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िमस पाल

मोहन राकेश

वह दूर से िदखायी देती आकृित िमस पाल ही हो सकती थी। िफर भी िव ास करने के िलए मने अपना च मा ठीक
िकया। िनःसंदेह, वह िमस पाल ही थी। यह तो खैर मुझे पता था िक वह उन िदनॲ कु लू म ही कहॴ रहती है, पर इस
तरह अचानक उससे भट हो जायेगी, यह नहॴ सोचा था। और उसे सामने देखकर भी मुझे िव ास नहॴ हुआ िक वह
थायी प से कु लू और मनाली के बीच उस छोटे -से ग व म रहती होगी। जब वह िद ली से नौकरी छोड़कर आयी
थी, तो लोगॲ ने उसके बारे म या- या नहॴ सोचा था!
बस रायसन के डाकखाने के पास पहुंचकर क गयी। िमस पाल डाकखाने के बाहर खड़ी पो टमा टर से कुछ
बात कर रही थी। हाथ म वह एक थैला िलये थी। बस के कने पर न जाने िकस बात के िलए पो टमा टर को
ध यवाद देती हुई वह बस की तरफ मुड़ी। तभी म उतरकर उसके सामने पहुँच गया। एक आदमी के अचानक सामने
आ जाने से िमस पाल थोड़ा अचकचा गयी, मगर मुझे पहचानते ही उसका चेहरा खुशी और उ साह से िखल गया।
“रणजीत तुम?” उसने कहा, “तुम यह से टपक पड़े?”
“म इस बस से मनाली से आ रहा हूँ।” मने कहा।
“अ छा! मनाली तुम कब से आये हुए थे?”
“आठ-दस िदन हुए, आया था। आज वापस जा रहा हूँ।”
“आज ही जा रहे हो?” िमस पाल के चेहरे से आधा उ साह गायब हो गया, “देखो, िकतनी बुरी बात है िक आठ-दस
िदन से तुम यह हो और मुझसे िमलने की तुमने कोिशश भी नहॴ की। तु ह यह तो पता ही था िक म आजकल कु लू
म हूँ।”
“ह , यह तो पता था, पर यह नहॴ पता था िक कु लू के िकस िह से म हो। अब भी तुम अचानक ही िदखायी दे
गयॴ, नहॴ मुझे कह से पता चलता िक तुम इस जंगल को आबाद कर रही हो?”
“सचमुच बहुत बुरी बात है,” िमस पाल उलाहने के वर म बोली, “तुम इतने िदनॲ से यह हो और मुझसे तु हारी
भट हुई आज जाने के वक़्त॰॰॰।”
ाइवर जोर-जोर से हॉन बजाने लगा। िमस पाल ने कुछ िचढ़कर ाइवर की तरफ़ देखा और एकसाथ िझड़कने
मा म गने के वर म कहा, “बस जी एक िमनट। म भी इसी बस से कु लू चल रही हूँ। मुझे कु लू की एक सीट दे
दीिजए। थक यू वेरी मच!” और िफर मेरी तरफ़ मुड़कर बोली, “तुम इस बस से कह तक जा रहे हो?”
“आज तो इस बस से जोिग दरनगर जाऊँगा। वह एक िदन रहकर कल सुबह आगे की बस पकड़ूँगा।”
ाइवर अब और जोर से हॉन बजाने लगा। िमस पाल ने एक बार ोध और बेबसी के साथ उसकी तरफ़ देखा
और बस के दरवाज़े की तरफ़ बढ़ती हुई बोली, “अ छा, कु लू तक तो हम लोगॲ का साथ है ही, और बात कु लू
पहुँचकर करगे। म तो कहती हूँ िक तुम दो-चार िदन यहॴ को, िफर चले जाना।”
बस म पहले ही बहुत भीड़ थी। दो-तीन आदमी वह से और चढ़ गये थे, िजससे अ दर खड़े होने की जगह भी
नहॴ रही थी। िमस पाल दरवाज़े से अ दर जाने लगी तो क ड टर ने हाथ बढ़ाकर उसे रोक िदया। मने क ड टर से
बहुतेरा कहा िक अ दर मेरे वाली जगह खाली है, िमस साहब वह बैठ जाएंगी और म भीड़ म िकसी तरह खड़ा होकर
चला जाऊँगा, मगर क ड टर एक बार िजद पर अड़ा तो अड़ा ही रहा िक और सवारी वह नहॴ ले सकता। म अभी
उससे बात कर ही रहा था िक ाइवर ने बस टाट कर दी। मेरा सामान बस म था, इसिलए म दौड़कर चलती बस
म सवार हो गया। . . .

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