Professional Documents
Culture Documents
Banaras Talkies - Satya Vyas
Banaras Talkies - Satya Vyas
सय ास
ISBN : 978-93-81394-99-1
काशक:
ह द-यु म
201 बी, पॉकेट ए, मयूर वहार फ़ेस – 2, द ली – 110091
मो. – 9873734046, 9968755908
कला- नदशन: वज एस वज
©सय ास
Banaras Talkies
A novel by Satya Vyas
Published By
Hind Yugm
201 B, Pocket A, Mayur Vihar Phase 2, Delhi – 110091
Mob : 9873734046, 9968755908
Email: sampadak@hindyugm.com
Website: www.hindyugm.com
(Zig Ziglar )
( ज़ग ज़ लर)
वषय – सूची
हम ह कमाल के
आग़ाज़
यार कोई खेल नह
ओये लक लक ओये
मंडी
मेरा नाम जोकर
लगान
कोहराम
सा जश
एक दन अचानक
हम ह कमाल के
ै े े ी ो े ै ो े ी ै े
है; ले कन इंसान लखेगा वही, जो उसने पढ़ा है। सो, बे जी एक सवाल तैयार करते ह
और परी ा म पाँच सवाल कर आते ह।
“ओहो! या? आपको खाली पास नह होना है; नॉलेज बटोरनी है? अरे! तो पहले
बोलते! झुट्ठो म एक कहानी सुन लए।”
जाइए, जाकर वाइन क जए ‘राजीव पांडे’ क लास। म नंबर-86 म चलती है
उनक लास। पढ़ा तो ऐसा दगे क ले चरर लोग उँगली चूसने लगगे। यूपीएससी के सब
attempt ख म हो जाने पर इ ह ‘कैव य’ क ा त ई और पांडे जी लॉ करने आ गए।
खूब पढ़ते ह और उतना ही लखते ह। परी ा म अ सर question इसी लए छू ट जाता है
क उनको पता ही नह लग पाता क कतना लख? इसी लए गलती से भी से उनका नंबर
मत पू छएगा! ख सया जाएँगे। परी ा हाल म इस ससुर को खैनी नह मलता है तो
ल खए नह पाते ह।”
और अब, जब पूछ ही लए ह, तो सु नए ‘पढ़ाई’ के बारे म बी.डी. जी वय के वचार-
अनुराग उफ दादा-क नीया-हॉलड मैच (व क बबाद )
राजीव पांडे – A representation or rendering of any object or scene
intended, not for exhibition as an original work of art, but for the
information, instruction, or assistance of the maker; as, a study of heads or
of hands for a figure picture . बाप रे बाप!!
जयवधन-घंटा!’
सूरज ‘बाबा’-‘ABCDEFG – A Boy Can Do Everything For Girls .’
बे जी- स टम के लए नौकर पैदा करने वाली मशीनरी।
ान तो बखरा पड़ा है भगवानदास हो टल म। बस दे खने वाली आँख चा हए। आँख
से याद आया-
“ फ म दे खते ह बाउ साहेब?”
“ या? या कहे? आपके जैसा फ म का ान कम ही लोग को है?”
“अ छा तो बताइए क डॉली ठाकुर कस फ म म पहली बार आई थी?”
“ या? द तूर?”
े े ी े ॉ ी औ ॉ ी
“अरे, बाउ साहेब…! इसी लए ना कहते ह क डॉली ठाकुर और डॉली म हास म
अंतर सम झए और भगवानदास आया-जाया क जए।”
“कमरा नंबर-88 म नव जी से भट क जए। भंस लया का फ लम, हमारा यही भाई
ए डट कया था। जब ससुरा, इनका नाम नह दया तो भाई आ गए ‘लॉ’ पढ़ने क वक ल
बन के केस क ँ गा। दे श के हर जला म इनके एक मौसा जी रहते ह। डॉ टर मौसा।
ॉ टर मौसा। इले शयन मौसा। पॉ ल ट शयन मौसा। घोड़ा मौसा। गदहा मौसा। खैर,
मौसा महा मय छोड़ द तो भी नव जी का मह व कम नह हो जाता। फ म का ान तो
इतना है क पाक जा पर कताब लख द। शोले पर तो नव जी डा टरेट ह ही। अ मताभ
के ज स का नाप, ध का बाप, बुलेट पर कंपनी का छाप और बसंती के घाघरा का माप
तक; सब उनको मालूम है। ग बरवा, सरईसा खैनी खाता था, वही पहली बार बताए थे।
अ मताभ ब चन को याद नह होगा क कतना फ म म उनका नाम ‘ वजय’ है।
अ मताभ बोलगे 17, तो नव बोलगे, ‘नह सर, 18। आप ‘ नःश द’ को तो भूल ही गए।
‘गदर’ के एक सीन म सनी दे ओल के नाक पर म खी बैठ तो नव जी घोषणा कर दए
क फ म ऑ कर के लए जाएगी; य क आदमी को तो कोई भी डायरे ट कर सकता
है; ले कन म खी को डायरे ट करना…बाप रे बाप! या डायरे शन है! ऐसे ानी ह नव
जी।
“अ छा, तो कहानी म interest आ रहा है? पूरी कहानी सुननी है? तो बै ठए; थोड़ा
टाइम लगेगा। पे सी और च स मँगवा ली जए।”
अब आपसे या छु पाना बाऊ साहब, जब कहानी सुनानी ही है तो कहानी शु करने
से पहले बता ँ क इस कहानी का सू धार म ँ। म यानी सूरज। अरे वही! Girls hostel
and all that . कसी से क हएगा मत! कसम से, अपना समझ के बता रहे ह आपको।
कहानी उन दन शु होती है जब तेरह टाँग वाली सरकार जा चुक थी। सुनामी ने
कहर दखा दया था और दे श क आ थक राजधानी मुंबई बम व फोट के बीच जीना
सीख रही थी।
ले कन यह कहानी तो दे श के सां कृ तक राजधानी क है। बनारस। और बनारस क
भी या है साहब! यह तो भगवानदास हो टल क कहानी है; जो बनारस के दय बी एच
यू का छ ीसवाँ हो टल है। वक ल का हो टल।
हाँ! तो भगवानदास हो टल जाने के लए आपको बनारस चलना होगा। अरे, वह है
ना सव व ा राजधानी। बनारस ह यु नव सट ; जसे आप बी.एच.यू. भी कहते ह।
आइए चल-
आग़ाज़
ी ी ैऔ ो ै औ ै े ी ौ
“गु , गलत नया म एक ही चीज है और वो है failure . और वैसे भी तुम कौन-सा
गलत ड लेरेशन दे रहे हो? इनकम तो सही लख ही रहे हो।” उसने कहा।
“थक यू। म अभी आता ँ, इसे जमा करके। Bye the way मेरा नाम सूरज है।” मने
कहा। “और मेरा नाम अनुराग डे।” उसने कहा। “डे? मतलब-बंगाली?” मने पूछ लया।
जवाब म वह सफ हँस दया। या म तु ह ‘दादा’ बुला सकता ँ? मने पूछा। “कु छो कहो
गु ! तु हारी जबान तु हारी मज ! राजा.. ई बनारस हौ।” दादा ने हँसते ए कहा।
अभी हम बात कर ही रहे थे, तभी एक और लड़का परेशान-परेशान फरता दखाई
दया। कभी वह दौड़कर काउं स लग म म जाता, कभी डीन के कमरे म। ‘दादा’ ने इसी
बीच उसे रोककर पूछा-
“कोई परेशानी है?”
“हाँ यार! दे खो ना, म फादर क इनकम स ट फकेट लाना ही….।” उसके इतना कहते
ही हम दोन ठठाकर हँस पड़े। उसे भ च का दे खकर दादा ने मुझसे कहा- “तुम जाकर
अपना procedure पूरा करो, तब तक हम इनको बाप बनाने का procedure बताते ह।”
“ओके।” मने जाते व उस लड़के से कहा- “मेरा नाम सूरज है और तु हारा?”
“जयवधन शमा।” उसने कहा।
अं ेजी म एक कहावत है-Birds of same feather flock together . शायद
इसी लए काउं स लग के दौरान ही हम तीन मल गए थे। हम बताया गया क हमारा
हो टल होगा, भगवानदास हॉ टल यानी B.D. Hostel . एक म म दो लोग ही रह सकते
थे। पहले दादा ने पाटनर बनने का ऑफर दया; सो हम पाटनर बन गए। म नंबर-79
हम अलॉट आ। जयवधन कसी को चुन नह पाया था या उसे कसी ने पाटनर नह
बनाया था; इस लए उसे तब तक अकेले ही म मला, जब तक कसी सरे लड़के को
हो टल अलॉट न हो जाय।
भगवानदास हो टल। इ तहास यह है क यह अं ेज के जमाने क जेल क तज पर
बना आ हो टल है। भूगोल यह क बाय, कॉमसवाल का गुटू हो टल। दाय, ए ीक चर
वाल का राधाकृ ण हो टल। पीछे जंगल और आगे लोहे के गेट क कलाबंद ।
राजनी तशा यह क भगवानदास का अपना अघो षत सं वधान था; जसका पालन
कसी डेमो े सी क तरह ही अ नवाय था। अ धकार म वाक्- वातं य अथात बोलने का
अ धकार सबसे अ धक योग कया जाने वाला अ धकार था। कसी को ग रयाने के लए
पीने या होली का इंतजार करने क आव यकता नह थी। बात -बात म सामने वाले को
साला, ससुर और साढू बना लया जाता था। मतलब यह क आप खुल कर वाक्- वातं य
के अ धकार का योग कर सकते थे। हाँ! मूल कत म सी नयर का स मान सबसे
ी े े ोई ी ई ँ ो ो
ज री था। आते-जाते कोई सी नयर य द आपक लंबाई तक नह प ँचता तो आपको
झुककर उसक लंबाई से छोटा होना पड़ता और फर उसके जाने का इंतजार करना होता।
हम हो टल आने के साथ ही पूरी न ा और लगन से अपने कत का नवाह कर रहे थे।
कॉलेज कसी रोमां टक फ म के कॉलेज जैसा नह है, यह तो हम समझ गए थे;
ले कन पहला महीना कसी हॉरर फ म क तरह गुजरेगा, इसका आभास कसी को नह
था। इसका एक कारण यह था क एड मशन के समय से ही हम सुनते आ रहे थे क लॉ
फैक ट म रै गग का क चर नह है। ले कन भगवानदास म कहते ह क दाई से पेट
छपाना और सी नयर से बच पाना, दोन असंभव है। हमारे वागत क पूरी तैयारी गुप-चुप
तरीके से क जा रही थी। रैग का बनारसी सं करण था-‘रगड़’, जो आज शाम ही हमपर
आजमाया जाने वाला था। इन सबसे बेखबर म नंबर-79 म सगरेट के छ ले बन रहे थे।
दादा ने एक गोल छ ले के बाद लगातार के तीन छ ले बनाए ही थे, जब कसी ने दरवाजे
पर द तक द -
“कौन है?” दादा ने वाडन के डर से सगरेट फकते ए कहा।
जवाब म दरवाजे पर जरा तेज द तक ई।
“दरवाजा खुला है।” मने म म टे लकम पाउडर छड़कते ए कहा ता क सगरेट क
गंध कम हो जाए; ले कन अबक बार भी जब कोई नह आया तो मुझे लगा क कोई
शैतानी कर रहा है।
“अबे जयवधनवा है। वही नौटं क कर रहा है।” मने दादा से कहा।
“भोसड़ो के..! पसारोगे नौटं क ? दरवाजा खुला है; आते काहे नह हो बे? तु हारे
च कर म साला, सगरेट फक दए।” दादा ने च लाते ए कहा।
“सूरज और अनुराग डे! आप दोन ठ क 6 बजे यानी अब से 15 मनट बाद कॉमन
म म प ँ चए। आज आपका इं ो है।” बाहर से आती एक रोबीली आवाज ने हमारे जोश
और होश दोन म बफ मला दया।
“कौन था भाई?” मने फुसफुसाते ए पूछा।
“सी नयस। हमारा रै गग राउंड शु होने वाला है।” दादा ने भी धीरे से कहा।
“ या? रै गग? ले कन यहाँ तो होता नह है।” मने डर छु पाते ए कहा।
“जहाँ सी नयस ह, वहाँ रै गग है बेटा।” दादा ने ट -शट पहनते ए कहा।
“ले कन गेट पर तो लखा था क यह anti-ragging zone है।” मने आँसी आवाज
म कहा।
े ो े ी ै े ै ो ँ े
“गेट पर तो ये भी लखा है क ये anti-smoking zone है; तो या हम फूँक नह रहे
थे? और अब तुम रोने मत लग जाना! आराम से जाएँगे। जो बोलेगा भाई लोग, बदास
करना है। वैसे भी रात है और यहाँ हम सब boys ही ह।” दादा ने ढाढ़स बँधाते ए कहा।
“हम सुने ह हीटर पर सू-सू करने को कहता है सब!” मेरा डर अब आवाज म आ गया
था।
“अब हीटर पर कराए, चाहे लीटर भर कराए; करना तो पड़ेगा गु ! चलो, चला जाए
भोलेनाथ का नाम ले के।” दादा ने दरवाजा खोलते ए कहा।
बाहर नकलने पर मालूम आ क ‘रगड़ाई’ के कुछ नयम ह। लॉटरी के अनुसार एक
दन म 5 जू नयस को ही रगड़ा जाएगा। हमारे अलावा आज लॉटरी जीतने वाले अ य
लोग थे-जयवधन शमा, नव जी और राम ताप नारायण बे अथात बेजी; जो बेस ी से
बाहर घूम रहे थे। रगड़ के नयम नव जी ने ही बताए।
“ या पूछेगा सब? कुछ आइ डया है?” जयवधन ने बेतुका सवाल कया।
“हाँ, Data Interpretation, reasoning और थोड़ा-सा general awareness .
चू तया जैसा सवाल मत करो!” दादा ने सवाल के माकूल जवाब दया।
“अरे, कुछ भी पूछ सकता है! हम होली फ म म दे खे थे। रे लग पर चलने को भी
कह सकता है! आ मर खान का पहला फ म था होली।” नव जी ने पहली ही मुलाकात
म ान का पटारा खोल दया।
“च लए ना! आप तो मैच से पहले ही वाक-ओवर दे रहे ह। दे खए तो सूरज का हाल!
बेचारा तीन अंडर-पट पहन लया है, यही सब कहानी सुन के।” दादा ने हँसते ए कहा।
“चला जाए भाई; समय हो गया है”। बे जी ने सबसे ज री बात बताई। उनके साथ
चलते ए ही मने दे खा क बे जी का एक पैर लकवा त है। यह बे जी से हमारी पहली
मुलाकात थी।
कॉमन म म प ँचने पर वैसा ही अनुभव आ, जैसा माँ अपने कलेजे को कॉलेज
भेजने से पहले का बताती है। जैसा दलदल म फँसी हरण का घ ड़याल को दे खकर होता
है। जैसा नह थे का लठै त दे खकर होता है। सब कुछ वैसा ही था जैसा हम सोच रहे थे।
बस एक चीज असामा य थी, खाने क खुशबू। केवड़ा और इलायची क खुशबू। शायद
रगड़ के बाद जू नयर को खलाना भी परंपरा हो-यही सोचते ए म, बाक दो त के साथ
भीतर दा खल आ। भीतर पूरे 10 लोग थे-मतलब दस सी नयर। रै गग करने वाले ये दस
सी नयस ऐसे थे जनके चेहरे पर आ खरी बार मु कान तब आई होगी जब कुंबले ने 10
े े ै े ी ी े े ै ॉ औ
वकेट लए थे। वैसे भी, कसी ने इ ह के लए कहा है क मनल लॉयर और मनल
म फक बस ड ी का ही होता है।”
“एक लाइन म अपनी हाइट के हसाब से खड़े हो जाओ!” गरजती ई आवाज म
एक सी नयर ने कहा।
बे जी सबसे आगे खड़े ए। उनके पीछे जयवधन। उसके बाद नव जी फर म और
सबसे पीछे दादा; जो हमम सबसे लंबा था।
“ या नाम है तु हारा?” सरे सी नयर ने बे जी से पूछा।
“जी, राम ताप नारायण बे।” बे जी ने ऐसे बताया जैसे एक सै नक अपने
कमां डग ऑ फसर को रपोट करता है।
“ये नाम है क ौपद क साड़ी! साला ख म ही नह होता है।” सी नयर ने अपनी
हँसी दबाते ए कहा।
“और बाप का नाम या है?” उसी सी नयर ने पूछा।
“ ी ीधर बे।” बे जी ने फर उसी अंदाज म जवाब दया।
“ या धर, बे? बाप का नाम पूछ रहे ह तो धरने और पकड़ने क बात कर रहे हो?
धरने का ब त मन करता है? धरवाएँगे गु , धरवाएँगे तुमसे।” सी नयर ने कड़क आवाज
म कहा।
“नह सर! मेरे पताजी का नाम ही ीधर बे है।” बे जी ने अब फौजी अंदाज छोड़
कर लगभग म मयाते ए कहा।
“साला! बेटा का नाम हनुमान क पूँछ और बाप का नाम हटलर क मूँछ।” एक
खुश मजाज लग रहे सी नयर ने तुकबंद करते ए कहा। “ब त नाइंसाफ आ है गु
तु हारे साथ! मतलब, जसके बाप का नाम इतना छोटा हो; उसके बेटे का नाम इतना
बड़ा! गलत आ है क नह तु हारे साथ? बोलो।”
“जी।” बे ने बस इतना ही कहा।
“तो चलो, फोन लगाओ घर पर और गन के दस गाली दो तो बाप को।” सी नयर ने
बड़ी ढ़ता से कहा।
“ या!” बे जी सकपका गए।
“हाँ! घर का नंबर बताओ।” दाढ़ वाले सी नयर ने डाँटते ए कहा।
ो े े ो े ी े े
“सर, हमको माफ कर द जए सर। हमसे ये नह हो पाएगा।” बे जी ने गड़ गड़ाते
ए कहा।
“नह हो पाएगा? कैसे नह हो पाएगा। वक ल बनने जा रहे हो और जरह से डरते
हो? चलो, फोन नंबर बोलो।” उसी सी नयर ने हो टल का लड-लाइन रसीवर उठाते ए
कहा।
बे जी ने ब त म त क और उ ह म त के बीच टे लीफोन नंबर भी बताया। हम
सबको, खुद के साथ होने वाले टाचर का े लर मल गया था; मगर अभी तो बारी बे जी
क थी।
“ रग जा रहा है, लो बात करो।” लंबी डील-डौल वाले एक सी नयर ने काला रसीवर
बे जी ओर बढ़ाते ए कहा।
बे जी के पास अब कोई चारा नह था। उ ह ने रसीवर कान पर लगाया और बोलना
शु कया-
“हैलो पापाजी।”
“ णाम। जी… ठ क ह।”
“जी, हो टल मल गया है।”
“जी, पढ़ाई भी ठ क चल रही है।”
“अ छा एक बात बताओ बुड्ढे ! मेरा नाम इतना बड़ा य रखा? अपने जैसा छोटा
नह रख सकते थे? साला। फॉम भरो तो नाम कॉलम से बाहर आ जाता है। रेलवे का
टकट बुक कराओ तो नाम भरते-भरते वे टग ल ट आ जाता है। नाम न हो गया,
ऑरगै नक केमे का फॉमुला हो गया! जानते ह? यहाँ सब हमको RPND कहता है।
जैसे DDT वैसे RPND . ले कन आपको या? आप बस नकट् ठू जैसा चार आदमी को
बैठा के, अटल का चुनाव से लेकर पटल का भाव तय क जए। अब या क ठया मार दया
है क बोल नह रहे ह? उस दन तो ब त बोले थे जब हम CA करने के लए कहे थे! तब
या बोले थे याद ह न? अरे, करना है तो BA कर लो! य क B, C के पहले आता है।
पगलोल हो और पगलोल रह जाओगे। पैसा कहाँ डालोगे? च लए, अब फोन रखते है।
बेटा ह, माफ कर द जएगा। णाम पापाजी।”
इतना कहकर बेजी ने फोन रख दया और एक लंबी साँस लेने के बाद सी नयस क
ओर दे खने लगे। सी नयस ने एक साथ ताली बजाते ए बे जी का मनोबल बढ़ाया।
ो ॉ ै ी
“शाबाश! ब त ब ढ़या जरह कए हो। एकदम प का लॉयर जैसा। बस एक कमी रह
गई क गन के दस नह दए। कोई बात नह , तु हारा लास खतम। उधर जा के दाढ़ वाले
बाबा के दाढ़ म पका आ बाल गनो।” एक सी नयर ने दाढ़ वाले सी नयर क ओर
इशारा करते ए कहा। बे जी बना कुछ बोले उधर बढ़ गए।
आँख क सूई अब जयवधन क तरफ आकर थम गई थी।
“तुम आगे आओ। नाम बताओ अपना।” एक सी नयर ने कहा।
“जयवधन।”
“जयवधन या?” सी नयर क दलच पी उसका उपनाम जानने म थी।
“जयवधन शमा।” जयवधन ने बताया।
“शमा! कहाँ से हो। मतलब घर कहाँ है?” शायद टाइटल से कुछ खास पता नह चल
पाया था।
“पटना से।” जयवधन अब थोड़ा क फटबल महसूस कर रहा था।
“पटना म कहाँ से?” सी नयर क उ सुकता अब बढ़ती जा रही थी।
“आ शयानानगर।” जयवधन ने लॉस-एंजे स क तज पर कहा।
“राजाबाजार के आसपास?” सी नयर ने अब और उ सुक होकर पूछा।
“अबे इतना deep काहे घुस रहा है? फुआ क शाद करनी है या?” दाढ़ के बाल
गनवाता सी नयर जोर से च लाया।
“तुम सरऊ चुप रहो..! दे श के भ व य से दाढ़ का बाल गनवा रहे हो और बात
करोगे ां त क ?” सी नयर ने दाढ़ वाले सी नयर से कहा और फर जयवधन क ओर
मुखा तब आ- “हाँ! तुम बताओ, राजाबाजार के आसपास?”
“हाँ, राजाबाजार से दा हने।” जयवधन ने कहा।
“अरे! तो पहले य नह बताए गु ! तुम तो जवारी के हो। इधर बैठो, कुस पर।
रबड़ी लाओ बे राकेशवा! ये तो मोह ले का नकल गया! और बताओ गु , पटना म सब
ठ क?” सी नयर ने जयवधन को कुस पर बैठाते ए कहा।
जयवधन ने भी कुस पर बैठते व हम ऐसे दे खा जैसे उसको कोई जुगाड़ मल गया
है और अब वो हमारी भी रगड़ कम तो करवा ही दे गा।
े ै ी े ी ो ो
“सब ठ के है पटना म भी।” जयवधन बहार के मु यमं ी क तरह बोला। “लो,
रबड़ी खाओ; और ये बताओ, यहाँ कैसे आ गए?” सी नयर ने सरे सी नयर के हाथ से
रबड़ी लेकर जयवधन को दे ते ए कहा।
“म मीठा नह खाता।” जयवधन अब यह भी भूल गया था क उसे सी नयर को ‘सर’
भी कहना है।
“अरे, यह मीठा थोड़े है! भोले बाबा का साद है। अब तो तुम बनारस आ गए हो।
यह भोले बाबा क नगरी है। साद समझ के खा जाओ।” सी नयर ने बड़े यार से कहा।
भोले बाबा का साद मतलब-भांग। यह बात बनार सय के लए कोई गूढ़ रह य नह
है। जसे खाना है वह यार से वीकार कर लेता है और जसे नह खाना, वह और भी यार
से इंकार कर दे ता है। कोई जबरद ती नह । जबरद ती बनारस का वभाव ही नह है; मगर
यह बात उनपर लागू है जो बनारस का वभाव जानते ह। ज ह बनारस आए ए अभी
एक पखवाड़ा भी नह गुजरा, उ ह बनारस क श दाव लय से प र चत होने म समय तो
लगेगा। जयवधन उ ह म से एक था। यह trap था और जयवधन इसम फँस गया था।
“आप कहते ह तो खा लेता ँ।” जयवधन ने एक च मच रबड़ी खाते ए कहा।
“अ छा अब जब intro म आ गए हो तो एक-दो सवाल का जवाब दे दो, नह तो सब
कहेगा क हम े वाद कए।” सी नयर ने कहा।
“हाँ सर। पू छए ना!” जयवधन अब तक आधी कटोरी रबड़ी खा चुका था।
“अ छा बताओ तो, बनारस नरेश का महल बनारस से बाहर य है?” सी नयर ने
जयवधन के हावभाव को पढ़ते ए पूछा। “हम…. म। हम नह जानते ह सर।” जयवधन
ने पूरी कटोरी रबड़ी साफ करते ए कहा। उसका गला सूखने लगा था।
“ य क बनारस के राजा ह भोलेनाथ और एक जगह पर दो राजा नह रह सकते;
इस लए काशी नरेश का महल गंगा पार, रामनगर म है। समझे?” सी नयर ने समझाते ए
कहा।
“हाँ… ऊँ… मतलब क… थोड़ा पानी मलेगा भइया..?’ जयवधन क जुबान
लड़खड़ाने लगी थी।
“हाँ, पानी भी मलेगा। पहले एक सवाल का जवाब दो क व नाथ जी का मं दर
कौन बनवाया था?” सी नयर ने कु टल हँसी हँसते ए कहा। सारे सी नयर अब जयवधन
के आसपास जमा हो गए थे।
ो ी ी ै
“हमको नह मालूम। पानी…पानी…है या?” जयवधन अब लगभग छटपटा रहा था।
उसे यास लग रही थी। भांग अपने असर से पहले पानी चाहती ही है।
“अ याबाई होलकर।” सी नयर ने बताया। “अ छा, अब आ खरी सवाल! दे खो,
इसका जवाब ज र दे ना। पटना के इ जत का सवाल है। व नाथ मं दर कहाँ है?”
“तहरे बाप के बगान म! भोसड़ीवाले…. तब से पानी माँग रहे ह, तो सवाल पेल रहे
हो?” जयवधन ने झ लाते ए कहा।
अचानक ए इस भांग के असर को दे खकर पहले तो सी नयर सकते म आ गए;
ले कन फर उ ह ने खुद को संयत कया और मजा लेने लगे। भांग खलाने का उद्दे य ही
मजा लेना था। भांग अपना काम बखूबी कर रही था। जयवधन कुस से उठते ही पानी
ढूँ ढ़ने लगा। कॉमन म के कोने म रखी पानी क बोतल को मुँह से लगाकर जब वह आधी
बोतल पानी पी गया, तब बोला-
“सवाल पूछने का ब त शौक है तुमको? हम पूछे सवाल? बोल तो भोसड़ी के…
अकबर पयाज खाता था?”
जवाब दे ने के बजाय सी नयस हँसे जा रहे थे। यही शायद जयवधन क रगड़ थी;
ले कन वह अभी समझने क थ त म कहाँ था? वह खुद म ही बड़बड़ाए जा रहा था-
“सवाल पूछने चले ह! गाँड़ म गू नह , माई रे ह गब! साला चार दन आए नह आ
बनारस म, खुद को बनारसी समझने लगे। दो बार sir-sir या बोल दए, सर पर चढ़
गए! दो साल PO क तैयारी म नह मराए होते तो तु हारे सी नयर होते आज और खोद
रहे होते तु हारी। पानी नह दगे? अरे, सैदपुर हो टल म तु हारे जैसे नौछ टये पानी भरते थे
हमारा; तीन बार क सलामी अलग।” जयवधन धु होता जा रहा था।
“रबड़ी खला के या समझते हो, खरीद लए हो? जो कहोगे वही करगे? नह
करगे।”
“दे खो..! दे खो..! तुम गाली दे कर ठ क नह कर रहे हो?” एक सी नयर ने छे ड़ते ए
कहा।
“गाली? तुम लोग गाली सुनने के का बल कहाँ हो? तुम लोग तो खाली, ताली
बजाकर थाली पीटने के लायक हो। उखड़े बाल ना, नाम ब रयार खान!” जयवधन अब
भांग के नशे क उस अव था म था जहाँ जुबान, जेहन का साथ दे ना छोड़ने लगती है।
उसक बात अब उसके मुँह म ही उलझ रही थ । अ छ बात यह ई क भांग ने उससे
ड़दं ग नह कराई। वह ऊँघने लगा था। उखड़े बाल ना, नाम ब रयार खान-यह लाइन वह
तब तक रटता रहा, जब तक वह थककर गर नह गया।
े े ी े ॉ े ो े ो े
उसके गरते ही उसे कॉमन म के एक कोने म बो रय पर सुला दया गया। वह नशे
के कारण अब भी बड़बड़ा रहा था; ले कन ज द ही उसके सो जाने क उ मीद थी।
उसक रगड़ ख म हो चुक थी। अब बारी हम तीन म से कसी एक क थी-
“You, French cut. Come hear .” बारी नव जी क आई। नव जी ने अपने
कपड़े ऐसे ठ क कए जैसे कसी इंटर ू म जा रहे ह और फर उस सी नयर के पास
प ँचे।
“Tell me about your hobbies .” सी नयर ने कहा।
“सर, मेरा शौक है, डालट ओलोजी।” नव जी ने गव से हर अ र पर कते ए
कहा।
“What? Please come again .” सी नयर ने गु से म कहा।
“अरे, बड़ा शौक न बैच आया है अबक बार! एक तो धरने का बात करता है; सरा
डालने-डलवाने का।” दाढ़ वाले उस सी नयर ने कहा जसके दाढ़ के 77 बाल बेजी गन
चुके थे।
“सर, मुझे पो टकाड् स जमा करने का शौक है। उसे ही डाल टयोलोजी कहते ह।”
नव जी ने कहा।
“That is Deltiology, You idiot! Anyways ,, आपका शौक सं ह करने से जुड़ा
आ है, जानकर अ छा लगा।” सी नयर ने कहा।
“थक यू सर।” कहकर नव जी ने राहत क साँस ली। उ ह ने जानबूझ कर यह
hobby बताई थी। उनका सोचना यह था क इस hobby से कोई पूछ ही या सकता है?
“ठ क है, एक काम क जए। आप अपने कसी भी दो त के कमरे से, बना उसे
बताए एक कताब सं ह कर के लाइए। और हाँ! यान रहे, आपका वो दो त कमरे म ही
होना चा हए। तब आप सफल सं हकता माने जाएँगे। आपके साथ कमरे के बाहर तक म
चलूँगा।” सी नयर ने नयम बताते ए टा क स पा।
“ले कन सर, ये तो चोरी करना आ ना?” नव जी ने डरते ए पूछा। “अरे! तो या
कल कताब वापस नह करोगे? एकदम चोर हो या जी?” सी नयर ने गु साते ए कहा।
“Sorry sir .” नव जी ने कहा।
“चलो फर। ज द चलो और दस मनट म वापस आओ।” सी नयर ने हड़काते ए
कहा।
ी ी े ी े े ो
नव जी। संत आदमी। उनके नाम म ‘जी’ केवल इस कारण से लगा क वो स मान
दे ने म जड़-चेतन, पशु-प ी, पेड़-पौधे, ोफेसर- टु डट इ या द कसी म भेदभाव नह
करते थे। सबको समान भाव से स मान दे ते थे। गाली दे ना तो या, लख भी नह सकते
थे। ‘साला’ तो उ ह ने कभी अपने ‘साले’ को भी नह कहा था; मतलब कुल मलाकर
‘तीसरी कसम के हीरामन’ थे, हमारे नव जी।
और आज इस ‘धमा मा’ को चोरी करनी थी। खैर, यह सोचकर क भगवान और
भगवानदास सब दे ख रहे ह, नव जी, सुशील के म म घुसे जो कॉमन म से सबसे
नजद क था।
नव जी जब दबे पाँव कमरे म घुसे तब सुशील चेहरे पर चादर ताने सोया आ था।
नव जी धीमे से उसके टे बल तक गए। टे बल पर एक टे बल-लप जल रहा था और कताब
के साथ बस एक फोटो- टड रखा था जसम एक लड़क क त वीर लगी थी। त वीर से
जा हर था क वो सुशील क बहन थी। नव जी ने उसपर एक नजर डालते ए बंद पड़ी
सबसे पतली कताब उठाकर शट के अंदर डाल ली। अभी वह मुड़ने ही वाले थे क पीछे
से आवाज आई- “ या कर रहे ह नव जी?” आवाज सुशील क थी। “आपका फै मली
ए बम खोज रहे थे।” नव जी ने वच लत ए बना, का बल-ए-तारीफ शां त से जवाब
दया और मुड़कर ब तर पर बैठ गए। “मेरा फै मली ए बम, य ?” सुशील ने थोड़ा
कुढ़ते ए और थोड़ी शंका से सवाल कया।
“चेहरा मलाना था। आपक बहन का। बड़ी खूबसूरत है महाराज!” नव जी ने श द
चबा-चबाकर कहा।
“What ?” सुशील ह का-ब का था। “हाँ! भगवान कसम! झूठ नह बोल रहे ह!
कसपर गई ह वैसे, अंकल पर या आंट पर?” नव जी संत आदमी थे। झूठ तो बोलते ही
नह थे।
“What do you mean? Don’t you have manner to talk ? म कल ही आपक
शकायत वाडन से क ँ गा।” सुशील ने च लाते ए कहा।
“अरे! हम तो complement दए थे। अब आपको complement नह चा हए तो
कोई बात नह ; ले कन दे खए सुशील जी, नाराज मत होइए!” “Get out from here .”
सुशील ने डाँटकर कहा।
“जा रहे ह; ले कन एक बात कहगे सुशील जी; girlfriend क फोटो लगाने के उ म
आप बहन का फोटो लगाएँगे तो यही सब होगा। अब दे खए, अगर यहाँ girlfriend का
फोटो होता तो….”
“Just get out !” सुशील जोर से च लाया।
ऐ ी ँ े ो ो
“ऐसा ही एक confusion ‘इंसाफ म क ँ गा’ फ म म राजेश ख ा को हो गया था
जससे क …” नव जी ने अभी अधूरा ही ान दया था क सुशील च ला उठा-
“ नकल जाइए ज द से!”
“जा रहे ह सुशील जी; ले कन आप अपना तबीयत मत खराब क जएगा यही सब
सोच-सोच के!” नव जी ने चता जा हर क ।
“अरे मेरे बाप! जा यहाँ से!” सुशील अबक बार दोन हाथ जोड़कर बोला।
नव जी कसी को रोता नह दे ख सकते थे। जब उ ह लगा क अगर अब वह नह
नकले तो सुशील उनके पैर पर गर जाएगा, तब वह नकल गए। हालाँ क, उनका वचार
था क सी नयर को कताब दे ने के बाद वह फर से सुशील के पास आकर उसे ान दगे;
ले कन उनके बाहर नकलते ही सुशील ने ‘धड़ाम’ क आवाज के साथ दरवाजा बंद कर
लया। नव जी ने कताब सी नयर को दया। उनक रगड़ाई ख म हो चुक थी। वह उसी
सी नयर के साथ-साथ recreation room म वापस आ गए।
अब बारी मेरी या दादा म से कसी एक क थी। ले कन बारी कसी एक क नह ,
ब क दोन क एकसाथ आई। शायद इसी लए हम अंत म बुलाया गया था।
“ म नंबर-79. Come forward .” एक आदे श गूँजा। हम दोन आवाज दे ने वाले के
पास प ँच गए। अब तक सारे सी नयर एक घेरा बना कर हम घेर चुके थे।
“तुम दोन ने अपने म के बाहर दरवाजे पर अपना नाम लखा है। दरवाजा या
तु हारे बाप का है?” हौसला प त कर दे ने वाली एक आवाज पूरे कमरे म गूँज गई।
“Sorry sir .” मने अपनी शट का तीसरा बटन दे खते ए कहा। मने कह पढ़ा था क जब
आपक रै गग हो रही हो तो आपको अपना तीसरा बटन दे खते रहना चा हए। इससे अ छा
भाव पड़ता है।
“तुम दोन सगरेट पीते हो?” दाढ़ वाले सी नयर ने पूछा। “नो सर।” मने कहा।
“यस सर।” दादा ने कहा।
“ य पीते हो?” सवाल, दादा से था।
“ नया के 84% literate पीते ह और म illiterate नह होना चाहता; इस लए।”
दादा ने सीधा जवाब दया।
“अ छा! मतलब तुम खुद को Literate मानते हो?” सी नयर ने त ख अंदाज म
कहा।
“म Literate ।ँ ” दादा ने भी सीधा जवाब दया।
ी ै ो ो ी े े े ो
“बड़ी daring है बाबू? तुमको तो काम भी daring वाला दे ना पड़ेगा। या कहते हो
भाई लोग?” उस सी नयर ने अपने बाक सा थय से पूछा। सबलोग आपस म रायशुमारी
करने लगे। सभी लोग से रायशुमारी करने के बाद जो टा क हम दया गया वो कसी
आ मह या से कम नह था।
“हाँ..! तो म नंबर-79, यह टा क आप दोन के लए है। आपलोग ग स हो टल म
घुसगे और वहाँ से एक ऐसी चीज लाएँगे जो सफ लड़ कयाँ इ तेमाल करती ह।” सी नयर
ने एक अथपूण मु कराहट दबाते ए कहा।
“ या? ग स हो टल?” मने हत भ होते ए कहा। मुझे सपने म भी इसक उ मीद
नह थी।
“ले कन सर, ग स हो टल तो कले क तरह है। हमारा वहाँ घुसना नामुम कन है।”
दादा ने कहा। जैसे अगर मुम कन होता तो उसे यह टा क मंजूर था।
“That is not your concern . आपको ग स हो टल म हमारा मेसवाला महाराज
घुसा दे गा। उसके बाद क ज मेदारी आपक है।” सी नयर ने कहा।
“सर मुझे ये टा क मंजूर नह ……” अभी मने यह आधा ही कहा था क एक
झ ाटे दार थ पड़ ने मेरे कान सु कर दए।
“यहाँ कोई वधेयक पास हो रहा है क तु ह मंजूर नह है? तुमसे राय माँगी कसने बे?
भोसड़ी के… गोद म लए, तो आँख म उँगली डाल रहे हो। चुपचाप जाओ और ज द
लौटो। और याद रहे! ऐसा कुछ जो केवल लड़ कय के काम का हो। अंड-बंड कुछ लेकर
आए या बना कुछ लए आए तो फर दौड़ाएँगे और अबक बार खुद ही भीतर जाना
होगा।” सी नयर ने कहा।
“ले कन सर, हम भीतर कैसे जाएँगे?” दादा ने कहा।
“कहा ना…मेस वाले गा महाराज तु ह भीतर तक प ँचा दगे। गा.. ई न लईकन
के वेणी हा टल छोड़ आवा! जबले भीतर ना चल जईह, तब ले अईहा मत।” सी नयर ने
मेस महाराज से कहा।
गा महाराज। भगवानदास हो टल के रसोईये। यहाँ हर रसोईया ‘महाराज’ ही कहा
जाता है। भयानक त पधा के इस दौर म अपने आप को यहाँ बचाए रखने के लए गा
महाराज के पास भी सी नयर क बात मानने के अलावा और कोई चारा नह था। संभव
था क जब अगले साल हम सी नयर ह तो गा महाराज हमसे मल जाएँ। अतः वह
कृ त के नयम के अनु प ही काम कर रहे थे।
ै े े े े ी ो ओ े
खैर, आदे श के अनुसार गा महाराज हम लेकर वेणी हो टल क ओर चले। ग स
हो टल, हमारे भगवानदास हो टल से एक कलोमीटर क री पर था। रा ते भर गा
महाराज हम do and don’ts समझाते रहे।
“ये गमछा गदन पर रख ली जए; तब नु लगेगा क आप लोग भी रसोईया ह।”
“कोई कुछु पूछे तऽ बोल द जएगा क रगा का भतीजा ह।”
“द द लोग, अरे-तरे कर के बात करे, तऽ ख सआइएगा नह ! ना तऽ सब गड़बड़ हो
जाएगा। अलग-अलग द द लोग का अलग वचार होता है नु।”
“एगो पोले थन धऽ ली जए। जो समनवा लाना है, उसको रखने म आसानी होगा।”
महाराज ने मु कराते ए कहा।
“आप चुपचाप नह चल सकते?” मने गु से से कहा।
“अरे, हम तो आपलोग के भले के लए कह रहे थे। नकलते समय चे कग म धरा गए
तो सब गड़बड़ हो जाएगा।” गा महाराज ने नाराज होते ए कहा।
फर तमाम रा ते गा महाराज कुछ नह बोला। हम दोन भी कुछ नह बोले। मुझे यह
तो अंदाजा था क सी नयर के टा क का आशय या है? जतना ही म उन चीज को अपने
दमाग से नकाल रहा था उतनी ही सं या म वह मेरे दमाग म आती जा रही थ । म खुद
को उन खयाल से अलग कर पाता, इससे पहले ही हम वेणी हो टल के गेट पर थे।
गेटक पर गा महाराज को पहचानता था। थोड़ी आ-सलाम के बाद गा ने कहा-
“ न जने हमारे गाँव के ह; आज से यहाँ केदार महाराज के साथ काम करगे।”
“ठ क है; नाम लखवा दो।” गेटक पर ने कहा।
“अरे! अभीए नाम लख के का होगा? पता नह ए को दन टकगे क नह ? कल
लखवा दहऽ लोग। चलऽ, अब जा के काम करऽ लोग। केदार ब त ख सयाह हऊअन।
यान से काम क रहऽ लोग।” कहते ए गा ने हम जाने का इशारा कया।
भीतर घुसते ही मेरे शरीर म अजीब-सी झनझनाहट दौड़ गई। वैसे तो, मेसवाले जधर
रहते ह, वो हो टल से अलग है। फर भी, मारे डर के मेरी हालत खराब थी। म अँगोछे से
मुँह छपाने ही वाला था क दादा ने दाँत पीसते ए कहा-
“ या कर रहा है? इतनी गम म मुँह बाँधेगा तो वैसे ही शक हो जाएगा!”
“डर लग रहा है भाई।” मने कहा।
ो ी ै ो े े ो ो ई ँ
“हमको भी लग रहा है, तो या कर? जा के गेटक पर को बोल द क भाई, हम यहाँ
कड़ाही उठाने नह , समान उठाने आए ह?” दादा ने गु से से कहा।
“तो या कया जाए?” मने पूछा।
“कुछ मत करो! बस मेरे साथ-साथ चलो।” दादा ने कहा।
“ या उठाएँगे भाई? मतलब, या लेके चलगे?” मने साथ चलते ए पूछा।
“जैसे क तुमको पता ही नह है!” दादा ने फुसफुसाते ए कहा।
महज ट -शट और होजरी लोअस म हम मेसवाल से अलग ब कुल नह लग रहे थे।
ऊपर से कंधे पर रखे गमछे ने हम ब कुल उनके बीच का बना दया था। प चीस
मेसवाल के बीच कसी को हमपर शक इस लए भी नह आ य क नये session म
अ सर मेस म नये चेहरे दखते ह। केदार महाराज को पूछते ए हम मेसवाल के ओसारे
म दा खल तो हो गए; मगर हमारा मकसद केदार महाराज से मलना नह था। हमारा
मकसद कसी तरह ग स हो टल म दा खल होना था। याज, आलू और मटर के बीच से
होते ए हम मेस तक प ँच गए। वहाँ काफ शोर-शराबा था। इतनी सं या म लड़ कयाँ,
मने बस फ म के प ु डांस म दे खी थी। सब-क -सब बोल रही थ ; कोई सुन नह रहा
था। दादा शायद कुछ सोच रहा था; मगर म उ ह लड़ कय को नहारने म त था।
अचानक एक बच पर मेरी नजर क गई।
“दादा.. दादा.. उधर दे ख। अबे…! वो अपने फैक ट क लड़ कयाँ ह। मने उ ह
फैक ट म दे खा है!”
“तो भाई, उनको फर से फैक ट म ही दे ख लेना! इतना र क लेकर फैक ट क
लड़क ही दे खेगा?” दादा ने झ लाते ए कहा।
“तुमने कुछ सोचा?” मने मुँह गराकर कहा।
“हाँ! लड़ कय के खाकर जाने का इंतजार करना होगा। फर यह छोटा pass way
फाँदकर इनके म के corridor म दा खल होना होगा। वहाँ बाहर कुछ-न-कुछ तो मल
ही जाएगा।” दादा ने आशा जताई।
“ठ क है; ले कन तब तक या कर?” मने पूछा।
“तू लड़क दे ख, म बैठकर मटर छ लता ँ।”
दादा मेरा सबसे अ छा दो त था।
े े े ो ो औ े
लड़ कय के जाते-जाते दादा लगभग दो कलो मटर छ ल चुका था और म कम-से-
कम दो दजन लड़ कय क त वीर जेहन म उतार चुका था। प चीसव लड़क के बारे म
सोच ही रहा था क दादा ने मेरा यान भंग कर दया- “सब चली ग या?”
“हाँ!” मने कहा।
“तो भोसड़ो के! बता य नह रहा है? हम या यहाँ मटर छ लने आए ह?” दादा ने
गु साते ए कहा।
“हम सोच रहे थे क मेसवाल का क मत कतनी सही है यार! भइया-भइया कहती
ह सब तो या आ? आ खर पारो भी तो दे वदास को दे व दा कहती थी।” मने क मत को
कोसा।
“अ छा.. मुँहपेलई बाद म; अब यान से सुनो… हम ये pass way फाँदकर उधर जा
रहे ह और उ मीद है क corridor म कुछ-न-कुछ मल जाएगा। भागकर आते ह। तुम तब
तक मेस वाल को संभालना। ठ क?” दादा ने लान बताया।
“ठ क है; ले कन दादा दो मनट क जाओ। हम बाथ म से आते ह।” मने कहा।
“अरे यार!” दादा ने खीझते ए कहा- “तुमको हम लड़क दे खने के लए कहे थे;
सोचने के लए नह ।”
“नह यार! वो बात नह है। सच म जोर से लगी है।” मने कहा।
“मतलब कमाल है! दो लोग बी.एच.यू. के इ तहास म शायद पहली बार ग स हो टल
म घुसे ह, वो भी मूतने के लए।” दादा ने झ लाते ए कहा। “तूने बाथ म दे खा कह ?”
मने बहस बंद करते ए पूछा।
“इधर तो रा ते म नह दखा। तू एक काम कर, उधर दे ख। यह मेस से सटा जो हॉल
जैसा है न! शायद वही वाश म या बाथ म है। कूद के जा और ज द से आ भाई। काम
पूरा करके लौटना भी है।” दादा ने कहा।
मेस के ओसारे से वाश म लगभग 100 मीटर क री पर था। म ज द से वाश म
म घुसा और आख बंद कर फा रग होने लगा। आख खोलते ही म अपना ही चेहरा दे खकर
डर गया। सामने छोटा-सा एक शीशा लगा आ था। लड़ कय के वाश म म भी शीशे
होते ह। हमारे तो पूरे हो टल म आधा शीशा था। यही सोचते ए म पट क जप बंद कर
चलने को ही था क अचानक मेरी नजर शीशे पर रखी एक ‘चीज’ पर पड़ी। मेरे पैर
काँपने लगे। मेरा दल जोर से धड़कने लगा। मने ज द से उस ‘चीज’ को मुट्ठ म दबाया
और भागता आ दादा के पास प ँचा-
ो े ँ े ी
“गु ! हो गया काम!” मने प ँचते ही कहा।
“हाँ, चेहरा बता रहा है!” दादा ने मुझे pass way पर थामते ए कहा।
“अबे ये नह ! वो वाला काम।” मने कहा।
“ या बात करता है, या मला। कहाँ है?” दादा ने उ सुकता से कहा।
“मुट्ठ म।” मने कहा।
“मुट्ठ म? मुट्ठ म ले लया तुम! खैर, तुम महान है। कुछ भी कर सकता है।
दखाओ जरा।” दादा ने बेचैन होकर कहा।
“ये दे खो!” मने मुट्ठ खोल द ।
“Lipstick !”
“हाँ! Lipstick .” मने खुश होते ए कहा।
“भक साला! ये या उठा लाया? हम तो..” दादा कुछ सोचते-सोचते क गया।
“हाँ हाँ बोल! बोल..! ये कौन-सा लड़के use करते ह? ये भी तो लड़ कयाँ ही use
करती ह।” मने समझाते ए कहा।
“ जयो करेजा! तुम तो दल जीत लए हो! इतने दन म पहली बार दमाग का काम
कए हो।” दादा ने कहा।
“चलो फर, नकलने क तैयारी क जाय।” मने कहा। बाहर नकलने के लए वही
एक गेट था जससे हम भीतर दा खल ए थे; ले कन अब हम डर थोड़ा कम था। गेट से
बाहर नकलते व गेटक पर ने पूछा- “अब कहाँ जा रहे हो?”
“ह ग लाने। ए हो टल के द द लोग को ह ग के छ का बना दाल नह नू घ टाता है।”
दादा ने गा महाराज क नकल करते ए कहा और हम लोग हँसते ए बाहर आ गए।
बाहर नकलते ही दे खा क गा महाराज हमारी पहरेदारी म हो टल के बाहर टकटक
लगाए ए हमारा इंतजार कर रहे ह। सी नयर मुतमईन होना चाह रहे थे क हम हो टल से
नकलकर कह बाहर बाजार से कुछ न ले आएँ। हम दे खकर गा महाराज क बाँछे खल
ग । हमारे थोड़ी र चलने पर वह पीछे से आए और कहा-
“भटाया कुछु ?” मने इसका कोई जवाब नह दया और दादा से कहा- “हमदोन का
काम सबसे मु कल था।”
ो ी े े े
“बाप को गाली दे दे ता तुम?” दादा ने सवाल कया।
“नह यार।” मने धीरे से कहा।
“ फर? बात करता है!” दादा ने कहा।
“यार हो सकता है क lipstick दे खकर सी नयर भड़क जाएँ और फर सरा काम
थमा द।” मने शंका जा हर क ।
“ये भी तो हो सकता है क अगर हम कुछ और ले जाते तो lipstick माँगी जाती।”
दादा ने कहा।
“ ँ।” मने कहा।
हो टल म घुसते ही गा महाराज हमसे आगे हो गए और हम escort करते ए कॉमन
म तक ले गए। जहाँ सारे सी नयर पहले से जमा थे। नव जी और बे जी दोन मलकर
जयवधन को जगाने क को शश कर रहे थे। हमारे प ँचते ही उसी सी नयर ने कहा- “ आ
काम?”
“हाँ।” दादा ने जवाब म कहा।
“तो दखाओ? आओ भाई लोग… व फोटक साम ी दे खा जाए।”
“ये ली जए।” कहते ए दादा ने lipstick उसके हाथ म दे द ।
“ये या? Lipstick ?”
“हाँ! अब ये कोई लड़क के काम क तो है नह ?” दादा ने कहा। दादा के इतना कहते
ही सारे सी नयर ठठाकर हँस पड़े। कुछ ने हमारी पीठ थपथपाई, कुछ ने हाथ मलाए।
कुछ ने ग स हो टल का भूगोल पूछा। थोड़ी दे र क हँसी मजाक के बाद एक सी नयर ने
दादा से कहा- “बुझदानी, टाइट है गु तु हारी! नाम करोगे तुम।”
“थक यू सर।” दादा और मने एक साथ कहा। सबने एक बार फर हम चार से हाथ
मलाया और फर दाढ़ वाले सी नयर ने कहा-
“आप सबलोग से मलकर ब त अ छा लगा। Welcome to B.H.U. Welcome to
Law School. Enjoy the journey – called the golden phase of life . आपलोग
को पसनल या अकैडे मक, कोई भी परेशानी आए; बे झझक हमसे कह। आपके हर
सी नयर, आपक हर संभव हे प करगे। No hard feelings. No personal bias.
Everything done here is just to break the ice between us . च लए! अब जाइए।
और हाँ! यहाँ दए गए टा क आप और लोग से ड कस नह करगे; य क अभी उनक
ै औ ै े े ै ोई े ो े
‘रगड़’ बाक है। एक बात और! रै गग के बारे म फैक ट म कोई पूछे, तो आप बेहतर
जानते ह क आपको या कहना है; लीयर है?” सी नयर ने कहा।
“यस सर।” हम चार ने एक साथ कहा।
“अरे! जाते-जाते अपने इस साथी को उसके म म सुलाते ए जाओ।” उसी
सी नयर ने जयवधन के बारे म कहा। ‘यस सर।’ कहकर मने और दादा ने जयवधन को
कंधे से उठा लया। नव जी और बे जी पीछे -पीछे चले।
“कैसे कए आप लोग ये सब?” नव जी ने पूछा।
“मत पू छए नव जी! बस समझ ली जए ह काट के आ रहे है!” मने कहा।
“हमसे तो चोरी करवाया सब! सबसे घृ णत कम! कल सबेरे ही भोलेनाथ से और
सुशीलनाथ से मा माँगगे।” नव जी ने सुशील का दरवाजा दे खते ए कहा।
“हमको सबसे आसान काम मला था; बच गए।” बे जी ने कहा।
“हाँ बुजरौ के! बाप को पेट भर गाली दे ने से भी आसान कुछ है या!” दादा ने
जयवधन को उसके कमरे म लटाते ए कहा।
“कौन बाप? कसका बाप? नाम सही बताए तो या फोन नंबर भी सही दगे? ऐसा
ऐसा सी नयर लोग को ताबीज बाँटते ह हम।” हम सकते म डालकर, बे जी ने कु टल
मु कान के साथ बात ख म कर द । बे जी को समझ पाना इतना आसान नह था।
***
े ो े े ो ी ो े ी
“ सगरेट को कताब के साथ compare मत कर! सगरेट नह होती तो ये कताब भी
नह लखी जात । stress buster होती ह।” दादा ने धुँए का छ ला बनाया।
“ सगरेट इसको या घंटा समझ म आएगा? नया-नया तो चूसना शु कया है। धुआँ,
मुँह म रख के फक दे ता है और सोचता है क बड़का अजुन रामपाल लग रहा है। एइसने
आदमी सगरेट को बदनाम कया है।” जयवधन ने दादा से सगरेट लेते ए कहा।
“अ छा, सगरेट छोड़ और बता क कौन-कौन-सी कताब लेनी ह?” दादा ने कहा।
“ऐसा करते है, ले चरस से consult करते ह।” मने कहा।
“ फर कया लँवचट वाला बात! अरे, ले चरर या बताएँगे? अपने तो एक ही कताब
जदं गी भर पढ़ा सब। आज तक वही पढ़ाता रहता है। यहाँ 10 स जे ट पढ़ना है।”
जयवधन ने कहा।
“ फर ऐसा करते ह, अ नमेष भइया के पास चलते ह। अ छे सी नयर ह। वो बता दगे
क कौन-सी कताब अ छ है।” मने राय द ।
“हाँ साले! ऊ तुमको चढ़ा दया क तुम intellectual जैसा बात करते हो तो अ छा
सी नयर हो गया! ये नह दख रहा है क साला तु हारा जैकेट पहन के 5 दन से घूम रहा
है। कताब पूछने जाओगे तो शट भी उतरवा लेगा। गई माँगने पूत को, खो आई भतार।”
जयवधन क कहावत से हम धीरे-धीरे प र चत हो रहे थे।
“साले तुम लोग कसी decision पर नह प ँचोगे। ऐसा करते ह, तीन-तीन कताब
तीन लोग खरीद लेते ह। professional ethics के लए कताब क ज रत नह होती।
ठ क?” दादा ने पूछा।
“ठ क।” मने कहा।
“ठ के है।” जयवधन ने भी हामी भरी।
“और bare act का या?” मने कहा।
“ फर साला गंदा बात! अरे, पढ़ाई- लखाई के समय बेयर-वेयर टाइप गंदा बात मत
करो!” जयवधन ने हँसते ए कहा।
***
LLB ी-इयर कोस के लए यूनतम यो यता होती है- ैजुएशन। हम सब ैजुएट थे;
ले कन कॉलेज म लास कौन करता है। सो लास करने क आदत छू ट गई थी। अब यहाँ,
ँ े े े े े े
दन भर क पाँच लास करने म दे वता- पतर याद आ रहे थे। हर सेमे टर म दस
स जे टस पढ़ने थे और हर लास म 75% अटे डस ज री थी।
“कैसा कॉलेज है बे? 6 महीने म 10 स जे ट तो कूल म भी नह पढ़े थे।” मने कहा।
“कौन बोला ये कॉलेज है? इसका तो नाम ही लॉ कूल है। 75% अटे डस होना भी
ज री है?” जयवधन ने कहा।
“ कसने कहा?” मने पूछा।
“तूने टे ट कैसे पास कया था बे? साले ने ॉ पे टस तक नह दे खा है! इसका
ए जाम प का कसी और ने दया होगा।” दादा ने जयवधन से कहा।
“अटे डस कैसे बनेगा? हमको तो आज पहला ही दन इतनी न द आ रही थी। पाँच
घंटा रोज कैसे बैठगे?” मने कहा।
“Proxy . यही एक तरीका है।” दादा ने कहा।
“ फर भी, कतने लास म कोई proxy मारेगा?” जयवधन ने कहा।
“सब लास म ज रत नह पड़ेगी। हम सी नयस से पता कए ह। जो ट चर, अटे डस
को लेकर ब त strict ह, बस उ ह के लास म proxy होगी। बाक व था कर लगे।”
दादा ने कहा।
“चलो, फर ठ क है। सबेरे से लास करते-करते थक गए ह। लंका चला जाए। सुने ह
वहाँ हे रटज हॉ पीटल के पास ब ढ़या मगो शेक बनाता है।” जयवधन ने कहा।
***
औ
(पारस द वान और अभय कुमार का symbiotic relation था। बना पारस द वान
क कताब के अभय कुमार कह पाए नह जाते थे और अभय कुमार से पहले पारस
द वान को कोई जानता नह था। अभय कुमार का संबंध ‘Being ’ से भी था। बना
‘Being ’ के वो कोई लाइन पूरी नह करते थे।)
“So… the topic being studied yesterday was ‘marriage’. Can any one
answer, what are the essentials of Hindu marriage? अभय कुमार ने पूरी लास
के सामने सवाल रखा और नजर से जवाब ढूँ ढ़ने लगे।”
“उनक आँख म दे खते रहो; हमसे नह पूछगे।” मने धीरे से दादा से कहा।
“अबे, आँख म दे खगे तो ज र पूछ दगे।” दादा ने भी धीरे से कहा। “आँख चुराओगे
तब पकड़ लगे। show some confidence .” मने फुसफुसाते ए कहा।
“ यूँ भई? You blue shirt, What are the essentials of Hindu marriage ?”
अभय कुमार ने शकार ढूँ ढ़ लया था।
मने पहले अपनी शट दे खी, फर दादा क और राहत क साँस ली। हमदोन क शट
नीली नह थी।
“हम नह जानई छ ।” पीछे से आवाज आई।
सब पीछे मुड़कर दे खने लगे। हँसने क ह मत अभय कुमार के लास म तो कम-से-
कम कसी क नह थी।
“What nonsense you are being talking ?” अभय कुमार च लाए।
“सब हमी बतैब, त अहाँ क करब?” फर जवाब उसी ठस से आया।
अबक बार हँसी को बाँध पाना अभय कुमार के बूते के बाहर था। पूरा लास हँस रहा
था और अभय कुमार भी।
“ यूँ भई…What is your name ?” उ ह ने पूछा।
“रोशन चौधरी।” नाम बताते व , नाम पर दबाव ऐसा था मानो नाम के आगे कसी
रजवाड़े का टै ग हो।
अभय कुमार उसे दे खने के अलावा कुछ नह कर पाए। रोशन को लास म से बाहर
जाने को कह आगे पढ़ाना शु कर दया।
***
ो ौ ी ो ौ ी ो े ी े े
रोशन चौधरी। रोशन चौधरी को मने पहली दफा तब दे खा था जब वह काउं स लग के
दौरान हो टल पाने के लए वाडन से बेतरह बहस कर रहा था। सम या यह थी क मे रट
के अनुसार अब हो टल म बस एक टु डट को लया जा सकता था और रोशन के साथ
एक और लड़के का नंबर मे रट म बराबर ही था। रोशन इस बात पर उलझा आ था क
य क उसक उ यादा है इस लए हो टल उसे ही अलॉट होना चा हए। ऐसा लग रहा
था क रोशन का उद्दे य पढ़ना नह , ब क हो टल पाना ही है और य द उसे हो टल न
मला तो वह एड मशन ही नह लेगा। हारकर उस सरे लड़के ने अपना नाम वापस ले
लया और इस तरह रोशन को हो टल मल गया। हो टल आने के बाद उसे अपने इंटेले ट
का कोई मला था तो वह थे-नव जी। कैनकुन स मट हो या े ड पर मट। फडेल
का ो ह या यु जक मै ो; ान और समाधान बस इ ह दो लोग के पास था। ऐसे ही
एक दन र ववार को नव जी हम भगवानदास हो टल के घो षत ‘कोठे ’ यानी कमरा
नंबर-79 म ान दे रहे थे-
“जानते ह सूरज जी! ई जो चौध रया है ना? साला gem of a person है। या
sphere है साले का? कसी भी स जे ट पर जब बोलने लगता है ना, तो बस खाली सुनने
का मन करता है। हमारे मुंगेर वाले मौसा जी जैसा एकद म। मतलब जब article -370
पर बोलने लगा ना, तो लगा क या वमा जी पढ़ाएँगे? 171 ठो तो केस याद है उसको।
माइनॉ रट कमीशन का पूरा रपोट याद है उसको। मन खुश कर दया; ले कन बेचारा को
पाटनर ही खराब मल गया है।” नव जी ने धीमी आवाज म कहा।
“ले कन वो तो अकेले रहता है ना, म नंबर 68 म?” मने पूछा।
“नह भाई। उसका पाटनर आ गया है।” नव जी ने कहा।
“तीन महीने बाद! हो टल कैसे मला?” मने दो सवाल एक साथ कए।
“सुना है क हो टल लेके ही गया था और कसी जज का बेटा है। नाम शशांक है।”
नव जी ने अगले सवाल का जवाब भी दे दया।
“तुमलोग का स मेलन ख म हो तो मेस चला जाए। 2 बज गया है और भूख भी ब त
लगी है; और दे र आ तो खाली दाल पीना पड़ेगा।” दादा ने ब त ज री बात बताई।
इतवार को दे र करने पर खाना मलना भी मु कल हो जाता था। हम तीन उठे । म म
ताला लगाया और खाने के लए मेस क तरफ चल पड़े। पर खाना अ सर नसीबवाल को
ही मलता है। अभी हम रा ते म ही थे क तभी पीछे से आवाज आई –
“नव जी, नव जी!”
पीछे मुड़कर दे खा तो कोई नह था।
ोई ै ो ी े
“कोई बुला रहा है हमको!” नव जी ने कहा।
‘अरे, वो नव को बुला रहा है। ई नव कौन है बे?” मने कहा।
“अंजु मह का भाई! तुम चुपचाप चलो!” दादा को अब भी दाल क उ मीद थी।
ले कन अब दाल भी हमारे नसीब म नह था। अबक बार फर वही घुट -घुट आवाज
आई…
“नव जी, नव जी!”
नव जी और सुपरमैन म एक बड़ी समानता थी। कोई भी मदद के लए पुकारे और
दोन क भूख मर जाती थी। नव जी भागकर उस जा नब पँ चे जधर से आवाज आ
रही थी। थोड़ी छानबीन पर पता चला क आवाज म नंबर-68 क खड़क से आ रही
थी। दरवाजा बाहर से बंद था। कुंडी लगी ई थी। लगता था कसी ने हड़बड़ाहट म ही
कुंडी लगाई है। कमरे के भीतर रोशन चौधरी बंद था और वही खड़क से घुट -घुट
आवाज दे रहा था।
“अरे, रोशन जी आप! दरवाजा बाहर से बंद करके आप भीतर कैसे गए?” नव जी
ने बेवकूफ भरा सवाल पूछा।
“पहले खो लए फर बताते ह।” रोशन डरा आ था।
नव जी ने दरवाजा खोला और रोशन हड़बड़ाते ए बाहर नकला।
“ या आ?” नव जी ने पूछा।
“मेरा ममेट, मेरा ममेट!” रोशन अब भी डरा आ था।
“अबे या आ तेरे ममेट को?” दादा क भूख अब दमाग पर चढ़ रही थी।
“मेरा ममेट spirit call करता है!” रोशन पसीने-पसीने था।
“ या!” नव जी और दादा ने जो सुना, वो समझ गए। म नह समझ पाया।
“Spirit call ? या होता है बे?” मने पूछा।
दादा बीच म बोला- “सूरज जी, ये airtel का नया लान है जसम आप 30 पैसे म बी.
डी. हो टल से ग स हो टल म बात कर सकते ह। नव जी के मौसा जी भी…” दादा,
नव जी क नकल करते ए बोला।
“चुप र हए आप लोग! दे ख नह रहे ह कतना serious matter है?” नव जी ने
डाँटा।
े ो ै े
“ले कन spirit calls होता या है?” मने फर पूछा।
“भूत बुलाना…” नव जी ने कहा।
“ या!” अब डरने क बारी मेरी थी।
“हाँ! spirit call करने का मतलब होता है – भूत बुलाना।” नव जी अब गंभीर हो
रहे थे। थोड़ी दे र चुप रहने के बाद उ ह ने रोशन से पूछा-
“ले कन आपको कैसे पता चला क आपका पाटनर ये सब करता है? और दरवाजा
कौन बंद कया था?”
“ली जए, खुद पढ़ ली जए।” इतना कहकर उसने एक कागज नव जी के आगे कर
दया। कागज के हर अ र के साथ-साथ नव जी क चेहरे क रंगत बदलती चली गई।
उनके मुँह से कुछ कहते नह बना। दादा ने कागज छ नकर पढ़ना शु कया तो उसका
भी हाल कुछ ऐसा ही था। उसने धीरे से कागज मेरी ओर बढ़ा दया।
स दय के महीने म भी वह कागज पढ़कर मुझे पसीना आ गया। जो लखा था वह
कुछ यूँ था-
“लाल रंग का जोड़ा पहने
उतरी है जो इं क बेट
खुद से लंबी उसक चोट
खाती है बस खीर और रोट
माथा है स री लाल
कैसा है यह मायाजाल।”
पढ़ने के बाद पता नह यूँ, पैर जम गए थे। हमम से कोई भी बोलने क थ त म नह
था। तभी रोशन ने अपने कमरे क द वार क तरफ इशारा कया। द वार पर का लख से
पंज के नशान के साथ-साथ अजीब-सी भाषा म कुछ लखा आ भी था।
चु पी नव जी ने तोड़ी- “कौन लखा है ये?”
“शशांक। मेरा ममेट। उसी ने दरवाजा बाहर से बंद कया था।” रोशन साँस लेने क
को शश कर रहा था।
“ले कन शशांक है कहाँ?” मने पूछा।
“पता नह ? यही कागज बुदबुदा रहा था; फर अचानक उठा और दरवाजा बाहर से
बंद करके…”
ो े ी ी ी ी े ी े
रोशन ने अभी बात पूरी भी नह क थी क अचानक बाथ म क तरफ से कसी के
च लाने क आवाज सुनाई द । दे खा तो वहाँ भीड़ लगी है। नव जी हमारे बीच से गायब
होकर भीड़ का ह सा बन गए थे। जवाब जानने के लए हम उधर बढ़ ही रहे थे क
जयवधन उधर से ही आता दखाई दया।
“ या आ बे उधर? भीड़ काहे लगा है?” दादा ने पूछा।
“ आ या! अरे, कोई ससुर बाथ म गया था। आँधी के आम क तरह बाथ म म
छतरा गया।” जयवधन क न द खराब हो गई थी। अभी हम बात कर ही रहे थे क
बाथ म क ओर से शोर और बढ़ गया। हम भी दौड़ते ए प ँचे। लड़का और कोई नह
ब क शशांक था। शशांक अ वाल। वह बेहोश था और बाथ म म गरा पड़ा था।
“इसके मुँह से या नकल रहा है भाई?” नव जी ने पूछा।
“और ये केरो सन जैसा या महक रहा है?” मने पूछा।
“भोसड़ी के! ये तो suicide attempt कया है!” दादा ने उसके मुँह के पास अपनी
नाक ले जाते ए कहा।
“अरे! इसके घर का कोई नंबर है?” नव जी ने पूछा।
“बाह रे नव जी! बुड़बक के यारी और भादो म उ जयारी! इसको आए ए अभी 24
घंटा भी नह आ है। इसका नाम तक नह पता है और आप घर का नंबर माँग रहे ह? मेरा
दामाद लगता है जो इसका नंबर रखगे? ऐसा क जए क पहले मुरली सर को बताइए।”
जयवधन ने गु साते ए कहा।
हर हो टल कुछ ऐसे टु डट् स ज र होते ह जो हो टल क सड़ी-गली, अ छ -बुरी,
जा हर-बा तन हर बात, वाडन तक प ँचाते ह। इसके पीछे उनक मंशा एक ही होती है-
वाडन क नजर म रहना। अब भगवानदास म यह कौन करता था, यह तो पता नह ; पर
मुरली सर तक यह खबर प ँच चुक था। शशांक अभी तक बेहोश था। मुरली सर आ चुके
थे।
“यहाँ या होने ह? आप लोग भीड़ लगाने ह! बेचारा बना ऑ सीजन के मर जाने ह।
च लए ह टए, थोड़ा-सा fresh air आने द जए।” मुरली सर ने अपनी वाली हद म कहा
और सबको हटने का इशारा कया। साथ ही, हाथ के इशारे से नव जी को बुलाया।
“नव ! ये शशांक के घर का नंबर होने ह। इसपर बात करके कसी को फौरन आने के
लए कहने ह गे।” मुरली सर ने कहा।
ी े ो औ े े ो ी
नव जी ने झट दादा का मोबाइल छ ना और नंबर लगाने लगे। फोन एक बार म ही
लग गया। नव जी ऑनलाइन हो गए-
“नम कार अंकल!”
“आप शशांक के पताजी बोल रहे ह?”
“अंकल, म नव बोल रहा ँ।”
“म बी.एच.यू से बोल रहा ँ।”
“म शशांक के साथ ही पढ़ता ँ।”
“हमदोन लोग एक ही हो टल म रहते ह।” नव जी ान दे ने के अवतार म आने लगे
थे।
“नव जी! इंटर ू नह दे ना है। ज द से मुददे् पे आइए; नह तो बहा र नकल
लेगा।” जयवधन ने ख सयाते ए कहा।
“आँ..? हाँ हाँ।” नव जी संभल गए।
“अंकल! शशांक बेहोश पड़ा है।” नव जी ने कहा।
उधर से कुछ बात ई और नव जी ने फोन रख दया।
“फोन रख दए? या आ?” मने पूछा।
“अरे! बाप था क पाप था! बोलता है – शशांक depression म है। ज द ही ठ क हो
जाएगा। आज तो नह हो सकता, कल आएँगे।” नव जी ने पसीना प छते ए कहा।
“ये depression म नह है। कुछ जा -टोना करता है। वही करते-करते बेहोश आ
है।” रोशन ने कहा।
“मेरा घंटा करता है? जा -टोना करने बाथ म आया था? और वो भी केरो सन तेल
चढ़ाके?” जयवधन ने कहा।
अभी बहस कसी मुददे् पर प ँचती इससे पहले मुरली सर शशांक के पास से उठकर
हमारे पास आ गए। उ ह ने एक-एक कर सब को शक क नजर से दे खा और फर नव
जी से बोले-
“हाँ नव । कुछ बात ई?”
े े ई े े ै
“सर, उसके बा प मतलब फादर से बात ई। उ ह ने कहा क शशांक ड ेशन म है।
कल आएँगे और शशांक को घर ले जाएँगे।” नव जी ने अपने को संभालते ए कहा।
“हाँ, मुझे भी यही लगने ह। दे खो! अभी तो उसको होश आ रहे ह। उसको उसके म
तक प ँचाने ह गे और यान रखने ह गे क उसके फादर के आने तक कोई ड टब न करे
और वो बारा ऐसा कुछ करने के को शश न करे।” मुरली सर ने नव जी को काम
थमाया।
“सर.. शशांक के चले जाने से रोशन भी single हो जाएगा, तो उसे जयवधन के साथ
shift कर द जए लीज। जयवधन कह रहा था क उसका अकेले मन नह लगता है।”
नव जी ने मौका दे खकर अपनी अ ल दौड़ाई।
“नह । राजीव पांडे का अपने ममेट के साथ नह बन रहा है; इस लए अभी उसे
रोशन के साथ shift करने ह गे।” जयवधन के बारे म बाद म सोचगे। मुरली सर ने कहा
और बाहर चले गए। उनके जाने के बाद शशांक को उसके म म प ँचाने क कवायद
शु ई।
“चलो उठाओ जवान को।” मने दादा, जयवधन और नव जी से कहा।
“आपको ब त फ हो रहा है मेरा?” जयवधन ने नव जी से कहा।
“अरे, अकेले रहते हो, मन नह लगता होगा, यही सोचकर बोले।” नव जी ने शशांक
को उठाते ए कहा।
“खुरपी के बयाह म, सूप का गीत मत गाइए! हमको जब ज रत होगा, हम बोल
दगे। आप चता मत क जए!” जयवधन ने नाराज होते ए कहा।
हम चार लोग शशांक को उठाकर उसके ब तर तक ले गए। नव जी वह रहे; ले कन
केरो सन क बदबू और डरावने केच क वजह से हम कमरे से बाहर नकल आए।
“तुमको उस म म कुछ अजीब लगा!” मने जयवधन से पूछा।
“कुछ! हमको तो म से लेकर आदमी तक, सब अजीब लगा। पता नह या- या
लखा था और म म केरो सन आया कहाँ से?” जयवधन का जवाब एक सवाल भी था।
“नह बे, और भी कुछ अजीब था!” मने कहा।
“और या?” दादा बीच म बोला।
“ म म तीन कूकर था।” मने कहा।
ँ ो ी ो े
“हाँ! तो उसम शशांक का भी होगा।” दादा ने कहा।
“भाई, जब खाना मेस म खाना है तो तीन-तीन कूकर यूँ? और शशांक तो कल ही
आया है।” मने कहा।
“एक म वे जटे रयन बनाता होगा। सरे म चकेन-मटन और तीसरा जब उपवास
करता होगा रोशन चौधरी। तुमको कोई ॉ लम है?” जयवधन ने गु साते ए कहा।
“एक तो साला खाना नह मला ई पागल लोग के च कर म। अब ऊपर से तुमलोग
कूकर-कूकर करके नमक छड़क रहा है। अब तो साला ह तान होटल म भी शायद ही
कुछ मलेगा। र शा रोको…चलो लंका।” दादा ने जयवधन से कहा।
“ए समान! चलबा लंका?” जयवधन ने र शावाले को रोका।
***
ो ी े े े ो ै ी
“भोसड़ी के, लेमनचूस के लए रो रहा है! चल लंका….. खरीद द।”
“दादा इसम कुछ लखा है। अबे! ये तो ेम-प है बे!” मने कुछ दे खते ए कहा।
“जरा पढ़ तो लखा या है?” दादा अब उठकर बैठ गया था।
“म जान से मार ँ गा साल को!” राजीव फर भभका।
“चो प साला! लेटर के मैटर और वेटर के आडर के बीच म नह बोलते ह, कोई बताया
नह तुमको? अब बीच म बोला तो पटक के मारगे। पहले पढ़ने दे क लखा या है?”
दादा गरजा।
मने पढ़ना शु कया। जो कुछ भी लखा था वह कुछ यूँ था-
हर हर महादे व!
मेरे बाजीगर,
कताब ब त-सी पढ़ होगी तुमने; मगर इस दल को पढ़ के दे खो। जो कहता है, तुम
दल क धड़कन म रहते हो, रहते हो। अब तो मने भी मान लया है क ना-ना करते यार
हाय म कर गई, कर गई, कर गई। तुम तो बस यह कहके चले गए क चुरा के दल मेरा
गो रया चली। म तभी से पागल ई द वानी ई और उसी दन से तेरी गली म चली। कह
ऐसा ना हो क इसी पागलपन म म बारा आना दे , बारा आना दे करती ग लय म बौराती
फ ँ । मेरे यार को सवा न करना। यूँ क
चाँदनी चाँद से होती है सतार से नह
यार भी एक से होता है हजार से नह ।
तु हारी,
श पा शेट्ट ।
पढ़ना ख म करने के साथ ही म म हँसी का दौरा आ गया। जमीन पर लो टयाते ए
दादा ने कहा-
“अबे, ई तो शाह ख खान का चट् ठ है। तुमको कहाँ से मला?”
राजीव हँसने क थ त म नह था और ना ही मूड म। वह कागज मेरे हाथ से छ नकर
जाने को ही था क कमरे म नव जी घुस आए। आते ही हम दोन क हालत दे खकर
समझ गए क कोई मसाला हाथ लगा है।
“राजीव जी सब ठ क ठाक?” उ ह ने पूछा।
ी े ोई े ै
राजीव ने कोई जवाब नह दया, बस बेड पर बैठ गया।
“ श पा शेट्ट चट् ठ लखी है शाह ख खान को और राजीव परेशान हो गया है।”
मने हँसी रोकते ए कहा।
“कहाँ है वो चट् ठ ?” नव जी गंभीर होते ए बोले।
राजीव ने फर वो wrapper नव जी को थमा दया। पूरी चट् ठ पढ़ने के बाद नव
जी और भी गंभीर हो गए और कहा-
“ये श पा शेट्ट तो game कर रही है। घूमती है अ य कुमार के साथ और चट् ठ
शाह ख को!”
उनका इतना ही कहना था म नंबर-79 को फर दौरा आ आया। अबक बार राजीव
हमारी माँ-बहन करते म से बाहर नकल गया।
“भगवानदास म आप अगर कसी बात, म या झूठ फैलाना चाहते ह तो बस उसका
ज खाने के व मेस म कर द जए। बात अपने-आप फैल जाएगी। आपका काम हवाएँ
और अफवाह कर दगी। गोजर अपने आप अजगर बन जाएगा।” नव जी सा ह यक होते
ए बोले।
“कहानी या है नव जी?” मने हँसी रोकते ए पूछा।
“अरे, राजीव को मेघा श पा शेट्ट जैसी लगती है और यह बात एक बार उसने मेस
म खाने के टे बल पर बताई थी। आज जब लास के बाद दोन वापस आ रहे थे तो राजीव
ने मेघा को यही चॉकलेट दया। पहले तो मेघा ने साफ इंकार कर दया; ले कन राजीव के
बार-बार कहने पर मेघा ने चॉकलेट ले लया। अब उसने चॉकलेट खाकर wrapper फक
दया। कसी ने उठा लया और उस पर यह ेमप लखकर राजीव के कमरे के भीतर
डाल दया। आगे का ग णत- व ान आपको पता ही है।” नव जी ने एक साँस म कह
दया।
ले कन जो बात वो बड़ी आसानी से छु पा गए वह यह क कसने यह कारनामा अंजाम
दया था। वह चतुर ज र थे; मगर शा तर नह थे और दादा से यादा तो ब कुल भी
नह । मगर इससे पहले क दादा पूछता, मने ही पूछ दया-
“राजीव क ेम-वा टका म चरस कौन बो दया नव जी?”
“पता नह यार!” नव जी खसकने लगे।
“पूरा कहानी सुना गए और फ म का नाम पूछने पर बोलते ह क मने गाँधी को नह
मारा। ज द बो लएगा क आपही के नाम का फुटबॉल उछाल द?” दादा ने धमक द ।
े ो े ी ो ी े े ो ो ो ी
“अरे यार! तुम तो बात-बात म मेरा ही धोती धर लेते हो। तुम लोग को कुछ बताना ही
पाप है!” नव जी अपनी ही बात म उलझने लगे।
“नव जी, अगर हम बाहर जाकर यह बात करगे तो सब पूछगे क कसने बताया?
मजबूरन हम आपका नाम बताना पड़ेगा। अब बाहर पूछ, इससे अ छा है क आप भीतर
ही बता द।” मने कहा।
“यार तुम लोग मानोगे नह ?” नव जी अं तम इ छा जताई।
“ना।” दादा ने इ छा ठु करा द ।
“भाई, हमको तो रोशन बताया और उसको कैसे पता, ये तो वही जाने।” नव जी ने
कहा।
कसने यह कारनामा कया यह तो पता नह चल पाया; मगर अगली ही सुबह यह
पता ज र चल गया क राजीव हो टल छोड़कर बाहर रहने चला गया।
यार कोई खेल नह
सोमवार क पहली लास का छू टना एक नयम जैसा था। र ववार को दे र रात तक लंका
पे night out हर ह ते का नयम था। लंका यानी बी.एच.यू. का कनॉट लेस। बी.एच.यू.
के श दकोश म इसे ‘लंके टग’ भी कहते ह। रात भर लंके टग के बाद अ सर कसी-न-
कसी क 10 बजे वाली लास छू ट ही जाती थी; ले कन अ छ बात ये थी क हम तीन
म से कोई-न-कोई लास म मौजूद रहता; जससे क proxy मारी जा सके। आज का दन
भी सोमवार था और आज सोने क बारी दादा क थी। दे र से आने वाले सीधे कट न चले
जाते और हम लास के बाद उससे वह मलते। सो, आज कट न म दादा बैठा था।
“ या आ भाई? एम. पी. सह कोई जोक सुना दए या? पेट पकड़ के हँसते ए
आ रहे हो।” दादा ने कट न के बच पर पैर रखते ए पूछा।
“नह गु ! सीन उसके पहले ही हो गया है।” जयवधन ने खाँसते ए कहा।
“ आ या? और तेरा मुँह य लटका है बे?” दादा ने मुझसे पूछा।
“हमसे पूछो ना! हम बताते ह। आ ये क साहब आज ना ता नह कर पाए थे।
म-रोल खाते ए फैक ट म घुस रहे थे। लास करने का ज द था और एम. पी. सह
लास म घुस गए थे। सफाईवाला प छा लगाया था। ज दबाजी म ऐसा फसले क म-
रोल मुँह म और पैर section ‘B ’ म।” जयवधन ने हँसते और खाँसते ए कहा।
“ओह! चोट तो नह लगा? दो लेट समोसा और तीन चाय।” दादा ने ऑडर दे ते ए
पूछा।
“सुनो बेटा! अभी सीन खतम नह आ है!” जयवधन ने कहा- “अभी साहब गरे ही
थे क section B से एक लड़क हँस द । साहब को गरने का इतना ख नह है जतना
लड़क के हँसने का।” जयवधन एक साथ खाँस और हँस रहा था।
“कौन थी बे?” दादा ने पूछा।
“नाम-गाँव कौन जाने? ले कन गंगा हो टल म म नंबर-7 म रहती है।” मने धीरे से
कहा।
ी ो ँ ी ै े
“इसी पर तो हँसी आ रहा है। नाम का ठे कान नह , correspondence address
नकलवाया है। वो भी कससे? तो बे से। आ हर गु ब हर चेला, माँगे गुड़ तो दे दे
ढे ला!” जयवधन क हँसी नह क रही थी।
“कोई बात नह राजा! चोट तो नह लगा ना? समोसा खाओ।” दादा ने समोसा खाते
ए कहा।
“हमको गरने का ख नह है; ले कन जब गरे तो मरोल पूरा मुँह म चला गया।
बेइ जती हो गया बे!” मने समोसा उठाते ए कहा।
“पूरे का पूरा! मतलब-पांच इंच! म त सीन होगा भाई! साला… हम मस कर दए।”
दादा अब हँसी नह रोक पाया।
“इसी लए कहते ह, कभी-कभी लास कर लया करो।” जयवधन ने उठते ए कहा।
अभी हम दोन भी उठने को ही थे क कसी को कट न म घुसते दे खकर म च क गया-
“लो बेटा! यही तो थी!” मने कट न गेट क तरफ दे खते ए कहा।
“पूरा section B तो घुस गया कट न म। इसम से कौन है?” दादा ने पूछा।
“अरे, वो जो नव जी से बात कर रही है ना! वही। नव जी से या बात कर रही है
बे?” मने धीरे से कहा।
“वीर-जारा का टोरी सुन रही है नव जी से! चुप नह रह सकता है दो मनट?” दादा
ने गु से से कहा।
“दे खो! दे खो! फर हँस के चली गई। साला इ जत चला गया यार!” मने जयवधन से
कहा।
“चल तो जरा नव जी से बात कया जाए।” दादा ने कुस से उठते ए कहा।
“नव जी, या हालचाल?” जयवधन ने र से ही च लाकर कहा।
“ठ क-ठाक है। थोड़ा ज द म ह, बाद म बात करते ह।” नव जी खसकना चाह रहे
थे।
“अरे, कए! हमलोग को दे खके ज द म हो गए और बा लका से तो बड़ा फुसत म
ब तया रहे थे।” दादा ने रोका।
“कौन बा लका?” नव जी हड़बड़ा गए।
“वही, जससे बात कर रहे थे अभी।” जयवधन का अंदाज त ख था।
े ो ँ ो े े ो े ी ी े
“अरे, वो… शखा। हाँ…. वो पांडे सर के नोट् स के लए कह रही थी। पांडे सर
section B म नह पढ़ाते ह ना, इस लए।” नव सफाई दे ने के मूड म थे।
“आप ही बड़के पढ़ाक ए ह! हमलोग नह पढ़ते ह या?” दादा सफाई लेने के मूड
म नह था।
“ले कन हम लास तो करते ह। आपलोग भी लास क जए। आज ही पांडे सर पूछ
रहे थे क अनुराग डे क तबीयत खराब है या? पूरे महीने म बस चार दन ही आया है।”
नव जी ने कट न से नकलते ए कहा।
“साले बबवा, पूरे महीने म मेरा बस चार ॉ सी मारे हो? और भोसड़ी के… हम
तु हारे भरोसे हो टल म सोते रहे!” दादा ने गयर चज कर लया था।
“और वो भी चार ये नह मारा है; उसम से दो तो हम मारे ह।” जयवधन ने आग म घी
डाला।
“अरे, पांडे सर क लास म मु कल है भाई। चौकस रहते ह। आज ॉ सी मारने ही
वाले थे क दन खराब हो गया, लड़क हँस द ।” मने कहा।
“भाँड़ म गई लड़क ! साले अबक अटे डस के लए मे डकल स ट फकेट लगाना पड़
जाएगा हमको। और उसका जुगाड़ तुम ही करेगा… समझे?” दादा ने मुझसे कहा।
“कर दगे भाई, और फ मत करो अभी समय है। ॉ सी मैनेज कर दगे। चलो, लंका
चलो। मगो शेक पलाओ। आज का दन ही ठ क नह है। पहले गर गए, फर लड़क हँस
द और अब नव जी भी ताना मार के चले गए। एक काम ले कन ठ क आ। उसका नाम
तो पता चला, शखा।” मने बाइक क पछली सीट पर बैठते ए कहा।
***
***
मॉडन पेन कंपनी। बी.एच.यू. गेट से बाहर नकलने पर हे रटे ज क ओर पहले लोर पर
थी-मॉडन पेन कंपनी। बी.एच.यू. के टू डट् स के मतलब क सारी टे शनरी इस एक कान
म मल जाती थी। इसी कारण इस कान पर अ सर टू डट् स क भीड़ लगी रहती थी;
मगर आज कान म कोई नह था।
“का व पन, आजकल बाजार धीमा हौ का?” दादा ने कान म काम करने वाले
लड़के से पूछा।
“ पहर म कान पर के आई भइया?” व पन ने कहा।
“ऐसा करो… ीन कलर का दो हाईलाइटर, दो केल और 30 ला टक फो डर…”
मने अभी बात पूरी भी नह क थी क एक गुनगुनाती आवाज ने मेरी बात बीच म ही
काट द -
“भइया, ीन कलर का हाईलाइटर होगा या?” उसने कहा जो अपनी दो त के साथ
अभी-अभी इस कान म आई थी।
“अबे, ये तो वही है! शखा! Section B वाली।” मने धीरे से दादा के कान म कहा।
“हाँ, दे ख रहे ह! आँख दया है भोलेनाथ हमको भी!” दादा पैसे जोड़ रहा था।
कानवाले को भी बनारसी अंदाज से यादा, मीठ गुनगुनाती आवाज से लगाव था;
सो उसने एक हाईलाइटर उधर भी बढ़ा दया। दादा ने जब यह दे खा तो भड़क गया-
ई े े ो ँ े े
“एक हाईलाइटर काहे दया बे? दो माँगे थे ना?”
“भइया, ए ठो है; इस लए एक आपको दे दए, एक उनको।” व पन म मयाने
लगा।
“काहे, उधर काहे दे दए। हम पैसा नह दे रहे थे या?” दादा उलझ रहा था।
“जाने दो ना भाई।” मने दादा को समझाया।
“जाने द। यूँ जाने द। या जाने द? हम आए। ऑडर दए। पैसा दे रहे ह और अब
बोल रहा है क मैच टाई कर दगे!” दादा लड़ने के मूड म था।
“हम लोग एक से ही काम चला लगे। you may take it .” मने एक हाईलाइटर
शखा क ओर बढ़ाते ए कहा।
“एक हाईलाइटर के लए इतना हंगामा करने क कोई ज रत नह है। दोन इनको ही
दे द जए।” शखा ने मुझे अनदे खा करते ए कानदार से कहा।
“हंगामा, कौन कर रहा है हंगामा? और अभी हँगामा दे खी कहाँ हो तुम?” दादा बाँह
चढ़ा रहा था।
“Cool down भाई। Why are you getting hyper ?” मने दादा से कहा।
“Idiots .” चढ़ ई एक आवाज आई और शखा अपनी दो त के साथ सी ढ़य से
नीचे उतर गई।
“ओए.. Idiots कसको बोला?” दादा च लाया।
“हमको बोली दादा। हमको बोली Idiot.I Do Ishq Only Tumse .यही तो बोली है।
तुम शांत हो जाओ।” मने दादा को हँसाने और उसका मूड ठ क करने क को शश क ।
“अ छा। ले कन वो तो idiots बोली?” दादा को हँसी आ गई।
“हाँ वही तो… idiots. I Do Ishq Only Tumse Suraj .” मने दादा के हाथ पर
ताली दे ते ए कहा।
“और बुजरौ के, लड़क दे खते ही अं ेजी बोलने लगते हो? You may take it …
आँय?” दादा ने नीचे उतरते ही सगरेट सुलगा ली।
***
े े ो
Assignments लखने का काम दे र रात तक होता था। इसका कारण यह था क अ सर
जनका Assignments हम छापना होता था, वह शाम तक लाइ ेरी म बैठकर
Assignments पूरे करते थे। इस लए बड़ी हील- जत और चरौरी करने के बाद उनका
Assignments हम रात म ही मल पाता था। रात भर जागने के लए चाय Assignments
से भी यादा ज री थी। और चाय मलती थी लंका पर। लंका पर रात भर चाय पीते,
ेड-म खन खाते, Assignments और लड़ कय क चचा करते, रात कब गुजर जाती,
पता ही नह चलता। भोर म जब लोग के जागने का समय होता तो हमदोन के सोने का
समय हो जाता और न द खुलते-खुलते धूप सर पे चढ़ आती थी।
“मेरा मोबाइल कहाँ गया?” दादा ने उठते ही पूछा।
“जयवधन ले गया है; बाहर कसी से बात कर रहा है।” मने न द म ही जवाब दया।
“उठ भोसड़ी के! 10 बज गया है दन का।” दादा ने खड़क खोलते ए कहा।
“सोने दो न बे! कतने दन बाद तो संडे आता है।” मने चादर मुँह पर ख चा।
“हाँ साले! जैसे रोज तो लास करके भगवानदास को नहाल कर दया है तुम?”
दादा ने दरवाजा भी खोल दया।
“भो…. ले… ना… थ…” दादा अँगड़ाई लेते ए च लाया।
“सुनो ना बेटा! थोड़ा-सा और जोर से च लाए ना, तो भोलेनाथ डम चला के मार
दगे। सारा न द खराब कर दया च ला के!” मने कान पर त कया रखते ए कहा।
“लो! अब भगवान का नाम लेने से लोग का न द खराब होता है!” दादा ने श और
टू थपे ट उठा लया। जब वह वाश-बे सन तक प ँचा तो दे खा क जयवधन कॉ रडोर म
टहलता आ मोबाइल पर कसी से बात कर रहा है। दादा पहले तो श करता रहा; ले कन
श कर लेने के बाद भी जब जयवधन क बात ख म नह ई तो दादा से रहा नह गया।
“अबे! तुम कसके साथ मेरा पैसा गला रहा है।” दादा ने जयवधन से च ला के कहा।
“ कसी के साथ लगा होगा। कल कह रहा था क सगमंड ायड अगर लखा है तो
लड़क लोग म कुछ तो बात होता होगा।” मने दादा से कहा।
“भाई, पछला बल भी बाक है। कने शन कट जाएगा। रहम करो।” दादा ने दोन
हाथ जोड़कर जयवधन से कहा।
“लो अपना फोन और डाल लो! और हाँ vibrate पर कर लेना ज र। यादा मजा
आएगा।” जयवधन ने आते और गु साते ए कहा।
ै ै ो े
“साला, पैसा नह लगता है या फोन म?” दादा ने कहा।
“40 पैसा म कर दया धी भाई अंबानी! अब या छ ल दोगे उसको? 10 मनट बात
कए ह गे तो 4 पया; तेरे एक सगरेट का दाम। 20 मनट बात कए ह गे तो 8 पया;
तेरे दो सगरेट का दाम। पी लेना हमसे सगरेट।” जयवधन ने जेब म हाथ लगाते ए कहा।
“पूरा 36 मनट बात कया है! कससे बात कया है बे?” मने मोबाइल दे खते ए
कहा।
“अरे, वो जो पटना वाला लड़का है न? अ भषेक; उसी से बात कर रहे थे।” जयवधन
पटना के नाम पर जान दे सकता था।
“लड़का से! 36 मनट! भाई, तेरा chemistry तो खराब नह हो गया?” दादा ने
कहा।
“और तुम दोन जो दन भर बाइक पे लवर-लवरा जैसे घूमते रहते हो तो कौन-सा
biology पढ़ते हो?” जयवधन ने जवाब दया।
“ले कन तुम अ भषेकवा से आधा घंटा या बात कर रहा था?” मने माहौल ह का
करने क को शश क ।
“अरे, ब त मजेदार बात है; म म चलो बताते ह।” जयवधन ने कहा।
“हाँ, या आ बताओ? कस बात पर जदगी का 36 मनट खच दए?” मने कमरे
म आकर कहा।
“कल section B म contract का presentation था।” जयवधन ने कहा।
“अ छा आ क presentation, section B से शु आ। हमलोग को थोड़ा
आइ डया मल जाएगा।” मने बीच म टोका।
“चुपचाप सुनो। बीच म बाँस मत करो!” जयवधन ने झुँझला के कहा-
“अ भषेक जब presentation दे रहा था तो वो लड़क है ना सोनाली, जो शखा के
साथ रहती है, ताली बजा द । बस फर या था! भाई, presentation बीच म ही भूल
गया। रामजी सर बोले क कोई बात नह go ahead अ भषेक go ahead . अ भषेकवा
go ahead का मतलब समझा-आगे जाना। तो भाई थोड़ा ahead होके राम जी सर के
पास जाके खड़ा हो गया। पूरा लास हँस दया; ले कन उसको केवल सोनाली का हँसी
सुनाई दया। कह रहा था क जैसे मोगरे का फूल झड़ रहा था। शायरी भी मार दया। कैसे
तो था-
े े ी े े ो
उसने जब मेरी तरफ यार से दे खा होगा
मेरे बारे म बड़े गौर से सोचा होगा।
कहता है क यार हो गया है, उसके बना रह नह पाएँगे।” जयवधन मजे लेकर सुना
रहा था।
“सोनाली कौन है बे?” दादा ने लेटे ए ही टे नस बॉल द वार पर मारते ए पूछा।
“अरे, उस दन वो जो सरी लड़क थी ना! modern pen company म, वही है
सोनाली।” मने बीच म बयान जारी कया।
“तुमको ब त पता है लड़क लोग का खबर। अल- बेरा से यूज ले रहा है या?”
दादा ने कहा।
“आगे क बात तो सुनो।” जयवधन ने कहा।
“अ छा! अभी 36 मनट खतम नह आ है तु हारा? बोलो!” मने कहा।
“अ भषेक बोल रहा था क उससे बात करना है, दल का हाल बताना है; इस लए
सोनाली का मोबाइल नंबर चा हए।” जयवधन ने कहा।
“मोबाइल नंबर काहे चा हए? बोलो क यादा आग लगा है तो ग स हो टल वाला
लड-लाइन पर कर ले।” दादा ने टे नस बॉल मेरी तरफ उछालते ए कहा।
“ कया था। बोल रहा था क ग स हो टल वाला लड-लाइन हमेशा बजी रहता है और
जब लगता है तो सोनाली को बुलाने के लए उसका म नंबर बताना होता है। अब इसको
म नंबर तो पता है नह ; कहाँ से बुलाएगा?” जयवधन ने 36 मनट म सारी बात कर ली
थ।
“ फर?” दादा ने कहा।
“ फर हम बोले क हम इंतजाम कर दगे।” जयवधन ने कहा।
“तुम। कहाँ से करेगा। पगलचीट है या?” दादा ने डाँटते ए कहा।
“तो या करते? ताव दला दया।” जयवधन ने कहा।
“तुम ताव पे चढ़ काहे जाता है भाई?” मने कहा।
“तो का घंटा पे चढ़? बोलता है क बाहर तो या, कोई हो टलर भी ग स हो टल का
नंबर नह जुगाड़ सकता है। डायन को भी अपना दामाद यारा होता है और फर यहाँ तो
हो टल क इ जत का बात था।” जयवधन ने न ज पकड़ ली थी।
ऐ ो े
“ऐसा बोला?” दादा ने कहा।
“और या और ये भी क अगर नंबर मल गया तो 1000 पया हार जाएगा।”
जयवधन ने काम क बात बताई।
“1000 पया!” मने आख चौड़ी क ।
“हाँ! 1000 पया।” जयवधन ने सपने दखाए।
“तो जाओ, उससे पूछो क 500 पया advance दे गा?” दादा ने पोट् स टार पढ़ते
ए कहा।
ै ो ी े
“Section B म है एक लड़क सोनाली।” मने कहा।
“हो टल कौन-सा?” वनीत ने फर पूछा।
“शायद गंगा है; पर म नंबर नह मालूम है।” अबक बार जयवधन ने कहा।
“शाम म जब ‘द तर’ आओगे ना, तब नंबर ले लेना हमसे। अब चलो, कुछ खाना
खलाओ मेस म।” वनीत ने बड़ी ही आसानी से कहा।
***
ै े े ो े े ो े ी ी े
“उधर यामाहा पर बैठे उस लड़के को दे ख रहे हो? अरे, ीन ट शट म!” वनीत ने
कहा।
“हाँ हाँ…! वो तो IT का लड़का है! अं कत नाम है। उसक गल ड भी IT क है।
दन भर बाइक पे घूमता रहता है साला।” मने कहा।
“ब त सही! खबर तो तुम भी रखते हो गु ! हाँ। अं कत नाम है उसका। एक दन
रैली के लए सबसे बाइक जुगाड़ा जा रहा था। IT हो टल म गए तो यही एक लड़का था
जो बाइक नह दया। कहा क शाम म फ म दे खने जाना है मु ा भाई MBBS . बस फर
या था; अगला दन द तर म हा जरी लगा। पूछे क IT म पढ़ते हो तो MBBS काहे दे ख
रहे हो? तो लगा रोने। कहता है क गलती हो गया। अब से जब गाड़ी चा हए होगा, बस
बोल द जएगा। पे ोल भरवा के दगे।” वनीत ने उँगली क अँगठ
ू घुमाते ए कहा।
“सही है! ले कन नंबर कैसे मला?” मने पूछा।
“अरे, ये जतना सीधा है ना, इसक गल ड उतनी शा तर है। गंगा हो टल म ही रहती
है। पहले भी दो-तीन नंबर नकलवाए ह। अब जैसे सोनाली का नंबर चा हए था, तो वो
सोनाली के म म गई। थोड़ा-ब त इधर-उधर क बात क । जान-पहचान बढ़ाई और
जानबूझ के अपना मोबाइल उसके म म छोड़ के बाहर नकल गई। फर थोड़ी दे र बात
परेशान-परेशान आई और कही क सोनाली मेरा मोबाइल कह छू ट गया है। जरा अपने
नंबर से एक बार कॉल करो ना! दे खो, रग जा रहा है या। जैसे ही रग गया तो बोली क
दे खो तो! हम भी कतने बेवकूफ ह। फोन यह छोड़ के नया भर म खोज रहे ह। इस
तरह सोनाली का मोबाइल नंबर भी उसके फोन म आ गया और उसको शक भी नह
आ।” वनीत ने लगभग एक साँस म कहा।
“बाप रे! ां तकारी म हला है ये तो! जसके घर जाएगी, वग बना दे गी। सही म
शा तर है भाई!” दादा ने कहा।
“ले कन भाई! तुम नंबर हाथ पर य लखे थे? मोबाइल म भी तो लख सकते थे?”
मने कहा।
“नह मा लक! लड़क का नंबर है। मोबाइल म रह गया तो द कत हो जाएगा। तुम
तो जानते हो, हमारा मोबाइल तो बूथ है। जसका मन करता है, वही लगा दे ता है।
जयवधन बाजी लगा लया था और भगवानदास हो टल के इ जत क बात थी, बस
इसी लए नंबर नकलवाए। अब तुम जानो और तु हारा काम। बस ये याद रखना क सबके
घर म बहन है।” वनीत ने समझाते ए कहा।
“अरे नह नेताजी! बस जयवधन को नंबर दगे और 1000 पया लगे।” दादा ने
कहा।
ो ई े ै े ो ी े े
“चलो भाई, अब नकलते ह; गाकुंड पर जुलूस है। दे र हो जाएगा।” वनीत ने बुलेट
टाट क और नकल गया।
“ यो बेटा! एक हजार का चेक।” मने दादा से कहा।
“पहले चेक भी कर लो क नंबर सही है क नेता गेम खेल गया?” दादा ने कहा।
“हाँ, चल फोन लगाते ह।” मने मोबाइल से नंबर लगाते ए कहा।
“अबे पगलोल है या। मोबाइल से लगाएगा। साला, नंबर आ जाएगा उसके मोबाइल
म और ॉ टर को दे द तो?” दादा ने डरते ए कहा।
“हाँ भाई! ठ क बोला, चल टे लीफोन बूथ से लगाते ह।” मने कहा। मोबाइल पॉकेट म
रखकर हम पास ही टे लीफोन बूथ प ँचे। प ँचकर मने उस नंबर पर फोन कया।
“लगा?” दादा ने कान लगाते ए पूछा।
“ रग जा रहा है! रग जा रहा है!” मने कहा।
“अबे, रख य दया?” दादा ने कहा।
“लड़क उठाई थी बे!” मने लगभग काँपते ए कहा।
“मतलब नेता ठ क नंबर दया है।” दादा ने कहा।
“चल बेटा। जयवधन से 1000 पया लया जाय।” मने कहा।
***
ो ी े
“ या बोली?” मने पूछा।
“बोली क तुम सूरज बोल रहे हो ना। बस बे फोन काट दया।” जयवधन ने खुद को
संयत कर कहा और फर हँसने लगा।
“ या!” मेरे मुँह से नकला।
“लो बाबा! तुम तो गए काम से! अब च ुपुर म म ढूँ ढ़ो। हो टल तो गया समझो।”
दादा भी अब पेट पकड़कर हँस रहा था।
“ले कन साला, फोन काटा य ? उसको तो और यक न हो गया होगा क हम ही फोन
कर रहे थे।” मने परेशान होते ए कहा।
“ यादा परेशान मत हो! बे सब ठ क कर दया है।” जयवधन ने हँसी दबाते ए
कहा।
“Thank God . या ठ क कया है?” मने राहत क साँस लेते ए कहा।
“ बे बारा फोन कर के कहा क हम सूरज नह बोल रहे ह। और फर फोन काट
दया।” कह के जयवधन फर पेट पकड़कर हँसने लगा।
“ या? हे भगवान! अरे साला बे आदमी है क बकचो हर है! अब तो उसको और
व ास हो गया होगा क हम ही फोन कए ह। या ज रत थी बारा फोन करने क ?”
मने सर पर हाथ रखते ए कहा।
इधर जयवधन और दादा बना के हँसे जा रहे थे। इनका हँसना मेरे कान के लए
धतूरा था।
मने चढ़कर कहा- “और तुम लोग जो ख खया रहे हो ना! जब तुम लोग का
अँड़सेगा, तो हम ही नकालगे।”
“पहले अपना तो नकाल लो बाबा! जाओ, पहले ॉ टर ऑ फस से होके आओ।
और हाँ, टाई पहन के ज र जाना। सुन रहे ह क ॉ टर वाला तवारी अपनी बेट के लए
दामाद खोज रहा है। अ छा impression पड़ेगा।” दादा ने हँसते ए कहा।
“ले कन बे को नंबर कहाँ से मला?” मने अचानक ही पूछा।
“हम कल रात को नंबर try कए थे। call detail म वही पहला नंबर था, बे को पता
नह या सूझा, नंबर लगा दया।” जयवधन ने कहा।
“मतलब कल रात से ही ले रहे हो मेरा! हमको बात करना पड़ेगा।” मने कहा।
े ी ो ी े े ै ी ो
“मेरी मानो, कसी से कुछ कहने क ज रत नह है। जब तुम कुछ कए ही नह हो
तो या बात करना है?” दादा ने कहा।
“अरे यार, उसको लग रहा होगा क हम crank call करते ह।” मने कहा।
“तो लगने दो। That’s her problem, not yours .” दादा ने फर सगरेट जला ली।
“ फर भी, मेरा मन कर रहा है क confusion र कर द, इसके लए शखा से बात
करगे।” मने कहा।
“तो शखा से य बात करेगा? सीधे सोनाली से बोल ना।” जयवधन जो अब तक
चुप था, बोला।
“नह , उससे सीधे बात करने से काम बगड़ सकता है। शखा उसक ममेट है। हम
पता कए ह। वो उसको समझा सकती है।” मने कु हड़ फकते ए कहा।
“सीधे बोलो ना बाबा क शखा से बात करने का बहाना ढूँ ढ़ रहे हो।” दादा ने कहा।
“जो भी हो, बात तो करना पड़ेगा।” मने कहा।
***
दरअसल, दादा का सोचना सही था। म काफ दन से शखा से बात करना चाह रहा था।
एक तो उसका से शन भी सरा था। सरे मुझे कोई माकूल मौका नह मल रहा था। या
तो वो, अपनी दो त से घरी होती या फर म अपने दो त म मशगूल होता। और फर
मॉडन पेन कंपनी वाली घटना ने मेरे हौसले पर भी असर कया था। ब त मुम कन था क
वो उस घटना के बाद मुझसे बात करना न चाहे; इस लए मने उससे अकेले म ही बात
करना मुना सब समझा। यह मौका मुझे परी ा के दौरान मल ही गया। शखा ने अपनी
answer sheet थोड़ा पहले ही जमा कर दया था और म भी शीट जमाकर बाहर ही टहल
रहा था, जब मने शखा को दे खा।
“ शखा!” मने फैक ट गेट के बाहर आकर कहा।
“Yes ?” वही गुनगुनाती आवाज आई।
“Hello. Myself Suraj .” मने अपने बारे म बताना शु कया।
“Yes, I know you. I saw you that day at Modern Pen Company .” उसने
क- क के कहा।
े े ो
“How was the paper ?” बात शु करने का इससे अ छा बहाना नह हो सकता
था।
“It was good and yours ?” उसने पूछा।
“Not so good . काब लक मोक बॉल वाले केस ने काफ टाइम ले लया; इस लए
एक question छू ट गया।”
“अ छा? ले कन offer and aceptence से तो कुछ पूछा ही नह था?” शखा कुछ
सोचते ए बोली।
“नह , नह । मने उसे test of formation of contract म लखा था।” मने हड़बड़ाते
ए जवाब दया। अब म उसे कैसे बताता क बे के फॉमुला वन के हसाब से, सवाल
कुछ भी आए, जवाब वही लखते ह जो आपको याद हो।
“ म। May be .” उसने कुछ सोचते ए कहा।
“अ छा, यार एक बात और थी!” मने हचकते ए कहा।
“हाँ, बोलो।” शखा अपना बैग ठ क करते ए बोली।
“तु हारी लासमेट है ना सोनाली! उसे लगता है क म उसे crank calls करता ँ।”
“हाँ, उसे crank calls आते तो ह।” शखा ने मेरी तरफ अजीब तरह से दे खा।
“मगर वो म नह करता।” मने ज दबाजी म कहा।
“एक मनट। अगर तुम कॉल नह करते तो तु ह कैसे पता क सोनाली को कॉ स
आते ह।” शखा ने अचानक ही कहा। म अपनी ही बात म फँस गया था।
“Common friends से पता चला।” मने जैसे-तैसे बात संभाली।
“उसने तो कसी को नह बताया। म बस इस लए जानती ँ य क वो मेरी ममेट
ह। इसका मतलब कॉ स या तो तुम करते हो या फर हो टल के तु हारे so called
common friends .” शखा ने मुझे फर अपने ही बात म घेरा।
“यार, बात-बात म हो टल को घसीटना गलत है। हो टल का कोई नह है। हाँ, फोन
करने वाले को म जानता ज र ँ; ले कन वो हो टल का नह है। म बस ये चाहता ँ क
कसी को कोई गलतफहमी न हो।” मने हो टल क शाख बचाने क को शश क ।
“Don’t worry. You are no Tom Cruise . इस लए गलतफहमी नह होगी; बाक
म तु हारी बात सोनाली तक प चा ँ गी।” शखा ने कहा।
े
“Thanks .” मने कहा।
“एक बात बताओ, तुम ये बात सोनाली से भी तो कह सकते थे। फर मुझसे यूँ?”
शखा ने फर अचानक ही पूछ दया।
“इस लए क गलतफहमी न हो।” मने कहा।
“गलतफहमी! कसे?” शखा क आवाज क परेशानी साफ थी।
“तु ह।” मने कहा।
“मुझे! मुझे गलतफहमी यूँ होगी?” वह अब सचमुच परेशान हो रही थी।
“Because I Love You .” मने बना लाग-लपेट कहा।
“What ?” वह इसके लए तैयार नह थी।
“Yes .” म तैयार था।
“Excuse me! Do I khow you ?” उसने ‘me ’ को थोड़ा ख चते ए कहा।
“अभी तो थोड़ी दे र पहले कहा क तुम मुझे जानती हो! अभी दे खो, बदल मत
जाना।” मने कहा।
“शाद करोगे?” उसने कहा।
“What ?” म इसके लए तैयार नह था।
“तुम जैसे लफंग को म अ छ तरह जानती ँ। एक तरफ रात भर crank calls करते
हो। सरी तरफ शराफत का लोक पहन लेते हो। चलते नजर आओ, नह तो, डीन का
चबर यह दा हनी तरफ है।” वह इसके लए तैयार थी।
***
े ो े ो े ै े े ओ
“घंटा ले लो! बाप हमारे टकसाल खोले बैठे ह ना! पहले बताओ, कल या बात कर
रहे थे फैक ट गेट पे?” दादा ने कहा।
“तुमको कैसे मालूम?” मने गंगा जी म कंकड़ फकते ए कहा।
“फैक ट का गोजर, हो टल आते-आते अजगर हो जाता है बाबा! तुम बताओ कल
या बात कए?” दादा ने दोन हाथ म चाय का कु हड़ लेते ए कहा।
“अ छा दादा, एक बात बताओ! तुम कभी कसी लड़क को पोज कए हो?” मने
दादा के हाथ से चाय लेते ए कहा।
“B.Com म एगो को बोले थे, I Love You .” दादा ने कहा।
“ फर?” मने पूछा।
“ फर लड़क बोली OK . साला! हमको आज तक समझ नह आया क I Love
You का जवाब OK कैसे आ। यस, नो, कु ा, कमीना, जानू, पागल कुछ भी बोलती;
आईने म शकल या पाँव का च पल दखाती; ले कन OK का या मतलब?” दादा ने चाय
पीते ए कहा।
“अबे हँसाओ मत! मर जाएँगे।” चाय मेरे नाक म चली गई थी।
“हाँ, साले हँस लो। अभी तु हारा फँसा है ना! अब हम हँसेगे। पूरा भगवानदास
हँसेगा।” दादा ने कु हड़ फकते ए कहा।
“चलो, अब हो टल चला जाए। मन नह लग रहा है अब यहाँ।” मने घाट पर से उठते
ए कहा।
“ को भाई! मन तो तु हारा अब लगेगा। उधर दे खो, नाव से कौन आ रहा है?” दादा
ने उस पार से आती एक नाव क ओर इशारा करते ए कहा। शखा नाव से उतर रही थी।
“ओ तेरी! नाव से गंगा वहार। वो भी मेरे बना! चलो बेटा! तुम हो टल जाओ, हम
आते ह।” मने दादा से कहा और सी ढ़याँ उतरने लगा।
“हो गया! आ गई न दो ती के बीच म लड़क ? ब त दो त-दो त करते थे। साला 70
गलास तो मगो शेक पी गए और आज नकल लए ना! जाओ, आज से दो ती ख म,
खचा अपना-अपना।” दादा क आवाज तब तक पीछा करती रही जब तक म नाव के
पास नह प ँच गया।
“Hello .” मने नाव के पास ककर कहा।
ँ े ो े
“तुम? तुम यहाँ या कर रहे हो?” शखा ने कहा।
“अब हम तो लफंगे ह, कह भी जा सकते ह। वैसे अभी अ सी घाट पे तुलसीदास को
ढूँ ढ़ रहे ह, उनको pizza खलाना है।” मने हँसते ए कहा।
“I am not amused .” शखा ने मुँह बचकाते ए कहा।
“सुनो, यहाँ एक फेमस रे ाँ है ‘ प जे रया’। यहाँ का मश म प जा काफ ब ढ़या
होता है।” मने प जे रया क ओर इशारा करते ए कहा।
“Thanks for the information .” उसने अनमने से कहा।
“ या हम वहाँ 10 मनट बैठ सकते ह?” मने लगभग र वे ट करते ए कहा।
“ यूँ?” उसने नाव वाले को पैसे दे ते ए कहा।
“ य क अभी-अभी एक जेब काट है और लफंग का भी उसूल होता है, जहाँ का
पैसा, वह खच करते ह। मेरा पैसा खच नह हो रहा है; इस लए र वे ट कर रहा ँ।” मने
कहा।
“मानोगे नह ?” उसने आँख दखाते ए कहा।
“एक बार तुम मान जाओ।” मने फर र वे ट कया।
“अ छा चलो; ले कन बस 10 मनट। मुझे हॉ टल भी जाना है।” उसने जान छु ड़ानी
चाही।
“अगर वो 10 मनट म प जा तैयार कर दे और तुम खा भी लो तो मुझे कोई एतराज
नह ।” मने कहा।
***
ी ी ै े
“यही क सूरज सी रयस है या?” जयवधन ने कहा।
“तो तुम या बोले?” मने कहा।
“बोले क ब त सी रयस है। बल बन 13.50 है। अबक बार बचने का चांस कम
है। नकल लेगा और आप भी नकल ली जए।” जयवधन ने हँसते ए कहा।
शाम गहराने लगी थी। बजली भी चली गई थी। अब नीचे चलने म ही भलाई थी। गाली-
गलौच का सारण कसी भी समय शु हो सकता था। बजली जाने के बाद अ सर
आमने-सामने के हो टल म यह र म दशक से नभाई जा रही थी। लड़क के पास सरा
काम न होने के कारण मन बहलाव का यह तरीका, यहाँ सामा य था। हम अब नीचे उतरने
ही वाले थे क एक आवाज आ ही गई-
“भगवानदास के बु ो! कब तक पढ़ोगे?”
यह आवाज गुटू हो टल क तरफ से आई थी। गा लय का दौर शु होने वाला था।
“बाप से हो शयारी करते हो बेटा? म मी ने यही सखाया है?” जयवधन ने च लाकर
जवाब दया।
“हाँ प पा! म मी पूछ रही ह क कब तक पढ़गे? अब कुछ काम-धंधा भी क जए।”
आवाज फर गुटू से आई।
“बेटा अ मत, काम-धंधा का ही तो नतीजा है क तुम आ गए। चलो, अब कह रहे हो
तो आते ह। फर से dose दगे तु हारी म मी को।” जयवधन ने कहा और हम दोन नीचे
उतरने लगे।
“ये अ मत कौन है भाई? जानते हो या?” मने नीचे उतरते व पूछा।
“कौन जाने! इतना common name है। कसी-न- कसी का तो होगा। भीड़ म प थर
चलाकर मार दो कसी-न- कसी अ मत या संतोष या रा ल को लग ही जाएगा। अभी
दे खना सब चुप हो जाएगा।” जयवधन ने कहा
“तेरा टोटका तो काम कर गया बे! सचमुच सब चुप हो गए। ले कन यार, ये रोशन को
या ॉ लम है?” मने खुद से ही सवाल कया।
***
ो े औ े े े े ी ी े े ी े ो े ी ी
ोजे ट और ेजटे शन के बहाने ही सही, ले कन अब मेरी बात शखा से होने लगी थी।
अब कम-से-कम assignments के लए हम कसी क जी जूरी नह करनी थी। शखा
जो ोजे ट से शन B म जमा करती, वही ोजे ट हम तीन से शन A के लए जमा कर
दे ते। इस तरह शखा का आना हम तीन के लए मनमाँगी मुराद के पूरा होने जैसा था।
अ सर कट न म म अपने दो त को छोड़कर शखा के पास जा बैठता और मेरे दोन दो त
भी इसका बुरा नह मानते। आ खर ोजे ट और assignments का सवाल जो था। हाँ,
एक बात ज र थी क शखा मॉडन पेन कंपनी वाले झगड़े के बाद दादा से बात नह
करती थी और इसी कारण उसने जयवधन से भी कभी बात नह क । ले कन कभी मुझे
उनसे दो ती के लए मना भी नह कया। वो अ सर मॉडन पेन कंपनी वाली बात से
नाराज हो जाती; इस लए म भी उस बात को छे ड़ता नह था।
आज क बाइंड लास थी और बद क मती से आज लास म हम तीन म से कोई भी
नह था। हम तीन लास के बाहर खड़े थे।
“ लास ख म हो गया है। ीवा तव सर attendence लेने वाले ह। जैसे ही रोल नंबर
10 पर प ँचगे, चुपचाप पैर दबाकर घुसना है।” मने लास म के बाहर से दरवाजे के
कोने से झाँकते ए कहा।
“सुन ना, केवल तुम घुस जाओ और तीन का proxy मार दे ना।” दादा ने आइ डया
दया।
“हाँ भोसड़ी के! पछली लास म अपना नाम अनुराग बताए थे। उनको शक हो गया
है।” मने कहा।
“दे खो, attendence शु हो गया है। Combined class है, शखा भी है राजा! ब त
टु डट् स ह; शक नह होगा। ज द घुसो।” यह कहते ए दादा ने मुझे भीतर धकेल दया।
मने जैसे-तैसे सबसे पछले बच पर बैठते ए attendence पर यान दे ना शु कया।
“रोल नंबर – 27.”
“यस सर।” मने कहा।
“रोल नंबर – 29.”
“ ेजट सर।” मने थोड़ी हड़बड़ाहट म कहा।
“आपका नाम?” ीवा तव सर ने सर उठाते ए कहा।
“जयवधन शमा।” मने कहा।
“Father’s name ?” ीवा तव सर को शक हो गया था।
ी े
“जी?” मने कहा।
“Father’s name तो जानते होगे? या सोचा कभी ज रत नह पड़ेगी?” सर ने
मु कुराते ए कहा। पूरा लास हँस दया और म बस खड़ा था।
“What is your name ?” सर ने पूछा।
“सूरज।” मने सर झुकाए ए ही जवाब दया।
“कल तो आपने अनुराग बताया था! लास के बाद आप, जयवधन और अनुराग
मुझसे मेरे चबर म आकर मल।” सर ने कहा।
“ओके सर। पर आज तो present कर द जए।” मने र वे ट क ।
“रोल नंबर 30.” ीवा तव सर जवाब दए बना आगे बढ़ गए।
लास ख म हो गई थी। बेइ जती भी कुछ यादा ही हो गई थी। वो भी combined
class म। पूरी लास जब बाहर नकल गई तब भी शखा अपनी जगह बैठ रही। मुझे
एहसास हो गया था क मामला अब सफाई दे ने का नह रह गया; इस लए धीरे से म
उसक तरफ बढ़ा। मेरे आने क आहट सुनकर वो अपनी सीट से उठने लगी।
“सुनो। I am sorry .” मने सीधे ह थयार डालते ए कहा।
“तु ह लास नह करनी है तो मत करो, मगर पूरी लास क attendence का
contract य लेते हो?” शखा ने बफरते ए कहा।
“अरे, वो लोग भी तो मेरा attendence बना दे ते ह।” मने कहा।
“That’s great . मतलब एहसान चुकाया जा रहा है। ब ढ़या है। एक एहसान हम पर
भी कर दो। कम-से-कम combined class म proxy मत करो।” शखा आज भड़क ई
थी।
“I am sorry. Just leave it . चाय पयोगी?” मने उसे शांत करने क को शश क ।
“Thanks. But please, Leave me alone .” उसने कहा और अकेली कट न क
ओर चली गई। म लास म अकेला रह गया। अभी म कुछ सोच पाता, तब तक पछले
दरवाजे से दादा और जयवधन दा खल ए।
“साले, proxy बनाने भी नह आता है। फँसा दए ना?” दादा ने कहा।
“ दमाग का बला कार मत करो। अभी वैसे ही मूड खराब है।” मने दादा से कहा।
े े ी े े ो ो
“साले, पछले तीन लास म हम तेरा proxy मारे तब तो कुछ नह आ। जगर होना
चा हए।” जयवधन ने आते ही कहा।
“तो, तु ह लोग के काम से गए थे। पूरा दन बे के साथ नकल गया। शु मनाओ
बे का! एक डॉ टर को जानता है। मे डकल स ट फकेट बनवा दया। अब ए जाम दे
पाओगे।” मने एक साँस म कहा।
“भोलेनाथ! तुम तो राजा ह तानी हो दो त।” दादा जोर से च लाया।
“ व नाथ मं दर चलो। इसी बात पे शेक पलाते ह।” जयवधन ने कहा।
“नह , तुम लोग जाओ; हम जरा लंका जाएँगे। उसका मूड खराब हो गया है। थोड़ा
टाइम दे ना पड़ेगा।” मने शखा क बात करते ए कहा।
“हाँ.. हाँ… जाओ बाबा। मूड ठ क करो। नह तो, अभी पाँच ोजे ट बाक है। बाक
का पाँच तो उसी का छापे ह। तुम जाओ बाबा और हमारा भी thanks कह दे ना और
ीवा तव सर क चता मत करना। वो भी लाला, हम भी लाला। गोट सेट कर दगे।” दादा
ने हँसते ए कहा और जयवधन के साथ बाइक पर बैठकर नकल गया।
***
े ो ी ी ै े ी ो ॉ ै
“ले कन तु हारा तो कसी झगड़ा भी नह है। तुमसे कसी को या ॉ लम है?” दादा
ने कहा।
“ कसी को तो है!” मने कहा।
“मतलब?” दादा उठकर बैठ गया।
“मतलब धमक दे रहे थे क शखा से र रहो। और ये क वो शरीफ घर क लड़क
है।” मने कहा।
“तो तुम कौन-सा DON का इकलौता है?” दादा ने कहा।
“एक बात और है।” मने कहा।
“ या?” दादा ने पूछा।
“उनम से एक ने मेरा बटु आ छ न लया था; मगर पैसा नह नकाला। बस I.D. Card
छ न लया।” मने कहा।
“और या करेगा। तेरे बटु आ म पैसा था कहाँ? आज ही चेक कए थे तेरा बटु आ।
चव ी नह था।” दादा ने कहा।
“था। आज लंका जाते व अंकल मले थे।” मने कहा।
“कौन से अंकल? तेरा कौन अंकल पैदा हो गया बनारस म?” दादा ने कहा।
“तेरे पापा। म टर डे। दो हजार पया दए और बोले क अनुराग को दे दे ना। मेस का
पैसा भर दे गा।”
“तो दो पैसा।” दादा ने हाथ आगे बढ़ाया।
“हम कहे ना क था। अभी खचा हो गया। ‘लंका कैफे’ गए थे ना।” मने हँसते ए
कहा।
“अरे बभना भोसड़ी के! साला। बुजरौवाला मेरा मेस का पैसा खा गया। ठ क थूरा है
सब तुमको, ब ढ़या कया है।” दादा ने गु साते ए कहा।
“लो कुछ पैसा बचा है, इसको रख लो। tip नह दए थे तो बच गया है।” मने हँसी
दबाते ए कहा।
“करोगे मुँहपेलई?” दादा को भी हँसी आ गई थी। तभी उसका फोन भी बजने लगा।
“दे खो, फोन बज रहा है। कसका फोन है दे खो तो?” मने दादा से कहा।
े ै े ो े े े
“हम नह जानते ह कसका है। तुम खुद दे ख लो।” दादा ने गु से से कहा।
“अरे! शखा का कॉल है। हैलो।” मने फोन उठाते ही कहा।
“तु हारा कसी से झगड़ा आ था?” शखा ने सीधे ही पूछा।
“ कसने कहा?” मने बात टालना चाही।
“सवाल का जवाब सवाल नह होता।” उसने कहा।
“नह यार! बस मामूली-सी बहस थी।” मने कहा।
“चोट तो नह लगी?” उसने पूछा।
“नह । बस I.D. Card गुम हो गया।” मने स चाई छु पाई।
“अरे! तो जाकर पु लस म complain करो।” उसने कहा।
“एक I.D.Card के लए पु लस complain ! कुछ यादा नह हो जाएगा?”
“तु हारी ही भलाई के लए कह रहे ह। लॉ पढ़ रहे हो, इतनी तो अ ल रखो।” उसने
कहा।
“अ छा ठ क है। कल सबेरे कर दगे। और बताओ?” मने बात बदलनी चाही।
“Goodnight .” उसने कहा और फोन काट दया।
“फोन काट द यार। इतना ले चर दे द और बात करने का टाइम आया तो
Goodnight !” मने उदास होकर कहा।
“ या ले चर ले रहे थे?” दादा ने पूछा।
“यही क I.D. Card के लए पु लस म डायरी करा दो।” मने कहा।
“तो, कल जाओगे थाना?” दादा ने पूछा।
“भक साला! और भी गम ह जमाने म I.D. Card के सवा।” मने कहा और चादर
तान कर सो गया।
***
ओये लक लक ओये
ो े ी ै े ी े ै ौ ै ी
“चो प! लाइ ेरी म बैठ के कहानी सुनने आया है? कौन जला घर है जी? पूछ ना
आछ , हम हा के चाची। पढ़ाई करो बाबू, पढ़ाई करो! यही काम दे गा। कहानी सुनने के
लए पूरा जदगी बाक है।” कहते ए जयवधन भी लड़के को मुहावरे का मतलब
समझता छोड़ लाइ ेरी से बाहर नकल आया।
इधर र वशंकर मेरे पास आ गया था। दादा के लए जू नयस से काम नकालना कोई
मु कल काम नह था; य क एक यही सी नयर था जो जू नयस को भी सगरेट पलाता
था। बाक तो बस पी लेते थे।
र वशंकर ने आते ही पूछा-
“सर, कुछ काम था या?”
“नह , कुछ खास नह र व; बैठो तो सही।” मने कहा।
“और, पढ़ाई कैसी चल रही है गु ?” मने बात शु क।
“ठ क है सर। बस फै मली लॉ म द कत आती है।” उसने कहा।
“हाँ, फारसी का ब त इ तेमाल आ है ना फै मली लॉ म! गैर- हद भाषी लोग को ये
मु कल होती ही है। तुम ऐसा करना, नव जी का नोट् स ले लेना।” मने समझाते ए
कहा।
“हाँ सर, तेलुगु लोग को हद म मु कल तो होती ही है।” र वशंकर ने कहा।
“अरे हाँ! तेलुगु से याद आया। मेरी एक तेलुगु े ड है, यार…ब त परेशान क ई है।
उसको एक मैसेज करना है क please don’t ask for secret, official, personal
question and document . इसको तेलुगु म कैसे लखगे गु ?” मने पूछा।
“दयाचे स वंतवैना, रह यमैना, ालुकयातलु अदगाव डु।” र व ने एक साँस म
कह डाला।
“बाप रे! खैर, ठ क है। तुम लख दो; म टाइप कर के मैसेज कर ँ गा।” मने कहा।
“अब आप समझे, हम कतनी द कत होती है हद समझने म।” र वशंकर ने हँसते
ए एक कागज पर लखा और बाहर नकल गया।
उसके जाते ही जयवधन भीतर घुसा और घुसते ही बोला-
“तु हारा काम कर दए ह बाबा। इतना तो ए जाम म नह लखे थे जतना बवंडर
बघार के आए ह। सुन तो रहा ही होगा कमलेश। एकदम आगे ही बैठा था। अब दे खो, कुछ
े ो ो ै ी ै ी ओ ै े ै ी
बात बने तब तो! चलो, अब मैगी-वैगी खलाओ। हैदराबाद गेट वाला ताऊ या म त मैगी
बनाता है!” जयवधन दादा क बाइक क चाभी लेते ए बोला।
“तुम जाओ। आज ही एक CD लाए ह; शाम तक लौटाना भी है।” मने कहा।
“मर जाओ साले! चाइना म काहे नह पैदा ए? वहाँ ूस ली, चूस ली सब मलता।
बाइ कोप के च कर म पड़े हो ना! कोई कोप नह बचेगा लाइफ म। पड़ी भस बबवा के
पाले, ले दौड़ावे ताले-ताले।” जयवधन ने बाइक टाट क और यही च लाते ए बाहर
नकल गया।
दादा अभी भी सोया आ था। बाइक क आवाज सुनी तो अचानक उठ गया। चादर
फककर ज द से बाहर गया और फर भीतर आ गया।
“मेरा बाइक कहाँ गया?” दादा ने पूछा।
“आँय?” ईयरफोन क वजह से म सुन नह पाया।
“मेरा बाइक कौन ले गया?” दादा ने अबक बार जोर से पूछा।
“कुछ सुनाई नह दे रहा है; जोर से बोलो।” मने कहा।
“भोसड़ी के, कान म तार पेले हो। नकालोगे, तब न सुनाएगा!” दादा ने इयरफोन
ख चते ए कहा-
“मेरा बाइक कौन ले गया?”
“जयवधन।” मने laptop रोकते ए कहा।
“ओह! तब ठ क है। हम सपना दे ख रहे थे क मेरा बाइक कोई चोरी कर रहा है और
हम मैगी खा रहे ह।” दादा ने आँख धोते ए कहा।
“तुम सपना भी दे खता है तो बाइक का! साला, सपना म तो डेमी मूर दे खो, केट
व लेट दे खो, मेग रेयान दे खो। बाइक का इतना चता मत करो। और हम या हो टल से
तेरा बाइक चोरी होने दगे?” मने laptop फर से चलाते ए कहा।
“यही तो डर है बाबा! तु हारी तो बीवी भाग जाएगी और तुम फ म खतम होने का
इंतजार करेगा।” दादा ने कु ला करते ए कहा और जोर से च लाया-
“भो…….ले………ना……..थ”
आजकल शाम म भोलेनाथ का नारा केट खेलने का अलाम था। इस अलाम के
साथ ही जू नयस क केट ट म जमा हो जाती थी और मैदान जम जाता था।
े ो े ी े ी ी ो ई ी
खेल ख म होने पर दादा जब भीतर आया तब तक मेरी फ म भी ख म हो गई थी।
“चाय पीने चलेगा?” दादा ने ज हाई लेते ए पूछा।
“चलो।” मने ट -शट डालते ए जवाब दया।
“जू नयस सब भी पगला है। ए जाम इतना नजद क है और बैट-बॉल ले के आ जाता
है। अब कोई दरवाजे पर आ गया है तो मना भी तो नह कया जाता।” दादा ने खुद से ही
सफाई द ।
“हाँ भाई! भोलेनाथ-भोलेनाथ च ला के तो गणेश जी अपने पापा को खोज रहे थे।”
मने पलटवार कया।
“तो उससे या आ? अब भगवान का नाम लेना भी पाप है या?” दादा ने कान
पँ चते ही समोसा उठा लया।
“नह गु । लो, खूब नाम लो। कभी तो भोलेनाथ अज सुनगे।” मने चाय पीते ए
कहा।
“अरे! अज से याद आया, तेरा एक र ज टड पो ट आया है।” दादा ने सरा समोसा
उठा लया।
“राखी होगा।” मने चाय ख म क ।
“हाँ ससुर! SSC ऑ फस म द द बैठ ह ना तु हारी? इंटर ू लेटर है।” दादा ने जेब
से लेटर नकालते ए कहा।
“मजाक मत करो!” मने लेटर झपटते ए कहा।
“भौजाई लगते हो हमारे, जो मजाक कर! से शन ऑ फसर का इंटर ू लेटर है।”
दादा ने पैसा नकाला।
“रहने दे भाई, आज पैसा हम दगे। मन खुश हो गया है।” मने हाथ पकड़ते ए कहा।
“ जस दन ऑ फसर हो जाना बाबा, उस दन खाएँगे बरयानी और पएँगे वोदका।
चाय पे मत टरकाओ।” दादा ने पैसा दे ते ए कहा।
“अरे यार! इंटर ू तो 14 तारीख को ही है।” मने च कते ए कहा – और आज हो
गया 10.”
“पो टल डपाट् मट का भी जवाब नह है! 10 दन दे री से दया है लेटर।” दादा ने
envelope दे खते ए कहा। म दादा से envelope लेकर दे ख ही रहा था, तभी पीछे से
ी े
कसी ने आवाज द -
“सूरज! सूरज!”
पीछे दे खा तो मुरली सर थे। हमदोन उनके पास प ँचे; थोड़ा झुककर अ भवादन
कया और हाथ पीछे करके खड़े हो गए।
“और, पढ़ाई कैसी चलने ह?” मुरली सर ने अपनी वाली हद म पूछा।
“जी, अ छ सर।” हमदोन ने एक साथ कहा।
“अनुराग, केट कम करने ह गे। ए जाम नजद क होने ह। जाइए, चल के पढ़ाई
क जए।” मुरली सर ने अनुराग को चलता कया।
“जी सर।” कहके दादा हो टल क ओर चल दया।
अब मुरली सर मुझसे मुखा तब ए –
“सूरज, आप लास म आगे य नह बैठने ह?”
“आगे क बच पहले ही भर जाती है सर।” मने बहाना कया।
“मतलब आप लास म लेट से आने ह?” मुरली सर ने सवाल दाग दया।
अब कुछ बोलने के बजाय चुपचाप खड़े रहना बेहतर था।
“दे खए सूरज, ये साल आपके लए ब त ज री होने ह। मन से पढ़ाई क जए। ये
आ खरी बस है; अगर नकल जाने ह तो फर मु कल होने ह।” मुरली सर समझा रहे थे-
“थोड़ा व पढ़ाई को भी द जए। मने आपका ोजे ट वक पढ़ा था। आप अ छे
टु डट होने ह।”
मुरली सर कहे जा रहे थे और म यह सोच रहा था क मुरली सर या सभी टू डट् स से
ऐसे ही बात करते ह! मेरा यान तब टू टा जब मुरली सर ने बात बदली-
“रोशन बता रहे थे क आपक हद अ छ है।”
“सर, बस ठ क-ठाक है।” मने कहा।
“नह नह । आप modest होने ह। आपको तो हद के लए रा यपाल से अवाड भी
मला है।” मुरली सर ने कहा।
ी े े े ोऔ े ी
“जी सर।” मेरे पास कहने को और कुछ नह था। अब मेरी समझ म आ रहा था क
जयवधन कस बवंडर क बात कर रहा था।
“दे खए ना, 15 अग त आने वाले ह और मेरे पास ब कुल भी व नह होने ह। या
आप मेरे लए हद म 15 अग त पर कुछ लख दगे?” मुरली सर ने कहा।
“My pleasure sir .” म इसके अलावा कुछ कह नह सकता था। यह भी नह क
14 तारीख को ही द ली म मेरा इंटर ू भी है।
“ये ली जए पेन ाइव। इसी म save करके मुझे 14 तारीख तक दे दे ने ह गे ता क म
थोड़ा दे ख लूँ।” मुरली सर ने कहा।
मुरली सर के हाथ म पेन ाइव दे खकर म आ य म था। मुरली सर शायद मेरी शंका
भाँप गए और उ ह ने कहा- “ये पेन ाइव, प सल ाइव तो मेरी समझ म नह आने ह।
रोशन ने ही दया है और कहा क इसम डाटा ांसफर कर सकते ह। दे खएगा गुम न हो।”
मुरली सर हम पर पूरी तरह व ास नह कर पाए थे।
“Don’t worry sir . म संभाल कर रखूँगा।” मने मुरली सर क शंका का नवारण
कया।
“ध यवाद सूरज! जाइए और पढ़ाई क जए, ए जाम नजद क है और कृपा कर गाडन
को ाउंड मत बनाइए।” मुरली सर ने हँसते ए कहा।
मुरली सर के पास से म सीधा हो टल आया। म म दादा और जयवधन पहले से
मौजूद थे और शतरंज खेल रहे थे।
“ या बोले बे मुरली सर?” जयवधन ने पूछा।
“पढ़ने के लए बोल रहे थे।” मने ट -शट उतारते ए कहा।
“लो! तो नया या बोले? वो तो टॉमी को भी यही बोलते ह।” जयवधन का इशारा
हो टल के कु े क तरफ था।
“और बोले क मेरे लए एक पीच हद म लख दो।” मने स ट फकेट ठ क करते ए
कहा।
“या रा जा! बन गया काम! तु हारा गोट तो एकदम फट बैठ रहा है बाबा।”
जयवधन ने मुझे लगभग गोद म उठा लया।
“कैसा काम? बाबा तो जा रहा है द ली; इंटर ू दे ने।” दादा ने शतरंज समेटते ए
कहा।
े े ो े े
“ या?” जयवधन ने मुझे लगभग गोद से फकते ए कहा-
“मतलब क आके लगी बारात तो समधी का पेट खराब! सुनो बाबा, तुम घंटा ना कोई
इंटर ू दोगे। साला, यहाँ पहली बार सब ठ क हो रहा है और तुम चला द ली! या करेगा
इंटर ू दे के? पहले भी तो इतना इंटर ू दया। या आ? माउथ साउथ म करके लौट के
चला आता है। सुनो दादा, ये कोई इंटर ू दे ने नह जाता है। इसक कोई सनीचर है द ली
म। वही इसको बार-बार लेटर भेजती है और ये बार-बार द ली भागता है। नह तो तुम ही
बताओ क कोई त कया लेके इंटर ू दे ने जाता है? दे ख लेना कपड़ा नह रखेगा, खाना
नह रखेगा; ले कन त कया ज र रखेगा। त कया काहे ले के जाते हो बे?” जयवधन ने
आँख तरेरते ए कहा।
“त कया बना न द नह आता; इस लए त कया लेके जाते ह। इंटर ू दे ना ज री है
य क पेपर अ छा गया था। पहले इंटर ू म नह आ तो इसका मतलब ये नह क
इसम भी नह होगा।” मने बैग बंद करते ए कहा।
“मतलब हाथी-हाथी ह ला और आ कु कुर का प ला! कुछ हो नह पाएगा। बाबा
तो अफसर बन गया। चलो दादा, हम लोग फर से रवाइज कया जाए।” जयवधन हताश
था।
“कौन कहा क कुछ नह हो पाएगा? सब होगा और ठ क होगा। बस तुम लोग
रवाइज करते रहो।” जयवधन के कंधे पर हाथ रखते ए मने कहा।
“हाँ बाबा! आप तो हा ह।” जयवधन क मु कान फ क थी। वह धीरे से कमरे से
नकल गया।
“कौन-सी गाड़ी से जाना है?” बुझे मन से ही दादा ने पूछा।
“ शवगंगा।” मने कहा।
“ टकट?” दादा ने पूछा।
“नह । पर उसम सीट मल जाती है।”
“ े न कब है?” दादा ने फर पूछा।
“कल शाम म।” मने कहा।
“चलो, तब आज सो जाते ह। कल सबेरे उठकर बात करगे।” दादा ने सर पर चादर
डालते ए कहा।
“तुम सो जाओ, हमको थोड़ा काम है।” मने कहा।
ओ े औ े े ी े
“मराओ साले! तुम और तु हारा फ म!” कहते ए दादा ने चादर तान ली। ले कन
मुझे आज फ म दे खने के लए नह ब क हद पीच लखने के लए जगना था। कपड़े
ठ क करने थे और बाक ज री चीज भी बैग म रखनी थी। हद म पीच लखते- लखते
न द कब आ गई, पता ही नह चला। सुबह का पता दादा के ही ‘भोलेनाथ’ क गरज से
लगा।
“ कतना टाइम आ बे?” मने पूछा।
“11 बज गया।” दादा ने कहा।
“अरे यार!” झट से उठते ए मने कहा- “अभी तो स ट फकेट भी ठ क नह कए
ह।”
“तो रात म या मुजरा दे ख रहा था? हम मेस म जा रहे ह खाना खाने।” दादा ने
कहा।
“मेरा खाना म म ही भजवा दे ना।” मने बैग ठ क करते ए कहा।
खाना खाते और बैग ठ क करते-करते नकलने का टाइम हो गया था। इसी बीच मने
शखा को फोन कया। उसने हमेशा क तरह सफर म चौकस रहने क ताक द क ।
स ट फकेट संभालकर रखने को कहा और best of luck भी कहा। बस, वो नह कहा जो
म सुनना चाहता था-I Love You . खैर, म लगभग तैयार होकर नकलने ही वाला था क
दादा केट खेलकर आया-
“गाड़ी कतने बजे है?” दादा ने पूछा।
“7 बजे शाम म।” मने बैग कंधे पर लेते ए कहा।
“चल, म छोड़ दे ता ँ।” दादा ने चाभी उठाते ए कहा।
कट प ँचकर दादा ने गाड़ी पा कग म लगाई। एक लेटफॉम टकट लेकर वह भी मेरे
साथ े न तक आया। े न समय पर ही थी। म े न म चढ़ने ही वाला था क दादा ने कहा-
“जयवधन क बात का बुरा मत मानना। फरफंद है साला। और ब ढ़या से इंटर ू
दे ना। इंटर ूअर क आँख-म-आँख डाल के बोलना। तुम साले आँख ब त चुराते हो।
CrPC का चता मत करना। इंटर ू दे के आओ। फर साले दो दन म तैयारी कर लगे।”
“मोबाइल वच-ऑन रखना। दादा से गले लगते ए मने कहा और े न म बैठ गया।
***
ी ो े े े ी ऑ ँ ो ो
14 तारीख को सवेरे आठ बजे ही म SSC ऑ फस प ँच गया था। नो टस बोड पर अपना
नाम दे खने के बाद म बाक लड़क से र हट गया और दादा को फोन लगाया-
“हाँ बोल।” दादा ने फोन उठाते ही कहा।
“कहाँ हो?” मने पूछा।
“ म पर ही ह भाई। जयवधन का री वजन चल रहा है और तुम कहाँ हो?” दादा ने
पूछा।
“SSC ऑ फस म। मेरी छोड़ो। ऐसा करो, मेरे त कये के नीचे एक पेन ाइव होगा,
उसको नकालो।” मने कहा।
“हाँ है। नकाल लए। या आ बाबा? सब ठ क तो है ना?” दादा परेशान हो गया।
“सब ठ क है। अब तुम ज द मुरली सर के पास जाओ।” मने कहा।
“ या?” दादा अवाक् रह गया- “मुरली सर के पास जाके या करगे?”
“सवाल मत करो। समय कम है। हम मुरली सर से बात कर लए ह। उनको पता है
क जो पीच लखे ह वो पेन ाइव म ही है। तुम बस जाओ और जयवधन को हो टल म
ही छोड़ दो। और हाँ! फोन तुम मत काटना, जब काटगे हम ही काटगे।” मने कहा।
दादा जयवधन को कमरे म ही छोड़कर हो टल से सटे मुरली सर के घर प ँचा-
“आओ अनुराग, सूरज बता के गया था क उसे इंटर ू के लए द ली जाना पड़ेगा,
पर पीच वो आपके पास रखने ह।” मुरली सर ने कहा।
“जी सर, पेन ाइव म है। सूरज भी फोन पर ही है।” दादा ने कहा।
“सर से पूछ, उनका क यूटर कहाँ है?” मने फोन पर कहा।
“सर, आपका क यूटर कहाँ है?” दादा ने पूछा।
“आइए, इधर ही होने ह। सामने। मुझे तो पेन ाइव, प सल ाइव समझ म नह आने
ह; आप ही डाल द जए।” मुरली सर ने कहा।
“पेन ाइव लगा दए ह; कौन-सी फाइल है?” दादा ने मुझसे पूछा।
“15 अग त नाम से एक फाइल है। एक-एक करके सारे फाइल पर कसर घुमाते रहो।
सबसे आ खर म उसको खोलना। कसर घुमाते रहो। अब हम फोन काट रहे ह और
जयवधन को लगा रहे ह। तुमसे दो मनट बाद बात करते ह।” मने दादा से कहा।
ो े े ी े ो ो
दादा का फोन काटने के साथ ही मने जयवधन को फोन लगाया-
“हैलो, जयवधन।”
“हाँ बाबा, ई का च कर घुमा रहे हो?” जयवधन ने कहा।
“सुनो जयवधन, कहाँ खड़े हो?” मने पूछा।
“तु हारे म के बाहर। यह तो छोड़ के गया है दादा।” जयवधन ने कहा।
“तु हारे सामने से कौन आ रहा है?” मने पूछा।
“ वजय दर।” वजय को दे खते ए उसने वापस कहा।
“उसको मारो।” मने कहा।
“ या? पगला गए हो या? वजय दर को य मारे?” जयवधन ने कहा।
“बस मारो।” मने ज दबाजी म कहा।
“ले कन?” जयवधन सोच म था।
“जो कहते ह वो करो और ज द करो।” मने गु साते ए कहा।
“लो मार दया। और बोलो।” अगला जवाब जयवधन का आया। मोबाइल पर जो
आवाज आई उससे लगा क जयवधन ने जोर का ही मारा है।
“अब ग रयाओ और मारो। हम फोन काट रहे ह।” मने कहा और फोन काट दया।
थोड़ी दे र यूँ ही टहलकर टाइम पास कया और फर बारा दादा को फोन लगाया-
“दादा, या हो रहा है?”
“अबे, बवाल हो गया है! हो टल म कोई मार कया है। मुरली सर अभी वह गए ह।”
दादा ने कहा।
“ब ढ़या! अब एक काम करो। पहले C ाइव खोलो और swant, swantvaina,
rahasya, rahasyamaina, prashn, question, prashnaalu, Kayatalu , ये सारे वड
एक-एक कर सच बॉ स म डालो।”
“ या? अबे, या- या करवा रहा है?” दादा बोला।
“ वंतवैना, रह यमैना, ालु, कयातलु।” मने फर कहा।
ेऔ ी े ी े ो ो
“ फर से और धीरे-धीरे बोलो।” दादा क समझ म कुछ नह आ रहा था।
“ वंतवैना, रह यमैना, ालु, कयातलु, ज द दे खो।” मने कहा।
“दे ख रहे ह भाई।” थोड़ा साँस लेने दो। हाँ…हाँ! .. कर के तो कुछ है!” दादा खुश
होकर बोला।
“ब ढ़या! अब एक काम करो, 400 KB तक का जतना फाइल है, सब copy कर
लो।” मने कहा।
“दे र हो रहा है बे! साला ब त धीरे चल रहा है क यूटर। उधर झगड़ा भी लगता है,
बंद हो गया है।” दादा परेशान हो रहा था।
“हो जाएगा; परेशान मत हो।” मने दलासा दया।
“हो गया!” दादा बोला।
“चल, अब फोन रखते ह। स ट फकेट वे र फकेशन का समय हो गया।” कहते ए
मने फोन रख दया।
“अरे, यह जयवधन भी बड़ा झगड़ालु लड़का है।” मुरली सर ने कमरे म घुसते ए
कहा।
“ या आ सर?” दादा ने पूछा।
“कुछ नह । या वह भाषण लख दए?” मुरली सर ने कहा।
“हाँ सर, वह तो आपके क यूटर म डाल दया है; आइए दखा ँ ।” दादा ने पेन ाइव
नकालते ए कहा।
“ठ क है, कं यूटर म तो है ही, थोड़ी दे र म दे ख लेने ह। आपका ध यवाद। पेन ाइव
रोशन का है; उसे दे द जएगा” मुरली सर ने दादा से कहा।
जी सर। दादा ने कहा और पेन ाइव लेकर बाहर नकल आया।
***
े ो औ ो ो ो ो
“अरे साला! बाबा फोन कया और बोला क वजय दर को मारो। तो हम मार दए।
फर बोल रहा है क ग रयाओ और मारो। जब ल तयाने लगे तो सब लोग मुरली सर को
बुला लया। अब मुरली सर पूछ रहे ह क य मारने ह? हम या जवाब दे ? हम सोचे क
फोन करके पूछ लेते ह क य मारने ह, तो बाबा का फोन बजी हो गया था। हम मुरली
सर को या बताएँ?” जयवधन ने एक साँस म कहा।
“बाबा कुछ बड़ा सोचा है। चलो म म चलते ह।” दादा ने हँसते ए कहा।
“घंटा बड़ा सोचा है? अचानके बोलता है क वजय दर को मार दो। बेचारा हाथ
झुलाते ए, दे वानंद बने आ रहा था। छतरा गया। फर बोलता है और मारो! गरा आ
आदमी को कैसे मारे? फर भी मारे। पूछने ही वाले थे क अब या कर तो फोने काट
दया!” जयवधन, वजय दर के लए खी था।
“तुमसे यह करवा के बबवा, मुरली सर को इधर बुलवा लया ता क हम फाइल कॉपी
कर सक।” दादा ने अपनी अ ल लगाई।
“अ छा! कुछ मला या?” जयवधन अब वजय दर का ख भूल चुका था।
“कॉपी तो कए ह; अब उसके फोन का इंतजार करते ह।” दादा ने कहा।
“तो चलो, खाना तो खा लया जाए। आज मेस म छोला-भटू रा बना है।” जयवधन ने
उठते ए कहा।
“यहाँ पे वक ल नह , घोड़ा बनाने का ै टस कराते ह। इतना चना तो बस घोड़ा
खाता है।” दादा ने कहा। और दोन मेस म जाने के लए उठ गए।
“अ छा, मेस म वजय दर मल गए तो या करोगे?” दादा ने चुटक ली।
“माफ माँग लगे भाई।” जयवधन ने दादा के कंधे पे गदन रखते ए कहा।
इधर, म भी इंटर ू दे कर अपने होटल म आ गया था। शाम को थकान क वजह से
न द आ गई। रात को जब न द खुली, तो दे खा क रात के दस बज रहे ह। शखा ने मुझसे
कहा था क इंटर ू के फौरन बाद फोन करना। पर इंटर ू के ेशर म म यह बात भूल
गया था। म ज द से उसका नंबर मलाने लगा; ले कन इससे पहले क म शखा का नंबर
मला पाता, दादा का फोन आ गया।
“इंटर ू कैसा आ भाई?” दादा ने जवाब जानते ए भी पूछा।
“ठ क ठाक। सरदार जी का बोड था; असरदार नह रहा।” मने हँसते ए कहा।
“कोई बात नह ; हो जाएगा। तुम आ कब रहा है?” दादा ने पूछा।
ँ े े ै े
“कल आ जाएँगे।” मने बैग ठ क करते ए कहा।
“पेन ाइव का या कर?” दादा उतावला हो रहा था।
“कल आते ह ना, फर खोलगे।” मने कहा।
“कल तक स कससे होगा? सबेरे से स कए- कए पेट फूल गया है।” और मुरली
सर बोले ह क रोशनवा का पेन ाइव लौटाना भी है। जयवधन बोला।
“तुम लोग साले, फोन पीकर पर कए हो? ज द पीकर बंद करो! हमारा म तो
वैसे ही कोठा है। कोई भी गजरा खरीद के घुस जाता है।” मने कहा।
“लो! पीकर बंद कर दए। अब बताओ।” जयवधन बेस हो रहा था।
“पेन ाइव को लैपटॉप के पोट म डालो।” मने कहा।
“आँय! कसको, कहाँ डालो?” जयवधन अचं भत था।
“तुम साले, फोन ददवा को दो!” मने झुँझलाते ए कहा।
“हाँ हाँ, लो दादा! तुम समझो रॉकेट साइंस। खग ही जाने खग क भाषा।” जयवधन
ने फोन दादा को दे दया।
“पेन ाइव को पोट म डाल के पेन ाइव खोलो।” मने फर से हराया।
“खुला। अब?” दादा ने पूछा।
“सबसे पहले या ालु वाला फाइल पे ही डबल लक करो।” मने बताया।
“ कया।” दादा ने कहा।
“ या आ?” अब बेस होने क बारी मेरी थी।
“नह खुला।” दादा ने धीरे से कहा।
“अबे, डबल लक करो।” मने कहा।
“सुनो, फाइल खोलना तो कम-से-कम मत सखाओ! जान गए ह क ब त ानी
हो।” दादा ने गु साते ए कहा।
“माफ मा लक! मगर खुल य नह रहा है? कुछ लखके आ रहा है या?” मने फर
पूछा।
ँ े ै े
“हाँ। लखके आ रहा है क enter password to open file .” दादा ने कहा।
“Fuck यार!” मेरे मुँह से और कुछ नह नकला।
“ या आ बाबा? फकफकाने काहे लगा? कोई बड़ा परेशानी है या?” दादा ने
पूछा।
“मुरली सर हमारी सोच से यादा कं यूटर अवेयर ह। फाइल म पासवड लगा दए
ह।” मने कहा।
“अब या होगा?” दादा ने पूछा।
“एक बात तय है क questions तो इसी फाइल म ह।” मने कहा।
“ फर? कुछ तो करना होगा। इतने नजद क आकर हार तो नह सकते!” दादा क
आवाज म हताशा थी।
“खचा करना होगा।” मने कहा।
“खचा? कतना? “दादा ने पूछा।
“88 डॉलर। पासवड ै कर खरीदना होगा।” मने कहा।
“88 डॉलर माने?” दादा ने फर पूछा।
“88 डॉलर माने तु हारा 4000 पया।” मने कहा।
“जयवधन कह रहा है क डॉलर म पया होता तो तु ह बचा था दो त बनाने के
लए? कुछ स ता, सु ब ता और टकाऊ उपाय बताओ।” दादा ने कहा।
“ फर कुछ नह हो सकता।” मने कहा।
“अ छा, डॉलर वाला आ खरी ऑ शन रखते ह; पर कुछ और सोचो।” दादा हार
मानने वाल म से नह था।
“ ूट फोस मेथड नह काम करेगा। ड शनरी मेथड नह काम करेगा। .rtf मेथड से
भी नह होगा। रडम ए सेस…. एक मनट, एक मनट! दे खो तो कौन-सा Ms word है?”
मने पूछा।
“Ms Word 2003 है।” दादा ने तुरंत बताया।
ै े ो ो े ॉ ै
“ब ढ़या! भगवान साथ है। अब दे खो तो डे कटॉप पर hex editor नाम का कुछ है?”
मने पूछा।
“Hex editor? hex editor … हाँ है।” दादा ने तुरंत कहा।
“उसको खोलो।” मने कहा।
“खोल दया। अब?” दादा ने कहा।
“अब उस फाइल को hex editor म खोलो।” मने कहा।
“खोल दया। अरे यार! ये तो binary जैसा कुछ खुल गया है। पूरा एक पेज का। कुछ
समझ म नह आ रहा है।” दादा के समझ म सचमुच कुछ नह आ रहा था।
“अ छा, उस पेज म सबसे नीचे जाओ और दे खो, कह कोई exclamation sign
दख रहा है?” मने आ खरी को शश क ।
“आ खर से पहले वाले लाइन म, अं तम binary म exclamation sign दख रहा
है।” दादा क आवाज म एक आस थी।
“उसके पहले या लखा है?” मने पूछा।
“E9 CC B 3 88. यही लखा है भाई।” दादा ने कहा।
“बस इन सब को 00 कर दे और फाइल save कर दे ।” मने कहा।
“Save कर दए मा लक; अब बो लए।” दादा को कुछ उ मीद बँधी थी।
“अब भोलेनाथ का नाम लेकर फाइल को खोलो।” मने कहा।
“बूम!” दादा क आवाज से लगा क एकबारगी मेरा कान फट जाएगा।
“ या आ बे?” मने बेस ी से पूछा।
“कहाँ LAW करने आ गए भु? आपको तो RAW म होना चा हए था। खुल गया है
बे! पेपर ही है। तीन घंटा के पेपर म 32 question ह! फट गया होता ए जाम म। लो,
जयवधन भी बात करेगा।” दादा ने फोन जयवधन को थमा दया।
“बाबा। तुम महान है, तुम महान है बाबा! यार, हम तो सोचे भी नह थे।” जयवधन
सचमुच खुश था।
“चलो, अब सोने दो।” मने कहा।
े ो ँ े ी े ी े े ी
“अरे! तो हम कहाँ तेरा कंबल खीच रहे ह। बस यही कह रहे ह क शु से ही सब
अ छा हो रहा था। दे खना, तेरा सेले शन भी हो जाएगा।” जयवधन ने कहा।
“Let’s hope for the best .” मने कहा। “और या सब अ छा हो रहा है साले?
बोल के आना था कमलेश को, तो बता के आए हो रोशन चौधरी को? यही ठ क हो रहा
है?” मने कहा।
“रोशन को!” जयवधन ने आ य से पूछा।
“और या। मुरली सर तो यही बोल रहे थे।” मने कहा।
“अरे! हम तो कमलेश को सुनाए थे बाबा! मुरली सर को तो घंटा ना याद रहता है
कुछ। कमलेश को ही रोशन बोल रहे ह गे। और छोड़ो फालतू बात, ज द आओ। तुमको
चु मा ले…” जयवधन के कहते-कहते फोन क बैटरी ख म हो गई।
***
मंडी
ो े ी ओ े
“ढोला तेरी कमाल ओये
न क जी गल तु दै
ढोला तेरी कमाल ओए।” जयवधन क पीठ पर तबला बजाते ए मने गाने क तान
ख ची।
“मेरे मरने से पहले या एक बार हद म भी गाना सुना दे गा? ह ु म गाना, बनारस म
कसको सुनाते हो?” दादा ने चाय का कु हड़ फकते ए कहा।
“अरे! मरतब अली का नया एलबम आया है पा क तान म।” मने कहा।
“हाँ, और सुनील सह तुमसे करतब कराएगा ह तान म।” जयवधन ने कहा।
“कौन सुनील सह बे?” मने पूछा।
“3rd इयर वाला दानव। म नंबर-100 वाला रा स। कल हमको अपने म म
बुलाया और बोला क तु हारे साथ जो लड़का रहता है ना, उसको बोल दे ना क कल से
जब बाथ म जाए तो मुँह बंद रहे, नह तो मुँह म बाँस खरकोच दगे। फटहा बाँस जैसा
रघाता है सबेरे-सबेरे। न द और दन दोन खराब हो जाता है।” जयवधन ने दादा के कंधे
पर हाथ मारते ए कहा।
“पहले े न म गाता था या बाबा?” दादा ने भी चुहल क ।
“फटहा बाँस! मेरी गल ड कहती थी क तुम कशोर कुमार जैसा गाते हो।” म
सचमुच उदास था।
“वो भी े न म कटोरा बजाती थी या बे?” अब बारी जयवधन क थी। दोन क हँसी
तब क जब पीछे से आकर कसी ने नाम पुकारा –
“अनुराग भइया।”
नाम पुकारने वाला मज र क म का आदमी था। उसका पायजामा मट् ट से सना
था। चेहरे पर ह ते भर क बढ़ दाढ़ थी। बदन पसीने से तर था। दे खने से ही जा हर था
क वो परेशान है।
“ या बात है?” दादा ने पूछा।
“आप बंगाली ह?” उसने अजीब-सा सवाल कया।
“नह बां लादे शी ह। इनके दादा जी बां लादे श से बना टकट भागे थे। मुगलसराय म
धरा गए। TTE उतार दया तो वह बस गए।” मने मौके का फायदा उठाया।
ँ े ो ै ो े
“मुँह म लेगा! दो मनट चुप नह रह सकता है?” दादा को सबसे यादा गु सा
बां लादे शी कहे जाने पर आता था।
“बात या है?” दादा ने पूछा।
उस आदमी ने एक कागज आगे करते ए कहा- “इसको जरा पढ़ द जए क या
लखा है। हम तो अनपढ़ ह। च ुपुर म ढलाई का काम करते ह। कोई बताया क ये
लखावट बंगाली म है और यह पर कोई पढ़ सकता है।”
“ले कन तुमको मेरे बारे म कौन बताया?” दादा ने कागज हाथ म लेते ए पूछा।
“ च ुपुर म चाय के कान पर कागज दखाए तो एक आदमी बताए क भगवान
हो टल म ‘अनुराग बंगाली’ ह। उधर से पूछते-पूछते आ रहे ह।” उसने कहा।
“लो बेटा! तुम तो टार बन गए। च ुपुर म भी लोग तुमको जानते ह। अनुराग
बंगाली। जैसे बाबा अकरम शाह बंगाली वैसे अनुराग बंगाली। तुम वशीकरण जानता है
या? यार म असफलता का इलाज भी करता है या दादा?” मने मौके का फायदा
उठाया।
“ये कागज तुमको कहाँ से मला?” दादा ने मुझे अनसुना करते ए सवाल कया।
इस सवाल के जवाब म वह असहज हो गया। फर थोड़ी दे र चुप रहने के बाद बोला-
“अब आप से या छु पाएँ! कल मडु आडीह गए थे। वहाँ ये लड़क मली। मलते ही
रोने लगी। कुछ कहना चाह रही थी; मगर डरी ई थी। कुछ कही तो नह ; मगर ये पुजा
पकड़ा दया। अब हम अनपढ़ आदमी। कसी को पढ़ने को दया भी तो पता चला क यह
बंगाली म लखा आ है। अब बंगाली को ढूँ ढ़ते-ढूँ ढ़ते यहाँ आ गए। वैसे इस कागज म
लखा या है?”
“तुम भी चाचा चौधरी का भतीजा मत बनो और चुपचाप बताओ क लखा या है?”
जयवधन ने दादा से कहा।
“इसम लखा है, भूल होए गेछे बाबा। आमाके खोमा कोरे दाओ आर आमा के एखान
थे के नीए चोलो।” दादा ने कागज मोड़ते ए कहा।
“ या चपसंड पढ़ता है यार तुम! म त। एकदम बंगाली जैसा। ब त ब ढ़या पढ़ा। अब
जरा हद म भी पढ़ दो।” मने दादा को चढ़ाते ए कहा।
“कोई लड़क है, जो अपने फादर को लखी है क उससे गलती हो गई है। उसे माफ
कर द और यहाँ से बचा के ले जाए।” दादा ने कुछ सोचते ए कहा।
े े ँ े े े े
“बचा के ले जाए! कहाँ से बचा के ले जाए?” जयवधन ने पूछा।
“मडु वाडीह से।” दादा ने ग भीर साँस ली।
“मडु आडीह! वहाँ तो?” जयवधन ने कुछ समझते ए कहा।
“हाँ, Red light area है।” दादा ने कहा।
“राम तेरी गंगा मैली का शू टग वह आ था ना! हम दे खे ह।” मने कहा।
“अ छा! मंदा कनी के गोद म तुम ही थे या पूरा फ म म। पूरा चंपक है या तुम?
थोड़ा दे र चुप नह रह सकता?” दादा गंभीर था।
“और या बात ई?” दादा ने उस आदमी से पूछा।
“कुछ नह भइया। बस रो रही थी। जब हम कुछ बोले तो उसको समझ म नह आया।
जब वो कुछ बोली तो हमको समझ नह आया। हमको अपने पैसा का ख नह है; ले कन
उसका रोना दे ख के मन खराब हो गया।” उसने कहा।
“तुम उसको पहचान सकते हो?” दादा ने पूछा।
“हाँ भइया, लाइन म सब खड़ी रहती ह। हम पहचान जाएँगे।” उसने कहा।
“चलो।” दादा ने कहा
“कहाँ?” मने पूछा।
“मडु आडीह।” दादा ने कहा।
“पागल हो गया है या! जानता भी है, या कह रहा है?” मने कहा।
“तुमको नह जाना है तो मत जाओ, हम तो जाएँगे।” दादा ने कहा।
“हम तो वैसे भी नह जाएँगे और तुम लोग भी नह जा सकेगा। अभय कुमार और
वमा सर का लास है। दोनो म अटडस कम है। लास करना ही पड़ेगा।” मने मु कुराते
ए कहा।
“इसी लए तो तुम नह जाएगा। तुम लास करेगा और हम लोग का भी अटडस
बनाएगा।” अब तक चुप बैठे जयवधन ने कहा।
“तुम लोग का अटडस हम कैसे बनाएँगे?” मने जानते ए भी कहा।
“जैसे डेढ़ साल से बना रहे हो-
Roll number -
27 – Yes sir ,
29 – Present sir ,
44 – Yes sir .” दादा ने नकल करते ए समझाया।
“सुनो, मत जाओ भाईलोग। हमको कुछ ठ क नह लग रहा है।” मने आ खरी
को शश क ।
“चलो, तुम नकलो। लास के लए दे र हो जाएगा। शाम म मलते ह।” दादा ने कहा
और दोन उस आदमी को लेकर नकल गए।
***
ऐ े े ो ी ै ी े
“भइया ऐसे नह । सामने पान क कान पर जो आदमी खड़ा है ना गंजा-सा। उसी से
बात करना होगा। केवल ‘बकरी’ दखा द जएगा। शु म 200 पया बोलेगा; मगर 50
पये म मान जाएगा।”
“बकरी!” जयवधन च क गया।
“हाँ। यहाँ यही कहना पड़ता है।” नरह र ने कहा।
दादा आगे बढ़ने को ही था तभी जयवधन ने उसे रोक दया।
“मेरी तबीयत खराब हो रही है, चलो हो टल।” जयवधन ने कहा।
“ले कन?” दादा आगे बढ़ना चाह रहा था।
“भाई बस। मेरी तबीयत ब त खराब हो रही है।” जयवधन को उबकाई आ रही थी।
“हाँ भइया। तबीयत ठ क नह लग रहा है तो लौट चलते ह। हमारा काम ख म भइया।
अब दे खए; अगर आप लोग से कुछ मदद हो पाएँ तो।” नरह र ने कहा।
***
पूरे पाँच घंटे लास करने के बाद ज म और जेहन दोन साथ दे ना बंद कर दे ते ह। तब तो
यह और भी मु कल हो जाता है जब आपको, दो त के बगैर, अकेले लास करनी पड़े
और उनक proxy भी मारनी पड़े। मेरा मन तो वैसे भी पढ़ाई से यादा मडु आडीह म था;
इस लए मुझे कुछ यादा ही बो रयत हो रही थी। लास ख म होते ही शखा से फोन पर
बात करने को कहकर म ज द से हो टल आ गया। कमरे म घुसने पर नजारा माकूल नह
लगा। जयवधन मेरे बेड पर चादर ओढ़े सोया आ था। एवो मन क दो ट कया उसके
सरहाने रखी ई थी। सरे ब तर पर दादा अपना सर पकड़े बैठा आ था।
“कैसी रही तुम लोग क जाँच-पड़ताल?” मने कमरे म घुसते ही पूछा।
“ताना मार रहे हो?” दादा ने बना सर उठाए कहा।
“ताना नह , proxy मार रहे ह। छोड़ो ई सब मुँहपेलई और बताओ या आ आज?”
मने चादर ख चते ए कहा।
“वहाँ का हाल दे खे, तब से मूड खराब है।” दादा ने कहा।
“और वो लड़क दखी थी?” मने पूछा।
ँ ी ी ै े ो ँ ोऔ ै
“हाँ। लाइन म खड़ी थी, जैसे जानवर को हाँक कर खड़ा कया गया हो और जानता है
उनको कहते या ह? बकरी।”
“पता है, बंगाली औरत को म माँ कहने का चलन है। गा माँ, काली माँ, मासी माँ,
द द माँ। और वही इंसान, उसी औरत को या कहता है, बकरी! छ ः! घ आती है
कभी-कभी अपने आप से भी। साला, इंसान भी कतना गर जाता है।” दादा ने धीमी
आवाज म कहा।
“अबे, उस कागज पर उसके घर का नंबर तो था? उसके घर फोन कर दो, घरवाले
आकर अपना काम करगे।” मुझे अचानक ही याद आया।
“ कए थे। उधर से जवाब आया क उनक कोई बेट नह है और फोन पटक दया।”
दादा ने कहा।
“मतलब घरवाल ने र ता तोड़ लया लगता है।” मने कहा।
“ह म। ऐसा ही लगता है।”
“भाई, जब घर वाल को ही फ नह है तो हम लोग य फटे म टाँग घुसाएँ? वैसे
भी पढ़ाई करने आए ह और वो तो हो नह रही है।” मने कहा।
“पढ़ाई नह हो रहा है तो ये ही हो जाए।” जयवधन ने उठते ए कहा।
“दे ख भाई, हम लोग यूँ बेकार के झंझट म फँसे।” मने कहा।
“अगर ये बेकार है, तो बेकार ही सही। यार कसी क लड़क है और वैसे भी, हम
अगर दे खे नह होते तो शायद छोड़ भी दे ते। पर अब नह , अब नह छोड़ सकते ह उसको
वहाँ पर।” जयवधन ने कहा।
“तो गए य थे। हम तो मना कए थे?” मने कहा।
“अरे, म त मारा गया था! दमाग खराब हो गया था! और कुछ सुनना चाहता है?”
जयवधन ने च लाते ए कहा।
जयवधन क आवाज इतनी तेज हो गई थी क बाहर के लोग को लगा क लड़ाई हो
गई है। ऊँची आवाज सुनकर नव जी और उनके साथ-साथ रोशन भी कमरे म आ गए।
“ या हो गया भाई? आवाज बाहर तक जा रही है।” नव जी ने कमरे म घुसते ए
कहा।
े ी ी ोई ँ ी ै औ ई ो ो
“दे खए ना नव जी, मडु आडीह म कोई लड़क फँसी है और भाई लोग उसको
छु ड़ाने क बात कर रहे ह। बताइए, ये हम लोग का काम है?” मने नव जी से कहा।
“ली जए! हम तो यही बताने आए थे। रोशन भाई के म म भी यही टॉ पक गम था।
बरला हो टल का कोई लड़का गया था वहाँ पर। वो रोशन भाई का दो त है। दे खकर
आया है लड़क को। नाम उसका र पा बता रहा था। लड़क क हालत ठ क नह है।
ज द ही उसको वहाँ से नकालना होगा। हम और दादा अभी एक NGO से बात करके ही
आ रहे ह।” नव जी ने बताया।
“NGO! NGO से या बात करना है?” रोशन ने च ँकते ए कहा; जैसे उसे यह
बात पसंद न आई हो।
“दे खए, अकेले उस लड़क को वहाँ से नकाल पाना तो नामुम कन है…” नव जी ने
अभी बात पूरी भी नह क थी क मने बीच म ही कहा-
“यही तो हम कह रहे ह। साल से वहाँ धंधा चल रहा है। कोई फ म नह है क वहाँ
से एक लड़क को नकाल लया जाएगा।” मने अपनी बात रखी।
“नह -नह ! फ म म भी वहाँ से नकल पाना असंभव है। महानद फ म म कमल
हसन क बेट को..”
नव जी अभी मुददा
् भटका ही रहे थे क जयवधन ने बीच म टोका-
“नव जी, गाड़ी पटरी से उतर के खेत म जा रहा है।”
“आँ? हाँ हाँ।” नव जी संभल गए और फर कहा- “मतलब अकेली लड़क को तो
वहाँ से नकाला नह जा सकता है। ‘ ब टया’ नाम का एक NGO है जो उस ए रया म
से स वकस के ब च को पढ़ाने का काम करता है। उस NGO और पु लस क सहायता
से वहाँ रेड क जा सकती है। वहाँ के लोग समझगे क पु लस क रेड है। जतनी भी
लड़ कयाँ बचाई जा सक, सबको NGO क बस म लाकर बठाना है। NGO वाले वहाँ पर
बोल-बम का बैनर लगी ई दो बस खड़ी रखगे। सारी लड़ कय को बना मौका गँवाए इस
बस म भरना है और उनके कुछ समझने से पहले ही नकल चलना है। इसी तरीके से उस
लड़क को भी नकाला जा सकता है।” नव जी ने कहा।
“तो NGO क मदद से य ? आप इतने लोग ह; खुद भी तो कर सकते ह।” रोशन ने
खीझते ए कहा।
“रोशन भाई, NGO वाले वहाँ आते-जाते रहते ह। उनके ब च को पढ़ाते है; इस लए
घुसना आसान हो जाएगा।” नव जी ने कहा।
े ी ी े ीऔ औ ो
“नह । मुझे यह बात ठ क नह लगी। सारी मेहनत कसी और क और नाम हो एक
NGO का!” रोशन ने चढ़ते ए कहा।
“भाई, हम नाम-वाम नह कमाना। यह NGO को ही मुबारक। हमारा मकसद उस
लड़क को बचाना है। बस।” दादा ने ढ़ता से कहा।
“मेरे भाई, वो उनलोग का ए रया है। या ज रत है इस पचड़े म पड़ने क ?” मने
कहा।
“उनलोग का मतलब?” रोशन ने अजीब लहजे म पूछा।
“उनलोग का मतलब मन स का।” दादा ने बात संभालते ए कहा- “ मनल
ए रया है, इसी लए तो पु लस को भी शा मल कर रहे ह। ये पूरा मामला इस NGO का
रहेगा और हमलोग बस volunteers रहगे। और इस तरह उस लड़क को बचा भी सकते
ह।”
“दे खए, म फर कहता ।ँ इसे आपलोग को खुद ही करना चा हए। अपनी मेहनत
का फल कसी NGO को य खाने द?” रोशन ने नव जी क ओर दे खते ए कहा।
“आपलोग! आपलोग का या मतलब। या आप साथ नह ह?” जयवधन ने पूछा।
“नह । मुझे तो आज ही कानपुर नकलना है।” रोशन ने कहा।
“ओ! खाए के माड़ ना, नहाए के तड़के! जब आप साथ ही नह ह तो ान या बाँट
रहे ह? हमलोग जैसे कर रहे ह, करने द जए। हम आपके ान क नह , साथ क ज रत
है।” जयवधन ने कहा।
रोशन क इ छा तो पहले ही नह थी और जयवधन के ताने ने उसे और भी कारण दे
दया। वह तमतमाकर उठा और कमरे से बाहर नकल गया। नव जी उसे रोकने के लए
आगे बढ़े ; मगर दादा ने उ ह हाथ ख चकर बैठा लया। थोड़ी दे र के चु पी के बाद नव जी
ने ही कहा- “इसको या हो गया? अभी तक तो ठ क था। कह रहा था क दादा और
उसके दो त बड़ा अ छा काम कर रहे ह। अचानक NGO का नाम सुन के उखड़ गया।”
“कौनो NGO वाला उसका खेत कोड़ दया होगा।” जयवधन ने अपने वभाव के
मुता बक अथ बात क । बात का अथ समझ कर सब हँस ही रहे थे क मने अपनी
शंका जा हर क -
“पु लस के पचड़े म य पड़ना भाई? या हम पु लस के बना…” मैने अभी बात पूरी
भी नह क थी क दादा बीच म बोल पड़ा-
े ॉ े ो ै
“अरे लॉ सेकड इयर म आ गया, इतना छोटा-सा बात नह समझ पा रहा है क इस
काम म लड़ कय को जबरद ती भी बस म डालना पड़ सकता है; जो क गलत होगा और
कल को हम पर ही वमेन ै फ कग का चाज लग जाएगा। इस लए पु लस को साथ लेना
ज री है। अब पु लस हमारी मदद तभी करेगी जब ये NGO वाले हमारे साथ ह गे।”
“ले कन?” मने कहा।
“बात बगाड़े तीन; अगर मगर ले कन। इसको समझाने क ज रत भी नह है दादा।
हम समझ गए ह क हो टल के सारे लड़क क टोली वहाँ जाकर रेड करेगी। पु लस और
NGO वाले वहाँ मौजूद रहगे। हम लोग रेड करगे और उनको लगेगा क पु लस ने रेड
कया है तो retaliation का चांस भी कम रहेगा। अ छा लान है।” अब तक चुप बैठे
जयवधन ने कहा।
“एक बात और। उस लड़क मतलब र पा को सफ दादा, जयवधन और बरलावाला
लड़का पहचानता है। जयवधन को वहाँ के माहौल से द कत है तो वो जा नह सकता।
बरलावाले लड़के ने कल जा के उससे बातचीत क है। उसका नाम भी पूछा है तो उस पर
भी शक जा सकता है; इस लए जब रेड होगी तो बाक लोग अपने-अपने प ु के साथ
रहगे; पर दादा आप अकेले रहगे और अकेले ही उस लड़क को जैसे भी हो, बस तक
लाएँगे। ठ क है?” नव जी ने दादा से सवाल कया।
“हाँ, ठ क है।” दादा ने कहा।
“अबे र क है। ब त र क है।” मने कहा।
“तभी तो तुमको नह ले जा रहे ह। तुम बैठ के अ तरीबाई फैजाबाद का ठु मरी
सुनो।” दादा ने ताना मारते ए कहा।
“और दादा अकेला नह जाएगा; हम भी रहगे वह ।” जयवधन ने कहा।
“तो हम बैठ के हो टल म या कटहल छ लगे? हम भी मरगे साथ म।” मने कहा।
***
ो ी े ँ े ँ े े े ो े
हर कोठरी के बाहर चार-पाँच के झुंड म लड़ कयाँ हर आने-जाने वाले को हसरत से
दे ख रही थ । आज बाजार म चहल-पहल यादा थी। र शेवाले, क- ाइवर और मज र
क म के लोग दन भर क कमाई के बाद इस बाजार म अ सर शाम को दख जाते ह,
मगर आज लड़क क भीड़ यादा थी। यह बात हमेशा चौक े रहनेवाले मंडी के मा लक
और दलाल के दमाग म आ सकती थी; मगर साथ ही हो रही चुनावी रैली ने उनका यान
इधर नह आने दया। कसी ने पूछा भी, “का गु ! एहर कहाँ?”
“अरे! नेता जी के रैली म आए थे; बस वह से…” जयवधन के जवाब ने उनक
आशंका का समाधान कर दया।
अलंकार, नव , नेपाली, वनीत और सी नयस व जू नयस सभी अपनी-अपनी
टु क ड़य म घूम रहे थे; मगर सबसे यादा मु कल हम तीन के साथ थी।
“वही है! ठ क बीच म, हरे सलवार-कुत म।” दादा ने कहा।
“हाँ, ले कन मु कल ये है क ये गली क आ खरी कोठरी है। उसके आगे का रा ता
बंद है। हमलोग बस एक ही तरफ भाग सकते ह। जधर से आए ह, उधर क ही तरफ।
और बस भी यहाँ से कम-से-कम 150 मीटर पर है।” जयवधन ने कहा।
“मतलब फँस गए तो लाश भी नह मलेगी।” दादा फुसफुसाया।
“दे खो, हमलोग तब तक उसको नह ला सकते ह, जब तक वो खुद हमारे साथ नह
आए। अब कोई ब ची तो है नह क उठा लगे।” जयवधन ने फुसफुसाते ए कहा।
“ऐसा करो, वो जो गंजा है ना… तुम उससे पैसे क बात करो। तब तक हम इस
लड़क से बात करते ह। और अगर बात कुछ बनता है तो धीरे-धीरे बस क तरफ बढ़ते ह।
इसी बीच म रेड का स नल हो जाए तो तुम भागना नह ; आराम से नकलना। वरना उस
साले गंजे को शक हो जाएगा। हम जैसे भी हो, बात से या जबद ती, इसको बस तक ले
जाएँगे।” दादा ने कहा।
जयवधन को बताकर दादा और म उस लड़क क तरफ बढे । तब तक जयवधन
दलाल के पास प ँच चुका था। उसने जाते ही दलाल से बेबाक से कहा-
“वो हरे सूट वाली चा हए।”
“कोठरी का 600 और होटल का 1000 पया लगेगा।” गंजे ने कहा।
“इतना तो नह है। 400 पया है। टाइम यादा नह लगे।” जयवधन उसे बात म
उलझा रहा था।
“नह । चार सौ म नह होगा। 600 से कम नह होगा।” गंजा दलाल अड़ा आ था।
ी ी औ ँ े ी
इसी बीच दादा और म उस लड़क तक प ँच गए। उस लड़क के हावभाव भी बाक
लड़ कय क तरह ही थे। दादा ने चलते-चलते ही उससे पूछा- “तोमार नाम क ?” लड़क
ने कोई जवाब नह दया। तब तक हम दोन कुछ आगे नकल गए थे। आगे बढ़ते ही एक
लड़क ने मुझपर गरने क ए टं ग क । म डर कर थोड़ी र हट गया। सारी लड़ कयाँ
हँसने लग । ऐसी जगह को लेकर हमारी सारी जानकारी फ मी ही थी। आते-जाते अपने
ही दो त से टकरा जाना भी अजीब था; ज ह कसी और लड़क को बचाकर NGO क
गाड़ी तक ले जाने का काम मला था। म वाकई असहज हो रहा था। मगर दादा कतई
असहज नह था। हम फर मुड़कर उसी लड़क के पास आए। “आ ी बाँगाली?” दादा ने
धीरे से पूछा। लड़क ने न जाने या समझा, बस अपने दाएँ हाथ क पाँच अंगु लयाँ और
बाएँ हाथ क एक अंगल ु ी खड़ी कर द । दादा समझ गया क वो पैसे क बात कर रही है।
दादा ने इशारे से उसे जयवधन क ओर दखाया।
“ या समझा रही है बे?” मने दादा से पूछा। “डरी ई है। दलाल को पैसा दे ने क बात
कर रही है। हम इसको बताए ह क जयवधन पैसे क बात कर रहा है।” दादा ने कान म
कहा।
“ओ।” मने कहा।
दादा ने उसे चलने का इशारा कया और वो धीरे-धीरे पीछे -पीछे चलने लगी।
उधर जयवधन उस गंजे दलाल को बात म उलझाए ए था; ले कन जैसे ही दलाल ने
लड़क को आगे बढ़ते दे खा, उसने जयवधन से पूछा- “ऊ दो लोग आप ही के साथ ह
या?”
“नाह, यहाँ हम गो तया-दयाद लेके थोड़े आए ह?” जयवधन ने पीछे दे खते ए झूठ
बोला।
“एक मनट यह खड़े र हएगा तो!” दलाल को शक हो गया था। वह दादा और मेरे
पीछे दौड़ा।
अभी वह गंजा हम तक प ँचता; इससे पहले NGO के वॉलं टयर ने रेड का सगनल
दे दया। हो टल के लड़क क टु कड़ी लड़ कय को बचाने म लग गई। दादा ने उस लड़क
को बस म ख च लया। लड़क डर गई थी, रो रही थी। बाक लड़ कयाँ भी इस थ त के
लए तैयार नह थ । कुछ तो हाथ छु ड़ाकर अंधेरी कोठ रय म गुम हो ग । कुछ ने झट
दरवाज क कुं डयाँ लगा द । कुछ को volunteers , जबरद ती गाड़ी म डालने म सफल
हो गए। अगर कसी तीसरे क नजर से दे खा जाए तो यह बचाव कम और हमला यादा
लग रहा था। मगर यह हमला उन लड़ कय को इस दलदल से नकालने के लए ही था।
चार ओर अफरा-तफरी मच गई थी। यह कसी बलवे जैसा माहौल ही था। मंडी म सब
ी ी े े ी ै े
अपनी-अपनी जान बचाकर भाग रहे थे। म भी जब बस म बैठ गया, तब मुझे जयवधन का
याल आया। मने दे खा, जयवधन अफरा-तफरी म फँसा, बस क ओर आने क को शश
कर रहा है।
“जयवधन भाग!”
जयवधन को आता दे खकर म च लाया; ले कन तबतक बस चल पड़ी और धूल क
गद म सब कुछ छप गया। जयवधन मेरी आँख से ओझल हो गया। एक पल के लए सब
क गया। लड़ कयाँ डर गई थ । चीख रही थ । रो रही थ । गा लयाँ दे रही थ । सबको बस
से पु लस टे शन लाया गया; जहाँ हमारे बयान भी लए गए। सारी कायवाई पूरी होने के
बाद हम NGO वाल को ध यवाद दे कर हो टल लौट आए।
***
हो टल प च
ँ ते-प ँचते बदन थक कर चूर हो गया था। सब अपने-अपने कमरे म जाकर
ब तर पर गरते ही सो गए। न द बस हमारे कमरे म ही नह थी।
“जयवधन कहाँ रह गया बे?” मने दादा से पूछा।
“आ जाएगा। बस म नह चढ़ पाया ना.. ऑटो से आ रहा होगा।” दादा क बात म
व ास कम और ढाढ़स यादा था।
“हम उसको एक मनट के लए दे खे; फर बस चल द और वो ओझल हो गया।” मने
कहा।
“आ जाएगा। बाप है वो सबका। कसी को मुहावरा सुनाने बैठ गया होगा। सी नयर
लोग भी गजब मेहनत कया। नह तो इतनी लड़ कय को नह बचा पाते।” दादा ने बात
बदलते ए कहा।
“साला! सोच के दे खो तो कतना हँसी आता है.. पूरा हो टल, रंडी मोह ला म।” मने
हँसते ए कहा।
“रोशनवा को छोड़ के। खैर, उसका या शकायत करना; तुम भी तो साले नह जाने
वाले थे।” दादा ने कहा।
अभी म इसका जवाब दे ता क एक चरप र चत आवाज आई-
“दरवाजा खोलो भोसड़ी वालो!” आवाज जयवधन क थी।
े े े ो ेऔ ो े ोई
“अबे! जयवधन आ गया!” मेरे खुश होने और दरवाजा खोलने म कोई समय नह
लगा।
“जब मेरा खेत म मारना था तो पहले अरहर तो बोवा लेते सालो! छोड़ के भाग आए
ना अकेले हमको?” जयवधन ने हँसते ए कहा।
“गलती ई भाई। तुमको टा क ही मु कल दया गया था। ले कन तुम बस तक प ँच
तो सकते थे?” दादा ने कहा।
“घंटा प ँच सकते थे! मामा प ँचने दे ता तब ना?” जयवधन हँस भी रहा था और
बोल भी रहा था।
“मतलब?” मने पूछा।
“मतलब ये क भाई लोग हमको भी दलाल समझ के धर लया था।” जयवधन ने
खाँसते ए कहा। अ सर यादा हँसते-हँसते उसे खाँसी आ जाती थी।
“ या?” मेरा मुँह खुला-का-खुला रह गया।
“हाँ भाई, ब त बोले क हम दलाल नह , टू डट ह। ले कन नह माना। पता है! या
बोलता है?” जयवधन ने हँसी रोकते ए कहा।
“ या?” दादा भी हँसते ए हलकान ए जा रहा था।
“बोलता है क तुम टु डट है तो हम े सडट ह।” जयवधन हँसते-हँसते फर खाँसने
लगा।
“आराम से भाई। फर तुम छू टे कैसे?” मने जयवधन को पानी दे ते ए कहा।
“अरे, जब थाना लाया ना, तो वह पर NGO वाला ‘चौबे’ बैठा था। बुजरौवाला। वो
भी हँसने लगा; ले कन वही छु ड़वाया।” जयवधन ने पानी पीते ए कहा।
“चल। सही-सलामत आ तो गया! एक बात क खुशी रहेगी क कसी क जदगी तो
बचाए।” मने कहा।
“मेरा घंटा बचाये!” जयवधन ने अँगठ
ू ा हलाते ए कहा।
“मतलब?” मने सवाल पूछा।
“बचा के तो लाए उसको; मगर जब पु लस उससे नाम पूछ , तो पता है या बोली?”
जयवधन ने कहा।
े
“ र पा।” मने कहा।
“नाह। जेबु सा।” जयवधन ने कहा।
“ या! या बोल रहे हो? उसका नाम तो र पा था ना?” मने दादा से पूछा।
“हाँ भाई। नव जी तो यही बताए थे।” दादा ने कहा।
“अबे, पु लस के डर से गलत नाम बता द होगी।” मने कहा।
“हाँ, हो सकता है। चलो, नक से तो नकली। अब NGO वाला कुछ भला कर दे तो
लड़क क जदगी बच जाए।” दादा ने कहा।
“पता नह ! NGO पर तो भरोसा नह होता; पर कर भी या सकते है?” जयवधन ने
कहा।
“भाई, हम लोग अ छ नीयत से गए थे। कसी क जदगी बचाने के लए। वो तो बची
ना। बाक आगे जसक जैसी क मत।” मने कहा।
“चलो, अब हम भी जा रहे ह सोने। वैसे भी कल सात बजे से ही मुरली सर का ए ा
लास है।” जयवधन ने कहा और दरवाजा खोलकर बाहर नकल गया।
***
मेरा नाम जोकर
ॉ ी ो े े े ी
“तब ज र दादा का कॉपी होगा।” मने आगे लखा। ले कन जब तक दादा अपनी
सफाई दे पाता, पांडे सर ने फर बोलना शु कर दया-
“I seriously think that short notes should not be asked in your papers .
वैसे भी, आप लोग तो पहले यह दे खते ह क आठ म से कौन-सा चार वे न आ रहा है
और एक तो शॉट नोट् स कैसे भी कर ही दगे। हो गया काम।” पांडे सर सचमुच काफ
नराश और नाराज थे।
“हम तो शॉट नोट् स कए ह।” मने कॉपी पर लख के बताया।
“मने भी।” जयवधन ने जवाब म लखा।
“मने भी।” अबक दादा ने भी लखा।
“सबक कॉ पयाँ लगभग वैसी ही ह। अब, सब कॉपी तो म पढ़ नह सकता। ये एक
कॉपी दे खए, म पढ़ के सुनाता ँ।” पांडे सर ने अपना च मा कान पर चढ़ाते ए कहा-
“अब कॉपी जो है, वो हद म लखी गई है; इस लए म हद म ही पढ़ता ँ। I hope
that all of you will understand . तो सवाल था क-
Write a short note on Amicus Curiae .
जवाब म जैसे-का-तैसा पढ़ रहा ँ-
ए मकस युरी का ज म ांस म आ था। वह मैडम युरी क चचेरी बहन थ । मैडम
युरी ने जब रे डयम क खोज क थी तब उनक चचेरी बहन ए मकस युरी, उनके साथ
ही थ । ए मकस युरी को गहरा आघात तब लगा, जब मैडम युरी ने रे डयम क खोज म
उनका नाम नह दया था। इस गहरे आघात के कारण ही ए मकस युरी सदमे म चली ग
और इस सदमे क अव था म ही इ ह ने इ र डयम क खोज क । जसके कारण उनका
नाम इ तहास म अमर हो गया।” इतना कह कर पांडे सर ऊपर दे खने लगे। पूरा लास
ठहाक से गूँज रहा था।
“एक सरे सवाल के जवाब म 15 केसेज लखे गए ह। पढ़ना तो म सारे केसेज
चाहता ँ; ले कन समय कम है; इस लए दो केस पढ़ रहा ँ। पहला केस लखा गया है –
बह र सह बनाम छह र सह। फै ट् स म लखा है क बह र सह और छह र सह दो
भाई थे। बह र सह के पास 72 बीघा जमीन थी और छह र सह के पास 76 बीघा।
यही चार बीघे का अंतर, झगड़े का कारण बना और बह र सह ने छह र सह क ह या
कर द । जेल से छू टने के बाद बह र सह ने वाद दायर कया।”
“ कसका कॉपी है बे?” मने हँसते ए जयवधन से पूछा।
ी ै ई े ै ो ी
“ जसका भी है भाई, फुल इंटरटे मट है। इसको मा स भी फुल मलना चा हए।”
जयवधन ने कहा।
“Don’t talk and please pay attention . पांडे सर ने हमसे कहा और आगे पढ़ने
लगे- “ सरा केस है-Tyre vs.Tube …. जी! आपने ब कुल ठ क सुना। पाट ज ह,
B.Tyre vs. C.Tube अब इस केस के फै ट पढ़ रहा ँ- ल टफ अथात वाद , टायर
कंपनी म काम करता था। उसका काम टायर म हवा भरने का था। एक दन अचानक
टायर म हवा भरते व ूब फट गया। जससे वाद क सुनने क श चली गई। वाद
ने अपनी टायर कंपनी से compensation क माँग क , जो कंपनी ने ठु करा द । इस पर
वाद ने वाद दायर कया।”
“आगे भी कई केसेज ह। जैसे-
हडल वसज पैडल
के. कुजुर वसज ए. जूर
भोकाल वसज यू नयन ऑफ इं डया।
मगर अब मुझम पढ़ने क ह मत नह है।” पांडे सर ने हाँफते ए फर कहा-
“आप लोग से एक र वे ट है क आपके पास और भी 9 स जे ट् स ह। सेमे टर म
एक Constitutional Law ही नह है। कृपया ये सारे केसेज, बाक स जे टस म भी बाँट
द। म अकेला इतना ेशर नह झेल सकता।” पांडे सर ने एक लंबी साँस ली और फर
कहा-
“मेरी आप लोग से हाथ जोड़कर वनती है क कृपया मुझे Constitutional Law
का ोफेसर ही रहने द। मनोवै ा नक न बनाएँ। Thanks for listening .” सर ने कहा।
“सर कॉपी कसक है?” पीछे से आवाज आई।
“आप म से ही कसी क है। Thanks again .” पांडे सर पहचान छु पा कर तेजी से
नकल गए।
“अबे! जबर आदमी होगा, जसका भी कॉपी है।” मने हँसी पर काबू पाते ए कहा।
“मेरे तो जान-म-जान आया, जब सर बोले क कॉपी हद म है। नह तो लगा क मेरा
ही कॉपी मत हो?” दादा ने भी अ था लन लेते ए कहा।
“चलो, कट न म चलो। चाय पया जाए। साला हँसते-हँसते शरीर टू ट गया है।”
जयवधन ने कहा।
ी ो ो े
“तीन चाय बोलो।” मने कहा।
“दो ही बोलो। हम सगरेट पएँगे।” दादा ने कहा। म चाय के लए ऑडर दे ने को उठा
ही था क तभी कसी ने आवाज द -
“सूरज!”
मने मुड़कर दे खा तो बे जी खड़े थे। एक हाथ म कताब और सरे हाथ म पपीता
लए ए बे जी।
“अरे, बे बाबा! आइए-आइए। चाय पएँगे?” मने पूछा।
“नह -नह । हमको IPC का कताब चा हए। तु हारे पास है या?” बे ने उदास
होकर कहा।
“हाँ, है तो। ले कन आप इतना उदास काहे ह?” मने पूछा
“हमको तीन नंबर दया है constitution म।” बे जी ने मुँह गरा कर कहा।
“ या! तीन नंबर! सौ म तीन!” जयवधन और परेशान था।
“हाँ। सौ म तीन। ए मकस युरी वाला वे न म या गलत लखे थे? हम पढ़े थे
दसव लास म। मेरी युरी क एक बहन थी। ये वही होगी ए मकस युरी। और गांव का
केस, या केस नह होता है? शहर का लोग, गाँव के लोग को बेवकूफ समझता है। बह र
सह के केस म तो हमारे पताजी गवाही भी दए थे। सर अभी बुला के बोले क तुमको
तीन नंबर दए ह; सुधरोगे नह तो नकाल दगे। सर को दो स जे ट नह दे ना चा हए था।
कल राज ोह पर मेरा ेजटे शन है, इसी लए IPC का कताब चा हए।” बे जी ने खी मन
से कहा।
राम ताप नारायण बे। छोटा नाम, छोटा बे! बे जी यु नव सट के लए नये नह
थे। तीन साल बी.ए और दो साल एम.ए करने के बाद लॉ फैक ट म आए थे। इसी लए
उ ह यु नव सट म ॉ टर से लेकर डॉ टर तक सब पहचानते थे। ॉ टर से अ छे संबंध
और उनके नेटवक कने शन क वजह से ही उ ह ‘अल- बेरा’ भी कहा जाता था।
यु नव सट क सभी मसाला खबर दे ने क वजह से उनका यह नाम पड़ा था। बे जी का
एक पैर लकवा त था; मगर यही उनका अ था। इसी का रोना रोकर उ ह ने कई दफा
अपना अटे डस भी बनवा लया था। उ ह अपने आपको लाचार बताकर काम कराना ब त
अ छे से आता था। उनक पहचान का आलम यह था क कई ोफेसर भी उ ह ‘ बे जी’
ही बुलाते थे। यु नव सट म कोई भी खबर हो, वो सबसे पहले बे जी के पास ही आती
थी। बे उसे तीन का तेईस कर लोग को सुनाते थे और खबर सच हो जाने पर बड़े ताव से
कहते थे – “दे ख लहला! हम प हले ही कहले रह ।” अल- बेरा कहने पर बे जी खुश
ी ो े े े ई ो ी ी े ै े
भी ब त होते थे। बे क खबर म स चाई ज र होती थी; ये बात अलग है क उसे
ामा टक बनाने के लए बे उसम ब त सारा झूठ मलाते थे।
बे जी क सम या थी, उनक अं ेजी। बे क जबान अं ेजी म तंग थी। वैसे तो, वो
हद भी कम ही खच करते थे। उनका काम भोजपुरी से ही चल जाता था। पर जहाँ
भोजपुरी से काम नह चल पाता था, वहाँ वह हद का सं क खोलते थे।
तो बे जी क सम या थी-अं ेजी। कसी पापी ने उ ह यह बता दया था क सु ीम
कोट म ै टस करने के लए अं ेजी ब त ज री है। इस लए बे जी अपना हद
से शन छोड़कर अं ेजी से शन म आ गए। और आज उनका ेजटे शन था-
“हाँ। तो बे जी। आज आपका ेजटे शन है?” पांडे सर ने दोनो हाथ को मलते ए
कहा।
“यस सर।” बे जी ने अं ेजी क शु आत क ।
“Ok then. Start .” सर ने कहा।
“सर, गुड मॉ नग। योर नेम इज राम ताप नारायण बे।”
“योर नह बे जी। माई… माई नेम इज…..” पांडे सर ने कहा।
“सॉरी सर।” बे जी को शश कर रहे थे-
“माई नेम इज राम ताप नारायण बे एंड योर टौ पक इज….” बे जी ने फर गलती
क।
“योर नह बे जी, माई। माई मतलब मेरा..समझे…? हाँ…। अब आगे बो लए।”
“माई नेम इज राम ताप नारायण बे। माई टॉ पक इज से शन 124 A एंड यू आर
सोडोमी।”
“ हाट? हाट नॉनसस! 124 A म से डशन है, सोडोमी नह । कसी ने बताया नह
आपको?” पांडे सर ने अपनी घड़ी दे खते ए कहा।
“सॉरी सर, माय नेम इज राम……” बे जी का रकॉड चालू था।
“ बे जी, आप ऐसा कर। आप अपना ेजटे शन हद म ही दे द जए।” पांडे सर तंग
आ चुके थे।
“ यूँ सर? हम इं लश से शन के टु डट ह और हम पूरा तैयारी भी इं लश म कए
ह।” बे जी सर क बात से आहत ए थे।
ै ी े ै ी े ी े े ो
“तैयारी कए ह? कस कताब से तैयारी कए ह बेजी आप?” पांडे सर ने दोन हाथ
पीछे करते ए कहा।
“पारस द वान।” बे के दमाग म पहला नाम यही आया।
“पारस द वान? पारस द वान कब से IPC लखने लगे?” पांडे सर ने कहा।
“एस. एन. म ा! एस. एन. म ा!” बे ने पीछे से आ रही फुसफुसाहट सुनते ए
कहा।
“एस. एन. म ा क कताब कस रंग क है बे जी?” पांडे सर आज छोड़ने के मूड
म नह थे।
“पीले रंग क ।” बे ने बड़े आ म व ास से कहा।
“जहाँ तक मुझे याद है, उनक कताब का बस सन् 1997 का ए डशन पीले रंग का
आया था। उसके बाद तो कोई आया नह ?” पांडे सर भी अब मजा ले रहे थे।
“मेरे पास वही ए डशन है सर।” बे ने छू टते ही कहा।
“ बे जी, आपने उस कताब म कह मेरा नाम दे खा है? मतलब आमुख म, तावना
म या और कह ?” पांडे सर ने ेजटे शन अभी ख म नह कया था।
बे जी एक मनट के, ऊपर-नीचे दे खा और फर बोले-
“आपका नाम या है सर?” पांडे सर स रह गए। लास म म ठहाक क द वाली
हो गई। पांडे सर ने अब ेजटे शन ख म कर दया।
***
चौथे सेमे टर के ए जाम शु होने वाले थे। अमूमन जब सभी लोग पढ़ाई म त होते ह,
तब कुछ लोग को अटडस का खयाल आता है। आपके नंबर 75% ह -न-ह , अटडस
75% ज र होना चा हए। इस लए शु आती दौर क सारी तैया रयाँ कर ली गई थ ।
मे डकल स ट फकेट बनवा लए गए थे। अटडस लक से भी बात हो गई थी; मगर फर
भी, अटडेस कम ही हो रही थी। सबसे कम अटडस अभय कुमार के लास म थी। सो,
उनके चबर के आगे माता का दरबार लगा।
“पता नह अटडस दगे क नह ?” दादा का अ थमा बढ़ रहा था।
“इतना ही डर लगता है तो लास कया करो!” जयवधन ने चढ़ते ए कहा।
े ो े े
“तुम अब चबर के बाहर ान मत दो।” दादा ने अ था लन का फ ख चते ए कहा।
“अटडस दे दगे भाई। मे डकल स ट फकेट अबक बार एकदम ओ र जनल है। चता
मत करो।” मने कहा।
“अरे, बे जी! आप भी लाइन म ह या?” जयवधन ने बे जी को आते दे खकर
कहा।
“हाँ भाई। थोड़ा-सा कम रह गया है, इसी लए सोचे क मल लेते ह।” बेजी ने छाता
बंद करते ए कहा।
“ले कन अभय सर तो आपसे खासे नाराज रहते ह। आपका अटडस बनाएँगे?” मने
शक जा हर कया।
“मेरा ही बनाएँगे। आपलोग अपना सो चए।” बे ने हम लाजवाब कर दया। अभी
हम लोग आपस म यह बात कर ही रहे थे क और कतने ोफेसर से मलना पड़ेगा, तभी
अभय सर क आवाज आई-
“ यूँ भाई? Why all of you being standing there ?”
“Good Morning Sir .” चबर म घुसते ही हमने एक साथ कहा।
“हाँ बो लए। आपलोग का ेजटे शन बाक है ना?” अभय सर ने पूछा।
“नो सर। ेजटे शन तो हम दे चुके ह।” जयवधन ने कहा।
“ फर?” अभय सर ने पूछा।
“सर अटडेस…” मने अभी इतना ही कहा था।
“दे खए, I don’t want to being rude to you . इससे पहले क म कुछ गलत क ँ,
आप लोग लीज चले जाएँ।” अभय सर ने दरवाजे क तरफ इशारा करते ए कहा।
“Sir, I was down with jaundice .” मने कहा।
“ या नाम है आपका?” अभय सर ने प सल का इशारा मेरी तरफ करते ए पूछा।
“सर… सूरज।” मने कहा।
“सूरज। पछली बार भी आपको जौ डस ही आ था।” उ ह ने अपना र ज टर
दे खते ए कहा।
“जी सर।”
औ े े ी े ी ँ े ी ै
“और फ ट सेमे टर म भी आपने यही बहाना कया था। जहाँ तक मेरी समझ है,
इंसान को दो दफे से यादा तो जौ डस हो ही नह सकता?” अभय सर ने प सल से हवा
म ‘दो’ लखते ए कहा।
“सर, अबक बार हपेटाई टस-बी क शकायत थी। यह एड मट भी थे। आप चाहे
तो मे डकल स ट फकेट दे ख सकते ह।” मने एक साँस म कहा।
“नह -नह , उसक कोई ज रत नह । मुझे आपक को शश पर पूरा भरोसा है। वैसे
भी, आप तो हपेटाई टस के मरीज ह; आपको तो आ क भी ज रत है। म आपका
व ास नह तोडू ँगा। लीज जाइए और ए जाम क तैयारी क जए।” अभय सर ने तंज म
कहा।
“थ स सर।” मुझे उनके तान क परवाह नह थी। मेरा काम हो गया था।
“आपको कौन-सा रोग आ था बे जी?” अभय सर बे जी क ओर मुड़े।
“सर, हम ब त गरीब ह और अपा हज भी ह। आपका लास हमेशा लंच के बाद
होता है। हम पैदल ही लंच करने हो टल जाते ह और पैदल ही वापस आते ह। हम गरीब
ह; इस लए र शा नह कर सकते और पैर म लकवा है; इस लए तेज नह चल सकते ह।
जब तक हम फैक ट प ँचते ह, तब तक आपका लास शु हो जाता है, और आप ही
कहते ह क जब म पढ़ाता र ँ तो कोई लास म न घुसे। इसी लए आपक बात रखते ए
हम लास म नह घुसते ह। इसी वजह से अटडस कम हो गया।” बे जी ने अभय सर को
मौका दए बना, अपनी बात रोते ए पूरी क ।
अभय सर कुछ दे र तक बे को दे खते रह गए। कुछ कह नह पाए। जब कहा तो बस
यह क-
“ठ क है। अबक बार आपको ेजट कर दे ता ँ; पर अगली बार I will make it
sure क मेरा लास लंच के ठ क बाद न हो।”
“सर, माई नेम इज जयवधन शमा..” जयवधन के इतना कहते ही अभय सर भड़क
गए-
“तुम दोनो! दफा हो जाओ यहाँ से। दन भर बाइक लेके faculty to lanka और
lanka to faculty करते रहते हो। या करते हो? सवारी ढूँ ढ़ते हो? बेशम , अगर सवारी
भी ढूँ ढ़ते तो दो पैसे के आदमी होते। दफा हो जाओ!” अभय सर फाइल बंद करते ए
बोले।
“चलो बे। ई तो गरम हो गया।” जयवधन ने धीरे से कान म कहा और हम सब बाहर
नकल गए। बाहर नकलते ही मने चुटक लेते ए कहा-
े ो े े
“दे खा! इसको कहते ह इ ेशन।”
“हाँ राजा! हन वही, जो पया मन भाए।” जयवधन ने धीरे से कहा।
“डाल लो अपना इ ेशन। अभी ीवा तव सर के पास चल रहे ह ना? दे खते ह
कसका इ ेशन काम करता है?” दादा ने खीझते ए कहा।
दरअसल, ीवा तव सर क दादा ने ब त मदद क थी। एक बार उनक माँ क
त बयत खराब होने पर दादा उ ह अपने बाइक पर बैठाकर हॉ पटल ले गया था और रात
भर उनके साथ का भी था। इस वजह से ीवा तव सर उसपर व ास करते थे।
“गुड मॉ नग सर।” हमने ीवा तव सर के चबर म घुसते ही एक साथ कहा। बे जी
ने एक कदम आगे बढ़ते ए उनके पैर छू लए।
“अरे, अनुराग! कहाँ थे तुम? पछले एक महीने से लास म नह दखे?” ीवा तव
सर ने अचरज से पूछा।
“सर, त बयत थोड़ी खराब हो गई थी।” दादा ने सर नीचे करते ए कहा।
“ओह! अभी तो ठ क है। बताओ कैसे आए हो?”
“सर, अटडस थोड़ा कम हो रहा है।” दादा ने धीरे से कहा।
“ओके. म दे ख लेता ँ। तुम एक मे डकल स ट फकेट दे दे ना। और बताओ?”
“सर, मेरा भी यही केस है। या म भी मे डकल स ट फकेट दे ँ ?” जयवधन अबक
मौका चूकना नह चाहता था।
“यस।” ीवा तव सर ने जयवधन क ओर दे खते ए मुझे दे खा।
“आपक या सम या है?” ीवा तव सर ने मुझसे कहा।
“Sir, I was down with jaundice .” मने फर वही अं ेजी दोहराई।
“तो?” ीवा तव सर ने छोटा-सा सवाल कया।
“सर, इसी लए अटडस कम हो गया।” म अब अं ेजी भूल गया था।
“कम हो गया? आपका अटडस कम हो गया? आप तो सारे लास का अटडस बनाते
ह। आपका अटडस कैसे कम हो गया?” ीवा तव सर ने ताना कसा।
“सर, मुझे हपेटाई टस-बी हो गया था। आप मे डकल स ट फकेट दे ख सकते ह।”
मने धीरे से कहा।
ी ी े ो े े ौ ी
“आप एक दन म तीन-तीन पहचान बदल सकते ह तो मे डकल स ट फकेट कौन-सी
बड़ी बात है। म आपका application consider नह कर सकता।” ीवा तव सर ने
कहा। अब म लाजवाब-सा खड़ा था। दादा और जयवधन बस मु कुरा रहे थे।
“अरे, बे जी! आप भी लाइन म ह या? काफ दन से आप भी लास म दखे
नह ।” ीवा तव सर अब बे जी से मुखा तब ए।
“नह सर! हम तो बस आशीवाद लेने और साद दे ने चले आए।” बे ने बड़े व ास
कहा।
“कैसा साद बे जी?” सर ने पूछा।
“ पछले महीने अपनी माँ को लेकर कालीघाट का दशन कराने गए थे। दरअसल,
काली माँ उनके सपने म आई थ और दशन करने के लए कही थ । अब हम तो एक पैर
के आदमी। जो काम दो दन म होना चा हए, उसम दस दन लग जाता है। बस, सीधे वह
से आ रहे ह। आपके लए साद भी लाए ह। ली जए सर।” बे जी ने दा हने हाथ से
साद, ीवा तव सर को दे ते ए कहा।
“अ छा अ छा! इसी कारण, इधर लास म नह दख रहे थे। कोई बात नह । काली
माँ क कृपा से सब अ छा होगा। जाइए, जाकर ए जाम क तैयारी क जए।” ीवा तव
सर ने साद माथे से लगाते ए उसे एक पु ड़या म रख दया। बे जी के साथ-साथ हम
लोग भी बाहर नकल आए।
“लो बेटा! हो गया हसाब बराबर। उधर हमारा नह बना, इधर तु हारा नह बना। दादा
ने कहा।
“हाँ। चलो एक जगह भी हो गया तो ए जाम तो दे पाएँगे; ले कन बे कैसे दोन जगह
बनवा लया?” मने पूछा।
“ बे, या गेम खेल रहे थे बे साद का?” जयवधन ने बे को धमकाते ए पूछा।
“कुछ नह , गेम या था?” ीवा तव सर के चबर म घुसते ही दे खे क उनके से फ म
काली जी का एक फोटो रखा आ है तो समझ गए क ीवा तव सर काली जी के भ
ह। बस कहानी बना दए।” बे जी ने फैक ट से बाहर नकलते ए कहा।
“और साद? साद कहाँ से आया बे? झूठ बोलता है!” दादा ने कहा।
“कौन-सा साद? कैसा साद? गाँव से चूड़ा खाते-खाते आए थे। जेब म पड़ा था,
वही नकाल के दे दए।” बे जी हम सकते म छोड़ आराम से र शा पकड़कर नकल
गए।
***
***
लगान
ऐ ो े
“ऐसा बोला?” मने कहा।
“नाह, हम बउचट बैठे है ना। यहाँ पर कहानी बनाने के लए! ठ क कहते ह बाबूजी
क भले संग रहोगे, खाओगे बीड़ा पान; बुरे संग रहोगे फूटे गा मुँह कान।” जयवधन उदास
भी था।
“ठ क कया है राजा! इ जत से बड़ा कुछ नह है। सब को बताना पड़ेगा।” दादा ने
जयवधन का प लेते ए कहा।
“घंटा! ई राजा-राजा मत बोला करो। लगता है, म तराम क हीरोइन पुकार रही है।
अभी, वैसे ही दमाग गरम है।” जयवधन परेशान था।
“और लड़क के पीछे बाइक घुमाने वाला बात कौन साला बोला था?” मने पूछा।
“अबे चुप करो यार! जहाँ लड़क का बात आया, वह साला पैर घुसाने लगेगा।
केट क सोचो; अब ठन गया है तो ठन गया है।” दादा ने कहा।
“वो तु हारा काम है, तुम सोचो।” मने पोट् स टार छ नते ए कहा।
“ कस दन रखा है मैच?” दादा ने पूछा।
“र ववार को।” जयवधन ने उठते ए कहा।
***
े ो ी ी े े ै
“अबे! हार गए ना, तो सी नयर सब जीना हराम कर दे गा। कल से ताना मार रहा है
क पूरी इं डया से ट म चुनी गई है। ऊपर से कोई गेम- लान भी नह है।” दादा ने सर पर
हाथ रखते ए कहा।
“तो गेम- लान या बनाना है? जाएँगे और खेलगे।” मने चाय क घूँट लेते ए कहा।
“हाँ। और हार के आ जाएँगे! साला 11 का 11 लेयर नमूना है। एक LBW को
LPW बोलता है। तुमको long on और long off म अंतर नह पता है। क जुमवा कौन
जाने म णपुरी म बोलता है क नेपाली म? सब साला खेप-खेला का लेयर है। आउट होने
के बाद कह मार-पीट मत कर ले। ऊपर से, क तान हमको बना दए हो।” दादा ब त
यादा च तत था।
“टशन मत करो, हम लोग ही जीत…अबे! शखा।” मने नीचे दे खते ए कहा।
“अब शखा से केट भी खेलवाओगे? केट म शखा कहाँ से आ गई?” दादा ने
खीझते ए कहा।
“नीचे दे ख। भोकाल चाट वाले के यहाँ चाट खा रही है।” मने कहा।
“जाओ राजा! हमारे करम म अकेले ही लान बनाना लखा है।” दादा ने हँसते ए
कहा।
“नह यार, वो लंका पर झगड़ेवाली घटना के बाद से, फैक ट के बाहर बात करना
नह चाहती; और हम भी avoid करते ह। मने कहा।
“वैसे भी, हो नह पाता ेमालाप। उधर दे खो, जयवधन बाबा भी आ रहे ह।” दादा ने
कहा। जयवधन अ सी घाट के साइ कल टड म साइ कल लगा रहा था। साइ कल कसी
से माँगी ई थी। जयवधन कसी से माँग कर अगर इतनी ज द अ सी घाट आया है तो
इसका सीधा मतलब है क सबकुछ ठ क नह है। अगर सबकुछ ठ क होता तो जयवधन
हमारे हो टल लौटने का इंतजार करता; मगर ऐसा नह था। वह भी अ सी घाट आ गया
था।
“तुम इधर कहाँ बे?” दादा ने आते ही जयवधन से पूछा।
“साला, उधर टशन हो गया है और तुमलोग यहाँ पया पया खेल रहे हो? चत मोरा
चंचल जया उदास, मन अटका है यार जी के पास! दे खो तो उधर चाट खाया जा रहा है
और इधर लार टपकाया जा रहा है।” जयवधन ने एक साँस म कहा।
“मुँहपेलई न करो और बताओ या टशन आ है?” मने कहा।
“दादा, पहले चाट खलाओ ना!” जयवधन ने कहा।
ो े े
“आज तो हम खला दगे; चल।” मने कहा।
“भोकाल भाई, तीन लेट चाट।” दादा ने प ँचते ही चाटवाले से कहा।
“और पैसा, पाँच लेट का का टएगा।” जयवधन ने शखा और उसक ड को भी
जोड़ लया था।
“अबे, तुम बताए नह या टशन आ है?” दादा ने पूछा।
“आशीष राय खेलने से मना कर दया है।” जयवधन ने कहा।
“ य ?” मने शखा को दे खते ए पूछा।
“बोलता है-ए जाम नजद क आ गया है। हम अपने पापा से वादा करके आए ह क
गो ड मेडल लए बना घर नह आएँगे। इस लए उसको पढ़ना है।” जयवधन ने चाट खाते
ए कहा।
“हम भी तो अपनी म मी से वादा कर के आए ह क तु हारे लए ब लए बना मुँह
नह दखाएँगे।” मने शखा से नजर हटाए बगैर कहा।
“तो यह फेरा लगवा लो। पं डत भी है, बाराती भी है।” जयवधन ने चुहल क ।
“ हन राजी नह है भाई।” मने शखा क ओर इशारा करते ए कहा। जो अब जा
रही थी।
“बकैती बंद करो और सोचो क अब या करगे?” दादा ने कहा।
“यहाँ डकैती हो गया दल पे और तुमको बकैती लग रहा है? मने चाट ख म करते ए
कहा।
“तुम लोग हँसोगे नह , तो एक solution है।” जयवधन ने कहा।
“बोलो राजा!” मने र तक जाती शखा को दे खते ए कहा; जसके पलटकर दे खने
क उ मीद मुझे अब भी थी।
“मूस! अपना mess boy . उसको ले लेते ह।” जयवधन ने कहा।
“मूस! अबे…. मूस या खेलेगा?” दादा ने आ य से कहा।
“और नव या खेलेगा? हमलोग को 11 का आँकड़ा पूरा करना है और वैसे भी
जब हम 10 कुछ नह उखाड़ पाएँगे तो यारहव से उ मीद बेमानी होगी।” जयवधन ने
कहा।
ो ै े े
“ या बोलता है सूरज?” दादा ने मुझसे पूछा।
“ कसी को रख लो यार! मेरा तो गृह थी उजड़ गया। लड़क चाट का पैसा दे के चली
गई।” मने उदास होकर कहा।
“मर जाओ साले लड़क के च कर म! एक वो लड़क है क एक बार दे खी तक नह
और एक ये दे वानंद ह, ऐसे ाटक लगाए ताक रहे थे क आज ही समा ध ले लगे!”
जयवधन ने गु साते ए कहा।
“अरे! हम सब सुन रहे थे भाई। ठ क है; मूस ही खेलेगा।” मने मुहर लगा द ।
***
र ववार से पहले द सय पेपर लान बनाए गए। फ ड से टग क गई। पेपर फाड़े गए।
ओपे नग करने के लए झगड़े ए। नपटाए गए। और आ खरकार र ववार भी आ गया।
मुरली सर, जो अ पायर और मैच रेफरी क दोहरी भू मका म थे, ने नयम समझाना शु
कया –
“दोन ट म यान से सुनने ह गे। मैच म कोई भी ले जग नह होने ह। जू नयस को
सी नयस क रे पे ट करने ह गे। मैच 20-20 ओवर के होने ह। एक लेयर, चार ओवर
करने ह। रज ट के बाद सी नयस, जू नयस को ेकफा ट ऑफर करने ह। कोई सवाल है,
तो अभी पूछने ह गे।”
“No Sir. Shall we go for toss ?” दादा ने कहा।
“हाँ, दोन कै टन आगे आने ह गे।” मुरली सर ने आगे बढ़ते ए कहा।
“दादा, ये स का ले जाओ। मेरा लक है। हमेशा टे ल आता है, टे ल ही बोलना।”
जयवधन ने कहा।
“ला इधर दे ।” दादा ने स का लया और toss के लए चल दया।
“दादा को स का दे दए ह। भोले बाबा toss ज र जतवाएँगे।” जयवधन ने कहा।
“उधर से कौन कै टन है बे?” मने पूछा।
“ माट नशांत।” जयवधन ने कहा।
“ माट नशांत! उसका नाम यही है या?” जयवधन ने पूछा।
े ै े ी े े
“पता नह ? उसके बैचमेट्स यही पुकारते ह।” मने कहा।
“नाम जानना ज री है। उसके बना मजा नह आएगा।” वनीत ने कहा।
“ले कन ले जग मना है।” मने वनीत का मतलब समझते ए कहा।
“अरे, मना तो और भी ब त कुछ है! मना क वजह से मजा पे फक नह पड़ना
चा हए।” वनीत ने आँख दबाते ए कहा।
“दादा आ रहा है; लगता है toss हो गया। या आ राजा?” मने पूछा।
“Toss जीत गए। फ डंग लए ह।” दादा ने बॉल उछालते ए कहा।
“जा! अरे… काबुल का गदहा! Toss जीत के कोई फ डंग लेता है या?” जयवधन
ने गु से से कहा।
“ पच पे dew है। पहले बॉ लग का फायदा मलेगा।” दादा ने कारण बताया।
“मेरा घंटा मलेगा? ई साला बड़ला हो टल का मैदान है, कोई मोहाली टे डयम थोड़े
है?” जयवधन सचमुच हताश हो गया था।
“ऐसी ही एक गलती ‘अ वल नंबर’ फ म म आ द य पंचोली ने क थी, जसके
कारण…।” नव जी कह ही रहे थे क जयवधन बीच म बोल पड़ा-
“हाँ, नव जी, पता है आपका ह ी ब त पुराना है। आप ए.के. हंगल का बचपन भी
दे खे ह। च लए… गरई पकड़ा जाए। फ डंग कया जाए।” जयवधन ने उठते ए कहा।
े ो ो े ो ो ी ोई ॉ ै
“अबे! उसका छोड़ो। ये सोचो क अभी या कर? कोई बॉलर नह चल रहा है।” दादा
ने उससे पानी क बोतल लेते ए कहा।
“मेरा लेग पन भी ाइ क जए। एकदम अ ल का दर जैसा फकते है।” क- ेक
म नव जी ने कहा।
“अ छा! मतलब बॉल से यादा खुद नाचते ह।” जयवधन तपाक से बोला।
“सब तो पटा ही रहा है। जाइए नव जी, आप ही बॉल डा लए।” दादा ने बॉल उनक
तरफ उछालते ए कहा।
“हाँ, दे दो। बीमार ब छया बाभन को दान! ले कन दे खएगा, यादा उछ लए-कू दएगा
मत! नह तो ह ी सरक जाएगा और इस उमर का ह ी…. आप जानते ही ह।” जयवधन
ने चुहल क ।
जयवधन कहता था क अ सर जस स के को हम खोटा समझते ह, वो अपने दन
क अश फयाँ होती ह। आज नव जी का दन था और वाकई वो अपने दन म अशफ
ही थे। मैच के बाद नव जी का बॉ लग फगर कुछ यूँ था-
3 ओवर – 1 मेडेन – 4 रन – 4 वकेट.
नव जी क गुगली, उ ट , सीधी, सरा, तीसरा, लपर, लपर, म बॉल, ह
बॉल, बैक ऑफ द हड बॉल- कसी का कोई भी जवाब सी नयस के पास नह था। पूरी
ट म 20 ओवर म 123 रन ही बना पाई। मुरली सर ने 15 मनट का इंटरवल कया।
सबलोग, यहाँ तक क सी नयस भी, नव जी क बॉ लग क तारीफ कर रहे थे। नव जी
खुद भी अपने इस दशन से ब त खुश थे।
“दे खे मेरा लेग पन! राइट पे गर के, एकदम ले ट म भाग रहा था।” नव जी ने
बैठते ए कहा।
“हाँ नव जी। ब कुल वैसे ही जैसे आपका र शा ले ट क तरफ भागा था और
आप हमलोग को बैठा के नाली म गर गए थे।” मने राज खोला।
“अरे नह ! उस दन पहला च का, केला के छलका पे पड़ गया था।” नव जी ने
लाज बचाई।
“नव जी, आप र शा भी चला लेते है?” वनीत ने पूछा।
“ले! तुमको ये ही नह पता है? नव जी या नह कर सकते है! दो बार मर भी चुके
ह।” जयवधन कोई भी मौका खोना नह चाहता था।
े ो ोई ँ े ई े ओओ े ौ े े े े
“अबे! छोड़ो ई सब मुँहपेलई। ये बताओ ओपे नग कौन करेगा? 6 के एवरेज से रन
बनाना है।” दादा ने ज री बात बताई।
“हम। य क हमलोग को फा ट टाट चा हए।” मने कहा।
“हम। वकेट नह गरने दगे।” गुंजन ने दावेदारी पेश क ।
“बोलना या है? हम ओपे नग करगे। तुम लोग, घंटा हमको बॉ लग भी नह दए
हो।” जयवधन बै टग ै टस करते ए बोला।
“भइया, हम उतर जा ?” मूस भी कसी से कम नह था।
“बॉ लग म तो कुछ खास नह कर पाए; बै टग म ज र करगे।” नभय ने कहा।
“वैसे भी, मेरे आउट होने से बै टग पे कोई असर नह पड़ेगा; इसी लए हम उतर जाते
ह।” नव जी का बयान था।
“हम बम पलाट शॉट मारते ह।” अ मत ने कहा।
“झा पो तेलम क जय।” क जुम ताशो को एक ही लाइन हद आती थी।
“कोई नह जाएगा! हम जाएँगे और साथ म वनीत जाएगा।” दादा ने अं तम फैसला
लया।
“साला, कै टन बन गया है तो सी रयसली ले लया है।” अगले मैच म हम जब कै टन
बनगे ना, तो 20 ओवर बॉ लग भी करगे और 20 ओवर बै टग भी हम ही करगे मूस के
साथ।” जयवधन ने बैट छोड़ते ए कहा।
ओपे नग के लए उतरना, वाकई म एक मु कल काम था। यारह-के- यारह लेयस
ही पहले बै टग करना चाह रहे थे और कसी को मना कर पाना ब त मु कल था। आ खर
सारे दो त ही थे। कस को उतरना चा हए अभी यह बहस चल ही रही थी क बे जी आ
गए और आते ही, उ ह ने हमारी सम या हल कर द ।
“ नशांत सर आ गए ह और ग स हो टल म बात प ँच गया है क सी नयस मार-मार
के जू नयस का धुरमुस छु ड़ा दए ह। मीना ी मैम जा के हमारी बैचमेट्स को बोली ह क
सारे जू नयस न कारे ह।” बे जी ने आते ही े कग यूज द ।
“साला! इ जत का बात हो गया है अब तो!” दादा और वनीत ही जाओ बै टग करने
के लए और बे को थूरो! साला, कभी अ छा खबर ले के नह आता है।” मने वनीत को
बैट दे ते ए कहा।
ो े ो औ े ो े ी े े े
“लो, मेरा मोबाइल और वेटर पकड़ो। आते ह जीत के।” दादा ने व ास से कहा
और मैदान क ओर बढ़ गया। कुछ ही दे र म दादा और वनीत दोन ज पर थे और
सँभल कर खेल रहे थे।
“दे खो तो! माट नशांत च मा पहन के बॉ लग कर रहा है।” मने कहा।
“तुम उसके च मा के पीछे काहे पड़े हो बे?” जयवधन ने पूछा।
“ यान से दे खो। ले डज गॉग स है या तो इसको पता नह है या फर टाइल मारने के
लए गल ड से माँगा है।” मने कहा।
“ जयो मेरे ऑ सीजन! इतना यान पढ़ाई पर दे दे ते तो जेठमलानी बन जाते।”
जयवधन ने कहा।
“ फलहाल तो रन बन रहा है। दादा और वनीत ठ क बै टग कर रहे ह। अबे! माट
नशांत क गल ड दे खने म कैसी है?” मने कहा।
“हमको नह मालूम है और ड टब मत करो! दे ख नह रहे हो, हम कोर लख रहे है।
नव जी से पूछ लो; वो सब जानते है।” जयवधन ने कहा।
“नव जी, नशांत सर क गल ड दे खने म कैसी ह?” मने अब नव जी से पूछा।
“वो हमारी सी नयर ह। उनके बारे म ऐसी बात नह करनी चा हए।” नव जी संत
आदमी थे।
“ली जए! तो हम कौन-सा उनका बॉडी फगर पूछ दए? अगर फैक ट म दख जाएँ
कभी तो पहचानगे तभी न रे पे ट दगे!” मने वा जब कारण बताया।
“ठ क तो बोल रहा है। अंजाने म कुछ हरकत हो गया तो गलत है ना…”
-मार दया चौका वनीतवा…!
- जयो बाबू साहब…!
-मारो घंटा चला के…!
-घायल कर दो। जयवधन लगभग उछल गया था। उधर वनीत ने चौका मारा था और
इधर नव जी स दय बोध पर छ का मार रहे थे।
“अब रंग तो उनका ऐसा है क बस म खन म एक चुटक स र मला दया गया
हो।” नव जी ने बताना शु कया।
ी ी े ै ी े े े
“रीमा भारती का उप यास खूब पढ़ते है नव जी। वह से ये लाइन उड़ाए ह।” मने
हँसते ए कहा।
“रीमा भारती से याद आया। अरे, ए जाम नजद क आ गया है! रीमा भारती का
उप यास जमा करो। रात भर जगने के लए ज री है। साला पछला उप यास म जो
ताला-चाभी खोजी थी ना क सात दन तक खुमार म थे!” जयवधन ने रन लखते ए
कहा।
“ए साला! तुमलोग बात कहाँ-से-कहाँ घुमा दे ता है। हाँ नव जी, तो वो खूब गोरी ह;
ले कन फैक ट म तो 4 दजन गोरी लड़क ह गी? पहचानगे कैसे?” मने कहा।
“साला लड़क न हो गई, केला हो गई। दजन म गन रहा है। उधर दे खो, माट नशांत,
दादा को बाउंसर मार रहा है और अ पायर नो-बॉल भी नह दया?” जयवधन परेशान हो
रहा था।
“हाँ, नव जी। तो शवानी जी के बारे म और कुछ डटे ल दे रहे थे आप?” मने
कहानी फर से शु क ।
“अरे, ई साला को बता ही द जए, नह तो यह गाज फक के मर जाएगा।” जयवधन
ने गु साते ए कहा।
“ शवानी मैम, कॉनवट से पढ़ ह और नशांत सर बता रहे थे क यहाँ से LLB करने
के बाद वो लंडन से LLM करगी।” नव जी ने चचा जारी रखी।
“हाँ, लंडन से ही तो करगी… ले! अब राजेश भइया या बोल रहे ह दादा को?”
जयवधन मैदान के बाहर और मैदान के भीतर, समान प से यान दए ए था।
“ ले जग चल रहा है। दादा हडल कर लेगा। रन कतना आ?” मने पूछा।
“6 ओवर म 41 रन आ है। अभी भी 84 गद पर 83 रन बनाना है। जीतने के लए
इसी रेट से खेलना होगा।” जयवधन ने कहा।
“अरे…. या….र! वनीत आउट हो गया। आउट हो गया वनीतवा।” जयवधन व ास
नह कर पा रहा था। वनीत, कृ नन सर क लाइट दे खकर ललचा गया और आगे नकल
कर मारने के च कर म टं प हो गया था।
“जयवधन तुम जाओ और दादा से पूछ लेना, अगर थक गया हो तो रे ट कर लेगा;
हम मुरली सर से बात कर लगे।” मने जयवधन को बैट दे ते ए कहा। जयवधन ने बना
समय लए पैड बाँधा और मैदान म उतर गया। तब तक वनीत भी आ चुका था।
“दादा दौड़ नह पा रहा है।” वनीत ने ल स उतारते ए कहा।
ै ो े े ो े ो ँओ े ी
“बैठो बाबू साहब। ब ढ़या खेले। आउट नह होते तो आज 20वाँ ओवर खेल कर ही
लौटते।” मने कहा।
“20वाँ? अरे, 16व ओवर म गेम खतम कर दे ते।” वनीत ने पैड खोलते ए कहा।
“जयवधन भी ब ढ़या खेलता है। दे खो, कैसा करता है आज।” मने रन लखते ए
कहा।
“दादा दौड़ नह पा रहा है। रन रेट कम हो जाएगा; सगल लेते रहना होगा।” अब तक
चुप बैठे बे जी ने कहा। बे जी क आवाज सुनते ही म टशन भूल गया। अब मुझे कुछ
मसाला यूज क तलब लगी।
“छो ड़ए ना बे जी। दादा संभाल लेगा। आप कुछ नया समाचार द जए।” मने बे
जी के पास बैठते ए कहा।
“ग स हो टल से सीडी ज त आ है।” बे जी तुरंत ही मसालेदार खबर द ।
“भोसड़ी के! बोलोगे झूठ? ॉ टर वाला तवारी आज ही मला था। वो तो कुछ नह
बोला ऐसा।” वनीत ने बे को हड़काया।
“अरे, पूरा बात तो सुनो। सीडी मला है गा-चालीसा, साई-चालीसा और स य
नारायण त कथा का।” बे जी ने तुरंत सुर बदल लया। इधर खेल भी बदल रहा था।
“ले बेटा! जयवधन रन-आउट हो गया और मुरली सर से उलझ भी रहा है। कमलेश
को भेजो।” मने बे क बात से यान हटाते ए कहा। कमलेश जो पैड- ल स पहन के
तैयार ही बैठा था, मैदान म उतर गया। जयवधन बैट पटकता आ रहा था।
“ या हो गया गु ? मुरली सर से या बहस कर रहे थे?” वनीत ने आते ए
जयवधन से पूछा।
“अरे यार! हम आउट नह थे। प ँच गए थे; ले कन सी नयस के ेशर म आउट दे
दए।” जयवधन ने गु साते ए कहा।
“यहाँ से दे खने पर तुम आउट थे।” वनीत ने कहा।
“नह भाई! प का प च ँ गए थे। हम उनका ेजटे शन नह दए ह; इस लए आउट कर
दए।” जयवधन ने बैठते ए कहा।
“भक साला! कभी कहता है सी नयस के ेशर म, कभी कहता है ेजटे शन के च कर
म। तुम आउट था।” मने कहा। इधर जयवधन दलील दे ता रहा और उधर खेल चलता रहा।
औ े ौ ओ
अब तक दादा और कमलेश क अ छ पाटनर शप क बदौलत 9 ओवर म 63 रन
बन चुके थे। अभी 66 बॉल पर 60 रन बनाने थे। दादा और कमलेश सावधानी से खेल रहे
थे और यादातर रन एक और दो क श ल म ही आ रहे थे। चौका-छ का न लगने से
खेल थोड़ा बो झल हो रहा था। ऐसे माहौल म मुझे बे जी क याद फर से आई। मने उ ह
कुछ और समाचार सुनाने के लए कहा। कहते ही, उनका अपना ‘अल- बेरा’ चैनल चालू
हो गया। जो कुछ मु य समाचार उ ह ने सुनाए, वो ये थे-
– अब क बार criminology का पेपर आउट होगा।
– IT हो टल से खं चया भर के कंडोम नकला है।
– फलाना सर को आज तक कोई नहाते नह दे खा है।
– रोशन चौधरी रात म गैरेज म काम करता है।
– अ मताभ ब चन का बाल उड़ गया है। वग लगाते ह।
बे जी अभी और समाचार सुनाते, इससे पहले मैच काफ रोमांचक मोड़ पर आ गया
था और उनके समाचार म अब कसी क च नह रह गई थी। दादा को दौड़ने म परेशानी
हो रही थी; इस लए अगले 8 ओवर म केवल 32 रन ही आए थे। अब हम जीतने के लए
3 ओवर म 28 रन चा हए थे।
“रंजन भइया का ला ट ओवर है। इसम चांस लेना चा हए।” मने कहा।
“हाँ, अब मारना पड़ेगा। आए आम, चाहे जाए लबेदा।” जयवधन ने कहा।
“कमलेश ठ क काम कर रहा है। सगल ले के दादा को ाईक दे रहा है।” नव जी ने
कहा।
“जीत जाएँगे भाई।” मने कहा।
“मारा है घुमा के दादा…! लहो… लहो… लहो… लहो… चौका!” जयवधन का
अपना ही अंदाज था।
“या राजा क …! फर दया बम पलाट शॉट.. चौका…!” म भी च लाया।
“ कोर कतना आ?” नव जी ने पूछा।
“अब 15 बॉल म 19 रन चा हए।” वनीत ने कहा।
“छ का…! अरे… यार कैच हो गया। Shit यार! दादा आउट हो गया। इस समय दादा
को आउट नह होना चा हए था।” मने सर पकड़ते ए कहा।
ँ ो े ी े
“हाँ, अब तो खेल ख म करना था।” वनीत ने कहा।
“नव जी को भेजो।” जयवधन ने कहा।
“अब कमलेश को सब संभालना पड़ेगा।” दादा ने आते ही कहा। मगर न दादा के
आने म दे र ई और न नव जी के आने म।
“जा साला! नव जी तो पहली बॉल पर छतरा गए। दोन पैर के बीच से बॉल नकल
गया। बो ड हो गए। इनको कौन भेजा था बे? बुड़बक सयार, खरबूजा के मा लक! बेकार
म ेशर कर दए।” जयवधन ने कहा।
“हम जाते ह।” मने कहा।
“हाँ जाओ और दे खना, है क मत होने दे ना। नह तो रंजन भइया जीने नह दगे।”
दादा ने मुझसे कहा।
“आइए नव जी, बै ठए। आप तो नाहक क कए। यह से ह थयार डाल दे ते।”
जयवधन ने लौटकर आते नव जी से कहा।
इधर म ज पर प ँच चुका था। मने ऑफ टं प का गाड लया और रंजन भइया क
बॉल का इंतजार करने लगा। मुझे उ मीद थी क रंजन भइया यॉकर ही डालगे। मगर मेरी
उ मीद के उलट, उ ह ने बॉल, शॉट पच फक और मेरी क मत के उलट, बॉल गर कर
उठ ही नह । जमीन से लगती ई, मेरे म डल टं प को जा लगी। म कुछ दे र पच को
दे खता रह गया। मुरली सर ने अपनी तजनी उठा द थी।
“अरे यार! सूरज भी बो ड! भोसड़ी के। करने या गया था?” दादा ने कहा।
“रंजन भइया को दे खो! लग रहा है बारात म डांस कर रहे ह।” वनीत ने कहा।
“करगे ही; है क लए ह।” दादा ने कहा।
“तुम साले खाली रन लखने लायक हो। एक बॉल नह खेल सके। अब घंटा जीतगे?”
जयवधन ने मुझसे आते ही कहा।
“ कोर या है?” मने पूछा।
“जो तुम छोड़ के गए थे, वही है कोर। खतम हो गया खेल।”
“ कोर या पूछ रहे हो? 2 ओवर म 19 रन चा हए। कमलेश पर इतना ेशर दे
दए।” दादा ने कहा। खेल अचानक ही हमारे हाथे से नकल गया था। जो जीत दादा और
े े े ी ी ी ो े ी ी े ी
कमलेश के रहते इतनी आसान दख रही थी, वो केवल पछली तीन गद म हमसे र जाती
दखाई दे ने लगी। पछली तीन गद ने हम हताश कर दया था।
“एक काम कर। दो-चार लड़क को बाहर से बुलाते ह; आकर खेल भाँड़ दे गा।
इ जत रह जाएगा।” वनीत ने मश वरा दया।
“नह यार! अब जो होगा सो मैदान म ही होगा।” मने कहा।
“अभी उतरा कौन है?” जयवधन ने पूछा।
“ नभय गया है। दे खो, या करता है?” दादा ने जवाब दया
“19वाँ ओवर संजीव भइया करगे और ला ट ज र माट नशांत करेगा।” मने कहा।
मैच सचमुच एक रोमांचक मोड़ पर प ँच गया था। ऐसे मोड़ पर जहाँ सी नयर होना
या जू नयर होना बेमानी हो गया था। जहाँ हमारे ोफेसर क उप थ त बेमानी हो गई थी।
मायने रखते थे तो बस, आने वाले दो ओवर और उनपर बनने या न बन सकने वाले 19
रन। जीत का पलड़ा कसी तरफ भी झुक सकता था। इसी झुकाव, तनाव और दबाव के
बीच संजीव सर ने अपना पहली बॉल नभय को डाली –
“छ का..! र र र… पहले बॉल पर ठोक दया…. र र र र।”
“ जओ नभय! एक और एक और चा हए।” वनीत च लाया।
“एक रन लया। ठ क है।” अब कमलेश खेलेगा।
“ फर दया उठा के… गया… गया… गया… गया…. बाहर। बैट उठा के मारा ट कर ये
लो श कर!” जयवधन क कहावत समझ के परे थ ।
“अब 9 बॉल पर 6 रन चा हए। बन जाएगा आराम से।” मने कहा।
“अरे!… दया है घुमा के….! फर छ का…. मार दया कमलेश।”
र र र र।
खेल खतम।
र र र ंर।
खेल ख म हो गया था। जस 19 रन ने हम सब क धड़कन रोक रखी थ , वह सफ
चार बॉल म बन गए थे। जयवधन वकेट उखाड़ने को भागा। दादा मुरली सर से मलने
दौड़ा और म शखा को फोन लगाकर जीत क खबर दे ने लगा। बाक लोग सी नयस से
े े ी े ेऔ ी े ी े े ी
मल रहे थे, चाय पी रहे थे और मुरली सर के अ पाय रग क तारीफ कर रहे थे। मुरली
सर, हमेशा क तरह सी नयस को क रयर क दशा बता रहे थे और हम पढ़ने क सलाह दे
रहे थे। उ ह से बात करने और ेकफा ट करने के बाद हमारी और सी नयस क ट म
हो टल लौट आई।
“अब जा के लग रहा है क इंसान ह।” दादा ने ब तर पर गरते ए कहा।
“हाँ बे, जीतना अपने-आप म एक नशा है। नह या?” मने कहा।
“हाँ भाई, ले कन तुम तो हराने का पूरा इंतजाम कर दया था। साला अंडा पर आउट
हो गया। उस ओवर म तीन वकेट। वह से सारा मामला गड़बड़ा गया था।” दादा ने आँख
पर चादर डालते ए कहा।
“अबे, बॉल समझ म ही नह आया था; ले कन हम ही मामला ठ क भी कए थे। मूस
से फोन नह करवाए रहते ना, तो कोर कुछ और ही होता।” मने कहा।
“फोन? अबे मेरा मोबाइल कहाँ है?” दादा ने हड़बड़ा कर चादर फकते ए पूछा।
“अरे यार!” म भी घबरा गया। जीत क खुशी म, मुझे मोबाइल का होश ही नह रहा।
दादा ने बै टग करने जाते व मुझे अपना वेटर और मोबाइल, दोन रखने को दया था।
“लाया था क नह ?” दादा ने पूछा।
“हाँ भाई! मैदान से तो लाए थे। हो टल म घुसे फर वेटर और मोबाइल रख के पानी
पीने लगे। उसके बाद यान नह है।” मने पट क पॉकेट टटोलते ए कहा।
“ज द से फोन कर।” दादा ने मुझसे कहा; ले कन मेरा मोबाइल छ नकर खुद ही
डायल करने लगा।
“ या कह रहा है?” मने परेशान होकर पूछा।
“The number you are trying to reach is switched off .” दादा ने फोन काटते
ए कहा।
“ले बेटा। लगता है कोई उड़ा दया।” मने धीमी आवाज म कहा।
“ह म।” दादा ने कहा।
“या हो सकता है बैटरी भी ख म हो गया हो?” मने कुछ सोचते ए कहा।
“हो सकता है; ले कन एक बात तो तय है क अब फोन मलने से रहा। चल, पु लस
टे शन म रपोट कर दे ते ह।” दादा ने म म घुसते ए कहा।
े ो ो ँ े ओ े ो ै े
“अबे छोड़ो ना। कहाँ पु लस के च कर म जाओगे? फोन मलना है नह ।” मने कहा।
“कुछ मस यूज हो सकता है भाई।” दादा ने शंका जताई।
“घंटा मस यूज होगा? मेरा ID card गुम आ; कुछ आ? छोड़ो।” मने दादा से
कहा।
“छोड़ दे ते भाई, अगर मोबाइल मेरे नाम से होता; ले कन मोबाइल माँ के नाम से था।
इसी लए रपोट लखवा ही दे ते ह।” दादा ने बाइक टाट क और नकल गया।
***
कोहराम
व -08.35 सुबह
“नव जी कहाँ है? काफ दन से दखे नह !” मने श करते ए दादा से पूछा।
“आज सबेरे ही तो दखे थे; आज पटना जा रहे ह। बता रहे थे उनके पटना वाले मौसा
जी क त बयत ठ क नह है।” दादा ने हँसते ए जवाब दया।
“वो और उनके मौसा जी! कोई एक ऐसा ड ट बताओ जहाँ उनके मौसा जी नह
ह ।” मने भी हँसते ए कहा।
“चलो, जरा मल लया जाय। कुछ ान लया जाय।” मने उठते ए कहा।
***
व -08.55 सुबह
ी े े े ो े ो े ओ
नव जी के कमरे म जाने पर पता चला क वो मेस म ह। हम दोन जब मेस क ओर
बढ़े तो रा ते म जयवधन भी मल गया। मेस म घुसते ही नव जी खाने क टे बल पर बैठे
नजर आए। जयवधन उ ह दे खकर मेस महाराज क ओर बढ़ गया और खाने का मुआयना
कर आया।
“आज खाना म या है महाराज?” मने पूछा।
“रोट , दाल और कटहल का को ता।” मेस महराज ने बड़े आदर से कहा।
“तो ले आइए। आज भूख ब त तेज है। फर लास करने भी जाना है।” मने कहा।
“हम कटहल नह खाते ह।” जयवधन ने स जी दे खते ही कहा।
“जो है, सो खा लो। लास करने भी चलना है।” मने कहा।
“नव जी, आपका अभी तक का नंबर मला के फ ट ड वजन बन रहा है क नह ?”
मने पूछा।
“हाँ 67 पसट।” नव ने खाते ए ही कहा।
“इनका य नह बनेगा? ोजे ट, ेजटे शन सब टाइम पर। ले चरर को यस सर, नो
सर सब टाइम पर। ले चरर का सर-स जी, बर-बाजार सब टाइम पर। धार गाय के लात
सहाय!” जयवधन ने को ता हटाते ए कहा।
“अरे! तो ोजे ट और ेजटे शन टाइम पर दे ना पाप है या? बड़ क इ जत करना
भी गुनाह है या? और नंबर आपके मेहनत को ही दखाता है। नंबर लाना भी पाप है
या? ज द -ज द खाना ख म क जए। अभय कुमार के ले चर का समय हो गया है।”
नव जी ने हाथ धोते ए कहा।
व -5:30 – शाम
लास म घुसने के बाद, अब साँस लेने का समय मलना भी मु कल हो गया था। सारे
ले चरस अपना सलेबस ख म करने क ज द म थे; इस लए कोई लास खाली नह
जाती थी। ला ट सेमे टर क लास अचानक यादा ही उबाऊ लगने लगी थी। कारण यह
था क अब सबको यूचर क चता सताने लगी थी। ज ह ै टस करनी थी, वह अ छे
सी नयर एडवोकेट क तलाश म लग गए थे। ज ह एडवांस टडी करनी थी, वे लास म
ही बैठकर L.L.M. क तैयारी करते थे। इ ह कारण से ला ट सेमे टर के लास बोर
करने लगे थे।
ी े ो ो
“लगातार तीन लास कर के थक गए ह गु ! चलो कट न, थोड़ा चाय पया जाए।”
लास से नकलते ए दादा ने कहा।
“नह , हो टल चलो। वह चाय पएँगे।” मने कहा।
“तुमलोग जाओ। हम आज जरा संकटमोचन मं दर जाएँगे। माँ कह रही थी तुमसे
बड़ा पापी कौन होगा? लोग, नया भर से मं दर दशन करने आते ह और तुम हो क वह
पर रहते ए आज तक नह गए।” जयवधन ने जाते ए कहा।
“हमलोग के लए भी साद ले आना। और हाँ! बंदर से छ नकर मत लाना” दादा ने
च लाकर कहा और बाइक म चाभी लगाने लगा।
“आज पहली बार जयवधन चाय के लए मना कया। हमको कुछ ठ क नह लग रहा
है।” मने दादा क बाइक क पछली सीट पर बैठते ए कहा।
“The sixth sense दे खे हो या कल रात म? कम-से-कम चाय पर तो कुंड लनी मत
जगाओ! जबतक हमलोग हो टल प ँच के चाय पएँगे, तब तक जयवधन भी आ
जाएगा।” दादा ने बाइक टाट करते ए कहा।
व -6:00 – शाम
हो टल प ँचते ही मने दे खा क नव जी बैग लटकाए नकल रहे ह। बाहर एक
र शावाला उनका इंतजार कर रहा है। अब जब आख मल ग तो मने यूँ ही पूछ लया –
“नव जी, कब तक लौटगे?”
“जैसे ही मौसा जी का त बयत ठ क हो जाएगा, हम चले आएँगे।” नव जी ने र शा
पर बैठते ए कहा।
“अ छा फर! Happy journey !” मने हाथ हलाते ए कहा।
अपने कमरे म प ँचकर दादा ने ब कट का एक पैकेट खोल लया। कपड़े बदल कर
मने भी एक ब कट उठा ली। आज मेरा मन लैपटॉप पर फ म दे खने का भी नह हो रहा
था। म उधेड़बुन म ही था क दादा ने पूछा-
“ केट खेलेगा?”
“नह , चल आज वॉलीबॉल खेलते ह।” मने कहा।
“ जओ राजा! बाप क ख टया टू ट , बेटा पए ू ट । चलो।” दादा ने ताना मारा।
े े ॉ ी ॉ े े
“स वस हम करगे।” मने वॉलीबॉल क एक ट म म एं लेते ए कहा।
“चलो करो स वस। हम आज तु हारा खेल ही दे खगे। दादा ठ क मेरे पीछे आकर
खड़ा हो गया।
“ये दे खो, मेरा स वस!” मने कहा।
व -06:20 – शाम
अनहोनी अपने होने से पहले आशंका भेजती है। मन सशं कत हो जाता है। अनायास
ही दल क धड़कन बेस हो जाती ह। आप कुछ असामा य करने लगते ह; जैसे आज म
अपने मन को बरगलाने के लए वॉलीबॉल खेलने लगा था। जब क आज से पहले मने
वॉलीबॉल क गद का वजन भी नह जाना था। मेरा मन जयवधन के संकटमोचन मं दर
जाते व ही सशं कत हो गया था। यह बात म दादा को नह बता सकता था। मुझे फर
भी कसी अनहोनी क क लगी ई थी।
“बचो बे!” दादा ने मुझे एकदम बाँह से ख चते ए कहा।
सुपारी के पेड़ क एक सूखी टहनी सीधे मेरे सर पर गर रहा था। हो टल के भीतर
चार ओर सुपारी के पेड़ लगे ए थे। जसक टह नय का सूखकर गरना सामा य बात
थी; ले कन यह कंपन कुछ असामा य था और असामा य थी वह आवाज, जससे यह
कंपन पैदा आ।
“ये आवाज कैसी थी भाई?” मने दादा से पूछा।
“कह बम फटा होगा?” दादा ने मजाक कया।
“ले कन ये सूखी टहनी उसी आवाज से गरी है।” मने कहा।
“यही नह ! बाक पेड़ क सूखी टह नयाँ भी इसी आवाज से गरी ह।” दादा ने सरी
ओर दे खते ए कहा।
“कोई एयर- ै श तो नह आ कह ?” मने कहा।
“एयरपोट शहर के बाहर है और कोई ए वएशन बेस यहाँ नह है; इस लए यादा
दमाग मत लगाओ और वॉलीबॉल खेलो।” दादा ने कहा।
“ को एक मनट! शखा का फोन है, हम बात करते ह। मेरी जगह तुम खेलो। मने
दादा से कहा।
ै ो ँ ो ो ँ े ी ी ऐ ँ ई ो
“हैलो। हाँ बोलो। हाँ, मने भी सुनी आवाज। नह , ऐसा कुछ नह । हाँ भाई, हो टल म
ही ँ। नह बाहर नह ँ। चलो बाय।”
व -06:40 शाम
जयवधन के आने म दे र हो रही थी और वॉलीबॉल भी ख म हो चुका था। दादा और म
हाथ-मुँह धोकर अभी चाय पीने नकले ही थे क नव जी र शे से उतरते दखाई दए।
नव जी को लौटकर आता दे ख मुझे ब त आ य आ। म अभी उनके लौटने का कारण
पूछने ही वाला था क दादा ने पूछ दया-
“अरे नव जी? आप लौट आए? मौसा जी नकल लए या?”
“यार, कसी के लए तो शुभ बोला करो! उधर संकटमोचन और कट टे शन पर
ला ट आ है। र वदास गेट से आगे कसी को जाने नह दे रहे है। सुन रहे है क सात
आदमी मारे गए ह। अपने हो टल का तो कोई नह गया है ना?”
“जयवधन!” अचानक ही हमदोन के दमाग म एक साथ क धा।
“दादा..! गाड़ी नकाल ज द !” मने च ला कर दादा से कहा।
व -06:55 शाम
इस व तक संकटमोचन छावनी म त द ल हो चुका था। मं दर प रसर को बंद कर
दया गया था। लोग को भीतर घुसने से रोका जा रहा था। घायल को मं दर से नकालकर
बाहर लटाया जा रहा था और फर उ ह पास के सर सुंदरलाल अ पताल प ँचाया जा रहा
था। व फोट क खबर शहर भर म आग क तरह फैल गई थी। पूरा शहर सदमे म था।
यादातर लोग व फोट के बाद ई भगदड़ म घायल ए थे। घायल म औरत और वृ
अ धक थे। भगदड़ म बचने क को शश म ही यादा घटनाएँ ई थ । म अपने घर पर
यह बताना चाहता था क म ठ क ँ। यूँ क यह समाचार सुनकर घरवाले भी परेशान
ह गे। घर वाल को फोन करने क को शश क ; ले कन फोन नह लगा। इधर जयवधन भी
कह दख नह रहा था।
“बैरीकेड के आगे तो कसी को जाने नह दे रहे ह और जयवधन के पास फोन भी
नह था?” मने कहा।
“चार तरफ तो घायल पड़े ह, कधर ढूँ ढ़?” दादा ने कहा।
“चलो, चल के घायल म दे ख लेते ह।” मने कहा।
े ो ो ो ो
“घायल म य ? घायल म य दे ख? वो एकदम ठ क होगा। उसको कुछ नह हो
सकता है।” दादा थ त दे खकर जड़ हो गया था।
“आज जयवधन शट कैसा पहना था?” मने फर पूछा।
“था? था का या मतलब? पूछो क कैसा शट पहना है। उसको कुछ नह आ है;
समझे?” दादा का गला ँ ध रहा था।
“दो त! हम समझ रहे ह तु हारी हालत। मेरी भी वैसी ही है; ले कन एक बात सोचो;
अगर वो घायल हो और उसे मदद क ज रत हो और हम यह रहकर समय पर नह प ँच
पाए तो या जदगी भर इस पछतावे से बाहर नकल पाओगे? इसी लए कह रहे ह,
बताओ कैसा शट पहना था?” मने दादा को समझाने क को शश क ।
“सफेद।” दादा ने अँगठ
ू े से अपने आँख के कोन के प छते ए कहा।
“अ छा, तुम यह को। हम दे ख के आते ह।” मने कहा।
बम- ला ट वाली जगह क घेरेबंद कर द गई थी। चार ओर हमेशा नजर आने वाले
बंदर नदारद थे। ांगण क छोट -छोट न का शयाँ, घायल के खून प छे जाने से स री
नह रह गई थ । खून के ध ब म सने जूत के नशान अभी ताजे थे। सायरन का शोर
उकता दे ने वाला था। प लक और ेस को नयं त करने म पु लस को खासी मश कत
करनी पड़ रही थी।
दादा भीतर घुसने के लए सपा हय से बेतरह उलझ रहा था। मेरी आँख बस सफेद
शट तलाश रही थ ; ले कन वहाँ कोई भी शट अब सफेद नह रह गई थी। कह खून के
ध ब ने शट के कॉलर और पॉकेट रंग दए थे; तो कह पूरी शट ही सन गई थी। मने एक
आदमी को जयवधन समझ कर उठाने क को शश क तो उसका हाथ कट कर मेरे हाथ म
आ गया। म ब त डर गया। वह आदमी मर चुका था। म चीखना चाहता था; पर चीख
भीतर ही घुट गई। घायल लोग क चीख-पुकार और कराह मेरा हौसला हला रही थी;
फर भी मने बाहर पड़े लगभग सभी घायल को दे खा। जयवधन उनम नह था। एकबारगी
मुझे याल आया क ऐसी थ त म जयवधन का जदा बचना भी मु कल है; ले कन
उसका मलना भी तो ज री था; चाहे जस हाल म मले। मेरे दमाग म एक बार
अ पताल जाकर मरनेवाल म भी दे खने का याल आया। ले कन जबतक म कसी नतीजे
पर प ँचता, तबतक दादा दौड़ता आ मेरे पास आया और पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा।
मने पीछे मुड़ कर दे खा तो उसक आँख म आँसू थे। उसने मुझे उँग लय के इशारे से कुछ
दखाते ए कहा-
“उधर दे खो। जयवधन कसी को कंधे पर उठा कर ला रहा है। वो जयवधन ही है
ना?”
ँ ी ै ई े ो े औ
“हाँ, वही है भाई! जयवधन। जयवधन।” मने जोर से आवाज द और जयवधन क
ओर दौड़ पड़े।
“अबे, तुमलोग कब आए? जानते नह हो, यहाँ बम- ला ट हो गया है।” जयवधन ने
कंधे से उस घायल को े चर पर डालते ए कहा।
“नह भाई, हमलोग को कहाँ से मालूम चलेगा? हमलोग तो यहाँ क तन करने आए थे
क तुम दख गया।” दादा ने कहा।
“चलो-चलो, मुँहपेलई बाद म करना; अभी बहा र को उठाओ, हॉ पटल प ँचाना है।
पैर और पेट म चोट लगी है इसको।” जयवधन ने घायल को उठाते ए कहा।
***
***
ो े े ो े े
भगवानदास हो टल। भ व य के वक ल , मुं सफ , म ज े ट का हो टल। अपने दे ह पर
हर साल सैकड़ क ल ठु कवाता हो टल, ता क इसके ब च के कपड़ पर सलवट न पड़।
अपनी छाती को खेल का मैदान बनाता हो टल, ता क इसके ब च पर पढ़ाई का दबाव न
बढ़े । रात भर हाई-मा ट लप क रोशनी म जागता हो टल, ता क इसके ब च क न द म
खलल न पड़े। अपने ब च का खयाल कसी पता क तरह रखने वाला यह हो टल भी
उस बम- ला ट क कहानी अपने ब च क चचा , कहा नय , अफवाह के ज रये ही
सुन रहा था और उतना ही जान रहा था जतना इसके ब चे बता रहे थे।
ले कन कए! शायद म गलत ँ। यह हो टल इन चचा से इतर कुछ यादा ही
जान रहा था। इसके एक कमरे म ला ट के पहले वाले दन से ही ग त व ध कुछ अजीब-
सी थी। एक श स कुछ यादा ही शांत और संयत हो गया था। उसने दो दन से मेस म
खाना भी नह खाया था। खाना वह अपने कमरे म ही मँगवा लेता और खाली लेट बाहर
रख दे ता। वह लगातार सम बदल रहा था। एक फोन करता, फर फोन बंद कर दे ता। उस
रात भी वह यही कर रहा था, जब नव जी क हैरत भरी आवाज आई-
“सूरज। दादा। बाहर नक लए! दे खए बाहर या हो रहा है?”
“ या हो रहा है नव जी?”
“अरे!”
“ये पु लसवाले भगवानदास म या कर रहे ह?” दादा ने तेजी से बाहर नकलते ही
दे खा।
“च लए, आप लोग भीतर जाइए; अपने-अपने कमरे म। यह पु लस ऑपरेशन है।”
एक PAC के जवान ने हमसे कहा।
“पु लस ऑपरेशन?”
“भगवानदास म?”
“ या हो रहा है बे?” मने कहा।
“अरे यार!”
“ये ऊपर से कसको घसीटते ए ला रहे ह?” दादा ने कहा।
“ये तो…”
“ये तो…”
ो ै
“रोशन है।”
“इसको य ?”
“ या कया है?” नव जी के साथ-साथ हम सभी सकते म थे।
दोन हाथ को पीछे मोड़े ए गदन से पकड़ कर दो पु लस वाल ने रोशन को PAC
वैन क पछली सीट पर डाला और दो मनट के भीतर ही अपना काम ख म कर लौट गए
और सदमे म छोड़ गए। पूरे भगवानदास हॉ टल को। या, य , कस लए जैसे सवाल के
साथ हम सभी टू डट् स मुरली सर के पास गए। मुरली सर, हमारे डीन के साथ बाहर ही
खड़े थे; ले कन उ ह ने कुछ भी कहने से इंकार करते ए यह कहकर टाल दया क यह
पु लस ऑपरेशन था, इस लए उ ह भी कुछ पता नह । धीरे-धीरे वाडन म के पास से
भीड़ छँ टने लगी और हम भी कुछ पता न लगता दे ख, अपने कमरे म वापस आ गए।
“ या कया है रोशन?” नव जी ने पूछा।
“आप बेहतर बता सकते ह।” मने नव जी से पूछा।
“हम कैसे बता सकते ह? आजकल 4-6 महीने से तो बात भी नह करता था। बस
आते-जाते नम कार कर दया, यही ब त था।” नव जी ने धीमी आवाज म कहा।
“रात के 9 बजे पु लस का ऑपरेशन था। कुछ तो गड़बड़ है! भारी गड़बड़।” दादा ने
कहा।
“रात काफ हो गई है; चलो सोते ह। कल तक कुछ पता चले।” नव जी ने कहा और
म से नकल गए।
अगली सुबह भी भगवान दास म अफवाह और हवाएँ बना पर और पैर के एक कान
से सरे कान तक प ँच रही थ । जतने मुँह उतनी कहा नयाँ सुनने म आ रही थ । इ ह
अफवाह के बीच हम जब अगले दन फैक ट म लास कर रहे थे तब यह भी सुनने म
आया क वाडन क मौजूदगी म रोशन चौधरी के कमरे क तलाशी भी ली गई है और
उसके कमरे को सील कर दया गया है।
घटना के बीते आज तीसरी रात थी। ोजे ट और ेजटे शन के दबाव ने और कुछ भी
सोचने पर पदा डाल दया था। अखबार म भी इस बाबत जब कोई खबर नह बनी तो
हमने उस अफवाह को ही सही मान लया जसके मुता बक रोशन क धरपकड़ अपने गाँव
के कसी मुकदमे के सल सले म ई है। उस रात भी शखा से बात करते और ोजे ट
बनाते जाने न द कब आ गई, पता ही नह चला। दरवाजे पर कसी के जोर से द तक से
न द खुली।
ौ ै े े
“कौन है बे?” मने पूछा।
“ ॉ टर।” उतनी ही तेजी से सरी तरफ से आई।
ॉ टर का नाम सुनते ही कसी भी हो टलर क नस म झुरझुरी दौड़ जाना
वाभा वक बात थी। ॉ टर यानी बी एच यू क अपनी से यु रट वग। ए स आम
ऑ फसस से भरी इस वग के सामने खड़े होने पर ही अ छे अ छ के पसीने छू ट जाते ह।
इनका काम ही इतनी बड़ी यू नव सट म शां त बनाए रखना है।
इतनी दे र रात को ॉ टर का आना इस बात का संकेत था क सबकुछ ठ क नह है।
कुछ था, जो मुझे अजीब लग रहा था।
“दादा, ॉ टर वाले आए ह। म म हीटर तो नह है?” मने धीरे से फुसफुसाते ए
कहा।
“नह । मगर रात को तीन बजे; या बात हो गई? दरवाजा खोलो।” दादा ने मुझसे
कहा।
“जी क हए?” मने दरवाजा खोलते ए पूछा।
“अनुराग और सूरज आप ही दोन ह?” ॉ टर गाड ने पूछा।
“जी हाँ। मगर बात या है?” मने पूछा।
“आप लोग को ॉ टर ऑ फस चलना पड़ेगा।” उसने कहा।
“अभी? इस व ?” मने कहा।
“जी। हमने आपके वाडन को बता दया है और उनक परमीशन भी ले ली है।
च लए।” उसने कहा।
रात म ॉ टर क गाड़ी आने से कुछ लोग क न द खुल गई थी। अचानक ही हो टल
म होने वाली ऐसी ग त व धय से सभी हत भ थे। ॉ टर क गाड़ी म ऐसे बैठना मुझे
शमसार कर रहा था। वह भी तब, जब सारी प र चत आँख हम एक अजीब नजर से दे ख
रही ह । खैर, बैठना हमारी मजबूरी थी। जयवधन भी अब तक जाग गया था; ले कन इससे
पहले क वो हमसे कुछ पूछ पाता, गाड़ी ॉ टर ऑ फस के लए नकल चुक थी।
***
ो े ी ँ ीऔ े ौ ी ो
मोबाइल दे खकर हमारी आँख खुशी और आ य से चौड़ी हो ग ।
“आप भी अपना आइड टट काड संभाल।” ॉ टर ने मुझसे गु से से कहा।
“Sir. Can I ask something ?” दादा ने बड़ी ह मत जुटाकर पूछा।
“जानता ँ या पूछना चाहते हो; फर भी पूछो।” ॉ टर ने कहा।
“सर आ या है?” दादा ने पूछा।
“ब त बुरा आ है और आप लोग के साथ ब त बुरा हो सकता था; ले कन बस
क मत से ही आप दोन बच गए ह।
उसके बाद ॉ टर ने जो बताया वह कसी ला ट से कम नह था। यह सपने म भी
नह सोचा जा सकने वाला सदमा था। हम बस मुँह खोले सुनते रह गए। जब उ ह ने बात
ख म क तो म बस एक ही सवाल पूछ पाया-
“Sir. How can you trust us ?”
“No, I dont trust you. Even I am no one to interfere in this matter . यह
एक पु लस केस है। बम- ला ट के सल सले म पु लस ने रोशन को detain कया था।
उसी क नशानदे ही पर यह सब बरामद आ है। अगर अनुराग ने फोन चोरी क रपोट
नह करा द होती तो आपलोग कस मु कल म फँस सकते थे, ये मने आप लोग को बता
ही दया है। खैर, च लए भोर होने वाली है, हॉ टल जाइए और पढ़ाई पर यान द जए और
अपनी बजाज प सर को भी थोड़ा आराम द जए।” ॉ टर ने एक साथ दो झटके दए।
“थ स सर।” हमने कहा और ॉ टर ऑ फस से बाहर नकल आए।
बाहर आते ही मने दे खा क मेरे मोबाइल पर शखा के 10 मस कॉ स ह। फोन
साइलट होने के कारण सुन नह पाया था। बात रात भर म ही जंगल क आग क तरह
फैल गई थी। मने फोन लगाया-
“हैलो, कहाँ हो तुम?” शखा क आवाज क परेशानी साफ थी।
“म ठ क ँ।” मने अनमना-सा जवाब दया।
“ या आ है? तु ह ॉ टर वाले य ले गए ह? तुम ठ क तो हो ना? मुझे ब त डर
लग रहा है।” शखा रो रही थी।
“कुछ नह , तुम परेशान मत हो। म ठ क ँ। कल मल के सारी बात बताता ँ।” मने
कहा।
औ ो े ै े
“और रोशन ने या कया है?” शखा ने पूछा।
“यार! सारी नया का ठे का लया आ है या मने?” मने च लाते ए कहा;
जसपर दादा ने मुझे इशार म शांत रहने के लए कहा। मुझे इस व शखा के सवाल से
चढ़ हो रही थी।
“अ छा.. अ छा.. ठ क है। Cool down. I am sorry . बाद म बात करती ँ।”
शखा ने ज दबाजी म कहा।
ठ क है, कल मलता ँ।” मने उचाट-सा कहा।
“सुनो.. एक बात कहनी है…” शखा ने कहा।
“अब या है यार!” मने अनमने से पूछा।
“आई लव यू।” शखा ने कहा।
कसी और दन, कसी और पल, कसी और समय म कहे गए शखा के ये श द मेरी
जदगी के सबसे खूबसूरत पल होते, जसका म शद्दत और मुददत
् से इंतजार कर रहा
था। मगर न जाने य इस पल म उचट-सा गया था।
“आई लव यू टू । कल मलता ँ; बाय। टे क केयर।” कहते ए मने फोन काट दया।
“अ सीघाट चलेगा?” दादा ने पूछा।
“चल।” मने कहा और दोन पैदल ही अ सीघाट क ओर चल दए।
***
सा जश
े ो ो े े ी
“ बे को या पता होगा बे?” दादा ने गंभीर आवाज म कहा।
“नह यार! वो बढ़ा-चढ़ा कर ज र बोलता है; ले कन बे सर-पैर का नह बोलता।
और वैसे भी, उसको कसी ॉ टरवाले से ही पता चला था। अब हमको याद आ रहा है
क मैच वाले दन बे ये भी बोला था क रोशन रात म कसी गैरेज म काम करता है।
शायद इसी सब च कर म।” मने ठं डी साँस भरते ए कहा।
दादा चुप था। वो दरअसल खी था। ठगे जाने का भाव उसे परेशान कर रहा था। कुछ
दे र फर गंभीर खामोशी छाई रही। हम दोन एक- सरे से बोले बना गंगा जी क धार
दे खते रहे। खामोशी बारा तब टू ट जब जयवधन ने आकर कहा-
“ या आ भाई लोग? अचानक यहाँ य बैठे हो? कुछ ॉ लम तो नह है ना? सब
ठ क तो है ना?”
“ ॉ लम था। अब नह है।” मने जयवधन को बैठने का इशारा करते ए कहा।
“ या मतलब?” जयवधन ने पूछा।
“तुमको रोशन के म म तीन कूकर याद है?” मने जयवधन के बैठते ही कहा।
“हाँ तो? अब इतने दन बाद ॉ टरवाला, कूकर के लए रोशनवा का झ टा पकड़ के
ले गया?” जयवधन ने पूछा।
“नह बे! ला ट म कूकर बम ही use आ है।” मने कहा।
“मतलब!” जयवधन ने आ य मले आवाज म पूछा।
“मतलब, रोशन बम- ला ट म involve था। उसको उसी सल सले म detain कया
गया है।” मने कहा।
“ या मतलब? कैसे? अरे साला! मतलब रोशन चौधरी!” जयवधन हत भ था।
“हाँ। रोशन चौधरी। व द इ तयाक चौधरी।” दादा ने नाम पर जोर दे ते ए कहा।
“अरे बाप रे! मतलब वो! यार, ये तो हमलोग को पता ही नह था।” जयवधन इससे
आगे कुछ कहता; मने वह बताना शु कया जो हम भी अभी थोड़ी दे र पहले ही मालूम
आ था-
“रोशन के एड मशन लेने का मकसद ही यह ला ट अंजाम दे ना था। वह शंशाक का
प रट कॉल, वह मेरा लंका पर का झगड़ा, वह शवदास पुर रेड, वो दादा का मोबाइल
चोरी होना सब इस ला ट का ह सा होने वाले थे।”
ो े े ी ो ो
“रोशन पहले दन से ही हो टल चाहता था। उसका मकसद हो टल म रहकर इस
ला ट को अंजाम दे ना था। इसी लए वह हो टल पाने के लए वाडन से उलझा था। अब
जब उसे हो टल मल गया तो उसक सबसे बड़ी सम या थी, म पाटनर। य क ऐसे
कसी भी काम के लए उसका अकेले रहना ज री था। इस लए उसने spirit call वाली
कहानी रची। उसने शशांक के हाव-भाव से ही यह समझ लया था क वह depression म
है और उसक suicidal tendency है। इसी लए रोशन ने Spirit Call का लान बनाया
और अनजाने म उसका साथ दया शशांक ने। जसने सुसाइड करने क को शश क ।
हॉ टल म ऐसे टू डट को वैसे भी रखा नह जाता, जनक suicidal tendency हो और
ऊपर से शशांक के फादर आकर उसे ले भी गए। इस तरह रोशन को कमरा अकेले मल
गया। अब मुझे लग रहा है क अगर तुम लखावट मलाओ तो उसके म म लखी
डरावनी बात भी शशांक ने नह लखी ह गी। शशांक ने दरवाजा बाहर से बंद इस लए
कया होगा क कह रोशन उसे सुसाइड करने से रोकने क को शश न करे। उसक इसी
भूल ने रोशन को मौका दे दया और इसने म म डरावनी बात लख द ।” दादा ने लकड़ी
से अ सी घाट क सी ढ़याँ खरोचते ए कहा।
“ह म! आगे।” जयवधन ने कहा।
“उस दन जब शशांक सुसाइड के लए बाथ म गया तो उसने दरवाजा बाहर से बंद
कर दया था ता क रोशन उसे बचाने क को शश न करे। और जब रोशन कसी के
नकलने का इंतजार कर रहा था; तो हम लोग ही नकले। य क दो बजे तक तो सब खा
के सो भी जाते ह। सबसे दे र से हमलोग ही खाते ह। इस लए बद क मती से उस दन हम
ही लोग च कर म आए। उसके बाद से रोशन ने हम implicate करना शु कया।” मने
कहा।
“कैसे कह सकते हो?” जयवधन ने कहा।
“मेरा लंका वाला झगड़ा, शवदासपुर वाला ए पसोड, दादा का मोबाइल चोरी सब
इससे जुड़े ह।” मने कहा।
“ या!” जयवधन क समझ म कुछ नह आ रहा था।
“हाँ। रोशन को जो काम मला था वो था, ला ट करने के लए सामान मुहैया कराना
और ला ट के तुरंत बाद मी डया को मेल करना और लड़क के नकल भागने का
इंतजाम करना। ला ट के लए ज री सामान मुहै या कराना तो मु कल नही था। ले कन
ला ट के बाद का काम यादा मु कल था। सबसे पहले लड़क के नकलने के लए
टकट क व था करनी थी। आजकल चार लोग के टकट म कम-से-कम एक id proof
क ज रत होती है। इस लए रोशन ने मेरा लंका वाला फज झगड़ा कराया और उन
लड़क ने मेरा id card छ न लया। मेरी और शखा क दो ती का पता सबको था; तो मैने
ी ी ी े ी ेऐ ो ो
भी यही समझा क शायद उसी वजह से कसी ने ऐसा कया हो। पर दरअसल वो झगड़ा
केवल id card के लए कया गया था। जससे ला ट करने के बाद मेरे नाम पर बने
टकट पर वो लोग आसानी से बाहर नकल जाएँ।” मने एक साँस म कहा।
“बाप रे बाप! जासूसी फ म जैसा लग रहा है बे! फर?” जयवधन हो रहा था।
“अब उसका अगला काम ला ट के बाद मेल भेजने का था; जसके लए उसे इंटरनेट
क ज रत थी। इस लए उसे एक ऐसे इंटरनेट जोन क ज रत थी जो password
protected नह हो। ऐसे म उसने शायद हमारी CrPC के Question paper वाली बात
सुन ली थ । जससे उसे भी पता चल गया था क मुरली सर का कं युटर knowledge
ठ क नह है। उसके expert ने यह भी बताया हो क मुरली सर ने अपना वाई-फाई
password protected नह रखा है। इस लए रोशन ने मुरली सर को जाकर कहा क
सूरज क हद अ छ है; ता क वो मुझे हद म भाषण लखने को कह।” मने कहा।
“ले कन यार! हम तो कमलेश को जाकर लाइ ेरी म सुनाए थे क सूरज का हद
अ छा है। फर रोशन जा के मुरली सर से कैसे कहा?” जयवधन ने वा जब सवाल कया।
“ ब कुल ठ क। तुम दरअसल कमलेश को ही सुनाए थे; ले कन रोशन तु हारे ठ क
पीछे बैठा आ था। उसी ने जाकर मुरली सर से कहा था। रोशन जानता था क हो टल म
तो इंटरनेट है नह । इस लए कोई भी डॉ युमट हम पेन ाइव या फर लॉपी म ही दगे।
एक बार कसी क युटर म कोई भी पेन ाइव या लॉपी लग जाए तो ए सपट हैकस उस
क युटर का IP Adress हैक कर सकते ह। बस उसी लए उसने मुरली सर को जाकर
बताया क सूरज क हद अ छ है और उ ह अपना पेन ाइव भी दया ता क हम कसी
तरह यह डॉ युमट मुरली सर के क युटर म प चाएँ और फर वह अपना पेन ाइव अपने
ए पट हैकर तक प ँचा दे ।” मने लंबी साँस लेते ए कहा।
“मतलब, यह तय था क ला ट होगा और उसके बाद मेल भेजा जाएगा। मेल अब
भगवान दास हो टल के आस-पास से जाएगा तो सबसे पहले भगवान दास हो टल के उन
लड़क पर शक जाएगा जनका पु लस रकॉड म नाम हो और हमारा नाम पु लस रकॉड
म नाम दज कराने के लए ही शवदासपुर वाला लान बना।”
“मतलब?” जयवधन का दमाग ॉस वड पजल बना आ था।
“मतलब यह क रोशन चाहता था क ला ट से पहले कसी भी तरह हमारा नाम एक
बार पु लस रकॉड म आ जाए जससे क बाद म पु लस सबसे पहले हम दबोच ले।
इस लए उसने यह पूरी कहानी रची और नरह र को मज र बना के हमारे पास भेजा। वह
चाहता था क हम उस लड़क को अकेले ही बचाएँ जससे क पु लस कसी भी तरह हम
पकड़ ले और हमारा नाम पु लस रकॉड म शा मल हो जाए और ला ट के बाद पु लस को
े ी ो े े े े े ी ो ो
हम पकड़ने म आसानी हो। ले कन जब हमने NGO से मदद लेने क बात कही तो वो
उखड़ गया था। उसे लग गया क इस तरह तो हम लोग सुर त हो जाएँगे और पु लस
रकॉड म हमारा नाम नह आएगा और इसी लए वो उस दन गु से से हमारे कमरे से बाहर
चला गया था।” मने कहा।
“एक बात और ऐसी कोई लड़क थी ही नह जसको वहाँ बेचा गया हो। यह
दरअसल रोशन क चाल थी हमारा नाम पु लस रकॉड म डालने के लए। इसी लए उसने
जो लड़क दखाई उसका बंगाली नाम र पा बताया ता क दादा उसे बचाने क को शश
ज र करे। इसी लए जब मंडी म दादा ने उससे बंगाली म बात क तो वो समझ भी नह
पाई। उसने पु लस को अपना असली नाम ही बताया था, जेबु सा। हम टु पड कभी यह
सोच भी नह पाए क इतने बड़े यु नव सट म वो मज र नरह र हमारे पास ही य
आया? कसी और के पास भी तो जा सकता था!” दादा ने कहा।
“गया तो था! वो बरला वाले लड़के के पास।” जयवधन ने कहा।
“उस लड़के को कसी ने दे खा है? कोई मला भी है उससे? उसका कोई वजूद भी
है?” दादा ने कहा।
“अरे साला! यार, इस पर तो कभी यान ही नह गया। मतलब बरला हो टल से कोई
लड़का गया ही नह था? ऐसा कोई लड़का था ही नह ? साला, पूरा सा जश है ये तो। हे
भगवान! साला, एक आदमी पूरा हो टल को चू तया बना दया। मतलब रोशन, हम नचा
रहा था और हम बस कठपुतली क तरह नाच रहे थे।” जयवधन हताश था।
“बेशक।” दादा ने कहा।
“और नरह रया भी इसम शा मल था या?”
“पता नह ? जो लोग पकड़े गए ह उनम नरह र नाम का तो कोई नह था। हो सकता
है क उसने अपना नाम गलत बताया हो। ये भी हो सकता है क वो भाड़े का कोई मज र
ही हो जसे पैसे दे कर ये काम कराया गया हो।” दादा ने कहा।
“तो फर ये सब आ य नह ? मतलब रोशनवा तुमलोग को ब श कैसे दया?”
जयवधन ने अचानक पूछा।
“रोशन ने ला ट के बाद का तो सारा इंतजाम कर लया था; ले कन उसे ला ट के
पहले communicate करने के लए मोबाइल क ज रत थी। इसी वजह से उसने दादा
का मोबाइल भी चुराया था। उसने सोचा था क हम लोग कुछ दन मोबाइल ढूँ ढ़गे और
फर चुप हो जाएँगे। फर वह उस मोबाइल का use ला ट के पहले और ला ट के बाद
करके हम फँसा दे गा। ले कन दादा ने पहले ही पु लस म FIR करा दया जससे उसका
ो े े ो ो ो
सारा लान frustrate हो गया। उसे लगा क अगर ये फोन यूज होगा तो पु लस क
स वलांस ट म पकड़ सकती है। बस लान बदलना पड़ गया।” उ ह पु लस को चकमा दे ने
के लए कसी एक तरफ मोड़ना था। जब हम नह फँसे तो कसी और को फँसा लया
होगा। और ॉ टर ऑ फस ने हमारी मदद इस लए क होगी क उ ह शायद उनका पता
मल गया होगा ज ह इनलोग ने हम फँसाने म नाकामयाब होने पर फँसाया हो।” दादा ने
एक साँस म कहा।
“ कसे?” जयवधन ने पूछा।
“पता नह । यह तो ॉ टर ने हम नह बताया; ले कन हम जैसे ही ह गे कोई बेपरवाह।
दरअसल, हो टल म आने के बाद से ही रोशन हम जैसे लापरवाह लड़क क तलाश म
था। उसने हमारे हाव-भाव, ट न और बेपरवाही दे खी और उसे हम अपने काम के लए
सबसे माकूल लगे। इस लए उसने हम ही फसाने क को शश क ।” दादा ने कहा।
“और ज ह ने ला ट कया उनका या? वो कहाँ ह?” जयवधन ने पूछा।
“अब ये तो पु लस का काम है। पु लस पता लगा ही लेगी।” मने कहा।
“ले कन ये सब राजफाश इतना ज द आ कैसे?” जयवधन ने सवाल क झड़ी
लगा द थी।
“पु लस के डंडे के आगे तो भूत भी बोलता है और रोशन कोई हाडकोर तो था नह ,
आइ डयोलॉजी वेन था। अब पु लस क मार के आगे कमजोर पड़ गया होगा। या फर
ये भी हो सकता ही क उसे अपने कए का कोई पछतावा ही न हो और उसने सारी बात
गव से बताई ह ।” दादा ने कहा।
“भौकाली क मत पाए हो गु ! नह तो रोशनवा 14 साल का इंतजाम कर दया था।
वक ल तो खैर या बनते, जदगी वक ल के पीछे दौड़ने म नकल जाता। कचहरी,
जमानत कराने नह , जमानत लेने जाते।” जयवधन ने हँसते ए कहा।
“हाँ भाई! बस तब से यही सोच रहे ह क अगर क मत साथ नह होती तो आज या
होता?” दादा ने कहा।
गंगाजी लाल होने लगी थ । सूरज क ला लमा रोज क तरह उनके पैर धो रही थी।
अ सीघाट भी अपने म लाह , फूलवा लय , पं डत और चायवाल का वागत कर रहा
था। चंदन घसा जाने लगा था। कौवे न जाने कब से काँव-काँव कर रहे थे। हम हो टल
जाने को उठ गए थे।
सुबह हो गई थी।
***
एक दन अचानक
े े ी े े ी ँ औ
प जे रया म घुसते ही मेरा दमाग चकरा गया। शखा के साथ ही वहाँ दादा और
जयवधन भी मौजूद थे। यह इतनी असामा य बात इस लए थी य क पछले तीन साल
म शखा ने कभी मेरे दो त से बात नह क थी। न ही दादा या जयवधन ने उससे बात
करने क कभी को शश क थी। मेरा दमाग तो वैसे ही काम नह कर रहा था; ऊपर से
तीन क अथपूण मु कराहट मुझे और परेशान कर रही थी। खैर, खुद को परेशान न
दखाना ही मुझे सही लगा। म एक खाली कुस ख चते ए बोला –
“का गु ? पूरा मज लस जमा है; बात या है?”
“तुम ऑडर करो ना यार! बात मत पूछो!” दादा ने कहा।
“अरे? बारात म खाने वाले को भी पता होता है क शाद कसक है! तो, हमको भी
तो पता चले, पाट कस खुशी म और कौन दे रहा है?” मने पूछा।
“तुम दे रहे हो।” शखा ने भी मु कुराते ए कहा। उसक इस मु कुराहट और माहौल
के अजाब ने मुझे पशोपेश म डाल दया था। आ खर म, मने चढ़कर कहा-
“यही क खेलना था तो कम-से-कम ेजटे शन तो दे लेने दे ती। हम ेजटे शन छोड़ के
आए ह।”
“तु ह शायद उसक ज रत नह पड़ेगी।” शखा ने फर वही अथपूण मु कुराहट
बखेरी।
“ य ?” मने अचरज से पूछा।
“Because ….
you …
have ….
been ….
selected ….
for ….
section officer !!!” शखा, हर श द पर कते ए च लाई और उसके साथ ही
च लाने लगे दादा और जयवधन।
मेरी समझ म कुछ नह आ रहा था। जस इंटर ू को दए मुझे एक साल ऊपर हो
गए, उसका रज ट अभी कैसे आया? और आया भी तो या सचमच मेरा सेले शन आ
ै
है?
“एक और क ना?” मेरा मन मानने को तैयार नह था।
“नह दो त! ज दगी से मजाक नही करते। आज ही रज ट आया है। शखा लगभग
रोज ही SSC क वेबसाइट दे खती थी। आज जब ये रज ट आया तब इसने मुझे पहली
बार फोन कर के कहा क कंफम हो लया जाए, तब तु ह बताया जाए। Father’s name
और तेरे admit card से जब कंफम हो गया, तब ये लान बना। See it for yourself .”
दादा ने टआउट मेरे हाथ म थमाते ए कहा।
रज ट लेकर म टआउट पर अपने नाम को नहारता रहा। कई दफा अपने नाम पर
उंग लयाँ फराता रहा। आप जसक उ मीद छोड़ चुके हो और अचानक ही वो आपको
मल जाए तो व ास कर पाना भी मु कल होता है। आँसू, मद क सबसे क मती धरोहर
होती है। वे इसे बे- फजूल खच नह करते। मेरे आँसू भी शायद इ ह दन के इंतजार म थे;
सो बह नकले। कतने रजे शन, कतने तर कार, कतनी असफलताएँ दे खी थी इन
आँख ने क अब खुद पर भरोसा मु कल हो रहा था। शखा मेरे कंधे पर अपने गाल
टकाए, मेरी हथे लय म अपनी हथे लयाँ फँसाए खड़ी थी और मेरे दोन दो त, प जा क
लाइस बनाने म मशगूल थे।
“दादा, तुम बाइक लेके आए हो?” मने अचानक ही सवाल कया।
“हाँ; य ?” दादा ने कहा।
“चाभी दो।” मने कहा।
“ले कन शखा तो यहाँ है; अब कहाँ जाएगा?” दादा ने चाभी मेरी ओर उछालते ए
कहा।
“ शखा! please don’t mind – अगर म एकबात क ँ?” मने शखा से कहा।
“कहो…!” शखा ने आ य से कहा।
“म अपना ेजटे शन दे कर आता ँ। तब तक तुम लोग प जा ए जॉय करो।” मने
कहा
“जाओ।” शखा ने हँसते ए कहा।
“लो….!! ठ क बात है। बुढ़ापे म सबको रामच रतमानस क याद आती है। इनको भी
आया है- स थ सेमे टर म।” जयवधन क इस बात पर सभी खल खला उठे ।
ँ े ै े े ी ो
म हँसते ए फैक ट क तरफ नकल गया। जाते-जाते म बस यही सुन पाया जो
जयवधन शखा से पूछ रहा था:
“और फर, तुम लोग शाद कब कर रहे हो?”