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कुरआन में जंग

की अवधारणा
ब्रिगेब्रियर एस.के . मलिक

आमुख द्वारा

जनरि एम. लजया-उि-हक

आदम प्रकाशक व ब्रवतरक


शानदार माके ट, लितिी क़बर

ब्रदल्ली-11006

1
सवाालिकार सुरलित, प्रकाशक की पूवा लिलखत अनुमब्रत के ब्रबना इस पुस्तक के ब्रकसी भी अंश का पुनरोत्पादन, पुन्नब्रनमााण प्रणािी
में सं किन, अथवा इिेक्ट्रॉब्रनक, यांब्रिक, छायाप्रब्रतकरण, ररकाब्रििंग और/अथवा अन्य प्रकार से ब्रकसी भी सािन या रूप में सं प्रेब्रित
नहीं की जा सकती है।

©ब्रिगेब्रियर एस.के . मलिक

भारतीय पुनमुाद्रण सं स्करण, 1992

मूल्य 90/- रुपये

भारत में मुब्रद्रत


आदम प्रकाशक व ब्रवतरक द्वारा प्रकालशत

शानदार माके ट, लितिी क़बर, ब्रदल्ली-110006

जे.आर. आफसेट, ब्रदल्ली-110006 में मुब्रद्रत

2
अनुक्रमालणका
आमुख

प्राक्कथन

िेखक की ब्रटप्पणी

आभार ज्ञापन

पृष्ठ

I पररिय 1

II ऐब्रतहालसक पररप्रेक्ष्य 7

III जं ग के कारण 16

IV जं ग का उद्दे श्य 25

V जं ग की प्रकृ ब्रत एवं आयाम 36

VI जं ग के नीब्रत-लसद्ांत 46

VII जं ग की रणनीब्रत 51

VIII जं ग का सं िािन 61

IX कु रान के सैन्य ब्रविारों का अनुप्रयोग 72

X महत्वपूणा ब्रनष्किों का सारांश 142

कु रान के सं दभा-ब्रवियवार 147

कु रान के सं दभा-सूरावार 149

कािक्रम 151

सं दभा-ग्रंथ सूिी 153

सूिी 156

मानलिि एवं पररलशष्ट


मानलिि पृष्ठ

I अरब्रबया, फारस एवं रोमन साम्राज्यः 610 ईस्वी पूवा 7ए

3
II फारसी आक्रमणः 610-16 ईस्वी पूवा 9

III रोमन प्रब्रतरोि-आक्रामकः 622-28 ईस्वी पूवा 14

IV अरब्रबयाः 610 ईस्वी पूवा 73

V बद्र के हमिे के पूवा एवं समझौता अलभयान 76

VI जं ग की नैब्रतकता 77

VII बद्र की जं ग 80

VIII उहुद की जं ग 85

IX मदीना की घेराबं दीः दृष्टांत 80

X सैन्य अलभयानः 625-32 ईस्वी पूवा 93

पररलशष्ट

I पब्रवि रसूि के फौजी अलभयान 99

II बद्र पर पब्रवि कु रआन 104

III उहुद की जं गः वृत्त अध्ययन 109

IV उहुद पर अल्लाह का कोप 127

V खं दक पर पब्रवि कु रआन 133

VI हुदै ब्रबया पर आसमानी ब्रनणाय 136

VII तबूक पर कु रआन का सं देश 138

4
“हे नबी, स्मरण कर, जब अल्लाह ने देवदत ू ों (फ़ररश्तों) से कहा कक मैं धरती पर एक खलीफा
बनाने जा रहा हूं। वे फररश्ते बोलेेः क्या तू उसमें उसे बनायेगा, जो उसमें उपद्रव करे गा और रक्तपात
करे गा? जबकक हम तेरी प्रशूंसा के साथ तेरे गुण और पकवत्रता का गान करते हैं! (अल्लाह) ने कहाेः जो
मैं जानता हूं, वह तुम नहीं जानते।’’
‘और उसने आदम को सभी वस्तुओ ूं के नाम बता कदये, कफर उन्हें फररश्तों के समक्ष प्रस्तुत
ककया और कहाेः मुझे इनके नाम बताओ, यकद तुम सच्चे हो!’
सबने कहा, ‘तू पकवत्र है। हम तो उतना ही जानते हैं, कजतना तन ू े हमें कसखाया है। वास्तव में तू
ू ण है।’
ज्ञान व बुकिमत्ता में पण
अल्लाह ने कहा, ‘हे आदम! इन्हें इनके नाम बताओ।’ आदम ने जब उनके नाम बता कदये, तो
(अल्लाह ने) कहा, ‘क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कक मैं जन्नत और धरती के रहस्यों को जानता हूं
तथा तुम जो बोलते हो और जो मन में किपा जाते हो, सब जानता हूँ?”
बकरा 30-33

5
प्रकाशक का कथन
ब्रप्रय पाठकः

हम जनरि एस.के . मलिक की पुस्तक जं ग की कु रआन में जं ग की अविारणा (द कु राब्रनक कॉन्सेप्ट ऑफ वार) का
इिेक्ट्रॉब्रनक सं स्करण िोगों के समि प्रस्तुत करते हुये हिा का अनुभव कर रहे हैं। िाब्रमाक व राजनीब्रतक ब्रहतों की पूब्रता के लिये
अंतरााष्टरीय लजहादी आं दोिन के सैद्ांब्रतक आिारों एवं आतं कवाद के प्रयोग के लिए ब्रदये जाने वािे ढीठ औलित्ों के ब्रववेिनात्मक
महत्व को देखते हुए हम इस भाग को उपिब्ध करा रहे हैं। िूं ब्रक मलिक की यह पुस्तक न के वि लजहाद के इस्लामी लसद्ांत की
समकािीन व्याख्याओं में महत्वपूणा स्थान रखती है, अब्रपतु पलिमी ब्रवद्वानों व सैन्य ब्रवश्लेिकों तक इसकी पहुंि िगभग न के
बराबर है। इस कारण इसका इिेक्ट्रॉब्रनक पुनप्राकाशन अत्ं त आवश्यक था।

इस पुस्तक कु रआन में जं ग की अविारणा की प्रासं ब्रगकता अमरीकी अलिकाररयों द्वारा इस पुस्तक के ब्रविय में लिलखत व
ब्रवलभन्न भािाओं में प्रकालशत उस सारांश में देखी जा सकती है जो उन्ोंने अफगाब्रनस्तान में मारे गये और बं दी बनाये गये लजहादी
ब्रवद्रोब्रहयों पर लिखा है। यह िब्रकत करने वािी बात है ब्रक मलिक अ-मुस्लस्लमों के ब्रवरुद् आक्रामक, तीव्र व ब्रनरंतर लजहाद के
लसद्ांत एवं ब्रवश्व भर में इस्लाम का प्रभुत्व स्थाब्रपत करने के िक्ष्य की प्राब्रि के सािन के रूप में आतं कवाद के मजहबी औलित् को
कु रआन में ही पाते हैं और इसी इस्लामी ब्रविारिारा के साथ ब्रमिकर यह लसद्ांत ब्रवश्व भर में आतं कवाद फैिा रहा है।

इस पुस्तक में मालिक द्वारा लजहाद के पि में ब्रदये गये तका भी उतने ही महत्वपूणा हैं, लजतना ब्रक पाब्रकस्तान के ब्रदवं गत
राष्टराध्यि व सेनाध्यि मुहम्मद लजयाउि हक द्वारा लिलखत प्राक्कथन एवं पाब्रकस्तान के ब्रदवं गत महालिवक्ता अल्लाह बख्श के . िोही
द्वारा लिलखत आमुख है। इस पुस्तक को िेकर उनकी सं बं लित पुब्रष्ट ने लजहाद पर मलिक के ब्रविार को राष्टरीय नीब्रत के रूप में
स्थाब्रपत कर ब्रदया तथा उसकी व्याख्या को राज्य की आलिकाररक स्वीकृ ब्रत प्रदान कर दी।

जनरि लजया ने लजहाद के ब्रविय में मलिक की व्यापक समझ को ऐसे कताव्य के रूप में स्वीकार ब्रकया है, जो नागररकों से
िेकर फौलजयों तक पर िागू होता है। िोही दारुि इस्लाम (इस्लाम का स्थान) और दारुि हबा (जं ग का स्थान- लजसका अथा है अ-
मुस्लस्लम अथाात काब्रफर का स्थान) में भेद स्पष्ट करते हुए इस्लाम के सं दे श के प्रसार व स्थापना में ब्रकसी भी प्रब्रतरोि का प्रत्ुत्तर दे ने
तथा इसमें आने वािी ब्रकसी भी बािा को हटाने एवं शररया के अनुसार शासन सं िािन िाने के लिये रिात्मक लजहाद की
पुनपाररभािा को स्वीकार करता है। इस ब्रविार से इस्लाम के बढ़ने में ब्रकसी का ब्रनलिय प्रब्रतरोि भी उस पर हमिा करने का वैि
आिार है।

मलिक के कु राब्रनक कॉन्सेप्ट ऑफ वार का अध्य्यन हर उस व्यब्रक्त के लिये आवश्यक है, जो लजहाद की मजहबी प्रकृ ब्रत
तथा अ-मुस्लस्लमों पर इस लसद्ांत के प्रभाव को समझना िाहता है। मलिक की यह पुस्तक मुसिमानों की दुब्रनया में ब्रवस्तृत रूप से
फैिी हुई उस लशिा पर मूल्यवान अंतदृाब्रष्ट प्रदान करती है, जो इस्लामी ब्रविारिारा और इस्लामी जं ग व आतं कवाद के बीि
महत्वपूणा सं बं ि को मान्यता दे ता है। हम इस कृ ब्रत का आमुख लिखने के लिये एिटीसी जोसफ मॉयसा को भी िन्यवाद ज्ञाब्रपत
करते हैं।

पैब्रटरक पूि एवं माका हन्ना

**पैब्रटरक पूि द्वारा “कु राब्रनक कॉन्सेप्ट ऑफ वार एं ि टे रर” की गई सं लिि ब्रवश्लेिण की समीिा अवश्य करें ।

6
ब्रटप्पणी
ब्रिगेब्रियर एस.के . मलिक लिलखत कु रआन में जं ग की अविारणा (द कु राब्रनक कॉन्सेप्ट ऑफ वार) ने इस्लामी ''मजहबी
जं ग'' लसद्ांत एवं इस्लामी सं दभा में जं ग की तैयारी व सं िािन की समझ ब्रवकलसत करने में महत्वपूणा योगदान ब्रदया है। मूित:
पाब्रकस्तान के िाहौर में 1979 में प्रकालशत यह पुस्तक सईद कु तुब की माइिस्टोन्स अथवा मुहम्मद फारूख की द नेग्लेक्ट्ेि ड्यूटी
की भांब्रत ही अल्लाह द्वारा रसूि मुहम्मद के समि प्रकट ब्रकये गये आदे श को पूरा करने में इस्लाम की भूब्रमका व कताव्य पर कथन
के रूप में देखा जाता है। वह आदेश यह है ब्रक सभी मनुष्ों को इस्लाम की ओर िाया जाए अथाात दावा (िमािंतरण ब्रकया जाए)
और पूरे ब्रवश्व में इस्लाम की ब्रनबााि फतह सुब्रनलित करने सहायता की जाए।

कु रआन में जं ग की अविारणा वह आवश्यक सं किन है, लजसका वणान इस्लामी रणनीब्रतक लजहाद के अध्ययन की
कसौटी के रूप में ब्रकया जा सकता है। इस पुस्तक का प्रकाशन जब हुआ, तो उसके पिात पाब्रकस्तान में जनरि लजया उि-हक का
इस्लामी ब्रवद्रोह और िगभग उसी समय अफगाब्रनस्तान पर सोब्रवयत रूस का आक्रमण हुआ। शीघ्र ही पाब्रकस्तान की फौज के लिये
इसको पढ़ना अब्रनवाया हो गया। इसी प्रकार, पाब्रकस्तान के पडोसी भारतीय सैन्य बि ने इसका सं ज्ञान लिया और भारत में यह
पुस्तक 1992 में पुन:प्रकालशत की गयी।

इसमें रसूि मुहम्मद के पथ में इस्लामी जं ग की प्रकृ ब्रत से सं बं लित महत्वपूणा ब्रविय-वस्तु हैं, परंतु तब भी पलिमी सैन्य
गलियारों में यह पुस्तक अपेिाकृ त अज्ञात ही रही है। मलिक की यह रिना लजहाद के अन्य ब्रवद्वानों व बुब्रद्जीब्रवयों की श्रेष्ठता को
महत्वपूणा शैिी में िुनौती देती है, क्ोंब्रक यह पलिमी सैन्य लसद्ांतों में सुलशलित एक ऐसे सेवारत सैन्य लसपाही द्वारा लिखी गयी है
जो सैन्य सं दभा में लजहाद की भूब्रमका का अनुवाद करने में समथा है। इसके अब्रतररक्त, भारत में पाब्रकस्तान के पूवा राजदूत रह िुके
अल्लाह बरक्श के . िोही द्वारा लिखे गये इसके आमुख में ''बुरी ताकतों' से सं घिा करने के लिये कु रआन के ब्रवलशष्ट आदेशों के
अंतगात मुसिमानों द्वारा जं ग छे डने एवं िडने के लिये अद्ा -ब्रवलिक आिार दे ता है। इन आिारों का ब्रनरूपण इस अध्ययन के
महत्वपूणा भाग का गठन करता है।

मलिक की इस कृ ब्रत की महत्वपूणा ब्रविय-वस्तु यह है ब्रक इस्लाम में ''मजहबी जं ग'' अथवा लजहाद अंतब्रनब्रा हत रूप से
दीनी जं ग, िाब्रमाक जं ग है और यह इस सीमा तक है ब्रक इस्लामी ताकतों को मजहबी रूप से स्वयं को इस प्रकार तैयार करना
िाब्रहए ब्रक वे इस्लाम के शिुओं के ''मन में आतं क'' उत्पन्न कर सकें । जैसा ब्रक मलिक ब्रवस्तार से वणान करता है ब्रक यह आतं क
शारीररक व मानलसक दोनों रूप में होना िाब्रहए। क्ोंब्रक इस्लामी जं ग रणनीब्रत मूितः अल्लाह की इच्छा का प्रभुत्व स्थाब्रपत करने
के लिये िरती पर अल्लाह की ताकतों दारुि-इस्लाम एवं अल्लाह के सच्चे ज्ञान से दूर अंलियारे में रहने वािी दारुि-हबा की ताकतों
के मध्य िह्ांिीय सं घिा है। यद्यब्रप लजहाद व आतं कवाद की दुब्रनया में इस कृ ब्रत की पहुं ि व प्रभाव ज्ञात नहीं है, ब्रकंतु ब्रपछिे कु छ
विों में अि-कायदा और उससे सैद्ांब्रतक रूप से जुडे आतं कवादी सं गठनों में यह ब्रविय-वस्तु गुं जायमान हो रही है।

िेस्लटटनेंट कनाि जोसफ सी. मायसा

यूनाइटे ि स्टे ट्स आमी, मैक्सवेि, एएफबी एएि

10 अक्ट्ू बर 2006

**पैरामीटसा: द यूएस आमी वार कॉिेज क्वाटा रिी के शीतकािीन 2006-07 अंक में एिटीसी मायसा की द कु राब्रनक कॉन्सेप्ट आफ वार [HTML] [PDF]
की उत्तम समीिा ब्रनबं ि अवश्य पढ़ें ।

7
आमुख
मैं ब्रिगेब्रियर मलिक की पुस्तक ‘जं ग की कु रआन में अविारणा’ की प्रशं सा में कु छ पं ब्रक्तयां लिख रहा हं। यह पुस्तक फौजी
व नागररक दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूणा है। लजहाद फी-सबीलिल्लाह पेशेवर फौजी का अनन्य िेि नहीं है, न ही यह के वि
फौजी ताकतों के अनुप्रयोग तक ही सीब्रमत है।

यह पुस्तक फौजी ताकत के अनुप्रयोग पर कु रआन के लसद्ांतों को सरि, स्पष्ट और सटीक ढंग से प्रस्तुत करती है। फौजी
ताकत का अनुप्रयोग समग्र प्रसं ग में लजहाद है। मुसिमान फौज का पेशेवर फौजी मुस्लस्लम राज्य के िक्ष्यों की प्राब्रि के लिये यब्रद
अपनी सभी गब्रतब्रवलियों को अल्लाह के रंग में नहीं रंगता, तो 'पेशेवर' नहीं हो सकता। इसी प्रकार मुसिमान राज्य के एक अ-सैन्य
नागररक को भी यह अवश्य जानना िाब्रहए ब्रक उसका दे श ब्रकस प्रकार का लसपाही तैयार करता है और जं ग का वह एकमाि प्रारूप
क्ा है, जो उसके देश की सशस्त्र फौज छे डे।

मैंने यह पुस्तक अत्ं त रुलि व ब्रवश्वास के साथ पढ़ी है। यह पुस्तक उस समझ को ब्रवकलसत करने में उपयोगी है, जो एक
इस्लामी राज्य, फौजी या नागररक के रूप में हममें होना िाब्रहए। मैं प्राथाना करता हं और मुझे ब्रवश्वास है ब्रक यह पुस्तक बहुत से
िोगों द्वारा पढ़ी जाएगी। इतनी िगन व समपाण के साथ पूरा की गयी इस कृ ब्रत के लिये अल्लाह िेखक को पुरस्कार देगा।

जनरि एम. लजया-उि-हक

फौज के प्रमुख

8
प्राक्कथन
ब्रिगेब्रियर एस.के . मलिक ने युद् और शांब्रत के लसद्ांतों पर कु रआन के दृब्रष्टकोण का व्यापक सवेिण प्रस्तुत करके इस्लामी
न्यायशास्त्र में मूल्यवान योगदान ब्रदया है। उनका यह काया ऐसा ब्रवद्वतापूणा प्रस्तुब्रतकरण रहा है, लजसे जं ग और शांब्रत पर कु रआन की
बुब्रद्मत्ता के ब्रवश्लेिणात्मक पुनका थन के रूप में देखा जा सकता है। िूं ब्रक पलिमी िेखकों के िेखन में इस ब्रविय की लजन सैद्ांब्रतक
अविारणाओं पर मं थन ब्रकया जाना है, उसका परीिण व प्रस्तुब्रतकरण ब्रकया गया है और ये अविारणाएं कु रआन के लसद्ांतों के प्रसं ग
में मूल्यवान हैं। जहां तक मुझे ज्ञात है, तो इस्लाम के ब्रवलि-ब्रवज्ञान साब्रहत् की ऐसी कोई पुस्तक नहीं ब्रदखती, लजसने उस दृब्रष्ट से
समस्या को दे खने का प्रयास ब्रकया हो, लजस दृब्रष्ट से इस ब्रवद्वान िेखक ने अपने आिेख में देखने का प्रयास ब्रकया है। इनके पररलशष्टों
में पब्रवि रसूि के फौजी अलभयानों के कु छ ब्रवशेि पि देखने को ब्रमिते हैं और ब्रवशेि रूप से वो वृत्त अध्ययन ब्रमिते हैं , लजनमें बद्र
की जं ग के अलभप्राय ब्रनब्रहत हैं। उहुद और खं दक में यह दलशात होता है ब्रक जं ग और शांब्रत के ब्रविय में कु रआन लजस प्रकार का
आदे श देता है, उस पर िेखक की गहरी अंतदृब्रष्ट है। पुस्तक में बद्र, उहुद और खं दक की जं ग में ब्रनयोलजत युद्क रणनीब्रत के लसद्ांत
प्रारूप को दशााने के लिये अनेक मानलििों का प्रयोग करके िेखक ने ब्रनलित रूप से इसका महत्व बढ़ा ब्रदया है। उसने इस पुस्तक में
सामान्य सं दभा-ग्रंथ सूिी और कु रआन के उन सभी सं दभों को सस्लम्मलित ब्रकया है, लजसके आिोक में उसने अपने इस प्रबं ि को
प्रस्तुत करने का प्रयास ब्रकया है।

कु रआनी ब्रवन्यास में दृब्रष्टगत है ब्रक मनुष् की भूब्रमका 'सं घिा', अथवा 'सामना करना' और ऊजाावान ढं ग से उन बुरी ताकतों
या प्रब्रतघात करने वािों से सं घिा करने की है, जो िरती पर उसके सामं जस्य व जीवन के उद्दे श्य के साथ सं घिारत हैं। इस्लाम की
े ी में अनुवाद नहीं ब्रकया जा सकता है, ब्रकंतु व्यापक
शब्दाविी में सवाालिक श्रेष्ठ शब्द लजहाद है। लजहाद वह शब्द है, लजसका अंग्रज
रूप से कहें, तो इसका अथा 'िडना', 'सं घिा करना', अल्लाह के हेतु अथवा उद्दे श्य के लिये आगे बढ़ने का प्रयास करना है।

इस्लाम की लशिा के अनुसार मनुष् खिीफा तूि-अदा के रूप में भेजा गया है, लजसका आशय यह है ब्रक वह िरती के
उत्तरालिकारी होने की भूब्रमका के ब्रनवाहन के लिये िाया गया है। िरती की अपनी िमताएं हैं और इसे भी एक उद्दे श्य से रिा गया
है। ब्रकंतु मनुष् को उत्तरदायी प्राणी के रूप में भेजा गया है और उसका आस्लस्तत्व यहां िरती का सुिार सुब्रनलित करने, भूरी िरती
को पूरा का पूरा अल्लाह के हरे रंग में रंगने के लिये हैं। वह यहां शैतानी ताकतों द्वारा जो कु छ भी ब्रवकृ त ब्रकया गया है, उनको
व्यवस्लस्थत व उनमें सुिार िाने के लिये है।

आगे बढ़ने के लिये ये सब ऊजाावान प्रयास उस समय मनुष् के लिये स्पष्ट रूप से वांलछत हैं, जब दो ब्रवरोिी आिार-
व्यवहार की ब्रक्रयाब्रवलियों में से वो ब्रवकल्प तैयार ब्रकये जाने हों, लजसे तैयार करने के लिये हमारा अंत:करण कहे। लजस सं सार में हम
रहते हैं, वह वो िेि है जहां अच्छा और बुरा, सही और गित, हक व ना-हक (सत् व असत्) तथा हिाि व हराम (वैि व ब्रनिेि)
आिार-व्यवहार के मध्य सं घिा है। जब मनुष् सं कल्पबद् रूप से उस आिार-व्यवहार की ब्रक्रयाब्रवलि को िुनता है, जो अल्लाह द्वारा
आकाशवाणी के माध्यम से घोब्रित ब्रकया गया है तो वह ब्रवलि का पािन करता है ; मनुष् का यह कताव्य है ब्रक वह अच्छाई को िुने
और बुराई को अस्वीकार कर दे। इस कताव्य का पािन उतना सरि नहीं है। यह अपनी ब्रनम्न प्रवृब्रत्त के साथ सं घिा है। इसे लजहाद
ब्रबन-नफ़्स (स्वयं से सं घिा) कहा जा सकता है और कहा गया है। साथ ही जब एक मोब्रमन देखता है ब्रक कोई व्यब्रक्त दूसरे मोब्रमन
को अल्लाह की राह पर जाने में बािा उत्पन्न कर रहा है, तो लजहाद की भावना यह मांग करती ब्रक जो व्यब्रक्त ऐसी बािा उत्पन्न कर
रहा है, उसे ऐसा करने से रोका जाए तथा उसके द्वारा उत्पन्न बािा को हटाया भी जाए, लजससे ब्रक मानव जाब्रत स्वतं ि रूप से उस
पथ को पकड सकने में समथा हो, जो अल्लाह की ओर जाता है। यब्रद हम उस मोब्रमन के पथ की बािा हटाने अथवा उस पथ को
ब्रनष्कं टक बनाने का प्रयास नहीं करके प्रब्रतघात-सं िािक ताकतों द्वारा अल्लाह पर अपने ब्रवश्वास को बनाये रखना िाहने वािे मोब्रमन
की राह में अवरोि उत्पन्न करने वािों के प्रब्रत ब्रनलिय मूकदशाक बने रहते हैं तो ऐसा न करना आपरालिक भूि है,।

9
मानव जाब्रत प्रब्रतशोि िेने अथवा अलिक भूभाग या िन प्राि करने की िािसा को सं तुष्ट करने की अपनी इच्छा को पूरा
के लिये जो सामान्य युद् िड रही है, उसकी अनुमब्रत इस्लाम में नहीं है। ऐसा इस कारण है, क्ोंब्रक ब्रनयम यह है ब्रक सभी प्रयास
अल्लाह के लिये और अल्लाह का प्रताप, प्रभुत्व व उसके नाम की ब्रनमािता बनाये रखने के उद्दे श्य के लिये होने िाब्रहए। जं ग में
इस्लाब्रमक ब्रवलि का लसद्ांत िरती पर अल्लाह के उद्दे श्यों को आगे बढ़ाने का बीडा उठाने की प्रकृ ब्रत वािा है तथा सदा इसका ििण
सदै व रिात्मक होता है। अल्लाह के सं दे शों को आगे बढ़ाना और अच्छे ढं ग से अपने सह-नागररकों के सं ज्ञान में िाना एक मोब्रमन
का कताव्य है। ब्रकंतु यब्रद कोई उसे ऐसा करने में बािा उत्पन्न करता है, तो रिा के उपाय के रूप में उसे प्रब्रतघात करने का अलिकार
है। इसलिये और स्पष्टता से कहें ,तो इस्लाम में जं ग की समस्या एक अलिपब्रत इच्छा से ब्रनयं ब्रित होती है। नामानुरूप यह अलिपब्रत
इच्छा अल्लाह को प्रसन्न करने वािी होती है और यह उन िोगों के ब्रवलिक ब्रहतों की रिा करने वािी होती है, जो अल्लाह में ब्रवश्वास
करते हैं और लजन्ें अपने उन कताव्यों के पािन की अनुमब्रत नहीं ब्रमि रही होती है लजनका पािन उनके मजहब के अनुसार आवश्यक
है।

जहां तक पब्रवि कु रआन का सं बं ि है, तो इसमें बहुत सी आयतें हैं, लजनमें लजहाद की अविारणा पर प्रकाश िािा गया है।
पब्रवि कु रआन की इन आयतों में से एक में स्पष्ट रूप से कहा गया है: ''लजन्ोंने हमारी राह में प्रयास (जाब्रहदू-ब्रफना) ब्रकया, उन्ें हम
मागा अवश्य ब्रदखायेंगे'' (अध्याय- 29:69)। इन सबका स्पष्ट आशय है ब्रक लजहाद सत् की खोज का एक सािन भी है, यह वह
जानने का ढंग है ब्रक मनुष् को ब्रवलि का पािन करने के लिये क्ा करना िाब्रहए। ज्ञान का अन्वेिण भी लजहाद का एक पि है और
इसे लजहाद-ए-अकबर की श्रेणी में रखा गया है, लजसका अथा है ब्रक यह लजहाद ब्रबि-सैफ (तिवार से लजहाद) लजसका वणान छोटे
स्तर पर लजहाद अथाात लजहाद-ए-अशगर के रूप में होता है, से प्रब्रत-उत्कृ ष्ट रूप में बडा सं घिा माना जाता है।

इस प्रकार यह प्रतीत होता है ब्रक इस्लाम में ब्रवजेता की व्यब्रक्तगत इच्छा, सत्ता की िािसा व व्यब्रक्तगत ख्याब्रत की इच्छा
पूणात: अप्रासं ब्रगक है। जब वह अल्लाह के नाम में िडता है, तो वह अल्लाह की ब्रवलि व उसके नाम को पररपुष्ट करने तथा मोब्रमनों
के ब्रवलिक ब्रहतों की रिा के लिए ऐसा करता है। के वि पररभाब्रित पररस्लस्थब्रतयों में ही जं ग की अनुमब्रत है। जैसा ब्रक कोई भी देख
सकता है ब्रक यह अब्रत ब्रनयं ब्रित प्रकरण होता है; और वास्तव में यह ब्रवलि द्वारा ब्रनयब्रमत होता है।

इस्लामी ब्रवलि जं ग की घोिणा एवं इसके सं िािन पर िागू सीमाओं का भी ब्रनयमन करता है। परीिण करने पर पता
ििता है ब्रक इस्लामी ब्रवलि न्याय के आदशा को प्रोत्साब्रहत करने के लिये गढ़ा गया है। अध्याय 2 की आयत 190 में हमें सं दभा
ब्रमिता है, ''अल्लाह की राह में उनसे िडो जो तुमसे िडते हैं और सीमाएं न िांघो। अल्लाह को वो ब्रप्रय नहीं िगते जो सीमा िांघते
हैं।'' यह स्पष्ट रूप से दशााता है ब्रक मोब्रमनों के लिये ब्रदशाब्रनदे श है ब्रक वे के वि उनसे िडें जो उनसे िडते हैं। इस प्रकार मोब्रम न को
आक्रामक होने की अनुमब्रत नहीं है।

िूं ब्रक अल्लाह को वे ब्रनलित ही ब्रप्रय नहीं होते, जो आक्रमणकारी हैं, अतः इस प्रसं ग में प्रयुक्त शब्द 'तुम' मोब्रमन के समग्र
तन की ओर सं के त करता प्रतीत होता है और इसका भाव यह है ब्रक इस्लाम में जं ग सम्पूणा है , इस कारण जो भी मोब्रमन है उसे जं ग
छे डने में अपना योगदान दे ना होता है।

मुसिमान जब जं ग में िगे हों, तो उस सीमा को पार नहीं सकते, जो जं ग छे डने के लिये ब्रनिााररत है तथा सैद्ांब्रतक
रूप से उन्ें क्रूर अथवा प्रब्रतशोिात्मक नहीं हो सकते। न्यायसं गत व ब्रनष्पि होने का सावाभौब्रमक परमादे श अध्याय 5 के आयत 8 में
दृब्रष्टगोिर होता है:

''हे ईमान वािो!

अल्लाह के लिए दृढ़तापूवाक खडे रहने वािे, न्याय के साथ साक्ष्य देने वािे रहो

10
तथा दूसरों की घृणा स्वयं पर इस प्रकार प्रभावी न होने दो ब्रक गित की ओर ििे जाओ और न्याय न कर सको।

न्यायब्रप्रय बनो, जो अल्लाह और मजहब को ब्रप्रय है, अल्लाह से िरो। ब्रनः सं दे ह तुम जो कु छ करते हो, अल्लाह उसे भिी-
भांब्रत जानता है।''

तत्पिात, इस्लाम के प्रथम खिीफा अबू बक्र द्वारा ब्रनगात वो प्रलसद् ब्रदशाब्रनदे श हैं, जो इस्लाम की ब्रवलि के दृब्रष्टकोण के
उदारवादी व मानवीय भावना को प्रदलशात करते हैं। उन्ोंने कहा, ''स्मरण रहे ब्रक तुम सदा अल्लाह की दृब्रष्ट में हों। तुम्हारी मृत्ु की
पूवा सं ध्या पर; तुम्हें कयामत के ब्रदन िेखा-जोखा दे ना होगा… जब तुम अल्लाह के प्रताप के लिये िड रहे हो, तो मैदान से भागे
ब्रबना पुरुि के जैसा व्यवहार करो, ब्रकंतु औरतों, बच्चों व वृद्ों के रक्त से अपनी जीत को किं ब्रकत न होने दो।

खजूर के पेडों को नष्ट न करो; घरों या गेहं के खेतों को न जिाओ; फिों के वृिों को मत काटो; पशुओं को तभी काटो
जब तुम्हें भोजन की आवश्यकता हो। जब कोई सं लि करो, तो उसके सभी उपबं िों को मानने पर ध्यान दो। जब तुम आगे बढ़ रहे
हो और ऐसा कोई मजहबी व्यब्रक्त ब्रमिता है, जो खोहों में रहता है और जो अल्लाह की इबादत कर रहा होता है: तो उन्ें अके िा
छोड दो, उनकी हत्ा मत करो या उनके खोहों को नष्ट मत करो।''

रसूि के अनेक दृष्टांत हैं, जो इस प्रकार की घोिणाएं करने में प्रामालणक पि हैं। (ब्रवशेि रूप से देखें मोहम्मद हमीदुल्लाह
की मुस्लस्लम कं िक्ट् आफ स्टे ट, िाहौर 1968, पृष्ठ 204)। यह दृब्रष्टगोिर होगा ब्रक जं ग में िडाकों की नैब्रतकताओं के मानवीयकरण
पर प्रभाव िािने वािी ये घोिणाएं उस समय की गयीं, जब बबार सुल्तानों ने युद् के मैदान में अपनी तिवारें गाडकर सभी शिुओं
के नरसं हार का आह्वान ब्रकया था। ब्रकंतु इस्लाम में जं ग के वि अल्लाह के प्रभुत्व को स्थाब्रपत करने के लिये तब छे डा जाता है, जब
अल्लाह की इच्छा को न स्वीकारने वािों तथा मानव जाब्रत की रिना के उद्दे श्यों के ब्रवरुद् काया करने वािों को समझाने के अन्य सभी
उपाय ब्रवफि हो जाएं । वास्तव में कोई व्यब्रक्त जो पब्रवि जं ग की ओर जाता है, तो एक प्रकार से वह अपने जीवन के सबसे मूल्यवान
वस्तु को त्ागकर अल्लाह की ब्रवलि के प्रभुत्व व सवाश्रष्ठ
े ता के सं बं ि में साक्ष्य प्रस्तुत कर रहा होता है। यह उन िोगों के लिये पब्रवि
कु रआन में वलणात उन मानदं िों के प्रब्रत ब्रनष्ठा ब्रदखाने जैसा होता है , जो अपने अल्लाह की कृ पा प्राि करने एवं न्यायपरायणता ओर
जाने की इच्छा रखते हैं। कु रआन कहता है: ''जब तक तुम वो सब नहीं त्ागोगे जो तुम्हें सवाालिक ब्रप्रय है, तुम न्यायपरायणता की
ओर नहीं जा पाओगे।" वास्तव में ''जं ग का नारा शहीद'', लजसे मोटे रूप में जं ग में मृत्ु के रूप में लिया जाता है , अिरश: इस
ब्रविार को महत्वपूणा बनाता है ब्रक एक सािी के रूप में उसके पास साक्ष्य है ब्रक अल्लाह की ब्रवलि सवोपरर है और जो कोई भी
अल्लाह के मागा पर जाने वािों की प्रगब्रत में बािा उत्पन्न करेगा उससे कठोरता से ब्रनपटा जाएगा। क्ोंब्रक िरती पर अल्लाह के प्रभुत्व
को बनाये रखने और पुनस्थााब्रपत करने का यही एकमाि उपाय है। ठीक इसी प्रकार कु रआन के अध्याय िार की आयत 75 में वलणात
है। हमें िेताया गया है ब्रक हमें उन सबको बिाना ही िाब्रहए, जो अत्ािारी शासकों द्वारा सताये जा रहे हैं। वास्तब्रवक अंश ब्रनम्नलिलखत
है:

''और तुम्हें क्ा हो गया है ब्रक अल्लाह की राह में जं ग नहीं करते,

जबब्रक ब्रकतने ही ब्रनबाि पुरुि, लस्त्रयां और बच्चे हैं, लजनके साथ बुरा व्यवहार हुआ है, (और जो सताये गये हैं)

जो गुहार रहे हैं ब्रक हे अल्लाह! हमें इस भूब्रम से उबारें , लजसके ब्रनवासी अत्ािारी हैं

और इनमें से ब्रकसी को ब्रकसी को हमारा रिक बनाकर भेजें

जो हमें बिायेगा

जो हमारी सहायता करेगा''

11
व्यापक रूप से कहें तो सं घिारत ब्रकसी मुसिमान फौज के लिये जं ग का िक्ष्य सूरा मुहम्मद की आयत एक और िार में
बताया गया है:

''लजन िोगों ने अल्लाह की राह में कु फ़्र (अब्रवश्वास) ब्रकया तथा अल्लाह की राह से रोका, अल्लाह ने उनके कमों को व्यथा
(ब्रनष्फि) कर ब्रदया.... तो जब काब्रफरों को पाओ तो उनकी गदा न उडा दो, यहां तक ब्रक जब उन पर ब्रनयं िण कर िो तो उन्ें दृढ़ता
से बांि दो। ब्रफर उसके बाद या तो उपकार करके छोड दो या ब्रफरौती (िन) िेकर। यहां तक ब्रक काब्रफर अपने हलथयार िाि दें तो
भी।''

इस्लाम ब्रवश्व को दो ब्रवपरीत ध्रुवों में देखता है। एक ध्रुव है दारुि-इस्लाम और दूसरा ध्रुव है दारुि-हबा। दारुि इस्लाम
अल्लाह के प्रब्रत ब्रनष्ठा रखता है और शांब्रत, व्यवस्था व मानव के ब्रवकास के अन्य अनुबंिों की स्थापना के लिये अल्लाह द्वारा ब्रनलित
ब्रकये गये मागा में सहयोग करता है , जबब्रक दारुि-हबा अल्लाह के आदे शों की अवज्ञा के अपराि में सं लिि रहता है। इस प्रकार का
कोई भी प्रकरण लजसमें कोई अल्लाह की इच्छा के ब्रवरुद् ब्रवद्रोह करता है, ''ब्ऱित्ना'' कहा जाता है, लजसका शास्लब्दक अथा परीिा
अथवा सुनवाई है। ''ब्ऱित्ना'' शब्द ब्रकसी व्यब्रक्त की ओर से उस दुव्यावहार का सं के त करता है , जो ब्रक उस व्यब्रक्त ने आिार और
व्यवहार के अपने मानदं ि बना लिये हैं और िाहता है ब्रक अन्य व्यब्रक्त भी उसी मानदं ि पर ििें। इस प्रकार वह व्यब्रक्त एकमाि
प्रभुत्वशािी अल्लाह के प्रभुत्व को हडप रहा होता है। सूरा अि-अन्फाि के अध्याय 8 की आयत 39 में कहा गया है, ''और हे ईमान
वािो! उनसे उस समय तक जं ग करते रहो, जब तक ब्रक ब्ऱित्ना समाि न हो जाए और सब के सब अल्लाह की शरण में न आ जाएं ।''

सूरा तौबा की आयत 9 में भी इसी प्रकार के शब्दों का प्रयोग ब्रकया गया है , ''उनसे जं ग करो जो अल्लाह, कयामत को
नहीं मानते हैं, जो अल्लाह व उसके रसूि द्वारा हराम बताये गये काया करते हैं और जो अल्लाह की पुस्तक को मानने वािे िोगों के
सत् मजहब को नहीं मानते। ऐसे िोगों से तब तक जं ग करते रहो, जब तक ब्रक वे झुक न जाएं , जलजया न दें और स्वयं को परालजत,
अपमाब्रनत न अनुभव करें।''

बहुत से पलिमी ब्रवद्वानों ने कु रआन की उपरोक्त आयतों पर उं गिी उठाते हुए आरोप िगाया है ब्रक इन आयतों से यह भाव
उत्पन्न होता है ब्रक इस्लामी दुब्रनया अ-मुस्लस्लमों के ब्रवरुद् अंतहीन जं ग िडने रहने वािी स्लस्थब्रत में रहे।

यब्रद ब्रकसी को इसका उत्तर दे ने की आवश्यकता हो, तो इतना कहना पयााि है ब्रक जो अल्लाह का दास है, उसका अल्लाह
के प्रभुत्व की अवज्ञा करना यह प्रकट करता है ब्रक इस्लामी ब्रवलि के पररप्रेक्ष्य में उस दास पर राजद्रोह का अपरािी ठहराये जाने का
जोलखम है तथा ऐसे व्यब्रक्त के साथ यह मानकर व्यवहार ब्रकया जाना िाब्रहए ब्रक वह उस मानवता के तन पर कैं सर जैसा बढ़ता हुआ
कोई रोग है, लजसकी रिना ''कनाफसीन वहीदतीन'' हुई है। ''कनाफसीन वहीदतीन'' का अथा है एक, अके िा, अब्रवभालजत रिना।
इस प्रकार मानवता के शेिभाग को बिाने के लिये कैं सर कोलशकाओं को हटाना आवश्यक हो जाता है , भिे ही (यब्रद कोई अन्य
उपिार काम न आये तो) इसके लिये सजारी का सािन अपनाना पडे।

इस्लाम में मोब्रमन का कताव्य है ब्रक वह अपनी समझाने की सामर्थ्ा का उपयोग कर काब्रफरों (अ-मुस्लस्लमों) को इस्लाम में
िाने तथा उनको आमं िण भेजने में सुं दर ढंग का उपयोग कर इस्लाम स्वीकार करने का बुिावा भेजे। इस्लाम में प्रथम कताव्य दावा
(िमािंतरण) का आमं िण दे ना है। कु रआन द्वारा इस्लाम के रसूि का भी वणान 'अल्लाह की ओर बुिाने वािे' अथाात ऐसा व्यब्रक्त जो
अल्लाह के आदे श से अल्लाह की राह में िोगों को बुिाने के लिये भेजा गया है। '' इस प्रकार प्रत्ेक मोब्रमन में सबसे पहिे िोगों
को िमािंतरण के लिये अच्छे ढंग से बुिाने का गुण झिकना िाब्रहए और ब्रवशेिकर उन िोगों को इस्लाम की ओर बुिाने के लिये
लजन्ें वह िरती पर अपकार करते हुए िोक व्यवस्था भं ग करता पाता है। ऐसे िोगों को कु मागा छोडने और सत् के पथ पर िौटने
के लिये आमं ब्रित ब्रकया जाता है। जब वे दावा स्वीकार करने से मना कर दें , इस्लाम की दुब्रनया से सं घिा करने के लिये बडी सेना
तैयार करें, मुसिमानों से िडने के लिये स्वयं को शस्त्रों से सुसस्लित करें तथा ऐसी पररस्लस्थब्रत हो ब्रक अल्लाह की ब्रवलि को स्वीकार

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ब्रकये जाने से मना ब्रकया जाए, तो मोब्रमनों के पास ऐसे िोगों के ब्रवरुद् जं ग छे डने के अब्रतररक्त कोई ब्रवकल्प नहीं बिता है, जो
आक्रमण की िमकी दे रहे हों।

क्ोंब्रक यही अपीि का अंब्रतम न्यायािय है, जहां सही और गित के बीि प्रकरणों का अंब्रतम ब्रनपटारा ब्रकया जा सकता
है। जो सही है, उसकी रिा में जं ग छे डने का औलित् यह है ब्रक जो सही के पि में है यब्रद वो शुद् मं शा से जं ग में जाता है तो
लजसने अल्लाह के कानून की अवज्ञा करके वास्तव में िरती पर अव्यवस्था उत्पन्न की है, उस पर ब्रवजय प्राि करने में अल्लाह द्वारा
उसकी सहायता की जाती है-क्ोंब्रक अल्लाह को कु िेष्टा करने वािे अच्छे नहीं िगते।

यह सत् है ब्रक आिुब्रनक समाज में अंतरााष्टरीय व्यवस्था एवं मानव जाब्रत के अंतरााष्टरीय समुदाय में शांब्रत बनाये रखने के लिये
राष्टर-राज्यों की प्रभुत्वसम्पन्न समानता के आिारों पर ििना होता है। इन राष्टर-राज्यों की सं ख्या वतामान में 151 है और यह सं ख्या यहां
तक आिुब्रनक राष्टर-राज्यों के ढांिे के िेिीय पि को ध्यान में रखते हुए पहुंिी है। इस्लाम के रसूि मुहम्मद की उम्मा का ब्रविार
िेिीय राज्यों की रूपरेखा के भीतर समझे जाने योग्य नहीं है , इस कारण ब्रवश्व को इस्लाम की दुब्रनया और जं ग की दुब्रनया के बीि
ब्रद्वध्रुवीय देखने का स्थायी आिार बहुत कम बन पाया है। मेरी समझ से इस्लाम िेिीय राज्य की अविारणा को ग्रहण नहीं करता है।
यह स्मरण ब्रकया जाना िाब्रहए ब्रक इकबाि ने भी अपने ''इस्लाम में मजहबी ब्रविारों के पुनगाठन'' नामक व्याख्यान में सुझाव ब्रदया
है ब्रक प्रारंभ में मुसिमान राज्य के साथ भी िेिीय राज्य जैसा व्यवहार ब्रकया जाए और ऐसा व्यवहार अंतररम उपाय समझकर ब्रकया
जाए, क्ोंब्रक बाद में इन सबको मुसिमान राज्यों के राष्टरमंिि में पररवब्रतात ब्रकया जाना है। इससे पूवा इनमें से प्रत्ेक राज्य को पहिे
बि व स्थाब्रयत्व प्राि करना है, लजससे ब्रक वे वह आिार तैयार करने में समथा बन सकें , लजस पर ब्रक इस्लाम का सं घीकृ त राज्य
ऐब्रतहालसक पररदृश्य में आ सके ।

वतामान ब्रविारों के प्रसं ग में तीन शब्द ऐसे हैं, प्राय: लजनका प्रयोग भेदभावपूणा ढं ग से ब्रकया जाता है और लजनसे समकािीन
इस्लामी ब्रविार में बडा असमं जस उत्पन्न होता है। इन पर स्पष्टीकरण आवश्यक है। ये तीन शब्द हैं: (1) उम्मा; (2) कौम; और (3)
ब्रमल्लत। यह वो स्थान नहीं है जहां इन शब्दों के लिये ब्रदये जा सकने वािे ब्रकसी ठीक-ठीक अथा की व्याख्या करने के लिये ब्रवस्तृत
ब्रनबं ि की आवश्यकता हो। ब्रकंतु यह कहना पयााि होगा ब्रक इन शब्दों में से प्रत्ेक सं श्लेिण अथवा समेकन के अनुप्रयोग का प्रस्फु टन
है। 'कौम' शब्द का सरोकार इसकी मूि ब्रक्रया, कौम याकू म से है, लजसका अथा होता है खडे होना। यह आवश्यक रूप से िोगों के
उस समूह के महत्व को बताता है जो भौगोलिक सगोिता के लसद्ांत के प्रब्रत आह्वान से एक राष्टर के रूप में गब्रठत होता है, अथाात
यह उन िोगों के समूह से एक राष्टर के रूप में आकार पाता है, जो भूब्रम के ब्रकसी पररभाब्रित भाग के साथ प्रादेलशक सं बं ि रखते हैं।
'ब्रमल्लत' शब्द प्राथब्रमक रूप से ब्रमल्लत-ए-इिाहीमी से जुडा हुआ है, जो अपनी व्यापकता में अलिक प्रजातीय है। यह इस भाव में
है ब्रक सं श्लेिण का लसद्ांत यहां रक्त अथवा सगोिता का बं िन है। या यूं कहें ब्रक वो लजनकी िमब्रनयों में प्रवाब्रहत रक्त एक ही गुण
का है, वे एक राष्टर का गठन कर सकते हैं। उदाहरण के लिये यहदी स्वयं को ''बनू इजराइि'' कहते हैं और इस आिार पर वे एक
राष्टर हैं। भिे ही वे ब्रनजानता में यहां-वहां भटक रहे हैं और उनका कोई ब्रनिााररत वास नहीं है, ब्रकंतु वे स्वयं को एक राष्टर के रूप में
मानते हैं, क्ोंब्रक उन्ोंने एक ही पूवाज से अपनी उत्पब्रत्त को ढूं ढ़ लिया है। शब्द उम्मा इस्लाम के रसूि के उम्मा से जुडा है और यह
मूि शब्द जननी से जुडा है। यहां जननी-लसद्ांत पब्रवि कु रआन की उस प्रलसद् आयत से समझाया जाना िाब्रहए जो कहता है: ''मा
कना मोहम्मदन अबा अहदीन ब्रमन रजािी कु म विा ब्रकन रसूि िुल्लाह वा खतमुनीब्रबयीन''। इसका अथा है ब्रक मुहम्मद ब्रकसी एक
का ब्रपता नहीं है, पर वह अल्लाह का रसूि है (जो अल्लाह द्वारा भेजा गया) और वह सभी रसूिों में मुहर अथाात अंब्रतम है। यब्रद
मुहम्मद ब्रकसी एक व्यब्रक्त का ब्रपता नहीं है, तो वो सं दे श जो वह िाया और अपने अनुकरणीय आिरण का जो आदशा वह छोडकर
गया है, कोई भी मोब्रमन उत्तरालिकार में इनके अब्रतररक्त उससे कु छ और नहीं पायेगा। अल्लाह द्वारा अपनी आयतों को उमीयीन को
सुनाने, उन्ें शुद् करने तथा उनका भाग्य सं वारने एवं उन्ें ज्ञानवान बनाने के लिये उसे उमीयन में से िुनकर भेजा गया है (दे खें सूरा
जुमा आयत)। िूं ब्रक पैगम्बरी की वह प्रब्रक्रया जो अनं त काि से ििी आ रही थी उस पर अल्लाह ने अंब्रतम होने की मुहर िगा दी

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है, इसलिये अल्लाह द्वारा िािे गये कताव्यों को पूरा करने के लिये उसने जो कु छ ब्रकया है और उसके द्वारा िाये गयै 'उमुि-ब्रकताब'
में जो सं दे श हैं, वो आने वािे समय में अनं त काि तक सम्पूणा मानवजाब्रत की िाब्रमाक मागादलशाका रहेंगे।

यही कारण है ब्रक उसे कु रआन में कहीं रफब्रतिीनास कहा गया है, क्ोंब्रक कोई भी देख सकता है ब्रक उम्मा ब्रविारों, ब्रवश्वासों
व परंपराओं के एक ब्रनलित प्रारूप में सहभागी होती है तथा िह्ांिीय इब्रतहास के इस उद्यम में मजहबी भागीदारी के कारण उम्मा
मानवजाब्रत की समेकता का आध्यालत्मक लसद्ांत प्रदान करती है। यह वो लसद्ांत है जो राष्टर से ऊपर, प्रजाब्रत से ऊपर, भािा से ऊपर
व िेि से ऊपर है। इस प्रकार मनुष् अल्लाह की राह में जं ग करने वािे के रूप में माना जाता है और जो भी इस अलभयान में भाग
िेते हैं, वे (फी दीनील्लाह अटवजा) मानवता के ऐसे दूि के मजहबी भं िारण से पोिण िेते हैं लजसे दे ने में के वि एक मजहबी मां
ही समथा होती है। मुसिमानों के लिये यह समझना महत्वपूणा है ब्रक वे अभी भी मुसिमान आदशा से ब्रकतने दूर हैं और जब तक वे
अल्लाह की रस्सी को नहीं पकडेंगे एवं अपनी आं तररक फूट को समाि नहीं करेंगे, इस्लाम की दुब्रनया को एक उम्मा के रूप में नहीं
दे ख पाएं गे। उन्ोंने अल्लाह के जो सं देश व रसूि की परंपरा-आिरण (सुन्नत) को अपने रसूि से उत्तरालिकार में प्राि ब्रकया है, उसे
िरती पर फैिाना ही उनकी भूब्रमका है। यब्रद कोई ऐसा है जो उनके प्रयासों को दबाता है तथा उस सं दे श के प्रसार में बािा उत्पन्न
करता है तो उसे दारुि-हबा का सदस्य माना जाएगा और ऐसे व्यब्रक्त के साथ ब्रनपटा जाएगा और इसके लिये वह व्यब्रक्त स्वयं ही
उत्तरदायी है। िूं ब्रक मोब्रमन का आदशा वाक् ''िा इक्रहा ब्रफद्दीन'' है, तो इस्लाम में िमािंतरण सुब्रनलित करने के लिये जं ग मागा नहीं
है। इस उद्दे श्य के लिये और ब्रवशेि रूप से जो अल्लाह में ब्रवश्वास नहीं करते उन िोगों को ''दावा'' अथाात िमािंतरण का आमं िण
ब्रदये जाने तथा ब्रवलिक तकों का प्रयोग व प्रकरण को सुं दर ढं ग से प्रस्तुत कर इस िक्ष्य को प्राि करने के लिये ब्रन देलशत ब्रकया गया
है।

इस्लाम में जं ग व शांब्रत का कानून उतना ही पुराना है, लजतना ब्रक कु रआन है। वास्तव में अंतरााष्टरीय ब्रवलि के लिये मुसिमान
न्यायब्रवदों द्वारा प्रयुक्त शब्द सयार है, जो सीरत का बहुविन है और यह बताता है ब्रक राज्य द्वारा अंतरााष्टरीय ब्रवलि द्वारा ब्रवब्रनयब्रमत
दूसरे राज्य से सं बं िों को िेकर क्ा कू टनीब्रत व आिरण हो। इस्लामी अंतराा ष्टरीय कानून में कोई राष्टर मानकर नहीं, वरन् इस्लामी
पररप्रेक्ष्य में रखकर मुस्लस्लम व अ-मुस्लस्लम मानकर उनके बीि सं बं िों को ब्रवब्रनयब्रमत ब्रकया जाता है। यद्यब्रप आिुब्रनक अंतरााष्टरीय ब्रवलि
जो ब्रक इस्लाम से महत्वपूणा रूप में प्रभाब्रवत है, में यह सं बं ि कु ि ब्रमिाकर एक लभन्न आिार पर ब्रनिााररत ब्रकया जाता है। यह एक
ऐसा कानून है जो प्रभुत्वसम्पन्नता की समानता के आिार पर सभी राष्टरो ं के आिरणों को ब्रवब्रनयब्रमत करता है। इस्लाम में ब्रनलित मत
है ब्रक कोई राष्टर प्रभुत्वसम्पन्न नहीं है, क्ोंब्रक के वि वह अल्लाह ही एकमाि प्रभुत्वसम्पन्न है और उसी में सभी प्रालिकार अंतब्रनब्रा हत
हैं।

इससे पूवा ब्रक मैं जं ग और शांब्रत की समस्याओं से सं बं लित व ब्रविाररत इस्लामी कानून के ब्रवशेि पिों व ििणों के सं लिि
सवेिण के ब्रनष्किा पर पहुंि,ूं मासाि ए. बोइसदा द्वारा कु छ समय पूवा ''इस्लाम में शिुता का आिरण एवं सशस्त्र सं घिा के पीब्रडतों
की सुरिा'' शीिाक से लिखे गये आिेख को सं दलभात करना िाहता हं। यह िेखक लजनेवा के ग्रेजए
ु ट इं स्टीट्यूट ऑफ इं टरनेशनि
स्टिीज के कू टनीब्रत प्रलशिण कायाक्रम के सह-ब्रनदे शक हैं। उन्ोंने उच्च मानवीय गुणों के ब्रवलिक ब्रनयमों के मूि पिों को सारांश रूप
में ब्रबंदव
ु ार सूिीबद् ब्रकया है, जो ब्रनम्नलिलखत है:

1. ''सशस्त्र शिुता व्यवस्थाओं का ब्रवरोि करती है, न ब्रक व्यब्रक्तयों का, अत: जहां तक ब्रक सैन्य आवश्यकताएं अनुमब्रत दें , उन
व्यब्रक्तयों को छोड ब्रदया जाए;
2. ब्रकसी भी प्रकार की अब्रत यथा शिु पर क्रूरता व अनावश्यक आघात करना, कपटपूणा सािनों का प्रयोग करना तथा सामूब्रहक
व अंिािुं ि ब्रवध्वं स के हलथयारों का प्रयोग करना पूणत
ा ः प्रब्रतबं लित है;
3. जो मूि मानवीय लसद्ांतों का उल्लं घन करते हों, वैसी प्रब्रतब्रहंसा की अब्रवलिकता,;

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4. िडाका और अ-िडाका में भेद। जो अब युद् में लिि नहीं हैं, मृतक, घायि या बं दी हैं उनका तथा लिब्रकत्सा व आपूब्रता
काब्रमाकों का सम्मान करना;
5. व्यब्रक्तगत उत्तरदाब्रयत्व की स्वीकृ ब्रत-मूि स्वयं -लसद् प्रमाण, ब्रवशेि रूप से मुस्लस्लम ब्रवलि के ब्रविय में-सामूब्रहक दं ि दे ने एवं
बं दी बनाने की अनुमब्रत नहीं होना िागू करना;
6. बं ब्रदयों के साथ उलित व्यवहार; यह सुब्रनलित करना ब्रक उनके प्राण नहीं लिये जाएं गे और वे यथाशीघ्र मुक्त ब्रकये जाएं गे;
7. मानवीयता की पररयोजनाओं पर शिु के साथ सहभाब्रगता;
8. अंत में, इस स्तर पर यह ध्यान ब्रदया जाए ब्रक उपरोक्त ब्रनयम ''आं तररक'' सं घिा के प्रकरण में भी बाध्यकारी होने िाब्रहए।
ब्रवद्रोही स्वत: ही ब्रवलिक रूप से मान्यता का अलिकार रखते हैं और अपने युद् के कृ त् से मृत्ु व ब्रवध्वं स के उत्तरदायी नहीं
माने जाते हैं।''

उपरोक्त ब्रनयमों को सारांश रूप में लिखने के बाद ये ब्रवद्वान िेखक इस्लामी अंतरााष्टरीय कानून के ब्रनयमों के प्रबं ि पर ब्रविार
करते हुए उन ब्रनयमों की समग्रता व उत्कृ ष्टता की सराहना करते हैं। उनके शब्दों में:

''यह सूिी दशााती है ब्रक मुस्लस्लम जं ग कानून के मूिभूत आिारतत्व ब्रवशेि रूप से प्रासं ब्रगक, पुनरावती और कभी-कभी तो
अपने तत्वों में हेग व लजनेवा सम्मेिन के ब्रनयमों से भी अलिक आगे जाते हुए ब्रदखते हैं। हमने उनका वणान उनकी
सकारात्मक परंपरागत गठन एवं ब्रवकास की प्रारंलभक अवस्था में ब्रकया है तथा इस प्रकार ब्रवलि व िमा की सम्पूणा पहिान
वािी इस प्रणािी की अथाव्यवस्था के आवश्यक कारकों पर बि नहीं ब्रदया है। िूं ब्रक एक मुसिमान के लिये व्यब्रक्त के रूप
में उत्तरदाब्रयत्व ब्रनलित हैं, इसलिये यब्रद वह ब्रनयमों का उल्लं घन करेगा तो स्वयं ही सं भवत: सांसाररक और ब्रनलित रूप से
अल्लाह के दं ि का भागी बनने योग्य अपनी कब्रमयां उजागर करेगा। शाश्वतता व सापेिता के के दोहरे पररप्रेक्ष्य के अंतगात
हमने दूसरे पर ध्यान कें ब्रद्रत ब्रकया है। यद्यब्रप यह एक मोब्रमन की दृब्रष्ट में कम महत्वपूणा है। मजहब के स्रोतों व रसूि के
दृष्टांतों से अपने अनुमान के मागादशी लसद्ांत ढूं ढ़ने वािे ब्रवलिवेत्ताओं ने बहुत पहिे ब्रद्वतीय/8वीं और तृतीय/9वीं शताब्दी
में ऐसे आदे शात्मक मानदं ि स्थाब्रपत कर ब्रदये थे, लजन्ोंने आं तररक व अंतरााष्टरीय सं घिों का ब्रवब्रनयमन ब्रकया। यह उनको
स्मरण कराने के योग्य है ब्रक वे न के वि समकािीन मुस्लस्लम दुब्रनया में कु छ राजनीब्रतक नेताओं के लिये, अब्रपतु ब्रहस ं ा के
समय में मानवालिकारों की रिा, हलथयार सीमा और सशस्त्र सं घिा की अंतरााष्टरीय मानवीय ब्रवलि की स्वीकृ ब्रत पर ब्रवलभन्न
कू टनीब्रतक सम्मेिनों में भाग िेने वािे िोगों के लिये भी प्रेरणादायी हो सकते हैं।

वास्तव में मुसिमान इन ब्रनयमों को अल्लाह का ब्रनयम होना मानता है और यहां तक ब्रक बाहर के अलिकांश सशं ब्रकत
प्रेिक भी यह मानते होंगे ब्रक ये ब्रनयम थोडे -बहुत शाश्वत भी हैं।"

मुझे इसमें कोई सं देह नहीं है ब्रक यह पुस्तक इस्लामी जं ग कानून में रुलि जगायेगी और ब्रवशेि रूप से इस ब्रविार पर पयााि
बि दे गी ब्रक इस्लाम का मजहब शिुता के ब्रनयमों को कानून से तैयार करता है। ब्रिगेब्रियर मलिक ने अत्ं त कष्ट सहकर यह पुस्तक
तैयार की है, लजससे ब्रक इस्लाम में जं ग की अविारणा को ठीक ढंग से समझा जा सके । इसके लिये मैं उनके प्रब्रत हृदय से आभार
प्रकट करता हं। अल्लाह की दृब्रष्ट में उनके कायों की सराहना हो और अल्लाह उन्ें आगे बढ़ाये, (आमीन)।

76 मोसकाबाद, करािी अल्लाह बक्श के . िोही

15
िेखक की ब्रटप्पणी
पब्रवि कु रआन मानवजाब्रत के लिए शाश्वत मागादशान का स्रोत है। इसकी ब्रनलियां उन सभी के लिये उपिब्ध हैं , जो शुद्ता के साथ
ढूं ढ़ते हैं। जब मनुष् समझने का प्रयास करता है, तो यह पुस्तक स्वयं को उसके समि प्रकट करना प्रारं भ कर देती है। उसके मन-मस्लस्तष्क पर
अल्लाह के इस उदात्त पिक का ब्रवज्ञान व तका छाने िगता है। इसमें प्रत्ेक नयी खोज उसके ब्रवश्वास को सुदृढ़ करती है , उसके ज्ञान में वृब्रद्
करती है, उसके िाब्रमाक लिब्रतज को ब्रवस्तार देती है तथा उसे अपनी जीवनियाा को ब्रवब्रनयब्रमत करने का प्रकाश व मागादलशाका प्रदान करती है।

यह पुस्तक बार-बार मनुष् जाब्रत का आह्वान करती है ब्रक वह अपनी समझ व ब्रववेक में बुब्रद् व तका का प्रयोग करे। यह हमारा आह्वान
करती है ब्रक हम ज्ञान व सत् के अनुसंिान में अपनी समस्त प्रज्ञा का पूणा उपयोग करें। यह मानव प्रेिण , अन्वेिण, अनुसंिान व शोि पर बि
देती है। वास्तव में पब्रवि कु रआन मानवजाब्रत को इसका अध्ययन करने; इसके ब्रनयमों व लसद्ांतों पर मं थन करने; इसमें ब्रदये गये अल्लाह के लिह्न
का अन्वेिण व प्रेिण करने तथा इसके लसद्ांतों व दशान पर ब्रविार करने का आह्वान करती है।

हमारी ब्रवफिताएं व कब्रमयां पब्रवि कु रआन का अनुसंिान करने में बािा नहीं बननी िाब्रहए। मनुष् प्रकृ ब्रत से नाशवान व िूक करने
वािा है; और यह पुस्तक ब्रनस्सं दे ह उदात्त व पूणा है तथा यह हम जैसे नश्वर मानव के लिये भेजी गयी है। उद्दे श्य की प्रदत्त सच्चाई, जो ब्रक पब्रवि
कु रआन द्वारा सुझाये गये मागा पर ििकर ब्रकया गया अनुसंिान है , वास्तव में सबमें सबसे सुरलित, सबसे ब्रनलित, सवाालिक ग्रहणकारी, सवाालिक
पुण्यकारी, सारगलभात व िाभकारी अनुसंिान है। इस पुस्तक में ब्रकया गया पथ-प्रदशान ठोस ईश्वरीय आिारों पर ब्रटका है तथा फि देने की दीब्रिमान
आशा व सं भावना से भरा हुआ है।

जीवन की सम्पूणा सं ब्रहता के रूप में पब्रवि कु रआन जं ग का दशान भी प्रदान करती है।

अल्लाह का यह लसद्ांत कु रआन की समग्र ब्रविारिारा का अलभन्न अंग है। यह एक ऐसा लसद्ांत है जो अपनी अविारणा से िेकर
ब्रनष्किा तक अल्लाह के शब्दों से ब्रनयं ब्रित व अनुकूलित होता है। मानव को जो भी सैन्य ब्रविार ज्ञात हैं , उनमें से कोई भी ऐसी श्रेष्ठ ब्रवशेिताओं
से युक्त नहीं हैं। इससे इसके बहुत से अन्य गुण ब्रनकिते हैं। यह समग्र, सम्पूणा, व्यापक, सं तुलित, व्यवहाररक व प्रभावकारी है।

कु रआन के फौजी ब्रविार का अध्ययन अनेक कोणों व ब्रदशाओं से ब्रकया जा सकता है। इसमें से इसकी ऐब्रतहालसक , राजनीब्रतक,
ब्रवलिसम्मत व नैब्रतकता सं बं िी शाखाएं ब्रनकिती हैं। मुस्लस्लम फौजी इब्रतहास के तदं तर अध्ययन को सही पररप्रेक्ष्य में देखने के लिये इस प्रकार का
अनुसंिान आवश्यक है। जं ग के उन रहस्यों को उजागर करना आवश्यक है, लजनकी व्याख्या करने के लिये सब्रदयों से मानव मस्लस्तष्क जूझ रहा है।
जं ग पर आसमानी (ईश्वरीय) लसद्ांतों व अविारणाओं के समग्र व सम्पूणा ब्रविार को प्राि करने के लिये यह काया ब्रकया जाना िाब्रहए। सबसे
बढ़कर हमें इसकी असीब्रमत कृ पा का िाभ उठाने हेतु इसको समझना, ग्रहण करना और व्यवहार में िाना िाब्रहए।

यह पुस्तक पाठकों को इस ब्रविय से पररिय कराने का ब्रवनम्र प्रयास है। पब्रवि कु रआन पर अनुसंिान एक व्यब्रक्त का काया नहीं है।
यह समस्त मुस्लस्लम उम्मा का सामूब्रहक व सतत् उत्तरदाब्रयत्व है। ज्ञान व बुब्रद्मत्ता के कभी न समाि होने वािे इस भं िार में से एक 'बूं द' पाने के
लिये भी जीवनभर शोि करना पडता है और ऐसी 'बूं दों' को सामूब्रहक रूप से एकि कर ही हम इससे अलिकतम िाभ उठा सकते हैं।

यब्रद यह ब्रवनम्र प्रयास उस 'बूं द' का एक अंश भी होने योग्य पाया गया तो मैं स्वयं को अत्ं त भाग्यशािी समझूं गा।

एस. के . मलिक

16
आभार ज्ञापन
मैं जनरि एम. लजया-उि-हक को कृ तज्ञतापूवाक िन्यवाद देता हं ब्रक उन्ोंने पुस्तक की पांिुलिब्रप को पढ़ने के लिये अपना सवाालिक
मूल्यवान समय ब्रदया और इसका 'आमुख' लिखने की स्वीकृ ब्रत दी। श्रीमान ए.के . िोही के प्रब्रत कृ तज्ञ व ऋणी हं ब्रक उन्ोंने इस पुस्तक को तैयार
करने में अपना उदार व स्नेब्रहि मागादशान ब्रदया तथा इसका 'प्राक्कथन' लिखा।

मैं िेस्लटटनेंट जनरि ए.एि. अकरम के प्रब्रत सम्मान व आभार प्रकट करता हं ब्रक उन्ोंने ब्रपछिे अनेक विों से मुझे प्रलशलित ब्रकया और
मागदशान ब्रकया, लजससे ब्रक मैं इस प्रकार के काया का बीडा उठा पाया। यह उनका उदारतापूणा व उलित मागादशान ही था , लजसने मेरे प्रयासों को
आगे बढ़ाया और ब्रदशा दी। मैं इस पूरी पररयोजना में व्यब्रक्तगत रुलि िेने वािे मेजर जनरि सईद काब्रदर का अत्ं त कृ तज्ञ व ऋणी हं। मैं पं जाब
ब्रवश्वब्रवद्यािय के इस्लामी अध्ययन ब्रवभाग के अध्यि िॉ अमन उल्लाह खान एवं आमी एजूकेशन कॉर्प्ा के िेस्लटटनेंट कनाि (पाब्रकस्तान ब्रम लिटरी
अकादमी के अंग्रेजी ब्रवभाग के पूवा अध्यि) शाब्रहद अहमद खान को भी उनके द्वारा ब्रदये गये ब्रहतकर परामशा व सहायता के लिये िन्यवाद ज्ञाब्रपत
करता हं।

मैं कनाि शब्बीर हुसैन, गुिाम अब्बास एवं आमी सेंटरि िाइिेरी के कमािाररयों, िेस्लटटनेंट कनाि गुिाम सवार एवं नेशनि ब्रिफेंस
कॉिेज िाइिेरी के कमािाररयों,िेस्लटटनेंट कनाि अब्दुि गफूर, िेस्लटटनेंट कनाि क्ू. ए. बरिास तथा िेस्लटटनेंट कनाि ररयाज हुसैन, नायब सूबेदार
सिीम हुसैन शाह, हविदार मोहम्मद नवाज, हविदार मोहम्मद लसद्दीकी, नायक अल्लाह ब्रदत्ता, िांस नायक मोहम्मद शरीफ को इस पुस्तक के
पूणा करने के ब्रवलभन्न स्तरों पर दी गयी सहायता के लिये हृदय से िन्यवाद दे ता हं।

मेरे ब्रदवं गत सहकमी कनाि ररयाज अहमद इस काया में सहायता के लिये सदा तत्पर रहे। अल्लाह उनकी आत्मा को अपना प्रिुर
आशीवााद प्रदान करे।

मेरे इस काया में मेरी बेब्रटयों रोमाना, मासूमा व सायमा की सब्रक्रय बािसुिभ रुलि प्रेरणा व दृढ़ ब्रवश्वास का स्रोत रही। अल्लाह उन्ें
इसका पुरस्कार दे और इतनी सामर्थ्ा व समझदारी दे ब्रक वे पब्रवि कु रआन के मागा पर िि सकें ।

17
अध्याय एक

पररिय
अल्लाह की पुस्तक कु रआन में जं ग की अविारणा पर समग्र ब्रविार ब्रदया गया है। यह पुस्तक अंतर-राज्यीय सं बं िों में 'बि' प्रयोग के
सभी पिों को पररभाब्रित और ब्रनिााररत करती है। कु रआन में ब्रदये गये आदेश जं ग के उद्दे श्यों व िक्ष्यों, प्रकृ ब्रत व ििणों, सीमाओं व पररमाणों,
आयामों व रोकथाम के रहस्य पर प्रकाश िािते हैं। यह पुस्तक रणनीब्रत के अब्रद्वतीय व ब्रवलशष्ट ब्रविार को प्रकट करती है तथा जं ग सं िािन के
ब्रनयम व लसद्ांत का ब्रनिाारण करती है।

कु रआन में उस्लल्ललखत जं ग की अविारणा ब्रनलित रूप से सवाश्रेष्ठ व प्रभावकारी है। यह जं ग और नीब्रत के मध्य पूणा सं तुिन स्थाब्रपत
करती है। इसमें जं ग के प्रारं भ, योजना, सं िािन व ब्रनयं िण से जुडे सभी ब्रवियों को व्यवस्लस्थत व ब्रवब्रनयब्रमत करने गहरी अंतदृब्रष्ट ब्रनब्रहत है। यह
अविारणा सुपररभाब्रित ईश्वरीय ब्रनयं िण के अिीन सं िालित होती है। यह सुब्रनलित करती है ब्रक न तो ब्रनब्रदाष्ट सीमा व उद्दे श्यों से परे जाकर जं ग
की अनुमब्रत दी जाए और न ही जं ग को इष्टतम स्तर से नीिे रखा जाए। इसके कानून व लसद्ांत प्रकृ ब्रत में सावाभौब्रमक और महत्व में बाध्यकारी
हैं। मानव-ब्रनब्रमात लसद्ांतों के ब्रवपरीत ये न तो ब्रवशेि पररस्लस्थब्रतयों से ब्रनकिा है और न ही यह इस ब्रवशेि उद्दे श्य से बनाये गये हैं।

पब्रवि कु रआन जं ग की व्याख्या सं कु लित राष्टरीय ब्रहत की दृब्रष्ट से नहीं करती। यह सावाभौब्रमक शांब्रत व न्याय की अनूभूब्रत की ओर इं ब्रगत
करती है। कु रआन शांब्रत व न्याय प्राि का उद्दे श्य प्राि करने के लिये काया-प्रणािी उपिब्ध कराती है। यह काया-प्रणािी उलित व शांब्रतपूणा व्यवस्था
को ब्रमिकर स्थाब्रपत करने में अपने प्रब्रतद्वं ब्रद्वयों को सहयोग करने की अलिकतम सं भावना प्रदान करती है। यद्यब्रप आिोिकों व समथाकों दोनों की
ओर से िक्ष्य-के लित व उद्दे श्यपूणा शोि के अभाव के कारण यह प्रभाब्रवत हुई है। आिोिकों ने इसकी व्याख्या जोलखमवाद, ब्रवस्तारवाद और
उन्मादवाद के पि या रूप में व्याख्या की है। समथाक भी अपेिाकृ त इसके मजहबी व पारिौब्रकक पिों पर अब्रतशय कें ब्रद्रत रहे हैं और उन्ोंने
इसके व्यापक वैज्ञाब्रनक व ताब्रकाक पि को उभारने का बहुत कम प्रयास ब्रकया है। अनुसंिान के प्रब्रत यह उदासीनता जानबूझकर रही हो अथवा
असाविानीवश, पर समय के साथ इसने हमें कु रआन के फौजी ब्रविार को सही दृब्रष्ट व पररप्रेक्ष्य में देखने से रोका है। भिे ही इसने सामब्रयक
प्रब्रतद्वंद्वी सैन्य अविारणाओं व लसद्ांतों के बीि इसे पूणात: िुिप्राय नहीं बनाया , पर कम ग्राह्य तो बनाया ही है। वतामान समय के युद्ों की
जब्रटिताओं का समािान प्राि करने का प्रयास करने वािा आिुब्रनक सैन्य मस्लस्तष्क िगभग 1400 विा पुराने इस लसद्ांत के अध्ययन की ओर कम
ही आकब्रिात होता है। उसे आिुब्रनक युद् और कु रआन के फौजी ब्रविार की समस्याओं के मध्य अंतर इतना बडा और गहरा ब्रदखता है, जैसे ब्रक
एक तीर हो और दूसरा परमाणु बम। पररणामस्वरूप, सामान्य रूप से मानवता और ब्रवशेि रूप से मुसिमान समुदाय इस सवाश्रेष्ठ ईश्वरीय लसद्ांत
की असीम कृ पा व िाभ प्राि करने से वं लित रह जाते हैं।

अत: जं ग की वतामान व भब्रवष् की समस्याओं का समािान प्राि करने के लिये इस ब्रविय में अनुसंिान को अद्यतन ब्रकये जाने की
तात्कालिक आवश्यकता है। यह काया ब्रवकट प्रतीत होता है, ब्रकंतु ऐसा भी नहीं है ब्रक यह न पार की जा सकने वािी िुनौती हो। यह काया
अन्वेिण व अनुसंिान की कु रआन की ब्रवलशष्टताओं के पुनरुत्थान का आह्वान करता है। अतीत में उदात्त भावना से प्रेररत हमारे पूवाजों ने ब्रवज्ञान व
किा की अनेक शाखाओं में उल्लेखनीय योगदान ब्रदया है। आिुब्रनक सैन्य ब्रवज्ञान के एक ब्रनष्ठावान व ब्रवशुद् ब्रवद्याथी के लिये कु रआन का जं ग
का लसद्ांत भी अनुसंिान के लिये उतना ही समृद् व पररणाममूिक िेि प्रस्तुत करता है। वास्तव में यह आज की अपररहाया मांग है। इसमें अन्य
ब्रवशेिताओं के साथ ही इस पीब्रडत सं सार में सताये गये िोगों के लिये एक आशा व आश्वासन का सं दे श भी है।

अविारणा में ईश्वरीय, जं ग का यह कु रआन का लसद्ांत उद्भव में ब्रवकासमूिक तथा अनुप्रयोग में मानवीय है। अपनी सुपररभाब्रित
पररलि में यह मानव अनुप्रयोग व अनुसंिान की अपार सं भावना प्रदान करता है। अपने ब्रवलशष्ट महत्व व पहिान के साथ यह युद् के सम्बं ि में
अन्य लसद्ांतों के प्रभावों के लिये भी खुिा है। ब्रवशेि रूप से अपने ब्रवलशष्ट व मौलिक ििणों व लसद्ांतों से समझौता ब्रकये ब्रब ना यह प्रब्रक्रयात्मक
स्तर पर आिुब्रनक सैन्य ब्रवज्ञान से बहुत कु छ अपने में समाब्रहत कर सकता है। अत: अच्छी समझ व इष्टतम पररणाम प्राि करने के लिये हमें उस
ििीिेपन का अलिकतम प्रयोग करना िाब्रहए, जो इसके ईश्वरीय िेखक ने कृ पापूवाक प्रदान ब्रकया है। ब्रकंतु युद् के परंपरागत लसद्ांतों से सीखने
के सिेत प्रयास में हमें अल्लाह की इस पुस्तक में स्वयं की प्राथब्रमकताओं व झुकाव िािने से बिना िाब्रहए।

18
कु रआन के फौजी ब्रविार कु रआन के समग्र सं देश के अलभन्न व अब्रवभाज्य अंग हैं। इस पुस्तक के आिारभूत व मौलिक ििणों को
समझे ब्रबना इस लसद्ांत का अध्ययन अिूरा रहेगा। हम ब्रकसी 'अंश' को तब तक नहीं समझ पाएं गे, जब तक ब्रक वह अंश लजससे सं बं लित है और
लजसके ििण प्रकट करता है उसके 'सम्पूणा' को न पहिाने और समझें। ऐसा करते समय हमारी मं शा यह नहीं है ब्रक हम पब्रवि कु रआन का
ब्रवस्तृत मूल्यांकन करें। हम के वि इस प्रकाशवान ईश्वरीय पिक की कु छ शाखाओं की पुनियाा करेंगे, लजससे ब्रक इस अध्ययन को इसके सच्चे
अथों व पररप्रेक्ष्य में रख सकें ।

एक समग्र व सम्पूणा ईश्वरीय प्रकटीकरण के रूप में पब्रवि कु रआन अनं त काि तक मानवजाब्रत के लिये ज्ञान, बुब्रद्मत्ता, ब्रवज्ञान, तका ,
तत्व व मागादशान का असीम कोश है। इसके अपने शब्दों में 'यह पुस्तक मुसिमानों के लिये सभी वस्तुओ ं की व्याख्या करने वािा, मागादशाक,
दया, आनं दभरा सं दे श है।'1 ब्रनमाि प्रेरणा के शाश्वत व सवाकालिक स्रोत के रूप में यह पुस्तक लजस रूप में सभी हाथों तक पहुंिायी गयी है, उस
स्वरूप में ब्रकसी भी प्रकार का खं िन या ब्रवकृ ब्रत, सुिार, जोड या घटाव नहीं ब्रकया जा सकता है।

अपने प्रादुभााव के समय से ही यह अपनी मौलिकता, सौंदया, शैिी, उच्चारण, शब्द-रिना, शब्द-व्युत्पब्रत्त, ब्रवज्ञान, तका , अिर व
भावना में अपररवब्रतात है। इसकी सत्ता व प्रामालणकता ईश्वरीय अलभभावकत्व में सं रलित व आश्वस्त की गयी है। इसका ईश्वरीय िेखक कहता
है, ''हमने ब्रबना शं का यह सं देश भेजा है और हम सुब्रनलित रूप से (ब्रवकृ ब्रत से) इसकी रिा करेंगे। ''2 कोई अन्य ईश्वरीय या मानव-ब्रनब्रमात पिक
पब्रवि कु रआन के गुण व सुं दरता के बराबर नहीं हो सकता। अल्लाह िुनौती देता है, ''यब्रद तुम्हें उन सं देशों पर सं देह होता है , जो समय-समय
हमनें अपने दास को भेजे हैं, तो इनके अब्रतररक्त कोई सूरा ब्रदखाओ; यब्रद तुम्हारे सं दे ह सही हैं और अल्लाह के अब्रतररक्त भी यब्रद कोई तुम्हारा
साथी या सहायक हो, तो उन्ें बुिाओ।''3

कु रआन पुस्तक मानव जाब्रत की तीन श्रेलणयों पर अपने रहस्यमयी लसद्ांतों का प्रब्रतपादन करती है और यह भी बताती है ब्रक ब्रकस प्रकार मानव
जाब्रत को अल्लाह का सं देश ब्रमिा। अल्लाह कहता है, ''यह वो पुस्तक है लजसमें उनके लिये मागदशान, ब्रवश्वसनीयता है, जो अल्लाह से िरते हैं;
जो उस अदृश्य में ब्रवश्वास करते हैं और उसकी इबादत में िगे रहते हैं, हमने उन्ें जो ब्रदया है उसी में से व्यय करते हैं; और उनको आकाश से जो
सं देश भेजा गया तथा जो उनके आने के पहिे आया है, उसमें ब्रवश्वास करते हैं और जो आगे ििकर अपने मन में उसके प्रब्रत ब्रवश्वास बनाये रखते
हैं। वे अपने अल्लाह के सच्चे मागादशान के पथ पर हैं और ये ही वो हैं, जो पनपेंगे।''4 एक अन्य अवसर पर पब्रवि कु रआन कहती है, ''अल्लाह
की ओर से तुम पर नया प्रकाश आया है और सुबोि पुस्तक आयी है, लजसमें अल्लाह उन सबको शांब्रत व सुरिा का मागादशान देता है जो अल्लाह
की दयािु कृ पा िाहते हैं तथा अल्लाह अपनी इच्छा पर उन्ें अंिेरे से ब्रनकािकर प्रकाश के उस पथ की ओर िे जाता है जो सीिा है। ''5 जो
अल्लाह को नकारते हैं, उनके लिये ईश्वरीय ब्रनणाय यह है ब्रक 'अल्लाह ने उनके हृदय तथा कानों पर मुहर िगा दी है अथाात बं द कर ब्रदया है और
उनकी आं खों पर पदे पडे हैं तथा उनको कठोर दंि ब्रमिेगा।''6 तीसरी श्रेणी का मनुष् जो बाहर से तो इस्लाम को मानता है , ब्रकंतु भीतर से
इस्लाम के ब्रवरुद् िियं ि पािता है, उसके ब्रविय में पब्रवि कु रआन कहती है:

''ये वो िोग हैं, लजन्ोंने सीिी िगर (सुपथ) के स्थान पर भ्रम (कु पथ) क्रय कर लिया है। परन्तु उनका यह व्यापार िाभप्रद तो हुआ
नहीं, पर उन्ोंने सत् का मागा अवश्य खो ब्रदया।"7

1 अि नहि: 19
2 अि ब्रहज्र: 9
3 बकरा: 23
4 बकरा: 2-5
5 माइदा: 17-18
6 बकरा: 7
7 बकरा: 16

19
इस अध्ययन में उस व्यब्रक्त के व्यब्रक्तत्व की झिक भी सस्लम्मलित है, लजसे यह असीम सवाश्रेष्ठ ईश्वरीय मागादशान प्रदान ब्रकया गया;
लजसने इसे ग्रहण ब्रकया और आत्मसात् ब्रकया; जो इसे प्रयोग और व्यवहार में िाया तथा आने वािी पीब्रढ़यों के शाश्वत प्रकाश व मागादशान के लिये
उन तक पहुंिाया। इस उदात्त प्राणी पर पहिे ही पोलथयां लिखी जा िुकी हैं और अनं त काि तक लिखी जाती रहेंगी। इस अनुसंिान में उसके
व्यब्रक्तत्व के प्रभाव का आं किन करने के लिये हम उसके बारे में पब्रवि कु रआन की कु छ उब्रक्त यां सं िेप में दोहराएं गे। उस पुस्तक के अनुसार
इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) को एक सािी, आनं द के सं देशवाहक, सिेतक, प्रकाश फैिाने वािे दीपक के रूप में भेजा गया है, उसे एक
ऐसे व्यब्रक्त के रूप में भेजा गया है, जो अल्लाह की कृ पा से अल्लाह की ओर बुिाता है। 8 यह पुस्तक मानवजाब्रत से कहती है, ''जो अल्लाह में
और प्रिय (कयामत) में आशा रखता है और जो अल्लाह की प्रशं सा में अलिकालिक िगा रहता है , उसके लिये वास्तव में अल्लाह के रसूि में
आिार-व्यवहार की एक सुं दर शैिी ब्रमिती है।"9 इस पुस्तक में अन्य अवसरों पर भी पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) को इसी प्रकार की श्रद्ांजलि
दी गयी है। इस अध्ययन के उद्दे श्य से हमारे लिये जो जानना महत्वपूणा है, वह यह है ब्रक पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) द्वारा जं ग पर बताये गये
अल्लाह के ब्रनदेश जं ग के सं बं ि में कु रआन की अविारणा के अब्रवभाज्य अंग का गठन करते हैं। व्यापक अनुसंिान के लिये हमारा दृब्रष्टकोण आरंभ
से अंत तक एकीकृ त व समलन्वत होना िाब्रहए। हमें जं ग पर कु रआन के ज्ञान को समझने के लिये यह अवश्य देखना िाब्रहए ब्रक जब रसूि
मूब्रतापूजकों के साथ जं ग िड रहे थे, तो उन्ोंने इस ज्ञान की व्याख्या कै से की था एवं इसका प्रयोग कै से ब्रकया था। रसूि के 'आिरण का वह सुं दर
आदशा' अवश्य ही जं ग के सं बं ि में कु रआन के लसद्ांत को समझने और जं ग की योजना, सं िािन व ब्रनयं िण में ब्रनिााररत व प्रयुक्त होना िाब्रहए।

हमारे लिये कु रआनी फौजी ब्रविार के प्रकटन के समय, पद्ब्रत व क्रम को समझना भी उतना ही महत्वपूणा है। जं ग पर यह अल्लाह का
लसद्ांत इस्लाम के आब्रवभााव के तुरंत बाद नहीं प्रकट हुआ था। अल्लाह द्वारा कु रआन की िगभग दो ब्रतहाई सूरा पहिे ही भेजी जा िुकी थी और
यह लसद्ांत इसके िगभग 12 विा पिात भेजा गया। मानव-ब्रनब्रमात अविारणा व लसद्ांतों से ब्रवलशष्ट रूप में लभन्न जं ग के सं बं ि में यह अल्लाह की
अविारणा एक ही जुडे हुए प्रपि के रूप में नहीं लिखी गयी थी और न ही ब्रकसी एक ही पुलिं दे या अंश में दी गयी थी, अब्रपतु यह िीरे-िीरे व
एक के बाद एक करके प्रकट की गयी थी। वास्तब्रवक जं ग प्रारं भ होने से पूवा भेजे गये आरंलभक ब्रनदेश अब्रत सं लिि व स्थूि थे। वे जं ग के
आिारभूत उद्दे श्यों के ब्रविय में िं बे समय में लिखे गये थे तथा इसके के िीय ब्रविय-वस्तु व तत्व को बताते थे। इन आदेशों में जं ग की सीमा,
पद्ब्रत व तकनीकों पर प्रभावी ब्रनयं िण भी ब्रवब्रनब्रदाष्ट हैं। बाद के अलिकांश ब्रनदेश पूवा के फौजी अलभयानों पर ईश्वरीय समीिा के रूप में प्रकट
ब्रकये गये थे। इनमें उस अलभयान से जुडे ब्रवलशष्ट ब्रविय के अब्रतररक्त जं ग के सं िािन में रणनीब्रत व लसद्ांतों पर कु रआन की अविारणा सस्लम्मलित
थी। इनमें जं ग के उन उद्दे श्यों, िक्ष्यों, प्रकृ ब्रत, िािलणकताओं, आयामों व नीब्रत-लसद्ांत से सं बं लित पूवा के ब्रनदेशों को ब्रवस्तार ब्रदया गया था।
पब्रवि रसूि द्वारा ब्रकये गये प्रयोगों के साथ ही अल्लाह के ये श्रुब्रत-प्रकाश जं ग के सं बं ि में कु रआन की अविारणा को समग्र व सम्पूणा ब्रवस्तार देते
हैं।

8 अि-अहजाब: 45-46
9 अि-अहजाब: 21

20
अध्याय 2

ऐब्रतहालसक पररप्रेक्ष्य
610 ईस्वी में जब इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) अरब में अल्लाह द्वारा आदेलशत अपने अलभयान के लिये मुखर हुए, तो उस
समय िार प्रमुख वैलश्वक सत्ता पूवी रोमन साम्राज्य, फारस का साम्राज्य, िीन और भारत थे। पूवी रोमन साम्राज्य एलशया माइनर, सीररया,
फोनेलशया, ब्रफलिस्तीन, इलजप्ट, उत्तरी अफ्रीका, क़तााज तक व्याि था। फारस के साम्राज्य के ब्रनयं िण में ईराक, मेसोपोटाब्रमया, आिुब्रनक
फारस, बैस्लक्ट्रया और मध्य एलशया के िेि थे जो भारत और तारतरी की सीमा से िगते थे। यद्यब्रप इन दोनों साम्राज्यों की सीमाएं अब्रनिााररत थीं,
ब्रकंतु इनकी सीमाएं एक-दूसरे से िगती थीं और इनके दलिण में अरब था जो सीररयो-मेसोपोटाब्रमयन रेब्रगस्तान से होकर जाता था। बैजेंटाइन
और फारस के मध्य सामान्य सीमांत िेि ब्रवरिे ही पररभाब्रित थे और यह दलिण की ओर कािा सागर के पूवी छोर से िेकर पािमायरा के
उत्तर-पूवा ब्रबंदु पर यूफेरैट्स की ओर सीिी रेखा में ब्रनकिते थे। इस प्रकार इसमें काकसस के िेि, आमेब्रनया और फारस साम्राज्य का ब्रनििा
यूफेरैट्स आता था। िीन की राजनीब्रतक शब्रक्त फारस की खाडी से िेकर प्रशांत महासागर तक थी तथा भारत हिावद्ा न के शासन में फि-फूि
रहा था।

इस्लाम के जन्म से सब्रदयों पूवा फारस व रोमन एक-दूसरे के साथ युद्रत रहते थे। 480 ईस्वी पूवा जीरक्सीज ने यूनान पर भू-मागा
व जि-मागा दोनों ओर से आक्रमण ब्रकया था और परालजत हुआ था। 470 से 387 ईस्वी पूवा हेिेब्रनक व फारसी जगत के बीि कभी शांब्रत. तो
कभी युद् ििता रहता था। 387 ईस्वी पूवा एं टािब्रकिस की सं लि के अनुसार फारस प्रत्ि रूप से यूनान के अिीन एक शासन हो िुका था।
330 ईस्वी पूवा अिेक्जेंिर फारस की ब्रवजय के लिये बढ़ा और अटिांब्रटक से मध्य एलशया तक हेिेब्रनक प्रभाव बढ़ाया। ब्रकंतु पालथाया के नेतृत्व
में फारस के िोगों ने हेिनवाद के ब्रवरुद् ब्रवद्रोह कर ब्रदया तथा असाालसि वं श की स्थापना की, लजसने फारस पर पुन: पूणा ब्रवजय प्राि की तथा
अपना प्रभाव कािा सागर व पािमायरा तक बढ़ाया। 225 ईस्वी में ससाब्रनयन िोगों ने असाालसि के शासन को उखाड फेंका, पर दोनों
साम्राज्यों के मध्य युद् की प्रिण्डता ब्रनरंतर रही।

330 ईस्वी में रोमन साम्राज्य की राजिानी कु स्तुंतुब्रनया स्थानांतररत होने के साथ ही फारस-रोमन युद् और भयानक व बारंबार होने
िगा। छठी शताब्दी के मध्य में जब 34 विा तक समकािीन शासक रहे जलस्टब्रनयाई व अनुलशरवन ने रोमन व फारस पर क्रमश: ब्रनयं िण कर
लिया, तो सं घिा ने और ब्रहंसक रूप िारण कर लिया। 540 ईस्वी में फारस ने पहि की और सीररया पर आक्रमण करके एं ब्रटऑक पर ब्रनयं िण
कर लिया, ब्रकंतु उसकी बढ़त को एक समथा रोमन जनरि बेिीसैररयस द्वारा रोक ब्रदया गया। 579 ईस्वी में अनुलशरवन की मृत्ु हुई तथा उसके
अयोग्य बेटे हरमुज के हाथों में सत्ता आई, जो वह सत्ताच्युत ब्रकया गया और 590 ईस्वी में मार िािा गया। उसका बेटा खुसरो (कोसरोजII)
लसंहासनारूढ़ हुआ और 638 ईस्वी तक राज ब्रकया। उसी को पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने पि भेजकर इस्लाम स्वीकार करने का बुिावा
भेजा था।

रोमन सीमा पर एक सािारण शतपब्रत फोकस ने रोमन सम्राट माउररस को 602 ईस्वी में मार ब्रदया और लसंहासन पर अलिकार कर
लिया। 610 ईस्वी में अफ्रीका के गवानर हरकु लिस द्वारा सत्ताच्युत ब्रकये जाने तक वह शासन करता रहा। हरकु लिस को इस्लामी इब्रतहास में उस
हरकि के रूप में भी जाना जाता है, लजसने 642 ईस्वी तक पूवी रोमन साम्राज्य पर शासन ब्रकया। उसी के राज में मुसिमानों ने रोमनों से
सीररया व इलजप्ट छीना था। हरकु लिस व कोसरोजII (610-628 ईस्वी) के मध्य सं घिा का गहरा राजनीब्रतक व िाब्रमाक महत्व है और कु रआन
के 'रूम' नामक अध्याय में इसका उल्लेख है। इस अवलि के पूवााद्ा में युद् का सं तुिन स्पष्टत: फारलसयों के पि में झुका रहा। 611 ईस्वी तक
उन्ोंने सीररया के मुख्य नगरों अिेप्पो , एं ब्रटऑक व दमाकस को जीत लिया। 614-615 ईस्वी के मध्य येरूशिम भी फारस की सेना के ब्रनयं िण
में आ गया।

21
22
एक विा पिात फारलसयों ने इलजप्ट को जीत लिया और अपना प्रभाव ब्रिपोिी तक बढ़ा लिया। िगभग इसी समय वे एलशया माइनर
का ब्रवध्वं स ब्रकया तथा कु स्तुंतुब्रनया के द्वार तक पहुंि गये।

अ-ईसाई फारस द्वारा ईसाई रोम पर ब्रवजय प्राि करने से अरब के मूब्रतापूजक अब्रत प्रसन्न हुए। इसी प्रकार यहदी भी फारसी मूब्रतापूजकों
की इन ब्रवजयों से अत्ं त आनं ब्रदत हुए, क्ोंब्रक वे भी ईसाइयों के ब्रनरंतर अत्ािार व दमन में जीने को ब्रववश थे। ब्रकंतु जब फारसी, मूब्रतापूजक
व यहदी इन ब्रवजयों का उल्लास मना रहे थे, तो पब्रवि कु रआन में उनके भब्रवष् के लिये पूणात: लभन्न आगम की योजना थी। पब्रवि पुस्तक ने
घोिणा की, ''रोमन साम्राज्य समीप की िरती में परालजत हो गया। ब्रकंतु यह पराजय होने के बाद भी वे शीघ्र ही, कु छ ही विों में, ब्रवजयी होंगे!
पहिे भी अल्लाह का ही ब्रनणाय था और और भब्रवष् में (भी) उसी का ब्रनणाय होगा। उस ब्रदन मोब्रमन प्रसन्न होंगे। ''1 अल्लाह के इन शब्दों से
मुसिमानों को बहु-प्रतीलित ताकत व आश्वासन ब्रमिा, ब्रकंतु इसका उन मूब्रतापूजकों पर न के बराबर प्रभाव हुआ, लजन्ोंने अल्लाह को उपहास व
आिोिना का पाि बना ब्रदया था।

फारस-रोम के इस युद् की अवलि में अरब प्रायद्वीप का मुख्य भाग ब्रकसी भी शासन द्वारा कभी नहीं जीता जा सका , ब्रकंतु इन दोनों ने
अनेकों बार इसके सीमांत िेिों को अपने िेिों में ब्रमिा लिया था। वैसे अरब पर इन दोनों शब्रक्तयों का सांस्कृब्रतक प्रभाव था। साथ ही अरब व
अबीसीब्रनया साम्राज्य के मध्य सुदृढ़ सांस्कृब्रतक व राजनीब्रतक सं बं ि थे। अबीसीब्रनया िाि सागर की ब्रदशा में स्लस्थत एक साम्राज्य था। यमन
फारस के प्रभाव में था, जबब्रक जलस्टब्रनयनों के शासन में रोमनों ने अबीसीब्रनया के साथ गठबं िन कर रखा था। इस प्रकार फारस व अबीसीब्रनया
एक-दूसरे से युद्रत थे। समुद्री मागा से अरब के तटीय िेि यमन तक फारस की पहुंि बहुत सुगम थी और उनके अलभयानों के रणिेि के रूप में
इस तटीय िेि का बहुत दोहन हुआ।

रसूि अिाहा (उन पर शांब्रत हो) के जन्म के विा 570 ईस्वी में, यमन में अबीसीब्रनया के गवनार मक्का स्लस्थत काबा के ब्रवध्वं स का
िक्ष्य िेकर आक्रामक अलभयान पर ब्रनकिे, ब्रकंतु ब्रनणाायक रूप से परालजत व नष्ट हुए। कु रआन में इस अलभयान के ब्रविय में 'अशब्रबि ़िीि'
(हाथी के सालथयों) ब्रदया गया है। कु रआन कहती है, ''क्ा तुम नहीं जानते ब्रक तेरे अल्लाह ने हाथी वािों के साथ क्ा ब्रकया? क्ा उसने
उनकी िाि को ब्रवफि नहीं कर ब्रदया? जो उन पर कं करी के पत्थर मारने वािे पं लियों के झुं ि भे जे। तो उन्ें ऐसा कर ब्रदया, जैसे ब्रक िरे जाने
के लिये ठूं ठ और सूखे िंठि वािा खेत।''2

इसी बीि, इस्लाम की घोिणा के समय से ही मक्का के मुसिमानों का छोटा सा समुदाय कु रैशों के अत्ािार व दमन से पीब्रडत था।
उन पर ब्रनरंतर अमानवीय यं िणा, दमन व अत्ािार हो रहा था। उनका उपहास उडाया जाता, उन पर िौंस ब्रदखाया जाता था और उन पर
िढ़ाई की जाती थी। जो शिु की पकड में होते थे, उन्ें बेब्रडयों में जकडा जाता था और बं दीगृह में िाि ब्रदया जाता था। अन्य को दीघाकालिक
आलथाक व सामालजक पीडा का सामना करना पडता था। जब कु रैशों ने मुस िमानों को अपने मजहबी कताव्य को पूरा करने के लिये पब्रवि
मस्लजजद में जाने की अनुमब्रत दे ने से मना कर ब्रदया, तो इस प्रकार शिु का दमनिक्र उस समय अपने िरम पर पहुंि िुका था। पब्रविता को भं ग
करने वािा यह काया इस्लाम के ब्रवरुद् जं ग की खुिी घोिणा जैसी थी। इससे अंत त: 12 विा पिात 622 ईस्वी में मुसिमान मदीना ििे जाने
को ब्रववश हो गये।

मदीना प्रवास मुसिमानों के लिये व्यापक महत्व वािे अनेक घटनाक्रम, ब्रनणाय एवं दूरगामी पररणाम वािा रहा। जब वे मक्का में थे,
तो उन्ें न तो 'उम्मा' की घोिणा करने दी गयी और न ही जं ग का आश्रय िेने की अनुमब्रत ब्रमिी। मदीना में अल्लाह की वाणी ने उनके लिये
एक 'उम्मा' की घोिणा की और सताने वािों के ब्रवरुद् जं ग करने की अनुमब्रत दी। तत्पिात् यह अनुमब्रत शीघ्र ही अल्लाह के आदेश में
पररवब्रतात हो गयी और मोब्रमनों के लिये मजहबी जं ग करना आवश्यक बना ब्रदया गया। नये स्तर पर ब्रदये गये इस अलभयान ने अपने अनुशोिन,

1 अि-रुम: 2-4
2 अि-़िीि: 1-5

23
सं तुिन, व्यवहायाता व सावाभौब्रमकता पर बि ब्रदया। कु रआन ने घोिणा की, ''इसी प्रकार हमने तुम्हें न्यायोलित रूप से सं तुलित उम्मा (समुदाय)
बना ब्रदया, लजससे ब्रक तुम राष्टरो ं पर सािी बनो और रसूि तुम पर सािी हों।''3

बाद की एक आयत में पब्रवि कु रआन ने आदे श ब्रदया ''तुम मानवजाब्रत के ब्रवकासक्रम में अब तक आये मनुष्ों में सबसे अच्छे हो,
तुम भिाई का आदेश देते हो तथा बुराई को रोकते हो और अल्लाह पर ब्रवश्वास (ईमान) रखते हो। ''4 इन घोिणाओं ने नये राज्य के राजनीब्रतक,
सामालजक, आलथाक व सैन्य लसद्ांतों की नींव रखी और इसकी नीब्रत व रणनीब्रत का आिार तैयार ब्रकया। इन घोिणाओं ने राज्य नीब्रत व इसके
सामालजक-आलथाक ढांिे के सं बं ि में अल्लाह के आयतों की ऋंखिा की िारा तैयार की।

िघु रूप में स्थाब्रपत इस नये राज्य को अपने आं तररक व वाह्य व्यवहारों में औलित्, िाब्रमाकता व सं तुिन के मागा का अनुपािन करने
का ब्रनदेश ब्रदया गया। यह आदेश ब्रदया गया ब्रक मूसा के कानून की अब्रत ब्रनयम-ब्रनष्ठता एवं ईसाइयत की सुस्पष्ट 'अन्य सांसाररकता' के मध्य
सं तुिन स्थाब्रपत ब्रकया जाए। यह भी कहा गया ब्रक सतका रहते हुए ब्रवश्व की प्रब्रतद्वंद्वी प्रणालियों में न्याय बांटने वािा अथवा मध्यस्थ की भूब्रमका
में काया करने के लिये भी तैयार रहना है। सं लिि में, जैसा ब्रक अल्लामा अब्दुल्ला यूसुफ अिी ने व्याख्या की है, यह आदेश अपने लिये ही नहीं,
वरन् सम्पूणा मानवजाब्रत के लिये जीने का आदेश दे ता है। इन घोिणाओं के समावती, पूवा में जो ब्रकबिा येरूशिम में घोब्रित ब्रकया गया था,
उसे नये राज्य में पररवब्रतात कर ब्रदया गया और मक्का में ब्रक़बिा प्रदान ब्रकया गया। यह नया ब्रकबिा के वि वह ब्रदशा ब्रनलित करने के लिये नहीं
था, लजसकी ओर मुख करके मुसिमान नमाज पढ़ें , अब्रपतु यह इस उद्दे श्य से भी ब्रदया गया ब्रक मुसिमान इसे अपनी ब्रवलशष्ट पहिान के प्रमाण-
लिह्न एवं अंतरााष्टरीय एकता के रूप में देखें। अल्लाह ने कहा, ''हे नबी! हम तेरे मुख को बार-बार आकाश की ओर देखता हुआ पा रहे हैं: तो हम
अवश्य तुझे उस ब्रक़बिे (काबा) की ओर कर देंगे, लजससे ब्रक तू प्रसन्न हो जा। तो (अब) अपने मुख मस्लजजदे ह़राम (पब्रवि मस्लजजद) की ओर कर
िे तथा (हे मुसिमानो!) तुम भी जहां रहो, उसी की ओर मुख ब्रकया करो। तुम कहीं से भी ब्रनकिो, पर अपना मुख मस्लजजदे हराम की ओर
करो: जो दुष्टता पर उतारू हैं उनको छोडकर, भिा ऐसा और भी कोई होगा, जो इिाहीम के मजहब से ब्रवमुख हो जाए।''5

आरंभ से ही अनेक शिुओ ं द्वारा उस छोटे नगर-मदीना के राज्य पर खतरे उत्पन्न ब्रकये गये थे। आसन्न खतरा मदीना के उस यहदी
समुदाय द्वारा उत्पन्न ब्रकया गया, जो 500 विों से अलिक समय से इस नगर पर जमा हुआ था। उत्तरी अरब में ऐिया , मकना, तबूक, तेमा,
वादी-अि-कु रा, ब्ऱिदक व खैबर में इन यहब्रदयों का सुदृढ़ व समृद् अस्लस्तत्व था। उस समय मदीना के िारों ओर शिु मूब्रतापूजक जनजाब्रतयां
रहती थीं, लजनके िाब्रमाक ब्रवश्वास कु रै शों के समान थे तथा वे उनके साथ दीघाकािीन राजनीब्रतक व सामालजक मेि -जोि रखती थीं। यद्यब्रप इस
नये राज्य के अस्लस्तत्व पर मुख्य खतरा 400 मीि दूर मक्का से आया, जो मुसिमानों और मूब्रतापूजक अरब के बीि युद् का मुख्य कें द्र बना।
इसके तुरंत पिात एक और शिु जो मूब्रतापूजकों से भी अलिक खतरनाक था, वह रणिेि में कू दने वािा था और वो शिु थे इस्लाम के मुनाब्रफक
(ढोंगी)। ये मुनाब्रफक बाहर से तो इस्लाम के प्रब्रत ब्रनष्ठा प्रकट करते थे, ब्रकंतु भीतर-भीतर ये इस्लाम की जडें काटने में िगे थे।

फारस-रोमन सीमा पर फारस के पराजय की अल्लाह की घोिणा ब्रहजरा के विा 622 ईस्वी में मूता रूप िेने िगी थी और 628 ईस्वी
आते-आते यह भब्रवष्वाणी सत् लसद् हो गयी। बैजेंटाइन साम्राज्य के लसंहासन पर आरूढ़ होने के पिात हरकु लिस ने फारस के ब्रवरुद् व्यापक व
आक्रामक प्रब्रत-कारा वाई प्रारं भ की। 623 ईस्वी में दिानेल्स से होते हुए उसने आमेब्रनया पार कर लिया और कज़ब्रवन जीत लिया। अगिे विा
उसने लसलिलशया जीता और इसके साथ ही कु स्तुंतुब्रनया पर अवासा के आक्रमण को ब्रवफि ब्रकया। 627 ईस्वी में उसने ब्रननेव के युद् में फारस
को ब्रवस्तृत रूप से परालजत ब्रकया और उनके सम्राट को िाल्सिन, इलजप्ट व सीररया को छोडने पर ब्रववश कर ब्रदया। 628 ईस्वी में खुसरो परवेज
की हत्ा हो गयी और उन दोनों साम्राज्यों के बीि हुई सं लि के अनुसार 602 ईस्वी की सीमाएं पुन:स्थाब्रपत हो गयीं। वह टू क्रॉस बैजेंटाइन को
पुन: प्राि हो गया और अल्लाह का कथन सत्-लसद् रहा। एक विा पिात 629 ईस्वी में ब्रवजेता रोमन सेना जब फारस से िौट रही थी, तो
पहिी बार उन्ोंने मुता के युद्िेि में मुसिमानों से दो-दो हाथ ब्रकया। दो विा पिात वे तबूक में एक बडी सेना एकि कर अरब के मुसिमानों
की सुरिा पर सीिा खतरा उत्पन्न करने वािे थे। पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) की मृत्ु के बाद मुसिमान पररस्लस्थब्रतयों-वश रोम व फारस के

3 बकरा: 143
4 आिे-इमरान: 110
5 बकरा: 144, 149-130

24
ब्रवरुद् एक-साथ जं ग करने को ब्रववश हुए। इस्लाम के उगते सूरज के अिीन फारस साम्राज्य 680 ईस्वी तक ब्रवश्व के मानलिि से िुि हो गया।
िगभग उसी समय मुसिमानों ने रोमनों से सीररया, इलजप्ट, एनॉटोलिया, साइरैब्रनका, ब्रिपोिेटेब्रनया व आमेब्रनया भी जीत लिया।

25
अध्याय 3

जं ग के उद्दे श्य
जब से द्वेि और घृणा के वशीभूत के न ने अपने छोटे भाई अबेि को मार िािा था , तभी से मानव जाब्रत ब्रकसी न ब्रकसी कारण से
एक-दूसरे से युद्रत है। शोि अध्येताओं ने इन युद्ों के कारणों को जानने के लिये अनेक अध्ययन ब्रकये हैं। िुईस एफ. ररििासन अपनी
ब्रवद्वतापूणा रिना 'युद् का गलणतीय मनोब्रवज्ञान' और 'खतरनाक ब्रववादों की सांस्लख्यकी' में युद् के प्रस्फु टन की व्याख्या मानव मस्लस्तष्क में गहरे
जमे रोग के रूप में करते हैं। उन्ोंने अपना ब्रविार प्रकट करते हुए कहा ब्रक युद् का उभय उपिार दुभााग्य से स्वयं युद् ही होता है। उनके
अनुसार दारुण व प्रिं ि युद्ों ने उन्ें तो प्रब्रतरिा प्रदान की लजन्ोंने इन युद्ों का अनुभव लिया, ब्रकंतु जब नयी पीढ़ी आयी तो वह प्रब्रतरिा
िूब्रमि हुई और नयी व्यग्रता के साथ युद् प्रारंभ हुआ। एिम स्लस्मथ और थॉमस होब्स ने भी ब्रनष्किा ब्रनकािा है ब्रक युद् मानव स्वभाव का अलभन्न
अंग है। टॉयनबी की प्रब्रतष्ठा के समकि आजकि के एक इब्रतहास िेखक का प्रेिण है ब्रक मानव इब्रतहास में युद् और शांब्रत का ऐसा िक्र
ििा, लजसने औसत रूप से सौ विा के सं लिि काि में अपना एक िक्र पूरा ब्रकया। उनके ब्रविार से यूरोप के इब्रतहास का पूणा िक्र 1815-1914
के मध्य पूरा हुआ।

िेब्रनन ने कहा था ब्रक युद् एकालिकारी पूं जीवाद के तनाव व बोझ के कारण होते हैं। बनाािा िॉिी के अनुसार युद् के कारण आलथाक,
राजनीब्रतक व मनोवैज्ञाब्रनक कारकों में पाये जाते हैं। युद् ब्रवस्तार , उत्तरालिकार, स्वतं िता, क्रांब्रत व मुब्रक्त के लिये भी छे डे जाते हैं। जमानी ने
ब्रद्वतीय ब्रवश्वयुद् जमान िेबेंस्रेम के अपने भू-राजनीब्रतक िक्ष्यों को प्राि करने के लिये प्रारंभ ब्रकया था। जापाब्रनयों ने महान पूवी एलशया सह-
समृब्रद् िेि की स्थापना के लिये इसी का अनुसरण ब्रकया। अपनी पुस्तक, 'युद् के कारण' में जेफ्री ब्लेनी ने उन कारकों पर ध्यान कें ब्रद्रत ब्रकया
है, जो युद् के काररत होने में योगदान देते हैं। उनके ब्रनष्किों में राष्टरवाद से िेकर ब्रविारिारा और नीब्रत-ब्रनमााताओं की मानलसक ग्रंलथयां, राष्टरो ं
का युद्-सामर्थ्ा, उनकी अथाव्यवस्था एवं आं तररक सं शब्रक्त व एकता तक इसके कारकों में आते हैं।

अपनी महत्वपूणा रिना 'युद् का अध्ययन' में ब्रक्वंसी राइट सुझाव देते हुए प्रतीत होते हैं ब्रक युद् एक ऐसा सामालजक रोग है, लजसके
उपिार के लिये उसके प्रत्ेक अलभव्यं जना की सजारी होनी िाब्रहए। वह युद् को एक ऐसी ब्रवलिक दशा के रूप में पररभाब्रित करते हैं , जो दो
अथवा दो से अलिक शिु समूहों को सशस्त्र सं घिा के माध्यम से युद् करने की समान अनुमब्रत देता है। वे ब्रनष्किा देते हैं ब्रक युद् कु छ
अविारणाओं और उनके वास्तब्रवक ब्रक्रयान्वन के मध्य ब्रवरोिाभास के अस्लस्तत्व के कारण हुए। वे युद्ों के कारणों को दो श्रेलणयों में ब्रवभालजत
करते हैं: साब्रहलत्क अथवा दाशाब्रनक एवं वास्तब्रवक। 'साब्रहलत्क' कारण दाशाब्रनक अथवा बौब्रद्क ब्रविार के ब्रविय हैं, जबब्रक 'वास्तब्रवक' कारण
वो होते हैं, जो ब्रवलशष्ट युद्ों के वृत्त-अध्ययन से ज्ञात होते हैं।

ब्रक्वंसी राइट ने युद् के साब्रहलत्क कारणों को वैज्ञाब्रनक, ऐब्रतहालसक व व्यवहाररक तीन भागों में उप-ब्रवभालजत ब्रकया है। उनकी दृब्रष्ट
में वैज्ञाब्रनक कारण सामालजक ज्ञान व ब्रनयं िण की अपररपक्वता में होते हैं। ऐब्रतहालसक कारणों में घरेिू समस्याएं , आक्रामक ब्रवदेश नीब्रत,
समािानरब्रहत ब्रववाद, सैन्य लसद्ांतों, तकनीक व सशस्त्रीकरण में नये ब्रवकास, राजपररवारों के प्रालिकारों तथा ऐब्रतहालसक प्रब्रतद्वंब्रद्वता सस्लम्मलित
होती हैं। व्यवहाररक कारणों के मूि में मानव प्रकृ ब्रत जब्रटिताएं यथा उनकी महत्वाकांिाएं , आकांिाएं , कटुता, अब्रववेक होते हैं। इस
ब्रविारिारा के अनुसार युद् अस्लस्तत्व व उत्तरजीब्रवता के लिये; िन, बि व सामालजक एकजुटता प्राि करने के लिये और उिाटपन व हताशा से
उबरने व तनावमुब्रक्त के लिये ब्रकये जाते हैं।

युद् के कारणों के ब्रविय में ब्रवलशष्ट वृत्त-अध्ययनों से ब्रनकिे ब्रक्वंसी के अनुमान हमारे लिये ब्रवशेि रुलि के हैं। क्ोंब्रक उनके वृत्त
अध्ययन में 100 विीय युद्, 30 विीय युद्, नेपोलियन का युद् और प्रथम ब्रवश्वयुद् के अब्रतररक्त आरंलभक मुस्लस्लम जं ग व ईसाईयों का िमायुद्
क्रूसैि भी सस्लम्मलित है। ब्रक्वंसी आरंलभक मुस्लस्लम जं ग के कारणों का ब्रवश्लेिण करते हुए पडोलसयों द्वारा अरब का उत्पीडन व दबाव, अब्रतरेक
ऊजाा का प्रवाह, आलथाक कब्रठनाइयां, अब्रत-जनसं ख्या, आं तररक एकता को सं रलित करने की आवश्यकता, पारंपररक युद्-अरब की प्रवृब्रत्त और
जेहाद का लसद्ांत आब्रद कारकों को उत्तरदायी ठहराते हैं। वह ईसाई िमायुद् को ईसाईयत के नये उत्साह और कु छ समय पूवा ही ब्रवकलसत न्याय

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युद् के ब्रविार का ब्रवकास, राजनीब्रतक महत्वाकांिा एवं आलथाक कब्रठनाई का प्राकृ ब्रतक पररणाम मानते हैं। युद् के कारणों पर वतामान लसद्ांत
यह है ब्रक युद् तब होते हैं जब आवश्यक ब्रकंतु असं गत राष्टरीय ब्रहत दांव पर िगे हों। फ्रेिररक एि. हाटा मन अपनी पुस्तक ''इन ए सावरे न-स्टे ट
लसस्टम'' में कहते हैं, ''इस पर कदालित ही अलिक बि ब्रदया सकता है ब्रक युद् और शांब्रत प्रत्ेक ब्रनणाय व प्रत्ेक राज्य पर ब्रनभार होती है। इस
प्रकार की प्रणािी में युद् की सं भावना बनी रहती है। युद् की आशं का सं घिा में तब रूपांतररत हो जाती है , जब दो या अलिक राज्यों के असं गत
ब्रहत टकरा रहे हों।'' हाटा मन के अनुसार यब्रद राज्य ब्रकसी कारण को महत्वपूणा समझता है तो ऐसा कोई भी महत्वपूणा हो जाता है, और युद्
के वि इसलिये होते हैं, क्ोंब्रक एक प्रभुत्वसम्पन्न राष्टर दूसरे पर आक्रमण करने का ब्रनणाय करता है।

अब तक युद् के ब्रवलभन्न सूिीबद् कारणों में कु छ ब्रवशेिताएं दृब्रष्टगोिर हैं। प्रथमत: इन कारणों में एकरूपता की कमी होती है; यथा
लभन्न-लभन्न युद्ों के कारण भी लभन्न होते हैं। ब्रद्वतीयत: मानव समाज में पररवतान व ब्रवकास के साथ ही युद् के कारण पररवब्रतात होते रहते हैं।
वतामान अंतरााष्टरीय व्यवस्था में युद् के जो कारण पाये जाते हैं, जनजातीय समाज के युद् के कारण उनसे लभन्न होते हैं। तृतीयत: युद् के कारणों
में ऊबाऊपन व हताशा से िेकर महत्वपूणा राष्टरीय ब्रहत तक आते हैं। ितुथा रूप से युद् के कारणों की न्यायसं गतता अथवा इस प्रकार के ब्रकसी
ब्रविय को ब्रनलित करने के लिये कोई स्वीकृ त ब्रवलि, पं िाट अथवा वस्तुब्रनष्ठ कसौटी नहीं है। राष्टरीय ब्रहतों के ब्रनमााण और तद्नुसार युद् के कारणों
के लिये प्रत्ेक राष्टर के अपने मूल्य व मानक होते हैं। कौन से कारक ब्रकसी राष्टर को युद् में जाने को उकसा सकते हैं, इस पर हाटा मन के शब्दों
में, 'दूसरे में एक लिंगारी भी युद् भडका सकती है!'

जब पब्रवि कु रआन ने मुसिमानों को अपने प्रब्रतद्वंब्रद्वयों के साथ जं ग करने का आदेश ब्रदया, तो यह व्यापक रूप से उन कारणों के
आिार पर था, लजनके कारण यह ब्रनणाय करने की आवश्यकता पडी। इन कारणों को समझने के लिये हमें सवाप्रथम मानव जीवन की पब्रविता व
सं रिण के ब्रविय में मूि कु रआनी कानून को जानना होगा। यह स्मरण ब्रकया जाना िाब्रहए ब्रक जब ब्रवश्वपटि पर इस्लाम आया, तो मानव जीवन
का मोि न के बराबर था। अरब, रोम, फारस और ब्रवश्व के अन्य भागों में मानवजाब्रत की हत्ा की जा रही थी, उन्ें जिाया जा रहा था अथवा
उन्ें जीब्रवत ही गाड ब्रदया जाता था और के वि आमोद-प्रमोद, क्रीडा, आनं द, परंपरा व अंिब्रवश्वास के लिये उन्ें पशुओ ं की भांब्रत काट िािा
जाता था अथवा मृत्ुतुल्य प्रताडना दी जाती थी। ब्रवलि के समि उत्तरदाब्रयत्व के ब्रक सी भी भय के ब्रबना इस प्रकार की क्रूर हत्ाएं की जाती
थीं। इस्लाम उन अमानवीय प्रथाओं की ब्रनंदा करने के लिये आगे आया और मानव जीवन को पब्रवि घोब्रित ब्रकया तथा इसके सम्मान, सं रिण व
सुरिा के लिये कडे आदे श ब्रनगात ब्रकये। इसने ब्रवलि व न्याय के कारणों के अब्रतररक्त ब्रक सी अन्य कारण से मानव जीवन के हरण को ब्रनब्रिद्
ब्रकया तथा सभी प्रकार की अब्रवलिक मृत्ु को इस सं सार और परिोक दोनों में उत्तरदायी व दंिनीय बनाया। पब्रवि कु रआन के पररप्रेक्ष्य में इस
प्रकार के उत्तरदाब्रयत्व ने मानव जीवन का सं रिण सुब्रनलित ब्रकया तथा यह स्वयं मानवजाब्रत के व्यापक ब्रहत में था।

यह पब्रवि पुस्तक कहती है, ''हमने इजराइि के बच्चों को आदेश ब्रदया ब्रक दुष्टता फैिाने वािे अथवा हत्ा करने वािे को छोडकर
यब्रद कोई भी ब्रकसी और की हत्ा करता है, तो इसका तात्पया यह हुआ ब्रक मानों उसने समस्त मानवजाब्रत की हत्ा की है।''1 इन आयतों के
अनुसार अब्रवलिक रूप से मानव के प्राण िेना उतना ही बडा पाप है, लजतना ब्रक जीवन की पब्रविता व मोि। इस ब्रबंदु को और स्पष्ट करते हुए
इस पुस्तक ने पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) को सं बोिन में कहा , ''उनसे कहो, 'आओ, मैं तुम्हें (आयतें) पढ़कर सुना दूं ब्रक तुम पर, तुम्हारे
अल्लाह ने क्ा ह़राम (अवैि) ब्रकया है? वो ये है ब्रक ब्रकसी को भी अल्लाह का साझी न बनाओ। लजसकी हत्ा अल्लाह ने अवैि ब्रकया है, उसे
न मारो, जब तक ब्रक उसकी हत्ा ब्रवलि सम्मत न हो। अल्लाह ने तुम्हें इसका आदेश ब्रदया है , लजससे तुम प्रज्ञावान बनो।''2

एक अन्य अवसर पब्रवि कु रआन कहती है, ''जो अल्लाह के साथ ब्रकसी अन्य ईश्वर को नहीं पुकारते हैं और के वि मजहबी उद्दे श्य को
छोडकर, ऐसे िोगों के प्राण नहीं िेते हैं लजन्ें अल्लाह ने पब्रवि बनाया है , जो व्यलभिार नहीं करते हैं;- पर जो ऐसा करेगा, वह दंि का

1 माइदा:33
2 अि-अनामः 151

27
भागीदार बनेगा और प्रिय (कयामत) के ब्रदन उसका दंि दोगुना कर ब्रदया जाएगा और वह नका में सदा के लिये यातना, अपमान सहता हुआ
पडा रहेगा।"3

जैसा व्यब्रक्तयों के प्रकरण में है, वैसा ही अंतर-राज्य सं बं िों के ब्रविय में भी है ब्रक युद् न्याय, सत्, ब्रवलि व मानव समाज के सं रिण
के लिये ही ब्रकया जा सकता है। जैसा ब्रक पब्रवि कु रआन में जं ग के कारणों की मुख्य ब्रविय-वस्तु बतायी गयी है, उसके अनुसार जं ग अल्लाह के
उद्दे श्यों को पूरा करने के लिये होनी िाब्रहए। यह कारण इस्लाम के इब्रतहास में ब्रवलभन्न स्तरों पर तथा ब्रवलभन्न रूपों व प्रकारों में स्वयं ही पररिलित
होती है। इस उद्दे श्य की प्राब्रि के लिये मुसिमानों को पहिे जं ग की अनुमब्रत दी गयी और ब्रफर बाद में इसे अल्लाह के मागा में मजहबी दाब्रयत्व
व कताव्य के रूप में आदेलशत ब्रकया गया।

इस ब्रविय पर प्रथम कु रआनी विन लजसमें मुसिमानों को जं ग की अनुमब्रत दी गयी , उसमें कहा गया है, ''जो तुमसे जं ग करते हैं,
उनसे जं ग करने की अनुमब्रत दी जाती है, क्ोंब्रक वे पापी हैं और वैसे भी अल्लाह तुम्हारी सहायता के लिये सवा-सामर्थ्ावान है। ये वो िोग हैं
लजन्ें ब्रबना ब्रकसी कारण के इसलिये अलिकारों से वं लित कर उनके घरों से ब्रनकाि ब्रदया गया है , क्ोंब्रक वे कहते हैं 'अल्लाह मेरा स्वामी है।''4
जं ग की अनुमब्रत ब्रदये जाने को न्यायोलित ठहराते हुए कु रआन ने कहा, ''यब्रद अल्लाह ने िोगों के उस समूह को न रोका होता तो उन्ोंने उन
मठों, िमास्थानों, उपासनागृहों और मस्लजजदों को ढहा ब्रदया होता, जहां अल्लाह का नाम बहुतायत पुकारा जाता है।''5 एक अन्य अवसर पर
पब्रवि कु रआन कहती है, ''हर बार वे जं ग की आग भडकाते हैं, अल्लाह उसे बुझा देता है। पर तब भी वे िरती पर दुष्टता करने िगते हैं।
अल्लाह उन्ें प्यार नहीं करता, जो दुष्टता करते हैं।"6 सवा-सामर्थ्ावान अल्लाह ने लजन िोगों को दूसरों को ब्रनयं िण में रखने के लिये िुना है ,
'उन िोगों के समूह' से क्ा अपेिा करता है?

पुस्तक कु रआन कहती है, "(वे हैं) वही लजन्ें यब्रद हम िरती पर स्थाब्रपत करेंगे तो वे ब्रनयब्रमत नमाज स्थाब्रपत करेंगे , जकात देंगे और
उलित के साथ रहेंगे, अनुलित से दूर रहेंगे।''7

आत्मरिा के लिये जं ग की अनुमब्रत प्रदान करने के कु छ माह पिात जं ग को मजहबी कताव्य व दाब्रयत्व बनाने वािा अल्लाह का
आदेश आया। इसमें कहा गया, ''अल्लाह के उद्दे श्यों के लिये जं ग करो। जो तुमसे िडते हैं , उनसे जं ग करो, पर अपनी सीमा न िांघो, क्ोंब्रक
अल्लाह सीमा िांघने वािों को प्यार नहीं करता।''8 इस आयत से जं ग के अनुमन्य उद्दे श्यों में नये तत्व जुड गये। जं ग अल्लाह की राह में करना
है। जं ग के वि उन्ीं से करना है, जो पहिे मुसिमानों के ब्रवरुद् जं ग छे डते हैं। जं ग करते समय अल्लाह द्वारा ब्रनिााररत सीमाओं का उल्लं घन
नहीं होना िाब्रहए। जो इस सीमा का उल्लं घन करते हैं , उन्ें अल्लाह के कोप का भाजन बनना पडता है। इन ब्रबंदओ
ु ं को स्पष्ट करते हुए
कु रआन ने आगे कहा, ''और उन्ें जहां पाओ काट िािो, उन्ें उनके घरों से ब्रनकाि दो जहां से उन्ोंने तुम्हें ब्रनकािा है। क्ोंब्रक ब्ऱित्ना
(उपद्रव) हत्ा करने से भी बुरा है। पब्रवि मस्लजजद में उनसे जं ग न करो, जब तक ब्रक वे पहिे जं ग न करें। पर यब्रद वे तुमसे िडें तो काट
िािो। अ-मुस्लस्लमों (काब्रफरों) का यही पररणाम है।''9

उपद्रव व अत्ािार को हत्ा से भी अलिक बुरा बताने के पीछे पब्रवि कु रआन का आशय व अलभप्राय क्ा है? यह दंिाज्ञा ब्रवशेि रूप
से कु रैशों द्वारा मुसिमानों को उनके पब्रवि मस्लजजद में नमाज पढ़ने का अलिकार दे ने से मना करने पर दी गयी थी और कु रैशों का यह अस्वीकार
इस्लाम के ब्रवरुद् खुिा युद् छे डने की घोिणा था। इस प्रकरण में अल्लाह के हस्तिे प का मुख्य ब्रबंदु यह था ब्रक मूब्रतापूजकों के पास मुसिमानों
को पब्रवि मस्लजजद में मजहबी कताव्य ब्रनभाने से रोकने का कोई औलित् नहीं था, क्ोंब्रक मुसिमानों ने उन्ें अपनी परंपराएं व िाब्रमाक अनुष्ठान

3 फु रकान: 68-69
4 हज: 39-40
5 हज: 40
6 माइदा: 67
7 हज: 41
8 बकरा: 190
9 बकरा: 191

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करने से नहीं रोका था। कु रआन ने कहा, ''अब उन पर क्ों न यातना उतारे, जबब्रक वे उन्ें पब्रवि मस्लजजद (काबा) में जाने से रोक रहे हैं । वे तो
उस काबा के सं रिक भी नहीं हैं? उसका सं रिक अल्लाह को मानने वािों के अब्रतररक्त और कोई हो ही नहीं सकता , पर उनमें से अलिकांश यह
समझते नहीं हैं।''10

ु ार आदेश ब्रदया, "हे नबी! वे तुमसे पूछते हैं ब्रक पब्रवि मास में जं ग कै से
पब्रवि कु रआन ने उपद्रव व यं िणा पर और स्पष्ट व ब्रबंदव
करें? तुम उनको बता दो ब्रक पब्रवि मास में जं ग करना घोर पाप है , ब्रकंतु अल्लाह की दृब्रष्ट में अल्लाह के मागा में जाने से रोकना, अल्लाह को
अस्वीकार करना, पब्रवि मस्लजजद की पहुंि से रोकना और मस्लजजद के सदस्यों को ब्रनकािना उससे भी गं भीर पाप है। ब्ऱित्ना और यं िणा हत्ा से
भी गं भीर अपराि है।''11

कु रआन ने अनेक अवसरों पर और ब्रवलभन्न प्रकार व रूपों में अल्लाह के उद्दे श्यों के लिये जं ग करने की आवश्यकता पर बि ब्रदया है।
पब्रवि कु रआन कहती है, ''तब अल्लाह के मागा में जं ग करो और जान िो ब्रक अल्लाह सबकु छ सुनता है , सबकु छ जानता है।"12 मोब्रमन और
काब्रफर में भेद करते हुए पब्रवि कु रआन कहती है, ''जो अल्लाह में ब्रवश्वास करते हैं वो अल्लाह के उद्दे श्य में जं ग करते हैं और जो काब्ऱिर हैं, वे
उपद्रव के लिए युद् करते हैं। तो शैतान के सालथयों से जं ग करो। ब्रनस्सं देह शैतान की िाि ब्रनबाि होती है।''13 इस पुस्तक ने बि दे कर कहा है,
''अल्लाह की राह में जं ग करो। यह उत्तरदाब्रयत्व के वि तुम पर है और मोब्रमनों को इसके लिये प्रेररत करो। सं भव है ब्रक अल्लाह काब्ऱिरों का
बि तोड दे। अल्लाह ही सवाालिक समथा है और उसका दंि भी उतना ही कठोर है।" 14 साथ ही यह भी आदेश ब्रदया गया, ''हे अल्लाह को
मानने वािे िोगो! यब्रद तुम अल्लाह की सहायता करोगे तो वह तुम्हारी सहायता करेगा और तुम्हारे पांव सुदृढ़ता से जमायेगा। ''15

मुसिमानों द्वारा मक्का से मदीना सफितापूवाक प्रवासन से इस्लाम को नष्ट करने की कु रैशों की आशा को गहरा िक्का िगा था।
पररणामस्वरूप उन्ोंने रे ब्रगस्तान में यहां-वहां रह रहे नये-नये िमािंतररत मुसिमानों पर अत्ािार करते हुए उन्ें सताना प्रारं भ कर ब्रदया। पब्रवि
कु रआन ने कहा, ''तुम्हें हो क्ा गया है, जो तुम अल्लाह के मागा में जं ग नहीं करते। जबब्रक ब्रकतने ही ब्रनबाि पुरुि, लस्त्रयां और बच्चे हैं, जो
गुहार रहे हैं ब्रक हे अल्लाह! हमें इस स्थान से ब्रनकािकर उबार दे , जहां के ब्रनवासी अत्ािारी हैं और अपनी ओर से हमारे लिए ब्रकसी को खडा
कर दे, जो हमारी रिा करे, अपनी ओर से ब्रकसी को िा दे जो हमारी सहायता करे।"16 हुदैब्रबया के पिात मुसिमानों और मक्कावालसयों के बीि
दस विा की एक सं लि की गयी।

पर कु रैशों ने सं लि के उपबं िों का उल्लं घन ब्रकया और रसूि की प्रब्रतष्ठा को आघात पहुंिाने एवं उन्ें मदीना से ब्रनकाि बाहर करने के
लिये िियं ि ब्रकये। कु रआन मुसिमानों से पूछती है , ''क्ा तुम उन िोगों से जं ग नहीं करोगे, लजन्ोंने अपने विन भं ग ब्रकये हैं और रसूि को
ब्रनकाि बाहर करने का िियं ि ब्रकया है और जं ग तो उन्ोंने ही आरंभ ब्रकया है ? क्ा तुम उनसे भय खाते हो? नहीं, यब्रद तुम मोब्रमन हो तो
तुम्हारे लिये उलित होगा ब्रक तुम के वि अल्लाह से िरो।''17

तद्नुसार यह बताता है ब्रक कु रआन द्वारा अनुमन्य जं ग का प्रमुख उद्दे श्य अल्लाह का उद्दे श्य है। मानवीय दृब्रष्टकोण से यह अत्ािारी व
आततायी िोगों द्वारा ब्रनबाि, दुव्यावहार ब्रकये गये और उत्पीब्रडत िोगों को मुब्रक्त ब्रदिाने वािी पुकार थी। यह सामान्य रूप से मानवता के उद्दे श्यों
के लिये थी, न ब्रक ब्रवशेि रूप से मुस्लस्लम समुदाय का उद्दे श्य था। िाब्रमाक भेदभाव के ब्रबना िमास्थिों को बिाना और दुष्टों से मानवजाब्रत की
रिा करना वो उद्दे श्य थे जो वास्तव में सच्चे अथों में सावाभौब्रमक एवं मानवीय महत्व व उपयोब्रगता वािे थे। इस पूरे प्रकरण में जोलखमवाद ,

10 अन्फाि: 34
11 बकरा:2l7
12 बकरा: 244
13 ब्रनसा: 76
14 ब्रनसा: 84
15 मुहम्मद: 7
16 ब्रनसा: 75
17 तौबा: 13

29
सैन्यवाद, हठिब्रमाता, राष्टरीय ब्रहतों, व्यब्रक्तगत महत्वाकांिाओं एवं आलथाक आवश्यकता से ब्रकसी प्रकार की समानता नहीं थी। पुस्तक कु रआन
मानवजाब्रत के समि जं ग के कारणों के औलित् को आं कने के लिये सावा भौब्रमक मान्यता व अनुप्रयोग की वस्तुब्रनष्ठ कसौटी को भी प्रस्तुत करती
है। जं ग की अनुमब्रत के वि अत्ािार व आततायी बिों से िडने के लिये दी गयी है। वतामान समय की अंतरााष्टरीय व्यवस्था में ब्रक्रयालन्वत करने
के लिये जं ग के कु रआनी उद्दे श्यों की व्याख्या करते हुए िॉ हमीदुल्लाह ने अपने ब्रवद्वतापूणा अध्ययन 'द मुस्लस्लम कं िक्ट् आफ स्टे ट' में
पररस्लस्थब्रतयों के उस समुच्चय को लिब्रह्नत ब्रकया है, लजसके अंतगात मुस्लस्लम राज्य अपने प्रब्रतद्वंब्रद्वयों के साथ जं ग छे ड सकता है। उनकी दृब्रष्ट में
जं ग में तब कू दा जा सकता है, जब शिु ने मुसिमानों के िेि पर प्रत्ि रूप से आक्रमण ब्रकया हो अथवा वास्तब्रवक आक्रमण न करके भी
असहनीय व उकसाने वािा व्यवहार कर रहा हो। दंिात्मक, प्रब्रतब्रक्रयात्मक व ब्रनरोिात्मक उद्दे श्यों के लिये भी जं ग ब्रकया जा सकता है।

झगडे का ब्रनपटारा होने तक की गयी व्यवस्था के भं ग होने अथवा ब्रटकाऊ शांब्रत के लिये भी अस्थायी रूप से रोक दी गयी जं ग को
पुन: प्रारंभ ब्रकया जा सकता है। एक मुसिमान राज्य दूसरे राज्य में रह रहे उम्मा के िोगों से सहानुभूब्रत ब्रदखाते हुए भी सशस्त्र शिुता ठान
सकता है, पर यह सामान्य ब्रनयम नहीं है, अब्रपतु ऐसा करते समय योग्यता के आिार पर प्रत्ेक प्रकरण की समीिा के बाद कदम उठाया जाना
िाब्रहए।

30
अध्याय 4

युद् का ध्येय
जब आिुब्रनक सैन्य ब्रविार के जनक क्लाजब्रवट् ज ने युद् को 'अन्य सािनों द्वारा नीब्रत के सातत् के रूप में पररभाब्रित ब्रकया तो उन्ोंने
वास्तव में राजनीब्रत शास्त्र व अंतरााष्टरीय सं बं िों के ब्रवद्यालथायों के समि 'नीब्रत' के सं बं ि में लसद्ांत ब्रवकलसत करने की िुनौती प्रस्तुत की।
क्लाजब्रवट् ज ने इस प्रकार गाडी में घोडा िगा ब्रदया और नीब्रत-ब्रनमााताओं को राजनीब्रत के ब्रवज्ञान में गहन अनुसंिान करने को बाध्य ब्रकया।

यह 'नीब्रत' नहीं थी, लजसने 'युद्' के अथा, िेि, सीमाओं व ब्रवस्तारों को पररभाब्रित करने की पहि की। इसके ब्रवपरीत 'युद्' ने
'नीब्रत' को अपने मापदंि पररभाब्रित करने एवं ब्रनिााररत करने के लिये बाध्य ब्रकया। राष्टरीय उद्दे श्यों व िक्ष्यों, राष्टरीय ब्रहतों, राष्टरीय नीब्रत व युद् के
मध्य सं बं िों को स्थाब्रपत करने में मानव मस्लस्तष्क को सैकडों विा िगे तथा यह समझने में और भी अलिक समय िगा ब्रक युद् नीब्रत के अिीन
होता है। तथाब्रप, इस अवसर पर राजनीब्रतक वैज्ञाब्रनक नीब्रत को लसद्ांतपूणा बनाने के लिये उठ खडे हुए और उन्ोंने सं िेप में ब्रविार ब्रदया ब्रक
नीब्रत राष्टरीय ब्रहतों को प्राि करने के प्रयास का नाम है तथा कहा ब्रक जब असं गत ब्रकंतु महत्वपूणा राष्टरीय ब्रहत दांव पर िगे तो युद् नीब्रत का एक
सािन बन गयी। यद्यब्रप, राष्टरीय ब्रहतों के ब्रनिाारण के पीछे का औलित् क्ा था, वे यह बताने से िूक गये।

बनाािा िॉिी कहते हैं, ''राष्टरीय ब्रहत प्रकृ ब्रत द्वारा ब्रनलित नहीं ब्रकये जाते हैं और न ही ये िक्ष्य की ब्रकसी कसौटी के सामान्य-स्वीकृ त
मानक द्वारा लिब्रह्नत ब्रकये जा सकते हैं । ये तो बस उन ब्रवियों पर दोििम मानवीय ब्रनणाय से उत्पन्न होते हैं , लजन पर राष्टर के भीतर सहमब्रत
सामान्यत: कम सवास्वीकायाता वािी होती है।'' जैसा ब्रक आज हम सबको ज्ञात है ब्रक राष्टरीय ब्रहतों का ब्रनमााण आवश्यक रूप से और तालत्वक
रूप से शांब्रत के महत्व से होता है।

उसके ऐसा होने के कारण आज की अंतरााष्टरीय व्यवस्था में राष्टरीय ब्रहतों की अविारणा का ताब्रकाक पररणाम तनाव व युद् के रूप में
आता है, न ब्रक शांब्रत, सद्भावना, न्याय एवं समझ के रूप में। वास्तव में राष्टरीय ब्रहत एक सदोि व कभी न समाि होने वािा ऐसा िक्र आरं भ
करते हैं, लजसका सामान्य पररणाम 'युद्' होता है, न ब्रक 'शांब्रत'।

राष्टरीय ब्रहतों के इस दशान के ब्रवपरीत हमारे पास आलिकाररक रूप से कम से कम वह समानांतर ब्रविारिारा तो है, जो अलभव्यक्त
करता है ब्रक युद् का पररणाम एक ब्रटकाऊ व स्थायी शांब्रत होना िाब्रहए। इस ब्रविारिारा को मानने वािे लसद्ांतकार आदशावादी होते हैं तथा
उनके पास अपने पि को ब्रक्रयालन्वत करने के लिये कोई कायाप्रणािी नहीं होती है। लििि हटा का प्रेिण है , "युद् का िक्ष्य शांब्रत की अच्छी
अवस्था होता है, भिे ही यह आपके दृब्रष्टकोण से हो।'' ऐसा प्रतीत होता है ब्रक इस लसद्ांत का प्रब्रतपादन करने में लििि ने इस सरि ब्रनयम
की अनदेखी की है ब्रक शांब्रत तालत्वक रूप से ब्रद्वपिीय ब्रविय होता है। यह कल्पनातीत है ब्रक प्रब्रतस्पद्ी पिों में ब्रकसी प्रकार की सहमब्रत,
सामं जस्य अथवा सं योजन के अभाव में शांब्रत रहेगी। सि तो यह है ब्रक एक-पिीय शांब्रत आरोब्रपत करना राष्टरीय स्व-ब्रहत के बोि के लिये के वि
एक प्रलसद् प्रब्रक्रया भर है, लजसमें उसी प्रकार की जब्रटिताएं और पररणाम होते हैं। प्रथम ब्रवश्वयुद् के पिात जमानी पर आरोब्रपत एक-पिीय
शांब्रत का पररणाम यह रहा ब्रक 20 विा भी नहीं हुआ होगा और यह मानवजाब्रत के प्रब्रत शांब्रत व सुरिा िाने की अपेिा और अलिक रक्तपात व
अभाग िेकर आया।

याल्टा सम्मेिन ने ब्रद्वतीय ब्रवश्वयुद् को समाि ब्रकया तथा युद् के बाद की स्लस्थब्रत के लिये ब्रमि-राष्टरो ं की रणनीब्रत तैयार की।
अपयाािता व अदूरदलशाता वािी इस रणनीब्रत की बहुत आिोिना हुई। राजनीब्रत व युद् ब्रविय के अन्य ब्रवद्यालथायों जैसे ही जनरि फु िर भी इसके
मुखर आिोिक रहे। उनका तका यह था ब्रक ब्रमि-राष्टरो ं के नेताओं ने जमानी के अ-प्रब्रतबं िक आत्मसमपाण सुब्रनलित कराने की बेदी पर ब्रटकाऊ
शांब्रत के िक्ष्य को प्राि करने की महत्वपूणा आवश्यकता की बलि िढ़ा दी। यद्यब्रप महान सैन्य ब्रविारकों के पास उनको सुझाव दे ने के लिये कु छ
नहीं था। जब ब्रद्वतीय ब्रवश्व युद् थमने के ब्रनकट था तो ब्रमि-राष्ट् युद् की िेष्टा में अपने-अपने राष्टरीय ब्रहतों को हवा देने िगे। प्रबुद् राष्टरीय ब्रहत
लजससे ब्रनब्रमात हुए थे, उस ब्रविय में प्रत्ेक पि की अपनी-अपनी व्याख्या थी। रूस ने यूरोप के हृदय को जीतने में अपना ब्रहत देखा तो ब्रमि-
राष्टर जमानी की सैन्य शब्रक्त को नष्ट करने में अपना ब्रहत देख रहे थे।

31
जब कभी यूरोपीय राष्टरो ं ने एक-दूसरे को नष्ट करने के सािनों का ब्रवकास ब्रकया, तो उन्ें शांब्रत की भारी लिंता हुई। इस प्रकार का
वातावरण तब भी बना, जब ब्रवध्वं सकारी युद् समाि हुआ और ब्रहरोलशमा व नागासाकी पर परमाणु बम ब्रगराया गया। ब्रकंतु यह बहुत ब्रदनों तक
नहीं ििा। यूरोब्रपयों को शीघ्र ही समझ में आ गया ब्रक लजन उन शस्त्रों को कभी सम्पूणा और अंब्रतम माना जाता था, उनसे रिा के लिये सािन
हैं। ऐसा होते ही उनके सैन्य सं िािन कें द्रों व ब्रवध्वं सक तत्वों ने पुन: समझदारी वािे ब्रविारों को पीछे छोड ब्रदया। 'दो देशों के मध्य सं बं ि
सुिार व ब्रनवारण' का वतामान युग इसी प्रकार के उद्दे श्यों को रेखांब्रकत करता है। मानव मस्लस्तष्क में शांब्रत का ब्रविार के वि तब आता है , जब
'आत्महत्ा' और 'सह-अस्लस्तत्व' के मध्य ब्रवकल्प िुनना हो। उनका जन्म स्वीकृ त अथवा स्थायी नीब्रत या लसद्ांत से नहीं होता , वरन् उनकी सह-
उत्पब्रत्त सं कटकाि में होती है। वे अतीत में समय की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं और न ही वतामान में वैलश्वक शांब्रत के लिये ब्रटकाऊ पररणाम
देने वािे हैं। वास्तव में वे तो भब्रवष् में भी उपयुक्त भूब्रमका ब्रनभाने योग्य नहीं हैं।

इब्रतहास में अनेक उदाहरण हैं, जो बताते हैं ब्रक तथाकलथत सं लियां व रिात्मक गठबं िन के वि युद् को स्थायी बनाने के लिये की
गयी थीं। ब्रहटिर ने लिखा है, ''ऐसा कोई भी गठबं िन लजसका उद्दे श्य युद् िडना न हो, मूखातापूणा व आिारहीन होता है।'' ब्रद्वतीय ब्रवश्वयुद्
का बीज तभी पड गया था, जब प्रथम ब्रवश्व युद् को समाि करने के लिये वसेल्स की सं लि हुई। 1938 में ब्रहटिर ने तब अपने लसद्ांत का
प्रदशान ब्रकया, जब उसने रूस के साथ समझौता ब्रकया और फ्रांस को जीतने के बाद उसी रूस पर आक्रमण कर ब्रदया। आज के वो समस्यापरक
ब्रबंदु जो अगिे युद् को जन्म दे सकते हैं वे प्रत्ि या परोि रूप से उस याल्टा सम्मेिन के पररणाम हैं, लजसमें ब्रमि-राष्टरो ं के नेताओं ने युद् के
बाद के ब्रवश्व का मानलिि खींिा था। इब्रतहास के आिुब्रनक काि में भारत ने उस छि के अंतगात रूस के साथ 'ब्रमिता' की सं लि की है, लजसके
अंतगात उसने पाब्रकस्तान पर आक्रमण ब्रकया और ब्रवभालजत ब्रकया। 'कू टनीब्रत' की इस आिुब्रनक अविारणा पर प्रकाश िािने के लिये कई अन्य
उदाहरण भी ब्रदये जा सकते हैं। पब्रवि कु रआन ने मुसिमानों को जं ग का आश्रय िेने की अनुमब्रत देने के कु छ ही समय बाद अल्लाह की जं ग
का उद्दे श्य मूब्रतापूजकों से साथ जं ग करना बता ब्रदया था।

कु रआन ने आदे श ब्रदया, ''उनसे िडतो रहो, जब तक ब्रक ब्ऱित्ना और अत्ािार समाि न जाए और न्याय व अल्लाह में ब्रवश्वास न आ
जाए।''1 ऐसे ही ब्रनदेश बद्र की जं ग समाि होने के बाद दोहराये गये। इस अवसर पर पब्रवि कु रआन ने ब्रनदेश ब्रदया, ''उनसे िडतो रहो, जब
तक ब्रक ब्ऱित्ना और अत्ािार समाि न हो जाए और न्याय न व्याि हो जाए तथा सबमें और सब स्थान पर अल्लाह में ब्रवश्वास न आ जाए।"2 इन
आदेशों ने इस जं ग के पीछे के अल्लाह के पूणा व अंब्रतम उद्दे श्यों की नींव रख दी , लजसके अनुसार जं ग का ध्येय शांब्रत, न्याय और अल्लाह में
ब्रवश्वास स्थाब्रपत करना होता है। जैसा ब्रक ब्रपछिे अध्याय में बताया गया है ब्रक इस प्रकार की स्लस्थब्रतयों के ब्रनमााण के कारण अत्ािार व उत्पीडन
का अंत करना समय की मांग थी। प्रकृ ब्रत में तो अत्ािार व उत्पीडन के उन्मूिन के अनेक रूप थे , पर तालत्वक रूप से इसका अलभप्राय पब्रवि
मस्लजजद में मुसिमानों के नमाज पढ़ने के अलिकार को पुनस्थााब्रपत करना था।

इस उद्दे श्य की प्राब्रि के प्रारंलभक स्तरों पर पब्रवि कु रआन ने मूब्रतापूजकों को सुसंगत व शांब्रतपूणा स्लस्थब्रतयों के ब्रनमााण में सहयोग व
योगदान के लिये उदारवादी अनुमब्रत व छू ट दी। इस अवलि में जं ग की स्लस्थ ब्रत को समाि करने के अवसर को भुनाने के लिये बाध्य करने हेतु
मोब्रमनों पर अनेक सं तुिन व ब्रनयं िण थोपे गये। मोब्रमनों को ब्रनदेश ब्रदया गया ब्रक प्रब्रतद्वंब्रद्वयों द्वारा शिुता समाि करने अथवा सं लि करने के
प्रत्ेक प्रयास में वे सहयोगी दृब्रष्टकोण अपनायें। कु रआन ने ब्रनदे श ब्रदया, ''यब्रद वे रुक जाते हैं तो उनके प्रब्रत शिुता का भाव समाि कर दो,
के वि उन्ें छोडकर जो अत्ािार कर रहे हों।''3 इसमें आगे बि देकर कहा गया, ''हे मोब्रमनो! उनसे उस समय तक जं ग करो, जब तक ब्रक
ब्ऱित्ना (अत्ािार व उपद्रव) समाि न हो जाए और जब तक ब्रक प्रत्ेक व्यब्रक्त में और प्रत्ेक स्थान पर के वि अल्लाह का मजहब व्याि न हो
जाए। तो यब्रद वे (अत्ािार से) रुक जाएं तो अल्लाह उनके कमों को देख रहा है। यब्रद वे अल्लाह को न स्वीकार करें , तो ब्रनलिंत रहो अल्लाह
तुम्हारा रिक है। अल्लाह ही तुम्हारा सवाश्रेष्ठ रिक और तुम्हें सहायता करने वािा है।''4 पब्रवि कु रआन ने यह आदेश भी ब्रदया, ''यब्रद वे रुक

1 बकरा: 193
2 अन्फाि: 39
3 बकरा: 193
4 अन्फाि: 39-40

32
जाएं , अल्लाह को मान िें तो अल्लाह सदा िमा करने वािा और दयावान् है।" 5 इसका आशय है ब्रक उस स्लस्थब्रत में शिु के प्रब्रत कोई द्वेि नहीं
था। मुसिमानों को अपने अल्लाह के सदा िमाशीि व अब्रत-दयािु प्रकृ ब्रत का अनुसरण करते हुए उनके अपरािों को िमा कर दे ना था। इसी
प्रकार कु रआन ने मोब्रमनों को आदे श ब्रदया, "ब्रकंतु यब्रद शिु शांब्रत की ओर बढ़े तो तुम भी शांब्रत की ओर बढ़ो। अल्लाह में ब्रवश्वास रखो, क्ोंब्रक
के वि वही है जो सबकु छ सुनता है और सबकु छ जानता है। यब्रद वे छि करने की मं शा रखेंगे तो ब्रनलित ही अल्लाह उनके लिये पयााि है।" 6

शिु के शांब्रत की ओर बढ़ने पर उपयुक्त व्यवहार करने के अल्लाह के कथन से उनके साथ सं लि व गठबं िन करने को िेकर प्रश्न उठे ,
लजसके लिये एक सुस्पष्ट लसद्ांत व कायाप्रणािी ब्रनिााररत की गयी। इस ब्रविय पर पब्रवि कु रआन ने मुसिमानों को न्याय, समानता व पारस्पररक
आदान-प्रदान पर आिाररत लसद्ांत प्रदान ब्रकया। यह वो लसद्ांत था जो मनुष् व अल्लाह के बीि समझौते पर भी उतना ही सम्प्रयुक्त होता है ,
लजतना ब्रक राष्टरो ं व राज्यों के मध्य सं लियों व गठबं िनों पर। मनुष् और अल्लाह के मध्य समझौते के ब्रविय में पब्रवि कु रआन इस्राइलियों को
ब्रदये गये अल्लाह के विन का स्मरण कराते हुए कहती है , ''हे इस्राइि के बच्चों! मेरे (अल्लाह के ) उस ब्रवशेि उपकार का स्मरण करो, जो मैंने
तुम पर ब्रकया। मुझे ब्रदया गया विन पूरा करो, मैं तुम्हें अपना ब्रदया विन पूरा करूंगा तथा मुझी से िरो।"7 लजन्ोंने अल्लाह से समझौता करने
के बाद उसे तोडा और ब्रवध्वं स व दुष्टता करने िगे, कु रआन ने उनको िेतावनी दी। कु रआन कहती है , ''एक बार अल्लाह से समझौता करने के
बाद जो इसे तोडते हैं और वो अल्लाह ने जो करने को कहा है उसे नहीं करते हैं, िरती पर दुष्टता करते हैं, उनको इसका बुरा पररणाम भोगना
होगा।''8 जैसा ब्रक मनुष् और अल्लाह के मध्य समझौते का प्रकरण है , वैसे ही अंतर-राज्यीय समझौतों में भी सं लियों का उत्तरदाब्रयत्व व
ब्रवब्रनमय ब्रद्वपिीय होते हैं। यब्रद मूब्रतापूजक समझौते के उपबं िों का उल्लं घन करते हैं तो मुसिमान अपनी ओर समझौते में ब्रदये गये विन को
पूरा नहीं कर सकते हैं। वे अपने विन को तभी पूरा कर सकते हैं , जब सामने वािा पि भी समझौते का वैसा ही आदर करे। अंतर-राज्यीय
समझौतों के ब्रविय में उनको अल्लाह की ओर से आदे श ब्रदया गया है, ''जब तक तुम इसे सत् मानोगे, वो भी इसे सत् मानेंगे। क्ोंब्रक
अल्लाह सच्चाई को प्यार करता है।''9 उन मूब्रतापूजकों का क्ा, लजन्ोंने ब्रवब्रनयम के लसद्ांत को तोडा था और अपनी सं लियां समाि कर दी थीं?

कु रआन ने इस पर मुसिमानों से कहा है, ''ये वही िोग हैं, लजनके साथ तुमने समझौता ब्रकया था, पर वे प्रत्ेक बार अपना विन
भं ग कर देते हैं और अल्लाह से नहीं िरते हैं। ऐसे िोग जब ब्रमिें तो उनसे िडकर उन पर ब्रनयं िण करो , उन्ें दंि दो, लजससे ब्रक जो उनके
साथ हैं उनको सबक ब्रमिे।''10 यद्यब्रप कु रआन ने मुसिमानों को अनुमब्रत दी ब्रक यब्रद उन्ें सं देह हो ब्रक मूब्रतापूजक द्रोह करेंगे तो उनके साथ की
गयी सं लियों को समाि कर दो। इसमें कहा गया, ''यब्रद तुम्हें ब्रकसी समूह से द्रोह (सं लि भं ग करने) का भय हो तो तुम बराबरी के आिार पर
उनसे की गयी सं लियों को तोड दो। क्ोंब्रक अल्लाह द्रोब्रहयों से प्रेम नहीं करता।"11 बाद में एक अवसर पर पब्रवि कु रआन ने आदेश ब्रदया, ''तो
यब्रद वे विन दे ने के बाद भी अपनी शपथ तोड दें , तुम्हारे मजहब पर ताना मारें , तो ऐसे काब्रफरों के मुलखया से जं ग करो और इस प्रकार उन्ें
रोको। क्ोंब्रक उनकी दृब्रष्ट में शपथ का कोई मोि नहीं।" 12

उपरोक्त नीब्रत 622 से 629 ईस्वी के िगभग 8 विा की अवलि तक प्रभावी रही। इस अवलि में कु छ मूब्रतापूजक जनजाब्रतयां
मुसिमानों से की गयी सं लियों के प्रब्रत प्रब्रतबद् रहीं, लजससे मुसिमान भी सं लि के बं िों व उपबं िों का पािन उसकी मूि भावना में करते रहे।
यद्यब्रप उनमें से अलिकांश प्रत्ेक बार कब्रठन स्लस्थब्रत से समय पर बि ब्रनकिने के लिये सं लि करते और ब्रफर जैसे ही उनको मुसिमानों पर बढ़त
पाने अथवा हाब्रन पहुंिाने का अवसर ब्रमिता तो वे समझौते को छोड दे ते। इतनी िं बी सहनशीिता के बाद अल्लाह ने अंतत: इस प्रकार के
असं तुष्ट और द्रोही समूहों से ब्रनपटने का आदे श ब्रनगात ब्रकया। यह ब्रनणाय ब्रकया गया ब्रक अब उनके साथ हुई सं लियों को िेकर मुसिमानों पर

5 बकरा: 192
6 अन्फाि: 61-62
7 बकरा: 40
8 बकरा: 27
9 तौबा: 1
10 अन्फाि: 56-57
11 अन्फाि: 54
12 तौबा: 12

33
कोई उत्तरदाब्रयत्व नहीं है और यह भी ब्रनणाय हुआ ब्रक ऐसी समस्त सं लियां समाि कर दी जाएं । ब्रहजरत के नौवें विा आये अल्लाह के आदे श में
लिखा गया है, ''अल्लाह तथा उसके रसूि की ओर से उस सं लि से मुक्त होने की घोिणा है, जो तुमने मूब्रतापूजकों के साथ की है।''13 इस सं बं ि
में औपिाररक आदेश तब आया, जब इसके कु छ समय पिात मक्का में तीथायािा के लिये अरब की जनजाब्रतयां जुटीं। इसमें कहा गया , ''महा
ह़ज के ब्रदन एकब्रित िोगों के लिये अल्लाह और उसके रसूि की ओर से सावाजब्रनक सूिना है ब्रक अल्लाह और उसके रसूि मूब्रतापूजकों के साथ
ब्रकये गये सभी समझौतों को ब्रनरस्त करते हैं।14

मूब्रतापूजकों के साथ तुमने जो समझौता ब्रकया था, उसे ब्रनरस्त ब्रकया जाता है और िार मास की कृ पा-अवलि दी जा रही है, लजसमें वे
अपनी रणनीब्रत पुन: बना सकें । कु रआन ने कहा, ''हे काब्ऱिरो! तुम िरती पर िार मास स्वतं ि होकर होकर घूम-ब्रफर िो, पर यह जान िो ब्रक
तुम अल्लाह को ब्रनष्फि नहीं कर सकते। जो अल्लाह को नहीं मानेंगे, अल्लाह उन्ें अपमाब्रनत करेगा।"15 पब्रवि कु रआन ने ब्रनदेलशत ब्रकया ब्रक
यब्रद वे इस समय का िाभ उठाने में ब्रवफि रहते हैं तो 'जहां पाओ, वहीं मूब्रतापूजकों से िडो और उन्ें काट िािो।'16 यद्यब्रप सवा-सामर्थ्ावान
अल्लाह ने एक अवसर ब्रदया और कहा ब्रक जो ब्रवश्वासपूवाक अपनी प्रब्रतज्ञा को पूरा करते हैं , उनके साथ अवलि समाि होने तक गठबं िन बनाये
रखें। अल्लाह ने आदे श ब्रदया, "वे मूब्रतापूजक लजनके साथ तुमने सं लि की है और लजन्ोंने तुम्हारे साथ सं लि ब्रनभाने में कोई कमी नहीं की है और
न ही तुम्हारे ब्रवरुद् ब्रकसी की सहायता की है , उनसे सं लि की अवलि पूरी होने तक ब्रनभाओ। ब्रनलित ही अल्लाह आज्ञाकाररयों से प्रेम करता
है।"17 इन आयतों ने मुसिमानों को उनकी सं लि की प्रब्रतबद्ताओं को सं ब्रवदा अवलि तक पूरा करने का आदेश ब्रदया, पर उन्ें ब्रकसी भी
पररस्लस्थब्रतयों में सं लि को दोबारा न करने की िेतावनी दी।

इन ब्रनणायों के पीछे के औलित् की व्याख्या करते हुए कु रआन ने कहा , ''लजनसे तुमने पब्रवि मस्लजजद (काबा) के पास सं लि की थी
उन्ें छोडकर, इन मुलश्रकों (मूब्रतापूजकों) की कोई सं लि अल्लाह और उसके रसूि के साथ कै से हो सकती है? तो जब तक वे तुम्हारे प्रब्रत सच्चे
रहें, तो तुम भी उनके लिए सीिे रहो। वास्तव में अल्लाह आज्ञाकाररयों से प्रेम करता है। ''18 इन ब्रनदेशों के अनुसार बनू हम्ज़ा और बनू ब्रक़नाना
की वो जनजाब्रतयां लजन्ोंने पब्रवि मस्लजजद के समीप सं लि की थी और ब्रनष्ठापूवाक सं लि के बं िनों का पािन ब्रकया था , उन्ें छोड ब्रदया गया और
उनकी सच्चाई का पूरा िाभ ब्रदया गया। पब्रवि कु रआन ने इस ब्रबंदु पर आगे कहा, ''कै से (इस प्रकार का गठबं िन हो सकता है), और उनकी
सं लि कै से रह सकती है, जबब्रक वे यब्रद तुम पर अलिकार पा जाएं , तो ब्रकसी सं लि और ब्रकसी विन का पािन नहीं करेंगे। वे तुम्हें अपने शब्दों से
बहका देते हैं, पर उनके हृदय से वे तुम्हारे ब्रवरोिी हैं। उनमें से अलिकांश ब्रवद्रोही और दुष्ट हैं।" 19

कु रआन ने उन पर अपना ब्रनणाय ब्रदया, ''उन्ोंने अल्लाह की आयतों के बदिे तब्रनक मूल्य क्रय कर लिया और िोगों को अल्लाह के
मागा से रोक ब्रदया। उन्ोंने जो काया ब्रकया है , वो वास्तव में पाप है। वह ब्रकसी मोब्रमन के ब्रविय में ब्रकसी सं लि और विन का पािन नहीं करते!
ये वही हैं, लजन्ोंने सारी सीमाओं का उल्लं घन ब्रकया है।"20

यद्यब्रप, कु रआन ने उन िोगों के करुणा और िमा का द्वार खोिा था, लजन्ोंने अंतमान से प्रायलित ब्रकया। पब्रवि कु रआन कहती है ,
''यब्रद तब तुम िमा यािना कर िो, यही तुम्हारे लिए उत्तम है और यब्रद तुमने अस्वीकार ब्रकया, मुं ह फेरा, तो जान िो ब्रक तुम अल्लाह को
ब्रनष्फि नहीं कर पाओगे। उनके लिये कठोर दंि की घोिणा करो, जो इस्लाम को मानने से अस्वीकार करते हैं।" 21 साथ ही इसमें कहा गया,

13 तौबा: 1
14 तौबा: 3
15 तौबा: 2
16 तौबा: 5
17 तौबा: 4
18 तौबा: 7
19 तौबा: 19
20 तौबा: 9-10
21 तौबा: 3

34
''जब पब्रवि मास बीत जाएं तो मूब्रतापूजकों की घात में रहो, उन्ें जहां पाओ वहीं पकडो, घेरो और उनकी हत्ा कर दो। यब्रद वे प्रायलित करें
और ब्रनयब्रमत नमाज पढ़ें , ब्रनयब्रमत जकात दें तब उन्ें छोडो। क्ोंब्रक अल्लाह सदा िमाशीि, सवाालिक दयािु है।"22 एक अन्य अवसर पर
कु रान कहती है, ''ब्रकंतु वैसे भी, यब्रद वे (लशका अथाात अल्लाह को न मानने के अपराि से) प्रायलित करें , ब्रनयब्रमत नमाज पढ़ें और ब्रनयब्रमत
जकात दें तो वे तुम्हारे मजहबी बं िु हुए। इस प्रकार की बातों को जो समझते हैं, उनके लिये हम ब्रवस्तृत रूप से आयतों का वणान कर रहे हैं।" 23

यह स्मरण रहे ब्रक िगभग 8 विों तक मूब्रतापूजक मुसिमानों के ए पब्रवि मस्लजजद में जाने के अलिकार को अस्वीकार करते रहे और
उन्ें उसमें नमाज पढ़ने से रोकते अस्वीकार करते रहे। जब मुसिमानों ने मक्का जीत लिया, तो भी मूब्रतापूजकों ने मक्का जाना और वहां पर अपने
िाब्रमाक अनुष्ठान करना ब्रनरंतर रखा और इसके िगभग एक विा के पिात अल्लाह की घोिणा ने उनकी इस परंपरा को प्रब्रतबं लित कर ब्रदया।
कु रआन ने आदे श ब्रदया, ''जो अल्लाह को एकमाि ईश्वर नहीं मानते, वे अल्लाह के मस्लजजद में जाने अथवा वहां रहने योग्य नहीं हैं। उनको
उसकी देखभाि करने का अलिकार नहीं है। क्ोंब्रक वे तो स्वयं ही अपने ब्रवरुद् कु फ़्र (इस्लाम को न मानने) के सािी हैं। ऐसे िोगों के पुण्य
काया व्यथा हैं और वे सदा-सदा के लिये नका की आग में जिते रहेंगे।"24

पब्रवि कु रआन आगे कहती है, ''अल्लाह की मस्लजजद में के वि वही जा सकते हैं, वही उसका अनुरिण कर सकते हैं जो अल्लाह व
प्रिय का ब्रदन (कयामत) में ब्रवश्वास करते हैं, ब्रनयब्रमत नमाज पढ़ते हैं, ब्रनयब्रमत जकात देते हैं और अल्लाह के अब्रतररक्त ब्रकसी से भयभीत नहीं
होते। यही वो िोग हैं, लजनसे सत् के मागा पर होने की अपेिा की जाती है।''25 सवा-सामर्थ्ावान अल्लाह ने मोब्रमनों से कहा, ''हे अल्लाह को
मानने वािो! मूब्रतापूजक गं दे िोग हैं, अत: इस विा के पिात् वे पब्रवि मस्लजजद (काबा) के समीप भी न आने पायें।''26 िूं ब्रक मक्का में सस्लम्मिन
से उन िोगों के व्यापार व वालणज्य में िाभ होता था, तो कु रआन ने कहा ब्रक मूब्रतापूजकों के न आने से होने वािी आलथाक हाब्रन का भय अपने
मन में न पािो। कहा गया, ''यब्रद अल्लाह िाहेगा तो शीघ्र ही तुम्हें िनी बनायेगा, क्ोंब्रक वो सबकु छ जानता है, वो सवाज्ञानी है।"27

अरब में ब्रनवास करने वािे ईसाइयों व यहब्रदयों समेत लजन िोगों ने भी इस्लाम स्वीकार नहीं ब्रकया , अंब्रतम िरण में उनसे कहा गया
ब्रक उनके पास या तो 'इस्लाम की अिीनता स्वीकार करने अथवा जं ग का सामना करने ' का ब्रवकल्प है। उनसे कहा गया ब्रक शरणागत होने के
प्रतीक के रूप में वे इस्लामी राज्य को 'जलजया' दें। तकनीकी भाव में 'जलजया' का मूि अथा 'िब्रतपूब्रता' है और यह कर उन पर िगाया जाता
था, लजन्ोंने इस्लाम स्वीकार नहीं ब्रकया, पर इस्लामी राज्य में रहने को इच्छु क थे और अपने अंतकरण की व्यब्रक्तगत स्वतं िता िाहते थे। जैसा
ब्रक अल्लामा अब्दुल्ला यूसुफ अिी ने व्याख्या की है ब्रक जलजया के वि शारीररक रूप से सिम पुरुिों पर िगने वािा व्यब्रक्त कर था जो आं लशक
रूप से प्रतीकात्मक और आं लशक रूप से सैन्य सेवा के ब्रवब्रनमय के लिये था। ब्रकंतु इसकी रालश छोटी थी और इसमें भी अनेकों प्रकार की छू ट थी
तो इसका प्रतीकात्मक गुण ही प्रिान रहा। पब्रवि कु रआन ने आदेश ब्रदया है , ''उनसे जं ग करो जो न तो अल्लाह में ब्रवश्वास िाते हैं , न कयामत
में उनका ब्रवश्वास है, न ही अल्लाह और उसके रसूि द्वारा वलजात (हराम) घोब्रित ब्रकये गये कायों को करने से बिते हैं, न सत् के मजहब
इस्लाम छोडकरको स्वीकार करते हैं तो (भिे ही वे) इस पुस्तक में उल्ललखत िोगों में से हैं , जब तक ब्रक वे शरणागत होने की इच्छा के साथ
जलजया न दें और स्वयं को परालजत न अनुभव करें ।" 28

जं ग के िक्ष्यों पर अल्लाह के ब्रनदे शों में 'लछपे हुए' शिुओ ं अथाात बहुरूब्रपयों के प्रब्रत मुस्लस्लम नीब्रत भी आती है। उहुद में इन
बहुरूब्रपयों द्वारा ब्रकये गये द्रोह के कारण मुसिमान ब्रवपब्रत्त में पडते -पडते बिे थे और ऐसे द्रोब्रहयों से कै से ब्रनपटना है , इस पर एकमत नहीं था।

22 तौबा: 5
23 तौबा: 11
24 तौबा: 17
25 तौबा: 18
26 तौबा: 28
27 तौबा: 28
28 तौबा: 29

35
अल्लाह का आदे श आया, ''तुम्हें क्ा हुआ है ब्रक दुब्रविावाब्रदयों (मुनाब्ऱिक़ों) के ब्रविय में दो पिों में बं ट गये हो? जबब्रक अल्लाह ने
उनके (बुरे) कायों के कारण उनमें घबराहट उत्पन्न कर दी है। लजन्ें अल्लाह ने मागा से च्युत कर ब्रदया हो, क्ा वो कभी मागा पायें ग?े लजसे
अल्लाह ने मागा से हटा ब्रदया है, वह कभी मागा नहीं पायेगा।"29 पब्रवि कु रआन ने मुसिमानों को दुब्रविावाब्रदयों की मं शा पर यह कहते हुए
सिेत ब्रकया, ''हे मोब्रमनो! वे तो कामना ही यही करते हैं ब्रक उन्ीं के समान तुम भी काब्रफर हो जाओ और उन्ीं की भांब्रत हो जाओ। अतः
उनमें से ब्रकसी को ब्रमि न बनाओ, जब तक ब्रक वे अल्लाह के मागा पर न िि पडें।''30 उनके लिये क्ा नीब्रत हो, इस पर पुस्तक कु रआन दो
वैकस्लल्पक कारावाइयों का सुझाव देती है। पहिा तो यह परामशा देती है ब्रक जब तक ब्रक काब्रफर अल्लाह के मागा पर न िि पडें (और जो हराम
है वह करना छोड न दें , मोब्रमन उनमें से ब्रकसी को भी ब्रमि नहीं बनायें), 31 अथाात यह ब्रक जब तक ब्रक वे हार न मान िें तथा आदेशों का
उल्लं घन करना न बं द कर दें। दूसरा यह ब्रक यब्रद वे मजहब छोड दे ते हैं और भाग जाते हैं , तो कु रआन का आदेश है 'उन्ें पकडो और जहां
पाओ वहीं काट िािो।'32

इन ब्रनयमों के साथ िमादान के लिये दो अपवाद भी छोडे गये। पहिा अपवाद उन दुब्रविावाब्रदयों (इस्लाम छोडने वािों) के लिये
था, जो ब्रकसी ऐसे समूह में सस्लम्मलित हो गये हों लजनके साथ मुसिमानों ने शांब्रत सं लि की हो। दूसरा अपवाद यह था ब्रक ऐसे िोग जो तुम्हारे
पास इस स्लस्थब्रत में आयें ब्रक उन्ें तुमसे भी युद् करने में सं कोि िग रहा हो और तुम्हारे साथ ब्रमिकर उन्ें अपनी जाब्रत के िोगों के ब्रवरुद् जं ग
करने में भी सं कोि हो।''33

लजन िोगों को िमादान ब्रदया जा सकता है, उनके इन दो वगों के ब्रवपरीत एक तीसरा वगा भी था लजसे सवाालिक खतरनाक माना
गया और उनके साथ कठोरता से ब्रनपटा गया। यह वगा वो था लजसने एक ओर मुसिमानों का ब्रवश्वास प्राि करते रहने और दूसरी ओर अपने
िोगों में भी ब्रवश्वस्त बने रहने के लिये जोड-तोड ब्रकया तथा यब्रद उनका स्वाथा लसद् हो रहा हो तो वे दोनों में से ब्रकसी भी पि के साथ
ब्रवश्वासघात करने को तैयार थे। ऐसे िोगों से ब्रनपटने के लिये पब्रवि कु रआन ने ब्रनदे श ब्रदया, ''यब्रद वे तुमसे दूर नहीं होते और न ही तुम्हें शांब्रत
का आश्वासन देते हैं, न अपना हाथ रोकते हैं तो उन्ें पकडो और जहां पाओ उनकी हत्ा कर दो। हमने तुम्हें उनके ब्रवरुद् स्पष्ट युब्रक्त बतायी
है।"34 ये ब्रनदेश हमें आज के लछपे हुए शिुओ ं के लिये उपयुक्त नीब्रत व रणनीब्रत बनाने का आिार प्रदान करती है। ये लछपे हुए शिु स्वयं को
राज्य-ब्रवरोिी तत्वों, शिु के एजेंटों, देशद्रोब्रहयों, मत प्रिारकों और पिपात करने वािों के रूप में ब्रमिते हैं। यब्रद वे खतरनाक िियं िों में िटे रहें
तो उनके साथ वैसे ही ब्रनपटा जाए, लजस प्रकार ज्ञात अथवा घोब्रित शिु से ब्रनपटा जाता है। पुन: सं िेप में दोहराते हुए कहना है ब्रक कु रआनी
पररप्रेक्ष्य में जं ग के िक्ष्य शांब्रत, न्याय व मजहब के उद्दे श्यों को प्राि करना होता है। इन िक्ष्यों की प्राब्रि के लिये अत्ािार व आततायी बिों को
नष्ट करना आवश्यक है। आब्रवभााव के प्रारंलभक स्तरों पर पब्रवि कु रआन ने जं ग की स्लस्थब्रत को समाि करने और शांब्रत व सद्भाव की दशा का
ब्रनमााण करने में योगदान दे ने के उद्दे श्य से उनको बुिाने के लिये शिुओ ं के प्रब्रत उदार अनुमोिन (छू ट) ब्रदये थे। सं लियों व गठबं िनों को करते
समय समानता व पारस्पररक ब्रवब्रनमय की ब्रवलि अपनायी गयी। ब्रकंतु जब शिु अल्लाह के अनुमोिन को एक के बाद एक अस्वीकार करता गया,
तो कठोर कदम उठाना आवश्यक हो गया। लजन िोगों ने मुसिमानों के साथ द्रोह ब्रकया था , उनसे की गई सं लि के विन तोडने की अनुमब्रत दी
गयी, पर जो मुसिमानों के प्रब्रत ब्रनष्ठावान व सच्चे रहे उनके साथ सं लि के विन ब्रनभाने का कठोर आदे श ब्रदया गया। दया , करुणा व
िमाशीिता के लिये द्वार सदा खुिे रखे गये और लजन्ोंने शुद् अंत:करण से प्रायलित ब्रकया उन्ें िमा कर ब्रदया गया। ब्रन णाायक स्तर पर
मूब्रतापूजकों को पब्रवि मस्लजजद में उनके अनुष्ठान करने से रोक ब्रदया गया और लजन्ोंने इस्लाम स्वीकार नहीं ब्रकया उन्ें या तो इच्छा से अिीनता
स्वीकार करने के प्रतीक के रूप में जलजया कर का भुगतान करने अथवा जं ग का सामना करने को कहा गया। लजन्ोंने जलजया कर का भुगतान
ब्रकया, उन्ें मुस्लस्लम राज्य का सं रिण और िमा की स्वतं िता प्रदान की गयी।

29 ब्रनसा: 88
30 ब्रनसा: 89
31 ब्रनसा: 89
32 ब्रनसा: 89
33 ब्रनसा: 90
34 ब्रनसा: 91

36
अध्याय 5

युद् की प्रकृ ब्रत व आयाम


पारंपररक लिंतन में युद् की प्रकृ ब्रत व प्रारूप के ब्रविय में कहा जाता है ब्रक यह सतत् पररवतान व उब्रद्वकास की अवस्था में है। युद् के
इब्रतहास व लसद्ांत के क्रब्रमक-ब्रवकास व प्रब्रक्रयात्मक प्रगब्रत के ब्रवलभन्न स्तरों पर सैन्य ब्रविारकों ने युद् की प्रकृ ब्रत, प्रारूप, आयामों व ििणों पर
पृथक-पृथक लसद्ांत प्रब्रतपाब्रदत ब्रकये हैं। िगभग 18वीं सदी तक युद्शास्त्र के ब्रवद्याथी युद् के भौब्रतक आयामों से ही पररलित थे। वैसे ब्रपछिी
दो शतास्लब्दयों से सैन्य लसद्ांतकारों व उसके प्रलसद् अभ्यासकतााओ ं दोनों ने युद् की योजना व सं िािन में सब्रन्नब्रहत नैब्रतक व मनोवैज्ञाब्रनक
कारकों को भी पहिानना प्रारं भ कर ब्रदया था। जैसे-जैसे समय बीता, इन कारकों ने और अलिक महत्व िारण ब्रकया। उत्तरोत्तर मनोवैज्ञाब्रनक
कारक को ब्रनणाायक तत्व के रूप में दे खा जाने िगा। युद् के भौब्रतक आयामों को ब्रद्वतीयक महत्व की स्लस्थब्रत में िे जाकर रख ब्रदया गया , क्ोंब्रक
उपयुक्त नैब्रतक व मनोवैज्ञाब्रनक आिारों के ब्रबना वे अथाहीन पाये गये।

यूरोप के सैन्य इब्रतहास में नेपोलियन अग्रणी था, लजसने युद् में भौब्रतक कारण की अपेिा इसके मनोवैज्ञाब्रनक कारक के प्रिानता पर
बि ब्रदया और इसका प्रदशान ब्रकया। बाद में क्लाजब्रवट्ज ने इसे लसद्ांत रूप में गढ़ा। लििि हटा ने ईसाई िमायुद् के तत्वों को स्थाब्रपत ब्रकया
और उन्ोंने मनोवैज्ञाब्रनक कारक को युद् के सवाालिक ब्रनणाायक तत्व के रूप में देखा। अनेक िेिों में क्लाजब्रवट् ज के मुखर आिोिक रहे हटा ने
युद् के नैब्रतक कारकों को सामने िाने में उनके योगदान को मान्यता दी। लििेि हाटा ने स्वीकार ब्रकया , ''युद्शास्त्र में क्लाजब्रवट् ज का सबसे
बडा योगदान युद् के मनोवैज्ञाब्रनक कारकों पर बि दे ना है। उस समय प्रिलित भौगोलिक ब्रविारिारा के ब्रवरुद् मुखर होते हुए उन्ोंने दशााया
ब्रक युद् की पररिािात्मक िारा व कोण की अपेिा इसकी मानवीय भावना ब्रनलित रूप से अलिक महत्वपूणा है।"

तब से मनोवैज्ञाब्रनक युद्क अलभयान वास्तव में युद् का ब्रवलशष्ट व स्वीकृ त शाखा बन गया। इस ब्रविय पर और भी अध्ययन ब्रकये गये
हैं। कनाि बन्सा ने अपनी पुस्तक 'द आटा ऑफ वार ऑन िैण्ड' में िार पिों के ऐसे समूह को लिब्रह्नत ब्रकया है , जो उनकी दृब्रष्ट में युद् में ब्रवजय
के लिये सं युक्त हुईं। बन्सा के ये पि लजसके ब्रविय में उन्ोंने कोई सापेि महत्व नहीं जोडा, वे थे कमांिर, सेना, मनोबि व सं सािन। कमांिर
की शब्रक्त उसके व्यब्रक्तत्व, ज्ञान व योजना की िमता से ब्रनिााररत होती है, जबब्रक सेना की शब्रक्त उसके प्रलशिण व तकनीकी दिता से ब्रनलित
होती है। युद् में ब्रवजय की इच्छाशब्रक्त सेना में भरे गये मनोबि से आती है और सं सािनों में सेना की सं ख्या, आयुद्, आपूब्रता और पररवहन
सस्लम्मलित होते हैं। बन्सा ने इन पिों की तुिना रस्सी के िागे से की है और सूि ब्रदया ब्रक रस्सी की शब्रक्त सभी िागों की सस्लम्मलित शब्रक्त से
ब्रनिााररत होती है। सं भव है ब्रक कोई सेना ब्रकसी एक पि में दुबाि हो, ब्रकंतु समुच्चय में वह सुदृढ़ हो जाती है। युद् में ब्रवजय उस 'रस्सी' की
कु ि शब्रक्त होती है, न ब्रक ब्रवशेि पि की शब्रक्त।

ब्रवज्ञान, तकनीक और अंतरााष्टरीय सं बं िों के ब्रविय में क्रब्रमक ब्रवकास के साथ ही युद् की प्रकृ ब्रत व आयामों पर अविारणाओं व
लसद्ांतों में समवती पररवतान आये हैं। राष्टरीय युद्, राष्टरीय-सशस्त्रीकरण, ब्रविारिारात्मक युद्, आलथाक युद्, सीब्रमत युद् और समस्त व सामान्य
युद् इन क्रब्रमक ब्रवकास से ब्रनकिे हैं। बहुत पुरानी बात नहीं है जब युद् को सैब्रनक के अनन्य िेि के रूप में देखा जाता था। आज युद् को ऐसा
बहु-ब्रवियक प्रकाया माना जाता है, जो राष्टरीय शब्रक्त के सभी तत्वों के अनुप्रयोग की मांग करता है। वास्तव में यह इतना गं भीर काया माना जाता
है ब्रक लजसे के वि सैब्रनक के लिये नहीं छोडा जा सकता।

पब्रवि कु रआन में जं ग (युद्) के जो आयाम ब्रदये गये हैं, वो अल्लाह द्वारा मानव की रिना के उद्दे श्य और उसकी अंब्रतम ब्रनयब्रत के
लिये मागादशान देने के िक्ष्यों को ध्यान में रखता है। उन आयामों के ब्रनिाारण के लिये कु रआन में जं ग की योजना व सं िािन में सं ब्रन्न ब्रहत
'वास्तब्रवक' ब्रवियों की पहिान करने तथा उन पर प्रकाश िािने के लिये गहरी बातें लिखी गयी हैं।

इन आयामों का प्रमुख सार इस तर्थ् में ब्रमिता है ब्रक जं ग का उद्दे श्य अल्लाह का उद्दे श्य है। इस आिार को िेकर आगे बढ़ते हुए
कु रआन ने मुसिमानों को आदेश ब्रदया है ब्रक वे मजहबी कताव्य व दाब्रयत्व की भावना से जं ग करें । कु रआन कहती है, ''हे मोब्रमनो! तुम्हारे लिये
जं ग अब्रनवाया कर ब्रदया गया है। सं भव है ब्रक तुम्हें जं ग अब्रप्रय हो। पर हो सकता है ब्रक कु छ ऐसा हो जो तुम्हें अब्रप्रय हो, पर वही तुम्हारे लिए

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श्रेष्ठ हो। इसी प्रकार सम्भव है ब्रक कु छ तुम्हें ब्रप्रय हो और वह तुम्हारे लिए बु री हो। क्ोंब्रक यह तो के वि अल्लाह जानता है, न ब्रक तुम।"1 इस
कु रआनी आदेश ने सम्पूणा जं ग की अविारणा में और पि व गहरायी दी। इस आदेश ने मुसिमान नागररक को अल्लाह के आदे श को पूरा करने
के लिये राज्य व अल्लाह दोनों के प्रब्रत उत्तरदायी बनाया। जब कु रआन ने जं ग को अब्रन वाया बनाया तो इसने जं ग को मोब्रमनों के लिये सद्गुण के
रूप में देखा तो शेि मानवता के लिये भी िाभप्रद बताया। इस जं ग का सबसे बडा सद्गुण इसके उद्दे श्य व िक्ष्य में ब्रनब्रहत है। जो जं ग दमनिक्र
समाि करने तथा न्याय व शांब्रत की स्लस्थब्रतयों के ब्रनमााण के लिये िडी जाए, वह उत्तम और पब्रवि ही होती है।

कु रआन 'जं ग के इन प्रिान आयामों' से स्थाब्रपत आिारों पर भव्य प्रासाद के ब्रनमााण की ओर प्रवृत्त होती है। जो अल्लाह के मागा में
िडते हैं उनके लिये कु रआन ने अल्लाह की बडी सहायता का विन ब्रदया। इसने कहा , ''हे मोब्रमनो! यब्रद तुम अल्लाह के मजहब की सहायता
करोगे, तो अल्लाह तुम्हारी सहायता करेगा तथा तुम्हारे पांव जमा देगा।" 2 इसने मुसिमानों के मन में अल्लाह की सहायता आने और उसके
प्रभाव को िेकर कोई सं शय नहीं छोडा। कु रआन ने प्रालिकार (दावा) ब्रकया , "यब्रद अल्लाह तुम्हारी सहायता करे , तो तुम पर कोई प्रभुत्व नहीं
पा सकता तथा यब्रद वह तुम्हारी सहायता न करे, तो ब्रफर कौन है, जो उसके पिात तुम्हारी सहायता कर सके ? अतः मोब्रमनों को अल्लाह ही पर
ब्रवश्वास बनाये रखना िाब्रहए।"3 वहीं दूसरी ओर कु रआन ने बि देकर कहा ब्रक जो इस्लाम को छोडते हैं , उनकी सहायता व सहयोग के लिये
कोई नहीं आयेगा। इसमें कहा गया, "यब्रद काब्रफर तुमसे युद् करते तो अवश्य ही पीठ ब्रदखाते और उन्ें न कोई सं रिक ब्रमिता और न ही
सहयोगी। अल्लाह ने उन पर ये पहिे ही थोप ब्रदया है और तुम अल्लाह के ब्रनयम में कदाब्रप पररवतान नहीं पाओगे। ''4

अल्लाह के इन विनों के साथ कु छ पूवा-प्रब्रतबं ि व मानक भी जोडे गये, जो मुसिमानों द्वारा अल्लाह की सहायता प्राि करने का
पाि होने के लिये आवश्यक थे। सवा-सामर्थ्ावान अल्लाह ने कहा, ''हे मोब्रमनो! क्ा मैं तुम्हें ऐसा उपाय बताऊं जो तुम्हें भयानक यातना से
बिा िे? तो सुनों, तुम अल्लाह और उसके रसूि में ब्रवश्वास उत्पन्न करो, पूरे सामर्थ्ा से; अपने तन और िन से अल्लाह के मागा में लजहाद करो।
यब्रद तुम समझ सको तो यही तुम्हारे लिए उत्तम है!''5 उस स्लस्थब्रत में कु रआन ने उन्ें यह कहते हुए एक विन ब्रदया, ''वह तुम्हारे पापों को िमा
कर देगा। तुम्हें ऐसी जन्नत में प्रवेश दे गा जहां नीिे नब्रदयां बहती हैं और उसके ऊपर बागीिा होता है , जहां स्थायी जन्नत के उद्यान में सुं दर महि
हैं। वास्तव में यह उपिस्लब्ध प्राि होना बडी सफिता है।''6 इसी में आगे कहा गया, ''वह तुम पर ऐसी एक और कृ पा करेगा जो तुम्हें ब्रप्रय है।
अल्लाह तुम्हारे लिये सहायता भेजेगा, लजससे ब्रक शीघ्र ब्रवजय प्राि कर िो। तो यह शुभ सूिना मोब्रमनों तक पहुंिा दो।"7

इसके पिात पब्रवि कु रआन उन िोगों के गुणों व ििणों को बताती है , जो अल्लाह की सहायता के पाि हैं। मनुष् का पूणा समपाण
अल्लाह की सहायता प्राि करने का मूल्य है। यह पुस्तक पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) को सं बोलित करते हुए कहती है , ''आप कह दें ब्रक
ब्रनिय मेरी नमाज़, मेरा बलिदान तथा मेरा जीवन-मरण सं सार के पािनहार अल्लाह के लिये है।''8 इसकी व्याख्या करते हुए कु रआन कहती ब्रक
अल्लाह की कृ पा उन पुरुिों के लिये है लजनमें अल्लाह के प्रब्रत ब्रवश्वास व समपाण है। ऐसे िोगों पर जब ब्रवपदा आती है तो अल्लाह उन पर
कृ पा करता है और बताती है, ''हम अल्लाह के हैं और हमें उसी के पास िौटकर जाना है।''9 कु रआन कहती है ब्रक ये वो िोग हैं, लजन पर
अल्लाह की कृ पा व दया बरसी है और वही हैं लजन्ें मागादशान प्राि होता है।10 बाद के एक अवसर पर सं सार बनाने वािे ने मोब्रमनों के साथ
एक व्यापार करता है। यह सुं दर आयत कहती है, ''ब्रनः सं दे ह अल्लाह ने मोब्रमनों के प्राणों तथा उनके िनों को मोि िे लिया है और इसके बदिे

1 बकरा: 216
2 मोहम्मद: 7
3 आिे-इमरान: 160
4 अि-फतह: 22-23
5 साटफ: 10-11
6 साटफ: 12
7 साटफ: 13
8 अनाम: 162
9 बकरा: 156
10 बकरा: 157

38
उन्ें जन्नत दी है। वे अल्लाह के मागा में जं ग करते हैं, वे मारते और मरते हैं। ये तौरात, इं जीि और कु रआन में अल्लाह पर सत् विन हैं ।
अल्लाह से बढ़कर अपना विन पूरा करने वािा कौन हो सकता है ? अतः , अपने इस सौदे पर प्रसन्न हो जाओ, जो तुमने अल्लाह के साथ ब्रकया
और यह तुम्हारी बडी सफिता है।''11

यद्यब्रप कु रआन ने यह स्पष्ट कर ब्रदया ब्रक मोब्रमनों को अल्लाह की ओर से लजस सहयोग का विन ब्रमिा है, वह न तो अलिकार का
ब्रविय है और न ही ब्रनत् का ब्रनयम। उन्ें अल्लाह की यह सहायता पाने के लिये अल्लाह के मानकों व योग्यताओं को पूरा करना होगा। यब्रद वे
ऐसा करने में ब्रवफि होते हैं तो न के वि वे अल्लाह की सहायता से वं लित हो जाएं गे, वरन् उन पर अल्लाह का कोप भी होगा। कु रआन ने
कहा, ''हे अल्लाह में ब्रवश्वास करने वािों! तुम्हें क्ा हो गया है ब्रक जब तुमसे कहा जाए ब्रक अल्लाह की राह में बाहर ब्रनकिो तो तुम िरती के
बोझ बन जाते हो? क्ा तुम आल़िरत (परिोक) की अपेिा सांसाररक जीवन से अलिक प्रसन्न हो गये हो? जबब्रक आल़िरत की अपेिा इस
सांसाररक जीवन के िाभ बहुत थोडे हैं। यब्रद तुम नहीं ब्रनकिोगे, तो तुम्हें अल्लाह दुः खदायी यातना देगा तथा तुम्हारे स्थान पर दूसरे िोगों को
िायेगा। तुम उसका कु छ ब्रबगाड नहीं पाओगे। क्ोंब्रक अल्लाह जो िाहे कर सकता है।"12 एक अन्य अवसर पर पुस्तक ने उन मोब्रमनों को
िेतावनी दी जो अल्लाह के उद्दे श्यों के लिये अपनी सेवाओं में पूणा समपाण व त्ाग नहीं ब्रदखाते। कु रआन ने कहा," यब्रद तुम्हारे ब्रपता, तुम्हारे
पुि, तुम्हारे भाई, तुम्हारी पलत्नयां, तुम्हारे पररवार, तुम्हारा िन जो तुमने कमाया है और वो व्यापार लजसके मं द हो जाने का तुम्हें भय है, वो घर
लजनसे तुम मोह रखते हो वो सब तुम्हें अल्लाह, उसके रसूि और अल्लाह के उद्दे श्यों के लिये लजहाद करने से अलिक ब्रप्रय हैं तो प्रतीिा करो ,
अल्लाह तुम्हें इसका दंि देगा, क्ोंब्रक अल्लाह उल्लं घनकाररयों को मागा नहीं ब्रदखाता।''13 इसी ब्रविय पर कु रआन ने कहा है, ''तुमने क्ा
समझ रखा है ब्रक यूं ही ब्रबना परीिा के जन्नत में प्रवेश कर जाओगे? वैसे अभी तुम्हारी वैसी दशा नहीं हुई, जो तुमसे पहिे के मोब्रमनों की हुई
थी? उन्ें कष्ट और आपदाओं ने घेर लिया था और वे इस सीमा तक झं झोड ब्रदये गये थे ब्रक रसूि और वो िोग लजन्ोंने रसूि पर ब्रवश्वास ब्रकया
था, वो सब के सब गुहार करने िगे ब्रक अल्लाह की सहायता कब आयेगी?''14

इस प्रकार प्रब्रतद्वंब्रद्वयों से जं ग करते समय मोब्रमनों के लिये अल्लाह की सहायता के प्रश्न पर अल्लाह के ब्रनणाय स्पष्ट व ब्रनब्रवावाद हैं।
वैसे तो अल्लाह ने िोगों के ब्रकसी समुदाय के लिये अपनी असीम कृ पा आरलित रखी है। यब्रद मुसिमान यह मान िेता है ब्रक वह िाहे पािता
अलजात करे या नहीं, अल्लाह की सहायता तो उसे ब्रमिेगी ही तो वह भारी भूि कर रहा है। अल्लाह उन िोगों की दशा नहीं सुिारता जो पहिे
अपने हृदय और आत्मा के भीतर पररवतान न िायें। वह के वि उनकी सहायता करता है, जो स्वयं की सहायता करते हैं और वह यह सम्मान
के वि उन्ें दे ता है, जो अंत:करण से इसके योग्य होते हैं। इस्लाम से पूवा इजराइलियों ने यह भ्रम पाि लिया ब्रक वे ईश्वर द्वारा िुने गये िोग हैं
और वे दुख के भागी बने। परंतु उनकी सं तानों ने इससे सीख लिया और अब वे उस भूि को नहीं दोहरा रहे हैं। अत: हममें इसको िेकर कोई
सं देह नहीं रहना िाब्रहए ब्रक जो हम अलजात करेंगे और लजसके लिये हम आगे बढ़ें गे उसी पर हमारा अलिकार होगा। हमने लजतना उगाया है उससे
अलिक उपज नहीं काट सकते। यब्रद हम अल्लाह के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं तो हम न के वि उसकी सहायता व सहयोग को खो देंगे ,
वरन् उसके कोप का भाजन भी बनेंगे। उहुद का उल्लेख करते हुए पब्रवि कु रान कहती है , ''अल्लाह का उद्दे श्य यह भी है ब्रक जो अल्लाह व
उसके रसूि में ब्रवश्वास िाये हैं उन्ें शुद् कर दे और जो अल्लाह और उसके रसूि को नकारते हैं उनका नाश कर दे। तुमने समझ क्ा रखा है
ब्रक जब तक अल्लाह यह परीिा न िे िे ब्रक तुममें से ब्रकसने अल्लाह के मागा में कठोरता से जं ग ब्रकया और अटि रहा, तुम जन्नत में प्रवेश पा
जाओगे।''15

जं ग जीवन व सं पब्रत्त दोनों के लिये खतरा उत्पन्न करती है। इसका पररणाम भूख, प्यास, थकावट, िोट, मृत्ु, ब्रवध्वं स व सवानाश
होता है। पब्रवि कु रआन ने जं ग के इन भयानक पिों को माना और उनसे एक ताब्रकाक व वैज्ञाब्रनक ढं ग से ब्रनपटा। इस सं बं ि में इस पुस्तक ने
मानवजाब्रत को जीवन और मृत्,ु पुरस्कार और दंि का ब्रवलशष्ट लसद्ांत ब्रदया। पब्रवि कु रआन ने कहा , 'तुम अल्लाह में ब्रवश्वास करने से कै से मना

11 तौबा: 111
12 तौबा: 38-39 13
13 तौबा: 24
14 बकरा: 214
15 आिे-इमरान: 141-142

39
करते हो? पहिे तुम ब्रनजीव थे और ब्रफर अल्लाह ने तुम्हें जीवन ब्रदया, ब्रफर तुम्हें मृत्ु देगा, ब्रफर तुम्हें (परिोक में) जीवन प्रदान करेगा, ब्रफर
तुम उसी की ओर िौट जाओगे!" 16 इन ब्रनदेशों के अनुसार इस सं सार में मृत्ु तो ब्रनस्सं देह अटि है , पर इसका अथा कदाब्रप नहीं ब्रक मृत्ु जीवन
का अंत है।

इसके पिात एक दूसरा जीवन हमारी प्रतीिा कर रहा है और अंतत: हमें अल्लाह के पास जाना है । इस दृब्रष्टकोण के अंतगात कु रआन
ने मोब्रमनों को अल्लाह के मागा में पूणा मनोयोग से जं ग करने तथा मृत्ु के भय से जं ग के मैदान से कभी न भागने का आह्वान ब्रकया। ''मैदान
छोडकर भागना तुम्हें कोई िाभ नहीं देगा। यब्रद तुम मृत्ु या हत्ा ब्रकये जाने के भय से भाग रहे हो और भिे ही तुम सुरलित बिकर ब्रनकि
जाते हो, तो भी तुम्हारा यह अवकाश बहुत थोडा ही होगा और तुमको यह आनं द भोगने नहीं ब्रदया जाएगा।''17 इसमें यह भी आदेश ब्रदया गया
ब्रक मृत्ु का समय ब्रनयत है और कोई भी इस समय को एक िण के लिये भी बढ़ा नहीं सकता। कु रआन ने कहा , ''हे मोब्रमनो! उन काब्रफरों के
समान न बनो, जो जब यािा अथवा युद् में होते हैं तो अपने बं िुओ ं के ब्रविय में कहते हैं 'यब्रद वे हमारे साथ रहे होते, तो वे न तो मरते और न
मारे जाते।' लजससे ब्रक अल्लाह उनके हृदय में इसे सं ताप और पिाताप बना दे। क्ोंब्रक अल्लाह ही जीवन देता है और वो ही मृत्ु देता है तथा
अल्लाह वो सब दे ख रहा है जो तुम कर रहे हो।"18

मृत्ु की अपररहायाता और मृत्ोपरांत जीवन पर अल्लाह के ब्रनणाय को बताने के बाद इस पुस्तक ने उन िोगों के लिये ब्रनयम बनाया
जो अल्लाह के उद्दे श्य से जं ग करते हुए मर जाते हैं या मारे जाते हैं। इसमें कहा गया, ''यब्रद वे अल्लाह के मागा में मर गये या मारे गये तो
अल्लाह की ओर से उनके सारे अपरािों पर िमादान और दया ब्रमिेगी, वह उन सब से श्रेष्ठ है जो उन्ोंने एकि ब्रकया है।"19 पुस्तक में आगे
लिखा गया, ''जो अल्लाह के मागा में मारे गये, तुम उन्ें मृत न समझो। नहीं, वे जीब्रवत हैं और अल्लाह ने उन्ें अपनी दया से जो प्रदान ब्रकया
है वे उससे प्रसन्न हैं। वे अल्लाह द्वारा प्रदान ब्रकये गये पुरस्कार पर हब्रिात हो रहे हैं।" 20 एक अन्य अवसर पर भी कु रआन ने हमें बताया ब्रक जं ग
के समय अल्लाह के मागा में मारे गये िोग वास्तव में जीब्रवत हैं 'यद्यब्रप तुम उन्ें जीब्रवत नहीं समझते।'21 अल्लाह के उद्दे श्य के लिये जं ग में मर
जाने अथवा मारे जाने को गौरवालन्वत करने के लिये पब्रवि कु रआन ने मोब्रमनों को आश्वस्त ब्रकया ब्रक भिे ही वे मर जाएं या मार िािे जाएं , यह
अल्लाह के हाथ में है ब्रक अंत में वे एक-साथ ब्रकये जाएं । तो लजन्ोंने जं ग पर अल्लाह के आदेशों का पािन ब्रकया है अल्लाह ने उनको ब्रकस
पुरस्कार का विन ब्रदया है?

कु रआन ने आदे श ब्रदया, "जो अल्लाह और उसके रसूि पर ब्रवश्वास िाये और लजन्ोंने ब्रहजरत ब्रकया तथा अल्लाह के मागा में जं ग
(लजहाद) ब्रकया (और आगे बढ़कर सं घिा ब्रकया), वही अल्लाह की दया की आशा रखते हैं और अल्लाह अब्रत िमाशीि व बहुत दयािु है।''22
इस सं बं ि में अल्लाह का ब्रनयम यह था ब्रक 'उन पर तब्रनक भी अत्ािार नहीं ब्रकया जाएगा।'23 इस ब्रविय में अल्लाह के दृब्रष्टकोण का मुख्य
तत्व यह है ब्रक अच्छे कायों का पुरस्कार ब्रमिेगा और बुरे कायों का दंि ब्रमिेगा। सवा-सामर्थ्ावान अल्लाह ने विन ब्रदया, ''अल्लाह मोब्रमनों के
पुरस्कार को तब्रनक भी कम नहीं करता है।''24 कु रआन ने कहा, ''उन्ें अल्लाह के मागा में िडने दो। जो आल़िरत (परिोक) के बदिे
सांसाररक जीवन की ब्रबक्री कर िुके हैं और जो अल्लाह के उद्दे श्यों के लिये जं ग करे गा, िाहे वह मारा जाए अथवा ब्रवजयी हो उसे शीघ्र ही हम
बडा प्रब्रतफि देंगे।''25 पब्रवि कु रआन ने यह भी विन ब्रदया, ''लजन्ोंने अल्लाह के उद्दे श्य से अपने घर छोडे हैं और वे मर गये या मारे गये ,

16 बकरा: 28
17 अहजाब: 16
18 आिे-इमरान: 156
19 आिे-इमरान: 157
20 आिे-इमरान: 169-170
21 बकरा: 154
22 बकरा: 211
23 अन-ब्रनसा: 77
24 आिे-इमरान: 171
25 अन-ब्रनसा: 74

40
उनके लिये अल्लाह उत्तम जीब्रवका की व्यवस्था करेगा और वास्तव में अल्लाह ही सवोत्तम जीब्रवका प्रदान करने वािा है।''26 अल्लाह का
पुरस्कार मोब्रमनों के प्रदशान के आिार पर लभन्न-लभन्न था। कु रआन ने कहा, ''मोब्रमनों में जो अकारण अपने घरों में रह जाते हैं और जो अल्लाह
के मागा में अपने िन और तन से लजहाद नहीं करते हैं, दोनों बराबर नहीं हो सकते। जो घरों में बैठे रहते हैं उनकी अपेिा अल्लाह ने उन्ें पद में
प्रिानता दी है, जो अपने तन और िन से लजहाद करते हैं।''27 इसमें आगे कहा गया, ''जो भी अल्लाह और उसके रसूि पर ब्रवश्वास िाये हैं,
उन सबको अल्लाह ने अच्छे का विन ब्रदया है। ब्रकंतु जो आगे बढ़कर जं ग िडते हैं उन्ें अल्लाह ने ब्रवशेि पुरस्कार के द्वारा पद में उनसे ऊपर
रखा है जो घरों में बैठे रहते हैं। अल्लाह की ओर से कई (उच्च) श्रेलणयां तथा िमा और दया है। क्ोंब्रक अल्लाह सदा िमाशीि व अब्रत दयािु
है।"28 वहीं दूसरी ओर जो अल्लाह के उद्दे श्य के लिये आगे बढ़कर जं ग करने में सं कोि करते हैं, जो अपनी अकमाण्यता में आनं ब्रदत होते हैं और
जो जं ग की खतरों से स्वयं को बिाना िाहते हैं उन्ें पुस्तक ने यह कहकर िेतावनी भी दी ब्रक 'यब्रद वे समझें तो उन्ें बता दो ब्रक नका के आग
की गमी इससे भीिण है।'29

पब्रवि कु रआन ने आदेश ब्रदया, ''उन्ें थोडा कम हंसना िाब्रहए, क्ोंब्रक वे जो कर रहे हैं उसके लिये उन्ें बहुत रोना है।"30 पुस्तक
ऐसे िोगों पर अपना ब्रनणाय सुनाते हुए कहती है , ''यब्रद तब अल्लाह इन (दुब्रविावाब्रदयों) के ब्रकसी गुट के पास वापस िाये और वे (ब्रकसी दूसरे
जं ग में) जाने की अनुमब्रत मांगें तो उनसे कहो ब्रक तुम मेरे साथ कभी नहीं जा सकोगे और न ही मेरे साथ ब्रकसी शिु से जं ग कर सकोगे। क्ोंब्रक
तुम पहिे अवसर पर ब्रनठल्ले बैठे रहने पर प्रसन्न थे। तो अब उन्ीं के साथ बैठे रहो जो पीछे छू ट गये। ऐसे िोगों में से कोई मर जाए तो उसके
जनाज़े की नमाज़ कभी न पढ़ें और न उसकी कि पर खडे हों। क्ोंब्रक उन्ोंने अल्लाह और उसके रसूि के साथ कु फ़्र ब्रकया है और अवज्ञाकारी
रहते हुए मरे हैं।''31

पुन: ध्यान दें ब्रक जं ग के कु रआनी आयामों का प्रिान तत्व इस तर्थ् में है ब्रक जं ग अल्लाह के उद्दे श्यों और न्याय व शांब्रत की स्लस्थब्रतयां
िाने के लिये िडी जाती है। वो जो इस महानतम अल्लाह के उद्दे श्य के लिये जं ग करते हैं, उनके लिये कु रआन ने अल्लाह की बडी सहायता का
विन ब्रदया है। अल्लाह के उद्दे श्य के लिये जं ग का सूिक मनुष् का अल्लाह की इच्छा के प्रब्रत पूणा समपाण है । जो अल्लाह की इच्छा के समि
पूणात: व समेब्रकत समपाण नहीं करते, उन पर अल्लाह के कोप का जोलखम बना रहता है। वैसे प्रकृ ब्रत ब्रकसी समुदाय के िोगों के प्रब्रत ब्रवशेि या
एकांगी भाव नहीं रखती। वह के वि उनकी सहायता करती है जो स्वयं को इसका पाि बनाते हैं और शेि को वह दंब्रित करती है। जं ग िडने में
प्राण और िन दोनों की हाब्रन होने का जोलखम होता है , पर यह जोलखम इच्छापूवाक व प्रसन्नता से स्वीकार ब्रकया जाना िाब्रहए। इस सं सार में
मृत्ु अटि है, पर जो अल्लाह के उद्दे श्य के लिये जं ग करते हैं उनके लिये इस सं सार के बाद परिोक का जीवन और भव्य पुरस्कार भी ब्रनलित
ही रखा हुआ है। हमारा पुरस्कार सीिे हमारे प्रदशान से आनुपाब्रतक रूप से जुडा हुआ है। जो अल्लाह के उद्दे श्य के लिये जं ग (लजहाद) करते हुए
मरते हैं, वास्तव में वे कभी नहीं मरते।

जो अल्लाह और उसके रसूि में ब्रवश्वास िाये हैं और उनके आदे शों को अपने व्यवहार में उतारे हैं, उनके लिये कु रआन के आयामों ने
जं ग को सच्चे अथों में क्रांब्रतकारी बनाया है। इन आयामों ने उनको ऐसा तेजस्वी व ब्रवराट व्यब्रक्तत्व ब्रदया ब्रक वे स्वयं को जं ग की प्रत्ेक सं भावना
में वास्तव में श्रेष्ठ लसद् कर सकें । उन्ोंने मानव मस्लस्तष्क द्वारा इतने िं बे व गहन क्रम के पिात ढूं ढ़े गये मनोवैज्ञाब्रनक व नैब्रतक आयामों को बौना
कर ब्रदया।

उन आयामों ने शिु के सभी सं भाब्रवत मनोवैज्ञाब्रनक व िाब्रमाक आक्रमणों के ब्रवरुद् मुसिमान फौज को समग्र व सम्पूणा सुरिा एवं
प्रब्रतरोिक िमता दी। बदिे में उन्ोंने अपने घातक शिुओ ं पर प्रभावकारी मनोवैज्ञाब्रनक व िाब्रमाक हमिा करने के लिये दृढ़ व ब्रटकाऊ मं ि
तैयार ब्रकया। उन्ोंने उनको इतना समथा बनाया ब्रक वे अपनी इच्छा और सं कल्प से जं ग की पीडा को सह सकें । ऐसे समब्रपात व साहसी

26 हज: 58
27 अन-ब्रनसा: 95
28 अन-ब्रनसा: 95-96
29 तौबा: 81
30 तौबा: 82
31 तौबा: 83-84

41
व्याब्रक्तयों का अनुसरण करते हुए जं ग का ज्ञान व कौशि बढ़ा। समपाण के साथ सीखकर और उसका प्रयोग कर उन्ोंने शिु की 'खोखिी'
ब्रवशेिज्ञता की तुिना में स्वयं को अलिक श्रेष्ठ व प्रभावकारी लसद् ब्रकया। इससे उन्ें मृत्ु के भय से बाहर ब्रनकिने में सहायता ब्रमिी और वे
अमर व अजेय हो गये।

बनाािा िािी कहते हैं, ''रणनीब्रत पर लिखने वािे और उस रणनीब्रत पर ििने वािों ने अपने सिेत प्रयोजन से सदा युद् के उन
ििणों को अस्वीकार ब्रकया, जो सािारण िोगों में पूणातया स्पष्ट थे। रणनीब्रत पर आिेख में कम ही बताया जाता है ब्रक युद् -िेि में मृत्ु भी
होती है। अस्त्र-शस्त्रों से गोिाबारी होती है, ब्रकंतु इन पर कोई कोिाहि या ऊिम नहीं ब्रकया जाता है। युद्रत अथवा युद्क अलभयान पर जाते
हुए सैब्रनक ब्रवजय का अनुभव करते हैं और कभी-कभी वे भयग्रस्त भी होते हैं, ब्रकंतु इस पीडा, उदासीनता, घबराहट, तं द्रा या अपार कष्ट का
वणान कदालित ही ब्रकया जाता है।""

कु रआनी के जं ग का लसद्ांत उन प्रश्नों का उत्तर देता है जो मानव मस्लस्तष्क को उद्वेलित करते हैं। यह जं ग के भौब्रतक व मनोवैज्ञाब्रनक
दबावों की पहिान करता है और इससे मुब्रक्त का प्रभावकारी उपाय भी दे ता है। हम तो इसे बहुत थोडा देते हैं , पर अपने लसद्ांतों में मजहब व
ब्रवश्वास का तत्व देकर यह हमें उससे कई गुना अलिक वापस करता है।

42
अध्याय 6

युद् का नीब्रत-लसद्ांत
जं ग के कु रआनी लसद्ांत का प्रमुख पि यह है ब्रक यह अंतर-राज्यीय सं बं िों में बि प्रयोग पर ब्रनयं िण व रोकथाम का लसद्ांत है।
कु रआनी आदेश लजसमें मुसिमानों को मूब्रतापूजकों के ब्रवरुद् जं ग में जाने का ब्रनदेश ब्रदया है, उसी में सीमा का उल्लं घन नहीं करने का भी ब्रनदेश
ब्रदया गया है। इसमें कहा गया है, ''अल्लाह के उद्दे श्य के लिये जं ग करो, पर सीमाएं न िांघों, क्ोंब्रक अल्लाह उल्लं घन करने वािों को प्रेम
नहीं करता।"1 कु रआनी सं दे श की आकाशवाणी में प्रत्ेक स्तर पर अल्लाह का ब्रनयं िण िािा गया है। पहिे 12 विों तक मुसिमानों को उन
अत्ािार को सहने को कहा गया, जो कु रैश उन पर कर रहे थे और साथ ही जं ग से बिने को भी कहा गया। जं ग िडने के लिये अल्लाह का
आदेश ब्रनगात होने के साथ ही यह भी बताया गया ब्रक ब्रकस ब्रवलशष्ट उद्दे श्य के लिये जं ग में जाया जाए। पब्रवि कु रआन ने जं ग के स्पष्ट और
अिूक उद्दे श्य को बताया। कु रआनी िक्ष्य और जं ग के उद्दे श्य की आिारभूत ब्रविय-वस्तु शांब्रत व न्याय का सं रिण करना एवं बढ़ावा दे ना थी।
इस उद्दे श्य की प्राब्रि के आरंलभक स्तरों पर शिु को भी उदारवादी छू ट ब्रदये गये, लजससे ब्रक जं ग रुके और शांब्रत का वातावरण बने। प्रिलित
मापदंिों व परंपराओं में न्याय व ब्रवलि के कारणों को छोडकर , ब्रकसी भी स्लस्थब्रत में ब्रकसी का जीवन िेने की अनुमब्रत नहीं थी। लजन्ोंने इस
ब्रनदेश की अवहेिना की उन्ें उत्तरदायी ठहराया गया और दंब्रित ब्रकया गया। अंतत: दया, करुणा और िमा का द्वार उन सभी के लिये खुिा
रखा गया लजन्ोंने शुद् मन से प्रायलित ब्रकया।

सब्रदयों पुरानी परंपरा के अनुसार अरब में तीन पब्रवि मास लजल्काद, लजल्हज और मुहराम में युद् करना प्रब्रतबं लित था और पब्रवि
कु रआन ने इस परंपरा का पािन करने के ब्रनदेश ब्रनगात ब्रकये। कु रआन में लिखा है, "पब्रवि मास पब्रविता के लिये है और अब तक इस मास में
जो भी काया ब्रनब्रिद् हैं, वो ब्रनिेि सब पर िागू होता है; तुम पर भी और शिु पर भी, क्ोंब्रक यह समानता की ब्रवलि है। यब्रद तब भी कोई
तुम्हारे ब्रवरुद् इस प्रब्रतबं ि का उल्लं घन करता है या तुम उनके ब्रवरुद् इसका उल्लं घन करते हो तो अल्लाह से िरो और जान िो ब्रक अल्लाह
आज्ञाकाररयों के साथ है।''2 इसी प्रकार पुस्तक ने मुसिमानों को आदे श ब्रदया ब्रक पारस्पररक ब्रवब्रनमय के आिार पर पब्रवि मस्लजजद पर समझौता
मानने की अरब परंपरा का सम्मान करो। इस ब्रविय पर कु रआनी आदेश है , 'पर पब्रवि मस्लजजद में जं ग न करो, जब तक ब्रक वे वहां पर तुमसे न
िडें।''3 इन दोनों ब्रवियों पर ब्रनस्सं देह मुसिमानों को समानता व पारस्पररक ब्रवब्रनमय की ब्रवलि का पािन करने की अनुमब्रत दी गयी , इसके बाद
भी उन्ें सं यम रखने का परामशा ब्रदया गया। कु रआनी का यह आदे श ब्रक 'अल्लाह उनके साथ है, जो स्वयं पर सं यम रखते हैं', सब्रहष्णुता व िैया
से जुडे महत्व को बताता है।

यह पुस्तक के वि इतने प्रब्रतबं िों से सं तुष्ट नहीं होती, अब्रपतु इसने इस्लाम से पूवा अरब में प्रिलित युद् की अमानवीय पद्ब्रत पर पूणा
प्रब्रतबं ि िगाया। इस ब्रविय पर पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) और आरंलभक खिीफाओं ने ब्रनदे श ब्रदये। मुस्लस्लम ब्रवलिवेत्ताओं ने जं ग के समय
मुसिमान फौज के लिये ब्रनब्रिद् कायों की पहिान के लिये अनेक अध्ययन ब्रकये हैं। िॉ. हमीदुल्लाह के अनुसार, शिु को मारने की क्रूर व
पीडादायी ब्रवलियां प्रब्रतबं लित हैं। जो लस्त्रयां, बच्चे अथवा नौकर व गुिाम जं ग में अपने स्वाब्रमयों के साथ आये, ब्रकंतु वास्तब्रवक जं ग में भाग नहीं
लिया, उनकी अनुमब्रत नहीं है। मुसिमान फौज को अंिे, फकीर, एकांतवासी, वृद्, शारीररक रूप से ब्रवकिांग, ब्रवलिि और मानलसक रूप से
अिम िोगों को छोड देना िाब्रहए। जं ग में बं दी बनाये गये िोगों का लसर काटने, शवों को ित-ब्रवित करने अथवा शवों के साथ क्रूरता करने;
कपट व ब्रवश्वासघात; उपजों का ब्रवध्वं स व ब्रवनाश करने, अब्रत या दुष्टता करने और बं दी लस्त्रयों के साथ यौनािार व व्यलभिार करने की भी
मनाही है।

1 बकरा: 190
2 बकरा: 194
3 बकरा: 191

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शिु दि में से बं दी बनाये गये िोगों की हत्ा और शिु को नष्ट करने के लिये सामूब्रहक नरसं हार का आश्रय िेना भी प्रब्रतबं लित है।
ब्रनतांत आत्मरिा की दशा को छोडकर माता-ब्रपता की हत्ा करना और वास्तब्रवक जं ग में सस्लम्मलित न होने वािे ब्रकसानों, व्यापाररयों,
दुकानदारों, ठे के दारों और इनके जैसे अन्य िोगों की हत्ा की भी अनुमब्रत नहीं है।

जं ग के बं ब्रदयों के ब्रविय में अल्लाह के स्पष्ट व ब्रनलित ब्रनदे श ब्रनगात ब्रकये गये हैं। कु रआन कहती है, ''अत: जब जं ग में काब्रफरों से
तुम्हारा सामना हो तो उनका गिा रेत दो, जब तुम उन पर ब्रवजय पा िो तो उन्ें दृढ़ता से बांिो। ब्रफर िाहो तो उदारता ब्रदखाते हुए छोडो या
ब्रफर उनसे ब्रफरौती िेकर, यह तुम्हारे ऊपर है।"4 इस ब्रनदेश के अनुसार जं ग में मुसिमानों की पहिी प्राथब्रमकता शिु को परालजत करना है , न
ब्रक उन्ें बं दी बनाना। दूसरी बात यह है ब्रक बं दी तभी बनाये जा सकते हैं, जब ब्रक शिु का पूणात: दमन हो जाए। तीसरा यब्रद उन्ें बं दी बनाया
जाए तो उनके साथ मानवीयता का व्यवहार हो। यह व्यवहार उदारता ब्रदखाते हुए की जाए या ब्रफर ब्रफरौती िेकर, ये दोनों ब्रवकल्प अवश्य हैं।
हुनैन की जं ग में मुसिमानों ने बडी सं ख्या में िोगों को बं दी बनाया था। उन सभी को ब्रफरौती िेकर छोड ब्रदया गया था। उनमें से कु छ जो
अत्ं त ब्रनिान थे, उनकी ब्रफरौती की रालश का भुगतान रसूि (उन पर शांब्रत हो) द्वारा स्वयं ब्रकया गया था।

बहुत पहिे सातवीं सदी में कु रआन में बताये गये जं ग पर सं यम व ब्रनयं िण इसके उस कथन का बि देते हैं ब्रक जं ग अपनी सम्पूणा
नीब्रत व रणनीब्रत पर ििने के लिये सीब्रमत व सं यब्रमत उद्दे श्य को कहते हैं। वे यह भी सुब्रनलित करते हैं ब्रक यब्रद जं ग की होड प्रारंभ हो जाए, तो
वह अब्रनयं ब्रित नहीं होनी िाब्रहए। जं ग में सं ब्रन्नब्रहत मानवीय समस्याओं के ब्रविय में कु रआन के ब्रनदेश इतने श्रेष्ठ हैं ब्रक उनकी तुिना में अन्य
लसद्ांत कहीं नहीं ठहरते। वे आिोिकों द्वारा उस ब्रकये गये उस अब्रवश्वसनीय व मलिन आिोिना के सामने ब्रविारिारा के प्रहरी के रूप में काया
करते हैं। अरब के ब्रनब्रवावाद मजहबी व स्थायी शासक के रूप में मक्का में ब्रवजयोल्लास के साथ पुन: प्रवेश पर रसूि (उन पर शांब्रत हो) द्वारा
सावाजब्रनक िमा की घोिणा जं ग के सं बं ि में कु रआन की यह िािलणकता सं यम का िमकता उदाहरण है। जहां मानव इब्रतहास के पृष्ठ आज भी
ब्रवश्व के महान ब्रवजेताओं द्वारा ब्रकये गये अत्ािार व रक्तपात से भरे पडे हैं, वहीं जं ग की कु रआनी अविारणा अपनी मानवीय व नैब्रतक दोनों
पिों में श्रेष्ठतम है।

आिोिकों द्वारा इस्लाम पर िगाया जाने वािा सामान्य आरोप है ब्रक यह तिवार के बि पर फैिा है। यह ऐसा आरोप है , लजसे
इस्लाम के समथाक मुखर होकर नकारते हैं। सत् यह है ब्रक बि के प्रयोग पर पब्रवि कु रआन द्वारा थोपा गया सं यम व ब्रनयं िण का उदाहरण और
कहीं नहीं ब्रमिता है। व्यवहार में कु छ ऐसी लछटपुट घटनाएं अवश्य ब्रदख जाती हैं, जहां मुसिमान अपनी सीमाओं का उल्लं घन करते हुए पाये
जाते हैं, ब्रकंतु पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत) ने ऐसे व्यवहार को अस्वीकाया माना। यद्यब्रप यह माना जाना िाब्रहए ब्रक जं ग में सं यम का पािन
तालत्वक रूप से ब्रद्व-पिीय ब्रविय होता है। ऐसा सं भव नहीं है ब्रक एक पि सं यम रखे और दूसरा पि अब्रत करता जाए। ऐसी स्लस्थब्रत में एक समय
वह भी आता है जब शांब्रत व न्याय के सं रिण व प्रोत्साहन का वह ब्रनदे श सीब्रमत बि के प्रयोग की मांग करता है। उन पररस्लस्थब्रतयों में बि का
प्रयोग न करना अपराि होगा। इस्लाम इस प्रकार के उद्दे श्य के लिये 'तिवार' के प्रयोग की अनुमब्रत देता है। इसको िेकर आत्मग्लाब्रन पािने
की अपेिा मुसिमान को इस तर्थ् से गौरव अनुभव करना िाब्रहए ब्रक उसकी तिवार अत्ािार व दमन करने वािों को परालजत करने एवं
मानवजाब्रत के लिये शांब्रत व न्याय िाने के लिये हैं। जैसे ही शांब्रत व न्याय की स्थापना हो जाए, तिवार का प्रयोग उसी समय बं द कर देना
िाब्रहए।

इस समस्या के प्रब्रत अन्य समाजों व सभ्यताओं का क्ा दृब्रष्टकोण रहा है ? ईसाई िमा से पूवा समय के सैन्य इब्रतहास को खं गािने से
युद् में सं ब्रन्नब्रहत मानवीय समस्याओं के ब्रविय में अन्य राष्टरो ं व समुदायों के दृब्रष्टकोण का ज्ञान होता है। उस समय युद् जनजाब्रतयों, राष्टरो ं व दे शों
के मध्य िडे जाते थे। उन युद्ों में ब्रवजेता प्राय: परालजत िोगों को युद् के ब्रवध्वं स का भाग मानता था। मध्य युग के आने तक युद् बं ब्रदयों व
घायिों के साथ व्यवहार को िेकर कोई नैब्रतक सं ब्रहता अथवा लसद्ांत नहीं था।

नेपोलियन के युद् के बाद 18वीं सदी में यूरोप ने इस समस्या पर ध्यान दे ना प्रारंभ ब्रकया। प्रारंभ में कु छ राष्टरो ं ने एकाकी मानवीय
व्यवहार अपनाया, परंतु इन उपायों का ब्रवलिकरण बाद में 1815-1914 की अवलि के बीि परंपराओं व सं लियों के माध्यम से हुआ।

4 मुहम्मद: 4

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युद् के आिुब्रनक नीब्रत-लसद्ांत लजनेवा सम्मेिन में गढ़े गये। स्लस्वट्जरिैंि स्लस्थत लजनेवा के ब्रनवासी जीन हेनरी दुनांत के प्रयासों से
सवाप्रथम 1864 में यह सं लि हुई। आज लजनेवा सं लि को व्यापक अंतरााष्टरीय स्वीकृ ब्रत है। इस सं लि के तीन प्रमुख लसद्ांत मानवता, एकता व
सावाभौब्रमकता हैं। इसमें रोब्रगयों, घायिों, ब्रन:शस्त्र नागररकों व अन्य मानवीय ब्रवियों से सं बं लित अलिकार प्रदान ब्रकये गये हैं। यद्यब्रप लजनेवा
सं लि के बाद भी, प्रथम ब्रवश्व युद् के समय साइप्रस की िडाई में ब्रमि राष्टरो ं के ब्रवरुद् रासायब्रनक आक्रमण करने से जमानी को नहीं रोका जा
सका। ब्रद्वतीय ब्रवश्वयुद् के अंब्रतम विों में ब्रमि राष्टरो ं ने जमानी पर अंिािुं ि बम ब्रगराया लजसमें िाखों की सं ख्या में ब्रनदोि बच्चे व लस्त्रयां मारी
गयीं। ब्रमि राष्टरो ं ने जमानी के असैब्रनक ब्रठकानों को भी नष्ट कर िािा। ब्रहरोलशमा व नागासाकी पर नालभकीय आक्रमण ने अमानवीय व ब्रनमाम
नरसं हार के सारे ब्रपछिे ररकािा को ध्वस्त कर ब्रदया। कु छ विों पूवा भारत ने पाब्रकस्तान के युद् बं ब्रदयों को तीन विा तक अपनी अिीनता में रखा
था।

इस्लाम में जं ग अल्लाह के उद्दे श्य के लिये िडी जाती है। एक मुसिमान के जं ग का उद्दे श्य मजहबी , श्रेष्ठ, न्यायपरायणता व
मानवीयता होती है। इस्लाम में ब्रवजय अल्लाह के उद्दे श्य की ब्रवजय है। इस कारण एक श्रेष्ठ व मानवीयता से पूणा उद्दे श्य को प्राि करने के लिये
अमानवीय व ओछे मागा अपनाने की अनुमब्रत नहीं दी जा सकती है। इस प्रकार जं ग के इस्लामी दृब्रष्टकोण के मूि में मानवतावाद है।

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अध्याय 7

युद् की रणनीब्रत
कु रआन में दी गयी रणनीब्रत की अविारणा का अध्ययन करने से पूवा इसके क्रब्रमक ब्रवकास का ियनात्मक ब्रवश्लेिण करना आवश्यक
है, लजससे ब्रक इस ब्रविय पर मानव का लिंतन लजन अवस्थाओं से होकर ब्रनकिा है, उनका ज्ञान हो सके । रणनीब्रतक ब्रविार के क्रब्रमक ब्रवकास से
सं बं लित एक आिेख में हैरी एि. कोल्स ने मत ब्रदया है ब्रक रणनीब्रत के इब्रतहास को दो समय-समूहों में ब्रवभक्त ब्रकया जा सकता है। प्रथम
समयावलि 1945 के पूवा का है, जब रणनीब्रत में लिंतन का अभाव था। ब्रद्वतीय समयावलि का उदय 1945 के पिात हुआ और तबसे यह
अब्रत-लिंतन की व्यालि से ग्रस्त है। जब 1945 के पहिे की समयावलि की समाब्रि हुई, तो रणनीब्रतक लिंतन का अन्वेिण यह था ब्रक युद् के
मनोवैज्ञाब्रनक पिों को ध्यान में रखते हुए ब्रनणाय लिये जाने िाब्रहए। 1945 के बाद की अवलि में नालभकीय बम के अब्रवष्कार के साथ ही
रणनीब्रत का लसद्ांत ब्रवलभन्न क्रब्रमक-ब्रवकास के स्तरों से होते हुए अंतत: वहां पहुंिी, जहां 'ब्रनवारण' का महत्व शीिा हो गया।

19वीं सदी के आरं भ में क्लाजब्रवट् ज ने रणनीब्रत को युद् के ब्रनयोजन की किा के रूप में लिब्रित ब्रकया। यह ऐसी अविारणा थी,
लजसे मॉके , श्लाईफेन, फॉश और िुिनिर ॉफ ने िमा समझकर स्वीकार ब्रकया। उनके शोि-प्रबं ि का मुख्य सार यह था ब्रक ब्रनणाायक युद् िडने
के मुख्य ब्रविार को प्रिानता देते हुए अन्य दूसरे तकों को उसके नीिे रखना िाब्रहए। एक शताब्दी बाद लििि हटा दो ब्रबंदओ
ु ं पर क्लाजब्रवट्ज
की आिोिना में मुखर हुए। उनकी प्रथम आपब्रत्त यह थी ब्रक क्लाजब्रवट्ज की रणनीब्रत ने नीब्रत के िेि का अब्रतक्रमण ब्रकया है। ब्रववाद का
दूसरा आिार यह था ब्रक इसमें रणनीब्रत के सािनों को युद् के शुद् व अनन्य उपयोग तक सीब्रमत रखा गया है।

'क्लाजब्रवट् जवादी सं वृब्रद् के रक्त-वणी मदांि' के ब्रवरोि में लििि हटा ने 'रक्तहीन ब्रवजय' का ब्रविार प्रब्रतपाब्रदत ब्रकया और इसे
'दोिहीन रणनीब्रत' की सं ज्ञा दी। दोिहीन रणनीब्रत के उदाहरण के रूप में उन्ोंने सीजर के इिेरिा अलभयान, क्रोमवेि के ब्रप्रस्टन अलभयान,
नेपोलियन के उल्म अलभयान, 1870 में लसिैन में मॉके , 1918 में ऐिेन्बी के समाररया अलभयान और 1940 में फ्रांस पर जमानी की ब्रवजय को
प्रस्तुत ब्रकया। लििि हटा के शब्दों में, नीब्रत के फि को प्राि करने के लिये 'सैन्य सािनों के ब्रवतरण व अनुप्रयोग की किा' ही रणनीब्रत है।
उन्ोंने तका ब्रदया ब्रक रणनीब्रत का िक्ष्य सामररक महत्व की स्लस्थब्रतयों को इतना उपयोगी बनाना होता है ब्रक 'यह अपने ब्रविय में स्वयं ही पररणाम
का ब्रनणाय न करे, वैसे भी युद् में इसकी ब्रनरंतरता से ही पररणाम ब्रमि जाना सुब्रनलित होता है। इस प्रकार लििन हटा की रणनीब्रत का प्रिान
िक्ष्य शिु को मनोवैज्ञाब्रनक रूप से अस्त-व्यस्त करना है, जो प्रत्ि पररणाम की उत्पब्रत्त पर ब्रदष्ट हो। उन्ोंने कहा, ''यब्रद यह सं भव न हो, तो
इससे पूवा युद् में भौब्रतक या सुप्रिािब्रनक अव्यवस्था िायी जानी िाब्रहए, लजससे ब्रक िडाई को न्यूनतम अनुपात में िाया जा सके ।''

इससे वह ब्रवस्थापन आयेगा, जो लििि हटा की रणनीब्रत की मुख्य ब्रविय-वस्तु है और ऐसा या तो भौब्रतक अथवा सुप्रिािब्रनक िेि में
ब्रकया जा सकता है या ब्रफर मनोवैज्ञाब्रनक िेि में। अपने इस शोि-प्रबं ि में आगे बढ़ते हुए लििि हटा हमें बताते हैं ब्रक शिु की व्यूह-रिना को
ब्रवफि करके , उसकी सेना के ब्रवतरण व सं गठन को अस्त-व्यस्त करके , उसकी ब्रपछिी पं ब्रक्त को खतरे में िािकर तथा उसकी सं िार व्यवस्था
को भं ग करके भौब्रतक िेि में अस्त-व्यस्त ब्रकया जा सकता है। शिु पर पडे इस प्रभाव का प्राकृ ब्रतक पररणाम मनोवैज्ञाब्रनक िेि में ब्रदखेगा।

प्रलसद् फ्रांसीसी रणनीब्रतकार बोफ्र लििि हटा द्वारा ब्रदये गये शिु के मनोवैज्ञाब्रनक अस्त-व्यस्तता के लसद्ांत से सहमत तो हैं, पर वे
उनकी पररभािा से असहमत हैं। बोफ्र के ब्रविार से लििन हटा की पररभािा 'क्लाजब्रवट् ज की पररभािा' से बहुत लभन्न नहीं है। बोफ्र रणनीब्रत को
सैन्य बिों की ऐसी 'अमूता पारस्पररक ब्रक्रया' के रूप में देखते हैं, जो दो ब्रवरोिी इच्छाओं के बीि सं घिा से ब्रनकिता है।' उनका दृढ़ कथन है,
''जब शिु पर एक ब्रनलित मनोवैज्ञाब्रनक प्रभाव िािा जाता है, तो उसका पररणाम ब्रनकिता है।''

ब्रवरोिी इच्छाओं के तका शास्त्र का मागदशी लसद्ांत यह था ब्रक एक ऐसी स्लस्थब्रत का ब्रनमााण ब्रकया जाए और उसका िाभ उठाया जाए,
जो शिु के मनोबि को पयााि रूप से तोडकर उसे उस दशा को स्वीकार करने को बाध्य कर दे , जो ब्रक उस पर थोपे जाने के लिये वांछनीय
था।' क्रांब्रतकारी िेब्रनन ने पहिे ही मनोबि सं बं िी कारकों पर ऐसा ही बि ब्रदया था , यद्यब्रप इसका प्रसं ग दूसरा था। उन्ोंने यह ब्रनयम बनाया

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था ब्रक युद् में सबसे ठोस रणनीब्रत यह होती है ब्रक जब तक शिु का मनोबि इतना न टू ट जाए ब्रक उस पर घातक प्रहार ब्रकया जाना सरि व
सं भव हो जाए, तब तक युद् को स्थब्रगत रखे रहना िाब्रहए।

एिब्रमरि इक्लीज का मानना था ब्रक रणनीब्रत की सही समझ आवश्यक है , क्ोंब्रक यह सैन्य समस्याओं के कें द्र में होती है। रणनीब्रत
के साब्रहत् में उपिब्ध ब्रविारों व साब्रहत्ों की ब्रवब्रविता की अपेिा उन्ोंने अनुकूिता व एकजुटता की अविारणा प्राि करने के लिये िमायुद्
छे डा था। उन्ें लििि हटा (लजसका अध्ययन हमने पहिे ही ब्रकया है) और हरबटा रॉलजं की के ब्रविारों में यह तादात्म्य ब्रमिा। रॉलजं की ने रणनीब्रत
को 'शब्रक्त की व्यापक ब्रदशा' कहा और बताया ब्रक रणनीब्रत का अनुप्रयोग के वि ब्रदशा नहीं है, वरन् वह सं भाब्रवत प्रब्रत-कारावाई को भी ध्यान में
रखता है। इस प्रकार यह ब्रनयं िण का एक सािन बन गया, जो ब्रक रॉलजं की के ब्रविार में इसका वास्तब्रवक तत्व था। रॉलजं की की पररभािा को
िेकर इक्लीज ने स्वयं एक पररलशष्ट प्रस्तुत ब्रकया। उन्ोंने ब्रनयम ब्रदया, ''रणनीब्रत ध्येय की प्राब्रि के लिये स्लस्थब्रतयों व िेिों को ब्रनयं ब्रित करने में
शब्रक्त की व्यापक ब्रदशा होती है।'' यह एक ब्रवशेि प्रभाव के लिये तालत्वक रूप से ब्रनयं िण से सं बं लित था। ब्रनयं िण की प्रकृ ब्रत की व्याख्या करते
हुए उन्ोंने कहा ब्रक रणनीब्रत ब्रनयं िण की योजना अथवा पद्ब्रत, ब्रनयं िण का उद्दे श्य, प्रकृ ब्रत व पररमाण तथा क्ा ब्रनयं िण करना है, इससे
सं बं लित होती है। बोफ्र जैसा ही इक्लीज ने भी पहिाना ब्रक उन सािनों में से के वि एक शब्रक्त ही ऐसी थी , लजससे ब्रनयं िण स्थाब्रपत ब्रकया जा
सकता था।

नालभकीय शस्त्रों के अब्रवष्कार के साथ 1945 और 1955 के मध्य ऐसे रणनीब्रतकार उभरे, लजन्ोंने नालभकीय बम को युद् के 'परम'
अस्त्र के रूप में देखा। तद्नुसार, उन्ोंने आतं क के सं तुिन की रणनीब्रत के लसद्ांत को बनाया। जे. रॉबटा ओपेनहाइमर ने इस लसद्ांत की सवाश्रेष्ठ
व्याख्या 'एक बोति में दो ब्रबच्छू ' की सादृश्यता का रूपक देकर की है। परमाणु बम के उत्तरोत्तर ब्रवकास और इसके प्रभावों के और अलिक ज्ञान
से 1954 में ड्यूिास का भारी नालभकीय प्रब्रत-कारावाई का लसद्ांत आया और मैकमेरा की ििीिी प्रब्रतब्रक्रया आयी।

क्रब्रमक ब्रनवारण, ब्रद्वतीय प्रहार िमता तथा सामुब्रद्रक प्रणािी के आसपास मं िरा रही अन्य ब्रविारिाराओं ने भी इसका अनुसरण
ब्रकया।

1959 में अल्बटा वॉहस्टे टर ने 'आतं क के सं तुिन' के लसद्ांत की भत्साना की। उनका शोि प्रबं ि यह था ब्रक एक ब्रनवारक बि का
अस्लस्तत्व तभी रह सकता है जब उसके पास प्रब्रत-कारावाई की िमता हो। उन्ोंने ब्रद्वतीय प्रहार िमता के लिये छह उपबं िों के समूह का
प्रब्रतपादन ब्रकया और यह ब्रनष्किा ब्रनकािा ब्रक उस समय अमरीका के पास इनमें से कु छ भी नहीं था। िॉ. हेनरी ब्रकलसंजर ने अपनी प्रलसद्
पुस्तक 'नेसेलसटी फॉर िॉइस' में मयााब्रदत युद्ों का नया लसद्ांत ब्रदया और 'ब्रनवारण' के लिये 'ब्रवश्वसनीयता' का तत्व प्रस्तुत ब्रकया। उन्ोंने
लिखा, ''ब्रनवारण'' के लिये शब्रक्त, शब्रक्त के प्रयोग की इच्छा और सं भाब्रवत आक्रमणकारी द्वारा इनके आं किन के सं योजन की आवश्यकता होती
है।'' 1960 से ब्रनवारण ब्रकसी न ब्रकसी रूप में रणनीब्रत के िेि में प्रमुख पि रहा है। यह ब्रवलभन्न प्रकार से सब्रक्र य व ब्रनलिय, आक्रामक व
रिात्मक, सापेि व सम्पूणा अथवा परम, सकारात्मक व नकारात्मक, सीब्रमत और व्यापक, प्रब्रत-बि और प्रब्रत-शासन आब्रद के रूप में वलणात
ब्रकया गया है।

आइये, अब रणनीब्रत पर कु रआन की अविारणा के अध्ययन का प्रयास करें । इस अध्ययन का प्रथम िरण सम्पू णा रणनीब्रत अथाात
लजहाद और फौजी रणनीब्रत में भेद समझना है। लजहाद शब्द को प्राय: फौजी रणनीब्रत के रूप में समझ लिया जाता है, जबब्रक वास्तव में यह
सम्पूणा अथवा महा-रणनीब्रत अथवा कायाकारी-नीब्रत है। लजहाद व्यापक ब्रदशाब्रनदेश और 'सत्ता' सं िािन के सं बं ि में होता है। लजहाद एक ब्रनरंतर
व सतत् सं घिा है, जो नीब्रत का ध्येय प्राि करने के लिये राजनीब्रतक, आलथाक, सामालजक, मनोवैज्ञाब्रनक, घरेिू, नैब्रतक और मजहबी सभी पिों
में ब्रकया जाता है। इसका िक्ष्य इस्लामी राज्य को ब्रदये गये सभी ब्रमशनों को प्राि करना है और फौजी रणनीब्रत ऐसा करने के लिये उपिब्ध
सािनों में से एक है। यह व्यब्रक्तगत और सामूब्रहक तथा आं तररक व वाह्य स्तरों पर भी ब्रकया जाता है।

इसकी मूि भावना और इसके लिये उपिब्ध अनेक सािनों के साथ ब्रकये गये लजहाद अथाात सम्पूणा रणनीब्रत की इस्लामी अविारणा
में सीिा पररणाम देने की िमता होती है।

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यद्यब्रप वैकस्लल्पक रूप से यह तीव्र गब्रत और आलथाक रूप से अपने िक्ष्य की प्राब्रि के लिये फौजी रणनीब्रत के अनुकूि स्लस्थब्रत यों का
ब्रनमााण करता है। इस प्रकार फौजी रणनीब्रत अपने सफितापूवाक सं िािन के लिये सम्पूणा रणनीब्रत (लजहाद) से तैयार होती है। सम्पूणा रणनीब्रत
के ब्रनमााण, ब्रदशा व अनुप्रयोग में ब्रकसी भी प्रकार का दोि या गुण उसी ढं ग से फौजी रणनीब्रत को प्रभाब्रवत कर सकता है। लजहाद के अभाव में
'बि' की तैयारी और उसके अनुप्रयोग का पूरा िाभ ब्रमि पाये, ऐसा होना कब्रठन होगा। या यूं कहें ब्रक फौजी उपकरणों की यथेष्ठ तैयारी और
अनुप्रयोग लजहाद का अलभन्न अंग ब्रनब्रमात करता है।

तब फौजी रणनीब्रत पर कु रआन की अविारणा क्ा है? फौजी रणनीब्रत पर अल्लाह के लसद्ांत से सं बं लित ब्रनदे श बद्र, उहुद, खं दक,
तबूक और हुदैब्रबया की जं गों के सं बं ि में दी गयी आयतों में ब्रमिते हैं। बद्र की स्लस्थब्रत का ध्यान करते हुए पब्रवि कु रआन ने इस्लाम के रसूि
(उन पर शांब्रत हो) को स्मरण कराया, ''स्मरण रख, तूने अपने अल्लाह की सहायता के लिये पुकार िगायी और उसने तेरी पुकार सुनी। 'मैं
ब्रनरंतर एक हजार फररश्ते भेजकर तेरी सहायता करूंगा। अल्लाह ने ये इसलिए बता ब्रदया, लजससे ब्रक तुझमें आशा का सं िार हो और तेरे मन में
ब्रनलिंतता आये। अन्यथा सहायता तो अल्लाह ही की ओर से होती है। वास्तव में अल्लाह प्रभुत्वशािी तत्वज्ञ है।''1 कु रआन में आगे कहा गया,
''उस समय का स्मरण करो, जब अल्लाह ने ऐसा ब्रकया ब्रक तुम ऊंघने िगो, लजससे ब्रक तुम सुरलित और शांत हो सको, तुम्हारी मनोदशा सुिर
जाए और उसके बाद तुम्हारे पांव सुदृढ़ता से जम जाएं ।''2

उहुद के ब्रविय में कु रआन ने कहा, ''स्मरण करो, जब तुम मोब्रमनों से कह रहे थेः क्ा तुम्हारे लिए ये बस नहीं है ब्रक अल्लाह तीन
हज़ार ़िररश्तों को (आकाश से) उतार कर तुम्हारी सहायता करे ? क्ों नहीं? यब्रद तुम दृढ़ रहोगे, ठीक से िक्ष्य पर िगे रहोगे, तो यब्रद शिु
तुम्हारी ओर ब्रवद्युत गब्रत से भी आये तो कोई बात नहीं। तुम्हारा अल्लाह (तीन नहीं) पांि हज़ार फररश्ते तुम्हारे पास भेजेगा, जो शिु पर भयानक
हमिा करेंगे। अल्लाह ने ये इसलिए बता ब्रदया, लजससे ब्रक तुममें आशा का सं िार हो और तुम्हारे मन ब्रनलिं त हो जाए। अन्यथा सहायता तो
अल्लाह ही की ओर से होती है। वास्तव में अल्लाह प्रभुत्वशािी तत्वज्ञ है।''3.

इस जं ग में एक समय ऐसा भी आया ब्रक मुसिमान फौज मुं ह की खाने िगी। कु रआन के शब्दों में उसी समय सवा-सामर्थ्ावान
अल्लाह ने 'तुम्हें यह समझाने के लिये बदिे में एक के बाद एक ब्रवपदा दी ब्रक तुम िूट के उस माि के लिये दुखी न हो, जो तुमसे छू ट गया
और उस ब्रवपदा के लिये उदास न हो, जो तुम पर आ पडी है।'4 कु रआन में कहा गया, ''ब्रफर ब्रवपदा के पिात तुम्हारे मन को शांत ब्रकया,
लजससे तुम्हारे एक पि का लित्त स्लस्थर हो गया, पर दूसरे एक पि को अपनी पडी हुई थी। वे अल्लाह के बारे में असत् (जाब्रहलिया) सोि रहे
थे।"5

हुनैन की जं ग में पुन: मुसिमानों को प्रारंभ में पराजय ब्रमिी और िगभग उहुद जैसी स्लस्थब्रत का सामना करना पडा, यद्यब्रप वे शीघ्र ही
उठ खडे हुए और अंत में उन्ें बडी ब्रवजय ब्रमिी। उस अवसर की बात करते हुए पब्रवि कु रआन कहती है , ''अल्लाह बहुत-से स्थानों पर तथा
ह़ुनैन के ब्रदन तुम्हारी सहायता की। पर ध्यान रखना! तुम्हें अपनी सं ख्या पर अहंकार हो गया था, पर वह सं ख्या ब्रकसी काम न आयी। तुम्हारे
लिये इतनी बडी िरती छोटी पड गयी थी और तुम पीठ ब्रदखाकर भागे थे। ब्रफर अल्लाह ने अपने रसूि और मोब्रमनों पर का लित्त शांत ब्रकया
तथा ऐसी फौज उतारी लजन्ें तुमने नहीं देखा और काब्ऱिरों को यातना दी। काब्रफरों का यही दंि-फि है।"6 हुदैब्रबया की एक स्लस्थब्रत की ओर
सं के त करते हुए पुस्तक में लिखा है, ''वही है लजसने मोब्रमनों के मन को शांत ब्रकया, लजससे ब्रक अल्लाह व उसके रसूि में उनका ब्रवश्वास और

1 अन्फाि: 9-10
2 अन्फाि: 11
3 आिे-इमरान: 124-126
4 आिे-इमरान: 153
5 आिे-इमरान: 154
6 तौबा: 25-26

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अलिक हो जाए।''7 हुदैब्रबया में अत्ं त कब्रठन पररस्लस्थब्रतयों में मुसिमानों द्वारा िी गयी ब्रनष्ठा की शपथ के ब्रविय में पब्रवि कु रआन बताती है ,
''उसे ज्ञात था ब्रक मोब्रमनों के मन में क्ा िि रहा है और इसी कारण उसने उन पर शांब्रत उतार दी और उन्ें शीघ्र ब्रवजय का पुरस्कार ब्रदया। ''8

उपरोक्त सं दलभात स्लस्थब्रतयों में हम पाते हैं ब्रक जब भी अल्लाह अपने शिुओ ं के िियं ि को ब्रवफि व नष्ट करना िाहता है, तो वह
मोब्रमनों के हृदय को सुदृढ़ करके तथा अपनी ओर से मोब्रमनों पर शांब्रत उतार कर ऐसा करता है।

अत: हम यह ब्रनष्किा ब्रनकािते हैं ब्रक शिु को अपनी इच्छा व ब्रनणाय थोपने से रोकने के लिये आवश्यक है ब्रक हम अपनी फौज में
स्लस्थरता, आशा, ब्रवश्वास और शांत लित्तता बनाये रखें। ब्रकंतु शिु पर हमारी इच्छा व ब्रनणाय थोपने के लिये क्ा ब्रकया जाना िाब्रहए? इस प्रश्न का
उत्तर जानने के लिये आइये, पुस्तक को पुन: खं गािें।

बद्र के ब्रविय में बात करते हुए पब्रवि कु रआन ने इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) को सं बोलित करते हुए कहा, ''(हे नबी!) यह
वो समय था, जब तुम्हारा अल्लाह फररश्तों को सं के त कर रहा था ब्रक मैं तुम्हारे साथ हं। ''9 पुन: उहुद की जं ग में इस पुस्तक ने मुसिमानों की
पराजय के कारण को लिलन्त ब्रकया और उन्ें भब्रवष् की कायायोजना को िेकर का मागादशान ब्रदया। मुसिमानों को अल्लाह द्वारा ब्रनिााररत
आिारसं ब्रहता माननी िाब्रहए और इसके लिये अल्लाह ने उन्ें यह विन ब्रदया, ''शीघ्र ही हम काब्रफरों के मन में तुम्हारा भय िाि देंगे।'' शिु के
मन में भय उत्पन्न करने के प्रश्न पर खं दक की जं ग से सं बं लित एक सं दभा सूरा 'अहजाब' में भी है।10 पब्रवि कु रआन ने बनू कु रै जा के द्रोह का
उल्लेख करते हुए कहा, ''इस पुस्तक को मानने वािे लजन िोगों ने उनकी सहायता की है , अल्लाह ने उन्ें उनके गब्रढ़यों से उतार ब्रदया है और
उनके मन में भय उत्पन्न कर ब्रदया है और तुम अब उनमें से कु छ की हत्ा कर पा रहे हो और कु छ को बं दी बना पा रहे हो। अल्लाह ने उनकी
भूब्रम, घर और उनकी वस्तुओ ं का उत्तरालिकारी तुम्हें बना ब्रदया है और उनकी ऐसी िरती तुम्हें दे दी है लजस पर तुमने पहिे कभी पग नहीं रखे
थे। अल्लाह जो िाहे, कर सकता है।"11

हम देखते हैं ब्रक इन सभी अवसरों पर जब अल्लाह ने अपनी इच्छा शिु पर थोपनी िाही तो उसने ऐसा करने के लिये उनके मन में
भय उत्पन्न करने का ब्रवकल्प िुना। ब्रकंतु उसने मोब्रमनों के लिये क्ा रणनीब्रत ब्रनिााररत की है, लजससे ब्रक वे अपने शिु से अपना ब्रनणाय मनवा
सकें ?''

''जो काब्ऱिर हो गये, वे कदाब्रप ये न समझें ब्रक हमसे आगे हो जाएं गे। ब्रनिय वे (हमें) ब्रववश नहीं कर सकें गे। तुमसे लजतनी हो
सके , उनके लिए बि तथा सीमा रिा के लिए घोडे तैयार रखो, लजससे ब्रक अल्लाह के शिुओ ं तथा अपने शिुओ ं को और इनके अब्रतररक्त उन
अन्य िोगों को भी भयभीत करो, लजन्ें तुम नहीं जानते पर अल्लाह जानता है।''12

इस प्रकार कु रआनी फौजी रणनीब्रत आदेश दे ती है ब्रक हम प्रत्ि या परोि शिु दिों में भय उत्पन्न करने के लिये स्वयं को अलिकतम
सीमा तक तैयार करेंगे, लजससे ब्रक शिु द्वारा आतं ब्रकत ब्रकये जाने पर अपनी रिा की जा सके । इस रणनीब्रत में आतं क के ब्रवरुद् अपनी रिा
'आिार' है और जं ग की अलिकतम तैयारी 'उद्दे श्य' है तथा शिुओं के मन में भय उत्पन्न करना 'प्रभाव' है। यह पूरा लसद्ांत मानव लित्त, उसकी
आत्मा, भावना और ब्रवश्वास के िारों ओर घूमता है। जं ग में हमारा मुख्य िक्ष्य शिु का मन-मस्लस्तष्क अथवा आत्मा होती है, इस िक्ष्य पर
आक्रमण के लिये हमारा मुख्य हलथयार हमारा अपना आत्मबि होता है और इस प्रकार के आक्रमण को करने के लिये हमें अपने मन से भय को
दूर रखना होता है।

7 फतह: 4
8 फतह: 18
9 अन्फाि: 12
10 आिे-इमरान: 151
11 अहजाब: 26-27
12 अन्फाि: 59-60

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तैयारी के िरण से ही कु रआन की रणनीब्रत प्रभाव में आ जाती है और इसका उद्दे श्य शिु पर प्रत्ि ब्रनणाय थोपना होता है। अन्य बातें
वही रहती हैं, पर जं ग के लिये तैयारी जं ग के समय हमारे प्रदशान का सच्चा सूिक होता है। हमें युद् -िेि में शिु का सामना करने से पूवा अपने
उद्दे श्य व इच्छा की ब्रहतकारी प्रब्रतष्ठा एवं इसकी प्राब्रि के लिये दृढ़ ब्रनिय करने पर िलित रहना िाब्रहए। जं ग के लिये हमारी तैयारी इतनी
ऊजाावान, उत्साहपूणा, समग्र व पूणा होनी िाब्रहए ब्रक हम 'ताकत की जं ग' िडने से पूवा ही 'इच्छा की जं ग' जीत िें। तैयारी के स्तर पर ही शिु
के मन में भय उत्पन्न करने के िक्ष्य वािी रणनीब्रत ही सीिा पररणाम दे सकती है और लििेि हाटा के स्वप्न को वास्तब्रवकता में साकार कर सकती
है।

शांब्रत काि के समय हमारी 'इच्छा' का प्रकटीकरण 'तैयारी' के माध्यम से होना िाब्रहए। शांब्रत काि में प्रारंभ की गयी जं ग की
तैयारी सब्रक्रय जं ग से अत्लिक महत्वपूणा होती है। रणनीब्रत का बडा भाग तुिनात्मक रूप से पररिािन िेि या भूब्रम के बब्रनस्बत, अभ्यास िक्र,
प्रलशिण अभ्यास के समय आदशा मं थन और पररििात्मक सस्लम्मिन में अलिक होती है।

शांब्रत काि में हम जो कु छ भी करते हैं या लजसमें ब्रवफि होते हैं , वह हमारे सं भाब्रवत शिुओ ं पर अनुकूि या प्रब्रतकू ि जो भी हो, पर
यह सुब्रनलित प्रभाव िाि रहा होता है। यथोलित रूप से करण व अकरण का छोटा और सामान्य कृ त् भी बडा महत्व ग्रहण करने के लिये एक-
दूसरे से ब्रमि जाते हैं। हमें इस तर्थ् का सदा ध्यान रखना िाब्रहए ब्रक हमारी रणनीब्रत शांब्रत काि में हमारे कायों द्वारा पूरे प्रवाह में ििती रहे
और जैसा भी हो हमें यह ध्यान रखना िाब्रहए हम अपने िक्ष्य की प्राब्रि के लिये योगदान दे रहे हैं अथवा इसको िब्रत पहुंिा रहे हैं।

गुणवत्ता और पररमाण दोनों में तैयारी अलिकतम होनी िाब्रहए। यह सतत् व ब्रनरंतर ििने वािी प्रब्रक्रया होनी िाब्रहए। तैयारी के वि
फौजी हलथयारों से ही नहीं, वरन् सम्पूणा रणनीब्रत अथाात लजहाद के अंतगात होनी िाब्रहए। फौजी तैयारी वांलछत पररणाम तभी देंगे, जब यह पूणा
तैयारी का एक भाग हो। पररमाणात्मक तैयारी की अपनी सीमाएं हो सकती हैं , ब्रकंतु गुणवत्तापरक तैयारी वांलछत प्राि करने की हमारी इच्छा और
ऊजाा पर ब्रनभार होती है। भौब्रतक सं सािन लजतने कम हों, उतना ही जं ग के मजहबी आयामों पर अलिक बि व ब्रनभारता बढ़ा दी जानी िाब्रहए।
जं ग करने वािी फौज की पररिािात्मक प्रभावकाररता इसके सम्पूणा ताकत पर ब्रनभार करती है और यह ताकत भौब्रतक के साथ ही मजहबी भी
होती है। हो सकता है ब्रक कोई फौज ब्रकसी एक िेि में ब्रनम्नतर हो, पर उसे समग्रता में अपने शिु पर श्रेष्ठतर होना िाब्रहए। वह पि जो भौब्रतक
ताकत में कम है, उसे कु ि ताकत का उच्च अंश अलजात करने के लिये अपने मजहबी ताकत का आश्रय िे ना िाब्रहए। यद्यब्रप भौब्रतक ताकत
'अलिकतम सीमा' तक तैयार की जानी िाब्रहए और इसका अलिकतम अनुप्रयोग भी होना िाब्रहए। भौब्रतक तैयारी मजहबी तैयारी की पूरक है
और मजहबी तैयारी भौब्रतक तैयारी की। इनमें से कोई एक दूसरे का न तो ब्रवकल्प बन सकती है और एक-दूसरे को प्रभाव को कम कर सकती
है।

शिुओ ं के मन में भय उत्पन्न करना के वि एक सािन नहीं है । यह अपने आप में एक प्रकार से पररणाम है। एक बार शिु के हृदय में
आतं क की स्लस्थब्रत उत्पन्न कर कर दी जाए, तो कदालित ही कु छ प्राि करने को शेि रह जाता है। यह वो ब्रबंदु है, जहां सािन और पररणाम ब्रमिते
हैं और एक-दूसरे में समाब्रहत हो जाते हैं। आतं क के वि शिु पर ब्रनणाय थोपने के सािन भर नहीं हैं, यह वो ब्रनणाय है जो हम उस पर थोपना
िाहते हैं।

मनोवैज्ञाब्रनक व भौब्रतक रूप से अस्त-व्यस्त करना अपने आप में सवोत्तम सािन हैं और इस ढं ग से ब्रबना ब्रकसी सािन के शिु ओ ं के
हृदय में आतं क भरने का िक्ष्य प्राि ब्रकया जा सकता है। इसका प्रभाव शिु की भौब्रतक व मजहबी सामर्थ्ा से सं बं लित होती है , यद्यब्रप यह
कदालित ही स्थायी व ब्रनरंतर प्रकृ ब्रत होती है। जो फौज जं ग पर कु रआन के लसद्ांत को उसकी सम्पूणाता में अपनाती है, उस पर मनोवैज्ञाब्रनक
दबावों का प्रभाव नहीं पडता है। जब लििि हटा शिु पर के वि मनोवैज्ञाब्रनक अस्त-व्यस्तता उत्पन्न कर सीिा ब्रनणाय थोपने की बात करते हैं, तो
वह शेि अन्य तर्थ्ों को कु छ अलिक ही तुच्छ समझने िगते हैं। सं िार माध्यमों को काट देने अथवा वापसी के मागा को अवरुद् कर देने भर से
ही ब्रकसी फौज में आतं क नहीं उत्पन्न ब्रकया जा सकता है। यह मूित: मानव के आत्मबि या दुबािता से सं बं लित होता है। यह शिु के ब्रवश्वास
को नष्ट कर दे ने भर से नहीं हो सकता। मनोवैज्ञाब्रनक अस्त-व्यस्तता अस्थायी होती है, जबब्रक िाब्रमाक ब्रवििन स्थायी होता है। मनोवैज्ञाब्रनक
ब्रवििन भौब्रतक कृ त् से उत्पन्न तो ब्रकया जा सकता है, ब्रकंतु इससे िाब्रमाक ब्रवििन पर अच्छी पकड नहीं बनेगी। शिु के मन में भय उत्पन्न
करने के लिये यह आवश्यक है ब्रक अंब्रतम ब्रवश्लेिण में उसके िाब्रमाक ब्रवश्वास को ब्रविलित ब्रकया जाए। अजेय िाब्रमाक ब्रवश्वास पर आतं क का
प्रभाव नहीं पडता। िमा पर अस्लस्थर ब्रवश्वास आतं क को स्थान देता है । पब्रवि कु रआन द्वारा हमको प्रदान ब्रकये गये िाब्रमाक ब्रवश्वास में हमारे भीतर

50
से भय को ब्रनकाि फेंकने और शिु के मन में भय उत्पन्न करने की ताकत ब्रनब्रहत है। शिु के ब्रवरुद् रणनीब्रत का जो भी रूप अथवा प्रकार
अपनाया जाए, उसके प्रभाव के लिये आवश्यक है ब्रक उसमें शिु के मन में भय उत्पन्न करने की िमता हो। जो रणनीब्रत यह स्लस्थब्रत प्राि करने में
ब्रवफि रहती है, वह अपनी अंतब्रनाब्रहत िुब्रटयों व दुबािताओं से भुगतती है और ऐसी रणनीब्रत की समीिा करके उसमें सुिार ब्रकया जाना िाब्रहए।
यह ब्रनयम नालभकीय और पारंपररक दोनों प्रकार के जं ग पर पूणात: ब्रक्रयालन्वत होना िाब्रहए। यह आज के ििन में नालभकीय ब्रनवारक रणनीब्रत
पर भी उतना ही सत् है। ब्रवश्वसनीय व प्रभावकारी होने के लिये ब्रनवारक रणनीब्रत शिु के मन में भय उत्पन्न करने में समथा होनी िाब्रहए।

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अध्याय 8

जं ग का सं िािन
इस अध्ययन को प्रारंभ करने से पूवा पहिे हम युद् के सं िािन के ब्रविय में परंपरागत लसद्ांतों को पुन: सं िेप में दोहरायें , जो इस
ब्रविय पर उस कु रआनी लसद्ांत की पृष्ठभूब्रम में दी गयी हैं लजसका हम अध्ययन करेंगे। अपने कु शाग्र काया 'स्टरै ट्जी: द इनिायरेक्ट् अप्रोि' में
लििि हटा ने युद् के इब्रतहास से उन अनुभवों की कु छ सच्चाइयों का सारसं ग्रह बनाने का प्रयास ब्रकया, जो उनको 'लसद् प्रमाण' होने योग्य
सावाभौब्रमक व मौलिक िगे। उनके अनुसार, ये सूब्रक्तयां युब्रक्तयों के जैसे ही रणनीब्रत पर भी अनुप्रयुक्त होते हैं। ये महान सैन्य ब्रविारक इस
सामान्य ब्रनष्किा पर पहुंिे ब्रक युद् के सभी लसद्ांत एकि लसद्ांत में सं घब्रनत ब्रकये जा सकते हैं और वह एकि लसद्ांत है दुबािता के ब्रवरुद् शब्रक्त
का सं घनन। इस लसद्ांत को ब्रक्रयालन्वत करने के लिये उन्ोंने आठ ब्रनयम प्रस्तुत ब्रकये , लजनमें छह सकारात्मक और दो नकारात्मक हैं।
सकारात्मक ब्रनयम थे: िक्ष्य को बनाये रखना, अंत तक सािनों का समायोजन, न्यून अपेिा और प्रब्रतरोि की िारा को ग्रहण करना, बहु-िक्ष्यों
को भेदने वािी पररिािन प्रणािी का बीडा उठाना और यह सुब्रनलित करना ब्रक योजनाएं व ब्रवन्यास ििीिी एवं पररस्लस्थब्रत-ग्राह्य हों।
नकारात्मक ब्रनयमों में उन्ोंने कहा ब्रक एक ही बार में सारी शब्रक्तयों का प्रयोग नहीं करना िाब्रह ए तथा जब एक बार आक्रमण ब्रवफि हो जाए,
तो पुन: उसी ढं ग या उसी रूप में आक्रमण नहीं करना िाब्रहए।

नेपोलियन ने प्रयास, आक्रामक कारा वाई, सहसा आक्रमण और सुरिा के सं घनन पर बि ब्रदया। क्लाजब्रवट् ज ने युद् के दो प्राथब्रमक
ब्रनयमों का क्रब्रमक ब्रवकास ब्रकया। ये दो ब्रनयम थे: युद् के मुख्य रणिेि में ब्रनणायशब्रक्त का प्रवतान करने वािे प्रमुख शिु बि के ब्रवरुद्
िमतावान प्रयास व कारावाई का सं घनन।

फॉश के ब्रविार में युद् के दो ब्रनणाायक ब्रनयम बि की सुव्यवस्था और कारा वाई की स्वतं िता थी। आं द्रे बोफ्र फॉश से सहमत थे, पर
उन्ोंने कहा ब्रक इन दोनों ब्रनयमों को ब्रक्रयालन्वत करने के लिये दो प्रगब्रतशीि कदम उठाना आवश्यक होता है। पहिा कदम यह है ब्रक आक्रमण
के लिये ब्रनणाायक ब्रबंदु का ियन करना और दूसरा ऐसा प्रारंलभक युद्ाभ्यास, जो ब्रनणाायक ब्रबंदु पर पहुंिने में समथा बनाये।

क्रांब्रत के युद् के िैस्लम्पयन इस समस्या के प्रब्रत पृथक दृब्रष्टकोण रखते थे। िेब्रनन और स्टालिन ने युद् के लसद्ांत और अभ्यास को तीन
मुख्य ब्रनयमों से जोडा था। उन्ोंने ब्रवजय का मागा प्रशस्त करने के लिये दे श व सेना की एकता, सुरिा और ब्रपछिी पं ब्रक्त के िेिों की सुरिा
और सैन्य कारवााई से पूवा मनोवैज्ञाब्रनक कारावाई पर बि ब्रदया था। माओत्सेतं ग
ु ने छह ब्रनयमों का समथान ब्रकया। उन्ोंने अनुशंसा की ब्रक शिु
की बढ़त के सामने सं कें ब्रद्रत प्रब्रतकार हो और यब्रद शिु प्रब्रतकार करे, तो अपने सुरिा बिों के आगे भेजा जाए। उनके अनुसार रणनीब्रतक रूप से
एक और पांि का अनुपात पयााि है, ब्रकंतु युब्रक्तसं गत रूप से पांि और एक का अनुपात आवश्यक है। उन्ोंने यह भी कहा ब्रक सेना और
नागररक जनसं ख्या के बीि ब्रनकट सामं जस्य होना िाब्रहए और यह भी ब्रक सेनाओं को शिु से बिाव करने में समथा होना िाब्रहए।

समय-समय पर अन्य लसद्ांतों के प्रणेता भी आते रहे हैं। मैब्रकंिर और स्पस्लक्समैन जैसे भू-राजनीब्रतज्ञों ने रणनीब्रत के अनुप्रयोग को
भूगोि में देखा। िाऊहेट ने ब्रनष्किा ब्रदया ब्रक वायुशब्रक्त पररणाम की एकमाि भुजा होती है। अपने अब्रवष्कार के आरंलभक स्तरों पर परमाणु शब्रक्त
परम शस्त्र के रूप में देखी जाती थी। अपने-अपने समय में यूनानी फिैंक्स, रोमन िीजन, महान फ्रेिररक का आब्लीक आिार, प्रथम ब्रवश्व युद्
के टरें ि वारफेयर और ब्रद्वतीय ब्रवश्वयुद् के 'स्लब्लट्जरीग' को भी युद् के सं िािन पर पररणाममूिक प्रभाव दे ने वािा माना जाता था। जैसे-जैसे
सैन्य ज्ञान बढ़ा, रणकौशि के अभ्यास और युद् में ब्रनयमों व लसद्ांतों के पािन के बीि ब्रववाद उत्पन्न हुआ। एक ब्रविारिारा ने कहा ब्रक
मान्यताप्राि लसद्ांतों का पािन युद् में सवाालिक महत्वपूणा है।

दूसरी ब्रविारिारा ने लसद्ांतों को रणकौशि का सहायक माना और कहा ब्रक रणकौशि ही एकमाि ब्रनणाायक कारक होता है।
तकनीक के ब्रवकास के साथ आज का सं घिा 'मानव' व 'मशीन' के बीि होने िगा है। जहां कु छ तकनीक को युद् का सवाालिक महत्वपूणा
कारक मानते हैं, वहीं कु छ ऐसे भी हैं जो अभी भी अब्रत प्रािीन मानव कारक की महत्ता पर बि देते हैं। वह समय भी आ जा रहा है, जहां
'मशीन' इतने आिुब्रनक व जब्रटि होते जा रहे हैं ब्रक मनुष् के लिये उनका प्रयोग करना कब्रठन हो रहा है।

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युद् सं िािन के समकािीन ब्रविार में युद् के लसद्ांतों पर बडे पररमाण में ब्रनभारता रखी जाती है। सभी सैन्य ब्रविारक लसद्ांतों के एक
समुच्चय एकमत होने की बात से सहमत नहीं होते। समय-समय पर प्रणीत लसद्ांतों की सूिी दो दजान से अलिक है , ब्रकंतु सैन्य ब्रवज्ञान में जो
लसद्ांत सामान्यत: पढ़ाये जाते हैं, वे हैं िक्ष्य की ब्रनरं तरता, आक्रामक कारा वाई, सं घनन, सहकार व समन्वय, प्रयास, सुरिा, मनोबि, प्रशासन
की व्यवस्था एवं कमांि की एकता। जं ग के सं िािन पर कु रआन की उब्रक्तयों में ब्रनणाय करने की किा, उद्दे श्य की सवोच्चता, िक्ष्य का ियन,
ब्रनरंतर अग्रगाब्रमता व सं घिाशीिता, स्लस्थब्रतयों का तुिनात्मक मूल्यांकन, प्रभुत्व व आक्रामकता, इच्छा व दृढ़ब्रनिय, िैया व गं भीरता, दृढ़ता व
ब्रनष्ठा और नमाज सस्लम्मलित है। जं ग की रणनीब्रत के कु रआनी अविारणा की समग्र रूपरेखा में ये ब्रनयम मुस्लस्लम फौज पर स्लस्थरता, आशा,
ब्रवश्वास और नैब्रतक प्रिानता देते हैं तथा शिु के मन में भय उत्पन्न करते हैं। जं ग के इन ब्रनयमों से प्रत्ेक की सं लिि व्याख्या नीिे दी गयी
पं ब्रक्तयों में की गयी है।

ब्रनणाय िमता: कु रआन ने पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) को ब्रनदेश ब्रदया, ''उनसे भी प्रकरण में परामशा करो, ब्रफर जब कोई दृढ़
सं कल्प िे िो, तो अल्लाह पर ब्रवश्वास करो। क्ोंब्रक अल्लाह उनसे प्रेम करता है, जो उसमें ब्रवश्वास रखते हैं।''1

उहुद के अवसर पर रणिेि के ब्रवकल्प को िेकर ब्रनणाय के सं बं ि में असमं जस व्याि हो गया, तो ये पं ब्रक्तयां भेजी गयीं और इनके
तीन ब्रनब्रहताथा थे। पहिा यह ब्रक जं ग से सं बं लित ब्रनणाय िैयपूवका , सुब्रविाररत, आद्योपांत व ब्रवस्तृत ब्रविार-ब्रवमशा के पिात लिया जाए। दूसरा
अंब्रतम ब्रनणाय का अलिकार कमांिर पर छोड ब्रदया जाए। तीसरा, एक बार ब्रनणाय हो जाने पर इस पर एकब्रनष्ठ ध्यान व समपाण के साथ ििा
जाए। जब सबकु छ 'मानवोलित' ब्रनणाय िेने की प्रब्रक्रया में ििे गये हों, तो अल्लाह में ब्रवश्वास बनाये रखना िाब्रहए और सभी प्रकार के भय,
सं देह व पूवााग्रहों को हटा दे ना िाब्रहए।

िक्ष्य की प्रमुखता: एक बार ब्रनणाय हो जाए, तो जं ग सं िािन के सभी स्तरों पर िक्ष्य को प्रमुख व सबसे ऊपर रखा जाना िाब्रहए
तथा अलिकतम उत्साह के साथ उस पर िग जाना िाब्रहए। अज्ञानता के ब्रदनों में िडाकों के मन में जं ग में प्राि िन और जं ग के समय बनाये
गये बं ब्रदयों को छोडने के बदिे ब्रमिने वािे िन के लिये बडा िोभ होता था। अल्लाह के आदेश से पब्रवि कु रआन ने इन प्रिोभनों को शिु को
नष्ट करने के प्राथब्रमक व अलिभावी िक्ष्य से जोड ब्रदया। जं ग की िूट और बं दी-मुब्रक्त िन (ब्रफरौती) या बं ब्रदयों पर उदारता को ब्रद्वतीयक स्थान
पर रख ब्रदया गया और इन पर तभी ब्रनणाय ब्रकया जाना था 'जब जं ग समाि हो जाए'2 अथवा वैकस्लल्पक रूप से जब 'मुसिमान उस भूब्रम को
पूणात: परालजत कर दें।'3

िक्ष्य का ियन: बद्र के अवसर पर पब्रवि कु रआन ने िक्ष्य के ियन को िेकर मुसिमानों के लिये ब्रनदेश ब्रनगात ब्रकया। इसमें कहा
गया, ''उनकी गरदनें उतार दो और उनकी उं गलियां काट िािो।''4 शरीर का सबसे सं वेदनशीि अंग गरदन के ऊपर होता है। इन अंगों पर
प्रभावकारी प्रहार शिु को पूणात: समाि कर सकता है। यद्यब्रप बद्र में कु रैश कवि िारण ब्रकये हुए थे। पब्रवि कु रआन ने मुसिमानों को परामशा
ब्रदया ब्रक ऐसे शिुओ ं की उं गलियां काट िािो। अत: जं ग में हमें शिु के सबसे सं वेदनशीि व आघातयोग्य अंग को पहिान कर उस पर प्रहार
करना िाब्रहए तथा उसे पूणात: समाि कर देने का िक्ष्य रखना िाब्रहए। जब ऐसा करना न सं भव हो तो हमारा प्रयास यह होना िाब्रहए ब्रक हम
ऐसे िक्ष्य का ियन करें , लजस पर प्रहार करने से शिु अपने शस्त्र ििाने अथवा हम से सं घिा करने में असमथा हो जाए। हमें अपनी दुबािताओं
के साथ सीिे शिु के बि पर प्रहार करने से सदै व बिना िाब्रहए।

ब्रनरं तर प्रयास व सं घिाशीिता: कु रआन ने मुसिमानों का आह्वान ब्रकया ब्रक ब्रनणाय िेने और िक्ष्य के ियन के पिात उद्दे श्य की प्राब्रि
की ओर ब्रनरंतरता व सब्रक्रयता से आगे बढ़कर प्रयास करते रहें तथा सं घिा करते रहें। इस ब्रविय पर दोहराये गये कु रआनी ब्रनदे श थे, ''आगे बढ़ो
और अल्लाह के मागा में लजहाद करो। यही तुम्हारे लिए उत्तम है , ब्रकंतु यब्रद तुम समझ पाओ।"5 आगे बढ़ने और सं घिा करने का आशय अल्लाह

1 आिे-इमरान: 159
2 मोहम्मद: 4
3 अन्फाि: 67
4 अन्फाि: 12
5 तौबा: 41

53
के मागा में प्राण या िन अथवा दोनों से लजहाद करना है। यह बहु एवं वैकस्लल्पक योजनाओं, काया-प्रणालियों व तकनीकों का प्रयोग करते हुए
िक्ष्य का पीछा करने को कहता है। िक्ष्य का पीछा करने में प्रारंभ ब्रकये गये अनवरत , दृढ़ब्रनियी व आद्योपांत प्रयास आज नहीं तो कि
सफिता प्रदान करते ही हैं। यद्यब्रप इस सद्गुण की वास्तब्रवक परीिा प्रब्रतकू ि स्लस्थब्रतयों में होती है, न ब्रक तब जब समृब्रद् और अनुकूि स्लस्थब्रत
हो। िाहे लजतनी कब्रठन पररस्लस्थब्रतयां हों, लजहाद पूरे उत्साह व आत्मब्रवश्वास के साथ करते रहना िाब्रहए।

स्लस्थब्रतयों का तुिनात्मक मूल्यांकन: जं ग दो या दो से अलिक ब्रवरोिी बिों के मध्य गुत्थमगुत्था का खेि है। पब्रवि कु रआन ने
मुसिमानों से कहा है ब्रक फौजी स्लस्थब्रत का मूल्यांकन करते समय शिु की स्लस्थब्रत से अनलभज्ञ नहीं रहो। जब दोनों पिों का सापेि मूल्यांकन
ब्रकया जाता है, तभी सही लिि उभर कर आता है। कु रआन ने मुसिमानों को आश्वस्त ब्रकया , ''यब्रद तुम्हें कोई घाव िगा है, तो शिु को भी इसी
के समान घाव िग िुका है।''6 इसी प्रकार इसमें कहा गया, ''तुम शिु जाब्रत का पीछा करने में लशलथि न बनो। यब्रद तुम पर कब्रठनाई आयी
है, तो तुम्हारे समान उन पर भी कब्रठनाइयां आयी हैं। पर अल्लाह से जो आशा तुम रखते हो , वो नहीं रखते।"7 प्रब्रतकू ि पररस्लस्थब्रतयों में भी शिु
की दुबािताओं को पहिानना और उसका िाभ उठाना रणकौशि का सवोच्च काया है।

महान मुस्लस्लम जनरि खालिद ब्रबन विीद इस किा के लसद्हस्त थे और उनकी ब्रवजयों में इस किा का बडा योगदान है। वही
कमांिर सफि होता है, जो जं ग के सं िािन के सभी स्तरों पर अपनी स्वयं की ब्रवशेिताओं और दुबािताओं का सटीक आं किन करने के साथ ही
शिु पि की ब्रवशेिताओं व दुबािताओं को भी ठीक से पहिान सके ।

प्रभुत्व व आक्रामकता: पब्रवि कु रआन ने इच्छा प्रकट की है ब्रक मुसिमान फौज सदा अपने शिुओ ं की तुिना में सवोच्च , प्रभुत्वसम्पन्न
व प्रभावशािी रहे। कु रआन ने उन्ें ब्रनदेलशत ब्रकया, "जब पब्रवि महीने बीत जाएं , तो मूब्रतापूजकों की हत्ा करो, उन्ें जहां पाओ पकडो, घेरो
और उनकी घात में रहो।''8 यह पुस्तक िाहती है ब्रक मुसिमान साहसी, आक्रामक, नपी-तुिी व सुब्रविाररत योजना और जं ग सं िािन के
माध्यम से शिु पर िढ़ाई की पहि करें। हम आगे देखेंगे ब्रक सं ख्या व सं सािन में अत्ं त न्यू न होने के बाद भी पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो)
ने शिु को कभी पहिे आक्रमण का अवसर नहीं िेने ब्रदया। रसूि के फौजी अलभयानों से हमें उनके द्वारा पहि बनाये रखने के लिये अपनायी
गयी कु छ काया-प्रणालियों की झिक ब्रमिती है।

इच्छा व दृढ़ब्रनिय: पब्रवि कु रआन ने मुसिमानों को ढांढस बं िाया, "तुम ब्रनबाि न बनो और न ही सं लि के लिये शिु को पुकारो।
तुम ही सबसे ऊपर रहोगे, क्ोंब्रक तुम्हारे साथ अल्लाह है और वह तुम्हारे अच्छे कमा को व्यथा नहीं जाने देगा।''9 इस ब्रविय-वस्तु पर पुस्तक ने
मुसिमानों को ब्रनदेश ब्रदया, ''तो तुम ब्रनराश मत हो, हताशा के भं वर में न फंसो। क्ोंब्रक यब्रद तुम अल्लाह और उसके रसूि पर सच्चा ब्रवश्वास
करते हो, तो तुम ही सवोच्च रहोगे।"10 उहुद की जं ग के समय घेर लिये ब्रनराशा का सं के त करते हुए पुस्तक ने कहा, ''ब्रकतने ही रसूि थे,
लजन्ोंने अल्लाह के मागा में लजहाद ब्रकया और लजनके साथ होकर बहुत से अल्लाह वािों ने जं ग ब्रकया? ब्रकंतु यब्रद अल्लाह के मागा में उन पर
ब्रवपब्रत्त भी आयी तो वे ब्रनराश नहीं हुए और न ही वे हृदय से दुबाि हुए, न ही साहस छोडा।"11

उहुद में गं भीर खतरे के सामने िराति पर िटे हुए ब्रगने-िुने अब्रविलित िोगों के ब्रविय में ब्रटप्पणी करते हुए कु रआन ने कहा,
''लजन्ोंने घायि होने के बाद भी अल्लाह और रसूि की पुकार सुनीं, लजन्ोंने सुकमा ब्रकया तथा अल्लाह से िरे , उन्ें बडा प्रब्रतफि ब्रमिा। ये वे

6 आिे-इमरान: 140
7 ब्रनसा: 104
8 तौबा: 5
9 मुहम्मद: 35
10 आिे-इमरान: 139
11 आिे-इमरान: 146

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िोग हैं, लजनसे िोगों ने कहा ब्रक तुम्हारे ब्रवरुद् शिु की बडी सेना एकि हो रही है, उस सेना से भय खाओ। पर यह सुनकर उनकी मजहबी
ब्रनष्ठा और बढ़ गयी।''12

इस अत्ं त महत्वपूणा ब्रविय पर कु रआन का सं दे श यह है ब्रक पूणा समपाण व ब्रनष्ठा एवं सबकु छ त्ाग करने की इच्छा के साथ अल्लाह
के उद्दे श्य के लिये िडने वािे मोब्रमन के पास ब्रनराशा के भं वर में फंसने अथवा इच्छा व दृढ़ब्रनिय के दुबाि होने का कोई कारण नहीं होता है।

िैया एवं गं भीरता: पब्रवि कु रआन ने िैया व गं भीरता (अरबी में सि) पर बि देते हुए इन्ें जं ग जीतने का प्रमु ख कारकों में से एक
बताया है। इस पुस्तक ने कहा है, ''अल्लाह उनके साथ है, जो िैया से काम िेते हैं।''13 पब्रवि कु रआन यह भी दृढ़ कथन देती है ब्रक िैया व
गं भीरता के प्रयोग से सं ख्यात्मक न्यूनता की प्रब्रतपूब्रता कर सकती है। बद्र में अल्लाह का आदे श आया , "हे रसूि! मोब्रमनों को जं ग की प्रेरणा दो।
यब्रद तुममें से बीस िैयावान होंगे, तो दो सौ पर ब्रवजय प्राि कर िेंगे और यब्रद तुमसे सौ ऐसे होंगे, तो उन काब्ऱिरों के एक हजार को नष्ट कर
देंगे। क्ोंब्रक वे समझ-बूझ नहीं रखते।''14 अल्लामा अब्दुल्ला युसुफ अिी ने ब्रटप्पणी की है, ''अरबी शब्द सि के अनेक आशय हैं, लजसे
अंग्रेजी के एक शब्द से समझ पाना असं भव है।'' उनके ब्रविार में इसका आशय ऐसे िैया से है, लजसमें सम्यकता का भाव हो, न ब्रक आतुरता
का। इसका यह भी अथा है ब्रक उद्दे श्य में स्लस्थरता, दृढ़ता और ब्रनरंतरता हो। इसका अथा व्यवस्लस्थत कारा वाई करना है , न ब्रक अब्रनयब्रमत अथवा
सं योगवश की गयी कारा वाई। इसमें दुख, कष्ट, सं कट अथवा पराजय में ब्रनवृब्रत्त व समझौते के सहिा आिरण की आवश्यकता होती है। हक्कानी
इसकी व्याख्या प्रज्ञा का अनुसरण एवं भय, क्रोि व वासना पर ब्रनयं िण के रूप में करते हैं। िैया साहस का एक ऐसा पि है , जो उच्चतम कोब्रट
की वृब्रत्तक योग्यता द्वारा पोब्रित व प्रोत्साब्रहत होती है।

जं ग में मानव व उपकरणों िब्रत होगी, योजनाएं अव्यवस्लस्थत हो जाएं गी, उसमें सुिार की आवश्यकता पडेगी, जं ग के टकराव से
योजनाओं का सं िािन अस्तव्यस्त कर करेगा, शिु द्वारा स्लस्थब्रतयां लछन्न-लभन्न कर दी जाएं गी, आक्रमण रोकना पड जाएगा और यहां तक ब्रक पीछे
हटना पड जाएगा। ब्रवपब्रत्त के बाद भी इन स्लस्थब्रतयों से जूझने के लिये वृब्रत्तक योग्यता से उत्पन्न होने वािे 'िैया' और नैब्रतक साहस की
आवश्यकता पडेगी और िक्ष्य को प्राि करने के लिये 'गं भीरता' की आवश्यकता होगी।

दृढ़ता एवं ब्रनरं तरता: दृढ़ता और ब्रनरंतरता िैया व गं भीरता के साथ-साथ ििती हैं। तबूक की जं ग के समय मुसिमानों के मागादशान
के लिये अल्लाह द्वारा भेजा गया आदे श था, ''हे मोब्रमनो! अपने आसपास के काब्रफरों से जं ग करो और ऐसा करो ब्रक वे तुममें कु ब्रटिता
पायें।''15 कु रआन में इसी प्रकार के ब्रनदे श कई अन्य अवसरों पर भी ब्रदये गये हैं। मुसिमानों को दी गयी दृढ़ता व ब्रनरंतरता की अविारणा को
िेकर कु रआन पुस्तक कहती है, ''ब्रनस्सं देह अल्लाह उनसे प्रेम करता है, जो अल्साह के मागा में ऐसे पं ब्रक्तबद् होकर जं ग करते हैं , जैसे ब्रक वे
सीमेंट से बनी ठोस दीवार हों।"16 जं ग के सं िािन के समय पब्रवि कु रआन ने के वि दो अवसरों को छोडकर, अन्य अवसरों पर मुसिमानों के
लिये शिु को पीठ ब्रदखाकर भागना ब्रनब्रिद् ब्रकया है। इसमें ब्रनदेश ब्रदया गया है , ''हे मोब्रमनो! जब काब्ऱिरों की सेना से लभडो, तो उन्ें पीठ न
ब्रदखाओ। पुन: आक्रमण करने की रणनीब्रत के अंतगात अथवा या फौज की टुकडी के पीछे हटने की स्लस्थब्रत के अब्रतररक्त जो कोई भी उस ब्रदन
अपनी पीठ ब्रदखायेगा, वह अल्लाह के प्रकोप से ब्रघर जाएगा। वास्तव में ऐसा व्यब्रक्त नका (दोजख) में जाएगा।"17 पीछे हटने के लिये लजन दो
स्लस्थब्रतयों में छू ट दी गयी है, वो जं ग के दांवपेंि और ब्रविग हो गयी फौज की टुकडी का मुख्य फौज से ब्रमिने के लिये पीछे हटने की स्लस्थब्रत है।
अल्लामा अब्दुल्ला युसुफ अिी जं ग के दांव-पेंि की व्याख्या 'रेक्ुिर पूर ब्रमयूज साटर' अथाात पुन: छिांग िगाने के लिये कदम पीछे खींिने
अथवा शिु को कपट से छिने के रूप में करते हैं।

12 आिे-इमरान 172-173
13 अन्फाि: 46
14 अन्फाि: 65
15 तौबा: 123
16 साटफ: 4
17 अन्फाि: 15-16

55
त्ाग: कु रआनी पररप्रेक्ष्य में सवोच्च उपिस्लब्ध सवोच्च त्ाग से प्राि होती है। त्ाग मनुष् व अल्लाह के बीि प्रेम का िागा तैयार
करता है। इसमें मनुष् शाश्वत मुब्रक्त और अपनी आध्यालत्मक प्रत्ाशा की पूब्रता हेतु इस सं सार की िणभं गुर वस्तुओ ं का त्ाग करता है ।

पब्रवि कु रआन मजहबी अपेिा का वणान 'सवोच्च उपिस्लब्ध' के रूप में करता है। सवा-सामर्थ्ावान अल्लाह कहता है, "कौन है, जो
अल्लाह को अच्छा उिार देगा? अल्लाह उस उिार को कई गुना करके िौटायेगा और उसके िेखा में िाि देगा।" 18 त्ाग कष्ट, कब्रठनाई,
अभाव, भूख, प्यास, थकान, िोट और मृत्ु सहने के रूप में हो सकता है । अल्लाह के उद्दे श्यों को पूरा करने की मं शा से त्ाग की भावना
ब्रन:स्वाथा भाव से प्रेररत की जानी िाब्रहए। त्ाग का पुरस्कार इस सं सार में जीवन का सम्मान और मृत्ोपरांत मुब्रक्त है। कु रआन विन देती है ,
''तो उनके अल्लाह ने उनकी (प्राथाना) सुन िी और कहा ब्रकः ब्रनस्सं दे ह मैं तुममें से ब्रकसी के काया को व्यथा नहीं जाने, नर हो अथवा नारी। तो
लजन्ोंने ब्रहजरत की (अपने घर छोडे) या जो अपने घरों से ब्रनकािे गये, मेरे मागा में सताये गये और जं ग ब्रकया तथा मारे गये , तो हम अवश्य
उनके दोिों को िमा कर देंगे तथा उन्ें ऐसे बागों वािे जन्नत में प्रवेश देंगे, जहां नीिे नब्रदयां बह रही हैं। ये अल्लाह के पास से उनका प्रब्रतफि
होगा और अल्लाह के ही पास अच्छा प्रब्रतफि है।"19 अल्लाह द्वारा इन पं ब्रक्तयों में इस पर बि देने के उद्दे श्य से प्रयुक्त पुरुिवािक एकविन
सं ज्ञा का प्रयोग ध्यान देने योग्य है और इससे त्ाग के मूल्य को िेकर हमारे मन में कोई सं शय नहीं रह जाता है। पब्रवि कु रआन इस प्रकार के
ब्रनदेशों से भरी पडी है। इब्रतहास इस तर्थ् से भरा हुआ है ब्रक आत्म-त्ागी राष्टर सदा ब्रवजेता के रूप में उभरे हैं।

ब्रविारों व कायों में एकरूपता: पब्रवि कु रआन ने मोब्रमनों का आह्वान ब्रकया है ब्रक वे जं ग िडते समय पारस्पररक प्रेम, स्नेह, आदर और
लिंता के उच्च मानकों का प्रदशान करें । यह उन्ें आदेश देता है ब्रक वे अल्लाह की रस्सी को एकसाथ सामूब्रहक रूप से और दृढ़ता से पकडें तथा
फौलजयों में एकता व सामं जस्य बनायें। पुस्तक ने कहा, ''हे मोब्रमनो! तुम िैया रखो, एक-दूसरे को थामे रखो, लजहाद के लिए तैयार रहो और
अल्लाह से िरते रहो।''20 पब्रवि कु रआन ने उनको िेताया है ब्रक अपनी फौज में ब्रवखं िन न होने दो। इसमें कहा गया है , ''अल्लाह और उसके
रसूि के आज्ञाकारी रहो। आपस में ब्रववाद न करो, अन्यथा तुम दुबाि हो जाओगे और तुम्हारे पांव उखड जाएं गे।''21

अल्लाह द्वारा दी गयी एकता की अविारणा को मुसिमानों को सौंपते हुए इस पुस्तक कु रआन ने ब्रनयम ब्रदया, "इसके अब्रतररक्त उसने
(अल्लाह) उनके मन में स्नेह भर ब्रदया। इस िरती पर जो कु छ भी है, यब्रद तुम वो सब भी व्यय कर दे ते, तो भी उनमें आपसी प्रेम उत्पन्न नहीं
कर करते थे। वास्तव में अल्लाह प्रभुत्वशािी व ब्रनपुण है।''22 एक अन्य अवसर पर पुस्तक ने कहा, ''मुहम्मद अल्लाह का रसूि है और जो
उसके साथ हैं, वे काब्रफरों पर भारी हैं। पर तुम िोग आपस में एक-दूसरे के प्रब्रत करुणा बनाये रखो।"23 मुस्लस्लम फौजी इब्रतहास बताता है ब्रक
उनकी सबसे बुरी पराजय के सबसे बडे उत्तरदायी कारकों में मुसिमान फौज में एकता का न होना था। 721 ईस्वी में फ्रांस में िडे गये टू असा
की जं ग में आं तररक किह के कारण मुसिमानों की पराजय इसका बडा उदाहरण है। यब्रद उनमें आपसी असं तोि न होता तो उस जं ग में जीत
की पूरी सं भावना थी और पररणामस्वरूप वे यूरोप के इब्रतहास की िारा मोड देते।

सुरिा व साविानी: फौज को शिु के औिक आक्रमण से सुरिा के लिये पूरी साविानी रखनी िाब्रहए। पब्रवि कु रआन ने परामशा
ब्रदया, "हे मोब्रमनो! शिु से बिाव के सािन तैयार रखो, ब्रफर टुकडी में अथवा एक साथ ब्रनकि पडो।"24 इसमें मुसिमानों को इसका भी ब्रनदेश
ब्रदया गया है ब्रक जब वे नमाज पढ़ रहे हों, तभी भी पूरी साविानी रखें। इसमें कहा गया, "हे नबी! जब तुम जं ग के मैदान में उपस्लस्थत हो और
नमाज पढ़ने जाओ, तो एक टोिी तुम्हारे साथ खडा हो जाए और अपने हलथयार लिये रहे। जब एक समूह सजदा कर िे, तो तुम्हारे पीछे हो जाए
तथा लजसने नमाज़ नहीं पढ़ी है, वह दूसरा समूह आये और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और पहिा समूह अपने हलथयार िेकर खडा रहे। 25 पुस्तक ने

18 बकरा: 245
19 आिे-इमरान: 195
20 आिे-इमरान: 200
21 अन्फाि: 46
22 अन्फाि: 63
23 फतह: 29
24 ब्रनसा: 71
25 ब्रनसा: 102

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आगे िेताते हुए कहा है, ''काब्रफर िाहते हैं ब्रक तुम अपने हलथयारों से ब्रनिेत हो जाओ और वे तुम पर यकायक िावा बोि दें । पर यब्रद विाा के
कारण तुम्हें समस्या हो अथवा तुम अस्वस्थ हो तो अपने हलथयार ब्रकनारे रख दो , पर अपने बिाव की साविानी अवश्य रखो।" 26

अनुशासन व आज्ञाकाररता: अनुशासन व आज्ञाकाररता अल्लाह की इच्छा के आगे समपाण के मजहब इस्लाम के कें द्र में है। पब्रवि
कु रआन ने अनेक अवसरों पर इच्छापूवाक व तत्पर आज्ञाकाररता की आवश्यकता पर बि ब्रदया है। मुसिमानों ने अपने महान नेताओं का
अनुसरण लजस अनुशासन व आज्ञाकाररता से ब्रकया है, वह प्रलसद् हो िुका है। यद्यब्रप ब्रक समपाण व आज्ञाकाररता के असं ख्य उदाहरण हैं, पर
हमें इस तर्थ् को सदै व ध्यान में रखना िाब्रहए ब्रक अनुशासन व आज्ञाओं का उल्लं घन ही वह कारण था जो उहुद में मुसिमानों पर पडी ब्रवपदा
के लिये उत्तरदायी था।

नमाज: कु रआन मुसिमानों का आह्वान करती है ब्रक शांब्रत के समय की तुिना में जं ग सं िािन के समय नमाज का अलिक सहारा
िेना िाब्रहए। इस ब्रविय पर कु रआनी लसद्ांत यह है ब्रक नमाज अल्लाह व उसके रसूि में ब्रवश्वास को और सुदृढ़ करते हैं , लजससे मनोवैज्ञाब्रनक
दबावों से बिाव होता है। नमाज के ब्रविय पर अनेक कु रआनी ब्रनदे श हैं, पर यहां हम उनमें से कु छ का स्मरण करें। यह पुस्तक कहती है, "हे
मोब्रमनो! जब ब्रकसी समूह से लभडो, तो जम जाओ और अल्लाह का और अलिक स्मरण करो। इसी से तुम्हें सफिता ब्रमिेगी।"" 27 नमाज
अल्लाह की प्रब्रतब्रक्रया पर कहा गया है, "हे रसूि! जब मेरे गुिाम मेरे ब्रविय में तुमसे प्रश्न करें, तो उन्ें बताओ ब्रक ब्रनिय ही मैं उनके समीप
हं। मैं उनकी नमाज का उत्तर देता हं। अतः उन्ें भी िाब्रहए ब्रक मेरे प्रब्रत आज्ञाकारी बनें तथा मुझ पर ब्रवश्वास रखें, लजससे ब्रक वे सीिा मागा
पायें।"28

26 ब्रनसा: 102
27 अन्फाि: 45
28 बकरा: 186

57
अध्याय 9

कु रआनी फौजी ब्रविारों का अनुप्रयोग


जं ग की योजना
यह ध्यान होगा ब्रक लजस ब्रदन मूब्रतापूजकों ने इस्लाम के ब्रवरुद् युद् की स्लस्थब्रत की घोिणा की थी, उसी ब्रदन जं ग की योजना का
बीजारोपण हो गया था और उनके इस युद् से मुसिमानों की ओर से ब्रबना ब्रकसी प्रत्ुत्तर के यह योजना 12 विों तक पनपती रही। मुसिमान
मदीना प्रस्थान के पिात जं ग में उतरे। तदोपरांत जं ग ब्रद्वपिीय प्रकरण हो गया और िगभग आठ विों की अवलि तक ििा। आरंलभक पांि विों
की जं ग के समय मक्का अरब का राजनीब्रतक कें द्र बना रहा और कु रै श िोग मुसिमानों के प्रब्रत रणनीब्रतक रिात्मक स्लस्थब्रत में रहे। उस अवलि में
उन्ोंने मुसिमान समुदाय को नष्ट करने की मं शा से मदीना पर तीन बडे आक्रमण ब्रकये। वे बद्र में परालजत हुए, पर उहुद में उन्ें मुसिमानों पर
सफि सैन्य ब्रवजय ब्रमिी। उहुद के पिात मदीना की पररलि पर रहने वािी मूब्रतापूजक जनजाब्रतयां और सब्रक्रय हो गयीं तथा मुसिमानों को
पूणात: नष्ट करने के लिये नगर पर अनेक आक्रमण ब्रकये, ब्रकंतु ब्रवफि रहीं। दो विा पिात मूब्रतापूजकों व यहब्रदयों के साथ ब्रमिकर कु रैशों ने
मदीना पर सबसे बडा आक्रमण ब्रकया। वे नगर की घेराबं दी में सफि रहे , पर अंतत: खं दक की जं ग में वे परालजत हुए। इस पराजय से मदीना
पर पुन: आक्रमण करने की उनकी सामर्थ्ा नहीं बिी और इससे िडाकों के बीि रणनीब्रतक सं तुिन की स्लस्थब्रत बनी। एक विा पिात हुदैब्रबया में
मुसिमानों व मक्कावालसयों के बीि दस विा की सं लि हुई।

अरब 610 ईस्वी

इससे एक ऐसे कािखं ि का प्रारंभ हुआ, लजसमें उस िेि में राजनीब्रतक सत्ता के उपयोग को िेकर दोनों समुदाय बराबरी की स्लस्थब्रत
में आ गये। दो विा पिात जब मक्का पर ब्रवजय प्राि हुई, तो मुसिमानों ने ब्रनणाायक रूप से अपना िेखा-जोखा बराबर कर लिया और सत्ता
मुसिमानों के पास स्थानांतररत हो गयी। इन दोनों कािखं िों के मध्य मुसिमानों ने उत्तरी अरब में हुनैन व ताइफ की ब्रवरोिी जनजाब्रतयों और

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़िैबर, ब्रफदक, दूमा व कु रा के यहदी गढ़ों को अपने अिीन करने के लिये सफितापूवाक हमिे ब्रकये। उत्तरी अरब के जं गी अलभयानों से
मुसिमानों का सम्पका रोमन सीररया से हुआ और मुता व तबूक के रणिेि में दोनों पिों ने एक-दूसरे से दो-दो हाथ ब्रकये।1

632 ईस्वी के उस विा जब इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने अंब्रतम सांस िी, तो मुसिमान सम्पूणा अरब प्रायद्वीप जीत िुके
थे। आकार में यह िेि रूस को छोडकर पूरे यूरोप के बराबर था। मुहम्मद हमीदुल्लाह के अनुसार इतने बडे भूभाग पर ब्रवजय प्राि करने में जं ग
िडते हुए के वि 150 िोग मारे गये और वह भी शिु पि के ।

दस विा पूवा जब मुसिमानों ने पहिी बार हलथयार उठाये, तो उस बैरी रेब्रगस्तान देश में उनका अस्लस्तत्व िगभग न के बराबर था।
लजस राजनीब्रतक, सामालजक-आलथाक व सैन्य वातावरण में उन्ें अपने जं ग की योजना बनानी पडी और िडनी पडी, वह अत्ं त जोलखम भरा था।
राजनीब्रतक रूप से नये जन्मे उनके राज्य के सामने मदीना के सामर्थ्ावान व सािन-सम्पन्न यहब्रदयों के गुट थे। उस समय सामालजक-आलथाक
स्लस्थब्रत भी भयावह थी। अंसार और मुहालजर दोनों पारस्पररक सामालजक समन्वय बनाने की प्रब्रक्रया में थे और गं भीर आलथाक समस्याओं का
सामना कर रहे थे। फौजी रूप से मुसिमानों को अनेक शिुओ ं का सामना करना पडा रहा था। इन शिुओ ं में मक्कावासी , यहदी, आसपास की
मूब्रतापूजक जनजाब्रतयां और मुसिमानों में लभतरघाती सस्लम्मलित थे। मुसिमानों के पास सं सािन भी न के बराबर थे। मुसिमानों की समस्या तब
और बढ़ गयी, जब अन्य शिु गुटों के समथान से मदीना पर मक्कावालसयों का आक्रमण आसन्न ब्रदखने िगा।

उस स्तर पर पब्रवि रसूि की मुख्य लिंता मदीना राज्य-नगर की सुरिा की थी। मदीना की सुरिा को िेकर बडा खतरा 400 मीि
दूर मक्का की ओर से था। यद्यब्रप मक्कावालसयों से पहिे यहब्रदयों, मूब्रतापूजकों व लभतरघाब्रतयों की ओर से खतरा मं िरा रहा था और यह खतरा भी
छोटा नहीं था। यब्रद प्राथब्रमकता के आिार पर इस खतरे से ब्रनपटने का ब्रनणाय लिया जाता, तो पूरी मुसिमान फौज भी इसमें िग जाती और
मुख्य शिु अछू ता रह जाता। इसके ब्रवपरीत यब्रद मक्का के कु रैशों का नाश कर ब्रदया जाता, तो इससे न के वि मुख्य शिु का खतरा सदा के लिये
समाि हो जाता, अब्रपतु शेि बिे अन्य शिुओ ं पर भी इससे भौब्रतक व मनोवैज्ञाब्रनक ढं ग से प्रहार होता। सभी शिुओ ं से एक साथ ब्रनपटने में
मुसिमान ब्रनलित रूप से सं सािनों के अभाव का सामना कर रहे थे। मुसिमानों की सुरिा के लिये यह महत्वपूणा था ब्रक शिुओ ं को एक होने से
रोका जाए। पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने सं ख्या में अनेक शिुओ ं से ब्रनपटने में मजहबी , कू टनब्रयक और फौजी सािनों का समलन्वत,
एकीकृ त व सं घब्रनत प्रयोग ब्रकया। कू टनब्रयक प्रयास के अंतगात मदीना के उन यहब्रदयों को ब्रमिता, सहयोग व पारस्पररक सहायता की सं लि के
माध्यम से ठं िा ब्रकया गया जो राज्य की सुरिा पर आसन्न खतरा थे। नगर के िारों ओर सुरिा घेरा बढ़ाने के लिये आसपास की जनजाब्रतयों के
साथ ब्रमिता व सहयोग की सं लि भिे न हो पायी हो, परंतु उनके साथ तटस्थता की सं लि कर िी गयी। वैसे तो उस समय तक लभतरघाब्रतयों की
सं ख्या इतनी नहीं थी ब्रक उस ओर लिंब्रतत हुआ जाए, पर उन्ें यह सोिकर ब्रकनारे कर ब्रदया गया ब्रक उनसे बाद में ब्रनपटा जाएगा।

मजहबी प्रयास के अंतगात मोब्रमनों से मूब्रतापूजकों के समि िमोपदेश और आिरण द्वारा अपनी सम्पूणा 'जीवन पद्ब्रत' का प्रदशान
करने को कहा गया, लजससे ब्रक उन्ें इस्लाम की ओर आकब्रिात ब्रकया जा सके । मक्कावालसयों के ब्रवरुद् जो रणनीब्रत अपनायी गयी , उनमें आलथाक
अवरोि िगाकर और मनोवैज्ञाब्रनक अस्त-व्यवस्तता फैिाकर यं िणा दे ना था। इस रणनीब्रत का मुख्य आशय यह था ब्रक प्रारंभ में मक्का और
सीररया के मध्य व्यापाररक मागा को लछन्न-लभन्न कर ब्रदया जाए और बाद मक्का और मेसोपोटाब्रमया के बीि के व्यापाररक मागा को भी नष्ट कर ब्रदया
जाए। सीररया को जाने वािा मागा मदीना और िािसागर के मध्य से होकर जाता था तथा इसके बीि की अलिकतम दूरी 80 मीि थी।
मुसिमानों के लिये इस मागा पर हमिा करना सरि भी था।

यह मागा भिे ही मक्का के ब्रवलशष्ट व्यापाररक समुदाय की एकमाि वालणस्लज्यक जीवन रेखा नहीं था , पर यह सबसे महत्वपूणा तो था
ही। कु रैशों का आलथाक जीवन िगभग पूणात: सीररया के साथ व्यापार पर ब्रनभार था और मक्का और मेसोपोटाब्रमया के मध्य बहुत थोडा व्यापार
होता था। मुसिमानों का यह अनुमान ठीक ही था ब्रक सीररया के व्यापाररक मागा को सफितापूवाक ठप कर दे ने से कु रैश आलथाक व
मनोवैज्ञाब्रनक दोनों प्रकार से ब्रहि जाएं गे। वहीं दूसरी ओर मूब्रतापूजकों की रणनीब्रत यह थी ब्रक बि का प्रयोग करके मुसिमानों का पूणात: नाश

1 पब्रवि रसूि के फौजी अलभयानों के लिये पररलशष्ट-1 देखें।

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कर ब्रदया जाए। वे इस प्रयास में थे ब्रक मदीना की िरती पर मुसिमानों के पांव जमने से पहिे ही उनको ब्रमटा ब्रदया जाए। इस रणनीब्रत पर
ििते हुए उन्ोंने युद् की तैयाररयां कीं और मुसिमानों की शिु जनजाब्रतयों से सं लि व गठबं िन भी ब्रकया।

आरं लभक अलभयान


जब जं ग प्रारंभ हुई तो मुसिमानों ने पहि करते हुए अपने पत्ते खोिे। रमजान 1 एएि और रजब 2एएि की अवलि के मध्य उन्ोंने
अनेक हमिे ब्रकये और पडोसी जनजाब्रतयों के साथ ब्रमिवत् सं बं िों की स्थापना के िक्ष्य पर काया ब्रकया, लजससे मदीना के िारों ओर सुरिा
पररलि सृदृढ़ हो सके और कु रैशों को कारवां के मागा का प्रयोग करने से रोका जा सके अथवा उनके मागा में बािा पहुंिायी जा सके । अनुमान के
आिार पर इन अलभयानों का प्रारूप तैयार ब्रकया गया और साहसपूवाक इन्ें पूरा ब्रकया गया। लस़िि बहर, राब्रबग़, अब्वा, बुवात व साटवान जैसे
दूर स्लस्थत स्थानों पर भी कारवां के मागा को अवरुद् ब्रकया गया। मदीना से 400 मीि दूर मक्का और ताइफ के मध्य नखिा पर हमिा ब्रकया
गया। इन सारे अलभयानों में के वि मुहालजरों को सस्लम्मलित ब्रकया गया और ये सभी अलभयान िगभग रक्तहीन रहे। ये अलभयान सामान्यत:
सफि रहे। इन अलभयानों से कु रै श कारवां में भय िािने में सफिता ब्रमिी।

सीररया से िौट रहे एक कु रैश कारवां पर बद्र में हमिे की ऐसी एक योजना से मुसिमान अत्ं त कब्रठन स्लस्थब्रतयों में फंस गये थे।

मुसिमानों के हमिे की आशं का को देखते हुए कारवां के कमांिर अबू सुफ्यान ने सहायता िाने के लिये तत्काि एक सं देशवाहक को
मक्का भेजा। कु रै शों ने 1000 योद्ाओं की सेना भेजी। एक समय आया, जब तीनों पि अथाात अबू सुफ्यान का कारवां , रसूि का हमिावर दि
और कु रैश सेना बद्र के ब्रनकट 25 मीि की पररलि में आ गये, तो रसू ि (उन पर शांब्रत हो) ने इस स्लस्थब्रत से ब्रनपटने के लिये जं गी पररिद की
बैठक की।

मुसिमानों के पास आगे की कारा वाई के लिये तीन ब्रवकल्प थे। पहिा ब्रवकल्प यह था ब्रक कु रैश सेना के बिाव में पहुंिने से पूवा ही
अत्ल्प सुरिा वािे अबू सुफ्यान के कारवां पर ब्रनयं िण कर लिया जाए। ऐसा करने में सफिता की सं भावना अलिक थी, पर इससे मुख्य कु रैश
सेना अछू ती रह जाती और मदीना की सुरिा के लिये सबसे बडे खतरा कु रै श सेना को ब्रमटाने का अवसर हाथ से ब्रनकि जाता। दूसरा ब्रवकल्प
यह था ब्रक कु रैशों के ब्रकसी पि को छु ए ब्रबना ही मदीना वापस ब्रनकि लिया जाए। यह कदम उस कब्रठन स्लस्थब्रत से बि ब्रनकिने में समयानुकूि

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था, ब्रकंतु यह मुसिमानों के उद्दे श्य में बडी दीघाकालिक बािा बन जाता। इससे कु रैश और उनकी सहयोब्रगयों का मन बढ़ जाता और वे ब्रमिकर
मदीना पर आक्रमण करते। अंब्रतम ब्रवकल्प यह था ब्रक मुख्य कु रैश सेना के साथ लभडा जाए और उन्ें नष्ट ब्रकया जाए। यह कदम मदीना की
सुरिा की दृब्रष्ट से सवाालिक उपयुक्त था, ब्रकंतु इसके लिये आवश्यक था ब्रक मुसिमान ऐसी सेना को नष्ट करने का कौशि और साहस जुटा
पाते, जो सं ख्या में उनकी ब्रतगुनी थी और अस्त्र-शस्त्र में भी उन पर कई गुना भारी थी।

इसके अब्रतररक्त ब्रकसी ठोस ब्रनणाय पर पहुंिने के लिये अंसारों की प्रब्रतब्रक्रया भी महत्वपूणा कारक थी। वहां उपस्लस्थत 313 मुसिमान
िडाकों में अंसारों की सं ख्या 243 थी और अक़्बा की प्रब्रतज्ञा में अंसारों ने मदीना नगर के भीतर आक्रमण होने की दशा में ही मुसिमानों की
रिा का विन ब्रदया था। जं गी पररिद में पब्रवि रसूि ने स्लस्थब्रत की स्पष्ट व खरा ब्रवश्लेिण प्रस्तुत ब्रकया और तीसरे ब्रवकल्प की अपनी प्राथब्रमकता
का सं के त ब्रकया। ब्रफर उन्ोंने इस ब्रनणाय पर अंसारों का मत लिया। अंसारों ने अपने पारंपररक समपाण व तत्परता से इस ब्रनणाय पर सहमब्रत
व्यक्त की और तत्पिात बद्र में मुख्य कु रैश सेना से लभडने का ब्रनणाय हुआ।

यह ब्रनणाय ब्रकतना महत्वपूणा था, इसका अनुमान बद्र की जं ग के उस ब्रवनाशकारी ब्रदन रसूि द्वारा की गयी सुब्रवख्यात ब्रटप्पणी से
िगाया जा सकता है। उन्ोंने अपनी इबादत में अनुनय ब्रकया, ''हे सवा-सामर्थ्ावान अल्लाह! यब्रद आज ये 313 मारे गये, तो िरती पर तुम्हारी
इबादत करने वािा कोई नहीं बिेगा।'' छोटी प्रतीत होने वािी इस झडप में जो दांव पर िगा था, वह हमारे सं सार के रिब्रयता व उसकी रिना
मानवजाब्रत दोनों के ब्रविय में आिारभूत व प्रमुख महत्व का था। इस जं ग के पररणाम और इसके बाद होने वािे घटनाक्रमों ने लसद् ब्रकया ब्रक
पब्रवि रसूि का ब्रनणाय लजतना स्पष्ट व साहलसक था, उतना ही सुब्रनयोलजत व सटीक भी था। सं ख्या में कम होने के बाद भी बद्र के मुसिमानों
ने स्वयं को 'कु ि साम्र्थ्ा व प्रभावकाररता' में अपने शिु से श्रेष्ठ लसद् करके उनको परालजत ब्रकया।

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बद्र की व्याख्या कु रआन के अन्फाि शीिाक के उस अध्याय में की गयी है, लजसमें बद्र की जं ग की सीख बतायी गयी है।2 इन सीखों
में जं ग के उद्दे श्य और इसके आयामों, रणनीब्रत व सं िािन के ब्रनयत पिों के ब्रविय में बताया गया है। इनमें समाब्रहत सीख जं ग में ब्रमिे माि,
बं ब्रदयों और उनसे ब्रमिने वािी ब्रफरौती से भी सं बं लित है। अज्ञानता के ब्रदनों में िडाके जं ग में ब्रमिने वािे माि के लिये बहुत िािाब्रयत रहते
थे। यह पहिा अवसर था, जब अरबों में मुसिमान और अ-मुसिमान के रूप में एक-दूसरे से लभडंत हुई थी। मुसिमानों ने जं ग जीती और िूट
का माि भी एकि ब्रकया। मोब्रमनों के एक िडे में जं ग के समय ब्रमिे िूट के इस माि को िेकर िािि सवार हो गया और वे इसके बं टवारे को
िेकर अपने सहयोब्रगयों से ही लभड गये। पब्रवि कु रआन ने आदे श ब्रदया ब्रक जं ग में िूटा गया माि अल्लाह और उसके रसूि का है और जब तक
ब्रक उस भूब्रम को भिी-भांब्रत न जीत लिया जाए, कोई बं दी नहीं बनाया जाएगा। सरि शब्दों में कहें तो इसका अथा हुआ ब्रक अल्लाह के मागा में
जं ग करते समय मुसिमान भौब्रतक िाभ की आशा न करें।

बद्र की जं ग का पररणाम कु रैशों के लिये भी अप्रत्ालशत था और इस स्लस्थब्रत को ठं िा करना उनके लिये अत्ं त घातक हो सकता था।
अपना अस्लस्तत्व बिाये रखने के लिये कु रैशों के लिये यह आवश्यक हो गया था ब्रक वे तत्परता से प्रब्रतघात कर मदीना के मुसिमान समुदाय को
नष्ट करें। न के वि पारंपररक कु रैशों की प्रब्रतष्ठा दांव पर िगी थी, अब्रपतु उनकी वालणस्लज्यक जीवन रेखा का अस्लस्तत्व भी खतरे में था। सीररया को
जाने वािा कारवां मागा उनके लिये इतना महत्वपूणा था ब्रक वे उस मागा को पूणा रूप से नहीं छोड सकते थे। अत: अंतररम उपाय के रूप में
उन्ोंने मेसोपोटाब्रमया से व्यापाररक गब्रतब्रवलियां बढ़ा िीं, ब्रकंतु दीघाकालिक समािान के लिये उन्ोंने मदीना के नगर-राज्य के सम्पूणा ब्रवनाश के
लिये बडी तैयाररयां प्रारंभ कर दी थीं। तद्नुसार, उन्ोंने अन्य जनजाब्रतयों के साथ गठबं िन कर बडी रालश एकि की और व्यय ब्रकया तथा मदीना
के ब्रवरुद् बडे आकम्रण की योजना बनाने में जुट गये। तैयारी हो जाने के बाद उन्ोंने मुसिमानों को प्रताब्रडत करने और उनके मनोबि को लछन्न-
लभन्न करने के लिये मदीना के आसपडोस में उन पर कई आक्रमण ब्रकये।

दूसरी ओर मुसिमानों ने ठान लिया था ब्रक वे कु रैशों को उस कारवां मागा का उपयोग नहीं करने देंगे। उन्ोंने कु रैशों के आक्रमण का
सफितापूवाक प्रत्ुत्तर ब्रदया और उस व्यापाररक मागा पर बसे िोगों को अपना सहयोगी बनाने की पूवा की नीब्रत को ब्रनरंतर रखा। इतना ही नहीं,
उन्ोंने मेसोपोटाब्रमया जाने वािे कारवां के मागा को भी अवरुद् करने के लिये हमिा करना प्रारं भ कर ब्रदया। बनू गतफान और बनू सुिैम के
अलभयान का यही उद्दे श्य प्रतीत होता था।

उन ब्रदनों मदीना में तीन यहदी जनजाब्रतयां बनू कु नैका, बनू नज़ीर और बनू क़ु रैजा रहती थीं। इन तीनों जनजाब्रतयों ने मुसिमानों के
साथ सहयोग व पारस्पररक सहायता की सं लि की थी। उनमें से एक बनू कु नैका ने उस समय मुसिमानों के साथ ब्रवश्वासघात ब्रकया था , जब बद्र
की जं ग में पब्रवि रसूि उपस्लस्थत नहीं थे और इस कारण इस जनजाब्रत को मदीना से भगा ब्रदया गया था।

उहुद: सं कट और इसका प्रबं िन


मदीना में सदा के लिये मुसिमान समुदाय को नष्ट करने की नीब्रत पर ििते हुए एक विा पिात कु रैशों ने मदीना पर आक्रमण ब्रकया।
यह िडाई उहुद की जं ग में बदि गयी और मुसिमान फौज को पराजय का सामना करना पडा। यद्यब्रप कु रैश युद् भूब्रम में अपनी ब्रवजय को
इतना आगे नहीं िे जा सके ब्रक वे मुसिमानों पर अपना राजनीब्रतक ब्रनणाय थोप पाते। तथाब्रप, उहुद में जो ब्रवध्वं स हुआ उससे मुसिमानों पर
इतना गं भीर सं कट आया ब्रक इससे पहिे रसूि (उन पर शांब्रत हो) के जीवन काि में उन पर ऐसी ब्रवपदा कभी नहीं आयी थी। उहुद जो ब्रक बडे
घटनाक्रमों व ब्रनणायों की जं ग थी, ने बहुत सी मूल्यवान सीख दी। हमारी ब्रवशेि रुलि उन कारणों में होगी, लजसके ििते यह सं कट आया और
लजस प्रकार से जं ग के समय और जं ग के बाद इसे ब्रनयं ब्रित व व्यवस्लस्थत ब्रकया गया। इस सं कट का वृत्त अध्ययन इस अध्याय में आगे ब्रदया गया
है।3 इसके मुख्य पिों का सारांश ब्रनम्नलिलखत है:-

2 देखें पररलशष्ट—II
3 देखें पररलशष्ट—III

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क) कु रै शों के युद् का िक्ष्य: उहुद की जं ग के रूप में पररवब्रतात होने वािे कु रै शों के आक्रमण का राजनीब्रतक िक्ष्य यह था ब्रक
मदीना के नगर-राज्य को पूणा ब्रवनाश कर ब्रदया जाए। इस िक्ष्य की प्राब्रि के लिये यह आवश्यक था ब्रक कु रैश मुसिमानों
का पूणात: सफाया कर दें और मदीना को अपने राजनीब्रतक व सैन्य प्रभुत्व में िें।
ख) युद्िेि का ब्रवकल्प: मक्का वािों की सेना आने का समािार सुनकर मुसिमानों के बीि युद्-िेि के ब्रवकल्प को िेकर
ब्रविार-ब्रवमशा होने िगा। अंसार और कु छ अन्य वररष्ठ नगर के भीतर घेराबं दी और िडाई के पि में थे और पब्रवि रसूि
भी इसी ब्रवकल्प के पि में थे। दूसरा समूह िाहता था ब्रक नगर के बाहर जं ग की जाए। दूसरे समूह की इच्छा मानी गयी
और यह ब्रनलित हुआ ब्रक मदीना से 3 मीि दूर उहुद में कु रैशों से जं ग िडा जाए।
ग) यहब्रदयों का ब्रवश्वासघात: मदीना के यहब्रदयों के साथ यह सं लि थी ब्रक मदीना पर आक्रमण करने वािे शिुओ ं के ब्रवरुद् वे
मुसिमानों के साथ कं िा से कं िा ब्रमिाकर िडेंगे, ब्रकंतु उन्ोंने जं ग की सुबह मुसिमानों का साथ छोड ब्रदया। इससे
मुसिमानों की सं ख्या 1000 से घटकर 700 रह गयी और उनकी वेदना और लिंता भी बहुत बढ़ गयी।
घ) मुसिमान जनजाब्रतयों का सुब्रनयोलजत ढं ग से साथ छोडना: यहब्रदयों को साथ छोडता देख बनू सिमा व बनू हाररस के
मुसिमान कबीिे भी कायरता ब्रदखाते हुए साथ छोडने की तैयारी करने िगे। यद्यब्रप पब्रवि रसूि ने उन्ें मनाया तो उन्ोंने
यह ब्रविार त्ाग ब्रदया।
ङ) तीरं दाजों की अवज्ञा: जं ग से पूवा पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने एक ऐसे टीिे पर 50 तीरंदाजों के एक ब्रगरोह को
ब्रनयुक्त ब्रकया, जहां के एक उघडे हुए ब्रकनारे से दूर तक देखा जा सकता था। उन्ें ब्रकसी भी स्लस्थब्रत में वह िौकी न छोडने
का आदेश ब्रदया। आरंलभक हमिे में कु रैशों को उखाड फेंकने के बाद मुसिमान िूट का माि एकि करने में िग गये और
ये तीरंदाज रसूि के आदेश की अवहेिना करते हुए अपनी िौकी छोडकर िूट के माि में अपना भाग िेने ििे गये।
ि) खालिद का प्रब्रतघात: कु रैश सेना के घुडसवार दि के कमांिर खालिद ब्रबन विीद ने इस अवसर का िाभ उठाते हुए
तीरंदाजों के उस टीिे पर ब्रनयं िण कर लिया और पीछे छू ट गये मुसिमानों पर पुन: आक्रमण कर ब्रदया , लजससे
मुसिमानों में भगदड मि गयी। पीछे हट रहे कु रैश भी रणभूब्रम में िौट आये और मुसिमानों पर दो ब्रदशाओं से वार
ब्रकया। मुसिमान कु रैश सेना के इस प्रहार का सामना नहीं कर सके और भागने िगे।
छ) रसूि की मृत्ु के ब्रविय में प्रवाद (अफवाह): कु रैशों द्वारा पुन: ब्रकये गये आक्रमण के कारण उपजे भ्रम से यह समािार
फैि गया ब्रक इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) मारे गये। यह सुनकर अलिकांश मुसिमान िडाके हताशा में रणभूब्रम
से भाग गये। शिु के आक्रमण का मुख्य िक्ष्य पब्रवि रसूि थे, यद्यब्रप सि यह था ब्रक वह के वि घायि हुए थे और कु छ
मुट्ठीभर अनुयायी उनकी रिा कर रहे थे।
ज) ब्रवपदा: उस समय मुसिमान बडी ब्रवपदा में थे। उनकी प्रारंलभक जीत पराजय में बदि िुकी थी। लजस िूट के माि के
िािि में उन्ोंने आदे श की अवज्ञा की थी, वह भी उन्ें न ब्रमिा। उनकी फौज लछन्न-लभन्न हो गयी। उनके रसूि न के वि
घायि हुए, वरन् यह प्रवाद उड गया ब्रक वो मारे गये। ब्रनलित रूप से वह ब्रदन कु रैशों का था।
झ) कु रै शों का आनं द: कु रैश अपनी ब्रवजय का आनं द मनाने िगे और अपने लशब्रवर समेट लिये। यह सोिकर ब्रक शिु अपनी
सफिता से उत्साब्रहत होकर मदीना पर आक्रमण कर सकता है , पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने अपने अनुयाब्रययों को
साविान ब्रकया ब्रक वे आसन्न खतरे से ब्रनपटने के लिये अपने आपको तैयार रखें। यद्यब्रप ऐसा कु छ नहीं हुआ। कु रै शों ने
अपने लशब्रवर उखाडे और मक्का का मागा पकड लिया।
ञ) हमरा अि-अस्वद पर िढ़ाई: पब्रवि रसूि को आशं का थी ब्रक कु रैश अगिे ब्रदन मदीना पर आक्रमण करने के लिये िौट
आयेंगे। तद्नुसार, उन्ोंने अगिे ब्रदन हमरा अि-अस्वद में उन्ें पकडा और इिर-उिर भागने पर ब्रववश कर ब्रदया।
ट) समापन: कु रैशों ने भिे ही मुसिमानों पर बडी ब्रवजय प्राि कर िी थी , परंतु वे अपना राजनीब्रतक िक्ष्य प्राि करने में
ब्रवफि रहे। वे मदीना को जीते ब्रबना अथवा नगर में अपनी सेना िगाये ब्रबना युद्भूब्रम से ििे गये। मुसिमानों ने पहिे
जैसा ही मदीना पर अपनी पकड बनाये ब्रनरंतर बनाये रखी।

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उहुद की जं ग अनेक मूल्यवान सीख देती है। ये सीख कु रआनी अध्याय 'आिे-इमरान' में इस जं ग पर अल्लाह द्वारा की गयी
आिोिना में सारभूत हैं। इसका एक अंश इस पुस्तक में आगे ब्रदया गया है।4 ये सीख मुख्यत: जं ग के आयाम व प्रकृ ब्रत एवं इसके सं िािन से
सं बं लित हैं। इस आिोिना में ब्रवस्तार से उन बातों को भी बताया गया है , जो इस जं ग में मुसिमानों की पराजय के कारण बने।

सामान्यत: यह कहा जाता है ब्रक मुसिमान इस जं ग में इस कारण परालजत हुए थे , क्ोंब्रक तीरंदाजों ने अपनी िौकी छोड दी थी।
खालिद ने टीिे पर ब्रनयं िण कर लिया और उनके ब्रवरुद् प्रबि प्रहार ब्रकया, लजससे वे बुरी प्रकार अस्त-व्यस्त हो गये। मुसिमानों के लिये और
बुरी स्लस्थब्रत तब हो गयी, जब मुख्य कु रैश सेना रणभूब्रम में िौट आयी और उन पर पुन: आक्रमण कर ब्रदया। इससे मुसिमान दो ब्रवपरीत
ब्रदशाओं से ब्रघर गये और उन्ें दो सीमाओं पर एक साथ िडना पडा। इस आक्रमण से मुसिमान लछन्न-लभन्न हो गये और अंतत: इसका पररणाम
उनकी पराजय के रूप में सामने आया। अत: युद् किा के ब्रवद्याथी सामान्यत: इस जं ग से सीख पाते हैं ब्रक ब्रकसी सेना को सदै व अपने सैब्रनकों
की सुरिा करते रहना िाब्रहए। पीछे से अिानक ब्रकये गये आक्रमण से ब्रवरोिी लशब्रवर में बडी घबराहट फैि सकती है और फौलजयों की उस
इकाई को बडी हाब्रन होती है लजसे दो लभन्न ब्रदशाओं में एक साथ िडना पडता है।

उपरोक्त आशय ब्रनस्सं दे ह सटीक हैं, ब्रकंतु ये स्वयं में पूणा नहीं हैं। मुसिमानों की पराजय के वास्तब्रवक कारण की पहिान के लिये हमें
गहराई से यह जानने का प्रयास करना होगा ब्रक तीरंदाजों ने आदेश का उल्लं घन क्ों ब्रकया और टीिे को क्ों छोडा। यह जानने के लिये हमें बद्र
की जं ग को पुन: देखना होगा। वह िूट के माि का िािि था लजसके कारण उस जं ग के पिात मुसिमान फौज में असं तोि उत्पन्न हुआ।
पररणामस्वरूप, कु रआन ने जं ग की िूट के माि और बं ब्रदयों के मुब्रक्त -िन (ब्रफरौती) के िोभ में पडने को मना ब्रकया। पुन: उन्ोंने उहुद में िूट
के माि का भाग िेने के लिये रसूि के आदेश की अवहेिना की। इस प्रकार कु रआन ने अल्लाह के मागा में जं ग करते समय लजस िूट के माि
पर ध्यान न देने को कहा था, उस माि के िोभ से वे तब भी नहीं बि सके थे। अत: उहुद में मुसिमानों की पराजय का मूि कारण उनका
भं गुर ब्रवश्वास था, न ब्रक उघडा हुआ वह टीिा का ब्रकनारा। इसका पररणाम यह हुआ ब्रक मुसिमानों की दुबािता सामने आ गयी।

उहुद में मुसिमानों की पराजय से पडोस की मूब्रतापूजक जनजाब्रतयों को िगा ब्रक अब इस्लाम के ब्रगने -िुने ब्रदन बिे हैं। इस्लाम पर
ब्रनणाायक प्रहार करने की आशा में उन्ोंने मुसिमानों के ब्रवरुद् कई सं गब्रठत आक्रमण ब्रकये। यद्यब्रप मुसिमानों द्वारा अपनी भूब्रम पर शिु के
प्रत्ेक प्रयास को नष्ट ब्रकया गया। यही नहीं, वरन् मुसिमानों ने पूवी कारवां मागा पर सफि हमिे ब्रकये और इस मागा को कु रैशों के लिये
असुरलित बना ब्रदया। जत-अि-रक्का, दुमअतुि जन्दि और बनू मुस्तलिक के अलभयान इन्ीं उद्दे श्यों को ध्यान में रखकर ब्रकये गये। यह ध्यान
देना महत्वपूणा होगा ब्रक इस अवलि में मुसिमान अपनी ब्रनलियता के आगे झुकने की अपेिा साहलसक व आक्रामक कारावाइयों से युब्रक्तयुक्त
पहि करते रहे। ग्लब कहते हैं, ''शिुता के इन विों में दोनों पिों के मध्य जो सवाालिक ध्यान दे ने वािा ब्रवरोिाभास था , वह यह था ब्रक कु रैशों
की ब्रनलियता के ब्रवपरीत मुसिमान अथक व आक्रामक कारा वाई में सं िग्न रहे।''

मदीना के भीतर लभतरघाब्रतयों ने अपनी ब्रवध्वं सक कारा वाइयां तेज कर दीं और अपने ब्रविय में ऐसे प्रवाद फैिाने प्रारंभ कर ब्रदये ,
लजससे मुसिमानों में हताशा व ब्रनराशा व्याि होने िगी। पब्रवि कु रआन ने शिु के इस दुष्प्रसार पर ध्यान न दे ने को कहा। बनू नज़ीर की यहदी
जनजाब्रत ने उहुद के युद् के समय मुसिमानों के साथ की गयी सं लि को तोड ब्रदया था और इस कारण उन्ें नगर से ब्रनष्कालसत कर ब्रदया गया
था। यहदी उत्तर की ओर बढ़े और ़िैबर, ब्रफदक, वादी-अि-क़ु रा में जाकर बस गये और वहां से मदीनावालसयों के ब्रवरुद् सब्रक्रयता से खेि रिने
िगे। दुमअतुि जन्दि के शासक और आसपास की जनजाब्रतयों के साथ ब्रमिकर वे मदीना और सीररया के मध्य जाने वािे मुसिमानों के कारवां
पर उपद्रव करने िगे। उन्ोंने मदीना पर पुन: ब्रनणाायक आक्रमण करने के अलभयान में जुडने के लिये गतफान व ़िजरा की जनजाब्रतयों को
उत्कोि (ररश्वत) भी ब्रदया। यद्यब्रप मक्कावालसयों को यह समझ आने में बहुत समय नहीं िगा ब्रक वे मुसिमानों पर राजनीब्रतक ब्रनणाय थोपने के
लिये उहुद की अपनी सैन्य ब्रवजय को आगे बढ़ा पाने में ब्रवफि रहे थे। वे यह जानकर अिं लभत हुए ब्रक मदीना में मुसिमान समुदाय अभी भी
अित है और नगर पर अलिकांशत: अभी भी उनका ही ब्रनयं िण है। इससे कु ब्रपत व िुब्ध होकर उन्ोंने मदीना पर आक्रमण के लिये बडी सेना
तैयार करने का प्रयास करना प्रारं भ कर ब्रदया। सौभाग्य से उस समय उन्ें गतफान व यहब्रदयों जैसे इच्छु क व शब्रक्तशािी सहयोगी भी ब्रमि गये।
मदीना की घेराबं दी की पूरी तैयारी हो गयी।

4 देखें पररलशष्ट—IV

64
मदीना की घेराबं दी
मदीना की घेराबं दी कु रै शों द्वारा मुसिमानों को नष्ट करने की अंब्रतम व सबसे समथा प्रयास था। अपप्रिार , पारंपररक कु रैश प्रब्रतष्ठा,
माि का िािि, उत्कोि सब्रहत ब्रवलभन्न सािनों का प्रयोग करते हुए मक्कावासी मदीना के उत्तर व पूवा में स्लस्थत जनजाब्रतयों को मुसिमानों के
ब्रवरुद् युद् के लिये तैयार करने में सफि रहे।

31 मािा 627 ईस्वी को दस हजार व्यब्रक्तयों की िमता वािे इस महागठबं िन ने मदीना पर तीन ब्रदशाओं से आक्रमण ब्रकया। बनू
हुज़ैि व बनू जमरा द्वारा समलथात कु रैशों ने दलिण ब्रदशा से िावा बोिा। गतफान, मराा, अशजा और फज़रा की जनजाब्रतयों ने पूवी छोर से
मदीना को घेर लिया, जबब्रक ़िैबर, कु राा व ब्रफदक के यहदी उत्तर की ओर से टू ट पडे। इस घेराबं दी में एक और ब्रवकट स्लस्थब्रत यह आ गयी ब्रक
मुसिमानों के सहयोगी मदीना के बनू क़ु रैजा के यहदी ब्रवद्रोही हो गये और वे मुसिमानों के साथ की गयी सं लि तोडकर कु रैशों की ओर से युद्
में सब्रक्रय हो गये। इससे मुसिमानों के लिये अत्ं त खतरनाक स्लस्थब्रत बन गयी। बनू क़ु रैजा की अवस्लस्थब्रत ऐसी थी ब्रक वे मदीना नगर पर सीिे
आक्रमण कर सकते थे और मुसिमानों की पीठ में छु रा घोंप सकते थे।

मुसिमान इस महासं घ के ब्रवरुद् िडने के लिये के वि 3000 व्यब्रक्त ही जुटा सके । पारसी से मुसिमान बने सुिेमान फारसी के
परामशा पर पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने उस ओर खं दक खुदवायी लजिर मदीना खुिा था और घुडसवारों द्वारा आक्रमण ब्रकया जा सकता
था। खं दक के एक छोर से दूसरे छोर तक उपयुक्त स्थानों पर ब्रनगरानी के लिये तीरंदाज िगा ब्रदये गये , लजससे ब्रक खं दक को पार करने के कु रैशों
को ब्रकसी भी प्रयास को ब्रवफि ब्रकया जा सके ।

कु रैशों ने सैन्य, आलथाक व मनोवैज्ञाब्रनक तीनों स्तर पर एकसाथ युद् िडा। सैन्य स्तर पर खं दक को पार करने का उनका प्रयास
सफितापूवाक ब्रवफि कर ब्रदया गया, ब्रकंतु अन्य दो स्तरों पर युद् में वे आगे थे। घेराबं दी िं बी लखं िने के साथ ही मुसिमानों के लिये आलथाक
कब्रठनाइयां इतनी बढ़ गयीं ब्रक वे िगभग टू टने की स्लस्थब्रत में आ गये थे। बनू क़ु रैज़ा के दिबदि से मुसिमानों पर मनोवैज्ञाब्रनक दबाव भी
अलिक बढ़ गया, यद्यब्रप उनके द्वारा नगर पर आक्रमण करने के एक प्रयास को ब्रवफि कर ब्रदया गया। एक स्तर पर पब्रवि रसूि ने अंसारों को
सुझाव ब्रदया ब्रक मुसिमान मूब्रतापूजकों में सबसे सुदृढ़ गतफान के साथ शांब्रत सं लि कर िें, भिे ही यह सं लि हाब्रनप्रद अनुबंिों के साथ क्ों न
हो। ब्रकंतु इस मत से सहमत न होकर अंसारों ने उनसे कहा ब्रक कृ पया उनके लिये, ऐसा न करें।

उन्ोंने पूणा आत्मब्रवश्वास दोहराया और अंत तक जं ग िडने का सं कल्प लिया।

अंसारों के दृढ़ब्रनिय के बाद भी स्लस्थब्रत ऐसी बन गयी थी ब्रक जं ग का अब्रत शीघ्र समाि होना ही श्रेयस्कर था। ऐसा करने के लिये
पब्रवि रसूि ने (उन पर शांब्रत हो) उस महीन व भं गुर 'िागे' पर मनोवैज्ञाब्रनक प्रहार करने का ब्रनणाय ब्रकया, लजससे ये गठबं िन तैयार हुआ था।
इसके लिये उन्ोंने बनू गतफान के एक नये िमािंतररत की सहायता िी। गतफान जनजाब्रत के िोगों इस व्यब्रक्त के िमािंतरण की जानकारी नहीं
थी। एक ओर बनू क़ु रैज़ा के बीि पारस्पररक अब्रवश्वास और सं दे ह को हवा दी गयी और दूसरी ओर कु रै श व गतफान के बीि भी अब्रवश्वास उत्पन्न
ब्रकया गया। इतनी ब्रवशाि सेना के लिये भोजन-पानी जुटाने की कब्रठनाई और िं बी घेराबं दी से उपजी ब्रनराशा के साथ कष्टप्रद झं झावात ने आग
में घी का काम ब्रकया। शिु पि में पारस्पररक अब्रवश्वास की खायी इतनी बढ़ गयी ब्रक बनू कु रैश और बनू गतफान दोनों घेराबं दी समाि कर हट
जाने को ब्रववश हो गये। कु ि ब्रमिाकर मुसिमान अपनी सं ख्या में अनेक शिुओ ं पर रक्तहीन ब्रवजय प्राि करने में सफि हो गये। 5

हुदै ब्रबया और मक्का


खं दक के एक विा पिात, पब्रवि रसूि ने 1400 मुसिमानों के ब्रन:शस्त्र जत्थे के साथ मक्का की तीथायािा पर जाने का ब्रनणाय ब्रकया।
अरब की सब्रदयों प्रािीन परंपरा के अनुसार इन पब्रवि माह में िडाई प्रब्रतबं लित थी और उस पब्रवि मस्लजजद (मं ब्रदर) में जाने से ब्रकसी को रोका
नहीं जा सकता था। यद्यब्रप युद् पररिद की बैठक में कु रैशों ने मक्का में मुसिमानों को प्रवेश न दे ने का ब्रनणाय ब्रकया और नगर से 8 मीि दूर

5 खं दक के आसमानी ब्रवश्लेिण के लिये देखें पररलशष्ट—IV

65
स्लस्थत हुदैब्रबया में उन्ें रोक ब्रदया। मक्कावालसयों के युद् जैसे िियं ि को भांपकर पब्रवि रसूि ने अपने ब्रनहत्थे सहिरों से पुन: प्रब्रतज्ञा िी ब्रक वे
मृत्ु तक शिु से िडेंगे। पब्रवि कु रआन इस प्रब्रतज्ञा को अल्लाह की प्रसन्नता की प्रब्रतज्ञा कहती है।

हुदैब्रबया में हुआ यह आमना-सामना अंतत: मुसिमानों व कु रै शों के मध्य शांब्रत की सं लि के रूप आया।

इसमें महत्वपूणा उपबं ि थे। पहिा यह था ब्रक मुसिमानों और कु रैशों के मध्य दस विा की सं लि हो। दूसरा यह था ब्रक उस विा
मुसिमान तीथायािा ब्रकये ब्रबना मदीना वापस िौट जाएं , यद्यब्रप अगिे विा वे तीथायािा के लिये वहां आ सकते थे। तीसरा यह था ब्रक जो
मक्कावासी दि बदि कर मुसिमानों की ओर ििे गये थे, उन्ें कु रैशों को वापस ब्रकया जाए। िौथा उपबं ि यह था ब्रक जो मुसिमान मक्का
आया हो और कु रै शों द्वारा पकड लिया गया हो, उसे वापस न ब्रकया जाए। अंब्रतम तीन उपबं िों से मुसिमानों को घोर ब्रनराशा हुई और अलिकांश
मुसिमानों ने इस सं लि को असमान व अनुलित माना। जब उनके रसूि में हुदैब्रबया में तीथायािा की रीब्रतयां पूरी करने और मदीना िौट ििने के
लिये कहा तो उन्ोंने अपना िोभ व क्रोि प्रकट ब्रकया।

कु रैशों ने इस सं लि को अपनी बडी ब्रवजय बतायी। दूसरी ओर पब्रवि कु रआन ने इसे मुसिमानों की प्रत्ि ब्रवजय बताया। इस सं लि
का पूरा प्रभाव बाद में सामने आया।

इस सं लि से कु रैशों को अपना सम्मान बिाने और मक्का व सीररया के मध्य कारवां का उपयोग करने की अनुमब्रत के अब्रतररक्त कु छ न
ब्रमिा, जबब्रक इससे मुसिमानों को अनेक प्रकार के िाभ हुए। मुसिमानों को प्रथम िाभ यह हुआ ब्रक कु रैशों ने उन्ें अरब में राजनीब्रतक सत्ता
ििाने में समान साझेदार के रूप में स्वीकार कर लिया। दूसरा यह ब्रक मुसिमानों ने अपने लिये आने वािे विा में तीथायािा का अलिकार
सुब्रनलित कर लिया। तीसरा पब्रवि रसूि को मक्का के आसपास घुमंतू जनजाब्रतयों को इस्लाम का उपदेश देने का अवसर ब्रमिा। पररणामस्वरूप,
इन जनजाब्रतयों ने नया िमा इस्लाम स्वीकार ब्रकया, लजससे मक्का के िोग ब्रनराश , ब्रमिहीन हो गये और अके िे पड गये। िौथा कु रैशों के
दिबदिू जो मुसिमानों से अत्ं त प्रभाब्रवत थे, उनकी वापसी और कु रैशों द्वारा पकडे गये मुसिमानों की वापसी नहीं होने से मक्का के भीतर
मुसिमानों अथवा मुसिमानों से सहानुभूब्रत रखने वािों का एक वगा तैयार हो गया। अंतत: इससे मुसिमानों को उत्तरी अरब के ़िैबर व जराा में
शिु यहब्रदयों जनजाब्रतयों से ब्रनपटने के लिये समय ब्रमि गया।6 दो विा पिात मक्कावालसयों ने स्वयं पहि करके इस सं लि को समाि कर ब्रदया।
पररणामस्वरूप, मुसिमानों ने उनके ब्रवरुद् एक और रक्तहीन िावा बोिा और तत्पिात मक्का पर अलिकार कर लिया गया। मक्कावालसयों पर
पब्रवि रसूि के व्यवहार पर ब्रवमशा करते हुए ग्लब जैसे आिोिक स्वीकार करते हैं ब्रक ब्रवजेता मुहम्मद प्रब्रतशोिात्मक नहीं थे। सामान्य िमादान
की घोिणा की गयी और सभी शिु को िमा करते हुए छोड ब्रदया गया।

हुनैन और तबूक
हुनैन की जं ग ने अरब के मूब्रतापूजक बिों पर वेदनादायी प्रहार ब्रकया और वह भी मुसिमानों के लिये ब्रकसी प्रकार की गं भीर लिंता या
दुख का िण िाये ब्रबना। पब्रवि रसूि के जीवन में यह पहिा अवसर था, जब मुसिमान सं ख्या में अपने शिु से भारी थे। इस श्रेष्ठता ने उन्ें
अब्रत-आत्मब्रवश्वासी और असाविान बना ब्रदया। जब वे बनू हवालजन के पहाडी िेिों में आगे बढ़ रहे थे, तो उन्ोंने अपने फौलजयों की सुरिा पर
ध्यान नहीं ब्रदया। जैसे ही वे हुनैन की पतिी व सं कु लित घाटी से ब्रनकि रहे थे, बनू हवालजन जनजाब्रत ने िारों ओर से उन पर आक्रमण कर
ब्रदया। शिु का यह औिक आक्रमण इतना प्रबि था ब्रक मुसिमान अग्र दि भयभीत होकर भाग खडा हुआ और शेि फौज भी ने भी यही
ब्रकया। अपने मुट्ठीभर सालथयों के साथ पब्रवि रसूि िटे रहे और अपने आदब्रमयों को पुकारा ब्रक वे उनके पास आयें। एक समय तो वहां का दृश्य
उहुद जैसा ब्रदखने िगा, ब्रकंतु शीघ्र ही स्लस्थब्रत ब्रनयं िण में िायी गयी और मुसिमानों ने अंतत: बडी जीत प्राि की।

जैसा ब्रक पहिे कहा गया है ब्रक उत्तरी अरब को अपने अिीन करने से मुसिमानों का रोमन सीररया से सम्पका हुआ। बैजन्टाइन सम्राट
हरकु लिस उस समय सीररया में उपस्लस्थत था। हरकु लिस अपनी शब्रक्त ब्रदखाने के लिये अपने व्यब्रक्तगत कमांि में बडी सेना एकि की और तबूक
की ओर बढ़ा। पब्रवि रसूि ने इस रोमन खतरे पर ब्रवद्युत गब्रत से प्रब्रतब्रक्रया दी। 30 हजार मुसिमानों की फौज िेकर वो स्वयं तबूक की ओर

6 हुदैब्रबया पर आसमानी ब्रनणाय के लिये देखें पररलशष्ट– VI

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बढ़े । रसूि के जीवन में यह सबसे बडी फौज़ थी, लजसका उन्ोंने नेतृत्व ब्रकया था। मुसिमानों की प्रब्रतब्रक्रया दे खकर भयभीत रोमन मुसिमान
फौज पहुंिने से पूवा ही ब्रततर-ब्रबतर हो गये।7

ब्रनष्किा
पब्रवि कु रआन में उस्लल्ललखत उन फौजी अलभयान और जं गों से कहीं अलिक पब्रवि रसूि का मूब्रतापूजकों के ब्रवरुद् अलभयान अल्लाह
के उस सं देश का अलभन्न व मुख्य भाग हैं। इसके अब्रतररक्त वे सवा-सामर्थ्ावान अल्लाह द्वारा हमारे लिये ब्रनिााररत जं ग की किा के अनुप्रयोग को
सीखने की सं स्था हैं। पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) द्वारा अपनी योजनाओं व सं िािन में प्रदलशात सुं दर प्रारूप पर मं थन के लिये इनमें से प्रत्ेक
अलभयान के ब्रवस्तृत व अनन्य अनुसंिान की आवश्यकता है। वैसे इस अध्ययन के उद्दे श्य से उपरोक्त वलणात अलभयानों के मुख्य पिों पर ही हम
ध्यान कें ब्रद्रत करेंगे लजससे ब्रक कु रआनी फौजी ब्रविार के अनुप्रयोग के ब्रनयत पिों को समझ सकें ।

मदीना प्रवास एवं अपने राज्य की घोिणा के तुरंत पिात मुसिमानों को सताने वािों के ब्रवरुद् हलथयार उठाने का आदेश ब्रदया गया।
यह वो राज्य था, जो स्वयं में इतना छोटा था ब्रक माइक्रोस्कोप से ढूं ढ़ना पडता, ब्रफर भी इस राज्य का आह्वान ब्रकया गया ब्रक वह कु रैशों व अन्य
शिु अरबी जनजाब्रतयों के पराक्रम का सामना करे। उस ब्रनणाायक समय पर इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने अपने शिु को पहिानने एवं
उनके ब्रवरुद् अपनी रणनीब्रत बनाने में असािारण गं भीरता व दृब्रष्ट दशाायी। मुख्य शिु मक्का के कु रैश थे और उनके ब्रवरुद् अपनायी गयी रणनीब्रत
इस पर कें ब्रद्रत थी ब्रक सीररया जाने वािे उनके व्यापाररक मागा को ध्वस्त कर ब्रदया जाए। इस रणनीब्रत को व्यवहार में िाने में माि कु छ हमिों
और कू टनीब्रतक अलभयानों की आवश्यकता पडी और इनमें से अलिकांश रक्तहीन थीं। इसने मक्कावालसयों को कारवां मागा का उपयोग करने से
रोक ब्रदया और एक समुदाय के रूप में उन्ें लझं झोड ब्रदया। युद् के इब्रतहास इससे पहिे कभी ऐसा नहीं हुआ था ब्रक थोडे प्रयासों से ही इतना
अलिक िाभ ब्रमि जाए और इससे पूवा ऐसा प्रयास कभी ब्रकया भी नहीं गया था।

जो जं ग योजना रसूि ने बनायी और जो जं ग ब्रकये, वो ब्रवशाि स्तर पर सम्पूणा थे। ये सभी ओर यथा: आं तररक व वाह्य, राजनीब्रतक
व कू टनब्रयक, मजहबी व मनोवैज्ञाब्रनक, आलथाक व फौजी सभी स्तरों पर ब्रकये गये। इसमें एक ऐसी आदशा स्लस्थ ब्रत थी, लजसमें सम्पूणा रणनीब्रत
अथाात 'लजहाद' के अलभन्न घटक के रूप में फौजी रणनीब्रत को व्यवहार में आने से अद्भुत पररणाम आये। अपनी पूरी सामर्थ्ा के प्रयोग के सद्गुण
से मुसिमानों को जं ग प्रारं भ करने के के वि पांि विा के भीतर ही शिु के पिडे को पिट देने में सफिता ब्रमिी।

आरंभ से ही मक्कावालसयों ने मुसिमानों के ब्रवरुद् रणनीब्रतक रूप से आक्रामक व्यवहार अपना रखा था , पर मुसिमानों ने युब्रक्तयुक्त
स्तर पर अपनी ितुर पहि सदा बनाये रखी। बद्र के पिात सीररया को जाने वािा कारवां मागा मक्कावालसयों के लिये पूणात: बं द हो िु का था और
इसे पुन: खोिने का उनके सभी प्रयास ब्रवफि हो िुके थे। बद्र की महत्वपूणा ब्रवजय के पिात मुसिमानों को उहुद की पराजय का स्वाद िखना
ू कों, यहब्रदयों व लभतरघाब्रतयों की ओर से नये लसरे से शिुता बढ़ गयी थी। इस प्रवृब्रत्त को रोकने के लिये
पडा और इसके पररणामस्वरूप मूब्रतापज
इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) ने अपनी ितुराई भरी गब्रतब्रवलियां कई गुना बढ़ा दीं। आक्रमणकतााओ ं से उनकी ही भूब्रम पर सामना ब्रकया
गया और वहीं उनको नष्ट ब्रकया गया। वास्तव में इस अवलि में ही पूवी कारवां मागा पर हमिा ब्रकया गया और इसे मूब्रतापूजकों के लिये
असुरलित बना ब्रदया गया।

तब हम इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) को खं दक में देखते हैं , जहां वो भीतर और बाहर दोनों स्थानों पर अनेक शिुओ ं से ब्रघरे
हुए थे। जं ग का ब्रवद्याथी अिं लभत होता होगा ब्रक उन्ोंने उन पररस्लस्थब्रतयों में भी कै से इतनी बडी जीत प्राि की! मुसिमानों को ब्रमटाने के लिये
शिुओ ं द्वारा गब्रठत महागठबं िन के उस मनोवैज्ञाब्रनक तार को खं ब्रित करके उन्ोंने ऐसा ब्रकया। इसी मनोवैज्ञाब्रनक अपनत्व अथाात तार के कारण
शिु मुसिमानों को ब्रमटाने के लिये एकसाथ आये थे। यह तार प्रारं भ से ही अपनी अविारणा व प्रकृ ब्रत में भं गुर था। इसके पिात हुदैब्रबया की
सं लि हुई, लजसका पूरा प्रभाव तो मुसिमान भी प्रारंलभक िरणों पर नहीं समझ पाये थे। इससे मुसिमानों को उत्तरी अरब की शिु जनजाब्रत यों से
ब्रनपटने का समय ब्रमिा।

7 तबूक पर पब्रवि कु रआन के लिये पररलशष्ट—VII देखें।

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इस सं लि से मक्कावासी पडोसी जनजाब्रतयों से दूर हो गये और इसके पररणामस्वरूप ब्रवशेि प्रब्रतरोि के ब्रबना ही मक्का नगर पर
अलिकार कर लिया गया।

पब्रवि रसूि की रणनीब्रत पर ब्रविार करते हुए मुहम्मद हमीदुल्लाह लिखते हैं , "वास्तव में रसूि मुहम्मद ने सदा एक सामान्य नीब्रत के
रूप में और एक लसद्ांत के ब्रबंदु के रूप में भी, शिु पर प्रभावी होने को प्राथब्रमकता दी, न ब्रक उसे ब्रमटाने की। इसके लिये दो प्रकार के सािन
थे: एक तो यह था ब्रक कु रैशों को लिंता में िािने वािा आलथाक दबाव ब्रनब्रमात ब्रकया जाए और दूसरा यह ब्रक दीघा-कालिक नीब्रत के साथ ब्रनरंतर
अपनी फौजी ताकत बढ़ायी जाए। उन्ोंने ऐसे सटीक समय पर हमिा ब्रकया, जब शिु कोई प्रब्रतरोि करने का साहस न कर सके और अपना
उद्दे श्य रक्तहीन ढं ग से पूरा ब्रकया जा सके । यब्रद शिु के अित सं सािन व ऊजाा को और अच्छे व रिनात्तमक िै नि में पुनब्रनादेलशत ब्रकया जाए,
तो ये इस्लाब्रमक राज्य की ताकत बढ़ा सकती हैं। यब्रद रक्तहीनता, राष्टरीय सत्ता के सभी तत्वों की पहिान व अनुप्रयोग, जं ग के गुरुत्व कें द्र को
ढूं ढ़ना और जीतना तथा फौजी उपकरणों का प्रभावकारी प्रयोग करना सम्पूणा रणनीब्रत का सूिक है, तो मूब्रतापूजकों के ब्रवरुद् पब्रवि रसूि का जं ग
इसका सबसे िमकता उदाहरण है।

इन अलभयानों से हम यह भी सीखते हैं ब्रक लजस फौज का ब्रवश्वास अटि रहता है, उस पर भौब्रतक या मनोवैज्ञाब्रनक दबाव का कोई
अंश काम नहीं करता। इसके ब्रवपरीत अस्लस्थर ब्रवश्वास के साथ शिु पर की गयी छोटी सी मनोवैज्ञाब्रनक 'िािबाजी' भी स्वयं ही पराजय को
आमं ब्रित करने वािी हो सकती है। मुसिमान फौज में मजहबी अब्रवश्वास की ब्रवश्वासघाती दुबािता मनोवैज्ञाब्रनक आक्रमण होने पर ब्रनबाि बना
सकती है। जब पूरी फौज भयग्रस्त हो जाती है, तो कु छ समब्रपात आत्माओं की दृढ़ता ब्रवपब्रत्त को रोक सकती है और इसे ब्रवजय में पररवब्रतात कर
सकती है। इन अलभयानों की सबसे बडी सीख यह है ब्रक अलभयान िाहे व्यब्रक्त गत रूप से प्रारंभ ब्रकये गये हों अथवा सामूब्रहक रूप से, पररणाम
प्राि करने के लिये जं ग के कु रआनी लसद्ांत पूणा व समग्र रूप से व्यवहार में िाये जाने योग्य होती हैं। इसे के वि कु छ टुकडों में प्रयोग नहीं
ब्रकया जा सकता।

68
पररलशष्ट

69
पररलशष्ट—1

पब्रवि रसूि के फौजी अलभयान


क्रमांक अलभयान ब्रटप्पलणयां

1. बद्र से पूवा के हमिे व मेि-जोि अलभयान ये अलभयान रमजान 1 एि से रजब 2 एि की अवलि के हैं। इनमें कु छ
हमिे/मेिजोि/अलभयान कारवां मागा पर सतत् ब्रनगरानी रखने के लिये ििाये
क) सररया सैफुि बहर
गये थे। शेि पडोसी जनजाब्रतयों से ब्रमिता/तटस्थता की सं लि करने के लिये
ख) सररया राब्रबग़
ब्रकये गये थे। इन हमिों से एक मदीना से 400 मीि दूर ताइफ और मक्का के
ग) सररया जराार
घ) गज़वा वद्दन/अब्वा बीि नखिा नामक स्थान पर ब्रकया गया था। साटवान में ब्रकया गया हमिा

ङ) गज़वा बुवात प्रत्ुत्तर प्रकृ ब्रत का था। ये सारे अलभयान के वि मुहालजरों के सहयोग से ििाये

ि) गज़वा सटवान गये और िगभग सभी रक्तहीन थे।

छ) गज़वा जुि अलशर


ज) सररया नखिा

2. बद्र और उहुद के बीि अलभयान ये अलभयान रमजान 2 एि से शवाि 3 एएि तक के हैं। यह समय स्मरणीय
बद्र की ब्रवजय के साथ प्रारं भ हुआ, ब्रकंतु उहुद की पराजय के साथ यह समाि
क) गजवा बद्र
ख) सररया उमैर ब्रबन अदी हुआ। अंसारों ने इन जं गों में बढ़िढ़ कर भाग लिया। बनू सुिैम और बनू

ग) सररया आिम ब्रबन सवीक़ की जं ग प्रत्ुत्तर प्रकृ ब्रत के थे। बद्र की जं ग के समय ब्रवश्वासघात करने

उमैर वािे मदीना के यहब्रदयों की तीन शाखाओं में से एक बनू कु नैका को नगर से

घ) गजवा बनू कु नैका भगा ब्रदया गया। (अन्य दो शाखाओं बनू नजीर और बनू कु रैजा के ब्रविय में हम

ङ) गजवा सवीक आगे जानेंगे)। बद्र में कु रैशों की पराजय से वे भब्रवष् में कारवां मागा का

ि) गजवा बनू सुिैम उपयोग करने से रोक ब्रदये गये। इनमें से कई जं ग दो व्यब्रक्तयों अथवा समूहों में

छ) सररया बनू सुिैम आमने-सामने िडे गये, जबब्रक अन्य सेना के प्रदशान के रूप में खडे रहे अथवा
ज) सररया मुहम्मद ब्रबन यह उन मक्कावािों द्वारा सामर्थ्ा का परीिण था लजन्ोंने पडोसी जनजाब्रतयों के
झ) गजवा गतफान साथ गठबं िन ब्रकया था और मक्का पर आक्रमण करने की योजना बना रहे थे ।
ञ) सररया कदा
ट) गजवा उहुद

3. उहुद और खं दक के बीि ये अलभयान शव्वाि 3 एएि से लजल्काद 5 एएि तक ििे। इस अवलि में
मुसिमानों ने उहुद में अपनी पराजय से उबरकर खं दक की बडी और िगभग
क) गजवा हमर-अि-अस्वद
रक्तहीन ब्रवजय प्राि की। यद्यब्रप इस ब्रवजय का पथ अत्ं त कब्रठन व खतरों से
ख) सररया कु तन
भरा था। उहुद की पराजय के पिात उनके शिुओ ं ने ब्रनष्किा ब्रनकािा ब्रक
ग) सररया अब्दुल्लाह ब्रबन
इस्लाम के ब्रगने-िुने ब्रदन बिे हैं। तद्नुसार शिु ने मदीना आक्रमणों की श्रृंखिा
उवैस
की योजना तैयार की। ब्रकंतु प्रत्ेक प्रकरण में शिु का जमाव उनकी ही भूब्रम
घ) सररया राजी
पर साहसी और आक्रामक हमिा करके या तो ब्रततर-ब्रबतर कर ब्रदया गया,
ङ) सररया बीरे मोउना
ि) सररया उमरू ब्रबन अथवा नष्ट कर ब्रदया गया। बनू नजीर के यहदी समुदाय ने मुसिमानों के साथ

उमैया सं लि तोड दी थी तो उन्ें मदीना नगर से ब्रनष्काब्रित कर ब्रदया गया। हमरा-अि-

छ) गजवा बनू नजीर अस्वद की जं ग का ब्रवशेि पि यह है ब्रक यह उहुद की जं ग के पिात स्वयं


पब्रवि रसूि द्वारा इसलिये िडी गयी थी, लजससे ब्रक अबू सुफ्यान को मदीना पर

70
ज) गजवा बद्र (अंब्रतम) आक्रमण करने के लिये िौटने से रोका जा सके । साथ ही जैसा ब्रक उहुद की
झ) गजवा दुमअतुि जन्दि जं ग के पिात अबू सुफ्यान को ब्रदये गये विन के अनुसार एक विा बाद बद्र की
ञ) गजवा बनू मुस्तलिक ओर अलभयान प्रारं भ ब्रकया गया, िेब्रकन कु रैश िडने ही नहीं आये। खं दक की
ट) गजवा खं दक जं ग से मदीना पर आगे कभी आक्रमण करने की कु रै शों की पहि पर रोक िग
गयी।

4. खं दक और खैबर के बीि ये अलभयान लजल्काद 5 एि से मुहरा म 7एएि तक की अवलि के हैं। इस


अवलि में पडोसी मूब्रतापूजक जनजाब्रतयों और उत्तरी अरब के यहब्रदयों ने मदीना
क) सररया अब्दुल्ला ब्रबन
अनेक सफि िावा बोिा। खं दक के बाद के ब्रदनों में मदीना की अंब्रतम यहदी
अतीक
जनजाब्रत बनू कु रैजा को ऐसा ब्रमटा ब्रदया गया ब्रक एक-एक व्यब्रक्त समाि हो
ख) गजवा बनू कु रै जा
गये। इस जनजाब्रत ने शिु के साथ हाथ ब्रमिा लिया था। बद्र के पिात कु रैशों
ग) सररया कु रैजा
ने सीररया से अपने व्यापार के लिये कारवां का मागा नेज्द की ओर से पररवब्रतात
घ) गजवा बनू लिह्यान
कर लिया था। मुसिमानों ने कारवां के इस मागा पर भी हमिा बोिा। इस
ङ) गजवा कदी
अवलि की सबसे महत्वपूणा घटना हुदैब्रबया की सं लि थे। इस सं लि के अनुसार
ि) सररया मरज़क़
मक्कावालसयों और मुसिमानों के बीि एक-दूसरे से शांब्रत का समझौता हुआ।
छ) सररया ज़ुि क़ु त्सा
बाद में कु रैशों ने इस सं लि को भं ग कर ब्रदया और इसका पररणाम यह हुआ ब्रक
ज) सररया बनू सिहा
दो विा पिात मुसिमानों ने मक्का पर हमिा करके उसे जीत लिया।
झ) सररया यामून
ञ) सररया तारफ
ट) सररया वादी कतरा
ठ) सररया दुमअतुि जन्दि
ि) सररया ब्रफदक
ढ) सररया कदाा
ण) सररया अब्दुल्लाह ब्रबन
रवाहा
त) सररया गरीब्रतसीन
थ) सररया उमरू .
द) गजवा हुदैब्रबया
ि) गजवा खैबर

5. खैबर और मक्का के बीि ये अलभयान मुहराम 7एएि से रमजान 8एएि की अवलि के बीि के हैं। इस
अवलि की सवाालिक महत्वपूणा घटना मक्का की रक्तहीन ब्रवजय थी। मक्का पर
क) गज़वा वादी कु रा
मुसिमानों का हमिा मक्कावालसयों द्वारा हुदैब्रबया की सं लि को तोडने के पिात
ख) गज़वा जत-अि-रक्का
हुआ। यह हमिा हुदैब्रबया की सं लि ब्रकये जाने के िगभग दो विा पिात ब्रकया
ग) सररया ईस
गया था। यद्यब्रप इस बीि मुसिमानों को उत्तरी अरब के यहब्रदयों से ब्रनपटने एवं
घ) सररया क़दीद
मक्का के िारों ओर बसी जनजाब्रतयों अपना प्रभाव बढ़ाने का समय ब्रमि गया
ङ) सररया ब्रफदक
था।
ि) सररया हाशमी
छ) सररया तरया
ज) सररया बनू क़िाब
झ) सररया मनकी
ञ) सररया खरबा

71
ट) सररया बनू मरााह
ठ) सररया बशीर ब्रबन साद
ि) सररया इब्न अबी अवया
ढ) सररया ज़ात अतिह
ण) सररया ज़ात अरक़
त) सररया मुतआह
थ) सररया ज़ात-उस-
सिालसि
द) सररया सै़िुि बहर-II
ि) सररया मुहराब
न) गज़वा मक्का

6. मक्का और दूमा के मध्य ये अलभयान अंब्रतम िरण में हुए थे। ये रमजान 8 एएि से रबी-उि-अव्वि
9एएि की अवलि में हुए। इस अवलि के समाि होने के साथ ही पूरा अरब
क) सररया खालिद ब्रबन
प्रायद्वीप इस्लाम के रसूि (उन पर शांब्रत हो) के सांसाररक व मजहबी दोनों
विीद (I)
प्रकार के प्रभुत्व में आ िुका था। इस अवलि में मुसिमान अरब और रोमन
ख) सररया उमरू
सीररया के मध्य मुता और तबूक की जं ग में एक-दूसरे से आरंलभक
ग) सररया साद
जोरआजमाइश हो िुकी थी। मक्का के समीप िडी गयी हुनैन की जं ग में
घ) सररया खालिद ब्रबन
मुसिमानों को आरंलभक हाब्रन हुई, यद्यब्रप शीघ्र ही वे इससे उबर गये और
विीद (II)
अंतत: सफि रहे।
ङ) ग़जवा हुनैन
ि) सररया उयैना ब्रबन ब्रहस्न
छ) सररया कु तबा ब्रबन
अरोएर
ज) सररया ज़हक ब्रबन
सुफ्यान
झ) सररया अब्दुल्लाह ब्रबन
खदफा
ञ) सररया बनू तायी
ट) गज़वा तबूक
ठ) सररया दुमअतुि जन्दि

72
पररलशष्ट II

बद्र पर पब्रवि कु रआन


1. मदीना से मुसिमानों के ििने का वणान

लजस प्रकार तुम्हें तुम्हारे अल्लाह ने तुम्हारे घर (मदीना) से ब्रनकािा, जबब्रक मोब्रमनों का एक समुदाय इससे अप्रसन्न था।
वे आपसे जं ग के ब्रविय में झगड रहे थे, जबब्रक वह उजागर हो गया था, (ब्रक जं ग होना है)। उनकी ऐसी स्लस्थब्रत हो गयी थी, मानों
वे मृत्ु की ओर हााँ के जा रहे हों और वे उसे देख रहे हों।

अन्फाि: 5-6

2. 'जं ग के पीछे अल्लाह का उद्दे श्य'

उस समय का स्मरण करो, जब तुम ( जं ग के मैदान में) इस ओर तथा वे (शिु) उस ओर थे और कारवां तुमसे नीिे था।
यब्रद तुम आपस में (जं ग का) ब्रनिय करते, तो ब्रनलित समय पर अवश्य पीछे हट जाते। परन्तु अल्लाह ने (दोनों को लभडा ब्रदया)
लजससे ब्रक जो होना था, उसका ब्रनणाय कर दे , लजससे ब्रक जो मरे वह खुिे प्रमाण के पिात मरे और जो जीब्रवत रहे वह खुिे प्रमाण
के साथ जीब्रवत रहे और वस्तुतः अल्लाह सबकु छ जानने-सुनने वािा है।

अन्फाि: 42

वह समय स्मरण करो, जब अल्लाह तुम्हें विन दे रहा था ब्रक दो दिों में एक तुम्हारे हाथ आयेगा और तुम िाहते थे ब्रक
ब्रनबाि दि तुम्हारे हाथ िगे। परन्तु अल्लाह िाहता था ब्रक अपने विन द्वारा सत् को लसध्य्द कर दे और काब्ऱिरों की जड काट दे।
इस प्रकार सत् को सत् और असत् को असत् कर दे। भिे ही अपरािबोि से ग्रस्त मोब्रमनों को बुरा िगता।

अन्फाि: 7-8

3. समझौता तोडने वािों के लिये क्ा नीब्रत हो, उसकी रूपरेखा

ये वे िोग हैं, लजनसे तुमने सं लि की। ब्रफर वे प्रत्ेक अवसर पर अपना विन भं ग कर दे ते हैं और अल्लाह से नहीं िरते।
तो यब्रद ऐसे िोग तुम्हें रणिेि में ब्रमि जाएं , तो उन्ें लशिाप्रद दण्ड दें , लजससे ब्रक जो उनके पीछे हैं, उनको सीख ब्रमिे।

और यब्रद तुमको ब्रकसी जाब्रत की ओर से सं लि भं ग करने का भय हो, तो बराबरी के आिार पर सं लि तोड दो। क्ोंब्रक
अल्लाह ब्रवश्वासघाब्रतयों से प्रेम नहीं करता। अन्फाि: 56-58

4. 'जं ग के समय मुसिमानों के आिरण' पर

हे मोब्रमनो! जब ब्रकसी दि से लभडो, तो जम जाओ तथा अल्लाह का बहुत स्मरण करो, लजससे ब्रक तुम सफि रहो। अल्लाह और
उसके रसूि के आज्ञाकारी रहो और आपस में ब्रववाद न करो, अन्यथा तुम दुबाि हो जाओगे और तुम्हारे पांव उखड जाएं गे तथा िैया
से काम िो, वास्तव में, अल्लाह िैयावानों के साथ है।

अन्फाि: 45-46

73
5. 'अल्लाह की इच्छा और उसका प्रभाव'

हे नबी! वो समय स्मरण करो, जब तुम्हें अल्लाह सपने में, उन्ें (शिु को) थोडा ब्रदखा रहा था और यब्रद उन्ें तुमको अलिक ब्रदखा
दे ता, तो तुम साहस खो देते और इस जं ग के ब्रविय में आपस में झगडने िगते। परन्तु अल्लाह ने तुम्हें बिा लिया। वास्तव में वह
सभी के अन्तरमन की बातों से भिी-भांब्रत अवगत है।

स्मरण करो उस समय को, जब अल्लाह शिु को िडाई के समय तुम्हारी आं खों में तुम्हारे लिए थोडा करके ब्रदखा रहा था
और इनकी आं खों में तुम्हें थोडा करके ब्रदखा रहा था, लजससे ब्रक जो होना था, अल्लाह उसका ब्रनणाय कर दे। सभी ब्रनणाय अल्लाह
द्वारा ही ब्रकये जाते हैं।

अन्फाि: 43-44

6. 'जं ग की रणनीब्रत' पर

जो काब्ऱिर हो गये, वे कदाब्रप ये न समझें ब्रक हमसे आगे हो जाएं गे। ब्रनलित ही वे हमें ब्रववश नहीं कर सकें गे। तुमसे
लजतनी हो सके , उनके लिए सामर्थ्ा तथा सीमा में रिा के लिए घोडे तैयार रखो, लजससे ब्रक अल्लाह के शिुओं तथा अपने शिुओं
को और इनके अब्रतररक्त दूसरों में भय व्याि कर सको, लजन्ें तुम नहीं जानते, उन्ें अल्लाह ही जानता है।

अल्लाह की राह में तुम जो भी व्यय करोगे, तुम्हें पूरा ब्रमिेगा और तुम्हारे साथ अन्याय नहीं होगा।

अन्फाि: 59-60

7. "जं ग के उद्दे श्य' पर

हे मोब्रमनो! उनसे उस समय तक जं ग करो जब तक ब्रक ब्ऱित्ना (उपद्रव) समाि हो जाए और जब तक ब्रक न्याय एवं
प्रत्ेक व्यब्रक्त में और सभी स्थानों पर के वि अल्लाह में ही ब्रवश्वास न व्याि न हो जाए। तो यब्रद वे (ब्ऱित्ना से) रुक जाएं , तो
अल्लाह उनके कमों को दे ख रहा है। यब्रद वे मुं ह फेरें, तो जान िो ब्रक अल्लाह रिक है और वही अच्छा सं रिक तथा वही अच्छा
सहायक है।

अन्फाि: 39-40

क) शांब्रत की पुनस्थाापना की आवश्यकता पर बि

यब्रद वे (शिु) सं लि की ओर झुकें और अल्लाह को मानने िगें, तो तुम भी उसके लिए झुक जाओ। ब्रनिय ही अल्लाह सब
कु छ जानने-सुनने वािा है। यब्रद वे सं लि करके तुमसे छि करना िाहेंगे, तो अल्लाह तुम्हारे लिये पयााि है। वही है लजसने अपनी
सहायता तथा मोब्रमनों (की सं गब्रत) से द्वारा मजबूत ब्रकया है।

(इसके अब्रतररक्त) उसी ने उनके मन में आपसी मुहब्बत भर दी है: तुम्हारे पास िरती पर जो कु छ है, वो सब िगा देते तो भी
क्ा उनके मन में मुहब्बत पैदा कर पाते? परंतु अल्लाह ने यह ब्रकया है। वास्तव में अल्लाह प्रभुत्वशािी व ब्रनपुण है।

अन्फाि: 61-63

9. 'िैया व गं भीरता के सद्गुण' पर

74
हे नबी! मोब्रमनों को जं ग की प्रेरणा दो। यब्रद तुममें से बीस िैयावान होंगे, तो दो सौ पर ब्रवजय प्राि कर िेंगे और यब्रद
तुमसे सौ होंगे, तो उन काब्ऱिरों के एक हज़ार पर ब्रवजय प्राि कर िेंगे। क्ोंब्रक वे समझ-बूझ नहीं रखते।

अब अल्लाह ने तुम्हारा बोझ हल्का कर ब्रदया और जान लिया ब्रक तुममें कु छ ब्रनबािता है, तो यब्रद तुममें से सौ िैयावान
हों, तो दो सौ पर ब्रवजय प्राि कर िेंगे और यब्रद तुममें से एक हज़ार हों, तो अल्लाह की अनुमब्रत से दो हजार पर प्रभुत्व प्राि कर
िेंग।े अल्लाह िैयावानों के साथ है अथाात उन का सहायक है जो दुः ख तथा सुख प्रत्ेक दशा में अल्लाह के ब्रनयमों का पािन करते
हैं।

अन्फाि: 65-66

10. 'अल्लाह की सहायता व सहयोग' पर

स्मरण करो, जब तुम बद्र की जं ग के समय अपने अल्लाह से गुहार िगा रहे थे तो उसने तुम्हारी इबादत सुन िी और
कहाः मैं तुम्हारी सहायता के लिए ब्रनरंतर एक हज़ार फररश्ते भेज रहा हं। अल्लाह ने ये इसलिये बता ब्रदया, लजससे ब्रक तुम ब्रनराशा
से बाहर आ सको और तुम्हारे मन को सं तोि हो। अन्यथा सहायता तो अल्लाह ही की ओर से होती है। वास्तव में अल्लाह
प्रभुत्वशािी तत्वज्ञ है। वह समय स्मरण करो, जब अल्लाह तुम पर ऊंघाई िाि रहा था लजससे ब्रक तुम शान्तलित्त हो सको, तुम पर
आकाश से जि बरसा रहा था लजससे ब्रक तुम्हें स्वच्छ कर दे और तुम्हारे भीतर से शैतान की मलिनता दूर कर दे , तुम्हारे मन को
साहस दे और तुम्हारे पांव जमा दे। हे नबी! ये वो समय था, जब तुम्हारा पािनहार ़िररश्तों को सं के त कर रहा था ब्रक मैं तुम्हारे
साथ हं। तुम मोब्रमनों को स्लस्थर रखो, मैं काब्ऱिरों के मन में भय िाि दूंगा। इसलिये हे मुसिमानो! तुम उनकी गरदनें उतार दो तथा
उनकी उं गलियां काट िािो।

अन्फाि: 9-12

11. 'जं ग के बं ब्रदयों और ब्रफरौती उगाहने' पर

ब्रकसी नबी के लिए ये उलित न था ब्रक जब तक ब्रक वह िरती पर अच्छी तरह़ रक्तपात न कर दे और उसे जीत न िे,
कोई बं दी अपने पास रखे। तुम सांसाररक िाभ िाहते हो, जबब्रक अल्लाह तुम्हारे लिए आल़िरत (परिोक) का िाभ िाहता है।
अल्लाह प्रभुत्वशािी तत्वज्ञ है। यब्रद इस ब्रविय में पहिे से अल्लाह का िेख (ब्रनणाय) न होता तो ब्रफरौती के रूप में जो िन तुमने
लिया है, उसे िेने के लिये तुम्हें बडा दं ि ब्रमिता। तो अब उस मािे ग़नीमत (िूट का माि अथवा बं दी बनाये गये काब्रफर से िी
गयी ब्रफरौती का िन) में से खाओ, वह ह़िाि (उलित) स्वच्छ है तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो। वास्तव में अल्लाह अब्रत
िमाशीि एवं दयावान है।

अन्फाि: 67-69

12. ' जं ग में प्राि िन ' पर

हे नबी! तुमसे तुम्हारे साथी जं ग में िूट का माि िेने के ब्रविय में प्रश्न कर रहे हैं। उनसे कह दो ब्रक जं ग में ब्रमिे िूट के
माि अल्लाह और रसूि के लिये हैं। अतः यब्रद तुम ईमान वािे हो, तो अल्लाह से िरो और आपस में पारदशी सं बं ि रखो तथा
अल्लाह और उसके रसूि के आज्ञाकारी रहो।

अन्फाि: 1

75
13. मूब्रतापज
ू कों की पराजय के बाद उनको सं बोिन

हे काब्रफरो! यब्रद तुम अपनी ब्रवजय और ब्रनणाय की कामना रहे थे, तो जान िो अब ब्रनणाय तुम्हारे पास आ िुका है। यब्रद
तुम दूर हो जाओ (ब्रवरोि करने से), तो तुम्हारे लिए उत्तम है। यब्रद तुम पुन: िौटकर आओगे, तो हम भी छोडेंगे नहीं। भिे ही तुम
सं ख्या में ब्रकतने भी अलिक हो जाओ, पर वह काम नहीं आयेगा। ब्रनिय ही अल्लाह मोब्रमनों के साथ है।

अन्फाि: 19

14. 'जं ग में अल्लाह के हाथ' के ब्रविय में

ये तुम नहीं हो लजसने हत्ा की है; ये तो अल्लाह है, लजसने उन्ें मारा है। हे नबी! जब तुमने एक मुट्ठी िूि उन पर फेंकी
थी, तो वो तुमने नहीं ब्रकया था, अब्रपतु अल्लाह ने ब्रकया था। ऐसा इसलिये हुआ लजससे ब्रक अल्लाह मोब्रमनों की उत्तम परीिा िे।
वास्तव में अल्लाह सब कु छ जानने और सुनने वािा है। अल्लाह ही वो है जो काब्ऱिरों की योजनाओं और ब्रतकडम को ब्रनबाि करता
है।

अन्फाि: 17-18

15. 'शैतान की भूब्रमका और व्यवहार' के ब्रविय में

स्मरण करो, जब शैतान ने उनके (पापपूणा) कायों को िुभावना बना ब्रदया और उसने कहाः जब तक मैं तुम्हारे ब्रनकट हं,
कोई तुमसे जीत नहीं सकता। ब्रकंतु जब दोनों फौजें एक-दूसरे के सम्मुख आ गयीं, तो वह अपनी एब्रडयों के बि पिट गया और
कह ब्रदया ब्रक ''मैं तुमसे पृथक हं। मैं जो दे ख रहा हं, तुम नहीं देख रहे। वास्तव में मैं अल्लाह से भयभीत हो रहा हं , क्ोंब्रक
अल्लाह दं ि दे ने में कठोर है।"

अन्फाि: 48

16. फौज में एकता और सामं जस्य के ब्रविय में मोब्रमनों को प्रेरणा

काब्रफर एक-दूसरे के सं रिक हैं। जब तक तुम भी ऐसा नहीं करोगे (अपने में एक-दूसरे की रिा नहीं करोगे), तो िरती
पर बडा ब्रफत्ना और अत्ािार होगा तथा बडा बुरा होगा।

अन्फाि: 73

17. 'मोब्रमनों को अल्लाह की सहायता के प्रभाव' के ब्रविय में

हे नबी! तुम्हारी सहायता के लिये अल्लाह ही पयााि है और उनकी सहायता के लिये भी अल्लाह पयााि है, जो तुम्हारा
अनुसरण करते हैं।

अन्फाि: 64

76
पररलशष्ट-III

उहुद की जं ग: वृत्त अध्ययन

क्रमांक ब्रतलथ व समय कु रै शों द्वारा कारावाई मुसिमानों द्वारा कारावाई ब्रटप्पलणयां

1. 11 मािा 625 मदीना के मुसिमान समुदाय को शिु दि में कु ि 3000 सुसस्लित सेना थी,
ईस्वी नष्ट करने की मं शा से पडोसी लजसमें से 700 कवििारी थे। उनके पास
मूब्रतापूजक जनजाब्रतयों के साथ- 3000 ऊंट एवं 200 घुडसवार बि था।
साथ मक्का से ब्रनकि पडना कु रैश सेना के कमांिर अबू सुफ्यान थे।

2. 11-20 मािा क) सरिता से पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत


आगे बढ़ते हो) के पास एक गुििर शिु
रहना और की सामर्थ्ा और स्लस्थब्रत की
मदीना के सूिना िाता है।
ब्रनकट
पहुंि
जाना
ख) 20 मािा
को मदीना
नगर से
कु छ दूर
पर लशब्रवर
िगाना

3. 21 मािा अबू सुफ्यान का अंसारों के अंसारों ने कु रैशों को


सं देश भेजकर आह्वान करना ब्रक अपमाब्रनत करते हुए प्रस्ताव
वे मुजाब्रहर से समथान खींि िें। ठु करा ब्रदया।
कु रैश सं दे शवाहक अंसारों को
तका देता है ब्रक मुहम्मद को
उनके समथान के अब्रतररक्त और
कोई कारण नहीं है ब्रक
मक्कावासी मदीनावालसयों के
ब्रवरुद् युद् छे डें।

4. 22 मािा उहुद के ब्रनकट लशब्रवर िगाना क) युद् भूब्रम के क) यहब्रदयों के ब्रनयं िण वािा
(प्रातः ) और आसन्न युद् की तैयारी ब्रवकल्प पर मदीना नगर एक ऐसे गढ़ के
करना। ब्रनणाय के लिये रूप में पररवब्रतात हो गया था,

77
जं गी पररिद की लजस पर कोई रिक बि
बैठक ब्रनयं िण करके सुदृढ़ स्लस्थब्रत में
ख) पब्रवि रसूि, आ सकता था।
अब्दुल्ला ब्रबन ख) युवा मुसिमानों ने कु रै शों को
उबय व मदीना की घेराबं दी की अनुमब्रत
मुसिमानों की देने को कायरतापूणा काया माना।
सहयोगी ग) मदीना के मुसिमान ब्रवशेि रूप
जनजाब्रतयों एवं से इस पि में थे ब्रक नगर के
कु छ मुसिमान भीतर ही जं ग िडी जाए।
वररष्ठ जनों ने उन्ोने पब्रवि रसूि के कहा ब्रक
मदीना के भीतर यहां तक इस्लाम से पूवा भी,
ही िडने के जब भी उन्ोंने घेराबं दी स्वीकार
ब्रवकल्प को की है तो कोई आक्रमणकारी
प्राथब्रमकता दी। उन पर ब्रनयं िण कर पाने में
ग) युवा मुसिमान सफि नहीं हो सका है।
और ब्रवशेिकर वे
लजन्ोंने बद्र की
िडाई िडी थी,
नगर के बाहर
जाकर शिु से
िडना िाहते थे।
घ) युवा समूह
बहुसं ख्यक था
और उसकी बात
मानी गयी तथा
यह ब्रनलित ब्रकया
गया ब्रक मदीना
से 3 मीि दूर
उहुद में कु रैशों से
जं ग ब्रकया
जाएगा।
5. 22 मािा युद् के लिये तैयार होना। कु रैश शुक्रवार की नमाज के बाद यहब्रदयों की सं लि थी ब्रक मदीना पर
(अपरान्) पि की मनोदशा आनं दपूणा व अब्दुल्ला ब्रबन उबय के आक्रमण करने वािे शिु के ब्रवरुद् वे
आत्मब्रवश्वास से भरी थी। नेतृत्व वािे 300 यहब्रदयों मुसिमानों के साथ कं िा से कं िा ब्रमिाकर
समेत 1000 मुसिमान िडेंगे।
उहुद की ओर ब्रनकि पडे।

6. राब्रि 22/23 युद् की तैयारी के अब्रतररक्त अन्य मदीना और उहुद के मध्य


मािा कोई महत्वपूणा घटना नहीं शुत्त नामक स्थान पर एक
रात रुके ।

78
7. 23 मािा युद्भूब्रम की ओर बढ़ने को तैयार क) प्रात: शीघ्र क) आगे बढ़ने से
उठकर जं ग के पूवा,
मैदान की ओर युवा/बहुसं ख्यक
जाने के लिये समूह ने पुनः
तैयार हुए। ब्रविार ब्रकया
ख) अभी वे ब्रनकिते और पब्रवि
ब्रक इससे पूवा ही रसूि से नगर
अपने 300 की ओर िौटने
व्यब्रक्तयों के एवं इसके
समूह के साथ भीतर से िडने
यहदी अब्दुल्ला का ब्रनवेदन
ब्रबन उबय ने ब्रकया, पर
यह कहकर पब्रवि रसूि ने
मुसिमानों का अपने ब्रनणाय से
साथ छोड ब्रदया नहीं हटे ।
ब्रक मदीना के ख) हो सकता है
भीतर िडने के ब्रक मदीना से
उनके परामशा पर बाहर ब्रनकिने
पब्रवि रसूि (उन से एक ब्रदन पूवा
पर शांब्रत हो) बहुसं ख्यक
द्वारा ध्यान नहीं समूह को यह
ब्रदया गया। समझ आया
ग) यहब्रदयों को साथ हो।
छोडता देखकर ग) तब तक
दो मुसिमान मुसिमान फौज
जनजाब्रतयों बनू को
सिमा और बनू मनोवैज्ञाब्रनक
हाररस भी रूप से तीन
मुसिमानों का हाब्रन हो िुकी
साथ छोडने का थीः -
सोिने िगे। 1- पहिा मदीना से
यद्यब्रप बाद में बाहर जाकर िडने
उन्ोंने यह का हठ करने के लिये
ब्रविार छोड बहुसं ख्यक समूह में
ब्रदया। अपराि बोि फैिने
घ) पब्रवि रसूि ने िगा।
मुसिमानों को 2- यहब्रदयों का साथ
सं बोलित ब्रकया छोड जाना।
और मुसिमानों
को पूणा मनोयोग
व समपाण के

79
साथ िडने को 3- दो मुसिमान कबीिों
प्रेररत ब्रकया। द्वारा साथ छोडने का
ङ) िराति पर अपने ब्रविार करना।
श्रेष्ठ कौशि का
प्रयोग करते हुए
वे जं ग के उस
मैदान की ओर
आगे बढ़े , जो
कु रैशों की दृब्रष्ट में
नहीं था।
8. 23 मािा युद् के लिये अपने सैब्रनकों को जं ग के लिये फौलजयों को
(प्रातः ) व्यवस्लस्थत करना। खालिद ब्रबन व्यवस्लस्थत ब्रकया। अब्दुल्लाह
विीद के नेतृत्व और अकरमा ब्रबन जाब्रबर की अगुवाई में
ब्रबन अबू जहि के उसके पहाडी के शीिा पर 50
सहायक के रूप में अपने तीरंदाजों को िगाया, लजन्ें
घुडसवार सैब्रनकों को िगाना। पहाडी के एक उभरे ब्रकनारे
से शिु की ब्रनगरानी करनी
थी। पब्रवि रसूि ने ब्रनदेश
ब्रदया ब्रक ब्रकसी भी स्लस्थब्रत में
वे अपना स्थान न छोडें।

9. 23 मािा युद् प्रारंभ होता है। एक के िुनौती देने वािे सभी कु रैश जं ग सुबह प्रारं भ हुई और मध्याह्न तक
(08.00- पिात एक आठ कु रैश योद्ा मुसिमानों द्वारा मार िािे ििी। सभी घटनाओं का सटीक समय बता
15.00 बजे) मुसिमानों को अके िे-अके िे गये। आठ कु रैशों को अिी पाना सं भव नहीं है। ब्रफर भी उसी क्रम में
िडने की िुनौती देते हैं। ने मारा और दो को हम्ज़ा सूिीबद् करने का पूरा प्रयास ब्रकया गया
ने। है, लजनमें वे हुए हैं।

10. 23 मािा युगि मल्ल युद् में ब्रवफि होने सामान्य िडाई में कु रैशों को यहां-वहां अस्त-व्यस्त स्लस्थब्रत में हाथापाई
पर मुसिमानों पर एकसाथ टू ट फंसाये रखा। होती रही और जं ग के मैदान में असमं जस
पडने के लिये आगे बढ़ते हैं। उत्पन्न करने वािा दृश्य था।

11. 23 मािा मुसिमान फौलजयों को कोई अपनी ब्रवलशष्ट उत्साह और


हाब्रन पहुंिा पाने में ब्रवफि रहते दृढ़ब्रनिय के साथ िडते हुए
हैं। मुसिमानों ने कु रैशों पर
कठोर और पूरी ऊजाा से
प्रहार ब्रकया। तीरंदाज अपनी
िौब्रकयों जमे रहे और शिु
के घुडसवारों को बार-बार
पीछे िके िते रहे।

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12. 23 मािा मुसिमानों के हमिे को सह पूरी ऊजाा और दृढब्रनिय के क) "यह पुनः बद्र था, जहां
पाने में असमथा, दबाव में पीछे साथ प्रहार करते रहे। मुसिमान अपराजेय नहीं थे।"
हटने िगते हैं। -ग्लब
ख) "मुसिमानों के हमिे से पूवा ही
मक्का की सेना पीछे हट गयी,
सं भवतः भाग गयी''-वाट

13. 23 मािा कु रैश मुसिमानों का कोई कु रैशों पर िगभग ब्रनयं िण


साथाक प्रब्रतरोि कर पाने में पा िेने के पिात मुसिमान
ब्रवफि रहते हैं और उनका पीछे उनका माि िूटने के िोभ
हटना उनमें भगदड मिने की में पड गये। उनको ऐसा
स्लस्थब्रत आने का सं के त दशााता करते देख तीरंदाज भी
है। अपने-अपने स्थानों को
छोडकर िूटपाट में िग
गये। उनका कमांिर यह
खतरनाक कदम उठाने से
सहमत नहीं था। तीरंदाजों
में आपसी बातिीत होने
िगी ब्रक तैनाती िौकी छोडी
जाए या नहीं।

14. 23 मािा कु रैश सेना भयग्रस्त की स्लस्थब्रत 50 में 43 तीरंदाजों ने


में िगभग पहुंि िुकी होती है ब्रनणाय ब्रकया ब्रक वे अपनी
और पीछे हटना प्रारं भ करने िौकी छोडकर िूट में
वािी होती है। सस्लम्मलित होंगे।

15. 23 मािा खालिद टीिे को खािी देखते बिे हुए सात तीरंदाजों ने
हैं, आक्रमण करते हैं और उस साहसपूवाक िडा, ब्रकंतु
पर अलिकार कर िेते हैं। परालजत हुए और मारे गये।

16. 23 मािा टीिे पर ब्रनयं िण करने के साथ मुसिमान यह जानकर


ही खालिद ब्रकनारे से और पीछे सब्रन्नपात व अिं भे की स्लस्थब्रत
से मुसिमान फौज पर आक्रमण में ििे गये ब्रक वह टीिा
करते हैं। यह िामत्काररक घटना शिु के ब्रनयं िण में ििा
देखकर पीछे हट रही कु रैश सेना गया है और शिु ने उन पर
का उत्साह बढ़ जाता है और वह ब्रकनारे से और पीछे से
अपने लसपाब्रहयों को पुन: एकसाथ आक्रमण कर ब्रदया
व्यवस्लस्थत करती है। है। फंस गये मुसिमान
खालिद का सामना करने के
लिये अपना मोिाा बदि िेते
हैं।

81
17. 23 मािा खालिद के सफि आक्रमण से दो ओर से आक्रमण होने पर
उत्साब्रहत कु रैश सेना में साहस मुसिमान फौलजयों में
भर आता है और कु रैश सेना घबराहट फैि गयी। फौज
अपने को व्यवस्लस्थत करती है छोटे -छोटे टुकडों में बं ट गयी
तथा मुसिमान पि पर सफि और इसका कमांि ब्रबखर
आक्रमण करती है। गया।

18. 23 मािा कु रैश सेना ब्रद्व-िारी आक्रमण मुसिमान फौज में प्रबि प्रातः जं ग के मैदान में ब्रनकिने से पूवा
तीव्र कर देती है। भ्रम की स्लस्थब्रत फैि गयी। मुसिमानों की तीन मनोवैज्ञाब्रनक हाब्रन होने
कु छ मुसिमान फौजी जं ग के पिात यह िौथा झटका था।
के मैदान से भागते हुए देखे
गये।

19. 23 मािा कु रैश सेना में से कोई िीखकर प्रवादों (अफवाहों) पर मुसिमानों के लिये पांिवां मनोवैज्ञाब्रनक
कहता है ब्रक मुहम्मद मारा मुसिमानों की ब्रमलश्रत झटका।
गया। यह समािार तेजी से प्रब्रतब्रक्रया रही। कु छ
प्रसाररत होता है और कु रैश सेना भयभीत हो गये और मैदान
में प्रसन्नता की िहर दौड जाती छोडकर भाग गये। शेि
है। आनं ब्रदत कु रैश सेना युद् नये अपनी ऊजाा सं लित करने
उत्साह व साहस के साथ उतर िगे और गं भीर िुनौती का
पडती है। सामना करने की तैयारी
करने िगे। अनीस ब्रबन
नजीर भगोडों पर िीखा,
"हम जीब्रवत क्ों हैं।
आओ, हम भी उसी प्रकार
मर जाएं जैसे रसूि मर गये
हैं।" अनीस शिु से तब तक
जूझता रहा, जब तक वह
अपने शरीर पर 70 घाव
पाकर ब्रगर नहीं गया। यद्यब्रप
सभी पिों पर ब्रविार करने
पर स्पष्ट होता है ब्रक िटे हुए
मुसिमानों की तुिना में उन
मुसिमानों की सं ख्या
अलिक थी, जो भयभीत हो
गये थे।

20. 23 मािा कु रैश अपना प्रहार और तेज कर भाग रहे अलिकांश इस समय तक िगभग 60 मुसिमान जं ग
देते हैं तथा िारों ब्रदशाओं से मुसिमानों ने अपने पीछे के मैदान में मरे पडे थे और बडी सं ख्या में
मुसिमानों को दौडा िेते हैं। स्लस्थत उहुद की पहाब्रडयों की मुसिमान घायि थे। अलिकांश मुसिमान
िट्टानी ढिान पर शरण रणभूब्रम छोडकर भाग गये थे।
लिया। पब्रवि रसूि को

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भगोडों को पुकारते हुए सुना
गया, 'हे अल्लाह के बं दों,
आओ और मेरे िारों ओर
घेरा बना िो।' उनकी पुकार
व्यथा गयी। तथाब्रप रसूि के
साथ-साथ िड रहा
मुसिमानों का एक छोटा
सा िटा रहा।

21. 23 मािा कोई पररवतान नहीं एक मुसिमान िडाका काब


ब्रबन मालिक ने पब्रवि रसूि
को पहिान लिया और
मुसिमानों पर िीखा ब्रक वो
जीब्रवत हैं, पर पब्रवि रसूि
ने उसे िुप रहने का सं के त
ब्रकया।

22. 23 मािा कु रैशों का एक दि पब्रवि रसूि पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत


को ढूं ढ़ िेता है। तीरों की हो) की रिा कर रहे
बौछार करते हुए वे रसूि के मुसिमानों ने अपने नेता की
ब्रनकट आ जाते हैं और उनकी सुरिा के लिये अदम्य साहस
हत्ा की मं शा से प्रहार करते व बलिदान का पररिय
हैं। ब्रदया।

23. 23 मािा कु रैशों के प्रहार दि के नेता पब्रवि रसूि घायि हो गये क) जो मुसिमान रसूि के साथ थे
इब्न-ए-क़ै मा पब्रवि रसूि पर और भूब्रम पर ब्रगरे पडे हैं। उनके अब्रतररक्त कु छ मुसिमान
प्रहार करके उन्ें घायि करने में कु रैशों के और प्रहार को जानते थे ब्रक उनको िगे घाव
सफि हो जाते हैं तथा आनं द में रोकने के लिये मुसिमान के ब्रविय में जानते थे। पूवा का
घोिणा करते हैं ब्रक उन्ोंने िडाके उनकी सुरिा में खडे वह प्रवाद ब्रक पब्रवि रसूि मारे
मुहम्मद को मार ब्रगराया। कु रैश रहे। गये वही उन मुसिमानों के पास
सेना में आनं द की िारा फूट अद्यतन सूिना थी।
पडती है। ख) इब्न-ए-क़ै मा द्वारा पब्रवि रसूि
की मृत्ु की पुब्रष्ट ब्रकये जाने से
कु रैशों का आक्रमण लशलथि हो
गया।

24. 23 मािा कु रैश पब्रवि रसूि की मृत्ु के मुसिमानों ने अपने घायि क) इस बीि, कु रैशों ने युद् में मारे
समािार पर आनं द मनाने िगते नेता को उठाया और उहुद गये मुसिमानों के शवों को
हैं। के िट्टान की ओर िे गये, ित-ब्रवित करने में िग गये।
एक सुरलित खोह में ख) मुसिमानों के लिये छठा
पहुंिाया। मनोवैज्ञाब्रनक झटका।

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25. 23 मािा इब्न अबी खिफ नामक एक पब्रवि रसूि ने िुनौती
कु रैश योद्ा रसूि के अंगरिक स्वीकार की और हाररस
पर ब्रनयं िण कर िेते हैं और उसे नामक व्यब्रक्त का तीर उनको
अके िे-अके िे िडने की िुनौती आकर िगा, लजससे वे
देते हैं। घायि हो गये। इब्न खिफ
बाद में उसी ब्रदन मर गया।

26. 23 मािा अबू सुफ्यान उहुद के टीिे के पब्रवि रसूि ने उमर फारूक अपने कथनानुसार, पब्रवि रसूि अगिे विा
ब्रनकट पहुंि जाते हैं , ब्रकंतु को िुनौती स्वीकार करने का जं ग िडने के लिये एक दि िेकर बद्र गये,
मुसिमान उन्ें िडने के लिये आदेश ब्रदया। परंतु अबू सुफ्यान वहां नहीं ब्रदखे।
बाध्य कर देते हैं। सुफ्यान यह
जानकर अिं लभत हो जाते हैं ब्रक
पब्रवि रसूि जीब्रवत हैं। सुफ्यान
हुब्बाि और अिा की स्तुब्रत
करते हैं और अगिे विा बद्र में
एक और युद् िडने की िुनौती
देते हैं।

27. 23 मािा अबू सुफ्यान मुसिमानों से िडने क) पब्रवि रसूि ने इस दि ने पुब्रष्ट की ब्रक कु रैश मक्का की ओर
का प्रयास ब्रकये ब्रबना अपने अिी की अगुवाई बढ़ रहे थे।
लशब्रवर में िौट जाते हैं। कु रै श में एक छोटा सा
अपने लशब्रवर उखाडना प्रारं भ कर दि कु रैशों की
देते हैं। गब्रतब्रवलियों की
ब्रनगरानी करने
तथा उनके अगिे
कदम की
जानकारी िेने के
लिये भेजा।
ख) मुसिमानों को
ब्रनदेश ब्रदया ब्रक
यब्रद कु रैश मदीना
पर आक्रमण
करने आते हैं तो
उनके साथ एक
और जं ग िडने
को तैयार रहें।
ग) मुसिमान फौज
ने स्वयं को इस
सं भाब्रवत घटना

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के लिये तैयार
ब्रकया।

28. राब्रि 23/24 कु रैश मदीना से िगभग 8 मीि पब्रवि रसूि ने स्लस्थब्रत पर
मािा दूर हमरा-अि-अस्वद नामक मं थन ब्रकया और इस ब्रनष्किा
स्थान पर पहुंिते हैं और रातभर पर पहुंिे ब्रक अपनी सैन्य
वहीं ठहरते हैं। ब्रवजय के बाद भी कु रै श
मुसिमानों को नष्ट करने के
अपने राजनीब्रतक उद्दे श्य को
प्राि करने में ब्रवफि रहे।
उन्ोंने आशं का व्यक्त की
ब्रक कु रैश इस ब्रविय पर ब्रफर
सोिेंगे और मदीना पर
आक्रमण करने िौटकर
आयेंगे। इस कारण उन्ोंने
आदेश ब्रदया ब्रक अगिी
सुबह उपिब्ध सभी
मुसिमान उनके नेतृत्व में
कु रैशों का पीछा करेंगे।

29. 24 मािा जैसा ब्रक पब्रवि रसूि का ब्रवद्युत गब्रत से पब्रवि रसूि क) मुसिमान फौज की जानकारी
अनुमान था, कु रैश युद् पररिद हमरा-अि-अस्वद तक पहुंि होने पर कु रैश आननफानन में
की बैठक आहत करते हैं ब्रक गये। पीछे हट गये। उहुद की जं ग
मदीना जीतने के लिये िौटा समाि हो िुकी थी।
जाए या नहीं। कु छ प्रमुख कु रैश ख) उहुद में मुसिमानों की पराजय
जनों पररिद में परामशा देते हैं ने शिु को ऐसा ब्रदग्भ्रब्रमत ब्रकया
ब्रक मदीना पर आक्रमण करके ब्रक वे मानने िगे इस्लाम िुि
उस पर अलिकार करने के लिये होने की ओर है। तद्नुसार उनमें
पुन: िौटा जाए। से सभी ने मुसिमानों को
पूणारूपेण नष्ट करने के प्रयास में
उनके प्रब्रत वैरभाव पाि लिया।
यह ध्यान देने योग्य है ब्रक ऐसी
सं कटपूणा स्लस्थब्रत के बाद भी
पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो)
ने कभी भी अपने शिुओ ं के
पास अवसर नहीं जाने ब्रदया।
इसकी अपेिा उन्ोंने दो विा
बाद, खं दक की जं ग में कु रैशों
की पराजय के बाद, अवसर को
पूणात: झटक लिया।

85
पररलशष्ट IV

उहुद पर अल्लाह की समीिा


1. 'रणभूब्रम के ब्रवकल्प के सं बं ि में ब्रववाद' पर

उनसे भी (उस समय) के प्रकरण में परामशा करो। ब्रफर जब कोई ब्रनणाय कर िो, तो अल्लाह पर ब्रवश्वास करो। ब्रनस्सं दे ह,
अल्लाह ब्रवश्वास करने वािों से प्रेम करता है। यब्रद अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो तुम पर कोई प्रभुत्व नहीं पा सकता
तथा यब्रद वह तुम्हारी सहायता न करे , तो ब्रफर कौन है जो उसके पिात तुम्हारी सहायता कर सके ? अतः मोब्रमनों को
अल्लाह ही पर ब्रवश्वास करने दो।

आिे-इमरान: 159-160

2. बनू सिमा और बनू हाररस कायरता के ब्रविार पर

स्मरण करो, जब तुममे से दो पिों ने कायरता ब्रदखाने का ब्रविार ब्रकया। ब्रकंतु अल्लाह उनका रिक था तथा मोब्रमनों को
सदा अल्लाह पर ही ब्रवश्वास करना िाब्रहए। जब तुम बद्र में ब्रनबाि थे, तो अल्लाह तुम्हारी सहायता कर िुका है। अतः
अल्लाह से िरते रहो, इस प्रकार उसके प्रब्रत कृ तज्ञ रहो।

आिे-इमरान: 122-123

3. यहब्रदयों के साथ छोडने पर रसूि का सं बोिन

वो समय भी स्मरण करो, जब तुम मोब्रमनों से कह रहे थेः क्ा तुम्हारे लिए ये बस नहीं है ब्रक अल्लाह तुम्हें आकाश से
उतारे हुए, तीन हज़ार ़िररश्तों द्वारा सहायता दे ? हां! यब्रद तुम िटे रहोगे, आज्ञाकारी रहोगे और वे (शिु) तुम्हारी प्रिण्ड
वेग से आ जाएं , तो तुम्हारा अल्लाह तुम्हें (तीन नहीं) पांि हज़ार प्रमाणयुक्त ़िररश्तों द्वारा समथान देगा। अल्लाह ने
तुम्हारे पास यह सूिना इसलिये भेजी है, लजससे तुम्हारे मन को सं तोि हो जाए। सहायता तो के वि अल्लाह ही के पास
से आती है, जो प्रभुत्वशािी तत्वज्ञ है, लजससे ब्रक वह काब्रफरों का एक भाग काट दे अथवा उन्ें ऐसा अपमाब्रनत कर दे
ब्रक पुनः वे असफि होकर वापस हो जायेाँ , अपने उद्दे श्य में ब्रवफि हो जाएं ।

आिे-इमरान: 124-127

4. िूट के माि के िोभ के कारण उत्पन्न सं कट की स्लस्थब्रत पर

स्मरण करो, जब तुम िढ़े (भागे) जा रहे थे और तुम्हारे पीछे खडे रसूि तुमको वापस आने के लिये पुकार रहे थे। पर तुम
थे ब्रक अगि-बगि भी नहीं दे ख रहे थे, तो बदिे में अल्लाह ने तुम्हें एक के बाद एक ब्रवपब्रत्त दी, तुम्हें यह सीख दे ने के
लिये ब्रक जो (िूट का माि) तुमसे दूर ििा गया, जो ब्रवपब्रत्त तुम पर आयी उसके लिये दुखी मत हो। क्ोंब्रक अल्लाह
सब जानता है ब्रक तुम क्ा कर रहे हो।

आिे-इमरान: 153

5. पब्रवि रसूि की मृत्ु के प्रवाद (अफवाह) के सं बं ि में

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मुह़म्मद के वि एक रसूि है। इससे पहिे बहुत से रसूि हो िुके हैं, तो क्ा यब्रद वो मर गये अथवा मार ब्रदये गये, तो
तुम उल्टे पांव भाग जाओगे? जो उल्टे पांव भागेगा, वो अल्लाह को तो कु छ हाब्रन नहीं पहुंिा सके गा। वहीं दूसरी ओर
अल्लाह उनको शीघ्र ही पुरस्कार व प्रब्रतफि देगा, जो उसके प्रब्रत कृ तज्ञ रहेंगे। कोई प्राणी ऐसा नहीं ब्रक अल्लाह की
अनुमब्रत के ब्रबना मर जाए, उसका जीवन काि लिलखत रूप में ब्रनलित ब्रकया गया है। यब्रद कोई इस सं सार में पुरस्कार की
इच्छा करेगा तो हम उसे देंगे और यब्रद कोई परिोक का पुरस्कार िाहेगा, तो हम उसे वो भी देंगे। हम उन सबको
पुरस्कार और प्रब्रतफि देंग,े जो कृ तज्ञता के भाव से हमारी सेवा करेगा।

आिे-इमरान: 144-145

6. ''कु रैशों द्वारा प्रब्रतघात करने से उत्पन्न आपदा'' पर

ब्रकतने ही नबी थे, लजनके साथ होकर बहुत से अल्लाह वािों ने जं ग ब्रकया। ब्रकंतु अल्लाह के मागा में जं ग करते समय
उन पर आपदा आयी तो वे कभी ब्रनराश नहीं हुए, न ही उनकी इच्छाशब्रक्त दुबाि हुई और न ही वे शिु से दबे। अल्लाह
को वो ब्रप्रय हैं, जो दृढ़ व िैयावान होते हैं।

उन्ोंने बस यही कहा: हे हमारे स्वामी! हमारे पापों या हमसे कु छ ऐसी भूि हो गयी हो, लजससे हम कताव्यपथ से ब्रवमुख
हुए हों, उसे िमा करो। हे अल्लाह! हमारे पांव दृढ़ता से जमाओ और उनसे िडने में हमारी सहायता करो जो इस्लाम का
ब्रवरोि करते हैं।'' तो अल्लाह ने उन्ें इस सांसाररक जीवन में भी पुरस्कार ब्रदया और इसके बाद परिोक में भी और
अच्छा पुरस्कार ब्रदया। क्ोंब्रक अल्लाह उनसे प्यार करता है जो अच्छा करते हैं।

आिे-इमरान: 146-148

तो तुम हताश मत हो, ब्रनराशा में मत िू बो, क्ोंब्रक यब्रद तुम सच्चे मोब्रमन हो, तो तुम ही सवोच्च रहोगे। यब्रद तुम्हें कोई
घाव िगा है, तो क़ौम (शिु) को भी ऐसा ही घाव िग िुका है। हम एक व्यब्रक्त से दूसरे व्यब्रक्त पर ब्रवलभन्न प्रकार के ऐसे
ब्रदन िाते रहते हैं, लजससे ब्रक अल्लाह उन िोगों को जान िे, जो अल्लाह और उसके रसूि पर ब्रवश्वास करते हैं और
अल्लाह तुममें से शहीद िुनकर, सत् के प्रब्रत सािी िुनकर अपने पास पास िाये। अल्लाह अत्ािाररयों से प्रेम नहीं
करता। अल्लाह का उद्दे श्य जो इस्लाम में ब्रवश्वास करते हैं, उन्ें शुद् करना भी होता है और जो इस्लाम को नकारते हैं,
उन्ें अपनी कृ पा से दूर करना होता है।

आिे-इमरान: 139-141

7. शिु की कारावाई से जो भयभीत हो गये थे उनको सं बोिन

यब्रद तुम अल्लाह के उद्दे श्य में मर जाओ अथवा मार ब्रदये जाओ तो उत्तम है, क्ोंब्रक जीब्रवत रहकर जो कु छ तुम कमाते
उससे उत्तम है, अल्लाह की िमा और दया प्राि करना। यब्रद तुम मर जाते हो या मार ब्रदये जाते हो, तो तुम सब एक
साथ अल्लाह के पास ही तो िाये जाओगे।

आिे-इमरान: 157-158

जो अल्लाह की राह में मार ब्रदये गये, उन्ें मरा हुआ न समझो। नहीं। वे तो जीब्रवत हैं , अपने स्वामी (अल्लाह) के
साब्रन्नध्य में स्थान पाने जा रहे हैं। वे भोग रहे हैं… (शहीदों का) वैभव अल्लाह द्वारा प्रदान ब्रकये गये माि को।
वास्तब्रवकता तो यह है ब्रक उनको अब कोई भय नहीं है, कोई दुख नहीं है, वे प्रसन्न (हब्रिात) हो रहे हैं।

आिे-इमरान: 169-170

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8. 'बहुसं ख्यक' समूह को सं बोिन

तुमने क्ा समझ रखा है ब्रक अल्लाह द्वारा यह परीिा लिये ब्रबना ब्रक तुममें से ब्रकसने उसके मागा में जं ग िडी है और
कौन दृढ़ब्रनियी रहा है, जन्नत में प्रवेश पा जाओगे?

तुम उससे ब्रमिने से पूवा ही मृत्ु की कामना कर रहे थे: तो अब तुमने उसे आं खों से देख लिया है (और देख रहे हो।)

आिे-इमरान: 142-143

9. 'मुसिमानों की पराजय के कारण' पर

जब दो फौजें आमने-सामने थीं, तो उस ब्रदन तुममें से कु छ भाग खडे हुए थे। वह शैतान ही था लजसने उन्ें ब्रवफि कर
ब्रदया था, क्ोंब्रक उन्ोंने कु छ बुरा ब्रकया था। पर अल्लाह ने उन्ें अपरािों से मुक्त कर िमा कर ब्रदया। क्ोंब्रक अल्लाह
सदा िमाशीि, अब्रत सब्रहष्णु है।

आिे-इमरान: 155

क्ा! जब तुम पर एक ब्रवपब्रत्त आयी, तो तुमने शिुओं को उसकी दोगुनी ब्रवपब्रत्त दी, ''तब भी कह रहे ब्रक तुम पर दुख
कहां से आया? नबी! बता दोः ये तुम्हारे पास से आया है। अल्लाह जो िाहे कर सकता है।''

आिे-इमरान: 165

जब दोनों फौजें आमने-सामने आयीं, तो उस ब्रदन तुम पर जो भी आपदा आयी, वो अल्लाह की इच्छा से आयीं, लजससे
ब्रक वह मोब्रमनों की परीिा िे सके ।

आिे-इमरान: 166

अल्लाह ने तुमसे अपना विन सि कर ब्रदखाया है, जबब्रक तुम उसकी अनुमब्रत से उन्ें काट रहे थे और यहां तक ब्रक जब
तुमने कायरता ब्रदखायी तथा रसूि के आदे श में ब्रववाद उत्पन्न ब्रकया और उसकी अवज्ञा की, और जब इसके पिात् ब्रक
तुम्हें वह (िूटने के लिये पडा माि) ब्रदखा ब्रदया, लजसे तुम िाहते थे। तुममें से कु छ सांसाररक िाभ िाहते हैं और कु छ
परिोक में िाभा की इच्छा रखते हैं। तब उसने शिु की ओर से तुम्हारा ध्यान भटका ब्रदया, लजससे ब्रक तुम्हारी परीिा िे
सके , पर अंतत: उसने तुम्हें िमा कर ब्रदया, क्ोंब्रक अल्लाह उन पर पूरी कृ पा रखता है, जो उसके दीन में ब्रवश्वास रखते
हैं।

आिे-इमरान: 152

10. अल्लाह की इच्छा और इसकी प्राब्रि पर

इसके बाद तुम पर उस ब्रवपब्रत्त की व्याकु िता के पिात् शास्लन्त (ऊाँघ) उतार दी। तुम्हारा एक दि ऊाँघने िगा, जबब्रक
दूसरा दि अज्ञानतावश अल्लाह के ब्रविय में गित सं दे ह से उपजी लिंता से व्याकु ि था।

वे कह रहे थे ब्रक हमारा भी कु छ अलिकार है क्ा? हे नबी! उनसे कह दो ब्रक सब अलिकार अल्लाह को है। वे
अपने मन में जो छु पा रहे थे, तुम्हें नहीं बता रहे थे, वो यह था ब्रक वे कह रहे थे ''यब्रद हमारा कोई अलिकार
होता, तो हमें यहां मरने-कटने के लिये नहीं छोडा जाता।'' उनसे कह दो: यब्रद तुम अपने घरों में रहते, तब भी
लजनके (भाग्य में) मारा जाना लिखा है, वे अपनी मृत्ु के ब्रनयत स्थान पर ििे ही जाते। ब्रकंतु यहां जो हुआ,

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वो इस कारण हुआ लजससे ब्रक जो तुम्हारे मन में है, अल्लाह उसकी परीिा िे सके तथा जो तुम्हारे मन में जो
िि रहा है, उसे शुद् कर दे । क्ोंब्रक अल्लाह मन के भेद को जानता है।

आिे-इमरान: 154

11. उहुद के अगिे ब्रदन लजन्ोंने अबू सुफ्यान का पीछा ब्रकया, उनके ब्रविय में

लजन्ोंने घायि होने के बाद भी अल्लाह और रसूि की पुकार सुनी, लजन्ोंने दीन का काम ब्रकया और कु फ्र से दूर रहे,
उनके लिए बडा पुरस्कार है। ये वे िोग हैं, लजनसे िोगों ने कहा ''तुम्हारे ब्रवरुद् बडी सेना एकि हो रही है'' और भयभीत
कर ब्रदया। पर इससे उनका दीनी ब्रवश्वास और बढ़ गया। उन्ोंने कहा, ''हमारे लिये अल्लाह पयााि है और वही हमारे
भाग्य का सवोत्तम ब्रनपटारा करने वािा है।"

आिे-इमरान: 172-173

12. 'जं ग के पिात शिु के अपप्रिार' पर

हे मोब्रमनो! यब्रद तुम काब्ऱिरों की बात मानोगे, तो वे तुम्हें एब्रडयों के बि िौटाकर वहीं पहुंिा दें गे जहां से तुम ििे थे
तथा तब तुम दीन से ब्रवमुख हो जाओगे और अपनी हाब्रन करा बैठोगे।

आिे-इमरान: 149

13. 'भब्रवष्' पर

अल्लाह मोब्रमनों को उस स्लस्थब्रत में नहीं छोडेगा लजसमें आज वे हैं, जब तक ब्रक वह (अल्लाह) जो बुरा है उसे अच्छे से
पृथक न कर दे।

आिे-इमरान: 179

शीघ्र ही हम काब्ऱिरों के मन में भय िाि देंग।े उन्ोंने अल्लाह का साझी उसे बना लिया है , लजसका कोई प्रमाण अल्लाह
ने नहीं भेजा है और ऐसे िोगों का स्थान दोजख (नका ) की आग होगा: और ऐसे िोग वहीं जाएं गे, जो बहुत बुरा स्थान
है।

आिे-इमरान: 151

89
पररलशष्ट V

खं दक पर पब्रवि कु रआन
1. 'मदीना की घेराबं दी और इसके प्रभाव’ पर

ध्यान रखना, जब वे तुम पर िढ़ आये, ऊपर से तथा नीिे से और जब आं खें पथराने िगीं तथा प्राण सं कट में आने िगा,
तो तुम अल्लाह को िेकर अनेक व्यथा ब्रविार करने िगे।

उस स्लस्थब्रत में मोब्रमनों की परीिा िी गयी, उन्ें पूणा रूप से लझं झोड ब्रदया गया।

अहजाब: 10-11

2. मुसिमानों पर अल्लाह की कृ पा के सं बं ि में

हे मोब्रमनो! स्मरण करो अल्लाह की वह कृ पा (बरसी) तुम पर, जब शिु िढ़ आये थे (तुम पर ब्रनयं िण करने):परंतु हमने
उनकी ओर िक्रवात और ऐसी फौज भेज दी, लजसे तुमने नहीं देखा। ब्रकंतु तुम जो कर रहे थे अल्लाह वो सब स्पष्ट देख
रहा था।

अहजाब: 9

3. लभतरघाब्रतयों के आिरण और व्यवहार के ब्रविय में

ध्यान रहे! लभतरघाती और वो लजनके मन में मैि है, कहते हैं: ''अल्लाह और उसके रसूि ने हमें कु छ दे ने का कोई वादा
नहीं ब्रकया है, ये दोनों तो भ्रमजाि (िोखा) हैं।''

ध्यान रहे! उनमें से एक दि ने कहा: ''हे यसररब वािो! तुम आक्रमण झेि नहीं पाओगे! अत: वापस िौट जाओ।''
उनमें से एक दि यह कहकर रसूि से वापस जाने की अनुमब्रत मांगने िगा ब्रक हमारे घर खािी और असुरलित स्लस्थब्रत में
हैं, जबब्रक वो खािी न थे। उनकी मं शा और कु छ नहीं, बस भाग जाने की थी। यब्रद फौजें मदीना के ब्रकनारे से नगर में
प्रवेश कर जातीं और घेर िेतीं, ब्रफर उन िोगों को मुसिमानों से ब्रवद्रोह करने के लिये उकसाया जाता तो अवश्य ही वे
शिु के साथ ब्रमिकर उपद्रव कर दे ते और उसमें तब्रनक भी ब्रविम्ब नहीं करते!

जबब्रक उन्ोंने अल्लाह से समझौता ब्रकया था, उसे विन ब्रदया था ब्रक पीठ नहीं ब्रदखायेंग।े अल्लाह को ब्रदये गये विन
को (ब्रनलित) ब्रनभाना ही पडता है।

अहजाब: 12—15

4. 'मृत्ु की अपररहायाता' पर

कह दो: भाग जाने से कोई िाभ नहीं होने वािा है। यब्रद तुम मृत्ु अथवा काट ब्रदये जाने के भय से भाग रहे हो; और
भिे ही यब्रद (तुम बिकर ब्रनकि भी जाओ), तो थोडे समय के लिये सुख भिे ही ब्रमि जाए, पर इस सुख को बहुत ब्रदन
भोग पाओगे क्ा!"

अहजाब: 16

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5. 'अल्लाह के दं ि /दया' पर

उनसे कह दो: यब्रद अल्लाह तुम्हें दं ि दे ना िाहे या तुम पर दया करना िाहे, तो कौन है भिा जो तुम्हें उससे बिा सके ?
न ही वे अपने लिए, अल्लाह के अब्रतररक्त, कोई और सं रिक या सहायता करने वािा पा सकें गे।

अहजाब: 17

6. लभतरघाब्रतयों के मनोब्रवज्ञान का ब्रवश्लेिण

वस्तुत: अल्लाह जानता है तुममें से वो कौन हैं जो (िोगों को) रोकते हैं तथा अपने बं िुओ ं से कहते हैं ब्रक हमारे पास ििे
आओ, परन्तु थोडे समय को छोडकर वे जं ग िडने नहीं आते हैं।

वे तुमपर बडे िोभी हैं। ब्रफर जब भय का समय आ जाता है, तो तुम उन्ें अपनी ओर ऐसे देखते हुए पाओगे जैसे ब्रक
कोई मरणासन्न दशा वािा व्यब्रक्त हो: परंतु जब भय दूर हो जाता है तो वे िन के िोभी होकर तुम पर तेज ज़ुबानी तीर के
प्रहार करेंग।े ऐसे िोगों का दीन पर ब्रवश्वास नहीं होता। अतः अल्लाह ने उनके सभी पुण्य कायों को प्रभावहीन कर ब्रदया
और अल्लाह के लिये यह करना बहुत सरि है।

वे समझते हैं ब्रक शिु दि का गठबं िन वापस नहीं गया है; और यब्रद वे (शिु) िौट आयें, तो वे िाहेंगे ब्रक घुमंतुओं के
साथ रेब्रगस्तान में भटकें तथा (दूर सुरलित रहकर) तुम्हारे ब्रविय में समािार जानते रहें; यब्रद वे तुम्हारे बीि भी होते तो
इसकी सं भावना कम ही थी ब्रक जं ग िडते।

अहजाब: 18-20

7. 'मोब्रमनों के मनोब्रवज्ञान' पर

जब मोब्रमनों ने महागठबं िन सेना को देखा तो वे बोिे: ''यही तो है वह जो अल्लाह और उसके रसूि ने हमें दे ने का
विन ब्रदया था। अल्लाह और उसके रसूि ने वही तो कहा था, जो सि है। '' और इससे अल्लाह और उसके रसूि में उनका
ब्रवश्वास एवं आज्ञापािन का उनका उत्साह और बढ़ गया।

मोब्रमनों में कु छ वे भी हैं, जो अल्लाह से ब्रकये हुए अपने समझौते पर खरे उतरे : उनमें से कु छ ने अल्लाह को ब्रदया विन
पूरा भी कर ब्रदया है, जबब्रक कु छ अभी भी ऐसा करने के लिये प्रतीिा कर रहे हैं: पर उन्ोंने (अपने सं कल्प में) कभी भी तब्रनक सा
पररवतान नहीं ब्रकया है: ब्रक अल्लाह उनकी ब्रनष्ठा के लिये पुरस्कृ त करे या यब्रद वह िाहे तो ढोंब्रगयों को दंब्रित करे अथवा उन पर
दया करे: क्ोंब्रक अल्लाह सदा िमाशीि और अब्रत दयावान है।

अहजाब: 22—24

8. काब्रफरों की ब्रनयब्रत के सं बं ि में

और अल्लाह ने अपने कोप के साथ काब्ऱिरों को (मदीना से) वापस कर ब्रदया है। उनको कोई िाभ नहीं हुआ। मोब्रमनों
को उनकी जं ग में साथ दे ने के लिये अल्लाह ही पयााि है। और अल्लाह अब्रत सामर्थ्ावान तथा अपनी इच्छा मनवाने में
प्रभुत्वशािी है।

और पुस्तक के वे िोग (यहदी), लजन्ोंने उनकी सहायता की- अल्लाह ने उन्ें उनकी गब्रढ़यों से नीिे उतार फेंका और
उनके मन में भय भर ब्रदया, (लजससे ब्रक) उनमें से कु छ को तुमने काट िािा और कु छ को बं दी बना लिया।

91
और अल्लाह ने तुम्हें उनकी भूब्रम, उनके घर, उनकी वस्तुएं और ऐसी िरती का उत्तरालिकारी बना ब्रदया लजस पर तुमने
इससे पहिे कभी पैर नहीं रखा था। और अल्लाह जो िाहे कर सकता है।

अहजाब: 25-27

9. 'पब्रवि रसूि के व्यब्रक्तत्व' पर

वास्तव में जो कोई भी अल्लाह, कयामत में ब्रवश्वास करता है और अल्लाह की इबादत में िगा रहता है, उसके लिए
वास्तव में अल्लाह के रसूि (के आिरण) में एक सुं दर प्रारूप है।

अहजाब: 21

92
पररलशष्ट VI

हुदैब्रबया पर अल्लाह का ब्रनणाय


1. 'हुदै ब्रबया की सं लि' के ब्रविय में

वास्तव में हमने ही यह ब्रवशाि ब्रवजय प्रदान की है: यह ब्रक अल्लाह उनके अगिे और ब्रपछिे अपरािों को िमा कर दे ;
उन पर अपनी कृ पा बरसाये; तथा सीिी राह ब्रदखा सके ; तथा यह ब्रक अल्लाह उनकी भरपूर सहायता करे।

फतह: 1-3

2. 'मोब्रमनों पर अल्लाह की कृ पा'

वही है लजसने मोब्रमनों के हृदय में शांब्रत उतारी, ब्रक उनका अपने दीन पर ब्रवश्वास और अलिक जम जाए;- क्ोंब्रक िरती
और आकाश के बि अल्लाह के ही हैं; और अल्लाह सब कु छ और सब गुणों को जानने वािा है।

ब्रक वह उन मदों और औरतों को उस जन्नत में प्रवेश दे , जहां बागों के नीिे नब्रदयां बहती हैं, सदा अल्लाह की आं खों के
सामने रहेने के लिये और वह उनके भीतर से बुराइयों को दूर कर दे ;- यह अल्लाह की दृब्रष्ट में यह सबसे बडी उपिस्लब्ध है
(मदों के लिये)।

फतह: 4-5

जब काब्ऱिरों ने अपने मन में छि और कपट भर लिया- अज्ञानता का क्रोि व कपट,- तो अल्लाह ने अपने रसूि और
मोब्रमनों पर ऊंघ भेज दी, और उन्ें स्व-ब्रनयं ब्रित रहने की कगार पर िे आया; और वे इसके पाि भी थे और इसके योग्य
भी। तथा अल्लाह प्रत्ेक बात को भिी-भांब्रत जानने वािा है।

फतह: 26

3. 'पाखं ब्रियों व बहुदे ववाब्रदयों को दं ि' पर

और यह ब्रक वह मुनाब्ऱिक़ (भीतर से इस्लाम को नकारने वािे) पुरुिों तथा लस्त्रयों एवं बहुदे ववादी लस्त्रयों व पुरुिों को दं ि
दे , जो अल्लाह के ब्रविय में बुरा ब्रविार रखते हैं। उन पर बुरी आपदा आएगी: उन पर अल्लाह का प्रकोप होगा। अल्लाह ने उन्ें
बुरा कहा है और उनके लिये दोजख तैयार रखा है। दोजख ही उनका गं तव्य है।

फतह: 6

4. 'अल्लाह के आनं द की प्रब्रतज्ञा' पर

हे नबी! जो तुम्हारे हाथ पर हाथ रखकर विन दे ते हैं, वो वास्तव में अल्लाह को विन देते हैं: अल्लाह का हाथ उनके
हाथों के ऊपर है: ब्रफर लजसने विन तोडा, तो वह अपने को ही हाब्रन पहुंिायेगा तथा जो वह विन पूरा करेगा जो उसने
अल्लाह से समझौते में ब्रदया है,- उसे अल्लाह शीघ्र ही बडा पुरस्कार देगा।

मोब्रमन जब उस वृि के नीिे रसूि के हाथ पर हाथ रखकर विन दे रहे थे तो अल्लाह उनसे प्रसन्न हुआ। जो कु छ उनके
मन में था, उसने जान लिया और इसलिये उनके मन को शांब्रत पहुंिायी तथा उन्ें बदिे में शीघ्र ब्रवजय का पुरस्कार
ब्रदया।

93
फतह: 10, 18

5. 'रसूि के सपने को पूरा करने' के ब्रविय में

ब्रनिय ही अल्लाह ने अपने रसूि के सपने को पूरा ब्रकया: अल्लाह ने िाहा, तो तुम ब्रनभाय होकर, लसर मुं डाये हुए तथा
बाि कतरवाते हुए मस्लजजदे हराम में अवश्य प्रवेश करोगे। क्ोंब्रक जो तुम नहीं जानते वह अल्लाह जानता है और
इसीलिये उसने तुम्हें शीघ्र ब्रवजय प्रदान की है।

फतहः 27

6. 'पब्रवि रसूि और उनके सालथयों' के सं बं ि में

मुह़म्मद अल्लाह का रसूि है: और जो िोग उसके साथ हैं, वे काब्ऱिरों के ब्रवरुद् कठोर हैं, ब्रकंतु आपस में एक-दूसरे के
प्रब्रत दया भाव रखने वािे िोग हैं। तुम उन्ें अल्लाह की कृ पा और आनं द पाने के लिये (इबादत में) नमाज पढ़ते हुए
दे खोगे। उनके मुख पर उसके लिह्न ब्रदखेंगे, उनकी नमाज के ििण (होते हुए) ब्रदखेंग।े उनकी ये ब्रवशेिता तौरात में है
तथा इं जीि में कु छ ऐसे है: मानों यह वो खेती हो, लजसमें पहिे मुिायम अंकुर फूटता है, ब्रफर इस अंकुर को बि देता है
लजससे वह कडा हो जाता है, ब्रफर वह (खेती) अपने तने पर खडी हो जाती है और ब्रकसान हब्रिात व आनं ब्रदत हो उठता
है। पररणामस्वरूप काब्रफरों में उसे देखकर जिन व िोभ उत्पन्न होने िगती है। अल्लाह ने उन्ें िमा व बडे पुरस्कार का
विन दे रखा है, जो उसमें ब्रवश्वास करते हैं और दीन के मागा पर ििते हैं।

फतह: 29

94
पररलशष्ट VII

तबूक पर कु रआनी सं दे श
1. जं ग िडने के आदे श की अवहेिना करने वािों के ब्रविय में

हे मोब्रमनो! तुम्हें हो क्ा हो गया है ब्रक जब तुमसे कहा जाए ब्रक अल्लाह के मागा में ब्रनकिो, तो िरती पर लिपककर िुपिाप
बैठ जाते हो? क्ा तुम्हारी प्राथब्रमकता आल़िरत (परिोक) की अपेिा यह सांसाररक जीवन हो गयी है? पर आल़िरत के जीवन
की तुिना में इस जीवन का सुख बहुत थोडा है। यब्रद तुम नहीं ब्रनकिोगे, तो तुम्हें अल्लाह दुः खदायी दं ि दे गा और तुम्हारे
स्थान पर दूसरे िोगों को िे आयेगा; तथा तुम अल्लाह की कोई हाब्रन भी नहीं कर सकोगे। क्ोंब्रक अल्लाह जो िाहे कर
सकता है।

तौबा: 38—39

2. 'अल्लाह की सहायता व सहयोग' पर

यब्रद तुम उस (नबी) की सहायता नहीं करोगे, तो कोई बात नहीं: अल्लाह ने ही वास्तव में उसकी सहायता की: जब
काब्रफरों ने उसे ब्रनकाि ब्रदया था: जब उसके पास के वि एक साथी रह गया था: वे दोनों खोह में थे और तब वह अपने
साथी से कह रहा था: भयभीत मत हो, अल्लाह हमारे साथ है: तब अल्लाह ने अपनी ओर से उसके मन पर शास्लन्त उतार
दी और उसे ऐसी फौज की सहायता भेजी लजसे तुमने नहीं दे खा तथा अल्लाह ने काब्रफरों की बात नीिी कर दी। अल्लाह
की बात ही ऊंिी रही: क्ोंब्रक अल्लाह प्रभुत्वशािी तत्वज्ञ है।

तौबा: 40

3. 'िडने से छू ट' पर

अल्लाह कृ पा करे! तुमने उन्ें छू ट क्ों दे दी, जब तक ब्रक तुम्हारे लिए जो सच्चे हैं, वे पहिान में न आ जाएं और जो
झूठे हैं उनका भी िररि उजागर हो जाए?

तौबा: 43

जो अल्लाह तथा कयामत में ब्रवश्वास करते हैं वे अपने िन व शरीर से जं ग अथाात लजहाद करने में (पीछे रह जाने की)
छू ट नहीं मांगते हैं। अल्लाह उन्ें भिी-भांब्रत जानता है, जो दीन पर ििते हैं।

तौबा: 44

उनसे छू ट वही मांगते हैं, जो अल्लाह और कयामत के ब्रदन पर ब्रवश्वास नहीं रखते और लजनका मन सं देह से भरा है। इस
कारण वे उिेडबुन में पडे हुए हैं।

तौबा: 45

यब्रद उनकी ब्रनकिने की मं शा होती तो वे उसके लिये अवश्य ही कु छ तैयारी करते; परन्तु अल्लाह को उनका जाना अब्रप्रय
था, अतः उसने उन्ें आिसी बना ब्रदया और उन्ें कहा गया ब्रक "उन्ीं के साथ बैठे रहो जो ब्रनलिय होकर बैठे हैं।"

तौबा: 46

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यब्रद वे तुम्हारे साथ ब्रनकिते भी, तो वे तुमको कोई बि नहीं देते, अब्रपतु तुम्हारे बीि रहकर इिर-उिर की बातें करते हुए
अव्यवस्था उत्पन्न करते और तुम्हारे बीि ब्रवद्रोह की भावना भरते। तुम्हारे बीि कु छ ऐसे िोग हैं जो उनकी बातों पर ध्यान
दे ते: परंतु अल्लाह सब जानता है ब्रक कौन गित कर रहा है।

तौबा: 47

वे इससे पहिे भी ब्रवद्रोह कराने का िियं ि रि िुके हैं और उनके बीि बातों में हेर-फेर कर िुके हैं। यहां तक ब्रक सत्
आ गया और अल्लाह का आदे श प्रभावी हो गया, तब भी उन्ें यह पि नहीं रहा। उनमें से बहुत से ऐसे भी हैं: जो कहते
हैं, ''मुझे जं ग न िडने की छू ट दो और इस सं कट में न िािो।'' क्ा वे पहिे ही सं कट में नहीं पडे हुए हैं? वास्तव में
काब्रफरों को िारों ओर से जहन्नुम घेरेगा।

तौबा: 48-49

जं ग न िडने पर उनको कोई दोि नहीं िगता, जो दुबाि हैं या रोगी हैं अथवा लजसके पास दीन के मागा में व्यय करने के
लिये कोई सं सािन नहीं है, ब्रकंतु यब्रद वे अल्लाह और उसके रसूि के प्रब्रत अपने कताव्यों को मानते रहें तो; दीन की राह
में ििने वािे ऐसे िोगों पर दोिारोपण का कोई आिार नहीं है। अल्लाह सदा िमाशीि, अब्रत दयावान है।

तौबा: 91

न ही उनको कोई दोि िगता है, जो तुम्हारे पास जब आयें ब्रक जं ग में जाने के लिये तुम उनकी सवारी की व्यवस्था कर
दो और तुम कहो ब्रक मेरे पास इतना नहीं ब्रक तुम्हारे लिए सवारी की व्यवस्था करूं तो वे यह सोिते हुए आं खों में दुख के
आं सू िेकर वापस हों ब्रक उनके पास सवारी का व्यय वहन करने के लिये सं सािन नहीं है।

तौबा: 92

दोि के वि उन पर है, जो िनी होने के बाद भी तुमसे सवारी की व्यवस्था न होने का बहाना बनाकर जं ग में जाने से छू ट
मांगते हैं। वे सोिते हैं ब्रक अपनी लस्त्रयों के साथ समय ब्रबतायेंग।े अल्लाह ने उनके मस्लस्तष्क को बं द कर ब्रदया है , लजससे
ब्रक वे सोि ही न पायें ब्रक जं ग िडने न जाकर उन्ोंने क्ा खो ब्रदया।

तौबा: 93

4. 'जो जं ग िडने से बिे, उनके बारे में अल्लाह के ब्रनणाय' पर

वे तबूक के अलभयान में पीछे रह गये थे, अल्लाह के रसूि के पीछे अपनी ब्रनलियता पर आनं ब्रदत हो रहे थे। वे अपने
िन और प्राण के साथ आगे बढ़कर अल्लाह की राह में जं ग करने से दूर भागते थे। उन्ोंने कहा ब्रक इस तपती गमी में न
ब्रनकिो। उनसे कह दो, ''यब्रद वे समझ सकें तो समझ िें ब्रक दोजख की आग की गमी इससे भीिण है।'' कु छ समय
उन्ें हंस िेने दो, ब्रफर तो सदा के लिये उन्ें रोना ही है। जो वे कर रहे हैं, उसके बदिे उन्ें आं सू ही ब्रमिने िाब्रहए।

तौबा: 81-82

हे नबी! यब्रद अल्लाह इन (दुब्रविाग्रस्त िोगों को) के ब्रकसी ब्रगरोह के पास (तबूक से) वापस िाये और वे तुमसे (ब्रकसी
दूसरे जं ग में) जाने की अनुमब्रत मांगें, तो तुम कह देना, ''अब तुम मेरे साथ कभी नहीं ब्रनकिोगे और न मेरे साथ ब्रकसी
शिु से जं ग कर सकोगे। क्ोंब्रक पहिे अवसर पर तुम्हें ब्रनठल्ले बैठे रहना ब्रप्रय था तो अब पीछे ब्रनठल्ले बैठे िोगों के
साथ ही पडे रहो।"

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तौबा: 83

(हे नबी!) आप उनमें से कोई मर जाए, तो उसके जनाज़े की नमाज़ कभी न पढ़ो और न उसकी क़ि पर खडे हों। क्ोंब्रक
उन्ोंने अल्लाह और उसके रसूि को नकारा है और अवज्ञाकारी रहते हुए मरे हैं।

तौबा: 84

न ही उनके िन अथवा सं तानों से प्रभाब्रवत हो। अल्लाह तो िाहता है ब्रक इनके द्वारा उन्ें इसी सं सार में दं ि दे और वे
काब्रफर के रूप में ही मरें।

तौबा: 85

हे नबी! जब कोई सूरा उतारी गयी ब्रक अल्लाह पर ब्रवश्वास िाओ तथा उसके रसूि के साथ होकर लजहाद (जं ग) करो, तो
उन (मुनाब्ऱिक़ों) में से िनी व प्रभावशालियों ने तुमसे जं ग में न जाने से छू ट मांगी और कहा, ''तुम हमें यहीं रहने दो।
हम उनके साथ ही बैठे रहेंगे जो घर में बैठे हैं।'' जो पीछे घरों में बैठे रह गये थे, वे अपनी लस्त्रयों के साथ आनं द करना
िाहते थे। उनके बुब्रद् हर िी गयी है, लजससे वे अपना अपराि नहीं समझ रहे।

तौबा: 86—87

5. 'मोब्रमनों को अल्लाह के विन' पर

ब्रनस्सं दे ह अल्लाह ने मोब्रमनों के प्राण व उनके िन को उन्ें जन्नत दे ने के बदिे क्रय कर लिया है। वे अल्लाह के मागा में
जं ग करते हैं, वे मारते तथा मरते हैं। ये अल्लाह पर सत् विन है, तौरात, इंजीि और कु रआन में। अल्लाह से बढ़कर
अपना विन पूरा करने वािा कौन हो सकता है? अतः , तुमने अल्लाह से जो सौदा ब्रकया है, उस पर प्रसन्न हो जाओ,
क्ोंब्रक यह तुम्हारी सबसे बडी उपिस्लब्ध है।

तौबा: 111

97
अध्याय 10

प्रमुख ब्रनष्किों का सारांश


मक्का में पब्रवि रसूि के प्रथम बारह विों के अलभयान की अवलि में मुसिमान न तो एक उम्मा (समुदाय) घोब्रित ब्रकये गये और न ही
उन्ें जं ग का आश्रय िेने की अनुमब्रत ब्रमिी। उनके मदीना प्रवास के पिात अल्लाह के सं देश ने उन्ें एक उम्मा घोब्रित ब्रकया और येरूशिम
स्लस्थत काबा के स्थान पर मक्का में एक नया काबा ब्रनिााररत ब्रकया गया। एक उम्मा के रूप में उद्घोिणा के पिात शीघ्र ही मोब्रमनों को मूब्रतापूजकों
के ब्रवरुद् हलथयार उठाने की अनुमब्रत ब्रमिी।

उम्मा को सौंपे गये ब्रमशन ने अपने अनुशोिन, न्याय, सत्ब्रनष्ठा, व्यवहाररकता और सावाभौब्रमकता पर बि ब्रदया। इसने नये राज्य की
राजनीब्रतक, सामालजक, आलथाक व सैन्य लसद्ांतों की नींव िािी तथा अपनी नीब्रत व रणनीब्रत के आिार का गठन ब्रकया। इसने राज्य नीब्रत के
सं बं ि में अल्लाह की वाणी की श्रृखिा आनी प्रारं भ हो गयी। जं ग के लसद्ांत के रूप में पब्रवि कु रआन ने मुसिमानों को जं ग के उद्दे श्य व िक्ष्य,
इसकी प्रकृ ब्रत, िािलणकताएं , आयाम व नीब्रत-लसद्ांत प्रदान ब्रकये। कु रआन ने फौजी रणनीब्रतक की अपनी अविारणा भी बतायी तथा जं ग
सं िािन के लिये इसके अपने स्पष्ट ब्रनयमों व लसद्ांतों की नींव िािी।

एिविा मीि अिे ने लिखा है, ''युद् ईश्वर का काया नहीं है। िोग, नेतृत्व और राष्टर जो करते हैं अथवा जो कर पाने में ब्रवफि रहते हैं
उनमें से युद् जन्म िेता है।" मीि का शोि प्रबं ि पूणात: इस ब्रविय पर पारं पररक लिंतन का प्रब्रतब्रनलित्व करता है। यद्यब्रप जं ग पर कु रआन के
ब्रविार ब्रनतांत लभन्न है। कु रआन के अनुसार जं ग का आरंभ ही अल्लाह के उद्दे श्यों के लिये होता है। इस प्रकार जं ग आरंभ से अंत तक 'अल्लाह
की वाणी' से ब्रनयं ब्रित व ब्रनिााररत होता है।

जं ग पर कु रआन का लसद्ांत पूणातया सम्पूणा कु रआन की ब्रविारिारा से जुडा है। यही ब्रविारिारा इस लसद्ांत की कायाब्रवलि एवं
अनुप्रयोग के लिये वातावरण व दशाएं प्रदान करती है। ये ब्रनलित दशाएं व वातावरण ब्रमिे, तो यह लसद्ांत अत्ं त प्रभावकारी है , जबब्रक इनके
अभाव में इस लसद्ांत की तीक्ष्णता व बि नष्ट होने िगता है और कु ि-ब्रमिाकर कुं द हो जाता है।

जं ग पर कु रआन का दृब्रष्टकोण न तो सं कु लित है और न ही एक पिीय। इसके उद्दे श्य व प्रभाव समस्त मानव जाब्रत के लिये हैं।
कु रआन के अनुसार दमन को ब्रमटाने और न्याय व शांब्रत हेतु तात्कालिक दशा की प्राब्रि के लिये जं ग छे डा जाता है। यह पब्रवि पुस्तक इस िक्ष्य
की प्राब्रि के लिये व्यवहाररक व करणीय कायापद्ब्रत प्रदान करती है। यह कायापद्ब्रत उदार एवं ब्रवस्तृत है। यह प्रब्रतद्वंद्वी को शांब्रत बनाये रखने में
सहयोग करने के लिये अलिकतम सं भावना प्रदान करता है। जब जं ग की अनुमब्रत ब्रमिे, तो इसका िक्ष्य मानव गररमा व मूल्यों का सं रिण व
प्रोत्साहन करना होता है, न ब्रक इन्ें नष्ट ब्रकया जाना।

सम्पूणा रणनीब्रत की कु रआन की अविारणा 'लजहाद' पूणा राष्टरीय सामर्थ्ा की तैयारी व प्रयोग िाहती है और फौजी उपकरण इसके
तत्वों में से एक है। समग्र रणनीब्रत के एक घटक के रूप में इस फौजी रणनीब्रत का िक्ष्य जं ग की तैयारी स्तर से ही शिु को आतं ब्रकत करने तथा
शिु द्वारा आतं ब्रकत होने से बिाव के प्रभावकारी उपाय करना होता है। आदशा स्लस्थब्रतयों में लजहाद प्रत्ि पररणाम को जन्म देकर शिु पर अपना
ब्रनणाय थोपने की स्लस्थब्रत िा सकता है। जहां ऐसा नहीं होता है , फौजी रणनीब्रत को आगे िाकर तैयारी के स्तर से ही जीत सुब्रनलित करने का
िक्ष्य होना िाब्रहए। यब्रद इस अवसर से भी िूक जाएं , तो आमने-सामने की िडाई के समय शिु दि में आतं क भर देना िाब्रहए। यद्यब्रप जब
सभी स्तरों पर फौजी रणनीब्रत स्वतं ि रूप में नहीं, अब्रपतु समग्र रणनीब्रत अथाात लजहाद के अलभन्न भाग के रूप में काया करेगी, तो ही अपना
ब्रनब्रदाष्ट उद्दे श्य प्राि कर सके गी। जं ग का कु रआनी लसद्ांत अपने नैब्रतक व मानवीय तत्वों में अत्ं त समृद् है। कु रआन जं ग के समय अल्लाह द्वारा
ब्रनलित की गयी सीमा के उल्लं घन को ब्रनब्रिद् करता है।

यह अज्ञानता के ब्रदनों में प्रिलित बबारता व अमानवीय व्यवहार एवं जं ग की पद्ब्रतयों को प्रब्रतबं लित करती है । यद्यब्रप, अपने शिुओ ं
से बातिीत के समय समानता व पारस्पररकता की ब्रवलि का अनुसरण करने की अनुमब्रत है , पर मोब्रमनों को सदा सं यम व सब्रहष्णुता रखने का
परामशा ब्रदया गया है!

98
अपने वैि उद्दे श्यों व सीमाओं के भीतर कु रआन जं ग को बच्चों का खेि नहीं मानती है। इसमें सम्पूणा जं ग की स्पष्ट अविारणा दी
गयी है। इसमें कहा गया है ब्रक राष्टर और इसके व्यब्रक्त दोनों को पूणा जं ग िडना िाब्रहए। इसका अथा यह हुआ ब्रक राष्टर और व्यब्रक्त दोनों को
अपनी िाब्रमाक, नैब्रतक और भौब्रतक सं सािनों से पूणा जं ग में सस्लम्मलित होना िाब्रहए। पुस्तक पब्रवि कु रआन जं ग की तैयारी पर अलिकतम बि
देती है। यह िाहती है ब्रक हम स्वयं को जं ग के लिये पूरी सामर्थ्ा के साथ तैयार करें। पूरी सामर्थ्ा के साथ तैयारी का परीिण शिु के मन में
आतं क भरने की हमारी िमता में ब्रनब्रहत होता है।

शिु के मन में आतं क भरने अथवा शिु द्वारा हमें आतं ब्रकत करने के प्रयासों को ब्रवफि करने की सामर्थ्ा अंतत: हमारे दीन की
ताकत से जुडा हुआ होता है। समग्रता में व्यवहार में िायी गयी जं ग के कु रआनी आयाम ब्रकसी भी प्रकार के मनोवैज्ञाब्रनक ब्रवकार से मुसिमान
फौज को सम्पूणा सुरिा प्रदान करता है। इसके ब्रवपरीत दीन में कमजोर ब्रवश्वास शिु को हमारे ब्रवरुद् सफि मनोवैज्ञाब्रनक प्रहार करने का अवसर
प्रदान करता है। यह हमारे दीन के ब्रवश्वास की ताकत और हमारे शिु की आस्था की दुबािता पर ब्रनभार करता है ब्रक हम अपने शिु के मन में
आतं क भरने के लिये सुब्रनयोलजत योजना व कारा वाई की पहि कर सकें ।

जं ग हमारे सभी व्यब्रक्तयों, वस्तुओ,ं सामर्थ्ा और प्रिान के साथ िडी जानी िाब्रहए। जं ग से सं बं लित ब्रनणाय गं भीर व व्यापक परामशा
के पिात लिये जाने िाब्रहए। एक बार िक्ष्य ब्रनिााररत कर लिया जाए तो उसे सतत प्रयास व सं घिा, िैया, दृढ़ता व ब्रनरंतरता, ब्रविारों व कायों में
एकरूपता, त्ाग व समपाण, इच्छापूवाक आज्ञापािन व अनुशासन, आक्रामकता व प्रभुत्व और अल्लाह की इबादत व उसकी इच्छा के प्रब्रत ब्रनष्ठा
के साथ उसे सवोच्च रखा जाना िाब्रहए और उसे प्राि करने का प्रयास ब्रकया जाना िाब्रहए। दीन के मागा में ब्रकये जाने वािे जं ग में अल्लाह का
सहयोग व सहायता ब्रनब्रहत तो होती है , पर इसके लिये आवश्यक होता है ब्रक हम जं ग छे डने के लिये अल्लाह द्वारा ब्रनलित मानकों पर खरे उतरें।

अल्लाह के वि उनकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। वह ब्रनत् के ब्रनयम के रूप में ब्रकसी जन समुदाय पर
अपनी असीम कृ पा नहीं बरसाता है। जं ग लजतना ही शिु पर अपनी इच्छा थोपने का सािन है , उतना ही यह हमारी अब्रविलित आस्था और
समपाण का प्रमाण देना भी होता है।

जं ग पर कु रआन के लसद्ांत अपनी आिारभूत अविारणा में ईश्वरीय हैं, परंतु ब्रवकासक्रम और अनुप्रयोग में इसकी प्रकृ ब्रत मानवीय है
तथा इसमें िर व अिर दोनों कारक हैं। इस लसद्ांत का मुख्य गुण इसके 'स्लस्थर तत्व' में है, जो बदिे में इसके 'पररवतानशीि तत्वों' के ब्रवकास
व अनुप्रयोग के लिये ब्रनदे श व मागादशान उपिब्ध कराता है। आिुब्रनक सैन्य ब्रविार में अंतब्रनाब्रहत कमी यह है ब्रक यब्रद इसमें अपने लसद्ांत व
दशान को आिार देने के लिये कोई स्लस्थर तत्व है भी तो वह न के बराबर है। यहां तक ब्रक आिुब्रनक सैन्य ब्रविार का प्रमुख तत्व यु द् के लसद्ांतों
में भी स्लस्थरता का अभाव है। अपने ब्रनयत गुणों के अिीन कु रआनी लसद्ांत युद् के आिुब्रनक लसद्ांतों के ब्रवलभन्न लसद्ांतों की बडी मािा ग्रहण
कर सकती है।

जं ग का एकमाि स्लस्थर व अपररवतानशीि कारक इसका मानवीय पि है और कु रआन के स्लस्थर तत्व इसी के िारों ओर गढ़े गये हैं।
जं ग पर कु रआन के लसद्ांत िड रहे प्रत्ेक व्यब्रक्त, नेता अथवा फौजी पर इतनी कठोरता व प्रमुखता से प्रभावी होते हैं ब्रक वह प्रभावकारी ढं ग से
जं ग के सभी ज्ञान को प्राि और ग्रहण कर सके तथा व्यवहार में िा सके । यह व्यब्रक्त को जं ग में ब्रकसी भी प्रकार के सं कट या आपात स्लस्थब्रत से
ब्रनपटने के लिये शारीररक, मानलसक व मजहबी रूप से प्रलशलित व तैयार करता है। यह पुस्तक कु रआन िाहती है ब्रक ज्ञान और मानव व्यब्रक्तत्व
एक-साथ फिे-फूिें और इस प्रकार यह दोनों के बीि एक आनं दपूणा व तारतम्य सं तुिन बनाती है।

पब्रवि रसूि (उन पर शांब्रत हो) द्वारा प्रारंभ ब्रकये गये या िडे गये फौजी अलभयान जं ग की कु रआन आिाररत किा सीखने के लिये
'सं स्था स्वरूप' हैं। समय के साथ िूब्रमि होने की अपेिा, हमारे प्रलशिण एवं मानलसक व िाब्रमाक ब्रवकास के लिये इसका व्यवहाररक मूल्य बढ़ा
है। हमें यह भ्रम नहीं पािना िाब्रहए ब्रक िूं ब्रक ये जं गें कम सं ख्या के साथ िडी गयीं और इसमें पुरातन प्रकृ ब्रत के हलथयार प्रयोग ब्रकये गये, तो वे
आज के युग में प्रासं ब्रगक नहीं है।

इन जं गों में से प्रत्ेक अलभयान में ऐसे जब्रटि ब्रनणाय व कारा वाइयां दांव पर िगी थीं, जो उससे पूवा मानव जाब्रत के समि कदालित
ही आयी हों। पुस्तक में उनके ब्रविय में ब्रकये गये अपेिाकृ त सीब्रमत अध्ययन में से हमने ताब्रकाक अनुमान ब्रनकािा है ब्रक फौजी , मजहबी और
कू टनब्रयक सािनों के समलन्वत व एकीकृ त प्रयोग से राजनीब्रतक िक्ष्य प्राि ब्रकया जाना िाब्रहए। छोटे शिुओ ं से कू टनब्रयक ढं ग से ब्रनपटा जाना

99
िाब्रहए और बडे शिुओ ं से फौजी ताकत से ब्रनपटा जाना िाब्रहए। जं ग की योजना और सं िािन में अलिकतम ब्रनणाय की िारा ग्रहण करना बहुिा
बडा िाभ देता है। छोटी फौज को अपनी भू-राजनैब्रतक व भू-रणनीब्रतक स्लस्थब्रत का बुब्रद्मत्तापूणा प्रयोग करते हुए उन नीब्रतयों से अलिक श्रे ष्ठ
नीब्रत ग्रहण करनी िाब्रहए, जो उससे बडे शिु के पास हों। ब्रकसी भी िड रही फौज के लिये दीन में ब्रवश्वास मुख्य व सवाालिक बडी ताकत है।

अतः यहां जो जं ग का लसद्ांत है वह अपने सभी आयामों व पिों में सबसे उत्तम व ब्रवलशष्ट है। इसका उद्दे श्य अल्लाह का उद्दे श्य है,
यह ब्रनबािों, सताये गये, अत्ािार ब्रकये गये एवं पीब्रडत िोगों का उद्दे श्य है। इसका उद्दे श्य न्याय , शांब्रत व दीन में ब्रवश्वास स्थाब्रपत करना है।
यह ऐसा उद्दे श्य है, जो सवोच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना, सं रिण व प्रोत्साहन को सुब्रनलित करता है। इसके आयाम मानव और उसके परम
गं तव्य के ब्रनमााण के पीछे के उद्दे श्य को ध्यान में रखकर तैयार ब्रकये गये हैं। ये आयाम जं ग के खतरे पर ब्रवजय पाने के लिये सुसस्लित करते हैं ।
इसमें जं ग में सं ब्रन्नब्रहत मानवीय समस्याओं से ब्रनपटने के लिये आिार सं ब्रहता है। यह सं ब्रहता न के वि अपने नैब्रतक मूल्यों में अत्ं त समृद् है,
अब्रपतु इसका अनुपािन अल्लाह के आदेश में सुब्रनलित ब्रकया गया है। यह जं ग की एक ऐसी रणनीब्रत प्रदान करता है , जो शिु के ब्रवश्वास को
नष्ट करने तथा उसके शारीररक व मानलसक िमता को पूणात: प्रभावहीन करने वािा होता है। इस ओर यह जं ग के सं िािन के लिये अपने ब्रनयम
व लसद्ांत प्रस्तुत करता है।

जं ग पर कु रआन के लसद्ांत की असीब्रमत ताकत और कृ पा हम पर बरसे, इसके लिये यह हम पर के वि और के वि यही बाध्यता


िािती है ब्रक हम अपनी ओर से इसको सम्पूणाता में स्वीकार करें और व्यवहार में िायें।

100
कु रआन के सं दभा-ब्रवियवार
पररिय

1. बकरा: 2-5,7. 16.23

2. माइदा: 17-18

3. ब्रहज़्र:9

4. नहि: 89

5. अहजाब: 2, 45-46

ऐब्रतहालसक पररप्रेक्ष्य

1. बकरा: 143-144, 149-150

2. आिे-इमरान: 110

3. रूम: 2-4

4. ़िीि: 1-5

जं ग के कारण

1. बकरा: 190-191, 217, 244

2. ब्रनसा: 75-76, 84

3. माइदा: 35, 67

4. अनाम: 151

5. अन्फाि: 34

6. तौबा: 13

7. हज: 39-418. फुरक़ान: 68-69

9. मोहम्मद: 7

जं ग का उद्दे श्य

1. बकरा: 27, 40, 192-193

2. ब्रनसा: 88-91

3. अन्फाि: 39-40, 56-58, 61-62

4. तौबा: 1-5. 7-12, 17-18, 28-29

जं ग की प्रकृ ब्रत व आयाम

1. बकरा: 28, 154, 156-157,

101
2. आिे-इमरान: 141-142, 156-157

3. ब्रनसा: 74, 77, 95-96

4. अनाम: 162

5. तौबा: 24, 38-39, 81-84,

6. हज: 58

7. अहजाब: 16

8. मोहम्मद: 7

9. फतह: 22-23

10.सटफात: 10-13

जं ग के नीब्रत-लसद्ांत

1. बकरा: 190, 191, 194

2. मोहम्मद: 4

जं ग की रणनीब्रत

1. आिे-इमरान: 124-126, 151, 153-154

2. अन्फाि: 9-12, 59-60

3. तौबा: 25-26

4. अहजाब: 26-27

5. फतह: 4, 18

जं ग का सं िािन

1. बकरा: 186, 245

2. आिे-इमरान: 139, 140, 146, 159, 172-173, 195, 200

3. ब्रनसा: 71, 102, 104

4. अन्फाि: 11, 15-16, 45-46, 63, 65, 67

5. तौबा: 5, 41, 123

6. मोहम्मद: 4, 35

7. फतह: 29

8. सटफात: 4

कु रआन के फौजी ब्रविार का ब्रवस्तार

1. आिे-इमरान: 122-127, 139-149, 151-155, 157-160, 165-166, 169-170, 172-173, 179

102
2. अन्फाि: 1, 5-12, 17-19, 39-40, 42-46, 48, 56-69, 73

3. तौबा: 38-40, 43-49, 81-87, 91-93, 111

4. अहजाब: 9-27

5. फतह: 1-6, 10, 18 26-27, 28

103
कु रआन के सं दभा- सूरावार
बकरा

1. पररिय: 2-5,7,16,23

2. ऐब्रतहालसक पररप्रेक्ष्य: 143-144, 149-150

3. जं ग के कारण: 190-191.217,244

4. जं ग का उद्दे श्य: 27,40, 192-193

5. जं ग की प्रकृ ब्रत एवं आयाम: 28, 154, 156-157, 214, 216, 218

6. जं ग के नीब्रत-लसद्ांत: 190, 191, 194

7. जं ग का सं िािन: 186, 245

आिे इमरान

1. ऐब्रतहालसक पररप्रेक्ष्य: 110

2. जं ग की प्रकृ ब्रत एवं आयाम:141-142, 156-157, 160, 169-17

3. जं ग की रणनीब्रत: 124-126; 151, 153-154

4. जं ग का सं िािन: 139-140, 146, 159, 172-173, 195, 200

5. कु रआन के ब्रविार का अनुप्रयोग: 122-127, 139-149, 151-155, 157-160, 165-166, 169-170, 172-173, 179

ब्रनसा

1. जं ग के कारण: 75-76, 84

2. जं ग का उद्दे श्य: 88-91

3. जं ग की प्रकृ ब्रत एवं आयाम: 74, 77, 95-96

4. जं ग का सं िािन: 71, 102, 104

माइदा

1. पररिय: 17-18

2. जं ग के कारण: 35, 67

अनाम

1. जं ग के कारण: 151

2. जं ग की प्रकृ ब्रत एवं आयाम: 162

अन्फाि

104
1. जं ग के कारण: 34

2. जं ग का उद्दे श्य: 39-40, 56-58, 61-62

3. जं ग की रणनीब्रत: 9-12, 59-60

4. जं ग का सं िािन: 11, 15-6, 45-46, 63, 65, 67

5. कु रआन के ब्रविार का अनुप्रयोग: 1, 5-12, 17-19, 39-40, 42-46, 48, 56-69, 73

तौबा

1. जं ग के कारण: 13

2. जं ग का उद्दे श्य: 1-5, 7-12, 17-18, 28-29

3. जं ग की प्रकृ ब्रत व आयाम: 24, 38-39, 81-84, 111

4. जं ग की रणनीब्रत: 25-26

5. जं ग का सं िािन: 5, 41, 123

6. कु रआनी फौजी ब्रविार का अनुप्रयोग: 38-40, 43-49, 81-87, 91-93, 111

हज

1. पररिय: 9

नहि

1. पररिय: 89

हज

1. जं ग के कारण: 39-41

2. जं ग की प्रकृ ब्रत व आयाम: 58

फुरकान

1. जं ग के कारण: 68-69

रूम

1. ऐब्रतहालसक पररप्रेक्ष्य: 2-4

अहजाब

1. पररिय: 21, 45-46

2. जं ग की प्रकृ ब्रत व आयाम: 16

3. जं ग के लिये रणनीब्रत: 26-27

105
4. कु रआन के फौजी ब्रविार का अनुप्रयोग: 9-27

मोहम्मद

1. जं ग के कारण: 7

2. जं ग की प्रकृ ब्रत व आयाम: 7

3. जं ग का नीब्रत-लसद्ांत: 4

4. जं ग का सं िािन: 4, 35

फतह

1. जं ग की प्रकृ ब्रत व आयाम: 22-23

2. जं ग के लिये रणनीब्रत: 4, 18

3. जं ग का सं िािन: 29

4. कु रआनी फौजी ब्रविार का अनुप्रयोग: 1-6, 10, 18, 26-27, 29

सटफात

1. जं ग की प्रकृ ब्रत व आयाम: 10-13

2. जं ग का सं िािन: 4

फीि

1. ऐब्रतहालसक पररप्रेक्ष्य: 1-5

106
कु रआन में जं ग की अविारणा

कािक्रम
रसूि का जन्म 570 ईस्वी
मक्का पर अिाहम का आक्रमण 570 ईस्वी
(हाथी का विा)
पब्रवि रसूि के ब्रमशन की घोिणा (नब्बुवात) 610 ईस्वी
हरकु लिस का रोम के सम्राट के रूप में घोिणा 610 ईस्वी
रोमन साम्राज्य का फारस पर आक्रमण 610 ईस्वी
फारस का रोम पर ब्रवजय
क) एं ब्रटऑक 611 ईस्वी
ख) अिेप्पो 611 ईस्वी
ग) दमाकस 611 ईस्वी
घ) येरूशिम 615 ईस्वी
ङ) इलजप्ट 616 ईस्वी
ि) ब्रिपोिी 616 ईस्वी
छ) एलशया माइनर 616 ईस्वी
फारस के ब्रवरुद् रोम का प्रब्रत-आक्रमण- 622 ईस्वी
रोमन की फारस पर जीत
क) टरे िलजजान्ड 622 ईस्वी
ख) लसलिलशयन गेट्स 622 ईस्वी
ग) कै प्पािोलसया 623 ईस्वी
घ) लसलिलशया 624 ईस्वी
ङ) काजब्रवन 624 ईस्वी
ि) गं जका 625 ईस्वी
छ) ब्रननेव 627 ईस्वी

खुसरो परवेज की हत्ा ... 627 ईस्वी


फारस और रोम के शांब्रत समझौता... 628 ईस्वी
मदीना से मुसिमानों का ब्रनकि जाना (ब्रहजरा) ... 622 ईस्वी
उम्मा की घोिणा... 622 ईस्वी
िडने के लिये अल्लाह के आदे श का आना... 622 ईस्वी
बद्र की जं ग... 624 ईस्वी
उहुद की जं ग.. 625 ईस्वी
मदीना का घेराव... 627 ईस्वी
हुदैब्रबया की सं लि... 628 ईस्वी
खैबर की ब्रवजय (फरवरी)... 628 ईस्वी
मक्का की तीथायािा (जून)... 629 ईस्वी
मुता की जं ग (फरवरी)... 629 ईस्वी
मक्का पर ब्रवजय (लसतम्बर)... 630 ईस्वी
हुनैन की जं ग (जनवरी)... 630 ईस्वी
107
कु रआन में जं ग की अविारणा

तबूक का अलभयान (अप्रैि)... 630 ईस्वी


पब्रवि रसूि की मृत्ु (लसतम्बर)... 632 ईस्वी

सं दभाग्रंथ-सूिी

1. अिी सईद अमीर। एक शॉटा ब्रहस्टर ी आफ द सरासेंस। िं दन। मैकब्रमिन पस्लब्लशसा, 1955।

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3. बाशू-मेि मोहम्मद अहमद। द ग्रेट बैटि आफ बद्र।

108
कु रआन में जं ग की अविारणा

4. बोफ्र, आं द्रे। ऐन इं टरोिक्शन टू स्टरे टेजी िं दन, फैबर एं ि फैबर 1972।

5. बोफ्र, आं द्रे। स्टरै टजी आफ िेटरेंस, िं दन, फैबर एं ि फैबर 1972।

6. बोफ्र, आं द्रे। स्टरै टजी आफ ऐक्शन, िं दन, फैबर एं ि फैबर 1967।

7. ब्लेनी, जेफ्री। द काजेज आफ वार। िं दन, द मैकब्रमिन प्रेस लिब्रमटे ि,1973।

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10. क्लाजब्रवट्ज, कािा वॉन। आन वार। िं दन, राउटिेज एं ि के गन पॉि, 1968।

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109
कु रआन में जं ग की अविारणा

ु । सेिेक्ट्ेि ब्रमलिटरी राइब्रटग्ं स आफ माओत्सेतं ग


26. माओत्सेतं ग ु । पीब्रकंग, फॉरेन िैंग्वेज प्रेस, 1968।

27. मॉगेन्थाउ, हैन्स. जे.। पॉलिब्रटक्स अमं ग नेशंस। न्यूयाका , अल्फ्रेि, ए. नोफ, 1948।

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