पंचशील (बौद्ध आचार) - विकिपीडिया

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पंचशील (बौद्ध आचार)

पंचशील बौद्ध धमर् की मूल आचार संिहता है िजसको थेरवाद


बौद्ध उपासक एवं उपािसकाओं के िलये पालन करना
आवश्यक माना गया है।

बौद्ध धमर्
की श्रेणी का िहस्सा

बौद्ध धमर् का इितहास


· बौद्ध धमर् का कालक्रम
· बौद्ध संस्कृित

बुिनयादी मनोभाव

चार आयर् सत्य ·


आयर् अष्टांग मागर् ·
िनवार्ण · ित्ररत्न · पँचशील

अहम व्यिक्त

गौतम बुद्ध · बोिधसत्व

क्षेत्रानुसार बौद्ध धमर्

दिक्षण-पूवीर् बौद्ध धमर्


· चीनी बौद्ध धमर्
· ितब्बती बौद्ध धमर् ·
पिश्चमी बौद्ध धमर्

बौद्ध साम्प्रदाय

थेरावाद · महायान
· वज्रयान

बौद्ध सािहत्य

ित्रपतक · पाळी ग्रंथ संग्रह


· िवनय
· पािऴ सूत्र · महायान सूत्र
· अिभधमर् · बौद्ध तंत्र

यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में


िविकपीिडया की मदद करें।

भगवान बुद्ध द्वारा अपने अनुयाियओं को िदया गया यह


पंचशील िसद्धान्त बमन लोगो के सामािजक तथा नैितक पतन
से नागवंिशयों के िलए पूवर्शतर् के तौर पर दी गयी है।

िहन्दी में इसका भाव िनम्नवत है-

१. िहं सा न करना,

२. चोरी न करना,

३. व्यिभचार न करना,

४. झठ
ू न बोलना,

५. नशा न करना।

पािल में यह िनम्नवत है-

१. पाणाितपाता वेरमणी-िसक्खापदं समादयािम।।

२. अिदन्नादाना वेरमणी- िसक्खापदं समादयािम।।

३. कामेसु िमच्छाचारा वेरमणी- िसक्खापदं समादयािम।।

४. मुसावादा वेरमणी- िसक्खापदं समादयािम।।

५. सुरा-मेरय-मज्ज-पमादठ्ठाना वेरमणी- िसक्खापदं


समादयािम।।

बौद्ध धमर् में आम आदमी भी बुद्ध बन सकता है उसे बस दस


पारिमताएं पूरी करनी पड़ती हैं

एक आदशर् मानव समाज कैसा हो?

दुिनयां का हर मनुष्य िकसी न िकसी दुःख से दुखी है। तथागत


बुद्ध ने बताया िक इस दुःख की कोई न कोई वजह होती है
और अगर मनुष्य दुःख िनरोध के मागर् पर चले तो इस दुःख से
मुिक्त पाई जा सकती है। यही चार आयर् सत्य हैं:

१. अथार्त दुःख है।

२. अथार्त दुःख का कारण है।

३. अथार्त दुःख का िनरोध है।

४. अथार्त दुःख िनरोध पाने का मागर् है।

बौद्ध धमर् के चौथे आयर् सत्य, दुःख से मुिक्त पाने का रास्ता,


अष्टांिगक मागर् कहलाता है. िजसका िववरण एतरेय उपिनषद
िमलता है।

जन्म से मरण तक हम जो भी करते है, उसका अंितम मकसद


केवल ख़ुशी होता है। स्थायी ख़ुशी सुिनिश्चत करने के िलए
हमें जीवन में इस मागर् का अनुसरण करना चािहए।

१. सम्यक दृिष्ट : चार आयर् सत्य में िवश्वास करना

२. सम्यक संकल्प : मानिसक और नैितक िवकास की प्रितज्ञा


करना

३. सम्यक वाक : हािनकारक बातें और झठ


ू न बोलना

४. सम्यक कमर् : हािनकारक कमर् न करना

५. सम्यक जीिवका : कोई भी स्पष्टतः या अस्पष्टतः


हािनकारक व्यापार न करना

६. सम्यक प्रयास : अपने आप सुधरने की कोिशश करना

७. सम्यक स्मृित : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानिसक योग्यता


पाने की कोिशश करना

८. सम्यक समािध : िनवार्ण पाना और अहंकार का खोना

पंचशील

बौद्ध धमर् के पांच अितिविशष्ट वचन हैं िजन्हें पञ्चशील कहा


जाता है और इन्हें हर गृहस्थ इन्सान के िलए बनाया गया है।

1. पाणाितपाता वेरमणी िसक्खापदम् समिदयामी

मैं जीव हत्या से िवरत (दू र) रहूँ गा, ऐसा व्रत लेता हूँ .

2. अिदन्नादाना वेरमणी िसक्खापदम् समिदयामी

जो वस्तुएं मुझे दी नहीं गयी हैं उन्हें लेने से मैं िवरत रहूँ गा, ऐसा
व्रत लेता हूँ .

3. कामेसु िमच्छाचारा वेरमणी िसक्खापदम् समिदयामी

काम (रित िक्रया) में िमथ्याचार करने से मैं िवरत रहूँ गा ऐसा
व्रत लेता हूँ .

4. मुसावादा वेरमणी िसक्खापदम् समिदयामी

झूठ बोलने से मैं िवरत रहूँ गा, ऐसा व्रत लेता हूँ .

5. सुरामेरयमज्जपमादट्ठाना वेरमणी िसक्खापदम् समिदयामी

मादक द्रव्यों के सेवन से मैं िवरत रहूँ गा, ऐसा वचन लेता हूँ



पारिमताएं

यिद कोई व्यिक्त ईसाई न हो तो वह पोप नहीं बन सकता,


मुसलमान न हो तो पैगंबर नहीं बन सकता. हर िहं दू शंकराचायर्
नहीं बन सकता, लेिकन हर मनुष्य बुद्ध बन सकता है. बौद्ध धमर्
में बुद्ध बनने के उपाय बताए गए हैं.

बौद्ध धमर् की मान्यता है िक बुद्ध बनने की इच्छा रखने वाले को


दस पारिमताएं पूरी करनी पड़ती हैं. ये पारिमताएं हैं – दान,
शील, नैष्क्रम्य, प्रज्ञा, वीयर्, शांित, सत्य, अिधष्ठान, मैत्री और
उपेक्षा.

जब कोई व्यिक्त ‘दान’ पारिमता को आरंभ करता हुआ


‘उपेक्षा’ की पूितर् तक पहुंचता है, तब तक वह बोिधसत्व रहता
है. लेिकन इन सबको पूरा करने के बाद वह बुद्ध बन जाता है.
पारिमताएं नैितक मूल्य होती हैं, िजनका अनुशीलन बुद्धत्व की
ओर ले जाता है.

दान पारिमता – दान का अथर् उदारतापूणर् देना होता है. त्याग


को भी दान माना जाता है. बौद्ध धमर् में भोजन दान, वस्त्र दान
व नेत्र दान की प्रथा है. दान बुद्धत्व की पहली सीढ़ी है. इसके
पीछे कतर्व्य की भावना होनी चािहए. प्रशंसा व यश के िलए
िदया गया दान, दान नहीं होता.

शील पारिमता – सब प्रकार के शारीिरक, वािचक, मानिसक


और सब शुभ व नैितक कमर्, शील के अंतगर्त आते हैं. मनुष्य
को हत्या चोरी व व्यिभचार, झूठ व बकवास शराब तथा
मादक द्रव्यों से दू र रहना चािहए. बुद्ध ने इनमें िभक्खुओ ं के
िलए तीन शील और जोड़ िदए हैं – कुसमय भोजन नहीं करना,
गद्देदार आसन पर नहीं सोना और नाच-गाना तथा माला-सुगंध
आिद के प्रयोग से बचना.

नैष्क्रम्य पारिमता : इसका अथर् महान त्याग होता है. बोिधसत्व


राज्य व अन्य भौितक भोगों को ितनके के समान त्याग देते हैं.
चूलपुत्र सोन के प्रसंग में आया है िक उसने महाराज्य के प्राप्त
होने पर भी थूक के समान उसे छोड़ िदया.

प्रज्ञा पारिमता -प्रज्ञा का अथर् होता है जानना, नीर-क्षीर


िववेक की बुिद्ध, सत्य का ज्ञान. जैसी वस्तु है, उसे उसी प्रकार
की देखना प्रज्ञा होती है. आधुिनक भाषा में वैज्ञािनक दृिष्ट व
तकर् पर आधािरत ज्ञान होता है. बौद्ध धमर् में प्रज्ञा, शील,
समािध ही बुद्धत्व की प्रािप्त के महत्वपूणर् माध्यम होते हैं.

वीयर् पारिमता : इसका अथर् है िक आलस्यहीन होकर भीतरी


शिक्तयों को पूरी तरह जाग्रत करके लोक-कल्याण,
अध्यात्म-साधना व धमर् के मागर् में अिधक से अिधक उद्यम
करना. ऐसे उद्यम के िबना मनुष्य िकसी भी िदशा में उन्नित एवं
िवकास नहीं कर सकता.

क्षांित पारिमता : क्षांित का अथर् है सहनशीलता. बोिधसत्व


सहनशीलता को धारण करते हुए, इसका मूक भाव से अभ्यास
करता है. वह लाभ-अलाभ, यश-अपयश, िनं दा-प्रशंसा,
सुख-दुख सबको समान समझकर आगे बढ़ता है.

सत्य पारिमता – सत्य की स्वीकृित व प्रितपादन ही सत्य


पारिमता है. इसे सम्यक दृिष्ट भी कहते हैं. जैसी वस्तु है, उसे
वैसा ही देखना, वैसा कहना व वैसा ही प्रितपादन करना सत्य
है. यह बड़ा किठन कायर् है. सत्य में सम्यक दृिष्ट, सम्यक
संकल्प व सम्यक वाचा का समावेश होता है.

अिधष्ठान पारिमता : अिधष्ठान पारिमता का अथर् दृढ़ संकल्प


होता है. शुभ व नैितक कमोर्ं के संपादन में अिधष्ठान परम
आवश्यक होता है. पारिमताओं के अभ्यास के िलए दृढ़-
संकल्प की आवश्यकता पड़ती है. दृढ़-संकल्प होने पर ही
बोिधसत्व गृहत्याग करते हैं.

मैत्री पारिमता : इसका अथर् है उदारता व करुणा. सभी


प्रािणयों, जीवों व पेड़ – पौधों के प्रित मैत्री भाव रखना.
बोिधसत्व मन में क्रोध, वैर व द्वे ष नहीं रखते. जैसे मां अपने
प्राणों की िचं ता िकए िबना बेटे की रक्षा करती है, उसी प्रकार
बोिधसत्व को मैत्री की रक्षा करनी चािहए.

उपेक्षा पारिमता : उपेक्षा पारिमता का अथर् है पक्षपात-रिहत


भाव रखकर बुद्धत्व की ओर आगे बढ़ना.

कोई भी बोिधसत्व इन दस पारिमताओं में पूणर्ता प्राप्त करके


स्वयं बुद्ध बन सकता है.

बाहरी किड़याँ

अंितम बार 2 महीने पहले Nilesh kumar venuva…

उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से


उल्लेख ना िकया गया हो।

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