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अर्हं योग प्रणेता पूज्य मुनि श्री 108 प्रणम्यसागर जी महाराज के रजत दीक्षा वर्ष

माघ सुदी पूर्णिमा, वीर नि. सं. 2548, सन् 2022 के पावन अवसर पर प्रकाशित

धर्म का मर्म

अर्हं योग प्रणेता


मुनि श्री १०८ प्रणम्यसागर जी

प्रकाशक
आचार्य अकलंकदेव जैन विद्या शोधालय समिति
109, शिवाजी पार्क, देवास रोड, उज्जैन

धर्मं का मर्म 1
कृति : धर्म का मर्म (अपने को समझें)
आशीर्वाद : परम पूज्य सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
प्रवचन : अर्हं योग प्रणेता मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महाराज
प्रवचन स्थान : अर्हं स्वधर्म शिविर 2020, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
संयोजन : टीम अर्हं
मूल्य : स्वाध्याय एवं भक्ति (पुनः प्रकाशन हे तु रुपए 150/- मात्र)
संस्करण : प्रथम, 2022
अधिकार : © सर्वाधिकार सुरक्षित
किसी को भी प्रकाशित करने का अधिकार है । किताब का स्वरुप, ग्रन्थ नाम, लेखक
संपादक एवं स्तर परिवर्तन न करें । प्रकाशन से पहले लिखित अनुमति आवश्यक है ।
प्रकाशक : आचार्य अकलंक देव जैन विद्या शोधालय समिति
109, शिवाजी पार्क, देवास रोड, उज्जैन मोबाइल: 9425092483
आईएसबीएन : 978-81-953579-8-7
पुण्यार्जक : श्री महक जैन, श्रीमती निधि जैन, एरिष जैन, एरा जैन गुड़गाँव
(मुनि श्री के 48वें अवतरण दिवस के उपलक्ष में और
पिता श्री व्रती धर्मचन्द्र जैन के 70वें जन्म दिवस के उपलक्ष में)
प्राप्ति स्थान :
1.आचार्य अकलंक देव जैन विद्या शोधालय समिति
109, शिवाजी पार्क, देवास रोड, उज्जैन
मोबाइल: 9425092483
2. आर्हत विद्या प्रकाशन गोटे गाँव
मोबाइल: 9425837476
मुद्रक : अरिहं त ग्राफिक्स, दिल्ली
मोबाइल- 9958819046
परम पूज्य सन्त शिरोमणि आचार्य
श्री 108 विद्यासागर जी महाराज
अर्हं योग प्रणेता मुनि श्री 108 प्रणम्यसागर जी महाराज

पूर्व नाम : ब्र. सर्वेश जी


पिता-माता : श्री वीरेन्द्रकुमार जी जैन, श्रीमती सरितादेवी जैन
जन्म : 13.09.1975, भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
जन्म स्थान : भोगाँव, जिला-मैनपुरी (उ.प्र.)
शिक्षा : बी. एस. सी. ( अंग्रेजी माध्यम)
भाई : सचिन जैन
बहिन : सपना जैन
गृहत्याग : 09.08.1994
क्षुल्लक दीक्षा : 09.08.1997, नेमावर
ऐलक दीक्षा : 05.01.1998, नेमावर
मुनि दीक्षा : 11.02.1998, माघसुदी 15, बुधवार, मुक्तागिरिजी
दीक्षा गुरु : संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
अर्हं योग प्रणेता मुनि श्री 108 प्रणम्यसागर जी महाराज
प्रस्तावना
संतशिरोमणि आचार्य श्री
विद्यासागर जी महाराज के
ज्ञानध्यानतपोरत शिष्य अर्हं योग प्रणेता
मुनिश्री प्रणम्य सागर जी महाराज
संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिं दी एवं
आंग्ल भाषा के अद्वितीय, न्यायविद्
दार्शनिक चिं तक विद्वान है । उनके द्वारा
संस्कृत, प्राकृत, आंग्ल एवं हिं दी भाषा
में मौलिक कृतियों का प्रणयन हुआ है ,
अनेक ग्रंथों पर टीकायें रची गयी हैं तथा
अनेक रचनाओं का हिं दी पद्यानुवाद
किया गया है ।
यह मुनि श्री 108 प्रणम्य सागर जी
महाराज के मुजफ्फरनगर 2020 के चातुर्मास प्रवास के दौरान पर्यूषण पर्व में दिए गए
प्रवचनों का संकलन है । जिस समय पूरा देश corona virus के संकट से गुजर रहा था,
देश के साथ-साथ विदेशों में भी यह एक महामारी के रूप में फै ली हुई बीमारी थी। उस
समय कोरोना महामारी से हर जगह भय और असुरक्षा का वातावरण था, सभी लोग घरों में
कैद हो कर रह गए थे। सब की दिनचर्या ही बदल गयी थी। हर व्यक्ति चाहे कितना ही व्यस्त
क्यों न हो, दशलक्षण धर्म के दस दिनों में ज्यादा से ज्यादा धर्म-साधना करके अपने कर्मों
की निर्जरा करना चाहता है । उस कठिन समय में धर्म-साधना, पूजन तो दूर, मंदिर के दर्शन
भी दुर्लभ थे। परन्तु मुनि श्री प्रणम्य सागर जी की सोच और उनकी दूरदृष्टि ने इस कठिन
समय में आपदा को भी सम्पदा में बदल दिया था।
उनका कहना था-
“A Positive Thinker See An Opportunity In
Every Difficulty And A Negative Thinker See
Difficulty In Every Opportunity”
“चुनौती को भी अवसर में बदलना है ”
Attitude इतना positive होना चाहिए कि मंदिर में जाकर पूजा करने को न भी
मिले तो भी यह सोचना चाहिए कि यह समय बहुत ही अच्छा है क्योंकि जो हम पहले रूढ़िओं
से, परम्पराओं से करते चले आ रहे हैं , उससे कुछ अच्छा करने का मौका आया है । धर्म को
जीने का, धर्म को अपनी आत्मा में आत्मसात् करने का और अपने मन-मंदिर में जाने का
अच्छा मौका है ।
धर्म की आराधना के लिए सुरक्षित वातावरण सिर्फ घरों में दिखाई दे रहा था। ऐसी
विषम परिस्थिति में गुरुवर प्रणम्य सागर जी के सान्निध्य में घर पर रहकर दशलक्षण पर्व को
मनाने का अवसर अर्हं टीम द्वारा आयोजित ‘अर्हं स्व-धर्म शिविर’ से सभी को प्राप्त हुआ।
किसका धर्म? स्व-धर्म, स्व का धर्म। पर्यूषण पर्व एक अद्भुत पर्व है । हर वर्ष पर्यूषण पर्व में
दस धर्मों पर चिन्तन-मनन चलता है । मुनिश्री के अनुसार दस-धर्म जीवन जीने की कलायें
हैं और इनका उपयोग करके हम अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं । कहने को तो धर्म
के लक्षण दस हैं किन्तु यथार्थ में एक धर्म अन्दर आने से सब दस धर्म अन्दर आ जाते हैं ।
गुरु महाराज की अनुकम्पा से यह स्व-धर्म शिविर आयोजित किया गया जिससे विश्व के
सभी राष्ट्रों के जैन बंधु घर में ही रह कर गुरु सानिध्य का लाभ ले सकें। चिं तन करना,
अनुभूति करना बहुत ही कठिन होता है । अपने विचारों और मन से परे अपने क्षमा, मार्दव,
आर्जव आदि स्व-स्वरुप को अनुभव करने के लिए इस शिविर का format कार्यशाला की
तरह था जो कि बहुत ही अनोखा और अद्वितीय था। 400 प्रतिनिधियों के द्वारा करीब
10000 श्रावक इस कार्यशाला से जुड़े।
प्रत्येक दिन की शुरुआत मुनि श्री के ध्यान और उस दिन के धर्म के प्रवचन से होती थी,
जिसके बाद short videos के द्वारा योग और उपयोग के tips दिए जाते थे। दोपहर को
तत्त्वार्थ सूत्र (पहला अध्याय) और संध्या में पृच्छना स्वाध्याय के द्वारा मन में उठ रही
जिज्ञासाओं का समाधान मुनि श्री द्वारा दिया जाता था। दिन की समाप्ति पर उस दिन का
अनुभव एवं कार्यों की पूर्ति के लिए स्व-संवेदन forms के through feedback लिया
जाता था। ऐसी विषम परिस्थिति में गुरुवर की देशना हर किसी को एक नई दिशा प्रदान
कर रही थी। मुनिश्री के उपदेशों से धर्म की प्रभावना में वृद्धि हुई।
‘उत्तम क्षमा’ पर प्रवचन कर मुनि श्री ने समझाया कि क्रोध हमारा स्वभाव नहीं है , क्षमा
हमारा स्वभाव है । क्षमा का मतलब है - पृथ्वी की तरह सहनशील होना। अपेक्षाओं की पूर्ति
न होना क्रोध का आधार बन जाता है मतलब हम dependent हो जाते हैं । हमें
dependency को दूर कर independent बनना है । फिर हम 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्'
के भाव में आएँगे जो कि inter-dependency की stage कहलाती है ।

धर्मं का मर्म 7
आत्मा की योग्यता बढ़ाने के लिए अपनी आत्मा में जो मान कषाय बैठी है उसको ढीला
करना, उसको हल्का करना और जो मान है उसको कम करके अपने अन्दर कोमलता लाना,
मृदुता का भाव लाना ही उत्तम मार्दव है । माटी के उदाहरण से यह समझाया गया कि जैसे-
जैसे मिट्टी में पानी डाला जाता है , उसको मसला जाता है , रौंदा जाता है उतना ही उस मिट्टी
के अन्दर एक योग्यता आ जाती है फिर उस मिट्टी को आप जैसे चाहो वैसे करना, वैसी ही
हो जाएगी। इसी प्रकार थोड़ा समर्पित भाव में आओगे तब अन्दर एक झुकने का भाव
आएगा, झुकने का भाव आएगा तभी कुछ सीख पाओगे।
मन-वचन-काय की सरलता ही उत्तम आर्जव है । छल, कपट, दिखावा मायाचार है ।
किसी को धोखा नहीं देना, बहाने बनाकर आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करना, अगर यह
सीख आ गई तो बड़े अच्छे ढं ग से ऋजुता धर्म का पालन हो पायेगा। ऋजु बनने का मतलब
ही है - सरल हो जाना और सरल होने का मतलब- भीतर से ईमानदार हो जाना है ।
शुचिता- लोभ का अभाव। “शुचोर्भावः शौचः” जो आंतरिक शुचिता या आंतरिक
निर्मलता का भाव है वही उत्तम शौच धर्म है । हर आत्मा में दो गुण क्षमा और मृदुता आसानी
से आ जाते है लेकिन ऋजुता और शुचिता आने में समय लगता है । क्योंकि माया का कारण
है - लोभ और लोभ के कारण ही होती है - माया। आत्मा तो सुख चाहती है और लोभ कषाय
दुःख देने का काम करती है ।
‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
क्रोध-मान-माया-लोभ का उपशमन होने पर ही सत्यता को जाना जाता है । सत्य को
समझने वाला कभी भी हर्ष-विषाद नहीं करता। उत्तम सत्य के दिन यह समझना जरूरी है
कि जिसका मन जितना सच्चा होगा उसका जीवन भी उतना सच्चा होगा।
किसी भी तरह की उन्नति के लिए उत्तम संयम होना बहुत आवश्यक है । सत्य का संयम
के साथ में एक बहुत बड़ा सम्बन्ध है । सत्य जब भी हमारे जीवन में उतरेगा, संयम की
साधना से उतरेगा। हमें संयम से घबराना नहीं है । संयम का मतलब है - हर चीज को
बिल्कुल सही ढं ग से चलाना है ।
आत्मा ज्ञान स्वभावी है । हमें उस आत्मा के ज्ञान स्वभाव को प्राप्त करने के लिए उस
ज्ञान को और शुद्ध बनाने के लिए उत्तम तप करना चाहिए। तप का मतलब इच्छाओं को
नियंत्रित कर लेना। संयम के साथ में इच्छाएँ उत्पन्न होंगी लेकिन हमें उनको नियन्त्रित करना
है । ‘We Have To Overcome Our Desire’
राग ही सबसे बड़ी बुराई है । उस राग को छोड़ने के लिए जो हमारे अन्दर पुरुषार्थ होगा,
वह हमारा वास्तविक उत्तम त्याग कहलाता है । त्याग दान नहीं होता है । त्याग वस्तुतः अपनी
बुराइयों का, अपने दोषों का, अपनी बुरी आदतों का किया जाता है और दान अच्छी चीजों
का दिया जाता है । “To Give And To Give Up”
जब माटी अपना सर्वस्व त्याग कर देती है , तो उसके बाद में उसके अन्दर एक भाव आता
है कि जो छूटा था, छूट गया है वह मेरा नहीं था, नहीं है और देखा जाए तो वास्तव में वही
छूटता है , जो मेरा नहीं होता है । अकिंचन का मतलब होता है - किंचन भी मेरा नहीं है ।
ब्रह्मचर्य का मतलब है सब कुछ देखते हुए भी आत्मनियंत्रण रखना। ‘उत्तम ब्रह्मचर्य’ को
वही उपलब्ध होगा जिसके अन्दर ज्ञान और वैराग्य दृढ़ होगा। देहासक्ति से ऊपर उठना ही
ब्रह्मचर्य है । पाँचों इन्द्रिय व मन के नियंत्रण का नाम ब्रह्मचर्य है ।
यह एक प्रवचन संकलन है । मुनि श्री के प्रवचनों का संपादन करते समय उनकी कथन
शैली का यथासंभव ध्यान रखा गया है ।
इस पुस्तक के प्रकाशन में जो त्रुटियाँ हमारी दृष्टि में आने से रह गयी हैं उनकी ओर
हमारा ध्यान आकर्षित करें। टीम अर्हं इस हे तु आपके सहयोग का स्वागत करती है ।
-टीम अर्हं

धर्मं का मर्म 9
अनुक्रमणिका

Day-1 : उत्तम क्षमा धर्म ........................................ 11


एक्टिविटीज 01 .......................................28

Day-2 : उत्तम मार्दव धर्म...................................... 30


एक्टिविटीज 02 ......................................47

Day-3 : उत्तम आर्जव धर्म..................................... 50


एक्टिविटीज 03...................................... 68

Day-4 : उत्तम शौच धर्म .......................................70


एक्टिविटीज 04 ..................................... 90

Day-5 : उत्तम सत्य धर्म........................................92


एक्टिविटीज 05...................................... 110

Day-6 : उत्तम संयम धर्म....................................... 111


एक्टिविटीज 06......................................134

Day-7 : उत्तम तप धर्म .......................................136


एक्टिविटीज 07......................................158

DAY-8 : उत्तम त्याग धर्म. .................................... 160


एक्टिविटीज 08 .................................... 180

Day-9 : उत्तम अकिंचन धर्म ..................................182


एक्टिविटीज 09.....................................204

Day-10 : उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म...................................205


एक्टिविटीज 10......................................230

10 धर्मं का मर्म
Day-1 : उत्तम क्षमा धर्म
आत्मा की शक्ति को पहचानने का मार्ग है धर्म
आज अर्हं स्वधर्म शिविर के माध्यम से किसी न किसी क्रिया-काण्ड में उलझ जाती
दशलक्षण धर्म के पर्यूषण पर्व की इस पावन है । जब भी हम वस्तु-स्थिति का विचार करेंगे
बेला पर आप लोग अपनी आत्मा के स्वभाव तो हमें पता पड़ेगा कि तीर्थंकरों ने कहा है
को जानने के लिए, अपने स्वधर्म को समझने कि सकल लोक का हित करने वाला यदि
के लिए और अपने जीवन में एक मंगलमय कुछ है तो वह यह क्षमा आदि दस धर्म हैं ।
वातावरण हमेशा के लिए उत्पन्न करने के जिसका पालन करने से प्रत्येक प्राणी को,
लिए धर्म की शरण में आ रहे हैं । वस्तुतः संसार की इस समस्त मानव जाति को सुख
धर्म ही वह शरण है जिसके माध्यम से हम मिले। प्रत्येक प्राणी को अगर दुःख होता है ,
अपनी अन्तरात्मा में अपनी ही शक्तियों को तो सबसे पहला एक भाव जो सामान्य रूप
समझ पाते हैं , पहचान पाते हैं । ज्यादातर से सबके अन्दर रहता है , वह क्रोध का भाव
जब भी धर्म की बात आती है , हमारी दृष्टि होता है । इसलिए क्रोध का जो विपरीत है ,
मन्दिरों पर जाती है । हमारी दृष्टि पूजा आदि वह क्षमा धर्म है ।
क्रियाओं पर जाती है , हमारी दृष्टि बाहर के

स्वभाव किसे कहते हैं


समझना यह है कि क्रोध हमारा स्वभाव पुन: आना ही होता है । हम यह जानने की
नहीं है , क्षमा हमारा स्वभाव है । स्वभाव वह कोशिश करेंगे कि क्रोध हमारा स्वभाव नहीं
होता है कि जिसमें हम लम्बे समय तक रह है तो फिर यह हमारे अन्दर exist कैसे
सकते हैं । संसार की कोई भी चीज जब करता है ? जो चीज हमारे अन्दर नहीं है , तो
अपनी natural state में होती है , तो वह वह हमारे अन्दर exist क्यों कर रही है और
लम्बे time तक उसी स्थिति में रह सकती अगर उसका existence है तो वह कभी-
है। जब भी कभी कोई चीज में स्वभाव से कभी है , लम्बे समय तक है या हमेशा बना
विपरीतपना आता है , वह विभाव की ओर रहता है । अगर हम इन चीजों को बारीकी से
आती है , तो उस समय पर उसमें थोड़े समय समझ पाए तो हम धर्म की शुरुआत यहाँ से
के लिए रहना होता है । उस स्वभाव में उसे कर पाएँगे।

धर्मं का मर्म 11
उत्तम क्षमा धर्म

हर कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है


क्रोध जब आता अन्दर कभी भी क्रोध होगा तो हम क्रोध तो
है , तो हमें यह सोचना कर जाते हैं लेकिन यह नहीं देख पाते कि
है कि उस क्रोध का यह होता क्या है ? कहाँ से हो रहा है ? इसका
root cause क्या मुख्य source क्या है ? अगर हम अपने
है? What is the अन्दर देखें तो सबसे पहले हमें यह सोचने
root cause of को मिलेगा, देखने को मिलेगा कि हम जिस
anger? अगर हम तरह से अपना mindset किये हुए होते हैं ,
समझने की कोशिश करें। जब भी कभी उसी तरह की चीजें यदि हमारे सामने होती है ,
आपको क्रोध आये, अगर आप root तो we are in happiness state. जैसा
cause पर अपना focus करेंगे तो आपको हमारा mindset है अगर उसके विपरीत
महसूस होगा कि वास्तव में क्रोध वैसे तो कोई चीजें हो जाती हैं तो बहुत ही जल्दी
हमारे अन्दर नहीं था लेकिन यह create we become unhappy. जैसे ही हमारे
हुआ है । क्यों हुआ है ? इसका कुछ कारण अन्दर happiness चली गई समझो! क्रोध
अगर हमें पकड़ने में आ गया तो हम उस आ गया। क्यों आ गया? हमने अपना एक
कारण को ध्यान में रखते हुए, उस कारण को mindset कर रखा है । mindset इस
यदि हम दूर करेंगे और कारण को नष्ट करेंगे तरह से कर रखा है कि ये हमारे likes हैं ,
तो हमें उसके विपरीत, क्षमा भाव की प्राप्ति यह हमारी dislikes हैं । हमने mindset
अवश्य होगी। क्योंकि सृष्टि का नियम है हर कर रखा है कि जो हमारी likes की चीजें
चीज दुनिया में कारण से ही उत्पन्न होती है । हैं अगर वे हमको मिलती हैं तो हम खुश हो
हर कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है जाते हैं और ऐसी चीजें अगर हमें मिल जाए
और यह cause and effect का rule भी जो हमें पसन्द नहीं हैं तो हम नाखुश हो जाते
सभी के लिए मान्य है । science भी इसको हैं । नाखुश होने का मतलब ही होता है कि
मानता है कि “everything happens हम गुस्सा हो गए। अब हम समझें कि जब
in this world with a cause” इसका हमारा mindset है तो हर चीज के साथ
कोई न कोई कारण होता है । अगर हमारे हमारा mindset है । हमने हर चीज के बारे
अन्दर क्रोध उत्पन्न होता है , तो उसका भी में सोच रखा है । यह हमारा like है , यह
हम कारण समझें और क्षमा उत्पन्न होगी तो हमारा dislike है । I like this, I don’t
उसका भी हम कारण समझें। अगर हमारे like this. हमने हर चीज में यह चीज अपने

12 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

mind में set कर रखी है । यहाँ तक कि like करेंगे और इस तरह के behaviour


हमने अपने घर के लोगों में भी यह चीज set को हम dislike करेंगे। हमने अपने खाने-
कर रखी है कि हम इनको like करते हैं , पीने की चीजों में सब setting कर रखी है ।
इनको dislike करते हैं और जिसको like I like this, I don’t like this. हमारे
करते हैं उसमें भी हमने set कर रखा है कि अन्दर हर चीज की जब setting हो चुकी
हम इसके इस तरह के behaviour को तो है , mindset हो चुका है , तो क्या हो गया?

क्रोध करने के लिए भी हम दूसरे पर आश्रित हैं


आप दुनिया में रह रहे हैं , आपका कोई भी इं सान हो नहीं सकता, जो इस तरह
सम्बन्ध बाहर के लोगों से है । हर चीज की अपनी supreme power के साथ में
आपकी like के अनुसार ही आपके सामने अपना use करके और हर किसी चीज को
नहीं आएँगी। चीजें तो अपने तरीके से अपने ही बिल्कुल according कर सके।
आपके सामने आएँगी। लोग अपने तरीके ऐसा होता नहीं। जब यह चीज नहीं होती तो
से आपके सामने react करेंगे। वे अपने कहीं न कहीं हमको समझना पड़ेगा कि हम
तरह से behave करने के लिए बिलकुल क्या कर रहे हैं ? कौन-सी ऐसी चीजें हैं जो
free हैं । कैसा उनको behave करना है , हमारे बिलकुल likes के अनुसार हो सकती
वह उनके nature पर depend करेगा। हैं ? कौन-सी ऐसी चीजें हैं जो बिलकुल हम
आपको यह देखना है कि हम अगर दूसरे के अपनी opinion के अनुसार उनको बना
कारण से अपने अन्दर क्रोध कर रहे हैं तो सकते हैं और अगर हम नहीं बना सकते हैं तो
उस क्रोध में मुख्य कारण मेरा है कि दूसरे क्या हम जब कभी भी ऐसी स्थिति में आएँगे
का है ? हमने अगर अपना mindset कर तो हम क्या इसी तरीके से गुस्सा करेंगे? इसी
रखा है , तो क्या मेरे mindset करने के तरीके से क्रोध करेंगे? क्या हम इसी तरीके
अनुसार ही दुनिया चलेगी या दुनिया के से झल्लाएँगे और अगर झल्लाएँगे तो कब
अनुसार हमें अपना mindset करना तक झल्लाएँगे? कब तक क्रोध करेंगे? कब
होगा? हमारे अनुसार अगर दुनिया चलने तक उसी तरीके की स्थिति में रहें गे? महाराज
लगी तब तो फिर हम ही शहं शाह हुए, हम जब-जब ऐसा होगा तब-तक मैं ऐसा ही
ही lord हो गए, हम ही इस दुनिया के लिए करूँ गा। हम क्या करें वह मानता ही नहीं, मैं
supreme power हो गये। ऐसा कभी उससे कई बार कह चुका हूँ कि तू मेरे सामने
कुछ होता नहीं है । कभी भी दुनिया में ऐसा ऐसा मत किया कर, मेरे सामने इस तरीके

धर्मं का मर्म 13
उत्तम क्षमा धर्म

का behave मत किया कर, मेरे सामने इस behave नहीं करेगा, जब भी वह आपके


तरीके से मत बोला कर लेकिन वह मानता ही अनुसार नहीं चलेगा, जब भी वह आपका
नहीं। क्या करें? मतलब यह prove हो गया कहना नहीं मानेगा, आपको गुस्सा आएगा।
कि जब-जब वह इस तरीके का behave उसने आपकी चाबी पकड़ ली है और जब
करेगा तब-तब आपको गुस्सा करना है । भी वह चाबी घुमाएगा, वह देखेगा, इसको
मतलब क्या हुआ? आप dependent है तो गुस्सा मैं जब चाहूँ तब करा सकता हूँ।
कि independent हैं ? अब यह सोचना है क्या होगा? आप उसके हाथ की पुतली बन
कि आपका गुस्सा दूसरी चीजों पर depend गए हैं । आपका remote दूसरे के हाथ में
हुआ कि independent है । अगर आपका चला गया। आपके गुस्से की चाबी दूसरे ने
गुस्सा दूसरी चीजों पर dependent है , तो पकड़ ली। अब वह जब उसको चलाएगा तब
आप हमेशा dependent ही रहें गे। इसका आपको गुस्सा आएगा। समझ में आ रहा
मतलब यह हुआ कि आपने अपनी चाबी है ? क्या हमें ऐसा करना चाहिए? क्या हमारे
दूसरे के हाथ में दे रखी है कि तू जब चाहे भावों की, हमारे विचारों की चाबी किसी
मुझे गुस्सा करा देना। समझ रहे हैं ? क्योंकि दूसरे के पास में होनी चाहिए? अगर ऐसा है
जब भी वह आपकी likes के अनुसार से तो इसका मतलब है हम dependent हैं ।

स्वतंत्र होना ही हमारा धर्म है


अगर हम अपना control खुद रहे गी तो देखना कि इतना आनन्द आएगा
नहीं कर पा रहे हैं तो भी कहीं न कहीं कि आपको वह आनन्द दुनिया के किसी भी
हम dependent हो गए हैं । इतने भोग-वैभव में और किसी भी लालसा को
dependent हो गए हैं कि हम सोच करके पूरा करने में नहीं आएगा क्योंकि आत्मा का
भी अपनी independency को feel नहीं स्वभाव स्वतंत्र है । हर आत्मा की सत्ता स्व-
कर पाते हैं । हमें कहीं न कहीं सोचना पड़ेगा तंत्र है , हर आत्मा स्वतंत्र ही होना चाहती है
कि इस dependency से अपने आपको और धर्म हमें स्वतंत्र ही करने के लिए है कि
कैसे हटाएँ और कैसे हम independent आप अपनी सत्ता अपने पास में रखो, अपनी
हो? स्वतंत्र होना ही हमारा धर्म है । जिस सत्ता के मालिक बनो, अपने साम्राज्य के
तरह से देश में स्वतंत्र हो करके हमें अच्छी मालिक बनो। आपके भीतर ज्ञान का, सुख
feeling आती है , वैसे ही इस शरीर के का, power का बहुत बड़ा साम्राज्य है ।
अन्दर जब हमारी आत्मा स्वतंत्र होकर के आपके अन्दर अनन्त के रूप में वह साम्राज्य

14 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

फै ला हुआ है , आप उसको समझो। आपने यह कहलाती है - ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’,


वह साम्राज्य खो रखा है । छोटे -छोटे से क्रोध inter-dependency इसी को बोलते हैं ।
के कारण से, छोटे -छोटे से गुस्सा, द्वेष और हम एक दूसरे के लिए भी कुछ कर पाएँगे।
छोटी-छोटी सी ऐसी प्रतिक्रियाओं के कारण क्षमा भाव में सशक्त और दृढ बनने से
से आपका वह सारा का सारा साम्राज्य, शक्ति मिलती है
आत्मा का जो वैभव है , वह सब लुट रहा है । जब तक आप अपने आप को दूसरे के
उसको रोकने के लिए ही यह धर्म है । उसको control में रखेंगे, दूसरे के according
समझाने के लिए यह
धर्म है । जब आप
थोड़ा-सा अपनी इस
dependency को
control कर लेंगे और
आप independent
होने के भाव में आएँगे
तब आप देखेंगे कि
आपके अन्दर इस
dependency के
कारण से जो क्षमा
भाव आ रहा है , आपके
अन्दर जो एक शक्ति
पैदा हो रही है , उस
शक्ति का use हम भी
कर पा रहे हैं और हमारे आस-पास जो लोग चलाएँगे तब तक आप दूसरे का भी भला
हैं वह भी कर पा रहे हैं । जब आप बहुत ही नहीं कर पाएँगे। ऐसा करते-करते जब आप
क्षमा के भाव में होंगे, शान्ति के भाव में होंगे कभी अपने ही स्वभाव में स्थिर होने लगे,
तो आपके आस-पास कोई भी होगा, वह जब आप कभी अपने ही क्षमा भाव में और
अपने आप आपसे क्षमा और शान्ति का पाठ सशक्त होकर के, दृढ़ होकर के उसमें स्थित
सीख लेगा। मतलब क्या होगा? तब आप होने लगे तो आपके अन्दर एक वह शक्ति भी
सही मायने में दूसरे का उपकार कर पाएँगे। आ सकती है जैसी शक्ति पार्श्वनाथ भगवान

धर्मं का मर्म 15
उत्तम क्षमा धर्म

में थी, वर्धमान महावीर भगवान में थी। ऐसी होता यह है कि हम भगवान के गुणगान करते
शक्ति भी आप में आ सकती है । हम याद हुए भी कभी यह भाव नहीं कर पाते कि हमें
करते हैं उन तीर्थंकरों को जो क्षमा भाव की भगवान के इस तरीके के गुण हमारे अन्दर भी
मूर्ति है । उन साधुओं को जो हमेशा बड़े-बड़े आएँ और हमें भी वह गुण मिले, जो भगवान
उपसर्गों को सहकर के भी क्षमा भाव धारण ने प्राप्त किये हैं । सभी पार्श्वनाथ भगवान की
करते हैं । क्यों याद करते हैं ? क्योंकि उनके पूजा करते हैं लेकिन पार्श्वनाथ भगवान से
अन्दर उस क्षमा का विस्तार इतना हो चुका पार्श्वनाथ भगवान जैसी क्षमा धारण करने
है कि वह अपने आप में इतने stable हो की इच्छा कितने लोग करते हैं ? कितने लोग
गए हैं कि वह अपनी ही स्थिति में हमेशा भगवान पार्श्वनाथ की पूजा करते हुए महसूस
बने रहते हैं । उन्हें अपनी स्थिति से हटना करते हैं कि हमें भी आपकी तरह बिलकुल
नहीं होता और वह हमेशा क्षमा स्वभाव में ऐसे ही क्षमावान बनना है कि कोई भी अगर
ही स्थित हो गए हैं । क्रोध तो उन्हें कोई करा हमारे ऊपर कितनी भी गालियाँ दे, कितना
ही नहीं सकता, इतना वे independent ही हमारा शरीर छलनी-छलनी कर दे तो भी
हो चुके हैं । मतलब अपने स्वयं में स्थित हो हमें सोचना भी नहीं कि इसने ऐसा किया है ।
गए हैं । इसे बोलते हैं - ‘stay in self’, इसको बोलते है - ‘उत्तम क्षमा’ ‘उत्तम’ शब्द
अपने में स्थित हो जाना। यह हमारा goal जो लगा है न, वह बहुत ही last stage के
है , जो हमें भगवान को देखने से मिलता है । लिए है । supreme forgiveness इसी
वीतराग जिनेन्द्र भगवान को मन्दिर में देखने को बोलते हैं । वह उत्तम क्षमा जिसमें कि
से हमें क्षमा याद आती है । अगर हमें पता अगर कोई हमारा शरीर भी नष्ट कर दे तो भी
होगा कि यह क्षमा होती है और इस तरह से हम उसके बारे में क्षणभर भी विचार न करें
यह वीतरागता की मूर्ति, क्षमा की मूर्ति है । कि इसने बहुत मेरे साथ अन्याय किया है ,
अगर हमारे ज्ञान में होगा तो हमें भगवान के गलत किया है , मेरा दुश्मन है ।
दर्शन का भी बहुत आनन्द आएगा। लेकिन

क्रोध के कारण की खोज


nothing else में है , हमारा ज्ञान हमारे पास में है । हमारी
वह कुछ हो ही नहीं चेतना हमारे पास में है , दूसरा हमारी चेतना
सकता क्योंकि हमारी तक अपने हाथ पहुँचा ही नहीं सकता है ।
संपत्ति हमारे पास दुनिया में कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो

16 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

आपकी चेतना को छू सके, सिवाय आपके। समय पर हमको यहाँ होना चाहिए। अगर
सुन रहे हैं ? उसी चेतना का यह धर्म है - क्षमा हम उसी time पर नहीं पहुँच पाए या उस
धर्म। कहाँ से हम गलती करना शुरू करते time में किसी भी तरीके का कोई भी
हैं ? हमने जिन-जिन चीजों को अपने दिमाग obstacle सामने आ गया तो उस समय पर
में set कर रखा है कि हमारे लिए यह पस- गुस्सा हमारे लिए आएगा या नहीं आएगा?
न्दीदा चीजें हैं , ये नापसन्द की चीजें हैं और समझ रहे हैं न? आप अपने घर से निकले
जब भी कभी हमारे सामने वह नापसन्द की office जाने के लिए या बच्चे निकले स्कू ल
चीजें आ जाती हैं , हम irritate हो जाते हैं । जाने के लिए, अपनी दुकान पर जाने के
अब आप इस बात को ध्यान में रखते हुए, लिए आपने सोचा मैं अभी बीस मिनिट में
दिन भर आपको और हमेशा आपको सोचना यहाँ से वहाँ पहुँच जाऊँगा। आपने mind
है यदि आप उस क्रोध को control करना set कर लिया है , time set कर लिया
चाहते हैं कि आखिर आज अगर हमें किसी और time आपके mind में set हो गया।
से गुस्सा आया, किसी बात पर गुस्सा आया रास्ते में जाम मिला, कोई दूसरा काफिला
तो हम भीतर से सोचे, एक deep feeling आ रहा था, कोई incident हो चुका था,
इस बात की लाएँ कि क्या हमारे इस क्रोध भीड़ लगी थी। आपके लिए वहाँ पर मान लो
के पीछे वही चीज है कि नहीं। हमारा mind दस मिनिट waste हो गए और आपकी जो
set है । वह mindset किसी भी तरीके Speed थी वह सारी की सारी disturb हो
से हो सकता है । मान लो अगर हमने अपने गयी। आप जिस time तक वहाँ पहुँचने के
मन में time set कर लिया है , हमको इतने लिए अपना mindset किये थे, वहाँ नहीं
time पर यह चीज चाहिए, इतने समय पर पहुँच पा रहे हो। अब आप सोचो, आप क्या
यह चीज हमारे सामने होनी चाहिए, इतने करेंगे?

अपनी सोच को सकारात्मक बनाएँ


आप झल्लाएँगे, गालियाँ देंगे, चि- situation बनती है , तो उस समय पर आप
ल्लाएँगे, इधर-उधर हाथ-पैर मारेंगे, जल्दी देखें कि हमने जो mindset कर लिया है “it
करेंगे, क्या करेंगे? कुछ तो करेंगे? बोलो तो is the root cause of my anger”.
क्या करेंगे? नहीं! नहीं! महाराज! कुछ नहीं यही है root cause. अब उस समय पर
करेंगे, क्षमा भाव में ही खड़े रहें गे कायोत्सर्ग हमें उसी root cause पर attack करना
करके। ॐ अर्हं नम: का जाप करेंगे। क्या है । थोड़ा-सा हमें सोचना है कोई बात नहीं!
करेंगे? अगर आप के लिए इस तरह की कोई दस मिनट बाद ही पहुँच जाएँगे तो चलेगा

धर्मं का मर्म 17
उत्तम क्षमा धर्म

कोई ऐसी बहुत आपत्ति आने वाली नहीं blissful रहें गे। otherwise आपकी
है । अगर कहीं पर भी पहुँचने का हमने कोई angry nature, आपके भीतर का वह
appointment, कोई time भी दिया वातावरण आपको इतना क्षुब्ध कर सकता
है , तो भी आदमी को अगर हम इस तरीके है कि जो चीजें आपके सामने अच्छी भी
की कोई बात बताएँगे कि भाई रास्ते में इस हो उन्हें भी आप देख न पाएँ। हो सकता है
तरीके का व्यवधान था, इस कारण से हमें उस भीड़ में भी आपको कुछ अच्छा मिल
आने में देर हो गई तो आदमी, आदमी होता जाए। कोई आपका दोस्त मिल जाए, कोई
है । हर आदमी, आदमी की बात समझता है । अच्छी बात सीखने को मिल जाए। लेकिन
समझ आ रहा है ? अगर आप अपने mind जब आप उस मूड में होंगे ही नहीं तो आपके
को उस समय पर इस तरीके से समझा सामने कुछ भी अच्छाईयाँ आएँगी आप उसे
पाए तो आप भीतर से peaceful रहें गे, देख ही नहीं पाएँगे। फिर क्या करना है ?

अपनी बनी-बनाई आदतों में परिवर्तन लाना सीखे


जब-जब गुस्सा आए देखना है , हमारा को आपकी इस बात पर गुस्सा आएगा कि
जो mindset है , तो यह mindset भी प्रसन्नता होगी? और अगर आपने भी ऐसी
क्या हमारी आदत बन चुका है और अगर बात बोल दी तो आपके अन्दर भी गुस्से
आदत बन चुका है , तो कहीं न कहीं हमें के रूप में वह बात बहुत देर तक रहे गी या
अपने mind को ही treatment देना है आप बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाओगे। आपके
और किसी को treatment नहीं देना। अन्दर वह आदत बन गई। अगर वह आदत
हम भोजन करने बैठते हैं , हमें पता होता है आपके लंबे समय तक ऐसे ही चलती रही
हमें यह चीज चाहिए, इतनी मात्रा में चाहिए, तो आपकी वह आदत ही आपको परेशान
इसमें इतना नमक होना चाहिए, इतना मीठा करने वाली बन जाएगी। यही आदत हमारे
होना चाहिए और थोड़ा- सा भी कम होता अन्दर jealousy पैदा करती है , यही आदत
है , ज्यादा होता है , तो मैं रोज-रोज वही बात हमारे अन्दर hate पैदा करती है और इसी
कहता हूँ, रोज-रोज जैसा ही बोलता हूँ फिर के कारण से हम बहुत बड़े-बड़े ऐसे काम
भी कभी भी आज तक विवाह होने के बाद भी कर जाते हैं , जो हमें नहीं करना चाहिए।
में मुझे अच्छा भोजन मिला ही नहीं। समझ लेकिन बड़े-बड़े अपराध भी इसी कारण से
आ रहा है ? बस! ऐसा जब हमने बोल दिया, हो जाते हैं ।
इसका मतलब क्या हुआ? अब सामने वाले

18 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

पढ़े -लिखे लोग अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीखें


अभी एक दो दिन से एक घटना सुनने में गला घोंट दिया। यह पढ़े-लिखे लोगों का
आ रही है । एक doctor ने अपनी junior behaviour है । यह पढ़े-लिखे लोगों का
doctor का murder किया। अब वह यह emotional control है । आप यह
doctor है और उसने अपनी girlfriend समझें कि पढ़ा-लिखा होना एक अलग चीज
जो junior doctor थी उसने उसका है , वह आपके केवल पैसे कमाने के लिए
murder कर दिया। सिर्फ इस बात के है , आप के लिए अच्छा बंगला, अच्छी कार
लिए कि वह उसका call नहीं उठाती थी। देने के लिए है । लेकिन आपका दिमाग जब
उसे ऐसा लगने लगा कि यह किसी और के तक अच्छा नहीं होगा आपकी जिं दगी में कुछ
साथ में अपना affair करने लगी है और यह अच्छा हो ही नहीं सकता है । आपको अपने
मुझको like नहीं कर रही है और मैं इससे अन्दर यह सोचना है कि अगर कोई चीज
शादी करना चाहता हूँ। अब एक बार इससे हम पसन्द कर रहे हैं , सामने वाला हम को
पूछता हूँ कि यह करेगी कि नहीं और उसने अगर पसन्द नहीं कर रहा है , तो हमें इतना
मना कर दिया। उसने उसी समय उसका ज्यादा irritate नहीं होना। इतना ज्यादा

धर्मं का मर्म 19
उत्तम क्षमा धर्म

अपने आप में अन्दर anger नहीं लाना कि नहीं की। अगर हम practice करेंगे तो ही
हम उसके साथ में इतना गलत behave हम बड़ी-बड़ी इन दुर्घटनाओं से अपने आप
करे कि हम उसकी जिं दगी समाप्त कर दे। को बचा सकेंगे। नतीजा क्या निकलेगा?
यह छोटी-छोटी बातें जब हमारे control अगर मान लो आपने अपने मन की कर ली
में नहीं आती तब बड़ी-बड़ी ऐसी घटनाएँ भी और उसका murder कर दिया। अब क्या
हमसे हो जाती हैं । आप यह सोचते हो हम हो गया? आपकी life हमेशा के लिए खराब
ऐसा नहीं करेंगे। वह भी ऐसा ही सोचता हो गई। आपकी सारी prestige, आपकी
था जिसने किया है और कहा कि वह इतना डॉक्टरी सब कुछ बेकार हो गई। अब आप
गुस्सा नहीं भी करता है लेकिन अपने गुस्से अपने जीवन में क्या करोगे? किसके कारण
को समझ नहीं पाया। हमने अपने anger से? एक गुस्से को आप control नहीं कर
को control करने की कभी practice पाए।

हमारे हाथ में केवल हमारा व्यवहार और विचार है


आप यह देखे दुनिया में बहुत-सी चीजें अपने like, dislike देखना है । अगर हमारे
हैं , हम उनमें से एक चीज को choose अनुसार कुछ हो जाए तो ठीक है और नहीं
कर लेते हैं और फिर उसी के ऊपर अपनी भी हो जाए तो हमें तुरन्त अपने mindset
सारी energy, सारी power लगा डालते को change कर देना है । कोई बात नहीं!,
हैं । मान लो हमने किसी चीज को पसन्द दूसरा अगर हमको नहीं चाह रहा है , तो कोई
कर लिया। अब मतलब क्या हो गया वह बात नहीं। हमें अपनी चाहत अपने पास में
चीज हमारे सामने होनी चाहिए, वह केवल रखनी है । हमें यह देखना है कि अगर हमारे
हमारे लिए ही होनी चाहिए। ऐसा अगर हम अनुसार काम नहीं हो रहा है , तो भी हमें उतना
अपने दिमाग में thinking रखेंगे तो इसका ही खुश रहना है , जितना अगर हम अपनी
मतलब है कि हम गलत रास्ते पर चल रहे चाहत को व्यक्त करके खुश होते है । आज के
हैं । दूसरी चीजों में जो changes हो रहे हैं , बच्चों को अगर यह समझ में आ जाए तो न
दूसरी चीजों का जो अपना nature है वह घर के कभी माता-पिता परेशान हो और न
हमारे control में नहीं है । हमारे control कभी और भी कोई लोग जिनके साथ में आप
में केवल हमारा attitude है , हमारी अपनी रहते हैं वह परेशान हो। ये चीजें सीखने की
thinking है । यह हमेशा अपने अन्दर एक हैं । आप यह मत समझो कि यह कोई धर्म
बहुत ज्ञान की बात गांठ बाँध करके रखो। हमें हम बहुत overage में जा करके कर लेंगे।

20 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

ये overage का धर्म नहीं है , ये young अब एक साथ कहीं भी तीर मार लेंगे, कुछ
age का ही धर्म है । young age से ही नहीं होता है । हर चीज की practice करनी
आपको सीखना शुरू करना होगा, इसी उम्र पड़ती है । तीर चलाने की भी practice
में आप अपने आप में control करना शुरू करनी पड़ती है । तब आदमी एक अच्छा
करोगे तब लंबे समय में जा कर के आपको निशानेबाज बन पाता है । अतः आपको
कुछ success मिलेगी। आप यह सोचोगे practice करना है ।

ऐसी चीज को पैदा ही क्यों करें जिसको पैदा करने के बाद में पछतावा करना पड़े
जो छोटे -छोटे नहीं बख्शता, गुस्सा ऐसी चीज है । समझ
गुस्से हमारे अन्दर आते आ रहा है ? बाप को बेटे के प्रति गुस्सा आता
हैं , हम उन्हें ignore है , तो बेटे को भी मार डालता है और बेटे
कर देते हैं । यह तो को गुस्सा आया तो बाप का भी murder
थोड़ा-थोड़ा होता है ! कर देता है । आप इसको किसी का रिश्तेदार
होता कुछ नहीं है । मानना ही नहीं, गुस्सा किसी का रिश्तेदार
आप उसको भी ध्यान ही नहीं है । यह एक ऐसी dangerous
से देखें। वही छोटा बहुत बड़ा बन जाता है । चीज है जो आपके अन्दर है और अगर वह
हम भीतर-भीतर कई तरह से घुट रहे होते आपके अन्दर बहुत देर तक बैठी रहती है , तो
हैं । हम अपनी बातों को दूसरे के सामने कह वह अपने साथ में रहने वाले माता, पिता,
नहीं पाते हैं । हम अपने माता-पिता को भी पति, पत्नी, भाई, बहन किसी के लिए भी
बहुत-सी बातें नहीं बता पाते हैं लेकिन अब dangerous हो सकती है । एक ऐसी वि-
भीतर-भीतर दुःखी हो रहे होते हैं । क्यों दुःखी स्फोटक सामग्री आप के अन्दर रखी हुई है
हो रहे होते हैं ? अपने गुस्से के कारण दुःखी कि वह विस्फोट कभी भी हो जाएगा। वह
हो रहे होते हैं । जब गुस्सा आ जाता है , तो किसी का भी विनाश कर सकता है । इसलिए
आप यह मान कर रहना कि वह किसी भी सब को हमेशा यह ध्यान रखना है । अगर
सम्बन्धी को, कितना ही अच्छा अपना प्रिय कभी विस्फोट होता है , मान लो हम विस्फोट
हो, वह किसी को नहीं बख्शता है । पति को कर भी जाते हैं , control में नहीं भी रहता
पत्नी के ऊपर गुस्सा आता है , तो पत्नी को भी है , तो उसके बाद में realize जरूर करना
मार डालता है , पत्नी को गुस्सा आता है , तो है । आज हमने गुस्सा कर तो दिया लेकिन
पति को भी मार डालती है । कोई किसी को क्या वास्तव में वजह थी गुस्सा करने की

धर्मं का मर्म 21
उत्तम क्षमा धर्म

या केवल हमारी अपनी mind setting आता है , तो हम इसको create क्यों करते
के कारण उससे गुस्सा हुआ? हम अपने जो हैं , यह सोचना है । समझ में आ रहा है ?
कुछ भी likes अपने अन्दर set किये हुए हम इसको अपने भीतर पैदा क्यों करते हैं ?
थे, वे complete नहीं हुए इसलिए गुस्सा अगर हम पैदा करने के बाद में पछताते हैं तो
हुआ। यह आपको एक बार भीतर से सोचना इसका मतलब है ऐसी चीज को पैदा ही क्यों
है। अगर आप इतना सोचेंगे तो जो वास्तव करें, जिसको पैदा करने के बाद में पछतावा
में root cause है वह हिलने लगेगा। वह करना पड़े। आज तक किसी को गुस्सा करने
आपकी आत्मा में जो जड़ें फै लाए हुए बैठा है , के बाद में अच्छी feeling मिली है ? चलो!
वे जड़ें उखड़ने लगेंगी और अगर आप कभी आज मैंने बहुत अच्छा गुस्सा कर दिया। अब
भी विचार नहीं करेंगे तो वह जड़ें बढ़ती रहे गी। उसको समझ में आएगा, आज मैं बहुत खुश
वह धीरे-धीरे ऐसा वृक्ष बन जाएगा कि जब हूँ। ऐसा होता है कभी!, अगर आप अपने
कभी आपका उबाल बाहर आएगा तो आप sense में होंगे तो आपको गुस्सा करने
बहुत बड़ा ऐसे ही कुछ दुर्घटना कर चुके के बाद में पछतावा आपके अन्दर आएगा,
होंगे कि उससे आपको जिं दगी भर पछतावा बहुत देर तक आपका दिमाग disturb
रहे गा। इसलिए हर किसी को यह ध्यान में रहे गा, बहुत देर तक आप अपने common
रखना है कि यह गुस्सा हमारा स्वभाव नहीं sense को भी खो चुके होंगे। इसका मतलब
है। यह हमारे अन्दर हमेशा रहता हो, ऐसा यह है कि हम ऐसा करके सिर्फ पछताते हैं ।
भी नहीं है । लेकिन दूसरे के कारण से यदि

समस्या का समाधान तो आपको खुद ही करना पड़ेगा


इसका मतलब सोचना चाहिए कि हम आपकी समस्या का उत्तर तो दे सकता है
इस चीज को अपने अन्दर create क्यों लेकिन आपकी समस्या का समाधान नहीं
करें? यह question अपने अन्दर डालो। कर सकता है‌। समाधान तो आपको खुद ही
जब यह question आएगा तब आपके करना पड़ेगा। समझ में आ रहा है ? किसी
सामने अपने आप उसका solution भी problem के लिए solution मिलना,
आएगा। समझ में आ रहा है ? एक तरह उसका solution मिलने का तरीका तो हम
का किसी भी समस्या का उत्तर मिल जाना किसी से ले सकते हैं । लेकिन solution
अलग बात है और किसी भी समस्या का तो हमें अपने आप में create करना होगा।
समाधान होना अलग बात है । दूसरा कोई आप प्रश्न पूछ लेते हो, महाराज! हमें बहुत

22 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

गुस्सा आता है । हम बताओ कैसे गुस्सा right answer यह है और उसके आपको


control करें? हम आपको answer तो दे number मिल जाएँगे। आप हमेशा इस
सकते हैं लेकिन वह answer आपके लिए बात को ध्यान में नहीं रखना कि कोई भी
solution नहीं बनेगा। solution वह तब copy checker होता है , examiner
बनेगा जब आप उसको solve करेंगे। कोई होता है , तो वह केवल answer देख कर के
भी maths में कोई question होता है , तो अपने को number दे देता है । क्या देखता
उसका answer तो होता है और answer है वह? आपने उस question को किस
sheet में उसका answer लिखा होता equation के साथ में कैसे solve किया।
है । आपके लिए question सामने लिखा solution यह कहलाता है । इसी तरीके से
है , answer पीछे लिखा है । अब आपको क्रोध के बारे में आप ने सुन रखा है । हर साल
करना क्या है ? हमें तो पता है न इसका सुनते होंगे बहुत से लोग तो, सुनने की आदत
answer यह ही है । यह सब हम क्या ही पड़ चुकी है । लेकिन उसके बावजूद कभी
करें? समझ में आ रहा है ? teacher ने, भी solution नहीं निकलता है । क्यों नहीं?
sir ने आपको question दे दिया, आपको क्योंकि आप उसको solve करने की चेष्टा
इसका answer सही बताना है । answer करते ही नहीं। सुन रखा है , प्रश्न करते रहें गे,
तो पीछे देख लिया। अब वह आपसे पूछते उत्तर सुनते रहें गे लेकिन उसका solution
हैं कि answer आपने create किया कि तो खुद को निकालना है । समझ में आ रहा
आपने पीछे से देख करके बता दिया? आप है ? क्रोध किस कारण से उत्पन्न होता है , यह
answer पीछे से देख के बताएँगे, उससे आपको आज समझ में आया।
कोई solution नहीं होगा। solution
उसको बोलते हैं कि आप उसका answer
खुद निकाले, process करें। वह process
आपके लिए एक पन्ने, दो पन्ने, तीन पन्ने की
process होगी। उसके बाद में answer
वही आएगा जो आपने पीछे देख रखा है
लेकिन number उसके मिलेंगे जो आपने
उसके solution की process की है ।
answer के number नहीं मिलते हैं कि

धर्मं का मर्म 23
उत्तम क्षमा धर्म

Positive emotion create करना ही क्रोध का समाधान है


क्या सीखा बात में बन सकता है , छोटी-छोटी बात से
आपने, क्रोध का बन सकता है और छोटी-छोटी सी जो हम
root cause क्या आपस में talk करते हैं उससे भी बन सकता
है ? mindset। है । संवाद भी एक विवाद का रूप ले सकता
फिर mindset से है । संवाद से भी विवाद हो सकता है । समझ
क्या problem में आ रहा है ? कैसे बताऊँ? घर में एक पत्नी
आती है ? उसका ने अपने पति से कहा, आज मैं shopping
second steps क्या होता है ? likes, पर जा रही हूँ, कुछ थोड़ा पैसा दो। पति ने
dislikes. फिर उसके साथ ही सब कुछ ऐसे ही funny mood में कहा हमेशा
होता है । likes, dislikes इसका मतलब रुपये, पैसे माँगती है कभी अक्ल भी माँग
ही है , हमारी expectations. इसी का लिया कर। पत्नी कहती है तुम्हारे पास जो
मतलब है कि हम किसी चीज को like कर होगा वही तो मागूँगी। अब देखो! यह संवाद
रहे हैं मतलब उसकी expectations कर किधर जा रहा है । फिर पति झल्लाता है ,
रहे हैं । यह बाद की चीज है लेकिन उससे हाँ! अगर अक्ल होती तो तेरे से शादी क्यों
भी पहले की चीज है , mindset. अगर हमें करता। फिर पत्नी बोलती है , हाँ! अगर मैं भी
कभी भी अपने क्रोध को control करना है , शादी तुमसे नहीं करती तो जिं दगी भर अकेले
तो तुरन्त हमें अपने mindset को focus रहते, कोई तुमसे शादी करने वाला नहीं था।
करना है । जैसा mindset है , उसको अब यह बात कहाँ से शुरू हुई, कहाँ तक
अगर हमें change करना है , तो तुरन्त उस पहुँची। आप इसका नतीजा क्या निकलेंगे?
negative emotion को हटा कर के आपस में क्या होगा इससे? लड़ाई शुरू हो
positive thinking ला करके हमें अपने गई। एक बार किसी ने कोई बात बोली,
अन्दर उसी समय positive emotion उसका हमने तुरन्त react किया और वह
create करना है । यह उसका solution बात मजाक से शुरू होते-होते कहाँ तक
है । समझ में आ रहा है ? एकदम से आपके पहुँच गई? एक लड़ाई तक पहुँच गई। अच्छा
अन्दर negative वातावरण तैयार होगा ठीक है ! तुझे ऐसा लगता है कि मेरे साथ
और वही वातावरण बाहर तैयार हो जाएगा। कोई नहीं रह सकता, मैं अकेला हूँ तो ठीक
आपको वातावरण को संभालना है और वह है । मैं अब अकेले ही रहकर तुझको दिखा
वातावरण कभी भी बन सकता है , किसी भी दूँगा। बात कहाँ तक पहुँच गई? अब अकेले

24 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

होने तक पहुँच गयी। सुन रहे है ? बात कहाँ रखनी पड़ेगी कि बात आगे बढ़ रही है तो वह
से शुरू हुई थी? एक छोटी-सी बात से शुरू किस दिशा में जा रही है । जैसे ही answer
हुई थी। अगर हमने वह संवाद शुरू किया है , मिला, answer मिलने के बाद में हमें उसी
कोई चीज हमने शुरू की है , बातचीत शुरू समय पर सोच ले कि हमें अब क्या करना?
की है , तो हमें उसमें भी इतनी awareness

मुँह में आये कंकड़ की तरह क्रोध आने पर मुँह को रोके


क्या समझ में आ रहा है ? क्योंकि बोलने हो रहा है , तो हम उस वातावरण को हल्का
में तो कोई कमजोर है ही नहीं, सब पढ़े- करने की कोशिश करें। उस वातावरण को
लिखे हैं , कोई किसी से कम नहीं। आजकल हल्का करने के लिए सबसे बड़ा उपाय यही
तो अब स्त्री भी पुरुष से कम रही नहीं है , है कि हम उस स्थान से हट जाएँ, उस बात
तो वह क्यों किसी की सुने। माहौल एकदम को वहीं पर रोक दें। अगर वह बात नहीं रुक
negetive हो गया। बात कुछ भी नहीं थी रही है तो हम अपना मुँह बंद कर ले, हम
तलाक तक बात पहुँच गई। क्या हम इस बात अपने आपको रोक ले। सुन रहे हो? कैसे
को रोक सकते थे? इस छोटे से example करेंगे हम अपना मुँह महाराज? वह तो एक
के अन्दर इस घटना से अब आपको सोचना बार खुल जाता है , तो फिर वह चलता ही
है । कहाँ रोक सकते थे? एक chance रहता है । यह practice की बात है । एकदम
हमको तब मिला जब पति ने कुछ answer से जैसे खाते-खाते, खाते-खाते एकदम से
दिया, पत्नी अगर उस समय पर चुप हो जाती आपके मुँह में लगने लगता है कुछ आ गया
तो बात वहीं खत्म हो जाती। लेकिन हमको तो आप क्या करते हैं ? एक दम से मुँह बंद
क्या लगता है ? हम चुप हो गए मतलब कर लेते हैं । आप एक speed में खा रहे थे
कमजोर हो गए। अगर आप कमजोर हो गए और आपको अगर लगने लगा कि मुँह में
ऐसा मानते हो तो फिर आप लड़ो। आप कोई कंकड़ आ गया है , कुछ आ गया तो क्या
अपने गुस्सा को बढ़ाओ और फिर जो कुछ होगा? एक दम से आप रुकोगे कि नहीं?
भी उसके गलत परिणाम आ रहे हैं , उनको जैसे मुँह चलाते-चलाते, चलाते-चलाते
फिर लम्बे समय तक सहन करो। वह सह- भी एकदम से सावधानी आपके अन्दर आ
नशक्ति तो हैं नहीं। कहीं न कहीं हम गलती जाती है कि अगर यह कहीं कंकड़ दाँतों में आ
करते चले जाते हैं । हमें यह सीखना होगा कि गया तो दाँत हिल जाएँगे। ऐसी सावधानी
अगर कहीं पर क्रोध का वातावरण निर्मित आपको मुँह चलाने में रखना है । मुँह चलाने

धर्मं का मर्म 25
उत्तम क्षमा धर्म

का मतलब जब आप किसी दूसरे से talk इसलिए मैं आपसे कह रहा हूँ, आप यह मत


करते हो तो वह talk sense के साथ सोचो कि मैं गुस्सा करता नहीं हूँ या मुझे
हो, वह nonsense न हो जाए। जैसे ही गुस्सा हो ही नहीं सकता है । एक बात ध्यान
उसकी direction nonsense की तरफ में रखो, क्या बोल रहा हूँ? जो आदमी गुस्सा
जाने लगे, एक दम से क्या करना? एक दम कर नहीं सकता, वह आदमी नहीं है । सुन रहे
से मुँह बंद कर लेना। क्या हो गया? जैसे हो? क्या बोला? जो गुस्सा कर नहीं सकता
current लग गया हो। अगर आप ऐसा वह आदमी नहीं है । लेकिन जो गुस्सा नहीं
कुछ करेंगे तभी वह क्रोध का वातावरण होता वह समझदार आदमी है । समझ आया
हल्का होगा और उस वातावरण को हल्का कि नहीं आया? कर नहीं सकते का मतलब
करने के बाद ही आप उस वातावरण से बच ऐसा नहीं है कि मैं कर नहीं सकता। कर
पाएँगे और फिर जब आप ठण्डे दिमाग से तो सकता हूँ लेकिन फिर भी करता नहीं हूँ।
थोड़ी देर के लिए स्वयं में सोचेंगे तो आपको कर सकता हूँ यही आदमी की पहचान है
लगेगा कि यह चीज हमारे लिए भी अच्छी इसलिए वह आदमी है क्योंकि उसके अन्दर
रही और जिसके लिए रही उसके लिए भी करने की क्षमता है लेकिन फिर भी वह नहीं
अच्छी रही और वह बहुत बड़ी कोई घटना कर रहा है , तो यह समझदार आदमी है । यह
हो सकती थी, हम उस घटना से बच गए। चीज हमें हमेशा ध्यान में रखनी है और इसी
अगर इस तरह से आप करोगे तो थोड़ी देर के साथ में आपके अन्दर वह शक्ति आएगी।
बाद आप क्षमा के भाव में भी आ जाओगे।

क्षमा धारण करें गे तो हम शक्तिमान बनेंगे


क्षमा! क्या वस्तु का, पृथ्वी का एक पर्यायवाची नाम है । क्षमा
है ? अगर संस्कृत के का मतलब है - पृथ्वी की तरह सहनशील
शब्द को उसके अनुसार होना। समझ में आ रहा है ? हर चीज को जब
देखा जाए तो ‘क्षमा’ हम सहन करने लग जायेंगे तो हमारी आत्मा
एक धातु होती है , जो भी शक्तिमान हो जाएगी। शक्तिमान serial
‘क्षम’ अर्थात् सामर्थ्य देखने से कभी किसी की आत्मा शक्तिमान
के अर्थ में आती है । क्षमता जिसको बोलते नहीं हुई है । सभी बच्चों को सिखाओ, बेटा!
हैं , शक्ति जिसको बोलते हैं , उसके अर्थ में शक्ति किसकी है ? क्षमा की। क्षमा धारण
आती है और यह क्षमा एक तरीके से धरती करेंगे तो हम शक्तिमान बनेंगे, serial देखने

26 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म

से कभी शक्तिमान नहीं बनते। अगर हम likeness बढ़ानी चाहिए। हमें क्या पसन्द
आपसे कुछ कह देते हैं तो आपको सहन कर करना चाहिए? हमें तो जहाँ क्षमा दिखेगी,
लेना है । गुस्सा नहीं करना है और आप भी शान्ति दिखेगी, सहनशीलता दिखेगी हम
अगर हमसे कुछ कह देते हो तो हम भी सहन उसको पसन्द करेंगे। अपनी पसन्द वह
कर लेंगे, हम भी गुस्सा नहीं करेंगे। इस तरह बनाओ। जब हमारी likes इतनी अच्छी हो
से जब दोनों शक्तिमान बन जाएँगे तो फिर जाएँगी कि हमें क्षमा पसन्द है , क्रोध पसन्द
हमें शक्तिमान serial देखने की कोई जरूरत नहीं है , तो आपके अन्दर किसी भी तरीके का
नहीं पड़ेगी। लेकिन हमारी आदतें इतनी गलत mindset होगा, वह ultimately उसी में
पड़ी हैं , हम हमेशा angry person को ही convert हो जाएगा कि नहीं! जैसे ही क्रोध
like करते हैं । इसलिए कुछ हीरो का title आने वाला होगा, आपको क्या पसन्द है ?
ही लग चुका है - angry man. क्यों ऐसा mindset जो था वह था लेकिन हमें पसन्द
होता है ? जिस चीज को हम like कर रहे हैं , नहीं है । अगर हमारे सामने वह क्रोध आ
इसका मतलब है कि हमारे अन्दर भी वह रहा है , तो पसन्द क्या है ? क्षमा पसन्द है ।
चीज है तभी हम उस चीज को like कर रहे तो धर्म को like करो। जो अधर्म है - क्रोध,
हैं । हमें ऐसे न तो shot like करनी चाहिए, उसे dislike करो और उसके लिए हमारा
न हमें ऐसी फिल्में like करनी चाहिए, न किसी भी तरीके का mind अगर हमें अपना
हमें इस तरीके की कोई भी चीजें अगर हमें change करना पड़े तो उसके लिए हमेशा
कोई देता है , तो हमें उसके लिए अपनी तैयार रहो।

धर्मं का मर्म 27
Day 01
आज का चिंतन: अपने क्रोध भाव को पहचाने।
आज आपको पूरे • कितनी बार क्रोध आया?
दिन में यह निरीक्षण • कब कब, किस स्थिति में आया?
करना है कि दिन भर • किसी व्यक्ति के प्रति आया?
में आपको:
• किस वजह से आया?

क्रम संख्या क्रोध आया क्रोध की स्थिति क्रोध का कारण क्रोध के भाव में
कितनी देर तक
बने रहे ?

Sit And Observe:


1. क्या क्रोध करने से पहले हमारा किसी 5. क्या क्रोध हमारा स्वभाव है ?
स्थिति के प्रति पूर्वाग्रह /व्यक्ति के प्रति 6. क्रोध के कारण को पकड़ो।
पूर्वाग्रह/अवधारणा से mindset 7. उस मानसिकता को पकड़ो जिसके
था? कारण से क्रोध आया।
2. हमने कुछ अपेक्षाएँ रखी हुई थी और वे 8. क्या आप dependent हो?
पूरी नहीं हुई? 9. ऐसी मानसिकता हमने क्यों बना रखी
3. जैसा हमने सोचा था वैसा नहीं हुआ? है ?
4. क्या वास्तव में गुस्सा करने की कोई 10. क्या आप अपनी वह मानसिकता बदल
वजह थी? सकते हैं ?

28 धर्मं का मर्म
आज का एहसास
1.दूसरा व्यक्ति / 5. क्रोध के कारण पर focus करने से
स्थिति आपके हिसाब पता पड़ेगा कि यह create किया हुआ
से नहीं चलेंगे। है , अन्दर नहीं है ।
2. उन पर नियं- 6. अपने हाथ में अपना remote लो और
त्रण करने की कोशिश channel बदलो।
न करें। 7. अपने आप को स्वतंत्र बनाओ।
3. आप अपने क्रोध में कमी नहीं कर 8. जैसे ही लगे हमारी यह मानसिकता
पाएँगे अगर आप दूसरों को सुधारने की क्रोध का कारण है , तुरन्त अपनी मान-
सोचेंगे। सिकता को बदले।
4. आप दूसरों से अपेक्षा रखना छोड़ दे कि 9. आप देखेंगे क्रोध शांत हो रहा है ।
जैसा मैं कहूँ वह वैसा ही करें।

स्व-संवेदन
क्या आप अपने mindset को बदल little bit __________
पाए?
Yes______________
No______________

धर्मं का मर्म 29
Day-2: उत्तम मार्दव धर्म
धर्म धारण करने के लिए भी योग्यता आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए अपनी आत्मा
की जरूरत होती है के अन्दर परमात्म तत्त्व को प्रकट करने के
धर्म का मर्म जानने के लिए आज आपके लिए भी हमारी आत्मा में कुछ योग्यता होनी
सामने दूसरा दिवस है जब हमें अपनी आत्मा चाहिए। उसी योग्यता का विचार किया
में धर्म को और अधिक उत्पन्न करने के लिए, जा रहा है । कल आपको क्षमा के माध्यम
धर्म को और अधिक भीतर से धारण करने के से बताया था कि सबसे पहले हमें अपनी
लिए अपनी योग्यता का विस्तार करना है । योग्यता को बढ़ाने के लिए क्षमा भाव धारण
क्योंकि किसी भी चीज को जब धारण किया करना है । क्षमा भाव धारण करने से हमारी
जाता है , तो उसके लिए योग्य भी बनना आत्मा में जो एक उबाल है , हमारी आत्मा में
पड़ता है । योग्यता आए बिना हम किसी जो एक उद्वेग है , हमारी आत्मा में जो एक
भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं । अपनी गर्मी है , वह थोड़ी शान्त होती है ।

मिट्टी का उदाहरण योग्यता बढ़ाने के लिए


जैसे जमीन होती किसी भी तरह का कोई भी कार्य आगे का
है और उस जमीन को किया नहीं जा सकेगा। उसकी योग्यता में
यदि हमें योग्य बनाना बढ़ोत्तरी होने के लिए, उस मिट्टी के अन्दर
है कि उस पर कुछ कुछ और बनने के लिए, उसे कठोरता को
वपन किया जा सके, छोड़ना पड़ेगा। लेकिन वह भी तब होगा जब
उसमें कोई बीज डाला पहले उस मिट्टी को हमने सही कर लिया हो,
जा सके या वह जमीन ठण्डा कर लिया हो, उस मिट्टी को हमने साफ
ही, कुछ मिट्टी ही कुछ योग्य बन सके कि सुथरा कर लिया हो, उसके बाद में जब हम
वही आगे चल कर के कोई अच्छा रूप धारण उस मिट्टी को कुछ और बनाने की कोशिश
कर सके तो उसके लिए उस मिट्टी का ठण्डा करेंगे तो हमें उसको मृदु बनाना पड़ेगा,
होना जरूरी है । धूप से जो मिट्टी गरम हुई है , कोमल बनाना पड़ेगा। अगर मिट्टी में वह
उस मिट्टी के अन्दर शीतलता आना जरूरी है मृदुता नहीं आएगी, मिट्टी में वह कोमलता
क्योंकि जब तक मिट्टी ठण्डी नहीं होगी उसमें नहीं आएगी तो उसमें कोई भी चीज का न तो

30 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

वपन हो सकेगा, न तो कोई बीज डाला जा अच्छा बनाना है और उसको मृदु बनाना है ,
सकेगा और न ही वह मिट्टी कोई रूप धारण ठण्डा बनाना है । अनादि काल से दुःख के
कर सकेगी। कारण चार गतियों में भटकते-भटकते वह
आत्मा की सफाई सहनशील और मृदु बहुत तप्त हो गयी है । उसको पहले शीतल
बन कर होगी बनाना, सहनशील बनाना। जब वह क्षमा
आज का दिन जो आपको कुछ और धारण कर ली तो थोड़ी सहनशील हो गई।
अधिक अपनी योग्यता को बढ़ाने के लिए है , जब सहनशील होगी तभी उस पर हम कुछ
वह योग्यता है कि हमारी आत्मा में जो मान कर पाएँगे क्योंकि अब जो हम कुछ करने
कषाय बैठी है उसको ढीला करना, उसको जा रहे हैं वह तभी सम्भव है जब उसके अन्दर
हल्का करना और जो मान है उसको कम उसको सहने की शक्ति होगी। मिट्टी के ऊपर
करके अपने अन्दर कोमलता लाना, मृदुता जो कुछ भी फालतू की चीजें थी, waste
का भाव लाना। हमारी आत्मा भी एक भूमि material जो कुछ भी था उसको हटाना
है। उस भूमि पर हमने अनादि काल से और हटाने के बाद में मिट्टी के अन्दर एक

कषायों के माध्यम से अनेक तरह की दुःख शक्ति पैदा करना और उसे तैयार करना कि
रूपी फसलों को बोया है । अब हमें वह सब अब जो कुछ भी होगा उसे सहन करना है ,
फसलें काटना है , सब दुःख हमें दूर करना बीच में अब बोलना नहीं है । वह कैसे सहन
है । अपनी आत्मा की भूमि को साफ सुथरा, कर पाएगी?

आत्मा को मृदु कैसे बनाये?


उसके अन्दर एक में आए, कोमल हो जाए। कठोर होगी तो
दूसरी quality आनी आप देखेंगे कि कठोर चीज पर किसी भी तरह
चाहिए कि वह मृदु भाव का कोई भी कार्य सम्भव नहीं है । पाषाण

धर्मं का मर्म 31
उत्तम मार्दव धर्म

के ऊपर किसी भी बीज का होना सम्भव रगड़ा भी हो, उसके ऊपर कोई हल भी चला
नहीं है । कठोर मिट्टी में अभी कोई बीज नहीं दिया हो तो भी वह मिट्टी उफ न करे। यह
बोया जा सकता है । मिट्टी में तभी बीज बोना क्या हो रहा है ? हमारी आत्मा को और समर्थ
सम्भव है जब उस मिट्टी को हमने कोमल बनाया जा रहा है । एक तो हमें कुछ सहने की
बनाया हो। उसमें हमने पानी मिलाया हो सामर्थ्य आयी और अब हमने संकल्प लिया
और पानी से उसको सिं चित कर के हमने है गुस्सा नहीं करेंगे।
उसको कूटा भी हो, कई तरीके से उसको

आत्मसमर्पण की भावना
now second step क्या होगा? ऊपर हल चलाया जा रहा है , हमको कूटा
जब हम गुस्सा नहीं करेंगे तो अब हमें करना जा रहा है , हमको पीटा जा रहा है , पानी
क्या? अब दूसरा step है कि अब हमें अपने मिलाया जा रहा है , रौंदा जा रहा है । अगर
आपको समर्पित कर देना है । किस लिए? उस समय पर यह सब thinking आई तो
कुछ होने के लिए, कुछ बनने के लिए। जब मिट्टी कुछ नहीं बन पायेगी, न मिट्टी में से
समर्पित करेंगे तो समर्पित करने के बाद में कुछ बन पाएगा। समझ में आ रहा है ? मिट्टी
जिसके प्रति समर्पण हो जाता है , फिर काम भी कुछ बन पायेगी मतलब मिट्टी भी घड़ा
उसके through होगा। हमारे through बन पाएगी तो इसी condition के साथ
कुछ नहीं होगा। अब वह जो करेगा वही होगा बनेगी और मिट्टी में से कुछ वपन होगा, मिट्टी
जिसको हमने समर्पण कर दिया है और जब में से कुछ बनेगा, कोई अच्छा पौधा बनेगा,
वह समर्पण करने के बाद में वह कुछ काम कोई अच्छा वृक्ष बनेगा, बीज का वपन होगा
करेगा, जिस तरीके से मिट्टी के साथ वह तो वह भी इसी condition के साथ होगा
behave करेगा उस समय पर वह मिट्टी कि पहले तो मिट्टी में योग्यता चाहिए। आज
कुछ भी चिल्लाएगी नहीं, रोएगी नहीं। हमने हमें सीखना है । कल हमने संकल्प लिया था
आपको इसलिए तो समर्पण नहीं किया था कि हम क्रोध से रहित होंगे, सामर्थ्य अपने
कि आप हमारा यह हाल कर दोगे। हमारे अन्दर बढाएँगे।

हमारे अन्दर अहं (अकड़) कैसे आता है ?


आज हम सीखेंगे कि हम अपने अन्दर अन्दर की जो अकड़ है उसको छोड़ेंगे। अकड़
मृदु भाव लाएँगे, समर्पण बढ़ाएँगे। अपने समझते हैं न? अकड़ तब आती है जब हम

32 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

बाहर की कोई चीज पकड़ लेते हैं तो हमारे हम जो थे वह नहीं रहते। हम अपने अहं को
अन्दर अकड़ आ जाती है । कोई भी चीज जो बढ़ाते चले जाते हैं । जो हमारा अहं है - मैं जो
हमने बाहर की पकड़ ली है और वह चीज था वह एक बाहर की तरफ बढता चला जाता
हमारी पकड़ में आ ही जाती है । हम जैसे- है । बाहर उसका expansion होता है और
जैसे छोटे से बड़े होते हैं , हम न जाने कितनी यही हम को हमारे माता-पिता सिखाते हैं
चीजों को, कितने भागों को, कितने विचारों कि अपने अहं को बढ़ाओ। वे direct नहीं
को अपने अन्दर पकड़ते चले जाते हैं और बोलते।

माँ बाप अपने बच्चों से अपने अहं की पूर्ति करते हैं


लेकिन जब भी बच्चे को, बचपन से पूर्ति करना है , तो वह उस बच्चे को सिखाते
बड़ा किया जाता है उसके अन्दर यही अहं हैं कि देखो! बेटा इं जीनियर होते हैं उनकी
को बढ़ाने की भावना भर दी जाती है । हर यह reputation होती है , doctor होते हैं
बच्चे को सिखाया जाता है - बेटा! तू क्या उनकी यह reputation होती है । जो बड़े-
बनेगा? क्या बनेगा? वह कहता है - मुझे पता बड़े IAS officer होते हैं , collector होते
ही नहीं हैं कि मैं क्या बनूँगा? जैसा होगा बन हैं उनके पास में ऐसा होता है , यह power
जाऊँगा। नहीं! नहीं! तुझे engineer बनना होती है , वह power होती है । ऐसा उस बच्चे
है , तुझे IIT करना है , तुझे doctor बनना के अन्दर बचपन से feed किया जाता है ।
है , तुझे C.A. बनना है । अब वह जबरदस्ती वह क्या सोचता है ? अब हमें भी यही बनना
माता-पिता उसके अन्दर भर रहे हैं । क्यों भर है , ऐसा ही करना है । वह भी अपने आप को
रहे हैं ? उन्हें अपने अहं की पूर्ति करना है । तो भूल जाता है कि मैं क्या हूँ? मैं बच्चा था,
मेरा बेटा doctor, मेरा बेटा engineer, बड़ा हो गया। यह सब तो कुछ ध्यान नहीं
मेरा बेटा IAS officer. उन्हें अपने अहं की रहता। अब उसके दिमाग में feeding शुरू

धर्मं का मर्म 33
उत्तम मार्दव धर्म

हो जाती है , 10th class से ही, क्या बनना समझो आप! जिस बच्चे को अभी थोड़ा सा
है ? IIT को अगर पास करना है , तो उसकी बढ़ना सा था, आगे फलना-फूलना था, इस
पहले से ही तुम्हें coaching लेना है , पहले संसार को देख कर के कुछ अपनी योग्यता-
से ही इसकी तैयारी शुरू करना है और वह ओं को develop करना था, उस बच्चे के
10th class से शुरू हो जाती है । पहले तो ऊपर यह भार सबसे पहले पड़ने लग जाता
after 12th होती थी, अब तो 10th से ही है कि तुझे यह बनना है ।
शुरू हो जाती है और तो पहले नहीं हो जाती?

बच्चा जो बन जाता है फिर अहं के कारण अपने को जीवन भर वही समझता है


जब बच्चा इसी धुन में चलता है , तो am a collector’. हर चीज के पीछे उसके
कुछ बन भी जाता है । कभी माता-पिता अन्दर इतनी deep thinking पैदा कर दी
के दबाव के कारण से, कभी अपनी पढ़ने जाती है और वह उसके subconscious
की योग्यता के कारण से, माता-पिता के mind में इतनी गहरी बैठ जाती है कि वह
द्वारा खर्च किये जाने वाले पैसे के कारण अपने आपको उससे हट कर के और कुछ
से, उसकी अपनी मेहनत के कारण से कभी सोच ही नहीं पाता है ।
कुछ बन भी जाता है , बन भी गया। अब जब आप देखें जब भी कोई कुछ बन गया
वह बन गया तो बनने के बाद में उसका अहं तो बनने के बाद में वह जिन्दगी भर के लिए
उस चीज से इतना जुड़ गया, इतना जुड़ गया उससे अलग हटकर के अपने आपको कभी
कि वह उसके अलावा अपने आपको कुछ महसूस नहीं कर पाएगा। कभी भी यह नहीं
सोच ही नहीं सकता है । अगर वह doctor सोचेगा, I am not a doctor, I am not
बन गया है , तो वह हमेशा doctor की a collector, I am not a teacher,
feeling में रहे गा। I am a doctor. उसके अन्दर यह भाव रहे गा ही। यहाँ तक
अगर कहीं cricketer बन गया तो, I am कि अपने घर में आएगा तो भी वह यही
a cricketer. उसके अन्दर हमेशा वही भाव रखेगा कि घर में भी आ कर के लोग
feeling रहे गी। सपने में भी वह बल्ला हमें doctor ही समझें, पत्नी के सामने भी
घुमाएगा, सपने में भी वह fielding करेगा। doctor रहे गा, बेटों के सामने भी doctor
अगर वह कहीं actor बनने की फिराक में रहे गा। बात करेगा तो हमेशा उसी doctor
है , तो हमेशा उसको acting ही दिखेगी। I style में करेगा। उसके अन्दर वह चीज इस
am a actor. IAS पास करना है , तो ‘I रूप में समा जाती है कि वह उसका अहं बन

34 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

जाती है ।

‘अहं भाव’ का अर्थ ‘मैं’ होता है जो हमारी पहचान भुला देता है


‘अहं ’ मतलब मैं। जोड़ देता है कि हम अपने मैं को भूल जाते
मैं क्या हूँ? मैं अब हैं कि मैं कौन हूँ? who am I? ये हमारे
इसके अलावा कुछ अन्दर कभी याद ही नहीं आता और इसलिए
नहीं है । उठते-बैठते घर हम कभी भी वह नहीं बन पाते जिसके बनने
में दुकान पर लोगों से के लिए हमें मनुष्य जीवन मिला था। हम
मिलते हुए हर जगह वह बन गए जिसके बनने के बिना भी हमारा
पर उसके अन्दर एक जीवन चल सकता था लेकिन हमारे अन्दर
ही thinking रहती है । मैं यह हूँ, मैं यह हूँ वह चीज इतनी गहरी समा गई कि हम हमेशा
और उसके मैं के according अगर कहीं उसी में अपने आपको involved रखते हैं
कुछ नहीं होता है तो वह तुरन्त उसका भीतर और उसी में अपने अन्दर सोचने की क्षमता
से एक दम से temper high हो जाता है रखते हैं । उस criteria से अपने आप को
क्योंकि उसके मैं को चोट पहुँचती है । यह मैं हटा नहीं पाते।
क्या करता है ? यही मैं हमारा इतना विस्तार
कर देता है आसपास की चीजों से, हमें इतना

अहं का भाव हमारे अन्दर जबरदस्ती डाला जाता है


आप देखें जैसे कभी कहीं बरसात जाएगी। मेंढकों को क्या हो गया? टर्र टर्र
होती है उसमें थोड़ा सा पानी भर जाएगा तो आवाज आती है , मेंढ़कों की आवाज आती
मेंढक, मछली सब पैदा हो जाएँगी। मछली है । आप देखो! आपको बड़ा बनाया जा रहा
पैदा हो जाएँगी, मेंढक पैदा हो जाएँगे तो है , आपको पढ़ा लिखा कर के कुछ बनाया
आपको कहीं भी बैठे हुए आवाज आने लगी जा रहा है और आपके अन्दर भी एक टर्र

धर्मं का मर्म 35
उत्तम मार्दव धर्म

पैदा की जा रही है । कैसी टर्र? यह doctor डाला गया है । आपके अन्दर बचपन से नहीं
टर्र है । cricketer, actor, collector, था। आपके लोगों ने, आपके आस-पास के
receptor, minister क्या है ? एक टर्र लोगों ने, अगर आपके घर में आपके माता-
की जो आवाज आती है यह ऐसी ही है । पिता doctor हैं तो उन्होंने भर दिया आप के
पानी हुआ, मेंढक उत्पन्न हुए, टर्र टर्र शुरू अन्दर कि आपको डॉक्टर ही बनना है । अगर
हो गई। पानी चला जाएगा मेंढक उसी में माता-पिता businessman हैं और उन्हें
मर जाएँगे। उन्हें पता ही नहीं होगा कि हम लगता है कि हमारा बेटा businessman
किस लिए पैदा हुए थे? क्या किया था और न बने, servicemen बने, कोई अच्छा
क्या हमने इस टर्र-टर्र से प्राप्त कर लिया? collector बने तो उन्होंने आपके अन्दर भर
बस! यही है जो आपको लगता है कि हम दिया है क्योंकि उनकी जो अहं की पूर्ति थी
अपना बहुत कुछ career बना रहे हैं , हम वह खुद नहीं कर पाए, वह आपसे करा रहे
अपनी बहुत कुछ life को बहुत आगे बढ़ा रहे हैं । तुम बन जाओ, मैं नहीं कर पाया तो तुम
हैं । यह भी आपका एक अहं है , जो आपके कर लो, मैंने इसलिए तुमको पैदा किया है ।
subconscious mind में जबरदस्ती

अहं का भाव हमारी अलग पहचान है जो हमें दूसरों से मिलने नहीं देता
जब हमारे अन्दर इस तरह का अहं अब अपना ego create करते हैं । ego
विकसित होने लग जाता है , तो हम कभी और कोई चीज नहीं है अपनी एक अलग
भी मृदु नहीं हो सकते हैं । हमारे अन्दर कहीं identity को इस तरह से बनाना कि उसमें
न कहीं ऐसी कठोरता आ जाएगी कि हम हम यह feel करें कि यह सिर्फ मैं हूँ। मेरे
सबके साथ में घुल-मिल नहीं सकते हैं । जैसा और कोई नहीं है और मेरी जो अपनी
हम सबके साथ में एक मानवता का व्यव- identity बनी हुई है ऐसी किसी की नहीं है
हार भी नहीं कर सकते हैं । हम अपने लिए और मैं जिस तरीके से growth कर रहा हूँ
भी मृदु नहीं हो सकते हैं । अपने परिवार के वैसा कोई कर नहीं सकता है । यह सब क्या
लिए भी कोमल नहीं हो सकते हैं । यह होने है ? expansion of our ego. यह हमारे
लग जाता है , अहं हमें मिलने नहीं देता, हमें ego का एक विस्तार है । किधर की ओर है ?
दूसरों के साथ में mixup नहीं होने देता। बाहर की ओर है या ego हमने बढ़ाया तो
हमारी अपनी अलग identity है और उस किधर बढ़ाया, बाहर की ओर बढ़ाया तो क्यों
अलग identity को बनाए रखने के लिए बढ़ाया बाहर की ओर?

36 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

अहं ego हमें नए संकल्प नहीं लेने देता


बाहर की चीजों आप देखना पढ़ा-लिखा व्यक्ति चाहे वह
को देख कर के, बाहर minister की श्रेणी में आता हो, चाहे
की चीजों के अनुसार, वह पढ़ा-लिखा छोटा सा बच्चा हो, अच्छे
अपने अन्दर अपने को से अच्छे convent स्कू लों में पढ़ता हो या
उससे जोड़ कर के मैं कोई और पढ़-लिख कर के कोई अच्छी
यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह job करने लगा, अच्छी कंपनी में काम करने
हूँ। मैंने अपने अन्दर ये लगा, आप उससे कभी भी कहें गे आपको
संकल्प ले रखे हैं , इसलिए हम कोई और यह संकल्प लेना है । वह कहे गा नहीं मैं अभी
दूसरे संकल्प नहीं लेना चाहते हैं । हम घबराते संकल्प नहीं लूँगा, कर लूँगा, देख लूँगा, मन
हैं । आप देखेंगे कि जितना पढ़ा-लिखा व्यक्ति होगा तो कर लूँगा, संकल्प नहीं लूँगा। क्यों
होगा उतना ही संकल्पों से घबराएगा क्योंकि नहीं लोगे भाई? वह खुद भी नहीं जानता।
उसने अपने अन्दर इतने दूसरे संकल्प ले रखे उसका जो main reason है , वह उसका
हैं कि जब उसका कोई यह संकल्प टू टता है , ego है । यह ego ही होता है , जो हमें कभी
तो उसको लगता है कि मेरा सब कुछ टू ट संकल्प अगर हम ले लेंगे कभी किसी से तो,
जाएगा। इसे यह नहीं मालूम कि मेरा ego इसका मतलब यह हो जाएगा तो हम उसके
hurt हो रहा है , यह मेरा ego टू ट रहा है । प्रति समर्पित भी हो गए हैं और वह हमें सम-
वह ego को तोड़ना नहीं चाहता है , इसलिए र्पित होने नहीं देता।
वह कोई नया संकल्प लेना नहीं चाहता है ।

हमारे अन्दर quality आना ही उसके प्रति समर्पि त होना है , ego उसे रोकता है
अगर हम किसी quality को संकल्प लिखा व्यक्ति और किसी जगह पर जाने में
के साथ में अपने अन्दर ले आते हैं तो इसका तर्क नहीं करेगा लेकिन देखना अगर कभी
मतलब है हमने उसको भीतर से अपना लिया उससे कहा जाएगा धर्म का उपदेश सुन लो,
है मतलब हम उसके प्रति समर्पित हो गए आज रात्रि में भोजन मत करो, आज पानी
और वह हमें समर्पित होने नहीं देता क्योंकि छानकर पीओ, आज भगवान का मंदिर
उसे लगता है कि अगर तुम इधर चलने लगे में दर्शन कर आओ तो वह argument
तो यह बाहर का जो तुमने expansion कर करेगा। चलो! आज घूमने चलते हैं , आज
रखा है यह सब टू ट जाएगा। इसलिए पढ़ा- पार्टी करते हैं , आज वहाँ पर पिकनिक मनाने

धर्मं का मर्म 37
उत्तम मार्दव धर्म

चलते हैं , आज उस theatre में चलते हैं , हैं इसमें कोई argument नहीं होंगे। यह
नयी movie आई है , चलो! देखने चलते ऐसा क्यों होता है ?

अहं टू टे गा तो स्वयं से परिचय होगा


अहं हमारा जब अच्छा लगा होगा? हाँ! ठीक है ! क्रोध नहीं
बाहर का टू टता है तभी करना। अब आज आपकी परीक्षा शुरू हो
भीतर से जो हमारा वा- रही है मान नहीं करना। अपने अन्दर अकड़
स्तविक अहं है उससे पैदा नहीं करना। जो अपने से बड़े हैं , तपस्वी
हमारा परिचय होता है । हैं , गुरु हैं अपने से महान है उनकी बात को
who am I? मैं कौन स्वीकार करना, मानना। कैसे मान लूँ? मैंने
हूँ? मतलब जब मैंने तो 20 साल पढ़ाई करी है । यह कौन सी
अपने मैं का विस्तार कर लिया और मैंने पढ़ाई करके आई है ? पहले यह बताओ यह
अपने आपको भीतर से मान लिया कि I जो हम को पढ़ा रहे हैं , यह क्या कोई Msc
am a doctor, I am a collector तो किया हुआ है , Phd किए हुए है । मैंने तो
फिर मैं, अब जो मैं आपको सिखाने वाला Phd कर रखी है , मैंने तो चार-चार विषय
हूँ वह मैं कैसे आएगा? बस! यहीं से धर्म में M.A. कर रखी है । यह क्या हो रहा है ?
हमको पीछे हटा देता है या यूँ कहें कि हम हमारा ego कोई भी अच्छी चीज को हमें
जैसे ही धर्म के लिए अगला step लेते हैं grasp करने नहीं दे रहा है । यह हमारा ego
तो हमें एक भीतर से एक जकड़ लगता है ही होता है , जो हम किसी के सामने खड़े होते
और हम उसको छोड़ देते हैं । नहीं! अब हमें हैं , किसी से कुछ लेना तो चाहते हैं लेकिन
नहीं आगे बढ़ना है । कल तक तो आपको उसके सामने हम झुकना नहीं चाहते हैं ।

धर्म को समझने के लिए उसके मर्म को जानना जरूरी है


second step धर्म का हमें भीतर मिलेगा या हमारे प्राण निकल जाएँगे। मर्म
से इसीलिए समझाने के लिए है , इसलिए वह कहलाता है - जैसे आपके हृदय का
आपका यह जो शिविर है इसका नाम धर्म स्थान आपकी आँखें, आपके दोनों भृकुटियों
का मर्म जानो रखा गया है । मर्म! मर्म का के बीच का स्थान मस्तिष्क में कुछ ऐसे
मतलब क्या होता है ? मर्म स्थान वे होते हैं point होते हैं कि वहाँ पर अगर कोई किसी
जिन पर चोट लग जाने से या तो हमें जीवन भी तरीके का कोई भी attack हो गया,

38 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

तुरन्त आप के प्राण निकल जाएँगे और अगर का यह मर्म अब हमारे अन्दर आ रहा है । मर्म
आप ढं ग से वहाँ उस point को दबाओगे मतलब उसकी आंतरिक स्थिति है , आंतरिक
तो आपके अन्दर energy आएगी। यह मर्म भाव है । किसी भी चीज को समझने के लिए
स्थान इसका नाम है । धर्म का मर्म जानने हमारे अन्दर समर्पण का जो दूसरा step
के लिए भी हमें यही समझना पड़ेगा कि मर्म आता है , बस! यहीं से हम पीछे हट जाते हैं
वही होता है जो हमें भीतर से हमारे अन्दर एक अगर हमने स्वीकार कर लिया, गुरु ने कहा
जो चीज बन चुकी है , उसको हटाएगा। फिर है रात में भोजन नहीं करना। आप जानते हो,
दूसरी चीज आएगी तो उसमें हमें पीड़ा होगी, इतनी स्वीकारता से क्या हो जाएगा? हमारा
हम उसको सहन भी करेंगे तभी हम समझेंगे ego टू ट जाएगा।
कि अब यह भीतर से धर्म बन रहा है । धर्म

धर्म का मर्म जानने से गुरु के प्रति समर्पण आता है


किस बात पर हमने जाएँगे तब भी आप समझ पाए न समझ
समर्पण कर दिया! हमने पाए, पूरा दसलक्षण पूरा हो जाएगा लेकिन
कोई चीज को हृदय से जिसके अन्दर समर्पण होगा वह सोचेगा
स्वीकार किया है तो वह पहले हम इस चीज को स्वीकार कर लेते हैं ,
तभी संभव है जब हमने समझ में आता रहे गा। आप कभी भी कोई
उस गुण के लिए और भी तरह की class join करते हैं तो उसके
उस गुणवान व्यक्ति के पहले आप कुछ उसमें फीस देते हैं । कुछ
लिए समर्पण किया होगा। रात्रि में भोजन उसमें अपना agreement देते हैं कि मैं एक
नहीं करना यह quality हो गई, यह गुण साल इसी स्कू ल की इसी class में पढू ँ गा।
हो गया और जिसने कहा है , वह गुणवान इसके अलावा मैं कहीं नहीं जाऊँगा। अभी
व्यक्ति है । अगर हमने दोनों की बात मानी class शुरू नहीं हुई हैं , उससे पहले मैं इतना
और दोनों चीजों को माना तो यही हमारे payment भी दे रहा हूँ। कर तो रहे हो!
अन्दर के समर्पण भाव से संभव है । अगर समझ में क्या आएगा क्लास में क्या होगा?
हमारे अन्दर इस तरीके की अकड़ होगी कि क्या पढ़ाया जाएगा? वहाँ पर argument
पहले बताओ! रात में भोजन क्यों नहीं करना नहीं होता। वहाँ पर भी हम पहले यही काम
चाहिए, हमें समझाओ! समझ में आ रहा है ? कर रहे हैं । हम अपने आपको समर्पित कर
आपको समझाने में तो आठ दिन भी निकल रहे हैं , हम अपना पैसा उसमें फंसा रहे हैं , हम

धर्मं का मर्म 39
उत्तम मार्दव धर्म

अपने आप को time से bound कर रहे हैं । हो। पढ़ाने वाला teacher पढ़ाए न पढ़ाए,
हम हर तरीके की condition जो सामने तुमको मारे, तुमसे कुछ भी गलत बोले, कुछ
वाले से दी जा रही है , हम उसको follow भी करें तुम्हें सब सहन करना पड़ेगा क्योंकि
करने के लिए बिल्कुल prepared हैं । तुमने अपने आपको एक साल के लिए
उसके बाद में आप एक साल में, जो हो सो bound कर लिया।

समर्पण करने के बाद ही नम्रता, मृदुता आती है


पहले समर्पण किया न तब कुछ सीखने देता है । हमारी मिट्टी, आत्मा की भावों की
को मिलेगा। वही चीज यहाँ है , कुछ अलग परिणति, इतनी कठोर है कि उसमें कोई भी
से क्या है ? पहले थोड़ा सा समर्पित भाव में चीज डाल रहे हैं हम तो उसके अन्दर नहीं
आओगे तब तुम्हारे अन्दर एक झुकने का जा रही है , accept नहीं कर रही है क्योंकि
भाव आएगा, झुकने का भाव आएगा तभी उसके अन्दर अभी मृदुता नहीं आई, कोमलता
तुम कुछ सीख पाओगे। नम्रता! मृदुता को नहीं आई। आप देखोगे जैसे-जैसे मिट्टी में
लाती है । उस नम्रता के माध्यम से ही हमारी पानी डाला जाता है , उसको मसला जाता है ,
आत्मा में कुछ पहुँचता है । हम बाहर से सुनते रौंदा जाता है उतना ही उस मिट्टी के अन्दर
तो हैं लेकिन भीतर हृदय तक क्यों नहीं उसका एक कहना चाहिए glow उभर कर
पहुँचता क्योंकि हमारा ego उसको बाहर के आता है । उसके अन्दर की softness
फेंक देता है । ठीक है ! ठीक है ! बाद में देख और ज्यादा उस मिट्टी की एक जो beauty
लेंगे। अभी तो सुन लिया है न, एक दम से है उसको बढ़ा देती है । समझ में आ रहा है ?
उसको accept नहीं करना है । समझ लेंगे बढ़ती है कि नहीं? एक कभी कठोर मिट्टी
धीरे-धीरे हो जाएगा, हमारा ego उसको का ढे ला लेकर के देखना और एक मिट्टी को
बाहर फेंक देता है । जितना भी हम सुनते पानी में मिला कर के, खूब मसल कर, रौंद
हैं वह हम क्यों नहीं अपने अन्दर रख पाते करके और फिर उसको चिकना कर के फिर
हैं क्योंकि हमारा ego उसको बाहर फेंक देखना, आप उसकी softness देखना,

40 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

उसकी brightness देखना, फिर आपको विकसित करने लग जाएगी। यह कब सम्भव


समझ में आएगा कि देखो! इस मिट्टी में और है ? जब हमारे अन्दर क्या आने लग जाए?
इस मिट्टी में कितना अन्तर है । फिर उस मिट्टी क्या आने लग जाए? नम्रता! मृदुता! ये दोनों
को आप जैसे चाहो वैसे करना, वैसी ही हो चीजें एक ही हैं । हम झुकने में कष्ट महसूस
जाएगी। आप चाहे उसकी प्याली बना लेना, करते हैं लेकिन पहले आप देखोगे जब भी
चाहे गिलास बना लेना, चाहे उसको घड़ा स्कू लों में पढ़ाया जाता था, हमें जमीन पर
बना लेना। जैसा बनाना चाहोगे वैसा बन बिठाया जाता था। जब भी हम स्कू ल में जाते
जाएगी। उस मिट्टी में चाहे कोई भी गुलाब थे, कभी भी हमारे सामने स्कू ल के कोई भी
के फूल का पौधा उसमें रोपित कर देना, अध्यापक पढ़ाने आते थे तो हम खड़े होते थे।
चाहे उसमें कोई भी बीज डाल देना, वह उनका पहले अभिवादन करते थे फिर बाद में
सब उसको ग्रहण कर लेगी और उसको भी अपनी जगह पर बैठते थे।

Convent स्कूलों teachers के प्रति respect नहीं सिखाई जाती


आज क्या होता है ? ऐसा होता है ! हमें अलग है । वह भी अगर होता होगा तो शायद
शुरू से कुछ सिखाया जाता है । हम पहले से कोई जो सरस्वती शिशु मन्दिर है , ऐसे स्कू ल
जाकर के अपनी सीट पर बैठे रहते हैं । सर में ही चलता होगा। convent स्कू ल में ऐसी
आते हैं , वह अपनी लाइन से आते हैं , board कोई रिवाज है ही नहीं। बताओ-बताओ?
के पास खड़े हो जाते हैं , अपना पढ़ाना शुरू समझ में आ रहा है ? हमारा teacher के
कर देते हैं । हम कभी उनका अभिवादन करते प्रति जो respect है वह हमें पहले सिखाया
हैं या हम उनके प्रति कोई नम्रता का व्यवहार जाता था और जब भी कभी आपको कोई
रखते हैं अथवा हम उनके प्रति एक respect बड़ी post पर पहुँचाया जाएगा तो आपके
का attitude रखते हैं ? ऐसा कुछ सिखाया लिए उसी तरीके का respect भरा जाता
नहीं जाता। यह compulsion नहीं है । है कि जो आपको order दिया जाए वह
कोई कर लेता है , कहीं हो जाता हो तो बात आपको करना है ।

military में देश भक्ति के भाव से ही training दी जाती है


जैसे आप कभी मान लो military आप military में पहुँच गए, military में
में पहुँच गए, military में कब पहुँचोगे? यही सिखाया जाता है , हर रोज practice
जब आपके अन्दर देश भक्ति का भाव होगा। कराई जाती है कि जैसा order मिल रहा

धर्मं का मर्म 41
उत्तम मार्दव धर्म

है वैसा ही तुम्हें step उठाना है , वैसा ही अन्दर अगर समर्पण है तो आप कहोगे आज


step लेना है । कदम उठा तो कदम उठा, मुझे मौका मिला मैं यह जरूर करूँ गा। इसी
कदम रख तो कदम रख, दाएँ मुड़ तो दाएँ के लिए तो तैयारी कर रहा था। समझ में आ
मुड़, बाएँ मुड़ तो बाएँ मुड़। समझ आ रहा रहा है ? बड़े-बड़े जो काम होते हैं वह समर्पण
है कि यह क्या practice है ? यह कोई से ही होते हैं । बड़े-बड़े जो काम होते हैं वह
practice नहीं है । यह practice वह है दूसरों की सिर्फ आज्ञा मानने से ही होते हैं
जो आपको order दिया जा रहा है , उस और जब इस तरह की देश भक्ति के भाव
order के अनुसार आपको हमेशा चलने हमारे अन्दर भर जाते हैं तभी हम जाकर के
की mentality बनाई जा रही है । आज कभी किसी स्थान पर कोई दूसरे देश की
यहाँ पर वह mentality बनाई जा रही है । शक्तियों से अपने आप को लड़ा पाते हैं और
जब समय आएगा तब सिर्फ एक order हम अपने अन्दर एक समर्पण भाव होता है
ही मिलेगा। उस boundary पर जाना है , तभी यह भाव आता है ‘सिर कटा सकते हैं
उस spot पर पहुँचना है । फिर जब order लेकिन सिर झुका सकते नहीं’। अब आप
मिलेगा तो फिर कोई नू नच नहीं होना है । यह सोचोगे कि यहाँ तो सिर कटाने की बात
आज मेरे पेट में दर्द हो रहा है , आज मेरा आ रही है , सिर झुकाने की बात नहीं आ रही
स्वास्थ्य ठीक नहीं, कुछ नहीं! इतनी ताकत है और आप हमको सिर्फ झुकाने की बात
भर दी जाती है कि आप के लिए कोई बहाना बता रहे हो। आप देखो एक चीज बहुत अच्छे
बनाने का भी time नहीं मिलेगा। आपके difference में आपको बताने जा रहा हूँ।

अभिमान और स्वाभिमान में अन्तर


एक चीज होती अभिमान हमें उन चीजों पर होता है जो चीजें
है- ego जिसे हम temporary होती है , transient होती
कहते हैं - अभिमान है , permanently नहीं होती हैं । जिन
और एक चीज होती चीजों को हम कभी achieve कर भी सकते
है- self esteem, हैं और हमारे जैसे कई लोग achieve भी
जिसको बोलते हैं - कर लेंगे तो भी हमें उससे कोई बहुत ज्यादा
स्वाभिमान। समझ लाभ नहीं मिलता, सिर्फ हम अपना खाना-
में आ रहा है ? दो चीजें होती हैं । एक होता पीना और एक अपने तरीके की prestige
है - अभिमान, एक होता है - स्वाभिमान। बना लेते हैं और कुछ ज्यादा कुछ नहीं होता

42 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

है । उन चीजों के प्रति जो क्षणिक है , उन है , जो permanent होती हैं , जिनकी


चीजों के प्रति जो कोई हमेशा के लिए valid validity long time तक चलती है ऐसी
नहीं है , उन चीजों के प्रति जब हमारा ego चीजों के प्रति अगर हमारा ego जुड़ता है तो
जुड़ जाता है तो वह कहलाता है - अभिमान। वह कहलाता है - स्वाभिमान।
कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो valuable होती

भारतीय होना स्वाभिमान की बात है


जैसे मैं भारत देश का वासी हूँ, भारत देश कुल है , पवित्र कुल है , जहाँ पर किसी को
आज से नहीं है बहुत समय से है और बहुत मारा नहीं जाता। धर्म के नाम पर भी जहाँ
समय तक रहे गा। हम भारत देश पर क्यों हिं सा नहीं होती, जहाँ पर हमेशा विवेकपूर्ण
अभिमान करते हैं क्योंकि यहाँ पर लोग धर्म आचरण होता है । हर छोटी से छोटी चीज को
करते हैं , स्वच्छता से रहते हैं , शाकाहार करते भी देख कर के, शोध करके बनाया जाता है ,
हैं , गुणों का पालन करते हैं , ऋषि मुनियों खाया जाता है । कभी कोई गंदी चीजें नहीं
की पूजा करते हैं । यहाँ की संस्कृ ति अपने खाई जाती है , कभी किसी भी जीव के लिए
आप में सब देशों की संस्कृ ति से विशिष्ट मारा नहीं जाता है । ऐसी पवित्र संस्कृ ति में
है । इन गुणों के प्रति अगर हमारा अभिमान हमारा जन्म हुआ है । अगर हमारे अन्दर इस
होता है , तो वह कहलाता है - स्वाभिमान। तरीके का भाव आता है , इससे जो हमारा
हम जिस कुल में जन्म लिया है , वह जैन अहं जुड़ता है उसको बोलते हैं - स्वाभिमान।

हमें अभिमान को तोड़कर स्वाभिमान को बढ़ाना है


सुन रहे है ? अभिमान को तोड़ो, स्वाभि- है । हमारा जो character है हमारा जो
मान को बढ़ाओ, कोई दिक्कत की बात नहीं अपना moral nature है , उसको हम

धर्मं का मर्म 43
उत्तम मार्दव धर्म

अगर जानते हैं तो उसी को हम focus करें ब्रह्मचारी हूँ यह अपने स्वाभिमान की चीजें
और उसी पर हम अपने आप को टिकाए रखें हैं । इस स्वाभिमान को आपको बना कर
चाहे उसके लिए कितनी कष्ट हमें क्यों न रखना है । लेकिन जो क्षणिक चीजें हैं जिन
सहने पड़े, यह हमारा स्वाभिमान होगा। चीजों से हमारे अन्दर मद पैदा हो जाता है ,
स्वाभिमान में एक देश भक्ति का भी स्वाभि- हमारी बुद्धि भ्रष्ट होने लग जाती है ऐसी चीजों
मान होता है , कुल का भी स्वाभिमान होता के प्रति अगर हम अपने आपको ज्यादा
है , धर्म का भी स्वाभिमान होता है , अपने जोड़ते हैं तो वह हमारा अभिमान बन जाता
गुणों के लिए भी अपना स्वाभिमान होता है है ।
कि मैं चरित्रवान हूँ, मैं सदाचारी रही हूँ, मैं

Materialistic पदों की power का misuse अभिमान को बढ़ाता है


हमारे पास power आई, power यह power का misuse है । जब व्यक्ति
आ गई तो क्या हुआ? हम उस power का के पास में money भी ज्यादा हो जाती है
एक use भी कर सकते हैं और misuse तो वह भी उसके लिए power बन जाती
भी कर सकते हैं । कई तरीके की power है और उसका भी वह misuse करने लग
होती है । किसी भी पद पर आसीन होने की जाता है । अब हमारे पास पैसा है न! किसी
power आ सकती है । हमारे पास money का हिसाब, कुछ भी कर सकता हूँ, मैं किसी
power भी आ सकती है , किसी भी तरीके को भी कहीं से उठवा सकता हूँ, किसी को
की power आ सकती है । हम उसका use भी खरीद सकता हूँ, कुछ भी कर सकता हूँ
भी कर सकते है , misuse भी कर सकते ,यह उसका misuse है । यह misuse जब
हैं । misuse कब करेंगे? जब हम उसके होने लगेगा तो उसके अहं कार के कारण से
अभिमान में अपने आप को डाल देंगे। तभी होगा। इसलिए इन चीजों को केवल उतना
होता है एक विधायक का लड़का सीधा जाता ही रखा जाता है , जितना अपने use में आए
है पुलिस थाने में और पुलिस वाले की गर्दन otherwise यह हमारे जीवन को खराब
पकड़ लेता है । उसकी वर्दी पर हाथ डाल देता करने लग जाती हैं । ऐसी चीजें हमारे अन्दर
है । किस बात पर? उसे अभिमान है कि मैं ऐसा घमंड पैदा कर देती है जिसके माध्यम
विधायक का लड़का हूँ, इस बात पर! समझ से हम अपने जीवन को भी बर्बाद करते हैं
आ रहा है ? यह अभिमान उसको गलत करने और दूसरे को भी हमेशा गिराने, मिटाने के
के लिए प्रेरित करता है । यह अभिमान है , बारे में ही सोचते हैं ।

44 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म

देश, धर्म, कुल और अपने चरित्र का स्वाभिमान आपको सफल बनाएगा


स्वाभिमान एक अलग चीज है और के लिए सिर नहीं झुका सकता वह लेकिन
अभिमान एक अलग चीज है । अभिमान हमें अपने देश के लिए तो सिर झुका रहा है न
हमेशा अपने से दूर रखता है और स्वाभि- और इतना सिर झुका रहा है कि उसके उस
मान हमें हमेशा अपने पास लाता है , हमें सिर को वह झुकाने के लिए भी तैयार है
quality से जोड़ता है । जब आपको स्वा- लेकिन वह गलत चीज के लिए सिर नहीं
भिमान होगा अपने धर्म का, अपने कुल का, झुका रहा है । वह किस के लिए सिर झुका
अपने चरित्र का तो आप हमेशा अच्छे बनते रहा है ? वह तिरं गा के लिए सिर झुकाता है ।
चले जाएँगे। आपके अन्दर मृदुता आएगी, इसी तरीके से अपने धर्म का पालन करने के
नम्रता आएगी। एक देश भक्त जो लड़ रहा लिए यदि हमसे कोई कुछ कह भी देता है ,
है और यह कह रहा है कि सर कटा सकते हैं गलत भी कह देता है , हमें अपने धर्म को नहीं
लेकिन सर झुका सकते नहीं। आप यह तो छोड़ना चाहिए।
सोचो किसके लिए कह रहा है ? गलत चीज

अहं से अर्हं की यात्रा बाहरी विस्तार को रोककर अपने भीतर जाने की है


जो हमने सीखा है , यह हमारी जो उठाएगा। तब अहं से अर्हं की यात्रा शुरू
quality है । कल हमने आपको 7 bad होगी और अर्हं की यात्रा बाहर विस्तार करने
habits बताई। वह bad habits आपको की नहीं है , अपने भीतर से ऊपर की ओर
छोड़ना है । अगर आपने छोड़ा है उसके बावजूद उठने की यात्रा है । ऊपर की ओर बढ़ना है ,
भी आपको कोई दूसरे लोग कुछ शुरू करना हमारा विस्तार ही गलत हो जाता है । हमारी
कुछ कहें गे, आपके लिए problem आएगी सारी energy बाहर ही लग गई। चालीस
लेकिन फिर भी आपको उससे अपना एक वर्ष हमने इसी में निकाल दिए है कि हमें
moral character समझना है । इससे डॉक्टर बनना, इं जीनियर बनना है , समझ
हमें अपना build-up करके रखना है , आ रहा है ? अब हमारे पास बचा क्या? जब
इसको छोड़ना नहीं है । जब यह चीज आपके हमारे अहं का विस्तार इतना हमने बाहर कर
अन्दर आ जाएगी तब आप अपनी दिशा को लिया तो अब हम उसी अहं को save करके
सही दिशा में ले जा पाएँगे। अहं का विस्तार चलते हैं । थोड़ी सी जिं दगी अब हम इसमें
बाहर जब टू टेगा तब अहं का विस्तार भीतर जी तो ले जिसके लिए हमने चालीस वर्ष
से होगा और वह अहं हमें ऊपर की ओर लगा दी है । अर्हं का विस्तार करने को हमें

धर्मं का मर्म 45
उत्तम मार्दव धर्म

time ही नहीं मिलता। ‘अर्हं मतलब अपनी क्या हूँ? और मैं क्या रहूँगा? वही मैं हूँ। उस I
शुद्ध quality, अपनी शुद्ध चेतना, अपने का विस्तार करना है । जो I इधर-उधर फै ल
शुद्ध विचार, अपना शुद्ध भाव’ इसका नाम गई तो वह तो ego बन गई और जब वही
है- अर्हं । जो भी चीजें purity से जुड़ी हुई हैं ‘I’ भीतर विस्तार को प्राप्त हो गई और उससे
वह सब अर्हं के अन्दर include होती चली जब हमारा उठाव भावों में होने लगा तो वह
जाती हैं । जब हम अर्हं से जोड़ते हैं इसका हमको ऊपर की ओर ले जाएगी। वह अर्हं
मतलब है कि हम अपना अहं तो बढ़ा रहे हैं की journey होगी और उसी से हमारी
लेकिन जो अपना original ‘I’ है , I! क्या आत्मा ऊपर उठे गी। वह कौन सी ‘I’ है ?
है ? मैं क्या हूँ? सबसे पहले मैं क्या था? मैं

‘I’ अर्हं का मतलब आपकी शुद्ध चैतन्य आत्मा है


जो मैं हूँ वास्तव में, उसका नाम क्या करना है और उस मैं को छोड़ना है जिसको
है ? who am I? आपसे कोई पूछता है , हमने जबरदस्ती बाहर से अपनी अज्ञानता से
क्या बोलते हैं आप? क्या बताएँगे? I अपना रखा है । जब हम ऐसा करेंगे तभी हम
am a doctor, I am a chartered इस मृदुता को, मार्दव धर्म को समझ पाएँगे।
accountant. क्या बोलेंगे आप? सबसे इसके लिए आपको क्या करना पड़ेगा? जो
पहले आप क्या थे? क्या अभी भी हो? क्या कुछ आप हो गए हो उसे कुछ समय के लिए
रहोगे? मरने के बाद डॉक्टर तो छूट जाएगा, आपको भूलना पड़ेगा। तैयार हो कुछ समय
तुम रहोगे कि नहीं रहोगे? हाँ! जो रहे गा उसी के लिए तो भूलने के लिए तैयार हो। फिर
का नाम I है । समझ में आ रहा है ? वह क्या अच्छा लगे तो फिर ज्यादा समय के लिए
है ? I am a soul, I am a pure soul, भूलने के लिए अपने आप तैयार हो जाना।
I am arham. मैं क्या हूँ? अर्हं मतलब समझ आ रहा है ? देखो! हम meditation
शुद्ध चेतना हूँ मैं। जो ये डॉक्टरी है , इं जीनि- के through इसी चीज को, इसी अहं को
यरी है यह तो सब कुछ समय के लिए है । तोड़ने की कोशिश करेंगे, इस अहं को भूलने
दस, बीस, चालीस साल के लिए है इससे की कोशिश करेंगे और जब हम कहें ‘I am
ज्यादा कुछ नहीं है , उसके बाद भी कुछ होगा arham’ तो इसका मतलब समझना कि मैं
और उससे पहले भी हम कुछ थे। वह मैं जो क्या हूँ? शुद्ध चैतन्य आत्मा हूँ, शुद्ध ज्ञान हूँ,
हूँ उसकी तरफ देखोगे तो आपके उस मैं शुद्ध दर्शन हूँ। हम अपने अन्दर वह शुद्धता
में से कुछ ऐसा विस्तृत होगा जो आपको लाएँगे और उस अशुद्धता को छोड़ेंगे।
ऊपर की ओर उठाएगा। इस ‘मैं’ का विस्तार

46 धर्मं का मर्म
Day 02
आज का चिंतन : अपने अंदर के मान भाव को समझें
आज आपके धर्म सकता हूँ।
का दूसरा दिन है और 4. इस चीज को आपको feel करना है कि
इसे उत्तम मार्दव धर्म मैं कब-कब अपने मैं को इन सब चीजों
कहते हैं । आज इस से जोड़-जोड़ करके विशेष भाव में आ
मार्दव धर्म को दिनभर जाता हूँ और उस विशेष भाव के कारण
जियें। इसके लिए से मैं अपने अहं को फै लाता हूँ कि मैं यह
आपको एक छोटा सा भी हूँ, मैं यह भी हूँ, मैं यह भी हूँ।
task करना है । आपको दिनभर यह महसूस 5. आप यह विचार लाएँ कि
करना है :
• यह मेरा नहीं है ।
1. हमने अपने अहं को किन-किन चीजों
• यह मैं नहीं हूँ।
से जोड़ रखा है ?
2. आपके घर में अच्‍छा-अच्‍छा सामान • इसके बिना भी मैं हूँ।
रखा है आप उनमें भी अपने आप को • जो हमने यह मैं और अहं का विस्‍तार
जोड़ रहे हैं यह मेरा है । कर रखा है इस विस्‍तार को आज हमें
3. किन-किन चीजों के बिना भी मैं रह भीतर से कम करना है कि यह मैं नहीं
हूँ।

Sit And Observe:

आप कैसा महसूस करते हैं ? ऑफिस में:


• बॉस के सामने
• जब आप जमीन पर बैठ रहे हो।
• चपरासी के सामने
• जब आप कुर्सी पर बैठते हो। दुकान में :
• नौकर के सामने
• जब आप सोफा सेट पर बैठते।
• ग्राहक के सामने

धर्मं का मर्म 47
• लेनदार के सामने अलग हमारा अहं कुछ-कुछ कहता है ,
• देनदार के सामने उसको आज दिन भर realise करना है यही
यह जो अलग-अलग समय पर अलग- आज का task है ।
s.no मेरेपन का किसके प्रति विशेष भाव में
भाव/ Situation/person/ मैं कितनी देर
तक बना रहा?
विशेष भाव things/ बिना किसी बाहरी
आया परिस्थितियों के

आज का एहसास
1. इसके सामने होने था न! यह इतने सारे changes क्‍यों
पर मैं अपने आपको हो रहे हैं ?
ऐसा क्‍यों मान रहा हूँ? 4. इस अहं की feeling को हमें समझना
बस इतना आप भीतर है । यह हमारी feeling आज कुछ
से विचार करें। control हो रही है या नहीं?
2. यह जब तक चीज 5. अगर आप उस विशेष भाव को पकड़
सामने नहीं थी तब तक पाए तो आप सफल कहलायेंगे।
ऐसी feeling नहीं थी लेकिन जैसे ही 6. आप समझ पायेंगे ‘मान’ मतलब
वह सामने आई तो मैं भी ऐसा हो गया। अकड़ और यह अकड़ हमारी कितनी
क्यों? बार कितने लोगों के सामने आती है ।
3. यह क्‍या हो रहा है ? मैं तो आखिर वही 7. जब आप समझना शुरू कर देंगे तो इस

48 धर्मं का मर्म
मान पर आपका अधिकार होने लगेगा। लेंगे तो कभी न कभी आप इस मान को
8. आप इस मान को अपने कब्‍जे में ले अपने अन्‍दर आने से रोक सकेंगे और
लेंगे। आप इसको अपने लिए पकड़ इस पर जीत भी हासिल कर लेंगे

स्व-संवेदन
1. क्या आप उस विशेष भाव को पकड 3. क्या आप अपने उस अहं के भाव को
पाए? yes/ no/ little bit आने से रोक पाए या change कर
2. क्या आप अपनी मान की भावना को पाए? yes/no/little bit
समझ पाए? yes/no/little bit

धर्मं का मर्म 49
Day-3: उत्तम आर्जव धर्म
जीवन के अनुभवों से सीखें
धर्म का मर्म जानने के लिए आज फिर में दुःख के ही बीज बोएँ हैं । आज हमें कुछ
एक नयी सुबह हुई है और प्रतिदिन की भांति अच्छा सीखने का एक मौका मिला है । ती-
आज भी अपनी चेतना को और अधिक र्थंकरों की, प्राचीन आचार्यों की हमारे ऊपर
योग्यता देते हुए, अपनी आत्मा में कुछ अच्छा यह अनुकम्पा है , जो हम आज सही चीज
करने के लिए, अपनी योग्यता को बढ़ाते हुए, को भी सही ढं ग से समझ सकते हैं । जब हम
कुछ और घटक जानना आवश्यक है । कुछ अपनी आत्म उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ते
और जरूरी चीजें जानना आवश्यक है , जो हैं तो हमें पहले अपने अन्दर एक सामर्थ्य
हमारी आत्म उन्नति में बाधक बनती हैं । उन पैदा करनी होती है जो हमने क्षमा के माध्यम
चीजों को प्राचीन ऋषियों, मुनियों ने बहुत से पैदा की। दूसरा आपको बताया था कि
गहराई से समझा है और बहुत गहराई से उन हमें फिर अपने आप को कोमल बनाना होता
चीजों का विवेचन किया है और हमें जीवन है , softness हमारे अन्दर आनी चाहिए।
के अनुभवों से गुजारा है । अपने अनुभव भी जिसके माध्यम से हम आगे बढ़ने के लिए
हमें प्रदान किये हैं , जिसके माध्यम से हम तैयार हो सके और हमारे ऊपर किसी भी
दूसरों के अनुभव से भी बहुत कम समय में तरह का, कोई भी, कैसा भी hard task
भी ऐसा कुछ अच्छा सीख सकते हैं जिससे हमको दिया जाए तो हम उसको अच्छे ढं ग से
कि हमारे जीवन में होने वाली गलतियाँ, कर सके। यह तभी संभव है जब हमारा ego
हमारे जीवन में घटित होने वाली दुर्घटना- थोड़ा-सा down होगा, हमारे emotions
एँ, हमारे जीवन को अभिशाप बनाने वाली soft होंगे और जो दिया जा रहा है उसे
घटनाएँ न हो पाएँ। आपके लिए बताया था accept करने के लिए हम बिल्कुल अपने
कि हमारी चेतना, हमारी आत्मा एक द्रव्य आपको ready रखेंगे।
है। उस चेतना में हमने अनादिकाल से अनेक
तरह के मोह और कषायों के कारण से अपने
अन्दर दुःख ही पैदा किया है । चारों गतियों

50 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

कुटिलताओं के कारण माटी बिखर जाती है


जब हम इतना course कर चुके हैं तो उस माटी के साथ में यह तीसरी दिक्कत है
आज हमें फिर एक third step उठाना कि उसके अन्दर अनेक तरह की भीतर ही
है । देखना है कि आखिर जो माटी है , वह भीतर कुछ कुटिलताएँ हैं जिन्हें वह छोड़ नहीं
माटी कोमल भी हो गई है , अपने अन्दर सब पा रही है । वह उन कुटिलताओं के कारण से
कुछ सहने की क्षमता भी रखने लगी है और जैसा कुंभकार उसे बनाने के लिए सोच रहा
उसे कुछ रूप में ढालना भी है , बनाना भी है वैसा वह बनने को तैयार नहीं हो पा रही है ।
है लेकिन फिर भी कहीं न कहीं कुछ और soft तो हो गई, उसके अन्दर tolerance
अभी कमी बची है , जिसके ऊपर आज ध्यान भी आ गई है लेकिन अभी वह कुछ बहाने
देना जरूरी है । क्या हो सकता है ? माटी को बना रही है । कहती है - हाँ! अभी मैं बिल्कुल
रौंदा गया, चिकना किया गया, softness अपने आपको उसके लिए समर्थ नहीं समझ
उसके अन्दर लाई गई। फिर भी जब हम उस रही हूँ, मैं अभी आप जैसा मुझे बनाना चाह
माटी को कुछ रूप देने रहे हैं वह अभी नहीं बनूँगी। अभी मुझे ऐसा
की कोशिश करते हैं तो नहीं बनना है और उसके लिए वह तरह-तरह
वह माटी पता नहीं क्यों की बातें कर रही है । कौन कर रही है ? समझ
बिखर-सी जाती है । वह में आ रहा है ? ठीक उसी तरह जैसे हम किया
माटी को जैसे-ही हम करते हैं । हमारे अन्दर से अगर क्रोध भी कम
कुछ आकार देने की हुआ है , मान को भी हमने समझा है , तो
कोशिश करते हैं तो उस तीसरी चीज आ जाती है जिसे हम बोलते हैं -
माटी के अन्दर बड़े-बड़े छिद्र से हो जाते हैं मायाचार। मायाचार का मतलब होता है कि
और वह माटी जिसके अन्दर हम कुछ वपन हम कहीं न कहीं छल-कपट के भाव अपने
करना चाहते हैं , कुछ डालना चाहते हैं , वह अन्दर गहरे रखे रहते हैं और उस मायाचार के
बीज भी उसमें पहुँच जाता है , तो उसको पूरा भाव के कारण से हम सामने वाले के लिए
का पूरा ढकती नहीं है और अपने उन छिद्रों उस तरह की प्रस्तुति नहीं करते हैं जैसा हमें
के कारण से उस बीज को पौधा बनने से करना चाहिए। हम जैसे होते हैं , वैसा नहीं
पहले ही सड़ा देती है । न वह बीज के रूप में बनने की कोशिश करते, वैसा ही दिखाने
किसी दूसरे पौधे को बना पा रही है और न की कोशिश नहीं करते, हम उससे कुछ और
ही अपने आप को किसी रूप में ढाल पा रही extra दिखाने की कोशिश करते हैं । अथवा
है क्योंकि उसके अन्दर छिद्र बहुत हो गए हैं । जैसे कोई हमें अपने से बड़ा गुरु हमें बनाना

धर्मं का मर्म 51
उत्तम आर्जव धर्म

चाह रहा है , डालना चाह रहा है , हम उसके काम नहीं करना। करने के लिए तरह-तरह
लिए कहते तो हैं - हाँ! मैं आपकी बात को के बहाने बनाना, किसी भी तरह से हमें उस
स्वीकार करता हूँ, मैं आपकी हर एक बात को काम को न करना पड़े इसलिए बचना और
ध्यान से सुनता हूँ, मैं आपके कहे अनुसार ही उसके लिए तरह-तरह के उपाय ढू ँ ढना। वह
चलूँगा। लेकिन फिर भी वह भीतर ही भीतर उपाय भी इतने solid होने चाहिए, अगर हम
कुछ मक्कारी करने की आदत जो पड़ी है , किसी से कहते हैं कि यह हमने इसलिए नहीं
वह छूटती नहीं है । मक्कारी समझते हो! कुछ किया तो वह उसमें कोई दूसरा question
बोला तो करो! मक्कारी समझते हैं ? क्या ही न कर पाए। हाँ! बिलकुल सही बात थी
होता है ? cheating करना है या किसी इसलिए ऐसा नहीं कर पाया लेकिन वह खुद
भी तरह से जो हमसे कहा जा रहा है वह जानता है कि यह मेरा अपना एक बहाना है ।

हम बहाने बनाकर खुद को ठग रहे हैं


जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए जब हम आपको अंधेरे में रखते हैं , अपने-आप के
कोई अपना एक लक्ष्य तैयार करते हैं तो उन साथ में हम अपने को ठगते हैं और अपने ही
लक्ष्यों की पूर्ति भी हम कई बार इसलिए नहीं आपकी उन्नति को रोक कर के भी हम खुश
कर पाते क्योंकि हम बहुत सारे बहाने बना हो लेते हैं क्योंकि हमें पता है हम ऐसा नहीं
कर के अपने आप को आगे बढ़ने से रोक कर पाएँगे। सामने वाला कहीं हमारा मजाक
लेते हैं । हम कई तरह के बहाने बना कर के न उड़ाने लगे उससे पहले ही अच्छा है कि हम
अपने आप की उन्नति को भी रोक लेते हैं और कुछ बहाना बना दे। सुन रहे हो? यह गहरी
यह सबके जीवन में कोई न कोई बहाना इस बात है । आप क्रोध को आसानी से समझ
तरीके का पड़ा हुआ है । इसलिए हर बच्चा सकते हो, मान को भी थोड़ा समझ सकते
पढ़ता तो है लेकिन उन्नति नहीं कर पाता है । हो, जब आपको कुछ घमंड आए आप feel
हर बच्चा बहुत छोटे में बहुत बड़े-बड़े मंसूबे कर सकते हो लेकिन एक बड़ी problem
संजोता तो है , बहुत बड़े-बड़े dream अपने इसके साथ है कि यह माया आपको समझ
अन्दर plan करता तो है लेकिन fulfill एक नहीं आएगी। यह ऐसा emotion है , ऐसी
भी नहीं कर पाता। कुछ कारण होते हैं ! वह यह feeling है कि इसको आप बहुत ही
कारण ही है जो आज आपको बताया जा conscious हो कर के जब feel करोगे
रहा है । जिसे हम कहते हैं एक ऐसी भीतर तभी आपको यह समझ आएगा। यह क्रोध
की मायाचारी जिसके कारण से हम अपने और मान से हटकर के एक और सूक्ष्मता

52 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

की ओर चला गया भाव है और उस माया रहे हैं । उस समय पर भी हमारे सामने सब


में एक ऐसा अंधकार है , एक ऐसा उसके कुछ आ जाता है , हमारा ego सामने आ
अन्दर गुण है कि हम उस अंधकार में भी जाता है । उस ego के कारण से हम इस
अपने आप को डाल कर के यह सोच लेते तरीके के words अपने मुँह से निकालते
हैं कि हम खुश हैं , हमें इसी में खुश रहना हैं । हमारे सामने कुछ ऐसा अंधकार होता है
है। यह ऐसी बुरी चीज है । उस अंधकार में कि हमें उसी माया के अंधकार में डले रहने
गिरकर के भी प्रकाश में आने की कोशिश में अपने आपको अच्छा महसूस करना होता
नहीं करते। हम उसी अंधकार में पड़े रहना भी है । हमें ऐसा लगता है कि शायद इस तरह
अच्छा समझते हैं । हम जैसे हैं अच्छे हैं , आप के बहाने बना कर के हम अपने आपको बचा
हमें बार-बार disturb मत किया करो, लेंगे और दूसरों के सामने हमारी प्रस्तुति भी
बार-बार आप हमें टोका मत करो, बार-बार अच्छी रहे गी। इस तरह के बहाने बनाने के
आप उकसाया मत करो, बार-बार आप हमें लिए हमें कहीं से कुछ सीखना नहीं पड़ता,
परेशान मत किया करो। बार-बार आप हमें सबसे अच्छी बात यह है । यह पता नहीं क्यों
उसी काम को करने के लिए मत कहा करो, हमारे conscious में पहले से ही सब चीजें
आपसे कह दिया न, हम यह नहीं कर सकते, पड़ी होती हैं । यह knowledge हमको by
हमें पता है हम क्या कर सकते हैं , हमें पता birth ही मिला करती है । जैसे-जैसे हम
है , जो हमें करना है हम कर रहे हैं , हमें मत बड़े होते हैं हमारे लिए न जाने कहाँ से अपने
समझाया करो। यह जब हम अपने बड़ों से आप यह बहाने बनाने की आदत आ जाती
बोलते हैं , अपने guardian से, अपने sir है । कोई नहीं सिखाता, कोई हमें इसके
से या अपने किसी भी tutor से, उस समय लिए tution की जरूरत नहीं पड़ती, कोई
पर हमें पता नहीं होता कि हम अपने आप coaching करने की जरूरत नहीं पड़ती।
को किस अंधकार में डाल कर के खुश हो

धर्मं का मर्म 53
उत्तम आर्जव धर्म

बहानों को अपना safety point न बनाए, बहानों को बहाना सीखें


हमको यह सब हैं । एक अच्छा इं सान बनने के लिए हमें
बहुत अच्छी बखूबी सीखना पड़ेगा, कुछ जीवन में progress
करना आता है । बच्चे- करने के लिए हमें सीखना पड़ेगा कि हम
बच्चियों को करना इन बहानों को बहाना सीखें। क्या सीखें?
आता है , छोटे बच्चे से बहानों को बहाना सीखें। बहानों में बहे नहीं,
लेकर के बड़े होने तक बहानों को बहाना सीखें। ये जो बहाने हम
हम बहाने बना कर के बनाते हैं ये सब बहाने हैं । अपनी सामर्थ को
ही खुश रहना चाहते हैं । इसीलिए हम बड़ी- हम पहचान नहीं पाते और हम इन बहानों के
बड़ी progress कभी कर नहीं पाते हैं । कारण से जिस अंधकार में हैं जिस परिस्थि-
कितने लोग होते हैं जो तरह-तरह के बहाने ति में हैं , हम उसी में खुश रहना चाहते हैं ।
बना करके अपने आप को safe रखना हम सोचते हैं कौन मेहनत करे? कौन दुनिया
चाहते हैं ,अपने लिए यह बहुत ही safety की मेहनत करने की आफत मोल ले? एक
point बना लेते हैं । हम इसलिए आगे नहीं बहाना अगर हमको मिल गया है कि हम
बढ़ पाए कि हमारे घर में मेरा जन्म होने के गरीब हैं , एक बहाना हमको मिल गया है कि
बाद ही मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी। मुझे हमारा यह काम नहीं है । एक बहाना हमको
पढ़ने-लिखने के अच्छे साधन नहीं मिले, मिल गया है कि हमारे माता-पिता नहीं है तो
मेरे लिए मेरा जन्म गाँव में हुआ था। मुझे इससे अच्छी चीज क्या होगी। बस! कभी
अच्छे convent स्कू लों में पढ़ने को नहीं भी कुछ भी। भाई! आपने ऐसा क्यों नहीं
मिला, मेरे लिए अच्छे -अच्छे tutor नहीं किया? हमारे साथ ऐसा था इसलिए ऐसा
मिले, मुझे अच्छे -अच्छे , बड़े-बड़े शहरों में नहीं किया। सुन रहे हो? हर व्यक्ति ने अपने
जाने के लिए मेरे माता-पिताओं के पास अन्दर इस तरह के बहाने बना रखे हैं और
खर्च करने को पैसा नहीं था। कुछ था तो उसी के कारण से हम अपने जीवन में बहुत
मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था, मुझे घर में बड़े-बड़े dreams तो तैयार करते हैं , जिन्हें
तरह-तरह की जिम्मेदारियाँ थी, भाई बहनों day dreams कहते हैं । उन dreams को
को संभालना पड़ता था, माता-पिता के लिए हम plan करते हैं । लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े
कोई काम नहीं था तो मुझे कुछ करना पड़ता होते चले जाते हैं वैसे-वैसे हम बहानों में पड़ते
था। इसलिए मैं अपनी जिन्दगी में कुछ चले जाते हैं और हम किसी से कुछ भी सीख
अच्छा कर नहीं पाया। यह सब हमारे बहाने नहीं पाते बल्कि अपनी सीख दूसरों को दे

54 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

देते हैं , तुम हमसे सीख लो। क्या सीख लो? है कि बस! आपने मेरे लिए इतनी सामर्थ्य
मैं इसलिए यह नहीं कर पाया क्योंकि मेरे दे दी, बहुत है । मुझे इतना घिसपिट दिया,
पास में यह चीज नहीं थी। यह बहाना बनाना मुझे इतना चिकना बना दिया, इतना soft
तुम भी हमसे सीख लो। यह बच्चे से लेकर बना दिया, बहुत है । इसके आगे मैं कुछ नहीं
बड़ों तक सबको आता है , हर क्षेत्र में आता बनना चाहती। उसके अन्दर एकदम से ही
है। ज्ञान के क्षेत्र में भी बहाने होते हैं , चारित्र बिखराव आ जाता है । जैसे ही वह कुम्हार
के क्षेत्र में भी बहाने होते हैं । अपने अन्दर उसे उठाने की कोशिश करता है , वह बिखर
किसी भी तरह का कोई भी अपने जीवन में जाती है । उस माटी के अन्दर छे द-छे द हो
progress करने के भी बहाने होते हैं । यह जाते हैं , उससे कुछ बन ही नहीं पाता। क्यों?
सब बहाने बना कर के हम खुश होते है । यह क्योंकि वह भी आपकी तरह बहाने बनाने
सबसे बड़ी हमारी quality कहनी पड़ेगी। को तैयार है । अब इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं
यह मायाचार करना, यह बहाना बनाना यह करूँ गी, इससे ज्यादा मेरे साथ कुछ नहीं हो
हमारी एक quality बन गई है और हम इस सकता। यह जब बहाना बन गया तो यात्रा
अंधकार में रह करके खुश होते हैं । वह माटी अधूरी रह गई।
उस अंधकार में पड़े-पड़े खुश रहना चाहती

ईमानदारी बहुत गहरी चीज है - बहाने जीवन को अभिशाप बना देंगे


target कुछ और था, थोड़ा-सा एक- उनको follow किया। लेकिन honesty
दो steps और आगे बढ़ाने थे। आज third आ कहाँ पाती है ? जहाँ हमने कोई बहाना
day है , अगर ये दो steps हमने दस दिन बनाया समझो अब हम ईमानदारी से दूर
के नहीं केवल चार दिन के और cross हट गए। ईमानदारी बहुत गहरी चीज है । हम
कर लिए, एक कल का और है , अगर कोई भी काम अपनी पूरी शक्ति लगा कर
हमने चार दिनों को अच्छे से समझ लिया के करे, अपना ज्ञान लगा कर के करे, पूरी
तो समझना कि आपके दस दिन तो अपने ईमानदारी के साथ करे, यह संभव नहीं होता
आप अच्छे से निकल जाएँगे। आपको दस है । अगर हम इस तरह के बहानों में पड़कर
धर्म समझने की जरूरत नहीं है , केवल चार के अपने जीवन को निकालने की कोशिश
धर्म ही आपके लिए पर्याप्त है । अगर आपने करते हैं तो हम अपने साथ ही ठगी करते हैं ,
चार को अच्छे ढं ग से समझ लिया और हम अपने आप को ही ठगते हैं । लेकिन मजे
अच्छे ढं ग से बिलकुल honesty के साथ की बात यह है कि हम फिर भी खुश होते हैं ।

धर्मं का मर्म 55
उत्तम आर्जव धर्म

क्या जब आपके सामने कोई बहाना आए तो नहीं कर पाया क्योंकि मैं गरीब खानदान
उसको बहाने के लिए कोई example नहीं में पैदा हुआ था। आपने ए.पी.जी.अब्दुल
होता। आप हमें कोई भी बहाना बताओ मैं कलाम का नाम सुना है । पूछना! कितने
आपको एक example बताता हूँ। आपने अमीर खानदान में पैदा हुए थे। जो आज के
कहा मेरे घर में मेरे पिता की मृत्यु हो गई Prime Minister हैं उनसे पूछना, कितने
थी इसलिए मैं कुछ अच्छा नहीं बन पाया। अमीर खानदान में पैदा हुए थे? क्या उनकी
आपने एक संगीतकार आर.के.रहमान का shop थी? क्या उनका profession था?
नाम सुना है उसके पिता की मृत्यु बचपन सुना! ये बहाने हैं । एक businessman
में हो गई थी उसके बाद में भी बहुत अच्छा कहता है कि मैं इसलिए आगे नहीं बढ़ पाया
संगीतकार बना। आपने कहा कि मेरे बेटे की क्योंकि मेरी कंपनी का दिवालिया निकल
मृत्यु हो गई इसलिए मैं बहुत गमगीन हो गया गया। coca-cola कंपनी का नाम सुना है ,
इसलिए मैं जिन्दगी में कुछ नहीं कर पाया। दो बार उसका दिवाला निकल चुका है उसके
आपने बहुत अच्छे गजलकार जगजीत सिं ह बाद भी कुछ stand कर रही है । अगर हम
का नाम सुना होगा। बहुत अच्छी गजल गाता यह कहते हैं कि हमारे आगे बढ़ने में सारा का
है । उसने गजल गाना तभी सीखा जब उसके सारा bank balance चला गया। मैं बहुत
बेटे की मृत्यु हो गई। जब जिन्दगी के अन्दर पहले अच्छा था एक दिन आकर के मैं ऐसी
इस तरह का कोई गम आता है तभी आदमी स्थिति में खड़ा हो गया, मेरे पास कुछ नहीं है
शायर बनता है , तभी आदमी के अन्दर से अब मैं क्या करूँ ? मैं टू ट गया, बिखर गया।
कविता फूटती है , तभी आदमी अपने अस्ति- अमिताभ बच्चन का नाम सुना, कभी उसकी
त्व से कुछ ऐसी बातें निकालता है जो दुनिया पुरानी life के बारे में जानना। उसके साथ
में effect डालती है । हर गम के बाद में भी भी ऐसा हुआ था और वह उसके बावजूद
कोई line होती है लेकिन जो वहीं पर बहाना भी आज किस तरह से किस sound
बना कर रुक गया उसने अपनी जिन्दगी को position में है , उसको आप देखना। हम
खोया और दूसरों के लिए भी अभिशाप बहाने बनाते हैं । हमारे सामने कोई न कोई
बना। आपने कहा मैं इसलिए कुछ अच्छा example ऐसे होना चाहिए।

बहानों को जीतने वाले ही जीतते हैं


हम किसी भी तरीके के बहाने बनाएँ, जीता है , बहानों से ऊपर उठे हैं , बहानों को
आज देखें दुनिया में जिन्होंने बहानों को बहाया है , वही व्यक्ति progress कर पाया

56 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

है । आप बहाने बना देते हो, मैं कुछ इसलिए सकता। क्या चीजें? कोई भी चीजें, आपको
अच्छा नहीं कर पाया क्योंकि मैं नाटे कद का लगता है कि मेरे शरीर में कोई कमियाँ है ।
था। सचिन तेंदुलकर की कितनी height मान लो आपके शरीर पर आपके मुँह पर
है ? क्या बहाने बनाना? किस चीज के बहाने कोई निशान बना हुआ है , मैं इसलिए कुछ
बनाना! मै इसलिए कुछ अच्छा नहीं कर नहीं कर सकता क्योंकि मेरे शरीर पर एक
पाया कि मेरा रूप अच्छा नहीं है , मेरा सौंदर्य निशान बना हुआ है । शत्रुघन सिन्हा को देखा
अच्छा नहीं है , कितने ही लोग ऐसे हैं । west है ! उसने अपना निशान कभी छिपाया नहीं
Indies के जितने भी लोग होते हैं , ये सुन्दर लेकिन वही उसकी पहचान बनी हुई है । हम
लगते हैं ? philosopher सुकरात को किसी चीज को छिपा कर के उस बुराई पर
आपने देखा नहीं? किसी ने नहीं देखा लेकिन किसी भी तरीके से पर्दा डाल कर के आगे
आप देखेंगे सुकरात जिसका नाम दुनिया बढ़ने की कोशिश करते हैं , हमारी यही सबसे
में प्रसिद्ध है , इतना बदसूरत आदमी कि बड़ी गलती होती है ।
उससे ज्यादा बदसूरत आदमी कोई हो नही

बाधाओं को रास्ता बना लो, सरल हो जाओ


इस मायाचार से जब उसको accept करो, अपने लिए बहाने मत
हम बचेंगे, ऋजुता में बनाओ। जो है उसको उसी भाव में रहने दो
आएँगे और आर्जव धर्म और अपने लिए बिल्कुल इतने सरल हो
को अपनाएँगे तो यह जाओ कि आप के लिए किसी भी तरह की
धर्म कहता है आप बाधाएँ अगर राह में आगे दिखाई भी दे रही हैं
सरल हो जाओ। जो है तो वह बाधाएँ भी आपको बाधा न लगे।

धर्मं का मर्म 57
उत्तम आर्जव धर्म

बाधाओं को आप रास्ता बना लो इतने सरल हटना, अपने अन्दर ऋजुता के भाव को लाना,
हो जाओ। बाधाएँ किसके रास्ते में नहीं सरलता के भाव को लाना, ईमानदारी से
आती? एक नदी भी जब flow करती है , जब आगे बढ़ना, यह हमें सिखाता है कि अगर
कहीं से कहीं तक बहती हुई चली जाती है , हम अपनी ईमानदारी पर टिके रहें गे, अपनी
तो रास्ते में उसको बड़े-बड़े पर्वत भी मिलते सरलता से अपने अन्दर एक जज्बा पैदा
हैं । नदी अपना रास्ता बदल कर के वहीं के किये रहें गे तो हमh सामने आने वाली हर
वहीं रुक नहीं जाती है , लौट नहीं जाती है । बाधा को भी जीत सकेंगे।
जहाँ से आई थी मैं वहीं चली जा रही हूँ, ऐसा ‘राह होती नहीं सीधी
कभी नहीं होता, वहीं के वहीं सूख नहीं जाती कोई भी छड़ी की तरह,
है , बड़े-बड़े रास्ते बनाती है । कितना ही बड़ा जिन्दगी चलती नहीं कभी
पर्वत हो वहाँ से रास्ता बनाएगी, कहीं न कहीं एक सी घड़ी की तरह,
से क्षेत्र ढू ँ ढ़ेगी, वह वहाँ से निकलेगी और वह कभी खून के रिश्ते भी बन जाते हैं
अपने बगल से किसी न किसी तरीके से दुश्मनों की तरह
रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ेगी तो वह अपनी और कभी दुश्मन भी बन जाते हैं
मंजिल तक पहुँचती है । यह मायाचार से दूर अपनों की तरह”

बहानों में हम जीवन की सरलता को खो देते हैं


यह सब तो हमारे अन्दर की मायाचारी है । मैं आपको
दुनिया में चला करता एक नयी चीज बता रहा हूँ। समझ आ रहा
है । दुनिया में अगर है ? इसको feel करो, इसका experience
हम जी रहे हैं तो कभी करो कि यह मायाचारी कितनी गहरी तह
अपने पराए होंगे, कभी तक हमारे अन्दर बैठी हुई है । कई बच्चे तो
पराए अपने होंगे, सिर्फ इसलिए पीछे हट जाते हैं कि उनका
कभी हमारे सामने कोई भी सहपाठी, कोई भी उनका कंपनी का
बहुत तरीके की बाधाएँ आएँगी, कभी हमारा व्यक्ति आगे बढ़ रहा होता है तो उन्हें डर लग
जीवन बिलकुल सुकून में दिखेगा। यह तो जाता है कि यह अगर आगे बढ़ गया, इतना
सब होगा लेकिन इससे निकलना है , इसमें बढ़ गया तो मैं तो कहीं नहीं बढ़ पाऊँगा। मेरी
फँसना नहीं। अगर हम इसमें फँसने का कोई बेइज्जती हो जाएगी इसलिए मुझे उस राह
भी बहाना अपने अन्दर ढू ँ ढ़ लेते हैं तो वही पर जाना ही नहीं है । कई बच्चे इसलिए कुछ

58 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

नहीं कर पाते हैं । कई तरह की मायाचारियाँ, man नहीं बन सकता। उस पूरी पुस्तक
कई तरह के बहाने हमारे अन्दर होते हैं और का यह conclusion था। कोई भी कंपनी
हम उस तरह के बहानों में अपने जीवन की अगर किसी भी तरह से किसी दूसरी कंपनी
सरलता को खो देते हैं । अगर हम किसी भी वाले को, अपने employee को, अपनी ही
तरह के गलत रास्तों पर चल कर के आगे तरह के किसी भी agent को धोखा देने की
बढ़ने की कोशिश करते हैं तो भी वह हमारे कोशिश करती है , तो वह ज्यादा नहीं उठ
लिए एक अभिशाप का काम कर जाता है । सकती है । थोड़ी देर उनका काम चलेगा बहुत
इसलिए यह मायाचारी कहती है अगर आप जल्दी उनके सब मामले सामने आ जाएँगे
इसका साथ दोगे तो आप एक लंबे समय और वह सब कोर्ट, कचहरी के चक्कर काटते
तक किसी अच्छी position में नहीं टिक मिलेंगे। वह हमेशा के लिए successful
पाओगे। आपको कोई एक सफल आदमी नहीं हो सकेंगे। अपना brand बनाने के
बनना है , एक आपको successful लिए कंपनी को एक लंबे time तक एक
businessman बनना है , आपको कोई अपने आप को establish करने के लिए
successful किसी कंपनी का मैनेजर एक गुण सीख लेना चाहिए। हर किसी
बनना है , employee भी बनना है , तो व्यक्ति को एक quality सीख लेना चाहिए
आपके अन्दर fraud नहीं होना चाहिए। कि मैं कभी किसी के साथ विश्वासघात नहीं
दूसरों को ठगने की, दूसरों के साथ विश्वा- करूँ गा। मैं कभी किसी को धोखा नहीं दूँगा,
सघात करने की आदत नहीं होनी चाहिए। मैं किसी को धोखे में नहीं रखूँगा। यह चीज
आप दुनिया का इतिहास उठा करके देखेंगे अगर हर व्यक्ति सीख लेगा तभी आगे बढ़
तो आपको पता पड़ेगा। मैंने एक बार कहीं पाएगा। अगर आप धोखे में है , तो आप दूसरे
एक business management की को भी धोखा दे कर के आगे बढ़ने की कोशिश
book पढ़ी थी हालांकि उससे हमें कोई करते हैं । कभी-कभी आगे बढ़ कर निकल
मतलब नहीं था लेकिन आ गई थी सामने तो जाओगे लेकिन कहीं न कहीं पकड़ लिए
तो पढ़ ली थी। मुझे देखकर है रानी हुई कि जाओगे और जब पकड़ लिए जाओगे तो जेल
इसमें business की चीजें तो कुछ नहीं की सलाखों में पहुँचा दिए जाओगे। फिर
है लेकिन उसमें सबसे बड़ी चीज जिस पर आपके सामने जिन्दगी को जीने का कोई
focus किया गया वह थी कि अगर कोई अच्छा तरीका नहीं होगा, कुछ भी नहीं होगा।
भी businessman किसी को धोखा देता इसलिए मायाचार ऐसा step है अगर हम
है , तो वह कभी भी एक सफल business इसे समझें तो आज हमारे सामने कई बार

धर्मं का मर्म 59
उत्तम आर्जव धर्म

ऐसे-ऐसे कार्य देखने वाले लोग भी मिल सामने आता है , तो समझ में आता है कि
जाते हैं जो जैन भी होते हैं , अजैन भी होते हैं इतने बड़े-बड़े लोग कितने fraud काम,
जिनकी अच्छी समाज में reputation भी कितने करोड़ों के घोटाले कर रहे हैं ।
होती है । उसके बावजूद भी जब वह घोटाला

ऋजु बनने का मतलब ही है सरल हो जाना


आदमी को अपनी बहुत एक अच्छी बात होगी। हो सकता है कि
इज्जत बनाने में बरसों मैं एक successful businessman
लगते हैं । परन्तु गिराने नहीं बन पाया लेकिन मैं एक अच्छा पिता हूँ,
में या गिरने में second मैं एक अच्छी पत्नी हूँ, मैं एक अच्छा पति हूँ
नहीं लगते हैं । जिस दिन मैं एक अच्छा बेटा हूँ। इतना भी होना बहुत
पेपर में नाम आ गया, जिस दिन news बड़ी चीज होती है । अगर हम हर चीज की
channel वाले ने आपका नाम ले लिया, importance को समझे कि मेरे साथ जो
आपकी सारी की सारी साख जितनी भी कुछ है , जिस तरीके से है , वह मेरे लिए बहुत
आपने जिन्दगी में बनाई है वह सब एक मिनट सही है । जहाँ हम सही तरीके से होते हैं वहीं
में धुल जाती है । यह सोच कर के हर व्यक्ति पर हमारे लिए कुछ ऐसा लगता है कि नहीं!
को यह समझना है कि मेरे पास जितना है मैं यही चीज हमारे लिए जिन्दगी में बहुत संतुष्टि
उससे आगे बढू ँ गा तो लेकिन ईमानदारी के देने वाली है । उसी चीज से दूसरे लोग भी
साथ बढू ँ गा, सच्चाई के साथ बढू ँ गा। किसी आपसे सीख सकते हैं । इसलिए इस बात
को धोखा दे कर के आगे नहीं बढू ँ गा। अगर को समझना कि हमें कभी किसी को धोखा
हमारे अन्दर इतना confidence रहे गा तो नहीं देना, कभी भी हमें बहाने बनाकर के
आपके लिए जितनी भी चीजें सामने आएँगी, आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करना। यह
जितनी भी आप progress करेंगे वह हमारी जिन्दगी में अगर सीख आ गई तो
आपको satisfaction देने वाली होंगी। हम बड़े अच्छे ढं ग से ऋजुता धर्म का पालन
आपके अन्दर हमेशा इस बात का एक गौरव कर पाएँगे। ऋजु बनने का मतलब ही है -
रहे गा कि मैं आज जो भी हूँ अच्छा हूँ। हो सरल हो जाना और सरल होने का मतलब
सकता है मैं किसी business की field है - भीतर से ईमानदार हो जाना है । इतने
में अच्छा नहीं हूँ लेकिन अपने घर में बहुत ईमानदार हो जाना कि हमें कभी धोखा देने
अच्छा हूँ। मैं एक अच्छा पिता हूँ, यह भी की भावना आए ही नहीं।

60 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

Chatting and instagram ने फैलाया माया का जाल


मैं आपसे बताऊँ! पढ़ने वाले students chatting करते हैं , जो बोलने लायक नहीं
में 90% students अपने माता-पिता को है । इस तरीके की chatting करते हैं । यह
धोखा देते हैं । 90% बच्चे अपने माता-पिता क्या है ? यह बहुत बड़ा छलावा है , किसी दूसरे
के साथ झूठ बोलते हैं । 90% बच्चे पढ़ने के के साथ नहीं! अपने साथ, अपनी योग्यता के
नाम पर बहाने बना कर के instagram साथ, अपनी काबिलियत के साथ है । अगर
पर, फोन पर, mobiles पर तरह-तरह की हम इस चीज को आज समझ पाएँ कि यह
गंदी-गंदी chatting करते हैं । सब की बात मायाचारी हमारे लिए बहुत दुःख देने वाली
नहीं कर रहा हूँ, जो नहीं करते वह 10%में है । जिस दिन आपके माता-पिता को किसी
अपने को include कर लेना। लेकिन मैं भी तरह से पता पड़ेगा कि मेरा बेटा ऐसा कर
बता रहा हूँ यह इतना गंदा चलन चल रहा रहा है , मेरी बेटी ऐसा कर रही है आपको
है कि हम पढ़ने के बहाने से बैठते हैं , रात के समझ नहीं आएगा कि उन माता-पिता को
दो-दो बजे तक पढ़ने का बहाना करते हैं । कितना दुःख होगा। उन्होंने जितना आपसे
कई बच्चों के बारे में मुझे मालूम है और वह अपने अरमान संजोये हैं वह सारे के सारे
बच्चे कहते हैं मै रात के दो बजे तक पढ़ता अरमान उनके मिट्टी में मिल जाएँगे। उसी
हूँ। माता-पिता सो जाते है , घर के सब लोग समय सोच लेंगे कि मैंने इतना अच्छा समझा
सो जाते हैं और वह रात के एक-एक, दो-दो था, इतना अच्छा सोचा था और इसने ऐसा
बजे तक chatting करते हैं । गंदी-गंदी कर दिया। इसके साथ मैं कभी सोच भी नहीं

धर्मं का मर्म 61
उत्तम आर्जव धर्म

सकता था कि यह मेरे साथ भी इस तरह से डरेंगे, वह भी आपसे पहले की तरह प्रेम


मायाचार करेगा या करेगी और यह इस तरह करने में डरेंगे, सकुचाएँगे और आप भी उनके
से झूठ बोलेगा या बोलेगी। यह क्या चल सामने बिल्कुल निश्चल हो कर के जैसे पहले
रहा है ? आज बच्चों का mobile में लगे उनके साथ खेलते थे अब नहीं खेल पाएँगे।
रहना सबसे बड़ी दिक्कत हो गयी है । जो छोटे यह बहुत बड़ी जब दिक्कत आ जाती है तब
बच्चे हैं वह मोबाइल में वह बेटा या बेटी भीतर ही भीतर घुटने लग
अपने अलग तरीके से जाते है । अब मैं क्या करूँ ? अब क्या करूँ ?
लगे होते हैं । जैसे ही अब क्या करूँ ? यह सोचते-सोचते, सोचते-
बच्चे थोड़े से adult सोचते फिर उसको लगता है कि अब घर में
होने लग जाते हैं तो मेरा कोई नहीं है । घर के लोग तो सब
उनकी body की मुझे एक बहुत ही doubt की नजर से देखते
chemistry बदलने हैं । अब मैं कहीं चली जाऊँ तो कहाँ चली
लग जाती है , उनके अन्दर की biology जाऊँ? अपने boyfriend के साथ चली
बदलने लग जाती है । उनके अन्दर का जो जाऊँ, boy सोचता है अपनी girlfriend
interest है , वह एक ऐसी जगह पर लगने के साथ चला जाऊँ। बस! यहीं से जिन्दगी
लग जाता है जो समय से पहले उनके साथ खराब होना शुरू हो जाती है । आपने किसी से
में गलत करने लग जाता है । यह क्यों होता कोई chatting की! आप सोचते हो यह तो
है ? हम उसको छिपाते हैं , धीरे-धीरे हमारा मजाक है , यह तो चलता है , एक हमारा शौक
उस भाव में आना जब regular हो जाता है । लेकिन शौक-शौक में बात कितनी आगे
है और फिर जब लोगों को पता पड़ने लग बढ़ जाती है , वह पता नहीं होता आपको।
जाता है , तो वही हमारे लिए एक बहुत बड़ी आपने अगर किसी से chatting प्रारं भ
दिक्कत का काम बन जाता है । फिर हम घर की, कोई unknown person है आप
उससे chatting कर रहे हो। chatting
में रहकर के घुटन महसूस करते है । अगर
करते-करते कभी उसने और कभी आपने,
किसी को पता पड़ गया कि आप ऐसा कर
अगर कभी किसी बात पर wish किया;
रहे हैं , अब आप उसकी नजरों को समझ
मान लो आज उसकी birthday है या
नहीं पाएँगे। पहले उसकी नजरों में आपके
आपकी birthday है और उसने आपके
प्रति जितना प्यार था अब वह नहीं दिखेगा।
birthday पर आपको wish किया और
अब आप जब भी उनके सामने आएँगे आप उसने अगर आपको किसी भी तरीके से
उनसे डरेंगे। वह भी आपसे प्यार करने में अपने birthday पर wish करने के लिए

62 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

कहीं का कहीं बुलाया तो वह आपके साथ करते-करते एक बार हमने कोई न कोई इस
कुछ भी fraud कर सकता है , जो आपकी तरीके से appointment कर लिया कि
knowledge में नहीं होगा। क्योंकि आपने चलो! आज हम वहाँ मिलेंगे, फलाने पार्क में
कभी उसको देखा ही नहीं, आपने केवल मिलेंगे, फलाने होटल में मिलेंगे और बस!
chatting करते-करते बस! इस तरीके जब हम वहाँ मिले तो किसी न किसी के
से अपने relation बना लिया। हम तुम्हारे साथ में गलत होगा। बस! यहीं से जिन्दगी
साथ कर रहे हैं , तुम भी हमारे साथ करो और खराब होना शुरू हो जाती है ।

पूरी दुनिया में फैला माया का साया


जब हम इस तरह के अंधकार में पड़े होते सुनने को मिलता है कि लड़के, लड़कियों
हैं , उस अंधकार से निकलने के लिए हमारे को फंसाने के लिए अपनी I.d. भी लड़की
पास फिर कोई साधन नहीं होते। हमें माता- के नाम पर डाल देते हैं । यह सब क्या है ?
पिता अच्छे नहीं लगेंगे, हम माता-पिता की यह सब मायाचार नहीं तो क्या है ? अगर हम
बात क्यों मानेंगे? क्योंकि वे हमें बहुत बड़े देखें कि आज बच्चे जितने भी कहीं न कहीं
अपने सामने obstacle दिखाई देंगे। हमारे indulge हो रहे हैं तो यह सब उसी fraud
लिए वह बहुत बड़े एक तरह से माता-पिता भावना के साथ mobile पर indulge हो
भी होंगे लेकिन हमें भीतर से लगेगा ये हमारे रहे हैं । सबने अपने लिए कुछ न कुछ जो set
दुश्मन हैं , आपको ऐसी feeling आने लग कर रखा है या अपनी setting बना रहे हैं
जाएगी। आपको कोई भी सिखाने वाला ये भी सब मोबाइलों पर जो चल रहा है , यह
होगा आप उससे बचेंगे और यह सब शुरू हो सब मायाचार के through चल रहा है ।
चुका होगा। आप एक गहरे अंधकार में पड़ते यह सारी की सारी माया का साया है , पूरी
चले जा रहे होंगे। धीरे-धीरे आपकी life दुनिया में फै ला हुआ है , पूरा cyber cafe!
आपको परेशान करने लग जाएगी। आप समझ आ रहा? यह पूरा का पूरा internet
अपने से परेशान होने लग जाएँगे। किसके का जो जगत है यह सारे का सारे में मायाचार
कारण से? एक मायाचार। माता-पिता से इतना घुसा हुआ है कि मायानगरी तो केवल
छु पा कर के किसी भी व्यक्ति से chatting mumbai को कहा जाता है पर पूरा माया
करना, किसी भी व्यक्ति से instagram पर का instrument तो आपके हाथ में पड़ा
मिलना, किसी भी तरह के अपने relation हुआ है । यह कितनी बड़ी माया है , जहाँ पर
बनाना, जो अंधकार में है , हमें पता ही नहीं पहुँचने के बाद में आदमी ठगा ही जाएगा।
है कौन क्या है ? कई बार तो इतना तक उसका नाम माया होता है ।

धर्मं का मर्म 63
उत्तम आर्जव धर्म

माया के जाल से बचने वाले व्यक्ति दुनिया के सबसे समझदार इं सान है


मुंबई को मायानगरी इसीलिए कहा है । अपने-अपने तरीके से दुनिया में माया
जाता है वहाँ पहुँचने के बाद में आदमी ठगेगा। का जाल फै ला हुआ है - कपड़े वाला अपने
बहुत उस्ताद होगा वही बच कर निकल तरीके की cheating करेगा। कोई ठे केदार
पाएगा, वहाँ से वापिस आ पाएगा। इसलिए होगा तो अपने तरीके की cheating करेगा।
यह मायानगरी है । अगर हम देखें कि इस कोई gold का काम करने वाला होगा
तरह की माया का जाल कहाँ-कहाँ नहीं उसकी माया अपने तरीके की होगी। कंपनी
फै ला है , तो आपको पता पड़ेगा यह दुनिया की में, job में अच्छे -अच्छे बच्चों को लेने के
में हर जगह फै ला हुआ है । आज दुनिया में लिए भी तरह-तरह की माया करके सामने
हर दुकान पर आदमी अपने-अपने तरीके कंपनी का उन्हें अपना infrastructure
से माया ही कर रहा है । माया से ही माया दिखाना पड़ता है और उसके बावजूद जब
बटोर रहा है । माया का नाम क्या है ? माया कंपनी में अपने बच्चों को ले लेते हैं तब पता
किसको बोलते हैं लोग? अरे भाई! आपके पड़ता है कि यहाँ तो क्या था, क्या हो गया?
घर में बड़ी माया है , बड़ी अच्छी लगती है तरह-तरह की माया दुनिया में फै ली हुई है
माया। माया मतलब बड़ा धन है , बहुत ज्यादा और उस माया का जाल अगर आप से बच
मतलब splendor आपके घर में है । यह जाए या आप उस माया के जाल से बच जाएँ
माया भी कहाँ से आई? यह कोई नहीं पूछेगा तो आप समझना कि आप दुनिया के सबसे
पर उसकी माया की प्रशंसा करेगा। आपके समझदार इं सान है । आप अभी अगर कहीं
घर पर बहुत माया है लेकिन उसको यह नहीं ठगे नहीं गए हैं तो आप तैयार रहें , आपका
पता कि यह कितनी माया से माया आई है । नंबर आने वाला है । आप सोचेंगे महाराज!
क्योंकि माया के बिना माया आती नहीं। हमें डरा क्यों रहे हो? यह डरा नहीं रहे हैं , यह
आचार्य आत्मानुशासन जैसे ग्रंथ में कहते डराना ही आपके अन्दर एक awareness
हैं ‘शुद्धैर्धनै-र्वि वर्द्धन्ते सतामति न सम्पदः’ पैदा करना है । आप तैयार रहें क्योंकि आपकी
सज्जनों की संपत्तियाँ कभी शुद्ध धन से बढ़ उम्र अब ऐसी हो चली है कि अब आप या तो
नहीं सकती है । शुद्ध धन जानते हो! नंबर किसी को ठगने की कोशिश करोगे या स्वयं
एक का पैसा जिसको बोलते हैं । नंबर एक को ठगाने की कोशिश करोगे और ठगने की
के पैसे से कभी भी आदमी इतना ज्यादा धन कोशिश में ही आप ठगे जाओगे।
कमा ही नहीं सकता। यह सब नंबर दो का
काम होता है और हर दुकान-दुकान पर होता

64 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

बुराइयों से अपने आप को उबार लेंगे, ऐसा संकल्प रखें


यह ऐसा मायाचार का जाल फै ला हुआ रहोगे तो कोई बात नहीं होगी। लेकिन अगर
है , इसलिए आपको हमेशा देखते रहना है , आप उस बुराई को किसी के सामने दिखाने
मेरे मन में क्या आ रहा है ? मैं अपने वचनों में से बच करके अगर आप किसी को धोखा
क्या बोलता हूँ? मेरी काया में किस तरह के देने की कोशिश करोगे तो बुरी बात है । हर
expression होते हैं ? अगर मैं जिस तरह आदमी के अन्दर कोई न कोई बुराइयाँ होती
से सोच रहा हूँ, वही चीजें सही ढं ग से बोल हैं । अच्छाइयाँ भी होती है बुराइयाँ भी होती है
रहा हूँ, वही चीजें अपनी काया में उनको ला लेकिन हमें उनको देखते रहना चाहिए और
रहा हूँ, अपने शरीर में ला रहा हूँ तो आप यह नहीं सोचना चाहिए कि हम इन बुराइयों
समझना कि मेरा जीवन सरल है , ईमान के से कभी बच नहीं पाएँगे। हमेशा यह भाव
साथ चल रहा है । अगर आपको ऐसा लगे रखो, यह संकल्प रखो कि हम इन बुराइयों
कभी कि मैं अपने मन में कोई भी बात रखे से एक न एक दिन अपने आप को उबार
हुए हूँ, वह छिपा रहा हूँ और मैं किसी के लेंगे। हमें इन बुराइयों से परेशान होने की
लिए यह बता नहीं रहा हूँ लेकिन मेरे अन्दर जरूरत नहीं है , यह तो हमें अब समझ में
यह बहुत बड़ी एक बुराई है जो मैं किसी आया है कि यह हमारी बुराइयाँ हैं । अभी तक
को बता नहीं रहा हूँ लेकिन वह मेरे अन्दर तुम्हें समझ में कहाँ आ रहा था?
है । कोई बात नहीं आप उस बुराई को रखे

तिर्यंच गति का मूल कारण छल-कपट है


आज तो तीसरा दोषों को छिपाते हैं ? ये सब चीजें जो हमारे
दिन हुआ है , कुछ अन्दर पड़ी रहती हैं वह भी हमारे अन्दर का
थोड़ा-थोड़ा समझ में एक मायाचार ही होता है । लेकिन इसका
आ रहा होगा आज कि सबसे बड़ा नुकसान जानते हो क्या होता
हाँ! हमारे अन्दर क्या- है ? चलो! इस जन्म में तो मान लो आपकी
क्या बुराइयाँ हैं ? हम जिन्दगी सही से भी निकल गई, आपने
किन-किन चीजों से किसी के साथ में कोई छल-कपट किया,
अपने आपको बचाते हैं ? हम कब-कब अपने आप पकड़े भी न गए, यह भी हो सकता है ।
माता-पिता के साथ झूठ बोलते हैं ? कब- आपने किसी के साथ में लाख बुराइयाँ की
कब हम अपने गुरुजनों के साथ में अपने लेकिन फिर भी आपका कहीं पर भी बुरा

धर्मं का मर्म 65
उत्तम आर्जव धर्म

नहीं हुआ, यह भी हो सकता है । आप सोचो उसी के कारण से एक आदमी भी पशु बन


कि महाराज तो यही कहते रहते हैं । देखो! जाता है । पशु कोई अलग से नहीं आते हैं ।
मैं फिर भी success हूँ। आप भूल में नहीं ऐसा नहीं समझना कि जो पशु हैं , वे पशु
रहना जो मैं कहने जा रहा हूँ उसको ध्यान से बनते रहें गे, जो पक्षी हैं वे पक्षी बनते रहें गे,
सुनना, बचेगा कोई भी नहीं। जो भी व्यक्ति जो मनुष्य हैं , वे मनुष्य बनते रहें गे, जो स्त्री
मायाचार के साथ में रहे गा, अपने अन्दर हैं , वे स्त्री बनते रहें गे, जो पुरुष हैं , वे पुरुष
किसी भी तरीके का छल-कपट रखेगा, ही बनते रहें गे। यह कोई सिद्धान्त नहीं है ।
आपके कर्म आपको आगे समय में इतना पशु भी पक्षी बन सकता है , पक्षी भी मनुष्य
दुःख देंगे कि आचार्यों ने लिखा है कि जो बन सकता है , स्त्री भी पुरुष बन सकती है
व्यक्ति मायाचार करता है , अगर मायाचार और पुरुष भी स्त्री बन सकता है । जब भी
करते समय पर उसकी आयु का बंध हो आप कभी किसी पशु को देखें, पक्षी को
जाता है तो नियम से तिर्यंच आयु का ही बंध देखें, बारीकी से देखें तो आप यह देखना कि
होता है ।’माया तैर्यग्योनस्य’ तत्त्वार्थ सूत्र का पिछले जन्म में यह बहुत अच्छा एक मनुष्य
यह सूत्र है । तिर्यंच योनी का कारण क्या है ? था और अगर आपको यह देखने को मिले
माया। आप देखते हो न! दुनिया में जितने कि यह पशु में भी देखो, कितना अच्छा लग
भी हाथी है , शूकर है , ऊँट हैं , गाय हैं , बैल हैं , रहा है । पक्षी बन कर के भी कितना अच्छा
कुत्ते हैं , बिल्ली हैं , किसी भी तरह के पक्षी लग रहा है । मान लो कभी आप तोते को
हैं , कबूतर हैं , चिड़िया हैं , कोई भी तरीके के देखे तो आपको देखने में अच्छा लगेगा। हरे
एक जीव हैं न, किसी की तरफ भी आपकी रं ग का कितना अच्छा यह पक्षी है । उसके
दृष्टि जाए तो आज आप practically अन्दर अगर यह अच्छाई आई है कि दूसरों
इनको देखना। इनका पूर्व जीवन सोचना को देखने में वह अच्छा लग रहा है , तो वह
और आप इनके पूर्व जीवन को इसी तरीके उसके कुछ उस समय पर किए गए सत् कर्म
से सोचना कि आज यही देखें हम कि हमको का फल है । उसने उस समय पर कुछ अच्छा
कहीं भी कोई जानवर दिखाई दें, हम देखें किया था। अपने जीवन में दूसरों को धोखा
कि देखो यह जीव कभी आदमी था। इसने भी दिया है , तो किसी के साथ कभी अच्छा
अपने पहले के जीवन में ऐसा छल-कपट भी किया। लेकिन धोखे की quality इतनी
किया कि आज यह पशु बन गया। जितने भी बढ़ गई कि उसके कारण से पशु बना और
पशु योनी में रहने वाले जीव हैं , सबके अन्दर जो थोड़ा बहुत अच्छा किया था उसके कारण
यही छल-कपट का मूल कारण होता है और से उसे एक अच्छा शरीर मिल गया। तोता

66 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म

बन गया, मैना बन गया, अब खेलो आपस कर के आपको भीतर से अब यह सोचना है


में। यह जितने भी पशु जाति है , इसको देख कि यह कहीं मेरा भविष्य न हो जाये।

ऋजुता का धर्म समझें


जो लोग यह सोच कर के अपने आप अन्दर आज भाव आना है । इसका नाम है -
को बहुत successful man समझ रहे ऋजुता का धर्म। समझ में आ गया? क्या
हैं या यह सोच कर के अपने आपको बड़ा करना है ? अगर हमारे अन्दर कहीं पर भी
clever समझ रहे हैं कि मेरे fraud को मायाचार चल रहा हो, हम पढ़ने के बहाने
कोई नहीं समझ पा रहा है । वह आगे अपने मायाचार करते हो, tution जाने के बहाने
आप को इस तरह से सोचने की कोशिश मायाचार करते हो, स्कू ल, कॉलेजों के जाने
करें कि इस जन्म के बाद में आपको फिर के बहाने मायाचार करते हो तो यह भी हमें
कोई भी नहीं देखेगा और देखेगा तो ऐसे पशु अब control करना है , खुद करना है ।
के, पक्षी के रूप में देखेगा। यह सिद्धान्त है । आपके माता-पिता आपको देखें या न देखें
दुनिया का कोई भी इं सान हो छल-कपट से आपकी responsibility आपके ऊपर है
किसी को अच्छा न इस जन्म में मिला, न अगर आपको अच्छा बनना है । एक third
अगले जन्म में मिलता है । आप देख रहे हो step अगर आप यह उठा पाएँ तो आप
जितने भी दुनिया में आतंक होते हैं , दुराचार आगे के लिए कुछ और अच्छा कर पाएँगे।
होते हैं सबके पीछे छल-कपट छिपा होता है । यह चीज बहुत गहरी है और यह वह चीज है
इस छल-कपट के कारण से आदमी अपना जिसमें रखकर के हर आदमी खुश भी रहता
जीवन बर्बाद करता है , अपने परिवार का है । लेकिन आज से हम संकल्प करेंगे यह
जीवन बर्बाद कर देता है और उसी के कारण हमारे अन्दर का एक बहुत बड़ा darkness
से अगले जन्म में भी वह मनुष्य तक नहीं of ignorance है , अज्ञानता का यह हमारे
बन पाता। यह सोच कर के हमें आज अपने अन्दर अंधकार है जिसका साया हमारे अन्दर
से, अन्दर से, यह भीतर से संकल्प करना पड़ा हुआ है । हम इस साये से बाहर निकलेंगे,
है कि मैं मनसा, वाचा, कर्मणा एक हो कर अपने आप को सरलता और ईमानदारी से
के रहूँगा। मन से कुछ हूँ, बोलने में कुछ हूँ, आगे बढ़ाएँगे और इस तरह से हम एक अच्छे
बहाने बनाने में कुछ हूँ, करने में कुछ हूँ ऐसा इं सान बनेंगे, अच्छे मनुष्य बनेंगे और सत्कर्म
नहीं करना। जो चीजें दूसरों को बताने की है , करके हम एक दिन धर्मात्मा भी बन जाएँगे।
उन्हें हमें बताना है । जिन चीजों के कारण से लेकिन उससे पहले हम एक अच्छे इं सान
दूसरे लोग हमारे ही लोग अंधकार में रहे , उस बन जाए यह हमारे लिए आज के लिए एक
अंधकार में हमें उन्हें नहीं रखना है । यह हमारे बहुत अच्छी सीख होगी।

धर्मं का मर्म 67
Day 03
आज का चिंतन - अपने माया के भाव को पहचाने
आज आपके धर्म करने के लिए तैयार हैं । आज आपके लिए
का तीसरा दिन है । आप एक task दिया जा रहा है , इसे आपको दिन
लोग उत्तम आर्जव धर्म भर ध्‍यान में रखना है और उसके अनुसार
को अपने अन्‍दर धारण अपने विचारों को देखना भी है ।

Sit And Observe:


1. अपना ध्यान कोई भी कार्य करते हुए उपाय करेंगे।
उस समय के भावों पर रखें।
7. आप समझ पाएँगे कि कोई भी परि-
2. कार्य वही करें जो रोजाना करते हैं उसमें स्थिति अगर बहाने के रूप में सामने आ
होने वाली माया को ध्यान में रखें। रही है तो हम स्वयं से छल कर रहे हैं ।
3. माया से डरें नहीं– कोई पाप बंध नहीं 8. स्वयं के छल को पकड़ लिया तो अपने
होगा परन्तु अपने बहाना बनाने की अन्दर के potential को उजागर कर
स्थिति को पहचाने। सकेंगे।
4. जिस कार्य को करते हुए बहाना बनाया
उसे note करें।
5. ऐसा करने से आपकी nature में
अद्भुत परिवर्तन आएगा और आप भीतर
से हल्के हो जाएँगे।
6. आप अपनी बहाना बनाने की प्रवृत्ति को
समझने लगेंगे तभी उसको दूर करने का

68 धर्मं का मर्म
S.No अपनी बुराई किसी से छिपाई/बहाना बना करके Situation/बहाना
निकल गए/बहाने बना करके हम अपना काम साधा बनाने का कारण

आज का एहसास: दिनभर में कितनी बार ऐसा होता है कि


1. हम कितनी बार लोगों से अपना काम साधते हैं ।
दूसरों के सामने यह 4. कितनी बार बहाना बनाकर काम करने
बताने की कोशिश से बच जाते हैं ।
करते हैं कि मुझमें कोई यह हम दिनभर में कितनी बार करते हैं ,
बुराई नहीं है । note down करना है । जो सिर्फ हम ही
2. कितनी बार हम महसूस करते हैं कोई दूसरा नहीं जानता।
अपनी बुराई को दूसरे यही हमारा एक तरह का भीतरी मायाचार
के सामने छिपाते हैं और यह कोशिश का भाव है । हमें इस भाव को पकड़ना है ।
करते हैं कि दूसरा मेरी बुराई पकड़ न अगर हम इसको पकड़ पाये तो हम माया को
ले। समझ सकेंगे।
3. कितनी बार अपना प्रयोजन बताए बिना

स्व-संवेदन

• अपने बहाने/माया को क्या मैं समझ • क्या आप अपने को मायाचारी से बचाने


पाया? yes/ no/ little bit की कोशिश कर पाए? yes/ no/
• बहाना बनाने के कारण को क्या मैं जान little bit
पाया? yes/ no/ little bit

धर्मं का मर्म 69
Day-4: उत्तम शौच धर्म
मिट्टी के द्वारा स्व-पर कल्याण
आज का यह दिन आप लोगों के लिए के हाथों से और एक मिट्टी में कुछ ऐसा जा
कुछ नया जानने के लिए आया है , कुछ पाना जिससे वह कुछ अच्छा produce
नयी भावनाएँ अपने अन्दर पैदा करने के कर पाए, कुछ अच्छा वह दे पाए, यह दोनों
लिए आया है । अपने जीवन को बारीकी से ही काम होते हैं । इसी को ‘स्व’ और ‘पर’
समझते हुए, जीवन में उत्पन्न हुई अनेक तरह उपकार कहते हैं । जैसे-जैसे हमारे अन्दर
की इच्छाओं को समझते हुए, जीवन को योग्यता बढ़ती जाती है , ‘पर’ उपकार करने
समायोजित करने का एक उपक्रम हमको की भी क्षमता हमारे अन्दर बढ़ती जाती है ।
आज सीखने को मिलेगा। अभी तक हमने जब तक ‘स्व’ उपकार अच्छे ढं ग से नहीं होता
यह सीखा है कि हमारी आत्मा भी एक भूमि तब तक हम ‘पर’ उपकार के भी योग्य नहीं
की तरह काम करती है । जिस तरह भूमि पर बन पाते हैं । इसलिए यह मिट्टी का दृष्टान्त
अनचाहे ढं ग से कोई भी फसल अपने आप आपको बार-बार दिया जा रहा है कि देखो!
उग आती है वह किसी काम की नहीं होती मिट्टी स्वयं में भी योग्य बन रही है । वह स्वयं
है । किन्तु जब हम उस भूमि को शुद्ध बनाकर जब योग्य बनती जाएगी, कुंभकार के हाथों
उस भूमि को सही ढं ग से परिमार्जित करके मन चाहे ढं ग से किसी भी अच्छे कलश का
उसका सब तरह से लेखना-जोतना इत्यादि रूप ले पाएगी। वही मिट्टी अगर मान लो,
कृषि संबंधी जो उस भूमि पर क्रियाएँ की दूसरे का उपकार करने को तैयार हो जाती है ,
जाती हैं , वह सब कर के उस भूमि को जब तो उसमें किसी भी तरह का बीज डाला जाए
हम योग्य बनाते हैं तभी उस भूमि पर कुछ तो वह बीज बहुत अच्छे से फलीभूत होता है ।
वपन हो पाता है । बीज का वपन होना, फलीभूत होना, यह ‘पर’
मिट्टी के दो कार्य का उपकार है और स्वयं का किसी कलश के
आपको बताए जा रहे रूप में ढलना यह ‘स्व’ का उपकार है ।
हैं । एक तो मिट्टी का
स्वयं में कुछ अच्छा बन
पाना, किसी कुम्भकार

70 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

माया का लोभ के साथ गठबंधन


हमने यह भी देखा है , जाना है कि वही किया जा रहा है फिर भी वह भी खिसक
माटी जब अपने अन्दर क्षमता को बढ़ाती है , जाती है , खिर जाती है , उसमें छे द हो जाते
अपने अन्दर मृदुता को बढ़ाती है तो तीसरे हैं । वह फिर से नहीं कुछ बनना चाहती है
step पर आ कर के अपने को रोक लेती क्योंकि उसे लोभ दिखाई देता है । कुछ वह
है । जो एक माया का भाव था, उस माया के अपने लोभ के कारण से ऐसा नहीं कर
भाव में अपने आपको कहीं न कहीं संकुचित पाती और उसका वह लोभ इसलिए होता
कर लेती है या आगे बढ़ने से अपने आप है कि उसे लगता है कि मैं जिस स्थान पर
को मना करती है और बहाना बनाती है कि बहुत समय से रही हूँ मुझे वहाँ से हटाया
मैं ऐसा नहीं कर पाऊँगी। उसके पीछे भी जा रहा है । मुझे कुछ और सपने दिखाए जा
एक कारण है जो आज बताया जाना है । वह रहे हैं और मैं अपने अस्तित्व को छोड़ रही
ऐसा क्यों करने के लिए तैयार नहीं होती हूँ। इतनी हिम्मत वह नहीं कर पाती कि वह
है जबकि उसने दो steps उठा लिए होते लोभ को छोड़ पाये। जहाँ पर वह रह रही थी,
हैं ? हर आत्मा में यह वह वहाँ से हटना नहीं चाहती है । उसे आस-
दो गुण आसानी से पास जो कुछ भी है बहुत अच्छा लगता है ।
आ सकते हैं । क्षमा आस-पास की मिट्टियाँ भी जो उसके साथ
भी आ जाती है , मृदुता में रही हैं , उनके साथ भी वह घुल-मिल के
भी आ जाती है लेकिन रहती है । आस-पास के वातावरण से इतना
ऋजुता और शुचिता ज्यादा उसको लोभ उत्पन्न हो गया है कि
आने में समय लगता उसी कारण से वह कुछ अच्छा करने की
है । मन बहुत बनाना पड़ता है क्योंकि माया इच्छा करके भी अच्छा नहीं कर पाती है ।
का कारण है - लोभ और लोभ के कारण ही यही वह वजह है जिसके कारण से वह कुछ
होती है - माया। इन दोनों ने अपना आपस में नया रूप नहीं ले पाती या अपने में जो एक
ऐसा गठबंधन कर रखा है । हाँ! जैसे सपा- परिवर्तन आना चाहिए वह नहीं कर पाती।
बसपा हैं मायावती का गठबंधन हो, मुलायम यानि जो भी उसको माया करने के लिए,
सिं ह से इस तरह का एक गठबंधन है - माया कुटिलताएँ पैदा करने के लिए, उसके अन्दर
और लोभ का। ऐसे यह दोनों प्रकार के भाव तरह-तरह के दोषों के क्षेत्र उत्पन्न करने के
आत्मा में चलते रहते हैं । जब मिट्टी को दिख लिए मजबूर करता है , इस लोभ के कारण
रहा है कि मुझे योग्य बनाने के लिए प्रयास ही वह माटी अपने स्थान से उठ कर के किसी

धर्मं का मर्म 71
उत्तम शौच धर्म

दूसरे स्थान पर आ नहीं पाती। यही वजह से वहाँ से वह हटने की जब इच्छा नहीं करती
है कि वह लोभ के कारण से अब आगे का तो उसी के कारण से वह मायाचार करने
अपना विकास नहीं कर पायेगी। उसमें जो लग जाती है । इसलिए कह रहा था कि
पवित्रता आनी चाहिए वह नहीं आ पाएगी माया और लोभ का बहुत बड़ा गठबंधन हो
क्योंकि जब तक वह कलश का रूप धारण गया है । आप आज लोभ को समझ कर ही
नहीं करेगी और अपने अन्दर के लोभ को समझ पाएँगे कि हम कितनी माया करते हैं
छोड़कर के ऊपर उठने का भाव नहीं करेगी और माया को छोड़ेंगे तभी आपको समझ में
तब तक उसे किसी अच्छे ऐसे रूप में ढाला आएगा कि हमने कितना लोभ छोड़ा है । इस
नहीं जा सकेगा, जिसमें ढाल कर के लोग लोभ के कारण से मन में ऐसा लगता है कि
उसे अपने सिर पर रख सके। माटी के ढे ले जैसे कोई भी चीज सामने है , तो वह अच्छी
को कोई सिर पर नहीं रखता है । सिर पर क्या है और उसमें हमें भले ही कुछ परेशानी हो या
रखा जाता है ? कलश रखा जाएगा। कलश उसमें हमारे साथ कुछ छल भी हो तो भी हम
बनने के लिए माटी को अपने उस स्थान से उसको सहन कर लेते हैं लेकिन अपने मन के
हटना तो पड़ेगा। लेकिन उस लोभ के कारण लोभ को नहीं छोड़ पाते हैं ।

क्या है मृग मरीचिका?


आपने कभी देखा हो कभी अच्छी जो ये तो आपको बहुत चमकता हुआ पानी दिखाई
4 way roads होती हैं । इन roads पर देगा, दूर तक। ऐसा लगेगा कि आपको दूर
आप कभी गर्मी के दिनों में जब यह तप रही क्या दिख रहा है ? पानी दिख रहा है । आप
हो और इन roads पर आप दूर से देखना वहाँ पहुँचेंगे, आप देखेंगे कि जहाँ पर मुझे

72 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

लग रहा था पानी है , वहाँ तो पानी भी नहीं और वह जब वहाँ पहुँच जाते हैं तो फिर उन्हें
है । आप वहाँ से फिर देखो अभी तो आधा लगता है कि पानी यहाँ पर भी नहीं है । फिर
किलोमीटर दूर फिर आपको वैसे ही दिखेगा, उन्हें वहाँ से दूर दिखाई देता है कि पानी वहाँ
फिर पानी दिखेगा। फिर वैसे ही चमकती है । फिर वहाँ से वह दौड़ लगाते हैं और फिर
हुई जमीन दिखेगी। लोभ इस तरह से हमारे वहीं पर पहुँचते हैं । सुबह से शाम तक भी
अन्दर एक दौड़ पैदा कर देता है । कभी रे- दौड़ेंगे उन्हें पानी मिलेगा नहीं। इसको बोलते
गिस्तान में आपने बालू पर घूमते हुए देखा। हैं - ‘मृगमरीचिका’! क्या बोलते हैं ? मृग
कई बार पशुओं को जब प्यास लगती है तो मतलब हिरण जो है वह पानी की दौड़ में
वह बालू पर दौड़ लगाते हैं और वह बालू के इस तरह से अपनी दौड़ को बढ़ाता रहता
सामने अपने आप को देखते हैं तो उन्हें लगता है । सुबह से शाम तक दौड़ता है , तृष्णा
है बालू चमक रही है , उसके आगे पानी है । उसकी बढ़ती जाती है । किस कारण से?
तब वहाँ तक पानी पीने के लिए दौड़ते हैं लोभ के कारण से।

तृष्णा खारे पानी से कभी समाप्त नहीं होती


लोभ हमें लुभाता को बारीकी से समझें। लोभ हमारे अन्दर
है । सामने वाली चीज क्या करता है ? हमारे अन्दर एक ऐसी इच्छा
को देख कर के हमारे पैदा करता है कि एक इच्छा की पूर्ति नहीं हो
मन के अन्दर एक पाती, वह दूसरी इच्छा को उत्पन्न कर देता
लुभावना पल जो आता है और जब इच्छा से इच्छा, इच्छा से इच्छा
है , इसी का नाम लोभ उत्पन्न होती चली जाती है तो इसी का नाम
है । जब हम उस चीज कहलाता है - तृष्णा। इसको क्या बोलते हो?
के पास तक पहुँचते हैं तो फिर हमें लगता है तृष्णा का मतलब प्यास कभी बुझती नहीं।
कि नहीं! इससे भी कुछ अच्छा और दूसरा पानी तो पी रहे हैं लेकिन प्यास कभी बुझती
है । फिर हम वहाँ से और दूसरी ओर देखते हैं नहीं। एक तो वह पशु हैं जिन्हें पानी मिलता
तो हमें कुछ और अच्छा दिखाई देता है । फिर ही नहीं। वह तो इतनी अज्ञानता में दौड़ लगा
हम वहाँ तक अपनी दौड़ लगाते हैं तो फिर हमें रहे हैं कि सुबह से शाम तक दौड़ते हैं , दौड़ते
लगता है कि हम यहाँ आ तो गए लेकिन यहाँ हैं , दौड़ते हैं और शाम को थक के चूर हो
पर भी इतना अच्छा नहीं लग रहा है जितना जाते हैं , गिर पड़ते हैं लेकिन उन्हें पानी तो
कि वहाँ अच्छा लग रहा है । सुन रहे है ? लोभ मिलता ही नहीं है । मनुष्य इतना जरूर है

धर्मं का मर्म 73
उत्तम शौच धर्म

कि थोड़ा-सा पानी पी तो लेता है , पानी उसे इसी तरह से जब हम इस माया के बाजार में
मिल तो जाता है लेकिन उसे मीठा पानी नहीं घूमने के लिए निकलते हैं तो हमारे सामने
मिलता, उसे मिलता है खारा पानी। क्या जितनी भी चीजें आती हैं मन हर किसी चीज
मिलता है ? खारा पानी। जानते हो समुद्र का से लुभता है । मन कहता है यह भी कितनी
पानी खारा होता है , नदियों का पानी मीठा अच्छा product है , यह भी इतनी अच्छी
होता है । मनुष्य हमेशा खारा पानी पीता है चीज है । यह भी कितना अच्छी वस्तु है , यह
और ऐसा पानी पीता है जिसको पीने के भी खरीद लो, यह भी ले लो, यहाँ पर भी
बाद में उसकी तृष्णा और बढ़ जाती है । भूख चलो, इसमें भी मिल लो यहाँ से भी कुछ
या प्यास मिटती नहीं है , पानी तो पी लिया उठा लो। मन को हर चीज अच्छी लगती है ।
लेकिन उससे वह प्यास और बढ़ जाती है ।

लोभ और तृष्णा की पनपती दुकानें


जैसे आप मेले में घूमने जाओ कभी, लग रही है । आप देखोगे कि वहाँ पर जो भी
अब तो मेले होते ही नहीं अब तो mall आपको दिखाया जा रहा है वह सब आपको
हो गए, मेले की जगह mall हो गए हैं । अच्छा लग रहा है । आपको ऐसा लगेगा कि
Six storeys, seven storeys इतने इस तरह के बाजार में आकर के तो एक दिन
multiple storeys वाले mall हो गये हैं बहुत छोटा हो जाता है , यहाँ पर कभी दो-
कि आप सुबह से शाम तक भी उनमें घूमते चार दिन के लिए आना चाहिए और रुकना
रहें गे आपको कभी भी, किसी भी चीज से चाहिए। यहाँ तो सब खाने की, पीने की
वहाँ संतुष्टि मिलने वाली नहीं है । यह भी ले सुविधा है , restaurant भी बने हुए है ,
लो, यह भी ले लो, यह भी उठा लो, यहीं पर रात में भी रुक सकते हैं तो फिर आपका मन
खरीद लो। यदि पूछ लूँ इसका भी मोल-भाव बनेगा कि यहाँ पर कुछ दो-चार दिन रुकेंगे
कर लूँ, यह भी देख लूँ बस! आपके लिए हर तब इस स्थान का कुछ आनन्द ले पाएँगे।
चीज अच्छी लगेगी। आप कभी अपने मन इतना मन लोभित हो जाता है ।
से पूछना कि हमें कौन-सी चीज अच्छी नहीं

लोभ वास्तव में दुःख का कारण है


लोभ क्या हुआ? आप देखो! जो चीज इतना मोहकपना दिखता है कि मन कहता है
जैसी है हमें वैसी नहीं दिखती। हमें उसमें कि यह बहुत अच्छा है और जब हम ले लेते

74 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

हैं तो हमें बिलकुल सामान्य-सा लगता है वाली चीज अच्छी तो लग रही है लेकिन
और लेने से पहले वह बहुत विशिष्ट लगता यह है बिल्कुल सामान्य, बिल्कुल ऐसी ही
है और जब ले लेते हैं तो बिलकुल सामान्य- सामान्य है कि बस! लेने के बाद में आपको
सा लगता है । अरे! सोच रहा था बालूशाही पछताना पड़ेगा। पैसा ज्यादा लग जाएगा,
है , बहुत अच्छी होगी लेकिन जैसे ही खा ली energy ज्यादा लग जाएगी, मिलने वाला
तो वह तो वैसी ही है । ऐसा लगा जैसे कोई कुछ नहीं है । वह लोभ हम अगर समझ नहीं
रोटी हो और उसमें थोड़ा-सा मीठा मिला पाते हैं तो वह लोभ ही हमको कसता रहता
दिया हो। ऊपर से लग रही थी कि बहुत है , दुःखी बनाता रहता है । इसी कारण से
अच्छी बालूशाही है , बहुत अच्छी है , देखने में हम उस लोभ की दौड़ में अपनी पूरी जिं दगी
भी अच्छी लग रही थी लेकिन जब ले लिया निकाल देते हैं । वह मृग तो सुबह से शाम
तो उसके बाद तो वैसी ही लगती थी। इसी तक दौड़ता है लेकिन आदमी अपनी पूरी
का नाम है - लोभ। आप देखते रहे , मन को जिं दगी भर दौड़ता है ।
परखते रहे हैं , अगर आप जानेंगे कि लोभ ‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
कषाय क्या काम करती है ? अब यह कषाय दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
है , तो कषाय के कारण लोभ कषाय कहीं बाहर नहीं है भीतर
से यह क्या करती है ? ही होती है
यह कषाय हमें, आत्मा सुबह क्या है ? जब से जन्म मिला है और
में लोभ के कारण से शाम क्या है ? जब तक मृत्यु नहीं हो जाती।
हमारे को दुःख देती हैं आप देखो! हमारी इच्छाएँ हमको दौड़ाती हैं ,
और हम यह समझ रहे हम नहीं दौड़ते हैं । हमारे अन्दर एक inner
हैं कि इससे हम को force अपने आप create होता है जो
सुख मिलेगा। अब यह समझें कि आत्मा हमारी desires के कारण से होता है । अगर
में वह लोभ कषाय जुड़ी हुई हैं । आत्मा तो हम कभी desire less अपने आपको feel
सुख चाहती है और लोभ कषाय हमको दुःख करें तो हमें ऐसा लगता है कि जैसे हम हैं ही
देने का काम करती है । जब तक हम लोग नहीं, हमारा कोई existence ही नहीं है ।
कषाय के कारण से लोभ करते रहें गे तब तक इसलिए आपको कोई भी motivational
हम अपनी आत्मा का जो सुख है वह नहीं teacher होगा, गुरु होगा वह आपको
प्राप्त कर पाएँगे। जब हमें यह समझ में आने सिखाएगा कि अपने अन्दर desires
लग जाएगा कि देखो! यह लोभ है , सामने पैदा करो। ‘as you desire so you

धर्मं का मर्म 75
उत्तम शौच धर्म

achieve’ जैसी इच्छा करोगे वैसा पाओगे। होती है उस मशीन में, जहाँ पर reel घूम रही
हर कोई आपको दौड़ में ही दौड़ाना चाहे गा। होती है । उसका projection पर्दे पर आता
यदि आपको कोई spiritual गुरु कोई है तो हमें लगता है कि यह सब कुछ बिल्कुल
जो कहे गा कि नहीं! अपनी desires को सामने है as it is, जैसा मैं चाह रहा हूँ वैसा
control करो, उनको अपने से remove ही हो रहा है । feeling बिलकुल उससे एक
करो, अपने को desireless feel करो जैसी ही मिल जाती है । अब आप समझो
और फिर देखो कि आपके अन्दर peace पर्दे पर क्या हो रहा है ? पर्दे पर जो हो रहा
generate होती है कि नहीं होती है । है वह आपके अन्दर हो रहा है । इतना आप
आपको अपने existence की feelings उससे बिलकुल अपने आप को intimate
होती है कि नहीं होती है । यह सब चीजें तब कर लेते हो। इतना आपके अन्दर उसके प्रति
होंगी जब हम अपने अस्तित्व की ओर आ एक relation जुड़ जाता है । सामने वाला
रहे होंगे। लेकिन अस्तित्व की ओर आने मर रहा है तो आप रोने लग जाते हो, जीत
नहीं देते हमारी लोभ कषाय और वह कषाय रहा है खुश होने लग जाते हो, प्रेम कर रहा
कहीं बाहर नहीं होती। बाहर तो उसका एक है तो आप भी प्रेम के भाव में आ जाते हो।
कहना चाहिए projection होता है । जैसे ऐसा लगता है जैसे सब कुछ सामने हमारी
कि हम कभी theatre में फिल्म देखते हैं जिं दगी में ही हो रहा हो। ठीक इसी तरह से
तो reel तो पीछे चल रही होती है , उसका लोभ हमारे भीतर पैदा होता है , उस लोभ के
projection हमें सामने पर्दे पर दिखाई देता कारण से बाहर जो चीजें हैं उनमें वह लोभ
है । असली फिल्म तो अन्दर पीछे चल रही का projection होता है ।

जिन्दगी एक Project बनकर रह गई


वह लोभ क्या करता है ? हमें बाहर की plan बना कर के चलते हैं जिसे हम अपना
चीजों में यह अच्छा है , इसको पकड़, इसको dream project भी बोलते हैं । हर किसी
देख, इसको ले, इसको अपने कब्जे में को सिखाया जाता है कि अपनी जिं दगी में
कर, इस तरह की desires वह लोभ पैदा अपना एक dream project बनाओ।
करता है । उसी के कारण से हम दौड़ते रहते क्या इसलिए बनाएँ क्योंकि तुम उसी का
हैं । अब हमने यह पकड़ लिया, अब हमने project बना कर के उसी की दौड़ में पूरी
यह ले लिया, अब इसके बाद में हमें यह जिं दगी निकाल दोगे। बस! ठीक है जिं दगी
करना है और वह हम एक लंबे समय का तुम्हारी स्वाहा हो गई, दूसरे को इससे

76 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

क्या लेना-देना है । इसीलिए तो सब कुछ उसके बाद में तो क्या? घुटनों में दर्द होने लग
हो रहा है । पहले पढ़ने का एक project जाएगा, कमर में दर्द होने लग जाएगा, रोगी
बनाया जाता है । भाई! तुझे क्या पढ़ना हो जाएगा, diabetes तो होनी ही है । बस!
है ? किस लाइन पर चलना है कि आपको फिर धीरे-धीरे 5-10 साल घसीटते-घसी-
क्या choose करना है ? commerce, टते निकाल लेगा तो पचास का हो गया।
science, arts, philosophy क्या अब पचास के बाद क्या बचा है ? अब तो
लेना है ? पहले यह सोचता रहा, सोचता रहा, हमने दुनिया देख ली, अब तो जो जिं दगी
इसमें उसने कम से कम बीस साल निकाल है वह अपने आप कटती रहे गी तो पाँच दस
दिये। फिर बीस साल के बाद जब उसने साल और कट जाएँगे। 60, 65, 70 वर्ष
अपनी बीस-बाईस साल में पढ़ाई भी कर बहुत हो गये तो निपट जाएगा, चला जाएगा,
ली तो उसके बाद में फिर वह सोचता है अब हो गयी जिं दगी की दौड़ होती जा रही है ।
इसकी job मिले। अब! job के लिए फिर ‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
वह अपने आपको दौड़ाता है । इस कंपनी दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
से उस कंपनी में, उस कंपनी से इस कंपनी अब आप देखो वह achieve क्या
में और इस तरह से दौड़ते-दौड़ते वह अपने करता है ?
लगभग चालीस साल पूरे कर लेता है । बस!

आदमी रोटी और लंगोटी के जुगाड़ में पूरा जीवन व्यतीत कर देता है


‘चार रोटी दो लंगोटी और दो गज कच्ची वह फिर परसों पहन लेंगे। इसके अलावा
जमीं, और क्या होता है ? एक साथ तो दो लंगोटी
तीन चीजें जिं दगी में जोड़ता है आदमी, पहन नहीं सकते हैं । एक सुखा कर डाल दी,
सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी, एक पहन ली फिर एक डाल दी, फिर एक
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’ पहन ली बस! इसी में जिं दगी निकल जाती है
और क्या जोड़ता है ? चार रोटी खाना है , और क्या होता है ? थोड़ा कभी change कर
दो लंगोटी का मतलब दो dress, एक आज लिया, आखिर है तो वह लंगोटी ही। समझने
पहन ली, एक आज की कल को सुखाने के के लिए रोटी ही है । अब उस रोटी की चाहे
लिए डाल दी, वह कल पहन लेंगे। जब वह बाटी बना लो, चाहे रोटी का बालूशाही ही
कल सूख जाएगी तो कल वाली आज पहन बना लो, चाहे उस रोटी का कुछ भी pizza
लेंगे, आज की कल फिर सुखा के डाल देंगे बना लो। है तो सब वह आटा ही, सब रोटी

धर्मं का मर्म 77
उत्तम शौच धर्म

ही है । चार रोटी और दो लंगोटी फिर अन्त में जाता है और उसी से बाँध दिया जाता है । वह
मर जाएगा। फिर उसको दो गज, तीन-चार भी लकड़ी है और कभी दोपहर में मतलब
गज कच्ची जमीन चाहिए, उसमें बस उसका बीच की जिं दगी में, जवानी में, थोड़ा सा
स्वाहा हो जाएगा। आदमी जिं दगी में ये 3 पलंग पर आराम कर लेता है । उस पर भी
चीजें कमाता है और क्या कमाता है , क्या अपनी जिं दगी निकाल देता है वह भी लकड़ी
कमाया उसने? की है बस! यह लकड़ी है ।
‘सुबह पलना, शाम अर्थी और खटिया ‘तीन तरह की लकड़ी जिं दगी में तोड़ता
दोपहर, है आदमी
तीन लकड़ी जिं दगी में तोड़ता है आदमी, और सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी, आदमी को मौत पर विश्वास है कुछ इस
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’ तरह,
क्या करता है ? सुबह जब जन्म हुआ तो कि मौत के हाथों ही सब कुछ छोड़ता है
पालना मिलता है वह भी लकड़ी का होता आदमी,
है । अन्त होगा फिर भी उसको लकड़ी की सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी’
ही बाँसों पर बिठा दिया जाता है , लिटा दिया दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’

लोभ कषाय के कारण ही जीवन में बुराईयाँ आती हैं


आप देखो! दुनिया में हर कोई क्या कर चीजों में लोभित होते रहे । multinational
रहा है ? अगर यह लोभ हमें दौड़ा रहा है तो companies में Job करने के लिए हमारे
उस लोभ से हमें बाहर की चीजों में ऐसा अन्दर एक बहुत बड़ी greed, एक लालच
लग रहा है कि हम engineer बन गए, हम पैदा होता रहा और हम अपने आपको भूलते
doctor बन गए, हम को job मिल गई। रहे क्योंकि लोभ कषाय में जब आत्मा दौड़
हमको इतना package वाला job मिल रही है तो आत्मा अपने सुख को कहाँ पा रही
गया, हम थोड़ी देर के लिए खुश हो लिए हैं है ? वह तो लोभ के कारण से सुख की इच्छा
लेकिन उस दौड़ में अपनी पूरी जिं दगी लगा करती है लेकिन उसे सुख मिलता नहीं है ।
डाली। उस जिं दगी में हमने कभी यह नहीं जब तक Job मिली तब तक शादी हो गई।
सोचा कि अगर यह लोभ कषाय के बिना हम शादी हो गई दो-चार दिन की खुशहाली रही
जीते तो हम कहाँ से कहाँ पहुँचते। यह लोभ फिर बर्बादी होनी शुरू हो गई। लेकिन लगता
कषाय है जिसके कारण से हम बाहर की तो ऐसा ही है कि बिना शादी के सुख मिलेगा

78 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

ही नहीं। पूछ लो इन लोगों से जिन्होंने शादी कर के अपने समय को अपनी ऊर्जा को उस


की, कितने सुखी हैं । कितने प्रेम से रह रहे दौड़ में दौड़ा कर के नष्ट कर रहा है । जैसे-
हैं , कितने एक दूसरे के हो कर के रह रहे कोई हिरण रेगिस्तान में दौड़ते-दौड़ते सुबह
हैं , कितने वादे करते हैं जब एक दूसरे के से शाम पूरी कर लेता है लेकिन मिलता कुछ
नहीं होते हैं और जब हो जाते है फिर उसके नहीं। थोड़ा-सा पानी अगर मिल भी जाता
बाद में न जाने वे वादे कहाँ चले जाते हैं । है तो वह भी इतना खारा होता है कि उससे
आज तक किसी ने अपने वादे पूरे नहीं किए, प्यास बुझती नहीं, प्यास बढ़ जाती है । एक
सब तरह के promise धरे रह जाते हैं , सब बहुत बड़ी विडम्बना है । इस जीवन में अगर
तरीके के संकल्प, हम ऐसा करेंगे, हम वैसा हम यह चीज सीख पाए कि हमें अपने लोभ
करेंगे, हम तुम्हारी मानेंगे, हम तुम्हारा यह कषाय को कम करना है और लोभ कषाय के
सब करेंगे बस! सब हो जाता है । उसके बाद कारण ही हम हर तरह की बुराइयों में पड़ते
जब हो गया दो महीने बाद भी होगा, सब चले जाते हैं तो आप अपने आप को समझ
ढे र हो जाता है । कुछ नहीं होता है । यह सब पाएँगे। आत्मा को समझना इसलिए कठिन
दौड़ में ही आदमी दौड़ रहा है । लोभित हो हो जाता है क्योंकि हमें समय ही नहीं देता है ।

बच्चों को लाड़ला नहीं लायक बनायें


लोभ कषाय है , यह आते। तुम्हारा standard बन चुका है । हम
माया कषाय है यह जन्म से ही पैदा हो कर के उसमें इतने घुल-
सबसे dangerous मिल चुके होते है कि हम उससे अपने आप
चीजें हैं । लोग समझते को detach करके यह कभी हम समझ ही
हैं - क्रोध करना बहुत नहीं सकते कि इसके बिना भी हम जी सकते
खतरनाक है । मैं कहता हैं । यह इतना घुल मिल चुका है हमारे अन्दर
हूँ क्रोध करना कुछ भी कि लोभ के बिना हमारा जीवन शुरू ही नहीं
नहीं है , मान करना भी कुछ नहीं है जितना होता। बच्चों से लेकर के बड़ों तक लोभ की
ज्यादा यह माया और लोभ कषाय खतरनाक quality सी चली जाती है । लोभ कहाँ
है क्योंकि यह आपकी समझ ही में नहीं छिपता है । माता-पिता बच्चों को लाड़ करते
आती हैं । क्रोध और मान तो आपको समझ हैं । क्या करते हैं ? लाड़ करते हैं । लड़का हो
में आता है कि मैंने मान किया, मैंने क्रोध तो लाड़ला है , लड़की हो तो लाड़ली है ।
किया, माया और लोभ तो समझ ही में नहीं कभी-कभी तो इतना लाड़ करते हैं , उसका

धर्मं का मर्म 79
उत्तम शौच धर्म

नाम ही लाडो रख देते हैं । लाडो! मेरी बेटी नहीं! कोई नहीं तो मेरा ही बेटा है । मगर आप
लाडो है , बहुत लड़ेती है । यह लाड़ भी कहाँ से देख रहे हो बेटा गलती भी कर रहा है । जिस
उत्पन्न हो रहा है ? लोभ से उत्पन हो रहा है । समय पर बेटा झूठ बोलना शुरू करता है
इस लोभ के कारण से हम बच्चे को लाड़ला आपको पता होता है , वह चोरी करना शुरू
तो बना लेते हैं लेकिन लायक नहीं बना पाते करता है आपको पता होता है । वह कोई भी
हैं । बच्चे को लाड़ला जो बना लेगा, वह कभी गंदी आदत शुरू करता है आपको पता होता
उसको लायक बना ही नहीं पाएगा। माता- है लेकिन लाड़ में आप यह नहीं सोचते हो।
पिताओं के लिए समझना है कि लाड़-लाड नहीं! अभी तो मेरा बेटा छोटा ही है अभी
में और प्यार में भी अन्तर होता है । अगर सुधर जाएगा। माँ उसके उस लाड़ के कारण
आप लाड़ करोगे तो बच्चा लाडला बन से उसको उसी समय नहीं समझा पाती है ।
जाएगा और प्यार करोगे तो लायक बनेगा। सबसे बड़ी गलती होती है , जब हम पहली
यह समझना है माता-पिता को और यह बार बच्चे को देखें कि गलत कर रहा है हम
समझने में बहुत देर हो जाती है । इसी कारण उसी समय पर अपने लाड़ को control
से जब पानी सिर के ऊपर हो जाता है तब करें, प्यार में आए। प्यार, बुराई को बुराई के
उन्हें समझ में आता है कि यह बच्चा अब तो रूप में, अच्छाई को अच्छाई के रूप में देखता
गलत रास्ते पर चला गया, अब तो मेरी बात है और लाड़ बुराई को भी अच्छाई के रूप में
ही नहीं मानता है । अब तो मैं कुछ कहती हूँ ही देखता है । कई माता-पिता इतने मोहित
तो उल्टा मुझे ही डाँटता है और आपको डाँट होते हैं अपने बच्चों से कि वह अपने बच्चों
सुननी पड़ती है । क्योंकि वह आपका लाड़ला की बुराइयों को भी बड़े लाड़ के कारण से
है। अतः guardians को मैं बता रहा हूँ उसको अपने सिर पर बिठा लेते हैं और
कि लाड़ में और प्यार में अन्तर समझो। उसको प्रोत्साहन देते हैं बेटा! तूने कुछ नहीं
लाड़ वह कहलाता है - जब बच्चा बिगड़ने किया, अच्छा ही किया। थोड़ा-सा उसको
लगेगा तो आप उसकी उस बुराई को भी रोकना चाहिए और अगर रोक दिया जाता है
लाड़ में ले लोगे, कोई नहीं बेटा! कोई नहीं! तो उस समय पर वह सुधर सकता है जब
कोई नहीं! अच्छी बात है कोई नहीं-कोई पहली बार गलती करता है ।

गलती को लाड़ के कारण से बढ़ावा न दें


जब उसकी गलती को लाड़ के कारण से जाता है । फिर वह लाड़ला नहीं कहलाता,
बढ़ावा मिलता है तो फिर वह बिगड़ता चला फिर वह बिगड़ैल कहलाता है । अब वह

80 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

बिगड़ने लगा और फिर भी आप उससे लाड़ अन्दर faults उत्पन हो जाते हैं और ताणन
किये जा रहे हैं । यही गलती होती है जब वह करने से गुण उत्पन होते हैं यह पुरानी नीति
बड़ा होकर के इतना जिद्दी हो जाता है कि है । इसलिए शिष्य को और पुत्र को ‘ताडयेत्
वह अपने ऐब को नहीं छोड़ना चाहता, अपनी न तु लाड़येत्’ लाड़ में हम लोभ में कुछ ज्यादा
बुराइयों को नहीं छोड़ना चाहता। अपने मा- ही बह जाते हैं इसलिए लोभ के कारण से
ता-पिता के ऊपर गुस्सा करने लग जाता हम उसकी बुराइयों को भी neglect कर
है , उन्हें गाली देने लग जाता है , घर से बाहर देते हैं और वहीं से बच्चा बिगड़ने लग जाता
निकलने लग जाता है । यहाँ तक कि घर से है । आज माता-पिता सबसे ज्यादा परेशान
बाहर जाने के लिए एक धौंस भी देने लग है । lockdown चल रहा है और बेटा कोई
जाता है , मैं चला जाऊँगा, भाग जाऊँगा, यह काम नहीं, कोई पढ़ाई नहीं, दिन-भर bed
कर लूँगा, वह कर लूँगा। यह किसके कारण पर पड़ा रहता है । mobile पकड़ा रहता
से होता है ? थोड़ा-सा जो बिगड़ैल हो रहे हैं है , टी.वी. के सामने बैठा रहता है । दिन भर
बच्चे भी सोचें, थोड़ा-सा उनको लाड़ ज्यादा mobile लेकर उल्टा पड़ा रहे गा। laptop
मिल रहा है इसलिए हम बिगड़ रहे हैं । मा- होगा तो laptop पर दिन भर पड़ा रहे गा।
ता-पिता का लाड़ बच्चों को बिगाड़ता है । कुछ नहीं उसको चाहिए, न खाने को, न
इसलिए नीति शास्त्रों में बहुत पहले लिखा पीने को, न कुछ घर का काम में कोई बात,
जा चुका है । हर किसी ने लिखा है - चाणक्य कोई बीच में अगर disturb करता है तो
की भी नीतियों में लिखा हुआ है , विदुर की ऐसा भिनक पड़ता है मानो अभी mobile
नीतियों में भी लिखा हुआ है , धर्म की नीतियों ही उसके मुँह में दे मारे। क्यों? इतना लाड़
में भी लिखा हुआ है । हमेशा यही कहा जाता कर रखा है । जब उसको आपने पहली बार
है कि कभी भी शिष्य को और पुत्र को लाड़ mobile दिया था तभी आपने गलती कर
नहीं करना चाहिए। उन्हें ताणन करना पड़े रखी थी और जब आपने उसको mobile
तो उनका ताणन करना चाहिए लेकिन लाड़ के function समझाए तब आपने दूसरी
उनसे ज्यादा नहीं करना चाहिए। गलती कर रखी है । जब उसको mobile
‘लाडनात् बहवो दोषा, ताडनात् बहवो में लोभ पैदा होने लग गया तो अब वह भी
गुणा, तस्मात् पुत्रं च शिष्यं च ताडयेत् न तु क्या करे? लोभ कषाय तो उसके अन्दर भी
लाड़येत्’ है , लोभ तो उसको भी छल रहा है । एक चीज
क्या समझ में आया? लाड़न करने से देखता है उसमें मन नहीं भरता, फिर दूसरा
बहुत दोष उत्पन्न होते हैं , बहुत सारे उसके सरकाता है तो दूसरा देखता है उसमें मन नहीं

धर्मं का मर्म 81
उत्तम शौच धर्म

भरता है उसमें तो हजारों चीजें पड़ी है । अब चीजें आपके अन्दर जा रही हैं । वह चीजें फिर
वह सोचता है कि हजारों कब देखूँगा और से एक तृष्णा और पैदा करती। नहीं! इससे
वह कैसे होगा? एक-एक में भी एक-एक भी अच्छा कुछ और होगा और नीचे देख!
दिन कम पड़ जाता है । एक-एक के अन्दर उसको भी click करता है फिर वह देखता
भी हजारों चीजें और हजारों अलग-अलग है । अरे नहीं! इसमें भी मजा नहीं आया और
clips, अलग-अलग हजारों दिख रहे हैं । इसके नीचे देख और इसके नीचे भी कुछ
बोलो तो ऐसा ही होता है कि नहीं होता अच्छा होगा।
है । अब यह सब इच्छाएँ कब पूरी हो कि मैं ‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
सब देख लूँ, सब सुन लूँ ,सब का आनंद दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
ले लूँ। इससे अच्छा time कहाँ मिलेगा? बस! मर भी जाए तो चिन्ता नहीं लेकिन
lockdown चल रहा है । हाँ! कोई class mobile नहीं छूटना चाहिए। हाँ! इतना
नहीं, कोई tution नहीं, कोई स्कू ल नहीं, mobile का लोभ पैदा हो चुका है । अब
कोई कॉलेज नहीं। दिन-भर खाओ, पिओ, कौन छु ड़ाए? माँ चिल्लाती है पिता नाराज
पड़े रहो, जिद्दी नहीं बनोगे तो क्या बनोगे। होते हैं । जब नहीं बनता है तो महाराज से
आपके ऊपर किसका effect आ रहा है ? आकर कहते हैं , महाराज! बच्चा जिद्दी हो
लोभ कषाय का mobile के through गया है । अब महाराज क्या करें? क्या उसको
आपकी आँखों पर projection हो रहा है mobile महाराज ने दिया था? जब वह
और फिर mobile के माध्यम से सिर्फ वह पहली बार mobile ले रहा था, जब खेल

82 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

रहा था तब तो तुम हँ स रही थी। देखो! मेरा और जब वह चलाने लग गया, अब वह


बेटा कितना होशियार है । देखो! mobile उसके अनुसार चलने लग गया, अब तुम
चलाने लग गया है तब तो तुम हँ स रही थी दुःखी होती हो।

हिन्दी भाषा हमें अपने अस्तित्व से जोड़ती है


हमें सोचना चाहिए, आज अगर भारत चीज नहीं है । बच्चों के लिए इतना लाड़ नहीं
के अन्दर शिक्षा नीतियों में परिवर्तन हो करना चाहिए कि आप उसकी गलती को
रहा है तो वह भी एक परिवर्तन धीरे-धीरे ढाँकते चले जाते है । पहले उसकी गलती पर
हमारे अन्दर परिवर्तन लाएगा। हमने शुरू हँ सते रहे और फिर जब पानी सिर से ऊपर
से english medium से पढ़ना शुरू कर हो जाये फिर आप कहें -अब मै क्या करूँ ?
दिया। आज ये नीतियाँ आ रही है कि हमें फिर रोएँ बैठ कर के, यह आपके लाड़ का
कम से कम पाँचवीं class तक बच्चों को परिणाम है । अब आप समझो, आप अपने
अपनी हिं दी medium से पढ़ाना चाहिए। आपको रोक पाते हैं कि नहीं? उसको लाड़
क्यों? क्योंकि उससे हम अपने अस्तित्व से करने से जब आप अपने को नहीं रोक पाते
जुड़े रहते हैं । इसी तरह से मैं कहता हूँ कि जब हैं तो वह mobile से अपने आपको कैसे
तक बच्चा 8वीं class तक न पहुँच जाए रोक पाए। उसके अन्दर भी लोभ कषाय है
उसको mobile दिखाना नहीं चाहिए। मान उसका दुष्परिणाम दिख रहा है और आपके
पाएँगे आपके माता-पिता, ये guardian अन्दर लोभ कषाय है उसका दुष्परिणाम
सुनने वाले? अगर आप ऐसा कर पाए तो दिख रहा है । सब ये किसके दुष्परिणाम दिख
ही आप बच्चे को जिद्द से बचा पाएँगे, कुछ रहे हैं ? सब लोभ कषाय के ही दुष्परिणाम
अच्छा करा पाएँगे और उसके लिए आप हैं । लोभ के कारण से आप बच्चे से लाड़
वास्तव में अगर प्यार करते हैं तो प्यार गुण ज्यादा कर गए और वह ही लोभ के कारण
और दोष दोनों को देखने वाला होता है । प्रेम से बच्चा mobile में घुस गया। सब कुछ
प्यार एक अच्छी चीज है लेकिन लाड़ अच्छी लोभ कषाय से ही चल रहा है ।

धर्म आयतनों में लोभ की प्रवृत्ति


आप देखें कि अगर लोभ के कारण से ही मंदिर आता है । लोभ
व्यक्ति धर्म भी कर रहा के कारण से ही की पूजा कर रहा है , लोभ
है तो उसमें भी उसका के कारण से व्यक्ति प्रवचन सुन रहा है , लोभ
लोभ घुसा रहता है । के कारण से ही व्यक्ति स्वाध्याय कर रहा है ।

धर्मं का मर्म 83
उत्तम शौच धर्म

उसमें भी लोभ पड़ा है उसका और अगर वह जाएँगे। पता पड़ा interview हो गया, इस
लोभ उन्हीं चीजों का हो जिन चीजों को पाने बार भी कोई Job नहीं लगी। अब क्या करें?
की हमारी इच्छा है और वह चीजें अगर हमें मंदिर में भगवान कुछ देता नहीं। मंदिर कुछ
कहीं नहीं मिल रही है तो हम कहाँ पहुँच जाते करते नहीं, मुझे मंदिर जाना ही नहीं, मंदिर से
हैं ? मंदिर में चलो भगवान के पास चलो। कोई मतलब नहीं। अब वह मंदिर से इतना
क्या मिलेगा? Job लग नहीं रही है इतना द्वेष करेगा, इतनी hate करेगा कि अब
पढ़ने के बाद इतनी अच्छी percentage मंदिर के नाम से उसको चिढ़ आयेगी। उसे
आने के बाद भी जब भी कहीं interview यह नहीं मालूम कि हमें चिढ़ किस कारण से
देने जाते हैं तो फेल हो जाती हूँ। पता नहीं आ रही हैं ? अपने लोभ कषाय से आ रही है
क्यों दो नंबर से रह जाती हूँ। समझ आया यह कभी महसूस नहीं करेगा। हमारे लोभ
क्या करना चाहिए? थोड़ा-सा भगवान से की पूर्ति नहीं हुई इसमें हमारा दोष है कि
मिन्नत तो करनी पड़ेगी। अभी तक तो हमने मंदिर का दोष है कि भगवान का दोष है , उसे
भगवान को पूछा ही नहीं, अब जरूरत तो कुछ नहीं मालूम। उसने अपनी इच्छा इतनी
पड़ रही है भगवान की तो अब क्या होता बना रखी है कि उसकी इच्छा की पूर्ति नहीं
है ? अब हमें भगवान दिखता है । अब अगर हुई तो अब उसको मंदिर से घृणा हो गई।
मंदिर देखते हैं तो हम भी लोभ कषाय के क्या मंदिर का भगवान तुम्हारी job लगाने
कारण से फिर मंदिर पहुँचते हैं । कहीं मंदिर के लिए बैठा है ? किसी भी मंदिर का देवता,
में कोई ऐसी friend मिल गई जिसने कहा किसी भी मंदिर का भगवान तुम्हारी जिं दगी
आप मंदिर आज क्यों आए? हाँ! वह आज के लिए बस इसी तैयारी में बैठा है कि तुम
मेरा मन हो गया था तुमको देखते-देखते तो मेरे पास आओ और फिर वापस जब तुम
मैं भी आज आ गई तो तुम कब से आती हो घर जाओ तो तुम्हारे घर में सब कुछ अपने
मंदिर? मैं तो हमेशा आती हूँ। तुम क्या करती आप decorated मिले। यह सोच कर
हो? मेरी तो उस I.T. company में Job रखा है आपने, भगवान का यही काम है ।
लगी। अच्छा! इसी कारण से तुम्हारी Job जो इस तरीके से सोचते हैं कि यह भगवान
लगी हुई है । ठीक है ! मेरी भी लग जाएगी, का काम है , वह भी भगवान को छल रहे हैं
सुबह रोजाना मंदिर आने लग जाता है , मंदिर और भगवान भी उनको छल रहा है । वह भी
आने लग जाती है । अब धीरे-धीरे जब उसे भगवान के लोभ में पड़े हैं । धर्म के लोभ में
लगता है अगले साल जब हम फिर से हम भगवान के कारण से अपनी इच्छाओ की
interview देने जाएँगे तो फिर पास हो पूर्ति किये जा रहा है आदमी। संसार की

84 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

इच्छाएँ है - बेटा नहीं हो रहा, बेटी-बेटी हो मेरी चाची की बहू की बुआ की लड़की थी
रही है । बेटा कैसे हो जाए? उस मंदिर में जा न, उसको भी ऐसे ही हो गया था तो वैसे
कर के यह प्रसाद चढ़ाकर आना, उस मंदिर ही कर लिया था। उसको भी हो गया था तू
में जा कर के उस पंडित को यह दे कर के भी ऐसे ही कर लेना। बस! धर्म इससे चल
आना, वहाँ जा कर के यह हवन करना, यह रहा है । यह धर्म के अन्दर लोभ, धर्मायतनों
वाला विधान करना, यह वाली धारा करना। में लोभ इस तरीके से हमारे द्वारा पड़ा हुआ
हो जाएगा तेरा काम। हाँ! उसका भी हुआ है इसलिए हमने धर्म को भी एक तरह से
था। वह मेरी पड़ोसन एक बार बता रही थी समझा नहीं।

इच्छाओं की पूर्ति के लिए नहीं, शान्ति के लिए जाते है मंदिर


लोभ के कारण से न हमने धर्म समझा, धर्म मतलब कोई दूसरे लोक की चीज है ।
न लोभ के कारण से हमने न अपनी आत्मा जैसे कि हमें कहीं किसी दूसरी यात्रा पर ले
को समझा, न लोभ के कारण से न हमने जा रहे हो। कर ले! बाद में कर लेंगे अभी तो
वस्तु की स्थिति को समझा। न बाजार को तुम कर लो। उन्हें पता है धर्म क्या है ? अब
समझा, न अपनी माया को समझा, हमने यह कहें गे कि मंदिर जाओ तो धर्म है । मम्मी
कुछ नहीं समझा सिर्फ लोभ में लोभित होते तो जाती है ये क्या कर लेती हैं ? मंदिर जा
रहे । समझने का time ही कहाँ मिला। हमारे कर क्या हो रहा है ? बीमार तो पड़ी रहती है ।
पास आगे-आगे के poject इतने बड़े-बड़े हैं पापा का business था वह भी down हो
कि हमारे पास time ही नहीं है । किसी भी गया। मंदिर तो जाते हो रोजाना, अभिषेक
बच्चे से कहो कुछ भी, उसे यह लगता है कि कर रहे है रोजाना तो पूजा कर रहा है । हो

धर्मं का मर्म 85
उत्तम शौच धर्म

क्या रहा है ? तुम ही कर लो हमें कुछ नहीं की शांति के लिए मंदिर जाया जाता है । जो
करना। हमने हर चीज को अपने लोभ से desires हमारे अन्दर उत्पन्न हो रही हैं वे
जोड़ रखा है , अपनी इच्छाओं से जोड़ रखा fulfill हो जाए, इस प्रकार की भावना
है इसलिए हमें मंदिर से द्वेष है , इसलिए हमें से मंदिर नहीं जाया जाता। जो desires
धर्म से द्वेष है । जबकि मंदिर और मंदिर का हैं हम उनसे भी बिलकुल रहित हो जाए इस
भगवान उसको आपकी इच्छाओं से कोई तरह की भावना से मंदिर जाया जाता है
लेना-देना नहीं है । इच्छाओं की पूर्ति करने ताकि हमारी अंतरं ग शांति हमें महसूस हो।
के लिए मंदिर नहीं जाया जाता है , इच्छाओं

धर्म की गलत व्याख्या का दुष्प्रभाव


जब भगवान के अन्दर देना नहीं। जो भगवान होगा तो क्यों आपकी
ही कोई इच्छा नहीं है इच्छा की पूर्ति करने बैठे गा और अगर उसे
तो भगवान तुम्हारी क्या आपकी इच्छा की पूर्ति करनी है तो किसी
इच्छा पूरी करेगा। दूसरे की इच्छा को दबाना भी पड़ेगा। मान
समझ में आ रहा है ? लो आपका जहाँ पर selection होना है
जो भगवान इच्छा पूर्ति और उस selection में जो vacancy है
करने में लगा हुआ है , उसमें केवल पाँच लोगों को choose करना
कुछ तो जैन लोग ऐसे बावले है कि उन्हें यह है । नंबर लगे पाँच हजार लोगों के और पाँच
लगता है कि मेरा भगवान हमारी इच्छा की हजार सारे के सारे भगवान से प्रार्थना कर रहे
पूर्ति नहीं करता है । दूसरा भगवान हमारी हैं । क्या होगा बताओ? क्या भगवान आपमें
इच्छा की पूर्ति करता है तो वे दूसरे देवी-देव- इतना लोभित हो जाएगा, इतना आप से
ताओं के मंदिरो में जा-जा कर के सिर पटकते मोहित हो जाएगा, आपकी प्रार्थना में इतना
रहते हैं । अपने मंदिर क्यों नहीं आते हैं ? ज्यादा आपसे लाड़ करने लग जाएगा कि
क्योंकि उन्हें पता है यह भगवान अपनी आपको तो आगे कर देगा और पाँच हजार
इच्छाओं की पूर्ति तो करता नहीं तो कौन को पीछे कर देगा। यह काम है भगवान का
करता है ? वह करता है तो यह भी एक लोभ क्या? यह भी आपने एक लोभ पैदा कर रखा
है उस मृग मरीचिका की तरह। कोई भी है , भगवान हमें देता है । यह भी एक माया है ।
भगवान कभी किसी की इच्छा की पूर्ति नहीं इस माया को जब तक आप नहीं छोड़ेंगे तब
करता। किसी भगवान को किसी से लेना- तक आपको सही ढं ग से धर्म, भगवान,

86 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

आत्मा कुछ समझ नहीं आएगा। आज के भगवान की शक्ल नहीं देखेगा। समझ आ
बच्चे क्यों घृणा करते हैं धर्म से क्योंकि उन्हें रहा है कि किस कारण से हो रहा है ? भगवान
धर्म को जानने की कोई भी जिज्ञासा नहीं ने कर दिया। भगवान किस-किस के पापा
और धर्म की अगर कभी भी उन्हें व्याख्या को बचाएगा, किस-किस के पापा को
मिलती है तो गलत ढं ग से मिलती है । धर्म मारेगा तो यही भगवान करने बैठा है तो आज
हमारी इच्छाओं की पूर्ति के लिए होता है , यह तक भगवान ने कभी किसी को बचा कर
उनके जहन में पड़ा है । पूर्ति हो गई तो खुश रखा ही नहीं। यह कोई भगवान के काम है
हो गए और नहीं हुई तो उसी दिन से भगवान क्या? यह भी हमने अपनी माया को फै ला
के ही दुश्मन बन जाते हैं । नहीं जाना, नहीं रखा है । हम कहते हैं संसार माया है , ईश्वर
करना, मैं तो इतना भगवान के पास जाता की माया है । मैं कहता हूँ आपके अन्दर ईश्वर
था, फिर भी मेरे पिताजी का accident हो ही माया के रूप में बैठा हुआ है । ईश्वर का
गया, पापा की death हो गई क्या कर स्वरूप ही आपने बिलकुल माया के साथ में
लिया भगवान ने? कितना द्वेष उसके अन्दर जान रखा है और आप हर चीज को उस
भगवान से आ जाएगा कि जिं दगी भर माया के कारण से लोभ के साथ देखते हो।

खुद को समझने का अवसर खोजें


भगवान में भी लोभ करना। अगर इतना ही आज का बच्चा समझ
देखते हो और भगवान जाएगा, बड़े समझ जाएँगे तो धर्म को सही
में भी लोभ की पूर्ति ढं ग से समझने लग जाएँगे। क्या सीखा आप
करने की आकांक्षा लोगों ने? हमें लोभ के कारण से ही सारा का
करते हो लेकिन लोभ सारा संसार अच्छा लगता है । संसार में
की पूर्ति धर्म से नहीं इतनी अच्छाईयाँ नहीं है लेकिन हमारा लोभ
होती। धर्म से तो हमें उस संसार में हमें दौड़ाता है और हमें अपने
हमारे लोभ की शांति करने का भाव आना से कभी भी मिलने नहीं देता, समझने नहीं
चाहिए। अगर लोभ हमारे अन्दर आ ही रहा देता। उस लोभ की इच्छाओं के कारण ही
है तो हमें सोचना चाहिए हम इसको शांत हम अपना पूरा जीवन उसमें बर्बाद कर देते हैं
करें। इच्छाएँ तो हमें संसार की है , यह तो हम लेकिन हमें कभी भी यह समझने के लिए
अपने-अपने पुरूषार्थ से खुद पूरी कर लेंगे। अवसर ही नहीं मिल पाता कि हम क्या हैं ?
धर्म से हमें संसार की इच्छाएँ पूरी नहीं जब यह कषाय कम होगी तब आप कुछ

धर्मं का मर्म 87
उत्तम शौच धर्म

अपने आप को समझ पाएँगे, संसार को करुणा आ गई। स्त्री के मन में सहज करुणा
समझ पाएँगे, भगवान को समझ पाएँगे, धर्म आ ही जाती हैं । देखो प्रियतम! थोड़ा-सा
को समझ पाएँगे। अभी तो यह एक तैयारी देखो ये, देखो ये कुत्ता कितना परेशान हो रहा
है । किसकी? अभी हुआ कुछ नहीं है । चार है । नाली में पड़ा है , गोत में पड़ा है । इसको
दिनों में केवल हमने एक भूमि तैयार की है हम बाहर निकाल ले, हम भी इसको अपने
और इसलिए तैयार की है , अगर यह तैयारी साथ नहला धुला कर के ले चले और इसको
हो गई तो आगे कुछ होगा। अगर ये चार अपने स्वर्ग में ले चले और इसको हम स्वर्ग
दिनों में वह भूमि तैयार नहीं हुई तो आगे कुछ में अच्छे -अच्छे वातावरण देंगे। क्यों बेचारे
होने वाला नहीं। अब आगे के दिनों में जो को दुःखी करना। हम इतना करने के लिए
कुछ आने वाला है वह तभी संभव है जब तो capable हैं , हम इतना तो कर सकते हैं ।
हमारी क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषाएँ वह देव कहता है कि तुम्हारी बात तो सही है
हमको न छले। हम इनको अपने control लेकिन तुम भी इस पर मोहित हो रही हो।
में रखें। हमारा इनके ऊपर control हो, अगर देखा जाये तो यह अपने आपको उसी
इनका हमारे ऊपर control न हो। अगर में अच्छा समझ रहा है । उसे उससे अच्छी
हम इतना कर पाए तो आगे के धर्मों में छ: चीज कुछ नहीं दिख रही है । लेकिन तुम्हें
धर्म हमारे लिए कुछ काम के होंगे अन्यथा ऐसा लग रहा है कि हम इसको यहाँ से उठा
कुछ काम के नहीं होंगे। मिट्टी के लिए अगर कर के कुछ अच्छी जगह पर ले चले। नहीं-
यह लोभ है कि मैं जहाँ पड़ी हूँ वहीं पर अच्छी नहीं! ऐसा नहीं होता, कितना परेशान हो
हूँ तो उस मिट्टी को कभी अब कलशा नहीं रहा है बार-बार निकलने की इच्छा कर रहा
बनाया जा सकता है । वह एक ऐसी चीज है , उसी में गिर पड़ता है एक बार उसको
होगी कि जैसे मान लो एक छोटी-सी बात निकालो तो, उसको देखो तो, क्या चाहता है ,
बता कर अपनी बात पूरी कर रहा हूँ कि एक क्या करता है ? देवी के कहने से देव और देवी
बार क्या हुआ कि एक नाली में एक कुत्ता दोनों उस कुत्ते के पास चले गए। क्या हुआ?
पड़ा था और कुत्ते को नाली में आनंद तो उन्होंने कुत्ते से कहा स्वर्ग में ले चलते हैं
आता ही है । लेकिन वह उस समय पर जब तुमको, वहाँ पर बहुत सुख मिलेगा, अमृत
नाली में पड़ा था, गोत के बीच में पड़ा था पिलाएँगे, बिलकुल ऐसे बढ़िया-बढ़िया
और वह उसमें से बाहर निकलने की भी green garden मिलेंगे। इतनी sweet
कोशिश कर रहा था। निकल भी नहीं पाता grass मिलेगी तुमको और इतनी अच्छे -
था फिर उसी में गिर पड़ता था तो कोई ऊपर अच्छे tasty-tasty food मिलेंगे तुमको
से एक देव और एक देवी घूमते हुए जा रहे कि तुम्हें यहाँ तो कभी सोचने को ही नहीं
थे। देवी के मन में उस कुत्ते को देख कर के मिल सकते। कुत्ता बड़ा खुश हुआ, बड़ा प्र-

88 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म

सन्न हुआ कि आप हमें स्वर्ग ले चलेंगे। इतना दिलाना चाहता है , वहाँ पापा मिलेंगे, मम्मी
अच्छा, चलो! हम चलते हैं तो वह तैयार हो मिलेगी, वहाँ घर के वातावरण मिलेंगे, बेटा
गया। जैसे ही उसमें से निकलने के लिए मिलेगा, खाने-पीने को मिलेगा, आपको
तैयार हुआ तो कुत्ते ने कहा- थोड़ा रुको! उससे ज्यादा कुछ आता ही नहीं। इसी में
रुको रुको रुको ssssss.. क्या हो गया? हमने सुख मान कर अपने आपको इतना
यह बताओ कि वहाँ पर जो आपने बताया लोभित कर रखा है कि हमें उसके अलावा
वह तो सब ठीक है , बहुत अच्छा है , बहुत कुछ भी दिखता ही नहीं। कोई हमें अच्छा
अच्छा है , बहुत अच्छा है सब मिलेगा। ऐसी chance भी मिले, अच्छी जगह पर ले जाने
यह गोत मिलेगी कि नहीं, यह नाली मिलेगी के लिए हमारा promotion भी कराना
कि नहीं! यह तो बताओ? देव कहते हैं कि चाहे लेकिन फिर भी अपने लोभ के कारण
नहीं-नहीं! वहाँ नाली की गंदगी का क्या से हम वहाँ से निकलने की इच्छा करते नहीं।
काम है । अरे! नहीं, नहीं रहने दो। हमें कहीं because we are also just like a--
नहीं जाना तो हम इसी में ठीक हैं । फिर तो ----- बोलो-बोलो! नहीं बोलोगे, ऐसा है
तुम ही जाओ, तुम ही जाओ। क्या हो गया? कि नहीं। बस! यही हो रहा है । समझ आ
यही हो रहा है ! कोई आपको किसी यात्रा पर रहा है ?
ले जाना चाहता है , कोई आपको कोई सुख

सत्य को समझने के लिए लोभ को कम करें


आज का दिन भी निकल जाएगा, लोभ practice करना है , वह आपको task
धर्म भी हम से विदा ले लेगा, गुरू भी हमारे दिया जाएगा और फिर आपको समझना है
सामने से चले जाएँगे लेकिन हम जहाँ थे कि अगर यह लोभ आपने कुछ समझा है ,
वहीं रहें गे। ठीक है न। क्यों रहें गे? क्योंकि control किया है तो कल से आपकी एक
हमारा लोभ इतना ज्यादा हमको छलता है नई यात्रा शुरू होगी। आगे की यात्रा बड़ी
कि हम उससे ऊपर उठने की कोई कोशिश practical है और बड़ी आनंद देने वाली है ।
कभी करते ही नहीं हैं । अगर हम समझ पाये लेकिन जब तक यह लोभ नहीं छूटे गा, यह
और ऐसा कुछ कर पाए तो जिं दगी में हमें चार कषाय नहीं छूटें गी तब तक उस यात्रा
कुछ सीखने को मिलेगा। आगे क्या सत्य का कोई आनंद नहीं मिलेगा। आज के लिए
है , वह सत्य भी हमें तभी समझ में आएगा इतना पर्याप्त है । महावीर भगवान की जय।
जब हमारे लोभ कषाय कुछ कम हो जाएगी।
आज आपको लोभ कषाय को समझना
है हर क्षण लोभ कषाय को समझने की

धर्मं का मर्म 89
Day 04 - उत्तम शौच धर्म
आज का चिंतन - अपने लोभ भाव को पहचाने
आज धर्म को छोड़कर उस पर focus करें और note
समझने का चौथा दिन करें कि मेरा मन कितनी चीजों का लोभ
उत्तम शौच धर्म का है कर रहा है ?
जिससे हृदय पवित्र 5. जब बाजार से घर लौट कर आए तो
होता है । आज हमें देखें क्या हम उस चीजों की तीन
अपने लोभ को देखने categories बना सकते हैं -
के लिए दिन भर यह
first category- मेरी ऐसी आव-
चिं तन करना है —
श्यक चीजें कौन-कौन सी हैं जिसके बिना
1. ऐसी कौन सी चीज है जो हमारे पास मेरा काम नहीं चलेगा?
नहीं है लेकिन वह हमें लुभाती है ? second category- मेरी अति
2. ऐसी कौन सी चीज है जिसका लोभ आवश्यक चीजें कौन-कौन सी हैं , जिसके
हमारे अंदर रहता है और हम उन्हें पाना बिना मेरा काम बिल्कुल ही नहीं चलेगा?
चाहते हैं ? third category- कौन-कौन सी
3. आज बाजार में घूमते हुए window चीजें ऐसी हैं जो मेरे लिए अनावश्यक हैं ?
shopping करें और count करें कि इन तीन categories में अपने लोभ
कितनी चीजें हमें लुभाती हैं ? को देख कर उसकी list बनाएँ।
4. अब अपने मन को बिल्कुल स्वच्छं द

S.no. आवश्यक अति आवश्यक अनावश्यक

90 धर्मं का मर्म
Realize आवश्यक हैं , कितनी अति आवश्यक और
Listing करके आपके भीतर जो राग कितनी अनावश्यक
का प्रवाह है उसकी intensity realize आपको list ईमानदारी से बनानी है ।
होने लगेगी कि हमारे लिए कितनी चीजें

आज का एहसास
1. आज दिन भर से आप अनावश्यक चीजों की need और
आप ने महसूस किया greed से बच जाएँगे और आपके अंदर
कि जो-जो चीजें जीने satisfaction आएगी।
के लिए आवश्यक हैं , 6. जब आप need और greed के
वे सब हमारे पास हैं । अंदर difference करना सीख जाएँगे तभी
2. अनावश्यक लोभ को control कर पाएँगे।
चीजों के burden से 7. आज आपको महसूस करना है
मन हल्का नहीं हो पाता। जो भी चीज मेरे पास रखी है , यह need
3. list देखकर जानने का प्रयास करें, नहीं मेरी greed है । मैं इसके बिना भी जी
जो अनावश्यक चीजें हैं उनको प्राप्त करने का सकता हूँ।
विचार किसी pressure में आ रहा है या 8. इस प्रकार चीज नजरों से दूर होने
सिर्फ देख कर आ रहा है । पर लोभ का भाव नियंत्रित होगा और आप
4. जो चीज अनावश्यक होगी थोड़ी देर sadness और grief के भाव में आने से
में उसको प्राप्त करने की भावना तीव्र नहीं बच जाएँगे।
रहे गी। ऐसे में आप उसे list में से cross 9. इतना कर लिया तो आपका शुचिता
कर सकते हैं । धर्म मन को पवित्र रखेगा।
5. इस प्रकार cross करते चले जाने

स्व-संवेदन

• क्या आप लोभ भाव को पहचान पाए? पाए? yes/ no/ little bit
yes/ no/ little bit • क्या आप need और greed के
• क्या आप आवश्यक, अति-आवश्यक difference को समझ पाए? yes/
और अनावश्यक चीजों की list बना no/ little bit

धर्मं का मर्म 91
Day-5: उत्तम सत्य धर्म
आओ सत्य को समझें
स्वधर्म शिविर का यह पाँचवा दिन। स्व- जाएगी। पहले हम लोगों ने सीख रखा है कि
धर्म को जानने के लिए, धर्म का मर्म समझने जो क्रोध है , मान है , माया है और लोभ है ये
के लिए तीर्थंकरों की वाणी से हमारे पास हमारी चार कषाय हैं और इन चारों कषायों
जो धर्म के दस आयाम बताए गए हैं , उनमें को यदि हम एक शब्द में कहना चाहे तो वह
आज सत्य के बारे में जानने की कोशिश की कहलाता है - मोह।

चारों कषाय मोह भाव से प्रेरित हैं


यह सब मोह की परि- अन्दर independency महसूस नहीं करते
णीतियाँ है , मोह के ही हैं तब तक हम दूसरी चीजों से बहुत जल्दी
भेद हैं , मोह के ही ये बाधित हो जाते हैं । दूसरे पदार्थों के कारण से
सब अलग-अलग हमारे अन्दर क्रोध आदि के आवेग बहुत
प्रारूप हैं । क्रोध भी जल्दी उत्पन्न होने लग जाते हैं और इन
मोह की पर्याय है , आवेगों के कारण से हमारे अन्दर जो
मान भी मोह से ही dependency बढ़ती चली जाती है वे धी-
उत्पन्न होता है , माया भी मोह के ही कारण रे-धीरे हमारी एक habit बन जाती है । फिर
से आती है और लोभ भी मोह से ही बढ़ता हम समझ ही नहीं पाते कि वास्तव में सच
है । इन चारों ही कषायों के पीछे जो हमारा क्या है ? सत्य क्या है ? सत्य को समझने के
मोह भाव रहता है , मोह ही वह चीज है लिए यही बताया जाता है कि पहले आप
जिसको कम करने पर ही हम कुछ उपदेश अपने आपको बाहरी चीजों पर जो depend
सुनने के योग्य हो पाते हैं । गुरु की वाणी, किये हुए हो उससे थोड़ा सा अपने आपको
सदोपदेश, अच्छे विचार हमारे अन्दर तभी control करो। हमारे अन्दर dependency
ठहर सकते हैं जब हम अपने अन्दर की इन जितनी ज्यादा बाहर की वस्तुओं से, बाहर के
कषायों पर थोड़ा सा control कर चुके हैं व्यक्तियों से होगी उतने ही ज्यादा हम अपने
या कर रहे हो। क्योंकि जब तक हम अपने स्व-अस्तित्व से दूर होंगे, उतने ही ज्यादा हम
sense में नहीं है , हम थोड़ा सा भी अपने पराश्रित होंगे। हम अपना जो स्वतन्त्र होने

92 धर्मं का मर्म
उत्तम सत्य धर्म

का, जो independent होने का जो हमारा चीजें जो बाहर दिखती है वह काफी कुछ


nature है उसको हम खो रहे होंगे। आप clear दिखती हैं । उसी का नाम है कि हम
महसूस करेंगे कि जब आप किसी भी बाहरी सत्य को समझ रहे हैं । we are
चीज से क्रोध नहीं करते तो आप भीतर से somewhere near about the
काफी कुछ अपने आपको independent truth. हम कुछ सत्य के नजदीक हो रहे हैं ।
महसूस करोगे। जब आप बाहर की किसी इसलिए सत्य के नजदीक होने के लिए हमें
भी परिस्थिति से अपने अन्दर किसी भी कुछ और नहीं करना है । जो हमारे
तरीके का ego नहीं लाते तो आप अपने emotions हैं इन्हीं पर हमें अपना focus
आप को बहुत कुछ independent महसूस करना है कि अगर हमने इन पर अपना
करोगे। आप सोचोगे यह सब तो होता रहता control नहीं किया तो हम सत्य को कभी
है । जब आप किसी भी तरीके की बाहर की नहीं समझ पाएँगे। इसलिए एक चीज कही
कोई भी मायाचारी की कोई भी काम हमारे जाती है
सामने दिख रहे हो फिर भी आप अपने अन्दर ‘सतगुरु देय जगाय,
कोई छल नहीं ला रहे हो तो इसका मतलब मोह नींद जब उपशमें।
है आप अपने आप को independent तब कछु बने उपाय,
बना चुके हो। फिर अगर आपको बाहर की कर्म चोर आवत रुके’
कोई भी चीज मोहित नहीं कर रही है , लुभा
नहीं रही है , it means आप कुछ न कुछ सत्य की पहचान
independent होने के मोड़ पर आ चुके एक बहुत अच्छी बात
हो। जब हम इस तरीके से थोड़ा सा अपने
कही है कि जब हमें
आपको independent करने लग जाते हैं
सदगुरू जगाता है ,
तो हमें चीजें काफी कुछ सही सी नजर आती
कोई भी तरह का
हैं । चीजों को देखने के लिए हमारे लिए कोई
आध्यात्मिक गुरु जब
अलग से हमें अपनी eye पर कुछ चश्मा
हमें जगाने की
नहीं लगाना पड़ेगा, कोई lens नहीं लगाना
पड़ेगा। हमारे विचारों में जो यह धुन्ध छाई है , कोशिश करता है तो
क्रोध की, मान की, माया की, लोभ की, यह वह तभी जगा पाता है जब आपके अन्दर की
जब धीरे-धीरे शान्त होती है , यह धुन्ध जब कोई भी मोह की जो नींद है वह थोड़ी सी
हमारे विचारों से हल्की पड़ती है तब हमारे खुल रही हो। मोह का मतलब ये चारों ही
अन्दर जो thought purification का चीजें हो गई- क्रोध, मान, माया, लोभ। इन
एक process होता है उससे फिर हमको चीजों का हम जब उपशम कर रहे हो मतलब

धर्मं का मर्म 93
उत्तम सत्य धर्म

हमने थोड़ा सा इन चीजों को दबा दिया हो देखें कि ये जो क्रोध, मान, माया, लोभ हैं ये
और यह दबाने का मतलब कोई दमन करना चार तो केवल हमारे भाव हैं , जिन्हें हम अपने
नहीं है । यह तो ऐसा समझना चाहिए जैसे emotions कह सकते हैं , अपने thought
आकाश में बादल छा जाते हैं , धूली कई बार process में भी इनको डाल सकते हैं । यह
उड़ती है आकाश में तो जब हवा चलती है या उपाय नहीं है । उपाय तो अब शुरू होने वाला
पानी बरसता है , तो वह धूली दब जाती है । है जिसे हम बोलते हैं - method. किसी भी
हमें अपने आप जो sunlight है अच्छे ढं ग चीज को achieve करने का कोई process
से मिलने लग जाती है । आप assume होता है । उसका कोई method होता है तो
करेंगे कि जैसे एक गिलास पानी है , उसमें वह अब यहाँ से शुरू होता है । सत्य से जानने
कुछ नीचे dust पड़ी हुई है और वह पानी के के बाद में वह method शुरू होगा। अभी
अन्दर बिल्कुल घुली मिली हुई है । आप तो हम क्या कर रहे हैं ? अपनी योग्यता
उसको थोड़ा सा stable करेंगे तो अपने बना रहे थे, मिट्टी योग्य बन रही थी। समर्थ
आप वह dust नीचे बैठ जाएगी। इसी का बन रही थी, अपने आपको मृदु बना रही
नाम है - उपशमन, दब जाना। जब वह चीज थी, उसको पीट करके, पीस करके चिकना
दबेगी, water में purity अपने आप किया जा रहा था लेकिन फिर भी वह
आपको दिखाई देगी। इसी तरीके से जब बीच-बीच में मान नहीं रही थी। भर-भरा
हमारे विचारों में यह क्रोध, मान, माया, लोभ जाती थी, उसमें कंकड़ भी छिपे हैं तो वह
की जो dust है , यह extra जो fuel है यह छिपा कर के रखती थी क्योंकि वह अपने
सब जब थोड़ा सा down होता है तब जा दोषों को बाहर नहीं निकालना चाहती,
कर के हमारी दृष्टि में एक सत्यता आने लग मायाचारी कर रही है । क्यों कर रही है ?
जाती है । सद्रु
गु का उपदेश तभी आपके लिए उसको लोभ दिख रहा है । मैं जहाँ हूँ, वहाँ
काम कर पाता है । ‘मोह नींद जब उपशमें’ अच्छी हूँ, मुझे इससे ज्यादा कुछ नहीं कर
उपशम होना चाहिए, शांति होनी चाहिए, पाऊँगी, मैं इससे ज्यादा ऊपर नहीं उठना
थोड़े से हमें अपने impatience पर एक मुझे, मुझे कुछ नहीं बनना। यह उसका
control होना चाहिए और जब ऐसा होने जो आस-पास के लोगों से, आसपास
लगेगा तो हम सत्य को समझ पाएँगे, गुरु की चीजों से जो मोह है उसके कारण से
का उपदेश तभी काम कर पाता है । ‘सत गुरु उसकी कोई भी उन्नति होने की अभी
देय जगाय, मोह नींद जब उपशमें। तब कछु सम्भावना नहीं दिख रही थी। अब वह
बने उपाय, उपाय तो तभी बनेगा। अब आप अपने कंकड़ पत्थरों को भी अलग कर पा

94 धर्मं का मर्म
उत्तम सत्य धर्म

रही है । अपने लोभ को भी संकुचित कर चाहिए, समझना चाहिए, उपाय यहीं से


पा रही है । अब वह समझ पा रही है कि शुरू होता है ।
हाँ! जो सत्य है उस सत्य को भी हमें देखना

प्रत्येक प्राणी का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है


आज जो हम सीखेंगे वह यहाँ से एक रहे हैं ? मान करना सत्य है कि अपने अन्दर
सत्य को जान कर के फिर हम उस सत्य कोमलता के भाव रखना सत्य है ।
को प्राप्ति के उपाय करना सीखेंगे और सत्य जीत किसकी होती है ?
प्राप्ति का जो उपाय होगा वह आगे के दिनों से जो मानी होते हैं , जिद्दी
समझाया जाएगा। लेकिन आज हमें पहले होते हैं , उनकी जीत
समझना है कि हमें कुछ चीजें कुछ सही- होती है कि जो अपने
सही समझ में आने लगी कि नहीं? सच soft nature से
क्या है ? हमने कई बार सुना है कि ‘सत्यमेव आगे बढ़ते हैं , उनकी
जयते’ सत्य की जीत होती है । सत्य क्या है ? जीत होती है । जो छल
क्रोध करना सत्य है कि क्षमा धारण करना कपट करते हैं वे success होते हैं या जो
सत्य है ? बताएँ? जीत कभी होगी तो क्रोधी honesty के साथ में behave करते हैं वे
की होगी कि क्षमावान की होगी। समझ success होते हैं । यह हमें पहले समझ

धर्मं का मर्म 95
उत्तम सत्य धर्म

लेना है जो बाहर के लोभ-लालच में पड़ कर there are two things in this
के तरह- तरह के fraud करते हैं , तरह- universe. पहली चीज है जो हम देखते हैं
तरह के corruption करते हैं , वह लोग living beings होते हैं जो हमारे सामने बैठे
success माने जाते हैं या जो अपनी जितनी हुए हैं । जिन्हें हम सुनते हैं , समझते हैं , जिनके
need है उनको fulfill कर के अपने आप में साथ हम अपने relation रखते हैं । ये सब
satisfied रहते हैं वह लोग अच्छे माने जाते क्या कहलाते हैं ? living beings. ये सब
हैं । हमें उनको ideal बनाना है या उनको अपने आप में independent अपनी-
ideal बनाना। पहले सोच लो! जब ये चारों अपनी अलग-अलग existence को रखने
चीजें हमारे लिए control में होने लगती है
वाले, यह सब अपनी इनकी अलग entity
तो फिर हमें काफी कुछ सच दिखने लग
है । जैसे हमारा अपना अलग अस्तित्व है ,
जाता है । अब सच क्या है ? जब हम अपने में
वैसे प्रत्येक प्राणी का अपना अलग-अलग
होंगे, थोड़ा सा independent होकर के
अस्तित्व है । अब हमें इस सच को पहले
सोचेंगे तो हमें लगेगा कि देखो! हमारे सामने
स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना है ।
दो तरह की चीजें हैं । कितनी तरह की? only

जीव और अजीव को जाने


दूसरी चीज हमारे सामने आती है - जिस अजीव। हम सच को यहाँ से जान कर के
चीज में कोई sense नहीं होता, आगे बढ़ें गे। जब हम इस तरह से हर चीज
knowledge नहीं होती, जिसे हम non- में देखें जीव और अजीव तब हम थोड़ा सा
living things कहते हैं । ये चीजें जैसे अपने process को आगे बढ़ाते हैं । जब भी
कपड़ा है , पुस्तक है , कोई भी चीज यह बाहर हम कोई चीज देखते हैं या किसी भी चीज
हमें दिखाई देने वाली, अजीव जिसको हम को हम प्राप्त करने की कोशिश करते हैं तो
बोलते हैं iron है , कुछ भी चीजें हैं , जिनमें क्या हम उसमें sense ला पाते हैं । यह चीज
कोई भी तरह की जीव है , यह चीज अजीव है । हमें यह भी
sensitivity नहीं है । ध्यान रखना पड़ेगा कि कोई भी अजीव वस्तु
वे चीजें हमारे सामने है , वह अजीव वस्तु जिसमें कोई भी तरह की
क्या हैं ? एक तरह से चेतना नहीं है , वह एक तरह से हमारे सामने
अजीव हैं । आई है तो वह किसी न किसी तरह की
दुनिया में केवल दो process से आई है । process में तरह-
ही चीजें हैं - जीव और तरह की चीजें उनके साथ में की गई हैं तब

96 धर्मं का मर्म
उत्तम सत्य धर्म

जा करके वे हमें बहुत ज्यादा attractive हैं , वह सब living beings है और जिनको


दिख रही हैं । समझ आ रहा है ? लेकिन हम हम इकट्ठा कर रहा है collect कर रहे हैं वह
देखें कि ultimately है तो वह non- सब हमारे लिए non-living things हैं ।
living things! इसके अलावा तो कुछ दो चीजें पहले clear कर लेते है । जब हम
नहीं। कोई भी चीज है मान लो कपड़ा भी यह देखने लग जाएँगे कि non-living को
है , पुस्तक भी है या किसी भी तरह का कोई हम non-living की तरह देखते हैं और जो
भी आपके मकान में लगने वाला tile है , living beings हैं उनको living beings
कुछ भी है । अगर वह चीज है उसको हमने की तरह देखते हैं तो हमारे अन्दर सच कुछ
किसी न किसी तरह के process से बहुत मायने में आएगा। क्यों आएगा? क्योंकि हम
ज्यादा attractive बनाया है लेकिन फिर importance किसको देंगे? हमारे लिए
भी वह non-living ही है । इसके अलावा importance किस चीज है ? living
तो कुछ नहीं है । अब हमें यह सोचना है कि being की कि non-living की! बोलो!
हमें अपना attraction या हमें अपने living thing की है । हमारे जो सम्बन्ध
अन्दर का मोह किससे जोड़ना है ? non- है यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हमने जो
living things से जोड़ना है कि हमें चीजें और चीजें हमने collect कर रखी वह
living things से जोड़ना है । एक तरफ हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं और उनमें भी हमारे
आपके सामने ये चीजें पड़ी हैं और एक तरफ संबंधों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यदि कोई
आपका परिवार है , पति है , पत्नी है , बेटे हैं , चीज है तो सबसे पहले तो मैं खुद हूँ। फिर
माँ है , पिता है , सब कुछ। समझ आ रहा है ? मेरे साथ में रहने वाले जो भी लोग हैं वे हैं
हम यह देखें ये जो चीजें हैं एक तरफ हमारे और फिर उनसे जुड़ी हुई चीजें हैं , वह हैं ।
सामने जिनसे हम अपने relation बनाते

आत्मनिर्भरता सत्य के नजदीक ले आती है


लेकिन हमें इन सब के अपने सामने रख पाते हैं कि नहीं। हम
बीच में भी अपने अन्दर किसको importance देते हैं ? हम किससे
एक जागृति रखनी परेशान होते हैं ? हम किससे खुश होते हैं ?
पड़ेगी कि हम इन सब आज आपको यह समझना है कि हम non-
चीजों के बीच में भी living things के साथ में ज्यादा खुश
इस सच को हमेशा होते हैं या living beings के साथ में

धर्मं का मर्म 97
ज्यादा खुश होते हैं । अगर मान लो कोई भी दोनों ने आपस में बहुत अच्छा, आपस में
चीजें हैं जो जिनमें कोई भी तरीके का जीवन एक तरीके का agreement किया था कि
तो नहीं है और वह चीजें नष्ट हो रही हैं , आप मुझे तुमसे प्रेम है , मुझे तुमसे प्रेम है । बात
परेशान होंगे या नहीं होंगे। एक तरफ कोई आगे चली कुछ दिनों बाद घर में एक बहुत
भी जो चीज है , मान लो हमारे relative के अच्छी गाड़ी आई। एक दिन पत्नी भी गाड़ी
रूप में हैं वह भी नष्ट हो रही है और एक तरफ चलाना जानती थी। पत्नी ने कहा आज मैं
हमारा कोई भी मकान है , धन है , कोई भी गाड़ी लेकर के जा रही हूँ। थोड़ा सा घूम कर
हमारे कपड़े हैं , हमारे gold की बनी हुई चीजें आती हूँ, गई और थोड़ी देर बाद घंटे भर बाद
हैं , वह भी हमसे छूट रही हैं और एक तरफ जब वह लौटी तो उसने पति से बड़े डरते हुए
हम से हमारे माता, पिता, पति, पत्नी, भाई, भाव से कहा कि बहुत नुकसान हो गया।
बहन ये छूट रहे हैं । अब इन दोनों में अगर हम क्या हो गया? वह जो गाड़ी थी, पूरी की पूरी
compare करें तो आपको किधर ज्यादा बर्बाद हो गई, accident हो गया। समझ में
दुःखी होना चाहिे ए। किस पर? living आ रहा है ? अब आप सोचो कि इस
beings पर और फिर हम यह भी देखें कि situation में आप होंगे तो क्या करेंगे।
अगर उन living beings को भी हम न अभी तो आप सुन रहे हैं , sense में है ,
बचा पा रहे हो, वह भी अगर हमारे सामने इसलिए आप हो सकता है सही जवाब दें।
धीरे-धीरे, देखते-देखते रोगी हो गया, नष्ट हो लेकिन जब practically यह आपके
गया, किसी भी तरीके से उसकी भी death सामने at random कुछ होगा तब उस
हो गई तो अब हम क्या सोचेंगे? अब हम समय पर आप क्या सोच रहे होंगे? क्या
क्या करेंगे? उसके बावजूद भी हमें कोई सच करेंगे? आपके सामने value किस चीज की
दिखाई देगा! क्या दिखाई देगा? हमें क्या होगी और आपका reaction क्या होगा?
दिख पाएगा कि नहीं! मरा कोई नहीं, गया यह depend करेगा कि आप सच को
कुछ नहीं, वह जीव जो था, जिस शरीर के कितने नजदीकी से प्रेम करते हैं । सच्चाई से
साथ में था वह शरीर केवल नष्ट हुआ है । अब हमें प्रेम करना सीखना है । समझ में आ
जीव तो जीव है वह हमेशा रहे गा, वह कहीं रहा है ? अगर हम सच्चाई से प्रेम करेंगे तो
नहीं मरता, वह कहीं नहीं जाएगा। उस सच हम अपने अन्दर के क्रोध, मान, माया, लोभ,
तक आप पहुँच पाओगे! अब आपको थोड़ा सब को देखो कैसे control कर पाएँगे।
सा समझना है ! एक पति और पत्नी बीच में गाड़ी बहुत महं गी थी, बहुत अरमानों से, बहुत
बहुत अच्छा प्रेम भाव है । जब विवाह हुआ था पैसा इकट्ठा करके बहुत दिनों के बाद में गाड़ी

98 धर्मं का मर्म
खरीदी थी और वह आठ दिन ही हुए थे, अभी गाड़ी नष्ट हो चुकी है । पत्नी सामने खड़ी है
नई-नई गाड़ी खरीदी थी, पत्नी ले गई उस और पति उसके सामने खड़ा हुआ है । अब
गाड़ी को एक घण्टे के अन्दर पूरी की पूरी आप सोचे कि दोनों के बीच में क्या होने
बर्बाद करके आ गई‌, अब उसमें कोई भी वाला है और क्या होगा? सच क्या है ? प्रेम
सुधार की भी कोई गुंजाइश नहीं है , पूरी किससे है ?

क्रोध, मान, माया, लोभ को control करने से patience आती है


reaction क्रोध, मान, माया, लोभ है । अगर आप इस situation में हैं तो
के through होना है अब हम कितना आपके लिए importance किस चीज को
अपने आपको manage कर पा रहे हैं ? दिया जा रहा है । अब आप सोचें! वह गाड़ी
control your anger, control बहुत महं गी है , पचास लाख की गाड़ी है ।
your greed समझ आ रहा है ? लेकिन उससे ज्यादा valuable क्या है ?
control your ego, सब कुछ जुड़ा जो आपकी पत्नी सामने खड़ी हैं वह या वह
हुआ है । इतनी A-one quality की गाड़ी गाड़ी। अगर आपका attraction non
थी। मोहल्ले के अन्दर, colony में किसी के living thing के ऊपर होगा, आपने सच
पास नहीं थी। यह हमारा ego था। एकदम को नहीं समझा होगा तो आप इतने आग
से आठ दिन के अन्दर ही वह बिल्कुल बबूला हो जाएँगे कि आपके सारे संबंध उस
ruined हो गई। मतलब यह हमारे अन्दर क्षण में नष्ट हो सकते हैं । सारा प्रेम क्षण भर
क्रोध का बहुत बड़ा कारण बन गया। इतनी में जा सकता है , सारे वायदे सब कुछ क्ष-
अच्छी गाड़ी थी कि अभी उसके function, ण‌भर में धूमिल हो सकता है , सब कुछ टू ट
उसके अन्दर जो कुछ भी system थे वे सकता है । पूरा आपका परिवार टू ट सकता
यहाँ तो क्या पूरी अगर देखा जाये state है । आपकी सारी अवधारणाएँ, जो आपने
में भी एक या दो गाड़ी ऐसी होंगी, इसके planning कर रखी थी वह सारी की सारी
अलावा किसी के पास वह गाड़ी नहीं थी। नष्ट हो सकती है । लेकिन अगर आप सच
इतना हमारे लिए उसके प्रति एक लोभ का को समझेंगे तो आप थोड़ी देर के लिए अपने
भाव भी था, मोह का भाव भी था। समझ आ आप को बिल्कुल conscious में feel
रहा है ? लेकिन वह सब नष्ट हो रहा है और करेंगे तो आप सोचेंगे जो चीज थी, गाड़ी थी
पत्नी सामने खड़ी है । अब आपको सोचना है वह एक non living thing थी। वह जैसी
कि क्या करना है ? यह तो एक example भी थी वह केवल बनी हुई चीज थी और वह

धर्मं का मर्म 99
उत्तम सत्य धर्म

एक अजीव वस्तु थी, आज भी वह अजीव नहीं बनते। कार हम दोबारा ला सकते हैं ,
ही है । कोई बात नहीं सच यही है कि अजीव सब कुछ हम दोबारा खरीद सकते हैं लेकिन
कोई भी पदार्थ है , वह मिटता है और कई बार बिगड़े हुए सम्बन्धों को, मिटे हुए सम्बन्धों
अपनी चीजों, अपने form को change को फिर हम दोबारा बना नहीं सकते। हमारे
करता है उसकी सच्चाई यही है जो मुझे लिए importance होनी चाहिए आदमी
मालूम है । लेकिन हमारे सामने हमारी पत्नी की भावनाओं की, हमारे लिए value होनी
खड़ी है इसकी सच्चाई देखो कि इसने कुछ चाहिए जिसके साथ हम behave कर रहे
छु पाया नहीं। इसने आकर के बताया लेकिन हैं । अगर हमारे लिए इस तरह का भाव रहे गा
डरते हुए बताया, अब हमें इसको सम्भाल- तो हम सच के बहुत निकट होंगे और यह
ना है और वह कैसे सम्भल सकती है ? क्या सच्चाई अगर सामने रहे गी तो आप कभी भी
बोलना पड़ेगा? कैसे झल्लाना पड़ेगा? क्या गलत निर्णय नहीं ले पाएँगे। यह तभी सम्भव
करना पड़ेगा? बताओ क्या बोलना पड़ेगा? है जब आपके अन्दर इतना patience हो।
क्या कहना पड़ेगा? पत्नी को भी satisfy वह patience कहाँ से आएगा? वह क्रोध,
करना है । वह जानना चाह रही है आपका मान, माया, लोभ को control करने से
reaction क्या हो रहा है ? आप क्या आएगा। अगर आप अपने इन emotions
कहोगे उसे? एक ही sentence पर्या- पर dependent नहीं हो तो वह patience
प्त होगा। मैंने प्रेम तुमसे किया था गाड़ी से आएगा और अगर आप इन पर depend हो
नहीं। क्या समझ आ रहा है ? अगर इतनी गए तो आपका सब कुछ हो जाएगा। यह
सी बात बोलने में आ गई तो समझ लेना चीज है जैसे-जैसे आप independent हो
कुछ नहीं बिगड़ा। चीजें बनती-बिगड़- रहे हैं आप बहुत कुछ truth के निकट आ
ती रहती हैं लेकिन जो हमारे सम्बन्ध हैं वह रहे हैं , सच्चाई के निकट आ रहे है , अब आप
अगर एक बार बिगड़ जाते हैं तो फिर दोबारा आगे चले।

जीव तत्त्व के अतिरिक्त कुछ भी शाश्वत नहीं है


मान लो आपको अपनी पत्नी से भी बहुत ढं ग से चला करती है , सबके अपने- अपने
प्रेम था, कुछ ही महीनों के बाद उसे ऐसा रोग तौर-तरीके होते हैं और जिन्दगी में किसी के
हो गया, ऐसा रोग हो गया कि डॉक्टर ने कह साथ कुछ भी घटित होता है । अब क्या हुआ?
दिया अब इसका बचना बहुत मुश्किल है । पत्नी के लिए जिसे आप सब चीजों से ज्यादा
देखो! कुछ भी हो सकता है । जिन्दगी अपने प्रेम करते थे। अब उसके लिए डॉक्टर कहता

100 धर्मं का मर्म


उत्तम सत्य धर्म

है कि अब इसकी आयु के बारे में कुछ नहीं मैंने देखा है कि जिसका जिससे विवाह हो
कहा जा सकता। कितने दिन यह जीवित रहे रहा है उस लड़के के माता-पिता ने बताया
कुछ नहीं कहा जा सकता। God bless नहीं कि इस बेटे को क्या परेशानी है और
you! उसने ऐसा कह कर के छोड़ दिया। विवाह के समय पर भी उसको एक तरीके
अब आप सोचे अपने ऊपर अब क्या होगा? से बुखार सा आ रहा है , वह रोगी हो रहा
कुछ ही दिनों बाद यह भी महसूस होने लगा है । फिर भी उसका विवाह करा दिया गया
कि अब इसकी मृत्यु निश्चित है और आखिर और विवाह के बाद सीधा दूसरे ही दिन पूजा
आठ दिन बाद उसकी मृत्यु हो ही गई। अब कर के hospital में भर्ती हो गया और आठ
क्या हुआ? अब हम किससे प्रेम करेंगे? अब दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। आपको सत्य
हम क्या करेंगे? क्या हम बिल्कुल उदास हो घटना बता रहा हूँ, कुछ नहीं हुआ और यह
कर के, depressed होकर के बिल्कुल पड़े सब हो गया। अब आप सोचिये क्या हो रहा
रह जाएँगे या हम अपना काम, उठकर के खुद है ? हम किसी के साथ में अगर कोई सम्ब-
अपनी हिम्मत से कुछ और भी सोच सकेंगे, न्ध बना रहे हैं तो हमारे लिए यह सच भी
कर सकेंगे, पहले से अपने आपको बिल्कुल ध्यान में रखना होगा कि इन सम्बन्धों की
prepare करो। अगर आपके सामने यह duration क्या है ? अगर हमारे सामने कोई
हो गया, अब आप सोचोगे कि मुझे प्रेम चीज चली जाती हैं , नष्ट हो जाती है , मृत्यु
करने के लिए कुछ नहीं बचा। अब आपको को प्राप्त हो जाती है तो उस समय पर हमारे
सच्चाई से जुड़ना है , सत्य को समझने की मन में क्या सत्य सामने आएगा। सत्य क्या
कोशिश करना है । सत्य यही है जो आया है ? उस समय पर जो दिख रहा है वह सब
है वह जाएगा। किसी से कोई भी सम्बन्ध कुछ नष्ट होगा और जो नहीं दिख रहा है , वह
है , कोई भी किसी भी तरीके के relation कभी भी नष्ट नहीं होता। वह permanent
हैं वे कुछ time के हैं , कुछ time के हैं । रहने वाला वह आत्म तत्त्व है । वह शाश्वत है ।
यह सत्य है इसको पहले स्वीकार कर लो। वह एक ऐसा तत्त्व है जो हमेशा रहने वाला
किसी के लिए वह time थोड़ा ज्यादा हो है । लेकिन हम सत्य को कहाँ देख पाते हैं ।
जाता है , किसी के लिए time जितना हम हमारी दृष्टि में एक बहुत बड़ा असत्य क्या
accept करते हैं उतना पूरा हो जाता है । रहता है कि हम जो नष्ट होने वाली चीजें हैं
किसी के लिए time से थोड़ा पहले भी हो उन्हीं को हम permanent समझ लेते
जाता है , time हम देख कर के नहीं आये हैं । हैं । यह हमारे साथ हमेशा रहे गा। आप देख
कितने ही ऐसे सम्बन्ध बनते हैं , यहाँ तक भी ले एक सत्य के ऊपर हम हमेशा पर्दा डाले

धर्मं का मर्म 101


उत्तम सत्य धर्म

रखते हैं चाहे वे चीजें दूसरे के साथ जुड़ी हों, जिनकी death हो रही है । जिन्होंने बड़े-बड़े
चाहे अपने साथ जुड़ी हो। जो भी चीजें हमारे business के अपने-आपके और दूसरों
सामने है , वह नष्ट होने वाली हैं और हर नष्ट के साथ में बड़े-बड़े कहना चाहिए करोड़ों
होने वाली चीज को हमने यह मान रखा है के agreement कर रखे थे। बन्दा चला
कि बिल्कुल eternal है । यह बिल्कुल जो गया, सारी की सारी जो planning थी वह
है हमारे लिए long life है , कोई भी इसमें धरी रह गई। दूसरे की भी रह गई, खुद की
कुछ होने वाला नहीं है , ऐसा मान कर के ही भी चली गई। हम सत्य को किस रूप में
हम बैठे हुए हैं । चाहे वह अपने बारे में हो चाहे नकारते हैं कि जो हमारे सामने है वह शाश्वत
दूसरे के बारे में हो। अपने बारे में भी हमने है हम ऐसा मान कर चलते हैं । हम कभी
यही मान रखा है जैसे हम जी रहे हैं तो कोई यह नहीं सोचते हैं कि ये सब चीजें जो हमारे
यह समझ सकता है कि मेरी मृत्यु दो महीने सामने हैं ये सब अशाश्वत है । शाश्वत नहीं है !
बाद या एक महीने बाद हो गई तो मैं क्या शाश्वत तो मेरा आत्मा है । सामने वाले जीव
करूँ गा। हमने क्या मान रखा है ? आज अगर के अन्दर भी जो उसका अपना उसका जो
हम पंद्रह साल के हैं , अठारह साल के हैं तो living being, जो आत्मा है वह शाश्वत है ,
हम सोच रहे हैं अभी हमारी job लगेगी, उसका शरीर शाश्वत नहीं है । इस सच्चाई
फिर हमारी marriage होगी, फिर हम एक को यदि हम समझेंगे तो हम इस संसार में
अच्छी सी अपनी नई family को बसाने के जी पाएँगे अन्यथा जीने की तैयारी करने से
लिए किसी जगह पर अच्छा एक flat लेंगे, पहले ही मरना पड़ जाएगा। depression
फिर उसमें रहें गे। फिर आगे की planning में चले जाएँगे और आज यही हो रहा है ।
करेंगे। हमने सब चीजें ऐसे अपने दिमाग में दुनिया में इतने ज्यादा लोग दुःखी हैं , इतने
set कर रखी हैं जैसे कि वह सब कुछ हमारी ज्यादा लोग depression के शिकार हो
इच्छा से ही बिल्कुल होने ही वाला है । हम रहे हैं , इतने ज्यादा लोग suicide कर रहे
देखते भी रहते हैं । कितने ही लोग हैं जो सब हैं कि उसके पीछे उन्हें यही कारण है कि
अपनी इच्छाएँ रखते भी थे लेकिन वह सब उन्हें सत्य से कभी भी परिचय नहीं कराया
बीच में ही चले जाते हैं , कितने सारे लोग हैं गया, सत्य को नहीं जाना।
जो आज इस कोरोना में इस तरह से बीच में

102 धर्मं का मर्म


उत्तम सत्य धर्म

सत्य की‌स्वीकारता ही आत्मबल पुष्ट करती है


सत्य क्या है ? मेरी समझना? कुछ नहीं गया, अभी जो हमारे
आत्मा शाश्वत है अगर पास बहुत है । ‘सत्यमेव जयते’ सत्य यही है
यह सत्य हमारे दिमाग कि जो जल रहा है , मिट गया है यही सत्य है ।
में रहे गा तो हम यह भी फिर जब हमारे सामने से कोई हमारा प्रिय,
समझ पाएँगे कि जितनी हमारा बेटा, बेटी, पति, पत्नी, कोई भी हमारे
भी आत्माएँ सामने बैठी सम्बन्धी जब निकल जाते हैं , उनकी मृत्यु हो
है , आत्माएँ शाश्वत हैं , जाती है तब भी हमें ध्यान रखना है कि सत्य
शरीर शाश्वत नहीं है । शरीर तो कभी भी मिट यही है , जो आया है वह जाएगा। यह
सकता है , कभी भी किसी को कुछ भी हो process चलता रहता है । कैसे चलता
सकता है , किसी का भी accident कहीं रहता है ? जैसे आपने देखा हो कि बीज से
पर, कुछ भी कभी भी हो सकता है । हम वृक्ष बनता है , वृक्ष से फल, वृक्ष में फल
अगर इस तरह की दृष्टि को अपने ध्यान में लगते हैं , वही फल टू टते हैं , नीचे गिरते हैं ,
रखेंगे तभी हमारे दिमाग में कोई सत्य आ उन्हीं के बीज फिर जो है एक नया वृक्ष का
पाएगा और उस सत्य से हम अपना मुकाबला रूप ले लेते हैं । इसी तरीके से बीज वृक्ष,
कर पाएँगे तभी हम यह कहने के अधिकारी बीज वृक्ष की tradition चलती रहती है ।
होंगे ‘सत्यमेव जयते’ कार की तरह कभी इसी तरीके से बीज जो हमारा है वह हमारा
कुछ भी पूरा का पूरा नष्ट हो जाए तो भी क्या आत्मा है । वृक्ष क्या है ? जो हम यहाँ लगा रहे

धर्मं का मर्म 103


उत्तम सत्य धर्म

हैं , शरीर मिला, उम्र मिली, सम्बन्धी बने, तो हम क्या बोलते हैं ? हम बीस साल के
हमने वृक्ष लग लिया, बन गया तो बन गया, हो गए, चालीस साल के हो गए। हमें जन्म
नहीं बन पाया तो कई बार समय से पहले भी दिख रहा है , यूँ नहीं कहने में आता है कि
मिट जाता है और लग भी गया तो भी वह हमने चालीस साल खो दिये, बीस साल खो
वृक्ष भी उस पर भी जो फल लगेंगे वे भी दिये। जो निकट चला गया उसकी मृत्यु हो
टू टेंगे, वे भी नष्ट होंगे। उस पर जो फूल लगेंगे गई और आज भी अगर हम किसी भी जगह
वह भी गिरेंगे, कोई भी फूल किसी वृक्ष पर पर अगर हम हैं तो वहाँ पर भी यह जन्म और
शाश्वत नहीं लगा रहता। कभी देखा है , गुलाब मृत्यु का क्रम तो चल ही रहा है । हम जन्म
का फूल हो,चाहे कमल का फूल हो, किसी की खुशी मना रहे हैं कि हम मृत्यु के लिए
भी डाली पर अगर गुलाब का फूल लगा है , आज सामने देखें, इस सच को अगर हम नहीं
तो रोजाना भी देखोगे तो क्या वह हमेशा वैसे समझ पाएँगे तो हम कभी भी अपनी सच्चाई
ही लगा हुआ दिखाई देता रहे गा। धीरे-धीरे से अपने आप को पहचान नहीं पाएँगे। हर
वह अपने आप वहीं के वहीं अपनी क्षमताएँ चीज हमेशा नई भी हो रही है और हर चीज
खोते-खोते, खोते-खोते एक दिन आपको हमेशा पुरानी भी हो रही है । उसी क्षण पर
बिलकुल नष्ट होता हुआ दिख जाएगा। अपने उसमें नई-नई पर्याय भी उत्पन्न हो रही हैं
आप वह डाली से टू ट पड़ेगा, अपने आप उसी और उसी क्षण पर उसमें पुरानी पर्याय नष्ट
मिट्टी में फिर मिल जाएगा और वहाँ से फिर भी हो रही है । हम जी भी रहे हैं और मर भी
जन्म मिलेगा। रहे हैं । समझ में आ रहा है ? इतना तो सब
फूल मिलते खाद में, समझ लिया। हम से कोई कहे गा आप क्या
फिर खाद में गुल खिल रहे हैं । कर रहे हैं तो आप बिल्कुल एकांगी दृष्टि-
जन्म मृत्य और मृत्यु जन्म में कोण से बोलना जी रहा हूँ, बड़े मजे में जी
घुल मिल रहे हैं ।l रहा हूँ। जी तो रहे हैं लेकिन मर भी रहे हैं ।
यह जीवन की सच्चाई है , सब कुछ क्यों मर रहे हैं ? एक दिन निकल गया, दो
घुल मिल रहा है लेकिन हमारा जो देखने दिन निकल गए, आठ दिन निकल गए, एक
का नजरिया है वह एकांगी है । हम अपनी महीना निकल गया, एक वर्ष निकल गया।
single like, single attitude से ही जो निकल गया वह मर गया, वह चला गया,
हम हर चीज को देख रहे हैं । जन्म-मृत्यु और वह नष्ट हो गया। अब उसके साथ हमारा
मृत्यु-जन्म में घुल मिल रहे हैं यह सच है । कुछ नहीं है । वह सिर्फ हमारी केवल यादों में
लेकिन हम हमेशा जन्म को देखते हैं मृत्यु रह गया, वह मिट चुका है , वह जो past है ।
को नहीं देखते। जब हमारा कोई भी तरह
का जन्मदिन आता है , birthday आता है

104 धर्मं का मर्म


उत्तम सत्य धर्म

जीवन-मृत्यु का सच स्वीकारने से हर परिस्थिति में प्रसन्न रह सकते हैं


हम जी भी रहे हैं और मर भी रहे हैं । हमेशा ही जीतती है । हारता तो यह शरीर है ,
जिस क्षण जी रहे उसी क्षण मर भी रहे हैं थकता तो यह शरीर है , मन है । आत्मा कब
लेकिन हम जीने को याद रखते हैं मरने हारी है ? अगर कभी यह शरीर मिट भी गया
को याद नहीं रखते हैं और यह भी ध्यान तो मिट गया, आत्मा ने दूसरा शरीर धारण
नहीं रखते कि मृत्यु के हम निकट जा रहे कर लिया, आत्मा कभी नहीं थकी। न जाने
हैं । क्या यह सच नहीं है ? सच है ! लेकिन कितने शरीर उसने धारण कर लिये। कितनी
फिर भी हम इस सच को स्वीकार नहीं करते, बार उसने अपने शरीर को, अपने विचारों को
नकारते हैं । क्यों? हमें डर लगता है सच change किया लेकिन आत्मा कभी थकी
कड़वा भी लगता है जब बोला जाता है । सुना नहीं। कभी हारती नहीं, वह सत्य है ‘सत्यमेव
है न आपने! सच कड़वा होता है । फिर आप जयते’। बाकी सब थकता है , सब हार जाता
कहते हो कि सच सुनने से डर लगता है । कई है , सब मिट जाता है , सब आपस में टू ट जाता
बच्चों को सच सुनने से डर लगता है तो यह है , सब कुछ बिखर जाता है । लेकिन एक
भी हमारे भीतर की कमजोरी है जो हमें सच जो eternal substance है वह है -
सुनने से डर लगता है और फिर हमें सच the soul- my own conscious.
बोलने से भी डर लगता है । जब हमारे लिए समझ रहे हैं ? यह चीज अगर हम ध्यान में
सच ज्ञान में ही नहीं है , जब हमने सच सुना रखेंगे तभी आज के जमाने में हम खुशी से
ही नहीं है तो हम सच बोल कैसे पाएँगे। सच जी पाएँगे, सच का मुकाबला कर पाएँगे,
तो वही बोल पाएगा जिसे सत्य की प्रतीति अपने आपको depression होने से बचा
हो रही हो, सत्य से डर नहीं लग रहा हो, वही पाएँगे, suicide करने से बचा पाएँगे और
व्यक्ति सत्य बोल सकता है और वही व्यक्ति हर हाल में खुश रहना सीख पाएँगे। इस
यह कहने का हकदार है ‘सत्यमेव जयते’। सच्चाई में जो लोग जीते हैं वही लोग वास्तव
सत्य की ही जीत होती है , सत्य तो कभी में अच्छे लोग, अमर लोग होते हैं बाकी कोई
हारता ही‌ नहीं। आत्मा कब हारी है , हमारी अमर नहीं होता है ।
आत्मा तो कभी हारी ही नहीं, आत्मा तो

Edison के जीवन की सत्य घटना


मैं आपको एक scientist की छोटी निक हुआ, edison सबने नाम सुना होगा।
सी बात बताता हूँ। एक बहुत अच्छा वैज्ञा- जब उसके सामने एक घटना घटी कि उसने

धर्मं का मर्म 105


उत्तम सत्य धर्म

अपनी जिं दगी में बहुत सारे experiment के, जैसे मान लो बिल्कुल उसे यह दिख रहा
किए और result कुछ नहीं आ रहा है । है कि असत्य जल रहा है , सत्य नहीं जल रहा
तीस साल हो गए, चालीस साल हो गए, है , वह बिलकुल खड़ा है । लोग उसके पास
experiment कर रहा है , तरह-तरह की, में आए, उसकी पत्नी उसके पास में आई,
सब तरीके से अपना science का उपयोग पूछती है कि इतना सारा नुकसान हो रहा
कर रहा है , knowledge का उपयोग है और आप बिल्कुल स्तब्ध खड़े हो तो वह
कर रहा है । उसकी एक बहुत बड़ी कुछ कहता है - अभी इस स्थिति में है कि इसको
ऐसी मतलब library या कहो कुछ ऐसी बचाने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो
factory type की उसकी कुछ बनी हुई सकता। आग इतनी लग चुकी है अब इसमें
थी जिसमें उसका बहुत कुछ जो material कुछ भी बचा नहीं है । जो मेरा कीमती था,
था जिसमें वह research करता था, वह जो मैंने जिन्दगी में कुछ भी अर्जित किया
सारा का सारा रखा हुआ था। एक दिन न था, वह सब जल चुका है , यह मैं मान रहा हूँ।
जाने कैसे, क्या हुआ, कोई भी chemical लेकिन फिर भी नहीं मान रहा हूँ कि अभी भी
reaction गलत हुआ, कुछ हुआ, उसमें कुछ नहीं हुआ है , अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा
आग लग गई। यह Edison के जीवन की है , यह भी मुझे बिल्कुल समझ में आ रहा है ।
सत्य घटना है । आग लग गई, उसके पास यह वह अपनी पत्नी से कह रहा है । कौन?
जो कुछ भी बहुमूल्य था, जो उसने अपनी Edison! इतनी patience, सामने
जिं दगी में कमाया था, research किया सब कुछ जिंदगी भर की कमाई जल रही है
था। आखिर बुद्धिमान लोगों के पास में बहु- लेकिन न वह रो रहा है , न चिल्ला रहा है ,
मूल्य क्या होता है ? उनके अपने लिखे हुए न दौड़ रहा है , न किसी के लिए सहायता
कागज, उनकी अपनी कापियाँ, उनके अपने की भीख मांग रहा है । खड़ा है स्तब्ध हो
notes, उनके अपने formulas वह सब कर के, देख रहा है , सोच रहा है , कुछ
कुछ जो था वह वही पर सारा का सारा जल भी नहीं है , जो है सो ठीक है , जो सच है
गया। सब कुछ मिट गया। सारा का सारा उसको स्वीकारना है , जो हो गया सो हो
वह देख रहा है और आप मान कर रखो, गया, यह सब ज्ञान उसके अन्दर बिल्कुल
यकीन करो कि वह उस जलते हुई उस स्थान सही चल रहा है । वह उसका कोई भी
को देख रहा है , उस factory को देख रहा है पछतावा नहीं करता, उस स्थान के बारे
जहाँ पर वह सारी चीजें जल रही हैं और वह में सोचने से दुःखी होने से अपने आप को
खड़ा है । वह खड़ा है बिल्कुल स्तब्ध हो कर बचा लेता है । अपने conscious level

106 धर्मं का मर्म


उत्तम सत्य धर्म

को बिल्कुल balance रखता है , अपने है । क्या यह लगाव हमारे अन्दर हो पाता


दूसरे काम में लग जाता है । जो उसको है ? क्या हम इस तरह की situation में
याद है , जो उसने अब तक research अपने आपको balance रख पाएँगे, रख
करके जो कुछ भी उसने अच्छे -अच्छे पाते हैं ? आप सोचे! जब भी आपके सामने
formulas बनाए थे वह सब उसको कुछ भी थोड़ा सा disturb होता है , सारा
ध्यान है । वह अपनी memory को का सारा सबसे पहले तो हमारी memory
बिल्कुल disturb नहीं करता और फिर disturb हो जाती है । जो कुछ भी हमको
से उन सब चीजों को लिखना शुरू करता याद है , समझा है , सीखा है , सब चला जाता
है । फिर से वह काम करना शुरू करता है है और अगर आपको क्रोध आया, किसी
और within eight to ten days वह भी तरह के लोभ लालच से आपको दुःख
एक invention करता है , जिसको बोला आया तो आप समझना कि आप इस सबसे
जाता है - phonography. दुनिया पहले बुद्धि खराब होगी। सबसे पहले आपके
को चौंकाने वाला एक invention mind पर असर पड़ेगा और वह असर इसी
इसी घटना के आठ दस दिन बाद उसने रूप में पड़ेगा अब हमें कुछ भी याद नहीं आ
किया। आप भी पढ़े-लिखे हैं , पढ़ रहे हैं , रहा, सब चीजें भूल गए। लेकिन उसने अपने
आप भी science को follow कर रहे हैं आपको कितना संभाला और उस आग को
लेकिन science के साथ थोड़ा सा यह भी देखकर के भी उसके अन्दर कुछ आग नहीं
देखे कि scientists के अन्दर भी कितना लगी। Dependent to Independent.
patience होता है , कितनी knowledge समझ पा रहे हैं ?
होती है , कितना उन्हें सच्चाई से लगाव होता

धर्मं का मर्म 107


उत्तम सत्य धर्म

शाश्वत और अशाश्वत के अन्तर को समझ कर ही सत्य को जान सकते हैं


हम उन बाहरी चीजों परेशान करेंगी लेकिन आपको अपने अन्दर
पर depend नहीं है ऐसा भाव पैदा करना है कि हम कुछ भी परे-
जो हमने collect कर शानियाँ सामने आए उसे माने, यही सच है ।
रखी हैं । इस सच को अगर वह चीज हमारे लिए बिल्कुल non-
हमेशा ध्यान में रख कर living thing हैं तो हम समझे कि अजीव
के उनके साथ में काम थी। क्या बिगड़ेगा? उसकी form change
करो। ठीक है ! हो गई। अगर कार मिट भी गई तो लोहा ही
collection हो रहा है । सब कुछ चीजों को थी, लोहा-लोहा ही है , पड़ा रहे गा, क्या हो
हम gather कर रहे हैं लेकिन इसका गया? पैसा तो उस चीज का था जो उसमें
मतलब यह नहीं है कि हम उन पर depend तरह-तरह की लोहे से बनी हुई चीजों को
है। अगर आप dependent से मिला करके कुछ इकट्ठा कर दिया था तो
independent हो पाए तो फिर ऐसा कोई engineers का पैसा था। कोई बात नहीं
invention हो सकता है जो आपको पैसा फिर कमा लिया जाएगा, पैसा भी
interdependent बना दे। क्या बना अजीव चीज है । वह भी non-living है ,
दिया? जब phonography की खोज हो कोई भी नोट में कुछ चेतना पड़ी है । जिसमे
गई तो सब के काम में आने वाला एक नया लिखा हुआ है hundred dollars या
invention हो गया तब उसका नाम हमेशा hundred rupees तो उसमें क्या है ? वह
के लिए अमर हो गया। जाना जाने लगा एक कागज ही तो है । बोलो तो! हिम्मत नहीं
edison is a scientist who discover पड़ रही क्या कहने की? क्या है ? एक कागज
the phonography. यह अपने आप में ही तो है । ठीक है ! कुछ process से उसकी
तभी सम्भव है जब हम कुछ सत्य को समझने value बना दी गई लेकिन इतनी तो नहीं
की कोशिश कर रहे हो। इसलिए ज्यादातर बन गई कि अगर वह मिट गया तो मैं भी मिट
लोग जीना तो शुरू कर देते हैं लेकिन पता गया। इतना difference create करो हर
नहीं होता है कि जिया कैसे जाता है । आज चीज के साथ में। living being के साथ में
की दुनिया में जिन्दगी जीना भी इसलिए भी और non-living being के साथ में
कठिन है कि आप के लिए चारों ओर तरह- तब आप independent हो पाएँगे। तब
तरह की परेशानियाँ तरह-तरह की दिक्कतें आप अपने truth के निकट होंगे और इसी
अपने आप आएँगी, अपने आप आपको को बोलते हैं - relative truth. क्या

108 धर्मं का मर्म


उत्तम सत्य धर्म

बोलते हैं ? एक आपेक्षिक सत्य। हर चीज के पाएँगे। otherwise यही होगा कि चीज
साथ में जो हम relativity के साथ में सामने मिटती है उससे पहले हम मिट जाते
चलेंगे तो हम यह ध्यान रखें कि हम क्या हैं । अगर आपको खबर भी लग गई कि
है ? सामने वाला क्या है ? और हमारे अन्दर आपकी बहुत बेशकीमती कार जो है नष्ट हो
क्या हो रहा है ? सामने वाले के अन्दर क्या गई है या किसी accident में बिलकुल
हो रहा है ? अगर सामने वाले के अन्दर मिट गई है तो इतना सुनते ही इतना धक्का
कुछ हो रहा है , तो भी हमारे अन्दर क्या लग सकता है कि आप भी उसी समय गिर
होना चाहिए? हमारी अपनी शांति, हमारी पड़ सकते हो। हाँ! कलेजा मजबूत रखो।
अपनी बुद्धि, हमारा अपना patience, मजबूत लोग ही यहाँ जिं दगी जी पाते हैं । इस
कितना disturb होना चाहिए और हम तरीके के धक्के सबको लगते हैं तो अपने को
कितना कर रहे हैं । अगर हम इन चीजों को सत्य के निकट रहने की अब एक हिम्मत पैदा
balance करें गे तो ही यह धर्म आपके करना है । यही सत्य को पाने के लिए अब
काम में आएगा। अतः सत्य धर्म का प्रयोग आगे आपको कुछ उपाय और बताए जाएँगे
करना सीखें। कैसे प्रयोग करें? इस तरह की कि कैसे-कैसे हम इस सत्य को और ज्यादा
living और non-living being के बीच अच्छे ढं ग से अपने अन्दर महसूस कर सकते
में हम अपने एक difference को बनाएँ, हैं और पाने की हिम्मत कर सकते हैं । पहले
listing करें और फिर यह समझें कि अगर हम समझें सत्य क्या है ? आज जो आपने
कोई भी चीज के साथ में मेरा मोह है , लालच समझा है , उसका अपने अन्दर एक graph
है तो वह कितनी हद तक है । अगर यह चीज बनाना। सत्य क्या है ? क्या है ? क्या है ?
ruined हुई तो हम इसके इस jerk को सह ultimately हमारे साथ इससे ज्यादा क्या
पाएँगे कि नहीं सह पाएँगे। पहले से अपनी हो सकता है ? हम उसको भी स्वीकार कर
knowledge को balance बनाओ और लेंगे तो इसका मतलब है ‘सत्यमेव जयते’।
अगर आप पहले से mentally prepare हमने सत्य को जीत लिया है , सत्य की ही
होंगे तो ही आप किसी भी sudden जय हो रही है । इसका मतलब यही है ।
accident पर अपने आप को stable रख

धर्मं का मर्म 109


Day - 05
आज का चिंतन - सत्य को समझना
आज पाँचवा दिन है 3. हम सत्यनिष्ठ लोगों को पसंद करते
आज सत्य के साथ जीएँगे। हैं या नहीं?
जो task दिया जा रहा 4. जो वास्तव में सच्चा जीवन जीते हैं
है अपना चिं तन उसके हम उनके जैसी अपनी thinking बनाते हैं
according बनाए रखें तो या नहीं?
आप अपने आपको सत्य के 5. क्या हम जीवन में झूठे लोगों का
बहुत निकट पाएँगे। सहारा लेते हैं या झूठ के सहारे से अपना
1. हम संसार को सत्य मानते हैं या नहीं? जीवन चलाते हैं ?
संसार माया नहीं सत्य है । 6. कब हम झूठ बोलते हैं , झूठे लोगों का
2. हमें स्वीकार है संसार में जो कुछ भी साथ देते हैं या झूठ में अच्छा लगता है ?
है वह सत्य है । आत्मा सत्य है ।

आज का एहसास
1.हम यह समझें कि 3. जो सत्य को पहचान पा रहे हैं और जो
जितना क्रोध-मान-माया- नहीं पहचान पा रहे हैं वे समझें कि यह एक
लोभ हमारे अंदर से निकल process है , जिसकी अभी शुरुआत हुई है ।
गया है उतना हम सत्य के 4. स्वयं के पुरुषार्थ को appreciate
निकट हैं । करें।
2. अगर हम झूठ को 5. इससे आपका confidence बढ़ेगा
पहचान नहीं पाते कि कब कहा गया तो क्रोध- और उतना सत्य के निकट होंगे।
मान-माया-लोभ का उतना आवरण अभी 6. सत्य बोलने का प्रयत्न भी करें।
बाकी है ।

स्व-संवेदन

• क्या आप सत्य और झूठ के • क्या आप अपने आप को appreciate


difference को पहचान पाए? yes/ कर पाए? yes/ no / little bit
no / little bit

110 धर्मं का मर्म


Day-6: उत्तम संयम धर्म
सत्य की साधना संयम से ही सम्भव
क्रोध, मान, माया और आती है , मृदुता भी ले आती है । अपनी कुटि-
लोभ, इन चार कषायों लताओं को भी छोड़ने की कोशिश करती है
पर नियन्त्रण पाने के और सब लोभ भी छोड़ कर के जब सत्य को
बाद, जब सत्य का समझने लग जाती है कि मेरा अस्तित्व तो
भान होता है तब कुछ कहीं मिटने वाला है नहीं। केवल हमारी इस
अपने आप संयम की पर्याय में ही परिवर्तन किया जा रहा है और
स्थिति बनती है । किसी यह परिवर्तन यदि अच्छे रूप में हो रहा है तो
भी तरह की उन्नति के लिए संयम होना बहुत हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। हमें
आवश्यक है । दुनिया में जब भी कभी हम अपने अनादि काल के जो संस्कार पड़े हैं ,
किसी भी ओर दृष्टिपात करते हैं तो हम देखेंगे उसके कारण से जो मेरे अन्दर लोभ उत्प-
कि जितनी भी चीजें विशिष्ट हैं , जितनी भी न्न हो रहा है , उस लोभ को भी हमें छोड़ना
चीजें हमारे लिए हितकारी हैं , जितनी भी चाहिए। इसलिए वह माटी भी कुम्भकार के
चीजें जगत के ऊपर बहुत बड़ा उपकार करती हाथों में आने के लिए तैयार हो जाती है ।
हैं , वह सभी संयम का ही हमें ज्ञान कराती हैं संयम के भाव में जब वह अपने आपको
और उनके माध्यम से जो जगत का हित होता ढालने की कोशिश करती है , तो वह कुम्भ-
है , वह तभी हो पाता है जब वह किसी भी कार के मृदु हाथों में आकर के अपना एक
तरह से अपने संयम को छोड़ते नहीं है । हम रूप धारण करने लग जाती है । आपने कभी
यूँ कहें कि सत्य का संयम के साथ में एक इस तरह का एक posture देखा होगा।
बहुत बड़ा सम्बन्ध है । सत्य जब भी हमारे यह posture क्या बताता है ? यह संयम
जीवन में उतरेगा, संयम की साधना से भाव‌है ।
उतरेगा। माटी जब अपने अन्दर क्षमता ले

प्रकृति भी संयम से चलती है


यह संयम भाव क्या है ? यह जब हम कभी किसी भी व्यक्ति को प्रोत्साहित करते

धर्मं का मर्म 111


उत्तम संयम धर्म

हैं या हम अपनी ही ऊर्जा को सन्तुलित बना को बढ़ाता-बढ़ाता एकम, दूज, तीज करते-
कर के किसी भी काम में लाने की कोशिश करते वह पूर्णिमा तक पहुँच जाता है । पुनः
करते हैं तो इस तरह की healing में भी यह वही क्रम फिर प्रारम्भ होता है , कुछ अन्यत्र
सिखाया जाता है कि आप अपनी ऊर्जा को नहीं जाता, कुछ अन्यथा नहीं होता। यहीं से
समझने की कोशिश करें। फिर शुरू होता है फिर कृष्ण पक्ष प्रारम्भ
यह संयम भाव है यानि होगा दूसरे महीने का और फिर वह प्रथमा,
हमारे शरीर में बहुत द्वितीया, तृतीया ये चलेगा और वह पन्द्रस
सारी ऊर्जा का flow तक आकर के आवश्यक का रूप लेगा। फिर
जो कुछ बह रहा है , वही क्रम चलेगा वही शुक्ल पक्ष आएगा।
निरन्तर बहता रहता यह क्रम निरन्तर चल रहा है , चन्द्रमा का भी
है । अगर हम उसे चल रहा है , सूर्य का भी चल रहा है । सूर्य भी
संयमित बनाएँगे तो अपनी गति से भ्रमण करता है । अपनी एक
वह किसी के काम आएगी। संयमित होना निश्चित परिधि पर घूमता है , उसकी एक
एक ऐसी शक्ति है , जिसके माध्यम से हम निश्चित गली बनी हुई हैं । उनमें वह घूमता है ,
अपनी बहती हुई तमाम अनावश्यक ऊर्जा भ्रमण करता है और भ्रमण करते-करते है ,
को एक जगह concentrate करके उसे जो उसकी वीथियाँ बनी हुई हैं , उन्हीं वीथियों
किसी के काम में ले आते हैं और अपने भी में वह निश्चित समय पर अपना भ्रमण करते-
काम में ले आते हैं । इसलिए संयम का बड़ा करते अपनी गली से दूसरी गली में आ जाता
महत्व है । आप देखते हैं दिन और रात प्रति- है । अन्य गली में आ जाता है‌। कभी वह
दिन होते हैं और इस दिन और रात की इस हमारे बहुत पास आ जाता है और फिर पास
प्रक्रिया में सूर्य और चन्द्रमा का अपना एक आकर के फिर धीरे-धीरे दूर जाने लग जाता
बहुत बड़ा role रहता है । समय पर सूर्य का है । जब पास आ जाता है तो गर्मी का समय
उदय होता है , समय पर सूर्य अस्त हो जाता आ जाता है । जब दूर जाने लग जाता है तो
है । रात्रि आती है चन्द्रमा का उदय होता है ठण्ड का समय आ जाता है । यह एक बहुत
और चन्द्रमा भी एक नियमित गति से, पहले सीमित ढं ग से एक निश्चित रूप से एक अच्छी
कृष्ण पक्ष होता है तो अपनी कलाओं को प्रक्रिया के रूप में हमें सूर्य और चन्द्रमा की
घटा कर घटाता-घटाता घटाता-घटाता गति से जो लाभ मिलता है , वह हमें बताता है
अमावस्या तक पहुँच जाता है । फिर शुक्ल कि हमारे जीवन में कितना बड़ा उपकार सूर्य
पक्ष प्रारम्भ होता है । अपनी एक-एक कला और चन्द्रमा के माध्यम से हो रहा है । दिन

112 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

और रात के माध्यम से हो रहा है , इसी के


माध्यम से ऋतुएँ बनती हैं और ऋतुओं में
परिवर्तन होता है और यह सब कुछ संयत
दशा का ही वर्णन करने वाला है । मैं आपको
बताना चाह रहा हूँ कि प्रकृति अपने आप में
बहुत संयत है । प्रकृति में बहुत संयम है ।
इतना संयम है कि अगर किसी बीज को हम
बोते हैं तो उस बीज की भी विकसित होने की
दर निर्धारित है । कोई पौधा एक महीने में आ
जाएगा, कोई पौधा छह महीने में आ पाएगा,
कोई बीज एक साल में वृक्ष का रूप ले
पाएगा, कोई बीज ऐसा भी होता है , जो दो
साल में, तीन साल में वृक्ष का रूप लेता है
और उसके बाद फलता है । यह निश्चित है !
अगर आपने आम का पेड़ लगाया है तो ऐसा
नहीं है कि आज ही आपने आम का बीज
डाला है और आज ही उसका वृक्ष लग असंयम से संयम के भाव
जाएगा। उसके लिए जो समय निश्चित है हम समीचीनता से हर चीज को निय-
उस समय तक आपको धैर्य धारण करना न्त्रित करके चलें। उसी का नाम संयम कहते
पड़ेगा। उस समय आपको अपनी प्रतीक्षा हैं । वह संयम कोई बहुत भारी चीज नहीं है ।
करनी पड़ेगी और समय पर ही सारा का अगर हमें किसी भी तरह के सत्य को उप-
सारा काम होगा। दुनिया में हम किसी भी लब्ध होना है , तो सबसे पहले हमारी गति
ओर देखें तो ऋतुओं का परिवर्तन होता है संयत होनी ही पड़ेगी। संयम के बिना कुछ
और सब निश्चित समय पर चलता रहता है । नहीं हो सकता। हमारे मन, वचन, काय इन
क्यों होता है ? इसी का नाम है - संयम। सम तीनों की इन स्थितियाँ के नियन्त्रित हुए
मतलब समीचीन रूप से, यम मतलब अपना बिना, हम कभी भी आत्मा का कल्याण
नियंत्रण रखना। इसका नाम संयम कहलाता कर ही नहीं सकते हैं । आत्मा तक कोई भी
है। उपदेश पहुँच ही नहीं सकता है । आत्मा के
लिए पुराने संस्कारों को हटाने के लिए इन

धर्मं का मर्म 113


उत्तम संयम धर्म

मन, वचन, काय के संयम के बिना कुछ भी अब हमें हर मर्यादाओं को तोड़ना है । हम मन


सम्भव नहीं है । यह पूरी भारतीय संस्कृ ति के चाहे कपड़े पहनेंगे, हम मन चाहे time पर
सभी अध्यात्म ग्रन्थों में लिखा हुआ है । चाहे आएँगे, मन चाहे rime से जाएँगे, हम इसी
आप जैन अध्यात्म ग्रन्थ पढ़ें , चाहे अजैनों में में अपने आपको बड़ा अच्छा महसूस करते
भी जो ग्रन्थ है गीता आदि उनमें भी पढ़ें गे तो हैं , अपने आपको पढ़ा-लिखा महसूस करते
आपको यही बात मिलेगी। बिना संयम के हैं । लेकिन जब आप दुनिया पर दृष्टि डालेंगे
कुछ नहीं सम्भव है । असंयत आत्मा के लिए तो आपको पता पड़ेगा कि पढ़े-लिखे लोग
कुछ भी कार्य करना सम्भव नहीं है । आपको बहुत संयत होते हैं । अनपढ़ लोग ही असंयत
संयत होना ही पड़ेगा। अपने जीवन में अपनी होते हैं । असंयत लोग ही गँवार कहलाते हैं
उन्नति के लिए आपको किसी न किसी और संयत लोग ही पढ़े-लिखे लोग कहलाते
रूप में संयत बनाया ही जाता है । जब आप हैं । जो जितना discipline में रहे गा, जो
स्कू ल जाते हैं आपका एक dress code जितने manners के साथ रहे गा, वह उतना
होता है । आपके लिए एक time निर्धारित ही अच्छा व्यक्ति माना जाता है । वह उतनी
होता है । अच्छे स्कू लों में इतना time का अच्छी कम्पनी में काम करने वाला व्यक्ति
discipline होता है कि अगर आप उस माना जाता है , जिस कम्पनी में भी हर तरह
time तक पहुँचे तो आपकी entry है । की discipline रहते हैं । जिस कम्पनी में
अगर आप नहीं पहुँचे तो आपको वापिस discipline होंगे वह कम्पनी भी अपना एक
जाना होगा, आपकी absent लगेगी‌। यही standard रखती है । जब आप बड़े हो जाते
सही है , जो हमें अनुशासन सिखाता है , उसी हैं तो आपको लगता है कि अब हम free हो
का नाम संयम है । जो हमें स्वात्मानुशासन गए। आप देखना! ऐसी बहुत सी कम्पनियाँ
में रहना सिखाता है , आत्मानुशासन की होती हैं , जिन कम्पनियों के भी dress code
भावना सिखाता है , उसी का नाम संयम है निश्चित होते हैं । वहाँ आप jeans पहन कर
और यह हमें बचपन से सिखाया जाता है । नहीं जा सकते हैं । वहाँ कुछ भी top skirt
लेकिन बड़े होते-होते हम सब तरह के संयम पहन कर नहीं जा सकते हैं । आपके लिए
की मर्यादाओं को तोड़ने लग जाते हैं । हमारे वहाँ पर भी जो dress दी गई है , आपको
दिमाग में क्या रहता है ? dress code, pant पहनना, shirt पहनना, tie लगाना
बिल्कुल particular time पर किसी है । boot पहनने है तो पहनना है । यह एक
class में पहुँचना। सब बच्चों का काम है , discipline है । अगर इस discipline के
अब हम बड़े हो गए हैं । बड़े हो गए हैं तो अनुसार चलते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि

114 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

हमको कसा जा रहा है । ऐसा भाव आता है में यही dress पहन कर बैठें और वह वही
हमारे लिए कहीं से force डाला जा रहा है । dress पहन कर बैठते हैं । आप सोच सकते
लेकिन यह force ही हमको discipline हैं ऐसा discipline होगा? आप जानते
में लाता है । आदमी यह सोचता है हम किसी हो ऐसी companies के नाम? देखना!
भी तरह की control में न रहे । आज का आपको आस-पास मिल जाएँगे। बताते
पढ़ा-लिखा आदमी इस तरीके से सोचने नहीं है लोग क्योंकि उन्हें इस बात को बताने
लगा है । मैं कई बार देखता हूँ बहुत सारे, कुछ में भी कहीं हिचक हो सकती है । शर्म लग
चिन्तकों के articles आते है और कुछ ऐसे सकती है । लेकिन यह है ! आपकी colony
भी philosophers रह चुके हैं , जिन्होंने में ही ऐसे employees हैं जो इस तरीके
हर तरीके से आदमी को उन्मुक्त करने का के discipline में आज भी job कर रहे हैं ।
भाव दिया। उन्मुक्त प्रेम, उन्मुक्त जीवन यानि आप समझें कि यह क्या चीज है ? हम जब
किसी भी तरीके से आप अपने आपको भी कभी धर्म के मन्दिरों मे जाते हैं , प्रवचन
बिल्कुल भी बन्दिश में न रखो। बिलकुल सुनने बैठते हैं , हमारा कोई discipline ही
free! ऐसे जब चिन्तन सामने आते हैं तब नहीं होता। न हमें बैठने का कोई seating
वह आदमी उन चिन्तनों से प्रभावित तो होता order होता है , न आने का time होता है ,
है लेकिन अपने जीवन में कर कुछ नहीं कोई मन्दिर में किस तरह से बोलना, किस
पाता। आप देखेंगे कि हमने ऐसी-ऐसी भी तरह से enter करना, किस तरह से exit
कम्पनियाँ देखी है , जैसे आजकल work होना, किसी चीज का कोई discipline
from home चल रहा है । आज भी उन नहीं होता। अगर हम किसी discipline
कम्पनियों के जो employees है , जहाँ घर में नहीं है तो कहीं से कहीं तक हमारे लिए
में बैठे -बैठे work from home कर रहे हैं संयम भाव नहीं है और संयम नहीं है तो हम
, आज भी उनके लिये ये नियामक है कि घर सत्य का मजाक उड़ा रहे है‌ं।

धर्मं का मर्म 115


उत्तम संयम धर्म

सत्य वही है , जब हम वह बाढ़ किसी काम की होती है ? पानी तो


संयम के साथ अपनी बहुत है । आप पानी- पानी-पानी पानी
गति बढ़ाने लग जाते चिल्ला रहे थे और पानी आ गया। इतना आ
हैं । वही सत्य काम गया, इतना आ गया कि घर की सब चीजें
आता है जिस सत्य से बहा कर लिए जा रहा है । जितने भी हमारे
व्यक्ति के लिए संयम घर की दीवारें थी, सब तोड़ डाल रहा। हम
की एक शक्ति मिलने भी बह रहे हैं घर के सामान बह रहा है । उस
लग जाती है । वही संयमी व्यक्ति अपने सत्य पानी से क्या प्रयोजन है ? जिसकी कोई
को उपलब्ध हो पाता है । आपने पानी का मर्यादा नहीं, जिसके कोई तट नहीं, जिसके
flow देखा होगा। पानी का एक बाढ़ का कोई कूल नहीं, जिसकी कोई limit नहीं
रूप होता है , जब पानी overflow होता है । और वह पानी जब हमारे किसी भी शहर में

116 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

आएगा, हमारे घरों के पास आएगा तो सब बह रहा है । लेकिन उस बाढ़ और नदी के


कुछ क्या करेगा? तहस नहस करेगा, सब पानी में अगर आपको एक difference
कुछ बर्बाद करेगा। एक वह भी पानी है और समझ में आ जाए तो आप समझ पाएँगे कि
एक यह भी पानी होता है जब आपने नदी को असंयम में और संयम में क्या अन्तर होता
बहते हुए देखा होगा। देखा है ! नदी कैसे है ? बस! इतना ही समझना है आपको,
रहती है ? उसके दो तट होते हैं , दो किनारे ज्यादा नहीं समझें।
होते हैं । हमेशा उन किनारों के ही अनुसार
बहती है , किनारों को तोड़ कर नहीं बहती।
कितना ही उसमें overflow हो लेकिन वह
किनारों को तोड़ कर नहीं जाएगी। वह
किनारों में ही बहे गी और नदी का एक बहुत
बड़ा लाभ यह मिलता है कि ऐसी नदी जिसमें
पानी संयत रूप में है overflow नहीं हो
रहा है और वह नदी जिस भी स्थान से
गुजरेगी, वहाँ के स्थान के लोगों को सब
तरीके की प्यास बुझाएगी। जिस खेत से हो
कर के जाएगी, जिसके आसपास की भूमि
से हो कर के जाएगी, वहाँ चारों ओर हरियाली
करेगी। सब कोई इस पानी से लाभ उठाएगा।
जानवर भी पानी से लाभ उठाएँगे, मनुष्य भी
उस पानी का लाभ उठाएँगे, खेतों में भी इस
पानी का लाभ मिलेगा और सब कोई कहे गा
कि नदी के किनारे चलो वहीं पर बैठें गे, वहीं
पर थोड़ा सा आनन्द लेंगे। बाढ़ में कहीं घूमने
निकलते हो? बाढ़ क्या करती है ? आपके
लिए बाढ़ से कोई लाभ होता है ? आपको
बाढ़ का पानी किसी के लिए काम आता है ?
पानी तो पानी है , बिल्कुल frequently
बह रहा है , नदी का पानी भी frequently

धर्मं का मर्म 117


उत्तम संयम धर्म

अनुशासन है तो संयम है
जब हम किसी तरह पर जाना होगा। जिस side पर चलना है ,
के संयम भाव में नहीं उसी side पर चलना होगा। जिस speed
होते तो हमारे अन्दर पर गाड़ी चलानी है उसी speed में गाड़ी
किसी भी तरीके की, चलानी होगी। तभी आप अपने गंतव्य तक
किसी भी चीज की पहुँचेंगे। discipline दुनिया में हर जगह है ,
कोई limits नहीं दुनिया में हर काम में है , प्रकृति में है , job
होती। हम किसी करने वाले लोगों के अन्दर भी discipline
discipline में नहीं होते हैं । जब हम किसी है । लेकिन हमने कभी भी अपने आध्यात्मिक
discipline में होते हैं तभी हम किसी एक जीवन के लिए कभी discipline नहीं
direction में चल सकते हैं । अगर हम अपनाया। यह हमारी एक सबसे बड़ी कमी
discipline में नहीं है तो हम कभी चार रही है । हमने कभी अपनी आत्मा के लिए
कदम है इधर चलेंगे, चार कदम उधर चलेंगे, discipline नहीं अपनाया। आत्मा को
चार कदम पीछे चलेंगे, चार कदम आगे अपने एक गंतव्य तक पहुँचाने के लिए हमने
चलेंगे। हम कहीं नहीं पहुँचेंगे। चलेंगे तो कभी संयम नहीं अपनाया और इसी की
लेकिन पहुँचेंगे कहीं नहीं क्योंकि हम वजह से हम तमाम तरह के दुःख तो भोग
discipline में नहीं है । जब भी कभी आदमी लेते हैं । सब तरह की मर्यादाओं का उल्लंघन
को कहीं पहुँचना होता है उसे discipline करके जीने का हमारा भाव रहता है और हमें
में ही चलना पड़ता है । एक order में चलना जब दूसरे चिन्तक भी यही सिखाते हैं किसी
पड़ता है । अगर आपको यहाँ से दिल्ली भी भी तरह के नियमों में बन्द कर के अपने आप
जाना है तो आप को discipline में जाना को बन्दिशों में मत डालो। बिलकुल free
होगा। जिस road पर जाना है , उस road रहो! आज के जो चिन्तक हैं वह हमारा मन

118 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

ऐसे मोहते हैं । आपको बिल्कुल सही बात डालो। कोई rules नहीं, कोई
लगती है । किसी को एक यह भी है कि जो regulations नहीं, कुछ नहीं। इसका नाम
कहते हैं - किसी भी तरह का कोई चिन्तन में, क्या है ? बड़े-बड़े योगी, चिन्तक, दार्शनिक,
कोई भी तरह का, कोई भी अपने अन्दर अपने आपको ध्यानी कहने वाले, इस तरह
boundation मत रखो। किसी भी तरह के की language से आज के लोगों के मन में
rules में अपने आप को मत बाँधो। किसी मोह उत्पन्न करते हैं । किस बात का? ताकि
भी तरीके का कुछ भी bonding नहीं। वह हमारे पास आ जाये। हमारी class
बिल्कुल free रहो और ऐसे लोग जब ऐसे join करें। हमारी class में आने के लिए
लोगों को सुनते हैं तो उन्हें लगता है कि यह पाँच हजार, दस हजार रुपये की टिकट ले
बात तो बिल्कुल अच्छी है और अगर हम ऐसे तब उन्हें पता पड़ेगा कि हम यहाँ क्या सिखाने
ही उन्मुक्त होकर के जिएँगे तो हमें कुछ योग जा रहा है । जबकि यह कहीं से कहीं तक
का, अध्यात्म का, ध्यान का, लाभ भी मिल योग की कोई परिभाषा ही नहीं है । न जैन
जाएगा क्योंकि यह योगी भी है , आध्यात्मिक ग्रन्थों में, न अजैन ग्रन्थों में यहाँ तक कि
भी है और ध्यानी भी है । इसी रूप में प्रसिद्ध गीता में भी लिखा हुआ है कि ‘असंयतात्मना
हैं । अतः आदमी के अन्दर क्या भाव आएगा? योगो दुष्प्राप इति में मतिः’ श्री कृष्ण कहते हैं
कि हमको भी इन्हीं का योग अपनाना है । कि जो असंयत आत्मा है उसके लिए तो
अब यह जो भी योग सिखाएँगे, जो भी ध्यान कोई योग है ही नहीं, ऐसा मैं मानता हूँ और
सिखाएँगे, अब यही ध्यान करें, जिसमें कुछ जो जैन आचार्य हैं वह कहते हैं कि जब तक
करना नहीं पड़ता। कोई discipline नहीं। आप अपने अन्दर संयम नहीं लाओगे तब
बिल्कुल frequently आपको जैसे नाचना तक चित्त एकाग्र नहीं होगा। ‘संयम्य करण-
है नाचो, जैसे गाना है गाओ, जैसे उठना है ग्रामभेकाग्रत्वेन चेतसः’ जब तक आप अपने
उठो, जैसे खाना है खाओ, जैसे बोलना है चित्त को एकाग्र करने के लिए अपने इन्द्रियों
बोलो, कुछ भी करो। आप अपने अन्दर के समूह को संयमित नहीं कर दोगे तब तक
किसी भी तरीके की कोई भी bonding मत आप आत्मा के लिए कुछ कर नहीं पाओगे।

असंयम अच्छा या संयम?


अब हम समझें कि असंयम में और मतलब है कोई discipline नहीं। हम बाहर
संयम में कौन सी चीज अच्छी है । पहले हमारे की चीजों के लिए तो सब discipline देख
दिमाग में बैठ जाना चाहिए। असंयम का रहे हैं । प्रकृति का हर कार्य discipline के

धर्मं का मर्म 119


उत्तम संयम धर्म

साथ चल रहा है । वर्षा ऋतु में वर्षा होती है , के लोभ में, अपने अन्दर कोई discipline
सूर्य गर्मी के दिनों में तपता है , धरती तपती है , का भाव नहीं आ रहा।
ठण्ड के दिनों में ठण्ड पड़ती है । जिन ऋतुओं discipline तो वह
में जिस तरह के फल फूल आने चाहिए उन होता है , जो हम अपनी
ऋतुओं में उसी तरह के फल फूल आ रहे आत्मा के लिए करें,
हैं । सब कुछ नियमित क्रम से चल रहा है अपने लिए करें। अपने
और जब यह नियमित क्रम से चलता है तो आप की उन्नति के लिए
वह हमारे लिए अच्छा लगता है । प्रकृति का करें, जिसमें किसी भी
discipline में अच्छा लग रहा है । जब हम तरह का कोई प्रलोभन
किसी अच्छी higher company में job न हो क्योंकि लोभ कषाय तो‌ अब हम छोड़
करने के लिए जा रहे हैं तो उनके discipline चुके हैं । सत्य के लिए संयम में आना
को follow करने के लिए अपने आप को discipline for truth to attain
तैयार कर रहे हैं । वह हमें अच्छा लग रहा है । truth. अगर हमारे अन्दर इस भावना से
क्यों? क्योंकि उसको करने से हमको अच्छा discipline आएगा तो वह संयम भाव में
package मिलेगा। package अच्छा आएगा। self control इसी का नाम है ।
मिल रहा है , आप हम को किसी भी तरीके अभी तो हम controlled by company,
के discipline में रखो अच्छा लगेगा। अगर controlled by other person, self
उन्होंने कहा है आपको 7:00 बजे आपकी control नहीं है । ये नमूने हैं कि हम self
सीट पर बैठना है तो आपको बजे बैठना ही है , controlled होते तो हैं लेकिन किसी के
भले ही work-from-home हो। ऐसी- दिखाने के लिए, किसी के pressure में हो
ऐसी कम्पनियाँ हैं जो यह check करती हैं रहे हैं । इधर self control अपने आप
कि 7:00 बजे आप अपने घर की seat पर आता है । कब? जब व्यक्ति समझने लग
computer के सामने उसी dress में बैठे जाता है कि आखिर हमने असंयम में तो बहुत
हो कि नहीं और हिलने नहीं देंगे आपको। समय गुजारा है । असंयम तो बाढ़ की तरह है
आप ऐसे ही बैठे हो आप बिल्कुल watch इससे हमने अपनी आत्मा के सारे के सारे
करते रहें गे। जैसे ही आप वहाँ से उठे आपके तट तोड़ डाले। सब कुछ, अपनी आत्मा के
लिए तुरन्त bell होगी। कहाँ गए? आप गुणों को, तहस नहस कर डाला। जो मन
समझो! यह सब हम किसी discipline चाहा मैंने खाया, जैसा मन चाहा मैंने enjoy
कर रहे हैं । लेकिन किसके लिए? सिर्फ पैसे किया। सब कुछ किया। यह मान रहा हूँ

120 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

लेकिन अब मुझे कोई सिखा रहा है , कोई train में भी बैठते हैं तो वहाँ पर भी
समझा रहा है । कोई बार-बार किसी चीज discipline है । train की दो पटरियाँ भी
के लिए हमें प्रेरित कर रहा है तो हमें थोड़ा तो जो होती हैं वे भी हमें discipline को बताने
उसकी बात समझनी चाहिए। यह भाव आने वाली हैं । लेकिन हमारे जीवन में कहीं से
लगेगा। कब? जब आपकी चार कषाय कम कहीं तक कोई discipline नहीं है । हमें
होगी, सत्य के जानने के प्रति आपके अन्दर ऐसे philosopher मिल जाते हैं , ऐसे
एक लालसा पैदा होगी तो संयम का भाव thinkers मिल जाते हैं , जो हमारे लिए यह
अपने आप आएगा। अपने आप आएगा, और कहने लगते हैं आप कभी अपने आप
कुछ भी करना नहीं पड़ेगा।‌ अगर आपके को ऐसे बांधना नहीं। क्या इसी का नाम
अन्दर ये पाँच दिनों के पाँच काम हो चुके हैं बन्धना है ? अगर नदी अपने दो तटों के बीच
तो फिर छठवें दिन आप अपने आप को में नहीं बंधकर के चलेगी, पटरियाँ अगर
बिल्कुल प्रेम भाव से समर्पित करने के भाव अपने निश्चित difference से, निश्चित
में आ जाओगे। आप कहोगे आप बताओ हमें distance से, अगर दोनों जगह पर नहीं
क्या करना है ? task देना नहीं पड़ेगा। आप खींची हुई मिलेगी तो क्या उसके ऊपर बहुत
कहोगे हमें बताओ क्या task आज हमें बड़ी-बड़ी रेलगाड़ियाँ, माल गाड़ियाँ चल
करना है ? आज हम बहुत अच्छे भाव में हैं । सकेंगी? कहाँ discipline नहीं है ? अगर
हमें महसूस हो रहा है कि इतना संयम हम हम अपना एक पैर उठाते हैं तो दूसरा पैर
अपने मन से करते आये हैं । हमें नदी की तरह पीछे होता है । दूसरा पैर जब हम आगे करते
बनना है , संयत हो करके चलना है । हमें हैं , एक पैर पीछे हो जाता है । क्या
discipline में रहना है , सूरज की तरह, discipline नहीं है ? दुनिया का कौन सी
चन्द्रमा की तरह, प्रकृति की तरह किसी भी जगह है जहाँ पर discipline नहीं सिखाया
तरह का अगर हम road पर भी चलते हैं तो जा रहा।
वहाँ पर भी discipline है । अगर हम

सात्विक भोजन करें निरोगी रहें


हम अपने मुँह में एक ग्रास रखते हैं , हमारे वह कभी भी जीभ, दाँतों के बीच में आ
मुँह में बत्तीस दाँत है , एक जीभ है । कितने सकती है लेकिन कभी नहीं आती। हमारे
discipline के साथ में वह जीभ काम अन्दर खाने का इतना discipline है लेकिन
करती है । दाँत काम करते हैं । otherwise यह discipline नहीं है कि क्या खाना है ?

धर्मं का मर्म 121


उत्तम संयम धर्म

कितना खाना है ? कब खाना है ? इसका organs होते हैं , liver है , kidney हैं ,
discipline नहीं है । हर चीज एक order इतने कोमल यह अवयव हैं कि इनके ऊपर
में चल रही है , हर चीज एक systematic कभी भी अगर हम जबरदस्ती करते हैं , किसी
ढं ग से चलती है है , तभी वह हमारे काम भी तरह का कोई भी दूसरा burden डालते
की है । अगर जहाँ पर हम अपनी मनचाही हैं तो एक स्थिति तक सहन कर लेते हैं । जब
कुछ भी करने लग जाते हैं तो हमारा अहित यह देखते हैं कि अब हमसे सहन नहीं हो रहा
ही होता है । आज लोग कितनी बिमारियों है तो फिर यह अपनी क्षमता तोड़ देते हैं ।
से ग्रस्त हो रहे हैं , जितने ज्यादा आज नए- अपना काम करने से अपनी हिम्मत तोड़ देते
नए रोग पैदा हो रहे हैं , इन सब का कोई हैं । फिर कहते हैं - liver कमजोर हो गया,
कारण नहीं है । नए रोग नहीं होते हैं , नई-नई kidney फेल हो गई, heart attack
हमारी lifestyle होती है । नया-नया हमारा हो गया। किससे हो गया? अपने आप हो
असंयम का भाव होता है और जितना हम गया? दुनिया का कोई doctor आपसे
असंयम के साथ जुड़ते चले जाएँग,े हम उतने नहीं कहे गा कि आप असंयत थे इसलिए
रोगी होते चले जाएँग।े रोग होने का कोई हो गया। उसे क्या लेना-देना है ? उसे तो
कारण नहीं क्योंकि जो body को चाहिए, अपनी दुकान चलाना है । वह तो यूँ कहे गा
जितना चाहिए, जब चाहिए, अगर हम उसको heart attack हो गया इसीलिए आदमी
उसके अनुकूल देंगे, body बिलकुल सही की death हो गयी, kidney fail से हो
रहे गी, कोई रोग नहीं होंगे। लेकिन अगर हम गई, इसलिए मर गया। liver ने काम करना
अपना मनचाहा उसको देंगे और वह वैसा बन्द कर दिया। इसलिए अब आपके लिए
function नहीं चाह रही है , वैसा काम कोई digestion नहीं हो सकेगा। वह तो
नहीं कर पा रहा है तो फिर वह कहीं न कहीं इतना ही कहे गा। यूँ क्यों कहे गा कि आप
आपके लिए रोग का काम करेगा। आपके इतना सारा खाते थे, यह सब गलत-गलत
लिए दिक्कत पैदा करेगा। एक स्थिति तक चीजें खाते थे, उसे क्या लेना-देना। हमारी
तो हमारा शरीर भी बहुत कुछ सहन करता दवाई खाओ। तुम्हें जो खाना है खाओ।
है‌। हमारी body के अन्दर बहुत ही soft

संयम का मार्ग कठिन नहीं परन्तु इच्छा शक्ति सशक्त होनी चाहिए
एक समझदार इं सान के लिए संयम अभी यह समझा रहा हूँ। अगर आप संयम
का महत्व कितना होना चाहिए मैं आपको से घबराते हैं तो आपके अन्दर आज के दिन

122 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

इस प्रवचन को सुनने के बाद मैं इतनी अक्ल हमें अपने को discipline में लाना चाहिए।
अपने आप आ जानी चाहिए कि हमें संयम लोग यूँ ही नहीं कहते रहते हैं , दिन में खाओ,
से घबराना नहीं है क्योंकि संयम बहुत कोई रात में मत खाओ, बाहर का भोजन मत करो,
कठिन चीज नहीं है । ज्यादा चटपटे ज्यादा मसालेदार, ज्यादा मैदा
संयम का मतलब है - की, इन चीजों को मत खाओ। कहीं न कहीं
हर चीज को बिल्कुल तो इस तरह से जो लोग हमें कहते हैं , बचाते
सही ढं ग से चलाना। हैं , कुछ तो इसमें ज्ञान होता होगा, कुछ तो
body को भी इनका उद्देश्य होता होगा। एक समझ में
चलाना, mind को आना चाहिए। इसको इस तरह से अपने
भी सही ढं ग से जीवन में लाना, इसका मतलब है कि अब
चलाना, life को भी हम असंयम से संयम की ओर आ रहे हैं ।‌
सही ढं ग से चलाना। अपने emotions, क्यों आ रहे हैं ? क्योंकि इसके बिना चीजें
अपने thoughts को भी एक सही अच्छे ढं ग से नहीं चलेंगी। न इसके बिना
process में ढालना और अपनी आत्मा को हमारा शरीर सही से चलेगा। न मन सही से
भी एक सही ढं ग से चलाना। discipline काम करेगा, न आत्मा अच्छे से काम करेगी।
में रखना इसका नाम ही कहलाता है - self कुछ भी नहीं काम करेगा। संयम तो अपनाना
restraintment. आत्म-संयम इसी को पड़ेगा अभी तक हम जो करते हैं , pressure
बोलते हैं । जब यह चीज हमारे अन्दर अपनी के साथ करते हैं । दूसरे के कहने पर करते हैं
भावना से आएगी तो आपके लिए आगे की लेकिन अब हम यह काम अपने मन से
कोई भी progress सम्भव है । चीज तो करेंगे। जो लोग ऐसा बोलते हैं कुछ भी नहीं
अब यहीं से शुरू हो रही है । अभी तक तो करना, जो मन आए वह खाना, जब मन में
केवल हमने जाना वह सब हमारे emotions आए तब खाना यह उनका कहना। अब हमें
के लिए था, बस अपने emotions को लगता है कि कहीं न कहीं यह हमें लुभाते हैं ।
केवल जो है retreat करो बस! अपने हमें सही रास्ते पर नहीं ले जा रहे हैं । इतना
emotions के लिए केवल काम करो।‌ यह सारा का सारा, philosophy सीखने
अब हम थोड़ा सा जो कर रहे हैं , हम सोचेंगे के बाद आपको यह feeling आनी चाहिए।
इतना सारा असंयम करते हैं । मनचाहे तरीके संयत मतलब है हम अपने आप को एक
से खाते हैं , मनचाहे तरीके से लौटते हैं , निश्चित परिधि में ले आते हैं और एक limit
मनचाहे तरीके से कभी भी खाते हैं , कुछ तो में हम अपनी चीजों को लेकर के चलेंगे।

धर्मं का मर्म 123


उत्तम संयम धर्म

खाने पीने का मन नहीं है । दुनिया में बहुत होंगी। जिन्हें अच्छे लोग लेते हैं और जिसमें
सारी खाने-पीने की चीजें हैं । लेकिन हम वे काफी कुछ energy होती है और जिससे
चीजें खाएँगे जो हमारे लिए वास्तव में अच्छी दूसरे का कोई नुकसान भी नहीं होता है ।

संयमित जीवन में ही अनुशासन रहता है


हमें अपने जीवन को दो तटों के बीच में, और जब हम इस भावना को ध्यान में रखेंगे
दो pool के बीच में हमें अपने जीवन को तो अपने आप हमारी senses control में
एक नदी की तरह बहाने की कोशिश करना आने लगेगी। दोनों चीजें एक साथ चलेंगी।
है । वे दो तट क्या हैं ? एक तरफ कहलाता देखो! कैसे चलती हैं ? आपसे कहा गया
है - इन्द्रिय सयंम। क्या बोलते हैं ? इन्द्रिय बाहर का गन्दा भोजन नहीं करना चाहिए,
संयम, control of senses. एक तरफ packet बन्द भोजन नहीं करना चाहिए।
कहलाता है , प्राणी संयम। क्या बोलते हैं ? अब आप देखो इसमें दोनों चीजें control
प्राणी संयम मतलब कि अपने अन्दर “To हो गई।
create emotions of compassion” जब आपसे कहा
एक दया का भाव अपने अन्दर पैदा करो। गया कि बाहर का
अपने जीवन को इन दो चीजों के माध्यम भोजन नहीं करना
से संयत बनाने की कोशिश करो। एक तो तो इसमें क्या करना
अपने अन्दर दया पैदा करो, दूसरों के प्रति आपको? दोनों चीजों
एक compassion का भाव लाओ। हमारे पर control हो
अन्दर दूसरे को आहत करने की भावना न हो गया आपका। क्या

124 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

control हो गया? एक तो जितनी भी अपने आप control हो गया। हमें ऐसा


packet बन्द चीजें हैं उनमें इतने ज्यादा भोजन नहीं करना, हमें सात्विक भोजन
तीक्ष्ण मसाले होते हैं कि वह हमारी senses करना। जिसमें सत्व हो, तत्त्व हो। क्या हो?
पर इतना attack डालते हैं कि उन तीक्ष्ण, proteins हो, vitamins हो, omega
तरह-तरह के तीव्र मसालों के माध्यम से acids हो, कुछ ऐसी चीजें हो जो हमारे
हमारे अन्दर एक स्वाद इतना ज्यादा पैदा हो लिए काम में आने वाली है । हमारी body
जाता है कि एक बार अगर हम उस चीज के, हमारे mind के, brain में काम आने
को चख लेते हैं तो हमें बार-बार उस चीज वाली चीजें। आप बताओ pizza burger
को खाने की अपने आप एक addiction में ऐसे कौन से ingredients होते हैं ?
पैदा हो जाता है । यह हमारे अन्दर एक बाजार की chowmein में ऐसे कौन से
addiction पैदा किया जाता है । हमारी ingredients होते हैं जो हमारी body के
कमजोरियों पर एक प्रहार किया जाता है लिए बहुत ज्यादा energy देने वाले हो या
और कमजोरियों का फायदा उठाया जाता हमारे लिए बहुत ज्यादा कोई proteins
है । जो लोग असंयत होते हैं , वह इन कमजो- और vitamins के कोई source बनते
रियों का कोई भी ज्ञान नहीं रखते और दूसरे हो। पूछ लेना कहीं से भी कुछ भी नहीं है ।
के लिए फायदे की एक चीज बन जाते हैं । सिर्फ bogus! ऐसा कचरा जो हमारे लिए
अपना नुकसान करेंगे, दूसरी कम्पनियों का पेट में जाकर के पेट को भारी करता है । मैदा
फायदा करेंगे। यह इस असंयम का सबसे एक ऐसी चीज है जो easily digest नहीं
बड़ा लाभ है । सुन रहे हो क्या बोल रहा हूँ होती है । constipation पैदा करती है ।
मैं? यह असंयम का सबसे बड़ा लाभ है । उसमें जो मिलने वाले मसाले हैं , वे हमारी
दूसरे की कम्पनी चलाएँगे और अपना जो इन्द्रियों को बिल्कुल हमारे control से
body है , अपना mind, सब कुछ खराब बाहर कर देते हैं । हम अपने self-control
करेंगे। अपना पैसा भी खराब करेंगे, अपनी में रहते ही नहीं। जैसे ही वह चीज सामने
energy का भी loss करेंगे क्योंकि ऐसे आई हमें उसका जायका पहले से मालूम है ।
भोजन जो सात्विक नहीं हैं वह हमारे लिए हम अपने-आप का control इतना खो देते
न सुख देते हैं , न वह हमारे लिए बहुत ज्यादा हैं कि हम सारे संयम के नियम तोड़ कर उस
energy देते हैं , न उसके माध्यम से हम पर ऐसे गिर पड़ते हैं जैसे हम जन्म-जन्म के
बहुत देर तक कुछ अच्छा काम कर सकते हैं । भूखे हो। यही होता है ! यह क्या हो गया?
एक तो जब हमने इन भोजन पर control इन्द्रियों का संयम खो दिया। अब दूसरी चीज
किया तो क्या हुआ? हमारी इन्द्रिय पर देखो!

धर्मं का मर्म 125


उत्तम संयम धर्म

जो भी ऐसा भोजन हमारे लिए और supportable हो जाते


बना हुआ होगा, कितने हैं । लेकिन हमें यह नहीं मालूम कि इनके
दिन का बना हुआ है ? पास भी पहुँच कर के हम अपना नुकसान
कब का रखा हुआ है ? करेंगे। इनकी बातें सुनकर की भी हम अपना
मैदा का भोजन बना अहित करेंगे क्योंकि यह कहीं से कहीं तक
हुआ है । आप अगर कोई भी हमारे शरीर का, हमारे मन मस्तिष्क
थोड़ा सा भी ज्ञान का, योग का यह कोई नियम है ही नहीं।
science का जो जीवों की विज्ञान है रखेंगे योग का नियम यम से ही शुरू होता है । चाहे
तो आचार्य कहते हैं कि अड़तालीस मिनट के पतंजलि का योग हो, चाहे जैन योग हो, चाहे
बाद में उसके अन्दर बड़ी-बड़ी लटें और उसी अर्हं योग हो, कोई भी हो सब एक ही चीजें
तरह के colour के, उसी तरह की smell हैं , ये सब योग यम से शुरू होते है । यम में
के जीव उसके अन्दर पैदा हो जाते हैं । सम लगा दो तो संयम हो जाता है । समीचीन
बिल्कुल उसी जैसे! यह क्या हो गया? यम, यम पहले चाहिए। यम का मतलब
आपके अन्दर दया का तो कोई भाव है ही होता है -अपने आप को control करके
नहीं। जो मन आए सो खाना है , जो मन रखना। मन को तैयार करना। इतना
आए सो पीना है । चाहे हमें उसके लिए समझाया जा रहा है , आखिर हम क्यों
कितना भी अपना पैसा बहाना पड़े। पैसे असंयम से संयम में आने का भाव नहीं करते
की तुम्हारे पास कोई कमी नहीं। बड़ा-बड़ा हैं और संयम में आने का मतलब है - हम
job कर रहे हैं । लाखों का package आ ही अपने जीवन को एक सुरक्षित ढं ग से लम्बे
रहा है । उसको कहीं न कहीं तो हमें बहाना है समय तक के लिए चलाएँगे। इसका नाम
ही है । यह तो वह इस तरीके से हमारे अन्दर है - संयम। अगर आप अच्छा भोजन करेंगे,
दया का भाव भी जाता है और इन्द्रिय संयम जो भोजन आपके लिए बहुत ज्यादा energy
का भाव भी जाता है । अब हम अगर कभी full होगा। आपकी life लम्बे समय तक
ऐसे thinkers की बात कोई सुन लेते हैं , चलेगी, आप अपनी life को damage
अपने को control करके, अपने को किसी अपने ही तरह के uncontrolled foods
तरह के नियमों में बांध कर के, किसी भी के माध्यम से कर रहे हो। जो आपके लिए
तरह का burden अपने ऊपर डालने की नहीं खाना चाहिए, वह आप खा रहे हो। जो
कोई जरूरत नहीं। आपको तो बिल्कुल एक आपके लिए नहीं पीना चाहिए, वह आप पी
उन्मुक्त जीवन जीना चाहिए। ऐसे thinkers रहे हो और बड़े शौक से पी रहे हो। coca

126 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

cola, thumps-up, mirinda यह क्या के लिए कहीं वह सड़ न जाएँ, उन्हें fridge
है ? इतने गन्दे पानी हैं ये, इनके अन्दर इतना करके रखा जाता था। उसके लिए यह
acid होता है कि हमारे जो inner organs fridge बने थे। समझ में आ रहा है ? वहाँ
होते हैं , वह सब जल जाते हैं , तड़प जाते हैं पर लोगों के लिए उन fridge से जब
कि यह हमारे ऊपर क्या डाला जा रहा है ? नुकसान होने लगा, इस तरह के fridge में
हम अपने ही ऊपर अत्याचार कर रहे हैं और जिसमें कि सत्रह प्रकार की ऐसी gases
हम खुश हो रहे हैं । मात्र नब्बे पैसे का पानी होती हैं , जो हमारे लिए उस फल के माध्यम
होता है और हम उसको बीस-बीस रुपये में से हमारे अन्दर पहुँच जाती हैं जो भी चीज
खरीदते हैं , पच्चीस-पच्चीस रुपये में खरीदते उसके अन्दर रखी जाएगी। ऐसी
हैं और हम उन कम्पनियों को आबाद कर रहे dangerous gases होती हैं जो उसके
हैं और अपनी हानि कर रहे हैं और पी-पी अन्दर पहुँच जाती हैं । जो भी चीज हम उस
करके खुश हो रहे हैं । कहते हैं यह हमारा fridge के अन्दर रखेंगे और फिर वह चीज,
standard है । कौन सी ऐसी Jain वह gases, वह chemical हमारे अन्दर
family होगी जिसकी घरों में fridge न हो पहुँचते हैं और फिर उससे हमें cancer होता
और कौन सी ऐसी jain family जिनके है । तब हम कहते हैं हमें पता ही नहीं। हम तो
fridge के अन्दर इस तरह की bottles न शाकाहार करते आ रहे थे। हम को कैंसर
रखी हो। न हमारे लिए fridge का कोई क्या हो गया? वह fridge वहाँ से एकदम से
काम है , न bottles का कोई काम है । उनको कहना चाहिए बिल्कुल outdated
लेकिन फिर भी हमारे लिए एक standard कर दिया गया। european countries
बन चुका है । अरे! fridge तो उन लोगों के में जब इस तरीके की हानियाँ देखी, वहाँ से
लिए होते थे जो European countries उनको भगा दिया गया, हटा दिया गया।
है , जहाँ पर कोई फसल नहीं होती, कोई कम्पनियों को मिटा दिया गया, कह दिया
फल fruits नहीं होते और जहाँ पर इतनी गया यहाँ से जाओ। यहाँ तुम्हारी product
ठण्ड पड़ती है कि वहाँ पर market में लोगों नहीं बिकेंगे। उन्होंने देखा कहाँ जाएँ? दुनिया
को रोजाना जाना possible नहीं होता। में सबसे बेवकूफ, पढ़ा-लिखा बेवकूफ तो
आठ दिन, दस दिन में एक बार जब उनको भारत में मिलेगा। जिसको बेवकूफ बनाना
sunday कभी पड़ता है तब जाकर के एक बहुत easy है । कैसे easy है ? एक तो कहीं
बार वह कुछ shopping कर के लाते हैं , भी Mumbai चलो सबसे पहले और वहाँ
कुछ खाने-पीने की चीजें लाते हैं । उन्हें रखने पर किसी एक हीरो को पकड़ो या किसी एक

धर्मं का मर्म 127


उत्तम संयम धर्म

अच्छी famous हीरोइन को पकड़ो। अपना के लिए, फल-fruits आठ-आठ दिन के


product उसको दो और उससे अपना लिए घर के अन्दर रखना। fridge के अन्दर
agreement करो। बस! तुझे advertise और फिर आठ दिन तक उसको खाना। घूमने
करना है । बस! फिर देखो आप मजा। के लिए सुबह कॉलोनियों में दो घण्टे घूमते
thumps up बस! इतना उसमें से gas रहें गे लेकिन हम सब्जी मण्डी तक सब्जी
fizzle के साथ निकलनी चाहिए कि वह खरीदने नही जा सकते। बस कुछ नहीं!
बिल्कुल छत को छू जाये। हा हा हा बस! standard के नाम पर बेवकूफी अपनाना
और फिर उसके बाद में देखो आप दुनिया है , पैसा खराब करना, शरीर खराब करना है
पगलाएगी। कुछ नहीं करना, कोई कुछ और अपने आप में बस खुश होना कि मेरे घर
सोचने की बुद्धि है ही नहीं। हमें क्या पीना? में fridge है । मेरे घर में bottles हैं , मैं यह
क्या खाना? जिन को मरना है , मरते रहो। cold drink पीता हूँ। अब क्या करूँ ? अब
जिनको चिल्लाना चिल्लाते रहो। कोई कुछ असंयम दिमाग में इतना बैठ गया है कि अब
नहीं कहने वाला। न कोई नेताओं को कोई संयमित होना बड़ा कठिन हो गया है । समझ
लेना देना, न कोई देश के धर्म नेताओं का में आ रहा है ? कैसे संयम बचे? न मन का
कोई लेना-देना। वे चिल्लाते रहें गे, अपनी संयम है , न वचनों का संयम है , न काय का
community में कौन सुनने वाला है । जब संयम! कुछ भी नहीं है और संयम का मतलब
हम इतना बड़ा-बड़ा advertise दिन में दस क्या है ? अपनी limit तोड़ देना। अगर आप
बार करेंगे, बड़ी-बड़ी T.V पर, दूरदर्शनों पर limit में आ जाओगे, balance life रखोगे
तो आदमी इसको देखे। एक झूठ को भी तो आप संयमित कहलाओगे। आपको पता
अगर हजार बार बोला जाता है तो वह झूठ है कि यह चीज नुकसान कर रही है फिर भी
भी हमारे सामने सच बन कर के हमारे दिमाग आप ले रहे हो, इससे बड़ा असंयम और क्या
में fit हो जाता है , यह बात याद रखना। जब होगा? warning दी जा रही है कि इसमें
इस तरह के हमारे सामने चीजें आने लग तेजाब है , इसमें alcohol है । इसमें केवल
जाती हैं हमें पता पड़ता है कि हमसे ज्यादा chemicals हैं , कुछ भी नहीं है और इसके
बेवकूफ दुनिया में कोई है ही नहीं। आपके माध्यम से कैंसर हो रहे हैं , lever burst हो
यहाँ पर रोजाना अच्छी-अच्छी फसलें होती रहे हैं । लेकिन फिर भी मन है कि मानता नहीं
हैं । हर घर के बाहर निकलते ही हर चौराहे है । लेकिन जब संयम भाव आ जाता है तो
पर सब्जियों की दुकान लगी रहती हैं । क्या मन को मनाना पड़ता है ।
जरूरत है आपको सब्जियाँ आठ-आठ दिन

128 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

छोटे -छोटे नियम लेने से भी संयमित जीवन की शुरुआत हो जाती है


यह संयम भाव अपने परांठा खा पाएँगे। अरे भाई! बिना आलू की
आप आता है । धीरे- कुछ चीजें नहीं बनती है क्या? केले की
धीरे आता है , हर किसी टिक्की खाओ, केले के परांठे खाओ, कुछ भी
के जीवन में आएगा खाओ, सब चीज का सब कुछ बनता है ।
अगर आप ढं ग से अगर मन में संयम का भाव आएगा तो आप
देखोगे, ढं ग से सुनोगे उस चीज को छोड़ पाओगे। अब धीरे-धीरे
तो। आप देखते हो, देखो संयम कैसे बढ़ता है ? अगर आपके
आप के सामने संयमी बैठे हैं , एकदम से संयम के भाव अच्छे हैं और आपके कर्म
संयम भाव नहीं आ जाता, संयम भाव धीरे- अच्छे हैं तो आपको संयम में promotion
धीरे आता है , अपने आप आ जाता है । कहने भी मिलता है । अब एक बेटे की बात बता रहा
के लिए जब कोई गुरु कुछ कहता है और हूँ मैं। अब वह दस दिन-आठ दिन का शिविर
उस समय पर हमने बात मान ली, किसी गुरु attend करने के बाद में आलू छोड़ कर घर
ने कहा इस शिविर में आए हो, आठ दिन पर आ गया। अब उसके जो मित्र हैं वह उससे
तक, दस दिन तक आलू नहीं खाना। ठीक कहते हैं , अभी तक तो रोजाना ठे ले पर चलते
है! नहीं खाएँगे। शिविर पूरा हो गया लेकिन थे, चाट पकौड़ी खाते थे। अब क्या हो गया?
उसके बावजूद भी आप कितने और दिनों आज क्यों नहीं चल रहे हो? अरे! नहीं! नहीं!
तक आलू नहीं खा सकते हो। कब तक आलू वह सब छोड़ दिया। अब नहीं खाना, आलू
नहीं खा सकते हो, पता ही नहीं है अब! आलू खाने का त्याग कर दिया। अब दोस्त हैं , कैसे
नहीं खाना तो एक बार छूटा तो छूटा। ऐसा मानेंगे? अरे! रोजाना तो चलते थे चलो!
नहीं कि आठ-दस दिन के बाद में फिर गिर आज भी चलो! अरे! नहीं! नहीं! आलू नहीं
पड़े हो। दस दिन बाद अब जब सब लोग, खाना! आलू नहीं खाना! आज मुझे कहीं
इतने अच्छे -अच्छे लोग बिना आलू खाये भी जब चाट के ठे ले पर जाऊँगा तो आलू के
जी सकते हैं तो क्या हम नहीं जी सकते। बिना तो कुछ मिलता ही नहीं। आलू तो
अब! फिर दिमाग चलेगा नहीं! आलू खाने से खाना ही पड़ेगा। उसी की टिक्की, सब कुछ
बहुत energy आती है , आलू खाने से बहुत उसी का समोसा होता है । ऐसा है तुम आलू
carbohydrates मिलता है । आलू अगर नहीं खाना लेकिन मेरे साथ चलो चलो चलो
छोड़ देंगे फिर तो कुछ भी नहीं बचेगा। न चलो और वह ले गया। सुन रहे हो? क्या
टिक्की खा पाएँगे, न पकौड़ी खा पाएँगे, न करना है ? आप यह जो गोल गप्पा, इधर

धर्मं का मर्म 129


उत्तम संयम धर्म

इसमें कोई आलू नहीं है । यह तो आटे का गोल गप्पा लेना शुरू किया। अब देखना
बना हुआ है , अब इसमें पानी मिला है , क्या होता है ? समझ आ रहा है ? एक ले
इसको तुम खाओ। मैं अपनी समोसा टिक्की लिया, दो ले लिए तीसरा जैसे ही उसके हाथ
खा रहा हूँ तुम इसको खा लो। अब देखो! में आया है , उसमें वह क्या करता था? मीठी
संयम का प्रभाव वह जब तक लेकर के आ चटनी होती है न, मीठी चटनी और पानी सब
गया जबरदस्ती लेकर के आ गया। अब चीज डाला था। वह तो एकदम से उसने
लाकर के उस ठे ले पर खड़ा कर दिया और चटनी डाली, वह घड़ा रहता है , उसमें से उसने
उसने दोस्तों के force में आकर के चलो पानी भरा और दोने के अन्दर हाथ में रख
ठीक है ! आलू तो नहीं खाना, अभी गोलग- दिया। एक दम से तीसरा जैसे ही हाथ में
प्पा तो खा सकते हैं । लेकिन फिर भी उसके आया और उसने देखा, एक दम आँख गयी
अन्दर डर लग रहा है कि देखो! लोग क्या तो उसमें एक लाल रं ग की उस चटनी के
सोचेंगे। घर का भी अगर कोई व्यक्ति यहाँ से साथ में बर्र थी। बर्र जानते हो? जो मधु
निकल गया तो क्या सोचेगा कि यह अभी मक्खी घूमती है न, काटने वाली, यह बर्र
आलू छोड़ कर आया है । घर में कह रहा था उसके अन्दर थी। उसी समय पर उसको
कि आलू के त्याग है और चाट के ठे ले‌ पर फेंका। इतनी घृणा हुई कि आज के बाद चाहे
खड़ा है । क्योंकि आदमी को हम क्या दोस्त कहे , चाहे कोई कहे कभी भी इस ठे ले
समझाने जाएँगे, वह तो कुछ भी सोच सकता पर आकर के बाहर की कोई चीज नहीं
है । चाट के ठे ले में खड़े होने का मतलब ही है खाऊँगा और उसके बाद में वह संयम ऐसा
कि बिना आलू के कुछ होता ही नहीं। लेकिन बढ़ा कि उस आत्मा ने फिर कभी उस असंमय
फिर भी डरते-डरते दोस्तों के कहने में उसने भाव में कभी किया नहीं।

इन्द्रिय संयम और प्राणी संयम दोनों को ध्यान में रखो


इसको बोलते हैं - संयम। अगर हम का समय है और उस समय पर अगर थोड़ा
चाह रहे हैं संयम भाव तो हमारे दोस्त भी सा भी न देखा जाये तो आप क्या खा जाते?
हमको असंयमी बना नहीं पाएँगे क्योंकि कितना बड़ा जहर खा जाते जिसके काटने
अब हमारे अन्दर भाव आ गया है । अगर पर शरीर इतना सूझ जाता है । उसमें कितना
वह हमारे साथ जबरदस्ती भी करेंगे तो हमारे जहर होता है और वह चीज एक छोटे से
लिए हमारे कर्म उससे भी विरक्ति पैदा करा उस बतासे के अन्दर आ गई। पानी बताशा
देंगे। आप समझो कितनी बड़ी चीज है । शाम सब कुछ बोलते है न! उसको और वह चीज

130 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

उसके अन्दर आ गयी। अब आप सोचो, क्या का भाव पलेगा। न जाने कौन कैसे बना रहा
संयम है ? किसको दया है ? बाहर के जितने है ? कितने जीवों की हत्या करके बना रहा
भी हलवाई खाने हैं , जितने भी मिष्ठानों की है ? हमें कुछ भी पता नहीं। इसलिए हम ऐसी
दुकानें हैं किसको दया होती है ? आप देखते गन्दी चीजें नहीं खाएँगे। दूसरा इससे हमारा
हो हलवाइयों की दुकानें हैं , तरह-तरह की इन्द्रिय संयम पलेगा। हम इतनी तीक्ष्ण,
उसमें मीठे रखे रहें गे, बोरों के बोरों में शक्कर इतनी intensity वाले, ये सब मसाले क्यों
रखी रहे गी। उनमें चीटियाँ भी लगते रहें गे। खाएँ जिससे हमारी जीभ जल जाए, पेट
चीटें भी लगते रहें गे, कोई किसी को जानता जल जाए, नुकसान हो जाए और बाद में हम
है क्या? कोई किसी को बचाता है क्या? फिर कहें कि हमारे लिए lever कमजोर हो
सब घोंट दो। सब की चाशनी बना दो और गया। हमारा दिमाग घूम रहा है । हमको
बाद में ऊपर से छलना लगा देंगे। सबको चक्कर आ रहे हैं । यह सब अपना नुकसान
उठा कर के उसी के नीचे डाल दो और वह क्यों करना? इसी का नाम संयम है । जो भी
भी जाएगा तो नीचे जाकर के उसे भट्टी में पढ़े -लिखे बच्चे, अपने मन में यह भाव
जला देंगे। कौन देख रहा है ? क्या हो रहा है ? लाते हैं और उनके मन में भाव आ ही जाता
इसलिए पहले बोला जाता था ‘एक हलवाई है कि हम किसी भी तरह का संयम नहीं
सौ कसाई’ यह पुरानी कहावत है याद रखो। लेना चाहते हैं , नियम नहीं लेना चाहते हैं ।
क्या कहा जाता था? आप नियम मत लो, अभी यह नियम नहीं
अगर आप बाजार की दिया जा रहा। अभी यह क्या है ? संयम!
कोई चीज खा रहे हैं संयम का मतलब सिर्फ इतना है आप अपने
आपके अन्दर दया का मन में सोच लो ये चीजें गन्दी हैं तो हम इनको
भाव आएगा ही नहीं, कुछ time के लिए नहीं लेते हैं तो देखते हैं
प्राणी संयम होगा ही क्या होता है ? इसका नाम है - संयम। अभी
नहीं। प्राणी संयम का त्याग नहीं कराया जा रहा है । त्याग तो कल
मतलब है - प्राणियों परसों आएगा। अभी क्या है ? सिर्फ संयम!
का हम से घात न हो जाए। अगर आप वे संयम का मतलब ये जो extra, फालतू
चीजें खा रहे हैं जो अब घात तो कर ही रहे हैं , चीजें हैं न, इनसे अपने को बिल्कुल avoid
दया तो आपके अन्दर है ही नहीं तो आपके करना और इसके बिना भी हम बिल्कुल
अन्दर ये दोनों भाव आने चाहिए। बाहर की discipline के साथ चले कि हमारे धर्म गुरु
चीजें नहीं खाने से एक तो हमारे अन्दर दया हमको जिस किसी discipline में ले जाना

धर्मं का मर्म 131


उत्तम संयम धर्म

चाह रहे हैं , हम उसी के साथ चले। रात में बहुत सारी चीजें खाने के लिए, इनके बिना
नहीं खाना, argument बाद में कर लेंगे। भी बहुत सारी चीजें हैं पीने के लिए हम इनसे
पहले हमें नहीं खाना इसकी feeling करना energy लेंगे। इन चीजों में energy तो
कि नहीं खाने से क्या होता है ? इसका नाम इतनी है कि ये सब चीजें हमारी energy जो
है - संयम। हमें करके देखना है । अगर हमारे positive है , उसको भी destroy कर
लिए अच्छा लगेगा, हमें energy feel देती हैं । ये चीजें ऐसी बेकार निर्जीव होती हैं
होगी, इसके बिना भी चलेगा तो हम आगे क्योंकि जब हम अपने अन्दर इस तरह की
सोच लेंगे। हम अपने जीवन को कितने लम्बे चीजों का सेवन करेंगे तो हमारे सद्विचार,
time तक का संयम बना सकते हैं , इसको हमारा शरीर, हमारे मन सब पर असर पड़ता
हम खुद decide करेंगे, कोई force नहीं है और वह चीज हमारे नुकसानदायक है ।
आपके ऊपर। यह संयम धर्म सिर्फ इतना इस तरह से अपने अन्दर संयत भाव को
कह रहा है आपको। आप सही line में आ बनाने की कोशिश करें। कोई नियम नहीं है ,
जाओ, सही direction में चलो। इन्द्रिय त्याग नहीं है । यह स्वयं में स्वयं के द्वारा
संयम और प्राणी संयम दोनों को ध्यान में अपनाया जाने वाला हर तरह का discipline
रखते हुए आप अपनी गति आगे बढ़ाओ। है । इसमें argument बाद में करने का,
इसका नाम क्या है ? उत्तम संयम धर्म। अभी पहले हमें जिस कम्पनी में join किया है तो
कोई त्याग नहीं हो रहा है । अभी सिर्फ उस कम्पनी का हमें rules, regulations
control हो रहा है । आपको इस control जो है उनको follow करना है । कोई भी
की practice करना है । जो-जो चीजें आप कम्पनी का employee कभी भी इस बात
के लिए लग रहा है , हमें warning दी गई पर कभी argument नहीं करता कि मुझे
है कि ये चीजें गलत हैं । चाहे वह तम्बाकू हो, यही dress क्यों पहनना है ? इतनी हिम्मत
drinking करना हो, चाहे वह किसी तरीके किसी employee के अन्दर नहीं होती। जो
के soft drinks हो, कोई भी चीजें हो, अपने उस manager या director से
आपके लिए अगर यह लगता ये सब चीजें कहे कि मुझे यही dress क्यों पहनना है ?
गलत हैं तो हम अपने आप को पहले संयत अगर उसने उसमें allow किया है कि
बनाएँ। रात में भोजन करना गलत है । आलू आपको white colour की shirt पहनना
प्याज खाना गलत है‌। ये सब हम पहले है और black colour की पैंट पहनना है
संयत हो कर के इन सब चीजों को अपने तो आपको वही पहनना है । रोजाना पहनना
आप अपने मन से कहें । हम इनके बिना भी है तो रोजाना पहनना है । all seven days

132 धर्मं का मर्म


उत्तम संयम धर्म

आपको इसी dress में आना है , तो इसी हो जाता है । आलू क्यों नहीं खाते?, प्याज
dress में आना है । हम कितने बनवाएँ? क्यों नहीं खाते? रात में भोजन क्यों नहीं
आप जानो आपका काम जाने लेकिन करते? ये सब बातें बताती हैं कि आपके
रोजाना कम्पनी के अन्दर आपको इसी अन्दर अपने Jainism के rules को
dress में दिखना है । otherwise आपका follow करने का कोई भी devotion नहीं
get out कर दिया जाएगा। इतना बड़े है । इसलिए इन बातों को हम बाद में
होकर के भी हमें get out कर दिया जाता समझेंगे। पहले हम यह समझें आत्मा को
है और उसके डर से हम वहाँ discipline संयम धर्म के अनुसार आगे बढ़ाना है और
करते हैं । वहाँ कोई argument नहीं करते संयम के पथ पर जब हम आगे बढ़ें गे तभी
हैं और यहाँ पर अगर कोई थोड़ा सा भी हमें आगे कुछ आगे के धर्म हमें प्राप्त करा
jainism का basic rules and पाएँगे।
regulations है तो arguments शुरू

धर्मं का मर्म 133


Day - 06
आज का चिंतन- संयम के भाव को समझना
अपनी संयम का संकल्प लें। महीने में, 6 महीने में,
की वृद्धि के लिए साल में, 2 साल में।
किस प्रकार मन को
4. उन आदतों की list बनाएँ समय सीमा
prepare करेंगे,
के साथ।
उसके लिए आज आप
चिं तन करेंगे: 5. Note down करना आईना है ,
1. अपने मन जिससे आप महीने या साल बाद अपनी
और व्यवहार संबंधी ऐसी आदतों के success का आंकलन कर सकेंगे।
बारे में विचार करें जिन्हें आप छोड़ना 6. यही आपकी संकल्प शक्ति की नींव
चाहते हैं । जैसे- चाय, सिगरेट, तंबाकू। होगी।
2. ऐसी आदतें जिन्हें आप गलत मानते हैं । आज आपका task है : आपने संयम कहाँ-
3. उन आदतों को छोड़ने की समय अवधि कहाँ रखा?

S. खाने पीने घर में किसी भी तरह की परिग्रह किसी से बोलचाल में


no. की चीजों में की चीजों में

134 धर्मं का मर्म


आज का एहसास
संयम tool है मन जितना संयम बढ़ता है , उतनी आत्म शक्ति
को काबू करने का। बढ़ती है ।

स्व-संवेदन

• क्या आप अपने अंदर असंयम के भाव • क्या आप अपने अंदर संयम का भाव
को पकड़ पाए? Yes / no / little ला पाए? Yes / no / little bit
bit

धर्मं का मर्म 135


Day-7: उत्तम तप धर्म
‘णाणं पयासगो तवो सोधगो संजमो है मतलब यह हमारी रक्षा करने वाला है ।
य गुत्तियरो। ‘तिण्णं समासेण’ इन तीनों के ही समायोग
तिण्णं समासेण य मोक्खं जिण से ‘मोक्खं जिणसासणें दिट्ठो’ जिन शासन
सासणें दिट्ठो।l’ में मोक्ष कहा गया है । आज हम समझेंगे कि
आचार्य वट्टकेर महाराज जो कि एक पूर्व हमारे अन्दर जो आत्मा का ज्ञान स्वभाव है ,
आचार्यों में एक प्राचीन आचार्य हुए हैं , प्रा- जो ज्ञान का प्रकाश है , वह ज्ञान का प्रकाश
माणिक आचार्य हुए हैं , उन्होंने इस गाथा में वृद्धि को प्राप्त होता है । उस ज्ञान में जो अशु-
बहुत अच्छे भाव दिए हैं कि ज्ञान तो प्रकाशक द्धियाँ हैं , वह शुद्ध होती हैं । हम अपने अन्दर
है ‘णाणं पयासगो तवो सोधगो’ तप हमारा तरह-तरह की जो विकलताएँ, कषायें रखे
शोधन करने वाला है । ‘संजमो य गुत्थीय- हुए थे, वह सब धीरे-धीरे निष्कासित होती हैं
रो’ और संयम हमारे लिए गुप्ति करने वाला तो वह तप के माध्यम से ही होती हैं ।

तप करने की अलग-अलग कला


तप ही वह अग्नि है , जो श्रेष्ठता को प्राप्त होती है तो वह तप के माध्यम
अग्नि की तरह ही सभी से ही होती है । हर किसी को एक तपस्या
चीजों को शुद्ध बनाता करनी ही होती है तभी वह अपने किसी भी
है। जिस तरह से अग्नि लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है । मानव जीवन भी
में तपा हुआ कोई भी एक तपस्या का जीवन है और अगर हम देखे
पदार्थ यदि वह अपने तो शुरू से ही हमें तपस्या करना सिखाया भी
आप में मौलिक है तो जाता है और हम तपस्या करते भी हैं । जब
उसकी मौलिकता कभी भी नष्ट नहीं होगी। जन्म होता है तो माता-पिता की तपस्या शुरू
उसमें जो दूसरी चीजें जुड़ गई हैं , जो हो जाती है । जन्म से पहले भी माँ के द्वारा
impurities उसके अन्दर आ गई हैं , वह बहुत तपस्या की जाती है तब एक पुत्र का
जरूर remove होंगी। यह अग्नि का बहुत जन्म होता है , एक सन्तान की उत्पत्ति होती
बड़ा कार्य होता है इसलिए तप को अग्नि की है । उस माँ की तपस्या को यदि हम ध्यान में
तरह कहा गया। संसार में जब भी कोई चीज रखें तो हम समझ पाएँगे कि कितना कष्ट

136 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

सहकर के भी माँ खुश रहती है और अपने ऊनोदर तप कहते हैं । doctor कहता है कि
सन्तान की उत्पत्ति के लिए लालायित रहती ज्यादा रसीली चटपटी चीजें मत खाना, मिर्ची
है और वह हर तरह का तप करती है । अगर ज्यादा मत खाना, कटु क चीजें ज्यादा मत
हम तप की गिनती देखें तो आत्म कल्याण खाना क्योंकि जो रस बनता है , बच्चे के मुँह
के लिए तो तप की गिनतियाँ बहुत कम में भी पहुँचता है उसको नुकसान पहुँचाएगा
है । बाहरी तप छह हैं , अन्तरं ग तप छह हैं , तो रस परित्याग भी कर लेती है । doctor
total बारह तप हैं ; कुछ ज्यादा नहीं है । कहता है कि जो अपनी खाने-पीने की चीजें
आत्म कल्याण के लिए तो बहुत कम तपस्या हैं , वे अपनी नियमित कर लो। मैं जो diet
है । किन्तु यदि हम अपने संसार को चलाने का आपको chart बना के दे रहा हूँ बस
के लिए देखें तो हम इससे कई गुना तप इसी के आप इसको follow करना, इतना
किया करते हैं । ही करना तो उसका वृत्तिपरिसंख्यान होता
अगर हम इन छह तपों है । doctor कहता है कि आपको कहीं भी
को भी देखें तो एक माँ जाना नहीं है , अकेले घर में रहना है , ज्यादा
छह तप करके ही आगे घूमना-फिरना नहीं है । एक जगह बैठो, एक
बढ़ती है , जो बाहरी तप जगह आराम से बैठे रहो, bed पर रहो, एक
कहलाते हैं । अनशन कमरे में रहो, यह उसका विविक्तशय्यासन
तप होता है - भोजन तप होता है । जो उसको धीरे-धीरे बच्चे की
पानी का त्याग करना। शिशु की वृद्धि के साथ में एक भारीपन
जब वह अपने सन्तान की उत्पत्ति के लिए लगता है , शरीर में बहुत क्लेश होता है लेकिन
तैयार होती है तो किसी भी तरह के भोजन वह उसको सहन करती है । जब पुत्र की
पानी पर कोई भी उसकी लालसा नहीं रह उत्पत्ति होती है तब भी उसको बहुत पीड़ा
जाती। मिल जाता है तो ठीक, न मिल जाता होती है , सब सहन करती है । यह उसका
है तो ठीक। उसके लिए ऐसा नहीं होता कि कायक्लेश तप होता है । करती है , वह भी तप
मुझे बहुत खाना है । जब वह किसी भी तरह करती है और उसके बाद में जो सन्तान उत्पन्न
से अपने बच्चे की, शिशु की रक्षा करना होती है उसको भी तप करने में लगा देती है ।
चाहती है । अगर डॉक्टर कहता है कि आपको
अपनी diet पर ध्यान रखना है तो वह भूख
से भी कम खाना मंजूर कर लेती है । किस
कारण से? पुत्र के मोह के कारण से। इसे

धर्मं का मर्म 137


उत्तम तप धर्म

तप के माध्यम से strength बढ़ती है


धीरे-धीरे जब सन्तान की वृद्धि होती नहीं होती क्योंकि आपका interest कहीं
है तो वह सन्तान भी पढ़ने के माध्यम से दूसरी जगह लगा हुआ है । आप पढ़ रहे हैं
भी अपनी तपस्या करके ही आगे बढ़ पाती माँ जबरदस्ती आपको खिलाती है , बुलाती
है । क्योंकि अगर हम देखे तो बालपने की है , पिलाती है तब जा कर के आप थोड़ा सा
तपस्या शिक्षा ग्रहण करना है । अगर आप खाते हैं । कई बार अनशन भी हो जाते हैं ,
शिक्षा ग्रहण कर पा रहे हैं तो समझो कि ऊनोदर भी चलता रहता है । कोई रस की
आप एक तपस्या कर रहे हैं और उस तपस्या इच्छा नहीं होती सिर्फ एक ही ध्यान रहता
में सब तप घटित हो जाएँगे। आपको स्कू ल है कि मेरा परीक्षा का समय निकट आ गया
जाते हुए भी, परीक्षा देते हुए भी, अपने है । मुझे पढ़ना है और मुझे बहुत अच्छे ढं ग
विषय के प्रति ध्यान रखते हुए भी, सब तरह से पास होना है । यह आपके अन्दर की एक
की मेहनत करने को मिलती है और यह छह तपस्या होती है और यही तपस्या करके आप
प्रकार से मेहनत करना आपको सिखाया कुछ अच्छा बन पाते हैं । बिना तपस्या के
जाता है , आप इसको करते हैं । जब आप तो कोई चीज मिलती नहीं। हर व्यक्ति के
अपने काम में लगे रहते हैं तो आप भूख प्यास लिए जो businessman कर रहा है वह
की भी चिन्ता नहीं करते, पूरा दिन भूखे भी भी तपस्या करता है । जब उसके लिए कुछ
कहीं निकल भी जाता है तो कोई दिक्कत ऐसा season का time आता है तब आप

138 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

देखो सुबह से शाम तक एक पैर पर भी खड़ा है और तपाने से वह चीज बहुत पक्की, बहुत
होने को कहे तो खड़ा रहे गा। सुबह से शाम अच्छी भी बन सकती है , दोनों ही बातें हैं ।
तक counter पर खड़ा-खड़ा ग्राहकों को आप अगर किसी भी चीज को तपा रहे हैं ,
चलाता रहे गा। बैठने की भी इसके अन्दर चाहे दाल बना रहे हैं , चाहे खिचड़ी बना रहे हैं
इच्छा पैदा नहीं होगी और लोग आएँगे, या कोई भी चीज, दूध को भी तपा रहे हैं तो
ग्राहक आएँगे और वह सब तरीके से उनके आपको यह देखना होगा, यह तप के दोनों
साथ लेन-देन करेगा। पैसे के व्यामोह में काम हो सकते हैं । तप से कोई भी चीज
business के कारण से वह सब तरीके के निखर के भी सामने आ सकती है । तप से
कष्ट भी सहे गा, business purpose से अगर दूध ढं ग से तपेगा तो मलाई भी बन
दूर दूर यात्राओं पर जाता है । कहीं कुछ खाने सकती है , बहुत अच्छी वाली, अच्छा दूध
को मिलता है , नहीं मिलता है , एक-एक दिन गाढ़ा भी बन सकता है और अगर आपने तप
के उपवास भी हो जाते हैं । कहीं कुछ थोड़ा में कमी कर दी, ध्यान नहीं दिया तो दूध उस
बहुत मिल जाता है , उससे भी काम चला पतीली में लग भी सकता है , जल भी सकता
लेता है और तरह-तरह के ये जो हम भूख- है , उफन भी सकता है और खराब भी हो
प्यास की बाधा है आसानी से सहन भी करते सकता है । होता है कि नहीं। रोजाना आप
हैं , जो business करते हैं उनसे पूछ लो। रसोई में काम करते हैं और तप करके ही
लेकिन business करने वाले जो संयमित दूसरों के लिए कुछ उपकार कर पाते हैं , चीजें
जीवन जीने वाले होंगे, उन्हीं से पूछना। बनाते हैं और चीजें बनाने में जो आप साव-
क्योंकि संयम के बाद में तप है । धानियाँ रखते हैं , वह सावधानियाँ बताती हैं
अगर आपने संयम कि आप अच्छी चीजों को अच्छे ढं ग से बना
ग्रहण किया है तो तप सकते हैं । सामान्य से व्यक्ति जब अज्ञानता
उसकी रक्षा करने के में होता है तो वह यह देखता है कि खिचड़ी
लिए होता है । तप बनाना क्या बड़ी बात है ? दूध तपाना क्या
आपके अन्दर की बड़ी बात है ? मुझे क्या करना है ? गैस जला
योग्यता को और कर के और उसको भगोनी को उसके ऊपर
निखारता है और तप रख देना अपने आप बन जाएगा। मुझे क्या
के माध्यम से आपकी strength बढ़ती है । करना है ? यही सोचते हैं न! कभी घर के
जब भी कभी आप किसी भी चीज को लोगों से कह कर देखना कि आज खिचड़ी
तपाएँगे तो तपाने से वह चीज जल भी सकती आप बनाना, आज दूध आप गर्म करना तो

धर्मं का मर्म 139


उत्तम तप धर्म

उनको समझ में आएगा। एक खिचड़ी भी तो ही कहलाता है कि यह तप ज्ञान के साथ


बना नहीं पाएँगे। उसके लिए भी किस समय हो रहा है क्योंकि ज्ञान के लिए हो रहा है ।
पर हमें देखना, किस समय पर उसके लिए आत्मा ज्ञान स्वभावी है हमें उस आत्मा के
उस खिचड़ी के अन्दर भी हमें चम्मच चलाना ज्ञान स्वभाव को प्राप्त करने के लिए उस
और किस समय पर हमें उसे उतारना ये सब ज्ञान को और शुद्ध बनाने के लिए तप करना
चीजें अगर ध्यान में नहीं होंगी तो वह पकने होता है , हमारा मौलिक उद्देश्य तप का होता
के बजाय जल जायेगी। जब पकेगी तो बहुत है । इसी उद्देश्य के साथ में जब कोई तपता
स्वादिष्ट होगी, सबको सुख देगी, सब के है तो उसे आत्म शान्ति मिलती है , आत्मिक
लिए हितकारी होगी और जल गई तो कोई सुख मिलता है । तप करने के लिए मना नहीं
भी उसे एक चम्मच भी मुँह में रखने को तैयार है लेकिन जब हम तप करने बैठे तो तप का
नहीं होगा। इसी तरह से व्यक्ति के अन्दर तप उद्देश्य ध्यान में रखें। माटी को संयमित बना
की इच्छा पैदा होती है कि हम तप करें, तप कर के उससे एक साँचे में ढाल तो दिया
करें, तप करें लेकिन तप करके क्या करें? गया, अब उसकी आगे तपस्या शुरू होने
यह तो पता होना वाली है , उसकी परीक्षा शुरू होने वाली है ।
चाहिए।
‘णाणं पयासगो’ तप को जानो यह भी एक परीक्षा है
आत्मा ज्ञान स्वभाव तप के माध्यम से पता पड़ेगा कि उसने
वाला है , ज्ञान प्रकाश अपने अन्दर कितनी strength अपनी मा-
को बढ़ाना है , अपने नसिकता में बना रखी है । तप की भट्टी में जब
अन्दर ज्ञान की क्षमता उसे डाला जाएगा तब पता पड़ेगा कि वह
को बढ़ाना है और अपने ज्ञान स्वभाव में क्या कर रही है ? तप करने में दोनों बातें हैं ।
लीन होने के लिए ही तप किया जाता चीजें बनती भी है और चीजें मिटती भी है ।
है । तप करके केवल शरीर नहीं जलाना, तप करने से दूध मला-
तप करके आपको केवल वह पतीली नहीं ईदार बन भी सकता है
जलाना, न उस पतीली में रखा हुआ दूध और दूध बिल्कुल जल
जलाना, तप करके आपको उस दूध को भी सकता है । तप
बनाना है । दाल है , चावल है तो उस की करने से दाल चावल
खिचड़ी को खिचड़ी के रूप में उसको ढालना सब जल भी सकते हैं
है । यह अन्दर की चीज अगर हमें ज्ञात रहे गी और बढ़िया खिचड़ी

140 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

बन भी सकती है जो अपने शरीर के पोषण आपका एक भगौने की तरह है , तप की अग्नि


के लिए बहुत काम आ सकती है । तप करने आपने उसमें लगा दी। आपके अन्दर ज्ञान है ,
से माटी एक solid strength वाली सुख है , ये आपकी मौलिक चीजें हैं । जिन्हें
निखरती हुई एक माटी अपने आप में बहुत आप उस पतीली में रखे हुए उस द्रव्य की
शक्तिमान भी बन सकती है और तप करने से तरह समझना, ये आपकी चीजें बढ़नी
वही माटी उसके अन्दर जल के भस्मसात भी चाहिए। श्रद्धा है , ज्ञान है , नम्रता है , सुख है ,
हो सकती है । यह एक चीज जो आपके ये सब चीजें बढ़नी चाहिए। तप करने का
सामने आ जा रही है यह तप एक परीक्षा है । मतलब ही है कि आपकी परीक्षा की जा
किस बात की परीक्षा है ? जो आप ने छह रही है । आपके अन्दर एक जबरदस्ती कोई
दिन का course किया है न, इस course चीज डाली जा रही है । आपकी परीक्षा के
की परीक्षा है । आपने अपने अन्दर कितनी लिए कि आप कितना सहन कर सकते हो।
सामर्थ्य पैदा कर ली है ? कितने आपने अपने यह तप अपनी खुशी से किया जाता है ,
अन्दर एक humbleness पैदा कर ली है ? अपनी शक्ति का परीक्षण करने के लिए
कितना आप अपने अन्दर भीतर से बिल्कुल किया जाता है । तप कई बार हम दूसरों के
ऋजु हो गए हैं , सरल हो गए हैं ? कितना आप द्वारा भी ग्रहण करके कर सकते हैं लेकिन
अपने अन्दर बिल्कुल लोभ से रहित हो गए किसी भी तरह की परिस्थिति चाहे वह दूसरों
और आपका संयम बढ़ रहा है कि घट रहा है । के द्वारा निर्मित हो, चाहे मैंने उसे खुद निर्मित
तप के माध्यम से संयम बढ़ना चाहिए, क्षमा की हो, हमें उसमें उत्तीर्ण होना है , इसी का
बढ़नी चाहिए, मृदुता, ऋजुता, निर्लोभता सब नाम तप है । यह ध्यान में अगर रहे गा तो
बढ़नी चाहिए और जितना ये बढ़ें गी तभी तक व्यक्ति तप करके कुछ प्राप्त कर पायेगा।
तप कार्यकारी है , तभी तक तप काम का है । हमारी परीक्षा है और उस परीक्षा की कसौटी
अगर यह बढ़ने की बजाय घटने लग जाए तो पर अगर हम खरे उतरे तो हमारे लिए समझ
तप करना छोड़ देना, रुक जाना। यह चीज लेना अपने आप merit list में नाम आ
ध्यान में रख कर के ही अगर हम तप करेंगे गया।
तो उस तप से कुछ मिलेगा। लोगों को जब
यह ध्यान नहीं रहता तो वह तप तो करने की
इच्छा करते हैं लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि
भीतर से हमें इस तप से कुछ लाभ हो रहा है
या हम केवल बस तपे जा रहे हैं । शरीर तो

धर्मं का मर्म 141


उत्तम तप धर्म

अधिकतर लोगों की तप करने के बाद दूसरों से अपेक्षाएँ बढ़ जाती है


आप देखें जब भी आप मैंने तो तीन उपवास किए और कोई मुझे
थोड़ा सा भी तप करेंगे, पूछने वाला तक नहीं है कि पारणा करनी है ।
मान लो आपने किसी ने मुझे उकाली तक बना कर नहीं दी,
उपवास किया या कोई जूस तक भी नहीं पिलाया। मैं देखता
ऊनोदर किया या ही रहा कि कोई मुझसे पूछेगा, किसी को
आपने कोई रस परि- कुछ चिन्ता ही नहीं है , मैंने कितना बड़ा काम
त्याग किया, किसी भी किया। सुन रहे हो? यह मानसिकता होती है
तरह का आपने कोई तप किया। अब उस कि नहीं होती है ? उन लोगों से पूछना जो
तप को करने के बाद में आप यह देखो कि लोग तप करते हैं और तप करने के बाद में
आपकी अपेक्षाएँ दूसरों से ज्यादा बढ़ गई हैं । पारणा करने के लिए तत्पर होते हैं । उस दिन
आपके अन्दर किसी चीज के प्रति likes- यदि कोई हमारी फिक्र नहीं कर रहा है , कोई
dislikes और ज्यादा बढ़ रही है या आप हमें अनुकूलता के वातावरण नहीं दिख रहे
अपने आप में सन्तुष्ट हैं । आपने एक दिन तप हैं । कोई हमारे लिए अच्छी चीजें नहीं दे रहा
किया, दूसरे दिन आपको उस तप के पारणा है , हमें जिन चीजों की जरूरत है वह हमें नहीं
करनी थी और आप के लिए कोई भी सुविधा भी मिल रही हैं तो हमारी मानसिकता इतनी
जनक चीजें नहीं हैं । न तो आपसे कोई पूछ दृढ़, इतनी अच्छी होनी चाहिए कि हम तब
रहा है कि आपकी पारणा है आइए, आइए, भी खुश रहें । तब भी हम अपने समता और
आइए आपको भोजन कराते हैं । आपके शान्ति के भाव में रहें । लोग यह समझते हैं
लिए अच्छी-अच्छी चीजें बनाई हैं , आपके कि अगर हमने तप कर लिया मतलब चौबीस
लिए हमने बहुत कल से मन बना करके रखा घण्टे का दिन निकाल लिया तो हमारा तप
है । मान लो आपसे कोई पूछ ही नहीं रहा है , पूरा हो गया। अगले दिन से तो फिर हम वैसे
आपने तप कर लिया। सुन रहे हो तपस्वी ही हो जाते हैं । जो बोलना है सो बोलना है ,
लोगों? दुनिया में जितने भी तपस्वी हैं सब गुस्सा करना है तो गुस्सा करना है क्योंकि
सुने। आपने तप कर लिया, अब दूसरे दिन तप तो कल का था न, आज तो कुछ है ही
क्या होना है ? वह आपकी तप की परीक्षा है । नहीं है । आज तो हमें पारणा करना है , तो वह
जो कर लिया वह कोई मायने का नहीं है , वह शुरू हो जाते हैं । जैसा भी चाहे वैसा जबकि
मायने तब दिखेगा जब आप दूसरे दिन उस तप तब तक पूर्ण नहीं है , जब तक कि आपकी
मानसिकता में हैं मैंने तो दो उपवास किये, पारणा शान्ति के साथ न हो जाए और उसके

142 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

बाद आपके विचार क्या हैं यह आपको रस पी के खुश होंगे। अगर यह mentality
आपको खुद भीतर से realize न होने लग बनेगी तब कुछ तप का फल मिलेगा। हम
जाए तब तक उस तप की पूर्णता नहीं होती सूखी रोटी खाकर के भी उतने ही खुश रहें गे,
है । समझ में आ रहा है कि नहीं? आपको जो जितना कि हम मिष्ठान खाकर के या कोई
बात बता रहा हूँ, दुनिया में कोई नहीं बताएगा पके हुए पकवान, अगर हमें कोई हलुआ बना
वह बात बता रहा हूँ। किसी को ये बातें कर के दे रहा है , तो हम खुश हो रहे हैं । हमारे
मालूम नहीं है । तप करने का मतलब लोग अन्दर तप करने के बाद की परिणति एक
सिर्फ इतना ही समझते हैं , हमने उपवास समझ में आनी चाहिए। वह बताएगी कि
कर लिया, तप हो गया। मैं कहता हूँ कुछ आपने कल क्या किया अन्यथा तो यह होगा
नहीं हुआ। तप के बाद जो होगा वह सब कुछ कि आप कल का इन्तजार कर रहे थे कि
होगा। आपको दूसरे से कितनी अपेक्षा है , कल हमारे लिए ऐसा होगा। आप कल का
आपको किन-किन चीजों की अपेक्षा है । इन्तजार कर रहे थे कि कल जब आएगा तो
आपने सोच रखा है हमको दो गिलास अनार ऐसा होगा, हम कल ऐसा करेंगे, हमारे साथ
का रस मिलना चाहिए, हमको दो गिलास ऐसा होगा। आज का दिन तो निकल जाने
ठं डाई मिलनी चाहिए, आपको कुछ नहीं दो तो आप कल के इन्तजार में आज का दिन
मिल रहा है । आपने क्या इसके लिए तप गुजार रहे हैं । हमारे समझ में यह तप नहीं
किया था? आप अपने मन में शक्ति बना कर आता। जब इस तरह का कोई तप होता है तो
रखो। अगर हमें पानी भी मिलेगा तो हम क्लेश होना स्वाभाविक होता है ।
पानी से भी उतने ही खुश होंगे, जितना हम

तप के बाद क्लेश से निदान बंध


बड़े-बड़े साधक भी क्लेश करते हैं । जा कर खड़े हो गए। फिर आहार के लिए
महीनों तक के उपवास करने के बाद में उठे , फिर आहार नहीं मिला तो फिर तीसरा
भी इस तरह के क्लेश कारण से बड़ा- महीना खड़े हो गए, इतनी सामर्थ्य तप करने
बड़ा निदान बंध करने वाले साधकों के की और फिर उपवास करने के बाद में पारणा
उदाहरण पुराणों में भरे पड़े हैं । ऐसे-ऐसे करने के लिए आए। उस दिन भी आहार नहीं
साधक एक महीने के बाद आहार के लिए मिला। लौटकर जा रहे थे, रास्ते में ही बुढ़िया
उठते हैं , आहार नहीं मिला, दूसरे महीने फिर थी, कहने लगी आपस में बातचीत कर रही
एक तपस्या करने के लिए फिर शिखर पर थी कि देखो! यहाँ का राजा कितना दुष्ट है

धर्मं का मर्म 143


उत्तम तप धर्म

कि जब जब मुनि महाराज के पारणा का राजा के प्रति कि अच्छा! राजा मेरा दुश्मन


अवसर आता है सबसे तो कह देता है पारणा है ! मुझे मार डालने की योजना बना रहा है ।
मैं कराऊँगा, पारणा मैं कराऊँगा और किसी इसलिए किसी को अपने घर में पारणा के
न किसी कार्य में व्यस्त हो जाता है । मुनि लिए आहार के लिए एक निमन्त्रण देने के
महाराज की पारणा का दिन निकल जाता किसी भी तरह से आहार की व्यवस्था करने
है , उनका time चला जाता है और वह फिर के लिए मना करता है । उन्होंने ऐसा निदान
से उपवास करने के लिए चले जाते हैं । ऐसा बंध किया कि इस राजा को मैं अगले जन्म
लगता है राजा महाराज को मार डालेगा। में देखूँगा। वह साधक मर कर के कंस बनता
गृहस्थ लोग हैं , आपस में बातें कर रहे हैं और है । कंस का नाम सुना है ! श्री कृष्ण के समय
वह बात मुनि महाराज के कान में पड़ गई। का कंस, यह उसके कंस के पूर्व भव की
जैसे ही वह बात मुनि महाराज के कान में घटना बता रहा हूँ। इस तरह के साधकों ने
पड़ी, उन मुनि महाराज की इतनी सामर्थ्य थी अपने तप को व्यर्थ किया है । यह इसलिए
कि तीन-तीन महीने के उपवास करने के बाद सुनाया जाता है कि ताकि आप भी ध्यान रखें
भी कुछ नहीं था और इतनी सी बात सुनने कि कितनी सामर्थ्य हमारे अन्दर है ।
के बाद में, इतनी कषाय पैदा हो गई उस

तप के माध्यम से शोधन होता है , purity आती है


शारीरिक सामर्थ्य तो अच्छा तप कर रहे हैं और एक तरफ आपका
बहुत हो सकती है । हम अपने घर के लोगों से, जैसा आपके पहले
दस उपवास कर सकते बिल्ली बंधी थी वैसी बंधी है आपकी बिल्ली।
हैं , पन्द्रह उपवास कर बिल्ली! समझने लगे न आप लोग। जो लोग
सकते हैं लेकिन हम अच्छे ढं ग से task कर रहे होंगे, अच्छे ढं ग से
किसी की छोटी बात शिविर कर रहे होंगे, उनको समझ में आएगा,
को भी सहन कर सकते बिल्ली क्या है ? हमें तप करते हुए शोधन
हैं कि नहीं, यह भी देखना चाहिए। हम अगर करना है । अपनी गांठें खोलना है । तप करते
किसी के प्रति अपनी कोई धारणा बना रहे हैं हुए हमें अपने दोषों का निष्कासन करना है ,
कि अच्छा वह हमारे साथ ऐसा करने वाला तप करते हुए हमें जिनके प्रति हमने अपनी
है , ऐसा कर देगा हमारे लिए, यह कितनी धारणाएँ बना रखी थी, उन्हें हटाना है , छोड़ना
बड़ी अज्ञानता है। आप एक तरफ बहुत है । अपने आपको बिल्कुल हल्का बनाना है ।

144 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

तप करने का मतलब यह है कि मिट्टी के allopathic doctor सही नहीं बताएगा।


अन्दर जितनी impurity अभी भी है , साँचे वह कहे गा medicine लो, operation
में ढलने के बाद भी वह सब जल-जल कर कराओ, injection लगाओ, यह करो, वह
उससे निकलेगी और बाकी की जो चीज करो। लेकिन यह चीज भी अच्छे -अच्छे
बचेगी वह उसकी अपनी अस्तित्व की चीज doctors के माध्यम से prove हो चुकी हैं
होगी। वह उसकी अपनी मौलिक विशेषता कि इस चीज का सबसे अच्छा समाधान है -
होगी, जिसे कोई भी अग्नि जला नहीं सकती। उपवास करना। जो कैंसर के cells बनते हैं ,
अग्नि कभी अस्तित्व को नहीं जला सकती है , वे cancerous cells केवल उपवास से
अग्नि कभी हमारे real nature को नहीं damage होते हैं । उपवास के माध्यम से
जला सकती। अग्नि हमेशा उस चीज को कम होते हैं , उनका formation कम होने
जलाएगी जो हमारे अन्दर अलग से आ चुका लग जाता है । हमारे अन्दर अपने आप सिर्फ
है । वह अग्नि को हम अपने अन्दर प्रविष्ट उपवास से उस रोग से लड़ने की एक
कराएँ तो तप के माध्यम से शोधन होता है , strength आती है । आप कुछ न खाएँ।
शुद्धि होती है , purity आती है । हमारी आपके अन्दर पेट में ऐसे enzymes पैदा
body में भी आती है , हमारे thoughts में होंगे, ऐसे acid बनेंगे अपने आप, जो शरीर
भी आती है । तप हमेशा पवित्रता को बढ़ाता के अन्दर अनेक बीमारियाँ पेट में, blood
है , purity को बढ़ाने का काम करता है । में, अनेक बीमारियाँ बनने को तैयार हो रही
body के अन्दर भी इतनी purity आती है हैं , उस सब उनको बिल्कुल discard कर
कि आज भी इस बात की सिद्धि हो चुकी है देंगे और remove कर देंगे, यह उपवास की
कि जिनके अन्दर बड़ी-बड़ी बीमारियाँ होती क्षमता है । body को strong बनाने की,
हैं , वह लोग अगर अनशन करें तो उन बड़ी- body को pure बनाने की यह उपवास में
बड़ी बीमारियों से अपने आपको बहुत काफी क्षमता है । अनशन में यह क्षमता है लेकिन
हद तक बचा सकते हैं । अनेक बीमारियों का हमें अगर तपस्या से डर लगेगा तो हम
इलाज केवल अनशन है । आप में क्षमता कभी भी अपने ज्ञान को अपने सुख को
होनी चाहिए करने की और जिस समय पर बढ़ा नहीं पाएँगे और यह देखा गया है ।
ऐसी बीमारियाँ जो आपकी body के अन्दर
फै लती चली जाती हैं - जैसे कैंसर की
बीमारियाँ हैं , tumor की बीमारियाँ हैं , इन
बीमारियों का इलाज आपको कोई भी

धर्मं का मर्म 145


उत्तम तप धर्म

तप से चमत्कार
ऐसे tumor के केस भी हमने देखे हैं । जैसे बिल्कुल स्वस्थ हो गई, अब यह कहीं
जब हम आचार्य महाराज के संघ में थे, सल्लेखना न छोड़ दे। बिल्कुल स्वस्थ होने
एक महिला को ऐसा brain में tumor लगी और स्वस्थ होकर ही उसका अन्तिम
हुआ था। उसकी सल्लेखना चल रही थी, मरण हुआ। यह doctor भी कहते हैं कि
उसको आचार्य महाराज ने अपनी पद्धति से जिनको कैंसर होता है , tumor होता है ,
धीरे-धीरे सारा भोजन-पानी बिल्कुल इतना वह उपवास करे। पथरी होती है केवल जल
control कर दिया था कि वह बिल्कुल उपवास करें। आपके लिए अगर मान लो
ही अपने भाव में रहते हुए सुख से, आनन्द भूख सहन नहीं होती है , आप जल उपवास
के साथ, धर्म-ध्यान से बिल्कुल रहने भी करेंगे, उससे भी बहुत कुछ impurities
लगी थी। उसके सल्लेखना से पहले उसे दूर होती हैं । आप अपनी body के अन्दर
tumor की बहुत वेदना होती थी। जैसे- की strength बढ़ाएँ। किस से बढ़ाएँ? इन
जैसे उसने अपना खान-पान सब control तपों के माध्यम से। जो बाहरी तप है यह
किया, उसकी वेदना इतनी शान्त हो गई वह हमारी body की strength बनाने वाले
इतनी खुश रहने लगी, ऐसा लगता था कि हैं और हमारे body के अन्दर strength

146 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

बढ़ रही है तो हमारे अन्दर जो अन्तरं ग तप है होती है , एक indirect approach होती


वह हमारी मानसिक, mental strength है । अपने कर्मों के निर्जरा करने के लिए,
को बढ़ाने वाले होंगे। तप करने के बाद अपनी आत्मा तक कोई भी चीज को पहुँचाने
भी आपके अन्दर प्रायश्चित का भाव रहना के लिए, अन्तरं ग तप की direct
चाहिए। प्रायश्चित मतलब हमने अगर कोई approach होती है । प्रायश्चित के भाव में
गलत कार्य कर लिया है तो हम उस कार्य का आओ, क्षमा करो सबको। उपवास का
अपने अन्दर से पश्चाताप करते हैं । इधर हम दिन है तो किसी के प्रति क्लेश का भाव नहीं,
तप भी कर रहे हैं , इधर हम पश्चाताप भी कर क्रोध का भाव नहीं, जिनसे हमारे अन्दर कभी
रहे हैं , अब यह double तप हो गया। यह दुर्भाव भी पैदा हुआ, उनसे हृदय से क्षमा
जो तप है , यह सबसे ज्यादा आत्मा के लिए करो। अरे! हम जब इतना तप रहे हैं , अपने
हितकारी है । शरीर को इतना तपा रहे हैं , हमें आभास हो
बाह्य तप का आत्मा से रहा है कि यह शरीर तो क्षणिक है , हमारी
indirect सम्बन्ध है आत्मा ही शाश्वत है तो हम यहाँ पर किसी से
और अन्तरं ग तप का वैर बांधने के लिए अगर तैयार होंगे तो इस
आत्मा से direct वैर को बांध कर के हम कहाँ जायेंगे? क्या
सम्बन्ध है । एक लेकर के जाएँगे?
direct approach

धर्मं का मर्म 147


उत्तम तप धर्म

अन्तरं ग तप
हमें तो इस तप के के प्रति हित करने का भाव रखो, दूसरों की
माध्यम से अपने अन्दर सेवा करने का भाव रखो। अगर आप दूसरों
सब के प्रति क्षमा का की सेवा कर रहे हैं तो भी समझे कि आप तप
भाव, दया का भाव, कर रहे हैं । वैयावृत्ति तप! किसी के ऊपर
अगर हमसे कोई कोई कष्ट है , उस कष्ट को दूर करने की चेष्टा
गलती हो गई तो उसके करो। उसको ज्ञान से, ध्यान से, तरह-तरह
लिए प्रायश्चित का भाव की पद्धतियों से उसके कष्ट को दूर करने के
ऐसे अपने परिणामों को बिल्कुल soft लिए, स्वयं तैयार हो जाना, यह अपने आप
बनाना। विनय के भाव बढ़ाना, तप करने के में बहुत बड़ा अन्तरं ग तप है , वैयावृत्ति तप है ।
बाद में भीतर से और ज्यादा समर्पण बढ़ता यह तप करके आप direct कर्मों की निर्जरा
है। जो समर्पण से यात्रा शुरू हुई थी वह तप कर सकते हैं । स्वाध्याय- इसको तप कहा
करने में तब दिखाई देती है जब किसी भी गया है , आप ज्ञान को ग्रहण करने के लिए
तरह का तप किया जा रहा है । फिर भी उसके अपने चित्त को, अपनी इन्द्रियों को, एकत्र
प्रति या जिसने हमें तप करने के लिए प्रेरित करके शास्त्रों का चिन्तन करें, शास्त्रों को
किया है , उसके प्रति कभी भी हमारे मन के पढ़ें , शास्त्रों में अपनी बुद्धि लगायें। यह
अन्दर कोई मलिनता न आये कि आपने हमें आपका एक बहुत बड़ा तप होगा, यह अन्त-
क्या करवा दिया। जिनके लिए हम तप कर रं ग तप है । बाहरी तप कर के भी हमें क्या
रहे हैं उन आत्मिक गुणों के प्रति विनय करना है ? अन्तरं ग तप पर दृष्टि डालना है ।
भाव लाना। तप करने से मेरे अन्दर की ऐसा नहीं कि आज तो हमें भोजन बनाना
श्रद्धा, मेरा ज्ञान, मेरा चारित्र, कितना बढ़ता नहीं, आज हमें भोजन करना नहीं तो चलो
है ? अपने उन ज्ञान, दर्शन, चारित्र के प्रति आज! फुर्सत में हैं । जितने भी रजाई गद्दे
विनय का भाव लाना उन गुरुओं के प्रति पहले के पड़े हुए, चलो! उनको धूप में सुखाते
विनय का भाव लाना, जिन्होंने इस तरह की हैं । जितने भी दाल चावल हमें बीनने थे,
हमें प्रेरणा दी। यह विनय का भाव बढ़ना आज फुर्सत का time मिला है , सबको
चाहिए, अन्तरं ग तप है , इससे बहुत कर्म की बीनते हैं । जितने भी मसाले बनाने थे, चलो!
निर्जरा होती है , आत्मा की शुद्धि होती है । आज ही बना डालते हैं । जितने भी घर गृहस्थी
प्रायश्चित हुआ, विनय हुआ। तीसरा अंतरं ग के काम थे, आज फुर्सत का दिन है , सब कर
तप है - वैयावृत्ति। आप अपने मन में दूसरों डालते हैं । यह करना है या बाह्य तप करते हुए

148 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

अन्तरं ग तप करना है ? course पूरा करना हम अपने लिए सहन कर रहे हैं तो हमें यह
है कि course करते-करते कहीं से कहीं तो महसूस हो ही रहा है कि कोई भी चीज
direction अपनी ले जाना है । बाह्य तप दुनिया में हमारी नहीं है । अन्तरं ग में राग द्वेष
का उद्देश्य अन्तरं ग तप की वृद्धि, प्रायश्चित के हैं , उनको भी निष्कासित करो, बहिरं ग में जो
भाव बढ़ाओ, विनय के भाव बढ़ाओ, स्वा- हमारा परिग्रह उसके प्रति भी ममत्व भाव
ध्याय करो, वैयावृत्ति करो। ये चीजें जब छोडो, यह व्युत्सर्ग तप है । फिर किस में लीन
बढ़ें गी प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्ति स्वाध्याय, हो जाओ? अन्त में अगर आप ध्यान में लीन
व्युत्सर्ग एक तप कहा गया यानी अपने हो गए तो समझो आपका तप परिपूर्ण हो
अन्दर बाहरी चीजों से अपना ममत्व परिणाम गया। ध्यान में लीन हो जाओ, आत्मध्यान
छोड़ दो कि यह मेरा है । अब क्या मेरा है ? में, अर्हं ध्यान में लीन हो जाओ बस! ध्यान
जब हम शरीर को ही तपा रहे हैं , इतना कष्ट की लीनता तप की परिपूर्णता है ।

धर्मं का मर्म 149


उत्तम तप धर्म

तप आत्म उन्नति में कारण


इस तरह से जब हम राग द्वेष को जलाने के लिए तप करना है ।
अपना प्रयोजन हमें अपने कर्मों की निर्जरा करने के लिए तप
साधने के लिए तप करना। हमें अपने पापों का संवर करने के
करते हो तो यह तप लिए, विशुद्धि बढ़ाने के लिए तप करना। इस
हमारी आत्मोन्नति में तरह के उद्देश्यों से जब तप होगा तो वह
कारण होते हैं अन्यथा अपनी आत्मा के लिए होगा, अपनी आत्मा
केवल कष्ट सहन की उन्नति के लिए होगा। दोनों option
करने की आदत तो हम देखते हैं दुनिया में आप के पास हैं । क्या करते आए हैं आप?
सबके पास है । हर बच्चा कष्ट सह रहा है , हर यह भी आप खुद महसूस करें। क्या नहीं
माँ सन्तान को उत्पन्न करने में कष्ट सह रही किया है वह भी महसूस करें। क्या हम कर
है । तप तो सब कोई कर रहा है लेकिन उस चुके हैं , वह भी महसूस करें। क्या हम कर
तप का उद्देश्य क्या है ? माँ की उस तपस्या सकते हैं आगे, हमें अपनी tendency कैसी
का उद्देश्य केवल अपने सुख की पूर्ति मोह के बनानी है वह भी महसूस करें। अगर आप
माध्यम से करना या अपने मोह को बढ़ाना है इन सब चीजों को समझ पाएँगे तो आप तप
उससे आत्मा का कोई कल्याण नहीं हो रहा को समझ पाएँगे और तप के महत्व को
है । बच्चा अगर तप कर रहा है , सब तरीके समझ पाएँगे। तप अपने आप में बहुत बड़ी
की भूख प्यास सहन कर रहा है सिर्फ चीज है और यहाँ पर आने के बाद में भी वही
इसलिए कि मुझे अच्छी job करना है । तप गलती होती है जो गलती हम पहले करते हुए
तो कर रहा है लेकिन उद्देश्य क्या मिल रहा या उस गलती को दबाते हुए आ रहे हैं । वह
है ? अच्छी merit list में नाम आना सब गलती हमें यहाँ पर आकर के दिखाई
चाहिए। उसके बाद में फिर हमारे लिए अच्छी देने लग जाएगी जो हम गलतियाँ दबाते हुए
rank बनेगी। हमारे लिए अच्छे जगह पर आ रहे हैं । मान लो आप क्रोध को दबाते हुए
admission होगा,अच्छी job मिलेगी। आ रहे है , जब आप तप करोगे तो आपके
यह सब हमारे उद्देश्यों में हैं तो उद्देश्य में हमारा अन्दर body में तो सामर्थ्य रही नहीं तो अब
संसार है और एक तरफ उद्देश्य में क्या है ? आपके मन में जितना भी ज्यादा चिड़चिड़ा-
हमें अपनी आत्मा में लगे हुए दोषों की शुद्धि पन होगा, irritation होगी, जितना भी
करना है । हमें अपने अन्तरं ग की प्रसन्नता आपके मन में किसी के प्रति द्वेष होगा, क्रोध
को, शान्ति को महसूस करना है । हमें अपने होगा, कुछ छोटी सी बात पर भड़कने को वह

150 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

बिल्कुल तैयार होगा। इसका मतलब क्या मिल गई तब तो ॐ अर्हं नमः हो ही रहा है
हुआ? आपने अपने शरीर को तो तपाया और नहीं भी मिली तो कोई दूसरा गलत
लेकिन आपने अपने मन को नहीं तपाया, comments पास कर रहा है तो भी क्या
मन में सामर्थ्य नहीं पैदा की। आप में इतनी करना? ॐ अर्हं नमः! अपने में खुश रहना
सामर्थ्य तो है कि आप दस दिन का, एक है । यह उद्देश्य जब हम बना लेंगे कि हमारी
महीने का उपवास कर सकते हैं लेकिन शान्ति हमारे पास है , हमारी शक्ति हमारे
आपमें इतनी सामर्थ्य नहीं है कि आप छोटी पास है । ॐ में शक्ति है , अर्हं में purity है ।
सी बात अपने अपमान की सह सकें। पन्द्रह उस purity और उस शक्ति उन दोनों को
दिन के बाद, दस दिन के बाद भी कोई आपसे मिला कर के अपने अन्दर शान्ति को महसूस
कहे , ऐ ढोंगी तपस्वी! क्या बोल दे? ढोंगी करना, यह तप का उद्देश्य बनेगा। फिर
तपस्वी! बेवजह अपने शरीर को जलाते आपके लिए कभी भी तप से खेद खिन्नता
रहता है । क्या होगा आप का हाल? समझ में नहीं आयेगी। कुछ लोग तो तप करने के बाद
आ रहा है ? दस दिन के बाद अगर कोई में ऐसा सोच लेते हैं , भैया! इस बार हो जाए,
आपसे ऐसा कहे और फिर भी आपके मन एक बार हो गया आज का दिन निकल जाए,
में, किसी भी तरीके का, कोई भी ऐसा भाव उसके बाद तो कभी सोचेंगे ही नहीं। अगर
न आये कि हमने कुछ गलत कर लिया है । ऐसा आपके मन में भाव आ गया है तो कुछ
हमने जो किया, बहुत अच्छा किया, इसे कुछ नहीं, बेवजह आप परेशान हो रहे हैं । तप
पता ही नहीं यह क्या बोल रहा है ? यह केवल दिखावे के लिए नहीं करना है । कई
कितना पाप कमा रहा है । हमने जो किया, लोग तो केवल अपना एक इस तरीके का
वह हमारे लिए इतना शुभ कर है कि हमें एक mode ही बना लेते हैं कि हमने चार
इसकी बात को सुनकर के भी कोई खेद नहीं बार कर लिया, पाँचवीं बार भी हो जाए, छह
हो रहा है और हम अपने आनन्द में हैं । ॐ बार कर लिया तो सात बार हो भी जाए,
अर्हं नमः, ॐ अर्हं नमः, क्या समझ आ रहा record बनाना है क्या? ठीक है ! हो जाए
है ? आनन्द में आना है तो बस आपको यही तो हो जाए, नहीं हो जाये तो नहीं हो जाएगा।
करना होगा। जब भी आप कोई अच्छा काम अपनी सामर्थ्य देखो, अपनी शक्तियाँ देखो,
करेंगे, बड़ा काम करेंगे, किसी भी तरह का, आज की परिस्थितियाँ देखो। किसी भी चीज
कोई भी अपनी क्षमताओं को परखने का के प्रति ज्यादा हमारे अन्दर अगर जबरदस्ती
काम करेंगे, आपको उसमें सफलता मिल का भाव आ रहा है , तो उससे हमारे मन की
भी सकती है , नहीं भी मिल सकती है । अगर शान्ति बढ़ रही है या हम मन में दुःख पैदा कर

धर्मं का मर्म 151


उत्तम तप धर्म

रहे हैं , यह अपने अन्दर एक पैमाना बना ध्यान की क्षमता भी बढ़नी चाहिए, स्वाध्याय
रहना चाहिए। शरीर का तो ठीक है हम सहन की रूचि पैदा होनी चाहिए, ध्यान करने में
कर लेंगे लेकिन उससे हमारे मन की शान्ति, time ज्यादा invest होना चाहिए। ऐसा
मन का सुख तो नहीं बिगड़ रहा है न! तो नहीं कि हम जैसे तैसे करके घूम फिर कर के
आचार्य कहते हैं - हमेशा बाह्य तप से अन्त- दिन निकाल रहे हैं । गपशप लगा कर के दिन
रं ग तप को बढाओ। अपने अन्दर ज्ञान, निकाल रहे हैं ।

अनशन और उपवास में अन्तर


यह तो फिर उपवास नहीं होगा, यह को नष्ट करके, अनुपम अनन्त सुख को प्राप्त
अनशन कहलाएगा। कर लूँ। इस तरह की जो progressive
अनशन का मतलब है - thoughts होते हैं उनको हम सामने रखें
असन नहीं करना और और उसी तरह के विचारों के साथ में अगर
उपवास का मतलब है - हम आगे बढ़ें गे तो हमारे लिए तप करने का
अपने निकट आना। बड़ा आनन्द आएगा। तप में भी आनन्द है ,
उप मतलब निकट, दुःख में भी हमारे अन्दर आनन्द का भाव
वास मतलब रहना। आना चाहिए। तो ध्यान में रखें, तप हमारी
अपनी आत्मा में रहना, मजबूती बढ़ाता है । क्या करता है ? तप हमें
अपने निकट रहना। अपनी आत्मा के पास तोड़ भी सकता है । आप देख लो कोई भी
आने के, परमात्मा के पास आने के और चीज जब आप किसी भी चीज को किसी भी
अपनी आत्मा में छु पे परमात्मा को महसूस स्थिति से ज्यादा करेंगे तो वह चीज टू ट भी
करने के लिए यह तो साधन है । हम जितना सकती है और वह चीज मजबूत भी हो सकती
ज्यादा उपवास आदि के साधन करेंगे उतना है । मान लो आप कोई भी exercise कर
ही हमारे भीतर समर्पण की भावना बढ़नी रहे हैं या कुछ कर रहे हैं , किसके लिए होती
चाहिए, परमात्मा के प्रति हमारा लगाव है ? अपनी muscles को strong बनाने
बढ़ना चाहिए, हमारे अन्दर अपने आप ऐसे के लिए। अगर आपने exercise ज्यादा
भाव जुड़ना चाहिए कि हे परमात्मा! मैं अगर कर ली तो muscles टू ट भी सकती हैं ।
अपने अन्दर इस तरह की सामर्थ्य बढ़ाता अगर आपने exercise बिल्कुल जितना
चला जाऊँ तो मुझे ऐसी भी सामर्थ्य मिल करना चाहिए, उतनी करके उसकी ताकत
जाए कि मैं तुम्हारी तरह सब प्रकार के कर्मों बढ़ाई तो वह muscles आपकी strong

152 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

भी बन सकती हैं और थोड़ा-थोड़ा सा हमें ताकतों को बढ़ाने के लिए, इस तरह के तपों


उसमें वृद्धि करके उसकी strongness का आलम्बन लेते हैं उनकी शक्तियाँ बढ़ती
बढ़ानी भी होती है । लेकिन यह भी ध्यान चली जाती हैं । इतनी बढ़ती चली जाती है कि
रखना होता है कि हम कितना सहन कर ‘णमो दित्ततवाणं, णमो तत्त तवाणं, ये
सकते हैं और muscles भी कितना सहन extreme चीजें बताई गई हैं । ऋद्धियाँ प्रकट
कर सकती हैं जिससे कि वह अपनी ताकत हो जाती हैं , जिसके माध्यम से आप जितना
को बढ़ाये, टू टे न। कभी टू ट जाए तो फिर तप करोगे उतना ही आपके शरीर में तेज
इतनी भी ताकत रखो कि हम उससे जोड़ कर बढ़ेगा। जितना तप करोगे उतना ही आपके
के, इस तरह से उसको बिल्कुल मजबूत बना आत्मा का आनन्द बढ़ेगा। उतनी extreme
दे कि वह पहले से ही चार गुना और मजबूत तक भी इन ऋद्धियों तक जब यह तप पहुँच
हो जाए। तप करने का मतलब एक बहुत जाता है तब जाकर के इस तप का हमें पूर्ण
बड़ी risk लेना है । जो लोग अपने अन्दर की फल दिखाई देता है ।
इस तरह की शारीरिक और मानसिक

तप मतलब इच्छाओं को नियन्त्रित करना


ऐसे ऋद्धिधारी मुनि हर तरीके के कार्य सिद्ध कर सकता है । तप
महाराज भी होते हैं । करने से इतनी आत्मिक शक्ति आती है ।
तप कराने से उनके ऋद्धियाँ, सिद्धियाँ सब तपस्वी को ही प्राप्त
शरीर की शक्तियाँ होती हैं । तपस्या के माध्यम से प्राप्त होती है
बढ़ती है और जो चमक लेकिन वह तपस्या कैसी होनी चाहिए?
है , दीप्ति है वह और अपनी इच्छा के मनमाफिक नहीं होनी
बढ़ती चली जाएगी। चाहिए। वह तपस्या आत्म नियन्त्रण के साथ
कान्ति जो है वह और बढ़ती चली जाएगी होनी चाहिए, संयम के साथ होनी चाहिए
और जब हम शुरुआत में तप करते हैं तो क्या और जैसा हमें तपस्या के लिए भाव बताया
होता है ? शरीर में तप जैसे ही करोगे, आपके जा रहा है उसी के अनुसार होनी चाहिए।
शरीर की कान्ति, glow सब बिल्कुल तपस्या एक extra चीज है । पहले हमें जो
down रहे गा। धीरे-धीरे शक्तियाँ बढ़ती हैं । संयम का course दिया है , वह हम संयम
यहाँ तक आ गया है आपको अपनी कोई भी का course पूरा करें। जब आप संयम
कार्य सिद्ध करना है जो तपस्वी है , वह अपने करते-करते अपने मन को आगे बढ़ाएँगे,

धर्मं का मर्म 153


उत्तम तप धर्म

देखो! महाराज के कहने से हमने दस दिन न्त्रित कर लेना, संयम के साथ में इच्छाएँ
का संयम तो पालन किया। हमने चाय नहीं उत्पन्न होंगी लेकिन हम उनको नियन्त्रित
पी, तम्बाकू नहीं खाई, रात में भोजन नहीं करते चले जाएँगे। ‘to overcome our
किया। अब दस दिन होने के बाद में या दस desire’ यह कब होता है ? जब हमने अपनी
दिन के बीच में, फिर भी इच्छा तो हो रही है इच्छा को अपने ज्ञान, ध्यान से रोका न हो
कभी न कभी तो आप उसको गलत न तब होता है । अगर हमने अपनी इच्छा के
समझें। इच्छा हो गई, अब हम यह देखें कि ऊपर अपनी शक्ति लगा दी है , आत्मा का
हमने उस इच्छा को नियन्त्रण कर लिया कि स्वभाव ज्ञान और ध्यान में लगा दिया है तो
नहीं कर लिया। कोई भी चीज जो हम खाते इस तरह की कभी भी परिणतियाँ नहीं होगी।
आए, पीते आए, किसी time पर भी लेते तप करने वालों को जब अभ्यास हो जाता है ,
आए, अगर हमारी उसके अन्दर इच्छा भी हो तो कभी-कभी तो पता नहीं पड़ता कि आज
गई तो हम सोचे नहीं! इस इच्छा को हमें मेरा उपवास था। कभी-कभी ऐसी ही
नियन्त्रित रखना है । इस इच्छा को हमें feeling आती है , दूसरे दिन ध्यान करना
divert करना है । इच्छा दबाना अलग चीज पड़ता है । बिल्कुल अपने सब रोजाना के
है और इच्छा को एकदम से divert कर काम में लगे हैं । सुबह उठे , अपना सब प्रति-
देना, वह क्या हो जाता है ? आप एकदम क्रमण, सामायिक सब कुछ किया, प्रवचन
अपने mind को स्वाध्याय में लगा दें। ॐ कर लिये। पता ही नहीं लगता जैसे कि कल
अर्हं नमः, ॐ अर्हं नमः में लगा दें। अपने मेरा उपवास था, आज जल्दी पारणा करने
आप आपकी इच्छा एकदम से divert हो जाना है कि जल्दी क्या पड़ी है ? ठीक है ! हो
जाएगी। आप थोड़ी देर बाद भूल जाएँगे। जाएगा। कभी-कभी इतनी अच्छी feeling
देखो! मुझे उस समय पर कैसा भाव हो रहा होती है । यही feeling जो है वह वास्तविक
था कि मानो मैं इसके बिना रह नहीं सकता अच्छे तप के बारे में बताती है कि हम हमेशा
या मुझे इसकी याद आ रही थी। आपने थोड़ा इस बात को ध्यान में रखें कि तप करने से
सा अपना attitude change किया इच्छा तो होगी कभी न कभी लेकिन हमें उसे
एकदम से आपके अन्दर change के कारण control करना है । उसको हमें diversion
से जो positive feelings आने लगी, देना है । किस के through?
बस! यही समझो कि आपने अच्छा काम
किया। यही आपका तप हो गया। तप का
मतलब क्या हो गया? इच्छाओं को निय-

154 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

इच्छाओं को स्वाध्याय, ध्यान और चिन्तन के माध्यम से diversion देना ही तप है


अपने स्वाध्याय के माध्यम से, अपने पाएँगे। चीजों के साथ experience किया
ध्यान के माध्यम से, अपने चिन्तन के माध्यम करो। हम बोल रहे हैं तो हमको क्या फायदा
से। अरे! मन बार-बार क्या उसी चीज के हो रहा है ? हम नहीं बोल रहे हैं तो हमको क्या
बारे में सोचता है । जिन्दगी से तो खाता- फायदा हो रहा है ? इसलिए मन को सुनाओ,
पीता आया है , एक दिन नहीं खाएगा तो मर मन को समझाओ, आवाज दो। हम बोलें,
जाएगा। चल चुप बैठ, आज तेरे को पद्म कान ने सुना, मन में गया, मेरी आवाज मेरा
पुराण सुनाता हूँ। सुन बैठ कर, किसे बोलना? मन सुन रहा है , अपना circle इसी तरीके
दूसरे से नही, अपने मन से बोलना। जब हम से चल रहा है । हम स्वाध्याय जरूरी नहीं
कोई चीज बोलते हैं तो सबसे पहले कौन कि दूसरे को सुनाने के लिए करें, हम पढ़ें ,
सुनता है ? अपना मन सुनता है और कोई मस्त हो कर के बिल्कुल आनन्द के साथ
नहीं सुनता, अपने मन को सुनाना पहले। ऐसे पढ़े जैसे मेरा मन अलग है , मैं अलग
इसीलिए बोल कर के पढ़ा जाता है अन्यथा हूँ, मैं अपने मन को पढ़ा रहा हूँ। practice
चुपचाप पढ़ लो। कोई चीज चुपचाप पढ़ोगे करके देखो। आपको अच्छा task दे रहा हूँ।
तो आप देखोगे चीज पढ़ने में भी आ रही है क्या करना है आपको? कोई भी स्वाध्याय
और मन इधर-उधर की सोच रहा है । जब को अपने मन को सुनाना है । आज अपने
आप थोड़ा सा बोल कर के पढ़ रहे हो तो वह मन से कहो, मैं आज इस ग्रन्थ के दो पन्ने
कौन सुन रहा है ? मन सुन रहा है । इसलिए तुम्हें सुनाऊँगा। किससे? अपने मन से। तुझे
थोड़ा सा बोल कर पढ़ना चाहिए। प्रारम्भ में बिल्कुल सावधानी के साथ सुनना है । दो
थोड़ा सा बोल कर के ही, मन्त्र जाप करना पन्ने तुझे इस ग्रन्थ के सुनाऊँगा। आज तुझे
चाहिए, पूजा करना चाहिए। थोड़ा सा बोल तत्त्वार्थ सूत्र के प्रवचन सुनाऊँगा, आज तुझे
करके, एक दम से मौन होकर के कुछ नहीं तत्त्वार्थ सूत्र सिखाऊँगा। अपने मन से कहो
करना चाहिए। अगर आप थोड़ा सा बोल तब आपका मन आपकी गिरफ्त में आएगा।
कर के पढ़ें गे तो आपका मन सुनेगा तो मन तभी जा कर के वह कुछ आपके लिए अच्छा
इधर-उधर नहीं जाएगा। मन उसी को सुनने सिद्ध होगा। नहीं तो मन मनमानी करेगा,
में लगेगा और अब आप चुपचाप देख कर के इसलिए आचार्यों ने कहा है - ‘चित्रं जैनी
पढ़ें गे तो आप पढ़ते भी जाएँगे, पन्ने पलटते तपस्या हि, स्वैराचार निरोधिनी’ क्या कहा?
जाएँगे। मन में कुछ और भी चलता चला
जाएगा, मन को आप control नहीं कर

धर्मं का मर्म 155


उत्तम तप धर्म

‘जैनी तपस्या’ मतलब उसको अपने सिर के ऊपर रख कर के ले


जिनेन्द्र भगवान के द्वारा जायेंगे। कलश! मंगल कलश वह बन
बताई गई जो तपस्या जायेगी। समझ आ रहा है ? किससे आई
है , वह बड़ी विचित्र है । क्षमता? कच्चे घड़े को कोई सिर के ऊपर
क्यों विचित्र है ? इसमें रखता है ? पका होना चाहिए। पका ही लाल
‘स्वैराचार’ नहीं होता। सुर्ख दिखाई देगा। कच्चा तो ऐसा ही होगा
‘स्वैराचार’ मतलब जैसे आप पाउडर लगा लेते हैं अपने मुँह के
मनमाफिक चीजें नहीं होती। जैसा कहा गया ऊपर और पका बिल्कुल लाल सुर्ख होगा।
है , वैसा करो। अब आपने कुम्भकार को जब आप कभी धूप में कोई मेहनत कर रहे हो
समर्पित कर दिया है तो अब आपके मन की और उस समय देखो आप अपने शरीर का
नहीं चलेगी। साँचे में ढल गए हो तो अब तेज, अपने मुख का तेज, कैसे लाल हो जाता
इधर-उधर जाने की कोशिश मत करो। अब है । ऐसा लाल सुर्ख तप करके जब होगा तब
आपकी अन्तिम अगली जो step है , वह वह फिर सबके काम का होगा। फिर उसके
आपको अग्नि में प्रवेश करना ही है । नहीं तो ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बरसात में भी,
कच्ची मिट्टी अगर वह घड़ा बन भी गई है तो धूप में भी, कहीं भी रख दो उस मटके को,
कितनी देर तक बनी रहे गी। थोड़ी सी बरसात उस घड़े को, कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा। तप
होगी सब छे द-छे द हो जाएँगे, सब मेहनत अपनी इच्छा को रोकने के लिए होता है ।
बेकार चली जाएगी। अगर वह एक बार अग्नि आज के जितने भी philosophers,
के सम्पर्क में चली गयी तो फिर उस घड़े के thinkers हैं सब सिखाते हैं - अपनी
ऊपर पानी हो, घड़े के भीतर पानी हो, घड़े में इच्छाओं की पूर्ति करो, अपने मन को मारो
पानी हो कोई फर्क नहीं पड़ता। वह सबके मत, अपनी इच्छाओं के अनुसार चलो,
लिए पानी भर भी लेगी, पानी दे भी देगी और किसी के अनुसार मत चलो। ऐसा करने से
सब फिर भी उसका उस मिट्टी के ऊपर कोई आज तक किसी को कुछ मिला ही नहीं।
प्रभाव नहीं पड़ेगा। वही मिट्टी पकने से पहले इतना ही मिला कि बस! आप उनके आश्रमों
क्या करती है ? पानी में मिलकर के पानी- में जाकर नाच-गा कर आ जाएँगे, आपको
पानी हो जाती है । कीचड़ कर देगी। अपना इसके अलावा और कुछ नहीं मिलेगा।
अस्तित्व खो देगी और वही मिट्टी एक बार उनको भी कुछ नहीं मिला जो ऐसी शिक्षा
जब तप जाएगी तो फिर उसने पानी धारण देते हैं । इस तरह के नियन्त्रण खुद अपनी
करने की इतनी क्षमता आ जाएगी कि सब आत्मा में रखने के लिए अगर आप तैयार

156 धर्मं का मर्म


उत्तम तप धर्म

नहीं होंगे तो आपके लिए कभी न योग होगा, कार से ऊपर उठ कर के जब करेंगे, जो
न संयम होगा, न ध्यान होगा। ये सब चीजें अज्ञान का अन्धकार है कि हम इनके लिए
अपने नियन्त्रण के साथ होती हैं । अपनी कर रहे हैं इससे हमें यह मिल जाए, वह मिल
desires को fully control करके जो जाये ऐसा कुछ नहीं, वह तप उत्तम तप
व्यक्ति आगे बढ़ता है , वही व्यक्ति तप कर रहा कहलाता है । इस तरह का उत्तम तप ही
है और उसी के लिए तप शोभा देता है । इस हमारी आत्मा के लिए, pure बनाने वाला,
तरह से यह उत्तम तप का मतलब है - किसी आत्मा को अनन्त सुख में पहुँचाने वाला है ।
भी प्रकार की ख्याति, पूजा, लाभ में मत इसलिए तप करके भी आपको खुश रहना है
पड़ना। दूसरे की अपेक्षाओं के कारण से तप और अगर आप उस समय पर जब आपके
मत करना। अपनी शक्ति को निखारने के तप की परीक्षा हो आप ॐ अर्हं नमः में मस्त
लिए तप करना। इसलिए तप के आगे उत्तम होंगे तो आपके लिए किसी भी तरह की
शब्द लगा हुआ है । उत्तम का मतलब है अपने बाहरी परिस्थितियों का कोई प्रभाव नहीं
ऊपर से सारा अन्धकार हटा कर के तप पड़ेगा तो समझ लेना कि आप अपने आप में
करना। ‘उत्तम’ ‘तम’ मतलब क्या होता उत्तीर्ण होते जा रहे हैं । बोलो महावीर भगवान
है ? अन्धकार। ‘उत्’ मतलब हम उस अन्ध- की जय।

धर्मं का मर्म 157


Day - 07
आज का चिंतन- तप का अभ्यास
आज मानसिक आता है ।
और शारीरिक दोनों मानसिक तप का प्रयोग करके
तप का अभ्यास करें। 1. अपने अंदर पश्चाताप का भाव करें।
क्या आपके चिंतन में 2. उस पाप का एकांत में बैठकर अंतरं ग
आता है - से प्रायश्चित करें।
1. कोई ऐसा कृत्य शारीरिक तप का प्रयोग
जो आपको नहीं करना 1. स्थिरता से बैठने या खड़े होने की
चाहिए था। क्षमता बढ़ाएँ।
2. ऐसा व्यक्ति या कोई ऐसी स्थिति 2. 15 मिनट पद्मासन में बैठ सकते हैं
जो बार-बार याद आने पर आपको दुःखी तो 5 मिनट और बढ़ाएँ।
करती है । 3. आज जानबूझकर भूख से थोड़ा कम
3. कोई ऐसा पाप का कार्य किया है , खाएँ। इसे उनोदर तप कहते हैं ।
जो हिं सा, कुशील या असत्य की कोटि में

Sit and Realize

1. इस तरह का तप करने से कर्मों की 3 . शरीर में कष्ट तो हुआ परं तु मन को


निर्जरा होती है । अच्छा लगा तो अच्छा तप हुआ।
2. ज्यादा देर बैठने से कष्ट हुआ तो 4 . भूख से कम खाया तो आपको भूख
अपने परिणामों को तुरंत बदल देने से, अपना लगी या मन में बार-बार कुछ खाने की इच्छा
चिं तन अपनी आत्मा में लगाने से समय का प्रबल हुई।
पता ही नहीं चलता।

158 धर्मं का मर्म


आज का एहसास
एक-एक इच्छा थोड़े-थोड़े अभ्यास से ऊपर उठने का
को जीतना कितना साधन मिल जाता है ।
कठिन है । तप करने से परिणामों की विशुद्धि बढ़
तप करने से ही जाती है ।
इच्छाओं को जीता प्रायश्चित लेने के लिए किन्हीं गुरु के
जाता है । सानिध्य में भी जा सकते हैं ।

स्व-संवेदन
क्या आप अपनी क्षमता को बढ़ाते हुए आप अपना उपयोग मानसिक तप में
तप कर पाए? Yes / no / little bit लगा पाए या शारीरिक तप में लगा पाए?

धर्मं का मर्म 159


DAY-8: उत्तम त्याग धर्म
आज आप सभी लोगों के लिए स्वधर्म अपनी ही कमजोरी है । व्यक्ति जब अपनी
की ओर उन्मुख होते हुए बहुत कुछ पड़ाव कमजोरी पर गौर करने लग जाता है तभी वह
पूर्ण हो चुके हैं । आप लोग dependent dependent से independent बन
थे और धीरे-धीरे आपने समझा कि हमारी पाता है । जब वह independent होता है
dependency अपने ही अन्दर अपने ही तभी वह कुछ कर पाता है । संयम लेना है , तो
emotion से, अपने ही thought से, स्वयं यह dependent होकर के नहीं होता, यह
हम create करते हैं । यह independency independent होकर के ही possible
जब आती है , तो यह बाहर से नहीं आती, यह है । क्योंकि शुरू के जो चार भाव थे- क्षमा,
भीतर से आती है । मार्दव, आर्जव और शुचिता ये सिर्फ आपको
इस बात को आप यह बताने के लिए थे कि आप बाहरी परि-
लोगों ने अब तक अच्छे स्थितियों पर कितने dependent हैं और
ढं ग से समझ लिया उनसे आप अगर independent होना
होगा। बाहर की किसी चाहते हैं तो आपको इन emotions पर
भी तरह की कोई भी अपना control रखना ही होगा। जब
circumstances, आपने इन चीजों को जाना तब आपके अन्दर
किसी भी तरह की थोड़ा सा सत्य का एहसास हुआ, तब आपके
situations आपके अन्दर अगर किसी भी अन्दर थोड़ा सा संयम का भाव आया और
तरह का कोई भी anger, ego, जब संयम भाव के साथ आप आगे बढ़े तभी
deceitfulness, किसी भी तरह की हमारे अन्दर कुछ तप आना सम्भव है । तप
greediness आपके अन्दर create कर का मतलब हमने अपने अन्दर जो एक संयम
रहे हैं तो इसका मतलब है आप अभी भी पैदा किया है , अपनी desires को balance
dependent हैं । अभी आप किया है । जब हम balance हो कर के
independent की ओर नहीं जा पाए। चलने लगे तो भी हमारे अन्दर जो भाव रहते
धीरे-धीरे जब हमारी यह tendency अपने हैं वे किसी न किसी तरीके से उत्पन्न होते
ही control में आने लग जाती है , तो हम रहते हैं । क्योंकि भावों का उत्पन्न होना
धीरे-धीरे यह समझने लग जाते हैं कि बाहर इसलिए सहज और स्वाभाविक है हम बाहरी
की चीजों से संचालित होना यह हमारी परिस्थितियों से जुड़े ही रहते हैं । हम बाहर

160 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

की चीजों को जानते भी रहते हैं , देखते ही balance करके संयम के साथ में चलने की
रहते हैं , घर परिवार के तमाम कार्य रहते हैं एक शुरुआत की थी, वह हमारे लिए पुनः
और जो हम संसार को और संसार में होने पुनः फिर से regenerate होती रहती हैं ।
वाली घटित चीजों को समझते हैं उनसे भी उनको भी control करने के लिए जो हम
हमारे अन्दर कई तरह के भाव उत्पन्न होते हैं । करते हैं , ‘that is called austerity’,
वे desires जिनको हमने अपने mind में उसी का नाम तप कहलाता है ।

राग को छोड़ने के लिए किया गया पुरुषार्थ → वास्तविक त्याग


उस तप को करने के में जो चीज उससे निष्कासित होगी अपने
बाद में जो हम धीरे- आप, उसका नाम कहलाएगा- त्याग। आप
धीरे अपने संयम के देखते होंगे कभी-कभी गन्ने से गुड़ बनता है
साथ में तप करते हुए और गुड़ बनने के बाद में उसका खांड में भी
जब हम अपनी ही परिवर्तन होता है , उससे शक्कर भी बनाई
बुराइयों का परित्याग जाती है । कभी आपने पुराने तरीके से गन्ने से
करते हैं , to abandon गुड़ बनता देखा हो तो उस गन्ने के रस को
our faults, bad habits, जब हम जहाँ पर उबाला जाता है , उन बड़े-बड़े कड़ाहों
अपनी बुरी चीजों को, बुरी आदतों को छोड़ते में भी कुछ ऐसी चीजें डाली जाती हैं , कुछ
हैं तो उस छोड़ने का नाम त्याग होता है । लोग उसमें detergent भी डालते हैं , कुछ
त्याग अपने आप नहीं आता कि आप चाहो और भी acid डाले जा सकते हैं , जिससे कि
आज ही किसी चीज का त्याग कर दो। त्याग उसके अन्दर जो impurity है वह अपने
का नम्बर तप के बाद में है । तप करने के बाद आप छूटती चली जाती है । वह जो रस है वह

धर्मं का मर्म 161


उत्तम त्याग धर्म

अपने आप pure होता चला जाएगा और लगता कि मैं कहाँ जा रही हूँ? मुझे किसे
जो उसकी impurity है वह उसके ऊपर handover किया जा रहा है ? मेरा अब
बिल्कुल आ जाती है , छा जाती है । उसको क्या होगा? अब उसे बिल्कुल भी कोई भी
फिर एक अलग करछी से अलग निकाल विकल्प नहीं है । इस तरह से जब उसके
दिया जाता है । यह तप के ही माध्यम से अन्दर से सारी की सारी impurity निकल
सम्भव है । इसी का नाम है - तप के बाद होने गई है तभी उसमें इतना एक कड़कपन आया
वाला त्याग। impurity हमारे अन्दर इतनी है , उसमें इतना ठोसपन आया है कि अब
ज्यादा एकमेक हो रही हैं कि हमें पता ही नहीं उसके अस्तित्व से उसको भी कोई डर नहीं
होता है कि यही हमारा existence है , है । वह जहाँ भी जाएगी, जहाँ भी उस घड़े का
impurity के रूप में है या हमारा उपयोग किया जाएगा वहाँ पर उसके लिए
existence purity के रूप में कुछ अलग अपने आप उसमें जल भरने को भी मिलेगा
है । यह जब हमारे लिए ज्ञान में नहीं आता और उस माटी के द्वारा बने हुए उस कुम्भ का
तब तप के माध्यम से चीज समझ में आती सम्मान भी अपने आप होने लगेगा। यह
है। उसके उस त्याग का परिणाम है । लोग त्याग
माटी है ; धीरे-धीरे करने की जल्दी करते हैं । त्याग करने से
संयमित हो गई, उसने पहले हमें क्या करना चाहिए यह उनको पता
तप कर लिया, अग्नि में नहीं होता। इसलिए कभी-कभी त्याग करने
पक गई और पकने के के बाद भी लोग पछताते हैं । त्याग धीमे-
बाद में उसके अन्दर धीमे होता है और त्याग अपने आप अगर
एक quality आ गई। होने लग जाता है , तो वह तभी सम्भव है जब
अब वह बिल्कुल सुर्ख हम तप के माध्यम से अपनी इच्छाओं को
लाल हो गई। अब उसको कोई भी ठोकता नियन्त्रित करते हुए अपने अन्दर के दुर्गुणों
है , टक-टक करता है , तो उसमें एक अलग को धीरे-धीरे छोड़ रहे हैं । अपनी पुरानी बुरी
तरीके की आवाज आती है और कुम्हार खुश आदतों को छोड़ना, अपने दुर्गुणों का त्याग
है और कुम्हार उस घड़े को जिसने उसको करना ही सबसे बड़ा त्याग है और कोई त्याग
पक्का बना दिया है , अब उसे ले जाकर के नहीं होता है । त्याग उसी चीज का किया
किसी को दे देता है । जब कुम्हार उसको दे जाता है , जो हमारे लिए अच्छी नहीं है और
देता है , तो माटी ने अब अपना सर्वस्व अर्पण जो हमारे लिए अच्छी नहीं, वह किसी के
कर दिया। अब माटी के लिए यह भी नहीं लिए अच्छी नहीं होगी। बुराई अगर हमारे

162 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

लिए अच्छी नहीं है , तो हम उसको छोड़ देंगे। को उससे हटा लेना। जब आप ऐसा कर
छोड़ने का मतलब ही है कि हमने उससे पाएँगे यही आपके लिए सबसे बड़ा तप होगा
अपना सब तरीके से attachment हटा और तप होने के बाद ही त्याग सम्भव है
लिया और सबसे बड़ी अगर हमारे अन्दर क्योंकि ऐसा करने में आपने बहुत तरीके से
बुराई होती है , तो वह हमारे attachment बहुत पहले से अपने आप को planned
से ही शुरू होती है । राग ही सबसे बड़ी बुराई किया हुआ है । उसके माध्यम से आपने
है । उस राग को छोड़ने के लिए जो हमारे अपनी desires को इस तरह से control
अन्दर पुरुषार्थ होगा, वह हमारा वास्तविक किया है कि अब हम इस चीज का और इस
त्याग कहलाता है । किसी भी चीज से जब चीज के प्रति attachment का, अगर हम
हमारा attachment होता है , तो हम उसमें दोनों को भी बिल्कुल ही छोड़ देते हैं तो हमें
इतने ज्यादा आसक्त हो जाते हैं इतने ज्यादा बिल्कुल भी अकेलापन महसूस नहीं होता,
involve हो जाते हैं कि हमें लगता ही नहीं हमें बिल्कुल भी बोरियत नहीं होती। इस
कि यह और मैं अलग-अलग हूँ और जब तरह की आपके अन्दर जब feeling आ
तक यह और मैं अलग-अलग नहीं होगा तब जाएगी तब आप त्याग कर पाएँगे। त्याग का
तक त्याग सम्भव नहीं होता। त्याग का मतलब एक बहुत बड़ा कार्य है और त्याग
मतलब है - अपने अन्दर के attachment तपे बिना सम्भव नहीं है ।

त्याग की महानता
जितने भी महान लोग होते हैं वे त्याग attachment नहीं रहता।
करते हैं । जितने भी प्रकृति की चीजें हैं , वह त्याग हमेशा महान
सब त्याग करने वाली होती हैं । वृक्ष हैं - व्यक्तियों के द्वारा किया
फलों को त्याग देते हैं । वृक्ष को फलों की जाता है और त्याग हमें
जरूरत नहीं है इसलिए वे छोड़ देते हैं । गाय महानता के साथ ही
है , अपने दूध को छोड़ देती है , दे देती है । करने को मिल सकता
वह किसी भी तरह से उसके प्रति देने के बाद है और महान व्यक्ति ही
में, त्यागने के बाद में आसक्ति नहीं रखती त्याग कर पाते हैं या यूँ
है। नदियाँ हैं अपना पानी दे देती हैं , छोड़ कहें जो त्याग करते जाते हैं वह महान बनते
देती हैं किसी भी तरह से पानी को छोड़ने के हैं और महान बनने के बाद में, फिर जो वह
बाद में, फिर उन्हें उससे कोई भी तरह का त्याग करते हैं उससे दूसरों का बहुत उपकार

धर्मं का मर्म 163


उत्तम त्याग धर्म

होता है । इसका मतलब क्या हुआ? अगर फुल्का होगा तब तक उसके अन्दर कोई फल
आप किसी का उपकार करना चाहते हैं , नहीं आएगा। जब उसकी जड़ें मजबूत हो
किसी के ऊपर उपग्रह करना चाहते हैं तो भी जाएँगी, उसके स्कन्ध मजबूत हो जाएँगे,
आचार्य कहते हैं आपको पहले तपना पड़ेगा। जब उसकी डालियाँ भी सब तरह की हवा,
तप के बाद में आपके अन्दर जब निःस्वार्थ गर्मी, वर्षा, धूप सब सहन कर चुकी होंगी
त्याग की वृत्ति आएगी तभी आपके उस त्याग तब जाकर के उसके अन्दर फल लगते हैं
से दूसरों का भला होगा। ‘‘परस्परोपग्रहो और वही फल सबको मीठे लगते हैं , वही
जीवानाम्’, जीवों का काम है - एक दूसरे के फल सबके काम में आते हैं । उन्हीं फलों से
ऊपर उपकार करें, to help one लगता है कि हाँ! यह वृक्ष हमारे ऊपर कितना
another. अगर वह ऐसा कर पाएँगे तो बड़ा उपकार करने वाला है । यह बात बताती
कब कर पाएँगे? जब उनके अन्दर इस तरह है कि हमारे अन्दर भी interdependent
की त्याग की भावना होगी। यह त्याग की की जो state है वह तब आती है , दूसरे का
भावना, जब तक हम outer उपकार करने की स्थिति तब आती है , जब
circumstances पर dependent होंगे, हम पहले independent हो चुके हों और
जब तक हम अपने ही emotions को जितना-जितना आप independent होते
अपना control करने में नहीं होंगे तब तक जाएँगे उतना आपके अन्दर त्याग की भावना
हम किसी भी तरीके से independent के आती जाएगी। आप सोचते जाएँगे कि इन
बाद होने वाला दूसरा step है चीजों के बिना भी हम रह सकते हैं , यह हमारे
interdependent होना, एक दूसरे की लिए कुछ जरूरत की चीज नहीं है । इसके
सहायता करना, एक दूसरे के काम
आना, अपना जीवन किसी न
किसी रूप में दूसरे के लिए काम
आए ऐसा विचार आना, इस तरीके
से कोई भी सेवा करना यह तभी
possible है जब आप थोड़ा
independent हो चुके हो। वृक्ष
में फल तभी लगते हैं , जब वृक्ष
अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है ।
पौधे में फल नहीं लगते हैं , हल्का

164 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

लिए भी हम अपना attachment जो है है - त्याग।


वह हम छोड़ सकते हैं तो यह चीज कहलाती

त्याग और दान में अन्तर


लोग आज के इस त्याग धर्म के दिन नहीं हम त्याग कहाँ कर रहे हैं ? त्याग वस्तुतः
पर यह समझते हैं कि त्याग और दान अपनी बुराइयों का किया जाता है , त्याग
करना एक ही चीज है । त्याग का मतलब अपने दोषों का किया जाता है , त्याग अपनी
दान समझते हैं । त्याग दान नहीं होता है । मैं बुरी आदतों का किया जाता है और दान
आपको कुछ अपना नया भाव बता रहा हूँ। अच्छी चीजों का दिया जाता है । to give
अगर आपने सुन भी रखा हो तो उसे थोड़ा and to give up, दो चीजें है न! to give
सा अपने attitude में change करने की means मैं दे रहा हूँ and to give up
कोशिश करना। वह सर्वथा गलत नहीं है जो means मैं छोड़ रहा हूँ, ये दोनों एक चीज
आपने सुन रखा है क्योंकि ऐसा पहले से नहीं है इसमें difference है । when we
व्याख्यायित होता आया है कि त्याग ही दान give something we give
कहलाता है । respectfully. after giving we feel
जबकि मैं आपसे happiness, cheerfulness. अगर हम
बताना चाह रहा हूँ कि किसी चीज को दे रहे हैं तो देने के बाद में
त्याग दान नहीं है , हमारे अन्दर उसके प्रति एक प्रसन्नता का
त्याग अपने आप में भाव आएगा। हमारे अन्दर एक खुशी होगी
अलग चीज है । त्याग देने के बाद, त्यागने के बाद नहीं। त्यागने के
होने के बाद में हमें उस बाद तो आपके अन्दर इस तरह की एक
चीज की तरफ देखना feeling आएगी कि मैं बहुत ही light
नहीं होता, हमें उस चीज से कोई भी hearted हो गया हूँ, हल्का हो गया हूँ।
attachment नहीं होता, कोई भी प्रयोजन त्यागने के बाद में चूँकि वह चीज हमारे साथ
नहीं होता। उस चीज के बारे में हमें सोचने attachment के through इस तरह से
की भी जरूरत नहीं होती लेकिन दान के जुड़ी हुई थी कि जब वह हमसे बिल्कुल छूटी
साथ ऐसा नहीं होता। दान करते समय हमें तो उसके बाद में जो हमें light feeling
ध्यान देना पड़ेगा हम दान कहाँ दे रहे हैं ? आती है , हल्के पन की, उसका नाम है -
त्याग के लिए हमें यह सोचने की जरूरत त्याग। यह एक सूक्ष्म difference है इसको

धर्मं का मर्म 165


उत्तम त्याग धर्म

आप समझने की कोशिश करें। इसलिए अपना, अपना राजपाट, अपने राज पुत्र को
give up and give in दोनों में अन्तर है । देकर के आगे बढ़ते हैं वे त्याग नहीं कर रहे
जब आप किसी चीज को छोड़ देते हैं तो होते हैं । वे क्या करते हैं ? वे सौंप कर जाते हैं ,
छोड़ने में आपको दूसरे को respect देने दान करके चले जाते हैं , उसे सर्वदत्ति कहा
की जरूरत नहीं है । छोड़ते समय आपको यह जाता है , सब कुछ दे दिया। किसको दे दिया?
सोचने की जरूरत नहीं है कि मैं किस को दे दे दिया जिनको देना था, उनको दे दिया।
रहा हूँ? लेकिन दान करोगे तो उसमें आपको इसी का नाम है - to donate. दो न! दो न!
देखने की जरूरत होगी, दान किसको दिया मतलब देना donate हो गया। क्या मतलब
जाना है ? किसके लिए दिया जाना है ? दान हुआ? देने से ही यह donate शब्द english
के लिए पात्र को देखने की जरूरत है , त्याग का बना हुआ है । यह donate शब्द कहीं
के लिए पात्र को देखने की जरूरत नहीं है । ओर से नहीं आया है । दो न! दो न! दो न! तो
इसलिए जब भी कोई महापुरुष दीक्षा लेते donate हो गया वह।
हैं , उन्हें वैराग्य होता है तो वह सारा का सारा

166 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

दान अहं कार के साथ नहीं करना चाहिए


अगर कोई व्यक्ति किसी को कुछ देता है फल और कितने उसके अन्दर एक बीज से
तो देने के बाद में हाँ! इतना जरूर है कि देते बीज उत्पन्न हो जाते हैं , असंख्य हो जाते हैं ।
समय यह feel करे कि अगर मैंने आपको इतना वह दान फलने लग जाता है । कब?
कुछ दिया है तो यह मेरे ऊपर आपका बड़ा जब वह सही जगह पर पहुँचा हो, सही पात्र
एहसान है । मैं अपने आपको बड़ा lucky को दिया गया हो। दान के लिए पात्र को
महसूस कर रहा हूँ कि आपने मेरी यह चीज ढूँढने की जरूरत है । त्याग के लिए पात्र
ले ली। समझ आ रहा है ? यह देने वाले की को ढूँढने की जरूरत नहीं है । त्याग तो हम
feeling होनी चाहिए। देने वाला यह न कभी भी किसी भी position में कहीं पर
सोचे मैं बहुत बड़ा हूँ इसलिए दे रहा हूँ और भी बैठ कर के कर सकते हैं लेकिन दान
लेने वाला छोटा है । यह देना नहीं कहलाए- करने के लिए हमें सोचना पड़ेगा। दान करने
गा, एहसान कहलाएगा। देने का भाव वह के लिए हम dependent होंगे, त्याग के
कहलाता है कि जिसमें आपके अन्दर यह लिए हम dependent नहीं है । दान के
feeling आएगी, you have accepted लिए dependent होंगे क्योंकि हमें देखना
my money, you have accepted पड़ेगा हमें किसको देना है ? देने के बाद में
my food, so i am very lucky वह उसका use करेगा कि misuse करेगा
क्योंकि आपने मेरी चीज को ले लिया, ले यह भी हमें देखना है । देने के बाद में हमें यह
लिया यह मेरा बड़ा सौभाग्य है और इस तरह न देखना पड़े, इसलिए हमें पहले से ही उस
का सौभाग्य अगर उसके अन्दर feel करने पात्र की खोज कर लेनी है जिसको हम दे रहे
में आएगा तो उस दान का महत्व बहुत अच्छा हैं । देने के बाद फिर तो उसका हो गया अब
होगा। वह दान बहुत अच्छे ढं ग से आपके हम क्या देखेंगे? इसलिए पहले से ही वह
अन्दर फलीभूत होगा। ऐसा फलीभूत होगा देख लेता है , हम जिस को दे रहे हैं वह सही
जैसे कि वट का वृक्ष होता है । उसका जो जगह जा रहा है कि नहीं। भूमि का चयन
बीज होता है वह दाना छोटा सा होता है । बीज के लिए पहले से करना होता है । इस
दान और दाना एक ही चीज होती है । अगर बीज को हमें कहाँ पर वपन करना है , वह
दाने का भी दान किया जाता है तो भी वह भूमि कौन सी है ? काली मिट्टी की हो, लाल
एक छोटा सा बीज किस रूप में फलता मिट्टी की हो, अच्छी मुलायम हो, उपजाऊ हो
है ? आप देख सकते हो, उस वटवृक्ष की और अगर कभी आपको पता पड़ा कि ऐसी
कितनी शाखाएँ और कितने उसके अन्दर ऊसर भूमि है जहाँ पर कुछ भी डालो, कोई

धर्मं का मर्म 167


उत्तम त्याग धर्म

बीच का वपन होता ही नहीं तो वहाँ पर बीज सब सार्थक हो गयी क्योंकि वह सही जगह
डालना ही बेकार होगा। आप डाल तो दोगे, पर पहुँच गयी। यह दान की feeling होती
भूमि तो होगी लेकिन भूमियाँ सभी एक जैसी है । इसलिए यह difference समझ में
नहीं होती हैं । कुछ भूमियों में ही कुछ क्षमता आज आपको आ जाना चाहिए। To give
होती है , जो एक छोटा सा बीज बहुत बड़ा and to give up, जब भी हम किसी चीज
वृक्ष का रूप लेता है । यही दान हमें सिखाता को देंगे तो ले, यह ले, ऐसे नहीं, ऐसे कोई
है कि अच्छी जगह पर दिया गया दान ही, नही लेगा। ऐसे तो भिखारी भी नहीं लेगा,
हमारे काम में आता है । वही फलीभूत होता बच्चा ही नहीं लेगा तुम्हारा, आप बच्चे को भी
है हर जगह नहीं। किसी को भी दोगे, आप कुछ देते हो तो कितने प्रेम से देते हो। किसी
कुछ भी दोगे वह आपका एक उपकार तो को भी दो आपको प्रेम से देना है , यह सोच
हो जाएगा लेकिन दान हो कर के फलीभूत कर नहीं देना है कि वह किसी अभाव में है ,
होना एक अलग चीज है । उपकार किसी इसलिए मैं उसको दे रहा हूँ। नहीं! मेरे पास
का कर देना यह एक help है । To help सद्भाव है लेकिन मेरा सद्भाव मेरे भी काम
one-another, it is my duty, it is का नहीं है । अगर इस सद्भाव को मैं किसी के
the function of every soul. हर लिए दे दूँगा तो मेरे लिए एक balance हो
किसी का यह काम है कि वह एक दूसरे का जाएगा। मेरे पास में कोई चीजें access हो
उपकार करे। यह अलग चीज हो गई है , बहुत रही थी मैं उसको balance करना चाहता
ही व्यापक चीज हो गई उपकार लेकिन दान हूँ। इस feeling के साथ में जब आप किसी
एक अलग चीज है । दान देने के बाद में आप चीज को दोगे और वह उसके पास पहुँचने
के लिए यह महसूस होगा कि हमने जिसको के बाद में आपके लिए ऐसा लगने लगेगा
दान दिया था वह बहुत अच्छा पात्र था और कि हाँ! अब हम हल्के हो गए तो आपके
हमारी चीज उस पात्र के पास पहुँच गई और लिए वह चीज अपने आप दूसरे के उपकार
उस पात्र ने उसको accept कर लिया, it में काम में आ गई और यही आपका सबसे
is my luck. यह हमारे लिए बहुत अच्छी बड़ा donation कहलाता है - दान!
चीज है । हमारे पास में जो भी चीजें थी वह

168 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

Donation v/s Investment

कुछ लोग donation investment. जब आप किसी


के नाम पर भी insurance company में कुछ भी देते
investment करते हो तो आप क्या करते हो? donate करते
हैं , अब इसका भी हो, invest करते हो। बोलो! Invest करते
difference समझो। हो! किसी company के share खरीदते
what is the हो, आप क्या करते हो? donate कर देते
difference between donation हो या invest करते हो। क्या करते हो?
and investment? investment में Invest करते हो। कोई भी partner के
हम क्या करते हैं ? हमने अपनी property साथ में आपने कहीं कोई जमीन ले ली कोई
को, अपने किसी भी तरह की money को, बहुत बड़ी company खड़ी कर दी और
कहीं पर invest कर दिया। अब invest आपने अपना बहुत सारा पैसा उसमें लगा
करने के बाद में हमने क्या कर दिया? It दिया। क्या कर दिया? आपने दूसरों के लिए
means त्याग कर दिया कि हमने उसका invest किया, donate नहीं किया।
दान कर दिया क्या कर दिया बताओ? जो donate करने के बाद में आपकी उसके
अभी तक आपको समझाया गया है त्याग ऊपर कोई authority नहीं रहे गी। It is
और दान उन दोनों में से कहीं पर यह चीज mine यह भाव आपके लिए after
belong कर रही है ? Invest में आपके donating यह नहीं आएगा। यह भाव
अन्दर क्या होगा? कुछ समय के लिए मैंने आपका investment के साथ रहे गा। so
अपनी money को safe कर लिया। लोगों you know that difference
को पता भी नहीं और वह बड़े ढं ग से safe between investment and
होगी और safe होने के बाद उसका भी donation. बहुत से लोग donation के
हमारे लिए आगे एक साल बाद, दो साल नाम पर invest करते हैं । आपने सुना होगा
बाद भी हमें उसका बहुत अच्छा benefit भी बड़े-बड़े जो richman हैं , Warren
मिलेगा और वह चीज भी हमारी कहलाएगी Buffet, Bill Gates, Ambani यह
और plus उसके साथ में उसके जो ब्याज है लोग कभी donate करते हैं कि invest
या उसके साथ में होने वाले जो लाभ हैं , वह करते हैं , यह आप देखना कभी। बहुत बड़े-
भी सब हमको मिलेंगे। इसका नाम क्या है ? बड़े इनके चर्चे होते हैं ।

धर्मं का मर्म 169


उत्तम त्याग धर्म

संयमित जीवन से फायदा


इन्होंने यह दान कर दिया, इन्होने यह लेने की सोचते हैं कि देने की सोचते हैं ?
दान कर दिया। क्या दान कर दिया? कहाँ दान हमारे nature में क्या चीजें हैं ? यही हमको
कर दिया? किधर लगा दिया उन्होंने? कितने feel करना है आज कि त्याग तो एक बड़ी
गरीबों को दे दिया? किनको छोड़ दिया? चीज है । त्याग दान के बाद आएगा। जब
किनके खाते में पहुँचा दिया? देने के बाद में आप दान देते, देते, देते इतने बड़े हो जाओगे
अब उनसे बिल्कुल भी कुछ भी refund न तब आप कुछ अच्छा त्याग कर पाओगे।
लेंगे, ऐसा उन्होंने क्या अपने मन में सोच त्याग अपने आप नहीं होगा। त्याग धीरे -
लिया या इन्होंने किसी company को दे धीरे होगा। त्याग के लिए आपको बहुत
दिया। उस company में भी कुछ इनका भी अपने पहले से practice करनी पड़ेगी
percentage है । इस तरह से उन्होंने उसमें और वह practice कैसे आएगी? कुछ
invest कर लिया। क्या किया है उन्होंने? तो दो, कुछ तो अपने से निकालो, कुछ तो
समझ आ रहा है ? हमें लगता है ऐसी जो बड़े- अपने से अलग करो, कुछ तो देने की भावना
बड़े लोग हैं यह invest करते हैं , donate में आओ। अपने nature में यह चीज होती
कम करते हैं । donate करने वाले लोग नहीं। आप देखना एक छोटा सा बच्चा होता
अलग होते हैं और donate करने के बाद है । वह अगर सामने खेलते-खेलते कोई चीज
में फिर उस चीज पर अपनी किसी भी तरीके पर झपटता है और उसको पकड़ लेता है तो
की authority नहीं रखते हैं । हो गया, जो वह ले लेता है । अब मम्मी कहती है - नहीं
था, दे दिया मतलब दे दिया जैसे कि हमने बेटा! छोड़ दे, छोड़ दे, छोड़ दे यह मन्दिर की
भोजन कर लिया। अब भोजन करने के बाद है । मन्दिर की छोड़ दे, छोड़ दे अब वह नहीं
में उसके ऊपर हमारा कोई अधिकार नहीं छोड़ता। मान लो तुम उस मन्दिर पर सुपाड़ी
रहता है कि मेरा भोजन था। अभी तुमने कर या बादाम चढ़ा कर गए थे या चटक चढ़ा कर
लिया उसके कारण से तुम चल फिर रहे हो। गए थे, एक बच्चा खेलता हुआ आता है और
उसके कारण से तुम देख रहे हो, पढ़-लिख उसको पकड़ लेता है । वह तो मुँह में भी रख
रहे हो, यह energy तुम feel कर रहे हो। लेगा उसे क्या फर्क पड़ता है । अब उसके
It is due to my food. ऐसा भाव जो अन्दर की nature देखो। nature of
आता है यह भाव तो आ ही नहीं सकता है । taking not giving, बच्चे के अन्दर यह
कब? दान देने के बाद में। आप देखें हमारा एक संस्कार समझ आ रहा है , पहले से पड़ा
nature कैसा होना चाहिए? हम हमेशा हुआ है । पकड़ो! चीजों को ग्रहण करो। चीजों

170 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

को अपने under में लो। चीजों को पकड़ने छु ड़ाते भी हैं तो रोने लग जाता है और वह तब
की उसकी एक आदत जो पड़ी हुई है यह तक चुप नहीं होगा जब तक उसके हाथ में
सिखाई हुई नहीं है , बिना सिखाई हुई आदत वैसी ही कोई दूसरी चीज न थमा दी जाए। मैं
है । पकड़ो! चीजों को लो, अपने under में आपको इससे क्या बताना चाह रहा हूँ? यह
करो। माँ उस बच्चे को पकड़ लेती है , उसकी हमारे nature में है । क्या है ? to take, to
मुट्ठी खोलती है , वह खोलता नहीं पट्ठा। बड़ी take क्या करना? to receive, to take
मुश्किल से उसकी मुट्ठी खोल कर उसको यह जो है चीज हमारे nature में है and
छु ड़ाती है , उस चीज को अलग कर देती to give, to give nature हमारा नहीं
है । वह रोने लग जाता है । पूरा मन्दिर ही है । यह कभी-कभी तो हमें समाज में अपनी
बिल्कुल भर जाता है या घर में है तो घर में कुछ prestige बनाने के लिए करना पड़
कोई भी चीज है , उसके काम की नहीं भी है जाता है । कभी-कभी हमें लोगों के मुँह देख
तो भी उसने पकड़ ली। पापा की table पर कर करना पड़ जाता है । भाई! वह दे रहा
चढ़ गया, pen उठा लिया। अभी उस pen है , वह भी दे रहा है तो हमको भी दे देना है
से अपना ही मुँह फोड़ लेगा, अपनी ही आँख नहीं तो लोग क्या कहें गे? इसलिए भी दे देना
फोड़ लेगा, उसको पता नहीं लेकिन pen पड़ता है । यह हमारा nature नहीं होता।
अगर उसने पकड़ लिया तो उसको छु ड़ाना nature से जब कोई चीज आती है , अगर
मुश्किल है । अगर वह pen हमें किसी काम हमारा nature इस तरीके का बनेगा तो
में लेना है , उसके लिए नुकसान पहुँचाए- nature से हमारा nourishment होगा।
गा, इस सोच से अगर हम उसके pen को

देने से आत्मा में प्रसन्नता आती है


nature से हमारी soul के अन्दर, देना हमारा एक nature बन गया हो। देने
हमारे mind के अन्दर, अपने आप ऐसा में अच्छा लगने लगा हो, देने के बाद में अच्छा
nourishment होगा कि आपके अन्दर लगता हो, लेने के बाद अच्छा न लगता हो।
after giving you feel very बच्चे के लिए लेने का
peaceful, very joyful, very स्वभाव पड़ा रहता है ।
cheerful. आपके अन्दर यह feeling धीरे-धीरे बच्चा बड़ा
आएगी अगर आपको देने में आनन्द आएगा भी हो जाता है । अब
तो और वह देने में आनन्द तभी आता है जब वह बड़ा तो हो गया,

धर्मं का मर्म 171


उत्तम त्याग धर्म

लेने का भाव रहता है लेकिन वह लेने से करना भी हमको समझाया जाता है । to


शर्माता है । एक बार एक छोटा सा बच्चा become a civilised person अगर
अपनी मामी के यहाँ पर गया। मामी तो हमें एक सभ्य व्यक्ति बनना है तो हमें इसके
जानते हो आप लोग और मामी के यहाँ पहुँच लिए भी ये चीजें सीखनी होती हैं और यह
कर के वहाँ खेल रहा था। बाकी के जो घर घर में माता-पिता धीरे-धीरे समझाते रहते
के बड़े लोग थे वे सब अपना-अपना कोई हैं । अब हुआ क्या? कि जब उस बेटे ने उस
नाश्ता-पानी कर रहे थे, सब कुछ कर रहे थे। chocolate को नहीं उठाया और वह उस
वह छोटा बच्चा था, वह खेल रहा था तो वहाँ स्थान पर भी घूमता रहा तो जब वह वहाँ से
पर एक chocolate का मतलब कोई जाने लगा अपनी मम्मी के साथ में तो मामी
अच्छा सा डिब्बा रखा हुआ था। उसमें बहुत ने देखा कि देखो! बाकी तो सब लोग खुश हैं
सारी chocolate रखी हुई थी। मामी ने सब लोगों ने कुछ न कुछ ले लिया है । आपस
कहा बेटा! chocolate ले लो, ले लो, ले में लेन-देन कर लिया, बेटे ने तो कुछ लिया
लो ले लो तुमको जितनी चाहिए, उतनी ले ही नहीं और यह बेटा छोटा है तो उसके लिए
लो। थोड़ा सा उसकी माँ ने पहले से समझा और क्या दिया जाएगा। उसके लिए toffee,
रखा था कि नहीं! नहीं! बेटा! ऐसे किसी के chocolate ये सब चीजें थी और उसने
घर पर जाते हैं तो कोई भी चीज ऐसे लेते किसी चीज में हाथ नहीं लगाया। मामी ने
नहीं है तो उसने सकुचाते हुए भी देख तो क्या किया? हाथ से toffee उठाई और सब
लिया लेकिन लिया नहीं कुछ भी। अब क्यों उस बेटे की जेब में भर दी। क्या हुआ है ?
नहीं लिया? क्योंकि उसकी माँ ने उसको चलते-चलते मामी ने उसकी जेब में toffee
समझा रखा था। लेने की इच्छा तो थी भर दी। अब जब चलते-चलते भर दी तो अब
लेकिन उसकी माँ ने उसको समझा रखा था क्या करें? ठीक है ! उसकी सारी जेब भर दी
बेटा! ऐसे किसी घर पर जाते हैं तो कभी भी और भरने के बाद में जब थोड़ी देर बाद अपनी
कोई कहे एक दम से नहीं लेना है । यह हम माँ के साथ वह बेटा आगे बढ़ा, पहुँचा तो माँ
को समझाया जाता है । तुमको समझाया ने देखा क्या रखा है जेब में? क्या भर रखा
गया कि नहीं बताओ तो? कि कहीं भी कोई है ? अरे! वह मामी ने जबरदस्ती toffee सब
भी किसी भी घर पर कुछ भी मिल जाये तो, जेब में भर दी। देखो! आपको यह घटना
न मिल जाए तो वह सब कुछ लेना है यह मजाक की लग रही होगी। यह मजाक की
समझाया जाता है । मतलब हमारे अन्दर जो घटना नहीं है । यह बहुत कुछ सीखने की
taking nature होता है , उसको control घटना है । अब आप इससे कुछ सीखो, यह

172 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

एक moral story है । बच्चे ने लेने की relative के अन्दर भी यह feeling आ


भावना को control किया। अगर वह कुछ रही है कि यह ले ले तो मुझे अच्छा लगेगा।
भी लेता तो वह कितना लेता? बताओ? मतलब आप यह सोचो कि देने में और देने
अपनी इच्छा से लेता तो कितना लेता की इच्छा में, कितनी बड़ी चीज है कि जब
बताओ? अपने छोटे -छोटे हाथों से toffee सामने वाला ले लेता है तब देने वालों को
भरता भी, झपट्टा भी मारता तो कितनी भरता बड़ी सन्तुष्टि होती है । जब तक सामने वाला
बताओ? समझ आ रहा है ? दो, पाँच कितनी नहीं लेता है तो importance किसका
लेता वह? दोनों भी हाथों से ले लेता है तो ले बढ़ता है ? देने वाले का कि लेने वाले का?
लेता अगर ज्यादा करता तो ऐसा करता। importance किसका है ? i want to
देखो! इसके अन्दर कैसी इच्छा है या कैसी give you something and you are
चोरी कर रहा है ? अब उसने देखो कितना not agree to take it. Importance
थोड़ा सा patience से काम लिया। इसको किसका है ? मैं आपको कुछ देना चाह रहा हूँ
क्या बोलते हैं ? संयम। यह क्या है ? संयम। और आप! नहीं, नहीं। Importance
चीज सामने है , हमें उस पर हाथ नहीं लगाना किसका? देने वाले का कि लेने वाले का।
है । इसका नाम क्या है ? संयम। इच्छा हो सोच लो! दिमाग बिल्कुल settle कर लो।
रही है , toffee अच्छी है , उठा लूँ लेकिन माँ importance किसका? कौन बड़ा? who
ने मना किया है । so we control our is big between this giving system
desire it is called austerity. यह and taking system, who is big?
क्या हो गया? यह हमारा तप हो गया। अब लेने वाला कि देने वाला। फिर से बोलो!
संयम भी हो गया, तप भी हो गया और तप लेने वाला, एक ही आवाज आ रही है । क्या
होने के बाद में अब देखो मजा! अब आएगा हो रहा है ? कौन बड़ा है ? decide नहीं कर
मजा, तप के बाद मजा आता है । कोई अपनी पा रहे हो। एक जन बोलो! क्या बोल रहे
इच्छाओं को control कर रहा हो, कोई हो? देने वाला बड़ा है ऐसा बोल रहे हो।
अपनी इच्छाओं को किसी के लिए समर्पित Importance किसकी ज्यादा हो रही है
कर रहा हो और इन दोनों के बीच में जो एक इस समय पर? जब लेने वाले की
combination होता है , उसी में feeling importance हो रही है तो लेने वाला ही
आती है । मामी की इच्छा है क्या? दे दो, दे बड़ा हुआ न। देने वाला बड़ा कैसे हो गया?
दो, यह ले ले, यह ले ले मतलब बच्चा भी अब देखो इसमें भी आपको सोचना पड़ेगा।
कितना बड़ा हो गया है कि उसके बड़े importance महत्व किसका ज्यादा आ

धर्मं का मर्म 173


उत्तम त्याग धर्म

रहा है ? देने वाला देना चाह रहा है और एक इच्छा पर control करने से। बोलो तो!
छोटा सा बच्चा भी, नहीं-नहीं कर रहा है तो अब आगे देखो! अगर वह अपनी इच्छा से ले
इतना बड़ा जो व्यक्ति है , जिसकी उम्र चालीस लेता, संयम नहीं रखता तो वह कितना लेता?
साल की हो रही है , बच्चा भी छह साल का चार toffee ले लेता, पाँच ले लेता, इससे
है । अब समझो कि उस चालीस साल की ज्यादा तो नहीं ले पाता। उसको ही फिर
कोई भी lady है , उसके अन्दर क्या भाव आ guilt सी महसूस होने लग जाती। इससे
रहा है ? यह कुछ ले ले तो बड़ा अच्छा लगेगा। ज्यादा ले रहा हूँ तो यह अपने लिए ठीक नहीं
इसने कुछ लिया नहीं, बाकी सब ने सब कुछ है । मतलब कि लेने की इच्छा को control
ले लिया, इसने कुछ नहीं लिया। उस छोटे करने में भी हमारे अन्दर जो तप होता है और
से, अदने से बच्चे की कीमत जो छह-सात उस तप के बाद में हमें जो अपने आप मिलता
साल का है समझो! कितनी बढ़ गई? है वह हमारी इच्छा से भी कहीं कुछ ज्यादा
किससे? सिर्फ मना करने से, सिर्फ लेने की मिलता है ।

तप के अभ्यास से ही आगे त्याग कर पाएँगे


यही science कहलाती है । formula काम तुम्हारा हो जाएगा। किससे? रात में
इसी से develop होता है । क्या समझ में भोजन नहीं करने से क्योंकि यह तो आपको
आ रहा है ? अगर हम अपने अन्दर किसी भी अपने अन्दर अब विश्वास में ले ही आना है
तरह का तप, तप मतलब थोड़ी सी इच्छा कि यह ही life मेरी सब कुछ नहीं है । इससे
को control करो। फिर आप देखो आपके पहले भी बहुत कुछ था और आगे भी बहुत
लिए उससे भी ज्यादा मिलेगा जो आप चाह कुछ होने वाला है । अगर मैं बिल्ली बन गया,
रहे हो लेकिन आप पहले थोड़ा सा संयम अगर मैं शेर बन गया, कुत्ता बन गया तो फिर
बरतो। लोग पूछते हैं - हमने रात में भोजन क्या करूँ गा? अगर आपके लिए इस चीज
छोड़ दिया, इससे क्या होगा? अरे! इससे यह का तुरन्त benefit चाहिए तो आप यह
होगा कि कभी भी तुम दरिद्र नहीं बनोगे। कभी देखो कि आपको रात में भोजन नहीं करने के
भी तुम अगले जन्म में भी बिल्ली नहीं बनोगे। बाद में कितनी अच्छी, समय से नींद आती
छिपकली नहीं बनोगे। शेर नहीं बनोगे, रात है और समय से आप जाग जाते हो। यह
में घूमने वाले जितने भी जानवर होते हैं , रात रात में भोजन नहीं करने के कारण से सम्भव
में भोजन करने वाले जितने भी पशु पक्षी है । आप सुबह जल्दी उठोगे, आराम से आप
होते हैं वे कुछ नहीं बनोगे तुम, इतना बड़ा अपनी दैनिक क्रियाओं में लग जाओगे,

174 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

आपके शरीर में रोग नहीं होंगे। आप अपने तप। आप अपनी बुराइयों को देख रहे हो,
आपको energetic feel करोगे, यह सब आप अपनी बुराइयों पर control कर
उसके benefits हैं । after death भी रहे हो, अपनी bad habits को बिल्कुल
उसके benefit मिल रहे हैं , recently भी छोड़ने के लिए अपनी mentality बना
हमको उसके benefit मिल रहे हैं और फिर रहे हो यह आपका बहुत बड़ा तप है और
भी हमारे अन्दर यह सोचने में नहीं आता कि इस तप के बाद में जब आप ऐसा करने में
हमें इस तरह का संयम अपनाना चाहिए। जो बिल्कुल able हो जाओगे तब आपके अन्दर
चीजें हमारे भावों से सम्बन्ध रखेंगी, उनका त्याग का formula fit होगा और त्याग
फल भी हमें हमारे भावों में ही मिलेगा। हमारे में आपको सब-कुछ मिलेगा। आपको लेने
संयम के भाव, हमारे तप के भाव और हमारे की जरूरत नहीं है । लोग आपके सामने हाथ
त्याग के भाव इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन्हीं से जोड़ कर के देंगे, बुला-बुला कर के देंगे। यह
अपने लिए भी अच्छा होगा, दूसरे के लिए तो एक छोटे से बच्चे की बात बता रहा हूँ
भी अच्छा होगा। अगर हमारे अन्दर तप का जिसने एक छोटा सा त्याग किया। छोटी सी
भाव नहीं होगा तो हम क्या कर जाते? हम अपनी desire को control किया और
चोरी भी कर सकते थे। जैसे यह घर के रि- उसके बाद में उसकी सारी जेबें भर गई। माँ
श्तेदार लोग इधर-उधर हो और हम थोड़ा ने उससे कहा यह क्या है जानते हो? यह
अपनी जेब भर ले, यह feeling भी आ क्या है ? यह नहीं लेने का फल है । यह क्या
सकती है , यह भी thinking हो सकती है । है ? नहीं लेने का फल है । जब हम कोई चीज
लेकिन ये सब चीजें कब? जब आपको नहीं लेते हैं तो अपनी इच्छा से, अपनी भावना से
मालूम कि अच्छाईयाँ क्या है और बुराईयाँ तो हम थोड़ी ले पाएँगे लेकिन जब हमें हमारे
क्या है ? अगर आप अपनी बुराई को भी कर्मों से मिलेगी, जब कोई चीज हमें हमारे
control कर पा रहे हो, it means आप भाग्य से मिलेगी, जब कोई चीज हमें दूसरे
तप कर रहे हो। तप का मतलब यही नहीं के द्वारा अपनी खुशी से मिलेगी तो हमें बहुत
होता कि आप अपने शरीर को सुखा रहे हो कुछ मिलेगा। हम उसको रख भी नहीं पाएँगे
या शरीर को बहुत ज्यादा, कुछ नहीं खिला इतना मिलेगा।
रहे हैं , उसी का नाम तप है , यह भीतरी

हमारी मानसिकता सदैव देने की होनी चाहिए


यह कब सम्भव है ? जब हमने अपने taking nature को control किया हो

धर्मं का मर्म 175


उत्तम त्याग धर्म

और giving nature को nourish किया नहीं करते हैं । they are called miser,
हो। हमें इस तरह का nourishment अपने हिं दी में उनको क्या बोलते हैं ? कंजूस। जूस
अन्दर करना है और जैसे-जैसे हमारे अन्दर तो है पर सब बेकार है , कन लग गया न
यह art of giving आती जाएगी तब आप कन! जैसे कमजोर, जोर तो है लेकिन कम
सही मायने में art of living सीख पाएँगे। लग गया तो वह फिर जोर नहीं रहा। यह
यह art of living सीखना है , अपने आप कम जो उपसर्ग लगता है यह preface जो
नहीं सीखी जा सकती। art of death उसके आगे लगता है यह उस चीज को बुरा
भी अपने आप नहीं सीखी जा सकती। इस बना देता है , जिसके आगे कम लग गया।
art of living and death के बीच में कमजोर, कंजूस, जूस तो था बहुत अच्छा,
अगर आपको यह human life मिली हुई कितना अच्छा उसको अपने कर्म के फल
है तो उसमें आप अपना एक nature बनाएँ से बड़ा बड़ा धन मिला है , सम्पत्ति मिली,
to give, to give something what property मिली। पट्ठे के अन्दर एक भी
you have, if you have nothing भाव नहीं आता कि कुछ भी किसी को दे।
to give, you give only smile to सारा-सारा जूस यह चाहता है मैं ही पी लूँ।
others. इतना तो कर ही सकते हो। देना चाहे उसके घर के लोग ही उसके पीछे उसका
सीखो! हमारे देने से किसको क्या मिल रहा murder कर डाले। लेकिन देने की इच्छा
है ? किसको कौन सी खुशी मिल रही है यह नहीं करता इसलिए भी कई लोग इस बात के
महत्वपूर्ण है और आप जितना दोगे उससे लिए मर जाते हैं कि जब कोई उनके परिवार
आपके अन्दर कमी नहीं होगी। कुएँ के पानी के लोग यह देख लेते हैं कि यह बड़ा कंजूस
को कितना ही निकाल लो, कुआँ कभी पानी है , देने वाला नहीं है । ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी
निकालने से नहीं सूखता है । कुएँ से जितना न जाए’, क्या बोलते हैं ? चमड़ी का मतलब
पानी निकाला जाता है उतना ही वह तुरन्त खाल उतर जाये तो भी एक पैसा नहीं देगा।
एक बाल्टी आपने निकाली, आप सोच रहे ऐसे लोगों के लिए फिर दूसरे लोग भी उसी
हो उसमें एक गड्ढा हो गया क्या एक बाल्टी तरीके से behave करते हैं । आप देखोगे
के बराबर, नहीं होता, तुरन्त भर जाता है । ऐसे लोगों की मृत्यु, कई बार ऐसा सुनने में
इसी तरीके से जब कोई व्यक्ति देता है उसके आता है , घर परिवार के लोग ही उनको मार
अन्दर अपने आप से स्वयं आ जाता है लेकिन डालते हैं । क्यों? क्योंकि उन्हें पता है कि यह
एक tendency होनी चाहिए देने की। बहुत अपने आप जीते जी देने वाला नहीं है और
से लोग सब कुछ रखते हैं , देने की इच्छा हमें लेना है और अगर इसको अपने रास्ते से

176 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

हटा दिया जाए तो सब अपना अपने आप लोभ में पढ़ कर के अपनी जिन्दगी जीता है
हो जाएगा। यह बहुत गन्दी आदत होती है , तो वह एक गधे से भी बदतर जिन्दगी जीता
यह nature बहुत गन्दा nature है । कौन है । इसलिए कि जैसे गधे को नहीं मालूम
सा! कंजूस! जूस है तो उसको दो। न आदमी होता कि वह कितनी मेहनत कर रहा है ?
खुद ले रहा है , न किसी को दे रहा है तो वह किस लिए कर रहा है ? उसका उसके लिए
जूस क्या करेगा? तू खुद ही तो पी ले कम से कोई लाभ नहीं होता वैसे ही आदमी! लगा
कम। खुद ही तो भोग ले। अगर धन मिला हुआ है अपने खाने-पीने का time नहीं,
है तो उसको भोग ले। धन के तीन ही गतियाँ अपने लिए कुछ जीने का time नहीं, अपने
हैं , धन के तीन ही काम हैं - दान, भोग और लिए सोने का भी time नहीं और दिन भर
नाश। कितने? धन के तीन काम होते हैं या पैसा, पैसा, पैसा रात भर हिसाब, हिसाब,
तो दान कर लो या भोग लो या तो भोग, भोग हिसाब! सुबह उठा फिर पैसा, पैसा, पैसा,
लो इतना भोग लो कि भोगते-भोगते खुद रात में फिर हिसाब, हिसाब इसके अलावा
ही मर जाओ। ‘भोगों को इतना भोगा कि उसे कुछ दिखता ही नहीं। where is my
खुद कोई भोग बना डाला’ समझ आ रहा है ? wife? where is my daughter?
इतना ही खुद खा लो कि खुद ही diabetes where is my son? कुछ मतलब नहीं?
हो जाए, खुद ही cancer हो जाए, खुद ही where is my family? कुछ नहीं,
मर जाओ या फिर थोड़ा सा भोग, थोड़ा सा कौन कहाँ है ? only money, money,
दान ऐसा कर लो। choice आपके ऊपर है money! बस! progress, progress,
या फिर भोग करने के बाद में भी जो बच रहे progress! बस इसके अलावा उसे कुछ
हैं , उसका भी दान कर लो। अब! न भोग हो नहीं दिखता। ऐसे लोगों का जीवन किसी के
रहा है , न दान हो रहा है । after all उसका काम का नहीं। खुद भी नहीं जी रहा, दूसरों
क्या होगा? उसका विनाश होगा। वह धन के लिए भी कुछ नहीं कर रहा और जो भी
का ही नाश होगा, वह किसी के काम नहीं दूसरों के लिए होगा, वह दूसरे उससे छु ड़ा
आएगा। इसको बोलते हैं - एक कंजूस का लेंगे, वह कुछ दूसरों के लिए नहीं करेगा।
धन। कंजूस का जूस किसी के काम का नहीं, इस तरह की जिन्दगी जीने वाले दुनिया में
न खुद के काम का है , न दूसरे के काम का। बहुत से लोग हैं । बहुत से ऐसे लोग हैं ।
जब व्यक्ति अपने अन्दर इस तरह के धन के

धर्मं का मर्म 177


उत्तम त्याग धर्म

आज के बच्चों की सोच
बहुत कम लोग होते हैं जिन्होंने कभी भी अपने माता-पिता की सेवा
जो देने के भाव में रहते के लिए भी कुछ देना अच्छा नहीं समझा,
हैं । देख करके खुश उन्हें भी बोझ समझा क्योंकि उनके पास में
होते हैं , देने में आनन्द देने का भाव नहीं था। जिन माता-पिता ने
लेते हैं और जितना है बच्चों को सब कुछ दिया, पालन पोषण
उसमें से भी कुछ करके उन्हें बहुत बड़ा बनाया, सब कुछ योग्य
percent देने की बनाया और उसके बावजूद भी ऐसे बच्चे होते
इच्छा से हमेशा तैयार रहते हैं । ऐसे केवल हैं जो अपने माता-पिता की बिल्कुल भी
10% लोग होंगे जो दे करके खुश होते हैं । care नहीं करते हैं । वही माता-पिता जब
बाकी 90% लोग सोचते रहते हैं इसका मुझे बच्चा होता है तो सोचते हैं , घर में उत्सव होते
कैसे मिल जाए? मैं इसका कैसे हड़प लूँ, हैं , बेटा हुआ है , बेटा हुआ है , बेटा हुआ है ।
इसके ऊपर कौन सा केस लगा दूँ, इसके बेटी हुई थी तो ढोल तक नहीं बजा। घर में
कौन से कागजात इधर की उधर कर दूँ। यह किसी ने थाली तक नहीं बजाई। आज वही
सब इसकी property मेरे पास आ जाए। माता-पिता देख रहे हैं , बेटा बड़ा हो गया
बस! लेने में लगे रहते हैं । घरों में जितने भी engineer बन गया, पुणे में job कर रहा
लड़ाई-झगड़े हैं कि माँ को कौन रखे? पिता है । यहाँ हम बीमार पड़े हैं , तैयार नहीं है आने
को कौन रखे? घर में माता-पिता की सेवा के लिए, न बुलाने के लिए, न कुछ help
कौन करें? किसलिए होते हैं ? अगर माता- करने के लिए, कुछ नहीं! अब वह बेटा किसी
पिता ने सब कुछ दे दिया तो अब उनकी सेवा भी काम में नहीं आ रहा। अब वे बूढ़े माता-
करने वाला भी कोई न बचेगा और अगर पिता सोचते हैं कि देखो! जिस बेटे के लिए
उन्होंने कुछ बचा कर रखा है तो ही उनके मैंने सोचा था कि यह बुढ़ापे की लाठी बनेगा,
पास में कोई लोग घूमते हैं कि भाई! इनके आज वह बेटा कुछ भी काम नहीं आ रहा
पास रहें गे, इनकी सेवा करेंगे तो कुछ मिलेगा और जो बेटी जिसका विवाह किया था, वह
और इस तरह की परिणति आ जाती है कि आसपास कहीं है तो वह माता-पिता का
कई बार माता-पिता के लिए अगर देने के ख्याल रख रही है । वह बार-बार पूछ रही है
लिए कुछ नहीं होता है तो उनका निर्वाह भी पिताजी कैसी स्थिति है ? क्या है ? वह आती
करना अन्त में मुश्किल हो जाता है । किस है बार-बार सेवा करने के लिए तब माता-
तरह के nature के लोगों के कारण से पिता को लगता है कि बेटे सब निकम्मे ही

178 धर्मं का मर्म


उत्तम त्याग धर्म

होते हैं , बेटियाँ बहुत काम आती है । लेकिन कुछ नहीं करते है और अगर थोड़ा सा कुछ
तब तक तो पिता बहुत बूढ़ा हो चुका होता है , करने लग गए, इतना रौब, इतना रौब जमाते
उसकी बात कौन सुने? किसको समझ आ हैं कि जैसे इससे बढ़कर के कोई prime
रहा है ? बेटों को, बेटियों को! अब उस बूढ़े minister भी इतना रौब नहीं जमाता
माता-पिता की बात कौन सुनेगा? कौन होगा। जितना ये घर में रौब जमाते हैं क्योंकि
समझेगा? किसको कहे गा? और जिसको उन्होंने अपने nature को कभी सुधारा
कहे गा उसकी कौन मानेगा? ऐसा देखने में नहीं, इनके अन्दर कभी भाव आया ही नहीं
आता है । जिसको हम सोचते हैं कि यह हमारे कि किस तरह से हमें जीना चाहिए। किस
कोई काम में आएँगे, उनके लिए हमने सब तरह से हमें दूसरों की सेवा करनी चाहिए।
कुछ किया लेकिन फिर भी बड़े होने के बाद उत्तम त्याग धर्म सुना तो खूब है , follow
वे काम नहीं आते। जिन बेटियों को माता- कभी नहीं किया। समझ आ रहा है ? आज
पिता सोचते हैं ये तो पराए घर की हैं , न आपको क्या करना है ? अपने nature में
उनको उन्होंने अच्छे ढं ग से कोई उनके लिए ऐसी चीज लाना है । क्या करना है ? to
उत्सव मनाए, न कोई उनके जन्म का कोई give something what you have.
उत्सव मनाया, न कोई अपने अन्दर ऐसा समझ आ रहा है ? if you have
भाव लाया कि यह बड़ी होकर के हमारे काम nothing to give, क्या देना है ? to
आएगी। आज वही बेटी बड़े होकर के काम give smile only. अगर आप कितनी
में आती है और आ रही है । क्यों आती है ? भी practice के भाव में रहें गे तो हम
क्योंकि स्त्री के अन्दर, बेटी के अन्दर, एक समझेंगे कि आपका उत्तम त्याग धर्म आज
भाव होता है । हमेशा भाव होता है समर्पण का बहुत अच्छा गुजरे गा और आज आप
का, सेवा का, दया का। यह भाव आपको खुश रहें गे और दूसरे को देकर के खुश रहें गे
जितना महिलाओं में मिलेगा उतना आप तब आप आगे के धर्म की और योग्यता
पुरुषों में नहीं देखेंगे। पुरुष तो अक्खड़ होते प्राप्त कर पाएँगे। यह आपकी योग्यता को
हैं , कंजूस होते हैं , कुछ नहीं करते हैं बस! निरन्तर बढ़ाया जा रहा है ।
ऊपर से गाली और देते हैं । इसके अलावा

धर्मं का मर्म 179


Day - 08
आज का चिंतन-त्याग करने का अभ्यास

उत्तम त्याग के • अपने अंदर art of giving की कला


दिन जो आपके पास सीखें। जो भी आपके पास है उसमें से
हो उसमें से कुछ त्याग donate करें।
करना है ।
• जो आप donate कर रहे हैं उसकी
1. धन है तो धन एक list बनाएँ।
का त्याग करें।
• अगर कुछ नहीं है देने के लिए तो सिर्फ
2. भोजन है तो भोजन का त्याग करें। एक smile दे दें और return में कुछ
अपेक्षा न करें।
3. कपड़ें है तो कपड़े का त्याग करें।

S.no Name the things


donated

180 धर्मं का मर्म


आज का एहसास

• Art of giving में अन्तर पता लगता है ।


मनुष्य के जीवन की • प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है हम भी
सार्थकता है । कुछ देना सीखें।
• मनुष्य और पशु में

स्व-संवेदन
इस तरह त्याग /donate करके आपको कैसा लगा?

धर्मं का मर्म 181


Day-9: उत्तम अकिंचन धर्म
चलो करें अकिंचन धर्म की आराधना
स्वधर्म की आराधना करते हुए धर्म का मान लिया था कि वह मेरा है , मेरी है लेकिन
मर्म समझते हुए कई दिन आपके बीत गए वह था नहीं अपना और यह भाव जब भीतर
हैं और आप second last stage पर से छूट जाता है , तो वह अपने आप में महसूस
खड़े हैं । जहाँ स्थित होने के बाद में आपको करता है कि बाहर की दृष्टि से मेरा कुछ नहीं
महसूस हो सकता है कि कितनी यात्रा हमारी है । इसी को अकिंचन भाव कहा जाता है ।
तय हुई है और अभी कितनी यात्रा बाकी है । अकिंचन का मतलब
जब माटी अपना सर्वस्व त्याग कर देती है , होता है - किंचन भी
तो उसके बाद में उसके अन्दर एक भाव मेरा नहीं और किंचन
आता है कि जो छूटा था, छूट गया है वह मतलब होता है कुछ
मेरा नहीं था, नहीं है और देखा जाए तो something,
वास्तव में वही छूटता है , जो मेरा नहीं होता something else.
है । हम वही ग्रहण करते हैं जो मेरा नहीं होता कुछ भी अगर है , तो
है और इसी के कारण से हम अपने स्वभाव वह किंचन है और कुछ भी नहीं है , तो वह
के पास नहीं आ पाते हैं । जब हमारे अन्दर से अकिंचन है । अब इस अकिंचन शब्द के साथ
वह चीजें छूटने लगती हैं जिन्हें हमने अपना में दो चीजें जोड़ी जा सकती हैं , मैं कुछ भी
माना था लेकिन वे अपनी थी नहीं, हमने नहीं हूँ और मेरा कुछ भी नहीं है ।

अकेलेपन व एकाकीपन में अन्तर


अकिंचन शब्द सिर्फ इतना ही कह गुजरते हुए आता है , तो उस अकिंचन भाव
रहा है कि कुछ भी नहीं, nothing else में एक अच्छी अनुभूति होती है और वह
और इसके साथ में मैं और मेरेपन का भाव अनुभूति वैसी होती है जैसी मुक्त आत्माओं
अगर छूट गया तो व्यक्ति वास्तव में अकिंचन को होती है , जैसी सिद्ध पुरुषों को होती
भाव में आ जाता है । जब यह अकिंचन भाव है । क्योंकि जब भी कभी आपको स्व की
आदमी के अन्दर इस तरह के सोपानों से अनुभूति होगी तो आपको थोड़ा सा अकेला

182 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

भी होना पड़ेगा और एकाकी भी होना पड़ेगा। हैं किन्हीं भी परिस्थितियों में साहस करके
अकेले और एकाकीपन का अन्तर जानते अपना जीवन आगे बढ़ाते हैं । आगे चल कर
हो? अकेले का मतलब होता है - हमसे दूसरे के उनका कोई भी वैवाहिक संबंध इत्यादि
छूट गए और हम अकेले रह गए। जैसे-जैसे भी हो जाता है । कभी वह संबंध सुखपूर्वक
माटी ने अपनी यात्रा आगे बढ़ाई, वह अकेली भी गुजर जाता है और कभी उस संबंध में
होती गई। उसका बहुत सारा जो सम्बन्ध था भी बहुत जल्दी दरारें पड़ जाती हैं और बहुत
वह छूटता गया और उस सम्बन्ध के साथ में जल्दी तलाक आदि की स्थिति आने के बाद
अकेली होने के साथ ही वह कुछ बन पाई, में व्यक्ति फिर से अपने आपको अकेला
कुछ ढल पाई, एक कलश का रूप ले पाई। महसूस करने लग जाता है । ऐसे बहुत से
अकेला होने पर ही आपके अन्दर एकाकी लोग दुनिया में देखने को मिलते हैं जो कहते
का आनन्द आएगा। दो चीजें हैं - अकेला हैं कि हम अपने जीवन में ज्यादातर अके-
होना और एकाकी होना। दुनिया में अकेले लापन ही महसूस करते हैं । यह अकेलापन
तो बहुत सारे लोग मिल जाएँगे। एकाकी किसी से सहा भी जाता है और किसी से
होना अलग चीज है । अकेला तो कभी हमारी नहीं भी सहा जाता। अकेलेपन को सहन
मजबूरी भी बन सकता है । हम जब जन्म करना तभी संभव है जब हम अपने अन्दर
लिए हमारे सामने घर था, परिवार था। बहुत इस तप और त्याग के माध्यम से इस स्थिति
से ऐसे लोग होते हैं जिनके माता पिता उनके में पहुँचे हो कि यहाँ पर कुछ भी मेरा नहीं
बचपन से छूट जाते हैं । खुद अकेले बड़े होते है । मैं यहाँ पर किसी का नहीं हूँ। जब इस

धर्मं का मर्म 183


उत्तम अकिंचन धर्म

तरह का भाव आएगा तभी वह अकेलापन लगेंगे, सहन भी करने लगेंगे और अनुभव
आपको भीतर से सहन करने में आएगा और करने लगेंगे तो आप एकाकी कहलाने लगे।
जब आप भीतर से अकेलापन महसूस करने

कोई नहीं है किसी का साथी सारी यात्रा एकाकी है


एकाकी होने की यात्रा मतलब एक लेकिन वह अकेलेपन से जो यात्रा शुरू होनी
आत्मा की यात्रा। मैं एक आत्मा ही था, थी एकाकी की, उस यात्रा में नहीं आ पाता।
अकेला ही था। जब दुनिया में आया था तब आप कल तक एक interdependent
भी अकेला था। आगे जब भी बड़ा हुआ तो की state में खड़े थे। independent से
स्वयं अपने ही कारणों से अपने ही उपादान आप थोड़ा-थोड़ा सा क्या करने लगे? एक
से बड़ा हुआ। स्वयं अपनी ही शक्ति से हमने दूसरे का कल्याण भी करने लगे, एक दूसरे
स्वयं में समर्थता पायी और जब धीरे-धीरे का उपकार भी करने लगे, आपके पास जो
सब कुछ ढलने लगा तो मैं अकेला ही यहाँ से चीजें थी। वह आप दूसरों को देने लगे, एक
जा रहा हूँ। अकेला ही यहाँ से सबसे विदाई दूसरे की help करने लगे। यह आपका एक
ले रहा हूँ। जीवन की यात्रा तो हमेशा ऐसे ही ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’ का काम चलने
चलती है , हर कोई अकेला ही आता है और लगा। लेकिन इसमें भी सन्तुष्टि नहीं होती
अकेला ही जाता है । लेकिन उस अकेलेपन है । संतुष्टि आपको तभी मिलेगी जब आप
में अगर अभाव जुड़ा रहता है , मैं अकेला हूँ, पर से अपना संबंध पूरा छोड़ेंगे। देने लायक
मेरे साथ कोई भी नहीं है , कोई भी मुझे संबल जो चीज थी वह दे दी गई, छोड़ने लायक जो
देने वाला नहीं है कोई भी मेरा सहारा नहीं है , चीज थी वह छोड़ दी गई, त्यागने लायक जो
मुझे अकेलापन सहन नहीं होता। मुझे अकेले चीजें थी वह सब त्याग दी गई, अब आपके
में डर लगता है , मुझे सहा नहीं जाता, अकेले पास में कुछ भी नहीं बचता। अब क्या है ?
रहना बहुत भारीपन लगता है । ऐसे लोगों के उसी का नाम है - अकिंचन। एक स्थिति
साथ में आपको दिक्कत यह होगी कि वह यह भी बनती है जब आप देते-देते हुए यह
व्यक्ति जो इस तरह से अकेला पर महसूस महसूस करने लगेंगे कि अब हम देने लायक
नहीं कर पा रहा है , सहन नहीं कर पा रहा है भी नहीं रहे हैं । बहुत थक चुके हैं । देते-देते भी
उसे किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ हमारे लिए पूरा जीवन निकल गया है । अब
जाती है और वह अकेलेपन से फिर, बाहर से हमें अपने लिए भी कुछ कर देखना है अपने
अपने आपको भरने की कोशिश करता है । लिए भी कुछ करना है और भीतर अपनी

184 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

यात्रा प्रारं भ एकाकी के रूप में करना है , तो कहते हैं -


आपको फिर वह देने की प्रक्रिया से भी ऊपर ‘अहं अकिंचनोस्मि इत्यास्व त्रैलोक्या-
उठना पड़ेगा और उसी का नाम है - अकिंचन धिपर्ति भवेत, योगिगम्यं तव प्रोक्तं रहस्यं पर-
भाव। यह इतना अच्छा भाव है कि आचार्य मात्मनः’

अकिंचन भाव से ही सिद्धत्व की यात्रा शुरू होती है


‘अहं अकिंचनोस्मि’ मैं अकिंचन हूँ, मैं क्योंकि आप सब चीजों से ऊपर उठ चुके हैं ।
अकिंचन हूँ, इस तरह की दृढ़ भावना अपने अकिंचन भाव में आने के बाद में आप यह
अन्दर बिठा लो। मैं अकिंचन हूँ, कुछ नहीं महसूस करेंगे कि हमारे लिए इससे बढ़कर
हूँ, मेरा कुछ नहीं है , मैं किसी का नहीं के आनंद दुनिया में और कहीं पर भी किसी
हूँ। इस तरह की अकिंचन भावना में जब भी रूप में मिल नहीं सकता। लेकिन जब
आपकी मानसिकता दृढ होने लगेगी तो तक मोह रहता है तब तक हमें ऐसा लगता
आचार्य कहते हैं - ‘त्रैलोक्याधिपर्तिभ- है कि हमें संबंधों में ही आनंद है । अकेला
वेत’ आप ही तीन लोक के अधिपति हो अगर कभी आपको रहना भी पड़ जाए तो
जाओगे। सुन रहे हैं ? तीन लोक का स्वामी। आपको दुःख महसूस होता है । क्यों महसूस
जो व्यक्ति अकिंचन होता है वही ऊपर उठता होता है ? क्योंकि दुःख आपने भीतर अपने
चला जाता है । अकिंचन होकर के ही अरिहं त अन्दर सँजो रखा है । आपने अपने अन्दर के
बना जाता है । अकिंचन होकर के ही सिद्ध सुख को देखा ही नहीं। इसलिए अकेले होने
बना जाता है और अकिंचन हो कर के ही के बाद में आपको कभी सुख की अनुभूति
साधु से सिद्धत्व की यात्रा शुरू होती है । ज-
ै नहीं हुई। आपको हमेशा दुःख की अनुभूति
से-जैसे अकिंचन भाव आएगा, आप तीन हुई। जैसे-जैसे आप अकेलापन महसूस
लोक के अधिपति होंगे। आप किसी के ऊपर करते गए और ज्यादा भीतर से दुःखी होते
depend नहीं होंगे। आप के लिए किसी गए, depressed होते गए। अपने आपको
भी तरह की मन को दुखाने वाली कोई चीजें इतना sadness की स्थिति में ले आये कि
आपके लिए बाधक नहीं होगी। कोई भी आपके लिए लगने लगा कि दुनिया में तो मेरे
चीजें आपको परेशान करने वाली नहीं होगी लिए कुछ नहीं है लेकिन मेरे भीतर भी कुछ

धर्मं का मर्म 185


उत्तम अकिंचन धर्म

नहीं है । कुछ लोग इस तरह से इस यात्रा क्योंकि मैंने देना बन्द कर दिया। यह बहुत
पर आने के बाद में दुःखी से हो जाते हैं । अच्छा सा संसार का एक बहुत अच्छा नियम
तप किया, त्याग किया अब त्याग करने के है । जब तक आप दोगे लोग आपके पास
बाद आनन्द क्यों नहीं आया? आएँगे और जिस दिन आप देना बंद कर दोगे
त्याग में आनंद है कि तो लोग आपके पास आना बंद कर देंगे।
त्याग के बाद आनंद साधु की quality यहाँ से ऊपर उठती है ।
है । कल तो आपसे साधु भी त्याग करने के बाद में, यहाँ से अपने
कहा था कि त्याग में आपको ऊपर उठा पाता है , जब अकिंचन
आनंद है , त्याग करो भाव में आता है । देते रहोगे तो मेला लगा
आनंद लो, त्याग करो रहे गा। देना बंद कर दो, चुपचाप बैठना शुरू
आनंद लो। be कर दो। किसी से कोई भी प्रयोजन रखना
happy after giving something, बन्द कर दो और उसके बाद में फिर आप
कुछ दो और आनंद लो लेकिन आप कब देखो कि आप क्या कर पा रहे हो? अकेले में
तक क्या-क्या दोगे? आपके पास में देने की आप रह पा रहे हो कि नहीं? नहीं तो आपकी
एक limit होगी, उसके बाद में आप क्या भी वही स्थिति बनेगी जो सामान्य गृहस्थों
करोगे? आज यह बताया जाना है कि देने के की स्थिति बनती है । जैसे किसी ने अपना
बाद आनंद है कि देने में आनंद है । कल तक परिवार बनाया धीरे-धीरे छूटता गया तो
तो आपने सीखा था देने में आनंद है , तो उससे अब नहीं रहा जा रहा। वैसे ही कई
दिया, आनंद लिया। लेकिन अब आप उससे साधकों से अकेला नहीं रहा जाता। क्यों
ऊपर भी उठो। देने लायक जो चीज भी दे नहीं रहा जाता? क्योंकि भीतर कोई सुख की
चुके हैं , कितना दिया जाएगा? अब देने के अनुभूति हुई नहीं। भीतर आत्मिक सुख का
बाद में जो आनंद आता है , उस आनंद को भी कोई आनंद आया नहीं। भीतर जो सुख था
लेने की कोशिश करो। अगर देने के बाद उस सुख को कभी भी अनुभव में लाया नहीं।
आनंद नहीं आया तो इसका मतलब है फिर इस कारण से उस सुख से कभी परिचित तो
आप महसूस करोगे कि अब तो मैं अकेला हुआ नहीं और दूसरों के दुःख दूर करने में
रह गया। मेरे पास में देने को कुछ बचा नहीं अपनी जिदं गी लगा दी। तब तक तो जिं दगी
अब मैं क्या करूँ ? मेरे पास कोई आता ही निकल गई, जब तक हम दूसरों के साथ कुछ
नहीं, पहले तो लोग इसलिए आते थे क्योंकि कर रहे थे, interdependent थे। अब हमें
मैं देता था। अब कोई इसलिए नहीं आता क्या करना है ? कब तक दूसरों का उपकार?

186 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

कब तक help to one another? कहीं कहीं न कहीं तो हमें अपने आप में आना ही
न कहीं तो हमें stay in myself, कहीं न होगा और इसमें आने का नाम ही अकिंचन
कहीं तो हमें अपने आप में ठहरना होगा। भाव है ।

मुक्त होना है , तो भीतर आ जा


जब तक आदमी के सामने लोग रहते है कि उनके साथ में बहुत झुंड हो। झुंड में
हैं तब तक आदमी खुश रहता है । जैसे ही तो उन्हें एक जैसा चलना पड़ता है कभी-
आदमी के सामने से लोग चले जाते हैं , आप कभी और कभी-कभी जब वे अकेले होते
देखो आपकी क्या स्थिति बनती है । चाहे हैं तो आप देखो एक तितली कहीं घूम रही
गृहस्थ हो चाहे साधु हो। अकिन्चन धर्म को हो, एक भँवरा कहीं कैसे मस्त हो कर के
समझना पड़ेगा। अगर अकिन्चन धर्म में हम चारों ओर घूम रहा हो। एक चिड़िया कहीं
रह रहे हैं तो हमें अकेले में अच्छा लगना से कहीं तक लहरा रही हो और देखो! जब
चाहिए। अकेले में आनन्द आना चाहिए। वह लहराती है , तो उसकी मस्ती देखो। वह
हमारे अन्दर अकेले में खालीपन नहीं लगना मस्ती दूसरे के साथ नहीं आ सकती। वह
चाहिए। अकेले में भी हम भीतर से बिलकुल अकेले का आनन्द है । लोग समझते हैं कि
प्रसन्न, भरे पूरे ऐसा लगे कि यह अकेला ही हम अपने जीवन में अकेले खुश रह ही नहीं
हमारे लिए आवश्यक है । सबके साथ रहना सकते। ऐसी धारणा ही रहती है और इसी
हमारे लिए आवश्यक नहीं है । इसका नाम कारण से कोई भी व्यक्ति जैसे ही बड़ा होता
है - अकिन्चन भाव। जब इस तरह का अकि- है , तो उसे सम्बन्धों की जरूरत पड़ जाती है ।
न्चन भाव होता है , तो फिर आपको देखने चाहे वह वैवाहिक सम्बन्ध हो, चाहे मैत्रिक
को मिलेगा आप भी पक्षी की तरह जैसे सम्बन्ध हो, हमें सम्बन्ध बनाने ही पड़ते हैं ।
आकाश में पक्षी अकेला उड़ा करता है , आप without relation there is no life,
भी अकेले उड़कर के आनन्दित रहें । कभी so live in relationship यह शुरू हो
आप देखो! चिड़िया हैं , तोते हैं , कैसे अकेले जाता है । आपके लिए यह relation बनाने
उड़ते हैं और कैसे मस्ती में लहराते हैं और के बाद में आपको ऐसा महसूस नहीं होना
कैसे आनन्दित रहते है ? कोई जरूरी नहीं चाहिए कि यह relation हमारे लिए एक

धर्मं का मर्म 187


उत्तम अकिंचन धर्म

dependency का बहुत बड़ा कारण बन को बाँध करके रखोगे? कब तक आखिर


गया है । dependent क्यों हो हुआ जाता आप किसी से अपने आप में सुख पाते
है अगर relation बन भी जाते हैं ? अगर रहोगे। आपको हमेशा अपने अन्दर अगर
आपके सम्बन्धों से आपको मुक्ति मिले तो सुख पाने की भावना खुद में खुद से नहीं है ,
वे सम्बन्ध अच्छे हैं और जिन सम्बन्धों से तो आप जिं दगी भर भिखारी ही बने रहोगे।
आप पराश्रित होते चले जाए वे सम्बन्ध दूसरा है , तो सुख है और दूसरा नहीं है , तो
अच्छे नहीं हैं । कब तक आखिर आप किसी सुख नहीं।

आदमी अपने सुख की इच्छा के लिए दूसरे को पराधीन बना देता है


आपको लगा एक तोता है , खेल रहा है । बंधन में डाल दिया। किसके लिए? अपनी
उसकी आजादी आपको अच्छी लगी, उसकी खुशी के लिए। क्यों अपनी खुशी आ गई?
स्वतंत्रता आपको अच्छी लगी। लेकिन शायद हमें उसकी स्वतंत्रता से भी चिड़ आने
आपको इतनी अच्छी लगी कि आपको वह लगी है । शायद हमें ऐसा लगने लगा हो कि
तोता अच्छा लगने लगा और आपने उसको यह कितना आजाद होकर मस्त होकर घूम
कैद कर लिया। हम क्या करते हैं देखो? रहा है , आकाश में उड़ रहा है , आपको पसन्द
तोते को कैद कर लिया नहीं आया हो। क्योंकि आपके अन्दर परतं-
है एक पिं जरे में बांध त्रता है । आपके अन्दर बन्धन पड़े हैं , आपके
लिया, रख लिया। अब अन्दर दुःख है , तो आप दूसरों को भी दुःख
हम रोजाना उसको देख कर के खुश हो गए। एक बहुत बड़ी
देख रहे हैं , उसको दाना psychology है । किसी भी पक्षी को
दे रहे हैं , उससे बात भी बांधना, किसी भी पशु को बांधना और
कर रहे हैं , उसको फिर उससे आनन्दित होना। इसका
खिला रहे हैं और उसमें अब हम खुश हो रहे मतलब यह है कि हम दूसरे को बन्धन में
हैं । क्या मतलब हुआ? एक व्यक्ति, एक पक्षी डाल रहे हैं क्योंकि हमें बन्धन में डलकर
जो आजाद था आपने उसकी आजादी छीन के, खुद को भी डाल करके आनंद आता
ली। किसी भी तरह के छल कपट से उसको है । कई बच्चे कुत्ते क्यों नहीं पालते इस बात
पकड़ लिया और फिर उसको अपने पिं जड़े में से ही माता-पिता से रूठ जाते हैं । हम भी
रख लिया और आपने उसकी जो स्वतंत्रता एक अच्छा सा doggy लाएँगे, घर में
थी उससे तो आपने, उसको तो बिलकुल ही doggy आएगा उसके साथ घूमेंगे। क्यों

188 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

बांधना उसको? क्यों-क्यों किसी जीव को जिसके अन्दर दुःख है , तो वह दूसरों को दुःख
पिं जड़े में डालना? वह उन्मुक्त है उसे मुक्त में डाल कर के फिर अपने अन्दर खुशी
रहने दो। वह सड़कों पर जब घूमेगा तब महसूस करेगा। क्या मिलेगा आपको? क्यों
ज्यादा अच्छा उसके अन्दर महसूस होगा कि आपको तोते पकड़ने पड़ते हैं ? क्यों आपको
जब तुम उसे जंजीर से बाँध कर के अपने घर कुत्ते पकड़ने पड़ते हैं , पिल्लों को रखना पड़ता
की ही चौखट में बाँध कर रखोगे तब ज्यादा है ? क्यों आपको उनको बन्धनों में डालना
वह खुश होगा? सोचने की कोशिश करो। पड़ता है ? आप उन्हें खुला छोड़ो, उन्हें अपनी
आपके अन्दर अगर इस बात से प्रसन्नता का जिं दगी जीने दो। उन्हें भी अपनी जिं दगी जीने
भाव आ रहा है कि मुझे वह dog अच्छा लग का वैसा ही अधिकार है जैसा आपको है ।
रहा है , मुझे वह parrot अच्छा लग रहा है , लेकिन आपको बन्धन प्रिय हैं इसलिए आप
तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसको दूसरे को भी बन्धन में डाल कर के अपने
बांध करके अपने पास में रख लो। यह आपको खुश महसूस करना चाहते हो। यह
आपकी हिं सा हो गई। यह अपने अन्दर का आपकी गलती है , यह आपका अहं कार है ,
दुःख जो आप से सहा नहीं जा रहा था, आप यह आपके अन्दर की छिपी हुई हिंसा है ।
उसका ही एक तरीके से projection करने जिसे आप प्यार से अभिव्यक्त करना चाहते
लगे कि आप दूसरे को दुःख देकर के फिर हो लेकिन यह प्यार नहीं है , यह प्रेम नहीं है ।
आप अपने में खुश होने लगे। वह मेरे कहे पशु पक्षियों के प्रति प्रेम का मतलब है - उन्हें
अनुसार चलेगा, मेरे साथ रहे गा। मैं जब भी मुक्त रहने दो। उन्हें देख कर के आनन्दित हो।
उसको जैसा भी इशारा करूँ गा वैसा करेगा। अगर तुम उनकी कुछ help कर सकते हो
वह मेरा पालतू हो जाएगा तो मुझे कुछ तो तो उनकी help करो, इस help करने का
लगेगा। दुनिया में मेरा कोई तो नहीं है , कोई मतलब यह नहीं कि उन्हें पकड़ कर के अपने
तो relative नहीं है कोई मेरी बात नहीं पास में रखो। अगर किसी तोते को आप
मानता है । कम से कम एक doggy तो बात पिजड़े में बांध के भी रख लोगे और उसको
मान लेता है , उसी से ही आदमी जिं दगी तुम रोजाना किशमिश खिलाओ, पिस्ता
निकाल लेता है । समझ आ रहा है ? पशुओं खिलाओ, दूध पिलाओ तो भीतर से खुश
को, पक्षियों को बन्धनों में रखना इसलिए रहे गा। आप सोच रहे हो मैं उसको कितनी
अच्छा नहीं माना गया। वही व्यक्ति बन्धन में बढ़िया-बढ़िया चीजें खिला रहा हूँ, मैंने
रखना पसंद करेगा जिसको खुद में बंधन उसको पाल रखा है , मैं उसकी कितनी अच्छी
महसूस करने में अच्छा लगता हो और सेवा कर रहा हूँ, मैं उसके ऊपर इतना खर्च

धर्मं का मर्म 189


उत्तम अकिंचन धर्म

कर रहा हूँ। उसकी कोई जरूरत ही नहीं है भीतर ही भीतर परेशान है लेकिन आप उससे
तुम बेकार के काम कर रहे हो। वह अपने जबरदस्ती तोता, तोता, पीलू, पीलू, doggy,
आप में इतना खुश था, उसका colour हरे doggy जबरदस्ती किये जा रहे हो। उससे
रं ग का कितना मस्त लगता था जब वह उड़ता कुछ तुम से खुशी हो ही नहीं रही है और तुम
था और जब से तुमने उसको पिजड़े में रख जबरदस्ती उससे खुश होने का प्रयास कर
लिया, न उसको धूप मिल रही है , न उसको रहे हो। अगर आप ऐसा कर रहे हो तो आप
हवा मिल रही है , न उसको कोई भी अपने समझो कि हम अपने दुःख को दूर करने के
भीतर की स्वतंत्रता महसूस हो रही है । वह लिए दूसरे को दुःखी बना रहे हैं ।

मुक्त होना है तो बाहर से ऑंखें मूंद लो


आज के बच्चे यह सीखे कि कभी भी हमें नहीं पड़ता कि जब बरसात होती है वे कहाँ
किसी भी प्राणी को बांधना नहीं। किसी को छु पे रहते हैं ? बरसात बन्द हो जाती है , तो
भी बंधन में रखना नहीं। चाहे वह doggy कहाँ से उन्मुक्त होकर के निकल आते हैं ।
हो, चाहे वह parrot हो, चाहे वह किसी इतना उन्हें अपना जीवन जीने में आनन्द
भी तरीके का कोई भी पशु पक्षी हो, हमें आता है । लेकिन जब आप उन्हें बन्धन में
किसी को बाँध कर के रखना नहीं। जिनकी डाल देते हैं तो कहीं न कहीं आप अपने मन
आदत घूमने की है , उन्मुक्त होने की है वह की कषाय पूरी करते हैं । अपने मन का दुःख
उन्मुक्त ही रहे । जिनका स्वभाव बान्धने का दूर करने के लिए दूसरे को दुःखी बनाते
होता है , जिन्हें बान्धना अच्छा होता है उन्हीं हैं । एक पक्षी को जब इस तरह से किसी
को बाँधा जाता है । कुत्तों को कभी बान्धने के ने बाँध लिया, पिजड़े में डाल दिया और वह
लिए नहीं कहा गया है । कुत्ते आजाद होते हैं देखता रहा। कुछ नहीं कर सकता मनुष्य
गलियों में घूमने दो उनको। उनकी व्यवस्था के आगे क्योंकि मनुष्य समर्थ है । जब वह
नगर पालिका करेगी तुम्हें जरूरत नहीं है । पिजड़े में पड़ा रहा, पड़ा रहा, पड़ा रहा कभी
पक्षियों की व्यवस्था तुम्हें करने की जरूरत वह सोचता रहा कि आखिर इस पिं जड़े से
नहीं है । पक्षियों को तुम मत बाँधो। पक्षियों कैसे निकला जाए? सोचता रहा, अपने मन
की व्यवस्था प्रकृति करेगी। आपको पता में विचार करता रहा तो एक बार जब उसका
नहीं होता पक्षी अपने आप से कैसे अपना ही मालिक उससे बातचीत करने लगा था
कहीं भी घोंसला बना लेते हैं । उड़ते हैं , साथ और पक्षी भी मनुष्य की भाषा समझने लग
में रहते हैं , चहचहाते हैं और आपको पता भी जाते हैं और मनुष्य भी पक्षियों के साथ में

190 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

अपना communication करने लग के उस तोते को सुना दिया। तोते ने सुन लिया


जाता है । ऐसे ही होने लगा। एक बार वह और सुन लिया तो उसे तो साधु की बात पर
व्यक्ति जिसने उस पक्षी को बांध रखा था विश्वास था ही। उसने कहा बस! यही काम
किसी साधु के पास जाने लगा और कहने यही कार्य होगा और उन्मुक्त होने के लिए
लगा कि देखो! तोता मैं साधु के पास जा रहा यही चीज हमारे लिए कारण बनेगी। ठीक
हूँ। मैं रोजाना उनका उपदेश सुनता हूँ तुम्हें है ! उसने वही काम किया। पिजड़े में पड़ा था,
कुछ पूछना तो नहीं। आजकल उनके प्रश्न आँखें मूंदी उसने, बिलकुल ऐसी आँखें मूंद
उत्तर भी वे देने लगे हैं । वे किसी के भी प्रश्नों ली उसे बाहर अब क्या होना है , उसे कुछ
का उत्तर दे देते हैं । ऐसे साधू के पास मैं जा पता ही नहीं। खो गया भीतर, सो गया। दूसरे
रहा हूँ। शंका समाधान आज एक नया शुरू दिन जब मालिक आता है , देखता है तोता
होने लगा है । उस तोते को जब यह बताया को वह दूध दे रहा है , किशमिश खिला रहा है
गया तो तोते ने कहा आप जा रहे हैं तो यह और वह कुछ भी react नहीं कर रहा। सो
पूछ कर आना कि जीवन में उन्मुक्त कैसे रहा गया, खो गया है । वह उसको हिला रहा है ,
जा सकता है ? और जीवन को स्वतंत्र कैसे इधर से उधर कर रहा है । आवाज दे रहा है ।
बनाया जा सकता है ? तोते ने प्रश्न कर दिया। no reaction. क्या हुआ? आखिर उसने
व्यक्ति गया साधु के पास में, जब प्रश्नोत्तर का देखा ऐसा लग रहा है कि he is dead,
समय आया उसने प्रश्न किया और फिर साधु इसका काम हो गया। अब क्या करें? उसने
ने उसके प्रश्न को समझ कर के उत्तर दिया। उसको पिं जड़े से बाहर निकाला और उठा
बोले अगर तुम्हें मुक्त होना है , तो तुम बाहर से कर फेंक दिया। इससे ज्यादा क्या करेगा
अपनी आँखें मूँद लो। बाहर कुछ भी न देखो, आदमी। फेंक दिया उसे, जब फेंक दिया तो
सो जाओ और इस तरह से अपने भीतर खो बस फेंकते ही उसको समझ आ गया कि
जाओ कि आपको बाहर की कुछ भी याद न मैं अब यहाँ से मुक्त हो गया और एकदम
रहे आप मुक्त हो जाओगे। साधु की बात को से उड़कर के वृक्ष पर बैठ गया। साधु की
व्यक्ति ने सुन लिया, आकर के उसने तोते को बात काम आ गई। कैसे मुक्त हुआ जाए
सुना दिया और तोते को सुना दिया तो उस इस संसार से? कैसे छूटा जाए संसार से?
व्यक्ति को तो कुछ समझ में नहीं आया। अब कैसे अपने आप को दुःखों से दूर रखा जाए?
क्या सो जाओ और क्या आँखे मूँद लो और साधु समझा रहा है मनुष्य को और मनुष्य
क्या जो है भीतर खो जाओ, उसको तो कुछ को समझ में नहीं आ रही है , एक पक्षी को
समझ नहीं आया। उसने ज्यों का त्यों लाकर समझ में आ गया। मनुष्य सोच रहा है क्या

धर्मं का मर्म 191


उत्तम अकिंचन धर्म

करा जाए? आपसे कह भी दिया जाता है पगले हैं जो महाराज हमको आँख बन्द कर
कि भैया! आँख बन्द करके बैठो तो भी आप के बैठा दे रहे हैं । विश्वास ही नहीं होता है कि
आँख खोल कर देख लेते हो कि बगल वाला आँख बन्द करके भी कुछ होगा।
आँख बन्द किये है कि नहीं कि हमें ही केवल

प्रसन्न रहने के लिये अन्दर से सहज होना जरूरी है


संसार से आँखें मूंद लो मतलब बहिर्मु- चेहरे पर प्रसन्नता बनी रहे गी। आप सहज
खी जो हमारी वृत्ति बनी हुई है इसको बन्द भाव में आनन्दित रहें गे और अगर आपके
कर लो। अन्तर्मुखी हो जाओ। बाहर जो हमने अन्दर उथल-पुथल है , व्यग्रताएँ है , क्लेश
सुख देखने की सुख पाने की लालसा पैदा में बाहर देखने की जानने की तमाम इच्छाएँ
कर रखी है , अपनी इन्द्रियों को बाहर फै ला हैं । बाहर की चीजों से मोह है , तो आपको
रखा है इसको संकोच लो। चुपचाप, शांत हो आँख बन्द करने में बड़ा कष्ट होगा। ऐसे हम
जाओ, भीतर से मौन, आँखें बन्द कोई विचार आपको एक घण्टा भी सुनाते रहें गे, आप
नहीं, भीतर परम शांति का अनुभव करो। सुन लोगे और अगर हम आपको बिल्कुल
अकिंचन भाव में आओ लेकिन दो मिनट भी आँख बन्द करके बिठा देते हैं तो आप देखो
बैठने में ऐसा लगने लग जाता है जैसे दो दो मिनट नहीं हो पाते हैं , ऐसा लगने लग
घण्टे के समान वह time निकलता है । आप जाता है जैसे क्या हो रहा है । कभी देखते हो
कभी महसूस करो जब मैं कुछ नहीं बोल न! दो मिनट मैं मौन हो जाऊँ तो आप को
रहा होता हूँ और आपको बिल्कुल आँख बन्द यह लगता है कहीं ऐसा तो नहीं महाराज उठ
करके बैठा देता हूँ और आपको कसम खिला कर चले गए। देख तो लूँ पर हमने कह रखा
देता हूँ, आँख नहीं खोलना। अब आपको वह है आँखे नहीं खोलना, आँखे बन्द रखना है ।
एक-एक पल कितना हल्का लगता है कि आप देखो आपको कितना भारीपन महसूस
भारी लगता है ? यह आप महसूस करो। मैं होता है । आपको बाहर की कितनी चिं ताएँ
उस समय पर आपके expression देखता पड़ने लग जाती हैं । इसका मतलब है कि
हूँ। समझ आ रहा है ? कौन भीतर सहज आप अन्तर्मुखी नहीं हुए। अन्तर्मुखी होने में
भाव में है और कौन भीतर से क्लेश भाव ही आनन्द आने लगे तो फिर आपको बाहर
में आ रहा है । अगर आपके अन्दर भीतर से की चिं ता पड़े ही नहीं। कई लोगों को इतना
सरलता होगी, सहजता होगी कोई कषायें आनन्द आने लग जाता है ध्यान में बैठने में,
नहीं होंगी, कोई मोह नहीं होगा तो आपके शांति में कि वे बैठे रहते हैं । कई बार मैं ऐसा

192 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

भी देखता हूँ कि जब मैं कहता हूँ चलो! अब जीने लगा उन्मुक्त हो कर के। अब वह सामने
ॐ अर्हं नमः, ॐ अर्हं परम शांति बोल कर जो आदमी था, जिसने उसको छोड़ दिया, वह
के चलो अपनी हथेलियाँ घिसो, आँखों पर कहता है - यार इसने देखो मुझे बेवकूफ बना
रखो तो कई लोगों को ऐसा लगता है बस! दिया। उसने बेवकूफ नहीं बना दिया। तुम्हारे
इतनी जल्दी अभी तो मुझे और बैठना था बंधन के भाव ने तुमको इतना मोहित कर
और आनन्द लेना था और इतनी जल्दी हो दिया कि तुम्हें पता ही नहीं कि यह उपदेश
गई। इसका मतलब है अब आपको भीतर किसके लिए हैं और इन उपदेशों के पालन
से अपना सुख महसूस होने लगा। यह खुद से तुम भी मुक्त हो सकते हो। लेकिन वह
self observe करो। अगर आपके अन्दर उपदेश तुमने तोते को तो सुना दिए अपने
सुख होगा तो आप आँख बन्द करके बैठने काम में कुछ नहीं लिया। तोता तुमसे कह
में आनन्दित होगे। मुक्ति भीतर से आपको रहा है कि देखो! जैसे मैं उन्मुक्त होकर के
महसूस होगी, मुक्ति यहीं मिलेगी। पंचम आनन्दित हो रहा हूँ और बंधन से मुक्त हो
काल में भी मुक्ति है अगर आप भीतर से मुक्त गया सिर्फ क्या सोच कर कि सो जाओ, खो
हो कर के रह रहे हो तो। एक तोता मुक्त हो जाओ। कहाँ खो जाओ? दुनिया में मत खो
सकता है बन्धनों से तो आप क्यों नहीं हो जाओ, अपने में खो जाओ। जब तक अपने
सकते? वह तोता इतना समझदार कि उसने में रहोगे सुरक्षित रहोगे। अपने में कोई खतरा
जैसा महाराज ने कहा वैसा कर लिया और नहीं जैसे ही आपने दूसरे को पकड़ा, खतरा
मुक्त हो गया। हँ सने लगा और अपनी जिं दगी शुरू हो गया।

ऐसी चीजें जिनसे time waste हो,


कोई knowledge न मिले वे जीवन के लिए व्यर्थ हैं
आप फिल्में देखते हो! के एक आकलन करना। पढ़ा-लिखा व्यक्ति
कोई कुछ बोला तो हर चीज में कुछ न कुछ sense निकालता
करो। फिल्में देखते हो, है । हर चीज में enjoy करता है और enjoy
देखते हो? पक्का! करने के बाद में फिर वह देखता है कि इसमें
कितनी देखी हैं ? खूब क्या है ? किस चीज का enioy है ? क्या
देखी हैं ! एक, दो, चार, इसकी आखिर पृष्ठभूमि है ? आपने फिल्में
दस, बीस, पचास, सौ खूब देखी होंगी, हमने भी फिल्में खूब देखी
खूब देखी हैं न। आप कभी शांति से बैठ कर हैं , खूब देखी और सब तरीके की देखी हैं ।

धर्मं का मर्म 193


उत्तम अकिंचन धर्म

कभी आप यह सोचो कि आखिर कोई भी कोई फिल्म होती नहीं। अब उस हीरोइन से


फिल्म शुरू होती है , तो उसकी कहानी कहाँ उसका मिलना होना, किसी न किसी रूप में
से शुरू होती है और सारी कहानी कहाँ पर उससे उसका पहचान होना और फिर उसके
लिपटी रहती है ? कोई भी फिल्म हो, आप बाद में फिल्म शुरू होना। उससे पहले कोई
सोचो कि हर फिल्म की कहानी कहाँ से शुरू फिल्म शुरू नहीं होती। उससे पहले तो सब
होती है ? कोई का घर दिखाया जा रहा है , को बोरियत लगती है । यह क्या है ? मान लो
कोई का परिवार दिखाया जा रहा है , कोई कोई हीरो दिखाया जा रहा है । अपने घर में
का कोई भी business दिखाया जा रहा है है , अपने परिवार के साथ है या अपने लिए
तब तक कोई कहानी शुरू नहीं हो रही है । किसी भी तरह के business में लगा हुआ
कहानी कहाँ से शुरू होती है ? कोई भी हीरो है या मान लो वह job कर रहा है या पढ़ रहा
आपकी दृष्टि में है , आप जब भी कोई फिल्म है । यहाँ से कुछ भी शुरू नहीं हो रहा है । शुरू
देख देखने जाते हैं क्या सोच कर जाते हैं ? सब कहाँ से होता है ? जैसे ही उसके संपर्क
किस हीरो की फिल्म है ? अब वह हीरो को में कोई दूसरा आया, अब यहाँ से कहानी
देख रहे हैं कि यह कर क्या रहा है ? घर शुरू होगी। अब उस कहानी में कितने
परिवार चला रहा है । यह देखने के लिए option हो सकते हैं ? आप सब फिल्में देख
फिल्म देखने आए थे क्या हम? फिल्म में करके सबका सार निकाल लेना। क्या
उससे कोई आनंद आता ही नहीं। फिल्म तब option हो सकते हैं ? या तो वह कहानी
शुरू होती है जब वह हीरो कहीं न कहीं किसी इतनी लंबी खिं च जाए कि बिलकुल last में
के चक्कर में पड़ता है । जब कोई चक्कर में जाकर ही दोनों मिल पाए अथवा वे दोनों
पड़ा, किसी के साथ उसका सम्बन्ध बनने बहुत जल्दी agree हो गए तो कभी लड़की
लगा, किसी के साथ में उसको अपना रहने के घरवाले agree नहीं होंगे, कभी लड़के के
में आनन्द आने लगा, किसी के साथ उसकी घर वाले agree नहीं होंगे और इसी कश-
पहचान होने लगी, बस! वहाँ से फिल्म शुरू मकश में पूरी फिल्म निकल जाएगी। कभी
हुई। अब देखो! अब फिल्म में रस प्रारम्भ लड़की तैयार नहीं होगी, लड़का उसको
हुआ आपके लिए और वह रस कब तक मनाता रहे गा इसी कशमकश में पूरी फिल्म
चलेगा? जैसे ही उसके साथ में कोई दूसरा निकल जाएगी। आप सोचो! किसी भी तरह
आया, आप देखोगे अब तरह-तरह की की कोई भी मनोरं जन की भी पृष्ठभूमि जिसमें
problem शुरू हुई। हीरो के साथ कोई न आप ज्यादा से ज्यादा समय देते हो उसमें
कोई हीरोइन तो होगी। बिना हीरोइन के सार क्या निकलता है ? सार निकालो। मैं

194 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

मना नहीं कर रहा है आप फिल्म मत देखो। director नहीं करता। ज्यादातर director
आज के बच्चे lockdown में घरों में बैठे हैं । इसी बात पर फिल्म बनाते हैं कि कम से कम
कितने ही बच्चे graduation किये हुए, end तो अच्छा हो जाए और end में जब
graduate कर रहे हैं और उसी time पर दोनों को मिला दिया, दोनों हाथ में हाथ
आज देख रहे हैं कोई पेपर नहीं हो रहा है , पकड़ कर घूमने लग गए तो end हो गया
कोई पढ़ाई नहीं हो रही। क्या कर रहे हैं और फिल्म खत्म। आपने क्या सीखा?
बच्चे? हमारे पास कितने ही बच्चे आते हैं कि सीखो चीजों से! अगर आप किसी भी तरह
माता-पिता परेशान हो रहे हैं । महाराज दिन की अपने अन्दर दूसरी चीजों को देखकर के
भर फिल्में देखता है , कोई बात नहीं फिल्म भी आनन्दित हो रहे हो तो उससे भी कुछ
देख लेकिन उससे कुछ conclusion तो सीखो। देखो! कि हम केवल time waste
निकाल। क्या देख रहे हो? देखने के बाद में कर रहे हैं या हमें इससे कुछ knowledge
आप यह देखो कि story कहाँ से शुरू हो भी हो रही है । जिन चीजों में केवल time
रही है और story का end कहाँ होना है ? waste हो रहा है , कोई knowledge
कहाँ होना है story का end? या तो दोनों आपको gain नहीं हो रही है , वह चीज
को last में मिल जाना है अथवा दोनों में से आपके जीवन के लिए व्यर्थ है । वह आपको
किसी एक को अगर मरना पड़ गया तो वह केवल समय की बर्बादी के लिए उससे
कोई-कोई सी फिल्म होती है । क्योंकि इतना आपको कुछ हाथ नहीं लगने वाला है ।
खराब end दिखाने की हिम्मत कोई भी

जीवन में अकिंचन भाव का महत्व


अब! आप यह देखो कभी आपने कोई होती हैं । आप देखोगे आदमी ने जिसके साथ
ऐसी फिल्म देखी जिसमें कोई तरह का कोई उसने अपना जीवन शुरू किया और end में
song न हो। किसी भी तरह का कोई भी उसी की मृत्यु हो गई तो वह बिल्कुल अपने
romance न हो। ऐसी कोई फिल्म देखी आपको अकेला महसूस करेगा। अब उस
आपने? किसी भी तरह का कोई भी अन्त फिल्म का end इतना sadness के साथ
में भी जब the end हो रहा हो तो दोनों होगा कि आप अगर उसको देखोगे तो आप
का मिलान न हो। ढू ँ ढना! समझ आ रहा है ? भी बिलकुल sad हो जाओगे। आपको क्या
ऐसा भी होता है लेकिन ऐसा बहुत कम लोग मिलेगा? आप सोचोगे कि हमारे लिए यही
कर पाते हैं और ऐसी फिल्में famous नहीं भाव आता है कि हम इस तरह की चीजों को

धर्मं का मर्म 195


उत्तम अकिंचन धर्म

देख कर के भी यह महसूस करते हैं कि अगर न्धी रहा है । इसने मेरे लिए कुछ अच्छा भी
कोई दुःखी है , तो हम उसके साथ दुःखी हो किया, मुझे अच्छा खिलाया-पिलाया कोई
रहे हैं । अगर कोई सुखी है , तो हम उसके बात नहीं, कहीं न कहीं मैं इसको जानता हूँ।
साथ सुखी हो रहे हैं । आप सोचे कि अगर अब उसने देखा कि आदमी बहुत दुःखी बैठा
कोई अन्त में अकेला रह जाता है , तो अब है , अकेला बैठा है , क्या किया जाए इसके
आपके लिए वह अकेला कैसा लगेगा यह साथ? उसी स्थिति में वह तोता आकर के
बताओ? कोई फिल्म ऐसी है जिसमें हीरो उसके कंधे पर बैठ जाता है । क्या समझ
बिलकुल अकेला रह गया, उसका परिवार आया? तोता आकर के उसके कंधे पर बैठ
था नहीं, एक के साथ में वह रहना शुरू जाता है और जैसे ही उस आदमी ने उस तोते
किया। उसको भी तरह-तरह के उसके साथ को देखा तो उसे अहसास हुआ कि देखो!
में villain आ गए और उन्होंने उसको भी यह पक्षी कितना समझदार है और इस पक्षी
मार डाला। वह अकेला रह गया। अब आप के अन्दर अपनी स्वतन्त्रता होते हुए भी, यह
क्या सोचेंगे? बेचारा! अकेले के लिए आप के आज मुझसे यह कहने आया है कि तुम भी
लिए क्या सबसे निकलेगा? बेचारा! समझ मेरी तरह स्वतन्त्र रहोगे तो मेरी तरह आनंदित
आ रहा है ? इसलिए कभी भी फिल्मों में इस रहोगे। अकिन्चन भाव में आ जाओ कुछ
तरह की चीजें दिखाई नहीं जाती। अकेला भी मेरा नहीं है , तो ही खुश रह पाओगे।
रहना आपको पसन्द नहीं, अकेला रहना नहीं तो यह उदास चेहरा लिए जो बैठे हो,
सिखाया नहीं जाता। एकाकीपन किसी को इसका कारण है कि भीतर कुछ न कुछ अपने
आता नहीं। जब आप अपने अन्दर एकाकी अन्दर रखे हुए हो। जो तुम्हारी इच्छाएँ हैं या
भाव में आनन्दित नहीं होते तो आप अपने तो पूरी नहीं हो पाई या इच्छाओं से पहले ही
लिए तरह-तरह की चीजें इकट्ठा करते हैं और तुम्हारी पूरी होने से पहले तुम्हारी हिम्मत टू ट
उनसे आनन्दित होने की कोशिश करते हैं । गई। क्यों उदास होता है आदमी? क्यों दुःखी
एक दिन वह आदमी जिसे तोता पकड़ा था, होता है आदमी? अगर इस अकिन्चन भाव
किसी दुःख के कारण से दुःखी हो कर के आ के महत्व को समझने लगे तो कहीं से कहीं
रहा था कहीं से और दुःखी हो कर एक पेड़ तक उदासी का कोई कारण ही नहीं है । कोई
के नीचे बैठ गया। कहाँ बैठ गया? एक पेड हमारे साथ रह रहा है , तो ठीक, चला गया तो
के नीचे बैठ गया दुःखी हो कर के। अब देखो ठीक, हमारे पास में कुछ आया तो ठीक, नहीं
तोता था उसे यह तो पता था कि यह कभी आया तो ठीक। आखिर हमारा जीवन तो
न कभी मेरे से किसी भी तरह का सम्ब- हमारे पास में है कि नहीं है कि हमने अपना

196 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

जीवन भी गिरवी रख दिया किसी के लिए। जीवन भी गिरवी रख देते हैं । अगर तुम हो
गिरवी जानते हो? जैसे अपना सामान किसी तो हम है और तुम नहीं हो तो हम नहीं है ।
के लिए रख दिया जाता है , उसके बदले में यह क्या बात हुई भाई? ऐसा तो जीवन बहुत
कुछ लिया जाता है वैसे कई लोग अपना पराश्रित जीवन हो गया।

ऊपर उठने के लिए हर प्रकार के व्यामोह से हल्का होना पड़ेगा


आपको अपने अन्दर को हल्का बनाओगे उतना ही आप इस
अकिन्चन भाव में आने संसार से ऊपर उठोगे। इस संसार में हर
के लिए सोचना पड़ेगा चीज जो भी ऊँचाई को प्राप्त हुई है , हल्की
कि मैं जितना-जितना होकर के ही उठी है । भारीपन ऊपर जाकर
दूसरे से दूर होता चला के दिखता है , आपको कोई वृक्ष भी खड़ा
जाऊँगा उतना ही मेरी होता दिखाई देगा आपको लगेगा यह वृक्ष
यात्रा ऊपर की ओर कितना बड़ा है , कितना भारी है । इसकी
होगी। मैं नीचे से ऊपर अगर जाना चाहता हूँ, डालियाँ कितनी बड़ी बड़ी हैं लेकिन वह भीतर
अपनी यात्रा को उन्नत बनाना चाहता हूँ तो से बिल्कुल हल्का है । उसके ऊपर कोई
मुझे हर तरह के व्यामोह से हल्का होना ही burden नहीं है इसलिए वह ऊपर उठता
पड़ेगा। ऊपर उड़ने वाले गाय, बैल, बकरी चला जा रहा है । जब ऊपर से pressure
नहीं होते। वह पक्षी होते हैं । क्यों नहीं होते आने लगेगा तो फिर आप उन्नति नहीं कर
हैं ? क्योंकि जो भारी होते हैं वे जमीन पर पाओगे। आपके ऊपर किसी भी तरह का
रहते हैं और जो हल्के होते हैं वे आकाश में कोई भी burden आ रहा है , आप उस
उड़ते हैं । आप देखते हो train भी होती है , समय पर अपने आपको फिर उन्मुक्त नहीं
बस भी होती है और plane भी होता है । जब कर पाओगे। विकास तभी होता है जब हमारे
आप अपने साथ में बहुत सारा luggage ऊपर किसी भी तरह का pressure न हो।
लिए हुए हो, बहुत सारे लोगों को लिए हुए किसी भी तरह की dependency न हो।
हो तो आपके साथ train की यात्रा ही हो वृक्ष वही आगे बढ़ता है , वही आकाश में
पायेगी, उतना सारा luggage लेकर के झूमता है जिसके लिए किसी भी तरह की
आप plane की यात्रा में नहीं जा पाएँगे। बंदिशें न हो और वह बंदिशे क्यों न हो?
हल्का हो कर के आप ऊपर उठ पाओगे उसके अन्दर खुद इतनी क्षमता है कि वह
जितना ज्यादा आप भीतर से अपने आप अपनी आदत से खुद ऊपर उठता है और

धर्मं का मर्म 197


उत्तम अकिंचन धर्म

जो भी चीजें उसके सामने आती जाती हैं कहते हैं - progressive journey. इसे
उनसे भी वह लड़ता जाता है लेकिन अपनी कहते हैं - अपने अन्तर्मुखी होने की यात्रा।
यात्रा को कभी भी रोकता नहीं है । इसे

अन्तरं ग की यात्रा मतलब स्वन्त्रता का आनन्द


जैसे हम बाहर की यात्रा करते हैं वैसे नहीं समझ आया? कुछ न कुछ उसके ऊपर
ही एकाकी होने पर अन्तरं ग की यात्रा होती आने लग जाता है । कुछ जैसे ही बड़ा होता
है और उस अन्तरं ग की यात्रा का आनन्द है पहले उसको ऐलक बना दिया जाता है ।
मतलब स्वतन्त्रता का आनन्द है । आप जब ऐलक का मतलब लँगोटी लगा दी जाती है ।
जन्म लेते हैं तब भी स्वतन्त्र होते हैं और फिर थोड़ा सा और बड़ा बन जाता है फिर
फिर जन्म लेने के बाद में ही आपकी पर- उसको छु ल्लक बना दिया जाता है । फिर
तन्त्रता शुरू हो जाती है । कुछ साल तक तो थोड़ा उसके ऊपर बदन पर भी कपड़ा आने
जन्म लेने के बाद मैं आप स्वतन्त्र से रहें गे। लग जाता है । फिर और बड़ा होता है , तो
कहीं भी खेलेंगे, कहीं भी चलेंगे, फिरेंगे कहीं उसको गृहस्थ ही बना दिया जाता है । उसकी
भी जो है किसी भी तरह से डोलेंगे, कुछ भी यात्रा पराधीन होती गई और अन्त में जा कर
करेंगे। लेकिन जैसे ही आप बड़े होते गए, के जब उसकी यात्रा समाप्त हो जाएगी तब जा
आपके ऊपर तरह-तरह के burden आते कर के फिर वह वैसा ही होगा जैसे जन्म के
गए। जब जन्म लिया था तब कैसे थे? साज समय पर था। यह बीच का जितना भी कार्य
सज्जा के साथ में, जैसे अभी बैठे हैं ऐसे ही है यह सब हमारे मोह के कारण से है । लोग
जन्म लिया था? जन्म लिया था तब कैसे पूछते हैं - इस समाज के बीच में, इन लोगों
थे? बिलकुल naked ही तो थे। जब जन्म के बीच में, आप बिना कपड़ों के इस तरह
लिया था तो कैसे थे? केवल हमारा शरीर से कैसे रह लेते हैं ? यह तभी रहना सम्भव
हमारे साथ था और कुछ नहीं था। जैसे-जैसे है जब आप भीतर से अकिंचन हो, भीतर से
समझदारी आती गई हम, हम क्या करते मोह से रहित हो। अगर आपके अन्दर मोह
गए? दूसरों से जुड़ते गए, जुड़ते गए पराधीन है , तो वह आप भीतर फिर अच्छे से रह नहीं
होते गए। मैं कहता हूँ हर आदमी अगर जन्म सकोगे। वही व्यक्ति दिगम्बर हो कर के रह
लेता है , तो जन्म के समय पर वह दिगम्बर सकता है , वही व्यक्ति नग्न होकर के आन-
ही होता है । दिगम्बर होने के बाद में फिर वह न्दित हो सकता है , जिसके अन्दर भीतर से
धीरे-धीरे शुरू हो जाता है श्वेताम्बर होना। किसी भी प्रकार की कोई भी विषय वासना

198 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

न हो और बाहर से उसके लिए किसी भी है । क्यों करता है ? क्योंकि उसके अन्दर


प्रकार की कोई लोक लज्जा भी इस तरह तरह-तरह के उसके अन्दर विषयवासना भरी
की न आए और लोक लज्जा का कारण भी पड़ी हैं और वह सामने देखता है कि यह दि-
भीतर की विषय वासना ही होती है । क्योंकि गम्बर हैं और उनको देख कर के भी उसे इस
अगर भीतर कुछ है , तो लोक लज्जा आएगी तरह से भीतर से एक अपने अन्दर ग्लानि
और भीतर कुछ नहीं है , तो आप देखो जैसे का या अपने अन्दर एक तरह से संकोच का
छह महीने का बालक, एक साल का बालक भाव आता है कि वह उनसे भी खुल कर बात
बिल्कुल निर्वि कल्प होकर के घर में भी नहीं कर पाता है । किस बात के कारण से?
घूमता है सबके बीच में, ऐसे ही एक व्यक्ति उसे भीतर से अपने विचार इतने ज्यादा उसे
शरीर से भी बड़ा होकर के भीतर से निर्वि कार परेशान करते हैं कि उसे ऐसा लगता है कि
होने के कारण से सबके बीच में समाज में यह दिगम्बरत्व भी हो नहीं सकता है । जरूर
रहकर के दिगम्बर हो कर के रह सकता है । सामने दिख रहा है लेकिन ऐसा दिगम्बरत्व
यह लोगों के लिए बड़ा मुश्किल लगता है । भी हो नहीं सकता है । क्योंकि वह भीतर से
मुश्किल तो है और यह मुश्किल तब तक है व्यथित है । इसलिए बहुत से ऐसे लोग होते
जब तक कि आपने अपने भीतर कुछ पाया हैं जो सामने आते हैं लेकिन सामने आकर के
नहीं, भीतर का आनन्द लिया नहीं। भी बोलने की, आँख मिलाने की हिम्मत नहीं
‘बाहर लोक लाज भय भारी, अंतर करते हैं । सीधे ढं ग से बैठ के बात नहीं कर
विषय वासना वरते, पाएँगे, डरेंगे, सकुचाएँगे तरह-तरह से अपने
बाहर लोक लाज भय भारी तातें परम आपको छिपाने की कोशिश करेंगे। वह
दिगम्बर मुद्रा, धर न सके दीन हीन संसारी। किसी भी तरह से शान्त भाव से बैठकर के
यह इसलिए कहा जाता है । हमारे अन्दर किसी भी तरह से दर्शन का भाव भी नहीं कर
अगर विकृतियाँ होंगी तो हम बाहर में लोक पाते हैं । किस कारण से? भीतर उनकी बहुत
लज्जा के भाव में आएँगे। आप देखें! हम खलबली मची हुई है । तरह-तरह के विकल्प
कई लोगों को देखते हैं , आप लोगों के चेहरे पड़े हुए है । तरह-तरह की विषय वासना पड़ी
को देख करके समझ सकते हैं कि यह व्यक्ति हुई हैं । इसके कारण से वह सामने बैठ कर
किस बात पर संकोच कर रहा है । किस बात एक दर्शन भी अच्छे से नहीं कर पाते हैं । यह
के लिए लज्जा कर रहा है । एक पढा-लिखा क्यों होता है ? हमारे अन्दर अकिन्चन भाव
व्यक्ति जब सामने बैठता है , बात करने में का कभी भी प्रारम्भ हुआ ही नहीं। यूँ समझ
झिझकता है , आँख मिलाने में संकोच करता कर चलो हम यहाँ तक आ गए, हमने तप

धर्मं का मर्म 199


उत्तम अकिंचन धर्म

कर लिया, त्याग कर लिया, संयम कर लिया second last stage है , semi final है ।
और यह सब करने के बावजूद भी यह हमारे इसके बाद में अब आपको final में पहुँचना
भीतर से था कि नहीं था इसकी परीक्षा यहाँ है , तो यहाँ पर आपकी सब testing हो
अकिन्चन धर्म पर आकर के होती है । यह जाएगी।

अकिन्चन भाव- स्वानुभूति, स्व की अनुभूति


त्याग, त्याग, त्याग में मुझे अपना मानता ही नहीं। मैं आखिर
बाहर का त्याग है कि क्या हूँ? किसका हूँ? किसके लिए हूँ? अगर
भीतर का त्याग है । यह आपको thoughts आने लगे तो
अगर भीतर का त्याग इसका मतलब है कि आप यात्रा करते तो
होगा तो अकिन्चन आए लेकिन जो आपको उस journey के
भाव में आओगे, लिए उस journey में जो success
बाहर का त्याग कोई मिलनी चाहिए थी उस success के साथ
मायने नहीं रखता है । बाहर के त्याग के आप इस step पर आकर के खड़े नहीं हुए।
बाद में अगर भीतर से सब वह चीज त्याग जब आप अकिन्चन हो जाओगे तब आपको
हो चुकी है , तो आप भीतर से अपने आप हर चीज अपने में ही महसूस होगी। मैं हूँ, मेरे
को बिल्कुल हल्का महसूस करोगे। अकि- लिए हूँ, जो कुछ है मुझमें है , मुझसे ही
न्चन महसूस करोगे। आप अपने को अकेले होगा जो कुछ होगा, मेरे द्वारा ही मैं अपने
में आनन्दित महसूस करोगे अगर भीतर से में अपने को अपने लिए ही पाऊँगा। सब
त्याग हो गया होगा। तभी आप आगे की कुछ जो आपको कभी संस्कृत में छह कारक
यात्रा कर पाओगे। stay in yourself सिखाए जाते हो कभी, कर्ता ने, कर्म को,
अगर आप अपने में stay करने की इच्छा करण से सम्प्रदान, अपादान, यह सब चीजें
कर रहे हो तो त्याग के बाद का जो step है अपने में घटित होंगी, सब कुछ! आत्मा है ,
यह अकिन्चन यहीं से शुरू होगा। अगर आत्मा को, आत्मा के द्वारा, आत्मा के लिए,
आपको आँख बन्द करने के बाद में भी यह आत्मा से ही, आत्मा में ही प्राप्त करना है ।
याद आये, उसका भी मैंने त्याग कर दिया खुद में, खुद को, खुद से, खुद के लिए, खुद
था, उसका भी मैंने त्याग कर दिया, उसका में ही पाना है । यह सब कुछ भीतर आने
भी मैंने त्याग कर दिया, वह भी मेरा नहीं, वह लगेगा तो फिर यह question arise नहीं
भी मेरा नहीं, वह भी मेरा नहीं, कोई दुनिया होगा कि मेरा कौन? मैं किसका? मैं किसके

200 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

लिए? यह आप अपने आपको दूसरों से जोड़ आपसे जुदा हुई हैं , छूटी हैं उनको आप अपने
कर के अभी देख रहे हो। मतलब आपके से बिल्कुल पृथक ही देखोगे और आपको
अन्दर भी यही सब चल रहा है कि मैं लगेगा कि जो कुछ भी मेरा नहीं था वह
किसका? किसके लिए? किससे? किसमें, मुझसे अलग है , वह मुझसे छूटा हुआ है ।
क्या कर रहा हूँ? मतलब आप दूसरे के परि- जो मेरा नहीं था वह मुझसे जुदा है ,
पेक्ष में देख रहे हो। यहाँ तक त्याग करने के मैं बन्धन से मुक्ति को अब पा रहा हूँ,
बाद में आपका perspective change मैं हूँ वो नहीं जो तुम्हें देख रहा हूँ,
नहीं हुआ। आपके अन्दर यह feeling नहीं मैं हूँ जो नजर से परे ही रहा हूँ।
आ रही है कि अब सब कुछ मुझमें, मेरे में, ये भावनाएँ अकिन्चन
मेरे के लिए ,मेरे द्वारा, मेरे ही अन्दर घटित धर्म की भावनाएँ हैं ।
होना है और कहीं कुछ नहीं होना है और जब इस तरह के अकिन्चन
यह होगा तब अकिन्चन धर्म का आनन्द भाव में ही आदमी अपने
आएगा। इसलिए आचार्य कहते हैं - “यो- आप की अनुभूति करता
गीगम्यं तव प्रोक्तं रहस्यं परमात्मनः” अगर है । इसी को कहते स्वा-
आपको अपनी आत्मा को परमात्मा नुभूति, स्व की अनुभूति,
बनाना है , तो परमात्मा बनने का यह रहस्य experience of myself, अपने ही
है । ‘रहस्यं परमात्मनः’ कहा है आत्मानु- consciousness को experience
शासन ग्रंथ में। आचार्य कहते हैं - यह करना। अपने ही ज्ञाता दृष्टा स्वभाव का
परमात्मा बनने का रहस्य है । अगर आप आनन्द लेना और स्वयं में अकिन्चन हो कर
इस stage पर आ गए तो समझ लो आप के अपने में ही वह सारे के सारे छह कारक
परमात्मा के बहुत निकट आ गए। लोग घटित करना। यह अकिन्चन धर्म होने पर
आतुर हैं परमात्मा से कैसे मिले? परमात्मा उपलब्ध होता है । ऐसा जीव आचार्य कहते
तक कैसे पहुँचे? यह आप बिलकुल परमा- हैं - तीन लोक का स्वामी है वह किसी का
त्मा से मिलने के निकट आ गये। बिलकुल दास नहीं है । वह किसी का दास नहीं है ,
semi final stage में हो आप, परमा- किसी पर depend नहीं है । वह तीन लोक
त्मा के निकट हो गए, stay in का स्वामी है । इसलिए उस आत्मा को पर-
yourself, अपने आप में आ जाओ मेष्ठी कहा जाता है । क्या बोलते हैं उस आत्मा
बस! जैसे ही आप इस stage पर आओगे को? परमेष्ठी! परम पद में जो स्थित हो गया।
तो वहाँ पर आने के बाद में जितनी भी चीजें परम मतलब जो supreme state of

धर्मं का मर्म 201


उत्तम अकिंचन धर्म

my soul थी उसमें वह आ गया इसलिए करता है । मेरा कोई वोट नहीं है । मैं कभी वोट
वह परमेष्ठी कहलाया और इस तरह का जो नहीं देता हूँ। सुन रहे हो क्यों? मुझे तुम्हारी
परमेष्ठी पद पर आ जाएगा, वह दुनिया में, राजनीति से कोई मतलब ही नहीं है । मुझे
दुनिया के लिए अपने आप पूज्य हो जाएगा। किसी से कोई पक्षपात है ही नहीं। न मेरे
वह दुनिया की दासता स्वीकार नहीं करेगा। लिए कांग्रेस अच्छी है , न मेरे लिए बीजेपी
कितना ही बड़ा कोई भी मन्त्री हो, नेता हो, अच्छी, मेरे लिए कुछ नहीं है । क्योंकि मुझे
राजा हो, शासक हो वह किसी का दास नहीं किसी भी तरह के किसी भी राजा के शासन
है । एक दिगम्बर सन्त ही ऐसा होता है जो में किसी भी तरह की पराधीनता में नहीं
किसी भी राजनीति में नहीं होता है । किसी रहना है । मेरा कोई वोट नहीं है मैं किसी को
भी राजा के शासन काल में रहते हुए भी, वोट डालने नहीं जाऊँगा। मैंने सुना है शायद
राजा का किसी भी तरह का शासन का, राष्ट्रपति भी कभी-कभी वोट डालने का
उसके शासन का, किसी भी तरह का अधिकारी होता है , वह भी वोट डालता है
पराधीन नहीं होता है । किसी भी तरह से वह मतलब दुनिया में पहले नंबर का आदमी भी
किसी भी राजा को support भी नहीं वोट डालता है ।

अकिन्चन दिगम्बर साधु ही सही अर्थों में स्वतन्त्र होता है


एक दिगम्बर साधु ही ऐसा साधु होता है कि वह सरकारी नियमों का उल्लंघन करता
जो कभी किसी भी राजनीति से कोई मतलब है । लेकिन वह किसी की आज्ञा में नहीं रहता
नहीं रखता और किसी को वोट नहीं डालता। यह भी आप ध्यान रखना। वह ऐसे काम
उसकी कोई id नहीं होती, कोई email id कुछ करता ही नहीं कि उसके लिए कोई
नहीं होती उसकी। कोई भी उसकी अपनी सरकार आपत्ति की बात पैदा करें। उसके
identity दूसरे से नहीं होती उसकी अपनी लिए सरकार से कोई मतलब ही नहीं होता।
identity खुद अपने से होती है । इसलिए इतना अकिंचन वह हो जाता है कि उस
वह किसी का कभी भी आज्ञा मानने वाला अकिन्चन भाव में अगर कोई राजा भी उसके
नहीं होता। किसी भी राजा की कोई आज्ञा सामने आ जाता है , तो वह उसको भी देखें
में नहीं रहता। वह सिर्फ अपने गुरुओं की कोई जरूरी नहीं है । मेरी मर्जी है मैं तुझे देखूँ
आज्ञा मानता है । अपने आप्त वीतराग देव की या न देखूँ। मैं इस बात के लिए मोहताज नहीं
आज्ञा मानता है और किसी की आज्ञा में वह हूँ कि तुम आओगे तो मैं तुम्हें पुचकारूँ गा, मैं
कभी नहीं रहता है । इसका मतलब यह नहीं तुम्हें अपने पास बैठाऊँगा, मैं तुम्हारी खिदमत

202 धर्मं का मर्म


उत्तम अकिंचन धर्म

करूँ गा। कभी नहीं! यह मेरी मर्जी है । यह घण्टे तक जब तक आचार्य महाराज का प्र-
मेरी व्यावहारिकता हो सकती है लेकिन मेरे तिक्रमण पूरा हो गया, वह वैसे ही बैठी रही।
ऊपर इस चीज कोई भी pressure नहीं उन्होंने उसके लिए कोई भी, तुझे जाना है
है। इसलिए आप देखना जब आचार्य श्री के जा, दर्शन करने आयी है , कर ले। हमारे लिए
पास में prime minister जी गए थे तो इतनी पराश्रितता नहीं है कि तेरे आने के
आप देखना वे कहाँ देख रहे हैं और वह कहाँ कारण से हम जो है अपना प्रतिक्रमण छोड़े
देख रहा है ? आप अपने लिए यह सिर्फ देखें कि हम जो हैं तेरे लिए बहुत जल्दी अपना
कि आखिर इस स्थिति में जब कोई आदमी time दे। तुम्हें बैठना है बैठो, जाना है जाओ।
बैठा होता है , तो उसके लिए कोई कुछ नहीं अकिन्चन धर्म में आने के बाद में आदमी
होता है । चाहे prime minister हो, बहुत स्वतन्त्र हो जाता है । कोई भी तरह का
चाहे chief minister हो और चाहे कोई राजनेता हो, कोई भी तरीके का कोई भी नेता
president हो। कोई भी उसके लिए महत्व हो, हीरो हो, कोई भी हो किसी के ऊपर
नहीं रखता है । अगर उसकी खुशी में, उसके depend नहीं होता। उससे बढ़कर के कोई
आनन्द में कोई भी दखलअंदाजी करने की नहीं होता जो अकिन्चन धर्म का पालन कर
कोशिश करता है , तो वह उसको भी अपने रहा है । यह इस अकिंचन धर्म की सबसे बड़ी
सामने से अगर वह खड़ा हो गया होगा तो चीज है और जो इस स्थिति में आ गया वही
अपने सामने से भी जाने को मना कर सकता अब आगे final stage का आनन्द लेगा।
है । मुझे तुझे नहीं देखना, तुम जाओ। वह परमात्मा से मिलने में केवल एक कदम
जरूरी नहीं है कि मैं उससे बात करूँ । ऐसी बाकी है बस! आप कहाँ हो आप देख लो।
स्थिति क्यों बनती है ? philosophy यही है , basic principle
जब आदमी अकिंचन यही है to become a god. एक इं सान
धर्म में होता है । मैंने के लिए एक अपनी आत्मा को परमात्मा
देखा है कई बार आचार्य बनाने के लिए, इससे अच्छा रास्ता कुछ नहीं
महाराज को भी जब है । अगर उस रास्ते पर चलते हुए भी आप
एक बार चतुर्दशी थी, अगर यह महसूस कर रहे हो अभी हम कहीं
अपना प्रतिक्रमण कर नहीं पहुँचे तो इसका मतलब है अभी आप
रहे थे और चतुर्दशी का चले ही नहीं, केवल आप सुन रहे हैं । घड़ी
प्रतिक्रमण करने में लगभग डेढ़ घण्टे -दो बहुत आगे चल चुकी है आप लोगों ने बताया
घण्टे लग जाते हैं । उसी समय पर time हो नहीं है । बोलो! महावीर भगवान की जय।
गया, उमा भारती आ गई। जबलपुर की बात
है , वहाँ आकर के बैठ गई। वह डेढ़ घण्टे , दो

धर्मं का मर्म 203


Day - 09
आज का चिंतन- आकिंचन भाव को समझें
आज आप उत्तम 5. अकेले बैठकर अपना काम करें।
अकिंचन धर्म का एक 6. महसूस करें कि हम दूसरों से बातचीत
practical करेंगे। किए बगैर रह सकते हैं या नहीं?
आकिंचन का मतलब 7. Feel करें कि हम अकेले में bore होते
है मेरा कुछ नहीं और मैं किसी का नहीं। हैं या खुश रहते हैं ?
आपका task है — थोड़ी देर बोरियत हो तो
1. आज हम लोगों से मिले नहीं। • अपने परिणामों को संभालें।
2. आज हम लोगों से बहुत घुल-मिलकर • अपना चिं तन बदल दे।
बातचीत न करें। • अपने को प्रसन्नता के भाव में लाएँ।
3. किसी एकांत स्थान पर बैठे या कमरा • अपने मन को किसी चिं तन में, स्वाध्याय
बंद कर के बैठ जाएं। में, ध्यान में अथवा जाप में लगाएँ।
4. आज मौन पूर्वक रहें ।

आज का एहसास

• अगर आप अकेले सकता।


खुश रह सकते हैं तो कोई • यह कला आकिंचन धर्म के माध्यम से
आपको दुःखी नहीं कर हमें मिलती है ।

स्व-संवेदन
• आज आप अकेले बिना बात किए रह अपने मन को संभाल पाए? Yes / no
पाए? Yes / no / little bit / little bit
• क्या आपको बोरियत महसूस हुई? • अपने मन को संभालने के लिए किसका
Yes / no / little bit अवलंबन लिया?
• क्या बोरियत होने के बावजूद आप • आपको कैसा महसूस हुआ?

204 धर्मं का मर्म


Day-10: उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म
आज स्वधर्म को जानने के लिए अन्तिम भी कहीं न कहीं अपने आप में असमर्थता
धर्म का अंग आपके समक्ष है । अपनी यात्रा पाते हैं । यह वही स्थिति बनती है जैसे किसी
को जहाँ से शुरू किया था वहाँ से बढ़ते- को ऊपर किसी पहाड़ी पर चढ़ना हो तो
बढ़ते लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जितने भी पहले तो वह जल्दी-जल्दी, दौड़-दौड़ कर,
सोपान थे, वे सभी सोपान धीरे -धीरे तय जितनी यात्रा कर पाता है , कर लेता है और
हो चुके हैं । सभी सोपानों में कुछ न कुछ फिर दौड़ते-दौड़ते जब ऐसी भी स्थिति बनती
quality आपने ऐसी देखी है , जानी है है जब उसे अपना लक्ष्य दिखाई भी दे रहा हो
जिसके माध्यम से अपने जीवन में उन्नति लेकिन वहाँ तक पहुँचने में उसे बहुत मेहनत
का कोई न कोई, एक गुण हमने प्राप्त लगती है । वह दो कदम, चार कदम भी आगे
किया है । धीरे-धीरे, जैसे-जैसे हम अपने बढ़ने में, बार-बार उन कदमों को उठा कर
स्व-अस्तित्व की ओर आते हैं , स्वयं में स्वयं रखने में बहुत कष्ट-सा महसूस करने लग
को पाना चाहते हैं , हमारे अन्दर जितने भी जाता है और ऐसा लगता है कि हम वहाँ तक
impurities होती हैं , उन्हें हमने एक-एक पहुँच भी पाएँगे कि नहीं? जब शुरुआत किया
को बारीकी से समझा और आते-आते, जै- था हम बहुत उत्साह में थे तो हम दौड़े। उसी
से-जैसे हम ऊपर की ओर चढ़ते चले जाते तरह से जैसे हम शिखर जी की यात्रा के लिए
हैं , यात्रा कठिन-सी हो जाती है । आप देखते दौड़ लगाना शुरू करते हैं और जैसे-जैसे ही
हैं कि हम सड़क पर सरपट दौड़ सकते हैं पार्श्वनाथ जी की टोंक निकट आती है , हम
लेकिन अगर हमें किसी पहाड़ी पर चढ़ना हो थकते जाते हैं । जैसे ही वहाँ पहुँचने लगते हैं ,
तो हम सरपट दौड़ नहीं पाते। हम उसे धीरे- लगने लगता है , अब कितनी देर, कितनी दूर,
धीरे चढ़ने का प्रयास करते हैं । एक स्थिति कितना देर और कितना और चले, कितनी
तक हम बहुत जल्दी progress करते हैं देर में वहाँ पहुँचेंगे? यह जो अन्तिम कठिनाई
और हमारे दौड़ने की क्षमता भी काफी रहती है यही सबसे बड़ी चीज है और इस कठिनाई
है और हम बहुत अपने enthu में रहते है । से भी बहुत से लोग विचलित हो जाते हैं ।
एक स्थिति ऐसी आती है जब हमारे लिए करने को अब कुछ रहा नहीं। जो हमारे लिए
एक-एक step की कीमत हमको समझ में करना था वह हम बड़े उत्साह में कर चुके।
आने लग जाती है । कुछ ऐसी भी स्थितियाँ अब! जिस स्थिति में हम पहुँचे हैं , वहाँ पर
बनने लग जाती है , जब हम पहुँचते-पहुँचते एक-एक step बहुत ध्यान से रखने की

धर्मं का मर्म 205


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

जरूरत है और उस step की कीमत बहुत स्थिति में एक-एक point पर आगे बढ़ना
है । जैसे आप जानते हो बच्चे पढ़ते हैं । जब हमारे लिए कठिन काम होता है । जितना
हम छठवी, सातवीं, आठवीं क्लास में होते हमारे लिए एक-एक point का महत्व उस
हैं तो हम बहुत आराम से अच्छी-अच्छी समय पर समझ में आता है उसी तरह का
merit list में आते रहते हैं , अच्छे -अच्छे महत्व यह धर्म के अन्तिम 2 दिनों का है ।
rank ले आते हैं । बहुत easily हर तरीके उत्तम आकिंचन और
की क्लास को पास करते रहते हैं । जैसे- उत्तम ब्रह्मचर्य! बाकी
जैसे हम बढ़ते हैं competition exam की सब यात्रा सब हम
जैसे-जैसे और ज्यादा tough होता चला बड़े उत्साह से कर
जाता है , तो उस समय आपके लिए एक- सकते हैं और यहाँ
एक नंबर की value होती है । 99 point आकर के हर व्यक्ति
के बाद में गिनती शुरु होती है - rank बनने दम तोड़ने लग जाता
की। अगर आप 99.9 है , तो ही आप first है । कहाँ पर पहुँच कर? बस, semifinal से
rank में होंगे। 100 होंगे तो first rank पहले सब दौड़ेंगे और वहाँ पहुँचते-पहुँचते
में होंगे और अगर आप 99.9 से 99.8 या कुछ तो semifinal में दम तोड़ देंगे और
99.7 पर आ गए तो आप बहुत पीछे धकेल final तक पहुँचने वाले तो बहुत कम लोग
दिए जाओगे। इतनी भीड़ होती है और उस होते हैं ।

जो काम को नहीं जीत सकते, वे सफलता से कोसों दूर है


यात्रा बहुत लोग शुरू करते हैं लेकिन चिड़चिड़ाना नहीं चाहिए, लोग इसको सबसे
अन्त तक पहुँच पाना, हर किसी के बस बुरी चीज मानते हैं । यह तो बहुत छोटी-सी
का नहीं होता। वहाँ पर एक-एक कदम को चीज है । जो धर्म की शुरुआत करने के लिए
आगे बढ़ाते हुए एक-एक point की कीमत क्रोध का हमने अभाव किया, क्षमा का भाव
समझ में आती है कि हमने जो यात्रा शुरू की धारण किया, यह तो बहुत प्रारं भिक चीज है
थी उसमें कहीं कोई चीज हमारे भीतर छिपी और प्रारं भ से अन्त तक धीरे-धीरे चलती
तो नहीं रह गई जो हमें आगे बढ़ने नहीं दे रही रहे गी। धीरे-धीरे control होती रहे गी। एक
है । जब धर्म की शुरुआत होती है , तो लोग बड़ी चीज, जिस पर कोई भी ध्यान नहीं देता
सबसे पहले सबसे बुरी चीज क्या मानते हैं ? और जिसके बिना सफलता किसी भी क्षेत्र
गुस्सा नहीं करो, क्रोध नहीं आना चाहिए, में सम्भव नहीं है , जिस तरह से क्रोध हमारे

206 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

लिए एक negative emotion है , इसी आप लोगों ने कभी


तरीके से काम भी हमारे लिए एक दूसरा साँप-सीढ़ी वाला खेल
negative emotion होता है । दुनिया खेला होगा न! सब
में दो ही प्रकार के emotion हैं , जिनसे लोगों नें खेला होगा,
आदमी defeat खाता है - क्रोध और काम। सब लोग जानते होंगे।
क्रोध तो first step है और काम जो है हम नीचे से शुरू होते हैं
वह last step है । लेकिन उस step को बड़ी मेहनत से ऊपर
अगर शुरू से control नहीं करता तो last तक पहुँचते हैं और एक साँप ऐसा होता है ,
में जाकर के भी final में नहीं पहुँच पाता। जो वहीं पर बैठा होता है । 100 नंबर के
success नहीं हो पाता, उसको लौटना near about 99 पर उसका मुख होता था
पड़ता है । अपनी सफलता से थोड़ी-सी दूर या 98 पर उसका मुख होता है । समझ में आ
रह जाता है और कभी-कभी तो ऐसा गिरता रहा है ? वहाँ पर अगर हमारा पहुँचना हुआ तो
है कि उसी काम के कारण से फिर उसी वह सीधा सारी मेहनत को, बिलकुल सब
क्रोध में आ जाता है , जहाँ से उसने अपनी नष्ट करके और सीधा नीचे बिलकुल ले
यात्रा शुरू की थी। आता है जहाँ से हमने अपनी यात्रा शुरू की
थी। यह जो काम है न, ऐसा ही है । जहाँ से
हम शुरू होते हैं वहीं से हमको फिर ले
आता है , अगर हम इस को नहीं जीत पाते
हैं ।

प्रारम्भ से ही बच्चों को क्रोध और काम भावों पर नियंत्रण सिखाना चाहिए


यही वह चीज है जिसके कारण से सर्प की तरह ही बढ़ती है । इसका फै लाव भी
आदमी इस धर्म को उपलब्ध नहीं हो पाता। नीचे से लेकर ऊपर तक तब तक बना रहता
जिसे हम कहते हैं - उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म! वह है जब तक कि आदमी अपनी मंजिल के
नहीं हो पाता। इसके लिए जरूरत है उस बिल्कुल निकट तक न पहुँच जाए। पहले के
इच्छा को नियंत्रण करने की, जो इच्छा हमारे लोगों को गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी तब
लिए अन्त तक पहुँचने के बाद भी हमें वापस उन्हें इन emotions को control करने
लौटा देती है , हमारे लिए बाधा बन जाती का और इस तरह के emotions में अपने
है । यह इच्छा धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है , शरीर के अन्दर जो भी change आते हैं

धर्मं का मर्म 207


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

उनको समझने का एक बहुत अच्छा माहौल create होंगे। वह उनमें कितना flow कर
तैयार किया जाता था। किसी भी व्यक्ति के जाता है , वह उनको कितना control कर
लिए जब गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी तो पाता है यह इस बात पर उसकी success
उसे दोनों चीजों पर focus कराया जाता depend होगी। केवल dream plan
था। ‘We have to control our करने से नहीं हो जाता कि बच्चे को doctor
anger and our sexual desires’. बनना है । हमने उसे coaching करने के
ये दोनों ही चीजें हमारे लिए control में लिए दिल्ली पहुँचा दिया, कोटा पहुँचा दिया।
शुरू से करना सीखना चाहिए। जैसे- हम इससे कुछ नहीं होने जाने वाला। जो सबसे
क्रोध, क्रोध, क्रोध पर focus करते हैं , काम बड़ी चीज अपने बच्चों के प्रति control
पर कोई focus नहीं करता। कोई नहीं करने की होती है उसके लिए तो किसी भी
देखता कि हमारे अन्दर या हमारे बच्चों के guardian का कोई focus होता ही नहीं
अन्दर किस तरह के भाव आ रहे हैं ? जिसके है । जब तक ऐसा माहौल नहीं बनेगा तब
कारण से वह बच्चा कहाँ जा रहा है ? क्या तक बच्चे का पढ़ने में मन नहीं लगेगा। धीरे-
कर रहा है ? क्या पढ़ रहा है ? कहाँ घूम धीरे बड़ा होना शुरू हुआ उसका मन divert
रहा है ? किसकी company में आ रहा होना शुरू हुआ, उसके अन्दर तरह-तरह के
है ? ये सब चीजें हमारे लिए शुरू से देखने विचार आने लगे और उन विचारों में वह
में नहीं आती तो हम कभी-भी जिन्दगी में अपने आप को नहीं संभाल पाता। कई बच्चे
किसी भी तरह की success हासिल कर बाहर जाकर के पढ़कर के आने के बाद में
ही नहीं सकते। यह वह चीज है आदमी ने भी वहाँ पर जैसा पढ़ना चाहिए वैसा नहीं पढ़
किसी भी तरीके का target बनाया जैसे- पाए या कुछ बच्चे तो बाहर जाकर के इतना
बच्चा जब छोटा होता है , बेटा क्या बनेगा? बिगड़ जाते हैं कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहता
क्या बनेगा? collector बनूँगा, doctor कि हम किस लिए आए थे और यहाँ क्या
बनूँगा, बन जाएगा, अभी थोड़ा बड़ा तो होने करने लगे? यह बहुत से बच्चों की स्थिति है ।
दो उसको। जैसे-जैसे वह बड़ा होगा उसके यह क्यों बनती है ? क्योंकि वैसा माहौल नहीं
शरीर की biology change होगी, उसके दिया जा रहा है , जिससे वे अपने काम को,
शरीर के अन्दर तरह-तरह के emotions क्रोध को control कर सके।

गुरूकुल परम्परा और संयुक्त परिवार ही बच्चों काम और क्रोध से सुरक्षा दे पाते हैं
पहले गुरुकुल होता था तो बच्चों को एक उम्र तक चौदह-पन्द्रह साल तक उनको

208 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

एक ही campus में अच्छे ढं ग से रखा जाता अन्त तक अच्छा रहे गा। आप देखते होंगे
था। उनको सब तरह की शिक्षाएँ दी जाती थी पहले के घरों में ऐसी बातें नहीं मिलती थी
और उनका focus केवल education पर जैसी आजकल मिलती है । जहाँ बड़े-बड़े
रहता था। उस समय पर वे जो पढ़ लेते थे, घरों में दस-दस, बारह-बारह लोग एक
वह उनके लिए जिं दगी भर काम आता था। साथ रहा करते थे। वहाँ पता ही नहीं पड़ता
फिर उसके बाद में उनको छोड़ दिया जाता था बच्चा बड़ा होता है , पढ़ता भी रहता है ,
था। अब आप अपनी line choose कर घर में घूमता भी रहता है । अपनी कोई भी
लो आपको क्या करना है । आपको ब्रह्म- चाहे बेटा हो, बेटी हो, सब घर के माहौल
चर्य के साथ रहना है अथवा आपको अपना में इस तरह से adjust होकर के रहते हैं
वैवाहिक जीवन अपनाना है । उसके लिए कि किसी को लगता ही नहीं कि यह कुछ
उन्हें पढ़ने के बाद में बिलकुल उन्ही के ऊपर गलत करने वाला है और न कभी गलत होता
decisions करने के लिए छोड़ दिया जाता था। बहुत गलत होने के chance बहुत कम
था। आप सोच लो! आपको सब पढ़ा दिया हुआ करते थे, इतने sincere रहा करते थे।
गया है । धर्म भी पढ़ा दिया गया। आपको उनके लिए भी वही उम्र हुआ करती थी, वे
किस तरह से अपना business चलाना है , भी उसी उम्र से गुजरते थे लेकिन घर का
व्यापार की शिक्षा भी दे दी है । आपको किस माहौल और कहना चाहिए बाहर की दुनिया
तरह से इस भौतिक दुनिया को जानना है ? का माहौल दोनों इतने अच्छे रहते थे कि
भौतिक science भी पढ़ा दिया गया, सब बच्चा कहीं भी घूम कर आ रहा है या पढ़ कर
कुछ पढ़ाया जाता था। पढ़ाने के बाद उनके आ रहा है , तो उसके लिए किसी भी तरह
decision के लिए उनको छोड़ दिया जाता की कोई दिक्कत नहीं होती। वह पढ़ा और
था। जैसा उनका मन आता था करते थे। अपने घर में आया, अपने घर के कामकाज
लेकिन वह एक जो उम्र होती थी उस उम्र में किये, पढ़ाई का कामकाज किया और उसके
जहाँ उनके बिगड़ने के chance होते हैं , उस बाद में वह अपने काम में फिर से लग गया।
उम्र पर उनके लिए जब सुरक्षा मिलती है , इस तरह से उसका जीवन चलता रहता था
तो उनका दिमाग एक तरह से काफी कुछ और एक उम्र जहाँ पर बिगड़ने का साधन
settle हो चुका होता है । एक उम्र होती है , होता है , उस उम्र को बड़ी शांति के साथ वह
उस उम्र में सब से ज्यादा सावधानी रखने गुजार लेता था। विवाह हो गया, विवाह के
की जरूरत होती है । उस उम्र में अगर बाद फिर ढं ग से रहने लगे सब कुछ परिवार
बच्चा संभल गया तो वह अपने जीवन के चलता रहता है । सब कुछ अच्छा होता था

धर्मं का मर्म 209


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

और यह दिक्कतें कभी नहीं आती थी, जो आज देखने को मिलती हैं ।

बेटियों की स्वतंत्रता की एक सीमा होनी चाहिए


अचानक से माता-पिता को सुनने को यह बात बोलता हूँ सबके लिए बुरा लगने
मिलता है बेटा कह रहा है मैं उस लड़की के लग जाता है । हमारे ऊपर ही फंदा क्यों कसा
साथ शादी करूँ गा। बेटी कह रही है नहीं! मैं जाता है ? बेटे और बेटी में क्या फर्क होता है ?
तो कंपनी में जो काम करता है उसी के साथ सब कुछ हमारे लिए ही क्यों कहा जाता है ?
शादी करूँ गी। माँ-बाप पूछते, भाई कौन है ? हमारे लिए इन सब की limitations
क्या है ? इससे क्या मतलब है ? human सिखाई जाती है । यह समझना चाहिए कि
being है । मतलब ये सब चीजें पहले नहीं हमारी body language और जो
होती थी। यह तो स्थिति चलो! बहुत बाद में boys की body language में बहुत
बनती है फिर भी चलो थोड़ी-सी और सम- अन्तर होता है । हमारे शरीर और उनके
झदारी की स्थिति है , इससे तो और गिरी हुई शरीर में बहुत अन्तर होता है और इसी के
स्थिति जब उम्र नहीं है कुछ भी ऐसा करने कारण से हमको एक sincere होकर के
की और उससे पहले ही कुछ गलत करने अपनी limit में बहुत अच्छे ढं ग से रहना
लग जाना और इतना गलत करने लग जाना होता है । अच्छे -अच्छे घरों के बच्चे, बेटे-
कि पता ही नहीं पड़ना घर वालों को कि बेटा बेटियाँ बाहर भी पढ़ते हैं , सब कुछ करते हैं
क्या कर रहा है ? बेटी क्या कर रही है ? इस लेकिन बहुत अच्छे शालीन तरीके से रहते
तरह की जो स्थितियाँ आज बढ़ रही हैं इनमें हैं । यह जो आज नहीं देखने को मिल रहा है
बहुत बड़ी चीज है आप अगर बुरा न माने तो इसका एक बहुत बड़ा कारण है कि हमने
मैं कह सकूँगा। समझ आ रहा है ? बेटों को बेटियों को या बेटों को भी अपने से इतना दूर
भी बुरा लग सकता है बेटियों को भी बुरा लग कर दिया और उनको इतना हमने स्वतंत्र
सकता है । लेकिन सत्य कहीं न कहीं हमें माहौल दे दिया कि हमें पता ही नहीं होता कि
कड़वा लगता है यह भी ध्यान में रखना। वह क्या कर रहे होते हैं । कभी-कभी तो उम्र
हमारे लिए हर तरह की स्वतंत्रता होनी चाहिए से पहले भी गलत कर जाते हैं और कभी-
और हर कोई स्वतंत्र होना ही चाहिए। स्वतं- कभी अपनी उम्र में भी आकर के मान लो
त्र वातावरण होना चाहिए। इससे मैं पूरी उन्होंने पढ़ाई कर ली, job कर ली, उसके
तरह सहमत हूँ। लेकिन बेटियों की स्वतंत्र- बावजूद भी वे वैसा नहीं कर पाते, जैसे मा-
ता की एक सीमा होनी चाहिए। जैसे ही मैं ता-पिता चाह रहे हैं । माता-पिता को लगता

210 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

है जिससे संबंध बनाना चाह रहे हैं , वह हमें चाहो तो मैं आपको
कहीं से कहीं तक उचित नहीं लग रहा है according to jain
लेकिन यह भाव एक ऐसा होता है कि जिसके science, male
अन्दर इस तरह का एक भाव पैदा हो जाता and female body
है । उससे फिर किसी की कोई बात कभी की जो chemistry
समझ नहीं आती है ।‌सुन रहे हो? बोलो तो‌! होती है , उसके बारे में
इसलिए पूछ रहा हूँ कि अभी समझ आ रही जो जैन आचार्य कहते
कि नहीं आ रही है । अभी तो समझ आ हैं , वे तीन चीज बताने जा रहा हूँ। सभी बच्चे
जाएगी और अभी समझ भी उनको आएगी भी सुने, बेटे भी सुने, बेटियाँ भी सुने। हम
जिनको अभी इस भाव में अभी ज्यादा कहते हैं - बेटा-बेटी बराबर है आप यह सोच
indulgency नहीं हुई है । जो इस भाव में को रखें यह सिर्फ इसलिए है कि आप भी
अपने अन्दर अभी control किए हुए है पढ़े, आप भी पढ़े, आप भी आगे बढ़े, आप
उनको तो आ जाएगी। लेकिन जिनको इस भी आगे बढ़े। इसलिए अगर हम यह सोच
भाव में control नहीं रहता उन्हें कुछ समझ कर कि बेटा-बेटी बराबर है जैसे बेटा घूमता
नहीं आता, ये बहुत बड़ी चीजें हैं । ऐसी एक है , वैसे बेटी घूमने लग जाए। जैसे बेटा कुछ
emotional, एक ऐसी intensity है कि भी करता है , वैसे बेटी भी कुछ भी करने लग
जैसे हम anger की intensity को जाए, यह संभव नहीं है । अगर ऐसा करोगे
control नहीं कर पाते हैं , वैसे ही इस‌lust तो आपके घर में किसी भी तरह की शांति रह
की intensity को भी control नहीं कर ही नहीं सकती है । आपके द्वारा ऐसे गलत
सकते और यह केवल एक intensity होती काम हो जाएँगे कि आपको पता ही नहीं
है , emotional intensity होती है । यह पड़ेगा कि हम कब गलती के रास्ते पर चले
कुछ क्षण के लिए रहती है , उसके बाद में छूट गए। हमारे साथ क्या गलत हो गया और
जाती है । अगर आप आज जानना हमारा जीवन नरक बन गया।

जैनागम के अनुसार वेद का भाव विज्ञान


हमारे अन्दर ये जो emotions आते प्रकार के वेद होते हैं । क्या बोलते हैं इनको?
हैं , ये हमारे अन्दर की जो कषाय होती हैं वेद! पुरुष वेद, स्त्री वेद, नपुंसक वेद। तीन
जिन्हें हम patience कहते हैं उनके उदय तरह के भाव होते हैं । पुरुष वेद का मतलब
में हमें इस तरह के भाव पैदा होते हैं । तीन है - एक ऐसी कषाय है जो हमारे अन्दर

धर्मं का मर्म 211


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

उत्पन्न होगी और पुरुष वेद के उदय से स्त्री में थे।‌ आजकल तो same sex भी अपना
रमण करने की इच्छा होगी। इस science relation रखने लगे हैं और धीरे-धीरे यह
को समझें, यह कषाय है । यह हमारा जो भी एक चीज legal बनती चली जा रही है ।
emotion हैं जैसे हम anger को कषाय समझ आ रहा है ? यह चीज बता रही है कि
समझते हैं , ऐसे ही यह कषाय है , यह हमारे लोगों के अन्दर यह चीज भी है । अब धी-
अन्दर एक attraction पैदा करती है । रे-धीरे यह manifest हो रही है । क्यों हो
किसके लिए? अगर पुरुष वेद का उदय होगा रही है ? क्योंकि यह पहले जैनाचार्यों ने कह
तो attraction होगा towards the रखा है जिनके अन्दर नपुंसक वेद का उदय
female और अगर स्त्री वेद का उदय होगा होगा, वह नपुंसक वेद के उदय के कारण से
तो उसका attraction होगा towards उनका attraction male में भी होगा और
the male. यह उस कषाय के उदय से female में भी होगा। वह same sex में
attraction हमारे मन के अन्दर पैदा भी अपना attraction रखेंगे, opposite

होने लग जाता है । जैसे-जैसे हम बड़े होते sex में भी अपना attraction रखेंगे।
हैं , attraction उतना ही बढ़ने लग जाता इन तीनों प्रकार की चीजों को समझाने
है और नपुंसक वेद का तो attraction के लिए जैन शास्त्रों में भीतर से example
इतना खराब होता है कि चाहे male हो दिए गए हैं कि जो हमारे अन्दर पुरुष वेद का
चाहे female, दोनों के प्रति होता है । अब उदय होगा तो वह कैसा होगा? ये तीनों प्रकार
देखें यह बताया गया कभी-कभी आप के जो वेद हैं - all these three vedas
देखते हो आजकल तो एक और चीज चलने are just like a fire. fire जानते हो!
लगी है । बोले! पहले तो लोग opposite बोलो तो! आग है यह आग। यह ऐसी एक
sex से ही केवल अपना relation रखते आग हमारे मन में, हमारे अन्दर, हमारे भीतर

212 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

जलती है कि उस आग में सब कुछ जल जाए बाद बुझ जाएगी। तृण अग्नि ऐसी होती है
लेकिन उस आग में जिस चीज से उस आग और यह पुरुष वेद की अग्नि के लिए यह
की वृद्धि होनी चाहिए, हम उसी चीज को उदाहरण दिया गया है । आप पढ़े-लिखे लोग
उसमें डालने की इच्छा करते हैं । सब छूट सब इसको समझें, जाने कि हमारे अन्दर
जाए किसी को कोई भी चिं ता नहीं होती। भाव क्या हो रहा है ? कौन से हो रहे हैं ? कहाँ
अब देख रहे हैं कि जैन से हो रहा है ? इसकी chemistry क्या है ?
science क्या कहता यह सब हमको समझ में आनी चाहिए। स्त्री
है? पुरुष वेद की जो के अन्दर की जो अग्नि बताई गई तो आचार्य
आग होती है वह तृण कहते हैं कि स्त्री की अग्नि कण्डे की अग्नि के
अग्नि के समान बताई समान होती है । कण्डा जानते हो? आज के
है। तृण जानते हैं ? तृण बच्चे तो कुछ जानते ही नहीं हैं । क्या बोलते
मतलब एक छोटा-सा हो? भूसा! घुसा! यहाँ भूसा बोलते हैं आपकी
कोई भी सूखा-सा जो टु कड़ा होता है जो U.P. की भाषा में। अब ठीक है भाई! इसको
पत्तियों के छोटे -छोटे टु कड़े होते हैं न, जिन्हें करीष भी बोला जाता है ‘करीषाग्नि’ संस्कृत
हम थोड़ी देर के लिए जला देते हैं । जब तक में। जो एक गोबर होता है , उस गोबर के

वह टु कडा है जलेगा, जलेगा उसके बाद में कण्डे बनाते जाते थे पहले। उनसे वह भोजन
बुझ जाएगा। यह जो पुरुष वेद की अग्नि बनाने के लिए उसको अंगीठी में डालने में
होती है , यह तृण की अग्नि के समान होती है । काम आते थे। सबको पता होगा न उपला भी
तृण अग्नि मतलब थोड़ी देर जलेगी। जैसे बोलते हैं । कहीं ढपला, उपला, कण्डा जो
आप समझ लो कि माचिस के ऊपर का कुछ भी हो। अब जब उन कण्डों को जलाते
मसाला। समझ आ रहा है ? जब तक वह हैं तो उन कण्डों की अग्नि कैसी होती है ?
जलेगा तब तक वह माचिस है और उसके काफी देर तक जलती रहती है । भीतर ही

धर्मं का मर्म 213


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

भीतर जलती रहे गी, भीतर ही भीतर वह पुरुष वेद की अग्नि है


सुलगती रहे गी। थोड़ी-सी भी उसे हवा लगे, वह तो थोड़ी देर कोई
अपने आप सुलगने लग जाती है । हवा जानते निमित्त मिला और
है न! मतलब कण्डे की अग्नि दबी हुई रहती है उससे उसकी अग्नि
पता नहीं पड़ती है कि उसके अन्दर अग्नि है मान लो भड़क भी गई,
और थोड़ी जिसमें फूँक मारने पर अपने आप निमित्त छूट गया अग्नि
लौ निकलने लग जाती है‌। स्त्री वेद की अग्नि शांत हो गई। थोड़ी देर
को इसी कण्डे की अग्नि की उपमा दी है । जलने के बाद में पुरुष वेद शांत हो सकता
इसको समझाने के लिए example दिया है लेकिन स्त्री वेद एक कठिन चीज है ।
है । आप समझे अग्नि हमारे अन्दर है । अब समझे! बेटियाँ समझें, यह हम उनकी

उस अग्नि को जैसे ही हम सुलगाने के बाहरी emotional chemistry उनको सुना रहे


साधन लाएँगे, फूँकनी से फूँकेंगे, अग्नि अपने हैं जिससे कि वे ये कहती हैं कि हम बेटा और
आप क्या होगी? बढ़ जाएगी, प्रज्ज्वलित हो बेटी बराबर होते हैं , कभी नहीं हो सकते हैं ।
जाएगी। अपने आप प्रज्ज्वलित नहीं हुई। यह हमारे अन्दर की जो body की
थी! बहुत देर तक वह रहती है । वह तृण की chemistry है वह हमारे अन्दर के
अग्नि की तरह नहीं है कि थोड़ी देर जली और emotions के साथ चलती है । उन दोनों
बुझ गई। यह बहुत देर तक बनी रहने वाली, का आपस में ऐसा संबंध है कि हम उसके
एक silent fire होती है । इसके लिए हम माध्यम से कभी भी बेटों के साथ में अपने को
जैसे ही कोई भी catalyst का उपयोग इस perspective में equivalent नहीं
करते हैं तो यह बहुत तेज भड़कती है । यह बना सकते हैं । हमारे अन्दर का वह भाव जो
स्त्री के लिए बताया जा रहा है कि स्त्री वेद के हमारे अन्दर की lust है , जो हमारे अन्दर का
उदय में ऐसा होता है । अब आप देखो! sexual pleasure attain करने का,

214 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

हमारे अन्दर जो एक desire पड़ी हुई है , वह अग्नि का प्रयोग करना होता था तो फिर से
just like a ‘करीषाग्नि’ मतलब कि वह उसमें फूँकनी से उसको सुलगा देते थे और
अग्नि भीतर-भीतर बहुत देर तक रहे गी, फिर से उसमें वही आग फिर से शुरू हो
सुलगती रहे गी पता नहीं पड़ेगी लेकिन अगर जाती थी। यह अग्नि कितनी ज्यादा
उसको बाहरी साधन मिलेंगे तो वह अग्नि intensity को लिए हुए हैं यह आप समझ
ज्यादा जलेगी और ज्यादा देर तक जलेगी। सकते हो। दोनों तरह की अग्नि में क्या अन्तर
पहले के लोग सुबह का कण्डा जला हुआ है ? यह भी आप समझ सकते हो और यह हर
शाम तक भी रखे रहते थे और शाम को जब कोई भीतर से समझ सकता है ।

बेटी जब तक पढ़ रही है तब तक आपके control में है


अब आप देखे कि इस अग्नि को और दे दी जाती थी। आज सोलह वर्ष तो बहुत दूर
बढ़ाने के लिए यदि हमको कोई भी बाहर होता है , आज हम समय से पहले बड़े हो रहे
साधन मिल जाते हैं । आज तो सबसे बाहरी है । दस वर्ष में ही, ग्यारह वर्ष में ही हमको
साधन क्या है ? हमें बाहर घूमने जाना है । सब कुछ जानने में आने लग जाता है । हमारे
अब जब घूमने जाना है किसके साथ घूमने अन्दर की chemistry जो सोलह वर्ष में
जाना है ? कुछ नहीं अपने classmates पहले शुरू होती थी वह दस वर्ष में ही शुरू
के साथ घूमने जाना, पिकनिक पर जाना हो जाती है , हमारे interest divert होने
है , क्लास के सब बच्चे जा रहे हैं , बच्चियाँ लग जाते हैं । अब आप सीखे, देखें कि जब
जा रही है , सब जा रहे हैं । अब यह घूम- हम दस वर्ष से ही divert होने लगे, अपने
ना-फिरना enjoy करना एक उम्र तक सही mind को उस दिशा में ले जाने लगे, जो
है । कौन-सी उम्र तक? पहले के time पर दिशा हमारे लिए कहीं से कहीं तक ठीक नहीं
सोलह वर्ष तक बच्चियों के लिए एक अपने है , तो अब जो दस से पच्चीस वर्ष की उम्र है
आप में control बना रहता था। after 16 जिसमें बच्चा पढ़ता, कुछ बनने की मेहनत
years उनके अन्दर जो emotions बनते करता वह अब नहीं कर सकेगा। क्योंकि
थे, उनको उनके माता- पिता समझने लग उसका mind divert हो चुका है‌, होने
जाते थे और उस तरह से उनके लिए अपने लगा है । किसके कारण से? खास तौर से
आप एक माहौल दिया जाता था। उनका जो देखें अगर बेटियों को इस तरीके की स्वतंत्रता
कुछ भी विवाह इत्यादि करना है , वह सब का माहौल मिलता है । कहीं भी किसी के
करके उनके लिए एक सही स्थिति, सही राह साथ भी घूमेंगी, किसी भी जगह पर किसी

धर्मं का मर्म 215


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

के साथ खाना-पीना करेंगी, किसी भी तरह कर लेगी, job कर लेगी और जब decision


से किसी के भी साथ जाने के लिए उन्हें point आता है कि माता-पिता अपनी इच्छा
खुली छूट है , तो उनके अन्दर इन्हीं बाहरी से चाहते हैं कि बेटी अच्छे घर में पहुँच जाए
कारणों के कारण से ऐसी अग्नि उनके अन्दर बस! वहीं पर सबसे ज्यादा दिक्कतें शुरू हो
उत्पन्न होने लगेगी कि वे उस अपनी अग्नि जाती है । क्योंकि उसने अपना निर्णय ले
को संभाल नहीं पाएँगी। क्योंकि यह आग लिया होता है । बेटी जब तक पढ़ रही है तब
भीतर तो थी लेकिन बाहर के कारणों से और तक आपके control में है । लेकिन जैसे ही
सुलगने लग गई और ज्यादा बढ़ गई। वह job करने लग गई आप समझ कर रखे
बेटों के साथ यह हो 90% वह आपके control में नहीं है ।
सकता है कि उनके 10% आपके control में रह सकती है
लिए यह आग थोड़ी- अगर बहुत अच्छे संस्कार होंगे तो, बहुत
सी लगे और थोड़ी देर अच्छी आपकी बिलकुल आज्ञाकारिणी होगी
बाद वह शान्त हो जाए। तो, otherwise 90% बेटी आप यह
लेकिन बेटियों के साथ समझना जैसे ही उसने job join की तो
नहीं होता। इसलिए job का जो माहौल होता है वहाँ पर उन्हें
आप देखते हो, बेटियाँ ज्यादा emotional enjoy करने के लिए जिस तरीके से
होती हैं । एक बार उनके अन्दर कोई धुन चढ़ frequent atmosphere दिया जाता है ,
जाती है या इस तरीके की आग में उनका मन उसी के कारण से उनके emotions अपने
जलने लग जाता है , तो फिर वे अपने आपको control में नहीं रहते। वह समझने लगती
बचा नहीं पाती क्योंकि यह ऐसा ही भाव है । है कि हमें अपने जीवन साथी को अपनी
इसलिए मना किया जाता है कि बेटियों की इच्छा से चुन लेना है । जिसके माध्यम से हम
सुरक्षा ज्यादा की जाए, ज्यादा उन पर ध्यान लंबे समय तक एक ही कंपनी में काम करते
दिया जाए, ज्यादा उनके लिए secure हुए एक साथ रह सके। इसलिए उन्हें फिर
and safe वातावरण तैयार किया जाए। कुछ नहीं देखना होता है । क्या caste है ?
माता-पिता पढ़ाने के साथ-साथ अगर इन क्या background है ? क्या religious
बातों पर ध्यान देंगे तो ही बेटी उनके हाथ में factor है ? कुछ नहीं देखना होता है । क्या
रहे गी। बेटी, उनकी बेटी रहे गी अन्यथा आप उनके life style है ? क्या उनका भोजन
देखेंगे बेटी बड़े होते-होते, होते-होते माता- पानी है ? कुछ नहीं देखना होता है ।
पिता का पैसा लेते-लेते अपनी पढ़ाई तो पूरी

216 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

कामाग्नि को बढ़ावा दे रहा है आज का विज्ञान


यह ऐसी चीज है इसमें कुछ भी आदमी लिए उन्हें जो science पढ़ाई जाती है , वह
को समझ ही नहीं आता है । इतने इसके science उनके लिए काम नहीं आती है ।
अन्दर उद्वेग उत्पन्न होते हैं , वेग उत्पन्न होते उन्हें sexual science पढ़ाई जाती है इस
हैं कि धीरे-धीरे आप देखोगे, ये जो चीजें बात के लिए ताकि वे समझ सके कि यह
हमें देखने में आ रही हैं ये सारी science होता क्या है और उससे कुछ समझ नहीं
जैन शास्त्रों में लिखी हुई हैं , बहुत अच्छे ढं ग आता है , वे उसी में और indulge होते
से लिखी हुई हैं । मैं कहता हूँ कि अगर जैन हैं । क्योंकि science वह चीज है ही नहीं।
शास्त्रों के अनुसार बच्चों को अगर इन वेदों science वह है जो मैं आपको बता रहा हूँ
का ज्ञान कराया जाए तो इससे उनके अन्दर और इस तरह से जैन science पढ़ाई जाए
कोई भी negative जो knowledge तभी ये चीजें स्कू ल में या घरों में बच्चों को
है , वह नहीं बनेगी। बजाय उसके जो आज सही समझदारी से उनके लिए और उनके
दुनिया में बच्चों को इसी चीज से बचाने के अन्दर नियंत्रण पैदा कर पाती है ।

काम के दस वेग होते हैं


आचार्यों ने यह इतनी आप दिखने लग जाते हैं । “प्रथमे जायते
बड़ी science दी है । चिं ता” सबसे पहले इस काम का वेग शुरू
देखो! सबसे पहले होगा तो सबसे पहले क्या शुरू होगी? ‘चिं ता’
कहा- इस काम के मतलब चिन्तन। किसका?
दस वेग होते हैं । कितने remembrance! किसकी? जिसके प्रति
वेग? सुना दे आज हमारा attraction हुआ है उसके लिए मन
आपको! आज ही सुना बार-बार सोचने लग जाएगा, बार-बार
पाएँगे कल से तो आप लोग सुनोगे नहीं। उसकी चिं ता में पड़ने लग जाएगा। यह सबसे
आप देखें आपकी बहुत काम की चीज है । पहला काम का वेग है । सबसे पहला
दस प्रकार के वेग बताये जो हमारे भीतर emotion यहाँ से शुरू होता है । अगर आप
हमारे अन्दर की जो intensity है वह ten किसी की चिं ता में पड़ रहे हैं , आप किसी को
types से हमारे अन्दर create होती है । बार-बार याद कर रहे हैं , आपके रातों में भी
वह हमारे अन्दर इतना effect डालती है कि सपनों में कोई आने लग गया है , तो समझ
उसके effect हमें बाहर body पर अपने लो यह आपका first step है । आप की

धर्मं का मर्म 217


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

intensity यहाँ से शुरू हो रही है । आप अपनी फोटो भेज दो, फोटो भेज दो । भेज दी
अभी control कर सकते हो, अपनी चिं ता उसने, अब उसकी full फोटो ही देखता
को हटा सकते हो और वह चिं ता कैसे हट रहे गा ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ अब! फोटो देख-
सकती है ? जिसका आप चिन्तन कर रहे हो, ते-देखते ही उसके अन्दर ख्याल वही बना
जिसके बारे में बार-बार remind कर रहे रह रहा है । वही चिं ता चल रही है । अब! जब
हो। उसकी बार-बार याद कर रहे हो, यह इसका वेग बढ़ जाएगा तब उसका दूसरा वेग
याद आपको रोकनी पड़ेगी। यह पहला वेग आना शुरू हो जाएगा। देखना है , मिलना है ,
है । अगर यह वेग संभल गया तो कुछ संभल कहाँ मिलोगे? अब वह योजना बनाएगा।
जाएगा। नहीं संभला तो दूसरा वेग आ college में, किस park में? किस hotel
जाएगा। ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ दूसरे वेग में में? किस theatre में? कहाँ मिलना है ?
उसको देखने की इच्छा होगी। क्या समझ अब! यह चीज शुरू होगी, जिसे आप लोग
आ रहा है ? पहले वेग में क्या हुआ? चिन्तन बोलते हो dating, यह चीज शुरू होगी।
आया, ख्वाब जिसको बोलते हैं । कोई भी ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ अब यह देखने की इच्छा
तरीके की, किसी की भी, किसी style का, शुरू हुई। अब देखो! तीसरा वेग क्या होगा?
आपके mind पर प्रभाव पड़ सकता है । ‘तृतीये दीर्घ निश्वास:’ अगर आपके अन्दर
किसी की किसी beauty का, किसी की इस काम का वेग बढ़ता गया तो क्या होगा?
किसी action का, किसी style का, श्वासें आपकी लंबी-लंबी चलने लगेंगी।
आपके mind पर प्रभाव पड़ सकता है । वह मतलब स्थिति अब बिगड़ने जा रही है ।
चीज आपको अच्छी लगने लग गई, आपके ‘तृतीये दीर्घ निश्वास:’ लम्बी-लम्बी सांसे
दिमाग में घूमने लग गई तो यह क्या हो चलेंगी और “चतुर्थे भजते ज्वरम्” चौथा वेग
गया? पहला तो हो गया चिन्ता। अब आप आ गया तो आपको ज्वर आ जाएगा, बुखार
दिन भर उसी के बारे में सोचोगे और आपको आ जाएगा। बुखार जानते हो न! बोलो तो!
कुछ नहीं दिखेगा। सामने किताब तो रहे गी बुखार जानते हो न! इसका भी एक ज्वर
लेकिन दिमाग किताब में नहीं होगा। दिमाग होता है । जब यह ज्वर चढ़ता है , तो उतरता
किताब में भी उसी का फोटो दिख रहा होगा, नहीं है । अपने आप तबीयत खराब होने लगी,
बिना फोटो के फोटो दिख रहा होगा। ‘प्रथमे temperature बढ़ गया, बुखार आ रहा
जायते चिं ता’ देखो! आचार्यों ने कितनी बड़ी है । किसका आ रहा है ? यह viral नहीं है ,
science लिखी है । ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ कोई dengu नहीं है , कोई malaria नहीं
अब आजकल तो mobiles के साधन हैं । है कि उस बुखार को कोई भी physician

218 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

नाम दे सकता है । किसी भी तरीके की कोई temperature बढ़ने लगा है , भोजन में
भी dose देगा वह बुखार कुछ काम ही नहीं रुचि बिल्कुल नहीं बन रही, माता-पिता कह
करेगा। वह बुखार आ गया तो कहाँ से आ रहे हैं बेटा खा ले, कितने अच्छे -अच्छे तेरे
गया? वह बुखार उसके emotions से लिए व्यंजन बनाए, त्यौहार आया यह हो रहा
आया। उसका temperature बढ़ रहा है , है , वह हो रहा है । कुछ नहीं! कुछ नहीं! कुछ
body का control नहीं हो रहा है , यह नहीं! छटवाँ वेग में चल रहा है ‘षष्ठे भुक्तम् न
उसके उस emotions से हुआ है । ‘चतुर्थे रोचते’ व ‘सप्तमे स्यात् महामूर्छा’ और सातवां
भजते ज्वरम’ समझ आ रहा है ? फिर जब वेग आया तब तो वह एक तरीके से बिल्कुल
ज्वर आता है ‘पंचमें दह्यते गात्रम्’ पाँचवें वेग मूर्छित-सा हो जाता है । मूर्छा जानते हो! अब
में तो शरीर जलने लग जाता है । अब! शरीर थोड़ा उसका होश भी गड़बड़ाने लगेगा। मूर्छा
जलने लगेगा मतलब आग जो पहले तो मन में आ जाना मतलब एक बेहोशी की हालत
में लगी थी अब शरीर में लग गई है । बस! में आ जाना। अब उसको होश नहीं रहने
इसी आग में अब सब जलना है और कुछ वाला कि मुझे क्या हो रहा है ? क्यों हो रहा
नहीं होना है । आग है , यह आग, इस तरह की है ? क्या? किस लिए हो रहा है ? उसे खुद
आग जो आपके सामने, आपको इतना अंधा नहीं मालूम। समझ आ रहा यह ‘सप्तमे स्यात्
बना दे, आपके अन्दर इतना धुआँ पैदा कर दे महामूर्छा’, आठवें में ‘उन्मत्तत्त्वमथाष्ठमे’ तो
कि आपको कुछ दिखाई न दे। ‘दह्यते गात्रम्’ वह उन्मत्त हो जाएगा, पागल की तरह हो
जलने लग गया शरीर। कौन-सा वेग हो जाएगा, अगर इस वेग को control नहीं
गया? ‘पंचमें दह्यते गात्रम्’। ‘षष्ठे भुक्तम् न किया। पागलपन की स्थिति बन जाएगी,
रोचते’ छटवाँ वेग आएगा तो भोजन भी करने बन जाती है । इसलिए माता-पिता हाथ
की रूचि नहीं बचती है । भोजन भी अच्छा जोड़कर के छोड़ देते क्या करें उसे जो करना
नहीं लगेगा। देखते रहना अपने-अपने वेगों है करने दो, कम से कम पागल तो नही हो।
को control करते रहना। ये भीतर के वेग ‘उन्मत्तत्त्वमथाष्ठमे’ आठवें वेग में तो वह
हैं , ये भीतर की velocity हैं , किस तरीके से उन्मत्त हो गया। उन्मत होने का मतलब वह
इन्हें हमें समझना है । अगर हमारे लिए खा- अब कुछ नहीं देखेगा। वह आपको मार भी
ने-पीने में रुचि नहीं आ रही है या चिं ता उसी सकता है , आपका गला भी घोंट सकता है ।
की सता रही है और हमें किसी का फोटो ही ऐसे केस कितने देखने को मिलते हैं कि बच्चे
हमारे दिमाग में पड़ा हुआ है । उसी से मिलने अपने माता-पिता का murder कर देते हैं
की इच्छा है , उसी से बोलने की इच्छा है । सिर्फ इस बात के लिए कि उन्हें किसी चीज

धर्मं का मर्म 219


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

से रोका जाता है । कभी-कभार तो mobile ऐसी स्थिति बन गई और दसवें मे तो ‘मुच्य-


देखने से रोका जाए तो उसके बाद भी उनको तेSसुभिः’ वह प्राणों से छूट जाता है । प्राण
इतना गुस्सा जाता है कि वह ऐसा कदम उठा उसके निकल ही जाते हैं । अगर दसवां वेग
लेते हैं । उन्मत्त हो गया पागल जैसी स्थिति आ गया तो फिर जिं दा नहीं बचेगा। ‘ऐतै
बन जाती है , disturb हो गया, विक्षिप्त हो वेगै: समाक्रांत: कामी तत्त्वं न पश्यति’ इन
गया। इसका नाम हो गया, यह आठवाँ वेग। वेगों से जो समाक्रांत हुआ है , आक्रांत हुआ
‘नवमे प्राणसंदेहो’ नौवें में तो प्राणों का भी है , इन वेगों से जो घिरा हुआ है , वह कभी
संदेह doubt होने लगता है कि अब यह तत्त्व को नहीं जान सकता। reality को
जिएगा कि मरेगा‌। समझ आ रहा है ? यह नहीं पहचान सकता।

220 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

आदमी जिंदगी मस्ती और खेल-खेल में बर्बाद करता है


आज का दिन आपके समाज में इज्जत की भी कोई चिं ता नहीं
लिए था ‘stay in होती। उसके ऊपर इन वेगों का इतना प्रभाव
myself’ अपने में रहता है कि वह सब कुछ दांव पर लगा
आए, ठहरे, अपने में सकता है , सब कुछ कर सकता है । सब कुछ
रमण करें। ब्रह्म मतलब आग में जला सकता है लेकिन उससे वह
अपनी जो pure आग सहन नहीं होती है । आज ऐसी आग
conscious है , आप को बढ़ाने के लिए, आप में आग नहीं
अपनी जो pure soul है , उस soul में लगी हो तो भी आप में आग लगाने के लिए,
हमारे अन्दर एक attraction पैदा हो जाये सुलगाने के लिए इस तरह की फिल्में बनती
और हम उसी में रहें । उसी में अपने लिए हैं जो आप देखोगे तो आपके अन्दर अपने
आनंदित हो इसका नाम है - ब्रह्मचर्य। यह आप वह आग जलने लग जाएगी। जब कोई
कैसे संभव है ? जो व्यक्ति दस वेगों में बढ़ता आग में ही नाच रहा है , आग ही लग रही है ,
हुआ है , उससे कभी तत्त्व मतलब अपना जो उसी को सुना रहा है , उसी को गा रहा है ,
self उसका consciousness की चीजें उसी का धुआँ निकल रहा है और धुआँ भी
हैं , वे तो उसको कभी समझ में आएँगी नहीं, कई quality का निकल रहा है । धूम-1,
जो उसकी स्व चेतना है वह उसके कभी-भी धूम-2, धूम-3 समझ आ रहा है ? तो क्या
पहचानने में आएँगी नहीं। वह वहाँ ठहर ही होगा? कौन बचेगा इस आग से? उसका
नहीं पाएगा। उसका मन अपनी चेतना के कोई अंत तो है ही नहीं। अब वह धूम-4,
ज्ञान में लग ही कैसे सकता है ? जिसका मन 5---10 तक की तरह बढ़ती चली जाए
किसी दूसरे के शरीर में आसक्त हो। इन दस उसका कोई अंत तो है ही नहीं है । बस! धुआँ
वेगों से आक्रांत होने पर आपको कभी भी निकालो। किसका धुआँ निकालो? अपनी
तत्त्व का ज्ञान, जो realistic आपकी life जिं दगी का आदमी धुआँ निकाल रहा है ,
है , उस life के अन्दर भी आपको कहाँ अपनी जिं दगी को बर्बाद कर रहा है और बड़े
चलना चाहिए, इस बात की knowledge खेल-खेल के साथ और बड़ी मस्ती के साथ
आपके अन्दर रह नहीं सकती है । मतलब हो रहा है । अगर हमारी अपनी जिं दगी अच्छी
ऐसा व्यक्ति सब कुछ छोड़ देता है । सब कुछ चल रही है । हमें किसी भी प्रकार की हमारे
दांव पर लगा सकता है । उसे अपनी माता अन्दर कोई दिक्कत नहीं है , तो भी हमारे
की फिक्र नहीं होती, पिता की फिक्र नहीं अन्दर भाव बन जाते हैं ।
होती, भाई-बहन की फिक्र नहीं होती, उसे

धर्मं का मर्म 221


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

भेद-विज्ञान के बिना कभी भी ब्रह्मचर्य की स्थिति बनेगी ही नहीं


अरे! यह तो life है । इसी का तो enjoy को गीत बना दिया जाता है । वह मचलता है ,
करना है । इतना मिथ्या ज्ञान है कि जिस ज्ञान क्यों? वह तड़पता है , क्यों? परवाने से पूछ
के माध्यम से, जिस उदाहरण के माध्यम से, लो! अब क्या परवाने से पूछ लो भाई? वह
jainism में समझाया गया कि देखो! ऐसा तो मर रहा है , वह तो तड़प ही रहा है । अब
नहीं करते। मिथ्या ज्ञानी उसी उदाहरण को, परवाना को पता ही क्या है कि उसी में मरना
उस तरीके से समझाते हैं कि ऐसा होता है , है । उसी को उससे पूछ लो मतलब यह कि
इसीलिए तो ऐसा किया जाता है । एक उदा- जिसको आग लगी है उससे पूछ लो कि उस
हरण दिया जाता है - ये जो light के कीड़े आग का आनंद क्या है ? इसको बोलते हैं -
होते हैं , वे light के कीड़े होते हैं न, ये light मिथ्या ज्ञान। समझ आ रहा है ? सम्यग्ज्ञान
पर ही पहुँचते हैं और उसी में जल कर, उसी और मिथ्या ज्ञान में अन्तर देखो! आप हँ सों
में मरते हैं । light के जो कीड़े होते है , पतंगें! नहीं। समझने की कोशिश करो। इस गलती
इन्हें परवाना बोला जाता है । इधर jainism में न पड़ो इसलिए आपके अन्दर यह ज्ञान
में आचार्य सिखा रहे हैं , बेटा देखो! यह कितनी भीतर तक होना चाहिए कि हमें दुनिया में
बडी विडं बना है कि जिस light में पहुँचने के जो सिखाया जा रहा है वह हमें पहले से ही
बाद में वह कीड़ा अपनी जिं दगी गवां देता जैन ऋषियों ने सिखाया था। लेकिन आज
है , जल जाता है , अपने शरीर को जला देता हमें वह चीज उल्टे ढं ग से सिखाई जा रही है ,
है , मर जाता है लेकिन वह उसी light पर मैं आपको यही बताना चाह रहा हूँ। दुनिया
बार-बार जाकर के बैठता है । उसी light को में रह कर के सब कुछ जानने में आता है ,
बार-बार touch करने की कोशिश करता सब कुछ सुनने में आता है , सब कुछ देखने
है तब तक उसी पर उड़ेगा, उसी पर घूमेगा में आता है लेकिन उसके बावजूद भी जो
जब तक कि उसमें जल के मर न जाये। आदमी अपने नियंत्रण को नहीं खोता है
इसलिए light से दूर रहना, कीड़े को light वही ब्रह्मचर्य को प्राप्त कर पाता है । हाँ! यह
से दूर रखना लेकिन कीड़ा मानता कहाँ है । ध्यान रखना। अज्ञानता से ब्रह्मचर्य प्राप्त नहीं
समझ आ रहा है ? अब इसी चीज को गानों में होता है । सब चीजें जानने के बाद reality
गाया जाता है । जब आपके अन्दर वह आग to know the reality of our body
भड़कानी होती है तो इसी उदाहरण को, मैं and to know the reality of our
तो देखकर के, सुनकर के दं ग रह जाता हूँ कि mind, to know the reality of our
इस उदाहरण को इसी तरह के example emotion, हर चीज को जानो और उसको

222 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

differentiate करो इसी का नाम है - यह ब्रह्मचर्य की स्थिति बनेगी ही नहीं।


भेद-विज्ञान। इसके बिना आपको कभी-भी

आकिंचन तक पहुँचे बिना ब्रह्मचर्य नहीं हो सकता


जो व्यक्ति आकिंचन पढ़ोगे तो आपके अन्दर कोई अच्छी
तक नहीं पहुँच पाया वह knowledge आएगी। उनमें चौदह मार्ग-
ब्रह्मचर्य नहीं हो सकता। णाएँ बताई जाती हैं । वेद मार्गणा है , संज्ञायें
आकिंचन तक पहुँचने हैं इनकी जो definition दी हुई हैं उनको
का मतलब ही है कि अब आप देखो कि आचार्यों ने हमें सब कुछ बता
हमारे अन्दर कोई भी रखा है । इसके माध्यम से जो हमको ज्ञान
emotions नहीं है , हमें मिलेगा तभी हम समझ पाएँगे कि हम क्या
कोई भी चीज लुभा नहीं सकती है , हमें कोई हैं ? क्या हमारे अन्दर हो रहा है ? क्या हम
भी चीज हमारे उस ब्रह्मचर्य के goal को control कर सकते हैं ? ये सब चीजें हमारे
हमसे दूर नहीं कर सकती है । वह हमारे लिए सामने जब clear होंगी तभी हमारे लिए इस
एक last goal है , final है और वहाँ तक संसार में चाहे यह पंचम काल का मध्य हो,
पहुँचने के लिए आप के अन्दर इतनी चाहे पंचम काल का अंत हो, चाहे कितनी भी
capacity होनी चाहिए कि आप अपने दुनिया गिर जाए, चाहे कितनी भी वासनाएँ
अन्दर के हर तरीके के भाव को समझ सकें दुनिया में बढ़ जाएँ, चाहे कितने ही खुल्लम
और फिर भी उसको व्यर्थ का समझ कर के खुल्ला कितनी मनोरं जन होने लग जाए
उसे अपने से हटा सकें, बचा सके। यह सिर्फ लेकिन अगर कोई ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होगा
ज्ञान से हो सकता है , वैराग्य से हो सकता है तो वही होगा जिसके अन्दर ज्ञान और वैराग्य
और किसी चीज से नहीं हो सकता। अगर दृढ़ है । सम्यग्ज्ञान की बात कर रहा हूँ आपके
आपको अच्छी knowledge है , ज्ञान की बात नहीं कर रहा हूँ। सम्यग्ज्ञान
chemistry, physics की knowledge होना चाहिए। वैराग्य इस तरीके का होना
से नहीं होगा कुछ भी, जो आप biology चाहिए कि उसे लगे कि वास्तव में इसी के
and zoology पढ़ती है , उससे कुछ नहीं माध्यम से हम आगे बढ़ सकते हैं ।
होने वाला। आप अगर jain science

राग से बचे बिना कुछ नहीं कर पाओगे

धर्मं का मर्म 223


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

राग तो बहुत simple है , कभी-भी हो अपना nature है । कहीं भी वह रहे गी, वह


सकता है , किसी से भी हो सकता हैं । दस इसी तरीके से बोलेगी, इसी तरीके की
वेग शुरू होते हैं , एक चिंता से शुरू हो उसकी अपनी style है । लेकिन वह यह
जाते हैं । आप देखेंगे जैसे ही आप बड़े होंगे समझता है वह मेरे लिए कर रही है और जहाँ
आपके अन्दर कोई न कोई आपके ख्वाब में उसके जहन में यह बैठ गया कि मेरे लिए
आने लग जाएगा। आपने किसी के चेहरे है , तो बस! वह वहीं से पागल होना शुरू हो
को देखा, किसी ने मुस्करा दिया आपको जाता है । वहीं से उसके अन्दर चिं ता बढ़ना
देखकर, किसी ने जो है आपको देख कर शुरू हो जाती है । चिंता को रोको। अगर
के आपसे कोई बात कर ली। हो सकता है आपके अन्दर किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई
आपके लिए वही ख्वाब में डला रहे । अब वह भी, चाहे बेटा हो या चाहे बेटी हो, अगर आप
तो सामने वाले की बिलकुल simply आदत पढ़ रहे हो और आपके ख्यालों में कोई दूसरा
थी; प्रसन्नता से बोलना, प्रसन्नता से मिलना आने लग गया है , तो आप उससे बात करना
लेकिन आपके अन्दर वह एक lust का जो बंद करो। आप उससे chatting करना बंद
emotion है , उसके कारण से आपको करो। आप उससे मिलना जुलना बंद करो।
ऐसा लगता है कि यह केवल मेरे लिए हो जब यह करोगे तभी आप अपना जो goal
रहा है‌। लड़के सबसे बड़ी गलती क्या करते है , जो आपने बनाया है मुझे यह बनना है ,
हैं ? जब भी किसी अपने opposite sex वह बनना तभी बन पाओगे। otherwise
को‌देखते हैं ‌उनसे मिलते हैं और उनकी कोई सब धरा रह जाएगा कुछ नहीं बन पाओगे।
भी तरीके के reaction होते हैं , activity यह बहुत बड़ी चीजें है और इसको जो समझ
होती हैं तो उन्हें ऐसा लगता है it is only लेगा वह ही अपने आपको कुछ बना पाएगा,
for me. जबकि ऐसा नहीं होता वह उसका कुछ कर पाएगा।
अपना nature है । हँ सने-खेलने का उसका

गुरूकुल पद्धति में ब्रह्मचर्य जन्म से सिखाया जाता था


इसलिए कहा जाता है बच्चों के लिए में ब्रह्मचर्य से रहना सिखाया जाता था।
ब्रह्मचर्य जन्म से सिखाया जाता था। जब जब एक उम्र उनकी हो जाती उसके बाद उन्हें
तक वे बड़े नहीं हो जाते सोलह साल की, छोड़ दिया जाता था। अब आप अपने धर्म के
अठारह साल के नहीं हो जाते, विवाह के साथ में वैवाहिक जीवन जिए या ब्रह्मचर्य के
योग्य नहीं हो जाते तब तक उनको गुरुकुल साथ जीवन जिए, ऐसा करने के लिए आप

224 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

स्वतंत्र हैं । यह पहले की पद्धति होती थी। जल रहा है , तो तुम्हारे अन्दर भी कुछ जलन
आज बच्चों को सिखाया ही नहीं जाता। शुरू पैदा होगी कि नहीं? उसी से जलन पैदा हो
से ही उनके हाथ में mobile दे दोगे, तड़- जाएगी। जब वह ऐसा कर सकता है , तो मैं
कते-भड़कते गाने सुनेंगे, तड़कती-भड़कती क्यों नहीं कर सकता? गलत राह पर बच्चा
फिल्में देखेंगे तो वह तड़क-भड़क उनके भीतर यहीं से चलना शुरू हो जाता है । इसलिए
पैदा होगी कि नहीं? जब सामने कोई भड़क यहाँ ब्रह्मचर्य का मतलब है - सब कुछ देखते
रहा है , सामने कोई तड़क रहा है , सामने कुछ हुए भी आत्म नियंत्रण रखना।

वासना पर नियंत्रण कभी भी वासना से भागने से नहीं होता


आपको एक छोटी-सी दूर से ही देख कर के वह वहाँ से हट कर के
बात बता रहा हूँ कि चला गया। पीछे -पीछे उसका गुरु आया।
कैसे अपने अन्दर उन उस गुरु ने देखा यह महिला यहाँ कराह रही
भावों को पकड़ा जाता है , पड़ी हुई है , यहाँ कोई इसके लिए साधन
है और समझा जाता है नहीं है , तो जो आगे शिष्य जा रहा था उसको
और कैसे इस वासना भी आवाज लगाई और उसने उस महिला
पर नियंत्रण किया को उठा कर के अपने आश्रम तक ले गया।
जाता है ? वासना पर नियंत्रण कभी भी उसका उपचार किया और उपचार करने के
वासना से भागने से नहीं होता है , उसको बाद जब ठीक हो गई तो उसने महिला को
face करने से ही होता है । लेकिन उस वापिस रवाना कर दिया। उसके बाद में उसने
facing में भी यह ध्यान रहे कि उस facing अपने शिष्य से पूछा कि जब तू रास्ते में जा
में वह facing ही रहे , उसमें अर्थ न जुड़े, रहा था तो यह महिला तुझे दिख रही थी तो
current न आये। एक गुरु और शिष्य थे। तूने क्यों नहीं संभाला? क्यों इसका उपचार
एक कुटिया बनाकर के कहीं रहते थे। एक नहीं किया? क्यों इसके लिए कोई भी तरीके
नदी के किनारे शाम को वे गए, अपनी का संबोधन नहीं किया? शिष्य कहता है -
कुटिया में उनको वापिस आना था। पहले मुझे ऐसा लग रहा था कि कहीं इसके सौंदर्य
जो शिष्य है वह कुटिया की तरफ जा रहा था में मैं बह न जाऊँ। क्या बोला? मुझे ऐसा
तो रास्ते में एक महिला उसको मिली। वह लग रहा था कि कहीं मैं इससे विचलित न हो
किसी कारण से बीमार थी या कराह रही थी, जाऊँ। उसका गुरु उससे कहता है बेटा! अभी
कोई उसको पीड़ा थी। उस शिष्य ने उसको तू पक्का नहीं हुआ। अगर तू यह सोच रहा है

धर्मं का मर्म 225


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

कि मैं इससे भाग करके अपने आप को capacity आई नहीं। सुन रहे हो? ज्ञानी
control कर लूँगा तो यह भी तेरी अभी आत्माओं! ज्ञानी को यहाँ पर जानी बोलते
अन्तिम यात्रा, अभी तेरी perfection इस हैं । क्या बोलते हैं ? हाँ! समझ में आ रहा है ?
चीज में नहीं हुई। मैं सोच रहा था कि इतने क्या समझ में आ रहा है ? उसके गुरु ने बहुत
साल का साधक हो गया है , इतना बड़ा हो अच्छी बात कही- बेटा तैरना सूखे में नहीं
गया है , अब तेरे अन्दर बिलकुल maturity सीखा जाता, तैरने के लिए नदी ही चाहिए।
आ गयी होगी, अभी तेरे अन्दर वह बात नहीं नदी में जो तैर गया वही तिरता है इसलिए
आई। ऐसी परिस्थितियों में भी, ऐसी नदी में तैरने से बचने का उपाय नहीं करना,
स्थितियों में भी, इन चीजों को देखते हुए भी तैरना तो नदी में ही सीखा जाएगा। सूखे में
तुझे यह सोचना है कि यह अगर अविवाहित क्या तैरना? अगर तेरे सामने सब कुछ हो
है , तो यह मेरी बहन है , मेरी बेटी है और अगर और फिर भी तेरे अन्दर किसी भी तरीके का
यह विवाहित है तो यह मेरी माँ है‌। मेरी माँ के भाव न हो तो यह तेरे अन्दर की बहुत बड़ी
समान है , मेरी भाभी के समान है । ऐसी दृष्टि योग्यता है और इसी योग्यता को अगर तूने
जब तेरे अन्दर आएगी और तू उसका इस प्राप्त कर लिया तो फिर तुझे हम कहीं भी भेज
तरीके से उपचार करता और तू उसके सौन्द- देंगे, कहीं भी रहे गा, किसी भी स्थिति में
र्य में अपने आपको विचलित नहीं करता तो होगा, तेरे अन्दर कभी कोई बिगाड़ नहीं
ही तू इस तरह के ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो आएगा।
सकता है अन्यथा अभी तेरे अन्दर वह

दस धर्म का एक package है मंजिल तक पहुँचने के लिए


ब्रह्मचर्य एक वह चीज हमेशा दुनिया में देखकर के, हर तरह के
है जो दुनिया में अज्ञान भावों से अपने आप को भी वीतराग बनाए
से नहीं प्राप्त होती है । रखता है और उस वीतरागता की भावना में
दुनिया में हर चीज को वह अपनी ब्रह्म मतलब शुद्ध आत्मा में ‘चर्या’
जानने के बाद भी करता है । ‘चर्या’ मतलब चलते रहना, उसी में
उसके अन्दर राग की रमण करना। यह उसके उद्देश्य में होता है तब
एक किरण भी पैदा वह ब्रह्मचारी कहलाता है‌। अभी भी वह चल
नहीं होती। राग की एक कणिका भी उसके रहा है । आप यह समझ रहे हो दस धर्म पूरे
अन्दर नहीं आती और वह अपने आप को हो गए, अब आगे तो कुछ है ही नहीं। यह दस

226 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

धर्म का एक package है , यह पूरा का पूरा अभी तो उसने चलना सीखा है । चलते हुए
उस रास्ते पर चलने की एक सामग्री है । अभी भी किसी भी प्रकार का भ्रम सामने न आ
तो चलना सीखा है , अभी तो बहुत आगे जाए, चलते-चलते जिं दगी भर में उसके
बढ़ना है , बहुत आगे चलना है । चारी तो अब लिए कितने भी भ्रम सामने आए वह उनको
शुरू हुआ न! ‘चारी’ मतलब चलने वाला। हटाता चला जाए। भ्रम के पर्दे उसके सामने
‘ब्रह्म’ मतलब उस शुद्ध रास्ते पर, आत्म आएँगे, भ्रम के धुएँ उसके सामने आएँगे, वह
तत्त्व के रास्ते पर चलने वाला, अब शुरू सब को हटाता चला जाए और अपने ब्रह्म
हुआ है अभी मंजिल तक नहीं पहुँचा। को उपलब्ध हो जाए। इसका नाम है - ब्रह्म
मंजिल तो ब्रह्म में लीन होना है , ब्रह्म में में स्थित हो जाना। यह ब्रह्मचारी से ही
निष्ठ हो जाना है वह मंजिल है । जब वह शुरू होता है , जो ब्रह्मचर्य का पालन
ब्रह्म में स्थिर हो जाएगा, स्थित हो जाएगा करे गा, वही ब्रह्म में स्थित हो पाएगा।‌
तब उसके अन्दर उसकी मंजिल मिलेगी।

भ्रम छोड़ने की साधना का नाम है - ब्रह्मचर्य की साधना


एक ब्रह्मचारी है और बम बोल? बहुत दिनों के बाद मेरे चिन्तन
एक भ्रमचारी है । क्या आया है कि यह बम नहीं है , बम बम बोल रहे
समझ आया? यह हैं जो यह ब्रह्म है , ब्रह्म! ब्रह्म! ब्रह्म को बोलना
ब्रह्म, ब्रह्मचारी और चाह रहे हैं क्योंकि भ्रम की यात्रा हर कोई कर
एक भ्रमचारी, भ्रम, रहा हैं । ब्रह्म को कहना चाह रहे हैं लेकिन
means illusion। ब्रह्म कहते-कहते वह क्या हो जाता है - बम,
कितना सा अन्तर है ? बम, बम हो गया, ब्रह्म तो बोलने में अलग से
बोलने-बोलने में कुछ अन्तर नहीं है या ब्रह्म उस पर में जोर लगाना पड़ता। बम हो गया
से करते-करते हम भौम-भौम कर सकते बोल बम बोल बोल बम का रखा है जैसे-
हो। मैं जब आचार्य महाराज के साथ में अम- बम मार रहे हो किसी को। समझ आ रहा है ?
रकंटक जाता था, जब संघ में था तो रास्ते में इधर हम देखे तो उस ब्रह्म और भ्रम में जो
बहुत सारे नर्मदा का चक्कर लगाने वाले जो अन्तर है , वह जमीन और आसमान का
कांवड़िया होते हैं , वे लोग मिला करते थे। वे अन्तर है । भ्रम में यदि आप पड़े हैं , किसी के
रास्ते में एक बात बोलते जाते थे, बोल बम! मोह में पड़े हैं , किसी के शरीर में आप भ्रम में
बोल बम! बोल बम! बोल बम! क्या है बोल पड़े हैं तो आप कभी ब्रह्म को प्राप्त नहीं हो

धर्मं का मर्म 227


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

सकते हैं ‌। ब्रह्म तक पहुँचने के लिए आपको इस तरीके से involve नहीं होना, touch
तमाम भ्रम छोड़ने पड़ेंगे। यह भ्रम छोड़ने की नहीं होना। physically अपने sensual
साधना का नाम है - ब्रह्मचर्य की साधना pleasure के लिए किसी के साथ में इस
और यह साधना आपके किसी भी स्तर पर तरीके से घुलना मिलना नहीं। यह उसके
आपके द्वारा प्रारं भ की जा सकती है । मैं अन्दर एक व्रत रहे गा तो उससे बचा रहे गा।
कहता हूँ कि बच्चों को यह साधना पहले एक emotions तो आएँगे लेकिन वह उनको
शारीरिक स्तर पर प्रारं भ कराई जानी चाहिए। control करेगा क्योंकि उसके अन्दर एक
एक शारीरिक ब्रह्मचर्य है , एक मानसिक ब्र- व्रत है । शारीरिक ब्रह्मचर्य इसी का नाम है ।
ह्मचर्य है । समझ में आ रहा है ? शारीरिक केवल शरीर से ब्रह्मचर्य है । अगर व्यक्ति के
ब्रह्मचर्य क्या है ? जब तक मेरा विवाह नहीं लिए, बच्चे, बेटे, बेटी के लिए विवाह से
होता, हर बच्चे को चाहे वह बेटा हो बेटी इस पहले दिया जाए तो वह उसके ही माध्यम से
विषय में all are same. हर बेटे या बेटी अपने मानसिक ब्रह्मचर्य को भी समझ
को अपने माता-पिता के साथ में या आप सकेंगे। विवाह होने के बाद या उस स्थिति
माता-पिता‌‌के द्वारा बेटा-बेटी को किसी गुरु तक पहुँचने तक उनके अन्दर धीरे-धीरे भाव
के सानिध्य में इस तरह का एक उनके अन्दर आने लगेगा कि यह मानसिकता भी हमारे
एक व्रत दिलाना चाहिए। एक संकल्प लिए अब अच्छी नहीं, इसे भी control
दिलाना चाहिए कि जब तक यह बेटा अट्ठारह करना, इसे भी divert करना, यह उनका
वर्ष का नहीं होगा या इक्कीस वर्ष का नहीं एक मानसिक ब्रह्मचर्य की तरफ झुकाव
होगा तब तक के लिए यह किसी की किसी होगा और यह झुकाव भी तभी संभव है जब
से किसी भी तरीके का attachment नहीं उन्होंने पहले अपने आपको physically
रखेगा। उस attitude के साथ में जो उस control किया हो। लोग यह समझें पहले
lust के लिए fulfill करने के लिए हो। इस हमें अपने आपको physically control
तरीके का जो एक ब्रह्मचर्य है , यह शारीरिक करना है , emotionally-mentally
ब्रह्मचर्य भी उस बच्चे के लिए जरूरी है । उस control हम धीरे-धीरे होते चले जाएँगे।
बेटा या बेटी दोनों के हित में है , पहले यह अगर हम ज्ञान में आगे बढ़ते चले जाएँगे और
होना चाहिए। यह शारीरिक ब्रह्मचर्य होगा इस तरह की शिक्षाएँ, अगर आपको मिलने
तब मानसिक ब्रह्मचर्य की स्थिति बनेगी। लगेंगे तो आप अपने आपको भीतर से
उसके लिए control है मुझे ऐसा नहीं समझने लग जाएँगे। कहा तो बहुत कुछ जा
करना। physically मुझे किसी के साथ में सकता है लेकिन समय को भी देखना है और

228 धर्मं का मर्म


उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म

ज्यादा समझाने से भी overflow हो सकता वहाँ तक पहुँचने से अपने आपको बचाएगा,


है । इसलिए आप यह ध्यान में रखें कि यह उसी के लिए इस तरह की उपलब्धियाँ होंगे।
ब्रह्मचर्य तक पहुँचने तक सब फिसल जाते आप भी वहाँ तक पहुँचे, अपने आपको
हैं । वहाँ तक कोई नहीं पहुँचता और जो सम्भालें और सब तरह के माहौल में रहते हुए
पहुँचते हैं वे बहुत विरले होते हैं । जो फिसलने‌ भी अपने शुद्ध आत्मा की आराधना करना न
के कारण हैं वे सब आपको बता दिए हैं । जो छोड़े। महावीर भगवान की जय!

धर्मं का मर्म 229


Day - 10
आज का चिंतन - ब्रह्मचर्य को समझने का प्रयास
आज हम उत्तम ब्रह्म- पुरुष के भाव में रहें ।
चर्य का पालन करने के 4. एक दिन के लिए भाव करें कि मेरा इनसे
लिए अभ्यास करेंगे। आज कोई संबंध नहीं है । हम इनके बिना भी
आपका task है — खुश हैं ।
1. हम स्वयं को 5. Opposite gender में अपने जैसी
sensual pleasure की जो चीजें हैं आत्मा का आभास करें।
उनसे दूर रखेंगे। 6. शरीर के attraction में रमण न करें।
2. आज किसी भी opposite gender 7. अपनी ब्रह्म में यानी आत्मा में रमण
के प्रति किसी भी तरह का attraction करे।
मन में नहीं लाएँगे।
8. अपनी आंखें बंद करके अपने ज्ञाता
3. एक दिन पति, पत्नी को देखकर और दृष्टा स्वभाव में अधिक से अधिक समय
पत्नी, पति को देखकर सामान्य स्त्री- निकालें।

आज का एहसास

• अपनी आत्मा पर मदद मिलेगी।


focus करने से शरीर के • इस अभ्यास से उत्तम ब्रह्मचर्य को प्राप्त
प्रति आकर्षण से दूर होने में करने के लिए बहुत बड़ी साधना होगी।

स्व-संवेदन

• क्या आप सामने वाले को gender • क्या आप अपने ज्ञाता दृष्टा भाव को


से परे एक आत्मा के रूप में देखने में महसूस कर पाए? Yes / no / little
सफल हुए? Yes / no / little bit bit

230 धर्मं का मर्म

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