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ISBN 978-93-340-4935-0 (Book)

ISSN 2229-547X (online)

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विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)
[विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in ]

विदे ह मै थिली सावहत्य आन्दोलन: मानुर्ीथमह सं स्कृताम्

विदे ह- प्रिम मै थिली पाक्षिक ई-पत्रिका

सम्पादक: गजे न्द्र ठाकुर।


ISBN 978-93-340-4935-0 (Book)
ISSN 2229-547X (online)
ऐ पोथीक सिााधिकार सुरक्षित अधि। कॉपीराइट (©) िारकक लिखित अनुमधतक विना पोथीक कोनो अं शक िाया प्रधत एिं रिकॉडिंग सहित
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आ अिनो ५ जुिाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html केर रूपमे
मै धथिीक प्राचीनतम उपस्स्थतक रूपमे विद्यमान अधि (वकिु ददन िे ि http://videha.com/2004/07/bhalsarik-
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ई मै धथिीक पवहि इं टरने ट पलिका धथक जकर नाम िादमे १ जनिरी २००८ स, ’विदे ह’ पड़िै । इं टरने टपर मै धथिीक प्रथम उपस्स्थधतक यािा विदे ह- प्रथम
मै धथिी पाक्षिक ई पलिका िरर पह, चि अधि, जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकालशत होइत अधि। आि “भािसररक गाि” जाििृत्त
'विदे ह ' ई-पलिकाक प्रिक्‍टताक सं ग मै धथिी भाषाक जाििृत्तक ए्रहीगे टरक रूपमे प्रयुक्‍टत भऽ रहि अधि।
(c)२०००- २०२४. विदे ह: प्रथम मै धथिी पाक्षिक ई-पलिका (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004). सम्पादक: गजे न्द्र
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पलिकाक मासमे दू टा अं क वनकिै त अधि जे मासक ०१ आ १५ धतधथकेँ www.videha.co.in पर ई प्रकालशत कएि जाइत अधि।
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Videha e-Journal: Issue No. 392 at www.videha.co.in
समानान्द्तर परम्पराक विद्यापधत- धचि विदे ह सम्मानस, सम्मावनत श्री पनकिाि मण्डि द्वारा

मै धथिी भाषा जगज्जननी सीतायााः भाषा आसीत् । हनुमन्द्ताः उक्तिान- मानुषीधमह सं स्कृताम् ।

अनुक्रम

ऐ अं कमे अथि:-

१.१.गजे न्द्दर ठाकुर- नूतन अं क सम्पादकीय (पृ. २-१६)

१.२.अं क ३९१ पर वटप्प ी (पृ. १७-१८)

२.गद्य

२.१.प्रो दमन कुमार झा- ने पािमे मै धथिी नाटकक विकास आ परर ाम (पृ.
२१-३४)

२.२.परमानन्द्द िाि क ा-जे ठ मासक एकादशीक माहात्म्य (पृ. ३५-३९)

२.३.अक्षजत कुमार झा- विकास सधमधत (पृ. ४०-५४)


२.४.िाि दे ि कामत-िघुकथा- पं चिे दीमे िवनयां / नन्द्द वििास राय जीक
पवहि कृधत: सिारी-पे टारी (पृ. ५५-६२)

२.५.रिीन्द्दर नाराय धमश्र-सीमाक ओवह पार (िारािावहक उपन्द्यास) (पृ.


६३-८६)

२.६.कुमार मनोज कश्यप-अिाः पतन (पृ. ८७-८८)

२.७.प्रमोद झा 'गोकुि'- अप्रैि फूि (िीहवन कथा), लिक लिक (िघु


कथा) (पृ. ८९-९२)

२.८.प्र ि कुमार झा- पोथी चचाा: "प्रीधत कार से तु िान्द्हि": सम्पादक -


श्री आशीष अनधचन्द्हार (पृ. ९३-९८)

२.९.अरविन्द्द गुप्ता- केदार िािूाः दीघा जीिन यािा, महान उपिस्ब्ि (पृ. ९९-
१०५)

२.१०.रिीन्द्दर नाराय धमश्र- मावट िजा रहि अधि (पृ. १०६-१३९)

२.११.वनमािा क ा- अग्ननलशिा िे प -३८ (पृ. १४०-१४७)


२.१२.्रहुप कैप्ट (डा.) वि एन झा- अं तररि पयाटन के िै ्ावनक दृधिको
(पृ. १४८-१७२)

३.पद्य

३.१.प्रमोद झा 'गोकुि' श्रीमै धथिी चर मे (पृ. १७४-१७५)

३.२.राज वकशोर धमश्र-नि-पुरान (पृ. १७६-१८०)

३.३.आचाया रामानं द मं डि-माय/ मे घ/ िठ परि (पृ. १८१-१८७)

३.४.प्र ि कुमार झा- नि युग िै (पृ. १८८-१९२)


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 1

१.१.गजे न्ददर ठाकुर- नूतन अं क सम्पादकीय

१.२.अं क ३९१ पर विप्पणी


2 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

१.१.गजे न्ददर ठाकुर- नूतन अं क सम्पादकीय

गं गेश उपाध्यायक तत्त्िचिन्तामणि

गं गेश उपाध्यायक तत्त्िचिन्दतामणण िारर खण्डमे विभाणजत अचि- १.


प्रत्यक्ष (सोझााँ -सोझी), (२) अनुमान, (३) उपमान (तुलना केनाइ) आ
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 3

(४) शब्द (मौखखक गिाही)। िै ध ज्ञान प्राप्त करबाक ई िाररिा साधन


ऐ िारर खण्डमे अचि।

खण्ड एक
प्रत्यक्ष

गङ्गे शक आह्वान: त्रिमूर्ति त्रशिक आह्वानसाँ ई खण्ड शुरू होइत


अचि।आ तेँ आह्वानक विर्यपर ििाष शुरू होइत अचि। ई मानल जाइत
अचि जे कोनो पररयोजनाक प्रारम्भमे भगिानक आह्वानसाँ ई कायष पूणष
होइत अचि।

आपत्तिः जे कोनो आह्वान कोनो काज पूरा करबाक कारण अचि, से


सकारात्मक बा नकारात्मक सं गचतक माध्यम साँ स्थावपत नै कएल जा
सकैत अचि, वकएक ताँ एहनो भे ल अचि जे कोनो आह्वानक वबना से हो
कोनो काज पूरा कएल गे ल।
आपत्तक उतर: एकर कारण ई अचि जे ई आह्वान पूिष जन्दममे कयल
गे ल िल/ हएत।

आपत्तिः नै , ई ताँ घुमघुमौआ तकष अचि, आ ओनावहतो कोनो काज पूरा


केना होइत अचि तकर अनुभिजन्दय कारण सभ आह्वानकेँ अनािश्यक
त्रसद्ध करै त अचि।
आपत्तक उतर: ई प्रमाण जे आह्वान कायष पूणष हे बाक कारण िै , तइमे
दू िरणक अनुमान शाचमल अचि। पवहल, ई जे ई त्रशष्ट लोक द्वारा
वनखन्ददत नै अचि िरन हुनका सभ द्वारा से हो आह्वानसाँ कायष प्रारम्भ
4 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

कएल जाइत अचि। तखन ई अनुमान लगाओल जा सकैत अचि जे


काज पूरा भे नाइ फल अचि वकएक ताँ ई वनयचमत रूप साँ इच्छित अचि,
आ आन कोनो फल उपलब्ध नै अचि।

आपत्तः ई तकष काज नै करत कारण ई पवहने साँ ज्ञात अचि जे


आह्वानक अिै तो काज पूणष भऽ सकैत अचि, कारण-सम्बन्दध कोनो
तकषसाँ स्थावपत नै कएल जा सकैत अचि।
आपत्तक उतर: हम सभ ऐ तकष (जे आह्वान कायष पूणष करबै त अचि)
क समथषन ले ल िै ददक आदे शक आह्वान करै त िी। मुदा कोनो एहन
िै ददक कथन नै भे िैत अचि। से अनुमान कएल जा सकैत अचि जे ऐ
तरहक आह्वान सुसंस्कृत लोक सभ द्वारा शुरू कएल गे ल आ कएल
जाइत अचि।

प्राथषना दे ह (जे ना प्रणाम), िाणी (गायन) आ मच्छस्तष्क (ध्यान) साँ


होइत अचि। मुदा कोनो ईश्वरमे विश्वास केवनहार से हो कायष सम्पन्दन कऽ
लै त अचि, ताँ की ओ पूिष जन्दममे आह्वान/ प्राथषना केने हएत? आ
आह्वानक बादो कखनो काल कायष सम्पन्दन नै होइत अचि, से की ढे र
रास बाधा ओइ साधारण आह्वानसाँ दूर नै भे ल हएत?

ऐ तरहक तकषसाँ प्रारम्भ भे ल िल ई ग्रन्दथ, ७-८ सय बखष पवहने !


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 5

(सन्ददभष: कालष एि पॉिर: एनसाइक्लोपीवडया ऑफ इच्छण्डयन


वफलोसोफी, १९९३; सतीश िन्दर विद्याभूर्ण: अ वहस्री ऑफ इच्छण्डयन
लॉणजक, १९२१)

स्िीफन एि. वफत्रलप्स त्रलखै िचथ:

चमचथलामे राखल गे ल पञ्जी िं शािली अत्रभले खसाँ पता िलै त अचि जे


हुनक पत्नी आ तीनिा बे िा आ एकिा बे िी िल। एकिा बे िा िलखन्दह
प्रत्रसद्ध न्दयाय ले खक, िधषमान। गङ्गे श स्पष्ट रूपसाँ अपन जीिनकालमे
प्रत्रसत्रद्ध प्राप्त कयलवन, जकरा "जगद-गुरु" कहल जाइत अचि, जे
हुनक समयक शै क्षणणक सं स्थानक ले ल "प्रचतचित विश्वविद्यालय
प्रोफेसर" क लगभग समकक्ष हएत।

Genealogical records kept in Mithila suggest


that he had a wife and three sons and a
daughter. One child was the famous Nyaya
author, Vardhamana. Gangesa apparently
achieved quite some fame during his lifetime,
referred to as "jagad-guru," which would be
the rough equivalent of "Distinguished
University Professor" for the educational
institutions of his time.

[Phillips, Stephen, "Gangesa", The Stanford


Encyclopedia of Philosophy (Summer 2020
Edition), Edward N. Zalta (ed.), URL
6 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

= https://plato.stanford.edu/archives/sum202
0/entries/gangesa/ ]

गं गेश जगदगुरु ताँ रहचथ परमगुरु से हो रहचथ आ परमगुरुक उपाचध


वहनका अचतररक्त माि नूतन िािस्पचत (िृद्ध िािस्पचतक परिती) केँ
पिाचत जा कऽ प्राप्त भे लखन्दह।

मुदा गं गेशक सं गे जे अन्दयाय रमानाथ झा आ उदयनाथ झा अशोक


केलखन्दह से बीसम आ एक्कैसम शताब्दीमे भे ल आ तकर ष्ष्पररणाम
स्िीफन वफत्रलप्स सन नै य्याचयक उठे बा ले ल अत्रभशप्त भे ला। एतऽ
अहााँ केँ सूचित करी जे स्िीफन वफत्रलप्स तत्त्िचिन्दतामणणक िारू
खण्डक सम्पूणष अं ग्रेजी अनुिाद केवनहार पवहल व्यक्क्त िचथ [Jewel
of Reflection on the Truth about Epistemology:
A Complete and Annotated Translation of the
Tattva-cinta-mani, Bloomsbury Academic
(2020)]। हुनका अलाबी िी.पी. भट्ट से हो तत्त्ि चिन्दतामणणक
िाररमे साँ ३ खण्डक सम्पूणष अनुिाद २०२१ धरर कऽ ले ने िचथ [१.
प्रत्यक्ष (सोझााँ -सोझी), (२) अनुमान, आ (४) शब्द (मौखखक गिाही);
(३) उपमान (तुलना केनाइ)बााँ की िखन्दह [Word The
Sabdakhanda of Tattvacintamani- With
Introduction, Sanskrit Text, Translation And
Explanation (2 Vols Set) 2005; Perception The
Pratyaksa Khanda of The Tattvacintamani
2012 (2 Vols Set); Inference the Anumana
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 7

Khanda of the Tattva Chintamani ( With


Introduction, Sanskrit text, Translation &
Explanation ) (2 Vols Set) 2021 Published by
Eastern Book Linkers, Delhi]।

HONOUR KILLING OF GANGESH


UPADHYAYA (FIRST BY RAMANATH JHA,
THEN BY UDAYANATH JHA 'ASHOK' (A
PARALLEL HISTORY OF MITHILA AND
MAITHILI LITERATURE, WHY TODAY ITS
NEED BEING FELT MORE INTENSELY?)

I was not surprised, though I must have been


when I saw a monograph on Gangesh
Upadhyaya, whose copyright is being held by
Sahitya Akademi, the author of the monograph
is Udayanath Jha ' Ashok'. I thought that
Udayanath Jha ' Ashok', who has been given
Bhasha Samman also, by the same Sahitya
Akademi, would do some justice. But truth and
research seem elusive in Sahitya Akademi
monographs, at least that I found in this
monograph.
8 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

I searched and searched through chapters, that


now the author will show courage. But the
author like Ramanath Jha seems ashamed of
the roots and offspring of Gangesh Upadhyaya.
He tries to confuse the issue, but there is no
confusion now at least since 2009. But in 2016
Sahitya Akademi seems to carry out the
casteist agenda. Udayanath Jha mockingly
pretends to search his name, lineage etc,
where nothing is there to search for, yet he
could not muster the courage, to tell the truth,
and ends up just repeating the facts in 2016
that Dineshchandra Bhattacharya already has
published way back in 1958.

The honour killing of Gangesh Upadhyaya by


Prof. Ramanath Jha is being taken forward by
Sahitya Akademi, Delhi in a most hypocritical
way.

Ramanath Jha's obscurantism vis-a-vis Panji is


evident from one example. The inter-caste
marriage in Panji was well known to him (but
he chose to keep the Dooshan Panji secret-
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 9

which has been released by us in 2009), and it


was apparent that the great navya-nyaya
philosopher Gangesh Upadhyaya married a
"Charmkarini" and was born five years after
the death of his father (see our Panji Books Vol
I & II available at
http://videha.co.in/pothi.htm ). Sh. Dinesh
Chandra Bhattacharya writes in the "History
of Navya-Nyaya in Mithila". (1958)

"The family which was inferior in social status


is now extinct in Mithila----- Gangesha's family
is completely ignored and we are not expected
to know even his father's name-----...As there is
no other reference to Gangesa we can assume
that the family dwindled into insignificance
again and became extinct soon after his son's
death." [1958, Chapter III pages 96-99), which
is a total falsehood. He writes further that all
this information was given to him by Prof. R.
Jha, and he seemed thankful to him.

The following excerpt from Our Panji


Prabandh (parts I&II) is being reproduced
below for ready reference:
10 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

महाराज हरससिहदे ि- चमचथलाक कणाषि िं शक। ज्योचतरीश्वर ठाकुरक


िणष-रत्नाकरमे हरससिहदे ि नायक आवक राजा िलाह। 1294 ई. मे
जन्दम आ 1307 ई. मे राजससिहासन। चघयासुद्दीन तुगलकसाँ 1324-
25 ई. मे हाररक बाद ने पाल पलायन। चमचथलाक पञ्जी-प्रबन्दधक
ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय मध्य आचधकाररक स्थापक, मै चथल
ब्राह्मणक हे तु गुणाकर झा, कणष कायस्थक ले ल शं करदत्त, आ
क्षत्रियक हे तु विजयदत्त एवह हे तु प्रथमतया वनयुक्त्त भे लाह।
हरससिहदे िक प्रेरणासाँ - आ ई हरससिहदे ि नान्दयदे िक िं शज िलाह, जे
नान्दयदे ि काणाषि िं शक १००९ शाकेमे स्थापना केने रहचथ- नन्ददैद शुन्दयं
शत्रश शाक िर्े (१०१९ शाके)... चमचथलाक पच्छण्डत लोकवन शाके
१२४८ तदनुसार १३२६ ई. मे पञ्जी-प्रबन्दधक ितषमान स्िरूपक प्रारम्भक
वनणषय कएलखन्दह। पुन ितषमान स्िरूपमे थोडे बुत्रद्ध विलासी लोकवन
चमचथले श महाराज माधि ससिहसाँ १७६० ई. मे आदे श करबाए
पञ्जीकारसाँ शाखा पुस्तकक प्रणयन करबओलखन्दह। ओकर बाद
पााँ णजमे (कखनो काल िर्णित १६०० शाके माने १६७८ ई. िास्तिमे
माधि ससिहक बादमे १८०० ई.क आसपास) श्रोत्रिय नामक एकिा नि
ब्राह्मण उपजाचतक चमचथलामे उत्पत्रत्त भे ल।

So, the Srotriyas as a sub-caste arose


around 1800 CE as per authentic panji
files. Sh. Anshuman Pandey [Gajendra Thakur
of New Delhi provided me with digitized copies
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 11

of the genealogical records of the Maithil


Brahmins. The panjikara-s whose families
have maintained these records for generations
are often reluctant to allow others to pursue
their records. It is a matter of 'intellectual
property' to them. I was fortunate enough to
receive a complete digitized set of
panji records from Gajendra Thakur of New
Delhi in 2007. [Recasting the Brahmin in
Medieval Mithila: Origins of Caste Identity
among the Maithil Brahmins of North Bihar by
Anshuman Pandey, A dissertation submitted in
partial fulfilment of the requirements for the
degree of Doctor of Philosophy (History) in the
University of Michigan 2014].

Later these Panji Manuscripts were uploaded


to Videha Pothi at www.videha.co.in and
google books in 2009).

The so-called Maharajas of Darbhanga were


permanent settlement zamindars of
Cornwallis, and there were so many in British
India, but in Nepal there were none. In the
annexure of our book (Panji Prabandh vol
12 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

I&II), we have attached copies of genealogy-


based upgradation orders (proof of
upgradation for cash). So, before 1800 CE,
there was no srotriya sub-caste in British India
and there is no such sub-caste within Maithil
Brahmins in Nepal part of Mithila even today.
Srotriya before that referred to following some
education stream in British India, in Nepal it
still has that meaning.

ORIGINAL PANJI REFERENCES ARE PLACED


BELOW:

DOOSHAN PANJI- THE BLACKBOOK

४९.

१८८/२ िमषकाररणी माण्ड िभवनयाम िाद


र न

तत्त्िचििताम िादनगं गेश नााँ ई रत्नाकरक- गं गेश


णण क मातृक (अज्ञात
कारकगं गेश )

िल्लभा भिाइ माहे श्वर


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 13

जीिे

२१//१० छादनसँ तत्ि चिन्तामणि कारक जगद्गरु


ु गं गेश

िादनसाँ तत्ि चिन्दतामणण कारक


गं गेशक िल्लभा िमषकाररणी वपतृ परोक्षे पञ्च िर्ष व्यतीते तत्ि
चिन्दतामणण कारक गं गेशोत्पत्रत्त- िममकाररिी मे धाक सन्तानक
लावगमे छलन्न्ह

छादन सँ तत्ि चिन्तामणि कारक मōमō गं गेश

"तत्ि चिन्तामणि कारक म. म. पा. गं गेशक विषयक ले ख प्रािीन


पञ्जीसँ उपलब्ध"।।

वपतृ परोक्षे पं ि िषम व्यतीते गं गेशोत्पत्तिः तचत प्रािीन ले खनीय:


कु त्रावप

दे िानन्दद पञ्जी ३९-२ िादनसाँ जगदगुरू गुंरू गं गेश सुताय िभवनयामसाँ


जयाददत्य सुत साधुकर पत्नी

दे िानन्दद पञ्जी ३३९-३ जगदगुरू गं गेश सुत सुपन दौ भण्डाररसमसाँ


हराददत्य दौ.।। पुि सुताि गोरा जणजिाल साँ जीिे पत्नी ए सुत सन्ददगवह
भिे श्वर। अिस्थाने सुपन्ातृ हररशम्मष दाररचत क्िचित् जणजिाल ग्राम

दे िानन्दद पञ्जी ३०=५ िादनसाँ उपायकारक म.म. पा. िद्धष मान सुताि
खण्डिलासाँ विश्वनाथ सुत त्रशिनाथ पत्नी गं गेश- म.म. िद्वषमान/
14 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

सुपन/ हररशम्मष

Gangesh, the author of the Tattvachintamani,


wrote one text equivalent to 12,000 texts. Now
come to the fact mentioned in the Panji- it
clearly states that Gangesh of
Tattvachintamani was born five years after the
death of his father and he married a tanner, so
why did Ramanath Jha hide this from Dinesh
Chandra Bhattacharya? Vardhamana, son of
Gangesh, calls
Gangesh sukavikairavakananenduh. But the
conspiracy under which the poems of a famous
scholar like Gangesh are not available today is
clear from the example given above. Vasudev
of Bengal was a classmate of Pakshadhar
Mishra of Mithila, he came to study in Mithila,
passed the shalaka examination and received
the title of sarvabhaum. Vasudeva memorised
the tattvachintamani of Gangesh and
the nyayakusumanjali karika of Udayana.
Pakshadhar and other Mithila teachers did not
allow writing (copying) tattvachintamani.
Raghunath Shiromani, a disciple of Vasudeva,
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 15

took the right of certification after he defeated


his guru Pakshadhar Mishra in a scriptural
debate (shastrartha). The Navya Nyaya school
was founded in Navadvipa by Vasudeva-
Raghunath. Pakshadhar Mishra was a
contemporary of Vidyapati (distinct from the
Padavali writer who was of the pre-
Jyotirishwar period) who wrote in Sanskrit
and Avahatta. And the arrival of Mithila
students of Bengal from Bengal stopped after
Raghunath Shiromani. Gangesh Upadhyaya
enjoyed 'param guru' as well as 'jagad
guru' titles, the highest titles of the time and as
per Panji only Vacaspati Mishra II was the
other person who enjoyed the title of 'param
guru'. The extinction of Navya-Nyaya School
from Mithila, as described above, was a
revenge of nature against the honour killing of
Gangesh Upadhyaya and his family.

[Translation of the Maithili Short Story,


'Shabdashastram' (based on the true Panji
records of Gangesh Upadhyaya) was done by
the author Gajendra Thakur himself:
16 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

published as 'The Science of Words' Indian


Literature Vol. 58, No. 2 (280) (March/April
2014), pp. 78-93 (16 pages) Published By:
Sahitya Akademi]

-Gajendra Thakur, editor, Videha (be part of


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विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 17

१.२.अं क ३९१ पर विप्पणी

मुन्ना जी

पे परमे शी कलाक पयाषय ऐि-' मै चथली आलोिना '- सावहत्त्यक रिना


- सामाणजक विडं िनाक व्याख्या चथक।जावह मे समाधाक सं भािना से हो
वनवहताथष । आलोिना-रिनाक त्रशचथलताक ददग्दशषनक पयाषय बुझू।
विगत १दशक मे प्रकात्रशत मै चथली आलोिनाक पोथी पढ़लोपरान्दत इ
विश्वस्त क' सकै िी जे - एक भगाह ऐि। मै चथलीक बे सी आलोिना
प्राय: िािु काररता मे त्रलप्त िा ओत्रल सधे बाक सूि सन लागत। तीन
दशक सं धुरझार विश्ले वर्त/व्याख्याचयत होइत मै चथलीक अपन एक
माि विधा- " बीहवन कथा " पूणषत: व्यिच्छस्थत भ' स्थावपत भ' िुकल
ऐि।मुदा आलोिकक दृचष्ट फरीि नै ,एकरा प्रचत दृचष्टहीन सन! माने
आलोिक त्रलखै त' िचथ 21म सदी मे मुदा सोि आ विर्य िस्तु 19म
सदीक। जहन वक सावहत्त्यक रिना सदचत वकिु दशक/सदीक आगां
धरर प्रासं वगकताक सं ग स्थावपत करबाक मानदण्ड रखै ि। मै चथलीक
एहे न एकभगाह आलोिक/कृचत कें आलोिनाक श्रे णी मे जगह दे ल जा
सकैि ? आवक एहे न ले खन कें उठल्लू बुणझ ढ़दठया/कचतया राखब
कोनो बे जए?
विदे ह पे टार: गजे न्र ठाकु रक सहस्रबाढ़वन (पवहल मै चिली ग्राविक
उपन्यास) पर वटप्पिी
लक्ष्मि झा सागर
ई त तहलका मिा दे त मै चथली सावहत्यक इचतहासमे यौ गजे न्दर बाबू!
एहे न व्यस्त जीिनमे कखन आ कोना एत्ते लीखख लै त िी से हो कंप्यूिर
18 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

पर? अहााँ क ई कृचत अहााँ क सावहत्त्यक यािाक अिचधक सिाे त्तम आ


अनुपम काज अचि! हमर बधाइक सं ग अनन्दत शुभकामना!!

श्यामानन्द िौधरी
ऐ नूतन सने स ले ल आभार।

दीपक गुप्ता, सम्पादक, ने शनल बुक ट्रस्ट


नब प्रयोग, स्िागत।

वनममला किम
बहुत नीक उपन्दयास बनल अचि हार्दिक बधाई अपने के।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


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२.गद्य

२.१.प्रो दमन कुमार झा- ने पालमे मै चथली नािकक विकास आ पररणाम

२.२.परमानन्दद लाल कणष-जे ठ मासक एकादशीक माहात्म्य

२.३.अणजत कुमार झा- विकास सचमचत

२.४.लाल दे ब कामत-लघुकथा- पं िबे दीमे धवनयां / नन्दद विलास राय


जीक पवहल कृचत: सखारी-पे िारी

२.५.रबीन्ददर नारायण चमश्र-सीमाक ओवह पार (धारािावहक उपन्दयास)

२.६.कुमार मनोज कश्यप-अध पतन

२.७.प्रमोद झा 'गोकुल'- अप्रैल फूल (बीहवन कथा), त्रलक त्रलक (लघु


कथा)

२.८.प्रणि कुमार झा- पोथी ििाष: "प्रीचत कारण से तु बान्दहल":


सम्पादक - श्री आशीर् अनचिन्दहार

२.९.अरविन्दद गुप्ता- केदार बाबू दीघष जीिन यािा, महान उपलच्छब्ध


20 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

२.१०.रबीन्ददर नारायण चमश्र- मावि बजा रहल अचि

२.११.वनमषला कणष- अत्ग्नत्रशखा खे प -३८

२.१२.ग्रुप कैप्ि (डा.) वि एन झा- अं तररक्ष पयषिन के िै ज्ञावनक


दृचष्टकोण
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२.१.प्रो दमन कुमार झा- ने पालमे मै चथली नािकक विकास आ पररणाम

प्रो दमन कु मार झा

ने पालमे मै चिली नाटकक विकास आ पररिाम

भारतमे जखन मुसलमानक आक्रमण भे लै ताँ एवह ठामक लोक अपन


सं स्कृचत एिं सावहत्य केँ रक्षाथष ठाम ठाम भाग' लगलाह , जावहमे
ने पाल , चमचथलासाँ लग रहलाक कारणे प्रमुख स्थान िल। सुरक्षाक
दृचष्टएें ओ हहिदू राष्र िल। एवहठाम पवहनहुाँ साँ अबरजात िल।रक्त
सम्बन्दधक डोर िल।चमचथलाक ले ल तीथष िल। एवहपर- ओवहपर जायब
िोल िपब सन िल। ने बोली िाणी मे कोनो अन्दतर , आ ने रहन सहने मे
कोनो त्रभन्दनता। सभ अपने सन बुझाइत लोक ओतहु अपने सन अनुभि
करै त िल। ने ओत कोनो आक्रमणक डर ,आ ने ओत वहन्ददू सं स्कृचतक
क्षचतक कोनो भय िलै ।
ओवहठामक राजा कला - सं स्कृचत - सावहत्य अनुरागी िलाह। ओ
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एवहठामक विद्वान लोकवनकेँ खूब आदर करै त िलाह। एवहठामक


विद्वान लोकवन ओत अपना केँ ग्लावनक अनुभि नवह करै त िलाह।
अवपतु हुनका लोकवन केँ राज दरबारमे स्थान दे ल जाइत िलवन। आर
की िावहयवन ? ओत वहनकालोकवनकेँ अपन सं स्कृचतक रक्षा,
सावहत्यक सम्मान आ ओवहठामक समाजक स्िीकायषता भे िलवन।
जखन ई तीनू भे वि गे लवन ,ताँ हुनक प्रचतभा ओहू ठाम पल्लवित पुष्ष्पत
हुअ लगलवन।

ओवहठाम वहनका लोकवन केँ ते हन ने उचित पररिे श भे िलवन जे ई


लोकवन अपन ज्ञानसाँ सावहत्यक बखारी केँ भरबामे लावग गे लाह। ओ
लोकवन तते ने त्रलखलवन जे बक्सा पे िी के कहय सन्ददूक सन्ददूकिीमे
अम्बार लगा दे लचथन। जाँ आइयो ओवहमे वकयो हाथ दे चथन ताँ एक साँ
एक सावहत्त्यक मणण पवि लावग जे तवन। जे मै चथली सावहत्यक
इचतहासक एक नि पन्दना केँ उघारर दे त।

ने पालमे मै चथली भार्ाक प्रिार- प्रसारक मुख्य कारण िल चमचथलाक


विद्वान लोकवनक ओवहठाम प्रिे श। एवह क्रममे 1324 ई मे यिन साँ
पराणजत भ पञ्ञ्जक प्रत्रसद्ध बीजी पुरुर् म.म. हररससिह दे ि ने पालक
जं गल मे शरणागत भे लाह। हुनका सं ग हुनक आत्रश्रत पच्छण्डत विद्वान
लोकवन से हो पां डुत्रलवपक सं ग ने पाल आवब गे लाह। आ ओतय
भातगााँ िक समीप अपन राज्यक स्थापना कयलवन आ मै चथली भार्ाकेँ
तीव्र गचत साँ आगू बढ़े लवन। एवहठामक अनुकूल पररच्छस्थचत पावब ओ
लोकवनक सावहत्य सृजन मे लावग गे लाह। मल्लिं शीय शासक लोकवन
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स्ियं सावहत्य प्रेमी िलाह। ओ लोकवन चमचथलासाँ विद्वान सभ केँ


आमं िण कय आश्रय से हो दै त िलाह। तकर मुख्य कारण िल
विद्यापचतक गीतक माधुयषता। हुनक गीतक माधुयषतासाँ बं गाल आ असम
से हो ओवहना प्रभावित िल। ने पालक राजालोकवन जे स्ियं सं गीत
ममषज्ञ िलाह , मै चथली भार्ाकेँ माधुयषताक कारणे पूणष सत्कार
कयलवन।विद्यापचतक काव्य प्रचतभाक प्रेरणा स्िरूप स्ितं ि रूपसाँ
मै चथली कविता ओ सं गीतक विकास भे ल। अत्रभनयचप्रय नरपचत
लोकवन नािकक रिना तथा ओकर वित्रभन्दन अिसर पर अत्रभनयक
व्यिस्था से हो करबाओल। जकर सम्पूणष श्रे य ने पाल उपत्यकाक
मल्लिं शीय शासक लोकवनकेँ जाइत िवन। एवहठाम मै चथल विद्वान
कवि - सावहत्यकार अपन कला एिं प्रचतभाक खूब प्रदशषन कयलवन।
"मै चथली भार्ाकेँ राजकीय प्रश्रय भे वि गे लासाँ विकासमे आओर तीव्रता
आयल। पािू अत्रभनय चप्रय नरपचत लोकवन नािकक रिना तथा
वित्रभन्दन अिसर पर तकर प्रदशषनक व्यिस्था से हो कराओल। एवह दृचष्टएें
काठमां डू उपत्यका - भातगां ि , पािन ओ काष्न्दतपुर शाखाक राजा
लोकवनक दरबार मै चथली नािकक केंर बवन गे ल।"

( मल्ल कालीन मै चथली नािक ,डॉ िन्ददेश्वर शाह, प्रकाशन - ने पाल


राजकीय प्रज्ञा प्रचतिान , कमलादी, काठमां डू। पृि - 29-30)

एवहप्रसं ग डॉ रामदे ि झा जगज्ज्योचतमषल नामक विवनबं धक पूिष पीदठका


मे त्रलखै त िचथ ---"चमचथलाक सारस्ित धारा ने पालोन्दमुख भ क
अनिरत प्रिहमान होम लागल आ ओही सं ग आयल मै चथली भार्ा,
मै चथलीगीत- काव्य आ नािक।चमचथलाक सावहत्य ओ सं गीत साँ
24 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

मल्लिं शीय ने पाल उपत्यका जे ना गुंजायमान भ उठल । मै चथलीक


विद्यापचत, विष्णुपुरी , अमृतकर, गोविन्दद, कंसनारायन इत्यादद
कविगणक कोमलकान्दत पदािलीक गाने माि नवह होइत रहल,
चमचथलामे रचित नािकक अत्रभनये नवह होइत रहल अवपतु गीत ओ
नािकक रूपमे मै चथलीक अजस्र सावहत्यक सजषना से हो अठारहम
शताब्दीक तृतीय िरण धरर अविराम गचतसाँ होइत रहल।"

( जगगज्योचतमषल , विवनब न्दध , रामदे ि झा, सावहत्य अकादे मी, नई


ददल्ली, 1995,पृ 10. )

म.म. हररससिह दे िक मृत्युक बाद हुनक दू बालक मानससिह दे ि आओर


श्यामससिह दे ि लगभग सताइस िर्ष धरर राज्य कयलवन। हुनका
लोकवनक राज्य कालमे मै चथल विद्वान सभक सम्पकष बनल रहल।
श्यामससिह दे िक पुि नवह िलवन ओ अपन पुिीक वििाह ने पालक
प्रािीन राज पररिारक एक सम्बन्दधी जयभर मल्ल साँ करौलवन आ
हुनका अपन उत्तराचधकारी से हो बनौलवन।जयभरमल्लक पूिषज
नान्दयदे िक आक्रमणक समय भावगक चमचथलामे बत्रस गे लाह।
नान्दयदे िक समयसाँ श्यामससिह दे िक समय धरर चमचथलामे रहल जयभर
मल्लक पररिार स्िाभाविक रूपसाँ मै चथली भार्ी भ गे ल िल।एकददस
स्ियं मै चथली भार्ी , दोसर ददस मै चथल महाराजक उत्तराचधकारी
,एहनमे मै चथली भार्ाक प्रचत अनुराग स्िाभाविक िल। एवह अनुरागक
कारणे ने पालक राजदरबारमे मै चथलीक प्रचतिा बढ़ै त गे लै।
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ने पाल उपत्यकाक तीनू शाखा भक्तपुर, पािन आ काठमां डू , सं गवह


वहमालय तराइक चतरहुत क्षे ि मोरं ग, मकमानी, भगितीपुर , सप्तरी
आदद क्षे ि में सोलहम, सिहम आ अठारहम शताब्दी धरर मै चथली
सावहत्यक खूब सजषन भे ल।खासक खूब नािक त्रलखल गे ल। सं गवह
चमचथला मे रचित नािकक अत्रभनयसाँ ओत मनोरं जनक अिसर प्रदान
कयल गे ल। ने पाल - भारतक ई सम्बन्दध माि कलाक क्षे िमे नवह
भार्ाक क्षे ि मे से हो एक भ गे ल िल।

मल्लिं शीय राजा लोकवन स्ियं नािकक रिना करै त िलाह।आ हुनक
शासन कालमे से हो विपुल मािा मे नािक रिल गे ल , जे मै चथलाक्षर
आ ने िारी भार्ामे उपलब्ध अचि। लगभग डे ढ़ सय िर्ष धरर ने पालमे
मै चथली नािकक ले खन आ मं िन होइत रहल। नािकक कथानक
पौराणणक रहै त िल । मं िन विशे र् अिसर पर वनयचमत रूपसाँ कयल
जाइत िल। एवह नािक सभमे सम्िाद आ गीत मै चथलीमे रहै त िल ,आ
मं िीय वनदे श ने िारीमे कहल जाइत िल।

नािक मे गीत ,नृत्य आ सं गीतक प्रधानता रहै त िल। अचधकां श


नािकमे ई दे खल गे ल अचि जे नािककार वकयो आ गीतकार वकयो
आन होइत िलाह। एकर प्रदशषन दरबार मे होइत िल। जत राजा
लोकवन से हो अत्रभनय करै त िलाह। नािक माि मनोरं जनक उद्देश्य साँ
खे लाएल जाइत िल।

मल्ल नरे शक समयमे ने पाल मै चथली नािकक स्िर्णिम काल िल। मुख्य
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रूपसाँ तीन राज्य ( भक्तपुर िा भातगां ि , काष्न्दतपुर िा काठमां डू आ


लत्रलतपुर आ पािन) मे जे एकर विकास भे ल तावहपर सं क्षे पमे प्रमुख
नािकक स्मरण क ली --

भक्तपुर िा भातगां ि
^^^^^^^^^^^^^^^^
मै चथली सावहत्य ओ सावहत्यकार केँ सं रक्षण दे वनहार ने पालक ई प्रमुख
राज्य चथक। एवहठाम पवहल मै चथली नािक विद्याविलाप विश्वमल्ल क
आदे श साँ रिल गे ल ,जकर अत्रभनय राजसभाक समक्ष भे ल िल। एवह
समय धरर सं स्कृत - प्राकृचत भार्ा आमजन साँ दूर भ रहल िल।
सं स्कृत- प्राकृचत लोक केँ बुझय मे कदठन भ गे ल िलै क।आन जनभार्ा
केँ सावहत्त्यक मयाषदा प्राप्त नवह भे ल िलै क। पररणामत मै चथली
वनबाषध रूपेँ बढ़ै त गे ल।
ओकर बाद मै चथलीक महान उन्दनायक भे लाह राजा जगज्ज्योचतमषल।
वहनक त्रलखल आ समयक प्रमुख नािक चथक - हरगौरीवििाह नािक,
मुददतकुिलयाश्व नािक, कं ु जविहार नािक।
एकर बाद वहनक पौि मै चथलीक सिाषचधक से िा कयलवन। वहनक
त्रलखल िओ गोि नािक प्रभाितीहरण नािक, नलीय नािक,
मलयगं चधनी नािक, उर्ाहरण नािक ,पाररजातहरण नािक, मूलदे ि
शत्रशदे िोपाख्यान नािक ने पालक राष्रीय अत्रभले खागार मे सुरणक्षत
अचि।
वहनक पश्चात णजताचमि मल्लक समयमे िओ गोि नािक त्रलखल गे ल।
मदालसाहरण नािक, बरूचथनीहरण नािक, कालीय मथनोपाख्यान
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नािक, महाभारत नािक, रामायण नािक, आ जै चमवन भारत नािकम।


वहनक पश्चात भूपतीन्दर मल्ल मै चथलीक पूणष अनुरागी िलाह।वहनक
त्रलखल भार्ा नािक, गौरीवििाह नािक, माधिानल नािक,
रूच्छक्मणीहरण नािक, उर्ाहरण नािक, कंसिध िा कृष्णिररत नािक,
गोवपिन्दरोपाख्यान नािक, सम्बरासुरिधोपाख्यान नािक,
जालं धरोपाख्यान नािक, मूलदे ि शत्रशदे िोपाख्यान नािक, जै चमनी
भारत नािकम , मुदाितीहरण नािक, विक्रमिररत नािक,
श्रीखण्डिररत नािक, पद्मािती नािक, पशुपचत प्राष्भाषि नािक,
विद्याविलाप नािक, उपलब्ध होइत अचि।
एवह राज्यक अष्न्दतम राजा रं णजनमल्लक त्रलखल अने क नािक प्राप्त
होइत अचि । वहनक प्रमुख नािक चथक - उर्ाहरण नािक, इन्दरविजय
नािक, मानधान्दयूपाख्यान नािक, कोलासुरिधोपाख्यान नािक,
अन्दधकासुरिधोपाख्यान नािक, जलशाचयविश्निादी सृष्युपाख्यान िा
मिाितार नािक, खििासुरिधोपाख्यान नािक, िाल्मीवक रामायण
नािक, रुच्छक्मणीहरण नािक, कृष्णिररत नािक, रामायण नािक,
कृष्णकैलासिोपाख्यान नािक, । एकर अचतररक्त नओ गोि आओर
नािकक ििाष अचि। ई नािक सभ राष्रीय अत्रभले खागार , काठमां डू
मे राखल पुस्तक सूिीक प्रथम भागमे भे िैत अचि।
अत कहल जा सकैत अचि जे भातगां िक राजा लोकवनक मै चथली
नािकक विकासमे अविस्मरणीय योगदान अचि।

काष्न्दतपुर िा काठमां डू
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
नरें रमल्लक समयमे रामायण नािक ओ महाभारत नािक त्रलखल गे ल।
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प्रतापमल्लक कालमे नलिररत एिं जगज्जयमल्लक समयमे अत्रभनय


प्रबोध िन्दरोदयनािकक रिना भे ल। वहनके समयमे त्रलखल िं शमणणक
गीत ददगम्बर नािक खूब ख्याचत पौलक।

लत्रलतपुर िा पािन
^^^^^^^^^^^^^^^^
एवहठाम हररश्चं रनृत्यम नािक त्रलखल गे ल, जकर प्रकाशन सन्दत
अगस्िस कोनरे डी जमषवनसाँ 1891 ई मे प्रकात्रशत करबाओल।

एवहतरहेँ कवह सकैत िी जे ने पालमे मै चथली नािक ओ गीतक अजस्र


भण्डार राष्रीय अत्रभले खागार , काठमां डू मे सुरणक्षत अचि।

जखन मल्लिं शक पतन भे लैक आ राजा पृथ्िीनारायण शाह विजयी


भे लाह ताँ च्छस्थचत प्रचतकूल भ गे लै। चमचथलासाँ सम्पकष िु वि गे लै।
एवहठामक नािक आ नािककार केँ ने पाल जायब बं द क दे ल गे लैक।
"ितषमान राजा शाह एलान क दे लवन जे मोगलान अथाषत ( मुगल िं शक
शासन रहबाक कारणे भारत केँ मोगलान कहै त िल। चमचथलाक
अचधकााँ श भाग मोगलानमे पिै त िलै क बााँ की ने पालमे ) शे र् चमचथला
साँ जे निु आ अबै त अचि ओकरा बं द कयल जाय। वकएक ताँ ओ
एवहठामसाँ अथष आ दे शक भे द ष्नू ल जाइत अचि। सं गवह ओ इहो
कहलवन जे ने पालक ने िारी नािके दे खल जाय।ओकरा लोकवन के जे
हम दे बै ओ दे शे मे रहत।"
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 29

(मै चथली लोकनायक विस्तृत अध्ययन एिं विश्ले र्ण , महें र मलं वगया
पृ 57।)

हुनक एवह कृत्य साँ ष्नू दे शक सम्बन्दध केँ जोरगर झिका लगलै क। जे
दूध पावन सं ग मीत्रल गे ल िल , से एकाएक फावि गे ल।
एकर बाद िीर शमशे र राणाक शासन आयल।वहनक शासन कालमे
पुन सां स्कृचतक ििा चििक' लगल। वहनक दरबारमे भरतीय नािक
आ नृत्यक प्रभाि बढ़ लागल। गीत, सं गीत ,नृत्य आ नािकक विकास
भे ल।वहनक समयमे ने पालमे पै घ सं गीत सम्मे लन भे ल, जे सं गीतक सं ग
सं ग नािकक क्षे िमे पै घ हलिल उत्पन्दन कयलक। लगभग सभ दरबार
नाि गान आ नािकक अत्रभनय स्थल भ गे ल।बिी हसीना आ िोिी
हसीना ,जे भारतीय िलीह से ओवहठाम खूब यश प्रचतिा अर्जित
कयलवन।

वहनके समयमे भरतीय रं गकमी केँ प्रत्रशक्षण दे बाक काज से हो शुरूह


भे ल। जनरल डम्बर शमशे र राणा ,जे जनरलक पद त्यावग प्रत्रशक्षण
प्राप्त कयलवन, से पश्चात रं गमं िक विकासमे लावग गे लाह।तवहना
माणणकमणण तुलाधर कलकत्ता मे नाय प्रत्रशक्षण पावब डबली (
आकाशतर) नािक करबाक श्रीगणे श कयलवन। बादमे गोपी शमशे र
से हो भारतमे प्रत्रशणक्षत भे लाह। वकिु और प्रत्रशक्षक लोकवन िलाह ,
जे ना - नानक चमश्र, नूरुद्दीन, बाला प्रसाद आदद , जे ने पालमे अत्रभनयक
प्रत्रशक्षण दे लवन , आ कालां तरमे राजा आ राणा दरबारक चथये िर इं िाजष
से हो बनाओल गे लाह।
30 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

राणा कालक बाद ने पालमे पं िायती व्यिस्था आयल। एवह कालमे


एकिा आर समस्या उत्पन्दन भ गे लै। नािक प्रदशषन एिं प्रकाशन साँ पूिष
सरकारी अनुमचत ले ब आिश्यक भ गे लै। प्रदशषन साँ पूिष सरकारी तं ि
केँ सूचित कयल जाइत िलै । अत्रभनय स्थल पर पुत्रलस िौकी साँ
पुत्रलस पठाओल जाइत िलै । कहल जाइत िलै जे ई शाष्न्दत सुरक्षाक
ले ल पठाओल जा रहल अचि । मुदा ओकर तहमे वकिु और बात रहै त
िलै क। ओकर मुख्य काज िलै क नािकक सम्िाद केँ वनरीक्षण करब
, जावहसाँ राजा आ व्यिस्था पर कोनो अनगषल बात नवह कहल जाय।
जावहसाँ नािकक विस्तारमे कमी अयलै क। भारतसाँ जे नािकक दल
जाइत िल , से कम भ गे लै। मवहला कलाकार से हो अपना केँ
असुरणक्षत अनुभि कर लागल। एवहसाँ पुन एकबे र भारत- ने पालक
बीि नािकक सम्बन्दध वििे द भ गे लै। एवहतरहेँ कवह सकैत िी जे
ने पालक सत्ताक सं ग मै चथली सावहत्य-सं स्कृचतक उत्थान पतन होइत
रहल।

च्छस्थचत सुधरलै आ ने पालमे सत्ता जखन जनताक हाथमे आयल , ताँ


रं गमं ि अपन रं गमे आवब गे ल। जीिनाथ झा एहन कवि भे लाह जे सम्पूणष
ने पाल केँ अपन समसामचयक काव्य धारा सं ग जोिलवन। ई कहू जे
ओत ई केिल स्ियं सावहत्यक प्रणयन नवह कयलवन अवपतु आनो आन
विद्वान केँ एवह ददस अग्रसर करबामे लावग गे लाह।तकरे पररणाम चथक
जे ितषमान कालमे डॉ धीरे श्वर झा धीरे न्दद , प्रो भोलानाथ झा धूमकेतु,
प्रो प्रफुल्ल कुमार ससिह मौन , श्री महें र मलं वगया आदद अपन कमषक्षेि
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ने पाले के बनओलवन। आ पुन मै चथली सावहत्त्यक गचतविचध जोि


पकिलक। एकरे पररणाम भे ल जे ने पालीय सावहत्यकार लोकवन जे ना-
श्री रामभरोस कापवि ्मर, प्रो राजे न्दर विमल, रमे श रं जन, पमे श्वर
कापवि आदद मै चथली ददस प्रिृचत भे लाह जे आइ मै चथलीक प्रचतचित
सावहत्यकारमे पररगणणत िचथ।

भारत आ ने पाल मे एकिा अवनिायष नाम चथक महें र मलं वगयाक,


णजनकर प्रिुर नायकृचत केँ दे खला उत्तर सहजे विश्वास करब कदठन
भ जाइत अचि जे ओ एते क नािक कोना त्रलखलवन । हुनक अचधकां श
नायकृचतक रिना-स्थल ने पाले चथक ।ओ त्रलखबे िा नवह कयलवन
त्रलखबयबो कयलवन , मं िनो कयलवन आ करबे बो कयलवन एिं
वनदे शनो कयलवन। हुनक वकिु प्रमुख नाय कृचत चथक-- ओकरा
आाँ गनक बारहमासा, जुआयल कंकनी, गाम नणि सुतय, काठक लोक,
ओररजनल काम, राजा सलहे स, कमला कातक राम, लक्ष्मण आ
सीता, लक्ष्मण रे खा खच्छण्डत, एक कमल नोरमे , पूर् जाि वक माघ
जाि, खखच्िवि, िु तहा घै ल, ओ खाली मुाँह दे खै िै । ई सभिा कैक बे र
आ कैक ठाम खे लाएल गे ल अचि। एकाङ्की: िू िल तागक एकिा ओर,
ले िराह आन्दहरमे एकिा इजोत, गोनूक गबाह, हमरो जे साम्ब भै या,
"वबरजू, वबलिू आओर बाबू", मामा सािधान, दे हपर कोठी खसा ददअ,
नसबन्ददी, आलूक बोरी, भूतहा घर, प्रेत िाहे असौि, फोनक करामात,
एकिा बतावह आयल िलय, मात्रलक सभ िल गे लाह, भार्णक
दोकान, फगुआ आयोजन आ भार्ण, भूत, एक िु किा पाप, मुहक
कात, प्राण बिाबह सीता राम, ओ खाली घै ल फोिय िै । ई सभिा
मं चित भऽ िुकल अचि। २५ िा िौबविया नािक: िक्रव्युह, लिर पिर
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अहााँ बन्दद करू, बावढ़ फेर औतय, एक घर कानन एक घर गीत, से र पर


सिा से र, ई गुर खे ने कान िे दे ने, आब कहू मन केहे न लगै ए, नि घर,
हमर बौआ स्कूल जे तए, बे िना गे लए बीतमोहना गबए गीत, मोि पर,
ककर लाल आदद। ई सभिा िौबविया िीथीपर खे लायल गे ल अचि। ११
िा रे वडयो नािक: आलूक बोरी, ई जनम हम व्यथष गमाओल, नाकक
पूरा, फिफविया काका आदद। ई सभिा िा पिना, दरभं गा आ ने पालक
रे वडयो स्िे शनसाँ प्रसाररत भे ल िवन।
एकर बाद एवह क्षे िमे अपन वकिु नायकृचत ल क उपच्छस्थत भे लाह
रामभरोस कापवि ्मर , वहनक रानी िन्दरािती , एकिा आओर बसन्दत
, मवहर्ासुर मुदाषबाद आदद प्रत्रसद्ध नािक प्रकात्रशत अचि। रमे श रं जनक
नािक चथक - मुदाष, डोमकि आदद ताँ परमे श्वर कापविक ििकाल दशषन
आ बाल नािक िौआरर बे स ख्यात पौलक। एवह नािकक सभक प्रदशषन
वित्रभन्दन अिसर पर वित्रभन्दन सं स्था द्वारा समय समय पर कयल जाइत
रहल। ई जे झमिगर गाि अचि तकर सीर ने पाले मे अचि।

एतबे नवह , ने पाल राजकीय प्रज्ञा प्रचतिानक स्थापनाक बाद वनयचमत


रूपेँ नाय समारोह होइत रहै त िल।जावहमे मै चथलीओ क नािक होइत
िल। महे न्दर मलं वगया से हो चमचथला नायकला पररर्द, जनकपुरधाम
साँ अपन िीमक सं गे बराबरर जाइत रहलाह अचि।आ िाह िाही लूिैत
रहलाह।

जखन भारतमे अररपन , पिना द्वारा अं तरराष्रीय नाय प्रचतयोवगता ,


आयोणजत भे ल ताँ एहू ठाम ने पालक प्रचतवनचधत्ि दे खल गे ल। िठम-
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सातम अं तरराष्रीय नाय प्रचतयोवगतामे से हो ष्नू दे शक नाय सं स्था


भाग ले लक।

2000 ई मे एन. आइ. बी. ( ने पाल, इच्छण्डया, बं ग्लादे श) सं युक्त रूपेँ


आइ.िी. आइ. ( इं िरने शनल चथये िर इं स्िीयूि ) क स्थापना कयलक।
UNESCO द्वारा सम्पोवर्त एवह सं स्थाक काज िै क चथये िर साँ
सं बंचधत वित्रभन्दन दे शसाँ सं िाद स्थावपत करब,आ से चमनार एिं नाय
समारोह आयोणजत कराएब आ नािकक विकास करब। एही क्रममे
पवहलबे र ई सं स्था भारत - ने पालमे समान रूपेँ सवक्रय मै चथली नािकक
स्तम्भ महे न्दर मलं वगया केँ सम्मावनत कयलक, जे ष्नू दे शक हे तु
गररमाक बात चथक। ई सं स्था रं गकमषक माध्यमे ष्नू दे शकेँ एक सूिमे
बं धने अचि।
तवहना 2004 मे रमानं द युिा क्लब , जनकपुर नाय समारोहक
आयोजन कयलक, जावहमे कलकत्ता, ददल्लीक सं ग चमचथलाक नाय
सं स्था सभ भाग ले ने िल।एहन कते को उदाहरण अचि ,जे ना युनाप (
ने पाल) जमघि, (मधुबनी) ,जावहमे ष्नू दे शक नाय दल सम्मत्रलत
भे ल।

2012 ई मे मै चथली लोकरं ग ( मै लोरं ग) , ददल्ली मे महें र मलं वगया


नाय महोत्सि कयने िल ,ताहूमे ने पालक नाय दल भाग ले ने
िल। एवह महोत्सिक वित्रशष्ट अचतचथ ने पालक राष्रपचत डॉ रामिरण
यादि िलाह जे अपन िक्तव्यमे कहने िलाह जे भारत - ने पालक जे
सम्बन्दध अचि तकर केन्दरमे ष्नू दे शक रं गकमे अचि।
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एवहतरहें कवह सकैत िी जे ने पालमे मध्य कालमे जे नािकक न्दयाें पिल


से ितषमान काल धरर ओवह पर नािकक महल बनाओल जा रहल अचि।
एखनो कतोक विद्वान नािक ले खन मे सवक्रय िचथ। ष्नू ठामक ले खक
अपन ले खन सवक्रयतासाँ नािकक विकासक पाथे य बनल िचथ। एकर
पररणाम सं तोर्प्रद अचि से ताँ कहले जा सकैत अचि।

-प्रो दमन कुमार झा, प्रोफेसर एिं अध्यक्ष, विश्वविद्यालय मै चथली


विभाग, ल. ना. चमचथला विश्वविद्यालय, दरभं गा।
मो.-- 7004760408. E-
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२.२.परमानन्दद लाल कणष-जे ठ मासक एकादशीक माहात्म्य


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२.३.अणजत कुमार झा- विकास सचमचत

अणजत कु मार झा

विकास सचमचत

आदशष लोक कॉलोनी मे पवहल बे र एहन घिना घिल िल जकर केओ


कल्पना धरर नवह केने िलचथ एखन धरर। आदशष लोक कॉलोनीक
सौहादषपूणष िातािरण से हो अवह कॉलोनी केर नामक अनुरुप िल।
लगभग बीस-बाईस बरख पूिष एत्तह माि तारक गाि आ एकिा विशाल
पोखरर िल। अवह शहर केर अचधकां श धोबी कपिा धोबय ले ल एत्तवह
जुिैत िल। हाँ वकिु लोग माि मारय ले ल से हो एत्तह जुिैत िलचथ।
सुनसान रहबाक कारण लोग सााँ झ के कहय ददन दे खार से हो इम्हर साँ
वनकलनाई सुरणक्षत नवह बुझैत िलचथ। पसीबा सब तारक गाि पर साँ
भरल डाबा उतारय आ दोकान सणज जाइत िल। माि मारनाहर सब
से हो एकर आनन्दद उठाबय आ फेर तासक दौि िलै । वकिु पुरान लोग
सबहक कहनाम िखन्दह जे एत्तह मरघवियो िल। अवह साँ सिले एत्तह
केर औद्योवगक क्षे ि से हो िै क जे वक एखन 'वबयाडा' केर वनयं िण मे
िै क। एत्तह जमीन ओवह समय माविक मोल वबकाइत िल मुदा केओ
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खरीदनाहर नवह । केओ नवह िाहै त िलचथ जे हुनकर मे हनत केर कमाई
पावन मे ित्रल जाइक। अवह िीरान जलमग्न इलाका मे वकनको
भविष्यक कोनो सं भािना नवह नजर आवब रहल िलवन। समय
पररितषनशील िै क आ पररितषन प्रकृचत केर वनयम िै क आ जे समय
केर गचत केँ समणझ जाइत अचि िै ह त्रसकन्ददर कहाइत अचि।

धीया पुता रही त' पढ़ाओल जाइत िल जे अपन सबहक दे श गामक


दे श अचि अथिा कहू जे वकसानक दे श अचि। कृवर् एत्तह केर प्रमुख
पे शा रहल अचि आ सत्य पुिू त' दे शक आत्मा गामे मे बसै त अचि।
एहन बात नवह िै क जे रोजी रोिी के तलाश मे अथिा िाकरी ले ल लोग
प्रिासी नवह बनै त िलचथ। ओवह समय त' साझी आश्रम होइत िलै तैँ
ते हन सन चिन्दता नवह रहै त िलवन आ सबहक पररिार गामे मे रहै त
िलवन। पाबवन चतहार मे एहन परदे सी सब गाम त' अवबते िलचथ। अवह
केँ अलािे कोनो भी काज प्रयोजन मे से हो अपन उपच्छस्थचत सुवनखश्चत
करै त िलचथ। एक बात त' तय िलै जे रोजगारक अिचध पूणष भे ला पर
अथाषत् ररिायर भे ला पर लोग अपन गाम घुरर अबै त िल। मुदा काल
िक्र केँ के थाचम सकैत अचि? समय के साथ-साथ लोग सबहक सोि
से हो बदलै त गे लै। साझी आश्रम िू िय लागल आ धीरे -धीरे णजनका जे ना
सामथ्यष भे लवन अपन पररिार केँ से हो सं ग ल' जाय लगलवन। गामक
च्छस्थचत से हो बदललै आ माि खे ती बारी पर वनभषर रहनाइ कदठन भ'
गे ल। कखनो रौदी, त' कखनो दाही साँ बुझु जे वकसान सबहक कमर
िू िय लागल। धीरे -धीरे वकसान सब मजदूर बनय ले ल मजबूर भ' गे लाह
आ बहुत ते जी साँ गाम िोवि शहर केर तरफ पलायन करय लगलाह।
पूरा गामक व्यिस्था िौपि होबय लागल। सि पुिू त' बुझाय लागल
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जे ना गामक गाम िीरान भ' गे ल अचि। सब साँ पै घ गप्प त' ई िल जे


आब ररिायरमे न्दि केँ बाद लोग गाम आबय साँ परहे ज करय लगलाह आ
ओत्तवह बसय लगलाह। जे सक्षम नवह िलचथ से हो कहुना कजष साचध
क' आसपास केर शहर ओगरय लगलवन। एकर प्रमुख कारण िल
धीया पुताक पढ़ाई त्रलखाई सं ग ओकर उज्ज्िल भविष्यक चिन्दता। एहन
सन पररच्छस्थचत कोनो आपदा साँ कम नवह िल।

समय केँ गचत बूझय िाला लोग सब आपदा केँ अिसर मे कोनो
पररिर्तित कैल जाइत िै क तावह कला मे वनपुण होइत िचथ आ ओ सब
जाग्रत भे लाह। शहरी करण केर दौि शुरु भे ल आ गाि िृक्ष सब बे धिक
किाय लागल। डबरा आ खत्ता सब केँ के पूिय बिका बिका पोखरर
सब मे से हो मावि भराय लागल। दे खखते दे खखते महानगर िाला खे ला
सब अवह ठाम से हो शुरु भ' गे ल। शहर मे जमीन खरीदबाक बे गरता
लोग सब केँ बुझाय लगलवन। कागज पर प्लािक नक्शा बनय लागल
आ सगरो प्रॉपिी डीलर सब कुकुरमुत्ता जाँ का उवग आयल। जावह जमीन
केँ लोग माविक मोल नवह ले बय िाहै त िलचथ तकर दाम से हो दे खखत
दे खखते आकाश ठे कय लागल। एक तरहें गामक जमीन बे चि शहर मे
जमीन खरीदबाक जे ना उजावह उदठ गे लै।

हम जावह आदशष लोक कॉलोनी केर कथा कवह रहल िलहुाँ ओहो अही
दौि मे आकार ले बय लागल िल। ओवह समय एकर नामकरण नवह
भे ल िलै मुदा वकिु त' नाम रहले हे तैक जे हमरा नीँक जाँ का नवह बूझल
अचि। खै र ओकर कोन प्रयोजन जे लोग एकरा खजुरबन्दनी कहै त िलै
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आ वक धोवबया घाि? तारक गाि सब किाय लागल आ कहुना रे लरे


रे लर मावि भराय लागल। िारर गोिे चमत्रल क' साझी कारोबार शुरु
कैलवन आ जमीन वबकाय लागल। मावि भराइक एिं लगले जमीन
वबका जाइक। आई एक रे ि मे त' काच्छल्ह दोसर रे ि मे । जे ना जे ना
वबकाइक जमीनक रे ि और बवढ़ जाइक। एहन ते जी त' हर्षद मे हता केँ
समय मे शे यर माकेि केँ से हो नवह िलै । हम जखन जमीन रणजस्री साँ
पवहने एत्तह जमीन दे खय आयल िलहुाँ तखन हमरा जमीनक दशषन नवह
भे ल िल। बुझु जे पावन मे िाररिा खुट्टा गािल िल जे वक ओकर िौहद्दी
िलै कहााँ दन। हम मावि भराय केर प्रतीक्षा नवह क' सकैत िलहुाँ कारण
जावह ते जी साँ रे ि भावग रहल िल हमर बजि गिबियबाक पूणष
सं भािना िल। प्राःविडे न्दड फंडक लोन केर से हो एकिा सीमा िल। हम
धिफिायल िलहुाँ आ बुझु जे भगिान भरोसे जमीनक नवह पावन केर
रणजस्री करा क' एकले खे गं गा नहा ले ने िलहुाँ । िु ट्टी से हो खत्म िल
तैँ रे न पकवि अपन गं तव्य केर ले ल रिाना भे लहुाँ ।

लगभग ि: बरख बाद नौकरी साँ अिकाश प्राप्त कयलाक उपरां त हम


अपन शहर मे घुरर अयलहुाँ । एहन नवह जे ि: बरखक बाद घुरल रही।
साल मे दू बे र त' वनखश्चत रूप साँ अबै त िलहुाँ आ कखनो काल समय
वनकात्रल अपन रणजस्री करायल पावनकेँ भीतर गािल िारु खाम्ह दे खय
ले ल अबै त िलहुाँ । हाँ आब ओत्तह मावि भरा गे ल िलै । एक बे र िु ट्टी मे
प्रयास कय बाउण्री िाला काज कहुना करबा ले ने िलहुाँ । हमर बाउण्री
केँ पच्छिम तरफ एखनहु विशाल पोखरर मौजूद िल। वकराया पर एक
ठाम समय नीँक जाँ का बीचत रहल िल मुदा एक राचत साओन मे बरखा
िाला पावन घर मे घुत्रस गे ल आ बहुत रास नोकसान भे ल। ओवह केँ बाद
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अपन एकिा िोि चिन बसे रा ठाढ़ करबाक वििार मोन मे जोर मारय
लागल। अवह वििार केँ मूतषरूप दे बाक उपक्रम मे लावग गे लहुाँ । सं योग
साँ होम लोन से हो भे वि गे ल त' गृह वनमाषण केर कायष जोर पकवि ले लक
आ एक ददन अपन घर मे प्रिे श करबाक शुभ मुहूतष से हो आयल। आब
एकरा माया कवहयौ अथिा वकिु आओर मुदा ई त' सत्य िै क जे अपना
साँ वनमाषण कराओल घर मे प्रिे श करबाक अनुभूचत वनस्सं देह सुखद
होइत िै क। अवह कॉलोनी केर नामकरण हमरा आबय साँ लगभग दू
बरख पवहनहे भ' िुकल िल। हाँ आदशष लोक कॉलोनी एकर नाम पिल
िल। लगभग आधा साँ बे सी कॉलोनी बत्रस िुकल िल। जे सब शुरु मे
आयल िलचथ हुनका सब केँ बड्ड तपस्या करय पिल िलवन। सिक
कच्िी िलै आ बरसात मे लगभग डााँ ि भरर पावन लागल रहै त िलै ।
धीरे धीरे लोग सब मावि आ िाउर भरबा क' कहुना िलय लायक रास्ता
बनाबय मे सफल भे ल िलाह। वबजली केँ पोल नवह िलै त' कहुना
बााँ स बल्लाक सहारा साँ तार घीचि क' आनल गे ल िल। एत्तह महानगर
िाला प्लान कैल प्लाहििग थोिबे होइत िै क। एत्तह त' बस कहुना मावि
भरर क' जमीन बे िल गे ल िल। वबजली, पानी एिं सिक सन बुवनयादी
सुविधाक हे तु लोग दौिै त रहय। जे ना जे ना लोग गृह वनमाषण करै त गे लाह
अवह कॉलोनीक क्रचमक विकास होइत गे ल। हमर गृह प्रिे श साँ पूिष एत्तह
सिक पर खरं जा भ' गे ल िल। गृह प्रिे शक उपरां त पवहल राचत हमरा
मोन मे डर पै त्रस गे ल जे कहीं हमर मकानक पिबररया वहस्सा पोखरर
मे नवह भात्रस जाय। पिबररया खखिकी साँ हमर सबहक िौक पर
अिच्छस्थत अवह शहरक नामी वगरामी विद्यालय सोझे दे खाई पिै त िल।
बुझु जे पोखरर केँ एक वकनार पर हमर घर आ दोसर वकनार पर ओ
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विद्यालय िल। एखनहु धोबी सब जुिैत िल आ नाि पर िवढ़ मलहा


जाल से हो फेकैत िल माि मारय ले ल। िदठ से हो वकिु गोिे ओत्तह
घाि बना क' केने िलचथ। सरस्िती पूजाक विसजषन से हो अवह मे
दे खबाक सौभाग्य भे िल। जावह पिबररया दे िाल केँ पावन मे भात्रस
जयबाक भय भे ल िल से भय साल भरर बाद वनपत्ता भ' गे ल।

अपन नौकरी के दौरान रान्दसफर पोच्छस्िं ग केँ िक्कर मे लगभग पूरा


भारत ्मण भ' गे ल िल। हमर अष्न्दतम पोच्छस्िं ग पुणे मे िल आ ओ
शहर ते हन िै क जे एकबे र जे ओत्तह जाइत अचि चतनका ले ल ओत्तह
साँ घुरर क' एनाइ मुत्श्कल । हमर सौभाग्य जे हमरा अपना णजला
मुख्यालय मे आबय केर अिसर भे िल आ हम पुणे सन शहर केर माया
जाल साँ वनकत्रल एत्तह आबय मे सफल भे लहुाँ । चमि िगष ई कवह डे राबय
लगलाह जे लोग आगू ददस बढ़ै त अचि आ हम कहााँ दन पािू ददस
घुसकुवनया कािय ले ल बे हाल िलहुाँ । हमहूाँ दृढ़ प्रचतज्ञ िलहुाँ तैँ वकनको
कोनो बातक प्रभाि हमरा पर नवह पिल आ एकददन हम अपने शहर मे
अष्न्दिन्दहार जाँ का ठाढ़ िलहुाँ । वनस्सं देह मोन मे बहुत रास शं का से हो िल
मुदा समय केर साथ सब शं का दूर होइत ित्रल गे ल। अवहठाम आवब
हमरा कोनो ते हन सन कष्ट नवह बुझायल से कहब कवनक झूठ होएत
मुदा तै यो हमरा कोनो पश्चाताप नवह भे ल वकएक त' हम अपन शहर
केर िास्तविकता साँ पूणषतया पररचित िलहुाँ । ओनाहुतो हम कोनो ्म
कवहयो नवह पोसै त िी जे मोने मोन अपन शहर केर तुलना कोनो
महानगर साँ करी। हाँ न'ब पररिे श मे सामं जस्य बै साबय मे कवनक समय
लगनाइ स्िाभाविक बात िै क से हमरो लागल। वनस्सं देह अवह ले ल
कवनक बे सी पररश्रम धीया पुता केँ करय पिलै । खै र आब त' हमहूाँ
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आनन्दद लोक कॉलोनी केर अचधकृत बात्रशन्ददा भ' गे ल िलहुाँ । अवहठाम


आवब धीरे धीरे लोग सब साँ पररिय भे ल आ मे ल जोल बढ़ल। सब गोिे
बड्ड चमलन सार आ पाबवन ते हार मे त' एकदम घरै या माहौल। पवहल
होली हमरा ले ल यादगार रहल। पुरना गाम घरक माहौल सन बुझायल।
पुरुख सबहक एक िोली, मवहला सबहक से हो अपन िोली आ धीया
पुता सबहक उमर केँ वहसाब साँ अने क िोली पूरा कॉलोनी मे घूचम घूचम
क' होली खे लाय मे मातल। सााँ झखन एकठाम खानपान सं ग
सां स्कृचतक आयोजन से हो िल। दीया बाती मे से हो बड्ड मे ल जोल दे खख
मोन अत्रभभूत भ' उठल। िदठ मे त' हम सब गाम ित्रल जाइत िी
अन्दयथा एत्तहु बड्ड नीँक आयोजन रहै त िै क। वििाह शादी केर अिसर
पर पूरा काःलोनी एक पररिार जाँ का बुझाइत अचि। सुख ष् ख मे सब
एक दोसर केँ ले ल सहोदर जाँ का ठाढ़ भे ित। आब त' गामो घर पर एहन
पररिे श भे िनाइ मुत्श्कल । एकिा कहबी िै क जे सब ददन होत न' एक
समाना।अवह सदीक सब साँ पै घ िासदी कोरोना केँ रुप मे आयल। लोग
स्िप्नाें मे कवहयो एहन भयािह क्षण केर कल्पना नवह केने िल। सं पूणष
लाःक डाउन साँ जे पररच्छस्थचत बनल से वक कवहयो वबसरल जा सकैत
अचि? घर साँ वनकलनाइ मुत्श्कल िल। हमरो सबहक काःलोनीक
सिक एकदम सूनसान िल। केओ ककरो घर नवह जाइत िल आ एहन
मे माि मोबाइले फोन सब केँ एक दोसर साँ जोवि क' रखने िल।

मीवडया त' कोनो िीज केँ तते क न' भयािह रुप मे दे खबै त अचि जे
लोग सब डे रायल िल आ सबहक मनोबल िू वि रहल िलै । वनत्य एहन
अने को घिना केर िणषन भे िैत िल जावह साँ बुणझ ओिै त िल जे
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मानिता कलं वकत भ' रहल अचि। अवह बात केँ पूणषरूपे ण नकारल त'
नवह जा सकैत िल मुदा पूणषतया स्िीकार करबा योग्य से हो नवह िल।
अवह बातक अनुभूचत हमरा तखन भे ल जखन हम स्ियं कोरोनाक िपे ि
मे अयलहुाँ । हमर सबहक अवह आदशष लोक कॉलोनी मे सं भित हमहीं
प्रथम व्यक्क्त िलहुाँ जे वक कोरोना पाःणजिीि घोवर्त भे ल िलहुाँ । हम
अपन समस्त पररचित केँ अवह बातक सूिना अचत शीघ्र व्हाि् स एप्प पर
शे यर क' दे लहुाँ तावक जे भी हमरा सं पकष मे िलचथ से अपन जााँ ि करबा
सकचथ। ररपोिष अवबते हम अपन जरुरत केँ वकिु सामान आ ले खन
सामग्री ल' क' अपन एकिा कमरा मे कैद भ' गे लहुाँ । हाँ अपन मोबाइल
आओर िाजषर ले नाइ आखखर कोना वबसरर सकैत िलहुाँ ? लगभग पन्दरह
ददन हम एकान्दत िास मे रहलहुाँ मुदा पररिारक सब सदस्य आ
काःलोनी िासी हमरा एक पल केँ ले ल एकान्दत मे नवह रहय दे लवन।
लगातार फोनक माफषत सब हमर हौसला बढ़बै त रहलवन। जे बाजार केँ
तरफ जाइथ से एक बे र हमरा सब साँ पूचि लै त िलचथ जे कोनो समान
मं गाबय के अचि वक नवह? आखखर हम कोना कहू जे मानिता खत्म भ'
रहल अचि। हमर कॉलोनी मे बहुत गोिा कोरोना साँ पीवित भे लाह मुदा
सब एक दोसर केर सहारा बनल रहलाह। कहबा मे हमरा कवनको
ष्विधा नवह भ' रहल अचि जे विपत्रत्तक अवह क्षण मे से हो हमरा सुखद
अनुभूचत होइत रहल। समय िाहे सुख केर होउक अथिा ष् ख केर
सबहक एकिा समय सीमा होइत िै क। आम जन जीिन धीरे धीरे पिरी
पर आबय लागल। जान माल केँ जे क्षचत भे लैक तकर सही जानकारी
भे िनाइ त' मुत्श्कल अचि मुदा एकिा बात यथाथष िै क जे मानि समाज
केँ बहुत वकिु त्रसखा क' गे ल कोरोना।लाःक डाउन त' खत्म भे ल मुदा
बहुत ठाम खास क' आइ िी से क्िर मे िकष फ्रॉम होम केर कल्िर जे
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िालू भे ल िल से एखनहु ित्रल रहल अचि। सरकार केँ तरफ साँ हर


सं भि प्रयास भे लै मुदा अपन दे श मे एहन बयान वििाददत बवन जाय त'
कोनो पै घ गप्प नवह। थािी वपिला साँ वकिु भे लै से त' नवह कहब तखन
लाःक डाउन एिं िीकाकरण केर असर वनखश्चत रूप साँ पिलै एकरा
कन्दरोल करय मे । भले ही धीरे धीरे सब वकिु सुिारु ढ़ं ग साँ िलय लगलै
मुदा एकिा पै घ पररितषन स्पष्ट रूप साँ दे खय मे आयल जे लोग सब भीि
साँ बााँ िय केर प्रयास मे फराक फराक रहय केर अभ्यस्त भ' गे ल िचथ।
एहन मे ओ पवहने जाँ का होली, दीपािली आ िदठ सन पिष त्यौहार मे
उत्साह नवह रहै त अचि। हमर सबहक आदशष लोक कॉलोनी मे फेर
कवहयो पवहने सन डम्फा,ढोल आ झाल-मजीरा िाला होली नवह भे ल।
बस है प्पी होली मे त्रसचमत भ' क' रवह गे लाह सब। दीपािली आ िदठ
से हो आब फीका भ' गे ल अचि।

अवह कॉलोनीक वकिु बुजुगष लोकवन आपस मे वििार कयलवन जे कोनो


िु ट्टी केँ ददन एकिा सामूवहक बै सार कैल जाय। अवगला रवि ददन प्रात:
काल आठ बजे प्रोफेसर साहे ब केर आिास पर ई बै सार होयब तय
भे ल। कॉलोनी केर सदस्य सब काफी उत्सावहत िलचथ आ तकर प्रमुख
कारण िल जे कोरोनाक प्राष्भाषि केँ समय साँ कोनो तरहक सामूवहक
आयोजन नवह भे ल िल। वनयत चतचथ एिं समय पर सब गोिे जमा
भे लवन। आजुक सभा केर अध्यक्षता एक ियोिृद्ध व्यक्क्त कयलवन।
हुनक आदे श पावब प्रोफेसर साहे ब सभा केँ सं बोचधत करै त कहलवन: "
आदशष लोक कॉलोनी केर उपच्छस्थत सब सदस्य केँ हार्दिक अत्रभनन्ददन।
आजुक बै सार वकएक से जानय केर उत्सुकता होयब स्िाभाविक । अवह
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बीि अखखल विश्व जावह िासदी केर सामना कयलक से वकनको साँ
िु पल नवह अचि। कमोबे श सब गोिे अवह साँ प्रभावित भे लहुाँ । ईश्वर केर
कृपा साँ अपन सबहक कॉलोनी मे कोनो ते हन सन ष्खद घिना नवह
घिल। अवह भीर्ण िासदी साँ त्रशक्षा ले ब बहुत जरुरी अचि, विशे र् रुप
साँ स्ििता केँ ल' क'। एहन मे कॉलोनीक विकास साँ जुिल कायषक
वनष्पादन हे तु एकिा विकास सचमचत बनबाक िाही।" अते क सुवनते
उपच्छस्थत जन समूह कतषल ध्िवन साँ अपन सहमचत जनौलवन। दू िारर
गोिे और अवह सभा केँ सं बोचधत कयलवन आ प्रोफेसर साहे ब केँ सुझाि
पर अपन सहमचत जनौलवन। पवहने त' एकिा सचमचत केर गठन भे ल
जावह मे अध्यक्ष, सचिि, कोर्ाध्यक्ष एिं अन्दय पााँ ि गोि नितुररया अवह
सचमचत मे रहय तावह पर सहमचत बनल। सिषसम्मचत साँ कॉलोनीक एक
िररि सदस्य प्रोफेसर साहे ब केँ अध्यक्ष, एकिा नियुिक केँ सचिि आ
बैं क मे कायषरत शमाष जी केँ कोर्ाध्यक्ष बनाओल गे ल आ सं गवह पााँ ि
िा नियुिक केँ से हो सहयोगक हे तु ओवह सचमचत मे राखल गे ल।
उपच्छस्थत लोकवन आ निगदठत सचमचत केर सहयोग साँ सचमचतक वक्रया
कलापक विर्य मे विस्तृत ििाषक उपरान्दत वनम्न वबन्दष् पर सहमचत बनल
:-
1. घरक कूिा किरा पोत्रलचथन मे भरर क' कोनो भी खाली प्लाःि,
नाली अथिा यि-ति-सिषि नवह फेकल जाय। नगर वनगम साँ किरा
उठाबय िाला जे गािी अबै त अचि तावह मे राखल जाय।
2. पानी िं की केर पाईप , ित एिं बरामदा साँ पानी सिक पर नवह
खसाओल जाय।
3. परमाने न्दि िाहन पार्किग सिक पर नवह कैल जाय। बे र कुबे र गली
साँ वनकलय मे काफी कष्ट केर सामना करय पिै त िै क। कोनाें तरहें
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सिक केर अचतक्रमण नवह होएबाक िाही।


4. वबजली केर पोल एिं ओवह पर स्रीि लाइि केर व्यिस्था कैल जाय।
अन्दहार आ लिकल तार साँ कखनो ष्घषिना केर सं भािना िल।
5. प्रचतमाह प्रत्ये क घर साँ ₹ 100/- क' फंडमे जमा होयबाक िाही
तावक साफ सफाई िाला काज करबाबय मे ददक्कत नवह होइक।
6. कॉलोनीक सिक केर ढलयबाक हे तु सबहक सहयोग साँ सचमचत
िाडष पार्षद, नगर वनगम, विधायक एिं सां सद महोदय लग ज्ञापन दै त
वनरन्दतर प्रयास कैल जाय।
सचमचतक वक्रया कलापक जे प्रारुप तै यार भे ल तावह पर सब गोिे क
पूणषरूपे ण सहमचत िलवन। अवगला बै सार एक महीना केर बाद होएत
से तय भे ल। कॉलोनीक जे व्हाि् स एप्प ग्रुप िल िै ह ई सचमचत उपयोग
करत ताहू पर सहमचत बवन गे ल िल तैँ आजुक बै सारक विस्तृत ररपोिष
सचिि महोदय अवह ग्रुप पर पोस्ि कयलवन।

आदशष लोक कॉलोनी केर विकास सचमचत अपन कायष मे पूणष उत्साह
साँ लावग गे लाह। मात्रसक शुल्क जमा होबय लागल। घरे घरे जा क'
सबकेँ जागरुक करबाक अत्रभयान शुरु भे ल। िाडष पार्षद केर सहयोग
साँ नगर वनगम केर कमषिारी साँ सं पकष कैल गे ल आ किरा उठाि िाला
गािी अपन कॉलोनी मे वनयचमत रूप साँ आबय लागल। नाली सबहक
सफाई करबाओल गे ल आ ब्लीचििग पािडर केर चििकाि भे ल।
नियुिक सबहक मे हनत रं ग लावब रहल िल मुदा अवगला बै सार साँ दू
ददन पूिष प्रोफेसर साहे ब व्हाि् स एप्प ग्रुप पर सचमचतक अध्यक्ष पद साँ
त्याग पि पोस्ि कय सब केँ अिं त्रभत कय दे लवन। वकनको वकिु समझ
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मे नवह अयलवन जे आखखर वकएक ओ त्याग पि पोस्ि कयलवन? अपन


पोस्ि मे ओ कोनो कारण केर खुलासा नवह केने िलचथ। लोग सब फोन
पर सं पकष करबाक प्रयास केलकवन मुदा ओ फोन नवह उठौलवन।
बै सारक ददन लोग सब जमा भे ल मुदा ओ नवह अयलाह। वनणषय भे ल
जे वकिु गोिे हुनकर घर जा क' बै सार मे उपच्छस्थत होबय ले ल मना क'
लाबचथ। बहुत प्रयासक उपरान्दत ओ अयलाह मुदा ओ वकिु नवह बाणज
रहल िलचथ। वकिु बुजुगष लोकवन जखन समझे लखखन त' ओ सचिि
महोदय केँ प्रचत अपन नाराजगी जावहर करै त कहलवन जे सचिि महोदय
केँ रहला साँ ओ अवह सचमचत मे नवह रहताह। लोग सब असमं जस मे
िलचथ। आखखर एहन कोन कारण िलै जे सचिि महोदय साँ अते क
नाराज िलचथ? प्रोफेसर साहे ब केँ बात सुवन जिाबी फायर करै त सचिि
महोदय जे कहलवन तावह साँ प्रोफेसर साहे ब केर नाराजगी केर कारण
सबकेँ बूझय मे अयलवन। प्रोफेसर साहे ब केर वकराया दार वनत्य अपन
गािी सिक पर पाकष करै त िलाह एिं राचत वबराचत लोग सब केँ परे शानी
से हो होइत िलवन। अवह बात केँ ल' क' सचिि महोदय िोवक दे लखखन
आ प्रोफेसर साहे ब केँ रोख लावग गे लन। उपच्छस्थत सदस्य लोकवन
सचिि महोदय केर काज साँ सं तुष्ट िलचथ तैँ सब सचिि महोदय केँ
हिाबय ले ल तै यार नवह। सब बाजय लगलाह जे वनयम त' सबहक ले ल
बनल िलै त' अवह मे सचिि महोदय केर कोन गलती? प्रोफेसर साहे ब
केँ प्रचतिा पर पिलवन त' ओ ओत्तह साँ उदठ विदा भे लाह। आब वक
कैल जाय? कालोनी मे एकिा से िावनिृत्त मास्िर साहे ब िलचथ त' लोग
सब आग्रह कय हुनका अध्यक्ष वनयुक्त कयलाह आ सभा केर
कायषिाही आगू बढ़ल। मास भरर मे जे काज सब भे ल िल तकर ििाष
भे ल आ कोर्ाध्यक्ष महोदय आमद खिष केर ब्यौरा पवढ़ क' सुनौलवन।
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अवह केर उपरान्दत बै सार खत्म भे ल मुदा व्हाि् स एप्प ग्रुप पर घाें घाउज
शुरु भ' गे ल आ सााँ झ होइत होइत प्रोफेसर साहे ब आ अन्दय िारर गोिे
अवह ग्रुप साँ विदा ले लवन। कहबाक प्रयोजन नवह जे ओ सब गोिे
जातीयता केर आधार पर भे द भाि केर आरोप लगा क' अपना आप
केँ अलग थलग क' ले लवन। नबका अध्यक्ष महोदय अथाषत् मास्िर
साहे ब सब गोिे साँ भेँ ि कय समझाबय केर प्रयास त' कयलवन मुदा
सफलता नवह भे िलवन। आदशष लोक कॉलोनी मे भे दभाि केर बीज
अं कुररत होबय लागल। फेर वकिु गोिे ग्रुप िोिलवन। अवह बे र ओ
व्यक्क्त लोकवन िलचथ णजनका घरक ित, बरामदा अथिा पानी िं की
साँ पावन सिक पर खसै त िल। एक तरहें दूगोला भ' गे लै। णजनका
सुधार कायष हे तु िोकल जाइत िल िै ह ग्रुप िोवि दै त िलचथ। गजब
तमासा ित्रल रहल िल। ददन राचत उकिा पैं िी होइत रहै त िल मुदा
सचमचतक नियुिक सब दृढ़तापूिषक पररच्छस्थचतक सामना करै त अपन
लक्ष्य प्रात्प्त ले ल सतत् प्रयास करै त रहलाह। सबहक सोि एक समान
त' भ' नवह सकैत िै क। वकिु गोिे अपन पाइप सिक पर साँ हिबा ले ने
िलचथ। साल भरर मे विकास सचमचत द्वारा बहुत रास काज भे ल।
वबजली विभाग साँ पोलक आिं िन त' भ' गे ल मुदा आपसी तनातनी
केर कारण एकरा लगबाबय मे तीन वडवबया ते ल जिल। एक गोिा अपन
घरक दीिाल के सामने पोल गािय पर आत्म दाह केर धमकी तक द'
दे लवन। अन्दत मे एकिा पोल वबजली विभाग िापस ल' जाय ले ल मजबूर
भे ल। पग पग पर बाधा िल मुदा सचमचत सं घर्ष करै त रहल आ
समझबूझ केँ साथ सतत् आगू बढ़ै त रहल। कॉलोनी मे नबका
रान्दसफामषर से हो लागल आ सं गवह पोल पर िै पर लाइि लावग गे ल।
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सचमचतक सदस्य सब केँ अवह साँ न'ब ऊजाष भे िलवन आ हुनकर सबहक
अथक प्रयास साँ कॉलोनीक सिक पास भ' गे ल मुदा सिक ढ़लाई केर
समय एकिा अलगे समस्या ठाढ़ भ' गे ल। नाला वनमाषण ले ल गड्ढा केर
कोन तरफ साँ काज शुरु कैल जाय तावह पर वििाद भे ल आ विभागीय
जााँ ि केर आदे श आवब जाय केर कारण काज शुरु होबय मे विलम्ब भे ल
मुदा खुशी केर गप्प जे कहुना काज शुरु भे ल। आब प्रकृचत अपन रूप
दे खौलक आ सप्ताह भरर जचम क' बरखा होइत रहल। खरं जा उखिल
िल। नाला ले ल गड्ढा खोदल िल आ गली सब मे भरर ठे हुन पावन जमा
भ' गे ल िल। काज बाचधत भे ल से अलग च्छस्थचत कुल चमला क'
नारकीय भ' गे ल िल। लगभग एक महीना बाद पुन: कायष शुरू भे ल।
नाला वनमाषण केर बाद सिक पर मावि भराई केर काज भे ल। सिक
ढ़लाई ले ल आब सोसलिग िाला काज शुरू भे ल आ दठकेदार मै िेररयल
खसायब शुरु कैलक। एक ददन मजूर आ मसीन ल' क' ढ़लाई केर
काज शुरू करबाक ले ल दठकेदार उपच्छस्थत भे ल मुदा दोसर गुि अिं गा
लगा दे लक आ ओवह ददन काज शुरू नवह भ' सकल। दोसर ददन से हो
िै ह च्छस्थचत बनल आ काज शुरू नवह भ' सकल। विकास सचमचत बै सार
कैलक आ भारी सं ख्या मे लोग सब जुिल आ नगर वनगम िाला जुवनयर
इं जीवनयर आ ठे केदार साँ कहल गे ल जे या त' काज शुरु करु अन्दयथा
मै िेररयल आ अपन तामझाम हिा क' हमर सबहक सिक खाली करु।
ई धमकी कारगर रहलै एिं अवगला ददन सचमचत ओ मोहल्ला िासी केर
उपच्छस्थचत मे ई शुभ कायष शुरु भे ल। धीरे धीरे काज अपन रफ्तार
पकिलक। आरोप प्रत्यारोप से हो िलै त रहलै । मनुक्खक स्िभाि होइत
िै क जा ओकर मोन लायक बात करै त रवहयौ त' अहााँ साँ नीँक केओ
नवह आ जाैँ ठााँ वह पठााँ वह सत्य बाणज ददयौ त' फेर अहााँ सन अधलाह
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केओ आन नवह। सुधारक काज होउक मुदा से आन ले ल वकएक त'


अपन िे िर लोग केँ नवह सूझैत िै क मुदा ओकर वनदान से हो बहुत जरुरी
िै क। आन जे करय से गलत आ हम जे करी सै ह माि सही आ िोकला
पर जाचतगत समीकरण दे खब कहााँ धरर उचित? विकास सचमचत
बनलाक उपरान्दत आदशष लोक कॉलोनी मे विकासक काज त' खूब भे ल
मुदा अवह केँ ले ल भारी मूल्य िुकाबय पिलै । जावह सुख सुविधा केर
कमी िलै से त' पूर भे ल मुदा अवह कॉलोनी केर वनिासी केँ अपन
सामाणजक समरसता एिं सौहादषपूणष िातािरण के ल' क' जे गिष
िलवन से िकनािूर भ' गे ल। सुख ष् ख मे सदै ि एकजुि रहय िाला
आदशष लोक कॉलोनी मे पवहल बे र एहन घिना घिल िल जे वकनको
बे िी केर वििाहक शुभ अिसर पर सचमचतक सचिि केँ आमं िण नवह
भे िल िलवन। कोनो भी समाज मे आपस मे मतभे द भे नाइ कोनो बिका
बात नवह िै क मुदा मनभे द वकन्दनहु उचित नवह। बे िी वििाहक शुभ
अिसर पर अपन आशीर् दे बय िाला लोगक भीि त' िल आ उच्ि
स्िर मे शहनाई से हो बाणज रहल िल मुदा आदशष लोक कॉलोनी िाला
ओ पुरना उल्लास नदारद िल।

-अणजत कुमार झा, मो० नं ० 9472834926

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पठाउ।
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२.४.लाल दे ब कामत-लघुकथा- पं िबे दीमे धवनयां / नन्दद विलास राय


जीक पवहल कृचत: सखारी-पे िारी

लाल दे ब कामत

लघुकिा- पं िबे दीमे धवनयां / नन्द विलास राय जीक पवहल कृचत:
सखारी-पे टारी

लघुकिा- पं िबे दीमे धवनयां


कोसी नदी ति पर बसल एक बरबरना गाम रहय। ओवह गामक
सामाणजक सं िालन ले ल एक कचमिी बनल िल । तावह कचमिीक
सप्तावहक वनयचमत बै सारमे विविध विर्य पर नजै र राखल जाए। इयह
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बै सकी ओवह गामक आन गाम ले ल सामूवहक पूजी रहै क। दणक्षण


भागक गाममे मरि आ उतर कातके गाममे दरबार बालाके िलती रहै य।
ग्राम विकास कचमिीके मुखखया दस विगहा अस्थापात बाला लोक
आओर ओकर भवगनमान बौकू बाबू केँ १५ वबगहा खे त जोतसीम रहै क।
आरो श्रीमन्दत ५ वबगहा साँ ऊपरके असामी पं िैतीके वनयचमत स्रोता
बनल रहै त िला। पं िपरमे श्वर लग दण्ड जररिानाके कैंिा सुरणक्षत
राखल जाइक। बैं क मेँ खाता खुजेलाक बादो सालभररमे ई जरदगि
लोकवन दशनामा िाका जम्मे नवह करै य। धनाई आ गरे श वििालक आब
जे कोनो पनिै तीमे दच्छण्डत व्यक्क्त हे तई ताँ ओकर जामनी बवन
पं िपरमे श्वर के िक्का िोिाएब। से रविददन किहरी पर धवनयां मशाला
जजात राचतमे पूबारर बाध साँ उखवि जे बाक बुझारत भे ल । सीताराम
कहलकै यौ पं ि लोकवन हमरा खे त साँ मामा िोलक लोक एक पुरूख
आ वडहबार िोलक एक स्िी चमलके राचतखखन धवनगाि उखावि
अनलक हन। तकर प्रमाण दे ब जे ललबा आ बालगोविन के आं गनबाली
केँ अपना धवन खे ती नै रहै त ओकरा आं गनमे गमागम सुगन्दध धवनके
अबै त िै क। रखबार सं ग दूगोिय जां ि ले ल पठाओल गे ल। बात ध्रूब
सााँ ि वनकलल। आब सफेद फुत्रस बजबाक कोनो लाथ नहहि रहने
लालिा कहलकै हम गरीब लोक िी से जे दण्ड सुनाबै जाएब ,से अदा
करै क ले ल तै यार िी। हुकुम भे ल २५१ िाका हाणजर कर! ओ आदे शकेँ
पालन केलक। दोसर ताँ धवनक घरके बौकू जीक जवनजात भऽ कऽ
एहन जघन अपराध केलक,राचतमे घर सं बाहर वनकलल आ िोरी
केलक; तेँ डबल साँ जुमाषना आर्थिक मारर पिलै क । ओकरा नगद हाथमे
नवह रहने समय ७ ददनक मोहल्लत िाहै त रहय। एक - एक व्यक्क्त ऐ
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शमषनाक विर्यके पकिै त कोनू ओकर अपे णक्षत केँ पााँ िसय एकािन
िाकाके जाचमनी बनय दे खय िाहै त रहय। से गरे श गिौिी भे ला आ
धनाईजी सीताराम केँ अपना ददस साँ अढाई सय िाका क्षचतपुर्ति दै त
अपन वििारधारा केर मजरौिी बढे लक। बालगोविन फेर समय साँ ढौआ
नवह दै त १५ ददनक ओरो समयके मोहल्लत मां गलक। आब ताँ पाँ िके
मुख्य लोक पर ग्रामीण सब दिाब बनौलक जे कोनू सािषजवनक काज
दण्ड के पाय साँ हुअय ,से णजनका लग जते क पाउना अचि से तते क
रात्रश अवबलम्ब बैं क कोर्मे जम्मा करी। आब धवनयााँ क सुिादक सं ग
गाममे सिषहारा िे तना जावग गे लैक।

नन्द विलास राय जीक पवहल कृचत : सखारी-पे टारी

नि ले खनक नाम पर एम्हर वकिु काज हुअय लागल अचि। वकिु एहन-
रहन रिनाकार लोकवन प्रगि भे लाह अचि जे अपन त्रलखल अपने िा
बुझैत िचथ, आनाें बुझय तकर परिाह नवह करै त रजनी सजनी करै ि।
तावहके विपरीत एकिा एहन हस्ताक्षर जे सौभाग्यिस विविध अनिु अल
विर्य पर अपन कलम िलौलवन अचि। एकिा नि मै चथली पोथी रिना
जगतमे " सखारी-पे िारी" केर धमक सुनल गे ल हन् । एवहबीि
सावहत्यसे िी श्री नन्दद विलास जीक मै चथली भार्ा मेँ पोथी 'कथा सं ग्रह
' केर सगर राचत दीप जरय वनमषली कायषक्रममे पोथी लोकापषण भे ल य।
ऐ पोथीक पवहल प्रकाशन २०१३ ई०मे भे ल रहय,जकर पुन: सं स्करण
पल्लिी प्रकाशन साँ २०२४ मे भे ल अचि। एवह पोथीमे १२१ गोि पृि िै ,
जकर वकमत भारू० दूसय िाका िै । शव्दक पररचध अनुसारे एवहमे वकिु
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लघुकथा आ िे सी दीघष कथा दे खल जाईि,मुदा प्रकाशक वबहै न कथा


कवह रहलाह अचि। वबहै न कथाके एक गररमा कम शव्दक होईि से
नवह बुझाइि। सब कथा समाजमे अपन आभा अनुसारे सं देश दै त
दे खाएल गे ल िै क। ग्रामीण क्षे िमे बे िी'क वियाह-दद्वरागमनमे
विदाएकाल वकिु सं ियन कयल बौस्त सखारीमे सां ठल जाइत िै क। ई
सखारी-पे िारी ग्रामीण लघु कलाके से हो प्रतीक िी, जे त्रसकी - मूइज
साँ बनै त िै क। एवहके बीनयमे तरह- तरहके पीढ़ी दर पीढ़ी साँ चििकारी
सीखै त चमचथलामे धरोहर रूपेँ सहे जने अचि ललना सब। से आजुक
िात्रलका लोकवन लुरर वबसरल ित्रल जा रहल िै क। चमचथला पें हििग आ
हस्त त्रशल्प कला रूपें एवह पौराणणक पै घ पौतीकेँ वबनबाक लुरर अक्षु ण्ण
राखल आ सहे जबाक आिश्यकता अचि। जीिनोपयोगी िस्तुजात
ओररयाउन करै त धीयाक माय अपन मनोरथ पूर करय ले ई एकिा
खुशीक प्रतीक से हो प्रदर्शित करै ि। तावह सखारी-पे िारी मेँ प्रो०
हररमोहन झा 'क िर्िित कृचत कन्दयादान ओ दद्वरागमन "पोथी सिणष
समाज सां ठैत रहय,सयह प्रिृत्रत्त केँ सिषहारा समाजक बे िी वियाहमे
आब सखारी-पे िारी 'क जगह रं क िा बिका काठक बाकसमे सां ठ-
उसार कयल जाईि *सखारी-पे िारी मेँ । एवह पोथीके कथाकार अपना
पररिे शमे आ जीिनमे भोगल व्यथा केँ खखस्सा बनाकय पाठकगण बीि
परसलवन हन। वहनक भार्ा शै ली से हो वनिि दे हाती य ,जावहमे दे शज
शब्दक नीक विन्दयास कयल दे खाईत अचि। वबहै न कथा -, लघुकथा साँ
बढ़ै त अने को कथा स्तरीय त्रलख िुकल िचथ-रायजी। आओर कते को
विधामे मै चथली पोथी से हो वहनक पल्लिी प्रकाशन वनमषली साँ िवप
िुकल िखन्दह, यथा -:
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 59

मरजादक भोज आ भरष्चतया (२०१८), सरस्िती पूजाक परसाद


(२०२१), असल पूजा (२०२२) आ काव्य सं ग्रह मे िदठक डाला ओ
हमर िारू धाम (२०१८) एिं एकां की सं ग्रह -बवहनपा (२०२१) तथा
पइत (२०२२) ओ एकिा सं स्मरण -अपन भीतर (२०२१) मे , जावहमे
साँ वकिु पन्दना खाचतर कते को पुच्छस्तकाक दजाषमे पिल िै क।
सद्यप्रकात्रशत एवह पोथीमे कोनू कथाक केन्दरीय शुभ सं ज्ञा 'सखारी-
पे िारी' नै िै क। मुदा पाठककेँ असल बे िा, डॉक्िर बे िा, प्रोफेसर बे िा
आ वनपुतराहा त्रशर्षक पाठ पढ़ै त सं िेदनशील लागत। आनाें त्रशर्षक साँ
कथाके गरहै न बढ़ रोिक आ अपील करै त बुझाइत अचि। रायजी अपन
नि रिनाक तीनगोि पोथी मै चथली भार्ा मेँ आरो त्रलख रहलाह िचथ।
एक वहन्ददीमे से हो पुस्तक वनमाषण केर योजना बना रहलाह हन। सावहत्य
अकादमी धरर वहनक पोथीक पहुाँ ि भे ल रहय। शुभ कामना रहत।नन्दद
विलास राय जीक पवहल कृचत : सखारी-पे िारी

नि ले खनक नाम पर एम्हर वकिु काज हुअय लागल अचि। वकिु एहन-
रहन रिनाकार लोकवन प्रगि भे लाह अचि जे अपन त्रलखल अपने िा
बुझैत िचथ, आनाें बुझय तकर परिाह नवह करै त रजनी सजनी करै ि।
तावहके विपरीत एकिा एहन हस्ताक्षर जे सौभाग्यिस विविध अनिु अल
विर्य पर अपन कलम िलौलवन अचि। एकिा नि मै चथली पोथी रिना
जगतमे " सखारी-पे िारी" केर धमक सुनल गे ल हन् । एवहबीि
सावहत्यसे िी श्री नन्दद विलास जीक मै चथली भार्ा मेँ पोथी 'कथा सं ग्रह
' केर सगर राचत दीप जरय वनमषली कायषक्रममे पोथी लोकापषण भे ल य।
ऐ पोथीक पवहल प्रकाशन २०१३ ई०मे भे ल रहय,जकर पुन: सं स्करण
पल्लिी प्रकाशन साँ २०२४ मे भे ल अचि। एवह पोथीमे १२१ गोि पृि िै ,
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जकर वकमत भारू० दूसय िाका िै । शव्दक पररचध अनुसारे एवहमे वकिु
लघुकथा आ िे सी दीघष कथा दे खल जाईि,मुदा प्रकाशक वबहै न कथा
कवह रहलाह अचि। वबहै न कथाके एक गररमा कम शव्दक होईि से
नवह बुझाइि। सब कथा समाजमे अपन आभा अनुसारे सं देश दै त
दे खाएल गे ल िै क। ग्रामीण क्षे िमे बे िी'क वियाह-दद्वरागमनमे
विदाएकाल वकिु सं ियन कयल बौस्त सखारीमे सां ठल जाइत िै क। ई
सखारी-पे िारी ग्रामीण लघु कलाके से हो प्रतीक िी, जे त्रसकी - मूइज
साँ बनै त िै क। एवहके बीनयमे तरह- तरहके पीढ़ी दर पीढ़ी साँ चििकारी
सीखै त चमचथलामे धरोहर रूपेँ सहे जने अचि ललना सब। से आजुक
िात्रलका लोकवन लुरर वबसरल ित्रल जा रहल िै क। चमचथला पें हििग आ
हस्त त्रशल्प कला रूपें एवह पौराणणक पै घ पौतीकेँ वबनबाक लुरर अक्षु ण्ण
राखल आ सहे जबाक आिश्यकता अचि। जीिनोपयोगी िस्तुजात
ओररयाउन करै त धीयाक माय अपन मनोरथ पूर करय ले ई एकिा
खुशीक प्रतीक से हो प्रदर्शित करै ि। तावह सखारी-पे िारी मेँ प्रो०
हररमोहन झा 'क िर्िित कृचत कन्दयादान ओ दद्वरागमन "पोथी सिणष
समाज सां ठैत रहय,सयह प्रिृत्रत्त केँ सिषहारा समाजक बे िी वियाहमे
आब सखारी-पे िारी 'क जगह रं क िा बिका काठक बाकसमे सां ठ-
उसार कयल जाईि *सखारी-पे िारी मेँ । एवह पोथीके कथाकार अपना
पररिे शमे आ जीिनमे भोगल व्यथा केँ खखस्सा बनाकय पाठकगण बीि
परसलवन हन। वहनक भार्ा शै ली से हो वनिि दे हाती य ,जावहमे दे शज
शब्दक नीक विन्दयास कयल दे खाईत अचि। वबहै न कथा -, लघुकथा साँ
बढ़ै त अने को कथा स्तरीय त्रलख िुकल िचथ-रायजी। आओर कते को
विधामे मै चथली पोथी से हो वहनक पल्लिी प्रकाशन वनमषली साँ िवप
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 61

िुकल िखन्दह, यथा -:


मरजादक भोज आ भरष्चतया (२०१८), सरस्िती पूजाक परसाद
(२०२१), असल पूजा (२०२२) आ काव्य सं ग्रह मे िदठक डाला ओ
हमर िारू धाम (२०१८) एिं एकां की सं ग्रह -बवहनपा (२०२१) तथा
पइत (२०२२) ओ एकिा सं स्मरण -अपन भीतर (२०२१) मे , जावहमे
साँ वकिु पन्दना खाचतर कते को पुच्छस्तकाक दजाषमे पिल िै क।
सद्यप्रकात्रशत एवह पोथीमे कोनू कथाक केन्दरीय शुभ सं ज्ञा 'सखारी-
पे िारी' नै िै क। मुदा पाठककेँ असल बे िा, डॉक्िर बे िा, प्रोफेसर बे िा
आ वनपुतराहा त्रशर्षक पाठ पढ़ै त सं िेदनशील लागत। आनाें त्रशर्षक साँ
कथाके गरहै न बढ़ रोिक आ अपील करै त बुझाइत अचि। असल बे िा
कथामे -वनरमलीक पिबररया गाम िजनाके जीतन मुखखयक सफल
जीिनक आदशष कथा िी। ओ मल्लाह जाचतक रहै त मात मारबाक जगह
नीकिाह बनौनाई जनै त य। से गाम साँ वनतरोज अनरोखे वनमषली िीशन
लग िाहक दोकान िलाबै त गैं हकीक जश बिोरने रहै त कैंिा साँ रमना
परहक एक कठा जं गलाएल जमीन बसय ले एकलाख िाकामे अरजै त
िै । ििजी साहे बक कहल मावन िीनूं चधयापुता केँ कन्दभेन्दि इसकुलमे
पढाबै त एकिारीके तीनमं जीला भिनमे पररणत कय लै त िै क। जीतने
दूनूिा बे िा धरर इं जीवनयर आ बे िी हाईस्कूलक त्रशणक्षका बना
जाईि,मुदा िाहक दोकानदारी िोरा दै ि। तीनू सं तानक व्यिच्छस्थत घरमे
वियाहदान होईत िै क आ जमाए ओकर दरभं गा केर बैं कमे कायषरत
रहै ि,जे घर जमै या जाँ का जाता आबत केने रहै ि। जीतनक पच्छत्नक
मृत्युक तीन मास बाद अपनो हुनका लकबारोग साँ ग्रत्रसत आर बी
मे मोररयल मेँ जमायके सौजन्दय साँ भती हुअय पिै त िै । होस्पीिल साँ
बे िी जमाय वनरमली आनलखखन ताँ तीने ददनक िाद दम तोईि दै त िै ।
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गोपाल मास्िर जी ,जे तानु भाय बवहनके युशनो पढ़े ने रहचथन ;जीतन
जीक आकच्छस्मक वनधनके खबे र सबके दै त तीलयुगा नदीक किे रमे
अं चतम सं स्कार िादमे पक्की भोजक आयोजन थे तो भे लैक। मास्िर
जीक कहबके प्रत्युत्तरमे सुकल हाथजोवि कहलकैन -" नै गुरूदे ि,हम
दूनू भााँ ई बाबूजीक असल बे िा नै िी। हम सब बाबूजीक से िा िहल
कहााँ केत्रलऐन। हमरा सभक हाथक एक वगलास पावनयाेँ कहााँ भे िलवन
बाबूजीकेँ । असल बे िा ताँ हमर बवहन सुकनी आ बहनोई शं करजी
िचथन। जे बाबूजीकेँ से िा सुश्रुर्ा केलखखन।" रायजी अपन नि रिनाक
तीनगोि पोथी मै चथली भार्ा मेँ आरो त्रलख रहलाह िचथ। एक वहन्ददीमे
से हो पुस्तक वनमाषण केर योजना बना रहलाह हन। सावहत्य अकादमी
धरर वहनक पोथीक पहुाँ ि भे ल रहय। शुभ कामना रहत।
-लाल दे ब कामत मो० ७६३१३९०७६१

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


पठाउ।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 63

२.५.रबीन्दर नारायण चमश्र-सीमाक ओवह पार (धारािावहक उपन्दयास)

रबीन्र नारायि चमश्र

सीमाक ओवह पार (धारािावहक उपन्यास)

हमर ससुर स्िगीय गणे श झा (पण्डौल डीहिोल)क स्मृचतमे , सादर


सत्रसने ह समर्पित!

-6-

ददव्यलोक सिष सं पन्दन िल । एतए सभवकिु स्ििात्रलत िल ।


निागन्दतुककेँ अवबतवह पररियपिसाँ लए कए समस्त सुख -सुविधाक
व्यिस्था स्ित भए जाइत िल । मुदा हमर अवहलोकमे अएला कैक
ददन भए गे लाक बादो ने पररियपि बनल,ने रहबाक कोनो ठे कान िल
। ई बात अलग िै क जे हमरा कोनो कष्ट नवह भए रहल िल । कारण
ददव्यलोकमे ठाम-ठाम िौबविआ सभपर बहुत रास िीज-िस्तु सुलभ
रहै त िल ,ओवहना जे ना कोनो नीक क्लबमे होइत अचि । तकर ऊपरो
व्यिस्था रहै त िलै क जकर तुलना मृत्युलोकमे रहवनहार नवह कए सकैत
िचथ,ओ सोचिओ नवह सकैत िचथ जे एहनो होइत िै क। इएह चथक
मृत्युलोक आ ददव्यलोकक अं तर ।
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मुदा ददव्यलोकमे लोक अबै त अचि कोना? की ओ सभ


पुण्यात्मा िचथ? की ओ सभ ककरो कृपापाि िचथ ? की एतहु
हे राफेरी िलै त िै क? वकिु नवह कवह सकैत िी कारण हम स्ियं एतए
नि िी । एवहठामक तालपातरा बुझबामे वकिु समय ताँ लगबे करत ।

हम से सभ सोचिते िलहुाँ वक आगूमे एकिा चिट्ठी आ एकिा


िोिसन वपपही राखल दे खाएल । चिट्ठी पढ़ए लगै त िी।

" तोहर मृत्युलोकक फाइल हरा गे ल अचि, तेँ तोहर विर्यमे


वनणषय ले बामे विलं ब भए रहल अचि । जाबे वकिु फैसला नवह होइत
अचि ताबे एवह वपपहीकेँ सम्हारर कए राखह। एकर बिन दबे लासाँ
समस्याक समाधान होइत रहतह।"

"मुदा हमरा बारे मे कवहआ धरर अं चतम वनणषय होएत आ से के


करत?"

"तूाँ बि मूखष िह । व्यथषक पििामे पिल रहबाक हे तु ताँ


मृत्युलोके पयाषप्त अचि । तूाँ अखन ददव्यलोकमे िह । मानलहुाँ जे तोरा
अखन ददव्यदृचष्ट नवह भे िलह अचि । तथावप वििार करहक, अपने अं तर
बुझेतह।"

"मुदा ताेँ िह के? सामने वकएक नवह आवब रहल िह?"

"फेर ओएह बात? एवहठाम आगू-पािू वकिु नवह िै क। जखने


तोहर ददव्यदृचष्ट जावग जे तह ,सभ ्म अपने हवि जे तह ।"

"ओ!"
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हम उत्सुकतासाँ ओवह वपपहीक वबिला बिन दबओलहुाँ ।


मोनमे सोचिते रही वक कैक ददन साँ रावगनीक वकिु समािार नवह भे िल
वक बिन दबबतवह रावगनीकेँ बहुत दूर ककरोसं गे रं ग- रभसमे मस्त
दे खैत िी ।

"ओ के अचि? -हम मोने मोन सोचि रहल िी । ताबते ओ


दृश्य फररिाइत गे ल । रावगनी आ शरद हमरा सामने मे ठाढ़ हाँ त्रस रहल
िल ।

" की बात िै क, मनोज?"-शरद बाजल ।

"बात की रहतै क । हमरा ताँ एवहठामक ताल-पातरा वकिु नवह


बुझा रहल अचि । तूाँ सभ एते क मौजमे िह आ हमरा अखनो ओएह
हाल अचि, से वकएक?"-हम बजलहुाँ । से सुवनतवह रावगनी जोरसाँ हाँ त्रस
दे लीह आ शरदकेँ सं गे निै त- गबै त अदृश्य भए गे लीह। "पवहने ताँ
एकरासभकेँ एते क झञ्झवि रहै क । आब ष्नूकेँ एते क घे िजोिी केना
भए गे लैक? शरदसन फसादी ददव्यलोकमे कोना पहुाँ चि गे ल ?"- ई
बातसभ हमर मोनमे उठै त रहल । मुदा ई सभ फररआएत के ? मोन
व्याकुल भए रहल िल । हम फेरसाँ वबिला बिन दबओलहुाँ ।

एवहबे र बिन दबबतवह एकिा वबकराल रूपधारी पुरुर् उपच्छस्थत


भे लाह। हम हुनका दे खखतवह सकपका गे लहुाँ । हमर माथा जोरसाँ घुमए
लागल । एहन भयािह लोकक कल्पना हमरा नवह िल । ई वपपही ताँ
आफदक जवि बवन गे ल । आब की करी?

"अहााँ के िी?"
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" एवहठाम प्रश्न -उत्तर करबाक परं परा नवह िै क । सभ वकिु


अपनवह होइि, वकिु करए नवह पिै ि ।"

"मुदा हमरा सं गे एना वकएक भए रहल अचि?"

" हम िी महाकाल । हमर आदद-अं त केओ नवह दे खलक।


अहााँ बे सी बुझबाक जोगारमे नवह पि़ू नवह ताँ कष्टमे पवि जाएब ।"

सामने मे वकिु राखल दे खत्रलऐक । नाखन्दहिा पुविआमे वकिु


िलै क । हम ओकरा हाथमे राखबाक प्रयास केलहुाँ वक ओ अदृश्य भए
गे ल। हम अिाक् ओहीठाम बै त्रस गे लहुाँ । सामने िौकपर तरह-तरहक
िीज-िस्तु राखल िल । मोन भे ल जे मालपुआ खइतहुाँ । तुरंते
मालपुआ एकिा थारीमे राखल िल । भररमोन मालपुआ खे लहुाँ । िाह
वपलहुाँ । ताबे बुझाएल जे ना केओ हमरा दे खख हाँ त्रस रहल अचि ।
ओकरासभक हाथमे मादक गं धयुक्त हररअर कंिन कोनो तरल िस्तु
साँ भरल वगलास िलै क । एहन मादक गं ध कथीक भए सकैत
अचि?- मोने -मोन सोिाए । ताबते कतहुसाँ अबाज आएल -

"ई चथक ददव्यरस। "

"ओ! हमरो भे वि सकैत अचि की?"

"अहााँ ताँ अपने िाह पीबए लगलहुाँ ।"

दे खखते -दे खखते ओ सभ ददव्यरसक भरर सीसी पीवब गे ल।


तकरबादक दृश्य ताँ दे खैत बनै त िल । मदमस्त, एक-दोसरसाँ एककार
भे ल सभ नाचि रहल िल ।
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"ई ताँ रावगनी लावग रहल अचि ।"

शरदकसं ग ओकरा एते क अं तरं ग दे खख हमर मोन जरर गे ल।


हम चिचिआ उठलहुाँ -

"रावगनी बस करू तमासा ।" औ बाबू हम एतबे बजले िलहुाँ


की केओ जोरसाँ हमर गट्टा धे लक । कतबो कवहऐक ओ नवह िोिलक

" अहााँ के िी आ हमरा एना वकएक धे ने िी?"

"हम महाकालक दूत िी ।"

"मुदा हमरा ताँ वकिु नवह दे खा रहल अचि ।"

"तकर समाधान अहााँ क हाथक वपपही कए सकैत अचि।"

हम ओवह वपपहीक बीिक बिन नवह दबा कए कतका बिन


दबा दे त्रलऐक । लएह ,ई ताँ आओर गिबि भए गे ल । हम कतए आवब
गे लहुाँ ? उलिै त-पलिै त कतहु अपने रूवक गे लहुाँ । ओवहठाम कतहु वकिु
नवह दे खा रहल िल । िारूकात अन्दहार गुप्प। हमर वपपही से कतहु
खत्रस पिल । ऊपर-नीिा कतहु वकिु नवह िल । सामने एकिा पोखरर
सन बुझाएल । बहुत जोर वपआस लागल िल । हम पावन वपबाक हे तु
आगू बढ़ै त िी । ताबते मे भयाओन अबाज सुनाएल-

"खबरदार! जाैँ आगू बढ़ब ताँ रौरब नकषमे धत्रस जाएब।"

"हमरा ताँ ई पोखरर बुझाएल, तैँ ओमहर जा रहल िलहुाँ ।"


68 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

"ई अं धलोक चथक । एवहठाम वकिु स्पष्ट नवह दे खाइत िै क, ने


बुझाइत िै क ।"

"अहााँ के िी? अहााँ क नाम की अचि आ हमरा एना वकएक


पकिने जा रहल िी?"

"हम िी, प्रभु ।"

"अहााँ ताँ हमर वपता िी।“

"रहल होएब कवहओ । मुदा आइ-काच्छल्ह हम महाकालक


िाकरीमे िी । ओ अहााँ केँ बजओलचथ अचि।"

"अहााँ कवहआ एमहर आवब गे लहुाँ ।"

"अहााँ हमरासभकेँ असमये मे िोवि गे लहुाँ । हम ई ष्ख बरदास


नवह कए सकलहुाँ । थोिबे ददनक बाद हमहूाँ गुजरर गे लहुाँ ।"

"हम ताँ अहााँ क वपण्डदानो नवह कए सकलहुाँ ?"

"आब तकर की माने िै क? जखन अहााँ रहबे नवह केलहुाँ ताँ


वपण्डदानक कोन सबाल उठै त िै क? फेर वपण्डदानसाँ होइते की
िै क? एते क गोिे जे अं धलोकमे बौआ रहल अचि से वकएक? एवहमे
कते कोकेँ ओकर सं तान सभ मरला पर जबार केने रहै क ,बै ददकी श्राद्ध
आ पता नवह की,की केने रहै क। आ ढ़ाकक तीन पात । ओहोसभ
ओवहना बफारर तोवि रहल अचि । असलमे मोन शुद्ध रवहतै क तखन
ने ? अं त-अं त धरर हे राफेरी मे लागल रहलै क । वनदाे र् लोककेँ सतबै त
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 69

रहलै क। एहन लोकक आओर भइए की सकैत िलै क ? गीतामे


भगिान तैँ ने कहने िचथन जे अं चतम कालमे जे जे हन सोिै त रहत ते हने
ओकर गचत होएत ।"

" मुदा हमर ताँ वकिु करू । अहााँ ताँ अपन लोक िी । अहााँ नवह
मदचत करब ताँ के करत? वपतासाँ बवढ़ कए के भए सकैत अचि?" । "

" एवहठाम मृत्युलोकक वहसाब नवह िलै त िै क । "

"ई कोन न्दयाय िी?"

"न्दयाय-अन्दयायक वहसाब करए बला हम के?"

" ताँ के करत?"

"महाकाल!

"एेँ !"

"आओर के करत?"

वकिु कालमे हम महाकालक दरबारमे उपच्छस्थत कएल गे लहुाँ ।

-7-

"सरकार! हमरासाँ गलती भए गे ल ।"


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"तोरासाँ िारं बार एना वकएक भए रहल िह? ई कोनो मृत्यु


लोक नवह चथकैक जे हे राफेरीमे लागल रहबह । एवहठाम सभवकिु
स्ििात्रलत िै क । एमहर-ओमहर करबह ताँ तुरंते पकिल जे बह ।"

"मुदा हमरे सं गे एना वकएक भए रहल अचि?"

"ई तोहर ्म िह । जे केओ एहन करत तकरा ओवहना हे तैक


।"

"मुदा कैक गोिाकेँ ताँ बहुत सुखी दे खैत िी ।"

"इएह ने गिबिी करै त िह । सददखन अनके प्रचत सोिै त रहै त


िह ।"

"एवहसभसाँ बिबाक वकिु व्याें त कररऔक कारण हमरा ताँ


अपने से सभ होमए लगै त अचि ।"

"कहत्रलअह से तूाँ बुझलह नवह । एते क ककरा समय िै क जे


तोरामे लागल रहत। तोरा वपपही दे त्रलअह । ओहीमे समाधान िलै क ।
तूाँ ओकर गलत-सलत बिन दबा दै त िलहक । ओ वनष्ष्क्रय भए गे ल
आ तोरा अं धलोकमे पिवक दे लकह ।"

"आब की हे तैक? वकिु ताँ रस्ता वनकालबै नवह ताँ हम ताँ


बौआइते रवह जाएब ।"
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"से हम की करबह? जे हन तोहर कमष हे तह,ते हने ने भे ितह।


एवहठाम ताँ पूिषजन्दमक कमषक वहसाबे सभवकिु फलाफल होइत अचि
।"

""हमर कल्याण करू । कोनो ऊपाय करू जावहसाँ हमरा


नीकठाम जोगार लावग जाए।"

"जोगार...? कहत्रलअह से बुझलहक नवह?एवहठाम जोगारक


गुंजाइस नवह िै क । जे हे तैक से अपने हे तैक ।'

"मुदा कवहआधरर हे तैक?"

"तोहार फाइल हरा गे ल अचि । तेँ वनणषयमे दे री भए रहल अचि


। धै यष राखह । ताबे ई वपपही राखह । एवहमे कोड लागल िै क । ध्यानसाँ
एकरा िलवबअह । जाँ फेर वकिु गिबि केलह ताँ तूाँ जानह आ तोहर
काज जानए ।"

हम वपपही सं गे बान्दहल कागजमे साँ कोड पढ़ै त िी आ कोड


सं ख्या एक दबा दै त िी। औ बाबू ! भक दए इजोत भए गे ल। िारूकात
दे खाए लागल । महाकाल िाकर समे तं वबला गे ल िलाह। आब
बुझत्रलऐक जे ई वपपही केहन उपयोगी अचि । जरूर महाभारत कालमे
इएह िा एहने कोनो यं ि व्यास सं जयकेँ दे ने गे ल रहचथन ,नवह ताँ घरे
बै सल ओ सभिा खखस्सा धृतराष्रकेँ कोना सुनाबचत? आइ-काच्छल्हक
िे लीिीजन भए सकैत अचि ओकरे प्रचतकृचत होइक हकििा ओहीमे
साँ वकिु -वकिु गुण जे ना-ने ते ना हात्रसल कए ले ने होचथ । जे होइ मुदा
ई अचि अजूबा यं ि , एवहमे कोनो सक नवह।
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सभसाँ कदठन िल एकर कोडकेँ मोन राखब । ओना पुिीमे


सभवकिु त्रलखल िलै क मुदा जाैँ ओ हरा गे ल हकिबा फावि गे ल ताँ फेर
ओएह लफिासभ शुरु भए सकैत अचि ।

इजोत होइतवह हमरा लखनपुर आ मौजपुरक बीिमे बनल पुल


दे खाएल । ओतए वकिु गोिे श्यामकेँ घे रर जोर-जोरसाँ नारा लगा रहल
अचि ।

"चतरवपत बाबू जजिदाबाद । चतरवपत बाबू अमर होचथ ।"

चतरवपतक लहास ले ने वकिु गोिे घुचम रहल िलाह । श्याम


हुनकासभकेँ हाथ-पै र जोरर रहल िचथ । मुदा केओ हुनकर सुवन नवह
रहल अचि । पुलक ष्नूभाग पुत्रलस घे रने अचि । लगै त अचि जे ना कोनो
जबरदस्त कां ड भए गे ल अचि।

हमरा नवह रहल गे ल । यद्यवप महाकालक िे तौनी हमरा मोने


िल तथावप गामक बात िलै क,नवह मोन मानलक ,भे ल जे जाँ एक बे र
अपने जा कए दे खख सकी ताँ बवढ़आाँ रहत ,सही समािार भे ित आ
णजज्ञासा से हो कए ले बैक । ई बुझेबे नवह करए जे चतरवपत केँ एना
वकएक भे लवन । जरूर श्याम वकिु झञ्झवि केने होएत । असली बात
ताँ ओतवह पता लागत । मुदा जाएब कोना? हमरा ई बात नीकसाँ बूझल
िल जे आब हम ओ मनोज नवह चथकहु जे रावगनीसं गे इसकुलक रस्तामे
खे लाइत रहै त िल । जकर हाथ-पै रमे दम िल,जे जखन जतए िाहए
ित्रल जाइत िल । आब ताँ हम की िी से अपनो नवह बुझाइत अचि ।
महाकालक दे ल वपपही आ तकर गुप्त कोडक बले कते क
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कुदब ? अपन हालपर अपने हाँ सी लावग रहल अचि। एक मोन कहै त
अचि-

"जखन अहााँ क ई हाल अचि ताँ कथीक लौलमे पिल िी?"

दोसर मोन कहै त -" जा धरर स्मृचत काज कए रहल अचि,आ


मोनमे भािनाक सं िार भए रहल अचि ताधरर अहााँ कोना बाँ चि सकैत
िी ? बाँ चिओ कए कतए जाएब?सं सारसाँ बाँ चिओ जाएब मुदा अपने -
आपसाँ ? कोनो उपाय नवह िै क अपनासाँ बाँ िबाक । "

फेर मोन होइत-"अहााँ ताँ स्ियं समस्या ठाढ़ केने िी? ने


अहााँ केँ दे ह अचि ने माथ । लोकसभ ई बात बुणझओ रहल अचि । तखन
अहााँ क कोन दाचयत्ि शे र् रवह गे ल जे एते क व्यग्र िी?"

फेर दोसर मोन कहै त-"सबाल दाचयत्िक नवह िै क?"

"ताँ कथीक िै क?"

"हमर अपने मोनमे एवह तरहेँ अन्दतद्वषन्दद होइत रहल, ताधरर


जाधरर ओ लहास अदृश्य नवह भए गे ल । की भे ल , कोना भे ल तकर
णजज्ञासा बनले रवह गे ल ।

एना दृश्य-अदृश्य होइत घिनाक्रमसाँ हम अिं त्रभत िलहुाँ ।


सभसाँ बे सी चििता महाकालक दे ल वपपही रक्षा लए होइत िल । हमरा
लगमे ताँ जे िल से ओएह िल आ जाँ ओ फेर गुम भे ल ताँ भगिाने
मात्रलक । वपपही कोड मोन रखबाक जते क िे ष्टा कररतहुाँ तते क जल्दी
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ओ वबसरा जाइत िल । तेँ वपपहीसं गे कोड बला कागजकेँ सम्हारर कए


राखब बहुत जरूरी िल ।

वनश्चय ई वपपही वकिु विशे र् िल । कीसभ एकर विशे र्ता


िलै क से केओ कहलक नवह ,ने ओकरा सं गे कोनो सूिी िलै क जे
पवढ़ कए सभबात शुरुएमे बुणझ त्रलतहुाँ । इएहसभ सोिै त रही वक कोड
सं ख्या एक फेरसाँ दबा गे ल । फेर ओएह पूल दे खा रहल िल मुदा ओतए
लोकक भीि िवि गे ल िल। चतरवपतक लहास ले ने वकिु गोिे "रामनाम
सत्य है " कहै त बहुत आगू ित्रल गे ल िलाह मुदा श्याम अखनो पूलक
कातमे पुत्रलस बला सभसाँ गप्प कए रहल िलाह । मुदा ई की? ओ ताँ
बूढ़ लावग रहल िलाह । केसो पावक गे ल िलवन । समयक गचतक ताल-
पातरा नवह बुझा रहल िल । हमरा ताँ लागए जे ना हम वकिु ए कालपूिष
अपन गामसाँ अएलहुाँ अचि। मुदा एतबे कालमे एते क पररितषन कोना
सं भि भए सकैत अचि ? फेर भे ल जे जरूर ओहूमे वकिु रहस्य हे तैक
। सोि-वििारक क्रममे वपपही कोड सं ख्या नौ दबा गे लैक। औ
बाबू! लगलै क जे ना पुत्रलसक सायरन बाणज रहल अचि । रवह- रवह कए
अबाज आबए लागल-

"की बात? हमरा वकएक बजओलहुाँ ?"

"हम कहााँ ककरो बजओत्रलऐक?"

"बे कारक बहस नवह करू। की पुिबाक अचि से बाजू नवह ताँ
फेर ई मौका नवह भे ित?"

"श्याम एते क जल्दी बूढ़ कोना लावग रहल अचि?"


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"लावग नवह रहल अचि, भए गे ल अचि । मृत्युलोकक समयक


गणना बहुत िोि िै क । ददव्यलोककक एकपलमे एतए कते को बखष
बीचत जाइत अचि ।"

"ओ़! ई ताँ अद्भुत अचि ।"

"जे अचि, से अचि, मुदा अहााँ कान खोत्रल कए सूवन त्रलअ।


वपपहीक कोड सािधानीसाँ प्रयोग करू । आब अहााँ लग माि दूिा
अिसर अचि । तकरबाद की होएत से हमहूाँ नवह जनै त िी ।"-से कवह
ओ अबाज लुप्त भए गे ल ।

-8-

वपपही आ कोड बला कागजकेँ नीकसाँ रखलाकबाद सामने


राखल बें िपर सुस्ताइत िलहुाँ । ओवहठाम करे िक -करे ि ददव्यरस
राखल िल । केओ िौकीदारो नवह िलै क । जे जे महर साँ आएल एकिा
सीसी उठओलक आ गिवक गे ल । फेर दोसर सीसी गिवक गे ल । एवह
तरहेँ सीसीपर सीसी ढ़ावि रहल िल । ददव्यरसक प्रभािसाँ ओ सभ
मस्तीमे निै त-गबै त आगू बवढ़ जाइत िल । िारूददस मनमोहक ओ
मादक दृश्य िल । हमरा नवह रहल गे ल। हम तरष दए हाथ बढ़ओलहुाँ
आ सीसीकेँ अं दर केलहुाँ । औ बाबू! जहााँ एकघाें ि भीतर भे ल हे तैक वक
साैं से दे हमे जे ना करें ि लावग गे ल। आब होमए लागल जे रावगनी कहुना
लगमे रहै त । हमहूाँ निै त-गबै त आगू बवढ़ जइतहुाँ । एतबा सोचिए रहल
िलहुाँ वक सुनैत िी-
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"की रावगनी, रावगनीक रि लगे ने िी। एवहठाम कोनो लोकक


कमी िै क जे अहााँ मृत्युलोक जकााँ भोकारर पारर रहल िी।"

वकिु सोचितहुाँ ,वकिु बुणझचतऐक तावहसाँ पवहने एकिा अद्भत



सुंदर तरुणी हमरा दे खाइत िचथ । ओ दे खैत साैं दयषक पराकािा िलीह
। साैं से दे हसाँ जे ना इजोत वनकत्रल रहल िलै क। कवह नवह विधाता कोन
क्षणमे हुनका गढ़ने हे ताह? सुगंधसाँ सं पूणष िातािरण महमह करै त िल

"अहााँ के िी?"

"हम िी ददव्यपुरक प्रत्रसद्ध राजनतषकी मं जुर्ा।"

"ओ! अहााँ क स्िागत अचि ।"

मं जुर्ा ददव्यरसक दूिा सीसी अपने हाथे वनकालै त िचथ ।


एकिा सीसी अपने गि-गि अं दर कए लै त िचथ आ दोसर हमरा दै त
िचथ।

"हम ताँ कैकिा सीसी पवहनवह पीवब िुकल िी"

"कोनो बात नवह एकिा आओर सही ।"

ददव्यरसक असर तते क जोरदार भे ल जे वपपही वकिु सोह नवह


रहल । मं जुर्ाक सं ग रं ग -रभस करै त काल ओकर कोनो बिन दवब
गे लैक । बिन की दबे लैक,जुलुम भए गे लैक। आब ताँ हमरा वकिु नवह
बुझाइत िल,वकिु नवह दे खाइत िल।
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"आब की सोचि रहल िह । एते क बुझा कए कहने रवहअह


मुदा सीसीपर सीसी ढ़ारने जाइत िलह । वपपही ताँ सम्हारर कए रखखतह
।"

"अहााँ के िी?"

" चतरवपत, तोहर मास्िर ।"

"एवहठाम की कए रहल िी? अहााँ क ताँ लहास दे खने रही।


ओवहददन पुल लग लोकक मे ला लागल िल । सभ श्यामकेँ गररआ
रहल िल । "

" ओ ताँ बहुत पुरान बात अचि ।"

" हमरा ताँ वकिु ए काल पूिष ई दे खाएल िल ।"

"िोिह ई गप्प-सप्प । केओ सुवन ले तह ताँ मोसवकलमे पवि


जे बह ।"

"से वकएक? '

" ई अं धलोक चथक । एवहठाम हम तोरासाँ गप्प करबाक हे तु


अचधकृत नवह िी ।"

"से वकएक?"

"बे सी कबाइत नवह पढ़ह । भागह ......"


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-9-

अं धलोकमे िारूकात अन्दहारे -अन्दहार िल । एवहठाम साैं से


ष्वनआाँ क लोकसभ फाँसल िचथ । हुनका लोकवनक आत्मा एवहठाम
बौआइत रहै त अचि । ककरो शां चत नवह,कोनो सुख नवह,सभ
परे सान,व्यग्र ,अभािग्रस्त । मृत्युलोकसाँ दे ह ताँ िु वि गे लैक तथावप
ओकरसभक मोन ओतवह अिकल िल । एहन ठाम चतरवपत कोना
पहुाँ चि गे लाह? असलमे भे लैक ई जे अपने ओवहठामक केओ वकरानी
अं धलोकक वहसाब-वकताब करै त िल। ओ बहुत ददनसाँ एवह काज केँ
करै त-करै त काजमे मावहर भए गे ल िल । सभकेँ ओकरापर विश्वास
रहै क । तकरे ओ फएदा उठओलक आ घोिाला कए दे लक । जाबे -जाबे
बात खुजलै क ताबे ताँ बहुत वकिु भए गे ल िल। तखन की कएल जाए
। ओकरा ताँ हिा दे ल गे ल मुदा काज कोना िलत? ताबते चतरवपत
ओतए पहुाँ िलाह । जे बाक ताँ हुनका ददव्यपुरम रहवन मुदा महाकाल
हुनकर इमान्ददार िवि दे खख अं धलोकक तहसीलदार बना दे लाह ।
ईहो एक तरहें हुनकर वनयचत िल अन्दयथा ओ ददव्यलोक िोवि
अं धलोक वकएक जइतचथ?

वपपही बिन कवनको एमहर-ओमहर होइक आ हम कतएसाँ


कतए फेका जाइत िलहुाँ । एहन ताँ कवहओ नवह दे खने रवहऐक । कतहु-
ने -कतहु हमरा बुझबामे ददक्कचत भए जाइत अचि आ अिै ते
वपपहीकेँ हम बौआ रहल िी"- हम सएह सभ सोिै त अं धलोकक
िौकपर ठाढ़ रही वक कोनो पररचितक अबाज सुनबामे आएल ।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 79

"अहााँ के िी?"

" ई ताँ अहााँ केँ स्ियं बुझबाक िाही।"

"बुझौअत्रल नवह बुझाउ । साफ-साफ कहू ।"

"इएह ताँ अहााँ क ददक्कचत अचि । "

"जखन से बुणझ रहल िी ताँ हमर रस्ता सोझरा वकएक नवह


दै त िी?"

"ई हमर काज थोिे चथक ।"

"मुदा अहााँ िी के?"

"अन्दतदृषचष्ट"

"से की भे लैक।"

"लएह । हम कहै त रही जे हम अहााँ क प्रश्नक जबाब नवह िी


कारण अहााँ क लगमे हम िीहे नवह ।"

"कारण?"

" एवह प्रश्नक उत्तर ताँ वनयचतए दए सकैत िचथ ।"-एतबा


कवह ओ ओवहठामसाँ लुप्त भए गे लाह । हुनका जाइत-जाइत तते क
प्रकाश भे ल जे तकरे इजोतमे वपपही दे खाएल । हम ओकरा लपवक
ले लहुाँ । एवहबे र हम पक्का वनणषय केलहुाँ जे वपपहीकेँ आब एमहर-
ओमहर नवह होमए दे ब।
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"मुदा अहााँ क िाहने की होएत?"

" अहााँ िी के?"

" अहााँ क वनयचत ।"

"ओ ताँ अहीँक द्वारे हमरा ई सभ परे सानी अचि ।"

"हमरा द्वारे वकएक होएत?"

"तखन?"

"तखन की?"

"वकिु ताँ स्पष्ट कररऔक जावहसाँ हमर आगूक रस्ता साफ


होअए । हम बुणझ सकी जे आब हमर गं तव्य की अचि । हम कतहु िै नसाँ
रवह सकैत िी वक एवहना बौआइत रहब ।"

"सभिा जखन अहीँ बुणझ जे बैक तखन वनयचत की भे लैक?"

"मुदा वनयचतओक पािू ताँ कथुक हाथ हे तैक ।"

"िै क वकएक नवह? "

" एना बुझौअत्रल नवह बुझाउ ।"

"मावन त्रलअ जे हम अहााँ केँ बुझाए दे ब ताँ अहााँ केँ िै न


होएत? नवह होएत? अहााँ फेर एकिा नि प्रश्नक सं ग ठाढ़ रहब।"
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" से वकएक?"

"कारण अहााँ क इएह वनयचत अचि ।"

ओकर सबाल- जबाब सुवन हम वनरुत्तर भए गे लहुाँ । हमरा


िगुन्दतामे दे खख ओकरा दया आवब गे लैक । फेर अपने बजै त अचि-

"वनयचत वकिु नवह, अहीँक पूिष कमषक प्रचतवबम्ब अचि । एकरा


अहााँ वकिु नवह कए सकैत िी । जे अहााँ कए सकैत िलहुाँ से कए
िुकल िी । आब ताँ ओ अपन काज कए रहल अचि ।"

"मुदा हमरा अवहसभ साँ मुक्क्त कोना भे ित? कोनो रस्ता


होइक ताँ कहू।"

"रस्ता ताँ अन्दतदृषचष्टएसाँ भए सकैत अचि।"

"मुदा से हमरा कवहआ आ कोना भे ित?"

"प्रतीक्षा करू ।"

से कवह ओ अबाज लुप्त भए गे ल । कतबो प्रयास केलहुाँ ओ


िापस नवह आएल, दोबारा ओकरा नवह सुवन सकलहुाँ । िारूकात
एमहर-ओमहर बौआइत रही । भे ल जे जाबे हमर वहसाब नवह फररिा
रहल अचि,जाबे वनयचत हमर ददसा स्ियं नवह तय कए दै त िचथ ताबे
एवह वपपहीकेँ सम्हारर कए राखी। एहीमे कल्याण अचि ।

"से हो तखने होएत जखन वनयचतकेँ से मं जूर होइक ।"


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से सुवनतवह मोन भे ल जे ठोवह पारर कए कानी । कवहअवन-

"हे विधाता! हमरापर दया करू । "

मुदा हम असमथष भे ल ओवहना अं धलोक िौराहापर ठाढ़ रवह


गे लहुाँ । सं भित हमर इएह वनएचत होअए-?"

-10-

हम वपपहीकेँ सम्हारर कए रखबाक प्रण कए ले ने रही मुदा


ओकरा रखखतहुाँ कतए? ने अं गा िल ,ने जे बी,ने बिु आ । एहनो समय
हे तैक से नवह सोिने रही । हमही एते क ष्वबधामे िी की आओरो
लोकसभ अवहना परे सान अचि?वकिु कहल नवह जा सकैत अचि ।
सुनने रवहऐक जे मृत्युसाँ जीिनक अं त भए जाइत अचि । जीिनक जे
होइत होइक मुदा समस्याक अं त ताँ नवहऐ होइत बुझा रहल अचि ।
मौजपुर हो िा लखनपुर सभगामक लोकसभ गाहे -बगाहे एतवह पहुाँ चि
गे लाह । बात ओतबे रवहतै क ताँ कोनो बात नवह । दे श-विदे शक लोकसभ
एवहठाम विद्यमान िचथ,समयक घात-प्रचतघात सवह रहल िचथ ।
वकिु गोिे एहनो िचथ जे एखनो मृत्युलोकमे अपन अर्जित अकूत
सं पत्रत्तकक हे तु बे िैन िचथ ।

एहने एकिा व्यक्क्त िलाह श्याम । कवह नवह कवहआ आ


कोना अं धलोकक द्वाररपर पिल िचथ । रौद,बसातसभ लावग रहल िवन
। कोनो प्रकारक सुविधा नवह भे वि रहल िवन। िाही सभिा,भे वि वकिु
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नवह रहल िवन । वपआस,भूखसाँ ििपिा रहल िचथ । समाधान वकिु


नवह । चतरवपत कैक बे र अबै त-जाइत हुनका दे खैत िचथ । हुनकर बास
अं धलोकेमे िवन । श्यामक दशापर हमरो दया अबै त रहै त अचि।

वपपहीकेँ बे र-बे र उलवि-पुलवि कए वकिु करबाक प्रयासमे


रही । हमरा बसमे आओर वकिु िलहो नवह । चतरवपत जाँ दे खेबो
कररतचथ ताँ बे सीकाल िरका दै त िलाह । असलमे ओ अपने काजसाँ
बहुत व्यस्त िलाह । महाकालक विश्वस्त हे बाक कारण सभिा
सं िेदनशील फाइल हुनके णजम्मा िल । वकिु ददन पवहने भे ल धां धलीमे
बहुतरास फाइलसभ एमहर-ओमहर भए गे ल रहै क। तकर जााँ ि-
पिताल ित्रलए रहल िल मुदा एखन धरर वकिु वनजगुत पता नवह ित्रल
सकल । चतरवपते एहन व्यक्क्त िलाह णजनका हम जनै त ित्रलअवन,जे
महाकालक कृपापाि िलाह । मुदा ओ ताँ सददखन अपन काजमे लागल
रवहतचथ । ककरोसाँ ,कथुसाँ, वकिु ले ना-दे ना नवह । जखन कखनो गप्प
करबाक प्रयास करी हुनकर सं ग ित्रल रहल अं गरक्षकसभ भयािह रूप
धए लै त । हम सकपका जाइत िलहुाँ । चतरवपत काका हाँ त्रस ददतचथ
आ आगू बवढ़ जइतचथ। मोने -मोन सोिी जे चतरवपत ताँ एहन वनसोख
नवह िलाह । कैक बे र इसारासाँ ओ वकिु बुझेबाक प्रयास कररतचथ मुदा
हम बुणझचतऐक तखन ने ?

हमर ने कोनो बगए िल ने कोनो ठे कान । कालक िशीभूत


भए िारूकात बौआ रहल िलहुाँ । एवहना एकददन एकिा िौक लग
बै सल िलहुाँ । ओवहठाम एकिा मागषदशषक लागल िलै क जावहमे तीनिा
ददशासूिक पवट्टका िल । सभसाँ ऊपर ददस ददशा वनदे श करै त उज्जर
रं गक पवट्टका िल जावहमे त्रलखल िल-ददव्यलोक । बीिमे एकिा कारी
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रं गक पवट्टका िल जावहमे नीिा ददस जे बाक सं केत बनल िल आ


ओवहमे त्रलखल िल अं धलोक। सभसाँ नीिा िल हररअर आ वपअर
रं गक पवट्टका जावहपर त्रलखल िल मृत्युलोक । मृत्युलोकक ददशा सोझे
सामने दे खा रहल िल । कहक माने जे ओवहठामसाँ एवह तीनूलोकमे
गे वनहार लोकसभ गुजरै त िलाह । हम मोने -मोन सोिलहुाँ जे ई ताँ अद्भत

िौक अचि। वकएक ने एतवह वकिु काल बै सल रही । भए सकैत अचि
जे वकिु िमत्कारे भए जाए, हमरो कोनो ठे कान लावग जाए ।

ओवहठाम िुक्कीमाली बै त्रस गे लहुाँ । बै सबाक


क्रममे वपपही नौ नम्बरक बिन दवब गे लेक। औ बाबू तकरबाद ताँ
वनरं तर अबाज आबए लागल-"महाकालक दरबारमे अहााँ क स्िागत
अचि । आ से तते क तरहक भार्ामे दोहराओल जाइक जे मै चथलीमे
घोर्णा सुनबाक हे तु कते को काल धरर प्रतीक्षा करए पवि रहल िल ।
सोिलहुाँ जे अगुताइ नवह । हम िुपिाप सुनैत रहलहुाँ । जहााँ मै चथलीमे
घोर्णा भे लैक की तरष दए बजलहुाँ -ुँ॒

"हमरा ई कहू जे हमर हाथक वपपहीमे की-की सुविधा अचि


आ एकरा नीकसाँ केना िलाओल जा सकैत अचि जावहसाँ एकर व्यापक
उपयोग होइक ।"

" एते क ददनसाँ ई वपपही अहााँ क हाथमे अचि आ अहााँ आब ई


प्रश्न कए रहल िी ।"

"हमरा माफ करू । हम बहुत परे सानीमे समय कावि रहल िी


। कखनो वकिु , कखनो वकिु भए जाइत अचि ।"
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 85

"सभक जवि अचि अहााँ क वनयचत । एकरासाँ पिोि िु िब


असं भि चथक । ई वपपही अहााँ क बहुत मदचत कए सकैत िल ।
वनयचतिश अहााँ से हो ठीकसाँ नवह कए पावब रहल िी ।"

"एकर समाधान वकिु िै क वक नवह?"

"एवहठाम मौजपुर आ लखनपुर बला गप्प ताँ िै क नवह जे लोक


दोसरक माचमलामे िां ग अिबै त रहए। अहााँ इएह करबाक अभ्यस्त
रहबाक कारण लगातार परे सानीमे पवि जाइत िी।"

"तखन की करी?"

" ध्यानसाँ सुनू । अहााँ क वपपही एही ले ल दे ल गे ल अचि जे


अं तरदृचष्ट सवक्रय हे बा धरर अपन समय सुखपूिषक वबता सकी । एवहमे
सभ साधन िै क । एकर कोड हम बजै त जाइत िी, अहााँ ध्यानसाँ सभिा
सुनैत जाउ । अहााँ क सभ समस्याक समाधान अपने होइत रहत ।"

तकरबाद ओ वपपहीमे दे ल गे ल तरह-तरहक सुविधा आओर


तकरा प्राप्त करबाक हे तु कोडक जानकारी दे बए लगलाह। शुरुएमे
कहै त िचथ-

" अहााँ ताँ एकबे र हे ल्पलाइनक उपयोग कए िुकल िी। आब


माि दूिा अिसर अहााँ क लग अचि । तकरबाद ई वपपही वनष्ष्क्रय भए
सकैत अचि । एवह बातसाँ सािधान रहब। " तकरबाद ओ धराधर कोड
बजै त गे लाह । मुदा हमरा ताँ वकिु मोन नवह रहल "-हम कहत्रलअवन।
86 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

" अहााँ एहन डपोरसं ख कवहआसाँ भए गे लहुाँ । हम फेरसाँ सभ


वकिु दोहरा रहल िी जाँ अहााँ एहूबे र ध्यान नवह रखलहुाँ ताँ अहााँ क
भगिाने मात्रलक । हमरा आनोठामक काज दे खबाक अचि। दरबारमे
बहुत लोकक णजज्ञासा आवब रहल अचि । हम अहींमे लिकल नवह रवह
सकैत िी ।"

तकरबाद फेर ओ कोडसभ आ तकर काज कवह गे लाह । हम सतकष


रही । मुदा भे ल ओएह । जते क प्रयास केलहुाँ सभ व्यथष ित्रल गे ल ।
तीनिा कोड माि ध्यानमे रहल , शे र् सभ फुरष भए गे ल।

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विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 87

२.६.कुमार मनोज कश्यप-अध पतन

कु मार मनोज कश्यप

अधिः पतन

आई अखबारक सुखी मे आयल खबरर जे - -विदे श मे कमऊआ बे िा के


माय-बाप के मरबाक जनतब भे िलै लहाश के सवि-गत्रल गे लाक बाद-
सभ िौक-िौिाहा पर गमाष-गरम बहस के मुद्दा िलै । माय-बाप अपन
पे ि कावि एकमाि बे िा के पढ़ा-त्रलखा कs सुयोग्य बने लकै। बे िा नौकरी
करय अमे ररका की गे लै; ओतवह के भs कs रवह गे लै। बे िा-पुतोहू
आजाद ख्याल के आ विदे शी सं स्कृचतक रं ग सs रं गल ..... बूढ़ माय-
बाप के अपना सं ग राखब अपन स्ितं िता मे बाधक लगलै । पररणामत
बूढ़हा-बूढ़ही अपन फ्लै ि मे बााँ िल जीिन कािै त िलै । ष्भाषग्य एतबे
नहहि, बूिही के ते हन लकबा मारलकै जे हाथ-पै र के सं ग-सं ग बोत्रलयो
बन्दन भs गे लै। बूिहा ओकर सभ पररियाष करै त िलै । बे िा के कतषव्य
बस एतबा धरर िलै जे मास-दू मास पर फोन कs कs हाल-िाल पूचि
लै । ष्भाषग्य के अतत तखन भे लै जखन एक राचत बूिहा जे सूतलै से
88 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

फेर उठलै नहहि। बूिही अथबल आ बौक ..... िावहयो कs साईत वकिु
कs नहहि पाओल हे तै आ अहुाँ चिया कावि कs अं तत ओहो प्राण त्यावग
दे ने हे तै। फ्लै ि सs सिाईन ष्गषन्दध पसरलै तखन पिोसी पुत्रलस के
बजे लकै आ पुत्रलस केबाि तोवि ष्नू नर-कंकाल बहार केलकै।

अखबारक एवह खबरर पर खसै त मानवियता, लोवपत होईत मानिीय


सं िेदना, पखश्चमी सभ्यता के अं धानुकरण, शहरीकरण सs अध पतन
होईत सं स्कृचत आदद नहहि जानी कते को मुद्दा उठलै बहस मे लोक अपन-
अपन सुनल-दे खल खखस्सा सभ से हो सुनेलकै , वकिु लोक के भािना
नोर बवन कs से हो िघरलै । तकरा बाद सभ वकिु सामान्दय सन भs गे लै।
अखबार के ओ बत्रसया पन्दनो साईत कोनो आर काज मे आवब गे ल हे तै।

-सम्प्रचत: भारत सरकार के उप-सचिि, सं पकम : सी-11, िािर-


4, िाइप-5, वकदिई नगर पूिष (ददल्ली हाि के सामने ), नई ददल्ली-
110023, # 9810811850 ईमे ल:
writetokmanoj@gmail.com

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विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 89

२.७.प्रमोद झा 'गोकुल'- अप्रैल फूल (बीहवन कथा), त्रलक त्रलक (लघु


कथा)

प्रमोद झा 'गोकु ल'



अप्रै ल िूल (बीहवन किा)

कनडे ररये हमरा ददस तावक नूनू अपना घर ददसका बाि पकिलक ते
हम अकिकाके खूब जोरसे िोकार मारत्रलयै - त्रसताहल नवढ़या जकााँ
मूहाँ िु पाके वकए भागल जाइ िेँ रे नुनुिााँ ! ओहो तुरुचिके खूब जोरसे
गारर पढ़ै त कहलक -गााँ ..मा .. स्स ःा.. सब के ! रखै जाइ जो अपन
दोस्ती यारी !! ने नाढ़ो बे ल तर जे ती,ने बे लक मारर भिा भि खे ती !
-आखखर भे लौए की से ते कह !
-भोरे भोर बजा के कतौ लाल चमरिाइक बुकनी चमलौल शरित वपयौल
गे ल ए ते कतौ नोनगरहा िाह ! तहू से ही नै भरलै भोलिा कवनयााँ के ते
भै ररयो वगलास झौिा ने िो गाररके वपया दे लक ।उपरे परान रवह गे ल
।एमहर नात्रभसे ल के लोल तकक लहै र आ ओमहर बकररक वकदै न
जकााँ मुहाँ केने केने प्रान आिन्दन भ' गे ल ।आब तूाँ की करै ले बजबै िेँ
90 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

?
- ओह.. ! ओ सब आइ अप्रैल फूल बनौलकौ तोरा ,हम माि भात
खुएबौ ! जे सप्पत खुिालेँ । हाँ सैत बाजल गोनू ।

त्लक त्लक (लघुकिा)

थाकल ठवहयायल रामधन ररक्साक घं िी िु न िु निै त अपन झु ग्गी मे


पहुाँ िल.घन्दिीक आबाज सुवन घरबाली रानी आ बे िा मगन दौवि के बाहर
अयलै .बे िाक हाथ मे मधूरक वडब्बा पकिबै त रामधन कहलकै- रे मगना
! ले ई महािीरजीक परसाद चियौ, सब बैँ ि खोवि के खा त्रलहें .
कथीक खुशी मे महािीरजी के भोग लगौलकैये चमठाइ ? घरबाली एेँ ठैत
पुिलकै .
-वपररचतयाक पररिा नीक नहैं त खुशी खुशी समापत भ' गे लै तेँ ,
कबुलने ित्रलयै .
- बड्ड ददब केलकै.महािीरजी कौहना नीक नहैं त पास करादै तथीन िाैं िी
के .दीन रै त एकठााँ ि क' दे ने िलै पढ़ै खाचतर.
-अिे ई ते कहौ प्रीतो िै कत ? दे खै नै चियै ओकरा !
- जै न नै की भ' गे लैये िन मे ओकरा ! अखने फन पर वकओ वकि
कहलकै वक तखन से मुरघोस लगौने िै .कतबो वकि पूिै चियै त' बजबे
नै करै िै .ईहे जा के पूिौ ने तनी !
रामधन गुन्दधुन मे पररगे ल. कहूाँ ई िाैं िा त'ने वकि कहलकै !ई बात
ध्यान मे ऐबते मगन से किक अबाज मे पुिलकै-
-तूाँ वकि ते नै कहलहीहे रे मगना !
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 91

- हम नै वकि कहत्रलयै हे ददददया के हौ बाबू !


-तहन की भे लैहे जे एना केने िै ?
-ओकरे से पुिहक! साइत पररिा मे वकि भे लैये .
-एाँ ..!पररिा मे की भे लै रौ ? वकि अकैन..हाँ ..आइ मारवकि मे
चधयापुताक भारी जलूस दे खने ित्रलयै .सब नारा लगबै िलै त्रसवबएस्सी
मुदाषबाद !आरो वकदै न वकदै न कहै िलै ..हाँ पे पर त्रलक त्रलक बन्दन करो!
िोराें को सजा दो आरो वकदै न वकदै न .
-एकर मतलब ददददयाक पे पर केच्छन्दसल भ' गे लैहे हौ बाबू !
- शुभ शुभ बाज तहूाँ !
- तहन ददददये पूचि लहक !
-हाँ िलै जल्दी !
मुरघोस लगौने प्रीतो भुइयााँ भुइयााँ पर िीि फैर रहल ित्रल आ मूिी
डोला डोला के अपने हाथें ओकरा मे िैबतो जै त ित्रल. बे िीक
हाल दे खख रामधनक काें ढ़ फैवि गे लै. ओ दौि के बे िी लग पहुाँ िल
आ ओकर मूहाँ उठिै त व्यग्रता साँ पूि' लागल-
-की भे लौ तोरा जे भे ख एना बनौने िें बे िू ! जत्ते दूर तक पढ़बें से हम
पढ़े बौ ष्न्दनू भाइ बहीन के .तोरा बाप के आर वकि ने िौ हाँ तहन ई
ररक्सा िौ ! दे खै चिहीन ने .. कोनो चिन्दता नै कर, कह की भे लौ ?
एतबा सुनैत दे री प्रीतोक धै यषक बान्दह िू वि गे लै.ओ फफैक फफैक के
बापक गरा पकैर कनै त बाजय लागत्रल -
-हाँ हम सबिा बुझै चियै बाबू ! कोन धरानी ताें हमरा आरू के पढ़बै ि'
से ककरो से चिपल नै िै .तखन..
-तखन की गै ?
पे पर लीक भ' गे लाक कारने केच्छन्दसल भ' गे लै पररक्षा .
92 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

-ऐ ले तुाँ वकए चिन्दता करै िेँ ?फेनो पढ़ जै म के आ दे खा दहीन ष्वनयााँ


के जे गरीबक बच्िा मे कते क दम होइ िै !हाँ एगो बात ते बुझा ई त्रलक
त्रलक की होइ िै गै !
- त्रलक त्रलक नै हौ बाबू !
-तहन की ?
-पे पर लीक भ' गे लैये.वबहुाँ सैत बाजत्रल प्रीतो
-तै यो नै बुझत्रलयौ ई अं रेजी बं रेजी .
-ओह !नै बुझलहक ? प्राइिे ि स्कूल बला अपन अपन खास बच्िा लग
तीन घं िा पै हनै पहुाँ िा दे लकै पे पर . बस्स एक कान दू कान िाि् सप पर
पूरा अपन स्कुलक बच्िा लग पहुाँ िा दे लकै. आब बुझलहक !
- ओ!एेँ गै आ सरकार कुिो नै कहलकै ओकरा आरू के !
-हाँ जााँ ि भ' रहल िै जे पकरे तै से जहल जे तै
-बच्िा आरुक जीिन से खे लवनहार के इस्सर माफ नै करथीन. िल लै ग
जो बे िू फेनो अपन तै यारी मे . वनसााँ स िोिै त रामधन बाजल।

-प्रमोद झा 'गोकुल', दीप, मधुिनी (विहार); फोन -9871779851


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विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 93

२.८.प्रिि कु मार झा- पोिी ििाम: "प्रीचत कारि से तु बान्हल":


सम्पादक - श्री आशीष अनचिन्हार

प्रिि कु मार झा

पोिी ििाम : "प्रीचत कारि से तु बान्हल": सम्पादक - श्री आशीष


अनचिन्हार
94 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

"प्रीचत कारण से तु बान्दहल" पोथी श्री आशीर् अनचिन्दहार के सं पादन मे


प्रकात्रशत पोथी िै क जै मे ितषमान मै चथली सावहत्य जगत के दीत्प्तमान
स्तम्भ दं पत्रत्त श्री गजे न्दर ठाकुर आ श्रीमती प्रीचत ठाकुर केर मै चथली
सावहत्य जगत के ले ल कैल गे ल योगदान आ पुरातन मै चथली वििाह आ
पं जी पद्धचत के सं रक्षण एिं सं िधषन ले ल कैल गे ल प्रयास आ योगदान
पर प्रकाश दे ल गे ल अचि। कुल 478 पृि के एवह पुस्तक मे 32 िा
सहयोगी ले खक सबहक आले ख, सं स्मरण, साक्षात्कार, आलोिना
आदद िै क जे सं प्रचत सावहत्य, इचतहास, पिकाररता एिं अन्दय विधा साँ
जुिल िै थ। जे ना िोि-पै घ बहुते रास नदी सभ चमत्रल कय समुरक
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 95

वनमाषण केने होय। ऐ मे से कै िा त सं प्रचत मै चथली सावहत्य जगत के


जनल मनल हस्ताक्षर िै थ।

पोथी केर विर्य-िस्तु के मोि मोि तीन िगष मे हम िगीकृत करय िाहब
: - i) श्री गजे न्दर आ श्रीमती प्रीचत ठाकुर केर पाररिाररक जीिन के
गाथा आ ओय सब से जुिल सं स्मरण आदद। ii) ऐ सावहत्यकार द्वय
के द्वारा मै चथली सावहत्य एिं मै चथल सं स्कृचत के द्योतक कागजात
सबहक अनुिाद आ वडणजिाईजे शन के अचत महत्िपूणष काज मे योगदान
आ ओकर यािा केर गाथा आ iii) सावहत्यकार द्वय द्वारा कैल गे ल
काज सबहक विर्य जे ना पं जी प्रणाली आदद सं बष्न्दधत विर्य सब पर
आले ख आ ििाष ।

ऐ पुस्तक के वित्रभन्दन खं ड एिं विर्य सूिी के शीर्षक केर रूप मे वित्रभन्दन


पारं पररक लोकगीत सबहक पं क्क्त दे ल गे ल अचि जे ना "आजु जनकपुर
मं गल भुप सभ आओल हे .."। सं प्रचत हहिदी कथा ले खन विधा मे सत्य
व्यास के ले खन मे से हो एहन प्रयोग भे िईत िै क। ऐ तरहक प्रयोग
पाठक मे विर्य-िस्तु आ पोथी के ल क णजज्ञासा बढ़ाबै िै क।

अलग अलग सहयोगी ले खक द्वारा अपन-अपन शै ली में उपरोक्त तीन


िा मे से कोनो एक िा एक से बे सी िगष मे आले ख त्रलखल गे ल अचि जे
96 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

सावहत्यकार द्वय के सम्पूणष बे क्क्तगत आ सावहत्यक जीिन के वित्रभन्दन


पहलू के समािे त्रशत करय अचि। ले ख पढ़ई काल पाठक के रूप मे
कते क रास नि-पुरान सं दभष सभ मच्छस्तष्क के सोझा उपच्छस्थत भ जाइत
िै क। सं गवह मै चथल ब्राह्मण पं जी प्रथा जे हन विर्य के प्रचत णजज्ञासा आ
कम से कम ऐ विर्य पर सतही ज्ञान के सं िार से हो।

आशीर् अनचिनहार आ मुन्दना जी आदद द्वारा सावहत्यकार द्वय के


साक्षात्कार हुनक मनोिृचत आ हुनक काज मे बे क्क्तगत रुचि आदद मे
जानय के अिसर दै त िै क। वकिू ले खक अपन सं स्मरण द्वारा श्री गजे न्दर
ठाकुर के पाररिाररक जीिन के से हो वनक चिि झीकने िै थ आ पाठक
के ओवह सं बंध मे रोिक जानकारी प्राप्त करबा मे सक्षम बनाबै िै थ।

आन आन आले ख, सं स्मरण आ साक्षात्कार के अचतररक्त श्री जगदीश


िं र ठाकुर ’अवनल’ आ डॉ० कैलाश कुमार चमश्र द्वारा चमचथला पं जी
प्रबं ध पर त्रलखल आले ख पाठक केर रूप मे हमरा ले ल बे क्क्तगत रूप
से खूब रुचिगर आ उपयोगी लागल। सुश्री कल्पना झा के आले ख से हो
मोन के िु लक आ गुदगुदेलक। एकठाम ओ कहय िै थ जे एकिा उमै र
भे ला पर वकताब कीनै त डर होई िै न्दह जे नि पीढ़ी कहााँ कवहयो ओय
पोथी के उल्िे तै पलितै । उल्िे ष्वनयााँ से वबदा भे ला पर भ सकय अचि
जे हुनका उपराग दै न जे ई की जमा क के ध गे त्रलह अचि। मुदा हमर ऐ
विर्य मे सोिनाइ अलग अचि आ जे वक हमर अपन अनुभि के आधार
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 97

पर अचि। हमर बाबा जे की सं स्कृत के विद्वान िलाह आ एकिा


ठाकुरबारी मे पुरोवहत। हम जखन ने ने िलहु 9-10 िर्ष के तखने
स्िगषिासी भ गे ल िलाह। हमरा याद अचि हुनक पे िारा मे बोरा के बोरा
भरर भरर के आध्यात्म आ धमष-सं स्कृत केर पोथी सभ िलईन्दह। सभ
वकताब के हमर कक्का कबािी मे बे ि दे लखखन मुदा वकिु कल्याण
विशे र्ां क, गीता आ पुराण हम िााँ वि ने ने रही (ओवह समय मे पुस्तक मे
दे ल गे ल फोिो सबहक लोभे ) । बाद मे नहु नहु ओई पोथी सभ के
पढ़ईत गे लहु त ओई सब मे हमरा रुचि आबय लागल। ओई समय मे
हमर वििार-व्यिहार आ धमष-कमष मे हमर रुचि के आकार दे बय मे ओय
पुस्तक सबहक हम महत्िपूणष योगदान दे खय िी। वपचतया लगा के हम
7 भाई बवहन मे हमरे िा ओई पोथी सभ पर मोन गे ल िल। अथाषत
प्रोबे बत्रलिी त ओत्तौ 1/7ते िलई। तावह ले ल हमर ई वििार अचि जे
जखन हम कथा या कथे तर के रूप मे वकिु वििार-सं स्कार अथिा वकिु
सूिना पोथी के आकार मे सं रणक्षत करय िी, त कम्मे प्रोबे बत्रलिी सही
मुदा वकि न वकि िां स रहय िै जे अवगला पीढ़ी तक ओ वििार-
सं स्कार आ सूिना पहुं िय। ई पोथी से हो एकिा कथे तर सावहत्य िै क
जै मे विर्य पर वकिु रोिक ले ख त िै क तथावप विर्क के गूढ़ता के
कारण सब प्रकार के पाठक ले ल मनोरं जक होय ई आिश्यक नवह। मुदा
पुस्तक मे दे ल सूिना मै चथली सावहत्य जगत एिं मै चथल सं स्कृचत ष्नु
के ले ल सं रक्षणीय िै क। तावह ले ल ऐ प्रकार के पोथी के सं कल्पना
सं योजन एिं सम्पादन ले ल श्री आशीर् अनचिन्दहार जी बधाई, प्रशं सा
आ साधुिाद के पाि िईथ। चमचथला आ मै चथली से सं बष्न्दधत
सं स्था, कॉले ज आदद के पुस्तकालय मे ऐ तरहक पुस्तक के सं ग्रह
हे बाक िावहए।
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भौचतक रूप से से हो पोथी नीक बनल अचि। पोथी केर किर पे ज, एकर
कागत केर क्िात्रलिी, फॉण्ि, फॉण्ि साइज़, मुख्य आिरण आ पृि पे ज
केर रं ग सं योजन, वडज़ाइन, फॉरमे ि आदद नीक गुणित्ता के बनल अचि
जे पाठक के हाथ मे ल क पढ़े मे एकिा सुखदगर अनुभि कराबय िै क।
पोथी डॉि कॉम के एकरा ले ल सराहना कैल जा सकय अचि। पुन ऐ
पोथी ले ल श्री आशीर् अनचिन्दहार जी, श्री गजे न्दर ठाकुर जी आ श्रीमती
प्रीचत ठाकुर जी के खूब रास बधाई।

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विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 99

२.९.अरविन्द गुप्ता- केदार बाबूिः दीघम जीिन यात्रा, महान उपलब्ब्ध

अरविन्द गुप्ता
केदार बाबूिः दीघम जीिन यात्रा, महान उपलब्ब्ध

वनखश्चत रूपें दीघष जीिन यािा, महान उपलच्छब्ध। प्रभात फाउं डे शनक
मुकेश जी हमरा फोन कयलवन आ ष्खद समािार दे लवन जे हमर चप्रय
मै चथली ले खक केदार बाबू नवह रहलाह। ई खबरर अप्रत्यात्रशत नवह
िल, वकएक ताँ ओ विगत वकिु बखषसाँ दमासाँ पीवित िलाह, जावह
कारणे हुनका ले ल घरसाँ बाहर वनकलब मुत्श्कल भऽ गे ल िलवन। मुदा
हमरा ले ल ई समािार विनाशकारी िल। दरभं गा णजलाक ने हरा
गाममे 3 अप्रैल, 1936 केँ जन्दमल श्री केदार नाथ िौधरी 2 अप्रैल,
2024क सााँ झ 88 िर्षक आयुमे अपन शरीर िोवि दे लवन। ई घिना
100 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

कोनो सावहत्य प्रेमीक ले ल ष्खद अचि। हुनका बाद हुनक पररिारमे िृद्ध
पत्नी श्रीमती कुमुद िौधरी आ दूिा बे िी क्रमश वकरण आ अिषना
िचथन। ममता गाबय गीत मै चथली भार्ाक पवहल िलचिि
चथक। सं गे ६ िा उपन्दयास से हो ओ त्रलखलवन। हमर पररिय श्री केदार
नाथ िौधरी जी साँ भे ल जखन हम लहररयासरायमे रवह रहल िलहुाँ ।
जखन ओ अपन पवहल उपन्दयास िमे लीरानीक सृजन
कयलवन, ओ 2004मे एकरा प्रकात्रशत करबाक ले ल ददल्ली आवब
गे लाह। एवह पुस्तकमे राज्यक राजनीचतमे नै चतक पतनक ििाष कयल
गे ल अचि। हमर िोि भाय दीपक ने शनल बुक रस्िमे वहन्ददी सम्पादक
िचथ; तेँ ओ सभ हुनका साँ भेँ ि करबाक ले ल हमर घर अयलाह। दीपक
हुनका कहलकवन जे ई पुस्तक एन. बी. िी. द्वारा प्रकात्रशत नवह होयत।
हाँ , यदद ओ िाहै त िचथ ताँ राष्रीय पत्रिका 'साक्षी भारत' क प्रकाशक
आ प्रधान सम्पादक बि भाइ सावहब अरविन्दद गुप्ताजी अपन पुस्तक
प्रकात्रशत कऽ सकैत िचथ। हुनका ई 'प्रस्ताि' पत्रसन्दन पिल। जखन
हमरा कहल गे ल ताँ हमरा से हो एकिा कुलीन व्यक्क्तक से िा करबामे
खुशी भे ल आ हम राजी भऽ गे लहुाँ । पुस्तक तै यार कयल गे ल आ अन्दतमे
प्रकात्रशत भे ल। हमरा सभ लग तखन आइएसबीएन से हो नवह िल, तेँ
ई पुस्तक वबना आइएसबीएनके िपायल गे ल िल। लोकसभ वकताब
लऽ ले लवन आ तेँ सं योगसाँ हम प्रकाशक से हो बवन गे लहुाँ ।
दू साल बाद 2006 मे हुनकर दोसर वकताब करार आयल। ई एकिा
अलग भािसाँ त्रलखल गे ल पुस्तक िल। उपन्दयास, जे जीिनक
दाशषवनक पक्षकेँ उजागर करै त अचि, सामान्दय पाठकक ले ल ददलिस्प
नवह भऽ सकैत अचि, मुदा गं भीर पाठकसभ एकर सराहना केलवन।
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अवगला साल 2007 मे िमे लीरानीक दोसर सं स्करण वनकालय


पिलवन। िमे लीरानी एते लोकचप्रय आ प्रत्रसद्ध भs गे ल जे केदार बाबूकेँ
पुस्तकक दोसर सं स्करण प्रकात्रशत करबाक ले ल पाठक सभक
दबािक सामना करय पिलवन। आ पाठक सभक भारी मााँ ग पर हुनका
एकर दोसर भाग 'माहुर' त्रलखऽ पिलवन। ई पुस्तक 2008 मे
प्रकात्रशत भे ल िल। 2011 धरर हुनक पुस्तक करारकेँ पुन प्रकात्रशत
करय पिलवन। एवह बे र पुस्तकक आिरण बदत्रल दे ल गे ल िल। जखन
हम ले खकक घर जाइत िलहुाँ हम हुनका साँ भेँ ि करै त िलहुाँ । ओ हमरा
अपन जीिनक घिना आ अनुभि बड्ड रोिक ढं गसाँ सुनाबै त िलाह। हम
कवह सकैत िी जे हुनक कथोपकथन शै ली बड्ड अदद्वतीय िलवन। ओ
अपन युिािस्थामे महन्दत मदन मोहन दासजीक सङ्ग बम्बइमे मै चथलीक
पवहल िलचिि 'ममता गाबय गीत' क वनमाषणक कथा सुनाबै त िलाह
आ दोसर अमे ररका पलायन सवहत ष्वनया भररमे हुनक यािाक जे
अनुभि िल से हो सुनाबै त िलाह। वफल्मक कहानी लोक सभ ले ल बड्ड
रोिक अचि, तेँ हम हुनका वफल्म 'ममता गाबय गीत' के वनमाषणक
कहानी पर उपन्दयास त्रलखबाक आग्रह कयलहुाँ । ओ कहलवन जे हुनक
वकिु अन्दय चमि से हो एहन अनुरोध कयने िलाह। ले खन गम्भीरतासाँ
शुरू भे ल आ ई हमरा लग सं स्मरण 'अबारा नावहतन' क रूपमे आयल।
ई 2012 मे प्रकात्रशत भे ल िल। एवह पुस्तकक प्रकाशनक सङ्ग
केदार बाबू मै चथली सावहत्त्यक जगतमे आरो बे सी लोकचप्रयता प्राप्त
करय लगलाह। आब हुनकर वकताबक मााँ ग दे शक सीमासाँ बाहर
ने पालक मै चथली धरर िल। सम्भित वफल्मक कहानीसाँ बे सी एवह
पुस्तकमे िर्णित वफल्मक वनमाषणक कहानी लोक सभकेँ पत्रसन्दन पिलै ।
मै चथली भार्ा आ चमचथला ष्वनयाक से िाक भािनासाँ िलचिि बने बाक
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ले ल युिा सभक सं घर्षक कथा एवह पुस्तकमे बड्ड रोिक रूपसाँ अं वकत
अचि। एवह पुस्तकक कथा ई अचि जे एक ददन मै चथली-चमचथलाक से िा
करै त काल एवह युिक सभकेँ कोना 'अबारा' घोवर्त कयल गे ल िल।
एवह उपन्दयासक अन्दत धरर वकिु तथाकचथत मै चथली से िकक दोहरा
िररि पर अहााँ व्यं ग्यात्मक भािसाँ भरर जायब।
केदार बाबूक ले खनक जादू आब साधारण पाठक िगषकेँ पार कऽ
त्रशणक्षत ले खक आ सम्पादक सभ धरर पहुाँ िल। कोलकातासाँ प्रकात्रशत
पत्रिका चमचथला दशषनक सम्पादक श्री रामलोिन ठाकुर हुनका अपन
पत्रिका ले ल एकिा धारािावहक उपन्दयास त्रलखबाक आग्रह कयलवन।
केदार बाबूक धारािावहक उपन्दयास 'हीना' आब हुनक पत्रिका मे
प्रकात्रशत होबऽ लागल। ई पुस्तक हुनक प्रिासक अनुभि पर आधाररत
अचि जखन उपन्दयासक नाचयका सै न फ्रां त्रसस्कोसाँ वबहारक एकिा िोि
गाममे अबै त िचथ। जखन एवह पुस्तकक प्रकाशनक बात आयल तखन
ले खक हमरा स्मरण कयलवन। हीनाक पवहल सं स्करण 2013 मे
प्रकात्रशत भे ल िल। दोसर ददस 'अबारा नवहतन' लोकचप्रयताक सभ
सीमा पार कऽ रहल िल। दरभं गा के हुनकर बहुत रास डॉक्िर दोस्त, जे
मै चथली वकताब पवढ़कऽ थवक गे ल िलाह, हुनका ई वकताब वहन्ददी मे
उपलब्ध कराबय के आग्रह केलवन। जखन ई खबरर हमरा लग आयल
तखन हम तुरन्दत अनुजित कुमार पररमल द्वारा एकर वहन्ददीमे अनुिाद
करौने िलहुाँ आ 2013मे ई पुस्तक से हो प्रकात्रशत कयलहुाँ आ एवह
तरहेँ वहन्ददी पाठकसभक णजज्ञासा शां त भे ल। पुस्तक 'अबारा
नवहतन' क मै चथली सं स्करण िपायल गे ल आ दोसर सं स्करण से हो
ओही साल प्रकात्रशत भे ल। एवह बीि, मै चथली भार्ाक ले ल राष्रीय
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पुस्तक न्दयास द्वारा गदठत एकिा सचमचत पिनामे आयोणजत अपन


एकिा बै ठकमे कते को पुस्तक प्रकात्रशत करबाक वनणषय
ले लक, जावहमे अबारा नवहतन से हो एकिा िल। आ अन्दतत ई पुस्तक
एनबीिीसाँ 2016मे प्रकात्रशत भे ल िल। आब कोलकाता च्छस्थत
पत्रिका चमचथला दशषनकेँ फेरसाँ केदार बाबूक नि उपन्दयासक
आिश्यकता पिलै । तखन 'अयना' प्रकाशमे आयल; उपन्दयासकेँ
पत्रिकामे धारािावहक रूप दे ल गे लै। एवह उपन्दयासमे ले खक ददल्ली
च्छस्थत दे शक सबसाँ पै घ प्रकाशन गृहक मै चथली प्रकाशन गृहक प्रचत
अपन कचथत दद्वधा भािकेँ स्पशष करै त िचथ। 2018मे ई पुस्तकक
रूपमे प्रकात्रशत भे ल िल। ई ले खकक अष्न्दतम पुस्तक सावबत भे ल।
एकर बाद केदार बाबू अस्िस्थ अनुभि करय लगलाह, कारण ओ
दमासाँ पीवित िलाह। हुनका ले ल ले खन आब सं भि नवह िल।
अमे ररका, यूरोप, ईरान, जापान आ हां गकां ग सन दे शक यािा
सं स्मरणपर पुस्तक त्रलखबाक हुनक इिा ओवहना रवह गे लवन। एवह
बीि बहुत रास वकताब आउि ऑफ चप्रिि भऽ गे ल। "िमे लीरानी" क
ते सर सं स्करण 2019 मे प्रकात्रशत भे ल िल, जखन वक िाररम
सं स्करण 2020 मे प्रकात्रशत भे ल िल। माहुर 2019मे न्दयू
कले िरमे (दोसर सं स्करण) प्रकात्रशत भे ल िल। "हीना" क दोसर
सं स्करण 2020 मे प्रकात्रशत भे ल िल। ई िक्र लगातार िलै त रहै त
अचि। ई सभ पुस्तक हमर ददल्ली च्छस्थत प्रकाशन गृह इं वडका
इन्दफोमीवडया द्वारा प्रकात्रशत कयल गे ल िल।
हुनक प्रारच्छम्भक पुस्तक सभ बहुधा उमाकां त झा जी द्वारा सं पाददत
कयल गे ल िल, जखन वक पुस्तक सभक प्रस्तािना भीमनाथ झा जी
सन प्रख्यात विद्वान आ रामलोिन ठाकुर सन गं भीर सम्पादक द्वारा
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त्रलखल गे ल िल। एवह पुस्तकक ब्लबषमे पद्मश्री डॉ. मानस वबहारी


िमाष, प्रख्यात पिकार अरहििद मोहन आ सुजीत कुमार झा (आज तक
फेम), पूिष िररि भारतीय रे लिे अचधकारी कामे श्वर िौधरीक ले खन
से हो शाचमल अचि। प्रभात फाउं डे शनक अचधकारी मुकेश झा जी अपन
पुस्तकक प्रिारमे बहुत सहयोग दे लवन। स्िगीय महन्दत मदन मोहन दास
जी के जे ठ बे िा आशुतोर् कुमार जी, आर कमले श झा जी से हो हुनकर
वकताब के प्रिार केने िचथ।
समय-समय पर चमचथला ष्वनयााँ क लोक हुनक सावहत्त्यक योगदान
ले ल सम्मान करै त रहलवन। 2013मे झारखण्ड मै चथली मं ि, रााँ िी द्वारा
हुनका 'विदे ह सावहत्य सम्मान', 2016मे 'प्रबोध सावहत्य
सम्मान' आ 2016मे 'अबारा नवहतन' पुस्तकक ले ल 'केदार
सम्मान' साँ सम्मावनत कयल गे ल िलवन। समय-समय पर केदार
बाबूक जीिन आ ले खनपर पत्रिका सभमे ििाष होइत रहल। हालवहमे
श्री गजे न्दर ठाकुर द्वारा सञ्चात्रलत आ सं पाददत मै चथली केर सबसाँ
प्रचतचित ऑनलाइन पत्रिका 'विदे ह' हुनका पर केखन्दरत एकिा
विशे र्ां क प्रकात्रशत केलक। ई अं क बाद मे चप्रिि रूपमे से हो आवब गे ल
जे ओवह पर शोध करय बला िािक ले ल से हो उपयोगी अचि। बहुतो
िाि हुनकर सावहत्य पर शोध से हो कऽ रहल िवन। लत्रलत नारायण
चमचथला विश्वविद्यालय सवहत वबहारक अन्दय विश्वविद्यालयमे
स्नातकोत्तरमे हुनक पुस्तक सभक अध्ययन कयल जा रहल अचि।
केदार बाबू, जे अपन जीिनक ते सर िरणमे त्रलखनाइ शुरू
कयलवन, मै चथली पाठक सभक बीि एहन लोकचप्रयता प्राप्त कयलवन
जे विरले लोक प्राप्त करै त अचि। हुनकर लोकचप्रयता एहन अचि जे
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पत्रिका मे या ििाष के दौरान विद्वान अक्सर हुनकर तुलना हास्य सम्राि


हररमोहन झाक कृचतसाँ करै त िचथ।
एहन महान सावहत्यकारक दूिा इिा हुनक जीिनकालमे पूरा नवह भऽ
सकल आ ओ िल 'िमे लीरानी' आ 'माहुर' पर एकिा वफल्म या िीिी
धारािावहक बनयबाक, जावह साँ दशषक आ पाठकक बीि व्यापक पहुाँ ि
बनै आ एवह दूिा उपन्दयासक वहन्ददी आ अं ग्रेजी भार्ामे अनुिाद होय।
जीिनकालमे नवह, मुदा वनकि भविष्यमे हुनक ई इिा शीघ्रवह पूरा
हएत से उम्मे द अचि। वनष्कर्षमे हम ई कहै त िाहै त िी जे हमरा एकिा
पत्रिका सम्पादकसाँ वकताबक प्रकाशक बने बाक श्रे य हुनका जाइत
िवन। प्रणाम।
अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर
पठाउ।
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२.१०.रबीन्र नारायि चमश्र- मावट बजा रहल अचछ

रबीन्र नारायि चमश्र

मावट बजा रहल अचछ

पचिला िओ सालसाँ गाम नवह गे ल रही। एवहसाँ पूिष भाचतजक


वबआहमे ओतए सन् २०१८मे गे ल रही। जाबे माए जीबै त िलीह ताबे ताँ
ओवहठाम जे बाक अथष बुझाइत िल। माएसाँ भें ि होइतवह सभ ष्ख
वबसरा जाइत िल। ओवह समयमे ददल्लीसाँ गाम जाएब कोनो मामुली
बात नवह रहै त िलै क। कैकमास पवहने साँ तकर योजना बनै त िल।
यािाक चतचथ वनधाषरणक बाद सभसाँ पवहने रे लिे विकि हे तु िीसनपर
जा कए पााँ चतमे घं िो ठाढ़ भए विकि ले ल जाइत िल। बहुत बादमे जा
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कए विकि ले बाक प्रवक्रयामे बहुत सुधार भे ल। आब ताँ घरे बै सल


आनलाइन विकि बवन जाइत अचि। विकि ले लाक बाद
जे बाक, ओवहठाम जा कए रहबाक आ सकुशल ददल्ली िापस हे बाक
हे तु पयाषप्त िाकाक जोगार कएल जाइत िल। सामान्दयत ओतए
पररिार सवहत गे लापर ओ सभ मास-दू मास हमर सासुरमे िा
ससुरजीक डे रापर रवह जाचथ। हुनका सभकेँ ओतए िोवि हम जल्दीए
िापस भए जइतहुाँ । मास-दू मासक बाद पररिार आनबाक हे तु फेर
ओमहर जाइ। िापसीमे सभगोिे सं गे लौिी।
हमर ससुर सन् १९९७मे स्िगषबासी भए गे लचथ। हमर चमि
लालबच्िा(स्िगीय विष्णुकान्दत चमश्र) सन् २००९मे ित्रल जाइत
रहलाह। सन् २०१५मे हुनकर वपता(स्िगीय िन्दरधर चमश्र) से हो ित्रल
जाइत रहलाह। हमर माएक सन् २०१६मे दे हािसान भए गे लवन। सन्
२०२०मे हमर सासु से हो ित्रल जाइत रहलीह। एवह तरहेँ कालक्रमे गाम-
घरसाँ लगाओक सूिसभ िू िैत ित्रल गे ल। आब गाम जा कए ककरासाँ
भें ि करब? ओना गाम कोनो खाली भए गे लैक से बात नवह िै क। नि-
नि कोठासभ बवन गे ल अचि। बहुत रास लोकसभ से िावनिृत्रत्तक बाद
गाम िापस आवब गे ल िचथ। मुदा तेँ की? एही गुन-धुनमे बहुत ददनसाँ
रही। एमहर मुम्बईमे बत्रस गे ल हमर चमि शल्लुजी (शै लेन्दर झा)क फोन
आएल। ओवह समयमे हम अपन श्रीमतीजीक वफणजयोथे रेपीक हे तु
अस्पताल गे ल रही। ओ मािषमे गाममे अपन पौिक उपनयनमे भाग
ले बाक हे तु आमं त्रित केलवन। तकर बाद दू-तीन बे र फेर आग्रह
केलवन, पुिैत रहलाह जे हम विकि ले लहुाँ वक नवह। हमरा लागल जे
ओ नवह अपन मावि बजा रहल अचि, जाए पित। आखखर हम दरभं गा
जे बाक हे तु १७ मािष २०२४क प्रथम श्रे णी एसीक विकि लए ले लहुाँ ।
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िापसी यािाक विकि अखन नवह ले ने रही। सोि-वििार करै त रही जे


केना की करी?

दरभं गासाँ गाम िापस हे बाक विकि कवहआक ली? गाममे


उपनयन िलै क। एकादशी यज्ञ िलै क। प्रात भे ने भोज होइतै क।
दरभं गामे वकिु गोिे साँ भें ि करबाक िल। सं योगसाँ वनमषलीमे ओही
लगपासमे २३ मािष कए 'सगर राचत दीप जरय' सावहत्य-कथागोिी
आयोणजत हे बाक िल। ई एकिा ष्लषभ अिसर िल। कैकसालसाँ एवह
कायषक्रममे भाग ले बाक इिा िल। सगर राचत दीप जरय कायषक्रम
वनमषलीमे होएत आ डाक्िर श्री उमे श मं डलजी एकर सं योजक रहताह
से स्ियं मे पै घ बात िलहे । सगर राचत दीप जरय शवनददनक राचतमे होइत
आ शोमददन फगुआ िल। फगुआमे ग्रेिर नोएडाक अपन घरपर पररिार
सं गे रहबाक इिा िल। अस्तु, सभवकिु केँ वििार करै त िापसी
यािाक हे तु २४ मािष २०२४क िायुयानसाँ विकि ले लहुाँ । ददनमे ११.४०
बजे स्पाइस जे िक विमान दरभं गासाँ खुजबाक रहै क। तावह हे तु दू-घं िा
पवहनवह हबाइ हड्डापर पहुाँ िबाक हे तैक। वनमषलीसाँ दरभं गा भोरे सात
बजे वबदा भए दरभं गा समयपर पहुाँ िी तावह हे तु बहुत माथापच्िी केलहुाँ ।
२३ मािष २०२४ कए दरभं गासाँ वनमषलीक हे तु दानापुर-जोगबनी
इन्दिरसीिी एक्सप्रेसमे विकि बवन गे ल। मुदा वनमषली-साँ -दरभं गा
िापसीमे एहन कोनो रे नक पता नवह िलल जे हमरा दरभं गामे हबाइ
जहाज पकिा सकए। तेँ वनमषलीसाँ दरभं गा िै क्सीसाँ पहुाँ िबाक मोन
बनओलहुाँ । ओही बीिमे डाक्िर कमलाकान्दतजीक फोन आएल। ओहो
वनमषलीक सगर 'राचत दीप जरय'क कायषक्रममे भाग ले बाक हे तु उत्सुक
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बुझेलाह। मुदा हुनकर समस्या िलवन जे ओ राचतमे बे सी काल नवह रवह


सकताह, वनमषलीसाँ जल्दीए लौवि जे ताह। तेँ हुनका सं गे जे बाक विकल्प
ठीक नवह बुझाएल। अं ततोगत्िा, उमे शजी वनमषलीसाँ दरभं गाक हे तु
िै क्सीक जोगार कए दे बाक हे तु आश्वस्त केलवन। एवह तरहेँ ष्नू ददसक
विकिक ओररआन भए गे ल। आब रहल रहबाक जोगार। सं योगसाँ
पोस्िल प्रत्रशक्षण केन्दर बे ला पै लेस, दरभं गाक अचतचथ गृहमे मे हमरा
रहबाक जोगार भए गे ल। तकर त्रलखखत सं पुचष्ट से हो आवब गे ल। आब
ताँ हम बहुत वनिे न िलहुाँ ।

१७ मािष २०२४क वनयत समयपर, माने लगभग सबा बारह बजे


हम नई ददल्ली िीसनक प्ले िफामष नं बर पााँ िपर पहुाँ चि गे ल रही। हमरा
लग तीनिा सामान िल। रे नकेँ लवगतवह हम तीनू सामानक सं गे एसी
प्रथम श्रे णीक वडब्बा सं ख्या एि एकमे प्रिे श केलहुाँ । ओवह वडब्बाक
शुरुएमे हमर स्थान िल। थोिबे कालमे ओवहमे एकिा पररिार
अएलचथ। ओ सभ ष्नू बे कती आ दूिा बच्िा रहचथ। तीनू शाचयका हुनके
िलवन। हम वनखश्चन्दत भए अपन जगहपर ओलरर गे ल रही, फोनमे
लागल रही वक रे न खुणज गे ल।
पवहने प्रथम श्रे णी एसी वडब्बामे विक्रेतासभ नवह दे खाइत िल।
मुदा एवह बे र ताँ रवह-रवह कए तरह-तरहक सामानसभ अबै त-जाइत
रहल। हमहूाँ अपन पससिदक िीज िस्तु लै त रहलहुाँ । सामान्दयत हम
भोरुका पहरक बाद िाह नवह पीबै त िी। मुदा रे नमे तीन बे र िाह पीलहुाँ ।
आर वकिु -वकिु खाइत रहलहुाँ । बिी काल धरर हमर सहयािी सभसाँ
गप्प-सप्प नवह भे ल। ओहो सभ अपनामे मगन रहचथ। हमहूाँ वकिु -
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वकिु मे लागल रही। ओ ष्नू बे कती आपसमे बहुत नीक मै चथलीमे गप्प-
सप्प करचथ। एवह बातसाँ हम बहुत प्रभावित भे लहुाँ । असलमे ओ सभ
झं झारपुरक लगीिक गामक रहचथ, मुदा कैक सालसाँ ददल्लीमे रहै त
िचथ। गाममे बहुत पै घ घर बनओने िचथ। तकरा हे तु रखबार रखने
िचथ। गामपर बाबू रहै त िचथन एसगरे । माए वकिु साल पूिष पिपन
सालक बएसमे मरर गे लखखन। हुनका बे र-बे र एवह बातक हे तु ष्ख प्रकि
सुवनअवन जे ओ अपन माएकेँ नवह बिा सकलचथ। कुल-चमला कए
हमरा ओ सभ बहुत नीक लोक बुझेलचथ। हम हुनकर प्रशं सा केत्रलअवन।
तकर बाद ताँ ओ सहवि कए हमरे लग बै त्रस गे लचथ। हमरा रे नमे बहुत
कम वनन्दन भे ल। आखखर जे ना-ते ना राचत वबतल, भोर भे ल। हमर
सहयािी हमर सददखन ध्यान रखने रहचथ। बे र-बे र पुिचथ- "कोनो काज
होअए ताँ कहब।"
दोसर ददन साढ़े नओ बजे हमसभ दरभं गा िीसनपर पहुाँ चि गे ल
रही। ओवहठामसाँ आिोसाँ थोिबे कालमे पीिीसी अचतचथगृह पहुाँ िलहुाँ ।
अचतचथगृहक रखबार बीरुकेँ फोन केलहुाँ । ओ तुरंत उपच्छस्थत भए गे ल।
सूि नं बर तीनकेँ खोत्रल दे लक। हम अपन सामानसभ ओवहमे रखबे लहुाँ ।
यद्यवप ओ कोठरी पुरान सन लगै त िल, मुदा ओवहमे सभ सुविधा िल।
एसी, िीभी, मिरदानी लागल सुसञ्ज्जत पलं ग, कुसी िे बुल, सोफा।
मोन गद-गद िल। बीरुकेँ ओवहठामक भोजनाददक व्यिस्थाक बारे मे
पुित्रलऐक। ओ कहलक-"हमरा एवहसभक जनतब नवह अचि। अपने
सं जयजीसाँ िा सहायक वनदे शकजीसाँ गप्प कए त्रलअ। ओएहसभ वकिु
कहताह।"हम सं जयजीसाँ गप्प केलहुाँ । तकर बाद सहायक वनदे शकजी
से हो भे िलाह। हुनकासाँ जानकारी भे िल जे ओवहठाम प्रत्रशक्षु लोकवन
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हे तु मे स िलै त अचि जावहमे िारू िाइम भोजन, जलखै , िाहक


ओररआन िै क। अचतचथलोकवन से हो प्रचतददन २६० रुपया भुगतान कए
ओवह सुविधाक लाभ उठा सकैत िचथ। भोरे सात बजे िाह, नओ बजे
जलखै , एकबजे ददनुका भोजन, सााँ झमे िाह आ राचतमे नओ बजे
भोजन। सभवकिु क हे तु २६० रुपया माि सस्ते िै क। मुदा फूि-फूि रे ि
नवह िै क। कहबाक माने जे यदद एक्को बे र खाएब ताँ २६० िाका लगबे
करत। तेँ हम ओवहठाम माि एकददन २२ मािष २०२४क भोरक िाहसाँ
लए कए रतुका भोजन धरर केलहुाँ । आन ददन एमहर-ओमहर घुमैत-
वफरै त काज िलल।
अचतचथगृहमे व्यिच्छस्थत भे लाक बाद डाक्िर योगानन्दद झाजीकेँ
फोन केत्रलअवन-
"हम दरभं गा आएल िी। अपने साँ भें ि करए िाहै त िी।"
"ओ! बहुत हर्षक बात। अपने कतए ठहरल िी?"
"पीिीसी अचतचथगृहमे ।"
"हम ताँ अखने अवबतहुाँ , मुदा हमर अं ङने मे एकगोिे क मृत्यु भए
गे लवन अचि। हम कदठयारी जा रह िी। काच्छल्ह भें ि भए सकैत अचि।
भोरे मोन पावि दे ब।"
"ठीक िै क।"
तकर बाद भीम बाबूकेँ फोन केत्रलअवन।
"हम दरभं गा आएल िी। अपने साँ भें ि करए िाहै त िी।"
"ओ! रबीन्दर बाबू। बहुत भाग्यक बात। अपने जखन आबी, हम
ताँ घरे पर िी।"
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"हम आध-पौन घं िामे आवब रहल िी।"


"आएल जाओ।"
फोन कवि गे ल। हम तै यार रहबे करी। वबदा भे लहुाँ । पीिीसीसाँ
बाहर वनकत्रल एकिा आिो १३० रुपयामे ठीक भे ल जे हमरा भीम बाबूक
ओवहठाम पहुाँ िा दै त। करीब आधा घं िाक बाद आिो लक्षमी
सागार, पं िायत भिन लग पहुाँ चि गे ल। आब ओवहठामसाँ दणक्षन जे बाक
रहै क, मुदा ओ दणक्षन ददस िोवि सगतरर बौआएल आ तमसाइओ गे ल।
बहुत मोसवकलसाँ अगल-बगल लोकसभकेँ पुचि कए ओ पं िायत
भिनसाँ दणक्षन भीमबाबूक घरपर पहुाँ िल। आिोबला िाका ले लक आ
बिबिाइत ित्रल गे ल। हम भीमबाबूक ओवहठाम पहुाँ चि गे ल रही। भीतर
होइतवह ओ स्ियं भे िलाह। हुनकर िोिपुि से हो ओतवह रहचथ। थोिबे
कालमे हुनकर श्रीमतीजी से हो आवब गे लचथ। भीम बाबू आ हुनकर
पररिारक लोकसभसाँ भें ि कए बहुत आनन्दद भे ल। लगभग एकघं िा हम
ओवहठाम रहलहुाँ । ओवहक्रममे तरह-तरहक गप्प-सप्प होइत रहल। ओ
पुिलाह-
"कतए रुकल िी?"
"पीिीसीमे ।"
"से वकएक? एतवह रवहतहुाँ ।"
हम की कवहचतअवन? िुप रवह गे लहुाँ ।
घं िा भररक बाद हम हुनकासभसाँ वबदा ले लहुाँ । दरभं गा िाबरक
ररक्सा केलहुाँ । दरभं गा िाबरक हालचत पवहनोसाँ बे सी खराप बुझाएल।
िारूकातक जगह अचतक्रमण भए िुकल अचि। तरह-तरहक
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दोकानसभ खुजल अचि। प्रात भे ने सुनत्रलऐक जे ओवह


अचतक्रमणसभकेँ हिाओल जा रहल िै क। दरभं गा िाबर पहुाँ चि सभसाँ
पवहने एक वगलास लस्सी पीलहुाँ । तकर बाद दयाल भं डार पहुाँ िलहुाँ ।
हमसभ जखन विद्याथी रही तखन दयाल भं डारक िुरा-दही बहुत नामी
िल। हमसभ ओवहठाम बरोबरर खाइ। ओवह स्मृचतकेँ फेरसाँ जगओलहुाँ ।
मुदा दयाल भं डारक आब ओ हालचत नवह बुझाएल। आब ओवहठाम
अथराक अथरा दही राखल नवह दे खाएल। सामान्दय भात-दात्रल-
तरकारीक भोजन बे सी गोिे करै त दे खेलाह। हमहूाँ सएह खे लहुाँ । तकर
बाद घुमैत-वफरै त अपन डे रा िापस पहुाँ चि गे लहुाँ ।
पीिीसी च्छस्थत अपन डे रापर पहुाँ िलाक बाद डाक्िर रमण
झाजीकेँ फोन केत्रलअवन। ओ पिनामे िलाह आ २२ मािष कए दरभं गा
अओताह। ओही ददन हुनकासाँ भें ि करबाक मोन बनओलहुाँ । दोसर ददन
भोरे पीिीसीक पररसरमे घुमए वबदा भे लहुाँ । ओवह पररसरमे बहुत रास
विभागीय कमषिारी अचधकारी लोकवन प्रत्रशक्षण हे तु अबै त िचथ। मास-
दू मास ओतए रहै त िचथ, प्रत्रशक्षण समात्प्तक बाद िापस अपन
कायषस्थानपर ित्रल जाइत िचथ। ओवह पररसरमे प्रत्रशक्षणक सभिा
सरं जाम अचि। िारूकात तरह-तरहक फूल लागल अचि। भोरे -भोर
प्रत्रशक्षु -लोकवनकेँ अपने हाथ बाढ़वन ले ने स्ििता अत्रभयानमे लागल
दे खलहुाँ । बहुत रास प्रत्रशक्षु सभ व्यायाम करै त दे खेलाह। भोरे सात बजे
िाह पीलाक बाद ओ सभ अपन-अपन वकलासमे ित्रल जाइत िलाह।
नओ बजे जलखै होइत िल। तकर बाद फेर तरह-तरहक वकलास सभ
िलै त रहै त िल। हमर डे राक लगीिे मे प्रशीक्षु लोकवनक वकलास होइत
िलवन। तेँ प्राथषनाक सस्िर गायन घरे बै सल सुनैत िलहुाँ । पररसरमे
िहलै त काल एकिा हनुमान मं ददर दे खाएल। ओ मं ददर प्राय बं द पिल
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अचि। कतहु केओ नवह िल। मं ददरमे ताला लागल िल। कवह नवह
ओवहमे पूजा होइतो अचि वक नवह? कनीके फिकी िोिसन त्रशि मं ददर
से हो दे खाएल। ई मं ददर सभ कवहआ बनल, के बनओलचथ, ितषमानमे
एना उजरल-उपिल वकएक अचि से नवह बुणझ सकलहुाँ ।

भोरे िाह पीबाक हे तु पीिीसी पररसरसाँ बाहर वनकत्रल रे लिे


गुमतीक आसपास बनल दोकानमे गे लहुाँ । ओतए नाखन्दहिा कपमे िाह
दे ल जाइत िल।
"एतनीिा कपसाँ की होएत?" -मोने -मोन सोिलहुाँ । कहत्रलऐक-
"तीन कप िाह दएह।"
तकर बाद ओ बे रा-बे री तीन कप िाह दे लक। तकर बाद लागल
जे िाह पीलहुाँ । ओतए किौरी िना रहल िल। तरकारीक सुगंध
िारूकात पसरर रहल िल। हम दोकान बलाकेँ पुित्रलएक-
"जलखै तै यार अचि की?"
"अबस्स।"
"तखन परत्रसए ददअ।"
एकिा चिपलीमे िओिा किौरी तरकारी हमरा आगूमे राखख
दे लक। जे खा सकलहुाँ से खे लहुाँ । तकर बाद वनखश्चन्दत भए िापस अपन
डे रापर आवब गे लहुाँ । योगानन्दद बाबूकेँ फोन लगओलहुाँ । घं िी बजै त रवह
गे ल, मुदा ओ फोन नवह उठाबचथ। थोिे कालक बाद फेर फोन केलहुाँ ।
तखनहु सएह भे ल। आब की करी? आजुक समयक की उपयोग कएल
जाए? सोिलहुाँ जे िली आकाशिाणी। साइत वकिु गोिे साँ सं पकष भए
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जाए। ई-ररक्शा पकवि दस चमनिक बाद आकाशिाणी भिन पहुाँ चि


गे लहुाँ । ओवहठामक हाल ताँ बे हाल िल। अचधकां श अचधकारी गायब
िलाह। कोठरीसभ खुजल िल। कुसीसभ राखल िल। मुदा ओवहपर
बै सनाहरक कतहु अता-पता नवह। एकिा मवहला कमषिारीकेँ
पुित्रलअवन-
"ई सभ कतए रहै त िचथ?"
"एही पररसरमे अिच्छस्थत स्िाफ क्िािषरमे ।"
ओवहठामक पररच्छस्थचत दे खख मोनमे बहुत आश्चयष आ ष्ख भे ल।
ओहीठामसाँ फेर योगानन्दद बाबूकेँ फोन केत्रलअवन। एवह बे र ओ तुरंत
फोन उठओलचथ आ कहलचथ-
"हमरा ताँ साफे वबसरा गे ल िल, नवह ताँ भोरे प्रात ्मण कालमे
ओमहरे आवब जइतहुाँ । अहााँ िी कतए?"
"आकाशिाणी भिनमे । मुदा एतए केओ अचि नवह। हम जल्दीए
एतएसाँ अहााँ साँ भें ि करए वबदा होएब।"
"ठीक िै क। अहााँ लहे ररआसराय िािरपर ित्रल आउ। हम
ओतवह भे वि जाएब।"
ओवहठाम पााँ ि चमनि आर रुवक गे लाक बाद हम लहे ररआसराय
वबदा भे लहुाँ । ओतए वबदा हे बा साँ पूिष योगाबाबूकेँ फोन कए दे त्रलअवन।
तकर बाद ई-ररक्शा पकिलहुाँ । लहे रासराय िािरपर पहुाँ िले िलहुाँ वक
योगाबाबूक फेर फोन आएल।
"कतए पहुाँ चि गे लहुाँ ?"
"हम लहे रासराय िाबरपर ठाढ़ िी।"
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"लगे मे हनुमान मं ददर िै क। ओतए ित्रल जाउ। आराम रहत। हम


ओतवह पहुाँ चि रहल िी।"
हम हनुमान मं ददरमे जा कए दशषन केलहुाँ आ ओतवह आरामसाँ
बै त्रस गे लहुाँ । कनीके कालक बाद योगाबाबूकेँ हुलकैत दे खलहाँ । एहन
सहज, सरल आ सौम्य व्यक्क्त िचथ योगाबाबू से ताँ अनुमान िलहे ।
तुरंत हमसभ ररक्सासाँ हुनका ओवहठाम वबदा भए गे लहुाँ । हम आ
योगाबाबू ररक्सापर बै सल रही, आपसमे मै चथलीक दशा आ ददशापर
बचतआइत रही। "मै चथली पोथी िपै त ताँ बहुत अचि मुदा केओ ओकरा
कीवन कए पढ़ए नवह िाहै त अचि। पोथीसभ मोफतमे उपहारस्िरुप
बााँ िल जाइत अचि। ई कोनो नीक लक्षण नवह अचि। एना कते क ददन
िलत?" मै चथलीक कते क चििता करै त िलाह योगाबाबू।
थोिबे कालमे हम हुनका सं गे कवबलपुर च्छस्थत हुनकर घर पहुाँ चि
गे ल रही। हमरा तुरंत कुसीपर बै सओलचथ। कोलहरिक अनलचथ। होवन
जे कते क आग्रह कररअवन, की की ने खुअवबअवन। मुदा हमरा ताँ मं गलक
व्रत रहए। वकिु खा नवह सकैत िलहुाँ । योगाबाबूक घरे लु पुस्तकालयमे
तरह-तरहक पुस्तकसभ भरल िल। ओ ओवहमे साँ तावक-तावक हमरा
अने क मूल्यिान पोथीसभ दे लवन। करीब घं िा भरर हम ओवहठाम
रहलहुाँ । बहुत आनन्दद भे ल। हुनकर सहजरता, सरलता आ आत्मीयताक
जते क प्रशं सा कएल जाए से कमे होएत। तकर बाद हम ओवहठामसाँ
वबदा ले लहुाँ । योगाबाबू बहुत दूर धरर हमरा अररआचत दे लवन। ततबे
नवह, दरभं गा िािर जा रहल एकिा युिकक मोिर साइवकलपर बै सा
दे लवन जावहसाँ हम आरामसाँ दरभं गा िापस जा सकी।
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मोिर साइवकलसाँ थोिबे दूर गे लाक बाद हम उतरर गे लहुाँ । ररक्सा


केलहुाँ आ बलभरपुर वबदा भे लहुाँ । ओतए हमर ससुरकक वपत्रसऔत
भाए रहै त िचथन। ओ पं डौल काले जमे अं ग्रेजीक प्राध्यापक रहचथ।
बहुत पवहने साँ बलभरपुरमे दूमहला मकान बनओने िचथ। मुदा हमरा
ओवह मकानक अखखआस नवह भए रहल िल। बहुत ददन समय बीचत
गे लैक ओतए गे ला। हमर श्रीमतीजीक इिा रहवन जे हुनकर सभक
हाल-िाल ले ल जाए। हमरा एतबा अनुमान रहए जे हुनकर घर डाक्िर
एन.पी. चमश्रक घरसाँ आगू जा कए कोनपर िवन। लोकसभसाँ पुिैत
जे ना-ते ना हम हुनकर घर तावक सकलहुाँ । घरक आगूमे ठाढ़ िलहुाँ ।
घरमे ओ िुहिुही नवह बुझाएल। "पता नवह की हाल िवन?" अगल-
बगलक लोक कहलक जे हुनकर पत्नीक दे हान्दत भए गे लवन। मुदा अपने
जीबै त िचथ। हम घरक घं िी बजओलहुाँ ताँ एकिा बूढ़ बाहर भे लाह।
कहै त िचथ-
"हम वकराये दार िी।"
"ओ अपने िचथ वक नवह?"
"ओ अपने बच्िासभक सं गे ददल्लीमे रहै त िचथ।"
आब की कररतहुाँ ? श्रीमतीजीकेँ सभिा समािार दे त्रलअवन आ
ओवहठामसाँ तुरंत िापस भए गे लहुाँ । िापसीमे लगीिे मे कां ग्रेस आवफस
दे खाएल। मोन पवि गे ल विद्याथी अिस्थाक सन् १९६८क ओ घिना।
हमर गामक प्रत्रसद्ध आ यशस्िी समाजसे िी स्िगीय विश्वं भर झाजी
हमरा तत्कालीन वबहार सकरकारक त्रशक्षा मं िी स्िगीय नागे न्दर झाजी
हे तु एकिा चिठ्ठी दे ने रहचथ। ओ ओवह पिमे हमरा वकिु मदचत करबाक
अनुशंसा केने रहचथन। हम कां ग्रेस आवफसमे दस बजे राचत धरर
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मं िीजीक प्रतीक्षा करै त रहलहुाँ । तखन जा कए ओ अएलाह। हम हुनका


लग गे लहुाँ आ चिठ्ठी दे त्रलअवन। ओ चिठ्ठी खोत्रल कए पढ़लवन, वकिु -
वकिु कहबो केलवन। साइत वकिु आश्वासन दे लवन। तकर बाद ओ वकिु
नवह केलाह। हम बािे तकैत रवह गे लहुाँ । कवह नवह कोना हम एते क राचत
कए गाम िापस जा सकलहुाँ ।
२० मािष २०२२क अनुज सुरेन्दरजीक सं गे साढ़े दस बजे िै क्सीसाँ
गाम वबदा भे लहुाँ । गाम जे बासाँ पवहने हम ष्नूगोिे सतलखामे अपन
बवहनसाँ भें ि केत्रलअवन। ओ हमरा लोकवनक स्िागतमे जान लगा
दे लवन। भोजनमे सिार लगा दे लवन। तते क सामग्री िल जे हम दसो
ददनमे खा सवकतहुाँ वक नवह। बहुत मोसवकलसाँ ओकरा कम कएल।
हमर बवहनक बे िी, नाचत से हो रहचथ। सभगोिे साँ नीकसाँ गप्प-सप्प
भे ल। जाइत काल ओ एकमोिा उपहार पकिा दे लवन। कतबो
कहत्रलअवन जे िापसीमे हबाइ जहाजसाँ जे बाक अचि। एते क सामान
कोना जाएत? मुदा ओ नवह मानलवन। ओकरा हमरा दै ए कए मानलवन।
तकर बाद हमसभ गाम वबदा भे लहुाँ । हमर बवहन हमरासभकेँ बिीकाल
धरर रस्तापर ठाढ़ भए जाइत दे खैत रवह गे लचथ।
गाम पहुाँ चि अपन दरबाजापर जाइते उदास भए गे लहुाँ । आइ जाैँ
माए रवहतचथ ताँ की आनं द रहै त। अखन धरर दौवि गे ल रवहतचथ। हुनका
गोर लगने रवहतहुाँ । हुनकर आशीिाषद प्राप्त कए कते क आनं ददत भे ल
रवहतहुाँ ? मुदा आब ओ कतए भे ितीह? इएह ताँ एवह ष्वनआक विचििता
िै क। जे गे ल से फेर घुरर नवह आओल। ष्वनआ िलै त रहल। इएहसभ
सोिै त रहलहुाँ । थोिे काल अपना ओवहठाम बै सलाक बाद हमसभ
शल्लुजीक ओवहठाम गे लहुाँ । दरबज्जे पर बरुआसभक मरबा बनल िल।
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पााँ ििा बरुआक उपनयन सं गे हे बाक िलै क। पवहने ददयादीमे जे सभसाँ


जे ठ से सभसाँ पै घ बरुआक गुरु होइत िलाह। हमरो गुरु ताही वनयमसाँ
हमर वपचतऔत बाबा स्िगीय शक्क्तनाथ चमश्र भे ल रहचथ। हमरासाँ िोि
भाए (सुरेन्दरजी)क गुरु हमर बाबा (स्िगीय श्री शरण चमश्र) भे ल रहचथ।
मुदा पता लागल जे एवहठाम अपन-अपन पोताक हुनकर अपन बाबा
गुरु बनल िचथन। साइत आब इएह परं परा भए गे ल होइक, हकिबा आब
लोकक सोिक पररचध सं कुचित भे ल जाइत होइक। ई कोनो एक्के-
ठामक बात नवह अचि। समाज बदत्रल रहल अचि। सभठाम पररितषन
दे खाएत, नीको-अधलाहो। ओवहठाम थोिे काल बै सलहुाँ । शल्लूजी
व्यस्तताक अिै त फोनोसाँ हाल-िाल ले लवन। हमसभ थोिे कालक बाद
त्रसनुआरा िोल च्छस्थत कमलाकान्दतजीक ओवहठाम हे तु वबदा भे लहुाँ ।
गामक रस्तामे , िौकपर आ आगूओ साैं से पक्काक घर बवन गे ल अचि।
अिे र िौकपर ताँ दोकान भरर गे ल अचि। लगभग तीन सए दोकान
सिकक काते -काते ित्रल रहल अचि। सुनबामे आएल जे अिे र हाि
आब पुरने जगहपर लागत। बीिमे विष्णुपुरक मरिरामे लगै त िल।
कमलाकान्दतजीक ओवहठाम गजबकेँ स्िागत भे ल। हुनकर
आिास बहुत सुखद आ आकर्षक अचि। मकानक मुख्यद्वाररपर
कमलाकान्दतजीक नाम मोि-मोि अक्षरमे त्रलखल अचि। मकानमे
अं ग्रेजी आ दे शी ष्नू तरहक शौिालयक व्यिस्था अचि। अचतचथक
रहबाक हे तु फराक कोठरी िवन। अपन वनजी पुस्तकालयमे बहुत रास
मै चथलीक पोथीसभ रखने िचथ। स्िगीय सुभर झाजीक बहुत रास
वकताबसभ ओवहठाम दे खाएल। कमलाकान्दतजीक सं गे गप्प-सप्पमे
बहुत नीक लावग रहल िल। बीि-वबिमे तरह-तरहक जलखै सभ से
ित्रलए रहल िल। िाह-पान से हो भे बे केलै क। आब सुरेन्दरजी अगुता
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रहल िलाह । यद्यवप ओवहठामसाँ उठबाक मोन नवह कए रहल


िल, तथावप मोन मारर कए वबदा भे लहुाँ । िापस शल्लूजीक ओवहठाम
उपनयन दे खलहुाँ । बीि-बीिमे पावन से हो भए रहल िल। मौसम खराप
भे ल जा रहल िल। तथावप गाममे वकिु गोिे साँ भें ि केलहुाँ । तकर बाद
हमसभ िापस दरभं गा हे तु प्रस्थान केलहुाँ । रस्ता भरर पावन होइत रहल।
हमसभ दरभं गा पहुाँ िए बला रही वक शल्लुजीक फोन आएल।
"भोजनक वबझो करा रहल चिअ।"
"हमसभ ताँ दरभं गा पहुाँ चि रहल िी।"
"एवहठाम आब भोजन हे तैक।"
"कोनो बात नवह। काच्छल्ह फेर आएब।"
से जावन हुनका प्रसन्दनता भे लवन। ददलीमोिसाँ पवहने फलसभ
वबका रहल िलै क। बे स जुआएल केरासभ दोकानमे दे खाएल। िओिा
केरा कीवन ले लहुाँ । बाहर पावन झमाझम बरत्रस रहल िल। एहनमे राचतमे
भोजन करबाक हे तु कतहु जाएब सं भि नवह िल। राचतमे ओएह
केरासभ काज आएल। थोिबे कालमे हमसभ दरभं गा अपन डे रापर
पहुाँ चि गे लहुाँ ।
राचतभररक विश्रामक बाद आइ फेर गाम ददस जे बाक तै यारीमे
लावग गे लहुाँ । साढ़े दस बजे क आस-पास हमसभ गाम वबदा भे लहुाँ ।
कवपले श्वर पहुाँ चि सुरेन्दरजीकेँ महादे िक दशषनक इिा भे लवन। हमहूाँ
दशषन करबाक हे तु कारसाँ उतरलहुाँ । िाहन िालक से हो उतरर गे लाह।
सभगोिे फूल-बे लपात लए महादे िक दशषन करए सं गे वबदा भे लहुाँ । हम
आ िाहन िालक ताँ थोिबे कालक बाद बाहर भए गे लहुाँ । मुदा सुरेन्दरजी
ताँ जे मं ददरमे पै सलाह से वनकलबाक नामे नवह ले चथ। थोिे काल ताँ
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शां चतपूिषक हुनकर बाि तकैत रहलहुाँ । तकर बाद हुनका ताकए लगलहुाँ ।
आखखर ओ गे लाह कतए? तकैत-तकैत िारूकात घुचम गे लहुाँ । िाहन
िालक कारमे िापस जाए लगलाह। तखन हुनका बामा कात एकिा
िोिकी मं ददरमे पूजा करै त दे खलहुाँ । हुनका दे खखतवह हम चिकरलहुाँ । ओ
हमरा ददस नवह तकलाह। तकर बादो ओ आन-आन मं ददरसभमे पूजा
करै त रहलाह। तखन कएले की जा सकैत िल? कारमे जा कए बै त्रस
गे लहुाँ आ धै यषपूिषक हुनकर प्रतीक्षा करए लगलहुाँ । पन्दरह बीस चमनि
आर ओवहना रहलहुाँ वक हहाइत-फुफाइत तमसाएल सुरेन्दरजीकेँ अबै त
दे खलहुाँ -
"एही ले ल हम ककरो सं गे महादे िक पूजा हे तु नवह जाइत िी।
पूजामे ताँ समय लवगते िै क।"

कवपले श्वरसाँ वनकत्रल थोिबे कालक बाद गाम पहुाँ िलहुाँ । पता
लागल जे शल्लुजीक ओवहठाम ब्राह्मण भोजन शुरु भए गे ल अचि।
तुरंत ओवहठामसाँ भोजन हे तु गे लहुाँ । दरबाजापर िे बुल -कुसी लागल
िल। लोकसभ सुविधानुसार भोजन करै त िलाह। हमहूाँ सभ भोजन हे तु
िे बुल-कुसीपर बै सलहुाँ । िूरा-दही, तरकारी, रसगुल्ला, गुलाबजामुन
खाइत-खाइत थावक गे लहुाँ । तइओ सभ वकिु नवह सठा सकलहुाँ ।
पातपर बहुत वकिू िु वि गे ल। भोजन समात्प्तक बाद तामक
लोिा, डोपिा वबदाइमे भे िल। ओहीक्रममे सालाें बाद कैक तरहक गप्प-
सप्प भे ल, कैकगोिे साँ भें ि भे ल। फेर अपना ओवहठाम आवब पाररिाररक
ििाषमे भाग ले लहुाँ । आब सााँ झ पररतए। िापस वबदा भे लहुाँ दरभं गा।
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वबदा हे बासाँ पूिष भगितीकेँ प्रणाम केलहुाँ आ सात बजे अपन डे रापर
थाकल-झमारल पहुाँ चि गे लहुाँ ।
२२ मािष २०२४। आइ हमर यािाक पााँ िम ददन िल। आइ दरभं गे
रहबाक िल। अजुका प्रमुख कायषक्रममे डाक्िर रमण झा जीसाँ भें ि
करबाक िल। आकाशिाणी भिन से जे बाक िल। अचतचथगृहक
वहसाब-वकताब करबाक िल।

भोरे स्नान-पूजा केलाक बाद िाह पीबाक हे तु पीिीसीक मे समे


गे लहुाँ । सात बजे साँ िाह प्रारं भ भे ल। प्रत्रशक्षु लोकवन वगलास लै त
िलाह, िपसाँ िाह ढारर लै त िलाह। एकिा िपमे सामान्दय िाह
िल, दोसरमे कनी कम चिन्दनी बला। जकरा जे पससिद होइ। हमहूाँ
सामान्दय चिन्दनी बला िपसाँ िाह ढारलहुाँ । िाह सं गे वबस्कुिक प्रबं ध से हो
रहै क। िाह पीलाक बाद िापस अपन डे रा आवब गे लहुाँ । नओ बजे फेर
ओतए जलखै करए गे लहुाँ । जलखै मे पोहा, समतोला भे वि रहल िलै क।
िाहो पीवब सकैत िी। प्रत्रशक्षु सभक सं गे पााँ चतमे लावग गे लहुाँ । सभगोिे
अपना-अपना हाथमे थारी, किोरी ले ने ठाढ़ रहै त िल। मे सक बाररक
बे रा-बे री सभक थारीमे पोहा ढारै त जा रहल िलाह। लोकसभ आगू
बढ़ै त जा रहल िल। एही तरहेँ कारोबार ित्रल रहल िल। हमहूाँ अपन
थारीमे पोहा ले लहुाँ , एकिा िोिसन समतोला ले लहुाँ आ िे बुलपर बै त्रस
कए जलखै केलहुाँ । तकर बाद िापस अपन कोठरी आवब गे लहुाँ । ताबे
पीिीसीक कायाषलय खुणज गे ल िल। हम आजुक िारू िाइम
िाह, जलखै , भोजनक २६० रुपया जमा कए दे त्रलऐक। पााँ िददन
रहबाक वकराया ८५० रुपया से हो जमा करा दे त्रलऐक। तकर बाद
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सहायक वनदे शक (प्रशासन) श्री जय प्रकाशजीसाँ भें ि केत्रलअवन आ


ओवहठाम हमर सुखद रहबाक ओररआन करबाक हे तु धन्दयिाद
दे त्रलअवन। अपन उपन्दयास, 'ठे हा परक मौलायल गाि'क एक प्रचत से हो
दे त्रलअवन। ओकर बाद पीिीसी पररसरसाँ बाहर वनकत्रल गे लहुाँ ।

डाक्िर रमण झाजीसाँ फोनपर बात भए गे ल रहए। ओ ददल्लीसाँ


पिना होइत दरभं गा पहुाँ चि गे ल रहचथ। आब हुनकासाँ भें ि भए सकैत
अचि । से जावन हुनकर डे रा ददस वबदा भे लहुाँ । मोसवकलसाँ दस चमनिमे
हुनकर डे रा लग ई-ररक्शा उतारर दे लक। ओवहठामसाँ राजकुमारगं ज
च्छस्थत हुनकर बीणा कमल अपािषमेंि दे खा रहल िल। हम आगू बढ़लहुाँ ।
फ्लै िक घं िी बजवबतवह ओ तुरंत अपने बाहर आवब गे लाह आ बहुत
आत्मीयताक सं ग भीतर लए गे लाह। ओवहठाम अने क सावहत्त्यक
विर्यपर ििाष भे ल। अपन त्रलखल अने क पोथीसभ दे लवन। बहुत नीक
जलखै भलै क। हुनकर पुिसाँ से हो पररिय भे ल। घं िा भरर ओवहठाम
रवह बहुत आनखन्ददत भे लहुाँ । आब ओवहठामसाँ िलबाक िल। ओ बहुत
दूर धरर अररआचत दे लवन। तकर बाद िापस वबदा भे लहुाँ अपन डे रा पर।
काच्छल्ह वनमषली जे बाक िल। डे रापर पहुाँ चि सामानसभ सररओलहुाँ ।
तकर बाद दूरदशषन खोललहुाँ । थोिे काल वनखश्चन्दतसाँ समय वबतओलहुाँ ।
बहुत नीक लावग रहल िल। एवह बे र यािाक दू भाग सं पन्दन कए आब
वनमषली 'सगर राचत दीप जरय' कायषक्रममे भाग ले बाक हे तु काच्छल्ह
रे नसाँ जे बाक िल। पररसरमे नीिााँ प्रत्रशक्षु सभक वबदाइ समारोहक
अिसरपर सां स्कृचतक कायषक्रम भए रहल िल। ओवहठाम भए रहल
नृत्य-सं गीत कायषक्रमक प्रचतध्िवन हमर कोठरी धरर स्पष्ट आवब रहल
िल।
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२३ मािष २०२४। आइ वनमषली जे बाक िल। भोरे स्नान-ध्यान कए


गुमती लगक दोकानपर िाह पीबाक हे तु बाहर वनकललहुाँ । ओतए
पहुाँ िैत िी वक दोकान बला कहै त अचि-
"दू ददनसाँ कतए ित्रल गे ल रवहऐक, बाबा?"
"गाम।"
"ओ।"
"तीन कप िाह दएह। तकर बाद जलखै ओ दइए ददह।"
"ठीक िै क बाबा।"
ओ वगलासमे तीन कप िाह दे लक। ओ कप की िल बुझू जे
िुकरी िल। तेँ ने तीन कप िाह त्रलऐक।
वनखश्चत समयपर हम दरभं गा िीसन पहुाँ चि गे ल रही। दरभं गासाँ
वनमषली जे बाक हे तु रे न दरभं गा िीसनसाँ एगारह बाणज कए दस चमनिपर
खुणजतै क। मुदा रे न कोन प्ले िपामषपर लागत तकर उद्घोर्णा हे बे नवह
करै क। हम अपन सामानक सं ग प्ले िफामष सं ख्या एकपर पहुाँ चि गे ल
रही। मुदा परे सान रही जे रे न कतए लागत, कहीं िु विए ने जाए। कुलीसाँ
से हो गप्प केलहुाँ । ओ कहलक-
"एतवह रहू। रे न अएलाक बाद हम अपने आवब जाएब आ
अहााँ केँ रे नमे िढ़ा दे ब।"
तकर बाद ओ वनपत्ता भए गे ल। "पता नवह ओ समयपर आवब
सकत वक नवह?" -एही गुनधुनमे रही वक हमर ग्रामीण अशोकजी
भे िलाह। हुनकासाँ ष्िप्पी केलहुाँ । हुनकर भाए है दराबाद जे चथन, मुदा
रे न िओ घं िा विलं बसाँ अएबाक सूिना रहै क। हम सभ आसपासमे रही
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वक रे न आवब गे ल। सामानसभक सं गे हम आगू ित्रल गे ल रही। फेर


िापस इं णजन ददस अएलहुाँ । दू वडब्बाक बाद हमर वडब्बा बी एक लागल
िल। ओवहमे धरादर पै त्रस गे लहुाँ । जान-मे -जान आएल। पााँ िे चमनिक
बाद रे न खुणज गे ल। हमर शाचयकापर केओ आर सुतल िल। ओकरा
उठओलहुाँ । ओ अपन स्थानपर ित्रल गे ल आ हम अपन शाचयकपर बै त्रस
गे लहुाँ । सामने एकिा सहयािीसाँ गप्प-सप्प होमए लागल। ओ रे लिे मे
अत्रभयं ता रहचथ, काजसाँ घोघरडीहा जा रहल िलाह। हुनकासाँ बहुत
रास जानकारी भे िल। ओवह इलाकामे केना गामक-गाम बिका-बिका
मकान खाली पिल अचि, मात्रलकसभ बाहर रहै त िचथ। मकानक
रक्षाक हे तु रखबारसभकेँ दस-बारह हजार मवहना दरमाहा दै त िचथ।
हम पुित्रलअवन-
"अपने कतए रहै त िी?"
"गया।"
"अहााँ केँ गाममे घर अचि वक नवह?"
"अचि वकएक ने । अपने बनओने िी। मुदा िोिसन जावहसाँ
गाममे जा कए अचधकारपूिषक ससम्मान अपन घरमे रहै त िी।"
"मकान बनबएमे कते क खिष भे ल?
"अढ़ाइ लाख।"
"कवहआ बनओने रही?"
"पााँ ि िर्ष पूिष। आब यदद ओहन मकान बनाओल जाएत तखन
पााँ ि लाख लावग सकैत अचि। ओवहसाँ कम नवह।"
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हम हुनकर बातसाँ बहुत प्रभावित रही। प्रिासीक हे तु गामक घरक


हुनकर उदाहरण नीक बुझाएल। थोिे कालक बाद हुनकर िीसन आवब
गे ल रहवन। ओ घोघरडीहामे उतरर गे लाह। हम उमे शजीकेँ फोन
लगओलहुाँ । ओ पुिैत िचथ-
"कतए पहुाँ िलहुाँ ?"
"घोघरडीहा।"
"ठीक िै क। हम वनमषली िीसन पहुाँ चि रहल िी"
कनीके कालमे रे न वनमषली पहुाँ चि गे ल। हम सामान सवहत उतरर
गे लहुाँ । हम ठामवह िलहुाँ वक दे खैत िी उमे शजी एकगोिे क सं गे दे -
दनादन दे -दनादन वनमषली िीसनपर पहुाँ चि रहल िचथ। हुनकर प्रसन्दनता
दे खैत बनै त िल। एवह बे रक यािामे कते कोगोिे भे िलाह, कते को ठाम
स्िागत भे ल, मुदा ककरो आननपर एहन प्रसन्दनता नवह दे खने रही।
हमसभ सामानक सं गे िीसनसाँ बाहर भे लहुाँ । ओ दूगोिे दूिा मोिर
साइवकलसाँ आएल रहचथ। एकिापर हमर सामान राखल गे ल। दोसरपर
हम उमे शजीक सं गे बै सलहुाँ । मोसवकलसाँ दस चमनिमे हम वनमषली च्छस्थत
हुनकर घर पहुाँ चि गे ल रही।
उमे शजीक घरमे पहुाँ चि लागल जे ना अपन घर पहुाँ चि गे ल िी।
िौकीपर नीकसाँ ओिाओल गे ल साफ िमिम करै त तोसक, िदरर।
हम ओतए बै त्रस आश्वस्त होइत िी वक ऊपरसाँ आदरणीय श्री जगदीश
प्रसाद मं डलजी अबै त िचथ। हुनकर कृर्काय परं तु ते जोमय आनन
दे खैत बनै त िल। हुनकर सहज, सरल आ भािुक व्यिहारसाँ बहुत
प्रभावित भे लहुाँ । बिीकाल धरर आपसमे गप्प-सप्प होइत रहल। कवह
नवह सकैत िी जे हुनकासाँ भें ि केलाक बाद कते क आत्मीयताक
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अनुभि भे ल। हमर यािा सफल भे ल। जगदीश बाबूक समस्त


पररिार 'सगर राचत दीप जरय' कायषक्रमक तै यारीमे लागल िल।
अद्भत
ु दृश्य िल ओ। साइते कोनो एहन पररिार होएत, जतए बच्िासाँ
बूढ़ धरर एवह तरहेँ मै चथलीक से िामे लागल होअए।
हमरा लोकवन थोिे काल विश्राम केलहुाँ । आब कायषक्रमस्थलपर
जे बाक िल।
"की पवहरी? धोती कुरता वक सिष-पैं ि।"
"धोती-कुरता बवढ़आाँ रहत।" -जगदीश बाबू कहलचथ।
"आ से जे मोन होवन, जावहमे आराम बुझावन।" -उमे शजी
बजलाह।
हम धोथी कुरता लइए गे ल रही। सएह पवहरबाक वििार कएल।
तकर बाद हमसभ लगभग िारर बजे कायषक्रमस्थल हे तु वबदा भए
गे लहुाँ ।
'सगर राचत दीप जरय'क कथागोिी 'श्यामा कंपले क्स सह
वििाह हॉल- वनमषली'मे आयोणजत िल। ओ पररसर बहुत नीकसाँ
सजल-धजल िल। सुसञ्ज्जत मं ि, तकर सामने सएसाँ बे सीए कुसी
लागल िल। राचतमे विश्रामक हे तु से हो उचित व्यिस्था कएल गे ल िल।
बे रा-बे री लोकसभ आवब रहल िलाह। हमर ग्रामीण आ चमि आदरणीय
डाक्िर कमलाकान्दत भं डारीजी आवब गे ल रहचथ। तकर थोिबे कालक
बाद आदरणीय श्री कामे श्वर िौधरीजी आइ.इ.एस. (से िावनिृत्त) से हो
आवब गे लचथ। हुनकासाँ रे नेमे गप्प भे ल िल। ताबे हम सकिी िीसन
िवप गे ल रही। आब ओ बहुत अफसोि करए लगलाह। हुनका से हो
कायषक्रममे भाग ले बाक मोन रहवन। ओ गामे मे रहबो करचथ। हम हुनका
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अपन कायषक्रमक पूिषसूिना नवह दए सकल रवहअवन। मुदा ओ जे ना


ते ना पहुाँ चिए गे लाह। असलमे ओ सुच्िा मै चथली प्रेमी िचथए, तावहपर
अपन इलाकामे से हो होइत िल, से जावन ओ अपनाकेँ नवह रोवक
सकलाह।
लगभग सात बजे दीपप्रज्ज्िलनसाँ कायषक्रमक प्रारं भ भे ल। तकर
बाद भगिती गीत गाओल गे ल। फेर प्रारं भ भे ल अचथचतलोकवनक
स्िागतक कायषक्रम। फेर एक्कैसिा पुस्कक विमोिन भे ल। ओवहमे
कायषक्रममे हमरो दूिा उपन्दयास (ठे हा परक मौलायल गाि आ
पिाक्षे प)क विमोिन भे ल। हम अपन कथा, गाि,क पाठ से हो केलहॅँ ।
कायषक्रमक क्रममे स्थानीय झं झारपुर काले जक प्रािायष
आदरणीय डाक्िर नारायणजी आदरणीय श्रीजगदीश प्रसाद मं डलजीकेँ
हुनकर पोथी कीवन काले जक ददससाँ हुनका साढ़े िौबीस हजारक िे क
मं िपर प्रदान केलवन। वनखश्चतरूपसाँ ई बहुत प्रशं सनीय काज भे ल।
कायषक्रमक अं तमे आदरणीय डाक्िर श्री अशोक अवििलजी अपन बात
बहुत मार्मिक ढं गसाँ रखलचथ। कायषक्रममे भाग ले वनहार सभ
कथाकारकेँ उत्सावहत केलवन। आयोजक सवहत सं योजककेँ से हो
धन्दयिाद दे लवन। असलमे उमे शजीक सतत प्रयाससाँ कायषक्रम भे बो
कएल बहुत नीक। कोनो तरहक ददक्कचत नवह भे ल।
जलखै , िाह, भोजन सभक उत्तम ओररआन िल। सभ
रिनाकार, समीक्षक, आगन्दतक
ु विद्वानलोकवनकेँ यथोचित अिसर दे ल
गे लवन, सम्मावनत कएल गे लवन।
सगर राचत दीप जरय कायषक्रममे अने क मूधषन्दय सावहत्यकार
लोकवनसाँ भें ि भे ल। राचत भरर िलए बला एवह ओवहठाम वबताओल
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गे ल आनन्ददपूणष क्षण सददखन मोन पिै त रहत। हमर सुख -सुविधा आ


यथोचित सम्मान हे तु जे वकिु सं भि िल से उमे शजी केलवन।
आदरणीय डाक्िर श्री उमे श मं डलजी एिम् हुनकर समस्त सहयोगी
लोकवनकेँ एवह हे तु हार्दिक आभार, धन्दयिाद।
आब भोर भए गे ल िल। कायषक्रम समाप्त भए गे ल। हमरा िापस
जे बाक िल। दरभं गा जा कए ददल्लीक हे तु हबाइ जहाज पकिबाक
िल। उमे शजी पवहने साँ हमरा ले ल िै क्सी ठीक कए दे ने रहचथ। हम साढ़े
आठ बजे दरभं गा हबाइ अड्ढा पहुाँ चि गे लहुाँ । ओतए पहुाँ चि बहुत आश्वस्त
भे लहुाँ । सही समयपर जहाज उवि गे ल। हम वनखश्चत समयसाँ आध घं िा
पवहने डे ढ़ बजे ददल्ली हबाइ हड्डापर उतरर गे लहॅँ । एवह तरहेँ
दरभं गा, अिे र डीह, वनमषलीक यािा बहुत सफलतापूिषक सं पन्दन भे ल।
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-रबीन्दर नारायण चमश्र, ग्रेिर नोएडा, 01 अप्रैल 2024

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


पठाउ।
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२.११.वनममला किम- अग्ननत्शखा खे प -३८

वनममला किम (१९६०- ), त्रशक्षा - एम. ए., नै हर- खराजपुर, दरभङ्गा,


सासुर- गोवढ़यारी (बलहा), ित्तषमान वनिास- रााँ िी, झारखण्ड। झारखं ड
सरकार मवहला एिं बाल विकास सामाणजक सुरक्षा विभागमे बाल
विकास पररयोजना पदाचधकारी पदसाँ से िावनिृत्रत्त उपरान्दत स्ितं ि
ले खन।
(अत्ग्न त्रशखा मूल वहन्ददी- स्िगीय णजते न्दर कुमार कणष, मै चथली अनुिाद-
वनमषला कणष)

अग्ननत्शखा खे प -३८

पूिमकिा

राजा पुरूरिा के विणक्षप्त अिस्था में से नापचत िन साैं लs कs आपस


अबै त िचथ, आ हुनक चिवकत्सा प्रारं भ होइत अचि l
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 141

आब आगू

वकिु ददन धरर महामात्य एवह आशा में शासन करै त रहलाह जे हुनकर
सम्राि ठीक भs जयचथन्दह, मुदा हुनकर आस िकनािूर भs गे लवन।
राजा ठीक नवह भे लाह, ओ ओवहना विणक्षप्त सन रहलचथ। अं तत थावक
हारर गे लाक बाद ओ महान विद्वान, ऋवर् लोकवन साँ पुिलचथ आ
कुलपचत ित्रशि केँ आमं त्रित कs अपन समस्या हुनक सोझााँ राखख
राजाक च्छस्थचतक विस्तृत वििरण दे लखखन्दह हुनका । पुन हुनका साँ s
उचित परामशष मं गलचथ । कारण राज्य िलाबय ले ल राजा रहब
आिश्यक अचि, सब गोिे आपस में ििाष कय सिषसम्मचत साँ s वनणषय
ले लचथ जे पुरूरिाक ज्ये ि पुि आयु के राज्यात्रभर्े क कयल जाय।
आयु केँ कुलपचत ित्रशि द्वारा श्रे ि ऋवर् लोकवनक मागषदशषन में
राज्यात्रभर्े क कयल गे लवन।ओ राज्यक ससिहासन पर बै सलचथ। राज्य
केँ राजा भे िलखन्दह, मुदा ओ अनुभिहीन आ युिा िलाह । कतय िलाह
अनुभिी िक्रिती सम्राि पुरूरिा! आ कतय िचथ हुनक युिा आ
अनुभिहीन पुि आयु ?की ओ सम्पूणष धरती पर शासन कs सकैत
िचथ ?मुदा एतय महामात्य जे राज्यक अनन्दय भक्त आ पूणष अनुभिी
िलाह हुनका सहयोग केलचथ । ओ राजा पुरूरिाक शासन काल में
हुनक प्रशासन दे खने िलचथ! एतबवह नवह ओ सहयोगी रहल िलाह
ओवह शासन-प्रशासन के।ओ अपन सम्पूणष अनुभि लगा दे लचथ
नियुिक राजा आयु के द्वारा शासन व्यिस्था सुिारू ढं ग साैं सं िालन
करियिा में । ओ आयु के सुरक्षा दे लचथ,आ ओवह मात्रि-वपतृहीन बालक
के एकिा सक्षम सम्राि बनबाक प्रत्रशक्षण दे मय लगलाह।
142 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

...

राजा पुरूरिा वकिु ददन राजमहल मे रहलाह, मुदा ओतहु ओ अजबे -


अजब काज करै त िलचथ। कखनो जोर-जोर साँ हाँ सs लगै थ, कखनो
कानs लगै थ! कखनो कपिा फािs लागचथ, तs कखनो उिषशीक चिि
साँ प्रेम-व्यिहार करs लागै त िलाह। कखनो काल उपदान के से हो िू बै त
िलाह।ओ अपन चप्रयतमा बुणझ अश्लील काज करै त रहै त िलाह। एवह
के अलािा ओ सददखन महल सs बाहर वनकलबाक प्रयास करै त
िलचथ । एक ददन हुनका अिसर भे वि गे ल िलवन ।ओ िोरा-नुका कs
महल साैं बाहर आवब गे लाह आ... कोनो अज्ञात लक्ष्य ददस विदा भs
गे लचथ ।
जखनवह राजभिन में हुनकर अनुपच्छस्थचतक बोध भे लवन, अचत शीघ्र
राजपुरुर् आ सभ कमषिारीगण हुनकर सं धान में जुवि गे लचथ। ओवह
सब ठाम हुनकर तलाश में अन्दिेर्क पहुाँ चि गे ल जतय कवनको सं भािना
हुनका सब केँ लागल जे महाराजा भे वि सकैत िचथ मुदा ओ नवह
भे िलाह। नवह जावन धरती के कोन िोर पर ओ वबला गे लचथ। नवह जावन
ओ पृथ्िी पर िचथ िा नवह , की जावन कोन काज ले ल ओ कत ित्रल
गे लचथ। की जावन उिषशी केँ तकबाक ले ल स्िगष तs नवह ित्रल गे लचथ
?
थावक हारर कs सभ राज्य कमषिारी आ अचधकारीगण हुनक अन्दिेर्ण
बं द कय ईश्वर पर हुनकर रक्षा के दाचयत्ि साैं वप राजकायष के सं िालन
में त्रलप्त भय गे लचथ। एक ददन से नापचत अपन त्रसपाही सभक सं ग
कुमार िन मे क्षे ि-्मण पर गे ल िलाह, तखन हुनकर दृचष्ट पूिष सम्राि
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 143

राजा पुरूरिा पर अिक्के पिल।हुनका दे खख ओ सब आश्चयषिवकत भs


गे लाचथ । हुनकर च्छस्थचत एते क करुण िल जे से नापचत करुणार भs
गे लचथ ।एकिा िक्रिती सम्राि आ हुनकर ई च्छस्थचत !
ओ राजा केँ अपना सं ग राजधानी अनबाक बहुत प्रयास केलचथ , मुदा
ओ आबय ले ल तै यार नवह िलाह, एते क धरर जे िलै त रथ साँ s कूदद
गे लाह आ सरपि दौिय लगलाह। एवह क्रम मे हुनकर दे ह से हो घायल
भ' गे लवन। ठाम-ठाम सs शोणणत के धार िल-िला आयल
िलवन।आब से नापचत वििश भय गे लचथ। ओ असहाय िलचथ! करचथ
तs कचथ करचथ ! ओह भगिान ! से नापचत चििचतत ! आब की करबाक
िाही ! पूिष सम्राि केँ बाखन्दह कs से हो नवह आवन सकैत िलचथ, आखखर
हुनकर कोन अपराध िलै न्दह जे बाखन्दह कs हुनका दण्ड दे ल जाय! आ
ओ बान्दहलाक उपरान्दत कते क ददन राजमहल में रहताह ते कर कोन
भरोस! कते क ददन हुनका बाखन्दह कs राखल जा सकत! हा दै ि! ई केहे न
दण्ड दे लीयखन्दह! िक्रिती सम्राि िलाह आ आई हुनक ई ष्गषचत! ओ
अपराधी नवह िचथ जे हुनका बाखन्दह कऽ आपस लs गे ल जाय ।
जखन ओ सभ राजा पुरूरिा के राजधानी लs जयबा में सफल नवह
भे लाह तखन ओ अपन सै वनक के राजमहल पठा कs राजसी पररधान
मं गिा ले लचथ आ कोनो तरहे बल प्रयोग कs राजा के ओ िस्ि पवहरा
दे लचथ । राजा ओ िस्ि पवहरबा में कने को रूचि नवह दे खाओल, कारण
हुनका ओ िस्ि पवहरिा में कवनको अत्रभरुचि नवह िलखन्दह। वकएक तs
ओ अपनहु के वबसरर गे ल िलचथ । तखन आब हुनका िास्ते िस्िक
कोन महत्ि िलै क ! हुनका िास्ते राजसी पररधान अथिा राजमहलक
कोनहु महत्ि नवह िल। हुनका ले ल िनक कठोर पाथरक भूचम आ
राजमहलक कोमल आ गदगर आरामदायक पयं क में कोनहु अं तर नवह
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िलै क। िास्ति मे कहल जा सकैत िलै क जे िन प्रां तक प्रस्तर भूचम


हुनका ले ल बे सी अनुकूल िल कारण ओतय उिषशीक आगमनक
सं भािना िल।
एकर बाद राजपुरुर् लोकवन एकिा वनयम बनौलवन जे ओ सभ दू-िारर
गोि सै वनक केँ गुप्त रूपें हुनकर दे खभाल हे तु िन में िोवि दे लचथ। ओ
सभ राजाक दृचष्ट में वबनु अयनवह गुप्त रूप साँ s हुनकर रक्षा में तत्पर
रहचथ, आ बीि-बीि मे हुनकर आिश्यक से िा ओ लोकवन करचथ, आ
स्िि िस्ि पवहरा दै त िलाचथ ।ओ हुनकर समय पर भोजनक वनयचमत
व्यिस्था कs दै त िलचथ ।
मुदा राजा केँ एवह सब में कोनो रूचि नवह िलखन्दह । हुनका नवह भोजन
में कोनो रूचि िलखन्दह आ ने िस्ि में ।हुनका भोजन आ िस्ि मे रूचि
कम भs गे ल िलखन्दह। तावह कारण हुनका कवनको रूचि नवह िलखन्दह
राज कमषिारी गणक एवह से िा सत्कार में । अपन दै वनक कमष में राज
कमषिारीक हस्तक्षे प हुनका रुिइत नवह िलखन्दह ।आ एक ददन एवह से िा
साँ तं ग आवब ओ ओवह िन केँ से हो िोवि दे लचथ ।ओ एम्हर-ओम्हर
भिकय लगलचथ । कखनहु कोनो िन में ित्रल जाइत िलचथ, आ
कखनहु काल कोनो पोखरर मे हे लैत रहै त िलाह। कखनहु कोनो नगरक
राजमागष पर दृचष्टगोिर होइत िलाह । कखनहु उम्मत्त सन दौि लगबै त
ओ दे खाइ पिै त िलचथ तs कखनहु कोनो नदीक कात मे भिकैत भे िैत
िलचथ ।एवह तरहेँ एक साल बीचत गे ल।
एम्हर उिषशी साँ विरह भे लाक बाद हुनकर पवहल भें ि सरस्िती नदीक
कात मे भे लवन, उिषशी हुनका दोसर साल में से हो भें ि करबाक समय
दे ने िलाचथ, मुदा कतय ? - हाँ कुरुक्षे ि में मोन पिलखन्दह ।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 145

*****
अतीतक वबम्ब आब राजाक मोन साँ विलुप्त भs गे ल िलखन्दह ।आब
हुनकर हालत एहन भs गे ल िल जे ना एखनवह आकाश साँ s खींि कs
धरती पर खसा दे ल गे ल होचथ।हुनकर मोन एकदम शून्दय भs गे ल
िलखन्दह। माि उिषशीक िवि के स्मरण एखनहु ओवह में अिच्छस्थत िल।
एकर अतररक्त ओ सभ वकिु वबसरर गे ल िलचथ।
जखन ओ अपन हृदय केँ अतीतक गभष साँ s खींि कs अपन हृदय केँ
ितषमान क्रम में एवह िन प्रां त में अनलचथ तखन सूयषक भीर्ण तप्त
वकरण अपन तीव्रतम आभा साैं पृथ्िी पर पसरर ओकर आाँ िर के तप्त
कs रहल िल। आकाश में चििइ सभ िृक्षक त्रशखर साैं उवि-उवि गगन
मं डल में एवह िृक्षक त्रशखर साैं ओवह िृक्षक त्रशखर पर भावग रहल िल।
बुझाइत िल जे ना ओ सभ आकाश में कोनहु दौि प्रचतयोवगता में भाग
लs रहल होय,प्रचतयोवगता स्थल बनल िल एवह िृक्षक त्रशखर साैं ओवह
िृक्षक त्रशखर!ओवहना आकाश में सब उवि रहल िल । पुरूरिा उदठ
कs बै त्रस गे लाह।तखन ओ एकिा अनजान लक्ष्य विहीन बाि पर
उद्देश्यहीन िलय लगलचथ ।
वकयो अिक्के हुनका रोवक दे लकैन । ओ व्यक्क्त आश्चयषिवकत भs
कs हुनका ददस तावक रहल िल। कवन काल धरर हुनका ददस तकलाक
बाद ओ पूचि दे लक-
" राजे न्दर अहााँ ? एतय की कs रहल िी? अहााँ हमरा सं ग आवब जाउ
हमर सभहक दरबार में । हमर महाराज अहााँ साँ भें ि कs कs अत्यं त
प्रसन्दन होयताह।"
पुरूरिा ओवह व्यक्क्त ददस ध्यान साँ तकलचथ मुदा चिन्दहलचथ नवह। आ
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ओ जखन कवनको स्मरण नवह पाइब सकलचथ तखन हुनका नवह चिन्दहैत
पुिलचथ -
"अहााँ के चथकहुाँ , आ हमरा कतs लs जे बाक अचि?"
"अरे , अहााँ हमरा नवह चिन्दहैत िी? हम कश्मीर के राजाक महामात्य
िी। हम अहााँ केँ हुनका साँ भें ि कराबs हे तु लs जाय िाहै त िी। अहााँ
केँ दे खख ओ अत्यं त प्रसन्दन होयताह।"
राजा फेर ओवह आदमी ददस ध्यान साँ दे खैत पुिलवन, -की अहााँ हमरा
कवह सकैत िी जे हम के िी?
"हाँ !- हाँ ! वकएक नवह, अहााँ केँ के नवह चिन्दहैत अचि? अहााँ महान
िक्रिती सम्राि पुरूरिा िी" - ओ सम्मानपूिषक उत्तर दे लवन |
"हा हा हा हा हा हा...हम...हम...सम्राि िी!...सम्राि पुरूरिा !
महामात्य! एते क असत्य नवह बाजह!नवह बाजह! पचथक ! हम तs
माि उिषशीक प्रेमी िी! उिषशी...उिषशी.." स्िगषक .....
अप्सरा"...त्रिलोक सुन्ददरी..."उिषशी" बुझलह पचथक ! हमरा ओकर
प्रेमी, भक्त कहब, आवक हमरा ओकर पुरोवहत कहब! ई सभ सत्य
होयत! हम ओकर प्रेम मे आकंठ डू बल एकिा सामान्दय मनुक्ख चथकहुाँ !
हम पुरूरिा नवह िी। हमरा कवहयो कोनो पुरूरिा साँ s कोनो पररिय नवह
भे ल अचि! हमरा पुरूरिा फूत्रसयो नवह कहब। हा....हा....हा..."
पुरूरिा उन्दमत्त सन हाँ सैत आगू बढ़लाचथ । सम्राि पुरूरिा!...जे ... िलचथ
िक्रिती, णजनका सोझााँ पृथ्िी की स्िगष पयं त नतमस्तक भे ल िल ?
ओवह सम्राि पुरूरिा के आइ एहे न च्छस्थचत भे ल िलवन। हुनका एवह दशा
में दे खख कश्मीर के राजाक महामात्य अत्यं त उदास भs गे ल िलचथ।
ष्:खी मोन साँ s ओ अपन लक्ष्य ददस बढ़लचथ । पवहने सुनने िलाह आ
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 147

आइ ओहो अपन ने ि सs दे खलचथ राजा पुरूरिक ष्दषशा!


अवगला अं क मे कथा आगू बढ़ै त अचि।
क्रमशिः

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


पठाउ।
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२.१२.ग्रुप कैप्ट (डा.) वि एन झा- अं तररक्ष पयमटन के िै ज्ञावनक


दृचिकोि

ग्रुप कैप्ि (डा.) वि एन झा

अं तररक्ष पयषिन के िै ज्ञावनक दृचष्टकोण

भूचमका: मै चिली में अं तररक्ष विज्ञान के तकवनकी


पररसीमन

विदे ह में विज्ञान विर्य-िस्तु पर एक निीन प्रयोग शुरू कए रहल


िी। ओहना ताँ विदे ह पत्रिका मै चथली सावहत्य में एक विशे र् प्रचतिा
राखै य अचि, मुदा कोनाें भार्ा के, खास केँ प्रािीन सां स्कृचतक भार्ा
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के विकास आओर सामूवहक ग्रहण-विग्रहण ताित समुचित नहहि होएत


याित् ओवह में आधुवनकता, समकालीन ज्ञान-विज्ञान ि तकवनकी के
समािे श नहहि होएत I ताित ओवह भार्ा केँ दे श विदे श में समुचित
स्थान नहहि भे ित।

जावह समय स आधुवनक त्रशक्षा प्रणाली में मै चथत्रल के समािे श भे ल


अचि, अचधकतम विद्यालय ि महाविद्यालय में मै चथत्रल प्राय अपन
सावहत्त्यक गद्य ि पद्य में प्रगचत अिश्य कएलक वकन्दतु आधुवनक
विज्ञान ि तकनीकी के समािे श ि प्रगचत समीक्षा ि ििाष के विर्य
अिश्य रहै ि, जावह में मै चथत्रल भार्ाविद के विश्ले र्ण विशे र् महत्त्ि
राखताह।

हम मै चथत्रल भार्ा के एक अदना िाि िलहुाँ आओर गत ५० िर्ष सं


मै चथत्रल-भार्ी के सं पकष साँ विहीन िी। ओहु साँ विशे र् जे िायुसेना
समाज में ३० िर्ष रवह प्राय अं गरे जी माध्यम में ही बातिीत ि त्रलखल-
पढ़ल रहल। गत ४० िर्ष में िातां क्षररक्ष विज्ञान के पठन-पाठन में रत
िी। बारम्बार मन में आएल जे मै चथत्रल में िै ज्ञावनक विर्य-िस्तु पर
वकिु त्रलखल जाए। अं तररक्ष विज्ञान के विर्य में त्रलखै क हमर ई अथक
प्रयास जारी रहत । अत भार्ा व्याकरण आदद िुवि हे तु क्षमाप्राथी
िी।
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अं तररक्ष पयमटन के विकास

रूस, अमे ररका, फ़्ां स, िीन ि भारत विगत के समयां तराल में अं तररक्ष
में अपन-अपन िै ज्ञावनक अन्दिेर्ण, परीक्षण ि पयषिेक्षण गचतविचध में
गचतशील रहचथन्दह I अं तररक्ष में मानि के समािे श ि अत्रभयान िै ज्ञावनक
ि सै न्दय गचतविचध के उद्देश्य साँ रूस ि अमे ररका के बीि में मुख्यतया
प्रचतस्पधाषत्मक होएत िलै क I गत ४ दशक में िीन से हो अं तररक्ष में
अपन ििषस्ि स्थावपत करए ले ल जी तोि प्रयत्न क रहल अचि I मुदा
अं तररक्ष में पयषिन एक एहन निीनतम परन्दतु अत्यं त महग गचतविचध
शुरू भ गे ल अचि I महग ताँ एहन जे विगत में विश्व के वकिु अचतसमृद्ध
जन डे ढ़ साँ दू अरब िाका खिष कए नजदीकी अं तररक्ष के ्मण कएल
रहचथन I सुदूर अं तररक्ष के ्मण मानि ले ल एखनहुाँ स्िप्न माि
अचि I मानल जाइि जे अमे ररकी िााँ द तक गे ल रहवन I

अं तररक्ष यािा करय में अं तररक्ष यािी ले ल अपार तकनीकी आ स्िास्थ्य


सं बंधी िुनौती अचि I अं तररक्ष यािाक विश्व मानस पिल पर अपार
सम्मोहक प्रभाि पिै त िै क अत अं तररक्ष ददस बढ़ै त प्रत्ये क यािी एक
त्रसने माक हीरो साँ कम नवह दे खल जाइत िै क । अं तररक्ष यािा करब
बहुत लोकक सपना बवन जाइत अचि । गत दशक में अं तररक्ष यािा के
एक अलग स्िरुप आएल अचि जे करा "अं तररक्ष पयषिन" के सं ज्ञा दे ल
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िखन्दह I आई-काच्छल्ह ई एक अत्यचधक महग रोजगार के रूप में प्रित्रलत


आगााँ आवब रहल अचि I

अं तररक्ष पयमटन के आम जोन्खम

अन्दतररक्ष पयषिन यान में तकवनकी खराबी के अलािे वकिु अन्दय जोखखम
से हो अचि I सभु पाठक गण केँ अं तररक्ष पयषिन के जोखखम साँ अिगत
होिए सोहो आिश्यक अचि I अं तररक्ष में िायुमंडल नहहि होएि अत
स्पे सक्राफ्ि में अपे णक्षत दिाब पर ऑक्सीजन युक्त एतै क हिा रहे िै क
जे यािी ि िालक दल लए पयाषप्त होए I िायुमंडल साँ ऊपर सूयष के
वकरण एतै क ते ज ि घातक होए िै क जे त्ििा जरर जाए I िायुमंडल
साँ ऊपर िोि या बि उल्का या पृथ्िी के कक्षा साँ विलग उपग्रह साँ
सम्बद्ध कल-पुजाष / कूिा-ककषि / मालिा एतै क अचधक ऊजाषिान
होएत िै क जे पयषिनयान केँ आसानी साँ क्षचतग्रस्त कए सकैि जे वह
साँ सभु पयषिक के जीिन जोखखम में पवि जाएत I अं तररक्ष पयषिन के
गुरुत्िाकर्षण विहीन या भार विहीन शुरुआत के क्षण में अलग अलग
तरहक ष्रासर होए िै क जावह में ओकाई या उल्िी होएब,
'स्पात्रसयल वडसोररएन्दिेशन', ऊपर-नीिााँ के ददशा ्म आदद
सत्म्मत्रलत अचि I भार विहीन क्षण में खाए-वपय, प्रसाधन आदद के
उपयोग अत्यचधक ञ्क्लष्ट होए िै क I अत प्रत्ये क
पयषिक केँ 'ियस्क डायपर' पवहरा दे ल जाए िै क जे यदद ककरो
आकच्छस्मक लघु या दीघष शं का भे ल ताँ ओ डायपर में ही त्रसचमत
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रहत I अं तररक्ष यान में लाइफ सपोिष त्रसस्िम (LSS) रहे िै क जे


ऑक्सीजन, काबषन डाइऑक्साइड, जलिाष्प, तापमान, हिा के ष्गं ध
आदद केँ वनयं िण में रखे िै क I यदद LSS खराब भे ल ताँ प्रक्षे पण केँ
स्थगन आिश्यक भ जाए िै क अन्दयथा सभु जन के जीिन जोखखम में
पवि जाएत I अं तररक्ष उिान के सभु जोखखम के िणषन एवह ले ख में
असं भि अचि वकए वक एवह विर्य पर इं जीवनयररिग ि मे वडकल ब्रां ि
में M Tech/MD/PhD आदद विर्य िस्तु अचि I

अत्यं त खिीला अं तररक्ष पयमटन के आकषमि ि मां ग

अं तररक्ष पयषिन के अत्यचधक आकर्षण ष्वनया भर के अमीर लोग ले ली


िै क आरू रूसी रोस्कोस्मोस एकरा प॑ आं त्रशक रूपे ण कैश से हो
क िुकल िखन्दह जे ना वक वनम्नत्रलखखत तात्रलका में दे ल िै । 2001 स॑
ही रूस के आकर्षक अं तररक्ष पयषिन कायषक्रम बहुताें "वनजी अं तररक्ष
उिान प्रचतभागी" क॑ अपन अं तररक्ष यािा करै म॑ उत्प्रेररक करलकै ।
िजीवनया च्छस्थत स्पे स एडिें िसष के दलाल रूसी सोयुज में उिान के
ले ल सिारी साँ दू करोि डॉलर सं बे सी के भुगतान करे लक तथा अं चतम
पयषिक अपन यािा के ले ल 3.5 करोि डॉलर तक के भुगतान
केलक I ओ सब यािा अं तराषष्रीय स्पे स स्िे शन के िल आ यािी
केँ लगभग ओवहनें प्रत्रशक्षण प्रवक्रया साँ जाएल पै दल जे िालक
दल, तकवनकी ि चमशन विशे र्ज्ञ अथिा अं तररक्ष यािी...सभु लें
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समान सं वहता िलै क I एही प्रवक्रया में िह मॉस तक के प्रत्रशक्षण


अिचध अचि I वकिु चमशन में ताँ अमीर यािी केँ अं तररक्ष में लए जे बा
में हुनका नाम माि के कोनाें काज दए अं तररक्ष स्िे शन पर शाचमल
करय के जायज ठहराएल गे ल I एहन वकिु यािी के िणषन वनम्नां वकत
तात्रलका में अचि I

रूस केऽ िाणणच्छज्यक अं तररक्ष पयषिन उद्यम (ऊपर केरऽ तात्रलका म॑


ददखालऽ गे लऽ िै ) स॑ ई स्पष्ट िै वक अं तररक्ष पयषिन स॑ काफी राजस्ि
प्राप्त होय िै । एहन यािाक ले ल बहुत बि रात्रश सं भावित पयषिक केँ
खिष कराए पडत I 'अं तररक्ष पयषिन उद्यम' खिीला सही, उद्योग के रूप
लए रहल अचि I ज्याें ज्याें एकर प्रसार होएत, खिष लगातार कम भे ल
जाएत I

अचधकां श पयषिक अं तररक्ष क रोमां ि के अनुभि करबा ले ल उत्सुक


होइि । िूाँवक अं तररक्ष पयषिन में वकिु बे शी जानले िा ष्घषिना के
सं भािना होइि, एही में वकिु विशे र् प्रकार के जीिन रक्षक प्रणाली ि
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उपकरण होएि जकर व्यिहार आपातकाल में अएबाक िाही I तकर


प्रत्रशक्षण आिश्यक िै क I वकन्दतु बहुत कम अिचध के अं तररक्ष पयषिन
में न्दयूनतम प्रत्रशक्षण व्यिहाररक होएत, तीन साँ िह मास के नहहि ।
अं तररक्ष पयषिन केँ रोमां िक खे ल के से हो सं ज्ञा ददयल जा सकैत
अचि I एवह तरह के अं तररक्ष पयषिन के वित्रभन्दन प्रकार के ्मण अचि
जे वकिु चमनिक 'उप-कक्षीय' उिान साँ ला केँ पृथ्िी कक्षा के पररक्रमा
करबाक उद्देश्य तक भ सकैि I

अं तररक्ष पयमटक के उद्यमी सँ अपे क्षा

स्पे स एडिें िर/िू ररज्म पयषिक िा ग्राहकक के वकिु न्दयूनतम अपे क्षा
होए िै क जे ओकर जीिनपयषन्दत कमाई के तुल्य भ सकए I दोसर
ददस, अं तररक्ष एजें सी प्रचतस्पधी रूप सं लगभग सुरणक्षत िापसी
के गारं िी, बे हतर पै केज / विकल्प प्रदान क सकय िै , जे वह मे
वनम्नत्रलखखत मे सं एक या अचधक अनुभि होयत िै :--

*माइक्रोग्रेवििी या गुरुत्ि-विहीन अिस्था के अनुभि...वबना बाधा


तै राकी ।-

* पृथ्िीक नीलाम्बर िायुमंडल दे खब ।-

* सूयाे दय या सूयाषस्त दे खय मे सक्षम होयब जे एकदम अलग अनुभि


होए िखन्दह |-
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*ददन आ रात्रि के बदलै त पररपे क्ष I-

*सौर या िं रग्रहण या ब्रह्मां ड के नै सर्गिक कोनो अन्दय घिना; पृथ्िी के


बदलै त पररप्रेक्ष्य के दे खै के पररच्छस्थचतजन्दय तत्सामचयक
मां ग |- अं तररक्ष में विशे र् अिसर आ उत्सि मनाएब... जे हना
प्रपोज, वििाह, हनीमून आदद।-

*अल्पकालीन गुरुत्ि विहीन क्षण में विशे र् िै ज्ञावनक अनुसंधान ि


परीक्षण | -

*भविष्य में अं तररक्ष ्मण मनोरं जन के ले ल ढे राें अन्दयान्दय वििार


वनखश्चत रूप स आवब जाएत ।

"अं तररक्ष पयषिन" के नाम पर वकिु अमीर के कल्पना आ मनसा के


हिपबाक ले ल महान प्रचतस्पधाष ित्रल रहल अचि | अपनऽ
कंपनी 'िर्जिन गै लेच्छक्िक' के स्थापना क क॑ ररिडष ब्रैन्दसन आरू 'ब्लू
ओररणजन' केरऽ जे फ बे जोस अपन-अपन अं तररक्ष यान के साथ
िाणणच्छज्यक अं तररक्ष पयषिन के पे शकश करै ले ली तै यार कए केँ
अं तररक्ष पयषिन के व्यिसाय शुरू क दे ल िखन्दह । िर्जिन गै लेच्छक्िक म॑
अपनऽ विमान ि'र्जिन मदर त्रशप (िीएमएस) ईिा' केऽ दोहरी पं ख के
भीतर लागल "िर्जिन स्पे स त्रशप (िीएसएस) यूवनिी" नाम केऽ
पुन: उपयोग करलऽ जाय िाला अं तररक्ष यान िै । िीएमएस ईिा स॑
लगभग ४५-५० हजार फुि ऊंिाई पर िू िे पश्चात िीएसएस यूवनिी क॑
रॉकेि द्वारा अं तररक्ष में लए जाएत िै क । दोसरऽ ददश "ब्लू
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ओररणजन" स्पे सक्राफ्ि पूणष रूप स॑ पुन उपयोग करलऽ जाय िाला
रॉकेि िै जे २-िरण म॑ िलै िै । विरदीन गै लेच्छक्िक पृथ्िी सतह साँ
लगभग 100 वकमी ऊपर जाएत िै क मुदा "ब्लू ओररणजन" पृथ्िी स॑
१५० वकमी ऊपर जाय सकै िै । ई ष्नू के िास्तविक गुरुत्ि विहीन क्षण
माि वकिु चमनिक ले ल प्रदान करै त अचि । ई ष्नू में साँ कोनो पयषिक
के उपरोक्त सभु अपे क्षा के पूर्ति नहहि क सकैि I

कमर्शियल स्पे स एडिें िर मे वकिु आओर उद्यमी से हो िचथन्दह जावह मे


बोइं ग कंपनी केऽ 'सीएसिी-१००' स्िारलाइनर अं तररक्ष यान
साँ इं िरने शनल स्पे स स्िे शन (आईएसएस) केऽ यािा से हो शाचमल
िै , जे कर पररिालन सम्प्रचत शुरू नै भ सकल िै । िीनी, रूसी आरू
भारतीय कंपनी से हो िाणणच्छज्यक अं तररक्ष पयषिन ले ली अपन अपन
योजना अकेले या सं युक्त रूप साँ बनाबै म॑ व्यस्त िचथ जावह में बहुत
समय नै लगतै । एकरा ले ल हुनका सभु लग पवहने साँ प्रमाणणत
तकनीक िखन्दह । ओ सभु के अं तररक्ष िाहन या एकरा िास्ते बनाओल
स्पे स स्िे शन केँ कोनो सं ज्ञा दऽ सकै िी जे ना वक स्पे स -इन, स्पे स-
ररसॉिष, स्पे स शे रेिन, 'अं तररक्ष-िास, 'उिनखिोला' िा आओर कोनो
आन नाम । आगामी िर्ष ि दशक में ई महा खिीला व्यापार अन्दयान्दय
दे श में अिश्य शुरू हएत यद्यवप सम्प्रचत पयषिक के अपे क्षा आं त्रशक
रूपे ण ही पूणष होए िै क I
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'िर्जिन गै लेब्टटक" अं तररक्ष पयमटन (चिवटश अमे ररकन)


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िर्जिन गै लेच्छक्िक अं तररक्ष पयषिन के सं स्थापक ररिडष ब्रैंसन िचथन्दह I


11 जुलाई 21 क॑ 'िर्जिन गै लेच्छक्िक' अपन प्रथम उिान में ई प्रदर्शित
करै के कोत्रशश करलकै वक ई सब अं तररक्ष म॑ रोमां िकारी पयषिन ले ली
एक सक्षम सं भािना प्रदान करै िै । एकर सं स्थापक ररिडष ब्रैन्दसन अपन
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तीन कमषिारी सं ग िीएसएस यूवनिी केऽ 22िीं उिान म॑ यािी िलाह


। हुनका सब क॑ बहुत धूमधाम साँ आरू िै णश्वक प्रिार के साथ क्राफ्ि
केरऽ यािी वडब्बा म॑ चमशन स्पे शत्रलस्ि (?) के रूप म॑ यािा करै लखन्दह
। हुनकऽ रॉकेि सं िात्रलत अं तररक्ष यान िीएसएस यूवनिी क॑ विमान
िीएमएस ईिा केरऽ पं खऽ के नीिााँ स॑ ४६३९३ फीि ऊंिाई साँ िोिलऽ
गे लऽ, जे करऽ गचत ३८९ मील प्रचत घं िा िे लै । अलग होय के एक
से कंड उपरान्दत िीएसएस यूवनिी के रॉकेि प्रज्ित्रलत भऽ, यान क॑
लगभग १०० वकमी ऊपर अं तररक्ष ला गे ल जे वह में ऊपर जाए िाला
वकिु से केण्ड ओ ओवह ऊंिाई साँ नीिा खसए िाला वकिु आओर

से कंड गुरुत्ि विहीन िल ।

'VSS Unity' के अचधकतम गचत अलग होय के 57 से कंड बाद


१२५ हजार फुि AMSL पर 3.1 Mach िू गे लै । रॉकेि 60 से कंड
बाद चमझा गे लै मुदा क्राफ्ि केऽ ऊंिाई बढ़त॑ रहलै । एही दौरान अलगाि
के १ चमनि १० से कंड पश्चात् सभु यािी सब केँ आगाह कएल गे ल जे
आबै िाला से केंड में गुरुत्ि विहीनता के सु-अनुभि त्रलए लए अपन
अपन सीि के पट्टा खोलय I क्राफ्ि केरऽ बै क ञ्फ्लहपिग लगभग २१३
हजार फुि AMSL ऊंिाई पर अलगाि के १'३३" बाद कएल गे ल
तावक यािीगण अपन बगल आरू ित में उपलब्ध िोि-िोि खखिकी
स॑ पृथ्िी क॑ दे खै सकए । ञ्फ्लहपिग के कारण इहो िल हकिचित मािा मे
ही सही, एयरोडायनाचमक कंरोल पायलि के हाथ रहे I VSS यूवनिी
केऽ अचधकतम ऊंिाई अलग होय स॑ २ चमनि ३७ से कंड
160 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

पश्चात अचधकतम ऊंिाई २,८२,७७३ फीि AMSL िे लै , जखन गचत


१.१ Mach तलक कम भऽ गे लऽ।

एकर बाद िायुमंडलीय अभाि में VSS Unity क्राफ्ि वनमुषक्त रूपे ण
नीिा खसए लागल I धरती सतह साँ 200 हज़ार
फुि AMSL ऊंिाई पर ३ चमनि ४० से कंड पश्चात क्राफ्ि पायलि
आगामी वकिु से कंड में िायुमंडल म॑ तथाकचथत 'पुन प्रिे श' के
घोर्णा करलकै जखन सब यािी अपन-अपन स्थान पर िापस भ सीि
बे ल्ि बाखन्दह ले लखन्दह I एवह तरहें गुरुत्ि विहीन अिचध माि 2 चमनि सं
वकिु बे सी' अनुभि भे ल जे वह में क्षण भरर ले ल यािी लोकवन कें
सं कीणष केवबन में तै रैत दे खल जा सकैत िल I ठाढ़ सीि हुनका
लोकवनक फ्री-फ्लोि मे बाधा बुझाइत िल I
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 161

गुरुत्ि विहीनता या भार विहीनता के ई अनुभि हुनका लोकवनक


जीिन भररक अनुभि रहल भे लखन्दह । अं तररक्ष यािी केऽ पवहलऽ उप-
कक्षीय उिान अल्पािचध ही सही, प्रशं सनीय िल आरू वनखश्चत रूप स॑
भविष्य में अं तररक्ष-पयषिन के नया रास्ता प्रशस्त करत । यद्यवप
अं तररक्ष में जएबाक ओ गुरुत्ि विहीन क्षण के रोमां ि के अनुभि कए
िारो अपना आप केँ Astronaut कहल लगलखन्दह मुदा ओ सब
यािी माि िलाह I िायुमंडल में पुन प्रिे श (Re-Entry) के बाद
इं जन-रवहत VSS Unity क्राफ्ि के ओवह हिाई पट्टी पर उतारल गे ल
जतय सं ओ उिान भरने िल I लैं हडिग सफल िल I

"ब्लू ओररणजन" अं तररक्ष पयमटन (अमे ररकन)

वनजी व्यािसाचयक अं तररक्ष उद्यम के दोसर उद्यमी "ब्लू


ओररणजन" िचथ जे कर सं स्थापक जे फ बे जोस िचथन्दह I ब्लू ओररणजन
162 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

२० जुलाई क॑ २० जुलाई क॑ अपनऽ पवहल सब-ऑर्बििल पयषिन उिान


साँ ष्वनया केऽ ध्यान आकर्र्ित करलकै I अपनऽ पुनरुपयोग
करऽ िाला 'न्दयू शे फडष ' नामक रॉकेि बनौलखन्दह जे अपन मानि
कैप्सूल क॑ अं तररक्ष म॑ प्रक्षे पण कए स्ियं िापस आवि त्रलफ्ि-ऑफ सं
करीब 2 मील दूर एकिा वनधाषररत प्ले िफामष पर धरती पर सुरणक्षत
सॉफ्ि लैं हडिग करै त िै क I मानि कैप्सूल में पयषिक समे त िह लोकवन
समावहत भ सकैत अचि I ई कैप्सूल िॉन कमषन लाइन (धरती साँ १००
वकमी ऊपर) स॑ ऊपर जाय िै आरू ओकर बाद सुरणक्षत रूप स॑ उतरी
क॑ जमीन स॑ ६ फीि ऊपर नाइरोजन गै स के जे ि फायररिग स॑ सक्षम
सॉफ्ि िि-डाउन कराइ िै । ई अलग-अलग रॉकेि आरू मानि कैप्सूल
दूनू के प्रक्षे पण स॑ ल॑ क॑ िापस उतरै तलक के पूणष रूप स॑ स्ििात्रलत
उिान िै ।

न्दयू शे फडष क॑ िे क्सास, िै न हॉनष के बाहर स॑ "ब्लू ओररणजन" प्रक्षे पण


स्थल साँ लॉन्दि करलऽ गे लऽ जावह में िार यािी िे लै । ई एकदम सही
ि सिीक प्रक्षे पण िल जे लगभग सीध में ऊपर िढ़ल गे ल। एकर
अचधकतम गचत 3 Mach िल। रॉकेि बनष-आउि T+
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 163

2'21" पर 183 हज़ार फुि AMSL ऊंिाई पर पूरा भे ल आ वकिु


से केंड में कैप्सूल साँ पृथक भ गे ल । मानि कैप्सूल वबना इं जन के ऊपर
िढ़ै त रहल आ ~230 हज़ार फुि AMSL पर T+ 2'35" पर
गुरुत्ि विहीन, भार विहीन 0-G में प्रिे श केलक । कैप्सूल T+
4'03" तक ~351 हज़ार फुि के त्रशखर ऊंिाई पर िढ़ै त रहल
याित् ओकर गचत शून्दय नहहि भ गे ल आ तखन वनमुषक्त रूपे ण (free
fall) नीिााँ वगरय लागल । गुरुत्ि िा भार विहीन 0-
G अिचध T+5'32" पर 225 हज़ार फुि AMSL के ऊंिाई पर
समाप्त भे ल जावह पश्चात् कैप्सूल िायुमंडल में पुन प्रिे श (Re-
Entry) कएलक | एवह तरहेँ पयषिक लोकवन केँ कुल
लगभग 3 चमनिक गुरुत्ि विहीन या भर विहीन 0-G के अनुभि भे ल।
164 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

िायुमंडल में पुनप्रषिेश (Re-Entry) लगभग 1880 MPH गचत


पर 225 हज़ार फुि AMSL पर िल जे कोनाें आकच्छस्मक घिना-
रवहत िल I िायुमंडलीय पुनप्रषिेश के दौरान नहहि ताँ कोनो घर्षण-आवग
दे खल गे ल ने अत्यचधक गचत ह्रास I रोग आरू मुख्य पै राशूि क्रमश T
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 165

+ 8'21" आरू T+ 8'35" प॑


क्रमश 6400 फुि AMSL तथा 3200 फुि AMSL ऊंिाई पर
खुलल I सुरक्षा के दृचष्टकोण साँ पै राशूि खुले के ई ऊंिाई गं भीर रूप
स॑ कम िे लै I मुदा पयषिक मॉड्यूल लगभग 14 MPH के ऊध्िाषधर
गचत साँ एक "नॉि-सो-सॉफ्ि ििडाउन" या यूं कहु वक कनैं डरािै िाला
कठोर लैं हडिग करलक । कठोर जमीनी स्पशष पश्चात् भी कैप्सूल सं तुत्रलत
ि च्छस्थर रहल आओर तीनाें पै राशूि कैप्सूल के डोर साँ जुिल
स्िाभाविक रूप साँ बगल मे नीिा खत्रस पिल यद्यवप 'पयषिक
कैप्सूल' के लैं हडिग पर कोनाें वनयं िण नहहि िलै क I लैं हडिग स्थल 'ब्लू
ओररणजन' के सीमा पररचध क्षे ि के दीिार स॑ लगभग सिल िल जे करा
दे खख िालक दल में अत्यचधक चििता अिश्य भे ल होएत । ओ लोकवन
सुरणक्षत लैं हडिग साँ सिषशक्क्तमान परमे श्वर कें धन्दयिाद दे ने
हे ताह I ग्राउं ड क्रू क॑ ििडाउन स्पॉि प॑ पहुाँ िै म॑ कई चमनि लगलै जे
अनअपे णक्षत िल ।

Drogue Parachute Main Parachute


166 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

Capsule too close to perimeter wall Capsule


harsh Touchdown

"न्दयू शे फडष " कैप्सूल केरऽ ऊाँिऽ आरू िौिा खखिकी स॑ 'िू ररस्ि
व्यूअरत्रशप' या बाहरी दृश्य नीक जकााँ ददखए अचि I पृथ्िी केरऽ
िक्रता, ओकरऽ िारो तरफ के पतला िायुमंडलीय नीला आिरण के
साथ-साथ अं तररक्ष के घुप्प अन्दधकार सभु पयषिक नीक जकााँ दे खलखन्दह
हएब । िीएसएस यूवनिी मे केवबन के भीतर सूयष के तीव्रता चििताजनक
बुझाएल I

उपरोक्त दूनू अलग-अलग उद्यमी के अलग अलग उिान मे यािीगण केँ


कते क रोमां ि महसूस भे ल, ओकर जिाब ताँ ओ सभु पयषिक ही द
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 167

सकैि मुदा कंपनीक कमषिारी आ ओकर मात्रलक ताँ कोनाें एहन शब्द
बाजताह जे पयषिक कें आकर्र्ित कराए में बाधक होए I बे शी मुरा
कमाओक उद्देश्य साँ बनाएल अरबाें डॉलर के उद्यम में ई सब विर्मता
ताँ अपे णक्षत अचि I हालााँ वक अं तररक्ष पयषिन के एखन बाल्यकाल
अचि, दोनाें उद्यमी केँ पयषिक के अपे क्षा पूर्ति कराए में वकिु अचतररक्त
कायष अिश्य करएक पित जे वह साँ ओवह लोकवन के आकर्षण बवढ़
सकए I
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अन्यान्य अं तररक्ष पयमटन उद्यमी

उपरोक्त अं तररक्ष पयषिन उद्यमी िोवि वकिु अन्दय उद्यमी से हो अपन-


अपन पयषिन शुरू कराए में कायषरत िचथ I अमे ररका के बोइं ग कंपनी
अपन िे स्ि परीक्षण के वनकि िचथ I अमे ररकन स्पे स एक्स से हो अपन
फाल्कन-९ पर स्थावपत "क्रू रै गन" स्पे सक्राफ्ि में ५
ददनुक ISS के पयषिन करौलक अचि जे पयषिक ले ल वकिु
असुविधाजनक िलै क I अमे ररका के ही "ओररयन स्पान" पयषिन
ले त्रल अपन अलग स्पे स स्िे शन बना रहल िचथ I रूस के स्पे स एडिें िर
कंपनी से हो अपन अलग पयषिन उद्यम लगा रहल अचि I अनुमान लगा
सकै िी जे िीन से हो पािू नवह रहत I भारत में से हो वकिु स्िािष
अप (बैं गलोर के 'हाइप लक्सरी') अं तररक्ष पयषिन में कायषरत
िचथ I एहन उम्मीद क सकै िी जे आगामी िर्ष ि दशक में अं तररक्ष
पयषिन में महत्िाकां क्षी बढ़ोतरी हएत I ले खक के ओ सभु अं तररक्ष
पयषिन उद्यमी केँ शुभकामना अचि I

अं तररक्ष पयमटन के प्रचतस्पधामत्मक विश्ले षि

िीएसएस यूवनिी मे प्रत्ये क सीि साँ लागल पै घ खखिकी बे सी आकर्षक


भ सकैत अचि जे ओवह वकिु अनमोल क्षणक बे हतर ि सं तोर्जनक
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 169

अनुभि साँ पयषिक कें बे शी आकर्र्ित करत I एवह में वकिु वडजाइन
समीक्षा ि पररितषन अपे णक्षत होएत जे वह साँ पयषिक केँ बे शी
सं तोर्जनक आनं द भे िए, बे शी फायदे मं द भ सकैत अचि I अं तररक्ष
पयषिन में अग्रसर दूनू एजें सी केरऽ तुलनात्मक िणषन वनम्नत्रलखखत
तात्रलका में दे लऽ गे लऽ अचि:

सम्प्रचत अं तररक्ष पयमटन में चििता के विषय

दोनाें उद्यमी के स्पे सक्राफ्ि में जीिन सुरक्षा के वकिु िोि-मोि चििता
से हो बुझाइत अचि I वक पयषिक लोकवन केँ सामान्दय
ओिरआल/आउिवफि/कैजुअल मे अन्दतररक्ष के यािा करबाक
िाही ? वबना स्पे स-सूि कें, वबना पसषनल लाइफ सपोिष त्रसस्िम के
पृथ्िी के िायुमंडलीय िादर साँ ऊपर यािा करनाय खतरनाक होए
िै क I उल्काहपिड ओवह ऊंिाई पर बहुत बि खतरा पै दा क सकैि आरू
कोनो भी कारन यदद यािीगण के केवबन स॑ हिा के दबाि कम भे ल ताँ
170 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

सभु यािी के जीिन दां ि पर लावग जाएत I वबना पूरा दबाि िाला
स्पे स सूि के अभाि में सब यािी आरू िालक दल के क्षणणक मृत्यु भ
सकै अचि । केवबन प्रेशर ररलीफ िाल्ि के अप्रत्यात्रशत विफलता
भयािह भ सकैत अचि I ररिसष ऑक्सीजने शन रक्त साँ ऑक्सीजन
के िूत्रस क बाहर वनकालय ले ल सक्षम अचि जे मुत्श्कल सं 7 से केंड
मृत्यु के समक्ष क दे त I अं तररक्ष उिान में केवबन के दबाि कम होए साँ
मृत्यु एक किु िास्तविकता ि सं भािना अचि । अत , सब के पास
अप्रत्यात्रशत आपातकालीन च्छस्थचत के ले ल स्पे स सूि या फु ल प्रेशर
गारमें ि होबाक िाही, जे वकिु चमनि तक जीिन के महत्िपूणष समय द
सकय जखन वक िालाक ते जी साँ नीिााँ उतरब शुरू क सकय I मानल
जाएत िै वक पवहनें दूनू उद्यमी यािी सुरक्षा ले ली स्पे स सूि उपलब्ध
करै के योजना बनयने िे लै ले वकन बाद म॑ पयषिक के असुविधा दे खख
अपन-अपन वििार बदत्रल ले लकै । यद्द्यवप, हिा दबाि केरऽ
आपातकालीन नुकसान के तहत जान बिाबै बे शी आिश्यक िै ।

उम्मीद अचि वक अं तररक्ष पयषिकऽ के जीिन ि स्िास्थ्य-सुरक्षा ले ली


सब अं तररक्ष यान के वडजाइन म॑ कोनाें तरह के महत्िपूणष विफलता के
विश्ले र्ण करलऽ गे लऽ होतै । ई विफलता त्रभन्दन-त्रभन्दन प्रणाली में भ
सकैत अचि...जे ना वक रॉकेि के प्रज्ित्रलत नै होबय; ओकर नोजल
फावि जाए; यािी या िालक केवबन में हिा दबाि के ह्रास भ
जाए; माइक्रोउल्काहपिड के िोि साँ यान के क्षचतग्रस्त होए
आदद.. आदद.. I
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 171

िै ज्ञावनक मं तव्य

प्राय प्रत्ये क अं तररक्ष उद्यम मे वकिु अं तर्निवहत जोखखम जरूर होइत


िै क I मुदा ककरो जीिन केँ जोखखम पर नवह लगा सकैत िी I कोनो
भी स्पे स िू ररस्ि या अं तररक्ष पयषिक क॑ अमुक उिान स॑ वकिु न्दयूनतम
उम्मीद ि उपरोक्त अपे क्षा अिश्य होएत I ितषमान समय में अं तररक्ष
पयषिन के खिष-रात्रश लगभग वनर्े धात्मक अचि I एतै क बे शी लागत
पर स्पे स िू ररज्म के पे शकश करय िाला कंपनी के प्रत्ये क पयषिक के
सुरणक्षत िापसी ि अपे क्षा के पूरा करय के प्रयत्न करबाक
िाही I 'िर्जिन गै लेच्छक्िक' आरू 'ब्लू ओररणजन' सब उद्देश्य क॑ पूरा
करै िै वक नै , ई फैसला ओकर यािी करतखन्दह मुदा प्रक्षे पण के
विश्ले र्ण ताँ दे खा रहल अचि जे पयषिक के अपे क्षा पूणष नहहि भ रहल
अचि I आिै िाला समय में अं तराषष्रीय प्रचतस्पधाष बढ़ए के सं भािना
अचि जावह में अचधकाचधक अपे णक्षत तत्ि समावहत करए के प्रयास
अिश्य होएत I एवह ले ख के उद्देश्य माि िै ज्ञावनक दृचष्टकोण के सामने
लाबय के अचि I अं तररक्ष पयषिन के ले ल ई एकिा नीक शुरुआत
अचि I

ले खक पररिय- ग्रुप कैप्ि (डा.) िी. एन. झा (MBBS, AMD,


MD, FeISAM) पूिष िायुसेना अचधकारी ि चिवकत्सा अनुसंधान
प्रमुख; बैं गलूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ि स्नातकोत्तर
परीक्षक तथा DRDO साँ से िावनिृत्त िररि िै ज्ञावनक (Sc 'F') ि
सह वनदे शक िचथन I अं तररक्ष विज्ञान में वहनकर त्रलखल
172 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

पुस्तक "Design Concepts in Human Space


Missions) दे श विदे श में प्रित्रलत िखन्दह I

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


पठाउ।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 173

३.पद्य

३.१.प्रमोद झा 'गोकुल' श्रीमै चथली िरणमे

३.२.राज वकशोर चमश्र-नि-पुरान

३.३.आिायष रामानं द मं डल-माय/ मे घ/ िठ परब

३.४.प्रणि कुमार झा- नब युग िै


174 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

३.१.प्रमोद झा 'गोकुल' श्रीमै चथली िरणमे

प्रमोद झा 'गोकु ल'


श्रीमै चिली िरिमे

िलू एम्स एम्स खे लाइ


मुरही किरी खूब खाइ ।।
सूतल रहू ओवढ़ रजाइ ।
भे ले वबयाह बूझू यौ भाइ! ।।
राजक ले ल जे तनलाैं तान ।
से हो लगै ए भै गे ल म्लान।।
िुिा दहीमे ओठङल जान।
पान मखानमे सवि गे ल प्रान।।
मािक मूिा लखख पलै पूरा।
माथक पाग लिा गे ल धूरा।।
गुिबन्ददी गोलै सी गुलिराष ।
काज हमर यै ह रोजमराष ।।
भाङ पीवब सुतलहुाँ बहुते ।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 175

आगां ःाँ पािााँ केलहुाँ बहुते ।।


भे िल की सब कहू सते ।
मर्दित मान आन िल जते ।।
उठू उठू जागू सब मै चथल।
ने मोजर गुजर भे ने शै चथल ।।
जाचत पाचत पािा पािी िोि़ू।
चमचथला वहत अपनाके जोि़ू।।
भे द भाि सब िलपूिषक तोि़ू।
श्रीमै चथली िरणमे मनके मोि़ू।।

-प्रमोद झा 'गोकुल', दीप, मधुिनी (विहार); फोन -9871779851


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३.२.राज वकशोर चमश्र-नि-पुरान

राज वकशोर चमश्र

नि-पुरान

बा ह रे वन खख ध मि़ुआ !
जगलै ओकर भा ग,
अन्दतराष ष्री य भो ज मे ,
पवह रा ओल गे लै पा ग।

ता मक था री -बा िी सभ,
सजल डा इहनि ग-िे बुल पर,
महा भा रतक पुन प्रसा रण,
दे खख रहल लो क केबुल पर।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 177

सद्य दे िता िरे ण्य सवि तु ,


प्रा त का ल सूयष-नमस्का र,
सं गे -सं ग वि ज्ञा नक उदय,
निका -निका आवि ष्का र।

नि पी ढ़ी केँ पुरा न पी ढ़ी साँ


िै की को नो अरा रर ?
बा त के, हो इत अचि बतङ्ङि ,
बा त ले ल वक ए मा रर ?

हो खन्दह स्िा गत मो न साँ ,


नि त्रश ल्पी केँ ,नि सा वह त्यका र,
न्दया य हो अए ,ने वक जुग-जुग साँ
बस हो खन्दह अवह ल्या केःःं उद्धा र।

पवह नो शां चत क िलै क खगता ,


ओवह ना ताँ अचि एखनो ,
असभ्यता मे िलै क हहि सा ,
जे बा त एखन, सएह तखनो ।

नव्यता ििषस्ि ले ल,
अचि बि भे ल अपत्रस आाँ त,
पुरना िा उरक इडली कवह आ
178 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

लगलै ककरो , अनसो हााँ त?

धमष स्था पना बे र-बे र ,


मुक्क्त क नि -नि पं थ,
पुरा न बा िक जी णाे द्धा र,
उगला ह नबका महं थ।

फूलो मा ए िलचथ न बुचध आरर ,


हपि की मा ए िचथ न बुचध आरर ,
कुरुक्षे ि मे भे ल महा भा रत,
खे त-पथा र ले ल एखनो मा रर ।

लो भ, क्रो ध सभिा जी वब ते अचि ,


बदत्रल गे लैक बा ना ,
सा सु-पुतो हु मे एखनो ओवह ना ,
एक दो सर के ता ना ।

धमषवह साँ हर तथ्यक व्या ख्या ,


वि ज्ञा न तो िलक रूवढ़ िा द,
परञ्च मनुक्ख आ प्रकृचत बी ि मे ,
बवढ़ रहल अचि किु सं िा द।

जुग अचि अपन जो गा ि मे ,


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 179

लऽ ली सभिा श्रे य,
अती तक प्रेत घूमैि बवन
'उपमा न' ने वक 'उपमे य'।

पूिष मे जनमल अथष-तं ि,


पूिषहहि सभ्यता जनमल,
जो िल गे ल, वक िु तो िल गे ल,
का ल ने बै सल कलबल।

कते क पुरा न ब्रह्मां ड अचि ?


अचि की एखनो नऽि?
बूढ़ भे ला ह आब सूयष की ?
ता रा गण भे लचथ दऽब ?

बयस भ' गे लै िन्दरमा के ?


वक िमकत एखनो पुरनके िा न?
आवक आओत, नि पी ढ़ी क ले ल
निका वि धु जे हो एत जुआन?

बूढ़बा ठू ट्ठा गा ि रहत,


वक ओकरे सा रा पर तरुण तरु ?
ओ ठहुरी भ' जा रवन बवन जा एत ,
आ' रुम नितुरर आ , सएह बरु ?
180 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

भूचम -उिषरता नूतन अचि , की


प्रकृचत जा इत िचथ झखरल ?
वक िु बा त ताँ अचि ओहन,
जे मा नि जा चत केँ अखिल ।

पुरा न निै त अचि अपन परर चध मे ,


निका के अचि अपने ता ल,
ककर महत्ि ककरा साँ कम अचि ?
महा पञ्च िचथ एक्कर का ल।

ओहो नी क, वक िु नी क इहो ,
दूनू चम त्रल कऽ महो -महो ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


पठाउ।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 181

३.३.आिायष रामानं द मं डल-माय/ मे घ/ िठ परब

आिायम रामानं द मं डल

माय/ मे घ/ छठ परब

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम पीि बनै त है य।


182 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम सपना बनै त है य।

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम आं सू बनै त है य।

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम भय बनै त है य।

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम मुक्त करै त है य।


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 183

माय

माय तोहर प्रेम

प्रेम िान तारो में ददखै त है य।

माय

माय तोहर प्रेम

रामा प्रेम सपना में ददखै त है य।

मे घ

मे घ तोहर केते क रूप ?

तुलसी के घोिा,
184 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

कात्रलदास के दूत,

शास्िी के ने ता,

जे उपरे उपरे

पी जाइत िे !

मे घ तोहर केते क रूप ?

मे घ िे वक बादल !

मे घ बईन के बरसईयत,

बादल बईन के गरजईत,

मोर के निऔले ,

श्याम स िनसी बजबऔलए।

मे घ तोहर कते क रूप ?

पागल परे मी तूं बईन के,

धरती के वपआसल दे इख कए,

परबत जे ना उरोजो के िू इ कए।

अपन बरसा बून्दन से ,


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 185

कएं दय िी ,

धरती के सस्य सामला !

मे घ रामा कते क रूप।

छठ परब

प्रकृचत परब है य।

सूयष के आराधना है य।

िठ परब

नदी आ तालाब सं ग

सूयष के आराधना है य।
186 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

िठ परब

जल सूयष के सं बंध

बरखा िक्र बतबै है य।

िठ परब

मं ि पुजारी वबन

सूयष के आराधना है य।

िठ परब

सूयष मं ददर में

सूयष के पूजा है य।

िठ परब

प्रकृचत परब न

आराधना न पूजा है य।
विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 187

िठ परब

ठे कुआ भोग लागै य

प्रसादी में िू त मानै य।

िठ परब

प्रकृचत परब के

रामा गररमा बिनाइ है य।

-आिायष रामानं द मं डल, सीतामढ़ी।

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३.४.प्रणि कुमार झा- नब युग िै

प्रिि कु मार झा

नब युग छै

फेक न्दयूज़ के िलती िै , नब युग िै

असल खबर आब गलती िै , नब युग िै ।

हहिन्दनू -चमयााँ खूब िलय िै , नब युग िै ।

आर्थिक मुद्दा आह भरय िै , नब युग िै ।

की एं कर, की ने ता, की धमषsक व्यापारी

अमृतकाल में विर् उगलय िै , नि युग िै ।


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 189

मूखषता केर गाल बजय सभिा वडबे ि में

समझदारी के कंठ सुखय िै , नि युग िै ।

नीक त्रशक्षा के मुद्दा गे ल आब कोठी कान्दह पर

सददखन मोबाईल पर रील िलय िै , नब युग िै ।

महं गाई के डाइन कहब पुरान गप्प भे ल

महं गाई आब सास कहबय िै , नि युग िै ।

बे रोजगार भs क ददन भरर िं डैली करता

तै पर से बकिास करय िै , नि युग िै ।

भरल जिानी जे अं वकल सब दे ह िोरौला

व्हाि् सप्प पर ष्ष्प्रिार करय िै , नब युग िै


190 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

की ने ता अपराधी आ की ्ष्टािारी

िसशिग मशीन में सब धुलई िै , नब युग िै ।

वकयौ करय उपिास आं दोलन परिाह की

चमवडया नं गिे नाि करय िै , नब युग िै ।

दे श में कोनो अनािार होय कान वकए दी

से त्रलब्रेिी सब मुाँह सीने िै , नब युग िै ।

एं कर बै सल कोरा में सब बे रा बे री

नै कोनो सिाल करय िै , नि युग िै ।

लागल िै थ सब करय में बस िरण िं दना

िािब सब दरबार करय िै , नि युग िै ।


विदे ह ३९२ म अं क १५ अप्रैल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९२)|| 191

ने ने िलाह भार कान्दह पर ज्ञान - योग के

से झूठsक व्यापार करय िै , नि युग िै ।

खे ल दे खाबय िै सब के ददन राचत मदारी

बताह सगरो दे श बनल िै , नि युग िै ।

सोशल चमवडया पर पसरल िै गारर-गरौअल

सभ्य आिरण झाम गुिई िै , नि युग िै ।

भीितं ि िै भारी सबपर तानाशही

लोकतं ि आब आह भरय िै , नब युग िै ।

उदारिाद आ लोकतं ि के िे हरा एखनो

पुरान गली में खूब त्रलखय िै , नब युग िै ।


192 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

- प्रणि कुमार झा, राष्रीय परीक्षा बोडष नई ददल्ली

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