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Videha 391
Videha 391
𑒀
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)
[विदे ह (since 2000) ISSN 2229-547X VIDEHA (since 2004) www.videha.co.in ]
समानान्द्तर परम्पराक विद्यापधत- धरि विदे ह सम्मानस, सम्मावनत श्री पनकिाि मण्डि द्वारा
मै धथिी भाषा जगज्जननी सीतायााः भाषा आसीत् । हनुमन्द्ताः उक्तिान- मानुषीधमह सं स्कृताम् ।
धतहअन िे त्तवह काक्षि तसु वकलत्तिल्ल्ि पसरे इ। अक्टिर िम्भारम्भ जउ मञ्चो िन्न्द्ि न दे इ॥ (कीर्तिंिता प्रथमाः
पल्ििाः पवहि दोहा।)
माने आिर रूपी िाम्ह वनमाा कऽ ओइपर (गद्य-पद्य रूपी) मं र ज, नै िान्द्हि जाय त, ऐ लिभुिनरूपी िे िमे ओकर
कीर्तिंरूपी ित्ती केना पसरत।
शुक्टि यजुिेद (२६.२)-यथे मां िारं कल्या ीमािदावन जने भ्याः। ब्रह्मराजन्द्याभ्यां शूदराय रायााय र स्िाय रार ाय
र।।हम सभ गोटे कें ई पविि िा ी (िे दिा ी) सुनािी। ब्राह्म कें, िलियकें, शूदरकें आ आयाकें; अपन िोककें आ
अपररधरतकें से हो (माने सभकें)। मुदा ऐ िे दिाक्टयक विपरीत मनुस्मृधत िे दिा ीक अध्ययन/ श्रि कें समाजक
वकिु गोटे िे ि वनषे ि करऽ राहिक, मुदा स्मृधत से हो िे दिाक्टयकें प्रमा मानै त अधि (शब्द प्रमा ) तें तकर विरु्
दे ि ओकर वनदे श स्ियं अमान्द्य भऽ जाइत अधि।
𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝𑒮𑒿 𑒣𑓂𑒩𑒰 𑒩𑓂𑒟𑒢 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒣𑒵𑒩, 𑒠𑓂𑒨𑒾 ,
𑒎𑒭𑒡𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒫𑒢𑒮𑓂𑒣𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫 𑒠𑓂𑒨𑒾 , 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 𑒑𑒝𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒂 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒬𑒰 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒞
𑒯𑒳𑒁𑓀𑒨।
𑓇-𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧𑒝, 𑒠𑓂𑒨𑒾 -𑒮𑒿𑒨-𑒞𑒠𑓂𑒨𑒾𑒩𑒑𑒝, 𑒁𑓀𑒞𑒢𑓂𑒞𑒱𑒩𑒏𑓂𑒭- 𑒣𑒵𑒟𑓂𑒫𑒲 𑒂 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒏𑒏 𑒩𑓂𑒥𑓂 𑒔,
𑒂𑒣𑒵:- , 𑒢𑓂𑒞𑒱𑒫𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫 - 𑒮𑒿𑒦 𑒠𑓂𑒨𑒾 𑒫𑒞 , 𑒥𑓂𑒩𑒯𑓂𑒧- 𑒮𑒿 𑒏।
𑒀
ॐ, स॒हस्र॑शीषाथ॒ पुर॑षः। स॒ह॒स्रा॒क्षः स॒हस्र॑पात्।
हजाि मार्, हजाि आँखि, हजाि पएि संग तवश्वकेँ आच्छाददत केने
अछि, दस आंगुिक गनतीक वशमे नै अछि ओ।
प॒द्् याग्ँ ॑ शूद्रो
॒ अ॑जायत॥
KANDA-14
(MARRIAGE AND FAMILY) Kanda 14/Sukta 1 (Surya’s Wedding)
Devata: Dampati; Rshi: Surya Savitri
60. Bhagastataksha caturah padanbhagastataksha catvaryuspalani. Tvasta
pipesa madhyatonu vardhrantsa no astu sumangali.
Bhaga, lord sustainer and ordainer of life, has framed the value orders of
life: Dharma, Artha, Kama and Moksha; four social orders: Brahmana,
Kshatriya, Vaishya and Shudra; four stages of personal life: Brahmacharya,
Grhastha, Vanaprastha and Sanyasa. Tvashta, lord maker and organiser of
life, has placed the woman as partner of man in matrimony in this order and
organisation. May the bride be good and auspicious for us.
भाग- पािनकताा आ जीिनक अधिष्ठाता- जीिनक मूल्य क्रम तै यार केने िधथाः िमा, अथा, काम आ मोि; रारर
सामाक्षजक क्रम- ब्राह्म , िलिय, िै श्य आ शूर; व्यक्क्टतगत जीिनक रारर रर - ब्रह्मरया, गृहस्थ, िानप्रस्थ आ
सन्द्यास।त्िष्टा- स्िामी वनमााता आ जीिनक आयोजक- एवह क्रममे आ सङ्गठनमे स्िीकेँ वििाहमे पुरुषक साथीक
रूपमे रिने िधथ। से ििू हमर सभक िे ि नीक आ शुभ होधथ।
Kanda 19/Sukta 6 (Purusha, the Cosmic Seed)
Purusha Devata, Narayana Rshi
6. Brahmano sya mukhamasid bahu rajanyo bhavat. Madhyam tadasya
yadvaishyah padbhyam sudro ajayata.
Brahmana, (man of knowledge, divine vision and the Vedic Word in the
human community) is the mouth of the Samrat Purusha. Kshatriya, man of
justice and polity, is the arms of defence and organisation. The middle part
is the Vaishya who produces and provides food and energy. And the
ancillary services that provide sustenance and support with auxiliary labour
are the feet, the Shudra that bears the burden of society.
ब्राह्म (्ानी, ददव्य दृधष्ट आ मानि समुदाय िे ि िै ददक शब्द) सम्राट पुरुषक मुि अधि। िलिय -न्द्याय आ
राजनीधतक िोक- रिा आ सङ्गठनक हाथ िधथ। मध्य भाग िै श्य िधथ जे भोजन आ ऊजााक उत्पादन आ आपूर्तिं
करै त िधथ। आ सहायक से िा जे सहायक श्रमक सङ्ग वनिााह आ सहायता प्रदान करै त अधि, ओ अधि पै र, शूर
जे समाजक भार िहन करै त िधथ।
SAMAVEDA (o reference)
YAJURVEDA (7 references)
CHAPTER- VIII
30. (Dampati Devata, Atri Rshi)
Purudasmo visuruupa indurantarmahimanamanaja dhirah. Ekapadim
dvipadim tripadim chatupadimastapadim bhuvananu prathantam svaha.
The man of mighty deeds, who eliminates suffering and creates joy, of
versatile attainments, bright and honourable, constant and resolute, should
wait for the great new arrival. Men of the household, cultivate the vaidic
culture of one, two, three, four and eight steps of attainment: one: Aum; two:
worldly fulfilment and the freedom of moksha; three: the joy of the truth of
word and the health of body and mind; four: the attainment of Dharma,
wealth, fulfilment of desire, and moksha; eight: the joy of all the four classes
and all the four stages of life (Brahmana, Kshatriya, Vaishya and Shudra,
Brahmacharya, Grihastha, Vanaprastha and Sanyasa). Build homes for the
people and advance in life.
शक्क्टतशािी कमाक पुरुष, जे दाःिकेँ समाप्त करै त अधि आ आनन्द्द उत्पन्द्न करै त अधि, िहमुिी उपिस्ब्िक,
उज्ज्िि आ सम्मानजनक, स्स्थर आ दृढ़ सं कस्ल्पत, ओकरा महान नि आगमनक प्रतीिा करिाक राही। घरक
िोक, उपिस्ब्िक एक, दू, तीन, रारर आ आठ रर क िै ददक सं स्कृधत विकलसत करै त िधथाः एकाः ओम; दइाः
सां साररक पूर्तिं आ मोि रूपी स्ितन्द्िता; तीनाः िरनक सत्यक आनन्द्द आ शरीर आ मस्स्तष्कक स्िास्थ्य; रारराः
िमाक प्राप्प्त, िन, इच्छाक पूर्तिं, आ मोि; आठाः जीिनक रारर िगा आ रारर रर क आनन्द्द (ब्राह्म , िलिय,
िै श्य आ शूर, ब्रह्मरया, गृहस्थ, िनप्रस्थ आ सन्द्यास)। िोकक िे ि घर िनाउ आ जीिन मे प्रगधत करू।
CHAPTER- XVIII
48. (Brihaspati Devata, Shunah-shepa Rshi)
Rucham no dhehi brahmanesu rucham rajasu naskrudhi. Rucha vishyesu
shudreshu mayi dhehi rucha rucham.
Brihaspati, lord of the universe, eminent teacher and master of vast
knowledge, inspire our Brahma section of the community—scholars,
scientists, teachers and researchers with brilliance and love. Infuse
brilliance, love and justice into our Kshatrias, defence, administration and
justice section of the community. Bless with light, love and generosity our
Vaishyas, producers and distributors among the community. And bless our
Shudras, the ancillary services, with light, love and loyalty. Bless me with
light and love toward us all.
िृहस्पधत- ब्रह्माण्डक स्िामी, प्रख्यात लशिक आ विशाि ्ानक स्िामी- समुदायक ब्रह्म िगा- विद्वान, िै ्ावनक,
लशिक आ शोिकताा- केँ प्रधतभा आ प्रेम स, प्रेररत करू। हमर िलिय-रिा, प्रशासन आ न्द्याय- समुदायक िगामे
प्रधतभा, प्रेम आ न्द्यायक सं रार करू। हमर िै श्य-समुदायक वनमााता आ वितरक- सभकेँ प्रकाश, प्रेम आ उदारतास,
आशीिााद ददयौ। आ हमर सभक शूर -समुदायक सहायक से िी- केँ प्रकाश, प्रेम आ वनष्ठा स, आशीिााद ददयौ। हमरा
सभ केँ प्रकाश आ प्रेम स, आशीिााद ददयौ।
CHAPTER- XXV
23. (Dyau etc. Devata, Prajapati Rshi)
Aditirdyauraditirantarikshamaditirmata sa pita sa putrah. Vishve deva
aditih pancha jana aditirjatamaditirjanitvam.
In the essence: Light is indestructible; sky is indestructible; mother Prakriti
(matter-energy-thought) is indestructible; Father, the Cosmic Spirit is
indestructible; Son, the soul (jiva), is indestructible; all the divinities of
nature and humanity are indestructible; five people, Brahmana, Kshatriya,
Vaishya, Shudra, others, are indestructible; whatever is born is
indestructible; whatever will be born is indestructible. (All that was, is and
shall be is indestructible in the essence.)
सारमे : प्रकाश अविनाशी अधि; आकाश अविनाशी अधि; माता प्रकृधत (पदाथा-ऊजाा-विरार) अविनाशी अधि;
वपता, ब्रह्मां डीय आत्मा अविनाशी अधि; पुि, आत्मा (जीि) अविनाशी अधि; प्रकृधत आ मानिताक सभ दे ित्ि
अविनाशी अधि; पा, र व्यक्क्टत, ब्राह्म , िलिय, िै श्य, शूर आ आन अविनाशी अधि; जे वकिु जन्द्मि अधि से
अविनाशी अधि; जे वकिु जन्द्मत से अविनाशी अधि। (जे वकिु िि, अधि िा रहत/ आओत से सार मे अविनाशी
अधि।)
CHAPTER- XXVI
2. (Ishvara Devata, Laugakshi Rshi)
Yathemam vacham kalyanimavadani janebhyah. Brahmarajanyabhyam
Shudraya charyaya cha svaya charayaya cha. Priyo devanam dakshinayai
daturiha bhuyasamayam me kamah samrudhyatamupa mado namatu.
Just as this blessed Word of the Veda I speak for the people, all without
exception, Brahmana, Kshatriya, Shudra, Vaishya, master and servant,
one’s own and others, so do you too. May I be dear and favourite with the
noble divinities and the generous people for the gift of the sacred speech.
May this noble aim of mine be fulfilled here in this life. May the others too
follow and come my way beyond this life.
जे ना िे दक ई िन्द्य िरन हम विना कोनो अपिादक, ब्राह्म , िलिय, शूर, िै श्य, स्िामी आ से िक, अपन आ अन्द्य
िोकक िे ि कहै त िी, तवहना अहा, से हो करै त िी। पविि भाष क ऐ उपहारक िे ि हम महान दे ित्ि आ उदार
िोक सभक धप्रय आ मनभािन रही। हमर ई महान उद्देश्य ऐ जीिन मे पूर हअय। आन सभ से हो हमर मागाक
अनुसर करै त िढ़ै त जाय आ से ऐ जीिनस, आगा, िरर िढ़य।
CHAPTER- XXX
5. (Parameshvara Devata, Narayana Rshi)
Brahmane brahmanam kshatraya rajanyam marudbhyo vaishyam tapase
Shudram tamase taskaram narakaya virahanam papmane
klibamakrayayaayogum kamaya punshchalumatikrustaya magadham.
Give us, we pray, the Brahmanas for education and research, culture and
human values; the Kshatriyas for governance, defence and administration;
the Vaishyas for economic development, and the Shudras for assistance and
labour in the ancillary services. Remove, we pray, the thief roaming in the
dark, the murderer bent on lawlessness, the coward disposed to sin, the
armed terrorist bent on destruction, the harlot out for pleasure of flesh, and
the bastard fond of scandal.
Note: In mantras 5-22 in which various aspects of organised life are listed,
there is repetition of ‘asuva’ and ‘parasuva’ from mantra 3, which means:
‘Give us, we pray, what is good’, and, ‘Remove, we pray, what is evil’. This is
the prayer. Also, there are echoes of ‘havamahe’ from mantra 4, which
means: ‘We invoke and develop’, and, ‘we challenge and fight out’. This is
the call for action under the divine eye.
लशिा आ शोि, सं स्कृधत आ मानिीय मूल्यक िे ि ब्राह्म ; शासन, रिा आ प्रशासनक िे ि िलिय; आर्थिंक
विकासक िे ि िै श्य; आ सहायक से िामे सहायता आ श्रम िे ि शूर हमरा ददअ से हम प्राथाना करै त िी। हम प्राथाना
करै त िी जे अन्द्हारमे घुमैत रोर, अराजकता पर विता िूनी, पाप पर विता कायर, विनाश पर विता सशस्ि आतं किादी,
दै वहक सुि िे ि िाहर गे ि िे श्या, आ किं कक शौकीन नाजायजकेँ हटा ददयौ।
नोटाः मं ि 5-22 मे , जइमे सं गदठत जीिनक विलभन्द्न पि सूरीि् अधि, मं ि 3 स, 'आशुिा' आ 'परशुिा' क
पुनरािृलत्त होइत अधि, जकर अथााः 'हमरा सभ केँ ददअ, हम प्राथाना करै त िी, जे नीक अधि', आ, 'हटाउ, हम
प्राथाना करै त िी, जे अििाह अधि'। ई प्राथाना अधि। सङ्गवह, मं ि 4 स, 'हिामाहे ' क प्रधतध्िवन अधि, जकर
अथााः 'हम आह्वान करै त िी आ आगू िढ़िै िी', आ, 'हम मा, वट दइ िी आ िड़ै िी'। ई ददव्य दृधष्टक अन्द्तगात काज
करिाक आह्वान अधि।
CHAPTER- XXX
22. (Rajeshvarau Devate, Narayana Rshi)
Athaitanastauau virupanalabhateitidirgham chatihrasvam chatisthulam
chatikrusham chatishuklam chatikrushnam chatikulvam chatilomasham
cha. Ashudra abrahmanaste prajapatyah. Magadhah punshchali kitavah
kliboshudra abrahmanaste prajapatyah.
The good human being accepts and works with these eight classes of people
of different forms and colours: too tall, too short, too fat, too thin, too white,
too dark, too hairless, too hairy. Also they are neither Brahmanas nor
Shudras (nor the others). They too, all of them, are children of God,
Prajapati. Even the bastard and the ‘despicable’, the wanton, the gambler,
and the coward and the eunuch, neither Shudras nor Brahmanas (nor the
others), they too are children of God, Prajapati, father of all.
नीक िोक विलभन्द्न रूप आ रङ्गक ऐ आठ िगाक िोकक सं ग स्िीकार करै त अधि आ काज करै त अधिाः िूि
िम्िा, िड्ड िोट, िड्ड मोट, िूि पातर, िड्ड गोर, िड्ड कारी, िहत कम केशििा, िूि केशििा। ओ सभ ने ब्राह्म
िधथ, नवहये शूर (आ नवहये आन वकयो)। ओ सभ से हो भगिान प्रजापधतक सन्द्तान िधथ। एतऽ िरर जे नाजायज
िा 'घृक्ष त', ऊिमी, जुआरी, आ कायर आ नपुंसक, ने शूर, नवहये ब्राह्म (नवहये आन वकयो), ओ सभ से हो
भगिान प्रजापधतक सन्द्तान िधथ, प्रजापधत- सभक वपता।
CHAPTER- XXXI
11. (Purusha Devata, Narayana Rshi)
Brahmanosya mukhamashid bahu rajanyah krutah. Uru tadasya
yadvaishyah padbhyam Shuudro ajayata.
The Brahmana, man of divine vision and Vedic Word, is the mouth of the
Samrat Purusha, the human community. The Kshatriya, man of justice and
polity, is created as the arms of defence. The Vaishya, who produces food
and wealth for the society, is the thighs. And the man of sustenance and
support with labour is the Shudra who bears the burden of the human
family.
ददव्य दृधष्ट आ िै ददक िरनक िोक ब्राह्म , सम्राट पुरुष-मानि समुदाय-क मुि िधथ। न्द्याय आ लशष्टताक िोक
िलियकेँ रिाक हधथयारक रूपमे िनाओि गे ि अधि। िै श्य, जे समाजक िे ि भोजन आ िन उत्पन्द्न करै त िधथ,
जां घ िधथ। आ श्रमक सङ्ग वनिााह आ सहारा दे िऽििा व्यक्क्टत शूर िधथ जे मानि पररिार सभकक भार िहन
करै त िधथ।
अप्नन -जीिनक य्क प्रकाश- हमर सभक ऐ जीिन-य्मे आउ, जइमे पा, र विभाग िै , अथाात, ब्रह्म-य्, दे ि-य्,
वपतृ-य्, अधतधथ-य्, आ िलििै श्वदे ि-य्; पा, र िोक द्वारा सं रालित, अथाात, ब्राह्म , िलिय, िै श्य आ शूर क
रारर सामाक्षजक-आर्थिंक िगा आ पा, रम आन समूह किनो काि आयि आगं तुक। आ से तीनटा िै - अथाात, पाक
य्, हविया् आ सोमय्; आ जकर सात विस्तार िै , अथाात, अप्ननष्टोम, अत्यप्ननष्टोम, उक्टत्या, षोडषी, िाजपे य,
अधतराि आ अप्तोयमी। अप्नन, अहा, हमरा सभक ने ता आ अ्रहगामी िी, आ अहा, दे ित्ि िे ि हमर य्क िाहक
िी आ सङ्गवह हमरा सभक िे ि य्क फिक अ्रहदूत िी। प्राथाना अधि जे आउ आ हमरा सभक जीिन तरहरर
सन अन्द्हार सदाक िे ि दूर करै ििा िनू। (य् व्यक्क्टतगतस, जीिनक सामाक्षजक, राष्रीय, िै क्षश्वक आ पयाािर ीय
स्तर िरर जीिनक विकासक एकटा ररनात्मक प्रवक्रया अधि। उपरोक्टत व्याख्या सामाक्षजक स्तरस, सम्िन्न्द्ित अधि।
स्िामी ब्रह्ममुनी व्यक्क्टतगत स्तर पर य्क व्याख्या करै त िधथ, आ ई ऋनिे द 10,7,6 मे से हो सुझाओि गे ि अधिाः
'स्ियं य्'; आ यजुिेद 4,13: 'इयम ते य्ीय तनू', जकर अथा अधि- अपन विकासक ऋतुक अनुसार य् द्वारा
अपना केँ विकलसत करू, आ मोन रािू जे शरीर, मन आ आत्मा युक्टत अहा, क जीिन य्क से िाक िे ि अधि, आ
तइस, अहा, क व्यक्क्टतगत विकास हएत; अहा, क शरीर अहा, क जीिनक व्यापक य्क पवहि सािन अधि। ई
व्यक्क्टतगत य् पा, र प्रकारक अधि, पृथ्िी, जि, ऊष्मा, िायु आ आकाशक मौलिक सं तुिनक िे ि; तीन प्रकारक-
िात, वपत्त आ कफक सं तुिनक िे ि; आ शरीर, मन आ आत्माक सं तुलित विकासक िे ि से हो; सात प्रकारक
माने रस, रक्टत, मानस, मे िा, अस्स्थ, मज्जा आ वियाक विकासक िे ि। ऐ तरहेँ य् व्यक्क्टतस, शुरू होइत विकासक
प्रवक्रया अधि, जे ब्रह्मां डीय स्तर पर सम्पन्द्न होइत अधि।)
आब आउ यूरोपक विद्वान लोकवन द्वारा िे दक गलत अनुिादक वकछु उदाहरण दे खू:-
EXAMPLES OF SOME MISTRANSLATIONS OF VEDAS BY WESTERN
SCHOLARS
W.D. Whitney’s translation of the Atharvaveda (7, 107, 1) edited and revised
by K.L. Joshi, published by Parimal Publications, Delhi, 2004:
Mekshamyurdhvastisthaan ma ma hinsishurishvarah.
“Having done homage to heaven and earth (i.e. father and mother) and to
the immanent God and Yama (all Dissolver), standing high and alert, I move
forward in life. These masters of mine, pray, may not hurt me.”
I would like to quote my own translation of the mantra now under print:
“Having done homage to heaven and earth, and to the middle regions, and
having acknowledged the fact of death as inevitable counterpart of life
under God’s dispensation, now standing high, I watch the world and go
forward with showers of the cloud. Let no powers of earthly nature hurt and
violate me.”
The problem here arises from the verb ‘mekshami’ from the root ‘mih’
which means ‘to shower’ (sechane). It depends on the translator’s sense and
attitude to sacred writing how the message is received and communicated
in an interfaith context with no strings attached (or unattached).
II
The idea that there was slavery in the Vedic Society originated with the
Western Indologists with their intentional or careless translation of a
Sanskrit word into “slave”. For example, in the Taittiriya Samhita (Krishna
Yajurveda), [7.5.10] [kanda 7,prapathaka 5, verse 10], a part of translation
by Keith reads “slave girls dance around the fire”. But in a footnote in the
same page [pg., 628, Vol. 2] the author Keith says that the verse describes the
dance of maidens. Suddenly the maidens have become “slave girls”. Both
Paranjape and Avinash Bose point to the mistranslation of the word ‘yosha’
as courtesan by the indologist Pischel [Bose, Hymns from the Veda, p. 36].
III
In 1795, H.T. Colebrooke, then a young scholar, wrote his maiden paper, “On
the Duties of a Faithful Hindu Widow,” for the Asiatic Society (Asiatic
Researches IV 1795: 205-15). He cited the hymn from the Rig Veda as
sanctioning widow burning, which William Jones immediately contested
(Canon 1993 I:lxx). Colebrooke translated the end of the hymn as “let them
pass into fire, whose original element is water.” A quarter of a century later,
the Orientalist, H.H. Wilson pointed out that the hymn had been distorted
(Wilson 1854: 201-14; Cassels 2010: 89). Wilson translated the verse as per
the reading corroborated by Sayana, the authoritative medieval
commentator on the Vedas, and demonstrated that it did not refer to widow
burning (Rocher and Rocher 2012: 24-25).
Do not judge each day by the harvest you reap but by the seeds that you
plant. -Robert Louis Stevenson
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Videha: Maithili Literature Movement
अनुक्रम
ऐ अं कमे अथछ:-
२.गद्य
३.पद्य
१. प्रत्यक्ष
खण्ड एकः गङ्गे शक आह्वान काज त्रिमूर्ति त्रशवक आह्वानसाँ शुरू होइत
अचि।आ तेँ आह्वानक टवषयपर ििाा शुरू होइत अचि। ई मानल जाइत अचि
जे कोनो पररयोजनाक प्रारम्भमे भगवानक आह्वानसाँ ई काया पूणा होइत अचि।
आपत्रतः नै , ई ताँ घुमघुमौआ तका अचि, आ ओनाटहतो कोनो काज पूरा केना
होइत अचि से अनुभवजन्दय कारण सभ आह्वानकेँ अनावश्यक त्रसद्ध करै त
अचि।
आपत्रतक उतर: ई प्रमाण जे आह्वान पूरा होबय के कारण िै क, तइमे दू
िरणक अनुमान शाचमल िै । पटहल, ई जे ई त्रशष्ट लोक द्वारा टनखन्द्त नै अचि
वरन हुनका सभ द्वारा कएल जाइत अचि। तखन ई अनुमान लगाओल जा
सकैत अचि जे काज पूरा भे नाइ फल अचि टकएक ताँ ई टनयचमत रूप साँ
इच्छित अचि, आ आन कोनो फल उपलब्ध नै अचि।
आपत्रतः ई तका काज नै करत कारण ई पटहने साँ ज्ञात अचि जे आह्वानक
अिै तो काज पूणा भऽ सकैत अचि, कारण-सम्बन्दध कोनाहुतो तकासाँ स्थाटपत
नै कएल जा सकैत अचि।
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४९.
जीवे
्ौ.।। पुि सुताि गोरा जणजवाल साँ जीवे पत्नी ए सुत सन्द्गटह भवे श्वर।
अिस्थाने सुपनभ्रातृ हररशम्मा ्ाररचत क्वचित् जणजवाल ग्राम
लक्ष्मि झा सागर
वाह! ईहो अं क नीक भे ल अचि।बहुत बहुत बधाइ!!हार््िक शुभकामना !
२.गद्य
अत्िराम नयनात्िराम
सूयाे ्य भे ले िलै । सबतै र स्वि वातावरण िलै । स्वि हवा बहै त िलै ।
साइत त्रसतम्बरक महीना िलै । नचमताक एको पल टनच्िा नै इ खत्रस रहल
िलै आ लगातार ओ ओकरा द्स ताटक रहल िल। पुरूखक केश, मे घ सन
कारी कपार सूया सदृश झलकैत आ आं खखमे टवजलौका दूर-दूर धरर िमटक
उठै िलै । ओकरा बुझा रहल िलै ... जे ना ओ पुरखक िे हराक अधे भाग ्े ख
रहल िै । ओ पूरा-पूरा गर्टन ओकरा द्स कखनो घुमेबे नै इ केलकै। नचमताक
नजरर त्रशकारीक तीर जकां ओकरा बे धऽ हे तु तत्पर िलै ।
बे गरता पूरा करऽ लाय घुमै िल। के कहने िलै ... जो भी करती प्रेम
महीपर उसे माता बनना ही होता है !- ओ जहां -तहां हमरा सामने आटब जाइ
िल ... आं खख, आं खखसऽ िकराइ िलै । ओकर मूड़ी टनच्िा कखनो नै इ होइ
िलै , मु्ा सामना-सामने ओ हं त्रसतो नै इ िल। मोने -मोन जे टकि सोिै ते
होबए, हम सोिै त िलाैं - तोहर तऽ टवआहो भऽ गे लौ। पे िमे बच्िो िौ, त्रसफा
आं खखक नजरर िकरौने की तोरा भे ितौ आ की भे ित हमरा, जखन सामने
अबै िां ह ठोर पर कनी मुच्छस्कओतऽ आबऽ ्ही। लोक ्े खो ले तौतऽ की
हे तै, की टबगाटड़ सकतौ ओ, हम नै इ िोकै चिऔ तोरा। एते क द्न नै इ
िोकत्रलऔ तऽ आब की िोटकऔ, िोकैतऽ मं जुलोके नै इ चिऐ। घरक बगलसऽ
अबै त आ जाइत अइ। सब गोिे सब ्े खैत रहै िै , जे के ओकरा िोकै िै आ
ककरा ओ िोकै िै ? नजररओ पर ध्यान ्े ने कहै िै जे -ओ ककरा द्स
तकैआय आ के ओकरा द्स तकै िै ? बूढ़-सूढ़ तऽ अइ टवद्यामे आरो प्रवीण।
एक बूढ़ भाऊज हमरा लग आटब पुिैत अइय- हमरा लग सूतब?- हम ओकरा
बातके हं सी माटन ठहक्का ्ै िी, मु्ा ओ मजाक नै इ िलै । ओकर ितीस
इं िक अं तड़ी तऽर सऽ ओ बात टनकलल िलै । ओकरा बातमे सात तऽह
िु पल िलै आ आठम तहक अटवष्कार करै िलै । ओकर तात्पया िलै , जे ’हम
मं जूला सं ग सूतऽ िाहै चिऐ।’ सूतक अथातऽ हम बुझै ित्रलऐ, मु्ा शब््क
तऽहवला अथा नै इ बुझै ित्रलऐ। ओकर पूिक अथा िलै , जे मं जूलाक पािा
हम टकआक पड़ल चिऐ? मं जूला सुन्द्र अइ तऽ ओहो सुन्द्र अइ। मं जूला
गोर अइतऽ ओहो गोर अइ। मं जुला जुआन अइ, मु्ा ओ जुआन नै इ। ओकरा
बात पर जखन हम जोर-जोरसऽ हं सऽ लगै िी तऽ ओ ककरो शोर पाड़ऽ
कहै आय। हम शोर पाटड़ बजा ्ै चिऐ। मु्ा मं जूलासऽ टकि कहऽ सऽ
पटहनहे हमर बती बन्द् भऽ जाइआ। शत्रशओके नै इ िोकै चिऐ।
डोमनवाली हमरा कटह िुकल िल, जे -हम मं जूलाक डे ग गनै चिऐ। एको
बे र ओकरा डे ग परसऽ नजरर नै इ हिबै चिऐ। हमरा की पता सब हमरे पर
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ध्यान गड़ौने रहै आ? ओ मूड़ी टनच्िा केने जाइत अइ। बूढ़ सधुआ नै इ होइ िै ।
ओ जनै त अइ। हम नै इ जनै िी। ओ हमर बिाव करै आय। हमरा पर कुनो
आघात नै इ आबऽ ्े बऽ िाहै आ।
शत्रशक ्े हमे लाल रं गक साड़ी िलै , ओ बड़ खुलै िलै । श्याम वणा शरीर
पर लाल साड़ी हमरा उते णजत कऽ रहल िल। आनो द्न ओकरा ्े खने
ित्रलऐ, स्िे शन पर, मु्ा एते क आकर्षित ओकरासऽ कटहओ नै इ भे ल िलाैं ।
मच्छस्तष्क पर एक टवद्यत
ु आवे श िटढ़ रहल िल। आइ तक कुनो पररचितोके
नै इ िोकत्रलऐ, तऽ अइ अनजान िे हराके की िोटकऔ, शरीर पर जे एक
स्पन्द्न आटब गे ल िल, ओकरा मच्छस्तष्क पर लऽ जा सोिऽ लगलाैं । एते क
सुन्द्रताक कारण माता-टपताक सुख् सं योग, ध्वटन आ दृश्य, प्रकृचतक
सहयोग आ स्वयं कृत्रिम प्रयास हे तै। गाि-वृक्ष आ सूयाक लालीक समक्ष
जे ना माथ झु का ्ै त िलाैं , तटहना ओकरा समक्ष अप्पन माथ झु का ्े लाैं ।
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ओकरा ्े खऽमे ओकरा कुनो असोकया नै इ होइ िलै । हमर उत्सुकता कुनो
टवशे ष नाम सं ज्ञासऽ नै इ िल। हमर आकषाण सौन्द्यासऽ िल। हमरा आश्यिा
लागल ... हीराक प्रकाश ओकरा ्े हसऽ चििटक रहल िलै , तकर एहसास
हमरा तखन भे ल जखन सबटकओ ओकरे द्स ताटक रहल िलै । एक
कॉले जमे ्े खने ित्रलऐ ... टफल्डमे कुनो लड़की ठाढ़ िलै आ ओइ कॉले जमे
पढ़ऽवला सात सौ लड़का ओकरे द्स तकै िलै । ओ तऽ खखच्िा उम्रक बात
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महा्े व पूजैत अइ। ओ सोिै त हायत-जे हम रूपक धनी िी। टवद्या आ टवनय
से हो ओकरा हमरामे ्े खाई ्ै त हे तै। बुत्रद्ध-टववे कशील स्वभाव सब नीक लगै त
हे तै। िड़गर शरीर, हृष्ट-पुष्ट िीहे , कोना कहत जे हम नीक घरक नै इ
िी? बयस ओतनी िल जते क ओकर। ओकरा बुझाइ हे तै जे हमरा रोम-
रोमसऽ प्रकाश टनकत्रल रहलाय। एक आकच्छिक िारूता ्े ख ग्-ग् होइत
हायत। ओ अप्पन शरीरक सौन्द्या आ हमरा शरीरक सौन्द्याक तुलना कऽ
रहल हायत। ओकरा हमरे जकां अप्पन सुन्द्रता तुि लगै त हे तै। ओकर
सुन्द्रताक मुख्य ओकर मुखमं डल यानी
आं खख, कान, नाक, गाल, केश, कपार, भाैं आ ्ाढ़ी िलै । ओइमे यद् एको
खराप होइ तऽ सब गुड़ गोवर भऽ जे तै, मु्ा हमर सुन्द्रता टनच्िासऽ ऊपर
रोम-रोममे ओकरा झलकैत हे तै। हमरा अं ग-अं गसऽ ओकरा एक शक्क्तक
आभास होइत हे तै। हमरा हृ्य पर ओकरा वीरताक आभास होइत हे तै।
टकओ कतबो आभूषणसऽ सुसज्ज्जत होबाय खूनक डगडगीक परतर कऽ
सकै िै की? ओकरा मोनसऽ मायाक भ्रम समाप्त भऽ गे ल हे तै। सबहक
जीवनमे टकओ ने टकओ प्रथम पुरूख होइ िै । भऽ सकै िै ताटह रूपमे सबसऽ
पटहने ओ हमरे ्े खने होबाय आ ्े खखते रहऽ िाहने होबाय।
मु्ा वाह रे हम। हमतऽ अपने सुखमे मगन िलाैं । हम िन्दरमुखी के त्रसर
टनच्िाकऽ प्रणाम केलौ – हे सौन्द्या मूर्ति, अहां अटहना अबै त-जाइत, बाि-
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हमर ्ोसर मोन स्वयं हमरासऽ कहलक जे – ’अहां एको बे र ओकरा द्स
तकबो नै इ केत्रलऐ? कते क किोि भे ल हे तै ओकर मोनमे , अहां तऽ ओकर
सब साज-सज्जा आ आभूषण बे कार कऽ ्े त्रलऐ। ओकरामे की शत्रशसऽ कम
लावण्य िलै ? ओकरामे अहां के कुन गुण ्े खाई ्े लक, जे ओकरा पर मोटहत
भऽ गे त्रलऐ? टवआह भे ल रटहतै तऽ पचतसऽ पुचितै – ”की हम सुन्द्र िी?’
तऽ पचत सानत्वना ्ऽ कटहतै - ’अहां सं सारमे सबसऽ सुन्द्र िी’, तऽ ओकरा
सं तोष होइतै आ जऽ कुरूपो पचत रटहतै तऽ ओकरा प्रेमसऽ िूचम त्रलतै य मु्ा
नै इ आब ओ स्वयं अपना आपके कहत- हम अपना आं खखमे सम्पूणा सं सारक
सुन्द्रता भरने िी, हमर आं खख सुन्द्र अइ। हम सुन्द्र िी। ई सं सार सुन्द्र
अइ। सं सारक सबटकि सुन्द्र अइ। सं सारक सब जीव सुन्द्र अइ। यै ह हमरा
जीवनक सार अइ। बस।
अम्बात्लका कु मारी
डा. शै लेन्दर मोहन झा, स्व. योगानन्द् झा, सुधां शु शे खर िौधरी , टववे च्य
कथाकार सभक बा्क पीढ़ी में प्रो. मायानं ्
चमश्र, हं सराज, लत्रलत, राजकमल, राधाकृष्ण 'बहे ड़ प्रभास कुमार िौधरी
जीवकां त, डा. धीरे श्वर झा धीरे न्दर, सोम्े व डा. राम्े व झा, श्रीमती लीली
रे , गं गेश गुजन, रामकृष्ण झा टकसुन, ििानन्द्, उग्रानन्द्, रामानन्द्
रे णु , नीरजा रे णु , शे फात्रलका वमाा, श्रीमती आद्या झा, बलराम, राजमोहन
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स्वतं िता - प्राप्प्तसाँ पूवा आ पिात दुनू समयमे समस्यामूलक कथाक प्रणयन
भे ल। परं ि स्वतं िता - प्राप्प्तक पिताक रिनामे भोगल यथाथाक व्यापक
चििण भे िेि । सम्प्रचत मानवक जीवनमे जे टकिु नीक वा अधलाह बीचत
रहलै क अचि लोकक मनोवृत्रत ककिवा दृचष्ट, पररच्छस्थचतक टववशता अथवा युग-
पररवतानक कारणे जे ना जे ना ब्लाव आटब रहलै क अचि, ताटह सभक यथााथ
ओ प्रभावोत्पा्क चििण आजुक कथा सभमे भे िैि । आजुक कथाकार
माि 'टववाहक पररचध में घे राएल नटह िचथ। अटपतु टहनका लोकटनमे
परम्परावा्ी दृचष्टकोणक अिै त ब्लै त युगक सं ग ब्ले त मनोवृचत तथा
लोकक त्रभन्दन-त्रभन्दन अवस्थामे पररवतानक टवत्रभन्दन रुपक चििण ्े खबा मे
अबै ि।
प्रो. हररमोहन झाक टवत्रभन्दन कथामे पााँ ि पि' कन्दयाक जीवन, टनकि
पाहुन, ग्रामसे टवका, मयाा्ाक भं ग ग्रेजुएि पुतोहु अलं कार- त्रशक्षा आद्क
प्रमुख स्थान अचि, जाटहमे सुधारवा्ी दृचष्टकोण पररलणक्षत होइि ।
अन्दधटवश्वास, ओ रुटिवा् एवं अत्रशक्षाजन्दय रोगक स्थायी टन्ानक द्शामे
टहनक एटह कथा सभक महत्त्वपूणा स्थान अचि । टहनक पााँ ि-पि सम्पूणा
जीवनक दुख-सुखक चिि प्रस्तुत करै त जीवन-्शान पर आधाररत ई
सवाे त्कृष्ट' कथामे पररगणणत अचि ।
"टकरणजीक' मधुरमटन "आ 'कोन महल नाम रखबै एकर "मै चथलीक
अनुपम टनचध मानल जाइत अचि । मधुरमटन टनम्नवगाक एकिा मटहला आ
ओकर रूग्न पचतक प्रचत प्रेमक आ्शा स्थाटपत करै त अचि ।
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स्व. मनमोहन झाक रिना मूलतः 'करुणा सं भरल रहै त िटन। टहनक
अश्रुकण 1949 ई. मे प्रकात्रशत भे लटन। तकर बा् वीरभोग्या, गं गापुि सं ग्रह
प्रकात्रशत भे लटन। गं गापुि पर टहनका साटहत्य अका्े मी पुरस्कार से हो प्र्ान
कयल गे लटन। टहनक टकिु प्रमुख कथा अचि -- 'रुना', झगड़ा, खखड़कीक
गप्प, आहत, िन्दरहार, राजगीर- यािा आद् जे मै चथली साटहत्यक अदद्वतीय
रिना चथक । टहनक अचधकां श कथामे पाररवाररक कलह, अकिात
दुघािना, प्रकृचतक मानवीकरण, प्रेमक पावन स्वरुप आद् कें सहजता साँ
्े खल जा सकैत अचि।
पािात्य कथाक टवन्दयासकें मै चथलीमे अनबाक श्रे य प्रो. उमानाथ झाकेँ जाइत
िटन । टहनक रिनामे त्रशल्पक नवीन प्रयोग एवं मनो्शाक टवश्ले षण टवशे ष
रूपसाँ पररलणक्षत होइि। टहनक रे खाचिि ' 1951 ई. मे प्रकात्रशत
भे ल, जकर 'आध घं िा', माधवजी, ओटह द्नक यािा, नीलाम्बर, आद्
कथा समस्या मूलक अचि, जे लोकक ्ै नखन्द्नी सं बन्दध पर आधाररत
उत्सुकता सं भरल आ प्रेरणा्ायक सन्द्ेश प्रेटषत करबाक सामर्थया अचि ।
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टवटवध पक्षकेँ अपन कथाक केंरमे रखलटन अचि, जे टहनक टवशे षता कहल
जा सकैत अचि।
लाल दे ब कामत
लालिन। आई फेरो मरूआ िें सर िरर ले बाक बात िले लटन गामपर आटब
बाध साँ । लालिनक' फौजी भाय से हो कोनू साँ घुमैत ओटह खे तक आटड़पर
कड़ीमे दूनू कुता ले ने गे ल । ओकरा सोझे मे हााँ टकके बकरी मरूआ खे तमे
हुले लक सलमा। आब की होए! एते क ठे सी - टिठगरी ्े खख पशु केँ हाँ कैत
,डाँ िै त नविोत्रलया'क दू - िारर स्िीगणके ििका िराउर कयल मरूआ गाि
्े खौल। आटक टनयार-भाष अनुसारे जत्थामे अने को नवजुबक लोकटन आ
दू-िारर गोि मौटग मे हेर लागल गारर साँ होररयाबय। प्रचतकूल महौल ्े खख-गचम
लालिनके फौजी भाय िोिे य घरमुहान भे ल। ता िाईटिल मेँ पड़ल प्रधानमं िी
सड़क कातक बाभनक खे तमे टक्रकेि खे लाइत लग बे ्रा टक्रड़ाकमी सब से हो
पिोर करयबाला हजूममे चमज्झर होईत गे ल। जहन टनबास गे िक भीतर धरर
पहुं ि गे ला पिाईतो हं सेरी लोक सब नहहि घुमल आ टबकेि साँ लोहाक गे ि
टपिय लागलै क ताँ कते को बिोही तमशगीर बनल रहल। दू गोिे य टक्रकेि बौल
जुमाकेँ तीन मं णजला पर टनशाना साधै त जं गलाक कााँ ि झौहरा ्े लक। ओम्हर
एक आ्मी लाठी ले ने ्ौडै त आयल आ ्ोकानके एस्बे स्िस फोटड़ पराएल।
ताटहघरर टकयो ्े खलक एक पुत्रलस आ िौकी्ार मिरसाईटकल साँ एम्हरे
आटब रहल िलै क। हाथे पाथे सबटकयो औजके िाइरगाड़ी साँ आयल पजे बा
लै त भागल। पुत्रलसकेँ पनडु चम घिना ्े खय बनरझूला जे बाक िलै । जुमाक'
द्न रहने एक घं िाक वा् फेर आगू - आगु मोसलीम साफी ,तै पािु मोहम्म्
इस्लाम ,सतार मं सुरी, अठासी अं सारी, करबे ला बाला आ ई्गह िोल बला
जलील मामू सब अं िसं ि बजै त ओटह ्'के' गे लैक। नविोत्रलया पर महजीतमे
बै सकय बुईधटबिरी करै त गे ल। जमीरूद्दीन केर िे म्पूमे चिलकौर सलमाकेँ
बै सबै त िाररगो युबक पं ि सं ग होईत आगू बढ़ल। घोघरडीहा अस्पताल म
भभिपन करै त भती भे ल। ओतटह थानाके ्ारोगाजी टबयान त्रलखलकै।
नालीश ्र्जा होय साँ पूवा एक णजप्सी चितकबड़ा त्रसपाहीक सं ग एकता िौक
साँ कहिरी रस्ता होईत बड़ाबाबू बनरझूला धरर गस्ती पर जाईत रहचथ।
फौणजक फोन भे ला साँ थानाध्यक्ष महो्य ने गाड़ी ्ौड़े लटन। दू द्नमे
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सामाणजक फैसला पं िायत साँ करै त सोलहनामा लगे बाक टन्े श ्े लटन। ताटह
गामक कालीजी स्थान साँ बजरं ग ्लक नवजुबक लोकटनके हिनी हाि पर
प्र्शान से हो भऽ गे लैक। टहन्दनू - मुसलमान ्ं गाक रूप ने भ'जाय,तेँ तत्काले
घिना स्थलके टनररक्षणमे आयल िोिाबाबू आ हबल्ार साहे ब अपना रहै त
्ाहारण पर बै ठारमे मचमलाक तसफीहा कयलटन। उमे र्राज समाजक पाँ ि
लोकटन बुणझ गे लाह ई एकिा चिन्दनीलालक' षड्यं िक' िाल िी। पररघिना
केँ सम्हारै ले रमजानक इफ्तार पािी ले ल फौजी साहे बकेँ कहल गे ल साढ़े पां ि
हजार िकाक सब पाकल फल अना ्े ल जाए।
लालिनके िोिभायकेँ खे तीबाड़ीमे अबूह लागटन ,मास्िरी करै तो पााँ ि कट्ठा
टहस्सा बड़का कोलामे ले ने रहय। से मनखप बिै या टपपरावाली हाथे लगौनै
िलै क। ओटह द्नक घिनाक मोन पटड़ते ्े ह शीहरर उठटन। सोझे सालमे
खे तकेँ भरना लगे बाक टविार ठानने अपन टविारी साँ मन्दिणा कयल। टनठाही
जररयाएल गप्प भे लै जे ओतुका अररयाकेँ बसयले िोिका कोला िालीस
लाखमे बे िनामा कयल जाए। सयह कले क आ प्राप्त जरसे मन साँ त्रभन्दने महल
बनाबी। मोजे मजकुरमे शोर भ' गे ल जमीन टबक्री िै क। धरर अपिी खे त साँ
िाण भे लैक,मु्ा दू भाय प्राण गमबय लऽ अपन- अपन टहस्सा बकुिने रहल।
२
राज वकशोर चमश्र जीक उगरास
मै चथली साटहत्यक समकालीन आशु कटव श्री राजटकशोर चमश्र जीक कटवता
सं ग्रह -: मे घपुष्प, िानटन,नवपात- नव बात, उपायन ,सप्तपणा ,नव घर
उठय,- पुरान घर खसय,प्रलय -पाश, िे मी, णजनगीक सोन सन पााँ खख,उबे र ,
कनक क्ली आ खं ड काव्य -: जाँ जग जल नटह होइत' केर वा् आब
'उगरास' पाठकगण बीि आयल अचि। कटववर राजटकशोर जी टहन्द्ी
साटहत्य मेँ से हो अपन रिना माध्यम साँ एक ्जान पोथीक सं ग धाख जमे लाह
विदे ह ३९१ म अं क ०१ अप्रै ल २०२४ (िर्ष १७ मास १९६ अं क ३९१)|| 37
अचि। हम एतय " उगरास" केर ििाा करय िाहै त िी। एटह पोथीमे पृष्ठ
सं ख्या ११७ आ ्ाम तीन सय िाका िै क। पटहल सं स्करण २०२३मेँ भारतमे
मुटरत िै क जाटहक आई एस बी एन ९७८- ९३- ५९८०- १६३- ६ िै क, जे
रचियता अपन गाम अड़े र डीह पता साँ प्रकात्रशत करे बामे अपन बाइस गोि
नव कटवता टवधा केँ पाठकवृन्द् बीि रखलाह हन। सामाणजक समस्या आ
पररवे शक चििण करै त श्री चमश्रजी मनुष्यक सोि ओ दृचष्टकोण केँ समक्ष
आनलटन अचि। पोथीमे त्रभन्दन-त्रभन्दन टवषय सभके समचष्टगत नीक प्रस्तुचत
भे ल िखन्दह। पाठकके पाठ- नव भारत, हम बे िी िलहुाँ .. , आद् मनुखक
सं सार, िन्दरायण -३, हम मै चथली िी, अपै त मोन, साम्प्रचतक सप्तप्ी, नव
णक्षचतज, अथा ग्रहण, मे घािन्दन अकास, तामस, श्रमजीवी, प्रौद्योटगकी -
जुगक णजनगी, जीवन वृत, की भऽ गे लै एटह गाम के? , मनस् - क्षे ि,
गोबरपथनी, बनौआ, अनचिन्दहार होइत गाम, अहां ग, दृचष्टकोण आ की
बनबीही बौआ रौ' खुब टवमशा करय लायक बुझाइत रहत। कटवजीक ई
टवशे षता प्रथमत: बुझाएत जे ओ कटवता माध्ययमे नव- नव टवषयके पकड़ै त
िचथ। ऐ ्शकमे भारत अपन टवकास पथ पर अग्रसर रटह टवश्वमे नाम
बजे लक अचि। काव्य टहनक बढ़ सौष्ठव भे ल िखन्दह। नव भारत मेँ पााँ चत ्े लटन
अचि -:
टवश्व -पिल पर भऽ रहल अचि,
नवल - भारतक अभ्यु्य,
पृर्थवी, मं गल , िन्दरमा पर ,
गूाँणज रहल कहि्क ' जय - जय।
अं तररक्ष मे भारतवषाक,
बाणज रहल अचि डं का,
सगर जगत् केँ रहल न कटनको,
कहि्क सामर्थया पर शं का।
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िलै त रे नक िपे िमे आटब गे ल रही। अपनो आिया होअए जे एते क द्न
टबतलाक बा्ो ओ घिनासभ ओटहना तह्जा अचि ,लगै त अचि जे ना
काच्छल्हएक गप्प िै क । फेर भे ल जे बीतल बातसभमे की राखल िै क? जखन
एटहठाम आनं ्क एते क सामग्री स्वतः सुलभ अचि ताँ टकएक नटह ओहीमे
रचम जाइ ।
-2-
-जरुर कोनो नव घिना घिल अचि"- िारुकात बौआ रहल आत्मासभ सोचि
रहल िल। एटह आत्मासभक खुबी िलै क जे ओकरासभकेँ ककरो समा्
्े बाक हे तु कोनो फोनक काज नटह पड़ै त िलै क। इिा करु आ ओटह
आत्मासाँ सोझे सं पका भए जाएत। ततबे नटह, जखन जतए िाहचथ उटड़ जाचथ
। कोनो सबारीक काज नटह पड़ै त िलटन ।
थोड़बे कालमे आकाशवाणी भे ल-
"तोरा अखन धरर पुरनका आ्चतसभ नटह िु िलह अचि। तेँ परे सानीमे पटड़
जाइत िह।"
"एटहमे हमर कोन ्ोष? हमर मोनमे ओएह बातसभ घुचम रहल अचि ।
राटगनी ताँ हमरा बहुत मानै त िलीह, बहुत आवे शसाँ हमरा लग अएबो केलीह
आ टबना टकिु कहने ित्रल गे लीह। कटह नटह कतए गे लीह?"
“ऊपर द्स ्े खहक ।”
"हमरा ताँ टकिु नटह ्े खा रहल अचि।"
"एना ताँ नटह हे बाक िाही। अहााँ क ते सर ने ि लगै त अचि सटक्रय नटह भए
रहल अचि नटह ताँ एहन प्रश्न नटह पुिए पड़ै त ।"- -से कटह ओ अबाज लुप्त
भए गे ल । कतहु टकिु नटह ्े खा रहल िल । ऊपर, नीिा, साैं से ्े खबाक
प्रयास केलहुाँ । हम ऊपर तकैत रही, टकिु -टकिु सोिै त रही आ ित्रलतो रही।
पररणाम भे ल जे हमर पै र कोनो टपिड़ स्थानपर पटड़ गे ल आ हम टपिटड़
कए खत्रस गे लहुाँ । टकिु नटह बुणझ सकत्रलऐक जे केमहर जा रहल िी ।
िारूकात अन्दहार गुज् ज रहै क । बीि-बीिमे कैठाम टकिु -टकिु अबाज
सुनबामे आबए। सं भवतः मृतात्माक आवागमन भए रहल िल । खसै त -
खसै त हम एकिा पहाड़क िीलापर अड़टक गे लहुाँ । ओतए टकिु गोिे पटहने साँ
हमर प्रतीक्षा कए रहल िलाह । टकिु - टकिु कहए िाहलाह। हुनकर भाषा
हमरा टकिु बुझएमे नटह आबए । हम ओकरा द्स तकैत रही आ ओ सभ
हमरा द्स। ओ सभ आपसमे टकिु गप्प केलक। ओटहमे साँ एकगोिे
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मै चथलीमे बाजल-
" अहााँ बहुत थाकल लगै त िी । टकिु जलखै कए त्रलअ ने । फेर घुमैत रहब
।"
"ठीक िै क ।"
ओ हमरा एकिा बड़का भोजनालयमे लए गे लाह जतए तरह-तरहक जलखै
राखल िल । जे खाउ,जते खाउ कोनो रोक-िोक नटह । ओटहठाम बहुत रास
लोकसभ रहै क मु्ा ककरो भाषा बुझबे नटह कररऐक । सभ अपन-अपन
पत्रसनक जलखै करबामे मस्त िल। जलखै केलाक बा् हमरा आैं घी लागए।
ई बात ओ बुणझ गे लाह आ हमरा ले ने-ले ने एकिा कोठरीमे पहुाँ िा ्े लाह ।
ओटहठाम सुतबाकसभ व्यवस्था िलै क । हम तते क थाकल रही जे ओतए
जाइते टनन्दन पटड़ गे ल ।
-3-
टनन्दन िु ितटह बीतल बातसभ मोन पड़ए लागल । हमर गाम िल मौजपुर ।
मौजपुर गाम के नटह जनै त िल । टकएक? एटह ले ल नटह जे ओटह गाममे
बहुत पढ़ल-त्रलखल लोक िल,एटह ले ल नटह जे ओतए कोनो बहुत धनीक
लोकसभ िलाह । असलमे ओ गाम इलाकामे आपसी सौहाद्याक हे तु प्रत्रसद्ध
िल । गाममे सभ जाचतक लोक बसै त िलाह मु्ा कखनो लगबे नटह करै त
जे एते क जाचतक लोक एकटहठाम एते क नीकसाँ रटह रहल िचथ । सभ चमलल
रहै त िल जे ना नून पाटनमे चमत्रल जाइत अचि । जटहआक ्ाहा होइत
तटहआक साैं से गाम ्ाहापर अपन कबुलाक बद्धी िढ़ाबै त,हािपर सााँ झमे
्ाहासभक चमलान ्े खैत,लाठी भजै त युवकसभक मनोरं जन ्े खैत । की
टहन्ददू,की मुसलमान सभ अपन जोर अजमाइस करै त। लगबे नटह करै त जे ई
कोनो तरहेँ ्ोसर धमाक पाबटन अचि । तटहना कृष्णाष्टमी,रामनवमी आ
दुगाापूजामे मुसलमानो पािू नटह रहै त । जकरा जे काज ्े ल जाइत से सहषा
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करै त ।
गाममे एक साँ एक लोक रहै त िलाह । ओटहमे चतरटपतक अलग पटहिान
िलटन। ने नामे बहुत कष्ट सहलटन। हुनकर टपताकेँ जथा-पात नटह िलटन ।
बहुत मोसटकलसाँ गुजर होइत िलटन । मु्ा चतरटपत बहुत सं स्कारी आ
पररश्रमी िलाह । द्न-राचत मे हनचत कए आइए धरर पढ़लाह । तकरबा्
गामे क इसकुलमे मास्िरी करए लगलाह । इसकुल बा् जे समय बचि जाइत
िलटन ताटहमे गामक गरीब बच्िासभकेँ पढ़बै त िलाह,ततबे नटह
ओकरासभकेँ टकताब,कााँ पीक व्यवस्था धरर ओएह कए ्ै त िलाह। कैकबे र
घरनी िोकचथन-
"एना ताँ अहााँ हमरासभकेँ त्रभखमं गा बना ्े ब ।"
" एटह प्रचतभाशाली ने नासभकेँ आश्रय ्े बासाँ बटढ़ कए कोनो पुण्य नटह भए
सकैत अचि । धन होइत िै क कथी ले ल?"
"एटहना कबाइत पढ़ै त रह । जखन द्क्कचत होएत ताँ केओ काज नटह
आओत । ई ओएह गाम िै क जतए हमसभ कते को राचत पाटन पीटब सुचत
जाइत िलहुाँ आ लाजे ककरो टकिु नटह कटह पबै त िलहुाँ । ताटहठाम अहााँ
स्ाबता बााँ टि रहल िी।"
आओर चतरटपत हाँ त्रस कए बातकेँ िारर ्ै त िलखखन। ओ बजै त-बजै त अपने
िुप भए जइतचथ । चतरटपतपर कोनो असर नटह होइत िलटन ।
हम,शर् आ राटगनी टनयचमत ओटह इसकुल जाइत िलहुाँ । गामक पिबररआ
कात एकिा पै घ पाकटड़क गाि िलै क। ओकरे औढ़मे इसकुल िलै त िल ।
एकमाि त्रशक्षक चतरटपत भोरसाँ सााँ झ धरर लागल रहै त िलाह । इसकुलकेँ
क्रमशः इलाकामे प्रिार होइत गे लैक। गाम-गामसाँ टवद्याथीसभ जुिए लागल
। मु्ा ओतए साधनक नामपर टकिु नटह िलै क ,एकिा िारो नटह । एते क
सं घषा कए ने नासभक भटवष्य टनमााण हे तु चतरटपतकेँ कटहओ चििचतत नटह
्े खत्रलअटन,टनरं तर प्रसन्दन रटहतचथ । के की कए रहल अचि,के की कटह रहल
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अचि ताटहसभसाँ टकिु ले ना-्े ना नटह रहै त िलटन । अपन काज साँ मतलब
रखै त िलाह,अपना आपमे मगन रहै त िलाह ।
हुनकर प्रयाससाँ कते को ने नासभ गामक इसकुलसाँ जुड़ल। जीवनमे आगू
बढ़ल । नौकरी करबाक हे तुगाम िोटड़-िोटड़ सहर द्स ित्रल गे ल । गाममे
झर सभ रटह गे ल जे टनत्य नाना प्रकारक झञ्झटि करै त रहै त िल ।
ओहीक्रममे चतरटपतपर ओ सभ आक्रामक भए गे ल िल। ओना चतरटपत
तते क सम्हारर कए िलए बला लोक िलाह जे ककरो हाथ नटह लागचथ ।
मु्ा राटगनीक प्रसं ग हुनका बे बस कए ्े ने िल।
चतरटपत एटह इसकुलकेँ स्थाटपत करबाक हे तु द्न-राचत लागल रहलाह ।
सरकारी अचधकारीसभकैँ कते को ्खाास्त ्े लाह। मु्ा टकिु नटह भे ल । हारर
कए पााँ ि कट्ठा खे त बे चि कए ओ इसकुल भवनक टनमााण केलाह । शुरु मे
तीनिा कोठरी बनल। दू िा पक्का आ एकिा फूसक । तकरबा्ो बहुत रास
टवद्याथीसभ गािक िाहररमे पढ़चथ । इसकुलमे आस-पासक तीनिा आओर
त्रशक्षक स्वे िासाँ योग्ान ्े बए लगलाह ,एटह उम्मी्मे जे आइ-ने -काच्छल्ह
हुनकासभकेँ सरकारी नौकरी भए जे तटन । कालक्रमे से हो भे लैक ।
इसकुलकेँ सरकारी मान्दयता भे िलै क । ओटहमे स्थानीय ने ता श्यामक बहुत
योग्ान रहटन । ओ आ चतरटपत कते को द्न लाटग कए एटहकाजकेँ
करओलाह । इसकुलक काज आगू बटढ़ते गे ल । क्रमशः ओतए आओर
कोठरीसभ बनल । माध्यचमक टवद्यालयसाँ बटढ़ कए ओ उच्ि टवद्यालय भए
गे ल। इलाकामे ओटह इसकुलक नाम पसरर गे ल । नीक-नीक टवद्याथीसभ
ओटह इसकुलमे नाम त्रलखाबक हे तु प्रयत्नशील रहै त िलाह । जखन नीक
टवद्याथी रहतै क ताँ परीक्षाफलो नीक हे तैक। सएह होमए लागल । एटह
प्रयासक सफलतासाँ चतरटपतकेँ समाजमे बहुत यश भे ल ।
राटगनीक टपता चतरटपत बहुत यत्नसाँ अपन एकमाि सं तानक पालन-पोषण
करै त िलाह। हमर टपता प्रभु हुनके ओटहठाम हर जोतै त िलाह । कते को
द्न हम हुनकासं गे खे तपर ित्रल जाइ । कैकद्न चतरटपतक ओटहठाम से हो
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आङनमे पड़ल िल ।
-5-
एटह समाजमे िी आ रहब । बुझलही टक नटह? नीकसाँ सुटन ले । नटह ताँ ...।"
चतरटपत राटगनीकेँ कोठरीमे पिटक बाहरसाँ तालाबं ् कए अड़बड़ बजै त खुरपी
ले ने खे तपर ित्रल जाइत िचथ। राटगनी असगर घरमे चिकरर रहल िचथ ।
केबारक पािू हुनकर माए ठाटढ़ िचथ । ओहो काटन रहल िचथ मु्ा लािार
िचथ । चतरटपत टकिु नटह सुटन रहल िचथन। ओ एटहपार-ओटहपार करए हे तु
तै यार िचथ। माएक एटह व्यथाकेँ केओ बुझनाहर नटह अचि । राटगनीक करुण
क्रं्न करै त रटह गे त्रल ।
िट-िृक्ष
माझ आङनमे भोरे भोर कौवाके कुिरै त ्े खखके चप्रया दूधमे त्रभजाके एकिा
रोिीक िु कड़ा कौवाक आगााँ मे फेकैत बजलीह-
'उच्िै र बै सह' आ कौवा ओकरा लपसे लोलमे भरर उटड़ गे ल ।उड़ै त कौवाके
ओ ताधै र ्े खैत रहलीह जाधै र ओ आाँ खख साँ अलोटपत नै भ'गे लटन ।जे ना ओ
हुनके सने स ल'के बुच्िीक पप्पा लग ल'गे ल होइन । तखने फोनक घं िी
घनघना उठलै आ ओ लपटकके बजलीह- हे ल्लो ! के .. बुच्िीक पप्पा !!!
-- हाँ यै ! कोना िी !!
-- अहां ँाँ टबना जे ना रहकक िाही !ताहमे पाबै न चतहारके बड्ड अखरै ये !
--से हम की करब ? अिे कहते आइ की चिऐ ?
- टकए ,फगुवा !!!
--त'खे लाने त्रलअ फोने पर !
- गे मै या ! से कोना ?
- अपन दुनू समतोला सनक रसगर गाल आगााँ बढ़ाउते !
-- है या त्रलअ बढ़ा ्े लाैं !
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प्रिि झा
ऑटडयोलॉणजस्ि की करय िै थ:
सीएमसी वे ल्लोर
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आिायष रामानं द मं िल
किाकार
-हे अं हा के कोनो ्ोसर काज न हबे . जटहया से ररिायर कैली हय. तटहया से
कटवता -कथा त्रलख रहल िी.
-अं हा खाली खिे करै पर रहय िी.एक बार कटवता सं ग्रह िपाबै पर तीस
हजार रुपै या खिा कैले रही. कहले रही टक सभ टबका जतै य. एको िा न
टबकायल. सभ बां ि रहल िी. आ पोथी ्ै इत के फोिो खींि के फेसबुक पर
पोस्ि करै त रहय िी. आ बडका कटव बनै त टफरै िी. पटहले कटह ररिायर होय
दूं ।सोन से ्े ह भरर ्े व।खररकैि के रह गे ली एगो सोन के त्रसकड़ी न ्े ल पार
लागल।
-हं . खुब सुनले िी. राजा रानी के खखस्सा. परी आ राक्षस के खखस्सा. राम -
रावण के खखस्सा.
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-हं . ठीके कहली. राम -रावण के खखस्सा. जनय चियै . इ खखस्सा पटहले पहल
ऋटष बाच्छल्मकी अप्पन रामायण मे त्रलखलै रहय. बा् मे सं त तुलसी ्ास
रामिररत मानस मे . वोहे खखस्सा अं हा अप्पन नानी -्ा्ी से सुनली.
-त िपा लू.
-हं . टबिार कैले िी. मािा -2024 के सगर राचत ्ीप जरै य कायाक्रम मे पोथी
के लोकापाण हो जाए.
-कहं ।
३.पद्य
मुन्ना जी
गजल
आबक फागुन िै त लगै ए
लोकक िात्रल भगै त लगै ए
वोिक बे र आं खख मुन्दनी धे ने
सज्जन लाजे कठौत लगै ए
सोवनत
ई ताँ ्े हक सं जी वनी ,
एटह तरलक रिना कएल ्े वता ,
प्रा णक पुण्य जल प्रवा हमा न-,
सजात ने मनुज, एता वता ।
को नो भा एक खून, को नो मा एक खून,
जे त्रस न्ददूर सन ,कएल मा ङ को नो सून।
टव ना शक पा ड़ल भूचम पुंड-,
सृजनक किल रुंड मुंड।-
खसय ने सो टन त एक्कहु ठो प,
कहि सा साँ मनुजता हो यत लो प।