Savarkar

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प्रकाशित: 27 मार्च 2017 को नेिनशिस्ट ऑनिाइन डॉट कॉम

में प्रकाशित

सावरकर के समग्र मूल्ाांकन की दरकार


अनांत शवजय

रशववार को विनायक दामोदर सािरकर की इक्यािनिी ीं पुण्यवतवथ थी । इस दे श में वहीं दुत्व शब्द को दे श
की भौगोविकता से जोड़नेिािे इस शख्स की विचारधारा पर िस्तुवनष्ठ ढीं ग से अब तक काम नहीीं हुआ है ।
सािरकर की विचारधारा को एम एस गोिििकर और के बी हे डगेिार की विचारधार और मींतव्ोीं से
जोड़कर उनकी एक ऐसी छवि गढ़ दी गई है जो दरअसि उनके विचारोीं से मेि नहीीं खाती है । सािरकर
ने वजस वहन्दु त्व की विचारधारा को प्रस्तावित और प्रचाररत वकया था, उसको आजादी के बाद या योीं कहें
वक महात्मा गाीं धी की हत्या के बाद उसपर वहकारत की नजरोीं से विचार वकया गया । वकसी भी वसद्ाीं त को
जब घृणा की बुवनयाद पर या नतीजे को सामने रखकर परखा जाता है , तो उसका दोषपूणण होना तय होता
है । सािरकर की विचारधारा को महात्मा गाीं धी की हत्या से जोड़कर वजस तरह से कुप्रचाररत वकया गया
और उसको घृणा की कसौटी पर कसा गया उससे जो नतीजा वनकिा िह सािरकर के योगदान को
सीवमत करने के विए काफी था । वफर िामपींथी विचारधारा के िोगोीं में एक साथ हल्ला करने की जो
सींगवित ताकत है , िह वकसी को भी झूि की बुवनयाद पर बदनाम कर सकती है । बहुधा िामपींथी, राष्ट्रीय
स्वयींसेिक सींघ पर अफिाह फैिाने की मशीनरी का आरोप िगाते हैं , िेवकन अफिाह और झूि फैिाने में
िामपींवथयोीं वजतना सींगवित उदाहरण पूरी दु वनया में कहीीं अन्यत्र नहीीं वमिता है । इसको िेवनन से िेकर
माओ और वफडे ि कास्त्ोीं तक को मुक्ति का मसीहा बनाने के उपहृम को दे खकर समझा जा सकता है ।
माओ और वफडे ि ने मुक्ति के नाम पर वकतना अत्याचार वकया, गरीबोीं के अवधकारोीं के नाम पर कैसे
िोकतींत्र का गिा घोींट वदया और बािजूद इसके िे मसीहा बने रहे तो यह मूल्ाीं कन की िामपींथी पद्वत ही
है । यह पद्वत अपनी विचारधारा के अनुयावययोीं को आगे तो बढ़ाती ही है ; विपरीत या अन्य विचारधारा के
मानने िािोीं को साथ-साथ बदनाम भी करती चिती है । अब अगर हम सािरकर के मामिे में ही दे खें तो
उनके विखे का मूल्ाीं कन कम उनपर विखे का मूल्ाीं कन ज्यादा हुआ है । जैसे उन्ोींने वहीं दुत्व में पृष्ठ 81
पर विखा है वक – कोई भी व्यक्ति बगै र वेद में शवश्वास शकए भी सच्चा शहां दू हो सकता है । सािरकर के
मुतावबक वसफण जातीय सीं बींध या पहचान वहीं दुत्व को पररभावषत नहीीं कर सकता है । उनके मुतावबक वकसी
भी राष्ट्र की पहचान के तीन आधार होते हैं – भौगोविक एकता, जातीय गुण और साझा सींस्कृवत । यह भी
सही है वक सािरकर ने साझा सींस्कृवत की जो िकाित की है , उसके मुतावबक कोई एक ऐसी भाषा होनी
चावहए जो सबको जोड़ कर रख सके । सािरकर ने इसके विए सींस्कृत या वफर वहीं दी को अपनाने की
िकाित की । सािरकर के यहाीं वजस तरह से धावमणक स्वतीं त्रता की बात वमिती है , उसको भी ध्यान में
रखकर उनका मूल्ाीं कन वकया जाना चावहए । जैसे िो अपने िेखन में कहते हैं वक भारत से ज्यादा उदार
धाशमचक व्यवस्था कहाां हो सकती है , जहाां र्ावाचक जैसे शवद्वान महाकाि मांशदर की सीश़ियोां से
नाक्तिकता पर बात करते हैं ।
दरअसि आजादी के बाद गाीं धी के साथ के िोगोीं को उच्च स्थान वमिा और गाीं धी से मतवभन्नता रखनेिािे
िोगोीं को जानबूझकर इवतहास के हावशए पर रखा गया । इसकी िजहोीं की गहन पड़ताि की जरूरत है ।
इवतहास बहुत वनमणम होता है और िि जब करिट िेता है तो िो इवतहास को दु रुस्त भी करता चिता है ।
अब आप दे खें तो वजस सािरकर को कट्टर वहदु त्व का पोषक बताकर प्रचाररत वकया गया, िही सािरकर
आजादी के आीं दोिन के दौरान भी और उसके बाद भी िगातार यींत्र -युग की िकाित करते रहे । िेवकन
उनके इस विचार को उनके मूल्ाीं कन के िि भुिा वदया गया, क्योींवक इससे कट्टर वहीं दू की छवि गढ़ने में
वदक्कत हो सकती थी । सािरकर अपने विचारोीं में आधुवनक थे और उनको विज्ञान की महत्ता का पता था,
विहाजा िो दे श के विकास के विए विज्ञान को तरजीह दे ने के मुखर समथणक थे ।
अब अगर हम दे खें तो आजादी के आीं दोिन में जनता को सींगवित करने के विए गाीं धी और
सािरकर दोनोीं ने वहीं दू धमण का सहारा विया । अगर हम सू क्ष्मता और िस्तुवनष्ठता के साथ विचार करें तो
यह पाते हैं वक सािरकर गाीं धी से ज्यादा उग्रता से वहीं दू धमण की कुरीवतयोीं और कमणकाीं डोीं पर प्रहार करते
चिते हैं । अगर हम वहीं दू महासभा के उनके अध्यक्षीय उद्बोधन को दे खें तो उसमें से यह बात वनकिकर
आती है । सािरकर की िोकताीं वत्रक मूल्ोीं में जबरदस्त आस्था थी और िो हर वकसी को समानता के
वसद्ाीं त की िकाित भी करते थे चाहे उसकी जावत, धमण कुछ भी हो । सािरकर के इन विचारोीं का मुिेभड़
उनके ही वहदु त्व को पररभावषत करते हुए वपतृभवम और पुण्यभूवम के विचारोीं से होता है । सािरकर के
विचार के इन दोनोीं छोरोीं को कभी भी साथ रखकर विचार नहीीं वकया गया । सािरकर गाीं धी के अवहीं सा के
वसद्ाीं त के भी प्रबि विरोधी थे , िेवकन उन्ोींने वहीं सा की िकाित की हो ऐसा प्रमाण नहीीं वमिता है ।
दरअसि सािरकर जब से ल्ूिर जेि से बाहर आए तो उनके विचार पूिण के विचार से बदिे हुए थे ।
इस्लाम के नाम पर वसयासत की िो तीव्र आिोचना करने िगे थे । धमाां तरण के क्तखिाफ उग्रता से अपने
विचारोीं को रखने िगे थे । दरअसि अगर हम दे खें तो सािरकर के विचारोीं का सही मूिायीं कन वकया ही
नहीीं गया । 1923 में प्रकावशत उनकी वकताब ‘वहीं दुत्वा हू इज वहीं दू’ के आधार पर उनके समथणकोीं ने उन्ें
अपनाया और विरोवधयोीं ने आिोचना की । वहीं दू महासभा के अध्यक्ष रहते उनके विचारोीं को छोड़कर जब
उनका एकाीं गी मूल्ाीं कन होता है , तो यह एक तरह से बौक्तद्क बेइमानी हो जाती है । उनके वनधन के
पचास साि बाद क्या अब िि नहीीं आ गया है वक सािरकर के विचारोीं को समग्रता में पेश वकया जाए
और उनकी जो छवि गढ़ी गई है , उसका सही रूप जनता के सामने रखा जाए ।

(िेखक वररष्ठ पत्रकार एवां िांभकार हैं। ये उनके शनजी शवर्ार हैं।)

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