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प्रात
प्रात
7. हे भगवन। तीन लोक सम्बन्धी 8 करोड़ 56 लाख 97 हजार 481 अकृ त्रिम जिन चैत्यालयों को मेरा नमन है।
उन चैत्यालयों में स्थित 925 करोड़ 53 लाख 27 हजार 948 जिन प्रतिमाओं की वंदना करती हूँ।\करता हूँ।
8. हे भगवन। मैं यह भावना भाता हूँ कि मेरा आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो। अगर आज मेरी मृत्यु भी
आती है, तो मैं तनिक भी न घबराऊँ । मेरा अत्यंत शांतिपूर्ण, समाधिपूर्वक मरण हो। जगत के जितने भी जीव
हैं, वे सभी सुखी हों, उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट, दुःख, रोगादि न सताए और सभी जीव मुझे क्षमा करें,
तथा सभी जीवों पर मेरे क्षमा भाव रहें।
9. मेरे समस्त कर्मों का क्षय हो, समस्त दुःख दूर हों, रत्नत्रय धर्म की प्राप्ति हो। जब तक मैं मोक्ष पद को न
प्राप्त कर लूं तब तक आपके चरण कमल मेरे हृदय में विराजमान रहें और मेरा हृदय आपके चरणों में रहे।
10. मैं सम्यक्त्व धारण करूं , रत्नत्रय पालन करूं , मुनिव्रत धारण करूं , समाधिपूर्वक मरण करूं ,यही मेरी भावना
है।
11. हे भगवन। आज के लिए मैं यह नियम लेता हूँ की मुझसे जो भी खाने में, लेने में, देने में, चलने फिरने मे
आदि में आएगा, उन सब की मुझे छू ट है, बाकि सब का त्याग है।
12. जिस दिशा में रहूँ, आऊं , जाऊं , उस दिशा की मुझे छू ट है बाकि सब दिशाओं में आवागमन का मेरा त्याग है
अगर कोई गलती होवे तो मिथ्या होवे।
13. जिस दिशा में रहूँ, उस दिशा में कोई पाप हो तो मैं उस का भागीदार न बनूँ। अगर किसी प्रकार के रोगवश,
या अडचनवश प्रभु-दर्शन न कर सकूँ , तो उसके लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ। मन्दिर जी में पूजन के समय मेरे शरीर
में जो भी परिग्रह हैं, जो भी मन्दिर जी में प्रयोग में आयेगा, उन सबको छोड़ कर अन्य सभी परिग्रहों का
मुझे त्याग है। अगर इस बीच मेरी मृत्यु हो जाय तो मेरे शरीर का जो भी परिग्रह है, उसका भी मुझे त्याग
रहेगा।
लघु प्रतिक्रमण
हे भगवान! हे जिनेन्द्र देव हे अरिहंत प्रभु मैं अपने पापों से मुक्त होने के लिये प्रतिक्रमण करता /करती हूँ! हे भगवान!
मैं सर्व अवगुणों से सम्पन्न हूँ। मैंने मन, वचन, काय की दुष्टता से न जाने कितने अपराध किये हैं। हे भगवान! आप
तो के वलज्ञानी हैं, मेरे सब पापों को आप जानते हैं। आपसे कु छ भी नहीं छिपा है। मैं सभी जीवों से क्षमा चाहता हूँ। सभी
जीव मुझे क्षमा प्रदान करें।
मेरी किसी के साथ शत्रुता नहीं है, यदि मैंने राग,व्देष परिणामों से पाप किया हो, कर्क श वचन कहे हों, यदि मैंने उठ्ने,
बैठने, खांसने, छींकने, बोलने आदि से जीवों का घात किया हो यदि मैंने त्रसकायिक या स्थावर जीवों की हिंसा की हो,
परस्त्री या पुरुष को बुरी निगाहों से देखा हो। अपने व्रतों नियमों में दोष लगाया हो, अष्टमूलगुणों के पालन में व सप्त
व्यसन त्याग में दोष लगाया हो. सच्चे देव, शास्त्र गुरु, मुनि, आर्यिका श्रावक व श्राविका की निंदा आलोचना की हो तो,हे
भगवान! मेरे ये सारे दोष (दुष्कर्म) आपके प्रत्यक्ष/परोक्ष में मिथ्या होवे...(३ वार) मैं पश्चाताप करता/करती हूँ ... (३ बार)
हे भगवान! मेरे सारे कर्मों का क्षय हो, मुझे रत्नत्रय की प्राप्ति हो मेरा समाधिमरण हो एवं अन्तिम समय तक सच्चे
देव, शास्त्र, गुरु की भक्ति में मन लगा रहे ऐसी मेरी भावना है।
मंगल-भावना
मंगल-मंगल होय जगत् में, सब मंगलमय होय। इस धरती के हर प्राणी का, मन मंगलमय होय।।
कहीं क्लेश का लेश रहे ना, दु:ख कहीं भी ना होय। मन में चिंता भय न सतावे, रोग-शोक नहीं होय।।
नहीं वैर अभिमान हो मन में, क्षोभ कभी नहीं होय। मैत्री प्रेम का भाव रहे नित, मन मंगलमय होय।। मंगल-मंगल…
मन का सब संताप मिटे अरु, अंतर उज्ज्वल होय। रागद्वेष औ मोह मिट जाये, आतम निर्मल होय।।
प्रभु का मंगलगान करे सब, पापों का क्षय होय। इस जग के हर प्राणी का हर दिन, मंगलमय होय।। मंगल-मंगल…
गुरु हो मंगल, प्रभु हो मंगल, धर्म सुमंगल होय।। मात-पिता का जीवन मंगल, परिजन मंगल होय।।
जन का मंगल, गण का मंगल, मन का मंगल होय। राजा-प्रजा सभी का मंगल, धरा धर्ममय होय।। मंगल-मंगल…
मंगलमय होय प्रात हमारा, रात सुमंगल होय। जीवन के हर पल हर क्षण की बात सुमंगल हो।
घर-घर में मंगल छा जावे, जन-जन मंगल होय। इस धरती का कण-कण पावन औ मंगलमय होय।। मंगल-मंगल…
दोहा
सब जग में मंगल बढ़े , टले अमंगल भाव। है ‘प्रमाण’ की भावना, सब में हो सदभाव।।