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ब्रह्मा जी ने क्यों दिया नारद को श्राप
ब्रह्मा जी ने क्यों दिया नारद को श्राप
नमस्कार दोस्तों आज हम जानेंगे कि ब्रह्मा जी ने नारद जी की किस बात से खफा होकर दे दिया था उनको श्राप दे दिया
नारद जी का जन्म विष्णु मस्तिष्क से हुआ माना जाता है. नारद जी को शुरुआत में दुनिया से विमुख थे और अक्सर लोगों को विवाह न करने और दुनियादारी से
दूर रहने की सलाह देते रहते थे. उनके प्रभाव से दुनिया में लोगों की संख्या बढ़ने का नाम नहीं ले रही थी और ब्रह्मा जी को नए लोगों के जन्म में समस्या आने
लगी. तब ब्रह्मा जी ने नारद जी को चेताया कि वे दुनिया को अपने अनुसार चलने दे. जब नारद जी इसके बाद भी नहीं माने तो ब्रह्मा जी ने नारद जी को श्राप दिया
कि वे कभी एक जगह ठहर नहीं पाएंगे और कहीं भी ठहरकर लोगों को सन्यास के लिए प्रभावित नहीं कर पाएंगे। तभी से नारद जी निरंतर चलायमान है
नमस्कार दोस्तों, आज हम जानेंगे कि क्या वजह थी श्री कृ ष्ण के काले रंग की.
कहा जाता है कि शिवजी जब साधना कर रहे थे तब तो कामदेव ने उन्हें अपने बाणो से उनके भीतर प्रेम जगाने का प्रयास किया, पर शिवजी की तीसरी आँख से वो
भस्म हो गए. उनकी राख को देख देवी बेहद दुखी हुई. उन्होंने राख की ही तरह रंग अपना लिया और बहुत भयंकर चीख निकाली। उनकी चीख शिवजी तक भी
पहुंची जो उनको चुप कराने उनके पास पहुंचे। शिवजी ने देवी के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास किया। तब शिवजी ने उनसे वादा किया कि उनके मिलान से एक
नया जन्म होगा जिसको रंग देवी से मिलेगा और जिसके गुण कामदेव के होंगे। इस तरह कामदेव का पुनर्जन्म भी होगा और क्योंकि वो श्याम वर्ण वाली श्यामा देवी से
बात तब की है जब श्री कृ ष्ण अपनी लीलाओ से पूरे गाँव को आनंदित करते थे लेकिन साथ ही साथ उनकी शिकायते भी रोज़ आती रहती थी. परेशां यशोदा माँ ने
एक दिन सज़ा के तौर पर उन्हें ओखली से रस्सी के ज़रिये बाँध दिया। लेकिन कृ ष्ण कहाँ शांत रहने वाले थे. उन्होंने ओखली दो पेड़ो के बीच फं सा दी जिससे वो
दोनों पेड़ उखड गए और उसमे बसने वाले शापित वसुओं को मुक्ति मिल गयी. क्योंकि उनके पेट पर रस्सी बाँधी गयी थी इसलिए उनको उदर में दाम अर्थात रस्सी
नमस्कार दोस्तों आज हम जानेंगे क्यों श्री कृ ष्ण वृन्दावन में सदैव वानरों से घिरे रहते थे
भगवान् विष्णु ने जब राम अवतार लिया था तब वानरों की सहायता से उन्होंने सीता को ढूँढा था. वानरों को त्रेता युग में राम का साथ तो मिला पर उन्हें श्री राम की
बाल लीलाएं देखने को नहीं मिली। तब श्री राम ने उन्हें ये वचन दिया था कि वे अगले जन्म में उनके साथ बाल लीलाएं करेंगे। यही कारण है कि जब विष्णु जी ने श्री
कृ ष्ण के रूप में जन्म लिया तो सभी वानरों ने फिर से वानर रूप में जन्म लिया और वो सब वृन्दावन में आकर बस गए जहाँ कृ ष्ण ने गोपालो और गोपियों के साथ
क्यों रुक्मिणी देवी की पूजा श्री कृ ष्ण के साथ नहीं होती? किसने दिया था श्राप ?
नमस्कार दोस्तों आज हम जानेंगे कि किसके श्राप के कारण रुक्मिणी जी को श्री कृ ष्ण के साथ नहीं पूजा जाता।
एक बार ऋषि दुर्वासा कृ ष्ण और राधा की परीक्षा लेने के लिए उनके घर पधारे और उनसे अजीबोगरीब फरमाईशें करने लगे. रुक्मिणी और श्री कृ ष्ण ने उनकी हर
बात को शिरोधार्य किया। तब दुर्वासा ऋषि ने कहा कि उन्हें रथ करनी है पर रथ को कोई घोडा बल्कि रुक्मिणी जी हाँके गी। रुक्मिणी काफी देर तक रथ हाँकती
रहती पर फिर उन्हें प्यास लगी और उन्होंने दुर्वासा ऋषि से बिना पूछे और उन्हें अर्पित किये बिना जल पी लिया जिससे गुस्सा होकर दुर्वासा ऋषि ने उन्हें श्राप दे
दिया गया कि उन्हें श्री कृ ष्ण के साथ कभी पूजा नहीं जाएगा।