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ISSN 2229-547X VIDEHA

𑒀
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)
[विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in ]

विदे ह मै थिली सावहत्य आन्दोलन: मानुर्ीथमह सं स्कृताम्

विदे ह- प्रिम मै थिली पाक्षिक ई-पत्रिका

सम्पादक: गजे न्द्र ठाकुर।


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विदे ह- प्रथम मै धथिी पाक्षिक ई पलिका िरर पह, रि अधि, जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकालशत होइत अधि। आि
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समानान्द्तर परम्पराक विद्यापधत- धरि विदे ह सम्मानस, सम्मावनत श्री पनकिाि मण्डि द्वारा

मै धथिी भाषा जगज्जननी सीतायााः भाषा आसीत् । हनुमन्द्ताः उक्तिान- मानुषीधमह सं स्कृताम् ।

अक्खर खम्भा (आखर खाम्ह)

धतहअन िे त्तवह काक्षि तसु वकलत्तिल्ल्ि पसरे इ। अक्‍टिर िम्भारम्भ जउ मञ्चो िन्न्द्ि न दे इ॥ (कीर्तिंिता प्रथमाः
पल्ििाः पवहि दोहा।)

माने आिर रूपी िाम्ह वनमाा कऽ ओइपर (गद्य-पद्य रूपी) मं र ज, नै िान्द्हि जाय त, ऐ लिभुिनरूपी िे िमे ओकर
कीर्तिंरूपी ित्ती केना पसरत।

शुक्‍टि यजुिेद (२६.२)-यथे मां िारं कल्या ीमािदावन जने भ्याः। ब्रह्मराजन्द्याभ्यां शूदराय रायााय र स्िाय रार ाय
र।।हम सभ गोटे कें ई पविि िा ी (िे दिा ी) सुनािी। ब्राह्म कें, िलियकें, शूदरकें आ आयाकें; अपन िोककें आ
अपररधरतकें से हो (माने सभकें)। मुदा ऐ िे दिाक्‍टयक विपरीत मनुस्मृधत िे दिा ीक अध्ययन/ श्रि कें समाजक
वकिु गोटे िे ि वनषे ि करऽ राहिक, मुदा स्मृधत से हो िे दिाक्‍टयकें प्रमा मानै त अधि (शब्द प्रमा ) तें तकर विरु्
दे ि ओकर वनदे श स्ियं अमान्द्य भऽ जाइत अधि।

ॐ द्यौ: शान्तिरतिररक्ष ग्वंग शान्तििः पथ्


ृ वी शान्तिराप:
शान्तिरोषधय: शान्ति वनस्पिय: शान्तिर्विश्वे दे वा:
शान्तिर्ब्िह्म
𑓇 𑒠𑓂𑒨𑒾 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭 𑓅 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 �� 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩 𑒣𑒵: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩 𑒭𑒡𑒨: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱
𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒞𑒨: 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩𑓂𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧

ब्रह्मणसँ प्रार्थना जे द्युलोकमे, अंतरिक्षमे, पृथ्वीपि, जलमे, औषधमे,


वनस्पततमे, तवश्वमे, सभ दे वतागणमे आ ब्रह्ममे शांतत हुअय।

ॐ-ब्रह्मण, द्यौ-सूय-थ तिेगण, अंतरिक्ष- पृथ्वी आ द्यूलोकक बीच, आप:-


जल, तवश्वेदेवा- सभ दे वता, ब्रह्म- सजथक।

𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝𑒮𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒰 𑒩𑓂𑒟𑒢 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒣𑒵𑒩, 𑒠𑓂𑒨𑒾 ,
𑒎𑒭𑒡𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫 𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 𑒑𑒝𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒂 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞
𑒯𑒳𑒁𑓀𑒨।
𑓇-𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝, 𑒠𑓂𑒨𑒾 -𑒮𑒿𑒨-𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩𑒑𑒝, 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭- 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒂 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒏 𑒩𑓂𑒥𑓂 𑒔,
𑒂𑒣𑒵:- , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 - 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 , 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧- 𑒮𑒿 𑒏।

𑒀
ॐ, स॒हस्र॑शीषाथ॒ पुर॑षः। स॒ह॒स्रा॒क्षः स॒हस्र॑पात्।

𑓇, 𑒮𑒿↓𑒯𑒮𑓂𑒩↑𑒬𑒰 𑒭 ↓ 𑒣𑒳𑒩𑒳↑𑒭�। 𑒮𑒿↓𑒯↓𑒮𑓂𑒩 ↓𑒏𑓂𑒭� 𑒮𑒿↓𑒯𑒮𑓂𑒩↑𑒣𑒵 𑒞𑓂।

स भूमम ॑ ग्वंग तव॒श्वतो॑ वृ॒त्वा। अत्य॑ततष्ठद् दशाङगु॒लम्॥

𑒮𑒿 𑒦𑒴𑒢𑓂𑒞𑒱 ↑𑓅 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫↓ 𑒠𑓂𑒨𑒾𑒞 ↑ 𑒫↓𑒞𑓂𑒫𑒰 । 𑒁𑓀𑒞𑓂𑒨↑𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒭𑓂𑒚𑒠𑓂 𑒬𑒰 𑒓𑓂𑒑𑒳↓ 𑒧𑓂॥

हजाि मार्, हजाि आँखि, हजाि पएि संग तवश्वकेँ आच्छाददत केने
अछि, दस आंगुिक गनतीक वशमे नै अछि ओ।
प॒द्् याग्ँ ॑ शूद्रो
॒ अ॑जायत॥

𑒣𑒵↓𑒠𑓂𑒦𑓂𑒨 𑒑𑓂�↑ 𑒬𑒰↓𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒁𑓀↑ 𑒨𑒞॥

पएिसँ शूद्रक उत्पत्ति भेल॥

प॒द्् यां भूमम॒र्दशः॒ श्रोत्रा᳚त्।

𑒣𑒵↓𑒠𑓂𑒦𑓂𑒨 𑒦𑒴𑒢𑓂𑒞𑒱 ↓𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒬𑒰�↓ 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒞𑓂𑒩𑒰 ↑↑𑒞𑓂।

मुदा पएिेसँ भूममयोक उत्पत्ति।

❀ (White Florette- innocence and purity)


☸ (Wheel of Dharma)
࿕(Swastik)
𑓅 (Gwang ग्वंग- two small circles connected by u and
a dot placed over it, used in reference of Vedic texts)
꣼ (छसद्धििस्तु, छसिम 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒮𑒿𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩𑒮𑓂𑒞𑒳, 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒮𑒿 Devanagari Anji)

ঀ (Bengali Anji, Siddham)


𑒀 (Tirhuta Anji, Ankush of Ganeshji, placed at the
beginning of something)
सोशि मीवडया, अन्द्तजााि आ दूरदशानक कायाक्रम सभमे िे दमे ई लििि अधि, ई िर् िंत अधि, शूरक प्रधत, स्िीक
प्रधत, शूरक स्िीक प्रधत अपमान जनक गप लििि अधि; ई सभ सूवन कऽ वकयो विकीपीवडया आ आन आन ठाम
अन्द्तजाािपर िे ि सभमे पररितान कऽ दे ने रहधथ। एक गोटे अं ्रहेजीमे लिििवन- “अथिािेदमे शूरक पत्नीकेँ विना
स्िीकृधतक वकयो हाथ पकवड़ िऽ जा सकय, ििा िक्‍टतव्य अधि।” हम कुरुिे िम् अन्द्तमानक, िण्ड-८; प्रिन्द्ि
वनिन्द्ि समािोरना भाग-२, २०१४ मे अपन आिे ि “विद्यापधत: वकिु प्ररलित कुप्ररारक वनिार ” मे लििने रही-
“.. ई ओवहना भे ि जे ना अथिािेदमे शूरक पत्नीकेँ विना स्िीकृधतक वकयो हाथ पकवड़ िऽ जा सकए ििा
िक्‍टतव्य।”
मुदा अथिािेद िा कोनो िे दमे ओइ तरहक िक्‍टतव्य कत्तौ नै आयि अधि। तकर विपरीत शुक्‍टि यजुिेद ई कहै त
अधि:-
शुक्‍टि यजुिेद (२६.२)-यथे मां िारं कल्या ीमािदावन जने भ्याः। ब्रह्मराजन्द्याभ्यां शूराय रायााय र स्िाय रार ाय
र।।हम सभ गोटे कें ई पविि िा ी (िे दिा ी) सुनािी। ब्राह्म कें , िलियकें, शूरकें आ आयाकें; अपन िोककें आ
अपररधरतकें से हो (माने सभकें)। मुदा ऐ िे दिाक्‍टयक विपरीत मनुस्मृधत िे दिा ीक अध्ययन/ श्रि कें समाजक
वकिु गोटे िे ि वनषे ि करऽ राहिक, मुदा स्मृधत से हो िे दिाक्‍टयकें प्रमा मानै त अधि (शब्द प्रमा ) तें तकर विरु्
दे ि ओकर वनदे श स्ियं अमान्द्य भऽ जाइत अधि।
िे द मे उपिब्ि शूर शब्दक उल्िे खित अं शक सं ्रहह नीरा, दे ि जा रहि अधि। शूरक अपमानजनक उल्िे ि त, नवहये
अधि, िरन् पएरस, पविि पृथ्िीक जन्द्मक उल्िे ि अधि आ तही उत्पलत्तक सादृश्यताक कार स, मानि समुदायक
पािक शूर कहि गे ि िधथ।
प॒द्भ्याग्, ्ँ॑ शूू॒रो अ॑जायत॥

पएरस, शूरक उत्पलत्त भे ि॥

प॒द्भ्यां भूधम॒र्दिंश॒ाःिं श्रोिा᳚त्।

मुदा पएरे स, भूधमयोक उत्पलत्त।

REFERENCE OF SHUDRAS IN VEDAS [Dr Tulsi Ram, 2013, Atharveda:


Samaveda: Yajurveda: Rigveda; English Translations]

ATHARVA VEDA (3 references)

KANDA-14
(MARRIAGE AND FAMILY) Kanda 14/Sukta 1 (Surya’s Wedding)
Devata: Dampati; Rshi: Surya Savitri
60. Bhagastataksha caturah padanbhagastataksha catvaryuspalani. Tvasta
pipesa madhyatonu vardhrantsa no astu sumangali.
Bhaga, lord sustainer and ordainer of life, has framed the value orders of
life: Dharma, Artha, Kama and Moksha; four social orders: Brahmana,
Kshatriya, Vaishya and Shudra; four stages of personal life: Brahmacharya,
Grhastha, Vanaprastha and Sanyasa. Tvashta, lord maker and organiser of
life, has placed the woman as partner of man in matrimony in this order and
organisation. May the bride be good and auspicious for us.
भाग- पािनकताा आ जीिनक अधिष्ठाता- जीिनक मूल्य क्रम तै यार केने िधथाः िमा, अथा, काम आ मोि; रारर
सामाक्षजक क्रम- ब्राह्म , िलिय, िै श्य आ शूर; व्यक्क्‍टतगत जीिनक रारर रर - ब्रह्मरया, गृहस्थ, िानप्रस्थ आ
सन्द्यास।त्िष्टा- स्िामी वनमााता आ जीिनक आयोजक- एवह क्रममे आ सङ्गठनमे स्िीकेँ वििाहमे पुरुषक साथीक
रूपमे रिने िधथ। से ििू हमर सभक िे ि नीक आ शुभ होधथ।
Kanda 19/Sukta 6 (Purusha, the Cosmic Seed)
Purusha Devata, Narayana Rshi
6. Brahmano sya mukhamasid bahu rajanyo bhavat. Madhyam tadasya
yadvaishyah padbhyam sudro ajayata.
Brahmana, (man of knowledge, divine vision and the Vedic Word in the
human community) is the mouth of the Samrat Purusha. Kshatriya, man of
justice and polity, is the arms of defence and organisation. The middle part
is the Vaishya who produces and provides food and energy. And the
ancillary services that provide sustenance and support with auxiliary labour
are the feet, the Shudra that bears the burden of society.
ब्राह्म (्ानी, ददव्य दृधष्ट आ मानि समुदाय िे ि िै ददक शब्द) सम्राट पुरुषक मुि अधि। िलिय -न्द्याय आ
राजनीधतक िोक- रिा आ सङ्गठनक हाथ िधथ। मध्य भाग िै श्य िधथ जे भोजन आ ऊजााक उत्पादन आ आपूर्तिं
करै त िधथ। आ सहायक से िा जे सहायक श्रमक सङ्ग वनिााह आ सहायता प्रदान करै त अधि, ओ अधि पै र, शूर
जे समाजक भार िहन करै त िधथ।

Kanda 19/Sukta 32 (Darbha)


Darbha Devata, Bhrgu Ayushkama Rshi
8. Priyam ma darbha krunu brahmarajanyabhyam sudraya charyaya cha.
Yasmai ca kamayamahe sarvasmai cha vipasyate.
O Darbha, destroyer and preserver, eternal sanative, render me dear and
loving to and loved by all Brahmanas, Kshatriyas, Vaishyas, Shudras,
whoever we love and desire, and all those who have the eye to see (and
discriminate right and wrong).
हे दभाा, विनाशक आ सं रिक, शाश्वत वििे कशीि; हमरा सभकेँ ब्राह्म , िलिय, िै श्य, शूर, सभक धप्रय आ प्रेमी
िना ददअ। सं गे ओ सभ हमरा सभस, प्रेम् करधथ क्षजनका स, हम प्रेम करी िा क्षजनकर कामना करी; आ ओ सभ
क्षजनका िग दे ििाक दृधष्ट अधि (आ सही आ गितमे भे द िुझैत िधथ)।

SAMAVEDA (o reference)

YAJURVEDA (7 references)
CHAPTER- VIII
30. (Dampati Devata, Atri Rshi)
Purudasmo visuruupa indurantarmahimanamanaja dhirah. Ekapadim
dvipadim tripadim chatupadimastapadim bhuvananu prathantam svaha.

The man of mighty deeds, who eliminates suffering and creates joy, of
versatile attainments, bright and honourable, constant and resolute, should
wait for the great new arrival. Men of the household, cultivate the vaidic
culture of one, two, three, four and eight steps of attainment: one: Aum; two:
worldly fulfilment and the freedom of moksha; three: the joy of the truth of
word and the health of body and mind; four: the attainment of Dharma,
wealth, fulfilment of desire, and moksha; eight: the joy of all the four classes
and all the four stages of life (Brahmana, Kshatriya, Vaishya and Shudra,
Brahmacharya, Grihastha, Vanaprastha and Sanyasa). Build homes for the
people and advance in life.
शक्क्‍टतशािी कमाक पुरुष, जे दाःिकेँ समाप्त करै त अधि आ आनन्द्द उत्पन्द्न करै त अधि, िहमुिी उपिस्ब्िक,
उज्ज्िि आ सम्मानजनक, स्स्थर आ दृढ़ सं कस्ल्पत, ओकरा महान नि आगमनक प्रतीिा करिाक राही। घरक
िोक, उपिस्ब्िक एक, दू, तीन, रारर आ आठ रर क िै ददक सं स्कृधत विकलसत करै त िधथाः एकाः ओम; दइाः
सां साररक पूर्तिं आ मोि रूपी स्ितन्द्िता; तीनाः िरनक सत्यक आनन्द्द आ शरीर आ मस्स्तष्कक स्िास्थ्य; रारराः
िमाक प्राप्प्त, िन, इच्छाक पूर्तिं, आ मोि; आठाः जीिनक रारर िगा आ रारर रर क आनन्द्द (ब्राह्म , िलिय,
िै श्य आ शूर, ब्रह्मरया, गृहस्थ, िनप्रस्थ आ सन्द्यास)। िोकक िे ि घर िनाउ आ जीिन मे प्रगधत करू।

CHAPTER- XVIII
48. (Brihaspati Devata, Shunah-shepa Rshi)
Rucham no dhehi brahmanesu rucham rajasu naskrudhi. Rucha vishyesu
shudreshu mayi dhehi rucha rucham.
Brihaspati, lord of the universe, eminent teacher and master of vast
knowledge, inspire our Brahma section of the community—scholars,
scientists, teachers and researchers with brilliance and love. Infuse
brilliance, love and justice into our Kshatrias, defence, administration and
justice section of the community. Bless with light, love and generosity our
Vaishyas, producers and distributors among the community. And bless our
Shudras, the ancillary services, with light, love and loyalty. Bless me with
light and love toward us all.
िृहस्पधत- ब्रह्माण्डक स्िामी, प्रख्यात लशिक आ विशाि ्ानक स्िामी- समुदायक ब्रह्म िगा- विद्वान, िै ्ावनक,
लशिक आ शोिकताा- केँ प्रधतभा आ प्रेम स, प्रेररत करू। हमर िलिय-रिा, प्रशासन आ न्द्याय- समुदायक िगामे
प्रधतभा, प्रेम आ न्द्यायक सं रार करू। हमर िै श्य-समुदायक वनमााता आ वितरक- सभकेँ प्रकाश, प्रेम आ उदारतास,
आशीिााद ददयौ। आ हमर सभक शूर -समुदायक सहायक से िी- केँ प्रकाश, प्रेम आ वनष्ठा स, आशीिााद ददयौ। हमरा
सभ केँ प्रकाश आ प्रेम स, आशीिााद ददयौ।

CHAPTER- XXV
23. (Dyau etc. Devata, Prajapati Rshi)
Aditirdyauraditirantarikshamaditirmata sa pita sa putrah. Vishve deva
aditih pancha jana aditirjatamaditirjanitvam.
In the essence: Light is indestructible; sky is indestructible; mother Prakriti
(matter-energy-thought) is indestructible; Father, the Cosmic Spirit is
indestructible; Son, the soul (jiva), is indestructible; all the divinities of
nature and humanity are indestructible; five people, Brahmana, Kshatriya,
Vaishya, Shudra, others, are indestructible; whatever is born is
indestructible; whatever will be born is indestructible. (All that was, is and
shall be is indestructible in the essence.)
सारमे : प्रकाश अविनाशी अधि; आकाश अविनाशी अधि; माता प्रकृधत (पदाथा-ऊजाा-विरार) अविनाशी अधि;
वपता, ब्रह्मां डीय आत्मा अविनाशी अधि; पुि, आत्मा (जीि) अविनाशी अधि; प्रकृधत आ मानिताक सभ दे ित्ि
अविनाशी अधि; पा, र व्यक्क्‍टत, ब्राह्म , िलिय, िै श्य, शूर आ आन अविनाशी अधि; जे वकिु जन्द्मि अधि से
अविनाशी अधि; जे वकिु जन्द्मत से अविनाशी अधि। (जे वकिु िि, अधि िा रहत/ आओत से सार मे अविनाशी
अधि।)

CHAPTER- XXVI
2. (Ishvara Devata, Laugakshi Rshi)
Yathemam vacham kalyanimavadani janebhyah. Brahmarajanyabhyam
Shudraya charyaya cha svaya charayaya cha. Priyo devanam dakshinayai
daturiha bhuyasamayam me kamah samrudhyatamupa mado namatu.
Just as this blessed Word of the Veda I speak for the people, all without
exception, Brahmana, Kshatriya, Shudra, Vaishya, master and servant,
one’s own and others, so do you too. May I be dear and favourite with the
noble divinities and the generous people for the gift of the sacred speech.
May this noble aim of mine be fulfilled here in this life. May the others too
follow and come my way beyond this life.
जे ना िे दक ई िन्द्य िरन हम विना कोनो अपिादक, ब्राह्म , िलिय, शूर, िै श्य, स्िामी आ से िक, अपन आ अन्द्य
िोकक िे ि कहै त िी, तवहना अहा, से हो करै त िी। पविि भाष क ऐ उपहारक िे ि हम महान दे ित्ि आ उदार
िोक सभक धप्रय आ मनभािन रही। हमर ई महान उद्देश्य ऐ जीिन मे पूर हअय। आन सभ से हो हमर मागाक
अनुसर करै त िढ़ै त जाय आ से ऐ जीिनस, आगा, िरर िढ़य।

CHAPTER- XXX
5. (Parameshvara Devata, Narayana Rshi)
Brahmane brahmanam kshatraya rajanyam marudbhyo vaishyam tapase
Shudram tamase taskaram narakaya virahanam papmane
klibamakrayayaayogum kamaya punshchalumatikrustaya magadham.
Give us, we pray, the Brahmanas for education and research, culture and
human values; the Kshatriyas for governance, defence and administration;
the Vaishyas for economic development, and the Shudras for assistance and
labour in the ancillary services. Remove, we pray, the thief roaming in the
dark, the murderer bent on lawlessness, the coward disposed to sin, the
armed terrorist bent on destruction, the harlot out for pleasure of flesh, and
the bastard fond of scandal.
Note: In mantras 5-22 in which various aspects of organised life are listed,
there is repetition of ‘asuva’ and ‘parasuva’ from mantra 3, which means:
‘Give us, we pray, what is good’, and, ‘Remove, we pray, what is evil’. This is
the prayer. Also, there are echoes of ‘havamahe’ from mantra 4, which
means: ‘We invoke and develop’, and, ‘we challenge and fight out’. This is
the call for action under the divine eye.
लशिा आ शोि, सं स्कृधत आ मानिीय मूल्यक िे ि ब्राह्म ; शासन, रिा आ प्रशासनक िे ि िलिय; आर्थिंक
विकासक िे ि िै श्य; आ सहायक से िामे सहायता आ श्रम िे ि शूर हमरा ददअ से हम प्राथाना करै त िी। हम प्राथाना
करै त िी जे अन्द्हारमे घुमैत रोर, अराजकता पर विता िूनी, पाप पर विता कायर, विनाश पर विता सशस्ि आतं किादी,
दै वहक सुि िे ि िाहर गे ि िे श्या, आ किं कक शौकीन नाजायजकेँ हटा ददयौ।
नोटाः मं ि 5-22 मे , जइमे सं गदठत जीिनक विलभन्द्न पि सूरीि् अधि, मं ि 3 स, 'आशुिा' आ 'परशुिा' क
पुनरािृलत्त होइत अधि, जकर अथााः 'हमरा सभ केँ ददअ, हम प्राथाना करै त िी, जे नीक अधि', आ, 'हटाउ, हम
प्राथाना करै त िी, जे अििाह अधि'। ई प्राथाना अधि। सङ्गवह, मं ि 4 स, 'हिामाहे ' क प्रधतध्िवन अधि, जकर
अथााः 'हम आह्वान करै त िी आ आगू िढ़िै िी', आ, 'हम मा, वट दइ िी आ िड़ै िी'। ई ददव्य दृधष्टक अन्द्तगात काज
करिाक आह्वान अधि।

CHAPTER- XXX
22. (Rajeshvarau Devate, Narayana Rshi)
Athaitanastauau virupanalabhateitidirgham chatihrasvam chatisthulam
chatikrusham chatishuklam chatikrushnam chatikulvam chatilomasham
cha. Ashudra abrahmanaste prajapatyah. Magadhah punshchali kitavah
kliboshudra abrahmanaste prajapatyah.
The good human being accepts and works with these eight classes of people
of different forms and colours: too tall, too short, too fat, too thin, too white,
too dark, too hairless, too hairy. Also they are neither Brahmanas nor
Shudras (nor the others). They too, all of them, are children of God,
Prajapati. Even the bastard and the ‘despicable’, the wanton, the gambler,
and the coward and the eunuch, neither Shudras nor Brahmanas (nor the
others), they too are children of God, Prajapati, father of all.
नीक िोक विलभन्द्न रूप आ रङ्गक ऐ आठ िगाक िोकक सं ग स्िीकार करै त अधि आ काज करै त अधिाः िूि
िम्िा, िड्ड िोट, िड्ड मोट, िूि पातर, िड्ड गोर, िड्ड कारी, िहत कम केशििा, िूि केशििा। ओ सभ ने ब्राह्म
िधथ, नवहये शूर (आ नवहये आन वकयो)। ओ सभ से हो भगिान प्रजापधतक सन्द्तान िधथ। एतऽ िरर जे नाजायज
िा 'घृक्ष त', ऊिमी, जुआरी, आ कायर आ नपुंसक, ने शूर, नवहये ब्राह्म (नवहये आन वकयो), ओ सभ से हो
भगिान प्रजापधतक सन्द्तान िधथ, प्रजापधत- सभक वपता।

CHAPTER- XXXI
11. (Purusha Devata, Narayana Rshi)
Brahmanosya mukhamashid bahu rajanyah krutah. Uru tadasya
yadvaishyah padbhyam Shuudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. The Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
support with labour is the Shudra who bears the burden of the human
family.
ददव्य दृधष्ट आ िै ददक िरनक िोक ब्राह्म , सम्राट पुरुष-मानि समुदाय-क मुि िधथ। न्द्याय आ लशष्टताक िोक
िलियकेँ रिाक हधथयारक रूपमे िनाओि गे ि अधि। िै श्य, जे समाजक िे ि भोजन आ िन उत्पन्द्न करै त िधथ,
जां घ िधथ। आ श्रमक सङ्ग वनिााह आ सहारा दे िऽििा व्यक्क्‍टत शूर िधथ जे मानि पररिार सभकक भार िहन
करै त िधथ।

RIG VEDA (2 references)


Mandala 10/Sukta 90
Purusha Devata, Narayana Rshi
12. Brahmano sya mukhamasidbahu rajanyah kritah. Uru tadasya
yadvaisyah padbhyam sudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and the Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
ancillary support with labour is the Shudra who bears the burden of the
human family as the legs bear the burden of the body.
ददव्य दृधष्ट आ िै ददक िरन ििा ब्राह्म , सम्राट पुरुष-मानि समुदाय- क मुि िधथ। िलिय- न्द्याय आ राजनीधतक
िोक- केँ रिाक हधथयारक रूपमे िनाओि गे ि अधि। िै श्य, जे समाजक िे ि भोजन आ िन उत्पन्द्न करै त िधथ,
जां घ िधथ। आ जीविकोपाजान आ श्रमक सङ्ग सहायक व्यक्क्‍टत शूर िधथ जे मानि पररिारक भार िहन करै त िधथ
जे ना पै र शरीरक भार िहन करै त अधि।

Mandala 10/Sukta 124


Devata: Agni (1); Rshi: Agni, Varuna, Soma
1. Imam no agna upa yajnamehi panchayamam trivritam saptatantum. Aso
havyavaluta nah puroga jyogeva dirgham tama ashayishthah.
Agni, yajnic light of life, come to this life yajna of ours: which has five
divisions, i.e., Brahma-yajna, Deva-yajna, Pitr-yajna, Atithi-yajna, and
Balivaishvadeva-yajna; conducted by five people, i.e, four socioeconomic
classes of Brahmans, Kshatriyas, Vaishyas and Shudras and others like
chance visitors from other groups there might be; which is threefold, i.e.,
paka yajna, haviryajna and somayajna; and which has seven extensions, i.e.,
Agnishtoma, Atyagnishtoma, Ukthya, Shodashi,Vajapeya, Atiratra and
Aptoyami. You are our leader and pioneer, Agni, and you are the carrier of
our yajna to the divinities as well as harbinger of the fruits of yajna to us.
Pray come and be our all-time dispeller of the cavern of deep darkness from
life. (Yajna is a creative process of development in life from the individual
to the social, national, global and environmental level of life. The
explanation above is related to the social level. Swami Brahmamuni explains
the yajna at the individual level, and that is also suggested in Rgveda 10, 7,
6: ‘Svayam yajasva’, and yajurveda 4, 13: “Iyam te yajniya tanu”, which
means: Develop yourself by yajna according to the seasons of your growth,
and remember your life in body, mind and soul is worthy of yajnic service
for your personal development, your body being the first instrument of your
wider yajna of life. This personal yajna is fivefold, for the elemental balance
of earth, water, heat, air and ether; threefold for the balance of vata, pitta
and kaf, and also for balanced growth of body, mind and soul; sevenfold for
the growth of rasa, rakta, mansa, meda, asthi, majja and virya. Thus yajna is
the process of growth beginning with the individual, accomplished at the
cosmic level.)

अप्नन -जीिनक य्क प्रकाश- हमर सभक ऐ जीिन-य्मे आउ, जइमे पा, र विभाग िै , अथाात, ब्रह्म-य्, दे ि-य्,
वपतृ-य्, अधतधथ-य्, आ िलििै श्वदे ि-य्; पा, र िोक द्वारा सं रालित, अथाात, ब्राह्म , िलिय, िै श्य आ शूर क
रारर सामाक्षजक-आर्थिंक िगा आ पा, रम आन समूह किनो काि आयि आगं तुक। आ से तीनटा िै - अथाात, पाक
य्, हविया् आ सोमय्; आ जकर सात विस्तार िै , अथाात, अप्ननष्टोम, अत्यप्ननष्टोम, उक्‍टत्या, षोडषी, िाजपे य,
अधतराि आ अप्तोयमी। अप्नन, अहा, हमरा सभक ने ता आ अ्रहगामी िी, आ अहा, दे ित्ि िे ि हमर य्क िाहक
िी आ सङ्गवह हमरा सभक िे ि य्क फिक अ्रहदूत िी। प्राथाना अधि जे आउ आ हमरा सभक जीिन तरहरर
सन अन्द्हार सदाक िे ि दूर करै ििा िनू। (य् व्यक्क्‍टतगतस, जीिनक सामाक्षजक, राष्रीय, िै क्षश्वक आ पयाािर ीय
स्तर िरर जीिनक विकासक एकटा ररनात्मक प्रवक्रया अधि। उपरोक्‍टत व्याख्या सामाक्षजक स्तरस, सम्िन्न्द्ित अधि।
स्िामी ब्रह्ममुनी व्यक्क्‍टतगत स्तर पर य्क व्याख्या करै त िधथ, आ ई ऋनिे द 10,7,6 मे से हो सुझाओि गे ि अधिाः
'स्ियं य्'; आ यजुिेद 4,13: 'इयम ते य्ीय तनू', जकर अथा अधि- अपन विकासक ऋतुक अनुसार य् द्वारा
अपना केँ विकलसत करू, आ मोन रािू जे शरीर, मन आ आत्मा युक्‍टत अहा, क जीिन य्क से िाक िे ि अधि, आ
तइस, अहा, क व्यक्क्‍टतगत विकास हएत; अहा, क शरीर अहा, क जीिनक व्यापक य्क पवहि सािन अधि। ई
व्यक्क्‍टतगत य् पा, र प्रकारक अधि, पृथ्िी, जि, ऊष्मा, िायु आ आकाशक मौलिक सं तुिनक िे ि; तीन प्रकारक-
िात, वपत्त आ कफक सं तुिनक िे ि; आ शरीर, मन आ आत्माक सं तुलित विकासक िे ि से हो; सात प्रकारक
माने रस, रक्‍टत, मानस, मे िा, अस्स्थ, मज्जा आ वियाक विकासक िे ि। ऐ तरहेँ य् व्यक्क्‍टतस, शुरू होइत विकासक
प्रवक्रया अधि, जे ब्रह्मां डीय स्तर पर सम्पन्द्न होइत अधि।)
आब आउ यूरोपक विद्वान लोकवन द्वारा िे दक गलत अनुिादक वकछु उदाहरण दे खू:-
EXAMPLES OF SOME MISTRANSLATIONS OF VEDAS BY WESTERN
SCHOLARS

W.D. Whitney’s translation of the Atharvaveda (7, 107, 1) edited and revised
by K.L. Joshi, published by Parimal Publications, Delhi, 2004:

Namaskrutya dyavapruthivibhyamantarikshaya mrutyave.

Mekshamyurdhvastisthaan ma ma hinsishurishvarah.

“Having paid homage to heaven and earth, to the atmosphere, to Death, I


will urinate standing erect; let not the Lords (Ishvara) harm me.” I give
below an English rendering of the same mantra translated by Pundit
Satavalekara in Hindi:
“Having done homage to heaven and earth and to the middle regions and
Death (Yama), I stand high and watch (the world of life). Let not my masters
hurt me.”

An English rendering of the same mantra translated by Pundit Jai Dev


Sharma in Hindi is the following:

“Having done homage to heaven and earth (i.e. father and mother) and to
the immanent God and Yama (all Dissolver), standing high and alert, I move
forward in life. These masters of mine, pray, may not hurt me.”

I would like to quote my own translation of the mantra now under print:

“Having done homage to heaven and earth, and to the middle regions, and
having acknowledged the fact of death as inevitable counterpart of life
under God’s dispensation, now standing high, I watch the world and go
forward with showers of the cloud. Let no powers of earthly nature hurt and
violate me.”

‘Showers of the cloud’ is a metaphor, as in Shelley’s poem ‘the Cloud’: “I


bring fresh showers for the thirsting flowers”, which suggests a lovely
rendering.

The problem here arises from the verb ‘mekshami’ from the root ‘mih’
which means ‘to shower’ (sechane). It depends on the translator’s sense and
attitude to sacred writing how the message is received and communicated
in an interfaith context with no strings attached (or unattached).

[Dr Tulsi Ram, 2013, Atharveda: English Translation; Page xxvi]

II

The idea that there was slavery in the Vedic Society originated with the
Western Indologists with their intentional or careless translation of a
Sanskrit word into “slave”. For example, in the Taittiriya Samhita (Krishna
Yajurveda), [7.5.10] [kanda 7,prapathaka 5, verse 10], a part of translation
by Keith reads “slave girls dance around the fire”. But in a footnote in the
same page [pg., 628, Vol. 2] the author Keith says that the verse describes the
dance of maidens. Suddenly the maidens have become “slave girls”. Both
Paranjape and Avinash Bose point to the mistranslation of the word ‘yosha’
as courtesan by the indologist Pischel [Bose, Hymns from the Veda, p. 36].

[Veda Books,SRI AUROBINDO KAPALI SHASTRY INSTITUTE OF VEDIC


CULTURE, page 240]

III

In 1795, H.T. Colebrooke, then a young scholar, wrote his maiden paper, “On
the Duties of a Faithful Hindu Widow,” for the Asiatic Society (Asiatic
Researches IV 1795: 205-15). He cited the hymn from the Rig Veda as
sanctioning widow burning, which William Jones immediately contested
(Canon 1993 I:lxx). Colebrooke translated the end of the hymn as “let them
pass into fire, whose original element is water.” A quarter of a century later,
the Orientalist, H.H. Wilson pointed out that the hymn had been distorted
(Wilson 1854: 201-14; Cassels 2010: 89). Wilson translated the verse as per
the reading corroborated by Sayana, the authoritative medieval
commentator on the Vedas, and demonstrated that it did not refer to widow
burning (Rocher and Rocher 2012: 24-25).

[Meenakshi Jain,2016; Sati: Evangelicals, Baptist Missionaries; and the


Changing Colonial Discourse, Page 5)

Do not judge each day by the harvest you reap but by the seeds that you
plant. -Robert Louis Stevenson

-------------------------------------
Videha: Maithili Literature Movement

ॐ द्यौ: शान्ततिततरिक्ष ग्वंग शान्तत:

𑓇 𑒠𑓂𑒨𑒾 : 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 𑒩 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭 𑓅 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱 :

अनुक्रम

ऐ अं कमे अथछ:-

१.१.गजे न्द्दर ठाकुर- नूतन अं क सम्पादकीय (पृ. २-१२)

१.२.अं क ३९० पर वटप्प ी (पृ. १३-१३)

२.गद्य

२.१.माने श्वर मनुज- अलभराम नयनालभराम (पृ. १५-२३)

२.२.परमानन्द्द िाि क ा-िै शाि मासक एकादशीक माहात्म्य-१ (पृ. २४-


२७)

२.३.अम्िालिका कुमारी- स्िातं त्र्योत्तर मै धथिी कथाक विकास (पृ. २८-


३३)
२.४.िाि दे ि कामत- अपटी िे त िऽ (िघुकथा)/ राज वकशोर धमश्र जीक
उगरास (पृ. ३४-४०)

२.५.रिीन्द्दर नाराय धमश्र-सीमाक ओवह पार (िारािावहक उपन्द्यास) (पृ.


४१-५४)

२.६.कुमार मनोज कश्यप-िट-िृि (पृ. ५५-५६)

२.७.प्रमोद झा 'गोकुि'-फोने पर फगुिा (िघु कथा) (पृ. ५७-५८)

२.८.प्र ि झा- ऑवडयोिॉजी आ स्पीर िें निे ज पै थोिॉजी: िारहमा के िाद


जीिवि्ान केर विद्याथी िे ि कररयर विकल्प (पृ. ५९-६४)

२.९.आराया रामानं द मं डि-कथाकार/ वपया मोर िािक: महाकवि


विद्यापधत (पृ. ६५-७०)

३.पद्य

३.१.मुन्द्ना जी- गजि (पृ. ७२-७३)

३.२.राज वकशोर धमश्र-सोवनत (पृ. ७४-७६)


विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 1

१.१.गजे न्द्र ठाकुर- नूतन अं क सम्पा्कीय

१.२.अं क ३९० पर टिप्पणी


2 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

१.१.गजे न्द्र ठाकुर- नूतन अं क सम्पा्कीय

गं गेश उपाध्यायक तत्त्िचिन्तामणि

गं गेश उपाध्यायक तत्त्वचिन्दतामणण िारर गोि खण्डमे टवभाणजत अचि- १.


प्रत्यक्ष (सोझााँ -सोझी), (२) अनुमान, (३) उपमान (तुअलना केनाइ) आ
(४) शब्् (मौखखक गवाही), जे वै ध ज्ञान प्राप्त करबाक ई िाररिा साधन
िारर खण्डमे अचि।
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 3

१. प्रत्यक्ष

खण्ड एकः गङ्गे शक आह्वान काज त्रिमूर्ति त्रशवक आह्वानसाँ शुरू होइत
अचि।आ तेँ आह्वानक टवषयपर ििाा शुरू होइत अचि। ई मानल जाइत अचि
जे कोनो पररयोजनाक प्रारम्भमे भगवानक आह्वानसाँ ई काया पूणा होइत अचि।

आपत्रतः जे कोनो आह्वान कोनो काज पूरा करबाक कारण अचि, से


सकारात्मक बा नकारात्मक सं गचतक माध्यम साँ स्थाटपत नै कएल जा सकैत
अचि, टकएक ताँ एहनो भे ल अचि जे कोनो आह्वानक टबना से हो कोनो काज
पूरा कएल गे ल।
आपत्रतक उतर: एकर कारण ई अचि जे ई आह्वान पूवा जन्दममे कयल गे ल
िल।

आपत्रतः नै , ई ताँ घुमघुमौआ तका अचि, आ ओनाटहतो कोनो काज पूरा केना
होइत अचि से अनुभवजन्दय कारण सभ आह्वानकेँ अनावश्यक त्रसद्ध करै त
अचि।
आपत्रतक उतर: ई प्रमाण जे आह्वान पूरा होबय के कारण िै क, तइमे दू
िरणक अनुमान शाचमल िै । पटहल, ई जे ई त्रशष्ट लोक द्वारा टनखन्द्त नै अचि
वरन हुनका सभ द्वारा कएल जाइत अचि। तखन ई अनुमान लगाओल जा
सकैत अचि जे काज पूरा भे नाइ फल अचि टकएक ताँ ई टनयचमत रूप साँ
इच्छित अचि, आ आन कोनो फल उपलब्ध नै अचि।

आपत्रतः ई तका काज नै करत कारण ई पटहने साँ ज्ञात अचि जे आह्वानक
अिै तो काज पूणा भऽ सकैत अचि, कारण-सम्बन्दध कोनाहुतो तकासाँ स्थाटपत
नै कएल जा सकैत अचि।
4 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

आपत्रतक उतर: हम सभ ऐ तकाक समथान ले ल वै द्क आ्े शक आह्वान करै त


िी जे आह्वान काया पूणा करबै त अचि। मु्ा कोनो एहन वै द्क कथन नै भे िैत
अचि, से अनुमान कएल जा सकैत अचि जे आह्वान सुसंस्कृत लोक सभ द्वारा
कएल जाइत अचि।

ऐ तरहक तकासाँ प्रारम्भ भे ल ग्रन्दथ ७-८ सय बखा पटहने !

(सन्द्भा: काला एि पॉिर: एनसाइक्लोपीटडया ऑफ इच्छण्डयन टफलोसोफी,


सतीश िन्दर टवद्याभूषण: अ टहस्री ऑफ इच्छण्डयन लॉणजक)

HONOUR KILLING OF GANGESH UPADHYAYA


(FIRST BY RAMANATH JHA, THEN BY
UDAYANATH JHA 'ASHOK' (A
PARALLEL
HISTORY OF MITHILA AND MAITHILI
LITERATURE, WHY TODAY ITS NEED BEING FELT
MORE INTENSELY?)

I was not surprised, though I must have been when


I saw a monograph on Gangesh Upadhyaya, whose
copyright is being held by Sahitya Akademi, the
author of the monograph is Udayanath Jha '
Ashok'. I thought that Udayanath Jha ' Ashok', who
has been given Bhasha Samman also, by the same
Sahitya Akademi, would do some justice. But truth
and research seem elusive in Sahitya Akademi
monographs, at least that I found in this
monograph.
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 5

I searched and searched through chapters, that


now the author will show courage. But the author
like Ramanath Jha seems ashamed of the roots and
offspring of Gangesh Upadhyaya. He tries to
confuse the issue, but there is no confusion now at
least since 2009. But in 2016 Sahitya Akademi
seems to carry out the casteist agenda. Udayanath
Jha mockingly pretends to search his name, lineage
etc, where nothing is there to search for, yet he
could not muster the courage, to tell the truth, and
ends up just repeating the facts in 2016 that
Dineshchandra Bhattacharya already has
published way back in 1958.

The honour killing of Gangesh Upadhyaya by Prof.


Ramanath Jha is being taken forward by Sahitya
Akademi, Delhi in a most hypocritical way.

Ramanath Jha's obscurantism vis-a-vis Panji is


evident from one example. The inter-caste
marriage in Panji was well known to him (but he
chose to keep the Dooshan Panji secret- which has
been released by us in 2009), and it was apparent
that the great navya-nyaya philosopher Gangesh
Upadhyaya married a "Charmkarini" and was
born five years after the death of his father (see
our Panji Books Vol I & II available at
6 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

http://videha.co.in/pothi.htm ). Sh. Dinesh


Chandra Bhattacharya writes in the "History of
Navya-Nyaya in Mithila". (1958)

"The family which was inferior in social status is


now extinct in Mithila----- Gangesha's family is
completely ignored and we are not expected to
know even his father's name-----...As there is no
other reference to Gangesa we can assume that the
family dwindled into insignificance again and
became extinct soon after his son's death." [1958,
Chapter III pages 96-99), which is a total falsehood.
He writes further that all this information was
given to him by Prof. R. Jha, and he seemed
thankful to him.

The following excerpt from Our Panji Prabandh


(parts I&II) is being reproduced below for ready
reference:

महाराज हरससिह्े व-चमचथलाक कणााि वं शक। ज्योचतरीश्वर ठाकुरक वणा -


रत्नाकरमे हरससिह्े व नायक आटक राजा िलाह। 1294 ईमे जन्दम .
आ 1307 ईमे राजससिहासन। चघयासुद्दीन तुगलकसाँ . 1324-25 ई मे .
हाररक बा् ने पाल पलायन। चमचथलाक पञ्जीप्रबन्दधक ब्राह्मण-, कायस्थ आ
क्षत्रिय मध्य आचधकाररक स्थापक, मै चथल ब्राह्मणक हे तु गुणाकर झा, कणा
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 7

कायस्थक ले ल शं कर्त, आ क्षत्रियक हे तु टवजय्त एटह हे तु प्रथमतया


टनयुक्त भे लाह। हरससिह्े वक प्रेरणासाँ आ ई हरससिह्े व नान् -य्े वक वं शज
िलाह, जे नान्दय्े व काणााि वं शक १००९ शाकेमे स्थापना केने रहचथनन्द्ै् -
शाके १०१९) शुन्दयं शत्रश शाक वषे )... चमचथलाक पच्छण्डत लोकटन शाके १२४८
त्नुसार १३२६ ईप्रबन्दधक वतामान स्वरूपक प्रारम्भक टनणाय -मे पञ्जी .
कएलखन्दह। पुनः वतामान स्वरूपमे थोडे बुत्रद्ध टवलासी लोकटन चमचथले श
महाराज माधव ससिहसाँ १७६० ईमे आ्े श करबाए पञ्जीकारसाँ शाखा .
कखनो काल वर्णित) पुस्तकक प्रणयन करबओलखन्दह। ओकर बा् पााँ णजमे
क .ई १८०० वास्तवमे माधव ससिहक बा्मे .ई १६७८ शाके माने १६००
श्रोत्रिय नामक एकिा नव ब्राह्मण उपजाचतक चमचथलामे उत्प (आसपासत्रत
भे ल।

So, the Srotriyas as a sub-caste arose around


1800 CE as per authentic panji files. Sh.
Anshuman Pandey [Gajendra Thakur of New Delhi
provided me with digitized copies of the
genealogical records of the Maithil Brahmins. The
panjikara-s whose families have maintained these
records for generations are often reluctant to allow
others to pursue their records. It is a matter of
'intellectual property' to them. I was fortunate
enough to receive a complete digitized set of
panji records from Gajendra Thakur of New Delhi
in 2007. [Recasting the Brahmin in Medieval
Mithila: Origins of Caste Identity among the
Maithil Brahmins of North Bihar by Anshuman
8 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

Pandey, A dissertation submitted in partial


fulfilment of the requirements for the degree of
Doctor of Philosophy (History) in the University of
Michigan 2014].

Later these Panji Manuscripts were uploaded to


Videha Pothi at www.videha.co.in and google
books in 2009).

The so-called Maharajas of Darbhanga were


permanent settlement zamindars of Cornwallis,
and there were so many in British India, but in
Nepal there were none. In the annexure of our
book (Panji Prabandh vol I&II), we have attached
copies of genealogy-based upgradation orders
(proof of upgradation for cash). So, before
1800 CE, there was no srotriya sub-caste in British
India and there is no such sub-caste within Maithil
Brahmins in Nepal part of Mithila even today.
Srotriya before that referred to following some
education stream in British India, in Nepal it still
has that meaning.

ORIGINAL PANJI REFERENCES ARE PLACED


BELOW:

DOOSHAN PANJI- THE BLACKBOOK


विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 9

४९.

१८८२/ िमाकाररणी माण्डर वभटनयाम िा्न

तत्त्वचिितामणण िा्नगं गेशक नााँ ई रत्नाकरक- गं गेश


कारकगं गेश मातृक (अज्ञात)

वल्लभा भवाइ माहे श्वर

जीवे

२१छादनसँ तत्ि चिन्तामणि कारक जगद्गरु


ु गं गेश १०//

िा्नसाँ तत्व चिन्दतामणण कारक


गं गेशक वल्लभा िमाकाररणी टपतृ परोक्षे पञ्च वषा व्यतीते तत्व चिन्दतामणण
कारक गं गेशोत्पत्रत- िमषकाररिी मे धाक सन्तानक लावगमे छलहन्ह

छादन सँ तत्ि चिन्तामणि कारक मōमō गं गेश

"तत्ि चिन्तामणि कारक मगं गेशक विर्यक ले ख प्रािीन .पा .म .


।।"पञ्जीसँ उपलब्ध

वपतृ परोक्षे पं ि िर्ष व्यतीते गं गेशोत्पत्तिः इचत प्रािीन ले खनीयकु त्रावप :

्े वानन्द् पञ्जी ३९िा्नसाँ जग्गुरू गुंरू गं गेश सुताय वभटनयामसाँ २-


जयाद्त्य सुत साधुकर पत्नी

्े वानन्द् पञ्जी ३३९जग्गुरू गं गेश सुत सुपन ्ौ भण्डाररसमसाँ हराद्त्य ३-


10 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

्ौ.।। पुि सुताि गोरा जणजवाल साँ जीवे पत्नी ए सुत सन्द्गटह भवे श्वर।
अिस्थाने सुपनभ्रातृ हररशम्मा ्ाररचत क्वचित् जणजवाल ग्राम

्े वानन्द् पञ्जी ३०िा्नसाँ उपायकारक म ५=.म वद्धामान सुताि .पा .


खण्डवलासाँ टवश्वनाथ सुत त्रशवनाथ पत्नी गं गेश /सुपन /वद्वामान .म.म -
हररशम्मा

Gangesh, the author of the Tattvachintamani,


wrote one text equivalent to 12,000 texts. Now
come to the fact mentioned in the Panji- it clearly
states that Gangesh of Tattvachintamani was born
five years after the death of his father and he
married a tanner, so why did Ramanath Jha hide
this from Dinesh Chandra Bhattacharya?
Vardhamana, son of Gangesh, calls
Gangesh sukavikairavakananenduh. But the
conspiracy under which the poems of a famous
scholar like Gangesh are not available today is
clear from the example given above. Vasudev of
Bengal was a classmate of Pakshadhar Mishra of
Mithila, he came to study in Mithila, passed
the shalaka examination and received the title
of sarvabhaum. Vasudeva memorised
the tattvachintamani of Gangesh and
the nyayakusumanjali karika of Udayana.
Pakshadhar and other Mithila teachers did not
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 11

allow writing (copying) tattvachintamani.


Raghunath Shiromani, a disciple of Vasudeva, took
the right of certification after he defeated his guru
Pakshadhar Mishra in a scriptural
debate (shastrartha). The Navya Nyaya school was
founded in Navadvipa by Vasudeva-Raghunath.
Pakshadhar Mishra was a contemporary of
Vidyapati (distinct from the Padavali writer who
was of the pre-Jyotirishwar period) who wrote in
Sanskrit and Avahatta. And the arrival of Mithila
students of Bengal from Bengal stopped after
Raghunath Shiromani. Gangesh Upadhyaya
enjoyed 'param guru' as well as 'jagad guru' titles,
the highest titles of the time and as per Panji only
Vacaspati Mishra II was the other person who
enjoyed the title of 'param guru'. The extinction of
Navya-Nyaya School from Mithila, as described
above, was a revenge of nature against the honour
killing of Gangesh Upadhyaya and his family.

[Translation of the Maithili Short Story,


'Shabdashastram' (based on the true Panji records
of Gangesh Upadhyaya) was done by the author
Gajendra Thakur himself: published as 'The
Science of Words' Indian Literature Vol. 58, No. 2
(280) (March/April 2014), pp. 78-93 (16 pages)
12 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

Published By: Sahitya Akademi]

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अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 13

१.२.अं क ३९० पर टिप्पणी

लक्ष्मि झा सागर
वाह! ईहो अं क नीक भे ल अचि।बहुत बहुत बधाइ!!हार््िक शुभकामना !

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


14 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

२.गद्य

२.१.माने श्वर मनुज- अत्रभराम नयनात्रभराम


२.२.परमानन्द् लाल कणा-वै शाख मासक एका्शीक माहात्म्य-१
२.३.अम्बात्रलका कुमारी- स्वातं त्र्योतर मै चथली कथाक टवकास
२.४.लाल ्े ब कामत- अपिी खे त लऽ (लघुकथा)/ राज टकशोर चमश्र जीक
उगरास
२.५.रबीन्दर नारायण चमश्र-सीमाक ओटह पार (धारावाटहक उपन्दयास)
२.६.कुमार मनोज कश्यप-वि-वृक्ष
२.७.प्रमो् झा 'गोकुल'-फोने पर फगुवा (लघु कथा)
२.८.प्रणव झा- ऑटडयोलॉजी आ स्पीि लें ग्वे ज पै थोलॉजी: बारहमा के बा्
जीवटवज्ञान केर टवद्याथी ले ल कररयर टवकल्प
२.९.आिाया रामानं ् मं डल-कथाकार/ टपया मोर बालक: महाकटव टवद्यापचत
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 15

२.१.माने श्वर मनुज- अत्रभराम नयनात्रभराम

माने श्वर मनुज

अत्िराम नयनात्िराम

ओइ राचत अन्दहार आ प्रकाशक नुक्का-चिप्पीमे जे आं खखक खे ल भे ल ओ


खे लक रूपमे हृ्य पर एक स्थायी रूप धारण कऽ ले लक आ आं खख बे र-बे र
ओटहना खे लाय लागल। वे ्ना हृ्य पर पड़ल, खे ल-खे लक लत आं खख पर
पड़ल आ मच्छस्तष्क पर पटड़ गे ल एक प्रश्न-सूिक चिह्न- आखखर टकरण
खखड़की पर ठाढ़ टकअय िल? ओ टकअय अटवराम ताटक रहल िल? कुन
बे गरताक टन्ानक हे तु ओ कारी भयावह राचतमे जाटग रहल िल, जखन टक
टनखित भू-भागक लोक टनरा्े वीक शयन कक्षमे कऽर ्ऽ रहल िल। आई
नचमताक गाड़ी फुजक समय िलै , साढ़े ि बजे आ ओकर क्लास आठ
बजे सऽ िलै । साढ़े ि बजे वला गाड़ी बुझल िलै , कारण सबद्न सुरपुर ओही
गाड़ीसऽ जाइ िल। सोिने िल जे अटहसऽ पटहनहो कुनो गाड़ी हे तैतऽ ओही
सऽ ित्रल जायब, तैं टकि पटहलहे स्िे शन पर ित्रल आयल िल। सोिने िल
जे सुरपुर स्िे शन पर जल््ी पहुं ि जायत तऽ ओतऽ सऽ आगाक ले ल बऽस
नै इ पकटड़ आइ पाएरे ित्रल जायब। बऽस सऽ जायब एक दूरी तय करब
िै , मु्ा पै रे जायब प्रकृचत आ भौगोत्रलक ििाक ्शान करब िै । ओना आन
द्न स्िे शन पर ओ गाड़ी फुजऽ सऽ त्रसफा पां ि चमनि पटहने अबै िल। आइ
आधा घं िा पटहनहे आटब गे ल िल। समय टनकालऽ लाय इमहर-उमहर ताकऽ
16 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

लागल। ्े खलक बगलवला बें ि पर एक पुरूष बै सल िलै य बखा बीसे क।


माथ, केश, कपार सब आकषाक। कान एक ज्योचत पूंज सदृश झलकैत िलै ।
हररयर-हररयर ्ाढ़ी, खे तक फसल सन मनोरम लाटग रहल िलै । प्रकृचत सन
सुन्द्र शोभा पुरूखक मुंह पर ओ पटहले बे र ्े खने िल। ओ साकां क्ष भऽ गे ल।
आं खखमे एक भावुकता पसरर गे लै आ ठोर पर लात्रलत्य समाय गे लै आ आं खख
एक शक्क्तशाली ्ीप्प्त सं ग िमटक उठलै । मोनसऽ एकाएक एकाकीपन
समाप्त भऽ गे लै आ मुखमं डल कमलक फूल जकां तुरते खखलखखला उठलै ।
लगलै जे ना एकबे र वातावरणमे महमही आटब गे लै। ओइ महमहीमे ओ स्वयं
डू टब गे ल, यानी नचमता स्वयं प्रकृचत बटन गे ल। प्रकृचत पुरूखके ्े खलक। गोर
झलकैत ्े ह। ओकरा लगलै ओइ पुरखक मुंहमे पान हे तै तैं ठोर लाल-गूलाब
भऽ गे ल हे तै। पुरूख कटनए गर्टन घुमौलक, मुखमं डल नचमता द्स भऽ गे लै।
मुंहमे पान नै इ िलै । ठोर पर प्रकृचतक लात्रलत्य िलै । गालक त्विासऽ अटहना
रक्तक लाली झलटक रहल िलै । नाक, आं खख आ सबसऽ बटढ़कऽ भृकुटि
अत्यन्दत सुशोत्रभत िलै ।

सूयाे ्य भे ले िलै । सबतै र स्वि वातावरण िलै । स्वि हवा बहै त िलै ।
साइत त्रसतम्बरक महीना िलै । नचमताक एको पल टनच्िा नै इ खत्रस रहल
िलै आ लगातार ओ ओकरा द्स ताटक रहल िल। पुरूखक केश, मे घ सन
कारी कपार सूया सदृश झलकैत आ आं खखमे टवजलौका दूर-दूर धरर िमटक
उठै िलै । ओकरा बुझा रहल िलै ... जे ना ओ पुरखक िे हराक अधे भाग ्े ख
रहल िै । ओ पूरा-पूरा गर्टन ओकरा द्स कखनो घुमेबे नै इ केलकै। नचमताक
नजरर त्रशकारीक तीर जकां ओकरा बे धऽ हे तु तत्पर िलै ।

ओ पुरूख के भऽ सकै िल? हम िलाैं या हमर कुनो पाि िल। तत्काल


माटन लै िी जे ओ हमही िलाैं । हम स्िे शन पर अबै त -जाइत आ आन-आन
ठामक िे ’नमे िढ़ै त-उतरै त लोक के ्े ख रहल िलाैं । गे िसऽ अबै त एक
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 17

नवयुवतीके ्े खने िलाैं । िौड़गर वक्षस्थल कुनो योद्धाक कवि सन िातीसऽ


सिने िल। ठोर पर अड़हुल खखलखखलाइत िलै आ गाल आ नाकक ऊपर दू
भ्रमर-नयन इमहर-उमहर नाचि रहल िलै । की नाम िलै की जाटन, के पुचितै
आ टकआक पुचितै ? हम ओकरा एक काल्पटनक नाम राखख ्े त्रलऐ-शत्रश।
यै ह नाम ठीक िलै ।

शत्रश एक ्ोसरो हमर पररचित िल। हमरा सऽ एक क्लास आगा िल।


िमकैत-्मकैत िलै त िल। हमरा घरो कटहओ-काल अबै िल। भले ही
हमरासऽ एक क्लास आगा िल, मु्ा बे शी बटहक्रम नै इ िलै । पढ़ाई समाप्त
भऽ गे लाक बा्ो ओ गािी ओगरऽ जाइ िल आ गािी सऽ अबै -जाइत हमरा
द्स िु कुर-िु कुर तकैत जाइत िल। ओकरा नजररमे कुनो प्रश्न झलकै िलै ।
टकि कहऽ िाहै िल, मु्ा कटह नै इ पबै िल, हम नै इ िोकने ित्रलऐ
कटहओ? ओ नऽत ्े बऽ अबै िल। नऽत ्े बऽ ककरो जाइ िल, मु्ा सोह
टवसरर जाइ िल। ओ ककरा नऽत ्े वऽ जाइत िल, ओकरा या् नै इ रहै िलै
आ हमरे नऽत ्ऽ ित्रल जाइ िल ! सै ह भे लै एक बे र। नऽत तऽ ्ऽ गे ल, मु्ा
थोड़बे कालक बा् फेर कोनिामे आटब ठाढ़ भऽ गे ल, अप्पन गलती सुधारऽ
लाय। नऽत वापस ले वऽ लाय। ओ की बाजल हम टकि नै इ बुझत्रलऐ।
बजवहो आयल तै ओ नै इ बुझत्रलऐ। ओकर माय हमरे घरक एक अपन
स्स्यके नऽत ्े बऽ लाय कहने िलै , मु्ा ओ हमर नाम नऽत ्ऽ गे ल िल।
बजबऽ आयल तऽ बुझलाैं - हमरे नऽत ्े ने अइ तऽ हमरे बजवऽ आयल
हायत। हम ित्रल ्े लाैं । आं गन गे लाैं , मु्ा ओकर माय टकि त्रभन-त्रभना रहल
िलै । हम से नै इ टकि बुझत्रलऐ। आं गन जा हमरा कोना लौिऽबै त, हम
अपने सऽ पीढ़ी पर जा बै स गे लाैं । सामग्रीतऽ आवहे क िलै । पटवि भोजन
कऽ ओकरा आं गन सऽ िललाैं ।

शत्रशक टवयाह भऽ गे लै। टवयाहक टकिु ए द्नक बा् ओ गभावती भऽ


गे ल। भरर पे ि बच्िा झलकै िलै । ओ बड़का पे ि ले ने इमहर-उमहर घरक
18 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

बे गरता पूरा करऽ लाय घुमै िल। के कहने िलै ... जो भी करती प्रेम
महीपर उसे माता बनना ही होता है !- ओ जहां -तहां हमरा सामने आटब जाइ
िल ... आं खख, आं खखसऽ िकराइ िलै । ओकर मूड़ी टनच्िा कखनो नै इ होइ
िलै , मु्ा सामना-सामने ओ हं त्रसतो नै इ िल। मोने -मोन जे टकि सोिै ते
होबए, हम सोिै त िलाैं - तोहर तऽ टवआहो भऽ गे लौ। पे िमे बच्िो िौ, त्रसफा
आं खखक नजरर िकरौने की तोरा भे ितौ आ की भे ित हमरा, जखन सामने
अबै िां ह ठोर पर कनी मुच्छस्कओतऽ आबऽ ्ही। लोक ्े खो ले तौतऽ की
हे तै, की टबगाटड़ सकतौ ओ, हम नै इ िोकै चिऔ तोरा। एते क द्न नै इ
िोकत्रलऔ तऽ आब की िोटकऔ, िोकैतऽ मं जुलोके नै इ चिऐ। घरक बगलसऽ
अबै त आ जाइत अइ। सब गोिे सब ्े खैत रहै िै , जे के ओकरा िोकै िै आ
ककरा ओ िोकै िै ? नजररओ पर ध्यान ्े ने कहै िै जे -ओ ककरा द्स
तकैआय आ के ओकरा द्स तकै िै ? बूढ़-सूढ़ तऽ अइ टवद्यामे आरो प्रवीण।
एक बूढ़ भाऊज हमरा लग आटब पुिैत अइय- हमरा लग सूतब?- हम ओकरा
बातके हं सी माटन ठहक्का ्ै िी, मु्ा ओ मजाक नै इ िलै । ओकर ितीस
इं िक अं तड़ी तऽर सऽ ओ बात टनकलल िलै । ओकरा बातमे सात तऽह
िु पल िलै आ आठम तहक अटवष्कार करै िलै । ओकर तात्पया िलै , जे ’हम
मं जूला सं ग सूतऽ िाहै चिऐ।’ सूतक अथातऽ हम बुझै ित्रलऐ, मु्ा शब््क
तऽहवला अथा नै इ बुझै ित्रलऐ। ओकर पूिक अथा िलै , जे मं जूलाक पािा
हम टकआक पड़ल चिऐ? मं जूला सुन्द्र अइ तऽ ओहो सुन्द्र अइ। मं जूला
गोर अइतऽ ओहो गोर अइ। मं जुला जुआन अइ, मु्ा ओ जुआन नै इ। ओकरा
बात पर जखन हम जोर-जोरसऽ हं सऽ लगै िी तऽ ओ ककरो शोर पाड़ऽ
कहै आय। हम शोर पाटड़ बजा ्ै चिऐ। मु्ा मं जूलासऽ टकि कहऽ सऽ
पटहनहे हमर बती बन्द् भऽ जाइआ। शत्रशओके नै इ िोकै चिऐ।

डोमनवाली हमरा कटह िुकल िल, जे -हम मं जूलाक डे ग गनै चिऐ। एको
बे र ओकरा डे ग परसऽ नजरर नै इ हिबै चिऐ। हमरा की पता सब हमरे पर
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 19

ध्यान गड़ौने रहै आ? ओ मूड़ी टनच्िा केने जाइत अइ। बूढ़ सधुआ नै इ होइ िै ।
ओ जनै त अइ। हम नै इ जनै िी। ओ हमर बिाव करै आय। हमरा पर कुनो
आघात नै इ आबऽ ्े बऽ िाहै आ।

अही सब करणे कल्पनामे जीटव रहल िलाैं । ररया कटहतो िल - अहां तऽ


पोइटरक लाईफ जी रहल िी। पोइटरक लाईफ सन आनन्द् वास्तटवको
लाईफमे नै इ िै । हम ककरो नै इ ्े खै ित्रलऐ। हम त्रसफा प्रकृतक सौन्द्या ्े ख
रहल ित्रलऐ। प्रकृतक सम्पूणा सौन्द्या स्िी-्े हमे समायल रहै िै । ई सौन्द्या
तरूणावस्थे सऽ शुरू भऽ जाइ िै । अठाहरम तकतऽ पूणारूपे ण आकषाक भऽ
जाइ िै ।

एक अनजान िे हरा शत्रश ! अनजानतऽ नै इ िल कारण ओकरा आइसऽ


पटहनहो कते क बे र ्े खने ित्रलऐ। ओकर ्े ह-आकृचतक अलावे ओकरा टवषय
हम टकि नै इ जनै ित्रलऐ, तै ओ ओकरा अपररचित कोना कटहऔ, ओकर
सौन्द्याके तऽ ्े खखते ित्रलऐ।

शत्रशक ्े हमे लाल रं गक साड़ी िलै , ओ बड़ खुलै िलै । श्याम वणा शरीर
पर लाल साड़ी हमरा उते णजत कऽ रहल िल। आनो द्न ओकरा ्े खने
ित्रलऐ, स्िे शन पर, मु्ा एते क आकर्षित ओकरासऽ कटहओ नै इ भे ल िलाैं ।
मच्छस्तष्क पर एक टवद्यत
ु आवे श िटढ़ रहल िल। आइ तक कुनो पररचितोके
नै इ िोकत्रलऐ, तऽ अइ अनजान िे हराके की िोटकऔ, शरीर पर जे एक
स्पन्द्न आटब गे ल िल, ओकरा मच्छस्तष्क पर लऽ जा सोिऽ लगलाैं । एते क
सुन्द्रताक कारण माता-टपताक सुख् सं योग, ध्वटन आ दृश्य, प्रकृचतक
सहयोग आ स्वयं कृत्रिम प्रयास हे तै। गाि-वृक्ष आ सूयाक लालीक समक्ष
जे ना माथ झु का ्ै त िलाैं , तटहना ओकरा समक्ष अप्पन माथ झु का ्े लाैं ।
20 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

हररयर बती बरलै । प्ले िफमा पर सब तत्पर भऽ गे ल। पे सेन्दजर गाड़ी


प्ले िफमा पर प्रवे श कऽ गे लै। उतरऽवला कूद्-कूद्कऽ उतरर रहल िल।
िढ़ऽवला तत्पर िल, िढ़क ले ल। िे ’न माि दू चमनि रूकै िलै । हम एक
नजरर उमहर ्ौड़े लाैं । शत्रश आनो द्न टडब्बामे िढ़ै त िल। आइ हमहं ओही
टडब्बामे िटढ़ताैं । एते क आकर्षित ओ कटहओ नै इ केने िल। आइतऽ लगै िल
जे ना ओकरा शरीरमे साक्षात सौन्द्याक ्े वी प्रवे श कऽ गे ल िै । ओ एखन
टडब्बामे िढ़ल नै इ िल। ओ हमरा पिे मे ठाढ़ िल।

एक आत्म सं तोष भे ल,:- ’जे टह के जे टह पर सत्य सने ह सो ते टह चमलइ न


किु सं ्ेह’। मु्ा सामने वला टडब्बामे भीड़ बे शी ्े ख ओ आगा बटढ़ गे ल।
हमहं कोत्रशश कएलाैं ओकर पािा-पािा जायक’। ओ एक टडब्बामे िढ़ल।
हमहं ओही टडब्बामे झिसऽ िढ़ऽमे सफल भे लाैं । ओकरासऽ दू-िारर सीि दूर
हमरो जगह भे ि गे ल।

शत्रश िकुआइत िल। इमहर-उमहर नजरर ्ौड़ऽवै त िल, जे ना टकि


हे राय गे ल होइ। मोन आऊल-बाऊल भऽ रहल िलै । करे जा सुखा रहल िलै ।

- एखने ्े खत्रलऐ। उठलै तऽ बुझायल िारू कात प्रकाश चििटक उठलै आ


एखने ओ पुरूख कतऽ ित्रल गे लै, हां , वै ह ओइ सीि पर। ओ हम नै इ टकओ
आन िलै ।

ओकरा ्े खऽमे ओकरा कुनो असोकया नै इ होइ िलै । हमर उत्सुकता कुनो
टवशे ष नाम सं ज्ञासऽ नै इ िल। हमर आकषाण सौन्द्यासऽ िल। हमरा आश्यिा
लागल ... हीराक प्रकाश ओकरा ्े हसऽ चििटक रहल िलै , तकर एहसास
हमरा तखन भे ल जखन सबटकओ ओकरे द्स ताटक रहल िलै । एक
कॉले जमे ्े खने ित्रलऐ ... टफल्डमे कुनो लड़की ठाढ़ िलै आ ओइ कॉले जमे
पढ़ऽवला सात सौ लड़का ओकरे द्स तकै िलै । ओ तऽ खखच्िा उम्रक बात
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िलै । एतऽ तऽ सब वयसक स्िी-पुरूष िै , तै ओ ओकरे द्स टकआयक’ ्े ख


रहल िै ? ... ओहो तऽ कुनो मूर्ति नै इ जे जे ना स्थाटपत कऽ ्े बै तटहना ताही
मुरामे रहत, ओहो इमहर-उमहर तकै िल, जकरा द्स तकै िल, कृपा-वषाा
होइ िलै ।

हम शत्रशक सामने नै इ िलाैं । हम एहन जगह पर बै सल िलाैं जतऽसऽ


माि ओकर पचिलुका भाग ्े ख रहल ित्रलऐ। कान, कनपट्टी, गर्टन, केश
आ खोपा की कम आकषाक िलै -की फुरलै की ने मूड़ी कटनऐ घुमौलक।
शरतिन्दर एहने सन सुन्द्रीके िन्दरमुखी कहने हायत। हमरा बुझायल जे -
सम्पूणा िन्दरमा के ्े खलाैं । कंठ सुखा गे ल। आह ! शीतलताक ब्ला उष्माक
एहसास टकआ कऽ भे ल, सं गमे पाटन रहै त तऽ समुच्िा बोतल पी जै ताैं । हम
मूड़ी ्ोसर द्स घुमा ले लाैं आ आाँ खख मूटन ले लाैं -जाटहसऽ िास टकि कम
होबाय। आिया लागल अइमे कुन वै ज्ञाटनक सत्य िै वा मनोवै ज्ञाटनक - ककरो
द्स ्े खने टपआस कोना लाटग जे तै , कारण तऽ टकि बुझल नै इ िल, मु्ा
पररणाम साक्षात सामने िल। सत्यक परीक्षणक हे तु नहं -नहं अप्पन मूड़ी
एक बे र आरो उमहर घुमौलाैं । जे ना-जे ना िन्दरमुखी ्े खाई ्ै जाइ
िल, ओटहना एहसास होइ िल। एक ्ोसरे तरहक सनसनी ्े हमे समायल
जाइ िल। कखनो काल जखन ओ पूरा मूड़ी कुनो कारणवश घुमबै िल आ
ओकरा पूणारूपे ण ्े खै ित्रलऐ तऽ बुझाइ िल जे ना टकि गरम िीज हृ्यके
जगा रहल अइ। की ओ लोकोक्क्त- ’करे जा जरब तैं तऽ ने बनल िै ?’ फेर
पाटनक जरूरत बुझायल से हो एक टगलास वा एक लोिाक नै इ समुच्िा
घै लक। मोन होइ िल अनवतर ्े खखते रटहताैं , मु्ा से सम्भव नै इ िल।

आटहरो वा, ई कुन खे ल टवधाता खे ला रहलायऽ? हम अप्पन मूड़ी घुमोलाैं


तऽ ्े खलाैं नचमता हमरे जकां आऊल-बाऊल मोन केने व्याकुल। सोिलाैं ओ
टकआक हमरा ्े खैत हायत? हम की ओते क सुन्द्र िी? ओ एक पुरूख के
्े ख रहल िल। माटिक तऽरमे महा्े व नटहओ होउक तै ओतऽ लोक माटिक
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महा्े व पूजैत अइ। ओ सोिै त हायत-जे हम रूपक धनी िी। टवद्या आ टवनय
से हो ओकरा हमरामे ्े खाई ्ै त हे तै। बुत्रद्ध-टववे कशील स्वभाव सब नीक लगै त
हे तै। िड़गर शरीर, हृष्ट-पुष्ट िीहे , कोना कहत जे हम नीक घरक नै इ
िी? बयस ओतनी िल जते क ओकर। ओकरा बुझाइ हे तै जे हमरा रोम-
रोमसऽ प्रकाश टनकत्रल रहलाय। एक आकच्छिक िारूता ्े ख ग्-ग् होइत
हायत। ओ अप्पन शरीरक सौन्द्या आ हमरा शरीरक सौन्द्याक तुलना कऽ
रहल हायत। ओकरा हमरे जकां अप्पन सुन्द्रता तुि लगै त हे तै। ओकर
सुन्द्रताक मुख्य ओकर मुखमं डल यानी
आं खख, कान, नाक, गाल, केश, कपार, भाैं आ ्ाढ़ी िलै । ओइमे यद् एको
खराप होइ तऽ सब गुड़ गोवर भऽ जे तै, मु्ा हमर सुन्द्रता टनच्िासऽ ऊपर
रोम-रोममे ओकरा झलकैत हे तै। हमरा अं ग-अं गसऽ ओकरा एक शक्क्तक
आभास होइत हे तै। हमरा हृ्य पर ओकरा वीरताक आभास होइत हे तै।
टकओ कतबो आभूषणसऽ सुसज्ज्जत होबाय खूनक डगडगीक परतर कऽ
सकै िै की? ओकरा मोनसऽ मायाक भ्रम समाप्त भऽ गे ल हे तै। सबहक
जीवनमे टकओ ने टकओ प्रथम पुरूख होइ िै । भऽ सकै िै ताटह रूपमे सबसऽ
पटहने ओ हमरे ्े खने होबाय आ ्े खखते रहऽ िाहने होबाय।

जे ना-जे ना सुरपुर नज्ीक अबै त गे लै ओ मलीन होइत गे ल। स्िे शन पर


गाड़ी थम्हलै । ओ पलासक फूल जकां मौला गे ल। गाड़ीसऽ उतररते ऋतु
पररवतान भऽ गे लै। कहां वसं तक िं िलता आ कहां पतझड़क उ्ासी। अप्पन
जीवन एक पिहीन नग्न गाि बुझेलै। यात्रियोजीक मोनमे एहने सन टकि
्े ख पिहीन नग्न गाि आयल हे तै, ने तऽ गाि सऽ कुन मतलब झां पल रहाय
वा नग्न? झां पन स्ा सुहागन।

मु्ा वाह रे हम। हमतऽ अपने सुखमे मगन िलाैं । हम िन्दरमुखी के त्रसर
टनच्िाकऽ प्रणाम केलौ – हे सौन्द्या मूर्ति, अहां अटहना अबै त-जाइत, बाि-
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घाि हमरा ्शान ्ै त रहब, हम धन्दय-धन्दय होइत रहब। ्े वी आ ्े वताक ्शानमे


एहने टकि पूणाता हे तै।

गाड़ी फूणज गे लै। अिताइत, पिताइत नचमता आगा बढ़ल जा रहल


िल, नहुए-नहुए डे ग बढ़ा रहल िल। सुखी राजकुमार सन ओकरा नजरर पर
एक पुरूख बै सल िलै । हमरा सं ग अपने एक अलग समस्या िल। हम अपने
प्रेयसीके ्े खऽमे बे हाल िलाैं । शत्रशमे िन्दरमाक सोलहो कला टवराजमान िलै
आ हम ओकरा पर अत्रभभूत िलाैं ।

हमर ्ोसर मोन स्वयं हमरासऽ कहलक जे – ’अहां एको बे र ओकरा द्स
तकबो नै इ केत्रलऐ? कते क किोि भे ल हे तै ओकर मोनमे , अहां तऽ ओकर
सब साज-सज्जा आ आभूषण बे कार कऽ ्े त्रलऐ। ओकरामे की शत्रशसऽ कम
लावण्य िलै ? ओकरामे अहां के कुन गुण ्े खाई ्े लक, जे ओकरा पर मोटहत
भऽ गे त्रलऐ? टवआह भे ल रटहतै तऽ पचतसऽ पुचितै – ”की हम सुन्द्र िी?’
तऽ पचत सानत्वना ्ऽ कटहतै - ’अहां सं सारमे सबसऽ सुन्द्र िी’, तऽ ओकरा
सं तोष होइतै आ जऽ कुरूपो पचत रटहतै तऽ ओकरा प्रेमसऽ िूचम त्रलतै य मु्ा
नै इ आब ओ स्वयं अपना आपके कहत- हम अपना आं खखमे सम्पूणा सं सारक
सुन्द्रता भरने िी, हमर आं खख सुन्द्र अइ। हम सुन्द्र िी। ई सं सार सुन्द्र
अइ। सं सारक सबटकि सुन्द्र अइ। सं सारक सब जीव सुन्द्र अइ। यै ह हमरा
जीवनक सार अइ। बस।

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२.२.परमानन्द् लाल कणा-वै शाख मासक एका्शीक माहात्म्य-१


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२.३.अम्बात्रलका कुमारी- स्वातं त्र्योतर मै चथली कथाक टवकास

अम्बात्लका कु मारी

स्िातं त्र्योतर मै चिली किाक विकास

मै चथलीमे मौत्रलक कथाक रिना बीसम शताब््ीक उतराद्धामे प्रारं भ


भे ल।स्वतं िाक पिात् जाटह कथाकार लोकटनक महत्वपूणा योग्ान अचि
ओ लोकटन िचथ --- पं टडत गोटवन्द् झा, कुमार गं गानन्द् ससिह,स्व. मनमोहन
झा, उपे न्दरनाथ झा व्यास, प्रो उमानाथ झा, हररमोहन
झा, मणणप््म, डॉ.कां िीनाथ झा टकरण आद् ।

डा. शै लेन्दर मोहन झा, स्व. योगानन्द् झा, सुधां शु शे खर िौधरी , टववे च्य
कथाकार सभक बा्क पीढ़ी में प्रो. मायानं ्
चमश्र, हं सराज, लत्रलत, राजकमल, राधाकृष्ण 'बहे ड़ प्रभास कुमार िौधरी
जीवकां त, डा. धीरे श्वर झा धीरे न्दर, सोम्े व डा. राम्े व झा, श्रीमती लीली
रे , गं गेश गुजन, रामकृष्ण झा टकसुन, ििानन्द्, उग्रानन्द्, रामानन्द्
रे णु , नीरजा रे णु , शे फात्रलका वमाा, श्रीमती आद्या झा, बलराम, राजमोहन
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झा, सुभाषिन्दर या्व, मन्दिेश्वर झा, रमे श, नारायणजी , गौरीकान्दत िौधरी


कान्दत त्रशवशं कर झा 'कान्दत' श्रीमती गौरी चमश्र आद्क नाम उल्ले खनीय
अचि।

स्वतं िता - प्राप्प्तसाँ पूवा आ पिात दुनू समयमे समस्यामूलक कथाक प्रणयन
भे ल। परं ि स्वतं िता - प्राप्प्तक पिताक रिनामे भोगल यथाथाक व्यापक
चििण भे िेि । सम्प्रचत मानवक जीवनमे जे टकिु नीक वा अधलाह बीचत
रहलै क अचि लोकक मनोवृत्रत ककिवा दृचष्ट, पररच्छस्थचतक टववशता अथवा युग-
पररवतानक कारणे जे ना जे ना ब्लाव आटब रहलै क अचि, ताटह सभक यथााथ
ओ प्रभावोत्पा्क चििण आजुक कथा सभमे भे िैि । आजुक कथाकार
माि 'टववाहक पररचध में घे राएल नटह िचथ। अटपतु टहनका लोकटनमे
परम्परावा्ी दृचष्टकोणक अिै त ब्लै त युगक सं ग ब्ले त मनोवृचत तथा
लोकक त्रभन्दन-त्रभन्दन अवस्थामे पररवतानक टवत्रभन्दन रुपक चििण ्े खबा मे
अबै ि।

प्रो. हररमोहन झाक टवत्रभन्दन कथामे पााँ ि पि' कन्दयाक जीवन, टनकि
पाहुन, ग्रामसे टवका, मयाा्ाक भं ग ग्रेजुएि पुतोहु अलं कार- त्रशक्षा आद्क
प्रमुख स्थान अचि, जाटहमे सुधारवा्ी दृचष्टकोण पररलणक्षत होइि ।
अन्दधटवश्वास, ओ रुटिवा् एवं अत्रशक्षाजन्दय रोगक स्थायी टन्ानक द्शामे
टहनक एटह कथा सभक महत्त्वपूणा स्थान अचि । टहनक पााँ ि-पि सम्पूणा
जीवनक दुख-सुखक चिि प्रस्तुत करै त जीवन-्शान पर आधाररत ई
सवाे त्कृष्ट' कथामे पररगणणत अचि ।

"टकरणजीक' मधुरमटन "आ 'कोन महल नाम रखबै एकर "मै चथलीक
अनुपम टनचध मानल जाइत अचि । मधुरमटन टनम्नवगाक एकिा मटहला आ
ओकर रूग्न पचतक प्रचत प्रेमक आ्शा स्थाटपत करै त अचि ।
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नागे न्दर कुमरक कथा सं ग्रह - दृचष्टकोण (1954), त्रशकार (1955)आ


फले ना जामुन (1985) मे भे िैत अचि । हास्य व्यं ग्यक माध्यसं सामाणजक
कुरीचत पर प्रहार करब टहनक टवत्रशष्टता रहल अचि।

व्यासजीक टबडम्बना (1952) कथा-सं ग्रहमे उत्कृष्ट कथा सभ अचि।


सामाणजक समस्यासाँ प्रभाटवत व्यक्क्तक जीवन ओकर द्वं् तथा सं घषा द्त्रश
ध्यान द्एबाक श्रे य सवाप्रथम बं गाल ओ अं ग्रेजी कथा साटहत्यक िै । एकर
प्रभाव व्यासजीक कथा सभ मे ्े खल जा सकैत अचि।

स्व. मनमोहन झाक रिना मूलतः 'करुणा सं भरल रहै त िटन। टहनक
अश्रुकण 1949 ई. मे प्रकात्रशत भे लटन। तकर बा् वीरभोग्या, गं गापुि सं ग्रह
प्रकात्रशत भे लटन। गं गापुि पर टहनका साटहत्य अका्े मी पुरस्कार से हो प्र्ान
कयल गे लटन। टहनक टकिु प्रमुख कथा अचि -- 'रुना', झगड़ा, खखड़कीक
गप्प, आहत, िन्दरहार, राजगीर- यािा आद् जे मै चथली साटहत्यक अदद्वतीय
रिना चथक । टहनक अचधकां श कथामे पाररवाररक कलह, अकिात
दुघािना, प्रकृचतक मानवीकरण, प्रेमक पावन स्वरुप आद् कें सहजता साँ
्े खल जा सकैत अचि।

पािात्य कथाक टवन्दयासकें मै चथलीमे अनबाक श्रे य प्रो. उमानाथ झाकेँ जाइत
िटन । टहनक रिनामे त्रशल्पक नवीन प्रयोग एवं मनो्शाक टवश्ले षण टवशे ष
रूपसाँ पररलणक्षत होइि। टहनक रे खाचिि ' 1951 ई. मे प्रकात्रशत
भे ल, जकर 'आध घं िा', माधवजी, ओटह द्नक यािा, नीलाम्बर, आद्
कथा समस्या मूलक अचि, जे लोकक ्ै नखन्द्नी सं बन्दध पर आधाररत
उत्सुकता सं भरल आ प्रेरणा्ायक सन्द्ेश प्रेटषत करबाक सामर्थया अचि ।
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त्रसद्धहस्त कथाकार योगानन्द् झाक 'आम खाएबाक मुाँह' सामाणजक


जीवनपर आधाररत अमर कथा थीक, जे घिना - सं योजनके रोिक बनबै त दू
प्रेमी- हृ्यकेँ चमलयबाक स्तुत्य काज करै ि ।

सुधां शु शे खर िौधरीक 'एक ससिघाड़ा एक िाय' टनतान्दत वै यक्क्तक ओ


अथााभावक प्रतीकात्मक रूप प्रस्तुत करबामे सफल भे ल अचि, जे
पररच्छस्थचतक प्रचतकुलता द्त्रश सं केत करै ि।

स्वतं त्र्योतर मै चथली कथाकार लोकटनकमे लत्रलतक स्थान अग्रगण्य अचि।


टहनक कथा 1950 ई. सं प्रकात्रशत होमए लागल जाटहमे टवटवध प्रकारक
सामाणजक समस्याक सिीक चििण भे िैि। टहनक कथा सभमे मध्य एवं
टनम्नवगीय जीवनक घूसखोरी आ भ्रष्टािार चिि भे िैि। प्रचतटनचध कथाक
रूपमे टहनक ओवरलोड कें ्े खल जा सकैि। "कथा - नायक ्ीनानाथ ्रोगा
िचथ, जे अपराधके रोकबाक ले ल प्रचतटनयुक्त िचथ। मु्ा ओ स्वयं ओटह
अपराधमे त्रलप्त भ जाइत िचथ।' लत्रलतक अन्दय कथामे
मुक्क्त, रमजानी, कंिटनया, प्रश्नचिह्न आद् प्रमुख स्थान रखै त अचि। अनमे ल
टववाहक पररप्रेक्ष्यमे त्रलखखल टहनक कथा

'जयगणे श' हृ्यटव्ारक अचि ।

प्रो. मायानन्द्क चमश्रक प्रचतटनचध कथा अचि -- गाड़ीक


पटहया, िन्दरटवन्ददु, चमझाइत ्ीप आद् जे मनोवै ज्ञाटनक टवश्ले षण, फ्लै शबै क
आद् त्रशल्पगत आधुटनक प्रयोग पर आधाररत अचि। मध्यवगाक ने ह-
प्रेम, ओकर िू िैत सामाणजक मयाा्ा, अत्रभजात्य तथा सं घषाशील जीवनक
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टवटवध पक्षकेँ अपन कथाक केंरमे रखलटन अचि, जे टहनक टवशे षता कहल
जा सकैत अचि।

स्वातं त्र्योतर टवत्रभन्दन काल खं डक कथापर टबहं गम दृचष्ट ्े ला उतर कते को


चिि समक्ष अबै ि, जे समाजक हे तु यक्ष-प्रश्न बनल अचि । एटह दृचष्टमे
पूाँजीपचत ओ सामान्दय वगाक मध्य
दूरी, बे रोजगारी, जमाखोरी, कालाबजारी, महगी, भ्रष्टािार, ्हे ज-
प्रथा, भूचम-टववा्, सीमा-टववा्, क्षे िीयवा्, जाचतवा्
आरक्षण, साम्यवा्, अस्पृश्यता टनवारण, वगा- सं घषा प्रचत स्पधाा
भौचतकवा्ी मानत्रसकता, टवरक्क्त, आक्रोश, आत्महत्या, राजनीचतक उथल
-पुथल, नक्सलवा्ी, माओवा्ी प्रभृचत सं गठनक आतं क समानान्दतर सरकार
स्वरूप नै चतकवा् ह्रास, मानव- -मूल्यक अवमूल्यन,अन्दतजाातीय टववाह
सम्बन्दधक िू िन, पाररवाररक कलह, आपसी वै मनस्य, ईष्याा द्वेष , राग
टवराग, जनसं ख्या- दृचष्ट, आर्थिक सं कि, मनोवै ज्ञाटनक ्वाव, प्रचतभाशाली
युवा पीढ़ीक हताश जन्दय वे ्ना, टवज्ञानक िमत्कार, बे ईमानी आ घुसखोरी
बिै त ग्राफ, ईमान्द्ारक शोषण आ पाररवाररक ओ सामाणजक ्बावजन्दय
ओकर मानत्रसक असं तुलन, कं ु ठा, िास्ी बाह्याडम्बर, िाें ग पाखं ड, िोरी-
डकैती, अपहरण, बलात्कार खूनीखे ल, त्रशक्षा- जगतक प्रचत टवत्रभन्दन स्तरपर
उ्ासीनता वा अन्दयथा भाव, श्रचमक समस्या, बाल- मजदूरी ्े हातसं शहर
द्त्रश पलायन, नारी- उत्पीडन, नशा-पान, उ्ासीनता का अन्दयथाभाव
आधुटनकताक िाकचिक्य मां ग आ पूर्तिक मध्य खींिातानी, अपसं स्कृचत
प्रचत आकषाण, चिर- सं चित मयाा्ा-प्रचतष्ठ कें चतलां जत्रल , पािात्य सं स्कृचत
आ भारतीय सं स्कृचत,चमचथलाक सं स्कृचतमे प्रवे श आ तज्जन्दय टवकृत्क
आटवभााव, अफसरशाही मचमला - मोक्मा, हल-
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प्रपं ि, धोखाधड़ी, जालसाजी, महत्वाकां क्षा, ्े खा्े खी, प्राकृचतक


आप्ा , महामारी? महामारी एड् स एन्दसी फैलाइिीस आ स्वाइन फ्लू सदृश
सं क्रामक बीमारीक प्रकोप भूखमरी, आ एही प्रकारे अनन्दत समस्याक
िक्रव्यूही धे रल-बे ढ़ल मानव-समु्ाय, िाटह कृष्ण करै त दृचष्टगत होइत अचि
।"

सन्दिष ग्रन्ि सूिी:-

1. श्रीश, डा. दुगाानाथ झा- मै चथली साटहत्यक इचतहास-भारती पुस्तक केन्दर


्रभं गा, 1986ई , पृष्ठ -187

2. झा, डा. वासुकीनाथ- सं पा्क - मै चथली कथाक टवकास - साटहत्य


अका्मी नई द्ल्ली,2003ई , पृ०-46,47.

3. झा, डा. रमानन्द् झा रमण-सं पा्क - मै चथली कथाक समाज- िे तना


सचमचत, पिना, 2016ई . पृ०-38,39.

4. चमश्र, डा. धीरे न्दर नाथ - मै चथली कथाक सामाणजक पररवतानक


प्रभाव, पृ०-179, 180.

- अम्बात्लका कु मारी, शोधप्रज्ञ(JRF), विश्वविद्यालय मै चिली


वििाग, ल० ना० चमचिला विश्वविद्यालय कामे श्वरनगर, दरिं गा।

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२.४.लाल ्े ब कामत- अपिी खे त लऽ (लघुकथा)/ राज टकशोर चमश्र जीक


उगरास

लाल दे ब कामत

अपटी खे त लऽ (लघुकिा)/ राज वकशोर चमश्र जीक उगरास



अपटी खे त लऽ (लघुकिा)

चमचथलां िल केर एक गाममे गरीब सलमा बे गमकेँ बिौनीबाली अपन एकिा


खन्ानी बकरी पोत्रसया ्े ने रहय। ओ सीखौने रहै क जे तोरा घर लग जे हमर
द्या्क नौलखा खे त िै क, ताटहमे लागल जजात उपिबै त रटहहेँ । से एकद्न
टब्त होईत अपना कयल खे ती साँ बकरी रोचम सलमाके उपराग ्े लकै
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लालिन। आई फेरो मरूआ िें सर िरर ले बाक बात िले लटन गामपर आटब
बाध साँ । लालिनक' फौजी भाय से हो कोनू साँ घुमैत ओटह खे तक आटड़पर
कड़ीमे दूनू कुता ले ने गे ल । ओकरा सोझे मे हााँ टकके बकरी मरूआ खे तमे
हुले लक सलमा। आब की होए! एते क ठे सी - टिठगरी ्े खख पशु केँ हाँ कैत
,डाँ िै त नविोत्रलया'क दू - िारर स्िीगणके ििका िराउर कयल मरूआ गाि
्े खौल। आटक टनयार-भाष अनुसारे जत्थामे अने को नवजुबक लोकटन आ
दू-िारर गोि मौटग मे हेर लागल गारर साँ होररयाबय। प्रचतकूल महौल ्े खख-गचम
लालिनके फौजी भाय िोिे य घरमुहान भे ल। ता िाईटिल मेँ पड़ल प्रधानमं िी
सड़क कातक बाभनक खे तमे टक्रकेि खे लाइत लग बे ्रा टक्रड़ाकमी सब से हो
पिोर करयबाला हजूममे चमज्झर होईत गे ल। जहन टनबास गे िक भीतर धरर
पहुं ि गे ला पिाईतो हं सेरी लोक सब नहहि घुमल आ टबकेि साँ लोहाक गे ि
टपिय लागलै क ताँ कते को बिोही तमशगीर बनल रहल। दू गोिे य टक्रकेि बौल
जुमाकेँ तीन मं णजला पर टनशाना साधै त जं गलाक कााँ ि झौहरा ्े लक। ओम्हर
एक आ्मी लाठी ले ने ्ौडै त आयल आ ्ोकानके एस्बे स्िस फोटड़ पराएल।
ताटहघरर टकयो ्े खलक एक पुत्रलस आ िौकी्ार मिरसाईटकल साँ एम्हरे
आटब रहल िलै क। हाथे पाथे सबटकयो औजके िाइरगाड़ी साँ आयल पजे बा
लै त भागल। पुत्रलसकेँ पनडु चम घिना ्े खय बनरझूला जे बाक िलै । जुमाक'
द्न रहने एक घं िाक वा् फेर आगू - आगु मोसलीम साफी ,तै पािु मोहम्म्
इस्लाम ,सतार मं सुरी, अठासी अं सारी, करबे ला बाला आ ई्गह िोल बला
जलील मामू सब अं िसं ि बजै त ओटह ्'के' गे लैक। नविोत्रलया पर महजीतमे
बै सकय बुईधटबिरी करै त गे ल। जमीरूद्दीन केर िे म्पूमे चिलकौर सलमाकेँ
बै सबै त िाररगो युबक पं ि सं ग होईत आगू बढ़ल। घोघरडीहा अस्पताल म
भभिपन करै त भती भे ल। ओतटह थानाके ्ारोगाजी टबयान त्रलखलकै।
नालीश ्र्जा होय साँ पूवा एक णजप्सी चितकबड़ा त्रसपाहीक सं ग एकता िौक
साँ कहिरी रस्ता होईत बड़ाबाबू बनरझूला धरर गस्ती पर जाईत रहचथ।
फौणजक फोन भे ला साँ थानाध्यक्ष महो्य ने गाड़ी ्ौड़े लटन। दू द्नमे
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सामाणजक फैसला पं िायत साँ करै त सोलहनामा लगे बाक टन्े श ्े लटन। ताटह
गामक कालीजी स्थान साँ बजरं ग ्लक नवजुबक लोकटनके हिनी हाि पर
प्र्शान से हो भऽ गे लैक। टहन्दनू - मुसलमान ्ं गाक रूप ने भ'जाय,तेँ तत्काले
घिना स्थलके टनररक्षणमे आयल िोिाबाबू आ हबल्ार साहे ब अपना रहै त
्ाहारण पर बै ठारमे मचमलाक तसफीहा कयलटन। उमे र्राज समाजक पाँ ि
लोकटन बुणझ गे लाह ई एकिा चिन्दनीलालक' षड्यं िक' िाल िी। पररघिना
केँ सम्हारै ले रमजानक इफ्तार पािी ले ल फौजी साहे बकेँ कहल गे ल साढ़े पां ि
हजार िकाक सब पाकल फल अना ्े ल जाए।
लालिनके िोिभायकेँ खे तीबाड़ीमे अबूह लागटन ,मास्िरी करै तो पााँ ि कट्ठा
टहस्सा बड़का कोलामे ले ने रहय। से मनखप बिै या टपपरावाली हाथे लगौनै
िलै क। ओटह द्नक घिनाक मोन पटड़ते ्े ह शीहरर उठटन। सोझे सालमे
खे तकेँ भरना लगे बाक टविार ठानने अपन टविारी साँ मन्दिणा कयल। टनठाही
जररयाएल गप्प भे लै जे ओतुका अररयाकेँ बसयले िोिका कोला िालीस
लाखमे बे िनामा कयल जाए। सयह कले क आ प्राप्त जरसे मन साँ त्रभन्दने महल
बनाबी। मोजे मजकुरमे शोर भ' गे ल जमीन टबक्री िै क। धरर अपिी खे त साँ
िाण भे लैक,मु्ा दू भाय प्राण गमबय लऽ अपन- अपन टहस्सा बकुिने रहल।


राज वकशोर चमश्र जीक उगरास
मै चथली साटहत्यक समकालीन आशु कटव श्री राजटकशोर चमश्र जीक कटवता
सं ग्रह -: मे घपुष्प, िानटन,नवपात- नव बात, उपायन ,सप्तपणा ,नव घर
उठय,- पुरान घर खसय,प्रलय -पाश, िे मी, णजनगीक सोन सन पााँ खख,उबे र ,
कनक क्ली आ खं ड काव्य -: जाँ जग जल नटह होइत' केर वा् आब
'उगरास' पाठकगण बीि आयल अचि। कटववर राजटकशोर जी टहन्द्ी
साटहत्य मेँ से हो अपन रिना माध्यम साँ एक ्जान पोथीक सं ग धाख जमे लाह
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अचि। हम एतय " उगरास" केर ििाा करय िाहै त िी। एटह पोथीमे पृष्ठ
सं ख्या ११७ आ ्ाम तीन सय िाका िै क। पटहल सं स्करण २०२३मेँ भारतमे
मुटरत िै क जाटहक आई एस बी एन ९७८- ९३- ५९८०- १६३- ६ िै क, जे
रचियता अपन गाम अड़े र डीह पता साँ प्रकात्रशत करे बामे अपन बाइस गोि
नव कटवता टवधा केँ पाठकवृन्द् बीि रखलाह हन। सामाणजक समस्या आ
पररवे शक चििण करै त श्री चमश्रजी मनुष्यक सोि ओ दृचष्टकोण केँ समक्ष
आनलटन अचि। पोथीमे त्रभन्दन-त्रभन्दन टवषय सभके समचष्टगत नीक प्रस्तुचत
भे ल िखन्दह। पाठकके पाठ- नव भारत, हम बे िी िलहुाँ .. , आद् मनुखक
सं सार, िन्दरायण -३, हम मै चथली िी, अपै त मोन, साम्प्रचतक सप्तप्ी, नव
णक्षचतज, अथा ग्रहण, मे घािन्दन अकास, तामस, श्रमजीवी, प्रौद्योटगकी -
जुगक णजनगी, जीवन वृत, की भऽ गे लै एटह गाम के? , मनस् - क्षे ि,
गोबरपथनी, बनौआ, अनचिन्दहार होइत गाम, अहां ग, दृचष्टकोण आ की
बनबीही बौआ रौ' खुब टवमशा करय लायक बुझाइत रहत। कटवजीक ई
टवशे षता प्रथमत: बुझाएत जे ओ कटवता माध्ययमे नव- नव टवषयके पकड़ै त
िचथ। ऐ ्शकमे भारत अपन टवकास पथ पर अग्रसर रटह टवश्वमे नाम
बजे लक अचि। काव्य टहनक बढ़ सौष्ठव भे ल िखन्दह। नव भारत मेँ पााँ चत ्े लटन
अचि -:
टवश्व -पिल पर भऽ रहल अचि,
नवल - भारतक अभ्यु्य,
पृर्थवी, मं गल , िन्दरमा पर ,
गूाँणज रहल कहि्क ' जय - जय।

अं तररक्ष मे भारतवषाक,
बाणज रहल अचि डं का,
सगर जगत् केँ रहल न कटनको,
कहि्क सामर्थया पर शं का।
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शहरके अपे क्षा गामक रहन - सहन , रीचत-ररवाज आ नव उन्दमुखीकरण शुद्ध


पररमल आ शां चतक प्रभृचत बुझल जाईि। मु्ा आब एहठाम सभ्य लोक
सशं टकत रहय लागल िै क। नीक लोक कात लागल रहै ि आ नवतुररया तुका
लोक अपन ्लवन्द्ीक बले बलय - बलै मे अगुआटगरी करै त िै क। कटवक
हृ्य ई दृश्य ्े खख दुःखी भे ल िखन्दह। से एटह तरहेँ पााँ चत गढ़लटन अचि -:
गामक बग्ल िौड़ा सबहक,
बटन गे लैक अचि गोल,
जते क फसा् होइत अचि एतऽ ,
ओकरे सबहक रोल।

सााँ झू भरली अओढ़ मे ,


मुरगाक मासु , आ िाही ताड़ी,
सभ मोिण्डक इएह टकर्ानी,
कपिइ लै ि गरीबक बाड़ी।
एक कटवता 'क भाव िै क अभाबीत णिगण गोइठा चिपरी आ गोबरपथटनक
काज करै त इं धन केर काज लै त रहै ि। मथल गोबर साँ ओटहमे भुसा सं ठईक
मे रू्ण्ड बनाए सुखबै ि। गोरहा पर अप्ग्न ्े वताक प्रकिीकरण साँ ओटह आटग
साँ अन्दन त्रसध्् करै ि, अन्दन ब्रह्म साँ जीनगी डे बै त िै क। टहन्ददू गै स त्रसलें डर केँ
एटह आगू िुनौतीपूणा उपयोग करै ि। से ई काज मजहबी आधार पर मुज्स्लम
समु्ाय मेँ पशुटवष्टा साँ तै यार इं धन केँ टनषे ध मानल गे लैक अचि। तै यो
द्क्कत्ारीमे सब घरमे जरना रूपें प्रयुक्त होईि।
कटव के पााँ चत रष्टव्य अचि,यथा-:
अचत शीत काल मे धुनी रमाबय,
गोड़हनी पर उगै त अचि आटग,
गोबरपथनीक हाथ साँ गोबरक
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्े खखऔ,भाग जाइत अचि जाटग।

गो- टवष्ठा मथै त गोबरपथनी,


ओटह मे चमजहर ओकर घाम,
जे ठ- दुपहररया , सुक्खल ्े ह,
घोकिल जाइत िै ओकर िाम।
सामजक अं चतम पां चत ठाढ़ अकुशल श्रचमक वा मात्रलका जोन जे पत्थलतोर
मे हनचत कय अपन जीनगी खपा ्ै त रहल,मु्ा ओ आधुटनक सुख-सुटवधा साँ
सवाथा वर्जित रहल। ते हन टनधान िीक जीवनक कदठनाए केँ कटवक हृ्य
्े ख लै त िै क। ई जे स्वरोजगार गाम-गाममे अ्ौ साँ पसरल अचि,से गोबर
टबिनीक वा अपन पोत्रसया पशुक कााँ ि गोबर साँ जे गोबर गै स प्लां ि साँ एनजी
उत्पा्न केर प्रवन्दधन होईत वा ई सरकारी ओरीयाओन भे ल रहै त जे कााँ ि
गोबर बा गोव साँ आगे टनक खा् बने बाक घरे लू कुिीर उद्योग होईत ताँ लोकल
फार भोकल सफल कहाबै त। एखनो गोबरपथनी 'क इं धन , सौर ऊजाा आ
गै स त्रसलें डर पर ्े हातमे भारी पड़ै त िै -:
टगरहथनी ,िूच्छल्ह मे गोड़हा साँ
पजारर पकाबचथ पूआ - खीर ,
जे पथलक, से पात टबिै त अचि,
दुखा रहल िै बााँ टहक त्रसर।
ऐ तरहेँ िे फरी जोड़ल नुआाँ आ टिनही कारा- हं सुली पटहर पौनी पसाहीन केँ
कोनू िारा नै िै । स्वयं सहायता समुह के नाम पर फजी बैं क रात्रश टनकासी सं
टकि बैं कक ्लाल अवश्ये मालामाल भे ल। आ कर्जाा सधे बाक नोटिस साँ
बीपीएल के ग्रूपमे पड़ल गरीब अकारण फे्रै तमे पड़ल। एहन जे टवरपू ता
समाजमे िै , ताटह प्रसं ग सूयाक टकरण जतय नटह जुमैत य,ततय धरर कटवक
णजगे सा ्े खल गे ल हन। कटवजी समाजमे बनाबिी ्े खाैं स आ पचतये नाई पर
सं से हो पर्ा उठे बाक काज अपन रिनामे केलाह अचि। यथा-:
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काें ढ़ - करे ज तोड़ऽ पर लागल


िै बुधना के ्े आ् - बा्,
सोझााँ मे ताँ नोरे -झोरे ,
मोन िै , 'भऽ जाए बरबा्' ।
राज टकशोर चमश्र जीक काव्य रिना बढ़ सौष्टव भे ल िखन्दह। एक द्श अपन
पोथी "उगरास" मे िन्दरायण -३ , प्रौद्योटगकी -जुगक णजनगी सन कटवता
प्रगचतशील रिना आयल अचि त ्ोसर द्स टवटवध समस्या आ टन्ान द्स
से हो कलम िलौने िचथ। गत २३ मािा २०२४ केँ सगर राचत ्ीप जरय मै चथली
भाषा आ साटहत्य कथा गोष्ठी टनरमलीमे ऐ पोथीक लोकापाण समारोह पूवाक
भे ल रहय। ्शाक ्ीघाा मे बै सल हमहाँ ओटह क्षणकेँ साक्षी रही। श्रीमान चमश्र
जी मातृभाषाक से वामे सतत् अत्रभयानी बनल रहचथ,से कामना रहत।

-लाल ्े ब कामत मो० ७६३१३९०७६१

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


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२.५.रबीन्दर नारायण चमश्र-सीमाक ओटह पार (धारावाटहक उपन्दयास)

रबीन्र नारायि चमश्र

सीमाक ओवह पार (धारािावहक उपन्यास)

हमर ससुर स्वगीय गणे श झा (पण्डौल डीहिोल)क िृचतमे , सा्र सत्रसने ह


समर्पित!

सीमाक ओवह पार

िारूकात मनोरम दृश्य िल । हररअर कंिन नाना प्रकारक फूल-फलसाँ


सजल-धजल। पै र धररते लागल जे ना सभ दुख हे रा गे ल । आिया लागए जे
एतए कोना आटब गे लहुाँ ? सभटकिु नव लाटग रहल िल । सभसाँ टवचिि
बात ताँ ई रहै क जे जएह सोचिऐक सएह होमए लागै क । मोन भे ल जे केओ
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पररचित भे टि जाइत जाटहसाँ एटहठामक टहसाब-टकताब बुझबामे म्चत होइत


। मोन लगै त। एकबे र व्यवच्छस्थत हे बाक बात िै क। तकर बा् कोनो चििता
नटह । एते क सुख-सुटवधा एटहठाम स्वतः सुलभ अचि । नीकसाँ समय
कितै क। से सभ सोचिते रही टक ्े खैत िी जे केओ हमरे द्स आटब रहल
िचथ । नमगर-पोरगर, ्े खबामे बे स भव्य । हमर समवयस्के बुझाइत िलाह
। लग अटबते कहै त िचथ-
-मनोज! मनोज !
केओ हमर नाम लए चिकरर रहल िलाह । अकिात ओमहर ध्यान गे ल ।
ताबे ओ लगमे आटब गे ल रहचथ । कहै त िचथ-
"हमरा चिन्दहलहुाँ ? हमिी अहााँ क इसकुत्रलआ ्ोस्त-शर्।"
"सएह कह । चिन्दहब टकएक नटह । "
" एकिा समय रहै क जे हम-अहााँ द्न-राचत सं गे रही। सं गे खे लाइ, सं गे खाइ
। समय-समयक बात होइत िै क । एटहठाम कटहआ अएलहुाँ ?”
"आटबए रहल िी । सोचिते रही जे केओ अपन लोक भे टि जइतचथ ताँ कनी
म्चत भए जाइत ।"
"भाइ! एटहठाम ककरो, कोनो म्चतक काज नटह पड़त । सभिा अपने भए
जाएत ।"-हम हुनकर बात सुटन कए आश्वस्त भे लहुाँ ।
हमरा दुनूगोिे क गप्प ित्रलए रहल िल टक कानमे मधुर सं गीत सुनाएल ।
टवद्यापचतक गीत आ एटहठाम? हम ताँ आियामे पटड़ गे लहुाँ । ताबे गीतक स्वर
आओर फररिा गे ल िल-
" के पचतआ लए जाएत रे मोरा चप्रयतम पास..."
गे टनहारसभक साैं ्या ्े खैत बनै त िल । एहन मनोरम दृश्य साइते ्े खाइत
अचि । हमर मोनमे उठै त शङ्काकेँ शर् तारर गे लाह । कहै त िचथ -
" भाइ! अहााँ अपत्रसआाँ त टकएक िी? अखन की ्े खत्रलऐक अचि। आगू
बहुत टकिु ्े खबै क । एटहठाम आएब सभक वशक नटह आचि,मु्ा जे आटब
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गे ल तकरा सुखे-सुख िै क। जे िाही,जते क िाही,जखन िाही सभ सुलभ


िै क । एतए सुख-सुटवधाक अं बार िै क ।"
ताबते मे ्े खैत िी जे एकझुं ड एक साँ एक सुं्र कन्दयासभ नाचि-गाटब रहल
िचथ । सामने मे बड़ीिा साचमआना ओिाओल अचि । ओटहपर बहुत रास
गणमान्दय लोकसभ बै सल आनं द्त भए रहल िचथ। गीत गबै त -गबै त
कन्दयासभ बे सुचध िचथ । साचमआनामे बै सल श्रोतागण बीि-बीिमे थपड़ी
पीटि रहल िचथ। कैकबे र कैकगोिे गीतक मधुरध्वटन सुटन कए आवे गमे उदठ
जाइत िचथ आ टबना कोनो रोक-िोककेँ कन्दयासभक सं गे नृत्य करए लगै त
िचथ। हम ताँ ओटह लोकमे नवागन्दतुक रही । हमरा ले ल सभ टकिु
अप्रत्यात्रशते िल । एहन रमनगर गीत,एहन सुं्र-सुं्र कन्दया लोकटन आ
म्मस्त श्रोतागण, सं पूणा वातावरणकेँ जीवं त केने िल।
" ई ताँ अद्भत
ु स्थान लाटग रहल अचि । हमसभ िी कतए? एकर की नाम
िै क?-हम पुित्रलअटन।
"ई चथक द्व्यलोक ।"-शर् बजलाह ।
"से की?"
" ्े खखए रहल चिऐक । टकिु द्नमे अपने सभिा बुणझ जे बैक । अटहठाम
मृत्युक बा् पुण्यात्मासभकेँ स्थान भे िैत अचि।"
"मु्ा एटहठाम सभकेँ तीनिा आाँ खख ्े खख रहल िी।"
"ते सर आाँ खख िै क अन्दतदृाचष्ट । मृत्युलोकमे से सामान्दयतः बं ् रहै त िै क।
एटहठाम ओ स्वतः सटक्रय भए जाइत अचि ।"
"ते सर आाँ खख ताँ महा्े वकेँ होइत िटन।"
"हुनकर ते सर आाँ खख खुजब ताँ टवनाशकारी होइत अचि । जखन सं हार
करबाक होइत िटन ताँ ओकरा खोलै त िचथ । मु्ा एटहलोकक ते सर आाँ खख
ताँ अद्भत
ु अचि । एकरा रहलासाँ सभ भे ्-टवभे ् समाप्त भए जाइत अचि ।
्े खैत नटह चिऐक, केना सभ अपने मे मगन अचि।"
"ओ! ई ताँ बहुत नीक बात अचि ।"
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गप्पक क्रममे हमर ध्यान राटगनीपर ित्रल गे ल ।


"हमरा टकिु कहलहुाँ ?-राटगनी बजलीह। औ बाबू! हम की बणजतहुाँ । हम ताँ
िटकत रटह गे लहुाँ । सोिनो ने रटहऐक जे एना मोनमे अटबते ्े री ओ उपच्छस्थत
भए जे तीह । हम ताँ ्ं ग रही ।
"हम ताँ अहींक बारे मे सोिै त रही ।"
" तैँ ने हम आटब गे लहुाँ ।"
"मु्ा अहााँ रही कतए?"
ओ हमर मुाँह बकर-बकर ताकए लगलीह । कहबी िै क जे जीबी ताँ की-की ने
्े खी । मु्ा एटहठाम ताँ उल्िे बात ्े खख रहल िी । मरी ताँ की-की ने ्े खी से
िररताथा भए रहल अचि।
राटगनीसाँ फेरो कटहओ भें ि होएत से ताँ सपनोमे नटह सोिने रही । मु्ा हुनकर
िृचत ओटहना बनल रहए। आियाक गप्प ई अचि जे द्व्यलोकमे अएलाक
बा् मृत्युलोकक बातसभ ओटहना मोन अचि । एकिा समय िल जे राटगनी
आओर हम एकहु क्षण ले ल फराक नटह होइ। इसकुल जे बाक लाथे घरसाँ
टव्ा होइ । रस्तामे कटहओ गामक बाहर इनारपर,कटहओ कलममे आ
कटहओ धारक कातमे हमसभ बै सल गप्प मारै त रहै त िलहुाँ । ने भूख, ने
टपआस। बस राटगनीक सं गे रमल रही । कैकद्न ओ आबएमे टवलं ब कए
्े चथ । बाि तकैत-तकैत हालचत खराप रहै त िल । राटगनी िोटड़ टकिु आओर
नीक नटह लगै त िल । हुनकर पै घ-पै घ आाँ खख,िाकर ललाि,गोर-नार,नमगर
हाड़-काठ ्े खैत बनै त िल । हुनका ्े खखतटह पढ़ाइ-त्रलखाइ सभ टबसरा
जाइत िल। ई बात कते क द्न जााँ तल रटहतै क? इसकुलक मास्िरसभकेँ
पता लगलै क । काने -कान गामक लोकसभकेँ से हो पता लगलै क । आ शुरु
भे ल हमरसभक टवपत्रतक शं खला।
बहुतरास टबतलाहा बातसभ मोन पड़ए लागल । केना एकद्न हम आ राटगनी
कानमे मोबाइल लगओने गीत सुनैत रे लवे फािक पार करै त काल ते जसाँ
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 45

िलै त रे नक िपे िमे आटब गे ल रही। अपनो आिया होअए जे एते क द्न
टबतलाक बा्ो ओ घिनासभ ओटहना तह्जा अचि ,लगै त अचि जे ना
काच्छल्हएक गप्प िै क । फेर भे ल जे बीतल बातसभमे की राखल िै क? जखन
एटहठाम आनं ्क एते क सामग्री स्वतः सुलभ अचि ताँ टकएक नटह ओहीमे
रचम जाइ ।
-2-

द्व्यलोकमे द्न-राचत नटह होइत िल । सभ समय एकटह रं ग, जकरा जखन


मोन भे ल जाटग गे ल,जखन मोन भे ल सुचत रहल। जे मोन होअए से
खाउ,िीज-वस्तुक अं बार लागल रहै त िल । आम,्ाररम,समतोला, से व
,अं गुर िारुकात पथार लागल रहै त िल । खे नहारे नटह । मधुरक तरह-तरहक
व्यं जनसभ यि-ति राखल िल । एते क रास िीज-वस्तु कतएसाँ आबै क,के
बनाबइ टकिु पता नटह ित्रल रहल िल । ई हमरा नटह बुझएमे आबए जे
एटहठामक लोकसभ कोन एहन नीक काज केलाह जे एहन सुख-सुटवधा
भोटग रहल िचथ? हम सएह सोचि रहल िलहुाँ टक राटगनी सामने मे ठाटढ़
भे ल हाँ त्रस रहल िलीह -
"सएह कह, अहााँ क आ्चत कनीको सुधरल नटह । ऐहठाम अहााँ माथापच्िीमे
लागल रहै त िी । ककरो एना ्े खैत चिएक?- से कटह ओ जोरसाँ हमर हाथ
णझकलचथ आ हमरा ले ने आगू बटढ़ गे लीह ।
हमसभ गप्प कररते रही टक एकिा जहाज उतरलै क । राटगनी ओटह जहाज
द्स बटढ़ गे लीह । जहाजक फािक खुजल आ ओटहमे साँ शर् बहरे लाह ।
शर् राटगनीकेँ ्े खखते हाँ सैत िचथ आ इसारासाँ अपना द्स बजबै िचथ ।
दुनूगोिे ओटह जहाजमे बै त्रस जाइत िचथ आ जहाज उटड़ जाइत अचि। ई सभ
घिना तते क जल््ीमे भे लैक जे हम ठामटह सभटकिु ्े खैत रटह गे लहुाँ ।
हमरा ताँ ठकटव्ोर लाटग गे ल । टकिु फुरे बे नटह करए। एसगरे ओटहठाम
जस-के-तस ठाढ़ रही टक अं तररक्षमे बड़ी जोर अबाज भे लैक ।
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-जरुर कोनो नव घिना घिल अचि"- िारुकात बौआ रहल आत्मासभ सोचि
रहल िल। एटह आत्मासभक खुबी िलै क जे ओकरासभकेँ ककरो समा्
्े बाक हे तु कोनो फोनक काज नटह पड़ै त िलै क। इिा करु आ ओटह
आत्मासाँ सोझे सं पका भए जाएत। ततबे नटह, जखन जतए िाहचथ उटड़ जाचथ
। कोनो सबारीक काज नटह पड़ै त िलटन ।
थोड़बे कालमे आकाशवाणी भे ल-
"तोरा अखन धरर पुरनका आ्चतसभ नटह िु िलह अचि। तेँ परे सानीमे पटड़
जाइत िह।"
"एटहमे हमर कोन ्ोष? हमर मोनमे ओएह बातसभ घुचम रहल अचि ।
राटगनी ताँ हमरा बहुत मानै त िलीह, बहुत आवे शसाँ हमरा लग अएबो केलीह
आ टबना टकिु कहने ित्रल गे लीह। कटह नटह कतए गे लीह?"
“ऊपर द्स ्े खहक ।”
"हमरा ताँ टकिु नटह ्े खा रहल अचि।"
"एना ताँ नटह हे बाक िाही। अहााँ क ते सर ने ि लगै त अचि सटक्रय नटह भए
रहल अचि नटह ताँ एहन प्रश्न नटह पुिए पड़ै त ।"- -से कटह ओ अबाज लुप्त
भए गे ल । कतहु टकिु नटह ्े खा रहल िल । ऊपर, नीिा, साैं से ्े खबाक
प्रयास केलहुाँ । हम ऊपर तकैत रही, टकिु -टकिु सोिै त रही आ ित्रलतो रही।
पररणाम भे ल जे हमर पै र कोनो टपिड़ स्थानपर पटड़ गे ल आ हम टपिटड़
कए खत्रस गे लहुाँ । टकिु नटह बुणझ सकत्रलऐक जे केमहर जा रहल िी ।
िारूकात अन्दहार गुज् ज रहै क । बीि-बीिमे कैठाम टकिु -टकिु अबाज
सुनबामे आबए। सं भवतः मृतात्माक आवागमन भए रहल िल । खसै त -
खसै त हम एकिा पहाड़क िीलापर अड़टक गे लहुाँ । ओतए टकिु गोिे पटहने साँ
हमर प्रतीक्षा कए रहल िलाह । टकिु - टकिु कहए िाहलाह। हुनकर भाषा
हमरा टकिु बुझएमे नटह आबए । हम ओकरा द्स तकैत रही आ ओ सभ
हमरा द्स। ओ सभ आपसमे टकिु गप्प केलक। ओटहमे साँ एकगोिे
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मै चथलीमे बाजल-
" अहााँ बहुत थाकल लगै त िी । टकिु जलखै कए त्रलअ ने । फेर घुमैत रहब
।"
"ठीक िै क ।"
ओ हमरा एकिा बड़का भोजनालयमे लए गे लाह जतए तरह-तरहक जलखै
राखल िल । जे खाउ,जते खाउ कोनो रोक-िोक नटह । ओटहठाम बहुत रास
लोकसभ रहै क मु्ा ककरो भाषा बुझबे नटह कररऐक । सभ अपन-अपन
पत्रसनक जलखै करबामे मस्त िल। जलखै केलाक बा् हमरा आैं घी लागए।
ई बात ओ बुणझ गे लाह आ हमरा ले ने-ले ने एकिा कोठरीमे पहुाँ िा ्े लाह ।
ओटहठाम सुतबाकसभ व्यवस्था िलै क । हम तते क थाकल रही जे ओतए
जाइते टनन्दन पटड़ गे ल ।

-3-

टनन्दन िु ितटह बीतल बातसभ मोन पड़ए लागल । हमर गाम िल मौजपुर ।
मौजपुर गाम के नटह जनै त िल । टकएक? एटह ले ल नटह जे ओटह गाममे
बहुत पढ़ल-त्रलखल लोक िल,एटह ले ल नटह जे ओतए कोनो बहुत धनीक
लोकसभ िलाह । असलमे ओ गाम इलाकामे आपसी सौहाद्याक हे तु प्रत्रसद्ध
िल । गाममे सभ जाचतक लोक बसै त िलाह मु्ा कखनो लगबे नटह करै त
जे एते क जाचतक लोक एकटहठाम एते क नीकसाँ रटह रहल िचथ । सभ चमलल
रहै त िल जे ना नून पाटनमे चमत्रल जाइत अचि । जटहआक ्ाहा होइत
तटहआक साैं से गाम ्ाहापर अपन कबुलाक बद्धी िढ़ाबै त,हािपर सााँ झमे
्ाहासभक चमलान ्े खैत,लाठी भजै त युवकसभक मनोरं जन ्े खैत । की
टहन्ददू,की मुसलमान सभ अपन जोर अजमाइस करै त। लगबे नटह करै त जे ई
कोनो तरहेँ ्ोसर धमाक पाबटन अचि । तटहना कृष्णाष्टमी,रामनवमी आ
दुगाापूजामे मुसलमानो पािू नटह रहै त । जकरा जे काज ्े ल जाइत से सहषा
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करै त ।
गाममे एक साँ एक लोक रहै त िलाह । ओटहमे चतरटपतक अलग पटहिान
िलटन। ने नामे बहुत कष्ट सहलटन। हुनकर टपताकेँ जथा-पात नटह िलटन ।
बहुत मोसटकलसाँ गुजर होइत िलटन । मु्ा चतरटपत बहुत सं स्कारी आ
पररश्रमी िलाह । द्न-राचत मे हनचत कए आइए धरर पढ़लाह । तकरबा्
गामे क इसकुलमे मास्िरी करए लगलाह । इसकुल बा् जे समय बचि जाइत
िलटन ताटहमे गामक गरीब बच्िासभकेँ पढ़बै त िलाह,ततबे नटह
ओकरासभकेँ टकताब,कााँ पीक व्यवस्था धरर ओएह कए ्ै त िलाह। कैकबे र
घरनी िोकचथन-
"एना ताँ अहााँ हमरासभकेँ त्रभखमं गा बना ्े ब ।"
" एटह प्रचतभाशाली ने नासभकेँ आश्रय ्े बासाँ बटढ़ कए कोनो पुण्य नटह भए
सकैत अचि । धन होइत िै क कथी ले ल?"
"एटहना कबाइत पढ़ै त रह । जखन द्क्कचत होएत ताँ केओ काज नटह
आओत । ई ओएह गाम िै क जतए हमसभ कते को राचत पाटन पीटब सुचत
जाइत िलहुाँ आ लाजे ककरो टकिु नटह कटह पबै त िलहुाँ । ताटहठाम अहााँ
स्ाबता बााँ टि रहल िी।"
आओर चतरटपत हाँ त्रस कए बातकेँ िारर ्ै त िलखखन। ओ बजै त-बजै त अपने
िुप भए जइतचथ । चतरटपतपर कोनो असर नटह होइत िलटन ।
हम,शर् आ राटगनी टनयचमत ओटह इसकुल जाइत िलहुाँ । गामक पिबररआ
कात एकिा पै घ पाकटड़क गाि िलै क। ओकरे औढ़मे इसकुल िलै त िल ।
एकमाि त्रशक्षक चतरटपत भोरसाँ सााँ झ धरर लागल रहै त िलाह । इसकुलकेँ
क्रमशः इलाकामे प्रिार होइत गे लैक। गाम-गामसाँ टवद्याथीसभ जुिए लागल
। मु्ा ओतए साधनक नामपर टकिु नटह िलै क ,एकिा िारो नटह । एते क
सं घषा कए ने नासभक भटवष्य टनमााण हे तु चतरटपतकेँ कटहओ चििचतत नटह
्े खत्रलअटन,टनरं तर प्रसन्दन रटहतचथ । के की कए रहल अचि,के की कटह रहल
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अचि ताटहसभसाँ टकिु ले ना-्े ना नटह रहै त िलटन । अपन काज साँ मतलब
रखै त िलाह,अपना आपमे मगन रहै त िलाह ।
हुनकर प्रयाससाँ कते को ने नासभ गामक इसकुलसाँ जुड़ल। जीवनमे आगू
बढ़ल । नौकरी करबाक हे तुगाम िोटड़-िोटड़ सहर द्स ित्रल गे ल । गाममे
झर सभ रटह गे ल जे टनत्य नाना प्रकारक झञ्झटि करै त रहै त िल ।
ओहीक्रममे चतरटपतपर ओ सभ आक्रामक भए गे ल िल। ओना चतरटपत
तते क सम्हारर कए िलए बला लोक िलाह जे ककरो हाथ नटह लागचथ ।
मु्ा राटगनीक प्रसं ग हुनका बे बस कए ्े ने िल।
चतरटपत एटह इसकुलकेँ स्थाटपत करबाक हे तु द्न-राचत लागल रहलाह ।
सरकारी अचधकारीसभकैँ कते को ्खाास्त ्े लाह। मु्ा टकिु नटह भे ल । हारर
कए पााँ ि कट्ठा खे त बे चि कए ओ इसकुल भवनक टनमााण केलाह । शुरु मे
तीनिा कोठरी बनल। दू िा पक्का आ एकिा फूसक । तकरबा्ो बहुत रास
टवद्याथीसभ गािक िाहररमे पढ़चथ । इसकुलमे आस-पासक तीनिा आओर
त्रशक्षक स्वे िासाँ योग्ान ्े बए लगलाह ,एटह उम्मी्मे जे आइ-ने -काच्छल्ह
हुनकासभकेँ सरकारी नौकरी भए जे तटन । कालक्रमे से हो भे लैक ।
इसकुलकेँ सरकारी मान्दयता भे िलै क । ओटहमे स्थानीय ने ता श्यामक बहुत
योग्ान रहटन । ओ आ चतरटपत कते को द्न लाटग कए एटहकाजकेँ
करओलाह । इसकुलक काज आगू बटढ़ते गे ल । क्रमशः ओतए आओर
कोठरीसभ बनल । माध्यचमक टवद्यालयसाँ बटढ़ कए ओ उच्ि टवद्यालय भए
गे ल। इलाकामे ओटह इसकुलक नाम पसरर गे ल । नीक-नीक टवद्याथीसभ
ओटह इसकुलमे नाम त्रलखाबक हे तु प्रयत्नशील रहै त िलाह । जखन नीक
टवद्याथी रहतै क ताँ परीक्षाफलो नीक हे तैक। सएह होमए लागल । एटह
प्रयासक सफलतासाँ चतरटपतकेँ समाजमे बहुत यश भे ल ।
राटगनीक टपता चतरटपत बहुत यत्नसाँ अपन एकमाि सं तानक पालन-पोषण
करै त िलाह। हमर टपता प्रभु हुनके ओटहठाम हर जोतै त िलाह । कते को
द्न हम हुनकासं गे खे तपर ित्रल जाइ । कैकद्न चतरटपतक ओटहठाम से हो
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बाबूकसं गे ित्रल जाइ। मु्ा हम ई बात नटह बुणझऐक जे राटगनीक सं ग गप्प-


सप्प एते क गहींर आ रसगर भए जाएत । मु्ा से भे ल । क्रमशः ने न्दनेसाँ
राटगनीक हमरासाँ आकषाण रहै क जे बटढ़ते गे ल । जखन चतरटपत इसकुल
िलबए लगलाह आ गामघरक ने ना सभकेँ पकटड़-पकटड़ कए ओटहमे लए
जाए लगलाह,ताँ हमहाँ इसकुलक मुाँह ्े खलहुाँ । ओटहसाँ पटहने इसकुल की
होइत िै क से सुननो नटह रहऐक ।
इसकुलमे पटहले द्न राटगनी हमरा ्े खखते पािू पटड़ गे त्रल। हमहाँ ताँ ने न्दने रही
। ओकरासं गे खे लाइत-खे लाइत द्न बीचत गे ल । ्ोसर द्न जखन अटहना
समय टबतै त रहए ताँ चतरटपतक ध्यान ओमहर गे लटन । राटगनी आ हमरा दुनू
गोिे केँ बै सा कए टकिु पढ़बए लगलाह। हुनका एटह बातसाँ प्रसन्दनता रहटन
जे राटगनीकेँ इसकुलमे मोन लगै त िटन । कैकबे र राटगनी हमर सभसबक
बना ्े चथ जाटहसाँ हम माररसाँ बचि जाइ । कैक बे र हम हुनकर काज कए
द्अटन । एटह तरहेँ हमरसभक पिाइ िलै त रहल ।
इसकुलमे हमरसभक ्ोस्तीपर सभसाँ पटहने शर्क ध्यान गे लैक । भे लैक
ई जे टिटफनक समयमे हम दुनूगोिे गाितर बै सल गप्प करै त रही टक शर्केँ
टकिु टवद्याथीसभसाँ झगड़ा होमए लगलै क। टकिु गोिे ओकरा पीटि रहल िल
ताँ टकिु गोिे बिा रहल िल । मु्ा ब्माससभ ओतटह नटह रूकल । ओ
सभ राटगनीकेँ ्े खखतटह अड़-बड़ बाजए लागल । ताटहपर हमरा बहुत तामस
भे ल। हम ओकर गट्टा पकटड़ कए पिटक ्े त्रलऐक । ताबते मे आओर
बच्िासभ ्ौड़ल । हल्ला सुटन चतरटपत से हो अएलचथ । कहुना कए मामला
शां त भे ल ।
तकरबा् सभक ध्यान एमहर-ओमहर भए गे ल । मु्ा शर् तकरबा्साँ टनत्य
टिटफनकालमे हमरासभक लगीिमे आटब जाइत। अपनाभरर राटगनीक ध्यान
आकर्षित करबाक प्रयास करै त,मु्ा ओ सुनबे नटह करै क । एटह बातसाँ
शर्क मोनमे बहुत तामस भे लैक आओर ओ तटहएसाँ राटगनीसाँ ब्ला
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ले बाक जोगारमे पटड़ गे ल ।


-4-

शर्क टपता श्याम ठीके्ार िलाह । सरकारी व्यवस्थाकेँ अपना टहतसाधन


हे तु उपयोग करबामे ओ माटहर िलाह । क्रमशः हुनकर प्रभाव बढ़ै त गे ल ।
ओ क्रमशः बड़का ने ता बटन गे लाह। अपन गाम लखनपुरमे कमे काल रहै त
िलाह मु्ा जखन कखनो अटबतचथ ताँ ओटहठाम लोकक करमान लागल
रहै त िल । लखनपुर आओर मौजपुर आसे पास िल । बहुत लोकक काज
ओ करबा ्ै त िलखखन,जकर नटह होइत िलै क तकरो बोल-भरोस ्ए पोिने
रहै त िलाह । तैँ हमरो गामक बहुत रास लोकसभ हुनकर प्रशं सक िल ।
कहब जे कोनो टनःशुल्क टकिु करै त िलखखन से बात नटह । तै ओ लोक
हुनकर व्यवहारसाँ खुश िलाह । कोनो परे सानी भे लापर हुनके लग जाइत
िल । जाँ काज नटह होएत ताँ िाका बुड़त नटह । वापस कए ्ै त िलखखन।
एटह बातसाँ हुनकर गणना इमान्द्ार लोकमे होइत िल । फेर घी हे राएल ताँ
कतए? मौजपुरमे इसकुलक स्थापनाक बा् कते को युवककेँ सरकारी,टनजी
काज ओ धरबै त रहलाह ।
शर् अपन टपताक एकमाि सं तान िलाह । श्यामक इिा रहटन जे ओ पटढ़
त्रलखख पै घ आ्मी बनचथ जाटहसाँ हुनकर यश बढ़टन । मु्ा शर्क लक्षण
ते हन नटह रहटन । इसकुल जे बे नटह करचथ आओर जाँ जे बो केलाह ताँ टकिु -
ने -टकिु झञ्झटि बे साटह ले चथ । त्रशक्षकोसभ बे सी टकिु नटह कए पाबचथ ।
एकद्न शर् इसकुलमे खे लक घं िीमे राटगनीक बााँ टह पकटड़ ले लक । टकिु -
टकिु ओकर कानमे फुसफुसे बो कएल । राटगनीक तामस ्े खैत बनै त िल ।
" तूाँ ्ोबारा एहन गलती करबैँ ताँ ठीक नटह हे तौक ।" -राटगनी बाजल ।
" द्नभरर मनोजसं गे हाँ सी ठट्ठा करै त रहै त िैँ से टकिु नटह आ हम कनीक
िोटक ्े त्रलऔक ताँ कोन जुलुम भए गे लैक? "-शर् बाजल ।
"बे सी तं ग करबैँ ताँ हम मास्िर साहे बकेँ कटह ्े बैक ।"
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"कटह ्ही । ओ हमरा की कए ले ताह? "


राटगनी कनै त मास्िर साहे ब लग पहुाँ चि गे त्रल । मास्िर केओ आन नटह चतरटपत
िलाह। ओ सभ बात बुणझओ कए शर्केँ टकिु कहए नटह िाहचथ । मु्ा
िुपो नटह रहल भे लटन। आखखर ओ शर् केँ बजओलचथ । चतरटपत टकिु
कहचथन ताटहसाँ पटहनटह ओएह बाजए लागल-
" हम ताँ ओकरा बुझेबाक प्रयास कए रहल िलहुाँ जे ओकर द्न-राचत मनोज
सं गे रहब उचित नटह अचि । एटहसाँ ओकर िटव खराप भए रहल िै क । ताँ
उल्िे हमरे त्रसकाइत करए आटब गे त्रल।"
आसपास ठाढ़ कैकिा टवद्याथी ओकर बातक समथान केलक। बात बढ़ै त गे ल
आओर श्याम से हो एटह टववा्मे कुद् पड़लाह । श्याम प्रभावशाली व्यक्क्त
िलाह । हमर टपताक हुनका आगू की औकात िलटन । ओ हुनका अपना
ओटहठाम बजा कए कहलखखन-
"अपन बे िाक समािारसभ बूझल िौ टक नटह?"
"इसकुल जाइत िै क । द्न-राचत पढ़ाइमे लागल रहै त िै क । मु्ा हम ताँ
टकतोबो नटह जुिा पबै त चिऐक, सभिा चतरटपत बाबू करै त िचथन ।"
"िुप रह । पढ़ाइ करै त िै क । ओ नमरी गुण्डा भे ल जाइत िौक ।"
"एेँ !”
"ते हन भगल कए रहल अचि जे ना एकरा टकिु बूझले नटह होइक ।"
"हमरा सहीमे टकिु नटह बूझल अचि।"
"इसकुलसाँ अपन बे िाकेँ टनकात्रल ले नटह ताँ बरबा् भए जे तौक । साैं से
गाममे बात पसरर गे ल अचि । असगर हम कते क बिा सकबौ?"
श्यामक बा् सुटनतटह हमर बाबू बहुत परे सान भए गे लचथ। हुनका हमरा
खखलाफ कहल गे ल एक-एक शव्् वज्र जकााँ लगलटन । िातीमे ््ा उठल ।
हुनका जोरसाँ हृ्याघात भे ल । ओ धराम ्ए खसलाह । जाबे केओ टकिु
बुझैत,टकिु करै त ओ गुजरर गे लाह । कनीके कालक बा् हुनकर लहास
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आङनमे पड़ल िल ।

-5-

ब्रह्मस्थानमे साैं से गामक लोकसभ आएल रहचथ । एकद्स लखनपुरक


लोकसभ बै सल िलाह ताँ ्ोसर द्स मौजपुरक । दुनूगाम इलाकाक सुभ्यस्त
गाममे मानल जाइत िल। बे सीलोकसभ नौकरी करै त िलाह । बाहरे रहै त
िलाह। कटहओ-काल,पाबटनए-चतहारे गाम आबचथ नटह ताँ नटहओ आबचथ ।
गामसभमे बे सी बूढ़ आ बच्िासभ ्े खाइत। गामक युवकसभ बहररआ भए
गे ल िल । ते हन पररच्छस्थचतमे चतरटपत अपन पररवारकेँ सं गे गामे मे रहै त िलाह
। गुजर जोकर खे त -पथार रहटन। शां चतपूवाक समय टबता रहल िलाह । मु्ा
ई कां ड हुनकर जीवनकेँ टहला कए राखख ्े लक । सभिा व्यवस्था गड़बड़ा
गे ल । ओटहद्नक बै सारमे दुनूगामक लोक एकस्वरसाँ बजलाह-
"राटगनीकेँ मनोजक सं ग एटह तरहेँ मे ल-जोल गामक प्रचतष्ठाक खखलाफ अचि
। टहनकासभकेँ गाममे रहक होटन ताँ सुधरचथ, नटह ताँ गामसाँ बाहर कएल
जाचथ ।"
तकरबा् जे भे ल से फेरसाँ बाजक मोन नटह करै त अचि। सुनबै ताँ बहुत दुख
होएत । िलू,कटहए ्ै त िी । ्े खलहुाँ जे राटगनीक टपता चतरटपत ओकर झोिा
पकड़ने चघिने जा रहल िचथ।
"नाक किा ्े लैं। "
" बाबू! हमर टकिु अपराध नटह अचि । "
"िुप रह कुलिा नटहतन।"
"हम टकिु गलत नटह कए रहल िी । लोकसभ अने रे हमर पािू पटड़ गे ल
अचि ।"
" तोरा ताँ लाज-धाख िौक नटह । पीटब गे लैं धो कए सभिा। मु्ा हमसभ
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एटह समाजमे िी आ रहब । बुझलही टक नटह? नीकसाँ सुटन ले । नटह ताँ ...।"
चतरटपत राटगनीकेँ कोठरीमे पिटक बाहरसाँ तालाबं ् कए अड़बड़ बजै त खुरपी
ले ने खे तपर ित्रल जाइत िचथ। राटगनी असगर घरमे चिकरर रहल िचथ ।
केबारक पािू हुनकर माए ठाटढ़ िचथ । ओहो काटन रहल िचथ मु्ा लािार
िचथ । चतरटपत टकिु नटह सुटन रहल िचथन। ओ एटहपार-ओटहपार करए हे तु
तै यार िचथ। माएक एटह व्यथाकेँ केओ बुझनाहर नटह अचि । राटगनीक करुण
क्रं्न करै त रटह गे त्रल ।

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाउ।


विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 55

२.६.कुमार मनोज कश्यप-वि-वृक्ष

कु मार मनोज कश्यप

िट-िृक्ष

साईटकल रें ग कs िले नाई तs घर सs बाहर-भीतर करै त-करै त सीख ले ने


रही; मु्ा बाहर सड़क पर िले बाक अवसर कटहयो भे टिते ने िल। बाबूजीक
प्रकि-अप्रकि डsर एहन जे साइटकल िलबै लै मााँ गबाक साधं स
कहााँ ? बाबूजी ओटह द्न ते ज ज्वरक कारण टबिान पर बे सुध आ यै ह
सुअवसर िल हमरा ले ल! नहुएाँ -नहुएाँ साईटकल घर सs टनकाललहुाँ आ
ताबड़-तोड़ पै डल मारब शुरू। थोड़ समय के अचधकतम सदुपयोग करै के धुन
मे ईहो टबसरर गे लहुाँ जे ढ़लान पर पै डल नकहि मारल जाईत िै ; अटपतु ब्रेक के
उपयोग कैल जाईत िै गचत टनयं िण खाचतर! पररणाम भे ल जे साईटकल
समे त आें घड़ा कs खसलहुाँ खता मे ....... साईटकल के पुरान ररम वक्राकार
भs गे ल से भे बे कैल; िाबा सs िड़-िड़ शोणणत बहs लागल! हम जोर-
जोर सs कानय लागल रही ..... एटह दुआरे नकहि जे िोि लागल रहै ; एटह
दुआरे जे बाबूजीक क्रोध सs आई केयो बिा नकहि सकत। लोक सभ
्ौड़ल। उठा-पुठा कs घर लs गे ल ..... हमरो आ साईटकलो के!
56 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

हो-हल्ला सुटन बाबूजी तलमलाईत कहुना बाहर एला। ्ााँ त टपसै त की सभ


बजला से सुनबाक होश तs हमरा नकहि रहल; मु्ा होश भे ल तखन जखन
गामक बुच्िो डाकडर घाव मे कोनो िनिनहा ्वाई लगा उजरा पट्टी बन्दहने
रहचथ। माय जााँ घ पर सुतेने भरर माथ नाररयल ते ल मलै त िलीह। आाँ खख
डबडबायल िलटन। 'जो रे िं डलबा! कथी लै अपन प्राण हsतs गे ल िलै हैं।
केहन त्रसद्दचत भे लौ!' कहै त ओ हमर कपाड़ पर सs िघरै त ते ल अपन
तरहत्थी सs पोिs लागल रहचथ।

बाबूजी आब पायरे ऑटफस जाई लै सकाले घर सs बहराईत िचथ आ रचतगर


आपस घुरैत िचथ। ओ िु िलाहा साईटकल गठु ल्ला घर मे यथावत पड़ल अचि।

-सम्प्रचत: भारत सरकार के उप-सचिव, सं पकष : सी-11, िावर-4, िाइप-


5, टक्वई नगर पूवा (द्ल्ली हाि के सामने ), नई द्ल्ली-110023, #
9810811850 ईमे ल: writetokmanoj@gmail.com

अपन मं तव्य editorial.staff.videha@gmail.com पर


पठाउ।
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 57

२.७.प्रमो् झा 'गोकुल'-फोने पर फगुवा (लघु कथा)

प्रमोद झा 'गोकु ल'


फोने पर फगुिा (लघु किा)

माझ आङनमे भोरे भोर कौवाके कुिरै त ्े खखके चप्रया दूधमे त्रभजाके एकिा
रोिीक िु कड़ा कौवाक आगााँ मे फेकैत बजलीह-
'उच्िै र बै सह' आ कौवा ओकरा लपसे लोलमे भरर उटड़ गे ल ।उड़ै त कौवाके
ओ ताधै र ्े खैत रहलीह जाधै र ओ आाँ खख साँ अलोटपत नै भ'गे लटन ।जे ना ओ
हुनके सने स ल'के बुच्िीक पप्पा लग ल'गे ल होइन । तखने फोनक घं िी
घनघना उठलै आ ओ लपटकके बजलीह- हे ल्लो ! के .. बुच्िीक पप्पा !!!
-- हाँ यै ! कोना िी !!
-- अहां ँाँ टबना जे ना रहकक िाही !ताहमे पाबै न चतहारके बड्ड अखरै ये !
--से हम की करब ? अिे कहते आइ की चिऐ ?
- टकए ,फगुवा !!!
--त'खे लाने त्रलअ फोने पर !
- गे मै या ! से कोना ?
- अपन दुनू समतोला सनक रसगर गाल आगााँ बढ़ाउते !
-- है या त्रलअ बढ़ा ्े लाैं !
58 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

- आल रङसे हम पोचत रहल रहल िी आ सगर ्े ह पर लाल पीयर हररयर


अबीर चिटड़या रहल िी !
--हमहाँ --कने साबधाने रहब उिकबा द्यर सबसे !
- धत, ओ सब हमरा की करता ? अपने डरे सब सुिकल रहै िचथ !
-हाँ से ते अहााँ खे लक्कैर िीहे !
- तकर माने ?
- माने ताने टकि नै ।कने अहााँ अपन ओ टपयरगर गीत सुना द्अ ते !
- कोन गीत ?
-कसमसके आङी मसै क गे लै ना ,टपया डााँ रे पर घै ला भसै क गे लै ना !
-आ धुर जो !!! टहनको रभसी अजगूते !
--हहा.. आब जाइ िी ्ोस सभक सङे खे लाइले !
-- जाउ ,फोन रखै िी !!
--राखख द्औ ! चप्रया हलसै त कड़ाही गै स पर िढ़ाके मालपूवा िानय
लगलीह।

-प्रमो् झा 'गोकुल', ्ीप, मधुवनी (टवहार); फोन -9871779851


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विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 59

२.८.प्रणव झा- ऑटडयोलॉजी आ स्पीि लें ग्वे ज पै थोलॉजी: बारहमा के बा्


जीवटवज्ञान केर टवद्याथी ले ल कररयर टवकल्प

प्रिि झा

ऑवियोलॉजी आ स्पीि लें ग्िे ज पै िोलॉजी: बारहमा के बाद जीिविज्ञान


केर विद्यािी ले ल कररयर विकल्प

सब गोिे के प्रणाम। आई हम जीवटवज्ञानक टवद्याथी के ले ल 12मा के बा्


एकिा एहन कररयर टवकल्प केर बात क रहल िी जे बड्ड
असं तृप्त(अनसे िुरेिे ड) िै क आ जै मे रोजगार भे िबाक सं भावना सौ प्रचतशत
िै क। एकिा एहन कोसा जकरा बा् अहााँ पच्िीस हजार से अढ़ाई लाख िाका
महीना तक कमा सकै िी। एकिा एहन कोसा जकरा बा् अहााँ नौकड़ी क
सकै िी, अपन ज्क्लटनक िला सकै िी आ कोनो मे टडकल कॉले ज में
प्रोफेसर/कंसल्िें ि से हो बटन सकै िी। हम बात क रहल िी ऑटडयोलॉजी
आ स्पीि लैं ग्वे ज पै थलॉजी के. जै टवद्याथी सबहक ियन नीि के माफात
एमबीबीएस कोसा में नै भ पाटब रहल िै न, या णजनकर ियन एमबीबीएस के
ले ल प्राइवे ि मे टडकल कॉले ज में भ रहल िै न जे कर महरग फीस ्े बा मे ओ
सक्षम नै िै थ, आटक जे िाि, मूक-वचधर रोगी सबहक से वा आ इलाज के
ले ल बहुत उत्साटहत िै थ आ ऐ क्षे ि में कररयर बनाब िाहै त िै थ हुनका ले ल
ई एकिा बहुत नीक कररयर टवकल्प भ सकै अचि।
60 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

ऑटडयोलॉजी आ स्पीि लैं ग्वे ज पै थोलॉजी के पढ़ाई स्नातक स्तर पर सं गे -


सं ग होइत िै क आ स्नातकोतर/ पीएिडी ले वल पर अहााँ कोनो एकिा क्षे ि
में शोध करै त चियई। स्नातक आ स्नातकोतर स्तर पर ई बीएएसएलपी आ
एमएएसएलपी के नाम से जानल जाइत अचि।
बीएएसएलपी/एमएएसएलपी कोसा के बा् अहााँ श्रवण आ बाजाय
से सम्बं चधत समस्या से ग्रत्रसत रोगी सबहक जां ि/इलाज क सकय िी।
यद्यटप कानूनी रुपे ऐ कोसा के बा् अहााँ अपन नाम के आगा डॉक्िर नै लगा
सकै िी। मु्ा यद् अहााँ मे एकरा ल क बड्ड से हंता अचि त अहााँ पीएिडी क
के डॉक्िर से लुिेशन से हो लगा सकै िी।

ऑटडयोलॉणजस्ि की करय िै थ:

- ऑटडयोलॉणजस्ि स्वास्र्थय प्रोफेशनल्स होइत िै थ जे तकनीक आ


अपन कौशल केर उपयोग क के श्रवण(टहयररिग) सम्बन्दधीत समस्या
टिटनिस आ अन्दय वचधरता समबन्दधीत समस्या केर टन्ान में रोगी के सहायता
करई िै थ।
- स्पीि लें ग्वे ज पै थोलॉणजस्ि बाजाय से समबन्दधीत समस्या में रोगी के
परामशा ्ै त िै थ आ इलाज के माफात हुनकर समस्या केर टन्ान करई
िै थ।
- रोगी सब के श्रवण आ वाक सम्बन्दधीत स्वास्र्थय समस्या आ ओकर उचित
टन्ान ले ल परापशा ्ै त िै थ।
- मरीज के श्रवण सम्बन्दधीत उपकरण केर आवश्यकता के जां ि करय
िै थ आ उचित श्रवण उपकरण केर प्रयोग ले ल सुझाव ्ै त िै थ आ
ई उपकरण सब के टफि एवं प्रोग्राम करबाक काज करय िै थ ।
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 61

- एनआईसीयू में नवजात केर श्रवण आ बाजाय के क्षमता क मॉटनिर


करय मे आ उचित सहायता ्े बाक काज करय िै थ।
- नाना प्रकार केर श्रवण सम्बन्दधीत िे स्ि जे ना Pure-Tone
Testing,Speech Testing,Tests of the Middle
Ear,Auditory Brainstem Response
(ABR),Otoacoustic Emissions (OAEs),brainstem
evoked response audiometry (BERA) आद्।

ऐ तरहें हम ्े खय िी जे ऑटडओलॉजी आ स्पीि लैं ग्वे ज पै थोलॉजी कोसा क


के कोनो टवद्याथी रोगी सबहक से वा करबाक अपन सपना के पूरा क सकय
िै थ।

रोजगार केर अिसर:


बीएएसएलपी/एमएएसएलपी कोसा करबाक बा् अहााँ नाना तरहक
सरकारी आ गै सरकारी सं स्थान, ररहै टबत्रलिे शन सें िर, यूटनसे फ, स्कुल-
कॉले ज आद् जगह पर काउं से लर के रूप में नौकड़ी पाटब सकय िी। एकरा
अलावा अहााँ मे टडकल कॉले ज, कॉपाे रेि अस्पताल, ईएनिी, नवजात
अस्पताल/ज्क्लटनक में काज पाटब सकय िी जत एकर खूब आवश्यकता
होईत िै क। आ नै त ऐ सब ठाम फ्रीलां सर सलाहकार के रूप में से हो अपन
से वा ् सकय िी। बहुते रास फामाास्युटिकल कंपनी जे श्रवण-बाजाय
सम्बन्दधीत यि बनबै िै थ से हो ऑटडयोलॉणजस्ि पे शेवर सब के हायर करय
िै थ। अहााँ उपर बतै ल जां ि आ सलाह के ले ल अप्पन स्वयं के ज्क्लटनक
से हो फोत्रल सकय िी। अहााँ 1-2 लाखक िोि टनवे श से से हो अप्पन
ज्क्लटनक फोत्रल सकय िी। एमएएसएलपी/पीएिडी के बा् अहााँ के कोनो
मे टडकल कॉले ज में अत्रसस्िें ि प्रोफेसर के काज से हो भें ि सकय अचि आ
अहााँ मे टडकल कॉले ज में पढ़े बा क सपना से हो पूरा क सकय िी ।
62 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

भारत केर मुकाबला मे यूरोप आ अमे ररकन ्े श सब में ऑटडयोलॉणजस्ि आ


स्पीि लें ग्वे ज पै थोलॉणजस्ि के कमाई बहुत बे सी िै , अतः महत्वाकां क्षी िाि
ऐ कोसा के क क रोजगार ले ल यूके,यूएस आद् ्े श जाक नीक कमा सकय
िै थ ।

बीएएसएलपी/एमएएसएलपी प्रोग्राम कहाँ से करी आ ऐ मे प्रिे श केर


प्रविया:
बीएएसएलपी िारर वषाक पाठ्यक्रम िै क जै मे िाररम वषा में आहाक
इं िनात्रशप करबाक होइत िै क आ जै मे अहााँ के स्िाइपें ड भें िनाई से हो िालू
भ जाइत िै क। एमएसी(ऑटडयोलॉजी/स्पीि लैं ग्वे ज पै थोलॉजी) या
एमएएसएलपी २ वषाक पाठ्यक्रम िै क जकरा बा् अहााँ 3
वषाक पीएिडी (ऑटडयोलॉजी/स्पीि लैं ग्वे ज पै थोलॉजी)क सकय िी।

ऑटडयोलॉजी आ स्पीि लैं ग्वे ज पै थोलॉजी पाठ्यक्रम में प्रवे श के ले ल नाना


सं स्थान द्वारा प्रवे श परीक्षा केर आयोजन होइत िै क। जागरूकता केर कमी
दुआरे ऐ परीक्षा सब में ियटनत भे नाई नीि के मुकाबले मे बड्ड हल्लुक
िै क, बस अहााँ अपन एगारहमा-बारहमा के पढ़ाई नीक से करी। टकिु सं स्थान
बारहमा के माक्सा के आधार पर से हो प्रवे श ्ै त िै क।
बीएएसएलपी/एमएएसएलपी के ले ल टकिु प्रमुख सं स्थानक सूचि टनच्िा
्े ल जा रहल अचि जत से 700 से 5000 रु वार्षिक तक फीस ् क ई कोसा
कैल जा सकय अचि:
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 63

 ऑल इं टडया इं च्छस्िट्यिू ऑफ स्पीि एन्दड टहयररिग मै सूर: ऑटडयोलॉजी आ


स्पीि लैं वेज पै थोलॉजी में ई भारतक नं बर एक सं स्थान िै क आ टवश्व में से हो
ई सातम स्थान रखय िै क। एतय ऑटडयोलॉजी आ स्पीि लैं वेज पै थोलॉजी
के सभिा पाठ्यक्रम उपलब्ध िै क

 अली यावर जं ग ने शनल इं च्छस्िट्यूि ऑफ स्पीि, टहयररिग एं ड टडसएच्छब्लिीज


मुंबई: ई ्े श केर ्ोसार बड़का सरकारी सं स्थान िै क जतय से अहााँ कम
फीस में ऑटडयोलॉजी आ स्पीि लैं वेज पै थोलॉजी के कोसा सकय िी। एकर
क्षे िीय सं स्थान कलकता आ त्रसकं्राबा् में से हो ई पाठ्यक्रम उपलब्ध िै क।

 पीजीआईएमआईर िं डीगढ़: स्वास्र्थय से वा एवं शोध के ले ल ्े श के उत्कृष्टम


सं स्थान में से एक ऐ सं स्थान में 700 रु वार्षिक के बड्ड सस्ता फीस में अहााँ
बीएएसएलपी कोसा क सकय िी।

 जवाहरलाल ने हरू इं स्िीट्यूि ऑफ पोस्ि ग्रेजुएि मे टडकल एजुकेशन एं ड


ररसिा

 जबलपुर मे टडकल कॉले ज

 जे एनएम स्पीि एन्दड टहयररिग सें िर, रायपुर

 ने शनल इं च्छस्िट्यिू ऑफ स्पीि एन्दड टहयररिग

 सीएमसी वे ल्लोर
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बं धुगन आशा करय िी जे ई जानकारी अपने के ले ल उपयोगी है त। अहााँ के


कोनो प्रश्न पुिबाक होय अथवा टिपण्णी करबाक होय त सं पका क सकय
िी। इहो बताउ जे अपने क ई ले ख कहन लागल। आ की एकन ले ख मै चथली
पत्रिका मे एबाक िाटहए? नमस्कार।

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विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 65

२.९.आिाया रामानं ् मं डल-कथाकार/ टपया मोर बालक: महाकटव टवद्यापचत

आिायष रामानं द मं िल

किाकार/ वपया मोर बालक: महाकवि विद्यापचत

किाकार

-हे कचथ करय िी.

-एगो कथा त्रलख रहल िी.

-हे अं हा के कोनो ्ोसर काज न हबे . जटहया से ररिायर कैली हय. तटहया से
कटवता -कथा त्रलख रहल िी.

-त हम कोन काज करू.

-दू -िार लै इका के िीउशन कैला न पिबै िी.चतमनो तरकारी के ्ाम त


टनकल जै तै.

-हे हमरा ज्या्ा ्े र बै ठल न जाइ हय. कमर ््ा बि जाई हय. पै सा ले बै त


पिाबे के न होतै य.

-त कौपी टकताबे के ्ोकान क लू.


66 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

-उ त आउर भारी काज हय. बै ठ के बे िू. कौपी टकताब खतम हो जै ला पर


फेर खरी् के लाउ. इ सभ काज हमरा से न होतै य.

-हं . इ सभ काज अं हा से न होइ अ .खाली कटव गोष्ठी आ कथा गोष्ठी में


जायल होइ अ.

-अइमे त बराबर न जाय के होइ िै य. तीन िार महीना पर जाइ िी.

-अं हा खाली खिे करै पर रहय िी.एक बार कटवता सं ग्रह िपाबै पर तीस
हजार रुपै या खिा कैले रही. कहले रही टक सभ टबका जतै य. एको िा न
टबकायल. सभ बां ि रहल िी. आ पोथी ्ै इत के फोिो खींि के फेसबुक पर
पोस्ि करै त रहय िी. आ बडका कटव बनै त टफरै िी. पटहले कटह ररिायर होय
दूं ।सोन से ्े ह भरर ्े व।खररकैि के रह गे ली एगो सोन के त्रसकड़ी न ्े ल पार
लागल।

आटब कहय िी टक कथा त्रलख रहल िी.

-हं . इ कथा त्रलखला से टक होतै य. टक चमलतै य.

-कथा से समाज आ ्े श के ्शा आ द्शा बतबै त हय.अपना ्े श मे


वे ्, पुराण, िृचत -त कथा से भरल पुरल हय. अइसे सभ्यता आ सं स्कृचत
के टनमााण होइ िै य.

अं हा त अप्पन ्ा्ी -नानी से खखस्सा माने कथा त सुनले होबै य.

-हं . खुब सुनले िी. राजा रानी के खखस्सा. परी आ राक्षस के खखस्सा. राम -
रावण के खखस्सा.
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 67

-हं . ठीके कहली. राम -रावण के खखस्सा. जनय चियै . इ खखस्सा पटहले पहल
ऋटष बाच्छल्मकी अप्पन रामायण मे त्रलखलै रहय. बा् मे सं त तुलसी ्ास
रामिररत मानस मे . वोहे खखस्सा अं हा अप्पन नानी -्ा्ी से सुनली.

-हं . से बात हय. ऐते त हम सोिबै न कैली हय.

-्े खू. महर्षि वाल्मीटक आ सं त तुलसी ्ास न त्रलखले रहचथन त आइ हम


सभ राम -रावण के कथा -त न जै नती. अयोध्या मे राम जन्दम भूचम पर
बालक भगवान राम के मं द्र न बनतै य.

-हं .से त होइ िै य.

-हे ! कथा -कटवता पोथी से लोग पै सो कमाय िै य. जौ अं हा के पोथी


लोगसभ के पिै मे मन लगै य माने टक पसं ् होय . हमह कथा सं ग्रह लायक
कथा सभ त्रलख ले ली हय. सं ग्रह के नामो सोि ले ली रटनया त्रभखाररन . िापे
ले ल प्रकाशन से बातो िल रहल हय. ऐहु मे लगभग तीस हजार रुपै या लागत.

-त िपा लू.

-हं . टबिार कैले िी. मािा -2024 के सगर राचत ्ीप जरै य कायाक्रम मे पोथी
के लोकापाण हो जाए.

-हे ! तब त अं हा कथाकार कहायब.

-हे एगो बात आउर कहं ।

-कहं ।

-हे ! फेसबुक पर हमरो हाथ मे पोथी धै लवाला फोिो पोस्ि क ्े बय।


68 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

वपया मोर बालक: महाकवि विद्यापचत

टपया मोर बालक,हम तरूणण गे !

कौन तप िुकलाैं भे लौ जनटन गे !

टपया मोर बालक..

पटहरर ले ल सखी ्चिन िीर

टपया के ्े खैत मोरा ्गध शरीर

टपया ले ल गो् कै िलली बाजार

हटिया के लोग पूिे के लागै तोहार

टपया मोर बालक..

नहीं मोरा ्े वर की नहीं िोि भाई

पूरब त्रलखल िल बलमु हमार

वाि के बिोटहया के तुहु मोरा भाई

हमरो समा् नै हर ले ने जाय


विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 69

टपया मोर बालक...

कही हुन बाबा के कीनै धे नु गाय

दुधवा टपआई के पोसत जमाई

भनही टवद्यापचत सुनहु बृजनारर

धयरज धै रहुं चमलत मुरारी

टपया मोर बालक...

ई लोकचप्रय रिना मै चथली महाकटव टवद्यापचत के हय। भले ई भगवान कृष्ण


के बाल रूप आ हुनकर जवान गोटपका के प्रेम के व्यक्त गे ल हय। परं ि
कहल जाय हय टक अइ रिना मे महाकटव समाज में व्याप्त तत्कालीन स्िी
के दु्ाशा के व्यक्त कैलन हय।अइ रिना के भक्क्त रिना न मानल जाइत
हय बच्छल्क सामाणजक रिना कहल जाइत हय।

महाकटव टवद्यापचत के काल १३५०ई से १४५० ई हय। महाकटव


से पटहले से ले के वतामान तक के साटहप्त्यक इचतहास मे कोनो एहन घिना
के उल्ले ख न चमलय हय टक कोनो बालक के टबआह कोनो युवती से भे ल
होय।जौटक बुि वर से बात्रलका टबआह के बहुत दृष्टां त चमलय हय। साटहप्त्यक
इचतहास अइसे भरल हय। त्रशव आ पावाती वोकरे स्वरूप कहल जा सकैय
हय।बाल टबधवा के दु्ाशा से त मै चथली साटहत्य नोर झोर हय। चमचथला के
सं स्कृचत में बात्रलका बधु टबआह आ बहु पत्नी टबआह प्रथा रहल हय।तब
केना टपया मोर बालक,हम तरूणण गे रिल गे ल होयत।
70 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

वास्तव मे महाकटव टवद्यापचत के उक्त रिना टवशुद्ध रूप से भक्क्त


रिना हय। महाकटव के सामाणजक रिना न हय। जाैं रहै त त -

टपया मोर बुढ़वा हम बात्रलका गे होइत,न टक

टपया मोर बालक हम तरूणण गे ।

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विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 71

३.पद्य

३.१.मुन्दना जी- गजल


३.२.राज टकशोर चमश्र-सोटनत
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३.१.मुन्दना जी- गजल

मुन्ना जी
गजल
आबक फागुन िै त लगै ए
लोकक िात्रल भगै त लगै ए

ककरा पर मे करू भरोसा


टवश्वासी सब ठकैत लगै ए

िक्का बटन नर नारी नािय


जोकर ऐ सं बिै त लगै ए

मुद्दा टकिु नै ्े शक बां िल


मु्ाे सनक लठै त लगै ए

वोिक बे र आं खख मुन्दनी धे ने
सज्जन लाजे कठौत लगै ए

महं गाइक झिहे मारल


जी डी पी कहां घिै त लगै ए
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 73

मुरखाहा केर िुनवा बे र


पढ़लहो त' सिै त लगै ए

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३.२.राज टकशोर चमश्र-सोटनत

राज वकशोर चमश्र

सोवनत

को नो मनुक्खक त्रश रा , धमनी केँ


फो टड़ कऽ बहा ओल गे ल रक्त,
मा टि पर ला गल ला ल ्ा ग,
नृशंसता ले ल जे अचि अनुरक्त।

ई ताँ ्े हक सं जी वनी ,
एटह तरलक रिना कएल ्े वता ,
प्रा णक पुण्य जल प्रवा हमा न-,
सजात ने मनुज, एता वता ।

एटह साँ रङल भूचम अशो त्रभ त,


भो अङ्गर रा क्षसक क्रूरता ,
क्रो धा प्ग्न साँ टन कसल स्फुत्रल ङ्ग,
से ्े खख कुटप त िचथ ्े वता ।
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 75

मत इरखा क मुह साँ बहरा इत,


टब करा ड़ अप्ग्न केर ज्वा ला ,
मनुजता क ई बहल सो टन त,
सज्ज्ज त असुरशस्ि साँ डा ला ।-

भा ङ्गल बन्दधुत्वक ला ल खण्ड,


ई ्ा ग मनुजता पर प्रिण्ड।

सभ्यता क कतरल मा उस कपि ड-,


अं चत म अन्दया य केहे न त्रभ त्रस ण्ड।

को नो भा एक खून, को नो मा एक खून,
जे त्रस न्ददूर सन ,कएल मा ङ को नो सून।

णक्ष चत ज साँ मे िा ओल ला त्रल मा ,


ई ,चि िल टप शा चि नी का त्रल मा ।-

लो भक तरुआरर साँ बहल त्रल धुर,


िू िल सम्बन्दध को नो िूर िूर।-

महा पा प त्रस मा नक ला ल परर चध-,


सृचष्ट पर क्रूरता , ्े खलटन टव चध ।

मा या ममता क ला ल लहा स-,


कऽ रहल बबारता अट्टहा स।
76 || विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in

टव ना शक पा ड़ल भूचम पुंड-,
सृजनक किल रुंड मुंड।-

मनुख ले ल नटह उचि त अचि को नो तरहक कहि सा ,


कथमटप नटह कमाणा वा िा-, नटह हो अए मनसा ।

बा घ ससि ह ताँ बुणझ ने सकैत अचि-,


ने टव वे क, ने ओकरा लो क ला ज,
्े वता बा ् ताँ मनुक्खे हो इत अचि ,
को ना क' ओ कऽ सकैि ई का ज?

खसय ने सो टन त एक्कहु ठो प,
कहि सा साँ मनुजता हो यत लो प।

स्वगाक सुख भूगो ल मे ,


ई भऽ सकैत अचि सं भव,
कहि सा मुक्त भऽ जा य अगर-,
ई, क्षणभं गुर ,नश्वर भव।

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