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संकलन – श्री हरवदन एम .

दवे
अनुक्रमणिका.....
क्रम विषय पृष्ट
1. प.पू.जगद्गुरूश्री का आशििााद 1
2. णिद्धपुर माहात्म्य 2
3. श्राद्ध (माहात्म्य) 25
4. गर्भोपशनषद 31
5. वपण्डोपशनषद 40
6. पृष्टे - मातृषोडिी
1
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तौय ऩय गौतभगोत्र भें सवभन्त वॊस्काय ऩय ऩ्नी को श्लेत लस्त्र ऩरयधान कयलामा जाता
शै । मश भत सस्लकामा नशीॊ शै क्मोंहक धूभालती हिशस्ता, ळूऩा धायण हकए शु ए शै ,
एकलस्त्रा बी शै । शभायी कु रदेली के चाय शाथ भें चायों आमुधोंभें वे कशीॊ बी ळूऩा
नशीॊ शै । लैवे भेया वॊदबाानुवॊधान कामायत शै मद्तऩ, इव तलऴम भें तलिज्जनों को
प्रकाळ िारनेके नरए प्राथाना कयता शुॊ । वा नबन्नाञ्जनवङ्खकाळादॊटट्रासङ्खकतलयानना।
तलळाररोचना नायी फबूल तनु-भध्मभा। खड्ग, ऩात्र-नळय् खेिैयरङ्खकृ तचतुबाज ु ा।
कफन्धशायॊ नळयवा तफभ्राणाॊ हश नळय् स्रजभ् । लारुणी चाभुडिामा्
तलटणुधभोतयेमभासन्तकामा् । अवकृ त् खेहिनी दोभ्मां चतुदोर्यमााभवमवौ-भवममो्।
ळूरलाणधया माभवमे धनु्ळसक्तकयान्मत्। ळकिस्थाततघोयास्मा षीयलणाा मभासन्तका
। इव प्रभाणों वे शभायी भाॊ ळकिासभवफका भशारक्ष्भी स्लरूऩा शै । आ्भानॊ यसथनॊ तलतद्ध
ळयीयॊ यथभेल तु । कीिाहद ब्रह्मऩन्तं प्राणबृ्वु वभेऴु च । चेतना दृश्मते वाऽतऩ ळसक्त्
इश्लय वॊससता ।। इव ळयीयरूऩी यथ-ळकि भें तलयाजभान ऩयभचेतनारूऩ बगलतत
ऩयाभवफा ळकिासभवफका को प्रणाभ कयता शुॊ ।
सवद्धऩुय एक ऩरयचम - सवद्धऩुय भाशा्भवम
वॊकरन – वॊळोधन –रेखन
स्ल. लैद्ळास्त्री ऩसडित प्रेभळॊकय लल्रबयाभ ळभाा - वाहश्मामुलदे ाचामा
भूधान्म तलिान, ऩुयात्लतलद्, इततशावकाय ल अनेक ग्रॊथो
भॊगराचयण –
मस्मासङ्खघ्रऩद्मॊ ळयणाकतानाॊ वॊवारयन्दुस्तयणैकऩोतभ् ।
दमानननधॊ देशबृताॊ ळयडमॊ श्रीकादाभामं ळयणॊप्रऩद्े ।।
सजनके चयणकयर ळयणागत प्राणी के तैयने के नरए एक दृढनौका का रूऩ शैं , देश
धायण कयनेलारों के दमानननध औय ळयणागतके ळयणस्थानरूऩ श्री कदाभ प्रजाऩतत
के ऩुत्र श्री ळाॊ्मळास्त्रके प्रणेता बगलान श्रीकतऩर भशतऴा के ळयणका भैं आश्रम
कयता शूॊ ।।
वृसटि के आहदकार वे शी वनातन लैहदक वॊस्कृ ततका लैसश्लक कल्माणभें अहितीम
मोगदान शैं । बायतलऴा प्राचीनतभ वॊस्कृ तत ल वभ्माका उभगभस्थान यशा शै ऐवा कशना
वलाथा मथोनचत शी शैं । तलश्लकी अन्म वभ्माताओॊ भें, तलचायधायाओॊभें औय
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वॊप्रदामोंभें कई फाते शभायी वभ्मतावे वुवॊगत शै , मशी उवका प्रभाण शैं । शभायी
वभ्मता एलॊ वॊस्कृ तत ऩय अनेक तलधभी आिभण शु ए । कई प्रभाण नटि शु ए औय
इततशाव फदरे गए तथातऩ व्म कबी छीऩा नशीॊ यशता इव न्माम वे आज इवी
वभ्मता-मोग-आमुलेदका तलश्ल आतलटकाय कय यशा शैं । आज बी वनातन लैहदक
वॊस्कृ तत वुऩल्रतलत शैं इवका भु्म कायण मशी शैं की शभने ब्रह्माडि के वभग्र
प्राणी के कल्माणकी प्राथाना की शैं , न के लर हकवी देळ मा जातत तलळेऴ की । शभाये
भत वे वृसटिके वजानका तऩके फरवे शु आ शैं , हपय उवका तलनाळ कै वे शो वकता ?
वभग्र बायतकी ऩुननतयेणु के प्र्मेक कण तीथा शैं । तीथामात्रा शयेनााभ स्भयणॊ तायकॊ
भतभ् तीथामात्रा शरय स्भयण शी भोषका कायण शैं । आज ऐवे शी एक प्राचीनतभ
भशातीथा सवद्धऩुयका शभ ऩरयचम कयने जा यशे शैं ।
सवद्धऩुय के कई नाभ लैहदक ल ऩौयासणक लाङ्ममभें शै जैवे हक सवद्धषेत्र, श्रीस्थर,
सवद्धऩुय, सवद्धाश्रभ, सवद्धऩद, वुखानगयी इ्माहद । कारगणनाके आधाय ऩय मश
सवद्धऩुय मा श्रीस्थर का ननभााण कार व्ममुगके प्रायॊब वे शी भाना जाता शैं ।
ऋनलेदभें, गृह्यवूत्रोंभे ल श्रीभभबागलताहद ऩुयाणोभें बगलान् श्रीभाधलयाम, श्रीकतऩर,
श्रीदनधचीऋऴी, श्रीऩयळुयाभजी, श्रीलेद्माव, ऩाॊिलों की कथाके वाथ इव ऩुननत
स्थानकी वॊगतत प्राप्त त शैं । प्रधानरूऩ वे प्राचीन श्रीस्थर शी कारान्तयभें सवद्धषेत्र
फना शैं , जो आज सवद्धऩुय वे प्रसवद्ध शैं ।
सवद्धषेत्र – श्रीभभबगलभगीता के तलबूतत मोगभें बगलान् श्रीकृ टणने अऩने श्रीभुख वे
कशा शैं सवद्धानाॊ कतऩरो भुनन् सवद्धोभें कतऩर श्रेटठ शैं , जो स्लमॊ बगलानके शी
अलताय शैं औय उनकी जन्भबूनभ सवद्धऩुय शैं । बगलान कतऩर के तऩता भशतऴा कदाभ
ब्रह्माजी के ऩुत्र थे । व्ममुगभें ब्रह्माजीने बगलान के आदेळवे वृसटि वजानका कामा
अऩने भानव ऩुत्रोकों वोंऩा हकन्तु इव अवाय वॊवायभें यव न रगनेवे ले तलयक्त शो
गए । ब्रह्माजी नचॊता शोने रगी औय उन्शोंने अऩने दुवये ऩुत्र कदाभ प्रजाऩतत को मश
भॊगरकामा वोंऩा । कदाभ ऋतऴ तऩस्लीओॊ औय सवद्धोभें श्रेटि थे औय वयस्लती के
प्राची ति ऩय आश्रभ फनाकय तऩश्चमाा कय यशे थे । ऩुता ब्रह्माकी आसाको ळोयोधमा
कयके , उतभ रूऩगुण वभवऩन्न ऩस्न प्रासप्त त के नरए तऩश्चमाा कयने रगे । इव
सवद्धषेत्र के तऩोलनभें १०,००० लऴा अनन्म बालवे श्रीशरयकी बसक्तका प्रायभवब हकमा ।
तऩश्चमाा का आश्रम श्रीशरयका आदेळ शी था, मथा बगलानने वाषात् दळान हदए औय

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लय माचनाथा आदेळ हदमा । श्री कदाभने बगलान की स्तुतत कयते शए कशा हक
आऩकी इच्छा ल ऩूज्म तऩताश्री ब्रह्माजी के आदेळको वाथाक कयने शे तु भुझे वभान
स्लबालमुक्त – भनोलृतानुवारयणी औय गृशस्थाश्रभभें धभााथाकाभ को ऩूणा कयनेलारी
स्त्री प्राप्त त शो । श्री शरयने अततप्रवन्नता वे लय देते शु ए कशा हक स्लामॊबल भनु (प्रथभ
भनु) याजा अऩनी ऩस्न ळतरूऩा के वाथ अऩनी तललाशमोनम ऩुत्री देलशु तत को रेकय,
अऩनी ऩुत्री के ऩाणी ग्रशणकी प्राथाना कयेंगे, तुभ इव प्रस्तालको स्लीकाय कयना । इव
प्रकाय लय देकय बगलान् तलटणु अन्तध्माान शो गए ।
बगलिचनानुवाय कु छ शी कारभें श्रीभनुळतरूऩा अऩनी कन्मा देलशू तत को रेकय
इव षेत्रभें आए । श्री कदाभने उनका ब्माततब्म स्लागत हकमा । ऋतऴ के तऩ ल
तेजप्रबाको देखकय भनुळतरूऩा आनन्दवागयभें ननभनन शो गए औय अऩनी ऩुत्री को
वृसटि प्रायभवबके इश्लयीम कामाके नरए ग्रशण कयनेकी प्राथाना की । श्रीकदाभ ऋतऴने
प्रस्ताल वशऴा स्लीकाय हकमा औय देलशू तत वे वॊमभऩूणा गृस्थाश्रभका प्रायभवब हकमा ।
देलशू तत ऩततवेलाभें वदैल यत यशती थी । अऩनी असस्भता ल असस्त्लको ऩततके
वुखभें तलरीन कय हदमा था । ऋतऴलय बी स्लमॊ सवद्ध थे । स्त्रीवशज बोसक्तक
वुखोंको ध्मानभें यखते शु ए, मोगफर वे अनेक प्रकायके वुन्दय खाद्, ऩेम, स्नान, ळमन,
गामन-लादनाहद अनेक आनन्दोल्रावके वाधनों वे वभवऩन्न तलभानभें (वृसटिका प्रथभ
रषुरयमव मान) देलशू ततके वाथ आकाळभें ऩमािन हकमा औय देलशू ततको प्रवन्न
कयके ऩुन् आश्रभभें प्रलेळ हकमा ।
देलशू तत के वाथ आनन्दमुक्त गृशस्थाश्रभभें कदाभ ऋतऴवे करा, अनवूमा, श्रद्धा,
शतलबुाला, गतत, हिमा,ऊजाा (अरून्धती), नचती ल ्मातत आहद नल कन्माए उ्ऩन्न
शु ई, जो बायतलऴा के नल खडिोभें सवद्धऋतऴमोंके वाथ ब्माशी गई थी । अतत्र-
लनळटिाहद भशतऴामोंका मश सवद्धषेत्र ववुयार शैं औय बगलान दतात्रेम का ननीशार ।
गृशस्थाश्रभके ऩूणाानन्द बोगके उऩयान्त श्रीकदाभजीने तऩोलनभें जाकय तलयक्त शोनेकी
अनुभतत देलशू ततवे भाॊगी । देलशू ततने अततनम्रबाल वे कशा आऩकी इच्छाका
अनुवयण शी भेया धभा शैं , मद्तऩ भुझे एक ऩुत्र शो सजवके वशाये भैं भेया ळेऴजीलन
्मतीत कय वकू ऐवी भेयी प्राथाना शैं , क्मोहक ऩुत्रीमाॊ तो अऩने ऩततके घय यशे गी, भैं
मशा हकवके वशाये यशूॊ । देलशू तत की वनम्र प्राथानाको उनचत भानते शु ए, कदाभजीने
श्री बगलानवे उनके वदृळ ऩुत्रकी माचना की । बगलानके वदृळ तत्ररोकभें कोई शो
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शी नशीॊ वकता । इव फुतद्धमुक्त लय को वाकृ त कयने स्लमॊ श्रीशरय बगलान कतऩर के
स्लरूऩभें स्लमॊ शी अलतरयत शु ए । इव अलवयऩय स्लमॊ ब्रह्माजी सवद्धषेत्र ऩधाये औय
कशा हक तेया मे ऩुत्र सवद्धोभें श्रेटठ औय वाॊ्मळास्त्रका प्रणेता शोगा । कारान्तयभें
बगलान श्री कतऩरने अऩनी भाता को वाॊ्मळास्त्रका उऩदेळ हदमा । भाताको भोशाहद
के फन्धन छू ि गए । ब्रह्माजीकी ऩुत्री ल अऩनी ऩयॊ वखी अल्ऩाने (अशल्मा)
देलशू ततके वाथ वाॊ्मळास्त्रका श्रलण हकमा औय सान प्राप्त तकय जररूऩा शो गई
सजववे अल्ऩावयोलय तलद्भान शैं । ्माव िाया लसणात इव कथावे स्लमॊ बगलानका
रृदम बालतलबोय फन गमा औय अतत शऴावे अश्रुधाया प्रलाहशत शु ई, जो शऴातफन्दु
वयोलयके रूऩभें आज बी भुभष ु ुओकॊ ो लयदानरूऩ तलद्भान शैं । तलश्लके चाय
भशावयोलय भानवयोलय, तफन्दुवयोलय, ऩभवऩावयोलय औय नायामणवयोलय भें वे तफन्दु
वयोलय मशाॊ ऩय शैं । इवी प्रकाय तीन भशानदीमाॊ गॊगा, मभुना, वयस्लती का ऩालनति
मशाॊ ऩय शैं । भाता देलशू तत सानरूऩ शोकय भुसक्त को प्राप्त त शु ई सजववे सानलातऩका
(सानलाल) फनी । शऴालतत देलशू ततने ऩुत्र कतऩरको ननलेदन हकमा हक शे श्रेटठऩुत्र भैं
आज एक स्त्रीवशज प्रस्ताल यखती शूॊ हक तलश्लकी वबी भाताए इतनी बानमलतत नशीॊ
शोती, सजवकी कु षीभें तेये जैवे ऩुत्र शो । ऩुरूऴ तो स्त्रीकी अऩेषा धभााथभोष वाधन
कय शी रेता शैं , हकन्तु तलश्लकी स्त्रीजातत क्मा कयेगी ? तु भुझ ऩुत्र शोनेके नाते वे एक
लचन दे हक मशाॊ ऩश हकवी बी स्त्रभात्रका श्राद्ध भुसक्तका वाधन फने । कतऩरने लय
हदमा सवद्धषेत्रे तु देशू्माॊ नळरामाॊ भातृकीगमा स्त्री कल्माणकी वलो्कृ टि बालनाका
मश उभगभ था । वृसटि वजानका उभघभ मश सवद्धषेत्र शोनेके कायण कशा जाता शैं
हक वबीमात्रा शजायफाय, सवद्धऩुय जाओ एक फाय । रोकतऩताभश श्री ब्रह्माजीने
ब्रह्मषेत्रभें माग वभवऩादन कयके वलाप्रथभ ननलावाथा सवद्धषेत्र की ऩवॊदगी की थी
तफवे मश ब्रह्मतीथा फना । एक श्रुत कथाके अनुवाय स्लमॊ वाषात् श्रीभशादेलजीने
मशाॊऩय ननलाव हकमा था, सजववे रूरभशारमतीथा के नाभवे प्रसवद्ध शु आ । बगलान
कदाभ स्लमॊ प्रजाऩतत शोनेवे उनका मश ननलावस्थान प्रजाऩततषेत्र स्लीकाय कयना बी
मुसक्तमुक्त शोगा । मश सवद्धषेत्र रूरतीथा, तलटणुतीथा, ब्रह्मतीथा औय भातृगमा के
प्राधान्मवे भातृतीथा के रूऩभें प्रसवद्ध शु आ । ऩुयाण ग्रॊधोवे ननदेळ नभरता शैं की ऩृथ्ली
का जशाॉ स्त्रीरूऩ वे लणान हकमा गमा शै लशाॉ जघनस्थानभे प्रमागयाज औय
नाबीस्थानभें सवद्धषेत्र का नाभ नाबीगमा बी शैं । नाबी का वॊफॊध वजान वे शैं –
शभायी ऩुसटि नाबीिाया भाता के ळयीय वे शी शोती शैं , नाबी एलॊ भाता का वीधा वॊफध ॊ

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शैं । ब्रह्मा की उ्ऩतत बी तलटणुकी नाबी वे जूिी शैं । इवषेत्र को भधुस्रलागमा नाभवे
बी प्रसवतद्ध नभरी शैं । कई ऋतऴमोंका लचन शैं हक सवद्धऩुय वलातीथोभें श्रेटि शै
क्मोंहक गमावे स्लगा एकमोजन दूय शैं हकन्तु सवद्धऩुयके दळानभात्र वभस्तऩातक
ननलायण कयते शैं औय मशाॊवे स्लगा के लर प्रादेळभात्रकी दूयी ऩय शी शैं ।
भशायाजा मुनधसटठयकी वूचनानुवाय ऩाडिल कु छकार मशाॊ यशे थे औय गुप्त तालाव के
दौयान बी दनधची आश्रभ (देथरी) भें कु छ कार यशे थे । भशतऴा दनधची एलॊ
तऩप्त ऩराद की मश तऩो बूनभ यशी शैं । (भशाबायत लनऩला अ.258-13, लाभनऩुयाण अ
35) । बगलान श्री ऩयळुयाभने बी अऩनी भाता येणक ु ाके नळयच्छे द का मशाॊ भातृतऩाण
कयके प्रामसश्चत हकमा था (श्रीभभबागलत एलॊ भशाबायत) । वय.भाशा्भवम १६।२५-
३७ भें एक उल्रेख शै हक भशाबायतके मुद्धके उऩयान्त श्रीकृ टण ल अजूान इवी षेत्रभें
प्रामसश्चताथा यशे थे । गरूिऩुयाण, स्कॊ धऩुयाण, श्रीभभबागलत, ऩद्मऩुयाण, लामुऩुयाण ल
ऋनमजु वॊहशताओॊभें इवके वॊदबा प्राप्त त शैं । उऩयोक्त कथनकी वॊगतत के कु छ प्रभाण
इव प्रकाय शैं ...कदाभाने गमानाबौ भुडिऩृटि वभीऩत् , स्ना्लाश्राद्धीनमे्स्लगं
तऩतृन्न्ला च चसडिकाभ् । गमानाबौ तऩडिदाने तऩतृणाॊ ब्रह्मऩुयनमनॊ परभ् ।। (लामु.
लीयनभत्रोदम तीथाप्रकाळे च) तलप्रालेदतलदोऽथ ळास्त्रननऩुणा् स्लाचायलन्तोऽलवन् ,
तेभ्म् श्रीवहशतो शरय् प्रततहदनॊ प्रादान्भनो लाॊनछतभ् । गुजाये तलऴमे चासस्त षेत्रॊ श्रीस्थर
वॊसकभ् , स्लच्छभौसक्तजाराढ्यॊ ऩताका तोयणोज्ज्लरभ् । बूऴणॊ वलातीथाानाॊ
वलाताप ु नरतरुभभ् , ताऩवैयतऩ वङ्खकीणं लेदध्लननतलयासजतभ् । तत्र ब्रह्मादमोदेला
लसवटठाद्ास्तऩोधना्, ततटठसन्त भुननळादुार वद्धाश्चैल वशस्रळ् । फशू नन तत्र तीथाानन
देला्वसन्त च बूरयळ्, न योगो न च भा्वमं श्रीस्थरे न बमॊ क्लनचत् ।
श्री स्थर – श्रीभभबागलत के तृतीम स्कॊ ध ल अन्म ऩुयाणोंभें बी एक कथा शैं ।
ऩूलाकारभें वयस्लती नदीके तिावीन, तलश्लकभााने प्राची भाधल बगलतत श्री (रक्ष्भी)
के वाथ मशाॊ ननलाव कयने शे तु नगय फनामा था सजवका नाभ श्रीस्थर शु आ ।
त्रेतामुग भें भशतऴा दुलाावा के श्राऩके कायण रक्ष्भीने तत्ररोकका ्मागकय वागयभें
ननलाव हकमा, सजववे तीनोरोकभें कीतता, कासन्त ऐश्लमा, प्रबा जैवी वॊऩततका रोऩ
शु आ औय परत् मसाहद धभाहिमाओॊका रोऩ शु आ । देलोंको मसबाग औय
शतलबाग न नभरनेवे नचॊतीत शोकय ब्रह्माजीके ळयणभें गए । ब्रह्माजीने फतामा की इव
वभस्त वभस्माका कायण श्री (रक्ष्भी) का जरस्थ शोना शैं औय इवका ननयाकयण

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तलटणुके सवला कोई बी कयनेको वभथा नशीॊ शै । ब्रह्माजी के वाथ वबी देलता
तलटणुके ऩाव जा ऩशूॊ चे औय श्रीरक्ष्भीजीके ऩुनयागभन की प्राथाना हक । देलोंकी
प्राथाना ऩय तलचाय कयते शू ए, बगलान तलटणुने, देलोको वभुरभॊथनके नरए प्रो्वाहशत
हकमा क्मोंहक वभुरभॊथन िाया शी रक्ष्भी ऩुन्प्राप्त त शो वकती शै । औय बगलान स्लमॊ
कू भाालताय धायणकयके स्लमॊकी ऩीठऩय भॊदयाचररूऩी भन्थको धायण हकमा । चाषुऴ
भन्लन्तके प्रायॊबकारभें देलो ल अवुयो िाया वभुरभॊथन प्रायॊब शु आ । इववे १४
य्नोकी प्रासप्त त शु ई, सजवभें स्लमॊ रक्ष्भीजीका प्रागय शु आ । देलों की प्राथानाऩय
बगलानने श्रीरक्ष्भीजीको अऩनी अधांनगनीके रूऩभें स्लीकृ त हकमा औय वभूरतिवे
धूभते-धूभते वयस्लतीके ऩुननत तिऩय आए औय मशाॊ श्रीरक्ष्भीजीको ननलाव कयनेका
भन शु आ, तफ तलश्लकभााने श्रीस्थर नाभक यभणीम नगयकी यचना की । तफवे आज
ऩमान्त श्रीप्राचीभाधल श्रीरक्ष्भीजीके वाथ मशाॊके षेत्राधीळके रूऩभें आवीनस्थ शैं ।
लास्तलभें मशाॊ श्री कतऩरभुनन के वाथ प्राचीभाधल, सवद्धभाधल औय तफन्दुभाधल
तलयाजभान शैं । इव षेत्रानधटठातृ श्री भाधलयामजी के वॊदबाभें एक रोककथा शैं ।
कच्छ गुजयात के बूजके वभीऩ हकवी हकवानको स्लप्त नभें भाधलयामजीने दळान देकय
कशा हक भैं तेयी बूनभऩय शू , तु भुझे अऩने ननजस्थान सवद्धऩुय भें ऩशु चा दे ।
स्लप्त नानुवाय खेतभें वे भाधलयामकी भूतता प्राप्त त शु ई औय हकवान इवे ळकिभें राकय
सवद्धऩुयकी हकवी ननजान स्थान ऩय छोिकय चरा गमा । ननलावी रोगोनें इव हद्म
तलग्रशका दळान हकमा औय वॊलत १८५४ भाघ ळुक्र १३ के हदन ऩूणा लैहदक ऩयॊऩया
वे नगयके भध्मभे प्रततसटठत हकमा । आज नगय के भु्म गोतलॊदभाधल भॊहदय के
रूऩभें प्रसवद्ध शैं ।
सवद्धऩुय – तलिभ वॊलत ११०० के वभीऩ के वभमभें वोरॊकी लॊळ का वूमोदम
ऩूणारूऩवे शो गमा था । वायस्लतभडिर का ऩुयाणों-इततशावभें लणान शैं लशी स्थान
गुजायप्रान्त शैं औय भशायाज भूऱयाज अततऩयािभी एलॊ नळलबक्त थे । उन्शोंने अऩने
प्रखय कराधय एलॊ ज्मोतततलाद प्राणधयजी की प्रेयणावे रूरभशारम ननभााणका प्रायभवब
हकमा, हकन्तु इव अनबमानकी की ऩूतताके ऩूला शी उनका देशाॊत शो गमा । अनुगाभी
भशायाज बीभदेल वे बी मश बगीयथ कामा ऩूणा न शु आ । उनके अनुगाभी याजा
कयणदेल बी अतत ऩयािभी एलॊ तेजस्ली थे । अऩने अप्रततभ फुतद्धप्रततबामुक्त अभा्म
भुॊजार भशे ता की प्रेयणावे उन्शोने कणाािक प्रदेळके याजा जमके नळकी की अतत
स्लरूऩलान, दष एलॊ प्रततबावभवऩन्न ऩुत्री नभनरदेली के वाथ रनन हकमा । तलिभ
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वॊलत् ११३५ के वभमभें याजा आळानबल्र को ऩयाश्त कयके उनकी नगयी
आळाऩल्री का नाभ कयणालती यखा था जो आऩ अशभदालाद के नाभ वे वुप्रसवद्ध
शैं । तीव लऴा तक गुजायदेळको ळासवत कयके ऩयभधाभको चर गए औय याज्मावन
ऩय उनके सवद्धयाज जमसवॊश आरूढ शु ए । याजभाता नभनरदेली एलॊ भशाभा्म भुजार
भशे ता की प्रेयणा वे रूरभशारमका ननभााणकामा ऩुन्प्रायभवब शु आ औय ऩूणा बी शू आ ।
रोक चाशनाको भान देते शु ए इव सवद्धषेत्रका नाभ सवद्धऩुय शु आ । वोरॊकी लॊळके
इव बगीयथ कामाको वॊभऩन्न कयके बगलान नळलजी की प्राणप्रततटठा शे तु भशामस के
नरए उतय बायत के वमूाति वे १०८, काळीषेत्र वे १००, नैनभऴायडम वे १००, गॊगा मभुना
प्रमागति वे १०५, कु रूषेत्र वे २०४, कान्मकु ब्ज वे २०० फॊगार-ततयशत वे १०० एलॊ
स्थाननक १२० नभराकय १०३७ (९९८ मजुलेदी, १७ ऋनलेदी, १७ वाभलेदी, ५ अथलालेदी)
तलिान ब्राह्मणो िाया मसकामा वभवऩन्न कयलामा (वभम तल.वॊ. १०५० वे १०५४ ळक
९१० वे ९१४ इ.वन् ९९९ वे १००३) औय दसषणाभें बूनभ औय गाॊल हदए । आज बी
सवद्धऩुय ब्राह्मणोकी औय तलिानों की नगयी भानी जातत शैं । आज बी ऩूये बायतलऴाभें
काळी एलॊ सवद्धऩुय के ब्राह्मण ऩयभ लॊदनीम भाने जाते शैं । मशाॊ अनधक वॊ्माभें
ब्राह्मण ननलाव कयते शैं मथा ब्राह्मणों की नगयी बी भानी जाती शैं । मशाॊ ऐततशासवक
नगयी ऩािन भात्र २५ हक.भी. एलॊ ऩािीदायों की कु राभवफा श्री उनभमाभाताका
ऩालनधाभ भात्र १३ हक.भी. शैं ।
तलिानों ल सवद्धों की नगयी सवद्धऩुय – सवद्धऩुयभें आहदकार वे देल-गॊधला-ऋतऴमों का
ननलाव यशा शैं । वृसटिके वजानकताा ब्रह्मा-तलटणु-भशे ळ की मश ऩुननत बूनभ शैं । आगे
बी फतामा शैं लैवे तफवे आज ऩमान्त अनेक सवद्धों ने अऩनी कभाबनू भ फनामा शैं । श्री
भाधलतीथाजी भशायाज, श्री चन्रळेखय वयस्लतत, श्री शरयशयानन्दजी, श्री कयऩात्री, श्री
गॊगश्े लयानन्दजी, श्री व्मदेलजी भशायाज, श्री यॊगालधूत, श्री लावुदले ानन्द वयस्लतत, श्री
याभचन्र िोंगयेजी भशायाज जैवे बगलभस्लरूऩ भशाऩुरूऴोने बी इव ऩुननतयेणक ु ो
फायफाय नळयोधामा हकमा शैं । मशाॊ के सवद्धोंभें श्री जेयीफाफा, श्रीदुधरीभरजी, श्री
देलळॊकय बट्टजी (गुरू भशायाज) जैवे वॊत-भशतऴा शो गए । तलिानों की इव ऩुननत
बूऩय श्री जमदत ळास्त्री, श्री जमदुगे भशायाज जैवे भशानुबाल शो गए सजनका नाभ
आज ऩूये बायतलऴाभें वादय नरमा जाता शैं । श्री फिु कळास्त्री , श्री भपतरार
असननशोत्रीजी, श्री याधाकृ टण ळुक्र, श्री नयशरय ळास्त्री, श्री लावुदले ळास्त्री, श्री
अॊफारार ळुक्र, श्री बानुळक ॊ य ळुक्र, श्री दुगााळक
ॊ य ळुक्र, श्री फचुबाई ळुक्र, श्री
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भूऱळॊकय ऩुयाणी, श्री गोतलॊदरार ऩुयाणी, श्री निलयरार ऩुयाणी, श्री नयोतभ जोऴी, श्री
निलयरार तत्रलेदी, श्री इश्लयरार तत्रलेदी, श्री तलठ्ठर ळास्त्री, श्री शॊ वानन्दजी भशायाज
जैवी अनेक तलिहिबूततमा इव ऩुननत बूनभ को गौयल प्रदान कय ब्रह्मरीन शो गई ।
मशाॊ की तलिद् ऩयॊऩया कामभ यखनेभे श्री याधाकृ टण ळुक्र , श्री देलळॊकय ऩुयाणी, श्री
नलीनबाई ऩाध्मा, श्री तलटणुबाई जोऴी, श्री लावुदले ळास्त्री, श्री शयेळबाई ळास्त्री, श्री
प्रेभलल्रब ळभाा, श्री चॊदबु ाई गुरू, श्री तलठ्ठर ळास्त्री जैवे अनेक तलिानोंने लॊदनीम
प्रमाव हकए थे औय सजवके परस्लरूऩ नटिप्राम शोती तलिता को कु छ फचा ऩाए शैं
। इवके अततरयक्त मशाॊ श्री जमदत ळास्त्रीजी, जो बायत के दाळाननक नळयोभणी थे,
उनके स्थान ऩय एक ऩाठळारा चरती थी । ऐवे शी तॊत्र वम्राि श्री जमदुगज े ी
भशायाज के लशाॊ बी ऐवी शी ऩाठळारा चरती थी । लताभान कारभें तलश्लको कु छ
दे वकें ऐवे तलिानोभें श्री शयेळबाई (शारा ळास्त्री) – श्री ऩयळुयाभ, श्रीऋतऴकु भाय,
श्रीशयेळबाई ळुक्र जैवे कु छ शी मुला तलिान फचे शैं । आनेलारे करभें तलिानों की
इव धयती ऩय तलिता शोगी मा नशीॊ – एक भशाप्रश्न शैं । मशाॊ की औदच्म वशस्र
ब्राह्मण साततभें ऩशरे अऩनी ऩयॊऩया को कामभ कयनेके नरए अॊफालािीभें
श्रीयाधाकृ टण ळुक्र िाया एक लैहदक ऩाठळारा प्रायभवब कयनेका गौयलऩूणा कामा
हकमा था । इतने फिे सातत वभुदाम का नेत्ृ ल आज कु छ भमााहदत-कु सडठत
फुतद्धभनीऴामुक्त शो गमा शै । ब्राह्णण्ल के गौयल की हदळा मा तो उनवे उऩेसषत शै
मा उनकी प्रसा के न्र के फशाय शैं । ले के लर वभुश रनन-मसोऩतलत एलॊ साततबोजन
तक वीनभत शो गमे शैं । वभग्र ब्रह्णाडि का उभगभतफन्दु उनवे अछू ता यश गमा शैं ।
मशाॊ एक गोऩार-कृ टण वॊस्कृ त ऩाठळारा बी शैं , जशाॊ सजसावुओकी वॊ्मा ऩूलाकी
अऩेषा अतत कभ शैं । सजव तलिद् ऩयॊऩया के कायण सवद्धऩुय तलश्ललॊद् शैं , इव तलिता
की घयोशयको कामभ कयनेके षेत्रभें स्थाननक तलिदलगा उ्वाशी शो ऐवी बगलान
श्रीकतऩर के श्री चयणों भें प्राथाना ।
सवद्धऩुयनगय तलळेऴ – सवद्धऩुय ऩूला येखाॊळ 072.23 एलॊ उतय अषाॊव 023.55 ऩय
सस्थत शै । अशभदाफाद – हदल्री की येर राईन ऩय भशे वाणा एलॊ ऩारनऩुय के फीच
इव प्रसवद्धषेत्र शैं । मशाॊ अशभदाफाद ल आफुयोि वे वीधी याज्म फव ्मलस्था शैं ।
अशभदाफाद वे 115हक.भी की दूयीऩय येरमात्रा वे 2.30 घॊिेभें मशाॊ ऩशूॊ च वकते शैं ।
नगयके ऩूला वयस्लती नदी प्रलाहशत शो यशी शैं । अनेक ऐततशासवक ल धानभाक ऩरयवयों
की नगयी शैं । मशाॊ का औद्ोनगक ळून्म के फयाफय शी शैं । मशाॊ कु छ वभम ऩशरे
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कऩिे की दो भीरें थी, जो आज फॊद ऩिी शैं । मशाॊ का इवफगोर तलश्लतल्मात शैं ।
गोकु र ऑईर भीर को छोिकय कोई फिा उद्ोग मशाॊ आज नशीॊ शैं । एनेक
दळानीम एल ऩालन स्थानेलारे सवद्धऩुय को मथाथारूऩ भें आजका बायत नशीॊ जान
वका इवके नरए स्थाननक नेत्ृ लकी उऩेषालृतत शी भूर कायण शैं । सवद्धऩुय वे
अशभदाफाद की सस्थतत – दूयी वाधन्मलस्था इ्माहद ननभवनानुवाय शैं ।
मशाॊ ब्राह्मणोंके अततरयक्त भुसस्रभ दाउदी लोया बी ज्मादा शैं । रोककथानुवाय
ब्राह्मणोंको अल्राउद्दीन सखरजीनॊ फरात् धभाान्तय कयामा था । आज बी लशोयलाि
भें उनके फिे औय वुॊदय नक्ळीकरामुक्त भकान नगयकी ळोबा फने शु ए शैं । एक
भकान अतत प्रसवद्ध शैं सजवभें ३६० दयलाजें ल सखिहकमाॊ शैं ।
सवद्धऩुय के दळानीम स्थर का ऩौयासणक ऩरयचम
श्री ब्रह्माजी – ब्रह्मकु डि औय श्री ब्रह्माडिे श्लय भशादेल – श्री भाका डिे म ऋतऴ के िाया
इव स्थानका ननभााण शु आ था । कातताक ळुक्र ११ वे १५ ऩमान्त मशाॊ नदीके हकनाये
स्नानाहदवे भश्ऩुडम प्राप्त त शोता शैं (वय. भशा.१६।९७ वे १०१) । लैहदककार भें श्री
ब्रह्माजीने मशाॊ ननलाव हकमा था औय अनेक भशामस हकए थे । उनके िाया मशाॊ एक
ब्रह्मकु डि ल मूऩ का ननभााण बी शु आ था । मशाॊ भान्मतानुवाय एक यातत्र ननलाव वे
भनुटमको ब्रह्मरोक प्रासप्त त शोती शैं । इवका वॊदबा भशाबायतके लनऩला ८४-८५ तथा
अनु.२५-५८ भें नभरता शैं । आज मशाॊ मूऩ एलॊ कु डिका असस्त्ल नशीॊ शैं । दळनाभी
गोस्लाभी वॊप्रदामोभें वे बायती एलॊ ऩुयी के मशाॊ दो भठ आज बी शैं । वबी
वॊप्रदामोका मश उभगभस्थान बी शैं ।
श्री ऋणभक्तेश्लय - (ऋणभोष) भशादेल औय ऩाऩभोषेश्लय (ऩाडिलाभुखश्े लय)
भशादेल को लॊदन कयें । वयस्लती के उतय तिावीन श्री चभवऩके श्लय भशादेल मात्रा
का प्रथभ तीथा शैं , उनका मथाराब दळान ऩूजन कयके कु छ शी दूयी ऩय श्रीवॊगभेश्लय
तीथा शैं ।
श्री वॊगभेश्लय तीथा - वुदीघाकार ऩूला मभुना औय वयस्लतीका ऩुडम वॊगभ इव स्थान
ऩय शोता था । बौगोनरक ऩरयलतानों के कायणलळ मश दूय शिता शु आ आज
उतयबायत के गॊगाके वाथ मभुनाका वॊगभ तीथायाज प्रमाग भें शोता शैं , इवी तथ्मके

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वासष्लभें मशाॊ वॊगभेश्रल तीथा स्लीकृ त हकमा गमा शैं । आज बी कातताक ळुक्र
ऩूसणाभाको तत्रलेणी वॊगभ शोनेकी श्रद्धा रोकभानवभें तलद्भान शैं औय उवीहदन
स्नानका एलॊ भृतऩूलाजोको दीऩदानाहद का तलळेऴ भश्ल शैं । चॊऩके श्लयका अऩयनाभ
वॊगभेश्लय बी शैं । मशाॉ वे लिलानर (श्रीभभबालत की देलदानल वॊग्राभ ल तऩप्त ऩराद
िाया लिलानरकी उ्ऩतत) ब्रह्मऩुत्री कु भारयका वयस्लतीने भस्तकऩय धायण हकमा था
औय लिलानर के प्रचडि ताऩवे वॊतप्त त शोकय ्माकू रतावे बूनभऩय जानुबाग वे
चरने ऩय देलोने मशाॊ (स्लमॊबू) श्री अिलिे श्लय भशादेलको प्रगि हकमा । मशाॊ
भशाकार नाभक एक नळलगण था औय नळलकी ऩयभायाधानाके हद्मप्रबालवे लश
कै रानळनस्थ शो गमा ।
श्री लारसखल्माश्रभ औय लारसखल्मेश्लय भशादेल – वुदीघाकार ऩूला ितुकी वन्तातत
नाभक बामााने तलश्ल कल्माणाथा अॊगठू े के ऩौरूओॊके वभान ळयीयलारे वूमाके वभान
तेजस्ली ६०००० ऊध्लायते ा ऋतऴमोंको जन्भ हदमा - श्रीतलटणुऩुयाण प्रथभाॊळे १०-१०,
भशाबायत आहदऩला ३१ श्रोक ५ वे २१,(लारसखल्माव तऩ् सवथ्था भुनम् वूमाभडिरे
उञ्छभ उञ्छसन्त धभासा् ळाकु नीॊ लृततभ आसस्दता् – भशाबायत वबालला – उद्ोगऩला -
भशाबायत १२९ ), स्कॊ द.नागयखॊि - वयस्लतत भशा. अ.१६।७०-७१ । ऋतऴमोंने उग्रतऩ
हकमा औय तऩपर भशतऴा कश्मऩको प्रदान हकमा । तऩके प्रबालवे कश्मऩकी ऩस्न
तलनता के गबा वे फहरकाश्रभभें गरूिजी का जन्भ शु आ । उनके जन्भवे ऩूला शी
अऩने ज्मेटठ भ्राता अरूणवे तलनता ळातऩत शोनेके कायण दावी्ल प्राप्त त शु ई थी । श्री
गरूिजीने अऩने वाभथ्मावे तलटणुलाशन की मोनमता प्राप्त त की औय इवी सवद्धषेत्रभें
(जो उनके जन्भ की कायणबूनभ थी) अल्ऩा वयोलय (ब्रह्माजीकी ऩूत्री का सानके
कायण जररूऩ शोना) भें दाव्ल भुसक्तशे तु स्नान कयलामा सजवके प्रबालवे उनकी
भुसक्त शु ई । अन्मत्र, लारसखस्मा जिाधयश्श्चीयचभालल्करऩरयलृता् कातताक्मा
ऩौणाभास्माॊ ऩुटऩपरभु्वृजन्त् ळेऴानटिौभावान् लृत्त्मऩु ाजानॊ कृ ्लासननऩरयचयणॊ कृ ्ला
ऩञ्चभशामसहिमाॊ तललतामन्तभा्भानॊ प्राथामन्ते ।
श्री ऩयळुयाभ भॊहदय - ऩयळुयाभ याभामण कार के भुनी थे। बृगश्र ु टे ठ भशतऴा जभदसनन
िाया वॊऩन्न ऩुत्रेसटि-मस वे प्रवन्न देलयाज इॊर के लयदान स्लरूऩ ऩ्नी येणकु ा के गबा
वे लैळाख ळुक्र तृतीमा को तलश्ललॊद् भशाफाशु ऩयळुयाभजी का जन्भ शु आ। ले
बगलान तलटणु के आलेळालताय थे। तऩताभश बृगु िाया वॊऩन्न नाभकयण-वॊस्काय के

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अनन्तय याभ, हकॊ तु जभदसननका ऩुत्र शोने के कायण जाभदनन्म औय नळलजी िाया प्रदत
ऩयळु धायण हकए यशने के कायण ऩयळुयाभ कशराए। आयॊनबक नळषा भशतऴा
तलश्लानभत्र एलॊ ऋचीकके आश्रभ भें प्राप्त त शोने के वाथ शी भशतऴा ऋचीक वे वायॊग
नाभक हद्म लैटणल धनुऴ औय ब्रह्मतऴा कश्मऩजीवे तलनधलत अतलनाळी लैटणल-भॊत्र
प्राप्त त शु आ। तदनॊतय कै राळ नगरयश्रृगॊ सस्थत बगलान ळॊकय के आश्रभ भें तलद्ा प्राप्त त
कय तलनळटि हद्मास्त्र तलद्ुदनब नाभक ऩयळु प्राप्त त हकमा। नळलजी वे उन्शें श्रीकृ टण
का त्रैरोक्मतलजम कलच, स्तलयाज स्तोत्र एलॊ भॊत्र कल्ऩतरूबी प्राप्त त शु ए। चितीथा
भें हकए कहठन तऩ वे प्रवन्न शो बगलान तलटणु ने उन्शें त्रेता भें याभालताय शोने ऩय
तेजोशयण के उऩयाॊत कल्ऩान्त ऩमंत तऩस्मायत बूरोक ऩय यशने का लय हदमा । ले
ळस्त्रतलद्ा के भशान गुरु थे। उन्शोंने बीटभ, रोण ल कणा को ळस्त्रतलद्ा प्रदान की थी।
उन्शोंने एकादळ छन्दमुक्त नळल ऩॊच्लारयॊळनाभ स्तोत्रभवबी नरखा । ले ऩुरुऴों के नरए
आजीलन एक ऩ्नी-व्रत के ऩषधय थे। उन्शोंने अतत्र-ऩ्नी अनवूमा अगस््म-ऩ्नी
रोऩाभुरा ल तप्रम नळटम अकृ तलण के वशमोग वे नायी-जागृतत-अनबमान का तलयाि
वॊचारन बी हकमा । अलळेऴ कामो भें कसल्क अलताय शोने ऩय उनका गुरुऩद ग्रशण
कय ळस्त्रतलद्ा प्रदान कयना ळेऴ शै । श्रीभभबागलत भें दृटिाॊत शै हक गॊधलायाज
नचत्रयथ को अप्त वयाओॊ के वाथ तलशाय कयता देख शलन शे तु गॊगा-ति ऩय जर रेने
गई भाता येणक ु ा आवक्त शो गई। तफ शलन-कार ्मतीत शो जाने वे िु द्ध भुनन
जभदसननने ऩ्नी के आमा भमाादा तलयोधी आचयण एलॊ भानसवक ्मनबचायलळ ऩुत्रों
को भाता का लध कयने की आसा दी । अन्म बाइमों िाया वाशव न कय ऩाने ऩय
तऩता के तऩोफर वे प्रबातलत ऩयळुयाभ ने उनकी आसानुवाय भाता का नळयोच्छे दन
एलॊ वभस्त बाइमों का लध कय िारा, औय प्रवन्न जभदसनन िाया लय भाॊगने का
आग्रश हकए जाने ऩय वबी के ऩुनजीतलत शोने एलॊ उनके िाया लध हकए जाने वॊफॊधी
स्भृतत नटि शो जाने का शी लय भाॊगा। बगलान ने भातृदोऴ वे भुक्त शोनेके नरए मशाॊ
प्रामसश्चत कयके नायी-जागृतत-अनबमान का वॊचारन हकमा था । मश कथा
भशाबायत-याभामण एलॊ बागलदाहद अनेक ऩुयाणोंभें शैं ।
श्री तऩडितायक तीथा - प्राची वयस्लती के ऩालन ति ऩय तऩडिताकय तीथा शैं । मशाॊ
ळतलऴा ऩमान्त ब्रह्माजीने तऩडिमस हकमा था । मशाॊ तऩडिदान, स्नान एलॊ दानका अतत
भशत्त्ल शैं ।

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श्री नय तीथा एलॊ अश्ल तीथा - भशाबायतके मुद्धके उऩयान्त बगलान् श्री कृ टण औय
अजूानने स्नानाहद कयके मशाॊ प्रामसश्चत हकमा था, तफ वे मश नय (अजूान) तीथा
भाना जाता शैं । प्रामसश्चताथा तलटणुऩूजन के नरए श्री कृ टणाजूानने मशाॊ ऩुडियीक
(ऩाऩशा ऩुडियीकाषाम नभ्) बगलान के श्रीतलग्रश की स्थाऩना की थी, सजवका
आज अस्ती्ल नशीॊ शैं , मद्तऩ अश्लतीथा की वॊगतत प्राप्त त शोती शैं ।
श्री भशोदम एलॊ श्री एकिाय तीथा - प्राचीन कारभें हशभारम वे आनेलारी नदीॊमों भें
वयस्लती का कार गॊगालतयणवे एलॊ मभुनाजी वे बी ऩूलाका शैं । कारान्तयभें गॊगा-
मभुनाका प्रलाश इवके वाथ वॊगभ कयता था मथा इवे भशोदमतीथा नाभ नभरा औय
ऩुयाणेततशावानुवाय ऩूलाकारभें कु ळके तुयाजा वऩरयलाय इन्रके आदेळवे मशाॊ
(वयस्लतीभें) स्नान-दानाहद कयके स्लगाको प्राप्त त शु आ था । स्लगाका िाय शोनेवे इवे
एकिायतीथा कशा गमा शै । मशाॊ स्नान-दानाहदका तलळेऴ भश्ल शैं ।
श्री भाका डिे माश्रभ, अषमलि एलॊ सवद्धचाभुडिा – श्री भाका डिे म भुननने इवी स्थानऩय
वयस्लती भशाऩुयाण की यचना की थी । मशाॊ सवद्धेश्लय भशादेल का भॊहदय बी शै , जो
भशतऴा भाका डिे म के ऩयभायाध्म थे । श्री भुयरीभनोशय भॊहदय (खाकचौक) शी मश
ऩुननत स्थान शैं । इवके ऩृटिबागभें सवद्धकू ऩ (प्राचीन सानलाऩी) शैं औय कु छ शी
कदभकी दूयी ऩय सवद्धचाभुडिा (भशाकारी) का भॊहदय शैं । अषमलिलिे ळ
प्रतऩताभशाग्रे रूसक्भणीकु डिॊ त्ऩसश्चभे कतऩरानदी ततीये कतऩरेश्लय् मशाॊ एक
अषमलि बी था जो आज प्राम् नशीॊ शैं ।
श्री शऴातफन्दु वयोलय, अल्ऩा वयोलय, भातृगमा तीथा, श्रीकदाभाश्रभ, श्रीगूशतीथा एलॊ गूशेश्लय
भशादेल - मे वबी स्थान एक शी जगश ऩय शैं । इन वफका आधाय एलॊ वॊगतत
अनेक इततशाव (याभामण-भशाबायत), ऩुयाणो भें शैं मद्तऩ श्रीभभबागलतभें स्कॊ ध
३।२१।३८-३९ एलॊ ३।३३।३१ भें उऩरब्ध शैं । श्री तफन्दुवयोलय, अल्ऩा वयोलय एलॊ
भातृगमा के वॊदबाभें आगे फतामा गमा शैं । तफन्दु वयोलय ऩूये बायतलऴाभें चाय स्थानभें
शैं - १ सवद्धऩुय, २ बुलनेश्लय (जगन्नाथऩुयी), ३ कु रूषेत्र एलॊ ४ हशभारमभें
वयमूनदीका उभगभ स्थान । हकन्तु ऩुयाणोभें तफन्दुवयोलय, सवद्धषेत्र, कदाभाश्रभ,
वयस्लती नदी के वाशचमाकी फात नरखी शैं जो के लर सवद्धऩुयभें शी नभरती शैं ।
कदाभाश्रभ जो आज कदभलािी के नाभ वे प्रसवद्ध शो गमा शैं , जशाॊ ऩयभ लैटणल श्री
भशाप्रबुजीकी फैठक शैं । भशतऴा कदाभ मशाॊ आमुलेद एलॊ औऴनधम वॊळोधन कयते थे
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। श्री कतऩर बगलानने जशाॊ भाताको वाॊ्मळास्त्रका उऩदेळ हकमा औय अॊतभें
भाताको लय हदमा हक सवद्धषेत्रे तु देशु्माॊ नळरामाॊ भातृकी गमा लशी भातृगमातीथा
फना । मशाॊ ऩय एक नमी सानलाऩीका शैं सजवका नाभ गूशतीथा शैं । मशाॊ श्री
गमागदाधय बगलान के वभीऩभें शी गूशेश्लय भशादेल का भॊहदय शैं । प्राचीन कारभें
बगलान कातताक (गूश) ने इवकी स्थाऩना की थी । मशाॊ बगलान श्रीगूश का श्रीतलग्रश
बी तलयाजभान शैं ।
श्री दनधस्थरी (देथरी) – देशस्थरी – भशतऴा दनधची की मश तऩोबूनभ शैं । बायतलऴा
के वबी दनधच ब्राह्मणों का मश भूर स्थान शैं । उनके ऩुत्र तऩप्त ऩराद अथलालदे ीम
ळाखा प्रलताक ऋतऴ थे । प्रश्नोऩननऴद ब्राह्मण उनका सानप्रवाद शैं ।
प्राचीन कार भें दधीनच नाभ के एक भशतऴा थे। उनकी ऩ्नी का नाभ गबसस्तनी था।
भशतऴा लेद-ळास्त्रों के ऩूणा साता थे औय स्लबाल के फड़े शी दमारु थे। अशॊ काय तो
उन्शें छू तक नशीॊ गमा था। ले वदा दूवयों का हशत कयना अऩना ऩयभ धभा वभझते
थे। उनके ्मलशाय वे उव लन के ऩळु-ऩषी तक वॊतटु ि थे, जशाॉ ले यशते थे। गॊगा के
ति ऩय शी उनका आश्रभ था। जो बी अततसथ उनके आश्रभ ऩय आता था, उवकी
भशतऴा औय उनकी ऩ्नी श्रद्धा बाल वे वेला कयते थे।
एक हदन की फात शै , भशतऴा के आश्रभ ऩय रुर, आहद्म, असश्लनीकु भाय, इॊर, तलटणु मभ
औय असनन आए। देलावुय वॊग्राभ वभाप्त त शु आ था सजवभें देलताओॊ ने दै्मों को
ऩयास्त कय हदमा था। तलजम के कायण वबी देलता शतऴात शो यशे थे। उन्शोंने आकय
मश प्रवन्नता-बया वभाचाय भशतऴा को वुनामा। भशतऴा ने उक्त देलताओॊ का वभुनचत
स्लागत हकमा औय उनके आने का कायण ऩूछा । देलताओॊ ने कशा , ‘‘शे बगलान् !
आऩ इव ऩृथ्ली के कल्ऩलृष शैं । आऩ जैवे तऩस्ली ऋतऴ की महद शभाये ऊऩय कृ ऩा
शो तो शभाये भागा भें हकवी प्रकाय की कहठनाई उऩसस्थत नशीॊ शो वकती। ‘‘शे
भुननश्रेटठ ! जीतलत भनुटमों के जीलन का इतना शी पर शै हक तीथों भें स्नान , वभस्त
प्रासणमों ऩय दमा औय आऩ जैवे तऩस्ली भशतऴा के दळान कयें। इव वभम शभ दै्मों
को ऩयास्त कयके आए शैं औय इवके ऩश्चात् आऩके दळान कयके शभायी प्रवन्नता
दूनी फढ़ गई शै । अफ शभाये ऩाव मे अस्त्र-ळस्त्र शैं । इनका फोझ अफ शभ नशीॊ ढो
वकते औय महद इन्शें रे जाकय स्लगा भें यख बी दें तो शभाये ळत्रु हकवी तयश ऩता
रगाकय कबी बी इन्शें रे जा वकते शैं , इवनरए शभाया तलचाय इन अस्त्र-ळस्त्रों को
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आऩके आश्रभ ऩय शी यखने का शै ।‘‘शे भुननश्रेटठ ! महद आऩ आसा दे दें तो इन्शें शभ
मशीॊ छोड़ जाएॉ। इववे अनधक उऩमुक्त स्थान शभें नशीॊ नभर वकता, क्मोंहक मशाॉ वे
दै्म इनको चुयाकय नशीॊ रे जा वकें गे।
शे बगलन् ! आऩकी तऩस्मा के प्रबाल वे आऩका स्थान ऩयभ वुयसषत शै । इवनरए
‘‘

शभ अऩने अस्त्र-ळस्त्रों को मशाॉ छोे़ड़कय ननसश्चॊत शोकय अऩने रोक को जाना


चाशते शैं । आऩ इवके नरए आसा दीसजए।’’देलताओॊ की फात वुनकय भशतऴा दधीनच
ने अऩने वयर स्लबाल के कायण कश हदमा, ‘‘देलताओॊ ! भेया जीलन तो वदा दूवयों
के उऩकाय के नरए शी ्मतीत शु आ शै औय इवी तयश शोगा। तुभ अऩने अस्त्र-ळस्त्रों
को मशाॉ यख वकते शो। भुझे इवभें हकवी प्रकाय की आऩतत नशीॊ शै ।’’ सजव वभम
भशतऴा ने मश कशा था, उव वभम उनकी ऩ्नी बी लशाॉ खड़ी थी, उवने योकते शु ए
कशा, ‘‘ऐवा तलयोध उ्ऩन्न कयने लारा कामा भत करयए स्लाभी ! दै्मों को जफ ऩता
चरेगा हक देलताओॊ के अस्त्र-ळस्त्र शभने नछऩाकय यख हदए शैं तो ले शभाये ळत्रु शो
जाएॉगे औय शय प्रकाय वे शभें कटि ऩशुॉ चाने का प्रम्न कयेंग।े आऩको इव फीच भें
ऩड़ने की क्मा आलश्मकता शै ? ‘‘शे स्लाभी ! जो ळास्त्रों का सान प्राप्त त कयके
ऩयभाथा-तत्त्ल भें सस्थत शो चुके शैं , वॊवाय के कामों भें सजनकी कोई आवसक्त नशीॊ शै ,
उन्शें दूवयों के नरए वॊकि भोर रेने वे क्मा राब ? आऩ वोनचए तो प्राणनाथ ! महद
इन अस्त्र-ळस्त्रों भें भानो कोई चोयी चरा गमा तो देलता बी शभाये ळत्रु शो जाएॉगे,
उधय दै्म शय प्रकाय वे इनको छीनने का प्रम्न कयेंग।े इव प्रकाय ्मथा नचत की
ळाॊतत नटि शोगी। हपय आऩ तो लेद के साता शैं , आऩको इव ऩयाए धन वे भभ्ल
जोड़ना हकवी प्रकाय उनचत नशीॊ शै । वाधु ऩुरुऴ भें महद धन देने की ळसक्त शो तो
तफना हकवी प्रकाय का तलचाय हकए उवे माचक को धन दे देना चाहशए। महद धन देने
की ळसक्त न शो तो वाधु ऩुरुऴ को के लर भन, लाणी तथा ळायीरयक हिमाओॊ के िाया
दूवये का उऩकाय कयना चाहशए रेहकन ऩयाए धन को धयोशय के रूऩ भें अऩने मशाॉ
यखना वाधु के नरए हकवी प्रकाय बी उनचत नशीॊ शै । ऩूयी तयश ऩरयसस्थतत ऩय तलचाय
कयके आऩ देलताओॊ को उनके अस्त्र-ळस्त्र रौिा दीसजए।’’
ऩ्नी की फात वुन दधीनच ने कशा, ‘‘तप्रमे ! तुभवशाया कथन उनचत शै , रेहकन अफ भैं
देलताओॊ को लचन दे चुका शूॉ । महद अफ तुभवशाये कशने वे इन अस्त्र-ळस्त्रों को यखने
की अस्लीकृ तत प्रकि करूॉगा तो देलताओॊ के रृदम भें भेये प्रतत वभवभान कभ शो

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जाएगा औय अऩने लचन को लाऩव रेकय भेये रृदम भें बी प्रवन्नता नशीॊ शोगी।
इवनरए अफ तो जो कु छ शो गमा लशी उनचत शै ।’’ अऩने ऩतत की मश फात वुनकय
गबसस्तनी आगे कु छ नशीॊ फोरी। देलता ननसश्चॊत शोकय चरे गए। जफ दै्मों को ऩता
चरा हक देलताओॊ के अस्त्र-ळस्त्र भशतऴा के आश्रभ ऩय शैं तो ले अनेक प्रकाय के
उऩरल भचाने रगे औय भशतऴा को मश ळॊका शो उठी हक कशीॊ दै्म इन अस्त्र-ळस्त्रों
को चुयाकय न रे जाएॉ। ऩूये एक शजाय लऴा ्मतीत शो चुके थे। देलता हकवी प्रकाय
का वभाचाय तक रेने नशीॊ आए थे। तफ एक हदन भशतऴा ने अऩनी ऩ्नी वे कशा ,
‘‘तप्रमे ! देलताओॊ को गए ऩूयी एक वशस्राब्दी फीत गई , अबी तक उन्शोंने अऩने

अस्त्र-ळस्त्रों को आकय नशीॊ वॉबारा। दै्म भशाऩयािभी शैं । उन्शें ऩता तो रग शी


गमा शै हक देलताओॊ के अस्त्र-ळस्त्र शभाये ऩाव शैं , कशीॊ ले आकय उन्शें छीन न रे
जाएॉ। तफ तो फड़ी तलकि ऩरयसस्थतत उऩसस्थत शो जाएगी। उववे ऩशरे शभाये नरए
कौन-वा उनचत भागा शै , इव तलऴम भें अऩनी वभवभतत प्रकि कयो ?’’ उनकी ऩ्नी कोई
उऩाम वोचने रगी, रेहकन उवकी वभझ भें कु छ बी नशीॊ आमा। तफ भशतऴा ने शी
वोचकय कशा, ‘‘देली ! महद तुभवशायी वभवभतत शो तो भैं इन वबी अस्त्र-ळस्त्रों को
ळसक्तशीन कय दूॉ ?’’ गबसस्तनी ने मश फात स्लीकाय कय री। उवी षण भशतऴा ने
भॊत्रोच्चायण कयते शु ए उन वबी अस्त्र-ळस्त्रों को ऩतलत्र जर भें नशरामा औय हपय
ले उव वलाास्त्रभम ऩयभ ऩतलत्र औय तेज-मुक्त जर को ऩी गए। तेज ननकरने वे
वबी अस्त्र-ळस्त्र ळसक्तशीन शो गए। धीये-धीये ले नटि शो गए।
इवके कु छ वभम ऩश्चात् देलता भशतऴा के ऩाव आए औय उन्शोंने अऩने अस्त्र-
ळस्त्रों को लाऩव भाॉगा। देलावुय वॊग्राभ हपय प्रायॊब शो चुका था। दै्मों ने अऩनी
ळसक्त फढ़ाकय देलताओॊ ऩय आिभण कय हदमा था। देलताओॊ के अस्त्र-ळस्त्र भाॉगने
ऩय भशतऴा ने कशा, ‘‘आऩके अस्त्र-ळस्त्र तो भेये ळयीय के अॊदय सस्थत शैं ! ऩूयी
वशस्राब्दी फीत गई, तफ बी आऩ उन्शें रेने नशीॊ आए। तफ भैंने इव बम वे हक कशीॊ
दै्म इनको चुयाकय न रे जाएॉ, उन्शें भॊत्रोच्चायण के वाथ ऩतलत्र जर वे स्नान
कयाकय औय उव जर को ऩीकय ऩूयी तयश ळसक्तशीन कय हदमा। अफ उन वबी
अस्त्र-ळस्त्रों का फर भेये ळयीय भें ऩशुॉ च चुका शै , आऩ रोग जैवा कशें लैवा शी भैं
करूॉ !’’ भशतऴा की फात वुनकय देलता तलनीत स्लय भें कशने रगे, ‘‘शे भुननश्रेटठ !
अस्त्र-ळस्त्रों के तफना तो शभ ननस्वशाम-वे अवुयों के शाथों भाये जाएॉग।े आऩ हकवी
प्रकाय ळस्त्रों का प्रफॊध करयए। आऩ जानते शी शैं हक दै्म भशाऩयािभी शैं औय
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अफकी फाय तो उन्शोंने अऩाय वैन्म दर एकतत्रत कय नरमा शै । हकवी प्रकाय शभायी
यषा करयए !’’ मश वुनकय दधीनच फोरे, ‘‘शे देलताओॊ ! भेया उद्देश्म तुभवशाया अहशत
कयने का कबी नशीॊ था। अफ तो तुभवशाये वाये अस्त्र-ळस्त्र भेयी असस्थमों भें नभर चुके
शैं । महद तुभ उनको रे जाना चाशो तो रे जा वकते शो।’’ सजव वभम भशतऴा ने
देलताओॊ के वाभने मश प्रस्ताल यखा था, उवकी ऩ्नी कशीॊ फाशय चरी गई थी।
देलता उववे फशु त ियते थे। उवको लशाॉ उऩसस्थत न देखकय उन्शोंने कशा , ‘‘शे
भुनीश्लय ! आऩ शभें अऩनी असस्थमों को शी दे दीसजए, रेहकन करयए ळीघ्रता।’’
दधीनच ने उवी वभम वभानध रगा री औय अऩने प्राण ्माग हदए। कु छ शी षण
ऩश्चात् उनका ळयीय ननटप्राण शो गमा। मश देखकय देलताओॊ ने तलश्लकभाा वे कशा,
‘‘शे तलश्लकभाा ! अफ भशतऴा की असस्थमाॉ रेकय आऩ अनेक अस्त्र-ळस्त्र फना

िानरए।’’ तलश्लकभाा ने कशा, ‘‘देलताओॊ ! मश ब्राह्मण का ळयीय शै । भैं इवका उऩमोग


कयते शु ए ियता शूॉ । जफ के लर इनकी असस्थमाॉ भात्र यश जाएॉगी, तबी भैं इवभें शाथ
रगाऊॉगा औय उनवे अस्त्र-ळस्त्र का ननभााण करूॉगा।’’ तलश्लकभाा के रृदम के बम
को दूय कयने के नरए देलताओॊ ने गौओॊ वे कशा, ‘‘शे गौओ ! शभ तुभवशाया भुख लज्र
के वभान कय देते शैं । तुभ जाकय भशतऴा दधीनच के ननटप्राण ळयीय को तलदीणा कय
िारो औय उनका असस्थऩॊजय ळेऴ छोड़कय फाकी वबी भाॊव को अरग कय दो।’’
देलताओॊ का आदेळ भानकय गौओॊ ने जाकय भशतऴा के ळयीय को तलदीणा कय िारा
औय के लर असस्थभात्र शी खड़ी छोड़ दी। देलताओॊ ने प्रवन्न शोकय उन असस्थमों
को उठा नरमा औय ले उन्शें रेकय अऩने रोक को चरे गए। थोड़ी देय फाद शी
भशतऴा की ऩ्नी गबसस्तनी आई। उवके शाथों भें ऩानी वे बया करळ था औय उवभें
कु छ ऩुटऩ थे। लश अऩने ऩतत के दळानों के नरए रारानमत शोकय ळीघ्रता वे चरकय
आई थी, रेहकन आश्रभ ऩय भशतऴा को न देखकय उवके रृदम भें नचॊता वभा गई। लश
घफयाकय इधय-उधय ऩतत को खोजने रगी। उव वभम लश गबालती थी। जफ कशीॊ
बी ऩतत को नशीॊ ऩा वकी तो उवने असननदेल वे ऩूछा,‘‘शे असननदेल ! भेये ऩततदेल
आश्रभ ऩय हदखाई नशीॊ देते, कृ ऩा कयके फताइए, ले कशाॉ चरे गए शैं ?’’ असनन ने
भशतऴा के प्राण ्मागने का वाया लृताॊत गबसस्तनी को कश वुनामा। ऩतत की भृ्मु का
दु्खद वभाचाय वुनकय गबसस्तनी तलराऩ कयती शु ई ऩृथ्ली ऩय नगय ऩड़ी। उव वभम
ऩतत के तलमोग वे उवके करुण िॊ दन को वुनकय लन के लृष बी योने रगे।
असननदेल ने आकय उव कल्माणी को धैमा फॉधामा। उवने योते-योते कशा, ‘‘भैं

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देलताओॊ को ळाऩ देने के नरए वभथा नशीॊ शूॉ , इवनरए स्लमॊ शी असनन भें प्रलेळ
करूॉगी। ऩतत के तफना इव अनबळप्त त जीलन को बी यखकय क्मा शोगा ? भेया वलास्ल
चरा गमा, अफ भैं बी जाकय ऩयरोक भें ऩतत वे नभरूॉगी, तबी भेयी आ्भा को ळसक्त
नभरेगी। ‘‘शे असननदेल ! भैं अऩनी इव देश को आऩको वभऩाण कयती शूॉ ।’’
असननदेल शय तयश वे गबसस्तनी को वभझाने रगे, रेहकन उवने प्राण ्मागने का ऩूयी
तयश ननश्चम कय नरमा था। उवी वभम उवने अऩना ऩेि चीयकय गबा के फारक
को फाशय ननकार नरमा औय हपय गॊगा, ऩृथ्ली, आश्रभ तथा लन के लृष औय रताओॊ
को प्रणाभ कयके फोरी, ‘‘भेया मश फारक आऩको वभतऩात शै । मश अबागा अऩने
तऩता वे तो शीन शो शी चुका शै औय अफ भाता वे बी शीन शो जाएगा।
शे लन के लृषों ! इवकी यषा कयना। तुभवशीॊ इवके भाता-तऩता शो।’’ मश कशकय
‘‘

भशतऴा की ऩ्नी ने फारक को ऩीऩर के वभीऩ यख हदमा औय हपय लश स्लमॊ नचता


जराकय उवभें फैठ गई औय अऩने ऩतत के ऩाव हद्म रोक को चरी गई। जफ
आश्रभ वूना शो गमा औय लन के ऩळु तथा ऩसषमों को दमारु भशतऴा औय उनकी
ऩ्नी नशीॊ हदखाई हदए तो ले लशाॉ आकय तलराऩ कयने रगे। यश-यशकय उन्शें ऋतऴ
औय ऋतऴ ऩ्नी के भधुय ्मलशाय की माद आने रगी औय ले एक-दूवये वे कशने
रगे, ‘‘अफ शभ तऩता दधीनच औय भाता गबसस्तनी के तफना हकवी प्रकाय बी जीतलत
नशीॊ यश वकते। सजव स्नेशऩूणा दृसटि वे ऋतऴ औय ऋतऴ-ऩ्नी शभायी ओय देखा
कयते थे, उव तयश तो वगे भाता-तऩता बी नशीॊ देखते। शा ! शभ कै वे ऩाऩी शैं हक
अफ उनके दळानों वे लॊनचत शोकय ननस्वशाम-वे इव लन भें बिक यशे शैं । आज मश
आश्रभ कै वा श्भळान जैवा रग यशा शै । नशीॊ तो ऋतऴ के उऩसस्थत यशते इवके चायों
ओय लृषों का एक-एक ऩता स्नेश वे भुस्कयाता यशता था। ‘‘शा तलधाता ! वॊवाय भें ले
बी हकतने दुखी शैं सजनके भाता-तऩता स्लगालावी शो चुके शैं ।’’ मश कशकय ले वबी
उव फारक के ऩाव आए, सजवे ऋतऴ-ऩ्नी जन्भ देकय छोड़ गई थी। उन्शोंने उवके
नरए वफ प्रकाय की ्मलस्था की। लनस्ऩततमों औय औऴनधमों ने राकय उवके नरए
याजा वोभ वे अभृत भाॉगा। वोभ ने वशऴा अभृत दे हदमा। लनस्ऩततमों ने उव अभृत
को राकय फारक को दे हदमा। फारक हदन-प्रततहदन फढ़ने रगा। ऩीऩर के लृषों ने
उवका ऩारन हकमा था, इवनरए ‘तऩप्त ऩराद’ के नाभ वे लश प्रसवद्ध शु आ।

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जफ तऩप्त ऩराद फड़ा शु आ तो लश अऩने आऩको अके रा लन भें ऩाकय लृषों वे कशने
रगा, ‘‘शे शभ लन के लृषो ! वबी वौबानमळारी फारकों के भाॉ-फाऩ उनका रारन-
ऩारन कयते शैं , रेहकन भेये भाता-तऩता ने भेया ऩारन-ऩोऴण क्मों नशीॊ हकमा ? ले कशाॉ
चरे गए शैं , कृ ऩा कयके भुझे फताओ ?’’ फारक का वयर प्रश्न वुनकय लृषों को हपय
ऋतऴ-ऩ्नी की माद आ गई औय ले दुखी शोकय योने रगे। तऩप्त ऩराद ने कौतूशरलळ
शोकय ऩूछा, ‘‘श्रेटठ लृषो ! तुभ इतने दुखी क्मों शोते शो ?’’ तफ लृषों ने तऩप्त ऩराद वे
ऋतऴ का जीलन वॊफॊधी वाया लृताॊत कश वुनामा। उवे वुनते शी तऩप्त ऩराद योने रगा
औय कशने रगा, ‘‘शा तलधाता। तूने भुझे इव ऩृथ्ली ऩय जन्भ शी क्मों हदमा ? भैं कै वा
अबागा शूॉ हक सजन भाता-तऩता ने भुझे जन्भ हदमा, उनका शी भुख नशीॊ देख ऩामा।
सजव ऩुत्र को भाता का स्नेश न नभरा शो, उवका जीलन ्मथा शै ।’’ फारक के तलराऩ
को वुनकय लृषों के रृदम बी हशर उठे । ले अनेक प्रकाय वे उवको धैमा फॉधाने रगे,
रेहकन फारक ननस्वशाम-वा योता यशा औय हपय देलताओॊ ऩय िु द्ध शोकय उवने
कशा, ‘‘सजन स्लाथी देलताओॊ ने भेये तऩता के प्राण नरए शैं औय जो भेयी भाता के बी
भृ्मु का कायण फने शैं , ले आज वे शी भेये ळत्रु शैं । जफ तक भैं उनका लध न कय
रूॉगा, तफ तक धैमा रेकय नशीॊ फैठूॉगा। इव वॊवाय भें श्रेटठ ऩुत्र लशी शै जो अऩने तऩता
के ळत्रु को नटि कयने की वाभथ्मा यखता शै । देलताओॊ को नटि हकए तफना भेया
जीलन ्मथा शै ।’’ तऩप्त ऩराद की मश प्रततसा वुनकय लृषों ने कशा, ‘‘शे वुव्रत ! तुभवशायी
भाता ने ऩयरोक जाते वभम मश उभगाय प्रकि हकमा था-जो भनुटम दूवयों के रोश भें
रगे यशते शैं , मा जो अऩने कल्माण की फातें बूरकय भ्राॊतनचत शोकय इधय-उधय
बिकते यशते शैं , ले नयक के गता भें जाकय नगयते शैं ।’’
भाता की इव फात को वुनकय तऩप्त ऩराद ने अवॊतटु ि शोकय कशा, ‘‘श्रेटठ लृषों ! भाता
ने कु छ बी कशा शो, रेहकन सजवके अॊत्कयण भें अऩभान की आग प्रज्लनरत शो
यशी शो, उवके वाभने वाधुता की फातें कयना ्मथा शै । भैंने तो ळत्रुओॊ का ध्लॊव कयने
की प्रततसा कय री शै । उवे ऩूया हकए तफना भैं चैन वे नशीॊ फैठ वकता। ’’ मश कशकय
तऩप्त ऩराद चिे श्लय भशादेल के स्थान ऩय गमा औय लशाॉ फैठकय बगलान् ळॊकय की
आयाधना कयने रगा। तऩप्त ऩराद की आयाधना वे प्रवन्न शोकय बगलान् ळॊकय ने उवे
दळान हदमा औय लय भाॉगने के नरए कशा। तऩप्त ऩराद ने कशा, ‘‘शे भशादेल ! भैं अऩने
ळत्रु देलता को नटि कयने के नरए ळसक्त चाशता शूॉ ।’’ उवी वभम बगलान् ळॊकय के
नेत्रों वे बमॊकय कृ ्मा प्रकि शु ई। उवकी आकृ तत फड़ला के वभान थी। वॊऩूणा जीलों
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का तलनाळ कयने के नरए उवने अऩने गबा भें असनन नछऩा यखी थी। भृ्मु के -वे
बमानक आकाय लारी लश कृ ्मा ननकरकय तऩप्त ऩराद वे कशने रगी , ‘‘शे बर !
फोरो, भैं तुभवशाये हशत के नरए हकवको नटि करूॉ ?’’ तऩप्त ऩराद ने कशा, ‘‘देलता भेये ळत्रु
शैं , तू जाकय उन्शें शी खा जा।’’
उवी वभम फड़ला के गबा की असनन प्रचॊि रऩिों के वाथ फाशय पू ि ऩड़ी औय
देलरोक की ओय चर दी। उव भशाबमानक असनन को आते देखकय देलता बमबीत
शोकय ननस्वशाम-वे ऩुकायने रगे। वबी अऩनी जान-फचाने के नरए इधय-उधय
बागने रगे, रेहकन कशीॊ बी फचने का उऩाम नशीॊ हदखता था। अॊत भें ले भशादेल की
ळयण भें गए औय उन्शीॊ वे यषा के नरए प्राथाना कयने रगे।
ळयणागत देलताओॊ ऩय कृ ऩा कयके बगलान् नळल ने उन्शें अबम दे हदमा औय ले
स्लमॊ तऩप्त ऩराद के ऩाव आकय कशने रगे, ‘‘फेिा तऩप्त ऩराद ! देलता तुभवशायी ळसक्त के
कायण त्राहश-त्राहश कयते हपय यशे शैं । कशीॊ फचने का उऩाम न देखकय अॊत भें ले भेयी
ळयण भें आए शैं । अफ तुभ भेये कशने वे इन ऩय अनधक योऴ भत हदखाओ। वोचो
तो, महद तुभ इनका नाळ कय दोगे तफ बी तुभवशाये भाता-तऩता रौिकय नशीॊ आएॉगे
औय हपय वॉबलतमा तुभ मश नशीॊ जानते हक भशतऴा दधीनच ने तो स्लमॊ शी अऩनी
इच्छा वे देलताओॊ के हशत के नरए अऩने प्राणों का ्माग हकमा शै । ऐवे उऩकायी
औय दमारु तऩता के ऩुत्र शोकय तुभवशाया इव प्रकाय देलताओॊ ऩय िोध कयना उनचत
नशीॊ शै । वॊवाय भें ले शी ऩुरुऴ धन्म शैं जो दूवयों के हशत भें अऩने प्राण उ्वगा कय
देते शैं । ऐवे धभाा्भा तऩता औय गबसस्तनी जैवी ऩयभ गुणलती औय ऩततव्रता देली के
ऩुत्र शोकय तुभवशाये नरए इव प्रकाय िोध कयना उनचत नशीॊ शै । ‘‘फेिा ! वोचो तो,
तुभवशाये तऩता कै वे ळसक्तळारी थे सजनकी असस्थमों वे देलता वदा दै्मों के ऊऩय
तलजम प्राप्त त कयते शैं । हपय तुभवशाया बी प्रताऩ कभ नशीॊ शै । इवी वे आज देलता स्लगा
वे भ्रटि शोकय ननस्वशाम-वे भेयी ळयण भें आए शैं । आता प्रासणमों की यषा वे फढ़कय
दूवया कोई ऩुडम नशीॊ शै । िोध छोड़कय देलताओॊ की यषा कयो। इववे तऩता की
बाॉतत तुभवशायी बी दमारुता का ऩाया चायों हदळाओॊ भें पै र जाएगा।’’
बगलान् ळॊकय इव तयश तऩप्त ऩराद को वभझाने रगे। तऩप्त ऩराद ने भशादेल के चयणों
भें अऩना सवय यखकय तलनीत स्लय भें कशा, ‘‘शे बगलान् ! जो भन, लाणी औय हिमा
िाया वदा भेये हशत भें त्ऩय यशते शैं , ऐवे दमारु स्लाभी ! आऩको भैं नभस्काय कयता
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शूॉ । भैं देलताओॊ को षभा कय वकता शूॉ देल ! रेहकन भेयी एक इच्छा शै । सजन्शोंने
भाता-तऩता की बाॉतत भेया ऩारन-ऩोऴण हकमा शै -उन्शीॊ के नाभ वे मश ऩतलत्र स्थान
प्रसवद्ध शो औय मश ऩुडम तीथा भाना जाए। इववे भैं उनके ऋण वे उऋण शो
वकूॉ गा। महद देलता मश स्लीकाय कय रें हक ऩृथ्ली ऩय सजतने बी ऐवे तीथा शैं , जशाॉ
उनकी प्रततटठा शोती शै , उनवे अनधक भाशा्भवम इव तीथा का शोगा तो भैं अऩना वाया
योऴ लाऩव रे रूॉ।’’ बगलान् ळॊकय ने देलताओॊ वे मश फात कशी। देलताओॊ ने तुयतॊ
मश स्लीकाय कय नरमा औय ले वबी तऩप्त ऩराद की दमारुता की प्रळॊवा कयते शु ए
अऩने रोक को चरे गए। इवके ऩश्चात् बगलान् ळॊकय ने तऩप्त ऩराद वे कशा , ‘‘फेिा,
तुभने भेयी फात भानकय लशी कामा हकमा शै जो भैं चाशता था। इवके अराला भाता-
तऩता के प्रतत तुभवशायी अनॊत बसक्त शै औय उन लृषों के प्रतत बी तुभवशाये रृदम भें प्रेभ
शै , सजन्शोंने तुभवशाया ऩारन-ऩोऴण हकमा शै , इन्शीॊ कायणों वे भैं तुभवशाये ऊऩय अ्मनधक
प्रवन्न शूॉ , फोरो, तुभवशाया औय क्मा भनोयथ शै , उवे बी भैं इवी षण ऩूया करूॉगा।’’
तऩप्त ऩराद ने कशा, ‘‘शे भशादेल ! भेयी मशी इच्छा शै हक भेये भाता-तऩता औय मे वबी
लृष वदा आऩका दळान कयें औय आऩके शी धाभ भें जाकय ननलाव कयें। मे देलता
बी आऩकी कृ ऩा वे वुखी शोकय आऩके शी वाथ शो जाएॉ।’’ तऩप्त ऩराद की मश फात
वुनकय देलताओॊ ने प्रवन्न शोकय कशा, ‘‘शे बर ! तुभ धन्म शो। तुभने अऩने हशत की
ऩशरे नचॊता न कयके दूवयों के कल्माण के नरए बगलान् ळॊकय वे लय भाॉगा शै , इववे
प्रवन्न शोकय शभ बी कु छ लय देना चाशते शैं ।’’ तऩप्त ऩराद ने कशा, ‘‘शे देलताओॊ ! महद
आऩ भेया हशत कयना चाशते शैं , तो भेयी एक इच्छा ऩूणा करयए। भैं एक फाय अऩने
स्लगीम भाता-तऩता को देखना चाशता शूॉ । महद आऩ उन्शें हदखा वकें तो आऩकी
अतत कृ ऩा शोगी औय भैं वॊवाय भें अऩने आऩको ऩयभ वौबानमळारी भानूॉगा।’’
देलताओॊ ने वशऴा तऩप्त ऩराद की फात स्लीकाय कय री औय उववे कशा , ‘‘शे भुननऩुत्र !
देखो, तुभवशाये भाता औय तऩता हद्म तलभान ऩय चढ़कय आ यशे शैं । तलऴाद छोड़कय
अऩने भन को ळाॊत कयो औय देखो, अऩने तऩता भशतऴा दधीनच औय भाता गबसस्तनी
वे नभरो।’’ देलताओॊ के कशते शी एक हद्म तलभान आमा। भशतऴा दधीनच औय उनकी
ऩ्नी उव ऩय फैठे शु ए थे। लश तलभान आकय उवी स्थान ऩय उतया जशाॉ तऩप्त ऩराद
खड़ा शु आ था। तऩप्त ऩराद ने अऩने भाता-तऩता को कबी नशीॊ देखा था, इवनरए लश
उनको नशीॊ ऩशचान ऩामा औय कौतूशरलळ शोकय उनकी ओय देखने रगा। तफ

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स्लमॊ भशतऴा औय उनकी ऩ्नी ने स्नेशऩूणा लाणी वे कशा, ‘‘ऩुत्र, तुभवशें देखने की रारवा
वे शभ हद्म रोक वे आए शैं । तुभ शभाये तफना इव भृ्मुरोक भें हकवी प्रकाय का
तलऴाद भत कयना। वदा अऩने कता्म का ऩारन कयते यशना औय अऩने जीलन को
दूवयों के हशत भें शी रगाना। जो ्मसक्त के लर अऩने शी स्लाथा के नरए जीतलत यशते
शैं , उन अधभ प्रासणमों की ऩयरोक भें दुगातत शो जाती शै । ऩयोऩकायी शी वभगतत ऩाता
शै , ईश्लय तुभवशाये जीलन को वुखी यखे।’’ । तऩप्त ऩराद ऋतऴ ने उग्र तऩश्चमाा एलॊ
सानाजान, इवी सवद्धषेत्र भें हकमा था । मशाॊ ऩय ऩाडिल गुपा बी शैं । गुप्त तालाव के
दौयान ऩाडिलोंने मशाॊ कु छ कार ्मतीत हकमा था । ऩयभ ळाॊत एलॊ यभणीम बूनभ ऩय
एक ळाॊहिल्माश्रभ– कु डि औय स्लमॊबू लिे श्लय भशादेलका अतत प्राचीन भॊहदय बी शैं ।
श्री वयस्लती भशानदी – वयस्लती प्रागयकी कथा लेदकारीन शैं । अतत प्राचीन
ऋनलेद वे ऩुयाणकार ऩमान्त अनेक स्थान ऩय इवकी वॊगतत प्राप्त त शोती शैं । श्री
लाकणकय प्रेरयत श्री वयस्लतत ळोध अनबमान के अन्तगात श्री वयस्लती नदी ऩय
४००० ऩृटि का एक ग्रॊथ सवद्धऩुय के तलिान ऩॊहित श्री प्रेभलल्रब ळभााने नरखा था
औय श्री लाकणकयजी की प्रकाळन कयनेकी इच्छा ऩय, मश शस्तप्रत उनको ई.वन्
१९७९-८० भें, इनके सवद्धऩुय की भुराकात वभम दी थी । दुबाानमलळ इव ग्रॊथ कशीॊ
बी प्राप्त म नशीॊ शैं । श्री लाकणकयजीके ऩाव मश ग्रॊथ था सजवका प्रभाण उऩरब्ध शैं ।
इव ग्रॊथ ननभााणके नरए स्ल.ऩॊहितजीने हशभारम वे कच्छ ऩमान्त की तीन फाय मात्रा
की थी औय ऩुयातत्त्लीम अलळेऴ – नक्ळे इ्माहद बी रगाए थे । इव तऩश्चमाा का
पर न नभरना शभाया दुबाानम शैं ।
उऩयोक्त कथनानुवाय तऩप्त ऩराद िाया भशातलनाळक लिलानर – कृ ्मा उ्ऩन्न शु ई ।
तलश्ल कल्माणाथा उनका ळभन शोना आलश्मक था, मथा स्लमॊ लिलानर की
इच्छानुवाय ब्रह्माजी की ऩुत्री वयस्लती – कु यारयकाने इवे ग्रशण कयके रोक हशताथा
वभुरभें ळाॊत हकमा । इव ऩतततऩालनी वयस्लती के नाभ की वॊगतत ऋनलेद वे रेकय
ऩुयाण ऩमान्त वबी भें स्तुतत-वूक्ताहद के रूऩभें तलद्भान शैं ।
मशाॊ लृकीतीथा शै । ऩूलाकारभें ऩायनध िाया लेनधत लृकीका मशाॊ तऩप्त ऩरलृष के वभीऩ
भोष शु आ था । मशाॊ वे भोषतऩप्त ऩर औय वूमाकुडि के दो स्थान वभीऩभें शी शैं ।

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ऩॊचकोळी मात्रा का तलधान – ऩॊचकोळी मात्रा को तीन मा ऩाॊच हदलवभें ऩूयी कयनेका
तलधान शैं । इव मात्रा भें ऩौयासणक भशतऩूणा वबी भॊहदयो का दळान मथा तलनध
ननभवनानुवाय हकमा जाता शैं । आदौ देल-हिज-गुरू औय ळास्त्रभें अऩनी श्रद्धाको दृढ –
सस्थय ननश्चमी कयके मात्राका प्रायभवब कयना चाहशए ।

तलनध – प्रात् कारे, षौय-देशळुतद्ध-प्रामसश्चतान्ते, मथातलनध स्ना्ला वन्ध्मोऩावनाहद


नन्मकभाासण कृ ्ला, अॊजरौ गॊधाषतऩुटऩान्गृशी्ला तीथाान् प्राथामेत् - ओॊ सवद्धेश्रय्
सवद्धलिस्म वाषात्, सवद्धासभवफका सवद्धतलनामकश्च । सवद्धेळ षेत्रानधऩततश्च सवद्ध्
वयस्लती सवद्धकू ऩश्च वप्त त । कतऩरो कदाभश्चैल, प्राचीभाधल वॊमतु ा् । वयस्लतत
लेदभाता, प्रवीदन्तु भे भॊगरभ् ।। एलॊ वॊप्राथ्मा देल-हिज-गुरू नभस्कायऩूलाक, वॊकल्ऩॊ
कु माात् – अत्राद् भशा भाॊगल्मप्रदे .............भावे ...........ऩषे ..........ततथौ
.........लावये .......... गोत्रो्ऩन्नोशॊ ........... नाभा मजभानो वऩस्नको –
वऩरयलायोशॊ , अळेऴऩाऩषम ऩूलाक भभ वभस्त तऩतृणाॊ तलटणुरोके ब्रह्मरोके च
लऴावशस्रालनध वुखऩूलाक ननलावाथे (दळऩूलाान् दळऩयाना्भैकतलॊळतत
कु रोद्धायणऩूलाक श्रीश्रीस्थरदेलता प्रीतत वॊऩादनाथं च) ऩॊचकोळीमात्राॊ मथासान
िभेण अशॊ करयटमे । अलकाळानुवाय (गणेळॊ-वयस्लतीॊ स्भृ्ला न्ला च)
भानवोऩचायै् भशागणऩतत ऩूजन – स्भयण – ऩॊचलाक्मै् ऩुडमाशलाचनाहद कु माात् । इव
प्रकाय वॊकल्ऩाहद कयके श्रद्धामुक्त रृदमवे अऩने ऩूलाजोंका – कु राभवफाका स्भयण
कयते शु ए, मात्रा प्रायॊब कयें । ऩॊचकोऴी मात्रा की वूची ननभवनानुवाय शैं ।
श्री तऩडितायक तीथा श्री नयतीथा श्री अश्लतीथा श्री ब्रह्माजी औय ब्रह्माडिे श्लय
भशादेल श्री लारसखल्माश्रभ औय लारसखल्मेश्लय भशादेल श्री भशोदमतीथा श्री
वशस्रकरा भाता श्री एकिाय तीथा (श्री यहशळॊकय आया) श्री भुयरीभनोशय बगलान्
श्री सवद्धेश्लय भशादेल श्री सवद्धकू ऩ (प्राचीन सानलाऩी) श्री भाका डिे माश्रभ श्री
अषमलि श्री सवद्धचाभुडिा श्री अल्ऩा (अशल्मा) वयोलय श्री गूशतीथा – गूशेश्लय
भशादेल औय बगलान् श्रीगूश श्री ऩयळुयाभजी का दळान श्री तफन्दुवयोलय तीथा एलॊ
भातृगमा श्री गमागदाधय-कतऩर का दळान श्री व्मनायामण - श्री भशाकारी के
दळान श्री कदाभाश्रभ श्री भशाप्रबुजीकी फैठक श्री दनधस्थरी (देथरी) श्री
लिे श्लय भशादेल श्री ळासडिल्मकु डि श्री तऩप्त ऩरादाश्रभ श्री ऩाडिलगुपा श्री
चन्रतीथा (चन्रावण – चान्देवय) श्री भुडिीतीथा श्री वॊगभेश्लय श्री ऋतऴतिाग
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(ऋतऴ ताराफ – यवूर तराल) श्री खयेहिमा शनुभान् श्री लृकीरूरतीथा श्री
वॊस्कृ त-लैहदक भशातलद्ारम श्री गणेळतीथा श्री बरकारी भॊहदय श्री लायाशी भॊहदय
श्री शऴादभाता श्री गणऩततऩीठ (सवद्धतलनामक) श्री आभवफरीलारी भाता श्री
गॊगनाथ भशादेल श्री रूरभशारम औय श्री भशाबागा ऩीठ श्री छतफरा शनुभान् श्री
गोऩीनाथ भसन्दय श्री तफन्दुभाधल (श्री यणछोिजी भसन्दय) श्री याधाकृ टण भॊहदय श्री
ऩॊचभुखी शनुभान भॊहदय श्री फाफाजी की लािी श्री वयस्लती भॊहदय श्री वूमाकुडि
(चोराऩािा) श्री रक्ष्भीजी भॊहदय श्री गोतलन्दभाधर भॊहदय श्री गुरूदेल
धूॊधरीभरफाफा श्री गोलधाननाथ भॊहदय श्री धायभवफा भाता श्री सवद्धनाथ भॊहदय श्री
नगयेश्लय भशादेल श्री ब्रह्माणीभता (जोऴी की सखिकी) श्री लायाशीभाता
(लशलयलािा) श्री आळाऩुयी भॊहदय श्री कनके श्लयी भाता श्री श्माभजी भॊहदय ,श्री
रक्ष्भीनायामण भॊहदय, श्री सवद्धेश्लयी भता, श्री खोिीमारभाता, श्री लारूणीभाता श्री
नीरकडठे श्लय भशादेल, श्री योकहिमा शनुभान्, श्री व्मनायामण भॊहदय, श्री फिु क बैयल,
श्री ऩातारेश्लय भशादेल, श्री जनरमालीय, श्री गणऩतत भॊहदय, श्री हशॊ गराज भताता, श्री
अभवफाजीभाता इ्माहद ।
अॊतभें जफ आज स्त्री जागृतत औय भहशरा तलकाव एलॊ अनधकाय की फात ऩूया तलश्ल
कय यशा शैं तफ मश फताना अ्मालश्मक शैं हक स्त्री अभ्मु्थान की आधायळीरा
सवद्धऩुयभें शी शैं । देलशू तत भाता जो हक ऩयभा्भा के वृसटि ननभााणके भॊगरकामाका
नननभत फनी इतना शी नशीॊ बगलान वे वभस्त स्त्री जातत के कल्माण औय भुसक्त के
नरए लयदान ऩामी । उनकी शी ऩुत्री वतत अनवूमा सजवने जगदभवफा वीताजीको बी
वॊस्काय हदषा प्रदान की थी औय स्लफर वे तीनों ब्रह्मा-तलटणु-भशे ळ को फाल्मरूऩ
भें अलतरयत हकमा था । देलशू ततकी नल कन्माए बायतलऴा के नलखडिो भें गई थी ।
अलााचीन नोंध तक नशीॊ री शैं । के लर मशाॊ के आज जो सजलीत लृद्ध शैं उनको शी
मश व्म सात शैं । कारभें गॊ.स्ल.भेनाफेन याधाकृ टण ळुक्र एक आदळा गुरूभाता
फनकय अनेक नळटमोंको भाॊ का स्नेश एलॊ वाधु-वॊतो-तलिानों की वेला की । आज
कोई नेता एक लृषायोऩण कयता शैं तो, वबी चैनर ल न्मूजऩेऩयोभें ळीघ्र शी प्रकानळत
शो जाता शैं । मशाॊ की गॊ.स्ल.आनन्दीफेन भुगियाभ ऩडया एलॊ कभराफेन याभळॊकय
ळुक्र ने सवद्धऩुय शाई-ले वे रेकय देथरी-लिे श्लय – ऩाडिलगुपा तकके भागाकी दोनों
वाईि ऩय आजवे ४५ लऴा ऩूला २०१६ नीभ के ऩेि, एक व्रत के रूऩभें रगाए थे ।

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શ્રાદ્ધ રે. ઩ંડિત ઩યન્ત઩ પ્રેભળંકય
સવદ્ધ઩ુય
ppp.sidhpur@gmail.com
9898367174
વનાતન લૈડદક વભ્મતાભાં શ્રાદ્ધ ળબ્દ, લેદ-બ્રાહ્મણ ગ્રંથો થી રઈ, અઢાયે ઩ુયાણ,
સ્મૃતતગ્રંથો, વૂત્રગ્રંથો, યાભામણ અને ભશાબાયત જ ેલાં પ્રાચીન કાવ્મ અને
ઈતતશાવભાં ખૂ ફ જ લણણવ્મો છે. શ્રાદ્ધની ઩ાછ઱નો આધ્માત્મભક, તાકીક અને
લૈસાડનક અસબગભ વુસ્મ઩ષ્ટ કયતાં ઘણાં ફધાં ગ્રંથો, બાયતીમ અને ઩ાચ્છામમ
તલદ્વાનો દ્વાયા રખામા છે. આ રેખભાં આ઩ણે શ્રાદ્ધ એટરે ળું ? શ્રાદ્ધની
પ્રાચીનતા, શ્રાદ્ધની ભશત્ત્લ, શ્રાદ્ધના પ્રકાય, શ્રાદ્ધના આલશ્મક અંગો, શ્રાદ્ધનાં
રાબાડદ ઉ઩ય ધભણળાસ્ત્રાધાયે ચચાણ કયીળું.

મોગવૂત્રભાં सतिमूले िद्विपाके जात्यायुर्भोगः (઩ા.મો.2.13) કહ્ું


છે , જ ેનાં તલસ્મતાય રૂ઩ે અનેક મોડનમોભાં જીલામભા પયતો પયતો, ઩ોતાનાં કભાણળમભાં
પ઱ોન્ભુખ કભણ બોગલલાં ભાનલ જન્ભ રે છે તેનાં કભોની ફે અવય શોમ છે ,એક
જાતતડનણાણમક અને ફીજી આમુષ્મ અને પ઱બોગ ડનણાણમક. જાતતડનણાણમક કભોને
આધાયે તે બ્રાહ્મણ-ષડત્રમાડદ લણણ, દરયદ્ર, વમ્઩ન્નાડદ ઩રયલાયને પ્રાપ્ત કયે છે.
ટૂ ંકભાં તેનાં ભાતા-ત઩તા, ઩રયલાય, બાગ્માડદને નક્કી કયલાભાં તેનાં ઩ૂલણકભણ
ડનણાણમક શોમ છે. આ લાતને અતત વૂક્ષ્ભ અને લૈસાડનક તલલેચન વાથે આ લ઴ે
પ્રકાતળત થમેરી ભાયી ચાતુલણ ણ ભ
ણ ્ નાભની ઩ુત્સ્મતકા યજૂ કયી છે. અને જીલામભા
ભાતાનાં ગબણભાં પ્રલેળતાની વાથે જ, ભાતા-ત઩તાની જલાફદાયીઓ લધતી જામ
છે. અનેક લેદનાઓ અને ભુશ્કેરીઓને વશન કયી, ભાતા-ત઩તા નલજાતને
વંવાયભાં જ્માયે રાલે છે મમાયે ફા઱ક ઩ૂણણ અફોધાલસ્મથાભાં શોમ છે. તેનંુ
઩ારન-઩ો઴ણ, તલકાવ, બણતય તલગેયે ફધી જ ફાફતોનું ઩ૂયતું ધ્માન ભાતા-
ત઩તા ઩ોતાની વભજ અને વાભર્થમણ ભુજફ યાખે છે. અને ફા઱ક ઩ણ જગતભાં
વલણથી પ્રથભ ભાતા-ત઩તાને ઓ઱ખે છે અને તેભનો વશલાવ પ્રાપ્ત કયે છે , જ ે
લખતે ફા઱કને ધભણ કે બગલાનની ઩ણ વભજ નથી શોતી. આલાં ફા઱કને એક
઩ૂણણ ભાનલ ફનાલલાનાં મથોતચત પ્રમાવ ભાતા-ત઩તા કયે છે. તેથી જ કહ્ું છે

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ऄद्यप्रभृिि लोके षु प्रेिानुद्दिश्य वै िििृन् ।ये िु श्राद्धं कररष्यिति िेषा
िुििभभिवष्यिि ।। िििा िििामहश्चैव िथैव प्रिििामहः । िेषां त्रयः
िूिजिाश्च भिवष्यिति िथाऽयथः ।। त्रयो वेदाश्च लोकाश्च त्रयो,
देवास्िथैव च। िूिजिाश्च त्रयो देवा ब्रह्मिवष्णुमहेश्वराः िव.ध.िु।
सवभिीथभमयी मािा, सवभदव े मयः िििा । िििरी प्रीििमािन्ने प्रीयतिे
सवभदव े िा ।। श्रद्धा मािा िु भूिानां श्रद्धा श्राद्धेषु शस्यिे ।। અને તેથીજ
તૈતતયીમ વંતશતા વતશત અનેક ળાસ્ત્રીમ ગ્રંથોભાં કહ્ું છે , ફા઱ક જન્ભતાની વાથે
જ ત઩તૃ(ભાતા-ત઩તા), ઋડ઴ અને દેલતાઓનો ઋણી થઈ જામ છે. ऋणािन
त्रीण्यिाकृ त्य मनोमोक्षे िनवेशयेि् । ऄनािृत्यमोक्षं िु
सेवमानोव्रजत्यधः-मनु.२.१६॥ ભનુસ્મૃતત પ્રભાણે આલાં ઋણોભાંથી ભુક્ત
થમા તલનાં, ભોષ કે ઈશ્લયપ્રાત્પ્તનાં પ્રમાવો વ્મથણ અને અધોગતત કયનાયા થામ છે.

શ્રાદ્ધની ઉદાત્ત ઩યં઩યા લૈડદક કા઱થી જ છે. िरा याि िििरः..ऄधा मािस
िुनरा याि नो गृहान् ऄथवभ.18.4.64 ये नः िििुः िििरो ये िििामहा...
िेभ्यः िििृभ्यो ममसा िवधेम ऄथवभ.18.2.26 , आममोदनं िनदधं ब्राह्मणेषु
िविाररणं लोकार्जजिं स्वर्गयभम् । ऄथ.२५.३.८, श्राद्धं वा िििृयज्ञः स्याि्
का.स्मृ.१३-१४, આલાં જ ઋગ્લેદ,મજુ લેદ, વાભલેદ અને બ્રાહ્મણ ગ્રંથોભાં
અવંખ્મ જગાએ શ્રાદ્ધનો ઉલ્રેખ છે. શ્રીભદ્ભાગલતાનુવાય ભનુ અને ળતરૂ઩ાદ્વાયા
સૃત્ષ્ટનો પ્રાયંબ થમો, કત઩ર દ્વાયો ભાતા દેલશૂ તતને વાંખ્મો઩દેળ ઉ઩યાન્ત ભાતાને
લયદાન આ઩તા કહ્ું છે કે સવદ્ધષેત્રે તુ દશૂ મમાં ળીરામાં ભાતૃકી ગમા... અથાણત
સ્ત્રીભાત્રનું શ્રાદ્ધ સવદ્ધ઩ુયભાં કયલાથી તેભને ઉત્તભ ગતત થામ છે. મમાય ફાદ
બગલાન ઩યળુયાભે ઩ણ સવદ્ધ઩ુયભાં ભાતૃ શ્રાદ્ધ કમાણની કથા ઩ુયાણોભાં છે.
યાભામણ પ્રભાણે ઩ણ भरि कीितह दशगात्र िवधाना – रा.ि.मा, िििा िवा
मया दृिो ब्राह्मणङ्गेषु राघव । दृिा त्रिाितविा चाहमिक्रातिा
िवाितिकाि् ॥ यां ऽहं राज्ञा िुरा दृिा सवाभलंकार भूिषिा- ि.िु.सृ.३३-
७४-११०। ऄतत्येिि:प्रिस्थिस्येहलोकात्सम्बितधनो जनस्य च ।
ऄतत्येष्टि कु वभिेऽत्रैिुं मङ्गलं िारलौद्दककम् - िै.सं. ।। આભ બયતજીએ
ત઩તા દળયથજીનું અલમલ શ્રાદ્ધ કયેરુ છે , તો વીતાભાતાએ લનલાવ દયમ્માન,
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શ્રાદ્ધભા બ્રાહ્મણબોજન લખતે બ્રાહ્મણનાં સ્મલરૂ઩ભાં ત઩તા દળયથનાં દળણન કયેરા
છે. ભશાબાયતભાં અને ઩ુયાણોભાં તો આલાં અવંખ્મ વંદબણ ભ઱ે છે. શલે
તલશ્લભાન્મ ગીતાભાં ઩ણ શ્રાદ્ધ-ત઩ંિદાનનો ઉલ્રેખ છે - िििति िििरो ह्येषां
लुप्तििण्डदक द्दक्रयाः गी. १.४२ આભ શ્રાદ્ધાડદ એ અતત પ્રાચીન ઩યં઩યા છે.

શ્રાદ્ધની ઩રયબા઴ા કે વ્માખ્મા કયતાં ધભણળાસ્ત્રભાં કહ્ું છે. िित्र्युिेश्येन श्रद्धया


त्यक्तस्य द्रव्यस्य ब्राह्मणैयभत्स्वीकरणं िि् श्राद्धम् ॥ श्राद्ध िववेक वा
श्रद्धया द्दक्रयिे यि् िििृन् उद्दिश्य कमभ िि् श्राद्धम् । શ્રાદ્ધ એટરે ત઩તૃઓને
ઉદ્દેળીને કયેરું ત઩ંિદાન-ત઩ણણાડદ કામણ તે તે ડનતભત્તે બ્રાહ્મણોને આ઩લાભાં આલેરું
દ્રવ્મ-લસ્ત્ર-બોજન આડદ.

શ્રાદ્ધભાં બ્રાહ્મણ બોજનનું અતત ભશત્ત્લ છે. આ લાતને થોિાં લૈસાડનક અસબગભથી
તલચાયીએ. લેદોભાં સૃત્ષ્ટ યચના કા઱ે ઩યભામભાએ ઩ોતાનાં ચાય અંગોભાંથી ચાય
લણોની ઉમ઩તત્ત કયેરી છે. ब्राह्मणोऽस्य मुखामासीद्वाहू राजतय: कृ ि:। ऊरू
िदस्य यद्वैश्यः िद्भ्ां शूद्रो ऄजायि - ऋर्गयजु.॥ આની વંગતત અને વંદબણ
઩ુયાણો અને સ્મૃતતમોભાં પ્રચૂય પ્રભાણભાં ભ઱ે છે. ટૂ ંકભા બ્રાહ્મણ ઩યભામભાનું
ભુખ છે. ભુખભાં ભુકેરું અન્ન ખાટુ ં તીખું, ભીઠ્ઠુ કે કિલું શોમ તેની અનુબૂતત ભુખ કયે
છે. તલ઴ કે અૃત ઩ણ ઩શેરાં ભુખ ગ્રશણ કયે છે. ઉ઩યાન્ત ભુખ કળું જ ઩ોતાની
઩ાવે નથી યાખતું, તે ઉદયભાં જઈ વભગ્ર (વભાજરૂ઩ી) દેશની ઩ુષ્ટુ કયે છે.
ળયીયનાં ફધાંજ અલમલોની યોગ-દુ ુઃખાડદની યજૂ આત ઩ણ લૈદ્ય આગ઱ ભુખ
દ્વાયા જ થામ છે. તેથી ભુખરૂ઩ી બ્રાહ્મણનું વભાજભાં લધુ ભશત્ત્લ કહ્ું છે. તે ભંત્રા
બ્રાહ્મણાધીના પ્રભાણે - દેલતાઓ વુથી ભાંડત્રક પ્રાથણનાઓ ઩ય બ્રાહ્મણ દ્વાયા
઩શોંચે છે અને તેથી જ કશેલામ છે બ્રાહ્મણા માડન બા઴ન્તે ભન્મતે તાડન દેલતા –
બ્રાહ્મણોનાં લચનો દેલોને ઩ણ ળીયોધામણ છે. બાગલાતાડદ ઩ુયાણોભાં ખૂફજ
ઉલ્રેખ ભ઱ે છે. न ह्यििमुखिोऽयं वै भगवातसवभयज्ञभुक् । आज्यिे हिवषा
राजतयथा िवप्रमुखे हुिै: - भाग.७.१४.१७, नाहं िथािि यजमान
हिवर्जविानश्चयो िद्घृिप्लुिमदतहुि भुङ्मुखन े ॥ यद्ब्ब्राह्मणस्य
मुखिश्चरिोनुघासं िुिस्य मय्यविहिैर्जनजकमभिाकै ः - स्कं .मा.खं ४.९०

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॥ વાયાંળ એજ કે બ્રાહ્મણનાં ભુખભાં ઩િેર ગ્રાવ શુ ં મસકુ ંિભાં ઩િેરા શવ્મ અને
શ્રાદ્ધભાં કવ્મ સ્મલરૂ઩ે સ્મલીકાય કરૂં છુ. આગ઱ ઩ણ ઉલ્રેખ કમો છે કે વીતાજીએ
બ્રાહ્મણોનાં સ્મલરૂ઩ભાં ત઩તા દળયથનાં દળણન કયેરા છે .

શલે જોઈએ આ શ્રાદ્ધ ત઩તૃઓને કેલીયીતે ઩શોંચે છે અને કોણ ઩શોંચાિે છે.
देवो यद्दद िििा जािः शुभकमाभनुयोगिः । िस्यान्नममृिं भूत्वा
देवत्वेऽप्युनग ु च्छिि ।। मत्यभत्वे ह्यन्नरूिेण िशुत्वे च िृणं भवेि् ।
श्राद्धान्नं वायुरूिेण नागत्वेऽ प्युिििष्ठिि ।। यथा गोष्ठे प्रणिां वै वत्सो
िवतदेि मािरम् । िथा िं नयिे मंत्रो जतिुयभत्रावििष्ठिे । नाम गोत्रं च
मंत्रश्च दत्तमन्नं नयिति िम् । ऄिि योिनशिं प्राप्तांस्िृिप्तस्िाननुगच्छिि –
श्राद्धसारः, वायुरूिेण नागेभ्यो भा.िु.वा.िु ।
વાયાંળ ૃમમુ ઩છી, કયભાનુવાય ત઩તૃ દેલ, ભાનલ, ઩ળુ ઈમમાડદ કોઈ઩ણ મોનીભાં
શોમ મમાયે શ્રાદ્ધાડદભાં લ઩યામેરું દ્રવ્મ કવ્મરૂ઩ે સ્મલધાદ્વાયા અત્ગ્નદેલ ગ્રશણ કયે છે ,
જો દેલમોડનભાં શોમ તો શવ્મરૂ઩ે, ભનુષ્મમોડનભાં શોમ તો અન્નનૌષ઴તધરૂ઩ે,
઩ળુમોડનભાં શોમ તો તૃણ-ઘાવાડદરૂ઩ે, વ઩ણમોડનભા લામુરૂ઩ે, તેભને પ્રાપ્ત થામ છે.
જ ેલી યીતે ભોફાઈરભાં ભોકરેર ભેવેજ ભોકરનાય અને પ્રાપ્ત કયનાયનાં લચ્ચે
વં઩કણ સ્મથાત઩ત કયી આ઩ે છે તેભ શ્રાદ્ધાડદકભાં લ઩યામેરું દ્રવ્મ, જ ે તલડનમોગ શોમ
તે વ્મત્ક્તને પ્રાપ્ત થામ છે અને તે ઩ણ તેનાં ઈત્ચ્છત રૂ઩ભાં, જ ેભ કે કોઈનાં
જન્ભડદલવે અભદાલાદથી એભેઝોન દ્વાયા ગીફ્ટ આટીકર ડદલ્શીભાં યશેનાયને ભ઱ે
છે તેલી જ યીતે ભંત્ર અને તલશ્લેદેલાઓની ભદદથી આ઩ણા ત઩તૃઓને ઈત્ચ્છત
પ઱ ભ઱ે છે.
શ્રાદ્ધનું પ઱ - अयुः िुत्रातयशः स्वगभ कीर्जि िुिि वलं िश्रयम् । िशूतसौख्य
धनं धातय प्राप्नुयाित्ििृिूजनाि् - य.स्मृ.।। ટૂ ંકભાં શ્રાદ્ધ કયનાયને આમુષ્મ,
઩ુત્ર, મળ, કીતતણ, સ્મલાસ્મર્થમ, વાભર્થમણ, ઐશ્લમણ, ઩ળુ, ધન,ધાન્માડદ ત઩તૃઓની કૃ઩ાથી
પ્રાપ્ત થામ છે. ऄिृप्ता: िििर: रुिधरं ििबिति।। देवकायाभदिि सदा
िििृकायं िविशष्यिे।। देविाभ्यः िििृणां िहिूवभमाप्यायनं शुभम् - ग.
िु.।। આભ ત઩તૃકામણ ન કયનાયનાં ત઩તૃઓ તેનુ રૂતધય-પ્રશ્લેદ ઩ીલે છે. અથાણત્
નાના પ્રકાયની તકરીપો વશન કયલી ઩િે છે અને ભોિો લશેરાં ત઩તૃદો઴ની ળાંતત

28
કયાલલી ઩િે છે. મસ-઩ૂજા કે દેલકામણથી ઩ણ ઩શરું કતણવ્મ ત઩તૃકામણ નું છે , કાયણ
આ઩ણાં જીલન ઩ય તેભનો ઘણો ઉ઩કાય અને ઋણ છે. िििा िििामहश्चैव
िथैव प्रिििामहः । िेषां त्रयः िूिजिाश्च भिवष्यिति िथाऽयथः।। त्रयो
वेदाश्च लोकाश्च त्रयो, देवास्िथैव च । िूिजिाश्च त्रयो देवा
ब्रह्मिवष्णुमहेश्वराः - िव.ध.िु । આભ ત઩તૃઓનાં ઩ૂજનથી બ્રહ્મા, તલષ્ણુ,
ભશેશ્લયની ઩ૂજા થઈ જામ છે

ળાસ્ત્રભાં શ્રાદ્ધ ફાય પ્રકાયનાં કશેરાં છે. िनत्यं नैिमत्तकं काम्यं वृिद्धश्राद्धं
सििण्डनं, िावभणचेिि िवज्ञेय गोष््ांशुद्ब््यथभ ऄिमम्। कमांगं नवमं
प्रोक्तं दैिवकं दशमं स्मृिम्, यात्राष्वेकादशं प्रोक्तं िुष्यथं द्वादशंस्मृिम् ।।
ડનમમ, નૈતભતત્તક, કામ્મ, વૃતદ્ધ, વત઩ણ્િ, ઩ાલણણ, ગાત્ષ્િ, ળુદ્ધધ્મથણ-કભાાંગ, દૈતલક,
માત્રા અને ઩ુત્ષ્ટ શ્રાદ્ધ. શ્રાદ્ધ પ્રભાણે તલશ્લદેલાનાં નાભ અને સ્મલરૂ઩ ઩ણ સબન્ન
શોમ છે. આભાં ઩ણ ખૂફ જ લૈસાડનક અસબગભ છે ઩ણ ચચાણ અતત તલસ્મતૃત થઈ
જામ છે.

અંતભાં આજ કાણ લક્તાઓ, વભાજ વુધાયકો અને કશેલાતાં ભશંતોભાં બ્રાહ્મણ,


દેલ, જાતત, શ્રાદ્ધનાં તલ઴઩ય ભનદગિંત લક્તવ્મો યજૂ થામ છે. કોઈ કશે અભે
શ્રાદ્ધભા ભાનતા જ નથી, અભાયે મમાં શ્રાદ્ધ કયલાનો રયલાજ જ નથી. જ ે શ્રાદ્ધ નથી
કયતા તેભનાં ત઩તૃઓની અલગતત થતી શોમ તો ઘણાં, ધભણ-વંપ્રદામોભાં શ્રાદ્ધ નથી
થતાં. અશી ં ભાયો એક પ્રવંગ વંષે઩ે યજૂ કરૂં છું – એભે ગમાશ્રાદ્ધ કયલાં કેટરાંક
વ્મત્ક્તઓ એક ગ્રુ઩ભાં જતા શતા. તેભાં એક લકીર-પ્રોપેવય ઩ણ શતા, જ ેઓ
ઉ઩યોક્તાનુવાય લાતો કયતાં. એક લખત યસ્મતાભાં જ્માં જભલા યોકામો મમાયે ભેં
તેભને ઩ાવે ફોરાલી ઩ુછમું, વાશેફ આ઩ તો બાયતીમ ફંધાયણનાં તલદ્વાન છો.
આ ફંધાયણની કે ઩ીનર કોિની કોઈ લાતો ભને ન વભજામ અને ભાયાથી કોઈ
ગુનો થામ તો ભને વજા થામ કે નશી,ં ફીજુ ં ભાયે બાયતનું ફંધાયણ ભાનલુ કે
ઓસ્મરેસરમા, કેડનમાનું ભાનું તો ચારે ? તેઓએ જલાફ આપ્મો કે કામદાનુ અસાન
શોમ તો, વજાભાંથી ભુત્ક્ત ક્માયે ઩ણ ન ભ઱ે અને તભને બાયતનું જ ફંધયણ
ફાધ્મ છે. િીક, આ઩ તો વનાતન ધભી છો. તો આ઩ને વનાતન ધભણનુ ફંધાયણ,
ળાસ્ત્રાદેળ ભાન્મ કે ઈસ્મરાભનાં ? શલે દયેકને દયેક તલ઴મ ન ઩ણ વભજામ,

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આ઩ણી ફુતદ્ધની એક ભમાણદા છે. પ્રમમેક ષેત્રના-તલદ્યાના ઩માણમો,઩રયબા઴ાઓ
આ઩ણી યીતે ન વભજામ. ભાટે જો આ઩ને શ્રાદ્ધનું તલસાન વભજલું શોમ તો કોઈ
ગુરૂ ઩ાવે તળષ્મબાલથી ગુરૂ઩વદન કયજો. ઘણા લક્તાઓ ઩ણ ભન પાલે તેભ
ળાસ્ત્રના અથણ કાઢે છે. ગીતા અને શ્રુતત ફન્ને આલા રોકોને તળખ આ઩તાં કશે છે.
न फुतद्धबेदॊ जनमेदसानाॊ कभावसङ्खगनाभ् । जोऴमे्वलाकभाासण तलिान्मुक्त् वभाचयन् गी.
े ब्रह्मसानान्लेऴणॊ न कु माात् (भु.उऩ) ગભે તેટરાં તલદ્વાન
३.२६ ॥ ळास्त्रसोऽतऩ स्लातॊत्रण
તલચાયક કે ફુતદ્ધળા઱ી શોઈએ તો ઩ણ ળાસ્ત્ર તલ઩યીત લાત ન કયલી કાયણ કે
તલ઩રયત તલચાયધાયાલા઱ાં યાષવો ગણામ જ ેભ કે યાલણ ઩ણ તલદ્વાન શતો. આલાં
સ્મલચ્છન્દી લક્તાઓને ધભણળાસ્ત્રએ એક તલળે઴ શયો઱-કેટેગયીભાં ભાન્મા છે.
ऩद्मऩुयाण - लेदननॊदाॊ प्रकु लासन्त ब्रह्मचायस्मकु ्वनभ् । भशाऩातकभेलातऩ
सात्मसानऩसडितै्।। श्रुततस्भृ्मुक्तभाचायॊ मो न वेलते लैटणल । व च ऩाखडिभाऩन्नो
यौयले नयके लवेत् ।। लेदफाह्यव्रताचाया् श्रौत स्भभाताफहशटकृ ता्। ऩाखसडिन इतत ्माता
न वभवबाटमहिजाततनब् - नरॊगऩुयाण ऩूलााद्धा આભ ધભણળાસ્ત્રની તલ઩યીત લાત
કયનાયાઓને ભુક્ત કંિે ઩ાખંિી ફોરાલી ળકામ. ધભણળાસ્ત્ર ભભૈલાસા ળાસ્ત્ર એ
઩યભામભાની આસા છે. अलतीणो जगन्नाथ् ळास्त्ररूऩेण लै प्रबु् ળાસ્ત્ર એ
઩યભામભાની આસા જ નથી, ઩યભામભાનુ લાઙ્ભમ સ્મલરૂ઩ ઩ણ છે.

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॥ श्री हरर ॥

॥अथ गर्ोपनिषत्॥

॥ हररः ॐ ॥

यद्गर्ोपनिषद्वे द्यं गर्भस्य स्वात्मबोधकम् ।


शरीरापह्निान्तिद्धं स्वमात्रं कलये हररम् ॥

ॐ सह िािितु । सह िौ र्ुिक्तु । सह िीयं करिािहै ।


तेजन्तस्विािधीतमस्तु मा निनद्वषािहै ॥ १९॥

परमात्मा हम दोिों गुरु नशष्ों का साथ साथ पालि करे । हमारी


रक्षा करें । हम साथ साथ अपिे निद्याबल का िधभि करें । हमारा
अध्याि नकया हुआ ज्ञाि तेजस्वी हो। हम दोिों कर्ी परस्पर द्वे ष ि
करें ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

हमारे , अनधर्ौनतक, अनधदै निक तथा तथा आध्यान्तत्मक तापों (दु खों)
की शांनत हो।

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॥ श्री हरर ॥

॥ गर्ोपनिषत्॥
गर्भ उपनिषद

ॐ पञ्चात्मकं पञ्चसु ितभमािं षडाश्रयं


षड् गुणयोगयुक्तम् ।
तिप्तधातु नत्रमलं नद्वयोनि
चतुनिभधाहारमयं शरीरं र्िनत ॥

पञ्चात्मकनमनत कस्मात् पृनथव्यापस्तेजोिायुराकाशनमनत ।


अन्तस्मन्पञ्चात्मके शरीरे का पृनथिी का आपः नकं तेजः को िायुः
नकमाकाशम् ।तत्र यत्कनठिं सा पृनथिी यद् रिं ता आपो यदु ष्णं
तत्तेजो यिञ्चरनत स िायुः यिुनषरं तदाकाशनमत्युच्यते ॥

तत्र पृनथिी धारणे आपः नपण्डीकरणे तेजः प्रकाशिे


िायुगभमिे आकाशमिकाशप्रदािे । पृथक् श्रोत्रे
शब्दोपलब्धौ त्वक् स्पशे चक्षुषी रूपे नजह्वा रसिे
िानसकाऽऽघ्राणे उपस्थश्चािन्दिेऽपािमुिगे बुद्ध्या
बुद्ध्यनत मिसा सङ्कल्पयनत िाचा िदनत । षडाश्रयनमनत
कस्मात् मधुराम्ललिणनतक्तकटु कषायरसान्तिन्दते ।
षड् जषभर्गान्धारमध्यमपञ्चमधैितनिषादाश्चेनत ।
इष्टानिष्टशब्दसंज्ञाः प्रनतनिधाः सप्तनिधा र्िन्ति
शुक्लो रक्तः कृष्णो धूम्रः पीतः कनपलः पाण्डु र इनत । ॥ १॥

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शरीर पञ्चात्मक, पााँचों में ितभमाि, छः आश्रयोंिाला, छः गुणोंके
योगसे युक्त, सात धातुओस
ं े निनमभत, तीि मलोंसे दू नषत, दो योनियोंसे
युक्त तथा चार प्रकारके आहारसे पोनषत होता है। पञ्चात्मक कैसे है ?
पृनथिी, जल, तेज, िायु, आकाश (-इिसे रचा हुआ होिेके कारण)
शरीर पञ्चात्मक है। इस शरीरमें पृनथिी क्या है ? जल क्या है ? तेज
क्या है ? िायु क्या है ? और आकाश क्या है ? इस शरीरमें जो कनठि
तत्त्व है , िह पनथिी है। जो रि है , िह जल है: जो उष्ण है। िह तेज
है; जो सञ्चार करता है , िह िायु है ; जो नछर है , िह आकाश कहलाता
है। इिमें पृनथिी धारण करती है , जल एकनत्रत करता है , तेज
प्रकानशत करता है , िायु अियिोंको यथास्थाि रखता है , आकाश
अिकाश प्रदाि करता है। इसके अनतररक्त श्रोत्र शब्दको ग्रहण
करिेमें, त्वचा स्पशभ करिेमें, िेत्र रूप ग्रहण करिेमें, नजह्वा रसका
आस्वादि करिेमें, िानसका सूाँघिे में, उपस्थ आिन्द लेिे में तथा पायु
मलोिगभ के कायभमें लगा रहता है । जीि बुन्तद्धद्वारा ज्ञाि प्राप्त करता
है, मिके द्वारा सङ्कल्प करता है , िाक्-इन्तियसे बोलता है। शरीर छः
आश्रयोंिाला कैसे है ? इसनलये नक िह मधुर, अम्ल, लिण, नतक्त,
कटु और कषायइि छ: रसोंका आस्वादि करता है । षड् ज, ऋषर्,
गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैित और निषाद-ये सप्त स्वर तथा इष्ट,
अनिष्ट और प्रनणधािकारक (प्रणिानद) शब्द नमलाकर दस प्रकारके
शब्द (स्वर) होते हैं। शुक्ल, रक्त, कृष्ण, धूम्र, पीत, कनपल और
पाण्डु र-ये सप्त रूप (रं ग) हैं ॥१॥

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सप्तधातुनमनत कस्मात् यदा दे िदत्तस्य रव्यानदनिषया
जायिे ॥ परस्परं सौम्यगुणत्वात् षड् निधो रसो
रसाच्छोनणतं शोनणतान्ांसं मांसान्ेदो मेदसः
स्नािा स्नाव्िोऽस्थीन्यन्तस्थभ्यो मज्जा मज्ज्ञः शुक्रं
शुक्रशोनणतसंयोगादाितभते गर्ो हृनद व्यिस्थां
ियनत । हृदयेऽिराननः अननस्थािे नपत्तं नपत्तस्थािे
िायुः िायुस्थािे हृदयं प्राजापत्यात्क्रमात् ॥ २॥

सात धातुओस
ं े निनमभत कैसे है ? जब दे िदत्तिामक व्यन्तक्तको रव्य
आनद र्ोग्य-निषय जुड़ते हैं , तब उिके परस्पर अिुकूल होिेके
कारण षट् -पदाथभ प्राप्त होते हैं नजिसे रस बिता है। रससे रुनधर,
रुनधरसे मांस, मांससे मेद, मेदसे स्नायु, स्नायुसे अन्तस्थ, अन्तस्थसे मज्जा
और मज्जासे शुक्र—ये सात धातुएाँ उत्पन्न होती हैं । पुरुषके शुक्र और
स्त्रीके रक्तके संयोगसे गर्भका निमाभण होता है। ये सब धातुएाँ हृदयमें
रहती हैं, हृदयमें अिरानन उत्पन्न होती है , अननस्थािमें नपत्त, नपत्तके
स्थािमें िायु और िायुसे हृदयका निमाभण सृजि-क्रमसे होता है॥२॥

ऋतुकाले सम्प्रयोगादे करात्रोनषतं कनललं र्िनत


सप्तरात्रोनषतं बुद्बुदं र्िनत अधभमासाभ्यिरे ण नपण्डो
र्िनत मासाभ्यिरे ण कनठिो र्िनत मासद्वयेि नशरः
सम्पद्यते मासत्रयेण पादप्रिेशो र्िनत । अथ चतुथे मासे
जठरकनटप्रदे शो र्िनत । पञ्चमे मासे पृष्ठिंशो र्िनत ।
षष्ठे मासे मुखिानसकानक्षश्रोत्रानण र्िन्ति । सप्तमे
मासे जीिेि संयुक्तो र्िनत । अष्टमे मासे सिभसम्पूणो
र्िनत । नपतू रे तोऽनतररक्तात् पुरुषो र्िनत । मातुः

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रे तोऽनतररक्तान्तरियो र्िन्त्युर्योबीजतुल्यत्वान्नपुंसको
र्िनत । व्याकुनलतमिसोऽन्धाः खञ्ाः कुब्जा िामिा
र्िन्ति । अन्योन्यिायुपररपीनडतशुक्रद्वै ध्याद्द्निधा
तिुः स्यात्ततो युग्ाः प्रजायिे ॥ पञ्चात्मकः समथभः
पञ्चात्मकतेजसेद्धरसश्च सम्यग्ज्ज्ञािात् ध्यािात्
अक्षरमोङ्कारं नचियनत । तदे तदे काक्षरं ज्ञात्वाऽष्टौ
प्रकृतयः षोडश निकाराः शरीरे तस्यैिे दे नहिाम् । अथ
मात्राऽनशतपीतिाडीसूत्रगतेि प्राण आप्यायते । अथ
ििमे मानस सिभलक्षणसम्पूणो र्िनत पूिभजातीः स्मरनत
कृताकृतं च कमभ निर्ानत शुर्ाशुर्ं च कमभ निन्दनत ॥ ३॥

ऋतुकालमें सम्यक् प्रकारसे गर्ाभधाि होिेपर एक रानत्रमें शुक्र-


शोनणतके संयोगसे कलल बिता है । सात रातमें बुद्बुद बिता है ।
एक पक्षमें उसका नपण्ड (स्थूल आकार) बिता है। िह एक मासमें
कनठि होता है। दो महीिों में िह नसरसे युक्त होता है , तीि महीिोंमें
पैर बिते हैं , पश्चात् चौथे महीिे गुल्फ (पैरकी घुनियााँ), पेट तथा कनट-
प्रदे श तैयार हो जाते हैं । पााँ चिें महीिे पीठकी रीढ़ तैयार होती है ।
छठे महीिे मुख, िानसका, िेत्र और श्रोत्र बि जाते हैं। सातिें महीिे
जीिसे युक्त होता है। आठिें महीिे सब लक्षणों से पूणभ हो जाता है।
नपताके शुक्रकी अनधकतासे पुत्र, माताके रुनधरकी अनधकतासे पुत्री
तथा शुक्र और शोनणत दोिोंके तुल्य होिेसे िपुंसक संताि उत्पन्न
होती है। व्याकुलनचत्त होकर समागम करिेसे अन्धी, कुबड़ी, खोड़ी
तथा बौिी संताि उत्पन्न होती है। परस्पर िायुके संघषभसे शुक्र दो
र्ागों में बाँटकर सूक्ष्म हो जाता है , उससे युग् (जुड़िााँ) संताि उत्पन्न
होती है । पञ्चर्ूतात्मक शरीरके समथभ -स्वस्थ होिेपर चेतिामें पञ्च

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ज्ञािेन्तियात्मक बुन्तद्ध होती है ; उससे गन्ध, रस आनदके ज्ञाि होते हैं।
िह अनििाशी अक्षर ॐकारका नचिि करता है , तब इस
एकाक्षरको जािकर उसी चेतिके शरीरमें आठ प्रकृनतयााँ (प्रकृनत,
महत्-तत्त्व, अहङ्कार और पााँच तन्ात्राएाँ ) तथा सोलह निकार (पााँच
ज्ञािेन्तियााँ , पााँच कमेन्तियााँ , पााँच स्थूल र्ूत तथा मि) होते हैं। पश्चात्
माताका खाया हुआ अन्न एिं नपया हुआ जल िानड़योंके सूत्रों द्वारा
पहुाँचाया जाकर गर्भस्थ नशशुके प्राणोंको तृप्त करता है। तदििर
ििें महीिे िह ज्ञािेन्तिय आनद सर्ी लक्षणोंसे पूणभ हो जाता है। तब
िह पूिभ-जन्का स्मरण करता है। उसके शुर्-अशुर् कमभ र्ी उसके
सामिे आ जाते हैं॥३॥

िािायोनिसहस्रानण दृष्ट्वा चैि ततो मया ।


आहारा निनिधा र्ुक्ताः पीताश्च निनिधाः स्तिाः ॥

जातस्यैि मृतस्यैि जन् चैि पुिः पुिः ।


अहो दु ःखोदधौ मनः ि पश्यानम प्रनतनक्रयाम् ॥

यन्या पररजिस्याथे कृतं कमभ शुर्ाशुर्म् ।


एकाकी तेि दह्यानम गतास्ते फलर्ोनगिः ॥

यनद योन्यां प्रमुञ्चानम सांख्यं योगं समाश्रये ।


अशुर्क्षयकताभरं फलमुन्तक्तप्रदायकम् ॥

यनद योन्यां प्रमुञ्चानम तं प्रपद्ये महेश्वरम् ।


अशुर्क्षयकताभरं फलमुन्तक्तप्रदायकम् ॥

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यनद योन्यां प्रमुञ्चानम तं प्रपद्ये
र्गििं िारायणं दे िम् ।
अशुर्क्षयकताभरं फलमुन्तक्तप्रदायकम् ।
यनद योन्यां प्रमुञ्चानम ध्याये ब्रह्म सिातिम् ॥

अथ जिुः स्त्रीयोनिशतं योनिद्वारर


सम्प्राप्तो यन्त्रेणापीड्यमािो महता दु ःखेि जातमात्रस्तु
िैष्णिेि िायुिा संस्पृश्यते तदा ि स्मरनत जन्मरणं
ि च कमभ शुर्ाशुर्म् ॥ ४॥

तब जीि सोचिे लगता है -‘मैंिे सहस्रों पूिभजन्ोंको दे खा, उिमें िािा


प्रकारके र्ोजि नकये, िािा प्रकारके-िािा योनियोंके स्तिोंका पाि
नकया। मैं बारम्बार उत्पन्न हुआ, मृत्युको प्राप्त हुआ। अपिे
पररिारिालोंके नलये जो मैंिे शुर्ाशुर् कमभ नकये , उिको सोचकर मैं
आज यहााँ अकेला दग्ध हो रहा हाँ। उिके र्ोगोंको र्ोगिेिाले तो
चले गये, मैं यहााँ दु ःखके समुरमें पड़ा कोई उपाय िहीं दे ख रहा हाँ।
यनद इस योनिसे मैं छूट जाऊाँगा-इस गर्भके बाहर निकल गया तो
अशुर् कमोका िाश करिेिाले तथा मुन्तक्तरूप फलको प्रदाि
करिेिाले महेश्वरके चरणोंका आश्रय लाँगा। यनद मैं योनिसे छूट
जाऊाँगा तो अशुर् कमोका िाश करिेिाले और मुन्तक्तरूप फल
प्रदाि करिेिाले र्गिाि् िारायणकी शरण ग्रहण करू
ं गा। यनद मैं
योनिसे छूट जाऊाँगा तो अशुर् कमोंका िाश करिेिाले और
मुन्तक्तरूप फल प्रदाि करिेिाले सांख्य और योगका अभ्यास
करू
ं गा। यनद मैं इस बार योनिसे छूट गया तो मैं ब्रह्मका ध्याि

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करू
ं गा। ‘ पश्चात् िह योनिद्वारको प्राप्त होकर योनिरूप यन्त्रमें
दबाया जाकर बड़े कष्टसे जन् ग्रहण करता है। बाहर निकलते ही
िैष्णिी िायु (माया) -के स्पशभसे िह अपिे नपछले जन् और
मृत्युओक
ं ो र्ूल जाता है और शुर्ाशुर् कमभ र्ी उसके सामिेसे हट
जाते हैं॥४॥

शरीरनमनत कस्मात्
साक्षादनयो ह्यत्र नश्रयिे ज्ञािाननदभ शभिाननः
कोष्ठाननररनत । तत्र कोष्ठाननिाभमानशतपीतलेह्यचोष्ं
पचतीनत । दशभिानी रूपादीिां दशभिं करोनत ।
ज्ञािाननः शुर्ाशुर्ं च कमभ निन्दनत । तत्र त्रीनण
स्थािानि र्िन्ति हृदये दनक्षणाननरुदरे गाहभ पत्यं
मुखमाहििीयमात्मा यजमािो बुन्तद्धं पत्ीं निधाय
मिो ब्रह्मा लोर्ादयः पशिो धृनतदीक्षा सिोषश्च
बुद्धीन्तियानण यज्ञपात्रानण कमेन्तियानण हिींनष नशरः
कपालं केशा दर्ाभ मुखमििेनदः चतुष्कपालं
नशरः षोडश पाश्वभदिोष्ठपटलानि सप्तोत्तरं
ममभशतं साशीनतकं सन्तन्धशतं सििकं स्नायुशतं
सप्त नशरासतानि पञ्च मज्जाशतानि अस्थीनि च ह
िै त्रीनण शतानि षनष्टश्चाधभचतस्रो रोमानण कोट्यो
हृदयं पलान्यष्टौ द्वादश पलानि नजह्वा नपत्तप्रस्थं
कफस्याढकं शुक्लं कुडिं मेदः प्रस्थौ द्वािनियतं
मूत्रपुरीषमाहारपररमाणात् । पैप्पलादं मोक्षशास्त्रं
पररसमाप्तं पैप्पलादं मोक्षशास्त्रं पररसमाप्तनमनत ॥

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दे ह-नपण्डका ‘शरीर’ िाम कैसे होता है ? इसनलये नक ज्ञािानन,
दशभिानन तथा जठराननके रूपमें अनन इसमें आश्रय लेता है। इिमें
जठरानन िह है , जो खाये, नपये, चाटे और चूसे हुए पदाथोंको पचाता
है। दशभिानन िह है , जो रूपोंको नदखलाता है ; ज्ञािानन शुर्ाशुर्
कमोको सामिे खड़ा कर दे ता है। अननके शरीरमें तीि स्थाि होते
हैं-आहििीय अनन मुखमें रहता है। गाहभपत्य अनन उदरमें रहता है
और दनक्षणानन हृदयमें रहता है। आत्मा यजमाि है , मि ब्रह्मा है ,
लोर्ानद पशु हैं , धैयभ और संतोष दीक्षाएाँ हैं , ज्ञािेन्तियााँ यज्ञके पात्र हैं ,
कमेन्तियााँ हनि (होम करिेकी सामग्री) हैं , नसर कपाल है , केश दर्भ
हैं, मुख अििेनदका है , नसर चतुष्कपाल है , पाश्वभकी दिपनङ्कयााँ
षोडश कपाल हैं , एक सौ सात ममभस्थाि हैं , एक सौ अस्सी संनधयााँ
हैं, एक सौ िौ स्नायु हैं , सात सौ नशराएाँ हैं , पााँच सौ मज्जाएाँ हैं , तीि
सौ साठ अन्तस्थयााँ हैं , साढ़े चार करोड़ रोम हैं , आठ पल (तोले) हृदय
है, द्वादश पल (बारह तोला) नजह्वा है , प्रस्थमात्र (एक सेर) नपत्त,
आढकमात्र (ढाई सेर) कफ, कुडिमात्र (पािर्र) शुक्र तथा दो प्रस्थ
(दो सेर) मेद है ; इसके अनतररक्त शरीरमें आहारके पररमाणसे मल-
मूत्रका पररमाण अनियनमत होता है। यह नपप्पलाद ऋनषके द्वारा
प्रकनटत मोक्षशास्त्र है , पैप्पलाद मोक्षशास्त्र है ॥५॥

॥ हररः ॐ ॥

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.. Pind Upanishad ..

॥ पिण्डोपनिषत्॥
पितॄणां हंसरूपाणां यन्ता श्रीमज्जनार्दन ।
भवतापप्रणुत्यर्थं सततं तमहं श्रये ॥ १॥
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णामेवाशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ॥
देवता ऋषयः सर्वे ब्रह्माणमिदमब्रुवन्।
मृतस्य दीयते पिण्डः कथं गृह्णन्त्य्चेतसः ॥ १॥
भिन्ने पञ्चात्मके देहे गते पञ्चसु पञ्चधा ।
हंसस्त्यक्त्वा गतो देहं कस्मिँस्थाने व्यवस्थितः ॥ २॥
त्र्यहं वसति तोयेषु त्र्यहं वसति चाग्निषु ।
त्र्यहमाकाशगो भूत्वा दिनमेकं तु वायुगः ॥ ३॥
प्रथमेन तु पिण्डेन कलनं तस्य सम्भवः ।
द्वितीयेन तु पिण्डेन मांसत्वक्षोणितोद्भवः ॥ ४॥
तृतीयेन तु पिण्डेन मतिस्तस्याभिजायते ।
चतुर्थेन तु पिण्डेन अस्थि मज्जा प्रजायते ॥ ५॥
पञ्चमेन तु पिण्डेन हस्ताङ्गुल्यः शिरो मुखम्।
षष्ठेन कृतपिण्डेन हृत्कण्ठं तालु जायते ॥ ६॥
सप्तमेन तु पिण्डेन दीर्घमायुः प्रजायते ।
अष्टमेन तु पिण्डेन वाचं पुष्यति वीर्यवान्॥ ७॥
नवमेन तु पिण्डेन सर्वेन्द्रियसमाहृतिः ।
दशमेन तु पिण्डेन भावानां प्लवनं तथा ।
पिण्डे पिण्डशरीरस्य पिण्डदानेन सम्भवः ॥ ८॥
हरिः ॐ तत्सदित्युपनिषत्॥
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णामेवाशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
इत्याथर्वणीया पिण्डोपनिषत्समाप्ता ॥

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piNDopaniShat.pdf 1 40
मातृ गयायाां पिण्डदाने पिशे षश्लोकााः

गर्भस्थे गमने दुःखं विसगे प्राणसंकटे ।


तस्य चोद्धारणाथाभय मातृविण्डं ददाम्यहम् ॥१॥
मावस मावस वनषेकाद्युः वििसन्तान दुःवखताुः ।
तस्य उद्धारणाथाभय मातृविण्डं ददाम्यहम् ॥२॥
मावस मावस कृ तं कष्टं िेदना प्रसिेष च । तस्य० ॥३॥
संिण
ू े दिमे मावस ह्यत्यन्तं मातृिीडनम् । तस्य० ॥४॥
गात्रर्ंगो र्िेत् मृत्युः मातुः एि न संियुः । तस्य वनष्क्रमणाथाभय मातृ० ॥५॥
याित्ित्रो न र्िवत ताित् मातश्च िोचनम् 1 तस्य चोद्धारणाथाभय मातृ० ॥६॥
ियवथल्यं प्रसिे प्राप्ते माता विन्दवत दुःसहम् । तस्य वनष्क्रमणाथाभय मातृ० ॥७॥
िद्भ्ां जनयते ित्रे जनन्याुः िररिेदना । तस्य वनष्क्रमणाथाभय मातृ० ॥८॥
अल्िाहार कृ ता माता याित्ित्रोऽवस्त बालकुः । तस्य उद्धरणाथाभय मातृ० ||९||
रात्रौ मूत्रिरीषाभयां वललश्नते मातृकविके । तस्य वनष्क्रमणाथाभय मातृ० ॥ १०॥
कटद्रव्यावण क्वाथांश्च विविधावन च र्िवत । तस्य वनष्क्रमणाथाभय० ॥११॥
िधया विह्िले जाते तृप्प्तं माता प्रयच्छवत । तस्य वनष्क्रमणाथाभय० ॥ १२॥
ददिा रात्रौ च यन्माता आनन्द सर्तृक भ ा । तस्य वनष्क्रमणाथाभय० ॥१३॥
यमद्वारे महाघोरे िवथ मातश्च िोचनम् । तस्य वनष्क्रमणाथाभय० ||१४||
ित्रो व्यावधसमायक्तो माता ह्यारन्दकाररणी। तस्य वनष्क्रमणाथाभय० ||१५||
यवस्मन् काले मृता माता गवतस्तस्या न विद्ते ।
तस्य वनष्क्रमणाथाभय मातृविण्डं ददाम्यहम् ||१६||

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