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भौगोलिक विवरण
वर्तमान मध्यप्रदेश का दक्षिण पूर्वी अंचल मध्यभारत के नाम से जाना जाता है इस क्षेत्र के
अंतर्गत रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर, रायपुर, बस्तर, दुर्ग तथा राजनादगांव जिले
सम्मिलित है मध्यभारत का भू-प्रदेश मध्यप्रदेश में 17 ०-45’ उत्तर अंक्षाश से 23 ०-7
उत्तर-अंक्षाश एव 80 ०-43 पूर्वी देशान्तर से 83 ०-38 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है
(9) इस भू भाग का सम्पूर्ण क्षेत्रफल 1,35,133 वर्ग किलोमीटर है यह में कल
सिहावा तथा रामगिरी की पहाड़ियों से घिरा हुआ है| इस क्षेत्र में महानी शिवनाथ इंद्रावती
हसदो-खारुन आदि नदिया प्रवहित हैं| (10)
मध्यभारत का वर्तमान क्षेत्र को दो भागों में विभाजित किया है| - रायपुर तथा बिलासपुर
रायपुर के अंतर्गत चार जिले आते हैं| जिनका नाम है बस्तर, दुर्ग, रायपुर, राजनादगांव, तथा
बिलासपुर के अंतर्गत जो जिले आते हैं सरगुजा रायगढ़ बिलासपुर है |
मध्यभारत के इस सम्पूर्ण भू-भाग में प्राकृ तिक देन का भंडार विद्यमान है इस क्षेत्र के अधिकाश
भाग वनों से भरा हुआ है सम्पूर्ण वन प्रदेश में बास, लाख, हर्रा, तेदू, गोद एवं अनेक प्रकार
की जड़ी-बूटियां उपलब्ध है इस प्रकार प्रक्रति की सहज से मध्यभारत के अत्यधिक भू-भाग में
विरवरी और निरवरी है कृ षि के दृष्टि से मध्य भारत अत्यधिक समृद्ध क्षेत्र है यहां की प्रमुख
उपज धान है तथपि गेहूं, चना, दाल, तिलहन, कपास इत्यादि भी यहां की उर्वरा भूमि उत्पन्न
करती है इसी प्रकार मध्यभारत का अधिकांश क्षेत्र खनिज-पदार्थों के लिए भी महत्वपूर्ण है इस
प्रदेश की भूमि में कोयला, मैगनीज, वाकसाइड, चुना, लोहा, डोलामाइट, टीन, ताबा,
अभ्रक आदि अधिकाधिक मात्रा में उपलब्ध है खनिज पदार्थों की दृष्टि से बिलासपुर तथा
कोरबा में कोयला तथा बाक्साइड रायगढ़, सकती और बिलासपुर में चूने का पत्थर तथा दुर्ग
जिले में भिलाई उत्तम प्रकार दुर्ग लोहे के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है यह एशिया का सर्वाधिक
महत्वपूर्ण कारखाना इसी अंचल में विद्यमान है मध्यभारत की जलवायु समान्त गर्म और
आद्रता युक्त है|
एतिहासिक परिचय
मध्यप्रदेश की राजनीतिक में मध्यभारत का निर्णायक स्थाल रहा है इसका इतिहास अत्यंत
प्राचीन एवं गोरवमय है मध्यभारत आर्य एवं अनार्य सस्क्रतियो का संगम स्थल रहा है
मध्यभारत का कमबध्द इतिहास अनूपलब्ध है फिर भी इतिहास बोध के प्ररमिभ्क साधनों
में उत्कीर्ण लेख, सिक्के , स्थापप्य, वैदिक, पौराणिक, जैन, बौद्ध, साहित्य तथा मुसलमान
शासको द्वारा लिखे विवरण चीनीयात्री व्हेनसाग का विवरण, अंग्रेज अधिकारियों के
विवरण प्रमुख है जिससे इस क्षेत्र की इतिहास की एक अस्पष्ट रूपरेखा निर्मित हो पाती है |
बीते वर्षों में पूरे तत्वों से सम्वविन्त जो शोध हुए हैं उनमें स्वर्गीर्य हीरालाल और स्वर्गीर्य
लोचनप्रसाद पाण्डेय के प्रयत्नों से इतिहास के प्रष्ठो को क्रमबार सजाने का यथा-सम्भव
प्रयास किया गया है मध्यभारत के इतिहास के संदर्भ में हाल में लिखे गए शोध प्रबंध इस
दिशा में अपना महत्व रखते हैं डॉ० भगवान सिंह ठाकु र ने अपनी किताब मध्यभारत में
भौसला राज्य की अन्तर्गत लिखा है कि अभी तक तीन किताबें लिखी जा चुकी है जिनमें
डॉ० विष्णुसिंह ठाकु र (प्राचीन काल पर) डॉ० ज्ञानेश्वर प्रसाद शर्मा (आधुनिक काल पर
1741-1818) श्री प्रभुलाल मिश्र का (मध्यभारत का राजनीतिक इतिहास) जो
1741 से 1858 का इतिहास प्रस्तुत करता है प्रमुख है | (11)
पौराणिक काल में इस क्षेत्र का उल्लेख दण्डकारय और कान्तार के रूप में आया है जहां
शवरों को निवास था कपिपथ विद्वान शवरों को सौरा के पूर्वज बताते हैं रामायण की शबरी
इसी जाति की कही जाती है इस क्षेत्र में आज भी सवरिया जाति के लोग पाये जाते हैं
अनार्ये की दूसरी शाखा द्रविड़ थी जिनके बीच अगन्य मुनि ने आर्य अभ्यता का सर्वप्रथम
प्रयास किया रामायण की कथा से विदित होता है कि अयोध्या अर्थात ‘उत्तम कौशल’ के
राजा की ज्येष्ट रानी ‘दक्षिण कौशल’ अर्थात मध्यभारत की थी जो कोशल्या अर्थात
कौशल नरेश भानुमत की पुत्री कही जाती थी (12) इसके अतिरिक्त राम का पुत्र कु श ने
विध्य के दक्षिण से दक्षिण कौशल या महा कौश की स्थापना की |