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1.

मध्यभारत की भूमि का भौगोलिक ऐतिहासिक


परिचय :-
मध्यभारत भारत का एक शिथिल परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र है इसकी कोई स्पष्ट
आधिकारिक परिभाषा नहीं है और विभिन्न परिभाषाओं को उपयोग किया जा सकता है
एक सामान्य परिभाषा में मध्यभारत और मध्यप्रदेश राज्य शामिल है

भौगोलिक विवरण
वर्तमान मध्यप्रदेश का दक्षिण पूर्वी अंचल मध्यभारत के नाम से जाना जाता है इस क्षेत्र के
अंतर्गत रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर, रायपुर, बस्तर, दुर्ग तथा राजनादगांव जिले
सम्मिलित है मध्यभारत का भू-प्रदेश मध्यप्रदेश में 17 ०-45’ उत्तर अंक्षाश से 23 ०-7
उत्तर-अंक्षाश एव 80 ०-43 पूर्वी देशान्तर से 83 ०-38 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है
(9) इस भू भाग का सम्पूर्ण क्षेत्रफल 1,35,133 वर्ग किलोमीटर है यह में कल
सिहावा तथा रामगिरी की पहाड़ियों से घिरा हुआ है| इस क्षेत्र में महानी शिवनाथ इंद्रावती
हसदो-खारुन आदि नदिया प्रवहित हैं| (10)
मध्यभारत का वर्तमान क्षेत्र को दो भागों में विभाजित किया है| - रायपुर तथा बिलासपुर
रायपुर के अंतर्गत चार जिले आते हैं| जिनका नाम है बस्तर, दुर्ग, रायपुर, राजनादगांव, तथा
बिलासपुर के अंतर्गत जो जिले आते हैं सरगुजा रायगढ़ बिलासपुर है |
मध्यभारत के इस सम्पूर्ण भू-भाग में प्राकृ तिक देन का भंडार विद्यमान है इस क्षेत्र के अधिकाश
भाग वनों से भरा हुआ है सम्पूर्ण वन प्रदेश में बास, लाख, हर्रा, तेदू, गोद एवं अनेक प्रकार
की जड़ी-बूटियां उपलब्ध है इस प्रकार प्रक्रति की सहज से मध्यभारत के अत्यधिक भू-भाग में
विरवरी और निरवरी है कृ षि के दृष्टि से मध्य भारत अत्यधिक समृद्ध क्षेत्र है यहां की प्रमुख
उपज धान है तथपि गेहूं, चना, दाल, तिलहन, कपास इत्यादि भी यहां की उर्वरा भूमि उत्पन्न
करती है इसी प्रकार मध्यभारत का अधिकांश क्षेत्र खनिज-पदार्थों के लिए भी महत्वपूर्ण है इस
प्रदेश की भूमि में कोयला, मैगनीज, वाकसाइड, चुना, लोहा, डोलामाइट, टीन, ताबा,
अभ्रक आदि अधिकाधिक मात्रा में उपलब्ध है खनिज पदार्थों की दृष्टि से बिलासपुर तथा
कोरबा में कोयला तथा बाक्साइड रायगढ़, सकती और बिलासपुर में चूने का पत्थर तथा दुर्ग
जिले में भिलाई उत्तम प्रकार दुर्ग लोहे के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है यह एशिया का सर्वाधिक
महत्वपूर्ण कारखाना इसी अंचल में विद्यमान है मध्यभारत की जलवायु समान्त गर्म और
आद्रता युक्त है|

एतिहासिक परिचय
मध्यप्रदेश की राजनीतिक में मध्यभारत का निर्णायक स्थाल रहा है इसका इतिहास अत्यंत
प्राचीन एवं गोरवमय है मध्यभारत आर्य एवं अनार्य सस्क्रतियो का संगम स्थल रहा है
मध्यभारत का कमबध्द इतिहास अनूपलब्ध है फिर भी इतिहास बोध के प्ररमिभ्क साधनों
में उत्कीर्ण लेख, सिक्के , स्थापप्य, वैदिक, पौराणिक, जैन, बौद्ध, साहित्य तथा मुसलमान
शासको द्वारा लिखे विवरण चीनीयात्री व्हेनसाग का विवरण, अंग्रेज अधिकारियों के
विवरण प्रमुख है जिससे इस क्षेत्र की इतिहास की एक अस्पष्ट रूपरेखा निर्मित हो पाती है |
बीते वर्षों में पूरे तत्वों से सम्वविन्त जो शोध हुए हैं उनमें स्वर्गीर्य हीरालाल और स्वर्गीर्य
लोचनप्रसाद पाण्डेय के प्रयत्नों से इतिहास के प्रष्ठो को क्रमबार सजाने का यथा-सम्भव
प्रयास किया गया है मध्यभारत के इतिहास के संदर्भ में हाल में लिखे गए शोध प्रबंध इस
दिशा में अपना महत्व रखते हैं डॉ० भगवान सिंह ठाकु र ने अपनी किताब मध्यभारत में
भौसला राज्य की अन्तर्गत लिखा है कि अभी तक तीन किताबें लिखी जा चुकी है जिनमें
डॉ० विष्णुसिंह ठाकु र (प्राचीन काल पर) डॉ० ज्ञानेश्वर प्रसाद शर्मा (आधुनिक काल पर
1741-1818) श्री प्रभुलाल मिश्र का (मध्यभारत का राजनीतिक इतिहास) जो
1741 से 1858 का इतिहास प्रस्तुत करता है प्रमुख है | (11)
पौराणिक काल में इस क्षेत्र का उल्लेख दण्डकारय और कान्तार के रूप में आया है जहां
शवरों को निवास था कपिपथ विद्वान शवरों को सौरा के पूर्वज बताते हैं रामायण की शबरी
इसी जाति की कही जाती है इस क्षेत्र में आज भी सवरिया जाति के लोग पाये जाते हैं
अनार्ये की दूसरी शाखा द्रविड़ थी जिनके बीच अगन्य मुनि ने आर्य अभ्यता का सर्वप्रथम
प्रयास किया रामायण की कथा से विदित होता है कि अयोध्या अर्थात ‘उत्तम कौशल’ के
राजा की ज्येष्ट रानी ‘दक्षिण कौशल’ अर्थात मध्यभारत की थी जो कोशल्या अर्थात
कौशल नरेश भानुमत की पुत्री कही जाती थी (12) इसके अतिरिक्त राम का पुत्र कु श ने
विध्य के दक्षिण से दक्षिण कौशल या महा कौश की स्थापना की |

हैहय वंश का राज्य


इस वंश की प्रथम राजधानी महिष्मती (मण्डला) में थी| वह से उनको एक शाखा अनुमानत
सातवी शताब्दी के आसपास सभी त्रिपुरी चली आयी इस वंश का सबसे प्रतापी राजा गागेय
देव था (13) नयी शताब्दी में त्रिपुरी के कलचुरि वंश के कोकल्ल देव के पुत्र मुग्धतुंग के
(875) में तत्कालीन कौशल राज्य से पाली का गढ़ छीन लिया| मध्यतुन के छोटे भाई का
नाम कलिंग राज्य था जो जीते हुए प्रदेशों पर शासन करने लगा इसको राजधानी दक्षिण
कौशल के अंतर्गत तुमना या तुम्मान नामक नगर था जिसे तुम्मान खोल या घाटी भी कहा
जाता था कलिंग राज्य के पौत का नाम रन्तदेव प्रथम था रत्नदेव ने अपनी राजधानी तुम्मान से
हटाकर रतनपुर कर ली (वर्तमान रतनपुर) कलचुरी वंश की यह शाखा हैहंश वंश ने नाम से
विख्यात है| (14) सन 1407 में राजा वीरसिंह देव ने अपने भाई के रवदेव को शिवनाथ
नदी के पार 18 गढ़ौं का मुखिया बनाया के शव देव से प्रारम्भ होने वाली हृदय वंश की एक
नई शाखा बनी जो रायपुर की लहुरी शाखा के नाम से विख्यात हुई |
15 वीं शताब्दी के अंत में गोडो का अधिपत्य मध्यभारत में शुरू होने लगा गोडो का पहला
राजा मदनशाह गढ़ा मडला में था गढ़ा के अतिरिक्त चादा खेरल और देवगढ में भी गोड
राजघराने स्थापित हुए थे और इसी क्रम से रामगढ़, सक्ती सारगढ़ कवधर्रा सभी स्थानों पर
गोडराजधराने आकर बसते गये रायगढ़ का प्रथम राजा मदनसिंह चांदा से फु लझर होता हुआ
इधर आय गोड राजा इस तरह सन 1480 से 1564 तक शासन करते रहे और बाड में
मुगलों से अधिक हो गए और सन 1789 में तो मराठो द्वारा गोंड राजधराने का पराक्रम श्रीण
प्राप्त हो गया | (15)

मध्यभारत में मराठा राज्य


इस क्षेत्र में 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही नागपुर राज्य के मराठे राज्य रधोजी राव
भोसले ने लूटपाट करके देवगढ़ का राज्य अपने अधीर कर लिया इधर हैहयवंशी रतनपुर के
नरेश किसी तरह अपनी सत्ता पर कायम थे लेकिन उनकी स्थिति अच्छी नहीं थी रन्तपुर के
नरेश राजसिंह 1696 में गाद्दी पर बैठा लेकिन 1713 ई० उसकी मृत्यु हो गई इस प्रकार
रायपुर की लहुरी शाखा के तत्कालीय नरेश मोहन सिंह को रतनपुर राज्य का उत्तरधिकारी
नियुक्त किया गया लेकिन सन 1914 ई० में मोहनसिंह की जगह पर सरदार सिंह को गाद्दी
मिली इससे नाराज होकर मोहनसिंह ने अपने भाई के विरुद्ध विद्रोह किया विद्रोह में
असफलता मिलने के बाद मोहनसिंह ने नागपुर नरेश की शरण में जाकर मध्यभारत पर
आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया सरदार नि:सन्तान थे तथा 1832 ई० में उनकी
मृत्यु हो गई तब उनके बाद उनका भाई रधुनायसिंह सिंहासन पर बैठ इस समय रायपुर की
लहुरी नरेश अमरसिंह (1741) मैं राज्य कर रहे थे इधर जब नागपुर नरेश रधुजी भोसले
कर्नाटक गये तो उनका सेनापति भास्कर पन्त को राज्य का शासन सोपा गया
सन 1745 मैं हैह्दवशी शासन पूरी तरह मराठ के अधीर हो गया इसके बाद रायपुर की
शाखा भी मराठो द्वारा सन 1753 में पूरी तरह हस्तगत कर ली गई (16) इस प्रकार
1818 तथा मध्यभारत का क्षेत्र नौकर शाही द्वारा ही शासित रहा | (17)

मध्भारत में अंग्रेजी राज्य


भारत मे उन दिनों अंग्रेजी का प्रस्ताव बढ़ रहा था अंग्रेजी अंग्रेजी और भोसलो में 1803
में देवगांव की संधि हुई जिसके अनुसार बारर एव कटक का राज्य अंग्रेजों को प्राप्त हो गया
और नागपुर में उनका एवं ब्रिटिश रेजीडेन्त भी रहने लगा प्रारम्भ में तो अप्पाजी ने रेजीडेन्त
का विरोध किया लेकिन पराजित होने पर संधि कर ली जिसके बाद पूर्व की ओर के जो
सोहागपुर और सबलपुर सरगुजा तथा जशपुर के राज्य अंग्रेजों को देना पड़े (18)
अप्पा साहब अब नाम के शासन थे अंग्रेज ही वास्तविक शासन थे इसी बीच जब अप्पा
साहव ने भागने की योजना बनाई तो अंग्रेजो ने अप्पा साहव को बंदी बनाकर इलाबाद के
किले में रखना निशिचत किया जब अप्पा साहब बंदी के रूप में प्रयाग ले जा रहे थे तब
किसी तरह से कै द से मुक्त हो गए सन 1840 ई० में जोधपुर में उनकी मुत्यु हो गई (19)
सन 1818 में नागपुर की ब्रिटिश रेजिडेट के प्रतिनिधि स्वरूप कर्नल एगन्यूज़ मध्यभारत
इलाके के प्रबंध नियुक्त हुए और उन्होंने अपना मुकाम राजपुर को बनाया रधोजी तृतीय जब
व्यस्क हुए तब उन्होंने अंग्रेजो के हस्तक्षेप की निति को स्वीकार नहीं किया लेकिन फिर भी
अंग्रेजो के कार्य में हस्तक्षेप करने की क्षमता उनमे नहीं थी (20) सन 1853 में उनकी
उनकी मृत्यु हो गई और डलहौजी ने भोसला राज्य को दत्तक पुत्र लेने की अनुमति नहीं ही
इस तरह मार्च सन में नागपुर राज्य अंग्रेजों में मिल लिया गया भोसल शासन के हार जाने के
साथ अंग्रेजी शासन की और से मध्यभारत के भारत के प्रथम अधिकारी कै प्टन इलियट
नियुक्त हुए (21)

साहित्यक राष्ट्रीय गतिविधियां


मध्यभारत का सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश शुरू से ही पीछडेपन का स्रोत रहा है इस
कारण राष्ट्रीय आंदोलन का प्रचार एवं प्रसार ब्रिटिश के प्रमुख नगरों का तथा वहां की
अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त नेताओं और कतिपय कार्य कर्ताओ तक ही सीमित रहा साहित्यक
गतिविधियों के माध्यम से राष्ट्रयता की भावना को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता
रहा जिसका परिचय इस प्रकार दिया जा सकता है. |
मध्यभारत में साहित्य को गौरव परम्परा रही है मध्यभारत में गोड राजाओं के पहले अनेक
कवि हो चुके हैं. |
20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में अनेक लेखक एवं कवि इस अंचल में हुए जिनमें अनन्तराम
पाण्डेय, मेदिनी प्रसाद पाण्डेय, बालपुर (बिलासपुर के पुरुषोत्तम पांडेय, लोचन प्रसाद
पाण्डेय मूकटधर पाण्डेय, राजनोदगांव के बलदेव प्रसाद मिश्र खैरागढ़ के प्रदुमलाल
पन्नालाल बक्शी एवं राजिम रायपुर के पं० सुंदरलाल शर्मा का नाम अग्रगण्य है इनकी रचना
मुलट साहित्यिक है फिर भी यंत्र-तंत्र राष्ट्रीयता से आते-पाते है |
1905 - 06 मैं जब संपूर्णदेश में बंगाल विभाजन के विरुद्ध आंदोलन का आयोजन किया
गया, तभी मध्यभारत में पं० सुंदरलाल शर्मा (राजिम रायपुर के लेखक एवं कवि) के नेतर्त्व
में जब विदेशी वस्तुओं के वहिष्कार के लिए राजनीतिक स्तर पर प्रतिक्रिया व्यक्त की गई
(22) जब देश में क्रांति की भूमिका अपने चरम सीमा पर थी उस समय मध्यभारत के बस्तर
रियासत के आदिवासियों ने सन 1910 में अंग्रेजों के विरुद्ध में उनका तीर कमान से सफाया
किया इस घटना का उल्लेख जगदलपुर के उपन्यासकार रानी ने अपने उपन्यास (काला जल)
के प्रष्ट 67 मैं किया है पं० लोचनप्रसाद पाण्डेय के ‘दो मित्र’ उपन्यास में शराब की बुराइयों
पर चर्चा की गई| इस उपन्यास ने असहयोग आंदोलन के दिनों में आयोजिन महनिपेथ के
लिए पिके टिग के कार्य को विशेष महत्व प्रदान किया| डॉ० बलदेव प्रसाद मिश्र का (साके त
सन्त) वस्तुत: महात्म गांधी के गांधी वादी सिद्धांत है उन पर लिखा गया महाकाव्य है इस
ग्रंथ ने अंचल के वैदिक के वर्ग को विशेष रूप से प्रभावित किया |
बैरिस्टर छेदिलाल राजनीतिक के तो ज्ञयानी थे ही साथ ही साहित्यिक प्रचार में अग्रणी थे थे
राष्ट्रीय आंदोलन के वर्षों में बैरिस्टर छेदीलाल ने ‘हाडलैंड’ का स्वाधीनता इतिहास को हिंदी
में लिखकर राष्ट्रीय आंदोलन के कार्य कर्ताओं को अभिनय मार्ग दर्शन दिया |
मध्यभारत के अंदर मारवनलाल चतुर्वेदी एक राष्ट्रीय कवि, लेखक और के रूप में उभर रहे
थे| उन्हीं दिनों में सुभद्रा कु मारी चौहान की (शाक्षी की रानी) कविता जन जन को
प्रोत्साहित कर रही थी तथा चतुर्वेदी जी और सुभद्रा जी दोदो ही मध्यप्रदेश के उनमें से थी
जिन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई |
स्वदेशी संघ दुर्ग ने साहित्यिक प्रचार के क्षेत्र में स्वदेशी वस्तुओं को खरीदने एवं बेचने पर
विशेष बल प्रदान किया था इन विचारों को (मालवीर जी को अपील) नामक परचा में कहा
गया (23) “संसार में कोई ऐसा देश नहीं है जिसमें प्रकृ ति ने हमारे देश से अधिक किसी
देश को साधन दिए हो प्रथ्वी मण्डल में ऐसा कोई नहीं है जिसकी सभ्यता हमारे सम्यता से
पुरानी है फिर भी हमारा देश आय संसार के देशों से अत्यंत निर्धन देश में से एक है एक
हिंदुस्तानी की औसत आमदानी का लगभग सोलहवा हिस्सा है अत अपनी आर्थिक
अव्यवस्था को सुधारने के लिए जनता के पास एक ही उपाय है कि अपनी आवश्यकताओं
को कम करके जहां तक हो सके , उन्हें वस्तुओं को खरीदें और बेचे जो हिंदुस्तान के कच्चे
माल, पूंजी और मजदूरी सी ही हिंदुस्तान में ही तैयार की गई हो|
मध्यप्रदेश में अयहयोग आन्दोलन की भूमिका
असहयोग आंदोलन के दिनों में आग्य भारतीय एवं भारतीय अधिकारी में समानता का व्यवहार
था जब भी कभी अवसर आता था तभी वह असमानता के दृश्य को देख पड़ता था | उसे युग
की बात जीवित लोगों की आए भी श्री शेडकर, उपअधीक्षक बिलासपुर के साथ असमानता पर
अभद्ता का इतिहास याद है (24) की एक बार क्या हुआ की रोडकर प्रथम श्रेणी के रेल के
डिब्बे से धक्के मार कर निकाल दिए गए थे तब राष्ट्रीय आंदोलन की स्थानीय कार्यकर्ता एवं
सामान्य नागरिक निम्न गीत व नारे से परिचित था|

“रोडकर पिटकर सहयोग करें |


चुल्लूभर जल में क्यों ना दूब मरे ||”
जाति जात भेदभाव का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है मध्यभारत में राष्ट्रीय
आंदोलन को औज व प्रणा प्रदान करने वाले तपस्वी सुंदरलाल का नाम अमर रहेगा इनकी
शक्ति से जनता प्रभावित थी| गांधी जी ने कांग्रेस के अखिल भारतीय नागपुर कांग्रेस
आधवेशन (1920) में कहा था कि यदि सच्चे दिल से सहयोग आंदोलन को चलाएं तो
राज्य एक वर्ष में ही अवश्य मिल जाएगा इसी विचारों को सुंदरलाल सम्पादक (भविष्य) में
भाषणों को अक्सर कहा करते थे (25)
सहयोग आंदोलन को कु चलने के लिए ब्रिटिश शासन द्वारा अपनायी गई नीति तथा हिंदू में
मुस्लिम को भड़काने के लिए सेना परचा के द्वारा की जाती थी इस संदर्भ में एक पर्चा था
जिसका शीर्षक था खूनी कारनामे व अंग्रेजों की नीचता का उल्लेखन (26) इस परचा का
प्रभाव राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने वालों पर पड़ा |
इन्ही दिनों की बात है जब देश के कोने-कोने में बकिमचंद चटर्जी की ‘वंदेमातरम’ तथा
रामप्रसाद बिस्मिल की पंक्तियां जन मानस को प्रभावित किया हुई थी| प्राय: सभी के मुख्य
पर निम्न पंक्तियां होती थी
“सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है |
देखना है जोर कितना बाजुये कातिल में है ||”
इसी प्रकार की इसी क्रम में इकवाल की पंक्तियां स्मरण हो आना स्वाभाविक ही है इन
पंक्तियों में स्वदेशी स्वाभिमान को जागृत करने के लिए गया जाता है यह पंक्तियां निम्न है
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा
दुर्ग जिला मुख्यालय के बालकों में से जे पी सिहरोल ने एक ‘बाल’ कांग्रेस संस्था की
स्थापना की थी इसके सदस्य थे वह राष्ट्रीय कविता में गीत गायन में विशेष दिलचस्पी रखते
थे| महाकौशल राजनीति प्ररिषद रायपुर में 13 अप्रैल 1930 को की गयी| इस अवसर
पर पं० रविशंकर शुक्त द्वारा अनाथालय वाले तथा राष्ट्रीय विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों
द्वारा के सरिया वस्त्र पहने हुए मंच पर आकर गीत गाया जो आगे चलकर वर्षों में
अभीयानागीत बन गया था (27) यह गीत निम्न प्रकार है
रणभेरी बज चुकी बीखर पहारो के सरिया बाना उठो| उठो| है भारत वीर, ॠपियो
की प्यारीसन्तान स्वतंत्रता के महासंगम में, हो जावे सटष बलिदान धर्म युद्ध में मरना
भी है, महाअमर पद को पाना रणभेरी बज चुकी बीरबर पहारो के सरिया बाना||
1||
माता के सच्चे पुतो की, आज कसौटी होना है देखें कौन निकलता पीतल, कौन
निकलता सोना है उतरेगा जो आज समर में, वही वीर है मरदाना रणभेरी बज चुकी
बीरबर पहरों के सरिया बाना||2||
यह मदान्धशासन उल्टा दो, अपने प्रबल प्रधान पहारो से अन्यायी अरी को दहला
दो, नीज के हरी-हुकारो से स्वतंत्रता की विजय पता का, ऊं ची फहराते जाना रणभेरी
बज चुकी बीरवर पहनो कसरिया बाना||3||
साढ बरस के बूढ़े गांधी देव बड़े जाते हैं आज तुमको किं तु युवा कहलाते उर में
तनिक न आतीलाज इस विडम्ब्ना मय जीवन से तो अच्छा है मरजाना रणभेरी बच
चुकी बीरवर पहनो कसरिया बाना||4||
इसी गीत के अतिरिक्त खरेरा (रायपुर) निवासी पुरुषोत्तम लाल ने सन 1930 में कांग्रेस
आल्हा की रचना की थी इसी के मध्य से कांग्रेस एवं राष्ट्रीय आंदोलन के सिद्धांतों का प्रचार
में प्रसार किया गया (28) व्रिटिश शासन ने (1932) के प्रारंभ में ही बिभिन्न अध्यादेशो
के माध्यम से सभा करना, आंदोलन का प्रचार व प्रसार को प्रतिबंधित किया लेकिन तब भी
राष्ट्रीय आंदोलन के कार्यकर्त्ता एव नेता प्रतिदिन हाथ से लिखकर या ‘साइक्लो स्टाइल’
कराकर ‘कांग्रेस बुलेटिन’ प्रतिदिने जन साधारण में वितरित किया जाता था बहिष्कार सप्ताह
6 अप्रैल से 13 अप्रैल तक 1932 के मध्य मान्या गया| अप्रैल 1932 को कांग्रेस
बुलेटिन में कहा गया| “आज के 13 वर्ष पहले जालिम ओ०डायर की लणठशाही ने और
हत्यारे डायर ने जिस तरह मासूम बच्चों स्त्रियों और निदोष पुरुषों को गालियो से भूना उनके
खून की होली उसका सप्ताह कह शुरू होगा तुम्हें रोज का कार्यक्रम मिलेगा दुर्ग वासियों शान
से कार्यक्रम को पूरा करना (29)
इसी प्रकार इसी क्रम में अप्रैल को विदेशी वस्त्र बहिष्कार में दुर्ग जिला में पांच कन्डीला चौक
पर मानने से सम्बन्धित बुलेटिन निकल गई जिसमें शककर न खाने की अपील थी क्योंकि
1 करोड रुपये पर 10 करोड़ की ड्यूटी लगती थी| इसका ऐसा कहा गया था जबकि 8
अप्रैल 1932 को खादीदिवस 1 अप्रैल को मिटटी का तेल न प्रयोग करने का दिवस, 10
अप्रैल को विदेशी दवाईयां के सेवन न करने से सम्बंधित था वही 11 अप्रैल कॉफी चाय
वहिष्कार 12 अप्रैल को महिला दिवस तथा अंतिम जलियां वाला दिवस मनाने से
सम्बंधित बुलेटीन निकल गया|
4 जुलाई 1932 को बंदी दिवस मध्यभारत के विभिन्न स्थानों पर मनाया गया| किसी
अज्ञात व्यक्ति ने एक परचा प्रसारित किया था जिसमें उक्त दिवस का सिनमा, नाटकघरों का
बटीष्कार करने तथा उसे दिन उपवास रहकर एक इंच भी विदेशी कपड़े न खरीदने की अपील
की गई |
सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दिनों में (1932) क्रांतिकारी भारतीय ने रायपुर से मेधनिषेह
पिके टिंग के अवसर पर पुलिस की दमनात्मक क्रत्यो की घोर निंदा की तथा अपने ‘गुंडों के
काले कारनामे’ नामक शीर्षक से एक परचा वितरित करात करवाया था यह परचा मा बहनों
की रक्षा के लिए रायपुर निवासियों को राष्ट्रीय आंदोलन में कु द कड़ने का आवाहन था
इसका व्यापक प्रभाव पड़ा और राष्ट्रीय आंदोलन से तेजी आई| यहां की ग्रामीण जनता
धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण ग्रामीण जनजागरण के लिए धार्मिक एवं संस्कृ तिक साधनों
का प्रयोग किया गया इस दिशा में 1932 में क्रांतिकु मार भारतीय ने राष्ट्रीय रामायण के
माध्यम से जनसाधारण में राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति जागृति उत्पन्न की रामचरित मानस के
पात्र (रावण) के चरित्र की तुलना विशिष्ट शासन से की जाती थी जिससे पृथ्वी के अधिकांश
लोग परेशान थे इस ‘राष्ट्रीय रामायण’ का प्रभाव मध्यभारत के अतिरिक्त जबलपुर, गोंडीया
आदि स्थानों में भी देखा जा सकता है |
मध्यभारत अचल में यह समय राजनीति धार्मिक के साथ ही साथ संस्कृ ति एवं सामाजिक
पूनजागरण का काल रहा यहा रूढ़िवादिता और अन्य विश्वासों का कु हासा विछिन्न होता जा
रहा था इस अद्भुता को नया सबल प्रदान करने के लिए सन (1933) में गांधी जी
मध्यभारत की यात्रा की| यह यात्रा अछु तोदूर के लिए जनमानस को तैयार करने से
सम्बंधित था| इसी दिशा में विभिन्न रचनाए की गई | स्वाधीनता प्राप्ति के बाद ही स्वराज्य
की परिकल्पना भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओ, लेखकों तथा कवियों के मस्तष्क की थी
इस दिशा में मचामाठ ग्राम माटपारा रायपुर जिले कि गिरवर दास वैष्णव की कृ ति
(मध्यभारत सुराज ) अपना विशेष महत्त्व रखती है यह रचना (1935) में सम्राजवादी
विचारधारा से सम्बंधित थी इसी वर्षा में राजपुर जिले ने 3 यान पत्रिका का प्रकाशन
सुन्दरलाल त्रिपाठी के सम्पादन में आरम्भ की गई इस पत्रिका ने राष्ट्रीय आन्दोलन को नई स्फू ति प्रदान
की |

मध्य भारत में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव


मध्यभारत के कतिपय विद्यार्थी नागपुर के आंदोलन में भाग ले रहे थे इसमें रामकृ ष्ण ठाकु र
के (प्यारे लाल सिंह के पुत्र) मध्यप्रान्त विद्यार्थी प्रतिष्ठद का महामंत्री था उनके नित्यव् में एक
प्रदर्शन निकाला गया था तथा इसमें एक विद्यार्थी पुलिस की गोली से मारा गया था जब यह
समाचार मध्यभारत के अचल में आया तो छत्तीसगढ़ के विद्यार्थी समुदाय में शोक छा गया|
रायपुर शहर में स्कू ल एवंम कॉलेज में हड़ताल हुई और 10 सितंबर को एक प्रदर्शन हुआ
उसी दिन एक सभा की गई जिसमें 80 विद्यार्थी बंदी बना लिए गए 15 दिन की जेल
काटकर आने के बाद रणवीर सिंह शास्त्री और ठाकु र सचिनदंनन्द ने सरोना (रेलवे स्टेशन)
के पास टेलीफोन के तार काटने तथा रेल की पटरी उखाड़ने का प्रयास किया था ऐसा पुलिस
का संर्दह था (30)
इस काम में मध्यभारत में एक लंबे समय तक उच्च सेवा के अधिकारी आर० एन० वनर्जि ने
अपने संकरण में लिखा है कि मध्यभारत में एक विशाल प्रदर्शन हुआ था जिसमें पुलिस थाने
पर हमला बोला गया तथा पुलिस को वहां संपर्क करने के लिए कहा गया था भीड़ जब
अपनी मांग पर हटी रही तो अतिरिक्त दुर्ग जिला अधीक्षक ने भीड़ पर गोली चलवाई जिसके
परिणाम स्वरुप सात लोग मारे गए (31) पाटन के रामदेव आचार्य के नेत्त्व में एक प्रदर्शन
किया गया जिसका लक्ष्य पुलिस को खादी की वर्दी पहनना था 20 हजार की अनियंत्रित
भीड़ ने पाठ में थाने को घेर लिया था और इसका अंत साथ व्यक्तियों के मृत्यु के साथ हुआ
था इसके अतिरिक्त बटग गांव (दुर्गा) के हसिया मंडल ने पुलिस के साथ ढूंद किया और ढूंद
के परिणाम स्वरुप आचार्य रामदेव शास्त्री बंदी बनाए गये |
रायपुर कें द्रीय कारागार की दीवार को अक्टूबर 1942 को कतिपय उवको-बिलरव नारायण
अग्रवाल पाण्ड्य ने डायना माइट लगाकर उडाने की कोशिश की थी विलस नारायण
अग्रवाल जबलपुर से डायनामाइट लेकर आए थे तथा अपने विभिन्न सहयोगियों से विचार
विषम के बाद कें द्रीय कारागार की दीवार उडाकर राजनीतिक बन्दियो को मुक्त करने की
योजना तय की किं तु इस योजना के बाद ही नारायण दास राठौर तथा ईश्वरीचरण शुक्ला को
टेलीफोन के तार काटने तथा लेटर बॉक्स जलाने के अपराध में बंदी बना लिया गया इस तरह
रहस्य पर पर्दा पड़ गया | (32)
जब आंदोलन में मंदी आने लगी तभी संपूर्ण मध्यप्रशांत में आंदोलन को गति प्रदान करने के
लिए एक चार प्रष्ठ को प्रचार पत्रिका अथवा परिचय इलाहाबाद से बिलासपुर के कांग्रेसी
कार्यकर्ता रामेश्वर प्रसाद साहू एवंम राजाराम साहू को प्राप्त हुआ इन दोनों व्यक्तियों ने
सर्वप्रथम दुर्ग में रहकर इसका वितरण किया जहां इन्होंने द्वारिका प्रसाद से सहयोग मिला
इसके बाद राजानंदगांव गोडीया हिगंन्घात तक इसका वितरण किया गया वापस आने पर
उन्हें बंदी बना लिया (33)
मध्यभारत की रियासतों में भी विप्लव
मध्यभारत में 14 रियासतों देशी थी जहां जहां करो या मरो आंदोलन का प्रभाव पड़ा वहां
की जनता तथा स्टेट कांग्रेस के सदस्यों कांग्रेस को अवैधानिक करार देने वशिष्ठ नेताओं के
बंदी बनाये जाने तथा अमानुषिक अत्याचार के प्रतिकार में प्रदर्शन एवंम सभाय की जिसके
परिणामस्वरुप स्टेट कांग्रेस के कतिपय नेताओं को बन्दी बनाया गया
इस प्रांत में मगनलाल बागड़ी के नेतृत्व में हिंदुस्तानी लालसेना क्रांतिकारी संगठन की
स्थापना की जा चुकी थी इस संगठन में 1400 प्रतीक्षित तथा अनुशासित स्वयं सेवक थे
इनका लक्ष्य शास्त्रों के माध्यम से देश को स्वतंत्र करना था शास्त्रों की आपूर्ति पुलिस थाने के
शास्त्रागरों से शास्त्रों का अपहरण करके की जाती थी |
मध्य भारत और आजाद हिंद फौज
आजाद हिंद फौज के तीन सैनिक अधिकारियों पर जब मुकदमा चलाया गया तो सारे देश में
विरोध सवाये की गयी उसी काम में मध्यभारत में प्रमुख नागरिकों तथा विद्यार्थी द्वारा
प्रदर्सन एवंम सेवाये की गयी| इसके आतिरिक्त बिलासपुर में नव वैध जवान सभा के
अध्यक्ष गरीबराम वेद ने कोहिमा भोज का आयोजन किया वह कार्यक्रम सुभाष चंद्र बोस
के सम्मान में किया गया था सुभाष चंद्र बोस ने कोहिमा घास भी खा कर आजादी का
दीपक जलाये रखने का बिड़ा उड़ाया था देश के रआर्थ विदेशों में सैन्य संगठन किया था
ऐसे उशस्वी की स्मृति में तथा भारतीय शासन के कु कु त्य की निंदा के लिए बच्छारार के
बगीचे बिलासपुर में कोहिमा भोज का आयोजन किया था इस भोज में नगर के प्रमुख व्यक्ति
एवंम नेता आमत्रित थे इस भोज में टेबिलों पर स्वस्थ वस्त्र बिछा हुआ था ऊपर प्लेटे लगी
थी प्लेट भी कु छ खास कपड़ों से ढकी हुई थी उपस्थित सभी लोगों ने खाना खाकर सुभाष
चंद्र बोस के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की तथा शासकीय कर्त्ता की निंदा की (34)
मध्यभारत के रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, मुगेली,धमतरी आदि स्थानों में इस कम में समाये
हुई और प्रदर्शन किए तथा आजाद हिंद फोज को देश द्रोही कहे जाने का विरोध किया गया
रन सबका परिणाम यह निकला की जनता एवंम सेना में क्षुबधता आयी और विद्रोह कै से
मुखर हुए
भारतीय नौ सेना का विद्रोह
बुम्बई में भारतीय नौसेना के तलवार नामक जहाज के लगभग 3000 सैनिकों ने अपने
साथ किए गये जातीय भेदभाव तथा उन्हें दिए जाने वाले भोज, बस्त्र, वेतन, एवंम
सुविधाओ के विरुद्ध में हडतात आरंभ कर दी (35) वहडताल की घोषणा 18 फरवरी
को हुई और 20 फरवरी 1946 को अन्य 12 समुद्री बड़ो में विद्रोह की जलवा फै ल
गई| फल स्वीकार 20,000 नाविक सैनिक हडताल पर चले गये |
दिल्ली पुलिस का विद्रोह
नौसेना के विद्रोह के समाचार ने 21 मार्च 1946 को दिल्ली के लगभग 2000 पुलिस
कर्मचारियों ने अल्प वेतन तथा निक्रष्ट भोजन के विरोध में अनशन किया अनशनकारियों
पर अश्र गैस के गोले छोड़े गये और उन्हें बंदी बनाया गया
कै विनेट मिशन
इसी बीच ब्रिटिश सरकार ने कै विनेट मिशन भारत भेजा| इस मिशन में पैथिक लारेन्स सर
स्द्राफडॅ कीप्स और ए०बी० अलेकजेन्डर थे यह के बिनेट मिशन 23 मार्च 1946 को
भारत आया और इसने 182 बैठक 472 राष्ट्रीय नेताओं से विचार विमर्श किया और
अपनी योजना को अनेक समक्ष रखा |
अंतरिम सरकार का गठन
मुस्लिम लीग द्वारा पूर्वरूपेण मंत्रिमणडल मिशन योजन को स्वीकार कर देने तथा सीधी
कार्यवाही की घोषणा के फलस्वरुप वाइसराय ने कांग्रेस को आंतरिम सरकार बनाने के लिए
आमंत्रित किया| पं० जवाहरलाल नेहरू ने इस आमंत्रण को स्वीकार किया 22 अगस्त
1946 को वाइसराय ने पुरानी कार्यकारिणी के नाम को अपनी स्वीकृ ति प्रदान की
लिंग की सीधी कार्यवाह का परिणाम
अन्तरिम सरकार के गठन से पूर्व ही लिंग को परिषद् सीधी कार्यवाही दिवस मनाने का निश्चय
कर चुकी थी| 16 अगस्त 1946 का दिन इतिहास में अमर रहेगा क्योंकि इसी दिन
बंगाल सरकार ने सार्वजनिक छु ट्टी की घोषणा की| अबुल कलाम आजाद ने 16 अगस्त
की सीधी कार्यवाही को भारतीय इतिहास का ‘काला दिवस’ निरूपित किया (36)
मध्यप्रान्त में सीधी कार्यवाही का परिणाम
मध्यप्रान्त में सीधी कार्यवाही का परिणाम स्वरुप साम्प्रदायिक दगों का स्वरूप देखा गया
अमरावती, कटनी, बडनेरा और जबलपुर में छु टपुर छठनाये घटी, किं तु मुस्लिम लोग के
सदस्य इस प्रांत में अत्याचार की प्रकार उठाते रहे (37)

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