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Bali Aur Shambhu
Bali Aur Shambhu
**बिल और शंभ.ु .. **
**सीन- ****1 **
शंभु अपने बेड पर सूटकेस खोल रहा है। Stage (R)गौतम सो रहा है, शंभु सूटकेस में से एक फोटो िनकालता है
और Stage (R) देखता है और 'िततली' कहता है। िततली आकर शंभु के बगल में बैठ जाती है।
िततली- पापा, आप डांस देखने तो आए नहीं, अब यहाँ बैठे-बैठे फोटो देख रहे हो।
िततली- मुझे भी पता है आप नहीं आएँ गे, पर पता नहीं क्यों हमेशा नाचते हुए मैं आपको भीड़ में ढूँ ढती हूँ । या जब
लोग पीछे िमलने आते हैं तो मैं इं तज़ार क्यों करती हूँ िक आप मेरा नाम पूछते हुए, पीछे मुझे ढूँ ढेंगे। िततली को
देखा आपने? िततली... जो सबसे आगे डांस कर रही थी, उसका कमरा कहाँ है? िततली, बेटा...
शंभु- सारी प्रेिक्टस तो तुमने मेरे सामने की है। िवश्वास नहीं? मैं तुम्हें तुम्हारा डांस करके बताता हूँ ... (डांस करता
है.. और शंभु की कमर दुखने लगती है, वो वािपस बेड पर आ जाता है।)
िततली- (हँ सती है) आप बैठ जाइए, रहने दीिजए। एक बात कहूँ , आप बहुत गंदा डांस करते हैं। पापा, कभी-कभी
मुझे लगता है िक मैं नाचते-नाचते उड़ जाऊँगी और िकसी पहाड़ पर जाकर बैठ जाऊँगी और वहाँ नीचे आप मेरा
इं तज़ार कर रहे होंगे। पर मैं नहीं आऊँगी और जब आप इं तज़ार करते-करते थक जाएँ गे, तब मैं पीछे आकर...'बो'
करके आपको डरा दू ँगी। मज़ा आएगा, क्यों पापा?
शंभु- बेटा िततली, कहाँ जा रही हो? बैठो सुनो... चली गई... अपने समय से आती है अपने समय से चली जाती
है। (तभी उसे दरवाज़े पर परछाई िदखाई देती है... मानों कोई खड़ा हो।) अरे आप, आप कौन हैं? िततली बेटा,
शंभु- बेटा िततली, कहाँ जा रही हो? बैठो सुनो... चली गई... अपने समय से आती है अपने समय से चली जाती
है। (तभी उसे दरवाज़े पर परछाई िदखाई देती है... मानों कोई खड़ा हो।) अरे आप, आप कौन हैं? िततली बेटा,
तुमने िकसी को बुलाया है? आप, आपका नाम क्या है? बेटा देखो अपने घर कोई घुस आया है... (Shadow
laughs) क्या हँ स क्यों रहे हो। जाओ िनकल जाओ यहाँ से।
(शंभु बहुत सारी चीजें फेंकने लगता है दरवाज़े की तरफ़। गौतम, जो िक ज़मीन पर सो रहा है, डरकर उठ जाता
है।)
(शंभु बेहोश हो जाता है। गौतम उसे उठाकर पलंग पर सुलाता है और भाग जाता है।)
Black out…
**सीन- ****2******
(गौतम दरवाज़े पर खड़ा है, िझलिमल सामान बीन रही है, भीतर से शंभु आता है)
िझलिमल- नमस्ते! रात में काफ़ी तोड़-फोड़ की है आपने, याद है? कल आप गौतम की वजह से बच गए। अगर
समय पर ये मुझे नहीं बुलाता तो कुछ भी हो सकता था। कल आपको दू सरा अटैक आया था।
िझलिमल- गौतम को आपकी ही देखभाल के िलए रखा है, पर वो इतना डर गया है िक वो इस कमरे में आना भी
नहीं चाहता। पहले ही मूखर् भूतों से डरता था। आप बताइए क्या करूँ ? इस Old Age Home के भी कुछ rules
हैं, मुझे भी जवाब देना पड़ता है। और आपकी तबीयत?
नहीं चाहता। पहले ही मूखर् भूतों से डरता था। आप बताइए क्या करूँ ? इस Old Age Home के भी कुछ rules
हैं, मुझे भी जवाब देना पड़ता है। और आपकी तबीयत?
शंभु- सॉरी!
गौतम- िकसके?
गौतम- वो आज शाम आने वाले थे पर age proof certificate नहीं था तो वो रात तक उसे लेकर आ जाएँ गे।
िझलिमल- ठीक है। अगर सब ठीक है तो उन्हें, इनके साथ िशफ्ट कर देना।
शंभु- क्या मैं िकसी के साथ नहीं रहूँ गा मैं इस old age home को अपनी पूरी पेंशन दे रहा हूँ , तािक मैं अकेला
रह सकूँ।
िझलिमल- अगर मैंने आपकी सही-सही िरपोटर् तैयार कर के दे दी िक आप कैसे अकेले यहाँ आए िदन तोड़-फोड़
करते रहते हैं तो आपको अगले िदन यहाँ से िनकाल िदया जाएगा। देिखए ये सब आप ही की बेहतरी के िलए है।
अरे हाँ, आपकी पिरकथा मुझे अच्छी लगी।
शंभु- हाँ?
शंभु- क्या करूँ इसकी मुझे आदत हो गई है िततली को बहुत अच्छी लगती थी, मैं इसे पढ़कर उसे सुलाया करता
था।
(शंभु पिरकथा पढ़ना शुरू करता है... िततली भीतर से वही पिरकथा पढ़ते हुए बाहर आती है।)
शंभु- मैंने एक परी से कहा िक मुझे एक ऐसी पिरकथा सुनाओ, िजसे सुनकर मेरी बेटी को अपनी परी िमल जाए।
वो परी हँ सने लगी और उसने कहा ठीक है, मैं एक ऐसी परी की कहानी सुनाती हूँ जो एक िदन ग़ायब हो गई थी
और िफर कभी नहीं िमली। वो बहुत ख़ूबसूरत परी थी िजस िदन वो ग़ायब हो गई थी, परी देश में सभी परेशान हो
उठे थे। कैसे गई? कहाँ गई? क्योंिक ऐसे कोई परी कभी ग़ायब नहीं होती। उसे ढूँ ढने का काम मुझे सौंपा गया
क्योंिक (िततली साथ में बोलती है) हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।
क्योंिक (िततली साथ में बोलती है) हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।
िततली- मैं धरती पर उस आदमी की तलाश करने लगी िजसकी वो परी थी। बहुत समय बाद वो िमला। पर परी
उसके पास नहीं थी जानते हो क्या हुआ था। उस आदमी ने एक बार िकसी से कह िदया था िक मैं पिरयों में
िवश्वास नहीं करता और उसकी परी मर गई थी।
Black out..
**सीन- ****3**
िझलिमल- आइए, ये कमरा है। ये शंभुजी हैं, शायद सो रहे हैं। आप काफ़ी लेट हो गए।
बिल- िझलिमल!
िझलिमल- जी।
बिल- काफ़ी अच्छा नाम है, ये नाम हमने सुना है, अरे हाँ...
बिल- (singing) नमस्ते शंभु जी! कमरा तो ऐसा लग रहा है जैसे अभी आपके बच्चे फुटबाल खेल के गए हों।
(पलंग सरकाने लगता है।)
शंभु- पलंग मत सरकाइए। (लेटे हुए.. बिल को समझ नहीं आता िक ये आवाज़ कहाँ से आई है।)
बिल- अरे शंभु जी! नमस्ते! काफ़ी अच्छा है कमरा, आपने एकदम अपने घर जैसा रखा है। काफ़ी समय से आप
यहाँ रह रहे होंगे।
बिल- काफ़ी अच्छी िदखती है। मेरा मानना है डॉक्टर को हमेशा अच्छा िदखना चािहए। इससे मरीज़ जल्दी ठीक हो
जाता है।
शंभु- अपने मानने को आप अपने पास ही रिखए। लाइट बंद कर दीिजए, मुझे सोना है।
शंभु- लाईट ऑफ!!! (बिल बड़बड़ाता हुआ लाइट ऑफ करता है, वािपस आकर पलंग सरकाता है।) पलंग मत
सरकाईये...
बिल- पर ये तो एकदम अजीब जगह रखा है। मुझे घर के कोनों से बहुत घबराहट होती है।
शंभु- जो भी हो वो ही आपकी जगह है। अब चुपचाप सो जाइए। (बिल पलंग पर लेट जाता है... कुछ देर में)
बिल- अगर मेरी पढ़ने की इच्छा हुई तो शंभु जी? तब तो लाइट जलानी ही पड़ेगी क्योंिक अँधेरे में पढ़ना मैंने अभी
तक सीखा नहीं है।
शंभु- मेरे साथ रहना है तो अँधेरे में पढ़ने की आदत डाल लीिजए। (silence)
शंभु- (शंभु पहली बार उठकर बैठ जाता है।) आप चुपचाप नहीं सो सकते? अब अगर एक शब्द भी मुँह से िनकाला
तो धक्के मारकर इस कमरे से िनकाल दू ँगा।
बिल- (बिल भी उठ जाता है।) मुझे इतनी जल्दी नींद नहीं आती... अजीब तानाशाही है, मेरी जब इच्छा होगी तब
सोऊँगा। आप क्या, क्या, डरा िकसको रहे हैं? मैं िकसी से नहीं डरता। देखो मुझसे पंगा मत लेना। मैंने जवानी में
कराटे सीखे थे। एक समय ब्रूस ली मेरे गुरु थे...
शंभु- और मैंने जवानी में दो ख़ून िकए हैं। अभी तीसरा ख़ून करने में मुझे कोई िदक़्क़त नहीं होगी, समझे! चुप!
एकदम चुप लेटो! आँ खें बंद एकदम बंद!
(Fade out)
**सीन-****4**
(बिल सो रहा है। शंभु उसके आगे ग़ुस्सें में चक्कर लगा रहा है। िझलिमल आती है।)
िझलिमल- Good Morning! मैंने कहा Good Morning! कैसी तबीयत है?
िझलिमल- बिल जी िदख नहीं रहे, वो िज़ं दा हैं िक वो... अरे अभी तक सो रहे हैं?
शंभु- उल्लू हैं, उल्लू! िदन में सोते हैं रात में गाने गाते हैं।
बिल- मैं सोया नहीं हूँ । सुबह-सुबह अपनी तारीफ़ सुन रहा हूँ ।
बिल- Good Morning! उठ जाऊँ शंभु जी? डर के मारे रात भर सो नहीं पाया। और आप एक िमनट...
बिल- मैं भी इनके साथ नहीं रहना चाहता, मैं पागल हो सकता हूँ । ये रात में मुझे डरा रहे थे। अभी जैसे िदख रहे हैं,
असल में हैं नहीं। मैं अभी आया, आप जाना मत। (बिल अंदर जाता है)
िझलिमल- शुभांकर का लैटर आया है। ये 10 िदन पहले आया था। ये अभी आया है।
िझलिमल- पता है आपने कहा था, पर मुझे लगा शायद बिल जी के आने से आपका मूड ठीक हो जाए, पर अब
मुझे लगता है, इन्हें फेंकना ही पड़ेगा।
िझलिमल- दो साल हो गए हैं। वो लगातार आपको लैटर िलख रहा है, क्या आपकी एक बार भी इच्छा नहीं हुई िक
कम से कम एक लैटर पढ़कर देखें, क्या कहना चाहता है वो। कल शुभांकर का फोन भी आया था, कह रहा था
िकसी बड़ी कंपनी में उसे ऑफर आया है, शायद out of India जाना पड़े। पर समझ में नहीं आ रहा है िक Join
कम से कम एक लैटर पढ़कर देखें, क्या कहना चाहता है वो। कल शुभांकर का फोन भी आया था, कह रहा था
िकसी बड़ी कंपनी में उसे ऑफर आया है, शायद out of India जाना पड़े। पर समझ में नहीं आ रहा है िक Join
करे या नहीं करे। वो आपसे िमलना चाहता है।
शंभु- मैं िकसी शुभांकर को नहीं जानता हूँ , तुम मुझसे उसकी बातें मत िकया करो।
िझलिमल- मैंने मना कर िदया। कहा िक आपकी तबीयत ठीक नहीं है, इसिलए आप अभी नहीं िमल सकते।
शंभु- नहीं, कभी नहीं िमलना मुझे। (बिल की अंदर से कुल्ला करने की आवाज़ आती है) मैं इस आदमी के साथ
नहीं रह सकता हूँ इसे पहले यहाँ से िनकाल दो।
िझलिमल- आपका अकेले रहना ठीक नहीं है ये मेरा नहीं मैनेजमेंट का फैसला है। मैं इस बारे में कुछ नहीं कर
सकती। कम से कम कुछ िदन रहकर तो देिखए, िफर भी आपको ठीक नहीं लगेगा, तो बात करूँ गी।
िझलिमल- वैसे बिल जी के बारे में हमने पता िकया है, वो अच्छे आदमी हैं।
बिल- अरे! मुझे आपसे बात करनी है, इधर आइए, क्या आप लोग यहाँ खूिनयों को भी रखते हैं?
िझलिमल- कौन?
बिल- ये बुढ़उ दो ख़ून कर चुके हैं। एक और करना चाहते हैं, वो भी मेरा बताइए।
बिल- नहीं भाई। इनका तो नाम भी खूिनयों जैसा है- शंभु। आप क्यों मेरी बिल चढ़ा रही हैं?
िझलिमल- आपको रहना तो इन्हीं के साथ। घबराइए नहीं मैं आती रहूँ गी। क्या आप मेरे ख़ाितर इतना नहीं कर
सकते, प्लीज़!
बिल- ठीक है। पर आप आती रिहएगा वरना ये मुझे मार डालेंगे और िकसी को पता भी नहीं चलेगा।
िझलिमल- चलती हूँ शंभु जी, शाम को आती हूँ आपसे िमलने बिल जी- ठीक। (exit)
शंभु- देिखए! सुिनए! गाना बंद! आप और हम आराम से एक साथ रह सकते हैं, अगर हमारे बीच कम से कम संवाद
हो तो।
शंभु- मूख!र्
शंभु- मूख!र्
बिल- और मैं मज़ाक कर रहा था, आप मज़ाक समझते नहीं क्या? देिखए मैं आपको बता दू ँ, मैं बहुत बोलता हूँ ।
मेरा यहाँ रहना और बात करना एक ही बराबर है। मैं जहाँ होता हूँ , वहाँ बहुत बोलता हूँ । बोलना मेरी बीमारी है, जो
बुढ़ापे में आकर लगातार बढ़ती जा रही है। बोलने के कारण मेरे घर वालों ने मुझे, मेरे घर से िनकाल िदया।
(शंभु आईने में अपना चेहरा देख रहा है।) वैसे मैं आपसे कम बूढ़ा हूँ ।
शंभु- देिखए कम, ज़्यादा कुछ नहीं होता। बूढ़ा आदमी, बूढ़ा आदमी होता है।
बिल- ठीक है तो आप िचड़िचड़े खड़ूस बूढ़े हैं और मैं ज़्यादा बोलने वाला नेक िदल बूढ़ा।
बिल- तो आपको मैं बूढ़ा िदखता हूँ , ध्यान से देिखए- ये जॉ लाइन देिखए।
शंभु- सच में तुम बहुत बकवास करते हो। क्या ये तुम्हारी खानदानी बीमारी है?
बिल- नहीं खानदानी नहीं है, मेरे एक दोस्त थे हिरशंकर ितवारी... (बिल आसमान की तरफ देखता है) माफ़
करना।
शंभु- क्या?
बिल- डॉ हिरशंकर ितवारी वो बहुत बोलते थे। ये बीमारी मुझे वहीं से िमली है।
बिल- (ितवारी जी से) अरे! ितवारी जी के नाम के आगे डॉ नहीं लगाओ, तो वो बहुत नाराज़ हो जाते थे। पहले जब
ितवारी जी जवान थे, तो उन्हें लगता था िक उनकी उनके घर मोहल्ले शहर, देश में कोई इज़्ज़त ही नहीं है। कोई
उन्हें पूछता भी नहीं है- तो उन्होंने एक िदन घर के बाहर, नेमप्लेट पर अपना नाम िलखवा िदया- 'हिरशंकर ितवारी
जी यहाँ रहते हैं।' पर बात बनी नहीं। लोग कहने लगे- हमें तो पता है ितवारी जी यहाँ रहते हैं, िलखने की क्या
ज़रूरत थी। ितवारी जी को कुछ समझ में नहीं आया क्या करें, िफर उन्होंने अंग्रेज़ी में नेम प्लेट बनवाई और िलख
िदया Dr. (डॉ0) यािन◌...
शंभु- डॉक्टर
बिल- हाँ। डॉक्टर हिरशंकर ितवारी यहाँ रहते हैं। और घर में छु पकर देखने लगे िक लोग क्या कहते हैं लोगों ने
मज़ाक उड़ाना शुरू कर िदया कुछ बातें तो लोगों ने इतनी बुरी कहीं िक ितवारी जी को सहन नहीं हुई। क्या करते
ितवारी जी डॉक्टर तो थे नहीं। और पढ़ने-िलखने को शौक बहुत पहले ही गँवा चुके थे। अब Dr. िलखकर फँस
चुके थे। तो उन्होंने अपने एक दोस्त की स्कूल बस चलानी शुरू कर दी। बात बन गई। Dr. उनकी नेमप्लेट पर बना
रहा, अब यहाँ Dr. का मतलब डॉ. ना होकर क्या हो गया था? Dr. का मतलब डॉक्टर ना होकर क्या हो गया था?
रहा, अब यहाँ Dr. का मतलब डॉ. ना होकर क्या हो गया था? Dr. का मतलब डॉक्टर ना होकर क्या हो गया था?
शंभु- लेिकन तुम तो उन्हें डॉक्टर कहते हो िफर तो डॉ. कैसे हुए?
बिल- बाद में वो डॉक्टर हो गए थे, वो अलग िक़स्सा है, वो बाद में बताऊँगा।
बिल- अरे अजीब तो आप हैं! कभी कहते हो िक़स्सा सुनाओ, कभी कहते हो चुप रहो।
बिल- मुझे नींद आ रही है। एक तो रातभर सोने नहीं िदया... अच्छा ठीक है एक शतर् पर िक़स्सा सुनाऊँगा। पहले
आपको मेरे कुछ प्रश्नों का एकदम सही उत्तर देना होगा।
शंभु- ठीक है पूिछए, लेिकन मेरी जो इच्छा होगी, मैं िसफ़र् उन सवालों का जवाब दू ँगा।
बिल- जैसी आपकी मज़ीर्। शुरू करूँ ... आप जेल से कब छूटे? आपने जो दो ख़ून िकए थे वो कैसे िकए थे? और
अगर अब पछतावा हो रहा है तो यहाँ क्यों आए? िकसी पहाड़ पर जाकर संन्यास क्यों नहीं ले िलया? आपने इतना
डरावना नाम ख़ून करने के बाद रखा या ये नाम पहले से ही था? आप मरने से डरते हैं? आपके दाँत असली हैं या
नकली? और हाँ अगर आपको एक िदन के िलए प्रधानमंत्री बना िदया जाए तो आप क्या करेंगे?
शंभु- बेवकूफ़!
बिल- वो आिख़री सवाल। मैंने ऐसे ही पूछ िलया, उसका जवाब अगर आप नहीं भी दो तो चलेगा।
शंभु- एक तो तुम...
बिल- रुको! मुझे आराम से लेट जाने दो, और हाँ आपने वो हिथयार कहाँ छु पाकर रखा है, िजससे तुम ख़ून करते
हो। हाँ शुरू हो जाओ।
शंभु- तुम चुप रहोगे? पहली बात तो मैंने कोई ख़ून नहीं िकए, वो बात मैं तुम्हें डराने के िलए कह रहा था। पर अब
पछता रहा हूँ , काश िकए होते तो तुम्हें मारने में ज़रा भी िदक़्क़त नहीं होती।
बिल- अरे भई आप इतनी जल्दी गुस्सा क्यों हो जाते हो! मैं ये सब थोड़ी जानना चाहता था, मैं तो चाहता हूँ िक
बिल- अरे भई आप इतनी जल्दी गुस्सा क्यों हो जाते हो! मैं ये सब थोड़ी जानना चाहता था, मैं तो चाहता हूँ िक
आप बोलें, जो इच्छा हो वो बोलें। अपने बारे में, िकसी के बारे में भी, साँस भीतर ले रोकें, छोड़ें... िफर भीतर लें
रोकें, छोड़ें।
बिल- दो-तीन बार किरए, अच्छा लगेगा। और हाँ मैं इं तज़ार कर रहा हूँ । जब इच्छा हो शुरू हो जाइएगा। मैं सुन
रहा हूँ ।
शंभु- कुछ नहीं बोलना है। (वािपस आकर अपने बेड पर बैठ जाता है। दो-तीन बार साँस लेता है) मुझे अच्छा लग
रहा है, बेकार में ग़ुस्सा करता हूँ । (बिल को देखता है) बुढ़ापा, बहुदा बचपने का पुनरागमन होता है, यह बात मुझ
पर लागू होती है। अजीब हूँ मैं, मेरी पलकों के बाल कई बार मेरी हथेली तक आए, पर मैंने अभी आँ ख बंद करके
उड़ाया नहीं। कई बार मैंने टू टते तारों को भी देखा, पर मेरी आँ खें तब भी खुली रहीं। आँ ख बंद करके मैंने कभी कुछ
माँगा ही नहीं। उस सुख की भी तलाश नहीं की िजस सुख को जीते हुए मेरी आँ ख झुक जाए, पर एक टीस ज़रूर
है। वो भी उन सुखों की जो मेरे आसपास ही पड़े थे, कई बार मेरे रास्ते में भी आए पर पता नहीं क्यों मैं उन्हें जी नहीं
पाया। अपने ऐसे बहुत से सुखों को िजन्हें मैं जी नहीं पाया, मैंने अपने इस पुराने सूटकेस में बंद कर िदया है। कभी-
कभी इसे खोलकर देख लेता हूँ । इसमें, इसमें बड़ा सुख है और इस सुख को मैंने कभी अपने इस पुराने सूटकेस से
िगरने नहीं देता हूँ , इसे हमेशा अपने पास रखता हूँ । िजन सुखों को जी नहीं पाया उन सुखों को महसूस करना
िककभी इन्हें जी सकता था। ये अजीब सुख है और िजन सुखों को जी चुका हूँ उनका अपना अलग बोझ है। िजसे
ढोते-ढोते जब भी थक जाता हूँ , तब अपना पुराना सूटकेस खोल लेता हूँ और थोड़ा हल्का महसूस करता हूँ ।
िततली...
शंभु- बस आ जाओ बेटा। मेरी िहम्मत नहीं है, बहुत थक गया बस।
िततली- आपके साथ खेलने में मज़ा नहीं आता। बाहर जाऊँ?
िततली- रात कहाँ िदन है पापा। पापा, आप सच में बूढ़े हो गए हैं। बाहर जाऊँ?
शंभु- दोपहर है तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत है, यहीं ठीक है ना।
िततली- (Hops catch) पापा फाउल। पापा आप सच में बूढ़े हो गए है बाहर जाऊँ?
शंभु- नहीं बेटा, बाहर धूप है। दोपहर में बाहर जाओगी तो काली हो जाओगी।
िततली- हाँ, काली हो जाऊँगी तो बंदिरया जैसी िदखने लगूँगी, िफर जंगल में िकसी बंदर को पकड़कर लाना
पड़ेगा, मुझसे शादी करने के िलए। यही ना तो ठीक है? तो ठीक है, मैं बंदर से शादी करने को तैयार हूँ । अब
बताइए। आप बंदर को ढूँ ढने मेरे साथ चलेंगे या मैं अकेले जाऊँ? बोिलए बाहर जाऊँ?
बताइए। आप बंदर को ढूँ ढने मेरे साथ चलेंगे या मैं अकेले जाऊँ? बोिलए बाहर जाऊँ?
शंभु- काले मुँह के बंदर तो दू र जंगलों में होते हैं, आसानी से नहीं िमलते।
शंभु- लाल मुँह के बंदर तो सात समुंदर पार के जंगलों में होते हैं (Blind man's buff) उन्हें ढूँ ढना बहुत मुिश्कल
है। वैसे लाल मुँह के बंदर अपने आपको अंग्रेज़ समझते हैं, वो आसानी से तुमसे शादी करने को तैयार नहीं होंगे।
और अगर राज़ी हो भी गए तो वो दहेज़ में केले के बाग माँगेगे। बताओ बेटी, इस उम्र में मैं ज़मीन खरीदू ँगा, केले के
बाग लगाऊँगा, केले उगाऊँगा, तब तक तो तुम बूढ़ी हो गई होगी। और िफर एक काली-कलूटी बुिढ़या से बंदर तो
क्या चूहे भी शादी करने को तैयार नहीं होंगे। (remove blind fole) बेटा िततली, बेटा क्या हुआ? अच्छा माफ़
कर दो। चूहे राज़ी हो जाएँ गे, मैं मना लूँगा उनको। अच्छा?
िततली- नहीं पापा, कुछ लाल मुँह के बंदर, अपने गाँव में घुस आए हैं।
िततली- मैं जा रही हूँ । (वापस आती है) वैसे उस बंदर का नाम शुभांकर है।
Black out..
**सीन-****5******
(बिल गाना गाता है, वो अंदर शंभु को देखता रहता है, पलंग िखसकाता है। उसी वक़्त शंभु अंदर आता है।)
शंभु- एक काम करो। ऊपर ही चढ़ा दो इसको। अपना पलंग मेरे पलंग के ऊपर.. है ना।
बिल- (बिल पलंग पकड़कर लेट जाता है) मैं मर जाऊँगा पर इसके पीछे नहीं जाऊँगा। मुझे घबराहट होती है और
समाज में सबको समान अिधकार है ये भेदभाव नहीं चलेगा। कसम खाता हूँ , इसके आगे नहीं आऊँगा।
बिल- आपने मेरी बात का जवाब नहीं िदया तो मैंने भी नहीं बताया।
बिल- नहीं.
बिल- क्या?
बिल- वो ही क्या?
बिल- नहीं अभी नहीं। अभी मुझे ज़रा तैयार होना है। (बिल अंदर जाता है)
बिल- नहीं अभी नहीं। अभी मुझे ज़रा तैयार होना है। (बिल अंदर जाता है)
बिल- (अंदर से ही) नहीं, झीलिमल जी आने वाली है.. और वो मुझसे िमलने आ रही हैं।
शंभु- वो रोज़ शाम को आती हैं।
शंभु- अरे पगलाओ मत.. एक बुढ़ा और था वो भी यहीं सोचता था.... िफर इं तज़ार करते करते टें बोल गया। (बली
गुस्से में बाहर आता है िसफर् कुतार् पहनकर...)
बिल- अच्छा आप चुप रिहए... एकदम चुप.. मान लेने में क्या जाता है। यही कुछ सुख बचे हैं हम लोगों के पास...
अगर ये भी नहीं रहे ना.. तो हम जैसे लोगों को आत्महत्या कर लेनी चािहए।
बिल- बच्ची तो नहीं है ना..। आपको पता नहीं है जब मैं िदन में सो रहा था ना तो वो आपकी बच्ची जी मेरे सपने में
आई थीं। पता है कैसी कैसी बातें कर रही थीं... मुझे तो बताने में भी शमर् आती है... और आप तो जानते हैं िक
दोपहर का सपना सच्चा होता है।
शंभु- दोपहर का नहीं सुबह का.. सुबह का सपना सच्चा होता है।
बिल- अपने िलए तो जब जागो तभी सवेरा है..। यार आई नहीं अभी तक।
(बिल डर के मारे अंदर भागता है... तभी शंभु को हंसी आ जाती है।) क्यों िसफर् तुम ही मज़ाक कर सकते हो?
बिल- मैं पैजामा पहनकर आता हूँ तब बताता हूँ बुढ़ऊ तेरक
े ो... अभी मर जाता तो (अंदर जाता है।)
शंभु- अरे मर तो तू पैजामें में भी सकता है। पर एक बात सही कहीं... (अपने से) हमारे पास थोड़े बहुत सुख हैं...
वरना हम जैसे लोगों की तो दुिनयाँ में ज़रुरत क्या है? ( भीतर से बिल की आवाज़ आती है... आ ई ई..।) क्या
हुआ?
बिल- पैजामा गंदा हो गया। (पैजामें पर पानी िगर जाता है। एक कपड़े से बिल उसे अपने पलंग पर बैठकर साफ
करने लगता है।)
शंभु- अरे... आप... (मानों कोई आया हो... बिल िफर डर जाता है..) अरे कोई नहीं है.. ऎसे ही कोई गुज़र रहा
था... साफ करो तुम...। (वक़्फा) वैसे टाईम तो ज़्यादा हो गया है,... मुझे लगता नहीं िक वो आएगीं।
शंभु- भाई मैं तो लेट रहा हूँ ... अगर वो नहीं आए तो light off करके सो जाना।
शंभु- क्या?
बिल- मैं भी नहीं करता था, पर अब लगता है पहली नज़र का प्यार होता है। भई अब कोई मुझे पहली ही नज़र में
पसंद कर ले, बस बात ख़त्म।
बिल- अभी तक तो नहीं आई ना! बस ऐसे ही प्यार में दरार पड़नी शुरू हो जाती है।
शंभु- कल तुम उससे िमले, आज प्यार हुआ और अभी-अभी दरार भी पड़ गई।
शंभु- क्या?
शंभु- हाँ करने का तो कोई मतलब नहीं है, बेहतर होगा ना कर दो। चलो थोड़ा प्रैिक्टस कर लो। देखो ऐसे
िझलिमल जी आएँ गी। (बिल हँ सने लगता है) अरे मैं नहीं... मानो वो आ रही है... तो वो आई.. बिल जी.. कैसे हैं
आप..?
बिल- ना!
बिल- ना!
(गौतम की Entry)
बिल- ना!
बिल- अरे बुरा ना लग जाए। मैंने सुना है प्यार में लोगों ने आत्महत्या तक की है। तुम्हें क्या लगता है कहीं वो
आत्महत्या तो नहीं कर लेगी।
शंभु- अगर वो तुमसे प्यार करती है, जैसा िक तुम्हें लगता है तो कुछ तो करेगी।
बिल- नहीं! प्यार में जो मरता है वो कायर होता है, पर जो प्यार करे और िज़ं दा भी रहे वो ही सच्चा प्रेमी होता है।
कैसी कही?
बिल- अरे वही, मेरे दोस्त डॉ. हिरशंकर ितवारी के मुँह से सुना था। उन्हें एक बार प्यार हो गया था। वही मोहल्ले में
एक गुलाब बाई नाम की औरत रहती थी, उसकी एक बच्ची भी थी और पित मर चुका था। उसे पैसों की ज़रूरत थी
तो ितवारी जी ने उसे अपने घर बतन र् माँजने और कपड़े धोने का काम दे िदया था। गुलाब बाई को कपड़े धोता
देखते-देखते ितवारी जी को गुलाब बाई से प्यार हो गया। और गुलाब बाई, वो ग़ज़ब औरत थी उसे कोई गुलाब
बाई कहे तो उसे अच्छा नहीं लगता था। वो अपने आपको आं टी कहलवाना ज़्यादा पसंद करती थी। ितवारी जी
थोड़ी बहुत अंग्रेज़ी जानते थे, वो गुलाब बाई को Rose madam कहने लगे।
बिल- कुछ समय बाद ितवारी जी से नहीं रहा गया और समाज की परवाह िकए बगैर बाई को उसकी बच्ची समेत
अपने घर पर रख िलया। गुलाब बाई तो ितवारी जी से प्यार नहीं करती थी, इसिलए वो ितवारी जी को अपने पास
तक फटकने नहीं देती थी। बहुत बाद में ितवारी जी को इतनी इजाज़त िमल गई िक वो जब चाहे गुलाब बाई से
अपने पैर दबवा लेते थे। और गुलाब बाई कभी-कभी नहाते वक़्त उनसे अपनी पीठ पर साबुन लगवा लेती थी।
इसीिलए ितवारी जी कहते थे जो प्यार करे और िज़ं दा भी रहे वो ही सच्चा प्रेमी होता है।
शंभु- और बच्ची?
बिल- नाम तो ितवारी जी ने बताया नहीं। सब बच्ची-बच्ची कहकर बुलाते थे। अरे तुम्हारे चक्कर में मैं तो भूल ही
गया था। अरे मुझे तैयार होना था।
शंभु- अरे मैं सोच रहा था उस बच्ची का क्या हुआ होगा! कैसे उसका बचपन बीता होगा! कैसे बड़ी हुई होगी!
शंभु- आज तो इसको ठीक ही कर देता हूँ । (शंभु, बिल का पलंग वािपस कोने में कर देता है और चुप चाप आकर
अपने पलंग पर सो जाता है जैसे कुछ हुआ ही ना हो...। बिल उं गली से दांत माजता हुआ आता है और पलंग को
कोने में देखकर ... गुस्सा हो जाता है... शंभु के बहुत पास आकर उससे पूछता है।)
शंभु- तुम पहले थूक के आओ, मैं ऐसे बात नहीं कर सकता।
बिल- देखो मैंने कसम खाई थी, इसके आगे नहीं आऊँगा।
शंभु- पहले थूक के आइए। (शंभु को उठाने के चक्कर में बिल अपने गंदे हाथ शंभु को लगा देता है.. शंभु िचढ़
जाता है और उसे धक्का दे देता है... बिल नीचे िगर पड़ता है।)
बिल- बुढ़ापे में सिठया गया है। एक कनटे का हाथ मारूँ गा तो यहीं मर जाएगा।
बिल- ऐ मज़ाक नहीं कर रहा हूँ । मुझे सच में घर के कोनों से घबराहट होती है। मुझे जानवरों जैसा लगता है। यहाँ
बीच में, मैं बीच में रहना चाहता हूँ । अब कोई िहलाकर बता दे। अरे बूढ़ा गया तो क्या कोने में फेंक दोगे?
शंभु- उठो! उठो यहाँ से... अपनी जग पर जाओ (उठाने की कोिशश करता है पर बिल टस से मस नहीं होता।)
शंभु- गौतम! गौतम.. (गौतम अंदर आता है।) इससे कहो यहाँ से उठ जाए।
(दोनों बिल को उठाकर उसके पलंग तक ले जाते हैं, बिल वापस ज़मीन पर बैठ जाता है।)
(दोनों िफर से बिल को उठाकर उसके पलंग तक ले जाते हैं। वो वापस नीचे बैठ जाता है।)
शंभु- अरे क्या आइए आइए! पड़े रहने दो इसे यहीं, मैं समझ गया। मैं समझ गया तुम यहाँ क्यूँ आए हो? क्यों तुम्हें
कोनों से नफ़रत है? तुम एक ऐसे बूढे थे, जो अपने ही घर पर बोझ थे। तुम्हारे घरवाले तुम्हें घर के कोनों में ठू ँ सकर
रखते थे जानवरों की तरह। िकसी भी जानवर की तरह नहीं, बिल्क कुत्ते की तरह। अगर घर में कुत्ते की तरह रहते थे
तो यहाँ शेर बनने की कोिशश मत करो। मत बनो शेर... कुत्ते हो.. कुत्ते ही रहो।
(बिल चुपचाप उठता है और अपने पलंग पर जाता है। शंभु को बुरा लगता है िक उसने शायद कुछ ज़्यादा बोल
िदया।)
शंभु- गौतम, पानी दो उसे। (गौतम एक िगलास पानी बिल को देता है.. बिल नहीं लेता। बिल उठकर सीधा शंभु के
सामने खड़ा हो जाता है।)
बिल- तुम यहाँ क्यों आए हो? मैं जानता हूँ , तुम्हारी तो एक बेटी है ना?
शंभु- बिल!
(Black Out)
(शंभु पर स्पाट।)
शंभु- मेरी बेटी िततली! बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, आपको पता ही नहीं लगता और जैस-े जैसे वो बड़े हो जाते हैं,
उनके साथ अपेक्षाएँ भी बड़ी हो जाती हैं। बाद में बच्चे चले जाते हैं और अपेक्षाएँ रह जाती हैं, िजन्हें हम कभी
दीवार पर टाँग देते हैं तो कभी मेज पर रख देते हैं
(बिल पर स्पाट)
बिल- मैं कभी-कभी सोचता हूँ , मुझमें और गाय में िकतना फ़क़र् है। खासकर उस गाय में िजसने दू ध देना बंद कर
िदया है। बुढ़ापा गाय हो जाने जैसा है। गाय जो कुछ भी खा लेती है, िबना िकसी को परेशान िकए िज़ं दा रहती है।
आपको गायों से और बूढ़ों से बहुत परेशानी नहीं होती। बेचारी गाय और बेचारा बूढ़ा। घर में इं सानों के बीच जानवर
जैसा महसूस होता था तो मैंने तय िक जब गाय जैसा ही जीना है, तो गायों के बीच में ही रहो। तो मैं यहाँ आ गया।
(Black Out) (Fade in)
(िझलिमल पर स्पाट)
िझलिमल- मुझे बूढ़े और बच्चे अच्छे लगते हैं। यहाँ इतने सालों काम करने के बाद मुझे एक बात पता चली है।
जैसे बच्चों को माँ-बाप की ज़रूरत होती है, वैसे ही बूढ़ों को भी माँ-बाप की ज़रूरत होती है। बूढ़ों के माँ-बाप,
िजनसे वो बात कर सकें, िजन्हे सुन सकें या िजन्हें वो कभी-कभार छू सकें।
(Black Out)
(गौतम पर स्पाट)
गौतम- मैने कभी यहाँ भूत नहीं देखा है, पर इन बूढ़ों को भूत िदखते हैं क्योंिक मैं जब भी िकसी बूढ़े के कमरे में
जाता हूँ , वो हमेशा िकसी ना िकसी से बात कर रहे होते हैं, जबिक कमरे में कोई नहीं होता है। सच में, कसम से
इन्हें भूत िदखते हैं।
(Black Out)
**(Interval)**
**सीन- ****6**
(Music)
(क्लािसकल म्युिज़क चल रहा है... शंभु कुछ िहसाब कर रहा है... िहसाब पक्का करके वो बिल को आवाज़
लगाता है... संगीत धीमा करता है और िफर आवाज़ लगाता है।)
शंभु- पहले झाड़ू लगाओ, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ ।
बिल- आप मुझसे बात करना चाहते हैं इसिलए मैं पहले झाड़ू लगाऊँ? जाओ नहीं लगाता।
शंभु- ठीक है मत लगाओ। आज शाम को िझलिमल जी आएँ गी तो मैं उन्हें बता दू ँगा िक बुड्ढा फ्रॉड है।
शंभु- मैंने िहसाब लगाया है। हमें छह महीने हो गए साथ रहते हुए। इस बीच हम 12 बार लड़े। इसमें से 8 बार
शंभु- मैंने िहसाब लगाया है। हमें छह महीने हो गए साथ रहते हुए। इस बीच हम 12 बार लड़े। इसमें से 8 बार
ग़लती तुम्हारी थी, दो बार गौतम की और एक बार हम यूँ ही मज़ाक में लड़ िलए थे और अंितम बार तो िसफ़र्
तुम्हारी ग़लती थी।
शंभु- इतने बूढ़े होके शमर् आनी चािहए िक आप एक सीधे-सीधे आदमी को ब्लैकमेल कर रहे हैं। मैंने आपको
अपना समझकर एक राज बताया और आप... सबको बता दू ँगा िक धमकी देकर अपने सारे काम मुझसे करवा रहे
हो। छी! शमर् आनी चािहए आपको।
(बिल झाड़ू लगाता है, शंभु काग़ज़ नीचे फेंकने को होता है, बिल रोक देता है।)
शंभु- अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे। अब बताओ िक ितवारी जी ड्राइवर से डॉक्टर कैसे बने?
बिल- अभी मैं काम कर रहा हूँ । काम करते वक़्त मैं ज़्यादा बात नहीं करता।
शंभु- ठीक है तो काम करो। (शंभु कचरा ज़मीन पर फेंक देता है।)
लेिकन मुझे यक़ीन नहीं होता िक कोई आदमी ऐसा कैसे कर सकता है।
बिल- क्योंिक जब आप अपने ही घर अपने पिरवार अपने के लोगों के बीच आराम से रह रहे हो और अचानक एक
िदन आपको पता लगे िक असल में आपको कोई पसंद ही नहीं करता है, आपसे कोई बात ही नहीं करना चाहता
है... मैं आपको क्यों बता रहा हूँ , आप क्या समझोगे ये बात? जब मैं शाम को घूमने के बाद घर में वापस आता था
तो मुझे घर में ताला लगा िमलता, ठीक है। मैं घंटों घर के बाहर इं तज़ार करता तो एक िदन मैंने मेरे बेटे से कहा-
बेटा मैं घंटों बाहर बैठा रहता हूँ , अच्छा नहीं लगता, मुझे एक डुप्लीकेट चाबी बनवा दो। तो वो कहने लगा नहीं,
उसमें चोरी का ख़तरा बढ़ जाता है। तो मैंने चुपके से डुप्लीकेट चाबी बनवा ली तो उन्होंने घर में दो ताले लगवा
िलए। मैंन दोनों की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली। तो उन्होंने मुझे पैसे देना ही बंद कर िदया। ये घटनाएँ खाने से लेकर
मैं अपने कमरे में पंखा देर तक चालू रखता हूँ तक पहुँ च गईं। बताइए, जब आपको पता हो िक आपको आपने ही
घर में कोई देखना नहीं चाहता, सुनना नहीं चाहता, तब आप अपने ही घर में डरावना भूत बन जाते हैं। और उस भूत
की िदक़्क़त है िक वो िदखता है, िदन में भी और रात में भी, तब बताइए शंभु जी, तब आप क्या करेंगें?
बिल- क्योंिक और कोई मुझे जानता ही नहीं जो मुझे अपने घर में रख ले, तो सोचा चलो िकसी अच्छे old age
home में अपना बाक़ी जीवन िबता दू ँगा। पता है शंभु जी, क़रीब पाँच old age home वालों ने मुझे िरजेक्ट कर
िदया। कहने लगे मैं उनके िहसाब से पूरा बूढ़ा नहीं हूँ । पूरा बूढ़ा... ये होता है पूरा बूढ़ा (शंभु की तरफ इशारा करके)
। इसिलए मैंने अपनी age बढ़वाई। आयु प्रमाण पत्र बनवाने में मुझे िकतनी िदक़्क़त आई, पता है आपको? और
आप हैं िक सही age बता दू ँगा की धमकी देकर अपने सारे काम मुझसे करवा रहे हैं।
शंभु- पर कोई आदमी बूढ़ा होना चाहता है, ये बात आजीब नहीं है?
शंभु- पर कोई आदमी बूढ़ा होना चाहता है, ये बात आजीब नहीं है?
शंभु- तुम एक बात बताओ। तुम कहािनयों पर यक़ीन करते हो? परी की कहािनयों पर?
बिल- यक़ीन ही तो मैं सभी पर करता हूँ । उसी का अंजाम भुगत रहा हूँ ।
शंभु- मैं तो कह रहा था मत लगाओ। लेिकन अगर तुम लगाना चाहते हो तो कोई बात नहीं। लगाओ..
शंभु- इधर बैठो! (बिल, शंभु के कंधे पर सर रखने लगता है) ठीक है, अब ये िचपको-िवपको मत। बताओ तुम
पिरकथा पर यक़ीन करते हो?
बिल- मैं तो िसफ़र् कथा पर यक़ीन करता हूँ । कथा-ए-हिरशंकर ितवारी! उसके अलावा मैंने कोई कथा सुनी ही
नहीं।
शंभु- मैं भी कभी पिरकथा पर यक़ीन नहीं करता था पर एक परी की कहानी थी, िजसे मेरी बेटी सुना करती थी।
जब उसे नींद नहीं आती थी तो वो उस परी की कहानी को सुनते हुए सोती थी। पहले उसकी माँ उसे सुनाती थी,
िफर उसके चले जाने के बाद मैं उसे सुनाने लगा और बाद में जब मुझे नींद नहीं आती थी तो िततली उसे पढ़कर मुझे
सुनाती थी। और मैं सो जाता था। पिरकथा, मैं पहले सोचता था िक हमें पिरकथा की ज़रूरत क्यों पड़ती है? क्या
जो जीवन हम जी रहे हैं वो इतना किठन ओर असहनीय है िक हमें ऐसी कहानी की ज़रूरत पड़े जो िसफ़र् कोरी
कल्पना है? असल में ऐसा कुछ नहीं होता। जानवर कभी इं सान से बाते नहीं करते। आम जीवन में कोई चमत्कार
नहीं होता। कोई परी अचानक एक िदन आकर सब कुछ ठीक नहीं कर देती, पर िफर भी हमने पिरकथाओं को
उनके पूरे झठ ू के साथ स्वीकार कर िलया है क्योंिक बिल जी, इसमें िजया जा सकने वाला सुख होता है, िजसे उस
कहानी के साथ उस वक़्त हम जी लेते हैं, और ये आदत है। बुरी आदत जो मुझे लगी हुई है। और अजीब बात ये है
िक मुझे पूरी पिरकथा याद है पर मैं उसे ख़ुद को सुनाकर सो नहीं सकता। इसके िलए हमेशा कोई अपना चािहए
होता है। िजसे आप छू सकें, जो आपके सर पर हाथ रख सके। पर अब ऐसा कोई नहीं है। हाँ, पर एक परी है-
िततली, िजससे मैं थोड़ी बातें कर लेता हूँ । और सो जाता हूँ ।
बिल- परी मतलब? (बिल, शंभु के पलंग पर लेट कर फल खा रहा होता है।)
बिल- बुढ़ऊ, एक िदन ना तेरी चंपी कर दू ँगा। ( शंभु िबस्तर पर सो जाता है। गौतम भीतर से िनकलता है उसके हाथ
गीले है.. धीरे से बिल से कहता है।) गौतम- बिल जी, कपड़े धुल गए। अब जाऊँ?
बिल- आहाँ... अरे गौतम आजा आजा, कहाँ से घूम के आ रहा है, चल मैं थक गया हूँ । ये ले पोछा लगा दे।
बिल- (शंभु के बगल में आकर बैठता है।) शंभु जी थक गया। कपड़े धोकर, पोछा लगाकर। वैसे शंभु जी, मैं और
िझलिमल जी कल पकौड़े खाने गए थे। बड़ा मज़ा आया। कह रही थीं आज वो मुझे कुछ अच्छी ख़बर सुनाने वाली
हैं... मुझे। आज हम िफर पकौड़े खाने जा रहे हैं। वैसे तो मुझे पता था, पर इतनी जल्दी सब कुछ हो जाएगा ये पता
नहीं था।
बिल- लीिजए मैं अपने जीवन की इतनी महत्त्वपूणर् घटना सुना रहा हूँ और आप हैं िक क्या-क्या कर रहे हैं।
बिल- क्या?
शंभु- अरे! मैं गुलाब बाई की बच्ची के बारे में सोच रहा था।
बिल- पता नहीं, मैं भी कहाँ उलझ गया। मुझे तैयार होना है।
शंभु- तुम भी एकदम अजीब आदमी हो। तुम्हें क्या कोई फ़क़र् नहीं पड़ता है? गुलाब बाई, उसकी बेटी, ितवारी
जी... तुम्हें इनमें से िकसी की भी याद नहीं आती? अपने पिरवार वालों की बात तो छोड़ ही दो। उनका तो तुम कभी
िज़◌क्र भी नहीं करते। पर तुम्हारे हिरशंकर ितवारी...
शंभु- हाँ डॉ. हिरशंकर ितवारी। तुम्हें कभी उनसे िमलने की इच्छा नहीं होती?
बिल- पता नहीं! मैंने तो गाँव छोड़ िदया था ना, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई थी। जब बहुत समय बाद मैं वापस
गया तो कोई बता रहा था िक ितवारी एक िदन सुबह-सुबह रोड क्रॉस कर रहे थे। तभी एक िबल्ली ने उनका रास्ता
काट िदया।
बिल- हाँ... ितवारी जी तो बीच सड़क पर रुक गए और इं तज़ार करने लगे िक जब तक कोई दू सरा सड़क क्रॉस न
कर ले तब तक वो रोड क्रॉस नहीं करेंगे। वो वहीं खड़े रहे।
गौतम- िफर।
गौतम- िफर?
बिल- नहीं... ट्रक एकदम बगल से िनकला और ितवारी जी की साँस रुक गई।
गौतम- मरे हुए लोगों की ज़्यादा बात नहीं करते, वरना वो आ जाते हैं। जैसे चुड़ैल का तीन बार नाम लो तो आ
जाती है ना!
बिल- िकसका?
गौतम- अरे बाप रे! डर लगे तो गाना गाओ, भूख लगे तो खाना खाओ। अब तो पूजा करनी होगी, नींबू काटना
पड़ेगा। (गौतम चला जाता है)
शंभु- अरे ये चुड़ैल का नींबू-पानी मुझे ना िपला दे, सच में मुझे आश्चयर् होता है िक सच में क्या तुम्हें िकसी की याद
नहीं आती!
बिल- हाँ याद आया... मुझे कभी-कभी अपनी चवन्नी की याद आती है।
बिल- नहीं मैं वो अठन्नी-चवन्नी वाली चवन्नी की बात कर रहा हूँ । क्या हुआ िक जब मैं छोटा था ना, तो मेरे
िपताजी ने मुझे चवन्नी दी थी और कहा- जा जैसे चाहे खचर् करना है, कर। शंभु जी, उस वक़्त चवन्नी का िमलना!
मैं उसे िलए कई िदनों तक घूमता रहा। प्लान बनाता रहा, सपने देखता रहा िक कहाँ िकसी बड़ी जगह खचर् करूँ गा,
पर कुछ समझ में नहीं आया। तो मैंने सोचा अभी मैं बहुत छोटा हूँ । जब बड़ा हो जाऊँगा तो बड़ी जगह खचर् करूँ गा
इसे। तो मैंने उस चवन्नी को अपने घर की एक टू टी दीवार में िछपा िदया। कभी-कभी उसे िनकालकर देख लेता था
िक ठीक-ठाक रखी है। कुछ समय बाद िपताजी ने पूरे घर का प्लास्टर करवा िदया। चवन्नी अंदर दब गई, पर मैंने
िकसी को कुछ नहीं बताया। क्योंिक मुझे पता था, मैं जब चाहूँ वो चवन्नी िनकाल सकता हूँ । बिल्क अब तो चवन्नी
ज़्यादा सुरिक्षत थी। िफर मैं बड़ा हो गया, िपता जी मर गए और सारे घर की िज़◌म्मेदारी मुझ पर आई। पर मैंने
उस चवन्नी को नहीं िनकाला। अभी भी वो चवन्नी उसी दीवार में पड़ी हुई है। मैं जब चाहूँ उसे िनकाल सकता हूँ पर
मैंने नहीं िनकाला। उसी चवन्नी की कभी-कभी याद आ जाती है।
शंभु- देिखए-देिखए।
शंभु- देिखए-देिखए।
िझलिमल- अरे बिल जी, हम जब पकौड़े खाने जाते हैं तब आप ये बात मुझे नहीं बताते।
िझलिमल- अभी, जब आप वो चवन्नी वाली बात सुना रहे थे। शंभु जी कैसे हैं?
शंभु- पर अभी तो िकसी दवाई का समय नहीं है। क्या बात है? कुछ कहना चाहती हो, कहो?
बिल- एक िमनट... िझलिमल जी, पहले हम पकौड़े खाने चलें, िफर शंभु जी तो यहीं हैं। आप उसके बाद बात कर
लेना।
बिल- आपने ही कहा था िक आप कुछ अच्छी ख़बर सुनाने वाली हैं आज। इसिलए मैंने सोचा, चलो ठीक है।
िझलिमल- अच्छा वो तो ठीक है, पहले अच्छी ख़बर सुना देती हूँ ।
बिल- ठहिरए, मैं पीछे खड़े होकर सुनता हूँ । मुझे शमर् आती है। थोड़ा तेज़ बोलना।
िझलिमल- बात ये है िक सब कुछ तय हो गया है और अगले महीने मैं शादी कर रही हूँ । (बिल भीतर चला जाता
है।)
शंभु- देिखए ख़ुशी के मारे अंदर चला गया। ये तो बहुत अच्छी ख़बर है, िमठाई होनी चािहए।
शंभु- कोई बात नहीं, लीिजए मुँह मीठा कीिजए... (िडब्बे से चॉकलेट िनकालता है।) क्या बात है?
शंभु- कोई बात नहीं, लीिजए मुँह मीठा कीिजए... (िडब्बे से चॉकलेट िनकालता है।) क्या बात है?
शंभु- देिखए, हम बूढ़े लोग बरगद की तरह होते हैं। कोई भी आकर अपने मन की बात उनसे कह सकता है।
शंभु- मतलब?
िझलिमल- मैंने शुभांकर को आपसे िमलने की इजाज़त दे दी है। वो अगले हफ्ते आपसे िमलने आ रहा है।
िझलिमल- नहीं, आप अभी मत बोिलए। पहले मेरी बात सुिनए, िफर आपको िजतना डाँटना हो डाँट लीिजएगा।
वहाँ उसका फोन आता है। यहाँ आप मुझे डाँट देते हैं। मैं आप दोनों के बीच फँस गई हूँ । और मुझे नहीं लगता है
िक मैंने कुछ ग़लत िकया है, वो out of india जा रहा है, हमेशा के िलए। और एक बार आपसे िमलना चाहता है।
उसका हक़ बनता है। वो दो साल से इसकी कोिशश कर रहा है। सो मैने हाँ कर िदया। बताइए, ग़लत िकया?
बोिलए?
(Black Out)
**सीन- ****7**
(बिल अखबार पढ़ रहा है.. और शंभु अपने पलंग पर सो रहा है।)
बिल- शंभु जी! शंभु जी! इतनी देर तक तो आप सोते नहीं हैं। उिठए भई, शंभु जी शंभु जी शंभु जी... (बिल
घबराकर शंभु के पास जाता है, उसे लगता है शंभु जी मर गए।)
शंभु- मैंने कभी उसे देखा नहीं। मैं िमला भी नहीं हूँ उससे।
बिल- िफर आप डरते क्यों हैं? वैसे िझलिमल जी ने मना िकया था िक आपसे उसके बारे में बात न करूँ , पर अब
तो हम दोस्त हैं। हैं िक नहीं?
शंभु- हाँ।
बिल- बस िफर क्या है, देखो मेरे पास एक प्लान है! हम दोनों दरवाज़े के पीछे छु पे रहेंगे और जैसे ही वो अंदर
आएगा, मैं उससे पू[छूँगा- आप कौन? जैसे ही वो बोलेगा शुभांकर, आप पीछे से उसके ऊपर कंबल डाल देना... पर
शुभांकर बोलने का मौक़ा उसे देना, वरना बेकार में गौतम िफर से िपट जाएगा। इधर आपने कंबल डाला, उधर
उसकी कंबल कुटाई शुरू। कंबल कुटाई जानते हैं ना आप?
शंभु- नहीं, मेरी बात सुनो। मैं नहीं जानता ये शुभांकर कौन है। मेरी बेटी िततली, बस उसी के मुँह से सुना था मैंने
उसके बारे में। ये दोनों एक-दू सरे से बहुत प्यार करते थे। ये बात मुझे बहुत देर बाद पता लगी, जब िततली ने कहा
िक वो उससे शादी करना चाहती है। मैं और मेरी बेटी इतने सुखी थे। ये कौन आ गया? कब आ गया? कैसे िततली
अचानक मुझे छोड़कर जाना चाहती है। उस वक़्त एकदम से मैं ये सब बदाश्त र् नहीं कर पाया और मैंने िततली को
मना कर िदया। वो मेरी िज़◌द जानती थी। पर ये मेरी िज़◌द नहीं थी। मैं उसे वक़्त ये सब एकदम से सहन नहीं कर
पाया, शायद मैं शुभांकर से िमलता... पर उसने मुझे दू सरा मौक़ा नहीं िदया। कुछ समय बाद वो उसके साथ चली
गई। उन्होंने शादी कर ली और वो कहीं घूमने चले गए। मैं अकेला रह गया। सोचा जब िततली वापस आएगी तो
थोड़ा ग़ुस्सा होऊँगा... थोड़ा नहीं बहुत ग़ुस्सा होऊँगा पर िफर मान जाऊँगा। िफर एक िदन खबर आई िक शुभांकर
और िततली िजस कार में थे, उस कार का accident हो गया है िजसमें शुभांकर बच गया और िततली... िततली,
मेरी फूल सी बच्ची मर गई। मैं अकेला रह गया। िततली की माला टँ गी हुई फोटो को देखने की िहम्मत मैं नहीं जुटा
पाया। और सब कुछ छोड़कर मैं यहाँ आ गया। मुझे शुभांकर से कोई लेना-देना नहीं है, पर उसने एक झटके में
मुझसे मेरा सबकुछ छीन िलया। क्यों वो मेरे पीछे पड़ा है? मुझे नहीं िमलना है उससे! मेरी बेटी, मुझसे प्यार करती
थी, अभी भी करती है। वो मेरे पास है मेरी बेटी, मुझसे िमलने को आती है। हम घंटों एक-दू सरे से बातें करते हैं और
शुभांकर ये सुख भी मुझसे छीनना चाहता है।
बिल- नहीं आएगा वो। आप उसके बारे में मत सोिचए। पानी पीिजए। आपने दवाई खाई? कौन सी दवाई है? मैं
िझलिमल जी से पूछ के आता हूँ ।
बिल- अरे नहीं शंभु जी, उसकी शादी होने वाली है। इतना बुरा नहीं हूँ मैं।
बिल- क्या?
बिल- हाँ, आप अभी तक वहीं अटके हुए हैं! नहीं वो मैं आपको तब बताऊँगा जब आप एकदम ठीक हो जाएँ गे।
शंभु- अच्छा चलो ितवारी जी के बारे में ही कुछ बताओ, कम से कम कुछ हँ स लूँ।
बिल- ितवारी जी! ितवारी की एक इच्छा थी। उसके बारे में बताता हूँ । हिरशंकर ितवारी जी असल में...
बिल- अरे हाँ, माफ़ कीिजएगा! ितवारी जी आपके नाम के आगे डॉ. लगाना भूल गया। ितवारी जी असल में प्रिसद्ध
होना चाहते थे। जो वो हुए नहीं। तो वो ऐसी चीज़ को देखना चाहते थे जो प्रिसद्ध हो। तो उन्होंने तय िकया िक वो
ताजमहल देखने जाएँ गे। नज़दीक से उसे छूएँ गे। क्यों वो इतना प्रिसद्ध है? क्यों उसे देखने दू र-दू र से लोग आते हैं?
जबिक उन्हें देखने कोई नहीं आता?
बिल- अरे मैं बहुत छोटा था उस वक़्त। मुझे तो वो कोई िगनती में भी नहीं रखते थे। तो उन्होंने तय िकया िक वो
पहले िशरडी जाएँ गे। मन्नत माँगेंगे िक वो ताजमहल देखना चाहते हैं और अगर मन्नत पूरी हुई और उन्होंने
ताजमहल देख िलया तो वापस िशरडी जाकर भगवान को धन्यवाद देंगे।
शंभु- अरे अजीब है! दो बार िशरडी जाएँ गे, उससे अच्छा एक बार ताजमहल देख लें।
बिल- वही तो! मैंने उनसे कहा तो वो कहने लगे, अगर मैं सीधे आगरा चला गया और ताजमहल देख िलया तो
िकसको बताऊँगा िक मैंने ताजमहल देख िलया? इसिलए वापस िशरडी जाकर भगवान को बोलूँगा िक भगवान!
ताजमहल देखा, अच्छा लगा।
बिल- लाइट ऑफ कर दू ँ?
शंभु- तुम्हारे साथ तो कैसे भी सोने की आदत पड़ गई है। बिल जी, एक चाय िमलेगी?
बिल- हाँ क्यों नहीं? (बिल अंदर जाता है, िततली की आवाज़ आती है.. वो एक शेडो में हमें िदखती है... सपने सी..
सुंदर... ।)
िततली- मैंने एक परी से कहा िक मुझे एक ऐसी परीकथा सुनाओ िजसे सुनकर मेरी बेटी को अपनी परी िमल
जाए। वो परी हँ सने लगी और उसने कहा ठीक है, मैं एक ऐसी परी की कहानी सुनाती हूँ , जो एक िदन ग़ायब हो गई
थी।
थी।
**सीन- ****8**
िझलिमल- आज शाम को शुभांकर आ रहा है। अच्छा ही है, कम से कम शंभु जी का सारा सामान उसको दे देंगे।
उसी का हक़ बनता है।
बिल- इस बात पर मैं आपसे लड़ सकता हूँ । उनका सूटकेस तो मैं ही रखूँगा। बाक़ी सामान आप उसे दे सकती हैं।
िझलिमल- उसे यहाँ आकर िकतना बुरा लगेगा। काश! एक िदन पहले आ जाता, उसका कोई नंबर भी नहीं है िक
उसे इन्फ़ॉमर् कर सकूँ।
बिल- अच्छा ही है, पता नहीं शंभु जी उसे देखकर उसका क्या करते और उनके बीच में मैं अपना क्या करता!
बिल- कहने की ज़रूरत नहीं है। आपकी शादी में पूरा काम करूँ गा।
िझलिमल- अरे नहीं, आज शाम को सब लोग आ रहे हैं। अच्छा ही है, मैं ऐसे शुभांकर से िमलना नहीं चाहती थी।
आप संभाल लेंगे?
िझलिमल- कोई तकलीफ़ हो तो गौतम को िभजवाकर मुझे बुलवा लीिजएगा। अच्छा नमस्ते!
बिल- िझलिमल जी आपसे एक बात कहनी थी। जब बहुत समय बाद मैं ितवारी जी से िमला तो देखा उनके घर के
सामने भीड़ लगी थी। पता िकया तो पता चला िक वो घर पर ही पढ़ाई करके हौम्योपैिथक के डॉक्टर हो गए हैं।
और गाँव के लोगों का फ्री इलाज करते हैं। फ्री के डॉक्टर।
िझलिमल- जी।
बिल- अरे, ड्राइवर से डॉक्टर! वो शंभु जी और मेरी बात थी, उन्हें बता नहीं पाया। बस बताना था, ठीक है...
(िझलिमल जाती है… बिल शंभु के बेड के पास आकर खड़ा हो जाता है।)
Black out…
**सीन- ****9**
**सीन- ****9**
(शुभांकर खाली कमरे में प्रवेश करता है.. पूरा कमरा देखता है.... तभी बिल उसे पीछे से डरा देता है।)
बिल- आओ बैठो...। (बिल अंदर जाता है... शुभांकर शंभु के पलंग पर जाकर बैठ जाता है... बिल भीतर से पूछता
है।) चाय, चाय िपओगे?
शुभांकर- नहीं, कुछ नहीं। (शुभांकर िततली की फोटो देखता है.. बिल पानी लेकर प्रवेश करता है।)
बिल- अच्छा, अभी भी है? मुझे लगा तुमने दू सरी शादी कर ली होगी। भई दो साल काफ़ी वक़्त होता है।
(वक़्फा...)
बिल- कब जाओगे?
शुभांकर- नहीं।
बिल- उसके बारे में आप बात मत किरए, वो मैं आपको नहीं दू ँगा।
बिल- बोलो...
शुभांकर- मैं, मैं िनकलता हूँ । अच्छा नमस्ते! (शुभांकर िनकलता है पर दरवाज़े पर जाकर रुक जाता है।)
शुभांकर- मैं आपको एक बात बता दू ँ िक मैं िततली को बहुत प्यार करता हूँ । ये दो साल मैंने कैसे िबताए हैं, मैं ही
जानता हूँ । मैं हर जगह हज़ारों बार जा चुका हूँ , जहाँ हम िमला करते थे। िपछले दो सालों से मैं वही-वही बार-बार
वैसा का वैसा जी रहा हूँ । मैं बहुत तकलीफ़ में िजया हूँ । और कोई भी नहीं था, िजससे मैं ये सब बता सकता।
आज आप... (पलटता है।) शंभुजी आप एक बार, शंभु जी आप एक बार मुझसे िमल लेते। मैं बस आपके साथ
रोना चाहता था.. शंभु जी..
शुभांकर- मैंने आपको इतने सारे लैटर िलखे। आपने एक का भी जवाब नहीं िदया। आपने वो लैटर पढ़े ही नहीं।
शुभांकर- मैंने आपको इतने सारे लैटर िलखे। आपने एक का भी जवाब नहीं िदया। आपने वो लैटर पढ़े ही नहीं।
क्यों? एक लैटर... एक लैटर खोलकर तो देखते, वो सारे लैटर मैंने आपको िततली बनकर िलखे थे। इतना जानता
था मैं आपकी बेटी को, आप एक लैटर भी पढ़ते न तो मुझसे ज़रूर िमलने आते। मुझे पता है आप मुझसे क्यों नहीं
िमलना चाहते थे, पर मुझे माफ़ कर दीिजए और िततली ने कहा था वो आपको मना लेगी। हम लोग रोज़ आपको
मनाने के नए-नए तरीक़े खोजते थे। एक िदन तो...
बिल- बेटा, मुझे ख़ुद नहीं पता मैं तुमसे क्यों नहीं िमल पाया। िततली का जाना मैं शायद बदाश्त
र् नहीं कर पाया
इसिलए सब कुछ छोड़कर यहाँ आ गया। और तुम्हारे लैटर, मुझसे मत पूछो क्यों नहीं पढ़े। मैं बदल गया हूँ ।
अजीब हो गया हूँ । मुझे माफ़ कर दो।
शुभांकर- नहीं, मैं माफ़ी चाहता हूँ । मैं शायद ज़्यादा बोल गया।
शुभांकर- मैंने आपसे आपका सब कुछ छीन िलया, मैं जानता हूँ । मुझे लगा सबकुछ ठीक हो जाएगा, पर कुछ भी
ठीक नहीं हुआ।
बिल- अब सब ठीक हो गया है। मैंने तुम्हें माफ़ कर िदया। तुम भी मुझे माफ़ कर देना।
शुभांकर- अरे हाँ! िजसके िलए मैं आपसे िमलना चाहता था, वो तो आपको देना ही भूल गया। ये, ये िततली
आपको देना चाहती थी।
शुभांकर- िजसके िलए मैं आपसे िमलना चाहता था। (एक कैसेट िनकालकर देता है। बिल उसे ले लेता है।)
बिल- अभी?
शुभांकर- हाँ! (बिल कैसेट टेपिरकाडर् में लगाता है और प्ले बटन दबाता है। िततली की आवाज़ आती है।)
िततली- हैलो पापा! मुझे पता है आप मुझसे नाराज़ होंगे। मैं आऊँगी और झट से आपको मना लूँगी। पर मुझे पता
है आपको नींद तो आती नहीं है। तो जब तक आप नाराज़ हैं ये परी की कहानी सुनकर सोना। ठीक है? एक परी
थी...
शुभांकर- मैंने इसकी एक कॉपी अपने पास रख ली है। अगर आपको एतराज़ ना हो तो?
बिल- (शंभु के िबस्तर के पास आकर) शंभु! तुम्हें शुभांकर से एक बार िमल लेना चािहए था। खैर मैं उससे िमल
िलया।
गौतम- बिल जी, मैंने वो उसे िरक्शा िदला िदया। अभी गया वो...
बिल- कौन?
गौतम- अरे जब वो आ रहा था ना तो बाहर िमला मुझे। मुझसे पूछा- शंभु जी कहाँ हैं? मैंने पूछा- आप कौन तो
उसने बताया शुभांकर। मैंने कहा तुमने आने में देर कर दी, शंभु जी तो मर चुके हैं।
(गौतम िनकलता है... बिल टेप का बटन दबाता है, पिरकथा शुरू हो जाती है। बिल पिरकथा सुनते हुए शंभु के बेड
पर लेट जाता है।)
िततली- (िरकाडेर्ड आवाज़) मुझे एक ऐसी पिरकथा सुनाओ, िजसे सुनकर मेरी बेटी को अपनी परी िमल जाए। वो
परी हँ सने लगी और उसने कहा- ठीक है। मैं एक ऐसी परी की कहानी सुनाती हूँ जो एक िदन ग़ायब हो गई थी और
िफर कभी नहीं िमली। वो बहुत ख़ूबसूरत परी थी। िजस िदन वो ग़ायब हो गई थी, परी देश में सभी परेशान हो उठे ।
कैसे गई, कहाँ गई, क्योंिक ऐसे ही कोई परी ग़ायब नहीं होती। उसे ढूँ ढने का काम मुझे सौंपा गया, क्योंिक हम
दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। मैं धरती पर उस आदमी की तलाश करने लगी, िजनकी वो परी थी। बहुत समय बाद वो
िमला पर परी उसके पास नहीं थी। जानते हो क्या हुआ था... उस आदमी ने एक बार िकसी से कह िदया था िक मैं
पिरयों में िवश्वास नहीं करता और उसकी परी मर गई थी।
**Black out… **
**END.**