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Dharm Ka Marm
Dharm Ka Marm
माघ सुदी पूर्णिमा, वीर नि. सं. 2548, सन् 2022 के पावन अवसर पर प्रकाशित
धर्म का मर्म
प्रकाशक
आचार्य अकलंकदेव जैन विद्या शोधालय समिति
109, शिवाजी पार्क, देवास रोड, उज्जैन
धर्मं का मर्म 1
कृति : धर्म का मर्म (अपने को समझें)
आशीर्वाद : परम पूज्य सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
प्रवचन : अर्हं योग प्रणेता मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महाराज
प्रवचन स्थान : अर्हं स्वधर्म शिविर 2020, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
संयोजन : टीम अर्हं
मूल्य : स्वाध्याय एवं भक्ति (पुनः प्रकाशन हे तु रुपए 150/- मात्र)
संस्करण : प्रथम, 2022
अधिकार : © सर्वाधिकार सुरक्षित
किसी को भी प्रकाशित करने का अधिकार है । किताब का स्वरुप, ग्रन्थ नाम, लेखक
संपादक एवं स्तर परिवर्तन न करें । प्रकाशन से पहले लिखित अनुमति आवश्यक है ।
प्रकाशक : आचार्य अकलंक देव जैन विद्या शोधालय समिति
109, शिवाजी पार्क, देवास रोड, उज्जैन मोबाइल: 9425092483
आईएसबीएन : 978-81-953579-8-7
पुण्यार्जक : श्री महक जैन, श्रीमती निधि जैन, एरिष जैन, एरा जैन गुड़गाँव
(मुनि श्री के 48वें अवतरण दिवस के उपलक्ष में और
पिता श्री व्रती धर्मचन्द्र जैन के 70वें जन्म दिवस के उपलक्ष में)
प्राप्ति स्थान :
1.आचार्य अकलंक देव जैन विद्या शोधालय समिति
109, शिवाजी पार्क, देवास रोड, उज्जैन
मोबाइल: 9425092483
2. आर्हत विद्या प्रकाशन गोटे गाँव
मोबाइल: 9425837476
मुद्रक : अरिहं त ग्राफिक्स, दिल्ली
मोबाइल- 9958819046
परम पूज्य सन्त शिरोमणि आचार्य
श्री 108 विद्यासागर जी महाराज
अर्हं योग प्रणेता मुनि श्री 108 प्रणम्यसागर जी महाराज
धर्मं का मर्म 7
आत्मा की योग्यता बढ़ाने के लिए अपनी आत्मा में जो मान कषाय बैठी है उसको ढीला
करना, उसको हल्का करना और जो मान है उसको कम करके अपने अन्दर कोमलता लाना,
मृदुता का भाव लाना ही उत्तम मार्दव है । माटी के उदाहरण से यह समझाया गया कि जैसे-
जैसे मिट्टी में पानी डाला जाता है , उसको मसला जाता है , रौंदा जाता है उतना ही उस मिट्टी
के अन्दर एक योग्यता आ जाती है फिर उस मिट्टी को आप जैसे चाहो वैसे करना, वैसी ही
हो जाएगी। इसी प्रकार थोड़ा समर्पित भाव में आओगे तब अन्दर एक झुकने का भाव
आएगा, झुकने का भाव आएगा तभी कुछ सीख पाओगे।
मन-वचन-काय की सरलता ही उत्तम आर्जव है । छल, कपट, दिखावा मायाचार है ।
किसी को धोखा नहीं देना, बहाने बनाकर आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करना, अगर यह
सीख आ गई तो बड़े अच्छे ढं ग से ऋजुता धर्म का पालन हो पायेगा। ऋजु बनने का मतलब
ही है - सरल हो जाना और सरल होने का मतलब- भीतर से ईमानदार हो जाना है ।
शुचिता- लोभ का अभाव। “शुचोर्भावः शौचः” जो आंतरिक शुचिता या आंतरिक
निर्मलता का भाव है वही उत्तम शौच धर्म है । हर आत्मा में दो गुण क्षमा और मृदुता आसानी
से आ जाते है लेकिन ऋजुता और शुचिता आने में समय लगता है । क्योंकि माया का कारण
है - लोभ और लोभ के कारण ही होती है - माया। आत्मा तो सुख चाहती है और लोभ कषाय
दुःख देने का काम करती है ।
‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
क्रोध-मान-माया-लोभ का उपशमन होने पर ही सत्यता को जाना जाता है । सत्य को
समझने वाला कभी भी हर्ष-विषाद नहीं करता। उत्तम सत्य के दिन यह समझना जरूरी है
कि जिसका मन जितना सच्चा होगा उसका जीवन भी उतना सच्चा होगा।
किसी भी तरह की उन्नति के लिए उत्तम संयम होना बहुत आवश्यक है । सत्य का संयम
के साथ में एक बहुत बड़ा सम्बन्ध है । सत्य जब भी हमारे जीवन में उतरेगा, संयम की
साधना से उतरेगा। हमें संयम से घबराना नहीं है । संयम का मतलब है - हर चीज को
बिल्कुल सही ढं ग से चलाना है ।
आत्मा ज्ञान स्वभावी है । हमें उस आत्मा के ज्ञान स्वभाव को प्राप्त करने के लिए उस
ज्ञान को और शुद्ध बनाने के लिए उत्तम तप करना चाहिए। तप का मतलब इच्छाओं को
नियंत्रित कर लेना। संयम के साथ में इच्छाएँ उत्पन्न होंगी लेकिन हमें उनको नियन्त्रित करना
है । ‘We Have To Overcome Our Desire’
राग ही सबसे बड़ी बुराई है । उस राग को छोड़ने के लिए जो हमारे अन्दर पुरुषार्थ होगा,
वह हमारा वास्तविक उत्तम त्याग कहलाता है । त्याग दान नहीं होता है । त्याग वस्तुतः अपनी
बुराइयों का, अपने दोषों का, अपनी बुरी आदतों का किया जाता है और दान अच्छी चीजों
का दिया जाता है । “To Give And To Give Up”
जब माटी अपना सर्वस्व त्याग कर देती है , तो उसके बाद में उसके अन्दर एक भाव आता
है कि जो छूटा था, छूट गया है वह मेरा नहीं था, नहीं है और देखा जाए तो वास्तव में वही
छूटता है , जो मेरा नहीं होता है । अकिंचन का मतलब होता है - किंचन भी मेरा नहीं है ।
ब्रह्मचर्य का मतलब है सब कुछ देखते हुए भी आत्मनियंत्रण रखना। ‘उत्तम ब्रह्मचर्य’ को
वही उपलब्ध होगा जिसके अन्दर ज्ञान और वैराग्य दृढ़ होगा। देहासक्ति से ऊपर उठना ही
ब्रह्मचर्य है । पाँचों इन्द्रिय व मन के नियंत्रण का नाम ब्रह्मचर्य है ।
यह एक प्रवचन संकलन है । मुनि श्री के प्रवचनों का संपादन करते समय उनकी कथन
शैली का यथासंभव ध्यान रखा गया है ।
इस पुस्तक के प्रकाशन में जो त्रुटियाँ हमारी दृष्टि में आने से रह गयी हैं उनकी ओर
हमारा ध्यान आकर्षित करें। टीम अर्हं इस हे तु आपके सहयोग का स्वागत करती है ।
-टीम अर्हं
धर्मं का मर्म 9
अनुक्रमणिका
10 धर्मं का मर्म
Day-1 : उत्तम क्षमा धर्म
आत्मा की शक्ति को पहचानने का मार्ग है धर्म
आज अर्हं स्वधर्म शिविर के माध्यम से किसी न किसी क्रिया-काण्ड में उलझ जाती
दशलक्षण धर्म के पर्यूषण पर्व की इस पावन है । जब भी हम वस्तु-स्थिति का विचार करेंगे
बेला पर आप लोग अपनी आत्मा के स्वभाव तो हमें पता पड़ेगा कि तीर्थंकरों ने कहा है
को जानने के लिए, अपने स्वधर्म को समझने कि सकल लोक का हित करने वाला यदि
के लिए और अपने जीवन में एक मंगलमय कुछ है तो वह यह क्षमा आदि दस धर्म हैं ।
वातावरण हमेशा के लिए उत्पन्न करने के जिसका पालन करने से प्रत्येक प्राणी को,
लिए धर्म की शरण में आ रहे हैं । वस्तुतः संसार की इस समस्त मानव जाति को सुख
धर्म ही वह शरण है जिसके माध्यम से हम मिले। प्रत्येक प्राणी को अगर दुःख होता है ,
अपनी अन्तरात्मा में अपनी ही शक्तियों को तो सबसे पहला एक भाव जो सामान्य रूप
समझ पाते हैं , पहचान पाते हैं । ज्यादातर से सबके अन्दर रहता है , वह क्रोध का भाव
जब भी धर्म की बात आती है , हमारी दृष्टि होता है । इसलिए क्रोध का जो विपरीत है ,
मन्दिरों पर जाती है । हमारी दृष्टि पूजा आदि वह क्षमा धर्म है ।
क्रियाओं पर जाती है , हमारी दृष्टि बाहर के
धर्मं का मर्म 11
उत्तम क्षमा धर्म
12 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
धर्मं का मर्म 13
उत्तम क्षमा धर्म
14 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
धर्मं का मर्म 15
उत्तम क्षमा धर्म
में थी, वर्धमान महावीर भगवान में थी। ऐसी होता यह है कि हम भगवान के गुणगान करते
शक्ति भी आप में आ सकती है । हम याद हुए भी कभी यह भाव नहीं कर पाते कि हमें
करते हैं उन तीर्थंकरों को जो क्षमा भाव की भगवान के इस तरीके के गुण हमारे अन्दर भी
मूर्ति है । उन साधुओं को जो हमेशा बड़े-बड़े आएँ और हमें भी वह गुण मिले, जो भगवान
उपसर्गों को सहकर के भी क्षमा भाव धारण ने प्राप्त किये हैं । सभी पार्श्वनाथ भगवान की
करते हैं । क्यों याद करते हैं ? क्योंकि उनके पूजा करते हैं लेकिन पार्श्वनाथ भगवान से
अन्दर उस क्षमा का विस्तार इतना हो चुका पार्श्वनाथ भगवान जैसी क्षमा धारण करने
है कि वह अपने आप में इतने stable हो की इच्छा कितने लोग करते हैं ? कितने लोग
गए हैं कि वह अपनी ही स्थिति में हमेशा भगवान पार्श्वनाथ की पूजा करते हुए महसूस
बने रहते हैं । उन्हें अपनी स्थिति से हटना करते हैं कि हमें भी आपकी तरह बिलकुल
नहीं होता और वह हमेशा क्षमा स्वभाव में ऐसे ही क्षमावान बनना है कि कोई भी अगर
ही स्थित हो गए हैं । क्रोध तो उन्हें कोई करा हमारे ऊपर कितनी भी गालियाँ दे, कितना
ही नहीं सकता, इतना वे independent ही हमारा शरीर छलनी-छलनी कर दे तो भी
हो चुके हैं । मतलब अपने स्वयं में स्थित हो हमें सोचना भी नहीं कि इसने ऐसा किया है ।
गए हैं । इसे बोलते हैं - ‘stay in self’, इसको बोलते है - ‘उत्तम क्षमा’ ‘उत्तम’ शब्द
अपने में स्थित हो जाना। यह हमारा goal जो लगा है न, वह बहुत ही last stage के
है , जो हमें भगवान को देखने से मिलता है । लिए है । supreme forgiveness इसी
वीतराग जिनेन्द्र भगवान को मन्दिर में देखने को बोलते हैं । वह उत्तम क्षमा जिसमें कि
से हमें क्षमा याद आती है । अगर हमें पता अगर कोई हमारा शरीर भी नष्ट कर दे तो भी
होगा कि यह क्षमा होती है और इस तरह से हम उसके बारे में क्षणभर भी विचार न करें
यह वीतरागता की मूर्ति, क्षमा की मूर्ति है । कि इसने बहुत मेरे साथ अन्याय किया है ,
अगर हमारे ज्ञान में होगा तो हमें भगवान के गलत किया है , मेरा दुश्मन है ।
दर्शन का भी बहुत आनन्द आएगा। लेकिन
16 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
आपकी चेतना को छू सके, सिवाय आपके। समय पर हमको यहाँ होना चाहिए। अगर
सुन रहे हैं ? उसी चेतना का यह धर्म है - क्षमा हम उसी time पर नहीं पहुँच पाए या उस
धर्म। कहाँ से हम गलती करना शुरू करते time में किसी भी तरीके का कोई भी
हैं ? हमने जिन-जिन चीजों को अपने दिमाग obstacle सामने आ गया तो उस समय पर
में set कर रखा है कि हमारे लिए यह पस- गुस्सा हमारे लिए आएगा या नहीं आएगा?
न्दीदा चीजें हैं , ये नापसन्द की चीजें हैं और समझ रहे हैं न? आप अपने घर से निकले
जब भी कभी हमारे सामने वह नापसन्द की office जाने के लिए या बच्चे निकले स्कू ल
चीजें आ जाती हैं , हम irritate हो जाते हैं । जाने के लिए, अपनी दुकान पर जाने के
अब आप इस बात को ध्यान में रखते हुए, लिए आपने सोचा मैं अभी बीस मिनिट में
दिन भर आपको और हमेशा आपको सोचना यहाँ से वहाँ पहुँच जाऊँगा। आपने mind
है यदि आप उस क्रोध को control करना set कर लिया है , time set कर लिया
चाहते हैं कि आखिर आज अगर हमें किसी और time आपके mind में set हो गया।
से गुस्सा आया, किसी बात पर गुस्सा आया रास्ते में जाम मिला, कोई दूसरा काफिला
तो हम भीतर से सोचे, एक deep feeling आ रहा था, कोई incident हो चुका था,
इस बात की लाएँ कि क्या हमारे इस क्रोध भीड़ लगी थी। आपके लिए वहाँ पर मान लो
के पीछे वही चीज है कि नहीं। हमारा mind दस मिनिट waste हो गए और आपकी जो
set है । वह mindset किसी भी तरीके Speed थी वह सारी की सारी disturb हो
से हो सकता है । मान लो अगर हमने अपने गयी। आप जिस time तक वहाँ पहुँचने के
मन में time set कर लिया है , हमको इतने लिए अपना mindset किये थे, वहाँ नहीं
time पर यह चीज चाहिए, इतने समय पर पहुँच पा रहे हो। अब आप सोचो, आप क्या
यह चीज हमारे सामने होनी चाहिए, इतने करेंगे?
धर्मं का मर्म 17
उत्तम क्षमा धर्म
कोई ऐसी बहुत आपत्ति आने वाली नहीं blissful रहें गे। otherwise आपकी
है । अगर कहीं पर भी पहुँचने का हमने कोई angry nature, आपके भीतर का वह
appointment, कोई time भी दिया वातावरण आपको इतना क्षुब्ध कर सकता
है , तो भी आदमी को अगर हम इस तरीके है कि जो चीजें आपके सामने अच्छी भी
की कोई बात बताएँगे कि भाई रास्ते में इस हो उन्हें भी आप देख न पाएँ। हो सकता है
तरीके का व्यवधान था, इस कारण से हमें उस भीड़ में भी आपको कुछ अच्छा मिल
आने में देर हो गई तो आदमी, आदमी होता जाए। कोई आपका दोस्त मिल जाए, कोई
है । हर आदमी, आदमी की बात समझता है । अच्छी बात सीखने को मिल जाए। लेकिन
समझ आ रहा है ? अगर आप अपने mind जब आप उस मूड में होंगे ही नहीं तो आपके
को उस समय पर इस तरीके से समझा सामने कुछ भी अच्छाईयाँ आएँगी आप उसे
पाए तो आप भीतर से peaceful रहें गे, देख ही नहीं पाएँगे। फिर क्या करना है ?
18 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
धर्मं का मर्म 19
उत्तम क्षमा धर्म
अपने आप में अन्दर anger नहीं लाना कि नहीं की। अगर हम practice करेंगे तो ही
हम उसके साथ में इतना गलत behave हम बड़ी-बड़ी इन दुर्घटनाओं से अपने आप
करे कि हम उसकी जिं दगी समाप्त कर दे। को बचा सकेंगे। नतीजा क्या निकलेगा?
यह छोटी-छोटी बातें जब हमारे control अगर मान लो आपने अपने मन की कर ली
में नहीं आती तब बड़ी-बड़ी ऐसी घटनाएँ भी और उसका murder कर दिया। अब क्या
हमसे हो जाती हैं । आप यह सोचते हो हम हो गया? आपकी life हमेशा के लिए खराब
ऐसा नहीं करेंगे। वह भी ऐसा ही सोचता हो गई। आपकी सारी prestige, आपकी
था जिसने किया है और कहा कि वह इतना डॉक्टरी सब कुछ बेकार हो गई। अब आप
गुस्सा नहीं भी करता है लेकिन अपने गुस्से अपने जीवन में क्या करोगे? किसके कारण
को समझ नहीं पाया। हमने अपने anger से? एक गुस्से को आप control नहीं कर
को control करने की कभी practice पाए।
20 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
ये overage का धर्म नहीं है , ये young अब एक साथ कहीं भी तीर मार लेंगे, कुछ
age का ही धर्म है । young age से ही नहीं होता है । हर चीज की practice करनी
आपको सीखना शुरू करना होगा, इसी उम्र पड़ती है । तीर चलाने की भी practice
में आप अपने आप में control करना शुरू करनी पड़ती है । तब आदमी एक अच्छा
करोगे तब लंबे समय में जा कर के आपको निशानेबाज बन पाता है । अतः आपको
कुछ success मिलेगी। आप यह सोचोगे practice करना है ।
ऐसी चीज को पैदा ही क्यों करें जिसको पैदा करने के बाद में पछतावा करना पड़े
जो छोटे -छोटे नहीं बख्शता, गुस्सा ऐसी चीज है । समझ
गुस्से हमारे अन्दर आते आ रहा है ? बाप को बेटे के प्रति गुस्सा आता
हैं , हम उन्हें ignore है , तो बेटे को भी मार डालता है और बेटे
कर देते हैं । यह तो को गुस्सा आया तो बाप का भी murder
थोड़ा-थोड़ा होता है ! कर देता है । आप इसको किसी का रिश्तेदार
होता कुछ नहीं है । मानना ही नहीं, गुस्सा किसी का रिश्तेदार
आप उसको भी ध्यान ही नहीं है । यह एक ऐसी dangerous
से देखें। वही छोटा बहुत बड़ा बन जाता है । चीज है जो आपके अन्दर है और अगर वह
हम भीतर-भीतर कई तरह से घुट रहे होते आपके अन्दर बहुत देर तक बैठी रहती है , तो
हैं । हम अपनी बातों को दूसरे के सामने कह वह अपने साथ में रहने वाले माता, पिता,
नहीं पाते हैं । हम अपने माता-पिता को भी पति, पत्नी, भाई, बहन किसी के लिए भी
बहुत-सी बातें नहीं बता पाते हैं लेकिन अब dangerous हो सकती है । एक ऐसी वि-
भीतर-भीतर दुःखी हो रहे होते हैं । क्यों दुःखी स्फोटक सामग्री आप के अन्दर रखी हुई है
हो रहे होते हैं ? अपने गुस्से के कारण दुःखी कि वह विस्फोट कभी भी हो जाएगा। वह
हो रहे होते हैं । जब गुस्सा आ जाता है , तो किसी का भी विनाश कर सकता है । इसलिए
आप यह मान कर रहना कि वह किसी भी सब को हमेशा यह ध्यान रखना है । अगर
सम्बन्धी को, कितना ही अच्छा अपना प्रिय कभी विस्फोट होता है , मान लो हम विस्फोट
हो, वह किसी को नहीं बख्शता है । पति को कर भी जाते हैं , control में नहीं भी रहता
पत्नी के ऊपर गुस्सा आता है , तो पत्नी को भी है , तो उसके बाद में realize जरूर करना
मार डालता है , पत्नी को गुस्सा आता है , तो है । आज हमने गुस्सा कर तो दिया लेकिन
पति को भी मार डालती है । कोई किसी को क्या वास्तव में वजह थी गुस्सा करने की
धर्मं का मर्म 21
उत्तम क्षमा धर्म
या केवल हमारी अपनी mind setting आता है , तो हम इसको create क्यों करते
के कारण उससे गुस्सा हुआ? हम अपने जो हैं , यह सोचना है । समझ में आ रहा है ?
कुछ भी likes अपने अन्दर set किये हुए हम इसको अपने भीतर पैदा क्यों करते हैं ?
थे, वे complete नहीं हुए इसलिए गुस्सा अगर हम पैदा करने के बाद में पछताते हैं तो
हुआ। यह आपको एक बार भीतर से सोचना इसका मतलब है ऐसी चीज को पैदा ही क्यों
है। अगर आप इतना सोचेंगे तो जो वास्तव करें, जिसको पैदा करने के बाद में पछतावा
में root cause है वह हिलने लगेगा। वह करना पड़े। आज तक किसी को गुस्सा करने
आपकी आत्मा में जो जड़ें फै लाए हुए बैठा है , के बाद में अच्छी feeling मिली है ? चलो!
वे जड़ें उखड़ने लगेंगी और अगर आप कभी आज मैंने बहुत अच्छा गुस्सा कर दिया। अब
भी विचार नहीं करेंगे तो वह जड़ें बढ़ती रहे गी। उसको समझ में आएगा, आज मैं बहुत खुश
वह धीरे-धीरे ऐसा वृक्ष बन जाएगा कि जब हूँ। ऐसा होता है कभी!, अगर आप अपने
कभी आपका उबाल बाहर आएगा तो आप sense में होंगे तो आपको गुस्सा करने
बहुत बड़ा ऐसे ही कुछ दुर्घटना कर चुके के बाद में पछतावा आपके अन्दर आएगा,
होंगे कि उससे आपको जिं दगी भर पछतावा बहुत देर तक आपका दिमाग disturb
रहे गा। इसलिए हर किसी को यह ध्यान में रहे गा, बहुत देर तक आप अपने common
रखना है कि यह गुस्सा हमारा स्वभाव नहीं sense को भी खो चुके होंगे। इसका मतलब
है। यह हमारे अन्दर हमेशा रहता हो, ऐसा यह है कि हम ऐसा करके सिर्फ पछताते हैं ।
भी नहीं है । लेकिन दूसरे के कारण से यदि
22 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
धर्मं का मर्म 23
उत्तम क्षमा धर्म
24 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
होने तक पहुँच गयी। सुन रहे है ? बात कहाँ रखनी पड़ेगी कि बात आगे बढ़ रही है तो वह
से शुरू हुई थी? एक छोटी-सी बात से शुरू किस दिशा में जा रही है । जैसे ही answer
हुई थी। अगर हमने वह संवाद शुरू किया है , मिला, answer मिलने के बाद में हमें उसी
कोई चीज हमने शुरू की है , बातचीत शुरू समय पर सोच ले कि हमें अब क्या करना?
की है , तो हमें उसमें भी इतनी awareness
धर्मं का मर्म 25
उत्तम क्षमा धर्म
26 धर्मं का मर्म
उत्तम क्षमा धर्म
से कभी शक्तिमान नहीं बनते। अगर हम likeness बढ़ानी चाहिए। हमें क्या पसन्द
आपसे कुछ कह देते हैं तो आपको सहन कर करना चाहिए? हमें तो जहाँ क्षमा दिखेगी,
लेना है । गुस्सा नहीं करना है और आप भी शान्ति दिखेगी, सहनशीलता दिखेगी हम
अगर हमसे कुछ कह देते हो तो हम भी सहन उसको पसन्द करेंगे। अपनी पसन्द वह
कर लेंगे, हम भी गुस्सा नहीं करेंगे। इस तरह बनाओ। जब हमारी likes इतनी अच्छी हो
से जब दोनों शक्तिमान बन जाएँगे तो फिर जाएँगी कि हमें क्षमा पसन्द है , क्रोध पसन्द
हमें शक्तिमान serial देखने की कोई जरूरत नहीं है , तो आपके अन्दर किसी भी तरीके का
नहीं पड़ेगी। लेकिन हमारी आदतें इतनी गलत mindset होगा, वह ultimately उसी में
पड़ी हैं , हम हमेशा angry person को ही convert हो जाएगा कि नहीं! जैसे ही क्रोध
like करते हैं । इसलिए कुछ हीरो का title आने वाला होगा, आपको क्या पसन्द है ?
ही लग चुका है - angry man. क्यों ऐसा mindset जो था वह था लेकिन हमें पसन्द
होता है ? जिस चीज को हम like कर रहे हैं , नहीं है । अगर हमारे सामने वह क्रोध आ
इसका मतलब है कि हमारे अन्दर भी वह रहा है , तो पसन्द क्या है ? क्षमा पसन्द है ।
चीज है तभी हम उस चीज को like कर रहे तो धर्म को like करो। जो अधर्म है - क्रोध,
हैं । हमें ऐसे न तो shot like करनी चाहिए, उसे dislike करो और उसके लिए हमारा
न हमें ऐसी फिल्में like करनी चाहिए, न किसी भी तरीके का mind अगर हमें अपना
हमें इस तरीके की कोई भी चीजें अगर हमें change करना पड़े तो उसके लिए हमेशा
कोई देता है , तो हमें उसके लिए अपनी तैयार रहो।
धर्मं का मर्म 27
Day 01
आज का चिंतन: अपने क्रोध भाव को पहचाने।
आज आपको पूरे • कितनी बार क्रोध आया?
दिन में यह निरीक्षण • कब कब, किस स्थिति में आया?
करना है कि दिन भर • किसी व्यक्ति के प्रति आया?
में आपको:
• किस वजह से आया?
क्रम संख्या क्रोध आया क्रोध की स्थिति क्रोध का कारण क्रोध के भाव में
कितनी देर तक
बने रहे ?
28 धर्मं का मर्म
आज का एहसास
1.दूसरा व्यक्ति / 5. क्रोध के कारण पर focus करने से
स्थिति आपके हिसाब पता पड़ेगा कि यह create किया हुआ
से नहीं चलेंगे। है , अन्दर नहीं है ।
2. उन पर नियं- 6. अपने हाथ में अपना remote लो और
त्रण करने की कोशिश channel बदलो।
न करें। 7. अपने आप को स्वतंत्र बनाओ।
3. आप अपने क्रोध में कमी नहीं कर 8. जैसे ही लगे हमारी यह मानसिकता
पाएँगे अगर आप दूसरों को सुधारने की क्रोध का कारण है , तुरन्त अपनी मान-
सोचेंगे। सिकता को बदले।
4. आप दूसरों से अपेक्षा रखना छोड़ दे कि 9. आप देखेंगे क्रोध शांत हो रहा है ।
जैसा मैं कहूँ वह वैसा ही करें।
स्व-संवेदन
क्या आप अपने mindset को बदल little bit __________
पाए?
Yes______________
No______________
धर्मं का मर्म 29
Day-2: उत्तम मार्दव धर्म
धर्म धारण करने के लिए भी योग्यता आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए अपनी आत्मा
की जरूरत होती है के अन्दर परमात्म तत्त्व को प्रकट करने के
धर्म का मर्म जानने के लिए आज आपके लिए भी हमारी आत्मा में कुछ योग्यता होनी
सामने दूसरा दिवस है जब हमें अपनी आत्मा चाहिए। उसी योग्यता का विचार किया
में धर्म को और अधिक उत्पन्न करने के लिए, जा रहा है । कल आपको क्षमा के माध्यम
धर्म को और अधिक भीतर से धारण करने के से बताया था कि सबसे पहले हमें अपनी
लिए अपनी योग्यता का विस्तार करना है । योग्यता को बढ़ाने के लिए क्षमा भाव धारण
क्योंकि किसी भी चीज को जब धारण किया करना है । क्षमा भाव धारण करने से हमारी
जाता है , तो उसके लिए योग्य भी बनना आत्मा में जो एक उबाल है , हमारी आत्मा में
पड़ता है । योग्यता आए बिना हम किसी जो एक उद्वेग है , हमारी आत्मा में जो एक
भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं । अपनी गर्मी है , वह थोड़ी शान्त होती है ।
30 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
वपन हो सकेगा, न तो कोई बीज डाला जा अच्छा बनाना है और उसको मृदु बनाना है ,
सकेगा और न ही वह मिट्टी कोई रूप धारण ठण्डा बनाना है । अनादि काल से दुःख के
कर सकेगी। कारण चार गतियों में भटकते-भटकते वह
आत्मा की सफाई सहनशील और मृदु बहुत तप्त हो गयी है । उसको पहले शीतल
बन कर होगी बनाना, सहनशील बनाना। जब वह क्षमा
आज का दिन जो आपको कुछ और धारण कर ली तो थोड़ी सहनशील हो गई।
अधिक अपनी योग्यता को बढ़ाने के लिए है , जब सहनशील होगी तभी उस पर हम कुछ
वह योग्यता है कि हमारी आत्मा में जो मान कर पाएँगे क्योंकि अब जो हम कुछ करने
कषाय बैठी है उसको ढीला करना, उसको जा रहे हैं वह तभी सम्भव है जब उसके अन्दर
हल्का करना और जो मान है उसको कम उसको सहने की शक्ति होगी। मिट्टी के ऊपर
करके अपने अन्दर कोमलता लाना, मृदुता जो कुछ भी फालतू की चीजें थी, waste
का भाव लाना। हमारी आत्मा भी एक भूमि material जो कुछ भी था उसको हटाना
है। उस भूमि पर हमने अनादि काल से और हटाने के बाद में मिट्टी के अन्दर एक
कषायों के माध्यम से अनेक तरह की दुःख शक्ति पैदा करना और उसे तैयार करना कि
रूपी फसलों को बोया है । अब हमें वह सब अब जो कुछ भी होगा उसे सहन करना है ,
फसलें काटना है , सब दुःख हमें दूर करना बीच में अब बोलना नहीं है । वह कैसे सहन
है । अपनी आत्मा की भूमि को साफ सुथरा, कर पाएगी?
धर्मं का मर्म 31
उत्तम मार्दव धर्म
के ऊपर किसी भी बीज का होना सम्भव रगड़ा भी हो, उसके ऊपर कोई हल भी चला
नहीं है । कठोर मिट्टी में अभी कोई बीज नहीं दिया हो तो भी वह मिट्टी उफ न करे। यह
बोया जा सकता है । मिट्टी में तभी बीज बोना क्या हो रहा है ? हमारी आत्मा को और समर्थ
सम्भव है जब उस मिट्टी को हमने कोमल बनाया जा रहा है । एक तो हमें कुछ सहने की
बनाया हो। उसमें हमने पानी मिलाया हो सामर्थ्य आयी और अब हमने संकल्प लिया
और पानी से उसको सिं चित कर के हमने है गुस्सा नहीं करेंगे।
उसको कूटा भी हो, कई तरीके से उसको
आत्मसमर्पण की भावना
now second step क्या होगा? ऊपर हल चलाया जा रहा है , हमको कूटा
जब हम गुस्सा नहीं करेंगे तो अब हमें करना जा रहा है , हमको पीटा जा रहा है , पानी
क्या? अब दूसरा step है कि अब हमें अपने मिलाया जा रहा है , रौंदा जा रहा है । अगर
आपको समर्पित कर देना है । किस लिए? उस समय पर यह सब thinking आई तो
कुछ होने के लिए, कुछ बनने के लिए। जब मिट्टी कुछ नहीं बन पायेगी, न मिट्टी में से
समर्पित करेंगे तो समर्पित करने के बाद में कुछ बन पाएगा। समझ में आ रहा है ? मिट्टी
जिसके प्रति समर्पण हो जाता है , फिर काम भी कुछ बन पायेगी मतलब मिट्टी भी घड़ा
उसके through होगा। हमारे through बन पाएगी तो इसी condition के साथ
कुछ नहीं होगा। अब वह जो करेगा वही होगा बनेगी और मिट्टी में से कुछ वपन होगा, मिट्टी
जिसको हमने समर्पण कर दिया है और जब में से कुछ बनेगा, कोई अच्छा पौधा बनेगा,
वह समर्पण करने के बाद में वह कुछ काम कोई अच्छा वृक्ष बनेगा, बीज का वपन होगा
करेगा, जिस तरीके से मिट्टी के साथ वह तो वह भी इसी condition के साथ होगा
behave करेगा उस समय पर वह मिट्टी कि पहले तो मिट्टी में योग्यता चाहिए। आज
कुछ भी चिल्लाएगी नहीं, रोएगी नहीं। हमने हमें सीखना है । कल हमने संकल्प लिया था
आपको इसलिए तो समर्पण नहीं किया था कि हम क्रोध से रहित होंगे, सामर्थ्य अपने
कि आप हमारा यह हाल कर दोगे। हमारे अन्दर बढाएँगे।
32 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
बाहर की कोई चीज पकड़ लेते हैं तो हमारे हम जो थे वह नहीं रहते। हम अपने अहं को
अन्दर अकड़ आ जाती है । कोई भी चीज जो बढ़ाते चले जाते हैं । जो हमारा अहं है - मैं जो
हमने बाहर की पकड़ ली है और वह चीज था वह एक बाहर की तरफ बढता चला जाता
हमारी पकड़ में आ ही जाती है । हम जैसे- है । बाहर उसका expansion होता है और
जैसे छोटे से बड़े होते हैं , हम न जाने कितनी यही हम को हमारे माता-पिता सिखाते हैं
चीजों को, कितने भागों को, कितने विचारों कि अपने अहं को बढ़ाओ। वे direct नहीं
को अपने अन्दर पकड़ते चले जाते हैं और बोलते।
धर्मं का मर्म 33
उत्तम मार्दव धर्म
हो जाती है , 10th class से ही, क्या बनना समझो आप! जिस बच्चे को अभी थोड़ा सा
है ? IIT को अगर पास करना है , तो उसकी बढ़ना सा था, आगे फलना-फूलना था, इस
पहले से ही तुम्हें coaching लेना है , पहले संसार को देख कर के कुछ अपनी योग्यता-
से ही इसकी तैयारी शुरू करना है और वह ओं को develop करना था, उस बच्चे के
10th class से शुरू हो जाती है । पहले तो ऊपर यह भार सबसे पहले पड़ने लग जाता
after 12th होती थी, अब तो 10th से ही है कि तुझे यह बनना है ।
शुरू हो जाती है और तो पहले नहीं हो जाती?
34 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
जाती है ।
धर्मं का मर्म 35
उत्तम मार्दव धर्म
पैदा की जा रही है । कैसी टर्र? यह doctor डाला गया है । आपके अन्दर बचपन से नहीं
टर्र है । cricketer, actor, collector, था। आपके लोगों ने, आपके आस-पास के
receptor, minister क्या है ? एक टर्र लोगों ने, अगर आपके घर में आपके माता-
की जो आवाज आती है यह ऐसी ही है । पिता doctor हैं तो उन्होंने भर दिया आप के
पानी हुआ, मेंढक उत्पन्न हुए, टर्र टर्र शुरू अन्दर कि आपको डॉक्टर ही बनना है । अगर
हो गई। पानी चला जाएगा मेंढक उसी में माता-पिता businessman हैं और उन्हें
मर जाएँगे। उन्हें पता ही नहीं होगा कि हम लगता है कि हमारा बेटा businessman
किस लिए पैदा हुए थे? क्या किया था और न बने, servicemen बने, कोई अच्छा
क्या हमने इस टर्र-टर्र से प्राप्त कर लिया? collector बने तो उन्होंने आपके अन्दर भर
बस! यही है जो आपको लगता है कि हम दिया है क्योंकि उनकी जो अहं की पूर्ति थी
अपना बहुत कुछ career बना रहे हैं , हम वह खुद नहीं कर पाए, वह आपसे करा रहे
अपनी बहुत कुछ life को बहुत आगे बढ़ा रहे हैं । तुम बन जाओ, मैं नहीं कर पाया तो तुम
हैं । यह भी आपका एक अहं है , जो आपके कर लो, मैंने इसलिए तुमको पैदा किया है ।
subconscious mind में जबरदस्ती
अहं का भाव हमारी अलग पहचान है जो हमें दूसरों से मिलने नहीं देता
जब हमारे अन्दर इस तरह का अहं अब अपना ego create करते हैं । ego
विकसित होने लग जाता है , तो हम कभी और कोई चीज नहीं है अपनी एक अलग
भी मृदु नहीं हो सकते हैं । हमारे अन्दर कहीं identity को इस तरह से बनाना कि उसमें
न कहीं ऐसी कठोरता आ जाएगी कि हम हम यह feel करें कि यह सिर्फ मैं हूँ। मेरे
सबके साथ में घुल-मिल नहीं सकते हैं । जैसा और कोई नहीं है और मेरी जो अपनी
हम सबके साथ में एक मानवता का व्यव- identity बनी हुई है ऐसी किसी की नहीं है
हार भी नहीं कर सकते हैं । हम अपने लिए और मैं जिस तरीके से growth कर रहा हूँ
भी मृदु नहीं हो सकते हैं । अपने परिवार के वैसा कोई कर नहीं सकता है । यह सब क्या
लिए भी कोमल नहीं हो सकते हैं । यह होने है ? expansion of our ego. यह हमारे
लग जाता है , अहं हमें मिलने नहीं देता, हमें ego का एक विस्तार है । किधर की ओर है ?
दूसरों के साथ में mixup नहीं होने देता। बाहर की ओर है या ego हमने बढ़ाया तो
हमारी अपनी अलग identity है और उस किधर बढ़ाया, बाहर की ओर बढ़ाया तो क्यों
अलग identity को बनाए रखने के लिए बढ़ाया बाहर की ओर?
36 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
हमारे अन्दर quality आना ही उसके प्रति समर्पि त होना है , ego उसे रोकता है
अगर हम किसी quality को संकल्प लिखा व्यक्ति और किसी जगह पर जाने में
के साथ में अपने अन्दर ले आते हैं तो इसका तर्क नहीं करेगा लेकिन देखना अगर कभी
मतलब है हमने उसको भीतर से अपना लिया उससे कहा जाएगा धर्म का उपदेश सुन लो,
है मतलब हम उसके प्रति समर्पित हो गए आज रात्रि में भोजन मत करो, आज पानी
और वह हमें समर्पित होने नहीं देता क्योंकि छानकर पीओ, आज भगवान का मंदिर
उसे लगता है कि अगर तुम इधर चलने लगे में दर्शन कर आओ तो वह argument
तो यह बाहर का जो तुमने expansion कर करेगा। चलो! आज घूमने चलते हैं , आज
रखा है यह सब टू ट जाएगा। इसलिए पढ़ा- पार्टी करते हैं , आज वहाँ पर पिकनिक मनाने
धर्मं का मर्म 37
उत्तम मार्दव धर्म
चलते हैं , आज उस theatre में चलते हैं , हैं इसमें कोई argument नहीं होंगे। यह
नयी movie आई है , चलो! देखने चलते ऐसा क्यों होता है ?
38 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
तुरन्त आप के प्राण निकल जाएँगे और अगर का यह मर्म अब हमारे अन्दर आ रहा है । मर्म
आप ढं ग से वहाँ उस point को दबाओगे मतलब उसकी आंतरिक स्थिति है , आंतरिक
तो आपके अन्दर energy आएगी। यह मर्म भाव है । किसी भी चीज को समझने के लिए
स्थान इसका नाम है । धर्म का मर्म जानने हमारे अन्दर समर्पण का जो दूसरा step
के लिए भी हमें यही समझना पड़ेगा कि मर्म आता है , बस! यहीं से हम पीछे हट जाते हैं
वही होता है जो हमें भीतर से हमारे अन्दर एक अगर हमने स्वीकार कर लिया, गुरु ने कहा
जो चीज बन चुकी है , उसको हटाएगा। फिर है रात में भोजन नहीं करना। आप जानते हो,
दूसरी चीज आएगी तो उसमें हमें पीड़ा होगी, इतनी स्वीकारता से क्या हो जाएगा? हमारा
हम उसको सहन भी करेंगे तभी हम समझेंगे ego टू ट जाएगा।
कि अब यह भीतर से धर्म बन रहा है । धर्म
धर्मं का मर्म 39
उत्तम मार्दव धर्म
अपने आप को time से bound कर रहे हैं । हो। पढ़ाने वाला teacher पढ़ाए न पढ़ाए,
हम हर तरीके की condition जो सामने तुमको मारे, तुमसे कुछ भी गलत बोले, कुछ
वाले से दी जा रही है , हम उसको follow भी करें तुम्हें सब सहन करना पड़ेगा क्योंकि
करने के लिए बिल्कुल prepared हैं । तुमने अपने आपको एक साल के लिए
उसके बाद में आप एक साल में, जो हो सो bound कर लिया।
40 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
धर्मं का मर्म 41
उत्तम मार्दव धर्म
42 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
धर्मं का मर्म 43
उत्तम मार्दव धर्म
अगर जानते हैं तो उसी को हम focus करें ब्रह्मचारी हूँ यह अपने स्वाभिमान की चीजें
और उसी पर हम अपने आप को टिकाए रखें हैं । इस स्वाभिमान को आपको बना कर
चाहे उसके लिए कितनी कष्ट हमें क्यों न रखना है । लेकिन जो क्षणिक चीजें हैं जिन
सहने पड़े, यह हमारा स्वाभिमान होगा। चीजों से हमारे अन्दर मद पैदा हो जाता है ,
स्वाभिमान में एक देश भक्ति का भी स्वाभि- हमारी बुद्धि भ्रष्ट होने लग जाती है ऐसी चीजों
मान होता है , कुल का भी स्वाभिमान होता के प्रति अगर हम अपने आपको ज्यादा
है , धर्म का भी स्वाभिमान होता है , अपने जोड़ते हैं तो वह हमारा अभिमान बन जाता
गुणों के लिए भी अपना स्वाभिमान होता है है ।
कि मैं चरित्रवान हूँ, मैं सदाचारी रही हूँ, मैं
44 धर्मं का मर्म
उत्तम मार्दव धर्म
धर्मं का मर्म 45
उत्तम मार्दव धर्म
time ही नहीं मिलता। ‘अर्हं मतलब अपनी क्या हूँ? और मैं क्या रहूँगा? वही मैं हूँ। उस I
शुद्ध quality, अपनी शुद्ध चेतना, अपने का विस्तार करना है । जो I इधर-उधर फै ल
शुद्ध विचार, अपना शुद्ध भाव’ इसका नाम गई तो वह तो ego बन गई और जब वही
है- अर्हं । जो भी चीजें purity से जुड़ी हुई हैं ‘I’ भीतर विस्तार को प्राप्त हो गई और उससे
वह सब अर्हं के अन्दर include होती चली जब हमारा उठाव भावों में होने लगा तो वह
जाती हैं । जब हम अर्हं से जोड़ते हैं इसका हमको ऊपर की ओर ले जाएगी। वह अर्हं
मतलब है कि हम अपना अहं तो बढ़ा रहे हैं की journey होगी और उसी से हमारी
लेकिन जो अपना original ‘I’ है , I! क्या आत्मा ऊपर उठे गी। वह कौन सी ‘I’ है ?
है ? मैं क्या हूँ? सबसे पहले मैं क्या था? मैं
46 धर्मं का मर्म
Day 02
आज का चिंतन : अपने अंदर के मान भाव को समझें
आज आपके धर्म सकता हूँ।
का दूसरा दिन है और 4. इस चीज को आपको feel करना है कि
इसे उत्तम मार्दव धर्म मैं कब-कब अपने मैं को इन सब चीजों
कहते हैं । आज इस से जोड़-जोड़ करके विशेष भाव में आ
मार्दव धर्म को दिनभर जाता हूँ और उस विशेष भाव के कारण
जियें। इसके लिए से मैं अपने अहं को फै लाता हूँ कि मैं यह
आपको एक छोटा सा भी हूँ, मैं यह भी हूँ, मैं यह भी हूँ।
task करना है । आपको दिनभर यह महसूस 5. आप यह विचार लाएँ कि
करना है :
• यह मेरा नहीं है ।
1. हमने अपने अहं को किन-किन चीजों
• यह मैं नहीं हूँ।
से जोड़ रखा है ?
2. आपके घर में अच्छा-अच्छा सामान • इसके बिना भी मैं हूँ।
रखा है आप उनमें भी अपने आप को • जो हमने यह मैं और अहं का विस्तार
जोड़ रहे हैं यह मेरा है । कर रखा है इस विस्तार को आज हमें
3. किन-किन चीजों के बिना भी मैं रह भीतर से कम करना है कि यह मैं नहीं
हूँ।
धर्मं का मर्म 47
• लेनदार के सामने अलग हमारा अहं कुछ-कुछ कहता है ,
• देनदार के सामने उसको आज दिन भर realise करना है यही
यह जो अलग-अलग समय पर अलग- आज का task है ।
s.no मेरेपन का किसके प्रति विशेष भाव में
भाव/ Situation/person/ मैं कितनी देर
तक बना रहा?
विशेष भाव things/ बिना किसी बाहरी
आया परिस्थितियों के
आज का एहसास
1. इसके सामने होने था न! यह इतने सारे changes क्यों
पर मैं अपने आपको हो रहे हैं ?
ऐसा क्यों मान रहा हूँ? 4. इस अहं की feeling को हमें समझना
बस इतना आप भीतर है । यह हमारी feeling आज कुछ
से विचार करें। control हो रही है या नहीं?
2. यह जब तक चीज 5. अगर आप उस विशेष भाव को पकड़
सामने नहीं थी तब तक पाए तो आप सफल कहलायेंगे।
ऐसी feeling नहीं थी लेकिन जैसे ही 6. आप समझ पायेंगे ‘मान’ मतलब
वह सामने आई तो मैं भी ऐसा हो गया। अकड़ और यह अकड़ हमारी कितनी
क्यों? बार कितने लोगों के सामने आती है ।
3. यह क्या हो रहा है ? मैं तो आखिर वही 7. जब आप समझना शुरू कर देंगे तो इस
48 धर्मं का मर्म
मान पर आपका अधिकार होने लगेगा। लेंगे तो कभी न कभी आप इस मान को
8. आप इस मान को अपने कब्जे में ले अपने अन्दर आने से रोक सकेंगे और
लेंगे। आप इसको अपने लिए पकड़ इस पर जीत भी हासिल कर लेंगे
स्व-संवेदन
1. क्या आप उस विशेष भाव को पकड 3. क्या आप अपने उस अहं के भाव को
पाए? yes/ no/ little bit आने से रोक पाए या change कर
2. क्या आप अपनी मान की भावना को पाए? yes/no/little bit
समझ पाए? yes/no/little bit
धर्मं का मर्म 49
Day-3: उत्तम आर्जव धर्म
जीवन के अनुभवों से सीखें
धर्म का मर्म जानने के लिए आज फिर में दुःख के ही बीज बोएँ हैं । आज हमें कुछ
एक नयी सुबह हुई है और प्रतिदिन की भांति अच्छा सीखने का एक मौका मिला है । ती-
आज भी अपनी चेतना को और अधिक र्थंकरों की, प्राचीन आचार्यों की हमारे ऊपर
योग्यता देते हुए, अपनी आत्मा में कुछ अच्छा यह अनुकम्पा है , जो हम आज सही चीज
करने के लिए, अपनी योग्यता को बढ़ाते हुए, को भी सही ढं ग से समझ सकते हैं । जब हम
कुछ और घटक जानना आवश्यक है । कुछ अपनी आत्म उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ते
और जरूरी चीजें जानना आवश्यक है , जो हैं तो हमें पहले अपने अन्दर एक सामर्थ्य
हमारी आत्म उन्नति में बाधक बनती हैं । उन पैदा करनी होती है जो हमने क्षमा के माध्यम
चीजों को प्राचीन ऋषियों, मुनियों ने बहुत से पैदा की। दूसरा आपको बताया था कि
गहराई से समझा है और बहुत गहराई से उन हमें फिर अपने आप को कोमल बनाना होता
चीजों का विवेचन किया है और हमें जीवन है , softness हमारे अन्दर आनी चाहिए।
के अनुभवों से गुजारा है । अपने अनुभव भी जिसके माध्यम से हम आगे बढ़ने के लिए
हमें प्रदान किये हैं , जिसके माध्यम से हम तैयार हो सके और हमारे ऊपर किसी भी
दूसरों के अनुभव से भी बहुत कम समय में तरह का, कोई भी, कैसा भी hard task
भी ऐसा कुछ अच्छा सीख सकते हैं जिससे हमको दिया जाए तो हम उसको अच्छे ढं ग से
कि हमारे जीवन में होने वाली गलतियाँ, कर सके। यह तभी संभव है जब हमारा ego
हमारे जीवन में घटित होने वाली दुर्घटना- थोड़ा-सा down होगा, हमारे emotions
एँ, हमारे जीवन को अभिशाप बनाने वाली soft होंगे और जो दिया जा रहा है उसे
घटनाएँ न हो पाएँ। आपके लिए बताया था accept करने के लिए हम बिल्कुल अपने
कि हमारी चेतना, हमारी आत्मा एक द्रव्य आपको ready रखेंगे।
है। उस चेतना में हमने अनादिकाल से अनेक
तरह के मोह और कषायों के कारण से अपने
अन्दर दुःख ही पैदा किया है । चारों गतियों
50 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
धर्मं का मर्म 51
उत्तम आर्जव धर्म
चाह रहा है , डालना चाह रहा है , हम उसके काम नहीं करना। करने के लिए तरह-तरह
लिए कहते तो हैं - हाँ! मैं आपकी बात को के बहाने बनाना, किसी भी तरह से हमें उस
स्वीकार करता हूँ, मैं आपकी हर एक बात को काम को न करना पड़े इसलिए बचना और
ध्यान से सुनता हूँ, मैं आपके कहे अनुसार ही उसके लिए तरह-तरह के उपाय ढू ँ ढना। वह
चलूँगा। लेकिन फिर भी वह भीतर ही भीतर उपाय भी इतने solid होने चाहिए, अगर हम
कुछ मक्कारी करने की आदत जो पड़ी है , किसी से कहते हैं कि यह हमने इसलिए नहीं
वह छूटती नहीं है । मक्कारी समझते हो! कुछ किया तो वह उसमें कोई दूसरा question
बोला तो करो! मक्कारी समझते हैं ? क्या ही न कर पाए। हाँ! बिलकुल सही बात थी
होता है ? cheating करना है या किसी इसलिए ऐसा नहीं कर पाया लेकिन वह खुद
भी तरह से जो हमसे कहा जा रहा है वह जानता है कि यह मेरा अपना एक बहाना है ।
52 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
धर्मं का मर्म 53
उत्तम आर्जव धर्म
54 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
देते हैं , तुम हमसे सीख लो। क्या सीख लो? है कि बस! आपने मेरे लिए इतनी सामर्थ्य
मैं इसलिए यह नहीं कर पाया क्योंकि मेरे दे दी, बहुत है । मुझे इतना घिसपिट दिया,
पास में यह चीज नहीं थी। यह बहाना बनाना मुझे इतना चिकना बना दिया, इतना soft
तुम भी हमसे सीख लो। यह बच्चे से लेकर बना दिया, बहुत है । इसके आगे मैं कुछ नहीं
बड़ों तक सबको आता है , हर क्षेत्र में आता बनना चाहती। उसके अन्दर एकदम से ही
है। ज्ञान के क्षेत्र में भी बहाने होते हैं , चारित्र बिखराव आ जाता है । जैसे ही वह कुम्हार
के क्षेत्र में भी बहाने होते हैं । अपने अन्दर उसे उठाने की कोशिश करता है , वह बिखर
किसी भी तरह का कोई भी अपने जीवन में जाती है । उस माटी के अन्दर छे द-छे द हो
progress करने के भी बहाने होते हैं । यह जाते हैं , उससे कुछ बन ही नहीं पाता। क्यों?
सब बहाने बना कर के हम खुश होते है । यह क्योंकि वह भी आपकी तरह बहाने बनाने
सबसे बड़ी हमारी quality कहनी पड़ेगी। को तैयार है । अब इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं
यह मायाचार करना, यह बहाना बनाना यह करूँ गी, इससे ज्यादा मेरे साथ कुछ नहीं हो
हमारी एक quality बन गई है और हम इस सकता। यह जब बहाना बन गया तो यात्रा
अंधकार में रह करके खुश होते हैं । वह माटी अधूरी रह गई।
उस अंधकार में पड़े-पड़े खुश रहना चाहती
धर्मं का मर्म 55
उत्तम आर्जव धर्म
क्या जब आपके सामने कोई बहाना आए तो नहीं कर पाया क्योंकि मैं गरीब खानदान
उसको बहाने के लिए कोई example नहीं में पैदा हुआ था। आपने ए.पी.जी.अब्दुल
होता। आप हमें कोई भी बहाना बताओ मैं कलाम का नाम सुना है । पूछना! कितने
आपको एक example बताता हूँ। आपने अमीर खानदान में पैदा हुए थे। जो आज के
कहा मेरे घर में मेरे पिता की मृत्यु हो गई Prime Minister हैं उनसे पूछना, कितने
थी इसलिए मैं कुछ अच्छा नहीं बन पाया। अमीर खानदान में पैदा हुए थे? क्या उनकी
आपने एक संगीतकार आर.के.रहमान का shop थी? क्या उनका profession था?
नाम सुना है उसके पिता की मृत्यु बचपन सुना! ये बहाने हैं । एक businessman
में हो गई थी उसके बाद में भी बहुत अच्छा कहता है कि मैं इसलिए आगे नहीं बढ़ पाया
संगीतकार बना। आपने कहा कि मेरे बेटे की क्योंकि मेरी कंपनी का दिवालिया निकल
मृत्यु हो गई इसलिए मैं बहुत गमगीन हो गया गया। coca-cola कंपनी का नाम सुना है ,
इसलिए मैं जिन्दगी में कुछ नहीं कर पाया। दो बार उसका दिवाला निकल चुका है उसके
आपने बहुत अच्छे गजलकार जगजीत सिं ह बाद भी कुछ stand कर रही है । अगर हम
का नाम सुना होगा। बहुत अच्छी गजल गाता यह कहते हैं कि हमारे आगे बढ़ने में सारा का
है । उसने गजल गाना तभी सीखा जब उसके सारा bank balance चला गया। मैं बहुत
बेटे की मृत्यु हो गई। जब जिन्दगी के अन्दर पहले अच्छा था एक दिन आकर के मैं ऐसी
इस तरह का कोई गम आता है तभी आदमी स्थिति में खड़ा हो गया, मेरे पास कुछ नहीं है
शायर बनता है , तभी आदमी के अन्दर से अब मैं क्या करूँ ? मैं टू ट गया, बिखर गया।
कविता फूटती है , तभी आदमी अपने अस्ति- अमिताभ बच्चन का नाम सुना, कभी उसकी
त्व से कुछ ऐसी बातें निकालता है जो दुनिया पुरानी life के बारे में जानना। उसके साथ
में effect डालती है । हर गम के बाद में भी भी ऐसा हुआ था और वह उसके बावजूद
कोई line होती है लेकिन जो वहीं पर बहाना भी आज किस तरह से किस sound
बना कर रुक गया उसने अपनी जिन्दगी को position में है , उसको आप देखना। हम
खोया और दूसरों के लिए भी अभिशाप बहाने बनाते हैं । हमारे सामने कोई न कोई
बना। आपने कहा मैं इसलिए कुछ अच्छा example ऐसे होना चाहिए।
56 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
है । आप बहाने बना देते हो, मैं कुछ इसलिए सकता। क्या चीजें? कोई भी चीजें, आपको
अच्छा नहीं कर पाया क्योंकि मैं नाटे कद का लगता है कि मेरे शरीर में कोई कमियाँ है ।
था। सचिन तेंदुलकर की कितनी height मान लो आपके शरीर पर आपके मुँह पर
है ? क्या बहाने बनाना? किस चीज के बहाने कोई निशान बना हुआ है , मैं इसलिए कुछ
बनाना! मै इसलिए कुछ अच्छा नहीं कर नहीं कर सकता क्योंकि मेरे शरीर पर एक
पाया कि मेरा रूप अच्छा नहीं है , मेरा सौंदर्य निशान बना हुआ है । शत्रुघन सिन्हा को देखा
अच्छा नहीं है , कितने ही लोग ऐसे हैं । west है ! उसने अपना निशान कभी छिपाया नहीं
Indies के जितने भी लोग होते हैं , ये सुन्दर लेकिन वही उसकी पहचान बनी हुई है । हम
लगते हैं ? philosopher सुकरात को किसी चीज को छिपा कर के उस बुराई पर
आपने देखा नहीं? किसी ने नहीं देखा लेकिन किसी भी तरीके से पर्दा डाल कर के आगे
आप देखेंगे सुकरात जिसका नाम दुनिया बढ़ने की कोशिश करते हैं , हमारी यही सबसे
में प्रसिद्ध है , इतना बदसूरत आदमी कि बड़ी गलती होती है ।
उससे ज्यादा बदसूरत आदमी कोई हो नही
धर्मं का मर्म 57
उत्तम आर्जव धर्म
बाधाओं को आप रास्ता बना लो इतने सरल हटना, अपने अन्दर ऋजुता के भाव को लाना,
हो जाओ। बाधाएँ किसके रास्ते में नहीं सरलता के भाव को लाना, ईमानदारी से
आती? एक नदी भी जब flow करती है , जब आगे बढ़ना, यह हमें सिखाता है कि अगर
कहीं से कहीं तक बहती हुई चली जाती है , हम अपनी ईमानदारी पर टिके रहें गे, अपनी
तो रास्ते में उसको बड़े-बड़े पर्वत भी मिलते सरलता से अपने अन्दर एक जज्बा पैदा
हैं । नदी अपना रास्ता बदल कर के वहीं के किये रहें गे तो हमh सामने आने वाली हर
वहीं रुक नहीं जाती है , लौट नहीं जाती है । बाधा को भी जीत सकेंगे।
जहाँ से आई थी मैं वहीं चली जा रही हूँ, ऐसा ‘राह होती नहीं सीधी
कभी नहीं होता, वहीं के वहीं सूख नहीं जाती कोई भी छड़ी की तरह,
है , बड़े-बड़े रास्ते बनाती है । कितना ही बड़ा जिन्दगी चलती नहीं कभी
पर्वत हो वहाँ से रास्ता बनाएगी, कहीं न कहीं एक सी घड़ी की तरह,
से क्षेत्र ढू ँ ढ़ेगी, वह वहाँ से निकलेगी और वह कभी खून के रिश्ते भी बन जाते हैं
अपने बगल से किसी न किसी तरीके से दुश्मनों की तरह
रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ेगी तो वह अपनी और कभी दुश्मन भी बन जाते हैं
मंजिल तक पहुँचती है । यह मायाचार से दूर अपनों की तरह”
58 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
नहीं कर पाते हैं । कई तरह की मायाचारियाँ, man नहीं बन सकता। उस पूरी पुस्तक
कई तरह के बहाने हमारे अन्दर होते हैं और का यह conclusion था। कोई भी कंपनी
हम उस तरह के बहानों में अपने जीवन की अगर किसी भी तरह से किसी दूसरी कंपनी
सरलता को खो देते हैं । अगर हम किसी भी वाले को, अपने employee को, अपनी ही
तरह के गलत रास्तों पर चल कर के आगे तरह के किसी भी agent को धोखा देने की
बढ़ने की कोशिश करते हैं तो भी वह हमारे कोशिश करती है , तो वह ज्यादा नहीं उठ
लिए एक अभिशाप का काम कर जाता है । सकती है । थोड़ी देर उनका काम चलेगा बहुत
इसलिए यह मायाचारी कहती है अगर आप जल्दी उनके सब मामले सामने आ जाएँगे
इसका साथ दोगे तो आप एक लंबे समय और वह सब कोर्ट, कचहरी के चक्कर काटते
तक किसी अच्छी position में नहीं टिक मिलेंगे। वह हमेशा के लिए successful
पाओगे। आपको कोई एक सफल आदमी नहीं हो सकेंगे। अपना brand बनाने के
बनना है , एक आपको successful लिए कंपनी को एक लंबे time तक एक
businessman बनना है , आपको कोई अपने आप को establish करने के लिए
successful किसी कंपनी का मैनेजर एक गुण सीख लेना चाहिए। हर किसी
बनना है , employee भी बनना है , तो व्यक्ति को एक quality सीख लेना चाहिए
आपके अन्दर fraud नहीं होना चाहिए। कि मैं कभी किसी के साथ विश्वासघात नहीं
दूसरों को ठगने की, दूसरों के साथ विश्वा- करूँ गा। मैं कभी किसी को धोखा नहीं दूँगा,
सघात करने की आदत नहीं होनी चाहिए। मैं किसी को धोखे में नहीं रखूँगा। यह चीज
आप दुनिया का इतिहास उठा करके देखेंगे अगर हर व्यक्ति सीख लेगा तभी आगे बढ़
तो आपको पता पड़ेगा। मैंने एक बार कहीं पाएगा। अगर आप धोखे में है , तो आप दूसरे
एक business management की को भी धोखा दे कर के आगे बढ़ने की कोशिश
book पढ़ी थी हालांकि उससे हमें कोई करते हैं । कभी-कभी आगे बढ़ कर निकल
मतलब नहीं था लेकिन आ गई थी सामने तो जाओगे लेकिन कहीं न कहीं पकड़ लिए
तो पढ़ ली थी। मुझे देखकर है रानी हुई कि जाओगे और जब पकड़ लिए जाओगे तो जेल
इसमें business की चीजें तो कुछ नहीं की सलाखों में पहुँचा दिए जाओगे। फिर
है लेकिन उसमें सबसे बड़ी चीज जिस पर आपके सामने जिन्दगी को जीने का कोई
focus किया गया वह थी कि अगर कोई अच्छा तरीका नहीं होगा, कुछ भी नहीं होगा।
भी businessman किसी को धोखा देता इसलिए मायाचार ऐसा step है अगर हम
है , तो वह कभी भी एक सफल business इसे समझें तो आज हमारे सामने कई बार
धर्मं का मर्म 59
उत्तम आर्जव धर्म
ऐसे-ऐसे कार्य देखने वाले लोग भी मिल सामने आता है , तो समझ में आता है कि
जाते हैं जो जैन भी होते हैं , अजैन भी होते हैं इतने बड़े-बड़े लोग कितने fraud काम,
जिनकी अच्छी समाज में reputation भी कितने करोड़ों के घोटाले कर रहे हैं ।
होती है । उसके बावजूद भी जब वह घोटाला
60 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
धर्मं का मर्म 61
उत्तम आर्जव धर्म
62 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
कहीं का कहीं बुलाया तो वह आपके साथ करते-करते एक बार हमने कोई न कोई इस
कुछ भी fraud कर सकता है , जो आपकी तरीके से appointment कर लिया कि
knowledge में नहीं होगा। क्योंकि आपने चलो! आज हम वहाँ मिलेंगे, फलाने पार्क में
कभी उसको देखा ही नहीं, आपने केवल मिलेंगे, फलाने होटल में मिलेंगे और बस!
chatting करते-करते बस! इस तरीके जब हम वहाँ मिले तो किसी न किसी के
से अपने relation बना लिया। हम तुम्हारे साथ में गलत होगा। बस! यहीं से जिन्दगी
साथ कर रहे हैं , तुम भी हमारे साथ करो और खराब होना शुरू हो जाती है ।
धर्मं का मर्म 63
उत्तम आर्जव धर्म
64 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
धर्मं का मर्म 65
उत्तम आर्जव धर्म
66 धर्मं का मर्म
उत्तम आर्जव धर्म
धर्मं का मर्म 67
Day 03
आज का चिंतन - अपने माया के भाव को पहचाने
आज आपके धर्म करने के लिए तैयार हैं । आज आपके लिए
का तीसरा दिन है । आप एक task दिया जा रहा है , इसे आपको दिन
लोग उत्तम आर्जव धर्म भर ध्यान में रखना है और उसके अनुसार
को अपने अन्दर धारण अपने विचारों को देखना भी है ।
68 धर्मं का मर्म
S.No अपनी बुराई किसी से छिपाई/बहाना बना करके Situation/बहाना
निकल गए/बहाने बना करके हम अपना काम साधा बनाने का कारण
स्व-संवेदन
धर्मं का मर्म 69
Day-4: उत्तम शौच धर्म
मिट्टी के द्वारा स्व-पर कल्याण
आज का यह दिन आप लोगों के लिए के हाथों से और एक मिट्टी में कुछ ऐसा जा
कुछ नया जानने के लिए आया है , कुछ पाना जिससे वह कुछ अच्छा produce
नयी भावनाएँ अपने अन्दर पैदा करने के कर पाए, कुछ अच्छा वह दे पाए, यह दोनों
लिए आया है । अपने जीवन को बारीकी से ही काम होते हैं । इसी को ‘स्व’ और ‘पर’
समझते हुए, जीवन में उत्पन्न हुई अनेक तरह उपकार कहते हैं । जैसे-जैसे हमारे अन्दर
की इच्छाओं को समझते हुए, जीवन को योग्यता बढ़ती जाती है , ‘पर’ उपकार करने
समायोजित करने का एक उपक्रम हमको की भी क्षमता हमारे अन्दर बढ़ती जाती है ।
आज सीखने को मिलेगा। अभी तक हमने जब तक ‘स्व’ उपकार अच्छे ढं ग से नहीं होता
यह सीखा है कि हमारी आत्मा भी एक भूमि तब तक हम ‘पर’ उपकार के भी योग्य नहीं
की तरह काम करती है । जिस तरह भूमि पर बन पाते हैं । इसलिए यह मिट्टी का दृष्टान्त
अनचाहे ढं ग से कोई भी फसल अपने आप आपको बार-बार दिया जा रहा है कि देखो!
उग आती है वह किसी काम की नहीं होती मिट्टी स्वयं में भी योग्य बन रही है । वह स्वयं
है । किन्तु जब हम उस भूमि को शुद्ध बनाकर जब योग्य बनती जाएगी, कुंभकार के हाथों
उस भूमि को सही ढं ग से परिमार्जित करके मन चाहे ढं ग से किसी भी अच्छे कलश का
उसका सब तरह से लेखना-जोतना इत्यादि रूप ले पाएगी। वही मिट्टी अगर मान लो,
कृषि संबंधी जो उस भूमि पर क्रियाएँ की दूसरे का उपकार करने को तैयार हो जाती है ,
जाती हैं , वह सब कर के उस भूमि को जब तो उसमें किसी भी तरह का बीज डाला जाए
हम योग्य बनाते हैं तभी उस भूमि पर कुछ तो वह बीज बहुत अच्छे से फलीभूत होता है ।
वपन हो पाता है । बीज का वपन होना, फलीभूत होना, यह ‘पर’
मिट्टी के दो कार्य का उपकार है और स्वयं का किसी कलश के
आपको बताए जा रहे रूप में ढलना यह ‘स्व’ का उपकार है ।
हैं । एक तो मिट्टी का
स्वयं में कुछ अच्छा बन
पाना, किसी कुम्भकार
70 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
धर्मं का मर्म 71
उत्तम शौच धर्म
दूसरे स्थान पर आ नहीं पाती। यही वजह से वहाँ से वह हटने की जब इच्छा नहीं करती
है कि वह लोभ के कारण से अब आगे का तो उसी के कारण से वह मायाचार करने
अपना विकास नहीं कर पायेगी। उसमें जो लग जाती है । इसलिए कह रहा था कि
पवित्रता आनी चाहिए वह नहीं आ पाएगी माया और लोभ का बहुत बड़ा गठबंधन हो
क्योंकि जब तक वह कलश का रूप धारण गया है । आप आज लोभ को समझ कर ही
नहीं करेगी और अपने अन्दर के लोभ को समझ पाएँगे कि हम कितनी माया करते हैं
छोड़कर के ऊपर उठने का भाव नहीं करेगी और माया को छोड़ेंगे तभी आपको समझ में
तब तक उसे किसी अच्छे ऐसे रूप में ढाला आएगा कि हमने कितना लोभ छोड़ा है । इस
नहीं जा सकेगा, जिसमें ढाल कर के लोग लोभ के कारण से मन में ऐसा लगता है कि
उसे अपने सिर पर रख सके। माटी के ढे ले जैसे कोई भी चीज सामने है , तो वह अच्छी
को कोई सिर पर नहीं रखता है । सिर पर क्या है और उसमें हमें भले ही कुछ परेशानी हो या
रखा जाता है ? कलश रखा जाएगा। कलश उसमें हमारे साथ कुछ छल भी हो तो भी हम
बनने के लिए माटी को अपने उस स्थान से उसको सहन कर लेते हैं लेकिन अपने मन के
हटना तो पड़ेगा। लेकिन उस लोभ के कारण लोभ को नहीं छोड़ पाते हैं ।
72 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
लग रहा था पानी है , वहाँ तो पानी भी नहीं और वह जब वहाँ पहुँच जाते हैं तो फिर उन्हें
है । आप वहाँ से फिर देखो अभी तो आधा लगता है कि पानी यहाँ पर भी नहीं है । फिर
किलोमीटर दूर फिर आपको वैसे ही दिखेगा, उन्हें वहाँ से दूर दिखाई देता है कि पानी वहाँ
फिर पानी दिखेगा। फिर वैसे ही चमकती है । फिर वहाँ से वह दौड़ लगाते हैं और फिर
हुई जमीन दिखेगी। लोभ इस तरह से हमारे वहीं पर पहुँचते हैं । सुबह से शाम तक भी
अन्दर एक दौड़ पैदा कर देता है । कभी रे- दौड़ेंगे उन्हें पानी मिलेगा नहीं। इसको बोलते
गिस्तान में आपने बालू पर घूमते हुए देखा। हैं - ‘मृगमरीचिका’! क्या बोलते हैं ? मृग
कई बार पशुओं को जब प्यास लगती है तो मतलब हिरण जो है वह पानी की दौड़ में
वह बालू पर दौड़ लगाते हैं और वह बालू के इस तरह से अपनी दौड़ को बढ़ाता रहता
सामने अपने आप को देखते हैं तो उन्हें लगता है । सुबह से शाम तक दौड़ता है , तृष्णा
है बालू चमक रही है , उसके आगे पानी है । उसकी बढ़ती जाती है । किस कारण से?
तब वहाँ तक पानी पीने के लिए दौड़ते हैं लोभ के कारण से।
धर्मं का मर्म 73
उत्तम शौच धर्म
कि थोड़ा-सा पानी पी तो लेता है , पानी उसे इसी तरह से जब हम इस माया के बाजार में
मिल तो जाता है लेकिन उसे मीठा पानी नहीं घूमने के लिए निकलते हैं तो हमारे सामने
मिलता, उसे मिलता है खारा पानी। क्या जितनी भी चीजें आती हैं मन हर किसी चीज
मिलता है ? खारा पानी। जानते हो समुद्र का से लुभता है । मन कहता है यह भी कितनी
पानी खारा होता है , नदियों का पानी मीठा अच्छा product है , यह भी इतनी अच्छी
होता है । मनुष्य हमेशा खारा पानी पीता है चीज है । यह भी कितना अच्छी वस्तु है , यह
और ऐसा पानी पीता है जिसको पीने के भी खरीद लो, यह भी ले लो, यहाँ पर भी
बाद में उसकी तृष्णा और बढ़ जाती है । भूख चलो, इसमें भी मिल लो यहाँ से भी कुछ
या प्यास मिटती नहीं है , पानी तो पी लिया उठा लो। मन को हर चीज अच्छी लगती है ।
लेकिन उससे वह प्यास और बढ़ जाती है ।
74 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
हैं तो हमें बिलकुल सामान्य-सा लगता है वाली चीज अच्छी तो लग रही है लेकिन
और लेने से पहले वह बहुत विशिष्ट लगता यह है बिल्कुल सामान्य, बिल्कुल ऐसी ही
है और जब ले लेते हैं तो बिलकुल सामान्य- सामान्य है कि बस! लेने के बाद में आपको
सा लगता है । अरे! सोच रहा था बालूशाही पछताना पड़ेगा। पैसा ज्यादा लग जाएगा,
है , बहुत अच्छी होगी लेकिन जैसे ही खा ली energy ज्यादा लग जाएगी, मिलने वाला
तो वह तो वैसी ही है । ऐसा लगा जैसे कोई कुछ नहीं है । वह लोभ हम अगर समझ नहीं
रोटी हो और उसमें थोड़ा-सा मीठा मिला पाते हैं तो वह लोभ ही हमको कसता रहता
दिया हो। ऊपर से लग रही थी कि बहुत है , दुःखी बनाता रहता है । इसी कारण से
अच्छी बालूशाही है , बहुत अच्छी है , देखने में हम उस लोभ की दौड़ में अपनी पूरी जिं दगी
भी अच्छी लग रही थी लेकिन जब ले लिया निकाल देते हैं । वह मृग तो सुबह से शाम
तो उसके बाद तो वैसी ही लगती थी। इसी तक दौड़ता है लेकिन आदमी अपनी पूरी
का नाम है - लोभ। आप देखते रहे , मन को जिं दगी भर दौड़ता है ।
परखते रहे हैं , अगर आप जानेंगे कि लोभ ‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
कषाय क्या काम करती है ? अब यह कषाय दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
है , तो कषाय के कारण लोभ कषाय कहीं बाहर नहीं है भीतर
से यह क्या करती है ? ही होती है
यह कषाय हमें, आत्मा सुबह क्या है ? जब से जन्म मिला है और
में लोभ के कारण से शाम क्या है ? जब तक मृत्यु नहीं हो जाती।
हमारे को दुःख देती हैं आप देखो! हमारी इच्छाएँ हमको दौड़ाती हैं ,
और हम यह समझ रहे हम नहीं दौड़ते हैं । हमारे अन्दर एक inner
हैं कि इससे हम को force अपने आप create होता है जो
सुख मिलेगा। अब यह समझें कि आत्मा हमारी desires के कारण से होता है । अगर
में वह लोभ कषाय जुड़ी हुई हैं । आत्मा तो हम कभी desire less अपने आपको feel
सुख चाहती है और लोभ कषाय हमको दुःख करें तो हमें ऐसा लगता है कि जैसे हम हैं ही
देने का काम करती है । जब तक हम लोग नहीं, हमारा कोई existence ही नहीं है ।
कषाय के कारण से लोभ करते रहें गे तब तक इसलिए आपको कोई भी motivational
हम अपनी आत्मा का जो सुख है वह नहीं teacher होगा, गुरु होगा वह आपको
प्राप्त कर पाएँगे। जब हमें यह समझ में आने सिखाएगा कि अपने अन्दर desires
लग जाएगा कि देखो! यह लोभ है , सामने पैदा करो। ‘as you desire so you
धर्मं का मर्म 75
उत्तम शौच धर्म
achieve’ जैसी इच्छा करोगे वैसा पाओगे। होती है उस मशीन में, जहाँ पर reel घूम रही
हर कोई आपको दौड़ में ही दौड़ाना चाहे गा। होती है । उसका projection पर्दे पर आता
यदि आपको कोई spiritual गुरु कोई है तो हमें लगता है कि यह सब कुछ बिल्कुल
जो कहे गा कि नहीं! अपनी desires को सामने है as it is, जैसा मैं चाह रहा हूँ वैसा
control करो, उनको अपने से remove ही हो रहा है । feeling बिलकुल उससे एक
करो, अपने को desireless feel करो जैसी ही मिल जाती है । अब आप समझो
और फिर देखो कि आपके अन्दर peace पर्दे पर क्या हो रहा है ? पर्दे पर जो हो रहा
generate होती है कि नहीं होती है । है वह आपके अन्दर हो रहा है । इतना आप
आपको अपने existence की feelings उससे बिलकुल अपने आप को intimate
होती है कि नहीं होती है । यह सब चीजें तब कर लेते हो। इतना आपके अन्दर उसके प्रति
होंगी जब हम अपने अस्तित्व की ओर आ एक relation जुड़ जाता है । सामने वाला
रहे होंगे। लेकिन अस्तित्व की ओर आने मर रहा है तो आप रोने लग जाते हो, जीत
नहीं देते हमारी लोभ कषाय और वह कषाय रहा है खुश होने लग जाते हो, प्रेम कर रहा
कहीं बाहर नहीं होती। बाहर तो उसका एक है तो आप भी प्रेम के भाव में आ जाते हो।
कहना चाहिए projection होता है । जैसे ऐसा लगता है जैसे सब कुछ सामने हमारी
कि हम कभी theatre में फिल्म देखते हैं जिं दगी में ही हो रहा हो। ठीक इसी तरह से
तो reel तो पीछे चल रही होती है , उसका लोभ हमारे भीतर पैदा होता है , उस लोभ के
projection हमें सामने पर्दे पर दिखाई देता कारण से बाहर जो चीजें हैं उनमें वह लोभ
है । असली फिल्म तो अन्दर पीछे चल रही का projection होता है ।
76 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
क्या लेना-देना है । इसीलिए तो सब कुछ उसके बाद में तो क्या? घुटनों में दर्द होने लग
हो रहा है । पहले पढ़ने का एक project जाएगा, कमर में दर्द होने लग जाएगा, रोगी
बनाया जाता है । भाई! तुझे क्या पढ़ना हो जाएगा, diabetes तो होनी ही है । बस!
है ? किस लाइन पर चलना है कि आपको फिर धीरे-धीरे 5-10 साल घसीटते-घसी-
क्या choose करना है ? commerce, टते निकाल लेगा तो पचास का हो गया।
science, arts, philosophy क्या अब पचास के बाद क्या बचा है ? अब तो
लेना है ? पहले यह सोचता रहा, सोचता रहा, हमने दुनिया देख ली, अब तो जो जिं दगी
इसमें उसने कम से कम बीस साल निकाल है वह अपने आप कटती रहे गी तो पाँच दस
दिये। फिर बीस साल के बाद जब उसने साल और कट जाएँगे। 60, 65, 70 वर्ष
अपनी बीस-बाईस साल में पढ़ाई भी कर बहुत हो गये तो निपट जाएगा, चला जाएगा,
ली तो उसके बाद में फिर वह सोचता है अब हो गयी जिं दगी की दौड़ होती जा रही है ।
इसकी job मिले। अब! job के लिए फिर ‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
वह अपने आपको दौड़ाता है । इस कंपनी दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
से उस कंपनी में, उस कंपनी से इस कंपनी अब आप देखो वह achieve क्या
में और इस तरह से दौड़ते-दौड़ते वह अपने करता है ?
लगभग चालीस साल पूरे कर लेता है । बस!
धर्मं का मर्म 77
उत्तम शौच धर्म
ही है । चार रोटी और दो लंगोटी फिर अन्त में जाता है और उसी से बाँध दिया जाता है । वह
मर जाएगा। फिर उसको दो गज, तीन-चार भी लकड़ी है और कभी दोपहर में मतलब
गज कच्ची जमीन चाहिए, उसमें बस उसका बीच की जिं दगी में, जवानी में, थोड़ा सा
स्वाहा हो जाएगा। आदमी जिं दगी में ये 3 पलंग पर आराम कर लेता है । उस पर भी
चीजें कमाता है और क्या कमाता है , क्या अपनी जिं दगी निकाल देता है वह भी लकड़ी
कमाया उसने? की है बस! यह लकड़ी है ।
‘सुबह पलना, शाम अर्थी और खटिया ‘तीन तरह की लकड़ी जिं दगी में तोड़ता
दोपहर, है आदमी
तीन लकड़ी जिं दगी में तोड़ता है आदमी, और सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी, आदमी को मौत पर विश्वास है कुछ इस
दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’ तरह,
क्या करता है ? सुबह जब जन्म हुआ तो कि मौत के हाथों ही सब कुछ छोड़ता है
पालना मिलता है वह भी लकड़ी का होता आदमी,
है । अन्त होगा फिर भी उसको लकड़ी की सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी’
ही बाँसों पर बिठा दिया जाता है , लिटा दिया दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
78 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
धर्मं का मर्म 79
उत्तम शौच धर्म
नाम ही लाडो रख देते हैं । लाडो! मेरी बेटी नहीं! कोई नहीं तो मेरा ही बेटा है । मगर आप
लाडो है , बहुत लड़ेती है । यह लाड़ भी कहाँ से देख रहे हो बेटा गलती भी कर रहा है । जिस
उत्पन्न हो रहा है ? लोभ से उत्पन हो रहा है । समय पर बेटा झूठ बोलना शुरू करता है
इस लोभ के कारण से हम बच्चे को लाड़ला आपको पता होता है , वह चोरी करना शुरू
तो बना लेते हैं लेकिन लायक नहीं बना पाते करता है आपको पता होता है । वह कोई भी
हैं । बच्चे को लाड़ला जो बना लेगा, वह कभी गंदी आदत शुरू करता है आपको पता होता
उसको लायक बना ही नहीं पाएगा। माता- है लेकिन लाड़ में आप यह नहीं सोचते हो।
पिताओं के लिए समझना है कि लाड़-लाड नहीं! अभी तो मेरा बेटा छोटा ही है अभी
में और प्यार में भी अन्तर होता है । अगर सुधर जाएगा। माँ उसके उस लाड़ के कारण
आप लाड़ करोगे तो बच्चा लाडला बन से उसको उसी समय नहीं समझा पाती है ।
जाएगा और प्यार करोगे तो लायक बनेगा। सबसे बड़ी गलती होती है , जब हम पहली
यह समझना है माता-पिता को और यह बार बच्चे को देखें कि गलत कर रहा है हम
समझने में बहुत देर हो जाती है । इसी कारण उसी समय पर अपने लाड़ को control
से जब पानी सिर के ऊपर हो जाता है तब करें, प्यार में आए। प्यार, बुराई को बुराई के
उन्हें समझ में आता है कि यह बच्चा अब तो रूप में, अच्छाई को अच्छाई के रूप में देखता
गलत रास्ते पर चला गया, अब तो मेरी बात है और लाड़ बुराई को भी अच्छाई के रूप में
ही नहीं मानता है । अब तो मैं कुछ कहती हूँ ही देखता है । कई माता-पिता इतने मोहित
तो उल्टा मुझे ही डाँटता है और आपको डाँट होते हैं अपने बच्चों से कि वह अपने बच्चों
सुननी पड़ती है । क्योंकि वह आपका लाड़ला की बुराइयों को भी बड़े लाड़ के कारण से
है। अतः guardians को मैं बता रहा हूँ उसको अपने सिर पर बिठा लेते हैं और
कि लाड़ में और प्यार में अन्तर समझो। उसको प्रोत्साहन देते हैं बेटा! तूने कुछ नहीं
लाड़ वह कहलाता है - जब बच्चा बिगड़ने किया, अच्छा ही किया। थोड़ा-सा उसको
लगेगा तो आप उसकी उस बुराई को भी रोकना चाहिए और अगर रोक दिया जाता है
लाड़ में ले लोगे, कोई नहीं बेटा! कोई नहीं! तो उस समय पर वह सुधर सकता है जब
कोई नहीं! अच्छी बात है कोई नहीं-कोई पहली बार गलती करता है ।
80 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
बिगड़ने लगा और फिर भी आप उससे लाड़ अन्दर faults उत्पन हो जाते हैं और ताणन
किये जा रहे हैं । यही गलती होती है जब वह करने से गुण उत्पन होते हैं यह पुरानी नीति
बड़ा होकर के इतना जिद्दी हो जाता है कि है । इसलिए शिष्य को और पुत्र को ‘ताडयेत्
वह अपने ऐब को नहीं छोड़ना चाहता, अपनी न तु लाड़येत्’ लाड़ में हम लोभ में कुछ ज्यादा
बुराइयों को नहीं छोड़ना चाहता। अपने मा- ही बह जाते हैं इसलिए लोभ के कारण से
ता-पिता के ऊपर गुस्सा करने लग जाता हम उसकी बुराइयों को भी neglect कर
है , उन्हें गाली देने लग जाता है , घर से बाहर देते हैं और वहीं से बच्चा बिगड़ने लग जाता
निकलने लग जाता है । यहाँ तक कि घर से है । आज माता-पिता सबसे ज्यादा परेशान
बाहर जाने के लिए एक धौंस भी देने लग है । lockdown चल रहा है और बेटा कोई
जाता है , मैं चला जाऊँगा, भाग जाऊँगा, यह काम नहीं, कोई पढ़ाई नहीं, दिन-भर bed
कर लूँगा, वह कर लूँगा। यह किसके कारण पर पड़ा रहता है । mobile पकड़ा रहता
से होता है ? थोड़ा-सा जो बिगड़ैल हो रहे हैं है , टी.वी. के सामने बैठा रहता है । दिन भर
बच्चे भी सोचें, थोड़ा-सा उनको लाड़ ज्यादा mobile लेकर उल्टा पड़ा रहे गा। laptop
मिल रहा है इसलिए हम बिगड़ रहे हैं । मा- होगा तो laptop पर दिन भर पड़ा रहे गा।
ता-पिता का लाड़ बच्चों को बिगाड़ता है । कुछ नहीं उसको चाहिए, न खाने को, न
इसलिए नीति शास्त्रों में बहुत पहले लिखा पीने को, न कुछ घर का काम में कोई बात,
जा चुका है । हर किसी ने लिखा है - चाणक्य कोई बीच में अगर disturb करता है तो
की भी नीतियों में लिखा हुआ है , विदुर की ऐसा भिनक पड़ता है मानो अभी mobile
नीतियों में भी लिखा हुआ है , धर्म की नीतियों ही उसके मुँह में दे मारे। क्यों? इतना लाड़
में भी लिखा हुआ है । हमेशा यही कहा जाता कर रखा है । जब उसको आपने पहली बार
है कि कभी भी शिष्य को और पुत्र को लाड़ mobile दिया था तभी आपने गलती कर
नहीं करना चाहिए। उन्हें ताणन करना पड़े रखी थी और जब आपने उसको mobile
तो उनका ताणन करना चाहिए लेकिन लाड़ के function समझाए तब आपने दूसरी
उनसे ज्यादा नहीं करना चाहिए। गलती कर रखी है । जब उसको mobile
‘लाडनात् बहवो दोषा, ताडनात् बहवो में लोभ पैदा होने लग गया तो अब वह भी
गुणा, तस्मात् पुत्रं च शिष्यं च ताडयेत् न तु क्या करे? लोभ कषाय तो उसके अन्दर भी
लाड़येत्’ है , लोभ तो उसको भी छल रहा है । एक चीज
क्या समझ में आया? लाड़न करने से देखता है उसमें मन नहीं भरता, फिर दूसरा
बहुत दोष उत्पन्न होते हैं , बहुत सारे उसके सरकाता है तो दूसरा देखता है उसमें मन नहीं
धर्मं का मर्म 81
उत्तम शौच धर्म
भरता है उसमें तो हजारों चीजें पड़ी है । अब चीजें आपके अन्दर जा रही हैं । वह चीजें फिर
वह सोचता है कि हजारों कब देखूँगा और से एक तृष्णा और पैदा करती। नहीं! इससे
वह कैसे होगा? एक-एक में भी एक-एक भी अच्छा कुछ और होगा और नीचे देख!
दिन कम पड़ जाता है । एक-एक के अन्दर उसको भी click करता है फिर वह देखता
भी हजारों चीजें और हजारों अलग-अलग है । अरे नहीं! इसमें भी मजा नहीं आया और
clips, अलग-अलग हजारों दिख रहे हैं । इसके नीचे देख और इसके नीचे भी कुछ
बोलो तो ऐसा ही होता है कि नहीं होता अच्छा होगा।
है । अब यह सब इच्छाएँ कब पूरी हो कि मैं ‘सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
सब देख लूँ, सब सुन लूँ ,सब का आनंद दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी’
ले लूँ। इससे अच्छा time कहाँ मिलेगा? बस! मर भी जाए तो चिन्ता नहीं लेकिन
lockdown चल रहा है । हाँ! कोई class mobile नहीं छूटना चाहिए। हाँ! इतना
नहीं, कोई tution नहीं, कोई स्कू ल नहीं, mobile का लोभ पैदा हो चुका है । अब
कोई कॉलेज नहीं। दिन-भर खाओ, पिओ, कौन छु ड़ाए? माँ चिल्लाती है पिता नाराज
पड़े रहो, जिद्दी नहीं बनोगे तो क्या बनोगे। होते हैं । जब नहीं बनता है तो महाराज से
आपके ऊपर किसका effect आ रहा है ? आकर कहते हैं , महाराज! बच्चा जिद्दी हो
लोभ कषाय का mobile के through गया है । अब महाराज क्या करें? क्या उसको
आपकी आँखों पर projection हो रहा है mobile महाराज ने दिया था? जब वह
और फिर mobile के माध्यम से सिर्फ वह पहली बार mobile ले रहा था, जब खेल
82 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
धर्मं का मर्म 83
उत्तम शौच धर्म
उसमें भी लोभ पड़ा है उसका और अगर वह जाएँगे। पता पड़ा interview हो गया, इस
लोभ उन्हीं चीजों का हो जिन चीजों को पाने बार भी कोई Job नहीं लगी। अब क्या करें?
की हमारी इच्छा है और वह चीजें अगर हमें मंदिर में भगवान कुछ देता नहीं। मंदिर कुछ
कहीं नहीं मिल रही है तो हम कहाँ पहुँच जाते करते नहीं, मुझे मंदिर जाना ही नहीं, मंदिर से
हैं ? मंदिर में चलो भगवान के पास चलो। कोई मतलब नहीं। अब वह मंदिर से इतना
क्या मिलेगा? Job लग नहीं रही है इतना द्वेष करेगा, इतनी hate करेगा कि अब
पढ़ने के बाद इतनी अच्छी percentage मंदिर के नाम से उसको चिढ़ आयेगी। उसे
आने के बाद भी जब भी कहीं interview यह नहीं मालूम कि हमें चिढ़ किस कारण से
देने जाते हैं तो फेल हो जाती हूँ। पता नहीं आ रही हैं ? अपने लोभ कषाय से आ रही है
क्यों दो नंबर से रह जाती हूँ। समझ आया यह कभी महसूस नहीं करेगा। हमारे लोभ
क्या करना चाहिए? थोड़ा-सा भगवान से की पूर्ति नहीं हुई इसमें हमारा दोष है कि
मिन्नत तो करनी पड़ेगी। अभी तक तो हमने मंदिर का दोष है कि भगवान का दोष है , उसे
भगवान को पूछा ही नहीं, अब जरूरत तो कुछ नहीं मालूम। उसने अपनी इच्छा इतनी
पड़ रही है भगवान की तो अब क्या होता बना रखी है कि उसकी इच्छा की पूर्ति नहीं
है ? अब हमें भगवान दिखता है । अब अगर हुई तो अब उसको मंदिर से घृणा हो गई।
मंदिर देखते हैं तो हम भी लोभ कषाय के क्या मंदिर का भगवान तुम्हारी job लगाने
कारण से फिर मंदिर पहुँचते हैं । कहीं मंदिर के लिए बैठा है ? किसी भी मंदिर का देवता,
में कोई ऐसी friend मिल गई जिसने कहा किसी भी मंदिर का भगवान तुम्हारी जिं दगी
आप मंदिर आज क्यों आए? हाँ! वह आज के लिए बस इसी तैयारी में बैठा है कि तुम
मेरा मन हो गया था तुमको देखते-देखते तो मेरे पास आओ और फिर वापस जब तुम
मैं भी आज आ गई तो तुम कब से आती हो घर जाओ तो तुम्हारे घर में सब कुछ अपने
मंदिर? मैं तो हमेशा आती हूँ। तुम क्या करती आप decorated मिले। यह सोच कर
हो? मेरी तो उस I.T. company में Job रखा है आपने, भगवान का यही काम है ।
लगी। अच्छा! इसी कारण से तुम्हारी Job जो इस तरीके से सोचते हैं कि यह भगवान
लगी हुई है । ठीक है ! मेरी भी लग जाएगी, का काम है , वह भी भगवान को छल रहे हैं
सुबह रोजाना मंदिर आने लग जाता है , मंदिर और भगवान भी उनको छल रहा है । वह भी
आने लग जाती है । अब धीरे-धीरे जब उसे भगवान के लोभ में पड़े हैं । धर्म के लोभ में
लगता है अगले साल जब हम फिर से हम भगवान के कारण से अपनी इच्छाओ की
interview देने जाएँगे तो फिर पास हो पूर्ति किये जा रहा है आदमी। संसार की
84 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
इच्छाएँ है - बेटा नहीं हो रहा, बेटी-बेटी हो मेरी चाची की बहू की बुआ की लड़की थी
रही है । बेटा कैसे हो जाए? उस मंदिर में जा न, उसको भी ऐसे ही हो गया था तो वैसे
कर के यह प्रसाद चढ़ाकर आना, उस मंदिर ही कर लिया था। उसको भी हो गया था तू
में जा कर के उस पंडित को यह दे कर के भी ऐसे ही कर लेना। बस! धर्म इससे चल
आना, वहाँ जा कर के यह हवन करना, यह रहा है । यह धर्म के अन्दर लोभ, धर्मायतनों
वाला विधान करना, यह वाली धारा करना। में लोभ इस तरीके से हमारे द्वारा पड़ा हुआ
हो जाएगा तेरा काम। हाँ! उसका भी हुआ है इसलिए हमने धर्म को भी एक तरह से
था। वह मेरी पड़ोसन एक बार बता रही थी समझा नहीं।
धर्मं का मर्म 85
उत्तम शौच धर्म
क्या रहा है ? तुम ही कर लो हमें कुछ नहीं की शांति के लिए मंदिर जाया जाता है । जो
करना। हमने हर चीज को अपने लोभ से desires हमारे अन्दर उत्पन्न हो रही हैं वे
जोड़ रखा है , अपनी इच्छाओं से जोड़ रखा fulfill हो जाए, इस प्रकार की भावना
है इसलिए हमें मंदिर से द्वेष है , इसलिए हमें से मंदिर नहीं जाया जाता। जो desires
धर्म से द्वेष है । जबकि मंदिर और मंदिर का हैं हम उनसे भी बिलकुल रहित हो जाए इस
भगवान उसको आपकी इच्छाओं से कोई तरह की भावना से मंदिर जाया जाता है
लेना-देना नहीं है । इच्छाओं की पूर्ति करने ताकि हमारी अंतरं ग शांति हमें महसूस हो।
के लिए मंदिर नहीं जाया जाता है , इच्छाओं
86 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
आत्मा कुछ समझ नहीं आएगा। आज के भगवान की शक्ल नहीं देखेगा। समझ आ
बच्चे क्यों घृणा करते हैं धर्म से क्योंकि उन्हें रहा है कि किस कारण से हो रहा है ? भगवान
धर्म को जानने की कोई भी जिज्ञासा नहीं ने कर दिया। भगवान किस-किस के पापा
और धर्म की अगर कभी भी उन्हें व्याख्या को बचाएगा, किस-किस के पापा को
मिलती है तो गलत ढं ग से मिलती है । धर्म मारेगा तो यही भगवान करने बैठा है तो आज
हमारी इच्छाओं की पूर्ति के लिए होता है , यह तक भगवान ने कभी किसी को बचा कर
उनके जहन में पड़ा है । पूर्ति हो गई तो खुश रखा ही नहीं। यह कोई भगवान के काम है
हो गए और नहीं हुई तो उसी दिन से भगवान क्या? यह भी हमने अपनी माया को फै ला
के ही दुश्मन बन जाते हैं । नहीं जाना, नहीं रखा है । हम कहते हैं संसार माया है , ईश्वर
करना, मैं तो इतना भगवान के पास जाता की माया है । मैं कहता हूँ आपके अन्दर ईश्वर
था, फिर भी मेरे पिताजी का accident हो ही माया के रूप में बैठा हुआ है । ईश्वर का
गया, पापा की death हो गई क्या कर स्वरूप ही आपने बिलकुल माया के साथ में
लिया भगवान ने? कितना द्वेष उसके अन्दर जान रखा है और आप हर चीज को उस
भगवान से आ जाएगा कि जिं दगी भर माया के कारण से लोभ के साथ देखते हो।
धर्मं का मर्म 87
उत्तम शौच धर्म
अपने आप को समझ पाएँगे, संसार को करुणा आ गई। स्त्री के मन में सहज करुणा
समझ पाएँगे, भगवान को समझ पाएँगे, धर्म आ ही जाती हैं । देखो प्रियतम! थोड़ा-सा
को समझ पाएँगे। अभी तो यह एक तैयारी देखो ये, देखो ये कुत्ता कितना परेशान हो रहा
है । किसकी? अभी हुआ कुछ नहीं है । चार है । नाली में पड़ा है , गोत में पड़ा है । इसको
दिनों में केवल हमने एक भूमि तैयार की है हम बाहर निकाल ले, हम भी इसको अपने
और इसलिए तैयार की है , अगर यह तैयारी साथ नहला धुला कर के ले चले और इसको
हो गई तो आगे कुछ होगा। अगर ये चार अपने स्वर्ग में ले चले और इसको हम स्वर्ग
दिनों में वह भूमि तैयार नहीं हुई तो आगे कुछ में अच्छे -अच्छे वातावरण देंगे। क्यों बेचारे
होने वाला नहीं। अब आगे के दिनों में जो को दुःखी करना। हम इतना करने के लिए
कुछ आने वाला है वह तभी संभव है जब तो capable हैं , हम इतना तो कर सकते हैं ।
हमारी क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषाएँ वह देव कहता है कि तुम्हारी बात तो सही है
हमको न छले। हम इनको अपने control लेकिन तुम भी इस पर मोहित हो रही हो।
में रखें। हमारा इनके ऊपर control हो, अगर देखा जाये तो यह अपने आपको उसी
इनका हमारे ऊपर control न हो। अगर में अच्छा समझ रहा है । उसे उससे अच्छी
हम इतना कर पाए तो आगे के धर्मों में छ: चीज कुछ नहीं दिख रही है । लेकिन तुम्हें
धर्म हमारे लिए कुछ काम के होंगे अन्यथा ऐसा लग रहा है कि हम इसको यहाँ से उठा
कुछ काम के नहीं होंगे। मिट्टी के लिए अगर कर के कुछ अच्छी जगह पर ले चले। नहीं-
यह लोभ है कि मैं जहाँ पड़ी हूँ वहीं पर अच्छी नहीं! ऐसा नहीं होता, कितना परेशान हो
हूँ तो उस मिट्टी को कभी अब कलशा नहीं रहा है बार-बार निकलने की इच्छा कर रहा
बनाया जा सकता है । वह एक ऐसी चीज है , उसी में गिर पड़ता है एक बार उसको
होगी कि जैसे मान लो एक छोटी-सी बात निकालो तो, उसको देखो तो, क्या चाहता है ,
बता कर अपनी बात पूरी कर रहा हूँ कि एक क्या करता है ? देवी के कहने से देव और देवी
बार क्या हुआ कि एक नाली में एक कुत्ता दोनों उस कुत्ते के पास चले गए। क्या हुआ?
पड़ा था और कुत्ते को नाली में आनंद तो उन्होंने कुत्ते से कहा स्वर्ग में ले चलते हैं
आता ही है । लेकिन वह उस समय पर जब तुमको, वहाँ पर बहुत सुख मिलेगा, अमृत
नाली में पड़ा था, गोत के बीच में पड़ा था पिलाएँगे, बिलकुल ऐसे बढ़िया-बढ़िया
और वह उसमें से बाहर निकलने की भी green garden मिलेंगे। इतनी sweet
कोशिश कर रहा था। निकल भी नहीं पाता grass मिलेगी तुमको और इतनी अच्छे -
था फिर उसी में गिर पड़ता था तो कोई ऊपर अच्छे tasty-tasty food मिलेंगे तुमको
से एक देव और एक देवी घूमते हुए जा रहे कि तुम्हें यहाँ तो कभी सोचने को ही नहीं
थे। देवी के मन में उस कुत्ते को देख कर के मिल सकते। कुत्ता बड़ा खुश हुआ, बड़ा प्र-
88 धर्मं का मर्म
उत्तम शौच धर्म
सन्न हुआ कि आप हमें स्वर्ग ले चलेंगे। इतना दिलाना चाहता है , वहाँ पापा मिलेंगे, मम्मी
अच्छा, चलो! हम चलते हैं तो वह तैयार हो मिलेगी, वहाँ घर के वातावरण मिलेंगे, बेटा
गया। जैसे ही उसमें से निकलने के लिए मिलेगा, खाने-पीने को मिलेगा, आपको
तैयार हुआ तो कुत्ते ने कहा- थोड़ा रुको! उससे ज्यादा कुछ आता ही नहीं। इसी में
रुको रुको रुको ssssss.. क्या हो गया? हमने सुख मान कर अपने आपको इतना
यह बताओ कि वहाँ पर जो आपने बताया लोभित कर रखा है कि हमें उसके अलावा
वह तो सब ठीक है , बहुत अच्छा है , बहुत कुछ भी दिखता ही नहीं। कोई हमें अच्छा
अच्छा है , बहुत अच्छा है सब मिलेगा। ऐसी chance भी मिले, अच्छी जगह पर ले जाने
यह गोत मिलेगी कि नहीं, यह नाली मिलेगी के लिए हमारा promotion भी कराना
कि नहीं! यह तो बताओ? देव कहते हैं कि चाहे लेकिन फिर भी अपने लोभ के कारण
नहीं-नहीं! वहाँ नाली की गंदगी का क्या से हम वहाँ से निकलने की इच्छा करते नहीं।
काम है । अरे! नहीं, नहीं रहने दो। हमें कहीं because we are also just like a--
नहीं जाना तो हम इसी में ठीक हैं । फिर तो ----- बोलो-बोलो! नहीं बोलोगे, ऐसा है
तुम ही जाओ, तुम ही जाओ। क्या हो गया? कि नहीं। बस! यही हो रहा है । समझ आ
यही हो रहा है ! कोई आपको किसी यात्रा पर रहा है ?
ले जाना चाहता है , कोई आपको कोई सुख
धर्मं का मर्म 89
Day 04 - उत्तम शौच धर्म
आज का चिंतन - अपने लोभ भाव को पहचाने
आज धर्म को छोड़कर उस पर focus करें और note
समझने का चौथा दिन करें कि मेरा मन कितनी चीजों का लोभ
उत्तम शौच धर्म का है कर रहा है ?
जिससे हृदय पवित्र 5. जब बाजार से घर लौट कर आए तो
होता है । आज हमें देखें क्या हम उस चीजों की तीन
अपने लोभ को देखने categories बना सकते हैं -
के लिए दिन भर यह
first category- मेरी ऐसी आव-
चिं तन करना है —
श्यक चीजें कौन-कौन सी हैं जिसके बिना
1. ऐसी कौन सी चीज है जो हमारे पास मेरा काम नहीं चलेगा?
नहीं है लेकिन वह हमें लुभाती है ? second category- मेरी अति
2. ऐसी कौन सी चीज है जिसका लोभ आवश्यक चीजें कौन-कौन सी हैं , जिसके
हमारे अंदर रहता है और हम उन्हें पाना बिना मेरा काम बिल्कुल ही नहीं चलेगा?
चाहते हैं ? third category- कौन-कौन सी
3. आज बाजार में घूमते हुए window चीजें ऐसी हैं जो मेरे लिए अनावश्यक हैं ?
shopping करें और count करें कि इन तीन categories में अपने लोभ
कितनी चीजें हमें लुभाती हैं ? को देख कर उसकी list बनाएँ।
4. अब अपने मन को बिल्कुल स्वच्छं द
90 धर्मं का मर्म
Realize आवश्यक हैं , कितनी अति आवश्यक और
Listing करके आपके भीतर जो राग कितनी अनावश्यक
का प्रवाह है उसकी intensity realize आपको list ईमानदारी से बनानी है ।
होने लगेगी कि हमारे लिए कितनी चीजें
आज का एहसास
1. आज दिन भर से आप अनावश्यक चीजों की need और
आप ने महसूस किया greed से बच जाएँगे और आपके अंदर
कि जो-जो चीजें जीने satisfaction आएगी।
के लिए आवश्यक हैं , 6. जब आप need और greed के
वे सब हमारे पास हैं । अंदर difference करना सीख जाएँगे तभी
2. अनावश्यक लोभ को control कर पाएँगे।
चीजों के burden से 7. आज आपको महसूस करना है
मन हल्का नहीं हो पाता। जो भी चीज मेरे पास रखी है , यह need
3. list देखकर जानने का प्रयास करें, नहीं मेरी greed है । मैं इसके बिना भी जी
जो अनावश्यक चीजें हैं उनको प्राप्त करने का सकता हूँ।
विचार किसी pressure में आ रहा है या 8. इस प्रकार चीज नजरों से दूर होने
सिर्फ देख कर आ रहा है । पर लोभ का भाव नियंत्रित होगा और आप
4. जो चीज अनावश्यक होगी थोड़ी देर sadness और grief के भाव में आने से
में उसको प्राप्त करने की भावना तीव्र नहीं बच जाएँगे।
रहे गी। ऐसे में आप उसे list में से cross 9. इतना कर लिया तो आपका शुचिता
कर सकते हैं । धर्म मन को पवित्र रखेगा।
5. इस प्रकार cross करते चले जाने
स्व-संवेदन
• क्या आप लोभ भाव को पहचान पाए? पाए? yes/ no/ little bit
yes/ no/ little bit • क्या आप need और greed के
• क्या आप आवश्यक, अति-आवश्यक difference को समझ पाए? yes/
और अनावश्यक चीजों की list बना no/ little bit
धर्मं का मर्म 91
Day-5: उत्तम सत्य धर्म
आओ सत्य को समझें
स्वधर्म शिविर का यह पाँचवा दिन। स्व- जाएगी। पहले हम लोगों ने सीख रखा है कि
धर्म को जानने के लिए, धर्म का मर्म समझने जो क्रोध है , मान है , माया है और लोभ है ये
के लिए तीर्थंकरों की वाणी से हमारे पास हमारी चार कषाय हैं और इन चारों कषायों
जो धर्म के दस आयाम बताए गए हैं , उनमें को यदि हम एक शब्द में कहना चाहे तो वह
आज सत्य के बारे में जानने की कोशिश की कहलाता है - मोह।
92 धर्मं का मर्म
उत्तम सत्य धर्म
धर्मं का मर्म 93
उत्तम सत्य धर्म
हमने थोड़ा सा इन चीजों को दबा दिया हो देखें कि ये जो क्रोध, मान, माया, लोभ हैं ये
और यह दबाने का मतलब कोई दमन करना चार तो केवल हमारे भाव हैं , जिन्हें हम अपने
नहीं है । यह तो ऐसा समझना चाहिए जैसे emotions कह सकते हैं , अपने thought
आकाश में बादल छा जाते हैं , धूली कई बार process में भी इनको डाल सकते हैं । यह
उड़ती है आकाश में तो जब हवा चलती है या उपाय नहीं है । उपाय तो अब शुरू होने वाला
पानी बरसता है , तो वह धूली दब जाती है । है जिसे हम बोलते हैं - method. किसी भी
हमें अपने आप जो sunlight है अच्छे ढं ग चीज को achieve करने का कोई process
से मिलने लग जाती है । आप assume होता है । उसका कोई method होता है तो
करेंगे कि जैसे एक गिलास पानी है , उसमें वह अब यहाँ से शुरू होता है । सत्य से जानने
कुछ नीचे dust पड़ी हुई है और वह पानी के के बाद में वह method शुरू होगा। अभी
अन्दर बिल्कुल घुली मिली हुई है । आप तो हम क्या कर रहे हैं ? अपनी योग्यता
उसको थोड़ा सा stable करेंगे तो अपने बना रहे थे, मिट्टी योग्य बन रही थी। समर्थ
आप वह dust नीचे बैठ जाएगी। इसी का बन रही थी, अपने आपको मृदु बना रही
नाम है - उपशमन, दब जाना। जब वह चीज थी, उसको पीट करके, पीस करके चिकना
दबेगी, water में purity अपने आप किया जा रहा था लेकिन फिर भी वह
आपको दिखाई देगी। इसी तरीके से जब बीच-बीच में मान नहीं रही थी। भर-भरा
हमारे विचारों में यह क्रोध, मान, माया, लोभ जाती थी, उसमें कंकड़ भी छिपे हैं तो वह
की जो dust है , यह extra जो fuel है यह छिपा कर के रखती थी क्योंकि वह अपने
सब जब थोड़ा सा down होता है तब जा दोषों को बाहर नहीं निकालना चाहती,
कर के हमारी दृष्टि में एक सत्यता आने लग मायाचारी कर रही है । क्यों कर रही है ?
जाती है । सद्रु
गु का उपदेश तभी आपके लिए उसको लोभ दिख रहा है । मैं जहाँ हूँ, वहाँ
काम कर पाता है । ‘मोह नींद जब उपशमें’ अच्छी हूँ, मुझे इससे ज्यादा कुछ नहीं कर
उपशम होना चाहिए, शांति होनी चाहिए, पाऊँगी, मैं इससे ज्यादा ऊपर नहीं उठना
थोड़े से हमें अपने impatience पर एक मुझे, मुझे कुछ नहीं बनना। यह उसका
control होना चाहिए और जब ऐसा होने जो आस-पास के लोगों से, आसपास
लगेगा तो हम सत्य को समझ पाएँगे, गुरु की चीजों से जो मोह है उसके कारण से
का उपदेश तभी काम कर पाता है । ‘सत गुरु उसकी कोई भी उन्नति होने की अभी
देय जगाय, मोह नींद जब उपशमें। तब कछु सम्भावना नहीं दिख रही थी। अब वह
बने उपाय, उपाय तो तभी बनेगा। अब आप अपने कंकड़ पत्थरों को भी अलग कर पा
94 धर्मं का मर्म
उत्तम सत्य धर्म
धर्मं का मर्म 95
उत्तम सत्य धर्म
लेना है जो बाहर के लोभ-लालच में पड़ कर there are two things in this
के तरह- तरह के fraud करते हैं , तरह- universe. पहली चीज है जो हम देखते हैं
तरह के corruption करते हैं , वह लोग living beings होते हैं जो हमारे सामने बैठे
success माने जाते हैं या जो अपनी जितनी हुए हैं । जिन्हें हम सुनते हैं , समझते हैं , जिनके
need है उनको fulfill कर के अपने आप में साथ हम अपने relation रखते हैं । ये सब
satisfied रहते हैं वह लोग अच्छे माने जाते क्या कहलाते हैं ? living beings. ये सब
हैं । हमें उनको ideal बनाना है या उनको अपने आप में independent अपनी-
ideal बनाना। पहले सोच लो! जब ये चारों अपनी अलग-अलग existence को रखने
चीजें हमारे लिए control में होने लगती है
वाले, यह सब अपनी इनकी अलग entity
तो फिर हमें काफी कुछ सच दिखने लग
है । जैसे हमारा अपना अलग अस्तित्व है ,
जाता है । अब सच क्या है ? जब हम अपने में
वैसे प्रत्येक प्राणी का अपना अलग-अलग
होंगे, थोड़ा सा independent होकर के
अस्तित्व है । अब हमें इस सच को पहले
सोचेंगे तो हमें लगेगा कि देखो! हमारे सामने
स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना है ।
दो तरह की चीजें हैं । कितनी तरह की? only
96 धर्मं का मर्म
उत्तम सत्य धर्म
धर्मं का मर्म 97
ज्यादा खुश होते हैं । अगर मान लो कोई भी दोनों ने आपस में बहुत अच्छा, आपस में
चीजें हैं जो जिनमें कोई भी तरीके का जीवन एक तरीके का agreement किया था कि
तो नहीं है और वह चीजें नष्ट हो रही हैं , आप मुझे तुमसे प्रेम है , मुझे तुमसे प्रेम है । बात
परेशान होंगे या नहीं होंगे। एक तरफ कोई आगे चली कुछ दिनों बाद घर में एक बहुत
भी जो चीज है , मान लो हमारे relative के अच्छी गाड़ी आई। एक दिन पत्नी भी गाड़ी
रूप में हैं वह भी नष्ट हो रही है और एक तरफ चलाना जानती थी। पत्नी ने कहा आज मैं
हमारा कोई भी मकान है , धन है , कोई भी गाड़ी लेकर के जा रही हूँ। थोड़ा सा घूम कर
हमारे कपड़े हैं , हमारे gold की बनी हुई चीजें आती हूँ, गई और थोड़ी देर बाद घंटे भर बाद
हैं , वह भी हमसे छूट रही हैं और एक तरफ जब वह लौटी तो उसने पति से बड़े डरते हुए
हम से हमारे माता, पिता, पति, पत्नी, भाई, भाव से कहा कि बहुत नुकसान हो गया।
बहन ये छूट रहे हैं । अब इन दोनों में अगर हम क्या हो गया? वह जो गाड़ी थी, पूरी की पूरी
compare करें तो आपको किधर ज्यादा बर्बाद हो गई, accident हो गया। समझ में
दुःखी होना चाहिे ए। किस पर? living आ रहा है ? अब आप सोचो कि इस
beings पर और फिर हम यह भी देखें कि situation में आप होंगे तो क्या करेंगे।
अगर उन living beings को भी हम न अभी तो आप सुन रहे हैं , sense में है ,
बचा पा रहे हो, वह भी अगर हमारे सामने इसलिए आप हो सकता है सही जवाब दें।
धीरे-धीरे, देखते-देखते रोगी हो गया, नष्ट हो लेकिन जब practically यह आपके
गया, किसी भी तरीके से उसकी भी death सामने at random कुछ होगा तब उस
हो गई तो अब हम क्या सोचेंगे? अब हम समय पर आप क्या सोच रहे होंगे? क्या
क्या करेंगे? उसके बावजूद भी हमें कोई सच करेंगे? आपके सामने value किस चीज की
दिखाई देगा! क्या दिखाई देगा? हमें क्या होगी और आपका reaction क्या होगा?
दिख पाएगा कि नहीं! मरा कोई नहीं, गया यह depend करेगा कि आप सच को
कुछ नहीं, वह जीव जो था, जिस शरीर के कितने नजदीकी से प्रेम करते हैं । सच्चाई से
साथ में था वह शरीर केवल नष्ट हुआ है । अब हमें प्रेम करना सीखना है । समझ में आ
जीव तो जीव है वह हमेशा रहे गा, वह कहीं रहा है ? अगर हम सच्चाई से प्रेम करेंगे तो
नहीं मरता, वह कहीं नहीं जाएगा। उस सच हम अपने अन्दर के क्रोध, मान, माया, लोभ,
तक आप पहुँच पाओगे! अब आपको थोड़ा सब को देखो कैसे control कर पाएँगे।
सा समझना है ! एक पति और पत्नी बीच में गाड़ी बहुत महं गी थी, बहुत अरमानों से, बहुत
बहुत अच्छा प्रेम भाव है । जब विवाह हुआ था पैसा इकट्ठा करके बहुत दिनों के बाद में गाड़ी
98 धर्मं का मर्म
खरीदी थी और वह आठ दिन ही हुए थे, अभी गाड़ी नष्ट हो चुकी है । पत्नी सामने खड़ी है
नई-नई गाड़ी खरीदी थी, पत्नी ले गई उस और पति उसके सामने खड़ा हुआ है । अब
गाड़ी को एक घण्टे के अन्दर पूरी की पूरी आप सोचे कि दोनों के बीच में क्या होने
बर्बाद करके आ गई, अब उसमें कोई भी वाला है और क्या होगा? सच क्या है ? प्रेम
सुधार की भी कोई गुंजाइश नहीं है , पूरी किससे है ?
धर्मं का मर्म 99
उत्तम सत्य धर्म
एक अजीव वस्तु थी, आज भी वह अजीव नहीं बनते। कार हम दोबारा ला सकते हैं ,
ही है । कोई बात नहीं सच यही है कि अजीव सब कुछ हम दोबारा खरीद सकते हैं लेकिन
कोई भी पदार्थ है , वह मिटता है और कई बार बिगड़े हुए सम्बन्धों को, मिटे हुए सम्बन्धों
अपनी चीजों, अपने form को change को फिर हम दोबारा बना नहीं सकते। हमारे
करता है उसकी सच्चाई यही है जो मुझे लिए importance होनी चाहिए आदमी
मालूम है । लेकिन हमारे सामने हमारी पत्नी की भावनाओं की, हमारे लिए value होनी
खड़ी है इसकी सच्चाई देखो कि इसने कुछ चाहिए जिसके साथ हम behave कर रहे
छु पाया नहीं। इसने आकर के बताया लेकिन हैं । अगर हमारे लिए इस तरह का भाव रहे गा
डरते हुए बताया, अब हमें इसको सम्भाल- तो हम सच के बहुत निकट होंगे और यह
ना है और वह कैसे सम्भल सकती है ? क्या सच्चाई अगर सामने रहे गी तो आप कभी भी
बोलना पड़ेगा? कैसे झल्लाना पड़ेगा? क्या गलत निर्णय नहीं ले पाएँगे। यह तभी सम्भव
करना पड़ेगा? बताओ क्या बोलना पड़ेगा? है जब आपके अन्दर इतना patience हो।
क्या कहना पड़ेगा? पत्नी को भी satisfy वह patience कहाँ से आएगा? वह क्रोध,
करना है । वह जानना चाह रही है आपका मान, माया, लोभ को control करने से
reaction क्या हो रहा है ? आप क्या आएगा। अगर आप अपने इन emotions
कहोगे उसे? एक ही sentence पर्या- पर dependent नहीं हो तो वह patience
प्त होगा। मैंने प्रेम तुमसे किया था गाड़ी से आएगा और अगर आप इन पर depend हो
नहीं। क्या समझ आ रहा है ? अगर इतनी गए तो आपका सब कुछ हो जाएगा। यह
सी बात बोलने में आ गई तो समझ लेना चीज है जैसे-जैसे आप independent हो
कुछ नहीं बिगड़ा। चीजें बनती-बिगड़- रहे हैं आप बहुत कुछ truth के निकट आ
ती रहती हैं लेकिन जो हमारे सम्बन्ध हैं वह रहे हैं , सच्चाई के निकट आ रहे है , अब आप
अगर एक बार बिगड़ जाते हैं तो फिर दोबारा आगे चले।
है कि अब इसकी आयु के बारे में कुछ नहीं मैंने देखा है कि जिसका जिससे विवाह हो
कहा जा सकता। कितने दिन यह जीवित रहे रहा है उस लड़के के माता-पिता ने बताया
कुछ नहीं कहा जा सकता। God bless नहीं कि इस बेटे को क्या परेशानी है और
you! उसने ऐसा कह कर के छोड़ दिया। विवाह के समय पर भी उसको एक तरीके
अब आप सोचे अपने ऊपर अब क्या होगा? से बुखार सा आ रहा है , वह रोगी हो रहा
कुछ ही दिनों बाद यह भी महसूस होने लगा है । फिर भी उसका विवाह करा दिया गया
कि अब इसकी मृत्यु निश्चित है और आखिर और विवाह के बाद सीधा दूसरे ही दिन पूजा
आठ दिन बाद उसकी मृत्यु हो ही गई। अब कर के hospital में भर्ती हो गया और आठ
क्या हुआ? अब हम किससे प्रेम करेंगे? अब दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। आपको सत्य
हम क्या करेंगे? क्या हम बिल्कुल उदास हो घटना बता रहा हूँ, कुछ नहीं हुआ और यह
कर के, depressed होकर के बिल्कुल पड़े सब हो गया। अब आप सोचिये क्या हो रहा
रह जाएँगे या हम अपना काम, उठकर के खुद है ? हम किसी के साथ में अगर कोई सम्ब-
अपनी हिम्मत से कुछ और भी सोच सकेंगे, न्ध बना रहे हैं तो हमारे लिए यह सच भी
कर सकेंगे, पहले से अपने आपको बिल्कुल ध्यान में रखना होगा कि इन सम्बन्धों की
prepare करो। अगर आपके सामने यह duration क्या है ? अगर हमारे सामने कोई
हो गया, अब आप सोचोगे कि मुझे प्रेम चीज चली जाती हैं , नष्ट हो जाती है , मृत्यु
करने के लिए कुछ नहीं बचा। अब आपको को प्राप्त हो जाती है तो उस समय पर हमारे
सच्चाई से जुड़ना है , सत्य को समझने की मन में क्या सत्य सामने आएगा। सत्य क्या
कोशिश करना है । सत्य यही है जो आया है ? उस समय पर जो दिख रहा है वह सब
है वह जाएगा। किसी से कोई भी सम्बन्ध कुछ नष्ट होगा और जो नहीं दिख रहा है , वह
है , कोई भी किसी भी तरीके के relation कभी भी नष्ट नहीं होता। वह permanent
हैं वे कुछ time के हैं , कुछ time के हैं । रहने वाला वह आत्म तत्त्व है । वह शाश्वत है ।
यह सत्य है इसको पहले स्वीकार कर लो। वह एक ऐसा तत्त्व है जो हमेशा रहने वाला
किसी के लिए वह time थोड़ा ज्यादा हो है । लेकिन हम सत्य को कहाँ देख पाते हैं ।
जाता है , किसी के लिए time जितना हम हमारी दृष्टि में एक बहुत बड़ा असत्य क्या
accept करते हैं उतना पूरा हो जाता है । रहता है कि हम जो नष्ट होने वाली चीजें हैं
किसी के लिए time से थोड़ा पहले भी हो उन्हीं को हम permanent समझ लेते
जाता है , time हम देख कर के नहीं आये हैं । हैं । यह हमारे साथ हमेशा रहे गा। आप देख
कितने ही ऐसे सम्बन्ध बनते हैं , यहाँ तक भी ले एक सत्य के ऊपर हम हमेशा पर्दा डाले
रखते हैं चाहे वे चीजें दूसरे के साथ जुड़ी हों, जिनकी death हो रही है । जिन्होंने बड़े-बड़े
चाहे अपने साथ जुड़ी हो। जो भी चीजें हमारे business के अपने-आपके और दूसरों
सामने है , वह नष्ट होने वाली हैं और हर नष्ट के साथ में बड़े-बड़े कहना चाहिए करोड़ों
होने वाली चीज को हमने यह मान रखा है के agreement कर रखे थे। बन्दा चला
कि बिल्कुल eternal है । यह बिल्कुल जो गया, सारी की सारी जो planning थी वह
है हमारे लिए long life है , कोई भी इसमें धरी रह गई। दूसरे की भी रह गई, खुद की
कुछ होने वाला नहीं है , ऐसा मान कर के ही भी चली गई। हम सत्य को किस रूप में
हम बैठे हुए हैं । चाहे वह अपने बारे में हो चाहे नकारते हैं कि जो हमारे सामने है वह शाश्वत
दूसरे के बारे में हो। अपने बारे में भी हमने है हम ऐसा मान कर चलते हैं । हम कभी
यही मान रखा है जैसे हम जी रहे हैं तो कोई यह नहीं सोचते हैं कि ये सब चीजें जो हमारे
यह समझ सकता है कि मेरी मृत्यु दो महीने सामने हैं ये सब अशाश्वत है । शाश्वत नहीं है !
बाद या एक महीने बाद हो गई तो मैं क्या शाश्वत तो मेरा आत्मा है । सामने वाले जीव
करूँ गा। हमने क्या मान रखा है ? आज अगर के अन्दर भी जो उसका अपना उसका जो
हम पंद्रह साल के हैं , अठारह साल के हैं तो living being, जो आत्मा है वह शाश्वत है ,
हम सोच रहे हैं अभी हमारी job लगेगी, उसका शरीर शाश्वत नहीं है । इस सच्चाई
फिर हमारी marriage होगी, फिर हम एक को यदि हम समझेंगे तो हम इस संसार में
अच्छी सी अपनी नई family को बसाने के जी पाएँगे अन्यथा जीने की तैयारी करने से
लिए किसी जगह पर अच्छा एक flat लेंगे, पहले ही मरना पड़ जाएगा। depression
फिर उसमें रहें गे। फिर आगे की planning में चले जाएँगे और आज यही हो रहा है ।
करेंगे। हमने सब चीजें ऐसे अपने दिमाग में दुनिया में इतने ज्यादा लोग दुःखी हैं , इतने
set कर रखी हैं जैसे कि वह सब कुछ हमारी ज्यादा लोग depression के शिकार हो
इच्छा से ही बिल्कुल होने ही वाला है । हम रहे हैं , इतने ज्यादा लोग suicide कर रहे
देखते भी रहते हैं । कितने ही लोग हैं जो सब हैं कि उसके पीछे उन्हें यही कारण है कि
अपनी इच्छाएँ रखते भी थे लेकिन वह सब उन्हें सत्य से कभी भी परिचय नहीं कराया
बीच में ही चले जाते हैं , कितने सारे लोग हैं गया, सत्य को नहीं जाना।
जो आज इस कोरोना में इस तरह से बीच में
हैं , शरीर मिला, उम्र मिली, सम्बन्धी बने, तो हम क्या बोलते हैं ? हम बीस साल के
हमने वृक्ष लग लिया, बन गया तो बन गया, हो गए, चालीस साल के हो गए। हमें जन्म
नहीं बन पाया तो कई बार समय से पहले भी दिख रहा है , यूँ नहीं कहने में आता है कि
मिट जाता है और लग भी गया तो भी वह हमने चालीस साल खो दिये, बीस साल खो
वृक्ष भी उस पर भी जो फल लगेंगे वे भी दिये। जो निकट चला गया उसकी मृत्यु हो
टू टेंगे, वे भी नष्ट होंगे। उस पर जो फूल लगेंगे गई और आज भी अगर हम किसी भी जगह
वह भी गिरेंगे, कोई भी फूल किसी वृक्ष पर पर अगर हम हैं तो वहाँ पर भी यह जन्म और
शाश्वत नहीं लगा रहता। कभी देखा है , गुलाब मृत्यु का क्रम तो चल ही रहा है । हम जन्म
का फूल हो,चाहे कमल का फूल हो, किसी की खुशी मना रहे हैं कि हम मृत्यु के लिए
भी डाली पर अगर गुलाब का फूल लगा है , आज सामने देखें, इस सच को अगर हम नहीं
तो रोजाना भी देखोगे तो क्या वह हमेशा वैसे समझ पाएँगे तो हम कभी भी अपनी सच्चाई
ही लगा हुआ दिखाई देता रहे गा। धीरे-धीरे से अपने आप को पहचान नहीं पाएँगे। हर
वह अपने आप वहीं के वहीं अपनी क्षमताएँ चीज हमेशा नई भी हो रही है और हर चीज
खोते-खोते, खोते-खोते एक दिन आपको हमेशा पुरानी भी हो रही है । उसी क्षण पर
बिलकुल नष्ट होता हुआ दिख जाएगा। अपने उसमें नई-नई पर्याय भी उत्पन्न हो रही हैं
आप वह डाली से टू ट पड़ेगा, अपने आप उसी और उसी क्षण पर उसमें पुरानी पर्याय नष्ट
मिट्टी में फिर मिल जाएगा और वहाँ से फिर भी हो रही है । हम जी भी रहे हैं और मर भी
जन्म मिलेगा। रहे हैं । समझ में आ रहा है ? इतना तो सब
फूल मिलते खाद में, समझ लिया। हम से कोई कहे गा आप क्या
फिर खाद में गुल खिल रहे हैं । कर रहे हैं तो आप बिल्कुल एकांगी दृष्टि-
जन्म मृत्य और मृत्यु जन्म में कोण से बोलना जी रहा हूँ, बड़े मजे में जी
घुल मिल रहे हैं ।l रहा हूँ। जी तो रहे हैं लेकिन मर भी रहे हैं ।
यह जीवन की सच्चाई है , सब कुछ क्यों मर रहे हैं ? एक दिन निकल गया, दो
घुल मिल रहा है लेकिन हमारा जो देखने दिन निकल गए, आठ दिन निकल गए, एक
का नजरिया है वह एकांगी है । हम अपनी महीना निकल गया, एक वर्ष निकल गया।
single like, single attitude से ही जो निकल गया वह मर गया, वह चला गया,
हम हर चीज को देख रहे हैं । जन्म-मृत्यु और वह नष्ट हो गया। अब उसके साथ हमारा
मृत्यु-जन्म में घुल मिल रहे हैं यह सच है । कुछ नहीं है । वह सिर्फ हमारी केवल यादों में
लेकिन हम हमेशा जन्म को देखते हैं मृत्यु रह गया, वह मिट चुका है , वह जो past है ।
को नहीं देखते। जब हमारा कोई भी तरह
का जन्मदिन आता है , birthday आता है
अपनी जिं दगी में बहुत सारे experiment के, जैसे मान लो बिल्कुल उसे यह दिख रहा
किए और result कुछ नहीं आ रहा है । है कि असत्य जल रहा है , सत्य नहीं जल रहा
तीस साल हो गए, चालीस साल हो गए, है , वह बिलकुल खड़ा है । लोग उसके पास
experiment कर रहा है , तरह-तरह की, में आए, उसकी पत्नी उसके पास में आई,
सब तरीके से अपना science का उपयोग पूछती है कि इतना सारा नुकसान हो रहा
कर रहा है , knowledge का उपयोग है और आप बिल्कुल स्तब्ध खड़े हो तो वह
कर रहा है । उसकी एक बहुत बड़ी कुछ कहता है - अभी इस स्थिति में है कि इसको
ऐसी मतलब library या कहो कुछ ऐसी बचाने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो
factory type की उसकी कुछ बनी हुई सकता। आग इतनी लग चुकी है अब इसमें
थी जिसमें उसका बहुत कुछ जो material कुछ भी बचा नहीं है । जो मेरा कीमती था,
था जिसमें वह research करता था, वह जो मैंने जिन्दगी में कुछ भी अर्जित किया
सारा का सारा रखा हुआ था। एक दिन न था, वह सब जल चुका है , यह मैं मान रहा हूँ।
जाने कैसे, क्या हुआ, कोई भी chemical लेकिन फिर भी नहीं मान रहा हूँ कि अभी भी
reaction गलत हुआ, कुछ हुआ, उसमें कुछ नहीं हुआ है , अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा
आग लग गई। यह Edison के जीवन की है , यह भी मुझे बिल्कुल समझ में आ रहा है ।
सत्य घटना है । आग लग गई, उसके पास यह वह अपनी पत्नी से कह रहा है । कौन?
जो कुछ भी बहुमूल्य था, जो उसने अपनी Edison! इतनी patience, सामने
जिं दगी में कमाया था, research किया सब कुछ जिंदगी भर की कमाई जल रही है
था। आखिर बुद्धिमान लोगों के पास में बहु- लेकिन न वह रो रहा है , न चिल्ला रहा है ,
मूल्य क्या होता है ? उनके अपने लिखे हुए न दौड़ रहा है , न किसी के लिए सहायता
कागज, उनकी अपनी कापियाँ, उनके अपने की भीख मांग रहा है । खड़ा है स्तब्ध हो
notes, उनके अपने formulas वह सब कर के, देख रहा है , सोच रहा है , कुछ
कुछ जो था वह वही पर सारा का सारा जल भी नहीं है , जो है सो ठीक है , जो सच है
गया। सब कुछ मिट गया। सारा का सारा उसको स्वीकारना है , जो हो गया सो हो
वह देख रहा है और आप मान कर रखो, गया, यह सब ज्ञान उसके अन्दर बिल्कुल
यकीन करो कि वह उस जलते हुई उस स्थान सही चल रहा है । वह उसका कोई भी
को देख रहा है , उस factory को देख रहा है पछतावा नहीं करता, उस स्थान के बारे
जहाँ पर वह सारी चीजें जल रही हैं और वह में सोचने से दुःखी होने से अपने आप को
खड़ा है । वह खड़ा है बिल्कुल स्तब्ध हो कर बचा लेता है । अपने conscious level
बोलते हैं ? एक आपेक्षिक सत्य। हर चीज के पाएँगे। otherwise यही होगा कि चीज
साथ में जो हम relativity के साथ में सामने मिटती है उससे पहले हम मिट जाते
चलेंगे तो हम यह ध्यान रखें कि हम क्या हैं । अगर आपको खबर भी लग गई कि
है ? सामने वाला क्या है ? और हमारे अन्दर आपकी बहुत बेशकीमती कार जो है नष्ट हो
क्या हो रहा है ? सामने वाले के अन्दर क्या गई है या किसी accident में बिलकुल
हो रहा है ? अगर सामने वाले के अन्दर मिट गई है तो इतना सुनते ही इतना धक्का
कुछ हो रहा है , तो भी हमारे अन्दर क्या लग सकता है कि आप भी उसी समय गिर
होना चाहिए? हमारी अपनी शांति, हमारी पड़ सकते हो। हाँ! कलेजा मजबूत रखो।
अपनी बुद्धि, हमारा अपना patience, मजबूत लोग ही यहाँ जिं दगी जी पाते हैं । इस
कितना disturb होना चाहिए और हम तरीके के धक्के सबको लगते हैं तो अपने को
कितना कर रहे हैं । अगर हम इन चीजों को सत्य के निकट रहने की अब एक हिम्मत पैदा
balance करें गे तो ही यह धर्म आपके करना है । यही सत्य को पाने के लिए अब
काम में आएगा। अतः सत्य धर्म का प्रयोग आगे आपको कुछ उपाय और बताए जाएँगे
करना सीखें। कैसे प्रयोग करें? इस तरह की कि कैसे-कैसे हम इस सत्य को और ज्यादा
living और non-living being के बीच अच्छे ढं ग से अपने अन्दर महसूस कर सकते
में हम अपने एक difference को बनाएँ, हैं और पाने की हिम्मत कर सकते हैं । पहले
listing करें और फिर यह समझें कि अगर हम समझें सत्य क्या है ? आज जो आपने
कोई भी चीज के साथ में मेरा मोह है , लालच समझा है , उसका अपने अन्दर एक graph
है तो वह कितनी हद तक है । अगर यह चीज बनाना। सत्य क्या है ? क्या है ? क्या है ?
ruined हुई तो हम इसके इस jerk को सह ultimately हमारे साथ इससे ज्यादा क्या
पाएँगे कि नहीं सह पाएँगे। पहले से अपनी हो सकता है ? हम उसको भी स्वीकार कर
knowledge को balance बनाओ और लेंगे तो इसका मतलब है ‘सत्यमेव जयते’।
अगर आप पहले से mentally prepare हमने सत्य को जीत लिया है , सत्य की ही
होंगे तो ही आप किसी भी sudden जय हो रही है । इसका मतलब यही है ।
accident पर अपने आप को stable रख
आज का एहसास
1.हम यह समझें कि 3. जो सत्य को पहचान पा रहे हैं और जो
जितना क्रोध-मान-माया- नहीं पहचान पा रहे हैं वे समझें कि यह एक
लोभ हमारे अंदर से निकल process है , जिसकी अभी शुरुआत हुई है ।
गया है उतना हम सत्य के 4. स्वयं के पुरुषार्थ को appreciate
निकट हैं । करें।
2. अगर हम झूठ को 5. इससे आपका confidence बढ़ेगा
पहचान नहीं पाते कि कब कहा गया तो क्रोध- और उतना सत्य के निकट होंगे।
मान-माया-लोभ का उतना आवरण अभी 6. सत्य बोलने का प्रयत्न भी करें।
बाकी है ।
स्व-संवेदन
हैं या हम अपनी ही ऊर्जा को सन्तुलित बना को बढ़ाता-बढ़ाता एकम, दूज, तीज करते-
कर के किसी भी काम में लाने की कोशिश करते वह पूर्णिमा तक पहुँच जाता है । पुनः
करते हैं तो इस तरह की healing में भी यह वही क्रम फिर प्रारम्भ होता है , कुछ अन्यत्र
सिखाया जाता है कि आप अपनी ऊर्जा को नहीं जाता, कुछ अन्यथा नहीं होता। यहीं से
समझने की कोशिश करें। फिर शुरू होता है फिर कृष्ण पक्ष प्रारम्भ
यह संयम भाव है यानि होगा दूसरे महीने का और फिर वह प्रथमा,
हमारे शरीर में बहुत द्वितीया, तृतीया ये चलेगा और वह पन्द्रस
सारी ऊर्जा का flow तक आकर के आवश्यक का रूप लेगा। फिर
जो कुछ बह रहा है , वही क्रम चलेगा वही शुक्ल पक्ष आएगा।
निरन्तर बहता रहता यह क्रम निरन्तर चल रहा है , चन्द्रमा का भी
है । अगर हम उसे चल रहा है , सूर्य का भी चल रहा है । सूर्य भी
संयमित बनाएँगे तो अपनी गति से भ्रमण करता है । अपनी एक
वह किसी के काम आएगी। संयमित होना निश्चित परिधि पर घूमता है , उसकी एक
एक ऐसी शक्ति है , जिसके माध्यम से हम निश्चित गली बनी हुई हैं । उनमें वह घूमता है ,
अपनी बहती हुई तमाम अनावश्यक ऊर्जा भ्रमण करता है और भ्रमण करते-करते है ,
को एक जगह concentrate करके उसे जो उसकी वीथियाँ बनी हुई हैं , उन्हीं वीथियों
किसी के काम में ले आते हैं और अपने भी में वह निश्चित समय पर अपना भ्रमण करते-
काम में ले आते हैं । इसलिए संयम का बड़ा करते अपनी गली से दूसरी गली में आ जाता
महत्व है । आप देखते हैं दिन और रात प्रति- है । अन्य गली में आ जाता है। कभी वह
दिन होते हैं और इस दिन और रात की इस हमारे बहुत पास आ जाता है और फिर पास
प्रक्रिया में सूर्य और चन्द्रमा का अपना एक आकर के फिर धीरे-धीरे दूर जाने लग जाता
बहुत बड़ा role रहता है । समय पर सूर्य का है । जब पास आ जाता है तो गर्मी का समय
उदय होता है , समय पर सूर्य अस्त हो जाता आ जाता है । जब दूर जाने लग जाता है तो
है । रात्रि आती है चन्द्रमा का उदय होता है ठण्ड का समय आ जाता है । यह एक बहुत
और चन्द्रमा भी एक नियमित गति से, पहले सीमित ढं ग से एक निश्चित रूप से एक अच्छी
कृष्ण पक्ष होता है तो अपनी कलाओं को प्रक्रिया के रूप में हमें सूर्य और चन्द्रमा की
घटा कर घटाता-घटाता घटाता-घटाता गति से जो लाभ मिलता है , वह हमें बताता है
अमावस्या तक पहुँच जाता है । फिर शुक्ल कि हमारे जीवन में कितना बड़ा उपकार सूर्य
पक्ष प्रारम्भ होता है । अपनी एक-एक कला और चन्द्रमा के माध्यम से हो रहा है । दिन
हमको कसा जा रहा है । ऐसा भाव आता है में यही dress पहन कर बैठें और वह वही
हमारे लिए कहीं से force डाला जा रहा है । dress पहन कर बैठते हैं । आप सोच सकते
लेकिन यह force ही हमको discipline हैं ऐसा discipline होगा? आप जानते
में लाता है । आदमी यह सोचता है हम किसी हो ऐसी companies के नाम? देखना!
भी तरह की control में न रहे । आज का आपको आस-पास मिल जाएँगे। बताते
पढ़ा-लिखा आदमी इस तरीके से सोचने नहीं है लोग क्योंकि उन्हें इस बात को बताने
लगा है । मैं कई बार देखता हूँ बहुत सारे, कुछ में भी कहीं हिचक हो सकती है । शर्म लग
चिन्तकों के articles आते है और कुछ ऐसे सकती है । लेकिन यह है ! आपकी colony
भी philosophers रह चुके हैं , जिन्होंने में ही ऐसे employees हैं जो इस तरीके
हर तरीके से आदमी को उन्मुक्त करने का के discipline में आज भी job कर रहे हैं ।
भाव दिया। उन्मुक्त प्रेम, उन्मुक्त जीवन यानि आप समझें कि यह क्या चीज है ? हम जब
किसी भी तरीके से आप अपने आपको भी कभी धर्म के मन्दिरों मे जाते हैं , प्रवचन
बिल्कुल भी बन्दिश में न रखो। बिलकुल सुनने बैठते हैं , हमारा कोई discipline ही
free! ऐसे जब चिन्तन सामने आते हैं तब नहीं होता। न हमें बैठने का कोई seating
वह आदमी उन चिन्तनों से प्रभावित तो होता order होता है , न आने का time होता है ,
है लेकिन अपने जीवन में कर कुछ नहीं कोई मन्दिर में किस तरह से बोलना, किस
पाता। आप देखेंगे कि हमने ऐसी-ऐसी भी तरह से enter करना, किस तरह से exit
कम्पनियाँ देखी है , जैसे आजकल work होना, किसी चीज का कोई discipline
from home चल रहा है । आज भी उन नहीं होता। अगर हम किसी discipline
कम्पनियों के जो employees है , जहाँ घर में नहीं है तो कहीं से कहीं तक हमारे लिए
में बैठे -बैठे work from home कर रहे हैं संयम भाव नहीं है और संयम नहीं है तो हम
, आज भी उनके लिये ये नियामक है कि घर सत्य का मजाक उड़ा रहे हैं।
अनुशासन है तो संयम है
जब हम किसी तरह पर जाना होगा। जिस side पर चलना है ,
के संयम भाव में नहीं उसी side पर चलना होगा। जिस speed
होते तो हमारे अन्दर पर गाड़ी चलानी है उसी speed में गाड़ी
किसी भी तरीके की, चलानी होगी। तभी आप अपने गंतव्य तक
किसी भी चीज की पहुँचेंगे। discipline दुनिया में हर जगह है ,
कोई limits नहीं दुनिया में हर काम में है , प्रकृति में है , job
होती। हम किसी करने वाले लोगों के अन्दर भी discipline
discipline में नहीं होते हैं । जब हम किसी है । लेकिन हमने कभी भी अपने आध्यात्मिक
discipline में होते हैं तभी हम किसी एक जीवन के लिए कभी discipline नहीं
direction में चल सकते हैं । अगर हम अपनाया। यह हमारी एक सबसे बड़ी कमी
discipline में नहीं है तो हम कभी चार रही है । हमने कभी अपनी आत्मा के लिए
कदम है इधर चलेंगे, चार कदम उधर चलेंगे, discipline नहीं अपनाया। आत्मा को
चार कदम पीछे चलेंगे, चार कदम आगे अपने एक गंतव्य तक पहुँचाने के लिए हमने
चलेंगे। हम कहीं नहीं पहुँचेंगे। चलेंगे तो कभी संयम नहीं अपनाया और इसी की
लेकिन पहुँचेंगे कहीं नहीं क्योंकि हम वजह से हम तमाम तरह के दुःख तो भोग
discipline में नहीं है । जब भी कभी आदमी लेते हैं । सब तरह की मर्यादाओं का उल्लंघन
को कहीं पहुँचना होता है उसे discipline करके जीने का हमारा भाव रहता है और हमें
में ही चलना पड़ता है । एक order में चलना जब दूसरे चिन्तक भी यही सिखाते हैं किसी
पड़ता है । अगर आपको यहाँ से दिल्ली भी भी तरह के नियमों में बन्द कर के अपने आप
जाना है तो आप को discipline में जाना को बन्दिशों में मत डालो। बिलकुल free
होगा। जिस road पर जाना है , उस road रहो! आज के जो चिन्तक हैं वह हमारा मन
ऐसे मोहते हैं । आपको बिल्कुल सही बात डालो। कोई rules नहीं, कोई
लगती है । किसी को एक यह भी है कि जो regulations नहीं, कुछ नहीं। इसका नाम
कहते हैं - किसी भी तरह का कोई चिन्तन में, क्या है ? बड़े-बड़े योगी, चिन्तक, दार्शनिक,
कोई भी तरह का, कोई भी अपने अन्दर अपने आपको ध्यानी कहने वाले, इस तरह
boundation मत रखो। किसी भी तरह के की language से आज के लोगों के मन में
rules में अपने आप को मत बाँधो। किसी मोह उत्पन्न करते हैं । किस बात का? ताकि
भी तरीके का कुछ भी bonding नहीं। वह हमारे पास आ जाये। हमारी class
बिल्कुल free रहो और ऐसे लोग जब ऐसे join करें। हमारी class में आने के लिए
लोगों को सुनते हैं तो उन्हें लगता है कि यह पाँच हजार, दस हजार रुपये की टिकट ले
बात तो बिल्कुल अच्छी है और अगर हम ऐसे तब उन्हें पता पड़ेगा कि हम यहाँ क्या सिखाने
ही उन्मुक्त होकर के जिएँगे तो हमें कुछ योग जा रहा है । जबकि यह कहीं से कहीं तक
का, अध्यात्म का, ध्यान का, लाभ भी मिल योग की कोई परिभाषा ही नहीं है । न जैन
जाएगा क्योंकि यह योगी भी है , आध्यात्मिक ग्रन्थों में, न अजैन ग्रन्थों में यहाँ तक कि
भी है और ध्यानी भी है । इसी रूप में प्रसिद्ध गीता में भी लिखा हुआ है कि ‘असंयतात्मना
हैं । अतः आदमी के अन्दर क्या भाव आएगा? योगो दुष्प्राप इति में मतिः’ श्री कृष्ण कहते हैं
कि हमको भी इन्हीं का योग अपनाना है । कि जो असंयत आत्मा है उसके लिए तो
अब यह जो भी योग सिखाएँगे, जो भी ध्यान कोई योग है ही नहीं, ऐसा मैं मानता हूँ और
सिखाएँगे, अब यही ध्यान करें, जिसमें कुछ जो जैन आचार्य हैं वह कहते हैं कि जब तक
करना नहीं पड़ता। कोई discipline नहीं। आप अपने अन्दर संयम नहीं लाओगे तब
बिल्कुल frequently आपको जैसे नाचना तक चित्त एकाग्र नहीं होगा। ‘संयम्य करण-
है नाचो, जैसे गाना है गाओ, जैसे उठना है ग्रामभेकाग्रत्वेन चेतसः’ जब तक आप अपने
उठो, जैसे खाना है खाओ, जैसे बोलना है चित्त को एकाग्र करने के लिए अपने इन्द्रियों
बोलो, कुछ भी करो। आप अपने अन्दर के समूह को संयमित नहीं कर दोगे तब तक
किसी भी तरीके की कोई भी bonding मत आप आत्मा के लिए कुछ कर नहीं पाओगे।
साथ चल रहा है । वर्षा ऋतु में वर्षा होती है , के लोभ में, अपने अन्दर कोई discipline
सूर्य गर्मी के दिनों में तपता है , धरती तपती है , का भाव नहीं आ रहा।
ठण्ड के दिनों में ठण्ड पड़ती है । जिन ऋतुओं discipline तो वह
में जिस तरह के फल फूल आने चाहिए उन होता है , जो हम अपनी
ऋतुओं में उसी तरह के फल फूल आ रहे आत्मा के लिए करें,
हैं । सब कुछ नियमित क्रम से चल रहा है अपने लिए करें। अपने
और जब यह नियमित क्रम से चलता है तो आप की उन्नति के लिए
वह हमारे लिए अच्छा लगता है । प्रकृति का करें, जिसमें किसी भी
discipline में अच्छा लग रहा है । जब हम तरह का कोई प्रलोभन
किसी अच्छी higher company में job न हो क्योंकि लोभ कषाय तो अब हम छोड़
करने के लिए जा रहे हैं तो उनके discipline चुके हैं । सत्य के लिए संयम में आना
को follow करने के लिए अपने आप को discipline for truth to attain
तैयार कर रहे हैं । वह हमें अच्छा लग रहा है । truth. अगर हमारे अन्दर इस भावना से
क्यों? क्योंकि उसको करने से हमको अच्छा discipline आएगा तो वह संयम भाव में
package मिलेगा। package अच्छा आएगा। self control इसी का नाम है ।
मिल रहा है , आप हम को किसी भी तरीके अभी तो हम controlled by company,
के discipline में रखो अच्छा लगेगा। अगर controlled by other person, self
उन्होंने कहा है आपको 7:00 बजे आपकी control नहीं है । ये नमूने हैं कि हम self
सीट पर बैठना है तो आपको बजे बैठना ही है , controlled होते तो हैं लेकिन किसी के
भले ही work-from-home हो। ऐसी- दिखाने के लिए, किसी के pressure में हो
ऐसी कम्पनियाँ हैं जो यह check करती हैं रहे हैं । इधर self control अपने आप
कि 7:00 बजे आप अपने घर की seat पर आता है । कब? जब व्यक्ति समझने लग
computer के सामने उसी dress में बैठे जाता है कि आखिर हमने असंयम में तो बहुत
हो कि नहीं और हिलने नहीं देंगे आपको। समय गुजारा है । असंयम तो बाढ़ की तरह है
आप ऐसे ही बैठे हो आप बिल्कुल watch इससे हमने अपनी आत्मा के सारे के सारे
करते रहें गे। जैसे ही आप वहाँ से उठे आपके तट तोड़ डाले। सब कुछ, अपनी आत्मा के
लिए तुरन्त bell होगी। कहाँ गए? आप गुणों को, तहस नहस कर डाला। जो मन
समझो! यह सब हम किसी discipline चाहा मैंने खाया, जैसा मन चाहा मैंने enjoy
कर रहे हैं । लेकिन किसके लिए? सिर्फ पैसे किया। सब कुछ किया। यह मान रहा हूँ
लेकिन अब मुझे कोई सिखा रहा है , कोई train में भी बैठते हैं तो वहाँ पर भी
समझा रहा है । कोई बार-बार किसी चीज discipline है । train की दो पटरियाँ भी
के लिए हमें प्रेरित कर रहा है तो हमें थोड़ा तो जो होती हैं वे भी हमें discipline को बताने
उसकी बात समझनी चाहिए। यह भाव आने वाली हैं । लेकिन हमारे जीवन में कहीं से
लगेगा। कब? जब आपकी चार कषाय कम कहीं तक कोई discipline नहीं है । हमें
होगी, सत्य के जानने के प्रति आपके अन्दर ऐसे philosopher मिल जाते हैं , ऐसे
एक लालसा पैदा होगी तो संयम का भाव thinkers मिल जाते हैं , जो हमारे लिए यह
अपने आप आएगा। अपने आप आएगा, और कहने लगते हैं आप कभी अपने आप
कुछ भी करना नहीं पड़ेगा। अगर आपके को ऐसे बांधना नहीं। क्या इसी का नाम
अन्दर ये पाँच दिनों के पाँच काम हो चुके हैं बन्धना है ? अगर नदी अपने दो तटों के बीच
तो फिर छठवें दिन आप अपने आप को में नहीं बंधकर के चलेगी, पटरियाँ अगर
बिल्कुल प्रेम भाव से समर्पित करने के भाव अपने निश्चित difference से, निश्चित
में आ जाओगे। आप कहोगे आप बताओ हमें distance से, अगर दोनों जगह पर नहीं
क्या करना है ? task देना नहीं पड़ेगा। आप खींची हुई मिलेगी तो क्या उसके ऊपर बहुत
कहोगे हमें बताओ क्या task आज हमें बड़ी-बड़ी रेलगाड़ियाँ, माल गाड़ियाँ चल
करना है ? आज हम बहुत अच्छे भाव में हैं । सकेंगी? कहाँ discipline नहीं है ? अगर
हमें महसूस हो रहा है कि इतना संयम हम हम अपना एक पैर उठाते हैं तो दूसरा पैर
अपने मन से करते आये हैं । हमें नदी की तरह पीछे होता है । दूसरा पैर जब हम आगे करते
बनना है , संयत हो करके चलना है । हमें हैं , एक पैर पीछे हो जाता है । क्या
discipline में रहना है , सूरज की तरह, discipline नहीं है ? दुनिया का कौन सी
चन्द्रमा की तरह, प्रकृति की तरह किसी भी जगह है जहाँ पर discipline नहीं सिखाया
तरह का अगर हम road पर भी चलते हैं तो जा रहा।
वहाँ पर भी discipline है । अगर हम
कितना खाना है ? कब खाना है ? इसका organs होते हैं , liver है , kidney हैं ,
discipline नहीं है । हर चीज एक order इतने कोमल यह अवयव हैं कि इनके ऊपर
में चल रही है , हर चीज एक systematic कभी भी अगर हम जबरदस्ती करते हैं , किसी
ढं ग से चलती है है , तभी वह हमारे काम भी तरह का कोई भी दूसरा burden डालते
की है । अगर जहाँ पर हम अपनी मनचाही हैं तो एक स्थिति तक सहन कर लेते हैं । जब
कुछ भी करने लग जाते हैं तो हमारा अहित यह देखते हैं कि अब हमसे सहन नहीं हो रहा
ही होता है । आज लोग कितनी बिमारियों है तो फिर यह अपनी क्षमता तोड़ देते हैं ।
से ग्रस्त हो रहे हैं , जितने ज्यादा आज नए- अपना काम करने से अपनी हिम्मत तोड़ देते
नए रोग पैदा हो रहे हैं , इन सब का कोई हैं । फिर कहते हैं - liver कमजोर हो गया,
कारण नहीं है । नए रोग नहीं होते हैं , नई-नई kidney फेल हो गई, heart attack
हमारी lifestyle होती है । नया-नया हमारा हो गया। किससे हो गया? अपने आप हो
असंयम का भाव होता है और जितना हम गया? दुनिया का कोई doctor आपसे
असंयम के साथ जुड़ते चले जाएँग,े हम उतने नहीं कहे गा कि आप असंयत थे इसलिए
रोगी होते चले जाएँग।े रोग होने का कोई हो गया। उसे क्या लेना-देना है ? उसे तो
कारण नहीं क्योंकि जो body को चाहिए, अपनी दुकान चलाना है । वह तो यूँ कहे गा
जितना चाहिए, जब चाहिए, अगर हम उसको heart attack हो गया इसीलिए आदमी
उसके अनुकूल देंगे, body बिलकुल सही की death हो गयी, kidney fail से हो
रहे गी, कोई रोग नहीं होंगे। लेकिन अगर हम गई, इसलिए मर गया। liver ने काम करना
अपना मनचाहा उसको देंगे और वह वैसा बन्द कर दिया। इसलिए अब आपके लिए
function नहीं चाह रही है , वैसा काम कोई digestion नहीं हो सकेगा। वह तो
नहीं कर पा रहा है तो फिर वह कहीं न कहीं इतना ही कहे गा। यूँ क्यों कहे गा कि आप
आपके लिए रोग का काम करेगा। आपके इतना सारा खाते थे, यह सब गलत-गलत
लिए दिक्कत पैदा करेगा। एक स्थिति तक चीजें खाते थे, उसे क्या लेना-देना। हमारी
तो हमारा शरीर भी बहुत कुछ सहन करता दवाई खाओ। तुम्हें जो खाना है खाओ।
है। हमारी body के अन्दर बहुत ही soft
संयम का मार्ग कठिन नहीं परन्तु इच्छा शक्ति सशक्त होनी चाहिए
एक समझदार इं सान के लिए संयम अभी यह समझा रहा हूँ। अगर आप संयम
का महत्व कितना होना चाहिए मैं आपको से घबराते हैं तो आपके अन्दर आज के दिन
इस प्रवचन को सुनने के बाद मैं इतनी अक्ल हमें अपने को discipline में लाना चाहिए।
अपने आप आ जानी चाहिए कि हमें संयम लोग यूँ ही नहीं कहते रहते हैं , दिन में खाओ,
से घबराना नहीं है क्योंकि संयम बहुत कोई रात में मत खाओ, बाहर का भोजन मत करो,
कठिन चीज नहीं है । ज्यादा चटपटे ज्यादा मसालेदार, ज्यादा मैदा
संयम का मतलब है - की, इन चीजों को मत खाओ। कहीं न कहीं
हर चीज को बिल्कुल तो इस तरह से जो लोग हमें कहते हैं , बचाते
सही ढं ग से चलाना। हैं , कुछ तो इसमें ज्ञान होता होगा, कुछ तो
body को भी इनका उद्देश्य होता होगा। एक समझ में
चलाना, mind को आना चाहिए। इसको इस तरह से अपने
भी सही ढं ग से जीवन में लाना, इसका मतलब है कि अब
चलाना, life को भी हम असंयम से संयम की ओर आ रहे हैं ।
सही ढं ग से चलाना। अपने emotions, क्यों आ रहे हैं ? क्योंकि इसके बिना चीजें
अपने thoughts को भी एक सही अच्छे ढं ग से नहीं चलेंगी। न इसके बिना
process में ढालना और अपनी आत्मा को हमारा शरीर सही से चलेगा। न मन सही से
भी एक सही ढं ग से चलाना। discipline काम करेगा, न आत्मा अच्छे से काम करेगी।
में रखना इसका नाम ही कहलाता है - self कुछ भी नहीं काम करेगा। संयम तो अपनाना
restraintment. आत्म-संयम इसी को पड़ेगा अभी तक हम जो करते हैं , pressure
बोलते हैं । जब यह चीज हमारे अन्दर अपनी के साथ करते हैं । दूसरे के कहने पर करते हैं
भावना से आएगी तो आपके लिए आगे की लेकिन अब हम यह काम अपने मन से
कोई भी progress सम्भव है । चीज तो करेंगे। जो लोग ऐसा बोलते हैं कुछ भी नहीं
अब यहीं से शुरू हो रही है । अभी तक तो करना, जो मन आए वह खाना, जब मन में
केवल हमने जाना वह सब हमारे emotions आए तब खाना यह उनका कहना। अब हमें
के लिए था, बस अपने emotions को लगता है कि कहीं न कहीं यह हमें लुभाते हैं ।
केवल जो है retreat करो बस! अपने हमें सही रास्ते पर नहीं ले जा रहे हैं । इतना
emotions के लिए केवल काम करो। यह सारा का सारा, philosophy सीखने
अब हम थोड़ा सा जो कर रहे हैं , हम सोचेंगे के बाद आपको यह feeling आनी चाहिए।
इतना सारा असंयम करते हैं । मनचाहे तरीके संयत मतलब है हम अपने आप को एक
से खाते हैं , मनचाहे तरीके से लौटते हैं , निश्चित परिधि में ले आते हैं और एक limit
मनचाहे तरीके से कभी भी खाते हैं , कुछ तो में हम अपनी चीजों को लेकर के चलेंगे।
खाने पीने का मन नहीं है । दुनिया में बहुत होंगी। जिन्हें अच्छे लोग लेते हैं और जिसमें
सारी खाने-पीने की चीजें हैं । लेकिन हम वे काफी कुछ energy होती है और जिससे
चीजें खाएँगे जो हमारे लिए वास्तव में अच्छी दूसरे का कोई नुकसान भी नहीं होता है ।
cola, thumps-up, mirinda यह क्या के लिए कहीं वह सड़ न जाएँ, उन्हें fridge
है ? इतने गन्दे पानी हैं ये, इनके अन्दर इतना करके रखा जाता था। उसके लिए यह
acid होता है कि हमारे जो inner organs fridge बने थे। समझ में आ रहा है ? वहाँ
होते हैं , वह सब जल जाते हैं , तड़प जाते हैं पर लोगों के लिए उन fridge से जब
कि यह हमारे ऊपर क्या डाला जा रहा है ? नुकसान होने लगा, इस तरह के fridge में
हम अपने ही ऊपर अत्याचार कर रहे हैं और जिसमें कि सत्रह प्रकार की ऐसी gases
हम खुश हो रहे हैं । मात्र नब्बे पैसे का पानी होती हैं , जो हमारे लिए उस फल के माध्यम
होता है और हम उसको बीस-बीस रुपये में से हमारे अन्दर पहुँच जाती हैं जो भी चीज
खरीदते हैं , पच्चीस-पच्चीस रुपये में खरीदते उसके अन्दर रखी जाएगी। ऐसी
हैं और हम उन कम्पनियों को आबाद कर रहे dangerous gases होती हैं जो उसके
हैं और अपनी हानि कर रहे हैं और पी-पी अन्दर पहुँच जाती हैं । जो भी चीज हम उस
करके खुश हो रहे हैं । कहते हैं यह हमारा fridge के अन्दर रखेंगे और फिर वह चीज,
standard है । कौन सी ऐसी Jain वह gases, वह chemical हमारे अन्दर
family होगी जिसकी घरों में fridge न हो पहुँचते हैं और फिर उससे हमें cancer होता
और कौन सी ऐसी jain family जिनके है । तब हम कहते हैं हमें पता ही नहीं। हम तो
fridge के अन्दर इस तरह की bottles न शाकाहार करते आ रहे थे। हम को कैंसर
रखी हो। न हमारे लिए fridge का कोई क्या हो गया? वह fridge वहाँ से एकदम से
काम है , न bottles का कोई काम है । उनको कहना चाहिए बिल्कुल outdated
लेकिन फिर भी हमारे लिए एक standard कर दिया गया। european countries
बन चुका है । अरे! fridge तो उन लोगों के में जब इस तरीके की हानियाँ देखी, वहाँ से
लिए होते थे जो European countries उनको भगा दिया गया, हटा दिया गया।
है , जहाँ पर कोई फसल नहीं होती, कोई कम्पनियों को मिटा दिया गया, कह दिया
फल fruits नहीं होते और जहाँ पर इतनी गया यहाँ से जाओ। यहाँ तुम्हारी product
ठण्ड पड़ती है कि वहाँ पर market में लोगों नहीं बिकेंगे। उन्होंने देखा कहाँ जाएँ? दुनिया
को रोजाना जाना possible नहीं होता। में सबसे बेवकूफ, पढ़ा-लिखा बेवकूफ तो
आठ दिन, दस दिन में एक बार जब उनको भारत में मिलेगा। जिसको बेवकूफ बनाना
sunday कभी पड़ता है तब जाकर के एक बहुत easy है । कैसे easy है ? एक तो कहीं
बार वह कुछ shopping कर के लाते हैं , भी Mumbai चलो सबसे पहले और वहाँ
कुछ खाने-पीने की चीजें लाते हैं । उन्हें रखने पर किसी एक हीरो को पकड़ो या किसी एक
इसमें कोई आलू नहीं है । यह तो आटे का गोल गप्पा लेना शुरू किया। अब देखना
बना हुआ है , अब इसमें पानी मिला है , क्या होता है ? समझ आ रहा है ? एक ले
इसको तुम खाओ। मैं अपनी समोसा टिक्की लिया, दो ले लिए तीसरा जैसे ही उसके हाथ
खा रहा हूँ तुम इसको खा लो। अब देखो! में आया है , उसमें वह क्या करता था? मीठी
संयम का प्रभाव वह जब तक लेकर के आ चटनी होती है न, मीठी चटनी और पानी सब
गया जबरदस्ती लेकर के आ गया। अब चीज डाला था। वह तो एकदम से उसने
लाकर के उस ठे ले पर खड़ा कर दिया और चटनी डाली, वह घड़ा रहता है , उसमें से उसने
उसने दोस्तों के force में आकर के चलो पानी भरा और दोने के अन्दर हाथ में रख
ठीक है ! आलू तो नहीं खाना, अभी गोलग- दिया। एक दम से तीसरा जैसे ही हाथ में
प्पा तो खा सकते हैं । लेकिन फिर भी उसके आया और उसने देखा, एक दम आँख गयी
अन्दर डर लग रहा है कि देखो! लोग क्या तो उसमें एक लाल रं ग की उस चटनी के
सोचेंगे। घर का भी अगर कोई व्यक्ति यहाँ से साथ में बर्र थी। बर्र जानते हो? जो मधु
निकल गया तो क्या सोचेगा कि यह अभी मक्खी घूमती है न, काटने वाली, यह बर्र
आलू छोड़ कर आया है । घर में कह रहा था उसके अन्दर थी। उसी समय पर उसको
कि आलू के त्याग है और चाट के ठे ले पर फेंका। इतनी घृणा हुई कि आज के बाद चाहे
खड़ा है । क्योंकि आदमी को हम क्या दोस्त कहे , चाहे कोई कहे कभी भी इस ठे ले
समझाने जाएँगे, वह तो कुछ भी सोच सकता पर आकर के बाहर की कोई चीज नहीं
है । चाट के ठे ले में खड़े होने का मतलब ही है खाऊँगा और उसके बाद में वह संयम ऐसा
कि बिना आलू के कुछ होता ही नहीं। लेकिन बढ़ा कि उस आत्मा ने फिर कभी उस असंमय
फिर भी डरते-डरते दोस्तों के कहने में उसने भाव में कभी किया नहीं।
उसके अन्दर आ गयी। अब आप सोचो, क्या का भाव पलेगा। न जाने कौन कैसे बना रहा
संयम है ? किसको दया है ? बाहर के जितने है ? कितने जीवों की हत्या करके बना रहा
भी हलवाई खाने हैं , जितने भी मिष्ठानों की है ? हमें कुछ भी पता नहीं। इसलिए हम ऐसी
दुकानें हैं किसको दया होती है ? आप देखते गन्दी चीजें नहीं खाएँगे। दूसरा इससे हमारा
हो हलवाइयों की दुकानें हैं , तरह-तरह की इन्द्रिय संयम पलेगा। हम इतनी तीक्ष्ण,
उसमें मीठे रखे रहें गे, बोरों के बोरों में शक्कर इतनी intensity वाले, ये सब मसाले क्यों
रखी रहे गी। उनमें चीटियाँ भी लगते रहें गे। खाएँ जिससे हमारी जीभ जल जाए, पेट
चीटें भी लगते रहें गे, कोई किसी को जानता जल जाए, नुकसान हो जाए और बाद में हम
है क्या? कोई किसी को बचाता है क्या? फिर कहें कि हमारे लिए lever कमजोर हो
सब घोंट दो। सब की चाशनी बना दो और गया। हमारा दिमाग घूम रहा है । हमको
बाद में ऊपर से छलना लगा देंगे। सबको चक्कर आ रहे हैं । यह सब अपना नुकसान
उठा कर के उसी के नीचे डाल दो और वह क्यों करना? इसी का नाम संयम है । जो भी
भी जाएगा तो नीचे जाकर के उसे भट्टी में पढ़े -लिखे बच्चे, अपने मन में यह भाव
जला देंगे। कौन देख रहा है ? क्या हो रहा है ? लाते हैं और उनके मन में भाव आ ही जाता
इसलिए पहले बोला जाता था ‘एक हलवाई है कि हम किसी भी तरह का संयम नहीं
सौ कसाई’ यह पुरानी कहावत है याद रखो। लेना चाहते हैं , नियम नहीं लेना चाहते हैं ।
क्या कहा जाता था? आप नियम मत लो, अभी यह नियम नहीं
अगर आप बाजार की दिया जा रहा। अभी यह क्या है ? संयम!
कोई चीज खा रहे हैं संयम का मतलब सिर्फ इतना है आप अपने
आपके अन्दर दया का मन में सोच लो ये चीजें गन्दी हैं तो हम इनको
भाव आएगा ही नहीं, कुछ time के लिए नहीं लेते हैं तो देखते हैं
प्राणी संयम होगा ही क्या होता है ? इसका नाम है - संयम। अभी
नहीं। प्राणी संयम का त्याग नहीं कराया जा रहा है । त्याग तो कल
मतलब है - प्राणियों परसों आएगा। अभी क्या है ? सिर्फ संयम!
का हम से घात न हो जाए। अगर आप वे संयम का मतलब ये जो extra, फालतू
चीजें खा रहे हैं जो अब घात तो कर ही रहे हैं , चीजें हैं न, इनसे अपने को बिल्कुल avoid
दया तो आपके अन्दर है ही नहीं तो आपके करना और इसके बिना भी हम बिल्कुल
अन्दर ये दोनों भाव आने चाहिए। बाहर की discipline के साथ चले कि हमारे धर्म गुरु
चीजें नहीं खाने से एक तो हमारे अन्दर दया हमको जिस किसी discipline में ले जाना
चाह रहे हैं , हम उसी के साथ चले। रात में बहुत सारी चीजें खाने के लिए, इनके बिना
नहीं खाना, argument बाद में कर लेंगे। भी बहुत सारी चीजें हैं पीने के लिए हम इनसे
पहले हमें नहीं खाना इसकी feeling करना energy लेंगे। इन चीजों में energy तो
कि नहीं खाने से क्या होता है ? इसका नाम इतनी है कि ये सब चीजें हमारी energy जो
है - संयम। हमें करके देखना है । अगर हमारे positive है , उसको भी destroy कर
लिए अच्छा लगेगा, हमें energy feel देती हैं । ये चीजें ऐसी बेकार निर्जीव होती हैं
होगी, इसके बिना भी चलेगा तो हम आगे क्योंकि जब हम अपने अन्दर इस तरह की
सोच लेंगे। हम अपने जीवन को कितने लम्बे चीजों का सेवन करेंगे तो हमारे सद्विचार,
time तक का संयम बना सकते हैं , इसको हमारा शरीर, हमारे मन सब पर असर पड़ता
हम खुद decide करेंगे, कोई force नहीं है और वह चीज हमारे नुकसानदायक है ।
आपके ऊपर। यह संयम धर्म सिर्फ इतना इस तरह से अपने अन्दर संयत भाव को
कह रहा है आपको। आप सही line में आ बनाने की कोशिश करें। कोई नियम नहीं है ,
जाओ, सही direction में चलो। इन्द्रिय त्याग नहीं है । यह स्वयं में स्वयं के द्वारा
संयम और प्राणी संयम दोनों को ध्यान में अपनाया जाने वाला हर तरह का discipline
रखते हुए आप अपनी गति आगे बढ़ाओ। है । इसमें argument बाद में करने का,
इसका नाम क्या है ? उत्तम संयम धर्म। अभी पहले हमें जिस कम्पनी में join किया है तो
कोई त्याग नहीं हो रहा है । अभी सिर्फ उस कम्पनी का हमें rules, regulations
control हो रहा है । आपको इस control जो है उनको follow करना है । कोई भी
की practice करना है । जो-जो चीजें आप कम्पनी का employee कभी भी इस बात
के लिए लग रहा है , हमें warning दी गई पर कभी argument नहीं करता कि मुझे
है कि ये चीजें गलत हैं । चाहे वह तम्बाकू हो, यही dress क्यों पहनना है ? इतनी हिम्मत
drinking करना हो, चाहे वह किसी तरीके किसी employee के अन्दर नहीं होती। जो
के soft drinks हो, कोई भी चीजें हो, अपने उस manager या director से
आपके लिए अगर यह लगता ये सब चीजें कहे कि मुझे यही dress क्यों पहनना है ?
गलत हैं तो हम अपने आप को पहले संयत अगर उसने उसमें allow किया है कि
बनाएँ। रात में भोजन करना गलत है । आलू आपको white colour की shirt पहनना
प्याज खाना गलत है। ये सब हम पहले है और black colour की पैंट पहनना है
संयत हो कर के इन सब चीजों को अपने तो आपको वही पहनना है । रोजाना पहनना
आप अपने मन से कहें । हम इनके बिना भी है तो रोजाना पहनना है । all seven days
आपको इसी dress में आना है , तो इसी हो जाता है । आलू क्यों नहीं खाते?, प्याज
dress में आना है । हम कितने बनवाएँ? क्यों नहीं खाते? रात में भोजन क्यों नहीं
आप जानो आपका काम जाने लेकिन करते? ये सब बातें बताती हैं कि आपके
रोजाना कम्पनी के अन्दर आपको इसी अन्दर अपने Jainism के rules को
dress में दिखना है । otherwise आपका follow करने का कोई भी devotion नहीं
get out कर दिया जाएगा। इतना बड़े है । इसलिए इन बातों को हम बाद में
होकर के भी हमें get out कर दिया जाता समझेंगे। पहले हम यह समझें आत्मा को
है और उसके डर से हम वहाँ discipline संयम धर्म के अनुसार आगे बढ़ाना है और
करते हैं । वहाँ कोई argument नहीं करते संयम के पथ पर जब हम आगे बढ़ें गे तभी
हैं और यहाँ पर अगर कोई थोड़ा सा भी हमें आगे कुछ आगे के धर्म हमें प्राप्त करा
jainism का basic rules and पाएँगे।
regulations है तो arguments शुरू
स्व-संवेदन
• क्या आप अपने अंदर असंयम के भाव • क्या आप अपने अंदर संयम का भाव
को पकड़ पाए? Yes / no / little ला पाए? Yes / no / little bit
bit
सहकर के भी माँ खुश रहती है और अपने ऊनोदर तप कहते हैं । doctor कहता है कि
सन्तान की उत्पत्ति के लिए लालायित रहती ज्यादा रसीली चटपटी चीजें मत खाना, मिर्ची
है और वह हर तरह का तप करती है । अगर ज्यादा मत खाना, कटु क चीजें ज्यादा मत
हम तप की गिनती देखें तो आत्म कल्याण खाना क्योंकि जो रस बनता है , बच्चे के मुँह
के लिए तो तप की गिनतियाँ बहुत कम में भी पहुँचता है उसको नुकसान पहुँचाएगा
है । बाहरी तप छह हैं , अन्तरं ग तप छह हैं , तो रस परित्याग भी कर लेती है । doctor
total बारह तप हैं ; कुछ ज्यादा नहीं है । कहता है कि जो अपनी खाने-पीने की चीजें
आत्म कल्याण के लिए तो बहुत कम तपस्या हैं , वे अपनी नियमित कर लो। मैं जो diet
है । किन्तु यदि हम अपने संसार को चलाने का आपको chart बना के दे रहा हूँ बस
के लिए देखें तो हम इससे कई गुना तप इसी के आप इसको follow करना, इतना
किया करते हैं । ही करना तो उसका वृत्तिपरिसंख्यान होता
अगर हम इन छह तपों है । doctor कहता है कि आपको कहीं भी
को भी देखें तो एक माँ जाना नहीं है , अकेले घर में रहना है , ज्यादा
छह तप करके ही आगे घूमना-फिरना नहीं है । एक जगह बैठो, एक
बढ़ती है , जो बाहरी तप जगह आराम से बैठे रहो, bed पर रहो, एक
कहलाते हैं । अनशन कमरे में रहो, यह उसका विविक्तशय्यासन
तप होता है - भोजन तप होता है । जो उसको धीरे-धीरे बच्चे की
पानी का त्याग करना। शिशु की वृद्धि के साथ में एक भारीपन
जब वह अपने सन्तान की उत्पत्ति के लिए लगता है , शरीर में बहुत क्लेश होता है लेकिन
तैयार होती है तो किसी भी तरह के भोजन वह उसको सहन करती है । जब पुत्र की
पानी पर कोई भी उसकी लालसा नहीं रह उत्पत्ति होती है तब भी उसको बहुत पीड़ा
जाती। मिल जाता है तो ठीक, न मिल जाता होती है , सब सहन करती है । यह उसका
है तो ठीक। उसके लिए ऐसा नहीं होता कि कायक्लेश तप होता है । करती है , वह भी तप
मुझे बहुत खाना है । जब वह किसी भी तरह करती है और उसके बाद में जो सन्तान उत्पन्न
से अपने बच्चे की, शिशु की रक्षा करना होती है उसको भी तप करने में लगा देती है ।
चाहती है । अगर डॉक्टर कहता है कि आपको
अपनी diet पर ध्यान रखना है तो वह भूख
से भी कम खाना मंजूर कर लेती है । किस
कारण से? पुत्र के मोह के कारण से। इसे
देखो सुबह से शाम तक एक पैर पर भी खड़ा है और तपाने से वह चीज बहुत पक्की, बहुत
होने को कहे तो खड़ा रहे गा। सुबह से शाम अच्छी भी बन सकती है , दोनों ही बातें हैं ।
तक counter पर खड़ा-खड़ा ग्राहकों को आप अगर किसी भी चीज को तपा रहे हैं ,
चलाता रहे गा। बैठने की भी इसके अन्दर चाहे दाल बना रहे हैं , चाहे खिचड़ी बना रहे हैं
इच्छा पैदा नहीं होगी और लोग आएँगे, या कोई भी चीज, दूध को भी तपा रहे हैं तो
ग्राहक आएँगे और वह सब तरीके से उनके आपको यह देखना होगा, यह तप के दोनों
साथ लेन-देन करेगा। पैसे के व्यामोह में काम हो सकते हैं । तप से कोई भी चीज
business के कारण से वह सब तरीके के निखर के भी सामने आ सकती है । तप से
कष्ट भी सहे गा, business purpose से अगर दूध ढं ग से तपेगा तो मलाई भी बन
दूर दूर यात्राओं पर जाता है । कहीं कुछ खाने सकती है , बहुत अच्छी वाली, अच्छा दूध
को मिलता है , नहीं मिलता है , एक-एक दिन गाढ़ा भी बन सकता है और अगर आपने तप
के उपवास भी हो जाते हैं । कहीं कुछ थोड़ा में कमी कर दी, ध्यान नहीं दिया तो दूध उस
बहुत मिल जाता है , उससे भी काम चला पतीली में लग भी सकता है , जल भी सकता
लेता है और तरह-तरह के ये जो हम भूख- है , उफन भी सकता है और खराब भी हो
प्यास की बाधा है आसानी से सहन भी करते सकता है । होता है कि नहीं। रोजाना आप
हैं , जो business करते हैं उनसे पूछ लो। रसोई में काम करते हैं और तप करके ही
लेकिन business करने वाले जो संयमित दूसरों के लिए कुछ उपकार कर पाते हैं , चीजें
जीवन जीने वाले होंगे, उन्हीं से पूछना। बनाते हैं और चीजें बनाने में जो आप साव-
क्योंकि संयम के बाद में तप है । धानियाँ रखते हैं , वह सावधानियाँ बताती हैं
अगर आपने संयम कि आप अच्छी चीजों को अच्छे ढं ग से बना
ग्रहण किया है तो तप सकते हैं । सामान्य से व्यक्ति जब अज्ञानता
उसकी रक्षा करने के में होता है तो वह यह देखता है कि खिचड़ी
लिए होता है । तप बनाना क्या बड़ी बात है ? दूध तपाना क्या
आपके अन्दर की बड़ी बात है ? मुझे क्या करना है ? गैस जला
योग्यता को और कर के और उसको भगोनी को उसके ऊपर
निखारता है और तप रख देना अपने आप बन जाएगा। मुझे क्या
के माध्यम से आपकी strength बढ़ती है । करना है ? यही सोचते हैं न! कभी घर के
जब भी कभी आप किसी भी चीज को लोगों से कह कर देखना कि आज खिचड़ी
तपाएँगे तो तपाने से वह चीज जल भी सकती आप बनाना, आज दूध आप गर्म करना तो
बाद आपके विचार क्या हैं यह आपको रस पी के खुश होंगे। अगर यह mentality
आपको खुद भीतर से realize न होने लग बनेगी तब कुछ तप का फल मिलेगा। हम
जाए तब तक उस तप की पूर्णता नहीं होती सूखी रोटी खाकर के भी उतने ही खुश रहें गे,
है । समझ में आ रहा है कि नहीं? आपको जो जितना कि हम मिष्ठान खाकर के या कोई
बात बता रहा हूँ, दुनिया में कोई नहीं बताएगा पके हुए पकवान, अगर हमें कोई हलुआ बना
वह बात बता रहा हूँ। किसी को ये बातें कर के दे रहा है , तो हम खुश हो रहे हैं । हमारे
मालूम नहीं है । तप करने का मतलब लोग अन्दर तप करने के बाद की परिणति एक
सिर्फ इतना ही समझते हैं , हमने उपवास समझ में आनी चाहिए। वह बताएगी कि
कर लिया, तप हो गया। मैं कहता हूँ कुछ आपने कल क्या किया अन्यथा तो यह होगा
नहीं हुआ। तप के बाद जो होगा वह सब कुछ कि आप कल का इन्तजार कर रहे थे कि
होगा। आपको दूसरे से कितनी अपेक्षा है , कल हमारे लिए ऐसा होगा। आप कल का
आपको किन-किन चीजों की अपेक्षा है । इन्तजार कर रहे थे कि कल जब आएगा तो
आपने सोच रखा है हमको दो गिलास अनार ऐसा होगा, हम कल ऐसा करेंगे, हमारे साथ
का रस मिलना चाहिए, हमको दो गिलास ऐसा होगा। आज का दिन तो निकल जाने
ठं डाई मिलनी चाहिए, आपको कुछ नहीं दो तो आप कल के इन्तजार में आज का दिन
मिल रहा है । आपने क्या इसके लिए तप गुजार रहे हैं । हमारे समझ में यह तप नहीं
किया था? आप अपने मन में शक्ति बना कर आता। जब इस तरह का कोई तप होता है तो
रखो। अगर हमें पानी भी मिलेगा तो हम क्लेश होना स्वाभाविक होता है ।
पानी से भी उतने ही खुश होंगे, जितना हम
तप से चमत्कार
ऐसे tumor के केस भी हमने देखे हैं । जैसे बिल्कुल स्वस्थ हो गई, अब यह कहीं
जब हम आचार्य महाराज के संघ में थे, सल्लेखना न छोड़ दे। बिल्कुल स्वस्थ होने
एक महिला को ऐसा brain में tumor लगी और स्वस्थ होकर ही उसका अन्तिम
हुआ था। उसकी सल्लेखना चल रही थी, मरण हुआ। यह doctor भी कहते हैं कि
उसको आचार्य महाराज ने अपनी पद्धति से जिनको कैंसर होता है , tumor होता है ,
धीरे-धीरे सारा भोजन-पानी बिल्कुल इतना वह उपवास करे। पथरी होती है केवल जल
control कर दिया था कि वह बिल्कुल उपवास करें। आपके लिए अगर मान लो
ही अपने भाव में रहते हुए सुख से, आनन्द भूख सहन नहीं होती है , आप जल उपवास
के साथ, धर्म-ध्यान से बिल्कुल रहने भी करेंगे, उससे भी बहुत कुछ impurities
लगी थी। उसके सल्लेखना से पहले उसे दूर होती हैं । आप अपनी body के अन्दर
tumor की बहुत वेदना होती थी। जैसे- की strength बढ़ाएँ। किस से बढ़ाएँ? इन
जैसे उसने अपना खान-पान सब control तपों के माध्यम से। जो बाहरी तप है यह
किया, उसकी वेदना इतनी शान्त हो गई वह हमारी body की strength बनाने वाले
इतनी खुश रहने लगी, ऐसा लगता था कि हैं और हमारे body के अन्दर strength
अन्तरं ग तप
हमें तो इस तप के के प्रति हित करने का भाव रखो, दूसरों की
माध्यम से अपने अन्दर सेवा करने का भाव रखो। अगर आप दूसरों
सब के प्रति क्षमा का की सेवा कर रहे हैं तो भी समझे कि आप तप
भाव, दया का भाव, कर रहे हैं । वैयावृत्ति तप! किसी के ऊपर
अगर हमसे कोई कोई कष्ट है , उस कष्ट को दूर करने की चेष्टा
गलती हो गई तो उसके करो। उसको ज्ञान से, ध्यान से, तरह-तरह
लिए प्रायश्चित का भाव की पद्धतियों से उसके कष्ट को दूर करने के
ऐसे अपने परिणामों को बिल्कुल soft लिए, स्वयं तैयार हो जाना, यह अपने आप
बनाना। विनय के भाव बढ़ाना, तप करने के में बहुत बड़ा अन्तरं ग तप है , वैयावृत्ति तप है ।
बाद में भीतर से और ज्यादा समर्पण बढ़ता यह तप करके आप direct कर्मों की निर्जरा
है। जो समर्पण से यात्रा शुरू हुई थी वह तप कर सकते हैं । स्वाध्याय- इसको तप कहा
करने में तब दिखाई देती है जब किसी भी गया है , आप ज्ञान को ग्रहण करने के लिए
तरह का तप किया जा रहा है । फिर भी उसके अपने चित्त को, अपनी इन्द्रियों को, एकत्र
प्रति या जिसने हमें तप करने के लिए प्रेरित करके शास्त्रों का चिन्तन करें, शास्त्रों को
किया है , उसके प्रति कभी भी हमारे मन के पढ़ें , शास्त्रों में अपनी बुद्धि लगायें। यह
अन्दर कोई मलिनता न आये कि आपने हमें आपका एक बहुत बड़ा तप होगा, यह अन्त-
क्या करवा दिया। जिनके लिए हम तप कर रं ग तप है । बाहरी तप कर के भी हमें क्या
रहे हैं उन आत्मिक गुणों के प्रति विनय करना है ? अन्तरं ग तप पर दृष्टि डालना है ।
भाव लाना। तप करने से मेरे अन्दर की ऐसा नहीं कि आज तो हमें भोजन बनाना
श्रद्धा, मेरा ज्ञान, मेरा चारित्र, कितना बढ़ता नहीं, आज हमें भोजन करना नहीं तो चलो
है ? अपने उन ज्ञान, दर्शन, चारित्र के प्रति आज! फुर्सत में हैं । जितने भी रजाई गद्दे
विनय का भाव लाना उन गुरुओं के प्रति पहले के पड़े हुए, चलो! उनको धूप में सुखाते
विनय का भाव लाना, जिन्होंने इस तरह की हैं । जितने भी दाल चावल हमें बीनने थे,
हमें प्रेरणा दी। यह विनय का भाव बढ़ना आज फुर्सत का time मिला है , सबको
चाहिए, अन्तरं ग तप है , इससे बहुत कर्म की बीनते हैं । जितने भी मसाले बनाने थे, चलो!
निर्जरा होती है , आत्मा की शुद्धि होती है । आज ही बना डालते हैं । जितने भी घर गृहस्थी
प्रायश्चित हुआ, विनय हुआ। तीसरा अंतरं ग के काम थे, आज फुर्सत का दिन है , सब कर
तप है - वैयावृत्ति। आप अपने मन में दूसरों डालते हैं । यह करना है या बाह्य तप करते हुए
अन्तरं ग तप करना है ? course पूरा करना हम अपने लिए सहन कर रहे हैं तो हमें यह
है कि course करते-करते कहीं से कहीं तो महसूस हो ही रहा है कि कोई भी चीज
direction अपनी ले जाना है । बाह्य तप दुनिया में हमारी नहीं है । अन्तरं ग में राग द्वेष
का उद्देश्य अन्तरं ग तप की वृद्धि, प्रायश्चित के हैं , उनको भी निष्कासित करो, बहिरं ग में जो
भाव बढ़ाओ, विनय के भाव बढ़ाओ, स्वा- हमारा परिग्रह उसके प्रति भी ममत्व भाव
ध्याय करो, वैयावृत्ति करो। ये चीजें जब छोडो, यह व्युत्सर्ग तप है । फिर किस में लीन
बढ़ें गी प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्ति स्वाध्याय, हो जाओ? अन्त में अगर आप ध्यान में लीन
व्युत्सर्ग एक तप कहा गया यानी अपने हो गए तो समझो आपका तप परिपूर्ण हो
अन्दर बाहरी चीजों से अपना ममत्व परिणाम गया। ध्यान में लीन हो जाओ, आत्मध्यान
छोड़ दो कि यह मेरा है । अब क्या मेरा है ? में, अर्हं ध्यान में लीन हो जाओ बस! ध्यान
जब हम शरीर को ही तपा रहे हैं , इतना कष्ट की लीनता तप की परिपूर्णता है ।
बिल्कुल तैयार होगा। इसका मतलब क्या मिल गई तब तो ॐ अर्हं नमः हो ही रहा है
हुआ? आपने अपने शरीर को तो तपाया और नहीं भी मिली तो कोई दूसरा गलत
लेकिन आपने अपने मन को नहीं तपाया, comments पास कर रहा है तो भी क्या
मन में सामर्थ्य नहीं पैदा की। आप में इतनी करना? ॐ अर्हं नमः! अपने में खुश रहना
सामर्थ्य तो है कि आप दस दिन का, एक है । यह उद्देश्य जब हम बना लेंगे कि हमारी
महीने का उपवास कर सकते हैं लेकिन शान्ति हमारे पास है , हमारी शक्ति हमारे
आपमें इतनी सामर्थ्य नहीं है कि आप छोटी पास है । ॐ में शक्ति है , अर्हं में purity है ।
सी बात अपने अपमान की सह सकें। पन्द्रह उस purity और उस शक्ति उन दोनों को
दिन के बाद, दस दिन के बाद भी कोई आपसे मिला कर के अपने अन्दर शान्ति को महसूस
कहे , ऐ ढोंगी तपस्वी! क्या बोल दे? ढोंगी करना, यह तप का उद्देश्य बनेगा। फिर
तपस्वी! बेवजह अपने शरीर को जलाते आपके लिए कभी भी तप से खेद खिन्नता
रहता है । क्या होगा आप का हाल? समझ में नहीं आयेगी। कुछ लोग तो तप करने के बाद
आ रहा है ? दस दिन के बाद अगर कोई में ऐसा सोच लेते हैं , भैया! इस बार हो जाए,
आपसे ऐसा कहे और फिर भी आपके मन एक बार हो गया आज का दिन निकल जाए,
में, किसी भी तरीके का, कोई भी ऐसा भाव उसके बाद तो कभी सोचेंगे ही नहीं। अगर
न आये कि हमने कुछ गलत कर लिया है । ऐसा आपके मन में भाव आ गया है तो कुछ
हमने जो किया, बहुत अच्छा किया, इसे कुछ नहीं, बेवजह आप परेशान हो रहे हैं । तप
पता ही नहीं यह क्या बोल रहा है ? यह केवल दिखावे के लिए नहीं करना है । कई
कितना पाप कमा रहा है । हमने जो किया, लोग तो केवल अपना एक इस तरीके का
वह हमारे लिए इतना शुभ कर है कि हमें एक mode ही बना लेते हैं कि हमने चार
इसकी बात को सुनकर के भी कोई खेद नहीं बार कर लिया, पाँचवीं बार भी हो जाए, छह
हो रहा है और हम अपने आनन्द में हैं । ॐ बार कर लिया तो सात बार हो भी जाए,
अर्हं नमः, ॐ अर्हं नमः, क्या समझ आ रहा record बनाना है क्या? ठीक है ! हो जाए
है ? आनन्द में आना है तो बस आपको यही तो हो जाए, नहीं हो जाये तो नहीं हो जाएगा।
करना होगा। जब भी आप कोई अच्छा काम अपनी सामर्थ्य देखो, अपनी शक्तियाँ देखो,
करेंगे, बड़ा काम करेंगे, किसी भी तरह का, आज की परिस्थितियाँ देखो। किसी भी चीज
कोई भी अपनी क्षमताओं को परखने का के प्रति ज्यादा हमारे अन्दर अगर जबरदस्ती
काम करेंगे, आपको उसमें सफलता मिल का भाव आ रहा है , तो उससे हमारे मन की
भी सकती है , नहीं भी मिल सकती है । अगर शान्ति बढ़ रही है या हम मन में दुःख पैदा कर
रहे हैं , यह अपने अन्दर एक पैमाना बना ध्यान की क्षमता भी बढ़नी चाहिए, स्वाध्याय
रहना चाहिए। शरीर का तो ठीक है हम सहन की रूचि पैदा होनी चाहिए, ध्यान करने में
कर लेंगे लेकिन उससे हमारे मन की शान्ति, time ज्यादा invest होना चाहिए। ऐसा
मन का सुख तो नहीं बिगड़ रहा है न! तो नहीं कि हम जैसे तैसे करके घूम फिर कर के
आचार्य कहते हैं - हमेशा बाह्य तप से अन्त- दिन निकाल रहे हैं । गपशप लगा कर के दिन
रं ग तप को बढाओ। अपने अन्दर ज्ञान, निकाल रहे हैं ।
देखो! महाराज के कहने से हमने दस दिन न्त्रित कर लेना, संयम के साथ में इच्छाएँ
का संयम तो पालन किया। हमने चाय नहीं उत्पन्न होंगी लेकिन हम उनको नियन्त्रित
पी, तम्बाकू नहीं खाई, रात में भोजन नहीं करते चले जाएँगे। ‘to overcome our
किया। अब दस दिन होने के बाद में या दस desire’ यह कब होता है ? जब हमने अपनी
दिन के बीच में, फिर भी इच्छा तो हो रही है इच्छा को अपने ज्ञान, ध्यान से रोका न हो
कभी न कभी तो आप उसको गलत न तब होता है । अगर हमने अपनी इच्छा के
समझें। इच्छा हो गई, अब हम यह देखें कि ऊपर अपनी शक्ति लगा दी है , आत्मा का
हमने उस इच्छा को नियन्त्रण कर लिया कि स्वभाव ज्ञान और ध्यान में लगा दिया है तो
नहीं कर लिया। कोई भी चीज जो हम खाते इस तरह की कभी भी परिणतियाँ नहीं होगी।
आए, पीते आए, किसी time पर भी लेते तप करने वालों को जब अभ्यास हो जाता है ,
आए, अगर हमारी उसके अन्दर इच्छा भी हो तो कभी-कभी तो पता नहीं पड़ता कि आज
गई तो हम सोचे नहीं! इस इच्छा को हमें मेरा उपवास था। कभी-कभी ऐसी ही
नियन्त्रित रखना है । इस इच्छा को हमें feeling आती है , दूसरे दिन ध्यान करना
divert करना है । इच्छा दबाना अलग चीज पड़ता है । बिल्कुल अपने सब रोजाना के
है और इच्छा को एकदम से divert कर काम में लगे हैं । सुबह उठे , अपना सब प्रति-
देना, वह क्या हो जाता है ? आप एकदम क्रमण, सामायिक सब कुछ किया, प्रवचन
अपने mind को स्वाध्याय में लगा दें। ॐ कर लिये। पता ही नहीं लगता जैसे कि कल
अर्हं नमः, ॐ अर्हं नमः में लगा दें। अपने मेरा उपवास था, आज जल्दी पारणा करने
आप आपकी इच्छा एकदम से divert हो जाना है कि जल्दी क्या पड़ी है ? ठीक है ! हो
जाएगी। आप थोड़ी देर बाद भूल जाएँगे। जाएगा। कभी-कभी इतनी अच्छी feeling
देखो! मुझे उस समय पर कैसा भाव हो रहा होती है । यही feeling जो है वह वास्तविक
था कि मानो मैं इसके बिना रह नहीं सकता अच्छे तप के बारे में बताती है कि हम हमेशा
या मुझे इसकी याद आ रही थी। आपने थोड़ा इस बात को ध्यान में रखें कि तप करने से
सा अपना attitude change किया इच्छा तो होगी कभी न कभी लेकिन हमें उसे
एकदम से आपके अन्दर change के कारण control करना है । उसको हमें diversion
से जो positive feelings आने लगी, देना है । किस के through?
बस! यही समझो कि आपने अच्छा काम
किया। यही आपका तप हो गया। तप का
मतलब क्या हो गया? इच्छाओं को निय-
नहीं होंगे तो आपके लिए कभी न योग होगा, कार से ऊपर उठ कर के जब करेंगे, जो
न संयम होगा, न ध्यान होगा। ये सब चीजें अज्ञान का अन्धकार है कि हम इनके लिए
अपने नियन्त्रण के साथ होती हैं । अपनी कर रहे हैं इससे हमें यह मिल जाए, वह मिल
desires को fully control करके जो जाये ऐसा कुछ नहीं, वह तप उत्तम तप
व्यक्ति आगे बढ़ता है , वही व्यक्ति तप कर रहा कहलाता है । इस तरह का उत्तम तप ही
है और उसी के लिए तप शोभा देता है । इस हमारी आत्मा के लिए, pure बनाने वाला,
तरह से यह उत्तम तप का मतलब है - किसी आत्मा को अनन्त सुख में पहुँचाने वाला है ।
भी प्रकार की ख्याति, पूजा, लाभ में मत इसलिए तप करके भी आपको खुश रहना है
पड़ना। दूसरे की अपेक्षाओं के कारण से तप और अगर आप उस समय पर जब आपके
मत करना। अपनी शक्ति को निखारने के तप की परीक्षा हो आप ॐ अर्हं नमः में मस्त
लिए तप करना। इसलिए तप के आगे उत्तम होंगे तो आपके लिए किसी भी तरह की
शब्द लगा हुआ है । उत्तम का मतलब है अपने बाहरी परिस्थितियों का कोई प्रभाव नहीं
ऊपर से सारा अन्धकार हटा कर के तप पड़ेगा तो समझ लेना कि आप अपने आप में
करना। ‘उत्तम’ ‘तम’ मतलब क्या होता उत्तीर्ण होते जा रहे हैं । बोलो महावीर भगवान
है ? अन्धकार। ‘उत्’ मतलब हम उस अन्ध- की जय।
स्व-संवेदन
क्या आप अपनी क्षमता को बढ़ाते हुए आप अपना उपयोग मानसिक तप में
तप कर पाए? Yes / no / little bit लगा पाए या शारीरिक तप में लगा पाए?
की चीजों को जानते भी रहते हैं , देखते ही balance करके संयम के साथ में चलने की
रहते हैं , घर परिवार के तमाम कार्य रहते हैं एक शुरुआत की थी, वह हमारे लिए पुनः
और जो हम संसार को और संसार में होने पुनः फिर से regenerate होती रहती हैं ।
वाली घटित चीजों को समझते हैं उनसे भी उनको भी control करने के लिए जो हम
हमारे अन्दर कई तरह के भाव उत्पन्न होते हैं । करते हैं , ‘that is called austerity’,
वे desires जिनको हमने अपने mind में उसी का नाम तप कहलाता है ।
अपने आप pure होता चला जाएगा और लगता कि मैं कहाँ जा रही हूँ? मुझे किसे
जो उसकी impurity है वह उसके ऊपर handover किया जा रहा है ? मेरा अब
बिल्कुल आ जाती है , छा जाती है । उसको क्या होगा? अब उसे बिल्कुल भी कोई भी
फिर एक अलग करछी से अलग निकाल विकल्प नहीं है । इस तरह से जब उसके
दिया जाता है । यह तप के ही माध्यम से अन्दर से सारी की सारी impurity निकल
सम्भव है । इसी का नाम है - तप के बाद होने गई है तभी उसमें इतना एक कड़कपन आया
वाला त्याग। impurity हमारे अन्दर इतनी है , उसमें इतना ठोसपन आया है कि अब
ज्यादा एकमेक हो रही हैं कि हमें पता ही नहीं उसके अस्तित्व से उसको भी कोई डर नहीं
होता है कि यही हमारा existence है , है । वह जहाँ भी जाएगी, जहाँ भी उस घड़े का
impurity के रूप में है या हमारा उपयोग किया जाएगा वहाँ पर उसके लिए
existence purity के रूप में कुछ अलग अपने आप उसमें जल भरने को भी मिलेगा
है । यह जब हमारे लिए ज्ञान में नहीं आता और उस माटी के द्वारा बने हुए उस कुम्भ का
तब तप के माध्यम से चीज समझ में आती सम्मान भी अपने आप होने लगेगा। यह
है। उसके उस त्याग का परिणाम है । लोग त्याग
माटी है ; धीरे-धीरे करने की जल्दी करते हैं । त्याग करने से
संयमित हो गई, उसने पहले हमें क्या करना चाहिए यह उनको पता
तप कर लिया, अग्नि में नहीं होता। इसलिए कभी-कभी त्याग करने
पक गई और पकने के के बाद भी लोग पछताते हैं । त्याग धीमे-
बाद में उसके अन्दर धीमे होता है और त्याग अपने आप अगर
एक quality आ गई। होने लग जाता है , तो वह तभी सम्भव है जब
अब वह बिल्कुल सुर्ख हम तप के माध्यम से अपनी इच्छाओं को
लाल हो गई। अब उसको कोई भी ठोकता नियन्त्रित करते हुए अपने अन्दर के दुर्गुणों
है , टक-टक करता है , तो उसमें एक अलग को धीरे-धीरे छोड़ रहे हैं । अपनी पुरानी बुरी
तरीके की आवाज आती है और कुम्हार खुश आदतों को छोड़ना, अपने दुर्गुणों का त्याग
है और कुम्हार उस घड़े को जिसने उसको करना ही सबसे बड़ा त्याग है और कोई त्याग
पक्का बना दिया है , अब उसे ले जाकर के नहीं होता है । त्याग उसी चीज का किया
किसी को दे देता है । जब कुम्हार उसको दे जाता है , जो हमारे लिए अच्छी नहीं है और
देता है , तो माटी ने अब अपना सर्वस्व अर्पण जो हमारे लिए अच्छी नहीं, वह किसी के
कर दिया। अब माटी के लिए यह भी नहीं लिए अच्छी नहीं होगी। बुराई अगर हमारे
लिए अच्छी नहीं है , तो हम उसको छोड़ देंगे। को उससे हटा लेना। जब आप ऐसा कर
छोड़ने का मतलब ही है कि हमने उससे पाएँगे यही आपके लिए सबसे बड़ा तप होगा
अपना सब तरीके से attachment हटा और तप होने के बाद ही त्याग सम्भव है
लिया और सबसे बड़ी अगर हमारे अन्दर क्योंकि ऐसा करने में आपने बहुत तरीके से
बुराई होती है , तो वह हमारे attachment बहुत पहले से अपने आप को planned
से ही शुरू होती है । राग ही सबसे बड़ी बुराई किया हुआ है । उसके माध्यम से आपने
है । उस राग को छोड़ने के लिए जो हमारे अपनी desires को इस तरह से control
अन्दर पुरुषार्थ होगा, वह हमारा वास्तविक किया है कि अब हम इस चीज का और इस
त्याग कहलाता है । किसी भी चीज से जब चीज के प्रति attachment का, अगर हम
हमारा attachment होता है , तो हम उसमें दोनों को भी बिल्कुल ही छोड़ देते हैं तो हमें
इतने ज्यादा आसक्त हो जाते हैं इतने ज्यादा बिल्कुल भी अकेलापन महसूस नहीं होता,
involve हो जाते हैं कि हमें लगता ही नहीं हमें बिल्कुल भी बोरियत नहीं होती। इस
कि यह और मैं अलग-अलग हूँ और जब तरह की आपके अन्दर जब feeling आ
तक यह और मैं अलग-अलग नहीं होगा तब जाएगी तब आप त्याग कर पाएँगे। त्याग का
तक त्याग सम्भव नहीं होता। त्याग का मतलब एक बहुत बड़ा कार्य है और त्याग
मतलब है - अपने अन्दर के attachment तपे बिना सम्भव नहीं है ।
त्याग की महानता
जितने भी महान लोग होते हैं वे त्याग attachment नहीं रहता।
करते हैं । जितने भी प्रकृति की चीजें हैं , वह त्याग हमेशा महान
सब त्याग करने वाली होती हैं । वृक्ष हैं - व्यक्तियों के द्वारा किया
फलों को त्याग देते हैं । वृक्ष को फलों की जाता है और त्याग हमें
जरूरत नहीं है इसलिए वे छोड़ देते हैं । गाय महानता के साथ ही
है , अपने दूध को छोड़ देती है , दे देती है । करने को मिल सकता
वह किसी भी तरह से उसके प्रति देने के बाद है और महान व्यक्ति ही
में, त्यागने के बाद में आसक्ति नहीं रखती त्याग कर पाते हैं या यूँ
है। नदियाँ हैं अपना पानी दे देती हैं , छोड़ कहें जो त्याग करते जाते हैं वह महान बनते
देती हैं किसी भी तरह से पानी को छोड़ने के हैं और महान बनने के बाद में, फिर जो वह
बाद में, फिर उन्हें उससे कोई भी तरह का त्याग करते हैं उससे दूसरों का बहुत उपकार
होता है । इसका मतलब क्या हुआ? अगर फुल्का होगा तब तक उसके अन्दर कोई फल
आप किसी का उपकार करना चाहते हैं , नहीं आएगा। जब उसकी जड़ें मजबूत हो
किसी के ऊपर उपग्रह करना चाहते हैं तो भी जाएँगी, उसके स्कन्ध मजबूत हो जाएँगे,
आचार्य कहते हैं आपको पहले तपना पड़ेगा। जब उसकी डालियाँ भी सब तरह की हवा,
तप के बाद में आपके अन्दर जब निःस्वार्थ गर्मी, वर्षा, धूप सब सहन कर चुकी होंगी
त्याग की वृत्ति आएगी तभी आपके उस त्याग तब जाकर के उसके अन्दर फल लगते हैं
से दूसरों का भला होगा। ‘‘परस्परोपग्रहो और वही फल सबको मीठे लगते हैं , वही
जीवानाम्’, जीवों का काम है - एक दूसरे के फल सबके काम में आते हैं । उन्हीं फलों से
ऊपर उपकार करें, to help one लगता है कि हाँ! यह वृक्ष हमारे ऊपर कितना
another. अगर वह ऐसा कर पाएँगे तो बड़ा उपकार करने वाला है । यह बात बताती
कब कर पाएँगे? जब उनके अन्दर इस तरह है कि हमारे अन्दर भी interdependent
की त्याग की भावना होगी। यह त्याग की की जो state है वह तब आती है , दूसरे का
भावना, जब तक हम outer उपकार करने की स्थिति तब आती है , जब
circumstances पर dependent होंगे, हम पहले independent हो चुके हों और
जब तक हम अपने ही emotions को जितना-जितना आप independent होते
अपना control करने में नहीं होंगे तब तक जाएँगे उतना आपके अन्दर त्याग की भावना
हम किसी भी तरीके से independent के आती जाएगी। आप सोचते जाएँगे कि इन
बाद होने वाला दूसरा step है चीजों के बिना भी हम रह सकते हैं , यह हमारे
interdependent होना, एक दूसरे की लिए कुछ जरूरत की चीज नहीं है । इसके
सहायता करना, एक दूसरे के काम
आना, अपना जीवन किसी न
किसी रूप में दूसरे के लिए काम
आए ऐसा विचार आना, इस तरीके
से कोई भी सेवा करना यह तभी
possible है जब आप थोड़ा
independent हो चुके हो। वृक्ष
में फल तभी लगते हैं , जब वृक्ष
अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है ।
पौधे में फल नहीं लगते हैं , हल्का
आप समझने की कोशिश करें। इसलिए अपना, अपना राजपाट, अपने राज पुत्र को
give up and give in दोनों में अन्तर है । देकर के आगे बढ़ते हैं वे त्याग नहीं कर रहे
जब आप किसी चीज को छोड़ देते हैं तो होते हैं । वे क्या करते हैं ? वे सौंप कर जाते हैं ,
छोड़ने में आपको दूसरे को respect देने दान करके चले जाते हैं , उसे सर्वदत्ति कहा
की जरूरत नहीं है । छोड़ते समय आपको यह जाता है , सब कुछ दे दिया। किसको दे दिया?
सोचने की जरूरत नहीं है कि मैं किस को दे दे दिया जिनको देना था, उनको दे दिया।
रहा हूँ? लेकिन दान करोगे तो उसमें आपको इसी का नाम है - to donate. दो न! दो न!
देखने की जरूरत होगी, दान किसको दिया मतलब देना donate हो गया। क्या मतलब
जाना है ? किसके लिए दिया जाना है ? दान हुआ? देने से ही यह donate शब्द english
के लिए पात्र को देखने की जरूरत है , त्याग का बना हुआ है । यह donate शब्द कहीं
के लिए पात्र को देखने की जरूरत नहीं है । ओर से नहीं आया है । दो न! दो न! दो न! तो
इसलिए जब भी कोई महापुरुष दीक्षा लेते donate हो गया वह।
हैं , उन्हें वैराग्य होता है तो वह सारा का सारा
बीच का वपन होता ही नहीं तो वहाँ पर बीज सब सार्थक हो गयी क्योंकि वह सही जगह
डालना ही बेकार होगा। आप डाल तो दोगे, पर पहुँच गयी। यह दान की feeling होती
भूमि तो होगी लेकिन भूमियाँ सभी एक जैसी है । इसलिए यह difference समझ में
नहीं होती हैं । कुछ भूमियों में ही कुछ क्षमता आज आपको आ जाना चाहिए। To give
होती है , जो एक छोटा सा बीज बहुत बड़ा and to give up, जब भी हम किसी चीज
वृक्ष का रूप लेता है । यही दान हमें सिखाता को देंगे तो ले, यह ले, ऐसे नहीं, ऐसे कोई
है कि अच्छी जगह पर दिया गया दान ही, नही लेगा। ऐसे तो भिखारी भी नहीं लेगा,
हमारे काम में आता है । वही फलीभूत होता बच्चा ही नहीं लेगा तुम्हारा, आप बच्चे को भी
है हर जगह नहीं। किसी को भी दोगे, आप कुछ देते हो तो कितने प्रेम से देते हो। किसी
कुछ भी दोगे वह आपका एक उपकार तो को भी दो आपको प्रेम से देना है , यह सोच
हो जाएगा लेकिन दान हो कर के फलीभूत कर नहीं देना है कि वह किसी अभाव में है ,
होना एक अलग चीज है । उपकार किसी इसलिए मैं उसको दे रहा हूँ। नहीं! मेरे पास
का कर देना यह एक help है । To help सद्भाव है लेकिन मेरा सद्भाव मेरे भी काम
one-another, it is my duty, it is का नहीं है । अगर इस सद्भाव को मैं किसी के
the function of every soul. हर लिए दे दूँगा तो मेरे लिए एक balance हो
किसी का यह काम है कि वह एक दूसरे का जाएगा। मेरे पास में कोई चीजें access हो
उपकार करे। यह अलग चीज हो गई है , बहुत रही थी मैं उसको balance करना चाहता
ही व्यापक चीज हो गई उपकार लेकिन दान हूँ। इस feeling के साथ में जब आप किसी
एक अलग चीज है । दान देने के बाद में आप चीज को दोगे और वह उसके पास पहुँचने
के लिए यह महसूस होगा कि हमने जिसको के बाद में आपके लिए ऐसा लगने लगेगा
दान दिया था वह बहुत अच्छा पात्र था और कि हाँ! अब हम हल्के हो गए तो आपके
हमारी चीज उस पात्र के पास पहुँच गई और लिए वह चीज अपने आप दूसरे के उपकार
उस पात्र ने उसको accept कर लिया, it में काम में आ गई और यही आपका सबसे
is my luck. यह हमारे लिए बहुत अच्छी बड़ा donation कहलाता है - दान!
चीज है । हमारे पास में जो भी चीजें थी वह
को अपने under में लो। चीजों को पकड़ने छु ड़ाते भी हैं तो रोने लग जाता है और वह तब
की उसकी एक आदत जो पड़ी हुई है यह तक चुप नहीं होगा जब तक उसके हाथ में
सिखाई हुई नहीं है , बिना सिखाई हुई आदत वैसी ही कोई दूसरी चीज न थमा दी जाए। मैं
है । पकड़ो! चीजों को लो, अपने under में आपको इससे क्या बताना चाह रहा हूँ? यह
करो। माँ उस बच्चे को पकड़ लेती है , उसकी हमारे nature में है । क्या है ? to take, to
मुट्ठी खोलती है , वह खोलता नहीं पट्ठा। बड़ी take क्या करना? to receive, to take
मुश्किल से उसकी मुट्ठी खोल कर उसको यह जो है चीज हमारे nature में है and
छु ड़ाती है , उस चीज को अलग कर देती to give, to give nature हमारा नहीं
है । वह रोने लग जाता है । पूरा मन्दिर ही है । यह कभी-कभी तो हमें समाज में अपनी
बिल्कुल भर जाता है या घर में है तो घर में कुछ prestige बनाने के लिए करना पड़
कोई भी चीज है , उसके काम की नहीं भी है जाता है । कभी-कभी हमें लोगों के मुँह देख
तो भी उसने पकड़ ली। पापा की table पर कर करना पड़ जाता है । भाई! वह दे रहा
चढ़ गया, pen उठा लिया। अभी उस pen है , वह भी दे रहा है तो हमको भी दे देना है
से अपना ही मुँह फोड़ लेगा, अपनी ही आँख नहीं तो लोग क्या कहें गे? इसलिए भी दे देना
फोड़ लेगा, उसको पता नहीं लेकिन pen पड़ता है । यह हमारा nature नहीं होता।
अगर उसने पकड़ लिया तो उसको छु ड़ाना nature से जब कोई चीज आती है , अगर
मुश्किल है । अगर वह pen हमें किसी काम हमारा nature इस तरीके का बनेगा तो
में लेना है , उसके लिए नुकसान पहुँचाए- nature से हमारा nourishment होगा।
गा, इस सोच से अगर हम उसके pen को
रहा है ? देने वाला देना चाह रहा है और एक इच्छा पर control करने से। बोलो तो!
छोटा सा बच्चा भी, नहीं-नहीं कर रहा है तो अब आगे देखो! अगर वह अपनी इच्छा से ले
इतना बड़ा जो व्यक्ति है , जिसकी उम्र चालीस लेता, संयम नहीं रखता तो वह कितना लेता?
साल की हो रही है , बच्चा भी छह साल का चार toffee ले लेता, पाँच ले लेता, इससे
है । अब समझो कि उस चालीस साल की ज्यादा तो नहीं ले पाता। उसको ही फिर
कोई भी lady है , उसके अन्दर क्या भाव आ guilt सी महसूस होने लग जाती। इससे
रहा है ? यह कुछ ले ले तो बड़ा अच्छा लगेगा। ज्यादा ले रहा हूँ तो यह अपने लिए ठीक नहीं
इसने कुछ लिया नहीं, बाकी सब ने सब कुछ है । मतलब कि लेने की इच्छा को control
ले लिया, इसने कुछ नहीं लिया। उस छोटे करने में भी हमारे अन्दर जो तप होता है और
से, अदने से बच्चे की कीमत जो छह-सात उस तप के बाद में हमें जो अपने आप मिलता
साल का है समझो! कितनी बढ़ गई? है वह हमारी इच्छा से भी कहीं कुछ ज्यादा
किससे? सिर्फ मना करने से, सिर्फ लेने की मिलता है ।
आपके शरीर में रोग नहीं होंगे। आप अपने तप। आप अपनी बुराइयों को देख रहे हो,
आपको energetic feel करोगे, यह सब आप अपनी बुराइयों पर control कर
उसके benefits हैं । after death भी रहे हो, अपनी bad habits को बिल्कुल
उसके benefit मिल रहे हैं , recently भी छोड़ने के लिए अपनी mentality बना
हमको उसके benefit मिल रहे हैं और फिर रहे हो यह आपका बहुत बड़ा तप है और
भी हमारे अन्दर यह सोचने में नहीं आता कि इस तप के बाद में जब आप ऐसा करने में
हमें इस तरह का संयम अपनाना चाहिए। जो बिल्कुल able हो जाओगे तब आपके अन्दर
चीजें हमारे भावों से सम्बन्ध रखेंगी, उनका त्याग का formula fit होगा और त्याग
फल भी हमें हमारे भावों में ही मिलेगा। हमारे में आपको सब-कुछ मिलेगा। आपको लेने
संयम के भाव, हमारे तप के भाव और हमारे की जरूरत नहीं है । लोग आपके सामने हाथ
त्याग के भाव इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन्हीं से जोड़ कर के देंगे, बुला-बुला कर के देंगे। यह
अपने लिए भी अच्छा होगा, दूसरे के लिए तो एक छोटे से बच्चे की बात बता रहा हूँ
भी अच्छा होगा। अगर हमारे अन्दर तप का जिसने एक छोटा सा त्याग किया। छोटी सी
भाव नहीं होगा तो हम क्या कर जाते? हम अपनी desire को control किया और
चोरी भी कर सकते थे। जैसे यह घर के रि- उसके बाद में उसकी सारी जेबें भर गई। माँ
श्तेदार लोग इधर-उधर हो और हम थोड़ा ने उससे कहा यह क्या है जानते हो? यह
अपनी जेब भर ले, यह feeling भी आ क्या है ? यह नहीं लेने का फल है । यह क्या
सकती है , यह भी thinking हो सकती है । है ? नहीं लेने का फल है । जब हम कोई चीज
लेकिन ये सब चीजें कब? जब आपको नहीं लेते हैं तो अपनी इच्छा से, अपनी भावना से
मालूम कि अच्छाईयाँ क्या है और बुराईयाँ तो हम थोड़ी ले पाएँगे लेकिन जब हमें हमारे
क्या है ? अगर आप अपनी बुराई को भी कर्मों से मिलेगी, जब कोई चीज हमें हमारे
control कर पा रहे हो, it means आप भाग्य से मिलेगी, जब कोई चीज हमें दूसरे
तप कर रहे हो। तप का मतलब यही नहीं के द्वारा अपनी खुशी से मिलेगी तो हमें बहुत
होता कि आप अपने शरीर को सुखा रहे हो कुछ मिलेगा। हम उसको रख भी नहीं पाएँगे
या शरीर को बहुत ज्यादा, कुछ नहीं खिला इतना मिलेगा।
रहे हैं , उसी का नाम तप है , यह भीतरी
और giving nature को nourish किया नहीं करते हैं । they are called miser,
हो। हमें इस तरह का nourishment अपने हिं दी में उनको क्या बोलते हैं ? कंजूस। जूस
अन्दर करना है और जैसे-जैसे हमारे अन्दर तो है पर सब बेकार है , कन लग गया न
यह art of giving आती जाएगी तब आप कन! जैसे कमजोर, जोर तो है लेकिन कम
सही मायने में art of living सीख पाएँगे। लग गया तो वह फिर जोर नहीं रहा। यह
यह art of living सीखना है , अपने आप कम जो उपसर्ग लगता है यह preface जो
नहीं सीखी जा सकती। art of death उसके आगे लगता है यह उस चीज को बुरा
भी अपने आप नहीं सीखी जा सकती। इस बना देता है , जिसके आगे कम लग गया।
art of living and death के बीच में कमजोर, कंजूस, जूस तो था बहुत अच्छा,
अगर आपको यह human life मिली हुई कितना अच्छा उसको अपने कर्म के फल
है तो उसमें आप अपना एक nature बनाएँ से बड़ा बड़ा धन मिला है , सम्पत्ति मिली,
to give, to give something what property मिली। पट्ठे के अन्दर एक भी
you have, if you have nothing भाव नहीं आता कि कुछ भी किसी को दे।
to give, you give only smile to सारा-सारा जूस यह चाहता है मैं ही पी लूँ।
others. इतना तो कर ही सकते हो। देना चाहे उसके घर के लोग ही उसके पीछे उसका
सीखो! हमारे देने से किसको क्या मिल रहा murder कर डाले। लेकिन देने की इच्छा
है ? किसको कौन सी खुशी मिल रही है यह नहीं करता इसलिए भी कई लोग इस बात के
महत्वपूर्ण है और आप जितना दोगे उससे लिए मर जाते हैं कि जब कोई उनके परिवार
आपके अन्दर कमी नहीं होगी। कुएँ के पानी के लोग यह देख लेते हैं कि यह बड़ा कंजूस
को कितना ही निकाल लो, कुआँ कभी पानी है , देने वाला नहीं है । ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी
निकालने से नहीं सूखता है । कुएँ से जितना न जाए’, क्या बोलते हैं ? चमड़ी का मतलब
पानी निकाला जाता है उतना ही वह तुरन्त खाल उतर जाये तो भी एक पैसा नहीं देगा।
एक बाल्टी आपने निकाली, आप सोच रहे ऐसे लोगों के लिए फिर दूसरे लोग भी उसी
हो उसमें एक गड्ढा हो गया क्या एक बाल्टी तरीके से behave करते हैं । आप देखोगे
के बराबर, नहीं होता, तुरन्त भर जाता है । ऐसे लोगों की मृत्यु, कई बार ऐसा सुनने में
इसी तरीके से जब कोई व्यक्ति देता है उसके आता है , घर परिवार के लोग ही उनको मार
अन्दर अपने आप से स्वयं आ जाता है लेकिन डालते हैं । क्यों? क्योंकि उन्हें पता है कि यह
एक tendency होनी चाहिए देने की। बहुत अपने आप जीते जी देने वाला नहीं है और
से लोग सब कुछ रखते हैं , देने की इच्छा हमें लेना है और अगर इसको अपने रास्ते से
हटा दिया जाए तो सब अपना अपने आप लोभ में पढ़ कर के अपनी जिन्दगी जीता है
हो जाएगा। यह बहुत गन्दी आदत होती है , तो वह एक गधे से भी बदतर जिन्दगी जीता
यह nature बहुत गन्दा nature है । कौन है । इसलिए कि जैसे गधे को नहीं मालूम
सा! कंजूस! जूस है तो उसको दो। न आदमी होता कि वह कितनी मेहनत कर रहा है ?
खुद ले रहा है , न किसी को दे रहा है तो वह किस लिए कर रहा है ? उसका उसके लिए
जूस क्या करेगा? तू खुद ही तो पी ले कम से कोई लाभ नहीं होता वैसे ही आदमी! लगा
कम। खुद ही तो भोग ले। अगर धन मिला हुआ है अपने खाने-पीने का time नहीं,
है तो उसको भोग ले। धन के तीन ही गतियाँ अपने लिए कुछ जीने का time नहीं, अपने
हैं , धन के तीन ही काम हैं - दान, भोग और लिए सोने का भी time नहीं और दिन भर
नाश। कितने? धन के तीन काम होते हैं या पैसा, पैसा, पैसा रात भर हिसाब, हिसाब,
तो दान कर लो या भोग लो या तो भोग, भोग हिसाब! सुबह उठा फिर पैसा, पैसा, पैसा,
लो इतना भोग लो कि भोगते-भोगते खुद रात में फिर हिसाब, हिसाब इसके अलावा
ही मर जाओ। ‘भोगों को इतना भोगा कि उसे कुछ दिखता ही नहीं। where is my
खुद कोई भोग बना डाला’ समझ आ रहा है ? wife? where is my daughter?
इतना ही खुद खा लो कि खुद ही diabetes where is my son? कुछ मतलब नहीं?
हो जाए, खुद ही cancer हो जाए, खुद ही where is my family? कुछ नहीं,
मर जाओ या फिर थोड़ा सा भोग, थोड़ा सा कौन कहाँ है ? only money, money,
दान ऐसा कर लो। choice आपके ऊपर है money! बस! progress, progress,
या फिर भोग करने के बाद में भी जो बच रहे progress! बस इसके अलावा उसे कुछ
हैं , उसका भी दान कर लो। अब! न भोग हो नहीं दिखता। ऐसे लोगों का जीवन किसी के
रहा है , न दान हो रहा है । after all उसका काम का नहीं। खुद भी नहीं जी रहा, दूसरों
क्या होगा? उसका विनाश होगा। वह धन के लिए भी कुछ नहीं कर रहा और जो भी
का ही नाश होगा, वह किसी के काम नहीं दूसरों के लिए होगा, वह दूसरे उससे छु ड़ा
आएगा। इसको बोलते हैं - एक कंजूस का लेंगे, वह कुछ दूसरों के लिए नहीं करेगा।
धन। कंजूस का जूस किसी के काम का नहीं, इस तरह की जिन्दगी जीने वाले दुनिया में
न खुद के काम का है , न दूसरे के काम का। बहुत से लोग हैं । बहुत से ऐसे लोग हैं ।
जब व्यक्ति अपने अन्दर इस तरह के धन के
आज के बच्चों की सोच
बहुत कम लोग होते हैं जिन्होंने कभी भी अपने माता-पिता की सेवा
जो देने के भाव में रहते के लिए भी कुछ देना अच्छा नहीं समझा,
हैं । देख करके खुश उन्हें भी बोझ समझा क्योंकि उनके पास में
होते हैं , देने में आनन्द देने का भाव नहीं था। जिन माता-पिता ने
लेते हैं और जितना है बच्चों को सब कुछ दिया, पालन पोषण
उसमें से भी कुछ करके उन्हें बहुत बड़ा बनाया, सब कुछ योग्य
percent देने की बनाया और उसके बावजूद भी ऐसे बच्चे होते
इच्छा से हमेशा तैयार रहते हैं । ऐसे केवल हैं जो अपने माता-पिता की बिल्कुल भी
10% लोग होंगे जो दे करके खुश होते हैं । care नहीं करते हैं । वही माता-पिता जब
बाकी 90% लोग सोचते रहते हैं इसका मुझे बच्चा होता है तो सोचते हैं , घर में उत्सव होते
कैसे मिल जाए? मैं इसका कैसे हड़प लूँ, हैं , बेटा हुआ है , बेटा हुआ है , बेटा हुआ है ।
इसके ऊपर कौन सा केस लगा दूँ, इसके बेटी हुई थी तो ढोल तक नहीं बजा। घर में
कौन से कागजात इधर की उधर कर दूँ। यह किसी ने थाली तक नहीं बजाई। आज वही
सब इसकी property मेरे पास आ जाए। माता-पिता देख रहे हैं , बेटा बड़ा हो गया
बस! लेने में लगे रहते हैं । घरों में जितने भी engineer बन गया, पुणे में job कर रहा
लड़ाई-झगड़े हैं कि माँ को कौन रखे? पिता है । यहाँ हम बीमार पड़े हैं , तैयार नहीं है आने
को कौन रखे? घर में माता-पिता की सेवा के लिए, न बुलाने के लिए, न कुछ help
कौन करें? किसलिए होते हैं ? अगर माता- करने के लिए, कुछ नहीं! अब वह बेटा किसी
पिता ने सब कुछ दे दिया तो अब उनकी सेवा भी काम में नहीं आ रहा। अब वे बूढ़े माता-
करने वाला भी कोई न बचेगा और अगर पिता सोचते हैं कि देखो! जिस बेटे के लिए
उन्होंने कुछ बचा कर रखा है तो ही उनके मैंने सोचा था कि यह बुढ़ापे की लाठी बनेगा,
पास में कोई लोग घूमते हैं कि भाई! इनके आज वह बेटा कुछ भी काम नहीं आ रहा
पास रहें गे, इनकी सेवा करेंगे तो कुछ मिलेगा और जो बेटी जिसका विवाह किया था, वह
और इस तरह की परिणति आ जाती है कि आसपास कहीं है तो वह माता-पिता का
कई बार माता-पिता के लिए अगर देने के ख्याल रख रही है । वह बार-बार पूछ रही है
लिए कुछ नहीं होता है तो उनका निर्वाह भी पिताजी कैसी स्थिति है ? क्या है ? वह आती
करना अन्त में मुश्किल हो जाता है । किस है बार-बार सेवा करने के लिए तब माता-
तरह के nature के लोगों के कारण से पिता को लगता है कि बेटे सब निकम्मे ही
होते हैं , बेटियाँ बहुत काम आती है । लेकिन कुछ नहीं करते है और अगर थोड़ा सा कुछ
तब तक तो पिता बहुत बूढ़ा हो चुका होता है , करने लग गए, इतना रौब, इतना रौब जमाते
उसकी बात कौन सुने? किसको समझ आ हैं कि जैसे इससे बढ़कर के कोई prime
रहा है ? बेटों को, बेटियों को! अब उस बूढ़े minister भी इतना रौब नहीं जमाता
माता-पिता की बात कौन सुनेगा? कौन होगा। जितना ये घर में रौब जमाते हैं क्योंकि
समझेगा? किसको कहे गा? और जिसको उन्होंने अपने nature को कभी सुधारा
कहे गा उसकी कौन मानेगा? ऐसा देखने में नहीं, इनके अन्दर कभी भाव आया ही नहीं
आता है । जिसको हम सोचते हैं कि यह हमारे कि किस तरह से हमें जीना चाहिए। किस
कोई काम में आएँगे, उनके लिए हमने सब तरह से हमें दूसरों की सेवा करनी चाहिए।
कुछ किया लेकिन फिर भी बड़े होने के बाद उत्तम त्याग धर्म सुना तो खूब है , follow
वे काम नहीं आते। जिन बेटियों को माता- कभी नहीं किया। समझ आ रहा है ? आज
पिता सोचते हैं ये तो पराए घर की हैं , न आपको क्या करना है ? अपने nature में
उनको उन्होंने अच्छे ढं ग से कोई उनके लिए ऐसी चीज लाना है । क्या करना है ? to
उत्सव मनाए, न कोई उनके जन्म का कोई give something what you have.
उत्सव मनाया, न कोई अपने अन्दर ऐसा समझ आ रहा है ? if you have
भाव लाया कि यह बड़ी होकर के हमारे काम nothing to give, क्या देना है ? to
आएगी। आज वही बेटी बड़े होकर के काम give smile only. अगर आप कितनी
में आती है और आ रही है । क्यों आती है ? भी practice के भाव में रहें गे तो हम
क्योंकि स्त्री के अन्दर, बेटी के अन्दर, एक समझेंगे कि आपका उत्तम त्याग धर्म आज
भाव होता है । हमेशा भाव होता है समर्पण का बहुत अच्छा गुजरे गा और आज आप
का, सेवा का, दया का। यह भाव आपको खुश रहें गे और दूसरे को देकर के खुश रहें गे
जितना महिलाओं में मिलेगा उतना आप तब आप आगे के धर्म की और योग्यता
पुरुषों में नहीं देखेंगे। पुरुष तो अक्खड़ होते प्राप्त कर पाएँगे। यह आपकी योग्यता को
हैं , कंजूस होते हैं , कुछ नहीं करते हैं बस! निरन्तर बढ़ाया जा रहा है ।
ऊपर से गाली और देते हैं । इसके अलावा
स्व-संवेदन
इस तरह त्याग /donate करके आपको कैसा लगा?
भी होना पड़ेगा और एकाकी भी होना पड़ेगा। हैं किन्हीं भी परिस्थितियों में साहस करके
अकेले और एकाकीपन का अन्तर जानते अपना जीवन आगे बढ़ाते हैं । आगे चल कर
हो? अकेले का मतलब होता है - हमसे दूसरे के उनका कोई भी वैवाहिक संबंध इत्यादि
छूट गए और हम अकेले रह गए। जैसे-जैसे भी हो जाता है । कभी वह संबंध सुखपूर्वक
माटी ने अपनी यात्रा आगे बढ़ाई, वह अकेली भी गुजर जाता है और कभी उस संबंध में
होती गई। उसका बहुत सारा जो सम्बन्ध था भी बहुत जल्दी दरारें पड़ जाती हैं और बहुत
वह छूटता गया और उस सम्बन्ध के साथ में जल्दी तलाक आदि की स्थिति आने के बाद
अकेली होने के साथ ही वह कुछ बन पाई, में व्यक्ति फिर से अपने आपको अकेला
कुछ ढल पाई, एक कलश का रूप ले पाई। महसूस करने लग जाता है । ऐसे बहुत से
अकेला होने पर ही आपके अन्दर एकाकी लोग दुनिया में देखने को मिलते हैं जो कहते
का आनन्द आएगा। दो चीजें हैं - अकेला हैं कि हम अपने जीवन में ज्यादातर अके-
होना और एकाकी होना। दुनिया में अकेले लापन ही महसूस करते हैं । यह अकेलापन
तो बहुत सारे लोग मिल जाएँगे। एकाकी किसी से सहा भी जाता है और किसी से
होना अलग चीज है । अकेला तो कभी हमारी नहीं भी सहा जाता। अकेलेपन को सहन
मजबूरी भी बन सकता है । हम जब जन्म करना तभी संभव है जब हम अपने अन्दर
लिए हमारे सामने घर था, परिवार था। बहुत इस तप और त्याग के माध्यम से इस स्थिति
से ऐसे लोग होते हैं जिनके माता पिता उनके में पहुँचे हो कि यहाँ पर कुछ भी मेरा नहीं
बचपन से छूट जाते हैं । खुद अकेले बड़े होते है । मैं यहाँ पर किसी का नहीं हूँ। जब इस
तरह का भाव आएगा तभी वह अकेलापन लगेंगे, सहन भी करने लगेंगे और अनुभव
आपको भीतर से सहन करने में आएगा और करने लगेंगे तो आप एकाकी कहलाने लगे।
जब आप भीतर से अकेलापन महसूस करने
नहीं है । कुछ लोग इस तरह से इस यात्रा क्योंकि मैंने देना बन्द कर दिया। यह बहुत
पर आने के बाद में दुःखी से हो जाते हैं । अच्छा सा संसार का एक बहुत अच्छा नियम
तप किया, त्याग किया अब त्याग करने के है । जब तक आप दोगे लोग आपके पास
बाद आनन्द क्यों नहीं आया? आएँगे और जिस दिन आप देना बंद कर दोगे
त्याग में आनंद है कि तो लोग आपके पास आना बंद कर देंगे।
त्याग के बाद आनंद साधु की quality यहाँ से ऊपर उठती है ।
है । कल तो आपसे साधु भी त्याग करने के बाद में, यहाँ से अपने
कहा था कि त्याग में आपको ऊपर उठा पाता है , जब अकिंचन
आनंद है , त्याग करो भाव में आता है । देते रहोगे तो मेला लगा
आनंद लो, त्याग करो रहे गा। देना बंद कर दो, चुपचाप बैठना शुरू
आनंद लो। be कर दो। किसी से कोई भी प्रयोजन रखना
happy after giving something, बन्द कर दो और उसके बाद में फिर आप
कुछ दो और आनंद लो लेकिन आप कब देखो कि आप क्या कर पा रहे हो? अकेले में
तक क्या-क्या दोगे? आपके पास में देने की आप रह पा रहे हो कि नहीं? नहीं तो आपकी
एक limit होगी, उसके बाद में आप क्या भी वही स्थिति बनेगी जो सामान्य गृहस्थों
करोगे? आज यह बताया जाना है कि देने के की स्थिति बनती है । जैसे किसी ने अपना
बाद आनंद है कि देने में आनंद है । कल तक परिवार बनाया धीरे-धीरे छूटता गया तो
तो आपने सीखा था देने में आनंद है , तो उससे अब नहीं रहा जा रहा। वैसे ही कई
दिया, आनंद लिया। लेकिन अब आप उससे साधकों से अकेला नहीं रहा जाता। क्यों
ऊपर भी उठो। देने लायक जो चीज भी दे नहीं रहा जाता? क्योंकि भीतर कोई सुख की
चुके हैं , कितना दिया जाएगा? अब देने के अनुभूति हुई नहीं। भीतर आत्मिक सुख का
बाद में जो आनंद आता है , उस आनंद को भी कोई आनंद आया नहीं। भीतर जो सुख था
लेने की कोशिश करो। अगर देने के बाद उस सुख को कभी भी अनुभव में लाया नहीं।
आनंद नहीं आया तो इसका मतलब है फिर इस कारण से उस सुख से कभी परिचित तो
आप महसूस करोगे कि अब तो मैं अकेला हुआ नहीं और दूसरों के दुःख दूर करने में
रह गया। मेरे पास में देने को कुछ बचा नहीं अपनी जिदं गी लगा दी। तब तक तो जिं दगी
अब मैं क्या करूँ ? मेरे पास कोई आता ही निकल गई, जब तक हम दूसरों के साथ कुछ
नहीं, पहले तो लोग इसलिए आते थे क्योंकि कर रहे थे, interdependent थे। अब हमें
मैं देता था। अब कोई इसलिए नहीं आता क्या करना है ? कब तक दूसरों का उपकार?
कब तक help to one another? कहीं कहीं न कहीं तो हमें अपने आप में आना ही
न कहीं तो हमें stay in myself, कहीं न होगा और इसमें आने का नाम ही अकिंचन
कहीं तो हमें अपने आप में ठहरना होगा। भाव है ।
बांधना उसको? क्यों-क्यों किसी जीव को जिसके अन्दर दुःख है , तो वह दूसरों को दुःख
पिं जड़े में डालना? वह उन्मुक्त है उसे मुक्त में डाल कर के फिर अपने अन्दर खुशी
रहने दो। वह सड़कों पर जब घूमेगा तब महसूस करेगा। क्या मिलेगा आपको? क्यों
ज्यादा अच्छा उसके अन्दर महसूस होगा कि आपको तोते पकड़ने पड़ते हैं ? क्यों आपको
जब तुम उसे जंजीर से बाँध कर के अपने घर कुत्ते पकड़ने पड़ते हैं , पिल्लों को रखना पड़ता
की ही चौखट में बाँध कर रखोगे तब ज्यादा है ? क्यों आपको उनको बन्धनों में डालना
वह खुश होगा? सोचने की कोशिश करो। पड़ता है ? आप उन्हें खुला छोड़ो, उन्हें अपनी
आपके अन्दर अगर इस बात से प्रसन्नता का जिं दगी जीने दो। उन्हें भी अपनी जिं दगी जीने
भाव आ रहा है कि मुझे वह dog अच्छा लग का वैसा ही अधिकार है जैसा आपको है ।
रहा है , मुझे वह parrot अच्छा लग रहा है , लेकिन आपको बन्धन प्रिय हैं इसलिए आप
तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसको दूसरे को भी बन्धन में डाल कर के अपने
बांध करके अपने पास में रख लो। यह आपको खुश महसूस करना चाहते हो। यह
आपकी हिं सा हो गई। यह अपने अन्दर का आपकी गलती है , यह आपका अहं कार है ,
दुःख जो आप से सहा नहीं जा रहा था, आप यह आपके अन्दर की छिपी हुई हिंसा है ।
उसका ही एक तरीके से projection करने जिसे आप प्यार से अभिव्यक्त करना चाहते
लगे कि आप दूसरे को दुःख देकर के फिर हो लेकिन यह प्यार नहीं है , यह प्रेम नहीं है ।
आप अपने में खुश होने लगे। वह मेरे कहे पशु पक्षियों के प्रति प्रेम का मतलब है - उन्हें
अनुसार चलेगा, मेरे साथ रहे गा। मैं जब भी मुक्त रहने दो। उन्हें देख कर के आनन्दित हो।
उसको जैसा भी इशारा करूँ गा वैसा करेगा। अगर तुम उनकी कुछ help कर सकते हो
वह मेरा पालतू हो जाएगा तो मुझे कुछ तो तो उनकी help करो, इस help करने का
लगेगा। दुनिया में मेरा कोई तो नहीं है , कोई मतलब यह नहीं कि उन्हें पकड़ कर के अपने
तो relative नहीं है कोई मेरी बात नहीं पास में रखो। अगर किसी तोते को आप
मानता है । कम से कम एक doggy तो बात पिजड़े में बांध के भी रख लोगे और उसको
मान लेता है , उसी से ही आदमी जिं दगी तुम रोजाना किशमिश खिलाओ, पिस्ता
निकाल लेता है । समझ आ रहा है ? पशुओं खिलाओ, दूध पिलाओ तो भीतर से खुश
को, पक्षियों को बन्धनों में रखना इसलिए रहे गा। आप सोच रहे हो मैं उसको कितनी
अच्छा नहीं माना गया। वही व्यक्ति बन्धन में बढ़िया-बढ़िया चीजें खिला रहा हूँ, मैंने
रखना पसंद करेगा जिसको खुद में बंधन उसको पाल रखा है , मैं उसकी कितनी अच्छी
महसूस करने में अच्छा लगता हो और सेवा कर रहा हूँ, मैं उसके ऊपर इतना खर्च
कर रहा हूँ। उसकी कोई जरूरत ही नहीं है भीतर ही भीतर परेशान है लेकिन आप उससे
तुम बेकार के काम कर रहे हो। वह अपने जबरदस्ती तोता, तोता, पीलू, पीलू, doggy,
आप में इतना खुश था, उसका colour हरे doggy जबरदस्ती किये जा रहे हो। उससे
रं ग का कितना मस्त लगता था जब वह उड़ता कुछ तुम से खुशी हो ही नहीं रही है और तुम
था और जब से तुमने उसको पिजड़े में रख जबरदस्ती उससे खुश होने का प्रयास कर
लिया, न उसको धूप मिल रही है , न उसको रहे हो। अगर आप ऐसा कर रहे हो तो आप
हवा मिल रही है , न उसको कोई भी अपने समझो कि हम अपने दुःख को दूर करने के
भीतर की स्वतंत्रता महसूस हो रही है । वह लिए दूसरे को दुःखी बना रहे हैं ।
करा जाए? आपसे कह भी दिया जाता है पगले हैं जो महाराज हमको आँख बन्द कर
कि भैया! आँख बन्द करके बैठो तो भी आप के बैठा दे रहे हैं । विश्वास ही नहीं होता है कि
आँख खोल कर देख लेते हो कि बगल वाला आँख बन्द करके भी कुछ होगा।
आँख बन्द किये है कि नहीं कि हमें ही केवल
भी देखता हूँ कि जब मैं कहता हूँ चलो! अब जीने लगा उन्मुक्त हो कर के। अब वह सामने
ॐ अर्हं नमः, ॐ अर्हं परम शांति बोल कर जो आदमी था, जिसने उसको छोड़ दिया, वह
के चलो अपनी हथेलियाँ घिसो, आँखों पर कहता है - यार इसने देखो मुझे बेवकूफ बना
रखो तो कई लोगों को ऐसा लगता है बस! दिया। उसने बेवकूफ नहीं बना दिया। तुम्हारे
इतनी जल्दी अभी तो मुझे और बैठना था बंधन के भाव ने तुमको इतना मोहित कर
और आनन्द लेना था और इतनी जल्दी हो दिया कि तुम्हें पता ही नहीं कि यह उपदेश
गई। इसका मतलब है अब आपको भीतर किसके लिए हैं और इन उपदेशों के पालन
से अपना सुख महसूस होने लगा। यह खुद से तुम भी मुक्त हो सकते हो। लेकिन वह
self observe करो। अगर आपके अन्दर उपदेश तुमने तोते को तो सुना दिए अपने
सुख होगा तो आप आँख बन्द करके बैठने काम में कुछ नहीं लिया। तोता तुमसे कह
में आनन्दित होगे। मुक्ति भीतर से आपको रहा है कि देखो! जैसे मैं उन्मुक्त होकर के
महसूस होगी, मुक्ति यहीं मिलेगी। पंचम आनन्दित हो रहा हूँ और बंधन से मुक्त हो
काल में भी मुक्ति है अगर आप भीतर से मुक्त गया सिर्फ क्या सोच कर कि सो जाओ, खो
हो कर के रह रहे हो तो। एक तोता मुक्त हो जाओ। कहाँ खो जाओ? दुनिया में मत खो
सकता है बन्धनों से तो आप क्यों नहीं हो जाओ, अपने में खो जाओ। जब तक अपने
सकते? वह तोता इतना समझदार कि उसने में रहोगे सुरक्षित रहोगे। अपने में कोई खतरा
जैसा महाराज ने कहा वैसा कर लिया और नहीं जैसे ही आपने दूसरे को पकड़ा, खतरा
मुक्त हो गया। हँ सने लगा और अपनी जिं दगी शुरू हो गया।
मना नहीं कर रहा है आप फिल्म मत देखो। director नहीं करता। ज्यादातर director
आज के बच्चे lockdown में घरों में बैठे हैं । इसी बात पर फिल्म बनाते हैं कि कम से कम
कितने ही बच्चे graduation किये हुए, end तो अच्छा हो जाए और end में जब
graduate कर रहे हैं और उसी time पर दोनों को मिला दिया, दोनों हाथ में हाथ
आज देख रहे हैं कोई पेपर नहीं हो रहा है , पकड़ कर घूमने लग गए तो end हो गया
कोई पढ़ाई नहीं हो रही। क्या कर रहे हैं और फिल्म खत्म। आपने क्या सीखा?
बच्चे? हमारे पास कितने ही बच्चे आते हैं कि सीखो चीजों से! अगर आप किसी भी तरह
माता-पिता परेशान हो रहे हैं । महाराज दिन की अपने अन्दर दूसरी चीजों को देखकर के
भर फिल्में देखता है , कोई बात नहीं फिल्म भी आनन्दित हो रहे हो तो उससे भी कुछ
देख लेकिन उससे कुछ conclusion तो सीखो। देखो! कि हम केवल time waste
निकाल। क्या देख रहे हो? देखने के बाद में कर रहे हैं या हमें इससे कुछ knowledge
आप यह देखो कि story कहाँ से शुरू हो भी हो रही है । जिन चीजों में केवल time
रही है और story का end कहाँ होना है ? waste हो रहा है , कोई knowledge
कहाँ होना है story का end? या तो दोनों आपको gain नहीं हो रही है , वह चीज
को last में मिल जाना है अथवा दोनों में से आपके जीवन के लिए व्यर्थ है । वह आपको
किसी एक को अगर मरना पड़ गया तो वह केवल समय की बर्बादी के लिए उससे
कोई-कोई सी फिल्म होती है । क्योंकि इतना आपको कुछ हाथ नहीं लगने वाला है ।
खराब end दिखाने की हिम्मत कोई भी
देख कर के भी यह महसूस करते हैं कि अगर न्धी रहा है । इसने मेरे लिए कुछ अच्छा भी
कोई दुःखी है , तो हम उसके साथ दुःखी हो किया, मुझे अच्छा खिलाया-पिलाया कोई
रहे हैं । अगर कोई सुखी है , तो हम उसके बात नहीं, कहीं न कहीं मैं इसको जानता हूँ।
साथ सुखी हो रहे हैं । आप सोचे कि अगर अब उसने देखा कि आदमी बहुत दुःखी बैठा
कोई अन्त में अकेला रह जाता है , तो अब है , अकेला बैठा है , क्या किया जाए इसके
आपके लिए वह अकेला कैसा लगेगा यह साथ? उसी स्थिति में वह तोता आकर के
बताओ? कोई फिल्म ऐसी है जिसमें हीरो उसके कंधे पर बैठ जाता है । क्या समझ
बिलकुल अकेला रह गया, उसका परिवार आया? तोता आकर के उसके कंधे पर बैठ
था नहीं, एक के साथ में वह रहना शुरू जाता है और जैसे ही उस आदमी ने उस तोते
किया। उसको भी तरह-तरह के उसके साथ को देखा तो उसे अहसास हुआ कि देखो!
में villain आ गए और उन्होंने उसको भी यह पक्षी कितना समझदार है और इस पक्षी
मार डाला। वह अकेला रह गया। अब आप के अन्दर अपनी स्वतन्त्रता होते हुए भी, यह
क्या सोचेंगे? बेचारा! अकेले के लिए आप के आज मुझसे यह कहने आया है कि तुम भी
लिए क्या सबसे निकलेगा? बेचारा! समझ मेरी तरह स्वतन्त्र रहोगे तो मेरी तरह आनंदित
आ रहा है ? इसलिए कभी भी फिल्मों में इस रहोगे। अकिन्चन भाव में आ जाओ कुछ
तरह की चीजें दिखाई नहीं जाती। अकेला भी मेरा नहीं है , तो ही खुश रह पाओगे।
रहना आपको पसन्द नहीं, अकेला रहना नहीं तो यह उदास चेहरा लिए जो बैठे हो,
सिखाया नहीं जाता। एकाकीपन किसी को इसका कारण है कि भीतर कुछ न कुछ अपने
आता नहीं। जब आप अपने अन्दर एकाकी अन्दर रखे हुए हो। जो तुम्हारी इच्छाएँ हैं या
भाव में आनन्दित नहीं होते तो आप अपने तो पूरी नहीं हो पाई या इच्छाओं से पहले ही
लिए तरह-तरह की चीजें इकट्ठा करते हैं और तुम्हारी पूरी होने से पहले तुम्हारी हिम्मत टू ट
उनसे आनन्दित होने की कोशिश करते हैं । गई। क्यों उदास होता है आदमी? क्यों दुःखी
एक दिन वह आदमी जिसे तोता पकड़ा था, होता है आदमी? अगर इस अकिन्चन भाव
किसी दुःख के कारण से दुःखी हो कर के आ के महत्व को समझने लगे तो कहीं से कहीं
रहा था कहीं से और दुःखी हो कर एक पेड़ तक उदासी का कोई कारण ही नहीं है । कोई
के नीचे बैठ गया। कहाँ बैठ गया? एक पेड हमारे साथ रह रहा है , तो ठीक, चला गया तो
के नीचे बैठ गया दुःखी हो कर के। अब देखो ठीक, हमारे पास में कुछ आया तो ठीक, नहीं
तोता था उसे यह तो पता था कि यह कभी आया तो ठीक। आखिर हमारा जीवन तो
न कभी मेरे से किसी भी तरह का सम्ब- हमारे पास में है कि नहीं है कि हमने अपना
जीवन भी गिरवी रख दिया किसी के लिए। जीवन भी गिरवी रख देते हैं । अगर तुम हो
गिरवी जानते हो? जैसे अपना सामान किसी तो हम है और तुम नहीं हो तो हम नहीं है ।
के लिए रख दिया जाता है , उसके बदले में यह क्या बात हुई भाई? ऐसा तो जीवन बहुत
कुछ लिया जाता है वैसे कई लोग अपना पराश्रित जीवन हो गया।
जो भी चीजें उसके सामने आती जाती हैं कहते हैं - progressive journey. इसे
उनसे भी वह लड़ता जाता है लेकिन अपनी कहते हैं - अपने अन्तर्मुखी होने की यात्रा।
यात्रा को कभी भी रोकता नहीं है । इसे
कर लिया, त्याग कर लिया, संयम कर लिया second last stage है , semi final है ।
और यह सब करने के बावजूद भी यह हमारे इसके बाद में अब आपको final में पहुँचना
भीतर से था कि नहीं था इसकी परीक्षा यहाँ है , तो यहाँ पर आपकी सब testing हो
अकिन्चन धर्म पर आकर के होती है । यह जाएगी।
लिए? यह आप अपने आपको दूसरों से जोड़ आपसे जुदा हुई हैं , छूटी हैं उनको आप अपने
कर के अभी देख रहे हो। मतलब आपके से बिल्कुल पृथक ही देखोगे और आपको
अन्दर भी यही सब चल रहा है कि मैं लगेगा कि जो कुछ भी मेरा नहीं था वह
किसका? किसके लिए? किससे? किसमें, मुझसे अलग है , वह मुझसे छूटा हुआ है ।
क्या कर रहा हूँ? मतलब आप दूसरे के परि- जो मेरा नहीं था वह मुझसे जुदा है ,
पेक्ष में देख रहे हो। यहाँ तक त्याग करने के मैं बन्धन से मुक्ति को अब पा रहा हूँ,
बाद में आपका perspective change मैं हूँ वो नहीं जो तुम्हें देख रहा हूँ,
नहीं हुआ। आपके अन्दर यह feeling नहीं मैं हूँ जो नजर से परे ही रहा हूँ।
आ रही है कि अब सब कुछ मुझमें, मेरे में, ये भावनाएँ अकिन्चन
मेरे के लिए ,मेरे द्वारा, मेरे ही अन्दर घटित धर्म की भावनाएँ हैं ।
होना है और कहीं कुछ नहीं होना है और जब इस तरह के अकिन्चन
यह होगा तब अकिन्चन धर्म का आनन्द भाव में ही आदमी अपने
आएगा। इसलिए आचार्य कहते हैं - “यो- आप की अनुभूति करता
गीगम्यं तव प्रोक्तं रहस्यं परमात्मनः” अगर है । इसी को कहते स्वा-
आपको अपनी आत्मा को परमात्मा नुभूति, स्व की अनुभूति,
बनाना है , तो परमात्मा बनने का यह रहस्य experience of myself, अपने ही
है । ‘रहस्यं परमात्मनः’ कहा है आत्मानु- consciousness को experience
शासन ग्रंथ में। आचार्य कहते हैं - यह करना। अपने ही ज्ञाता दृष्टा स्वभाव का
परमात्मा बनने का रहस्य है । अगर आप आनन्द लेना और स्वयं में अकिन्चन हो कर
इस stage पर आ गए तो समझ लो आप के अपने में ही वह सारे के सारे छह कारक
परमात्मा के बहुत निकट आ गए। लोग घटित करना। यह अकिन्चन धर्म होने पर
आतुर हैं परमात्मा से कैसे मिले? परमात्मा उपलब्ध होता है । ऐसा जीव आचार्य कहते
तक कैसे पहुँचे? यह आप बिलकुल परमा- हैं - तीन लोक का स्वामी है वह किसी का
त्मा से मिलने के निकट आ गये। बिलकुल दास नहीं है । वह किसी का दास नहीं है ,
semi final stage में हो आप, परमा- किसी पर depend नहीं है । वह तीन लोक
त्मा के निकट हो गए, stay in का स्वामी है । इसलिए उस आत्मा को पर-
yourself, अपने आप में आ जाओ मेष्ठी कहा जाता है । क्या बोलते हैं उस आत्मा
बस! जैसे ही आप इस stage पर आओगे को? परमेष्ठी! परम पद में जो स्थित हो गया।
तो वहाँ पर आने के बाद में जितनी भी चीजें परम मतलब जो supreme state of
my soul थी उसमें वह आ गया इसलिए करता है । मेरा कोई वोट नहीं है । मैं कभी वोट
वह परमेष्ठी कहलाया और इस तरह का जो नहीं देता हूँ। सुन रहे हो क्यों? मुझे तुम्हारी
परमेष्ठी पद पर आ जाएगा, वह दुनिया में, राजनीति से कोई मतलब ही नहीं है । मुझे
दुनिया के लिए अपने आप पूज्य हो जाएगा। किसी से कोई पक्षपात है ही नहीं। न मेरे
वह दुनिया की दासता स्वीकार नहीं करेगा। लिए कांग्रेस अच्छी है , न मेरे लिए बीजेपी
कितना ही बड़ा कोई भी मन्त्री हो, नेता हो, अच्छी, मेरे लिए कुछ नहीं है । क्योंकि मुझे
राजा हो, शासक हो वह किसी का दास नहीं किसी भी तरह के किसी भी राजा के शासन
है । एक दिगम्बर सन्त ही ऐसा होता है जो में किसी भी तरह की पराधीनता में नहीं
किसी भी राजनीति में नहीं होता है । किसी रहना है । मेरा कोई वोट नहीं है मैं किसी को
भी राजा के शासन काल में रहते हुए भी, वोट डालने नहीं जाऊँगा। मैंने सुना है शायद
राजा का किसी भी तरह का शासन का, राष्ट्रपति भी कभी-कभी वोट डालने का
उसके शासन का, किसी भी तरह का अधिकारी होता है , वह भी वोट डालता है
पराधीन नहीं होता है । किसी भी तरह से वह मतलब दुनिया में पहले नंबर का आदमी भी
किसी भी राजा को support भी नहीं वोट डालता है ।
करूँ गा। कभी नहीं! यह मेरी मर्जी है । यह घण्टे तक जब तक आचार्य महाराज का प्र-
मेरी व्यावहारिकता हो सकती है लेकिन मेरे तिक्रमण पूरा हो गया, वह वैसे ही बैठी रही।
ऊपर इस चीज कोई भी pressure नहीं उन्होंने उसके लिए कोई भी, तुझे जाना है
है। इसलिए आप देखना जब आचार्य श्री के जा, दर्शन करने आयी है , कर ले। हमारे लिए
पास में prime minister जी गए थे तो इतनी पराश्रितता नहीं है कि तेरे आने के
आप देखना वे कहाँ देख रहे हैं और वह कहाँ कारण से हम जो है अपना प्रतिक्रमण छोड़े
देख रहा है ? आप अपने लिए यह सिर्फ देखें कि हम जो हैं तेरे लिए बहुत जल्दी अपना
कि आखिर इस स्थिति में जब कोई आदमी time दे। तुम्हें बैठना है बैठो, जाना है जाओ।
बैठा होता है , तो उसके लिए कोई कुछ नहीं अकिन्चन धर्म में आने के बाद में आदमी
होता है । चाहे prime minister हो, बहुत स्वतन्त्र हो जाता है । कोई भी तरह का
चाहे chief minister हो और चाहे कोई राजनेता हो, कोई भी तरीके का कोई भी नेता
president हो। कोई भी उसके लिए महत्व हो, हीरो हो, कोई भी हो किसी के ऊपर
नहीं रखता है । अगर उसकी खुशी में, उसके depend नहीं होता। उससे बढ़कर के कोई
आनन्द में कोई भी दखलअंदाजी करने की नहीं होता जो अकिन्चन धर्म का पालन कर
कोशिश करता है , तो वह उसको भी अपने रहा है । यह इस अकिंचन धर्म की सबसे बड़ी
सामने से अगर वह खड़ा हो गया होगा तो चीज है और जो इस स्थिति में आ गया वही
अपने सामने से भी जाने को मना कर सकता अब आगे final stage का आनन्द लेगा।
है । मुझे तुझे नहीं देखना, तुम जाओ। वह परमात्मा से मिलने में केवल एक कदम
जरूरी नहीं है कि मैं उससे बात करूँ । ऐसी बाकी है बस! आप कहाँ हो आप देख लो।
स्थिति क्यों बनती है ? philosophy यही है , basic principle
जब आदमी अकिंचन यही है to become a god. एक इं सान
धर्म में होता है । मैंने के लिए एक अपनी आत्मा को परमात्मा
देखा है कई बार आचार्य बनाने के लिए, इससे अच्छा रास्ता कुछ नहीं
महाराज को भी जब है । अगर उस रास्ते पर चलते हुए भी आप
एक बार चतुर्दशी थी, अगर यह महसूस कर रहे हो अभी हम कहीं
अपना प्रतिक्रमण कर नहीं पहुँचे तो इसका मतलब है अभी आप
रहे थे और चतुर्दशी का चले ही नहीं, केवल आप सुन रहे हैं । घड़ी
प्रतिक्रमण करने में लगभग डेढ़ घण्टे -दो बहुत आगे चल चुकी है आप लोगों ने बताया
घण्टे लग जाते हैं । उसी समय पर time हो नहीं है । बोलो! महावीर भगवान की जय।
गया, उमा भारती आ गई। जबलपुर की बात
है , वहाँ आकर के बैठ गई। वह डेढ़ घण्टे , दो
आज का एहसास
स्व-संवेदन
• आज आप अकेले बिना बात किए रह अपने मन को संभाल पाए? Yes / no
पाए? Yes / no / little bit / little bit
• क्या आपको बोरियत महसूस हुई? • अपने मन को संभालने के लिए किसका
Yes / no / little bit अवलंबन लिया?
• क्या बोरियत होने के बावजूद आप • आपको कैसा महसूस हुआ?
जरूरत है और उस step की कीमत बहुत स्थिति में एक-एक point पर आगे बढ़ना
है । जैसे आप जानते हो बच्चे पढ़ते हैं । जब हमारे लिए कठिन काम होता है । जितना
हम छठवी, सातवीं, आठवीं क्लास में होते हमारे लिए एक-एक point का महत्व उस
हैं तो हम बहुत आराम से अच्छी-अच्छी समय पर समझ में आता है उसी तरह का
merit list में आते रहते हैं , अच्छे -अच्छे महत्व यह धर्म के अन्तिम 2 दिनों का है ।
rank ले आते हैं । बहुत easily हर तरीके उत्तम आकिंचन और
की क्लास को पास करते रहते हैं । जैसे- उत्तम ब्रह्मचर्य! बाकी
जैसे हम बढ़ते हैं competition exam की सब यात्रा सब हम
जैसे-जैसे और ज्यादा tough होता चला बड़े उत्साह से कर
जाता है , तो उस समय आपके लिए एक- सकते हैं और यहाँ
एक नंबर की value होती है । 99 point आकर के हर व्यक्ति
के बाद में गिनती शुरु होती है - rank बनने दम तोड़ने लग जाता
की। अगर आप 99.9 है , तो ही आप first है । कहाँ पर पहुँच कर? बस, semifinal से
rank में होंगे। 100 होंगे तो first rank पहले सब दौड़ेंगे और वहाँ पहुँचते-पहुँचते
में होंगे और अगर आप 99.9 से 99.8 या कुछ तो semifinal में दम तोड़ देंगे और
99.7 पर आ गए तो आप बहुत पीछे धकेल final तक पहुँचने वाले तो बहुत कम लोग
दिए जाओगे। इतनी भीड़ होती है और उस होते हैं ।
उनको समझने का एक बहुत अच्छा माहौल create होंगे। वह उनमें कितना flow कर
तैयार किया जाता था। किसी भी व्यक्ति के जाता है , वह उनको कितना control कर
लिए जब गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी तो पाता है यह इस बात पर उसकी success
उसे दोनों चीजों पर focus कराया जाता depend होगी। केवल dream plan
था। ‘We have to control our करने से नहीं हो जाता कि बच्चे को doctor
anger and our sexual desires’. बनना है । हमने उसे coaching करने के
ये दोनों ही चीजें हमारे लिए control में लिए दिल्ली पहुँचा दिया, कोटा पहुँचा दिया।
शुरू से करना सीखना चाहिए। जैसे- हम इससे कुछ नहीं होने जाने वाला। जो सबसे
क्रोध, क्रोध, क्रोध पर focus करते हैं , काम बड़ी चीज अपने बच्चों के प्रति control
पर कोई focus नहीं करता। कोई नहीं करने की होती है उसके लिए तो किसी भी
देखता कि हमारे अन्दर या हमारे बच्चों के guardian का कोई focus होता ही नहीं
अन्दर किस तरह के भाव आ रहे हैं ? जिसके है । जब तक ऐसा माहौल नहीं बनेगा तब
कारण से वह बच्चा कहाँ जा रहा है ? क्या तक बच्चे का पढ़ने में मन नहीं लगेगा। धीरे-
कर रहा है ? क्या पढ़ रहा है ? कहाँ घूम धीरे बड़ा होना शुरू हुआ उसका मन divert
रहा है ? किसकी company में आ रहा होना शुरू हुआ, उसके अन्दर तरह-तरह के
है ? ये सब चीजें हमारे लिए शुरू से देखने विचार आने लगे और उन विचारों में वह
में नहीं आती तो हम कभी-भी जिन्दगी में अपने आप को नहीं संभाल पाता। कई बच्चे
किसी भी तरह की success हासिल कर बाहर जाकर के पढ़कर के आने के बाद में
ही नहीं सकते। यह वह चीज है आदमी ने भी वहाँ पर जैसा पढ़ना चाहिए वैसा नहीं पढ़
किसी भी तरीके का target बनाया जैसे- पाए या कुछ बच्चे तो बाहर जाकर के इतना
बच्चा जब छोटा होता है , बेटा क्या बनेगा? बिगड़ जाते हैं कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहता
क्या बनेगा? collector बनूँगा, doctor कि हम किस लिए आए थे और यहाँ क्या
बनूँगा, बन जाएगा, अभी थोड़ा बड़ा तो होने करने लगे? यह बहुत से बच्चों की स्थिति है ।
दो उसको। जैसे-जैसे वह बड़ा होगा उसके यह क्यों बनती है ? क्योंकि वैसा माहौल नहीं
शरीर की biology change होगी, उसके दिया जा रहा है , जिससे वे अपने काम को,
शरीर के अन्दर तरह-तरह के emotions क्रोध को control कर सके।
गुरूकुल परम्परा और संयुक्त परिवार ही बच्चों काम और क्रोध से सुरक्षा दे पाते हैं
पहले गुरुकुल होता था तो बच्चों को एक उम्र तक चौदह-पन्द्रह साल तक उनको
एक ही campus में अच्छे ढं ग से रखा जाता अन्त तक अच्छा रहे गा। आप देखते होंगे
था। उनको सब तरह की शिक्षाएँ दी जाती थी पहले के घरों में ऐसी बातें नहीं मिलती थी
और उनका focus केवल education पर जैसी आजकल मिलती है । जहाँ बड़े-बड़े
रहता था। उस समय पर वे जो पढ़ लेते थे, घरों में दस-दस, बारह-बारह लोग एक
वह उनके लिए जिं दगी भर काम आता था। साथ रहा करते थे। वहाँ पता ही नहीं पड़ता
फिर उसके बाद में उनको छोड़ दिया जाता था बच्चा बड़ा होता है , पढ़ता भी रहता है ,
था। अब आप अपनी line choose कर घर में घूमता भी रहता है । अपनी कोई भी
लो आपको क्या करना है । आपको ब्रह्म- चाहे बेटा हो, बेटी हो, सब घर के माहौल
चर्य के साथ रहना है अथवा आपको अपना में इस तरह से adjust होकर के रहते हैं
वैवाहिक जीवन अपनाना है । उसके लिए कि किसी को लगता ही नहीं कि यह कुछ
उन्हें पढ़ने के बाद में बिलकुल उन्ही के ऊपर गलत करने वाला है और न कभी गलत होता
decisions करने के लिए छोड़ दिया जाता था। बहुत गलत होने के chance बहुत कम
था। आप सोच लो! आपको सब पढ़ा दिया हुआ करते थे, इतने sincere रहा करते थे।
गया है । धर्म भी पढ़ा दिया गया। आपको उनके लिए भी वही उम्र हुआ करती थी, वे
किस तरह से अपना business चलाना है , भी उसी उम्र से गुजरते थे लेकिन घर का
व्यापार की शिक्षा भी दे दी है । आपको किस माहौल और कहना चाहिए बाहर की दुनिया
तरह से इस भौतिक दुनिया को जानना है ? का माहौल दोनों इतने अच्छे रहते थे कि
भौतिक science भी पढ़ा दिया गया, सब बच्चा कहीं भी घूम कर आ रहा है या पढ़ कर
कुछ पढ़ाया जाता था। पढ़ाने के बाद उनके आ रहा है , तो उसके लिए किसी भी तरह
decision के लिए उनको छोड़ दिया जाता की कोई दिक्कत नहीं होती। वह पढ़ा और
था। जैसा उनका मन आता था करते थे। अपने घर में आया, अपने घर के कामकाज
लेकिन वह एक जो उम्र होती थी उस उम्र में किये, पढ़ाई का कामकाज किया और उसके
जहाँ उनके बिगड़ने के chance होते हैं , उस बाद में वह अपने काम में फिर से लग गया।
उम्र पर उनके लिए जब सुरक्षा मिलती है , इस तरह से उसका जीवन चलता रहता था
तो उनका दिमाग एक तरह से काफी कुछ और एक उम्र जहाँ पर बिगड़ने का साधन
settle हो चुका होता है । एक उम्र होती है , होता है , उस उम्र को बड़ी शांति के साथ वह
उस उम्र में सब से ज्यादा सावधानी रखने गुजार लेता था। विवाह हो गया, विवाह के
की जरूरत होती है । उस उम्र में अगर बाद फिर ढं ग से रहने लगे सब कुछ परिवार
बच्चा संभल गया तो वह अपने जीवन के चलता रहता है । सब कुछ अच्छा होता था
है जिससे संबंध बनाना चाह रहे हैं , वह हमें चाहो तो मैं आपको
कहीं से कहीं तक उचित नहीं लग रहा है according to jain
लेकिन यह भाव एक ऐसा होता है कि जिसके science, male
अन्दर इस तरह का एक भाव पैदा हो जाता and female body
है । उससे फिर किसी की कोई बात कभी की जो chemistry
समझ नहीं आती है ।सुन रहे हो? बोलो तो! होती है , उसके बारे में
इसलिए पूछ रहा हूँ कि अभी समझ आ रही जो जैन आचार्य कहते
कि नहीं आ रही है । अभी तो समझ आ हैं , वे तीन चीज बताने जा रहा हूँ। सभी बच्चे
जाएगी और अभी समझ भी उनको आएगी भी सुने, बेटे भी सुने, बेटियाँ भी सुने। हम
जिनको अभी इस भाव में अभी ज्यादा कहते हैं - बेटा-बेटी बराबर है आप यह सोच
indulgency नहीं हुई है । जो इस भाव में को रखें यह सिर्फ इसलिए है कि आप भी
अपने अन्दर अभी control किए हुए है पढ़े, आप भी पढ़े, आप भी आगे बढ़े, आप
उनको तो आ जाएगी। लेकिन जिनको इस भी आगे बढ़े। इसलिए अगर हम यह सोच
भाव में control नहीं रहता उन्हें कुछ समझ कर कि बेटा-बेटी बराबर है जैसे बेटा घूमता
नहीं आता, ये बहुत बड़ी चीजें हैं । ऐसी एक है , वैसे बेटी घूमने लग जाए। जैसे बेटा कुछ
emotional, एक ऐसी intensity है कि भी करता है , वैसे बेटी भी कुछ भी करने लग
जैसे हम anger की intensity को जाए, यह संभव नहीं है । अगर ऐसा करोगे
control नहीं कर पाते हैं , वैसे ही इसlust तो आपके घर में किसी भी तरह की शांति रह
की intensity को भी control नहीं कर ही नहीं सकती है । आपके द्वारा ऐसे गलत
सकते और यह केवल एक intensity होती काम हो जाएँगे कि आपको पता ही नहीं
है , emotional intensity होती है । यह पड़ेगा कि हम कब गलती के रास्ते पर चले
कुछ क्षण के लिए रहती है , उसके बाद में छूट गए। हमारे साथ क्या गलत हो गया और
जाती है । अगर आप आज जानना हमारा जीवन नरक बन गया।
उत्पन्न होगी और पुरुष वेद के उदय से स्त्री में थे। आजकल तो same sex भी अपना
रमण करने की इच्छा होगी। इस science relation रखने लगे हैं और धीरे-धीरे यह
को समझें, यह कषाय है । यह हमारा जो भी एक चीज legal बनती चली जा रही है ।
emotion हैं जैसे हम anger को कषाय समझ आ रहा है ? यह चीज बता रही है कि
समझते हैं , ऐसे ही यह कषाय है , यह हमारे लोगों के अन्दर यह चीज भी है । अब धी-
अन्दर एक attraction पैदा करती है । रे-धीरे यह manifest हो रही है । क्यों हो
किसके लिए? अगर पुरुष वेद का उदय होगा रही है ? क्योंकि यह पहले जैनाचार्यों ने कह
तो attraction होगा towards the रखा है जिनके अन्दर नपुंसक वेद का उदय
female और अगर स्त्री वेद का उदय होगा होगा, वह नपुंसक वेद के उदय के कारण से
तो उसका attraction होगा towards उनका attraction male में भी होगा और
the male. यह उस कषाय के उदय से female में भी होगा। वह same sex में
attraction हमारे मन के अन्दर पैदा भी अपना attraction रखेंगे, opposite
होने लग जाता है । जैसे-जैसे हम बड़े होते sex में भी अपना attraction रखेंगे।
हैं , attraction उतना ही बढ़ने लग जाता इन तीनों प्रकार की चीजों को समझाने
है और नपुंसक वेद का तो attraction के लिए जैन शास्त्रों में भीतर से example
इतना खराब होता है कि चाहे male हो दिए गए हैं कि जो हमारे अन्दर पुरुष वेद का
चाहे female, दोनों के प्रति होता है । अब उदय होगा तो वह कैसा होगा? ये तीनों प्रकार
देखें यह बताया गया कभी-कभी आप के जो वेद हैं - all these three vedas
देखते हो आजकल तो एक और चीज चलने are just like a fire. fire जानते हो!
लगी है । बोले! पहले तो लोग opposite बोलो तो! आग है यह आग। यह ऐसी एक
sex से ही केवल अपना relation रखते आग हमारे मन में, हमारे अन्दर, हमारे भीतर
जलती है कि उस आग में सब कुछ जल जाए बाद बुझ जाएगी। तृण अग्नि ऐसी होती है
लेकिन उस आग में जिस चीज से उस आग और यह पुरुष वेद की अग्नि के लिए यह
की वृद्धि होनी चाहिए, हम उसी चीज को उदाहरण दिया गया है । आप पढ़े-लिखे लोग
उसमें डालने की इच्छा करते हैं । सब छूट सब इसको समझें, जाने कि हमारे अन्दर
जाए किसी को कोई भी चिं ता नहीं होती। भाव क्या हो रहा है ? कौन से हो रहे हैं ? कहाँ
अब देख रहे हैं कि जैन से हो रहा है ? इसकी chemistry क्या है ?
science क्या कहता यह सब हमको समझ में आनी चाहिए। स्त्री
है? पुरुष वेद की जो के अन्दर की जो अग्नि बताई गई तो आचार्य
आग होती है वह तृण कहते हैं कि स्त्री की अग्नि कण्डे की अग्नि के
अग्नि के समान बताई समान होती है । कण्डा जानते हो? आज के
है। तृण जानते हैं ? तृण बच्चे तो कुछ जानते ही नहीं हैं । क्या बोलते
मतलब एक छोटा-सा हो? भूसा! घुसा! यहाँ भूसा बोलते हैं आपकी
कोई भी सूखा-सा जो टु कड़ा होता है जो U.P. की भाषा में। अब ठीक है भाई! इसको
पत्तियों के छोटे -छोटे टु कड़े होते हैं न, जिन्हें करीष भी बोला जाता है ‘करीषाग्नि’ संस्कृत
हम थोड़ी देर के लिए जला देते हैं । जब तक में। जो एक गोबर होता है , उस गोबर के
वह टु कडा है जलेगा, जलेगा उसके बाद में कण्डे बनाते जाते थे पहले। उनसे वह भोजन
बुझ जाएगा। यह जो पुरुष वेद की अग्नि बनाने के लिए उसको अंगीठी में डालने में
होती है , यह तृण की अग्नि के समान होती है । काम आते थे। सबको पता होगा न उपला भी
तृण अग्नि मतलब थोड़ी देर जलेगी। जैसे बोलते हैं । कहीं ढपला, उपला, कण्डा जो
आप समझ लो कि माचिस के ऊपर का कुछ भी हो। अब जब उन कण्डों को जलाते
मसाला। समझ आ रहा है ? जब तक वह हैं तो उन कण्डों की अग्नि कैसी होती है ?
जलेगा तब तक वह माचिस है और उसके काफी देर तक जलती रहती है । भीतर ही
हमारे अन्दर जो एक desire पड़ी हुई है , वह अग्नि का प्रयोग करना होता था तो फिर से
just like a ‘करीषाग्नि’ मतलब कि वह उसमें फूँकनी से उसको सुलगा देते थे और
अग्नि भीतर-भीतर बहुत देर तक रहे गी, फिर से उसमें वही आग फिर से शुरू हो
सुलगती रहे गी पता नहीं पड़ेगी लेकिन अगर जाती थी। यह अग्नि कितनी ज्यादा
उसको बाहरी साधन मिलेंगे तो वह अग्नि intensity को लिए हुए हैं यह आप समझ
ज्यादा जलेगी और ज्यादा देर तक जलेगी। सकते हो। दोनों तरह की अग्नि में क्या अन्तर
पहले के लोग सुबह का कण्डा जला हुआ है ? यह भी आप समझ सकते हो और यह हर
शाम तक भी रखे रहते थे और शाम को जब कोई भीतर से समझ सकता है ।
intensity यहाँ से शुरू हो रही है । आप अपनी फोटो भेज दो, फोटो भेज दो । भेज दी
अभी control कर सकते हो, अपनी चिं ता उसने, अब उसकी full फोटो ही देखता
को हटा सकते हो और वह चिं ता कैसे हट रहे गा ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ अब! फोटो देख-
सकती है ? जिसका आप चिन्तन कर रहे हो, ते-देखते ही उसके अन्दर ख्याल वही बना
जिसके बारे में बार-बार remind कर रहे रह रहा है । वही चिं ता चल रही है । अब! जब
हो। उसकी बार-बार याद कर रहे हो, यह इसका वेग बढ़ जाएगा तब उसका दूसरा वेग
याद आपको रोकनी पड़ेगी। यह पहला वेग आना शुरू हो जाएगा। देखना है , मिलना है ,
है । अगर यह वेग संभल गया तो कुछ संभल कहाँ मिलोगे? अब वह योजना बनाएगा।
जाएगा। नहीं संभला तो दूसरा वेग आ college में, किस park में? किस hotel
जाएगा। ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ दूसरे वेग में में? किस theatre में? कहाँ मिलना है ?
उसको देखने की इच्छा होगी। क्या समझ अब! यह चीज शुरू होगी, जिसे आप लोग
आ रहा है ? पहले वेग में क्या हुआ? चिन्तन बोलते हो dating, यह चीज शुरू होगी।
आया, ख्वाब जिसको बोलते हैं । कोई भी ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ अब यह देखने की इच्छा
तरीके की, किसी की भी, किसी style का, शुरू हुई। अब देखो! तीसरा वेग क्या होगा?
आपके mind पर प्रभाव पड़ सकता है । ‘तृतीये दीर्घ निश्वास:’ अगर आपके अन्दर
किसी की किसी beauty का, किसी की इस काम का वेग बढ़ता गया तो क्या होगा?
किसी action का, किसी style का, श्वासें आपकी लंबी-लंबी चलने लगेंगी।
आपके mind पर प्रभाव पड़ सकता है । वह मतलब स्थिति अब बिगड़ने जा रही है ।
चीज आपको अच्छी लगने लग गई, आपके ‘तृतीये दीर्घ निश्वास:’ लम्बी-लम्बी सांसे
दिमाग में घूमने लग गई तो यह क्या हो चलेंगी और “चतुर्थे भजते ज्वरम्” चौथा वेग
गया? पहला तो हो गया चिन्ता। अब आप आ गया तो आपको ज्वर आ जाएगा, बुखार
दिन भर उसी के बारे में सोचोगे और आपको आ जाएगा। बुखार जानते हो न! बोलो तो!
कुछ नहीं दिखेगा। सामने किताब तो रहे गी बुखार जानते हो न! इसका भी एक ज्वर
लेकिन दिमाग किताब में नहीं होगा। दिमाग होता है । जब यह ज्वर चढ़ता है , तो उतरता
किताब में भी उसी का फोटो दिख रहा होगा, नहीं है । अपने आप तबीयत खराब होने लगी,
बिना फोटो के फोटो दिख रहा होगा। ‘प्रथमे temperature बढ़ गया, बुखार आ रहा
जायते चिं ता’ देखो! आचार्यों ने कितनी बड़ी है । किसका आ रहा है ? यह viral नहीं है ,
science लिखी है । ‘द्वितीये दृष्टुं इच्छति’ कोई dengu नहीं है , कोई malaria नहीं
अब आजकल तो mobiles के साधन हैं । है कि उस बुखार को कोई भी physician
नाम दे सकता है । किसी भी तरीके की कोई temperature बढ़ने लगा है , भोजन में
भी dose देगा वह बुखार कुछ काम ही नहीं रुचि बिल्कुल नहीं बन रही, माता-पिता कह
करेगा। वह बुखार आ गया तो कहाँ से आ रहे हैं बेटा खा ले, कितने अच्छे -अच्छे तेरे
गया? वह बुखार उसके emotions से लिए व्यंजन बनाए, त्यौहार आया यह हो रहा
आया। उसका temperature बढ़ रहा है , है , वह हो रहा है । कुछ नहीं! कुछ नहीं! कुछ
body का control नहीं हो रहा है , यह नहीं! छटवाँ वेग में चल रहा है ‘षष्ठे भुक्तम् न
उसके उस emotions से हुआ है । ‘चतुर्थे रोचते’ व ‘सप्तमे स्यात् महामूर्छा’ और सातवां
भजते ज्वरम’ समझ आ रहा है ? फिर जब वेग आया तब तो वह एक तरीके से बिल्कुल
ज्वर आता है ‘पंचमें दह्यते गात्रम्’ पाँचवें वेग मूर्छित-सा हो जाता है । मूर्छा जानते हो! अब
में तो शरीर जलने लग जाता है । अब! शरीर थोड़ा उसका होश भी गड़बड़ाने लगेगा। मूर्छा
जलने लगेगा मतलब आग जो पहले तो मन में आ जाना मतलब एक बेहोशी की हालत
में लगी थी अब शरीर में लग गई है । बस! में आ जाना। अब उसको होश नहीं रहने
इसी आग में अब सब जलना है और कुछ वाला कि मुझे क्या हो रहा है ? क्यों हो रहा
नहीं होना है । आग है , यह आग, इस तरह की है ? क्या? किस लिए हो रहा है ? उसे खुद
आग जो आपके सामने, आपको इतना अंधा नहीं मालूम। समझ आ रहा यह ‘सप्तमे स्यात्
बना दे, आपके अन्दर इतना धुआँ पैदा कर दे महामूर्छा’, आठवें में ‘उन्मत्तत्त्वमथाष्ठमे’ तो
कि आपको कुछ दिखाई न दे। ‘दह्यते गात्रम्’ वह उन्मत्त हो जाएगा, पागल की तरह हो
जलने लग गया शरीर। कौन-सा वेग हो जाएगा, अगर इस वेग को control नहीं
गया? ‘पंचमें दह्यते गात्रम्’। ‘षष्ठे भुक्तम् न किया। पागलपन की स्थिति बन जाएगी,
रोचते’ छटवाँ वेग आएगा तो भोजन भी करने बन जाती है । इसलिए माता-पिता हाथ
की रूचि नहीं बचती है । भोजन भी अच्छा जोड़कर के छोड़ देते क्या करें उसे जो करना
नहीं लगेगा। देखते रहना अपने-अपने वेगों है करने दो, कम से कम पागल तो नही हो।
को control करते रहना। ये भीतर के वेग ‘उन्मत्तत्त्वमथाष्ठमे’ आठवें वेग में तो वह
हैं , ये भीतर की velocity हैं , किस तरीके से उन्मत्त हो गया। उन्मत होने का मतलब वह
इन्हें हमें समझना है । अगर हमारे लिए खा- अब कुछ नहीं देखेगा। वह आपको मार भी
ने-पीने में रुचि नहीं आ रही है या चिं ता उसी सकता है , आपका गला भी घोंट सकता है ।
की सता रही है और हमें किसी का फोटो ही ऐसे केस कितने देखने को मिलते हैं कि बच्चे
हमारे दिमाग में पड़ा हुआ है । उसी से मिलने अपने माता-पिता का murder कर देते हैं
की इच्छा है , उसी से बोलने की इच्छा है । सिर्फ इस बात के लिए कि उन्हें किसी चीज
स्वतंत्र हैं । यह पहले की पद्धति होती थी। जल रहा है , तो तुम्हारे अन्दर भी कुछ जलन
आज बच्चों को सिखाया ही नहीं जाता। शुरू पैदा होगी कि नहीं? उसी से जलन पैदा हो
से ही उनके हाथ में mobile दे दोगे, तड़- जाएगी। जब वह ऐसा कर सकता है , तो मैं
कते-भड़कते गाने सुनेंगे, तड़कती-भड़कती क्यों नहीं कर सकता? गलत राह पर बच्चा
फिल्में देखेंगे तो वह तड़क-भड़क उनके भीतर यहीं से चलना शुरू हो जाता है । इसलिए
पैदा होगी कि नहीं? जब सामने कोई भड़क यहाँ ब्रह्मचर्य का मतलब है - सब कुछ देखते
रहा है , सामने कोई तड़क रहा है , सामने कुछ हुए भी आत्म नियंत्रण रखना।
कि मैं इससे भाग करके अपने आप को capacity आई नहीं। सुन रहे हो? ज्ञानी
control कर लूँगा तो यह भी तेरी अभी आत्माओं! ज्ञानी को यहाँ पर जानी बोलते
अन्तिम यात्रा, अभी तेरी perfection इस हैं । क्या बोलते हैं ? हाँ! समझ में आ रहा है ?
चीज में नहीं हुई। मैं सोच रहा था कि इतने क्या समझ में आ रहा है ? उसके गुरु ने बहुत
साल का साधक हो गया है , इतना बड़ा हो अच्छी बात कही- बेटा तैरना सूखे में नहीं
गया है , अब तेरे अन्दर बिलकुल maturity सीखा जाता, तैरने के लिए नदी ही चाहिए।
आ गयी होगी, अभी तेरे अन्दर वह बात नहीं नदी में जो तैर गया वही तिरता है इसलिए
आई। ऐसी परिस्थितियों में भी, ऐसी नदी में तैरने से बचने का उपाय नहीं करना,
स्थितियों में भी, इन चीजों को देखते हुए भी तैरना तो नदी में ही सीखा जाएगा। सूखे में
तुझे यह सोचना है कि यह अगर अविवाहित क्या तैरना? अगर तेरे सामने सब कुछ हो
है , तो यह मेरी बहन है , मेरी बेटी है और अगर और फिर भी तेरे अन्दर किसी भी तरीके का
यह विवाहित है तो यह मेरी माँ है। मेरी माँ के भाव न हो तो यह तेरे अन्दर की बहुत बड़ी
समान है , मेरी भाभी के समान है । ऐसी दृष्टि योग्यता है और इसी योग्यता को अगर तूने
जब तेरे अन्दर आएगी और तू उसका इस प्राप्त कर लिया तो फिर तुझे हम कहीं भी भेज
तरीके से उपचार करता और तू उसके सौन्द- देंगे, कहीं भी रहे गा, किसी भी स्थिति में
र्य में अपने आपको विचलित नहीं करता तो होगा, तेरे अन्दर कभी कोई बिगाड़ नहीं
ही तू इस तरह के ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो आएगा।
सकता है अन्यथा अभी तेरे अन्दर वह
धर्म का एक package है , यह पूरा का पूरा अभी तो उसने चलना सीखा है । चलते हुए
उस रास्ते पर चलने की एक सामग्री है । अभी भी किसी भी प्रकार का भ्रम सामने न आ
तो चलना सीखा है , अभी तो बहुत आगे जाए, चलते-चलते जिं दगी भर में उसके
बढ़ना है , बहुत आगे चलना है । चारी तो अब लिए कितने भी भ्रम सामने आए वह उनको
शुरू हुआ न! ‘चारी’ मतलब चलने वाला। हटाता चला जाए। भ्रम के पर्दे उसके सामने
‘ब्रह्म’ मतलब उस शुद्ध रास्ते पर, आत्म आएँगे, भ्रम के धुएँ उसके सामने आएँगे, वह
तत्त्व के रास्ते पर चलने वाला, अब शुरू सब को हटाता चला जाए और अपने ब्रह्म
हुआ है अभी मंजिल तक नहीं पहुँचा। को उपलब्ध हो जाए। इसका नाम है - ब्रह्म
मंजिल तो ब्रह्म में लीन होना है , ब्रह्म में में स्थित हो जाना। यह ब्रह्मचारी से ही
निष्ठ हो जाना है वह मंजिल है । जब वह शुरू होता है , जो ब्रह्मचर्य का पालन
ब्रह्म में स्थिर हो जाएगा, स्थित हो जाएगा करे गा, वही ब्रह्म में स्थित हो पाएगा।
तब उसके अन्दर उसकी मंजिल मिलेगी।
सकते हैं । ब्रह्म तक पहुँचने के लिए आपको इस तरीके से involve नहीं होना, touch
तमाम भ्रम छोड़ने पड़ेंगे। यह भ्रम छोड़ने की नहीं होना। physically अपने sensual
साधना का नाम है - ब्रह्मचर्य की साधना pleasure के लिए किसी के साथ में इस
और यह साधना आपके किसी भी स्तर पर तरीके से घुलना मिलना नहीं। यह उसके
आपके द्वारा प्रारं भ की जा सकती है । मैं अन्दर एक व्रत रहे गा तो उससे बचा रहे गा।
कहता हूँ कि बच्चों को यह साधना पहले एक emotions तो आएँगे लेकिन वह उनको
शारीरिक स्तर पर प्रारं भ कराई जानी चाहिए। control करेगा क्योंकि उसके अन्दर एक
एक शारीरिक ब्रह्मचर्य है , एक मानसिक ब्र- व्रत है । शारीरिक ब्रह्मचर्य इसी का नाम है ।
ह्मचर्य है । समझ में आ रहा है ? शारीरिक केवल शरीर से ब्रह्मचर्य है । अगर व्यक्ति के
ब्रह्मचर्य क्या है ? जब तक मेरा विवाह नहीं लिए, बच्चे, बेटे, बेटी के लिए विवाह से
होता, हर बच्चे को चाहे वह बेटा हो बेटी इस पहले दिया जाए तो वह उसके ही माध्यम से
विषय में all are same. हर बेटे या बेटी अपने मानसिक ब्रह्मचर्य को भी समझ
को अपने माता-पिता के साथ में या आप सकेंगे। विवाह होने के बाद या उस स्थिति
माता-पिताके द्वारा बेटा-बेटी को किसी गुरु तक पहुँचने तक उनके अन्दर धीरे-धीरे भाव
के सानिध्य में इस तरह का एक उनके अन्दर आने लगेगा कि यह मानसिकता भी हमारे
एक व्रत दिलाना चाहिए। एक संकल्प लिए अब अच्छी नहीं, इसे भी control
दिलाना चाहिए कि जब तक यह बेटा अट्ठारह करना, इसे भी divert करना, यह उनका
वर्ष का नहीं होगा या इक्कीस वर्ष का नहीं एक मानसिक ब्रह्मचर्य की तरफ झुकाव
होगा तब तक के लिए यह किसी की किसी होगा और यह झुकाव भी तभी संभव है जब
से किसी भी तरीके का attachment नहीं उन्होंने पहले अपने आपको physically
रखेगा। उस attitude के साथ में जो उस control किया हो। लोग यह समझें पहले
lust के लिए fulfill करने के लिए हो। इस हमें अपने आपको physically control
तरीके का जो एक ब्रह्मचर्य है , यह शारीरिक करना है , emotionally-mentally
ब्रह्मचर्य भी उस बच्चे के लिए जरूरी है । उस control हम धीरे-धीरे होते चले जाएँगे।
बेटा या बेटी दोनों के हित में है , पहले यह अगर हम ज्ञान में आगे बढ़ते चले जाएँगे और
होना चाहिए। यह शारीरिक ब्रह्मचर्य होगा इस तरह की शिक्षाएँ, अगर आपको मिलने
तब मानसिक ब्रह्मचर्य की स्थिति बनेगी। लगेंगे तो आप अपने आपको भीतर से
उसके लिए control है मुझे ऐसा नहीं समझने लग जाएँगे। कहा तो बहुत कुछ जा
करना। physically मुझे किसी के साथ में सकता है लेकिन समय को भी देखना है और
आज का एहसास
स्व-संवेदन