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Unit 1

Data Communication in Hindi – डेटा


कम्युनिके शन क्या है?
 Data Communication एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल data को एक
कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में भेजने के लिए किया जाता है। Data
Communication को हिंदी में डेटा संचार कहा जाता है।

 दूसरे ब्दों में कहें तो, “डेटा कम्युनिकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है


जिसमें दो या दो से अधिक कंप्यूटर के बीच Digital Data और Analog Data
का आदान प्रदान (exchange) किया जाता है।“

 सरल शब्दो में कहें तो यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें डेटा को एक स्थान से


दुसरे स्थान में ट्रान्सफर किया जाता है। इसमें डेटा को wire और
wireless दोनों तरीको से ट्रांसफर किया जा सकता है।
डेटा को signal के रूप में एक स्थान से दुसरे स्थान में transfer किया जाता है।
signal तीन प्रकार के होते है:- डिजिटल सिग्नल, एनालॉग सिग्नल और हाइब्रिड
सिग्नल .

1– Digital Signal (डिजिटल सिग्नल)


Digital Signal एक प्रकार का सिग्नल होता है जिसमे डेटा को एक स्थान से दुसरे
स्थान में Electronic रूप में ट्रांसफर किया जाता है। उदाहरण के लिए
– DVD और डिजिटल फ़ोन.
2– Analog Signal (एनालॉग सिग्नल)
Analog Signal में डेटा को wave (तरंग) के रूप में एक स्थान से दुसरे स्थान में
transfer किया जाता है। उदाहरण के लिए टेलीफोन लाइन.

3– Hybrid Signal (हाइब्रिड सिग्नल)


यह Analog और Digital signal का सयोजन (combination) है अर्थात् यह एनालॉग
और डिजिटल सिग्नल से मिलकर बना होता है.

Components of Data Communication in


Hindi – डेटा संचार के घटक
इसके components नीचे दिए हैं:-

1. Message (मैसेज)
2. Sender (सेन्डर)
3. Receiver (रिसीवर)
4. Transmission Medium (ट्रांसमिशन मीडियम)
5. Protocol (प्रोटोकॉल)

1– Message
Message एक प्रकार की जानकारी है जो टेक्स्ट, नंबर, चित्र, ऑडियो और
वीडियो के रूप में मौजूद होती है।

2– Sender
Sender एक प्रकार का डिवाइस होता है जो डेटा को भेजने का कार्य करता है।
उदहारण के लिए कंप्यूटर, वर्कस्टेशन, टेलीफोन हैंडसेट, वीडियो कैमरा
आदि।

3– Receiver
यह भी एक प्रकार का डिवाइस होता है जो sender के द्वारा भेजे गए डेटा को
प्राप्त करता है।

4– Transmission Medium
Transmission Medium एक प्रकार का रास्ता होता है जिस रास्ते से मैसेज
travel करता है और यह मैसेज को sender से Receiver तक ले जाने का कार्य
करता है। उदहारण के लिए twisted-pair wire, coaxial cable, fiber-optic cable,
और radio waves.

5– Protocol
Protocol नियमो का एक समूह (Set) है जो Data Communication को कण्ट्रोल
करके रखता है। Protocol के बिना दो devices आपस में कनेक्ट तो हो सकते है
लेकिन संचार (communication) नहीं कर सकते है।

प्रोटोकॉल के प्रकार
इसके दो प्रकार के होते हैं:-

1– TCP (Transmission Control Protocol)


TCP को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल कहा जाता है। यह एक प्रकार का
ट्रांसपोर्ट लेयर प्रोटोकॉल है जो डेटा को source से destination में भेजने
का कार्य करता है। TCP का प्रयोग IP protocol के साथ किया जाता है। इसका
मुख्य कार्य application layer से डेटा को प्राप्त करना होता है।

2– IP (Internet Protocol)
IP को इंटरनेट प्रोटोकॉल कहा जाता है जिसके द्वारा इंटरनेट पर एक कंप्यूटर
से दूसरे कंप्यूटर में डेटा को भेजा जाता है। यह एक प्रकार का प्रोटोकॉल है
जो डेटा को source से destination तक भेजने का कार्य करता है।

 TCP/IP मॉडल क्या है?


 OSI model क्या है?

Types of Data Communication In Hindi –


डेटा कम्युनिके शन के प्रकार
डेटा कम्युनिकेशन तीन प्रकार का होता है:-

1. Simplex Communication (सिम्पलेक्स कम्युनिकेशन)


2. Half Duplex communication (हाफ डुप्लेक्स कम्युनिकेशन)
3. Full-duplex communication (फुल डुप्लेक्स कम्युनिकेशन)

1– Simplex Communication
Simplex communication को one-way या unidirectional communication भी कहा
जाता है जो केवल एक ही दि श(direction) में data को भेजने का काम करता
है।

Simplex communication में केवल एक ही डिवाइस डेटा को भेज सकता है और


केवल एक ही डिवाइस डेटा को प्राप्त कर सकता है।

उदहारण के लिए– कीबोर्ड का उपयोग करके डेटा को दर्ज करना, स्पीकर का


उपयोग करके संगीत सुनना आदि।

2– Half Duplex communication


यह two-way communication है जिसे bidirectional communication भी कहा
ओ शा
जाता है. इसमें दोनों दि ओ में डेटा को ट्रांसफर किया जा सकता है।

Half Duplex communication में एक डिवाइस डेटा को भेजने और दूसरा


डिवाइस डेटा को प्राप्त करने का काम करता है। Half Duplex में Devices एक
ही समय में डेटा को भेज और रिसीव नहीं कर सकते। उदहारण के लिए walkie-
talkie.

3– Full-duplex communication
यह भी एक प्रकार का two-way communication है जिसे हम bidirectional
communication भी कहते है।

Full-duplex में दो devices एक ही समय में डेटा को भेज भी सकते है और रिसीव


भी कर सकते है। उदहारण के लिए मोबाइल फोन, लैंडलाइन आदि।
 डेटा ट्रांसमिशन क्या है?
 ट्रांसमिशन मीडिया क्या है?
 ट्रांसमिशन मोड क्या है?

Communication Channel in Hindi –


कम्युनिके शन चैनल क्या है?
Communication Channel एक प्रकार का माध्यम (Medium) है जिसका प्रयोग दो
या दो से ज्यादा कंप्यूटरों को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है।

कंप्यूटरों को वायर्ड मीडिया या वायरलेस मीडिया के द्वारा जोड़ा जा सकता है।


कम्युनिकेशन चैनल को transmission medium के नाम से भी जाना जाता है।

Transmission medium एक प्रकार की link होती है जिसका प्रयोग करके दो या दो


से अधिक devices में डेटा को ट्रांसफर कर सकते है।

Communication channel के दो प्रकार होते हैं:-

1. Guided Media Transmission


2. Unguided Media Transmission

1– Guided Media Transmission


Guided Media में दो डिवाइस को केबल या वायर के द्वारा आपस में जोड़ा
जाता है। Guided media को wired transmission media और Bounded media के
नाम से भी जाना जाता है। यह मीडिया केबल की मदद से डेटा को ट्रांसमिट करते
है।

Guided Media तीन प्रकार होते है।

1. Twisted pair cable


2. Coaxial Cable
3. Optical fibers
1– Twisted pair cable (ट्विस्टेड पेयर केबल)
Twisted pair cable को दो केबल को आपस में मोड़कर (Twist) बनाया जाता है।
ट्विस्टेड पेयर केबल दुसरे Transmission Media की तुलना में काफी सस्ते
होते है। इस केबल का

setup करना काफी आसान होता है और यह एक हल्का केबल होता है।

ट्विस्टेड पेयर केबल की फ्रीक्वेंसी रेंज 0 से लेकर 3.5KHz तक हो सकती


है। Twisted pair में सिग्नल के leak होने का खतरा बना रहता है जिसके कारण
सिग्नल corrupt हो सकते है और यूजर को नेटवर्क से संबंधित समस्याओ का सामना करना
पड़ सकता है।

twisted pair
केबल का चित्र

Twisted Pair Cable के प्रकार


इसके दो प्रकार होते हैं:-

1– Unshielded Twisted Pair (UTP)


Unshielded Twisted Pair को शार्ट फॉर्म में UTP कहा जाता है जिसका प्रयोग
दूरसंचार (Telecommunication) के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसका
इस्तेमाल कंप्यूटर और टेलीफोन जैसे devices के द्वारा किया जाता है।

UTP के फायदे
 UTP को इनस्टॉल करना काफी आसान होता है।
 ये काफी सस्ते होते है।
UTP के नुकसान
 इस केबल का इस्तेमाल लम्बी दूरी के लिए नहीं किया जा सकता।
2– Shielded Twisted Pair (STP)
Shielded Twisted Pair को शार्ट फॉर्म STP कहा जाता है। इसका प्रयोग
ज्यादातर ईथरनेट में किया जाता है.
STP के फायदे
 इसको इनस्टॉल करना काफी आसान होता है।
 STP का डेटा ट्रांसमिशन रेट काफी high (अधिक) होता है जिसकी मदद से
डेटा तेज गति के साथ ट्रांसफर होता है।
STP के नुकसान
 UTP की तुलना में Shielded Twisted Pair महंगे होते है।
2- Coaxial Cable
यह एक प्रकार की electric cable होती है जिसमें copper (तांबे) का एक
conductor (चालक) होता है और इसके चारों ओर insulator की एक परत होती है.
Coaxial cable को Coax के नाम से भी जाना जाता है.

Twisted pair की तुलना में Coaxial Cable का डेटा ट्रांसमिशन रेट काफी बेहतर
है लेकिन यह महंगा है और ट्विस्टेड पेयर केबल की तुलना में इस केबल
की Frequency ज्यादा होती है।

coaxial केबल का चित्र

Coaxial Cable के प्रकार


इसके दो प्रकार होते हैं:-

1– Baseband transmission
बेसबैंड ट्रांसमिशन में, एक समय में एक सिग्नल को बहुत तेज गति के साथ
ट्रांसमिट किया जाता है.

2– Broadband transmission
ब्रॉडबैंड ट्रांसमिशन में, एक समय में एक साथ बहुत सारें सिग्नल को एक साथ ट्रांसमिट
किया जाता है।

Coaxial Cable के फायदे


 Coaxial Cable में डेटा को हाई स्पीड के साथ प्रसारित (transmit) किया जा
सकता है।
 यह high bandwidth की सुविधा प्रदान करता है।
Coaxial Cable के नुकसान
 यह Twisted pair cable की तुलना में expensive (महंगे) होते है।
3– Optical Fiber (ऑप्टिकल फाइबर)
ऑप्टिकल फाइबर एक तकनीक है जो तेज गति के साथ बड़ी मात्रा में डेटा को
प्रसारित (transmit) करता है। Optical fiber इस्तेमाल इंटरनेट केबल में
किया जाता है।

ऑप्टिकल फाइबर डेटा को एक light (प्रकाश) के रूप में ट्रांसमिट करता है। यह
ट्रांसमिशन करने के लिए electric signal का उपयोग करता है।

Copper wires की तुलना में ऑप्टिकल फाइबर तेज गति के साथ डेटा को एक
स्थान से दुसरे स्थान में ट्रांसफर करता है।

ऑप्टिकल फाइबर का चित्र


Optical fibre को तीन elements (तत्वों) को आपस में मिलाकर बनाया जाता है।

1. Core
2. Cladding
3. jacket
1– Core (कोर)
Core कांच या प्लास्टिक का एक टुकड़ा होता है जो ऑप्टिकल फाइबर के किनारे
में होता है। Core को ऑप्टिकल फाइबर का Area (क्षेत्र) भी कहा जाता है।
जितनी ज्यादा मात्रा में core का area होता है उतनी ही मात्रा में light
ऑप्टिकल फाइबर में ट्रांसमिट होती है।

2– Cladding (क्लैडिंग)
Cladding ऑप्टिकल फाइबर में प्रकाश (light) को reflect करने में मदद करता
है।

3– Jacket (जैकेट)
यह प्लास्टिक से बनी एक coating होती है जो ऑप्टिकल फाइबर को सुरक्षा प्रदान
करती है जिसकी मदद से फाइबर की ताक़त बनी रहती है।

ऑप्टिकल फाइबर के फायदे


 यह डेटा को तेज गति के साथ ट्रांसफर कर सकता है।
 copper cable की तुलना में optical fibre डेटा को लम्बी दूरी तक ट्रांसफर
कर सकता है।
ऑप्टिकल फाइबर के नुकसान
 ये काफी महंगे होते है।
 इस को इनस्टॉल करना काफी मुकिल लश्कि होता है।

2– Unguided Media Transmission


Unguided Media Transmission एक प्रकार का transmission mode है जिसमे
डेटा को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में प्रसारित (transmit) करने के लिए
wireless तकनीक का उपयोग किया जाता है।

Unguided transmission media का उपयोग डेटा को सभी दि ओ में transmit


ओ शा
करने के लिए किया जाता है।

Unguided Media Transmission के प्रकार


इसके तीन प्रकार होते हैं:-

1. Radio waves
2. Microwave
3. Infrared
1– Radio Waves
Radio waves को electromagnetic waves भी कहा जाता है जिसमे डेटा को सभी
ओ शा
दि ओ में ट्रांसमिट किया जाता है। Radio waves की फ्रीक्वेंसी की रेंज
3Khz से लेकर 1 khz तक हो सकती है। उदहारण के लिए Radio .

Radio waves के फायदे


 इसमें डेटा को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में transmit करना काफी
आसान होता है।
 Radio waves बड़े छेत्र को cover कर सकता है। जिसका अर्थ यह है की
Radio wave का उपयोग करके डेटा को लम्बी दूरी तक प्रसारित (transmit)
किया जा सकता है।
Radio Waves के नुकसान
 Radio waves की तरंगे इंसानो के लिए harmful (हानिकारक) होती है।
2– Microwave
Microwave एक प्रकार के सिग्नल होते है जो रेडियो और टेलीविजन सिग्नल की
तरह ही होते हैं। इसका उपयोग लम्बी दूरी के संचार (communication) के लिए
किया जाता है।

माइक्रोवेव में एक transmitter, receiver, और atmosphere मौजूद होता है जो


डेटा को रिसीव और ट्रांसफर करने का कार्य करता है।

Microwave में एक parabolic antenna लगा होता है। Antenna (एंटीना) जितना
ऊचा होता है frequency range उतनी ही ज्यादा होती है। Microwave दो प्रकार
के होते है पहला Terrestrial Microwave और दूसरा Satellite microwave .

माइक्रोवेव के फायदे
 यह दूसरे केबल की तुलना में सस्ते होते है।
 Microwave के setup में किसी भी प्रकार की जमीन की ज़रूरत नहीं
पड़ती।
Microwave के नुकसान
 microwave खराब मौसम जैसे बारिश, हवा के कारण खराब हो सकता है।
3– Infrared (इन्फ्रारेड)
Infrared waves का इस्तेमाल कम दूरी के कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है।
इसके अलावा इसका इस्तेमाल टीवी रिमोट, वायरलेस माउस आदि जैसे devices
में किया जाता है।

Infrared के फायदे
 इसका डेटा ट्रांसमिशन rate काफी हाई होता है जिसका अर्थ यह है की
Infrared डेटा को तेज गति के साथ ट्रांसफर करता है।
Infrared के नुकसान
 Infrared में लम्बी दूरी में संचार (communication) नहीं किया जा सकता।

Advantages of Data Communication in


Hindi – डेटा कम्युनिके शन के फायदे
इसके फायदे नीचे दिए गये हैं:-

1- Data communication की मदद से बहुत कम समय में डेटा को एक स्थान से दुसरे


स्थान में ट्रांसफर किया जा सकता है।

2- यह Encryption का प्रयोग करके डेटा को सुरक्षित तरीके से एक डिवाइस से दुसरे


डिवाइस में ट्रांसफर करता है।

3- Data communication फाइल को कॉपी होने से बचाता है जिसकी वजह से यूजर का


डाटा secure (सुरक्षित) रहता है।

4- Data communication में डेटा को transmit करना काफी आसान होता है।

5- यह काफी सस्ता होता है यानी कम लागत में यूजर अपने डेटा को एक स्थान से
दुसरे स्थान में ट्रांसफर कर सकता है।

Disadvantages of Data Communication in


Hindi – डेटा कम्युनिके शन के नुकसान
1- Data communication में डेटा के संचार के लिए वायरलेस तकनीक का
उपयोग किया जाता है जो इंसानो के लिए काफी harmful (हानिकारक) होती है।

2- इसमें यूजर का data पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहता।

3- इसके कुछ चैनल्स ऐसे है जो काफी expensive होते है।


डाटा रिप्रजेंटेशन क्या है? – Data Representation in
Hindi
Data representation का अर्थ हैं कैसे हम किसी डाटा को represent करते हैं
अर्थात् कैसे किसी डाटा को दर्र्र्शातेर्हैं, यहां पर डाटा representation दो शब्दों
र्ते
से मिलकर बना हैं डाटा+representation, यहां डाटा का मतलब हैं information
से या कहें तो fact से, डाटा किसी भी form में हो सकता हैं जैसे audio,
video, pictures, gif etc. और इन्हीं डाटा को किस तरह से represent किया जाए,
ये डाटा का representation कहलाता हैं।

Computer में सभी डाटा मतलब audio, video, pictures ये सभी बाइनरी के
फॉर्म में स्टोर किए जाते हैं computer में होने वाले इसी प्रोसेस को data
representation कहते हैं।

डाटा क्या हैं?


डाटा एक raw fact होता हैं जो अपने raw form में किसी काम का नहीं होता है.
लेकिन उसी data को जब हम process और interpret करते हैं तब जाकर उनका
सही मतलब सामने आता है, और जो की हमारे लिए बहुत उपयोगी होते हैं. इन्ही
processed data को Information भी कहा जाता है. इसी information को
computer में audio, video, pictures, MP3 के फॉर्म में save किया जाता
है। जिसे हम डाटा कहते हैं।
डाटा मापने की इकाई
Computer में कितना डाटा रख सकते है, उसे मापने के लिए कुछ स्टैंडर्ड का
उपयोग करते हैं। डाटा को अलग अलग तरीके से मापा जा सकता हैं अर्थात् उसकी
कैपेसिटी और space के हिसाब से उसे मापा जाता हैं जिसे लिए कुछ यूनिट्स
use किए जाते हैं जैसे –

 Bit
 Bite
 Nibble
 KB
 MB
 GB
 TB
 PB
 EB
 ZB
 YB
Bit
Bit यानी ‘Binary Digit’, यह मापन की सबसे छोटी इकाई हैं इसमें एक बिट की
वैल्यू केवल एक ही बाइनरी डिजिट हो सकती हैं चाहे वो 0 हो या 1. अर्थात् 1 bit
= binary digit (0,1), इस तरह से कंप्यूटर में जितना अक्षर लिखेंगे उतना
बीट का जगह मेमोरी में लेगा. एक Bit का सिर्फ एक ही मान हो सकता है। कंप्यूटर
बाइनरी कोड्स की ही भाषा को समझता है। इन बाइनरी कोड्स को ही Bit कहा जाता है।

बिट दो तरह से ही जानकारी को सेव कर सकती है जैसे – On Or Off (0 Or 1)


कंप्यूटर की सभी बड़ी से बड़ी और छोटी Activities बिट के द्वारा ही संपन्न होती है।
Bit को English के Small Letter ‘b’ से दर्शाया जाता है।

 कंप्यूटर में रजिस्टर क्या है (हिन्दी नोट्स)


 फ्लोचार्ट क्या हैं?(हिन्दी नोट्स)
 माउस क्या है इसके कार्य और प्रकार (हिन्दी नोट्स)

Nibble
यह मापन की दूसरी सबसे छोटी इकाई हैं। यहां 4 bit = 1 nibble होता हैं अर्थात्
1 nibble की value 4 bit होती है।
Byte
ये 8 बिट मैमोरी से मिलकर बनता हैं अर्थात् 8bit = 1byte, मतलब 1byte 2
nibble से मिलकर बना हैं। ये एक स्टैंडर्ड unit होती हैं मैमोरी की। अर्थात्
कोई भी डाटा स्टोर करते हैं तो कम से कम 1 बाइट का स्पेस occupy करता ही
हैं। बाइट information की 256 स्टेटस को स्टोर कर सकती हैं। computer में
बाइट, बिट से आगे की इकाई हैं एक ‘B’ को हमे बाइट कहा जाता हैं। और स्मॉल
‘b’ का मतलब bit होता हैं।

Kilobytes
यह 1024 बाइट से मिलकर किलोबाइट बनता हैं। Kilobytes को अक्सर इस्तमाल
किया जाता है छोटे files के size को measure करने के लिए. उदाहरण के लिए,
एक plain text document में होते हैं 10 KB की data और इसलिए इसकी एक
file size होती है करीब 10 kilobytes की जितनी. यह माप अक्सर मेमोरी क्षमता
और डिस्क स्टोरेज का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है।

Megabytes
यहा megabytes का मतलब हैं 1024 KB अर्थात् 1024 kb मिलकर मेगाबाइट
बनता है ,

Mb के पास KB के मुकाबले डाटा स्टोर करने की कैपेसिटी ज्यादा होती है।


Megabyte का उपयोग अक्सर बड़ी फ़ाइलों के आकार को मापने के लिए किया
जाता है। उदाहरण के लिए, एक High Resolution वाली JPEG इमेज फ़ाइल एक
से पांच मेगाबाइट तक की हो सकती है।

एक डिजिटल कैमरे से Uncompressed raw images को 10 से 50 एमबी


य यहो सकती है। एक Compressed format में सहेजा गया
कता
डिस्क स्थान की आवयकता
तीन मिनट का गीत आकार में लगभग तीन मेगाबाइट हो सकता है, मीडिया के
अधिकां अन्य रूपों की क्षमता, जैसे फ्लै ड्राइव और हार्ड ड्राइव, को आमतौर
पर गीगाबाइट या टेराबाइट्स में मापा जाता है।

Gigabytes
यह 1024 मेगा बाइट मिलकर 1 गीगाबाइट होता है. यह MB के मुकाबले GB का
साइज बड़ा होता है। 1 GB 1024 MB के बराबर होता है। इसमें बड़ी फाइल्स कि
स्टोरेज आ जाती हैं। अगर 1 जीबी की क्षमता की बात करें तो 230 Mp3 Songs
को Store किया जा सकता है।
Terra byte (TB)
यह 1024 गीगाबाइट मिलकर एक टेराबाइट होता है.TB full form Terabyte होता
है। Terabyte GB का के मुकाबले ज्यादा बड़ा होता है। बता दूं कि 1TB, 1024 GB
से मिलकर बना होता है। इसमें बहुत सारा डाटा को स्टोर करने की क्षमता होती है।

Petabyte (PB)
यह 1024 TB मिलकर एक Peta byte होता है. PB full form Petabyte होता
है। 1024 TB और 1000000 GB के बराबर एक Petabyte होता है. इसका मतलब
कि एक Petabyte 1024 TB से मिलकर बना हुआ होता है। लेकिन बता दू कि अभी तक
इतनी बड़ी मात्रा में कोई भी device उपलब्ध नहीं है।

Exabyte (EB)
यह 1024 PB मिलकर एक EXA BYTE होता है. यह बहुत बड़ी स्टोरेज यूनिट हैं
इसमें बहुत अधिक मात्रा में डाटा स्टोर करके रखा जा सकता है या कहा जाए तो 5
Exabyte में हम पूरी मानव जाति द्वारा बोले गए सभी शब्दों को स्टोर कर सकते है।
Zettabyte (ZB)
Zetta Byte (ZB) यह 1024 EB मिलकर एक ZETTA BYTE होता है. 1024 EB =
1 ZB इसकी तुलना हम किसी से नहीं कर सकते क्योंकि ये बहुत ही ज्यादा बड़ा
स्टोरेज प्रोवाइड कराता हैं।

Yettabyte (YB)
यह 1024 ZB मिलकर एक Yetta Byte होता है.1024 ZB =1 YB.

इनफार्मेशन क्या हैं? (Information kya hai)


किसी को कोई जानकारी बताना या सुनाना, या किसी माध्यम से उसके पास पहुँचाना ही
Information कहलाता है।information एक बहुत ही जरूरी यूनिट होता हैं, किसी भी
चीज की information के जरिए हम उसके बारे में जान पाते हैं और बेहतर
जानकारी के लिए हम और भी information इकट्ठा करते हैं ताकि उसकी पूरी
जानकारी हो सकें।Information एक प्रकार का डेटा होता है। जिसे हमारे द्वारा
समझने में और उपयोग करने के अनुरूप बनाया जाता है। information के जरिए
हम किसी काम को कैसे करना हैं उसकी जानकारी ले सकते हैं।
 कई महान व्यक्तियों ने Information को अलग-अलग प्रकार से व्यक्त किया।
 एन बैल्किन के अनुसार — Information उसे कहा जाता हैं, जिसमें आकार
को परिवर्तित करने की क्षमता होती है।
 हाफमैन ने कहा — Information वक्तव्यों, तथ्यों अथवा आकृतियों का संकलन
होती है।
 जे बीकर का मानना है। – किसी विषय से सम्बंधित तथ्यों को ही Information
कहते हैं।
Information की जरूरत सभी काम को बेहतर बनाने के लिए होती हैं। जब तक हमे
इन्फोर्मेशन नही होगी हम किसी काम को proper नही कर सकतें। जैसे – हमने
स्टूडेंट्स से कहा की project बनाना है तो जब तक हम उनको information नहीं देंगे
की कैसे बनाना है क्या बनाना हैं. तो students कैसे बनाएंगे बिना किसी
information के।

डाटाबेस क्या है? (Database)


Database एक सा स्थान है जहां पर data को स्टोर करके रखा जाता हैं ताकि डाटा
सुरक्षित रहें और कोई भी बाहरी लोग उसे ऐक्सेस ना कर पाए। तथा हमे जब भी जरूरत
हो database से अपना data ले सकें, डाटाबेस में डाटा टेबल के फॉर्म में
रखा जाता हैं। आजकल बहुत बड़े डाटा में काम होता हैं जैसे किसी बड़ी कंपनी
में हजारों employs होते हैं उन सभी का डाटा अगर हमको manage करना हैं तो
उसे database में स्टोर करके रख दीया जाता हैं और easily जब जरूरत हो ऐक्सेस
कर लिया जाता हैं।

ठीक इसी तरह ई-कॉमर्स वेबसाइट जैसे Flipkart, Amazon आदि की हम बात करें
तो वहां पर भी इसका उपयोग होता है। कस्टमर की जानकारी, product detail से
लेकर हर एक जानकारी डेटाबेस में ही stored रहते हैं।

 आउटपुट डिवाइस क्या है (हिन्दी नोट्स)


 इनपुट डिवाइस क्या है (हिन्दी नोट्स)
 सॉफ्टवेर क्या है और उसके प्रकार
 CPU क्या है और कैसे काम करता है?

डाटा को कैसे स्टोर करते हैं?


Data को सुरक्षित रखने के लिए हमें उसे स्टोर करना होता है. डाटा को स्टोर
करने के लिए जरुरत पड़ती है स्टोरेज की. जब हम डाटा को स्टोर करके रखते
हैं तो उसे आवयकतानुसार कभी भी उपयोग में ला सकते हैं. Physical World
में डाटा को कागजों में लिखकर उसकी एक फाइल बनाकर स्टोर किया जाता है।

आज का युग Digital Marketing युग है, इसलिए अब डाटा को कागजों में स्टोर
करने के बजाय कंप्यूटर के माध्यम से डाटाबेस में स्टोर किया जाता है. ताकि
हम इसे कही से भी और कभी भी ऐक्सेस कर सकें।

इस Digital दुनिया में हम डाटा को 2 प्रकार से स्टोर कर सकते हैं।

1. Temporary Storage
2. Permanent Storage

#1 – Temporary Storage (अस्थायी भंडारण)


Temporary Storage में डाटा को Temporary रूप से RAM में स्टोर किया जाता
है. इसमें Data Temporary रूप से स्टोर होता है. जब तक कंप्यूटर को Power
Supply मिलती है तो RAM में डाटा Temporary रूप से स्टोर होता है. Power
Supply बंद होने पर RAM में स्टोर डाटा भी Delete हो जाता है. जब भी हम
Current Time में कंप्यूटर में कोई कार्य करते हैं तो उसका डाटा RAM में
स्टोर रहता है.

#2 – Permanent Storage (स्थायी भंडारण)


Permanent Storage में डाटा को हमे के लिए स्टोर किया जाता है. डाटा को
Permanent स्टोर करने के लिए हार्ड डिस्क ड्राइव, SSD आदि के इस्तेमाल
करते हैं. इसके अलावा कुछ External Device जैसे कि पैन ड्राइव, मेमोरी
कार्ड आदि में भी डाटा को Permanent Store किया जाता है.

अगर आपके पास कोई महत्वपूर्ण डाटा है तो आप उसे Permanent Store कर


सकते हैं ताकि जब आपको जरूरत पड़े तो आप उस डाटा को Access कर सकें.

डाटा कितने प्रकार के होते है? (Data Types)


डाटा अलग अलग प्रकार के होते हैं जैसे audio, video, pictures, gif आदि
1. Alphabetic data (अक्षरात्मक डाटा)– ये डाटा alphabets (अक्षर) में
होते हैं। ये अक्षरों के समूह से बनते हैं। इसमें सिर्फ alphabets होते
हैं numbers नहीं होते। जैसे – A,B,C,D आदि।
2. Numeric data (संख्यात्मक डाटा) – ये डाटा numbers में होता हैं
अर्थात् ये numerical (संख्यात्मक ) होता हैं । जैसे – 1,2,3,4 आदि।
3. Video data (विडियो डाटा)- ये डाटा वीडियो फॉर्म में होता हैं अर्थता ये
वीडियो वाले डाटा होते हैं, जैसे की video clip, movie आदि।
4. Alpha numeric data (चिन्हात्मक डाटा) – इसमें डाटा special
characters के रूप में होता हैं। उसे चिन्हात्मक डाटा कहते हैं, जैसे-
@,#,$ आदि।
5. Graphical data (ग्राफिकल डाटा)- ये डाटा ग्राफिकल रूप में होता हैं.
इसमें ग्राफिक्स उपयोग किए जाते हैं इसलिए इसे ग्राफिकल data कहते
हैं, जैसे – image, pictures आदि।
6. Sound data (ध्वनि डाटा) – ये डाटा ध्वनि के रूप में होता है. इसे ध्वनि
डाटा कहते है। जैसे – गाने, ऑडियो आदि।

डाटा प्रोसेसिंग क्या हैं? (Data Processing)


Data processing एक ऐसी प्रक्रिया हैं जिसमे raw डाटा को check किया जाता
हैं ताकि वह आगे प्रोसेस की जा सके या आगे जिसको उसकी जरूरत हैं वह उसे
उपयोग कर सके data के रुप में। ये process डाटा साइंटिस्ट लोग करते हैं,
जिससे डाटा की सही तरीके से जांच की जा सके। डाटा scientist एक्सपर्ट होते
हैं जिससे कोई गलती ना हों,ताकि आगे प्रोसेसिंग में दिक्कत ना आए। इसी
प्रोसेस को हम डाटा प्रोसेसिंग कहते हैं।

डाटा को Process करने के लिए सबसे पहले हम किसी भी Data को Collect करते
हैं Filter करते हैं तथा उसे Short भी करते हैं उसके बाद उस data का
प्रोसेस करते हैं और इसके बाद उस डाटा को स्टोर किया जाता है।

डाटा प्रोसेसिंग के स्टेज (Stage)


डाटा प्रोसेसिंग पहले manual तरीके से किया जाता था जिससे बहुत अधिक
टाइम लग जाया करता था तथा errors की संभावना रहती थी और समय भी अधिक लगता
था। लेकिन अब ये काम computer automated तरीको का use किया जा रहा हैं
जिसमें data processing बहुत फास्ट होता हैं तथा errors की संभावना भी कम हो
जाती हैं। डाटा प्रोसेसिंग निम्न stages में किया जाता हैं –

 Data collection
 Preparation
 Data input
 Processing
 Output
 Storage

Data Collection
शन Data Processing करने की सबसे पहली प्रक्रिया है इसमें हम
डाटा कलेक्न
क्
अपने Raw Data को अलग-अलग माध्यम से Collect करते हैं और हम यह
सुनिचित करते हैं कि Data सही और विवसनीय
सनी
व यवहै या नही। और जब चेक कर लेते
हैं तो आगे प्रोसेस में डाल देते हैं।

Preparation
डाटा Preparation को हम Data Cleaning भी कहते हैं इस Process में हम
अपने Raw Data को Short करते हैं जिससे उसमे जो unnecessary data
होता हैं उसे remove कर देते हैं तथा उसे Filter करते हैं और फिर हमारा यह
Data अगले Step के लिए तैयार हो जाता है।

Data Input
इस प्रक्रिया में हम Filter किए गए Data को Computer के अंदर म नी भाषा में
Enter करते हैं यानी इस Data को Processing करने वाले Program के
अनुसार तैयार करते हैं ताकि यह Processing के लिए आसानी से तैयार हो सके
और Data Processing करने में काफी आसानी हो।

Processing
इस Step में सबसे पहले Input किये गए Data की जांच की जाती है और डाटा
को अर्धपूर्ण जानकारी के लिए तैयार किया जाता है। इसमें Data Processing के
लिए म न लर्निंग और आर्टिफि यल इंटेलिजेंस एल्गोरिथम का Use किया गया है
जिससे हमें एक अच्छा Output मिल सके।

Output
इस Step में Process किए गए Data का परिणाम हमें प्राप्त होता है यानी
Process किए गए Raw Data की अर्धपूर्ण जानकारी हमें दिखाई देती है। इस Output
को User अलग-अलग फॉर्मेट में ( जैसे Graph, Table, Audio, Video,
Document आदि) के रूप में देख सकता है।
Storage
ये डाटा प्रोसेसिंग का सबसे last stage है यहां पर हम प्रोसेस किए डाटा को
अपने future use के लिए स्टोर करके रखते हैं। यहां ये डाटा safely store
रहता है ताकि हमें जब भी जरूरत हैं इसे use कर सकते हैं।

डाटा प्रोसेसिंग के क्या विधि है? (Data Processing


Method)
data processing निम्न तरीकों से किया जा सकता हैं.

 Manual data processing


 Mechanical data processing
 Batch processing
 Real time processing
 Data mining

Manual data processing


Manual डाटा प्रोसेसिंग एक ऐसी प्रोसेसिंग तकनीक हैं जिसमे डाटा मैनुअली
प्रोसेस होता हैं यहां किसी भी tools या डिवाइस से नहीं की जाती बल्कि यहां डाटा
प्रोसेसिंग कुछ software की मदद से की जाती हैं जैसे calculations, logical
operations के हेल्प से डाटा प्रोसेसिंग की जाती हैं।

Mechanical data processing


Mechanical डाटा प्रोसेसिंग में डाटा को मैकेनिकल device की मदद से
प्रोसेस किया जाता हैं जैसे type writer, प्रिंटर आदि से। ये काफी fast होता
हैं जिससे समय की बचत होती हैं और accurate डाटा मिल जाता हैं।

Batch processing
बैच प्रोसेसिंग (Batch Processing) में डाटा एक निचित तचिचि
समयावधि में संकलित
(Collected) किया जाता है और इस डाटा पर प्रक्रिया बाद में एक बार में होती
है, यह डाटा प्रोसेसिंग की बहुत पुरानी विधि हैं। जिससे बहुत कम समय में बहुत
सारे डाटा में काम हो जाता हैं। बैच प्रोसेसिंग सिस्टम में प्रत्येक user
अपना प्रोग्राम ऑफ-लाइन में तैयार करता है और फिर उसे कम्प्यूटर सेंटर को दे
देता है।
Real time processing
Real time processing का उपयोग तब किया जाता है जब हमे रिजल्ट तुरंत चाहिए
होता हैं, यह प्रोसेस बहुत जल्दी रिजल्ट देता हैं तथा कोई काम को continue चल
रहा हो उसके लिए इस प्रकार के system का use किया जाता हैं।

Data mining
ये एक ऐसा प्रोसेस हैं जिसमे डाटा को माइनिंग किया जाता हैं अर्थात् डाटा को
खोज करके निकाला जाता हैं, जिससे आगे उसको प्रोसेस किया जा सके। और
डाटा को filter करके निकाला जा सके। यह एक बहुत ही important पार्ट होता हैं
डाटा प्रोसेसिंग का।

Network क्या है ?
1. जब किसी एक computer से दूसरे computer को connect किया जाता है। तो
उसे हम नेटवर्क कहते है।

2. आसान शब्दों में कहें तो, “किसी computer में दो या दो से ज्यादा


computers का जुड़ना network कहलाता है”।

3. नेटवर्क के द्वारा computers आपस में data और information को एक


दूसरे के साथ share करते हैं.

4. एक नेटवर्क को wire तथा wireless दोनों तरीके से बनाया जा सकता है.

5. नेटवर्क में computers को जोड़ने की इतनी ज्यादा क्षमता होती है कि


एक कोने से दुनिया के हर कोने तक devices को connect किया जा सकता
है।

नेटवर्क के प्र का–र Types Of Network in Hindi


Network के निम्नलिखित 5 प्रकार होते हैं:-

1. LAN
2. MAN
3. WAN
4. PAN
5. HAN
LAN (Local area network) in Hindi

लोकल एरिया नेटवर्क का चित्र

 LAN का पूरा नाम लॉकल एरिया नेटवर्क होता है।

 LAN वह network होता है जिसका इस्तेमाल एक छोटे area (क्षेत्र) के


computers या devices को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है।
जैसे कि – office, school, college आदि में।

 इस तरह के network आपको school, colleges, office आदि में देखने को


मिल जाते है।

 दूसरे नेटवर्क की तुलना में LAN को create करना बहुत ही सस्ता होता है।

 LAN का इस्तेमाल data को share करने, data को store करने तथा


document को print करने के लिए किया जाता है।

 LAN को बनाने के लिए बहुत बड़े software का इस्तेमाल नहीं किया जाता। LAN
में कंप्यूटरों को आपस मे जोड़ने के लिए hub, switch, network
adapter, router और Ethernet cable का प्रयोग होता है।

 इसमें data transfer की speed बहुत ज्यादा होती है।


Advantages of LAN in Hindi –
LAN के फायदे
इसके फायदे नीचे दिए गए हैं।

1. इसमे एक computer से दुसरे computer में data को बड़ी ही आसानी से शेयर कर


सकते है।

2. इसके द्वारा हम Internet को भी share कर सकते है।

3. इसके द्वारा software program को share कर सकते है।

4. इसमे communication बहुत easy और fast होता है।

5. LAN समय की बचत करता है।

6. LAN को बनाना काफी ज्यादा आसान होता है।

7. Local Area Network में आप एक समय पर 1000 से भी ज्यादा computer को


आपस में connect कर सकते है।

Disadvantages of LAN in Hindi –


LAN के नुक़सान
इसके नुकसान निम्नलिखित है-

1. इस network में virus या malware फैलने का खतरा रहता है।


2. LAN का area बहुत ही छोटा होता है इसलिए हम छोटे एरिया में ही Data को
share कर सकते है।

3. इसमें Server Area के crash होने की संभावना बनी रहती है।

4. LAN को maintain करना ज्यादा मुकिल लश्कि


होता है।

5. इसमें security अच्छी नहीं होती है। अर्थात इसको hack कर पाना आसान होता
है।

6. इस तरह के network को maintain करके रखना काफी ज्यादा मुकिल लश्कि


होता
है।
7. इसे setup करना मुकिल लश्कि
है।

MAN (Metropolitan Area Network) in


Hindi

 MAN का पूरा नाम मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क है।

 MAN का area (क्षेत्र) LAN से बड़ा होता है परंतु WAN से छोटा होता है।

 MAN नेटवर्क LAN की तरह ही होता है परंतु MAN का एरिया बड़ा होता
है।

 MAN वह network होता है जो एक शहर में बहुत सारे computers को आपस


में जोड़ता है।

उदाहरण के लिए – मान लीजिये आपके पास दिल्ली के अंदर अलग-अलग


जगह पर बहुत सारे computers है। अब आप चाहते है कि आपके एक
network से ये सभी कंप्यूटर connect हो जाए। तो ऐसे में आपको MAN
network की ज़रूरत पड़ेगी। यानी एक network जो बहुत सारे computers को
एक जगह से ही connect कर सकता है।

 MAN network की रेंज 10 KM से लेकर 100Km के आसपास होती है।


इसका मतलब आप एक network की मदद से 100 km के area को cover कर
सकते है। जो की अपने आप में काफी ज्यादा है। MAN network का
इस्तेमाल ज्यादा area को cover करने के लिए ही किया जाता है। MAN
network का सबसे अच्छा उदाहरण cable network है। आपने अक्सर अपने
घरो में T.V के अंदर cable network देखे होंगे।

 एक MAN network को खुद एक organization या firm के द्वारा बनाया जाता


है। क्योकि firm या organization ही अपने branch को connect करने के
लिया इस network को बनाती है। इस network का owner कोई एक व्यक्ति
नहीं होता। क्योकि इस network की ownership public और private दोनों
होती है। उदाहरण के लिए बैंक की सभी branches को जोड़ने के लिए MAN
का इस्तेमाल किया जाता है।

 MAN में इस्तेमाल होने वाले protocols हैं- RS-232, Frame Relay,
ATM, ISDN, OC-3, और ADSL आदि।

Advantages of MAN in Hindi –


MAN के फायदे
इसके लाभ निम्नलिखित हैं-

1. यह ज्यादा दूरी को cover करता है।

2. यह LAN के मुकाबले कम expensive है।

3. इस network की मदद से आप emails program को share कर सकते है।

4. इस network की speed काफी ज्यादा अच्छी होती है।

5. इस network की मदद से आप internet को share कर सकते है।

6. LAN को MAN network में easily convert किया जा सकता है।

7. इसमें आपको security काफी अच्छी मिलती है।

Disadvantages of MAN in Hindi –


MAN के नुकसान
इसके नुकसान निम्न है-

1. इस network को manage करना काफी ज्यादा मुकिल लश्कि


है।

2. इसकी Internet speed अलग अलग हो सकती है।

3. इसमें security होने के बावजूद hackers के attack होते रहते है।

4. इसको setup करना काफी ज्यादा मुकिल लश्कि


काम है।

5. MAN network के setup के लिए technical लोगो की जरूरत होती है।


6. इस network में ज्यादा wire की requirement होती है।

WAN (Wide Area Network) in Hindi

वाइड एरिया नेटवर्क का चित्र

 WAN का पूरा नाम वाइड एरिया नेटवर्क होता है।

 WAN वह network होता है जो दुनिया के हर computer और devices को


आपस में जोड़ता है। इसे हम international network भी कहते है।
क्योकि यह नेटवर्क state to state और country to country की connectivity
के लिए होते है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण internet है। दुनिया के किसी
भी कोने से आप internet को access कर सकते है।

 एक एक country को दुसरे country के network से जोड़ने के लिए इस


network का use किया जाता है। ये दुनिया का सबसे बड़ा network भी माना
जाता है। जो की पूरी दुनिया के computers को connect करता है। इस
network को LAN of LANS के नाम से भी जाना जाता है।

 इस network की सबसे बड़ी खासियत यह है की यह बड़े area को cover करता


है। इसके अलावा इसका Data Rate भी ज्यादा है। WAN network भी दो
प्रकार के होते है। 1.Enterprise WAN और 2.Global WAN

 WAN network से connect होने वाले ज्यादातर कंप्यूटर public network


का इस्तेमाल करते है ।

 इस network को install करने में काफी ज्यादा पैसो का खर्च आता है।
इसके अलावा इसको maintain करके रखना भी काफी ज्यादा मुकिल लश्कि होता
है। जो कम्पनिया ये network provide करती है। उनको हम Network
Service Provider कहते है.
 इस network में data transmission की speed थोड़ी slow होती है। इस
network को चलाने के लिए SONET, Frame Relay और ATM आदि
technology का use किया जाता है।

 WAN का एरिया LAN और MAN से काफी ज्यादा बड़ा होता है।

 Wide area network का इस्तेमाल business, education और government


के क्षेत्र में ज्यादा किया जाता है।

Advantages of WAN in Hindi –


WAN के फायदे
इसके फायदे नीचे दिए गए हैं।

1.यह नेटवर्क बहुत बड़े area को cover करता है।

2. यह Centralized Data system को maintain करके रखता है।

3. इसमें Data और files दोनों ही updated रहते है।

4. ढेर सारे application और messages को आप इस network में share कर सकते


है।

5. इस network में आप software और resources को आसानी से share कर सकते है।

6. WAN नेटवर्क global business के लिए फायदेमंद होते है।

7. इस network में workload आसानी से distribute हो जाता है।

8. इसकी bandwidth बहुत ही ज्यादा उच्च (high) होती है।

Disadvantages of WAN in Hindi –


WAN के नुकसान
इसकी हानियाँ निम्नलिखित हैं-

1. बिना antivirus और firewall के इस network को चलाना मुकिल लश्कि


है।
2. इस network को setup करने में काफी ज्यादा खर्चा आता है।

3. WAN network में troubleshooting की problem देखने को मिलती है।


4. इस network में server down होने की समस्या बनी रहती है।

5. इस network को maintain करना काफी ज्यादा मुकिल लश्कि


है।

PAN (Personal Area Network) in Hindi

पर्सनल एरिया नेटवर्क का चित्र

 PAN का पूरा नाम पर्सनल एरिया नेटवर्क है।

 Personal Area Network एक ऐसा नेटवर्क होता है जो पहले से ही devices


के साथ connected रहता है।

 इस network की range काफी ज्यादा छोटी होती है। इस network को केवल


एक ही person के द्वारा use किया जा सकता है। इसकी रेंज 10 मीटर तक
ही होती है।

 PAN के द्वारा personal कंप्यूटर को ही connect किया जाता है इसलिए


इसे personal area network कहते हैं।

 ये network कुछ ही devices को allow करता है। जैसे computer ,


smartphone , smartwatch etc .

 इस नेटवर्क की खोज Thomas Zimmerman ने की थी।

Advantages of PAN in Hindi –


PAN के फायदे
इसके लाभ निम्न होते है।

1. इसमें अलग से किसी network को connect करने की ज़रूरत नहीं पड़ती।


2. इसके network को आपके अलावा कोई दूसरा व्यक्ति use नहीं कर सकता।

3. ये network किसी भी तरह के data को transfer कर सकते है।

4. इस network को use करना काफी ज्यादा आसान होता है।

5. इस network को setup करने में ज्यादा खर्चा नहीं आता।

Disadvantages of PAN in Hindi –


PAN की हानियाँ
इसके नुकसान नीचे दिए है।

1. PAN नेटवर्क की range काफी ज्यादा काम होती है।

2. एक समय पर इस network को केवल एक ही इंसान use कर सकता है।

3. इसमें Data transfer की speed काफी ज्यादा slow होती है।

4. ये नेटवर्क कमजोर signa आने पर crash हो जाते है।

HAN (Home Area Network) in Hindi

 HAN की फुल फॉर्म “होम एरिया नेटवर्क” है।

 अगर एक ही घर में सभी लोग एक ही network का इस्तेमाल करते है। तो


उन्हें हम HAN network कहते है।
 ये network बिलकु ल भी personal नहीं होते क्योकि इनका use कोई एक
व्यक्ति नहीं करता।

 इस नेटवर्क के द्वारा हम घर की सभी devices जैसे कि- कंप्यूटर,


लैपटॉप, स्मार्ट फ़ोन आदि को connect कर सकते हैं।

 इस नेटवर्क की रेंज 100 मीटर से कम होती है।

 HAN को create करने के लिए modem और router का प्रयोग किया जाता


है।

Advantages of HAN in Hindi –


HAN के फायदे
1.घर के किसी भी कोने में बैठकर आप इस network को access कर सकते है।

2. इसके द्वारा आप video को देखने के साथ साथ live streaming भी कर सकते है।

3.घर के किसी भी कोने में बैठकर data को transfer कर सकते है।

4.घर के सभी लोग इस network का use कर सकते है।

Disadvantages of HAN in Hindi –


HAN के नुक़सान
1.HAN network की range बहुत ही कम है लगभग 100 मीटर।

2.इसमें file और data को transfer करने में काफी ज्यादा समय लगता है।

3. कभी कभी network का server भी down हो जाता है।

Network Topology in Hindi


– नेटवर्क टोपोलॉजी क्या है?
 नेटवर्क टोपोलॉजी नेटवर्क का एक स्ट्रक्चर होता है जो यह बताता है कि एक
नेटवर्क में कंप्यूटर एक दूसरे के साथ किस प्रकार जुड़े होते हैं।

 दूसरे ब्दों में कहें तो, “Network Topology नेटवर्क का एक layout है, जो
बताता है कि नेटवर्क में computers एक-दूसरे के साथ किस प्रकार connect हुए
हैं और वे एक-दूसरे के साथ किस प्रकार कम्युनिकेशन करते हैं।”
 Network Topology एक प्रकार का कनेक्ननक्श
होता है, जो दो या दो से अधिक
कंप्यूटरों को आपस में कनेक्ट करता है। जिसकी मदद से डेटा और फाइलों को
एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर किया जाता है।

 नेटवर्क टोपोलॉजी में डेटा और फाइलों को ट्रांसफर करने के लिए इंटरनेट


की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसमें switch, router और hub जैसे नेटवर्क डिवाइस
शामिल होते है।

 नेटवर्क टोपोलॉजी को ज्यादातर graph के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

 नेटवर्क टोपोलॉजी, डेटा ट्रांसफर करने की स्पीड को बढ़ा देता है।

 नेटवर्क टोपोलॉजी को physical और logical दोनों तरीके से परिभाषित किया जाता


है।
इसे पढ़ें:-

 नेटवर्क क्या है और इसके प्रकार


 डाटा कम्युनिकेशन क्या है?
Types of Network Topology In Hindi
– नेटवर्क टोपोलॉजी के प्रकार
नेटवर्क टोपोलॉजी के मुख्य रूप से 6 प्रकार होते हैं, जो कि नीचे दिए गए हैं:-

1- Bus Topology (बस टोपोलॉजी क्या है?)


 बस टोपोलॉजी सबसे सरल प्रकार की टोपोलॉजी है जिसमें communication के
लिए केवल एक bus या channel का इस्तेमाल किया जाता है.

 इस टोपोलॉजी में कंप्यूटरों को आपस में कनेक्ट करने के लिए केवल एक


केबल का इस्तेमाल किया जाता है।
 यह data को केवल एक दि शमें ही ट्रान्सफर करता है, यह दोनों दि ओं
ओंशा
(directions) में data को ट्रान्सफर नहीं कर सकता है.

 Bus topology का सबसे ज्यादा इस्तेमाल 802.3 और 802.4 स्टैण्डर्ड नेटवर्क


में किया जाता है.

 Bus topology को दूसरे टोपोलॉजी की तुलना में आसानी से configure किया जा


सकता है.

 बस टोपोलॉजी का इस्तेमाल छोटे नेटवर्क में किया जाता है.

 बस टोपोलॉजी में केबल को backbone cable के नाम से भी जाना जाता है।


जिसके द्वारा सभी कंप्यूटर में डेटा को ट्रांसफर किया जाता है।

 बस टोपोलॉजी में सबसे सरल विधि CSMA (Carrier Sense Multiple Access) है।

Advantages of Bus Topology in Hindi – बस टोपोलॉजी के फायदे


1- इस टोपोलॉजी को setup करने में कम खर्चा आता है।

2- इस टोपोलॉजी के द्वारा नेटवर्क में कंप्यूटर को connect करना बहुत आसान होता है.

3- इसमें डेटा ट्रांसफर करने की speed (गति) काफी बेहतर होती है।

4- इसके hardware components आसानी से मिल जाते है।

5- यदि इस टोपोलॉजी में एक कंप्यूटर में कोई परे नीनी


शा
आती है तो दुसरे कंप्यूटर पर
इसका असर नहीं होता है।

6- इस टोपोलॉजी में कंप्यूटर को आपस में कनेक्ट करने के लिए एक ही केबल का


उपयोग किया जाता है जिसे हम backbone cable कहते है।

7- इसमें hub और switch की जरूरत नहीं पड़ती.


 नेटवर्क डिवाइस क्या है?
 OSI मॉडल क्या है?
Disadvantages of Bus Topology – बस टोपोलॉजी के नुकसान
1- इस टोपोलॉजी में अधिक मात्रा में केबल का इस्तेमाल किया जाता है।

2- यह बड़े नेटवर्क के लिए उपयोगी नहीं होती.

3- यदि केबल में कोई खराबी आती है तो उसका प्रभाव सभी computers पर पड़ता है।

4- इस टोपोलॉजी में यदि दो कंप्यूटर एक साथ डेटा को ट्रांसफर करते है, तो वह आपस
में टकरा जाते है, जिसकी वजह से डेटा को ट्रांसफर करते वक़्त यूजर को समस्याओ
का सामना करना पड़ सकता है।

5- यदि इस टोपोलॉजी में नए computers को कनेक्ट किया जाता है तो इसकी स्पीड कम हो


जाती है।

6- इस टोपोलॉजी में security (सुरक्षा) की कमी होती है।

2- Ring Topology (रिंग टोपोलॉजी क्या है?)


 रिंग टोपोलॉजी एक प्रकार की नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमें सभी computers एक
ring (गोले) के आकार में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं. इसमें जो अंतिम
कंप्यूटर होता है वह पहले कंप्यूटर से जुड़ा होता है.

 इस टोपोलॉजी में प्रत्येक कंप्यूटर अपने नजदीकी दो कंप्यूटरों के साथ जुड़ा


रहता है.

 यह टोपोलॉजी बस टोपोलॉजी की तरह होता है क्योंकि इसमें डेटा को एक ही


direction (दि श
) में ट्रांसफर किया जा सकता है।

 इस टोपोलॉजी में पिछले कंप्यूटर से प्राप्त डेटा को आगे ट्रांसफर कर दिया


जाता है।

 इस टोपोलॉजी का कोई end (अंत) नहीं है क्योकि इसमें प्रत्येक कंप्यूटर एक


दुसरे के साथ जुड़ा होता है।

 रिंग टोपोलॉजी की सबसे सामान्य विधि token passing है।


Advantages of Ring Topology in Hindi – रिंग टोपोलॉजी के फायदे
1- इस टोपोलॉजी में Twisted pair केबल का इस्तेमाल किया जाता है , जो महंगे नहीं
होते है।

2- Twisted pair केबल आसानी से मिल जाते है।

3- इसमें data को बहुत तेज गति के साथ ट्रांसफर किया जा सकता है.

4:- इसको manage करना बहुत ही आसान है.

5:- इसमें server को डाटा के flow को control करने की जरूरत नहीं होती.

6- रिंग टोपोलॉजी को setup करना काफी आसान होता है।

7- इस टोपोलॉजी को expand किया जा सकता है।

Disadvantages of Ring Topology in Hindi – रिंग टोपोलॉजी के नुकसान


1- यदि इसमें एक केबल में खराबी आती है तो इससे पूरा नेटवर्क fail हो जाता है.

2- इस टोपोलॉजी में एक कंप्यूटर के खराब होने पर पूरा नेटवर्क बंद हो जाता है।

3- इसमें troubleshooting करना मुकिल लश्कि


होता है.

4:- इसमें नए कंप्यूटर को add और delete करना कठिन होता है.

5- इस टोपोलॉजी में नए कंप्यूटरों को add करने से नेटवर्क की स्पीड slow (धीमी) हो


जाती है।
3– Star Topology (स्टार टोपोलॉजी क्या है?)
 यह एक प्रकार की नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमे सभी कंप्यूटर एक central device
के साथ जुड़े हुए होते हैं, जिसे hub कहते हैं.

 स्टार टोपोलॉजी में जो hub होता है वह सर्वर की तरह काम करता है और जो


computers होते हैं वह client की तरह कार्य करते हैं.

 Star topology को star network भी कहा जाता है. यह सबसे प्रसिद्ध नेटवर्क
टोपोलॉजी है.

 स्टार टोपोलॉजी में, यदि एक कंप्यूटर दूसरे कंप्यूटर को डेटा भेजना चाहता
है, तो उसे सबसे पहले hub को जानकारी भेजनी होती है, फिर हब उस डेटा को
दूसरे कंप्यूटर तक पहुंचाता है।

Advantages of Star Topology in Hindi – स्टार टोपोलॉजी के फायदे


1- Star topology को मैनेज करना काफी आसान होता है।

2- यदि इस टोपोलॉजी में एक केबल खराब हो जाती है तो उसका बुरा असर पूरे नेटवर्क
पर नही पड़ता.

3- इसे setup करना आसान होता है.

4- इसमें नए कंप्यूटर को add करना आसान होता है.

5- इसमें data का collision (टकराव) नहीं होता.

6- इसमें fault को detect करना आसान होता है.

7- star topology में डेटा को ट्रांसफर करने की स्पीड काफी high होती है।

Disadvantages of Star Topology in Hindi – स्टार टोपोलॉजी के नुकसान


1- स्टार टोपोलॉजी को इनस्टॉल करने में ज्यादा खर्चा आता है।
2- इसमें ज्यादा केबल की आवयकता
कताश्य
होती है.

3- यदि इसमें hub ख़राब हो जाता है तो इसके कारण सारें computers काम करना बंद
कर देते है.

4- इसमें हब को ज्यादा resources की जरूरत होती है.

4– Tree topology (ट्री टोपोलॉजी क्या है?)


 Tree topology एक नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसका tree (पेड) की तरह का स्ट्रक्चर
होता है और इसमें computers पेड की शाखाओं (branches) की तरह connect रहते
हैं.

 ट्री टोपोलॉजी को hierarchical topology भी कहते हैं.

 इस टोपोलॉजी में star और bus topology दोनों की वि षताएंशे


षताएंहोती है.

 ट्री टोपोलॉजी में सबसे ऊपरी कंप्यूटर को root computer कहा जाता है, और
अन्य सभी computers रूट डिवाइस के child (बच्चे) होते हैं।

 इस टोपोलॉजी का इस्तेमाल Wide Area Network (WAN) में किया जाता है.

 इसमें parent-child hierachy होती है.

 Tree topology में दो computers के बीच केवल एक ही कनेक्ननक्श


को स्थापित
(established) किया जा सकता है।

Advantages of Tree Topology in Hindi – ट्री टोपोलॉजी के फायदे


1- इसमें नेटवर्क को manage और maintain करना बहुत आसान होता है.

2- इसमें error को detect और correct करना आसान होता है.

3- इस टोपोलॉजी को expand करना काफी आसान होता है।

4- यह बहुत secure (सुरक्षित) है.


5- ट्री टोपोलॉजी बहुत ही reliable (विवसनीय
सनीयश्व
) है.

6- इसमें यदि एक कंप्यूटर ख़राब हो जाता है तो इससे नेटवर्क पर कोई असर नहीं
होता.

Disadvantages of Tree Topology in Hindi – ट्री टोपोलॉजी के नुकसान


1- इस टोपोलॉजी में यदि किसी कंप्यूटर में कोई समस्या आती है तो उसे solve करना
काफी मुकिल लश्कि
होता है।

2- इस टोपोलॉजी को इनस्टॉल करने में ज्यादा खर्चा आता है।

3- इसमें नेटवर्क को configure करना मुकिल लश्कि


होता है.

4- इस टोपोलॉजी में अधिक मात्रा में केबल की आवयकता


कताश्य
होती है.

5– Mesh topology (मेश टोपोलॉजी क्या है?)


 Mesh topology में, प्रत्येक कंप्यूटर एक वि षशे
ष channel के माध्यम से दूसरे
कंप्यूटर से जुड़ा रहता है.

 इसमें दो कंप्यूटर एक-दूसरे के साथ सीधे कम्युनिकेशन कर सकते हैं.

 इस टोपोलॉजी का ज्यादातर इस्तेमाल wireless network में किया जाता है.

 Mesh topology के दो प्रकार होते हैं:- full mesh और partial mesh.

Full mesh – इसमें प्रत्येक कंप्यूटर नेटवर्क में हर दूसरे कंप्यूटर से जुड़ा
होता है।
Partial mesh – इसमें कुछ कंप्यूटर सभी कंप्यूटरों से जुड़े हुए नही होते है.

Advantages of Mesh Topology in Hindi – मेश टोपोलॉजी के लाभ


1- यह टोपोलॉजी बहुत विवसनीय
सनीयश्व(reliable) होती है।

2- यह high traffic को भी मैनेज कर लेती है.

3- यह बहुत ही secure (सुरक्षित) होती है.

4- यदि इसमें कोई कंप्यूटर ख़राब हो जाता है तो इसका प्रभाव पूरे नेटवर्क पर नहीं
पड़ता.

5- इस टोपोलॉजी में संचार (communication) करना आसान होता है।

6- इस टोपोलॉजी में डेटा को ट्रांसफर करने की स्पीड काफी तेज होती है।

Disadvantages of Mesh Topology in Hindi – मेश टोपोलॉजी की हानियाँ


1- Mesh topology को मेन्टेन करके रखना काफी मुकिल लश्कि
होता है।

2- इस टोपोलॉजी को manage करना मुकिल लश्कि


होता है।

3- यह काफी महंगा होता है।

4- इसकी प्रक्रिया बहुत complex (कठिन) होती है.

6– Hybrid Topology (हाइब्रिड टोपोलॉजी क्या


है?)
 Hybrid topology नेटवर्क टोपोलॉजी का एक प्रकार है जो बस टोपोलॉजी, मेश
टोपोलॉजी, रिंग टोपोलॉजी, स्टार टोपोलॉजी और ट्री टोपोलॉजी से मिलकर बनी
होती है.

 षताएंशामिल होती है.


इसमें अन्य सभी टोपोलॉजी की वि षताएंशे

 दूसरे शब्दों में कहें तो, “हाइब्रिड टोपोलॉजी एक सी नेटवर्क टोपोलॉजी है जो


दो या दो अधिक टोपोलॉजी से मिलकर बना होती है.”

 इसका इस्तेमाल स्कूल, बिज़नस और अन्य जगहों पर जरूरत के अनुसार किया


जाता है.
Advantages of Hybrid Topology in Hindi – हाइब्रिड के लाभ
इसके लाभ नीचे दिए गये हैं:-

1- यह टोपोलॉजी बहुत विवसनीय


सनीयश्व(reliable) होती है।

2- इसमें error को detect करना आसान होता है.

3- यह high traffic को आसानी से handle कर लेता है.

4- इसका इस्तेमाल बहुत बड़े network को बनाने के लिए किया जाता है.

5- यदि इस टोपोलॉजी में computers को add किया जाता है तो इसकी स्पीड slow नहीं
होती।

6- यह टोपोलॉजी flexible होती है जिसे ज़रूरतों के अनुसार डिज़ाइन किया जा सकता


है।

Disadvantages of Hybrid Topology in Hindi – हाइब्रिड टोपोलॉजी की


हानियाँ
इसकी हानियाँ निम्नलिखित हैं:-

1- इस टोपोलॉजी का स्ट्रक्चर काफी complex होता है।

2- यह काफी expensive (महंगे) होते है।

3- इस टोपोलॉजी को इनस्टॉल करने में ज्यादा केबल की आवयकता


कताश्य
पड़ती है, जिसकी
वजह से यह और भी ज्यादा expensive हो जाती है।

4- इसको install करना काफी मुकिल लश्कि


होता है.

 TCP/IP मॉडल क्या है?


 राऊटर क्या है और इसके प्रकार
Physical Topology और Logical Topology के
बीच अंतर

Physical Topology Logical Topology

लॉजिकल टोपोलॉजी का मतलब है “नेटवर्क का layout कैसा


फिजिकल टोपोलॉजी का मतलब है “नेटवर्क का
दिखेगा
physical layout.”
और computers के बीच डाटा कैसे ट्रान्सफर होगा.”

कता
इसको हम अपनी आवयकता के अनुसार change
श्य
इसे हम change नही कर सकते हैं.
कर सकते है.

यह cost, bandwidth, और scalability को प्रभावित


यह data delivery को प्रभावित करता है.
करता है.

इसके उदाहरण – star, ring, mesh और bus


इसके उदाहरण – Ring आयर Bus.
topology

Protocol in Hindi – प्रोटोकॉल क्या है?


 Protocol नियमों का एक समूह होता है जिसका इस्तेमाल एक कंप्यूटर से
दूसरे कंप्यूटर में डेटा को ट्रान्सफर करने के लिए किया जाता है.
 दूसरे शब्दों में कहें तो, “प्रोटोकॉल नियमों (rules) का एक समूह (set) होता
है जिसका उपयोग data को send और receive करने के लिए किया जाता
है.”

 प्रोटोकॉल शब्द का मतलब है “नियमों का समूह”. कंप्यूटर नेटवर्क में


data के आदान-प्रदान के लिए भी कुछ नियम बनाये गये हैं जिसे ही
प्रोटोकॉल कहा जाता है।

 कंप्यूटर नेटवर्क में, प्रोटोकॉल का प्रयोग डिवाइसों और कंप्यूटरों के


बीच डेटा को format करने, transmit करने और receive करने के लिए
किया जाता है.”

 बिना protocol के हम इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं कर सकते है.

 उदाहरण के लिए– HTTP एक हाइपर टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल है


जिसका इस्तेमाल इन्टरनेट में files को ट्रान्सफर करने के लिए किया
जाता है.

Types of Protocol in Hindi – प्रोटोकॉल के


प्रकार
Protocol के बहुत सारें प्रकार होते हैं जिनके बारें में नीचे बताया गया है:-

1. TCP
2. IP
3. UDP
4. POP
5. SMTP
6. FTP
7. HTTP
8. HTTPS
9. Telnet
10.Gopher

1- TCP
TCP का पूरा नाम Transmission Control Protocol (ट्रांसमिशन कण्ट्रोल
प्रोटोकॉल) है। यह एक ऐसा प्रोटोकॉल है जो IP (इंटरनेट प्रोटोकॉल) के साथ
काम करता है। यह एक ट्रांसपोर्ट लेयर प्रोटोकॉल जिसका इस्तेमाल अलग
अलग डिवाइस के बिच संचार (communication) करने के लिए किया जाता है।
इस प्रोटोकॉल का उपयोग करके हम सूचनाओं को ट्रांसफर कर सकते है। इस
प्रोटोकॉल का मुख्य कार्य डेटा को छोटे छोटे टुकड़ो में तोडना होता है और
इस डेटा को IP लेयर पर भेजना होता है।

यह प्रोटोकॉल हमे यह बताता है की एक कंप्यूटर दुसरे कंप्यूटर को कैसे डेटा


भेजता है। यह प्रोटोकॉल नेटवर्क में कंप्यूटिंग डिवाइस के बीच होने वाले
को स्थापित (establish) करता है।
संचार से पहले कनेक्ननक्श

TCP के फायदे –
1. सनी
यह एक विवसनीय यश्व(reliable) प्रोटोकॉल है।
2. इसमें डेटा के प्रवाह (flow) को नियंत्रित (control) किया जा सकता है।
3. यह इनफार्मेशन या डेटा को ट्रांसफर करने में मदद करता है।
4. इसमें एक समय में डेटा को दोनों दि ओ (directions) में ट्रांसफर
ओ शा
किया जा सकता है।
TCP के नुकसान –
1. इस प्रोटोकॉल को WAN (वाइड एरिया नेटवर्क) के लिए बनाया गया है।
इसलिए इसका इस्तेमाल छोटे नेटवर्क में करना मुकिल लश्कि होता है।
2. यह नेटवर्क की स्पीड को धीमा कर देता है।
3. यह ब्लूटूथ कनेक्ननक्श
के साथ काम नहीं कर सकता है।

2- IP
इसका पूरा नाम Internet protocol (इंटरनेट प्रोटोकॉल) होता है। यह कई नियमो
का एक समूह (set) है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट पर कम्युनिकेशन करने और
डेटा ट्रांसफर की प्रक्रिया को कण्ट्रोल करने के लिए किया जाता है। इसके
अलावा इसका इस्तेमाल डेटा पैकेट को source से destination तक भेजने के
लिए किया जाता है।

इस प्रोटोकॉल को TCP/IP या UDP/IP के नाम से भी जाना जाता है जो


connectionless (कनेक्ननक्श
रहित) सेवाएं प्रदान करता है।

न IPv4 था। इसके बाद 2006 में इसका दूसरा


इंटरनेट प्रोटोकॉल का पहला वर्नर्श
वर्जन बजार में आया जिसका नाम IPv6 था। यह एक लोकप्रिय प्रोटोकॉल है
जिसका इस्तेमाल तेजी से किया जाने लगा।
IP के फायदे –
1. इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) का इस्तेमाल किसी व्यक्ति या organization के
द्वारा किया जा सकता है।
2. यह scalable होता है।
3. यह विभिन्न प्रकार के कंप्यूटर में नेटवर्क को स्थापित करने में मदद
करता है।
4. यह बहुत सारें नेटवर्क रूटिंग प्रोटोकॉल को सपोर्ट करता है।
5. यह स्वतंत्र (independent) रूप से काम करता है।
IP के नुकसान –
1. यह एक जटील (complex) प्रोटोकॉल है जिसे स्थापित करना कठिन होता है।
2. इसे manage करना थोड़ा कठिन होता है।
3. इस प्रोटोकॉल को बदलना आसान नहीं है।
4. यह LAN जैसे छोटे नेटवर्क के लिए लोकप्रिय नहीं है।

3- UDP
UDP का पूरा नाम User Datagram Protocol (यूजर डायग्राम प्रोटोकॉल) होता है।
यह एक transport layer कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल है जिसका उपयोग इंटरनेट पर
कम्युनिकेशन के लिया किया जाता है।

UDP में डेटा को ट्रांसफर करने से पहले कनेक्ननक्श को स्थापित करने की


कता
आवयकता नहीं होती क्योकि यह एक connection-less (कनेक्ननक्श
श्य रहित) प्रोटोकॉल
है।

इस प्रोटोकॉल का उपयोग ज्यादातर मनोरंजन जैसे (गेम खेलने , वीडियो


देखने ) के लिए किया जाता है। यह इंटरनेट प्रोटोकॉल का एक हिस्सा होता है
जो TCP की तुलना में कम विवसनीय
सनीयश्व(reliable) होता है।

UDP के फायदे –
1. इसमें डेटा को ट्रांसफर करने से पहले कनेक्ननक्श को स्थापित करने की
कता
आवयकता श्य
नहीं पड़ती।
2. यह मल्टीकास्टिंग के लिए suitable (उपयुक्त) होता है।
3. यह तेज गति से कार्य करने वाला प्रोटोकॉल है।
UDP के नुकसान –
1. यह TCP की तुलना में कम विवनीयनी यश्व(reliable)
श होता है।
2. यह error control का उपयोग नहीं कर सकता।
3. इसमें त्रुटि (error) का पता लगाना मुकिल लश्कि होता है।
इसे पूरा पढ़ें – UDP क्या है?

4- POP
POP का पूरा नाम Post Office Protocol (पोस्ट ऑफिस प्रोटोकॉल) होता है। यह एक
एप्लिकेशन लेयर प्रोटोकॉल है जिसका इस्तेमाल ईमेल (email) भेजने और
प्राप्त करने के लिए किया जाता है.

इस प्रोटोकॉल का उपयोग मैसेज ट्रांसफर एजेंट के रूप में किया जाता है


जो क्लाइंट से सर्वर तक और फिर server तक message को भेजने में मदद करता
है। यह दो प्रकार के होते है पहला POP3 और दूसरा IMAP .
POP के फायदे-
1. इस प्रोटोकॉल के माध्यम से यूजर ऑफलाइन रहकर भी ईमेल को पढ़ सकता
है।
2. इसमें सर्वर से ईमेल डाउनलोड करते समय केवल इंटरनेट कनेक्ननक्श की
आवयकताकता श्य
पड़ती है।
3. POP प्रोटोकॉल में हमे ईमेल को पढ़ने के लिए स्थाई इंटरनेट
(permanent internet) कनेक्ननक्श कता
की आवयकता श्य
नहीं पड़ती। क्योकि एक बार
ईमेल डाउनलोड हो जाने के बाद हम इन्हे बिना इंटरनेट कनेक्ननक्शके भी
पढ़ सकते है।
4. इसका उपयोग करना आसान है।
5. इसे configure (कॉन्फ़िगर) करना सरल है।
POP के नुकसान –
1. यदि सर्वर से ईमेल डाउनलोड किए जाते हैं, तो सर्वर से सभी मेल को
डिफ़ॉल्ट रूप से हटा दिया जाता है जिसके कारण दूसरे कंप्यूटर ईमेल को
एक्सेस नहीं कर पाते।
2. इसमें मेल फोल्डर को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर
करना मुकिल लश्किहोता है।
3. इस प्रोटोकॉल में वायरस फैलना का खतरा बना रहता है।
4. मेल सर्वर से डाउनलोड किया गया ईमेल फ़ोल्डर corrupt हो सकता है।

5- SMTP
SMTP का मतलब Simple Mail Transfer Protocol (सिंपल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल)
होता है। इसका इस्तेमाल सॉफ्टवेयर के द्वारा इंटरनेट पर ईमेल (email) को
भेजने के लिए किया जाता है।

SMTP भी POP की तरह ही है इसका इस्तेमाल भी ईमेल भेजने और प्राप्त


करने के लिए किया जाता है.

इस प्रोटोकॉल में बहुत से communication guidelines होते है जो ईमेल को


ट्रांसफर करने में मदद करते है। इसमें हम वीडियो , चित्र , ऑडियो और
ग्राफ़िक्स जैसे डेटा को भेज सकते है।

SMTP के फायदे –
1. इस प्रोटोकॉल का उपयोग करके हम एक या एक से अधिक लोगों को ईमेल
या मैसेज भेज सकते है।
2. इसमें सभी प्रकार के फॉरमेट में डेटा को भेजा जा सकता है जैसे :-
टेक्स्ट ऑडियो, वीडियो या ग्राफिक्स आदि।
SMTP के नुकसान –
1. यह प्रोटोकॉल कम सुरक्षित होते है।
2. इसमें मैसेज या डेटा को भेजने में ज्यादा समय लग सकता है।
6- FTP
FTP का पूरा नाम फ़ाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल (File Transfer Protocol) होता है।
यह एक एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल है जिसका उपयोग फाइलों को एक कंप्यूटर
से दुसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है।

यह प्रोटोकॉल कंप्यूटर में web page को ट्रांसफर करने में मदद करता है।
इस प्रोटोकॉल को TCP/IP के द्वारा विकसीत (develop) किया गया है। इसका
उपयोग करके यूजर सर्वर से फाइलों को download कर सकता है।
यह फाइलों को एक transfer करते वक़्त तीन अलग अलग mode का उपयोग करता
है, Block, stream और compressed.

इसके दो कनेक्ननक्श
होते है पहला कण्ट्रोल कनेक्ननक्श
और दूसरा डाटा कनेक्न।न।क्श

FTP के फायदे –
1. यह फाइलों को तेज गति के साथ ट्रांसफर कर सकता है।
2. इसका उपयोग करना आसान होता है।
3. यह HTTP की तुलना में काफी तेज होता है।
4. यह एक सुरक्षित प्रोटोकॉल है।
5. यह बड़ी आकार वाली फाइलों को ट्रांसफर करने में सक्षम होता है।
FTP के नुकसान –
1. यह प्रोटोकॉल फाइलों को ट्रांसफर करते वक़्त encryption की सुविधा
प्रदान नहीं करता जिसकी वजह से hackers फाइलों को आसानी से चोरी कर
सकते है.
2. FTP में बहुत कम यूजर ही मोबाइल डिवाइस को एक्सेस कर सकते है।
3. इसमें त्रुटि (error) को पहचानना काफी मुकिल लश्कि
होता है।
4. इसमें वायरस को scan करना कठिन होता है।

7 – HTTP
HTTP का पूरा नाम Hyper Text Transfer Protocol (हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर
प्रोटोकॉल) है। यह एक प्रोटोकॉल है जिसका उपयोग वर्ल्ड वाइड वेब (www)
यानी कि इन्टरनेट में डेटा को एक्सेस करने के लिए किया जाता है।

यह प्रोटोकॉल डेटा को प्लेन टेक्स्ट, हाइपरटेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो आदि के


रूप में ट्रांसफर करता है। यह FTP के समान होता है क्योंकि यह फ़ाइलों को
एक होस्ट से दूसरे होस्ट में ट्रांसफर करता है। और FTP भी यही काम करता है।

यह FTP की तुलना में काफी सरल होता है क्योकि यह फाइलों को ट्रांसफर करने
के लिए एक कनेक्ननक्श का उपयोग करता है। यह SMTP के समान भी होता है क्योकि
यह क्लाइंट और सर्वर के बीच डेटा को ट्रांसफर ट्रांसफर करता है।
HTTP के फायदे –
1. यह एक लचीला (flexible) प्रोटोकॉल है।
2. यह बहुत कम CPU मेमोरी का उपयोग करता है जिसके कारण सिस्टम की
performance बरकरार रहती है।
3. यह एक तेज प्रोटोकॉल है।
HTTP के नुकसान
1. यह मोबाइल के लिए suitable (उपयुक्त) नहीं होता।
2. यह SEO (सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन) फ्रेंडली नहीं होता।
3. यह डेटा को सुरक्षित तरीके से ट्रान्सफर नहीं करता।

8 – HTTPS
इसका पूरा नाम (Hyper Text Transfer Protocol Secure) होता है। यह HTTP का एक
encrypted version है जिसका इस्तेमाल ज्यादतर ऑनलाइन शॉपिंग और बैंकिं ग को
सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है।
HTTPS का इस्तेमाल वेबसाइट को सुरक्षित करने के लिए किया जाता है जिससे
कि कोई भी hacker वेबसाइट को हैक नहीं कर पाता और यूजर का डेटा चोरी नहीं
कर पाता.

इस प्रोटोकॉल का उपयोग करके हम ब्राउज़र से किसी भी वेबसाइट के साथ संचार


(communication) कर सकते है। यह एक सुरक्षित प्रोटोकॉल है जिसमे ब्राउज़र तथा
वेबसाइट के बिच जितना भी कम्युनिकेशन होता है वह encrypted होता है।

HTTPS के फायदे –
1. यह काफी सुरक्षित प्रोटोकॉल होता है।
2. यह SEO friendly होता है।
3. जब यूजर ऑनलाइन ट्रांसक्ननक्श करता है तो यह प्रोटोकॉल यूजर को अधिक
सुरक्षा प्रदान करता है।
HTTPS के नुकसान –
1. इसमें cache के रूप में डेटा को चुराया जा सकता है।
2. यह HTTP की तुलना में अधिक सर्वर संसाधनों (server resources) का उपयोग
करता है।

9- Telnet
Telnet का पूरा नाम terminal network (टर्मिनल नेटवर्क) है जो लोकल कंप्यूटर
को अन्य कंप्यूटर के साथ कनेक्ट करने में मदद करता है।

टेलनेट क्लाइंट/सर्वर सिद्धांत (client/server principle) पर काम करता है। इस


प्रोटोकॉल का उपयोग ज्यादतर क्लाइंट प्रोग्राम और रिमोट कंप्यूटर के द्वारा
किया जाता है।
इसे पूरा पढ़ें – Telnet क्या है?
Telnet के फायदे –
1. इसके द्वारा बहुत सारें resources को एक्सेस किया जा सकता है।
2. इस प्रोटोकॉल के माध्यम से हम मुफ्त में इंटरनेट शतरंज सर्वर (internet
chess server) का उपयोग कर सकते है।
Telnet के नुकसान –
1. इस प्रोटोकॉल में केवल कुछ ही सर्वर को एक्सेस किया जा सकता है।
2. यह कम सुरक्षित होता है।

10- Gopher
Gopher एक एप्लिकेशन-लेयर प्रोटोकॉल है जिसका इस्तेमाल वेब सर्वर पर
स्टोर किये गये डाक्यूमेंट्स को एक्सेस करने लिए किया जाता है।

इस प्रोटोकॉल के माध्यम से हम डाक्यूमेंट्स को देख भी सकते है। यह प्रोटोकॉल


अलग अलग साइटों से डॉक्यूमेंट को खोजने, पुनर्प्राप्त (recovering) करने और
डिस्प्ले करने में मदद करता है।

Gopher के लाभ –
1. यह एक सरल प्रोटोकॉल है।
2. इसमें navigate करना आसान है।
Gopher की हानियाँ –
1. इसमें एक ही स्क्रीन पर ग्राफिक्स और टेक्स्ट को मिक्स नहीं कर सकते।
2. इस प्रोटोकॉल का उपयोग करने वाले यूजर HTML को नहीं देख सकते।

TCP/IP Model in Hindi


TCP/IP का पूरा नाम Transmission control protocol (TCP) तथा internet protocol
(IP) है। TCP/IP वर्ल्ड वाइड वेब (WWW) का एक प्रोटोकॉल है जिसे हम
इंटरनेट कहते है। इस मॉडल को internet में packets को send करने के लिए
डिजाईन किया गया है.

TCP/IP मॉडल end-to-end कम्युनिकेशन प्रदान करता है। इसको 1970 तथा 1980
के दशक के मध्य Department of Defense (D.O.D.) ने विकसित किया था।

यह model यह निर्धारित करता है कि एक वि षशेष computer किस प्रकार से internet


से connect होता है और उनके मध्य data का transmission किस प्रकार होता है.
जब बहुत सारें computer networks आपस में जुड़े हों तो यह मॉडल हमें virtual
network बनाने में मदद करता है.
TCP/IP model का मुख्य उद्देय श्य
बहुत दूरी पर communication प्रदान करना है.
अर्थात हम इसके द्वारा बहुत दूरी पर स्थित network से भी communicate कर सकते
हैं.

Layers of TCP/IP Model in Hindi

TCP/IP model में 4 layers होती है जो निम्न है:-

1. Host-to-network (network access) layer


2. Internet layer
3. Transport layer
4. Application layer

Network Access layer


 यह लेयर TCP/IP मॉडल की सबसे निम्नतम (lowest) लेयर है।
 नेटवर्क एक्सेस लेयर यह describe करती है कि किस प्रकार डेटा
नेटवर्क में sent होता है।
 यह लेयर, OSI model में define किये गये data link layer और physical
layer का एक combination होता है.
 यह layer एक ही network में दो devices के बीच होने वाले data के
transmission के लिए जिम्मेदार होती है.
 इस layer का कार्य नेटवर्क के द्वारा transmit किये गये IP datagram
को frames में encapsulate करना है और IP address को physical address
में map करना है.
 इस लेयर के द्वारा प्रयोग किये जाने वाले protocols हैं:- ethernet,
FDDI, token ring, x.25, frame Relay.

Internet Layer
 यह लेयर ट्रांसपोर्ट लेयर तथा एप्लीकेशन लेयर के मध्य स्थित होती
है। यह लेयर नेटवर्क में connectionless कम्युनिकेशन उपलब्ध कराती
है।
 इसमें डेटा को IP datagrams के रूप में पैकेज किया जाता है यह
datagram source तथा destination IP एड्रेस को contain किये रहते है
जिससे कि डेटा को आसानी से sent तथा receive किया जा सकें।
 इसको network layer भी कहते हैं.
इस layer के द्वारा निम्नलिखित protocols का प्रयोग किया जाता हैं:-

IP protocol – इसका पूरा नाम internet protocol है और इसका मुख्य कार्य source
से destination तक packets को deliver करना होता है. इसके दो versions होते
है IPv4 और IPv6.
ARP – इसका पूरा नाम address resolution protocol है. इसका कार्य ip address से
physical address को खोजना होता है. इसके बहुत सारें प्रकार होते हैं:-
जैसे:- RARP, PARP आदि.
ICMP – इसका पूरा नाम internet control message protocol है. इसका कार्य host
को network में आने वाली problems के बारें में सूचना देना होता है.

Transport layer
 यह लेयर डेटा के ट्रांसमिशन के लिए जिम्मेदार होती है यह लेयर
एप्लीकेशन लेयर तथा इंटरनेट लेयर के मध्य स्थित होती है।
 यह data की reliability, flow control और correction के लिए भी जिम्मेदार
होता है.
 इस लेयर में दो मुख्य प्रोटोकॉल कार्य करते है:-
1:- Transmission control protocol (TCP)
2:- User datagram Protocol (UDP)

Application layer
 यह लेयर TCP/IP मॉडल की सबसे उच्चतम लेयर है।
 यह लेयर ऍप्लिके शन्स को नेटवर्क सर्विस उपलब्ध करने से सम्बंधित होती है।
 यह लेयर यूजर को कम्युनिकेशन उपलब्ध कराती है; जैसे:-वेब ब्राउज़र, ई-
मेल, तथा अन्य ऍप्लिके शन्स के द्वारा।
 application लेयर ट्रांसपोर्ट लेयर को डेटा भेजती है तथा उससे
डेटा receive करती है।
 इस layer का कार्य high-level protocols को handle करना होता है.
 यह layer यूजर को application के साथ interact करने की सुविधा प्रदान करती
है.
Application layer में प्रयोग किये जाने वाले protocols निम्नलिखित हैं:-

HTTP और HTTPS:- HTTP का पूरा नाम hypertext transfer protocol है. इसके
द्वारा हम internet में data को access कर सकते हैं. यह data को text, audio,
video के रूप में ट्रान्सफर करता है. HTTPS का पूरा नाम नाम HTTP-secure है.
जब हम http के साथ ssl का प्रयोग करते है तो वह https हो जाता है.
SNMP – इसका पूरा नाम simple network management protocol है. यह एक
फ्रेमवर्क है जिसका प्रयोग internet में devices को manage करने के लिए
किया जाता है.
SMTP – इसका पूरा नाम simple mail transfer protocol है. इसका प्रयोग एक e-
mail से दूसरे e-mail address में data को send करने के लिए किया जाता है.
DNS – इसका पूरा नाम domain name system है. इसका प्रयोग ip address को
map करने के लिए किया जाता है.
SSH – इसका पूरा नाम secure Shell है. इसका प्रयोग encryption के लिए किया
जाता है.
इसे भी पढ़े:- OSI MODEL क्या है?

Advantage of TCP/IP Model in Hindi


इसके लाभ निम्नलिखित हैं:-

1. यह हमें अलग-अलग प्रकार के computers में connection को स्थापित


करने में help करता है.
2. यह ऑपरेटिंग सिस्टम से independent होकर कार्य करता है.
3. यह बहुत सारें routing protocols को सपोर्ट करता है.
4. यह बहुत ही scalable client-server architecture है.
5. यह स्वतंत्र रूप से कार्य करता है.
6. यह एक open protocol suite है. अर्थात यह किसी एक company का नहीं
है इसलिए इसे कोई भी व्यक्ति, company प्रयोग कर सकता है.

Disadvantage of TCP/IP Model in Hindi


इसकी हानियाँ निम्नलिखित हैं:-

1. यह एक complicated model है इसलिए इसे setup और manage करना


कठिन होता है.
2. इस model का transport layer पैकेटों की delivery की गारंटी नही लेता
है.
3. इसमें protocols को replace करना आसान नहीं है.
4. इसमें services, interfaces और protocols का कांसेप्ट अलग नहीं है
इसलिए इसे नयी technology में describe करना suitable नहीं होता.
5. इसे wide area network (WAN) के लिए design किया गया था. इसे LAN
(local area network) और personal area network (PAN) के लिए optimize
नही किया गया है.
TCP/IP model में कितने layers होती हैं?
इसकी 4 layers होती हैं. Application, Transport, internet, network access layer.
TCP/IP में कितने protocols होते हैं?
इसमें मुख्य रूप से 5 protocol होते है. HTTP, FTP, Post Office Protocol 3,
Simple Mail Transfer Protocol और Simple Network Management Protocol.

OSI Model in Hindi – ओएसआई मॉडल क्या है?


 OSI model का पूरा नाम Open System Interconnection है इसे ISO
(International Organization for Standardization) ने 1984 में विकसित
किया था और इस मॉडल में 7 layers होती है।

 ओएसआई मॉडल किसी नेटवर्क में दो यूज़र्स के मध्य कम्युनिकेशन के


लिए एक reference मॉडल है। इस मॉडल की प्रत्येक लेयर दूसरे लेयर
पर निर्भर नही रहती है लेकिन एक लेयर से दूसरे लेयर में डेटा का
ट्रांसमिशन होता है।

 OSI मॉडल एक रेफेरेंस मॉडल है अर्थात् इसका इस्तेमाल real life में
नही होता है बल्कि इसका इस्तेमाल केवल reference (संदर्भ) के रूप में
किया जाता है.

 OSI model यह बताता है कि किसी नेटवर्क में डेटा या सूचना कैसे send
तथा receive होती है। इस मॉडल के सभी layers का अपना अलग अलग काम
होता है जिससे कि डेटा एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक आसानी से पहुँच
सके ।

 OSI मॉडल यह भी describe करता है कि नेटवर्क हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर


एक दूसरे के साथ लेयर के रूप में कैसे कार्य करते है।

 इस मॉडल की 7 लेयर होती है और प्रत्येक लेयर का अपना एक वि षशे



कार्य होता है.

7 Layers of OSI MODEL IN HINDI – ओ एस


आई मॉडल की लेयर
OSI model में निम्नलिखित 7 layers होती हैं आइये इन्हें विस्तार से जानते
है:-
SOURCE– OSI model का चित्र

PHYSICAL LAYER (फिजिकल लेयर)


OSI model में physical लेयर सबसे नीचे की लेयर है। यह लेयर फिजिकल
तथा इलेक्ट्रिकल कनेक्ननक्श
के लिए जिम्मेदार रहता है जैसे:- वोल्टेज,
डेटा रेट्स आदि। इस लेयर में डिजिटल सिग्नल, इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल
जाता है।

इस लेयर में नेटवर्क की topology अर्थात layout of network (नेटवर्क का


आकार) का कार्य भी इसी लेयर में होता है। फिजिकल लेयर यह भी describe
करता है कि कम्युनिकेशन wireless होगा या wired होगा। फिजिकल लेयर को बिट
यूनिट भी कहा जाता है।
Physical Layer के कार्य
1. फिजिकल लेयर यह बताता है कि दो या दो से ज्यादा devices आपस में
physically कैसे connect होती है.
2. फिजिकल लेयर यह भी बताता है कि नेटवर्क में दो डिवाइसों के बीच
किस transmission mode का इस्तेमाल किया जायेगा. ट्रांसमिशन मोड
तीन प्रकार के होते हैं:- simplex, half-duplex, और full duplex.
3. यह information को ट्रांसमिट करने वाले सिग्नल को निर्धारित करता है.
4. यह नेटवर्क टोपोलॉजी के कार्य को पूरा करता है.

Data link layer (डेटा लिंक लेयर)


OSI Model में डेटा लिंक लेयर नीचे से दूसरे नंबर की लेयर है। इस लेयर
को फ्रेम यूनिट भी कहा जाता है. इस लेयर में नेटवर्क लेयर द्वारा भेजे
गए डेटा के पैकेटों को decode और encode किया जाता है तथा यह लेयर यह
भी सुनिश्चित करता है कि डेटा के पैकेट्स में कोई error (त्रुटी) ना हो.
इस लेयर की दो sub-layers होती है:-

1. MAC (मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल),


2. LLC (लॉजिक लिंक कण्ट्रोल)
डेटा लिंक लेयर में डेटा ट्रांसमिशन के लिए दो प्रोटोकॉल का इस्तेमाल
किया जाता है.

1. HDLC (High-Level Data Link Control)


2. PPP (Point-to-Point Protocol)
डेटा लिंक लेयर के कार्य
1. यह लेयर data packets को एनकोड और डिकोड करता है. इन data packets
को हम frames कहते है.
2. यह लेयर इन frames में header और trailer को add करने का काम करती
है.
3. डेटा लिंक लेयर का मुख्य कार्य flow control करना है. इसमें receiver
और sender दोनों तरफ से एक निचित तश्चि
data rate को maintain किया जाता
है. जिससे कि कोई भी data ख़राब( corrupt) ना हो.
4. यह error को भी control करता है. इसमें फ्रेम के trailer के साथ CRC
(cyclic redundancy check) को add किया जाता है जिससे डेटा में कोई
error ना आये.
5. इसका काम access control का भी होता है. जब दो या दो से अधिक devices
एक communication channel से जुडी रहती है तब यह layer यह निर्धारित
करती है कि किस डिवाइस को access दिया जाए.

Network layer (नेटवर्क लेयर)


नेटवर्क लेयर OSI model का तीसरा लेयर है, इस लेयर को पैकेट यूनिट भी
कहा जाता है। इस लेयर में switching तथा routing तकनीक का प्रयोग किया
जाता है। इस Layer का कार्य डिवाइसों को लॉजिकल एड्रेस अर्थात I.P.
address प्रदान करना होता है.
नेटवर्क लेयर में जो डेटा होता है वह data packets के रूप में होता है और
इन डेटा पैकेटों को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस तक पहुँचाने का काम
नेटवर्क लेयर का होता है।

नेटवर्क लेयर का कार्य


1. इसका मुख्य काम डिवाइसों को IP Address प्रदान करना होता है.
2. इसका कार्य data packets को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में पहुँचाने
का होता है.
3. नेटवर्क लेयर की मुख्य जिम्मेदारी inter-networking की भी होती है.
4. यह data packets के header में source और destination address को add
करती है. इस address का इस्तेमाल इन्टरनेट में devices को identify
करने के लिए किया जाता है.
5. इस layer का काम routing का भी है. यह सबसे अच्छे path (रास्ते) को
निर्धारित करती है.
6. इसका कार्य switching का भी होता है.

Transport layer (ट्रांसपोर्ट लेयर)


ट्रांसपोर्ट लेयर OSI मॉडल की चौथी लेयर है, इसे सेगमेंट यूनिट भी कहा जाता
है। इस लेयर का इस्तेमाल डेटा को नेटवर्क के बीच सही तरीके से ट्रान्सफर
करने के लिए किया जाता है। यह लेयर यह देखती है कि डेटा में कोई error
(त्रुटी) ना हो.

यह लेयर यह भी सुनिश्चित करती है कि हमने जिस क्रम में डेटा भेजा है वह


हमें उसी क्रम में प्राप्त हुआ है. इस लेयर का कार्य दो कंप्यूटरों के मध्य
कम्युनिकेशन को उपलब्ध कराना भी है।

Transport Layer को end to end लेयर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह


डेटा को ट्रान्सफर करने के लिए point to point कनेक्ननक्श
प्रदान करता है.

यह लेयर दो प्रकार की service (सेवाएं) प्रदान करता है पहली connection


oriented और दूसरी connection less.

Transport Layer के दो प्रमुख protocols होते हैं:-

1. Transmission Control Protocol (ट्रांसमिशन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल)


2. User Datagram Protocol (यूजर डाटाग्राम प्रोटोकॉल)
Transport Layer के कार्य
1. Transport Layer का मुख्य कार्य data को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक
ट्रान्सफर करना है.
2. यह दो कंप्यूटरों के बीच कम्युनिकेशन की सुविधा प्रदान करता है.
3. इसका काम point to point कनेक्ननक्शप्रदान करता होता है.
4. जब यह लेयर उपरी layers से message को receive करती है तो यह
message को बहुत सारें segments में विभाजित कर देती है. और प्रत्येक
segment का एक sequence number (क्रम संख्या) होता है जिससे प्रत्येक
segment को आसानी से identify किया जा सके .
5. यह flow control और error control दोनों प्रकार के कार्यों को करती है.
6. इसका काम connection को control करने का भी होता है.

Session layer(सेशन लेयर)


सेशन लेयर OSI model की पांचवी लेयर है जो कि बहुत सारें कंप्यूटरों के मध्य
कनेक्ननक्श
को नियंत्रित करती है।

सेशन लेयर दो डिवाइसों के बीच कम्युनिकेशन के लिए सेशन प्रदान करता है


अर्थात जब भी कोई यूजर कोई भी वेबसाइट खोलता है तो यूजर के कंप्यूटर तथा
वेबसाइट के सर्वर के बीच एक सेशन का निर्माण होता है।

आसान शब्दों में कहें तो “सेशन लेयर का मुख्य कार्य यह देखना है कि किस
को establish, maintain तथा terminate किया जाता है।”
प्रकार कनेक्ननक्श

Session Layer के कार्य


1. सेशन लेयर का मुख्य काम दो डिवाइसों के बीच session को स्थापित करना,
मेन्टेन करना, और समाप्त करना होता है.
2. session layer जो है वह dialog controller की भांति कार्य करती है. यह दो
processes के मध्य dialog को create करती है.
3. यह synchronization के कार्य को भी पूरा करती है. अर्थात् जब भी
transmission में कोई error आ जाती है तो ट्रांसमिशन को दुबारा किया
जाता है.

Presentation layer (प्रेजेंटेशन लेयर)


Presentation लेयर OSI मॉडल का छटवां लेयर है। इस लेयर का प्रयोग डेटा
का encryption तथा decryption के लिए किया जाता है। इसे डेटा
compression के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। यह लेयर ऑपरेटिंग
सिस्टम से सम्बंधित है।
प्रेजेंटेशन लेयर को syntax layer भी कहते हैं क्योंकि यह डेटा के syntax
को सही ढंग से maintain करके रखता है.

प्रेजेंटेशन लेयर के कार्य (functions)


1. इस layer का कार्य encryption और decryption का होता है. एन्क्रिप्ननप्श
के
द्वारा हम अपने डेटा को सुरक्षित रख सकते हैं.
encryption को पूरा पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें
encryption क्या है
2. इसका मुख्य काम compression का भी है. compression बहुत जरुरी होता है
क्योंकि हम data को compress करके उसके size को कम कर सकते है.
3. यह ट्रांसलेशन का काम भी करता है अर्थात् यह डेटा को ट्रांसलेट
करता है.

Application layer (एप्लीकेशन लेयर)


एप्लीकेशन लेयर OSI model का सातवाँ (सबसे उच्चतम) लेयर है। एप्लीकेशन
लेयर का मुख्य कार्य हमारी वास्तविक एप्लीकेशन तथा अन्य लयरों के मध्य
interface कराना है।

एप्लीकेशन लेयर end user के सबसे नजदीक होती है, यह end users को network
services प्रदान करता है.

इस लेयर के अंतर्गत HTTP, FTP, SMTP तथा NFS आदि प्रोटोकॉल आते है। यह
लेयर यह नियंत्रित करती है कि कोई भी एप्लीकेशन किस प्रकार नेटवर्क से
access करती है।
एप्लीकेशन लेयर के कार्य
1. Application layer के द्वारा यूजर computer से files को access कर सकता है
और files को retrieve कर सकता है.
2. यह email को forward और स्टोर करने की सुविधा भी देती है.
3. इसके द्वारा हम डेटाबेस से directory को access कर सकते हैं.
एक non-technical बात
OSI model में 7 layers होती है उनको याद करना थोडा मुकिल लश्कि
होता है इसलिए
नीचे आपको एक आसान तरीका दिया गया है जिससे कि आप इसे आसानी से याद
कर सकें:-

P- Pyare (प्यारे)
D- Dost (दोस्त)
N- Naveen (नवीन)
T- tumhari (तुम्हारी)
S- Shaadi ( दी)
P- Par (पर)
A- Aaunga (आऊंगा).
 TCP/IP मॉडल क्या है?

Advantage of OSI model in Hindi –


ओएसआई मॉडल के लाभ
इसके लाभ निम्नलिखित है:-

1:- यह एक generic model है तथा इसे standard model माना जाता है.

2:- OSI model की layers जो है वह services, interfaces, तथा protocols के लिए


ष्
बहुत ही वि ष्टटशि
है.
3:- यह बहुत ही flexible मॉडल होता है क्योंकि इसमें किसी भी protocol को
implement किया जा सकता है.

4:- यह connection oriented तथा connection less दोनों प्रकार की services को


support करता है.

5:- यह divide तथा conquer तकनीक का प्रयोग करता है जिससे सभी services
विभिन्न layers में कार्य करती है. इसके कारण OSI model को administrate तथा
maintain करना आसान हो जाता है.

6:- इसमें अगर एक layer में change कर भी दिया जाए तो दूसरी लेयर में
इसका प्रभाव नहीं पड़ता है.

7:- यह बहुत ही ज्यादा secure तथा adaptable है.

Disadvantage of OSI model in Hindi


इसकी हानियाँ निम्नलिखित है:-

1;- यह किसी वि षशे


ष protocol को डिफाइन नहीं करता है.

2:- इसमें कभी कभी नए protocols को implement करना मुकिल लश्कि होता है
क्योंकि यह model इन protocols के invention से पहले ही बना दिया गया था.

3:- इसमें services का duplication हो जाता है जैसे कि transport तथा data link
layer दोनों के पास error control विधी होती है.

4:- यह सभी layers एक दूसरे पर interdependent होती है.

OSI Model और TCP/IP के बीच अंतर


(difference)
OSI Model TCP/IP Model

OSI का पूरा नाम open system इसका पूरा नाम transmission control protocol / internet
interconnection है. protocol है.

इसे ISO ने विकसित किया है. इसे APRANET ने विकसित किया है.

इसमें 7 लेयर होती है. इसमें 4 layer होती है.


यह मॉडल केवल connection oriented होता यह connection oriented और connection less दोनों प्रकार का
है. होता है.

यह vertical एप्रोच को follow करता है. यह horizontal एप्रोच को follow करता है.

इस मॉडल का इस्तेमाल बहुत कम किया


इस model का उपयोग ज्यादा किया जाता है.
जाता है.

Characteristics of OSI model in Hindi – OSI


मॉडल की वि षताएं
षताओं को जानेंगे. जो कि निम्न हैं:-
अब हम इसकी वि षताओंशे

1. यह मॉडल दो layers में विभाजित होता है. एक upper layers और दूसरा


lower layers.
2. इसकी upper layer मुख्यतया application से सम्बन्धित issues को handle करती
है और ये केवल software पर लागू होती हैं. application लेयर, end
user के सबसे नजदीक होती है.
3. ओएसआई मॉडल की lower layers जो है वह data transport के issues को
हैंडल करती है. data link layer और physical लेयर hardware और
software में लागू होती है. फिजिकल लेयर सबसे निम्नतम लेयर होती है
और यह physical medium के सबसे नजदीक होती है. फिजिकल लेयर का
मुख्या कार्य physical medium में data या information को रखना होता है.

Networking Device in Hindi – नेटवर्किंग


डिवाइस क्या है?
Networking device वे equipment (उपकरण) होते है जिनके द्वारा दो या
दो से अधिक कंप्यूटर या नेटवर्क को आपस में connect किया जाता है.
जिससे कि वे आपस में एक-दूसरे के साथ डेटा share कर सकें तथा
कम्युनिकेशन कर सकें.
networking device निम्नलिखित होते है.
1. Repeater (रिपीटर)
2. hub (हब)
3. switch (स्विच)
4. bridge (ब्रिज)
5. router (राऊटर)
6. Gateway (गेटवे)
7. Modem (मॉडेम)

Repeater (रिपीटर) क्या है?


 Repeater एक नेटवर्किंग डिवाइस है जो कि डेटा सिग्नल को receive करता
है और उस सिग्नल को regenerate तथा replicate करके आगे भेज देता है.

 यह OSI मॉडल के लेयर 1 (physical layer) में कार्य करता है.

 रिपीटर का प्रयोग signal को नष्ट होने से पहले regenerate (दुबारा से


जनरेट) करने के लिए किया जाता है. सिग्नल को regenerate इसलिए किया
जाता है क्योंकि जब सिग्नल एक जगह से दूसरी जगह में जाते है तो वह
weak (कमजोर) होते जाते है इसलिए सिग्नल के नष्ट होने से पहले दुबारा
generate किया जाता है जिससे कि सिग्नल नष्ट ना हो.

 यह डिजिटल तथा एनालॉग दोनों प्रकार के सिग्नलों को replicate तथा


regenerate कर सकता है.

 रिपीटर दो प्रकार का होता है analog repeater तथा digital repeater.

 Analog repeater सिग्नल को केवल amplify करता है. जबकि digital repeater
सिग्नल को reconstruct करके उसमें से errors को हटाके आगे भेजते है.

Hub (हब) क्या है?)


Hub एक networking device है जिसका प्रयोग बहुत सारें कंप्यूटरों या
networking device को एक साथ जोड़ने के लिए किया जाता है.
यह OSI मॉडल के लेयर 1 (फिजिकल लेयर) में कार्य करता है.
Hub में बहुत सारें ports होते हैं. हब किसी भी एक पोर्ट से आने
वाले डेटा पैकेट्स को अन्य सभी ports में भेज देता है. यह recieving
कंप्यूटर (पोर्ट) पर निर्भर करता है कि वह decide करें कि वह पैकेट
उसके लिए है या नहीं.
अगर हमको कंप्यूटर 1 से कंप्यूटर 2 में डेटा भेजना है तो जैसे ही
कंप्यूटर 1 डेटा भेजता है तो hub यह check नहीं करता है कि उसका
destination क्या है वह इन डेटा सिग्नलों को अन्य सभी कंप्यूटरों
(2,3,4,5…) पर भेज देता है. कंप्यूटर 2 इन डेटा सिग्नलों को ले लेता
है जबकि अन्य कंप्यूटर इसे discard (निरस्त) कर देते है.
hubs का प्रयोग लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) में विभिन्न कंप्यूटरों को
star या hierachical टोपोलॉजी में connect करने के लिए किया जाता है.
हब के प्रकार
hub दो प्रकार का होता है:-
1. passive hub
2. active hub
1:- passive hub:- यह सिग्नल को जैसा है उसी स्थिति में आगे भेज
देता है इसलिए इसे power supply की जरुरत नहीं होती है.
2:- active hub:- इसमें सिग्नल को दुबारा generate किया जाता है, इसलिए
ये भी repeater की तरह कार्य करते है. इन्हें multiport repeater कहते
है. इसमें power supply की जरुरत होती है.
इसे पूरा पढ़िए – Hub क्या है और इसकी working

Switch (स्विच) क्या है?)


switch एक नेटवर्किंग डिवाइस है जो कि नेटवर्क डिवाइसों तथा
सेगमेंट्स को आपस में जोड़ता है. इसे multiport bridge भी कहते है.
क्योंकि इसकी कार्यविधि bridge के समान ही है.
यह star टोपोलॉजी में काम में आती है.
यह OSI model के लेयर 2 (डेटा लिंक लेयर) में कार्य करता है.
लेकिन आजकल से स्विच भी आ गये है जो कि osi model के लेयर 3
(नेटवर्क लेयर) में कार्य करते है.
switch में कई पोर्ट लगे होते है जब switch से होकर डेटा आता है तो
switch डेटा में डेस्टिनेशन कंप्यूटर का एड्रेस पढ़ लेता है और उसे
डेस्टिनेशन कंप्यूटर को भेज देता है. यह फ्रेम के mac address को
check करता है.
switches ट्रैफिक को कम कर देती है. और collision domain को
सेगमेंट्स में विभाजित कर देती है.
switches में built-in hardware chips होती है जो कि switching का कार्य
करती है. अतः इसकी स्पीड बहुत तेज होती है और ये कई ports के साथ
आते हैं.
इसमें डेटा frames के रूप में जाता है तथा यह भी bridge की तरह डेटा
फ़िल्टरिंग करता है.
Types of Switch in Hindi – स्विच के प्रकार
Switch के मुख्यतया दो प्रकार होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं:-

1. Unmanaged Switches – इस प्रकार के Switch का इस्तेमाल


अधिकतर Home Network या छोटे Business मे किया जाता है। ये
स्विच Plug–in होते है और ये तुरंत work करने लगते है क्योंकि इन्हे
किसी प्रकार के Configuration की आवयकता कताश्य
नहीं होती है।इनके लिए
छोटे Cable Connection की आवयकता कता होती है। इसके द्वारा एक network
श्य
में devices एक दूसरे से connect हो सकती है. Switches की Category मे
इन Switches का Price सबसे कम होता है।
2. Managed Switches :- इस प्रकार के Switches मे उच्च स्तर की Security,
Precision Control और Network के Full Management के Features होते
है। इस प्रकार के Switches को Large Network वाले business मे Use
किया जाता है।
इसे पूरा पढ़ें:- Switch क्या है और इसकी working क्या है?

Bridge (ब्रिज) क्या है?

यह एक networking device है जो कि नेटवर्क सेगमेंट्स को आपस में


जोड़ता है. तथा डेटा फ़िल्टरिंग का कार्य भी करता है.
bridge में केवल दो पोर्ट होते हैं एक incoming (आने वाला) और
outgoing (जाने वाला).
bridge डेटा को भेजने से पहले destination एड्रेस को check करता है.
यदि bridge को डेस्टिनेशन एड्रेस मिल जाता है तो वह डेटा को भेजता
है अन्यथा वह डेटा को ट्रांसमिट नहीं करेगा.
bridges का उपयोग डेटा signals और ट्रैफिक को maintain करते हुए
नेटवर्क को बढ़ाने के लिए किया जाता है.
यह osi model के लेयर 2 (डेटा लिंक लेयर) पर काम करता है. इसमें
डेटा frames के रूप में जाता है.
इसे पूरा पढ़ें:- Bridge क्या है और इसके प्रकार

Router in hindi (राऊटर) क्या है?


router एक inter networking device है जो कि दो या दो से अधिक नेटवर्क
को आपस में जोडती है.
router में एक ऐसा सॉफ्टवेर होता है जिसकी मदद से डेटा एक नेटवर्क
से दूसरे नेटवर्क में भेजा जाता है.
यह networking device अलग अलग protocols पर कार्य कर सकता है.
router में mac address के स्थान पर ip address काम में ली जाती है
अर्थात् IP एड्रेस के आधार पर router डेटा को आगे ट्रांसमिट करता है.
इसी कारण से यह अलग अलग protocols पर कार्य कर सकता है.
यह collision domain तथा broadcast domain दोनों को नियंत्रित करता है.
यदि डेटा पैकेट का डेस्टिनेशन अन्य नेटवर्क पर है तो router से
डेटा पैकेट भेजा जाएगा इसलिए बिना router के इन्टरनेट काम नहीं
करता है.
यह osi model के लेयर 3 (नेटवर्क लेयर) में कार्य करता है.
यह डेटा को IP address के आधार पर फ़िल्टर करता है.
router, नेटवर्क एड्रेस को स्टोर करने तथा डेटा पैकेट्स को सही port
पर भेजने के लिए route tables बनाता है.

राऊटर का चित्र

इसे पूरा पढ़ें:- Router क्या है?

Gateway (गेटवे) क्या है?


Gateway एक हार्डवेयर डिवाइस होती है जो कि एक दरवाजे की तरह काम करती
है। गेटवे एक बहुत महत्वपूर्ण नेटवर्क डिवाइस है जिसके द्वारा ही हम अपने
कंप्यूटर या अन्य डिवाइस में इंटरनेट एक्सेस कर पाते हैं.
गेटवे ही वह डिवाइस होती है जो दो विभिन्न प्रोटोकॉल वाले नेटवर्क को
आपस में जोडती है, और डाटा का आदान – प्रदान करने में सुविधा देती है.

गेटवे एक नेटवर्क के लिए Entry और दुसरे के लिए Exit Point के रूप में
काम करता है, क्योंकि सभी डेटा को रूट किये जाने से पहले गेटवे से गुजरना
पड़ता है.

गेटवे के द्वारा हम LAN नेटवर्क को WAN के साथ connect कर सकते हैं. यदि
हमें कोई ऐसा data प्राप्त करना है जो कि हमारे नेटवर्क में उपलब्ध नहीं है
तो हम गेटवे का इस्तेमाल करके दुसरे नेटवर्क से data को प्राप्त कर सकते
हैं. गेटवे के बिना इन्टरनेट एक्सेस नहीं किया जा सकता है.
Types of Gateway – गेटवे के प्रकार
इसके प्रकार निम्नलिखित हैं:-

1. Network Gateway
Network Gateway सबसे सामान्य प्रकार का Gateway है। जो दो अलग अलग
Protocol का पालन करने वाले Network को आपस में जोड़ने का काम करता
है।

2. IoT Gateway
IoT का पूरा नाम Internet of Thing होता है। यह IoT Environment में Device से
सेंसर डेटा को एकत्रित करता है। उसे सेंसर प्रोटोकॉल के बीच अनुवाद करता है
फिर Cloud Network पर भेज देता है।
3. Media Gateway
Media Gateway एक Network के डेटा Format को दूसरे Network के लिए
Format में बदलता है।
आवयककश्य

4. Bidirectional Gateway
वह Gateways जिसके द्वारा डेटा को दोनो दि ओं में transmit किया जा सकता
ओंशा
है। वह Bidirectional Gateway कहलाता है।

इसे पूरा पढ़ें – गेटवे क्या है और इसके प्रकार

Modem (मॉडेम) क्या है?


मॉडेम एक हार्डवेयर डिवाइस है जिसका उपयोग एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर
में संचार (communication) करने के लिए किया जाता है। यह डिवाइस दो
कंप्यूटर के बीच कम्युनिकेशन में के लिए telephone lines का प्रयोग करता है।
दुसरे शब्दो में कहे तो modem एक Input और output device है जिसका उपयोग
टेलीफोन लाइन पर डेटा को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में transfer करने के
लिए किया जाता है।

Types of Modem in Hindi – मॉडेम के प्रकार


1– External Modem – यह एक तरह का मॉडेम है, जिसे कंप्यूटर सिस्टम के बाहरी
हिस्से में एक cable का उपयोग करके जोड़ा जाता है।
2- Internal Modem
इस मॉडेम को on-board modem के नाम से भी जाना जाता है। Internal modem
को सिस्टम के motherboard पर इनस्टॉल किया जाता है।

3- Wireless Modem
यह modem cable के बिना सिस्टम के साथ connect होता है। सरल शब्दो में कहे तो
वायरलेस मॉडेम को सिस्टम के साथ कनेक्ट करने के लिए किसी भी प्रकार की
कता
केबल की आवयकता श्य
नहीं पड़ती।

इसे पूरा पढ़े – मॉडेम क्या है और इसके प्रकार


Collision kya hota hai?
collision का अर्थ होता है ‘टकराव’.
नेटवर्क में दो कंप्यूटर के द्वारा एक साथ डेटा ट्रांसमिट करने पर
collision (टकराव) की स्थिति आ जाती है. दोनों computers के डेटा
पैकेट्स जब आपस में मिलते है तो वह टकराकर नष्ट हो जाते है.
Collision domain क्या होता है?
ईथरनेट में वह नेटवर्क एरिया जिसमें टकराये हुए डेटा पैकेट्स को
detect किया जा सकें, collision domain कहलाता है.
hub और repeaters में collision domain को आगे ट्रांसमिट कर दिया
जाता है जबकि switches, routers तथा bridge में collision को आगे नहीं
भेजा जाता है.

Hub in Hindi – हब क्या है?


Hub एक नेटवर्किंग डिवाइस है जिसका प्रयोग एक network में बहुत सारीं
devices को connect करने के लिए किया जाता है.
हब को repeater भी कहते है। यह एक layer 1 डिवाइस होती है। Hub
कम्युनिकेशन के लिए computers को आपस में जोड़ता है।

Hub बुद्धिमान (intelligent) डिवाइस नहीं होता है क्योंकि यह लॉजिकल और फिजिकल


एड्रेस के आधार पर डेटा को forward नहीं कर सकता।

यह OSI model के लेयर 1 (फिजिकल लेयर) में कार्य करता है.


Hub में बहुत सारें ports होते हैं. हब किसी भी एक पोर्ट से आने वाले डेटा
पैकेट्स को अन्य सभी ports में भेज देता है. यह receiving कंप्यूटर (पोर्ट)
पर निर्भर करता है कि वह decide करें कि वह पैकेट उसके लिए है या नहीं.

Working of Hub in Hindi – हब की कार्यविधि


हब में data packets को frame कहते हैं. जब भी कोई पोर्ट frame को send
करता है तो hub उस फ्रेम को सभी ports में forward कर देता है।

हब frame के type को भी अलग अलग नहीं करता है चाहे frame uni-cast हो


चाहे multicast हो या broadcast हो, hub सभी फ्रेम को सभी ports में forward
कर देता है।
हालांकि एक हब frame को सभी ports को भेजता है लेकिन frame वही पोर्ट
accept करता है जिसका MAC address फ्रेम के destination MAC address से
match करता है। बाक़ी hosts इसे receive करने के बाद discard कर देते है ।

उदाहरण के लिए – अगर हमको कंप्यूटर 1 से कंप्यूटर 2 में डेटा भेजना है तो


जैसे ही कंप्यूटर 1 डेटा भेजता है तो hub यह check नहीं करता है कि उसका
destination क्या है वह इन डेटा सिग्नलों को अन्य सभी कंप्यूटरों (2,3,4,5…) पर
भेज देता है. कंप्यूटर 2 इन डेटा सिग्नलों को ले लेता है जबकि अन्य कंप्यूटर
इसे discard (निरस्त) कर देते है.
Hubs का प्रयोग लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) में विभिन्न कंप्यूटरों को star या
hierarchical टोपोलॉजी में connect करने के लिए किया जाता है.

Types of Hub in Hindi – हब के प्रकार


Hub दो प्रकार का होता है:-

1. passive hub
2. active hub
1:- passive hub:- यह सिग्नल को जैसा है उसी स्थिति में आगे भेज देता है
इसलिए इसे power supply की जरुरत नहीं होती है.
2:- active hub:- इसमें सिग्नल को दुबारा generate किया जाता है, इसलिए ये भी
repeater की तरह कार्य करते है. इन्हें multiport repeater कहते है. इसमें
power supply की जरुरत होती है.

Advantages of Hub in Hindi – हब के फायदे


इसके फायदे निम्नलिखित हैं;-

1. यह दूसरी devices की तुलना में सस्ता होता है.


2. यह बहुत सारीं network media को support करता है.
3. यह नेटवर्क की कुल दूरी (total distance) को बढ़ा सकता है।
4. एक हब internet के traffic को monitor कर सकता है और उसे analyze कर
सकता है.
5. यह network की performance को बाधित (disturb) नही करता.

Disadvantages of Hub in Hindi – हब के


नुकसान
इसके नुकसान निम्नलिखित हैं:-

1. इसके पास collision detection का तंत्र (mechanism) नहीं होता.


2. यह data को दुबारा से transmit नहीं कर सकता.
3. यह full duplex mode में कार्य नहीं करता.
4. यह data को filter नहीं करता.
5. यह network traffic को कम नहीं कर सकता.

Bridge in Hindi – ब्रिज क्या है?


 Bridge एक नेटवर्किंग डिवाइस है जिसका इस्तेमाल दो या दो से अधिक
networks को आपस में connect करने के लिए किया जाता है जिससे कि
एक single network का निर्माण किया जा सके ।

 दूसरे शब्दों में कहें तो, “Bridge एक तरह का नेटवर्क डिवाइस होता है
जिसका प्रयोग दो अलग अलग नेटवर्को को आपस में जोड़ने के लिए
किया जाता है जिससे नेटवर्क आपस में एक-दूसरे से संचार
(communication) कर सके ।”

 ब्रिज OSI Model की दूसरी लेयर (data link layer) पर कार्य करता है।

 ब्रिज intelligent (बुद्धिमान) डिवाइस होती है क्योंकि यह source और


destination के MAC Address को पढ़ सकती है।

 इसका इस्तेमाल दो LAN (Local area network) को आपस में जोड़ने के


लिए भी किया जाता है।

 ब्रिज के पास एक input port और एक output port होता है इसलिए यह एक


two port device है।

 ब्रिज OSI मॉडल के second layer मे कार्य करते है इसलिए इसे layer 2
switch के नाम से भी जाना जाता है।

 ब्रिज भी switch और hub के समान ही होते है इनका इस्तेमाल भी


computers के बीच data को भेजने के लिए किया जाता है।

 Bridge को Adobe bridge या network bridging भी कहा जाता है।

इसका चित्र
Types of Bridge in Hindi – ब्रिज के प्रकार
Bridge के निम्नलिखित प्रकार होते हैं-

1. Transparent Bridges
2. Translational Bridges
3. Source Routing Bridges
4. Mac layer bridges
5. Remote bridges

1- Transparent Bridges
Transparent bridge एक ऐसा ब्रिज है जिसकी जानकारी नेटवर्क में मौजूद दूसरी
devices को नही होती है।

इस ब्रिज को learning bridge भी कहते हैं। इसका काम MAC address के आधार पर
data packets को forward करना या block करना होता है।

ट्रांसपेरेंट ब्रिज में automatic update की सुविधा मौजूद होती है जिसके कारण
हमें इसको अपडेट करने की जरूरत नहीं पड़ती, ब्रिज खुद से ही अपडेट हो जाता
है।

यह कंप्यूटर नेटवर्क का सबसे प्रसिद्ध bridge है।

2- Translational Bridges
Translational Bridges का इस्तेमाल एक नेटवर्किंग सिस्टम को दुसरे
नेटवर्किंग सिस्टम में बदलने के लिए किया जाता है।
यह ब्रिज receive हुए डेटा को translate करता है और यह frame में information
को add और remove करने का काम करता है।

उदहारण के लिए दो अलग अलग नेटवर्क जैसे token ring network


और Ethernet network को ट्रांसलेशनल ब्रिज की सहायता से आपस में जोड़ा जा
सकता है।

3- Source Routing Bridges


Source route bridge को IBM ने token ring नेटवर्क के लिए विकसित किया था।
इस ब्रिज में, सभी frames का route (रास्ता) एक फ्रेम के अंदर मौजद होता है।

यह ब्रिज यह निर्णय लेता है कि frame नेटवर्क में कैसे forward होगा।

4- MAC-Layer Bridge
Mac layer bridge को “लोकल ब्रिज” भी कहा जाता है और यह एक तरह के
नेटवर्कों को packet filtering और repeating की सुविधा प्रदान करता है।

5- Remote bridge
Remote bridge की सहायता से अलग-अलग locations पर मौजूद networks को जोड़ा
जाता है। इसके लिए इसमें modem या leased lines का प्रयोग किया जाता है।

Advantages of Bridge in Hindi


– ब्रिज के फायदे
इसके फायदे नीचे दिए गए हैं-

1- Bridge बड़े नेटवर्क को छोटे नेटवर्कों में विभाजित कर देता है जिसके


कारण नेटवर्क का ट्रैफिक कम होता है और नेटवर्क आसानी से काम करता है।

2- ब्रिज अलग-अलग प्रकार के नेटवर्को को आपस में जोड़कर नेटवर्क का


विस्तार (expansion) करता है।

3- दूसरे network devices की तुलना में Bridge ज्यादा reliable (विवसनीय


सनी )
यश्व
होते है जिससे नेटवर्क को maintain करना आसान हो जाता है।

4- यह डेटा के बीच होने वाले collision (टकराव) को कम करता है।


5- इसकी मदद से अलग-अलग सेगमेंट को आपस में जोड़ा जा सकता है क्योकि ब्रिज
अलग अलग segment और MAC protocol का उपयोग करते है।

6- ब्रिज MAC Layer पर काम करता है जिसकी मदद से यह उच्च स्तर वाले प्रोटोकॉल
को transparent बनाता है जिसके चलते एक नेटवर्क को दुसरे नेटवर्क के साथ
जुड़ने में आसानी होती है।

Disadvantages of Bridge in Hindi – ब्रिज के


नुकसान
1- Hub और repeater की तुलना में ब्रिज को setup करने में ज्यादा पैसे खर्च
करने पड़ते है।

यह काफी महंगा नेटवर्किंग डिवाइस होता है जिसके कारण इसका इस्तेमाल


केवल LAN में किया जाता है और दूसरे नेटवर्क में इसका इस्तेमाल नही
किया जाता।

2- Repeater की तुलना में bridge की स्पीड काफी धीमी (slow) होती है क्योकि यह
frame buffer का निर्माण करता है जिसके चलते इसकी स्पीड काफी धीमी हो जाती
है।

3- इसमें नेटवर्क की performance अच्छी नहीं होती क्योकि ब्रिज MAC address
को देखकर ज्यादा मात्रा में प्रोसेसिंग करता है जिसकी वजह से इसकी
परफॉरमेंस down हो जाती है।

4- ब्रिज broadcast traffic को फ़िल्टर नहीं कर पाता, इसलिए यह केवल broadcast


traffic को आगे forward कर देता है।

Applications of Bridge in Hindi


– ब्रिज के अनुप्रयोग
इसका प्रयोग निम्नलिखित जगहों पर किया जाता है-

1- Bridge का इस्तेमाल दो अलग अलग LAN (Local Area Network) को आपस में
जोड़ने के लिए किया जाता है।

2- इसका प्रयोग लोकल एरिया नेटवर्क की क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता
है या फिर कहे ब्रिज का प्रयोग करके LAN नेटवर्क की छमता को बढ़ाया जाता है।
3- इसका प्रयोग data को forward और discard (निरस्त) करने के लिए किया जाता
है।

4- ऐसे मामलो में जहा पर MAC address का पता नहीं चल पाता है वहा पर ब्रिज का
प्रयोग करके MAC address का पता लगाया जा सकता है।

सरल शब्दो में कहे तो ब्रिज का उपयोग MAC address को खोजने के लिए किया
जाता है।

5- Bridges का इस्तेमाल एक बड़े नेटवर्क को बहुत सारें छोटे नेटवर्कों में


divide (विभाजित) करने के लिए किया जाता है।

6- इसका प्रयोग बहुत सारे virtual lan को आपस में जोड़ने के लिए किया जा सकता
है।
7- Wireless bridge का इस्तेमाल वायरलेस नेटवर्को को आपस में जोड़ने के
लिए किया जाता है।

Functions of Bridge in Hindi – ब्रिज के कार्य


इसके काम नीचे दिए गए हैं-

1- यह बड़े LAN (Local Area Network) को छोटे छोटे नेटवर्क में विभाजित
(divide) करने का काम करता है।

2- यह नेटवर्क में प्रयोग किये जाने वाले MAC address को कंप्यूटर में
स्टोर करता है।

3- इसका काम नेटवर्क में ट्रैफिक को कम करने का होता है।

इसे पढ़ें:- Router क्या है और इसके प्रकार

Difference between Bridge and Router in


Hindi – ब्रिज और राउटर के बीच अंतर
इनके बीच अंतर को इस table के आधार पर आसानी से समझ सकते हैं-

Bridge Router

ब्रिज data link layer पर कार्य करता है. यह network layer पर कार्य करता है.

इसमें data और information को पैकेट के रूप में इसमें data और information को पैकेट के रूप
ट्रान्सफर नहीं किया जाता. में ट्रान्सफर किया जाता है.

Bridge में केवल दो ports होते हैं. इसमें दो से अधिक ports होते हैं.

इसमें routing table का इस्तेमाल नहीं किया जाता


इसमें routing table का इस्तेमाल किया जाता है
है.

इसे configure करना आसान होता है. इसे configure करना मुकिल लश्कि
होता है.

ये सस्ते होते हैं. राऊटर का मूल्य अधिक होता है.

Working of Bridge in Hindi


– ब्रिज की कार्यविधि
Bridge किसी भी प्रकार के डेटा को भेजने से पहले उसके destination address
को check करता है अगर उसको वह destination address मिल जाता है तो वह
डेटा को उस address पर भेज देता है, अगर उसको वह address नहीं मिलता है
तो वह उस data को आगे ट्रान्सफर नहीं करता है।

ब्रिज OSI मॉडल की दूसरी layer मे काम करता है। यह केवल traffic को broadcast
ही नहीं करता है बल्कि यह उसको manage भी करता है। ब्रिज frames को network
segments मे transmit करने के लिए Media Access Control (MAC) table का
use करता है।

Switch in Hindi – स्विच क्या है?


Switch एक networking device है जो कि नेटवर्क डिवाइसों तथा सेगमेंट्स को
आपस में जोड़ता है. इसे multiport bridge भी कहते है. क्योंकि इसकी
कार्यविधि bridge के समान ही होती है.
यह OSI model के लेयर 2 (डेटा लिंक लेयर) में कार्य करता है. लेकिन
आजकल ऐसे स्विच भी आ गये है जो कि osi model के लेयर 3 (नेटवर्क लेयर)
में कार्य करते है.
switch में कई पोर्ट लगे होते है जब switch से होकर डेटा आता है तो switch
डेटा में डेस्टिनेशन कंप्यूटर का एड्रेस पढ़ लेता है और उसे
डेस्टिनेशन कंप्यूटर को भेज देता है. यह फ्रेम के mac address को check
करता है.
स्विच एक बुद्धिमान (intelligent) device होती है। Switch को intelligent इसलिए माना
जाता है क्योंकि इसमें memory होती है जिससे hardware address tables को
maintain किया जाता है।

इन tables में सभी hosts का address स्टोर होता है और साथ ही कौनसा host किस
port के माध्यम से switch से जुड़ा हुआ है ये भी store रहता है।

Switch का इस्तेमाल LAN में hosts या computers को आपस में connect करने
के लिए किया जाता है।

Switches ट्रैफिक को कम कर देते है और collision domain को सेगमेंट्स में


विभाजित कर देते है.

Switches में built-in hardware chips होती है जो कि switching का कार्य करती


है. इसलिए इसकी speed (गति) बहुत तेज होती है और ये कई ports के साथ आते
हैं.

इसमें डेटा frames के रूप में जाता है तथा यह भी bridge की तरह डेटा
फ़िल्टरिंग करता है. Switch से आप दो networks को आपस में connect नहीं कर
सकते है। दो networks को आपस में connect करने के लिए router का प्रयोग
किया जाता है।

एक switch की hardware address table इस प्रकार हो सकती है –


Advantages of Switch in Hindi – स्विच के
फायदे
इसके लाभ निम्नलिखित हैं:-

1. यह network की उपलब्ध bandwidth को बढ़ा देते हैं.


2. यह host के workload को कम करने में मदद करता है.
3. स्विच network की performance को बढ़ा देता है.
4. वे networks जो स्विच का इस्तेमाल करते हैं उनमें frame collision कम
होता है.
5. Switches को workstations के साथ direct connect किया जा सकता है.
6. यह बुद्धिमान डिवाइस है.

Disadvantages of Switch in Hindi – स्विच के


नुकसान
1. यह hub और bridge से ज्यादा महंगा (expensive) होता है.
2. इसके द्वारा network connectivity की समस्या को trace करना मुकिल लश्कि
होता
है.
3. यदि स्विच promiscuous mode में होता है तो इसमें security attacks
होने का खतरा होता है.
4. इसमें multicast packets को handle करने के लिए सही design और
configuration की आवयकता
कताश्य
होती है.

Types of Switch in Hindi – स्विच के प्रकार


Switch के चार प्रकार होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं:-

1. Unmanaged Switches – इस प्रकार के Switch का इस्तेमाल


अधिकतर Home Network या छोटे Business मे किया जाता है। ये
स्विच Plug–in होते है और ये तुरंत work करने लगते है क्योंकि इन्हे
किसी प्रकार के Configuration की आवयकता
कताश्य
नहीं होती है।

इनके लिए छोटे Cable Connection की आवयकता कताश्य


होती है। इसके द्वारा
एक network में devices एक दूसरे से connect हो सकती है. Switches की
Category मे इन Switches का Price सबसे कम होता है।

2. Managed Switches :- इस प्रकार के Switches मे उच्च स्तर की Security,


Precision Control और Network के Full Management के Features होते
है। इस प्रकार के Switches को Large Network वाले business मे Use
किया जाता है।
इस प्रकार के Network मे Customization करके Network की
Functionality (कार्यक्षमता) को बढ़ाया जा सकता है। अगर इनके Pricing की
बात कर तो ये Costly (महंगे) होते है लेकिन इनकी Scalability के कारण
इनको Growing Networks के लिए उपयुक्त Network के तौर पर use किया
जा सकता है।

3. LAN switches – इस प्रकार के स्विच को ethernet switches या data


switches भी कहते है. इनका प्रयोग network congestion या bottleneck
को कम करने के लिए किया जाता है.

4. PoE switches – इनका प्रयोग PoE technology में किया जाता है. PoE का
पूरा नाम Power over Ethernet होता है. ये स्विच cabling process को आसान
बना देते हैं इसलिए ये flexible होते हैं.

Working of Switch in Hindi – स्विच की


कार्यविधि
जब भी कोई host किसी दूसरे host को कोई frame send करता है तो source host
का MAC address स्विच की address table में port के साथ स्टोर हो जाता है।

एक switch हमे शsource का address ही table में store करता है। मेरा मतलब
जब तक की कोई host कुछ data send नहीं करेगा तब तक उसका MAC address और
port number switch की table में store नहीं होगा।

जब आप शुरू में switch को setup करते है तो switch को किसी भी host और


उसके address की कोई जानकारी नहीं होती है। ऐसी स्थिति में जब कोई host frame
send करता है तो उसका MAC address तो table में store हो जाता है लेकिन
destination की कोई भी जानकारी नहीं होने की वजह से switch उस frame को सभी
hosts को send कर देता है।

ऐसे ही जब दूसरा host कुछ data send करता है तो उसका address भी table में
store हो जाता है। ऐसे जब भी कोई host frames भेजता है और यदि उसका address
पहले से table में मौजूद नहीं है तो switch उसे store कर लेता है। इस प्रकार
एक switch अपनी table को build (निर्मित) करता है।

जब सभी hosts के addresses और port numbers स्विच में आ जाते है तो उसके


बाद स्विच सभी hosts को frame नहीं भेजता. यह केवल सही host को ही frame
भेजता है.
जैसा कि आपको पता होगा कि हब half duplex communication पर कार्य करते
हैं इसलिए Hubs के साथ या तो आप डेटा को send कर सकते है या केवल
receive कर सकते है। लेकिन switches के साथ ऐसा नहीं है switches के साथ आप
एक साथ data को send भी कर सकते है और receive भी कर सकते है।
Hubs एक single collision domain को represent करते है लेकिन स्विच में हर
port के लिए एक अलग collision domain होता है। इससे दूसरे hosts पर कोई
फर्क नहीं पड़ता है।

Features of Switch in Hindi – स्विच की


विशेषताएं
षताएंनीचे दी गयी हैं:-
इसकी वि षताएंशे

1. यह OSI मॉडल के data link layer पर कार्य करता है.


2. यह एक बुद्धिमान डिवाइस है.
3. यह destination ports को data packets भेजने के लिए MAC address का
इस्तेमाल करता है.
4. यह packet switching तकनीक का प्रयोग data को receive और forward
करने के लिए करता है.
5. यह unicast, multicast और broadcast कम्युनिकेशन को सपोर्ट करता है.
6. इसका ट्रांसमिशन मोड full duplex होता है.
7. स्विच active device होती है.
8. इसमें ports की संख्या ज्यादा होती है. – 24/48

Router in Hindi – राऊटर क्या है?


 Router एक नेटवर्किंग डिवाइस है जिसका इस्तेमाल दो या दो से अधिक
कंप्यूटर नेटवर्क के बीच data packets को ट्रांसफर करने के लिए किया
जाता है।

 दूसरे शब्दों में कहें तो, “राऊटर एक internetworking device है जिसका


प्रयोग कंप्यूटर नेटवर्कों के मध्य डेटा पैकेट्स को send तथा receive
करने के लिए किया जाता है।”

 राऊटर में एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता है जिसकी मदद से डेटा को एक नेटवर्क


से दूसरे नेटवर्क में भेजा जाता है।

 Router एक ऐसा network device है जो यूजर को इंटरनेट की सुविधा प्रदान


करता है। अर्थात इसका प्रयोग यूजर के द्वारा इंटरनेट को access करने
के लिए किया जाता है।

 राऊटर की मदद से कोई भी यूजर आसानी से इंटरनेट को एक्सेस कर सकता


है और जरुरी डेटा को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में ट्रांसफर कर
सकता है।

 Router एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस में डेटा को डेटा पैकेट्स के रूप


में ट्रांसफर करता है। आज के समय में इंटरनेट पर जितना भी data
है वह data packets के रूप में मौजूद होता है।

 Router सबसे पहले data packets को analyze करता है और फिर इनको


process करता है। इसके बाद जो भी डिवाइस router के साथ आपस में
connect होती है, उन डिवाइस में डेटा को ट्रांसफर कर देता है।

 राऊटर का निर्माण कुछ लोकप्रिय कंपनियों के द्वारा किया जाता है।


जैसे की – Cisco, 3Com, HP, Juniper, D-Link, और Nortel आदि।

 इसमें डेटा को ट्रांसफर करने के लिए routing protocols का इस्तेमाल


किया जाता है।

 इसका इस्तेमाल LAN (लोकल एरिया नेटवर्क) और WAN (वाइड एरिया


नेटवर्क) में किया जाता है।

 राऊटर दूसरे नेटवर्किंग डिवाइस जैसे कि- hub, switch आदि की तुलना
में महंगा होता है।
इसका चित्र

Features of Router in Hindi


– राऊटर की विशेषताएं
षताएंनिम्नलिखित हैं-
इसकी वि षताएंशे

1- यह OSI model की तीसरी लेयर (नेटवर्क लेयर) पर काम करता है।


2- यह विभिन्न प्रकार के port जैसे gigabit, fast-Ethernet, और STM link की
मदद से यूजर को हाई स्पीड इंटरनेट की connectivity प्रदान करता है।
3- राऊटर के मुख्य घटक (component) है- CPU, flash memory, RAM, console,
network, और interface card आदि।
4- यह यूजर को LAN और WAN नेटवर्क को connect करने की सुविधा प्रदान करता
है।

5- Router एक ऐसा डिवाइस होता है जो physical form में मौजूद होता है जिसे
यूजर आसानी से छू सकता है।

6- यह डेटा को IP address के आधार पर फ़िल्टर करता है।

Types of Router in Hindi – राऊटर के प्रकार


इसके प्रकार निम्नलिखित हैं-
1- Wireless Router (वायरलेस राऊटर)
वायरलेस राऊटर का इस्तेमाल लैपटॉप और स्मार्टफोन जैसे डिवाइसों को Wi-Fi
connectivity प्रदान करने के लिए किया जाता है जिससे यूजर आसानी से
इंटरनेट को एक्सेस कर सकता है।
जिन devices में Wi-Fi की सुविधा उपलब्ध होती है उन devices में router का
उपयोग किया जा सकता है। वायरलेस राऊटर में यूजर को इंटरनेट की सुविधा
प्रदान करने के लिए किसी भी प्रकार की cable का उपयोग नहीं किया जाता।

Wireless router की range लगभग 150 से 300 फ़ीट तक होती है यानी इतनी range
में यूजर इंटरनेट को एक्सेस कर सकता है।

Security (सुरक्षा) के मामले में वायरलेस राऊटर काफी अच्छे होते है router
में लॉगिन करने के लिए यूजर आईडी और पासवर्ड का उपयोग किया जाता है,
जो इसे पूरी तरह secure (सुरक्षित) कर देता है।

2- Core router (कोर राऊटर)


Core router एक प्रकार का राऊटर होता है जो एक नेटवर्क के अंदर डेटा को
transmit करता है परन्तु यह नेटवर्कों के बीच में डेटा को ट्रांसमिट नही कर
सकता ।

इसका उपयोग सभी तरह के नेटवर्क उपकरणों (devices) को इंटरनेट से जोड़ने


के लिए किया जाता है।

इसका इस्तेमाल internet service providers (ISPs) के द्वारा किया जाता है।
इसके अलावा यह बहुत ही तेज और शक्तिशाली data communication इंटरफ़ेस
प्रदान करता है।

3- Broadband routers (ब्रॉडबैंड राऊटर)


इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से कंप्यूटर को हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा प्रदान
करने के लिए किया जाता है।

Broadband router में इंटरनेट की स्पीड काफी तेज होती है जिसकी मदद से
कंप्यूटर डेटा को तेज गति से ट्रांसफर करता है।

इसके अलावा इसका उपयोग voice over IP technology (VOIP) के लिए भी किया
जाता है।

ब्रॉडबैंड राऊटर की सुविधा internet service provider (ISP) के द्वारा प्रदान की जाती
है ।

ब्रॉडबैंड राऊटर को ब्रॉडबैंड मॉडेम और digital subscriber line (DSL) मॉडेम भी कहा
जाता है।

4- Brouter (ब्रॉउटर)
एक Brouter ब्रिज और राऊटर से मिलकर बना होता है। यह bridge के जरिये data
को ट्रांसफर करने की सुविधा प्रदान करता है।

ब्रॉउटर में bridge और router दोनों की वि षताएंशे


षताएंहोती है।

Advantages of Router in Hindi


– राऊटर के फायदे
इसके फायदे निम्नलिखित होते हैं-

1- Security (सुरक्षा)
सुरक्षा के मामले में router काफी अच्छे डिवाइस होते है। यह यूजर के डेटा
को सुरक्षा प्रदान करता है जिससे यूजर का डेटा पूरी तरह secure (सुरक्षित) रहता
है।

इसके अलावा Router में यूजर को लॉगिन करने के लिए user ID और password
की ज़रूरत पड़ती है जो इसे और भी ज्यादा secure बना देता है।

2- Dynamic Routing (डायनामिक रूटिंग)


राऊटर में Dynamic routing का इस्तेमाल किया जाता है जिससे राऊटर यह
पता लगाता है कि डाटा को ट्रांसफर करने के लिए सबसे best path (रास्ता) कौन-
सा है। इसके कारण नेटवर्क में होने वाला traffic काफी हद तक कम हो जाता
है।
3– Reliability (विवसनीयता
सनीयता)
श्व
Router बहुत ही reliable (विवनीय
नी ) है अगर किसी वजह राऊटर का सर्वर डाउन हो
यश्व
जाता है या फिर केबल में कोई खराबी आ जाती है।

तो router और दूसरे नेटवर्क में इसका कोई भी बुरा प्रभाव नही पड़ता।

सरल शब्दो में कहे तो router का नेटवर्क खराब होने के बावजूद भी router आसानी
से काम करता है।

4- Connection (कनेक्ननक्श
)
Connection राऊटर का मुख्य कार्य होता है जिसकी मदद से यूजर इंटरनेट
कनेक्टिविटी प्राप्त करता है। जिसके कारण यूजर आसानी से डेटा को एक
डिवाइस से दुसरे डिवाइस में ट्रांसफर कर सकता है।

राऊटर बहुत सारीं डिवाइसों को एक single नेटवर्क के साथ connect करता है।
जिससे productivity (उत्पादकता) बढ़ती है।

5- Packet Filtering ( पैकेट फ़िल्टरिंग)


राऊटर packet filtering और packet switching की सुविधा प्रदान करता है। इसकी
मदद से यह डेटा पैकेट्स को filter करता है। अगर कोई डेटा पैकेट खराब होता
है तो उसे आगे ट्रांसफर करता है।

6- Integration (जोड़ना)
Routers को modem के साथ integrate किया जा सकता है। इन दोनों के
integration से छोटे नेटवर्क को create किया जा सकता है।

7- Easy Installation (आसान इंस्टालेशन)


राऊटर को setup करना किसी भी यूजर के लिए आसान होता है या फिर कहे की
router की installation प्रक्रिया काफी आसान होती है, जिसके कारण यूजर को
router को इनस्टॉल करने में ज्यादा परे नियों
नि योंशा
का सामना नहीं करना पड़ता।

8- Wired & Wireless


यह यूजर को इंटरनेट की सुविधा wired और wireless दोनों तरीको से प्रदान कर
सकता है जिसके चलते यूजर को इंटरनेट एक्सेस करने के लिए दो विकल्प
मिल जाते है।
यूजर अपनी इच्छा अनुसार दोनों विकल्पों में से किसी एक विकल्प को चुन सकता
है।
9- यह collision domain और broadcast domain को अपने आप ही create कर
लेता है जिससे यह नेटवर्क ट्रैफिक को कम करता है।

10- यह sophisticated routing, flow control और traffic isolation की सुविधा प्रदान


करता है।

Disadvantages of Router in Hindi


– राऊटर के नुकसान
1- Speed (गति)
Router डेटा को पूरी तरह analyse करता है जिसके कारण डेटा analyse करने
में router को काफी समय का वक़्त लग जाता है। जिससे इसकी गति काफी धीमी
हो जाती है, और इंटरनेट कनेक्ननक्श भी धीमा हो जाता है।

2- Cost (कीमत)
किसी अन्य networking devices की तुलना में routers काफी ज्यादा expensive
(महंगे) होते है क्योकि इसमें सिक्योरिटी और ब्रिज जैसी सुविधाएं उपलब्ध होती है
जो इस डिवाइस को और भी ज्यादा expensive बनाती है, जिसके कारण router को
setup करने में काफी पैसो का खर्चा आता है।

3- Implementation (इम्पलीमेंट करना)


इसको इम्पलीमेंट करने के लिए बहुत सारे configurations और NAT की ज़रूरत
पड़ती है, NAT और configurations के बिना राऊटर को set up करना काफी
मुकिल लश्कि
होता है।

इसके अलावा simple router के setup में भी private IP address की ज़रूरत


पड़ती है जो राऊटर के इम्पलीमेंट करने की प्रक्रिया को काफी मुकिल लश्कि
बनाता है।

4- Bandwidth Shortage (बैंडविड्थ की कमी)


संचार (communication) करने के लिए राऊटर डायनेमिक रूटिंग तकनीकों
(Dynamic routing techniques) का उपयोग करता है जिसके कारण नेटवर्किंग
में overheads की समस्या उतपन्न होती है।

Overheads की समस्या उतपन्न होने के कारण यह ज्यादा मात्रा में bandwidth


का इस्तेमाल करता है जिससे राऊटर में bandwidth की कमी हो जाती है और
राऊटर सही तरीके से काम नहीं कर पाता।
Components of Router in Hindi
– राऊटर के घटक
Router में दो प्रकार के घटक (component) होते है। Internal components
और External components .

Internal components (आंतरिक घटक)


1.ROM – यह इसका internal component है जिसका उपयोग bootstrap details
और operating system को राऊटर में स्टोर करने के लिए किया जाता है।
2.Flash memory – Flash memory का उपयोग राऊटर के द्वारा ऑपरेटिंग
सिस्टम की images को रखने के लिए किया जाता है।
3.RAM – RAM को (Random Access Memory) भी कहा जाता है जिसका उपयोग
Routing tables, configuration files, caching और buffering details को स्टोर करने
के लिए किया जाता है।
4.NVRAM – NVRAM का उपयोग राऊटर के द्वारा startup config files को स्टोर
करने के लिए किया जाता है।
External Components (बाहरी घटक)
1.Virtual terminals – यह इसका external component है इसका इस्तेमाल
routers को एक्सेस प्रदान करने के लिए किया जाता है।
2.Network management stations – इसका उपयोग राऊटर के द्वारा नेटवर्क
को manage करने के लिए किया जाता है , ताकि सभी नेटवर्क सही तरीके से काम
कर सके ।

Applications of Router in Hindi


– राऊटर के अनुप्रयोग
इसका प्रयोग बहुत सारीं जगहों पर किया जाता है।

1- इसका इस्तेमाल हार्डवेयर डिवाइस को remote location network और सर्वर के


साथ जोड़ने के लिए किया जाता है।

सरल शब्दो में कहे तो router का उपयोग hardware devices को उन नेटवर्क और


सर्वरों के साथ जोड़ने के लिए किया जाता है जो hardware devices की पहुंच से
काफी दूर होते है।

2 – इसका प्रयोग data transmission की प्रक्रिया को तेज गति प्रदान करने के


लिए किया जाता है। जिसकी मदद से डेटा को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में
तेज गति के साथ transfer किया जा सके ।
Router डेटा को ट्रांसफर करने के लिए high STM link का उपयोग करता है
जिसकी वजह से यह wireless और wired communication दोनों को सपोर्ट करता है।

3- इसका इस्तेमाल Internet service providers के द्वारा ई-मेल, वेब पेज,


इमेज, ऑडियो और वीडियो फाइलों को ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है।

राऊटर IP address की मदद से इन फाइलों को दुनिया के किसी भी कोने में


आसानी से transfer कर सकता है।

4- Routers का इस्तेमाल सॉफ्टवेयर परीक्षकों (Software Testers) के द्वारा WAN


कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है।

5- इसका इस्तेमाल वायरलेस नेटवर्क में VPN को configure करने के लिए


किया जाता है।
6- इसका इस्तेमाल डेटा को store करने के लिए भी किया जाता है। राऊटर में
डेटा को store करने की पूरी capacity (क्षमता) होती है जिसकी वजह से यह किसी
भी प्रकार के डेटा को आसानी से store कर सकता है।

Difference between Router and Switch in


Hindi – राऊटर और स्विच के मध्य अंतर
Router Switch

यह एक समय में बहुत सारीं devices को कनेक्ट


यह एक समय में बहुत सारें networks को connect
करता
करता है.
है.

यह network layer पर कार्य करता है. यह data link layer पर कार्य करता है.

इसका इस्तेमाल LAN और MAN दोनों के द्वारा इसका इस्तेमाल केवल LAN के द्वारा किया जाता
किया जाता है. है.

यह NAT (network address translation) को परफॉर्म


यह NAT को perform नही कर सकता.
करता है.

इसमें data को packet के रूप में send किया जाता इसमें data को packet और frame के रूप में send
है. किया जाता है.

Gateway in Hindi – गेटवे क्या है?


Gateway एक नेटवर्किंग डिवाइस है जिसका इस्तेमाल दो अलग अलग networks
को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है जिससे कि नेटवर्क आपस में
एक-दूसरे से communication कर सके ।

गेटवे एक प्रकार का हार्डवेयर डिवाइस है जिसका उपयोग दूर संचार


(telecommunication) के लिए किया जाता है। इस डिवाइस का उपयोग करके दो
नेटवर्को को अलग अलग ट्रांसमिशन प्रोटोकॉल के साथ connect किया जाता है।

दुसरे शब्दो में कहे तो gateway एक तरह का node है जो नेटवर्क के लिए एक


प्रवेश (entry) और निकास (Exit) बिंदु (point) के रूप में कार्य करता है। किसी भी
डेटा को रुट (route) किये जाने से पहले गेटवे से होकर गुजरना पड़ता है।

इस डिवाइस का उपयोग इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स के द्वारा इंटरनेट की सुविधा


प्रदान करने के लिए किया जाता है अर्थात् इसके द्वारा हम web की सुविधा
लेते है।

इस डिवाइस में कुछ ऐसे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर डिवाइस होते है जिनके बिना
इंटरनेट का उपयोग करना मुकिल लश्कि
होता है।

गेटवे OSI मॉडल की तीसरी लेयर (नेटवर्क लेयर) पर काम करता है। OSI
मॉडल में सात तरह की layer होती है और यह उसकी तीसरी layer पर काम करता
है।

गेटवे का चित्र

 OSI model और इसकी लेयर


 नेटवर्किंग डिवाइस क्या है?

Features of Gateway in Hindi – गेटवे की


विशेषताएँ
1- Gateway नेटवर्क के border line पर होता है, जहा पर नेटवर्क से प्राप्त
होने वाले डेटा को manage किया जाता है।

2- यह डिवाइस अलग-अलग ट्रांसमिशन प्रोटोकॉल के साथ काम करने वाले दो


अलग-अलग नेटवर्क के बीच एक रास्ता बनाने का काम करता है जिसकी मदद से
डेटा को आगे ट्रांसफर किया जाता है।

3.- यह डिवाइस नेटवर्क प्रोटोकॉल कनवर्टर के रूप में भी काम करता है।

4- यह डिवाइस OSI मॉडल के किसी भी layer पर काम कर सकता है।

5- जिस मार्ग में डेटा को ट्रांसफर किया जाता है उस मार्ग में gateway
डेटा को transmit करता है।

6- यह नेटवर्क में डेटा का संचार करने के लिए packet switching तकनीक का


उपयोग करता है।

Types of Gateway in Hindi – गेटवे के


प्रकार
इसके दो प्रकार होते है :-

1- Unidirectional Gateway
Unidirectional gateway हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का कॉम्बिनेशन है जिसे
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को आपस में जोड़कर बनाया गया है।

यह डेटा को केवल एक ही दि शमें में प्रसारित (transmit) करने की अनुमति


प्रदान करता है।

इस गेटवे को archiving tools के नाम से भी जाना जाता है।

2- Bidirectional Gateways
Bidirectional Gateway डेटा को दोनों दि ओ
ओ शा
में प्रसारित करने की अनुमति
प्रदान करता है।

इस गेटवे का उपयोग synchronization devices में किया जाता है।

सिंक्रनाइज़ेशन एक तरह की प्रक्रिया होती है जिसमे मोबाइल डिवाइस कंप्यूटर सर्वर


के साथ संचार करता है।

Types of Gateway (Basis On


Functionalities) in Hindi – कार्य के आधार पर
गेटवे के प्रकार
इसके तीन प्रकार होते है :-

1- Network Gateway
यह gateway अलग अलग protocol के साथ दो अलग अलग नेटवर्क के बिच एक
तरह का interface प्रदान करता है।
2- Internet-To-Orbit Gateway (I2O)
यह पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले अंतरिक्ष यानो को devices से कनेक्ट करता
है।

3- VoiP Trunk Gateway


यह VoIP (वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल) नेटवर्को के साथ टेलीफोन सेवाओं
जैसे (landline phones और fax machines) की सुविधा सुविधा प्रदान करता है।

Application of Gateway in Hindi – गेटवे


के उपयोग
1- Gateway का उपयोग दूरसंचार (telecommunication) के लिए किया जाता है .

2- इस डिवाइस का उपयोग रियल टाइम कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है।

3- यह डिवाइस ऑडियो कन्वर्नर्श


न को सपोर्ट करता है जिसकी मदद से कॉल का set up
करना आसान होता है।

4- इसका उपयोग devices की निगरानी रखने के लिए किया जाता है ताकि डेटा को
ट्रांसफर करते वक़्त यूजर को किसी भी समस्या का सामना ना करना पड़े।

5- इसका उपयोग डेटा को कलेक्ट करने के लिए भी किया जाता है।

6- यह डिवाइस प्रोसेस को execute करने में मदद करता है।

7- यह डिवाइस यूजर को इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करता है।

Advantages of Gateway in Hindi – गेटवे


के फायदे
1- गेटवे में नेटवर्क को expand किया जा सकता है, जिसकी मदद से लम्बी दूरी
का संचार सम्भव हो पाता है।

2- इस डिवाइस में अलग अलग प्रकार के कंप्यूटर से जानकारी प्राप्त करना


आसान होता है।

3- यह डिवाइस यूजर के डेटा को सुरक्षित करता है।


4- यह डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए user Id और password जेसी सुविधा देता
है, जिसमे केवल authorize यूजर ही डेटा को एक्सेस कर सकता है।

5- यह डिवाइस डेटा पैकेट और सेवाओं को फ़िल्टर करता है, जिसकी मदद से डेटा
पैकेट और सेवाओं को analyse करना आसान हो जाता है।

6- यह डेटा पैकेट को फ़िल्टर करने के साथ साथ डेटा पैकेट को convert भी


कर सकता है इसलिए गेटवे को प्रोटोकॉल कन्वर्टर भी कहते है।

Disadvantages of Gateway in Hindi –


गेटवे के नुक़सान
1- गेटवे का setup करना काफी मुकिल लश्कि
होता है।

2- यह काफी expensive डिवाइस होते है।

3- इस डिवाइस में डेटा को ट्रांसफर करने में काफी समय का वक़्त लगता है।

4- यह डिवाइस दुसरे devices से communicate नहीं कर सकता .

5- इस डिवाइस में संचार करते वक़्त यूजर को कई समस्याओ का सामना करना पड़ता
है।

Difference between Gateway and Router –


गेटवे और राऊटर में अंतर्
Gateway Router

यह एक हार्डवेयर डिवाइस है जिसका यह एक नेटवर्किंग लेयर सिस्टम है जिसका उपयोग


उपयोग telecommunication के लिए किया कंप्यूटर नेटवर्क पर डेटा पैकेट को manage और
जाता है। forward करने के लिए किया जाता है।

यह OSI मॉडल की पांचवी लेयर पर काम यह OSI मॉडल के तीसरी और चौथी layer पर काम करता
करता है। है।

यह physical servers और virtual applications


यह केवल dedicated applications के लिए उपलब्ध है।
के लिए उपलब्ध है।

यह दो अलग अलग नेटवर्क को आपस में


यह समान नेटवर्क में डेटा पैकेट को रुट करता है।
कनेक्ट करता है।

यह dynamic routing को सपोर्ट नहीं करता। यह dynamic routing को सपोर्ट करता है।
इसे gateway router, proxy server, और voice राउटर को वायरलेस राउटर और इंटरनेट राउटर भी कहा
gateway भी कहा जाता है। जाता है।

Transmission media in hindi:-

ty
pes of transmission media

transmission media सूचना को sender से reciever तक पहुचाने का एक रास्ता(path)


:-
होता है. यह दो प्रकार का होता है

1:-wired
2:-wireless

1:-wired:-
वह transmission media जिसमे दो devices के मध्य कनेक्ननक्श
physical method
जैसे केबल या वायर के द्वारा होता है उसे wired transmission media कहते
है. इसे guided media भी कहते है.
ये निम्नलिखित प्रकार के होते है:-
(a):- coaxial cable
(b):- fiber-optic cable
(c):- twisted pair
(a):- coaxial cable in hindi:-
इसमें एक चालक की खोखली ट्यूब होती है. तथा दूसरा चालक, खोखली ट्यूब के
अंदर उसकी अक्ष(axis) पर समाक्ष रूप से स्थापित किया जाता है. इन तारों के बीच
परावैधुत(dielectric) ठो स या गैसीय होता है

Fig:-coaxial cable
खुली तार लाइन में 100MHz आवृत्ति से अधिक आवृत्ति पर विकिरण(radiation)
द्वारा उर्जा हानि को नगण्य करने के लिए coaxial cable में आंतरिक चालक को
बाहरी सिलिंडरीकल खोखले चालक से घेरा जाता है. coaxial का मुख्य लाभ यह है कि
magnetic तथा electric field बाहरी चालक के अंदर ही बने रहते है तथा मुक्त स्पेस
में लीक नही हो पाते हैं जिसके कारण विकीरण पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है.
इसके अतिरिक्त बाहरी चालक बाहरी electric magnetic सिग्नल से भी प्रभावी विधुत
चुम्बकीय शील्डिंग उत्पन्न करता है.

coaxial cables को 1GHz तक की रेंज में उपयोग लाया जाता है किन्तु 1GHz से
उपर की आवृत्ति में ये उपयुक्त नही रहते है. ये अधिक कीमती होते हैं.
इनमे सिग्नल आवृत्ति के साथ परावैधुत हानि भी बढती जाती है. तथा 1GHz पर हानि
बहुत अधिक हो जाती है. जिससे इनको उपयोग करना उपयुक्त नही रहता है.

दो प्रकार की coaxial cable सामान्यतया प्रयोग की जाती है. एक 50 ओम cable, जो


डिजिटल ट्रांसमिशन के लिए प्रयोग की जाती है. दूसरी 75 ओम cable, जो
एनालॉग ट्रांसमिशन के लिए प्रयोग की जाती है.
(b):- fiber-optic cable in hindi:-
यह cable ग्लास या प्लास्टिक की बनी होती है जिन्हें ऑप्टिकल फाइबर कहते
हैं. ये cables सुचना को एक स्थान से दुसरे स्थान प्रकाश के माध्यम से ले जाती
है. ये cables लम्बी दूरी के लिए design की जाती है.

Fig:-fiber optic
छड के एक सिरे से एक निचित तश्चि
जब एक प्रकाश पुंज किसी पारदर् र्शी दि शमें
प्रवेश करता है तो प्रकाश पुंज का छड की सतहों पर अनेक बार पूर्ण आंतरिक
परावर्तन होता है तथा प्रकाश-पुंज छड के अन्दर ही बना रहता है. इस प्रकार
अनेक बार पूर्ण परावर्तित होता हुआ प्रकाश-पुंज जब छड के दुसरे सिरे से बाहर
निकलता है तो प्रकाश की तीव्रता का loss नही होता है. इस प्रकार की छड को
फाइबर कहते है.

(c):-Twisted pair in hindi:-


यह एक कॉपर वायर होती है जिसमें दो विधुतरोधी वायरों को एक दुसरे के मध्य
लपेटकर बनाया जाता है. लपेटकर बनाये जाने से दोनों वायरों के सिग्नलों में कोई
रुकावट नही आती. यह cable पुरानी टेलीफोन लाइन्स में प्रयोग की जाती है.
Fig:-
Twisted pair

2:-wireless:-
वह transmission media जिसमें किसी physical contact की आवयकता
कता श्य
नही होती
है अर्थात जिसमें कम्युनिकेशन बिना wires के होता है wireless transmission
media कहलाता है. इसे unguided media भी कहते है.
ये निम्नलिखित प्रकार के होते है:-
(a):-Radio waves
(b):-microwaves
(c):-infrad waves

(a):-Radio waves:-
इनकी आवृत्ति 3KHz से 1GHz तक होती है. इन्हें आसानी से स्थापित किया जा सकता
है तथा इनका एटेनुऐशन भी उच्च होता है. रेडियो तरंगे ज्यादातर
omnidirectional होती है. जब एक antenna रेडियो तरंगों को ट्रांसमिट करता
ओंशा
है तो ये सभी दि ओं में फैल जाते है.

रेडियो तरंगों का प्रयोग टेलीविज़न, मोबाइल तथा रेडियो के communication


में होता है. इनमे एक radio tuner होता है जो कि रेडियो तरंगो को receive
करता है तथा स्पीकर में इन तरंगों को mechanical vibration में बदल देता है
जिससे हमें स्पीकर से आवाज़ सुनाई देती है.

(b):-Microwaves:-
इसमें सूचना का ट्रांसमिशन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों द्वारा किया जाता है
जिसकी wavelength को सेंटीमीटर में मापा जाता है.
इनकी आवृत्ति 1GHz से अधिक होती है तथा ये अनेक प्रकार के ट्रांसमिट से
निर्मित होती है. microwaves का प्रयोग खाना पकाने तथा मोबाइल आदि में
किया जाता है तथा wifi में भी इसका प्रयोग किया जाता है.

(c):-Infrared waves:-
ष तरंगदैर्ध्य का विधुतचुम्ब्कीय विकीरण होता है जिन्हें हम
यह एक वि षशे
infrared कहते हैं. इन तरंगो को मनुष्य देख नहीं सकता है परन्तु skin में heat
के रूप में महसूस अवय श्य
कर सकता है.

इनका प्रयोग TV रिमोट कण्ट्रोल, wireless LAN, CCTV तथा मिसाइल गाइडेंस
सिस्टम आदि में किया जाता है.

सन् 1800 में सर्वप्रथम सर william herschel ने infrared को विकसित किया था.

What is LAN in Hindi – LAN क्या है?


 LAN का पूरा नाम लोकल एरिया नेटवर्क है। यह एक कंप्यूटर नेटवर्क है
जिसका इस्तेमाल दो या दो से अधिक कंप्यूटर को आपस में जोड़ने के
लिए किया जाता है।

 इस नेटवर्क का इस्तेमाल ज्यादातर लोकल एरिया जैसे कि- ऑफिस,


स्कू ल, और कॉलेज आदि में किया जाता है।

 Local area network की मदद से हम एक कंप्यूटर के data को दूसरे कंप्यूटर


में आसानी से ट्रांसफर कर सकते हैं।

 LAN छोटे क्षेत्र में ही कंप्यूटरों को कनेक्ट कर सकता है अर्थात


इसकी range (सीमा) बहुत ही कम होती है। इसकी सीमा लगभग 100 मीटर से
लेकर 1 किलो मीटर तक होती है।

 LAN नेटवर्क में TCP/IP protocol का इस्तेमाल computers को कनेक्ट


करने के लिए किया जाता है।

 इस नेटवर्क में बहुत कम computers को ही connect किया जाता है इसलिए


इसमें डेटा को ट्रांसफर करने की speed काफी तेज होती है।

 LAN network को मेन्टेन करना आसान होता है और इस नेटवर्क को


डिज़ाइन करना भी आसान है।
 इस नेटवर्क में वायर और वायरलेस दोनों तरीको से कंप्यूटरों को
connect किया जा सकता है। इस नेटवर्क में कंप्यूटरों को कनेक्ट करने
के लिए twisted-pair cable और coaxial cable का उपयोग किया जाता है।

 LAN के द्वारा अधिकतर ईथरनेट और Wi-Fi का इस्तेमाल computers को


कनेक्ट करने के लिए किया जाता है।

लोकल एरिया
नेटवर्क का चित्र

इसे पढ़ें:-
 नेटवर्क क्या है और इसके प्रकार
 नेटवर्क टोपोलॉजी क्या है और इसके प्रकार

Features of LAN in Hindi – LAN की विशेषताएं


1- इसकी डेटा को ट्रांसफर करने की स्पीड बहुत ही तेज होती है। इसमें डेटा
ट्रांसफर की स्पीड 10 mb से लेकर 100 Gb तक होती है।

2- इसका एरिया बहुत छोटा होता है।

3- LAN में हम Bus और ring टोपोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं।

4- इसमें ट्रांसमिशन में error (त्रुटि) आने की संभावना कम होती है।

5- यह बहुत सारीं ईथरनेट केबल को सपोर्ट करता है जैसे कि-Coaxial cable,


twisted pair cable और फाइबर ऑप्टिक केबल आदि।

Function of LAN in Hindi – LAN के कार्य


इसके कार्य निम्नलिखित हैं-

1- डेटा ट्रांसफर– यह नेटवर्क एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में फाइलों और


डेटा को ट्रांसफर करता है।
2- Resources को शेयर करना– इसका काम resources जैसे कि- प्रिंटर, मैमोरी
आदि को share करने के लिए भी किया जाता है।
3- Email सर्विस– यह नेटवर्क mail को send और receive करने में मदद करता
है।
4- Database सर्विस– इस नेटवर्क का काम database में डेटा को स्टोर करने
का भी होता है।
5- इंटरनेट को शेयर करना – इसके द्वारा हम दूसरे यूज़र्स के साथ इंटरनेट
share कर सकते हैं।

Advantages of LAN in Hindi –


LAN के फायदे
1- यह नेटवर्क बहुत ही सस्ता होता है। इसे setup करने में ज्यादा पैसे खर्च
नही करने पड़ते।

2- LAN में, डेटा को ट्रांसफर करने की स्पीड तेज होती है।

3- इस नेटवर्क की सुरक्षा बहुत ही अच्छी होती है।

4- यह नेटवर्क छोटा होता है इसलिए इसको maintain करके रखना आसान होता
है।

5- LAN सभी प्रकार के कंप्यूटर के साथ संचार (communication) कर सकता है।

6- इस नेटवर्क में कनेक्ननक्श


बेहतर होता है।

7- इसको setup करना आसान है।

8- इसका उपयोग करना आसान होता है।

9- इसमें data और resources को share किया जा सकता है।

10- इसे मैनेज और कंट्रोल करना आसान होता है।


Disadvantages of LAN in Hindi –
LAN के नुकसान
1– इसकी रेंज बहुत ही कम होती है। लगभग 100 मीटर से 1km तक।
2- इसमें वायरस फैलने का खतरा ज्यादा रहता है।

3- LAN का प्रयोग करने के लिए memory की ज़रूरत पड़ती है।

4- इस नेटवर्क में यूजर को कमांड समझने में परे नियों


नियोंशा
का सामना करना पड़
सकता है।

5- इस नेटवर्क में सर्वर बनाने के लिए अलग अलग प्रकार के software की


ज़रूरत पड़ती है।

6- इस नेटवर्क में स्विच, हब, राऊटर जैसे devices का प्रयोग किया जाता है जो
काफी महँगे होते है।

इसे पढ़ें:-
 डेटा कम्युनिकेशन क्या है?
 राऊटर क्या है?

Types of LAN in Hindi – LAN के प्रकार


इसके दो प्रकार होते हैं-

1. Ethernet LAN
2. WLAN
Ethernet LAN – इसमें ईथरनेट केबल का इस्तेमाल कंप्यूटरों को connect
करने के लिए किया जाता है। यह एक wired नेटवर्क है।
WLAN – इसका पूरा नाम wireless local area network है। यह एक वायरलेस
नेटवर्क है इसमें किसी भी प्रकार की cable की जरूरत नही पड़ती। WLAN में
कंप्यूटरों को आपस में जोड़ने के लिए router का इस्तेमाल किया जाता है।

LAN Topology in Hindi –


LAN टोपोलॉजी क्या हैं?
इसमें अधिकतर दो टोपोलॉजी का इस्तेमाल किया जाए है-

1. Ring topology
2. Bus topology
1- Ring Topology
रिंग टोपोलॉजी में सभी computers एक ring (गोले) के आकार में एक दूसरे से
जुड़े रहते हैं. इसमें जो अंतिम कंप्यूटर होता है वह पहले कंप्यूटर से जुड़ा
होता है. रिंग टोपोलॉजी का स्ट्रक्चर बिल्कु ल ring की तरह होता है।

इस टोपोलॉजी में डेटा एक कंप्यूटर से दुसरे कंप्यूटर में ट्रांसफर होता है।
इस टोपोलॉजी में डेटा को केवल एक ही direction (दि श ) में ट्रांसफर किया
जाता है।

इस टोपोलॉजी का उपयोग LAN और WAN नेटवर्क में किया जाता है. इस


टोपोलॉजी का कोई end (अंत) नहीं है क्योकि इसमें प्रत्येक कंप्यूटर एक
दुसरे के साथ जुड़ा होता है।

2- Bus Topology
बस टोपोलॉजी सबसे सरल प्रकार की टोपोलॉजी है जिसमें डेटा ट्रान्सफर के
लिए केवल एक bus या channel का इस्तेमाल किया जाता है. इस टोपोलॉजी में
computers को कनेक्ट करने के लिए RJ-45 केबल का प्रयोग किया जाता है।

बस टोपोलॉजी में एक ही direction (दि श


) में डेटा को ट्रांसफर किया जा सकता
है। इस टोपोलॉजी को इनस्टॉल करने में कम खर्चा आता है।

Difference between LAN & WAN in Hindi


– लेन और वेन में अंतर
LAN WAN

इसका पूरा नाम Local Area Network है। इसका पूरा नाम Wide Area Network है।
इसकी सीमा बहुत ही कम होती है. इसका इस्तेमाल स्कूल इसकी सीमा बहुत अधिक होती है इसका
कॉलेज और ऑफिस में किया जाता है. इस्तेमाल शहर में किया जाता है.

यह private और public दोनों तरह का


यह क private network है.
नेटवर्क होता है.

यह धीमी गति से डेटा को ट्रांसफर


यह तेज गति से डेटा को ट्रांसफर करता है।
करता है।

इसको मेन्टेन करना आसान है। इसको मेन्टेन करना आसान नहीं होता

इसमें fault tolerance अधिक है. इसमें fault tolerance कम होता है.

यह point to point के सिद्धांत पर काम


यह broadcasting के सिद्धांत पर काम करता है।
करता है।

इस नेटवर्क में computers को कनेक्


करने के लिए
इसमें computers को कनेक्ट करने के लिए ईथरनेट केबल
PSTN और satellite link का प्रयोग किया
का प्रयोग किया जाता है।
जाता
है।

LAN केबल क्या है?


LAN केबल एक ईथरनेट केबल होती है इसमें coaxial cable, twisted pair cable
और fibre optic केबल आते हैं.

LAN के प्रकार कितने होते हैं?


इसके दो प्रकार होते हैं- Ethernet LAN और Wireless LAN.

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