लीला म ी कशोरीजू का
सरल शा त भोलापन दे खकर वह यौछावर हो-हो जाती। यामसु दर क
बात-बात म चतु राई, उनका अपन व, ठठौली और उनका म ेमीरा के
रग-रग म बस गया। उसका रोम-रोम याममय हो गया। सबसे अत म
देखा मीरा नेअपना माधवी प।
ज केही एक छोटे से गाँ
व म माधवी रहती है । बचपन म ही
उसकेपताजी उसका ववाह नं द र केसु दर सेकर दे तेह। ववाह के
कुछ समय केउपरा त माधवी केपताजी का दे हा त हो जाता है ।
माधवी माँ केसं र ण म - उसक रोक-टोक म ही बड़ी होती है । माधवी
बड़ी हो रही है तो ब त सु दर दखने लगी है
। उसक सु दरता क उपमा
गाँ
व वाले ल मी और गौरी माँ से दे
त।े
154
न दगाँव से माधवी केससु राल से गौना करवाने का समाचार
आया। इधर माधवी क माँ नेसुना क नं दरायजी केपु ी कृण क
ऐसी मो हनी हैक जो एकबार दे ख ले ता है
, वह बौरा ही हो जाता है ।
याँ अग-जग कह क नह रह जाती। के वल उसकेदशन से ही लोग
पागल नह होते , जो कदा चत उसक वाणी अथवा वं शी का वर भी
कान म पड़ जाये , तब भी तन-मन का वघटन हो जाता है । डरकर मै या
बेट माधवी को श ा दे ने लगी क भू लकर भी वह कभी नं दरायजी के
उस सलोने सुत को न वयं दे
खे न अपना मु ख उसेदखाये , अ यथा
उसकेपा त य क मयादा भं ग हो जाये गी। माँ उसे प त त धम क
म हमा एवं मयादा सु नाती और उसकेभं ग होने क हा न भी समझाती।
भोली माधवी ने मैया क एक-एक बात एक-एक श ा गाँ ठ बाँध ली।
उसने मन-ही-मन त ा क क कसी कार भी वह ज केयु वराज।
को नह दे खग ेी और न ही वयं को देखने दे
गी।
अंतम वह दन भी उ दत आ। जब क रथ ले कर उसक प त
सुं
दर उसेलवाने आया। जै सा नाम था, वै सा ही सु ं
दर था सुं
दर। समय पर
माँनेएक बार और अपनी श ा क याद दलायी। सबने आँख मे आँ सू
भरकर उसेवदा कया।
रा ते म प त ने एकाध बार अपने सखा क है या क चचा भी क
पर माधवी ने कोई उ साह नह दखाया तो वह चु प हो गया। सु ं
दर रथ
हाँ
क रहा था और वह रथ म बै ठ थी। अगर कोई गाँ व पथ म पड़ता तो
रथ के पद गरा दये जाते। सुं
दर बीच-बीच म अपनी मै याक , अपने गाँ

क व घर क बात करता जाता और वह चु पचाप बै ठ सु नती रहती।
एकाएक सु ं
दरने कहा "देखो ! ये हमारेजक गाय चर रह ह ! क है या
यह कह होगा ! दे खगेा तो अभी दौडा आये गा !" सुनकर माधवी ने मुख
ही नह अपने हाथ-पै र अ छ तरह ढां क लये । तभी कोई पु कार उठा -
"सुं
दर ! ब ले आया या ?" "हाँ भैया !" "भै
या ! म कू भाभीको मोहडो तो
दखाय दे ।"
"अरे भै या ! पहले म ते तो तूमल केहय को ताप बु झाय दे ।
सुं
दर रथ से कूद पड़ा और सरे ही ण कसीसे आ लगनब हो उठा -
"भैया क ू रे! ऐसो लगे जुगन बाद म यो तोस । ते री चचा ँ जहाँ न
होय, वहाँवधाता कब ँ वास न द।" "अब दखाये देम कूब को
155
मोहडो।" "क ू रे, म कहा दखाऊं ? भै या, तूही दे
ख ले । तोस काह परदो
है?"
माधवी को लगा क एक बालक रथ पर चढ़ गया है - "ऐ भाभी !
अपना मोहड़ो तो दखाय दे ।" कहतेये उसने घूँ
घट उठाना चाहा।
ले कन माधवी ने कसकर अपना घू ँ
घट पकड़े रखा। मु ख तो र रहा,
अपनी उँ गली का पोर भी नह दे खने दया।
"म काह दे खूँ
? अब तो तू ही मे रो मुख दे खबे को तरसे गी।" कहते
ए न दसु वन रथ से उतर गया। वह वर सु नकर माधवी थोड़ी च क ,
य क वह वर न उसकेप त का था और न ही उस बालक का। वह
ग भीर वर मान स यता क सा ी दे ता - सा ....। अपनी जीत पर
माधवी स थी।
दो-तीन दन बाद उसक सास उसे न दरानी के यहाँणाम कराने
केलए। नई ब का मु ख देख न दरानी ब त स , और अ त चाव
से भूषण-वसन दे कर उसका मु ख मीठा कराया। अने क कार के लार
करते दे
ख उसक सास ने कहा, "अब तो हमारे क है
या को ववाह कर ही
दो रानी जू ! जब भी उसकेकसी सखा का ववाह होता है , तो उसका भी
ववाह का चाव बढ़ जाय है ।"
" या क ब हन ! मे री.........।" तभी क हाई ने आकर कहा,
"मैया ! हो मैया ! बड़ी जोर क भू ख लगी है । कछु खायबे को देय !" फर
अक मात नई ब को दे खकर वह पू छ बै ठा, "यह कौन क ब है मैया ?"
"आ, तोकूयाको मोहड़ो दखाऊँ ! कै सो चाँ द जैसो मुख है याको ! ते रे
सखा सु दर क ब है ।" मै
या ने उ ह पु कारा।
"अ छा तो यह सु दर क ब है ? अभी नाय मै या ! अभी म कु
सखा केसाथ क ँ जानो है ।" वे मुड़कर जाने लगे। "अरे लाला ! कछु
खातो तो जा ! तोकूतो भू ख लगी थी।" मै या पु कारती रह गई, पर वे न
के ।
"न जाने याको कहा सरम लगी ! नयी हन को मु ख दे खने को
तो यह सदा आतु र रहता है। आज का हा को जी अ छा नह है शायद !"
माँने अनमनी होकर कहा।
माधवी गोचारण का समय होते ही भीतरी कोठे म चली जाती।
कान म अं गल
ुी दे दे
ती ता क वं शी का नाद उसे सुनाई न पड़े । फर ऐसे
156
ही वह सां झ को करती। जल भरने भी उस समय जाती जब घाट सू ना
होता। पर घर म तो सबको, घर म ही य ज भर केसभी जन को
कृण केगु णगान का सन था। वह अपने गृहकाय म लगी रहती और
मन ही मन हँ सती-कै से ह येलोग ? सब केसब एक कृण केपीछे बावरे
हो रही ह। वह बार-बार अपनी मै या क श ा याद करकेअपने पत त
धम क सावधानी से र ा करती।
माधवी क सास कहती- 'पहले तो नंदलाला रोज घर आता। कु छ-
न-कु छ माँ ग कर खाता, सु ं
दर केसाथ खे लता, मुझसे और सु ं
दर से
ब तयाता, पर जबसे ब आई है , ऐसा लजाने लगा हैक बु लाने पर भी
नह आता। ब को भी ऐसी लाज लगती हैक क है या केआने क
भनक लगते ही दौड़कर भीतरी कोठे मप ँ च जाती है। "अरे , बावरी !
लाला से कहा लाज ? वह तो अपनो ही है ।"
इसी तरह कु छ समय तीत आ। इ याग के थान पर
ग रराजजी क पू जा ई। पू जा-प र मा केसमय भी माधवी ऐसी ही
सावधान रही क आँ ख क पलक झु काये ही रहती। माधवी क ठाकु र
के त ऐसी बेखी और बे गानापन देख, इधर मीरा क आँ ख से झर-
झर अ ु धारा वा हत होने लगी - "आह ! कैसी ाणघाती श ा मै या क
और कै सी मूढ़ता मेरी?"
ल लता माधवी को ग रराज केचरण- ा त म ले गयी। माधवी ने
दे
खा, इ केकॊप से घनघोर वषा और उपल-वृ आर भ ई। मानव,
पशु सब अ त बे हाल ! ऐसा तीत होता मानो लय उप थत हो गया हो।
कसी को कसी भी ओर सेाण (रा ता) नह दखाई दे ता था। गाय,
बछड़े , बै
ल डकरा रहे थे। क ण- वर म सभी जन पु कार रहे ह - "क है या
रे! लाला रे! कनु आ रे ! भैया रे
! यामसुं
दर ! हेकृण ! बचाओ, बचाओ।"
ऐसा तीत होता था, मानो इ का कोप आज ज का नाश कर दे गा।
आँ धी-पानी केभयानक वर म उन जवा सय केवर डू ब-डूब
जाते । तभी वहाँ घन-गं भीर वर सु नायी दया, ये क ाणी, ये क जन
को सु नायी दया -'' ग रराज तरहट म चलो, वही हमारी र ा करगे ।"
माधवी भी भाग रही है । ाण केसं कट केसमय लाज-घू ँ
घट का
मरण कसे रहता ह। सबकेसाथ वह भी ग रराज- शला केनीचे प ँच

157
गयी। जब थोडा ढाढ़स बँ धा तो दे खा क सबकेसर पर ग रराज-
गोवधन छ क भाँ त तना आ है । पानी क एक बू द
ँभी जो कह
टपकती हो। पर येग रराज कसके आ य ठहरे ह ? घूमती ई एक
छोट -सी क न का पर जा क । ऐसी सु ं
दर अं गलुी और हाथ.....
आ या भभु त , भुज केसहारेनीचेउतरनेलगी.....और.....वह
मुख....वह छ व.......एक नजर म जो दे खा जा सका, सो ही बस, ने के
पथ से उस प-समुने उमड़कर दय को लबालब भर दया। मन,
बु न जानेकस ओर भाग छू टे? सात दन कब बीते , इसका ान
कसी और को हो तो हो, माधवी को नह था।
एक दन पु न: वही वर गू ज
ँा -"वषा थम गयी ह, सब बाहर
नकलकर अपने -अपने घर जाओ।" मै या यशोदा कह रही ह -'लाला रे !
तेरा हाथ खतो होयगो बे टा ! अब तो धर दे याऐ नीचे ।"
इतना सु न माधवी का दय हाहाकार कर उठा। यामसु ं
दर
सबक ओर दे खकर मु कुरा रहे थे , और जातेए लॊगो को हं सकर कु छ-
न-कु छ आ ासन दे रहेथे
। क तु माधवी क ओर एक बार भी भू लकर
ना देखा।
माधवी वयं को यूँ
उपेता पा तड़प सी उठ - "अरी मै या ! यह
कैसी उ ट श ा द तने ? यह श ा , यह लाज ही मे री बैरन हो गई !"
वह ाकु ल हो पुकार उठ - " मा करो ठाकु र ! मु
झ अबोध से भूल ई।
कृपा करो ! म ऐसा या क ँ ..... जससे आप स होवो .....अब यह
माधु री छ व मेरी आँ ख सेर न हो .....कृ पा करो।" वह जहाँ थी वह
अचे त सी गर पड़ी।
अब क बार सरस-मीठ वाणी कान म सु धा- सचन करने लगी -
"भूल मान गयी है , अत: दशन तो न य ह गे , पर हमारी अ तरं ग लीला म
स म लत न हो सकोगी। प रमाजन (प ाताप) केलए क लकाल म
ज म ले कर भ -पथ का अनु सरण करने पर शु होकर ही मु झेा त
कर पाओगी।" माधवी अचे त हो गयी।
उस दन केप ात माधवी का वहार एकाएक प रव तत हो
गया। अब न य ातः सायँ मुरली- वर कान म पड़ते ही अटारी पर चढ़
जाती, पु प वषा करती। स खय केसं ग जा-जा कर लीला- थ लय के

158
दशन करती और उनक बातेयान से सुनती, आज क है या नेकसका
घड़ा फोड़ा, कसकेघर माखन क कमोरी फोड़ी, कसक चोट खाट से
बाँ
धी, कसकेबछड़े को खोलकर ध पला दया। इन व वध लीला
को सु न-सुन करकेअके लेमअ ु बहाती। सोचती म भी तो सबकेसाथ
ही रहती ँ पर तु मे
री मटक को हाथ तक भी नह लगाया, कभी मु झे
चढ़ाया भी नह , और तो और कभी मे री ओर ठ क से दे
खा तक नह ।
उसक सास बार-बार पू छती- "कोई मां दगी लगी ह या ब ? कही
खता ह बे ट ?, तूठ क सेकु छ खाती-पीती भी नह । पीहर क , मै या क
याद आ रही हो तो कछुदन वहाँ हो आ लाली !"
माधवी ने तु
र त उ र दया - "ना मै या ! मोकू पीहर नाय जान । म
तो व थ ँ मै
या ! आप कछुचता मत करबो करौ !" मीठा बोल सास को
तो समझा ले ती पर उसका दय ही जानता क जसक मधु र छव
उसकेमन ाण म अटक है , उसक उपेा, उसक वमु खता को सहन
करने म वह कस क म जी रही है । भीतर ही भीतर जै से वह घुलती सी
जा रही थी।
ऐसे म उसके ाणारा य क चचा ही उसके ाण का आधार थी।
गृ
ह काय सेनवृ त हो वह पद-सेवा केमस अपने प त सु ं
दर केचरण
को गोद म ले कर बै ठ जाती और, धीरे से कोई चचा चला दे ती -"आज
आपकेसखा और आप.......? बस, उसकेलए इतना सं केत ही पया त
था। ज म तो सभी कृण-चचा, कृण-गु णगान के सनी ह। चचा
आर भ ई तो दोन इतनेनम न क रा कब बीती, दोन ही जान नह
पाते। भोर होने पर ता चूड क बाँग ही उ ह सचे त करती।
दन बीत रहेथे इसी कार, और एक दन व पात आ -
वृदावन म तो जै सेसबकेपावँ तले धरती ही खसक गई हो। पता लगा
क मथु रा से अ ू र ीकृण को लवाने आया है । ीराधा रानी तो ठाकु र
केलये माला गू थ
ँकर यमु ना कनारेती ा रत थ । ीकृण केमथु रा
गमन जाने का सु न उनक अ तरं ग स खय क थ त तो कहाँ तक
वणन कर ? ीराधा रानी को कौन कै से बताये ? ल लता जी वयं को
स भाल याजी को न दभवन केबाहर राजपथ तक रथ केपास ले
आ । वहाँ तो सम त ज ही मान आँ सु म डू ब रहा था। माधवी भी
वयं क मयादा भू ल राजपथ प ँ च ी - आँ सु क झड़ी थमती न थी -
159
"हाय ! जब यामसु दर यहाँ थे, तो म बैरन लाज केजं जाल म फँ सी
रही ......जब सु ध आई तो मे रेह से म उपेा ही आई ..... और अब म
कैसे जीवन धारण क ँ गी ?" ू रअ ू र, जेन दन, ज के ाणाधार
को ले कर मथु रा लेचला गया।
और इधर मीरा मु छत हो ल लता केचरण म जा गरी। ल लता
नेगोद म ले कर लार से समझाया- "वह अमा नशा बीत गयी माधवी !
देख तो, जीवन भात समीप है अब तो।" जल पलाने पर सचे त होकर
उसने पू छा -"यह च पा.....?" "मेरेसाथ आ ! बताती ँ।" ल लता जी ने
साथ चलने का सं के
त करतेए कहा।
मीरा देख रही थी क यहाँ क भू म कह वण, कह फ टक,
कह ह रतमणी और कह पु पराग क है । इसी कार वृ-व ल रयाँ
पुप, प और फल भी म णमय, वण और रजतमय ही है । व वध पु प
केसौरभ सेकृ त महक रही है छह ऋतु ँ
सदा यहाँ यालाल जी के
भाव को समझ सदा से वा स पादन को उप थत रहती ह। यमु ना के घाट
वण और फ टक केबनेए ह। सीढ़ याँ कह वाल और कह प े
क । प , पु प, लता, वृ, सबकेसब म णमय काशमय होतेए भी
अ यं त कोमल ह। जस ओर भी जाय, सव सु ं
दरता, मधु रता,
कोमलता, द ता ही छायी है । कभी-कभी उसेस पू ण कृ त म
यालाल जू क ही झाँ क दखाई पड़ती। वहाँ कु
छ भी जड़ नह था,
सब चै त य, द एवं च मय था जो यु गल द प त केसु
ख केन म हे तु
लीला म आव यकता अनु सार कोई भी प धारण कर ले ता था। स खयाँ
एवंी राधारानी क मधु रता, उनके ी व ह क कोमलता अ च य थी
- मान वह सब च लत र नमय व ह ह । उनकेकुडल का त बब
कप ल पर प दखाई पड़ता।
सभी वृफू ल केभार से न मत हो मान ल लता जू सेसे
वा का
आ ह कर रहे ह - जैसे कह रहे ह क हमारेाणेर एवंाणेरी को
शी वन वहार करा हम कृ ताथ करो न सखी ! पशु प ी सब ी
यामसु दर केवरह म श थल गात होकर उनकेसमीप आ जाते , तब
ल लता जू उ ह हाथ सेलारती ई कहत - माधव शी ही आयगे और
अपनी ाण या केसं ग आकर तु ह दशना द अव य दान करग। पर
मीरा केपश से वेथोड़ा बचने क चेा करते ।
160
"अरे बाँ
वरो ! यह तो अपनी ही ह। अपनी ही सखी है । हाँ
, हाँ!
कशोरीजू नेआ ासन दया हैक एक दन फर यह अ तरं ग लीला म
स म लत ह गी। दे खो न, ऐसा न होता तो यह यहाँ कैसेहोती भला ?"
ल लता जी मीरा का हाथ थामकर मृ ग द प त, प य और शशक पर
फराती। एक चरै या मीरा केहाथ पर बै ठकर ने ह सेसर घुमा-घु माकर
सं
केत कर आ त करने लगी। ल लता जू केसंग ही कु
छ पद चलकर
उसने दे
खा क झरने के पास शला पर एक अध मू छत कशोरी पड़ी है ।
उसकेद घ कृण के श भू -लुंठत बखरेपड़ेह और सु दर ने से
आँसु क धार बह रही है । उसी समय च पा वहाँ आई। उसने उस
कशोरी को बाँ ह म भरकर उठाया। मीरा ने दे
खा, वह कशोरी तो
माधवी है ।
"च पा ने उससे प रचय पू छा और यह जानकर क वह सु दर क
ब है , स ई। च पा नेने ह से कहा, "इस कार धीरज खोने से कैसे
चलेगा ब हन ! तु म अके ली ही तो नह हो। जो सबने खोया है
, वही तु मने
भी खोया है । य धीरज खो दोगी तो कै सेबात बन पाये गी। जब
यामसु दर मथु रा सेआ जायगेतो या मु ख ले कर उनकेसम
जाओगी?"
" सरी ब हन से मेरी या समता ब हन ! वे सब भा यशा लनी ह -
उ ह ने कु छ पाकर खोया है । मुझ अभा गनी ने तो पानेसे पू
व ही खो
दया। आप सबका घट उ ह खोकर भी प रपू ण हैऔर म भा गनी तो
सदैव रीती क रीती (ठाकु र के ने ह से वंचत) ही रही।" कहते -कहते
माधवी फू ट-फूट कर रो पड़ी।
च पा ने माधवी को ढां ढस बँ धातेए कहा, "हाय ! ी कृण के
मथुरा जाने सेआज तो ज म सब अपने -अपनेभा य को सब से बड़ा
समझ रही ह, मानो भा य क होड़ लगी हो, क तु तु
म अपनी बात कहो
तो म कु छ समझू ।ँइन आँ सु क जु बां नह होती। मु
ख से कुछ तो
कहो।"
माधवी केने क बरखा कने म ही नह आती थी। च पा के
ब त अनु रोध- बोध केबाद वह कु छ कहने का य न करती तो ह ठ
फड़फड़ा कर रह जाते । च पा नेने ह से माधवी के के
शो को सं भाल कर
बाँ
धा। चु नरी छोर भगोकर मु ँह प छा। दय से लगाकर यार भरी
161
झड़क द , "अहा, कै सा प दया हैवधाता ने ? इसे इस कार न
करने का या अ धकार है तुझे री? यह तो अपनेज व लभ क स प त
है, इसे ........।" बात पू
री होने से पहले ही माधवी बुरी तरह रो पड़ी, मानो
ाण नकल ही जायँ ग।ेउसक यह हालत दे खकर च पा भी अपने को
रोक नह पायी। उसकेधै य ने मान हार मान ली थी। आँ खे बरबस बहने
लगी। यह सोचकर क इस कार तो यह मर ही जायगी, उसने अपने
आपको सँ भाला और ने ह एवं अ धकार से कहतेए उसका मु ख ऊपर
कया- " या है ? मु
झसे नह कहे गी ? य कहे गी भला ! परायी जो ँ ।"
कहतेए च पा के नेभर आये ।
"ऐसा मत कहो, मत कहो।" माधवी केकं ठ से मरते पशु -सा
आतनाद नकला।" " फर कह ! पहले अपनी आँ ख को वाह थाम,
अ यथा एक भी बात म समझ नह पाऊँ गी।" माधवी ने कते -अटकते
श द म भरे कंठसे सारी था, अपनी भा य कथा कह डाली - "मे रा
भा य सीमा-हीन है ब हन ! म त दन नराशा केगहन गत म वलीन
होती जा रही ँ ! न जाने क लकाल कतनी र ह......न जाने .....
कहाँ ....जाना...होगा....कै से.... कसकेसहारे ? भवाटवी......क भयानक
अँ धेरी ग लय .......म अवल बहीन म........।"
माधवी पु न: च पा क गोदम सर रख फू ट-फूट करकेरो पड़ी।
च पा कु छ दे र तक उसे गोदम लए बै ठ , मन म सोचती रही, "सचमु च
ऐसा बल भा य तो ज केपशु - पाहनका भी नह रहा कभी ! क तु
इसे ऐसे भी कै से छोड़ ँ ?" "सु न माधवी !" उसने कहा- "क लकाल चाहे
कतनी ही र हो, तु झे चाहे जहाँ जाना पड़े , जै
से भी रहना पड़े , म ते रे
सं ग चलू ँ
गी और सं गर ँगी। बस अब रोना बं द कर ! यामसु दर चाहकर
भी कभी कसी के त कठोर नह हो पाते । अव य ही इसम ते रा हत
न हत है । और माधव क दया, क णा, कोमलता, मधु रता, कृ पा क
घनीभू ता व प है ी कशोरीजू । चल, मे रेसाथ चल। उनकेचरण के
दशन- चतन मा से ही वप का भय न हो जाता है । उठ !" उसने हाथ
पकड़ कर कर उठाया।
"जीजी ! आपने मेरेलए क लकाल म, सं सार के.........।" "अरी
चु प ! अब एक भी बात नह बोले गी तू। ब हन ! म और तू एक ही माला
केफू ल ह, कोई आगे तो कोई पीछे । हम सबका :ख समान है । ी
162
कशोरीजू का सु ख ही हमारा सु ख है और उनका :ख ही हमारा :ख।
हम सब उनक ह और उनकेलये ही ह।
च पा उसे ले कर बरसाने केराज महल म ी कशोरी जू केपास
गयी। णाम केअन तर च पा केमु ख से सबकु छ सु नकर उ ह ने
माधवी केसर पर हाथ रखा- "मत घबरा मे री ब हन ! अपन को ीकृण
कभी नर आ त नह छोड़ते । योजन क रे णानुसार अपन को
अपने सेर करके वेउसकेलए वयं ाकु ल रहते ह, और ण- ण म
उसक सार-सँ भाल करते ह। ते
रेसाथ तो फर च पा ने अपने को बाँ ध
लया है
। ऐसा साथ सहज ही नह मलता.........।"
" ीजू ! मे रेलए जीजी ने अपने को कै सी वप म डाल लया
है
।" माधवी ने बीच म ही भरे गले सेकहा - "आप इ ह नवा रत कर।"
"ऐसा मत कह बावरी ! यह साथ रहे गी तो क लकाल केकं टक
तु
झे छूने
का साहस नह कर पायगे । ाणेर त ण ते रेतन-मन-नयन
म बसे रहग। च पा ते री दासी बनकर से वा ही नह करे गी, अ पतु इस
जीवन या ा म ते रा पाथेय (माग दशक) भी बने गी।" यह सब सु नकर
माधवी "हा वा मनी! हा वा मनी!" कहती मू छत हो गई।
यह सब दे ख वण कर मीरा अतीत और वतमान को मलातेये
ल लता जी केसाथ आगे बढ़ आई तथा राधारानी को णाम कर ँ धे
क ठ से बोली, "हे मेरी वा मनी ! इतनी अनु पम ममता, अगाध क णा,
अपार कृपा ....... इस तु छ दासी पर !" कहते -कहते मीरा ी कशोरी जू
केचरण म गर गई। नेजल से उनकेचरण पखारने लगी। ी कशोरी
जूका वा सलय पू ण कर-प लव उसकेम तक पर उसे सहला रहा था -
"यह दे
ख, मेरी अ तरं ग एवं य सखी च पकलता ही ते री च पा है।"
मीरा च पा को दे खते ही उसकेचरण म णाम करने बढ़ क
च पकलता ने हँसतेए उसे क ठ से लगा लया और रागानु गा भ का
सार आधार त व वाभा वक ही बतातेये कहा - "यहाँ हम सब स खयाँ
ह ब हन ! वा मनी हमारी ह कशोरीजू । अतः चरण व दना, से वा-टहल
सब इनक और इनके यतम यामसु दर क ।"
पाँ
च वष तक वृ दावन म वास करतेए मीरा ज म न य लीला
का रस लेती रह । आर भ म कु छ समय तो ल लता उ ह ले नेआती। पर
कुछ समय प ात् वह वहाँ केआ ान पर वयं ही उठकर चल दे त।
163
और न द थान पर प ँ च जाती। वहाँ रहकर मीरा ने असंय लीला
म स म लत हो लीला-रस का आ वादन कया। उनका वभाव सवथा
बदल गया था।
चमेली को मीरा केवभाव म बदलाव दे ख आ य होता - "पहले
च ौड़ म बाईसा कम को भावावे श होता तो कभी-कभी आठ-आठ
दन तक वे अचे त रहती, क तु सचे त होनेपर, वे अपनी दनचया म लग
जाती। चतौड़ म रहते समय भी सब दास-दा सय केपहनने -ओढ़ने ,
खाने -पीने और भाव-अभाव क खबर रखत । उ सव म सबकेयहाँ
साद प ँ च ाने, पुर कार दे न,ेगरीबो क सहायता करने और ा ण को
दान देने का उ साह रखत । ववाह, मरण आ द केअवसर पर कु छ देने
का म करत । च ौड़ से मे
ड़ते आ जाने पर भी ऐसा ही वहार रहा।
क तु यहाँवृ दावन म जस दन से च पा लु त ई ह, इ ह तो सं सार जै
से
सवथा व मृ त हो गया है ।"
"अब कभी नह पू छत क कसी नेसाद पाया या नह , न ही तो
इनको यह सोच हैक सब खा साम ी कहाँ से आती है , और न ही यह
च ता क (धन) हैक समा त हो गया ?" चमे ली मन ही मन सोचती
- "बाईसा ह तो यहाँ , पर यहाँ नह ; पू
रेदन वा ान-शू य बैठ रहती ह
और मु कराती ह, या ले ट रह बस अ ु बहाती ह। हम मु ख म कु छ देद,
तो जै से-तै
से चबाकर नगल ले ती ह। जल-पा मु ख से लगाये तो पी ले
ती
ह। क तन केवर या सं तो क उप थ त ही इ ह सचे त करती ह। ऐसे
यह दे ह कतने दना चले गी? कससे पू
छ ?"
एक दन उनको त नक सचे त देख चमे ली ने पूछा - "यह च पा
कहाँ मर गयी बाईसा कम ?" मीरा ने घबराकर उसकेमु ँ
ह पर हाथ रख
दया- "उनकेलये ऐसे श द ना बोल चमे ली ! अपराध होगा।" चमे ली
च कत ने सेवा मनी क ओर दे खने लगी और मन-ही-मन सोचा,
''च पा केलये "उन" श द ? वह आदरणीया कबसे हो गयी ? इनकेलए
अपनी ब हन जै सी बराबरी वाली से कुछ कहने पर अपराध कै सेलगेगा
और य लगे गा?"
उसने सहमतेए पू छा- "बाईसा, वह कहाँ चली गयी एकाएक,
कसी से कुछ कह गयी या ? मीरा ने गदगद्वर म कहा- "जहाँ सेवे

164
पधारी थ , वह वे चली गयी।" च पा का मरण होते ही उनका दे ह
रोमांचत हो उठा। मीरा केच पा के त ऐसा हाव-भाव दे ख चमे ली को
लगा क अभी मू छत हो गर पड़गी। और कही च पा के पधारने क बात
करते -करते मुझे भी आदरयु स बोधन न करने लग, इस भय से वो
उनके सामने से हट गयी।
एक दन उ ह ने अपने सेवक-से वका से वृ दावन क म हमा
का बखान करतेए कहा- "यह वृ दावन साधारण भू म नह है , यहाँ
ठाकु र जी क कृ पा केबना वास नह मलता। तु म कसी के त मन-
वचन और काया ारा अव ा मत कर बै ठना। इन ने से जै सा दखाई
देता ह, वैसा ही नह है । यह तो परम द - यो तमय धाम ह, इसके कण
-कण म, पे ड़-प ेऔर ये क जन के प म वयंठाकु र जी ही
वराजमान ह।"
भोजन-पान उ चत मा ा म न ले ने केकारण मीरा क दे ह दन -
दन ीण होती जा रही थी। क तु उनका ते ज, भ का ताप और
दय क सरसता उ र र बढती ही जाती थी। वे ब धा देहाभास से
शू य ही रहत । सं तो-स सं गयो के आने पर उ हे क तन ारा सचे त कया
जाता था। बार-बार चमे ली से पू
छती, "ल लता आयी ?" धीरे -धीरे मीरा
चमे ली को ही ल लता मानने लग । चार-पाँ च वष म लोग भू ल गयेक
उसका नाम चमे ली आ करता था। मीरा उससे ऐसेथान और लोगो क
चचा करत , जो उसक समझ म कसी कार नह आती। पर चमे ली
ब धा इसी चता म रहती, क य द धन समा त हो गया तो, या खाया-
पया जाये गा और कै सेसंतो और अ त थय का स कार होगा? उसे कह
कोई, कनारा दखाई नह दे ता था। ऐसे ही पाँ
च वष बीत गये।
"माधवी !" एक रात यामसु दर ने कहा, "अब तू यहाँन य लीला
म न आकर भ कया कर। तु हारेदशन, पश, भाषण से लोग का
क याण होगा। तु हारा भाव दे खकर लोग भ -पथ पर अ सर होने
का उ साह पायगे । अभी यह वृ दावन म रहो, कु छ समय केप ात
कसी अ य थान पर जाने केलए रे णा ा त करोगी।"
सर झु का कर मीरा ाणारा य क बात सु नती रही। ाण म
एका-एक वयोग क अस पीड़ा से मीरा क पलक ऊपर उठ । वह
भाव और पीड़ा केस म लत अथाह महासागर म भी बड़वानल सी
165
सुलग उठ । दे खते ही दे खते उसक वह वण व लरी सी दे ह सूख कर
कृण वणा हो गई और वह सू खे प े सी धरती पर झर ी यामसु दर के
चरण म गर पड़ी। तु र त ही क णासागर केमं गल चरण केपश से
उसे राहत मली जै से सुवा सत, सु शीतल च दन का पश आ हो।
यामसु दर ने हा भ स वर से बोले , "ब त, ब त कठोर ँ न
म मीरा ! तुझ सु मन सु कु मार केलये कंटक - ब पथ पर चलने का
वधान कर रहा ँ ।" कमल क पाँ खड़ुी सेखले ने से आँ सु क दो
बूद
ँेव छ धु ली ओस क बू दँो क भाँ त....... चरण पर पड़ी मीरा के
म तक पर गर पड़ी।
मीरा ाणनाथ को क म दे ख वच लत हो गई - "नह , नह भु
ऐसा न कह। जो भी मे रे मंगल केलए आव यक होगा, आप वही वधान
मेरेलए न त करगे , यह मु झे पू
णतः व ास है । आप .... आप
नसंकोच कह ...... आपक आ ा शरोधाय भु ! वह तो ......इन चरण
सेर होने क आशं का का ही अपराध है , मेरा नह ! म तो आपक आ ा
पालन केलए तु त ँ ।"
"मीरा! माधवी!" भु ने मीरा को चरण से ऊपर उठाया और भाव
म व ल हो काँ पतेवर म बोले , "तूजब चाहे गी, मुझे अपने समीप
पायेगी। पर अब ते री वह अचे तन अव था नह रहे गी, बस इतना ही। सदा
भावावेश म डू बे रहना भले ही तेरेलए कतना ही चकर हो, पर उससे
सर का या भला होना है ? मीरा, ते
रेसचे त रहने सेही सर के भाव
को पोषण मले गा। उनके का तू समाधान कर पा उ ह दशा दे
पायेगी। तेरी सेवा उनका क याण करे गी, ते रा पश ..........।" "यह
लोकैणा (लोक क त) ...... ज़हर....... लगती...... है ।" मीरा ने कहा।
"ऐसे भावावेश म डू बे रहने से केवल तु ह ही लाभ है । तुहारे
आसपास केजीव तो तु हारेअनु भव से वंचत रह जायगे न ! और फर
तुझेक त आ ा त करे , इतना साहस उसम नह है ।" फर मु करातेए
ठाकुर बोले, "और फर मे रे य भ क सु क त मु झेकतना सु ख देती
है! और तुझेात भी नह होगा और न ही उ ह, जनका क याण होगा।
दोन ही बेखबर रहगे ....तब तो ठ क है न?"
थोड़ा सोचतेयेयामसु दर फर मधुस चत वाणी म कहने लगे,

166
"एक और भी सुयोजन है ....इस दे श का शासक तु हारेदशन से पव
होगा। और..... जानती है मीरा, तेरेसे वक-से वकाएँ न य रो-रोकर मु झसे
अपनी वा मनी के आरो य केलए ाथना करते ह।" ीकृण मु कुराये

"उन पर कृ पा कब होगी भु ? उ ह ने तो मेरी सेवा केलए अपनी
देह-गेह का मोह भी छोड़ दया है ...... बस वे मे
री ही च ता म त
और ाकु ल रहते ह।"
"तेरा कथन मे रा कथन है , मेरे भ क से वा मेरी सेवा है
, य क
तू, तूहै ही नह है । तु
झम नर तर म ही याशील ँ , अतः तेरेसेवक के
क याण म सं दे
ह बाक ही कहाँ रहा ?" ठाकु र नेमीरा केसर पर हाथ
रखतेये कहा। "और हाँ यह ले !" एक च दन क कला मक छोट सी
मंजष ूा मीरा क ओर बढ़ाई, "यह चमे ली को दे देना, जसकेकारण से
वह च तत है , उसका समाधान इसम है ।"
तभी च पा ने आकर कहा, "आज केनृ यो सव म थम नृ य
माधवी का हो, ऐसा ी कशोरीजू का आ ह है ।" मीरा नेवा मनी जू
क आ ा पा स ता से दोन हाथ जोड़कर म तक से लगाये।
वृ दावन म मीरा क भ लता क सु ग ध, च दन क तरह चार
दशाओ म ा त हो रही थी।
''जय ी राधे '' क ार पर पु कार सुनते ही के सर उप थत ई,
''पधारे भगवन् !" स सं ग क म बै ठ मीरा आहट सु न उठ खड़ी ई।
देखती ह क साधारण नाग रक वे श म दो भ पुष अ भवादन कर रहे
ह। मीरा ने उ र म हाथ जोड़ कर सर झु काया और आसन पर वराजने
केलये अनु रोध कया। उनम से एक यु वक नेवन ता पू वक कहा -
"सु यश सु नकर वण कृ ताथ हे तुसेवा म उप थत ए ह।"
मीरा ने बोलने वालेक तरफ दे खा तो दा हने हाथ पर बंधी तजनी
पर क । उस पर मजराब ( सतार वादन केलये मुा) धारण का
च ह अं कत था। मीरा मन ही मन सोचने लगी अव य कोई गु णी
कलावं त ह। उससे थोडा पीछे क ओर एक बीस-बाईस साल का यु वक
अ यं त साधारण वे शभू षा म होने पर भी, उसक और मु खमुा से
झलकता रौबे - कू मत उसेव श बनाए दे रही था। वह से वक क तरह
बनकर आया था पर उसक बै ठक राजा क तरह थी। वह उ सु कता-

167
पू
वक मीरा क ओर दे ख रहा था।
मीरा नेअ तशय वन ता सेमु करातेए कहा- "सु यश तो
भगवान का अथवा उनकेअन य म ेी जन का ही वण यो य होता ह
भाई ! साधारण जन का यश तो उ ह पतन क ओर धके ल देता है। यश
ब त भारी ची है । इसे झे लने क श होनी चा हए।"
आगे बै
ठा बोला, ''यह तो आपक वन ता है , नह तो
साधारण जन तो धन और यश क ल सा से ही उधर वृ त होतेह।" ''यह
मने साधारण जन केलए नह , शाह केलए कहा है ।" मीरा नेअपनी
बात को समझातेये कहा, "राजकम से वक का धम ह। राजा होकर
वयं को से वक मानना, समान प सेजा का पोषण करना, अपनी
क त सु नकर म न होना ब क रा य को ई र क धरोहर मानना,
गु
णीजन का स मान करना, जा धन-धा य से खुशहाल रहे , यही उसका
सबसे बड़ा कत है । अपने अवगु ण बताने वालेहतै षय पर ोध न
कर, सदा याय को मह व द तथा समय-समय पर भु - ेमय के मुख से
भु का सु यश सु नते रहना, और भोग, धन, पद केमद सेनरपेरहना।
यही उसका सबसे बड़ा कत ह।"
दोन आगं तकुच कत से हाथ जोड़ सर झु काये सुन रहे थे
.........
फर आगे बै
ठे नेवन ता से कहा, "राजनी त का यह उपदे श हम
अना धका रय को ां त कर दे गा माता ! ह र यशगान सु ननेक
अ भलाषा ही ी चरण म खीच लायी है ।"
मीरा ने
मु कुरातेए कहा - " भुकसके ारा या कहलवाना
चाहते ह। यह हम कै से जान सकते ह ? स य तो यह हैक दाता के वल
एक है , बाक तो सब भखारी ह, चाहे तो राजा हो या कृषक।" पु न: पद
सु
नने क ाथना पर मीरा ने एकतारा उठाया। चमे ली ढोलक, और के सर
मं
जीरे बजाने लगी ........
मन रे
......पर स ह र केचरण।
सु
भग ,सु सीतल ,कँवल, कोमल,
वध वाला हरण.........
दोन झू म-झू
म गये
। आँ
खेझरनेलगी। सं
गीत म ऐसा आन द भी
होता है
, यह दोन अ त थय केलए नया अनुभव था। मीरा ने
आगे
बैठे
168
से गानेका आ ह कया। वे च क कर बोले - "म सरकार ?" मीरा
बोल , "वाणी क साथकता तो ह र गु
ण-गान म ही है-
जग रझायेया मलेथोथा धान पु
आल।
ह र रझाये
ह र मले
खाली रहे
न कु
ठाल॥
मीरा ने
सहजता से कहा," देखए ! कोई भी गु ण अगर उस भु से
जुड़ जाये तो उसम वभा वक मधु रता आ जाती है । जग को अपने गु

को रझाने सेया मले गा धन, धा य। और ह र को रझाने सेतो वयं
ह र ही ा त हो जायगे ।"
मीरा केनवे दन पर उस नेमीरा का ही एक पद गाया। तार
झंकृत करतेए उसने आँ खे बं
द करकेगाना आर भ कया। राग के
क ठन उतार-चढाव तो मान उनकेसधेए कं ठ का सरल खे ल ही हो।
"ध य, ध य!" मीरा के मु
ख सेनकला।
आगं तकु नेसंकोच सेसर नीचे झुकातेये कहा, "ध य तो आप
ह सरकार ! हम तो वषय के क ड़े ह।''
मीरा ने
अ त थ के गान सेआन दत हो कर कहा- "सो कु छ नह ,
भुने आपको वशे ष स पदा सेनवाजा है । जसको उस भु नेजो
दया है
, उसी से उसक से वा क जाये तो उस गुण क भी साथकता है ।"
उस नेपु
न: नवे दन करतेए कहा - "कृ पा, मे
हरबानी होगी
य द एक पद........! इस गु ताखी केलए माफ ब श। कहतेए
आँ ख सेआँ सूढ़लक पड़े । मीरा ने पुनःआलाप लेठाकु र जी क
शरणागत-व सलता का एक क णापू ण पद आर भ कया.........
सु
णयाँह र अधम - उधारण। अधम उधारण भव् -भय तारण॥
गज डू बताँ
, अरज सु न, धाया मं
गल क नवारण॥
पद सु ता सो चीर बढ़ायो, शासन मद - मारण॥
हलाद री त ा राखी, हर याकुश उदार वदारण॥
ऋ ष प नी करपा पाई, व सु दामा वपद नवारण॥
मीरा री भुअरजी हारो, अब अबे र कण कारण॥
भजन स पूण होने
पर अ त थ ने
दशन क इ छा करतेए
वन ता सेपू
छा, " भु ी ग रधर गोपाल केदशन हो जाते
यद
169
अन धकारी न समझा जाए तो......!"
मीरा ने कहा- "सं गीताचाय जी ! मानव तन क ा त ही उसका
सबसे बड़ा अ धकार ह। सबसे बड़ी पा ता ह। अ य पा ताएं हो या क
न हो, जीव जै सा है, जस समय है , भगव ा त का अ धकारी ह। अब
वह ही न चाहे , तो यह अलग बात है ।"
एक और उ सु कता भरा कया- " या चाहते ही मानव को
भु दशन हो सकते ह ?" मीरा नेउ र दया, "हाँ ! य नह ! एक यह ही
तो मनु य केबस म है । अ य सभी कु छ तो ार ध केहाथ म ह। जै से
मनु य धन, नारी, पु, यश चाहता है , वैसेही य द ह रदशन चाहे तो
उसक अ य चाह तो ार ध केहाथ कु चली जा सकती ह, क तु इस
चाह को कु चलने वाला य द वह (मनु य) वयं न हो तो महाकाल भी
ऐसी ह मत नह कर सकते ।" मीरा उठ खड़ी - "पधारे , दशन कर
ल।" मं दर क म जाकर उ ह नेभु के दशन कये ।
शाह ने अपने खीसे म से हीरे क ब मूय कं ठ नकाली और
आगे बढ़ कर भु को अपण करने लगे । तभी मीरा बोल पड़ी - "नह
शाह ! यह तो जा का धन है । इसे उ ह द र नारायण क से वा म
लगाइये । जस रा य क जा सु खी हो उस रा य का नाश कभी नह
होता। आप उदारता और नी तपू वक जापालन कर। ठाकु र तो बस भाव
के ही भूखेह - इ ह तो बस भाव से ही सं तु हो जाती है ।"
युवक ने डबडबायी आँ ख से उनक और दे खा और हाथ क
कंठ गरधर केचरण म रख द । साद-चरणामृ त ले ले ने केप ात
णाम करके चलने को उ त होतेए ौढ़ ने पूछा - "आ ा हो तो
एक अज क ँ?" मीरा ने कहा- "जी नःसं कोच ! ने सकु चातेए
पू
छा - ''आपने अभी इनको शाह कहकर बु लाया और मु झे सं गीताचाय !"
मीरा ने मु कुरातेए पू छा - ''तो या ये इस दे श केशासक और
आप इनकेदरबारी गायक नह ?'' "धृता मा कर सरकार ! म तो यह
जानना चाहता था, क यह रह य आपको कै सेात आ ? हम तो दोन
ही छ वे श म ह और हमारेअ त र कोई तीसरा इसक
जानकारी भी नह रखता।"
मीरा ने धीरेसे ह केवर म कहा - "मे रेभीतर भी तो कोई बसता
है
।'' बस इतने श द कान म पड़ते ही दोन शर व पशु क भाँ त
170
मीरा के चरण म गर पड़े ।
नवीन ग का नमाण करने केवचार से बादशाह अकबर अपने
दरबार केउमराव केसाथ थान का न र ण करने हे
तु आगरा आये ।
वह मीरा क श त सु नी। उनके प, वै रा य, पद-गायन केबारे म
सुना। च ौड़ जै से स राजवं श क रानी होकर भी सब कु छ छोड़कर
वृदावन क वी थय म मीरा एकतारा ले गातेए ई र को ढू ं
ढती ह।
मंदर म जब वह पाँ व म घु ं
घ बाँ ध कर गातेए नाचती ह तो दे खने
और सु नने वाले सुध-बुध भू ल जातेह। कसी- कसी को उसकेघु ं

और एकतारे के साथ ी कृण क वं शी भी सुनाई देती है। कोई कहते ह
क गाते समय मीरा सं सार भू ल जाती ह, कोई कहते ह क व ी ह और
गाते समय पद अपने आप बनते चले जाते ह, नरं तर अ ु धारा वा हत
होती है। वेइस लोक क तो लगत ही नह , आ द-आ द।
बाईस वष का यु वक बादशाह मीरा केदशनाथ आतु र हो उठा।
बादशाह अकबर ने अपनेदय क बात अपने दरबारी गायक तानसे न से
कही। तानसे न ने कहा - "अगर जनाब बादशाही तौर-तरीकेसे उनके
दशन केलए तशरीफ ले जायगे तो वे कभी सामने नह आएँ गी। माना
क वो पदा छोड़ चु क ह, मगर वे खुदा क द वानी ह। वह आपके तबे
का याल नह करगी। हो सकता है जहाँपनाह वह आपको मलने से
इ कार कर दे ।"
" क तु म उनकेदशन केलए बे ताब ँ तानसे न ! इतना ही नह ,
म उनका गाया पद भी सु नना चाहता ँ ।" "यह तो और भी मुकल काय
ह जहाँ पनाह ! क तु य द आप मे रेसाथ सादेह वे श म पैदल चल, तो
मुम कन ह क जू र क वा वश पू री हो जाए।"
अकबर ने एक ण सोच तानसे न से पूछा - "कोई खतरे का
अंदे
शा ?" "नह आ लजाह ! खु दा केद वाने ओ लया और फक र क
ओर उठने वाले पाँ
वो केसामने आने का खतरा तो खतरे भी नह उठाते।
जूर ! यहाँ से घोड़ पर चला जाय और फर वृ दावन म पै दल। म जै से
क ँ-क ँ , जु र को नकल करनी होगी।"
बादशाह हँ सने लगे जरूहै
, "मं मौ सक आ लया ! जै सा तु
म कहो।
हम भी तो दे खना चाहते ह कोई तुमसे बे
हतर भी गा सकता ह, और
रा य, जर, जमीन होतेए भी उस बं द ने फक री सेया हा सल
171
कया।"
पूछते-पूछते वे प ँच गये । और जो कु छ देखा, अकबर ने तो
उसक क पना भी नह क थी। अकबर तानसे न से लौटते समय कहने
लगे , ''तानसेन ! सब कुछ छोड़ दे नेकेबाद भी वे हम, तुम सेयादा खु श
कैसे ह ? उनकेदशन कर दल- दमाग थम गये ह। एक अजीब ठं डक,
एक सु कून महसू स होता था वहाँ।"
आलीजाह ! खु दा केद वान क नया ही और होती ह। उनका
पद गाना और खु दा के जू र म उनक वह ब दगी आह ! वह मठास
नया का कोई गाने वाला नह पा सकता।"
फर अकबर थोड़ा क कर बोले - "और आज तु मने जो वहाँ
गाया तानसे न ! वह तुमने पहले हमारेजू र म कभी य नह गाया ?"
तानसे न ऊपर दे खतेए बोला, "वह तो सब उस मा लक का कमाल था,
जू र ! गुलाम तो कसी का बल नह । और उ ह ने भी फरमाया क अगर
हम मा लक क ब शी कला को उसक ब दगी म इ ते माल कर तो उसम
खुद-बे -खु द मठास आ जाती है । और याद ह जहाँ पनाह ! जब उसने हम
बना हमारा प रचय लए ही पहचान लया, जु र ! खास बात तो यह है
क उ ह ने अपना खु दा से ता लुक-रसू ख (भगवान से स ब ध) जा हर
कया।"
बेनजीर ह तानसे न ! यह वतन और यहाँ के बा श दे । और जो हम
उ ह ने एक बादशाह केफज भी बतलाये , हम उन पर अ ल कर। हम
को शश करगेक अब आगरा का कला फकत कसी जदो-जहत के
लए ही नह , इन फक र ओ लया से गुतगू ँकेलए भी ज री हो गया
है
।"
घोड़ो पर सवार दोन अपने रा तेपर चल तो दए क तु मीरा के
गाये भजन रस उनके कानो म अभी तक घु ल रहा था ....
भावना रो भू खो हार साँ वरो, भावना रो भू
खो।
सबरी रा बे
र सु
दामा रा चावल, भर भर मु ा ढू
का॥
रजोधन रा मे वा या या, साग व र घर लु को।
मीरा के भुग रधर नागर, औसर कब ँ ना चु
को॥
ग रराज जी क प र मा करतेए ी राधाकुड म नान कर
172
मीरा सघन तमाल त केतले बै
ठ थ । के सर और चमे ली अभी नान
कर रही थ , कशन सू खे व क रखवाली कर रहा था और शं कर दाल
-बाट क सं भाल म त था।
"माधवी!" मीरा च क कर पलट तो दे खा स मु ख च पा खड़ी थी।
मीरा चरण पश को झु क तो च पा ने आगे बढ़ उसे गले से लगा लया।
वेदोन पे ड़ क आड़ म बै ठ ग तो च पा नेने ह से कहा, "माधवी, एक
संदे
श है ते
रे लये, यामसु दर क इ छा हैक अब तूा रका चली जा।"
मीरा क आँ ख भर आई, श द जै से क ठ म ही अटक गये । कुछ
ण केप ात वयं को सं भाल कर वह बोली, "ब हन ! ...... या क ँ ?
यामसु दर कृपा पारावार ह ! उ ह ने मे
रेलए कु छ अ छा ही सोचा
होगा। पर कशोरीजू ....., कशोरीजू मुझेमरण करती ह ?" ीराधारानी
का नाम ले त-े
लेतेमीरा ससकने लगी।
री इस दे
"ते ह का दोष है माधवी !" फर बात को बदलतेए च पा
मु कराने का यास करती ई बोली, " ी कशोरीजू क मृ त म तो तू
सदा है। दे
ख, हम स खय म कौन छोटा बड़ा है ....और हम सब याजी
क अपनी ह........और.....और.....बस अब ते रा धरा धाम पर रहने का
अ धक समय तक नह रह गया है ।"
मीरा उ ल सत हो उठ - "सच, सदा केलये म कशोरीजू क
सेवा म, उनकेचरण म रह पाऊँ गी !" पर च पा को एकाएक चु प और
मुख मुा बदलते दे
ख मीरा अपनी आशं का को परे ठेलतेये उसे मनाते
ये बोली, "कहो न ब हन ! कु छ छपाओ न ! यतम का मे रेलए पू ण
संदे
श कहो, यतम से सं
दे
श है तो मे रेलए यकर ही होगा। उनक
येक बात, ये क वधान रसपू ण है । इस दासी को वे जैसेचाह जहाँ
रख। म कह भी र ँ , जस अव था म र ँ ,उह क र ँ गी। इसम सोचने
क या बात है ? ा रका भी तो मे रेही ाण यतम का धाम है ।"
च पा मीरा को सां वना यु श द म पर प कहने लगी, "तु मने
माधवी के प म थम बार यामसु दर केऐ यमय व प केदशन
पाये। तुह ने कहा था क उनकेचार हाथ ह, दो से वं
शी संभाले ह, एक
सेग रराज उठाए ह और एक हाथ अभय मुा (आशीवाद मुा म) उठा
है
।" उसने मीरा क ओर दे खा तो उसनेवीकृ त म सर हला दया। फर

173
च पा पु नः कहनेलगी - "तु मनेसदा गरधर गोपाल कहते ये
ा रकाधीश क उपासना-कामना क , तु हारेभाव केअनु सार
ा रकाधीश सेही तु हारा ववाह आ।" " या कोई भू ल ई? म
अ जान-अबोध बालक थी।" मीरा ने क पत वर म कहा।
" नह रे !" च पा बोली, "बस इतना ही क वे भ वा छाक पत
ह, भगवान भ के मन का भाव वीकार करते ह। तुमने उनक प नी के
प सेउपासना क तो फर प नी को तो प त के घर म ही रहना चा हये
न!" मीरा भू म क ओर दे खती ई चु प सी बैठ रही।
देख माधवी, सं कोच न कर ! जो भी कहना है , कह दे। म जाकर,
जो तू कहे , उनसे जा कह ँ गी। वेतो नजजन ाण ह। उनका तो मु झसे
तु ह कहलवाने का ता पय यह था क य द यह व था तु झेन चे ,
अथवा तु म जो चाहो, अथवा इसी म कोई प रवतन या कोई नवीन
व था चाहो, तो वै सा ही कर दया जाये । वेतेरी इ छा जानना चाहते
ह।" च पा नेने ह से मीरा का हाथ अपने हाथ म ले सहलातेये कहा।
च पा का अपन व से भरा ने हा भ स पश पा मीरा क आँ ख
बरस पड़ी। वह च पा सेलपट गई - "नह ब हन ! नह , वे जो चाह, जैसी
चाह, वैसी व था कर। उनक उदारता, क णा अन त है । अपने जन
का इतना मान, इतना मन कौन रखे गा ? मुझेतो यह जानकर क आ
क उ ह मु झसे पुछवाने क आव यकता य जान पड़ी ? अव य ही
अं तर म कोई आड़-ओट बाक है अभी। य द है भी तो ब हन, बस..... वह
मट जाये , ऐसी कृ पा कर दो .....बस.....यही चा हए मु झ।े" च पा स
हो उठ -"यही तो चा हए ब हन! पर इतनी सी बात लोग समझ नह पाते !
च मय ी वृ दावन धाम केएक बार दशन केप ात उसे
छोड़कर कह ओर पग बढ़ाना, मान ल य थल पर प ँ च सरी दशा
क ओर चलना तीत हो रहा था। पर शरणागतव सल और मं गल
वधान भगवान क क णा का मरण कर, अपने आँ सु के उमड़ आये
सैलाब को सं भालतेये मीरा कहने लगी, "और बात रहने दो च पा! कुछ
उनक चचा करो ब हन ! ी यामसु दर, ी कशोरीजू कभी अपनी इस
दासी को मरण करते ह या ? तु ह देखकर य- मलन सा सु ख आ।
उनक वाता वण को ाण यासे ह।"

174
अपने आँ चल से च पा ने मीरा केझर-झर बहते आँ सू प छे,
"धीरज धरो ब हन ! अब अ धक वल ब नह है । और बताओ, कभी
अपन को कोई भु ला पाता है भला ? न य सां झ को जब सब स खयाँ
इक होती ह, जब नृ य क तुत होती है , तब कशोरीजूऔर
यामसु दर केम य ते री चचा चलती है । ब धा तो मु झसे भी तेरेबारेम
पूछते ह। कई बार तो ते रा नाम ले तेही तेरेवयोग म उनक आँ ख भर
आती ह। वे ते
रे:ख से:खी होकर कहते ह -मीरा क से वा, शं सा
करने वाला मु झे ब त य है और उसका वरोध करने वाला मे
रा भी वैरी
है।"
"मीरा ?" मीरा ने च ककर सर उठाया। "हाँ , कभी-कभी वे तेरा
यह नाम भी ले ते है
। एकबार कशोरीजू नेपू
छा तो उ ह ने कहा - "मु झे
मीरा का यही नाम अ धक य है । माधवी बनकर उसनेया पाया ?
मीरा होकर तो उसने मुझे अपनेम े-पाश म बाँ ध लया है ।" "तु
मने कहा
क मे रा वरोध करने वाल से वह नाराज ह। उनसे कहना ब हन ! वे
बेच ारेअ जान - अबोध उनक दया के पा ह। मे री करब ाथना हैक
उन पर भी कृ पा कर।" मीरा ने हाथ जोड़कर च पा के पाँ
व पकड़ लये ।
च पा हँ सती बोली, "यह तो उनका वभाव है ब हन ! भ केसामने
अपनी समद शता भू ल जाते ह वे।"
" क तु मेरी ाथना भू ल न जाना च पा ! जीव ही अपना अभा य
यौत लाता है । देख, ब हन ! वरोध करने वाले कोई भी ह , उ ह ने मेरा
हत ही कया है ब हन ! वरोध से तो ढ़ता आती है । य द :ख दे नेवाले
न हो तो जीव के पाप-कम कै से कट ? नह -नह , च पा! उन जै सा तो हत
करने वाला तो कोई नह । भला कहो तो सही, सवश क नाराजगी ले कर
भी कसी के पाप काट दे ना या सहज है ? बस च पा, म तो यही चाहती
ँक उन सबका भी भला हो।"
"बाईसा कम ! ठाकु र जी को भोग लग गया। आप भी साद ले
लेत ।" चमे ली ने आकर जै से ही कहा, तो उसक च पा पर पड़ी।
च पा का आलौ कक प और व आभू षण दे खकर वह एकाएक
हत भ सी हो ठठक गई। और फर अपनी वा मनी केबराबर आसन
पर उसेकसी सखी क समान बै ठे दे
ख चमे ली को थोड़ा बुरा भी लगा।
"अरी च पा ! कहाँ चली गई थी बना बताये ? तुझे ढू

ढ ढूँ
ढकर तो उनके
175
पाँ
व ही थक गये । कसी बड़े राजा केयहाँ चाकरी करने लगी हैया ?
बाईसा कम जै सी वा मनी तू सात ज म म भी नह पा सके गी, समझी?
"हाँ! हाँ
, समझी।"- च पा हँ सती ई बोली, "आज ते रे हाथ का
बना साद पाने क मन म आई, इस लए आ गई।"- कहतेये उठकर
उसने चमेली को दय से लगा लया। च पा का पश होते ही चमे ली को
उसकेआलौ कक व प का ान आ। वह आ यच कत सी हो
उसक ओर दे खती रह गई, और फर कु छ समझ पाने पर उसकेचरण
म गर आँ सू बहाने लगी। यही अव था के सर क भी । उनको दे खा-
दे
खी कशन और शं कर ने भी चरण पर म तक रखा। इतने समय तक
साथ रहकर भी न पहचान पाने केलए और कभी खरी-खोट कह पड़ने
केलए चमे ली नेमा याचना क । "उठो भाई !" उसने हाथ से म तक
पश कया और उन सबको जीवन सफल होने का आ ासन दया। फर
च पा हँ सती बोली, "चमे ली ! ब त भू ख लगी है । आज गरधर का
साद नह मले गा या ?"
मीरा झट आगे आकर बोल , "सदा आप सब ने मेरी सेवा क है ।
आज म सबको परोसती ँ ... आज यह से वा मुझेकरने दो।" "नह , हम
दोन आज य न साथ ही साद पाय, फर ऐसा सु योग कब मले ?"
च पा ने अपन व से भावु क होतेये कहा - "आ, मे री थाली म तू भी पा
ले।"
भोजन केबीच के सर ने दे
खा क सबक नजर बचाकर उसक
वा मनी ने च पा केहाथ से उसका झू ठा ास छ नकर अपने मु
खम
डाल लया।
"अब म चलू ँ?" च पा चलने को तु त ई। से वक - से वका ने
पु
नः णाम कया। मीरा कु छ र तक प ँ च ाने
चल । मीरा का मन फर
भर आया - "जब तक वृ दावन का रस नह चखा था, जब तक सब
इतना भावमय नह था। तब इतना कु छ नह होता था। अभी तो लगता है
जैसे कोई ाण को ही ख चकर बाहर नकाल रहा हो। यहाँ लग रहा था
क आप सब मे रे साथ हो, यामसु दर मेरेसाथ ह, वृ दावन म मु झेकह
एका त नह अनु भव होता था। म जै से ...जैसेअपने घर म ....अब ...."
कहते -कहते मीरा के श द जै से आँ सु म अटक गये ।
"तूय ाकुल होती है पगली ! तू जब चाहे , तब यामसु दर
176
नेके स मुख उप थत हो जायगे । अब वह और तू दो रहे
ह या ?" -
च पा उसेसा तवना दे
ती कहने लगी। "नह ब हन ! मीरा तो कबक उनम
लय हो गई। इस दे
ह म - इसके रोम-रोम म बस और बस वही ह ..... फर
भी य बछु ड़ना ाणघाती लगता है ।" "अब चलती ँ , तूअपनी
सं
भाल करना। तू यह ठहर !" - च पा नेमीरा को नहा भ स आ लगन
दया और आगे चलकर पे ड़ के झुरमुट म लोप हो गई।
च पा का प रचय पाकर चमे ली और के सर च कत थ । जीवन
साथ-साथ बता दया, फर भी पहचान नह पाया कोई भी। और मीरा
क आँ ख म आज न द नह थी। वह च मय वृ दावन का जया ये क
ण फर से जी ले
ना चाहती थी। उसक मृ त पटल पर एक-एक करके
यहाँ
क सब लीला दशन उबर कर आने लगे। उसे वह दन भी मरण म
आया जस दन वे सब वृ दावन प ँ चे और फर यह से वाकुज स
थली केपास वह आकर यहाँ सेकह ओर न जाने केवचार से रच बस
गई और वह उसका अ त चकर पद.......
आली हाँ
ने
लागे
वृदावन नीको......
मीरा अपनेही भाव और वर क लह रय म उतरने लगी......
च पा और मं गला दो ही अ ववा हत दा सयाँथी जो मीरा के
ववाह केउपरा त उसकेसाथ च ौड़ गई थ । च पा केजाने केप ात्
चमेली को मंगला क ब त याद आने लगी। मे
ड़ता सेवृ दावन आते
समय मीरा, मंगला को यामकु ँ
वर सा बाई क देख-रे
ख केलए छोड़
आई थी। यूँतो यामकुँवर के
पास दास दा सय क कमी न थी, पर फर
भी भगव स ब धी भजन वाता सु नानेहे
तुआदे श दे
कर मं
गला को अपने
पास ही रख लया था।
प चीस वष ज म नवास करकेमीरा नेव म सं वत 1621 म
ा रका केलये थान करने का न य कया। उस समय उनक आयु
पचपन वष केऊपर थी। अपनेाणप त ी ा रकाधीश केदशन के
लए वे ाण यतम केआदे शानु
सार तीथया य केदल केसाथ
थान करने को तु त । उस समय उनकेके श म सफे द झाँ क
चु
क थी। ठ क थान क पू व संया म मं
गला आ गयी। मंगला को देख
चमेली और के सर क स ता क सीमा न रही।

177
मीरा भी इतने वष केप ात् यूँ एकाएक मं गला को मल अ त
स । कु शल समाचार पू छने पर मं गला नेबताया - " यामकु ंवर
बाईसा को पुलाभ आ। जोधपु र केराव मालदे व क अनी त और
अनाचार के कारण मे ड़ता का पराभव आ और राव वीरमदे व जी को दर
-दर क ठोकरे खानी पड़ । असीम उथल-पु थल घमासान पार प रक
यु और राजो चत चातु य केबाद मेड़ता पर राव वीरमदे व जी का पु नः
अ धकार हो गया। मे ड़ता ा त करने केदो माह बाद ही व०सं ० १६००
म राव वीरमदे व जी का देहावसान हो गया। राव वीरमदे व जी के बाद राव
जयमल मे ड़ता क ग पर आसीन ये ।"
मीरा पीहर का समाचार जान म त से भाव म गर गई। फर
उसने पूछा, "अब तो सब कु शल ह न मं गला, मे ड़तेम। तूय भाग आयी
पगली ! सुख से वही रहती।" मं
गला ने अरज कया, "मे री कुशलता और
सुख तो इन चरण म ह कम ! जहाँ ये चरण ह वही म। वहाँ तो आपके
आदे श केबं धन म बं धकर रह जाना पड़ा और रही बात अब मे ड़ता क
तो, सो सरकार ! राजा जोधाणनाथ क तृ णा-कोप मटे तो कु शलता
समीप आये । जोधाणनाथ केकारण राव जयमल को मे ड़ता छोड़ना
पड़ा। कु छ दन इधर-उधर गु जारनेकेबाद वेच ौङ चलेआये ।
महाराणा उदय सह जी ने बड़ा आदर-स कार कर उ ह च ौड का
गा य घो षत कया। जब अ राज मे ड़ते छोड़ अ य पधारने लगे तो
मने वहाँसे वृ दावन आने का न य कर लया। बाईसा के म से
आ ा ा त करकेम या य केसाथ वृ दावन केलये चल पड़ी।
वृदावन जाने का मेरा मन देख यामकु ँ
वर ने फरमाया - जाओ जीजी !
जाओ। अपने सुख केपीछे म तु हारा सुख य म क ँ । हाँरी होटा
माँको अरज करना क म कतनी ही र य न र ँ , मन सदा आपके
चरण क ही प र मा लगाता रहता ह। अपनी इस छो याम को भू ल
न जाय, बस इतनी कृ पा बनी रहे
। कभी-कभार याद करकेअपनी गोद
क लाडली यामा को सनाथ बनाये रख! इतना कहते -कहते वेबेतहाशा
रोनेलग ।"
यह सु न मीरा क आँ ख म आँ सू भर आये और लाडली यामा के
बचपन क अने क मृ तयाँ उसकेमानस-पटल पर नृ य करने लग ।
मंगला केमु ख से लाडली यामा का समाचार सु नकर मीरा ने गं
भीर
178
ास छोड़तेए कहा- "बे टा ! ते
रे
गोपाल जी ते री सार-सं
भाल करगे । वे
ही तो एक अपने ह। होटा मा काँ मोह छोड़ !"
ातः सू य दय से पू
व ही मीरा यामा- याम क आ ा ले या य -
संतो केसाथ ा रका केलए चल पड़ी। इन प चीस वष म उनक
या त र- र तक फै ल गयी थी। र- र के संत-या ी उनके स सं
ग-लाभ
और दशन केलए हा जर होते । ान-भ क गहन-से -गहन गाँठ वे
सहज श द म ही सु लझा देत । चमेली और मं गला ने या ा म उनकेलये
सवारी का बं ध करना चाहा, पर मीरा ने मना कर दया। उ ह ने कहा -
"वृदावन और ग रराज क प र मा करने से अब चलने का अ यास हो
गया ह।"
या य , सं त क टोली केसाथ जै से-जै से मीरा अपने गत क
तरफ़ बढ़ती जा रही थ , उसका उ साह भी बढ़ रहा था। जै सेा रका का
पथ कम होता जाता....... ा रकाधीश केदशन का उ साह उसक वरा
को बढ़ा रहा था। वृ दावन क सब मृ तयाँदय के एक कोने म सुर त
थ .....पर यहाँ मीरा को अनुभव होने लगा .....मान वे गरधर के घर जा
रही हो........ उसके दयगत भाव पद का व प धर सं गीत क लह रय
म वातावरण को सु ग धत करने लगे....
म तो गरधर के घर जाऊँ.......
गरधर मोरे साँ
च ेीतम, उन सँ ग ीत नभाऊँ ॥
जनकेपया परदे स बसाये , राह तकत नैना थक जाये ।
मोरे पया मोरेमन म बसत ह, नत नत दरसन पाऊँ ..
मात पता और कु टु
ब कबीला,झू ठेजग क झू ठ लीला।
साँ
च ा नाता गरधर जी का, उन सं ग याह रचाऊँ .........
र से मु
रली क धु न आये , मधु र मलन के गीत सुनाये ।
गरधर जी का आया बु लावा, पँ ख बना उड़ जाऊँ ........
म तो गरधर के घर जाऊँ......
चतु मास उ ह ने पथ म ही तीत कया और मीरा सप रकर
ा रका प ँ च ी। ा रका और ा रकाधीश केदशन कर मीरा स म न
हो गय । भु केदशन कर, उनक छ व को नहार उसका दय गा
उठा .......
179
हार मन हर ली ह रणछोड़।
मोर मुगट सर छ बराजे कु
ंडल री छ ब ओर॥
चरण पखारेरतनाकर री धरा गोमत जोर।
धुजा पताका तट-तट राजे झालर री झकझोर॥
भगत जणा रा काज सँ वाया हाँ
रा भु रणछोर।
मीरा रेभुगरधर नागर कर ग यो न द कशोर॥
मीरा क क त उनसे पहले ही ा रका प ँ च गयी थी। उनके
आगमन का समाचार सु नकर संत-भ स सं ग केलोभ से आने लगे,
जै सेपुप गंध पाकर मर का झु डंचला आता हो। उनक अनु भव-प व
-वाणी, न ध मु खाकृ त, ते
जो द त ने, यागमय जीवन और राग-
राग नय से यु भावपू णअ त ु-आलौ कक कं ठ वर आने वालेभ
केसारे संशयो का नाश कर दे तेथे
। मीरा क दे ह म अब ह क सी
थू
लता आ गयी थी, क तु जब वे रणछोड़राय केसामने भाव- वभोर
नृ य करती तो लगता क कसी अ य लोक क दे वां
गना ही धरा पर उतर
आई ह।
गोमती क धारा और उसका सागर सेमलन उस सागर का
अं तहीन व तार और गहराई उ ह अपनेवामी सेमलने का स दे श दे
ती,
वे सब उनकेऐ य के तीक से लगते। वेातः सागर गभ से उदभूत
अं शु
माली (सूय) को एकटक दे खती रहती। इसी कार सां यकाल जब वे
च ड र म अपना ते ज समे टकर अनु राग-रंजत हो देवी तीची के
भवन ार पर होते , उनके ाण एक अनोखी पीड़ा से छटपटा उठते ।
कभी मीरा को लगता क ा रकाधीश कनारे केउस पार मु करातेए
खड़े ह और गोमती क उ ा लत तरं गेठाकुर के ी चरण धोवन केलए
आपस म होड़ लगा रही हो।
मीरा क आँ ख केसामने ापर क ा रका मू त हो जाती
और......और उस ा रका म सह ो भवन को समे टेए वह वण
प रखा, उसका वह र नज डत ार, उस ार केदशन मा से वेअधीर
हो जात । उनक दे ह काँपनेलगती और ार म वे श से पू
व ही अचे त हो
भू म पर गर पड़त । कभी उस ार पर टकटक लगाए दे खती रहत ,
''यह, यह तो अपना ही, अपनेवामी और उनक यतमा प नय के

180
महल का ार है ।
कतनेलोग आ जा रहेथेउस ार से ..... कतन को म
पहचानती ँ ...... ये, ये सा यक ह और ये तवमा नारायणी से ना के
उदभट वीर से नाप त ..........ये सा ब जा रहे ह और ये ..... उ व, धु न,
अहा ! धु न ने कैसी मु ख छ व पायी हैबलकु ल अपनेपता क तरह,
सहसा दे खकर लगता हैक वही ह.... और वे आ रहे ह भुवनप त
ा रकाधीश, मे र.े र.े
....मे .... ाणप त......मे र.े
....सव व....मे रेघू

घट क
लाज......मेरेजीवन क अव ध......मे र.े
....आगेकु छ कहनेको नह
मलता। वह मदगज चाल, वह मोहन मु कान, ग क वह....वह
अ नयारी चतवन...अहा... उ ह ने मेरी ओर दे खा, दे खा पहचान आयी
म ये
.........ये मु कराये री ओर दे
.... .....मे खकर ..................।"
मीरा गोमती तट पर यह सब दशन करते -करते मू छत हो जाती
और दा सयाँ उपचार करने म जु ट जात । र खड़े लोग उनक दशा दे ख
"ध य, ध य" कर उठते । उनक चरण-रज सर पर चढ़ाकर वयं को
कृ ताथ मानते । उनकेअधीर ाण दे ह क बाधा को पार करने केलये
ाकुल हो उठते - दा सयाँ , स खयाँ समझाती पर उनक ाकुलता
बढ़ती ही जाती। वे गातेए अपने भाव का ृ ं
गार करत .............
राय ीरणछोड़ द यो ा रका रो वास।
शंख च गदा प दरसेमटे जै
म क ास॥
सकल तीथ गोमती केरहत नत- नवास।
संख झालर झां
झर बाजे
सदा सु
ख क वास॥
त यो दे
स वे स त ज त यो राणा वास।
दास मीरा सरण आई थानेअब सब लाज॥
वह भु सेनहोरा करती ई कहत , "तु हारा वरद मुझे य
लगा। इस लए सब मे रेवै
री हो गये
। अब य द तु म सु ध ना लो, ना
नभायो, तो मुझे
कह कोई सहारा नह है।" मीरा नेअपने वेसु दर घने
के
श जनम कह -कह सफे द झाँक उठ थी, मुँ
डवा लए। भगवा वे श
धर हाथ म इकतारा ले
वेक णा और भ व सलता के पद गात ।
मीरा केभाव म अ धकतर वरह रस ही होता। एक ऐसी
वरहणी क दशा जो ठाकु र केदशन सुख केलए कब से वन-वन डोल
181
रही ह। एक ऐसी वरहणी जो कब सेा रकाधीश क एक झलक के
लए..... एक संदे
श केलए तरस रही ह ...... गोमती केकनारे
झरती
आँख से वह घं
ट उसक लहर से अपने यतम का सं दे
श पू
छतेए
कहत .........
कोई क हयो री ह र आवन क , आवन क मनभावन क ।
एक बार एक :खी , जसका एकमा यु वा पुमृ यु को
ा त आ, वह सभी तीथ म घू मता- फरता ा रका प ँ च ा और मीराबाई
का नाम सु न दशन करने आया। अपनी वपद गाथा मीरा को सु ना उसने
साधु होने क इ छा को गट कया। मीरा ने समझाया - " या के वल घर
छोड़ना और कपडे रं
गाना ही तु हारी सम या का हल है ?" बोला-
"म ःख से तप गया ँ । पु
नः ःख का सामना नह करना चाहता।"
मीरा ने को सां वना दे तेए कहा - '' ःख-सु ख भौ तक
व तु नह ह, क कोई उठाकर तु हे देदे। अथवा कोई से ना नह क तु म
भागकर उससे बच सको। तु हारा अथ ह क पुक मृ यु से तु ह जो
ःख क अनु भूत ई, वह तु ह फर ना झे लनी पड़े । यही ना ?" "जी
सरकार।" वह बोला।
मीरा नेआगे सहजता से समझातेए कहा, " क इसका अथ तो
के वल यह हैक इस :ख क अनु भू त से तुहे पीड़ा है। पुइस लए
य हैक उसकेजी वत रहने से सुख और मरने सेःख का अनु भव
होता है। और यह इस लए य क तु हारा उसमेमोह है। यह मे रा है
, बड़ा
होकर मे रा सहारा बने
गा, ब आये गी, से वा करे
गी, पौ होगा, वं श बढे गा,
मरने पर मरणो र काय करे गा, यही ना ?" नेवीकृ त म सर
झु का दया।
"सोचकर दे खो ! ये सब भावनाएँ केवल अपनेलए ही तो थ ।
अपने सुख क इ छा, और इस इ छा म बाधा पड़ते ही तु ह ःख ने आ
घेरा। पर तु सोचकर देखो - य द पुजी वत होता और तु हारी इ छा के
वपरीत वहार करता, तो या तब भी तु म साधु होनेक इ छा करते
या ?" "आपका फरमाना ठ क है ।"
"तो इस :ख से मा नवृ त होने क तु हारी इ छा को भगवान से
जु ड़ने क , उ ह पाने क लालसा का, भ का नाम दे ना तो उ चत नह
182
होगा। यह तो प र थ त से आँ ख मूँ
द कर वमु ख होना पलायन है ,भ
क तो इसम सु ग ध भी कह नह ।" मीरा कु छ क कर पु नः बोल , "पर
सोचो तो तु म तो फर भी ठ क हो जो :ख सेनवृ त होने के कारण और
कुछ मोह से वै
रा य होने पर इस माया सेनकल आने क बात तो सोचते
हो। अ धकाँ श लोग तो इस मोह के गत सेनकलना ही नह चाहते । रात-
दन कलह, था, चता झे लकर भी वह मोह को नह छोड़ पाते । य क
मोह ही ःख का मू ल ह। पाप का पता मोह, माता तृ णा और ोध,
लोभ, मद-म सर, आशा आ द कु टु बी ह। इनका एक भी सद य मन म
घुसा नह क धीरे -धीरे पुरेकुटु

ब को ले आता ह। फर पाप क प नी
अशां त तथा बे ट मृ यु भी आकर मशः हम स ले ती ह। और इनसे
बचने का उपाय के वल और के वल भजन ह, साधू होना नह । अभी
तुहारे षट वकार र नह ए ह क खाने -सोने क चता न रहे । यद
साधूए, तो सबसे पहली तो चता तु हेयह लगे गी क कहाँ रह, या
खाये, और कहाँ सोये। य द वै रा य ही नह ह तो क ठनाई नह सह
पाओगे और सं सार सेवर ना होकर साधू वे श से ही वर हो
जायेगी।"
मीरा नेइकतारा उठाया और सदा केमधु र वर म उसे और जीव
मा को उपदे श दे
तेये गाया क, " हे मे
रेमन ! तू उस अ वनाशी ह र के
चरण कमल का यान धर ! जो तु झे आज धरती और आकाश केम य
जो भी दखाई दे रहा है, वह सब वन हो जाये गा ! तीथ या ा, कोई त
के पारण और न ही इस शरीर को कोई क दे ने सेतु झेभु क ा त हो
सकती है ! यह संसार तो एक चौसर क बाजी केसमान है जो शाम
ढ़लते ही उठ जायेगी और उसी तरह यह दे ह भी म म ही मल जाये गी!
योगभ का अथ समझे बना ऐसे ही भगवे व पहन कर घर याग का
कोई लाभ नह ! अगर ी त पू वक भ क यु ही नह समझी, तो
बार-बार उ टे इसी ज म मरण के च कर म ही रह जाना पड़े गा ......
भज मन चरणकँ वल अ वनाशी।
जे
ताई द सेधरण गगन बच, ते ताई सब उठ जासी।
कहा भयो तीरथ त क ह, कहा लये करवत कासी॥
इण देही का गव न करणा, माट म मल जासी।
183
या सं
सार चौसर क बाजी, साँझ पड़याँउठ जासी॥
कहा भयो हैभगवा पहरयाँ, घर तज भये स यासी।
जोगी होय जु
गत नह जाणी, उलट जनम फर आसी॥
अरज़ क ँअबला कर जोड़े , याम तुहारी दासी।
मीरा के भुगरधर नागर, काटो जम क फाँ सी॥
मीरा नेउसे सहजता से बतातेये कहा, "अगर तुम भ पथ पर
शुभार भ करना ही चाहते हो तो शुक वै रा य और स यास से नह ब क
भजन से करो। भजन का नयम लो, और इस नयम को कसी कार
टू
टने न दो। अपने शरीर पी घर का मा लक भगवान को बनाकर वयं
उसकेसे वक बन जाओ। कु छ भी करने से पू
व भीतर बैठेवामी से
उसक आ ा लो। जस काय का अनु मोदन भगवान सेमले , वही करो।
इस कार तु हारा वह काय ही नह , ब क सम त जीवन ही पू जा हो
जायेगा। नयम पू ण हो जाये तो भी रसना (जीभ) को व ाम मत दो।
खाने, सोने और आव यक बातचीत को छोड़कर, रसना को बराबर भु
के नाम उ चारण म त रखो।"
"वष भर म महीने दो महीने का समय नकाल कर स सं ग केलए
नकल पड़ो और अपनी च के अनु कूल थान म जाकर मह जन क
वाता वण करो। सु ननेका धैय आये गा तो उनक बात भी असर करगी।
उनम तु ह धीरे-धीरेरस आने लगेगा। जब रस आने लगेगा, तो जसका
तुम नाम लेते हो, वह आकर तु हारे
भीतर बै ठ जाये
गा। य - य रस क
बाढ़ आये गी, दय पघल करकेआँ ख केपथ सेनझ रत होगा, और
वह नामी दय- सहासन से उतर कर आँ ख के सम नृ य करने लगेगा।
इस लए ......
राम नाम रस पीजेमनुवा, राम नाम रस पीजे

तज कु सं
ग स सं
ग बै
ठ नत, ह र चचा सुन लीजे

काम ोध मद लोभ मोह कू ँ, च सेर करी जे।
मीरा के भुगरधर नागर, ता ह के
रं
ग म भीजे॥
"आ ा हो तो एक बात नवेदन करना चाहता ँ !" एक स सं
गी ने
पू
छा। और मीरा सेसंके
त पा वह पु
नः बोला, "जब घर म रहकर भजन

184
करना उ चत हैअथवा हो सकता है तो फर आप ीचरण (मीरा) रानी
जै
से मह वपूण पद और अ य सम त सु वधा को याग कर येभगवा
वे
श, यह मुडत म तक ..........?"
"देखए, जसकेलए कोई ब धन नह है , जसकेलए घर बाहर
एक जैसेहै
, ऐसेहमारे
लए या नयम ?"
हाँ
रा पया हाँ
रे
हवड़े
रहत है, कठ न आती जाती।
मीरा रे भुगरधर नागर, मग जोवाँदन राती॥
"सार क बात तो यह हैक बना स चे वैरा य के घर का याग न
कर।" "ध य, ध य हो मातः!" सब लोग बोल उठे ।
" मा कर मात ! आप ने फरमाया क भजन अथात जप करो।
भजन का अथ स भवतः जप है । पर जप म मन लगता नह माँ !" उसने
:खी वर म कहा, "हाथ तो माला क म णयाँ सरकाता है , जीभ भी नाम
लेती रहती है, क तु मन मान धरा-गगन के सम त काय का ठे का ले कर
उड़ता फरता है । ऐसे म माँ, भजन से , जप सेया लाभ होगा ? ब क
वयं पर जी ख हो जाता है ।"
मीरा नेउनक ज ासा का समाधान करतेये कहा, "भजन का
अथ है कै
से भी, जै सेहो, मन-वचन-काया से भगव स ब धी काय हो।
हम भजन का यान ऐसे ही बना रहे , जैसेघर का काय करतेये , माँ
का
यान पालने म सोयेये बालक क ओर रहता है या फर सबक से वा
करतेये भी प नी के मन म प त का यान रहता है । प नी कभी मु ख से
प त का नाम नह ले ती, क तु वह नाम उसके ाण से ऐसा जुड़ ा रहता
हैक वह वयं चाहे तो भी उसे हटा नह पाती। मन सूम दे ह है। जो भी
कम बार बार कए जाते ह, उसका सं कार ढ़ होकर मन म अं कत
होता जाता है । बना मन और बु केकोई काय बार-बार करने सेमन
और बु उसम धीरे -धीरेवृहो जाते ह। जै
से खारा या कड़वा भोजन
पहले अ चकर लगता है , पर न य उसका से वन करने पर वै सी ही
च बन जाती है ।"
"जप कया ही इस लए जाता हैक मन लगे , मन एका हो।
पहले मन लगे और फर जप हो, यह साधारण जन केलये क ठन है ।
यह तो ऐसा ही हैक जै से पहले तै
रना सीख ल और फर पानी म उतर।
185
जो म आप जपग, वही आपकेलए, जो भी आव यक है , वह सब
काय करता जाये गा। मन न लगने पर जो ख ता आपको होती है , वही
ख ता आपकेभजन क भू मका बने गी। बस आप जप आर भ तो
क जए। आर भ आपकेहाथ म है , वही क जए और उसे ईमानदारी से
नभाईये । आपका ढ़ सं क प, आपक न ा, स यता, को दे ख भजन
वयं अपनेार आपकेलए खोल दे गा।"
ा रका म मीरा घं ट सागर केतट पर खड़ी रहत । सागर क
उ ाल तरं गेउसेवभोर कर दे त , क तु य- वरह उ ह चै न न ले ने दे
ता।
मीरा को वृ दावन क उन रा य का मरण हो आता, जब वह ल लता
जू केसं
ग गोवधन ग र के कु , यमु ना पु लन और वृ दं
ा वी थय म ी
यामसु दर क लीला दशन करती घू मती थ । मीरा सोचती, "वृ दावन
प ँ च कर तो लगता था, बस ग त आ गया। अब कह नह जाना, कु छ
दे
खना सु नना बाक नह रहा। क तु धणी का धणी कौन है ? अब ये
ा रकाधीश कहाँ परदेस जा बसेक ाण क पु कार सुनते ही नह , मे रे
दय का दन उ ह य सु नाई नह दे ता ! हाय यह मेरेाण इस प ड
(शरीर) म य अटकेए ह ? न तो भुवयं दशन देतेह और न ही कोई
संदेश भजवाते ह। यू ँन म कटारी ले कर वयं को समा त कर लू ँ
? बस
एक बार आपके दशन क लालसा ने ही मेरेाण बाँ ध रखे ह !"
मीरा क ाकुलता दन त दन बढ़ती ही जाती थी। और उसे
शांत करने का एक ही उपाय था, 'स सं ग'। सं त केदशन कर उनम मान
नयेाण का सं च ार हो जाता था। वेवयं कहत ......
याम बन :ख पावाँ
सजनी कौन हाँ
ने
धीर बँ
धावे

साध संगत म भू
ल न जावे मू
रख जनम गमावे ।
मीरा तो भुथाँ
री सरणाँ
जीव परम पद पावे ॥
कभी-कभी तो मीरा ीकृण केवरह म यू ँ
अचे त हो जाती, मान
दे
ह म ाण ही न हो। दा सयाँ
रो उठत , क तु मं
गला धीर धरकर क तन
करने को कहती। उनकेसं क तन सेवह सचे त तो हो जात , पर उसक
पीड़ा दे
ख वेपछताने लगती क जब तक वह अचे त थ , पीड़ा भी शां

थी। शायद मू
छा म भु दशन का सुख पा रही ह ! सचेत होनेपर वे कभी
नील वण सागर को अपना यतम जानकर मलने केलए दौड़ पड़त ।
186
और कभी गगन केनीले रं
ग म घन याम को पकड़ने दोन हाथ उठाकर
उछल पड़त । दन तो जै से तै
सेसाधु -संग, भजन-क तन म नकल जाता,
क तुरात तो बै रन ही होकर आती। मं गला बार बार समझाती, "बाईसा
कम ! ा रकाधीश पधारते ही ह गे ! वेआपसे कैसेर रह सकते ह?
आप थोड़ा धीरज धारण कर।"
मीरा भु केवरह म उस मीन क तरह तड़फती, जसे जल से
बाहर नकाल दया हो। "मं गला ! अब म उनकेबना कै सेर ँ
? मे
रा पल-
पल युग के समान बीत रहा है ? या उ ह मे री इस पीड़ा का अहसास भी
है? मलकर बछु ड़ना तो उनका खे ल है , पर म या क ँ ? म चाहती तो
ँक वह जै से
, जस हाल म मु झे रख, उनक स ता म स र ँ ,
क तु......यह दे
ह....... दे
ह ही तो बाधा है ! पापी ाण इतना क पाते ह,
पर दे
ह का मोह छोड़कर नकलतेय नह ?"
तु
मरे कारण सब सुख छोड़या, अब मो ह यूँतरसावौ हौ।
वरह था लागी उर अ तर, सो तु म आय बु झावौ हौ॥
अब छोड़त नह बणैभु जी, हँ
सकर तु रत बु
लावौ जी।
मीरा दासी जनम - जनम क , अं
ग से अंग लगावौ जी॥
मीरा का ाण यतम ी यामसु दर केलए वरह त दन
बढ़ता ही जा रहा था। एक दन वह अचे त पड़ी थ । मु खाकृ त भी
पहचान म नह आती थी। मु ख से झाग और आँ ख से पानी नकल रहा
था। मीरा क त तकां चन वण देह झुलसी कुमु दनी केसमान हो गई थी,
पर स पू ण देह ऐसी फूली-सी लगती थी जै
से उसम पानी सा भर गया हो।
मु
ख से भी अ प वर नकलता। मीरा क ऐसी दशा दे ख दा सयाँ
अ तशय ाकु ल थ वे सब य न करकेभी थ त को सं भाल पाने म
असहाय थी।
सब मल कर रोतेए क ठ सेाथना कर रही थ , "हेा रका
नाथ ! आपके भरोसे पर हम ा रका आई .....पर आप तो हमारी सु ध ही
नह ले रहे। हम तो जनम से अभागण ह - जो ऐसी वा मनी पाकर भी न
तो तु हारी भ कर पाई और न ही हमसे इनक उ चत से वा ही बन पड़
रही है। इतने पर भी, हेजग ाथ ! कसी ज म म हमसे भू
ल से भी कोई
पु य बन गया हो तो कृ पा कर हमारी वा मनी को दशन दो, .......दशन
187
दो ! हम असहाय का इस परदे स म तु हारेसवा अब कौन अपना है
जसे हम अपना :ख बताये ?" यू
ँाथना करते -करते वे फूट-फू ट कर रो
पड़ । उसी समय ार पर वर सु नाई दया, "अलख !"
"हे भगवान! अब इस राजनगरी म कौन नरगु नया आ गया ?"
कहतेए चमे ली नेवागत केलए ार खोला। उसने देखा - "यह तो
आलौ कक साधुहै । भगवा व धारण कये , सोलह-स ह वष का
साँवला सलौना कशोर।" चमे ली ठगी सी कु छ ण उसका ते ज वी मुख
दशन करती रही। फर णाम कर खोये सेवर म बोली - "पधारे भगवन!
आसन हण कर। आ ा कर, या से वा क ँ ?"
"देवी ! तुहारा मुख लान है । कोई वप हो तो कहो।" स यासी
नेन ध वर म कहा। "आप हमारी या सहायता करगे , आप तो वयं
बालक ह ! हमारी वप असीम ह ! और ा रकाधीश केअ त र
उसका समाधान कसी के पास नह !" चमेली ने उदास और झु झ
ँलातेए
वर म कहा। तभी मं गला बाहर आई और स यासी को एकटक सी दे खने
लगी।
" या कोई नयम हैक स यासी को वृ ही होना चा हए अथवा
यह क ान बड़े -बूढ़ क ही बपौती है ?" स यासी ने हँसतेये कहा।
मं
गला आगे बढ़ बात सं भालतेये बोली, "नह भु ! इसका ऐसा आशय
नह था। वा तव म हमारी वा मनी ब त अ व थ ह और हम सब उनके
जीवन सेनराश है । बस मन थत होने सेककत वमू ढ़ हो रही है।
हमसे कु छ अपराध आ हो तो मा क जए। और भीतर पधार साद
हण कर।"
"तु हारे:ख का कारण तु हारी वा मनी का रोग है । देखए,
जस घर से म भ ा लू ँ
, उस घर केलोग :खी- थत ह , यह म सह
नह पाता। म के वल उन ना को दे खना चाहता ँ । य द मे री श क
प र ध म आ तो अव य ही.....". य त ने वा य अधू रा छोड़ दया।
''पधार भु !" मं
गला नेउ ह भीतर आने का सं केत कया। योगी ने
भीतर वे श कया। मीरा को दे ख कर वह मु कु राया और सर पर हाथ
रख कु छ बड़बड़ाया। आ य और स ता से सबने दे
खा क मीरा क
फूली ई दे ह धीरे -धीरेसामा य होने लगी। दो तीन घड़ी प ात ही मीरा
उठ कर बै ठ गय । जोगी नेसर से हाथ हटाकर न ध सवर म पू छा -
188
" या हो गया तु ह?" यह कह य त खल खला कर हँ स पड़ा।
मीरा कसी अप र चत ले कन अपन व से प रपूण वर एवंपश
को पा च क उस कशोर योगी को दे खने लगी। यह......यह हँ सी तो ज
म कई बार दे खी सु नी है। मीरा केमु ख से अनायास ही नकला, " याम
.......सुदर !" जोगी फर हँ सा, "नह ! म रमता जोगी। जै सा भे स, वै सी
बात ! क तु दे
वी! के वल मे रा वण, मेरी सूरत आपकेवामी सेमलती है ,
म वह ँ नह । यह तो माया एवं आपका म ेहै दे
वी, जो आपको सव
भु ही दखाई दे तेह। पर, एक बात हैक आप सचमु च ही बडभागी ह।
आपक ाकु लता नेभु को थत कर दया ह। वे आपसेमलने को
वैसे ही ाकु ल ह, जै से आप ाकु ल हो रही ह। वे सव र, दयाधाम
अपने जन क पीड़ा सह नह पाते ।'' कहते -कहते य त क आँ खे भर
आयी।
"आप..........आप कौन ह......... मे रेउपकारी ?'' मीरा ने च कत,
खत, पर स वर म पू छा। ''म उनका नजी से वक !.... भु नेआपके
लए स दे श पठाया है ।" '' या ? या कहा मे रेवामी ने ?............ या
फरमाया है ? मेरेलए कोई आदे श दया हैया भु ने?''........कहते ही
मीरा क आँ ख से अ ु धारा बह नकली। और कहा - '' या क ँ ! मु

अभा गन से उनक आ ा का पालन पू री तरह से नह हो पा रहा। म
उनका वयोग स मन से नह झे ल पा रही। न य तो यही कया था
क जब वामी क आ ा शरोधाय क तो मु झे उसे स मुा से
नभाना भी चा हए, पर बताओ, वरह म कै से कोई स रह सकता है ?
पर...... मे री बात छोड़े ....... मुझेक हये , या स देश ह यतम का ?
.....वे य द न आना चाह, आने म कोई क हो ...........,बाधा हो तो
कभी न आय ......म ऐसे ही जीवन केदन पू रेकर लूँ
गी,....... और फर
जीवन होता ही कतना है ?"
मीरा ने य त सेनानकर साद पाने क ाथना क । और पीछे
खड़ेए से वक वग क ओर दे ख कर बोल - "ये सब भी न जाने मे
री
च ता म कब से उपवास कर रहे ह।" मीरा एकदम से उठने लगी तो दोन
ओर से केसर और मं गला ने थाम लया। चमे ली शी तापू वक रसोई म
चली गयी और कशन य त क से वा म लगा। भोजन व ाम केप ात
मीरा ने य त केचरण म णाम कया - "दे व ! आप जो भी हो, आपने
189
मु
झे सांवना दान क है । आप मे रेप त का स दे श ले कर पधारे ह, अतः
आप मे रे पू य ह। य प मे रेाण मे रे यतम का स दे श सु नने को
आकु ल ह, फर भी कोई से वा वीकार करने क कृ पा कर तो से वका
कृताथ होगी।''
"से वक क या से वा देवी .......? वामी क स ता ही उसका
वे
तन भी है और से वा ही सन ! आपक य द कोई इ छा हो तो पू ण कर
म वयं को बड़भागी अनु भव क ँ गा।"
"अं धे को या चा हये भगवन ! दो आँ ख और चातक या चाहे -
दो बू

ं वा त जल ! मे रेआरा य क चचा कर मु झे शीतलता दान कर।
या भु कभी इस से वका को याद करते ह ?...... या कभी दशन दे कर
कृताथ करने क चचा भी करते ह ?......आप तो उनकेअ तरं ग सेवक
जान पड़ते ह, अतः आपको अव य ात होगा क उनको कै सेस ता
ा त होती है ? उ ह या चता है ? कै से जन उ ह य ह ? उनका व प,
आभू षण व .., उनक पह नया (पा काय).....उनक याय .......
उनका हँ सना-बोलना ......,भोजन या क ँ उससे स बंधत ये क चचा
मु
झे मधु र पेय-सी लगती ह - क जससे कभी पे ट न भरे.....यह पपासा
कभी शां त नह होती। कृ पा कर बस आप उनक ही बात सु नाय।"
"देवी ! आपका नाम ले कर मे रेवामी एकां त म भी व ल हो
जाते ह। उनकेवे कमलप से दो नयन भर जाते ह, कभी-कभी उनसे
अ ु मुा भी ढ़लक पड़ते ह। के वल लोक-क याण केलए ही आपको
पर पर वयोग सहना पड़ रहा है ।''
"म तो कोई लॊक-क याण नह करती योगीराज ! मु झे तो अपनी
ही था से अवकाश नह है । और का भला म या कर पाऊँ गी?"
य त ने मधु र वर म कहा - "आप नह जानत पर आपक इस
दे
ह से भ भाव-परमाणुवक ण होते ह। वे ही क याण करते ह। जो
आपकेपास आते ह, आपका दशन करते ह, से वा करते ह, संभाषण
करते ह, उन सबका क याण न त है । आप जस थान का पश
करती ह, जहाँ थोड़ी देर केलए भी नवास कया ह, वह थान इतना
प व हो जाता है , क इसके पश मा से ही लोगो म भगव मृ त
जा त हो जाएगी।"

190
मीरा नेउन शं सा पूण श द पर यान न दे तेए सहज ज ासा
सेय त सेपू छा, "कोई ऐसा दन आये गा क भुमु झेदशन दे ने
पधारगे ?" कहते ही मीरा का गला भर आया और....., और ँ धेये
क ठ से बोल ....."म अपने ववाह केसमय का उनका वह प भू ल नह
पाती। उसकेबाद तो के वल एक बार ही दशन पा सक । सारी आयु रोते
कलपते ही बीत गयी महाराज !" कहने केसाथ ही ने से आँसु क
झरी लग गयी।
" या क ँ ...... वधाता क ग त जानी नह जाती। वधाता ने
हरण को इतने द घ, सु दर कजरारे नेतो दये लेकन उनका उस वन म
या योजन ? बगु ले का े त उ जवल वण होता है तो उसक क ठ
व न व च सी होती है और कोयल चाहे काली होती हैपर उसका
क ठ कतना मधु र होता है । इसी तरह नद का जल मीठा और नमल
रहता है तो समुका जल व तृ त पर खारा होता है
। यह तो ार ध के
खेल ह क कसकेभा य म या आता है ? कह तो मू ख को भी इतना
स मान और यश मलता है और कह व ान को हाथ फै लाना पड़ता है

इसी तरह महाराज मे री भ , क त का मे रेलए उसका या योजन,
जब मेरेभु ने
ही अभी मे री भ को वीकार नह कया !"
राम क हए, गो बद क हयेमे र,े
राम क हए, गो बद क हये मे
र।े
संतो कम क ग त यारी, संतो॥
बड़े - बड़ेनयन दए मृ गनको,
बन - बन फरत उठारी।
उ जवल बरन द न बगलन को,
कोयल करती नठारी।
संतो करम क ग त यारी, सं
तो॥
और नद पण जल नमल क नी,
समुं कर दनी खारी।
संतो कम क ग त यारी, सं
तो॥
मुख को तु म राज द यत हो,
पंडत फरत भखारी।
191
सं
तो कम क ग त यारी, सं
तो॥
जोगी मीरा को ा रकाधीश का संदे
श देते कहनेलगा, " या क ँ
दे
वी ! आपको देखकर ही वामी क आकु लता समझ म आती ह। आप
तो उनके दय म वराजती ह। आप चता याग द ! भु आपको अपनाने
शी ही पधारगे , और फर उनसे कभी वयोग नह होगा। मु झे उ ह ने
आपकेलए यही सं दे
श देकर भे
जा ह।" यो गराज ने मीरा को सांवना
दे
तेये कहा।
मीरा भु का नेह सेप रपू
ण स देश सुन हष सेवहवल हो उठ ।
कतने ही दन केप ात वह स ता से पाँ
व म नुपरुबाँ
धकर, करताल
ले नृय करने लगी। मीरा के स दय क फु हार ने
उसकेर चत पद
क श दावली को भी आन द सेभगो दया ........
सुर या री ह तो ह र आवगेआज।
मे
हलाँ चढ़चढ़ जोवाँ सजनी कब आवमहाराज॥
दा र मोर पपीहा बोलेकोयल मधु राँसाज।
उम ो इ च ँदश बरसे दामन छो ा लाज॥
धरती प नव-नव धाया इं मलण रे काज।
मीरा रे भुगरधर नागर बे ग मलो महाराज॥
य त और दा सयाँ मीरा को यू
ँस दे ख आन दत ये । जब-जब
य त जाने क इ छा कट करता तो मीरा चरण पकड़कर रोक ले ती -
"कुछ दन और मे रेयासे कण म भु क वाता रस सु धा- सचन क
कृपा कर !" और मीरा केअ ु भीगे आ ह से बंधकर योगी भी ठहर
जाते। मीरा ने एक बार भी उनसे उनका नाम, गाँ
व या काम नह पू छा,
केवल बार बार भु के प-गु ण क चचा सु नानेका अनुरोध करती,
जसक एक-एक सु धा-बू द
ँशु क भू म-सा यासा उसका दय सोख
जाता। वह बार-बार पू छती, "कभी भु अपने मु
खार वद सेमेरा नाम लेते
ह ? कभी उनकेरसपू ण वाल अधर पर मु झ वर हणी का नाम भी
आता है ? वे मुझेकस नाम से याद करतेह यो गराज ? सबक तरह
मीरा ही कहते ह क ........!"
वी ! वे
''दे आपको मीरा कहकर ही मरण करते ह। जै सेआप
उनक चचा करते नह अघाती (थकती), वै से ही कभी-कभी तो हम
192
लगता ह क भु को आपक चचा करने का सन हो गया ह। वे जैसे
ही अपने अ तरंग जन केबीचएकां त म होते ह, आपक बात आर भ
कर दे तेह। देवी वै
दभ ने तो कई बार आ ह कया आपको बु ला लेनेके
लए अथवा भु को वयं पधारने केलये ।"
"सच कहते ह भगवन ? भु के पाटलवण उन सु कोमल अधर पर
दासी का नाम आया ?' कहकर, जै से वेवयंभु हो, धीरे सेअपने नाम
का उ चारण करती - 'मी....... रा।' मीरा फर कहती --'भा यवान अ र !
तु
म ध य हो ! तु मनेमेरेाणधन के होठ का पश पाया है ! पश पाया है
उनक मु ख वायु का ! कहो तो, कस तप या से , कस पु य बल से तु
मने
यह अ च य सौभा य पाया ? ओ भा यवान वण ! वह राजहं स सम
धवल ( े त) पांचज य ही जानता है उन अधर का रस ...... इस लए तो
मुखर पां चज य उस सु धा-मधु रमा का जयघोष करता रहता है यदा-
कदा।"........वह हंसकर कहती और नेबं द कर मु धा-सी धीरे -धीरे
अपना ही नाम उ चारण करने लगती। मीरा क वह भावम न दशा
दे
खकर योगी उसक चरण-रज पर म तक रख दे त,े उनक (य त) आँ ख
सेनकले आँ सु से वह थान भीग जाता।
वह दन आ गया जब योगी ने जाने का न य कर अपना झोली-
डंड ा उठाया। मीरा उ ह रोकतेए ाकु ल हो उठ - ''आपकेपधारने से
मुझे ब त शा त मली योगीराज ! अब आप भी जाने को कहते ह, तब
ाण को कै सेशीतलता दे पाऊँ गी। आप ना जाय भु ! न जाय !" एक
ण म ही मानो जै से आकाश म व ु त दमक हो ......ऐसे ही योगी के
थान पर ा रकाधीश हँ सते खड़ेदखलाई दये ..... और सरे ही ण
अलोप ! मीरा ाकु ल हो उठ ........
जोगी मत जा, मत जा, मत जा, जोगी।
पाँ
य प म ते र,ेमत जा जोगी॥

ेभ को पड ही यारो, हमकू ँगै
ल बता जा।
अगर च दन क चता बणाऊँ , अपनेहाथ जला जा॥
जल बल होय भ म क ढे री, अपणे अं
ग लगा जा।
मीरा के भुगरधर नागर, जोत म जोत मला जा॥
मत जा, मत जा, मत जा, जोगी॥

193
मीरा रात दन ाकु ल होकर सोचती - " कतने ही दन भु के
साथ रही, पर म अभा गन उ ह पहचान नह पाई। उ ह योगी समझकर
र- र ही रही। अ छेसेउनके चरण म शीश भी नह नवाया। हे ठाकु र!
क णा भी करने आये थेतो वह भी छल से ! अगर वयं को कट कर
दे
ते तो भुआपक क णा म कु छ कमी हो जाती।" वह रोते -रोते
नहोरा दे
नेलगी। फर मीरा के भाव नेकरवट बदली और वयं क ीत
म ही कमी पा कर बोली, "हा ! कहत हैक स चा म ेतो अं धे
री रात म
सौ पद केपीछेभी अपनेम ेा पद को पहचान ले ता है
। पर मु झ
अभा गन म म ेहोता तो उ ह पहचानती न ? मु झम म ेपाते तो वह
योगी होनेका नाटक य करते ? अब म या क ँ , उ ह कैसेपाऊँ? या
योगी भी एक थान पर अ धक दे र तक कभी ककर कसी केअपने
हो पाय ह ?"
जो गया सेीत कयाँख होई।
ीत कयाँसु
ख न मोरी सजनी जोगी मीत न होई।
रात दवस कल न ह परत हैतु
म म लयाँबन मोई॥
ऐसी सू रत याँजग माँ ही फेर न दे खसोई।
मीरा रेभुकब रेमलोगेम लयाँ आन द होई॥
पूणमा क उ वल रा है । समुकेवार को उमड़तेये दे

मीरा उससे बात करने लगी - "हेसागर ! ते
री दशा भी मु
झ जै सी ही है। तू
कतना भी उमड़े , उ ाल लहर ले , क तु च तक क री तय करना ते रे
बस क बात नह - इसी तरह, मे रेभी ाणनाथ मु झसेर जा बसे ह। म
गु
णहीन उ ह कै सेरझाऊँ ? पता नह , वह धाम कहाँ है जहाँमे रेभु
वराजते ह ?"
मीरा ग भीर रा म एकटक सागर क तरफ दे खती रहती - "हे
महाभा यवान र नाकर ! तुम वामी को कतने य हो ? ससु राल होने पर
भी वह थाई प से तुहारेयहाँही रहना पस द करते ह। इतना ही मान
पया त न हो, ा रका भी तु हारेही बीच बसाई। अपनेभु के त
तुहारा मेअसी मत है । सदा उनसेमले होनेपर भी तुम उनकेमधु र
नाम का गु णगान करते रहते हो। अहा ! मधु र नाम क तन करते -करते ,
उनकेयामल व प का दशन करते -करते तु
म वयं उसी वण के हो गये
194
हो ! तु म ध य हो, जो अपनेभु केरं ग म रच बस गये हो, और म
अभा गनी अपने यतम केदशन से भी वं चत ँ । या तुम मे रा संदे

मेरेवामी तक प ँ च ा दोगे?"
"उनसे कहना क एक दन एक सु दर सुकुमार कशोर एक दन
जरीदार के स रया व से सुशो भत अपनेयाम कण अ पर सवार
होकर मे रेपता के ार पर आया था। म डप म बै ठकर मे रेपता ने
उसके हाथ म मे रा क यादान कया। जब एका त क म मने उनके दशन
कए तो..... वह प...... वह छ व उसका कै से वणन क ँ? हे सागर !
तु हारी तो फर भी कोई सीमा, कोई थाह होगी पर उनके प माधु य को
कसी प र ध कसी उपमा म नह बाँ धा जा सकता। या तु मने उनक वे
रतनारी अ खयाँ दे
खी ह ? या कभी उस अ णयारी चतवन केतु मने
दशन कये ह ? या कहा ? उसी चतवन से ही घायल हो कर रा पय त
हाहाकार करते हो ? स य कहते हो भैया ! उनक मु कान से अ धक ू र
कोई ब धक ( शकारी) नह सु ना जाना। इनक चतवन क छु री भी ऐसी
जो उ ट धार क , जो क ठ पर चलती ही रहे , छटपटातेयु ग बीत जाये ,
पर न ब ल-पशु मरे और न छु री के............ कहो तो यह कै सा
ापार है ?"
"हाँ....तो म तु ह बता रही थी क म तो अभी उस प माधु री क
मा झाँ क ही कर पाई थी क मु झे अथाह वयोग म ढके ल, मेरे यतम,
मेरेहथले वे का च ह, मे री माँ
ग का स र सब न जाने कहाँ अ त हत हो
गये । हे र नाकर ! तु म उनसे कहना, म तबसे उस चतचोर क राह दे ख
रही ँ ! मेरा वह कशोर, सु दर शरीर आयु के हार से जजर हो गया है ,
मेरेघुटन तक ल बे के श सफे द हो गयेह, क तु आज भी मे रा मन उसी
भोली कशोरी क भाँ त अपने प त सेमलने क आशा सं जोये बै
ठा है।
तुम उनसे कहना ...... क यह वषम वरह तो कभी का इस दे ह को जला
कर राख कर दे ता, क तु दशन क आशा पी बरखा ने से झरकर
उस वरह अ न को शीतल कर दे ती रही। तु म उन ा रकाधीश मयू र
मुकु ट से पूछना, तु मने कह उस न ु र पुष को कह दे खा है ? उसक
वरहणी क आँ ख पथ जोहते -जोहते धु

धलाने लगी ह। दे
ह जजर हो गई
है
। आशा क डोर ने ही अब तो ास को बाँ ध रखा है, पर अब यह
वयोग और नह सहा जाता।" सागर से मन क बात करते वह गाने
195
लगी.........
खण....... लागे
नै
न, दरस बन ..... खण लागे
नै
न॥
ा रका म मीरा को सागर तट पर बै ठेरहना, उससे अपनेदय
क बात करना ब त भाता था। वह घं ट तक समुक लहर को
अपलक नहारा करती। कभी उसेलगता क समु केबीच -बीच
ा रका ऊपर उठ रही है । उसक प रखा - ार सेयाम कण अ पर
सवार होकर मु करातेए यामसु दर पधार रहे ह। हीरक ज टत ऊँ चा
मु
कु ट, जसम लगा र नमय मयू र पं
ख अ क चाल से झूम जाता है।
गले म व वध र नहार के साथ वै
जय ती पु प माल, कमर म बँधा नं
दक
खड् ग, कमरब द क झोली से झाँकता पा चज य शं ख, घु

घराली काली
अलकाव ल से आँख मचौनी खे लते मकराकृ त कुडल, बाह म जड़ाऊ
भु
जब द और कर म र न कं कण, केस रया अंगरखा और वै सी ही धोती,
वै
सा ही जरीदार गुथेये मुा का रेशमी प ा, जो वायु वग
ेसे पीछे क
ओर फहरा रहा है । जै से ही सागर क तरं ग पर दौड़ता आ अ आगे
आया, ा रकाधीश ने मु करातेये दायाँहाथ ऊपर उठाया - वै से ही
मीरा उतावली हो स मु ख दौड़ पड़ी -" वामी ! ..... मे
रेाणनाथ ! पधार
गये आप ?" कहकर वह दौड़ती ई ही अपने यहाँगाये जाने वाले
लोकगीत गाने लगी........
के
स रया बालमा हालो नी, पधारो हाँ
रो दे
स.....।
अरे..... म केसर केघोल से यतम केपथ का माजन क ँ ,या
मो तयन केचौक पु रा कर उनकेवागत म रं गोली बनाऊँ ? अरी सखी !
पहले म गजमुा के थाल भर कर अपनेाणधन क नजर तो उतार लू ँ
!
आज बरस केप ात मे रेवामी घर पधारेह।" ाण यतम सेमलने
क उ सु कता म वरा ध य केकारण मीरा जल म जा गरती, इसकेपू व
ही घोड़े क लगाम खच गई, घोड़े केआगे केदोन पै र ऊपर उठ गये ।
व ुत क ग त से वे अ से कू दे
और दो सश भु जा ने मीरा को
आगे बढ़कर थाम लया। मीरा उनका हाथ पकड़ेए ही घर आई। आते
ही मीरा नेपुकारा..... "ल लता ! दे
ख, दे
ख भु पधारे
ह ! शी ता पू वक
भोग क तै यारी कर ! वह हष से बावली होकर गाने
लगी...........

196
साजन हाँरे
घर आया हो।
जुगाँजु
गाँ
मग जोवती वर हणी पव पाया हो॥
रतन कराँनछावराँलेआरती साजाँ हो।
मीरा रेसु
ख सागराँहाँ रे
सीस बराजाँ हो॥
मलन क उछाह म वह दन रात भू ल जाती, भूल जाती क वह
साधक वे श म नधन जीवन बता रही है । मीरा से
वक-से वका को
राजसी ब ध क आ ा दे त । वह कई-कई दन तक इस आन द म
नम न रहती। अपनेाण-सखा केसाथ वह हँ स-हँ
सकर झू ले पर बै

बात करती न थकती। ऐसे म कोई वृसं त आ जाते तो वह एकदम झू ले
से उठकर घू ँ
घट डाल तरछ खड़ी हो जाती। "घू ँ
घट कससेकया माँ ?
म तो आपका बालक ँ ।" वह कहते । तो मीरा यामसु दर क ओर ओट
करके मु कुरा कर लाज भरे नयन से झू
ले क तरफ सं केत कर देती। इन
दन घर म एक महो सव सा छाया रहता। मीरा केउस भावावे श के
आन द म सब आन दत रहते ।
शंकर और कशन से ठ क कान पर काम करने जाते। उ ह जो
वेतन मलता, उसी से साधु-सेवा और घर खच चलता। मीरा न य नयम-
पूवक ा रकाधीश केम दर म ातः-सां य दशन भजन करने पधारत ।
सांयकाल नृ य-गान अव य होता। भजन क चौपड़ी ल लता चमे ली के
पास ही रहती। एक दो बार तो वह भावावे श म समुम जा गर ,
से वका क सावधानी काम आई। उ ह ने समुतट सेर घर ले कर
रहना ार भ कया। क तु मीरा के ाण तो जै सेसमुम ही बसते थे।
सूय दय, सूया त, पू
णमा का वार और शुल प क रा य म सागर
दशन उ ह ब त य था। कभी-कभी तो रात म भजन-क तन का
आयोजन भी समुतट पर ही होता।
एक रात मीरा सागर तट पर बै ठ थी। उसकेपीछे ही कुछ र
मंगला और कशन भी शीतल मं द बयार (पवन) के झ क के कारण न द
लेनेलगे। तभी मीरा नेच ककर दे खा, क सामने खड़ी एक पसी नारी
झुककर आदर पू वक उसका कर पश करतेए धीमेवर म बोली,
"त नक मे रेसाथ पधारने क कृ पा कर !" मीरा य वत सी उठकर चल
द । जल के समीप प ँच कर उसने अपनी दा हनी हथेली बढ़ाई, तो मीरा
197
नेउसका आशय समझ उसका हाथ थाम लया। उसका हाथ पकड़ वह
जल पर भू म क भां त चलने लगी। कुछ ही र चलने पर मीरा ने दे
खा
क जल म सेा रका क वण प रखा ऊपर उठ रही है । ार केआस-
पास का जल शां त था। मीरा ने अनु भव कया क पाँ वो केतले जल क
कोमलता तो है पर न तो पाँ व डूब रहे ह और न ही व गीले । समीप
प ँचते ही प रखा केफ टक ार केवण कपाट सं गीतमय व न करते
खुल गये । भीतर वे श करते ही मीरा आ य सेत ध सी रह गई। भू म
वणमयी थी, और चार ओर र न से म डत भवन सु शो भत थे ।
"मेरा नाम शोभा है। म प म हषी दे वी वै
दभ क से वा म ँ।" उस
पसी ने आदरयु वाणी म कहा। 'मु झे मीरा कहते ह, यह तो आप
जानती ह ग ।" मीरा ने कहा। "हाँकम ! आप मु झेयूँ
आदर न द, म तो
मा एक दासी ँ । वामी आपको मरण करके ायः आँ ख म आँ सू भर
ले
ते ह, इस लए म वा मनी क आ ा से आपके ी चरण म उप थत
।" "अपनेवामी से जुड़ ा ये क जन मे रेलए पू य एवं य है । बड़ी
कृपा क दे वी ने मु
झ तु छ दासी पर।" मीरा ने भावुक हो न ध वर म
कहा।
वे दोन हीर सेन मत जगमगातेार म व हो दा हनी ओर
मु
ड़ ग । आगेव तृ त चौक था, चार ओर र न ज टत भवन, बीच -बीच
व भ पु प और फल से लदे उपवन। उस उपवन के म य पु करणी म
कुमु द नयाँखल रही थ । आ क डा लय पर सु दर झू लेऔर वृ
पर बै ठेमयू र, पपीहा और सरे कई प ी। इतना वै भव, इतना सब द
क .... श द छोटे पड़ रहेथे । चार ओर पवान दा सय क चहल पहल
थी, सब उसे स मान देतेचल रही थ । मीरा ने तो मे
वाड़ और च ौड़ का
वै
भव दे खा था, पर यहाँ क तो साधारण दासी भी उन महारा नय से
अ धक ऐ य और सौ दय क वा मनी थी।
अने क क -दालान पारकर दोन एक सजेये क म प ँ च
जहाँएक ऊँ चेर नज टत वण सहासन पर सौ दय, ऐ य और
सौकु माय क सा ा ी वराजमान थ । शोभा ने पादपीठ पर सर रख
णाम कया। मीरा जै सेही णाम केलए झु क , महादे
वी वैदभ ने आगे
झुककर मीरा को दय से लगा लया - "आ गई तु म।" उ ह ने मीरा को
अपने समीप बठाना चाहा, पर मीरा पादपीठ पर ही दे वी केचरण को
198
गोदम ले कर बैठ ग । "सभी ब हन तु मसेमलना चाह रही ह। वामी यदा
-कदा तु हारी मृ त म नयन भर लात ह। क ठन कठोर मयादाएँ बड़ी
:खदायी होती ह, ब हन ! अतः मु झेही सबक च जानकर म यम
माग शोधना पड़ा।" दे वी नेमीरा का चबु क पश कर लार पू वक कहा,
"पहचानती हो मु झे ? म तु हारी सबसे बड़ी बहन मणी ँ ! आओ
इधर सु खपू वक बैठ !" ऐसा कहकर हँ सतेये मीरा का हाथ थाम क म
बछे रे
शमी ग े पर मसनद के सहारे वे वरा जत हो ग ।
दा सयाँ मधु र पेय ले
कर उप थत । दे वी मणी क आ ा
से एक पा मीरा ने भी उठा लया और धीरे -धीरे पीनेलग । कसी भी
कार वह समझ नह पाई क वह पे य कस फल का रस था। खाली पा
लौटातेये उसने आ य से दे
खा क उसकेहाथ क झु रयाँसमा त हो
गई ह, और वह वयं भी षोडश वष या कशोरी केसमान सु दर और
सुकुमार हो गई है।
उसी समय स मु ख ार से राजम ह षय नेवे श कया। दे वी
मणी और मीरा उनकेवागत म उठ खड़ी । दे वी नेदो पद आगे
बढ़कर सबका वागत करतेये कहा, "पधारो ब हन ! अपनी इस छोट
ब हन सेम लये ।" आने वाली महारा नय ने महादेवी के चरण पश कए
और उ ह आ लगं न दया। मीरा ने भी भूम पर सर रखकर सबका एक
साथ अ भवादन कया। सबकेआसन हण करने केप ात दे वी ने
उनका प रचय करातेए बताया, "यह मे री छोट ब हन स यभामा,
यह.......।" "अब बस सरकार ! बाक सबसे प रचय कराने का अ धकार
मुझेमले ! य भी आप हमारी येा हो!" हँ सतेये मधुर वर म
स यभामा ने कहा।" यह है दे
वी जा बवती, मे री बड़ी ब हन !" ह रत
प रधान धारण कए सं कोचशीला जा बवती ने मु कुरा कर चबु क पश
कया। "यह दे वी भ ा, यह म व दा, यह स या, यह ल मणा और यह
र वन दनी का ल द ।" मु कराते, प रहास करते सब महारा नयाँ मवत
अ तशय ने ह सेमीरा को मल , कसी ने आ लगन कया, कसी ने कहा,
"ब हन ! तु ह मलने क बड़ेदन से लालसा थी।" सबकेहँ सने से यूँ
लगा जै से ब त सी चाँ द क न ह घं टयाँ
एक साथ टनटनाई ह , "और ये
हमारी ब हन सोलह सह एक सौ !" मीरा ने सबको एकसाथ हाथ जोड़
-कर और म तक नवा कर णाम कया। तभी ल मणा जी हँ सती ई
199
बोल , "सरकार ! हमारी ब हन इस तरह आभू षण और ृ ंगार केबना
रहे......लगता है हम ही वै रा य का उपदे श करने कोई वै णवी आई हो !"
सबने ल मणा क बात का अनु मोदन कया।
"इसेपृथक महल म भे जकर ृ ं
गार धारण कराने क व था क
है मने !" दे
वी मणी बोल । "तु म बोलती य नह ब हन ! त नक
अपने मुख से बोलो तो मन स हो ! तु हारा नाम या है ?" देवी
म व दा नेने हा स वर से पूछा। "जी या नवे दन क ँ? यह मीरा
आपक अनु गता दासी है । मुझे भी सेवा दान कर कृ ताथ कर।" मीरा ने
सकु चातेये कहा। "तो हमारेलार से , नेह से, तुह कृताथता का बोध
नह आ ब हन ?" स यभामा जी हँ सी। मीरा ने अचकचाकर पलक
उठा , "सरकार ! आप सबके कृपा अनुह से दासी ध य-कृ ताथ ई है ।"
तभी सै र ी मीरा को ृ ंगार हे
तुलेनेआ गई। म ण द त क
म मीरा को सु ग धत जल सेनान करा, अगु धू प से केश सु खाये ।
अमूय द व अलं कार धारण करा कर सु दर री त से केश साधन
कया। उसका सौ दय ा रकाधीश क म ह षय से त नक भी यू न नह
लग रहा था। सोलह ृ ंगार सेसु स जत कर दा सय ने उ ह देवी
जा बवती के पास बठा दया।
"अहा ! देखो कतनी सु दर लग रही है हमारी ब हन !" स या ने
मीरा का चबु क उठाकर ऊपर दखाया। मीरा तो सं कोच क तमा सी
पलक झु काई बैठ रही जै से अभी-अभी ववाह म डप से उठकर आई
हो। थोड़ी ही दे र म सं गीत और नृ य का समाज जु ट गया। सब
महारा नयाँ बारी से नृय करने लग । स यभामा ने मीरा को अपने साथ
लेलया। कतने समय तक यह नृ यो सव चलता रहा। इसकेप ात
दा सयाँ पु
नः पेय ले कर तु त , और उसकेबाद भोजन क तै यारी।
इतने राग-रंग म मीरा को स ता तो ई पर मन ही मन वह ाण यतम
केदशन केलए आकु ल थी। भोजन केसमय भी भु को वहाँ न पा
उससे रहा नह गया। मीरा ने सकु चातेये जा बवती से पूछ ही लया,
" भु के भोजन से पूव ही हम भोजन कर ल ?"
" वामी का भोजन आज माता रो हणी केमहल म है । अपने
सम त सखा एवं प रकर केसाथ वे आज माता रो हणी को सु ख दे
रहेह ग।"
200
हास-प रहास म सबने मल कर भोजन लया। और उसके प ात्
दे
वी मणी को णाम कर सभी महारा नयाँवदा । "का चना !
अपनी वा मनी को इनकेअपने महल म ले जाओ !" दे वी मणी ने
एक नव-वयादासी से कहा। "जै सी आ ा महादे वी !" दे
वी मणी क
आ ा पाकर मीरा सं कोच पू वक उठ खड़ी । मीरा ने महादेवी को
णाम कया तो उ ह नेदय से लगाकर उसेने ह सेवदा कया। दासी
पथ बताते चली। मीरा ने दे
खा क इस महल का रा ता मणी के
महल के अ तगत ही था पर फर भी कतने क और दालान को उ ह ने
राह म पार कया। थान- थान पर मीरा का फू ल सेवागत आ जो
उसे पद-पद पर सं कुचत कर रहा था।
वह सोचती -"मुझ नाचीज केलए इतना समार भ !" पर मीरा को
ा रकाधीश क महारा नय का पर पर ने ह और नर भमा नता
शंसनीय लगी और सरी ओर दा सय क वनय यु से वा त परता
और सावधानी भी सराहनीय थी।
एक र नज टत कौशे यव से आ छा दत हडोले पर मीरा को
का चना नेबठा दया। कोई दासी चं वर, कोई पंखा करने लगी तो कोई
पेय ले उप थत ई। एक लगभग तीस वष क दासी नेणाम कर
नवे दन कया, "सरकार ! दासी का नाम शां त है
। मेरी अ य ब हन णाम
क आ ा चाहती ह।" मीरा क इं गत करने पर सब सम आ णाम
करती और शां त सबका नाम और काम बताती जाती। मीरा को शां त
का वर, जाना पहचाना सा लग रहा था। वह सोचने लगी क "इसे कहाँ
दे
खा है ?" और अचानक पु रातन मृ त उभर आई और वह मन ही मन
बोल उठ -"अरे , यह तो मेरी धाय माँ लग रही ह।" शा त ...... तु म
मेरी .....?" मीरा नेवा य अधू रा छोड़कर ही शा त क तरफ दे खा।
शा त नेवीकृ त म सर हलाकर मु कुरा द । मीरा ने पू
छा, "और
का चना ही मथु ला थी ?" "हाँसरकार !" "तो या चमे ली, के
सर, मंगला
आ द सब..........?" जी सरकार ! जब न यधाम सेभु अथवा प रकर
म से कोई भी जगत केधरातल पर आता है तो उसे अके ला नह भे जा
जाता। दयामय भु सहायक के प म कई नज जन को साथ भे जते
ह। धानता भले एक क रहे , पर तुअ तजगत से पूरा प रकर अवत रत
होता है । उनसे जुड़कर सं सार के हजार जन क याण - पथगामी होते ह।
201
का चना को अपनी वा मनी महादे वी वैदभ का वयोग सह था, अतः
उसे शी बु ला ले ने क योजना थी। आठ प म ह षय ने आपको अपनी
एक-एक दासी से वा सहायता केलए दान क ।" "और तु म ?" मीरा ने
आ य से मु करातेए पू छा। "म महादे वी जा बवती जी क से वका ँ।
सरकार ....... यह आपका ही महल है और यह सब आपक आ ा
अनुव तनी दा सयाँ । आप इ ह आ ा दान करने म त नक भी सं कोच न
कर।"
मीरा क णासागर भु क योजना, उनक अपने भ को पग
पग पर सं भालने क सोच से भावु क भी थी और आ य यु भी। फर
वह अपनी कृ त ता जतातेई बोल , "शां त ! इस सम त वै भव केसाथ
साथ तुम भीप म हषी का साद हो मे रेलए।" "धृता मा हो सरकार !
तो या..... वामी भी .....?" शां त ने वा य अधू रा छोड़ दया।
"हाँ शां त ! जीव को जो भी मलता है , भलेभु ही ह , सब कु छ
दे
वी केअनुह से ही ा त होता है ।" मीरा ने एक ही वा य म ा रका
क म ह षय क अनु ग यमयी ी त पू वक भ का सार बतातेए
कहा।
उसी समय ार पर हरी ने पु
कार क - "अ खल ा ड नायक,
य नाथ ा रकाधीश पधार रहे ह !"
एकाएक चार ओर हलचल सी मच गई। दो दा सय ने मीरा से
क म चलने क वनय क । वे जस क म उ ह ले ग , वहाँ सा वकता
क ही धानता थी। क क पू ण साज-स जा े त थी। के वल मीरा के
व ाभू षण ही भ रं ग केकारण चमक रहे थे
। वहाँ शां त और सु खद
काश था। पलं ग पर टंगेेत चं दोव म मुा क झालर लटक रही थ ।
ार, पलं ग, भू म और नाना उपकरण फ टक, हीरे और मो तय से बने
थे
। े त म लका पु प और बीच -बीच गू थ
ँेे त कमल स पू ण क को
सा वक और सौरभमयी बना रहे थे। दा सयाँणाम कर बाहर चली ग
तो मीरा त ध सी म मु ध हो चार ओर दे खने लगी.............।
तभी ार-र का ने सावधान कया। वह च ककर खड़ी हो गई।
मीरा क ार पर उस भुवन व दनीय चरण केवागत केलए गड़
सी गई। उसके ाण अपनेाण यतम केदशन पर ब लहार होने को
आतु र ........। धीरम द ग त से आते वेचरण अर व द ार पर थोड़ा
202
थमे। मीरा अपलक नीचे कए अपनेाणनाथ केचरण केदशन
कर अपनेज म क साध पू ण कर रही थी। पद ाण (पा काय)
स भवतः ार पर से वका ने उतार लए ह गे । जैसेही भु थोड़ा और
स मुख बढ़े , मीरा के दय केआवे ग, संकोच और ल जा के द ने
उसक साँ स क ग त बढ़ा द और अब तु लसी, कमल, च दन, के शर और
अगु केसौरभ सेम त दे ह सु ग ध ने उसे अवश सा कर दया। वह
ाणधन केचरण पश क चेा म वह गरने ही लगी थी क सदा क
आ य सबल बा ने संभाल लया। कतनेदन, कतने मास, और
कतने ही वष यतम का सामी य सु ख सौभा य मीरा का व व बना,
वह नह जान पाई। जहाँ दे
श, काल दोन ही सापेह, वहाँ यह गनती
नग य हो जाती है ।
आँ ख खु ली तो वयं को मीरा ने सागर तट पर पाया। वही पघले
नीलम सा उ ाल लहर ले ता आ सागर और मीरा के दय म सु लगता
आ वही वरह का दाह ! "बाईसा कम ! उषाकाल हो गया। पधारे अब !
आज रा तो सबक ठं डी हवा म यह आँ ख लग गई, पता ही नह
लगा।" मंगला घुटन के बल स मु ख बै ठकर कह रही थी।
"म तो ा रका म थी। यहाँ कैसे आ गई ? यह कौन सा दे श है?"
मीरा ने ाकु लता से इधर-उधर दे खतेये कहा, जैसे पाँवो केतले से
धरती ही खसक गई हो ! "यह ा रका ही हैकम ! और म आपक
चरणदासी मं गला ँ । अब पधारने क कृ पा कर !" मं
गला ने बाहँ पकड़
कर उ ह उठाया। ठ डी रे त म बैठे ठे
-बै पाँ
व अकड़ गये थे, उसने दबाकर
उनक जकड़न र क ।
"मंगला म ा रकाधीश से , उनक महारा नय सेमली। वहाँ का
वै
भव अतु लनीय हैऔर प म हषी वै दभ का सौहाद, ने ह अपन व
अकथनीय है । वह...... वह .... देश कै सा सुहावना है........!" मीरा ने
ह केवर म कहना आर भ तो कया, पर अं त म वा य अधू रा छोड़कर
वाणी दय म द ा रका, वहाँ केसु गंधत एवं सं
गीतमय वातावरण,
ने
हा भ स वहार, वहाँ के अनु भव क सरसता म समा गयी।
द ा रका केदशन केप ात मीरा केलए वभा वक था क
उसी रस दशन क फर से अनुभू त क लालसा रखना, उसक फर से
ती ा करना। जै सेवृ दावन म ायः वह न य ही रा म द वृ दावन
203
केदशन करती थी, यहाँ भी ये क सू य अ त केसमय सागर तट पर
खड़े मीरा को फर सेद ा रका के उस सुग धत वातावरण म वे श
पाने क ती ा होती - पर सब कु छ तो ऐसा नह होता जै सा हम चाहते
ह।
जहाँ इधर ी ा रका धाम म मीराबाई पल- त-पल वरह म
उस ण क ती ा कर रही थी, जब वह अपने जीवन धन ाणारा य
ी ा रकाधीश का पु नः सा न य ा त कर पाये गी ..........तो उधर
वहा रक जगत म मे ड़ता और च ौड़ पर सं कट केघनघोर बादल
मँडरा रहेथे।
मीराबाई केच ौड़ -प र याग केबाद एक-न-एक सं कट के
बादल सामने आते ही रहे। बादशाह अकबर ने योजनाब री त से
च ौड़ पर हमला बोल दया। अकबर का सै य बल अ धक होने से
1568 म च ौड कले पर मु गल आ धप य था पत हो गया। मे ड़ता के
राव जयमल च ौड कले क र ा हे तु लड़तेए अ त ुवीरग त को
ा त ए। कले पर से भगवा वज केउतरते ही राजपू ती गौरव धू ल-
धूस रत हो गया। सु ख-शां त-समृ को ःख-द र ता-द नता ने डस
लया। कसी साधूकेकहने पर जन-मानस म यह वचार ते जी से
बुदबुदानेलगा क भ म त मे ड़तणी कु ँ
वराणीसा मीराबाई को सताये
जाने का ही प रणाम ह। अब तो य द म हमामय मीराबाई वा पस
मेवाड़ पधारे तो ही ठेये दे
व संतुह !
च ौड़ के राजपु रो हत जी के साथ राठौड़ के पुरो हत, मे वाड़ के
थम े णी केदो उमराव, जयमल जी केदोन पु ह रदास और
रामदास और कई राठौड राणावत राजपू त सरदार एक त हो एक दन
मीरा केनवास- थान का पता पू छतेए ा रका जी प ँ च।े
मेवाड़ के राजपु रो हत जी ने मीराबाई को च ौड पर आई वपदा
का च ण करतेए बताया, "आप केवहाँ से आने केप ात धीरे -धीरे
रा य म अकाल पड़ गया। जा द न-हीन एवं राजकोष र है । बड़े-
बूढ़ का कहना हैक रा य क यह अनथ कु ँवरानीसा मे ड़तणीजी को
सताने और उनकेच ौड़ प र याग केकारण बन यौता आया है ।
इस लए म आपसे हाथ जोड़ नवदे न कर रहा ँक आप वा पस पधार
तो मेवाड़ क धरा पु नः श य- यामला हो उठे ।" राजपु रो हत जी नेसर
204
से साफा उतारकर भू म पर रखा - "मे री इस पाग क लाज आपकेहाथ
म है ..... हम सनाथ कर......हम आपकेवहाँ से आ जाने से अनाथ हो
गए ह......।" मे ड़ते केराजपु रो हत उठकर क म गए। मीरा ने भूम पर
सर रख उ ह णाम कया। पु रो हत जी केसाथ ही ह र सह जी और
रामदास जी भी क म आये । उ ह ने मीरा को णाम कया। सबने
आसन हण कया। सबकेमु ख-मलीन थे । राजपु रो हत जी ने कहा -
"बाईसा कम ! के वल आपका सु र कु ल ही आपदा त नह है ,
पतृकु ल भी ततर- बतर हो गया है । एक बार कसी साधू ने
कहा था, क
मेवाड़ म कसी साधू के अपमान आ ह जसके कारण यह वप बरस
पड़ी ह।" महाराज ने भी हाथ जोड़कर णाम केसाथ अज- वनय क
है
।" आप वा पस पधार तो सबक वप र ह ।"
रो हत जी महाराज !'' मीरा ने
''पु उदास खत वर म कहा -
"मनु य के वल अपने ही कम का फल पाता है । च ौड़ और मे ड़ता क
वपदगाथा सु नकर जी ःखा, क तु सच मा नये , यह मे रेकारण नह
आ। मु झे कभी लगा ही नह क कोई ःख गया और आया भी हो, तो
मुझे आँ ख उठाकर दे खने का समय नह था, तब वह ःख कै से आया,
कसके ारा आया, यह सब मु झे कैसे मालुम होता ? यह वहम आप
दोन ही ओर केमहानु भाव अपने मन सेनकाल द ....और मे रेलौटने
क बात कै से सं
भव है ? कभी आप लोगो ने अपने ससु राल म सुख-पू वक
रहती ई अपनी ब हन-बे ट को कहा - " क अब तु म पीहर चलो तो सब
सुखी हो जायँ ?".....अब इस द भू म पर, धाम म आकर कह लौटना
होता है भाई ?" कहतेए मीरा क आँ ख से अ ु ब झलक पड़े ।
''ह रदास ! रामदास ! ाणी तलवार क भट चढ़ने केलए ही
पुको ज म दे ती ह बे टा ....! तु हारेपता, काका, भाई यु म मारे गए,
इसम अनोखी बात या ई ? वीर को जाग तक सु ख नह , अपना धम
और कत य होता है .... ! तु हारेपता ने मु
झसे अने क बार यु म
वीरग त ा त करने क अ भलाषा क थी, तु ह तो अपने पता पर
गौरव होना चा हए।"
"स यक कत -पालन का सु ख ही स चा सु ख है , अ यथा देह तो
ार ध के अधीन है । इसे तो वह सब सहना ही है , जो उसका ार ध उसे
दे
.........राजपू त क जीवन- न ध धन-धरा-प रवार नह है , ईमान ही
205
उसका कत है । अबला क भाँ त रोना य को शोभा नह देता।
उठो और जा क से वा म जु
ट जाओ, जसकेलए तु हारा ज म आ
है
।" मीरा ने साथ चलने क बात को टालतेए कहा, "कु छ दन मु झे
वचार करनेका समय दान कर। तब तक आप सभी सरदार
ा रकाधीश के दशन एवं स सं
ग का लाभ उठाव।"
मीरा ने उ ह कह तो दया क उसे सोचने का समय दान कर पर
उसके अ तमन म एक तू फान सा उठ खड़ा आ। वह क णाव णालय
भगवान को क णा क हाई दे ने लगी...... "यहाँतक आने केप ात म
वा पस लौट जाऊँ..... यू ँशरण म आये को लौटा देना तो आपका
वभाव नह ठाकु र ! फर ऐसी प र थ तयाँयू ँउ प कर रहे हो, जो
आपके वभाव म ही नह ....... म तो आपक ज म-ज म क
दासी ँ झेदशा दखाओ .....हे
......मु नाथ !" मीरा क णा क गु हार
लगातेदय का दन वर म उड़े लनेलगी..........
क णा सु
नो, . याम मोरी, म तो होये
रही चे
री तोरी ..।
मीरा रो रो कर अपने आरा य सेाथना करने लगी - "इतनी
न ुरता तु म म कहाँ सेआ गयी हे दयाधाम ! य मु झे अपने चरण से
र कर रहे हो ?....... ब त भटक ँ । अब तो इस देह म भटकने का दम
भी नह रहा है । और न ही उन महल के राजसी वैभव म बं
द होकर थ
चचा म उलझने क ह मत ह। अब मु झे अपने सेर मत करो, मत
करो..............।''
रा म अनायास ही कसी का पश पाकर वह जग पड़ी।
का चना स मु ख खड़ी थी। मीरा का मन उसे दे
ख उ साह सेलस उठा।
उसने पूछना चाहा क या महादे वी ने मु
झेयाद फरमाया है
, क तु आस-
पास सोई ई दा सय का वचार करकेवह चु प रही। वह का चना का
हाथ थाम ए बाहर आयी। घर केपीछे ही कुआँ और छोट सी ब गया
थी, वही आकर कांचना कु एँक जगत पर बै ठ गयी और मीरा को भी
बैठनेका सं के त कया। ''मु झेमहादेवी मणी नेभेजा ह क आपको
म आपकेपछले ज म का वृा त बता ँ , जससे आपक घबराहट,
ःख कु छ कम हो जाय।'' ......मीरा ने मौन सेउसक ओर दे खा।
"आप जकु ल क माधवी ह।'' उसने मीरा क ओर दे खा। उसका

206
अ भ ाय समझकर मीरा नेवीकृ त म सर हला दया। का चना आगे
बतलाने लगी - ''सू
य हण केसमय जब सम त जवासी, बाबा, मै या के
साथ देवी वृषभानु जा ी राधारानी कु ेपधार , तब उनकेसाथ आप
भी थ । कुछ समय कु ेम रहकर स पू ण ज- श वर को साथ लये -
लयेभुा रका पधारे । जहाँअभी गोपी तलाई का थान ह, वह सभी
जन ठहरे । देवी वृषभानुजा, उनक स खयाँ , गोपाल और ज केजन-
जन का अन य म ेऔर असीम सरलता दे खकर ा रका केलोग और
महारा नयाँमन-ही-मन यौछावर थ । वे एक-एक दन अपने यहाँसबको
ी त भोज केलयेआम त करना चाहती थ , पर तुसंया क
ब लता केकारण स भव नह लगता था, अतः यह न त आ क
सव थम एक-एक दन आठ पटरा नयाँ भोजन का आयोजन कर, एक
दन महाराज उ से न और कु छ दन ऐसे ही धान- धान सामं तो के
यहाँ। अंत म सौ-सौ महारा नयाँमलकर एक-एक दन भोजन का
आयोजन कर। न य केअनु सार ही बृजवा सय का भोजन और
ने
हा भ स वागत स कार आ।
ी कशोरी जूकेशील, सदाचार, सरलता और सौ दय पर
महारानी वैदभ जी ऐसे मुध , जै सेअपने ही ाण केसाथ दे ह का
लगाव होता है । वेबार-बार उ ह आमंत करत , अपने ही सु
कुमार हाथ
से रं
धन काय करत और अ तशय म े एवं अपार आ मीयता पू वक
अपने हाथ सेजमाती। कभी-कभी दोन एक ही थाली म भोजन करत
और भु क बात चचा करतेए ऐसी घु ल- मल जात क लगता जै सेदो
सहोदरा ब हन ब त काल प ात मली ह । भानु न दनी अके ली नह
पधारत थ , उनके साथ दो-चार स खयाँ अव य ही होत । एक बार उनके
साथ आप भी पधारी थ । ा रकाधीश क प महादे वी सा ात
ल मी पा वै दभ केमहल का असीम ऐशवय और अतु ल वैभव देखकर
एक-दो ण केलए आपकेमन म भी उस वै भावानं
द क सु खानुभूत
ा त करने क और ा रकाधीश क महारानी बनने क फु रणा उभरी।
थोड़ी ही देर म वह सब भू ल कर आप ी कशोरी जू केसाथ वा पस
ज- श वर म लौट गय , क तु काल केअनं त व तीण अं क म आपका
वह सं क प ज ड़त हो गया। अपनी उस अ भलाषा क पू त क एक
झाँक आप कु छ दन पू व पा चुक ह। अब जो य कंचत आपक
207
आकांा शे ष बाक रही है , वह साद भी पाकर आप शी ही कशोरी
जू क न य से वा म द वृ दावन म पधार जायगी।"
मीरा, पलक झु काए अपने पू
व ज म का वृ ता त और अपनी
णक अ भलाषा का यौरा वण कर रही थी। उसक आँ ख से धीरे-
धीरे वत होती ई अ ु क धारा उसकेव को भगो रही थी।
पर थोड़ी ह मत जु टाकर मीरा नेँ धेक ठ से पूछा, " या मुझेा रका
से मे
वाड़ लौटना होगा ?...........अब म इस दे ह को और नह रखना
चाहती। इस दे ह केरहने से
, इसकेस ब ध से ही येजं जाल उठ खड़े हो
रहेह।"
"नह अब वल ब नह । कु ल ......बस पांच-सात दन और।"
का चना मु कुराई, ''आप द ा रका केस चदान द महल म पधार
जायगी।.... क तु दे
ह नह छू टे
गी, के वल आपका व प ही प रव तत
होगा ....। यही समाचार दे नेम आपक से वा म उप थत ई ँ । अब
आ ा हो।'' ......कहतेए का चना उठ खड़ी ई।
मीरा ने उठकर का चना केदोन हाथ थाम लये - ''महादेवी
मणी ब हन केचरण म मे री ओर सेणाम नवे दन करना। बड़ी
कृपा क , जो तु म आ गयी का चना ! तु हारे आगमन से दय को
शीतलता मली, जै सेजले घाव पर शीतल ले प लगा हो .....अब दय म
कोई वधा नह ....सब व छ और र तक नजर आ रहा है । सभी
महारा नय को और भु को मे रा णाम नवे दन करना।"- मीरा ने शां

वर से कहा।
णाम करकेका चना चल द । कु छ र तक उसक दे ह का
काश और झल मलातेये पीत व दखलायी दे ते रहे
, फर वह लोप
हो गई। मीरा धीमे और छोटे पग भरती अपने क म वा पस लौट आई।
उसका मनचाहे शांत था, ब त से का समाधान हो गया था, पर फर
भी जीव क अपू ण और वभा वक अ भलाषा का च तन कर और
उनक पू त केलए क णापू ण भुक चेा का मनन कर वह
आ यच कत भी थी।
मीरा ने पाँ
च -छः दन तक कोई भी ठोस उ र राजपु रो हत जी
को नह दया। वह तो का चना के ारा इं गत कए गए उस ती त
पल क बाट जोह रही थ । उसे कभी भी वा पस च ौड़ लौटकर जाना
208
ही नह था। वह तो ऐसे ही कु छ दन और बता रही थ । पर राजपु रो हत
जी को जब कोई अनु कूल उ र नह मला तो उ ह ने अनशन करने का
न य कर लया। राठौड़ केपु रो हत जी भी उनकेसमीप साथ दे ने बै

गये । अनशन क बात सु नकर मीरा ने कई कार से उ ह समझाने का
य न कया, पर उ ह ने रीते हाथ लौटने क अपेा मरना े य कर
समझा। दो दन और नकल गये । ा ण को यू ँभूखे मरते दे
ख वह
ाकुल हो उठ । अंत म मीरा ने उ ह आ ासन दया - "म भु सेपूछ
लूँ
। वेआ ा दे दग तो म आपके साथ चलू ँ
गी।"
उस समय ा रकाधीश क मं गला आरती हो चु क थी, और
पुजारी जी ार के पास खड़े थे। दशनाथ दशन करतेये आ जा रहे थे

राणावत और मे ड़ तय के साथ मीरा मं दर के प रसर म प ँ च । मीरा ने
भु को णाम कया। पु जारी जी मीरा को पहचानते थेऔर उ ह यह
व दत था क इ ह लवाने केलए मे वाड़ केबड़े -बड़े साम त स हत
राजपु रो हत आय ह। चरणामृ त और तु लसी दे तेये उ ह ने पूछा -" या
न त कया ? या जाने का न य कर लया है ? आपकेबना ा रका
सूनी हो जायेगी।" "हाँजी महाराज ! वही न त नह कर पा रही ! अगर
आप आ ा द तो भीतर जाकर भु सेही पूछ लूँ!" "हाँहाँ! पधारो बा !
आपकेलए म दर के भीतर जाने म कोई भी बाधा नह !"- पु जारी जी ने
अ तशय स मान से कहा।
पुजारी जी क आ ा ले मीरा म दर केगभगृ ह म ग । दय से
भु को णाम कर मीरा इकतारा हाथ म ले वह गाने लगी........
मीरा को भु च ी दासी बनाओ.........।
.........,साँ
अंतम पं गानेसेपू
व मीरा नेइकतारा मं
गला केहाथ म
थमाया और गाती धीम पद सेगभ गृह केभीतर वह ठाकु
र जी के
सम जा खड़ी । वह एकटक ा रकाधीश को नहारती बार-बार गा
रही थ -
" मल बछु
रन मत क जे
।"
एकाएक मीरा ने
दे
खा क उसकेसम व ह नह ल क वयं
ा रकाधीश वर केवे
श म खड़े
मुकुरा रहे
ह। मीरा अपनेाण यतम

209
केचरण पश केलए जै से ही झुक, का नाश, भ को लार,
शरणागत को अभय और ा ड का पालन करनेवाली सश
भुजा ने आत, व ल और शरण माँ गती ई अपनी या को ब धन म
समे ट लया। ण मा केलए एक अभू तपूव काश कट आ, मान
सूय-च एक साथ अपने पूरेते
ज के साथ उ दत होकर अ त हो गये ह।
इसी काश म म े-द वानी मीरा समा गई। उसी समय मं दर के
सारे घं
टे-घ ड़याल और शं ख वयं जोर-जोर सेएक साथ बज उठे । कई
ण तक वहाँ पर खड़े लोग क समझ म नह आया क या आ।
एकाएक चमे ली "बाईसा कम !" पु कारती मं दर केगभ गृ ह क ओर
दौड़ी। पु जारी जी नेसचेत होकर हाथ केसं केत से उसे रोका और वयं
गभ गृ ह म गये । उनक चार ओर मीरा को ढू ँढ रही थी। अचानक
भु केपाशव म लटकता भगवा-व खं ड दखाई दया। वह मीरा क
ओढ़नी का छोर था। लपक कर उ ह ने उसेहाथ म लया। पर मीरा कह
भी म दर म दखाई नह द । नराशा केभाव से भा वत ए पु जारी ने
गभ गृ ह से बाहर आकर न करतेए सर हला दया। उनका सं केत
समझ सब हतो सा हत एवं नराश हो गये।
"यह कै से स भव है? अभी तो हमारे सामने उ ह नेगातेये गभ
गृह म वे श कया है । भीतर नह ह तो फर कहाँ ह ? हम मे
वाड़ जाकर
या उ र दग।" - वीर साम त बोल उठे ।
"म भी तो आपके साथ ही बाहर था। म कै से बताऊँक वह कहाँ
ग ? थ त से तो यही प हैक मीरा बाई भु म समा ग , उनके
व ह म लीन हो ग ।" पु जारी जी ने उ र दया। पर च ौड़ और मे ड़ता
केवीर ने पुजारी जी क आ ा लेवयं गभ गृह केभीतर वे श कया।
दोन पु रो हत ने मूत केचार ओर घू म कर मीरा को ढू ँ
ढने का यास
कया। साम त ने द वार को ठ का, फश को भी बजाकर दे खा क कह
नीचे से नम तो नह ! अं त म जब नराश होकर बाहर नकलने लगे तो
पुजारी ने कहा, "आपको बा क ओढ़नी का प ला नह दखता, अरे बा
भु म समा गई ह।" दोन पु रो हत ने प ले को अ छ तरह से दे
खा और
ख चा भी, पर वह त नक भी खसका नह , तब वह हताश हो बाहर आ
गये। इस समय तक ढोल-नगारे बजने आर भ हो गये थे
। पु
जारी जी ने
भुजा उठाकर जयघोष कया - "बोल, मीरा माँ क जय ! ा रकाधीश क
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जय ! भ और भगवान क जय !" लोग ने जयघोष दोहराया। तीन
दा सय का दन वे ग मान बाँध तोड़कर बह पड़ा हो। अपनी आँ ख
प छतेये दोन पुरो हत उ ह सा तवना दे
रहेथे। इस कार मे
ड़ता और
च ौड़ क मू तम त ग रमा अपने अरा य म जा समायी।
नृयत नु परूबाँ
ध केगावत लेकरतार।
दे
खत ही ह र म मली तृ
ण सम ग न संसार॥
मीरा को नज लीन कय नागर न द कशोर।
जग तीत हत नाथ मु ख र ो चु
नरी छोर॥

(समा त)

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सारां
श:- पु
तक : "मीरा च रत"
ले
खका:- सौभा य कु ँ
वरी राणावत
काशक:- मृ
यु य सह ससो दया,45, र व पथ, पो. बड़नगर, ज़ला उ जै

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