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ISSN 2320 - 0871: Vol 2, Issue 2
ISSN 2320 - 0871: Vol 2, Issue 2
शोध िंक्षेप
िंत कबीर उन मिान िंत िादित्यकारों में िे िैं, जिन्िोंने मानव-कल्याण के सलए िमन्वयवािी दृजष्ट्ि अपनाई।
तत्कालीन िामाजिक पररजथथततयों व वविंगततयों िे िमाि को छुिकारा दिलवाने के सलए उन्िोंने ववसभन्न प्रचसलत
धमों, िाततयों, वगों, िंप्रिायों तथा धारणाओं में िमन्वय करने का प्रयाि ककया। िाथ िी कबीरिाि िी ने तत्कालीन
िमाि व्यवथथा में व्याप्त अनेकानेक रूदि़यों और परं पराओं को ज्ञान की किौिी के आधार िे समथ्या सिद्ध ककया।
आमिन में फेली अज्ञानता को िरू करने के सलए उन्िोंने अनेक िगि पर कठोर शब्िों का प्रयोग भी ककया। िंत
कबीर के वचनों को गुरुग्रंथ िादिब में िजम्मसलत ककया गया िै। प्रथतुत शोध पि में गुरुग्रंथ िादिब में िंगृिीत
वचनों के िंिभा में कबीर की िामाजिक चेतना पर प्रकाश डाला गया िै ।
परथपर ववरुद्ध दिशा में गए िुए मागों के िोष मध्ययुग में पंडडत, मुल्ला, कािी, िुल्तान िी िन-
उन्िें थपष्ट्ि दिखाई िे िाते थे।’’2 िाधारण को पथभ्रष्ट्ि कर रिे थे। ये िनता के
मन में भ्रम पैिा कर रिे थे और उं च-नीच के
िंत कबीर ने थवयं को राम और अल्लाि की
भाव िाग्रत कर रिे थे। अतः कबीर ने इन
िंतान माना िै । वे किते िैं कक िे प्रभु तूने
कािी, मुल्ला और पंडडत को भी फअकार लगाते
जितने औरतों और मिों की रचना की िै , ये िब
िुए उनके कताव्यों का बोध कराया और
तुम्िारे िी रूप िैं। कबीर तो राम और अल्लाि
िनिाधारण को इनिे िरू रिने की िलाि िी।
िोनों का िी पि
ु िै और ये िभी िमारे गरु
ु और
कबीर ने माना कक िब ईश्वर की दृजष्ट्ि में उं च-
पीर िै :
नीच, िात-पात, अमीर-गरीब का कोई अंतर निीं
एते अउ रत मरिा िािे ए िभ रूप तुम्िारे िै , तो मनष्ट्ु य इन व्यथा के भेिभाव में क्यों पडा
िै ? मनुष्ट्य अज्ञानता के कारण उं च-नीच के
कबीरु पूंगरा राम अलि का िभ गुर पीर िमारे ’’3
भेिभावों में िी पडा रिता िै , िबकक प्रभु की
उन्िोंने दिन्ि-ू मुिलमान के भेिभाव को िरू करने शरण में िाने पर उं च-नीच, िात-पात के भेिभाव
उलदि िातत कुल िोउ त्रबिारी, िुन ििि मदि पर मानव कल्याण के बीच भेिभाव की खाई
अनुिार प्रभु में अिूि आथथा िी मुजक्त का ििी कभी भी शाथि ज्ञान का ववरोध निीं ककया बजल्क
मागा िै । भक्त के सलए केवल ववषय वािनाओं िे उन्िोंने शाथिों की आड में अपना थवाथा िाधने
रदित िोकर प्रभु भजक्त िी उिे परमात्मा तक वाले तथाकगथत पंडडतों का ववरोध ककया। उि
पिुंचाने का मागा िशााती िै । उन्िोंने बिुिे ववाि िमय ि़ोंगी िाध,ु कािी, पीर आदि अगधक िंख्या
का भी खण्डन ककया और तनगण
ुा राम की में समलते थे। इिसलए िंत कबीर को आवश्यकता
उपािना पर बल दिया। पडी कक वे इनके वाथतववक रूप का थपष्ट्िीकरण
करें । वथतुतः वे ित्य के प्रचारक थे। वे
तनष्ट्कषा
िामाजिक रूदि़यों को िमाप्त करके भेिभाव और
इतना किा िुआ िोता कक िनिाधारण द्वारा चािते थे। अतः िंत कबीर का िंपण
ू ा काव्य
िरलता िे आत्मिात कर सलया िाता। उन्िोंने लोकमंगल पर आधाररत िै ।
सन्दर्भ
1 गुरुग्रंथ िादिब पष्ट्ृ ठ 1158