MITHILA RATN CHITRAKALA FESTIVAL-KATHA MUSIC Compressed-65-92

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भालिन्र झा, ए.टी.डी., िी.ए.

, (छिवशास्त्र), मुम्िईसँ थिएटर कलामे वडप्लोमा। मैथिलीक छविररक्ि वहन्िी, मराठी,


छग्रेजी आऽ गुजरािीमे वनषणाि। १९७४ ई.सँ मराठी आऽ वहन्िी थिएटरमे वनिे शक। महाराष्ट्र राज्य उपामध १९८६
आऽ १९९९ मे। थिएटर िकवशॉप पर छवििीय भाषण आऽ नामी संस्थानक नाटक प्रवियोवगिाक हेिु न्यायाधीश।
आइ.एन.टी. केर लेल नाटक “सीिा” केर वनिे शन। “िासुिेि संगवि” आइ.एन.टी.क लोक कलाक शोध आऽ
प्रिशवनसँ जुड़ल थि आऽ नाट्यशालासँ जुड़ल थि विकलांग िाल लेल थिएटरसँ। वनम्न टी.िी. मीवडयामे
रिनात्मक वनिे शक रूपेँ कायव- आभलमया (मराठी िै वनक धारािावहक ६० एपीसोड), आकाश (वहन्िी, जी.टी.िी.),
जीिन संध्या (मराठी), सफलिा (रजस्थानी), पोथलसनामा (महाराष्ट्र शासनक लेल), मुन्गी उिाली आकाशी
(मराठी), जय गणेश (मराठी), कच्ची-सौन्धी (वहन्िी डी.डी.), यात्रा (मराठी), धनाजी नाना िौधरी (महाराष्ट्र
शासनक लेल), श्री पी.के छना पादटल (मराठी), स्ियम्िर (मराठी), वफर नहीं कभी नहीं( नशा-सुधारपर), आहट
(एड् सपर), िैंगन राजा (िच्चाक लेल कठपुिली शो), मेरा िे श महान (िच्चाक लेल कठपुिली शो), झूठा
पालिू(िच्चाक लेल कठपुिली शो),

टी.िी. नाटक- िन्िी (लेखक- राजीि जोशी), शिकिली (लेखक- स्ि. उत्पल ित्त), थित्रकाठी (लेखक- स्ि. मनोहर
िाकोडे), हृियिी गोस्िा (लेखक- राजीि जोशी), हद्दापार (लेखक- एह.एम.मराठे ), िालन (लेखक- छज्ञाि)।

लेखन-

िी ल िेरायल मराठी एकांकी, ससिहािलोकन (मराठी सावहत्यक १५० िषव), आकाश (जी.टी.िी.क धारािावहकक
३० एपीसोड), जीिन स्या( मराठी साप्िावहक, डी.डी, मुम्िई), धनाजी नाना िौधरी (मराठी), स्ियम्िर (मराठी),
वफर नहीं कभी नहीं( वहन्िी), आहट (वहन्िी), यात्रा ( मराठी सीरयल), मयूरपन्ख ( मराठी िाल-धारािावहक),
हेल्थकेछर इन २०० ए.डी.) (डी.डी.)।

थिएटर िकवशॉप- कला विभाग, महाराष्ट्र सरकार, छन्खल भारिीय मराठी नाट्य पररषि, िभक्षण-मध्य क्षेत्र कला
केन्र, नागपुर, स्ि. गजानन जहागीरिारक प्राध्यापकत्िमे िन्राक वफल्मक लेल छभभनय स्कूल, उस्िाि छमजि
छली खानक दू टा संगीि प्रिशवन।

श्री भालिन्र झा एखन फ़्री-लान्स लेखक-वनिे शकक रूपमे कायवरि थि।


डॉ. िे िशंकर निीन (१९६२- ), ओ ना मा सी (गद्य-पद्य ममभश्रि वहन्िी-मैथिलीक प्रारल्म्भक सजवना), िानन-काजर
(मैथिली कवििा संग्रह), आधुवनक (मैथिली) सावहत्यक पररदृश्य, गीविकाव्य के रूप में विद्यापवि पिािली,
राजकमल िौधरी का रिनाकमव (आलोिना), जमाना ििल गया, सोना िािू का यार, पहिान (वहन्िी कहानी),
छभभधा (वहन्िी कवििा-संग्रह), हािी िलए िजार (किा-संग्रह)।
सम्पािन: प्रविवनमध कहावनयाँ: राजकमल िौधरी, छन्ननस्नान एिं छन्य उपन्यास (राजकमल िौधरी), पत्थर के
नीिे ििे हुए हाि (राजकमल की कहावनयाँ), विथित्रा (राजकमल िौधरी की छप्रकाथशि कवििाएँ), साँझक गा
(राजकमल िौधरी की मैथिली कहावनयाँ), राजकमल िौधरी की िुनी हुई कहावनयाँ, िन्ि कमरे में कब्रगाह
(राजकमल की कहावनयाँ), शियात्रा के िाि िे हशुन्द्द्ध, ऑवडट ररपोटव (राजकमल िौधरी की कवििाएँ), िफव और
सफेि कब्र पर एक फूल, उत्तर आधुवनकिा कु वििार, सद्भाि ममशन (पवत्रका)क वकथ छंकक सम्पािन,
उिाहरण (मैथिली किा संग्रह संपािन)।
सम्प्रवि नेशनल िुक ट्रस्टमे सम्पािक।
िारानन्ि वियोगी (१९६६- ), मवहषी, सहरसामे जन्म। मैथिलीक समिव कवि, किाकार आऽ समालोिक। वपिा श्री
िरी महिो, मािा श्रीमवि ििामी िे िी। संस्कृि सावहत्यमे आिायव , एम.ए., पी.एि.डी. आदि कयलाक िाि केन्रीय
विद्यालयमे छध्यापक भेलाह। सम्प्रवि विहार प्राशासवनक सेिामे थि। १९७९ ई.मे पवहल रिना “ममथिला
ममवहर”मे प्रकाथशि भेलन्न्ह। िावहसँ पवहने संगी लोकवन वहनकर एकटा कवििा संग्रह ावप िुकल लाह। पवहल
पोिी छपन युद्धक साक्ष्य (गजल संग्रह) १९९१ मे प्रकाथशि। छन्य पुस्िक हस्िक्षेप (कवििा-संग्रह), छविक्रमण
(किा-संग्रह), थशलालेख(लघुकिा संग्रह), कमवधारय। रमेशक संग राजकमल िौधरीक किाकृवि एकटा िंपाकली
एकटा विषधर कऽ संपािन कयलवन। स्िािन््योत्तर मैथिली किा संग्रह िे थसल ियनाक संपािन। कवहयो काल
वहन्िीमे थलखैि थि। छपन वहन्िी कवििाक लेल िषव १९९५ मे “मुक्क्ििोध पुरस्कार”सँ सम्मावनि। मैथिलीक श्रेष्ठ
सावहत्यकेँ राष्ट्रीय धरािलपर छनूदिि-प्रसाररि करिामे विशेष रुथि। पं. गोविन्ि झाक महत्िपूणव उपन्यास भनवह
विद्यापवि ििा मैथिली की प्रविवनमध कहावनयाँ छनूदिि-संपादिि। एक संपादिि कृवि राजकमल िौधरी: सृजन के
आयाम। समय-समयपर मैथिली वहन्िीमे कैक गोट पवत्रका/ संकलनक संपािन कयलवन। वक ु रिना िंगला,
िेलुग,ु छंग्रेजीमे छनूदिि भेलवन छथ ।
डॉ कैलास कुमार ममश्र (८ फरिरी १९६७- ) दिल्ली विश्वविद्यालयसँ एम.एस.सी., एम.वफल., “मैथिली फॉकलोर
स्ट्रक्िर एण्ड कॊन्ननशन ऑफ ि फॉकसांनस ऑफ ममथिला: एन एनेथलदटकल स्टडी ऑफ एन्थ्रोपोलोजी ऑफ
म्युन्द्जक” पर पी.एि.डी.। मानि छमधकार मे स्नािकोत्तर, ४०० सँ िेशी प्रिन्ध -छंग्रेजी-वहन्िी आऽ मैथिली
भाषामे- फॉकलोर, एन्थ्रोपोलोजी, कला-इविहास, यात्रािृत्तांि आऽ सावहत्य विषयपर जनवल, पवत्रका, समािारपत्र
आऽ सम्पादिि-ग्रन्थ सभमे प्रकाथशि। भारिक लगभग सभ सांस्कृविक क्षेत्रमे भ्रमण, एखन उत्तर-पूिवमे मौन्खक
आऽ लोक संस्कृविक सिाांगीन पक्षपर गहन रूपसँ कायवरि। यूवनिर्सिटी ऑफ नेब्रास्का, यू.एस.ए. केर “फॉकलोर
ऑफ इक्ण्डया” विषयक रेफेरी। केन्रीय वहन्िी वनिे शालयक पुरस्कारक रेफरी सेहो। सय सँ ऊपर सेमीनार आऽ
िकवशॉपक संिालन, िहु-विषयक राष्ट्रीय आऽ छन्िरावष्ट्रीय संगोष्ठीमे सहभावगिा। एम.वफल. आऽ पी. एि.डी.
ात्रकेँ दिशा-वनिे शक संग कैलाशजी विन्द्जटटिग फैकल्टीक रूपमे विश्वविद्यालय आऽ उच्च-प्रशल्स्ि प्राप्ि संस्थानमे
छध्यापन सेहो करैि थि। मैथिलीक लोक गीि, मैथिलीक डहकन, विद्यापवि-गीि, मधुपजीक गीि सभक
छंग्रेजीमे छनुिाि।
स्ि. छवनलिन्र ठाकुर जीक जन्म 13 थसिम्िर 1954 ई.केँ कदटहार न्द्जलाक समेली गाममे भेलन्न्ह। 1982 ई.मे
वहन्िी सावहत्यमे स्नािकोत्तर केलाक िाि निम्िर ’93 सँ निम्िर ’94 धरर “सुिह” हस्िथलन्खि पवत्रकाक
सम्पािन-प्रकाशन कएलन्न्ह आ कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण िैंकमे छमधकारी रहथि। मैथिली, छंवगका, वहन्िी आ छंग्रेजीमे
समानरूपेँ लेखन।
मृत्युक पूिव ब्रेन ट्यूमरसँ िीमार िथल रहल लाह।
प्रकाथशि कृवि:
आि मावन जाउ(मैथिली उपन्यास)- पवहने भारिी-मंडन पवत्रकामे प्रकाथशि भेल, फेर मैलोरंग द्वारा पुस्िकाकार
प्रकाथशि भेल।
कि( छंवगकाक पवहल खण्ड काव्य,1975)
एक और राम (वहन्िी नाटक,1981)
एक घर सड़क पर (वहन्िी उपन्यास, 1982)
ि पपेट्स (छंग्रेजी उपन्यास, 1990)
छनि कहाँ सुख पािै (वहन्िी कहानी संग्रह,2007)

आि मावन जाउ(मैथिली उपन्यास)- एवह उपन्यासमे एक एहन युििीक संघषव-गािा छंवकि छथ जे छपन लगनसँ
जीिन ििलैि छथ । छसंख्य गामक ई किा, कुलीनिाक छधःपिनक किा, संस्कारविहीनिाक उद्घाटन आ
भविषयक पीढ़ीकेँ ििएिाक िेिौनी ी ई किा।
मैत्रेयी – याज्ञिल्क्यक दू टा पत्नी लथिन्ह, १. कात्यायनी आऽ िोसर मैत्रेयी। मत्रेयी ब्रह्मिादिनी लीह।
कात्यायनीसँ हुनका िीनटा पुत्र लन्न्ह- िन्रकान्िा, महामेघ आऽ विजय।

छभणमा ससिह

(१९२४- )—समीभक्षका, छनुिादिका, सम्पादिका।प्रकाशन: मैथिली लोकगीि, िसिेश्वर (छनु.) आदि। लेडी ब्रेिोनव
कॉलेज, कलकत्तामे पूिव प्राध्यावपका।

थलली रे

जन्म:२६ जनिरी, १९३३,वपिा:भीमनाि ममश्र,पवि:डॉ. एि.एन्.रे, दुगावगंज, मैथिलीक विथशष्ट किाकार एिं
उपन्यासकार । मरीथिका उपन्यासपर सावहत्य छकािे मीक १९८२ ई. मे पुरस्कार।मैथिलीमे लगभग दू सय किा आ
पाँि टा उपन्यास प्रकाथशि।विपुल िाल सावहत्यक सृजन। छनेक भारिीय भाषामे किाक छनुिाि-प्रकाथशि।
प्रिोध सम्मान प्राप्ि।

शांवि सुमन

जन्म 15 थसिम्िर 1942, काथसमपुर, सहरसा, विहार, प्रकाथशि कृवि, “ओ प्रिीभक्षि, पर ाई टू टिी, सुलगिे
पसीने, पसीने के ररश्ि, मौसम हुआ किीर, समय िेिािनी नहीं िे िा, िप रेहे किनार, भीिर-भीिर आग, मेघ
इन्रनील (मैथिली गीि संग्रह), शोध प्रिंध: मध्यिगीय िेिना और वहन्िी का आधुवनक काव्य, उपन्यास: जल झुका
वहरन। सम्मान: सावहत्य सेिा सम्मान, कवि रत्न सम्मान, महािे िी िमाव सम्मान। छध्यापन कायव।

शेफाथलका िमाव

जन्म:९ छगस्ि, १९४३,जन्म स्थान : िंगाली टोला, भागलपुर । थशक्षा:एम., पी-एि.डी. (पटना
विश्वविद्यालय),सम्प्रवि: ए. एन. कालेज मे वहन्िीक प्राध्यावपका ।प्रकाथशि रिना:झहरैि नोर, विजुकैि ठोर । नारी
मनक ग्रन्धन्थकेँ खोथल:करुण रससँ भरल छमधकिर रिना। प्रकाथशि कृवि :विप्रलब्धा कवििा संग्रह,स्मृवि रेखा
संस्मरण संग्रह,एकटा आकाश किा संग्रह, यायािरी यात्रािृत्तान्ि, भािाञ्जथल काव्यप्रगीि । ठहरे हुए पल
वहन्िीसंग्रह ।

इलारानी ससिह

जन्म 1 जुलाई, 1945, वनधन : 13 जून, 1993, वपिा: प्रो. प्रिोध नारायण ससिह सम्पादिका : ममथिला िशवन,
विशेष छध्ययन: मैथिली, वहन्िी, िंगला, छंग्रेजी, भाषा विज्ञान एिं लोक सावहत्य। प्रकाथशि कृवि: सलोमा (आस्कर
िाइल्डक फ्रेंि नाटकक छनुिाि 1965), प्रेम एक कवििा (1968) िंगला नाटकक छनुिाि, विषिृक्ष (1968)
िंगला नाटकक छनुिाि, विन्िं िी (1972), स्िरथिि: मैथिली कवििा संग्रह (1973), वहन्िी संग्रह।
नीरजा रेणु

जन्म: ११ छक्टू िर १९४५,नाम: कामाख्या िे िी,उपनाम:नीरजा रेणु,जन्म स्थान:निटोल,सररसिपाही ।थशक्षा:


िी.ए. (आनसव) एम.ए.,पी-एि.डी.,गृवहणी ।प्रकाथशि रिना:ओसकण (कवििा मम.मम., १९६०) लेखन पर
पाररिाररक, सांस्कृविक पररिेशक प्रभाि।मैथिली किा धारा सावहत्य छकािे मी नई दिल्लीसँ स्िािन््योत्तर मैथिली
किाक पन्रह टा प्रविवनमध किाक सम्पािन ।सृजन धार वपयासल किा संग्रह,आगि क्षण ले कवििा संग्रह,
ऋिम्भरा किा संग्रह,प्रविच्छवि वहन्िी किा संग्रह,१९६० सँ आइधरर सएसँ छमधक किा, कवििा, शोधवनिन्ध,
लथलिवनिन्ध,आदि छनेक पत्र-पवत्रका ििा छभभनन्िनग्रन्थमे प्रकाथशि ।मैथिलीक छविररक्ि वक ु रिना वहन्िी
ििा छंग्रेजीमे सेहो।

उषावकरण खान

जन्म:१४ छक्टू िर १९४५,किा एिं उपन्यास लेखनमे प्रख्याि।मैथिली ििा वहन्िी दूनू भाषाक िर्ििि
लेन्खका।प्रकाथशि कृवि:छनुंत्तररि प्रि, दूिावक्षि, हसीना मंन्द़्िल (उपन्यास), नाटक, उपन्यास।

प्रेमलिा ममश्र ’प्रेम’

जन्म:१९४८,जन्मस्थान:रवहका,मािा:श्रीमिी िृन्िा िे िी,वपिा:पं. िीनानाि झा,थशक्षा:एम.ए., िी.एड.,प्रथसद्ध


छभभनेत्री दू सयसँ िेशी नाटकमे भाग लेलवन ।भंवगमा (नाट्यमंि) क भूिपूिव उपाध्यक्षा, पवत्रकाक सम्पािन,
किालेखन आदिमे कुशल । ’छररपन’ आदि छनेक संस्था द्वारा पुरस्कृि-सम्मावनि।

आशा ममश्र

जन्म:६-७-१९५० ई.,प्रकाथशि किा मे मैथिकीक संग वहन्िी मे सेहो । सभसँ पैघ विजय मैथिली किा संग्रह।

नीिा झा

जन्म : २१-०१-१९५३,व्यिसाय:प्राध्यावपका । लेखन पर समाजक परम्परा ििा आधुवनकिाक संस्कार सँ होइि


विसंगविक प्रभाि।प्रकाथशि कृवि : फररच्छ, किा संग्रह १९८४, किानिनीि १९९०,सामान्द्जक छसन्िोष ओ
मैथिली सावहत्य शोध समीक्षा।

ज्योत्स्ना िन्रम

मूल नाम: कुमारी ज्योत्स्ना ,उपनाम : ज्योत्स्ना आनन्ि ,जन्मविथि: १५ दिसम्िर, १९६३,जन्मस्थान : मरूआरा,
ससिमधया खुिव, समस्िीपुर,वपिा: श्री माकवण्डेय प्रिासी,मािा: श्रीमिी सुशीला झा,कायवक्षेत्र : छध्ययनाध्यापन ।,रिना
प्रकाथशि : न्द्झन्द्झरकोना (किा-संग्रह), एसगर-एसगर (नाटक),िीिक संग संकलन एिं सम्पािन।एकर छविररक्ि
िजवनामधक किा ओ कवििा विभभन्न पत्र-पवत्रका में प्रकाथशि ििा आकाशिाणीक पटना, भागलपुर, िरभंगा
केन्रसँ प्रसाररि।थशक्षा : पटना विश्वविद्यालयसँ वहन्िी सावहत्यमे एम.ए,।

सुल्स्मिा पाठक
जन्म:२५ फरिरी, १९६२,सुपौल, विहार । पररथिवि कवििा संग्रह प्रकाथशि । किािािक, किासंग्रह प्रकाशनाधीन
। राजनीवि शास्त्रमे एम.ए.। संगीि, पेंटटिगमे रुथि । मैथिलीक पोिी पवत्रका पर छनेक रेखाथित्र प्रकाथशि ।
समकालीन जीिन, समय, आ िकर स्पंिनक किमयत्री । छनेक भाषामे रिनाक छनुिाि प्रकाथशि।

विभा रानी (१९५९- )लेखक- एक्टर- सामान्द्जक कायवकिाव-िहुआयामी प्रविभाक धनी विभा रानी राष्ट्रीय स्िरक
वहन्िी ि मैथिलीक लेन्खका, छनुिािक, थिएटर एक्टर, पत्रकार थि, न्द्जनक ि़िवन भरर से िेसी वकिाि प्रकाथशि
न्न्ह आ कएकटा रिना वहन्िी आ मैथिलीक कएकटा वकिािमे संकथलि न्न्ह। मैथिली के 3 सावहत्य छकािमी
पुरस्कार विजेिा लेखकक 4 गोट वकिाि “कन्यािान” (हररमोहन झा), “राजा पोखरे में वकिनी म थलयां” (प्रभास
कुमार िाऊधरी), “विल टे लर की डायरी” ि “पटाक्षेप” (थलली रे) वहन्िीमे छनूदिि न्न्ह। समकालीन विषय,
वफल्म, मवहला ि िाल विषय पर गंभीर लेखन वहनक प्रकृवि न्न्ह। रेवडयोक स्िीकृि आिा़िक संग ई वफल्म्स
वडविजन लेल डॉक्यूमेंटरी वफल्म, टीिी िैनल्स लेल सीररयल्स थलखल ि िॉयस ओिरक काज केलन्न्ह। ममथिलाक
‘लोक’ पर गहराई स काज करैि 2 गोट लोककिाक पुस्िक “ममथिला की लोक किाएं” ि “गोनू झा के वकस्से”
के प्रकाशनक संगवह संग ममथिलाक रीवि-ररिाज, लोक गीि, खान-पान आदिक िृहि ख़िाना वहनका लग छथ ।
वहन्िीमे वहनक 2 गोट किा संग्रह “िन्ि कमरे का कोरस” ि “िल खुसरो घर आपने” ििा मैथिली में एक गोट
किा संग्रह “खोह स’ वनकसइि” न्न्ह। वहनक थलखल नाटक ‘दूसरा आिमी, दूसरी औरि’ राष्ट्रीय नाट्य
विद्यालय, नई दिल्ली के छन्िरावष्ट्रीय नाट्य समारोह भारंगममे प्रस्िुि कएल जा िुकल छथ । नाटक ‘पीर पराई’क
मंिन, ‘वििेिना’, जिलपुर द्वारा िे श भरमे भ रहल छथ । छन्य नाटक ‘ऐ वप्रये िेरे थलए’ के मंिन मुंिई ि ‘लाइफ
इज नॉट छ ड्रीम’ के मंिन वफनलैंडमे भेलाक िाि मुंिई, रायपुरमे कएल गेल छथ । ‘आओ िवनक प्रेम करें’ के
‘मोहन राकेश सम्मान’ से सम्मावनि ििा मंिन श्रीराम सेंटर, नई दिल्लीमे कएल गेल। “छगले जनम मोहे विदटया
ना कीजो” सेहो ‘मोहन राकेश सम्मान’ से सम्मावनि छथ । दुनु नाटक पुस्िक रूप में प्रकाथशि सेहो छथ ।
मैथिलीमे थलखल नाटक “भाग रौ” आ “मिि करू संिोषी मािा” छथ । वहनक नि मैथिली नाटक प्रस्िुवि न्न्ह-
िलिन्िा।

विभा ‘दुलारीिाई’, ‘सािधान पुरुरिा’, ‘पोस्टर’, ‘कसाईिाड़ा’, सनक नाटक के संग-संग वफल्म ‘धधक’ ि टे ली -
वफल्म ‘थिट्ठी’मे छभभनय केलन्न्ह छथ । नाटक ‘मम. न्द्जन्ना’ ि ‘लाइफ इज नॉट छ ड्रीम’ (एकपात्रीय नाटक) वहनक
टटका प्रस्िुवि न्न्ह।
‘एक िेहिर विश्र्ि– कल के थलए’ के पररकल्पनाक संगे विभा ‘छवििोको’ नामक िहुउद्दे श्यीय संस्था संग जुड़ल
थि, न्द्जनक छटू ट विश्र्िास ‘थिएटर ि आटव – सभी के थलए’ पर छथ । ‘रंग जीिन’ के िशवनक साि कला, रंगमंि,
सावहत्य ि संस्कृवि के माध्यम से समाज के ‘विशेष’ िगव, यिा, जेल- िन्िी, िृिध्र
् ाश्रम, छनािालय, ‘विशेष’ िच्चा
सभके िालगृहक संगवह संग समाजक मुख्य धाराल लोकक िीि सािवक हस्िक्षेप करैि थि। एिय वहनकर
वनयममि रूप से थिएटर ि आटव िकवशॉप िलवि न्न्ह। छवह सभक छविररक्ि कॉपोरेट जगि सवहि आम जीिनक
सभटा लोक आओर लेल कला ि रंगमंिक माध्यम से विविध विकासात्मक प्रथशक्षण कायवक्रम सेहो आयोन्द्जि
करैि थि।

श्रीमवि विभारानी सम्प्रवि मुम्िईमे रहैि थि।

रूपा धीरू- जन्मस्थान-मयनाकडेरी, सप्िरी, श्रीमिी पूनम झा आ श्री छरूणकुमार झाक पुत्री।स्थायी पिा-
छञ्िल- सगरमािा, न्द्जल्ला- थसरहा। प्रिम प्रकाथशि रिना-कोइली कानए, मादटसँ थसनेह (कवििा),भगिा िेङक
िे श-भ्रमण (कनक िीभक्षिक पुस्िकक धीरेन्र प्रेमर्षिसँग मैथिलीमे सहछनुिाि,सङ्गीिसम्िन्धी कृवि- रामष्ट्रयगान,
भोर, नेहक िएन, िेिना, वप्रयिम हमर कमौआ (पवहल मैथिली सीडी), प्रेम भेल िरघुस्कीमे, सुरभक्षि मािृत्ि
गीिमाला, सुखक सनेस। सम्पािन-पल्लि, मैथिली सावहत्त्यक माथसक पवत्रका, सम्पािन-सहयोग,हमर मैथिली
पोिी (कक्षा १, २, ३, ४ आ ५ आ कक्षा 9-10 क ऐक्च्छक मैथिली विषय पाठ्यपुस्िकक भाषा सम्पािन),
पल्लिममथिला, मैथिली इन्टरनेट पवत्रका,वि.सं. २०५९ माघ (सावहत्त्यक), सम्पािन-सहयोग।

मिथिला थित्रकला
ममथिला कला-थित्रकला
पृथ्िी पूजा गौरी पूजा छररपन
वपठारसँ वत्रभुज िनाऊ। वत्रभुज पृििीक प्रिीक छथ ।वत्रभुजक ऊपर दूटा आर वत्रभुज िनाऊ।ओकर िारूकाि
विन्दू जे वहमकणक समान होय,िनाऊ।मध्यमे छनेक वत्रकोणसँ आऽिीन टा रक्ि विन्दु
युक्ि गौरी यंत्र िनाऊ।

कोनो िखवक माघ मासक मकरसंक्रांविसँ छवगलामाघ मासक मकरसंक्रांवि धरर वििाहक िाि स्त्रीगण गौरीपूजन
करैि थि।
सीिाजीक गौरी पूजनक ििव िाल्मीवक रामायणमे ै क।नीिाँ हमर माँक िनाओल ई थित्र छथ ।

मौहक केर छररपन


महुछक ममथिलामे वििाहक िािक विमध ै क जे िर- िधूमे स्नेहक सृजन करिाक हेिु छथ । िर िधूकेँ दू आसन
पर िैसा खीर आ’ िही-िूड़ाक परसल जाइि छथ । दुनू गोटे एकरा सावन आ’ कौर िना कय एक िोसर पर फेकैि
थि। पवहने फेंकय िला विजयी होइि छथ । िीन दिन कोहिर घरमे आ’ ििुिी दिन कुलिे ििाक घरमे ई विमध
संपादिि होइि छथ । नीिाँ िे ल छररपन दुनू िारीक नीिाँ िनाओल जाइि छथ ।
थित्र वनमावण- ोट-पैघ िारर िृत्ताकार रेखा, सभसँ ऊपरका गोलाप िारू काि विन्दु। दुनूकेँ कमल-नालसँ जोड़ल
जाइि छथ ।
िारू आश्रमक थशक्षा िर िधूकेँ प्रेम सूत्रसँ िान्न्हकेँ संिान सृमष्टक ज्ञान करा कय एवह छररपन द्वारा कएल जाइि
छथ ।

कुमरम मने वििाह आ’ उपनयनसँ एक दिन पवहने क्रमशः कवनयाँ आ’ िरुआकेँ आङ उङारल जाइि छथ मने श्रेष्ठ
स्त्रीगण यि आ’ आन पिािवसँ िनल उिटन लगिैि थि। एिय मंडप पर सिरंग पदटया पर षट पाइस छररपनक
समक्ष मंडप पर ई कायव संपादिि होइि छथ । ई एकटा रक्षा किि थिक।
विमध- िीनटा आयि िनाऊ एकक नीिाँ एक। पाँि खंड उध्िावधर आ’ िीन क्षैविज खंड करू। एवह 18 खंडमे फूल
िनाऊ।

श्रािन कृषण पंिमी (नाग पंिमीसँ) प्रारम्भ भ’ कय श्रािन शुक्ल िृिीया पयवन्ि नीिाँक छररपन पर विभभन्न नागक
पूजा कएल जाइि छथ , आ’ िृद्धा लोकवन एवह छिसर पर किा सेहो कहैि थि। नि िर-िधूकेँ संग िैसा कय
पूजाक समापन होइि छथ । इइ छररपन दूटा मेना-पाि आ’ पूजा करयिालीक दुनू दिथश भूमम पर िनाओल जाइि
छथ । िाम पाि पर 101 सर्पिणी थसनूर आ’ काजरसँ आ’ िवहन कािक पाि पर 101 सर्पिणी वपठारसँ िनाओल
जाइि छथ । िाम कािक सपवक मुन्खया कुसुमाििी आ’ िवहन कािक िौरस नागक पूजा होइि छथ । मेना पािमे
सपव िशीकरण शक्क्त्त होइि छथ । संगमे सूयव िन्र गौर, सादठ आ’ निग्रहक थित्र सेहो थलखल जाइि छथ ।

मधुश्रािणी छररपन

गिांकमे एकर ििाव ल जे मधुश्रािनीमे संगमे सूयव िन्र गौर, सादठ आ’ निग्रहक थित्र सेहो थलखल जाइि छथ ।
एकर थित्र एवह छंकमे प्रस्िुि छथ ।

िशपाि छररपन
कन्याक मुण्डन,कान े िन आ’ वििाहक छिसर पर कुलिे ििाक घर आवक मण्डप पर िनाओल जाइि छथ ।
िनेिाक- विमध। एकर िनेिाक विमध सूक्ष्म छथ ।
ऊपरमे िीन पािक पुषप, ,ओकरनीँिा पाँि-पािक कमल-पुषप,ओकर नीिाँ साि-पाि युक्त्त कमल, िीिमे छष्टिल
कमल छथ । िश पाि िारू दिथश छथ । नौ टा माँ क थित्र सेहो छथ ।

िशपाि छररपन
पथ ला छंकमे स्त्रीगणक िथशपाि छररपन िे ल गेल ल। एवह िेर पुरुषक िथशपाि छररपन िे ल गेल छथ ।
एकर नाम िसकमवक िोध करएिाक कारण िशपाि छथ , आ’ ई पुरुषक सभ संस्कारक छिसर पर थलखल जाइि
छथ ।
ऊपरी भागमे दू टा मयूर,कमलक फूल,शुभ मत्स्य,भीिरमे 12 टा माँ क थित्र आ’ िसटा डादढ़क थित्र िे ल गेल
छथ ,आ’, िीिमे छष्टिल कमल।

एवहमे ४१ टा स्िाल्स्िक जोड़ल गेल छथ । स्िल्स्ि भेल आशीिावि। ई कार्त्त्तिक मासक िुलसी-पूजा,शारिीय
दुगावपूजामे िुलसी-िौड़ा/ दुगाव-मन्द्न्िरमे छष्टमी दिन वपठारसँ िनाओल जाइि छथ । ई िैदिक यज्ञक ’सिविोभर’
थि आऽ यज्ञक िौड़ा पर सेहो थलख्ल जाइि थि।

िनेिाक विमध- ४१ टा स्िाल्स्िक आऽ ओकर िीिमे ४१ टा थसन्दूरक ठोप। नीिाँमे पाँिटा शंख, िारू काि आठ
छस्त्रक छंकन, छध्िवमुख-छधोमुख वत्रकोण, षट् कोण, छष्टकोण, श्रीयंत्र िनाओल जाइि छथ ।

कोजगराक छररपन
कोजगरा ममथिलामे आभश्वन पूर्त्णिमाक राविमे मनाओल जाइि छथ ।संध्यामे लक्ष्मीक पूजा कए मखानक भोग
लगैि छथ । रवत्र जगरण कए िन्रमाक िे खिाक आनन्ि लेल जाइि छथ । नीिाँक लंि छररपन पार कए िे ििा
घरमे प्रिेश करैि थि।कमलक फूल आऽ पि थिन्ह एवह वनममत्त िे ल गेल छथ ।

षडिल छररपन
ममथिलामे भगििी पूजाक छिसर पर ई छररपन पाड़ल जाइि छथ ।एिय िे िी भागिि पुरानक षटकोण यंत्र पारल
गेल छथ ।
ः टा कमल िल एवहमे छथ । आदिशक्क्त्त भुिनेश्वरीक पि थिन्ह आऽ पञ्िोपिार पूजाक सामग्रीसँ युक्त्त ई
छररपन छथ ।

नीिाँक थित्र छँगनाक पभश्चममे िनल कुल-िे ििाक घर जे ’गोसाउवन घर’ कहिैि छथ , ओिए िनाओल जाइि
छथ । पभश्चम िे िाल पर कारी ोवड़ िोसर रंगसँ ई थित्र िनाओल जाइि छथ । एकरे सरोिर कहल जाइि ै क।

िे िोत्थान एकािशी कार्ििक शुक्ल एकािशीकेँ मनाओल जाइि छथ , एवह दिन क्षीरसागरमे भगिान वनन्नसँ जागल
लाह। गोसाउन घरमे आऽ िुलसी लगमे छररपन होइि छथ । छररपन वपठारसँ होइि ै क, थसन्दूर सेहो लगाओल
जाइि ै क। िुलसी लगमे मखान, नाररकेर, ममश्रीक प्रसाि िढ़ै ि छथ ।
भािि मासक एकािशीक दिन भगिान शंखासुर राक्षसकेँ मारर कए गाढ़ वनन्नमे सूवि गेलाह, आऽ कार्ििक शुक्ल
एकािशीकेँ उठलाह, िे िोत्थान ईएह छिव छथ ।िुलसी िरक िे िोत्थान छररपन नीिाँक रीविए िनाओल जाइि
छथ ।

थित्रकार- िूथलका, ग्राम-रुरपुर, भाया-आन्ध्रा-ठाढ़ी, न्द्जला-मधुिनी।


एक िेर कुिेर कोनहुना लक्ष्मीकेँ पत्नीक रूपमे प्राप्ि कए लेलन्न्ह आऽ हुनका लेल समुरमे एकटा’कोिर’ घर िनेने
रहथि। कोिर थित्रमे पुरैनक पाि, पुन्धषपि िांस, मत्स्य,सांप, का ु , निग्रह, शंख आदिक प्रयोग होइि छथ ।
धारािावहक रूपें विभभन्न प्रकारक कोिरक थित्र िे ल जायि। एवह छंकमे कोिर (पुरैन) िे ल जाऽ रहल छथ ।
एक िेर कुिेर कोनहुना लक्ष्मीकेँ पत्नीक रूपमे प्राप्ि कए लेलन्न्ह आऽ हुनका लेल समुरमे एकटा’कोिर’ घर िनेने
रहथि। कोिर थित्रमे पुरैनक पाि, पुन्धषपि िांस, मत्स्य,सांप, का ु , निग्रह, शंख आदिक प्रयोग होइि छथ ।
धारािावहक रूपें विभभन्न प्रकारक कोिरक थित्र िे ल जायि। एवह छंकमे कोिर (पुरैन) िे ल जाऽ रहल छथ ।

मिथिला पाबनन-निहार (किा)


पाबननक किा
मधुश्रािणी-
श्रािण मास कृषण-पक्षक पञ्िमीसँ शुक्लपक्ष िृविया धरर नाग आऽ गौरीशंकरक छभ्यिवना कएल जाइि छथ ।
मौना पञ्िमी-श्रािन मास कृषणपक्ष पञ्िमीकेँ साँपक माए विसहराक ििवडे मनाओल जाइि छथ ।
निवििावहिाक प्रिम िषवक मधुश्रािणीक ई प्रिम दिन थिक । धुरखुरपर गोिरक नाग-नावगनपर थसन्दूर-वपठार
लगाओल जाइि छथ आऽ पञ्िमीक मादटक िुम्हा घरमे साँप कटला उत्तर झाड़ा-फूकी लए रान्ख िे ल जाइि
छथ । गोसाउवनकेँ खीर-घोरजाउड़क पािरर आऽ विसहराकेँ नेिो,झौआ,नीमक पािरर िे ल जाइि छथ ।
गोसाउवनक, गौरीक आऽ विसहराक गीि होइि छथ , पूजा-पाठक िाि पाँि िीनी (फकड़ा-कवित्त) िीन-िीन िेर
सुनलाक िाि किा सुनल जाइि छथ , ई सभदिन किाक िाि िोहराओल सेहो जाइि छथ ।

प्रिम दिनक किा-

एकटा िूढ़ीकेँ धारमे नहाए काल पुरैनी पाि पर पाँिटा जीि िे खाइ पड़ैि न्न्ह आऽ ओऽ हुनका मौना-पञ्िमीक
मोन पावड़ गाममे लोकसभकेँ पूजा करिाक लेल कहैि न्न्ह। वक ु गोटे गप मानैि थि, मुिा वक ु गोटे ओकरा
फूथस-फटक मानैि थि। जे सभ पूजा नन्द्ञ कएलन्न्ह से रावियेमे मरर गेलाह। सभ िौवड़ कए पाँिो िवहन विसहरा
लग जाइ गेलाह, आऽ हुनका कहलासँ ििल खीर-घोड़जाउड़ मृिकेँ िटा िे लन्न्ह, ओऽ सभ जीवि गेलाह आऽ
मरड़ए नाम पड़लन्न्ह।
पाँिो विसहरा महािे ि सन्िान लीह। साँपक पोआकेँ िे न्ख एकदिन िमसा कए गौरी वहनकासभकेँ िकुथि
िे लन्खन्ह।
साँझमे साँझक आऽ कोिरक गीि होइि छथ ।

िोसर दिनक-किा

मनसा महािे िक पुत्री लीह जे जनममिवह युििी भए गेलीह आऽ लाजक रक्षाक हेिु साँप हुनका िे हमे लपटाए
गेल। गौरी िमसा गेलीह से हुनका कैलास ोवड़ जाए पड़लन्न्ह आऽ मृत्युलोकमे सभसँ पैघ व्यापारी िन्नू-िन्रधर
हुनकर पूजा करन्न्ह से ओऽ इच्छा कएलन्न्ह, मुिा ओऽ ल महािे िक भक्ि से ओऽ िाम हािे पूजा करिाक गप
कहलन्न्ह। ओकर ओ िेटाकेँ साँप डथस लेलक, मरर जाइ गेल। िुढारीमे िन्नूकेँ िेटा भेलन्न्ह मुिा ज्योविवष
कहलकन्न्ह जे हुनका वििाहक दिन कोिरघरमे साँप डथस लेिन्न्ह। ओवह िच्चाक नाम लक्ष्मीधर-िाला-लखन्िर
राखल गेल, हे-मासमे ओकर वििाह थिर-सोहागवन योगक कान्याँसँ होएि वनभश्चि भेल। पहाड़पर कोठामे विज्जी
आऽ विढ़नीक पहराक िीि कान्याँ विहुलासँ वििाह भेल। मुिा कोहिरमे साँप आयल आऽ हुनका डथस लेलक।
विहुला पविकसंग केराक िम्हपर गंगाधारमे िथल पड़लीह आऽ प्रयाग पहुँथि गेलीह। ओिए एकटा धोविनकेँ ओकर
िच्चा िंग कए रहल ल, ओऽ ओकरा मारर नुआसँ झाँवप िे लन्न्ह आऽ कपड़ा खीिलाक िाि ओकरा न्द्जआ
िे लन्न्ह। िोसर दिन जखन ओऽ छएलीह िखन विहुला हुनकासँ छपन व्यिा सुनओलन्न्ह। फेर हुनका संग इन्रक
िरिार गेलीह आऽ विसहराक पैर पकवड़ कहलन्न्ह जे यदि हुनकर पवि आऽ िो भैंसुर जीवि जएिाह िखन ओऽ
विसहरा पूजा करिो करिीह आऽ मृत्युलोकमे ओकर प्रिार सेहो करिीह। सभ जीवि गेल आऽ विसहराक पूजा
शुरू भेल।

विसहरा किा-कश्यप मुवनकेँ कद्रूसँ एक हजार साँप भेल आऽ कशप मुवन विष झारिाक मन्त्र िनओलन्न्ह, िपस्या
कए मनसँ विसहरा िनओलन्न्ह से भेलीह मनसा। ओऽ कैलास आऽ पुषकर गेलीह फेर िूढ़ िपस्िीसँ हुनकर वििाह
भेलन्न्ह, िावहसँ आस्िीक नामक पुत्र भेलन्न्ह। राजा जनमेजयक सपव-यज्ञमे जड़ल सपवसभके आस्िीक ििा
लेलन्न्ह। आषाढ़क संक्रात्न्िसँ नाग-पंिमी धरर विसहराक पूजा पसीझक डाररपर होइि छथ ।
मंगला-गौरी किा- श्रुिकीर्िि राजाकेँ िेटा नवह लन्न्ह, भगििीक उपासना कएल। भगििी कहलन्न्ह जे सिवगुणी
िेटा १६ िषव आयुक होएि आऽ महामूखव िेटा िीघावयु होएि, से केहन िर िाही। राजा सिवगुणी िेटाक िर मँगलन्न्ह।
मन्द्न्िरक सोझाँक आमक गा सँ आम िोवड़ ओऽ छपन पत्नीकेँ खुआ िे लन्न्ह आऽ पुत्र जे प्राप्ि भेल ओकर नाम
थिरायु राखल। १६ िषव पूणव भेलापर रानीक भाए संगे राजकुमार थिरायु काशी िथल गेलाह। माम भावगन जे काशी
लेल वििा भेलाह िँ रस्िामे आनन्िनगर राज्यमे िीरसेन राजाक पुत्री मंगलागौरीक वििाह होमए िला ल। ओऽ
सखी-िवहनपा संग फूल लोढ़ए लेल फुलिारीमे आयल लीह िँ गपे-गपमे एकटा सखी हुनका राँड़ी कवह िे लन्खन्ह,
िँ ओऽ कहलन्न्ह जे हम गौरकेँ िेना गोछहरने ी जे जावह िरक मािपर हमर हािक छक्षि पड़ि से छल्पायु रहिो
करि िँ िीघावयु भए जाएि। ओवह राजकुमारेक वििाह िाह्लीक िे शक राजा दृढ़िमावक िेटा सुकेिुसँ हेिए िला
रहए। ओही फुलिारीमे माम-भावगन रहथि, आऽ साँझमे िर-िररयािी सभ सेहो छएलाह। िर महामूखव आऽ िहीर
ल से ओऽ लोकवन रावि भरर लेल थिरायुकेँ िर िनिाक आग्रह कएलन्न्ह। थिरायु गौरी-शंकरक प्रविमाक समक्ष
थसन्दूर-िान कएलन्न्ह। कोहिरमे िर कवनआ छएलाह िँ ओही रावि थिरायुक १६म िषव पुरर गेलन्न्ह आऽ िखने
गहुमन साँप डसिाक लेल आवि गेल। राजकुमारी जगले लीह आऽ ओऽ गहुमनक सोझाँ दूध रान्ख िे लन्खन्ह आऽ
पविकेँ नवह मारिाक आग्रह कएलन्न्ह। गहुमन दूध पीवि पुरहरमे पैथस गेल, राजकुमारी आँगीसँ पुरहरक मुँह िन्न
कए िे लन्न्ह। राजकुमारक वनन्ि खुजलन्न्ह िँ ओऽ वक ु खाए लेल मँगलन्न्ह। राजकुमारी हुनका खीर-लड्डू िे लन्न्ह,
हाि धोिाक काल राजकुमारक हािसँ पञ्िरत्न आँठी खथस पड़लन्न्ह से राजकुमारी उठा लेलन्न्ह। िर पान-सुपारी
खाए सुिलाह आऽ पुरहररक साँप रत्नक हार िवन गेल आऽ से राजकुमारी गरामे पवहरर लेलन्न्ह। भोरमे माम
भावगनकेँ लए गेलाह मुिा सुकेिुकेँ राजकुमारी कोिरमे नवह पैसए िे लन्खन्ह। साल भररक िाि प्राय वि्यािलसँ जे
माम-भावगन घुरर रहल लाह िँ राजकुमारी कोठापसँ हुनका िीन्न्ह गेलीह। धूमधामसँ सभ घर कवनआँ लए
पहुँिलाह आऽ गौरी आऽ नाग पूजाक महत्ि ज्ञाि भेल।

िेसर दिनक किा

पृथ्िीक जन्म- पापसँ पृथ्िी पािाल िथल गेलीह, िखन ब्रह्मा, विषणु प्रािवना कए हुनका ऊपर छनलन्न्ह, फेर ओऽ
डगमगाइि लीह, िखन विषणु का ु िवन नीिाँ िथल गेलाह, छपन पीठपर रान्ख लेलन्न्ह, िैयो ओऽ जल-पर
भँसैि लीह, िखन आगस्त्यक जाँघ िरसँ मादट आनल गेल, विषणु सेहो मा िवन मादट छनलन्न्ह, िकर जोड़न
िए पृथ्िीकेँ क्स्थर कएल गेल, जे कमी ल से भगिान िराह िवन उत्तर मािसँ पृथ्िीकेँ ठोवक कए ठीक कए
िे लन्न्ह।

समुर-मन्थन- िे ििा-िानि सुमेरुपर एकत्र भए समुर-मन्थनक हेिु िासुकीनागकेँ मन्िार पिविमे लपटाए समुरमे
उिारल।कूमवराजकेँ आधार िनाए मूँह दिसनसँ िानि आऽ पुच्छी दिसनसँ िे ििा नागकेँ पकवड़ मन्िारक मिनीसँ
मंिन शुरू कएलन्न्ह। रगरसँ पिविपर गा -िृक्षमे आवग लावग गेल। इन्र िषाव कएलन्न्ह, समुरक नूनगर पावन दूध-घी
भए गेल, लक्ष्मी, सुरा आऽ उच्चैःश्रिा घोड़ा वनकलल से िन्रमा-लोकवन लए लेलन्न्ह। छमृि लेने धन्िन्िरर िहार
भेलाह, विष वनकलल से महािे ि कण्डमे लेलन्न्ह। गौरी विसहरा,साँप,विढ़नी,िुट्टीक मिविसँ विश महािे िक िे हसँ
वनकाललन्न्ह। छमृि लेल झगड़ा िझल, विषणु मोवहनी िवन गेलाह। िै त्य मोवहि भए छमृि-कलश हुनकर हािमे
रान्ख िे लन्न्ह आऽ िे ििासँ लड़ए लगलाह। विषणु सभ िे ििाकेँ छमृि वपआ िे लन्न्ह। िै त्य राहु भेष ििथल छमृि
पीिए िाहलक मुिा िन्रमा सूयव हुनका िीन्न्ह गेलन्खन्ह, छम्र्ि मुँसँ कंठ धरर यािि जाइि िािि विषणु ओकर
गिव ने िक्रसँ कादट िे लन्न्ह। मुिा छमृिक जे स्पशव ओकरा भए गेल ल से ओऽ मरल नवह, मुण्ड भाग राहु आऽ शेष
भाग केिु िवन गेल, एखनो कोनो छमािस्यामे सूयवकेँ िँ कोनो पूर्त्णिमामे िन्रमाकेँ गीड़ैि छथ , मुिा कटल मुण्ड-
धरक कारण दुनू गोटे वक ु कालक िाि िहार भए जाइि थि। ििल छमृि विश्वकमावक रखिावड़मे इन्रकेँ िए िे ल
गेल।िासुकी नागकेँ माइक श्राप नवह लगिाक आऽ जनमेजयक यज्ञमे भावगन आस्िीक द्वारा सपररिार प्राणरक्षा
होएिाक िर भेटलन्न्ह।

िाररम दिनक किा


सिीक किा- ईश्वरकेँ विश्वक सृमष्ट करिाक लन्न्ह, से ओऽ पवहने विषणु, फेर थशि आऽ िखन ब्रह्माक रूपमे
छििार लेलन्न्ह। ओऽ िखन िे ििा-ऋवष-मुवन, शिरूपास्त्री, स्िायंभुि मनु, िवहना आँन्खसँ छवत्र, कान्हसँ मरीथि,
िवहना पाँजरसँ िक्ष-प्रजापविक रिना कएलन्न्ह। मरीिीसँकश्यप, छवत्रसँ िन्रमा, मनुक वप्रयव्रि एिं उत्तानपाि
िेटा आऽ आकृवि, िे िहूवि आऽ प्रसूवि िेटी भेलन्न्ह। प्रसूविक वििाह िक्ष प्रजापविसँ आऽ िावहसँ सादठ कन्या
भेल। सादठमे आठक वििाह धमव, एगारहक कश्यप, सत्ताइसक िन्रमा आऽ एक गोट न्द्जनकर नाम सिी लन्न्ह
हुनकर वििाह महािे िसँ भेलन्न्ह। िन्रमाकेँ जे सिाइस टा पत्नी भेलन्न्ह िावहमेसँ ओऽ रोवहणीकेँ सभसँ िेशी मानैि
लाह, से २६ टा िवहन छपन वपिा िक्षकेँ कहलवन, ओऽ शाप िे लवकन्ह आऽ िन्रमाक शरीर घटए लगलन्न्ह।
िखन ओऽ महािे ि लग गेलाह िँ ओऽ हुनका छपन कपार पर िढ़ा लेलन्न्ह। एवहसँ िक्ष महािे िकेँ िारर िे लन्खन्ह।
फेर िक्ष एकटा यज्ञ कएलन्न्ह आऽ शंकरकेँ नोि नवह िे लन्न्ह। सिी नैहर जएिाक लेल न्द्जि पकवड़ लेलन्न्ह िँ
िीरभरक संग थशि हुनका पठा िे लन्न्ह। सिी िथल िँ गेलीह मुिा छपमान िे न्ख यज्ञकुण्डमे कूदि पड़लीह। िीरभर
ई िे न्ख िक्षक गरिवन कादट लेलन्न्ह।महािे िकेँ िमसायल िे न्ख कए िे ििा सभ प्रािवना कएलन्न्ह जे विना न्द्जछओने
यज्ञ पूणव नवह होएि से यज्ञक काटल ागरक मूरी िक्षक धरपर महािे ि लगा िे लन्न्ह, आऽ ओ जीवि कए िो-िो
करए लगलाह, से माहािे ि ई िे न्ख प्रसन्न भेलाह। िवहयेसँ महािे िक पूजाक छन्िमे िू कहल जाए लागल। महािे ि
सिीक मृि शरीर लए ििाह भेल वफरथि से िे न्ख विषणु िक्रसँ सिीक टु कड़ा कए िे लन्न्ह आऽ जिए-जिए ओऽ
टु कड़ा खसल से सभटा थसद्धपीठ भए गेल। महािे ि कैलाश ोवड़ जंगलमे िपस्या करए लगलाह।
पविव्रिाक किा- एकटा राजा ालाह। हुनका दूटािेटी लन्न्ह- कुमरव्रिा आऽ पविव्रिा। कुमरव्रिा नन्िनिनमे
कुटीमे रहए लगलीह आऽ पविव्रिा वििाह कए सासुर िथल गेलीह। एक दिन एकटा योगीक मािपर कौआ िटक
कए िे लकैक िँ ओऽ शाप िए ओकरा भसम कए िे लक। नन्िनिनमे आवग लागल रहए। पविव्रिा छपन िवहन
कुमरव्रिाक कुटी ििेिाक लेल िुलसीक िेढ़ िे लन्न्ह िावहमे योगीकेँ भीख िे िामे िे री भए गेलैक। योगी िमसाएल िँ
पविव्रिा िे रीक कारण कहलन्न्ह। योगी िोनमे गेल िँ िे खलक जे सौँसे िोनमे आवग लागल छथ मुिा कुमरव्रिाक
कुटी ििल छथ । ओऽ कुमरव्रिाकेँ एकर रहस्य ििेलक िँ ओहो वनणवय लेलन्न्ह जे हमहुँ वििाह कए पविव्रिा
िनि। भोरमे एकटा कुष्ठरोगीकेँ ओऽ िे खलन्न्ह िँ हुनकेसँ वििाह कए लेलन्न्ह। पवि हुनका कहलन्खन्ह जे हमरा
िीिव कराए दिछ। ओऽ हुनका पथियामे लए वििा भेलीह िँ रस्िामे जखन पथिया उिारर रहल लीह िँ िोट लावग
कए एक गोट सूली पर लटकल ऋवषकेँ िोट लावग गेलैक। ओऽ भोर होइिे पविक मृत्युक शाप हुनका िए िे लन्न्ह।
से सुवन िेिारी सूयवक उपासना करए लगलीह से पवि मृत्यु पावि फेर जीवि उठलन्खन्ह आऽ एवह िेर विना रोग
व्यामधक घुरर छएलन्न्ह। सिी,सावित्री, छनुसूया आऽ विहुला जेकाँ सिीक छनेक उिाहरण छथ ।
पाँिम दिनक किा

िक्षक पुनजवन्म भेलन्न्ह वहमालयक रूपमे, आऽ एवह जन्ममे हुनका उमा, पािविी, गंगा, गौरी आऽ स्या ई पाँिटा
कन्या भेलन्न्ह। वहमालय आऽ मनाइनक िेटी उमा महािे िकेँ प्राप्ि करिाक लेल िपस्या करए िथल गेलीह, माय
उमा कए रोकलन्न्ह, से नाम उमा पवड़ गेलन्न्ह ओऽ िरक रूपमे महािे िकेँ प्राप्ि कए लेलन्न्ह। िोसर पुत्री पािविी
एकदिन कनकथशखरपर गेलीह आऽ िसहापर िदढ़ हुनका संग िथल गेलीह। िेसर पुत्री गंगा रहथि। एक दिन
महािे ि भभक्षुक भेष धए छएलाह आऽ गंगाकेँ जटामे नुकाए िथल गेलाह।
ठम दिनक किा

सगर राजाक पत्नी रहथि शैब्या आऽ हुनकासँ छसमंजस नामक पुत्र भेलन्न्ह। िोसर पत्नी िैिभीसँ कोनो िच्चा
नन्द्ञ भेलन्न्ह। िैिभी महािे िक िपस्या केलन्न्ह िँ सए िरखक िाि एकटा लोि जन्म लेलकन्न्ह। महािे ि छएलाह
आऽ लोिकेँ सादठ हजार खण्डमे कादट ओिेक िौलामे रान्ख झाँवप िे लवन। ई सभटा वक ु दिनमे पुत्रक रूप लए
लेलकन्न्ह। सगर राजाक सएम छश्वमेध यज्ञक इन्र व्रोधी भेलाह कारण िखन सगर शिक्रिु इन्र भए जएिाह। इन्र
यज्ञक घोड़ाकेँ लए भावग गेलाह आऽ कवपलक आश्रममे िान्न्ह िे लन्खन्ह। सादठयो हजार पुत्र कवपलपर िौगलाह,
ओ िपस्यालीन लाह आऽ छपन क्रुद्ध आँन्ख खोथल सभकेँ जरा िे लन्न्ह। िैकुण्डसँ गंगाकेँ छनिाक लेल
छसमंजस आऽ िकर िाि हुनकर पुत्र दिलीप आऽ िकर िाि विनकर पुत्र छंशुमान िपस्या करैि-करैि मरर गेलाह।
छंशुमानक पुत्र भगीरिक िपस्यासँ विषणु प्रसन्न भेला आऽ गंगाकेँ मृत्युलोक लऽ जएिाक छनुमवि िए िे लन्न्ह।
महािे ि वहमालयपर जाए स्िगवसँ उिरैि गंगाकेँ छपन जटामे रान्ख सम्हारर लेलन्न्ह, मुिा जे आगू िढ़लीह िँ जहु
ऋवषक कुटी िहाए लागल। जहु ऋवष गंगाकेँ पीवि गेलाह। मुिा आग्रह कएलापर ओऽ गंगाकेँ ोवड़ िे लन्न्ह आऽ
िवहयासँ गंगा हुनकर पुत्री जाििीक रूपमे विख्याि भेलीह। आऽ फेर छन्िमे सगरक पुत्र लोकवन द्वारा, घोड़ाक
खोजमे खुनल ओवह खामधमे खसलीह जे आि सागर कहािए लागल आऽ एवह िरहेँ सगरक पुत्रसभकेँ सद्गवि
भेटलन्न्ह।

गौरीक जन्म- सिीक मृत्युक िाि महािे िकेँ विरक्क्ि भए गेलन्न्ह। िखन िाड़कासुर ब्रह्माकेँ प्रसन्न कए महािे िक
पुत्रक छविररक्ि ककरो आनसँ नवह मरिाक िर लए लेलक, िे ििाकेँ स्िगवसँ भगा िे लकन्न्ह। िखन िे ििा लोकवन
महामाया दुगावक आराधना कएलन्न्ह आऽ ओ वहमालयक घरमे जन्म लेलन्न्ह। ओऽ िड़ गोर-नार लीह से हुनकर
नाम पड़ल गौरी। नारि एकदिन वहमालयक ओवहठाम छएलाह आऽ गौरीक हाि िे न्ख कहलन्खन्ह जे वहनकर
वििाह महािे िसँ होएिन्न्ह। वहमालय गौरीकेँ दूटा सखीक संग महािे िक सेिामे पठा िे लन्खन्ह। िे ििागण
कामिे िकेँ ममत्र िसन्ि आऽ स्त्री रविक संग ओिए पठे लन्न्ह। गौरी जखन पहुँिलीह िखन कामिे ि िाण
िलेलन्खन्ह। महािे ि आँन्ख खोथल गौरीकेँ िे खल। गौरी पूजा कएलन्न्ह। महािे ि हुन्का िे न्ख उपमा िे लन्न्ह,
मुँह िन्रसन, आँन्ख कमलसन, भोँह कामिे िक धणुषसन, ठोर पाकल विलकोरसन, नाक सुनगाक लोलसन, िोली
कोइलीसन।
मुिा िखने हुनका होश छएलन्न्ह ओऽ झाँकुरमे कामिे िकेँ िे खलन्न्ह िँ िेसर नेत्र क्रोमधि भए खोथल िे खल िँ ओऽ
जरर गेलाह। रवि मूर् िि भए गेलीह। रविक विलाप िे न्ख िे ििागण छएलाह आऽ कहलन्न्ह जे िाड़कासुरक िध लेल
ई सभटा रिल गेल। महािे ि कहलन्न्ह जे रवि समुरमे शम्िर िै त्य लग जाथि। कृषणक पुत्र प्रद्युम्नकेँ ओऽ िै त्य उठा
कए लए जायि। जखन प्रद्युम्न पैघ होएिाह िखन ओऽ शम्िरकेँ मारर रविकेँ वियावह द्वारका लए जएिाह। िैह
प्रद्युम्न कामिे ि होएिाह।

सािम दिनुका किा

गौरी कामिे िक िहन िे न्ख डराए गेलीह। नारि गौरीकेँ िपस्या करए लेल कहलन्खन्ह। िपस्याक लेल वहमालय
छपन पत्नी मैनासँ पु लन्न्ह। गौरी फेर पटोर खोथल िे लन्न्ह आऽ कृषणान्द्जन आऽ िल्फर पवहरर सखी संग
गौरीथशखर िोटीपर िथल गेलीह। घोर िपस्या िे न्ख ऋवष-मुवन संग नारि महािे ि लग पहुँिलाह। महािे ि गौरीक
परीक्षा लेल भेष िनाए गौरीथशखर पहुँिलाह आऽ महािे िक ढे र -रास वनन्िा कएलन्न्ह। गौरी िमसाए गेलीह िँ ओऽ
सोझाँ आवि गेलाह आऽ वििाहक लेल िैयार भए गेलाह।

आठम दिनक किा


काशीमे सप्िऋवष , िथशष्ठ आऽ िथशष्ठक स्त्री छरुन्धिी छएलीह। महािे ि हुनका लोकवनकेँ किा लए वहमालयक
ठाम पठओलन्न्ह। वहमालय आऽ मैनाक आँन्खसँ खुशीसँ नोर झड़ए लगलन्न्ह। किा क्स्थर भए गेल। नारि िे ििा
लोकवनकेँ हकार िे लन्न्ह। िाररम दिन िररयािी लगल। गन्धिवराजकेँ िे न्ख मैनाकेँ नारिकेँ पु लन्न्ह िँ ओऽ कहलन्न्ह
जे ई िँ िे ििाक गिैया ी। फेर धमवराज, इन्र सभ छएलाह। नारि सभक पररिए िे लन्न्ह। मैना सोिलन्न्ह जे ई सभ
एिेक सुन्िर छथ िँ महािे ि किेक सुन्िर होएिाह। महािे ि मैनाक मोनक गप िुन्द्झ वक ु िमाशा कएलन्न्ह।
महािे ि, हुनकर गण, भूि-वपशािकेँ िे न्ख मैना िेहोश भए गेलीह।

निम दिनक किा

मैनाकेँ जखन होश छएलन्न्ह िँ ओऽ नारि-गौरी सभकेँ िहुि रास िाि कहलन्न्ह आऽ वििाहसँ मना कए िे लन्न्ह।
सभ मनिए छएलन्न्ह िैयो नवह मानलीह। िखन महािे ि छपन भव्यरूप िे खेलन्न्ह, िँ मैना िे न्खिे रवह गेलीह।
वििाहक कायव शुरू भेल। परर वन, छठोंगर, गोत्राध्यायक िि कन्यािान सम्पन्न भेल आऽ िाड़कासुरकेँ मारिाक
िाट सोझाँ प्रिीि भेल।
िशम दिनुका किा

महािे ि आऽ गौरीक संभोगसँ जे िच्चा होएि ओऽ पृथ्िीक नाश कए िे ि, ब्रह्माक ई ििन सुवन िे ििा लोकवन हल्ला
मिा िे लन्न्ह आऽ महािे िक छंश पृथ्िीपर खथस पड़ल। गौरी िे ििाकेँ सरापलन्न्ह जे आइ दिनसँ हुनका लोकवनकेँ
सम्भोगसँ सन्िान नवह होएिन्न्ह। पृथ्िी छंशकेँ आवगमे आऽ आवग सरपििनमे भार सहन नवह होएिाक कारण िए
िे लन्न्ह। ओिए ह मुँहिला िच्चा भेल, ओकरा कृभत्तकसभ पोसलन्न्ह िेँ नाम कार्ििकेय पवड़ गेलन्न्ह। गणेशक
जन्मक िाि महािे ि हुनका िजा लेलन्न्ह, िे ििालोकवन हुनकर छभभषेक कए छपन सेनाध्यक्ष िना लेलन्न्ह। ओऽ
िाड़कासुरकेँ मारर इन्रकेँ राज्य घुरा िे लन्न्ह आऽ सादठसँ वििाह कएलन्न्ह।
गणेशक जन्म- माघसूदि त्रयोिशी सुपुषय विषणुव्रि एक मासमे समाप्ि कए कैलाशमे गौरी-महािे ि रमण करए
लगलाह। विषणु िपस्िीक भेष िनाए छएलाह आऽ भूखसँ प्राण रक्षाक गप कहलन्न्ह। ओ ाओनपर छंश खथस
पड़ल आऽ गणेशक जन्म भए गेल। समारोहमे सभ छएलाह, शवनकेँ गौरी िे खए लेल कहलन्न्ह, मुिा हुनका
िे खलासँ गणेशक गरिवन कदट कए खथस पड़ल। विषणु एकटा हािीक गरिवन कादट लगा िे लन्न्ह आऽ छमृि ींदट
न्द्जआ िे लन्न्ह। गणेशक वििाह िक्षप्रजापविक िेटी पुमष्टसँ भेलन्न्ह।

गौरीक नागिन्ि किा-वहमालयक आऽ मनाइनक िाररम िेटी गौरीक वििाह महािे िसँ भेल। महािे ि भाभट पसारर
फेर हटा लेलवन।िेटी-जमाएकेँ पुष्ट भार साँदठ वििा कएलन्न्ह, से सठिे नवह करन्न्ह। भड़कवन ु लावह जखन धुरखुर
सदट ठाढ़ भेल, िखन सभटा भार विलाएल। एकिेर गौरी कहलन्न्ह जे सभक ननदि छिैि ै क, भावगन छिैि
ै क। महािे ि िवहन छशािरीकेँ िजेलन्न्ह। हुनका िेमाय फाटल लन्न्ह, िेमायमे गौरीकेँ नुका लेलन्न्ह। गौरी
कानथि िँ क्यो सुनिे नवह करन्न्ह। म्हािे ि पु ावड़ कएलन्न्ह िँ ओऽ पैर झाड़लन्न्ह। गौरी भटसँ खसलीह। िवहना
ननदि लेल माँ रान्हलन्न्ह। सभटा माँ ननदि खाऽ गेलन्खन्ह। गौरी छक भए ननदिकेँ वििा कएलन्न्ह। गौरी गंगा
जल भरए गेलीह िँ पुरिा आऽ प िा दुनू भावगन जोरसँ िहए लागल। गौरी हाि जोवड़ हँसी िन्न करए लेल
कहलन्न्ह।

गौरी थ नारर/िोरनी- गौरी कहलन्न्ह जे थ नाररकेँ मािपर ससिह आऽ िोरनीकेँ नाङरर िए दिऔक। महािे ि ििास्िु
कहलन्न्ह। गौरी मा आनए गेलीह िँ धारक कािमे महािे ि भेष ििथल माँ िेििाक लेल ठाढ़ भए गेलाह। गौरीकेँ
माँ िेििासँ मना कए िे लन्न्ह, कहलन्न्ह जे हँसी-ठट्ठा करि िखने हम छहाँकेँ माँ िे ि। गौरीकेँ महािे ि लेल माँ
लेि जरूरी लन्न्ह से ओऽ हँसी कए मा आवन, रान्न्ह महािे िकेँ खोआिए िैसलीह िँ मािपर ससिघ उवग गेलन्न्ह।
िोसर दिन महािे ि गौरीकेँ जल्िीसँ खेनाइ िनािए लेल कहलन्न्ह, िखने गौरीकेँ िीघवशंका लावग गेलन्न्ह। ओऽ
जखन िीघवशंका कए ओकरा पथियासँ झाँवप िे लन्खन्ह। जखन महािे ि ओम्हर छएलाह आऽ पु लन्खन्ह िँ ओऽ
लजा गेलीह आऽ गप िोरा लेलन्न्ह। जखन महािे िकेँ ई कहलन्न्ह िँ हुनका नाङरर भए गेलन्न्ह। गौरी थ नारर आऽ
िोरनीक िेन्ह मेटएिाक छनुरोध कएलन्न्ह। िवहयासँ ई िेन्ह मेटा गेल।
एगारहम दिनुका किा

गौरीसँ ोट आऽ वहमालयक पाँिम िेटी संध्यासँ वििाहक लेल महािे ि िोरा कए िथल गेलाह। गौरीकँ िहो-िहो नोर
िुिए लगलन्न्ह। घामे-पसीने भए गेलीह। िे हसँ मैल ु टए लगलन्न्ह िकरा ओऽ जमा केलन्न्ह आऽ साँप िनाए
पिपर ोवड़ िे लन्न्ह। महािे ि जखन संध्याक संग वििाह कए छएलाह िखन ओवह साँपमे प्राण िए िे लन्न्ह। गौरीकेँ
कहलन्न्ह जे ई साँप, लीली, छहाँक िेटी ी आऽ एकरासँ खेलएिाक लेल संध्याकेँ छनने ी। गौरी भभा कए हँथस
िे लन्न्ह।
नाहर राजा आऽ िाँिी रवनक सए िेटामे सभसँ पैघ् िेटा िैरसी महािे ि लग नोकरी करए लेल गेलाह। महािे ि हुनका
कहलन्खन्ह जे लीलीकेँ धमवकुण्डमे स्नान कराए दियौन्ह आऽ सोहागकुण्डमे आँठा डु िा दियौन्ह। मुिा ओऽ उलटा
कए िे लन्न्ह। सोहाकुण्डमे डु िलाक कारण सोहाग िड़ पैघ भेलन्न्ह। मुिा धमवकुण्डमे मात्र आँठा डु िलन्न्ह से ओकर
लेशमात्र रहलन्न्ह। से ओऽ िेरसीसँ वििाह करिाक गप कहलन्न्ह आऽ हुनकेसँ हुनकर वििाह भेल।

रवि दिनुका पविव्रिा सुकन्याक किा


एकटा राजा- आऽ िररटा हुनकर रानी लन्न्ह। ोटकी रानीटासँ एकटा िथिया सुकन्या भेलन्न्ह। एक दिन राजा
सुकन्या संगे टहलैि लाह िँ सुकन्या एकटा दििड़ाक भीड़ िे खलन्न्ह। ओवहमे दूटा िमकैि िस्िु सेहो ल। ओऽ
ओवहमे कटकीसँ भूड़ करए िाहलन्न्ह, िँ ओवहमेसँ शोवनि िहार भए गेल आऽ िीत्कार उठल। एकटा मुवन िपस्या
कए रहल लाह आऽ हुनकर दुनू आँन्ख फूदट गेल लन्न्ह। राजा हाि जोवड़ क्षमा माँगलन्न्ह िँ ओऽ सुकन्याकेँ
सेिाक लेल माँवग लेलन्न्ह। राजा कुमोनसँ सुकन्याक वििाह ओवह िूढ़ ऋवषसँ करिाए िे लन्न्ह। फेर एक दिन
छभश्वनीकुमार सुकन्याकेँ भेटलन्खन्ह आऽ हुनका लोकवनक संग पविकेँ गंगा स्नान करेिाक लेल कहलन्खन्ह। जखने
िीनू गोटे स्नान कए वनकललाह िँ एके रंग-रूपक युिा आँन्ख सवहि िाहर आवि गेलाह। आि सुकन्या हुनका
थिन्हिथि कोना। िखने ओऽ िे खलन्न्ह जे दुनू िे ििाक वपपनी िँ खथसिे नवह न्न्ह से ओऽ छपन पविकेँ िीन्न्ह
गेलीह। राजा िेटी-जमाएक खुशीमे भोज िे लन्खन्ह। िे ििा सभ सेहो छएलाह मुिा िे ििा सभ श्वनेकुमारकेँ पाँिीमे
िैथस कए खाए नवह िे मए िाहैि लाह मुिा राजाक कहलापर हुनका सभकेँ एके पाँिीमे िैसए िे लन्खन्ह।

िारहम दिनुका किा

एकटा ब्राह्मणीक साि टा िेटा लन्न्ह। ोटकी पुिोहु गरीि घरक लीह से ससु -ससुर नवह मानैि लन्न्ह। हुनका
गभव भेलन्न्ह िँ खीर पूरी खएिाक इच्छा पविकेँ कहलन्खन्ह। पवि कहलन्खन्ह जे माय हम खेि जाइि ी हमर
पनवपआइमे आइ खीर-पूरी कवनआक हािे पठा दिछ। मायकें िुझेलन्न्ह जे हो नन्द्ञ हो, ई छपन कवनआकेँ खीर-
पूरी खुआओि। से ओऽ पुिोहुक जीहपर थलन्ख कहलन्न्ह, जे घुरर कए आिी िँ ई थलखल रहिाक िाही। पुिोहु
खीर-पूरी लए खेि पहुँिलीह िँ पवि आधा-आधा खाए लेल कहलन्खन्ह। मुिा ऒऽ जीह िे खा िे लन्खन्ह। िखन
ओऽ पीपरक धोधररमे खीर-पूरी रान्ख कहलन्न्ह जे जाऊ, मायकेँ जीह िे खा कए घुर्रि आऊ। जखन ओऽ घुरलीह िँ
ओवह धोधररक िीहवड़मे रहएिला िासुकी साँपक कवनआ, जे गभवििी लीह से सभटा खीर-पूरी खाऽ गेल लीह।
ओवह सावपनकेँ िाल आऽ िसन्ि दूटा पोआ भेलैक। एक दिन िरिाहा सभ ओकरासभकेँ मारए लेल िौगल िँ
ोटकी पुिोहू ओकरा ििेलक। फेर एकर उत्तरमे िाल-िसन्ि हुनका िर मँगिाक लेल कहलन्खन्ह। पुिोहू िर
मँगलन्न्ह जे एहन कए दिछ जे हमरो नैहरक आस रहए। सैह भेल। िाल-िसन्ि वििागरी करेिाक लेल पहुंथि गेलाह
मनुषयरूप धारण कए। सासुरमे िाल-िसन्ि रूपमे पररिए िए कहलन्न्ह जे हमरा सभक जन्म िवहनक वद्वरागमनक
िाि भेल ल। वििागरी कराए रस्िामे िीहररमे पैथस कए जे वनकललाह िँ पैघ घर आवि गेल। िासुकीवन स्िागि
कए साँझमे सुआथसनक काज साँझमे िीछदठपर िीप जरेनाइ छथ - से कहलन्न्ह। िासुकीनागक फनपर ओऽ िीप
जरिथि िँ ओऽ खौँझाकए पत्नीकेँ कहलन्न्ह जे एकरा हम डथस लेि। पत्नी मना कएलन्न्ह जे छजश होएि से वििा
करए दिछ। ससुर िथल जाएि िँ जे मोन होए से करि। िसुवकनी नूआ-लहठी िए वििा करैि काल धरर ई केलन्न्ह
जे साँप रक्षकमंत्र कवनआकेँ थसखा कए िाल-िसन्िक संग वििा कए िे लन्न्ह। कहलन्न्ह जे ई मंत्र सूिएकाल पदढ़
सूिि।

िीप-िीपहरा आगू हरा मोिी मावनक भरू धरा।


नाग िड़िु, नावगन िढ़िु, पाँिो िवहन, विषहरा िढ़िु।
िाल िसन्ि भैय्या िढ़िु, डादढ़-खोदढ़ मौसी िढ़िु।
आशािरी पीसी िढ़िु, खोना-मोना मामा िढ़िु।
राही शब्ि लए सुिी, काँसा शब्ि लए उठी।
होइि प्राि सोना कटोरामे दूध-भाि खाइ।
साँझ सुिी, प्राि उठी, पटोर पवहरी किोर ओढ़ी।
ब्रह्माक िे ल कोिारर, विषणुक िाँ ल िाट।
भाग-भाग रे कीड़ा-मकोड़ा, िावह िाटे आओि।
ईश्वर महािे ि, पड़ए गरुड़केँ ठाठ।
आस्िीक, आस्िीक, आस्िीक।

िासुकी डसए लए आिथि मुिा ई मंत्र सुवन घुरर जाथि। िाररमदिन सासुकेँ डथस िीन िेर नाङरर पटवक घर सोना-
िानीसँ भरर िे लन्खन्ह।

गोसाउवनक किा- मधस्थ राजाक एकसए एक िेटीक वििाह नाहर राजाक एकसए एक िेटासँ भेलन्न्ह।सभसँ पैघ
भाए िैरसीक वििाह सभसँ पैघ कान्या गोसाउनीसँ भेलन्न्ह।वििाहकालमे िैरसीक पागसँ पवहल कवनआ महािे िक
पुत्री लीली खथस पड़लन्न्ह। लीली लािा विथ खए लागथल।गोसाउवनक वपिा मधस्थ सरापलन्न्ह जे िैरसी डेग पा ाँ
पानक विवड़या खएिाह आऽ कोश पा ाँ विररयासँ गप करिाह िँ जीिाह नवह िँ मरर जएिाह। मुिा िैरसी लीलीकेँ
मानथि। सासुरमे गोसाउवन छपन व्यिा दिछर िनाइकेँ कहलन्न्ह। ओऽ भाइकेँ कहलन्न्ह जे िाहर घुमम वफरर आऊ।
िँ िैरसी ससुरक सरापक किा कहलन्न्ह। मुिा िनाइ सभटा व्यिस्था कए भौजीकेँ कहलन्न्ह जे हम पाँि् -पाँि
कोसपर ठरिाक व्यिस्था करि छहाँ भायसँगे भेष ििथल रहू आऽ संगमे पासाक गोटी लए थलछ आऽ िकरा प्रमाण
रूपमे गाड़ैि जाएि। सैह भेल। पाँि विश्रामक िाि जखन सभ घुरर छएलाह, िखन गोसाउवनकेँ ओधु, क ु ,
महानाग, श्रीनाग, आऽ नननश्री नमक पाँिटा पुत्र भेलन्न्ह। लीली िैरसीकेँ कहलन्न्ह जे ई िनाइक सन्िान ी। मुिा
गोसाउवन पासाक गोटी िे खेलन्न्ह। िखन िैरसी लीलीकेँ मालभोग िौर आऽ खेड़हीक िाथल आऽ गोसाउवनकेँ
लोहाक िाउर आऽ पािरक िाथल थसद्ध करए कहलन्न्ह। मुिा िैयो लीली िुिे थसद्ध नन्द्ञ कएल भेलन्न्ह, मुिा
गोसाउवन सुथसद्ध कए िे लन्न्ह। ई िे न्ख कए गोसाउवनक शरीर गौरिे फादट गेलन्न्ह।

िेरहम दिनुका किा

राजा श्रीकरक कन्याक टीपभणमे ािी लाि, झोँटा हाि आऽ सौविनक पोखवड़मे छढ़ाइ झाक मादट उघि थलखल
ल। हुनकर मुइलाक िाि हुनकर िेटा िन्रकर जंगलमे एकटा सोन्न्ह िना कए एकटा िेरीसंगमे िए राजकुमारीकेँ
ओिए रान्ख िे लन्न्ह। जंगलमे सुिणव राजाकेँ ओऽ भेँट भेलीह िँ दुनू गोटे जाए लगलाह िँ राजकुमारी साओन सूदि
िृवियाकेँ मधुश्रािणी पािवनक लेल सासुरक छन्न खएिाक आऽ िस्त्र पवहरिाक प्रिाक मोन पावड़ कहलन्न्ह जे ई
दुनू िस्िु छिश्य पठायि। राजा राज्य जाए कारीगरकेँ िस्त्रलेल कहलन्न्ह िँ िड़की रानी सुवन लेलन्न्ह आऽ िस्त्रमे
ािी-लाि आऽ झोँटा हाि थलन्ख िे िाक लेल कहलन्न्ह। कौआकेँ जखन ई िस्त्र पहुँिि े ाक भार राज िे लन्न्ह िँ
ओऽ रस्िामे किहु भोज-भाि खए लागल आऽ सनेस पहुँिेनाइ विसरर गेल। राजा सेहो सभटा विसरर गेलाह।
मधुश्रािणी दिन राजकुमारी गौरीक पूजन उज्जर िानन-फूलसँ कएलन्न्ह आऽ कहलन्न्ह जे जवहया राजा भेँटा होथि
िवहआ हम िौक भए जाइ। जखन िन्रकरकेँ पिा िलल जे राजकुमारी वििाह कए लेलन्न्ह िँ ओऽ खरिा िन्ि
कए िे लन्न्ह। आि दुनू गोटे राजकुमारी छऽ िेरी सुिणव राजाक िड़की रानी द्वारा खुनाओल जाए रहल पोखवड़मे
मादट उघए लगलीह। सुिणव एक दिन वहनका लोकवनकेँ िे खलन्खन्ह िँ हुनका सभटा मोन पवड़ गेलन्न्ह। ओऽ हुनका
राज्य लए छनलन्न्ह। मुिा राजकुमारी िजिे नवह करथि। िेरी सभटा गप िुझेलन्न्ह िँ राजा कहलन्न्ह जे ई कौआक
गलिी छथ । िखन रानी छवगला मधुश्रािणीमे लाल िाननसँ गौर पुजलन्न्ह आऽ हुनकर िकार घुरर गेलन्न्ह आऽ
सुखसँ जीिन वििािए लगलीह।

श्रीगणेशजी मधुश्रािणी दिन मए गौरीसँ कहलन्न्ह जे आइ हम सोहाग मिि आऽ िाँटि। धान-धन्य, काठक िामा,
नीम िेल आऽ आमक काठीसँ ओऽ सोहाग मथि सभकेँ िँटलन्न्ह।

झूलन

साओन मासक शुक्लपक्ष पुत्रिा एकािशीसँ प्रारम्भ भए पाँि दिनक िाि सलौनी पूर्त्णिमा धरर काठक झूला, आङी,
टोपी, िद्दरर , रेशमी डोरीसँ सजािट कए झूला गाओल जाइि छथ ।

भाििमास कृषणपक्ष छष्टमी विथिक १२ िजे राविमे कृषणक जन्म भेलन्न्ह।


सियुगमे केिार नाम्ना राजा परम्परानुसार िृद्धािस्था प्राप्ि भेलापर पुत्रकेँ राज्यभार िए िपस्याक लेल िोन िथल
गेलाह। केिारक एकेटा पुत्री लन्न्ह िृन्िा नाम्ना। ओऽ भरर न्द्जनगी यमुना िटपर घोर िपस्या केलन्न्ह। छन्िमे
भगिान प्रकट भए िर मँगिाक लेल कहलन्न्ह। िृन्िा कहलन्खन्ह जे छहाँ हमर िर िनू। ओऽ िोन जिए िृन्िा
िपस्या कएलन्न्ह िृन्िािनक नामसँ प्रथसद्ध भेल। ओिए यमुनाक निीक वनिुलका िभक्षण िटपर मधुपुरी नामक
नगर िसेलक। शत्रुघन ओवह िै त्यकेँ मारर मधुपर (मिुरा) न्द्जिलन्न्ह। द्वापरमे ई शूरसेनक राजधानी िनल।
यािि,छंधक भोज एिए राज केलन्न्ह। भोजराज उग्रसेनकेँ हुनकर िेटा कंस गद्दीपरसँ उिारर िे लकन्न्ह। हुनकर
िवहन यदुिंशी क्षवत्रय िासुिेिसँ वियाहल लीह। एक दिन कंस िे िकीकेँ सासुर पहुँिािए जाऽ रहल लाह मुिा
आकाशिाणी भेल जे िे िकीक आठम िच्चा कंसकेँ मारि से ओऽ छपन िवहन िवहनोईकेँ कारागारमे धऽ िे लक।
िे िकीक साि टा सन्िानकेँ ओऽ मरिा िे लक। भािि मासक रोवहणी नक्षत्रक कृषणपक्षक छष्टमी विथिक
छन्हररयामे मूसलधार िरखामे कारागारमे प्रकाश भए गेल आऽ भगिान शंख-िक्र-गिा-पद्म लए ठाढ़ भए गेलाह,
कहलन्न्ह जे हमरा जन्म होइि िे री िृन्िािन नन्िक घर िए आउ आऽ ओिए एकटा िथिया िक्ण्डका जन्म लेने
छथ , ओकरा आवन कए कंसकेँ िए दिऔक। मायासँ सभ पहरेिार सूवि जाएि, फाटक सभ छपने खुन्द्ज जाएि,
यमुना मैय्या स्ियं रस्िा िए िे िीह। िासुिेि सएह कएलन्न्ह। भोरमे कंस एकटा पािरपर एकटा रजक द्वारा
पटकिाय जखने ओवह िथियाकेँ मारए िाहलन्न्ह उवड़ गेलीह आऽ कहलन्न्ह जे हुनका मारए िला िृन्िािन पहुँथि
गेल छथ । कंस किेको राक्षसकेँ पठे लक कृषणकेँ मारिाक लेल मुिा िैह सभ मारल गेल। पैघ भए कृषण मिुरा
आवि कंसकेँ मारर मािा-वपिाकेँ कारागारसँ ोड़ाओल आऽ फेर वक ु दिनका िाि गोपी-सखाकेँ ोवड़ द्वारका
िथल गेलाह।
2.हररिाथलका/ िौरिन्र/ छनंि ििुिवशी- गजेन्र ठाकुर

हररिाथलका पूजा व्रि (िीज)


विथि भािि शुक्ल िृवियाकेँ कुमारर कन्या सोहागक लेल व्रि करैि थि। किा एवह प्रकारेँ छथ । सूिजी- पािविी
थशिसँ थशिसन िरप्रात्प्िक व्रिक विषयमे पु ै ि थि िँ ओऽ उत्तर िै ि थि जे वहमिान पहाड़पर छहाँ भािि
शुक्ल िृवियाकेँ ई व्रि कएने रही िारह िषव उल्टा टांग मात्र धुँआ पीवि कए, मघमे जलमे िैथस, श्रािनमासमे िषावमे
आऽ िैसाख दुपहररयामे पंिान्ननमे। िखन छहाँ वपिा नारिकेँ कहलन्न्ह जे ओऽ पािविीक वििाह विषणुसँ
करओिाह। ई सुवन छहाँ सखीक घरपर कानए लगलहुँ जे हम िँ पात्र थशिकेँ छपन पवि िनाएि आऽ छपन सखेक
संग गंगाकाि खोहमे िथल गेलहुँ आऽ भािि शुक्ल िृवियाकेँ हमर िालूक प्रविमाक पूजा कएलहुँ िखन हम आवि
छहाँकेँ पवि होएिाक िर िे लहुँ। िखन छहाँ हमर िालुक प्रविमाक विसजवन कए पारण केलहुँ, िखने छहाँक वपिा
सेहो पहुँथि गेलाह आऽ छहाँकेँ घर छनलन्न्ह आऽ हमरासँ छहाँक वििाह भेल। छहाँक सखी छहाँकेँ हररकए लए
गेल लीह िँ एवह व्रिक नाम हररिाथलका पड़ल।

िौरिनक किा

सनत्कुमारकेँ नन्द्न्िकेश्वर योगीन्र किा सुनिैि थि- कृषण ममथ्या आरोपसँ दुन्खि भए गणेश आऽ िन्रमाक पूजा
कएलन्न्ह। पृथ्िीक भार उिारए लेल िलराम, कृषण आऽ कमलनाभ उत्पन्न भेलाह। कंसक िध कृषण कएलन्न्ह।
मुिा कंसक ससुर जरासन्धक आक्रमण संकट िे न्ख प्पन करोड़ यदुिंशीक आऽ सोलह हजार आठ स्त्रीिगवक संग
द्वारका छएलाह।
संत्रान्द्जि सूयवक उपासना द्वारका िटपर कए स्यामन्िक मभण- जे सभ दिन आठ भार सोना उत्पन्न करैि ल-
पओलन्न्ह। ओऽ एकरा छपन भाइ प्रसेनकेँ िए िे लन्न्ह। राजा उग्रक दुनू सन्िान लाह- संत्रान्द्जि आऽ प्रसेन। एक
दिन कृषण आऽ प्रसेन थशकार खेलाए लेल िोन गेलाह िँ एकटा थसह प्रसेन कए मारर मभण लए वििा भेल िँ
जाम्ििान भालु ओवह ससिहकेँ मारर मभण छपन पुत्रकेँ खेलाए लेल िए िे लन्न्ह। कृषण जख्न छसगरे आवपस भेलाह
िखन सभ हुनकापर प्रसेनक हत्या मभणक लोभमे करिाक आरोप लगओलक। िखन कृषण सभकेँ लए िोन गेलाह
िँ ससिह आऽ प्रसेनकेँ मुइल िे खलन्न्ह आऽ जाम्ििानक पुत्र सुकुमारक झूलामे लटकल मभण िे खलन्न्ह। जाम्ििानक
पुत्री कृषणकेँ मभण लए भागए कहलन्न्ह, मुिा कृषण शंख फुवक साि दिन खोहमे भेल युद्धक िाि द्वारकािासी
द्वारका घुरर कृषणक छत्न्िम संस्कार मृि िुन्द्झ कएल, मुिा २१ म दिन जाम्ििान हारर मावन पुत्रीक वििाह हुनकासँ
कराए मभण उपहारमे िे लन्न्ह। कषण ओवह मभणकेँ संत्रान्द्जिकेँ िए िे लन्न्ह। संत्रान्द्जि हुनकापर ममथ्या आरोपसँदुखी
भए छपन पुत्रीक वििाह कृषणसँ कराओल आऽ स्यामन्िक मभण कृषणकेँ िे ल मुिा कृषण नवह लेलन्न्ह।
फेर कृषण-िलराम जखन िाहर लाह िखन शिधन्िा सत्रान्द्जिकेँ मारर मभण लए लेलक आऽ छक्रूर याििकेँ िए
छपने भावग गेल। सत्यभामाक कहलापर कृषण-िलराम ओकरा खेहारलन्न्ह, कृषण ओकरा मारल मुिा मभण नवह
भेटल, ई किा सुवनिे िलरामकेँ ई शंका भेल जे कृषण कपट करैि थि, से ओऽ कृषण द्वारका छएलाह मुिा
िलराम वििभव िल गेलाह, छक्रूर िीिवयात्रापर वनकथल गेलाह, मभण धारण कए काशीमे सूयवक उपासना करए
लागल।
िखन नारि कृषणकेँ भार शुक्ल िौठमे िन्रमाक िशवन कएलाक कारण ई कलंक लागल, से कहलवन, कारण
रूपक गिवमे िन्रमाकेँ गणेशजी श्राप िे लन्न्ह जे एवह दिन हुनकर िशवन करएिलाकेँ कलंक लागि।
ब्रह्मा-विषणु-महेश वनर्ििघ्निे िक छष्टथसन्द्द्ध पूजा कएल आऽ जखन ओऽ घुरर रहल लाह िँ िन्रमा हुनकर हािी
िला मस्िक, पैघ पेट िे न्ख कए हँथस िे लन्न्ह आऽ ई श्राप पओलन्न्ह। िखन एवह ििुिी विथिकेँ ब्रह्माक कहल
छनुसार गणेशक पूजा भेल फेर िन्रमाक छनुनय-विनयपर ई िर िे ल जे जे क्यो भार शुक्ल िौठमे हिमे फल-फूल
लए मंत्रक संग छहाँ िशवन करि ओकरा कलंक नवह लागि।
छनंि पूजा
छनन्ि भाििमास शुक्ल पक्ष ििुिवशीकेँ छनन्ि पूजा होइि छथ । किा- जुआमे हारल युमधमष्ठरकेँ िोनमे कृषण एवह
व्रि करिाकलेल कहलन्न्ह आऽ किा सुनओलन्न्ह। सत्ययुगमे सुमन्ि नाम्ना ब्राह्मण भृगुक कन्या िीक्षासँ वििाह
कएलन्न्ह। मुिाक शील जन्मक िाि िीक्षाक मृत्यु भए गेलन्न्ह। फेर सुमन्िक वििाह ककवशासँ भेलन्न्ह ओऽ शीलाकेँ
कष्ट िे मए लागथल। फेर शीलाक वििाह कौक्ण्डन्यसँ भेलन्न्ह। दुनू गोटे छनन्ि ििुिवशीक दिन यमुना िटपर घुरि ै
कल जाइि लाह िँ स्त्रीगण लोकवन हुनका िाँवहपर छनन्िक िाग िान्न्ह िे लन्न्ह जावहसँ हुनकर सभक घर
गृहस्िीमे समृन्द्द्ध आयल। घरमे माभणक्य रवहिहुँ ई िाग िे न्ख एक दिन पवि ओकरा िोवड़ आवगमे फेंवक िे लन्न्ह।
शील जरल डोरकेँ वनकाथल दूधमे रान्ख लेल। आि विपभत्त शुरू भए गेल आऽ घरमे आएल िरररिाकेँ िे न्ख
कौक्ण्डन्य िोन िथल गेलाह। ओिए छनन्ि भगिान हुनका विषणु लग लए गेलन्खन्ह। ओऽ हुनका छनन्ि व्रि १४
िरख धरर करिाक लेल कहलन्न्ह।
मिथिला सङ्गीि

रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, िागयकार, थशक्षक आऽ मंि सम्पािक थि।


रामरगजीसँ गप शप। (६ जुलाई २००८)

गजेन्र ठाकुर: गोर लगैि ी। स्िास्थ्य केहन छथ ।


रामरंग: ८० िरख पार केलहुँ। संगीिमे िहटरल रहैि ी।
गजेन्र ठाकुर: संगीिक िँ छपन फराक भाषा होइि ै क। मैथिली संगीि विद्यापवि आऽ लोिन सँ शुरू भए छहाँ
धरर छिैि छथ । मैथिलीमे छहाँ थलखनवहओ ी।
रामरंग: छपन ममथिलासँ सम्िन्धन्धि हम िीन रागक रिना केलहुँ छथ , जकर नाम ऐ प्रकारसँ छन्धच्चह।
१.राग िीरभुक्क्ि, राग विद्यापवि कल्याण ििा राग िैिेही भैरि। ऐ िीनू रागमेसँ िीरभुक्क्ि आर विद्यापवि
कल्याणमे मैथिली भाषामे खयाल िनल छथ । हमर संगीि रामायणक िालकाण्डमे रागभूपाली आर विलािलमे
सेहो मैथिली भाषामे खयाल ै क। आर सन्गीि रामायणक पृष्ठ ३ पर विलािलमे श्री गणेशजीक िन्िना ििा पृष्ठ
२० पर राग भूपालीमे श्री शंकरजीक िन्िना छथ । पृष्ठ ८७ पर राग िीरभुक्क्िमे ममथिला प्रिे शक िन्िना छथ आर
पृष्ठ १२० पर राग िैिेही भैरिक (वहन्िीमे) रिना छथ । “छभभनि गीिाञ्जलीक पंिम भागमे २६५ आर २६६ पृष्ठ
पर विद्यापवि कल्याण रागमे विलन्धम्िि एिं द्रुि खयाल मैथिली भाषामे छथ । ममथिला आऽ मैथिलीमे हम उपरोक्ि
सामग्री िनओने ी।

गजेन्र ठाकुर: मुिा पूणव रागशास्त्र विद्यापवि कल्याणक, िीरभुक्क्िक िा िैिेही भैरिक नन्द्ञ छथ । मैथिलीमे आरो
रिना छहाँ…
रामरंग: िहुि रिना मोन छथ , मुिा के सीखि आऽ के लीखि। हाि िरिराइि छथ आि हमर।
गजेन्र ठाकुर: कमसँ कम ओवह िीनू रागक रिना शास्त्र थलन्ख िै वियैक िँ हम पुस्िकाकार ावप सवकिहुँ।
रामरंग: जे रिना सभ हम िे ने ी ओकरा ावप दिऔक। हाि िरिराइि छथ , िैयो हम िीनूक विस्टुि वििरण
पठायि, थलखैि ी।
गजेन्र ठाकुर: प्रणाम।
रामरंग: वनकेना रहू।
रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, िागयकार, थशक्षक आऽ मंि सम्पािक थि।
राग विद्यापवि कल्याण- एकिाल (विलन्धम्िि)

मैथिली भाषामे श्री रामाश्रय झा “रामरंग” केर रिना।


स्थाई- किेक कहि गुण छहांके सुिन गणेश विद्यापवि विद्या गुण वनधान।
छन्िरा- ममथिला कोवकला वकर्िि पिाका “रामरंग” छहां थशि भगि सुजान॥

स्थायी
– – रेग॒म॑प ग॒रेसा
ऽऽ क िे ऽऽ क क ऽ

रे सा (सा) वन॒ध वनसा – रे वन॒ध प धवन सा सारे ग॒रे रेग॒म॑ओछ – म॑


ह ि ऽ ऽ ऽ गु न ऽ छ हां, ऽऽ के ऽ ऽ सुि नऽ ऽऽऽऽ ऽ ग

प प धवन॒ धप धवनसां – – रें सां वन धप (प)ग॒ रे सा रे ग॒म॑प ग॒ रेसा


ने स विऽ द्याप वि ऽऽ ऽ ऽवि द्या गुन वनधा न, क िे ऽऽऽ क, कऽ

छन्िरा

पप वन॒ध वनसां सांरें


ममथि लाऽ ऽऽ कोवक

सां – वनसांरेंगं॒ रें सां रें वन सांरे वन॒ धप प (प) ग॒ रेसा


लाऽ की ऽऽऽ वि प िा ऽ ऽऽ का ऽऽ रा म रं ग छ

रे सासा धवन॒प ध वनसा -सा रे ग॒म॑प -ग॒ सारे सा,सा रेग॒म॑प ग॒, रेसा
हां थशि भऽ, ग िऽ ऽसु जाऽऽऽ ऽ ऽ न ऽ, क िे ऽऽऽ क,कऽ

*गंधार कोमल, मध्यम िीव्र, वनषाि दुनू आऽ छन्य स्िर शुद्ध।


रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, िागयकार, थशक्षक आऽ मंि सम्पािक थि।
राग विद्यापवि कल्याण- एकिाल (विलन्धम्िि)

मैथिली भाषामे श्री रामाश्रय झा “रामरंग” केर रिना।


स्थाई- किेक कहि गुण छहांके सुिन गणेश विद्यापवि विद्या गुण वनधान।
छन्िरा- ममथिला कोवकला वकर्िि पिाका “रामरंग” छहां थशि भगि सुजान॥

स्थायी
– – रेग॒म॑प ग॒रेसा
ऽऽ क िे ऽऽ क क ऽ

रे सा (सा) वन॒ध वनसा – रे वन॒ध प धवन सा सारे ग॒रे रेग॒म॑ओछ – म॑


ह ि ऽ ऽ ऽ गु न ऽ छ हां, ऽऽ के ऽ ऽ सुि नऽ ऽऽऽऽ ऽ ग
प प धवन॒ धप धवनसां – – रें सां वन धप (प)ग॒ रे सा रे ग॒म॑प ग॒ रेसा
ने स विऽ द्याप वि ऽऽ ऽ ऽवि द्या गुन वनधा न, क िे ऽऽऽ क, कऽ

छन्िरा

पप वन॒ध वनसां सांरें


ममथि लाऽ ऽऽ कोवक

सां – वनसांरेंगं॒ रें सां रें वन सांरे वन॒ धप प (प) ग॒ रेसा


लाऽ की ऽऽऽ वि प िा ऽ ऽऽ का ऽऽ रा म रं ग छ

रे सासा धवन॒प ध वनसा -सा रे ग॒म॑प -ग॒ सारे सा,सा रेग॒म॑प ग॒, रेसा
हां थशि भऽ, ग िऽ ऽसु जाऽऽऽ ऽ ऽ न ऽ, क िे ऽऽऽ क,कऽ

रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, िागयकार, थशक्षक आऽ मंि सम्पािक थि।


२.राग विद्यापवि कल्याण – वत्रिाल (मध्य लय)

स्थाई- भगवि िश भेला थशि न्द्जनका घर एला थशि, डमरु वत्रशूल िसहा विसरर उगना भेष करथि िाकरी।
छन्िरा- जननी जनक धन, “रामरंग” पािल पूि एहन, ममथिलाक केलन्न्ह ऊँि पागड़ी॥

स्थाई- रे

सा गम॑ प म॑ प – – म॑ग॒ – रे सा सारे वन सा -, वन
ग विऽऽ ि श ऽ ऽ भे ऽ ला ऽ थश ऽ ि ऽ ऽ न्द्ज

ध़ वन सा रे सा वन॒ – प़ ध़ वन॒ ध़ प़ – वन सा – – सा
न का ऽ घ र ऽ ऽ ए ऽ ला ऽ थश ि ऽ ऽ ड

रे ग॒ म॑ प प – प वन॒ ध प म॑ प धवन सां सां गं॒


म रु ऽ वत्र शू ऽ ल ि स हा ऽ वि सऽ ऽऽ रर उ

रें सां वन रें सां वन॒ ध प म॑ प पवन॒ ध प – -ग — रे


ग ना ऽ ऽ भे ऽ ष क र थि िाऽ ऽ कऽ ऽरी ऽऽ, भ

छन्िरा प

प वन सां सां सां – – ध वन – ध वन वन सां रें सां -, वन


न नी ऽ ज न ऽ ऽ ऽ ऽ क ध न ध न ऽ, रा

वन सां – गं॒ रें सां सां वन – ध वन सां वन॒ ध प ग॒


म॑ प वन सां सां वन॒ ध प म॑ प पवन॒ ध प- -ग – रे
थि ला ऽ क के ल न्न्ह ऊँ ऽ ि पाऽऽ गऽ ऽड़ी ऽऽ,भ
***गंधार कोमल, मध्यम िीव्र, वनषाि िोनों ि छन्य स्िर शुद्ध।

राग विद्यापवि कल्याण- एकिाल (विलन्धम्िि)

मैथिली भाषामे श्री रामाश्रय झा “रामरंग” केर रिना।


स्थाई- किेक कहि गुण छहांके सुिन गणेश विद्यापवि विद्या गुण वनधान।
छन्िरा- ममथिला कोवकला वकर्िि पिाका “रामरंग” छहां थशि भगि सुजान॥

स्थायी
– – रेग॒म॑प ग॒रेसा
ऽऽ क िे ऽऽ क क ऽ

रे सा (सा) वन॒ध वनसा – रे वन॒ध प धवन सा सारे ग॒रे रेग॒म॑ओछ – म॑


ह ि ऽ ऽ ऽ गु न ऽ छ हां, ऽऽ के ऽ ऽ सुि नऽ ऽऽऽऽ ऽ ग

प प धवन॒ धप धवनसां – – रें सां वन धप (प)ग॒ रे सा रे ग॒म॑प ग॒ रेसा


ने स विऽ द्याप वि ऽऽ ऽ ऽवि द्या गुन वनधा न, क िे ऽऽऽ क, कऽ

छन्िरा

पप वन॒ध वनसां सांरें


ममथि लाऽ ऽऽ कोवक

सां – वनसांरेंगं॒ रें सां रें वन सांरे वन॒ धप प (प) ग॒ रेसा


लाऽ की ऽऽऽ वि प िा ऽ ऽऽ का ऽऽ रा म रं ग छ

रे सासा धवन॒प ध वनसा -सा रे ग॒म॑प -ग॒ सारे सा,सा रेग॒म॑प ग॒, रेसा
हां थशि भऽ, ग िऽ ऽसु जाऽऽऽ ऽ ऽ न ऽ, क िे ऽऽऽ क,कऽ

*गंधार कोमल, मध्यम िीव्र, वनषाि दुनू आऽ छन्य स्िर शुद्ध।

३.श्री गणेश जीक िन्िना


राग विलािल वत्रिाल (मध्य लय)
स्थाई: विघन हरन गज ििन िया करु, हरु हमर दुःख-िाप-संिाप।
छन्िरा: किेक कहि हम छपन छिगुन, छधम आयल “रामरंग” छहाँ शरण।
आशुिोष सुि गण नायक िरिायक, सि विमध टारु पाप।

स्थाई
वन
ग प ध वन सा वन ध प ध वन॒ ध प म ग म रे
वि ध न ह र न ग ज ि ि न ि या ऽ क रु
ग ग म वन॒ ध प म ग ग प म ग म रे स सा
ग रु ऽ ह म र दु ख िा ऽ प सं िा ऽ प ऽ

छन्िरा
वन रें
प प ध वन सां सां सां सां सां गं गं मं गं रें सां –
क िे क क ह ि ह म छ प न छ ि गु न ऽ
रे
सां सां सां सां ध वन॒ ध प ध ग प म ग ग प प
छ ध म आ य ल रा म रे ऽ ग छ हां श र ण

ध प म ग म रे सा सा सा सा ध – ध वन॒ ध प
आ ऽ शु िो ऽ ष सु ि ग ण ना ऽ य क ि र
धवन संरें वन सां ध वन॒ ध प पध वन॒ ध प म ग म रे
िाऽ ऽऽ य क स ि वि ध टाऽ ऽ रु ऽ पा ऽ ऽ प

४.ममथिलाक िन्िना
राग िीरभुक्क्ि झपिाल

स्थाई: गंग िागमिी कोशी के जहँ धार, एहेन भूमम कय नमन करूँ िार-िार।
छन्िरा: जनक यानयिल्क जहँ सन्ि विद्वान, “रामरंग” जय ममथिला नमन िोहे िार-िार॥

स्थाई

रे – ग म प म ग रे – सा
गं ऽ ग ऽ िा ऽ ग म ऽ िी


सा वन ध़ – प़ वन वन सा रे सा
को ऽ शी ऽ के ज हं धा ऽ र

सा
म ग रेग रे प ध म पवन सां सां
ए हे नऽ ऽ भू ऽ मम कऽ ऽ य


सां वन प ध (ध) म ग रे सा सा
न म न क रुँ िा ऽ र िा र

छन्िरा
प पध म – प वन वन सां – सां
ज नऽ क ऽ ऽ या नय ि ऽ ल्क
रें रें गं – मं मं गं रें – सां
ज हं सं ऽ ि वि ऽ द्वा ऽ न
ध प
सां वन प ध म प वन सां सां सां
रा म रं ऽ ग ज य मम थि ला

सां वन प ध (ध) म ग रे सा सा
न म न िो हे िा ऽ र िा र
५.श्री शंकर जीक िन्िना
राग भूपाली वत्रिाल (मध्य लय)

स्थाई: किेक कहि दुःख छहाँ कय छपन थशि छहूँ रहि िुप सामध।
छन्िरा: सिििा वििा िरह िरह क छथ , िन लागल छथ व्यामध,
“रामरंग” कोन कोन गनि सि एक सय एक छसाध्य॥

स्थाई
प ग ध प ग रे स रे स ध सा रे ग रे ग ग
क िे क क ह ि दुः ख छ हाँ कय छ प न थश ि

ग ग – रे ग प ध सां पध सां ध प ग रे सा –
छ हूँ ऽ र ह ि िु प साऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ मध ऽ

छन्िरा

प ग प ध सां सां – सां सां ध सां सां सां रें सां सां
सिि ऽ िा ऽ वि िा ऽ ि र ह ि र ह क छ थ

सां सां ध – सां सां रें रें सं रे गं रें सां – ध प


ि न ला ऽ ग ल छ थ व्या ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ मध ऽ

सां – ध प ग रे स रे सा ध स रे ग रे ग ग
रा ऽ म रं ऽ ग को न को ऽ न ग न ि स ि

ग ग ग रे ग प ध सां पध सां ध प ग रे सा –
ए क स य ए ऽ क छ साऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ध्य ऽ

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