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Unit 1
Unit 1
1. Message (मैसेज)
2. Sender (सेन्डर)
3. Receiver (रिसीवर)
4. Transmission Medium (ट्रांसमिशन मीडियम)
5. Protocol (प्रोटोकॉल)
1– Message
Message एक प्रकार की जानकारी है जो टेक्स्ट, नंबर, चित्र, ऑडियो और
वीडियो के रूप में मौजूद होती है।
2– Sender
Sender एक प्रकार का डिवाइस होता है जो डेटा को भेजने का कार्य करता है।
उदहारण के लिए कंप्यूटर, वर्कस्टेशन, टेलीफोन हैंडसेट, वीडियो कैमरा
आदि।
3– Receiver
यह भी एक प्रकार का डिवाइस होता है जो sender के द्वारा भेजे गए डेटा को
प्राप्त करता है।
4– Transmission Medium
Transmission Medium एक प्रकार का रास्ता होता है जिस रास्ते से मैसेज
travel करता है और यह मैसेज को sender से Receiver तक ले जाने का कार्य
करता है। उदहारण के लिए twisted-pair wire, coaxial cable, fiber-optic cable,
और radio waves.
5– Protocol
Protocol नियमो का एक समूह (Set) है जो Data Communication को कण्ट्रोल
करके रखता है। Protocol के बिना दो devices आपस में कनेक्ट तो हो सकते है
लेकिन संचार (communication) नहीं कर सकते है।
प्रोटोकॉल के प्रकार
इसके दो प्रकार के होते हैं:-
2– IP (Internet Protocol)
IP को इंटरनेट प्रोटोकॉल कहा जाता है जिसके द्वारा इंटरनेट पर एक कंप्यूटर
से दूसरे कंप्यूटर में डेटा को भेजा जाता है। यह एक प्रकार का प्रोटोकॉल है
जो डेटा को source से destination तक भेजने का कार्य करता है।
1– Simplex Communication
Simplex communication को one-way या unidirectional communication भी कहा
जाता है जो केवल एक ही दि श(direction) में data को भेजने का काम करता
है।
3– Full-duplex communication
यह भी एक प्रकार का two-way communication है जिसे हम bidirectional
communication भी कहते है।
twisted pair
केबल का चित्र
UTP के फायदे
UTP को इनस्टॉल करना काफी आसान होता है।
ये काफी सस्ते होते है।
UTP के नुकसान
इस केबल का इस्तेमाल लम्बी दूरी के लिए नहीं किया जा सकता।
2– Shielded Twisted Pair (STP)
Shielded Twisted Pair को शार्ट फॉर्म STP कहा जाता है। इसका प्रयोग
ज्यादातर ईथरनेट में किया जाता है.
STP के फायदे
इसको इनस्टॉल करना काफी आसान होता है।
STP का डेटा ट्रांसमिशन रेट काफी high (अधिक) होता है जिसकी मदद से
डेटा तेज गति के साथ ट्रांसफर होता है।
STP के नुकसान
UTP की तुलना में Shielded Twisted Pair महंगे होते है।
2- Coaxial Cable
यह एक प्रकार की electric cable होती है जिसमें copper (तांबे) का एक
conductor (चालक) होता है और इसके चारों ओर insulator की एक परत होती है.
Coaxial cable को Coax के नाम से भी जाना जाता है.
Twisted pair की तुलना में Coaxial Cable का डेटा ट्रांसमिशन रेट काफी बेहतर
है लेकिन यह महंगा है और ट्विस्टेड पेयर केबल की तुलना में इस केबल
की Frequency ज्यादा होती है।
1– Baseband transmission
बेसबैंड ट्रांसमिशन में, एक समय में एक सिग्नल को बहुत तेज गति के साथ
ट्रांसमिट किया जाता है.
2– Broadband transmission
ब्रॉडबैंड ट्रांसमिशन में, एक समय में एक साथ बहुत सारें सिग्नल को एक साथ ट्रांसमिट
किया जाता है।
ऑप्टिकल फाइबर डेटा को एक light (प्रकाश) के रूप में ट्रांसमिट करता है। यह
ट्रांसमिशन करने के लिए electric signal का उपयोग करता है।
Copper wires की तुलना में ऑप्टिकल फाइबर तेज गति के साथ डेटा को एक
स्थान से दुसरे स्थान में ट्रांसफर करता है।
1. Core
2. Cladding
3. jacket
1– Core (कोर)
Core कांच या प्लास्टिक का एक टुकड़ा होता है जो ऑप्टिकल फाइबर के किनारे
में होता है। Core को ऑप्टिकल फाइबर का Area (क्षेत्र) भी कहा जाता है।
जितनी ज्यादा मात्रा में core का area होता है उतनी ही मात्रा में light
ऑप्टिकल फाइबर में ट्रांसमिट होती है।
2– Cladding (क्लैडिंग)
Cladding ऑप्टिकल फाइबर में प्रकाश (light) को reflect करने में मदद करता
है।
3– Jacket (जैकेट)
यह प्लास्टिक से बनी एक coating होती है जो ऑप्टिकल फाइबर को सुरक्षा प्रदान
करती है जिसकी मदद से फाइबर की ताक़त बनी रहती है।
1. Radio waves
2. Microwave
3. Infrared
1– Radio Waves
Radio waves को electromagnetic waves भी कहा जाता है जिसमे डेटा को सभी
ओ शा
दि ओ में ट्रांसमिट किया जाता है। Radio waves की फ्रीक्वेंसी की रेंज
3Khz से लेकर 1 khz तक हो सकती है। उदहारण के लिए Radio .
Microwave में एक parabolic antenna लगा होता है। Antenna (एंटीना) जितना
ऊचा होता है frequency range उतनी ही ज्यादा होती है। Microwave दो प्रकार
के होते है पहला Terrestrial Microwave और दूसरा Satellite microwave .
माइक्रोवेव के फायदे
यह दूसरे केबल की तुलना में सस्ते होते है।
Microwave के setup में किसी भी प्रकार की जमीन की ज़रूरत नहीं
पड़ती।
Microwave के नुकसान
microwave खराब मौसम जैसे बारिश, हवा के कारण खराब हो सकता है।
3– Infrared (इन्फ्रारेड)
Infrared waves का इस्तेमाल कम दूरी के कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है।
इसके अलावा इसका इस्तेमाल टीवी रिमोट, वायरलेस माउस आदि जैसे devices
में किया जाता है।
Infrared के फायदे
इसका डेटा ट्रांसमिशन rate काफी हाई होता है जिसका अर्थ यह है की
Infrared डेटा को तेज गति के साथ ट्रांसफर करता है।
Infrared के नुकसान
Infrared में लम्बी दूरी में संचार (communication) नहीं किया जा सकता।
4- Data communication में डेटा को transmit करना काफी आसान होता है।
5- यह काफी सस्ता होता है यानी कम लागत में यूजर अपने डेटा को एक स्थान से
दुसरे स्थान में ट्रांसफर कर सकता है।
Computer में सभी डाटा मतलब audio, video, pictures ये सभी बाइनरी के
फॉर्म में स्टोर किए जाते हैं computer में होने वाले इसी प्रोसेस को data
representation कहते हैं।
Bit
Bite
Nibble
KB
MB
GB
TB
PB
EB
ZB
YB
Bit
Bit यानी ‘Binary Digit’, यह मापन की सबसे छोटी इकाई हैं इसमें एक बिट की
वैल्यू केवल एक ही बाइनरी डिजिट हो सकती हैं चाहे वो 0 हो या 1. अर्थात् 1 bit
= binary digit (0,1), इस तरह से कंप्यूटर में जितना अक्षर लिखेंगे उतना
बीट का जगह मेमोरी में लेगा. एक Bit का सिर्फ एक ही मान हो सकता है। कंप्यूटर
बाइनरी कोड्स की ही भाषा को समझता है। इन बाइनरी कोड्स को ही Bit कहा जाता है।
Nibble
यह मापन की दूसरी सबसे छोटी इकाई हैं। यहां 4 bit = 1 nibble होता हैं अर्थात्
1 nibble की value 4 bit होती है।
Byte
ये 8 बिट मैमोरी से मिलकर बनता हैं अर्थात् 8bit = 1byte, मतलब 1byte 2
nibble से मिलकर बना हैं। ये एक स्टैंडर्ड unit होती हैं मैमोरी की। अर्थात्
कोई भी डाटा स्टोर करते हैं तो कम से कम 1 बाइट का स्पेस occupy करता ही
हैं। बाइट information की 256 स्टेटस को स्टोर कर सकती हैं। computer में
बाइट, बिट से आगे की इकाई हैं एक ‘B’ को हमे बाइट कहा जाता हैं। और स्मॉल
‘b’ का मतलब bit होता हैं।
Kilobytes
यह 1024 बाइट से मिलकर किलोबाइट बनता हैं। Kilobytes को अक्सर इस्तमाल
किया जाता है छोटे files के size को measure करने के लिए. उदाहरण के लिए,
एक plain text document में होते हैं 10 KB की data और इसलिए इसकी एक
file size होती है करीब 10 kilobytes की जितनी. यह माप अक्सर मेमोरी क्षमता
और डिस्क स्टोरेज का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
Megabytes
यहा megabytes का मतलब हैं 1024 KB अर्थात् 1024 kb मिलकर मेगाबाइट
बनता है ,
Gigabytes
यह 1024 मेगा बाइट मिलकर 1 गीगाबाइट होता है. यह MB के मुकाबले GB का
साइज बड़ा होता है। 1 GB 1024 MB के बराबर होता है। इसमें बड़ी फाइल्स कि
स्टोरेज आ जाती हैं। अगर 1 जीबी की क्षमता की बात करें तो 230 Mp3 Songs
को Store किया जा सकता है।
Terra byte (TB)
यह 1024 गीगाबाइट मिलकर एक टेराबाइट होता है.TB full form Terabyte होता
है। Terabyte GB का के मुकाबले ज्यादा बड़ा होता है। बता दूं कि 1TB, 1024 GB
से मिलकर बना होता है। इसमें बहुत सारा डाटा को स्टोर करने की क्षमता होती है।
Petabyte (PB)
यह 1024 TB मिलकर एक Peta byte होता है. PB full form Petabyte होता
है। 1024 TB और 1000000 GB के बराबर एक Petabyte होता है. इसका मतलब
कि एक Petabyte 1024 TB से मिलकर बना हुआ होता है। लेकिन बता दू कि अभी तक
इतनी बड़ी मात्रा में कोई भी device उपलब्ध नहीं है।
Exabyte (EB)
यह 1024 PB मिलकर एक EXA BYTE होता है. यह बहुत बड़ी स्टोरेज यूनिट हैं
इसमें बहुत अधिक मात्रा में डाटा स्टोर करके रखा जा सकता है या कहा जाए तो 5
Exabyte में हम पूरी मानव जाति द्वारा बोले गए सभी शब्दों को स्टोर कर सकते है।
Zettabyte (ZB)
Zetta Byte (ZB) यह 1024 EB मिलकर एक ZETTA BYTE होता है. 1024 EB =
1 ZB इसकी तुलना हम किसी से नहीं कर सकते क्योंकि ये बहुत ही ज्यादा बड़ा
स्टोरेज प्रोवाइड कराता हैं।
Yettabyte (YB)
यह 1024 ZB मिलकर एक Yetta Byte होता है.1024 ZB =1 YB.
ठीक इसी तरह ई-कॉमर्स वेबसाइट जैसे Flipkart, Amazon आदि की हम बात करें
तो वहां पर भी इसका उपयोग होता है। कस्टमर की जानकारी, product detail से
लेकर हर एक जानकारी डेटाबेस में ही stored रहते हैं।
आज का युग Digital Marketing युग है, इसलिए अब डाटा को कागजों में स्टोर
करने के बजाय कंप्यूटर के माध्यम से डाटाबेस में स्टोर किया जाता है. ताकि
हम इसे कही से भी और कभी भी ऐक्सेस कर सकें।
1. Temporary Storage
2. Permanent Storage
डाटा को Process करने के लिए सबसे पहले हम किसी भी Data को Collect करते
हैं Filter करते हैं तथा उसे Short भी करते हैं उसके बाद उस data का
प्रोसेस करते हैं और इसके बाद उस डाटा को स्टोर किया जाता है।
Data collection
Preparation
Data input
Processing
Output
Storage
Data Collection
शन Data Processing करने की सबसे पहली प्रक्रिया है इसमें हम
डाटा कलेक्न
क्
अपने Raw Data को अलग-अलग माध्यम से Collect करते हैं और हम यह
सुनिचित करते हैं कि Data सही और विवसनीय
सनी
व यवहै या नही। और जब चेक कर लेते
हैं तो आगे प्रोसेस में डाल देते हैं।
Preparation
डाटा Preparation को हम Data Cleaning भी कहते हैं इस Process में हम
अपने Raw Data को Short करते हैं जिससे उसमे जो unnecessary data
होता हैं उसे remove कर देते हैं तथा उसे Filter करते हैं और फिर हमारा यह
Data अगले Step के लिए तैयार हो जाता है।
Data Input
इस प्रक्रिया में हम Filter किए गए Data को Computer के अंदर म नी भाषा में
Enter करते हैं यानी इस Data को Processing करने वाले Program के
अनुसार तैयार करते हैं ताकि यह Processing के लिए आसानी से तैयार हो सके
और Data Processing करने में काफी आसानी हो।
Processing
इस Step में सबसे पहले Input किये गए Data की जांच की जाती है और डाटा
को अर्धपूर्ण जानकारी के लिए तैयार किया जाता है। इसमें Data Processing के
लिए म न लर्निंग और आर्टिफि यल इंटेलिजेंस एल्गोरिथम का Use किया गया है
जिससे हमें एक अच्छा Output मिल सके।
Output
इस Step में Process किए गए Data का परिणाम हमें प्राप्त होता है यानी
Process किए गए Raw Data की अर्धपूर्ण जानकारी हमें दिखाई देती है। इस Output
को User अलग-अलग फॉर्मेट में ( जैसे Graph, Table, Audio, Video,
Document आदि) के रूप में देख सकता है।
Storage
ये डाटा प्रोसेसिंग का सबसे last stage है यहां पर हम प्रोसेस किए डाटा को
अपने future use के लिए स्टोर करके रखते हैं। यहां ये डाटा safely store
रहता है ताकि हमें जब भी जरूरत हैं इसे use कर सकते हैं।
Batch processing
बैच प्रोसेसिंग (Batch Processing) में डाटा एक निचित तचिचि
समयावधि में संकलित
(Collected) किया जाता है और इस डाटा पर प्रक्रिया बाद में एक बार में होती
है, यह डाटा प्रोसेसिंग की बहुत पुरानी विधि हैं। जिससे बहुत कम समय में बहुत
सारे डाटा में काम हो जाता हैं। बैच प्रोसेसिंग सिस्टम में प्रत्येक user
अपना प्रोग्राम ऑफ-लाइन में तैयार करता है और फिर उसे कम्प्यूटर सेंटर को दे
देता है।
Real time processing
Real time processing का उपयोग तब किया जाता है जब हमे रिजल्ट तुरंत चाहिए
होता हैं, यह प्रोसेस बहुत जल्दी रिजल्ट देता हैं तथा कोई काम को continue चल
रहा हो उसके लिए इस प्रकार के system का use किया जाता हैं।
Data mining
ये एक ऐसा प्रोसेस हैं जिसमे डाटा को माइनिंग किया जाता हैं अर्थात् डाटा को
खोज करके निकाला जाता हैं, जिससे आगे उसको प्रोसेस किया जा सके। और
डाटा को filter करके निकाला जा सके। यह एक बहुत ही important पार्ट होता हैं
डाटा प्रोसेसिंग का।
Network क्या है ?
1. जब किसी एक computer से दूसरे computer को connect किया जाता है। तो
उसे हम नेटवर्क कहते है।
1. LAN
2. MAN
3. WAN
4. PAN
5. HAN
LAN (Local area network) in Hindi
दूसरे नेटवर्क की तुलना में LAN को create करना बहुत ही सस्ता होता है।
LAN को बनाने के लिए बहुत बड़े software का इस्तेमाल नहीं किया जाता। LAN
में कंप्यूटरों को आपस मे जोड़ने के लिए hub, switch, network
adapter, router और Ethernet cable का प्रयोग होता है।
5. इसमें security अच्छी नहीं होती है। अर्थात इसको hack कर पाना आसान होता
है।
MAN का area (क्षेत्र) LAN से बड़ा होता है परंतु WAN से छोटा होता है।
MAN नेटवर्क LAN की तरह ही होता है परंतु MAN का एरिया बड़ा होता
है।
MAN में इस्तेमाल होने वाले protocols हैं- RS-232, Frame Relay,
ATM, ISDN, OC-3, और ADSL आदि।
इस network को install करने में काफी ज्यादा पैसो का खर्च आता है।
इसके अलावा इसको maintain करके रखना भी काफी ज्यादा मुकिल लश्कि होता
है। जो कम्पनिया ये network provide करती है। उनको हम Network
Service Provider कहते है.
इस network में data transmission की speed थोड़ी slow होती है। इस
network को चलाने के लिए SONET, Frame Relay और ATM आदि
technology का use किया जाता है।
2. इसके द्वारा आप video को देखने के साथ साथ live streaming भी कर सकते है।
2.इसमें file और data को transfer करने में काफी ज्यादा समय लगता है।
दूसरे ब्दों में कहें तो, “Network Topology नेटवर्क का एक layout है, जो
बताता है कि नेटवर्क में computers एक-दूसरे के साथ किस प्रकार connect हुए
हैं और वे एक-दूसरे के साथ किस प्रकार कम्युनिकेशन करते हैं।”
Network Topology एक प्रकार का कनेक्ननक्श
होता है, जो दो या दो से अधिक
कंप्यूटरों को आपस में कनेक्ट करता है। जिसकी मदद से डेटा और फाइलों को
एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर किया जाता है।
नेटवर्क टोपोलॉजी को ज्यादातर graph के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
बस टोपोलॉजी में सबसे सरल विधि CSMA (Carrier Sense Multiple Access) है।
2- इस टोपोलॉजी के द्वारा नेटवर्क में कंप्यूटर को connect करना बहुत आसान होता है.
3- इसमें डेटा ट्रांसफर करने की speed (गति) काफी बेहतर होती है।
3- यदि केबल में कोई खराबी आती है तो उसका प्रभाव सभी computers पर पड़ता है।
4- इस टोपोलॉजी में यदि दो कंप्यूटर एक साथ डेटा को ट्रांसफर करते है, तो वह आपस
में टकरा जाते है, जिसकी वजह से डेटा को ट्रांसफर करते वक़्त यूजर को समस्याओ
का सामना करना पड़ सकता है।
3- इसमें data को बहुत तेज गति के साथ ट्रांसफर किया जा सकता है.
5:- इसमें server को डाटा के flow को control करने की जरूरत नहीं होती.
2- इस टोपोलॉजी में एक कंप्यूटर के खराब होने पर पूरा नेटवर्क बंद हो जाता है।
Star topology को star network भी कहा जाता है. यह सबसे प्रसिद्ध नेटवर्क
टोपोलॉजी है.
स्टार टोपोलॉजी में, यदि एक कंप्यूटर दूसरे कंप्यूटर को डेटा भेजना चाहता
है, तो उसे सबसे पहले hub को जानकारी भेजनी होती है, फिर हब उस डेटा को
दूसरे कंप्यूटर तक पहुंचाता है।
2- यदि इस टोपोलॉजी में एक केबल खराब हो जाती है तो उसका बुरा असर पूरे नेटवर्क
पर नही पड़ता.
7- star topology में डेटा को ट्रांसफर करने की स्पीड काफी high होती है।
3- यदि इसमें hub ख़राब हो जाता है तो इसके कारण सारें computers काम करना बंद
कर देते है.
ट्री टोपोलॉजी में सबसे ऊपरी कंप्यूटर को root computer कहा जाता है, और
अन्य सभी computers रूट डिवाइस के child (बच्चे) होते हैं।
इस टोपोलॉजी का इस्तेमाल Wide Area Network (WAN) में किया जाता है.
6- इसमें यदि एक कंप्यूटर ख़राब हो जाता है तो इससे नेटवर्क पर कोई असर नहीं
होता.
Full mesh – इसमें प्रत्येक कंप्यूटर नेटवर्क में हर दूसरे कंप्यूटर से जुड़ा
होता है।
Partial mesh – इसमें कुछ कंप्यूटर सभी कंप्यूटरों से जुड़े हुए नही होते है.
4- यदि इसमें कोई कंप्यूटर ख़राब हो जाता है तो इसका प्रभाव पूरे नेटवर्क पर नहीं
पड़ता.
6- इस टोपोलॉजी में डेटा को ट्रांसफर करने की स्पीड काफी तेज होती है।
4- इसका इस्तेमाल बहुत बड़े network को बनाने के लिए किया जाता है.
5- यदि इस टोपोलॉजी में computers को add किया जाता है तो इसकी स्पीड slow नहीं
होती।
कता
इसको हम अपनी आवयकता के अनुसार change
श्य
इसे हम change नही कर सकते हैं.
कर सकते है.
1. TCP
2. IP
3. UDP
4. POP
5. SMTP
6. FTP
7. HTTP
8. HTTPS
9. Telnet
10.Gopher
1- TCP
TCP का पूरा नाम Transmission Control Protocol (ट्रांसमिशन कण्ट्रोल
प्रोटोकॉल) है। यह एक ऐसा प्रोटोकॉल है जो IP (इंटरनेट प्रोटोकॉल) के साथ
काम करता है। यह एक ट्रांसपोर्ट लेयर प्रोटोकॉल जिसका इस्तेमाल अलग
अलग डिवाइस के बिच संचार (communication) करने के लिए किया जाता है।
इस प्रोटोकॉल का उपयोग करके हम सूचनाओं को ट्रांसफर कर सकते है। इस
प्रोटोकॉल का मुख्य कार्य डेटा को छोटे छोटे टुकड़ो में तोडना होता है और
इस डेटा को IP लेयर पर भेजना होता है।
TCP के फायदे –
1. सनी
यह एक विवसनीय यश्व(reliable) प्रोटोकॉल है।
2. इसमें डेटा के प्रवाह (flow) को नियंत्रित (control) किया जा सकता है।
3. यह इनफार्मेशन या डेटा को ट्रांसफर करने में मदद करता है।
4. इसमें एक समय में डेटा को दोनों दि ओ (directions) में ट्रांसफर
ओ शा
किया जा सकता है।
TCP के नुकसान –
1. इस प्रोटोकॉल को WAN (वाइड एरिया नेटवर्क) के लिए बनाया गया है।
इसलिए इसका इस्तेमाल छोटे नेटवर्क में करना मुकिल लश्कि होता है।
2. यह नेटवर्क की स्पीड को धीमा कर देता है।
3. यह ब्लूटूथ कनेक्ननक्श
के साथ काम नहीं कर सकता है।
2- IP
इसका पूरा नाम Internet protocol (इंटरनेट प्रोटोकॉल) होता है। यह कई नियमो
का एक समूह (set) है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट पर कम्युनिकेशन करने और
डेटा ट्रांसफर की प्रक्रिया को कण्ट्रोल करने के लिए किया जाता है। इसके
अलावा इसका इस्तेमाल डेटा पैकेट को source से destination तक भेजने के
लिए किया जाता है।
3- UDP
UDP का पूरा नाम User Datagram Protocol (यूजर डायग्राम प्रोटोकॉल) होता है।
यह एक transport layer कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल है जिसका उपयोग इंटरनेट पर
कम्युनिकेशन के लिया किया जाता है।
UDP के फायदे –
1. इसमें डेटा को ट्रांसफर करने से पहले कनेक्ननक्श को स्थापित करने की
कता
आवयकता श्य
नहीं पड़ती।
2. यह मल्टीकास्टिंग के लिए suitable (उपयुक्त) होता है।
3. यह तेज गति से कार्य करने वाला प्रोटोकॉल है।
UDP के नुकसान –
1. यह TCP की तुलना में कम विवनीयनी यश्व(reliable)
श होता है।
2. यह error control का उपयोग नहीं कर सकता।
3. इसमें त्रुटि (error) का पता लगाना मुकिल लश्कि होता है।
इसे पूरा पढ़ें – UDP क्या है?
4- POP
POP का पूरा नाम Post Office Protocol (पोस्ट ऑफिस प्रोटोकॉल) होता है। यह एक
एप्लिकेशन लेयर प्रोटोकॉल है जिसका इस्तेमाल ईमेल (email) भेजने और
प्राप्त करने के लिए किया जाता है.
5- SMTP
SMTP का मतलब Simple Mail Transfer Protocol (सिंपल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल)
होता है। इसका इस्तेमाल सॉफ्टवेयर के द्वारा इंटरनेट पर ईमेल (email) को
भेजने के लिए किया जाता है।
SMTP के फायदे –
1. इस प्रोटोकॉल का उपयोग करके हम एक या एक से अधिक लोगों को ईमेल
या मैसेज भेज सकते है।
2. इसमें सभी प्रकार के फॉरमेट में डेटा को भेजा जा सकता है जैसे :-
टेक्स्ट ऑडियो, वीडियो या ग्राफिक्स आदि।
SMTP के नुकसान –
1. यह प्रोटोकॉल कम सुरक्षित होते है।
2. इसमें मैसेज या डेटा को भेजने में ज्यादा समय लग सकता है।
6- FTP
FTP का पूरा नाम फ़ाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (File Transfer Protocol) होता है।
यह एक एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल है जिसका उपयोग फाइलों को एक कंप्यूटर
से दुसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है।
यह प्रोटोकॉल कंप्यूटर में web page को ट्रांसफर करने में मदद करता है।
इस प्रोटोकॉल को TCP/IP के द्वारा विकसीत (develop) किया गया है। इसका
उपयोग करके यूजर सर्वर से फाइलों को download कर सकता है।
यह फाइलों को एक transfer करते वक़्त तीन अलग अलग mode का उपयोग करता
है, Block, stream और compressed.
इसके दो कनेक्ननक्श
होते है पहला कण्ट्रोल कनेक्ननक्श
और दूसरा डाटा कनेक्न।न।क्श
FTP के फायदे –
1. यह फाइलों को तेज गति के साथ ट्रांसफर कर सकता है।
2. इसका उपयोग करना आसान होता है।
3. यह HTTP की तुलना में काफी तेज होता है।
4. यह एक सुरक्षित प्रोटोकॉल है।
5. यह बड़ी आकार वाली फाइलों को ट्रांसफर करने में सक्षम होता है।
FTP के नुकसान –
1. यह प्रोटोकॉल फाइलों को ट्रांसफर करते वक़्त encryption की सुविधा
प्रदान नहीं करता जिसकी वजह से hackers फाइलों को आसानी से चोरी कर
सकते है.
2. FTP में बहुत कम यूजर ही मोबाइल डिवाइस को एक्सेस कर सकते है।
3. इसमें त्रुटि (error) को पहचानना काफी मुकिल लश्कि
होता है।
4. इसमें वायरस को scan करना कठिन होता है।
7 – HTTP
HTTP का पूरा नाम Hyper Text Transfer Protocol (हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर
प्रोटोकॉल) है। यह एक प्रोटोकॉल है जिसका उपयोग वर्ल्ड वाइड वेब (www)
यानी कि इन्टरनेट में डेटा को एक्सेस करने के लिए किया जाता है।
यह FTP की तुलना में काफी सरल होता है क्योकि यह फाइलों को ट्रांसफर करने
के लिए एक कनेक्ननक्श का उपयोग करता है। यह SMTP के समान भी होता है क्योकि
यह क्लाइंट और सर्वर के बीच डेटा को ट्रांसफर ट्रांसफर करता है।
HTTP के फायदे –
1. यह एक लचीला (flexible) प्रोटोकॉल है।
2. यह बहुत कम CPU मेमोरी का उपयोग करता है जिसके कारण सिस्टम की
performance बरकरार रहती है।
3. यह एक तेज प्रोटोकॉल है।
HTTP के नुकसान
1. यह मोबाइल के लिए suitable (उपयुक्त) नहीं होता।
2. यह SEO (सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन) फ्रेंडली नहीं होता।
3. यह डेटा को सुरक्षित तरीके से ट्रान्सफर नहीं करता।
8 – HTTPS
इसका पूरा नाम (Hyper Text Transfer Protocol Secure) होता है। यह HTTP का एक
encrypted version है जिसका इस्तेमाल ज्यादतर ऑनलाइन शॉपिंग और बैंकिं ग को
सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है।
HTTPS का इस्तेमाल वेबसाइट को सुरक्षित करने के लिए किया जाता है जिससे
कि कोई भी hacker वेबसाइट को हैक नहीं कर पाता और यूजर का डेटा चोरी नहीं
कर पाता.
HTTPS के फायदे –
1. यह काफी सुरक्षित प्रोटोकॉल होता है।
2. यह SEO friendly होता है।
3. जब यूजर ऑनलाइन ट्रांसक्ननक्श करता है तो यह प्रोटोकॉल यूजर को अधिक
सुरक्षा प्रदान करता है।
HTTPS के नुकसान –
1. इसमें cache के रूप में डेटा को चुराया जा सकता है।
2. यह HTTP की तुलना में अधिक सर्वर संसाधनों (server resources) का उपयोग
करता है।
9- Telnet
Telnet का पूरा नाम terminal network (टर्मिनल नेटवर्क) है जो लोकल कंप्यूटर
को अन्य कंप्यूटर के साथ कनेक्ट करने में मदद करता है।
10- Gopher
Gopher एक एप्लिकेशन-लेयर प्रोटोकॉल है जिसका इस्तेमाल वेब सर्वर पर
स्टोर किये गये डाक्यूमेंट्स को एक्सेस करने लिए किया जाता है।
Gopher के लाभ –
1. यह एक सरल प्रोटोकॉल है।
2. इसमें navigate करना आसान है।
Gopher की हानियाँ –
1. इसमें एक ही स्क्रीन पर ग्राफिक्स और टेक्स्ट को मिक्स नहीं कर सकते।
2. इस प्रोटोकॉल का उपयोग करने वाले यूजर HTML को नहीं देख सकते।
TCP/IP मॉडल end-to-end कम्युनिकेशन प्रदान करता है। इसको 1970 तथा 1980
के दशक के मध्य Department of Defense (D.O.D.) ने विकसित किया था।
Internet Layer
यह लेयर ट्रांसपोर्ट लेयर तथा एप्लीकेशन लेयर के मध्य स्थित होती
है। यह लेयर नेटवर्क में connectionless कम्युनिकेशन उपलब्ध कराती
है।
इसमें डेटा को IP datagrams के रूप में पैकेज किया जाता है यह
datagram source तथा destination IP एड्रेस को contain किये रहते है
जिससे कि डेटा को आसानी से sent तथा receive किया जा सकें।
इसको network layer भी कहते हैं.
इस layer के द्वारा निम्नलिखित protocols का प्रयोग किया जाता हैं:-
IP protocol – इसका पूरा नाम internet protocol है और इसका मुख्य कार्य source
से destination तक packets को deliver करना होता है. इसके दो versions होते
है IPv4 और IPv6.
ARP – इसका पूरा नाम address resolution protocol है. इसका कार्य ip address से
physical address को खोजना होता है. इसके बहुत सारें प्रकार होते हैं:-
जैसे:- RARP, PARP आदि.
ICMP – इसका पूरा नाम internet control message protocol है. इसका कार्य host
को network में आने वाली problems के बारें में सूचना देना होता है.
Transport layer
यह लेयर डेटा के ट्रांसमिशन के लिए जिम्मेदार होती है यह लेयर
एप्लीकेशन लेयर तथा इंटरनेट लेयर के मध्य स्थित होती है।
यह data की reliability, flow control और correction के लिए भी जिम्मेदार
होता है.
इस लेयर में दो मुख्य प्रोटोकॉल कार्य करते है:-
1:- Transmission control protocol (TCP)
2:- User datagram Protocol (UDP)
Application layer
यह लेयर TCP/IP मॉडल की सबसे उच्चतम लेयर है।
यह लेयर ऍप्लिके शन्स को नेटवर्क सर्विस उपलब्ध करने से सम्बंधित होती है।
यह लेयर यूजर को कम्युनिकेशन उपलब्ध कराती है; जैसे:-वेब ब्राउज़र, ई-
मेल, तथा अन्य ऍप्लिके शन्स के द्वारा।
application लेयर ट्रांसपोर्ट लेयर को डेटा भेजती है तथा उससे
डेटा receive करती है।
इस layer का कार्य high-level protocols को handle करना होता है.
यह layer यूजर को application के साथ interact करने की सुविधा प्रदान करती
है.
Application layer में प्रयोग किये जाने वाले protocols निम्नलिखित हैं:-
HTTP और HTTPS:- HTTP का पूरा नाम hypertext transfer protocol है. इसके
द्वारा हम internet में data को access कर सकते हैं. यह data को text, audio,
video के रूप में ट्रान्सफर करता है. HTTPS का पूरा नाम नाम HTTP-secure है.
जब हम http के साथ ssl का प्रयोग करते है तो वह https हो जाता है.
SNMP – इसका पूरा नाम simple network management protocol है. यह एक
फ्रेमवर्क है जिसका प्रयोग internet में devices को manage करने के लिए
किया जाता है.
SMTP – इसका पूरा नाम simple mail transfer protocol है. इसका प्रयोग एक e-
mail से दूसरे e-mail address में data को send करने के लिए किया जाता है.
DNS – इसका पूरा नाम domain name system है. इसका प्रयोग ip address को
map करने के लिए किया जाता है.
SSH – इसका पूरा नाम secure Shell है. इसका प्रयोग encryption के लिए किया
जाता है.
इसे भी पढ़े:- OSI MODEL क्या है?
OSI मॉडल एक रेफेरेंस मॉडल है अर्थात् इसका इस्तेमाल real life में
नही होता है बल्कि इसका इस्तेमाल केवल reference (संदर्भ) के रूप में
किया जाता है.
OSI model यह बताता है कि किसी नेटवर्क में डेटा या सूचना कैसे send
तथा receive होती है। इस मॉडल के सभी layers का अपना अलग अलग काम
होता है जिससे कि डेटा एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक आसानी से पहुँच
सके ।
आसान शब्दों में कहें तो “सेशन लेयर का मुख्य कार्य यह देखना है कि किस
को establish, maintain तथा terminate किया जाता है।”
प्रकार कनेक्ननक्श
एप्लीकेशन लेयर end user के सबसे नजदीक होती है, यह end users को network
services प्रदान करता है.
इस लेयर के अंतर्गत HTTP, FTP, SMTP तथा NFS आदि प्रोटोकॉल आते है। यह
लेयर यह नियंत्रित करती है कि कोई भी एप्लीकेशन किस प्रकार नेटवर्क से
access करती है।
एप्लीकेशन लेयर के कार्य
1. Application layer के द्वारा यूजर computer से files को access कर सकता है
और files को retrieve कर सकता है.
2. यह email को forward और स्टोर करने की सुविधा भी देती है.
3. इसके द्वारा हम डेटाबेस से directory को access कर सकते हैं.
एक non-technical बात
OSI model में 7 layers होती है उनको याद करना थोडा मुकिल लश्कि
होता है इसलिए
नीचे आपको एक आसान तरीका दिया गया है जिससे कि आप इसे आसानी से याद
कर सकें:-
P- Pyare (प्यारे)
D- Dost (दोस्त)
N- Naveen (नवीन)
T- tumhari (तुम्हारी)
S- Shaadi ( दी)
P- Par (पर)
A- Aaunga (आऊंगा).
TCP/IP मॉडल क्या है?
1:- यह एक generic model है तथा इसे standard model माना जाता है.
5:- यह divide तथा conquer तकनीक का प्रयोग करता है जिससे सभी services
विभिन्न layers में कार्य करती है. इसके कारण OSI model को administrate तथा
maintain करना आसान हो जाता है.
6:- इसमें अगर एक layer में change कर भी दिया जाए तो दूसरी लेयर में
इसका प्रभाव नहीं पड़ता है.
2:- इसमें कभी कभी नए protocols को implement करना मुकिल लश्कि होता है
क्योंकि यह model इन protocols के invention से पहले ही बना दिया गया था.
3:- इसमें services का duplication हो जाता है जैसे कि transport तथा data link
layer दोनों के पास error control विधी होती है.
OSI का पूरा नाम open system इसका पूरा नाम transmission control protocol / internet
interconnection है. protocol है.
इसे ISO ने विकसित किया है. इसे APRANET ने विकसित किया है.
यह vertical एप्रोच को follow करता है. यह horizontal एप्रोच को follow करता है.
Analog repeater सिग्नल को केवल amplify करता है. जबकि digital repeater
सिग्नल को reconstruct करके उसमें से errors को हटाके आगे भेजते है.
राऊटर का चित्र
गेटवे एक नेटवर्क के लिए Entry और दुसरे के लिए Exit Point के रूप में
काम करता है, क्योंकि सभी डेटा को रूट किये जाने से पहले गेटवे से गुजरना
पड़ता है.
गेटवे के द्वारा हम LAN नेटवर्क को WAN के साथ connect कर सकते हैं. यदि
हमें कोई ऐसा data प्राप्त करना है जो कि हमारे नेटवर्क में उपलब्ध नहीं है
तो हम गेटवे का इस्तेमाल करके दुसरे नेटवर्क से data को प्राप्त कर सकते
हैं. गेटवे के बिना इन्टरनेट एक्सेस नहीं किया जा सकता है.
Types of Gateway – गेटवे के प्रकार
इसके प्रकार निम्नलिखित हैं:-
1. Network Gateway
Network Gateway सबसे सामान्य प्रकार का Gateway है। जो दो अलग अलग
Protocol का पालन करने वाले Network को आपस में जोड़ने का काम करता
है।
2. IoT Gateway
IoT का पूरा नाम Internet of Thing होता है। यह IoT Environment में Device से
सेंसर डेटा को एकत्रित करता है। उसे सेंसर प्रोटोकॉल के बीच अनुवाद करता है
फिर Cloud Network पर भेज देता है।
3. Media Gateway
Media Gateway एक Network के डेटा Format को दूसरे Network के लिए
Format में बदलता है।
आवयककश्य
4. Bidirectional Gateway
वह Gateways जिसके द्वारा डेटा को दोनो दि ओं में transmit किया जा सकता
ओंशा
है। वह Bidirectional Gateway कहलाता है।
3- Wireless Modem
यह modem cable के बिना सिस्टम के साथ connect होता है। सरल शब्दो में कहे तो
वायरलेस मॉडेम को सिस्टम के साथ कनेक्ट करने के लिए किसी भी प्रकार की
कता
केबल की आवयकता श्य
नहीं पड़ती।
1. passive hub
2. active hub
1:- passive hub:- यह सिग्नल को जैसा है उसी स्थिति में आगे भेज देता है
इसलिए इसे power supply की जरुरत नहीं होती है.
2:- active hub:- इसमें सिग्नल को दुबारा generate किया जाता है, इसलिए ये भी
repeater की तरह कार्य करते है. इन्हें multiport repeater कहते है. इसमें
power supply की जरुरत होती है.
दूसरे शब्दों में कहें तो, “Bridge एक तरह का नेटवर्क डिवाइस होता है
जिसका प्रयोग दो अलग अलग नेटवर्को को आपस में जोड़ने के लिए
किया जाता है जिससे नेटवर्क आपस में एक-दूसरे से संचार
(communication) कर सके ।”
ब्रिज OSI Model की दूसरी लेयर (data link layer) पर कार्य करता है।
ब्रिज OSI मॉडल के second layer मे कार्य करते है इसलिए इसे layer 2
switch के नाम से भी जाना जाता है।
इसका चित्र
Types of Bridge in Hindi – ब्रिज के प्रकार
Bridge के निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
1. Transparent Bridges
2. Translational Bridges
3. Source Routing Bridges
4. Mac layer bridges
5. Remote bridges
1- Transparent Bridges
Transparent bridge एक ऐसा ब्रिज है जिसकी जानकारी नेटवर्क में मौजूद दूसरी
devices को नही होती है।
इस ब्रिज को learning bridge भी कहते हैं। इसका काम MAC address के आधार पर
data packets को forward करना या block करना होता है।
ट्रांसपेरेंट ब्रिज में automatic update की सुविधा मौजूद होती है जिसके कारण
हमें इसको अपडेट करने की जरूरत नहीं पड़ती, ब्रिज खुद से ही अपडेट हो जाता
है।
2- Translational Bridges
Translational Bridges का इस्तेमाल एक नेटवर्किंग सिस्टम को दुसरे
नेटवर्किंग सिस्टम में बदलने के लिए किया जाता है।
यह ब्रिज receive हुए डेटा को translate करता है और यह frame में information
को add और remove करने का काम करता है।
4- MAC-Layer Bridge
Mac layer bridge को “लोकल ब्रिज” भी कहा जाता है और यह एक तरह के
नेटवर्कों को packet filtering और repeating की सुविधा प्रदान करता है।
5- Remote bridge
Remote bridge की सहायता से अलग-अलग locations पर मौजूद networks को जोड़ा
जाता है। इसके लिए इसमें modem या leased lines का प्रयोग किया जाता है।
6- ब्रिज MAC Layer पर काम करता है जिसकी मदद से यह उच्च स्तर वाले प्रोटोकॉल
को transparent बनाता है जिसके चलते एक नेटवर्क को दुसरे नेटवर्क के साथ
जुड़ने में आसानी होती है।
2- Repeater की तुलना में bridge की स्पीड काफी धीमी (slow) होती है क्योकि यह
frame buffer का निर्माण करता है जिसके चलते इसकी स्पीड काफी धीमी हो जाती
है।
3- इसमें नेटवर्क की performance अच्छी नहीं होती क्योकि ब्रिज MAC address
को देखकर ज्यादा मात्रा में प्रोसेसिंग करता है जिसकी वजह से इसकी
परफॉरमेंस down हो जाती है।
1- Bridge का इस्तेमाल दो अलग अलग LAN (Local Area Network) को आपस में
जोड़ने के लिए किया जाता है।
2- इसका प्रयोग लोकल एरिया नेटवर्क की क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता
है या फिर कहे ब्रिज का प्रयोग करके LAN नेटवर्क की छमता को बढ़ाया जाता है।
3- इसका प्रयोग data को forward और discard (निरस्त) करने के लिए किया जाता
है।
4- ऐसे मामलो में जहा पर MAC address का पता नहीं चल पाता है वहा पर ब्रिज का
प्रयोग करके MAC address का पता लगाया जा सकता है।
सरल शब्दो में कहे तो ब्रिज का उपयोग MAC address को खोजने के लिए किया
जाता है।
6- इसका प्रयोग बहुत सारे virtual lan को आपस में जोड़ने के लिए किया जा सकता
है।
7- Wireless bridge का इस्तेमाल वायरलेस नेटवर्को को आपस में जोड़ने के
लिए किया जाता है।
1- यह बड़े LAN (Local Area Network) को छोटे छोटे नेटवर्क में विभाजित
(divide) करने का काम करता है।
2- यह नेटवर्क में प्रयोग किये जाने वाले MAC address को कंप्यूटर में
स्टोर करता है।
Bridge Router
ब्रिज data link layer पर कार्य करता है. यह network layer पर कार्य करता है.
इसमें data और information को पैकेट के रूप में इसमें data और information को पैकेट के रूप
ट्रान्सफर नहीं किया जाता. में ट्रान्सफर किया जाता है.
Bridge में केवल दो ports होते हैं. इसमें दो से अधिक ports होते हैं.
इसे configure करना आसान होता है. इसे configure करना मुकिल लश्कि
होता है.
ब्रिज OSI मॉडल की दूसरी layer मे काम करता है। यह केवल traffic को broadcast
ही नहीं करता है बल्कि यह उसको manage भी करता है। ब्रिज frames को network
segments मे transmit करने के लिए Media Access Control (MAC) table का
use करता है।
इन tables में सभी hosts का address स्टोर होता है और साथ ही कौनसा host किस
port के माध्यम से switch से जुड़ा हुआ है ये भी store रहता है।
Switch का इस्तेमाल LAN में hosts या computers को आपस में connect करने
के लिए किया जाता है।
इसमें डेटा frames के रूप में जाता है तथा यह भी bridge की तरह डेटा
फ़िल्टरिंग करता है. Switch से आप दो networks को आपस में connect नहीं कर
सकते है। दो networks को आपस में connect करने के लिए router का प्रयोग
किया जाता है।
4. PoE switches – इनका प्रयोग PoE technology में किया जाता है. PoE का
पूरा नाम Power over Ethernet होता है. ये स्विच cabling process को आसान
बना देते हैं इसलिए ये flexible होते हैं.
एक switch हमे शsource का address ही table में store करता है। मेरा मतलब
जब तक की कोई host कुछ data send नहीं करेगा तब तक उसका MAC address और
port number switch की table में store नहीं होगा।
ऐसे ही जब दूसरा host कुछ data send करता है तो उसका address भी table में
store हो जाता है। ऐसे जब भी कोई host frames भेजता है और यदि उसका address
पहले से table में मौजूद नहीं है तो switch उसे store कर लेता है। इस प्रकार
एक switch अपनी table को build (निर्मित) करता है।
राऊटर दूसरे नेटवर्किंग डिवाइस जैसे कि- hub, switch आदि की तुलना
में महंगा होता है।
इसका चित्र
5- Router एक ऐसा डिवाइस होता है जो physical form में मौजूद होता है जिसे
यूजर आसानी से छू सकता है।
Wireless router की range लगभग 150 से 300 फ़ीट तक होती है यानी इतनी range
में यूजर इंटरनेट को एक्सेस कर सकता है।
Security (सुरक्षा) के मामले में वायरलेस राऊटर काफी अच्छे होते है router
में लॉगिन करने के लिए यूजर आईडी और पासवर्ड का उपयोग किया जाता है,
जो इसे पूरी तरह secure (सुरक्षित) कर देता है।
इसका इस्तेमाल internet service providers (ISPs) के द्वारा किया जाता है।
इसके अलावा यह बहुत ही तेज और शक्तिशाली data communication इंटरफ़ेस
प्रदान करता है।
Broadband router में इंटरनेट की स्पीड काफी तेज होती है जिसकी मदद से
कंप्यूटर डेटा को तेज गति से ट्रांसफर करता है।
इसके अलावा इसका उपयोग voice over IP technology (VOIP) के लिए भी किया
जाता है।
ब्रॉडबैंड राऊटर की सुविधा internet service provider (ISP) के द्वारा प्रदान की जाती
है ।
ब्रॉडबैंड राऊटर को ब्रॉडबैंड मॉडेम और digital subscriber line (DSL) मॉडेम भी कहा
जाता है।
4- Brouter (ब्रॉउटर)
एक Brouter ब्रिज और राऊटर से मिलकर बना होता है। यह bridge के जरिये data
को ट्रांसफर करने की सुविधा प्रदान करता है।
1- Security (सुरक्षा)
सुरक्षा के मामले में router काफी अच्छे डिवाइस होते है। यह यूजर के डेटा
को सुरक्षा प्रदान करता है जिससे यूजर का डेटा पूरी तरह secure (सुरक्षित) रहता
है।
इसके अलावा Router में यूजर को लॉगिन करने के लिए user ID और password
की ज़रूरत पड़ती है जो इसे और भी ज्यादा secure बना देता है।
तो router और दूसरे नेटवर्क में इसका कोई भी बुरा प्रभाव नही पड़ता।
सरल शब्दो में कहे तो router का नेटवर्क खराब होने के बावजूद भी router आसानी
से काम करता है।
4- Connection (कनेक्ननक्श
)
Connection राऊटर का मुख्य कार्य होता है जिसकी मदद से यूजर इंटरनेट
कनेक्टिविटी प्राप्त करता है। जिसके कारण यूजर आसानी से डेटा को एक
डिवाइस से दुसरे डिवाइस में ट्रांसफर कर सकता है।
राऊटर बहुत सारीं डिवाइसों को एक single नेटवर्क के साथ connect करता है।
जिससे productivity (उत्पादकता) बढ़ती है।
6- Integration (जोड़ना)
Routers को modem के साथ integrate किया जा सकता है। इन दोनों के
integration से छोटे नेटवर्क को create किया जा सकता है।
2- Cost (कीमत)
किसी अन्य networking devices की तुलना में routers काफी ज्यादा expensive
(महंगे) होते है क्योकि इसमें सिक्योरिटी और ब्रिज जैसी सुविधाएं उपलब्ध होती है
जो इस डिवाइस को और भी ज्यादा expensive बनाती है, जिसके कारण router को
setup करने में काफी पैसो का खर्चा आता है।
यह network layer पर कार्य करता है. यह data link layer पर कार्य करता है.
इसका इस्तेमाल LAN और MAN दोनों के द्वारा इसका इस्तेमाल केवल LAN के द्वारा किया जाता
किया जाता है. है.
इसमें data को packet के रूप में send किया जाता इसमें data को packet और frame के रूप में send
है. किया जाता है.
इस डिवाइस में कुछ ऐसे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर डिवाइस होते है जिनके बिना
इंटरनेट का उपयोग करना मुकिल लश्कि
होता है।
गेटवे OSI मॉडल की तीसरी लेयर (नेटवर्क लेयर) पर काम करता है। OSI
मॉडल में सात तरह की layer होती है और यह उसकी तीसरी layer पर काम करता
है।
गेटवे का चित्र
3.- यह डिवाइस नेटवर्क प्रोटोकॉल कनवर्टर के रूप में भी काम करता है।
5- जिस मार्ग में डेटा को ट्रांसफर किया जाता है उस मार्ग में gateway
डेटा को transmit करता है।
1- Unidirectional Gateway
Unidirectional gateway हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का कॉम्बिनेशन है जिसे
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को आपस में जोड़कर बनाया गया है।
2- Bidirectional Gateways
Bidirectional Gateway डेटा को दोनों दि ओ
ओ शा
में प्रसारित करने की अनुमति
प्रदान करता है।
1- Network Gateway
यह gateway अलग अलग protocol के साथ दो अलग अलग नेटवर्क के बिच एक
तरह का interface प्रदान करता है।
2- Internet-To-Orbit Gateway (I2O)
यह पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले अंतरिक्ष यानो को devices से कनेक्ट करता
है।
4- इसका उपयोग devices की निगरानी रखने के लिए किया जाता है ताकि डेटा को
ट्रांसफर करते वक़्त यूजर को किसी भी समस्या का सामना ना करना पड़े।
5- यह डिवाइस डेटा पैकेट और सेवाओं को फ़िल्टर करता है, जिसकी मदद से डेटा
पैकेट और सेवाओं को analyse करना आसान हो जाता है।
3- इस डिवाइस में डेटा को ट्रांसफर करने में काफी समय का वक़्त लगता है।
5- इस डिवाइस में संचार करते वक़्त यूजर को कई समस्याओ का सामना करना पड़ता
है।
यह OSI मॉडल की पांचवी लेयर पर काम यह OSI मॉडल के तीसरी और चौथी layer पर काम करता
करता है। है।
यह dynamic routing को सपोर्ट नहीं करता। यह dynamic routing को सपोर्ट करता है।
इसे gateway router, proxy server, और voice राउटर को वायरलेस राउटर और इंटरनेट राउटर भी कहा
gateway भी कहा जाता है। जाता है।
ty
pes of transmission media
1:-wired
2:-wireless
1:-wired:-
वह transmission media जिसमे दो devices के मध्य कनेक्ननक्श
physical method
जैसे केबल या वायर के द्वारा होता है उसे wired transmission media कहते
है. इसे guided media भी कहते है.
ये निम्नलिखित प्रकार के होते है:-
(a):- coaxial cable
(b):- fiber-optic cable
(c):- twisted pair
(a):- coaxial cable in hindi:-
इसमें एक चालक की खोखली ट्यूब होती है. तथा दूसरा चालक, खोखली ट्यूब के
अंदर उसकी अक्ष(axis) पर समाक्ष रूप से स्थापित किया जाता है. इन तारों के बीच
परावैधुत(dielectric) ठो स या गैसीय होता है
Fig:-coaxial cable
खुली तार लाइन में 100MHz आवृत्ति से अधिक आवृत्ति पर विकिरण(radiation)
द्वारा उर्जा हानि को नगण्य करने के लिए coaxial cable में आंतरिक चालक को
बाहरी सिलिंडरीकल खोखले चालक से घेरा जाता है. coaxial का मुख्य लाभ यह है कि
magnetic तथा electric field बाहरी चालक के अंदर ही बने रहते है तथा मुक्त स्पेस
में लीक नही हो पाते हैं जिसके कारण विकीरण पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है.
इसके अतिरिक्त बाहरी चालक बाहरी electric magnetic सिग्नल से भी प्रभावी विधुत
चुम्बकीय शील्डिंग उत्पन्न करता है.
coaxial cables को 1GHz तक की रेंज में उपयोग लाया जाता है किन्तु 1GHz से
उपर की आवृत्ति में ये उपयुक्त नही रहते है. ये अधिक कीमती होते हैं.
इनमे सिग्नल आवृत्ति के साथ परावैधुत हानि भी बढती जाती है. तथा 1GHz पर हानि
बहुत अधिक हो जाती है. जिससे इनको उपयोग करना उपयुक्त नही रहता है.
Fig:-fiber optic
छड के एक सिरे से एक निचित तश्चि
जब एक प्रकाश पुंज किसी पारदर् र्शी दि शमें
प्रवेश करता है तो प्रकाश पुंज का छड की सतहों पर अनेक बार पूर्ण आंतरिक
परावर्तन होता है तथा प्रकाश-पुंज छड के अन्दर ही बना रहता है. इस प्रकार
अनेक बार पूर्ण परावर्तित होता हुआ प्रकाश-पुंज जब छड के दुसरे सिरे से बाहर
निकलता है तो प्रकाश की तीव्रता का loss नही होता है. इस प्रकार की छड को
फाइबर कहते है.
2:-wireless:-
वह transmission media जिसमें किसी physical contact की आवयकता
कता श्य
नही होती
है अर्थात जिसमें कम्युनिकेशन बिना wires के होता है wireless transmission
media कहलाता है. इसे unguided media भी कहते है.
ये निम्नलिखित प्रकार के होते है:-
(a):-Radio waves
(b):-microwaves
(c):-infrad waves
(a):-Radio waves:-
इनकी आवृत्ति 3KHz से 1GHz तक होती है. इन्हें आसानी से स्थापित किया जा सकता
है तथा इनका एटेनुऐशन भी उच्च होता है. रेडियो तरंगे ज्यादातर
omnidirectional होती है. जब एक antenna रेडियो तरंगों को ट्रांसमिट करता
ओंशा
है तो ये सभी दि ओं में फैल जाते है.
(b):-Microwaves:-
इसमें सूचना का ट्रांसमिशन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों द्वारा किया जाता है
जिसकी wavelength को सेंटीमीटर में मापा जाता है.
इनकी आवृत्ति 1GHz से अधिक होती है तथा ये अनेक प्रकार के ट्रांसमिट से
निर्मित होती है. microwaves का प्रयोग खाना पकाने तथा मोबाइल आदि में
किया जाता है तथा wifi में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
(c):-Infrared waves:-
ष तरंगदैर्ध्य का विधुतचुम्ब्कीय विकीरण होता है जिन्हें हम
यह एक वि षशे
infrared कहते हैं. इन तरंगो को मनुष्य देख नहीं सकता है परन्तु skin में heat
के रूप में महसूस अवय श्य
कर सकता है.
इनका प्रयोग TV रिमोट कण्ट्रोल, wireless LAN, CCTV तथा मिसाइल गाइडेंस
सिस्टम आदि में किया जाता है.
सन् 1800 में सर्वप्रथम सर william herschel ने infrared को विकसित किया था.
लोकल एरिया
नेटवर्क का चित्र
इसे पढ़ें:-
नेटवर्क क्या है और इसके प्रकार
नेटवर्क टोपोलॉजी क्या है और इसके प्रकार
4- यह नेटवर्क छोटा होता है इसलिए इसको maintain करके रखना आसान होता
है।
6- इस नेटवर्क में स्विच, हब, राऊटर जैसे devices का प्रयोग किया जाता है जो
काफी महँगे होते है।
इसे पढ़ें:-
डेटा कम्युनिकेशन क्या है?
राऊटर क्या है?
1. Ethernet LAN
2. WLAN
Ethernet LAN – इसमें ईथरनेट केबल का इस्तेमाल कंप्यूटरों को connect
करने के लिए किया जाता है। यह एक wired नेटवर्क है।
WLAN – इसका पूरा नाम wireless local area network है। यह एक वायरलेस
नेटवर्क है इसमें किसी भी प्रकार की cable की जरूरत नही पड़ती। WLAN में
कंप्यूटरों को आपस में जोड़ने के लिए router का इस्तेमाल किया जाता है।
1. Ring topology
2. Bus topology
1- Ring Topology
रिंग टोपोलॉजी में सभी computers एक ring (गोले) के आकार में एक दूसरे से
जुड़े रहते हैं. इसमें जो अंतिम कंप्यूटर होता है वह पहले कंप्यूटर से जुड़ा
होता है. रिंग टोपोलॉजी का स्ट्रक्चर बिल्कु ल ring की तरह होता है।
इस टोपोलॉजी में डेटा एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर होता है।
इस टोपोलॉजी में डेटा को केवल एक ही direction (दि श ) में ट्रांसफर किया
जाता है।
2- Bus Topology
बस टोपोलॉजी सबसे सरल प्रकार की टोपोलॉजी है जिसमें डेटा ट्रान्सफर के
लिए केवल एक bus या channel का इस्तेमाल किया जाता है. इस टोपोलॉजी में
computers को कनेक्ट करने के लिए RJ-45 केबल का प्रयोग किया जाता है।
इसका पूरा नाम Local Area Network है। इसका पूरा नाम Wide Area Network है।
इसकी सीमा बहुत ही कम होती है. इसका इस्तेमाल स्कूल इसकी सीमा बहुत अधिक होती है इसका
कॉलेज और ऑफिस में किया जाता है. इस्तेमाल शहर में किया जाता है.
इसको मेन्टेन करना आसान है। इसको मेन्टेन करना आसान नहीं होता
इसमें fault tolerance अधिक है. इसमें fault tolerance कम होता है.