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~स्त्री, शूद्र, और द्विजबंधु समुदाय के लिए सिवहितकारक और सिवकल्याणकारी स्त्मातव

संध्याविधध~
स्त्री, शूद्र, और द्विजबंधु समद
ु ाय को िैददक श्रुतियों में अधधकार नह ं होने के कारण, उनके कल्याण के लिए, श्री
गुरुदे ि के उपदे श का पािन करिे हुए, मैं स्त्माित संध्याविधध का प्रचार कर रहा हूूँ।
इसलिए सितकल्याण के लिए मैं इस स्त्माित संध्याविधध का प्रणयन कर रहा हूूँ।

श्री गणेश श्री गणेश श्री गणेश

संध्या के समय पहिे स्त्नान आदद करके शद्


ु ध िस्त्र पहनें, सुबह और दोपहर में पूित ददशा में मख
ु करके बैठें।
जोडी हाथ करके दे िी गंगा का स्त्मरण करें -
विष्णुपादार्घयवसम्भूते गङ्गे त्ररपथगालमनि।
धमवद्रिीनत विख्याते पापं मे िर जाह्िवि ॥
श्रद्धया भक्तत सम्पन्िे श्रीमातदे वि जाह्िवि।
अमृतेिाम्बुिा दे वि भागीरधथ पुिीहि माम ् ॥
इसके बाद श्री गंगा (३) कहके, सिातङ्गे, सितर गंगा जि को तिटकाकर दे ना चादहए।
नतिक धारण -

भस्त्म या अष्टगंध के द्िारा तििक करें । भस्त्म विभूति सिोत्तम है । प्रािः काि में जि लमिाकर (दोपहर में जि +
गंध िथा चंदन लमिाकर) तििक करें , और दोपहर के बाद लसर्त सख
ू े भस्त्म से तििक करें । भस्त्म/अष्टगंध लशिाय
नमः मंर का उपयोग करिे हुए दादहने हाथ से िेकर बाएं हाथ में रखें, फर्र पानी, चंदन आदद लमिाएं, और दादहने
हाथ के अनालमका अंगूठी से लशिाय िमः मंर के साथ लमधश्रि करिे हुए अलभमंत्ररि करें । इसके बाद माथे पर
धारण करने के समय भी लशिाय नमः मंर का ह उपयोग करें ।
भस्त्म के द्िारा करने पर अनालमका अंगूठी से केिि एक त्रबंद ु बनाएं। अष्टगंधा के द्िारा पूरे माथे पर िेप करें ,
और मध्य में एक त्रबंद ु बनाएं।

लशखा बंधि -

जजनके पास लशखा है , उन्हें तनम्नलिखखि मंर से लशखा बंधन करना चादहए, जजनके पास नह ं है , उन्हें लशखा के
स्त्थान पर स्त्पशत करके तनम्नलिखखि मंर का पाठ करना चादहए। जैसे -
िमो ब्रह्मबाणी सिस्राणी लशिबाणी शतािी च।
विष्णोिावम सिस्रेण लशखाबद्धं करोम्यऽम ्।।
आचमि -

दादहने हाथ से कुश द्िारा बाएं हाथ में एक बार पानी िेकर, दादहने हाथ के सभी उं गलियों के अग्रभाग को उस पानी
में डुबोकर 'िमः विष्णु, िमः विष्ण,ु िमः विष्णु' िीन बार मुख में तिटकाना चादहए। इसके बाद हाथ को अच्िे से
धो िेना चादहए।
माजवि -
तनम्नलिखखि मंर पाठ करिे करिे कुश के अग्रभाग से या दादहने हाथ की अनालमका उं गि से जि िेकर मस्त्िक,
सिाांग, भलू म, और ऊध्ित ददशा में तिटाना चादहए। पष्ु पादद सभी उपकरणों पर तिटकाना चादहए।
िमः विष्णु िमः विष्णु िमः विष्णु
अपविरः पविरो बा सिाविस्त्थां गतोऽवप बा।
यः स्त्मरे त ् पुण्डरीकाक्षं सबाह्याभ्यन्तरः शुधचः।।
िमः पुण्डरीकाक्ष िमः पुण्डरीकाक्ष िमः पुण्डरीकाक्ष ।।
हाथ जोडकर -
सिवमङ्गिमङ्गल्यं बरे ण्यं बरदं शुभम ्।
िारायणं िमस्त्कृत्य सिवकमावणण कारयेत ्।।

जिशुद्धध -

एक त्ररकोण, उसके बािर ित्त


ृ , ित्त
ृ के बािर चतुष्कोण
कोशा रखने के स्त्थान पर मध्यमासे जि द्िारा एक त्ररकोण, उसके बाहर ित्त
ृ , ित्त
ृ के बाहर चिष्ु कोण बनाएं। 'एते
गन्धपुष्पे आधार शततये िमः’ बोिकर सचंदन पुष्प से पज
ू ा करें । 'फट’ बोिकर कोशा मण्डि के ऊपर रखें।
िादमे िमः मन्रसे कोशा में जि भरकर कोशा के अग्रभागमें गन्ध, पष्ु प, अक्षि त्रबल्िपर, हररिफक, दि
ू ात सजाएं ।
अङ्कुशमुद्रासे जि को स्त्पशत करके नीचे का मन्र बोिना होगा-
गङ्गे च यमुिे चैि गोदािरर सरस्त्िनत ।
िमवदे लसन्धु -कािेरर जिेऽक्स्त्मि ् सक्न्िधधं कुरु।।

अङ्कुशमुद्रा
िादमे ' गङ्गाहद तीथेभ्यो िमः' बोिकर उस जि में गन्धपष्ु प अपतण करे । फर्र उसके ऊपर धेनम
ु द्र
ु ा ददखाएं।

धेिुमुद्रा
अिःपर उक्ि जि सभी उपकरणों में दें ।
कोशा के दादहने िरर् िाम्रकंु ड रखें।

कोशा के दाहििे तरफ ताम्रकंु ड


आसि शुद्धध –

सामने आसन के तनचे मध्यमासे जि द्िारा एक त्ररकोण, उसके बाहर ित्त


ृ और उसके बाहर चिुष्कोण बनाएं।
'आधारशततये कमिासिाय िमः’ बोिकर उसमें एक र्ूि दे कर आसन को स्त्पशत करके बोिे— अस्त्य आसि-
मन्रस्त्य मेरुपष्ृ ठ-ऋव ः सुतिं छन्दः कुमो दे िता आसिोपिेशिे विनियोगः।
उसके बाद कृिाञ्जलि होकर पाठ करे —
पक्ृ वि त्िया धृता िोका दे वि त्िं विष्णुिा धृता।
त्िंच धारय मां नित्यं पविरं कुरु चासिम ्।।
इसके बाद जोडहाि करके बोिना है -
बाए कान के नीचे से ऊपर—श्री गरु
ु भ्यो िमः, श्री परमगुरुभ्यो िमः, श्री परापरगुरुभ्यो िमः'।
दादहने िरर् — गणेशाय िमः।
वपिे - क्षेरपािाय िमः।
ऊपर — ब्रह्मणे िमः।
नीचे - अिन्ताय िमः।
सम्मुख-े पूजिीयदे िताभ्यो िमः।

सूयावर्घयव दाि -

सूयातर्घयत के लिए, हाथ में िाम्र पार या कुशी में जि, रक्िपष्ु प, रक्िचंदन, अक्षि, दब
ू ात आदद को िेकर, दादहने हाथ
में आच्िाददि करके तनम्न मंरों का पाठ करना चादहए।
"िमो त्रबिस्त्िते ब्रह्मि ् भास्त्िते विष्णुतेजसे।
जगत्सविरे शुचये सविरे कमवदानयिे॥"
अर्घयत पार को दोनों हाथों में कृिाञ्जलि की भांति पकडकर, "एषो अर्घयतः श्रीसूयातय नमः" बोिकर िाम्रकुण्ड के जि
में डािना चादहए। फर्र तनम्नलिखखि मंरसे प्रणाम करना चादहए।
प्रणाम -
"जबाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं मिाद्युनतम ्।
ध्िान्ताररं सिवपापर्घिं प्रणतोऽक्स्त्म हदिाकरम ्॥"

प्राणायाम-

(अद क्षक्षि होने पर अगभत अथाति जप विह न प्राणायाम करना चादहए। अथिा फकसी ब्राह्मण से लशि बीज मंर हौं
का उपदे श ग्रहण कर , हौं बीज मंर से प्राणायाम करें । द क्षक्षि होने पर द क्षा प्राप्ि बीज मंर से प्राणायाम करें ।)

दक्षक्षण हस्त्ि के अंगष्ु ठ द्िारा दक्षक्षण- नासापुट बंद कर बीज मंर का षोडश बार जाप करिे हुए िाम-नासापुट से
िायु ग्रहण कर पूरक करें ।
कतनष्ठा एिं अनालमका अंगुि द्िारा िाम नासापुट को बंद कर िायु को रुद्ध करें एिं चौसठ बार बीज मंर का
जाप कर कुम्भक करें ।
इसके पश्चाि दक्षक्षण नासापट
ु से अंगुष्ठ उठा िे िथा बत्तीस बार बीज मंर का जाप करिे हुए दक्षक्षणनासापुट से
िायु त्याग कर रे चन करें ।
इसी प्रकार पुनः विपर ि क्रम में अथाति दक्षक्षणनासापुट से श्िास ग्रहण कर पूरक करें एिं उभय नासा रुद्ध कर
कुम्भक करें िथा अंि में रे चक करें । अंििः पूिि
त ि फर्रसे नासाधारण क्रमा से पूरक, कुम्भक िथा रे चन करें ।
संध्या, प्राणायाम एिं परू क के समय नालभ में द्विभज
ु , रक्ििणत, चिम
ु ख
ुत , अक्षसर
ू -कमंडि हस्त्ि, हं स पर आसीन
ब्रह्मा का ध्यान करें ।
कुम्भक के समय हृदय में नीिपद्म के आभा से युक्ि, गरुड पर आसीन, शंख-चक्र-गदा-पद्म धार चिुभज
ुत केशि
का ध्यान करें ।
रे चक के समय ििाट पर शुभ्र अंग, त्ररशूि-डमरू धार , द्विभुज, मस्त्िक पर अद्तध चंद्र विभूवषि, त्ररनेर धार ,
िष
ृ भ पर आसीन भगिान लशि का ध्यान करें ।
अनन्िर पुनः आचमन करें ि पुनः माजतन करें ।

अघम ण
व क्रिया -
दादहने हाथ में एक गंडूष जि िेकर, नालसका के तिद्र में स्त्पशत करके, हाथ की गोडी के द्िारा दादहने नासापुट को
रोकें, बायाूँ नासापट
ु द्िारा िायु आकवषति करे और कल्पना करे फक यह जिमय िायु मस्त्िक से हृदय िक सभी
पापों को द्रबीभूि करके पाप परु
ु ष सदहि दक्षक्षण नासा पुट में उपजस्त्थि है । दक्षक्षण नासापट
ु द्िारा िायु को िोडकर
एक कजल्पि पत्थर पर बायाूँ हाथ की िि के नीचे, उस जि के साथ उस पाप परु
ु ष को शजक्िसे तनक्क्षेप करे , ऐसा
िीन बार करें ।
फर्र हाथ धोकर पुनः आचमन करें ।
सूयत के उद्दे श्य से िीन अंजि जि दें ।
उसके बाद, गुरु परम्परा का स्त्मरण करते िुए कृतांजलि िोके पाठ कीक्जये -
दे िाधीना जगत्सिां मन्राधीनश्च दे ििा ।
ते मन्राः ब्राह्मणाधीिा तस्त्माद् ब्राह्मण दे िता।
िमो ब्रह्मणे िमः। िमो ब्राह्मणेभ्यो िमः।।
सदालशिसमारम्भां शङ्कराचायवमध्यमाम ्।
अस्त्मदाचायव पयवन्तां बन्दे गुरुपरम्पराम ्।।
िारायणं पद्मभिं िलशष्ठं शक्ततं च तत्पुरपराशरं च ।
व्यासं शुकं गौडपदं मिान्तं गोविन्द्योगीन्द्रमथास्त्य लशष्यम ्।।
श्रीशङ्कराचायवमथास्त्य पद्मपादं च िस्त्तामिकं च लशष्यम ्।
तं रोटकं बावत्तवककारमन्याि ् अस्त्मत्गुरुि ् सन्ततमागतोऽक्स्त्म।।
श्रुनतस्त्मृनतपुराणािाम ् आियं करुणाियम ्।
िमालम भगित्पादम ् शङ्करं िोक शङ्करम ्।।
शङ्करं शङ्कराचायं केशिं बादरायणम ्।
सूरभाष्यकृतौ बन्दे भगिन्तौ पुिः पुिः॥
ईश्िरोगुरुरात्मैनत मूनतवभद
े विभाधगिे।
ब्योमिद्व्याप्तदे िाय दक्षक्षणामूतय
व े िमः॥

उसके बाद परम भक्ि श्री िुिसीदास जी की स्त्मरण करके प्रणाम कररए।

फर्र तनददत ष्ट समय पर तनददतष्ट सन्ध्या करे । सन्ध्या िीन प्रकार की होिी है - प्रािःकाि न सन्ध्या, मध्याह्न
काि न सन्ध्या, और सायंकाि न सन्ध्या। जजस समय सय
ू ोदय के समय शुक्र िारे आकाशमें रहिे हैं, उसी समय
प्रािःकाि न सन्ध्या के लिए सिोत्तम होिा है । सूयत जब सीधे लसर पर होिा है , िो उस समय मध्याह्न काि न
सन्ध्या के लिए सिोत्तम होिा है । सूयत अस्त्ि होने के समय जब शेष ज्योति और आधार के सजन्ध के समय
उपजस्त्थि होिा है , उसी समय सायंकाि न सन्ध्या करे ।

तनददत ष्ट समय पर सन्ध्या करने में असमथत होने पर, प्रायजश्चि के लिए प्रत्येक सन्ध्या के लिए दस बार अतिररक्ि
िलिि गायरी मंर का जप करके प्रायजश्चि करना होगा। उसके बाद पूिब
त िी सन्ध्या का जप पहिे करे , फर्र
तनददत ष्ट सन्ध्या का जप करे ।
िलिि गायरी मंर जप से पहिे तनददतष्ट सन्ध्या में पथ
ृ क पथ
ृ क गायरी का स्त्िरूप ध्यान करना होगा। फर्र िलिि
गायरी मंर जप करना होगा।
प्रातःकािीि स्त्िरूप - सूयम
त ंडि में जस्त्थि, हं से उपविष्ट, हस्त्ि में कुश धारण कर ब्रह्मानी कुमार रूप में दे िी
अिस्त्थान कर रह हैं। इस रूप को ध्यान से दे खें। फर्र भगििी सीिा मािा का धचंिन करें ।

मध्याह्ि कािीि स्त्िरूप- सूयम


त ंडि में जस्त्थि, विष्णुरूपा, पीििालसनी, युििी साविरी का ध्यान करें । फर्र भगििी
सीिा मािा का धचंिन करें ।

सायाह्ि कािीि स्त्िरूप - सय


ू म
त ण्डि के ठीक मध्यििी स्त्थान पर लशि रूवपणी, िष
ृ भिादहनी ियस्त्क सरस्त्ििी रूप
में दे िी का ध्यान करें । फर्र भगििी सीिा मािा का धचंिन करें ।

इसके बाद तनम्नलिखखि िलिि गायरी मंर के चौपाई को ४० बार जप करें ।


िलिि गायरी मंर चौपाई -
जिकसुता जग जिनि जािकी।
अनतसय वप्रय करुणानिधाि की।
ताके जुग पद कमि मिािउँ ।
जासु कृपाँ निमवि मनत पािउँ ।।

अथत - (राजवषत) जनकसि


ु ा, जगदजननी और करुणातनधान श्रीरामचंद्र की वप्रयिमा जानकीदे िी के श्रीपादपद्म में
मेरा विनम्र तनिेदन है फक उनकी कृपा से मैं अति तनमति बद्
ु धधयक्
ु ि हो सकू।

तनत्य 40 बार जप करने से कोई भी व्यजक्ि ब्राह्मण द्िारा फकया गया िैददक संध्या और गायरी जप के समान
र्ि प्राप्ि करे गा। यह जप विधध खुद जगद्गुरु शंकराचायत पुर पीठाधीश्िर अनन्ि श्री विभूवषि स्त्िामी श्री
तनश्चिानंद सरस्त्ििी जी महाभाग के द्िारा उपददष्ट है । इसलिए तनत्य इस जप के र्ि से अपने अंदर अद्भुि
पररिितन को िक्ष्य कर सकिा है । तनमति मेधा िाभ और मेधा का चरम उत्कषत साधने, यथाथत परमाथत ित्त्ि का
अनुभियोग्य धी शजक्ि के विकास में इस चौपाई िैददक गायरी मंर के समर्िदायी है ।

कोई चाहे िो पौराखणक गायरी मंर का जप कर सकिे है -

सक्चचदािन्दरूपां तां गायरी प्रनतपाहदताम ् ।


िमालम ह्ीीँमयीं दे िीं धधयो यो िः प्रचोदयात ् ॥

जप विसजवि -
जप के बाद, दादहने हाथ में एक अंजलि जि िेकर तनम्न श्िोक के साथ दे िी की उद्दे श्य िाम्र कुण्ड में जप
विसजतन करें गे।
गुह्यानतगुह्यगोप्ता त्िं गृिाणास्त्मत ् कृतं जपम ्।
लसद्धधभवितु मे दे िी तत्प्रसादात ् सुरेश्िरी।।

इसके बाद हाथ धोकर ईष्ट नाम स्त्मरण करें गे।

ब्रह्मयज्ञ - िेदों की अध्ययन को ब्रह्म यज्ञ कहागया हैं, फकन्िु अनुपतनि जाति के िोग जजनको िेद में अधधकार
नह ं हैं, उन्हें भगिद्गीिा की अध्ययन करके ब्रह्मयज्ञ के र्ि को प्राप्ि करना चादहए।

लशखा मुक्ततकरण - जजनके पास लशखा है, िे लशक्खा बंधन और मुजक्िकरण विधध का पािन करें गे। जजनके पास
लशखा नह ं है और जो केिि दै िी कमत करने की हे िु लशखा के स्त्थान स्त्पशत करके बंधन फकया था, उन्हें कमत समाजप्ि
के बाद तनम्न मंर का अनुसरण करके लशखा मक्
ु ि करना चादहए -
गचछन्तु सकिा दे िा ब्रह्मविष्णुमिे श्िराः।
नतष्ठत्िराचिा िक्षमीः लशखामुततं करोम्यिम ्।।

।। िमः पािवती पतये िर िर मिादे ि ।।

– 🖋️ परमपूज्य पुर पीठाधीश्िर, जगद्गुरु शङ्कराचायत अनंि श्री विभवू षि स्त्िामी श्री निश्चिािन्द सरस्त्िती जी
महाभाग के चरणाधश्रि लशष्य श्री मुकुि चििती।

सिे भिन्िु सखु खनः - सिे सन्िु तनरामयाः।

Soft copy made by- Shree Dipto paul

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