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9 आत्मत्राण Notes
9 आत्मत्राण Notes
क व ईवर-भत है, भु म उसक गहर" आ#था है इस%लए क व ईवर से ाथना कर रहा है क
वह उसे जीवन *पी मुसीबत- से जूझने क , सहने क शित दान करे तथा वह 3नभय होकर
वपितय- का सामना करे अथात ् वपितय- को दे खकर डरे नह"ं, घबराए नह"ं। उसे जीवन म
कोई सहायक %मले या न %मले, परं तु उसका आम-बल, शार"<रक बल कमज़ोर न पड़े। क व अपने
मन म ?ढ़ता क इAछा करता है तथा ईवर से वपितय- को सहने क शित चाहता है ।
न 2.‘ वपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेर" ाथना नह"ं’ -क व इस पंित के Eवारा या कहना
चाहता है ?
इस पंित म क व यह कहना चाहता है क हे परमामा! चाहे आप मुझे दख
ु - व मुसीबत- से न
बचाओ परं तु इतनी कृपा अवय करना क दख
ु व मुसीबत क घड़ी म भी मH घबराऊँ नह"ं
अ पतु उन चन
ु ौ3तय- का डटकर मुकाबला क*ँ। उसक भु से यह ाथना नह"ं है क 3तMदन
ईवर भय से मुित Mदलाएँ तथा आNय दान कर । वह तो भु से इतना चाहता है क वे
शित दान कर । िजससे वह 3नभयतापूवक
संघष कर सके। वह पलायनवाद" नह"ं है , न ह"
डरपोक है , केवल ईवर का वरदह#त चाहता है ।
न 6.अपनी इAछाओं क पू3त के %लए आप ाथना के अ3त<रत और या-या यास करते
हH? %लXखए।
अपनी इAछाओं क प3ू त के %लए हम 3नYन यास करते हH
न 7.या क व क यह ाथना आपको अ[य ाथना गीत- से अलग लगती है ? यMद हाँ, तो
कैसे?
हाँ, क व क यह ाथना अ[य ाथना-गीत- से अलग है , य-क इस ाथना-गीत म क व ने
कसी सांसा<रक या भौ3तक सुख क कामना के %लए ाथना नह"ं क , बि\क उसने हर प<रि#थ3त
को 3नभ]कता से सामना करने का साहस ईवर से माँगा है । वह #वयं कमशील होकर आम-
ववास के साथ वषय प<रि#थ3तय- पर वजय पाना चाहता है । इ[ह"ं बात- के कारण यह
ाथना-गीत अ[य ाथना-गीत- से अलग है ।
(ख) ननल खत अंश का भाव प!ट क#िजए-
न 1.
नत %शर होकर सुख के Mदन म
तव मुख पहचानँ 3छन-3छन म ।
इन पंितय- का भाव है क क व सुख के समय, सुख के Mदन- म भी परमामा को हर पल N^ा
भाव से याद करना चाहता है तथा हर पल उसके #व*प को पहचानना चाहता है । अथात ् क व
दख
ु -सुख दोन- म ह" सम भावे से भु को याद करते रहना चाहता है तथा उसके #व*प क कृपा
को पाना चाहता है ।
न 2.
हा3न उठानी पड़े जगत ् म लाभ अगर वंचना रह" तो भी मन म ना मान` Wय।
भाव-क व चाहता है क यMद उसे जीवन भर लाभ न %मले, यMद वह सफलता से वंaचत रहे, यMद
उसे हर कदम पर हा3न पहुँचती रहे, तो भी वह मन म 3नराशा और वनाश के नकारामक भाव-
को #थान न दे । उसके मन म ईवर के 3त आ#था, आशा और ववास बनी रहे । क व ईवर
से 3नवेदन करता है क हा3न-लाभ को जीवन क अ3नवाय अंग मानते हुए, वे 3नराश न हो और
उ[ह ऐसी शित %मलती रहे क वे 3नरं तर संघषशील रहे ।
आमाण
न 3.
तरने क हो शित अनामय
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांवना नह"ं सह"।
क व इस संसार *पी भवसागर, माया के दUु कर सागर को #वयं ह" पार करना चाहता है । वह
ईवर से अपने दा3यव- *पी बोझ को ह\का नह"ं कराना चाहता तथा वह भु से सांवना *पी
इनाम को भी पाने का इAछुक नह"ं है । वह तो ईवर से संसार*पी सागर क सभी बाधाओं को
पार करने क अपार शित व जीवन म संघष करने का साहस चाहता है ।