Study Material Class 7th

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ििक्षण सामग्री कक्षा सप्तमी - संस्कृ तम्

नवमः पाठः ऄहमिप िवद्यालयं गिमष्यािम (पाठ का पररचय)

प्रस्तुत पाठ के माध्यम से बाल मजदूरी के िवरोध में जन जागरूकता ईत्पन्न करने का प्रयास ककया गया है।
साथ-साथ आसे गैर कानूनी बताते हुए ििक्षा के ऄिधकार से िवद्यार्थथयों को ऄवगत कराया गया है।

ऄहमिप िवद्यालयं गिमष्यािम Summary

प्रस्तुत नाटक के माध्यम से बालिोषण का िवरोध दिााकर ईनके ििक्षा के मौिलक ऄिधकार का ज्ञान कराया
गया है। एक ऄल्पवयस्का बािलका से गृहकाया करवाना ऄनुिचत है। ऄतः मािलनी दिाना को कहती है कक यह
समय तो ईसकी ऄल्पवयस्का पुत्री के पढ़ने और खेलने का है तो दिाना कहती है कक ईसकी पुत्री एक पररवार
का समस्त गृहकाया करती थी। धनाभाव के कारण ईन्हें यह सब करना पड़ता हैं क्योंकक ईसका बीमार पित कु छ
भी काम नहीं करता।

तो मािलनी दिाना को समझाती है कक ििक्षा बच्चों का मौिलक ऄिधकार है। बच्चों की ििक्षा के िलए सरकारी
िवद्यालयों में िनःिुल्क ििक्षा, िनःिुल्क पररधान, पुस्तकें , स्कू लबैग, जूत,े दोपहर का भोजन और छात्रवृिि
अकद दी जाती है। यह सुनकर दिाना की पुत्री खुिी से ताली बजाकर नाचती है और कहती है कक मैं भी
िवद्यालय जाउँगी और मािलनी के प्रित कृ तज्ञता प्रकट करती है।

ऄहमिप िवद्यालयं गिमष्यािम

(क) मािलिन – (प्रितवेििनीं प्रित) िगररजे! मम पुत्रः मातुलगृहं प्रित प्रिस्थतः कािचद् ऄन्यां कामिप मिहला
कायााथं जानािस तर्थह प्रेषय।
िगररजा – अम् सिख! ऄद्य प्रातः एव मम सहाियका स्वसुतायाः कृ ते कमााथं पृच्छित स्म। श्वः प्रातः एव तया सह
वातां कररष्यािम।
(ऄिग्रमकदने प्रातः काले षट्वादने एव मािलन्याः गृहघिटटका अगन्तारं कमिप सूययित मािलनी द्वारमुदघाटयित
पश्यित यत् िगररजायाः सेिवकया दिानया सह एका ऄष्टवषादि
े ीय, बािलका ितष्ठित)

सरलाथाः
मािलनी – (पड़ोिसनी से) हे िगररजा! मेरा पुत्र मामा के घर गया है, ककसी दूसरी मिहला (औरत) को काम के
िलए जानती हो तो भेजो।।
िगररजा – हाँ सखी! अज सुबह ही मेरी नौकरानी (सहाियका) ऄपनी बेटी के िलए काम हेतु पूछ रही थी। कल
सुबह ही ईसके साथ बात करूँगी। (ऄगले कदन सुबह छह बजे ही मािलनी के घर की घंटी ककसी अने वाले की
सूचना देती है, मािलनी दरवाजा खोलती है कक िगररजा की नौकरानी दिाना के साथ एक अठ वषा की, लड़की
खड़ी है
िब्दाथााः (Word Meanings) :
प्रितवोििनीम्-पड़ोिसनी (neighbour)। मातुलगृहम्-मामा के घर (house of maternal uncle)। प्रित-की
ओर (towards)। प्रिस्थतः-चला गया है (went away)। कािचद्-कोइ (any)। ऄन्याम्-दूसरी (another)।
कायााथाम्-काम के िलए (for work)। तर्थह-तो (then)। प्रेषय-भेजो (send)। कमिप-ककसी को भी (anyone)।
सूचयित-सूचना देती है (informs)| द्वारम् ईद्घाटयित-दरवाजा खोलती है (opens the door)। प्रातः-सुबह
(morning)। सहाियका-नौकरानी (maid)। स्वसुतायाः कृ ते-ऄपनी बेटी के िलए (for one’s daughter)।
कमााथाम्-काम के िलए (for work)। पृच्छित स्म-पूछ रही थी (was asking)। श्व:-कल (अने वाला)
(tomarrow)। तया सह-ईसके साथ (with him/her)। ऄिग्रमकदने-ऄगले कदन (next day)। षट्वादने-छह बजे
(at 6 o’ clock)। गृहघिटटका-घर की घंटी (bell of the house)। अगन्तारम्-अने वाले को (visitor)।
ऄष्टवषादि
े ीया-अठ वषा वाली (eight years of age)।

सिन्धिवच्छेदः
कमिप – काम् + ऄिप, कायााथाम् – काया + ऄथाम्
कमााथाम् – कमा + ऄथाम,् द्वारमुद्घाटयित – द्वारम् + ईद्घाटयित।

(ख) दिाना – महोदये! भवती कायााथं िगररजामहोदयां पृच्छित स्म कृ पया मम सुतायै ऄवसरं प्रदाय ऄनुगृह्णातु
भवती।
मािलनी – परमेषा तु ऄल्पवयस्का प्रतीयते। कक कायं कररष्यत्येषा? ऄयं तु ऄस्याः ऄध्ययनस्य क्रीडनस्य च
कालः।
दिाना – एषा एकस्य गृहस्य संपूणा कायं करोित स्म। सः पररवारः ऄधुना िवदेिं प्रित प्रिस्थतः।
कायााभावे ऄहमेतस्यै कायामेवान्वेषयािम स्म येन भवत्सदृिानां काया प्रचलेत् ऄस्मद्सदृिाना गृहसञ्चालनाय च
धनस्य व्यवस्था भवेत्।

िब्दाथााः (Word Meanings) :


भवती-अप (you)। कायााथम
ा ्-काम के िलए (for work)। पृच्छित स्म-पूछ रही थीं (was asking)। कृ पया-
कृ पा करके (kindly)। मम-मेरी (my)। सुतायै-बेटी के िलए (को) (for daughter)। ऄवसरम्-मौका
(opportunity)। प्रदाय-देकर (by giving)| ऄनुगृह्णातु-कृ पा करें (kindly)| ऄल्पवयस्का -कम ईम्र वाली
(minor)। प्रतीयते-कदख रही है (appears)। एषा-यह (this)। ऄध्ययनस्य-पढ़ाइ का (of study)। काल:-समय
(period)। एकस्य-एक (का) (one)। सम्पूणाम्-सारा (whole)। करोित स्म-करती थी (used to do)। ऄधुना-
आस समय (ऄब) (at this time)। प्रिस्थत:-चला गया है (went away)। कायााभावे-काम के न होने पर (on
joblessness)। एतस्यै-आसके िलए (for this)। ऄन्वेषयािम स्म-ढू ँढ रही थी (was searching)। येन-िजससे
(so that)। भवत्सदृिानाम्-अप जैसों का (के ) (people like you)। प्रचलेत्-चले (let us go)।
ऄस्मद्सदृिाना-हमारे जैसों का (के ) (people like us)। गृहसञ्चालनाय-घर को चलाने के िलए (to run our
family)। व्यवस्था-व्यवस्था (आन्तजाम) (arrangement)। भवेत्-हो जाए। (may be managed)।

सरलाथाः
दिाना – महोदया (मैडम)! अप काम के िलए िगररजा जी (देवी) से पूछ रही थीं कृ पया मेरी बेटी को मौका देकर
अप ईपकार करें ।

मािलनी – परं तु यह तो कम ईम्र की कदखाइ देती है। क्या काम करे गी यह? यह तो आसके पढ़ने और खेलने का
समय है।
दिाना – यह एक घर का सारा काम करती थी। वह पररवार आस समय िवदेि चला गया है। काम की कमी के
कारण मैं आसके िलए काम ढू ँढ रही थी िजससे अप जैसों का काम चले और हमारे जैसों के घर को चलाने के
िलए धन की व्यवस्था हो जाए।

सिन्धिवच्छेदः-
कररष्यत्येषा – कररष्यित + एषा, कायााभावे – काया + ऄभावे
ऄहमेतस्यै – ऄहम् + एतस्यै, कायामेवान्वेषयािम – कायाम् + एव +
ऄन्वेषयािम, ऄस्मद्सदृिानाम् – ऄस्मत् + सदृिानाम्

(ग) मािलनी – परमेतिु सवाथाऽनुिचतम्। कक न जानािस यत् ििक्षा तु सवेषां बालकानां सवाासां बािलकानां च
मौिलकः ऄिधकारः।
दिाना – महोदये! ऄस्मद् सदृिानां तु मौिलकाः ऄिधकाराः के वलं स्वोदरपूििरे वािस्त। एतस्य व्यवस्थायै एव
ऄहं सवािस्मन् कदने पञ्च-षड्गृहाणां कायं करोिम। मम रुग्णः पितः तु ककिञ्चदिप कायं न करोित। ऄतः ऄहं मम
पुत्री च िमिलत्वा पररवारस्य भरण-पोषणं कु वाः। ऄिस्मन् महाघाताकाले मूलभूतावश्यकतानां कृ ते एव धनं पयााप्तं
न भवित तर्थह कथं िवद्यालयिुल्कं , गणवेषं पुस्तकान्यादीिन क्रेतुं धनामानेष्यािम।

िब्दाथााः (Word Meanings) :


परम्-परन्तु (but)। सवाथा-पूरी तरह से (completely)। ऄनुिचतम्-ठीक नहीं है (not proper)। मौिलकः-
जन्मजात (मूलभूत) (natural)| ऄिध कार:-ऄिधकार (right)। ऄस्मद् सदृिानाम्-हमारे जैसों का (people
like us)। स्वोदरपूर्थतः-ऄपना पेट भरना (to fill our stomac)। व्यवस्थायै-व्यवस्था के िलए (for
arranging)। सवािस्मन्-सारा (whole)। कदने-कदन में (day)। पञ्च-षड्गृताणाम्-पाँच-छह घरों का (of five to
six houses)। रुग्णः-बीमार (ill)। ककिञ्चत्-ऄिप-कु छ भी (nothing)। िमिलत्वा-िमलकर के (िमल् + क्त्वा)
(together with)। ऄिस्मन्-आस (this)। महाघातावाले-मँहगाइ के समय में (time of dearness)। मूलभूत-
अवश्यकतानाम् कृ ते-मूलभूत (जरूरी) जरूरतों के िलए (for basic needs)। पयााप्तम्-काफी (sufficient)।
तर्थह-तो (then)। िवद्यालयिुल्कम्-स्कू ल की फीस (school fees)। गणवेषम्-युिनफामा (uniform)। अदीिन-
अकद को (etc)। क्रेतुम्-खरीदने के िलए (क्री+तुमुन)् (for purchasing)। अनेष्यािम-लाउँगी, (shall bring)।
कथम्-कै से (how)।

सरलाथाः
मािलनी – परन्तु यह तो पूरी तरह से ऄनुिचत (ठीक नहीं) है। क्या तुम नहीं जानती हो कक ििक्षा तो सभी
लड़कों और सभी लड़ककयों का मूलभूत (स्वाभािवक) ऄिधकार है।
दिाना – देवी (मैडम)! हमारे जैसों का तो मूलभूत ऄिधकार के वल ऄपना पेट भरना ही है। आसकी व्यवस्था के
िलए ही मैं सब कदन (पूरे कदन) में पाँच-छह घरों का काम करती हँ। मेरे बीमार पित तो कु छ भी काम नहीं करते
हैं। आसिलए मैं और मेरी बेटी िमलकर पररवार का भरण-पोषण (का काम) करते हैं। आस मँहगाइ के समय में
मूलभूत जरूरतों के िलए ही धन काफी नहीं होता है तो कै से िवद्यालय की फीस, वेिभूषा (Uniform), पुस्तकें
अकद को खरीदने के िलए धन लाएँगे

सिन्धिवच्छेदः –
सवाथाऽनुिचतम् – सवाथा + ऄनुिचतम्
स्वोदरपूर्थतरे वािस्त – स्व + ईदरपूर्थतः + एव + ऄिस्त
षड्गृहाणाम् – षट् + गृहाणाम्
ककिञ्चदिप – ककम् + िचत् + ऄिप
मूलभूतावश्यकतानाम् – मूलभूत + अवश्यकतानाम्
पुस्तकान्यादीिन – पुस्तकािन + अदीिन
धनमानेष्यािम – धनम् + अनेष्यािम।

(घ) मािलनी – ऄहो! ऄज्ञानं भवत्याः। कक न जानािस यत् नवोिर-िद्व-सहस्र (2009) तमे वषे सवाकारे ण सवेषां
बालकानां, सवाासां बालानां कृ ते ििक्षायाः मौिलकािधकारस्य घोषणा कृ ता। यदनुसारं षड्वषे्यः अर्य
चतुदिावषापयान्तं सवे बालाः समीपस्थं सवाकारीयं िवद्यालयं प्राप्य न के वलं िन:िुल्कं ििक्षामेव प्राप्स्यिन्त ऄिपतु
िनःिुल्कं गणवेषं पुस्तकािन, पुस्तकस्यूतम्, पादत्राणाम्, माध्याह्नभोजनम्, छात्रवृििम् आत्याकदकं सवामेव
प्राप्स्यिन्त।

िब्दाथााः (Word Meanings) :


ऄहो-ऄरे (hei!)। ऄज्ञानम्-ऄज्ञानता (foolishness)। भवत्याः -अपकी (your)। सवाकारे ण-सरकार के द्वारा
(by government)। वषे-साल में (during years)। बालानां कृ ते-बच्चों के िलए (for children)। ििक्षायाः-
ििक्षा के (for education)। मौिलकािधकारस्य-मूल ऄिधकार की (of fundamental right)। यदनुसार-
िजसके अधार पर (on which ground)। षड्वषे्यः-छह वषों से (from six years)। अर्य-िुरू होकर
(beginning from)। चतुदि
ा वषापचान्तम्-चौदह वषों तक के (till fourteen years)। समीपस्थम्-पास में
िस्थत (in the locality)। सवाकारीयम्-सरकारी (government)। प्राप्य-पहुँचकर (जाकर) (on reaching)।
िनिुल्कम्-िबना फीस के (without fees)। प्राप्स्यिन्त-प्राप्त करें गे (will get)। ऄिपतु-बिल्क (but)। गणवेषम्-
वदी (uniforms)। पुस्तकस्यूतम्-बस्ते को (for bags)। पादत्राणम्-जूते को (for shoes)। छात्रवृििम्-वजीफे
को (scholorship)। मध्याह्न भोजनम्-दोपहर के भोजन को (mid-day meal)। आत्याकदकम्-अकद
को (etc)। प्राप्स्यिन्त-पाएँगे (will get)।

सिन्धिवच्छेदः –
नवोिर – नव + ईिर
मौिलकािधकारस्य – मौिलक + ऄिधकारस्य
यदनुसारम् – यत् + ऄनुसारम्
षडवषे्यः – षट् + वषे्यः
आत्याकदकम् – आित + ऄकदकम्

सरलाथाः
मािलनी ऄरे यह अपकी मूखाता (नासमझी) है। क्या नहीं जानती हो कक सन् 2001 इ० वषा में सरकार ने सब
बच्चों, सभी बिच्चयों के िलए ििक्षा के मौिलक (स्वाभािवक) ऄिधकार की घोषणा की है। िजसके ऄनुसार छह
वषों से लेकर चौदह वषा तक के सारे बच्चे पास के (पास िस्थत) सरकारी स्कू ल में जाकर न िसफा िनिुल्क
(without fee) पढ़ाइ ही करें गे बिल्क िबना फीस वदी (Uniform), पुस्तकें , बस्ते (Bags), जूत,े दोपहर का
भोजन और वजीफा (Scholar ship) अकद सभी कु छ पाएँगे।

(ङ) दिाना – ऄप्येवम् (अश्चयेण मािलनी पश्यित)


मािलनी – अम्। वस्तुतः एवमेव।
दिाना – (कृ ताथातां प्रकटयन्ती) ऄनुगृहीताऽिस्म महोदये! एतद् बोधनाय। ऄहम् ऄद्यैवास्याः प्रवेिं समीपस्थे
िवद्यालये कारियष्यािम। दिानायाःपुत्री- (ईल्लासेन सह) ऄहं िवद्यालयं गिमष्यािम! ऄहमिप परठष्यािम!
(आत्युक्त्वा
करतलवादनसिहतं नृत्यित मािलनी प्रित च कृ तज्ञतां ज्ञापयित)
िब्दाथााः (Word Meanings) :
ऄप्येवम्-ऐसा भी है (it is so)। अश्चयेण-अश्चया से (with surprise)। वस्तुतः-वास्तव में (really)। एवमेव-
यही है (it is this)। कृ ताथाताम्-अभार को (of obligation)। प्रकटयन्ती-प्रकट करती हुइ (showing)।
ऄनुगृहीता-अभारी (obliged)। बोधनाय-बताने के िलए (for explanation)। प्रवेिम्-प्रवेि को (for
admission)। ऄद्य एव-अज ही (today only)। ऄस्याः -आसका (its/(her)। समीपस्थे-पास में िस्थत (in the
locality)। कारियष्यािम-कराउँगी (shall get)। ईल्लासेन-खुिी से (के ) (with joy)। सह-साथ (together
with)। परठष्यािम-पढू ंगी (shall read)। आित-आस प्रकार (therefore)। ईक्त्वा -कहकर (by saying)।
करतलवादनसिहतम्-तािलयाँ बजाने के साथ (with clapping hands)। कृ तज्ञताम्-अभार को (for
gratefulness)। ज्ञापयित-प्रकट करती है (expresses)।

सिन्धिवच्छेदः
ऄप्येवम् – ऄिप + एवम्
ऄनुगृहीताऽिस्म – ऄनुगृहीता + ऄिस्म
ऄद्यैवास्याः – ऄद्य + एव + ऄस्याः
आत्युक्त्वा – आित + ईक्त्वा
मािलनीप्रित – मािलनीम् + प्रित
ऄहं िवद्यालयं गिमष्यािम – ऄहम् + िवद्यालयम् + गिमष्यािम

सरलाथाः
दिाना – ऐसा भी है (अश्चया से मािलनी को देखती है)
मािलनी – हाँ! वास्तव में यही है।
दिाना – (कृ ताथाता) (धन्यवाद) को प्रकट करती हुइ) मैडम! मैं अभारी हँ। यह बताने के िलए। मैं अज ही
आसका प्रवेि पास (िनकट) िस्थत िवद्यालय में कराउँगी।
दिाना की बेटी – (खुिी के साथ) मैं िवद्यालय जाउँगी। मैं भी पढंगी! (ऐसा कहकर ताली बजाकर नाचती है
और मािलनी के िलए अभार व्यक्त करती है
प्रश्न: 1) ईच्चारण कु रुत
ऄिग्रमकदने, षड्वादने, ऄष्टवषादि
े ीया, ऄनुगृह्णातु, भवत्सदृिानाम्, गृहसञ्चालनाय, व्यवस्थायै, महाधाताकाले,
ऄद्यैवास्याः, करतलवादसिहतम्!
ईिर
स्वयं प्रयास करें ।
प्रश्न 2.एकपदेन ईिरािण िलखत
(क) िगररजायाः गृहसेिवकायाः नाम ककमासीत्?
(ख) दिानायाः पुत्री कित वषीया असीत्?
(ग) ऄद्यत्वे ििक्षा ऄस्माकं कीदृिः ऄिधकारः?
(घ) दिानायाः पुत्री कथं नृत्यित?
ईिर
(क) दिाना
(ख) ऄष्टवषीया
(ग) मौिलकः
(घ) करतलवादनसिहतम्

प्रश्न 3. पूणावाक्येन ईिरत


(क) ऄष्टवषादि
े ीया दिानायाः पुत्री कक समथााऽसीत्?
(ख) दिाना कित गृहाणां कायं करोित स्म?
(ग) मािलनी स्वप्रितवेििनीं प्रित कक कथयित?
(घ) ऄद्यत्वे छात्राः िवद्यालये कक कक िनःिुल्क प्राप्नुविन्त?
ईिर
(क) ऄष्टवषादि
े ीया दिानायाः पुत्री एकस्य सम्पूणाकायं कतुं समथाासीत् |
(ख) दिाना पञ्च – षड् गृहाणां कायं करोित स्म।
(ग) मािलनी स्वप्रितवेििनीं प्रित स्वगृहकायााथं कस्यािश्चत् मिहलासहाियकाया: िवषये कथयित।
(घ) ऄद्यत्वे छात्रा िवद्यालये िनिुल्कं गणवेषम्,पुस्तकािन, पुस्तकस्यूतम्, पादत्राणाम्,मध्याह्नभोजनम्,
छात्रवृत्ति च प्राप्नुविन्त।

प्रश्न 4. रे खांककतपदमाधृत्य प्रश्निनमााणं कु रुत


(क) मािलनी द्वारमुद्घाटयित?
(ख) ििक्षा सवेषां बालानां मौिलकः ऄिधकारः।
(ग) दिाना अश्चयेण मािलनीं पश्यित।
(घ) दिाना तस्याः पुत्री च िमिलत्वा पररवारस्य भरणपोषणं कु रुतः स्म |
ईिर
(क) का द्वारमुद्घाटयित?
(ख) ििक्षा के षां मौिलकः ऄिधकारः?
(ग) दिाना अश्चयेण कां पश्यित?
(घ) दिाना तस्याः पुत्री च िमिलत्वा कस्य भरणपोषणं – कु रुतः स्म?

प्रश्नः 5. सिन्ध िवच्छेदं पूरयत-(संिध िवच्छेद पूरा कीिजए।


(क) ग्राम प्रित – ग्रामम् + ……………….
ईिरम् - प्रित
(ख) कायााथाम् – ………………. + ऄथाम्
ईिरम् - काया
(ग) कररष्यत्येषा – कररष्यित + ……………….
ईिरम् - एषा
(घ) स्वोदरपूर्थतः – …………… + ……………….
ईिरम् - स्व , ईदरपूर्थतः
(ङ) ऄप्येवम् – ऄिप + ……………….
ईिरम् - एवम्

प्रश्नः 6.(ऄ) समानाथाकपदािन मेलयत-(समानाथाक पदों को िमलाआए-Match with the synonyms words)

अश्चयेण – पठनस्य
ईल्लासेन – समयः
पररवारस्य – प्रसन्नतया
ऄध्ययनस्य – िवस्मयेन
कालः – कु टुम्बस्य
ईिरािण -
अश्चयेण – िवस्मयेन
ईल्लासेन – प्रसन्नतया
पररवारस्य – कु टुम्बस्य
ऄध्ययनस्य – पठनस्य
कालः – समयः

अ) िवलोमपदािन मेलयत- (िवलोम पदों को िमलाआए-Match with the opposite words)


क्रेतुम् – दूरस्थम्
श्वः – कथयित
ग्रामम् – िवक्रेतुम्
समीपस्थम् – ह्यः
पृच्छित – नगरम्
ईिरािण -
क्रेतुम् – िवक्रेतुम्
श्वः – ह्यः
ग्रामम् – नगरम्
समीपस्थम् – दूरस्थम्
पृच्छित – कथयित

प्रश्नः 7. िविेषणपदैः सह िविेष्यपदािन योजयत-(िविेषण पदों के साथ िविेष्य पदों के साथ िमलाआए-Join
the adjectives with the nouns they quality)

सवेषाम् – बािलकानाम्
मौिलकः – िवद्यालयम्
एषा – बालकानाम्
सवाकारीयम् – ऄिधकारः
समीपस्थे – गणवेषम्
सवाासाम् – ऄल्पवयस्का
िनःिुल्कम् – िवद्यालये
ईिरम् -
सवेषाम् – बालकानाम्
मौिलकः – ऄिधकारः
एषा – ऄल्पवयस्का
सवाकारीयम् – िवद्यालयम्
समीपस्थे – िवद्यालये
सवाासाम् – बािलकानाम्
िनःिुल्कम् – गणवेषम्
(1) गद्यांि परठत्वा ऄधोिलिखतानां प्रश्नानाम् ईिरािण िलखत-(गद्यांि को पढ़कर िनम्निलिखत प्रश्नों के ईिर
दीिजए- Read the extract and answer the Questions the follow)

(क) मािलनी – (प्रितवेििनी प्रित) िगररजे! मम पुत्रः मातुलगृह प्रित प्रिस्थतः कािचद् ऄन्यां कामिप मिहला
कायााथं जानािस तर्थह प्रेषय।
िगररजा – अम् सिख! ऄद्य प्रातः एव मम सहाियका स्वसुतायाः कृ ते कमााथं पृच्छित स्म। श्वः प्रातः एव तया सह
वाताा कररष्यािम।

(ऄिग्रमकदने प्रातः काले षट्वादने एव मािलन्याः गृहघिटटका अगन्तारं कमिप सूचयित मािलनी द्वारमुदघाटयित
पश्यित यत् िगररजायाः सेिवकया दिानया सह एका ऄष्टवषादि
े ीय, बािलका ितष्ठित)

I. एकपदेन ईिरत-(एक पद में ईिर दीिजए-)


(i) प्रातः काले कित वादने एव मािलन्याः गृहघिटटका अगन्तारं कमिप सूचयित?
ईिरम् –षड् वादने
(ii) दिानया सह ऄष्टवषादि
े ीया का ितष्ठित?
ईिरम् - बािलका
II. पूणावाक्येन ईिरत-(पूणा वाक्य में ईिर दीिजए-)
(i) िगररजा कदा स्वसहाियकया सह वातां कररष्यित?
ईिरम् (i) िगररजा श्वः स्वसहाियकया सह वाताा कररष्यित।
III. भािषक कायाम-् (भाषा-काया-)
(i) संवादे ‘सायम्’ पदस्य कक िवलोम (िवपरीत) पदं िलिखतम् ऄिस्त?
(क) श्वः (ख) प्रातः (ग) एव (घ) सह
ईिरम् - (ख) प्रातः
(ii) ‘ऄन्यां मिहलाम्’ ऄत्र िविेषणपदं ककम्?
(क) ऄन्या (ख) मिहला (ग) मिहला (घ) ऄन्यां
ईिरम् - (घ) ऄन्यां
(iii) ‘बािलका ितष्ठित’ ऄनयोः कक्रयापदं ककम् ऄिस्त?
(क) ितष्ठित (ख) बािलका (ग) बािलकाम् (घ) ितष्ठ
ईिरम्- (क) ितष्ठित
(iv) ‘कररष्यामः’ पदस्य एकवचनं कक भवित?
(क) कररष्यािम (ख) कररष्यित (ग) कररष्यावः (घ) कररष्यिस
ईिरम् - (क) कररष्यािम

(ख) मािलनी- परमेतिु सवाथाऽनुिचतम्। कक न जानािस यत् ििक्षा तु सवेषां बालकानां सवाासां बािलकानां च
मौिलकः ऄिधकारः।
दिाना – महोदये! ऄस्मद् सदृिानां तु मौिलकाः ऄिधकाराः के वलं स्वोदरपूिि-रे वािस्त। एतस्य
व्यवस्थायै एव ऄहं सवािस्मन् कदने पञ्च-षड्गृहाणां कायं करोिम। मम रुग्णः पितः तु ककिञ्चदिप कायं न करोित।
ऄतः ऄहं मम पुत्री च िमिलत्वा पररवारस्य भरण-पोषणं कु वाः। ऄिस्मन् महाघाताकाले मूलभूतावश्यकतानां कृ ते
एव धनं पयााप्तं न भवित तर्थह कथं िवद्यालयिुल्कं , गणवेषं पुस्तकान्यादीिन क्रेतुं धनामानेष्यािम।

I. एकपदेन ईिरत-(एक पद में ईिर दीिजए-)


(i) कः सवेषां बालकानां कृ ते मौिलकः ऄिधकारः?
ईिरम् - ििक्षा
(ii) दिानायाः कः रुग्णः ऄिस्त?
ईिरम् - पितः
II. पूणावाक्येन ईिरत-(पूणा वाक्य में ईिर दीिजए-)
(i) ििक्षा के षां मौिलकः ऄिधकारः ऄिस्त?
ईिरम् - ििक्षा तु सवेषां बालकानां सवाासां बािलकानां च मौिलकः ऄिधकारः ऄिस्त।
(ii) के षां कृ ते एव धनं पयााप्तं न भवित?
ईिरम् - ऄिस्मन् महाघाताकाले मूलभूतावश्यकतानां कृ ते एव धनं पयााप्तं न भवित।
III. भािषक कायाम-् (भाषा-काया-)
(i) ‘िमिलत्वा’ पदे क: धातुः क: प्रत्ययः च स्त:?
(क) िमल + क्त्वा (ख) िमल् + क्त्वा (ग) िमिल + त्वा (घ) िमिल + क्त्वा
ईिरम् - (ख) िमल् + क्त्वा
(ii) संवादे ‘मौिलकाः’ आित िविेषण पदस्य कः िविेष्यः?
(क) ऄिधकाराः (ख) ऄिधकारः (ग) ऄिधकारम् (घ) सदृिानाम्
ईिरम् - (ख) ऄिधकारः
(2) पयाायपदािन मेलयत-(पयाायवाची िब्द िमलाआए-Match with the synonymous word)
पदािन – पयाायाः
(क) दत्त्वा – ऄवसरम्
(ख) पठनस्य – प्रिस्थतः
(ग) सूचनां ददाित – सवािस्मन्
(घ) नारीम् – प्रदाय
(ङ) समयम् – ऄनुिचतम्
(च) गतः – गणवेिम्
(छ) सम्पूणे – पादत्राणम्
(ज) वेिभूषाम् – सूचयित
(झ) ईपानहम् – मिहलाम्
(ञ) न ईिचतम् – ऄध्ययनस्य
ईिरािण -
(क) प्रदाय (ख) ऄध्ययनस्य (ग) सूचयित (घ) मिहलाम् (ङ) ऄवसरम् (च) प्रिस्थतः (छ) सवािस्मन्
(ज) गणवेषम् (झ) पादत्राणम् (ञ) ऄनुिचतम्

(3) परस्परमेलनं कु रुत-(परस्पर मेल कीिजए-Match the following)


(क) ऄन्यां कामिप मिहलां – क्रीडनस्य च काल:।
(ख) ऄहम् ऄद्यैवास्याः प्रवेिं – सह वातां कररष्यािम।
(ग) कृ पया मम सुतायै – िवदेिं प्रित प्रिस्थतः।
(घ) ििक्षा तु सवेषां बालकानां – समीपस्थे िवद्यालये कारियष्यािम।
(ङ) ऄयं तु ऄस्याः ऄध्ययनस्य – कायााथं जानािस तर्थह प्रेषय।
(च) श्वः प्रातः एव तया – सवाासां बािलकानां च मौिलकः ऄिधकारः।
(छ) सः पररवारः ऄधुना – ऄवसरं प्रदाय ऄनुगृह्णातु भवती।
ईिरािण-
(क) ऄन्यां कामिप मिहलां – कायााथं जानािस तर्थह प्रेषय।
(ख) ऄहम् ऄद्यैवास्याः प्रवेिं – समीपस्थे िवद्यालये कारियष्यािम।
(ग) कृ पया मम सुतायै – ऄवसरं प्रदाय ऄनुगृह्णातु भवती।
(घ) ििक्षा तु सवेषां बालकानां – सवाासां बािलकानां च मौिलकः ऄिधकारः
(ङ) ऄयं तु ऄस्याः ऄध्ययनस्य – क्रीडनस्य च कालः।
(च) श्वः प्रातः एव तया – सह वातां कररष्यािम।
(छ) सः पररवारः ऄधुना – िवदेिं प्रित प्रिस्थतः।
बहुिवकल्पीय प्रि्ना: -
(i) मातुलगृहं कः प्रिस्थतः?
(A) िगररजा (B) मािलनी (C) िगररजायाः पुत्रः (D) मालन्याः पुत्रः।
ईिरम् - (D) मािलन्याः पुत्रः।
(ii) िगररजायाः सेिवकया सह का अगच्छित?
(A) तस्याः पुत्री (B) मािलनी (C) तस्याः पुत्रः (D) िगररजा।
ईिरम् - (A) तस्याः पुत्री
(iii) का एकस्य गृहस्य कायं करोित स्म?
(A) सेिवकायाः पुत्री (B) मािलनी (C) तस्याः पुत्रः (D) िगररजा
ईिरम् - (A) सेिवकायाः पुत्री
(iv) कस्य कृ ते धनस्य अवश्यकता ऄिस्त?
(A) पुत्री- कृ ते (B) मािलनी कृ ते (C) गृहसञ्चालनाय (D) िगररजा -कृ ते।
ईिरम् - (C) गृहसञ्चालनाय
(v) कस्याः ऄिधकारः सवेषां मौिलकः ऄिधकारः ऄिस्त ?
(A) कायाम् (B) ििक्षायाः ऄिधकारः (C) वाताालापं (D) भ्रमणं
ईिरम् - (B) ििक्षायाः ऄिधकारः
(vi) कस्य पित रुग्णः असीत्?
(A) िगररजायाः (B) मािलन्याः (C) सेिवकायाः (D) प्रितवेिन्याः
ईिरम् - (C) सेिवकायाः
(vii) सेिवका कित गृहाणाम् कायं करोित स्म?
(A) त्रीिण (B) चत्वारर (C) ऄष्ट (D) पञ्च-षड् ।
ईिरम् - (D) पञ्च-षड् ।
(viii) बालकाः कािन वस्तूिन िनिुल्कं प्राप्स्यिन्त?
(A) गणवेषं (B) पुस्तकािन (C) माध्याह्नभोजनं (D) सवाािण।
ईिरम् - (D) सवाािण।
दिमः पाठः (िवश्वबन्धुत्वम् )
िवश्वबंधत्ु वम् पाठ का पररचय

प्रस्तुत पाठ के द्वारा संसार में बन्धुत्व ऄथाात् भाइचारे की भावना की अवश्यकता और महत्त्व पर प्रकाि डाला
गया है। सभी िवकिसत, िवकासिील और ऄिवकिसत देिों में परस्पर प्रेम और िमत्रता का व्यवहार होना
चािहए। पाठ में वणान ककया गया है कक सूय,ा चन्र और प्रकृ ित भेदभाव नहीं करते हैं, तब मानव को भी वैरभाव
छोड़कर बन्धुत्व के भाव से संसार में व्यवहार करना चािहए। संसार के कल्याण के िलए सम्पूणा पृथ्वी को एक
पररवार के रूप में मानने वाले ईदार एवं महान् व्यिक्त होते हैं।
पाठस्य सार:
ईत्सवे, व्यसने, दुर्थभक्षे, राष्ट्रिवप्लवे, दैनिन्दनव्यवहारे च यः सहायतां करोित सः बन्धुः भवित। यकद िवश्वे सवात्र
एतादृिः भावः भवेत् तदा िवश्वबन्धुत्वम् सम्भवित।
ईत्सव में, व्यिक्तगत संकट में, ऄकाल पड़ने पर, देि पर अपदा अने पर और दैिनक व्यवहार में जो सहायता
करता है, वह िमत्र होता है। यकद संसार में सब जगह ऐसा भाव अ जाए तो िवश्वबन्धुता सम्भव है।

परन्तु ऄधुना िनिखले संसारे कलहस्य ऄिान्तेः च वातावरणम् ऄिस्त। मानवाः परस्परं न िवश्वसिन्त। ते परस्य
कष्टं स्वकीयं कष्टं न गणयिन्त। ऄिप च समथााः देिाः ऄसमथाान् देिान् प्रित ईपेक्षाभावं प्रदिायिन्त, तेषाम् ईपरर
स्वकीयं प्रभुत्वं स्थापयिन्त। संसारे सवात्र िवद्वेषस्य, ित्रुतायाः, त्तहसायाः च भावना दृश्यते। देिानां िवकासः
ऄिप ऄवरुद्ध: भवित।

परन्तु अजकल संसार में कलह और ऄिािन्त का वातावरण है। मनुष्य अपस में िवश्वास नहीं करते हैं। वे दूसरे
के कष्ट को ऄपना कष्ट नहीं समझते हैं। समथा देि ऄसमथा देिों के प्रित ऄनादर की भावना प्रदर्थित करते हैं और
ईन पर ऄपना प्रभुत्व स्थािपत करते हैं। संसार में सब जगह ित्रुता, वैर और त्तहसा की भावना कदखाइ पड़ती है।
देिों का िवकास भी बािधत होता है।

आयम् महती अवश्यकता वताते यत् एकः देिः ऄपरे ण देिन े सह िनमालने हृदयेन बन्धुतायाः व्यवहारं
कु याात।् िवश्वस्य जनेषु आयं भावना अवश्यकी। ततः िवकिसतािवकिसतयोः देियोः मध्ये स्वस्था स्पधाा
भिवष्यित। सवे देिाः ज्ञानिवज्ञानयोः क्षेत्रे मैत्रीभावनया सहयोगेन च समृिद्धम् प्राप्तुं समथााः भिवष्यिन्त।
सूयस्ा य चन्रस्य च प्रकािः सवात्र समानरूपेण प्रसरित। प्रकृ ितः ऄिप सवेषु समत्वेन व्यवहरित। तस्मात्
ऄस्मािभः सववः परस्परं वैरभावम् ऄपहाय िवश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्। ऄतः िवश्वस्य कल्याणाय एतादृिी भावना
भवेत-्

ऄयं िनजः परो वेित गणना लघुचत े साम् ।


ईदारचररतानां तु वसुधव ै कु टुम्बकम् ।।
यह महती अवश्यकता है कक एक देि दूसरे देि के साथ िुद्ध हृदय से बन्धुता का व्यवहार करे । संसार के
मनुष्यों में यह भावना अवश्यक है। आसके द्वारा िवकिसत - ऄिवकिसत देिों के बीच में स्वस्थ स्पधाा होगी।
सभी देि ज्ञान िवज्ञान के क्षेत्र में मैत्री भावना और सहयोग के द्वारा समृिद्ध को प्राप्त करने में समथा हो जाएंग।े
प्रकृ ित भी सभी के साथ समान व्यवहार करती है। आसिलए हम सबको अपसी ित्रुता के भाव को छोड़कर
संसार में भाइचारा स्थािपत करना चािहए। आसिलए िवश्व के कल्याण के िलए ऐसी भावना होनी चािहए-

यह ऄपना है ऄथवा पराया है ऐसी सोच संकीणा मन वालों की होती है। ईदार मन वालों के िलए सम्पूणा पृथ्वी
ही पररवार होती है।

करठनिब्दा:

क्रम संख्या िब्दा: ऄथाा:

1 राष्ट्रिवप्लवे राष्ट्रसंकटे

2 िनमालन
े िवमलेन

3 िवश्वबन्धुत्वम् िवश्विमत्रत्वम्

4 प्रभुत्वं स्वािमत्वम्

5 समत्वेन समानरुपेण

6 िवकासः ईन्नित:

7 ऄवरुद्ध: बािधत:

8 बन्धुतायाः िमत्रताया:

परठत बोध:-1
परन्तु ऄधुना िनिखले संसारे कलहस्य ऄिान्तेः च वातावरणम् ऄिस्त। मानवाः परस्परं न िवश्वसिन्त। ते परस्य
कष्टं स्वकीयं कष्टं न गणयिन्त। ऄिप च समथााः देिाः ऄसमथाान् देिान् प्रित ईपेक्षाभावं प्रदिायिन्त, तेषाम् ईपरर
स्वकीयं प्रभुत्वं स्थापयिन्त। संसारे सवात्र िवद्वेषस्य, ित्रुतायाः त्तहसाया: च भावना दृश्यते। देिानां िवकासः
ऄिप ऄवरुद्ध: भवित।

I एकपदेन ईिरत---
(क) के षाम् िवकासः ऄवरुद्ध: भवित ?
(ख) के परस्परं न िवश्वसिन्त ?
II पूणावाक्येन ईिरत---
(क) समथााः देिाः कक कु वािन्त ?
(ख) कु त्र कलहस्य ऄिान्तेः च वातावरणम् ऄिस्त?

III िनदेिानुसारे ण ईिरत---


(क) “मानवाः परस्परं न िवश्वसिन्त” ऄिस्मन् वाक्ये कतृा/कताा पदं ककम्?
(ऄ) मानवाः (ब) न (स) परस्परं (द) िवश्वसिन्त
(ख) “िनिखले संसारे कलहस्य ऄिान्तेः च वातावरणम् ऄिस्त ” ऄिस्मन् वाक्ये कक्रयापदं ककम्?
(ऄ) वातावरणम् (ब) ऄिस्त (स) संसारे (द) कलहस्य
(ग) परकीयम् ” ऄनुच्छेदे ऄस्य पदस्य कक िवलोमपदं प्रयुक्तमिस्त ?
(ऄ) स्वकीयम् (ब) सुखम् (स) ईपेक्षाभावं (द) प्रभुत्वं
(घ) “िवश्वे” आत्यस्य पयााय पदं कक प्रयुक्तम् ?
(ऄ) ऄिान्तेः (ब) दृश्यते (स) संसारे (द) सवात्र

ईिरािण -
एक पदेन ईिरत---
(क) देिानां (ख) मानवाः
II पूणावाक्येन ईिरत---
(क) समथााः देिाः ऄसमथाान् देिान् प्रित ईपेक्षाभावं प्रदिायिन्त, तेषाम् ईपरर स्वकीयं प्रभुत्वं स्थापयिन्त।
(ख) िनिखले संसारे कलहस्य ऄिान्तेः च वातावरणम् ऄिस्त।
III िनदेिानुसारे ण ईिरत---
(क) मानवाः
(ख) ऄिस्त
(ग) स्वकीयम्
(घ) संसारे
परठत बोध:-2

आयं महती अवश्यकता वताते यत् एकः देिः ऄपरे ण देिेन सह िनमालेन हृदयेन बन्धुतायाः व्यवहारं कु याात्
। िवश्वस्य जनेषु आयं भावना अवश्यकी । ततः िवकिसतािवकिसतयोः देियोः मध्ये स्वस्था स्पधाा भिवष्यित
। सवे देिाः ज्ञानिवज्ञानयोः क्षेत्रे मैत्रीभावनया सहयोगेन च समृत्तद्ध प्राप्तुं समथााः भिवष्यिन्त । सूयस्ा य चन्रस्य
च प्रकािः सवात्र समानरूपेण प्रसरित। प्रकृ ितः ऄिप सवेषु समत्वेन व्यवहरित। तस्मात् ऄस्मािभः सववः परस्परं
वैरभावम् ऄपहाय िवश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्।

एक पदेन ईिरत---
(क) देिा: मैत्रीभावनया कां प्राप्तुं समथााः भिवष्यिन्त ?
(ख) कस्य जनेषु आयं भावना ऄत्यावश्यकी ?
II पूणावाक्येन ईिरत---
(क) सवे देिाः कथं समृत्तद्ध प्राप्तुं समथााः भिवष्यिन्त?
(ख) ऄस्मािभः सववः ककम् िवहाय िवश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्?

III िनदेिानुसारे ण ईिरत---


(क) “सूयस्ा य प्रकािः सवात्र समानरूपेण प्रसरित।” ऄिस्मन् वाक्ये कतृा/कताा पदं ककम्?
(अ) प्रकाि: (ब) सवात्र (स) प्रसरित (द) समानरूपेण
(ख) “िवकिसतािवकिसतयोः देियोः मध्ये स्वस्था स्पधाा भिवष्यित” ऄिस्मन् वाक्ये कक्रयापदं ककम्?
(अ) भिवष्यित (ब) देियोः (स) मध्ये (द) स्पधाा
(घ) “ समथााः ” ऄनुच्छेदे ऄस्य पदस्य िवलोमपदं प्रयुक्तमिस्त।
(अ) देिः (ब) ऄसमथााः (स) ईपेक्षा: (द) प्रकृ ितः
(घ) “िवमलेन” आत्यस्य पयााय पदं प्रयुक्तम्।
(ऄ) क्षेत्रेन (ब) दृश्यतेन (स) िनमालेन (द) सवात्रन े

ईिरं

एक पदेन ईिरत---
(क) समृत्तद्ध (ख) िवश्वस्य
II पूणावाक्येन ईिरत---
क) सवे देिाः ज्ञानिवज्ञानयोः क्षेत्रे मैत्रीभावनया सहयोगेन च समृत्तद्ध प्राप्तुं समथााः भिवष्यिन्त ।
(ख) ऄस्मािभः सववः वैरभावम् ऄपहाय िवश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्।
III िनदेिानुसारे ण ईिरत---
(क) प्रकाि: (ख) भिवष्यित ग) ऄसमथााः (घ) िनमालन

 सिन्ध-िवच्छेदं कु रुत) सिन्ध-िवच्छेद कीिजए (


पदम्-सिन्ध िवच्छेदः।
के नािप के न + ऄिप
तदैव + तदा एव
वसुधव
ै वसुधा + एव ।

 कक्रयापदै :ररक्तस्थानपूर्थत :कु रुत -

मञ्जूषा
भिवष्यित , कु याात् , ऄिस्त , करोित , व्यवहरित

1. एकः देिः ऄपरे ण देिेन सह िनमालेन हृदयेन बन्धुतायाः व्यवहारं --------- ।


2. यः सहायतां ------------------- सः बन्धुः भवित ।
3. प्रकृ ितः ऄिप सवेषु समत्वेन ----------------------- ।
4. ततः िवकिसतािवकिसतयोः देियोः मध्ये स्वस्था स्पधाा --------------।
5. िनिखले संसारे कलहस्य ऄिान्तेः च वातावरणम् ----------------------।

ईिरं

1. कु याात्
2. करोित
3. व्यवहरित
4. भिवष्यित
5. ऄिस्त
 कतृापदै :ररक्तस्थानपूर्थत :कु रुत -

मञ्जूषा

देिाः , बन्धुः , प्रकािः , मानवाः , प्रकृ ितः

1. -------------------- परस्परं न िवश्वसिन्त।


2. सवे ------------------ ज्ञानिवज्ञानयोः क्षेत्रे मैत्रीभावनया सहयोगेन च समृत्तद्ध प्राप्तुं समथााः
भिवष्यिन्त।
3. --------------- ऄिप सवेषु समत्वेन व्यवहरित।
4. सूयस्ा य चन्रस्य च ------------------ सवात्र समानरूपेण प्रसरित।
5. यः सहायतां करोित सः ------------------ भवित।
ईिरं
1. मानवाः
2. देिाः
3. प्रकृ ितः
4. प्रकािः
5. बन्धुः
 रे खांककतपदािन अधृत्य प्रश्निनमााणं कु रुत -
1. ऄधुना िनिखले संसारे कलहस्य ऄिान्तेः च वातावरणम् ऄिस्त।

2. ऄस्मािभः परस्परं वैरभावम् ऄपहाय िवश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्।

3. सूयस्ा य चन्रस्य च प्रकािः सवात्र समानरूपेण प्रसरित।


4. मानवाः परस्परं न िवश्वसिन्त।

5. देिानां िवकासः ऄिप ऄवरुद्ध :भवित।

ईिरं

1. कस्य ?
2. ककम् ?
3. कथं / ककमथंम् ?
4. के ?
5. के षाम् ?

* समानाथाकपदािन ( बहुिवकल्पात्मका:: प्रश्ना: )


(1) िनिखले = ............. (समानाथाकपदम् )
(क) दुःखम् (ख) स्वकीयम् (ग) सम्पूणे (घ) कष्टम्
ईिरम् - सम्पूणे
(2) बािधतः = .......... ( समानाथाकपदम् )
(क) सम्पन्नम् (ख) ऄवरुद्धः (ग) अत्मानम् (घ) ऄपहाय
ईिरम् -- (ख) ऄवरुद्धः
(3) पररवारः = .......... ( समानाथाकपदम् )
(क) सम्पूणे (ख) िनिखले (ग) त्यक्त्वा (घ) कु टु म्बकम्
ईिरम् - (घ) कु टु म्बकम्
(4) समृद्धम् = ............ ( समानाथाकपदम् )
(क) ऄपहाय (ख) परस्य (ग) त्यक्त्वा (घ) सम्पन्नम्
ईिरम् -- (घ) सम्पन्नम्
(5) ऄन्यस्य = .......... ( समानाथाकपदम् )
(क) कष्टम् (ख) परस्य (ग) बािधतः (घ) िनिखले
ईिरम् - (ख) परस्य

 िवलोमपदािन बहुिवकल्पात्मक :प्रश्ना:

(1) दानवाः x ……… ( िवलोमपदम् )


(क) मानवाः (ख)िमत्रता: (ग) ऄधुना: (घ) ईदारा:
ईिरं - (क) मानवाः
(2) सुिखनः x ……… ( िवलोमपदम् )
(क) िमत्रन: (ख) दानवाः (ग) दुःिखनः (घ) ऄधुना
ईिरं - (ग) दुःिखनः
(3) ऄधुना x ……… ( िवलोमपदम् )
(क) पुरा (ख) गृहीत्वा (ग) दुःखम् (घ) त्यक्त्वा
ईिरं - (क) पुरा
(4) ित्रुतायाः x ……… ( िवलोमपदम् )
(क) बािधतः (ख) सम्पूणे (ग) सुखम् (घ) िमत्रतायाः
ईिरं - (घ) िमत्रतायाः
(5) गृहीत्वा x ……… ( िवलोमपदम् )
(क) ऄपहाय (ख) पुरा (ग) िमत्रतायाः (घ) मानवाः
ईिरं - (क) ऄपहाय

 ईपपदिवभिक्तप्रयोग: ( बहुिवकल्पात्मक :प्रश्ना:)

(1).......... पररतः भक्ताः सिन्त । (मिन्दर)


(क)मिन्दरे (ख) मिन्दरम् (ग) मिन्दरस्य (घ) मिन्दरे ण
ईिरं - (ख) मिन्दरम्
(2) ......... ईभयतः गोपालकाः । (कृ ष्ण)

(क) कृ ष्णस्य (ख) कृ ष्णम् (ग) कृ ष्णः (घ) कृ ष्णेन


ईिरं - (ख) कृ ष्णम्
(3) ......... ईपरर खगाः । (वृक्ष)
(क) वृक्षः (ख) वृक्षे (ग) वृक्षम् (घ) वृक्षस्य
ईिरं - (घ) वृक्षस्य
(4) ............ नमः । (सूया)
(क) सूयास्य (ख) सूयाम् (ग) सूये (घ) सूयााय
ईिरं - (घ) सूयााय

.
एकादिः पाठः

समवायो िह दुजय
ा ः

पाठस्य पररचय: - समवायो िह दुजय


ा : = पाठ में हम लोग एकता की ििक्त के बारे में पढ़ेंगे कक एकता ऄजेय
होती है |एकता को कभी भी असानी से हराया नहीं जा सकता है आसिलए एकता दुजेय है |

पाठस्य सार: - पुरा एकिस्मन् वृक्षे एका चटका प्रितवसित स्म। कालेन तस्याः सन्तितः जाता। एकदा किश्चत्
प्रमिः गजःतस्य वृक्षस्य ऄधः अगत्य तस्य िाखां िुटडेन ऄत्रोटयत्। चटकायाः नीडं भुिव ऄपतत्। तेन ऄटडािन
िविीणाािन।ऄथ सा चटका व्यलपत्। तस्याः िवलापं श्रुत्वा काष्ठकू टः नाम खगः दुःखेन ताम् ऄपृच्छत्-“भरे,
ककमथं िवलपिस ?” आित।

सरलाथाः- पुराने समय में एक वृक्ष पर एक िचिड़या रहती थी। समय पर ईसकी सन्तान हुइ। एक बार ककसी
मतवाले हाथी ने ईस वृक्ष के नीचे अकर ईसकी िाखा को सूंड से तोड़ कदया। िचिड़या का घोंसला भूिम पर िगर
गया। ईससे ऄंडे टूट गए। ऄब वह िचिड़या रोने लगी। ईसका िवलाप सुनकर काष्ठकू ट नाम के पक्षी ने दुःखपूवाक
ईससे पूछा-“भली िचिड़या, क्यों रो रही हो ?”

2. चटकावदत्-“दुष्टन
े ैकेन गजेन मम सन्तितः नाििता। तस्य गजस्य वधेनैव मम दुःखम् ऄपसरे त्।” ततः काष्ठकू टः
तां वीणारवा-नाम्न्याः मिक्षकायाः समीपम् ऄनयत् । तयोः वाताा श्रुत्वा मिक्षकावदत्-“ममािप िमत्रं मटडू कः
मेघनादः ऄिस्त। िीघं तमुपेत्य यथोिचतं कररष्यामः।” तदानीं तौ मिक्षकया सह गत्वा मेघनादस्य पुरः सवं
वृिान्तं न्यवेदयताम्।

सरलाथा:-िचिड़या बोली-“एक दुष्ट हाथी ने मेरी सन्तान नष्ट कर दी। ईस हाथी के वध से ही मेरा दुःख दूर
होगा।” ईसके बाद काष्ठकू ट ईस (िचिड़या) को वीणारवा नाम वाली मक्खी के पास ले गया। ईन दोनों की
बातचीत सुनकर मक्खी ने कहा-“मेरा भी मेघनाद नाम वाला एक मेंढक िमत्र है। जल्दी ही ईसके पास जाकर
जो ईिचत होगा वही करें गे।” तब ईन दोनों ने मक्खी के पास जाकर मेघनाद के सामने सारा समाचार कह
कदया।

3. मेघनादः ऄवदत्-“यथाहं कथयािम तथा कु रुतम्। मिक्षके ! प्रथमं त्वं मध्याह्ने तस्य गजस्य कणे िब्दं कु रु, येन
सः नयने िनमील्य स्थास्यित। तदा काष्ठकू टः चञ्च्वा तस्य नयने स्फोटियष्यित। एवं सः गजः ऄन्धः भिवष्यित।
तृषाताः सः जलाियं गिमष्यित। मागे महान् गिाः ऄिस्त। तस्य ऄिन्तके ऄहं स्थास्यािम िब्दं च कररष्यािम। मम
िब्देन तं गतं जलाियं मत्वा स तिस्मन्नेव गते पितष्यित |
मररष्यित च।” ऄथ तथाकृ ते सः गज: मध्याह्ने मटडू कस्य िब्दम् ऄनुसृत्य महतः गतास्य ऄन्तः पिततः मृतः च।
तथा चोक्तम् ‘बहनामप्यसाराणां समवायो िह दुजायः।

सरलाथा:-मेघनाद ने कहा-“जैसा मैं कहता हँ वैसा तुम दोनों करो। हे मक्खी, पहले तुम दोपहर के समय ईस
हाथी के कान में िब्द करना (िभनिभनाना) िजससे वह दोनों अँखें बंद करके रुक जाएगा। तब काष्ठकू ट चोंच से
ईसकी दोनों अँखें फोड़ देगा। आस प्रकार वह ऄन्धा हो जाएगा। प्यास से पीिड़त वह (हाथी) तालाब पर
जाएगा। रास्ते में बड़ा गड्ढा है। ईस (गड्ढे) के पास मैं रुक जाउँगा और िब्द (टरा टरा ) करूँगा।

मेरी अवाज से ईस गड्ढे को तालाब समझकर वह (हाथी) ईस गड्ढे में िगर जाएगा और मर जाएगा।” आसके बाद
वैसा करने पर वह हाथी दोपहर में मेंढक की अवाज का ऄनुसरण करके बड़े गड्ढे के ऄन्दर िगर गया और मर
गया। और कहा भी गया है ‘ऄनेक िनबालों का संगठन करठनता से जीतने योग्य होता है।’ ऄथाात् संगठन में ही
ििक्त होती है।

िब्दाथााः-
पुरा = पहले, पुराने समय में।
प्रितवसित स्म = रहती थी।
कालेन = समय पर।
सन्तितः = सन्तान।
प्रमिः = मतवाला, मदमस्त।
ऄधः = नीचे।
अगत्य = अकर।
िुटडेन = सूड
ं से।
ऄत्रोटयत् = तोड़ कदया।
नीडम् = घोंसला।
भुिव = धरती पर/भूिम पर।
ऄपतत् = िगर गया।
िविीणाािन = नष्ट हो गए।
व्यलपत् (िव + ऄलपत्) = िवलाप करने लगी/रोने लगी।
िवलपिस = रो रही हो/िवलाप कर रही हो।
वधेनव ै (वधेन + एव) = वध से ही।
ऄपसरे त् = दूर होगा।
वीणारवा नाम्न्याःमिक्षकायाः = वीणारवा नाम की मक्खी के ।
तमुपत्े य (तम् + ईपेत्य) = ईसके पास जाकर ।
यथोिचतम् = जो, ईिचत हो।
तदानीम् = तब।
न्यवेदयताम् = (ईन दोनों ने) िनवेदन ककया।
मध्याह्ने = दोपहर में।
िनमील्य = बन्द करके ।
स्थास्यित = रुक जाएगा।
स्फोटियष्यित = फोड़ देगा।
तृषाताः (तृषा + अताः) = प्यास से पीिड़त।

प्रश्न 1. प्रश्नानाम् ईिरािण एकपदेन िलखत-

(क) वृक्षे का प्रितवसित स्म ?


ईिर = चटका
(ख) वृक्षस्य ऄधः कः अगतः ?
ईिर = गजः
(ग) गजः के न िाखाम् ऄत्रोटयत् ?
ईिर = िुटडेन
(घ) काष्ठकू ट: चटकां कस्याः समीपम् ऄनयत् ?
ईिर = मिक्षकायाः
(ङ) मिक्षकायाः िमत्रं कः असीत् ?
ईिर = मटडू क:

प्रश्न 2. रे खािड्कतािन पदािन अधृत्य प्रश्निनमााणं कु रुत-


(क) कालेन चटकायाः सन्तितः जाता।
ईिर = कालेन कस्याः सन्तितः जाता ?
(ख) चटकायाः नीडं भुिव ऄपतत्।
ईिर = चटकायाः कक भुिव ऄपतत् ?
(ग) गजस्य वधेनैव मम दुःखम् ऄपसरे त्।
ईिर = कस्य वधेनैव मम दुःखम् ऄपसरे त् ?
(घ) काष्ठकू टः चञ्च्वा गजस्य नयने स्फोटियष्यित।
ईिर = काष्ठकू ट: के न गजस्य नयने स्फोटियष्यित ?

प्रश्न 3. मञ्जूषातः कक्रयापदािन िचत्वा ररक्तस्थानािन पूरयत -

कररष्यािम, गिमष्यित, ऄनयत्, पितष्यित, स्फोटियष्यित, त्रोटयित।

(क) काष्ठकू टः चञ्च्वा गजस्य नयने …….


(ख) मागे िस्थतः ऄहमिप िब्दं …………..
(ग) तृषाताः गजः जलाियं………….
(घ) गजः गते ………………
(ङ) काष्ठकू टः तां मिक्षकायाः समीपम् …….
(च) गजः िुटडेन वृक्षिाखां ……………
ईिर
(क) काष्ठकू ट: चञ्च्वा गजस्य नयने स्फोटियष्यित ।
(ख) मागे िस्थतः ऄहमिप िब्दं कररष्यािम ।
(ग) तृषाताः गजः जलाियं गिमष्यित ।
(घ) गजः गते पितष्यित ।
(ङ) काष्ठकू टः तां मिक्षकायाः समीपम् ऄनयत् ।
(च) गजः िुटडेन वृक्षिाखां त्रोटयित ।

प्रश्न 4. प्रश्नानाम् ईिरािण एकवाक्येन िलखत -


(क) चटकायाः िवलापं श्रुत्वा काष्ठकू टः तां ककम् ऄपृच्छत् ?
ईिर = स: ऄपृच्छत्-“भरे ककमथं िवलपिस ?
(ख) चटकायाः काष्ठकू टस्य च वाताा श्रुत्वा मिक्षका ककम् ऄवदत् ?
ईिर = मिक्षका ऄवदत्-“ममािप िमत्रं मटडू कः मेघनादः ऄिस्त, िीघ्रं तम् ईपेत्य यथोिचतं
कररष्यामः।”
(ग) मेघनादः मिक्षकां ककम् ऄवदत् ?
ईिर = मेघनादः ऄवदत्-“यथाहं कथयािम तथा कु रुतम्।”
(घ) चटका काष्ठकू टं ककम् ऄवदत् ?
ईिर = चटका ऄवदत्-“एके न दुष्टन
े गजेन मम सन्तित: नाििताः।
प्रश्न 5. ईदाहरणमनुसत्ृ य ररक्तस्थानािन पूरयत-.
(क) पुरुषः एकवचनम् िद्ववचनम् बहुवचनम्
यथा- प्रथमपुरुषः परठष्यित परठष्यतः परठष्यिन्त
प्रथमपुरुषः ................. पितष्यतः ...............
प्रथमपुरुषः ............... ................. मररष्यिन्त

(ख) पुरुषः एकवचनम् िद्ववचनम् बहुवचनम्


यथा- मध्यमपुरुषः गिमष्यिस गिमष्यथः गिमष्यथ
मध्यमपुरुषः .................. धािवष्यथः ...............
मध्यमपुरुषः ................ ................. क्रीिडष्यथ

ग) पुरुषः एकवचनम् िद्ववचनम् बहुवचनम्


यथा- ईिमपुरुषः लेिखष्यािम लेिखष्यावः लेिखष्यामः
ईिमपुरुष .................. हिसष्यावः ...............
ईिमपुरुषः .................. .................. रक्ष्यामः
ईिर-5.
(क) पुरुषः एकवचनम् िद्ववचनम् बहुवचनम्
प्रथमपुरुषः परठष्यित परठष्यतः परठष्यिन्त
प्रथमपुरुषः पितष्यित पितष्यतः पितष्यिन्त
प्रथमपुरुषः मररष्यित मररष्यतः मररष्यिन्त

(ख) पुरुषः एकवचनम् िद्ववचनम् बहुवचनम्


मध्यमपुरुषः गिमष्यिस गिमष्यथः गिमष्यथ
मध्यमपुरुषः धािवष्यिस धािवष्यथः धािवष्यथ
मध्यमपुरुषः क्रीिडष्यिस क्रीिडष्यथः क्रीिडष्यथ

(ग) पुरुषः एकवचनम् िद्ववचनम् बहुवचनम्


ईिमपुरुषः लेिखष्यािम लेिखष्यावः लेिखष्यामः
ईिमपुरुषः हिसष्यािम हिसष्यावः हिसष्यामः
ईिमपुरुषः रक्ष्यािम रक्ष्यावः रक्ष्यामः

प्रश्न 6. ईदाहरणानुसारं ‘स्म’ िब्दं योजियत्वा भूतकािलककक्रयां रचयत-


यथा ऄवसत् – वसित स्म।
ऄपठत् – ………….।
ऄत्रोटयत् – ………….।
ऄपतत् – ………….।
ऄपृच्छत् – ………….।
ऄवदत् – ………….।
ऄनयत् – ………….।

ईिरम् -
ऄपठत् – पठित स्म।
ऄत्रोटयत् – त्रोटयित स्म।
ऄपतत् – पतित स्म।
ऄपृच्छत् – पृच्छित स्म।
ऄवदत् – वदित स्म।
ऄनयत् – नयित स्म।

प्रश्न 7. कोष्ठकात् ईिचतं पदं िचत्वा ररक्त्स्थानािन पूरयत -


(क) ………… बािलका मधुरं गायित। (एकम्, एका, एक:)
(ख) ………… कृ षकाः कृ िषकमाािण कु वािन्त। (चत्वारः, चतस्रः, चत्वारर)
(ग) ………………… पत्रािण सुन्दरािण सिन्त। (ते, ताः, तािन)
(घ) धेनवः दुग्धं …………… । (ददाित, ददित, ददिन्त)
(ङ) वयं संस्कृ तम् …………. (ऄपठत्, ऄपठन्, ऄपठाम)
ईिर
(क) एका बािलका मधुरं गायित।
(ख) चत्वारः कृ षकाः कृ िषकमाािण कु वािन्त ।
(ग) तािन पत्रािण सुन्दरािण सिन्त।
(घ) धेनवः दुग्धं ददित।
(ङ) वयं संस्कृ तम् ऄपठाम।

( बहुिवकल्पीया : प्रश्ना: )

(1) वृक्षे का प्रितवसित स्म ?


(A) चटका (B) मिहला (C) बािलका (D) कोककला।
ईिरम् - (A) चटका
(2) वृक्षस्य ऄधः कः अगतः ?
(A) भल्लूक: (B) गदाभः (C) गजः (D) त्तसहः।
ईिरम् - (C) गजः

(3) गजः के न िाखाम् ऄत्रोटयत् ?


(A) पादेन (B) िुटडेन (C) कणेन (D) दन्तेन।
ईिरम् - (B) िुटडेन

(4) काष्ठकू टः चटकां कस्याः समीपम् ऄनयत् ?


(A) न्यायाधीिस्य (B) काष्ठकू टस्य (C) काकस्य (D) मिक्षकायाः।
ईिरम् - (D) मिक्षकायाः।

(5) मिक्षकायाः िमत्रं कः असीत् ?


(A) मटडू कः (B) काकः (C) काष्ठकू टः (D) गदाभः
ईिरम् - (A) मटडू कः

(6) चटकायाः नीडं कु त्र ऄपतत् ?


(A) भुिव (B) अकािे (C) प्रासादे (D) राजभवने।
ईिरम् - (A) भुिव

(7) काष्ठकू ट: के न गजस्य नयने स्फोटियष्यित ?


(A) पादेन (B) पक्षण (C) चञ्च्वा (D) पत्रेण।
ईिरम् - (C) चञ्च्वा

(8) कालेन कस्याः सन्तितः जाता ?


(A) काष्ठकू टस्य (B) चटकायाः (C) काकस्य (D) मटडू कस्य।
ईिरम् - (B) चटकायाः

9. कस्याः ऄटडािन िविीणाािन?


(A) लतायाः (B) चटकायाः (C) मिक्षकाया: (D) काष्ठकू टस्य
ईिरम् - (B) चटकायाः

10. मिक्षकायाः नाम ककम् असीत्?


(A) मेघनादः (B) मधुररमा (C) वीणारवा (D) सरस्वती
ईिरम् - (C) वीणारवा

11. कः गजस्य नयने स्फोटियष्यित?


(A) काकः (B) मटडू कः (C) त्तसहः (D) काष्ठकू टः
ईिरम्- (D) काष्ठकू टः
12. गजः कस्य ऄन्तः पिततः मृतः च?
(A) गतास्य (B) समुरस्य (C) नद्याः (D) वनस्य
ईिरम् - (A) गतास्य
13. ‘स्थास्यािम’ पदे कः लकारः?
(A) लट् (B) लृट् (C) लङ् (D) लोट्
ईिरम् - (B) लृट्
14. ‘ऄन्तः’ पदस्य िवपरीताथाकपदम् कक भवित?
(A) ऄधः (B) नीचैः (C) बिहः (D) पुरा
ईिरम् - (C) बिहः
द्वादिः पाठः
िवद्याधनम्

िवद्याधनम् (पाठ का पररचय)

प्रस्तुत पाठ में श्लोकों के द्वारा िवद्या के महत्त्व को बताया गया है। िवद्या मनुष्य का सवाश्रेष्ठ धन है। िवद्यावान्
व्यिक्त का सवात्र सम्मान होता है, िवद्या मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। िवद्या कल्पतरु के समान मनुष्य के सभी
काया पूणा करती है। िवद्याहीन मनुष्य पिु के समान होता है। ऄतः मनुष्य को श्रेष्ठ प्राणी बनने के िलए िवद्या
रूपी धन को संिचत करना चािहए।

िवद्याधनम्

िवद्या कल्पलता की तरह होती है। आस पाठ में िवद्या का महत्त्व बताया गया है। यथा िवद्या को चोर चुरा नहीं
सकता, राजा छीन नहीं सकता और भाइ बाँट नहीं सकता। िवद्या सभी धनों में श्रेष्ठ है। आसे व्यय ककए जाने पर
यह बढ़ती है। िवद्या मनुष्य का सौन्दया है। यह गुप्त से गुप्त धन है। यह ऄनेक भोगों को देने वाली है तथा सुख
प्रदान करने वाली है। राजाओं में ज्ञान की पूजा होती है तथा धन की नहीं।मनुष्य की िोभा न तो हार से बढ़ती
है और न ही पुष्प ऄथवा ऄङ्गराग के द्वारा बढ़ती है। मनुष्य की िोभा ज्ञान से बढ़ती है। िवद्या माता की तरह
रक्षा करती है, िपता की तरह िहत का साधन करती है। यह िोभा को बढ़ाती है। िवद्या मनुष्य का सभी प्रकार
से भला करती है।

प्रथमः श्लोकः
न चौरहायं न च राजहायाम् ।
न भ्रातभाज्यं न च भारकारर।।
व्यये कृ ते वधात एव िनत्यं।
िवद्याधनं सवाधनप्रधानम्॥
िब्दाथााः
(1) चौरहायाम् = चोरों के द्वारा चुराने योग्य।
(2) राजहायाम् = राजा के द्वारा छीनने योग्य।
(3) भ्रातृभाज्यम् = भाआयों के द्वारा बाँटने योग्य।
(4) भारकारर = भार (बोझ) बढ़ाने वाली।
(5) वधाते = बढ़ता है।
(6) िनत्यं = हमेिा।
(7) प्रधानम् = प्रमुख। (सवोिम)
सरलाथा: -
न चोरों के द्वारा चुराने योग्य है और न राजा के द्वारा छीनने योग्य है, न भाआयों के द्वारा बाँटने योग्य है और न
भार (बोझ) बढ़ाने वाला है। हमेिा खचा करने पर बढ़ता ही है। िवद्या रुपी धन सभी धनों में प्रमुख (सवोिम)
है।

िद्वतीयः श्लोकः

िवद्या नाम नरस्य रूपमिधकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्।


िवद्या भोगकरी यिः सुखकरी िवद्या गुरूणां गुरुः।।
िवद्या बन्धुजनो िवदेिगमने िवद्या परा देवता।
िवद्या राजसु पूज्यते न िह धनं िवद्या-िवहीनः पिुः॥

िब्दाथााः
(1) प्रच्छन्नगुप्तम् =ऄत्यन्त गुप्त।
(2) भोगकरी = भोग का साधन ईपलब्ध कराने वाली।
(3) परा = सबसे बड़ी।
(4) गुरूणां = गुरुओं का।
(5) राजसु = राजाओं में।
(6) िवद्या-िवहीनः = िवद्या से रिहत।
सरलाथाः
िवद्या मनुष्य का ऄिधक (ऄच्छा) स्वरूप है, छु पा हुअ गोपनीय धन है, िवद्या भोग का साधन ईपलब्ध कराने
वाली है, कीर्थत और सुख प्रदान कराने वाली है, िवद्या गुरुओं का गुरु है। िवद्या िवदेि जाने पर बन्धु (िमत्र) के
समान होती है, िवद्या सबसे बड़ा देवता है। िवद्या राजाओं में पूजी जाती है, धन नहीं। िवद्या से रिहत (मनुष्य)
पिु के समान होता है।

तृतीयः श्लोकः
के यूराः न िवभूषयिन्त पुरुषं हारा न चन्रोज्ज्वला।
न स्नानं न िवलेपनं न कु सुमं नालङ् कृ ता मूधजा ाः।।
वाटयेका समलङ्करोित पुरुषं या संस्कृ ता धायात।े
क्षीयन्तेऽिखलभूषणािन सततं वाग्भूषणं भूषणम् ॥

िब्दाथााः
(1) के यूरा: = बाजूबन्द।
(2) चन्रोज्ज्वला (चन्र+ईज्ज्वला) = चन्रमा के समान चमकदार।
(3) िवलेपनम् = िरीर पर लेप करने योग्य सुगिन्धत-रव्य। (चन्दन, के सर अकद)
(4) मूधाजाः = वेणी/चोटी।
(5) नालङ्कृ ता (न + ऄलङ्कृ ता) = नहीं सजाया हुअ।
(6) वाटयेका (वाणी+एका) = एकमात्र वाणी।
(7) समलङ्करोित ( सम्+ऄलङ्करोित) = ऄच्छी तरह सुिोिभत करती है।
(8) संस्कृ ता = पररष्कृ त। (संस्कारयुक्त)
(9) धायाते = धारण की जाती है।
(10) क्षीयन्तेऽिखलभूषणािन (क्षीयन्ते ऄिखलभूषणािन) = सम्पूणा अभूषण नष्ट हो जाते हैं।
(11) वाग्भूषणम् = वाणी का अभूषण।
सरलाथाः

मनुष्य को न बाजूबन्द सुिोिभत करते हैं, न चन्रमा के समान चमकदार हार, न स्नान, न िरीर पर सुगिन्धत
लेपन (चन्दन, के सर अकद), न फू ल सुिोिभत करते हैं और ना ही सजाइ गइ चोटी ही। मनुष्य को एकमात्र
वाणी, भली प्रकार सुिोिभत करती है, जो पररष्कृ त (संस्कारयुक्त) रूप में धारण की जाती है (व्यवहार में लाइ
जाती है)। ऄन्य सभी अभूषण नष्ट हो जाते हैं, (परन्तु) वाणी का अभूषण सदैव रहने वाला अभूषण है।

चतुथःा श्लोकः

िवद्या नाम नरस्य कीर्थतरतुला भाग्यक्षये चाश्रयः।


धेनःु कामदुघा रितश्च िवरहे नेत्रं तृतीयं च सा।।
सत्कारायतनं कु लस्य मिहमा रत्नैर्थवना भूषणम्।
तस्मादन्यमुपक्ष्े य सवािवषयं िवद्यािधकारं कु रु॥

िब्दाथााः

(1) कीर्थतरतुला (कीर्थतः + ऄतुला) = ऄतुल्य यि।


(2) कामदुघा = आच्छाओं की पूर्थत करने वाली (one that fulfils all aspiration/desires).
(3) रितश्च (रितः + च) = और प्रेम।
(4) सत्कारायतनम (सत्कार + अयतनम) = सम्मान का स्थान ऄथाात् सम्मान प्रदान करने वाली।
(5) रत्नैर्थवना (रत्नैः+िवना) (मूल्यवान.) = रत्नों के िबना।
(6) िवद्यािधकारम् -(िवद्या + ऄिधकारम्) = िवद्या पर प्रभुत्व।
सरलाथाः

िवद्या वास्तव में (नाम) मनुष्य की ऄतुल्य कीर्थत है, भाग्यक्षय (बदककस्मती) होने पर एक अश्रय/सहारा है।
कामनापूर्थत करने वाली गाय ऄथाात् कामधेनु है। िवरह में प्रेम करती है और वही मनुष्य की तीसरी अँख होती
है। सम्मान का स्थान है। कु ल की मिहमा है, (बहुमूल्य) रत्नों के िबना भी अभूषण है। ऄतः ऄन्य सब बातों को
छोड़ िवद्या पर ऄपना प्रभुत्व कर लो।

िवकल्पात्मक प्रश्ना: -

(1) सवाधनप्रधानम् कक ?
(क) धनं (ख) राज्ञ (ग) िवद्या (घ) भ्राता
ईिरम् = (ग) िवद्या।

(2) कक व्यये कृ ते वधात?



(क) िवद्याधनं (ख) धनं (ग) तस्याः धनं (घ) भ्रातुः धनं
ईिरम् = (क) िवद्याधनं।

(3) गुरूणाम् गुरुः का ?


(क) धनं (ख) राज्ञ (ग) िवद्या (घ) भ्राता
ईिरम् = (ग) िवद्या।

(4) कः पिुसमान: ?
(क) राजसुपूज्यते (ख) बंधुजना: (ग) भ्राता (घ) िवद्याहीनः
ईिरम् = (घ) िवद्याहीनः।

(5) वाटयेका कं समलंकरोित ?


(क) िवद्याहीनम् (ख) पुरुषं (ग) भूपत्तत (घ) बंधुजनम्
ईिरम् = (ख) पुरुषं।

(6) ऄस्मािभ: कक करणीयम् ?


(क) िवद्यािधकारं करणीयम् (ख) मिहमा करणीयम् (ग) िवद्यािधकारं न करणीयम् (घ) मिहमा न
करणीयम्
ईिरम् = (क) िवद्यािधकारं करणीयम्।
(7) कक धनं सवाधनप्रधानम् ?
(क) िवद्याधनम् (ख) दानधनम् (ग) रत्नधनम् (घ) रूपधनम्
ईिरम् = (क) िवद्याधनम्।

(8) राजसु का पूज्यते ?


(क) धनम् (ख) िवद्या (ग) ििक्तः (घ) सुन्दरता
ईिरम् = (ख) िवद्या।

(9) कक भूषणं सततं भूषणम् ?


(क) वाग्भूषणम् (ख) िौयाभूषणम् (ग) धनभूषणम् (घ) स्वणााभूषणम्
ईिरम् = (क) वाग्भूषणम्।

(10) का कदक्षु कीर्थतम् िवतनोित ?


(क) माता (ख) ऄध्यािपका (ग) िवद्या (घ) देवी
ईिरम् = (ग) िवद्या।

(11) ‘राजसु'पदे का िवभिक्तः ?


(क) प्रथमा (ख) सप्तमी (ग) षष्ठी (घ) तृतीया
ईिरम् = (ख) सप्तमी।

(12) 'गुरूणाम्' पदे ककम् वचनम् ?


(क) एकवचनम् (ख) िद्ववचनम् (ग) बहुवचनम् (घ) सवाम्
ईिरम् = (ग) बहुवचनम्।

ऄधोिलिखत प्रश्नानान् एकपदेन ईिरत।

(1) संस्कृ ता का धायाते ?


ईिरम् = वाणी।
(2) कािन क्षीयन्ते ?
ईिरम् = अभूषणािन।

(3) सत्कारायतन कस्य मिहमा ?


ईिरम् = कु लस्य।

(4) िवद्या के षां गुरुः ?


ईिरम् = गुरुणाम् ।

(5) िवद्या कीदृिं धनम् ऄिस्त ?


ईिरम् = प्रच्छन्नगुप्तम्।

(6) का राजसु पूज्यते ?


ईिरम् = िवद्या।

(7) कः पिुः ?
ईिरम् = िवद्यािवहीनः।

(8) का भोगकारी ?
ईिरम् = िवद्या।

(9) व्यये कृ ते कक वधाते ?


ईिरम् = िवद्याधनम्।

(10) कामदुघा धेनुः का ?


ईिरम् = िवद्या।

रे खािङ्कत पदािन अधृत्य प्रश्निनमााणं कक्रयताम् -

(1) िवद्या राजसु पूज्यते।


(क) कु त्र (ख) के षु (ग) कान् (घ) का
ईिरम् = (घ) का।

(2) िवद्या भाग्यक्षये अश्रयः।


(क) ककम् (ख) कः (ग) का (घ) कै ः
ईिरम् = (ग) का।
(3) िवद्याधनम् सवाप्रधानम् धनम् ऄिस्त।
(क) कीदृिम् (ख) कु त्र (ग) कै ः (घ) कृ तः
ईिरम् = (क) कीदृिम्।

(4) िवद्या नाम नरस्य रुपमिधकम्।


(क) कस्य (ख) के न (ग) कया (घ) कु त्र
ईिरम् = (क) कस्य।

(5) िवद्या गुरुणां गुरुः।


(क) के न (ख) कस्य (ग) कया (घ) के षाम्
ईिरम् = (घ) के षाम्।

(6) िवद्या राजसु पूज्यते।


(क) के न (ख) के षु (ग) ककम् (घ) का
ईिरम् = (ख) के षु।

(7) िवद्या िवदेिगमने बन्धुजनः।


(क) कः (ख) का (ग) कु त्र (घ) के न
ईिरम् = (क) कः।

(8) िवद्यािवहीनः नरः पिुः ऄिस्त।


(क) कः (ख) का (ग) कया (घ) ककम्
ईिरम् = (क) कः।

(9) िवद्या कदक्षु कीर्तत तनोित।


(क) ककम् (ख) के न (ग) कु त्र (घ) का
ईिरम् = (ग) कु त्र।

(10) िपता िहते िनयुङ्क्ते ।


(क) कः (ख) का (ग) के न (घ) कु त्र
ईिरम् = (क) कः।
ररक्तस्थानािन पूरयत -

कृ ते , िवद्या , बंधुजनो , पुरुषं , प्रच्छन्न गुप्तं

(क) व्यये .......... िनत्यं वधाते एव।


(ख) िवद्या नाम नरस्य रुपम् ऄिधकं .......... धनम् ऄिस्त।
(ग) के यूराः ........... न िवभूषयिन्त।
(घ) िवद्या िवदेिगमने ..........।
(ङ) राजसु .......... पूज्यते।
ईिरम्
(क) कृ ते। (ख) प्रच्छन्नगुप्तं। (ग) पुरुषं। (घ) बंधुजनो। (ङ) िवद्या।

ईपयुक्तकथनानाम् समक्षम् "अम्" ऄनुपयुक्त कथनानाम् समक्षम् "न" आित िलखत।

(1) िवद्याधनं चौरहायाम्।


(2) िवद्या व्ययकृ ते न वधाते।
(3) वाणी पुरुषं ऄलङ्कृ तं करोित।
(4) मनुष्यस्य कीर्थततुला िवद्या।
(5) िवद्या िवदेिगमने ररपुः।
(6) सवं िवहाय िवद्यािधकारं कु रु।
(7) िवद्याधनं सवाधनेषु प्रधानम्।

ईिरम्
(1) न। (2) न। (3) अम्। (4) अम्। (5) न। (6) अम्। (7) अम्।

ऄधोिलिखतान् श्लोकांिान् परस्परं योजयत-


(खटड-क) (खटड-ग)

(क) न चौरहायं (1) िवद्या गुरूणां गुरुः


(ख) वाटयेका (2) िवभूषयिन्त पुरुषम्

(ग) के यूराः न (3) समलङ्करोित पुरुषम्

(घ) िवद्याधनं (4) न च राजहायाम्

(ङ) िवद्या भोगकरी यिः सुखकरी (5) सवाधनप्रधानम्

ईिरम्
(क) 4 (ख) 3 (ग) 2 (घ) 5 (ङ) 1

ऄधोिलिखतेषु सत्तन्ध कु रुत -

यथा = रमा + इिः = रमेिः।

(क) िपता + आव (ख) माता + आव (ग) कान्ता + आव (घ) राका + इिः (ङ) लता + आव
ईिरम्
(क) िपतेव। (ख) मातेव। (ग) कान्तेव। (घ) राके िः। (ङ) लतेव।

परठत पंद्याि:
श्लोकं परठत्वा प्रश्नानान् ईिरत -

न चौरहायं न च राजहायाम।्
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारर।।
व्यये कृ ते वधात एव िनत्यं।
िवद्याधनं सवाधनप्रधानम्॥

(क) एकपदेन ईिरत।


(1) का चौरहायं नािस्त ?
(2) भारकारर कक नािस्त ?

(ख) पूणावाक्येन ईिरत -


(1) व्ययकृ ते कक वधाते ?
(2) सवाधनप्रधानं ककम् ऄिस्त ?
(ग) यथािनदेिम् ईिरत -
(1) ‘सञ्चये’ आत्यस्य िवलोमपदं ककम् ?
(क) व्यये (ख) कृ ते (ग) च (घ) प्रधानम्

(2) "न चौरहायं" आत्यिस्मन् पदे ऄव्ययम् ऄिस्त।


(क) न (ख) चौरं (ग) हायं (घ) कोऽिप नािस्त।

(3) "व्यये कृ ते वधात"े आत्यत्र कक्रयापदं िलखत -


(क) कृ ते (ख) व्यये (ग) वधाते (घ) िून्यम्

(4)’ वधाते’ आत्यस्य बहुवचनान्तरुपं िलखत -


(क) वधान्ते (ख) वधाावहे (ग) वधािन्त (घ) वधाामहे
ईिरम्
एकपदेन ईिरत।
(1) िवद्या। (2) िवद्याधनम्।
पूणावाक्येन ईिरत।
(1) व्ययकृ ते िवद्याधनं वधाते। (2) सवाधनप्रधानं िवद्याधनं ऄिस्त।

यथािनदेिम् ईिरत-
(1) (क) व्यये। (2) (क) न। (3) (ग) वधाते। (4) (क) वधान्ते।

िवद्या नाम नरस्य रूपमिधकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्।


िवद्या भोगकरी यिः सुखकरी िवद्या गुरूणां गुरुः।।
िवद्या बन्धुजनो िवदेिगमने िवद्या परा देवता।
िवद्या राजसु पूज्यते न िह धनं िवद्या-िवहीनः पिुः॥

(क) एकपदेन ईिरत।


(1) प्रच्छन्नगुप्तं धनं ककम् ऄिस्त ?
(2) गुरुणां गुरुः का ऄिस्त ?
(ख) पूणावाक्येन ईिरत
(1) िवद्या कु त्र बंधुजनः?
(2) कः नरः पिुः?

(ग) यथािनदेिम् ईिरत -


(1) ‘राजसु’ आित पदे का िवभिक्त ?
(क) िद्वतीया (ख) पंचमी (ग) तृतीया (घ) सप्तमी

(2) ‘गुरुणां’ आत्यिस्मन् पदे वचनम् ऄिस्त ?


(क)एकवचनम् (ख) बहुवचनम् (ग) िद्ववचनम् (घ) कोऽिप नािस्त

(3) "देवता" आत्यस्य िवलोमपदं ककम् ?


(क) मानवः (ख) दानवः (ग) पुरुषः (घ) महापुरुषः

(4) "िवद्या" ऄस्य पदस्य िलङ्ग िलखत।


(क) स्त्रीिलङ्गम् (ख) नपुसंकिलङ्गम् (ग) पुिल्लङ्गम् (घ) कोऽिप नािस्त

ईिरम्

एकपदेन ईिरत।
(1) िवद्याधनम्। (2) िवद्या।

पूणावाक्येन ईिरत।
(1) िवद्या िवदेिगमने बंधुजनः। (2) िवद्या िवहीनः नरः पिुः।

यथािनदेि ईिरत।
(1) सप्तमी िवभिक्त। (2) बहुवचनम्। (3) दानवः। (4) स्त्रीिलङ्गम्।
त्रयोदिः पाठः
ऄमृतं संस्कृ तम्

पाठ का पररचय :-

प्रस्तुत पाठ में संस्कृ त-भाषा के महत्त्व का वणान है। यह भाषा संसार की भाषाओं में प्राचीनतम और ऄिधकतर
भाषाओं की जननी है। यह पररमार्थजत और वैज्ञािनक भाषा है। आसका सािहत्य संस्कृ ित का ज्ञान प्रदान करता
है। ऄतः संस्कृ ित, अचरण और श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त करने के िलए संस्कृ त ऄवश्य पढ़नी चािहए।पाठ से ‘आकारान्त
स्त्रीत्तलग’ िब्दों का ज्ञान प्राप्त होगा।

पाठ का सारांि:-

संसार की सभी भाषाओं में संस्कृ त प्राचीनतम भाषा है। यह प्रायः सभी भारतीय प्रादेििक भाषाओं की मूल
स्वीकार की गइ है। आसमें ज्ञान और िवज्ञान का खजाना सुरिक्षत है। संस्कृ त भाषा कम्प्यूटर के िलए सबसे
ईपयुक्त भाषा है। आसका सािहत्य ऄत्यिधक समृद्ध है। आसमें वेदों, िास्त्रों, पुराणों तथा ऄन्य अधुिनक िास्त्रों की
रचना हुइ है। संस्कृ त भाषा के कािलदास जैसे किव िवश्व में प्रिसद्ध हैं। संस्कृ त भाषा में ऄनेक िास्त्रों की रचना
हुइ। ऄनेक अचायों ने ईल्लेखनीय काया ककया है। अचाया भास्कर, महर्थष चरक और महर्थष सुश्रुत का नाम अज
भी अदर के साथ िलया जाता है। संस्कृ त की िविेषता सवातोमुखी है। आसका नीितिास्त्र िवश्व प्रिसद्ध है।
नीितिास्त्र में नीितिवषयक वचनों का संग्रह प्राप्त है। ये वचन मनुष्य को जीवनोपयोगी व समाजोपयोगी
व्यवहार िसखाते हैं। संस्कृ त के कारण ही भारत िवश्व का गुरु कहलाता है। आसके सवााितिायी गुणों के कारण ही
यह भाषा ऄजर-ऄमर है।

(क ) िवश्वस्य ईपलब्धासु भाषासु संस्कृ तभाषा प्राचीनतमा भाषािस्त। भाषेयं ऄनेकाषां भाषाणां जननी
मता। प्राचीनयोः ज्ञानिवज्ञानयोः िनिधः ऄस्यां सुरिक्षतः। संस्कृ तस्य महत्त्विवषये के नािप किथतम्-
‘भारतस्य प्रितष्ठे द्वे संस्कृ तं संस्कृ ितस्तथा’। आयं भाषां ऄतीव वैज्ञािनकी। के चन कथयिन्त यत् संस्कृ तमेव
सङ्गणकस्य कृ ते सवोिमा भाषा। ऄस्याः वाङ्मयं वेदःै , पुराणैः, नीितिास्त्रैः िचककत्सािास्त्राकदिभश्च
समृद्धमिस्त। कािलदासादीनां िवश्वकवीनां काव्यसौन्दयाम् ऄनुपमम्।कौरटल्यरिचतम् ऄथािास्त्रं जगित
प्रिसद्धमिस्त। गिणतिास्त्रे िून्यस्य प्रितपादनं सवाप्रथमम् अयाभट: ऄकरोत्। िचककत्सािास्त्रे चरकसुश्रुतयो:
योगदानं िवश्वप्रिसद्धम्। संस्कृ ते यािन ऄन्यािन िास्त्रािण िवद्यन्ते तेषु वास्तुिास्त्रं, रसायनिास्त्रं,
खगोलिवज्ञानं, ज्योितषिास्त्रं, िवमानिास्त्रं आत्यादीिन ईल्लेखनीयािन।

िब्दाथााः
ईपलब्धासु-ईपलब्ध भाषाओं में, प्राचीनतमा-सबसे पुरानी, भाषेयम् (भाषा+आयम् )-यह भाषा,
जननी-माता, मता-मानी गइ है, िनिधः-खजाना, प्रितष्ठे-दो प्रितष्ठाएँ/सम्मानप्रद तत्त्व, के चन-कु छ लोग,
सवोिमा-सवाश्रेष्ठ, वाङ्मयं-सािहत्य, ऄनुपमम्-ऄतुलनीय, जगित-संसार में, ऄथािास्त्रम्-ऄथािास्त्र,
गिणतिास्त्रे-गिणत िास्त्र में, िून्यस्य-िून्य का, सवाप्रथमं – सबसे पहले, योगदानम्- योगदान,
िवश्वप्रिसद्धम्- संसार में िवख्यात, खगोलिास्त्रं-ऄन्तररक्ष िास्त्र, वास्तुिास्त्रं-वास्तुिास्त्र, रसायनिास्त्रं-
रसायनिास्त्र, ज्योितषिास्त्रं-ज्योितषिास्त्र , िवमानिास्त्रं-िवमानिास्त्र, ईल्लेखनीयम्-िलखने (बताने)
योग्य.

सरलाथा :
संसार की सभी ईपलब्ध भाषाओं में संस्कृ त भाषा सबसे ऄिधक प्राचीन है। यह भाषा ऄनेक भाषाओं
की माता मानी गइ है। प्राचीन ज्ञान िवज्ञान का खजाना आसमें सुरिक्षत है। संस्कृ त के महत्त्व के िवषय
में ककसी के द्वारा कहा गया है- भारत की दो प्रितष्ठाएँ हैं- संस्कृ त और (देि की) संस्कृ ित। यह भाषा
बहुत वैज्ञािनकी है। कु छ लोग कहते हैं कक संस्कृ त ही कम्प्यूटर के िलए सवाश्रेष्ठ (सवोिम) भाषा है।
आसका सािहत्य वेदों से, पुराणों से, नीितिास्त्रों से और िचककत्सािास्त्र अकद को से सम्पन्न (पररपूणा)
है। कािलदास अकद िवश्वकिवयों का काव्य-सौन्दया ऄतुलनीय है। चाणक्य द्वारा रिचत ऄथािास्त्र
संसार में प्रिसद्ध है। गिणतिास्त्र में िून्य का प्रयोग सबसे पहले अयाभट्ट ने ककया था। िचककत्सािास्त्र
में चरक और सुश्रुत का योगदान िवश्विवख्यात है। संस्कृ त में जो दूसरे िास्त्र हैं, ईनमें वास्तुिास्त्र,
रसायनिास्त्र, ऄन्तररक्ष िवज्ञान, ज्योितषिास्त्र और िवमानिास्त्र आत्याकद ईल्लेखनीय हैं।

एकपदेन ईिरत :-

प्र.1. का भाषा प्राचीनतमा?

ईिरम् – संस्कृ तभाषा |

प्र.2. चाणक्येन रिचतं िास्त्रं ककम्?

ईिरम्:ऄथािास्त्रम् |
पूणावाक्येन ईिरत :-
प्र.1. अयाभट्टः किस्मन् िास्त्रे िून्यस्य प्रितपादनम् ऄकरोत्?

ईिरम् – गिणतिास्त्रे

प्र.2. चरकसुश्रुतयोः योगदानं किस्मन् क्षेत्रे ऄिस्त?

ईिरम्:चरकसुश्रुतयोः योगदानं िचककत्सािास्त्रे ऄिस्त


भािषक कायाम-्
प्र.1. गिणतिास्त्रे िून्यस्य प्रितपादनं सवाप्रथमम् अयाभट: ऄकरोत् | आत्यत्र कक्रयापदं िलखत |
(ऄ ) गिणतिास्त्रे (ब ) प्रितपादनं (स ) ऄकरोत् (द ) िून्यस्य
ईिरम् – ऄकरोत्
प्र.2. माता िब्दस्य पयाायपदं गद्यांिे िचत्वा िलखत -
(ऄ ) जननी (ब ) संस्कृ त (स ) िनिधः (द ) िास्त्रं
ईिरम् – जननी

प्र.3. संस्कृ तभाषा प्राचीनतमा भाषािस्त। आत्यत्र कतृापदं गद्यांिे िचत्वा िलखत –
(ऄ ) प्राचीनतमा (ब ) भाषािस्त (स ) संस्कृ तभाषा (द ) िास्त्रं
ईिरम् – संस्कृ तभाषा
प्र.4. नूतना िब्दस्य िवलोमपदं गद्यांिे िचत्वा िलखत -
(ऄ ) िनिधः (ब ) संस्कृ त (स ) प्राचीनतमा (द ) ऄतीव
ईिरम् – प्राचीनतमा

(ख) संस्कृ ते िवद्यमानाः सूक्तयः ऄ्युदयाय प्रेरयिन्त। यथा-सत्यमेव जयते, वसुधैव कु टुम्बकम्,
िवद्ययाऽमृतमश्नुते, योगः कमासु कौिलम् आत्यादयः। सवाभूतेषु अत्मवत् व्यवहारं कतुं संस्कृ तभाषा सम्यक्
ििक्षयित। के चन कथयिन्त यत् संस्कृ तभाषायां के वलं धार्थमकं सािहत्यम् वताते-एषा धारणा समीचीना नािस्त।
संस्कृ तग्रन्थेषु मानवजीवनाय िविवधाः िवषयाः समािवष्टाः सिन्त।
महापुरुषाणां मितः, ईिमजनानां धृितः सामान्यजनानां जीवनपद्धितः च वर्थणताः सिन्त।
ऄतः ऄस्मािभः संस्कृ तम् ऄवश्यमेव पठनीयम्। तेन मनुष्यस्य समाजस्य च पररष्कारः भवेत्।
ईक्तञ्च —
ऄमृतं संस्कृ तं िमत्र!
सरसं सरलं वचः।

भाषासु महनीयं यद्


ज्ञानिवज्ञानपोषकम्॥

िब्दाथााः
िवद्यमानाः-िवद्यमान, ऄ्युदयाय-भौितक ईन्नित के िलए, सत्यमेव (सत्यम् + एव)-सत्य ही, वसुधैव (वसुधा +
एव)-पृथ्वी ही, िवद्ययाऽमृतम् (िवद्यया + ऄमृतम्)-िवद्या द्वारा ऄमरत्व, ऄश्नुते-प्राप्त करता है, कमास-ु कमों में,
सवाभूतेष-ु सब प्रािणयों के प्रित, सम्यक् भली-भाँित, के चन-कु छ, धारणा-सोच, समीचीना-ईिचता, समािवष्टाः-
समावेि (समाये हुए), मित:-बुिद्ध, धृितः - धैया, जीवनपद्धितः-जीवन की प्रणाली,पररष्कारः-िुिद्ध, वचः-वाणी,
महनीयम्-अदरणीय, पूज्य, पोषकम्-पोषण करने वाला.
सरलाथा :
संस्कृ त (सािहत्य) में िवद्यमान सूिक्तयाँ भौितक ईन्नित के िलए प्रेररत करती हैं। जैसे- ‘सत्य की ही सदा िवजय
होती है’ ‘सारी पृथ्वी ही एक छोटा सा पररवार है’, ‘िवद्या द्वारा ऄमरत्व की प्रािप्त होती है (ऄथाात् िवद्या द्वारा
मनुष्य ऄमर हो जाता है)’ ‘कमों में कौिल/िनपुणता ही योग है’ आत्याकद। सब के प्रित ऄपने जैसा व्यवहार करने
के िलए संस्कृ त भाषा ऄच्छी तरह से ििक्षा देती है। कु छ लोग कहते हैं कक संस्कृ त भाषा में के वल धार्थमक
सािहत्य है-यह सोच (धारणा) ईिचत नहीं है। संस्कृ त ग्रन्थों में मानव जीवन के िलए िविभन्न िवषयों का
समावेि (समाए हुए) है। महापुरुषों की बुिद्ध, सज्जनों का धैया और सामान्य मनुष्यों की जीवन प्रणाली (पद्धित)
वर्थणत की गइ है। आसिलए हमारे द्वारा संस्कृ त ऄवश्य ही पढ़ने योग्य है ऄथाात् हमें संस्कृ त ऄवश्य पढ़नी
चािहए। िजससे मानव की और समाज की िुिद्ध हो। और कहा गया है िमत्र संस्कृ त ऄमृत है। सरस और सरल
वाणी है। भाषाओं में जो सम्मान के योग्य है और ज्ञान एवं िवज्ञान की पोषक (पोषण करने वाली) है।

एकपदेन ईिरत-

प्र.1. संस्कृ त भाषा कक ििक्षयित ?


ईिरम्- व्यवहारं |
प्र.2. संस्कृ तभाषा कीदृिं व्यवहारं ििक्षयित ?
ईिरम् - अत्मवत् |
पूणावाक्येन ईिरत :-
प्र.1 . संस्कृ तभाषा के षु अत्मवत् व्यवहारं ििक्षयित ?
ईिरम्- संस्कृ तभाषा सवाभूतष
े ु अत्मवत् व्यवहारं ििक्षयित |
प्र.2 . के चन कक कथयिन्त ?
ईिरम् – के चन कथयिन्त यत् संस्कृ तभाषायां के वलं धार्थमकं सािहत्यम् वताते |
भािषक कायाम-्
प्र.1 सूक्तयः ऄ्युदयाय प्रेरयिन्त। आत्यत्र कतृापदं गद्यांिे िचत्वा िलखत –
(ऄ ) प्रेरयिन्त (ब ) ऄ्युदयाय (स ) सूक्तयः (द ) न कोऽिप
ईिरम् – सूक्तयः
प्र.2 . संस्कृ तभाषा सम्यक् ििक्षयित। आत्यत्र कक्रयापदं िलखत |
(ऄ ) ििक्षयित (ब ) संस्कृ तभाषा (स ) सम्यक् (द ) न कोऽिप
ईिरम् – ििक्षयित
प्र.3. वदिन्त िब्दस्य समानाथाकपदं गद्यांिात् िचत्वा िलखत -
(ऄ ) प्रेरयिन्त (ब ) कथयिन्त (स ) ििक्षयित (द ) न कोऽिप
ईिरम् – कथयिन्त
प्र.4. ‘ ऄरर:’ िब्दस्य िवलोमपदं गद्यांिात् िचत्वा िलखत -
(ऄ ) ऄमृतं (ब ) सरसं (स ) सरलं (द ) िमत्रम्
ईिरम् – िमत्रम्

ऄितररक्त प्रश्नोिरािण:-
प्रश्न िनमााणं :-
I.िनदेिा:- रे खांककत पदािन अधृत्य प्रश्निनमााणं कु रुत –
(1 ) संस्कृ तं प्राचीनतमा भाषा |
(ऄ ) कः (ब ) का (स ) के षाम् (द ) के न
ईिरम् : (ब ) का
(2 ) संस्कृ तं संगणकस्य कृ ते सवोिमा भाषा |
(ऄ ) कः (ब ) के न (स ) ककम् (द ) कस्य
ईिरम् : (स ) ककम्
(3 ) अयाभट्ट: िून्यस्य प्रितपादनम् ऄकरोत् |
(ऄ ) कः (ब ) कु त्र (स ) कस्य (द ) ककम्
ईिरम् : (ऄ ) कः
II. िनदेिा:- मञ्जूषातः समानाथाकपदािन िचत्वा िलखत
मञ्जूषा-सािहत्यं, पररवार: ,कोष:, किथतम् , वाणी, िवश्वे,
िनिध: -----------------------
वचः -----------------------
वाङ्मयं ------------------------
जगित ------------------------
कु टुम्बकम् -----------------------
ईक्तम् -----------------------
ईिरािण:- िनिध: कोषः
वचः वाणी
वाङ्मयं सािहत्यं
जगित िवश्वे
कु टुम्बकम् पररवार:
ईक्तम् किथतम्
III. िनदेिा:- ऄधोिलिखतानां पदानां सत्तन्ध/सिन्धिवच्छेदं कु रुत -
(ऄ ) भाषेयं (ब ) सवोिमा (स ) वसुधा + एव (द ) के न+ ऄिप
ईिरम् - (ऄ ) भाषा + आयं (ब ) सवा + ईिमा (स ) वसुधैव (द ) के नािप
IV. िनदेिा:- ऄधोिलिखतानां िब्दरूपािण िनर्ददष्टिवभक्ते : ऄनुसारं िलखत –
(क ) मित िद्वतीया िवभिक्तः
(ख ) प्रकृ ित तृतीया िवभिक्तः
ईिरम् -
िवभिक्त: एकवचनं िद्ववचनम् बहुचनम्
िद्वतीया िवभिक्तः मितम् मती मती:
तृतीया िवभिक्तः प्रकृ त्यै प्रकृ ित्याम् प्रकृ ितिभ:
V. िनदेिा:- ईपयुक्तकथनानां समक्षम् ‘अम्’, ऄनुपयुक्त कथनानां समक्षम् ‘न’ आित िलखत –
(ऄ ) कौरटल्यरिचतम् ज्योितषिास्त्रं जगित प्रिसद्धमिस्त।
(ब ) गिणतिास्त्रे िून्यस्य प्रितपादनं सवाप्रथमम् अयाभट: ऄकरोत्।
ईिरािण:- (ऄ ) न
(ब ) अम्
चतुदि
ा ः पाठः

ऄनाररकायाः िजज्ञासा ( ऄनाररका की िजज्ञासा )

ऊकारान्तपुिँ ल्लङ्गः

पाठसारः

प्रस्तुत पाठ की कथा के द्वारा बच्चों के मन में ईठने वाले भावों एवं िवचारों का वणान ककया गया है। आस पाठ में
ऄप्रत्यक्ष रूप में ऄनाररका के माध्यम से कहा गया है कक पुल का ईद्घाटन ईसके िनमााणकताा द्वारा होना चािहए।
पाठ से ‘ऊकारान्त’ िब्द रूपों का ज्ञान प्राप्त होता है।

पुल के ईद्घाटन के िलए मन्त्री जी अ रहे हैं। ऄनाररका ने पूछा कक क्या मन्त्री ने पुल का िनमााण ककया है ?
ईसके िपता ने बताया कक पुल का िनमााण मजदूर करते हैं। ईसके िपता ने अगे बताया कक प्रजा सरकार को धन
देती है। ईस धन से पत्थर आत्याकद सामग्री खरीदी जाती है। आससे पुल का िनमााण होता है। आस प्रकार ईसके
िपता ने ऄनाररका की िजज्ञासा को िान्त ककया।

ऄनाररकायाः िजज्ञासा (िब्दाथा एवं त्तहदी ऄनुवाद )

(क) बािलकायाः ऄनाररकायाः मनिस सवादा महती िजज्ञासा भवित। ऄतः सा बहन् प्रश्नान्
पृच्छित। तस्याः प्रश्नैः सवेषां बुिद्धः चक्रवत् भ्रमित।

िब्दाथााः (Word Meanings) :


मनिस-मन में (in the mind), सवादा-हमेिा (always), िजज्ञासा-कु तूहल (curiosity), पृच्छित-पूछती है
(asks), सवेषां-सबकी (everyone’s), चक्रवत् पिहए के समान (like a wheel), भ्रमित-घूमती है (spins).

सरलाथा :
बािलका ऄनाररका के मन में हमेिा बड़ा कु तूहल (जानने की आच्छा) होता है। आसिलए वह बहुत प्रश्न पूछती है।
ईसके प्रश्नों से सबकी बुिद्ध पिहए के समान घूमने लगती है।

(ख) प्रातः ईत्थाय सा ऄन्वभवत् यत् तस्याः मनः प्रसन्नं नािस्त। मनोिवनोदाय सा भ्रिमतुं गृहात् बिहः ऄगच्छत्।
भ्रमणकाले सा ऄपश्यत् यत् मागााः सुसिज्जताः सिन्त। सा िचन्तयित- ककमथाम् आयं सज्जा? सा ऄस्मरत् यत् ऄद्य
तु मन्त्री अगिमष्यित।
िब्दाथााः (Word Meanings) :
ऄन्वभवत्-ऄनुभव ककया (felt), मनोिवनोदाय-मन को प्रसन्न करने के िलए (to make her mind happy),
भ्रिमतुं-घूमने के िलए (to stroll), भ्रमणकाले-घूमने के समय (at the time of strolling), सुसिज्जताः-सजे हुए
(decorated), ऄस्मरत्-याद ककया (remembered), मन्त्री-मन्त्री (minister).

सरलाथा : सुबह ईठकर ईसने ऄनुभव ककया कक ईसका मन प्रसन्न (खुि) नहीं है। मन प्रसन्न करने के िलए वह
घूमने के िलए घर से बाहर गइ। घूमने के समय ईसने देखा कक रास्ते सजे हुए हैं। वह सोचती है-ककस िलए यह
तैयारी है? ईसे याद अया कक अज तो मन्त्री अएँगे।

(ग) सः ऄत्र ककमथाम् अगिमष्यित आित िवषये तस्याः िजज्ञासाः प्रारब्धाः। गृहम् अगत्य सा िपतरम् ऄपृच्छत्-
“िपतः! मन्त्री ककमथाम् अगच्छित?” िपता ऄवदत्-“पुित्र! नद्याः ईपरर कक मन्त्री सेतोः िनमााणम् ऄकरोत्?”

िब्दाथााः (Word Meanings):


िजज्ञासा-कु तूहल(जानने की आच्छा) (curiosity), प्रारब्धाः -अरम्भ हुईं (begun/aroused), अगत्य-अकर
(having come), ककमथाम्-ककस िलए (What for), िनर्थमतः - िनमााण ककया गया (constructed), ईपरर-
उपर (over), सेतुः-पुल (bridge), ईद्घाटनाथा-ईद्घाटन के िलए (for inauguration).

सरलाथा :
वे यहाँ ककसिलए अएँगे आस िवषय में ईसका कु तूहल अरम्भ हुअ। घर अकर ईसने िपता से पूछा-“िपता जी!
मन्त्री ककसिलए अ रहे हैं।” िपता जी बोले-“पुत्री! नदी के उपर नया पुल बना है, ईसके ईद्घाटन के िलए मन्त्री
अ रहे हैं।” ऄनाररका ने कफर पूछा-“िपता जी! क्या मन्त्री ने पुल का िनमााण ककया है?”

(घ) िपता ऄकथयत्-“न िह पुित्र! सेतोः िनमााणं कमाकराः ऄकु वान्!” पुनः ऄनाररकायाः प्रश्न: असीत्-“यकद
कमाकराः सेतोः िनमााणम् ऄकु वान,् तदा मन्त्री ककमथाम् अगच्छित?” िपता ऄवदत्-“यतो िह सः ऄस्माकं देिस्य
मन्त्री।” “िपतः! सेतोः िनमााणाय प्रस्तरािण कु तः अयािन्त? कक तािन मन्त्री ददाित?”

िब्दाथााः (Word Meanings) :


कमाकरा:-मजदूर (labourers), यतोिह-क्योंकक (because), ऄस्माकं -हमारा (our), सेतो:-पुल का (of the
bridge), िनमााणाय-बनाने के िलए (for construction), प्रस्तरािण (ब०व०)-पत्थर (stones), अयािन्त-
अते हैं (are coming), ददाित-देता है/देते हैं (is giving).
सरलाथा :
िपता ने कहा- “नहीं पुत्री! पुल का िनमााण मजदूरों ने ककया था।” कफर ऄनाररका का प्रश्न था “यकद मजदूरों ने
पुल बनाया है, तब मन्त्री ककसिलए अ रहे हैं?” िपता बोले-“क्योंकक, वे हमारे देि के मन्त्री हैं।” “िपता जी! पुल
को बनाने के िलए पत्थर कहाँ से अते हैं ? क्या ईन्हें मन्त्री देते हैं ?”

(ङ) िवरक्तभावेन िपता ईदतरत्-“ऄनाररके ! प्रस्तरािण जनाः पवाते्यः अनयिन्त।”िपतः! तर्थह ककम्, एतदथं
मन्त्री धनं ददाित? तस्य पाश्वे धनािन कु तः अगच्छिन्त?” एतान् प्रश्नान् श्रुत्वा िपताऽवदत्-“ऄरे ! प्रजाः
सवाकाराय धनं प्रयच्छिन्त।” िविस्मता ऄनाररका पुनः ऄपृच्छत् “िपतः! कमाकराः पवाते्यः प्रस्तरािण अनयिन्त।
ते एव सेतुं िनमाािन्त। प्रजाः सवाकाराय – धनं ददित। तथािप सेतोः ईद्घाटनाथं मन्त्री ककमथाम् अगच्छित?”

िब्दाथााः (Word Meanings) :


ईदतरत्-ईिर कदया (replied), प्रस्तरािण-पत्थर (stones) पवाते्यः -पहाड़ों से (from the mountains),
अनयिन्त-लाते हैं (bringing), सवाकाराय सरकार के िलए (for government), तर्थह-तो (then), ककमथाम्
(ककम् + ऄथाम् )—ककसिलए, क्यों (why).

सरलाथा :
िपता ने ईदासीन भाव से ईिर कदया, “ऄनाररका! पत्थर लोग पहाड़ों से लाते हैं।” “िपता जी! तो क्या! आसके
िलए मन्त्री धन देते हैं ? ईनके पास धन कहाँ से अता है?” आन प्रश्नों को सुनकर िपता बोले -“ऄरे ! प्रजा सरकार
को धन देती हैं।” अश्चयाचककत ऄनाररका ने कफर पूछा- “िपता जी! मजदूर पहाड़ों से पत्थर लाते हैं, वे ही पुल
बनाते हैं, प्रजा सरकार को धन देती हैं, तो भी मन्त्री पुल के ईद्घाटन के िलए ककसिलए (क्यों) अ रहे हैं?”

(च) िपता ऄवदत्-“प्रथममेव ऄहम् ऄकथयम् यत् सः देिस्य मन्त्री ऄिस्त।स जनप्रितिनिधः ऄिप ऄिस्त।
जनतायाः धनेन िनर्थमतस्य सेतोः ईद्घाटनाय जनप्रितिनिधः अमिन्त्रतो भवित। चल, सुसिज्जता भूत्वा िवद्यालयं
चल।” ऄनाररकायाः मनिस आतोऽिप बहवः प्रश्नाः सिन्त।

िब्दाथााः (Word Meanings) :


प्रथममेव (प्रथमम् + एव)-पहले ही (already /in the beginning), बहवः-बहुत से (so many), आतोऽिप-
आससे भी (even more) िनर्थमतस्य-बने हुए (already made) सेतो:-पुल का (bridge)

सरलाथा :
िपता बोले, “पहले ही मैंने कहा था कक वे देि के मन्त्री हैं। जनप्रितिनिध भी हैं। जनता के धन से बने हुए पुल के
ईद्घाटन के िलए जनता के प्रितिनिध िनमिन्त्रत ककए जाते हैं। चलो, तैयार होकर िवद्यालय जाओ।” ऄब भी
ऄनाररका के मन में बहुत से प्रश्न हैं।

परठत गद्यान्िः

1. ऄधोिलिखतं गद्यान्िं परठत्वा प्रश्नानामुिरािण िलखत-

बािलकायाः ऄनाररकायाः मनिस सवादा महती िजज्ञासा भवित। ऄतः सा बहन् प्रश्नान्
पृच्छित। तस्याः प्रश्नैः सवेषां बुिद्धः चक्रवत् भ्रमित। प्रातः ईत्थाय सा ऄन्वभवत् यत् तस्याः मनः प्रसन्नं नािस्त।
मनोिवनोदाय सा भ्रिमतुं गृहात् बिहः ऄगच्छत्। भ्रमणकाले सा ऄपश्यत् यत् मागााः सुसिज्जताः सिन्त। सा
िचन्तयित- ककमथाम् आयं सज्जा? सा ऄस्मरत् यत् ऄद्य तु मन्त्री अगिमष्यित। सः ऄत्र ककमथाम् अगिमष्यित
आित िवषये तस्याः िजज्ञासाः प्रारब्धाः। गृहम् अगत्य सा िपतरम् ऄपृच्छत्-“िपतः! मन्त्री ककमथाम् अगच्छित?”
िपता ऄवदत्-“पुित्र! नद्याः ईपरर कक मन्त्री सेतोः िनमााणम् ऄकरोत्?”

क. एकपदेन ईिरत-
I. सा भ्रमणकाले का ऄपश्यत् ?
II. के सुसिज्जताः सिन्त ?
ख. पूणावाक्येन ईिरत-
I. का मनोिवनोदाय गृहाद् बिहः ऄगच्छत् ?
II. नद्याः ईपरर सेतोः िनमााणं कः ऄकरोत् ?
ग. िनदेिानुसारं ईिरत-
I. “सः ऄत्र ककमथं अगच्छित” ऄिस्मन् वाक्ये कतृापदं ककम् ?
ऄत्र / सः / ककमथाम् / अगच्छित
II. अगत्य –आित िब्दे प्रत्ययः वताते –
क्त्वा / तुमुन् / ल्यप् / त्य
III. मितः ‘ आित िब्दस्य कक पयाायवािचपदम् ऄत्र गद्यान्िे प्रयुक्तम् ?
मितः / गृहं / मनः / बुिद्धः
IV. तस्याः प्रश्नैः सवेषां बुिद्धः चक्रवत् भ्रमित- ऄिस्मन् वाक्ये कक्रयापदं ककम् ?
सवेषां / चक्रवत् / भ्रमित / बुिद्धः

ईिरम् –
क. एकपदेन ईिरत-
I. ऄनाररका
II. मागााः
ख. पूणावाक्येन ईिरत-
I. ऄनाररका मनोिवनोदाय गृहाद् बिहः ऄगच्छत् |
II. नद्याः ईपरर सेतोः िनमााणं मन्त्री ऄकरोत् |
ग. िनदेिानुसारं ईिरत-
I. सः
II. ल्यप्
III. बुिद्धः

IVभ्रमित

1. ऄधोिलिखतं गद्यान्िं परठत्वा प्रश्नानामुिरािण िलखत-


िपता ऄकथयत्-“न िह पुित्र! सेतोः िनमााणं कमाकराः ऄकु वान्!” पुनः ऄनाररकायाः प्रश्न: असीत्-“यकद कमाकराः
सेतोः िनमााणम् ऄकु वान,् तदा मन्त्री ककमथाम् अगच्छित?” िपता ऄवदत्-“यतो िह सः ऄस्माकं देिस्य मन्त्री।”
“िपतः! सेतोः िनमााणाय प्रस्तरािण कु तः अयािन्त? कक तािन मन्त्री ददाित?” िवरक्तभावेन िपता ईदतरत्-
“ऄनाररके ! प्रस्तरािण जनाः पवाते्यः अनयिन्त।”िपतः! तर्थह ककम्, एतदथं मन्त्री धनं ददाित? तस्य पावे धनािन
कु तः अगच्छिन्त?” एतान् प्रश्नान् श्रुत्वा िपताऽवदत्-“ऄरे ! प्रजाः सवाकाराय धनं प्रयच्छिन्त।” िविस्मता
ऄनाररका पुनः ऄपृच्छत् “िपतः! कमाकराः पवाते्यः प्रस्तरािण अनयिन्त। ते एव सेतुं िनमाािन्त। प्रजाः
सवाकाराय – धनं ददित। तथािप सेतोः ईद्घाटनाथं मन्त्री ककमथाम् अगच्छित?”

क. एकपदेन ईिरत-

I. कमाकराः पवाते्यः कािन अनयिन्त?

II. प्रजाः सवाकाराय कक ददित?

ख. पूणावाक्येन ईिरत-

I. िवरक्तभावेन िपता ककमुदिरत्?

II. “िपतः! सेतोः िनमााणाय प्रस्तरािण कु तःअयािन्त –आित का वदित ?

ग. िनदेिानुसारं ईिरत-

I. “िवरक्तभावेन” ऄिस्मन् िब्दे का िवभिक्तः ?

प्रथमा / सप्तमी / तृतीया / िद्वतीया

II.एतदथं ‘ आत्यस्य संिधिवच्छेदं वताते –

एतद्+ ऄथाम् / एत+ ऄथाम् / एतत्+ ऄथाम् / एत+ दथाम्


III. ददाित – आित कक्रयापदं किस्मन् लकारे ऄिस्त ?

लट् / लृट् / लङ् / लोट्

IV. -“ऄरे ! प्रजाः सवाकाराय धनं प्रयच्छिन्त।” - ऄिस्मन् वाक्ये कक्रयापदं ककम् ?

सवाकाराय / प्रयच्छिन्त / प्रजाः / धनं

ईिरािण -क. एकपदेन ईिरत-

I. प्रस्तरािण

II. धनम्

ख. पूणावाक्येन ईिरत-

I. िवरक्तभावेन िपता ईदतरत्-“ऄनाररके ! प्रस्तरािण जनाः पवाते्यः अनयिन्त।

II. “िपतः! सेतोः िनमााणाय प्रस्तरािण कु तःअयािन्त –आित ऄनाररका वदित |

ग. िनदेिानुसारं ईिरत-

I. तृतीया

II. एतत्+ ऄथाम्

III. लट्

IV. प्रयच्छिन्त

ईिचतिवभिक्तपदं िचत्वा ररक्तस्थानं पूरयत-

क. पुत्र ...........सह गच्छित | ( िपतरं /िपत्रा )

ख. बालकः ..........पश्यित | ( मातुः/ मातरं )

ग. भो ..........! मह्यं दुग्धं देिह | ( माता/ मातः )


घ. ........... िििोः पोषणाय भवित | ( मातरं / मातुः )

ङ् सवााः ............स्नेहपूणााः भविन्त |( मातरः / मात्रा )

ईिरं -क. िपत्रा, ख. मातरम्, ग. मातः,घ. मातुः, ङ् मातरः

प्रश्न – 2 – समानाथाकािन पदािन मेलयत-

क. ख.

प्रस्तरं सररतः

मनिस ऄनेके

नद्याः नेता

बहवः चेतिस

मन्त्री पाषाणः

ईिरािण --क. ख.

प्रस्तरं पाषाणः

मनिस चेतिस

नद्याः सररतः

बहवः ऄनेके

मन्त्री नेता

प्रश्न- 3- स्थूलपदािन अधृत्य प्रश्निनमााणं कु रुत-


क. मनोिवनोदाय सा गृहाद् बिहः ऄगच्छत् |

ख. प्रस्तरािण पवाते्यः अनयिन्त |

ग. नद्याः ईपरर नवीनः सेतुः िनर्थमतः |

घ. प्रजाः धनं ददाित |

ङ् . ऄनाररका प्रश्नान् पृच्छित |

ईिरं - क. कस्मात् ख. कािन ग. कीदृिः घ. ककम् ङ् . कान्

प्रश्न-4- वाक्यािन घटनाक्रमानुसारं िलखत-

क. सा ऄस्मरत् यत् ऄद्य तु मन्त्री अगच्छित |

ख. कमाकराः सेतोः िनमााणं ऄकु वान् |

ग. सेतोः ईद्घाटनाय जनप्रितिनिधः अमिन्त्रतः भवित |

घ. ऄनाररकायाः मनिस महित िजज्ञासा भवित |

ङ् . सेतोः िनमााणाय प्रस्तरािण कु तः अयािन्त ?

च. चल सुसिज्जता भूत्वा िवद्यालयं चल |

ईिरं - घ. ऄनाररकायाः मनिस महती िजज्ञासा भवित |

क. सा ऄस्मरत् यत् ऄद्य तु मन्त्री अगच्छित |

ख. कमाकराः सेतोः िनमााणं ऄकु वान् |

ङ् . सेतोः िनमााणाय प्रस्तरािण कु तः अयािन्त ?

ग. सेतोः ईद्घाटनाय जनप्रितिनिधः अमिन्त्रतः भवित |


च. चल सुसिज्जता भूत्वा िवद्यालयं चल |

प्रश्न-5- पदािन अधृत्य वाक्यािन रचयत-

मन्त्री=............................

िवद्यालयः =.......................

सेतुः=................................

कमाकराः =...........................

धनम्=.................................

ईिरं - व्याकरणदृष्या िुद्धवाक्यािन लेखनीयािन |

----------- आित --------


पञ्चदिः पाठः ( लालनगीतम् )

प्रथम सोपान: -श्लोकानां िहन्दी


ईकदते सूये धरणी िवहसित |
पक्षी कू जित कमलं िवकसित ||1||
ऄथा:- सूया के ईदय होने पर पृथ्वी हर्थषत होती है,पक्षी चहचहाता है ,कमल िखल जाता है|
नदित मिन्दरे ईच्चैढाक्का |
सररत: सिलले सेलित नौका ||2||
ऄथा:-मिन्दर में जोर-जोर से नगाड़ों की अवाज होती है , नदी के जल में नाव तैरती है |
पुष्पे पुष्पे नानारङ्गा:|
तेषु डयन्ते िचत्रपतङ्गा: ||3||
ऄथा:- (ईपवन )में प्रत्येक फू ल में िभन्न – िभन्न रं ग हैं ,ईन पर िततिलयाँ मंडराती हैं |
वृक्षे वृक्षे नूतनपत्रम् |
िविवधैवाणव र्थवभाित िचत्रम्||4||
ऄथा:-प्रत्येक वृक्ष पर पिे नए प्रतीत होते हैं ,ऄनेक रं गों से िचत्र सुिोिभत होता है |
धेनु: प्रातयाच्छित दुग्धम्|
िुद्धं स्वच्छं मधुरं िस्नग्धम्||5||
ऄथा:- प्रात: गाय िुद्ध स्वच्छ मधुर िस्नग्ध(िचकना)दूध देती है,(जो स्वास्थ्य के िलए लाभदायक होता है) |
गहने िविपने व्याघ्रो गजाित |
ईच्चैस्तत्र च त्तसह: नदाित ||6||
ऄथा:-घने जंगल में बाघ गजाना करता है ,वही ँ पर (जंगल में ) त्तसह जोर से दहाड़ता है |
हररणोऽयं खादित नवघासम् |
सवात्र च पश्यित सिवलासम् ||7||
ऄथा:-यह िहरण नइ घास (नए ऄंकुर )खाता है,और खाते हुए सभी ओर िवलासपूवाक देखता है |
ईष्ट्र: तुङ्ग: मन्दं गच्छित |

पृष्ठे प्रचुरं भारं िनवहित ||8||


ऄथा:-उँचा सा उँट धीरे धीरे चलता है ,और ऄपनी पीठ पर काफी (बहुत ) भार ईठाता है |
घोटकराज: िक्षप्रं धावित |
धावनसमये ककमिप न खादित ||9||
ऄथा:-घोड़ा तेजी से दौड़ता है , दौड़ते समय कु छ भी नहीं खाता है |
पश्यत भल्लुकिममं करालम् |
नृत्यित थथथै कु रु करतालम् ||10||
ऄथा:-आस डरावने भालू को देखो , थथथै करता हुअ नाचता है ,तुम ताली बजाओ |
िद्वतीय: सोपान:- प्रश्नोिरािण
प्रश्न:-1.ईकदते सूये का िवकसित ?
ईिरम्- ईकदते सूये धरणी िवहसित|
प्रश्न:-2. किस्मन् ईकदते धरणी िवहसित ?
ईिरम्- सूये ईकदते धरणी िवहसित|
प्रश्न:- 3.सूये ईकदते धरणी कक करोित?
ईिरम्- सूये ईकदते धरणी िवहसित|
प्रश्न:-4. सूये ईकदते क: कू जित ?
ईिरम्- सूये ईकदते पक्षी कू जित|
प्रश्न:-5. सूये ईकदते पक्षी कक करोित ?
ईिरम्- सूये ईकदते पक्षी कू जित
प्रश्न:-6. सूये ईकदते कमलं कक करोित?
ईिरम्- सूये ईकदते कमलं िवकसित|
प्रश्न:-7.सूये ईकदते कु त्र ढक्का ईच्चैनादित ?
ईिरम्- सूये ईकदते मिन्दरे ढक्का ईच्चैनादित|
प्रश्न:-8. सूये ईकदते मिन्दरे ढक्का कथं नदित ?
ईिरम्- सूये ईकदते मिन्दरे ढक्का ईच्चैनादित |
प्रश्न:9.-सूये ईकदते मिन्दरे का कथं नदित ?
ईिरम्- सूये ईकदते मिन्दरे ढक्का ईच्चैनादित |
प्रश्न:-10.सूये ईकदते कस्याः सिलले नौका सेलित ?
ईिरम्-सूये ईकदते सररत: सिलले नौका सेलित |
प्रश्न:-11.सूये ईकदते सररत: कु त्र नौका सेलित ?
ईिरम्- सूये ईकदते सररत: सिलले नौका सेलित|
प्रश्न:-12. सूये ईकदते सररत: सिलले का सेलित ?
ईिरम्-सूये ईकदते सररत: सिलले नौका सेलित |
प्रश्न:-13. पुष्पेषु का: डयन्ते ?
ईिरम्- पुष्पेषु िचत्रपतंगा: डयन्ते |
प्रश्न:- 14.कीदृिािन पुष्पािण सिन्त ?
ईिरम्- ऄनेकवणाािन पुष्पािण सिन्त |
प्रश्न:-15. ऄनेकवणाािन कािन सिन्त ?
ईिरम्- ऄनेकवणाािन पुष्पािण सिन्त|
प्रश्न:- 16.वृक्षेषु कीदृिािन पत्रािण सिन्त ?
ईिरम्-वृक्षेषु नूतनािन पत्रािण सिन्त |
प्रश्न:-17. नूतनािन कु त्र पत्रािण सिन्त?
ईिरम्-नूतनािन पत्रािण वृक्षेषु सिन्त|
प्रश्न:-18. िविवधै: वणव: कक िवभाित ?
ईिरम्-िविवधै: वणव: िचत्रं िवभाित |
प्रश्न:- 19. िचत्रं कै : िवभाित ?
ईिरम्-िचत्रं िविवधै: वणव: िवभाित |
प्रश्न:- 20. का प्रात: दुग्धं यच्छित ?
ईिरम्-प्रात: धेनु: दुग्धं यच्छित |
प्रश्न:-21. धेनु: कदा दुग्धं यच्छित?
ईिरम्- प्रात: धेनु: दुग्धं यच्छित |
प्रश्न:-22. प्रात: धेनु: कक यच्छित?
ईिरम्- प्रात: धेनु: दुग्धं यच्छित|
प्रश्न:- 23.व्याघ्र: कु त्र गजाित ?
ईिरम्-व्याघ्र: िविपने गजाित|
प्रश्न:- 24.व्याघ्र: कीदृिे िविपने गजाित?
ईिरम्-व्याघ्र: गहने िविपने गजाित|
प्रश्न:-25. त्तसह: कु त्र नदाित ?
ईिरम्-त्तसह: गहने िविपने नदाित |
प्रश्न:-26. त्तसह: कथं नदाित ?
ईिरम्-त्तसह: िविपने ईच्चै: नदाित|
प्रश्न:27.- हररण: कक खादित?
ईिरम्-हररण: नवघासं खादित |
प्रश्न:- 28.ऄयं क: नवघासं खादित ?
ईिरम्-ऄयं हररण: नवघासं खादित |
प्रश्न:-29. हररण: सवात्र कथं पश्यित ?
ईिरम्-हररण: सवात्र सिवलासं पश्यित |
प्रश्न:- 30.हररण: कु त्र कथं पश्यित ?
ईिरम्-हररण: सवात्र सिवलासं पश्यित |
प्रश्न:- 31.क: सवात्र सिवलासं पश्यित ?
ईिरम्-हररण: सवात्र सिवलासं पश्यित |
प्रश्न:-32. हररण: सवात्र सिवलासं कक करोित ?
ईिरम्-हररण: सवात्र सिवलासं पश्यित |
प्रश्न:- 33.क: िक्षप्रं (िीघ्रम्) धावित?
ईिरम्-घोटकराज: िक्षप्रं (िीघ्रम्) धावित |
प्रश्न:-34. घोटकराज: कथं धावित?
ईिरम्-घोटकराज: िक्षप्रं (िीघ्रम्) धावित |
प्रश्न:- 35.ऄश्व: कदा न खादित ?
ईिरम्-ऄश्व: धावनसमये न खादित|
प्रश्न:- 36.आमं करालं कं पश्यत ?
ईिरम्-आमं करालं भल्लुकं पश्यत |
प्रश्न:- 37.आमं कीदृिं भल्लुकं पश्यत ?
ईिरम्-आमं करालं भल्लुकं पश्यत |
प्रश्न:-38. भल्लुक: कथं नृत्यित ?
ईिरम्- भल्लुक: थथथै: नृत्यित |
प्रश्न:- 39.बाला: कक कु वान्तु ?
ईिरम्-बाला: करतालं कु वान्तु|
प्रश्न:- 40.यदा भल्लुक: नृत्यित तदा बाला: कक कु वािन्त?
ईिरम् - यदा भल्लुक: नृत्यित तदा बाला: करतालं कु वािन्त |

तृतीय: सोपान:- भािषक कायाम्


प्रश्न:-1. “पश्यत भल्लुकिममं करालम्” ऄत्र भयंकरम् कस्य िब्दस्य ऄथा: ऄिस्त ?
(1) भल्लुक:(2) पश्यत (3) करालम्

(2) ईिरं - करालम्

प्रश्न:-2. “घोटकराज: िक्षप्रं धावित” ऄत्र ककमिस्त ऄव्यय पदम् ?

(1) िक्षप्रम् (2 ) पश्यत(3) घोटकराज: ( 4) धावित


ईिरं - िक्षप्रम्

प्रश्न:-3. “गहने िविपने व्याघ्रो गजाित” ऄत्र वने कस्य िब्दस्य ऄथा: ऄिस्त?
(1) गहने (2) िविपने(3) गजाित(4) व्याघ्र:
ईिरं - िविपने

प्रश्न:-4. ‘सररत:’ ऄिस्मन् पदे का िवभिक्त: ऄिस्त ?

(1) प्रथमा (2) सप्तमी (3) षष्ठी

ईिरं - षष्ठी
प्रश्न:-5. “तेषु डयन्ते िचत्रपतङ्गा:” ऄत्र ईत्पतिन्त कस्य िब्दस्य ऄथा: ऄिस्त?
(1) िचत्रपतङ्गा:(2) तेषु (3) डयन्ते

ईिरं - डयन्ते
प्रश्न:-6. घोटकराज: ऄस्य िब्दस्य पयााय: क: ऄिस्त?
(1) गज: (2)ईष्ट्र: (3) ऄश्व: (4) भुजंग:

ईिरं - ऄश्व:

प्रश्न:-7.ईच्चै: आित पदस्य िवलोम पदम् ककमिस्त ?


(1) मन्दम् (2) नीचै: (3) प्रात:

ईिरं - नीचै:

प्रश्न:-8. ‘प्रात:’ आित पदस्य िवलोम पदम् ककमिस्त ?


(1)मध्याह्न: (2) राित्र: (3) सायम्
ईिरं – सायम्

प्रश्न:-9. “तेषु डयन्ते िचत्रपतङ्गा:” ऄत्र कक्रयापदं ककम् ऄिस्त?


(1)िचत्रपतङ्गा:(2) तेषु (3) डयन्ते
ईिरं – डयन्ते

प्रश्न:-10. सररत: सिलले सेलित नौका ऄस्यां पंक्तौ कतृापदं ककमिस्त ?


(1).सररत: (2) सिलले (3) सेलित: (4) नौका
ईिरं – नौका

चतुथ:ा सोपान:-िब्दाथाा:
धरणी –पृथ्वी
िवहसित – (िव+हसित)हंसती है
पक्षी –पक्षा: यस्य सिन्त स: (पक्षधर: )
सररत:- नद्या:
िवभाित –िविेष रूपेण भाित (रोचते )
तुङ्ग: - ईच्च:
करालम् –भयंकरम्

पञ्चम:सोपान:- पाठस्य ईपयोिगता


पाठ्यपुस्तके पाठोपस्थापनस्य मुख्यमुद्दश्े यं प्रत्यूषकाले छात्रा: िनरात्यागं कु युाः|
छात्रा: सूयोदयं पश्येयु:|
छात्रा: खगानां कलरवं िृणुयु: |
मिन्दरं गत्वा घंटानादं कु युा:|
प्रात: भ्रमणं ईद्याने कताव्यम्|
एष: काल: ऄध्ययनाय ऄिप ऄतीव लाभकरी भवित|
------- आित ---------

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