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उ ेजना साहस और रोमांच के वो िदन!

...

LITEROTICA

STORY INFO Some memorable events and exciting moments.

iloveall

...

जीवन की भूलभुलैया म कुछ ऐसे ल े आते ह।

िजन को हम िकतना ही चाह िफर भी न कभी भूल पाते ह।।

जब मािनिनयो ँ का मन लाखों िम त म त नही ं मानता है।

तब कभी कभी कोई िबरला रख जान हथेली ठानता है।।

कमिसन काितल कािमिनयाँ भी होती कुबा कुबानी पर।

ौछावर कर दे ती वह सब कुछ ऐसी वीरल जवानी पर।

राहों म िमले चलते चलते हमराही हमारे आज ह वह।

िजनको ना कभी दे खा भी था दे खो हम िब र आज ह वह।।

...

वह ा िदन थे! आज भी उन िदनोंकी याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते ह। वह खूबसूरत वािदयां, वह िदलच प नज़ारे , वह जीवन
और मौत की ट र, वह तनाव भरे िदन और रात, वह उ ादक बाह, वह टेढ़ी िनगाह, वह गम आह, वह दु गम राह और वह बदन
से बदन के िमलन की चाह!!

यह कहानी िसफ मनोरं जन के आशय से िलखी गयी है। इनका िकसी जीिवत या मृत से कुछ भी लेना दे ना नही ं है और यह
कहानी िकसी भी सरकारी या गैर सरकारी सं थान या समाज की ना तो स ाई दशाता है और ना ही यह कहानी उन पर कोई
समी ा या िटप ी करने के आशय से िलखी गयी है।

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सुनील एक स ािनत और दे श िवदे श म काफी िस राजकीय प कार थे। दे श की राजकीय घटना पर उनकी अ ी खासी
पकड़ मानी जाती थी। वह ख़ास तौर पर दे श की सुर ा स ंिधत घटनाओं पर लेख िलखते थे। दे श की सुर ा सेवाओं से जुड़े ए
लोगो म उनका काफी उठना बैठना होता था।

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उन िदनों सुनील करीब ४० साल के थे और उनकी प ी सुनीता करीब ३५ की होगी। सुनील और उनकी प ी सुनीता उनकी एक
संतान के साथ एक आम हाउिसंग कॉलोनी म िकराए के मकान म रहने के िलए आये थे। उनका अपना घर नजदीक की ही
कॉलोनी म ही िनमाणरत था।

सुनील की बीबी सुनीता करीब ३५ की होते ए भी २५ साल की ही िदखती थी। खान पान पर कडा िनय ण और िनयिमत ायाम
और योग के कारण उसने अपना आकार एकदम चु रखा था। सुनीता का चेहरा वय लगता ही नही ं था। उसके न प रप
होते ए भी तने और कसे ए थे। उसके न ३४ + और न सी कप साइज के थे।

वहार और िवचार म आधुिनक होते ए भी सुनीता के मन पर कौटु क पर रा का काफी भाव था। कई बार जब ख़ास संग
पर वह राज थानी िलबास म सुस त होकर िनकलती थी तो उसकी जवानी और प दे ख कर कई िदल टू ट जाते थे। राज थानी
चुनरी, चोली और घाघरे म वह ऐसे जँचती थी की दू सरों की तो बात ही ा, यां भी सुनीता को ताकने से बाज ना आती थी ं।
सुनीता को ऐसे सजने पर कई मद की मदानगी फूल जाती थी और कईयों की तो बहने भी लग जाती थी।

सुनीता के खानदान राजपूती पर रा से भािवत था। कहते ह की ह ीघाटी की लड़ाई म सुनीता के दादा पर दादा हँसते हँसते
लड़ते ए शहीद हो गए थे। सुनीता के िपता भी कुछ ऐसी ही भावना रखते थे और अपनी बेटी को कई बार राजपूती शान की
कहािनयां सुनाते थे। उनका कहना था की असली राजपूत एहसान करने वाले पर अपना तन और मन कुबान कर दे ता है, पर अपने
श ु को वह ब ता नही ं है। उ ोंने दो बड़ी लड़ाइयां लड़ी और घायल भी ए। पर उ एक अफ़सोस रहा की वह रटायर होने से
पहले अपनी जान कोई भी लड़ाई म दे श के िलए बिलदान नही ं कर पाए।

सुनीता की कमर का घुमाव और उसकी गाँड़ इतनी चु और लचीली थी की चाहे कोई भी पोशाक ों ना पहनी हो वह गजब की
से ी लगती थी। उस कॉलोनी के ॉक म उनके आते ही सुनील की बीबी सुनीता के आिशकों की जैसे झड़ी लग गयी थी। दू ध
वाले से लेकर अखबार वाला। स ी वाले से लेकर हमारी कॉलोनी के जवान बूढ़े ब े सब उसके दीवाने थे।

ू ल और कॉलेज म सुनीता एक अ ी खासी खलाड़ी थी। वह ल ी कूद, दौड़ इ ािद खेल ितयोिगता म अ ल रहती थी।
इसके कारण उसका बदन गठीला और चु था। उन िदनों भी वह हर सुबह च ी पहन कर उनकी छत पर ायाम करती रहती
थी। जब वह ायाम करती थी तो कई बार उनके सामने रहते एक आम अफसर कनल जसवंत िसंह को सुनीता को चोरी चोरी
ताकते ए सुनीता के पित सुनील ने दे ख िलया था। हालांिक सुनील को कनल जसवंत िसंह से िमलने का मौक़ा नही ं िमला था, सुनील
ने कनल साहब की त ीर अखबारों म दे ख थी और उन के बारे म काफी पढ़ा था। कनल जसवंत िसंह जैसे सु िति त और
स ािनत को अपनी बीबी को ताकते ए दे ख कर सुनील मन ही मन मु रा दे ता था। कनल साहब के घर की एक खड़की
से सुनील के घर की छत साफ़ िदखती थी।

चूँिक मद लोग हमेशा सुनीता को घूरते रहते थे तो सुनील हमेशा अपनी बीबी सुनीता से चुटकी लेता रहता था। उसे छे ड़ता रहता था
की कही ं वह िकसी छै ल छबीले के च र म फँस ना जाये।

सुनीता भी अपने पित सुनील को यह कह कर शरारत से हँस कर उलाहना दे ती रहती की, "अरे डािलग अगर तु ऐसा लगता है
की दू सरे लोग तु ारी बीबी से ताक झाँक करते ह तो तुम अपनी बीबी को या ताक झाँक करने वालों को रोकते ों नही ं? यिद
कही ं िकसी छै ल छबीले ने तु ारी बीबी को फाँस िलया तो िफर तुम तो हाथ मलते ही रह जाओगे। िफर मुझे यह ना कहना की अरे
यह ा हो गया? िजसकी बीबी खूबसूरत हो ना, तो उस पर नजर रखनी चािहए।"

ऐसे ही उनकी नोंक झोंक चलती रहती थी। सुनील सुनीता की बातों को हँस कर टाल दे ता था। उसे सुनीता से कोई िशकायत नही ं
थी। उसे अपनी बीबी पर खुदसे भी ादा भरोसा था। सुनील और सुनीता एक ही कॉलेज म पढ़े थे। कॉलेज म भी सुनीता पर कई
लड़के मरते थे, यह बात सुनील भाली भाँती जानता था। पर कभी सुनीता ने उनम से िकसी को भी अपने करीब फटकने नही ं िदया
था।

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ब सुनीता से जब कॉलेज म ही सुनील की मुलाक़ात ई और धीरे धीरे दोनों की दो ी ार म बदल गयी और शादी भी प ी
हो गयी तब भी सुनीता सुनील को आगे बढ़ने का कोई मौक़ा नही ं दे ती थी। उनम चु ाचाटी तो चलती थी पर सुनीता सुनील को वहीँ
रोक दे ती थी।

सुनीता एक ाथिमक ू ल म अं ेजी िश क की नौकरी करती थी। और वहाँ भी ू ल के ि ंिसपल से लेकर सब उसके दीवाने थे।

वैसे तो सुनील की ारी बीबी सुनीता काफी शम ली थी, पर चुदाई के समय िब र म एकदम शेरनी की तरह गरम हो जाती थी
और जब वह मूड़ म होती थी तो गजब की चुदाई करवाती थी। सुनीता की पतली कमर सुनील की टांगों के िबच थािपत जनाब को
हमेशा व बे व खड़ा कर दे ती थी। अगर समय होता और मौक़ा िमलता तो सुनील सुनीता को वहीँ पकड़ कर चोद दे ता। पर
समय गुजरते उनकी चुदाई कुछ ठं डी पड़ने लगी ूंिक सुनीता ू ल म और घर के कामों म रहने लगी और सुनील उसके
ावसाियक कामों म।

सुनील और सुनीता कई बार िब र म पड़े पड़े उनकी शादी के कुछ सालों तक की घमासान चुदाई के िदनों को याद करते रहते
थे। सोचते थे कुछ ऐसा हो जाए की वह िदन िफर आ जाएँ । उनका कई बार मन करता की वह कही ं थोड़े िदन के िलए ही सही,
छु ी ल और सब र े दारी से दू र कही ं जंगलों म, पहािड़यों म झरनों के िकनारे कुछ िदन गुजार, िजससे वह उनकी बैट रयां चाज
कर पाएं और अपनी जवानी के िदनों का मजा िफर से उठाने लग, िफर वही चुदाई कर और खूब मौज मनाएं ।

चूँिक दोनों पित प ी िमलनसार भाव के थे इसिलए सोचते थे की अगर कही ं कोई उनके ही समवय ुप के साथ म जाने का
मौक़ा िमले तो और भी मजा आये। सुनीता के ू ल म छु ि यां होने के बावजूद सुनील अ ािधक ता के चलते कोई काय म
बन नही ं पा रहा था। सुनीता को मूवीज और घूमने का काफी शौक था पर यहाँ भी सुनील गुनेहगार ही सािबत होता था। इस के
कारण सुनीता अपने पित सुनील से काफी नाराज रहती थी।

सुनील को अपनी प ी को खुले म छे ड़ने म बड़ा मजा आता था। अगर वह कही ं बाहर जाते तो सुनील सुनीता को खुले म छे ड़ने का
मौक़ा नही ं चुकता था। कई बार वह उसे िसनेमा हाल म या िफर रे ोरां म छे ड़ता रहता था। दू सरे लोग जब दे खते और आँ खे िफरा
लेते तो उसे बड़ी उ ेजना होती थी। सुनीता भी कई बार नाराज होती तो कई बार उसका साथ दे ती।

नए घर म आने के कुछ ही िदनों म सुनीता को करीब पड़ोस की सब मिहलाएं भी जानने लगी ं ूंिक एक तो वह एकदम सरल और
मधुर भाव की थी। दू सरे उसे िकसी से भी जान पहचान करने म समय नही ं लगता था। स ी लेते ए, आते जाते पड़ोिसयों के
साथ वह आसानी से हेलो, हाय से शु कर कई बार अ ी खासी बात कर लेती थी ं।

घर म सुनील जब अपने कमरे म बैठकर कं ूटर पर कुछ काम कर रहा होता था तो अ र उसे खड़की म से सामने के ैट म
रहने वाले कनल साहब और उनकी प ी िदखाई दे ते थे। उनकी एक बेटी थोड़ी बड़ी थी और उनिदनों कॉलेज जाया करती थी।

##

कनल साहब और सुनील की पहेली बार जान पहचान कुछ अजीबो गरीब तरीके से ई।

एकिदन सुनील कुछ ज ी म घर आया तो उसने अपनी कार कनल साहब के गेराज के सामने खड़ी कर दी थी। शायद सुनील को
ज ी टॉयलेट जाना था। घर म आने के बाद वह भूल गया की उसे अपनी गाडी हटानी चािहए थी।

अचानक सुनील के घर के दरवाजे की घंटी बजी। उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो कनल जसवंत िसंह को बड़े ही गु े म पाया।
आते ही वह सुनील को दे ख कर गरज पड़े , " ीमान, आप अपनी कार को ठीक तरह से ों नही ं पार् क पर सकते?"

सुनील ने उनको बड़े स ान से बैठने के िलए कहा तो बोल पड़े , " मुझे बैठना नही ं है। आप को समझना चािहए की कई बार कोई
ज ी म होता ही तो िकतनी िद त होती है..."

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आगे वह कुछ बोलने वाले ही थे की सुनील की प ी सुनीता जो कुछ ही समय पहले बाथ म से िनकली ही थी, चाय बना कर रसोई
से चाय का ाला लेकर डाइं ग म म दा खल ई। सुनीता के बाल घने, गीले और िबखरे ए थे और उनको सुनीता ने तौिलये म
ढक कर लपेट रखा था।

ाउज गीला होने के कारण सुनीता की छाती पर उसके फुले ए न कुछ ादा ही उभरे ए लग रहे थे। सुनीता का चेहरे की
लािलमा दे खते ही बनती थी। सुनीता को इस हाल म दे खते ही कनल साहब की बोलती बंद हो गयी। सुनीता ने आगे बढ़कर कनल
साहब के सामने ही झुक कर मेज पर जैसे ही चाय का कप रखा तो सुनील ने दे खा की कनल साहब की आँ ख सुनीता के व ों के
िबच का अंतराल दे खते ही फ़टी की फटी रह गयी ं।

सुनीता ने चाय का कप रखकर बड़े ही स ान से कनल साहब को नम े िकया और बोली, "आप ोितजी के ह ड ह ना? ब त
अ ीं ह ोितजी।"

सुनीता की मीठी आवाज सुनते ही कनल साहब की िस ीिप ी गुम हो गयी। वह कुछ बोल नही ं पाए तब सुनीता ने कहा, "सर, आप
कुछ कह रहे थे न?"

जसवंत िसंघजी का गु ा सुनीता की सूरत और श ों को सुनकर हवा हो गया था। वह िझझकते ए बड़बड़ाने लगे, "नही ं, कोई
ख़ास बात नही ं, हम कही ं जाना था तो म (सुनीलकी और इशारा करते ए बोले) ीमान से आपकी गाडी की चाभी मांगने आया था।
आपकी गाडी थोड़ी हटानी थी।"

सुनीता समझ गयी की ज र उसके पित सुनील ने कार को कनल साहब की कार के सामने पाक कर िदया होगा। वह एकदम से
हँस दी और बोली, "साहब, मेरे पित की और से म आपसे माफ़ी मांगती ँ। वह ह ही ऐसे। उ अपने काम के अलावा कुछ िदखता
ही नही ं। ावहा रक व ुओ ं का तो उ कुछ ान ही नही ं रहता। हड़बड़ाहट म शायद उ ोंने अपनी कार आपकी कार के
सामने रख दी होगी। आप ीज बैिठये और चाय पीिजये।" िफर सुनीता ने मेरी और घूम कर मुझे उलाहना दे ते ए कहा, "आप को
ान रखना चािहए। जाइये और अपनी कार हटाइये।"

िफर कनल साहब की और मीठी नजर से दे खते ए बोली, "माफ़ कीिजये। आगे से यह ान रखगे। पर आप ीज चाय पीिजये
और (मेज पर रखे कुछ ना े की चीजों की और इशारा करते ए बोली) और कुछ लीिजये ना ीज?"

सुनील हड़बड़ाहट म ही उठे और अपनी कार की चाभी ले कर भाग कर अपनी कार हटाने के िलए सीिढ़यों की और िनचे उतरने के
िलए भागे। सुनीता ठीक कनल साहब के सामने एक कुस खसका कर थोड़ा सा कनल साहब की और झुक कर बैठ गयी और उ
अपनी और ताकते ए दे ख कर थोड़ी शमायी।

शायद सुनीता कहना चाह रही थी की "सर आप ा दे ख रहे ह?" पर िझझकती ई बोली, "सर! आप ा सोच रहे ह? चाय पीिजये
ना? ठं डी हो जायेगी।" सुनीता को पता नही ं था उसे कनल साहब के ठीक सामने उस हाल म बैठा आ दे ख कर कनल साहब
िकतने गरम हो रहे थे।

कनल साहब को ान आया की उनकी नजर सुनीता के बड़े बड़े खूबसूरत न मंडल के िबच वाली खाई से हटने का नाम नही ं ले
रहे थी। सुनीता का उलाहना सुनकर कनल साहब ने अपनी नजर सुनीता के ऊपर से हटायी ं और कमरे के चारों और दे खने लगे।
ा बोले वह समझ नही ं आया तो वह थोड़ी सी खिसयानी श बना कर बोले, "सुनीताजी आप का घर आपने बड़ी ही सु र
तरीके से सजाया है। लगता है आप भी ोित की तरह ही सफाई पसंद ह।"

कनल साहब की बात सुन कर सुनीता हँस पड़ी और बोली, "नही ं जी, ऐसी कोई बात नही ं। बस थोड़ा घर ठीक ठाक रखना मुझे
अ ा लगता है। पर भला ोितजी तो बड़ी ही होनहार ह। उनसे बात करत ह तो व कहाँ चल जाता है पता ही नही ं लगता। हम
जब कल मािकट म िमले थे तो ोित जी कह रही थी.ं .. "

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और िफर सुनीता की जबान बे लगाम शु हो गयी और कनल साहब उसकी हाँ म हाँ िमलाते िबना रोक टोक िकये सुनते ही गए।
वह भूल गए की उनको कही ं जाना था और उनकी प ी िनचे कार के पास उन का इंतजार कर रही थी। जािहर है उनको सुनीता की
बातों म कोई ख़ास िदलच पी नही ं थी। पर बात करते करते सुनीता के हाथों की मु ाएँ , बार बार सुनीता की गालों पर लटक जाती
जु को हटाने की ारी कवायद, आँ खों को मटकाने का त रका, सुनीता की अंगभंिगमा और उसके बदन की कामुकता ने उनका
मन हर िलया था।

जब सुनील अपनी कार हटा कर वापस आये तो कनल साहब की तं ा टू टी और सुनीता की जबान की।

सुनील ने दे खा की सुनीता ने कनल साहब को अपनी चबड चबड म फाँस िलया था तो वह बोले, "अरे जानू, कनल साहब ज ीम
ह। उनको कही ं जाना है।"

िफर कनल साहब की और मुड़कर सुनील ने कहा, "माफ़ कीिजये। आप को मेरी वजह से परे शानी झेलनी पड़ी।"

अपनी प ी सुनीता की और दे खते ए बोले, "डािलग अब बस भी करो। कनल साहब को बाहर जाना है और ोितजी उनका िनचे
इं तजार कर रही ं है।"

सुनील कनल साहब की और मुड़ कर बोले, "सुनीता जैसे ही कोई उसकी बातों म थड़ी सी भी िदलच पी िदखाता है तो शु हो
जाती है और िफर कने का नाम नही ं लेती। लगता है उसने आप को ब त बोर कर िदया।"

कनल साहब अब एकदम बदल चुके थे। उ ोंने चाय का कप उठाया और बोले, "नही ं जी ऐसी कोई बात नही ं। वह बड़ी ारी बात
करती ह।" सुनील की और अपना एक हाथ आगे करते ए बोले, "म कनल जसवंत िसंह ँ।"

िफर वह सुनीता की और घूमकर बोले, "और हाँ ोित मेरी प ी है। वह आपकी बड़ी तारीफ़ कर रही थी।"

सुनील ने भी अपना हाथ आगे कर अपना प रचय दे ते ए कहा, "म सुनील मडगाँव कर ँ। म एक साधारण सा प कार ँ। आप
मुझे सुनील कह कर ही बुलाइये। और यह मेरी प ी सुनीता है, िजनके बारे म तो आप जान ही चुके ह।" सुनील ने हलके कटा के
अंदाज से कहा।

सुनील ने जैसे ही अपनी पहचान दी तो कनल साहब उछल पड़े और बोले, "अरे भाई साहब! ा आप वही ीमान सुनील मडगाँव
कर ह िजनकी कलम से हमारी िमिन ी भी डरती है?"

सुनील ने कनल साहब का नाम एक सु िति त और अित स ािनत आम अफसर के प म सुन रखा था। सुनील ने हँस कर कनल
साहब से कहा, "कनल साहब आप ा बात कर रहे ह? आप कोई कम ह ा? म समझता ँ आप जैसा शायद ही कोई स ािनत
आम अफसर होगा। आप हमारे दे श के गौरव ह। और जहां तक मेरी बात है, तो आप दे ख रहे ह। मेरी बीबी मुझे कैसे डाँट रही है?
अरे भाई मेरी बीबी भी मुझसे डरती नही ं है। िमिन ी तो ब त दू र की बात है।"

सुनील की बात सुनकर सब जोर से हँस पड़े । चाय पीते ही मन ना करते ए भी कनल साहब उठ खड़े ए और बोले, "आप दोनों,
ीज हमारे घर ज र आइये। ोित को और मुझे भी ब त अ ा लगेगा।"

कनल साहब बाहर से कठोर पर अंदर से काफी मुलायम और संवेदनशील िमज़ाज के थे। यह बात को नकारा नही ं जा सकता की
सुनीता को दे खते ही कनल साहब उसकी और आकिषत ए थे। सुनीता का था ही कुछ ऐसा। उपरसे कनल साहब का
रं गीन िमजाज़। सुनीता के कमिसन और खूब सूरत बदन के अलावा उसकी सादगी और िमठास कनल साहब के िदल को छू गयी
थी। अपने काय काल म उनकी जान पहचान कई अित खूबसूरत यों से ई थी। आम अफसर की पि याँ , बेिटयाँ, उनकी
र ेदार और कई सामािजक संगों म उनके िम और साथीदार मिहलाओं से उनकी मुलाक़ात और जान पहचान अ र होती
थी।

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जसवंत िसंह (कनल साहब) के अ ंत आकषक , सु ढ़ शरीर, ऊँचे ओहदे और मीठे भाव के कारण उनको कभी िकसी
सु र और वांछनीय ी के पीछे पड़ने की ज रत नही ं पड़ी। अ र कई बला की सु र यां पािटयों म उनको अपने शरीर की
आग बुझाने के िलए इशारा कर दे ती थी ं। जसवंत िसंह ने शु आत के िदनों म, शादी से पहले कई युवितयों का कौमाय भंग िकया था
और कईयों की तन की भूख शांत की थी। उनम से कई तो शादी होने के बाद भी अपने पित से छु पकर कनल साहब से चुदवाने के
िलए लालाियत रहती ं थी ं और मौक़ा िमलने पर चुदवाती भी थी ं।

कनल साहब के साथ जो ी एक बार सोती थी, उसके िलए कनल साहब को भुल जाना नामुमिकन सा होता था। आम प रवार म
और खास कर यों म चोरी छु पी यह आम अफवाह थी की एक बार िकसी औरत ने अगर जसवंत िसंह का संग कर िलया (
भाषा म कहे तो अगर िकसी औरत को कनल साहब से चुदवा ने का मौक़ा िमल गया) तो वह कनल साहब के ल के बारे म ही
सोचती रहती थी।

चुदवाने की बात छोिड़ये, अगर िकसी औरत को कनल साहब से बात भी करने का मौक़ा िमल जाए तो ऐसा कम ही होता था की
वह उनकी दीवानी ना हो। कनल साहब की बात सरल और मीठी होती थी ं। वह मिहलाओं के ित बड़ी ही शालीनता से पेश आते
थे। उनकी बातों म सरलता, िमठास के साथ साथ जोश, उमंग और अपने दे श के ित मर िमटने की भावना साफ़ तीत होती थी।
साथ म शरारत, मशखरापन और हािजर जवाबी के िलए वह ख़ास जाने जाते थे।

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सालों पहले की बात है। कनल साहब की शादी भी तो ऐसे ही ई थी। एक समारोह म युवा कनल की जब ोित से पहली बार
मुलाक़ात ई तो उनम ादा बात नही ं हो पायी थी। िकसी पार रक दो ने उनका एक दू सरे से प रचय करवाया और बस। पर
उनकी आं ख ज र िमली।ं और आँ ख िमलते ही आग तो दोनों ही तरफ से लगी। कर् नल साहब को ोित पहली नजर म ही भा
गयी थी। ोित की आँ खों म िछपी चंचलता और शौखपन जसवंत िसंह के िदल को भेद कर पार गयी थी। ोित के बदन को
दे खकर उनपर जैसे िबजली ही िगर गयी थी। कई िदन बीत गए पर उन दोनों की दू सरी मुलाक़ात नही ं ई।

जसवंत िसंह की नजर जहां भी आम वालों का समारोह या ो ाम होता था, ोित को ढू ं ढती रहती थी ं। ोित का भी वही हाल था।

ोित के नाक न , चाल, वेशभूषा, बदन का आकार और उसका अ ड़पन ने उ पहेली ही मुलाक़ात म ही िवचिलत कर
िदया। ोित ने भी तो क ान जसवंत िसंह (उस समय वह क ान जसवंत िसंह के नाम से जाने जाते थे) के बारे म काफी सुन रखा
था।

जसवंत िसंह से ोित की दू सरी बार मुलाक़ात आम ब के एक सां ृ ितक समारोह के दौरान ई। दोनों म पर र आकषण तो
था ही। जसवंत िसंह ने ोित के पापा, जो की एक िनवृ आम अफसर थे, उनके िनचे काफी समय तक काम िकया था, उनके
बारे म पूछने के बहाने वह ोित के पास प ंचे। कुछ बातचीत ई, कुछ और जान पहचान ई, कुछ शो खयाँ, कुछ शरारत ई,
नजरों से नजर िमली और आग दावानल बन गयी।

ोित जसवंत िसंह की पहले से ही दीवानी तो थी ही। िबच के कुछ ह े जसवंत िसंह को ना िमलने के कारण ोित इतनी बेचैन
और परे शान हो गयी थी की उस बार ोित ने तय िकया की वह हाथ म आये मौके को नही ं गँवायेगी। िबना सोचे समझे ही सारी
लाज शम को ताक पर रख कर डांस करते ए वह जसवंत िसंह के गले लग गयी और बेतक ुफ और बेिझझक जसवंत िसंह के
कानों म बोली, "म आज रात आपसे चुदवाना चाहती ँ। ा आप मुझे चोदोगे?"

जसवंत िसंह ंिभत हो कर ोित की और अच े से दे खन लगे तो ोित ने कहा, "म नशे म नही ं ँ। म आपको कई ह ों से
दे ख रही ँ। मने आपके बारे म काफी सूना भी है। मेरे पापा आपके बड़े शंषक ह। आज का मेरा यह फैसला मने कोई भावावेश

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म नही ं िलया है। मने तय िकया था की म आपसे चुदवा कर ही अपना कौमाय भंग क ँ गी। म िपछले कई ह ों से आपसे ऐसे ही
मौके पर िमलने के िलए तलाश रही ही।"

ोित की इतनी और बेबाक ािहश ने जसवंत िसंह को कुछ भी बोल ने का मौक़ा नही ं िदया। वह ोित की इतनी गंभीर
बात को ठु करा ना सके। क ान जसवंत िसंह ने ने वहीँ ब म ही एक कमरा बुक िकया। पाट ख होने के बाद ोित अपने
माता और िपताजी से कुछ बहाना करके सबसे नजर बचा कर जसवंत िसंह के कमरे म चुपचाप चली गयी। ोित की ऐसी िह त
दे ख कर जसवंत िसंह हैरान रह गए।

उस रात जसवंत िसंह ने जब ोित को पहली बार न अव था म दे खा तो उसे दे खते ही रह गए। ोित की अंग भंिगमा दे ख कर
उ ऐसा लगा जैसे जगत के िव कमा ने अपनी सबसे ादा खूबसूरत कला के नमूने को इस धरती पर भेजा हो। ोित के खुले,
काले, घने बाल उसके कू े तक प ँच रहे थे। ोित का सुआकार नाक, उसके रसीले हो ँठ, उसके सुबह की लािलमा के सामान
गुलाबी गाल उसके ऊपर लटकी ई एक जु और ल ी गदन ोित की जवानी को पूरा िनखार दे रही थी।

ल ी गदन, छाती पर स ी से सर ऊंचा कर खड़े और फुले ए उसके न मंडल िजसकी चोटी पर फूली ई गुलाबी िन ले ँ ऐसे
कड़ी खड़ी थी ं जैसे वह जसवंत िसंह को कह रही थी,ं "आओ और मुझे मसल कर, दबा कर, चूस कर अपनी और मेरी बरसों की
ास बुझाओ।"

पतली कमर पर िबलकुल क िबंदु म थत गहरी ढू ं टी िजसके िनचे थोड़ा सा उभरा आ पेट और जाँघ को िमलाने वाला भाग
उ संिध, नशीली साफ़ गुलाबी चूत के िनचे गोरी सुआकार जाँघ और पीछे की और ल े बदन पर ज़रा से उभरे ए कू े दे ख कर
जसवंत िसंह, िज ोंने पहले कई खूब सूरत यों को भली भाँती नंगा दे खा था, उनके मुंह से भी आह िनकल गयी।

ोित भी जब क ान जसवंत िसंह के स न बदन से ब ई तो उसे अपनी पसंद पर गव आ। जसवंत िसंह के बाजुओ ं
के फुले ए डोले, उनका मरदाना घने बालों से आ ािदत चौड़ा सीना और सीने की स माँस पेिशयाँ, उनके काँधों का आकार,
उनकी चौड़ी छाती के तले उनकी छोटी सी कमर और सबसे अच ा और िव याकुल पैदा करने वाला उनका लंबा, मोटा, छड़ के
सामान खड़ा आ ल को दे ख कर ोित की िस ीिप ी गुम हो गयी। ोित ने जो क ान जसवंत िसंह के बारे म सूना था उससे
कही ं ादा उसने पाया।

जसवंत िसंह का ल दे ख कर ोित समझ नही ं पायी की कोई भी औरत कैसे ऐसे कड़े, मोटे, ल े और खड़े ल को अपनी
छोटी सी चूत म डाल पाएगी? कुछ अरसे तक चुदवाने के बाद तो शायद यह संभव हो सके, पर ोित का तो यह पहला मौक़ा था।
जसवंत िसंह ने ोित को अपने ल को ान से ताकत ए दे खा तो समझ गए की उनके ल की ल ाई और मोटाई दे ख कर
ोित परे शान महसूस कर रही थी। जसवंत िसंह के िलए अपने साथी की ऐसी ित या कोई पहली बार नही ं थी।

उ ोंने ोित को अपनी बाँहों म िलया और उसे पलग पर हलके से िबठाकर कर ोित के सर को अपने हाथों म पकड़ कर
उसके हो ँठों पर अपने हो ँठ रख िदए। ोित को जैसे ग का सुख िमल गया। उसने अपने हो ँठ खोल िदए और जसवंत िसंह की
जीभ अपने मुंह म चूस ली। काफी अरसे तक दोनों एक दू सरे की जीभ चूसते रहे और एक दू सरे की लार आपने मुंह म डाल कर
उसका आ ादन करते रहे।

साथ साथ म जसवंत िसंह अपने हाथों से ोित के दोनों नों को सहलाते और दबाते रहे। उसकी िन लो ँ को अपनी उँ गिलयों के
िबच कभी दबाते तो कभी ऐसी तीखी चूँटी भरते की ोित दद और उ ाद से कराह उठती। काफी दे र तक चु न करने के बाद
हाथों को िनवृि दे कर जसवंत िसंह ने ोित की दोनों चूँिचयों पर अपने हो ँठ िचपका िदए। अब वह ोित की िन लो ँ को अपने
दांतो से काटते रहे जो की ोित को पागल करने के िलए पया था। ोित मारे उ ाद के कराहती रही। ोित के दोनों स्तन दो
उ त टीलों के सामान ितत होते थे।

7
जसवंत िसंह ने ोित की चूँिचयों को इतना कस के चूसा की ोित को ऐसा लगा की कही ं वह फट कर अपने ि यतम के मुंह म
ही ना आ जाय। ोित के न जसवंत िसंह के चूसने के कारण लाल हो गए थे और जसवंत िसंह के दांतों के िनशान उस नों की
गोरी गोलाई पर साफ़ िदख रहे थे। जसवंत िसंह की ऐसी ेम ीड़ा से ोित को गजब का मीठा दद हो रहा था। जब जसवंत िसंह
ोित के नों को चूस रहे थे तब ोित की उं गिलयां जसवंत िसंह के बालों को संवार रही थी।

जसवंत िसंह का हाथ ोित की पीठ पर घूमता रहा और उस पर थत टीलों और खाईयो ँ पर उनकी उं गलयां िफरती रही ं। जसवंत
िसंह ने अपनी उस रात की माशूका के कू ों को दबा कर और उसकी दरार म उं गिलयां डाल कर उसे उ ािदत करने म कोई
कसर नही ं छोड़ी। थोड़ी दे र तक नों को चूसने और चूमने के बाद जसवंत िसंह ने ोित को बड़े ार से पलंग पर िलटाया और
उसकी खूबसूरत जॉघ ं ों को चौड़ा करके खुद टाँगों के िबच आ गए और ोित की खूब सूरत चूत पर अपने हो ँठ रख िदए।

रित ीड़ा म ोित का यह पहला सबक था। जसवंत िसंह तो इस िकया के मुख ा ापक थे। उ ोंने बड़े ार से ोित की
चूत को चूमना और चाटना शु िकया। जसवंत िसंह की यह चाल ने तो ोित का हाल बदल िदया। जैसे जसवंत िसंह की जीभ
ोित की चूत के संवेदनशील कोनों और दरारों को छूने लगी की ोित का बदन पलंग पर मचलने लगा और उसके मुंह से कभी
दबी सी तो कभी उ आवाज म कराहट और आह िनकलने लगी ं।

धीरे धीरे जसवंत िसंह ने ोित की चूत म अपनी दो उं गिलयां डाली ं और उसे उँ गिलयों से चोदना शु िकया। ोित के िलए यह
उसके उ ाद की िसमा को पार करने के िलए पया था। ोित मारे उ ाद के पलंग पर मचल रही थी और अपने कू े उठा कर
अपनी उ ेजना ज़ािहर कर रही थी। उसका उ ाद उसके चरम पर प ँच चुका था। अब वह ादा बदा करने की थित म नही ं
थी। ोित जसवंत िसंह का हाथ पकड़ा और उसे जोरों से दबाया। ोित के रोंगटे रोमांच से खड़े हो गए थे। ोित ने अपनी गाँड़
ऊपर उठायी और एक बड़ी सुनामी की लहर जैसे उसके पुरे बदन म दौड़ पड़ी। वह गहरी साँस ले कर कराह ने लगी, "क ान
साहब काफी हो गया। अब तुम ीज मुझे चोदो। अपना ल मेरी भूखी चूत म डालो और उसकी भूख शांत करो।"

जसवंत िसंह ने ोित से कहा, "तु ारे िलए म क ान साहब नही ं, म जसवंत िसंह भी नही ं। म तु ारे िलए ज ू ँ। आज से तुम
मुझे ज ू कह कर ही बुलाना।"

ोित ने तब अपनी र े िफरसे दु हराते ए कहा, "ज ूजी काफी हो गया। अब तुम ीज मुझे चोदो। अपना ल मेरी भूखी
चूत म डालो और उसकी भूख शांत करो।"

ज ूजी ने दे खा की ोित अब मानिसक प से उनसे चुदवाने के िलए िबलकुल तैयार थी तो वह ोित की दोनों टाँगों के िबच
आगये और उ ोंने अपना ल ोित के छोटे से िछ के क िबंदु पर रखा। ोित के िलए उस समय जैसे क़यामत की रात थी।
वह पहली बार िकसी का ल अपनी चूत म डलवा रही थी। और पहली ही बार उसे महसूस आ जैसे " थम ाहे मि का"
मतलब पहले हे िनवाल म िकसी के मुंह म जैसे मछली आजाये तो उसे कैसा लगेगा? वैसे ही अपनी पहली चुदाई म ही उसे इतने
मोटे ल को चूत म डलवाना पड़ रहा था।

ोित को अफ़सोस आ की ों नही ं उसने पहले िकसी लड़के से चुदवाई करवाई? अगर उसने पहले िकसी लड़के से चुदवाया
होता तो उसे चुदवाने की कुछ आदत होती और यह डर ना लगता। पर अब डर के मारे उसकी जान िनकली जा रही थी। पर अब
वह करे तो ा करे ? उसे तो चुदना ही था। उसने खुद ज ूजी को चोदने के िलए आमंि त िकया था। अब वह छटक नही ं सकती
थी।

ोित ने अपनी आँ ख मुंदी और ज ूजी का ल पकड़ कर अपनी चूत की गीली सतह पर रगड़ने लगी तािक उसे ल को
उसकी चूत के अंदर घुसने म कम क हो। वैसे भी ज ूजी का ल अपने ही िछ से पूव रस से िचकनाहट से सराबोर िलपटा
आ था। जैसे ही ोित की चूत के िछ पर उसे िनशाना बना कर रख िदया गया की तुरंत उसम से पूव रस की बूंद बन कर
टपकनी शु ई। ोित ने अपनी आँ ख मूँद ली ं और ज ू के ल के घुसने से जो शु आती दद होगा उसका इं तजार करने
लगी।

8
जसवंत िसंह ने अपना ल हलके से ोित की चूत म थोड़ा घुसेड़ा। ोित को कुछ महसूस नही ं आ। जसवंत िसंह ने यह दे खा
कर उसे थोड़ा और ध ा िदया और खासा अंदर डाला। तब ोित के मुंह से आह िनकली। उसके चेहरे से लग रहा था की उसे
काफी दद महसूस आ होगा। जसवंत िसंह को डर लगा की कही ं शायद उसका कौमाय पटल फट ना गया हो, ूंिक ोित की
चूत से धीरे धीरे खून िनकलने लगा। जसवंत िसंह ने अपना ल िनकाल कर साफ़ िकया। उनके िलए यह कोई बार पहली बार नही ं
था। पर ोित खून दे खकर थोड़ी सहम गयी। हालांिक उसे भी यह पता था की कँवारी लडिकयां जब पहली बार चुदती ह तो
अ र यह होता है।

ोित ने सोचा की अब घबरा ने से काम चलेगा नही ं। जब चुदवाना ही है तो िफर घबराना ों? उसने जसवंत िसंह से कहा, "ज ू
जी आप ने आज मुझे एक लड़की से औरत बना िदया। अब म ादा इं तजार नही ं करना चाहती। आप मेरी िचंता मत कीिजये। म
आपके सामने टाँगे फैला कर लेटी ँ। अब ीज दे र मत कीिजये। मुझे जी भर कर चोिदये। म इस रात का महीनों से इंतजार कर
रही थी।"

जसवंत िसंह अपनी टाँग फैलाये न लेती ई अपनी खूबसूरत माशूका को दे खते ही रहे। उ ोंने ोित की चूत के ऊपर फैले ए
खूनको िट ू पेपर अंदर डाल कर उससे खून साफ़ िकया। उ ोंने िफर ोित की चूत पर अपना ल थोड़ा सा रगड़ कर िफर
िचकना िकया और धीरे धीरे ोित की खुली ई चूत म डाला। अपने दोनों हाथों से उ ोंने माशूका के दोनों छोटे टीलों जैसे उरोजों
को पकड़ा और ार से दबाना और मसलना शु िकया। अपनी माशूका की न छिब दे खकर ज ूजी के ल की नस म वीय
तेज दबाव से नस को फुला रहा था। पता नही ं उन रगों म िकतना वीय जमा था। ज ूजी ने एक ध ा और जोर से िदया और उस
बार ोित की चूत म आधे से भी ादा ल घुस गया।

ना चाहते ए भी ोित के मुंह से ल ी ओह्ह्ह िनकल ही गयी। उसके कपोल पर ेद की बूँद बन गयी थी ं। जािहर था उसे
काफी दद महसूस हो रहा था। पर ोित ने अपने हो ँठ भी ंच कर और आँ ख मूँद कर उसे सहन िकया और ज ू जी को अपने
कू े ऊपर उठाकर उनको ल और अंदर डालने के िलए बा िकया।

धीरे धीरे ि य और ि यतमा के िबच एक तरह से चोदने और चुदवाने की जुगल बंदी शु ई। हालांिक ोित को काफी दद हो
रहा था पर वह एक आम अफसर की बेटी थी। दद को जािहर कैसे करती? ज ूजी के ध े को ोित उतनी ही फुत से ऊपर
की और अपना बदन उठाकर जवाब दे ती। उसके मन म बस एक ही इ ा थी की वह कैसे अपने ि यतम को ादा से ादा सुख
दे िजससे की उनका ि यतम उनको ादा से ादा आनंद दे सके। ज ू जी मोटा और ल ा ल जैसे ही ोित की सनकािद
चूत के योिन माग म घुसता की दो आवाज आती।ं एक ोित की ओहह ह... और दु सरी ज ूजी के बड़े और मोटे अंडकोष की
ोित की दो जाँघों के िबच म छपाट छपाट टकरा ने की आवाज। यह आवाज इतनी से ी और रोमांचक थी ं की दोनों का िदमाग
िसफ चोदने पर ही कि त था।

दे र रात तक जसवंत िसंह और ोित ने िमलकर ऐसी जमकर चुदाई की जो की शायद जसवंत िसंह ने भी कभी िकसी लड़की से
नही ं की थी। ोित के िलए तो वह पहला मौक़ा था। ू ल और कॉलेज म कई बार कई लड़कों से उसकी चु ाचाटी ई थी पर
कोई भी लड़का उसे जँचा नही ं। .जसवंत िसंह की बात कुछ और ही थी। अ ी तरह चुदाई होने के बाद आधी रात को ोित ने
जसवंत िसंह से कहा, "म आपसे एक बार नही ं हर रोज चुदवाना चाहती ँ। म आपसे शादी करना चाहती ँ।"

जसवंत िसंह उस लड़की ोित को दे खते ही रहे। कुछ सोच कर उ ोंने ोित से कहा, "दे खो ोित। म एक खुला आजाद पंछी
ँ। मुझे बंधन पसंद नही ं। म यह कबुल करता ँ की आपके पहले मने कई औरतों को चोदा है। म शादी के बंधन म फँस कर यह
आजादी खोना नही ं चाहता। इसके अलावा तुम तो शायद जानती ही हो की म इ टी िडवीज़न म ँ। मेरा काम ही लड़ना है। मेरी
जान का कोई भरोसा नही ं। अगले महीने ही मुझे क ीर जाना है। मुझे पता नही ं म कब लौटू ंगा या लौटू ंगा भी की नही ं। मुझसे शादी
करके आप को वह िजंदगी नही ं िमलेगी जो आम लड़की चाहती है। पता नही,ं शादी के चंद महीनों म ही आप बेवा हो जाओ। इस

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िलए यह बेहतर है की आपका जब मन करे मुझे इशारा कर दे ना। हम लोग जम कर चुदाई करगे। पर मेरे साथ शादी के बारे म मत
सोचो।"

ोित हंस कर बोली, "जनाब, म भी आम के बड़े ही जाँबाज़ अफसर की बेटी ँ। मेरे िपताजी ने कई लड़ाइयाँ लड़ी ह और मरते
मरते बचे ह। रही बात आपकी आजादी की तो म आपको यह वचन दे ती ँ की म आपको शादी के बाद भी कभी भी िकसी भी
मिहला से िमलने और उनसे कोई भी तरह का शारी रक या मानिसक र ा बनाने से रोकूंगी नही ं। यह मेरा प ा वादा है। म वादा
करती ँ की मुझसे शादी करने के बाद भी आप आजाद पंछी की तरह ही रहोगे। ब अगर कोई सु र लड़की आपको जँच
गयी, तो म उसे आपके िब र तक प ंचाने की जी जान लगा कर कोिशश क ँ गी। पर हाँ. मेरी भी एक शत है की आप मुझे िजंदगी
भर छोड़ोगे नही ं और िसफ मेरे ही पित बन कर रहोगे। आप िकसी भी औरत को मेरे घर म बीबी बनाकर लाओगे नही।ं "

जसवंत िसंह हंस पड़े और बोले, "तुम गजब की खूबसूरत हो। और भी कई सु र, जवान और होनहार लड़के और आम अफसर ह
जो तुमसे शादी करने के िलए जी जान लगा दगे। िफर म ही ों?"

तब ोित ने जसवंत िसंह के गले लगकर कहा, "डािलग, ूंिक म तु ारी होने वाली बीबी ँ और तुम लाख बहाने करो म तु
छोड़ने वाली नही ं ँ। मुझे तु ारे यह मोटे और तगड़े ल से रोज रात चुदवाना है, तब तक की जब तक मेरा मन भर ना जाए।
और म जानती ँ, मेरा मन कभी नही ं भरे गा। म तु ारे ब ों की माँ बनना चाहती ँ। अब तु ारी और कोई बहाने बाजी नही ं
चलेगी। बोलो तुम मुझसे शादी करोगे या नही ं?"

जसवंत िसंह ने अपनी होने वाली प ी ोित को उसी समय आपने बा पाश म िलया और हो ँठों को चूमते ए कहा, "डािलग मने
कई औरतों को दे खा है, जाना है और चोदा भी है। पर मने आज तक तु ारे जैसी बेबाक, ढ िन यी और िदलफक लड़की को नही ं
दे खा। म तु ारा पित बनकर अपने आप को ध महसूस क ं गा। म भी तु वचन दे ता ँ की म भी तु एक आजाद पंछी की
तरह ही रखूंगा और त भी िकसी पराये मद से शारी रक या मानिसक स बनाने से रोकूंगा नही ं। पर हाँ मेरी भी यह शत है की
तुम हमेशा मेरी ही प ी बनकर रहोगी और पित का दजा और िकसी मद को नही ं दोगी। "

उस बात के कुछ ही महीनों के बाद जसवंत िसंह और ोित उन दोनों के माँ बाप की रज़ामंदी के साथ शादी के बंधन म बंध गए।

यह थी कनल साहब और उनकी प ी ोित की ेम कहानी।

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िजस िदन कनल साहब की औपचा रक पसे सुनील और उसकी प ी सुनीता से पहली बार सुनील और सुनीता के घर म मुलाक़ात
ई और कनल साहब का पहले गरम और बादम सुनीता को दे ख कर नरम होना आ...

उस रात को सुनील ने अपनी प ी सुनीता को हलके फु े लहजे म कहा, "लगता है, कनल साहब पर तु ारा जादू चल गया है।
आज तो तु वह बड़े घूर घूर कर दे ख रहे थे। तुम भी तो कनल साहब को दे ख कर चालु हो गयी थी! कही ं तुम भी तो?..."

सुनीता हँस कर नकली गु े म सुनील की छाती पर ह ा सा घूँसा मार कर बोली, "ध ! ा पागलों जैसी बात कर रहे हो। ऐसी
कोई बात नही ं है। कनल साहब हमारे पडोसी ह। अगर म इतनी ल ी और मोटी उनके सामने बैठूंगी या खड़ी र ंगी, तो उनको मेरे
अलावा कुछ िदखाई भी तो नही ं दे गा। तब तो वह मुझे ही दे खगे ना? तुम ना हर बार कुछ ना कुछ उलटा पु ा सोचते रहते हो।
तु हमेशा कोई ना कोई नयी शरारत सूझती रहती है। वह बड़े चु और तंदुर ह। रोज सुबह वह कैसी दौड़ लगाते ह? और
तुम? दे खो तु ारी यह तोंद कैसी िनकली ई है? ज़रा कनल साहब से कुछ सीखो।"

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सुनील ने महसूस िकया की उसकी बीबी सुनीता भी कनल साहब के तेज तरार और कसरत के कारण सुगिठत बदन से
काफी भािवत लग रही थी।

कुछ दे र बाद सुनीता ने पूछ ही िलया, "कनल साहब ा करते ह?"

सुनील ने कहा, "आम म कनल ह। बड़े ही सुस ािनत अफसर ह। उनको कई बड़े स ानों से नवाजा गया है। कहते ह की लड़ाई
म वह अपनी जान पर खेल जाते ह। कई बार उ ोंने यु म अकेले ही बड़ी से बड़ी चुनौितयों का मुकाबला िकया है। कई मैडल
उ ोंने इतनी कम उ म ही पा िलए ह। ज ही हम अब उनके घर जाना ही होगा। बाकी सब अगली बार उनसे िमलते ही या तो
तुम उनसे सीधे ही पूछ लेना या िफर म उनको पूछ कर तु बता दू ं गा।"

सुनीता अपने पित की बात सुनकर थोड़ी सकपका गयी और बोली, "ऐसी कोई बात नही ं। म तो वैसे ही पूछ रही थी।"

वैसे ही आते जाते जब भी कभी सुनील से मुलाकात होती तो कनल साहब उसे बड़े ही अंतरं ग भाव से अपने घर आने का ोता दे ना
ना चूकते। एक रात को सुनील ने सुनीता से कहा, "आज कनल साहब िमले थे। पहले उ ोंने कई बार मुझे तु ारे साथ उनके घर
आने के िलए आ ह िकया था। पर आज तो वह अड़ ही गए। उ ोंने कहा की अगर हम उनके घर नही ं गए तो वह नाराज हो
जाएं गे।"

सुनीता ने कहा, "हाँ, आज ोित जी भी मुझे मािकट म िमली थी ं। वह मुझे बड़ा आ ह कर रही थी की हम उनके घर जाएँ । मुझे
लगता है की अब हम उनके घर ज ही जाना चािहए।"

...

सुनील और सुनीता ने कनल साहब को फ़ोन कर अगले शु वार की शाम उनके वहाँ प ँच ने का ो ाम बनाया। उनके प ँचते ही
कनल साहब ने ी, रम, िजन, िबयर इ ािद पेय पेश िकये, जबिक उनकी प ी ोित ने साथ साथ कुछ हलके फु े नमकीन
आिद पहले से ही सजा के रखे ए थे। कनल साहब और अपने पित सुनील के आ ह के बावजूद, सुनीता ने कोई भी कड़क पेय लेने
से साफ़ मना कर िदया। हालांिक वह कभी कभी िबयर पी लेती थी। सुनील ने दे खा की कनल साहब को यह अ ा नही ं लगा पर
वह चुप रहे। कनल साहब की प ी ोित ने सब का मन रखने के िलए एक ास म िबयर डाला। कनल साहब और सुनील ने
ी के िगलास भरे ।

जब ाथिमक औपचा रक बात हो गयी ं तब सुनीता के बार बार पूछने पर कनल साहब ने बताया की वह आतंकी सुर ाबल म
कमांडो ुप म कनल थे। उ ोंने कई बार यु म शौय दशन िकया था िजसके कारण उ कई मेड िमले थे। सुनील की प ी
सुनीता के िपताजी भी आम म थे और आम वालों को सुनीता बड़े स ान से दे खती थी। सुनीता की यह िशकायत हमेशा रही की
वह आम म भत होना चाहती थी पर उन िदनों आम म मिहलाओं की भत नही ं होती थी। उसे दे श सेवा की बड़ी लगन थी और वह
एन.सी.सी. म कडे ट रह चुकी थी। जािहर है उसे आम के बारे म बहोत ादा उ ुकता और िज ाषा रहती थी।

जब सुनीता बड़ी उ ुकता से कनल साहब को उनके मेड के बारे म पूछने लगी तो कनल साहब ने खड़े होकर बड़े गव के साथ
एक के बाद एक उ कौनसा मैडल कब िमला था और कौनसे जंग म वह कैसे लड़े थे और उ कहाँ कहाँ घाव लगे थे, उसकी
कहािनयां जब सुनाई तो सुनीता की आँ खों म से आं सू झलक उठे । कनल साहब भी यु के उनके अनुभव के बारे म सुनीता को
िव ार से बताने लगे। आधुिनक यु कैसे लड़ा जाता है और पुराने जमाने के मुकाबले नयी तकनीक और उपकरण कैसे इ ेमाल
होते ह वह कनल साहब ने सुनील की प ी सुनीता को भली भाँती समझाया।

सुनीता के मन म कई थे जो एक के बाद एक वह कनल साहब को पूछने लगी। कनल साहब भी सारे ों का बड़े धैय, गंभीरता
और ान से जवाब दे रहे थे। उस शाम सुनील ने महसूस िकया की उसकी प ी सुनीता कनल साहब के शौय और वीरता की
कायल हो गयी थी।

काफी दे र तक कनल साहब की प ी ोित और सुनील चुपचाप सुनीता और कनल साहब की बात सुनते रहे।

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कुछ दे र बाद सुनील जब बोर होने लगा तो उसने कनल साहब की प ी ोित से पूछा, " ोित जी, आप ा करती ह?"

ोित ने बताया की वह भी आम अफसर की बेटी ह और अब वह आम प क ू ल म सामािजक िव ान (पोिलिटकल साइं स)


पढ़ाती ह। बात करते करते सुनील को पता चला की कनल साहब की बीबी ोित ने राजकीय िव ान म मा स की िड ी ा की
है और वह राजकीय मसलों पर काफी कुछ पढ़ती रहती ह। ोित बोलने म कुछ शिमिल थी ं। सुनील की बीबी सुनीता की तरह वह
ादा नही ं बोलती थी। पर िदमाग की वह बड़ी कुशा थी। उनकी राजकीय समझ बड़ी तेज थी। सुनील की प ी सुनीता और
कनल साहब आम की बातों म हो गए तो सुनील और ोित अपनी बातों म जुट गए।

ोित के बदन की सुकोमल और िचकनी चा दे खने म बड़ी आकषक थी। उसका बदन और खासकर चेहरा जैसी शीशे का बना
हो ऐसे पारदशक सा लगता था। उसका चेहरा एक बालक के सामान था। वह अ र ूटी पालर जाती थी िजसके कारण उसकी
आँ खों की भौंह तेज कटार के सामान नुकीली थी ं। उसके शरीर का हर अंग ना तो पतला था और ना ही मोटा। हर कोने से वह पूरी
तरह सुआकार थी। उसके न बड़े और फुले ए थे। उसकी गाँड़ की गोलाई और घुमाव खूबसूरत थी।

सुनील को उसके हो ँठ बड़े ही रसीले लगे। सुनील को ऐसा लगा जैसे उन म से हरदम रस बहता रहता हो। उससे भी कही ं ादा
कटीली थी ोित की नशीली आँ ख। उ दे खते ही ऐसा लगता था जैसे वह आमं ण दे रही हों। सुनील और कनल साहब की प ी
ोित ने जब राजकीय बात शु की तो सुनील को पता चला की वह राजकीय हालात से भली भाँती वािकफ थी ं।

बात करते ए ोित ने कहा की वह काफी समय से सुनील से िमलने के िलए बड़ी उ ुक थी। उसने सुनील की प ी सुनीता से
सुनील के बारे म सुना था। ोित ने सुनील के कई लेख पढ़े थे और वह सुनील की िलखनी से काफी भािवत थी।

जब सुनील ने ोित से बात शु की तब उसे पता चला की बाहर से एकदम गंभीर, संकोचशील और अिमलनसार िदखने वाली
ोित वाकई म काफी बोल लेती थी और कभी कभी मजाक भी कर लेती थी। जब उ ोंने पोिलिटकल िव ान और इितहास की
बात शु की तो ोित अचानक वाचाल सी हो गयी। सुनील को ऐसा भी लगा की शायद अपने पित कनल साहब के ित उनके
मन म कुछ रं िजश सी भी है। सुनील ने मन ही मन तय िकया की वह ज ही पता करे गा की उन दोनों म रं िजश का ा कारण हो
सकता था।

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समय बीतता ही गया पर कनल साहब और सुनील की प ी सुनीता को जैसे समय का कोई पता ही नही ं था। कनल साहब की बात
ख़तम होने का नाम नही ं ले रही थी ं और सुनीता एक के बाद एक बड़ी ही उ ुकता से पूछ कर उनको गजब का ो ाहन दे
रही थी। इधर सुनील और ोित की बात ज ही ख़ हो गयी ं। सुनील अपनी घडी को और दे खने लगा तब ोित ने एक बात
कही िजससे शायद ोित की रं िजश के बारे म सुनील को कुछ अंदाज आ।

कनल साहब की प ी ोित ने कहा, "इनका (कनल साहब का) ही कुछ ऐसा अनोखा है की कोई भी सु र ी से यह
जब बात करने लगते ह तब उनकी बात ख़तम ही नही ं होती ं। और जब कोई सु र ी उनसे बात करने लगती है तो वह ी भी
उनसे सवाल पूछते थकती नही ं है। इनकी बात ही इतनी रसीली और नशीली होती ह की बस।"

सुनील कनल साहब की बीबी ोित की बात सुनकर समझ नही ं पाया की ोित अपने पित की तारीफ़ कर रही थी या िशकायत।
जािहर है की प ी िकतनी ही समझदार ों ना हो, कही ं ना कही ं जब िकसी और औरत के साथ अपने पित के जुड़ने की बात आती
है तो वह थोड़ा नकारा क तो हो ही जाती है।

उनकी बात सुनकर सुनील हँस पड़ा और बोला, "दे खये ना ोित जी, हम दोनों भी तो काफी समय से बातचीत म इतने त ीन थे
की समय का कोई ान ही नही ं रहा। म भी आपके पित जैसा ही ँ। बस एक फक है। आप जैसी खूबसूरत और से ी औरत को

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दे खकर म भी बोलता ही जा रहा ँ। पर ा इसम मेरा कसूर है? कौन भला आपकी और आकिषत नही ं होगा? म भी तो अपने
आप पर िनय ण नही ं रख पा रहा ँ।" िफर थोड़ा क कर सुनील ने कहा, " ोित जी मेरी बात का कही ं आप बुरा तो नही ं मानगे
ना?"

ोित ने सुनील की और शमाते ए ितरछी नज़रों से दे खा और मु ु रायी और बोली, "वाह रे सुनील साहब! आप ने तो एक ही
वा म मुझे ब त कुछ कह िदया! पहले तो आप ने बातों बातों म ही अपनी तुलना मेरे पित के साथ कर दी। िफर आपने मुझे
से ी भी कह डाला।और आ खर म आप ने यह भी कह िदया की आप मेरी और आकिषत ह। ज़रा ान र खये। आप कांटो की
राह पर मत चिलए, कही ं पाँव म कांट न चुभ जाएँ । आप का मुझे पता नही ं पर मेरे पित को आप नही ं जानते। वह इतने रोमांिटक ह
की अ ी से अ ी औरत भी उनकी बातों म आ जाती ह। दे खये कही ं आपकी प ी उनके च र म ना फँसे।"

सुनील जोर से हँस पड़ा। उसने पट से जवाब िदया, "मुझे कोई िचंता नही ं है ोित जी। पहले तो म मेरी प ी को ब त अ ी तरह
जानता ँ। वह ऐसे ही िकसीकी बातों म फँसने वाली नही ं है। दू सरे अगर मान भी िलया जाए की ऐसा कुछ हो सकता है तो आप ह
ना मेरा बीमा। अगर उ ोंने मेरी प ी को फाँस िदया तो वह कहाँ बचगे?" इतना कह कर सुनील चुप हो गया। ोित सुनील की
बात ज र समझ गयी होंगी, पर कुछ न बोली।

...

कनल साहब के घर पर ई पहली मुलाकात के चंद िदन बाद सुनील की प ी सुनीता के िपता, जो एक रटायड आम अफसर थे,
का हाट अटैक के कारण अचानक ही गवास हो गया। सुनीता का अपने िपता से काफी लगाव था। िपता के दे हांत के पहले रोज
सुनीता उनसे बात करती रहती थी। दे हांत के एक िदन पहले ही सुनीता की िपताजी के साथ काफी ल ी बातचीत ई थी। िपताजी
के दे हांत का समाचार िमलते ही सुनीता बेहोश सी हो गयी थी। सुनील बड़ी मु ल से उसे होश म ला पाया था।

सुनीता के िलए यह ब त बड़ा सदमा था। सुनीता की माताजी का कुछ समय पहले ही दे हांत आ था। िपताजी ने कभी सुनीता को
माँ की कमी महसूस नही ं होने दी। सुनील अपनी प ी सुनीता को लेकर अपने ससुराल प ंचा। वहाँ भी सुनीता के हाल ठीक नही ं थे।
वह ना खाती थी ना कुछ पीती थी। िपताजी के ि या कम होने के बाद जब वह वापस आयी तो उसका मन ठीक नही ं था। सुनील ने
सुनीता का मन बहलाने की बड़ी कोिशश की पर िफर भी सुनीता की मायूसी बरकरार थी। वह िपता जी की याद आने पर बार बार
रो पड़ती थी।

जब यह हादसा आ उस समय कनल साहब और उनकी प ी ोित दोनों ोित के मायके गए ए थे। ोित अपने िपताजी के
वहाँ थोड़े िदन कने वाली थी। िजस िदन कनल साहब अपनी प ी ोित को छोड़ कर वापस आये उसके दू सरे िदन कनल साहब
की मुलाक़ात सुनील से घर के िनचे ही ई। कनल साहब अपनी कार िनकाल रहे थे। वह कही ं जा रहे थे। सुनील को दे ख कर कनल
साहब ने कार रोकी और सुनील से समाचार पूछा तो सुनील ने अपनी प ी सुनीता के िपताजी के दे हांत के बारे म कनल साहब को
बताया। कनल साहब सुनकर काफी दु खी ए। उस समय ादा बात नही ं हो पायी।

उसी िदन शामको कनल साहब सुनील और सुनीता के घर प ंच।े ोित कुछ िदनों के िलए अपने मायके गयी थी। सुनील ने
दरवाजा खोल कर कनल साहब का ागत िकया। कनल साहब आये है यह सुनकर सुनीता बाहर आयी तो कनल साहब ने दे खा
की सुनीता की आँ ख रो रो कर सूजी ई थी ं।

कनल साहब के िलए सुनीता रसोई घर म चाय बनाने के िलए गयी तो उसको वापस आने म दे र लगी। सुनील और कनल साहब ने
रसोई म ही सुनीता की रोने की आवाज सुनी तो कनल साहब ने सुनील की और दे खा। सुनील अपने कंधे उठा कर बोला, "पता नही ं
उसे ा हो गया है। वह बार बार िपताजी की याद आते ही रो पड़ती है। म हमेशा उसे शांत करने की कोिशश करता ँ पर कर
नही ं पाता ँ। चाहो तो आप जाकर उसे शांत करने की कोिशश कर सकते हो। हो सकता है वह आपकी बात मान ले।" सुनील ने
रसोई की और इशारा करते ए कनल साहब को कहा। कनल साहब उठ खड़े ए और रसोई की और चल पड़े ।

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सुनील खड़ा हो कर घर के बाहर आँ गन म लॉन पर टहलने के िलए चल पड़ा।

कनल साहब ने रसोई म प ँचते ही दे खा की सुनीता रसोई के ेटफाम के सामने खड़ी िससिकयाँ ले कर रो रही थी। सुनीता की
पीठ कनल साहब की और थी।

कनल साहब ने पीछे से धीरे से सुनीता के कंधे पर हाथ रखा। सुनीता मूड़ी तो उसने कनल साहब को दे खा। उ दे ख कर सुनीता
उनसे िलपट गयी और अचानक ही जैसे उसके दु खों का गु ारा फट गया। वह फफक फफक कर रोने लगी। सुनीता के आँ खों से
आं सूं फ ारे के सामान बहने लगे। कनल साहब ने सुनीता को कसके अपनी बाँहों म िलया और अपनी जेब से माल िनकाला और
सुनीता की आँ खों से िनकले और गालों पर बहते ए आं सू पोंछने लगे।

उ ोंने धीरे से पीछे से सुनीता की पीठ को सहलाते ए कहा, "सुनीता, तुमने कभी िकसी आम अफसर की लड़ाई म मौत होते ए
दे ख है?"

सुनीता ने अपना मुंह ऊपर उठाकर कनल साहब की और दे खा। रोते रोते ही उसने अपनी मुंडी िहलाते ए इशारा िकया की उसने
नही ं दे खा। तब कनल साहब ने कहा, "मने एक नही ं, एक साथ मेरे दो भाइयों को दु न की गोली यों से भरी जवानी म शहीद होते
ए दे खा है। मने मेरी दो भािभयों को बेवा होते दे खा है। म उनके दो दो ब ों को अनाथ होते ए दे खा है। और जानती हो उनके
ब ों ने ा कहा था?"

कनल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना बंद हो गया और वह अपना सर ऊपर उठाकर कनल साहब की आँ खों म आँ ख
डालकर दे खने लगी पर कुछ ना बोली। कनल साहब ने अपनी बात जारी रखते ए कहा, "म जब ब ों को ढाढस दे ने के िलए गया,
तो दोनों ब े मुझसे िलपट कर कहने लगे की वह भी लड़ाई म जाना चाहते है और दु नों को मार कर उनके िपता का बदला जब
लगे तब ही रोयगे। जो दे श के िलए कुबानी दे ना चाहते ह वह वह रो कर अपना जोश और ज ात आं सूं के प म जाया नही ं
करते।"

कनल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना और तेज हो गया। वह कनल साहब से और कस के िलपट गयी बोली, "मेरे िपता जी
भी लड़ाई म ही अपनी जान दे ना चाहते थे। उनको बड़ा अफ़सोस था की वह लड़ाई म शहीद नही ं हो पाए।"

कनल साहब ने तब सुनीता का सर चूमते ए कहा, "सुनीता डािलग, जो शूरवीर होते ह, उनकी मौत पर रो कर नही ं, उनके असूलों
को अमल म लाकर, इनके आदश की राह पर चलकर, जो काम वह पूरा ना कर पाए इन कामों को पूरा कर उनके जीवन और
उनके दे हांत का गौरव बढ़ाते ह। यही उनके चरणों म हमारी स ी ांजिल होगी। उनके ा उसूल थे? उ ोंने िकस काम म
अपना जीवन समपण िकया था यह तो बताओ मुझे, िडअर?

उनकी बात सुनकर सुनीता कुछ दे र तक कनल साहब से िलपटी ही रही। उसका रोना धीरे धीरे कम हो गया। वह अपने को
स ालते ए कनल साहब से धीरे से अलग ई और उनकी और दे ख कर उनका हाथ अपने हाथ म ले कर बोली, "कनल साहब,
आप ने मुझे चंद श ों म ही जीवन का फलसफा समझा िदया। म आपका शुि या कैसे अदा क ँ ?"

कनल साहब ने सुनीता की हथेली दबाते ए कहा, "तुम मुझे ज ू, कह कर बुलाओगी तो मेरा अहसान चुकता हो जाएगा। "

सुनीता ने कहा, "कनल साहब मेरे िलए आप एक गु सामान ह। म आपको ज ू कह कर कैसे बुला सकती ँ?"

कनल साहब ने कहा, "चलो ठीक है। तो तुम मुझे ज ू जी कह कर तो बुला सकती हो ना?"

सुनीता कनल साहब की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली, "ज ूजी, आपका ब त शुि या, मुझे सही रा ा िदखाने के िलए। मेरे
िपताजी ने अपना जीवन दे श की सेवा म लगा िदया था। उनका एक मा उ े यह था की हमारा दे श की सीमाएं हमेशा सुरि त
रहे। उस पर दु नों की ग ी िनगाह ना पड़े । उनका दु सरा ेय यह था की दे श की सेवा म शहीद ए जवानों के ब े, कुटु ंब और
बेवा का जीवन उन जवानों के मरने से आिथक प से आहत ना हो।"

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कनल ने कहा, "आओ, हम भी िमलकर यह संक कर की हम हमारी सारी ताकत उन के िदखाए ए रा े पर चलने म ही लगा
द। हम िनभ कता से दु नों का मुकाबला कर और शहीदों के कौटु क सुर ा म अपना योगदान द। यही उनके दे हांत पर
उनकी स ी ांजिल होगी और उनका स ा ा होगा।"

सुनीता की आँ खों म आँ सू आ गये। सुनीता कनल से िलपट गयी और बोली, "ज ूजी, िजतना योगदान मुझसे बन पडे गा म दू ं गी और
उसम आपको मेरा पथ दशक और माग दशक बनना होगा।"

कनल ने मु राते ए कहा, "यह मेरा सौभा होगा। पर डािलग, मुझम एक कमजोरी है और म तु इससे अँधेरे म नही ं रखना
चाहता ँ। जब म तु ारी सु रता, जांबाज़ी और से ीपन से ब होता ँ तो अपने रं गीलेपन पर िनय ण नही ं रख पाता ँ। म
आपका पूरा स ान करता ँ पर मुझसे कभी कही ं कोई गलती हो जाए तो आप बुरा मत मानना ीज?"

सुनीता ने भी शरारती मु ान दे ते ए कहा, "आप के रँ गीलेपन को मने महसूस भी िकया और वह िदख भी रहा है।"

ा सुनीता का इशारा कनल की टाँगों के िबच के फुले ए िह े की और था? पता नही ं। शायद सुनीता ने जब कनल साहब को
ज ी दी तो ज र उसने कनल साहब का रँ गीलापन महसूस िकया होगा।

जब सुनीता कनल साहब के साथ चाय लेकर मु ाती ई डाइं ग म म वापस आयी तो उसे मु ाती दे ख कर सुनील को यकीन
ही नही ं आ की यह वही उसकी प ी सुनीता थी जो चंद िमनट पहले अपना रोना रोक ही नही ं पा रही थी। सुनील ने कनल साहब
की और मुड़ कर कहा, "कनल साहब, आपने सुनीता पर ा जादू कर िदया? मुझे यकीन ही नही ं होता की आपने कैसे सुनीता को
मु ाना सीखा िदया। म आपका ब त ब त शु गुजार ँ। सुनीता को मु राना सीखा कर आज आपने मेरी िजंदगी म नया रं ग
भर िदया है। आपने तो मेरी िबगड़ी ई िजंदगी बना दी मेरी परे शानी दू र करदी।"

कनल साहब ने हंस कर कहा, "सुनील भाई, मने सुनीता को हँसता कर िदया है इसका मतलब यह नही ं की आप उस पर अचानक
ही चालु हो जाओ। रात को उसे ादा परे शान मत करना। उसे थोड़ा आराम करने दे ना।"

कनल साहब की बात सुनकर सुनील हँस पड़ा। सुनील की प ी सुनीता शम से अपना मुंह चुनरी म छु पाती ई रसोई की और भागते
ए बोली, "ज ूजी अब बस भी कीिजये। मेरी ादा खचाई मत क रये।"

इसके काफी िदनों तक कनल साहब कही ं बाहर दौरे पर चले गए। उनकी और सुनील की मुलाकात नही ं हो पायी। इस िबच सुनीता
ने बी.एड. का फॉम भरा। सुनीता की सारे िवषयों म बड़ी अ ी तैयारी थी पर उसे गिणत म ब त िद त हो रही थी। सुनीता गिणत
म पहले से ही कमजोर थी। सुनीता ने अपने पित सुनील से कहा, "सुनील, म गिणत म कुछ कोिचंग लेना चाहती ँ। मेरे िलए
नजदीक म कही ं गिणत का एक अ ा िश क ढूंढ दो ना ीज?"

सुनील ने इधर उधर सब जगह पता िकया पर कोई िश क ना िमला। सुनील और सुनीता से काफी परे शान थे ूंिक परी ा का
व नजदीक आ रहा था। उस दर ान सुनीता की मुलाक़ात कनल साहब की प ी ोित से स ी मािकट म ई। दोनों मािकट
से वापस आते ए बात करने लगी ं तब सुिनता ने ोित को बताया की उसे गिणत के िश क की तलाश थी। तब ोित ने सुनीता
की और आ य से दे खते ए पूछा",सुनीता, ा सच म तु नही ं मालुम की कनल साहब गिणत के िवषय म िन ात माने जाते ह?
उ गिणत िवषय म कई उपािधयाँ िमली ह। पर यह म नही ं कह सकती की वह तुं िसखाने के िलए तैयार होंग या नही ं। वह इतने
ह की गिणत म िकसीको ूशन नही ं दे ते।"

जब सुनीता ने यह सूना तो वह ख़ुशी से झूम उठी। वह ोित के गले लग गयी और बोली, " ोितजी, आप मेहरबानी कर कनल
साहब को मनाओ की वह मुझे गिणत िसखाने के िलए राजी हो जाएं ।"

ोित सुनीता के गाल पर चूँटी भरते ए बोली, "यार कनल साहब तो तुम पर वैसे ही िफ़दा ह। मुझे नही ं लगता की वह मना करगे।
पर िफर भी म उनसे बात क ँ गी।"

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उस ह े सुनीता ने ोित और कनल साहब को िडनर पर आने के िलए दावत दी। तब कनल साहब ने सुनील के सामने एक शत
रखी। िपछली बार सुनील की प ी सुनीता ने कुछ भी स पेय िपने से मना कर िदया था। कनल साहब ने कहा की आम के िहसाब
से यह एक तरह का अपमान तो नही ं पर अवमान िगना जाता है। कनल साहब का आ ह था की अगर वह सुनील के घर आएं गे तो
सुनीताजी एक घूंट तो ज र िपयगी।

अपनी प ी सुनीता को सुनील ने कनल साहब के यह आ ह के बारे म बताया तो सुनीता ने मान िलया की वह कनल साहब का मन
रखने के िलए एकाध िबयर पी लेगी। सुनील ने कनल साहब का आ ह ीकार कर िलया। उसे िकसी आम वाले से ही पता लग
गया था की ऐसा आ ह होने पर मिहलाएं ना भी पीती हों तो िदखाने के िलए ही सही पर एक छोटा सा पेग ले लेती ह और थोड़ा
ब त पीती ह या िफर िपने के बजाय उसको हाथों म िलए ए घूमती रहती ह। मौक़ा िमलने पर वह उसे अपने पित को दे दे ती है या
िफर उसे कही ं ना कही ं (पेड़ पैधो म) िनकास कर दे ती ह।

ऐसा भी नही ं की आम म हर कोई मिहला शराब नही ं पीती। कुछ मिहलाएं अपने पित या िम ों के साथ शराब पीती भी ह और
उनम से कुछ कुछ तो टु भी हो जाती ह। पर ऐसा कोई कोई बार ही होता है।

कनल साहब ने आते ही पहले सुनील को और बादम सुनीता को अपनी बाँहों म भर िलया। सुनीता भी कनल साहब से गले िमलकर
बड़ी स लग रही थी। कनल साहब की प ी ोित और सुनील ने भी यह दे खा।

सुनील और सुनीता ने भी कनल साहब और ोित की आवभगत करनेम कोई कसर नही ं छोड़ी। कनल साहब की तरह ही उ ोंने
भी टेबल पर अलग अलग िक के स पेय रखे थे और साथ म भांितभांित के खा नमकीन इ ािद भी रख िदए गए थे।

कनल साहब के आते ही सुनील ने सब के िलए अपनी अपनी पसंदीदा स पेय पेश िकये। सुनीता गुजरात की थी सो उसने कुछ
ख़ास गुजराती खा पदाथ कनल साहब और ोित के लये तैयार िकये थे। कनल साहब के आ ह पर सुनीता ने भी ोित के साथ
अपने िगलास म िबयर डाली और सब ने िचयस कर के छोटी चु ी ली। कनल साहब िकछ ख़ास ही मूड म लग रहे थे।

आते ही जब सुनील की प ी सुनीता और कनल की प ी ोित अकेले म िमले तो ोित ने बताया की जब कनल साहब थोड़े अ े
मूड़ म हों तब सुनील की प ी सुनीता कनल साहब को मौक़ा दे ख कर गिणत िसखाने के बारे म पूछेगी। एक पेग जब कनल साहब
लगा चुके थे और कुछ रोमांिटक मूड़ म अपनी बीबी ोित के साथ छे ड़ छाड़ कर रहे थे तब मौक़ा पाकर सुनीता ने कनल साहब
को गिणत िसखाने के बारे म पूछा। ोित ने भी कनल साहब को हाँ करने के िलए र े की। जब कनल ने दे खा की सुनीता और
ोित दोनों तैयार थे तब कनल सुनीता को गिणत पढ़ाने के िलए तैयार हो गए।

कनल बोले, "भाई म गिणत म मेरी ू ल और कॉलेज म टॉप रहा ँ। मने शु म कॉलेज म गिणत पढ़ाई है। (सुनीता की और
मुड़कर बोले) म तु ऐसे िसखाऊंगा की तुम भी गिणत की मा र बन जाओगी। (िफर वह क कर बोले) पर हाँ, उसकी फीस
दे नी पड़े गी।"

उनकी बात सुनकर सुनीता उछल पड़ी और बोली, "हम मंजूर है, ा फीस होगी?"

कनल साहब बोले, "व आने पर मांग लूंगा।"

सुनीता थोड़ी िनराश सी लगी और बोली, "अरे ! मुझे स स म मत रखो। बोलो, ा फीस चािहए?"

कनल साहब ने कहा, "कुछ नही ं, कहना पर मांग लूंगा। चाय िपलानी पड़े गी, अब तो यही चािहए।"

सुनीता ने कहा, "जैसा आप ठीक समझ।"

यह तय आ की सुनीता को कनल साहब हर इतवार को दु पहर बारह बजे से हमारे घर म दो घंटे तक पढ़ाया करगे।

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कनल साहब के जाने के बाद तो सुनीता जैसे हवा म उड़ने लगी। उसे एक ऐसा िश क िमला था जो ना िसफ उसे से पढ़ायेगा,
ब जो उसका आदश था और कोई फीस की भी उ अपे ा नही ं थी। उस रात िब र म सुनील ने अपनी प ी सुनीता से कहा,
"तु ा लगता है? कनल साहब हमसे तु ारी पढ़ाई के बदले म ा मांगगे?"

सुनीता ने सुनील की और अजीब तरीके से दे खते ए कहा, "पर उ ोंने तो फीस के िलए कुछ कहा ही नही ं। वह मु म ही
पढ़ाएं गे। उ ोंने तो िसफ चाय ही मांगी है।"

सुनील ने कहा, "जानेमन एक बात समझो। मु हमेशा महँगा पड़ता है। िजंदगी म कुछ भी मु म नही ं िमलता। इं सान को हर
चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है।"

तब सुनीता ने सुनील की और बड़े ही भोलेपन से दे खा और बोली, "तो िफर? तु ा लगता है? कनल साहब ा मांगगे?"

सुनील ने अपने कंधे िहलाते ए कहा, " ा पता? दे खते ह। अगर वह कुछ भी नही ं मांगते ह िफर भी हम को समझ कर कुछ ना
कुछ तो दे ना ही पडे गा ना?"

वह बात यूँ ही ख ई। कनल साहब िनयिमत ठीक बारह बजे आने लगे। सुनीता एक अ े िव ाथ की तरह तैयार रहती और वह
दोनों सुनील के डी म म अलग से बैठ कर पढ़ाई करते। सुनीता ने सुनील को बताया की कनल साहब गज़ब के िश क थे, और
कुछ ही िदनों म सुनीता को गिणत म काफी रस पड़ने लगा। वह गिणत की किठन सम ाओं को सुलझाने लगी। सुनीता के चेहरे
पर यह एक नयी उपल ा करने का संतोष साफ़ नजर आ रहा था।

...

कई बार सुनील ने महसूस िकया की कनल साहब और उसकी बीबी की नजदीिकयाँ कुछ बढ़ सी गयी थी।

रात को उनके शयन क म जब सुनील सुनीता के साथ अठखेिलयां करने लगता तो महसूस करता था की सुनीता कुछ खोयी खोयी
सी लगती थी। जब सुनील पूछता तो सुनीता टाल दे ती। पर एक िदन जब सुनील ने सुनीता को कुछ ादा ही जोर दे कर पूछा तो वह
थोड़ी मायूस होकर बोली, "सुनील, मुझे समझ नही ं आता की म ा बताऊँ।"

सुनील ने कहा, "अगर तुम बताओगी नही ं तो म कैसे समझूंगा?"

तो सुनीता बोली, " कनल साहब मुझसे बड़ी ही िनजी, अजीब सी लगने वाली हरकत जाने अनजाने म करते ह।"

सुनील ने पूछा, " ा मतलब?"

तो बोली, "कनल साहब मुझे ब त अ ी तरह पढ़ाते ह। मेरे िलए वह घरम दे र रात तक खुद भी पढ़ाई करते ह। पर कई बार वह
ऐसा कुछ कर बैठते ह की म उलझन म फँस जाती ँ। समझ म नही ं आता की ा क ँ और ा क ं। जब म पढ़ाई म अ ा
करती ँ तो वह मुझ से िलपट जाते ह, मतलब आिलंगन करते ह और कई बार ख़ुशी के मारे मेरे बदन को सहलाते ह, कई बार वह
बू को हलके से पकड़ कर सेहला दे ते ह या दबा दे ते ह।

कई बार गलती करती ँ तो वह मेरे कान मरोड़ते ह और मेरी साडी या डे स म हाथ डाल कर मेरे पेट पर चूँटी भरते ह; और अगर
म खड़ी होती ँ तो मेरे िपछवाड़े को भी दबाकर चूँटी भरते ह। म उ रोक नही ं पाती। म तु बताने की कोिशश कर रही थी, पर
बोल नही ं पायी। कई बार म सोचती ँ को उनको रोकूं और ऐसा ना करने के िलए टोकूं। मेरी समझ म यह नही ं आता की उनकी
मंशा ा है। जब वह पढ़ाते ह तो उनका ान कभी भी मुझे पढ़ाने के अलावा कही ं नही ं जाता। म उनसे सट कर भी बैठती ँ तो
भी उनपर कोई असर नही ं होता। पर अचानक वह मुझसे ऐसी शरारत कर बैठते ह। मेरी समझ म नही ं आता बताओ म ा
क ँ ?"

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सुनील की सीधी सादी बीबी सुनीता की बात सुनकर का हँसना थम नही ं रहा था। सुनील ने कहा, "हे मेरी ारी भोली बीबी। अरे
कनल साहब एक जाँबाज जवाँ मद ह और वह कुछ रोमांिटक टाइप के भी ह। अगर वह तु ारे िलए इतना म कर रहे ह, रात रात
भर जाग कर तु ारे िलए वह खुद पढ़ रहे ह तो िफर वह तु ारी सफलता और िन लता पर उ ेिजत तो होंगे ही। अगर तुम
सफल होती हो तो वह तु आिलंगन भी करगे और तु ारे शरीर को ार से सेहलायगे भी।

और अगर तुम असफल होती हो तो वह िनराशा और गु े म तु चूँटी भरगे या कोई ना कोई सजा भी दगे। यह ाभािवक है। इस
म कुछ भी अजीब नही ं है। अगर तु ारी जगह कोई लड़का होता तो शायद वह ऐसा ही कुछ करते। पर चूँिक तुम औरत हो और
खूबसूरत हो तो कनल साहब थोड़ा ादा ही उ ािहत और रोमांिचत होते होंगे। यह ाभािवक है। अगर तुम उसको नेगिटवली
लेती हो तो यह गलत होगा। वह कनल साहब के ऊपर शक करने वाली बात होगी। मेरा तुमसे यह कहना है की तुम अपना ान
पूरी तरह से पढ़ाई म लगाओ।"

सुनीता ने अपने पित सुनील की और दे खा। उसे अपने पित पर गव आ। सुनील उसका िकतना ाल रखता है, यह सोचकर उसे
अपने पित पर अनायास ही ार उमड़ा। उसने सुनील का हाथ थाम कर कहा, "आप की बात सही है। मुझे गिणत से स नफ़रत
थी। पर अब कनल साहब की महेनत के कारण मुझे गिणत अ ा लगने लगा है, ब मुझे गिणत से ार होने लगा है। म िकतनी
भा शाली ँ की मुझे ज ूजी जैसे गु िमले और आप जैसे पित िमले।"

सुनील ने अपनी बात आगे बढ़ाते ए कहा, "दे खो वह तु ारे गु ह। गु भगवान् के समान होता है। वह तु ारी तर ी से खुश
होते ह और तु ारी किमयों से नाराज होते ह। यह ाभािवक है। इसम िचंता की कोई बात नही ं है। ब ी यह अ ा है की वह यह
सब करते ह, ूंिक यह दशाता है की वह तु ारी पढ़ाई म पूरा ान लगाते ह।

अगर तुमने उनको रोकने या टोकने की कोिशश की तो हो सकता है वह थोड़े से िनराश या हताश हों। उस कारण उनका मन तु
पढ़ाने म से हट जाए और उसका भाव तु ारी पढ़ाई पर पडे गा। तु तो चािहए की तुम उनका उ ाह बढ़ाओ। उनका और भी
साथ दो और एक अ े िव ाथ की तरह उनकी आलोचना और सजा को ीकारो और उनकी शाबाशी भरे उ ास का स ान
करो। उनम कोई दोष ना दे खो। वह एक गु या िश क का अपने िव ाथ के ित ार और स ान का ितक है। इसका तु गव
होना चािहए।"

अपने पित की ऐसी िसख सुनकर सुनीता खुश तो ई पर उसे थोड़ा आ य भी आ। उसने पूछा, "पर सुनील, यह तो गलत है ना?
अगर बात छे ड़छाड़ से आगे बढ़ गयी तो? कही ं कनल साहब ने कुछ ऐसी वैसी हरकत की तो? िफर ा होगा?"

सुनील ने कहा, "अरे डािलग तुम ब त ादा सोचती हो। वह कभी ऐसा कुछ नही ं करगे जो आपको पसंद नही ं होगा। म नही ं
मानता की वह कोई जबरद ी करने वालों म से ह। और िफर ऐसी वैसी हरकत वह ा कर सकते ह? ा तु लगता है वह तु
चोदना चाहगे?"

सुनीता ने कहा, "यह आप ा बकवास करते हो? भला ऐसा आप कैसे कह सकते हो?"

सुनील ने कहा, "दे खो डािलग, वह एक मद है। हर मद की नजर दू सरे की बीबी पर रहती ही है। ख़ास कर जब वह बला की
खूबसूरत हो, जैसे की तुम हो। सच क ं तो हर मद दू सरे की खूबसूरत बीबी को चोदने के सपने दे खता ही रहता है।"

अपने पित सुनील के मुंह से ऐसे श िनकल ते ही सुनीता एकदम सकपका गयी और हो गयी। वह अपने पित के चेहरे को
दे खने लगी। कही ं उसके पित कनल साहब से जल तो नही ं रहे? कही ं उनको उसके और कनल साहब के र े पर कोई शक तो
नही ं हो रहा? अनजाने म ही सुनील की प ी के चेहरे पर ल ा और शम की लािलमा छा गयी। उसने िझझकते घबराते ए पूछा,
"डािलग तुम मेरे और कनल साहब के र े के बारे म कही ं गलत तो नही ं सोच रहे?"

सुनील जोरदार ठहाका लगा कर हंसने लगा। उसने कहा, "नही ं डािलग नही।ं ऐसा िबलकुल नही ं है। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती
हो? ा मेरे कहने का यह मतलब था? म तो जो मद के मन के भाव होते ह वह तु बता रहा था, तािक तुम कुछ गलत ना सोचो।

18
तुम पर मुझे अपने से भी ादा भरोसा है। और उससे भी कही ं ादा मुझे कनल साहब पर भरोसा है। और हाँ डािलग, एक बात
और बताऊँ? म तु और कनल साहब को इतना चाहता ँ की अगर ऐसा वैसा कुछ हो भी जाए तो यह ज़रा भी मत सोचना की म
तुम पर कभी कोई तरह की आं च आने दू ं गा।"

यह सुनकर सुनीता की आँ ख झलझला उठी ं। वह अपने पित के इतने िव ास से गदगद हो गयी। सुनीता का गला ं ध गया। वह
कुछ बोल ना पा रही थी। सुनीता ने अपने पित सुनील को गले लगाया और बोली, "आप मुझे िकतना ार करते ह। म ही आप को
समझ नही ं पायी। िफर धीरे से सुनीता ने अपने पित के पाजाम म हाथ डाल कर कहा, "डािलग, आज मेरा ब त मन कर रहा है।"

सुनीता की बात सुनकर सुनील की ख़ुशी का िठकाना ना रहा। काफी अरसे के बाद उस रात सुनीता ने अपने पित को सामने
चलकर उसे चोदने के िलए आमंि त िकया। सुनील के िलए यह एक चम ा रक घटना थी। सुनील सोचने लगा कही ं ना कही ं कनल
साहब के बारे म ई बात का यह असर है। इस का मतलब यह आ की सुनीता को कनल के बारे म से स ी बात करने से
और उसे ो ािहत करने से सुनीता के मन म भी से ुअल उ ेजना की िचंगारी काफी समय के बाद िफर भड़क उठी थी। इसके
पहले सुनील की कई कोिशशों के बावजूद भी सुनीता का से करने का मूड नही ं बन पाता था।

सुनील ने ज ही अपने पाजामे के बटन खोल िदए और अपना ल अपनी बीबी सुनीता के हाथों म दे िदया। सुनीता ने अपने पित
का ल सहलाते ए उनसे पूछा, "सुनील डािलग, ा आप िश क की इतनी ादा एहिमयत मानते है?"

सुनीता के हाथ म अपने ल को सहलाते अनुभव कर सुनील ने मचलते ए कहा, "हाँ, िबलकुल। म मानता ँ की माँ के बाद
िश क की अहिमयत सबसे ादा है। माँ ब े को इस दु िनया म लाती है। तो िश क उसको अ ान के अ कार से ान के काश
मे ले जाता है। िश क अपने िश को ान की आँ ख दान करता है।

जहां तक आपका सवाल है तो जो िवषय (मतलब गिणत) आप का सर दद था और आप िजससे नफरत करते थे, अब आप उस
िवषय को ार करने लगे हो। जो अड़चन आपकी तर ी म राह का अड़ं गा बना आ था, वह िवषय अब आपकी तर ी को
आसान बना दे गा। यह गु की उपल है।"

सुनीता ने यह सूना तो सुनील पर और भी ार उमड़ पड़ा। उसने बड़े चाव से अपने पित के ल की चा को अपनी मु ी म
पकड़ते ए बड़ी ही कोमलता और ी सुलभ कामुकता से ार से िहलाना शु िकया। सुनील की उ ेजना बढ़ती गयी। वह अपने
आप पर िनय ण नही ं रख पा रहा था। सुनील का उ ाद और उ ेजना दे ख कर सुनीता और भी ो ािहत ई।

सुनीता ने झुक कर सुनील के ल के चारों और की चा को अपने दू सरे हाथ से सहलाया और झुक कर अपने पित के ल को
चूमा। यह महसूस कर सुनील और उ ािदत होने लगा। सुनीता ने अपने पित के ल के अ भाग को जब अपने हो ँठों के िबच
िलया तो सुनील उ ाद के चरम पर प ँच रहा था। उसकी िढ़ प ी उसे वह ार दे रही थी जो शायद उसने पहले उसे कभी
नही ं िदया।

सुनील भी अपनी कमर को ऊपर उठाकर अपने पुरे ल को अपनी बीबी के होठ
ँ ों की कोमलता को अनुभव करा ने के िलए
ाकुल हो रहा था। सुनीता ने और झक
ु कर अपने पित के ल का काफी िह ा अपने हो ँठों के िबच लेकर वह उस ल की
कोमल चा को अपने हो ँठों से ऐसे सहलाने लगी जैसे वह अपने हो ँठों से ही अपने पित के ल को मुठ मार रही हो। सुनीता ने
धीरे धीरे सुनील के ल को मुंह से अंदर बाहर करने की गित तेज कर दी। सुनीता के घने बाल सुनील की कमर और जाँघों पर हर
तरफ िबखर रहे थे और एक गज़ब का उ ाद भरा पेश कर रहे थे।

सुनील अपना िनय ण खो चुका था। अब उससे रहा नही ं जा रहा था। सुनील ने अ ो ाद म अपनी प ी के सर पर अपना हाथ
रखा। सुनीता के सर के साथ साथ सुनील का हाथ भी ऊपर िनचे होने लगा। अचानक ही सुनील के िदमाग म जैसे एक बम सा फटा
और एक जोशीले उ ाद से भरा उसके ल के मिहम िछ से उसके पौ ष का फ ारा फुट पड़ा।

19
अपनी प ी के चेहरे , हो ँठ, गाल और गदन पर फैले ए अपने वीय को दे ख सुनील गदगद हो उठा। कई बार अपनी प ी को िकतनी
िम त करने के बाद भी सुनील अपनी प ी को मौ खक चुदाई करने के िलए तैयार नही ं कर पाता था। पर उस रात सुनीता ने तः
ही सुनील के ल को चूस कर उसका वीय िनकाल कर उसे मं मु कर िदया था।

सुनील समझ ने कोिशश कर रहा था की इसका ा ख़ास कारण था। सुनील को लगा की कही ं ना कही ं कनल साहब का भी कुछ
ना कुछ योगदान इसम था ज र। दोनों पित प ी इतनी मश त करने के बाद आराम के िलए िब र पर कुछ दे र तक चुपचाप
पड़े रहे। सुनीता ने अपना गाउन अपनी जाँघों के भी ऊपर िकया और अपने पित की दोनों टांगों को अपनी टांगों म लेकर बोली,
"पित दे व, कैसा लगा?"

सुनील की आँ ख तो अपनी बीबी की नंगी चूत दे ख कर वहाँ से हटने का नाम ही नही ं ले रही थी। सुनीता ने जानबूझ कर अपनी
खूबसूरत हलके बालों को सावधानी से छँ टाई कर सजी ई चूत अपने पित के दशन के िलए खोल दी थी। सुनीता बड़े ही मानी
मूड़ म थी। उसकी चूत अपने पित से अ ी खासी चुदाई करवाने की इ ा से मचल रही थी। उसकी चूत की फड़कन कने का
नाम नही ं ले रही थी।

अब उसे अपने पित को दोबारा तैयार करना था। पित का हाल म लन आ था और अब उसके िलए तैयार होना शायद मु ल
ही था। पर सुनीता को चुदाई की जबरद ललक लगी थी। वह अपने पित का लंबा और मोटा ल से अपनी चूत की ास को
शांत करने की िफ़राक म थी।

काफी समय के बाद अपनी प ी की ऐसी ललक सुनील को काफी रोमांिचत कर उठी। सुनील को याद नही ं था की िपछली बार कब
उनकी प ी इतनी उ ेिजत ई थी। उ ोंने जहां तक याद था उसे कभी भी इस तरह चुदाई के िलए बेबाक नही ं पाया था। ा
कनल साहब की बात सुनकर वह ऐसी उ ेिजत हो गयी थी? या िफर अपने पित पर ादा ही ार आ गया, अचानक?

खैर जो भी हो। सुनील को भी अपनी प ी को इतना गरम दे ख कर उ ेजना ई। उपरसे सुनीता उनका ल जो इतने ार से
सेहला रही थी उसका असर तो होना ही था। सुनील का ल कड़क होने लगा। जैसे सुनील का ल कड़क होने लगा वैसे वैसे
सुनीता ने भी सुनील के ल को िहलाने की फुत बढ़ा दी। दे खते ही दे खते सुनील का लण्ड एक बार िफर एकदम स और ठोस
हो गया। अब उसम िटकने की मता भी तो ादा होने वाली थी, ूंिक एक बार झड़ने के बार वीय लन होने म भी थोड़ा समय
तो लगता ही है।

जैसे ही सुनीता ने दे खा की उसके पित एक बार िफर तैयार हो गए ह, तो वह धीरे से खसक कर पलंग पर लेट गयी और अपने पित
को उपर चढ़ ने के िलए इशारा िकया। सुनील अपना लंबा फैला आ लौड़ा लेकर खड़ा आ। उसने अपनी खूबसूरत प ी को ऐसे
नंगा लेटे ए दे खा तो वह दे खता ही रह गया। शादी के इतने सालों के बाद भी सुनीता के पुरे बदन पर कही भी चरबी का नामो
िनशान नही ं था। उसकी कमर वैसी ही थी जैसी उनकी शादी के समय थी। उसके पेट का िनचे का िह ा थोड़ा सा उभरा आ
ज र था। पर वह तो हर ी को होता ही है। सुनीता की चूत साफ़ की ई दोनों जाँघों के िबच ऐसी छु पी ई थी जैसे अपने पित का
ल दे ख कर शमा रही हो।

सुनील ने झुक कर अपनी बीबी की गीली चूत पर अपना ल कुछ पल रगड़ा। इससे वह ि हो गया। अब उस ल को चूत के
वेश ार म घुसनेम कोई िद त नही ं होगी। सुनील ने सुनीता के दोनों नों को अपने हाथों म पकड़ा और उ दबा कर ार से
मसलने लगा। अपनी प ी की फूली िन लों को उँ गिलयों म ऐसे दबाने लगा जैसे उनम दू ध भरा हो और उनम से दू ध की िपचकारी
की धार फुट िनकलने वाली हो। दू सरे हाथ से वह अपनी बीबी के कू ों को अपनी उँ गिलयों से दबा रहा था।

एक ह ा सा ध ा लगा कर सुनील ने अपना ल अपनी बीबी की चूत म धकेल िदया। अपने पित का जाना पहचाना ल
पाकर भी सुनीता उस रात मचल उठी। अपनी चूत म ऐसी गजब की फड़कन सुनीता ने पहले कभी नही ं महसूस की थी। आज
अपने पित के ल म ऐसा ा था? सुनीता यह समझ नही ं पा रही थी। अचानक उसे ाल आया की सारी बात तो कनल साहब
की शरारत और चोदने की बात से ही शु ई थी। कही ं ऐसा तो नही ं की सुनीता के अपने मन म ही खोट हो? सुनीता खुद भी ना
सोचते ए भी खुद कनल साहब से चुदवाने के सपने दे ख रही हो?

20
यह सोच कर सुनीता िसहर उठी। उसका रोम रोम काँप उठा। सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए। अपने शरीर म हो रहे रोमांच से
सुनीता को एक अद् भुत आनंद की अनुभिू त ई तो दू सरी और वह यह सोचने लगी की उसको यह ा हो रहा था? काफी अरसे से
से के बारे म वह पहले तो कभी इतनी उ ेिजत नही ं ई थी।. सुनीता अपने मनम अपने ही िवचारों से डर गयी। ज र कही ं ना
कही ं उसके मन म चोर था। वह चाहती थी की कनल साहब उसके बदन को छु एं , सहलाएं , उसकी संवेदनशील इ यों को श
कर और उसे उ ेिजत कर।

अचानक अपने िवचारों म ऐसा धरमूल प रवतन अनुभव कर सुनीता अपने आप से ही डर गयी। उसे चािहए था की अपनी यह सोच
को काबू म रखे। कही ं यह वासना की आग उनके दा जीवन को झल ु स ना दे । खैर, उस समय तो उसे अपने ारे पित को वह
आनंद दे ना था जो वह कई महीनों से या शायद बरसों से दे नही ं पायी थी।

बार बार कोिशश करने पर भी सुनीता ज ूजी को अपने मन से दू र नही ं कर पायी। सुनीता के िलए यह बड़ी उलझन थी। एक तरफ
वह अपने पित को उस रात स ोग का सुख दे ना चाहती थी और दू सरी और वह िकसी और से ही स ोग के बारे म सोच रही थी।
खैर मन और शरीर का भी अजीब स है। मन उ ेिजत होता है तो अंग अंग म भी उ ेजना फ़ैल जाती है। जब सुनीता बार बार
कोिशश करने पर भी अपने जहन से ज ूजी के बारे म सोचना बंद ना कर पायी तो िफर उसने सोचा, यही उ ेजना से अपने पित
को ों ना खुश करे , चाहे वह भाव ज ूजी के िलए ही ों ना हो? यह सोच कर सुनीता ने अपनी गाँड़ को ऊपर उठाकर अपने
पित को अपना ल चूत म घुसाने के िलए े रत िकया।

सुनील ने एक हलके ध े के साथ अपना पूरा ल अपनी बीबी सुनीता की टाइट चूत म घुसेड़ िदया। सुनीता के िदमाग म उस
रात गजब का उ ाद सवार था। सुनीता के बदन म उस रात खूब चुदाई करवाने की एक गजब की उ ं ठा थी। सुनीता का पूरा
बदन वासना से जल रहा था। जैसे जैसे सुनील ने अपना ल अपनी प ी की चूत म पेलना शु िकया वैसे वैसे ही सुनीता की
वासना की आग बढ़ती ही गयी। जैसे ही उसका पित अपना ल सुनीता की चूत म घुसेड़ता ऐसे ही अपना पेडू और गाँड़ ऊपर
उठाकर अपने पित के ल को और गहराईयों तक प ंचाने के िलए सुनीता अपने बदन से ऊपर ध ा दे रही थी। दोनों ही पित
प ी अपनी चुदाई की ि या म इतने मशगूल थे की उ आसपास की कोई भी सुध ही नही ं थी।

काफी रात जा चुकी थी। कॉलोनी म चारों तरफ स ाटा था। उसम सुनील और सुनीता, पित प ी की चुदाई की "फ फ " आवाज
और उ िन पूण कराहटों से ना िसफ सुनील का बैड म गूँज रहा था, ब उनके बैड मकी खुली खड़िकयों से बाहर
िनकल कर सामने कनल साहब के बैड म म भी उसकी गूँज सुनाई दे रही थी।

कनल साहब की प ी ोित ने जब सुनील और सुनीता के बैड म से कराहट की आवाज सुनी तो अपने पित को कोहनी मार कर
उठाया और बोली, "सुन रहे हो? तु ारी ारी िश ा अपने पित से चुदाई के कुछ पाठ पढ़ रही है। आप उसे गिणत पढ़ाते हो और
आपका दो अपनी बीबी को चुदाई के पाठ पढ़ाता है। यह ठीक भी है। ऐसा मत करना की कही ं यह िक ा उलटा ना हो जाए। म
जानती ँ की आप गिणत के अलावा कई और िवषयों म भी िन ात हो। पर आप उसे गिणत के अलावा कोई और पाठ मत
पढ़ाना।"

गहरी नी ंद म सो रहे कनल साहब ने करवट ली और बोले, "सो जाओ, डािलग। तुम सुनील ा पाठ पढ़ा सकता है उसके बारे म
ादा मत सोचो। कही ं तु ारा मन वह पाठ पढ़ने के िलए तो नही ं मचल रहा?"

उस रात सुनील और उसकी प ी सुनीता म बड़ी घमासान चुदाई ई। बड़ी कोिशश करने पर भी उस रात शायद सुनीता को वह
पूरी तरह संतु नही ं कर पाया ऐसा सुनील को महसूस आ। हालांिक उसकी प ी ने सुनील को उस रात ऐसा ार का तोहफा
िदया था िजसके िलए मही ंनों सो सुनील तड़प रहा था।

##

सुनीता की पढ़ाई जोरो शोरों से चल रही थी। कनल साहब भी रात रात भर खुद पढ़ाई करते और दू सरे िदन आकर सुनील की प ी
सुनीता को पढ़ाते। व कहाँ जा रहा था पता ही नही ं चला। दे खते ही दे खते परी ा का समय आ गया

21
परी ा तीन िदन के बाद होने वाली थी की अचानक खबर आयी की परी ा का पेपर िलक हो गया और परी ा कुछ िदनों के िलए
पीछे धकेल दी गयी। इतनी महेनत करने के बाद जब ऐसा आ तो सुनील की प ी सुनीता एकदम िनराश हो गयी। वह थक चुकी
थी। उसे थोड़ा तनाव मु समय चािहए था। उधर कनल साहब भी बड़े दु खी थे। उ लगा की जैसे सारी मेहनत पर पानी िफर
गया।

सुनील की प ी सुनीता ने एक िदन तंग आकर सुनील से कहा, "अब यह स स जान लेवा हो रहा है। लगता है कुछ दे र ही सही,
हम इस झंझट से हटकर हमारा िदमाग कही ं ऐसी ि या म लगाना चािहए िजससे हमारा ान परी ा और प रणाम से हट जाए।
कई बार तो मेरा मन करता है की म शराब पीकर ही थोड़ी दे र टु हो जाऊं और वतमान भूल जाऊं।"

सुनील की प ी सुनीता शराब नही ं पीती थी। जब उसने यह कह िदया तो सुनील समझ गए की वह िकतनी थक गयी है और उसे
कुछ मनोरं जन या कुछ ीड़ा की आव कता है िजससे उसका मन कुछ दे र के िलए ही सही पर यह तनाव और दबाव से हट
जाए।

सुनील ने सोचा ों ना वह अपनी प ी सुनीता को कही ं बाहर घुमाने के िलए ले जाए? पर वह असंभव था। सुनील को भी ब त काम
था और सुनीता की परी ा का िदन कभी भी आ सकता था। तो िफर वह कैसे सुनीता का मन बहलाये? िफर सुनील ने मन म आया
की सुनीता को कोई चुदाई की ू िफ िदखानी चािहए। पर सुनील जानता था की सुनीता को ू िफ म कोई िदलच पी नही ं
थी। वह कहती थी, "अरे इसम ा है? यह तो याँ पैसे कमाने के िलए करती ह। और िफर ऐसा तो हम हर रोज करते ही ह।"

तो वह ा करे ? तब िफर अचानक उसे कनल साहब की याद आयी।

सुनील ने कनल साहब को फ़ोन कर सुनीता के मन की उलझन बतायी। कनल साहब ने हंसकर कहा, "सुनीता की बात एकदम
सही है। म खुद भी थक चुका ँ। म खुद भी सोचता ँ की कही ं कुछ ऐसा क ँ की उस म ही उलझ जाऊं और यह गिणत, परी ा
और तनाव से दू र हो जाऊं। सुनील मेरी बात मानो तो मेरे पास एक ऐसा इलाज है की हम सब थोड़ी दे र के िलए यह सब भूल
जाएं गे।"

सुनील ने पूछा, " ा बात है?'

कनल साहब ने कहा, "एक फॉरे न िफ फे वल चल रहा है। उसम एक अनससर् ड िफ "पित प ी और पडोसी" काफी चच
म है। िप र एकदम इमोशनल है पर उसम काफी धमाकेदार से के सीन ह। म चाहता ँ की तुम दोनों और हम दोनों एक साथ
यह िप र दे ख। पर पता नही ं सुनीता तैयार होगी ा?"

सुनील ने कहा, "म सुनीता से बात करता ँ। आप ोित से बात करो।"

कनल साहब ने कहा, "मुझे ोित से बात करने की ज रत नही ं है, ूंिक यह िप र की बात ोित ने ही मुझे कही थी। उसकी
एक सहेली यह िप र दे ख कर आयी थी और उसे ही ोित ने कहा था। ोित को इस िप र के बारे म सब पता है।"

सुनील ने कहा, "ठीक है म सुनीता से बात करता ँ। पता नही ं पर अगर म क ंगा की आपने कहा है तो शायद वह मान जाए।"

...

जब सुनील ने अपनी प ी सुनीता से इस के बारे म कुछ ऐसे बताया। सुनील ने कहा, "डािलग तुम कहती थी ना की तुम कुछ दे र के
िलए ही सही, कुछ एकदम धमाकेदार और उ ेजना भरा कुछ अनुभव करना चाहती हो?"

सुनीता ने अपने पित की और दे ख कर अपना सर हाँ म िहलाया तो सुनील ने कहा, "डािलग एक िफ फे वल चल रहा है उसम
गजब की अवॉड ा िफ ों को िदखाया जा रहा है। कनल साहब ने हमारे चारों के िलए एक ब त अ ी िफल्म के चार िटकट

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बुक कराएं ह। िफ थोड़ी ादा से ी और धमाके दार है। तीन घंटे के िलए हम सब का िदमाग कुछ उ ेिजत हो जायेगा िजससे
हम यह सब भूल जाएं गे। तुम ा कहती हो?"

सुनीता ने कहा, " अ ा? कनल साहब ने हम चारों के िलए िटकट बुक कराये ह? से ी िपक्चर है? चलो ठीक है से ी िप र है
तो कोई बात नही ं। दे खये मुझे जाने म कोई एतराज नही ं है, पर म अं ेजी भाषा नही ं अ ी तरह नही ं समझती। म कुछ समझूंगी
नही ं। म भी बोर होउं गी और आपको भी पूछ पूछ कर बोर क ँ गी। आप मुझे ना ही ले जाओ तो अ ा है। दु सरा ज ूजी के साथ
ऐसी िप र दे खना ा सही है? वह और ोित जी साथ जाएं तो ठीक है। पर हम चारों का एक साथ जाना...? "

सुनील ने अपनी प ी की बात को िबच म ही काटते ए कहा, "पर कनल साहब की खास इ ा है की तुम ज र चलो। जहां तक
भाषा का सवाल है तो कनल साहब और ोित तु े सब बताते जाएं गे। मझा आएगा। चलो ना! मना करके सब का िदल मत
दु खाओ यार।"

कुछ िम त करने पर सुनीता तैयार हो गयी। सुनील ने कनल साहब को समाचार सूना िदया।

सुनीता पहेली बार कोई िवदे शी िफ ो व म जा रही थी। जब उसने सुनील से पूछा की कौन सा डे स सही रहेगा तो सुनील ने मजे
के लहजे म कहा, " डािलग हम िवदे शी िफ दे खने जा रहे ह, जहां काफी िवदे शी लोग भी आएं गे। तो ों नही ं तुम वो वाली छोटी
ट और ीवलेस टॉप पहनो, जो मने तु हमारी शादी की साल िगराह पर िदए थे और जो तुमने कभी नही ं पहने? आज म ी
का ही माहौल बनाना है तो िफर डे स भी म ी वाला ही ों ना पहना जाए? ों ना आज पानी म आग लगा दी जाए?"

सुनील की प ी ने अपने पित की और दे खा और हँस पड़ी, और बोली, "ठीक है, पितदे व का सर आँ खों पर। पर मुझे ज ूजी
के सामने वह डे स पहन कर जाने म शम आएगी। वह ब त ही छोटा डे स है। िफर आप कह रहे हो की िप र भी बड़ी से ी है।
तो कही ं आग ादा ही ना लग जाए और हम भी कही ं उस आग म झुलस ना जाएं ? ज ूजी मुझे ऐसे दे खगे तो ा सोचगे? यह
सोचा है तुमने?" मज़ाक के लहजे म सुनीता ने भी अपने पित से कह िदया।

सुनील ने आँ ख मटक कर कहा, "उन पर तो िबजली ही िगर जायेगी। पर िबजली भी तो िगरना ज री है। भाई आपके गु जी ने
आपके िलए िदन रात एक कर िदए ह। आज तक उ ोंने तु ारा िव ािथनी वाला प ही दे खा है। आज तुम अपना कािमनी और
मोिहनी प िदखाओ उनको। दे खो यह एक गहराई की बात है। यह हम भले ही एक दू सरे को ना बताय पर हम सब जानते ह की
वह तु ारे दीवाने ह, तुम पर िफ़दा ह। तु ारा इस प दे ख कर उन पर ा बीतेगी वह तो वह जान, पर म आज इतना कह
सकता ँ की आज वह हॉल म मेरी बीबी के जैसी खूबसूरत बीबी िकसीकी नही ं होगी।"

एक प ी जब अपने पित के मुंह से ऐसी श वचन या संशा सुनती है तो प ी के िलए उससे बड़ा कोई भी उपहार नही ं हो
सकता। वह समझती है की उसका जीवन ध हो गया।

जब सुनीता छोटी ट और पतला सा छोटा ाउज पहन के बाहर आयी तो उसे दे ख कर सुनील की हवा ही िनकल गयी। वह
ट और ाउज म सुनील ने अपनी बीबी को पहले नही ं दे खा था। ऐसा लगता था जैसे र ा अ रा ग से िनचे उतर कर कोई
ऋिष मुिन के तप का भंग कराने के िलए आयी हो।

उस िदन कही ं कही ं कुछ बा रश हो रही थी। गम थी इस िलए हवाम काफी उमस भी थी। पर ऐसा लगता था की उस शाम बा रश
ज र होगी। चूँिक सुनीता को िसनेमा हॉल म तेज A.C. के कारण अ रठ लगती थी, सुनीता ने अपने और अपने पित के िलए
दो शॉल ली और िनचे उतरी। कनल साहब और ोित उनका इं तजार ही कर रहे थे। जब कनल साहब ने अपनी िश ा का मोिहनी
प दे खा तो उनकी आँ ख फटी की फटी ही रह गयी।ं

उ ोंने जो प सपने म दे खा था (और शायद उसे कई बार अपने हाथों से िनव भी िकया होगा) वह उनके सामने था। छोटी सी
चोली म सुनीता के मदम न उभर कर ऐसे िदख रहे थे जैसे दो छोटे पहाड़ िकसी ेमी के हाथों को उन पर सैर करने का
आमं ण दे रहे हों। चोली के ऊपर से सुनीता के नों का उदार उभार साफ़ िदख रहा था। वह उभार उन नों की िन लो ँ से

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थोड़ा सा ऊपर तक जा कर ा के पीछे ओझल हो जाता था। कोई भी रिसक मद को इससे ाभािवक ही कुंठा या िनराशा होगी।
ऐसा महसूस होगा जैसे नाव िकनारे तक आ कर डू ब गयी। वह सोचने लगते, अरे चोली या ा थोड़ी सी और िनचे होती तो ा हो
जाता?

हो ँठ की तेज लाली और उसके गले का िनखार कनल साहब ने उस िदन तक कभी ान से दे खा ही नही ं था। सुनीता के गाल
कुदरती लािलमा से लाल थे। आँ खों की तो बात ही ा? काजल से अंिकत आँ खों की पलक जैसे आतुरता से कोई पूछ रही हों
और ी सुलभ ल ा से झुक कर आँ खों से आँ ख िमलाने से कतराती हों। आँ ख ऐसी कामुक लग रही थी जैसे ज ूजी को अपने
करीब बुला रही हों। सुनीता की नोकीली नाक ऐसे लगती थी जैसे उ िकसी उमदा िच कार ने बड़े ार और ान से बनाया हो।
शम से हँसने के िलए आतुर हों ऐसे आधे खुले ए होठ
ँ की पंखुिड़यां जैसे तीर छोड़ने के बाद के धनु के सामान िदख रहे थे।

छोटी सी चोली के तले से िनचे सुनीता की नंगी कमर के सारे उतार चढ़ाव और घुमाव इतने लुभावने एवं कामुक थे की कनल साहब
की नजर वहाँ से हटने का नाम नही ं ले रही थी ं। ट का छोर घुटनों से काफी ऊपर होने के कारण सुनीता की मुलायम, सपाट,
सुआकार और िचकनी जाँघ दे खते ही बनती थी। िकसी भी मद की नजर जब उनपर पड़गी तो जािहर है, िफर वही समंदर के
िकनारे तक प ंचकर पानी म डूब जाने वाली िनराशा िदमाग पर हावी हो जाएगी।

जब सुनीता ने कनल साहब को दे खा तो अपने चमकते दाँत खोल कर सु र मु ान दी और दोनों हाथ जोड़ कर नम े करते ए
बोली, "आपको इं तजार कराने के िलए माफ़ कर ज ूजी।"

िफर ज ूजी की प ी ोित की और मुड़कर उनके हाथ थाम कर बोली, " ोित जी आप बड़ी खूबसूरत लग रही हो।"

ोित ने पट से पलटवार िकया और बोली, "कहर तो आप ढा रही हो सुनीता। आज तो तु दे ख कर कई मद लोग घायल हो


जाएं गे।" िफर अपने पित की सुनीता के बदन पर गड़ी ई िनगाह दे ख कर बोली, "तु ारे िनचे उतरते ही घायलों की िगनती शु हो
चुकी है।"

शायद बाकी तीनों ने ोित के उस कटा को सूना नही ं या िफर उसपर ान नही ं िदया।

पर सुनील का पूरा ान ोित के बदन पर कि त था। कनल साहब की प ी ोित ने टाइट ै और ऊपर टाइट टॉप पहन
रखी थी। इससे उनके नों का उभार भी अ े खासे मद का ल खड़ा करने के कािबल था। सबसे खूबसूरत ोित के
सुआकार कू े (जो की िबलकुल ही ादा बड़े नही ं थे ) टाइट ै म बड़े उ त बाहर िनकले ए लग रहे थे। दोनों जाँघों के
िबच की दरार सुनील की आँ खों को बेचैन करने म स म थी ं।

दोनों जनाब एक दू सरे की बीबी को पूरी कामुकता से नजर चुराकर दे ख रहे थे। पर भला बीिबयों से यह कहाँ छु पता? जब कनल
साहब की बीबी ोित के बार बार गला खुंखारने पर भी कनल साहब सुनील की बीबी सुनीता के बदन पर से अपनी नजर हटा नही ं
पाए तो उस ने धीरे से अपने शौहर को अपनी कोहनी मारकर अवगत कराया की वह बाहर काफी लोग आसपास खड़े ह और
बेहतर है वह स नता के दायरे म ही रह।

सुनीता तो बेचारी ोित के पित ज ूजी की लोलुप नजर जो उसके बदन का पूरा मुआइना कर रही ं थी, उसे दे खकर सकुचा और
सहमा कर शम के मारे इधर उधर नजर घुमा कर यह जताने की कोिशश कर रही थी की जैसे उसने कनल साहब की नजरों को
दे खा ही नही ं। उसे समझ नही ं आ रहा था की ऐसे कपडे पहनने के बाद वह अपना बदन कैसे छु पाए?

इतनी गम और उमस होते ए भी, सुनील की बीबी ोित ने अपने पास रखी ई एक शाल शम के मारे अपने कंधे पर डाल दी
और अपनी छाती को छु पाने की नाकाम कोिशश करने लगी।

उनके घर के पास ही मेटो े शन था। जब चारों चलने लगे तो कनल साहब की प ी ोित ने सुनीता के पास आकर धीरे से उसकी
शाल अपने हाथ म ले ली और हँस कर बोली, "इतनी गम म इसकी कोई ज रत नही।ं तुम जैसी हो ठीक हो। तुम बला की खूबसूरत

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लग रही हो। आज तो मेरा भी मन कर रहा है की म तुमसे िलपट जाऊं और खूब ार क ँ । म भी मेरे पित की जगह होती तो तु
मेरी आँ खों से नोंच खाती।"

सुनील की प ी सुनीता ने शमाते ए कहा, " ोित जी मेरी टांग मत खी ंिचए। यह वेश मेरे पित ने मुझे जबरद ी पहनने के िलए
बोला है। म तो आपके सामने कुछ भी नही ं। आप गझब की खूबसूरत लग रही हो।"

जब चारों साथ म चलने लगे तो कनल साहब की प ी ोित सुनील के साथ हो गयी और उनसे बात करने लगी।ं सुनील की प ी
सुनीता की च ल म कुछ कंकर जैसा उसे चुभने लगा तो वह क गयी और अपनी च ल िनकाल कर उसने कंकर को िनकाला।
यह दे ख कर कनल साहब भी क गए। सुनील और ोित बात करते ए आगे िनकल गए। उ ोंने ान नही ं िदया की सुनीता और
कनल साहब क गए थे।

कनल साहब ने दे खा की सुनील की प ी सुनीता अपनी टाँगे उठा कर अपनी च ल साफ़ करने म लगी थी ं तो उनसे रहा नही ं गया।
वह सुनीता को मदद करने के बहाने या िफर साथ दे ने के िलए क गए और जब सब कुछ ठीक हो गया तो कनल साहब और
सुनीता भी एक साथ धीरे धीरे साथम चलने लगे। रा े म कनल साहब सुनीता से इधर उधर की बात करने लगे।

मेटो े शन पर काफी भीड़ थी। सुनीता ने अपने पित और कनल साहब की प ी ोित को खोजने के िलए इधर उधर दे खा पर वह
कही ं नजर नही ं आये। जब तक कनल साहब िटकट ले आये तब तक एक टैन जा चुकी थी। े शन पर िफर भी काफी या ी थे।
शायद सुनील और कनल साहब की प ी ोित िपछली मेटो टैन म िनकल चुके थे।

कनल साहब ने सुनील को फ़ोन िकया तो सुनील ने उ अगली टैन म आने को कहा। उतनी दे र म े शन पर िफर भीड़ हो गयी।

दू सरी मेटो तीन िमनट म ही आ गयी और सुनीता और कनल साहब टैन म चढ़ने लगे। थोड़ी सी अफरातफरी के कारण िकसी के
ध े से एक बार सुनीता लड़खड़ाई तो कनल साहब ने उसे पकड़ कर अपनी बाँहों म घेर िलया और खड़ा िकया।

िड ा खचाखच भरा आ था। राहत की बात यह थी की दोनों को एक साथ बैठने की जगह िमली थी। काफी भीड़ के कारण वह
एक दू सरे से भीच
ं के बैठे ए थे। कनल साहब की जांघ सुनीता की जाँघों से कस कर जकड़ी ई थी ं। कनल साहब की कोहनी बार
बार सुनीता के नों को दबा रही थी। सुनीता ने भी यह महसूस िकया। सुनीता कनल साहब को गौर से दे खने लगी। कनल साहब
शट और जी पहने ए बड़े ही आकषक लग रहे थे। उनके शट की आ ीन मुड़ी ई उनकी कोहनी के ऊपर तक लपेटी ई
थी। उसके ऊपर उ ोंने आधी आ ीन वाला जैकेट पहना आ था। कनल साहब के शश मस बा के ायु उभरे ए
मरदाना िदख रहे थे।

सुनीता का मन िकया की वह उन बाजुओ ं के ायुओ ँ को सहलाकर महसूस करे । िनयिमत ायाम करने के कारण सुनीता िफटनेस
की िहमायती थी। उसे कड़े बदन वाले कनल साहब के मरदाना बाजु आकषक लगे। उसने अपना हाथ कनल साहब के डोले पर
िफराते ए पूछ ही िलया, "ज ूजी, आपके डोले तो वाकई बॉलीवुड हीरो की तरह ह। ा आप वजन उठाने की कसरत भी करते
ह?"

कनल साहब सुनीता की नजर दे ख कर थोड़े से खिसया गए पर िफर अपने आपको स ालते ए बोले, "म िजम म रोज एक घंटा
वेट टेिनंग करता ँ।"

...

करीब आधे घंटे के सफर के दौरान कनल साहब की बाजुएँ बार बार सुनीता की छाती और नों से टकराती रही ं। सुनीता को नही ं
समझ आ रहा था की वह सहज प से ही था या िफर जान बूझकर। सुनीता को भी अपने अंदर एक अजीब सी उ ेजना महसूस हो
रही थी। उसे ज ूजी की यह हरकत अगर जानी समझी ई भी थी तो भी अ ा लग रहा था। वह चुपचाप जैसे उसे पता ही नही ं था
ऐसे उस हरकतों को महसूस करती ई बैठी रही।

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ना चाहते ए भी सुनीता की नजर कनल साहब की टांगों के िबच बरबस ही जा प ंची। उसके बदन म कंपकंपी फ़ैल गयी जब
उसने दे खा की कनल साहब के इतने मोटे जी म से भी उनके ल के खड़े हो जाने से उनके पॉवं ों के िबच जैसे एक त ू सा
फुला आ िदखाई पड़ रहा था। इससे सुनीता के िलए यह अंदाज करना किठन नही ं था की कनल साहब का ल काफी मोटा,
लंबा और कड़क होगा।

कनल साहब की जाँघों से जाँघ टकराते ए कही ं ना कही ं सुनील की प ी सुनीता मन ही मन म यह सोचने लगी की िजनकी बाँह
इतनी करारी और और जांघ इतनी स ह, िजनका बदन इतना ल ा, पतला और चु है तो उनका ल कैसा मोटा और िकतना
बड़ा होगा! जब वह अपनी बीबी को चोदते होंगे तब वह उनके ल को अपनी चूत म डलवा कर कैसा महसूस करती होगी! यह
सोच कर सुनीता के बदन म एक रोमांचक िसहरन फ़ैल गयी, िफर अपने आप पर ितर ार करती ई सोचने लगी, "मेरे मन म ऐसे
घिटया िवचार ों आते ह?"

े शन पर भी जब अपने पित सुनील को नही ं दे खा तो सुनीता के मन म अजीब से िवचार आने लगे। इधर वह कनल साहब के बारे
म उलटा पु ा सोच रही थी तो कही ं ऐसा तो नही ं की सुनील कनल साहब की बीबी ोित के साथ कुछ हरकत ना कर रह हों?

कनल साहब ने सुनीता का हाथ थामा और े शन से जब बाहर िनकले तो पाया की बा रश की बूँदाबाँदी शु हो गयी थी और
मौसम भी कुछ ठं डा हो गया था।

सुनीता बा रश से अपने आप को बचाने की कोिशश करने लगी। यह दे ख कर कनल साहब ने अपना आधी आ ीन वाला जैकेट
खोल िदया और सुनीता के सर पर रख उसके क ों पर डाल िदया। दोनों ही हाथ म हाथ थामे े शन से बाहर िनकल कर रा े पर
आये तब सुनीता ने अपने पित सुनील को ोित के साथ े शन के सामने ही एक छोटी सी चाय की दू कान पर चाय पीते ए बात
करते दे खा। वह दोनों कनल साहब और सुनीता का इं तजार कर रहे थे।

जैसे ही सुनीता ने अपने पित सुनील और कनल साहब की प ी ोित को दे खा की तुरंत कनल साहब का हाथ छु ड़ा कर सुनीता
फ़ौरन अपने पित सुनील के पास प ँच कर उनसे थोड़ा सा िचपक कर खड़ी ई।

सुनील ने अपनी प ी की और दे खा और पूछा, " ा बात है, जानू तुम थोड़ी परे शान सी लग रही हो?"

उसकी बात सुनकर फ़ौरन कनल साहब की प ी ोित ने शरारती ढं ग से पूछा, "सुनीता, तु कही ं मेरे पित ने रा े म परे शान तो
नही ं िकया?"

सेहमी ई सुनीता थोड़ा सा शम के मारे बोली, "नही ं दीदी ऐसी कोई बात नही ं। पर टैन म बड़ी भीड़ थी।"

...

ोित और सुनील कोई बात पर कुछ बहस कर रहे थे। ोित ने सुनील को िबच म ही रोक कर अपने पित कनल साहब को पूछा,
"आप दोनों चाय िपएं गे ा?"

कनल साहब ने दो िटकट सुनील के हाथ म थमाते ए कहा, "हम चाय पी कर आते ह। आप दोनों चिलए, अपनी बात करते रिहये
पर ज ी हॉल प ँच कर सीट ॉक कर दीिजये। हम चाय पी कर आपको ज ी ही हॉल म िमलते ह।"

सुनील और कनल साहब की प ी ोित बात करते ए चल िदए।

हॉल म प ँचते ही, आ खरी लाइन म कोने की चार सीट दे ख कर सुनील आ खरी कोने वाली सीट पर बैठ गए। उनके पास कनल
साहब की प ी ोित बैठ गयी। उनके पीछे आने जाने की िलए पैसेज था। हॉल काफी भर चुका था। एक दो इधर उधर सीटों को
छोड़ कार कही ं खाली सीट नही ं िदख रही थी ं। थोड़ी ही दे र म कनल साहब और सुनील की प ी सुनीता भी प ंच गए। सुनीता ने

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दे खा की उसे कनल साहब के साथ बैठना पडे गा। तो वह अपने पित की और दे खने लगी। सुनील कनल साहब की प ी ोित से
बात करने म मशगूल थे। सुनील ने दे खा की उनकी प ी सुनीता उनसे कुछ इशारे कर रही थी। सुनील ने सुनीता को पीछे के पैसेज
से उसको अपने पास आने को कहा। सुनीता उठ कर सुनील की सीट के पीछे आयी।

सुनीता ने अपने पित सुनील से कान म फुसफुसाते ए कहा (िजससे ोित उनकी बात ना सुन सके), "अरे मेरे साथ तो कनल
साहब बैठगे। आप कहा इतनी दू र बैठ गए? आपको मेरे साथ बैठना चािहए था ना? आप तो कह रहे थे िप र से ी है तो िफर म
कनल साहब के पास कैसे बैठ सकती ँ?"

सुनील ने अपनी प ी से बड़ी धीरज के साथ कहा, जाने मन, तुम कह रही थी ना, तु अं ेजी भाषा समझ ने म थोड़ी िद त हो
सकती है। तो कनल साहब और उनकी प ी ोित तु ारी दोनों तरफ बैठे ह। तुम जब चाहे उनसे जो समझ ना आये वह पूछ
सकती हो। जहां कनल साहब से पूछने म िझझक होती हो तो ोित जी दु सरी और बैठे ह, उनसे पूछ लेना। वह तु सब समझा
दगे। दे खो म भी इतनी जीभ तोड़ मरोड़ कर बोलने वाली अं ेजी, जैसे यह लोग िप र म बोलते ह, नही ं समझ पाता ँ। इसी िलए
म भी ोितजी के पास बैठा ँ।"

सुनीता को मन म शक आ की कही ं ऐसा तो नही ं की अपने पित सुनील ही ोित जी के साथ बैठने के िलए यह ितकड़म कर रह
हों? पर उस समय ादा सोचने का समय नही ं था सुनीता ने िफर अपने पित के कानों म कहा, "अँधेरे म कही ं कुछ गड़बड़ हो गयी
तो? तुम भी जानते हो की कनल साहब ज़रा ादा ही रोमांिटक ह। वह कही ं उ ेिजत हो गए तो म ा क ँ गी?"

सुनील ने अपनी बीबी की बातों को र करते ए कहा, "तुम ों सोचती हो की ऐसा कुछ होगा? और ा हो सकता है? ादा से
ादा वह तु छू ही लगे ना? उ ोंने तु इधर उधर छु आ तो कई बार है। तो िफर इतना ों घभड़ा रही हो? दे खो, वह तु ारे
िलए इतनी महेनत करते ह। तो तुम ों इतनी परे शान होती हो? अगर मान लो उ ोंने तु कही ं छू िलया तो ा हो जाएगा? जहां
तक म जानता ँ वह पैसे तो लगे नही ं। तो िफर और हम उनके िलए ा कर सकते ह? तुम िनि हो कर बैठो। अगर तुम अब
यह सीट बदलोगी तो हो सकता है उनको बुरा लगे। अगर वह नाखुश हो तो वह अ ी बात नही ं। मेरा ऐसा मानना है की एक अ ी
िव ाथ नी की तरह तु उ खुश रखना चािहए और उनके साथ ार से पेश आना चािहए। बाकी तुम खुद समझदार हो। जैसा
तु े ठीक लगे करो।"

सुनील की बात सुनकर सुनीता ने थोड़ी दे र अपने पित की और कुछ संकोच और कुछ िहचिकचाहट से दे खा। सुनील ने अपनी प ी
के हाथ दबा कर उसे िव ास िदलाया की िचंता की कोई बात नही ं थी। तो सुनील की प ी सुनीता को कुछ संतुि ई और वह
वापस कनल साहब के बगल म अपनी कुस पर आ कर बैठ गयी।

कनल साहब ने दे खा की सुनीता के चेहरे पर कुछ उलझन थी तो उ ोंने पूछा, " ा बात है, सुनीता? आप कुछ परे शान लग रही
हो? कही ं आप को मेरे साथ बैठने म कोई आपि तो नही ं? अगर ऐसा है तो म अपनी सीट चज कर दे ता ँ।"

सुनीता ने कनल साहब का हाथ पकड़ कर बोला, "नही ं ज ूजी ऐसी कोई बात नही ं। ब म आपके साथ ही बैठना चाहती ँ।"
िफर सुनीता ने सोचा की कही ं कनल साहब उसकी बात का गलत मतलब ना िनकाले इस िलए वह ोित सुन सके ऐसे बोली,
" ूंिक, म िप र की अं ेजी की बोली अ ी तरह से नही ं समझ पाती इस िलए जब भी ज रत होगी म आपसे पूछूँगी। आप दोनों
मुझे समझाना।" कनल साहब ने सुनीता का हाथ पकड़ कर उसे िदलासा िदलाया की वह ज र सुनीता को सारे डॉयलोग
समझायगे।

परदे पर िप र शु हो चुकी थी। कहानी कुछ ऐसी थी। एक युवा और युवती समंदर म "सी सिफग" (समंदर की सतह
पर समंदर की ऊँची ऊँची मौजों पर सपाट लकड़ी के फ े पर खड़े होकर या लेट कर िफसलना) कर रहे थे। उस समय वह दोनों
के अलावा वहां और कोई नही ं था। दोनों ही अपनी धुन म म सिफग कर रहे थे की अचानक लड़की लकड़ी के फ े से िगर पड़ी
और एक प र से उसकी ट र होने के कारण बेहोश हो गयी।

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वह युवक ने लड़की को पानी से िनकाल कर समंदर के िकनारे िलटाया और लड़की के भरे ए उभरे नो ँ पर अपने
दोनों हाथों की हथेिलयां रख कर उ जोर से दबाकर लड़की के पेट म से पानी िनकालने के िलए और उसकी साँस िफर से चालु हो
इस िलए बार बार ध े मार कर लड़की को होश म लाने की कोिशश करने लगा।

जब लड़की के मुंह से काफी पानी िनकल गया और वह होशम आयी और उसकी आँ ख खुली तो उसने लड़के को दे खा।
वह समझ गयी की लड़के ने उसकी जान बचाई थी। वह बैठ गयी और लड़के को अपनी बाहों म लेकर उससे िलपट गयी और
लड़के के मुंह से अपना मुंह िचपका कर उसने लड़के को एक गहरा चु न दे डाला।

धीरे धीरे दोनों एक दू सरे की और आकिषत ए। उस िदन के बाद दोनों िफर साथ म ही सिफग करने लगे। एक बार वह
लड़की जब समंदर से िनकल कर अपना डे स बदल रही थी तब उसने थोड़ी दू र खड़े ए उस लड़के की और टेढ़ी नजर से दे खा।
िनगाहों से िनगाह िमली ं और ार का इशारा आ। लड़के ने तौिलये म िलपटी ई लड़की को अपनी बाहों म ले िलया। तौिलया िगर
गया और नंगी लड़की िन र पहने ए लड़के से िलपट गयी। लड़की ने अपने हाथ से लड़के की िनकर िनचे खसका दी। दो नंगे
बदन समंदर के िकनारे एक दू सरे से िलपटे ए गाढ़ चु न म िल एक दू सरे के बदन को सहलाने लगे।

परदे पर जब यह चल रहा था तो सुनीता ने महसूस िकया की कनल साहब ने सुनीता का हाथ जो की शु से ही कनल साहब
के हाथ म ही था, को उ ेजना म दबाया। सुनीता भी परदे के इतने कामो ेजक थे की सुनीता भी उनका हाथ हटा नही ं सकी।
सुनीता के मनम कई उफान उठ रहे थे। कनल साहब ने िफ को दे खते ए सुनीता का हाथ और दबाया।

हॉल म एक िकनारे िसकुड़ कर बैठी ई बेचारी सुनीता के हालात अजीब से ही थे। वह हॉल म जहां दे खती थी सब जगह युगल ही
युगल थे जो इन उ ादपूण ों को दे ख कर चोरी छु पी एक दू सरे की गोद म टांगों के िबच हाथ डालकर एक दू सरे के ल या
चूत को सेहला रहे थे। शम या औिच के कारण कुछ युगल अपने कपड़ों से ढके ए उसके िनचे यह सब कर रहे थे और कुछ
खु म खु ा हॉल के अँधेरे का लाभ लेकर यह सब कर रहे थे। इन ों का असर सुनीता पर भी तो होना ही था। वैसे भी सुनीता
िपछले कुछ िदनों से कुछ ादा ही चंचलता अनुभव कर रही थी। उसके पित ने उसे िपछली कुछ रातों से कनल साहब का नाम
लेकर उकसाना और छे ड़ना शु िकया था।

सुनीता ने अनुभव िकया की उसकी चूत गीली हो चुकी थी और िफर भी उसकी चूत म से पानी रसना कम नही ं हो रहा था। उसको
अपनी चूत म अजीब सी चंचलता और फड़कन महसूस हो रही थी। सुनीता ने अपने पित को मन ही मन कोसना शु िकया की
ों नही ं वह इस व उनके पास बैठे? उसका मन कर रहा था की कोई उसकी दो टाँगों के िबच म और युगल की तरह ही हाथ
डालकर उसकी चूत को सहलाये।

सुनीता ने एक और बैठे कनल साहब की और दे खा तो वह बेचारे अपना फुला आ ल जो उनके पतलून म फनफना रहा होगा
उसको स ाल ने की नाकाम कोिशश कर रहे थे। उनकी प ी उनसे दू र दू सरे छोर पर सुनीता के पित सुनील के पास बैठी ई थी।
सुनीता सोचने लगी की कनल साहब का भी मन कर रहा होगा की उनके ल को कोई सहलाये।

यह साफ़ था की कनल साहब परदे के से इतने भािवत थे की अपने आप पर िनयं ण नही ं रख पा रहे थे। कनल साहब के
हाथ के हाथ से अपनी कलाई दबाते ही सुनीता के पुरे बदन म िसहरन फ़ैल गयी। उसके रोंगटे खड़े हो गए। वह एक अजीब
उधेड़बुन म फँसी थी। ा वह कनल साहब का हाथ वहीँ रहने दे या उसे हटा दे । सुनीता कुछ तय नही ं कर पा रही थी। शायद
कनल साहब ने उसे सुनीता की रजामंदी समझकर उसका हाथ पकड़ा और धीरे से सरका कर अपनी दो टाँगों के िबच रख िदया
और िफर अपना हाथ हटा िलया।

उधर परदे पर लड़की ने लड़के का मोटा और लंबा ल अपने हाथों म िलया और उसे ार से सहलाने लगी। लड़का भी
लड़की की पीठ, गाँड़ और जाँघों को सहलाने और टटोलने लगा। कैमरा मेन ने समंदर के िकनारे िछछरे पानी म ेम ीड़ा करते
ए दोनों नंगे बदन और इदिगद के वातावरण को इतनी बखूबी िफ ाया था की हॉल म बैठे ए सारे पु ष दशकों का ल खड़ा
हो गया और मिहला दशकों की चूत गीली हो गयी ।

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परदे पर लड़के और लड़की चुदाई करने लगे थे। कैमरा मेन इतनी खूबसूरती से पुरे को पेश कर रहा था की हॉल म
शायद ही कोई ऐसा होगा िजसको उसका असर ना आ हो। सुनीता की उधेङबुन जारी थी।

तब सुनीता का दु सरा हाथ कनल साहब की प ी ोित ने पकड़ा। सुनीता ने मुड़कर ोित की और दे खा तो सुनीता को अंदेशा
आ की हालांिक ोितजी शॉल से ढकी ई तो थी, पर उनकी शॉल के िनचे उनकी छाती पर कुछ हलचल हो रही थी। ोितजी
का एक हाथ सुनीता के हाथ पर था। ोितजी का दु सरा हाथ दू सरी और था। तो जािहर था की वह ोित की छाती पर हो रही
हलचल सुनीता के पित सुनील के हाथ से ही हो रही होगी।

ोित ने अपने पित को सुनील जी की प ी और खी ंचते ए महसूस िकया। चाहते ए भी वह कुछ कर नही ं सकती थी। पर दू सरी
और सुनीता के पित सुनील के आकषक ने उसका मन िजत िलया था। सुनील जी के िवचारों और उनकी लेखनी की वह
दीवानी थी। जब सुनील जी का हाथ कनल साहब की प ी ोित ने अपनी छाती पर सरकते ए महसूस िकया तो वह रोमांच से
काँप उठी। शादी के बाद पहली बार िकसी गैर मद ने ोित के नों को छु आ था। ोित सुनील जी के हाथों से अपने नों को
सेहलवाने से रोक ना पायी।

सुनील को ोित की और से कोई रोकटोक नही ं ई तो सुनील को समझने म दे र नही ं लगी ोितजी चाहती थी की सुनील उनके
नों को सहलाये। सुनील बेबाकी से ोित के नों को पहले हलके से सहलाने और िफर उ अपनी उँ गिलयों से दबाने और
मसलने लगा। उसे लगा की कनल साहब की प ी ने उ पूरी छूट दे दी थी। सुनील ने अपने दो की प ी ोित का हाथ भी
अपनी जाँघों के िबच म धीरे से रख िदया। एक तो िप र के उ ाद भरे , ऊपर से ोित की उँ गिलयों का सुनील के लंड के
साथ उसकी पतलून के ऊपर से खेलना, सुनील के िलए भी उ ेजना और उ ाद का िवषय था।

...

तो दू सरे छौर पर सुनील की प ी सुनीता परे शान हो गयी की वह करे तो ा करे ? सुनीता के हाथ की उं गिलयां कनल साहब के
फुले ए ल की फनफनाहट को महसूस कर रही ं थी ं। परदे पर अब कुछ गंभीर आने लगे। लड़के और लड़की ने शादी कर
ली थी। और दोनों बड़ी ही उछृं खलतासे अपने बैड म म चुदाई कर रहे थे। लड़की इतने जोर से कराह रही थी की उनका एक
पडोशी युवक बेचारा लेटा आ उस युगल की चुदाई की कराहट सुनकर अपने हाथों से मुठ मार रहा था।

ऐसे कामो ेजक दे खकर सुनीता को समझ नही ं आ रही थी की वह िदल की बात सुने या िदमाग की। सुनीता की एक और
कनल साहब थे और दू सरी और ोितजी। कनल साहब का ल ऊके पतलून म एक बड़ा सा त ू बना रहा था। सुनीता की
उँ गिलयों से वह लगभग सटा आ था। त ू दे ख कर ही सुनीता को अंदाज हो गया था की कनल साहसब का ल छोटा नही ं
होगा। िजस तरह कनल साहब परदे के दे ख कर मचल रहे थे साफ था की उनके ल म काफी हलचल हो रही थी।

दू सरी और ोित जी सुनीता का हाथ दबा रही थी। सुनीता समझ गयी की ोित जी भी काफी गरम हो रही थी। उ ोंने सुनीता का
हाथ इतनी ताकत से दबाया था की सुनीता को ऐसा लगा जैसे परदे के के अलावा भी ोितजी को कुछ कुछ हो रहा था।
सुनीता ने अपने पित सुनील की और दे खना चाहा पर वह साफ़ िदखाई नही ं दे रहे थे।

परदे पर दोनों पित प ी कार म कही ं जा रहे थे की उनकी कार का भयानक ए ीडट आ और

उस ए ीडट म लड़के को सर पर काफी चोट लगी िजसके कारण उसका मानिसक संतुलन िबगड़ गया। लड़की कार म
से उछल कर बाहर िगर गयी पर उसे भी चोट आयी पर वह हॉ टल म ठीक होने लगी।

उनके पडोसी युवक ने दोनों पित प ी की हॉ टल म काफी दे खभाल की। वह उनके िलए खाना लाता था और लड़की
के ठीक होने पर वह उसके पित की दे ख भाल म पूरी रात बैठा रहता था। डॉ रों ने लड़की से कहा की उसके पित का मानिसक
संतुलन ठीक हो सकता है अगर उसकी ार से परव रश की जाए और उसे ार िदया जाए।

29
मानिसक अस ुलन के कारण लड़की के पित की से की भूख एकदम बढ़ गयी थी। उसे से करने की इ ा िदन ब
िदन बल होती जा रही थी। वह सुबह हो या दु पहर, शाम हो या रात लड़की का पित लड़की को बड़ी ही असंवेदनशीलता से यूँ
किहये की अस ता से चोदता था। उसके चोदने म कोमलता, ार और संवेदनशीलता नही ं होती थी। लड़की भी अपने पित के
जुम इस उ ीद म सहन कर लेती थी की कभी ना कभी वह ठीक हो जाएगा।

हॉ टल से घर आने के बाद पित का वहार अपनी प ी के साथ बड़ा ही अस था। वह उसे चुदाई करते ए मारता
रहता था या िफर गािलयां दे ता रहता था। पडोसी युवक सुनता पर ा करता?

िफ म लड़की और उसके पित के चुदाई के भी अित उ ेजक शैली से िफ ाए गए थे िजसके कारण दे खने वालों की हालत
पतली हो रही थी।

सुनील ने भी कर् नल साहब की प ी का हाथ पकड़ा आ था और उसे खंच कर अपने ल पर रख िदया था। ोित ने सुनील का
ल का फुला आ िह ा पतलून के ऊपर से महसूस िकया तो वह भी अपने आपको रोक ना सकी और उसने सुनील के ल
को पतलून के ऊपर से पकड़ कर िहलाना शु िकया। सुनील का हाथ कनल साहब की बीबी ोित की गोद म खेल रहा था।

परदे पर हर पल बढ़ते जाते उ ेजक से सुनील और ोित की धड़कनों की र ार धीमा होने का नाम नही ं ले रही थी।
सुनीलजी का हाथ अपनी गोद म महसूस कर ोित के दय की धड़कन इतने जोर से धड़क रही ं थी ं की ोित डर रही थी की
कही ं उसकी नस इस उ ेजना म फट ना जाएँ । उसी उ ेजना म ोित सुनीलजी के ल को पतलून के ऊपर से ही धीरे से सेहला
रही थी। शायद उसे सुनील जी को अपने मन की बात का संकेत दे ना था।

सुनील समझ गए की ोित को सुनील के आगे बढ़ने म कोई एतराज नही ं था। शायद इस िन यता से वह अपनी मज भी जािहर
कर रही थी। सुनील ने अपना हाथ कनल साहब की बीबी की दो टांगों के िबच सरका िदया। ोित ने सहज प से ही बरबस
अपनी टांग खोल दी ं। सुनीलजी का हाथ सरक कर ोित की जाँघों के िबच की वह जगह पर पड़ा जो ोित का सबसे बड़ा
कमजोर िबंदु था।

सुनील की प ी सुनीता भी बड़े ही असमंजस म फँसी ई थी। ज ूजी सुनीता का हाथ अपनी टाँगों के िबच रख इशारा कर रहे थे
की वह चाहते थे सुनीता उनके ल को अपने हाथ म सेहलाये। कही ं ना कही ं सुनीता को ा यह ीकाय था? सुनीता समझ नही ं
पा रही थी। पर ज ूजी की यह ािहश उसको ितर ृ त ों नही ं लग रही थी यह उसे समझ नही ं आ रहा था।

ा सुनीता इस िलए ज ूजी की इस हरकत को नजर अंदाज कर रही थी ों की आ खर वह उसके गु थे और सुनीता के िलए
ज ूजी ने िकतना बिलदान िदया था? या िफर सुनीता खुद ज ूजी का मोटा और ल ा ल अपने हाथों म महसूस करना चाहती
थी? शायद सुनीता का मन ही उसका सबसे बड़ा दु न था। ूंिक सुनीता ज ूजी की हरकत का ज़रा भी ितरोध नही ं कर रही
थी।

परदे पर मानिसक असंतुलन वाला पित अपनी प ी को नंगी कर पलंग पर सुला कर चोद रहा था। मज ना होने पर भी
लड़की चुपचाप पड़ी चुदवा रही थी। उसे िन य दे ख कर पित ने उसे एक करारा थ ड़ मारा और बार बार उसे मारने लगा।
लड़की के हो ँठों से खून िनकलने लगा। सहन ना कर पाने पर लड़की अपने पित को ध ा मार कर खड़ी ई। प ी के ध े मारने
पर पित लड़खड़ाया और एकदम गु े हो गया और रसोई म से एक चाक़ू लेकर प ी को मारने के िलए तैयार आ। यह दे ख कर
प ी पूरी िनव घर से बाहर भागी और पडोसी लड़के का दरवाजा खटखटा ने लगी।

लड़की को एकदम नं पने दरवाजे पर खड़ी दे ख कर पडोसी युवक हत भ रह गया। उसने उसे अंदर बुला िलया और
दरवाजा बंद कर पलंग पर पड़ी च र ओढ़ाई। लड़की युवक के कंधे पर सर रख कर रोने लगी। लड़के ने अपना हाथ लड़की के
बदन पर िफराते ए उसे ढाढस दे ने की कोिशश की। अचानक लड़की के कंधे से च र िगर गयी और लड़का उस प ी का नंगा
बदन दे ख कर िफर सा दे खता ही रहा। लड़की उस लड़के की बाहों म चली गयी और अनायास ही दोनों बा पाश म बँध गए

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और एक के बाद एक हरकत ई और लड़की पलंग पर सो गयी और लड़का उसे चु न कर ार करने लगा और धीरे धीरे अपने
कपडे उतार कर चोदने लगा।

हॉल म िफर वही उ ाद पूण माहौल बन गया। सुनीता को यह क णा और उ ाद भरे के दे ख कर पता नही ं ा
महसूस हो रहा था। भावावेश म बरबस ही सुनीता ज ूजी का ल पतलून के ऊपर से ही सहलाने लगी। उसे ऐसा करने म तब
कुछ भी अयो नही ं लग रहा था। ज ूजी सुनीता को अपना ल सहलाते पाकर ना जाने कैसा महसूस कर रहे थे।

परदे पर अचानक एक नया मोड़ आया। जब वह पडोसी युवक उस लड़की को चोद रहा था की अचानक वह लड़की का
पित अपनी प ी को ढू ं ढते ए वहाँ आ प ंचा और अपनी प ी को पडोसी युवक से चुदते ए दे ख च र खा कर िगर पड़ा।
उसका सर एक मेज से जोर से टकराया और वह कुछ पल के िलए बेहोश हो गया। नंगा युवक और पडोसी की प ी दोनों एक दू सरे
को दे खने लगे की अब ा कर? कुछ ही पलो ँ म पित को जब होश आया तो उस सदमे से लड़की के पित का मानिसक संतुलन
िफर से ठीक हो चुका था। पित को अपनी प ी पर िकये जु पर पर काफी पछतावा आ और उसने नंगे युवक और अपनी प ी
को अपनी खुली बाहों म ले िलया और तीनों साथ म पलंग पर लेट गए। पित ने वहीँ अपनी प ी को बड़े ार से पडोसी युवक के
सामने ही चोदा और पड़ोसी युवक को भी अपनी बीबी को चोदने के िलए बा िकया।

िफ का यह आखरी ना िसफ उ ादक था ब अ ंत भावुक भी था। ज ूजी ने सुनीता की और वाला बाजू सुनीता की
सीट के पीछे से ऊपर से घुमा कर धीरे से च र के िनचे सुनीता की छाती पर रख िदया और अपने हाथों से सुनीता के ऊपर वाले
बदन को अपने और करीब खी ंचा। बरबस ही सुनीता को थोड़ा झुक कर अपना कंधा ज ूजी की छाती पर िटकाना पड़ा। ज ूजी
का हाथ अब धीरे धीरे सुनीता के टॉप के ऊपर वाले उ उभार को छू रहा था। सुनीता यह महसूस कर कुछ सहम गयी। वह
रोमांच से काँप उठी। ज ूजी ने सुनीता के दोनों नों के िबच की खाई म अपनी उँ गिलयाँ डाली ं। वह सुनीता के नों को सहलाने
लगे ही थे की अचानक हॉल जगमगा उठा।

िप रख हो चुकी थी। सारे दशकों के िदमाग म वही भावावेश और उ ादक उ ेजना एक िस े की तरह छप गयी थी।
ज ूजी, ोित, सुनील और सुनीता िप र के अचानक ख़ होते ही भौंच े से खड़े हो कर अपने कपडे ठीक करने म लग गए।
जािहर था की चारों अपने िनकट बैठे ए जोड़ीदार से कुछ ना कुछ हरकत कर रहे थे। कुछ भी बोलने का कोई अवसर ही नही ं था।
सब एक दू सरे से नजर बचा रहे थे या िफर दोषी की तरह खिसयाई नज़रों से दे ख रहे थे। वापसी म टैन म कुछ भीड़ नही ं थी। सब
टैन म चुपचाप बैठे और िबना बोले वापस अपने घर प ंचे। दोनों मिहलाएं समय गँवाये िबना, फुत से ऊपर सीिढ़यां चढ़कर अपने
ैट म प ँच गयी।

िनचे कनल साहब और सुनील बाई बाई करने के िलए और हाथ िमलाने के िलए खड़े ए और एक दू सरे की और खिसयानी नजर
से दे खने लगे तब कनल साहब ने सुनील से कहा, "दे खये सुनीलजी, आज जाने अनजाने हमारी दो ी, दो ी से आगे बढ़कर
दो ाना बन गयी है। हम दोनों प रवार कुछ अिधक करीब आ रहे ह। हम चािहए की हमारे िबच कुछ ग़लतफ़हमी या मनमुटाव ना
हो। इस िलए अगर आप दोनों म से िकसी के भी मन म ज़रा सी भी रं िजश हो या आपको कुछ भी गलत या अ िचकर भी लगे तो तो
ीज खुल कर बोिलये और मुझे अपना मान कर साफ़ साफ़ बताइयेगा। मेरे िलए और ोित के िलए आप दोनों की दो ी अमू
है। हम िकसी भी कारणवश उसपर आँ च नही ं आने दगे।"

सुनील ने अपना हाथ कनल साहब के हाथों म दे ते ए कहा, "ऐसी कुछ भी बात नही ं है। हम भी आप दोनों को उतना ही अपना
मानते ह िजतना आप हमको मानते ह। हमारे िबच कभी कोई भी मनमुटाव या गलत फहमी हो ही नही ं सकती ूंिक हम चारों एक
दू सरे की संवेदनशीलता का पूरा ाल रखते ह। आज या पहले ऐसा कुछ भी नही ं आ जो हम सब नही ं चाहते हों। जहां तक मुझे
लगता है, आगे भी ऐसा नही ं होगा। पर अगर ऐसा कुछ आ भी तो हम ज र आप से छु पायगे नही।ं हमारे िलए भी आप की दो ी
अमू है।"

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दोनों कुछ चैन की साँस लेते ए अपने ैट म अपनी पि यों के पास प ंचे। कनल साहब के घर प ँचते ही ोित उनके गले
िलपट गयी और कनल साहब के ल को सहलाती ई उनके ल की और दे ख कर हँस कर शरारत भरी आवाज म बोली, "मेरे
ज ूजी! आज मेरे इस दो को कुछ नया एहसास आ की नही ं?"

कनल साहब अपनी प ी की और खिसयानी नजर से दे खने लगे तब ोित ने िफर हँस कर वही शरारती ढं ग से कहा, "अरे मेरे
ारे पित! इसम खिसया ने की ा बात है?" ोित िफर अपने पित की बाँहों म चली गयी और बोली, "अरे मेरी ारी सुनीता के
ज ूजी! जो आ वह तो होना ही था! मने यह सब करने के िलए ही तो यह िप र का ान िकया था। ा म अपने पित को नही ं
जानती? और यह भी सुन लीिजये। तु ारे दो सुनील भी तुमसे कुछ कम नही ं ह। उ ोंने भी तु ारी तरह कोई कसर नही ं छोड़ी।"

...

घर प ँच ने पर सुनीता और सुनील के िबच म कोई बातचीत नही ं ई। सुनीता बेचारी झपी सी घर प ँचते ही घरकाम (खाना बनाना,
शाम की तैयारी इ ािद) म जुट गयी। सुनील सुनीता की मनोदशा समझ कर चुप रहे। उ सुनीता की झप के कारण का अ ा
खासा अंदाजा तो था ही। वह खुद भी तो जानते थे की जो उ ोंने ोित के साथ िकया था शायद उससे कुछ ादा कनल साहब ने
सुनीता के साथ करने की कोिशश की होगी।

सुनीता के बैड म म उस रात गजब की धमाकेदार चुदाई ई। जैसे ही सुनीता ने बैड म म प ँच कर दरवाजा बंद िकया की
फ़ौरन दौड़ कर वह सुनील से िलपट गयी ं और बोली, "सुनील डािलग, दे खो तुम बुरा ना मानो तो एक बात क ं?"

सुनील कुछ ना बोला और अपना सर िहला कर उसने अपनी प ी सुनीता की और दे खा तो वह बोली, "म तुमको बार बार कह रही
थी की मेरे पास बैठो। पर तुमने मेरी बात नही ं मानी। आ खर म कनल साहब से रहा नही ं गया और आज कुछ ादा ही हो गया।"

सुनील ने अपनी बीबी की जाँघों के िबच हाथ सरकाते ए कहा, "डािलग, ा आ? मने तु कहा था ना की ादा से ादा ा
हो सकता था? डािलग जो भी आ अ ा ही आ। पर यह सब बात मुझे नही ं सुननी। आज मेरा तु चोदने का ब त मन कर रहा
है। चलो तैयार हो जाओ।"

सुनीता ने शमाते ए कहा, "म भी तु ारा मोटा ल डलवाने के िलए तड़प रही ँ।"

सुनील ने तब अपनी प ी की िचबुक अपनी उँ गिलयों म पकड़ कर सुनीता की नजर से नजर िमलाकर पूछा, "डािलग, एक बात सच
सच बताओ, ा कनल साहब का ल वाकई म बड़ा है?"

सुनीता के गालों पर एकदम गहरी लािलमा छा गयी। वह अपने पित से नजर चुरा कर बोली, "तुम ा फ़ालतू बकवास कर रहे हो?
मुझे ा पता? म कोई उनका ल थोड़े ही दे ख रही थी? बड़ा ही होगा। इतने ह े क े जो ह। ल भी तो बड़ा ही होगा। अगर
तु पता करना ही है, तो तुम ोित जी से ों नही ं पूछते की उनके पित का ल िकतना बड़ा है? अब तो तुम दोनों इतने करीब
आ ही चुके हो?"

और उस रात िफर एक बार और सुनील और उसकी बीबी सुनीता ने जम कर चुदाई की। सुनीता पर तो जैसे कोई भूत ही सवार हो
गया था। सुनीता सुनील के ऊपर चढ़कर उसे ऐसी फुत से जोरशोर से चोदने लगी की सुनील का तो कुछ ही दे र म छूट गया।

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उस िदन सुनील अपने ऑिफस के काम के स भ म कही ं दो िदन के टू र गया आ था। कनल साहब और सुनील की प ी सुनीता
परी ा की तैया रयों म लगे ए थे। कनल साहब गिणत के कुछ किठन दा खले सुलझाने के िलए और उसे अपनी िश ा सुनीता को
कैसे वह आसानी समझा पाएं उस के िलए पूरी रात जाग कर तैयारी कर रहे थे।

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कनल साहब जानते थे कई बार परी ा म कोई किठन दा खला िव ाथ को िवचिलत कर सकता है और वह सुनीता के साथ ऐसा
कुछ ना हो यह प ा करना चाहते थे। इसी िलए कनल साहब ने दो िदन छु ी भी ले र ी थी। सुनीता ने अपने बैड म म से दे खा
की कनल साहब के डी म की ब ी पूरी रात जल रही थी। कई बार सुनीता ने अपने बैड म से कनल साहब को हाथ म
िकताब िलए कमरे म इधर उधर चहल कदमी करते ए भी दे खा।

सुनीता जानती थी की कनल साहब उसे दू सरे िदन पढ़ाने के िलए और वह परी ा म अ ल दज म सफल हो उसकी पूरी तैयारी म
जुटे ए थे। यह दे ख कर सुनीता समझ नही ं पायी की ऐसे इंसान के िलए ा िकया जाए। जो इं सान िकसी दू सरे की सफलता के
िलए ऐसे जी जान से लग जाए उसे ा कहा जाए?

सुनीता ने भी तय िकया की वह भी अपना पूरा मन लगा कर पढ़े गी और जो अपने गु की इ ा है उसे पूरा करे गी। वह कोिहश
करे गी की वह अ ल दज से पास हो। कनल साहब का जोश दे ख कर सुनीता को भी जोश आ गया। वह भी पूरी रात पढ़ाई करने
लगी।

जािहर है जब दू सरे िदन कनल साहब ने सुनीता के सामने कुछ बड़े ही किठन और जिटल रखे तो सुनीता ने कनल साहब से
थोड़ा मागदशन लेने के बाद उ बड़ी ज ी आसानी से सुलझा िदए। वह ऐसे थे िज े कनल साहब भी सावधानी से हल करने
की कोिशश करते थे। यह दे ख कर कनल साहब के रोमांच और उ ाद का िठकाना ना रहा। वह सुनीता ने िलखे ए जवाबों को
पढ़कर पागल से हो रहे थे। सुनीता ने जब अपने जवाब प कनल साहब के हाथ म िदए और उनको पढ़ते ए दे खा तो हैरान रह
गयी। कनल साहब की आँ खों म से आँ सूं बहने लगे जब वह एक के बाद एक जवाब पढ़ने लगे।

एकदम वह सुनीता के सामने उठ खड़े ए और सुनीता को कस के अपनी बाँहों म भर िलया। सुनीता अपना सर उठा कर कनल
साहब को दे खती ही रही। कनल साहब सुनीता का सर, आँ ख, उसके बाल, उसका कंधा और सुनीता के गाल तक चूमते ए बोलने
लगे, "मने अपनी िजंदगी म पहले िकसी िव ाथ को इतना परफे जवाब दे ते ए नही ं पाया।"

कनल साहब का ऐसा भावावेश सुनीता ने पहले कभी नही ं दे खा था। कनल साहब का ऐसा हाल दे ख सुनीता की आँ खों म भी आँ सूं
आ गए। वह कनल साहब से िलपट गयी और बोली, "ज ूजी, यह मेरा नही ं आपका कमाल है। आपने मुझे जीरो से हीरो बना िदया।
सच कहते ह, गु भगवान् होता है। वह कुछ भी कर सकता है।"

कनल साहब ने कहा, "नही ं ऐसा नही ं है। गु तो सबको बराबर िश ा दे ता है। पर कभी कभी कोई िश उसका पूरा फायदा उठा
पाता है। सब नही ं उठा पाते।"

भावावेश म सुनीता ने अपने हो ँठ उठाये और बरबस ही कनल साहब के हो ँठ के तले रख िदए। वह अपने आप पर िनय ण नही ं रख
पा रही थी। आज उसने महसूस िकया की मन का तन पर बड़ा ही अद् भुत िनयं ण है। यिद मन ठीक नही ं होता तो कुछ भी अ ा
नही ं लगता। और अगर मन होता है सब कुछ अ ा लगता है। कनल साहब भी सुनीता के हो ँठ से अपने हो ँठ भी ंचने वाले ही थे की
अचानक क गए। उ ोंने सुनीता के हो ँठ से अपने हो ँठ हटा िलए और सुनीता के नाक पर कस के चु न िकया और बोले,
"डािलग, भावावेश म बहने का समय नही ं है। तु बड़ी फतह करनी है। बड़ा िकला िजतना है। म चाहता ँ की तुम गिणत म
अ ल दज से पास हो। तभी मुझे मेरा पा रतोिषक िमलेगा।"

कनल साहब की बात सुनकर सुनीता भी मचल गयी। उसे कनल साहब पर और ार आया। जो इं सान इतना रोमांिटक था और जो
उस पर इतना िफ़दा था, वह अपने आपको कैसे रोक पाया यह सुनीता की समझ से परे था। उसने तो एक भावावेश भरे णम
अपना िनयं ण गँवा िदया था पर कनल साहब ने उसे स ाल िलया। वह मन ही मन कनल साहब की ऋणी हो गयी। उनके पौ ष
की कायल हो गयी।

...

33
जब सुनील वापस आये तो सुनीता ने उसे सारी दा ान कही। सुनीता ने यह नही ं छु पाया की वह खुद तो ादा उ ेिजत हो गयी थी
पर कनल साहसब ने अपने आप पर िनय ण र ा और सुनीता को होठ
ँ ों पर िकस नही ं की। यह सुनकर सुनील ब त खुश आ।

सुनील ने अपनी बीबी सुनीता को कहा, "दे खा? यही सही िश क की पहचान है। उनका मन तु ारी पढ़ाई म तु ारे प रणाम म
इतना लग चुका है की तु ारे जैसी से ी और खूबसूरत औरत को भी नज़र अंदाज कर िदया। हालांिक की वह तुम पर लाइन
मारते रहते ह। तुम भी तो उनको कुछ ढील दे ती हो।"

सुनीता ने कटा से हँस कर कहा, "ऐसी कोई बात नही ं है। अरे लाइन तो मारगे ही ना? मद जो ह। कॉलेज म तुम मुझे लाइन नही ं
मारते थे? अरे अब भी तो म जब सजधज के तैयार होती ँ तो तुम भी तो िसटी बजाने लगते हो! लाइन तो कई लोग मारते थे मुझ
पर, और अभी भी मारते ह। पर असली माल तो तुम ही चुरा के ले गए ना? बाकी सारे तो हाथ मलते रह गए। पर हाँ। खैर मजाक
छोडो। सी रयसली बात कर तो िजस तरह से वह हाथ धो कर मेरी पढ़ाई के पीछे पड़े ह, मुझे लगता है ज ूजी मुझे वाकई टॉप
करा कर के ही छोड़गे।"

सुनील ने पूछा, "अगर तुमको उ ोंने टॉप करवा िदया तो तुम उ ा पा रतोिषक दोगी?

सुनीता ने अपनी चोटी का छोर अपने हाथों म लेकर गोल गोल घुमाते ए कहा, "अगर वाकई म ऐसा आ तो वह जो मांगगे वह दे
दू ं गी।"

सुनील ने अपनी प ी की और गंभीरता से दे खते ए पूछा, "वह जो मांगगे वह दे दोगी?"

सुनीता ने कहा, "हाँ भाई। जो मांगगे म दे दू ँ गी। पहले तो वह िबचारे कुछ मांगगे ही नही ं। उ ोंने पहले ही कह िदया था की उ
कुछ नही ं चािहए। िफर भी अगर म अ ल आयी तो भला उससे कौनसी बात बड़ी हो सकती है? मुझे भी तो उनको गु दि णा
दे नी पड़े गी ना? तो वह म उ ज र दू ं गी। बशत की म अ ल आयी तो। और वैसे भी गु दि णा तो दे नी ही पड़े गी। तो सोचगे
ा दे ना है। एक अ ा सा िग उनको दगे। मानलो हर महीने अगर हम उ ५ हजार पये भी द तो उनको तीन महीने के
प ह हजार दे ने होंगे। चलो मानलो िबस हजार भी दे ने पड़ जाएँ तो भी ादा नही ं है। और वह भी अगर वह मांगगे तो। उ ोंने तो
पैसे मांगे ही नही ं है। तो इस हालात म हम पैसे ना दे ते ए उनको कोई इतनी ही रकम का िग भी दे दगे तो हमारा कोई खजाना
नही ं लूट जाएगा।"

सुनील ने कहा, "अगर वह तु मांगगे तो?"

सुनीता: "मुझे मांगगे? ा मतलब? म कोई िपया पैसा ँ की वह मुझे मांगगे?"

सुनील: "अरे बुद्धू राम। मेरा मतलब है अगर वह तु ारा बदन मांगगे तो?"

सुनीता: "अरे तुम पागल हो गए हो? वह ऐसा कोई थोड़े ही मांगगे? तुम अपने मन से सोचते रहो। मुझे उनपर पूरा भरोसा है।"

सुनील: "पर समझो अगर उ ोंने मांग ही िलया तो, तुम ा करोगी? तुमने तो वचन दे िदया है की जो वह मांगगे वह तुम दे दोगी।"

अपने पित की बात सुनकर सुनीता कुछ धमसंकट म पड़ गयी और थम गयी। थोड़ी दे र तक वह सोचती रही िफर बोली: "दे खो,
सुनील, तुम मुझे बातों म फांसने की कोिशश मत ही करो। माना की म िढ़वादी िवचारों की नही ं एक आधुिनक ी ँ। म पाट यो ँ
म जाती ँ और जाना पसंद भी करती ँ। और म जानती ँ की उन पाट यों म मद और औरत एक दू सरे की बीबी या पित के साथ
आज कल के जमाने म थोड़ी छे ड़ छाड़ करते रहते ह। कभी कबार चु ाचाटी भी होती है। थोड़ा संयम रखना चािहए पर ठीक है,
नशे म या उ ेजना म कई बार हो जाता है। यह सब चलता है। मुझे भी उस पर कोई भयानक एतराज नही ं। यहां तक तो ठीक है।
पर म राजपूतानी ँ। म अपना बदन ऐसे ही िकसी को नही ं सौपती। मने तु अपना बदन सौंपा है ूंिक तुमने अपनी िजंदगी मेरे
नाम कर दी है। तुमने कसम खायी थी की तुम अपनी जान की बाजी लगा कर भी मेरी र ा करोगे। राजपूतािनयाँ उनको ही अपना
िज सौंपती ं है जो अपनी जान की बाजी लगा कर भी उनकी र ा करने के िलए तैयार हों।"

34
सुनील अपनी बीबी की और आ य से दे खने लगा। उसने कहा, "भाई यह तो स नाइं साफ़ी है। ऐसे तो कोई भी शादी शुदा मद या
ी िकसी भी शादी शुदा ी या मद से संग कर ही नही ं सकेगा। आजकल तो संसार म हर घर म यह चलता रहता है। कोई भी
प ी या पित ऐसे नही ं होंग, िज ोने शादी के पहले या बाद म और िकसीसे से ना िकया हो? ब शादी के बाद ही अपनी साली
के साथ अपने दे वर या जेठ के साथ कई लोगों का ितकड़म चलता ही रहता है।"

सुनीता ने कहा, "अ ा? मने तो मेरे िकसी दे वर या जेठ के साथ ऐसा स नही ं र ा। इसका मतलब की तुमने मेरी बहन से
कुछ ना कुछ गड़बड़ ज र की है। वह बेचारी एकिदन मुझे कह रही थी, की जीजाजी को स ालो उसे ार दो, वह इधर उधार
ताँक झाँक करते रहते ह। अब मुझे समझ म आया। सच बोलो ा बात है?"

जब बात अपने पर आयी तो सुनील की तो बोलती ही बंद हो गयी। उसने कहा, "जानू , म तो यूँही मजाक कर रहा था। तुमने तो उसे
सी रयसली ले िलया। अरे भाई म तो िसफ छे ड़ने की बात कर रहा ँ।"

सुनीता, "अरे मने कुछ सी रयसली नही ं िलया। म भी मजाक ही कर रही ँ। इस बात पर तुम इतने हाइपर ों हो गए हो? बात मेरी
और ज ूजी की है। हम इ िमलके सुलझा लगे। कही ं तुम ज ूजी से जल तो नही ं रहे?"

सुनील खिसआिन से शकल बनाकर अपनी प ी को दे खता रहा। तब सुनीता ने शमाते ए कहा, "अरे भाई, अब ादा सयाने मत
बनो। तुम मद लोग हम औरतों को कहाँ छोड़ते हो? होटल म, बस म, टैन म, िप र म, घर म सब जगह तुम लोग तो वैसे ही हम
औरतो को हमेशा छे ड़ते ही रहते हो।"

ऐसी ही बात अ र सुनीता और उसके पित सुनील के िबच म होती थी तो उधर ोित भी अपने पित कनल जसवंत िसंघजी को
उलाहना दे ती रहती थी। एक बार जब कनल साहब काफी दे र रात तक जाग कर गिणत की िकताबों म उलझे रहे तब उनकी प ी
ोित ने कहा, "अजी कनल साहब, ा बात है? अब सो भी जाओ। रात के दो बजे ह। अपनी पड़ोसन के पीछे अपनी जान दे दोगे
ा? दे खो उनके कमरे की बि यां बुझी ई ह। इस व तु ारी पड़ोसन अपने पित की बाहों म गहरी नी ंद म सोई ई होगी। और
तुम हो की उसे पढ़ाने के च र म रात रात भर सोते नही ं हो। अरे तु ारी भी तो बीबी है? वह भी तो तु ारी बाहों म सोने के िलए
तड़पती है।"

खैर अ र औरत अपने शौहर को िकसी और की बीबी से ादा करीब जाने से कतराती ह। पर आ खर म सोचती ह, अरे जाता है
जाने दो। आ खर म थक हार कर आएगा तो मेरे पास ही ना?"

समय को बीतते दे र नही ं लगती। दे खते ही दे खते सुनील की प ी सुनीता की परी ा का िदन आ ही गया। सुनीता के सारे पेपर अ े
ए। गिणत म सुनीता ने सारे जवाब अ ी तरह से िदए। उ ीद थी की सुनीता के अ े नंबर आएं गे। करीब एक महीने के बाद
रज था। सब बड़ी ही उ ुकता से इं तजार कर रहे थे। सब पर पूरा स स छाया था। ा होगा ा होगा इसकी उ ुकता के
नही ं कती थी। करीब हर रोज ा रज आएगा इसकी चचा हो रही थी।

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सुनील और कनल साहब पता लगाने की कोिशश कर रहे थे की रज कब आएगा, पर जवाब एकदम वही रटा रटाया िमलता,
"जैसे ही तारीख तय होगी तो आपको बता िदया जाएगा।" काफी िदनों के बीत जाने के बाद भी रज के कोई आसार नही ं थे।
करीब िबस िदन बीत गए इस बात को। एक िदन सुनील सुबह करीब साढ़े आठ बजे ऑिफस जाने की तैयारी म थे। वह डाइिनंग
टे बल पर बैठ ना ा कर रहे थे की अचानक घर की घंटी बजी।

सुनीता ने जैसे ही दरवाजा खोला की कनल साहब को हाथ म एक अखबार थामे सामने खड़े ए पाया। उनका मुंह एकदम दु खी
और कु लाया आ था। सुनीता ने जब दे खा की कनल साहब एकदम हतो ािहत, उदास और हाथ म अखबार िलए ए दे खा तो
सुनीता की जान हथेली म आगयी। ज र कोई ब त दु ः ख भरा समाचार होगा। सुनील भी टेबल के पास खड़े हो गए और बोले,
"कनल साहब, ा आ? आप इतने उदास ों लग रहे हो? ा कोई दु ः ख भरा समाचार है?"

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यह सुनकर कनल साहब बड़े दु खी िदखाई िदए। वह सुनीता की और दे ख कर बोले, मने कभी ऐसा नही ं सोचा था। यह ा हो
गया?"

सुनीता की सांस क गयी। वह बोली, "पर ज ूजी बताओ ना आ खर बात ा है?"

कनल साहब ने दु ः ख भरी आवाज म कहा, " रज आ गया है। पर सुनीता का नाम पािसंग िल म नही ं है।" ऐसा कह कर वह
पास म रखे ए सोफे पर बड़ी मु ल से बैठ गए। समाचार सुनकर कमरे म स ाटा छा गया। सुनील ने कहा, "पर ऐसा कैसे हो
सकता है? सुनीता ने तो कहा था उसका पेपर ब त अ ा गया है?"

कनल साहब ने सुनील की और दु ः ख भरी नज़रों से दे खा और कहा, "मेरी सारी महेनत पानी म गयी। अफ़सोस म सुनीता को गिणत
म पास नही ं करवा पाया।"

सुनीता एकदम कनल साहब के पास आयी और उनका हाथ थामा और बोली, "कोई बात नही ं कनल साहब। दु खी मत होइए। इस
बात से िजंदगी ख़तम नही ं हो गयी। हम दू सरी बार कोिशश करगे।"

सुनील ने कनल साहब के हाथसे अखबार िलया और बोले, "ऐसा हो नही ं सकता। कही ं ना कही ं अखबार की छपाई म भी गलती हो
सकती है। ऐसा कर जब सुनील ने अखबार खोला तो पाया की पहले ही पेज पर सुनीता की बड़ी फोटो छपी थी और उसके िनचे
िलखा था, "गिणत म सबसे सव म अंक िद ी की एक शादी शुदा मिहला सुनीता मडगाँव कर को।"

यह दे ख कर सुनील की आँ ख फटी की फटी ही रह गयी। सुनील ने कनल साहब की और आ य से दे खा तो कनल साहब एकदम
हँस पड़े । उ ोंने आगे झुक कर सुनीता के घुटनों को दोनों हाथों म पकड़ कर ऊपर उठा िलया और बोले, "अरे पागल, तुम पास
नही ं ई, तुम पुरे दे श म टॉप आयी हो!"

सुनीता को कनल साहब की बात पर िव ास नही ं आ। उसने तुरंत अपने पित सुनील के हाथों से अखबार छीन िलया और पहले ही
पेज पर अपना फोटो दे ख कर रह गयी। कनल साहब की बाहों म ही रहते ए सुनील की प ी सुनीता ने कनल साहब को
नकली गु े भरे घूंसे मारने शु िकये और बोली, "ज ूजी, आपने तो मेरा हाट फ़ैल ही कर िदया था।"

कनल साहब ने कहा, "हाट फ़ैल हो तु ारे दु नों का। तुम ना िसफ फ आयी हो, तुमने सारे रकॉड तोड़ िदए ह। सुनीता डािलग
आज तुमने तो कमाल कर िदया।"

सुनीता ने ज ूजी के सर पर चु ा करते ए कहा, "यह कमाल मेरा नही ं आपका है। अगर आप मुझे पढ़ाने के िलए इतनी महेनत
ना करते तो म टॉप करने की बात ही ा, पास भी नही ं हो पाती।"

सुनील ने कहा, "कनल साहब, सुनीता ठीक कह रही है। उसे गिणत िवषय से ही नफरत थी लेिकन आप ने उस नफरत को
मोह त म बदल िदया।"

सुनीता ने गाउन पहन रखा था। उस का पेट और उसके िनचे का ह ा कनल साहब के मुंह के पास ही था। कनल साहब ने सुनीता
के पेट पर गाउन के ऊपर से ही चु ी करते ए कहा, "ठीक है, मने महेनत की, पर सुनीता ने पूरा मन लगा कर पढ़ाई की और
नतीजा आपके सामने है। आज म ब त खुश ँ। भाई सुनील, आज तो पाट हो जाए।"

सुनीता ने अपने पित सुनील की और दे ख कर कहा, "पाट कर ने का काम आप दोनों का है। मुझे तो जब आप बुलाओगे तो म आ
जाउं गी।"

सुनील ने कहा, "अरे भाई अब तो पािटयों का दौर चलता ही रहेगा।"

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उस पुरे िदन सुनील और सुनीता ने घर का फ़ोन पुरे िदन बजता रहा। कई अखबार और टीवी चैन के ितिनिध आये। उस िदन
सुनील और कनल साहब ने एक िदन की छु ी ले ली। हर इं टर ू म सुनीता ने इस सफलता का ेय कनल साहब को िदया।
अखबारों म सुनीता की फोटो कनल साहब के साथ छपी। एक अखबार ने तो कनल साहब की जीवनी भी कािशत कर डाली।

...

उस िदन शाम को सब इतने थके ए थे की आ खरी इं टर ू ख़तम होते ही सुनील सुनीता और जसवंत िसंघजी अपने घर म जाकर
ढे र हो गए।

जब घर का सारा काम ख़तम कर ोित बैड म म आयी तो उनके पित ज ूजी टीवी पर समाचार दे ख रहे थे। हर चैनल पर थोड़ा
ही सही पर कही ं ना कही ं उनकी और सुनीता की त ीर या इं टर ू ज र आया था। ोित ने िब रे म आते ए अपने पित
ज ूजी को कहा, "आज तो तुमने अपना कमाल िदखा ही िदया। हर जगह तु ारी चेली सुनीता तु ारे ही गुण गाया करती थी।
मानना पड़े गा। सुनीता तु ारी प ी चेली है। वह तु ारे अहसानों के िनचे इतनी दबी है की तुम जो चाहो उससे ले सकते हो।"

ज ूजी ने टेढ़ी नज़रों से अपनी बीबी की और दे ख कर पूछा, "तुम कहना ा चाहती हो?"

ोित ने कहा, "अनजान मत बनो. म तु ारी बीबी ँ। तु ारी नस नस पहचानती ँ। ा म नही ं जानती तु ारे मन म सुनीता के
िलए ा भाव ह? अरे मुझसे मत छु पाओ। मने तु शादी के पहले वचन िदया था की अगर तु कोई सु र औरत पसंद आ गयी
तो म उसे तु ारे िब र तक लाने म तु ारी पूरी मदद क ँ गी। म आज भी मेरे उस वचन पर कायम ँ। पर ज ूजी म एक बात से
हैरान ँ।"

कनल साहब ने पूछा, " ा?"

ोित ने कहा, "आजतक कई लड़िकयों और औरतों को मने आप पर मरते ए दे खा है। इनम से म भी एक ँ। पर आज तक मने
आपको कोई औरत के िलए इतना तड़पते ए नही ं दे खा। पर आज आपकी आँखों म सुनीता के िलए आपकी वह चाहत या यूँ
किहये कामुकता जो मने दे ख है वैसी मने पहले कभी िकसी औरत के िलए नही ं दे ख। म जानती ँ की अगर आपको मौक़ा िमलेगा
तो आप उसे चोदना भी चाहगे। पितदे व, सच बोलना। मेरी बात ठीक है ना? इस बात को ले कर म आप से क ई भी नाराज नही ं ँ।
जैसा की हमने एक दू सरे से वादा िकया है, म आपकी ही बीबी र ंगी। पर तु ारे मन म उस लड़की के िलए कुछ ना कुछ है ना?
आ खर बात ा है इस औरत म?"

ज ूजी ने अपनी बीबी को अपनी बाहों म िलया और उसके बू की िन लो ँ पर अपना हाथ िफराते ए बोले, "म जानता ँ। म
मानता ँ की म सुनीता की और काफी आकिषत ँ। तु ारी बात गलत नही ं है की म कही ं ना कही ं मेरे मन म सुनीता के िलए िसफ
गु िश ा के ही भाव नही ं है। दे खो म तुमसे झूठ नही ं बोलूंगा। पर म चाहता ँ की वह मेरे पास अपनी मज से आये। और दू सरी
बात तुमने तो तु ारे सवाल का जवाब खुद ही दे िदया।"

ोित ने अपने पित की और आ य से दे खा और पूछा, " वह कैसे?"

ज ूजी, "दे खो डािलग, तुम मेरी प ी हो। तुम अगर मेरी पसंद की औरत की इषा करो तो यह ाभािवक है, और इसी िलए म
सुनीता की तारीफ़ तु ारे सामने करने म डरता ँ। पर जब तुमने पूछ ही िलया है और जब तुम यह कह रही हो की तु इषा नही ं
होगी तो सुनो। पहली बात यह की सुनीता बेतहाशा खूबसूरत है। उसके म ही सुंदरता झलकती है। उसके अंग अंग म से
अनंग टपकता है। पर आ य तो यह है की उसे यह पता ही नही ं वह िकतनी खूबसूरत है।

तु ारे सवाल के जवाब म म यह कहता ँ की तुम ने खुद कहा नही ं की हर जगह सुनीता मेरे ही गुणगान गा रही थी? इसका
मतलब यह के जो इं सान दू सरे का एहसान कभी ना भूले और अपनी कािबिलयत पर अहंकार ना करे ऐसे इं सान कम होते ह और
उनकी कदर करनी चािहए। और आ खरी बात, सुनीता का मन काँच की तरह साफ़ है। इस चीज़ से म ब त आकिषत आ ँ। म

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नही ं जानता की ा सुनीता भी मेरी और आकिषत ई है या िफर मरे अहसान के िनचे दबी होने के कारण मुझे बदा कर रही
है?"

कनल साहब की प ी ोित ने अपने हाथ की ऊँगली से चुटकी बजाते ए कहा, "मेरे िलए तो यह चुटकी बजाने वाली बात है। तुम
िनि रहो, म ना िसफ तु ारी ारी सुनीता के मनका हाल जान कर तु बताउं गी, ब म पूरी कोिशश क ँ गी की एक ना एक
िदन म उसे तु ारे िब र पर लाकर तुमसे चुदवाउं गी ब म तुम दोनों के सामने खड़ी होकर तुम दोनो को चोदते ए दे खूंगी।"

सारी बातचीत सुनकर कनल साहब का ल एक एकदम लोहे के छड़ सामान खड़ा हो गया। उ ोंने ोित का गाउन हटा कर
उसे न कर िदया। िफर उसकी िब र लेटी ई न काया दे ख कर बोले, "हनी, आज भी तुम शादी के इतने सालों के बाद भी वैसी
ही कमिसन लग रही हो जैसी मने तु पहली बार चोदने के पहले नंगी दे खा था। शादी के इतने सालों और एक ब े के बाद भी तुम
ज़रा भी बदली नही ं हो।"

ोित ने नाक िसकुड़ते ए हँसते ए कहा, "पर तु तो िफर भी दू सरे की थाली ही ादा ािद लगती है। "

कनल साहब ने अपनी तरफ से एक गु ारा छोड़ते ए कहा, "अ ा? तो कहो तो तुम उस शाम को िसनेम हॉल म सुनील जी से
िचपक िचपक कर ा कर रही थी?"

ोित ने अपने पित की छाती म नकली घूंसा मारते ए शमा ते ए कहा, "चलो छोडो इन सब बातों को लगता है आज तु चोदने
का बड़ा मूड है।"

कनल साहब अपनी बीबी की बात सुनकर ठहाका मार कर हँसकर बोले , "अरे , तुम अगर सुनीता को मेरे साथ िब र पर सुलाओगी
तो म ा म तु छोडूंगा? म भी तु ारे ारे सुनीलजी को लाकर तु ारे साथ उसी िब र पर ना सुलाकर तु अगर ना चुदवाया
तो मेरा नाम कनल जसवंत िसंह नही ं।"

##

दोनों पित प ी एक ल ी और धमाकेदार चुदाई म म हो गए। ज ूजी चोद तो ोित को रहे थे पर मन म सुनीता ही थी। ोित
चुदवा तो अपने पित से रही थी पर ल उसको सुनील का िदख रहा था।

दू सरे िदन सुबह कनल साहब की प ी ोित सुबह जब उठी तो उसे कुछ थकान सी लग रही थी। िपछली रात पित के साथ ई
धमासान चुदाई के कारण वह थोड़ी थकी ई थी। कनल साहब को द र म कुछ अिधक और अजट काम था इस िलए वह ज ी
ही ऑिफस चले गए थे। ोितजी अपने मन म सोच रही ही थी की वह कैसे सुनीता से बात करे की अचानक सुनीता का ही फ़ोन
आया।

सुनीता ने ोित से कहा, "दीदी, म तुमसे िमलकर कुछ बात करना चाहती ँ। आप िकतने बजे ी होंगी ं? म िकतने बजे आऊं?"

कनल साहब की प ी ोित सोचने लगी आ खर सुनीता उनसे ा बात करना चाहती होगी? वाकई म तो ोित को ही सुनीलजी
की प ी सुनीता से बात करनी थी। ोित ने सुनीता से कहा, "सुनीता, आप जब जी चाहे आओ, पर आप जब आओ तो मेरे साथ
बैठने के िलए आना। आने के बाद जाने की ज ी मत करना। आज मेरा भी मन तुमसे बहोत बात करने को कर रहा है। म अभी ही
उठी ँ और थोड़ासा थकी ई ँ। अ र जब म थकी होती ँ तो ज ूजी मुझे सुबह की चाय बना के िपलाते ह। तुम अभी ही आ
जाओ ना? तुम जैसी हो वैसी ही आ जाओ। तु चज करने की भी ज रत नही ं है। हम आमने सामने ही तो रहते ह। कौनसा तु
बाहर जाना है? अगर तु एतराज ना हो तो आज म मेरे घरम ही तु ारी बनायी ई चाय पीना चाहती ँ।"

ोित जी की बात सुनकर सुनीता का चेहरा खल उठा। इतना बिढ़या परी ा का प रणाम आने के बावजूद सुनीता को कुछ अ ा
नही ं लग रहा था। ज ूजी के साथ ई शारी रक हरकतों के कारण सुनीता ोितजी के बारे म सोचकर थोड़ा अपने आप को दोषी
महसूस कर रही थी। उसे समझ नही ं आ रहा था की वह कैसे ोित जी का सामना कर पाएगी।

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जब सामने चल कर ोितजी ने ही इतना अपनापन िदखाया तो सुनीता की िह त बढ़ गयी और वह थोड़ी ठीकठाक होकर िबना
कपडे बदले तुरंत जाने के िलए िनकल पड़ी।

वह गाउन पहने ए थी। सो वह ऐसे ही कनल साहब की प ी ोित को िमलने के िलए चल पड़ी।

सुबह के दस बजे होंगे। सब मद लोग अपने द र जा चुके थे। ू ल म छु ि यां चल रही थी ं।

ोित उठ कर बाथ म नहाने गयी और नहाकर बाहर िनकल एक तौिलये म िलपटे ए अपने बालों को कंघी ं कर रही थी की
घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उ ोंने दरवाजा खोले िबना ही पूछा, "कौन है?"

जब सुनीता की आवाज सुनी तब उ ोंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और सुनीता को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद िकया।

सुनीता ने नम े िकया तो ोितजी ने सुनीता को अपनी बाँहों म लपेट िलया और बोली, "अरे हम बहने ह। आओ गले लग जाओ।"
िफर सुनीता का हाथ पकड़ ोितजी उसे अपने बैड म म ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कू े िटका कर बैठी
और सुनील की प ी सुनीता को अपने पास बैठने के िलए इशारा िकया।

सुनीता तो ोितजी को दे खती ही रह गयी। तौिलये म िलपटी अधन अव था म ोितजी गजब का कमाल ढा रही थी ं।

पलंग की और इशारा कर के ोितजी बोली, "बैठो न? ऐसे मुझे ा दे ख रही हो? तुम आयी तो म बस नहा कर िनकली ही ँ।
सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, स ी वाले, सफाई करने वाले इ ािद मद लोग आ जाते ह। तुम थी तो मने दरवाजा खोला वरना
इस हाल म िकसी मद के सामने जाकर मुझे हाट अटैक थोड़े ही िदलवाना है? आज ज़रा म थकी ई ँ। कल रात दे र रात हो गयी
थी। आज मेरा बदन थोड़ा दद कर रहा है।"

सुनीता समझ गयी की िपछली रात ज ूजी ने ज र अपनी प ी ोितजी की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर सुनीता के
बदन म िसहरन फ़ैल गयी। उसने ज ूजी का मोटा ल अपनी उँ गिलयों म उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस िकया था। जब
ज ूजी उस ल से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का ा हाल होता होगा यह सोच कर सुनील की प ी सुनीता
काँप उठी। अरे बापरे ! अगर कही ं ऐसी नौबत आयी की सुनीता को ोित जी के पित ज ूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना
ा हाल होगा यह सोच मा से ही सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत म से पानी रसने लगा।

सुनीता ने पहली बार ोितजी को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अध न हालत म दे खा था। सुनीता ोितजी को दे खती ही
रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी ोितजी जैसे ही िबन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रही ं थी।ं वह सुनीता से करीब
चार या पांच साल बड़ी होंगी ं। पर ा बदन! और ा बदन का अनूठा लाव ! सुनीता को ज़रा भी हैरानगी नही ं ई की उसके
अपने पित सुनील ज ूजी की प ी ोितजी के पीछे पागल थे।

ोितजी के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले ए थे। एक हाथ म कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रही ं थी ं।
तौिलया ादा चौड़ा नही ं था इस कारण ना िसफ ोित के उ उरोजों का उ ं ड उभार, ब उन गु जो ँ के िशखर के पम
फूली ई िन लो ँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थी ं। ोितजी ने सुनीता को उनका बदन ताड़ते ए दे खा तो सुनीता को अपने
करीब खी ंचा। एक पुतले की तरह मं मु सुनीता ोितजी के खी ंचने से उनके इतने िनकट प ंची की दोनों एक दू सरे की धमन सी
आवाज करती ई तेज साँसे महसूस कर रहे थे।

सुनीता का तो उसी समय मन िकया की वह आगे बढ़कर ोितजी की छाती के ऊपर थत फैले ए उन दो म टीलों पर अपनी
हथेिलयां रखदे और उनकी मुलायमता, स ी या लचक अपनी हाथों म महसूस करे । पर ी सुलभ मयादा और इस डर से की
कही ं ोितजी सुनीता की इस हरकत को गलत ना समझले इस िलए क गयी।

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सुनीता को ोितजी के पित ज ूजी से इषा ई जो ोितजी के उन उरोजों पर अपना अिधकार रखते थे की उ जब चाहे थाम
ले, दबाले या मसल ले। जब ोित जी ने सुनीता की िनगाह अपने उरोजों पर िटकी ई पायी तो मु रा दी ं। सुनीता ने अपनी नजर
उन चूँिचयों से हटा कर िनचे की और दे खा तो उसकी नजर ोित के तौिलये के दू सरे िनचले छोर पर गयी।

हायरे दै या!! िजस ढं ग से ोितजी अपने कू े पलंग के कोने पर िटका कर पलंग के िनचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और
उसके कारण उनका तौिलया ोितजी की कड़क और करारी जाँघ दोनों टाँग जहां िमलती थी ं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी
चूत अगर थोड़ा अ ेरा सा ना होता तो ज र साफ़ िदख जाती। िफर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी ज र हो रही थी।

ोितजी की जाँघ दे खकर सुनीता से रहा नही ं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, " ोितजी आप िकतनी अद् भुत सु र हो? मुझे
आज आपके पित ज ूजी की िकतनी इषा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी दे वीके वह पित ह।"

ोित ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर सुनीता, जो की उनसे िबलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों म गाढ़ आिलंगन म ले िलया।
सुनीता भौंच ा सी ोितजी को दे खती ही रही और वह ोितजी की बाहों म उनसे जुड़ गयी। सुनीता को ाभािवक ही कुछ
िहचिकचाहट ई तब ोित ने कहा, "दे खो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव म भी कम हो। हालांिक बु म ा म तुम
मुझसे कही ं आगे हो। म बेबाक और खुला बोलती ँ।

ोित जी ने अपना हाथ सुनीता के बदन पर सरकाते ए सुनीता के कँधों को सहलाना शु िकया। ोित ने कहा, "दे खो म तुमसे
कुछ बात खु मखु ा बात करना चाहती ँ। हो सकता है की तु मेरी भाषा अ ील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर िचकनी चुपड़ी
बात करना नही ं आता। ा म तु ारे साथ खु मखु ा बात कर सकती ँ?"

सुनीता ा बोलती? उसने अपना सर िहला कर हामी भरी। सुनीता ने भी ऐसी बेबाक और िनभ क लेडी को पहले कभी नही ं दे खा
था। वह उनको दे खती ही रही। तब ोित बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नही ं दे ख होगी। म जो मनम
होता है वह बोल दे ती ँ। म मानती ँ यह मुझम कमी है। पर म जो ँ सो ँ।"

सुनीता के हाथ म हाथ ले कर सुनीता के हाथ को सहलाते ए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम ा कहना चाहती थी?
बताओ ा बात है?"

सुनीता ने ोित के हाथ अपने हाथो ँम लेते ए कहा, "दीदी, मेरी सफलता म कनल साहब का िजतना योगदान है उतना ही आपका
भी योगदान है। कल हम िमल नही ं पाए थे तो म उसके िलए आज आपका तहे िदल से शुि या अदा करने आयी ँ।"

ोित को यह सुनने की ज़रा भी उ ीद नही ं थी। ोित ने पूछा, "मेरा योगदान? मने ा िकया है?"

सुनीता तुरंत सोफे से िनचे उतर गयी और ोित के पॉंव से हाथ लगाती ई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पित से टू शन
लेने का सुझाव ना िदया होता और यिद आपने अपने पित यानी की ज ूजी को मेरे िलए इतना समय दे नेके िलए ो ािहत ना िकया
होता तो म जानती ँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब म ऐसे नंबर ना ला पाती।

मने अपनी खड़की से कई बार दे खा था की जब ज ूजी रात रात भर जागते थे तो आप उ आधी रात को चाय बना कर पीलाती
थी ं। आप भी पूरी तरह नही ं सोती थी ं। दू सरा जब ज ूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उ टोका
नही ं या रोका नही ं। यह आपका ब त बड़ा बड़ न है।"

ोित ने सुनीता को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों म िलया और बोली, "सुनीता, िजतना तु ारा तन सु र है, उतना
तु ारा मन भी सु र है। तुम जो नंबर लायी हो वह तु ारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तु रा ा िदखाया है। दे खो
तु ारी गु िन ा और लगन ने ही तु यहाँ प ंचाया है। अ रज ूजी तु ारे बारे म बोलने से थकते नही।ं तुम िकतनी महेनित,
िकतनी बु म तेज और िन ावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तु ारी और मेरे पित के अकेले होने की बात है
तो मुझे अपने पित पर पूरा िव ास है।"

40
ोित जी ने सुनीता को अपने और करीब खी ंचा और बोली, "सुनीता, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे म तु अपनी छोटी
बहन ही मानूंगी। ा तु इसम कोई एतराज तो नही ं?"

सुनीता ने कहा, "दीदी , म तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती ँ। आप कुछ कह रहे थे?"

ोित ने सुनीता की गोद म अपना हाथ रख कर कहा, " म जो कहने जा रही ँ उसे सुनकर तु ब त आ य हो सकता है। हो
सकता है तु ध ा भी लगे। पर म बेबाक सच बोलने म मानती ँ। दे खो मेरी छोटी बहन सुनीता, म जानती ँ की मेरे पित और
तु ारे गु ज ूजी तुम पर कुछ ादा ही नरम ह। तुम एक औरत हो और औरत मद की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती है। वह
तु ना िसफ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर दे खते ह और ना िसफ उ ोने कई बार तुमसे कुछ हरकत भी की ह, पर वह तु पाना
चाहते ह। तुम कुछ समझी?" सुनीता ने अपनी मुंडी िहलाकर ना कहा, वह कुछ नही ं समझी।

सुनीता के हाथ अपने हाथ म लेकर ोित बोली, "बहन एक बात क ं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नही ं मानोगी और
मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नही ं खड़ा करोगी?"

सुनीता ने ोित जी की और दे खा और बोली, "दीदी म कसम लेती ँ। म ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी क ँ गी, पर दीदी
तुम ा कहना चाहती हो?"

तब ोित ने सुनीता की नाक पकड़ कर कहा, "दे खो बहन, म ज ूजी की बीबी ँ। और हमेशा र ंगी। लेिकन मने उस िदन
िसनेमा हॉल म तु ारे और मेरे पित के िबच ई अठखेिलयां दे खी ं थी ं। म उसके िलए तु या मेरे पित को ज़रा सी भी िज ेवार नही ं
मानती। ऐसे माहौल म ऐसी वैसी बात हो ही जाती ह। म झूठ नही ं बोलूंगी। मेरी और तु ारे पित के िबच उससे भी कही ं ादा
अठखेिलयाँ ई थी।ं "

सुनीता ोित जी की बात सुनकर कुछ खिसयानी सी लग रही थी तब ोितजी ने सुनीता के गले म अपनी बाँह डाल कर सुनीता
की आँखों म आँ ख िमलाकर कहा, "दे खो, शादी के कुछ सालों बाद मद लोग इधर उधर ताकते ही रहते ह। हमारे पित तो िफर भी
अ े ह की ादा इधर उधर ताँक झाँक नही ं कर रहे। और की भी तो वह हम पर ही की।

कनल साहब तुम पर डोरे डाल रहे ह तो तु ारे पित की नजर मुझपर है। मुझे यह कहने म कोई िझझक नही ं है की तु ारे पित
सुनीलजी मुझे ब त पसंद ह और अगर मौक़ा िमला तो म उनके साथ सोना भी चाहती ँ। मेरे पित ज ूजी को भी इस बारे म पता
है, हालांिक हमारी साफ़ साफ़ बात नही ं ई।"

ोित जी की ऐसी बेख़ौफ़ वाणी सुनकर सुनीता की आँ ख फटी की फटी ही रह गयी ं। उसे समझ म नही ं आ रहा था की वह ा
बोले। एक भारतीय नारी इतनी खु मखु ा कैसे अपने मन की बात बता रही थी? उनकी बात गलत तो नही ं थी। पर समझने म
और बोलने म फक है। सुनीता ने भी तो ोित जी के पित ज ूजी का ल पकड़ा था? वह कैसे यह झुठला सकती थी?"

सुनीता ने अपना सर िहलाकर हामी भरी की वह समझ रही है।

ोित ने कहा, "दे खो बहन, म जानती ँ की हम मद की तरह इतने खुल कर वह सब नही ं कर सकते जो वह कर सकते ह। एक
मेरी िनजी और गु बात म तुमसे आज शेयर करना चाहती ँ। ा म तुमसे हमारी कुछ गु बात शेयर कर सकती ँ?"

सुनीता ने कहा, "हाँ िबलकुल दीदी। म वादा करती ँ की आपने अपने मन की बात कही है तो म उसे िकसीके साथ भी शेयर नही ं
क ँ गी। यहां तक की आपने पित से भी नही ं। म भी आजसे आपको मेरे मन की हर एक बात बताउं गी और कुछ भी नही ं छु पाउं गी।
हम एक दू सरे से अपनी कोई भी बात नही ं छु पायगे।"

ोित ने हँस कर कहा, " मेरे पित और तु ारे ज ूजीने हमारी शादी से पहले कई मिहलाओं को आकिषत िकया था और म
जानती थी की उ ोंने कई यों को चोदा भी था। तुम नही ं जानती की म मेरे पित यानी ज ूजी से शादी से पहले हमारी दू सरी

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मुलाक़ात म ही चुदवा चुकी थी। म उनसे एक ब म िमली थी और पहली ही मुलाक़ात म उनपर िफ़दा हो गयी थी। मने तब तय
िकया था की अगली मुलाक़ात म ही म ज ूजी से ज र चुदवाउं गी।"

सुनीता ोितजी का यह प पहली बार दे ख रही थी। वह जानती थी की ोित जी साफ़ साफ़ बोलती ह। पर वह इतना
खु मखु ा चोदना, चुदाई, ल , चूत बगैरह इस तरह बेबाक बोलगी उसकी तो क ना भी सुनीता ने नही ं की थी।

ोितजी िबना के बोले जा रही थी ं।

"दू सरी मुलाक़ात म मने ज ूजी को साफ़ साफ़ कह िदया की म उनसे चुदवाना चाहती थी। ज ूजी मुझे आँ ख फाड़ कर दे खते
रहे! उ तब तक मेरे जैसी मुंहफाड़ ी नही ं िमली थी। वह ा कहते? मुझ पर तो वह पहले से ही िफ़दा थे! बस हम दोनों ने
उसी िदन उसी ब म कमरा ले कर पहली बार घमासान चुदाई की। और मने उनसे शादी से काफी पहले दू सरी मुलाक़ात म ही
चुदवाया। जब मेरी उ ोंने जम कर चुदाई की तब मने वहाँ ही तय कर िलया था की म उनसे बार बार चुदवाना चाहती थी। म
ज ूजी से शादी करना चाहती थी। म उनके ब ों की माँ बनना चाहती थी।

शु मज ूजी मुझसे शादी करने के िलए इस िलए तैयार नही ं थे की मेरे साथ शादी करने से उनकी आझादी छीन जा रही थी।
शादी के पहले उनपर कई लडिकयां और औरत ना िसफ िफ़दा थी ं पर उनके साथ सोने के िलए मतलब चुदने के िलए भी आती थी ं।
पर मने भी तय िकया था की म शादी क ँ गी तो ज ूजी से ही। नही ं तो शादी ही नही ं क ँ गी। बहन तुम शायद यह भी ना मनो की
ज ूजी ने ही मेरा सील तोड़ा था।

हालांिक म कॉलेज म भी बड़ी बेबाक और उ ं ड लड़की मानी जाती थी और सारे लड़के मुझे िमलने या यूँ किहये की चोदने के िलए
पागल थे। म सबके साथ घूमती थी, कुछ लड़कों के साथ चु ाचाटी भी करती थी। पर मेरी चूत म मने पहेली बार ज ूजी का ही
ल डलवाया। मेरा सब कुछ मने पहली बार तु ारे ज ूजी को ही िदया।

कोई और औरत उ फाँस ले उससे पहले ही मने उनसे शादी करने का वचन ले िलया। तब मने उनसे वादा िकया था की मेरे साथ
शादी करने से उनकी आजादी नही ं छीन जायेगी। म उनको िकसी भी औरत से िमलने या चोदने से नही ं रोकूंगी। इतना ही नही ं, मने
उनसे वादा िकया था की अगर उ कोई औरत पसंद आए तो उसे मेरे पित के िब र तक प ंचाने म म उनकी सहायता क ँ गी।"

सुनीता यह सुनकर अजूबे से ोित जी को दे खती ही रही। ोित सुनीता का सर अपनी छाती पर रखती ई बोली, " सुनीता, मेरे
पित तु ारी कामना करते ह। उ ोंने मुझे कहा तो नही ं पर म जानती ँ की वह तु ारे साथ सोना चाहते ह। साफ़ साफ़ क ं तो वह
तु ार करना और चोदना चाहते ह। तो िफर मुझे उनकी मदद करनी पड़े गी। उसके िलए मुझे तु ार सहमित चािहए। तु ारा
कमिसन बदन दे ख कर म ही जब िवचिलत हो जाती ँ तो मेरे पित की तो बात ही ा? वह तो एक ह े क े जवान मद है? जहाँ
तक तु ारे पित सुनील का सवाल है, वह तुम मुझ पर छोड़ दो।"

ोित जी की बेबाक बात सुनकर सुनीता की तो बोलती ही बंद हो गयी थी। सुनीता बेचारी चौड़ी, फूली ई आँ खों से ोित जी बात
सुन रही थी।

सुनीता ने दे खा की ोित जी का तौिलया खसक गया था और उनके उ त न सुनीता के सामने खुले ए थे और उन नों के
िशखर पर गुलाबी फूली ई िन ले ँ इतनी मन को हरने वाली थी ं की ना चाहते ए भी सुनीता की कोहनी एक न पर लग ही गयी।

सुनीता की आँ ख उनके व थल पर ऐसी िटकी ई थी ं की हटने का नाम ही नही ं ले रही ं थी।ं यह दे ख ोित बोली, "बहन दे ख ों
रही हो? इ अपने हाथो ँ म महसूस करो। महसूस करना चाहती हो? सोचो मत। आओ बेबी, दोनों हाथों से पकड़ो और उ महसूस
करो। म पहली बार इतनी खूबसूरत ी से मेरी चूँिचयाँ मसलवाने का मौका पा रही ँ। शादी के बाद आज तक इन पर मा
ज ूजी का ही अिधकार रहा है।"

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ोित ने कहा, "शादी के बाद से आज तक इन पर तु ारे ज ूजी का स ूण अिधकार रहा था। पर हाँ तु ारे पित सुनील ने भी
इ महसूस िकया है और मसला भी है। बहन तुमने कसम ली है की तुम सुनीलजी से कुछ नही ं कहोगी, और बुरा भी नही ं मानोगी।
उसम िजतने वह दोषी ह, उससे ादा म गुनेहगार ँ।"

ोितजी ने सुनीता का हाथ अपने हाथों म िलया और पकड़ कर अपनी छाती पर रखा। ोित जी का तौिलया वैसे ही खुल गया
और ोितजी सुनीता के सामने ही स ूण न अव था म सुनीता की बाँहों म थी ं। सुनीता के िलए यह अपने जीवन की एक अद् भुत
और अक नीय घटना थी। कई बार सुनीता के मन म कोई ना कोई मद के बारे म, उसके ल के बारे म या उसको नंगा दे खने के
बारे म िवचार ए होंग। सुनीता ने पहले न औरतों की त ीरों को भी दे खा था। पर यह पहली बार था की सुनीता सा ात िकसी
औरत को ऐसे िनव दे ख रही थी और वह भी यँ एक रित के सामान बला की कामुक और खूबसूरत ोित जी जैसी ी उसकी
नजर के सामने नंगी ुत थी।

सुनीता ने ोित जी के उ त नों पर अपना हाथ िफराते ए कहा, "ना बहन, म कुछ नही ं क ँगी। ब मुझे उस बात का काफी
कुछ अंदेशा था भी।"

सुनीता िफर कुछ खिसयानी सी हो गयी और उसकी आँ खों म आं सू भर आये। उसने थोड़ा स ल कर कहा, "दीदी म आज आप से
भी एक गुनाह कुबुल करती ँ की आपके पित ज ूजी को मने भी मेरे बू छूने िदया था। यह उस िदन िसनेमा हॉल म आ था।
दीदी म अपने आपको रोक नही ं पायी थी और ना ही ज ूजी। मने उनको कई जगह से छु आ भी था। आप भी अपने पित ज ूजी
से इस बारे म कुछ मत किहयेगा।"

यह सुन कर ोित जी ने अपने हो ँठ सुनीता के हो ँठ पर रख िदए और सुनीता के होठो ँ का रस चूसती ई बोली, "पगली! तू ा
सोचती है? यह सब मुझे पता नही ं? अरे मने ही तो सब के मन की बात जानने के िलए यह खेल रचा था। अब तक जो हम सब के
मन म था उस िदन सब बाहर आ गया।"

सुनीता ने िझझकते ए पूछा, "पर दीदी ा यह सब सही है?"

ोित ने कहा, "दे खो मेरी बहन। शादी के कुछ सालों बाद सब पित प ी एक दू सरे से थोड़े बोर हो जाते ह। हमारी चुदाई म कोई
नवीनता नही ं रहती। कोई अनअपेि त रोमांच नही ं रहता। पित और प ी दोनों का मन करता है की कुछ अलग हो, कुछ
ए ाइटमट हो। इस िलए दोनों ही अपने मन म तो िकसी और मद या औरत की कामना करते ह पर डर के मारे या िफर सही
पाटनर ना िमलने के कारण कुछ कर नही ं पाते।

कई मद या औरत चोरी छु पी अपने पित पित अथवा प ी की पीठ के पीछे िकसी और मद या ी से र े करते ह या चोदते ह।
यह सब ाभािवक है। पर इस म एक मयादा रखनी चािहए की अपना पित अथवा प ी अपनी है और दू सरी का पित अथवा प ी
उस की ही है। उसे हिथयाने की कोिशश क ई भी नही ं करनी चािहए।

बस चाह पूरी की िफर भले ही आप उसे ार करो पर उस पर अपना हक़ नही ं जमा सकते। यह मयादा अगर रख पाएं तो यह सही
है। और इसम एक और बात भी है। ऐसे म पित और प ी की सहमित ज री है, चाहे वह समझानेसे या िफर उकसाने से आये। और
पित को प ी की सहमित तभी ही िमल सकती है जब प ी को अपने पित म पूरा िव ास हो।"

ोितजी ने सुनीता को होठो ँ पर काफी उ ट और उ ाद भरा चु न िकया। दोनों मिहलाये एक दू सरे के मुंह म जीभ डालकर
एक दू सरे के मुंह की लार चूस रही ं थी।ं

सुनीता तब तक ोित के साथ काफी तनावमु महसूस कर रही थी। सुनीता ने दे खा की ोितजी के बदन से तौिलया सरक गया
था और ोितजी को उसकी कोई िचंता नही ं थी। वैसे तो सुनीता को भी उस बात से कोई िशकायत नही ं थी ूंिक वह भी तो
ोितजी के करारे और उ ादक बदन की कायल थी।

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ोित ने सुनीता की ललचायी नजर अपने बदन पर िफसलते दे ख तो वह मु ु रायी और सुनीता की ठु ी अपनी हथेली म पकड़
कर बोली, "अरे बहन दे खती ा है। महसूस कर। ोित ने सुनीता के सर पर हाथ दबाया िजससे सुनीता को बरबस ही आना सर
नीचा करना पड़ा और उसक मुंह ोित जी उ नों तक आ प ंचा। सुनीता के होठ
ँ ोित जी की फूली ई गुलाबी िन लो ँ
को छूने लगे। सुनीता के होठ
ँ अपने आप ही खुल गए और दे खते ही दे खते ोित जी की िन ले ँ सुनीता के मुंह म गायब हो गयी ं।

सुनीता ने जैसे ही ोितजी की करारी िन लो ँ को अपने होठो ँ के िबच म महसूस िकया तो उसके रोंगटे खड़े होगये। सुनीता ने कभी
यह सोचा भी नही ं था की कभी उसे कोई ी के बदन को छूने के कारण इतनी उ ेजना पैदा होगी। सुनीता के बदन म जैसे िबजली
का करं ट दौड़ गया। उसके बदन म िसहरन हो उठी। अचानक उसे ऐसा लग जैसे उस का सर घूम रहा हो। उसने महसूस िकया
की उसकी चूत म से ी रस चू ने लगा। उसकी पटी उसे गीली महसूस ई।

सुनीता ने ोित जी को धीरे से कहा, "दीदी, आप यह ा कर रही हो? दे खो मेरी हालत खराब हो रही है। मेरी पटी गीली हो रही
है।

ोित ने कहा, "मेरी बहन सुनीता, आज मुझे भी तुम पर ब त ार आ रहा है। तुम मेरी गोद म आ जाओगी?" जब सुनीता ने कोई
जवाब नही ं िदया तो ोित ने सुनीता को ऊपर उठाकर धीरे से अपनी गोद म िबठा िदया। सुनीता भी चुपचाप उठकर ोित जी की
गोद म बैठ गयी। सुनीता को भी अपनी दीदी पर उस िदन न जाने कैसा ार उमड़ रहा था।

ोित जी ने सुनीता के ाउज म अपना हाथ डाला और बोली, "तु ारे बू इतने मुलायम और िफर भी इतने स ह की उनपर
हाथ िफरते मेरा ही मन नही ं भरता।"

ोित जी की हरकत दे ख कर सुनीता थोड़ी घबड़ा गयी। उसे डर लगा की कही ं ोित जी समलिगक कामुक ी तो नही ं है?"

ोित जी सुनीता के मन की बात समझ गयी ं और बोली, "सुनीता यह मत समझना की म समलिगक ी ँ। मुझे तु ारे ज ूजी से
चुदवाने म अद् भुत आनंद आता है। पर हाय री सुनीता! म वारी वारी जाऊं! तेरा बदन ही ऐसा कामणखोर है की मेरा भी मन मचल
जाता है। ा तुझे कुछ नही ं होता?"

सुनीता बेचारी चुपचाप ोित जी के कमिसन बदन को दे खने लगी। ोित जी के उ त न सुनीता के मुंह के पास ही थे। ोित
जी के बदन की कामुक सुगंध सुनीता के तन म भी आग लगाने का काम कर रही थी।

ोित जी सुनीता के कान म अपना मुंह दबा कर बोली, "सुनीता, मेरे पित का ल बहोत बड़ा है और ( ोित जी अपनी उँ गिलयाँ
बड़ी चौड़ी फैला कर बोली) इतना मोटा है। जो कोई उनसे एक बार चुदवाले वह उनसे चुदवाये बगैर रह नही ं सकता। अरे मने
शादी भी तो मेरे पित का ल दे ख कर ही तो की थी? एक बात क ं बहन बुरा तो नही ं मानोगी?"

सुनीता ने सर िहला कर ना कहा तो ोित ने कहा, "मेरी बहन सुनीता! मेरे पित से तू भी एक बार अगर चुदवा लेगी ना, तो िफर तू
उनसे बार बार चुदवाना चाहेगी।"

सुनीता आ य से ोित की और दे खने लगी। ोित ने सुनीता का एक हाथ अपनी चूत पर रख िदया। सुनीता ने महसूस िकया की
ोितजी की चूत से भी उनका ी रस रस रहा था। अब सुनीता की मयादा और िझझक का बाँध टू टने लगा था। वह अपने आप
पर िनय ण नही ं रख पा रही थी। सुनीता ने ोितजी के पास पड़े तौिलये को हटाकर उनकी चूँिचयों को चूसते ए कहा, "दीदी सच
बोिलये, रात को ज ूजी और आपने िमलकर खूब से िकया था ना?"

ोित जी ने सुनीता के भरे ए नों को सहलाते और िन लो ँ को अपनी उँ गिलयों म दबाते ए कहा, "अरे पगली बहन, से
से मत बोल। पूछ की ा तु ारे ज ूजी ने मुझे जम कर चोदा था या नही ं? हाँ अरे बहन उ ोंने तो मेरी जान िनकाल ली उतना
चोदा। म ा बताऊँ? इसी िलए तो आज सुबह से म थकी ई ँ। वह जब चोदते ह तो माँ कसम, इतने सालों के बाद भी मजा आ
जाता है। चुदाई म ज ूजी का जवाब नही ं। पर तू बता, सुनील जी तु कैसे चोदते ह?"

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सुनीता ोितजी की बात सुन कर थोड़ा असमंजस म पड़ गयी। पर तब तक वह काफी रलै महसूस कर रही थी। सुनीता ने
कहा, "दीदी मुझे अब भी थोड़ी सी िझझक है पर मने आप से वादा िकया है तो म खुलमखु ा बताउं गी की से , सॉरी मतलब,
चुदाई करने म सुनीलजी भी बड़े मािहर ह। मुझे पता नही ं की उनका वह मतलब ल ज ूजी के िजतना बड़ा है या नही ं, पर िफर
भी काफी बड़ा है। बखूबी की बात यह है की जब वह चोदते ह तो म जब तक झड़ ना जाऊं तब तक चोदते ही रहते ह।"

ोित ने अच े से सुनीता की और दे खा और बोली, "अ ा? इसका मतलब सुनील जी भी कनल साहब से कुछ कम नही ं है।"

सुनीता ने ोितजी से पूछा "दीदी आप कह रही थी ं ना की आपको बदन म काफी दद है तो आप अब लेट जाओ, म आपका थोड़ा
ह ा फु ा मसाज कर दे ती ँ। "

सुनीता की ार भरी बात सुनकर ोितजी बड़ी खुश ई और बोली, "हाँ बहन अगर थोड़ी विजश हो जायेगी तो बेहतर लगेगा। म
सोच तो रही थी की तुझे क ं की थोड़ी मािलश कर दे पर िहचिकचा रही थी।"

सुनीता ने नकली गु ा िदखाते ए कहा, " जाइये, म आपसे बात नही ं करती। एक तरफ तो आप मुझे छोटी बहन कहती हो और
िफर ऐसे छोटी सी बात के िलए िहचिकचाती हो? दे खये दीदी, िजस तरह से आपने मुझम इतना िव ास जताया है (सुनीता ने
ोितजी के नंगे बदन की और इशारा िकया), की अब हम ना िसफ सहेिलयां और बहन ह ब हमारा र ा उससे भी बढ़ कर
है िजसका कोई नाम नही ं है। अब मुझसे ऐसी छोटी सी बात के िलए िहचिकचाना ठीक नही ं लगता दीदी।"

ोितजी सुनीता की और दे ख कर मु ु रायी और बोली, "माफ़ करना बहन। मने ऐसा सोचा नही ं था। पर तुम ठीक कह रही हो।
अब म ऐसा नही ं क ँ गी।"

"अब आप चुपचाप उलटी लेट जाइये।" सुनीता ने अपना अिधकार जताते ए कहा।

ोित आ ाकारी ब ी की तरह पलंग पर उलटी लेट गयी। ोित के मादक कू े और उनकी गाँड़ के दो गाल और उनके िबच
की हलकी सी की दरार सुनीता ने दे ख तो दे खती ही रह गयी। ोितजी का पूरा बदन िपछवाड़े से भी िकतना आकषक और
कमनीय लग रहा था! ोित जी की पीठ से िसकुड़ती ई कमर और िफर अचानक ही कमर के िनचे कू ों का उभार का कोई
जवाब नही ं। गाँड़ की दरार ोित की दोनों जाँघों के िमलन के थान पर बदन के िनचे ढकी ई चूत का अंदेशा दे रही थी।

ोित की जाँघे जैसे िव कमा ने पूरा नाप लेकर एकदम सुडौल अनुपात म बनायी हो ऐसा जान पड़ता था। घुटनों के िनचे की िपंडी
और उसके िनचे के पॉंव के तलवे भी रं गीले और लुभावने मन मोहक थे। सुनीता ने सोचा की इतनी ारी और लुभावनी कािमनी
ोित भला यिद उसके के पित को भा गयी तो उसम उस बेचारे का ा दोष?

मािलश करने वाले तेल को हाथो ँ पर लगा कर सुनीता ने ोितजी के पॉंव की मािलश करनी शु की। ोित जी के करारे बदन के
माँसल अंग अंग को छु कर जब सुनीता को ही इतना रोमांच हो रहा था तो अगर उसके पित सुनील को ोितजी के करारे नंगे बदन
को छूने का मौक़ा िमले तो उनका ा हाल होगा यह सोच कर सुनीता का भी मन िकया की वह भी कभी ना कभी अपने पित की
इस कािमनी को चोदने की मनोकामना पूरी करने िलए सहायता करना चाहेगी।

िफर सुनीता सोचने लगी की अगर उसने ऐसा करने की कोिशश की तो िफर ोित जी भी चाहेगी की सुनीता को खुद को भी तो
ज ूजी से चुदवाना पडेगा। ज ूजी से चुदवाने का यह िवचार ही सुनीता के रोंगटे खड़ा करने के िलये काफी था।

िफलहाल सुनीता ने ोित जी की मािलश पर ान दे ना था। धीरे धीरे सुनीता के हाथ जब ोित के कू ों को मलने लगे और वह
उनके कू ों के गालों को दबाने और सहलाने लगी तो ोित जी के मुंहसे हलकी सी "आह्हह..." िनकल पड़ी। सुनीता के हाथो ँ का
श ोितजी की चूत म हलचल करने के िलए पया था।

ोितजी ने लेटे लेटे सुनीता से कहा, "मेरी च र गीली करवाएगी ा? तेरे हाथों म ा जादू है? मेरी चूत से पानी ऐसे रस रहा है
जैसे म ा बताऊं? मेरे पॉव ं जकड से गए थे। अब हलके लग रहे ह।"

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सुनीता ने कहा, "मने मसाज करने की टैिनंग ली है दीदी। आप बस दे खते जाओ। आप िकए, ा म आप के िनचे यह ा क
का कपड़ा रख दू ँ ? इस से च र गीली या तेल वाली नही ं होगी। वरना च र और भी गीली हो सकती है।" ोितजी ने एक क
की च र की और इशारा िकया िजसे सुनीता ने उठ कर ोितजी के नंगे बदन के िनचे रख िदया और िफर ोितजी का मािलश
करना जारी रखा।

सुनीता ने अ ी तरह ोितजी की गाँड़ के गालों को रगड़ा और अपनी एक उं गली गाँड़ की दरार म हलके से ऐसी घुसाई की सीधी
िनचे ढकी ई चूत की पंखुिड़यों को छूने लगी। गाँड़ के ऊपर से ही धीरे धीरे सुनीता ने ोितजी की चूत को भी सहलाना शु
िकया। हर औरत की यह अ र कमजोरी होती है जब उसकी चूत की संवेदनशील लेिबया को कोई श करे या सहलाये तो उसे
चुदवाने की बल इ ा इतनी जाग क हो जाती है की उसका यं पर कोई िनय ण नही ं रहता। तब वह कोई भी हो उससे चुद
वाने के िलए तैयार हो ही जाती है।

सुनीता ने महसूस िकया की ोितजी की चूत म तब भी ज ूजी का थोड़ा सा वीय था जो सुनीता ने अपनी उँ गिलयों म महसूस
िकया। ज ूजी के अंडकोषों म िकतना वीय भरा होगा यह सोच म सुनीता खो गयी। जब वह इतने सु ढ़, माँसल और ताकतवर थे
तो वीय तो होगा ही।

सुनीता ने अपने हाथ हटा िलए और दे खे तो उस पर ज ूजी का कुछ वीय भी िचपका आ था। कपडे से हाथों को पौंछ िफर
उसपर तेल लगा कर सुनीता ोितजी की कमर और पीठ पर मािलश करने म लग गयी।

धीरे से सुनीता ने ोितजी की पीठ का मसाज इतनी द ता से िकया की ोितजी के मुंह से बार बार आह... ओह... ब त अ लग
रहा है, बहन। तेरे हाथों म कमाल का जादू है। बदन से दद तो नाजाने कहाँ गायब हो गया।" बोलती रही।

सुनीता ने कहा, "दीदी, अब जब कभी ज ूजी आपको रात को जम कर चोदे और अगर बदन म दद हो तो दू सरी सुबह मुझे
बेिझझक बुला लेना। म आपकी ऐसी ही अ े से विजश भी क ँ गी और पूरी रात की आप दोनों की काम ीड़ा की पूरी ल ी
दा ान भी आपसे सुनूंगी। आप मुझे सब कुछ खु मखु ा बताओगी ना?"

ोितजी ने हँसते ए कहा, "अरे पगली, म तो चाहती ँ की तुझे हमारी चुदाई की दा ाँ सुनाने की ज रत ही ना पड़े । म ऐसा
इं तजाम क ँ गी की तुम हम अपनी आँ खों के सामने ही चोदते ए दे ख सको।"

िफर सुनीता की और दे ख कर धीमे सुर म बड़े ही गंभीर लहजे म बोली, "पगली हमारी चुदाई तो दे खना ही , पर म तु ज ूजी की
चुदाई का अनुभव भी करवा सकती ँ, अगर तुम कहो तो। बोलो तैयार हो?"

यह सुनकर सुनीता को च र आगये। ोितजी यह ा बोल रही थी? भला ा कोई प ी िकसी और ी को अपने पित से
चुदवाने के िलए कैसे तैयार हो सकती है? पर ोितजी तो ोितजी ही थी।

सुनीता की चूत ोितजी की बात सुन कर िफर रसने लगी। ा ोितजी सच म चाह रही थी की ज ूजी सुनीता को चोदे ? ा
ोितजी सच म ऐसा कुछ बदा कर सकती ह? सुनीता ने ोितजी की बात का कोई जवाब नही ं िदया। उसके मन म घमासान
मचा आ था। वह ा जवाब दे ? एक तरफ वह जानती थी की कही ं ना कही ं उसके मन के एक कोने म वह ज ूजी का मोटा
ल अपनी चूत म डलवाने के िलए बेताब थी। दू सरी और अपना पित ता होना और िफर उसम भी अपनी राजपूती आन को वह
कैसे ठु करा सकती थी?

सुनीता ने िबना बोले चुपचाप ोितजी की पीठ का मसाज करते ए अपने हाथ िनचे की और िकये और ोितजी के करारे , कड़क
और फुले ए नों को हलके से एक बाजू से रगड़ना शु िकया। सुनीता की चूत ोितजी की गाँड़ को छू रही थी। सुनीता को तब
समझ आया की ों मद लोग औरत की गाँड़ के पीछे इतना पागल हो रहे होंग। ोितजी की गाँड़ को अपनी चूत से छूने म सुनीता
की चूत रसने लगी।

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ोित जी की नंगी गाँड़ पर वह पानी जब "टपक टपक" कर िगरने लगा तब ोित जी अपना मुंह तिकये म ही ढका आ रखती
ई बोली, "दे खा सुनीता बहन! िकसी ारी औरत की नंगी ं गाँड़ को अपने िलंग से छूने म िकतना आनंद िमलता है?"

सुनीता ने ोितजी को पलटने को कहा। अब सुनीता को ोितजी की ऊपर से मािलश करनी थी।

सुनीता िफर वही ोितजी का ारा सु र करारा बदन दे खने म ही खो गयी। बरबस ही सुनीता के हाथ ोित जी के अ ड़ नो ँ
पर िटक गए। वह उ सहलाने और दबाने लगी। ोितजी भी सुनीता के हाथों से अपने नो ँ को इतने ार से सहलाने के कारण
मचल ने लगी। सुनीता ने झक
ु कर ोितजी के नंगे उ , पके फल की तरह फुले ए नो ँ को चूमा और उनपर तेल मलना शु
िकया। साथ साथ वह उनकी पूरी फूली ई गुलाबी िन लो ँ को अपनी उँ गिलयों म दबाने और िपचका ने लगी।

सुनीता का गाउन सुनीता ने जाँघों के ऊपर तक उठा रखा था तािक वह पलंग पर अपने पाँव फैलाकर ोित जी के बदन के दोनों
और अपने पाँव िटका सके। ोितजी को वहाँ से सुनीता की करारी जाँघ और उन ारी जाँघों के िबच सुनीता की चूत को छु पाती
ई सौतन समान क ी नजर आयी।

ोितजी ने सुनीता का गाउन का िनचला छोर पकड़ा और गाउन अपने दोनों हाथों से ही ऊपर उठाया िजससे उसे सुनीता की बाहों
के ऊपर से उठाकर िनकाला जा सके। सुनीता ने जब दे खा की ोितजी उसको न करने की कवायद कर रही थी तो उसके मुंह
और गालों पर शम की लािलमा छा गयी। वह िझझकती, शमाती ई बोली, "दीदी आप ा कर रही हो?"

पर जब उसने दे खा की ोितजी उसकी कोई बात सुन नही ं रही थी, तो िनसहाय होकर बोली, "यह ज री है ा?"

ोितजी ने कहा, "अरे पगली, मुझसे ा शमाना? अब ा हमारा र ा इन कपड़ों के अवरोध से केगा? ा तुमने अभी अभी
यह वादा नही ं िकया था की हम एक दू सरे से अपनी कोई भी बात या चीज़ नही ं छु पाएं गे? मने तो पहले ही िबना मांग अपना पूरा
बदन जैसा है वैसे ही तेरे सामने पेश कर िदया। तो िफर आओ मेरी जान, मुझसे िबना कोई अवरोध से िलपट जाओ।"

सुनीता बेचारी के पास ा जवाब था? ोितजी की बात तो सही थी। वह तो पहले से ही सुनीता के सामने नंगी हो चुकी थी ं। सुनीता
ने िझझकते ए अपने हाथों को ऊपर उठाये और गाउन उतार िदया। सुनीता ा और पटी म ोितजी को अपनी टाँगों के बीच
फँसा कर अपने घुटनों के बल पर ऐसे बैठी ई थी िजससे ोितजी के बदन पर उसका वजन ना पड़े ।

अब ोित जी को सुनीता को िनव करने की मौन ीकृित िमल चुकी थी।

ोितजी ने सुनीता की ा के ऊपर से उठे ए उभार को दे खा और उन कामुक गोलों को छूने के िलये और पूरा िनरावरोध दे खने
के िलए बेताब हो गयी। ोितजी थोड़ा बैठ गयी और धीरे से सुनीता की पीठ पर हाथ घुमा कर ोितजी ने सुनीता की ा के क
खोल िदए। सुनीता के अ ड़ न जैसे ही ा का बंधन खुल गया तो कूद कर बाहर आ गए।

सुनीता ने दे खा की अब ोितजी से अपना बदन छु पाने का कोई फायदा नही ं था तो उसने अपने हाथ ऊपर िकये और अपनी ा
िनकाल फकी। ोितजी म मु सी उन फुले ए ारे दो अधगोलाकार गु जों को, िजनके ऊपर िशखर सामान गुलाबी िन ले ँ
ल ी फूली ई शोभायमान हो रही थी; को दे खती ही रही।

ोितजी ने अपनी बाँह फैलायी ं और उपरसे एकदम न सुनीता को अपनी बाँहों म कस के जकड़ा और ार भरा आिलंगन िकया।
दोनों मिहलाओं के उ त न भी अब एक दू सरे को ार भरा आिलंगन कर रहे थे।

िफर सुनीता के बालों म अपनी उं गिलयां िफराते ए बोली, "मेरी ारी सुनीता, कसम से मने आज तक िकसी मिहला से ार नही ं
िकया। आज तुझे दे ख कर पता नही ं मुझे ा हो रहा है। म कोई ले यन या समलिगक नही ं ँ। मुझे मद से ार करवाना और
चुदवाना ब त अ ा लगता है, पर यार तूम तो गजब की कामुक ी हो। मेरी पित ज ूजी की तो छोडो, वह तो मद ह, तु ारे
जाल म फंसगे ही, पर म भी तु ारे पुरे बदन और मन की कायल हो गयी। आज तुमने मुझे िबना मोल खरीद िलया।"

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ोितजी ने सुनीता की छाती के नों पर उभरी ई और चारों और से एरोला से िघरी उन फूली ई िन लों को अपने मुंह म िलया
और उ चूसने लगी। साथ साथ म सुनीता के गोल गु ज सामान नों को भी जैसे ोितजी अपने मुंह म चूसकर खा जाना चाहती
हो ऐसे उनको भी अपने मुंह म ार से लेकर चूसने, चूमने और चाटने लगी। दू सरे हाथ से ोितजी ने सुनीता के दू सरे न को
दबाया और बोली, "आरी मेरी बहन, तेरी चूँिचयाँ तो बाहर िदखती ह उससे कही ं ादा म और रसीली ह। इ छु पाकर रखना तो
बड़ी नाइं साफी होगी।"

सुनीता उ ेजना के मारे , "ओहहह... आहहह..." कराह रही थी। जब सुनीता ने ोितजी की बात सुनी तो वह मु रा कर बोली,
"दीदी, मेरी चूँिचयाँ आपकी के मुकाबले तो कुछ भी नही।ं "

सुनीता ने पलंग पर ोितजी का बदन अपनी टाँगों के िबच जकड कर रखा आ था। ोित जी ने जब अपनी आँ ख खोली तो
सुनीता की क ी नजर आयी। ोित ने सुनीता की क ी पर अपने हाथ िफराना शु िकया तो सुनीता क गयी और बोली, "दीदी
अब ा है?"

ोित ने अपनी आँ ख नचाते ए कहा, "अरे कमाल है, ा म तु ारे इस कमिसन, करारे बदन की सबसे खूबसूरत नगीने को छू
नही ं सकती? म दे खना चाहती ँ की मेरी अंतरं ग ारी और बला की खूबसूरत दो की सबसे ारी चीज़ िकतनी खूबसूरत और
रसीली है।

सुनीता शम से सेहम गयी और बोली, "ठीक है दीदी। मुझे आदत नही ं है ना िकसी और से बदन को छु आने की और वह भी वहाँ
जहां आप ने छु आ, इसिलए थोड़ा घबरा गयी थी।"

ोितजी ने भी जवाब म हँसते ए काफी स भ पूण और शरारती इशारा करते ए कहा, "अरे पगली आदत डालले! अब कई
और भी मौके आएं गे िकसी और से बदन को छु आने के। अब तुझे मेरा संग जो िमल गया है।" ऐसा कह कर ोित जी ने सुनीता की
क ी (पटी) को सुनीता के घुटनों की और िनचे खसकाया। सुनीता ने अपने दोनों पांव एक तरफ कर क ी को िनचे की और
खसका कर िनकाल फकी।

दोनों यां पूरी तरह िनव थी ं। इ ान जब भी इस दु िनया म आता है तो भगवान् उसे उसके शरीर की र ा के िलए मा चमड़ी
के ाकृितक आवरण म ढक कर भेजते ह। इ ान उसी बदन को अ ाकृितक आवरणों म िछपा कर रखना चाहता है, िजससे पु ष
और ी का एक दू सरे के अंग दे खने का कौतुहल बढे िजससे और ादा कामुकता पैदा हो।

दोनों यां कुदरत की भट सी िकसी भी अ ाकृितक आवरण से ढकी ई नही ं थी।ं

सुनीता िफर अपनी मूल पोजीशन म वापस आ गयी। ोितजी सुनीता की टाँगों के िबच थत सुनीता की चूत पर हाथ फेर कर उसे
सहलाने और दबाने लगी ं।

सुनीता अपनी गाँड़ इधर उधर कर मचल रही थी। उसके जीवन म यह पहला मौक़ा था जब िकसी मिहला ने सुनीता बदन को इस
तरह छु आ और ार िकया हो। सुनीता इं तजार कर रही थी की ज ही ोितजी की उं गिलयां उसकी चूत म डालगी ं और उसे
उ ाद से पागल कर दगी ं। और ठीक वही आ।

सुनीता की चूत के ऊपर वाले उभार पर हाथ िफराते ोितजी ने धीरे से अपनी एक उं गली से सुनीता की चूत की पंखुिड़यों को
सहलाना शु िकया। सुनीता की यह कमजोरी थी की जब कभी उसके पित सुनीता को चुदवाने के िलए तैयार करना चाहते थे तो
हमेशा उसकी चूत की पंखुिड़यों को मसलते और ार से रगड़ते। उस समय सुनीता तुरंत ही चुदवाने के िलए तैयार हो जाती थी।

ोितजी ने धीरे से वही उं गली सुनीता की चूत म डालदी। धीरे धीरे ोितजी सुनीता की चूत की पंखुिड़यों के िनचे वाली नाजुक
और संवेदनशील चा को सहलाने और रगड़ने लगी। सुनीता इसे महसूस कर उछल पड़ी। उसे ता ुब आ की ोितजी को
मिहलाओं की चूत को उ ेिजत करने म इतने मािहर कैसे थे। ोितजी की सतत अपनी उँ गिलयों से सुनीता की चूत चोदने के

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कारण सुनीता की चूत म एक अजीब सा उफान उठ रहा था। सुनीता का पित सुनील सुनीता को उं गली डालकर उसे चोदते थे। पर
जो िनपुणता और द ता ोितजी की उं गली म थी वह लाजवाब थी।

जब ोितजी ने दे खा की सुनीता अपनी चूत की ोितजी की उँ गिलयों से हो रही चुदाई के कारण उ ािदत हो कर अपने घुटनों के
बल पर ही मचल रही थी। तब ोितजी ने सुनीता के बाँह पकड़ कर उसे अपने साथ ही लेटने का इशारा िकया। सुनीता
िहचिकचाते ए ोितजी के साथ लेट गयी तब ोित जी बैठ गयी और थोड़ा सा घूम कर अपनी दो उँ गिलयों को सुनीता की चूत म
घुसेड़ कर सुनीता की चूत अपनी उँ गिलयों से फुत से चोदने लगी ं।

अब सुनीता के िलए यह झेलना बड़ा ही मु ल था। सुनीता अपने आप पर िनयं ण खो चुकी थी। पहली बार सुनीता की चूत िकसी
खबसूरत ी अपनी कोमल उँ गिलयों से चोद रही थी। सुनीता की चूत से तो जैसे उ ाद का फ ारा ही छूटने लगा। सुनीता की
िससका रयाँ अब जोर शोर से िनकलने लगी ं। सुनीता की, "आह... ओह... दीदी यह ा कर रहे हो? बापरे ..." जैसी उ ाद भरी
िससका रयो ँ से पूरा कमरा गूंज उठा।

जैसे जैसे सुनीता की िससका रयाँ बढ़ने लगी,ं वैसे वैसे ोितजी ने सुनीता की चूत को और तेजी से चोदना जारी रखा। आ खर म,
"दीदी, आअह्ह्ह... उँ ह... हाय... " की जोर सी िससकारी मार कर सुनीता ने ोितजी के हाथ थाम िलए और बोली, "बस दीदी अब
मेरा छूट गया।" बोल कर सुनीता एकदम िनढाल होकर ोितजी के बाजू म ही लेट गयी और आँ ख बंद कर शांत हो गयी।

सुनीता की िजंदगी म यह कमाल का ल ा था। उसने कभी सपने म भी नही ं सोचा था की वह कभी िकसी ी की उँ गिलयों से
अपनी चूत चुदवाएगी। वही आ था। उस िदन तक सुनीता ने कभी इतना उ ाद का अनुभव नही ं िकया था। काफी समय से अपने
पित से चुद तो रही थी, चुदाई म आनंद भी अनुभव कर रही थी, पर सालों साल वही ल , वही मद और वही माहौल के कारण
चुदाई म कोई नवीनता अथवा उ ेजना नही ं रही थी। उस िदन सुनीता ने वह उ ेजना महसूस की।

उ ेजना िसफ इस िलए नही ं थी की सुनीता की चूत िकसी सु र मिहला ने अपनी उँ गिलयों से चोदी थी, पर उसके साथ साथ जो
ज ूजी के बारे म उ ादक बात हो रही थी ं उसने आग म घी डालने का काम िकया था। ज ूजी का ल , उनसे चुदवािनकी बात
ज ूजी की बीबी से ही सुनकर सुनीता के जहन म कामुकता की जबरद आग लगी थी।

उस सुबह सुनीता और ोितजी के िबच की औपचा रकता की िदवार जैसे ढह गयी थी। सुनीता ने तो अपनी उ ादक ऊँचाइयों
को छू िलया था पर सुनीता को ोितजी को उससे भी ऊँची ऊंचाइयों तक ले जाना था।

सुनीता ने थोड़ी दे र साँस थमने के बाद िफर ोितजी को पलंग पर िलटा िदया और िफर वह घुटनों के बल पर उनपर सवार हो
गयी और बोली, "दीदी अब मेरी बारी है। आज आपने मुझे कोई और ही ज त म प ंचा िदया। आज का मेरा यह अनुभव म भूल
नही ं सकती।"

यह सुनकर ोितजी मु रादी ं और बोली, "अभी तो मने तुझे कहा उतनी ऊंचाइयों पर प ंचाया है? अभी तो म और मेरे पित तुझे
अक नीय ऊंचाइयों तक ले जाएं गे।"

ोितजी के गूढ़ाथ से भरे वा सुनकर सुनीता च र खा गयी। उसे यकीन हो गया की ोितजी ज र उसे ज ूजी से चुदवाने
का सोच रही थी।

ोितजी की बात का जवाब िदए िबना सुनीता अपने एक हाथ से ोितजी की चूत के ऊपर का उभार सहलाने लगी और झक
ु कर
सुनीता ने अपने हो ँठ ोितजी के नो ँ पर रख िदए। सुनीता ने दु सरा हाथ ोितजी के दू सरे न पर रखा और वह उसे दबाने
और मसलने लगी। अब मचलने की बारी ोितजी की थी। सुनीता ने अपनी उँ गिलयाँ अपनी चूत म तो डाली थी ं पर कभी िकसी
और ी की चूत म नही ं डाली थी ं।

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उस िदन, पहली बार ोितजी की चूत को सहलाते पुचकारते ए सुनीता ने अपनी दो उं गिलयां ोितजी की चूत म डाल दी ं।
ोितजी ने जैसे ही सुनीता की उँ गिलयों को अपनी चूत म महसूस िकया तो वह भी मचलने लगी। सुनीता एक साथ तीन काम कर
रही थी। एक तो वह ोितजी की चूत अपनी उँ गिलयों से चोद रही थी, दू सरे उसका मुंह ोितजी के उ नो ँ को चूस रहा था
और तीसरे वह दू सरे हाथ से ोितजी का दु सरा न दबा रही थी और उनकी िन ल को वह उँ गिलयों म भी ंच रही थी।

सुनीता ने ोित से उनको उँ गिलयों से चोदते ए धीरे से उनके कानों म कहा, "दीदी, एक बात पूछूं?"

ोितजी ने अपनी आँ ख खोली ं और उ मटक कर पूछने के िलये हामी का इशारा िकया।

सुनीता ने कहा, "दीदी सच सच बताना, ा आप मेरे पित को पसंद करती हो?"

सुनीता की भोली सी बात सुनकर ोित हँस पड़ी और बोली, "मने तुझे पहले ही नही ं कहा? म उ ना िसफ पसंद करती ँ, पगली
म उनके पीछे पागल ँ। तुम बुरा मत मानना। वह तु ारे ही पित ह और हमेशा तु ारे ही रहगे। म उनको छीनने की ना ही
कोिशश क ँ गी ना ही मेरी ऐसी कोई इ ा है। पर म उनकी इतनी कायल ँ की म सारी मयादाओं को छोड़ कर उनसे
खु मखु ा चुदवाना चाहती ँ। मने आज तुझे मेरे मन की बात कही है। और ान रहे, म अपने पित से भी कोई धोखाधड़ी नही ं
क ँ गी, ूंिक मने उनको भी इस बात का इशारा कर िदया है।"

सुनील के बारे म ऐसी उ ेजक बात सुनकर ोित के जहन म भी काम की ाला भड़क उठी। ोितजी ने सुनीता से कहा, "बहन,
तू भी ब त चालु है। तू जानती है की मुझे कैसे भड़काना है। म तेरे पित के बारे म सोचती ँ तो मेरी चूत म आग लग जाती है।
उनकी गंभीरता, उनकी सादगी और उनकी शरारती आँ ख मेरी चूत को गीली कर दे ती ह। म जानती ँ की आग दोनों तरफ से लगी
है। अब तो तू मेरी बहन और अंतरं ग सहेली बन गयी है ना? तो तू कुछ ऐसा ितकड़म चला की उनसे मेरी चुदाई हो जाए!"

िफर ोितजी ने सोचा की उनकी ऐसी उटपटांग बात सुनकर कही ं सुनीता नाराज ना हो जाए, इस िलए वह थोड़ा स ाल कर
सुनीता के सर पर हाथ िफराते ए बोली, "बहन, मुझे माफ़ करना। मेरी बेबाकी म म कुछ ादा ही बक गयी। म तुझे तेरे पित के
बारे म ऐसी बात कर परे शान कर रही ँ।"

सुनीता ने जवाब म कहा, "दीदी, म जानती ँ, मेरे पित आप पर िफ़दा ह। और म उसे गलत नही ं समझती। आप जैसी कामुक
बेतहाशा खूबसूरत कािमनी पर कौन अपनी जान नही ं िछड़केगा? अब तो हम दोनों ऐसे मोड़ पर आ गए ह की ा बताऊँ? मुझे
ज़रा भी बुरा नही ं लगा दीदी, ूंिक म जानती ँ की आप अपने पित ज ूजी से ब त ार करते हो। यही तो कारण है की आप
मुझे उनसे चुदवाने के िलए ऐसे वैसे बड़ी कोिशश कर ो ािहत कर रहे हो। कौन प ी भला अपने पित से चुदवाने के िलए िकसी
ी को तैयार करे गी, जब तक की उसे अपने पित से ब त ार ना हो और उन पर पूरा िव ास ना हो?"

सुनीता की ऐसी कामुकता भरी बात सुनकर ोितजी गरम हो रहीथी। वैसे भी सुनीता के उँ गिलयों से चोदने से काफी गरम पहले से
ही थी। ोितजी की साँसे तेज चलने लगी.ं . उ ोंने कहा, "सुनीता, म अब झड़ने वाली ँ।"

सुनीता ने उँ गिलयों से चोदने की फुत बढ़ाई और दे खते ही दे खते ोितजी एक या दो बार पलंग पर अपने कू े उठाके, "आह...
ऑफ़... हायरे ... " बोलती ई उछली और िफर पलंग पर अपनी गाँड़ रगड़ती ई एकदम िनढाल हो कर चुप हो गयी। उसकी साँसे
तेज चल रही थी। ोितजी का छूट गया और वह शांत हो गयी। पर ु उनके मन म से अपन पित से सुनीता को चुदवाने का िवचार
अभी गया नही ं था। वह इस बात को प ा करना चाहती थी।

साँस थमने ोितजी ने सुनीता का हाथ अपने हाथ म ले कर पूछा, "मेरी ारी बहन, तू ा बोलती है? जब तुझे सारी बात साफ़ है
तो िफर कुछ करते ह िजससे तू ज ूजी के ल का अनुभव कर सके।"

ोित जी की बात सुनकर सुनीता थोड़ी सकपका गयी, ूंिक वह जो बोलने वाली थी उससे ोितजी काफी हतो ािहत हो सकती
थी। सुनीता ने दबे र म बड़ी ही गंभीरता से कहा, "दीदी म आपसे माफ़ी मांगना चाहती ँ। पर दीदी, म आपसे एक बात बताना

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चाहती ँ की ऐसा हो नही ं पाएगा। ऐसा नही ं है की म ज ूजी को पसंद नही ं करती। म ना िसफ उ पसंद करती ँ ब दीदी म
आज आपसे नही ं छु पाउं गी की म म जब भी उनको दे खती ँ तब म उनपर वारी वारी जाती ँ।

अगर आप की शादी उनसे नही ं ई होती और अगर म उनसे पहले िमली होती तो म ज र उनको आपके हाथों लगने नही ं दे ती।
जैसे आपने उनको और यों से छीन िलया था ऐसे म भी कोिशश करती की म उनको आपके हाथों से छीन लूँ और वह मेरे हो
जाएं । पर अब जो हो चुका वह हो चुका। वह आपके ह और हमेशा आपके रहगे। पर मेरी मजबूरी है की मेरी िकतनी भी इ ा होते
ए भी म आपकी मँशा पूरी नही ं कर सकती।"

सुनीता की बात सुनकर ोितजी को बड़ा झटका लगा। उ लगा था की सुनीता तो बस अब फँसने वाली ही है, पर यह तो सब
उ ापु ा हो रहा था। ोितजी ने पूछा, "पर ों तुम ऐसा नही ं कर सकती? ा तु अपने पित से डर है? या िफर ल ा, या
कोई धािमक आ था का सवाल है? आ खर बात ा है?"

सुनीता ने सरलता से कहा, " ोितजी बात थोड़ी समझने म मु ल है। म एक राजपूतानी ँ। मेरी माँ की म चहेती बेटी थी। मेरी माँ
मुझसे सारी बात प से करती थी ं। जब कोई लड़कों के बारे म बात होती थी तो मुझे माँ ने बचपन से ही यह िसखाया था की
औरत का शील ही उसका सबकुछ है। उसके साथ कभी छे ड़ छाड़ मत करना।"

जब म थोड़ी बड़ी ई और माँ ने दे खा की ज़माना बदल चुका था। लड़के लडिकयां एक दू सरे से इतनी िमलती जुलती थी ं की उनम
एक दू सरे के ित आकषण होना और चु ाचाटी आम बात हो गयी थी तब माँ ने अपनी िसख बदली और कहा, "ठीक है। आज
कल ज़माना बदल चुका है। आज कल के जमाने म लड़का लड़की म कुछ चु ाचाटी चलती है। तो िचंता की कोई बात नही ं। पर
तुम अपना सब कुछ, अपना शील उसीको दे ना जो तु ारे िलए अपना जीवन तक छोड़ने के िलए तैयार हो और अपनी जान पर खेल
कर तु ारी र ा करे ।"

मेरी माँ की िसख मेरे िलए मेरे ाण के सामान है। म उसको ठु करा नही ं सकती। दीदी म आपको िनराश कर के ब त दु खी ँ। आई
एम् सो सॉरी। ब सचम तो म भी ज ूजी की कायल ँ और उनसे मुझे कोई परहेज भी नही ं है। मेरे पित तो उलटा ज ूजी की
बात कर के मुझे छे ड़ते रहते ह। िसनेमा हॉल म उ ों ने ही मुझे ज ूजी के पास िबठा िदया था और ज ूजी की और मेरी जो राम
कहानी ई थी वह सब मेरे पित सुनीलजी को पता है। आपकी जो मँशा है वही मेरे पित की भी है। मने आपको बता ही िदया है की
कैसे ज ूजी ने मेरे हाथों म अपना ल पकड़ा िदया था और मने कैसे ज ूजी को मेरी े ् स से खेलने की भी इजाजत दे दी थी।"

ोितजी सुनीता की बात सुनती रही। सुनीता ने ोितजी की और दे खा और बोली, "मेरे पित सुनील ने मेरे साथ शादी कर अपना
सब कुछ मेरे हवाले कर िदया। व आने पर वह मेरे िलए अपनी जान पर भी खेल सकते ह तो म उनकी हो गयी। अब म अपनी
माँ की बात कैसे ठु कराऊँ?"

ोितजी सुनीता की बात सुन कर चुप हो गयी। शायद उनको लगा जैसे सुनीता ने उनके सारे मंसूबों पर ठं डा पानी डाल िदया।
सुनीता ने महसूस िकया की ोितजी उसकी बात सुनकर काफी िनराश लग रहे थे।

सुनीता ने आगे बढ़ते ए ोित दीदी का हाथ थमा और बोली, "दीदी, म आपका िदल तोड़ना नही ं चाहती। पर आप भी मेरे मन की
बात समिझये। म मेरी माँ से वचन ब ँ। मेरी माँ की इ ा और िसख की अव ा करना उनका अपमान करने बराबर है। बस म
आपसे इतना वादा करती ँ की आप मेरे पित के साथ जब चाहे जहां चाहे सो सकती ह, मतलब चुदवा सकती ं ह। मुझे उसम कोई
एतराज ना होगा।

जहां तक मेरा सवाल है, मेने मेरी मजबूरी बतायी। हाँ म ज ूजी को जी जान से ार करती ँ और करती र ंगी। म कोिशश
क ँ गी की जो सुख म उनको नही ं दे सकती उसके अलावा जो सुख म उनको दे सकती ँ वह उनको ज र दू ं गी। म ाथना क ँ गी
की इस जनम म नही ं तो अगले जनम म ही सही मुझे ज ूजी की शैयाभािगनी बनने का मौक़ा िमले।"

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सुनील की प ी सुनीता की बात सुनकर ज ूजी की प ी ोितजी का मुंह छोटा हो गया। उनके मुंह पर िलखे िनराशा और कुंठा के
भाव सुनीता को साफ़ नजर आ रहे थे। वह खुद बड़ी िनराश और दु खी महसूस कर रही थी। पर ा करे ? माँ को जो वचन िदया
था। उसे तो िनभाना ही था। सुनीता ने ोितजी की और दे खा। ोितजी कुछ बोल नही ं पा रही रही ं। सुनीता को लगा की ोितजी
अब उससे बात नही ं करगी। िनराश सी होकर वह उठ खड़ी ई और कपडे पहनने लगी; तब ोितजी ने सुनीता का हाथ थामा
और बोली, "दे खो बहन, तु ारी बात सही है की ारी माँ को िदया आ वचन तोड़ना नही ं चािहए। पर एक बात को समझो। तु ारी
माँ ने सबसे पहले तु जो िसख दी थी वह समय के चलते बदली थी की नही ं? बोलो?"

सुनीता ने ोित की तरफ दे खा और मुंडी िहला कर कहा, "हाँ दीदी, बदली तो थी। पहले तो वह मुझे कोई लड़के से ादा िमलने
या बातचीत करने से ही मना कर रही थी; पर बाद म उ ोंने समय को बदलते ए दे खा तो छूआछु ही और चु ा चाटी से आगे बढ़ने
के िलए मना िकया था।"

ोितजी ने कहा, "दे खो बहन, अगर तु ारी माँ आज होती ना, तो मुझे प ा पता है की वह तु रोकती नही ं। ूंिक वह यह
समझती की तुम अब बड़ी समझदार और प रप हो गयी हो और अपना सही िनणय तुम खुद ले सकती हो। म तु कोई
जबरद ी नही ं कर रही। पर म तु जो मने कहा वह सोचने के िलए आ ह ज र क ँ गी। बाकी िनणय लेना तु ारे हाथम है।"

सुनील की प ी सुनीता ने कनल साहब की प ी ोितजी का हाथ थाम कर बड़ी िवन ता से कहा, "दीदी, आप मुझसे नाराज तो
नही ं हो ना? म आपकी छोटी बहन और अंतरं ग सहेली बने रहना चाहती ँ। कही ं मेरी यह सोच के कारण आप मुझसे र ा ही ना
रखना चाहो ऐसा तो नही ं होगा ना? हमारे दोनों के िबच अभी जो ार आ म उससे ब त ही रोमांिचत ँ और उसके कारण आपके
ित मेरा स ान और ार और भी बढ़ा है। अगर म आपको थोड़ी सी भी से ी लगती ँ और अगर आपको मेरे बदन से थोड़ा सा
भी ार करने का मन करता हो तो मुझे 'मािलश करने के िलए बुला लेना। हमारे िबच अभी जैसे हमने िकया ऐसे ार करने का
कोड होगा 'मािलश' करनी है'।"

सुनीता की ारी और मीठी सरल बोली सुनकर ोितजी बरबस हँस पड़ी। सुनीता को गले लगाते ए बोली, "शायद कनल साहब
के भा म तु ारी 'मािलश' करना िलखा नही ं। पर तुम उ ार करने से तो नही ं रोकेगी ना? और हाँ, म तु ज ी ही 'मािलश'
करने के िलए बुलाऊंगी।"

सुनीता भी ोितजी के साथ हँस पड़ी और बोली, "दीदी, म एक राज की बात कहती ँ। म खुद भी आपका बार बार 'मािलश'
करना चाहती ँ और आपसे बार बार 'मािलश' करवाना चाहती ँ। आपके पित से भी म ब त ार करती ँ। आपकी इजाजत हो
तो मौक़ा िमलने पर म उनको ब त ार दू ँ गी। और जहां तक उनसे 'मािलश' करवाने का सवाल है, तो ा पता कल ा होगा?"

बड़ी दे र तक दोनों बहन एक दू सरे से िलपटी रही ं और एक दू सरे की गीली आँ ख पोछती रही ं और एक दू सरे की गीली चूत पर हाथ
िफराती रही ं।

कहते ह की समय सब का समाधान है। समय सारे दु ः ख और सुख को लाता है और ले भी जाता है।

ोितजी और सुनील की प ी को िमले ए कुछ िदन हो गए। कनल साहब (ज ूजी) और सुनील दोनों अपने काम म हो
गए।

ू ल की छु ि यां भी ख हो गयी ं और ज ूजी की प ी ोितजी और सुनील की प ी सुनीता दोनों भी अ ािधक हो गए।

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दे खते ही दे खते गिमयां शु हो गयी ं। ू लों म परी ा की िचंता म ब े पढ़ाई म लग गए थे।

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एक िदन शाम सुनील द र से घर प ंचा ही था की कनल साहब का फ़ोन आया की उनके घर म चोरी ई है। सुनील और सुनीता
ने जब यह सूना तो वह दोनो भागते ए कनल साहब के ैट प ंचे। उनके घर पुिलस आकर चली गयी थी। डाइं ग म म सारा
सामान िबखरा आ था।

सुनीता ने ज ूजी की प ी के पास जा कर उनका हाथ थामा और पूछा की ा आ था तो ोितजी बोली, "समझ म नही ं आता।
हम सब बाहर थे। िदन दहाड़े कोई चोर घरम ताला तोड़ कर घुसा। चोर ने पूरा घर छान मारा। पर एक लैपटॉप, कुछ डाय रयां और
एक ही जूते को छोड़ कुछ भी नही ं ले गया। जूता ले गया तो भी बस एक। दु सरा जूता यही ं पड़ा है। पता नही ं, एक जूते को तो वह
पहन भी नही ं सकता। उसका वह ा करे गा? घर म इतनी महंगी चीज ह। मेरे गहने ह। उ छु आ तक नही ं। मेरी समझ म तो
कुछ नही ं आता।"

सुनील ने कहा, "हो सकता है, अचानक ही कोई आ गया हो ऐसा उसे लगा तो जो हाथ आया उसे लेकर वह भाग िनकला।"

ज ूजी बड़ी गहरी सोचम थे। उ ोंने कहा, "हो सकता है। पर हो सकता है कुछ और बात भी हो।"

सुनील कनल साहब की और आ य से दे ख कर बोलै, "आपको ों ऐसा लगता है की कुछ और भी हो सकता है?"

कनल साहब बोले, "वह इस िलए की िपछले कुछ िदनों से कोई मेरा पीछा कर रहा है। उसे पता नही ं की म जानता ँ की वह मेरा
पीछा कर रहा है। अगर यह चालु रहा तो एक ना एक िदन म उसे पकड़ पर पता कर ही लूंगा। पर इस बात म कुछ ना कुछ राज़
ज र है।"

सुनील और उसकी प ी सुनीता कुछ समझ नही ं पाए और कुछ औपचा रक बात कर अपने घर वापस लौट आये।

कुछ िदनों म यह बात सब भूल गए।

##

...

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गम की छु ि यां कुछ िदन के बाद शु होने वाली ही थी ं।

सुनील, कनल साहब उनकी प ी ोित और सुनील की प ी सुनीता एक िदन िनचे कार पाक म ही िमल गए , तब कनल साहब ने
कहा, "सुनील और सुनीता सुनो। आम म इस छु ि यों म सामा नाग रकों के िलए आतंक िवरोधी अिभयान के तहत एक टेिनंग एवं
जाग कता काय म िहमाचल की पहािड़यों म रखा है। इसम नाम रिज र करवाना है। काय म सात िदनों का है। उसम पहाड़ों
म घूमना, तैराकी, शारी रक ायाम, मनोरं जन इ ािद काय म ह। सारा काय म बड़ा रोमांचक होता है। म भी उसम एक टेनर
ँ। हम तो जाना ही है। अगर आप की इ ा हो तो आप भी शरीक़ हो सकते हो।"

ोितजी सुनील की प ी ने सुनीता के करीब आयी, ार से उसका हाथ थामा और सुनीता के कानों म मुँह रख कर शरारत भरी
आवाज म धीमे से बोली ं, "बहन चलो ना। राज की बात यह भी है की काफी िदन से मने तुमसे 'मािलश' भी नही ं करवाई। यह ब त
बिढ़या मौक़ा है। छु ि यां ह। घूमगे िफरगे और मजे करगे। तुम हाँ कह दोगी ना, तो सुनीलजी तो अपने आप ही आ जाएं गे।"

सुनील ने ोितजी की और दे खकर कहा, "अगर आप कहते ह तो हम चलगे।" अपनी प ी सुनीता की और दे खते ए सुनील ने
पूछा, " ों डािलग, चलग ना?"

सुनीता समझ गयी की ोितजी के मन म कुछ जबरद ान है। इतने करीब रहते ए भी ता के कारण िपछले कुछ िदनों
से ोितजी से िमलना भी नही ं हो पाया था। वह शमाती ई अपने पित की और दे खती ई बोली, "अगर आप कहगे तो भला म ों

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मना क ँ गी? वैसे भी वेकेशन म हम कही ं ना कही ं तो जाना ही है; तो ों ना हम इसी काय म म िह ा ल? लगता है यह काफी
रोमांचक और मजेदार होगा साथ साथ पहाड़ों म घूमना और ए रसाइज दोनों हो जाएं गे।"

तो िफर तय आ की पहाड़ों म छु ि यां िबताने के िलए इस काय म म सुनील और उनकी प ी सुनीता के नाम भी रिज र कराएं
जाएं । सब अपना सामान जुटाने म और तैयारी म लग गये।

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उसी िदन शामको सुनील ने फ़ोन कर के कनल साहब को बताया की उसे उनसे कुछ ज री बात करनी है। बात फ़ोन पर नही ं हो
सकती थी। कनल साहब आधे घंटे म ही सुनील और सुनीता के घर प ँच गए।

सुनील डाइिनंग कुस पर अपना सर पकड़ कर बैठे थे साथ म सुनीता उनसे कुछ सवाल जवाब कर रही थी। जब कनल साहब
प ंचे तो सुनील खड़ा हो गया और औपचा रकता पूरी होते ही उसने अपनी सम ा सुनाई।

सुनीलजी ने कहा की वह जब शाम को मािकट म गए थे तो उ लगा की कोई उनका पीछा कर रहा था। पहले तो उ यकीन ही
नही ं आ की भला कोई उसका पीछा भी कर सकता है। पर चूँिक कनल साहब ने उ बताया था की कुछ िदन पहले उनका भी
कोई पीछा कर रहा था इसिलए सुनीलजी ने तय िकया की वह भी ान से दे खगे की ा वह ब ा सचमुच उनका पीछा ही कर
रहा था की या िफर वह सुिनलजी का वहम था। सुनीलजी चेक करने के िलए थोड़ी दे र अचानक ही क गए। जब सुनीलजी क गए
तो वह ब ा भी क गया और िदखावा करने लगा जैसे वह कोई दू कान म सामान दे ख रहा हो।

िदखने म वह काफी लंबा और ह ाक ा था। उसने कपड़े से अपना मुंह ढक रखा था। सुनील को लगा की शायद उ वहम आ
होगा। वह चलने लगे तो वह श भी चलने लगा। तब सुनीलजी को यह यकीन हो गया की वह उनका पीछा कर रहा था। सुनील
फुत से एक गली म घुसे और कही ं छु प कर उस श का इं तजार करने लगे।

जैसे ही वह श उनके पास से गुजरा तो सुनील ने उसे ललकारा। सुनील ने उसे पूछा, "अरे भाई, तुम कौन हो, और मेरा पीछा
ों कर रहे हो?"

सुनील की आवाज सुनकर उसने पलट कर दे खा तो सुनीलजी पीछे से उसके करीब आने लगे। सुनीलजी को करीब आते ए दे ख
कर वह एकदम भाग खड़ा आ। सुनीलजी उसके पीछे दौड़ते ए गये पर वह ब ा अचानक कही ं गायब ही हो गया।

सुनीलजी ने कनल साहब से कहा, "ज ूजी म वाकई म िचंितत ँ। म यह समझ नही ं पाता ँ की मेरा पीछा करने की ज रत
िकसीको ों पड़ गयी? आ खर मेरे पास ऐसा ा है? मेरी समझ म तो कुछ नही ं रहा।"

कनल साहब काफी िचंितत िदखाई दे रहे थे। उ ोंने सुनीलजी के कंधे पर हाथ िफराते ए कहा, "आपके पास कुछ ऐसा है िजसकी
िकसीको ज रत है। खैर, कोई बात नही।ं म पता लगाता ँ और दे खता ँ की यह मसला ा है।"

सुनील की प ी सुनीता ज ूजी की बात सुनकर और भी िचंितत िदखाई दे रही थी। उसने कनल साहब से पूछा, "ज ूजी, आ खर
बात ा है? इनका कोई पीछा ों करे गा भला? कुछ गड़बड़ तो नही?ं आप की बात से लगता है की हो ना हो आपको कुछ पता
है जो हम नही ं मालुम। कही ं आप हमसे कुछ छु पा तो नही ं रहे हो?"

कनल साहब र ा क ए और बोले, "नही ं ऐसी कोई बात नही ं है। म आपसे कुछ नही ं छु पाऊंगा। इतना तो ज र है की कही ं ना
कही ं कुछ ना कुछ तो रह ज र है। पर जब तक मुझे प ा पता नही ं चले तब तक ा बताऊँ?"

सुनील ने पूछा, "ज ूजी, ा यह नही ं हो सकता की वह िकसी और का पीछा कर न चाह रहा था और गलती से मुझे वह आदमी
समझ कर मेरा पीछा कर रहा हो?"

ज ूजी ने कहा, "हो भी सकता है। पर अ र ऐसे शाितर लोग इतनी बड़ी गलती नही ं करते।"

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सुनीता को शक आ की ज ूजी ज र कुछ जानते थे पर बताना नही ं चाहते जब तक उ प ा यकीन ना हो। सुनीता इसका
राज़ जानने के िलए बड़ी ही उ ुक थी पर चूँिक ज ूजी बताना नही ं चाहते थे इस िलए सुनीता ने भी उस समय उ ादा आ ह
नही ं िकया। पर उसी समय सुनीता ने तय िकया की वह इस रह की सतह तक ज र प चगी।

सुनीलजी ने कनल साहब को ध वाद कहा। ज ूजी जब जाने के िलए तैयार ए तो सुनीलजी ने सुनीता को कनल साहब को
छोड़ने के िलए कहा और खुद घरम चले गए। सुनीता ज ूजी को छोड़ने के िलए घर से सीढ़ी उतर कर जब िनचे उतरने लगी तब
उसने ज ूजी का हाथ पकड़ कर रोका और कहा, "ज ूजी आप इसका राज़ जानते ह। पर हम बता ों नही ं रह ह। बोिलये ा
बात है?"

ज ूजी ने सुनीता की और दे खा और आँ ख झुका कर बोले, "म आपको खामखा परे शानी म नही ं डालना चाहता। म खुद इसकी
सतह तक प ंचना चाहता ँ पर ा बताऊँ? व आने पर म आपको खुद बताऊंगा। अभी आप मुझे इस बारे म ीज आ ह नही ं
कर तो अ ा है।"

इतना कह कर कनल साहब फुत से सीिढ़यां िनचे उतर गए। सुनीता उ दे खती ही रह गयी। ज ूजी के जाने के तुरंत बाद सुनीता
ने तय िकया की वह ज ही ज ूजी से बात कर उनसे इसके बारे म सारे राज़ बताने के िलए आ ह करके मजबूर करे गी। पर
उसकी समझ म यह नही ं आ रहा था की उसे ज ूजी से एकांत म िमलने का मौक़ा कब िमलेगा। पर दू सरे ही िदन यह मौक़ा िमल
गया।

##

सुबह ही ोितजी का फ़ोन आया। ोितजी ने कहा, "सुनीता बहन एक सम ा हो गयी है। ज ूजी को बुखार है और वह ऑिफस
नही ं जा रहे। मेरी ूलम ू ल के वािषक िदवस का काय म है। मुझे तो जाना पडे गा ही। म गैर हािजर नही ं रह सकती। तो ा
तुम अगर ी हो तो आज छु ी ले सकती हो? िदन म दो तीन बार ज ूजी के पास जा कर उनकी तिबयत का जायजा ले सकती हो
ीज? मेरी बेटी भी बाहर टेिनंग म गयी ई है।"

यह सुन कर सुनीता खुश हो गयी। वह िपछली शाम से यही सोच रही थी की कैसे वह ज ूजी से अकेले म बात करे । सुनीता ने
फ़ौरन कहा, " ोितजी आप िनि जाइये। ज ूजी की दे खभाल म कर लुंगी। वह मेरे गु ह और उनकी सेवा करना मेरा सौभा
होगा। मुझे आज ू ल म कोई ख़ास काम है नही ं। ादातर पी रयड ी ह। म छु ी ले लुंगी।"

ोितजी सुबह ही घर से िनकल गयी ं।

...

सुनील के द र चले जाने के बाद सुनीता थोड़ा सा ठीकठाक होकर नहा धो कर े श ई और ोितजी और ज ूजी के ैट की
और चल पड़ी। ैट की घंटी बजायी तो ज ूजी ने दरवाजा खोला। सुनीता ने दे खा तो ज ूजी तैयार हो रहे थे। उ ोंने बिनयान
और पतलून पहन रखा था और अपना यूिनफाम पहनने जा रहे थे। ज ूजी सुनीता को दे ख कर थम गए और आ य से बोल पड़े ,
"अरे सुनीता तुम, इस व . यहां? ा बात है?"

शायद ोितजी ने अपने पित को नही ं बताया था की उ ोंने सुनीता को आने के िलए कहा था।

सुनीता ने पूछा, "अरे आपको बुखार है ना? आप तैयार ों हो रहे ह?"

ज ूजी, "अरे ऐसा छोटा मोटा बुखार तो आता रहता है। इससे घबराएं गे तो काम कैसे चलेगा? लगता है तु ोित ने बता िदया
है। ोित तो फ़ालतू म बात का बतंगड़ बना रही है।"

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सुनीता ने आगे बढ़ कर ज ूजी का हाथ थामा तो पाया की उनका बदन काफी गरम था। सुनीता ने ज ूजी का हाथ स ी से
पकड़ा और बोली, "यह छोटा मोटा बुखार है ा? आपका बदन आग जैसे तप रहा है। अब हर बार आपकी नही ं चलेगी। चलो
कपडे िनकालो।"

कनल साहब यह सुनकर आ य से सुनीता की और दे खने लगे और बोले, "कपडे िनकालू?ँ ों?"

जब सुनीता ने ज ूजी के सवाल के बारे म ान से सोचा तो झप गयी। सुनीता को समझ आया की ज ूजी कही ं उसकी कपडे
िनकालने वाली बात का गलत मतलब ना िनकाल। उसने तुरंत ही कहा, "मेरा मतलब है, कपडे बदलो। ऑिफस जाने की कोई
ज रत नही ं है। आज आप घर म ही आराम करगे। यह मेरा है।"

कनल साहब चुपचाप सुनीता की अिधकारपूण आवाज सुन कर सकपका गए। आज तक कभी उ ोंने सुनीता की ऐसी स
आवाज सुनी नही ं थी। वह चुपचाप पीछे हटे, सुनीता को अंदर आने िदया और खुद एक हाथ का टेका ले कर सोफे पर बैठ गए।
उनकी कमजोरी साफ़ िदख रही थी।

सुनीता ने कहा, "कपडे िनकाल कर पयजामा पहन लीिजये। द र म फ़ोन क रये की आज आप नही ं आएं गे। म आपके सर पर
ठ े पानी का कपड़ा लगा कर बुखार को कम करने की कोिशश करती ँ।"

कनल साहब चुपचाप बैड म म अंदर चले गए और पतलून िनकाल कर पजामा पहन कर पलंग पर लेट गए।

सुनीता ने बफ के कुछ टु कड़े िनकाल कर एक कटोरी म डाले और एक साफ़ कपड़ा लेकर वह ज ूजी के बगल म उनके सीने के
पास ही अपने कू े िटका कर पलंग पर बैठ गयी। ज ूजी का बुखार काफी तेज था। सुनीता ने कपड़ा िभगोया और उसे िनचोड़
कर ज ूजी के कपाल पर लगाया और ार से उसे दबा कर ज ूजी के सर पर हाथ िफराने लगी। ज ूजी आँ ख बंद कर सुनीता
के कोमल हाथो ँ के श का आनंद ले रहे थे।

िबच म जब वह अपनी आँ ख खोलते तो सुनीता के करारे , फुले ए, ाउज और ा के अंदर से बाहर आने को ाकुल म न
उनकी आँ खों और मुंह के ठीक सामने दीखते थे। सुनीता के नो ँ के िबच की गहरी खाई म से उसकी ह े चॉकलेट रं ग की
एरोला की गोलाइयों म कैद िन लो ँ की हलकी झांकी भी ज ूजी को हो रही थी। सुनीता के बदन की खुसबू उनको पागल कर रही
थी।

कई बार सुनीता के नज ूजी के मुंह को और आँ खों को अनायास ही श कर रहे थे। सुनीता अपने काम म इतनी मशगूल थी
की उसे इस बात का कोई भी ख़याल ही नही ं था की उसके मदम नज ूजी की हालत खराब कर रहे थे। सुनीता बार बार
झुक कर कभी कपड़ा िभगो कर िनचोड़ती तो कभी उसे ज ूजी के कपाल पर दबा कर अपने हाथो ँ से इनका कपाल और उनका
सर ार से दबाती और अपना हाथ उस पर िफराती रहती थी।

जब सुनीता कनल साहब के सर पर कपड़ा दबाती तो उसे काफी झक


ु ना पड़ता था िजसके कारण उसके नज ूजी के मुंहम ही
जा लगते थे। कनल साहब ने कई बार कोिशश की वह उ नजरअंदाज करे पर आ खर वह भी तो एक मद ही थे ना? कब तक
अपने आपको रोक सकते थे? एक बार अचानक ही जब सुनीता झुकी और उसकी चूँिचयाँ ज ूजी के मुंह म जा लगी ं तो बीन चाहे
ज ूजी का मुंह खुल गया और सुनीता का एक नज ूजी के मुंह म घुस गया।

कनल साहब अपने आपको रोक नही ं पाए और उ ोंने सुनीता के न को मुंह म लेकर वह उसे मुंह म ही दबाने और चूसने लगे।
सुनीता ने ाउज और ा पहन रखी थी ं, पर ज ूजी के मुंह की लार से सुनीता का ाउज और ा भीग गए। सुनीता को महसूस
आ की उसके नज ूजी अपने मुंह म लेकर चूस रहे थे।

सुनीता को इस कदर अपने इतने करीब पाकर ज ूजी का सर तो ठं डा हो रहा था पर उनके दो पॉंव के िबच उनका ल गरम हो
गया था। ज ीमज ूजी ने अंदर अंडरिवयर भी नही ं पहना था। उनका पयजामा के ऊपर उनके ल के खड़े होने के कारण
त ू जैसा बन गया था। सुनीता की पीठ उस तरफ थी इस कारण वह उसे दे ख नही ं सकती थी।

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सुनीता ने जब पाया की ज ूजी ने उसके एक न को मुंह म िलया था तो वह एकदम घबड़ा गयी। उसने पीछे हटने के िलए एक
हाथ का टे का लेने के िलए अपना हाथ पीछे िकया तो वह ज ूजी की टाँगों के िबच म जा प ंचा। सुनीता ने अपना हाथ वहाँ िटकाया
तो ज ूजी का ल ही उसके हाथ म आ गया। यह दू सरी बार आ की सुनीता ने ज ूजी का ल अपने हाथ म कपडे के दू सरी
और महसूस िकया था।

एक तरफ सुनीता को ज ूजी का बुखार की िचंता थी तो दू सरी और उनके नजदीक आने से वह भी तो गरम हो रही थी। सुनीता की
समझ म यह नही ं आ रहाथा की वह करे तो ा करे ? उसका एक नज ूजी के मुंह म था तो उसका हाथ ज ूजी का ल
पकडे ए था। उसके हाथ म ज ूजी के ल से िनकल रही िचकनाहट महसूस हो रही थी। ज ूजी का पजामा भी उनकी टाँगों
के िबच म फैली ई िचकनाहट से भीग चुका था। सुनीता ने अपना हाथ िहलाया तो उसकी मु ी म ज ूजी का ल भी िहलने
लगा।

सुनीता की हालत साँप छछूंदर िनगले ऐसी हो गयी। ना वह िनगल सकती थी और ना वह उगल सकती थी। ना वह ज ूजी को रोक
सकती थी और नाही उ आगे बढ़ने की इजाजत दे सकती थी। वह करे तो ा करे ? उस रात वह भी ठीक तरह सो नही ं पायी
थी। उसके िदमाग म िपछली शाम की घंटनाएँ पूरी रात घूमती रही थी ं। सुनीलजी का पीछा कौन कर रहा था? ों कर रहा था?
वाकई म कर भी रहा था की नही ं? यह सवाल उसको खाये जा रहे थे।

पर उस समय वह सब सोचने का व नही ं था। उसे एक ही िचंता थी। अगर ज ूजी उसे चोदने के िलए मजबूर करगे तो वह ा
करे गी? एक बात साफ़ थी। सुनीता जानती थी की उसम उतनी िह त नही ं थी की वह ज ूजी को रोक सके। इसका कारण यह था
की वह खुद भी कही ं ना कही ं अपने मन की गहराइयों म ज ूजी से चुदवाना चाहती थी।

सुनीता को ज ूजी का मोटा, लंबा ल उसकी चूत म कैसे िफट होगा उसकी िज ासा मार रही थी। वह उस ल को अपनी चूत
म अनुभव करना चाहती थी। तो दू सरी और उसने माँ को िदया आ वचन था। उसे अपने पित से धोका करे गी उसकी िचंता नही ं थी,
ूंिक उसके पित को अगर सुनीता ज ूजी से चुदवाने के िलए राजी हो जाए तो कोई आपि नही ं होगी यह सुनीता जानती थी।

ब सुनीता के पित सुनील तो सुनीता को ज ूजी का नाम लेकर उकसाने के िलए जी भर कोिशश कर रहे थे। जािहर था की
सुनील चाहते थे की कभी ना कभी सुनीता ज ूजी से चुदवाले तािक उनका रा ा साफ़ हो जाये। मतलब सुनीता के पित सुनील जी
भी तो ज ूजी की बीबी ोितजी को चोदना चाहते थे ना? अगर सुनीता ज ूजी से चुदवाने लगी तो िफर सुनीता भी तो अपने पित
सुनील को ज ूजी की बीबी ोित को चोदने से कैसे रोक सकती है?

हालांिक सुनीता ने कभी अपने पित को िकसी भी औरत को चोदने से रोकना नही ं चाहा। सुनीता जानती थी की उसके पित भी रं गीले
िमज़ाज के तो ह ही। वह िवदे श म जाते ह तो वहाँ तो औरत, अगर कोई मद मन भाया तो, अ र अपनी टाँगों को खोलने म दे र
नही ं करती ं। मद को अपने दे श की तरह वहाँ खूबसूरत औरतों को चोदने के िलए ब त ादा यास नही ं करने पड़ते।

इस िलए सुनीता ने मानिसक प से यह ीकार कर िलया था की उसके पित सुनील मौक़ा िमलने पर दू सरी औरतों को चोदते थे
और इसके बारे म ना तो वह अपने पित से पूछती थी और ना तो उसके पित सुनीता को कुछ बताते थे। तो मानिसक प से उनका
वैवािहक जीवन खुला सा ही था। पर बात यहां सुनीता की अपनी अ ता की थी।

सुनीता को लगा की वह उस समय ादा कुछ सोचने की थित म नही ं थी। दबाव के मारे उसका सर फटा जा रहा था। उसे कुछ
ादा ही थकान महसूस हो रही थी। उसकी बगल म ज ूजी भी शायद नीद
ं म थे ूंिक काफी समय से उ ोंने अपनी आँ ख
खोली नही ं थी और उनकी साँसे एक ही गित से मंद मंद चल रही ं थी। सुनीता को एक नी ंद की झपकी आ गयी और वह ज ूजी के
बदन पर ही लुढ़क गयी। उसका एक नज ूजी के मुंह म था वह जानते ए भी वह उस समय कुछ कर पाने के िलए असमथ
थी।

सुनीता गहरी नी ंद म बेहोश सी हालत म ज ूजी के मुंह म अपना एक न धरे ए ज ूजी के ऊपर अपना बदन झुका कर ही सो
गयी। कनल साहब भी बुखार के कारण आधी िनंद और आधे जागृत अव था म थे। उनके जहन म अजीब सा रोमांच था। उनके

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सपनों की रानी सुनीता उनपर अपना पूरा बदन िटका कर सो रही थी। उसका एक मद म नज ूजी के मुंह म था िजसका
रसा ादन वह कर रहे थे, हालांिक सुनीता ने ाउज और ा पहन र ी थी।

जब कनल साहब थोड़ा अपनी तं ा से बाहर आये तो उ ोंने सुनीता का आधा बदन अपने बदन पर पाया। कनल साहब जानते थे
की सुनीता एक मािननी थी। वह िकसी भी मद को अपना तन आसानी से दे ने वाली नही ं थी। ोित ने उनको बताया था की सुनीता
एक राजपूतानी थी और उसने ण िलया था की वह अगर िकसीको अपना तन दे गी तो उसको दे गी जो सुनीता के ऊपर अपना ाण
तक ोछवर करने के िलए तैयार हो। िकसी भी ऐसे वैसे मद को सुनीता अपना तन कभी नही ं दे गी।

कनल साहब ऐसी मिहलाओं की इ त करना जानते थे। वह कभी भी यों की कमजोरी का फायदा उठाने म िव ास नही ं रखते
थे। यह उनके उसूल के खलाफ था। पर उनकी भी हालत ख़राब थी। वह ना िसफ सुनीता के बदन के, ब सुनीता के पुरे
से ब त ादा भािवत थे। सुनीता की सादगी, भोलापन, शूरवीरता, दे श ेम, जोश के वह कायल थे। सुनीता की बात
करते ए हाथों और उँ गिलयों को िहलाना, आँ खों को नचाना बगैरह अदा पर वह िफ़दा थे।

और िफर उ ोंने सुनीता को इस हाल म अपने पर िगरने के िलए मजबूर भी तो नही ं िकया था। सुनीता अपने आप ही आकर उनकी
इतनी करीबी सेवा म लग गयी थी। उ ोंने अपने ल पर भी सुनीता का हाथ महसूस िकया था। कनल साहब भी ा करे ? ा
सुनीता उनपर अपना सब कुछ ोछावर करने के िलए तैयार थी? यह सब सवाल कनल साहब को भी खाये जा रहे थे।

खैर कनल साहब थोड़ा खसके और सुनीता के न को मुंह से िनकाल कर सुनीता को धीरे से अपने बगल म सुला िदया। सुनीता
का ाउज और उसकी ा ज ूजी के मुंह की लार के कारण पूरी तरह गीली हो चुकी थी। ज ूजी को सुनीता के न के िबच म
गोला िकये ए सुनीता के न का गहरे बादामी रं ग का एरोला और उसके िबलकुल क म थत फूली ई िन ल की झांकी हो
रही थी।

कनल साहब की समझ म नही ं आ रहा था की वह ा करे । पर उस समय उ ोंने दे खा की सुनीता गहरी नी ंद सो रही थी। उ ोंने
सुनीता को एक करवट लेकर ऐसे िलटा िदया िजससे सुनीता का िपछवाड़ा कनल साहब की और हो। सुनीता की गाँड़ कनल साहब
के ल से टकरा रही थी। कनल साहब ने अपना हाथ सुनीता की बाँह और कंधे के ऊपर से सुनीता के न पर रख िदया।

वह इतना तो समझ गए थे की सुनीता को अपना बदन ज ूजी से छु आ ने म कोई भारी आपि नही ं होगी। ूंिक ज ूजी ने पहले
भी तो सुनीता के न छु ए थे। उस समय सुनीता ने कोई िवरोध नही ं िकया था। सुनीता गहरी नी ंद म एक सरीखी साँसे लेती ई मुद
की तरह लेटी ई थी। उसे कुछ होश न था।

ज ूजी ने धीरे से सुनीता के ाउज के बटन खोल िदए। िफर उ ोंने दू सरे हाथ से पीछे से सुनीता की ा के क खोल िदए।
सुनीता के अ ड़ करारे न पूरी ं दता से आज़ाद हो चुके थे। ज ूजी बदन म रोमांचक िसहरन उठ रही थी। ज ूजी के
रोंगटे खड़े हो गए थे। ज ूजी ने दु सरा हाथ धीरे से सुनीता के बदन के िनचे से घुसा कर सुनीता को अपनी बाँहों म ले िलया।
ज ूजी दोनों हाथो ँ से सुनीता के नो ँ को दबाने मसलने और सुनीता के नो ँ की िन लो ँ को िपचकाने म लग गए।

अपने हाथों की हाथेिलयों म सुनीता के दोनों नो ँ को महसूस करते ही ज ूजी का ल फुंफकार मारने लगा था। कनल साहब ने
सुनीता का िनचला बदन अपनी दोनों टाँगों के बीचम ले िलया। सुनीता उस समय ज ूजी की दोनों बाँहों म और उनकी दोनों टांगों
के िबच कैद थी। ऐसा लगता था जैसे उस समय सुनीता थी ही नही ं।

सुनीता और ज ूजी दोनों जैसे एक ही लग रहे थे। ज ूजी का ल इतना फुंफकार रहा था की ज ूजी उसे रोकना नामुमिकन
सा महसूस कर रहे थे। ज ूजी महीनों से सुनीता को अपने इतने करीब अपनी बाहों म लाने के सपने दे ख रहे थे। सुनीता के न,
उसकी गाँड़, उसका पूरा बदन और ख़ास कर उसकी चूत चूसने के िलए वह िकतने ाकुल थे?

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उसी तरह उनकी मँशा थी की एक ना एक िदन सुनीता भी उनका ल बड़े ार से चूसेगी और सुनीता एक िदन उनसे आ ह
करे गी वह सुनीता को चोदे । यह उनका सपना था। यह सब सोच कर भला ऊनका ल कहाँ कता? ज ूजी का ल तो अपनी
ारी सखी सुनीता की चूत म घुसने के िलए बेचैन था। उसे सुनीता की चूत म अपना नया घर जो बनाना था।

सुनीता उस समय साडी पहने ए थी। कनल साहब ने दे खा की सुनीता को ऊपर िनचे खसकाने के कारण सुनीता की साडी उसकी
जाँघों से ऊपर तक उठ चुकी थी। सुनीता की करारी मांसल सुडौल नंगी जाँघ दे ख कर ज ूजी का मन मचल रहा था। पर जैसे तैसे
उ ोंने अपने आप पर िनय ण र ा और सुनीता को खंच कर कस कर अपनी बाँहों म और अपनी टाँगों के िबच दबोचा और
सुनीता के बदन का आनंद लेने लगे।

जािहर था की ज ूजी का मोटा लंबा ल पजाम म परे शान हो रहा था। एक शेर को कैद म बंद करने से वह जैसे दहाड़ता है वैसे
ही ज ूजी ल पयजामे म फुंफकार मार रहा था। सुनीता की गाँड़ और उसकी ऊपर उठी ई साडी के कारण ज ूजी का ल
सुनीता की गाँड़ की िबच वाली दरार म घुसने के िलए बेताब हो रहा था। पर िबच म साडी का मोटा सा लोचा था।

ज ूजी सुनीता की गाँड़ म साडी के कपडे के पीछे अपना ल घुसा कर संतोष लेने की कोिशश कर रहे थे। सुनीता के नंगे न
उनकी हथेिलयों म खेल रहे थे। उसे सहलाने म, उ दबानेम और मसलने म और उन नो ँ की िन लो ँ को िपचकाने म ज ूजी
मशगूल ही थे की उ लगा की सुनीता जाग रही थी।

अपनी नी ंद की गहरी तं ा म सुनीता ने ऐसे महसूस िकया जैसे वह अपने ारे ज ूजी की बाँहों म थी। उसे ऐसा लगा जैसे ज ूजी
उसकी चूँिचयों को बड़े ार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते तो कभी उसकी िन लों को अपनी उँ गिलयों म कुचलते थे।
वह मन ही मन बड़ा आनंद महसूस कर रही थी। उसे यह सपना बड़ा ारा लग रहा था।

बेचारी को ा पता था की वह सपना नही ं असिलयत थी? जब धीरे धीरे सुनीता की तं ा टू टी तो उसने वा व म पाया की वह
सचमुच म ही ज ूजी की बाँहों और टाँगों के िबच म फँसी ई थी। ज ूजी का मोटा और ल ा ल उसकी गाँड़ की दरार को
टोंच रहा था। हालांिक उसकी गाँड़ नंगी नही ं थी। िबच म साडी, घाघरा और पटी थी, वरना शायद ज ूजी का ल उसकी गाँड़ म
या तो चूत म चला ही जाता। शायद सुनीता की गाँड़ म तो ज ूजी का मोटा ल घुस नही ं पाता पर चूत म तो ज र वह चला ही
जाता।

सुनीता ने यह भी अनुभव िकया की वा व म ही ज ूजी उसके दोनों नों को बड़े ार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते,
मसलते और कुचलते थे। वह इस अद् भुत अनुभव का कुछ दे र तक आनंद लेती रही। वह यह सुनहरा मौक़ा गँवा दे ना नही ं चाहती
थी। ऐसे ही थोड़ी दे र पड़े रहने के बाद उसने सोचा की यिद वह ऐसे ही पड़ी रही तो शायद ज ूजी उसे ीकृित मानकर उसकी
साडी, घाघरा ऊपर कर दगे और उसकी पटी को हटा कर उसको चोदने के िलए उस के ऊपर चढ़ जाएं गे और तब सुनीता उ
रोक नही ं पाएगी।

सुनीता ने धीरे से अपने नों को सहलाते और दबाते ए ज ूजी के दोनों हाथ अपने हाथ म पकडे । ज ूजी का िवरोध ना करते
ए सुनीता ने उ अपने नो ँ के ऊपर से नही ं हटाया। बस ज ूजी के हाथों को अपने हाथों म ार से थामे र ा। ज ूजी िफर
भी बड़े ार से सुनीता के नों को दबाते और सँवारते रहे। सुनीता ने ज ूजी के हाथों को दबा कर यह संकेत िदया की वह जाग
गयी थी। सुनीता ने िफर ज ूजी के हाथों को ऊपर उठा कर अपने होठों से लगाया और दोनों हाथों को धीरे से बड़े ार से चूमा।
िफर अपना सर घुमा कर सुनीता ने ज ूजी की और दे खा और मु ाई।

हालांिक सुनीता ज ूजी को आगे बढ़ने से रोकना ज र चाहती थी पर उ कोई सदमा भी नही ं दे ना चाहती थी। सुनीता खुद
ज ूजी से चुदवाना चाहती थी। पर उसे अपनी मयादा का पालन भी करना था। सुनीता ने धीरे से करवट बदली और ज ूजी के
हाथों और टाँगों की पकड़ को थोड़ा ढीले करते ए वह पलटी और ज ूजी के सामने चेहरे से चेहरा कर ुत ई।

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सुनीता ने ज ूजी जी की आँ खों से आँ ख िमलाई और ह ा सा मु ु राते ए ज ूजी को धीरे से कहा, "ज ूजी, म आपके मन के
भाव समझती ँ। म जानती ँ की आप ा चाहते ह। मेरे मन के भाव भी अलग नही ं ह। जो आप चाहते ह, वह म भी चाहती ँ।
ज ूजी आप मुझे अपनी बनाना चाहते हो, तो म भी आपकी बनना चाहती ँ। आप मेरे बदन की जंखना करते हो तो म भी आपके
बदन से अपने बदन को पूरी तरह िमलाना चाहती ँ। पर इसम मुझे मेरी माँ को िदया आ वचन रोकता है।

म आपको इतना ही कहना चाहती ँ की आप मेरे हो या नही ं यह म नही ं जानती, पर म आपको कहती ँ की म मन कम और वचन
से आपकी ँ और र ंगी। बस यह तन म आपको पूरी तरह से इस िलए नही ं सौंप सकती ूंिक म वचन से बंधी ँ। इसके अलावा
म पूरी तरह से आपकी ही ँ। यिद आप मुझे आधा अधूरा ीकार कर सकते हो तो मुझे अपनी बाँहों म ही रहने दो और मुझे
ीकार करो। बोलो ा आप मुझे आधा अधूरा ीकार करने के िलए तैयार हो?"

यह सुनकर कनल साहब की आँ खों म आँ सू भर आये। उ ोंने कभी सोचा नही ं था की वा व म कोई उनसे इतना ेम कर सकता
है। उ ोंने सुनीता को अपनी बाँहों म कस के जकड़ा और बोले, "सुनीता, म तु कोई भी प म कैसे भी अपनी ही मानता ँ।"

सुनीता ने अपनी दोनों बाँह ज ूजी के गले म डाली ं और थोड़ा ऊपर की और खसक कर सुनीता ने अपने हो ँठ ज ूजी के हो ँठ पर
िचपका िदए। ज ूजी भी पागल की तरह सुनीता के होठों को चूसने और चूमने लगे। उ ोंने सुनीता की जीभ को अपने मुंह म चूस
िलया और जीभ को वह ार से चूसने लगे और सुनीता के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह म लेकर उसे गले के िनचे उतारकर
उसका रसा ादन करने लगे। उ ऐसा महसूस आ की सुनीता ने उनसे नही ं चुदवाया िफर भी जैसे उ सुनीता का सब कुछ
िमल गया हो।

ज ूजी गदगद हो कर बोले, "मेरी ारी सुनीता, चाहे हमारे िमले ए कुछ ही िदन ए ह, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई
जीवन की संिगनी ं हो।"

सुनीता ने ज ूजी की नाक अपनी उँ गिलयों म पकड़ी और हँसती ई बोली, "म कही ं ोितजी का हक़ तो नही ं छीन रही?"

ज ूजी ने भी हंस कर कहा, "तुम बीबी नही ं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? ोित का हक़ छीनने का
सवाल ही कहाँ है?"

सुनीता ने ज ूजी की टाँगों के िबच हाथ डालते ए कहा, "ज ूजी, आप मुझे एक इजाजत दीिजये। एक तरीके से ना सही तो दू सरे
तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गम कम करने की इजाजत तो दीिजये। भले म इसम खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो म लेना
चाहती ँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।"

ज ूजी कुछ समझे इसके पहले सुनीता ने ज ूजी की दो जॉंघों के िबच म से उनका ल पयजामे के ऊपर से पकड़ा। सुनीता ने
अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल िदए और उसके हाथ म ज ूजी इतना मोटा और ल ा ल आ गया की िजसको दे ख कर
और महसूस कर कर सुनीता की साँसे ही क गयी ं। उसने िफ ों म और सुनील जी का भी लंड दे खा था। पर ज ूजी का ल
वाकई उनके मुकाबले कही ं मोटा और लंबा था। उसके ल के चारों और इदिगद उनके पूव ाव पूरी िचकनाहट फैली ई थी।

सुनीता की हथेली म भी वह पूरी तरहसे समा नही ं पाता था। सुनीता ने उसके इदिगद अपनी छोटी छोटी उं गिलयां घुमाईं और
उसकी िचकनाहट फैलाई। अगर उसकी चूतम ऐसा ल घुस गया तो उसका ा हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच
से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह ल अपनी चूत म नही ं लेना था।

सुनीता सोचने लगी की ोितजी जब ज ूजी से चुदवाती होंगी तो उनका ा हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस ल
से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उ अब ज ूजी के ल को घुसाने म उतना क नही ं होता होगा िजतना पहले
होता होगा।

सुनीता ने ज ूजी से कहा, "ज ूजी, हमारे िबच की यह बात हमारे िबच ही रहनी चािहए। हालांिक म िकसीसे और ख़ास कर मेरे
पित और आपकी प ी से यह बात छु पाना नही ं चाहती। पर म चाहती ँ की यह बात म उनको सही व आने पर कह सकूँ। इस

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व म उनको इतना ही इशारा कर दू ं गी की सुनीलजी ोितजी के साथ अपना टाँका िभड़ा सकते ह। डािलग, आपको तो कोई
एतराज नही ं ना?"

ज ूजी ने हँसते ए कहा, "मुझे कोई एतराज नही ं। म तु ारा यानी मेरी पारो का दे वदास ही सही पर म मेरी चं मुखी को
सुनीलजी की बाँहों म जाने से रोकूंगा नही ं। मेरी तो वह है ही।"

सुनीता को बुरा लगा की ज ूजी ने बात ही बात म अपने आपकी तुलना दे वदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की
वह ज ूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नही ं कर पायी और उसके मन की ज ूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नही ं कर
पायी पर उसने मन ही मन भु से ाथना की की "हे भु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टू टे। मतलब ऐसा कुछ
हो की ज ूजी सुनीता को चोद भी सके और माँ का वचन भंग भी ना हो।"

पर सुनीता यह जानती थी की यह सब तो मन का तरं ग ही था। अगर माँ िज़ंदा होती तो शायद सुनीता उनसे यह वचन से उसे मु
करने के िलए कहती पर माँ का ग वास हो चुका था। इस कारण अब इस जनम म तो ऐसा कुछ संभव नही ं था। रे ल की दो
पट रयों की तरह सुनीता को इस जनम म तो ज ूजी का ल दे खते ए और महसूस करते ए भी अपनी चूत म डलवाने का
मौक़ा नही ं िमल पायेगा। यह हकीकत थी।

सुनीता ने ज ूजी का ल अपनी छोटी छोटी हथेिलयों म िलया और उसे सहलाने और िहलाने लगी। वह चाहती थी की ज ूजी
का वीय लन उसकी उँ गिलयों म हो और वह भले ही उस वीय को अपनी चूत म ना डाल सके पर ज ूजी की ख़ुशी के िलए वह
उस वीय काआ ादन ज र करे गी।

सुनीता ने ज ूजी के ल को पहले धीरे से और बाद म जैसे जैसे ज ूजी का उ ाद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से िहलाने लगी।
साथ साथ म सुनीता और ज ूजी मु ाते ए एक ार भरे गाढ़ चु न म खो गए। कुछ िमनटों की ही बात थी ार भरी बात
और साथ साथ म सुनीता की कोमल मुठी म मु ल से पकड़ा आ ल े घने स छड़ जैसा ज ूजी का ल जोरसे िहलाते
िहलाते सुनीता की बाह भी थक रही थी ं तब ज ूजी का बदन एकदम अकड़ गया।

उ ोंने सुनीता के नों को जोरसे दबाया और "ओह... सुनीता... तुम कमाल हो..." कहते ए अचानक ही ज ूजी के ल के िछ
से जैसे एक फ ारा फूट पड़ा जो सुनीता के चेहरे पर ऐसे फ़ैल गया जैसे सुनीता का चेहरा कोई मलाई से बना हो। उस िदन सुबह
ही सुबह सुनीता ने ेकफा म वह ना ा िकया जो उसने पहले कभी नही ं िकया था।

सुनीता ने ज ूजी से एक वचन माँगते ए कहा, "ज ूजी म और आप दोनों, आपकी प ी ोितजी को और मेरे पित सुनील को
हमारे िबच ई ेम ीड़ा के बारे म कुछ भी नही ं बताएँ गे। वैसे तो उनसे छु पाने वाली ऐसी कोई बात तो ई ही नही ं िजसे िछपाना
पड़े पर जो कुछ भी आ है उसे भी हम जािहर नही ं करगे। म हमारे िबच ई ेम ीड़ा को मेरे पित सुनील और आप की प ी
ोितजी से िछपा के रखना चाहती ँ तािक सही समय पर उ म इसे धमाके से पेश क ँ गी की दोनों चौंक जाएं गे और तब बड़ा
मजा आएगा।"

कनल साहब सुनीता की और िव य से जब दे खने लगे तब सुनीता ने ज ूजी का हाथ थाम कर कहा, "आप कैसे ा करना है वह
सब मुझ पर छोड़ दीिजये। म चाहती ँ की आपकी प ी और मेरी दीदी ोितजी से मेरे पित सुनीलजी का ऐसा धमाकेदार िमलन
हो की बस मजा आ जाये!"

सुनीता का आगे बोलते ए मुंह ख ता और िनराशा से मुरझा सा गया जब वह बोली, "मेरे कारण म आपको चरम पर ले जा कर
उस उ ादपूण स ोग का आनंद नही ं दे पायी जहां मेरे साथ म आपको ले जाना चाहती थी। पर म चाहती ँ की वह दोनों हमसे
कही ं ादा उस स ोग का आनंद ल, उनके स ोग का रोमांच और उ ेजना इतनी बढ़े की मजा आ जाए। इस िलए ज री है की
हम दोनों ऐसा वतन करगे जैसे हमारे बीच कुछ आ ही नही ं और हम दोनों एक दू सरे के ित वैसे ही वहार करगे जैसे पहले
करते थे। आप ोितजी से हमेशा मेरे बारे म ऐसे बात करना जैसे म आपके चुंगुल म फँसी ही नही ं ँ।"

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ज ूजी ने सुनीता अपनी बाहों म ले कर कहा, "बात गलत भी तो नही ं है। तुम इतनी मािननी हो की मेरी लाख िम त करने पर भी
तुम कहाँ मानी हो? आ खरकार तुमने अपनी माँ का नाम दे कर मुझे अंगूठा िदखा ही िदया ना?"

जब सुनीता यह सुनकर आं सी सी हो गयी, तो ज ूजी ने सुनीता को कस कर चु न करते ए कहा, "अरे पगली, म तो मजाक
कर रहा था। पर अब जब तुमने हमारी ेम ीड़ा को एक रह के परदे म रखने की ठानी ही है तो िफर म ए ं ग करने म
कमजोर ँ।

म अब मेरे मन से ऐसे ही मान लूंगा की जैसे की तुमने वाकई म मुझे अंगूठा िदखा िदया है और मेरे मन म यह रं िजश हमेशा रखूँगा
और हो सकता है की कभी कबार मेरे मुंहसे ऐसे कुछ जले कटे श िनकल भी जाए। तब तुम बुरा मत मानना ूंिक म अपने
िदमाग को यह क ंस कर दू ं गा की तुम कभी शारी रक प से मेरे िनकट आयी ही नही ं और आज जो आ वह आ ही नही ं।
आज जो आ उसे म अपनी मेमोरी से इरे ज कर दू ं गा, िमटा दू ं गा। ठीक है? तुम भी जब म ऐसा कुछ क ं या ऐसा वतन क ँ तो यह
मत समझना की म वाकई म ऐसा सोचता ँ। पर ऐसा करना तो पडे गा ही। तो बुरा मत मानना, ीज?"

ज ूजी ने िफर थम कर थोड़ी गंभीरता से सुनीता की और दे ख कर कहा, "पर जानूं, म भी आज तुमसे एक वादा करता ँ। चाहे
मुझे अपनी जान से ही ों ना खेलना पड़े , अपनी जान की बाजी ों ना लगानी पड़े , एक िदन ऐसा आएगा जब तुम सामने चल कर
मेरे पास आओगी और मुझे अपना सव समपण करोगी।

म अपनी जान हथेली म रख कर घूमता ँ। मेरे दे श के िलए इसे मने आज तक हमारी सेना म िगरवी रखा था। अब म तु ारे हाथ म
भी इसे िगरवी रखता ँ। अगर तुम राजपूतानी हो तो म भी िहंदु ानी फ़ौज का जाँबाज़ िसपाही ँ। म तु वचन दे ता ँ की जब
तक ऐसा नही ं होगा तब तक म तुम पर अपना वचन भंग करने का कोई मानिसक दबाव नही ं बनाऊंगा। इतना ही नही ं, म तु भी
कमजोर नही ं होने दू ं गा की तुम अपना वचन भंग करो।"

सुनीता ने जब ज ूजी से यह वा सुने तो वह गदगद हो गयी। सुनीता के हाथ म ज ूजी का आधा तना आ लंड था िजसे वह
ार से सेहला रही थी। अचानक ही सुनीता के मन म ा उफान आया की वह ज ूजी के ल पर झुक गयी और उसे चूमने
लगी। सुनीता की आँ खों म आँ सू छलक रहे थे।

सुनीता ज ूजी के ल को चूमते ए और उनके ल को स ोिधत करते ए बोली, "मेरे ारे ज ूजी के ारे िसपाही! मुझे
माफ़ करना की म तु तु ारी सहेली, जो मेरी दो जॉंघों के िबच है, उसके घर म घुस ने की इजाजत नही ं दे सकती। तुम मुझे बड़े
ारे हो। म तु तु ारी सहेली से भले ही ना िमला पाऊँ पर म तु ब त ार करती ँ।"

सुनीता ने ज ूजी के पॉंव सीधे िकये और िफर से स ए उनके ल के ऊपर अपना मुंह झक ु ा कर ल को अपने मुंह म
लेकर उसे चूमने और चूसने लगी। हर बार जब भी वह ज ूजी के ल को अपने मुंह से बाहर िनकालती तो आँखों म आँ सूं िलए
ए बोलती, "मुझे माफ़ करना मेरे ज ूजी के दू त, मुझे माफ़ करना। म तु तु ारी सखी से िमला नही ं सकती।"

सुनीता ने िफर से ज ूजी के ल को कभी हाथों से तो कभी मुंह म चूस कर और िहला कर इतना उ ाद पूण और उ ेिजत िकया
की एक बार िफर ज ूजी का बदन ऐसे अकड़ गया और एक बार िफर ज ूजी के ल के िछ म से एक िपचकारी के सामान
फ ारा छूटा और उस समय सुनीता ने उसे पूरी तरह से अपने मुंह म िलया और उसे गटक गटक कर पी गयी। उस िदन तक
सुनीता ने कभी कभार अपने पित का लंड ज र चूमा था और एक बार ह ा सा चूसा भी था, पर उनका वीय अपने मुंह म नही ं
िलया था। सुनीता को ऐसा करना अ ा नही ं लगता था। पर आज िबना आ ह िकये सुनीता ने अपनी मज से ज ूजी का पूरा वीय
पी िलया। सुनीता को उस समय जरासी भी िघन नही ं ई और शायद उसे ज ूजी के वीय का ाद अ ा भी लगा।

कहते ह ना की अि य का सु र चेहरा भी अ ा नही ं लगता पर अपने ि य की तो गाँड़ भी अ ी लगती है।

काफी दे र तक सुनीता आधे नंगे ज ूजी की बाँहों म ही पड़ी रही। अब उसे यह डर नही ं था की कही ं ज ूजी उसे चुदने के िलए
मजबूर ना करे ।

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ज ूजी के बदन की और उनके ल की गम सुनीता ने ठं डी कर दी थी। ज ूजी अब काफी अ ा महसूस कर रहे थे। सुनीता
उठ खड़ी ई और अपनी साडी ठीक ठाक कर उसने ज ूजी को चूमा और बोली, "ज ूजी, म एक बात आपसे पूछना भूल ही
गयी। म आपसे यह पूछना चाहती थी की आप कुछ वा व म छु पा रहे हो ना, उस पीछा करने वाले के बारे म? सच सच
बताना ीज?"

कनल साहब ने सुनीता की और ान से दे खा और थोड़ी दे र मौन हो गए, िफर गंभीरता से बोले, "दे खो सुनीता, मुझे लगता है शायद
यह सब हमारे मन का वहम था। जैसा की आपके पित सुनीलजी ने कहा, हम उसे भूल जाना चािहए।"

सुनीता को िफर भी लगा की ज ूजी सारी बात खुलकर बोलना उस समय ठीक नही ं समझते और इस िलए सुनीता ने भी उस बात
को वहीँ छोड़ दे ना ही ठीक समझा।

उस सुबह के बाद कनल साहब और सुनीता एक दू सरे से ऐसे वतन करने लगे जैसे उस सुबह उनके िबच कुछ आ ही नही ं और
उनके िबच अभी दू रयां वैसे ही बनी ई थी ं जैसे पहले थी ं।.

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पहाड़ों म छु ि यां मनाने जाने का िदन करीब आ रहा था। सुनीता अपने पित सुनीलजी के साथ पैिकंग करने और सफर की तैयारी
करने म जुट गयी। दोनों जोिड़यों का िमलना उन िदनों आ नही।ं फ़ोन पर एक दू सरे से वह ज र सलाह मशवरा करते थे की
तैयारी ठीक हो रही है या नही ं।

एक बार जब सुनीता ने ज ूजी को फ़ोन कर पूछा की ाज ूजी ोितजी छु ि यों म जाने के िलए पूरी तरह से तैयार थे, तो
ज ूजी ने सुनीता को फ़ोन पर ही एक लंबा चौड़ा भाषण दे िदया।

कनल साहब ने कहा, "सुनीता म आप और सुनीलजी से यह कहना चाहता ँ की यह कोई छु ि यां मनाने हम नही ं जा रहे। यह
भारतीय सेना का भारत के युवा नाग रकों के िलए आतंकवाद से िनपटने म स म बनाने के िलए आयोिजत एक टेिनंग ो ाम है।
इस म सेना के कमचा रयों के र ेदार और िम गण ही शािमल हो सकते ह। इस ो ाम म शािमल होने के िकये ज री रािश दे ने
के अलावा सेना के कोई भी आला अिधकारी की िसफा रश भी आव क है। सब शािमल होने वालों का िस ो रटी चेक भी होता
है।

इस म रोज सुबह छे बजे कसरत, पहाड़ों म टे ं ग (यानी पहाड़ चढ़ना या पहाड़ी रा ों पर लंबा चलना), दोपहर आराम, शाम को
आतंकवाद और आतंक वािदयों पर ले र और दे र शाम को िडं , डा बगैरह का काय म है। हम छु ि यां तो मनाएं गे ही पर
साथ साथ आम नाग रक आतंकवाद से कैसे लड़ सकते ह या लड़ने म सेना की मदद कैसे कर सकते ह उसकी टेिनंग दी जायेगी।
म भी उन टैिनंग के िश कों म से एक ँ। आपको मेरा ले र भी सुनना पडे गा।"

##

सुनीलजी को यह छु ि यां ोितजी के करीब जानेका सुनहरा मौक़ा लगा। साथ साथ वह इस उधेड़बुन म भी थे की इन छु ि यों म
कैसे सुनीता और ज ूजी को एक साथ िकया जाए की िजससे उन दोनों म भी एक दू सरे के ित जबरद शारी रक आकषण हो
और मौक़ा िमलते ही दोनों जोिड़यों का आपस म एक दू सरे के जोड़ीदार से शारी रक स ोग हो।

वह इस ेक को एक सुनहरी मौक़ा मान रहे थे।

...

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िजस िदन सुबह टैन पकड़नी थी उसके अगले िदन रात को िब र म सुनीलजी और सुनीता के िबच म कुछ इस तरह बात ई।

सुनीलजी सुनीता को अपनी बाहों म लेकर बोले, "डािलग, कल सुबह हम एक ब त ही रोमांचक और साहिसक या ा पर िनकल रहे
ह और म चाहता ँ की इसे और भी उ ेजक और रोमांचक बनाया जाए।" यह कह कर सुनीलजी ने अपनी बीबी के गाउन के ऊपर
से अंदर अपना हाथ डालकर सुनीता के बू को सहलाना और दबाना शु िकया।

सुनीता मचलती ई बोली, " ा मतलब?"

सुनीलजी ने सुनीता की िन लों को अपनी उँ गिलयों म िलया और उ दबाते ए बोले, "हनी, हमने ज ूजी को आपको पढ़ाने के
िलए जो योगदान िदया है उसके बदले म कुछ भी तो नही ं िदया। हाँ यह सच है की उ ोंने भी कुछ नही ं माँगा। ना ही उ ोंने कुछ
माँगा और नाही हम उ कुछ दे पाए ह। तुम भी अ ी तरह जानती हो की ज ूजी से हम गलती से भी पैसों की बात नही ं कर
सकते। अगर उ पता लगा की हमने ऐसा कुछ सोचा भी था तो वह ब त बुरा मान जाएं गे।

िफर हम कर तो ा कर? तो मने एक बात सोची है। पता नही ं तुम मेरा समथन करोगी या नही ं।

हम दोनों यह जानते ह की ज ूजी वाकई तुम पर िफ़दा ह। यह हकीकत है और इसे िछपाने की कोई ज रत नही ं है। मुझे इस
बात पर कोई एतराज नही ं है। हम जवान ह और एक दू सरे की बीबी या शौहर के ित कुछ थोड़ा बहोत शारी रक आकषण होता है
तो मुझे उसम कोई बुराई नही ं लगती।

अपने पित की ऐसे बहकाने वाली बात सुनकर सुनीता की साँसे तेज हो गयी ं। उसे डर लगा की कही ं उसके पित को सुनीता की
ज ूजी के साथ िबतायी ई उस सुबह का कुछ अंदाज तो नही ं हो गया था? शायद वह बातों ही बातों म इस तरह उसे इशारा कर
रहे थे। सुनीलजी ने शायद सुनीता की हालत दे ख नही।ं

अपनी बात चालु रखते ए वह बोले, "म ऐसे कई कप को जानता ँ जो कभी कभार आपसी सहमित से या जानबूझ कर
अनजान बनते ए अपनी बीबी या शौहर को दू सरे की बीबी या शौहर से शारी रक स रखने दे ते ह। िफरभी उनका घरसंसार
बिढ़या चलता है, ूंिक वह अपने पित या प ी को बहोत ार करते ह। उ अपने पित या प ी म पूरा िव ास है की जो हो रहा है
वह एक जोश और शारी रक उफान का नतीजा है। व चलते वह उफान शांत हो जाएगा। इस कारण जो हो रहा है उसे सहमित
दे ते ह या िफर जानते ए भी अपने शोहर या बीबी की कामना पूित को ान म रखे ए ऑख ं मूँद कर उसे नजरअंदाज करते ह।

ज ूजी तु ारी कंपनी ए जॉय करते ह यह तो तुम भी जानती हो। म चाहता ँ की इस टू र म तुम ज ूजी के करीब रहो और उ
कंपनी दे कर कुछ हद तक उनके मन म तु ारी कंपनी की जो इ ा है उसे पूरी करो। अगर तु ज ूजी के ित शारी रक
आकषण ना भी हो तो यह समझो की तुम कुछ हद तक उनका ऋण चुका रही हो।"

पित की बात सुनकर सुनीता गरम होने लगी। सुनीता के पित सुनीता को वह पाठ पढ़ा रहे थे िजसम सुनीता ने पहले ही िड ी हािसल
कर ली थी। उसके बदन म ज ूजी के साथ िबतायी सुबह का रोमांच कायम था। वह उसे भूल नही ं पा रही थी। अपने पित की यह
बात सुन कर सुनीता की चूत गीली हो गयी। उसम से रस रसने लगा। सुनीता ने पित सुनील के पायजामे का नाड़ा खोला और उसम
हाथ डाल कर वह अपने पित का ल सहलाने लगी। तब उसे ज ूजी का मोटा और लंबा ल जैसे अपनी आँ खों के सामने
िदखने लगा।

अनायास ही सुनीता अपने पित के ल के साथ ज ूजी के ल की तुलना करने लगी। सुनीलजी का ल काफी लंबा और मोटा
था और जब तक सुनीता ने ज ूजी का ल नही ं महसुस िकया था तब तक तो वह यही समझ रही थी की अपने पित सुनीलजी के
ल िजतना लंबा और मोटा शायद ही िकसी मद का ल होगा। पर ज ूजी का ल दे खने के बाद उसकी गलतफहमी दू र हो
गयी थी। हो सकता है की ज ूजी के ल से भी लंबा और मोटा िकसी और मद का ल हो। पर सुनीता यह समझ गयी थी की
िकसी भी औरत की पूणतयः कामुक संतुि के िलए के िलए ज ूजी का ल ना िसफ काफी होगा ब शु शु म काफी
क सम भी हो सकता है। यही बात ोितजी ने भी तो सुनीता को कही थी।

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अपनी कामुकता को िछपाते ए ी सुलभ ल ा के नखरे िदखाते ए सुनीता ने अपने पित के ल को िहलाना शु िकया और
बोली, "दे खो जानू! मुझसे यह सब मत करवाओ। मुझे तुम अपनी ही रहने दो। तुम जो सोच रहे या कह रहे हो ऐसा सोचने से या
करने से गड़बड़ हो सकती है। तुम ज ूजी को तो भली भांित जानते हो ना? तु तो पता है, उस िदन िसनेमा हॉल म ा आ था?

तु ारे ज ूजी िकतने उ ेिजत हो गए थे और मेरे साथ ा ा करने की कोिशश कर रहे थे और म भी उ रोक नही ं पा रही
थी? वह तो अ ा था की हम सब इतने बड़े हॉल म सब की नज़रों म थे। वरना पता नही ं ा हो जाता? हाँ म यह जानती ँ की तुम
ोितजी पर बड़ी लाइन मार रहे हो और उ अपने चंगुल म फाँसने की कोिशश कर रहे हो। तो म तु पूरी छूट दे ती ँ की यिद
उन दोनों को इसम कोई आपि नही ं है तो तुम खूब उनके साथ घूमो िफरो और जो चाहे करो। मुझे उसम कोई आपि नही ं है।"

सुनीता की धड़कन तेज हो गयी थी ं। वह अपने पित के ऊपर चढ़ गयी। उनके हो ँठों पर अपने हो ँठ रख कर सुनीता उनको गहरा
चु न करने लगी। सुनीता का अपने आप पर काबू नही ं रख पा रही थी।

पर सुनीता को आ खर अपने आप पर िनय ण तो रखना ही पडे गा। उसने अपने आपको स ालते ए कहा, "जहां तक ज ूजी का
ऋण चुकाने का सवाल है तो जैसे आप कहते हो अगर ोितजी को एतराज नही ं हो तो म ज ूजी का पूरा साथ दू ं गी, पर तुम मुझसे
यह उ ीद मत रखना की म उससे कुछ ादा आगे बढ़ पाउं गी। तुम मेरी मँशा और मज़बूरी भली भाँती जानते हो।"

सुनील ने िनराशा भरे र म कहा, "हाँ म जानता ँ की तुम अपनी माँ से वचनब हो की तुम िसफ उसीको अपना सव अपण
करोगी जो तुम पर जान ोछावर करता है। खैर तुम उ कंपनी तो दे ही सकती हो ना?"

सुनीता ने अपने पित की नाक, कपाल और बालों को चु न करते ए कहा, अरे भाई कंपनी ा होती है? हम सब साथ म ही तो
होंगे ना? तो िफर म उ कैसे कंपनी दू ं गी? कंपनी दे ने का तो सवाल तब होता है ना अगर वह अकेले हों?"

सुनील ने अपनी प ी के मदम कू ों पर अपनी हथेली फेरते ए और उसकी गाँड़ के गालो ँ को अपनी उँ गिलयों से दबाते ए
कहा, "अरे मेरी बुद्धू बीबी, मेरे कहने का मतलब है िदन म या इधर उधर घूमते ए, जब हम सब अलग हों या साथ म भी हों तब
भी तुम ज ूजी के साथ रहना , म ोितजी के साथ र ंगा। हम हमारा म बदल दगे। रात म तो िफर हम पित प ी रोज की तरह
एक साथ हो ही जाएं गे ना? इसम तु कोई आपि तो नही ं?"

सुनीता ने टे ढ़ी नजरों से अपने पित की और दे खा और शरारत भरी आँ ख नचाते ए पूछा, " ों िमयाँ? रात को ा ज रत है
अपनी बीबी के पास आने की? रात को भी अपनी ोित के साथ ही रहना ना?"

सुनीलजी ने भी उसी लहजे म जवाब दे ते ए कहा, "अ ा, मेरी ारी बीबी? रात म तुम मुझे ोितजी के साथ रहने के िलए कह
कर कही ं तुम अपने ज ूजी के साथ रात गुजारने का ान तो नही ं बना रही हो?"

अपने पित की वही शरारत भरी मु ान और करारा जवाब िमलने पर सुनीता कुछ झप सी गयी। उसके गाल शम से लाल हो गए।
अपनी उलझन और शिमदगी िछपाते ए सुनील की कमर म एक ह ाफु ा नकली घूँसा मारती ई अपनी आँ ख िनची ं करते ए
सुनीता बोली, " ा बकते हो? मेरा कहने का मतलब ऐसा नही ं था। खैर, मजाक अपनी जगह है। मुझे ज ूजी को कंपनी दे ने म
ा आपि हो सकती है? मुझे भी उनके साथ रहना, घूमना िफरना, बात करना अ ा लगता है। आप जैसा कह। म ज र ज ूजी
को कंपनी दू ं गी। पर रात म म तु ारे साथ ही र ंगी हाँ!"

सुनीलजी ने अपनी बीबी सुनीता को अपनी बाँहों म भरते ए सुनीता का गाउन दोनों हाथों म पकड़ा और कहा, "अरे भाई, वह तो
तुम रहोगी ही। म भी तो तु ारे बगैर अपनी रात उन वािदयों म कैसे गुजा ं गा? मुझसे तो तु ारे बगैर एक रात भी गुजर नही ं
सकती।"

सुनीता ने अपने पित को उलाहना दे ते ए कहा, "अरे छोडो भी! तु मेरी िफ़ कहाँ? तु तो िदन और रात ोितजी ही नजर आ
रही है। भला उस सुंदरी के सामने तु ारी सीधी सादी बीबी कहाँ तु आकषक लगेगी?"

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सुनील ने शरारत भरे लहजे म अपने पित के ल की और इशारा करते ए कहा, "अ ा? तो यह जनाब वैसे ही थोड़े अटशन म
खड़े ह?"

सुनीता ने अपने पित की नाक पकड़ी और कहा, " ा पता? यह जनाब मुझे दे ख कर या िफर कोई दू सरी ारी सखी की याद को
ताजा कर अ डम हो कर उछल रहे ह।"

सुनीता की शरारत भरी और से ी बात और अदा के साथ अपनी बीबी की कोमल उँ गिलयों से सेहलवाने के कारण सुनील का
ल खड़ा हो गया था। उसके िछ म से उसका पूवरस ाव करने लगा। सुनील ने दोनों हाथो ँ से सुनीता का गाउन ऊपर उठाया।

सुनीता ने अपने हाथ ऊपर उठा कर अपना गाउन अपने पित सुनील को िनकाल फकने िदया। सुनीता ने उस रात गाउन के िनचे
कुछ भी नही ं पहना था। उसे पता था की उस रात उसकी अ ी खासी चुदाई होने वाली थी। अपने पित का कड़क ल अपने
हाथों म िहलाते ए पित के कुता पयजामे की और ऊँगली िदखाते ए कहा, "तुम भी तो अपना यह प रवेश उतारो ना? म गरम हो
रही ँ।"

सुनील अपनी कमिसन बीबी के करारे फुले ए नों को, उसके ऊपर िबखरे ए दाने सामान उभरी ई फुंिसयों से म त
चॉकलेटी रं गकी एरोला के बीचो िबच गुलाबी रं ग की फूली ई िन लो ँ को दबाने और मसलने का अद् भुत आनंद ले रहे थे। अपना
दु सरा हाथ सुनील ने अपनी बीबी की चूत पर हलके हलके िफराते ए कहा, "गरम तो तुम हो रही हो। यह मेरी उँ गिलयाँ महसूस
कर रही ं ह। यह गम िकसके कारण और िकसके िलए है?"

सुनीता बेचारी कुछ समझी नही ं या िफर ना समझने का िदखावा करती ई बोली, "म भी तो यही कह रही ँ, तुम अब बात ना करो,
चलो चढ़ जाओ और ज ी चोदो। हमारे पास पूरी रात नही ं है। कल सुबह ज ी उठना है और िनकलना है।" सुनीता पित का ल
फुत से िहलाने लगी। उसकी ज रत ही नही ं थी। ूंिक सुनील का ल पहले ही फूल कर खड़ा हो चुका था।

जैसे ही सुनील ने अपनी दो उं गिलयां अपनी बीबी सुनीता की चूत म डाली ं तो सुनीता का पूरा बदन मचल उठा। सुनील अपनी बीबी
की चूत की सबसे ादा संवेदनशील चा को अपनी उँ गिलयों से इतने ार और द ता से दबा और मसला रहे थे की सुनीता िबन
चाहे ही अपनी गाँड़ िब रे पर रगड़ ने लगी। सुनीता ने मुंह से कामुक िससका रयां िनकलने लगी ं।

सुबह ज ूजी से आ शारी रक आधा अधूरा ार भी सुनीता को याद आनेसे पागल करने के िलए काफी था। उस पर अपने पित
से सतत ज ूजी की बात सुन कर उसकी उ ेजना कने का नाम नही ं ले रही थी। सुनीता अब सारी ल ा की मयादा लाँघ चुकी
थी। सुनीता ने अपने पित का चेहरा अपने दोनों हाथों म पकड़ा और उसे अपने नों पर रगड़ते ए बोली, "सुनील, मुझे ादा
परे शान मत करो। ीज मुझे चोदो। अपना ल ज ी ही डालो और उसे मेरी चूत म खूब रगड़ो। ीज ज ी करो।"

सुनील भी तो अपनी प ी को चोदने के िलए पागल हो रहा था। सुनील ने झट से अपना पयजामा और कुरता िनकाल फका और
फुत से अपनी बीबी की टाँग चौड़ी कर के उसके िबच म अपनी बीबी की ारी छोटी सी चूत को बड़े ार से िनहारने लगा। सालों
की चुदाई के बावजूद भी सुनीता की चूत का िछ वैसा ही छोटा सा था। उसे चोद कर सुनील को जो अद् भुत आनंद आता था वह
वही जानता था। सुनीता को जब सुनील चोदता था तो पता नही ं कैसे सुनीता अपनी चूत की दीवारों को इतना िसकुड़ लेती थी की
सुनील को ऐसा लगता था जैसे उसका ल सुनीता की चूत म से बाहर ही नही ं िनकल पायेगा।

सुनीता की चूत चुदवाते समय अंदर से ऐसी गजब की फड़कती थी की सुनील ने कभी िकसी और औरत की चूत म उसे चोदते
समय ऐसी फड़कन नही ं महसूस की थी।

सुनील के मन की इ ा थी की जो आनंद वह अनुभव कर रहा था उस आनंद को कभी ना कभी ज ूजी भी अनुभव कर। पर
सुनील यह भी जानता था की उसकी बीबी सुनीता अपने इरादों म प ी थी। वह कभी भी िकसी भी हालत म ज ूजी या िकसी
और को अपनी चूत म ल घुसा ने की इजाजत नही ं दे गी। इस जनम म तो नही ं ही दे गी।

66
सुनील ने िफर सोचा, ा पता उस बफ ले और रोमांिटक माहौल म और उन खूबसूरत वािदयों म शायद सुनीता को ज ूजी पर
तरस ही आ जाये और अपनी माँ को िदया आ वचन भूल कर वह ज ूजी को उसे चोदने की इजाजत दे दे। पर यब सब एक
िदलासा ही था। सुनीता वाकई म एक िज ी राजपूतानी थी। सुनील यह अ ी तरह जानता था। सुनीता ज ूजी के िलए कुछ भी कर
सकती थी पर उ अपनी चूत म ल नही ं डालने दे गी।

बस ज ूजी का ल सुनीता की चूत म डलवाने का एक ही त रका था और वह था सुनीता को धोखेम रख कर उसे चुदवाये। जैसे:
उसे नशीला पदाथ खला कर या शराब के नशे म टु कर या िफर घने अँधेरे म धोखे से सुनीता को सुनील पहले खुद चोदे और िफर
धीरे से ज ूजी को सुनीता की टांगों के िबच ले जाकर उनका ल अपनी प ी की चूत म डलवाये। सुनीता ज ूजी को अपना पित
समझ कर चुदवाये तब तो शायद यह हो सकता था। पर ऐसा करना बड़ा ही खतरनाक हो सकता था। सुनीता ज ूजी का ल को
महसूस कर शायद समझ भी जाए की वह उसके पित का ल नही ं है। सुनील कतई भी इसके प म नही ं था और वह ऐसा सोचने
के िलए भी अपने आपको कोसने लगा।

खैर, ज ूजी से अपनी बीबी सुनीता को चुदवाने की बात सोचकर सुनील का ल भी फुफकारने लगा। सुनील ने िफर एक नजर
अपनी बीबी सुनीता की चूत को दे खा और धीरे से अपना ल सुनीता की दोनों टांगों के िबच रखा और हलके हलके उसे उसकी
सतह पर रगड़ने लगा। सालों के बाद भी सुनील अपनी बीबी की चूत का कायल था। पर वह यह भी जानता था की सुनीता की चूत
म पहली बार ल डालते समय उसे काफी सावधानी रखनी पड़ती थी। चूत का िछ छोटा होने के कारण ल को पहेली बार चूत
म घुसाते समय उसे अपने पूव रस को ल पर अ ी तरह लपेट कर उसे ि बना कर िफर धीरे धीरे सुनीता के ेम िछ म
घुसाना और िफर सुनीता की चूत की सुरंग म उसे आगे बढ़ाना था। थोड़ी सी भी ज ी सुनीता को काफी दद दे सकती थी।

अपने पित सुनील की उलझन सुनीता दे ख रही थी। सुनीता ने ार से अपने पित का ल अपनी उँ गिलयों म पकड़ा और खुद ही
उसे अपनी चूत की होठो ँ पर हलके से रगड़ कर उ थोड़ा खोल कर ल के िलए जगह बनायी और अपने पित का ल अपनी
चूत म घुसेड़ कर अपने पित को इं िगत िकया की वह अब धीरे धीरे उसे अंदर घुसेड़े और और उसे चोदना शु करे ।

सुनीलजी ने अपना ल घुसेड़ कर हलके हलके ध ा दे कर अपनी बीबी को चोदना शु िकया। शु आत का थोड़ा मीठा दद
महसूस कर सुनीता के मुंह से हलकी िससका रयां िनकलने लगी ं। धीरे धीरे सुनीलजी ने अपनी प ी सुनता को चोदने के गित तेज
की। सुनीता भी साथ साथ अपना पेडू ऊपर की और उठाकर अपने पित को चोदने म सहायता करने लगी।

सुनीता की चूत ि ता से भरी ई थी और इस कारण उसे ादा दद नही ं आ। सुनील जी को अपनी बीबी को चोदे ए कुछ िदन
ए थे और इस िलए वह बड़े मूड़ म थे। सुनीलजी और उनकी बीबी सुनीता के िबच म ए ज ूजी के वातालाप के कारण दोनों पित
प ी काफी गरम थे। सुनीता अपने मन म सोच रही थी की उसकी चूत म अगर उस समय ज ूजी का ल होता तो शायद उसकी
तो चूत फट ही जाती।

सुनील जोर शोर से अपनी बीबी की चूत म अपना ल पेल रहा था। सुनीता भी अपने पित को पूरा साथ दे कर उ , "जोर से...
और डालो, मजा आ गया..." इ ािद श ों से ो ािहत कर रही थी। सुनीलजी की जाँघ सुनीता की जाँघों के िबच टकरा कर "फ
फ " आवाज कर रही थी ं। सुनीलजी का अंडकोष सुनीता की गाँड़ को जोर से ट र मार रहा था। सुनीता कभी कभी अपने पित
का अंडकोष अपने हाथों की उँ गिलयों म पकड़ कर सहलाती रहती थी िजसके कारण सुनील का उ ाद और भी बढ़ जाता था।

अपनी बीबी को चोदते ए हाँफते ए सुनीलजी ने कहा, "डािलग, हम यहां एक दू सरे से ार कर रहे ह, पर बेचारे ज ूजी इतनी
रात गए अपने द र म लगे ए ह।"

सुनीताने अपने पित की बात सुनकर अपनी िज ासा को दबाने की कोिशश करते ए पूछा, " ों? ऐसा ा आ? ज ूजी इस
समय अपने द रम ों है?"

67
सुनील ने कहा, "हमारे दे श पर पडोशी दे श की नजर ठीक नही ं है। दे श की सेना इस व वॉर अलट पर है। पािक ानी जासूस
भारतीय सेना की गितिविधयां जानने के िलए कुछ भी कर सकते ह। मुझे डर था की ऐसी पर थितयों म कही ं हमारा यह ो ाम
आ खरी व म र ना हो जाए।"

यह सुन कर सुनीता को एक झटका सा लगा। सुनीता को उस एक ह ेमज ूजी के करीब रहने का एके सुनहरा मौक़ा िमल रहा
था। अगर वह िटप कसल हो गयी तो यह मौक़ा छूट जाएगा, यह डर उसे सताने लगा। अपने पित को चुदाई म रोकते ए सुनीता ने
पूछा, " ा ऐसा भी हो सकता है?"

सुनील जी ने अपना ल अपनी बीबी सुनीता की चूत म ही रखते ए कहा, "ऐसा होने की संभावना नही ं ह ूंिक अगर किसल
होना होता तो अब तक हो जाता। दू सरे मुझे नही ं लगता की अभी लड़ाई का पूरा माहौल है। शायद दोनों दे श एक दु सरे की तैयारी
का जायजा ले रह ह। पर सरहद की दोनों पार जासूसी बढ़ गयी है। एक दू सरे की सेना की हलचल जानने के िलए दोनों दे श के
अिधकारी कोई कसर नही ं छोड़ रहे। सुर ा प कार होने के नाते मुझे भी िमिन ी म बुलाया गया था। चूँिक हमारे सू ों से मुझे सेना
की हलचल के बारे म काफी कुछ पता होता है इस िलए मुझे िहदायत दी गयी है की सेना की हलचल के बारे म म जो कुछ भी
जानता ँ उसे कािशत ना क ँ और नाही िकसीसे शेयर क ँ ।"

यह सुनकर की उनका ो ाम किसल नही ं होगा, सुनीता की जान म जान आयी। सुनीता उस काय म को ज ूजी से करीब आने
का मौक़ा िमलने के अलावा पहाड़ो म टैिकंग, निदयों म नहाना, सु र वािदयों म घूमना, जंगल म रात को कप फायर जला कर उस
आग के इद िगद बैठ कर नाचना, गाना, िडं क करना, खाना इ ािद रोमांचक काय म को िमस करना नही ं चाहती थी।

सुनीता ने अपने पित को चुदाई जारी करने के िलए अपना पेडू ऊपर उठा कर संकेत िदया। सुनीलजी ने भी अपना ल िफर से
सुनीता की चूत म पेलना शु िकया। दोनों पित प ी कामुकता की आग म जल रहे थे। अगले सात िदन कैसे होंग उसकी क ना
दोनों अपने अपने तरीके से कर रहे थे। सुनीता ज ूजी के बारे म सोच रही थी और सुनीलजी ोित के बारे म।

##

सुबह होते ही सब नहा धो कर े श होकर टैन म ले जाने के िलए ना ा बगैरह बची खुची तैयारी होते ही सब कपडे पहन कर
तैयार होने लगे। सुनीता ने अपने पित के आ ह पर पर राओं को तोड़ कर कै ी (ल ी सी शोट या हाफ पे ) पहनी। ऊपर से
खुला टॉप पहना था। टॉप गले के ऊपर से काफी खुला आ था पर नों के िबलकुल िनचे तना आ बंधा था। बालों को एक प
से बाँध कर बाकी खुला छोड़ रखा था।

शाट पहनने के कारण सुनीता की सुआकार करारी जाँघ कामुक और ललचाने वाला नज़ारा पेश कर रही थी। सुनीता ने पहनी ई
कै ी (दे सी भाषा म कह तो च ी) िनचे से काफी खुली थी, पर घुटने से थोड़ी ही ऊपर तक थी। सुनील ने िपछली शाम सुनीता के
िलए एक वेणी खरीदी थी उसे सुनीता ने बालों म लटका रखा था। हो ँठों की कुदरती लािलमा को हलकी सी िलप क से उनका
रसीलापन िदख रहा था। सुनीता के गाल वैसे ही काफी लािलमा भरे थे। उ और लािलमा आव कता नही ं थी।

तैयार हो कर जब सुनीता कमरे से बाहर आयी और दोनों टाँग िमलाकर थोड़ा टेढ़ी होकर अपनी पतली कमर और उभरे ए कू ों
को उकसाने वाली से ी मु ा म खड़ी हो कर जब उसने अपने पित को पूछा, "म कैसी लग रही ँ?"

सुनील ने अपनी बीबी को अपनी बाहों म लेकर, उसके ाउज म से बाहर उभरे ए नों पर अपना हाथ रख कर, उ ाउज
के ऊपर से ही सहलाते ए सुनीता के होठ
ँ ों पर हलका सा चु न करते ए कहा, "पूरी तरह से खाने लायक। तु दे ख कर मुझे
तु खाने को मन करता है।"

सुनीता ने अपने पित को ह ा सा ध ा मारते ए टे ढ़ी नजर कर कहा, "शम करो। कल रात तो तुम मुझे पूरा का पूरा िनगल गए
थे। पेट नही ं भरा था ा?"

सुनील ने भी उसी लहजे म जवाब िदया, "वह तो िडनर था। म तो ना े की बात कर रहा ँ।"

68
सुनीता ने अपने पित के हो ँठों से हो ँठ िचपकाकर उ एक गहरा चु न िकया। िफर कुछ दे र बाद हट कर नटखट अदा करती ई
बोली, "ना े म आज यही िमलेगा। इससे ही काम चलाना पडे गा। दु पहर म लंच तो नही ं दे पाउं गी, पर रात को िफर िडनर करने
की इ ा हो तो कुछ जुगाड़ करना पड़े गा। चलती टैन म क ाटमट म तु खलाना थोड़ा मु ल है। पर जनाब पहले यह तो
दे खो की कही ं जे जे (ज ूजी और ोितजी) घर से बाहर िनकले या नही ं?"

सुनीता ने खड़की म से झांका तो दे खा की ज ूजी और ोितजी अपना सामान उठा कर िनचे उतर ही रहे थे। िनचे टै ी खड़ी
थी।

...

सुबह के पांच बजे होंगे। भोर की हलकी लािलमा छायी ई थी। हवा म थोड़ी सी ठ की खुशनुमा झलक थी। सुनील ने जब ोित
जी को दे खा तो दे खते ही रह गए। ोित ने फूलों की िडज़ाइन वाला टॉप पहना था और िनचे ट िजसका छोर घुटनो ँ से थोड़ा
ादा ही ऊपर तक था पहन रखा था।

उनके ाउज के िनचे और ट के बे के िबच का खुला आ बदन िकसी भी मद को पागल करने के िलए काफी था। पतली
कमर, पेट की करारी चा, नािभ म िबच थत नािभ बटन और िफर पतली कमर के िनचे कू ों की और का फैलाव और िफर
काितल सी कमल की डं डी के सामान सुआकार जाँघ िकसी भी लोलुप मद की आँ खों को अपने ऊपर से हटने नही ं द ऐसी कामुक
थी ं।

सुनीलजी के िनचे उतरते ही दोनों पित दू सरे की प ी को अपनी प ी की नजर बचाकर चोरी छु पके से ताकने की होड़ म लगे थे।
सुनीलजी ने आगे बढ़कर कनल साहब के हाथ म हाथ दे ते ए उ "गुड मॉिनग" कहा और िफर ोित से हाथ िमलाकर उनको
ह ा सा औपचा रक आिलंगन िकया। उनका मन तो करता था की ोितजी को कस के अपनी बाहों म ले, पर बाकी लोगों की
नजर और आसपास म खड़िकयों से झाँक रहे िज ासु पड़ोिसयों का ाल रखते ए ऐसा करने का िवचार मु वी रखा।

ज ूजी ने पर िफर भी सुनीता को कस कर अपनी बाहों म िलया और कहा, "तुम बला की खूबसूरत लग रही हो।" और िफर
मज़बूरी म अपनी बाहों म से आजाद िकया।

उ टै ीम े शन प ँचने म करीब डे ढ़ घंटा लगा। टैन ेटफाम पर खड़ी थी।

टू टायर ए.सी. क ाटमट म ६ बथ थी ं। चार बथ ज ूजी, ोितजी, सुनीलजी और सुनीता की थी ं। अपना और ज ूजी और
ोितजी का सामान लगाने के बाद सुनील ने दे खा की साइड की ऊपर की बथ पर एक करीब २५ वष की कमिसन लड़की थी।
लड़की का सामान बथ के िनचे लगाने के िलए एक जवान साथ म िलए एक ौढ़ से आम अफसर दा खल ए।

उस ौढ़ आम अफसर ने अपना प रचय ि गेिडयर ख ा ( रटायड) के नाम से िदया। उ ोंने बताया की वह युवा लड़की, जो की
उनकी बेटी से भी कम उ की होगी, वह उनकी प ी थी।

सब इस उधेड़बुन म थे की इतने ौढ़ आम अफसर की बीबी इतनी कम उ की कैसे हो सकती थी। खैर कुछ दे र बाद उन ौढ़
आम अफसर के साथ सबकी 'हेलो, हाय' ई और तब सबको पता चला ि गेिडयर ख ा को अपनी प ी के साथ रज़वशन नही ं
िमल पाया था। उ दो क ाटमट छोड़ कर रज़वशन िमला आ था। कुछ दे र तक बात करने के बाद जब टैन छूटने वाली थी तब
ि गेिडयर ख ा अपने क ाटमट म चले गए।

उस के कुछ ही समय बाद क ाटमट म साइड वाली िनचे की बथ पर िजनका रज़वशन था वह युवा आम अफसर (िजसके
यूिनफाम पर लगे िसतारो ँ से पता चला की वह क ान थे) दा खल ए और िफर उ ोंने अपना सामान लगाया। कनल की उ
मु ल से प ीस या छ ीस साल की होगी। लगता था की वह अभी अभी रा ीय सुर ा अकादमी से पास ए थे। उनके सामने ही
युवा लड़की नीतू बैठी ई थी। दोनों ने एक दू सरे से "हेलो, हाय" िकया।

69
टैन ने े शन छोड़ा ही था की कनल साहब, सुनील, ोित और सुनीता के सामने एक काला कोट और सफ़ेद पतलून पहने टी टी
साहब उप थत ए। ह ाक ा बदन, फुले ए गाल, ल े बाल, बढ़ी ई दाढ़ी और काफी लंबा कद। वह टी टी कम और कोई
िफ के िवलन ादा िदख रहे थे। खैर उ ोंने सब का िटकट चेक िकया। टी टी साहब कुछ ादा ही बात करने के मूड म लग
रहे थे। उ ोंने जब सुनीलजी से उनका गंत थान (कहाँ जा रहे हो?) पूछा तो कनल साहब ने और सुनीलजी ने कोई जवाब नही ं
िदया। जब िकसी ने कुछ नही ं बोला तो सुनीता ने टी टी साहब को कहा, "हम ज ू जा रहे ह।"

टी टी साहब फ़ौरन सुनीता की और मुड़े और बोले, "हां हाँ वह तो मुझे आप के िटकट से ही पता चल गया। पर आप ज ू से आगे
कहाँ जा रहे ह?"

जब िफर सुनीलजी और कनल साहब से जवाब नही ं िमला तब टी टी ने सुनीता की और िज ासा भरी नजरों से दे खा। िफर ा था?
सुनीता ने उनको सारा ो ाम जो उसको पता था सब टी टी साहब को बता िदया। सुनीता ने टी टी को बताया की वह सब आम के
टेिनंग कप म ज ू से काफी दू र एक टेिनंग कप म जा रहे थे। सुनीता को जब टी टी ने उस जगह का नाम और वह जगह ज ू से
िकतनी दु री पर थी पूछा तो सुनीता कुछ बता नही ं पायी। सुनीता को उस जगह के बारे म ादा पता नही ं था। चूँिक कनल साहब
और सुनीलजी बात करने के मूड म नही ं थे इस िलए टी टी साहब थोड़े मायूस से लग रहे थे। उस समय ोितजी नी ंद म थी ं।

सुनील, सुनीता, कनल जसवंत िसंह और ोितजी का िटकट चेक करने के बाद टी टी साहब दू सरे क ाटमट म चले गए। उ ोंने
उस समय और िकसी का िटकट चेक नही ं िकया।

टी टी के चले जाने के बाद सब ने एक दू सरे को अपना प रचय िदया। साइड की िनचे की बथ पर थत युवा अफसर क ान कुमार
थे। वह भी ोितजी, ज ूजी, सुनील और सुनीता की तरह टेिनंग कप म जा रहे थे।

दे खते ही दे खते दोनों युवा: क ान कुमार और नीतू ख ा करीब करीब एक ही उ के होने के कारण बातचीत म मशगूल हो गए।
नीतू वाकई म िनहायत ही खूबसूरत और कटीली लड़की थी। उसके अंग अंग म मादकता नजर आ रही थी। क ान कुमार को
िमलते ही जैसे नीतू को और कुछ नजर ही नही ं आ रहा था। कुमार का कसरत से कसा आ बदन, मांसल बाज़ूओ ं के ायु और
पतला गठीला पेट और कमर और काफी लंबा कद दे खते ही नीतू की आँखों म एक अजीब सी चमक िदखी।

कुमार का िदल भी नीतू का गठीला बदन और उसकी मादक आँ ख दे खते ही छलनी हो गया था। नीतू के अंग अंग म काम िदख रहा
था। नीतू की मादक हँसी, उसकी बात करते समय की अदाएं , उसके रसीले हो ँठ, उसके घने काले बाल, उसकी नशीली सुआकार
काया क ान को भा गयी थी। क ान कुमार की नजर नीतू के कुत म से कूद कर बाहर आने के िलए बेताब नीतू के बू पर बार
बार जाती रहती थी। नीतू अपनी चु ी बार बार अपनी छाती पर डाल कर उ छु पा ने कीनाकाम कोिशश करती पर हवाका झोंका
लगते ही वह खसक जाती और उसके उरोज कपड़ों के पीछे भी अपनी उ ं डता िदखाते।

नीतू का सलवार कुछ ऐसा था की उसके गले के िनचे का उसके नो ँ का उभार छु पाये नही ं छु पता था। नीतू की गाँड़ भी िनहायत
ही से ी और बरबस ही छू ने का मन करे ऐसी करारी िदखती थी। बेचारा कुमार उसके िबलकुल सामने बैठी ई इस रित को कैसे
नजर अंदाज करे ?

सुनीता ने दे खा की कुमार और नीतू पहली मुलाक़ात म ही एक दू सरे के दीवाने हों ऐसे लग रहे थे। दोनों की बात थमने का नाम नही ं
ले रही ं थी ं। सुनीता अपने मन ही मन म मु ाई। यह िनगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है। जब दो युवा एकदू सरे को पसंद करते ह तो
दु िनया की कोई भी ताकत उ िमलने से नही ं रोक सकती। सुनीता को लगा की कही ं यह पागलपन नीतू की शादीशुदा िजंदगी को
मु ल म ना डाल दे ।

कनल साहब और सुनील भी उन दो युवाओ ँ की हरकत दे ख कर मूंछों म ही मु ु रा रहे थे। उनको भी शायद अपनी जवानी याद
आ गयी।

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सुनील ोितजी की बथ पर बैठे ए थे। ोितजी खड़की के पास नी ंद म थी ं। ज ूजी भी सामने की खड़की वाली सीट पर थे
जबिक सुनीता बथ की गैलरी वाले छोर पर बैठी थी। क ाटमट का ए.सी. काफी तेज चल रहा था। दे खते ही दे खते क ाटमट
एकदम ठं डा हो गया था। सुनीता ने च र िनकाली अपने बदन पर डाल दी। च र का दू सरा छोर सुनीता ने ज ूजी को िदया जो
उ ोंने भी अपने कंधे पर डाल दी। थोड़ी ही दे र म ज ूजी की आँ ख गहरा ने लगी ं, तो वह पॉंव ल े कर लेट गए। च र के िनचे
ज ूजी के पॉंव सुनीता की जाँघों को छू रहे थे।

क ान कुमार और नीतू एक दू सरे से काफी जोश से पर बड़ी ही धीमी आवाज म बात कर रहे थे। िबच िबच म वह एक दू सरे का
हाथ भी पकड़ रहे थे यह सुनीता ने दे खा। उन दोनों की बातों को छोड़ क ाटमट म करीब करीब स ाटा सा था। टैन छूटे ए
करीब एक घंटा हो चुका था तब एक और िटकट िनरी क पुरे क ाटमट का िटकट चेक करते ए सुनीता, सुनील, ज ूजी और
ोित जी के सामने खड़े ए और िटकट माँगा।

उन सब के िलए तो यह बड़े आ य की बात थी। कनल साहब ने िटकट चेकर से पूछा, "टी टी साहब, आप िकतनी बार िटकट चेक
करगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर िटकट चेक कर गए ह। आप एक ही घंटे म दू सरे टी टी ह। यह कैसे आ?"

टी टी साहब आ य से कनल साहब की और दे ख कर बोले, "अरे भाई साहब आप ा कह रहे ह? इस क ाटमट ही नही ं, म सारे
ए.सी.िड ों के िटकट चेक करता ँ। इस टैन म ए.सी. के छे िड े ह। इन िड ों के िलए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नही ं है।
शायद कोई बह िपया आपको बुद्धू बना गया। ा आपके पैसे तो नही ं गए ना?"

सुनीलजी ने कहा, "नही,ं कोई पैसे हमने िदए और ना ही उसने मांगे।"

टी टी साहब ने चैन की साँस लेते ए कहा, " चलो, अ ा है। ी म मनोरं जन हो गया। कभी कभी ऐसे ब िपये आ जाते ह। िचंता
करने की कोई ज रत नही ं है।" यह कह कर टी टी साहब सब के िटकट चेक कर चलते बने।

सुनील ने ज ूजी की और दे खा। ज ूजी गहरी सोच म डू बे ए थे। वह चुप ही रहे। सुनीता चुपचाप सब कुछ दे खती रही। उसकी
समझ म कुछ नही ं आ रहा था। सुनीता ने अपने िदमाग को ादा जोर ना दे ते ए, उस युवा नीतू लड़की को "हाय" िकया । उस को
अपने पास बुलाया और अपने बाजू म िबठाया और बातिचत शु ई। सुनीता ने अपने बैग म से कुछ ू ट्स िनकाल कर नीतू को
िदए। नीतू ने एक संतरा िलया और सुनीता और नीतू बातों म लग गए।

सुनीता की आदत अनुसार सुनीता और नीतू की ब त ही ज ीअ ी खासी दो ी हो गयी। सुनीता को पता लगा की उसका नाम
िमिसस नीतू ख ा था। सब नीतू के बारे म सोच ही रहे थे की ऐसा कैसे आ की इतनी कम उ की युवा लड़की नीतू की शादी
ि गेिडयर ख ा के साथ ई। सुनीता ने धीरे धीरे नीतू के साथ इतनी करीबी बना ली की नीतू पट पट सुनीता को अपनी सारी राम
कहानी कहने लगी।

नीतू के िपताजी ि गेिडयर ख ा के ऑडरली थे। उनको ि गेिडयर साहब ने ब ों की पढाई और घर बनाने के िलए अ ा खासा
कज िदया था जो वह चुका नही ं पा रहे थे। नीतू भी ि गेिडयर साहब के घर म घर का काम करती थी। ि गेिडयर साहब की बीबी के
दे हांत के बाद जब वह लड़की ि गेिडयर साहब के घर म काम करने आती थी तब ि गेिडयर साहब ने उसे धीरे धीरे उसे अपनी
शैया भिगनी बना िलया।

जब नीतू के िपताजी का भी दे हांत हो गया तो वह लड़की के भाइयों ने घर का क ा कर िलया और बहन को छोड़ िदया। नीतू
अकेली हो गयी और ि गेिडयर साहब के साथ उनकी प ी की तरह ही रहने लगी। उन के शारी रक स तो थे ही। आ खर म
उन दोनों ने लोक लाज के मारे शादी करली।

सुनीता को दोनों के िबच की उ के अंतर का उनकी शादीशुदा यौन िजंदगी पर ा असर आ यह जानने की बड़ी उ ुकता थी।
जब सुनीता ने इस बारे म पूछा तो नीतू ने साफ़ कह िदया की िपछले कुछ सालों से ि गेिडयर साहब नीतू को जातीय सुख नही ं दे
पाते थे। नीतू ने ि गेिडयर साहब से इसके बारे म कोई िशकायत नही ं की।

71
पर जब ि गेिडयर साहब उनकी उ के चलते जब िनतु को स ोग सुख दे ने म असफल रहे तो उ ोंने नीतू के िशकायत ना करने
पर भी बातों बातों म यह संकेत िदया था की अगर नीतू िकसी और मद उसे शारी रक सुख दे ने म श म हो और वह उसे स ोग
करना चाहे तो ि गेिडयर साहब उसे रोकगे नही ं। उनकी शत यह थी की नीतू को यह सब चोरी छु पी और बाहर के लोगों को ना
पता लगे ऐसे करना होगा। नीतू अगर उनको बता दे गी या इशारा कर दे गी तो वह समझ जाएं गे।

नीतू ने सुनीता को यह बताया की ि गिडयर साहब उसका बड़ा ान रखते थे और उसे बेटी या प ी से भी कही ं ादा ार करते
थे। वह हमेशा नीतू को उसकी शारीरक ज रयात के बारे म िचंितत रहते थे। उ ोंने कई बार नीतू को ो ािहत िकया था की
नीतू कोई मद के साथ शारी रक स रखना चाहे तो रख सकती थी। पर नीतू ने कभी भी इस छूट का फायदा नही ं लेना चाहा।
नीतू ने सुनीता को बताया की वह ि गेिडयर साहब से ब त खुश थी। वह नीतू को मन चािह चीज़ मुहै ा कराते थे। नीतू को
ि गेिडयर साहब से कोई िशकायत नही ं थी।

सुनीता ने भी अपनी सारी कौटु क कहानी नीतू को बतायी और दे खते ही दे खते दोनों प े दो बन गए। बात ख होने के बाद
नीतू वापस अपनी सीट पर चली गयी जहां क ान कुमार उसका बेस ी से इं तजार कर रहे थे। सुनीता की ऑंख भी भारी हो रही ं
ं सामने की सीट तक ल े िकये औरआँ ख बंद कर
थी ं। ज ूजी की ल ी टाँग उसकी जाँघों को कुरे द रही ं थी ं। सुनीता ने अपने पॉव
त ा म चली गयी।

सुनीता ने अपनी टाँग सामने की बथ पर रखी ं थी ं। जैसे ही सुनीता ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला िदया और आमने सामने की बथ
पर थोड़ी ल ी ई की उसे ज ूजी के पॉव ं का अपनी जाँघों के पास एहसास आ। ज ूजी अपने ल े कद के कारण थोड़ा सा
पॉंव लंबा करने म क महसूस कर रहे थे। सुनीता ने जब यह दे खा तो ज ूजी के दोनों पाँव अपनी गोद म ले िलए। ज ूजी ने
अपनी च ल िनचे उतार रखी थी ं। सुनीता ार से ज ूजी की टाँगों को अपनी गोद म रख कर उस पर हाथ िफरा कर ह ा सा
मसाज करने लगी। उसे ज ूजी की पाँव अपनी गोद म पाकर अ लग रहा था। वह उन िदनों को याद करने लगी जब वह अपने
ं तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नही ं जाते थे।
िपताजी के पॉव

पाँव दबाते ए सुनीता ज ूजी की और स ान और ार भरी नज़रों से दे खती रहती थी। उसे ज ूजी के पाँव अपनी गोद म रखने
म कोई भी िझझक नही ं महसूस ई। सुनीता ने भी अपनी टांग ल ी ं की ं और अपने पित सुनीलजी की गोद म रख दी ं। सुनीलजी
खराटे मार रहे थे। कुछ पल के िलए वह उठ गए और उ ोंने आँ ख खोली ं जब उ ोंने अपनी प ी की टाँग अपनी गोद म पायी ं।

उ ोंने सुनीता की और दे खा। उ ोंने दे खा की ज ूजी की टाँग उनकी प ी सुनीता की गोद म थी ं और सुनीता उ हलके से
मसाज कर रही थी। सुनीता ने दे खा की वह कुछ मु ाये और िफर आँ ख बंद कर अपनी नी ंद की दु िनया म वापस चले गए।

ोितजी तो पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थी ं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नही ं पायी ं थी ं। ोितजी ने
अपनी टाँग ल ी ं और टे ढ़ी कर रखी ं थी ं जो सुनीलजी की जाँघों को छू रही थी ं।

सुनीता आधी नी ंद म थी। उसे कुमार और नीतू की कानाफूसी आधीअधूरी सुनाई दे ती थी ं। सुनीता समझ गयी थी की कुमार नीतू को
फाँसने की कोिशश म लगा था। नीतू भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी। दरअसल नीतू और कुमार साइड वाली बथ ल ी ना करके
बथ को ऊपर उठा कर दो कुिसयां बना कर आमने सामने बैठे थे। नीतू और कुमार का प रचय हो चुका था। पर शायद नीतू ने
अपनी पूरी कहानी कुमार को नही ं सुनाई थी। नीतू ने यह नही ं जािहर िकया था की वह शादी शुदा थी।

वैसे भी नीतू को दे खने से कोई यह नही ं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। नीतू ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा िनशान नही ं लगा
रखा था। हम उ होने के अलावा एक दू सरे से पहली नजर से ही जातीय आकषण होने के कारण वह दोनों एक दू सरे से कुछ
अनौपचा रकता से बात कर रहे थे। सुनीता को जो सुनाई िदया वह कुछ ऐसा था।

कुमार: "नीतू, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।"

72
नीतू: "थक यू सर। आप भी तो हडसम हो!"

कुमार: "अरे कहाँ? अगर म आपको हडसम लगता तो आप मेरे करीब आने से ों िझझकती ं?"

नीतू: "कमाल है? म आपके करीब ही तो ँ।"

कुमार ने अपनी टांगों की नीतू की टांगों से िमलाया और बोला, "दे खो हमारे िबच इतना बड़ा फासला है।"

नीतू: "फासला कहाँ है? आप की टाँग मेरी टाँगों को टच तो कर रही ं ह।"

कुमार: "िसफ टाँग ही तो टच कर रही ं है। हमारे बदन तो दू र ह ना?"

नीतू: "कमाल है, क ान साहब! अभी हम िमले दो घंटे भी ए नही ं और आप हमारे बदन एक दू सरे से करीब आये यह ाब दे ख
रहे हो?"

कुमार: " ों भाई? ा ाब दे खने पर की कोई ितब है? और मान लो हम िमले ए एक िदन पूरा हो गया होता तो ा
होता?""

नीतू: "नही ं क ान साहब ाब दे खने पर कोई ितब नही ं है। आप ज र ाब दे खये। जब ाब ही दे खने है तो कंजूसी
कैसी? और जहां तक िमलने के एक िदन के बाद की बात है तो वह तो एक िदन बीतेगा तब दे खगे। अभी तो िसफ शु आत है।
अभी से इतनी बेस ी ों?"

कुमार: " ा मतलब?"

नीतू: "अरे जब ाब ही दे खने ह तो िफर ाब म सब कुछ ही दे खये। खाली बदन एक दू सरे से करीब आये यही ों कना
भला? ाब पर कोई लगाम लगाने की ा ज रत है? हाँ ाब के बाहर जो असली दु िनया है, वहाँ स रखना ज री है।"

कुमार: "मोहतरमा, आप कहना ा चाहती हो? म ाब म ा दे खू?ं जहां तक स का सवाल है तो म यह मानता ँ की मुझम
स की कमी है।"

नीतू: "कमाल है क ान साहब! अब मुझे ही बताना पडे गा की आप ाब म ा दे खो? भाई दे श आजाद है। जो दे खना हो वह
ाब म दे ख सकते हो। मुझे ा पता आप ाब म ा दे खना चाहते हो? पर ाब की दु िनया और असिलयत म फक होता है।"

कुमार: "म बताऊँ म ाब म ा दे खना चाहता ँ?''

नीतू: "िफर वही बात? भाई जो दे खना चाहो दे खो। बताओ, ा दे खना चाहते हो?"

कुमार: "अगर म सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नही ं मानोगे?"

नीतू: "कमाल है! आप ाब दे खो तो उसम मुझे बुरा मानने की ा बात है? कहते ह ना, की नी ंद तु ारी ाब तु ारे । बताओ ना
ा ाब दे खना चाहते हो?"

कुमार: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो म ाब दे खना चाहता ँ की आप मेरी बाँहों म हो और म आपको खूब ार कर रहा ँ।"

नीतू: "अरे ! अभी तो हम ढं ग से िमले भी नही ं और आप मुझे बाँहों म ले कर ार करने के ाब दे खने लगे?"

कुमार: "आपने ही तो कहा था की ाब दे खने पर कोई ितब नही ं है? जहां तक ढं ग से िमलने का सवाल है तो बताइये ना हम
कैसे ढं ग से िमल सकते ह?"

73
नीतू: "ढं ग से िमलने का मतलब है आपस म एक दू सरे को जानना एक दू सरे के करीब आने के िलए समय िनकालना बगैरह बगैरह।
हाँ, मने कहा तो था ाब दे खने पर कोई ितब नही ं है, पर ाब भी सोच समझ कर दे खने चािहए।"

कुमार: " ा आप सोच समझ कर ाब दे खते हो? ा ाब पर हमारा कोई क ोल होता है ा?"

नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता िदखाई पड़ी। नीतू की आँ ख कुछ गीली से हो गयी ं। कुमार को
यह दे ख कर बड़ा आ य आ। वह नीतू को चुपचाप दे खता रहा। सुनीता के चेहरे पर मायूसी दे ख कर कुमार ने कहा, "मुझे माफ़
करना नीतूजी, अगर मने कुछ ऐसा कह िदया िजससे आपको कोई दु ः ख आ हो। म आपको िकसी भी तरह का दु ः ख नही ं दे ना
चाहता।"

नीतू ने अपने आपको स ालते ए कहा, "नही ं क ान साहब ऐसी कोई बात नही ं। िजंदगी म कुछ ऐसे मोड़ आते ह िज आपको
झेलना ही पड़ता है और उ ीकार कर चलने म ही सबकी भलाई है।"

कुमार: "नीतूजी, पहेिलयाँ मत बुझाइये। किहये ा बात है।"

नीतू ने बात को मोड़ दे कर कुमार के सवाल को टालते ए कहा, "क ान साहब आप मुझे नीतूजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम
नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।"

नीतू ने िफर अपने आपको स ाला। थोड़ा सा सोचम पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला िकया की वह कुमार को
अपनी असिलयत (की वह शादी शुदा है) उस व नही ं बताएगी।

कुमार: "तो िफर आप भी सुिनए। आप मुझे क ान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे िसफ कुमार कह
कर ही बुलाइये।"

नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। ा वह कुमार के साथ आगे बढे या नही ं? उसे अपने पित से कोई िद नही ं थी। उस ने अपने
मन म सोचा स की ऐसी की तैसी। जब मौक़ा िमला ही है तो ों ना उसका फायदा उठाया जाए? िफर तो अँधेरी रात है ही।

नीतू ने अपनी आँ ख नचाते ए कहा, "क ान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ाब और असिलयत का फक नही ं समझते।"

कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? म तो नौिस खया ँ।"

जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन म एक िबजली सी करं ट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस िदन
तक ि गेिडयर साहब को छोड़ िकसीने भी नीतू का इस तरह हाथ नही ं थामा था। नीतू हमेशा यह सपना दे खती ही रहती थी कोई
पु युवक उसको अपनी बाँहों म थाम कर उसको गहरा चु न कर, उसकी चूँिचयों को अपने हाथ म मसलता आ उसे िनव
कर उसकी चुदाई कर रहा है। नीतू को अ र सपने म वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और
मसलता था। कई बार नीतू ने महसूस िकया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार म अपनी उं गिलयां डाल कर उसे सातव आ ां
पर उठा लेता था।

नीतू ने ान से दे खा तो उसे लगा की कही ं ना कही ं कुमार की श और उसका बदन भी वही युवक जैसा था। कुमार ने दे खा की
जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई िवरोध नही ं िकया और नीतू अपने ही िवचारो म खोयी ई कुमार के चेहरे
की और एकटक दे ख रही थी तब उसकी िह त और बढ़ गयी। उसने नीतू को अपनी और खी ंचते ए कहा, " ा दे ख रही हो,
नीतू? ा म भ ा और डरावना िदखता ँ? ा मुझम तु कोई बुराई नजर आ रही है?"

नीतू अपनी तं ा से जाग उठी और कुमार की और दे खती ई बोली, "नही,ं ऐसी कोई बात नही ं, ों?"

कुमार: "तो िफर मेरे करीब तो बैठो। दे खो अगर म तु भ ा और डरावना नही ं लगता और अगर हमारा पहला प रचय हो चुका है
तो िफर इतना दू र बैठने की ा ज रत है?"

74
नीतू: "अरे कमाल है। यह बथ तो पहले से ही ऐसी र ी ई थी। मने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"

कुमार: "तो िफर म उसे नीचा कर दे ता ँ अगर आप को कोई आपि ना हो तो?" ऐसा कह कर िबना नीतू की हाँ का इं तजार िकये
कुमार उठ खड़ा आ और उसने बथ को िनचा करना चाहा। मज़बूरी म नीतू भी उठ खड़ी ई। कुमार ने बथ को िबछा िदया और
उसके ऊपर च र िबछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा िकया।

नीतू ने हलके से अपने कू े बथ पर िटकाये तो कुमार ने उसे ह ा सा अपने करीब खंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो।
आ खर हम काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"

नीतू और खसक कर ठीक बैठी तो उसने महसूस िकया की उसकी जाँघ कुमार की जाँघों से िघस रही ं थी।ं क ाटमट का तापमान
काफी ठं डा हो रहा था। कुमार ने धीरे से नीतू को अपने और करीब खी ंचा तो नीतू ने उसका िवरोध करते ए कहा, " ा कर रहे
हो? कोई दे खेगा तो ा कहेगा?"

कुमार समझ गया की उसे नीतू ने अनजाने म ही हरी झंडी दे दी थी। नीतू ने कुमार का उसे अपने करीब खी ंचने का िवरोध नही ं
िकया था ब कोई दे ख लेगा यह कह कर उसे रोका था। यह इशारा कुमार के िलए काफी था। कुमार समझ गया की नीतू को
यह डर था की कही ं उ कोई दे ख ना ले।"

कुमार ने फ़ौरन खड़े हो कर पद को फैला िदया िजससे उनकी बथ पूरी तरह से परदे के पीछे िछप गयी। अब कोई भी िबना पदा
हटाए उ दे ख नही ं सकता था। जब नीतू ने दे खा की कुमार ने उ परदे के पीछे ढक िदया तो वह बोल पड़ी, "कुमार यह ा कर
रहे हो?"

कुमार: "पहले आपने कहा, कोई दे ख लेगा। म वही कर रहा ँ जो आप चाहते हो। अब हम कोई नही ं दे ख सकता। बोलो अब तो
ठीक है?"

नीतू को महसूस आ की उसकी जाँघों के िबच म से उसका ी रस चुने लगा था। उसकी िन ले ँ फूल कर बड़ी हो गयी ं थी ं। नीतू
अपने आपको स ाल नही ं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा गया था। नीतू को कुछ भी समझ म नही ं आ रहा था की
यह सब ा हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नही ं िकया था वह सब हो रहा था।

कुमार ने दे खा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस म थी तो कुमार ने नीतू को अपनी और करीब खी ंचा और नीतू के कू ों के
िनचे अपने दोनों हाथ घुसा कर नीतू को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद म िबठा िदया।

जैसे ही कुमार ने नीतू को अपनी गोद म िबठाया की नीतू मचलने लगी। नीतू ने महसूस िकया की कुमार का ल उसकी गाँड़ को
टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरार म वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की नीतू जान गयी की कुमार का
ल काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा आ था।

नीतू से अब यह सब सहा नही ं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत म से रस रहा पानी थमने का नाम नही ं
ले रहा था। उसे यह डर था की कही ं उसकी पटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे , िजससे कुमार को नीतू की हालत का
पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मयादा भी तो स ालनी थी। हालांिक वह जानती थी की उसे अपने पित का समथन ज र
िमलेगा पर िफर भी वह एक शादीशुदा औरत थी।

नीतू ने तय िकया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते ए भी नीतू उठ खड़ी ई। उसने अपने कपड़ों को
स ालते ए कुमार को कहा, "बस कुमार। ीज तुम मुझे और मत छे ड़ो। म मजबूर ँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह
नही ं कहा गया की कुमार का यह सब कायकलाप उसे अ ा नही ं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नही ं िकया।

नीतू अपनी बथ से उठ कर गैलरी म चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँ ख खोली ं तो दे खा की नीतू क ाटमट के दरवाजे की और बढ़ने
लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा आ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नही ं गया। सुनीता ने हलके से

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ज ूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बथ पर रख िदए। ज ूजी गहरी नी ंद सो रहे थे। सुनीता ने ज ूजी के बदन पर
पूरी तरह से च र ओढ़ाकर वह यं उठ खड़ी ई और कुमार और नीतू की हरकत दे खने उनके पीछे चल पड़ी।

नीतू आगे भागकर क ाटमट के दरवाजे के पास जा प ंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के िलए उसके पीछे भाग
कर दरवाजे के पास जा प ंचा था। सुनीता ने दे खा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों म जकड िलया और
उसके मुंह पर चु न करने की कोिशश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी ई हँसी दे ती ई कुमार से अपने मुंह को दू र ले जा रही
थी।

िफर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठगा िदखाया और बोली, "इतनी आसानी से तु ारे चंगुल म नही ं फँस ने वाली ँ म।
तुम फौजी हो तो म भी फौजी की बेटी ँ। िह त है तो पकड़ कर िदखाओ।"

और ा था? कुमार को तो जैसे बना बनाया िनमं ण िमल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर
टॉयलेट म घुस गयी और उसने टॉयलेट का दरवाजा बंद करना चाहा। कुमार ने भाग कर अपने पाँव की एड़ी दरवाजे म लगादी
िजस कारण नीतू दरवाजा बंद नही ं कर पायी।

कुमार ने ताकत लगा कर दरवाजा खंच कर खोला और नीतू के पीछे वह भी टॉयलेट म अंदर घुस गया और दरवाजा अंदर से बंद
कर िदया। सुनीता जब प ंची तो दोनों ेमी पंछी टॉयलेट म थे और अंदर से नीतू की िगड़िगड़ाने की आवाज आ रही थी। सुनीता ने
नीतू को िगड़िगड़ाकर कहते ए सूना, "कुमार ीज मुझे छोड़ दो। यह तुम ा कर रहे हो? मेरे कपडे मत िनकालो। म बाहर कैसे
िनकलूंगी? अरे तुम यह ा कर रहे हो?"

िफर अंदर से कुमार की आवाज आयी, "डािलग, अब ादा ना बनो जानू, ीज। मुझे एक बार तु ारे बदन को छू लेने दो। ीज
बस एक ही िमनट लगेगा। म तु परे शान नही ं क ं गा। ीज मुझे छूने दो।"

नीतू: "नही ं कुमार, दे खो कोई आ जायेगा। म तु सब कुछ करने दू ं गी, पर अभी नही ं, ीज" िफर कुछ दे र तक शा हो गयी।
अंदर से कोई आवाज नही ं आ रही थी।

सुनीता ने दे खा की एक स न टॉयलेट की और आने की कोिशश कर रहे थे। सुनीता ने टॉयलेट का दरवाजा जोर से खटखटाया
और बोली, "नीतू,, कुमार दरवाजा खोलो।"

जैसे ही सुनीता ने दरवाजा खटखटाया की फ़ौरन कुमार ने दरवाजा खोल िदया। सुनीता ने दे खा की नीतू की साडी का प ू िगरा
आ था। िनतुकी ाउज के बटन खुले ए थे और वह ा को स ाल कर कुमार को रोकने की कोिशश कर रही थी। नीतू के म
बू लगभग पुरे ही िदख रहे थे। उसके नो ँ को उभार दे ख कर सुनीता को भी ई ा ई। उसके न ा म से ऐसे उठे ए
अकड़ से खड़े िदख रहे थे। िनयु की नो ँ के एरोला भी िदख रहे थे।

सुनीता ने फुत से नीतू को अपनी बाँहों म लपेट िलया। नीतू की सूरत रोने जैसी हो गयी थी। नीतू को सुनीता ने माँ की तरह अपनी
बाँहों म कुछ दे र तक जकड रखा और उसके सर पर हाथ िफरा कर उसे ढाढस दे ने लगी।

क ान कुमार खिसआिन सी श बना कर सुनीता की और दे खता आ अपनी सीट पर जाने लगा तो सुनीता ने उसे रोक कर
कहा, "दे खो कुमार और नीतू। हालांिक म तु ारी माँ िजतनी तो उ म नही ं ँ पर एक बात तुम दोनों को कहना चाहती ँ। तुम मेरे
छोटे भाई बहन की तरह हो। म तु एक दू सरे से म ी करने से नही ं रोक रही। पर ऐसे काम का एक समय, मौक़ा और जगह
होती है। जो तुम करना चाहते हो वह तुम बेशक करो, म तु मना नही ं कर रही ँ, पर सही समय, मौक़ा और जगह दे ख कर
करो। परदे के पीछे करो, पर यहां इस व नही ं। अपनी इ त अपने हाथ म है। उसे स ालो।

कुमार की और दे ख कर सुनीता ने कहा, "दे खो, नीतू की इ त स ालना तु ारा काम है। मद को चािहए की िजस औरत को वह
ार करता है उसकी इ त का ख़याल रखे।"

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कुमार ने अपनी नजर िनचे झुका ली ं और कहा, "सॉरी मैडम। आगे से ऐसा नही ं होगा।"

सुनीता ने कुमार का हाथ थाम कर कहा, "कोई बात नही ं। अभी तुम जवान हो। जोश के साथ होश से भी काम लो।"

क ान कुमार अपना सर झुका कर अपनी बथ पर वापस लौट गए। साथ म नीतू भी ख ानी सी लौट आयी और अपनी ऊपर
वाली बथ पर चली गयी। क ान कुमार को अपने वतन पर भारी शिमदगी ई। उसे समझ म नही ं उ ोंने ऐसी घिटया हरकत कैसे
की। जो आ था उससे क ान कुमार काफी दु खी थे।

...

सुनीता अपनी सीट पर वापस आ कर बैठी और ज ूजी क पाँव उसने िफर अपनी गोद म रखा। सुनीलजी और ोितजी गहरी नी ंद
म थे। सुनीता के आने से ज ूजी की नी ंद खुल गयी थी।

और एक बार िफर उ द् लार से सहलाने लगी, दबाने लगी और ह ा सा मसाज करने लगी। सुनीता को क ान कुमार और नीतू
की जोड़ी अ ी लगी। उसे अफ़सोस हो रहा था की उसने उनकी ेम ीड़ा म बाधा पैदा की। सुनीता ने अपने मन म सोचा की
कही ं उसे उन पर इषा तो नही ं हो रही थी? नीतू को उसका ार िमल रहा था और उसकी तन की सालों की भूख आज पूरी हो
सकती थी अगर वह िबच म नही ं आती तो।

सुनीता को मन म बड़ा दु ः ख आ। वह चाहती थी की क ान कुमार नीतू की ार और शरीर की भूख िमटाये। नीतू उसकी हकदार
थी। सुनीता को ा हक़ था उ रोकने का? सुनीता अपने आप को कोसने लगी। कुछ सोच कर सुनीता उठ खड़ी ई और नीतू की
ऊपर वाली बथ के पास जाकर उसने नीतू का हाथ पकड़ कर धीमे से िहलाया। नीतू ने आँ ख खोली ं। सुनीता को दे ख कर वह बोली,
ा बात है दीदी?"

सुनीता ने नीतू के कान म कहा, "नीतू, मुझे माफ़ करना। म आप दोनों के ार के िबच म अड़ं गा अड़ाया। म ब त शिम ा ँ।"

नीतू आ य से सुनीता को दे खती रही। सुनीता ने कहा, "दे खो नीतू, मुझे तुम दोनों की ेम लीला से कोई िशकायत नही ं है। दे खो, बंद
परदे म सब कुछ अ ा लगता है। इसिलए मने तु सबके सामने यह सब करने के िलए रोका था। कहते ह ना की "परदे म रहने
दो पदा ना उठाओ। पदा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा।" तो मेरे कहने का बुरा मत मानना। ओके?"

सुनीता यह कह कर चुपचाप अपनी बथ पर वापस आ गई।

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उ ेजना साहस और रोमांच के वो िदन! 02

...

जीवन की भूलभुलैया म कुछ ऐसे ल े आते ह।

िजन को हम िकतना ही चाह िफर भी न कभी भूल पाते ह।।

जब मािनिनयो ँ का मन लाखों िम त म त नही ं मानता है।

तब कभी कभी कोई िबरला रख जान हथेली ठानता है।।

कमिसन काितल कािमिनयाँ भी होती कुबा कुबानी पर।

ौछावर कर दे ती वह सब कुछ ऐसी वीरल जवानी पर।

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राहों म िमले चलते चलते हमराही हमारे आज ह वह।

िजनको ना कभी दे खा भी था दे खो हम िब र आज ह वह।

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सुनीता ने अपनी टाँग सामने की बथ पर रखी ं थी ं। सुनीलजी सामने की बथ पर बैठे ए ही गहरी नी ंद म थे। जैसे ही सुनीता ने अपने
बदन को थोड़ा सा फैला िदया और आमने सामने की बथ पर थोड़ी ल ी ई की उसे ज ूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास
एहसास आ। ज ूजी अपने ल े कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने म क महसूस कर रहे थे। सुनीता ने जब यह दे खा तो
ज ूजी के दोनों पाँव उठाकर अपनी गोद म ले िलए।

ज ूजी को ठ ना लगे इस िलए सुनीता ने एक और र ी एक च र और उसके ऊपर र ा पड़ा आ क ल खंच िनकाला


और ज ूजी के पुरे शरीर को उस क ल से ढक िदया। क ल के िनचे एक च र भी लगा दी। वही क ल और च र का दु सरा
छोर अपनी गोद और छाती पर भी डाल िदया। इस तरह ठ से थोड़ी राहत पाकर सुनीता ार से ज ूजी की टाँगों को अपनी
गोद म रख कर उस पर हाथ िफरा कर ह ा सा मसाज करने लगी।

उसे ज ूजी के पाँव अपनी गोद म पाकर अ


ा लग रहा था। उसे अपने गु और अपने ारे ेमी की सेवा करने का मौक़ा िमला
था। वह उन िदनों को याद करने लगी जब वह अपने िपताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नही ं जाते थे।

पाँव दबाते ए सुनीता ज ूजी की और स ान और ार भरी नज़रों से दे खती रहती थी। उसे ज ूजी के पाँव अपनी गोद म रखने
म कोई भी िझझक नही ं महसूस ई।

सुनीता ने अपनी टांग भी ल ी ं की ं और अपने पित सुनीलजी की गोद म रख दी ं। सुनीलजी खराटे मार रहे थे। कुछ पल के िलए वह
उठ गए और उ ोंने आँ ख खोली ं जब उ ोंने अपनी प ी की टाँग अपनी गोद म पायी ं।

उ ोंने सुनीता की और दे खा। उ ोंने दे खा की ज ूजी की टाँग उनकी प ी सुनीता की गोद म थी ं और सुनीता उ हलके से
मसाज कर रही थी। सुनीता ने दे खा की वह कुछ मु ाये और िफर आँ ख बंद कर अपनी नी ंद की दु िनया म वापस चले गए।

सुनीता ज ूजी की टाँगों को सेहला और दबा रही थी तब उसे ज ूजी के हाथ का श आ। ज ूजी ने क ल के िनचे से अपना
एक हाथ लंबा कर सुनीता के हाथ को हलके से थामा और धीरे से उसे दबा कर ऊपर की और खसका कर उसे अपनी दो जाँघों के
िबच म रख िदया। सुनीता समझ गयी की ज ूजी चाहते थे की सुनीता ज ूजी के ल को अपने हाथो ँ म पकड़ कर सहलाये।
सुनीता ज ूजी की इस हरकत से चौंक गयी। वह इधर उधर िदखने लगी। सब गहरी नी ंद सो रहे थे।

सुनीता का हाल दे खने जैसा था। सुनीता ने जब चारों और दे खा तो पाया की क ल के िनचे की उनकी हरकतों को और कोई
आसानी से नही ं दे ख सकता था। सारे परदे फैले ए होने के कारण अंदर काफी कम रौशनी थी। करीब करीब अँधेरा जैसा ही था।

सुनीता ने धीरे से अपना हाथ ऊपर की और िकया और थोड़ा ज ूजी की और झक


ु कर ज ूजी के ल को उनकी पतलून के
ऊपर से ही अपने हाथ म पकड़ा। ज ूजी का ल अभी पूरा कड़क नही ं आ था। पर बड़ी ज ी कड़क हो रहा था। सुनीता ने
चारो ँ और सावधानी से दे ख कर ज ूजी के पतलून की िज़प ऊपरकी और खसकायी और बड़ी मश त से उनकी िन र हटा
कर उनके ल को आज़ाद िकया और िफर उस नंगे ल को अपने हाथ म िलया।

सुनीता के हाथ के श मा से ज ूजी का ल एकदम टाइट और खड़ा हो गया और अपना पूव रस छोड़ने लगा। सुनीता का
हाथ ज ूजी के पूव रस की िचकनाहट से लथपथ हो गया था। सुनीता ने अपनी उँ गिलयों की मु ी बना कर उसे अपनी छोटी सी
उँ गिलयों म िलया। वह ज ूजी का पूरा ल अपनी मु ी म तो नही ं ले पायी पर िफर भी ज ूजी के ल की ऊपरी चा को दबा
कर उसे सहलाने और िहलाने लगी।

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सुनीता ने ज ूजी के चेहरे की और दे खा तो वह अपनी आँ ख मूँदे सुनीता के हाथ म अपना ल सेहलवा कर अद् भुत आनंद
महसूस कर रहे थे ऐसा सुनीता को लगा। सुनीता ने धीरे धीरे ज ूजी का ल िहलाने की र ार बढ़ाई। सुनीता चाहती थी की
इससे पहले की कोई जाग जाए, वह ज ूजी का वीय िनकलवादे तािक िकसीको शक ना हो।

सुनीता के हाथ बड़ी तेजी से ऊपर िनचे हो रहे थे। सुनीता ने क ल और च र को मोड़ कर उसकी कुछ तह बना कर ख़ास ान
र ा की उसके हाथ िहलाने को कोई दे ख ना पाए। सुनीता ज ूजी के ल को जोर से िहलाने लगी। सुनीता का हाथ दु खने लगा
था। सुनीता ने दे खा की ज ूजी के चेहरे पर एक उ ाद सा छाया आ। थोड़ी दे र तक काफी तेजी से ज ूजी का ल िहलाने पर
सुनीता ने महसूस िकया की ज ूजी पूरा बदन अकड़ सा गया। ज ूजी अपना वीय छोड़ने वाले थे।

सुनीता ने धीरे से अपनी ज ूजी के ल को िहलाने की र ार कम की। ज ूजी के ल के कि त िछ से उनके वीय की


िपचकारी छूट रही थी। सुनीता को डर लगा की कही ं ज ूजी के वीय से पूरी च र गीली ना हो जाए। सुनीता ने दू सरे हाथ से अपने
पास ही पड़ा आ छोटा सा नेपिकन िनकाला और उसे दू सरे हाथ म दे कर अपने हाथ की मु ी बना कर उनका सारा वीय अपनी
मु ी म और उस छोटे से नेपिकन म भर िलया। नेपिकन भी ज ूजी के वीय से पूरा भीग चुका था।

ज ूजी के ल के चारों और अ ी तरह से पोंछ कर सुनीता ने िफर से उनका नरम आ ल और अपना हाथ दू सरे नेपिकन से
पोंछा और िफर ज ूजी के ल को उनकी िन र म िफर वही मश त से घुसा कर ज ूजी की पतलून की िज़प बंद की। उसे
यह राहत थी की उसे यह सब करते ए िकसीने नही ं दे खा था।

ज ूजी को ज री राहत िदला कर सुनीता ने अपनी आँ ख मुँदी ं और सोने की कोिशश करने लगी।

ोितजी पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थी ं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नही ं पायी ं थी ं। ोितजी ने
अपनी टाँग ल ी ं और टे ढ़ी कर रखी ं थी ं जो सुनीलजी की जाँघों को छू रही थी ं।

...

सुनीता जब आधी अधूरी नी ंद म थी तब उसे कुमार और नीतू की कानाफूसी सुनाई दी। सुनीता समझ गयी की कुमार नीतू को
फाँसने की कोिशश म लगा था। नीतू भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी। दरअसल नीतू और कुमार साइड वाली बथ ल ी ना करके
बथ को ऊपर उठा कर दो कुिसयां बना कर आमने सामने बैठे थे। नीतू और कुमार का प रचय हो चुका था। पर शायद नीतू ने
अपनी पूरी कहानी कुमार को नही ं सुनाई थी। नीतू ने यह नही ं जािहर िकया था की वह शादी शुदा थी।

वैसे भी नीतू को दे खने से कोई यह नही ं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। नीतू ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा िनशान नही ं लगा
रखा था। ना ही माँग म िसंदूर और नाही कोई मंगल सू । नीतू ने ऊपर सफ़ेद रं ग का टॉप पहना था। उसका टॉप ाउज कहो या
ीवलेस शट कहो, नीतू के उ त नो ँ के उभार को छु पाने म पूरी तरह नाकाम था। नीतू के टॉप म से उसके न ऐसे उभरे ए
िदख रहे थे जैसे दो बड़े पहाड़ उसकी छाती पर िवराजमान हों।

नीतू ने िनचे घाघरा सा खुबसुरत न बाजी वाला लंबा फैला आ मै ी ट पहना था जो नीतू की एिड़यों तक था। नीतू ने अपने
ल े घने बालों को घुमा कर कुछ पों म बाँध रखे थे। होठो ँ पर हलकी िलप क उसके होठो ँ का रसीलापन उजागर कर रही
थी।

नीतू की ल ी गदन और चाँद सा गोल चेहरा, िजस पर उसकी चंचल आँ ख उसकी खूबसूरती म चार चाँद लगाती थी। नीतू की गाँड़
का उभार अितशय रमणीय था। पतली कमर के िनचे अचानक उदार फैलाव से वह सब मद की आँ खों के आकषण का क आ
करता था। जब नीतू चलती थी तो उसकी गाँड़ का मटकना अ े अ ों का पानी िनकाल सकता था।

जब कभी थोडासा भी हवा का झोंका आता तो िनतुका घाघरा नीतू के दोनों पाँव के िबच म घुस जाता और नीतू की दोनों जाँघों के
िबच थत चूत कैसी होगी यह क ना कर अ े अ े मद का मुठ मारने का मन करता था। नीतू की जाँघ सीधी और ल ी थी ं।

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नीतू कोई भी भारतीय नारी से कुछ ादा ही ल ी होगी। उसकी ल ाई के कारण नीतू का गठीला बदन भी एकदम पतला लगता
था।

हम उ होने के अलावा एक दू सरे से पहली नजर से ही जातीय आकषण होने के कारण कुमार और नीतू दोनों एक दू सरे से कुछ
अनौपचा रकता से बात कर रहे थे। सुनीता को जो सुनाई िदया वह कुछ ऐसा था।

कुमार: "नीतू, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।"

नीतू: "थक यू सर। आप भी तो हडसम हो!"

कुमार: "अरे कहाँ? अगर म आपको हडसम लगता तो आप मेरे करीब आने से ों िझझकती ं?"

नीतू: " ा बात करते ह? म आपके करीब ही तो ँ।"

कुमार ने अपनी टांगों की नीतू की टांगों से िमलाया और बोला, "दे खो हमारे िबच इतना बड़ा फासला है।"

नीतू: "फासला कहाँ है? आप की टाँग मेरी टाँगों को टच तो कर रही ं ह।"

कुमार: "िसफ टाँग ही तो टच कर रही ं है। हमारे बदन तो दू र ह ना?"

नीतू: "कमाल है, क ान साहब! अभी हम िमले दो घंटे भी ए नही ं और आप हमारे बदन एक दू सरे से िमलाने का ाब दे ख रहे
हो?"

कुमार: " ों भाई? ा ाब दे खने पर की कोई पाबंदी है? और मान लो हम िमले ए एक िदन पूरा हो गया होता तो ा होता?""

नीतू: "नही ं क ान साहब ाब दे खने पर कोई पाबंदी नही ं है। आप ज र ाब दे खये। जब ाब ही दे खने है तो कंजूसी कैसी?
और जहां तक िमलने के एक िदन के बाद की बात है तो वह तो एक िदन बीतेगा तब दे खगे। अभी तो िसफ शु आत है। अभी से
इतनी बेस ी ों?"

कुमार: " ा मतलब?"

नीतू: "अरे जब ाब ही दे खने ह तो िफर ाब म सब कुछ ही दे खये। खाली बदन एक दू सरे से करीब आये यही ों कना
भला? ाब पर कोई लगाम लगाने की ा ज रत है? हाँ ाब के बाहर जो असली दु िनया है, वहाँ स रखना ज री है।"

कुमार: "मोहतरमा, आप कहना ा चाहती हो? म ाब म ा दे खू?ं जहां तक स का सवाल है तो म यह मानता ँ की मुझम
स की कमी है।"

नीतू: "कमाल है क ान साहब! अब मुझे ही बताना पडे गा की आप ाब म ा दे खो? भाई दे श आजाद है। जो दे खना हो वह
ाब म दे ख सकते हो। मुझे ा पता आप ाब म ा दे खना चाहते हो? पर ाब की दु िनया और असिलयत म फक होता है।"

कुमार: "म बताऊँ म ाब म ा दे खना चाहता ँ?''

नीतू: "िफर वही बात? भाई जो दे खना चाहो दे खो। बताओ, ा दे खना चाहते हो?"

कुमार: "अगर म सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नही ं मानोगे?"

नीतू: "कमाल है! आप ाब दे खो तो उसम मुझे बुरा मानने की ा बात है? कहते ह ना, की नी ंद तु ारी ाब तु ारे । बताओ ना
ा ाब दे खना चाहते हो?"

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कुमार: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो म ाब दे खना चाहता ँ की आप मेरी बाँहों म हो और म आपको खूब ार कर रहा ँ।"

नीतू: "अरे ! अभी तो हम ढं ग से िमले भी नही ं और आप मुझे बाँहों म ले कर ार करने के ाब दे खने लगे?"

कुमार: "आपने ही तो कहा था की ाब दे खने पर कोई ितब नही ं है? जहां तक ढं ग से िमलने का सवाल है तो बताइये ना हम
कैसे ढं ग से िमल सकते ह?"

नीतू: "ढं ग से िमलने का मतलब है आपस म एक दू सरे को जानना एक दू सरे के करीब आने के िलए समय िनकालना, एक दू सरे की
ख़ुशी और भले के िलए कुछ बिलदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मने कहा तो था ाब दे खने पर कोई पाबंदी नही ं है, पर ाब भी
सोच समझ कर दे खने चािहए।"

कुमार: " ा आप सोच समझ कर ाब दे खते हो? ा ाब पर हमारा कोई क ोल होता है ा?"

नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता िदखाई पड़ी। नीतू की आँ ख कुछ गीली से हो गयी ं। कुमार को
यह दे ख कर बड़ा आ य आ। वह नीतू को चुपचाप दे खता रहा। सुनीता के चेहरे पर मायूसी दे ख कर कुमार ने कहा, "मुझे माफ़
करना नीतूजी, अगर मने कुछ ऐसा कह िदया िजससे आपको कोई दु ः ख आ हो। म आपको िकसी भी तरह का दु ः ख नही ं दे ना
चाहता।"

नीतू ने अपने आपको स ालते ए कहा, "नही ं क ान साहब ऐसी कोई बात नही ं। िजंदगी म कुछ ऐसे मोड़ आते ह िज आपको
झेलना ही पड़ता है और उ ीकार कर चलने म ही सबकी भलाई है।"

कुमार: "नीतूजी, पहेिलयाँ मत बुझाइये। किहये ा बात है।"

नीतू ने बात को मोड़ दे कर कुमार के सवाल को टालते ए कहा, "क ान साहब म आपसे छोटी ँ। आप मुझे नीतूजी कह कर मत
बुलाइये। मेरा नाम नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।"

नीतू ने िफर अपने आपको स ाला। थोड़ा सा सोचम पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला िकया की वह कुमार को
अपनी असिलयत (की वह शादी शुदा है) उस व नही ं बताएगी।

कुमार: "तो िफर आप भी सुिनए। आप मुझे क ान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे िसफ कुमार कह
कर ही बुलाइये।"

नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह कुमार के साथ आगे बढे या नही ?ं पित (ि गेिडयर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही िदया था
की नीतू को अगर कही ं कुछ मौक़ा िमले तो उसे चोरी छु पी शारी रक भूख िमटाने से उनको कोई आपि नही ं होगी, बशत की सारी
बात िछपी रहे। नीतू के िलए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद ह ाक ा हडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे
शारी रक स बनानेकी ने भरसक कोिशश म जुटा आ था।

अब नीतू पर िनभर था की वह अपना स ान बनाये रखते ए उस युवक को आगे बढ़ने के िलए ो ािहत करे या नही ं। नीतू ने
सोचा यह पहली बार आ था की इतना हडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोिशश कर रहा था। पहले भी कई युवक नीतू
को लालच भरी नजर से तो दे खते थे, पर िकसीभी ऐसे हडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी
भरसक कोिशश नही ं की थी।

िफर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर िकसी युवक को कहे की "आओ और मेरी शारी रक भूख िमटाओ?" आ खर वह
भी तो एक मािननी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना स ान बनाये रखना था।

काफी सोचने के बाद नीतू ने तय िकया की जब मौक़ा िमला ही है तो ों ना उसका फायदा उठाया जाए? यह मौक़ा अगर चला
गया तो िफर तो उसे अपने हाथो ँ की उँ गिलयों से ही काम चलाना पड़े गा। एक िदन की चाँदनी आयी है िफर तो अँधेरी रात है ही।

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नीतू ने अपनी आँ ख नचाते ए कहा, "क ान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ाब और असिलयत का फक नही ं समझते।"

कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? म तो नौिस खया ँ।"

जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन म एक िबजली सी करं ट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस िदन
तक ि गेिडयर साहब को छोड़ िकसीने भी नीतू का हाथ इस तरह नही ं थामा था। नीतू हमेशा यह सपना दे खती रहती थी कोई
पु युवक उसको अपनी बाँहों म थाम कर उसको गहरा चु न कर, उसकी चूँिचयों को अपने हाथ म मसलता आ उसे िनव
कर उसकी चुदाई कर रहा है।

नीतू को अ र सपने म वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार नीतू ने
महसूस िकया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार म अपनी उं गिलयां डाल कर उसे उ ेजना और उ ाद के सातवे आसमान
पर उठा लेता था।

नीतू ने ान से दे खा तो उसे लगा की कही ं ना कही ं कुमार की श और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।

कुमार ने दे खा की जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई िवरोध नही ं िकया और नीतू अपने ही िवचारो म खोयी ई
कुमार के चेहरे की और एकटक दे ख रही थी, तब उसकी िह त और बढ़ गयी। उसने नीतू को अपनी और खी ंचते ए कहा, " ा
दे ख रही हो, नीतू? ा म भ ा और डरावना िदखता ँ? ा मुझम तु कोई बुराई नजर आ रही है?"

नीतू अपनी तं ा से जाग उठी और कुमार की और दे खती ई बोली, "नही,ं ऐसी कोई बात नही ं, ों?"

कुमार: "दे खो, सब सो रहे ह। हम जोर से बात नही ं कर सकते। तो िफर मेरे करीब तो बैठो। अगर म तु भ ा और डरावना नही ं
लगता और अगर हमारा पहला प रचय हो चुका है तो िफर इतना दू र बैठने की ा ज रत है?"

नीतू: "अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते ए हम कैसे साथ म बैठ सकते ह? यह बथ तो पहले से ही ऐसी र ी
ई थी। मने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"

कुमार: "तो िफर म उसे नीचा कर दे ता ँ अगर तु कोई आपि ना हो तो?" ऐसा कह कर िबना नीतू की हाँ का इं तजार िकये
कुमार उठ खड़ा आ और उसने बथ को िनचा करना चाहा। मज़बूरी म नीतू को भी उठना पड़ा। कुमार ने बथ को िबछा िदया और
उसके ऊपर च र िबछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा िकया।

नीतू ने हलके से अपने कू े बथ पर िटकाये तो कुमार ने उसे ह ा सा अपने करीब खंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो।
आ खर हम काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"

नीतू और खसक कर ठीक कुमार के करीब बैठी। उसने महसूस िकया की उसकी जाँघ कुमार की जाँघों से िघस रही ं थी ं।
क ाटमट का तापमान काफी ठं डा हो रहा था। कुमार ने धीरे से नीतू को अपने और करीब खी ंचा तो नीतू ने उसका िवरोध करते
ए कहा, " ा कर रहे हो? कोई दे खेगा तो ा कहेगा?"

कुमार समझ गया की उसे नीतू ने अनजाने म ही हरी झंडी दे दी थी। नीतू ने कुमार का उसे अपने करीब खी ंचने का िवरोध नही ं
िकया, उस पर कोई आपि नही ं जताई; ब कोई दे ख लेगा यह कह कर उसे रोका था। यह इशारा कुमार के िलए काफी था।
कुमार समझ गया की नीतू मन से कुमार के करीब आना चाहती थी पर उस को यह डर था की कही ं उ कोई दे ख ना ले।"

कुमार ने फ़ौरन खड़े हो कर पद को फैला कर बंद कर िदया िजससे उन तो बथ पूरी तरह से परदे के पीछे िछप गयी। अब कोई
भी िबना पदा हटाए उ दे ख नही ं सकता था। जब नीतू ने दे खा की कुमार ने उ परदे के पीछे ढक िदया तो वह बोल पड़ी,
"कुमार यह ा कर रहे हो?"

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कुमार: " म वही कर रहा ँ जो आप चाहते हो। आपही ने तो कहा की कही ं कोई दे ख ना ले। अब हम कोई नही ं दे ख सकता। बोलो
अब तो ठीक है?" नीतू ा बोलती? उसने चुप रहना ही ठीक समझा।

नीतू को महसूस आ की उसकी जाँघों के िबच म से उसका ी रस चुने लगा था। उसकी िन ले ँ फूल कर बड़ी हो गयी ं थी ं। नीतू
अपने आपको स ाल नही ं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा रहा था। नीतू को कुछ भी समझ म नही ं आ रहा था की यह
सब ा हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नही ं िकया था वह सब हो रहा था।

कुमार ने दे खा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस म थी तो कुमार ने नीतू को अपनी और करीब खी ंचा और नीतू के कू ों के
िनचे अपने दोनों हाथ घुसा कर नीतू को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद म िबठा िदया।

जैसे ही कुमार ने नीतू को अपनी गोद म िबठाया की नीतू मचलने लगी। नीतू ने महसूस िकया की कुमार का ल उसकी गाँड़ को
टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरार म वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की नीतू जान गयी की कुमार का
ल काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा आ था।

नीतू से अब यह सब सहा नही ं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत म से रस रहा पानी थमने का नाम नही ं
ले रहा था। उसे यह डर था की कही ं उसकी पटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे , िजससे कुमार को नीतू की हालत का
पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मयादा भी तो स ालनी थी।

हालांिक वह जानती थी की उसे अपने पित से कोई परे शानी नही ं होगी, पर िफर भी नीतू एक मािननी शादीशुदा औरत थी। अगर
इतनी आसानी से फँस गयी तो िफर ा मजा? आसानी से िमली ई चीज़ की कोई कीमत नही ं होती। थोड़ा कुमार को भी कुछ
ादा महेनत, िम त और मश त करनी चािहए ना?

नीतू ने तय िकया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते ए भी नीतू उठ खड़ी ई। उसने अपने कपड़ों को
स ालते ए कुमार को कहा, "बस कुमार। ीज तुम मुझे और मत छे ड़ो। म मजबूर ँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह
नही ं कहा गया की कुमार का यह सब कायकलाप उसे अ ा नही ं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नही ं िकया।

नीतू अपनी बथ से उठ कर गैलरी म चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँ ख खोली ं तो दे खा की नीतू क ाटमट के दरवाजे की और बढ़ने
लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा आ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नही ं गया। सुनीता ने हलके से
ज ूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बथ पर रख िदए। ज ूजी गहरी नी ंद सो रहे थे। सुनीता ने ज ूजी के बदन पर
पूरी तरह से क ल और च र ओढ़ाकर वह यं उठ खड़ी ई और कुमार और नीतू की हरकत दे खने उनके पीछे चल पड़ी।

नीतू आगे भागकर क ाटमट के शीशे के दरवाजे के पास जा प ंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के िलए उसके
पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा प ंचा था। सुनीता ने दे खा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों म जकड िलया
और उसके मुंह पर चु न करने की कोिशश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी ई हँसी दे ती ई कुमार से अपने मुंह को दू र ले जा
रही थी।

िफर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठगा िदखाया और बोली, "इतनी आसानी से तु ारे चंगुल म नही ं फँस ने वाली ँ म।
तुम फौजी हो तो म भी फौजी की बेटी ँ। िह त है तो पकड़ कर िदखाओ।"

और ा था? कुमार को तो जैसे बना बनाया िनमं ण िमल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर
क ाटमट का शीशे का दरवाजा खोलकर वहाँ प ंची जो िह ा ऐयर-क ीश नही ं होता। जहां टॉयलेट बगैरह होते ह। पीछे
पीछे कुमार भी भाग कर प ंचा और नीतू को लपक कर पकड़ना चाहा। नीतू दरवाजे की और भागी। दु भा से दरवाजा खुला था।
वहाँ फश पर कुछ दही या अचार जैसा िफसलन वाला पदाथ िबखरा आ था। नीतू का पाँव िफसल गया। वह लड़खड़ायी और िगर
पड़ी। उस के दोनों पाँव खुले दरवाजे से िफसल कर तेज चल रही टैन के बाहर लटक गए।

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कुमार ने फुत से लपक कर टैन के बाहर िफसलकर िगरती ई नीतू के हाथ पकड़ िलए। नीतू के पाँव दरवाजे के बाहर िनचे खुली
हवा म पायदानों पर लटक रहे थे। वह जोर जोर से िच ा रही थी, "बचाओ बचाओ। कुमार ीज मुझे मत छोड़ना।"

कुमार कह रहे थे, "नही ं छोडू ं गा, पर तुम मेरा हाथ कस के थामे रखना। कुछ नही ं होगा। बस हाथ कस के पकड़ रखना।"

नीतू कुमार के हाथो ँ के सहारे िटकी ई थी। कुमार के पाँव भी उसी िचकनाहट पर थे। वह अपने को स ाल नही ं पाए और
िचकनाहट पर पाँव िफसलने के कारण िगर पड़े । कुमार के कमर और पाँव कोच के अंदर थे और उनका सर समेत शरीर का
ऊपरी िह ा दरवाजे के बाहर था। चूँिक उ ोंने नीतू के हाथ अपने दोनों हाथों म पकड़ रखे थे, इस िलए वह िकसी भी चीज़ का
सहारा नही ं ले सकते थे और अपने बदन को िफसल ने से रोक नही ं सकते थे।

कुमार ने अपने पाँव फैला कर अपने बदन को बाहर की और िफसलने से रोकना चाहा। पर सहारा ना होने और फश पर फैली ई
िचकनाहट के कारण उसका बदन भी धीरे धीरे दरवाजे के बाहर की और खसकता जा रहा था। पीछे ही सुनीता आ रही थी। उसने
यह दे खा तो उसकी जान हथेली म आ गयी। कुछ ही ण की बात थी की नीतू और कुमार दोनों ही तेज गित से दौड़ रही टैन
के बाहर तेज हवा के कारण उड़कर फक िदए जाएं गे।

सुनीता ने भाग कर िफसल रहे कुमार के पाँव कस के पकडे और अपने दो पाँव फैला कर कोच के कोनों पर अपने पाँव िटका कर
कुमार के शरीर को बाहर की और िफसलने से रोकने की कोिशश करने लगी। कुमार नीतू के दोनों हाथों को अपने हाथों म पकड़
कर अपनी जान की बाजी लगा कर उसे बाहर फके जाने से रोकने की भरसक कोिशश म लगा आ था।

तेज हवा और गाड़ी की तेज गित के कारण नीतू पूरी तरह दरवाजे के बाहर जैसे उड़ रही थी। कुमार ने पूरी ताकत से नीतू के दोनों
हाथ अपने दोनों हाथो ँ म कस के पकड़ कर रखे थे। नीतू के पाँव हवा म झूल रहे थे। अ र नीतू का घाघरा खुल कर छाते की तरह
फ़ैल कर ऊपर की और उठ रहा था। नीतू िड े म से नीचे उतरने वाले पायदान पर अपने पाँव िटकाने की कोिशश म लगी ई थी।

सुनीता जोर से "कोई है? हम मदद करो" िच ा ने लगी। कुछ दे र तक तो शीशे का दरवाजा बंद होने के कारण कनल साहब और
सुनीलजी को सुनीता की चीख नही ं सुनाई दी। पर िकसी और या ी के बताने पर सुनीता की िच ाहट सुनकर एकदम कनल साहब
और सुनीलजी उठ खड़े ए और भाग के सुनीता के पास प ंचे। कनल साहब ने जोर से टैन की जंजीर खी ंची।

इतनी तेजी से भाग रही टैन एकदम कहाँ कती? ेक की ची ार से सारा वातावरण गूँज उठा। टैन काफी तेज र ार पर थी।
नीतू को लगा की उसके जीवन का आखरी व आ चुका था। उसे बस कुमार के हाथ का सहारा था। पर कुमार की भी हालत ऐसी
थी की वह खुद िफसला जा रहा था। एक साथ दो जान कभी भी जा सकती ं थी ं।

कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते ए नीतू का हाथ नही ं छोड़ा। नीतू और कुमार के वजन के कारण सुनीता की पकड़
कमजोर हो रही थी। सुनीता कुमार के पाँव को ठीक तरह से पकड़ नही ं पा रही थी। कुमार के पाँव सुनीता के हाथो ँ म से िफसलते
जा रहे थे। टैन की र ार धीरे धीरे कम हो रही थी पर िफर भी काफी थी।

अचानक सुनीता के हाथो ँ म से कुमार के पाँव छूट गए। कुमार और नीतू दोनों दे खते ही दे खते टैन के बाहर उछल कर िनचे िगर
पड़े । थोड़ी दू र जाकर टैन क गयी।

नीतू लुढ़क कर रे ल की पट रयों से काफी दू र जा चुकी थी। बाहर घाँस और रे त होने के कारण उसे कुछ खरोंचे और एक दो जगह
पर कुछ थोड़ी गहरी चोट लगी थी। पर कुमार को प र पर िगरने के कारण काफी घाव लगे थे और उसके सर से खून बह रहा था।
िनचे िगरने के बाद चोट के कारण कुमार कुछ पल बेहोश पड़े रहे।

टैन कजाने पर कनल साहब और सुनीलजी के साथ कई या ी िनचे उतर कर कुमार और नीतू को पीछे की और ढूंढने भागे। कुछ
दु री पर उ कुमार िगरे ए िमले। कुमार रे ल की पट रयों के करीब प रों के पास बेहोश िगरे ए पड़े थे। उनके सर से काफी खून
बह रहा था। सुनीता भी उतर कर वहाँ प ंची। उसने अपनी चु ी फाड़ कर कुमार के सर पर कस के बाँधी। कुछ दे र बाद कुमार ने
आँ ख खोली ं।

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कनल साहब कुमार को सुनीता के सहारे छोड़ और पीछे की और भागे और कुछ दु री पर उ नीतू िदखाई दी। नीतू और पीछे िगरी
ई थी। नीतू के कपडे फटे ए थे पर उसे ादा चोट नही ं आयी थी। वह उठ कर खड़ी थी और अपने आपको स ालने की
कोिशश कर रही थी। उसका सर चकरा रहा था। वह कुमार को ढू ं ढने की कोिशश कर रही थी।

कनल साहब और कुछ या ी ने गाड के पास रखे ाथिमक सारवार की साम ी और दवाइयों से कुमार और नीतू की चोटों पर दवाई
लगाई और पि यां बाँधी और दोनों को उठाकर वापस टैन म लाकर उनकी बथ पर रखा। सुनीता और ोितजी उन दोनों की
दे खभाल करने म जुट गए। टैन िफर से अपने गंत की और जाने के िलए अ सर ई।

नीतू काफी स ल चुकी थी। वह कुमार के पाँव के पास जा बैठी। उसने कुमार का हाल दे खा तो उसकी आँ खों म से आँ सुओ ं की
धार बहने लगी। कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते ए उसकी जान बचाई यह उसको खाये जा रहा था। कुमार बच गए यह
कुदरत का कमाल था। तेज र ार से चलती टैन म से प र पर िगरने से इंसान का बचना लगभग नामुमिकन सा होता है।

पर कुमार ने िफर भी अपनी जान को जो खम म डाल कर नीतू को बचाया यह नीतू के िलए एक अद् भुत और अक नीय अनुभव
था। उसने सोचा भी नही ं था की कोई इं सान अपनी जान दु सरे की जान बचाने के िलए ऐसे जो खम म डाल सकता था। सुनीता और
ोित नीतू को ढाढस दे कर यह समझा रहे थे की कुमार ठीक है और उसकी जान को कोई ख़तरा नही ं है।

क ाटमट म एक डॉ र थे उ ोंने दोनों को चेक िकया और कहा की उन दोनों को चोट आयी ं थी पर कोई ह ी टू टी हो ऐसा नही ं
लग रहा था। कुछ दे र बाद कुमार बैठ खड़े ए और इधर उधर दे खने लगे। सर पर लगी चोट के कारण उ कुछ बेचैनी महसूस हो
रही थी। उ ोंने नीतू को अपने पाँव के पास बैठे ए और रोते ए दे खा।

कुमार ने झुक कर नीतू के हाथ थामे और कहा, "अब सब ठीक है। अब रोना बंद करो। मने तु कहा था ना, की सब ठीक हो
जाएगा? हम भारतीय सेना के जवान हमेशा अपनी जान अपनी हथेली म लेकर घूमते ह। चाहे दे श की अ ता हो या दे शवासी की
जान बचानी हो। हम अपनी जान की बाजी लगा कर उ बचाने म कोई कसर नही ं छोड़ते। म िबलकुल ठीक ँ तुम भी ठीक हो।
अब जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो।"

...

थोड़ी दे र बाद सुनीता और ोित अपनी बथ पर वापस चले गये। नीतू ने पदा फैला कर कुमार की बथ को परदे के पीछे ढक िदया।
पहले तो वह कुमार के पदा फैलाने पर एतराज कर रही थी। पर अब वह खुद पदा फैला कर अपनी ऊपर वाली बथ पर ना जाकर
िनचे कुमार की बथ पर ही अपने पाँव ल े कर एक छोर पर बैठ गयी। नीतू ने कुमार को बथ पर अपने शरीर को लंबा कर लेटने
को कहा। कुमार के पाँव को नीतू ने अपनी गोद म ले िलए और उनपर च र िबछा कर वह कुमार के पाँव दबाने लगी।

नीतू के पाँव कुमार ने करवट लेकर अपनी बाहों म ले िलए और उ ार से सहलाने लगा। दे खते ही दे खते क ान कुमार गहरी
नी ंद म सो गये। धीरे धीरे नीतू की आँ ख भी भारी होने लगी ं। संकड़ी सी बथ पर दोनों युवा बदन एक दू सरे के बदन को कस कर
अपनी बाहों म िलए ए लेट गए। एक का सर दू सरे की पाँव के पास था। टैन बड़ी तेज र ार से धड़ े से फराटे मारती ई भाग
रही थी।

कुमार की चोट गहरी थी ं और शायद कोई ह ी नही ं टू टी थी पर मांसपेिशयों म काफी ज लगे थे और बदन म दद था। नीतू के
क ान कुमार के बथ पर ही ल े होने से कुमार के बदन का कुछ िह ा दबा और दद होने के कारण क ान कुमार कराह उठे ।
नीतू एकदम बैठ गयी और उठ कर कुमार के पाँव के पास जा बैठी। कुमार के पाँव को अपनी गोद म रख कर उस पर क ल
डालकर वह ह े से कुमार के पाँव को सहलाने लगी।

नीतू की अपनी आँ ख भी भारी हो रही थी ं। नीतू बैठे बैठे ही कुमार के पाँव अपनी गोद म िलए ए सो गयी।

नीतू के सोने के कुछ दे र बाद नीतू के पित ि गेिडयर ख ा नीतू को िमलने के िलए नीतू की बथ के पास प ँचने वाले थे तब सुनीता
ने उ दे खा। सुनीता को डर था की कही ं नीतू के पित नीतू को कुमार के साथ कोई ऐसी वैसी हरकत करते ए दे ख ना ले इसिलए

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वह ि गेिडयर साहब को नम े करती ई एकदम उठ खड़ी ई और ज ूजी के पाँव थोड़े से खसका कर सुनीता ने ि गेिडयर
साहब को अपने पास बैठाया।

सुनीता ने ि गेिडयर ख ा साहब से कहा की उस समय नीतू सो रही थी और उसे िड ब करना ठीक नही ं था। सुनीता ने िफर
ि गेिडयर ख ा साहब को समझा बुझा कर अपने पास बैठाया और नीतू और कुमार के साथ घटी घटना के बारे म सब बताया। कैसे
नीतू िफसल गयी िफर कुमार भी िफसले और कैसे कुमार ने नीतू की जान बचाई।

नीतू के पित ि गेिडयर ख ा ने भी सुनीता को बताया की जब गाडी करीब एक घंटे तक कही ं क गयी थी तब उ ोंने िकसी को
पूछा की ा बात ई थी। तब उनके साथ वाली बथ बैठे जनाब ने उ बताया की कोई औरत टैन से िनचे िगर गयी थी और कोई
आम के अफसर ने उसे बचाया था। उ ा पता था की वह वा ा उनकी अपनी प ी नीतू के साथ ही आ था?

यह सब बात सुनकर नीतू के पित ि गेिडयर ख ा साहब बड़े िचंितत हो गए और वह नीतू के पास जाने की िजद करने लगे तब
सुनीता ने उ रोकते ए ि गेिडयर साहब को थोड़ी धीरज रखने को कहा और बाजू म सो रहे ज ूजी को जगाया और ि गेिडयर
ख ा से बातचीत करने को कहा।

ि गेिडयर साहब जैसे ही ज ूजी से घूम कर बात करने म लग गए की सुनीता उठखडी ई और उसने परदे के बाहर से नीतू को
हलके से पुकारा।

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नीतू को सोये ए आधे घंटे से कुछ ादा ही समय आ होगा की वह जागी तो नीतू ने पाया की कुमार की साँसे धीमी र ार से
िनयिमत चल रही थी ं। कभी कभार उनके मुंह से हलकी सी खराटे की आवाज भी िनकलने लगी। नीतू को जब तस ी ई की
कुमार सो गए ह तब उसने धीरे से अपने ऊपर से क ल हटाया और अपनी गोद म से कुमार का पाँव हटाकर िनचे रखा।

नीतू ने कुमार के पाँव पर क ल ओढ़ा िदया और पदा हटा कर ऊपर अपनी बथ पर जाने के िलए उठने ही लगी थी की उसे परदे
के उस पार सुनीता की आवाज सुिनए दी। उसको अपने पित ि गेिडयर ख ा की भी आवाज सुनाई दी। नीतू हड़बड़ा कर उठ खड़ी
ई। उस ने पदा हटाया और सुनीता को दे खा। सुनीता नीतू का हाथ पकड़ कर उसे ि गेिडयर साहब के पास ले गयी। सुनीता ने
अपने पित ि गेिडयर साहब को दे खा तो उनके चरण श करने झुकी।

ि गेिडयर साहब ने अपनी प ी नीतू को उठाकर गले लगाया और पूछा, "नीतू बेटा (ि गेिडयर ख ा कई बार ार से नीतू को
अपनी प ी होने के बावजूद नीतू की कम उ के कारण उसे बेटा कह कर बुलाया करते थे।) मने अभी अभी इन (सुनीता की और
इशारा करते ए) से सूना की तुम टैन के िनचे िगर गयी थी? मेरी तो जान हथेली म आ गयी जब मने यह सूना। उस व म गहरी
नी ंद म था और मुझे िकसीने बताया तक नही ं। मेरा कोच काफी पीछे है। मने यह भी सूना की क ान कुमार ने तु अपनी जान पर
खेल कर बचाया? ा यह सच है?"

ि गेिडयर ख ा िफर अपनी प ी के बदन पर हलके से हाथ िफराते ए बोले, "जानूं, तु ादा चोट तो नही ं आयी ना?"

नीतू ने ि गेिडयर साहब की छाती म अपना सर लगा कर कहा, "हाँ जी यह िबलकुल सच है। म क ान कुमारजी के कारण ही
आज िज़ंदा ँ। मुझे चोट नही ं आयी पर कुमारजी काफी चोिटल ए ह। वह अभी सो रहे ह।"

सुनीता और कनल साहब की और इशारा करते ए नीतू ने कहा, "इ ोने कुमार साहब की प ी बगैरह की। एक डॉ र ने दे खा
और कहा की कुमार जी की जान को कोई ख़तरा नही ं है।"

िफर नीतू ने अपने पित को जो आ उस वाकये की सारी कहानी िव ार से सुनाई। नीतू ने यह छु पाया की कुमार नीतू को पकड़ने
के िलए उस के पीछे भाग रहे थे और कुमार की चंगुल से बचने के िलए वह भाग रही थी तब वह सब आ। हालांिक यह उसे बताना
पड़ा की कुमार उसके पीछे ही कुछ बात करने के िलए तेजी से भागते ए ए आ रहे थे तब उसे ध ा लगा और वह िफसल गयी

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और साथ म कुमार भी िफसल गए। ऐसे वह वा ा आ। नीतू को डर था की कही ं उसके पित उसकी कहानी की स ाई भाँप ना
ले।

नीतू की सारी कहानी सुनने के बाद ि गेिडयर साहब ने नीतू के बाल सँवारते ए कहा, "नीतू, शु है तु ादा चोट नही ं आयी
और कुमार भी बच गए। चलो जो आ सो आ। अब तुम मेरी बात बड़े ान से सुनो। तुम अब कुमार का अ ी तरह ाल
रखना। वह अकेला है। उसे कोई तकलीफ ना हो। उ िकसी तरह की कोई भी ज रत हो तो तुम पूरी करना। उनके साथ ही
रहना। उ ोंने तु ारी ही नही ं मेरी भी जान बचाई है। मेरी जान तुम हो। उ ोंने तु ारी जान बचाकर हकीकत म तो मेरी जान
बचाई है। ओके ब ा? म चलता ँ। तुम अपना भी ान रखना।"

यह कह कर सुनीता और ज ूजी को ध वाद दे ते और नम ार करते ए ि गेिडयर साहब धीरे धीरे क ाटमट की दीवारों का
सहारा लेते ए अपने क ाटमट की और चल िदए।

अपने पित का इतना जबरद सहारा और ो ाहन पाकर नीतू की आँ ख नम हो गयी ं। वह काफी खुश भी थी। "कुमार के साथ ही
रहना, उन का ख़ास ान रखना। उ िकसी तरह की कोई भी ज रत हो तो तुम पूरी करना।" ा उसके पित ि गेिडयर साहब
यह कह कर उसे कुछ इशारा कर रहे थे? नीतू इस उधेङबुन म थी की सुनीता ने नीतू को बताया की उ ोंने नीतू और कुमार के
िलए भी दोपहर का खाना आडर िकया था। खाना आ भी चुका था।

सुनीता ने नीतू को कहा की वह कुमार को भी जगाये और खाने के िलए कहे।

नीतू ने ार से कुमार को जगा कर बथ पर िबठा कर खाने के िलए आ ह िकया। कुमार को चेहरे और पाँव पर गहरी चोट आयी
थी ं, पर वह कह रहे थे की वह ठीक ह। कुमार खाने के िलए मना कर रहे थे पर नीतू ने उनकी एक ना सुनी। चेहरे पर प ी लगाने के
कारण उ शायद ठीक ठीक दे खने म िद त हो रही थी। नीतू ने खाने की ेट अपनी गोद म रखकर क ान कुमार के मना
करने पर भी उ एक एक िनवाला बना कर अपने हाथों से खलाना शु िकया।

सुनीता, ोितजी, सुनीलजी और ज ूजी इस दोनों युवा का ार दे ख कर एक दू सरे की और दे ख कर शरारती अंदाज म


मु राये। सबके मन म शायद यही था की "जवाँ िदल की धड़कनों म भड़कती शमाँ। आगे आगे दे खये होता ही ा।" ार और
एक दू सरे के ित का ऐसा भाव दे ख सब के मन म यही था की कभी ना कभी जवान िदलों म भड़कती ार की यह छोटी सी
िचंगारी ज ही आगे चल कर जवान बदनों म काम वासना की आग का प ले सकती है।

सुनीता नीतू के एकदम पास खसक कर बैठ गयी और नीतू के कानों म अपना मुंह लगा कर कोई न सुने ऐसे फुसफुसाते ए कहा,
"नीतू, ा इतना ार कोई िकसी को कर सकता है? कुमार ने अपनी जान की परवाह ना करते ए तु ारी जान बचाई। कोई भी
ी के िलए कोई भी पु ष इससे ादा ा बिलदान दे सकता है भला? म दे ख रही थी की कुमार तु ारे करीब आने की कोिशश
कर रहा था और तुम उससे दू र भाग रही थी। ऐसे जाँबाज़ पु ष के िलए अपना ी की ही ा; कोई भी कुबानी कम है।"

ऐसा कह कर सुनीता ने नीतू को आँ ख मारी और िफर अपने काम म लग गयी। सुनीत की बात नीतू के जहन म ब दु क की गोली के
तरह घुस गयी। एक तो उसका तन और मन भी ऐसी मदानगी दे ख कर मचल ही रहा था उस पर सुनीताजी की सटीक बात नीतू के
िदल को छू गयी।

खाने के बाद नीतू िफर से कुमार के पाँव से सट कर बैठ गयी। िफर से सारे परदे बंद ए। ों की कुमार को तब भी काफी दद था,
इस कारण नीतू ने मन ना मानते ए भी कुमार को ार से उसकी साइड की िनचली बथ पर िलटा कर उसे कंबल ओढ़ा कर खुद
जैसे ही अपनी ऊपर वाली बथ पर जाने लगी थी की उसने महसूस िकया की क ान कुमार ने उसकी बाँह पकड़ी। नीतू ने मूड के
दे खा तो कुमार का चेहरा क ल से ढका आ था और शायद वह सो रहे थे पर िफर भी वह नीतू को दू र नही ं जाने दे ना चाहते थे।

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नीतू के चेहरे पर बरबस एक मु ान आ गयी। नीतू कुमार का हाथ ना छु ड़ाते ए वही ं खड़ी रही। कुमार ने नीतू का हाथ पकडे
रखा। नीतू धीरे से हाथ छु ड़ाने की कोिशश करने लगी पर िफर भी कुमार ने हाथ नही ं छोड़ा और नीतू का हाथ पकड़ अपना चेहरा
ढके ए रखते नीतू को अपने पास बैठने का इशारा िकया।

नीतू कुमार के सर के पास गयी और धीरे से बोली, " ा बात है? कुछ चािहए ा?"

परदे को उठा कर अपना मुंह नीतू के मुंह के पास लाकर बोले, "नीतू, ा अब भी तुम मुझसे ठी ई हो? मुझे माफ़ नही ं करोगी
ा?"

नीतू ने अपने हाथ कुमार के मुंह पर रख िदए और बोली, " ा बात कर रह ह आप? भला म आपसे कैसे नाराज हो सकती ँ?"

कुमार ने कहा, "िफर उठ कर ऊपर ों जाने लग़ी? नी ंद आ रही है ा?"

नीतू ने कुमार की बात काटते ए कहा, "मुझे कोई नीद


ं नही ं आ रही। भला इतना बड़ा हादसा होने के बाद कोई सो सकता है? जो
आ यह सोचते ही मेरा िदल धमनी की तरह धड़क रहा है। पता नही ं म कैसे बच गयी। मेरी जान तु ारी वजह से ही बची है
कुमार!"

कुमार ने फट से अपने हाथ नीतू की छाती पर रखने की कोिशश करते ए कहा, "मने तु कहाँ बचाया? बचाने वाला सबका एक
ही है। उसने तु और मुझे दोनों को बचाया। यह सब फ़ालतू की बात छोडो। तुमने ा कहा की तु ारा िदल तेजी से धड़क रहा
है? ज़रा दे खूं तो वह िकतनी तेजी से धड़क रहा है?"

नीतू ने इधर उधर दे खा। कही ं कोई उन दोनों की ार की लीला दे ख तो नही ं रहा? िफर सोचा, " ा पता कोई अपना मुंह परदे म
ही िछपाकर उनको दे ख ना रहा हो?" नीतू ने एक हाथ से कुमार की नाक पकड़ कर उसे ार से िहलाते ए और दू सरे हाथ से धीरे
से ार से कुमार का हाथ जो नीतू के नो ँ को छूने जा रहा था उसको अपने टॉप के ऊपर से हटाते ए कहा, "जनाब को इतनी
सारी चोट आयी ह, पर िफर भी रोिमयोिगरी करने से बाज नही ं आते? अगर म आपके पास बैठी ना, तो सो चुके आप! म चाहती ँ
की आप आराम करो और एकदम फुत से वापस वैसे ही हो जाओ जैसे पहले थे। म चाहती ँ की कल सुबह तक ही आप दौड़ते
िफरते हो जाओ। िफर अगले पुरे सात िदन हमारे ह। अब सो जाओ ना ीज? तु आराम की स ज रत है।"

कुमार ने नीतू की हाथों को अपने करीब खी ंचा और उसे मजबूर िकया की वह कुमार के ऊपर झुके। जैसे ही नीतू झुकी की कुमार
ने करवट ली, क ल हटाया और नीतू के कानों के करीब अपना मुंह रख कर कहा, "मुझे आराम से भी ादा तु ारी ज रत है।"

नीतू ने मुंह बनाते ए कहा, "हाय राम म ा क ँ ? यह मजनू तो मान ही नही ं रहे ! अरे भाई सो जाओ और आराम करो। ऐसे
जागते और बात करते रहोगे तो आराम तो होगा ही नही ं ऊपर से कोई दे खेगा और शक करे गा।"

कुमार ने िजद करते ए कहा, "नही ं म ऐसे नही ं मानूंगा। अगर तुम मुझसे ठी नही ं हो तो बस एक बार मेरे मुंह के करीब अपना
मुंह तो लाओ, िफर म सो जाऊंगा। आई ॉिमस।"

नीतू ने अपना मुंह कुमार के करीब िकया तो कुमार ने दोनों हाथों से नीतू का सर पकड़ा और अपने हो ँठ नीतू के हो ँठों पर िचपका
िदए। हालांिक सारे परदे ढके ए थे और कही ं कोई हलचल नही ं िदख रही थी, पर िफर भी कुमार की फुत से अपने होठो ँ को चुम
लेने से नीतू यह सोच कर डर रही थी की इतने बड़े क ाटमट म कही ं कोई उ ार करते ए दे ख ना ले।

पर नीतू भी काफी उ ेिजत हो चुकी थी। कुमार ने नीतू का सर इतनी स ी से पकड़ा था की चाहते ए भी नीतू उसे कुमार के
हाथों से छु ड़ाने म असमथ थी। मजबूर होकर "जो होगा दे खा जाएगा" यह सोच कर नीतू ने भी अपनी बाँह फैला कर कुमार का सर
अपनी बाँहों म िलया और कुमार के होठ
ँ ों को कस के चु न करने लगी।

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दोनों जवाँ बदन एक दू सरे की कामवासना म झुलस रहे थे। नीतू कुमार के मुंहकी लार चूस चूस कर अपने मुंह म लेती रही। कुमार
भी अपनी जीभ नीतू के मुंह म डाल कर उसे ऐसे अंदर बाहर करने लगा जैसे वह नीतू के मुंह को अपनी जीभ से चोद रहा हो।

इस तरह काफी दे र तक िचपके रहने के बाद नीतू ने काफी मश त कर अपना सर कुमार से अलग िकया और बोली, "कुमार!
चलो भी! अब तो खुश हो ना? अब बहोत हो गया। अब ीज जाओ और आराम करो। मेरी कसम अब और कुछ शरारत की तो!"

कुमार ने कहा, "ठीक है तुमने कसम दी है तो सो जाऊंगा। पर ऐसे नही ं मानूंगा। पहले यह वचन दो की रात को सब सो जाएं गे
उसके बाद तुम चुपचाप मेरी बथ पर िनचे मेरे पास आ जाओगी।"

नीतू ने कुमार को दू र करते ए कहा, "ठीक है बाबा दे खूंगी। पर अब तो छोडो।"

कुमार ने िजद करते ए कहा, "ना, म नही ं छोडू ं गा। जब तक तुम मुझे वचन नही ं दोगी।"

नीतू ने दोनों हाथ जोड़ते ए कहा, "ठीक है बाबा म वचन दे ती ँ। अब तुम छोडो ना?"

कुमार ने कहा, "ऐसे नही ं, बोलो ा वचन दे ती हो?"

नीतू ने कहा, "रातको जब सब सो जाएं गे, तब म चुपचाप िनचे उतर कर तु ारी बथ पर आ जाऊंगी। बस?"

कुमार ने कहा, "पर अगर तुम सो गयी तो?"

नीतू ने अपना सर पटकते ए कहा, अरे भगवान् यह तो मान ही नही ं रहे! अ ा बाबा अगर म सो गयी तो तुम मुझे आकर उठा
दे ना। अब तो ठीक है?"

कुमार ने धीरे से कहा, "ठीक है जानूं पर भूलना नही ं और अपने वादे से मुकर मत जाना."

नीतू ने आँ ख मारकर कहा, "नही ं भूलूंगी और िकये ए वादे से मुक ं गी भी नही ं। पर अब तुम आराम करो वरना म िच ाऊंगी,
की यह ब ा मुझे सता रहा है।"

कुमार ने हँसते ए नीतू का हाथ छोड़ िदया और जैसे डर गए हों ऐसे अपना मुंह क ल म िछपा कर एक आँ ख से नीतू की और
दे खते ए बोले, "अरे बाबा, ऐसा मत करना। म अब तु नही ं छे ड़ूँगा। बस?"

कुमार की बात सुन नीतू बरबस ही हंसने लगी। अपने दोनों हाथ जोड़कर कुमार को नम े की मु ा कर मु ाती ई नीतू कुमार
के साथ हो रही काम ीड़ा के प रणाम प अपनी दोनों जाँघों के िबच ए गीलेपन को महसूस कर रही थी। काफी समय के बाद
अपनी दो जाँघों के िबच चूत म हो रही मीठी मचलन नीतू के मन म कोई अजीब सी अनुभूित पैदा कर रही थी। नीतू जब अपना
घाघरा अपनी जाँघों के उपर तक उठाकर अपनी टाँगों को ऊपर उठा कर अपनी ऊपर वाली बथ पर चढ़ने लगी तो कुमार धीरे से
बोला, "अपने आपको स ालो! िनचे वाला (यानी कुमार) सब कुछ दे ख रहा है!"

ल त नीतू ने अपने पाँव िनचे िकये। कुमार की हरकतों से परे शान होने पर कुछ भी ना कर पाने के कारण मजबूर, नीतू अपना
घाघरा ठीक ठाक करती ई अपने आपको स ाल कर अपनी ऊपर वाली बथ पर प ंची और ल े हो कर लेट कर िपछले चंद
घंटों म ए वा ो ँ के बारे म सोचने लगी।

टैन मंिजल की और तेजी से अ सर हो रही थी।

...

क ाटमट म शामके करीब पांच बजे कुछ हलचल शु ई। कुमार के अलावा सब लोग बैठ गए। नीतू ने कुमार के िलए चाय
मंगाई। कुछ िब ट और चाय िपलाकर नीतू ने कुमार को डॉ र की दी ई कुछ दवाइयाँ दी ं। दवाइयाँ खाकर कुमार िफर लेट

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गए। कुमार ने कहा की उनका दर् द कुछ कम हो रहा था। डॉ र ने िटटेनस का इं जे न पहले ही दे िदया था। नीतू कुमार के पाँव
के पास ही बैठी बैठ कुमार को दे ख रही थी और कभी पानी तो कभी एक िब ु ट दे दे ती थी।

अ ेरा होते ही शामका खाना आ प ंचा। िफर नीतू ने अपने हाथों से कुमार को िबठा कर खाना खलाया। सुनीता, ोितजी, कनल
साहब और सुनील ने भी दे खा की नीतू कुमार का बहोत ान रख रही थी। सब ने खाना खाया और थोड़ी सी गपशप लगाकर
ादातर लोग अपने अपने मोबाइल म हो गए। कई याि यों ने कान पर ईयरफो लगा अपने सेल फ़ोन म कोई मूवी, या
गाना या कोई और चीज़ दे खने म ही खो गए।

रात के नौ बजते ही सब अपना अपना िब र बनाने म लग गए। सुबह करीब ६ बजे ज ू े शन आने वाला था। नीतू ने कुमार को
उठाया और उसका िब र झाड़ कर अ ी तरह से च र और क ल िबछा कर कुमार को लेटाया। कुमार अब धीरे धीरे बैठने
लगा था। शामको एक बार नीतू के पित ि गेिडयर ख ा साहब भी आये और कुमार को हेलो, हाय िकया। इस बार उ ोंने कुमार के
साथ बैठकर कुमार का हाल पूछा और िफर नीतू के गाल पर हलकी सी िकस करके वह अपनी बथ के िलए वापस चले गए।

कुमार को िफर भी अंदेशा ना आ की नीतू ि गेिडयर साहब की प ी थी। रात का अँधेरा घना हो गया था। काफी या ी सो चुके थे।
एक के बात एक बि यां बुझती जा रही ं थी ं। नीतू ने भी जब पदा फैलाया तब कुमार ने िफर नीतू का हाथ पकड़ा और अपने करीब
खंच कर कानों म पूछा, "अपना वादा तो याद है ना?"

नीतू ने िबना बोले अपनी मुंडी िहलाकर हामी भरी और मु ाती ई अपना घाघरा स ालते ए अपनी ऊपर की बथ पर चढ़ गयी।

सुनीता िनचे की बथ पर थी और ज ूजी उसकी ऊपर वाली बथ पर। ोितजी िनचे वाली बथ पर और सुनील उसके ऊपर वाली
बथ पर। रातके साढ़े नौ बजे सुनीता ने अपने क ाटमट की बि यां बुझा दी ं। उसे पता था की आजकी रात कुछ ना कुछ तो होगा
ही। कोई ना कोई नयी कहानी ज र बनेगी।

सुनीता को पित को िकये ए वादे की याद आयी। सुनीता को तो अपने पित से िकये ए वादे को पूरा करना था। सुनीलजी अपनी
प ी से िलए ए टैन म रात को सुनीता का िडनर करने के वादे को पूरा ज र करना चाहगे। सुनीलजी की ि यतमा ज ूजी की
प ी ोितजी ा सुनीता के पित सुनील को रातको अपने आहोश म लेने के िलए नही ं तड़पेगी?

ाज ूजी कुछ ना कुछ हरकत नही ं करगे? उधर सुनीता ने चोरी छु पी नीतू और कुमार के िबच की काम वाता भी सुनी थी। उसे
पता था की नीतू को रात को िनचे की बथ म कुमार के पास आना ही था। ज र उस रात को टैन म कुछ ना कुछ तो होना ही था।
ा होगा उस िवचार मा के रोमांच से सुनीता के रोंगटे खड़े होगये।

पर सुनीता भी राजपूतानी मािननी जो थी। उसने अपने रोमांच को शांत करना ही ठीक समझा और ब ी बुझाकर एक अ ी औरत
की तरह अपने िब र म जा लेटी। क ाटमट म सब कुछ शांत हो चुका था। ज र ेमी ेिमकाओं के दय म कामाि की
धधकती आग छु पी ई थी। पर िफर भी क ाटमट म वासना की लपटो ँ म जलते ए बदनों की कामाि भड़के उसके पहले छायी
शा की तरह सब कुछ शांत था।

कुछ शोर तब होता था जब दो गािड़याँ आमने सामने से गुजरती थी ं। वरना वातानुकूिलत वातावरण म एक सौ सी शा छायी
ई थी। जब टैन कोई े शन पर कती तो कही ं दू र कोई या ी के चढ़ने उतर ने की धीमी आवाज के िसवाय कही ं िकसीके खराटे
की तो कही ं िकसी की हलकी लयमय साँसे सुनाई दे रहीथी ं।

सारी बि याँ बुझाने के कारण और सारे परदे से ढके होने के कारण पुरे क ाटमट म घना अँधेरा छाया आ था। कही ं कुछ नजर
नही ं आता था। एक कोने म िटमिटमाती राि ब ी कुछ कुछ काश दे ने म भी िनसहाय सी लग रही थी। कभी कभी कोई े शन
गुजरता तब उसका काश परदे म रह गयी पतली सी दरार म से मु ल ही अँधेरे को ह ा करने म कामयाब होता था।

काम वासना से संिल दय बाकी याि यों को गहरी नी ंद म खो जाने की जैसे ती ा कर रहे थे। िबच िबच म नी ंद का झोका आ
जाने के कारण वह कुछ िववश सा महसूस कर रहे थे। नीतू की आँ खों म नी ंद कहाँ? उसे पता था की उसका ि यतम कुमार ज र

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उसके िनचे उतर ने ती ा म पागल हो रहा होगा। आज रात ा होगा यह सोच कर नीतू के दय की धड़कन तेज हो रही थी ं और
साँसे धमनी की तरह चल रही ं थी ं। नीतू की जाँघों के िबच उसकी चूत काफी समय से गीली ही हो रही थी।

कुमार काफी चोिटल थे। तो ा वह िफर भी नीतू को वह ार दे पाएं गे जो पानेकी नीतू के मन म ललक भड़क रही थी? पर नीतू
कुमार को इतना ार करती थी और कुमार की इतनी ऋणी थी की अपनी काम वासना की धधकती आग को वह छु पाकर तब तक
रखेगी जब तक कुमार पूरी तरह थ ना हो जाएँ । यह वादा नीतू ने अपने आपसे िकया था।

उससे भी बड़ा यह था की ा नीतू को यं िनचे उतर कर कुमार के पास जाना चािहए? चाहे कुमार ने नीतू के िलए िकतनी भी
कुबानी ही ों ना दी हो, ा नीतू को अपना मािननीपन अ त नही ं रखना चािहए? पु ष और ी की ेम ीड़ा म पहल हमेशा
पु ष की ही होनी चािहए इस मत म नीतू पूरा िव ास रखती थी। यां हमेशा मािननी होती ह और पु ष को ही अपने घुटने जमी ं
पर िटका कर ी को रझाकर मनाना चािहए िजससे ी अपने बदन समेत अपनी काम वासना अपने ि यतम पर ोछावर करे
यही संसार का द ूर है, यह नीतू मानती थी।

पर नीतू की अपने बदन की आग भी तो इतनी तेज भड़क रही थी की ा वह मािननीपन को धानता दे या अपने तन की आग
बुझाने को? यह उसे खाये जा रहा था। ा कुमार इतने चोिटल होते ए नीतू को मनाने के िलए बथ के िनचे उतर कर खड़े हो
पाएं गे? नीतू के मन म यह भी एक था। वह करे तो ा करे ? आ खर म नीतू ने यह सोचा की ों ना कुमार को उसे मनाना
कुछ आसान िकया जाए? तािक कुमार को बथ से उठकर नीतू को मनाने के िलए उठना ना पड़े ?

यह सोच कर नीतू ने अपनी च र का एक छोर धीरे धीरे सरका कर िनचे की और जाने िदया तािक कुमार उसे खंच कर उस के
संकेत की ती ा म जाग रही (पर सोने का ढोंग कर रही) नीतू को जगा सके। कुछ दे र बीत गयी। नीतू बड़ी बेस ी से इंतजार म थी
की कब कुमार उसकी च र खीच
ं े और कब वह अपना सर िनचे ले जाकर यह दे खने का नाटक करे की ा आ? िजससे कुमार
को मौक़ा िमले की वह नीतू को िनचे उतर ने का आ ह करे । पर शायद कुमार सो चुके थे। नीतू ऊपर बेचैन इं तजार म परे शान थी।
काफी कीमती समय िबतता जा रहा था।

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उ ेजना साहस और रोमांच के वो िदन! - 10

सुनीता को डर था की उस रात कही ं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उसके पित सुनील ने उससे से वचन जो िलया था की िदन म ना सही
पर रात को ज र वह सुनीता को खाने मतलब सुनीता की लेने (मतलब सुनीता को चोदने) ज र आएं गे। शादी के इतने सालों बाद
भी सुनील सुनीता का दीवाना था। दू सरे ज ूजी जो सुनीता को पाने के िपए सब कुछ दॉंव पर लगाने के िलए आमादा थे। िज ोंने
कसम खायी थी की वह सुनीता पर अपना ी समपण करने के िलए (मतलब चुदवाने के िलए) कोई भी दबाव नही ं डालगे।

पर सुनीता और ज ूजी के िबच यह अनकही सहमित तो थी ही की सुनीता ज ूजी को भले उसको चोदने ना दे पर बाकी सबकुछ
करने दे सकती है। यह बात अलग है की ज ूजी खुद सुनीता का आधा समपण ीकार करने के िलए तैयार होंगे या नही ं। वह भी
तो आम के िसपाही थे और बड़े ही अिड़यल थे।

सुनीता को तब ज ूजी का ण याद आया। उ ोने बड़े ही गभीर र म कहा था की जब सुनीता ने उ नकार ही िदया था तब वह
कभी भी सामने चल कर सुनीता को ललचाने की या अपने करीब लाने को कोिशश नही ं करगे। सुनीता के सामने यह बड़ी सम ा
थी। वह ज ूजी का िदल नही ं तोड़ना चाहती थी पर िफर वह उनको अपना समपण भी तो नही ं कर सकती थी।

सुनीता ज ूजी को भली भाँती जानती थी। जहां तक उसका मानना था ज ज ू ी तब तक आगे नही ं बढ़गे जब तक सुनीता कोई

पहल ना करे । वैसे तो माननीयों पर मॅडराने के िलए उनको चाहने वाले बड़े बेताब होते ह। पर उस रात तो उलटा ही हो गया।
सुनीता अपने पित की अपनी बथ पर इं तजार कर रही थी। साथ साथ म उसे यह भी डर था की कही ं ज ूजी ऊपर से सीधा िनचे ना

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उतर जाएँ । पर जहां सुनीता दो परवानो ँ का इं तजार कर रही थी, वहाँ कोई भी आ नही ं रहा था। उधर नीतू अपने ेमी के संकेत का
इं तजार कर रही थी, पर कुमार था की कोई इं टरे नही ं िदखा रहा था।

दोनों ही मानीिनयाँ अपने ि यतम से िमलने के िलए बेताब थी। पर ि यतम ना जाने ा सोच रहे थे? ा वह अपनी ि या को स
का फल मीठा होता है यह िसख दे रहे थे? या कही ं वह िनं ा के आहोश म होश खो कर गहरी नी ंद म सो तो नही ं गए थे?

काफी समय बीत जाने पर सुनीता समझ गयी की उसका पित सुनील गहरी नी ंद म सो ही गया होगा। वैसे भी ऐसा कई बार हो चुका
था की सुनीता को रात को चोदने का ॉिमस कर के सुनीलजी कई बार सो जाते और सुनीता बेचारी मन मसोस कर रह जाती। रात
बीतती जा रही थी। सुनीलजी का कोई पता ही नही ं था। तब सुनीता ने महसूस िकया की उसकी ऊपर वाली बथ पर कुछ हलचल हो
रही थी। इसका मतलब था की शायद ज ूजी जाग रहे थे और सुनीता के संकेत का इंतजार कर रहे थे।

सुनीता की जाँघों के िबच का गीलापन बढ़ता जा रहा था। उसकी चूत की फड़कन थमने का नाम नही ं ले रही रही थी। कुमार और
नीतू की ेम लीला दे ख कर सुनीता को भी अपनी चूत म ल लड़वाने की बड़ी कामना थी। पर वह बेचारी करे तो ा करे ? पित
आ नही ं रहे थे। ज ूजी से वह चुदवा नही ं सकती थी।

रात बीतती जा रही थी। सुनीता की आँ खों म नी ंद कहाँ? िदन म सोने कारण और िफर अपने पित के इंतजार म वह सो नही ं पा रही
थी। उस तरफ ोितजी गहरी नी ंद म लग रही थी ं। टैन की र ार से दौड़ती ई हलकी सी आवाज म भी उनकी िनयिमत साँस
सुनाई दे रही ं थी ं। सुनीलजी भी गहरी नी ंद म ही होंग चूँिक वह शायद अपनी प ी के पास जाने (अपनी प ी को टैन म चोदने) का
वादा भूल गए थे। लगता था ज ूजी भी सो रहे थे।

सुनीता की दोनों जाँघों के िबच उसकी म चूत म बड़ी हलचल महसूस हो रही थी। सुनीता ने िफर ऊपर से कुछ हलचल की आवाज
सुनी। उसे लगा की ज र ज ूजी जाग रहे थे। पर उनको भी िनचे आने की कोई उ ुकता िदख नही ं रही थी। सुनीता अपनी बथ
पर बैठ कर सोचने लगी। उसे समझ नही ं आया की वह ा करे ।

अगर ज ूजी जागते होंगे तो ऊपर शायद वह सुनीता के पास आने के सपने ही दे ख रहे होंगे। पर शायद उनके मन म सुनीता के
पास आने म िहचिकचाहट हो रही होगी, ूंिक सुनीता ने उनको नकार जो िदया था। सुनीता को अपने आप पर भी गु ा आ रहा
था तो ज ूजी पर तरस आ रहा था।

तब अचानक सुनीता ने ऊपर से लुढ़कती च र को अपने नाक को छूते ए महसूस िकया। च र काफी िनचे खसक कर आ गयी
थी। सुनीता के मन म उठने लगे। ा वह च र ज ूजी ने कोई संकेत दे ने के िलए िनचे ख ाइथी? या िफर करवट लेते ए
वह अपने आप ही अनजाने म िनचे की और खसक कर आयी थी?

सुनीता को पता नही ं था की उसका मतलब ा था? या िफर कुछ मतलब था भी या नही ं? यह उधेङबुन म िबना सोचे समझे सुनीता
का हाथ ऊपर की और चला गया और सुनीता ने अनजाने म ही च र को िनचे की और खी ंचा। खी ंचने के तुरंत बाद सुनीता पछताने
लगी। अरे यह उसने ा िकया? अगर ज ूजी ने सुनीता का यह संकेत समझ िलया तो वह ा सोचगे?

पर ऐसा कुछ भी नही ं आ। सुनीता के च र खीच


ं ने पर भी ऊपर से कोई िति या नही ं ई। सुनीता को बड़ा गु ा आया। अरे !
यह कनल साहब अपने आप को ा समझते ह? ा यों का कोई मान नही ं होता ा? भाई अगर एक बार औरत ने मद को
संकेत दे िदया तो ा उस मद को समझ जाना नही ं चािहए?

िफर सुनीता ने अपने आप पर गु ा करते ए और ज ूजी की तरफदारी करते ए सोचा, "यह भी तो हो सकता है ना की ज ूजी
गहरी नी ंद म हों? िफर उ कैसे पता चलेगा की सुनीता कोई संकेत दे रही थी? वह तो यही मानते थे ना की अब सुनीता और उनके
िबच कोई भी ऐसी वैसी बात नही ं होगी? ूंिक सुनीता ने तो उनको ठु करा ही िदया था।

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इसी उधेड़बुन म सुनीता का हाथ िफर से ऊपर की और चला गया और सुनीता ने च र का एक िह ा अपने हाथ म लेकर उसे
िनचे की और खी ंचना चाहा तो ज ूजी का घने बालों से भरा हाथ सुनीता के हाथ म आ गया। ज ूजी के हाथ का श होते ही
सुनीता की हालत खराब! हे राम! यह ा गजब आ! सुनीता को समझ नही ं आया की वह ा करे ? उसी ने तो ज ूजी को संकेत
िदया था। अब अगर ज ूजी ने उसका हाथ पकड़ िलया तो उसम ज ूजी का ा दोष? ज ूजी ने सुनीता का हाथ कस के
पकड़ा और दबाया। सुनीता का पूरा बदन पानी पानी हो गया।

वह समझ नही ं पायी की वह ा करे ? सुनीता ने महसूस िकया की ज ूजी का हाथ धीरे धीरे िनचे की और खसक रहा था। सुनीता
की जाँघों के िबच म से तो जैसे फ ारा ही छूटने लगा था। उसकी चूत म तो जैसे जलजला सा हो रहा था। सुनीता का अपने बदन
पर िनय ण छूटता जा रहा था। वह आपने ही बस म नही ं थी।

सुनीता ने रात को नाइटी पहनी ई थी। उसे डर था की उसकी नाइटी म उसकी पे ी पूरी भीग चुकी होगी इतना रस उसकी चूत
छोड़ रही थी। ज ूजी कब अपनी बथ से िनचे उतर आये सुनीता को पता ही तब चला जब सुनीता को ज ूजी ने कस के अपनी
बाहों म ले िलया और च र और क ल हटा कर वह सुनीता को सुला कर उसके साथ ही ल े हो गए और सुनीता को अपनी बाहों
के िबच और दोनों टांगों को उठा कर सुनीता को अपनी टांगों के िबच घेर िलया। िफर उ ोंने च र और क ल अपने ऊपर डाल
िदया िजससे अगर कोई उठ भी जाए तो उसे पता ना चले की ा हो रहा था।

ज ूजी ने सुनीता का मुंह अपने मुंह के पास िलया और सुनीता के हो ँठों से अपने हो ँठ िचपका िदए। ज ूजी के होठो ँ के साथ साथ
ज ूजी की मुछ भी सुनीता के होठो ँ को चुम रही ं थी ं। सुनीता को अजीब सा अहसास हो रहा था। िपछली बार जब ज ूजी ने
सुनीता को अपनी बाहों म िकया था तब सुनीता होश म नही ं थी। पर इस बार तो सुनीता पुरे होशो हवास म थी और िफर उसी ने ही
तो ज ूजी को आमं ण िदया था।

सुनीता अपने आप को स ाल नही ं पा रही थी। उससे ज ूजी का यह आ ामक रवैया ब त भाया। वह चाहती थी की ज ूजी
उसकी एक भी बात ना माने और उसके कपडे और अपने कपडे भी एक झटके म जबरद ी िनकाल कर उसे नंगी करके अपने
मोटे और ल े ल से उसे पूरी रात भर अ ी तरह से चोदे । िफर ों ना उसकी चूत सूज जाए या फट जाए।

सुनीता जानती थी की अब वह कुछ नही ं कर सकती थी। जो करना था वह ज ूजी को ही करना था। ज ूजी का मोटा ल
सुनीता की चूत को कपड़ों के ारा ऐसे ध े मार रहा था जैसे वह सुनीता की चूत को उन कपड़ों के िबच म से खोज ों ना रहा
हो? या िफर ज ूजी का ल िबच म अवरोध कर रहे सारे कपड़ों को फाड़ कर जैसे सुनीता की न ी ं कोमल सी चूत म घुसने के
िलए बेताब हो रहा था। ज ूजी मारे कामाि से पागल से हो रहे थे। शायद उ ोंने भी नीतू और कुमार की ेम गाथा सुनी थी।

ज ूजी पागल की तरह सुनीता के हो ँठों को चुम रहे थे। सुनीता के हो ँठों को चूमते ए ज ूजी अपने ल को सुनीता की जाँघों के
िबच म ऐसे ध ा मार रहे थे जैसे वह सुनीता को असल म ही चोद रह हों। सुनीता को ज ूजी का पागलपन दे ख कर यकीन हो
गया की उस रात सुनीता की कुछ नही ं चलेगी। ज ूजी उसकी कोई बात सुनने वाले नही ं थे और सचम ही वह सुनीता की अ ी
तरह बजा ही दगे। जब सुनीता का कोई बस नही ं चलेगा तो बेचारी वह ा करे गी? उसके पास ज ूजी को रोकने का कोई रा ा
नही ं था। यह सोच कर सुनीता ने सब भगवान पर छोड़ िदया। अब माँ को िदया आ वचन अगर सुनीता िनभा नही ं पायी तो उसम
उसका ा दोष?

सुनीता ज ूजी के पुरे िनय ण म थी। ज ूजी के हो ँठ सुनीता के हो ँठों को ऐसे चुम और चूस रहे थे जैसे सुनीता का सारा रस वह
चूस लेना चाहते थे। सुनीता के मुंह की पूरी लार वह चूस कर िनगल रहे थे। सुनीता ने पाया की ज ूजी उनकी जीभ से सुनीता का
मुंह चोदने लगे थे। साथ साथ म अपने दोनों हाथ सुनीता की गाँड़ पर दबा कर सुनीता की गाँड़ के दोनों गालों को सुनीता की नाइटी
के उपरसे वह ऐसे मसल रहे थे की जैसे वह उनको अलग अलग करना चाहते हों।

ज ूजी का ल दोनों के कपड़ों के आरपार सुनीता की चूत को चोद रहा था। अगर कपडे ना होते तो सुनीता की चुदाई तो हो ही
जानी थी। पर ऐसे हालात म दोनों के बदन पर कपडे िकतनी दे र तक रहगे यह जानना मु ल था। यह प ा था की उसम ादा
दे र नही ं लगेगी। और आ भी कुछ ऐसा ही। सुनीता के मुंह को अ ी तरह चूमने और चूसने के बाद ज ूजी ने सुनीता को घुमाया

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और करवट लेने का इशारा िकया। सुनीता बेचारी चुपचाप घूम गयी। उसे पता था की अब खेल उसके हाथों से िनकल चुका था।
अब आगे ा होगा उसका इं तजार सुनीता धड़कते िदल से करने लगी।

ज ूजी ने सुनीता को घुमा कर ऐसे िलटाया की सुनीता की गाँड़ ज ूजी के ल पर एकदम िफट हो गयी। ज ूजी ने अपने ल
का एक ऐसा ध ा मारा की अगर कपडे नही ं होते तो ज ूजी का ल सुनीता की गाँड़ म ज र घुस जाता। सुनीता को समझ
नही ं आ रहा था की वह कोई िवरोध ों नही ं कर रही थी? ऐसे चलता रहा तो चंद पलों म ही ज ूजी उसको नंगी कर के उसे
चोदने लगगे और वह कुछ नही ं कर पाएगी। पर हाल यह था की सुनीता के मुंह से कोई आवाज िनकल ही नही ं रही थी। वह तो जैसे
ज ूजी के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली की तरह उनके हर इशारे का बड़ी आ ा कारी ब े की तरह पालन कर रही थी।

ज ूजी ने अपने हाथसे सुनीता की नाइटी के ऊपर के सारे बटन खोल िदए और बड़ी ही बेस ी से सुनीता की ा के ऊपर से ही
सुनीता की चूँिचयों को दबाने लगे। सुनीता के पास अब ज ूजी की इ ा पूित करने के अलावा कोई चारा नही ं था। सुनीता ना तो
िच ा सकती थी नाही कुछ जोरों से बोल सकती थी ूंिक उसके बगल म ही उसका पित सुनील , ोितजी, कुमार और नीतू सो
रहे थे।

सुनीता समझ गयी की ज ूजी सुनीता की ा खोलना चाहते थे। सुनीता ने अपने हाथ पीछे की और िकये और अपनी ा के क
खोल िदए। ा की पि यों के खुलते ही सुनीता के बड़े फुले ए उरोज ज ूजी के हथेिलयों म आगये। ज ूजी सुनीता की गाँड़ म
अपने ल से ध े मारते रहे और अपने दोनों हाथो ँ की हथिलयों म सुनीता के म नो ँ को दबाने और मसलने लगे।

सुनीता भी चुपचाप लेटी ई पीछे से ज ूजी के लण्ड की मार अपनी गाँड़ पर लेती ई पड़ी रही। अब ज ूजी को िसफ सुनीता
की नाइटी ऊपर उठानी थी और पटी िनकाल फकनी थी। बस अब कुछ ही समय म ज ूजी के ल से सुनीता की चुदाई होनी
थी। सुनीता ने अपना हाथ पीछे की और िकया। जब इतना हो ही चुका था तब भला वह ों ना ज ूजी का ासा ल अपने हाथो ँ
म ले कर उसको सहलाये और ार करे ? पर ज ूजी का ल तो पीछे से सुनीता की गाँड़ मार रहा था (मतलब कपडे तो िबच म
थे ही).

सुनीता ने ज ूजी का ल उनके पयजाम के ऊपर से ही अपनी छोटी सी उँ गिलयों म लेना चाहा। ज ूजी ने अपने पयजामे के
बटन खोल िदए और उनका ल सुनीता की उँ गिलयों म आ गया। ज ूजी का ल पूरा अ ी तरह िचकनाहट से लथपथ था।
उनके ल से इतनी िचकनाहट िनकल रही थी की जैसे उनका पूरा पयजामा भीग रहा था।

चूँिक सुनीता ने अपना हाथ अपने पीछे अपनी गाँड़ के पास िकया था उस कारण वह ज ूजी का ल अपने हाथो ँ म ठीक तरह से
ले नही ं पा रही थी। खैर थोड़ी दे र म उसका हाथ भी थक गया और सुनीता ने वापस अपना हाथ ज ूजी के ल पर से हटा िदया।
ज ूजी अब बड़े मूड म थे। वह थोड़े से टेढ़े ए और उ ोंने अपने हो ँठ सुनीता की चूँिचयों पर रख िदए। वह बड़े ही ार से
सुनीता की चूँिचयों को चूसने और उसकी िन लो ँ को दाँत से दबाने और काटने लगे।

उ ोंने अपना हाथ सुनीता की जाँघों के िबच लेना चाहा। सुनीता बड़े असमंजस म थी की ा वह ज ूजी को उसकी चूत पर हाथ
लगाने दे या नही ं। यह तय था की अगर ज ूजी का हाथ सुनीता की चूत पर चला गया तो सुनीता की पूरी तरह गीली हो चुकी पटी
सुनीता के मन का हाल बयाँ कर ही दे गी। तब यह तय हो जाएगा की सुनीता वाकई म ज ूजी से चुदवाना चाहती थी।

ज ूजी का एक हाथ सुनीता की नाइटी सुनीता की जाँघों के ऊपर तक उठाने म था की अचानक उ एहसास आ की कुछ
हलचल हो रही थी। दोनों एकदम से थम गए। सुनीलजी बथ के िनचे उतर रहे थे ऐसा उनको एहसास आ। सुनीता की हालत
एकदम खराब थी। अगर सुनीलजी को थोड़ा सा भी शक आ की ज ूजी उसकी प ी सुनीता की बथ म सुनीता के साथ लेटे ए ह
तो ा होगा यह उसकी क ना से परे था। िफर तो वह मान ही लग के उनकी प ी सुनीता ज ूजी से चुदवा रही थी।

िफर तो सारा आसमान टू ट पडे गा। जब सुनीलजी ने सुनीता को यह इशारा िकया था की शायद ज ूजी सुनीता की और आकिषत
थे और लाइन मार रहे थे तब सुनीता ने अपने पित को फटकार िदया था की ऐसा उनको सोचना भी नही ं चािहए था। अब अगर
सुनीता ज ूजी से सामने चलकर उनकी पीठ के पीछे चुदवा रही हो तो भला एक पित को कैसा लगेगा?

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सुनीता ने ज ूजी के मुंह पर कस के हाथ रख िदया की वह ज़रा सा भी आवाज ना करे । खैर ज ूजी और सुनीता दोनों ही क ल
म इस तरह एक साथ जकड कर ढके ए थे की आसानी से पता ही नही ं लग सकता की क ल म एक नही ं दो थे। पर सुनीता को
यह डर था की यिद उसके पित की नजर ज ूजी की बथ पर गयी तो गजब ही हो जाएगा। तब उ पता लग जाएगा की ज ूजी
वहाँ नही ं थे। तब उ शक हो की शायद वह सुनीता के साथ लेटे ए थे।

खैर सुनीलजी बथ से िनचे उतरे और अपनी च ल ढूंढने लगे।

सुनील जी को ज ी ही अपने च ल िमल गए और वह तेज चलती ई, और िहलती ई गाडी म अपना संतुलन बनाये रखने के िलए
क ाटमट के हडल बगैरह का सहारा लेते ए िड े के एक तरफ वाले टॉयलेट की और बढ़ गए। उनके जाते ही सुनीता और
ज ूजी दोनों की जान म जान आयी। सुनीता को तो ऐसा लगा की जैसे मौतसे भट तो ई पर जान बच गयी।

जैसे ही सुनीलजी आँ खों से ओझल ए की ज ूजी फ़ौरन उठकर फुत से बड़ी चालाकी से क ाटमट की दू सरी तरफ िजस तरफ
सुनीलजी नही ं गए थे उस तरफ टॉयलेट की और चल पड़े ।

सुनीता ने फ़ौरन अपने कपडे ठीक िकये और अपना सर ठोकती ई सोने का नाटक करती लेट गयी। आज माँ ने ही उसकी लाज
बचाई ऐसा उसे लगा। थोड़ी ही दे र म पहले सुनील जी टॉयलेट से वापस आये। उ ोंने अपनी प ी सुनीता को िहलाया और उसे
जगाने की कोिशश की। सुनीता तो जगी ई ही थी। िफर भी सुनीता ने नाटक करते ए आँ ख मलते ए धीरे से पूछा, " ा है?"

सुनीलजी ने एकदम सुनीता के कानों म अपना मुंह रख कर धीमी आवाज म कहा, "अपना वादा भूल गयी? आज हमने टैन म रात म
ार करने का ो ाम जो बनाया था?"

सुनीता ने कहा, "चुपचाप अपनी बथ पर लेट जाओ। कही ं ज ूजी जग ना जाएँ ।"

सुनीलजी ने कहा, "ज ूजी तो टॉयलेट गए ह। अब तुमने वादा िकया था ना? पूरा नही ं करोगी ा?"

सुनीता ने कहा, "ठीक है। जब ज ूजी वापस आजाय और सो जाएँ तब आ जाना।"

सुनीलजी ने खुश हो कर कहा, "तुम सो मत जाना। म आ जाऊंगा।"

सुनीता ने कहा, "ठीक है बाबा। अब थोड़ी दे र सो भी जाओ। िफर जब सब सो जाएँ तब आना और चुपचाप मेरे िब र म घुस जाना,
तािक िकसी को ख़ास कर ोितजी और ज ूजी को पता ना चले।"

सुनील ने खुश होते ए कहा, "ठीक है। बस थोड़ी ही दे र म।" ऐसा कहते ए सुनीलजी अपनी बथ पर जाकर ज ूजी के लौटने का
इं तजार करने लगे। सुनीता मन ही मन यह सब ा हो रहा था इसके बारे म सोचने लगी।

...

यहां दे खये, ा हो रहा है? यहां तो एक कािमनी कामुक ी नीतू चाहती थी की क ान कुमार उसे ललचाये और उससे स ोग
करे । क ान कुमार के नीतू की िजंदगी बचाने के िलए अपनी िजंदगी को कुबान करने तक के जाँबाज़ करतब से वह इतनी पूणतया
अिभभूत हो गयी थी की वह खुद सामने चलकर अपना कामाि क ान कुमार से कुछ हद तक शांत करवाना चाहती थी। वह
अपना शील और अपनी इ त क ान कुमार को सौंपना चाहती थी।

पर क ान कुमार तो गहरी नीद


ं म सोये ए लग रहे थे। ऊपर की बथ म लेटी ई कामाि िल कािमनी नीतू, कुमार से अिभसार
करने के िलए उन की पहल का इं तजार कर रही थी, या यूँ किहये की तड़प रही थी। पहले जो बड़ी मािननी बन कर कुमार की
पहल को नकार रही थी वह खुद अब अपनी बदन म भड़क रही काम की ाला को कुमार के बदन से िमला कर संतृ करना
चाह रही थी।

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पर आ खर कािमनी भी मािननी तो है ही ना? मािननी िकतनी ही कामातुर ों ना हो, वह अपना मािननी प नही ं छोड़ सकती। वह
चाहती है की पु ष ही पहल करे । जब कुमार से कोई पया पहल नही ं ई तो ाकुल कािमनी ने अपनी च र का एक छोर
जानबूझ कर िनचे की और सरका िदया। उसने कुमार को एक मौक़ा िदया की कुमार उसे खंच कर इशारा दे और उसे िनचे अपनी
बथ पर बुलाले। तब िफर कािमनी का मािननीपन भी पूरा हो जाएगा और वह कुमार पर जैसे मेहरबानी कर उसे अपना बदन सौंप
दे गी।

पर काफी समय तीत होने पर भी कुमार की और से कोई इशारा नही ं आ। समय बीतता जाता था। नीतू को बड़ा गु ा आ रहा
था। यह ा बात ई की उसे रात को आने का ोता दे कर खुद सो गए? नीतू ने अपनी िनचे खसकाई ई च र ऊपर की और
खंच ली और करवट बदल कर च र ओढ़ कर सो गयी।

पर नीतू की आँ खों म नी ंद कहाँ? वह तो जागते ए कुमार के साथ अिभसार (चुदाई)के सपने दे ख रही थी। नीतू का मन यह सोच
रहा था की िजसका शरीर इतना कसा आ और जो इतने अ े खासे कद का था ऐसे जाबाँझ िसपाही का ल कैसा होगा? जब
कुमार के हाथ नीतू की चूँिचयों को छु एं गे और उ दबाने और मसलने लगगे तो नीतू का ा हाल होगा? जब ऐसे जवान का हाथ
नीतू की चूत पर उसकी हलकी झाँट पर िफरने लगेगा तो ा नीतू अपनी कराहट रोक पाएगी?

नीतू की चूत यह सोच कर इतनी गीली हो रही थी की उसके िलए अब और इं तजार करना नामुमिकन सा लग रहा था।

नीतू का मन जब ऐसे िवचारों म डूबा आ ही था की उसे अचानक कुछ हलचल महसूस ई। नीतू ने थोड़ा सा पदा हटा कर दे खा
तो पाया की सुनीलजी अपनी बथ से िनचे उतर रहे थे। नीतू को मन म कही ं ना कही ं ऐसा अंदेशा आ की कुछ ना कुछ तो होने
वाला था। उसने परदे का एक कोना िसफ इतना ही हटाया की उसम से वह दे ख सके।

नीतू ने दे खा की सुनीलजी शायद अपनी च ल ढूंढ रहे थे। थोड़ी ही दे र म नीतू ने दे खा की सुनीलजी वाश म की और चल िदए।
नीतू को यह दे ख कुछ िनराशा ई। वह सोच रही थी की सुनील जी शायद िनचे की बथ पर लेटी ई दो म से एक ी के साथ सोने
जा रहे थे। पर ऐसा कुछ नही ं आ। नीतू के मन म पहले ही कुछ शक था की वह दोनों जोिड़याँ एक दू सरे के ित कुछ ादा ही
मानी लग रही थी ं।

खैर, नीतू दु खी मन से पदा धीरे से खंच कर बंद करने वाली ही थी की उसके मुंह से आ य की िससकारी िनकलते िनकलते क
गयी। नीतू ने ऊपर की बथ पर लेटे ए कनल साहब की परछाईं सी आकृित को िनचे की बथ पर लेटी ई सुनीताजी के िब रम
से अफरातफरी म बाहर िनकलते ए दे खा। नीतू की तो जैसे साँसे ही क गयी। अरे ? सुनीताजी जो नीतू को दोपहर कुमार के बारे
म पाठ पढ़ा रही थी ं, उनके िब र म कनल अंकल? कनल साहब कब सुनीता जी के िब र म घुस गए? िकतनी दे र तक कनल
साहब सुनीताजी के िब र म थे? यह सवाल नीतू के िदमाग म घूमने लगे।

नीतू का माथा ही ठनक गया। ा सुनीताजी चलती टैन म ोितजी के पित कनल साहब से चुदवा रही थी ं? एक पु ष का एक ी
के साथ एक ही िब र म से इस तरह अफरातफरी म बाहर िनकलना एक ही बात की और इशारा करता था की कनल साहब
सुनीताजी की चुदाई कर रहे थे। और वह भी तब जब सुनीताजी के पित सामने की ही ऊपर की बथ म सो रहे थे?

और िफर वह सुनीता जी के िब र म से बाहर िनकल कर दू सरी और भाग खड़े ए तब जब सुनीताजी के पित अपनी बथ से िनचे
उतर वाश म की और चल िदए थे।

नीतू को कुछ समझ नही ं आ रहा था की यह सब ा हो रहा था। वह चुपचाप अपने िब र म पड़ी आगे ा होगा यह सोचती ई
कनल साहब और सुनीलजी के वापस आने का इं तजार करने लगी।

कुछ ही दे र म पहले सुनीलजी वापस आये। नीतू ने दे खा की वह सुनीताजी की बथ पर जाकर, झुक कर अपनी बीबी को जगा कर
कुछ बात करने की कोिशश कर रहे थे। कुछ दे र तक उन दोनों के िबच म कुछ बातचीत ई, पर नीतू को कुछ भी नही ं सुनाई
िदया। िफर नीतू ने दे खा की सुनीलजी एक अ े ब े की तरह वापस चुपचाप अपनी ऊपर वाली बथ म जाकर लेट गए।

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नीतू को लगा की कुछ न कुछ तो खचड़ी पक रही थी।

थोड़ी दे र तक इं तजार करने पर िफर कनल साहब भी वाश म से वापस आ गए। वह थोड़ी दे र िनचे सुनीताजी की बथ के पास
खड़े रहे। नीतू को ठीक से तो नही ं िदखा पर उस ने महसूस िकया की सुनीताजी के िब र म से शायद सुनीताजी का हाथ िनकला।
आगे ा आ वह अँधेरे के कारण नीतू दे ख नही ं पायी, पर उसके बाद कनल साहब अपनी ऊपर वाली बथ पर चले गए।

िड े म िफर से स ाटा छा गया। नीतू दे खने लगी पर काफी दे र तक कोई हलचल नही ं ई।

ऐसे ही शायद एक घंटे के करीब हो चुका होगा। नीतू आधी नी ंद म और आधे इंतजार म ना तो सो पा रही थी ना जग पा रही थी।
िनराश होकर नीतू की आँ ख बंद होने वाली ही थी की नीतू को िफर कुछ हलचल का अंदेशा आ। िफर नीतू ने पदा हटाया तो पाया
की सुनीलजी िफर अपनी बथ से िनचे उतर रहे थे।

इस बार नीतू को लगा की ज र कुछ ना कुछ नयी कहानी बनने वाली थी। नीतू ने सुनीलजी की परछाईं को जब अपनी बीबी
सुनीताजी की बथ की और जाते ए दे खा तो नीतू समझ गयी की सुनीलजी का मूड़ कुछ रोमांिटक हो रहा था और चलती टैन म वह
अपनी बीबी की चुदाई का आनंद लेने के मूड़ म लग रहे थे। नीतू बड़ी सतकता और ान से दे खने लगी। दे खते ही दे खते सुनीलजी
चुपचाप अपनी बीबी की बथ म सुनीताजी का क ल और च र ऊपर उठा कर उसम घुस गए।

बापरे ! उस व नीतू के चेहरे के भाव दे खने लायक थे। एक ही रात म दो दो आिशकाना हरकत? नीतू सोच रही थी की सुनीताजी
की चुदाई अभी कनल साहब कर ही चुके थे की अब सुनीताजी अपने पित से चुदवायगी ं? बापरे ! यह पुरानी पीढ़ी तो नयी पीढ़ी से
भी कही ं आगे थी! सुनीताजी के ै िमना के िलए भी नीतू के मन म काफी स ान आ। नीतू जानती थी की कनल साहब और
सुनीलजी अ े खासे जवान और तंदुर थे। उनका ल और ै िमना भी काफी होगा। ऐसे दो दो मद से एक ही रात म चुदवाना
भी मायने रखता था।

नीतू दे खती ही रही की सुनीलजी कैसे अपनी प ी सुनीताजी की चुदाई करते ह। पर अँधेरे और ढके ए होने के कारण काफी दे र
तक मश त करने पर भी वह कुछ दे ख नही ं पायी।

रात के दो बज रहे थे। नीतू को नी ंद आ ही गयी। नीतू आधा घंटा गहरी नी ंद सो गयी होगी तब उसने अचानक कुमार की साँसे अपने
नाक पर महसूस की। आँ ख खुली तो नीतू ने पाया की वह िनचे की बथ पर कुमार की बाहों म थी। कुमार उसे टकटकी लगा कर
दे ख रहा था। सारे पद बंद िकये ए थे। नीतू के पतले बदन को कुमार ने अपनी दो टांगों म जकड रखा था और कुमार की िवशाल
बाँह नीतू की पीठ पर उसे जकड़े ए िलपटी ई थी ं। कुमार ने नीतू को अपने ऊपर सुला िदया था। दोनों के बदन च र और
क ल से पूरी तरह ढके ए थे।

नीतू जैसे कुमार म ही समा गयी थी। छोटी से बथ पर दो बदन ऐसे िलपट कर लेटे ए थे जैसे एक ही बदन हो। नीतू की चूत पर
कुमार का खड़ा कड़क लौड़ा दबाव डाल रहा था। नीतू का घाघरा काफी ऊपर की और उठा आ था। नीतू तब भी आंधी नीद
ं म
ही थी। उसे िव ास नही ं हो रहा था की वह कैसे ऊपर से िनचे की बथ पर आगयी।

नीतू ने कुमार की और दे खा और कुछ खिसयानी आवाज म पूछा, "कुमार, म ऊपर की बथ से िनचे कैसे आ गयी?"

कुमार मु ु राये और बोले, "जानेमन तुम गहरी नी ंद सो रही थी। मने तु जगाया नही ं। म तु अपनों बाहों म लेना चाहता था। तो
मने तु हलके से अपनी बाहों म उठाया और उठाकर यहां ले आया।"

"अरे बाबा, तु काही घाव ह और अभी तो वह ताजा ह।" नीतू ने कहा।

"ऐसी छोटी मोटी चोट तो हमारे िलए कोई बड़ी बात नही ं। िफर तुम भी तो कोई ख़ास भारी नही ं हो। तु उठाना बड़ा आसान था।
बस यह ान रखना था की कोई दे ख ना ले।" कुमार ने अपनी मूछों पर ताव दे ते ए कहा।

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कुमार ने िफर नीतू का सर अपने दोनों हाथो ँ म पकड़ा और नीतू के हो ँठों पर अपने हो ँठ िचपका िदए। नीतू कुछ पल के िकये
ह ीब ी सी कुमार को दे खती ही रही। िफर वह भी कुमार से चु न की ि या म ऐसे जुड़ गयी जैसे उन दोनों के होंठ सील गए
हों। कुमार और नीतू दोनों एक दू सरे के होठ
ँ ों और मुंह म से सलीवा याने लार को चूस रहे थे। नीतू ने अपनी जीभ कुमार के मुंह म
डाल दो थी। कुमार उससे सारे रस जैसे िनकाल कर िनगल रहा था।

कुमार के चेहरे पर बंधी ं पि यां होने के कारण नीतू कुछ असमंजस म थी की कही ं कुमार को कोई दद ना हो। पर कुमार थे की दद
की परवाह िकये िबना नीतू को अपने बदन पर ऐसे दबाये ए थे की जैसे वह कही ं भाग ना जाये। नीतू िबलकुल कुमार के बदन से
ऐसी िचपकी ई थी की उसकी सांस भी क गयी थी।

नीतू को कभी िकसी ने इतनी उ टता से चु न नही ं िकया था। उसके िलए यह पहला मौक़ा था जब िकसी ह े क े पु ल े
चौड़े जवान ने उसे इतना गाढ़ आिलंगन िकया हो और इस तरह उसे चुम रहा हो। कुमार नीतू का सारा रस चूस चूस कर िनगल रहा
था यह नीतू को अ ा लगा। कुछ दे र बाद कुमारअपनी जीभ नीतू के मुंह म डाल और नीतू के मुंह के अंदर बाहर कर नीतू के मुंह
को अपनी जीभ से चोदने लगा।

नीतू बोल पड़ी, "कुमार यह ा कर रहे हो?"

कुमार ने कहा, " ै स कर रहा ँ।"

नीतू, "िकस चीज़ की ै स?"

कुमार: "जो मुझे आ खर म करना है उसकी ै स."

कुमार की बात सुनकर नीतू की जाँघों के िबच से रस चुने लगा। नीतू की टाँग ढीली पड़ गयी ं। नीतू ने कुमार की और शरारत भरी
आँ ख नचाते ए पूछा, "अ ा? जनाब ने यहाँ तक सोच िलया है?"

कुमार ने कहा, "मने तो उससे आगे भी सोच रखा है।"

वह कुमार की बात का जवाब नही ं दे पायी। नीतू समझ गयी थी की कुमार का इशारा िकस और है। शायद कुमार उसके साथ
िजंदगी िबताने की बात कर रहे थे।

नीतू के चेहरे पर उदासी छा गयी। वह जानती थी की वह कुमार की इ ा पूरी करने म असमथ थी। कुमार को पता नही ं था की वह
शादी शुदा थी। पर अँधेरे म भी कुमार समझ गए की नीतू कुछ मायूस सी लग रही थी।

कुमार नीतू की आँ खों म झाँक कर उसे दे खने लगा। नीतू ने पूछा, " ा दे ख रहे हो?"

कुमार: "तु ारी खूबसूरत आँ ख दे ख रहा ँ। म दे ख रहा ँ की मेरी माशूका कुछ मायूस है।"

नीतू: " ा तुम इतने अँधेरे म भी मेरी आँ ख दे ख सकते हो? मेरे चेहरे के भाव पढ़ सकते हो? मेरी आँ खों म तु ा िदख रहा है?"

कुमार: "तु ारी आँ खों म म मेरी सूरत दे ख रहा ँ।"

नीतू शमाती ई बोली, "यह बात सच है। मेरी आँ खों म, मेरे मन म अभी तु ारे िसवा कोई और नही ं है।"

कुमार ने कहा, "कोई और होना भी नही ं चािहए, ूंिक म तुमसे बेतहाशा ार करने लगा ँ। म नही ं चा ँगा की मेरी ारी जानू
और िकसी की और मुड़ कर भी दे खे।"

नीतू: "माशा अ ाह! अभी तो हम िमले ए इन मीन चंद घंटे ही ए ह और िमयाँ मुझे ार करने और अपना हक़ जमाने भी लग
गए?"

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कुमार: " ार घंटों का मोहताज नही ं होता, जानेमन! ार िदल से िदल के िमलने से होता है।"

नीतू, "दे खो कुमार! आप मेरे बारे म कुछ भी नही ं जानते। ार म कई बार इं सान धोका खा सकता है। तु मेरे बीते ए कल के बारे
म कुछ भी तो पता नही ं है।"

कुमार, "म तु ारे बीते ए कल के बारे म कुछ नही ं जानना चाहता। म ार म धोका खाने के िलए भी तैयार ँ।"

कुमार की बात सुनकर नीतू की आँ खों म पानी भर आया। पहली बार िकसी छै लछबीले नवयुवक ने नीतू से ऐसी ार भरी बात
कही थी। उस िदन तक अगर िकसी भी युवक ने नीतू की और दे खा था तो िसफ हवस की नजर से ही दे खा था। पर कुमार तो उसे
अपनी िजंदगी की रानी बनाना चाहते थे। नीतू ने अपने हो ँठ कुमार के होठ
ँ से िचपका कर कहा, "आगे की बात बादम करगे। अभी
तो म तु ारी ही ँ । तुम मुझे ार करना चाहते हो ना? तो करो।"

िफर नीतू ने कुमार के कानों के पास अपना मुंह ले जा कर कहा, " ा तु पता है की अभी इस व हम अकेले ही नही ं है जो इस
टैन म एक दू सरे से इतने घने ार म मशगूल ह?"

कुमार ने नीतू की और आ य से दे खा और बोले, " ा मतलब?"

नीतू ने कहा, "म ा क ं? मुझे कहते ए भी बड़ी शम आ रही है। यह जो सुनीताजी ह ना? िज ोंने तु बचाने की भरसक
कोिशश की थी? वह भी काफी तेज िनकली! मने अभी अभी दे खा की पहले उनके िब रम ोितजी के पित कनल साहब घुसे ए
थे। पता नही ं कबसे घुसे ए होंगे और उ ोंने सुनीता जी के साथ ा ा िकया होगा? िफर वह बाहर िनकल आये तो कुछ दे र
बाद अभी अभी सुनीताजी के पित सुनीलजी अपनी प ी सुनीताजी की बथ म उनके क ल म घुसे ए ह। शायद इस व जब हम
बात कर रहे ह तो वह कुछ और कर रहे होंगे।"

कुमार को यह सुनकर नीतू की बात पर िव ास नही ं आ। वह बोल पड़े , "नीतू तुम ा कह रही हो? एक ही रात म दो दो मद से
लीला? भाई कमाल है! यह पुरानी पीढ़ी तो हम से भी आगे है!" िफर कुछ सोच कर बोले, "उनको जो करना है, करने दो। हम अपनी
बात करते ह। हम बात ों कर रहे ह? भाई हम भी तो कुछ कर ना?"

हम अबतक की कहानी से दो िसख िमलती है। पहली यह की हम ने दे खा की कामवासना की ाला म कैसे कैसे नामी और अ े
ओहदे पर बैठे साहबान भी झुलस सकते ह। कई बार उ सही या गलत का ाल नही ं रहता। टैन म ज ूजी को उकसाने म
कुछ हद तक सुनीता का हाथ ज र था, पर अगर िकसी ने यह दे ख िलया होता और सबके सामने जािहर कर िदया होता की
ज ूजी जैसे बड़े ही स ािनत और जाने माने दे श भ आम के अफसर िकसी और की बीबी के िब र म जा कर उसके साथ
भ ी हालात म पाए गए, तो उनकी ाइ त रह जाती?

चाहे बड़ा ही गणमा हो या हमारे जैसा आम हो, अगर उस की जाँघों के िबच का ल या चूत स ीय है तो वह कोई भी
खूबसूरत से ी ी या पु ष की और आकिषत होना ाभािवक है। यह कुदरत का िनयम है। उसम भी यिद उ कोई ऐसी ी
या पु ष िमल जाए जो उनकी काम ीड़ा म साथ दे ने म इं टरे े ड हो तो कुछ ना कुछ कहानी बन ही जाती है।

पर यहां यह ख़ास तौर से गणमा यों को चािहए की ऐसी कोई पार रक सहमित से ीपु ष की काम ीड़ा हो तो भी
लोगों की नजरों से दू र बंद दरवाजे म हो वही बेहतर है। िटका िटप ी अथवा बदनामी करने वालों की कोई कमी नही ं है।

दू सरी बात यह की सबसे पहले तो यह समझ ल की कभी भी कोई भी मिहला से उनकी शत ितशत मज के िबना जबरद ी
करना गलत एवं गैर कानूनी दं डनीय अपराध होने के उपरांत बड़ा ही खतरनाक और महंगा सािबत हो सकता है।

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अगर सहमित से भी मैथुन होता है तो यह ान रखना चािहए की कही ं आप पर यह दाव उलटा ना पड़ जाए। इस िलए िजस िकसी
भी मिहला से आप शारी रक स जोड़ते हों तो उसकी स ूण सहमित होनी ज री है। धन, नौकरी, मोशन इ ािद लालच
दे कर िकसी मिहला को फांसने की कोिशश करना भी जुम है।

हालांिक इस कहानी म कोई जबरद ी की बात नही ं है, पर अगर िकसी मिहला को कोई आला अफसर, नेता, िबज़नेस मेन या िफर
कोई धािमक ओहदे पर बैठे ए अपने ओहदे या आिथक ताकत का गलत इ माल कर यौन ि या के िलए उसके मना
करने पर भी परे शान करे तो उस मिहला को चुप नही ं रहना चािहए और ऐसे लोगों का भंडाफोड़ करना चािहए। आजकल हमारी
ाियक और सरकारी महकमे इस मामले म काफी सजग है और बड़े बड़े रसूखदार यों को भी जेल जाना पड़ रहा है।

चिलए, हम वापस अपनी कहानी पर आते ह।

...

नीतू ने जब इशारा िकया की कनल साहब सुनीलजी की बीबी सुनीताजी की चुदाई कर चुके थे और उसके कुछ दे र बाद उसी व
सुनीताजी अपने पित से चुद रही थी तो उ आ य तो आ, पर िफर उ ोंने सोचा की दू सरों के िनजी मामलों म उ कोई दखल
अंदाजी या िटप ी नही ं करनी चािहए तो वह कुछ सोच कर बोले, "उनको जो करना है, करने दो। हम अपनी बात करते ह। हम
बात ों कर रहे ह? भाई हम भी तो कुछ कर ना?"

नीतू ने कुमार के गालों को चूमते ए कहा, "तो िफर करो ना, िकसने रोका है?"

नीतू के मन म कुमार के िलए इतना ार उमड़ पड़ा की वह कुमार के हो ँठों के अलावा उसके कपाल, उस के चेहरे पर बंधी
पि यां, उसके नाक, कान और बालों को भी चूमने लगी। नीतू की चूत म से पानी की धार बहने लगी थी। कुमार का ल एकदम
अटशन म खड़ा आ था और नीतू की चूत को कपड़ों के मा म से कुरे द रहा था।

कुमार का एक हाथ नीतू की गाँड़ की और बढ़ रहा था। नीतू की सुआकार गाँड़ पर हाथ प ंचते ही नीतू के पुरे बदन म एक तेज
िसहरन सी फ़ैल गयी। नीतू के मुंह से बरबस ही िससकारी िनकल गयी। कुमार नीतू की गाँड़ के गालों को बड़े ार से दबाया और
उ उँ गिलयाँ से चूँटी भर कर दबाने और मसलने लगा।

नीतू पर अजीब सी मदहोशी छा गयी थी। कुमार ने उसकी जान बचाई थी तो उसकी जान, उसका बदन और उसकी ह पर भी
कुमार का पूरा हक़ था। कुमार को वह अपना सबकुछ अपण कर दे ना चाहती थी। आगे चाहे कुछ भी हो, नीतू कुमार को अपनी
जात सौंपने के िलए बेबस हो रही थी।

नीतू ने िफर कुमार की आँ खों म आँ ख डाल कर पूछा, 'तुम इस रात मुझसे ा चाहते हो?"

कुमार ने कहा, "म तु पूरी तरह से मेरी बनाना चाहता ँ।"

नीतू ने कहा, "तो बनाओ ना? मने कहाँ रोका है? पर एक बात ान रहे। म तु ारे आगे के सपने पुरे ना कर सकुंगी! म चाहती ँ
की म पूरी िजंदगी तु ारी बन कर र ं। पर शायद यह मेरी ािहश ही बन कर रह जायेगी। शायद भा को यह मंजूर नही ं।"

कुमार को लगा की नीतू कुछ गंभीर बात करना चाहती थी। उसने पूछा, "जानेमन बोलो ना ऐसी ा बात है?"

नीतू ने कुमार के गालों पर चु ी भरते ए कहा, "आज की रात हम दोनों की रात है। आज और कोई बात माने नही ं रखती। म एक
बात और कहना चाहती ँ। यह सात िदन हमारे रहगे, यह मेरा तुमसे वादा है। म पूरी िजंदगी का वादा तो नही ं कर सकती पर यह
सात िदन मौक़ा िमलते ही म िदन म या रात म तु ारे पास कुछ ना कुछ जुगाड़ करके प ँच ही जाउं गी और िफर उस व म

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िसफ तु ारी ही र ंगी। तुम मुझसे जी भर कर ार करना। हाँ म तु सबके सामने नही ं िमल सकती। मेरे बारे म िकसी से भी कोई
बात या पूछताछ ना करना। यह बात ान रहे।"

कुमार नीतू की बात सुनकर बड़े ही अच े म पड़ गए। आ खर ऐसी कौनसी रह वाली बात थी, जो नीतू उ नही ं कहना चाहती
थी? पर कुमार जानते थे की िजससे ार करते ह उस पर िव ास रखना और उनकी बात का स ान करना ज री है। कुमार ने
और कुछ सोचना बंद िकया और वह नीतू के चारों और फैले ए बालों म खो गए।

टैन तेजी से िदशा को चीरती ई भाग रही थी। उसकी हलचल से कुमार और नीतू के बदन ऐसे िहल रहे थे वह दोनों चुदाई म लगे
हों। नीतू का हाथ बरबस ही उन दोनों के शरीर के िबच म घुस कर कुमार की जाँघों के िबच म कुमार के खड़े ए ल के पास जा
प ंचा। वह कुमार के ल को अपनी उँ गिलयों म महसूस करना चाहती थी। कुमार का ल नीतू की उठी ई जाँघों के िबच था
और इतना ल ा था की िबच म थोड़ा अंतर होते ए भी वह नीतू की चूत म ठोकर मार रहा था।

नीतू के हाथ ल के ऊपर महसूस करते ही कुमार की बोलती बंद हो गयी। नीतू ने कुमार के ल के इदिगद अपनी उँ गिलयों की
गोलाई बनाकर उसम उसको मुठी म पकड़ना चाहा। कपडे के दू सरी और भी कुमार का ल नीतू की मुठी म तो ना समा सका
पर िफर भी नीतू ने कुमार के ल को कुमार के पयजामे के ऊपर से ही सहलाना शु िकया। कुमार ने मारे उ ेजना के नीतू के
सर को िफर से अपने हाथों म पकड़ कर उसे अपने मुंह से िचपका कर नीतू को गाढ़ चु न करने लगा। कुमार का ल अपने पूव
रस का ाव कर रहा था। पहले से ही उसका ल उसके पूव रस की िचकनाहट से लथपथ था।

नीतू के पकड़ने से जैसे उसके ल म िबजली का करट दौड़ ने लगा। कुमार के ल की सारी नस उसके वीय के दबाव से फूल
गयी। कुमार ने अपने दोनों हाथ नीतू के सर से हटाए और नीतू की चोली पर रख कर चोली के ऊपर से ही उसके नो ँ को कुमार
दबाने लगे। कुमार और नीतू अपने ार की उ तम ऊंचाइयों को छूना चाहते थे।

नीतू कुमार के ल को ह े ह े से सहलाने लगी। कुमार के ल से िनकली िचकनाहट कुमार के पयजामे को भी िगला और
िचकना कर नीतू की उँ गिलयों म िचपक रही थी। नीतू इसे महसूस कर मन ही मन मु ु रायी। कुमार की उ ेजना वह समझ रही
थी। वह जानती थी कुमर उ चोदना चाहते थे और वह खुद भी उनसे चुदना चाहती थी। पर चुदाई के पहले थोड़ी छे ड़छाड़ का
खेल तो खेलना बनता है ना?

कुमार ने नीतू के ाउज के ऊपर से अपनी उँ गिलयाँ घुसा कर नीतू के उ दो फलों को अपन उं गलयों म पकड़ना चाहा। पर
नीतू के नो ँ का भराव इतना था की नीतू की चोली और ा इतनी टाइट थी की उसम म हाथ डाल कर उनको छूना उस हाल म
किठन था।

कुमार ने ज ी म ही नीतू की पीठ पर से नीतू के ाउज के बटन खोल िदए। बटन खुल जाने पर कुमार ने ा के क भी खोल
िदए। नीतू के न अब पूणतयाः आजाद थे। कुमार ने नीतू को अपने ऊपर ही बैठ जाने के िलए बा िकया और नीतू के अ ड़
न जो पूरी आजादी िमलते ए भी और इतने मोटे होने के बावजूद भी अकड़े ए िबना झूले खड़े थे उनको दोनों हाथों म पकड़
कर उ दबाने और मसलने लगे।

नीतू के नो ँ के िबच छोटी छोटी फुँिसयों का जाल फैलाये हलकी गुलाबी चॉकलेट रं ग की एरोला िजसके ठीक िबच म उसकी फूली
ई िन लो ँ को कुमार अपनी उँ गिलयों म िपचकाने लगे।

अचानक नीतू को अपनी कोहनी म कुछ िचकनाहट महसूस ई। नीतू को अजीब लगा की उसकी कोहनी म कैसे िचकनाहट लगी।
यह कुमार के ल से िनकला ाव तो नही ं हो सकता। नीतू ने अपने फ़ोन की टोच जलाई तो दे खा की उसकी कोहनी म कुमार का
लाल खून लगा था। तलाश करने पर नीतू ने पाया की उन दोनों के बदन को रगड़ने से एक जगह लगा घाव जो झ रहा था उस म
से खून रस ने लगा था। पर कुमार थे की कुछ आवाज भी नही ं की। वह अपनी माशूका को यह महसूस नही ं करवाना चाहते थे की
वह दद म है।

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नीतू को महसूस आ की कुमार का दद अभी भी था। ूंिक जब भी नीतू टै न के िहलने के कारण अथवा िकसी और वजह से
कुमार के ऊपर थोड़ी िहलती थी तो कुमार के मुंह से कभी कभी एकदम धीमी िससकारी िनकल जाती थी। नीतू समझ गयी की
कुमार अपना दद िछपाने की भरसक कोिशश कर रहे थे। वह नीतू को ार करने के िलए इतने उतावले हो रहे थे की अपना दद
नजर अंदाज कर रहे थे।

नीतू को कुमार का हाल दे ख बड़ा आ य आ। ा कोई मद िकसी ी को कभी इतना ार भी कर सकता है? ना िसफ कुमार ने
अपनी जान पर खेल कर नीतू को बचाया पर उसे ार करने के िलए अपना दद भी छु पाने लगा। नीतू ने उस से पहले कभी िकसी
से इतना ार नही ं पाया था। नीतू ने सोचा ऐसे ारे बांके बहादु र जांबाज और िवरले नवजवान इं सान पर अपना तन और शील तो
ा जान भी दे दे तो कम था। उस व तो उसके िलए कुमार के घावो ँ को ठीक करना ही एक मा ल था।

अपने नो ँ पर से कुमार का हाथ ना हटाते ए नीतू धीरे से कुमार से अलग ई और अपने शरीर का वजन कुमार के ऊपर से
हटाया और कुमार के बगल म बैठ गयी। जब कुमार उसकी यह ि या को आ य से दे खने लगा तो नीतू ने कहा, "जनाब, अभी
आप के घाव पूरी तरह नही ं भरे ह। आप परे शान मत होइए। म कही ं भागी नही ं जा रही ँ। आप पहले ज़रा ठीक हो जाइये। अगले
सात िदनों तक म आपकी ही ँ, यह मेरा आपसे वचन है।"

नीतू ने धीरे से अपना हाथ कुमार की जाँघों के िबच म रख िदया और वह कुमार के ल को पयजामे के ऊपर से ही सहलाने लगी।
कुमार ने फुत से अपने पयजामे का नाडा खोल िदया। पयजामे का नाडा खुलते ही कुमार का फनफनाता मोटा और काफी लंबा
ल नीतू की छोटी सी हथेली म आ गया। उस िदन तक नीतू ने अपने पित के अलावा िकसी बड़े आदमी का ल नही ं दे खा था।
उसके पित का ल अ र तो खड़ा होने म भी िद त करता था और अगर खड़ा हो भी गया तो वह चार इं च से ादा लंबा नही ं
होता था। कुमार का लंड उससे दु गुना तो था ही, ऊपर से उससे कई गुना मोटा भी था।

कुमार का ल हाथ की हथेली म महसूस होते ही नीतू के मुंह से नकल ही पड़ा, "हाय दै ा, तु ारा यह िकतना लंबा और मोटा
है? इतना ल ा और मोटा भी कभी िकसीका होता है ा?"

कुमार ने मु राते ए बोला, " ों? इतना बड़ा ल इससे पहले नही ं दे खा ा?"

नीतू ने, "ध तेरी! ा बात करते ह आप? शम नही ं आती ऐसी बात करते ए? तुम ा समझते हो? मुझे इसके अलावा कोई और
काम नही ं है ा?" यह कह कर शम से अपना मुंह च र म िछपा िलया। कुमार नीतू के शमाने से मसुकुरा उठे और नीतू की ठु ी
अपनी उँ गिलयों म दबा कर बोले, " जानेमन बात की शु आत तो तुमने ही की थी। बड़ा है छोटा है, आजसे यह िसफ तु ारा है।"

एक हाथ से नीतू कुमार के नंगे ल को सेहला रही थी और दोनों हाथों से कुमार नीतू के दो गु जों पर अपनी उँ गिलयाँ और
हथेली घुमा रहा था और बार बार नीतू की िन लों को िपचका रहा था। नीतू ने सोचा की वह समय और जगह चुदाई करने लायक
नही ं थी। कोई भी उ पदा हटा कर दे ख सकता था। दू सरी बात यह भी थी की नीतू जब मूड़ म होती थी तब चुदाई करवाते समय
उसे जोर से कराहने की आदत थी। उस रात एकदम स ाटे सी टैन म शोर करना खतरनाक हो सकता था।

नीतू ने कुमार का ल अपनी हथेली म लेकर उसे जोर से िहलाना शु िकया। नीतू ने कुमार से कहा, "अब तुम कुछ बोलना मत।
चुपचाप पड़े रहो। तु आज रात कोई प र म करने की ज रत नही ं है। ीज मेरी बात मानो। आज रात को हम कुछ नही ं करगे।
कुमार म तु ारी ँ। अब तुम चुपचाप लेटे रहो। म तु ारी गम िनकाल दे ती ँ। ओके? मने तु वचन िदया है की मौक़ा िमलते ही
म तु ारे पास आ जाउं गी और हम वह सब कुछ करगे जो तुम चाहते हो। पर इस व और कोई बात नही ं बस लेटे रहो।"

नीतू ने कुमार के ल को जोर से िहलाना शु िकया। कुछ ही दे र म कुमार का बदन अकड़ने लगा। कुमार अपनी आँखे भीच
ं कर
नीतू के हाथ का जादू अपने ल पर महसूस कर रहा था। कुमार से ादा दे र रहा नही ं गया। कुछ ही दे र म कुमार के ल से
उसके वीय की िपचकारी फुट पड़ी और नीतू का हाथ कुमार के वीय से लथपथ हो गया।

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सुनीलजी की आँ खों म नी ंद ओझल थी। वह बड़ी उलझन म थे। उ ोंने अपनी प ी सुनीता को तो कह िदया था की वह रात म
उसके साथ सोने के िलए (मतलब बीबी को चोदने के िलए) आएं गे, पर जब वा िवकता से सामना आ तो उनकी हवाही िनकल
गयी। िनचे के बथ पर ोितजी सोई थी ं। प ी के पास चले गए और अगर ोितजी ने दे ख िलया तो िफर तो उनकी नौबत ही आ
जायेगी।

हालांिक सुनीताजी तो सुनीलजी की बीबी थी,ं पर आ खर माशूका भी तो बीिबयों से जलती है ना? वह तो उ खरी खोटी सुनाएं गे
ही। कहगी, "अरे भाई अगर बीबी के साथ ही सोना था तो घर म ही सो लेते! रोज तो घर म बीबी के साथ सोते ए पेट नही ं भरा
ा? चलती टैन म उसके साथ सोने की ज रत ा थी? हाँ अगर माशूका के साथ सोने की बात होती तो समझ म आता है। ज
बाजी म कभी कबार ऐसा करना पड़ता है। पर बीबी के साथ?" बगैरा बगैरा।

ज ूजी ने दे ख िलया तो वह भी िटका िटप ी कर सकते थे। वह तो कुछ ख़ास नही ं कहगे पर यह ज र कहगे की "यार िकसी
और की बीबी के साथ सोते तब तो समझते। तुमतो अपनी बीबी को टैन म भी नही ं छोड़ते। भाई शादी के इतने सालों के बाद इतनी
आिशकी ठीक नही ं।"

खैर, सुनीलजी डरते कांपते अपनी बथ से िनचे उतर कर अपनी प ी की बथ के पास प ंचे। उ यह सावधानी रखनी थी की उ
कोई दे ख ना ले। यह दे ख कर उ अ ा लगा की कही ं कोई हलचल नही ं थी। ोितजी और ज ूजी गहरी नी ंद म लग रहे थे।
उनकी साँसों की िनयत आवाज उ सुनाई दे रही थी।

सुनीलजी को यह शांित ज र थीिक यिद कभी िकसी ने उ दे ख भी िलया तो आ खर वह ा कह सकते थे? आ खर वह सो तो


अपनी बीबी के साथे ही रहे थे न?

जब सुनीलजी अपनी बीबी सुनीता के क ल म घुसे तब सुनीता गहरी नी ंद म सो रही थी। सुनीलजी उ ीद कर रहे थे की सुनीता
जाग रही होगी। पर वह तो खराटे मार रही थी। लगता था वह काफी थकी ई थी। थकना तो था ही! सुनीता ने ज ूजी के साथ
करीब एक घंटे तक ेम ीड़ा जो की थी! सुनीलजी को कहाँ पता था की उनकी बीबी ज ूजी से कुछ एक घंटे पहले चुदवाना
छोड़ कर बाकी सब कुछ कर चुकी थी?

सुनीलजी उ ीद कर रहे थे की उनकी प ी सुनीता उनके आने का इंतजार कर रही होगी। उ ोंने क ल म घुसते ही सुनीता को
अपनी बाहों म िलया और उसे चु न करने लगे। सुनीता गहरी नी ंद म ही बड़बड़ायी, "छोडो ना ज ूजी, आप िफर आ गए? अब
काफी हो गया। इतना ार करने पर भी पेट नही ं भरा ा?"

यह सुनकर सुनीलजी को बड़ा झटका लगा। अरे ! वह यहां अपनी बीबी से ार करने आये थे और उनकी बीबी थी की ज ूजी के
ं से जमीन जैसे खसक गयी। हालांिक वह खुद अपनी बीबी सुनीता को ज ूजी के पास जाने
सपने दे ख रही थी? सुनीलजी के पॉव
के िलए ो ािहत कर तो रहे थे पर जब उ ोंने अपनी बीबी सुनीता के मुंह से ज ूजी का नाम सूना तो उनकी िस ीिप ी गुम हो
गयी। उनके अहंकार पर जैसे कुठाराघात आ।

पु ष भले ही अपनी बीबी को दू सरे कोई मद के से से करने के िलए उकसाये, पर जब वा व म दु सरा मद उसकी बीबी को
उसके सामने या पीछे चोदता है और उसे उसका पता चलता है तो उसे कुछ इषा, जलन या िफर उसके अहम को थोड़ी ही सही
पर हलकी सी चोट तो ज र प ँचती है। यह बात सुनीलजी ने पहली बार महसूस की। तब तक तो वह यह मानते थे की वह ऐसे
पित थे की जो अपनी प ी से इतना ार करते थे की यिद वह िकसी और मद से चुदवाये तो उनको र ी भर भी आपि नही ं होगी।
पर उस रात उनको कुछ तो महसूस ज र आ।

सुनीलजी ने अपनी बीबी को झकझोरते ए कहा, "जानेमन, म तु ारा पित सुनील ँ। ज ूजी तो ऊपर सो रहे ह। कही ं तुम
ज ूजी से चुदवाने के सपने तो नही ं दे ख रही थी?"

103
अपने पित के यह श सुनकर सुनीता की सारी नी ंद एक ही झटके म गायब हो गयी। वह सोचने लगी, "हो ना हो, मेरे मुंह से
ज ूजी का नाम िनकल ही गया होगा और वह सुनील ने सुन िलया। हाय दै ा! कही ं मेरे मुंहसे ज ूजी से चुदवाने की बात तो नी ंद
म नही ं िनकल गयी? सुनील को कैसे पूछूं? अब ा होगा?"

सुनीता का सोया आ िदमाग अब डबल तेजी से काम करने लगा। सुनीता ने कहा, "म ज ूजी ना नाम ले रही थी? आप का िदमाग
तो खराब नही ं हो गया?" िफर थोड़ी दे र क कर सुनीता बोली, "अ ा, अब म समझी। मने आपसे कहा था, 'अब ख ो जी, िफर
मेरी बथ पर ों आ गये? ा आप का मन िपछली रात इतना ार करने के बाद भी नही ं भरा?' आप भी कमाल ह! आपके ही मन
म चोर है। आप मेरे सामने बार बार ज ूजी का नाम ों ले रहे हो? म जानती ँ की आप यही चाहते हो ना की म ज ूजी से
चुदवाऊं? पर ीमान ान रहे ऐसा कुछ होने वाला नही ं है। अगर आपने ादा िजद की तो म उनको अपने करीब भी नही ं आने
दू ं गी। िफर मुझे दोष मत दीिजयेगा!"

अपनी बीबी की बात सुन कर सुनीलजी ल त हो कर माफ़ी मांगने लगे, "अरे बीबीजी, मुझसे गलती हो गयी। मने गलत सुन िलया।
म भी बड़ा बेवकूफ ँ। तुम मेरी बात का बुरा मत मानना। तुम मेरे कारण ज ूजी पर अपना गु ा मत िनकालना। उनका बेचारे
का कोई दोष नही ं है। म भी तुम पर कोई शक नही ं कर रहा ँ।"

बेचारे सुनीलजी! उ ोंने सोचा की अगर सुनीता कही ं नाराज हो गयी तो ज ूजी के साथ झगड़ा कर लेगी और बनी बनायी बात
िबगड़ जायेगी। इससे तो बेहतर है की उसे खुश रखा जाए।"

सुनीलजी ने सुनीता के हो ँठों पर अपने हो ँठ रखते ए कहा, "जानू,ं म जानता ँ की तुमने ा ण िलया है। पर ीज ज ूजी से
इतनी नाराजगी अ ी नही ं। भले ही ज ूजी से चुदवाने की बात छोड़ दो। पर ीज उनका साथ दे ने का तुमने वादा िकया है उसे
मत भुलाना। आज दोपहर तुमने ज ूजी की टाँगे अपनी गोद म ले र ी थी और उनको हलके से मसाज कर रही थी तो मुझे ब त
अ ा लगा था। सच म! म इषा से नही ं कह रहा ँ।"

सुनीता ने नखरे िदखाते ए कहा, "हाँ भाई, आपको ों अ ा नही ं लगेगा? अपनी बीबी से अपने दो की सेवा करवाने की बड़ी
इ ा है जो है तु ारी? तुम तो बड़े खुश होते अगर मने तु ारे दो का ल पकड़ कर उसे भी सहलाया होता तो, ों, ठीक
कहा ना मने?"

सुनीलजी को समझ नही ं आ रहा था की उनकी बीबी उनकी िफ उतार रही थी या िफर वह मजाक के मूड म थी। सुनीलजी को
अ ा भी लगा की उनकी बीबी ज ूजी के बारे म अब काफी खुलकर बात कर रही थी।

सुनीलजी ने कहा, "जानूं, ा वाकई म तुम ऐसा कर सकती हो? मजाक तो नही ं कर रही?"

सुनीता ने कहा, "कमाल है! तुम कैसे पित हो जो अपनी बीबी के बारे म ऐसी बाते करते हो? एक तो ज ूजी वैसेही बड़े आिशकी
िमजाज के ह। ऊपर से तुम आग म घी डालने का काम कर रहे हो! अगर तुमने ज ूजी से ऐसी बात की ना तो ऐसा ना हो की
मौक़ा िमलते ही कही ं वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने ल पर ही ना रख द! उनको ऐसा करने म एक िमनट भी नही ं लगेगा। िफर
यातो मुझे उनसे लड़ाई करनी पड़े गी, या िफर उनका ल िहलाकर उनका माल िनकाल दे ना पडे गा। हे पित दे व! अब तुम ही
बताओ ऐसा कुछ आ तो मुझे ा करना चािहए?"

अपनी बीबी के मुंह से यह श सुनकर सुनीलजी का ल खड़ा हो गया। यह शायद पहेली बार था जब सुनीता ने खु मखु ा
ज ूजी के ल के बारे म सामने चल कर ऐसी बात छे ड़ी थी। सुनील ने अपना ल अपनी बीबी के हाथ म पकड़ाया और बोले,
"जाने मन ऐसी थित म तो म यही क ंगा की ज ूजी िसफ मेरे दो ही नही ं, तु ारे गु भी ह। उ ोंने भले ही तु ारे िलए अपनी
जान कुबान नही ं की हो, पर उ ोंने तु ारे िलए अपनी रातों की नी ंद हराम कर तु िश ा दी िजसकी वजह से आज तु एक
शोहरत और इ त वाली जॉब के ऑफस आ रहे ह। तो अगर तुमने उनकी थोड़ी गम िनकाल भी दी तो कौनसा आसमान टू ट
पड़ने वाला है?"

104
अपने पित की ऐसी उ ेजना क बात सुनकर सुनीता की जाँघों के िबच म से पानी चुना शु हो गया। उसकी चूत म हलचल शु
हो गयी। पहले ही उसकी पटी भीगी ई तो थी ही। वह और गीली हो गयी। अपने आपको स ालते ए सुनीता ने कहा, "अ ा
जनाब! ा ज़माना आ गया है? अब बात यहां तक आ गयी है की एक पित अपनी बीबी को गैर मद का ल िहला कर उसका
माल िनकालने के िलए े रत कर रहा है?" िफर अपना सर पर हाथ मारते ए नाटक वाले अंदाज म सुनीता बोली, " पता नही ं आगे
चलकर इस किलयुग म ा ा होगा?"

सुनील ने अपनी बीबी सुनीता का हाथ पकड़ कर कहा, "जानेमन, जो होगा अ ा ही होगा।"

सुनीता की चूत म उं गली डाल कर सुनीलजी न कहा, "दे खो, म महसूस कर रहा ँ की तु ारी चूत तो तु ारे पानी से पूरी लथपथ
भरी ई है। ज ूजी की बात सुनकर तुम भी तो बड़ी उ ेिजत हो रही हो! भाई, कही ं तु ारी चूत म तो मचलन नही ं हो रही?"

सुनीता ने हँस कर कहा, "डािलग! तुम मेरी चूत म उं गिलयां डाल कर मुझे उकसा रहे हो और नाम ले रहे हो बेचारे ज ूजी का!
चलो अब दे र मत करो। मेरी चूत म वाकई म बड़ी मचलन हो रही है। अपना ल डालो और ज ी करो। कही ं कोई जाग गया तो
और नयी मुसीबत खड़ी हो जायेगी।"

मौक़ा पाकर सुनीलजी ने सोचा फायदा उठाया जाये। वह बोले, "पर जानेमन यह तो बताओ, की अगर मौक़ा िमला तो ज ूजी का
ल तो सेहला ही दोगी ना?"

सुनीता ने हँसते ए कहा, "अरे छोडो ना ज ूजी को। अपनी बात सोचो!"

सुनील को लगा की उसकी बात बनने वाली है, तो उसने और जोर दे ते ए कहा, "नही ं डािलग! आज तो तु बताना ही पडे गा की
ा तुम मौक़ा िमलने पर ज ूजी का ल तो िहला दोगी न?"

सुनीता ने गु े का नाटक करते ए कहा, "मेरा पित भी कमाल का है! यहां उसकी बीबी नंगी हो कर अपने पित को उसका ल
अपनी चूत म डालने को कह रही है, और पित है की अपने दो के ल के बारे म कहे जा रहा है! पहले ऐसा कोई मौक़ा तो
आनेदो? िफर सोचूंगी। अभी तो मारे उ ेजना के म पागल हो रही ँ। अपना ल ज ी डालो ना?"

सुनील ने िजद करते ए कहा, "नही ं अभी बताओ। िफर म फ़ौरन डाल दू ं गा।"

सुनीता ने नकली नाराजगी और असहायता िदखाते ए कहा, "म ा क ँ ? मेरा पित हाथ धोकर मुझे मनवाने के िलए मेरे पीछे जो
पड़ा है? यहां म मेरे पित के ल से चुदवाने के िलए पागल हो रही ँ और मेरा पित है की अपने दो की पैरवी कर रहा है! ठीक
है भाई। मौक़ा िमलने पर म ज ूजी का ल मसाज कर दू ं गी, िहला दू ं गी और उनका माल भी िनकाल दू ं गी, बस? पर मेरी भी एक
शत है।"

सुनीता यह सुन कर ख़ुशी से उछल पड़े और बोले, "बोलो, ा शत है तु ारी?"

सुनीता ने कहा, "म यह सब तु ारी हाजरी म तु ारे सामने नही ं कर सकती। हाँ अगर कुछ होता है तो म तु ज र बता दू ं गी।
बस, ा यह शत तु मंजूर है?"

सुनील ने फ़ौरन अपनी बीबी की चूत म अपना ल पेलते ए कहा, "मंजूर है, शत ितशत मंजूर है।"

और िफर दोनों पित प ी कामाि म म एक दू सरे की चुदाई म ऐसे लग पड़े की बड़ी मु ल से सुनीता ने अपनी कराहटों पर
काबू रखा।

सुनीलजी अपनी बीबी की अ ी खासी चुदाई कर के वापस अपनी बथ पर आ रहे थे की बथ पर चढ़ते चढ़ते ोितजी ने करवट
ली और जाने अनजानेम उनके पाँव से एक जोरदार िकक सुनीलजी के पाँव पर जा लगी। ोितजी शायद गहरी नी ंद म थी ं।

105
सुनीलजी ने घबड़ायी ई नजर से काफी दे र तक वही ं क कर दे खना चाहा की ोितजी कही ं जाग तो नही ं गयी ं? पर ोितजी के
िब र पर कोई हलचल नजर नही ं आयी। दु खी मन से सुनील वापस अपनी ऊपर वाली बथ पर लौट आये।

...

सुबह हो रही थी। ज ू े शन के नजदीक गाडी प ँचने वाली थी। सब या ी जाग चुके थे और उतर ने के िलए तैयार हो रहे थे।

जब कुमार जागे और उ ोंने ऊपर की बथ पर दे खा तो बथ खाली थी। नीतू जा चुकी थी। क ान कुमार को समझ नही ं आया की
नीतू कब बथ से उतर कर उ िबना बताये ों चली गयी। सुनीता उठकर फ़ौरन कुमार के पास उनका हाल जानने प ंची और
बोली, "कैसे हो आप? उठ कर चल सकते हो की म ील चेयर मँगवाऊं?"

क ान कुमार ने उ ध वाद दे ते ए कहा की वह चल सकते थे और उ कोई मदद की आव कता नही ं थी। जब उ ोंने
इधरउधर दे खा तो सुनीता समझ गयी की कुमार नीतू को ढू ं ढ रहे थे। सुनीता ने कुमार के पास आ कर उ हलकी आवाज म
बताया की नीतू ि गेिडयर साहब के साथ चली गयी थी। उस समय भी यह साफ़ नही ं आ की ि गेिडयर साहब नीतू के ा लगते
थे। यह रह बना रहा।

टैन से िनचे उतर ने पर सब ने महसूस िकया की ोितजी का मूड़ ख़ास अ ा नही ं था। वह कुछ उखड़ी उखड़ी सी लग रही थी ं।
ज ूजी ने सबको रोक कर बताया की उ वहाँ से करीब चालीस िकलोमीटर दू र िहमालय की पहािड़यों म च ल के िकनारे एक
आम कप म जाना है। उन सबको वहाँ से टै ी करनी पड़े गी। ज ूजी ने यह भी कहा की चूँिक वापसी की सवारी िमलना मु ल
था इस िलए टै ी वाले मुंह माँगा िकराया वसूल करते थे।

ज ूजी, ोितजी, सुनीता और सुनीलजी को बड़ा आनंद भरा आअ य तब आ जब एक ने आकर सबसे हाथ िमलाये और
सबके गले म फुलकी एक एक माला पहना कर कहा, "ज ू म आपका ागत है। म आम कप के मैनेजमट की तरफ से आपका
ागत करता ँ।"

िफर उसने आ ह िकया की सबकी माला पहने ए एक फोटो ली जाए। सब ने खड़े होकर फोटो खंचवाई। सुनील को कुछ अजीब
सा लगा की े शन पर हाल ही म उतरे कप म जाने वाले और भी कई आम के अफसर और लोग थे, पर ागत िसफ उन चारों
का ही आ था। फोटो खी ंचने के बाद फोटो खीच
ं ने वाला वह पता नही ं िभडम कहाँ गायब हो गया।

सुनील ने जब ज ूजी को इसम बारे म पूछा तो ज ूजी भी इस बात को लेकर उलझन म थे। उ ोंने बताया की उनको नही ं पता था
की आम कप वाले उनका इतना भ ागत करगे।

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खैर जब ज ूजी ने टै ी वालों से कप जाने के िलए पूछताछ करनी शु की तो पाया की चूँिक काफी लोग कप की और जा रहे थे
तो टै ी वालों ने िकराया बढ़ा िदया था। पर शायद उन चारों की िक तअ ी थी। एक टै ी वाले ने जब उन चारों को दे खा तो
भागता आ उनके पास आया और पूछा, " ा आपको आम कप साइट पर जाना है?"

जब सुनील ने हाँ कहा तो वह फ़ौरन अपनी पुरानी टू टी फूटी सी टै ी, के िजस पर कोई नंबर ेट नही ं था; ले आया और सबको
बैठने को कहा। जब ज ूजी ने िकराये के बारे म पूछा तो उसने कहा, "कुछ भी दे दे ना साहेब। मेरी गाडी तो कप के आगे के गाँव
तक जा ही रही है। खाली जा रहा था। सोच ों ना आपको ले चलू?ँ कुछ िकराया िमल जायेगा और आप से बात भी हो जाएं गी।"
ऐसा कह कर हम सब के बैठने के बाद उसने गाडी ाट कर दी।

जब ज ूजी ने िफर िकराए के बारे म पूछा तब उसने सब टै ी वालों से आधे से भी कम िकराया कहा। यह सुनकर सुनीता बड़ी
खुश ई। उसने कहा, "यह तो बड़ा ही कम िकराया माँग रहा है? लगता है यह भला आदमी है। यह कह कर सुनीता ने फ़ौरन

106
अपनी ज़ेब से िकराए की रकम टै ी वाले के हाथ म दे दी। सुनीता बड़ी खुश हो रही थी की उनको बड़े ही स े िकरायेम टै ी
िमल गयी। पर जब सुनीता ने ज ूजी की और दे खा तो ज ूजी बड़े ही गंभीर िवचारों म डूबे ए थे।

कप ज ू े शन से करीब चालीस िकलोमीटर दू र था और रा ा ख़ास अ ा नही ं था। दो घंटे लगने वाले थे। टै ी का डाइवर बड़ा
ही हँसमुख था। उसने इधर उधर की बात करनी शु की। ोितजी का मूड़ ठीक नही ं था। कनल साहब कुछ बोल नही ं रहे थे।
सुनील जी को कुछ भी पता नही ं था तब हार कर टै ी डाइवर ने सुनीता से बात करने शु की, ूंिक सुनीता बात करने म बड़ी
उ ािहत रहती थी। टै ी डाइवर ने सुनीता से उनके ो ाम के बारे म पूछा। सुनीता को ो ाम के बारे म कुछ ख़ास पता नही ं था।
पर सुनीता को िजतना पता था उसने डाइवर को सब कुछ बताया।

आ खर म दो घंटे से ादा का थकाने वाला सफर पूरा करने के बाद िहमालय कीखूबसूरत वािदयों म वह चारों जा प ंचे।

ज ू े शन से कप की और टै ी चला कर ले जाते ए पुरे रा े म सुनीलजी को ऐसा लगा जैसे टै ी का डाइवर "शोले" िप र


की "ध ो" की तरह बोले ही जा रहा था और सवाल पे सवाल पूछे जा रहा था। आप कहाँ से हो, ों आये हो, िकतने िदन रहोगे,
यहां ा ो ाम है, बगैरा बगैरा। सुनीता भी उस की बातों का जवाब दे ती जा रही थी िजतना उसे पता था।

िजसका उसे पता नही ं था तो वह ज ूजीको पूछती थी। पर ज ूजी थे की पूरी तरह मौन धरे ए िकसी भी बात का जवाब नही ं दे ते
थे। सुनीता डाइवर से काफी भािवत लग रही थी। वैसे भी सुनीता भाव से इतनी सरल थी की उसे भािवत करने म कोई ख़ास
मश त करने की ज रत नही ं पड़ती थी। सुनीता िकसीसे भी बातों बातों म दो ी बनानेम मािहर तो थी ही।

आ खर म ज ूजी ने डाइवर को टोकते ए कहा, "डाइवर साहब, आप गाडी चलाने पर ान दीिजये। बात करने से ान बट
जाता है। तब कही ं डाइवर थोड़ी दे र चुप रहा। सुनीता को ज ूजी का रवैया ठीक नही ं लगा। सुनीता ने ज ूजी की और कुछ
स ी से दे खा। पर जब ज ूजी ने सुनीता को सामने से सीधी आँख वापस स ी से दे खा तो सुनीता चुप हो गयी और खिसयानी
सी इधर उधर दे खती रही।

काफी मश त और उबड़ खाबड़ रा ों को पार कर उन चार याि यों का कािफला कप पर प ंचा। कप पर प ँचते ही सब लोग
िहमालय की सुंदरता और बफ भरे पहािड़यों की चोिटयों म और कुदरत के कई सारे खूबसूरत नजारों को दे खने म खो से गए।
सुनीता पहली बार िहमालय की पहािड़यों म आयी थी। मौसम म कुछ खुशनुमा सद थी। सफर से सब थके ए थे।

सारा सामान ागत कायालय म प ंचाया गया। ज ूजी ने दे खा की टै ी का डाइवर मु ार पर िस ो रटी पहरे दार से कुछ
पूछ रहा था। फ़ौरन ज ूजी भागते ए मु ार पर प ंचे। वह दे खना चाहते थे की टै ी डाइवर पहरे दार से ा बात कर रहा
था। ज ूजी को दू र से आते ए दे ख कर च पल म ही डाइवर ज ूजी की नज़रों से ओझल हो गया। ज ूजी ने उसे और उसकी
टै ी को काफी इधर उधर दे खा पर वह या उसकी टै ी नजर नही ं आये।

जब कनल साहब ने पहरे दार से पूछा की टै ी डाइवर ा पूछ रहा था तो पहरे दार ने कहा की वह कनल साहब और दू सरों के
ो ाम के बारे म पूछ रहा था। पहरे दार ने बताया की उसे कुछ पता नही ं था और नाही वह कुछ बता सकता था। कुछ दे र तक बात
करने के बाद डाइवर कही ं चला गया। जब कनल साहब ने पूछा की ा वह पहरे दार उस डाइवर को जानता था। तब पहरे दार ने
कहा की वह उस डाइवर को नही ं जानता था। डाइवर कही ं बाहर का ही लग रहा था। जब कनल साहब ने और पूछा की ा आगे
कोई गांव है, तो पहरे दार ने बताया की वह रा ा कप म आकर ख़तम हो जाता था। आगे कोई गाँव नही ं था।

कर् नल साहब बड़ी उलझन म डाइवर के बारे म सोचते ए जब रिज े शन कायालय वापस आये तब सुनीलजी ने ज ूजी को गहरी
सोच म दे खते ए पाया तो पूछा की ा बात थी की ज ूजी इतने परे शान थे?

ज ूजी ने कहा की डाइवर बड़े अजीब तरीके से वहार कर रहा था। डाइवर ऐसे पूछताछ कर रहा था जैसे उसको कुछ खबर
हािसल करनी हो। कनल साहब ने यह भी कहा की ज ू े शन पर उनको जो मालाएं पहनाई गयी ं और फोटो खी ंची गयी, वैसा

107
कोई ो ाम कप की तरफ से नही ं िकया गया था। ज ूजी की समझ म यह नही ं आ रहा था की ऐसा कौन कर सकता है और ों?
पर उसका कोई जवाब नही ं िमल रहा था।

सुनीलजी ने तक िकया की हो सकता है की कोई ग़लतफ़हमी से ऐसा आ। ज ूजी ने सोचते सोचते सर िहलाया और कहा, "यह
एक इ ेफाक या संयोग हो सकता है। पर िपछले कुछ िदनों म काफी इ ेफ़ाक़ हो रहे ह। मुझे कुछ ठीक नही ं लग रहा। म उं ीद
करता ँ की यह इ ेफ़ाक़ ही हो। पर हो सकता है की इसम कोई सुिनयोिजत चाल भी हो। सोचना पडे गा।" कनल साहब यह कह
कर रीसे शन की और कमरे की व था करने के िलए चल पड़े ।

सुनीलजी और सुनीता की समझ म कुछ नही ं आया। सब रसे शन की और चल पड़े ।

ज ूजी ने दो कमरे का एक सूट बुक कराया था। सूट म एक कॉमन डाइं ग म था और दोनों बैड म के िबच एक दरवाजा था।
आप एक म से दू सरे म म िबना बाहर गए जा सकते हो ऐसी व था थी। दोनों बैड म म अटै ड बाथ म था। कमरे की
खड़िकयों से कुदरत का नजारा साफ़ िदख रहा था। सुनीता ने खड़की से बाहर दे खा तो दे खती ही रह गयी। इतना खूबसूरत
नजारा उसने पहले कभी नही ं दे खा था।

सुनीता ने बड़ी ही उ ुकता से ोितजी को बुलाया और दोनों िहमालय की बफ ली चोिटयों को दे खने म मशगूल हो गए। सुनीलजी
पलंग पर बैठे बैठे दोनों मिहलाओं की छाितयो ँ म थत चोिटयों को और उनके िपछवाड़े की गोलाइयो ँ के नशीले नजारों को दे खने
म मशगूल थे। ज ूजी उसी पलंग के दू सरे छोर पर बैठे बैठे गहराई से कुछ सोचने म थे।

सुनीता ने ोितजी कप के िबलकुल नजदीक म ही एक ब त ही खूबसूरत झरना बह रहा था उसे िदखाते ए कहा, " ोितजी यह
िकतना सु र झरना है। यह झरना उस वाटर फॉल से पैदा आ है। काश हमलोग वहाँ जा कर उसम नहा सकते।"

ज ूजी ने यह सुन कर कहा, "हम बेशक वहाँ जा कर नहा सकते ह। वहाँ नहाने पर कोई रोक नही ं है। दर असल कई बार आम
के ही लोग वहाँ तैरते और नहाते ह। वहाँ कप वालों ने एक छोटा सा िमंग पूल जैसा ढ़ाँचा बनाया है। आप यहां से घने पेड़ों की
वजह से कुछ दे ख नही ं सकते पर वहाँ बैठने के िलए कुछ बच रखे ह और िनचे उतर ने के िलए सीिढ़यां भी बनायी ह। आपको एक
छोटा सा कमरा िदखाई रहा होगा। वह मिहलाओं और पु षों का कपडे बदलने का अलग अलग कमरा है। वहाँ वाटर फॉल के िनचे
और झरने म हम सब नहाने जा सकते ह।"

ज ूजी ने सुनीलजी को आं ख मारते ए कहा, "अ र, वाटर फॉल के पीछे अंदर की और कई बार कुछ कप छु पकर अपना
काम भी पूरा कर लेते ह! पर चूँिक यह कप की सीमा से बाहर है, इस िलए कप का मैनेजमट इस म कोई दखल नही ं दे ता। हाँ,
अगर कोई अक ात् होता है तो उसकी िज ेदारी भी कप का मैनेजमट नही ं लेता। पर उसम वैसे भी पानी इतना ादा गहरा नही ं
है की कोई डू ब सके। ादा से ादा पानी हमारी छाती तक ही है।"

सुनीता यह सुनकर ख़ुशी के मारे कूदने लगी और ोितजी की बाँह पकड़ कर बोली, " ोितजी, चिलए ना, आज वहाँ नहाने चलते
ह। म इससे पहले िकसी झरने म कभी भी नही ं नहायी। अगर हम गए तो आज म पहेली बार कोई झरने म नहाउं गी।"

िफर ोितजी की और दे ख कर शमाते ए सुनीता बोली, " ोितजी, ीज, म आपकी मािलश भी कर दू ं गी! ीज ज ूजी को कह
कर हम सब उस झरने म आज नहाने चलगे ना?"

ोितजी ने अपने पित ज ूजी की और दे खा तो ज ूजी ने घडी की और दे खते ए कहा, "इस समय करीब बारह बजे ह। हमारे
पास करीब दो घंटे का समय है। डे ढ़ से तीन बजे तक आम कटीन म लंच खाना िमलता है। अगर चलना हो तो हम इस दो घंटे म
वहा जाकर नहा सकते ह।"

सुनीता ज ूजी की बात सुनकर इतनी खुश ई की भागकर छोटे ब े की तरह ज ूजी से िलपटते ए बोली, "थक यू, ज ूजी!
हम ज र चलगे। िफर अपने पित की और दे ख कर सुनीता बोली, "हम चलगे ना सुनीलजी?"

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सुनीलजी ने सुनीता का जोश दे खकर मु ु रा कर तुरंत हामी भरते ए कहा, "ठीक है, आप इतना ादा आ ह कर रहे हो तो चलो
िफर अपना तौिलया, म सूट बगैरह िनकालो और चलो।"

िमंग सूट पहनने की बात सुनकर सुनीता कुछ सोच म पड़ गयी। उसने िहचिकचाते ए ोितजी के करीब जाकर उनके कानों
म फुसफुसाते ए पूछा, "बापरे ! िमंग कॉ ूम पहन कर नहाते ए मुझे सब दे खगे तो ा होगा?"

ोितजी सुनीता की नाक पकड़ कर खी ंची और कहा, "अभी तो तुम जाने के िलए कूद रही थी? अब एकदम ठं डी पड़ गयी? हम
नहाते ए कौन दे खेगा? और मानलो अगर दे ख भी िलया तो ा होगा? भरोसा रखो तु कोई रे प नही ं करे गा। अभी वहाँ कोई नही ं
है। बस हम चार ही तो ह। िफर इतने घने पेड़ चारों और होने के कारण हम वहाँ नहाते ए कोई कही ं से भी नही ं दे ख सकता। इसी
िलए तो ज ूजी कहते ह की यहां कई ार भरी कहािनयों ने ज िलया है।"

यह सुन कर सुनीता को कुछ तस ी ई। वह फ़टाफ़ट अपनी सूटकेस खोलने म लग गयी और ोितजी को ध ा दे ती ई बड़े
ार और िवन ता से बोली, " ोितजी अपने कमरे म जाइये और अपना िमंग कॉ ूम िनकािलये ना, ीज? चलते ह ना?"

ोितजी सुबह से ही कुछ गंभीर सी िदख रही थी ं। पर सुनीता की बचकाना हरकत दे ख कर हँस पड़ी और बोली, "ठीक है भाई।
चलते ह। पर तुम मुझे ध ा तो मत मारो।"

सुनीलजी क नाओं की उड़ान म खो रहे थे। वह सोच रहे थे ोितजी जब मीग


ं सूट पहनगी ं तो अपने िमंग सूट म कैसी
लगगी? उसिदन वह पहेली बार ोितजी को म सूट म दे ख पाएं गे। उनके मन म यह बात भी आयी की सुनीता भी िमंग सूट
म कमाल की िदखेगी। सुनीलजी सोच रहे थे की उनकी बीबी सुनीता को दे ख कर ज ूजी का ा हाल होगा? इस या ा के िलए
सुनीलजी ने सुनीता को एक पीस वाला म सूट लाने को कहा था। वह ऐसा था की उसम सुनीता को दे ख कर तो सुनीता के पित
सुनीलजी का ल भी खड़ा हो जाता था तो ज ूजी का ा हाल होगा?

खैर, कुछ ही दे र म यह सपना साकार होने वाला था ऐसा लग रहा था। िबना समय गँवाए दोनों जोिड़याँ अपने तैरने के कपडे साथ म
लेकर झरने की और चलदी ं। बाहर मौसम एकदम सुहाना था। वातावरण एकदम िनमल और सुग त था।

सुनीलजी और ज ूजी मद को कपडे बदलने के म म चले गए। पर झरने के पास प ँचते ही सुनीता जनाना कपडे बदलने के
कमरे के बाहर क गयी और कुछ असमंजस म पड़ गयी। ोितजी ने सुनीता की और दे खा और बोली, " ा बात है सुनीता? तुम
क ों गयी?"

सुनीता ोितजी के पास जाकर बोली, " ोितजी, मेरा तैरने वाला डे स इतना छोटा है। सुनीलजी ने मेरे िलए इतना छोटा कॉ ूम
खरीदा था की मुझे उसको पहन कर ज ूजी के सामने आने म बड़ी शम आएगी। म नहाने नही ं आ रही। आप लोग नहाइये। म
यहां बैठी आपको दे खती र ंगी। और िफर दीदी मुझे तैरना भी तो आता नही ं है।"

ोित जी ने सुनीता की बाह पकड कर कहा, "अरे चल री! अब ादा तमाशा ना कर! तूने ही सबको यहां नहाने के िलए आनेको
तैयार िकया और अब तू ही नखरे िदखा रही है? दे ख तूने मुझसे वादा िकया था, की तू मेरे पित ज ूजी से कोई पदा नही ं करे गी।
िकया था की नही ं? याद कर तुम जब मेरी मािलश करने आयी थी तब? तूने कहा था की तुम मेरे पित से मािलश नही ं करवा सकती
ूंिक तूने तु ारी माँ को वचन िदया था। पर तूने यह भी वादा िकया था की तुम बाकी कोई भी पदा नही ं करे गी? कहा था ना? और
जहां तक तुझे तैरना नही ं आता का सवाल है तो ज ूजी तुझे सीखा दगे। ज ूजी तो तैराकी म ए पट ह। म भी थोड़ा ब त तैर
लेती ँ। मुझे पता नही ं सुनीलजी तैरना जानते ह या नही ं?"

सुनीता मन ही मन म काँप गयी। अगर उस समय ोित जो को यह पता चले की सुनीता ने तो ोितजी के पित का ल भी
सहलाया था और उनका माल भी िनकाल िदया था तो बेचारी दीदी का ा हाल होगा? और अगर यह वह जान ले की ज ूजी ने भी
सुनीता के पुरे बदन को छु आ था तो ा होगा?

109
खैर, सुनीता ने ोितजी की और ार भरी नज़रों से दे खा और हामी भरते ए कहा, "हाँ दीदी आप सही कह रहे हो। मने कहा तो
था। पर मुझे उस कॉ ूम म दे ख कर कही ं आपके पित ज ूजी मुझसे कुछ ादा हरकत कर लगे तो ा होगा? म तो यह सोच
कर ही काँपने लगी ँ। मेरे पित सुनीलजी भी ऐसे ही ह। वह तो थोड़ा ब त तैर लेते ह।"

ोितजी ने हँस कर कहा, "कुछ नही ं करगे, मेरे पित। म उनको अ ी तरह जानती ँ। वह तु ारी मज के बगैर कुछ भी नही ं
करगे। अगर तुम मना करोगी को तो वह तु छु एं गे भी नही ं। पर खबरदार तुम उ छूने से मना मत करना! और तु ारे पित
सुनीलजी को तो म तैरना सीखा दू ं गी। तू चल अब!"

सुनीता ने हँस कर कहा, "दीदी, मेरी टाँग मत खी ंचो। मुझे ज ूजी पर पूरा भरोसा है। वह मेरे जीजाजी भी तो ह।"

"िफर तो तुम उनकी साली ई। और साली तो आधी घरवाली होती है।" ोितजी ने सुनीता को आँख मारते ए कहा।

सुनीता ने ोितजी को कोहनी मारते ए कहा, "बस करो ना दीदी!" और दोनों जनाना कपडे बदल ने के कमरे म चले गए।

जब सुनीता और ोितजी िमंग कॉ ूम पहन कर बाहर आयी ं तब तक सुनीलजी और ज ूजी भी तैरने वाली िन र पहन
कर बाहर आ चुके थे।

सुनीता की नजर ज ूजी पर पड़ी तो वह उ दे ख कर दं ग रह गयी। ज ूजी शावर म नहा कर पुरे गीले थे। ज ूजी के कसरती
गिठत ायु वाली पेिशयाँ जैसे कोई िफ के हीरो के जैसे छह बल पड़े ए पैक वाले पेट की तरह थी ं। उनके बाजुओ ं के ायु
उतने शश और उभरे ए थे की सुनीता मन िकया की वह उ सहलाये। ज ूजी के िबखरे ए गीले काले घुंघराले घने बाल
उनके सर पर िकतने सु र लग रहे थे। ज ूजी के चौड़े सीने पर भी घने काले बाल छाये ए थे। अपने पित की छाती पर भी कुछ
कुछ बाल तो थे, पर सुनीता चाहती थी की उसके पित की छाती पर घने बाल हों। ूंिक छाती पर घने बाल सुनीता को काफी
आकिषत करते थे।

पर जब सुनीता की नजर बरबस ज ूजी की िन र की और गयी तो वह दे खती ही रह गयी। सुनीता सोच रही थी की शायद उस
समय ज ूजी का ल खड़ा तो नही ं होगा। पर िफर भी ज ूजी की िन र के अंदर उनकी दो जाँघों के िबच इतना जबरद
बड़ा उभार था की ऐसा लगता था जैसे ज ूजी का ल कूद कर बाहर आने के िलए तड़प रहा हो। सुनीता को तो भली भाँती पता
था की उस िन रमज ूजी की जाँघों के िबच उनका िकतना मोटा और लंबा ल कोई नाग की तरह चुचाप छोटी सी जगह म
कुंडली मारकर बैठा आ था और मौक़ा िमलते ही बाहर आने का इंतजार कर रहा था। अगर वह खड़ा हो गया तो शामत ही आ
जायेगी।

सुनीता ने दे खा तो ज ूजी भी उसे एकटक दे ख रहे थे। सुनीता को ज ूजी की नजर अपने बदन पर दे ख कर बड़ी ल ा महसूस
ई। जब उसने कमरे म िमंग कॉ ूम पहन कर आयने म अपने आप को दे खा था तो उसे पता था की उसके करारे न उस
सूट म िकतने बड़े बाहर की और िनकले िदख रहे थे। सुनीता की सुआकार गाँड़ पूरी नंगी िदख रही थी। उसके िमंग कॉ ूम
की एक छोटी सी प ी सुनीता की गाँड़ की दरार म गाँड़ के दोनों गालों के िबच अंदर तक घुसी ई थी और गाँड़ को छु पाने म पूरी
तरह नाकाम थी।

सुनीता जानती थी की उस कॉ ूम म उसकी गाँड़ पूरी नंगी िदख रही थी। सुनीता की गाँड़ के एक गाल पर काला बड़ा सा ितल
था। वह भी साफ़ साफ़ नजर आ रहा था। सुनीता की गाँड़ के गालों के िबच म एक ह ा ारा छोटा सा ख ा भी िदखाई दे ता था।
ज ूजी की नजर उसकी गाँड़ पर गयी यह दे ख कर सुनीता के पुरे बदन म िसहरन फ़ैल गयी। वह नारी सुलभ ल ा के कारण
अपनी जांघों को एक दू सरे से िचपकाए ए दोनों मद के सामने खड़ी ा िछपाने की कोिशश कर रही थी उसे भी नही ं पता था।

आगे सुनीता की चूत पर इतनी छोटी सी उभरी ई प ी थी की उसकी झाँट के बाल अगर होते तो साफ़ साफ़ दीखते। सुनीता ने
पहले से ही अपन झाँटों के बाल साफ़ िकये थे। सुनीता की चूत का उभार उस कॉ ूम म िछप नही ं सकता था। बस सुनीता की चूत
के हो ँठ ज र उस छोटी सी प ी से ढके ए थे।

110
सुनीता शु कर रही थी वह उस समय पूरी तरह गीली थी, ूंिक ज ूजी की जांघों के िबच उन का ल ा ल का आकार दे ख
कर उसकी जाँघों के िबच से उसकी चूत म से उस समय उसका ी रस चू रहा था। अगर सुनीता उस समय गीली नही ं होती तो
दोनों मद सुनीता की जाँघों के िबच से चू रहे ी रस को दे ख कर यह समझ जाते की उस समय वह िकतनी गरम हो रही थी।

सुनीता ने अपने पित की और दे खा तो वह ोितजी को िनहारने म ही खोए ए थे। िमंग कॉ ूम म ोितजी क़यामत सी लग
भी तो रही ं थी ं। ोितजी की जाँघ कमाल की िदख रही ं थी ं। उन दो जांघों के िबच की उनकी चूत के ऊपर की प ी बड़ी मु ल से
उनकी चूत की खूबसूरती का राज छु पा रही ं थी।ं उनकी ल ी और माँसल जांघ जैसे सारे मद के ल को चुनौती दे रही थी ं। वहीँ
उनकी नंगी गाँड़ की गोलाई सुनीता की गाँड़ से भी ल ी होने के कारण कही ं ादा खूबसूरत लग रही थी ं।

ोितजी के घने और घुंघराले गीले बाल उनके पुरे चेहरे पर िबखरे ए थे, उ वह ठीक करने की कोिशश म लगी ई थी ं। उनकी
पतली और ल ी कमर िनचे ज़रा सा पेट उसके िनचे अचानक ही फुले ए िनत ो ँ के कारण िगटार की तरह खूबसूरत लग रहा
था। सुनीता और ोितजी के न मंडल एक सरीखे ही लग रहे थे। हालांिक ोितजी का िगला कॉ ूम थोड़ा ादा मिहम होने
के कारण उनकी दो गोलाकार चॉकलेटी रं ग के एरोला के िबच म थत फूली ई गुलाबी िन लो ँ की झाँखी दे रहा था।

ोित की नीली आँ ख शरारती होते ए भी उनकी गंभीरता दशा रही ं थी।ं सब से ादा कामो ेजक ोितजी के हो ँठ थे। उन हो ँठों
को मोड़कर कटा भरी आँ खों से दे खने की ोितजी की अदा जवाँ मद के िलए जान लेवा सािबत हो सकती थी ं। ज ूजी उस
बात का जीता जागता उदाहरण थे।

दोनों कािमिनयाँ अपने की कामुकता के जादू से दोनों मद को म मु कर रही ं थी ं। सुनीलजी तो ोितजी के बदन से आँ ख
ऐसे गाड़े ए थे की सुनीता ने उनका हाथ पकड़ कर उ िहलाया और कहा, "चलोजी, हम झरने की और चल?" तब कही ं जा कर
सुनीलजी इस धराधाम पर वापस लौटे।

सुनीता अपने पित सुनीलजी से िचपक कर ऐसे चल रही थी िजससे ज ूजी की नजर उसके आधे नंगे बदन पर ना पड़े । ोितजी
को कोई परवाह नही ं थी की सुनीलजी उनके बदन को कैसे ताड़ रहे थे। ब सुनीलजी की स िलयत के िलए ोित अपनी टांगों
को फैलाकर बड़े ही से ी अंदाज म अपने कू ों को मटका कर चल रही थी िजससे सुनीलजी को वह अपने की अदा का पूरा
नजारा िदखा सके।

सुनीलजी का ल उनकी िन र म फराटे मारा रहा था। दोनों कािमिनयों का जादू दोनों मद के िदमाग म कैसा नशा भर रहा था
वह सुनीलजी ने दे खा भी और महसूस भी िकया। सुनील बार बार अपनी िन र एडज कर अपने ल को सीधा और शांत रखने
की नाकाम कोिशश कर रहे थे। ोितजी ने उनसे काफी समय से कुछ भी बात नही ं की थी। इस वजह से उ लगा था की शायद
ोित उनसे नाराज थी ं।

सुनीलजी जानने के िलए बेचैन थे की ा वजह थी की ोितजी उनसे बात नही ं कर रही थी। जैसे ही ोितजी झरने की और चल
पड़ी, सुनीलजी भी सुनीता को छोड़ कर भाग कर ोित के पीछे दौड़ते ए चल िदए और ोितजी के साथ म चलते ए झरने के
पास प ंचे। सुनीता अपने पित के साथ चल रही थी। पर अपने पित सुनीलजी को अचानक ोितजी के पीछे भागते ए दे ख कर
उसे अकेले ही चलना पड़ा।

सुनीता के िबलकुल पीछे ज ूजी आ रहे थे। सुनीता जानती थी की उसके पीछे चलते ए ज ूजी चलते चलते सुनीता के मटकते
ए नंगे कू ों का आनंद ले रहे होंगे। सुनीता सोच रही थी पता नही ं उस की नंगी गाँड़ दे ख कर ज ूजी के मन म ा भाव होते
होंगे? पर बेचारी सुनीता, करे तो ा करे ? उसी ने तो सबको यहाँ आकर नहाने के िलए बा िकया था।

सुनीता भलीभांित जानती थी की ज ूजी भले कह या ना कह, पर वह उसे चोदने के िलए बेताब थे। सुनीता ने भी ज ूजी के ल
जैसा ल कभी दे खा ा सोचा भी नही ं था। कही ं ना कही ं उसके मन म भी ज ूजी के जैसा मोटा और लंबा ल अपनी चूत म
लेनेकी ािहश जबरद उफान मार रही थी। सुनीता के मन म ज ूजी के िलए इतना ार उमड़ रहा था की अगर उसकी माँ के
वचन ने उसे रोका नही ं होता तो वह शायद तब तक ज ूजी से चुदवा चुदवा कर गभवती भी हो गयी होती।

111
आगे आगे ोितजी उनके िबलकुल पीछे ोितजी से सटके ही सुनील जी, कुछ और पीछे सुनीता और आ खर म ज ूजी चल
पड़े । थोड़ी पथरीली और रे ती भरी जमीन को पार कर वह सब झरने की और जा रहे थे। सुनीलजी ने ोितजी से पूछा, "आ खर
बात ा है ोितजी? आप मुझसे नाराज ह ा?"

ोितजी ने िबना पीछे मुड़े जवाब िदया, "भाई, हम कौन होते ह , नाराज होने वाले?"

सुनीलजी ने पीछे दे खा तो सुनीता और ज ूजी क कर कुछ बात कर रहे थे। सुनील ने एकदम ोितजी का हाथ थामा और रोका
और पूछा, " ा बात है, ोितजी? ीज बताइये तो सही?"

ोितजी की मन की भड़ास आ खर िनकल ही गयी। उ ोंने कहा, "हाँ और नही ं तो ा? आपको ा पड़ी है की आप सोच की
कोई आपका इं तजार कर रहा है या नही?ं भाई िजसकी बीबी सुनीता के जैसी खुबसुरत हो उसे िकसी दू सरी ऐसी वैसी औरत की
और दे खने की ा ज रत है?"

सुनीलजी ने ोितजी का हाथ पकड़ा और दबाते ए बोले, "साफ़ साफ़ बोिलये ना ा बात है?"

ोित ने कहा, "साफ़ ा बोलूं? ा म सामने चल कर यह क ं, की आइये, मेरे साथ सोइये? मुझे चोिदये?"

सुनीलजी का यह सुनकर माथा ठनक गया। ोितजी ा कह रही ं थी ं? उतनी दे र म वह झरने के पास प ँच गए थे, और पीछे पीछे
सुनीता और ज ूजी भी आ रहे थे। ोित ने सुनील की और दे खा और कहा, "अभी कुछ मत बोलो। हम तैरते तैरते झरने के उस
पार जाएं गे। तब सुनीता और ज ूजी से दू र कही ं बैठ कर बात करगे।"

िफर ोित ने अपने पित ज ूजी की और घूम कर कहा, "डािलग, यह तु ारी चेली सुनीता को तैरना भी नही ं आता। अब तु
मै स के अलावा इसे तैरना भी िसखाना पडे गा। तुमने इससे मै स िसखाने की तो कोई फ़ीस नही ं ली थी। पर तैरना िसखाने के िलए
फ़ीस ज र लेना। आप सुनीता को यहाँ तैरना िसखाओ। म और सुनीलजी वाटर फॉल का मजा लेते ह।"

यह कह कर ोितजी आगे चल पड़ी और सुनीलजी को पीछे आने का इशारा िकया।

ोितजी और सुनीलजी झरने म कूद पड़े और तैरते ए वाटर फॉल के िनचे प ँच कर उं चाइसे िगरते ए पानी की बौछारों को
अपने बदन पर िगरकर िबखरते ए अनुभव करने का आनंद ले रहे थे। हालांिक वह काफी दू र थे और साफ़ साफ़ िदख नही ं रहा
था पर सुनीता ने दे खा की ोितजी एक बार तो पानी की भारी धार के कारण लड़खड़ाकर िगर पड़ी और कुछ दे र तक पानी म
कही ं िदखाई नही ं दी ं। उस जगह पानी शायद थोड़ा गहरा होगा। ूंिक इतने दू र से भी सुनीलजी के चेहरे पर एक अजीब परे शानी
और भय का भाव सुनीता को िदखाई िदया। सुनीता यं परे शान हो गयी की कही ं ोितजी डूबने तो नही ं लगी ं।

पर कुछ ही पलों म सुनीता ने चैन की साँस तब ली जब जोर से इठलाते हँसते ए ोितजी ने पानी के अंदर से अचानक ही बाहर
आकर सुनीलजी का हाथ पकड़ा और कुछ दे र तक दोनों पानी म गायब हो गए। सुनीता यह जानती थी की ोितजी एक द
तैराक थी ं। यह िश ा उ अपने पित ज ूजी से िमली थी।

सुनीता ने सूना था की ज ूजी तैराकी म अ ल थे। उ ोंने कई आं तररा ीय तैराकी ितयोिगता म इनाम भी पाए थे। सुनीता ने
ज ूजी की त ीर कई अखबारों म और सेना और आं तररा ीय खेलकूद की पि काओं म दे ख थी। उस समय सुनीता गव अनुभव
कर रही थी की उस िदन उसे ऐसे पारं गत तैराक से तैराकी के कुछ ाथिमक पाठ िसखने को िमलगे। सुनीता को ा पता था की
कभी भिव म उसे यह िश ा बड़ी काम आएगी।

िफलहाल सुनीता की आँ ख अपने पित और ोितजी की जल ीड़ा पर िटकी ई थी ं। उनदोनों के चालढाल को दे खते ए सुनीता
को यकीन तो नही ं था पर शक ज र आ की उस दोपहर को अगर उ मौक़ा िमला तो उसके पित सुनीलजी उस वाटर फॉल के
िनचे ही ोितजी की चुदाई कर सकते ह। यह सोचकर सुनीता का बदन रोमांिचत हो उठा। यह रोमांच उ ेजना या िफर ी सहज
इषा के कारण था यह कहना मु ल था।

112
सुनीता के पुरे बदन म िसहरन सी दौड़ गयी। सुनीता भलीभांित जानती थी की उसके पित अ े खासे चुद ड़ थे। सुनीलजी को
चोदने म महारथ हािसल था। िकसी भी औरत को चोदते समय, वह अपनी औरत को इतना स ान और आनंद दे ते थे की वह
औरत एक बार चुदने के बाद उनसे बार बार चुदवाने के िलए बेताब रहती थी। जब सुनीता के पित सुनीलजी अपनी प ी सुनीता को
चोदते थे तो उनसे चुदवाने म सुनीता को गझब का मजा आता था।

सुनीता ने कई बार द र की पािटयों म लड़िकयों को और चंद शादी शुदा औरतों को भी एक दू सरी के कानों म सुनीलजी की
चुदाई की तारीफ़ करते ए सूना था। उस समय उन लड़िकयों और औरतों को पता नही ं था की उनके बगल म खड़ी ं सुनीता
सुनीलजी की बीबी थी।

शायद आज उसके पित सुनीलजी उसी जोरदार ज े से ोितजी की भी चुदाई कर सकते ह, यह सोच कर सुनीता के मन म इषा,
उ ेजना, रोमांच, उ ाद जैसे कई अजीब से भाव ए।

सुनीता की चूत तो पुरे व झरने की तरह अपना रस बूँद बूँद बहा ही रही थी। अपनी दोनों जाँघों को एक दू सरे से कस के जोड़कर
सुनीता उसे िछपाने की कोिशश कर रही थी तािक ज ूजी को इसका पता ना चले।

सुनीता झरने के िकनारे प ँचते ही एक बच पर जा कर अपनी दोनों टाँगे कस कर एक साथ जोड़ कर बैठ गयी। ज ूजी ने जब
सुनीता को नहाने के िलए पानी म जाने से िहचिकचाते ए दे खा तो बोले, " ा बात है? वहाँ ों बैठी हो? पानीम आ जाओ।"

सुनीता ने लजाते ए कहा," ज ूजी, मुझे आपके सामने इस छोटी सी डे स म आते ए शम आती है। और िफर मुझे पानी से भी डर
लगता है। मुझे तैरना नही ं आता।"

ज ूजी ने हँसते ए कहा, "मुझसे शम आती है? इतना कुछ होने के बाद अब भी ा तुम मुझे अपना नही ं समझती?"

जब सुनीता ने ज ूजी की बात का जवाब नही ं िदया तो ज ूजी का चेहरा गंभीर हो गया। वह उठ खड़े ए और पानी के बाहर आ
गए। बच पर से तौिलया उठा कर अपना बदन पोंछते ए कप की और जाने के िलए तैयार होते ए बोले, "सुनीता दे खये, म
आपकी बड़ी इ त करता ँ। अगर आप को मेरे सामने आने म और मेरे साथ नहाने म िहचिकचाहट होती है ूंिक आप मुझे
अपना करीबी नही ं समझती ं तो म आपकी परे शानी समझ सकता ँ। म यहां से चला जाता ँ। आप आराम से ोित और सुनीलजी
के साथ नहाइये और वापस कप म आ जाइये। म आप सब का वहाँ ही इंतजार क ं गा।"

यह कह कर जब ज ूजी खड़े हो कर कप की और चलने लगे तब सुनीता भाग कर ज ूजी के पास प ंची। सुनीता ने ज ूजी को
अपनी बाहों म ले िलया और वह खुद उनकी बाँहों म िलपट गयी। सुनीता की आँ खों से आं सू बहने लगे।

सुनीता ने कहा, "ज ूजी, ऐसे श आगे से अपनी ज़बान से कभी मत िनकािलये। म आपको अपने आप से भी ादा चाहती ँ। म
आपकी इतनी इज्जत करती ँ की आपके मन म मेरे िलये थोड़ा सा भी हीनता का भाव आये यह म बदा नही ं कर सकती। सच
क ं तो म यह सोच रही थी की कही ं मुझे इस कॉ ूम म दे ख कर आप मुझे ह ट या चीप तो नही ं समझ रहे?"

ज ूजी ने सुनीता को अपनी बाहों म कस के दबाते ए बड़ी गंभीरता से कहा, "अरे सुनीता! कमाल है! तुम इस कॉ ूम म कोई
भी अ रा से कम नही ं लग रही हो! इस कॉ ूम म तो तु ारा पूरा सौंदय िनखर उभर कर बाहर आ रहा है। भगवान ने वैसे ही
यों को गजब की सुंदरता दी है और उनम भी तुम तो कोिहनूर हीरे की तरह भगवान की बेजोड़ रचना हो।

अगर तुम मेरे सामने िनव भी खड़ी हो जाओ तो भी म तु चीप या हलकट नही ं सोच सकता। ऐसा सोचना भी मेरे िलए पाप के
समान है। ूंिक तुम िजतनी बदन से सु र हो उससे कही ं ादा मन से खूबसूरत हो। हाँ, म यह नही ं नका ँ गा की मेरे मन म
तु दे ख कर कामुकता के भाव ज र आते ह। म तु मन से तो अपनी मानता ही ँ, पर म तु तन से भी पूरी तरह अपनी
बनाना तहे िदल से चाहता ँ। म चाहता ँ की हम दोनों के बदन एक हो जाएँ ।

113
पर म तब तक तुम पर ज़रा सा भी दबाव नही ं डालूंगा जब तक की तुम खुद सामने चलकर अपने आप मेरे सामने घुटने टेक कर
अपना सव मुझे समपण नही ं करोगी। अगर तुम मािननी हो तो म भी कोई कम नही ं ँ। तुम मुझे ना िसफ ब त ारी हो, म
तु ारी ब त ब त इ त करता ँ। और वह इ त तु ारे कपड़ों की वजह से नही ं है।"

ज ूजी के अपने बारे म ऐसे िवचार सुनकर सुनीता की आँ खों म से गंगा जमुना बहने लगी। सुनीता ने ज ूजी के मुंह पर हाथ रख
कर कहा, "ज ूजी, आप से कोई िजत नही ं सकता। आप ने चंद पलों म ही मेरी सारी उधेङबुन ख़ कर दी। अब मेरी सारी ल ा
और शम आप पर कुबान है। म शायद तन से पूरी तरह आपकी हो ना सकूँ, पर मेरा मन आपने िजत िलया है। म पूरी तरह आपकी
ँ। मुझे अब आपके सामने कैसे भी आने म कोई शम ना होगी। अगर आप कहो तो म इस कॉ ूम को भी िनकाल फक सकती
ँ।"

ज ूजी ने मु ु राते ए सुनीता से कहा, "खबरदार! ऐसा िबलकुल ना करना। मेरी धीरज का इतना ादा इ ेहान भी ना लेना।
आ खर म भी तो क ी िमटटी का बना आ इं सान ही ँ। कही ं मेरा ईमान जवाब ना दे दे और तु ारा माँ को िदया आ वचन टू ट
ना जाए!"

सुनीता अब पूरी तरह आ हो गयी की उसे ज ूजी से िकसी भी तरह का पदा, लाज या शम रखने की आव कता नही ं थी।
जब तक सुनीता नही ं चाहेगी, ज ूजी उसे छु एं गे भी नही ं। और िफर आ खर ज ूजी से छु आ ने म तो सुनीता को कोई परहेज रखने
की ज रत ही नही ं थी।

सुनीता ने अपनी आँ ख नचाते ए कहा, "ज ूजी, मुझे तैरना नही ं आता। इस िलए मुझे पानी से डर लगता है। म आपके साथ पानी
म आती ँ। अब आप मेरे साथ जो चाहे करो। चाहो तो मुझे बचाओ या डू बा दो। म आपकी शरण म ँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा
तैरना सीखा दोगे तो म तैरने की कोिशश क ँ गी।"

ज ूजी ने हाथम रखा तौिलया फक कर पानी म उतर कर मु ु राते ए अपनी बाँह फैला कर कहा, "िफर आ जाओ, मेरी बाँहों
म।"

दू र वाटर फॉल के िनचे नहा रहे ोित और सुनीलजी ने ज ूजी और सुनीता के िबच का वातालाप तो नही ं सूना पर दे खा की
सुनीता बेिझझक सीमट की बनी िकनार से छलांग लगा कर ज ूजी की खुली बाहों म कूद पड़ी। ोित ने फ़ौरन सुनील को कहा,
"दे खा, सुनीलजी, आपकी बीबी मेरे पित की बाँहों म कैसे चिल गयी? लगता है वह तो गयी!"

सुनीलजी ने ोितजी की बात का कोई उ र नही ं िदया। दोनों वाटर फॉल के िनचे कुछ दे र नहा कर पानी म चलते चलते वाटर
फॉल की दू सरी और प ंचे। वह दोनों सुनीता और ज ूजी से काफी दू र जा चुके थे और उ सुनीता और ज ूजी नही ं िदखाई दे
रहे थे।

वाटर फॉल के दू सरी और प ँचते ही सुनीलजी ने ोितजी से पूछा, " ा बात है? आप अपना मूड़ ों िबगाड़ कर बैठी ह?"

ोितजी ने कुछ गु े म कहा, "अब एक बात मेरी समझ म आ गयी है की मुझमे कोई आकषण रहा नही ं है।"

सुनीलजी ने ोितजी की बाँह थाम कर पूछा, "पर आ ा यह तो बताइये ना? आप ऐसा ों कह रही ं ह?"

ोित ने कहा, "भाई घर की मुग दाल बराबर यह कहावत मुझ पर तो ज र लागू होती है पर सुनीता पर नही ं होती।"

सुनीलजी: "पर ऐसा आप ों कहते हो यह तो बताओ?"

ोितजी: "और नही ं तो ा? अपनी बीबी से घर म भी पेट नही ं भरा तो आप टैन म भी उसको छोड़ते नही ं हो, तो िफर म और ा
क ं? हम ने तय िकया था इस या ा दर ान आप और म और ज ूजी और सुनीता की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी
बीबी के िब रे म ही घुस गए। ा आपको म नजर नही ं आयी?"

114
ोितजी िफर जैसे अपने आप को ही उलाहना दे ती ई बोली, "हाँ भाई, म ों नजर आउं गी? मेरा मुकाबला सुनीता से थोड़े ही हो
सकता है? कहाँ सुनीता, युवा, खूबसूरत, जवान, से ी और कहाँ म, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।"

सुनीलजी का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आ खर ोितजी ने उ अपनी बीबी के िब र म जाते ए दे ख ही िलया था। अब
जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छु पाने से ा फायदा?

सुनीलजी ने ोितजी के करीब जाकर उनकी ठु ी (िचबुक / दाढ़ी) अपनी उँ गिलयों म पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते ए
बोले, " ोितजी, सच सच बताइये, अगर म आपके िब र म आता और जैसे आपने मुझे पकड़ िलया वैसे कोई और दे ख लेता, तो
हम ा जवाब दे ते? वैसे म आपके िब र के पास खड़ा काफी िमनटों तक इस उधेड़बुन म रहा की म ा क ँ ? आपके िब र
म आऊं या नही ं? आ खर म मने यही फैसला िकया की बेहतर होगा की हम अपनी ेम गाथा बंद दीवारों म कैद रख। ा मने
गलत िकया?"

ोितजी ने सुनील की और दे खा और उ अपने करीब खंच कर गाल पर चु ी करते ए बोली, "मेरे ारे ! आप बड़े चालु हो।
अपनी गलती को भी आप ऐसे अ ाई म प रवितत कर दे ते हो की म ा कोई भी कुछ बोल नही ं पायेगा। शायद इसी िलए आप
इतने बड़े प कार हो। कोई बात नही ं। आप ने ठीक िकया। पर अब ान रहे की म अपनी उपे ा बदा नही ं कर सकती। म बड़ी
मािननी ँ और म मानती ँ की आप मुझे ब त ार करते ह और मेरी बड़ी इ त करते ह। आप की उपे ा म बदा नही ं कर
सकती। वचन दो की मुझे आगे चलकर ऐसी िशकायत का मौक़ा नही ं दोगे?"

सुनीलजी ने ोित को अपनी बाँहों म भर कर कहा, " ोित जी म आगे से आपको ऐसी िशकायत का मौक़ा नही ं दू ं गा। पर म भी
आपसे कुछ कहना चाहता ँ।"

ोित जी ने ा क ि से दे ख कर कहा, " ा?"

सुनीलजी ने कहा, "आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते ह। मुझे अ ा नही ं लगता। िजंदगी म वैसे ही ब त उलझन, ग़म और
परे शािनयाँ ह। जब हम दोनों अकेले म िमलते ह तब म चाहता ँ की कुछ अठखेिलयाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बात
हों। यह सच है की म आपकी गंभीरता, बु म ा और ान से ब त भािवत ँ।

पर वह बात हम तब कर जब हम एक दू सरे से औपचा रक प से िमल। जब हम इतने करीब आ गए ह और उसम भी जब हम


मज़े करने के िलए िमलते ह तो िफर भाड़ म जाए औपचा रकता! हम एक दू सरे को ों "आप" कह कर और एक दू सरे के नाम के
साथ "जी" जोड़ कर िनरथक खोखला स ान दे ने का यास करते ह? ोित तु ारा जो खु मखु ा बात करने का त रका है ना,
वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो ा बात है!"

ोित सुनील की बात सुन थोड़ी सोच म पड़ गयी ं। उ ोंने नज़र उठाकर सुनीलजी की और दे खा और पूछा, " सुनील तुम सुनीता से
बहोत ार करते हो। है ना?"

सुनील ोित की बात सुनकर कुछ झप से गए। उन दोनों के िबच सुनीता कहाँ से आ गयी? सुनील के चेहरे पर हवाइयां उड़ती ई
दे ख कर ोित ने कहा, "जो तुम ने कहा वह सुनीता का भाव है। म ोित ँ सुनीता नही ं। तुम ा मुझम सुनीता ढूँढ रहे हो?"

यह सुनकर सुनील को बड़ा झटका लगा। सुनील सोचने लगे, बात कहाँ से कहाँ प ँच गयी? उ ोंने अपने आपको स ालते ए
ोित के करीब जाकर कहा, "हाँ यह सच है की म सुनीता को ब त ार करता ँ। तुम भी तो ज ूजी को ब त ार करती हो।
बात वह नही ं है। बात यह है की जब हम दोनों अकेले ह और जब हम यह डर नही ं की कोई हम दे ख ना ले या हमारी बात सुन ना
ल तो िफर ों ना हम अपने नकली िमजाज का मुखौटा िनकाल फके, और असली प म आ जाय? ों ना हम कुछ पागलपन
वाला काम कर?"

"अ ा? तो िमयाँ चाहते ह, की म यह जो िबिकनी या एक छोटासा कपडे का टु कड़ा पहन कर तु ारे सामने मेरे िज की नुमाइश
कर रही ँ, उससे भी जनाब का पेट नही ं भरा? अब तुम मुझे पूरी नंगी दे खना चाहते हो ा?" शरारत भरी मु ान से ोित

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सुनीलजी की और दे खा तो पाया की सुनील ोित की इतनी सीधी और धड़ े से कही बात सुनकर खिसयानी सी श से उनकी
और दे ख रहे थे।

ोित कुछ नही ं बोली और िसफ सुनील की और दे खते ही रही ं। सुनील ने ोित के पीछे आकर ोित को अपनी बाहों म ले िलया
और ोित के पीछे अपना ल ोित की गाँड़ से सटा कर बोले, "ऐसे माहौल म म ोितजी नही ं ोित चाहता ँ।"

ोित ने आगे झक
ु कर सुनील को अपने ल को ोित की गाँड़ की दरार म सटा ने का पूरा मौक़ा दे ते ए सुनीलजी की और
पीछे गदन घुमाकर दे खा और बोली, "म भी तो ऐसे माहौल म इतने बड़े प कार और बु जीवी सुनीलजी नही ं िसफ सुनील को ही
चाहती ँ। म महसूस करना चाहती ँ की इतने बड़े स ािनत एक औरत की और आकिषत होते ह तो उसके सामने कैसे
एक पागल आिशक की तरह पेश आते ह।"

सुनील ने कहा, "और हाँ यह सच है की म यह जो कपडे का छोटासा टु कड़ा तुमने पहन रखा है, वह भी तु ारे तन पर दे खना नही ं
चाहता। म िसफ और िसफ, भगवान ने असिलयत म जैसा बनाया है वैसी ही ोित को दे खना चाहता ँ। और दू सरी बात! म यहां
कोई िव ात स ादक या प कार नही ं एक आिशक के प म ही तु ार करना चाहता ँ।"

पर ोित तो आ खरम ोित ही थी ना? उसने पट से कहा, "यह साफ़ साफ़ कहो ना की तुम मुझे चोदना चाहते हो?"

सुनील ोित की अ ड़ बात सुनकर कुछ झप से गए पर िफर बोले, " ोित, ऐसी बात नही ं है। अगर चुदाई ार की ही एक
अिभ हो, मतलब ार का ही एक प रणाम हो तो उसम गज़ब की िमठास और आ ादन होता है। पर अगर चुदाई मा तन
की आग बुझाने का ही एक मा ज रया हो तो वह एक तरफ़ा ाथ ना भी हो तो भी उसम एक दू सरे की हवस िमटाने के अलावा
कोई िमठास नही ं होती।"

सुनील की बात सुन ोित मु ु रायी। उसने सुनील के हाथों को ार से अपने नो ँ को सहलाते ए अनुभव िकया।

अपने आपको स ालते ए ोित ने इधर उधर दे खा। वह दोनों वाटर फॉल के दू सरी और जा चुके थे। वहाँ एक छोटा सा ताल था
और चारों और पहाड़ ही पहाड़ थे। िकनारे खूबसूरत फूलों से सुस त थे। बड़ा ही ार भरा माहौल था।

सुनीलजी और ोित दोनों ही एक छोटी सी गुफा म थे ओर गुफा एक िसरे से ऊपर पूरी खुली थी और सूरज की रौशनी से पूरी
तरह उ विलत थी। जैसा की ज ूजी ने कहा था, यह जगह ऐसी थी जहां ार भरे िदल और ासे बदन एक दू सरे के ार की
ास और हवस की भूख िबना िझझक खुले आसमान के िनचे िमटा सकते थे। ार भरे िदल और वासना से झल
ु सते ए बदन पर
िनगरानी रखने वाला वहाँ कोई नही ं था।

सुनीता और ज ूजी वाटर फॉल के दू सरी और होने के कारण नजर नही ं आ रहे थे। ोित अपनी ी सुलभ िज ासा को रोक नही ं
पायी और ोित ने वाटर फॉल के िनचे जाकर वाटर फॉल के पानी को अपने ऊपर िगरते ए दू र दू सरे छोर की और नज़र की तो
दे खा की उसके पित ज ूजी झक
ु े ए थे और उनकी बाँहों म सुनीता पानी की परत पर उ ी लेटी ई हाथ पाँव मारकर तैरने के
यास कर रही थी।

ोित जानती थी की उस समय सुनीता के दोनों बू ज ूजी की बाँहों से रगड़ खा रहे होंगे, ज ूजी की नजर सुनीता की करारी
नंगी गाँड़ पर िचपकी ई होगी। सुनीता को अपने इतने करीब पाकर ज ूजी का तगड़ा ल कैसे उठ खड़ा हो गया होगा यह
सोचना ोित के िलए मु ल नही ं था।

पता नही ं शायद सुनीता को भी ज ूजी का खड़ा और मोटा ल महसूस आ होगा। अपने पित को कोई और औरत से
अठखेिलयां करते ए दे ख कर कुछ पलों के िलए ोित के मन म ी सुलभ इषा का अजीब भाव उजागर आ। यह ाभािवक
ही था। इतने सालों से अपने पित के शरीर पर उनका ािम जो था!

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िफर ोित सोचने लगी, " ा वाकई म उनका अपने पित पर एकच ािम था?" शायद नही,ं ूंिक ोित ने यं ज ूजी को
कोई भी औरत को चोदने की छूट दे र ी थी। पर जहां तक ोित जानती थी, शादी के बाद शायद पहली बार ज ूजी के मन म
सुनीता के िलए जो भाव थे ऐसे उसके पहले िकसी भी औरत के िलए नही ं आये थे।

अपने पित और सुनील की प ी को एकदू सरे के साथ अठखेिलयाँ खेलते ए दे ख कर जब ोित वापस लौटी तो उसे याद आया की
सुनील चाहते थे की उसे ोित बनना था। ोित िफर सुनील को बाँहों म आगयी और बोली, "जाओ और दे खो कैसे तु ारी बीबी
मेरे पित से तैराकी िसख रही है। लगता है वह दोनों तो भूल ही गए ह की हम दोनों भी यहाँ ह।"

सुनीलजी ने ोितजी की बात को सुनी अनसुनी करते ए कहा, "उनकी िचंता मत करो। म दोनों को जानता ँ। ना तो वह दोनों
कुछ करगे और ना वह इधर ही आएं गे। पता नही ं उन दोनों म ा आपसी तालमेल या समझौता है की कुछ ना करते ए भी वह
एक दू सरे से िचपके ए ही रहते ह।"

ोितजी ने कहा, "शायद तु ारी बीबी मेरे पित से ार करने लगी है।"

सुनीलजी ने कहा, "वह तो कभी से आपके पित से ार करती है। पर आप भी तो मुझसे ार करती हो."

ोित ने सुनील का हाथ झटकते ए कहा, "अ ा? आपको िकसने कहा की म आपसे ार करती ँ?"

सुनील ने िफरसे ोितजी को अपनी बाँहों म ले कर ऐसे घुमा िदया िजससे वह उसके पीछे आकर ोित की गाँड़ म अपनी िन र
के अंदर खड़े ल को सटा सके। िफर ोित के दोनों नो ँ को अपनी हथेिलयों म मसलते ए सुनील ने ोित की गाँड़ के िबच
म अपना ल घुसाने की असफल कोिशश करते ए कहा, "आपकी जाँघों के िबच म से जो पानी रस रहा है वह कह रहा है।"

ोित ने कहा, "आपने कैसे दे खा की मेरी जाँघों के िबच म से पानी रस रहा है? म तो वैसे भी गीली ँ।"

सुनील ने ोित की जाँघों के िबच म अपना हाथ ड़ालते ए कहा, "म कब से और ा दे ख रहा था?"

िफर ोित की जाँघों के िबच म अपनी हथेली डाल कर उसकी सतह पर हथेली को सहलाते ए सुनील ने कहा, "यह दे खो आपके
अंदर से िनकला पानी झरने के पानी से कही ं अलग है। िकतना िचकना और रसीला है यह!" यह कहते ए सुनील अपनी उँ गिलयों
को चाटने लगे।

ोित सुनील की उं गिलयों को अपनी चूत के ार पर महसूस कर छटपटा ने लगी। अपनी गाँड़ पर सुनील जी का भारी भरखम
ल उनकी िन र के अंदर से ठोकर मार रहा था। ोित ने वाकई म महसूस िकया की उसकी चूत म से झरने की तरह उसका
ी रस चू रहा था। वह सुनीलजी की बाँहों म पड़ी उ ाद से सराबोर थी और बेबस होने का नाटक कर ऐसे िदखावा कर रही थी ं
जैसे सुनीलजी ने उनको इतना कस के पकड़ र ा था की वह िनकल ना सके।

ोित ने िदखावा करते ए कहा, "सुनीलजी छोडो ना?"

सुनील ने कहा, "पहले बोलो, सुनील। सुनीलजी नही ं।"

ोित ने जैसे असहाय हो ऐसी आवाज म कहा, "अ ा भैया सुनील! बस? अब तो छोडो?"

सुनील ने कहा, "भैया? तुम सैयां को भै ा कहती हो?"

ोित ने नाक चढ़ाते ए पूछा, "अ ा? अब तुम मेरे सैयां भी बन गए? दो की बीबी को फाँस ने म लगे हो? दो से ग ारी ठीक
बात नही ं।"

सुनीलजी ने कहा, " ोित, दो की बीबी को म नही ं फाँस रहा। दो की बीबी खुद फँस ने के िलए तैयार है। और िफर दो से
ग ारी कहाँ की? ग ारी तो अब होती ही जब िकसी की ारी चीज़ उससे छीन लो और बदले म अंगूठा िदखाओ। मने उनसे तु

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छीना नही ं, कुछ दे र के िलए उधार ही माँगा है। और िफर मने उनको अंगूठा भी नही ं िदखाया , बदले म मेरे दो को अकेला थोड़े
ही छोड़ा है? दे खो वह भी तो िकसी की कंपनी ए जॉय कर रहा है। और वह कंपनी उनको मेरी प ी दे रही है।"

ोित सुनीलजी को दे खती ही रही। उसने सोचा सुनीलजी िजतने भोले दीखते ह उतने ह नही ं। ोित ने कहा, "तो तुम मुझे ज ूजी
के साथ प ी की अदलाबदली करके पाना चाहते हो?"

सुनीलजी ने फौरन सर िहलाए ए कहा, " ोित, आपकी यह भाषा अ ील है। म कोई अदलाबदली नही ं चाहता। दे खये अगर
आप मुझे पसंद नही ं करती ह तो आप मुझे अपने पास नही ं फटकने दगी ं। उसी तरह अगर मेरी प ी सुनीता ज ूजी को ना पसंद
करे तो वह उनको भी नजदीक नही ं आने दे गी। मतलब यह पसंदगी का सवाल है। ोित म तु अपनी बनाना चाहता ँ। ा तु
मंजूर है?"

ोित ने कहा, "एक तो जबरद ी करते हो और ऊपर से मेरी इजाजत माँग रहे हो?"

सुनील एकदम पीछे हट गए। इनका चेरे पर िनराशा और गंभीरता साफ़ िदख रही थी। सुनील बोले , " ोितजी, कोई जबरद ी
नही ं। ार म कोई जबरद ी नही ं होती।"

ोित को सुनीलजी के चेहरे के भाव दे ख कर हँसी आ गयी। वह अपनी आँ ख नचाती ई बोली, "अ ा जनाब! आप कामातुर
औरत की भाषा भी नही ं समझते? अरे अगर भारतीय नारी जब हो कर कहती है 'खबरदार आगे मत बढ़ना' तो इसका तो
मतलब है साफ़ "ना"। ऐसी नारी से जबरद ी नही ं करनी चािहए। पर वह जब वासना की आग म जल रही होती है और िफर भी
कहती है, "छोडो ना? मुझे जाने दो।", तो इसका मतलब है "मुझे ार कर के मना कर चुदवाने के िलए तैयार करो तब म सोचूंगी।"
पर वह जब मु ाते ए कहती है "म सोचूंगी" तो इसका मतलब है वह तु मन ही मन से कोस रही है और इशारा कर रह है की
"म तैयार ँ। दे र ों कर रहे हो?" अगर वह कहे "हाँ" तो समझो वह भारतीय नही ं है।"

सुनीलजी ोित की बात सुनकर हंस पड़े । उ ोंने कहा, "तो िफर आप ा कहती ह?"

ोित ने शमा कर मु ाते ए कहा, "म सोचूंगी।"

सुनील ने फ़ौरन ोित की गाँड़ म अपनी िन र म फराटे मार रहा अपना ल सटा कर ोित के करारे नो ँ को उसकी
िबिकनी के अंदर अपनी उं गिलयां घुसाकर उनको मसलते ए कहा, "अब म िसफ दे खना नही ं और भी ब त कुछ चाहता ँ। पर
सबसे पहले म अपनी ोित को असली ोित के प म िबना िकसी आवरण के दे खना चाहता ँ।" ऐसा कह कर सुनील ने ोित
की कॉ ूम के कंधे पर लगी प ीयों को ोित की दोनों बाजुओ ं के िनचे की और सरका दी ं।

जैसे ही पि याँ िनचे की और सरक गयी ं तो सुनील ने उनको िनचे की और खसका िदया और ोित के दोनों उ नों को
अनावृत कर िदए। ोित के न जैसे ही नंगे हो गए की सुनील की आँ ख उनपर थम ही गयी ं। ोित के न पुरे भरे और फुले
होने के बावजूद थोड़े से भी झक
ु े ए ह नही ं थे।

ोित के नों की चोटी को अपने घेरे म डाले ए उसके गुलाबी एरोला ऐसे लगते थे जैसे गुलाबी रं ग का छोटा सा जापानी छाता
दो फूली ई िन लो ँ के इदिगद फ़ैल कर नो ँ को और ादा खूबसूरत बना रहे हों। बीचो िबच फूली ई िन ले ँ भी गुलाबी रं ग
की थी ं। एरोला की सतह पर जगह जगह फुंिसयां जैसी उभरी ईं चा नों की खूबसूरती म चार चाँद लगा दे ती थी ं। सा ात्
मेनका ग से िनचे उतर कर िव ािम का मन हरने आयी हो ऐसी खूबसूरती अद् भुत लग रही थी।

ोित की कमर रे त घडी के सामान पतली और ऊपर नो ँ काऔर िनचे कू ों के उभार के िबच अपनी अनूठी शान दिशत कर
रही थी। ोित की नािभ की गहराई कामुकता को बढ़ावा दे रही थी। ोित की नािभ के िनचे ह ा सा उभार और िफर एकदम
चूत से थोडासा ऊपर वाला चढ़ाव और िफर चूत की पंखुिडयों की खाई दे खते ही बनती थी। सबसे ादा खूबसूरत ोित की गाँड़
का उतारचढ़ाव था। उन उतारचढ़ाव के ऊपर िटकी ई सुनील की नजर हटती ही नही ं थी। और उस गाँड़ के दो खूबसूरत गालों
की तो बात ही ा?

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उन दो गालों के िबच जो दरार थी िजसम ोित की कॉ ूम के कपडे का एक छोटासा टु कड़ा फँसा आ था वह ोित की गाँड़
की खूबसूरती को ढकने म पूरी तरह असफल था।

सुनील की धीरज जवाब दे ने लगी। अब वह ोित को पूरी तरह अनावृत (याने न प म) दे खना चाहते थे। सुनील ने ोित की
कमर पर लटका आ उनका कॉ ू और िनचे, ोित के पॉव
म ं की और खसकाया। ोित ने भी अपने पाँव बारी बारी से उठाकर
उस कॉ ूम को पाँव के िनचे खसका कर झुक कर उसे उठा िलया और िकनारे पर फक िदया। अब ोित छाती तक गहरे पानी
म पूरी तरह नंगी खड़ी थी।

ना चाहते ए भी सुनील न ोित की खूबसूरती की नंगी सुनीता से तुलना करने से अपने आपको रोक ना सका। हलांिक सुनीता
भी बलािक खूबसूरत थी और नंगी सुनीता कमाल की सु र और से ी थी, पर ोित म कुछ ऐसी किशश थी जो अतुलनीय थी।
हर मद को अपनी बीबी से दू सरे की बीबी हमेशा ादा ही सु र लगती है।

सुनील ने नंगी ोित को घुमा कर अपनी बाँहों म आसानी से उठा िलया। हलकीफुलकी ोित को पानी म से उठाकर सुनील पानी
के बाहर आये और िकनारे रे त के िब र म उसे िलटा कर सुनील उसके पास बैठ गए और रे त पर लेटी ई न ोित के बदन को
ऐसे ार और दु लार से दे खने लगे जैसे कई ज ों से कोई आिशक अपनी माशूका को पहली बार नंगी दे ख रहा हो।

ऐसे अपने पुरे बदन को घूरते ए दे ख ोित शमायी और उसने सुनीलकी ठु ी अपनी उँ गिलयों म पकड़ कर पूछा, "ओये! ा
दे ख रहे हो? इससे पहले िकसी नंगी औरत को दे खा नही ं ा? ा सुनीता ने तु भी अपना पूरा नंगा बदन िदखाया नही?ं "

ोित की बात सुनकर सुनील सकपका गए और बोले, "ऐसी कोई बात नही ं, पर ोित तु ारी सुंदरता कमाल है। अब म समझ
सकता ँ की कैसे ज ूजी जैसे हरफनमौला आिशक को भी तुमने अपने के जादू म बाँध रखा है।"

सुनील िफर उठे और उठ कर रे त पर लेटी ई ोित को अपनी दोनों टाँगों के िबच म लेते ए ोित के बदन पर झक
ु कर अपना
पूरा ल ा बदन ोित के ऊपर से सटाकर उस पर ऐसे लेटे िजससे उसका पूरा वजन ोित पर ना पड़े । िफर अपने हो ँठों को
ोित के हो ँठों से सटाकर उसे चु न करने लगे। ोित ने भी सुनील के होठ
ँ ों को अपने हो ँठों का रस चूमने का पूरा अवसर िदया
और खुद भी बार बार अपना पडू उठाकर सुनील के फूल कर उठ खड़े ए ल का अपनी रस रस रही चूत पर महसूस करने
लगी।

ऐसे ही लेटे ए दो बदन एक दू सरे को महसूस करने म और एक दू सरे के बदन की ार और हवस की आग का अंदाज लगाने म
मशगूल हो गए। उ समय को कोई भी ाल नही ं था। ोित सुनील के हो ँठों को चूसकर उनकी लार बड़े ार से िनगल रही थी।
ोित की ासी चूत म गजब की मचलन हो रही थी। अनायास ही ोित का हाथ अपनी जाँघों के िबच चला गया।

ोित सुनील का ल अपनी ासी चूत म डलवाने के िलए बेताब हो रही थी। जब सुनील ोित के होठ
ँ ों का रस चूसने म लगे ए
थे तब ोित अपनी उँ गिलयों से अपनी चूत के ऊपरी िह े वाले हो ँठों को िहला रही थी। सुनील ने महसूस िकया की ोित की चूत
म अजीब सी हलचल होनी शु हो चुकी थी।

सुनील ोित के ऊपर ही घूम कर अपना मुंह ोित की जाँघों के िबच म ले आये। सुनील का ल ोित के मुंह को छू रहा था।
ोित की चूत तब सुनील की ासी आँ खों के सामने थी। ोित की चूत की झाँट ोित ने इतने ार से साफ़ की थी की बस
थोडे से हलके हलके बाल नजर आ रहे थे। सुनील को बालों से भरी ई चूत अ ी नही ं लगती थी। वह हमेशा अपनी प ी सुनीता की
चूत भी साफ़ दे खना चाहते थे। कई बार तो वह खुद ही सुनीता की चूत की सफाई कर दे ते थे।

ोित अपनी चूत म उं गिलयां डाल कर अपनी उ जेना बढ़ा रही थी। सुनील ने ोित की उं गिलयां हटाकर वहाँ अपनी जीभ रख
दी। ोित की टाँगों को और चौड़ी कर ोित की चूत के ार पर चा को सुनील चाटने लगे। पानी जीभ की नोक को ोित की
संवेदनशील चा पर कुरे दते ए सुनील ोित की चुदवाने की कामना को एक उ ाद के र पर वह प ंचाना चाहते थे।

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सुनील की जीभ लप लप ोित की चूत को चाटने और कुरे दने लगी। यह अनुभव ोित के िलए बड़ाही रोमांचक था ूंिक उसके
पित ज ूजी शायद ही कभी अपनी बीबी की चूत को चाटते थे। दू सरी तरफ सुनील का ल एकदम घंटे की तरह खड़ा और कड़ा
हो चुका था। ोित ने सुनील की िन र के इला क म अपनी उं गली फँसायी और िन र को टांगो की और खसकाने लगी।

ोित सुनील का ल दे खना और महसूस करना चाहती थी। ोित ने सुनील की िन र को पूरी तरह उनके पाँव से िनचे की
और खसका िदया तािक सुनील अपने पाँव को मोड़ कर िन र को िनकाल फक सके। िन र के िनकलते ही, सुनील का खड़ा
मोटा ल ोित के मुंह के सामने ुत आ। ोित ने सुनील का लंबा और मोटा ल अपनी उँ गिलयों म िलया और उसे ार
से िहलाने और सहलाने लगी।

ोित ने सुनील को पूछा, "सुनील, एक बात बताओ। तुमने मुझे कभी अपने सपने म दे खा है? ा मेरे साथ सपने म तुमने कुछ
िकया है?"

सुनील ने ोित की चूत म अपनी दो उँ गिलयाँ डालकर चूत की संवेदनशील चा को उँ गिलयों म रगड़ते ए कहा, " ोित, कसम
तु ारी! एक बार नही ं, कई बार मने मेरी बीबी सुनीता को ोित समझ कर चोदा है। एक बार तो सुनीता को चोदते ए मेरे मुंह से
अनायास ही तु ारा नाम िनकल गया। पर सुनीता को समझ आये उससे पहले मने बात को बदल िदया तािक उसे शक ना हो की
चोद तो म उसे रहा था पर याद तु कर रहा था।"

हर औरत, ख़ास कर िकसी और औरत के मुकाबले अपनी तारीफ़ सुनकर ाभािवक प से खुश होती ही है। मद लोग यह
भलीभांित जानते ह और अपनी जोड़ीदार को चुदाई के िलए तैयार करने के िलए यह ा का अ र उपयोग करते ह। जो भी
पित लोग मेरी इस कहानी को पढ़ रहे हों, ान रख की अपनी प ी को चुदाई के िलए तैयार करने के िलए हमेशा उसके प,गुण
और बदन की खूब तारीफ़ करो।

अगर कोई मिहला इसे पढ़ रही है तो समझे की पित उनको वाकई म खूब ेम करते ह और वह जो कह रहे ह उसे सच समझे।

आसमान म सूरज ढलने लगा था। अचानक ोित को ख़याल आया की बातों बातों म समय जा रहा था। ोित ने सुनील से कहा,
"यार समय जा रहा है। तु ारी बीबी तो मेरे पित को घास डालने वाली है नही ं। मेरे पित तो तु ारी बीबी को तैराकी िसखाते ए ही
रह जाएं गे। आ खर म रात को मुझे ही उनकी गम िनकालनी पड़े गी। पर चलो तुम तो कुछ करो ना? तु ारे दो की बीबी तो तैयार
है।"

सुनील ोित की उ ृं खल खरी खरी बात सुनकर मु ु रा िदए। ोित की साफ़ साफ़ बात सुनील के ल को फनफना के िलए
काफी थी ं। सुनील ने ोित को बैठा िदया और उनको अपनी बाँहों म उठा कर िफर पानी म ला कर रख िदया। िकनारे के प र पर
ोित के हाथ िटका कर खुद ोित के पीछे आ गए और ोित की नंगी करारी और खूबसूरत गाँड़ की मन ही मन शंशा करते
ए थोड़ा झक
ु कर ोित की गाँड़ की दरार म अपना ल घुसेड़ा।

ोित ने सुनील का ल अपनी उँ गिलयों म िलया और अपनी चूत की पँखुिड़यों पर थोड़ा सा रगड़ते ए, उसे अपनी चूत के ार
पर िटका िदया। िफर अपनी चूत की पंखुिड़यों को फैलाकर अपने ेमिछ म उसे थोडासा घुसने िदया। अपनी गाँड़ को थोड़ा सा
पीछे की और ध ा मार कर ोित ने सुनील को आ ान िकया की आगे का काम सुनील यं करे ।

सुनील ने धीरे से ोित की छोटी सी नाजुक चूत म अपना मोटा लंबा और लोहे की छड़ के सामान कड़क खड़े ल को थोड़ा सा
घुसेड़ा। ोित पहली बार िकसी मद से पानी म चुदवा रही थी। यहां तक की उस िदन तक उसने अपने पित से भी कभी पानी म
खड़े रह कर चुदवाया नही ं था। यह पहला मौक़ा था की ोित पानीम खड़े खड़े चुदवा रही थी और वह भी एक पराये मद से।

सुनील ने धीरे धीरे ोित की चूत म अपना ल पेलना शु िकया। ोित की चूत का मुंह छोटा होने के कारण ोित को दद हो
रहा था। पर ोित को इस दद की आदत सी हो गयी थी। सुनील का ल शायद ोित के पित ज ूजी के ल मुकाबले उ नीस

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ही होगा। पर िफर भी ोित को क हो रहा था। ोित ने अपनी आँ ख मूंदली ं और सुनील से अ ीखासी चुदाई के िलए अपने
आपको तैयार कर िलया।

धीरे धीरे दद कम होने लगा और उ ाद बढ़ने लगा। ोित भी कई महीनों से सुनीलजी से चुदवाने के िलए बेक़रार थी। यह सही था
की ोित ने अपने पित से सुनीलजी से चुदवाने के िलये कोई इजाजत या परिमशन तो नही ं ली थी पर वह जानती थी की ज ूजी
उसके मन की बात भलीभांित जानते थे। ज ूजी जानते थे की आज नही ं तो कल उनकी प ी सुनीलजी से चुदेगी ज र।

धीरे सुनील का ल ोित की चूत की पूरी सुरंग म घुस गया। सुनील का एक एक ध ा ोित को सातव आसमान को छूने का
अनुभव करा रहा था। सुनील ध ा ोित के पुरे बदन को िहला दे ता था। ोित की दोनों चूँिचयाँ सुनील ने अपनी हथेिलयों म कस
के पकड़ र ी थी ं। सुनील थोड़ा झुक कर अपना ल पुरे जोश से ोित की चूत म पेल रहे थे।

सुनील की चुदाई ोित को इतनी उ ादक कर रही थी की वह जोर से कराह कर अपनी कामातुरता को उजागर कर रही थी।
ोित की ऊँचे आवाज वाली कराहट वाटर फॉल के शोर म कही ं नही ं सुनाई पड़ती थी। ोित उस समय सुनील के ल का
उसकी चूत म घुसना और िनकलना ही अनुभव कर रही थी। उस समय उसे और कोई भी एहसास नही ं हो रहा था। सुनील उ ेजना
से ोित की चूतम इतना जोशीला ध ा मार रहे थे की कई बार ोित ड़र रही थी की सुनील का ल उसकी ब े दानी को ही
फाड़ ना दे ।

ोित को दद का कोई एहसास नही ं हो रहा था। दद जैसे गायब ही हो गया था और उसकी जगह सुनील का ल ोित को
अवणनीय सुख और उ ाद दे रहा था। जैसे सुनील का ल ोित की चूत की सुरंग म अंदर बाहर हो रहा था, ोित को एक
अद् भुत एहसास रहा था। ोित न िसफ सुनील से चुदवाना चाहती थी; उसे सुनील से तहे िदल से ार था।

उनकी कुशा बु म ा, उनकी िकसी भी मसले को ुत करने की शैली, बात करते समय उनके हावभाव और सबसे ादा
उनकी आँ खों म जो एक अजीब सी चमक ने ोित के मन को चुरा िलया था। ोित सुनीलजी से इतनी भािवत थी की वह उनसे
ार करने लगी थी। अपने पित से ार होते ए भी वह सुनील से भी ार कर बैठी थी।

अ र यह शादीशुदा ी और पु ष दोनों म होता है। अगर कोई पु ष अपनी प ी को छोड़ िकसी और ी से ार करने लगता
है और उससे से करता है (उसे चोदता है) तो इसका मतलब यह नही ं है की वह अपनी प ी से ार नही ं करता। ठीक उसी
तरह अगर कोई शादीशुदा ी िकसी और पु ष को ार करने लगती है और वह ार से उससे चुदाई करवाती है तो इसका
कतई भी यह मतलब नही ं िनकालना चािहए की वह अपने पित से ार नही ं करती।

हाँ यिद यह ार शादीशुदा पित या प ी के मन म उस परायी के िलए पागलपन म बदल जाए िजससे वह अपने जोड़ीदार
को पहले वाला ार करने म असमथ हो तब सम ा होती है।

बात वहाँ उलझ जाती है जहां ी अथवा पु ष अपने जोड़ीदार से यह अपे ा रखते ह की उसका जोड़ीदार िकसी अ से
ार ना करे और चुदाई तो नाही करे या करवाए। बात अिधकार माने अहम् पर आकर क जाती है। सम ा यहां से ही शु होती
है।

जहां यह अहम् नही ं होता वहाँ समझदारी की वजह से पित और प ी म पर पु ष या ी के साथ गमन करने से (मतलब चोदने या
चुदवाने से) वैमन ता (कलह) नही ं पैदा होती। ब इससे िबलकुल उलटा वहाँ ादा रोमांच और उ ेजना के कारण उस चुदाई
म सब को आनंद िमलता है यिद उसम या अ आपसी सहमित हो।

ोित को सुनील से तहे िदल से ार था और वही ार के कारण दोनों बदन म िमलन की कामना कई महीनों से उजागर थी।
तलाश मौके की थी। ोित ने सुनील को जबसे पहेली बार दे खा था तभी से वह उससे बड़ी भािवत थी।

121
उससे भी कही ं ादा जब ोित ने दे खा की सुनील उसे दे ख कर एकदम अपना होशोहवास खो बैठते थे तो वह समझ गयी की
कही ं ना कही ं सुनीलजी के मन म भी ोित के िलए वही ार था और उनकी ोित के कमिसन बदन से स ोग (चोदने) की इ ा
बल थी यह महसूस कर ोित की सुनील से चुदवाने की इ ा दु गुनी हो गयी।

जैसे जैसे सुनील ने ोित को चोदने की र ार बढ़ाई, ोित का उ ाद भी बढ़ने लगा। जैसे ही सुनील ोित की चूत म अपने
कड़े ल का अपने पडू के ारा एक जोरदार ध ा मारता था, ोित का पूरा बदन ना िसफ िहल जाता था, ोित के मुंह से ार
भरी उ ादक कराहट िनकल जाती थी। अगर उस समय वाटर फॉल का शोर ना होता तो ोित की कराहट पूरी वािदयों म
गूंजती।

सुनील की बु और मन म उस समय एक मा िवचार यह था की ोित की चूत म कैसे वह अपना ल गहराई तक पेल सके
िजससे ोित सुनील से चुदाई का पूरा आनंद ले सके। पानी म खड़े हो कर चुदाई करने से सुनील को ादा ताकत लगानी पड़ रही
थी और ोित की गाँड़ पर उसके टोटे (अंडकोष) उतने जोर से थ ड़ नही ं मार पाते थे िजतना अगर वह ोित को पानी के बाहर
चोदते।

पर पानी म ोित को चोदने का मजा भी तो कुछ और था। ोित को भी सुनील से पानी म चुदाई करवाने म कुछ और ही अद् भुत
रोमांच का अनुभव हो रहा था। सुनील एक हाथ से ोित की गाँड़ के गालों पर हलकी सी ार भरी चपत अ र लगाते रहते थे
िजसके कारण ोित का उ ाद और बढ़ जाता था। ोित की चूत म अपना ल पेलते ए सुनील का एक हाथ ोित को दोनों
नो ँ पर अपना अिधकार जमाए ए था।

सुनील को कई महीनों से ोित को चोदने के चाह के कारण सुनील के एं ड कोष म भरा आ वीय का भ ार बाहर आकर ोित
की चूत को भर दे ने के िलए बेताब था। सुनील अपने वीय की ोित की चूत की सुरंग म छोड़ने की मीठी अनुभिू त करना चाहते थे।
ोित की नंगी गाँड़ जो उनको अपनी आँ खों के सामने िदख रही थी वह सुनील को पागल कर रही थी।

सुनील का धैय (या वीय?) छूटने वाला ही था। ोित ने भी अनुभव िकया की अगर उसी तरह सुनील उसे चोदते रहे तो ज ही
सुनील अपना सारा वीय ोित की सुरंग म छोड़ दगे। ोित को पूरी संतुि होनी बाकी थी। उसे चुदाई का और भी आनंद लेना था।
ोित ने सुनील को कने के िलए कहा।

सुनील के कते ही ोित ने सुनील को पानी के बाहर िकनारे पर रे त म सोने के िलए अनु ह िकया। सुनील रे त पर लेट गए। ोित
शेरनी की तरह सुनील के ऊपर सवार हो गयी। ोित ने सुनील का फुला आ ल अपनी उँ गिलयों म पकड़ा और अपना बदन
नीचा करके सुनील का पूरा ल अपनी चूत म घुसेड़ िदया।

अब ोित सुनील की चुदाई कर रही थी। ोित को उस हाल म दे ख ऐसा लगता था जैसे ोित पर कोई भूत सवार हो गया हो।
ोित अपनी गाँड़ के साथ अपना पूरा पडू पहले वापस लेती थी और िफर पुरे जोश से सुनील के ल पर जैसे आ मण कर रही
हो ऐसे उसे पूरा अपनी चूत की सुरंग म घुसा दे ती थी। ऐसा करते ए ोित का पूरा बदन िहल जाता था। ोित के न इतने िहल
तरहे थे की दे खते ही बनता था।

ोित की चूत की फड़कन बढ़ती ही जा रही थी। ोित का उ ाद उस समय सातव आसमान पर था। ोित को उस समय
अपनी चूत म रगड़ खा रहे सुनील के ल के अलावा कोई भी िवचार नही ं आ रहा था। वह रगड़ के कारण पैदा हो रही उ ेजना
और उ ाद ोित को उ ाद की चोटी पर लेजाने लगा था। ोित के अंदर भरी ई वासना का बा द फटने वाला था।

सुनील को चोदते ए ोित की कराहट और उ ाद पूण और जोरदार होती जा रही थी। सुनील का वीय का फ ारा भी छूटने
वाला ही था। अचानक सुनील के िदमाग म जैसे एक पटाखा सा फूटा और एक िदमाग को िहला दे ने वाले धमाके के साथ सुनील के
ल के कि त िछ से उसके वीय का फ ारा जोर से फुट पड़ा।

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जैसे ही ोित ने अपनी चूत की सुरंग म सुनील के गरमा गरम वीय का फ ारा अनुभव िकया की वह भी अपना िनय ण खो बैठी
और एक धमाका सा आ जो ोित के पुरे बदन को िहलाने लगा। ोित को ऐसा लगा जैसे उसके िदमाग म एक गजब का मीठा
और उ ादक जोरदार धमाका आ। िजसकेकारण उसका पूरा बदन िहल गया और उसकी पूरी श और ऊजा उस धमाके म
समा गयी।

चंद पलों म ही ोित िनढाल हो कर सुनील पर िगर पड़ी। सुनील का ल तब भी ोित की चूत म ही था। पर ोित अपनी आँ ख
बंद कर उस अद् भुत अनुभव का आनंद ले रही थी।

****
सुनीता जैसे ही ज ूजी की बाँहों म समायी उसने ज ूजी के खड़े ल को महसूस िकया। सुनीता जानती थी की ज ूजी उस पर
कोई जबरद ी नही ं करगे पर बेचारा ज ूजी का ल कहाँ मानने वाला था? सुनीता को ऐसे िमंग कॉ ूम म दे ख कर
ज ूजी के ल का खड़ा होकर ज ूजी की िन र म फनफनाना ाभािवक ही था। सुनीता को ज ूजी के ल से कोई
िशकायत नही ं थी। दो बार सुनीता ने ज ूजी के ल की गरमी अपने द हाथों के जादू से िनकाल दी थी। सुनीता ज ूजी के
ल की ल ाई और मोटाई के बारे म भलीभांित वािकफ थी। पर उस समय उसका एक मा ल था की उसे ज ूजी से तैरना
सीखना था। कई बार सुनीता को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नही ं सीखा था। काफी समय से सुनीता के मन म यह एक
बल इ ा थी की वह तैरना सीखे। ज ूजी जैसे आला िश क से जब उसे तैरना िसखने का मौक़ा िमला तो भला वह उसे ों
जाने दे ? जहां तक ज ूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह सुनीताके िलए उतनी गंभीर बात नही ं थी। सुनीता के मन म
ज ूजी का थान दयके इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी िजंदगी ज ूजी पर कुबान कर दे ती। ज ूजी
और सुनीता के संबंधों को लेकर बार बार अपने पित के उकसाने के कारण सुनीता के पुरे बदन म ज ूजी का नाम सुनकर ही एक
रोमांच सा हो जाता था। ज ूजी से शारी रक संबध
ं ों के बारे म सुनीता के मन म हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला
िजसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?

सुनीता मन म कही ं ना कही ं ज ज


ू ी को अपना ि यतम तो मान ही चुकी थी। सुनीता के मन म ज ज
ू ी का शारी रक और मानिसक
आकषण उतना जबरद था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नही ं होते तो शायद अब तक सुनीता ज ूजी से चुद चुकी
होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी ज ूजी से सुनीता के मन म कुछ शम और ल ा
और दु री का भाव था। या यूँ किहये की कोई दु री नही ं होती है तब भी िजसे आप इतना स ान करते ह और उतना ही ार करते
हो तो उसके सामने िनल तो नही ं हो सकते ना? उनसे कुछ ल ा और शम आना ाभािवक भारतीय सं ृ ित है। जब ज ूजी
के सामने सुनीता ने आधी नंगी सी आने म िहचिक-चाहट की तो ज ूजी की रं िजश सुनीता को िदखाई दी। सुनीता जानती थी की
ज ूजी कभी भी सुनीता को िबना रजामंदी के चोदने की बात तो दू र वह िकसी भी तरह से छे ड़गे भी नही ं। पर िफर भी सुनीता
कभी इतने छोटे कपड़ों म सूरज के काश म ज ूजी के सामने ुत नही ं ई थी। इस िलए उसे शम और ल ा आना
ाभािवक था। शायद ऐसे कपड़ों म प ीयाँ भी अपने पित के सामने हािजर होने से िझझकगी। जब ज ूजी ने सुनीता की यह
िहचिकचाहट दे ख तो उ दु ः ख आ। उनको लगा सुनीता को उनके करीब आने डर रही थी की कही ं ज ूजी सुनीता पर
जबरद ी ना कर बैठे। हार कर ज ूजी पानी से बाहर िनकल आये और कप म वापस जाने के िलए तैयार हो गए। उ ोंने सुनीता
से इतना ही कहा की जब सुनीता उ अपना नही ं मानती और उनसे पदा करती है तो िफर बेहतर है वह सुनीता से दू र ही रह।

इस बात से सुनीता को इतना बुरा लगा की वह भाग कर ज ूजी की बाँहों म िलपट गयी और उसने ज ूजी से कहा, "अब म
आपको नही ं रोकूंगी। म आपको अपनों से कही ं ादा मानती ँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।" उसी समय सुनीता ने तय िकया
की वह ज ूजी पर पूरा िव ास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ ज ूजी के हाथों म सौंप िदया। पर ज ूजी भी तो
अकड़ू थे। वह दया, दान, मज़बूरी या िभ ा नही ं वह अपनी ि यतमा से ार भरा स ीय एवं ै क स ूण आ समपण चाहते
थे। टैन म सफर करते ए ज ूजी सुनीता के िब र म जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे। कैसे
उ ोंने अपने आप पर िनय ण खो िदया? जब सुनीता ने उ श ों म कहा था की वह उनसे शारी रक स नही ं रख
सकती तब ों वह सुनीता के िब र म चले गए? यह तो उनके िस ांतों के िबलकुल िव था। उ ोंने सुनीता के सामने सौगंध
सी खायी थी की जब तक सुनीता सामने चलकर अपना ै क स ीय एवं स ूण आ समपण नही ं करे गी तब तक वह सुनीता

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को िकसी भी तरह के शारी रक स के िलए बा नही ं करगे। पर फीर भी टैन म उस रात सुनीता के थोड़ा उकसाने पर वह
सुनीता के िब र म घुस गए और अपनी इ त दाँव पर लगा दी यह पछतावा ज ूजी के दय को खाये जा रहा था।

सुनीता ने तो अपने मन म तय कर िलया की ज ूजी उसके साथ जो वहार करगे वह उसे ीकारे गी। अगर ज ूजी ने सुनीता
को चोदने की इ ा जताई तो सुनीता ज ूजी से चुदवाने के िलए भी मना नही ं करे गी, हालांिक ऐसा करने से उसने माँ को िदया
गया वचन टू ट जाएगा। पर सुनीताको पूरा भरोसा था की ज ूजी एक स िनयम पालन करने वाले इं सान थे और वह कभी भी
सुनीता का िव ास नही ं तोड़गे।

ज ूजी ने सुनीता को सीमट की फश पर गाड़े ए ील के बार हाथ म पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के
बाद एक पछाड़ ने को कहा। खुद ील का पाइप पकड़ कर जैसे िसख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को
सीधा रखते ए ऊपर िनचे करते ए सुनीता को िदखाया। और सुनीता को भी ऐसा ही करने को कहा। सुनीता ज ूजी के कहे
मुजब ील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उ ी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ ज ूजी की आँखों को परे शान कर रही
थी। वह सुनीता की सुआकार गाँड़ दे खते ही रह गए। सुनीता की नंगी गाँड़ दे ख कर ज ूजी का ल ज ूजी के मानिसक िनय ण
को ठगा िदखाता आ ज ूजी की दो जाँघों के िबच िन र म कूद रहा था। पर ज ूजी ने अपने ऊपर कडा िनय ण रखते ए
उस पर ान नही ं िदया। ज ूजी के िलए बड़ी दु िवधा थी। उ डर था की अगर उ ोंने सुनीता के करारे बदन को इधर उधर छु
िलया तो कही ं वह अपने आप पर िनय ण तो नही ं खो दगे? जब सुनीता ने यह दे खा तो उसे बड़ा दु ः ख आ। वह जानती थी की
ज ूजी उसे चोदने के िलए िकतना तड़प रहे थे। सुनीता को ऐसे कॉ ूम म दे ख कर भी वह अपने आप पर जबर द क ोल
रख रहे थे। हालांिक यह साफ़ था की ज ूजी का ल उनकी बात मान नही ं रहा था।

खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर सुनीता ने ज ूजी का हाथ थामा और कहा, "ज ूजी, अब आप मुझे तैरना
िसखाएं गे की नही ं? पहले जब म िझझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप िझझक रहे हो तो ा मुझे नाराज
होने का अिधकार नही?ं " सुनीता की बात सुनकर ज ूजी मु ु रा िदए। अपने आप को स ालते ए बोले, "सुनीता म सच कहता
ँ। पता नही ं तु दे ख कर मुझे ा हो जाता है। म अपना आपा खो बैठता ँ। आज तक मुझे िकसी भी लड़की या ी के िलए
ऐसा भाव नही ं आ। ोित के िलए भी नही ं।" सुनीता ने कहा, "ज ूजी मुझम कोई खािसयत नही ं है। यह आपका मेरे ऊपर ेम
है। कहावत है ना की 'पराये का चेहरा िकतना ही खूबसूरत ों ना हो तो भी उतना ारा नही ं लगता िजतनी अपने ारे की लगती
है। सुनीता ज ूजी के सामने गाँड़ श बोल नही ं पायी। सुनीता की बात सुनकर ज ूजी हंस पड़े और सुनीता की नंगी गाँड़ दे खते
ए बोले, "सुनीता, म तु ारी बात से पूरी तरह सहमत ँ।" सुनीता ज ूजी की नजर अपनी गाँड़ पर िफरती ई दे ख कर शमा गयी
और उसे नजर अंदाज करते ए उलटा लेटे ए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे ज ूजी ने
बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।

पर ऐसा करने से तो ज ूजी को सुनीता की चूत पर िटकाई ई सुनीता की कॉ ू यूम की प ी खसकती िदखी और एक पल के
िलए सुनीता की खूबसूरत चूत का छोटा सा िह ा िदख गया। यह नजारा दे ख कर ज ूजी का मन डाँवाँडोल हो रहा था। सुनीता
काफी कोिशश करने पर भी पानी की सतह पर ठीक से लेट नही ं पा रही थी और बार बार उसक पाँव जमीन को छू लेते थे।
ज ूजी ने बड़ी मु ल से अपनी नजर सुनीता की जाँघों के िबच से हटाई और सुनीता के पेट के िनचे अपना हाथ दे कर सुनीता को
ऊपर उठाया। सुनीता ने वैसे ही अपने पाँव काफी ऊपर तक उठा कर पछाड़ती रही और ना चाहते ए भी ज ूजी की नजर
सुनीता की चूत के ितकोने िह े को बारबार दे खने के िलए तड़पती रही। सुनीता ज ूजी के मन की दु िवधा भलीभाँित जानती थी
पर खुद भी तो असहाय थी। ऐसे ही कुछ दे र तक पानी म हाथ पाँव मारने के बाद जब सुनीता कुछ दे र तक पानी की सतह पर
िटकी रह पाने लगी तब ज ूजी ने सुनीता से कहा, "अब तुम पानी की सतह पर अपना बदन तैरता आ रख सकती हो। ा अब
तुम थोड़ा तैरने की कोिशश करने के िलए तैयार हो?"

सुनीता को पानी से काफी डर लगता था। उसने ज ूजी से िलपट कर कहा, "जैसे आप कहो। पर मुझे पानी से ब त डर लगता है।

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आप ीज मुझे पकडे रखना।" ज ूजी ने कहा, "अगर म तु पकड़ रखूंगा तो तुम तैरना कैसे िसखोगी? अपनी और से भी तु
कुछ कोिशश तो करनी पड़े गी ना?" सुनीता ने कहा, "आप जैसा कहोगे, म वैसा ही क ँ गी। अब मेरी जान आप के हाथ म है।"
ज ूजी और सुनीता िफर थोड़े गहरे पानी म आ गए। सुनीता का बुरा हाल था। वह ज ूजी की बाँह पकड़ कर तैरने की कोिशश
कर रही थी। ज ूजी ने सुनीता को पहले जैसे ही पानी की सतह पर उलटा लेटने को कहा और पहले ही की तरह पाँव उठाकर
पछाड़ने को कहा, साथ साथ म हाथ िहलाकर पानी पर तैरते रहने की िहदायत दी। पहली बार सुनीता ने जब ज ूजी का हाथ छोड़ा
और पानी की सतह पर उलटा लेटने की कोिशश की तो पानी म डू बने लगी। जैसे ही पानी म उसका मुंह चला गया, सुनीता की
साँस फूलने लगी। जब वह साँस नही ं ले पायी और कुछ पानी भी पी गयी तो वह छटपटाई और इधर उधर हाथ मारकर ज ूजी को
पकड़ने की कोिशश करने लगी। दोनों हाथो ँ को बेतहाशा इधर उधर मारते ए अचानक सुनीता के हाथों की पकड़ म ज ूजी की
जाँघ आ गयी। सुनीता ज ूजी की जाँघों को पकड़ पानी की सतह के ऊपर आने की कोिशश करने लगी और ऐसा करते ही
ज ूजी की िन र का िनचला छोर उसके हाथों म आ गया। सुनीता ने छटपटाहट म उसे कस के पकड़ा और खुद को ऊपर
उठाने की कोिशश की तो ज ूजी की िन र पूरी िनचे खसक गयी और ज ूजी का फुला आ मोटा ल सुनीता के हांथों म आ
गया। जान बचाने की छटपटाहट के मारे सुनीता ने ज ूजी के ल को कस के पकड़ा और उसे पकड़ कर खुद को ऊपर आने
की िलए खंच कर िहलाने लगी।

सुनीता के मन म एक तरफ अपनी जान बचाने की छटपटाहट थी तो कही ं ना कही ं ज ूजी का मोटा और काफी लंबा ल हाथों म
आने के कारण कुछ अजीब सी उ ेजना भी थी। ज ूजी ने पानी के िनचे अपना ल सुनीता के हाथों म महसूस िकया तो वह
उछल पड़े । उ ोंने झक
ु कर सुनीता का सर पकड़ा और सुनीता को पानी से बाहर िनकाला। सुनीता काफी पानी पी चुकी थी।
सुनीता की साँसे फूल रही थी ं। ज ूजी सुनीता को अपनी बाँहों म उठाकर चल कर िकनारे ले आये और रे त म िलटा कर सुनीता के
उ नो ँ के ऊपर अपने हाथों से अपना पूरा वजन दे कर उ दबाने लगे िजससे सुनीता पीया आ पानी उगल दे और उसकी
साँस िफर से साधारण चलने लग जाएँ । तीन या चार बार यह करने से सुनीता के मुंह से काफी सारा पानी फ ारे की तरह िनकल
पड़ा। जैसेही पानी िनकलातो सुनीता की साँसे िफर से साधारण गित से चलने लगी ं। सुनीता ने जब आँ ख खोली ं तो ज ूजी को अपने
नो ँ को दबाते ए पाया। सुनीता ने दे खा की ज ूजी सुनीता को लेकर काफी िचंितत थे। उ यह भी होश नही ं था की
अफरातफरी म उनकी िन र पानी म छूट गयी थी और वह नंगधडं ग थे। ज ूजी यह सोच कर परे शान थे की कही ं सुनीता की
हालत और िबगड़ गयी तो िकसको बुलाएं गे यह दे खने के िलए वह इधर उधर दे ख रहे थे। सुनीता िफर अपनी आँ ख मूंद कर पड़ी
रही। ज ूजी का हाथ जो उसके नों को दबा रहा था सुनीता को वह काफी उ ेिजत कर रहा था। पर चूँिक सुनीता ज ूजी को
ादा परे शान नही ं दे खना चाहती थी इस िलए उसने ज ूजी का हाथ पकड़ा तािक ज ूजी समझ जाएँ की सुनीता अब ठीक थी,
पर वैसे ही पड़ी रही। चूँिक सुनीता ने ज ूजी का हाथ कस के पकड़ा था, ज ूजी अपना हाथ सुनीता के नो ँ पर से हटा नही ं
पाए।

जब ज ूजी ने सुनीताके नो ँ के ऊपरसे अपना हाथ हटा ने की कोिशश की तब सुनीता ने िफर से उनका हाथ कस के पकड़ा
और बोली, "ज ूजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अ ा लग रहा है।" ऐसा कह कर सुनीता ने ज ूजी को अपने नो ँ को दबाने
की छूट दे दी। ज ूजी ना चाहते ए भी सुनीता के उ त नो ँ को मसलने से अपने आपको रोक नही ं पाए। सुनीता ने अपना हाथ
खसकाया और ज ूजी का खड़ा अ ड़ल एक हाथ म िलया तब ज ूजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडं ग थे।
ज ूजी सुनीता के हाथ से अपना ल छु ड़ाकर एकदम भाग कर पानी म चले गए और अपनी िन र ढूंढने लगे। जब उनको
िन र िमल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की सुनीता ज ूजी के पीछे चलती ई उनके पास प ँच गयी। ज ूजी के हाथ से
एक ही झटके म उनकी िन र िछनती ई बोली, "ज ूजी, िन र छोिड़ये। अब हम दोनों के िबच कोई पदा रखने की ज रत
नही ं है।"

ऐसा कह कर सुनीता ने ज ूजी की िन र को पानी के बाहर फक िदया। िफर सुनीता ने अपनी बाँह फैला कर ज ूजी से कहा,
"अब मुझे भी कॉ ूम को पहनने की ज रत नही ं है। चिलए मुझे आप अपना बना लीिजये। या म यह क ं की आइये और अपने
मन की सारी इ ा पूरी कीिजये?" यह कह कर जैसे ही सुनीता अपना कॉ ू यूम िनकाल ने के िलए तैयार ई की ज ूजी ने सुनीता
का हाथ पकड़ा और बोले, "सुनीता नही ं। खबरदार! तुम अपना कॉ ू यूम नही ं िनकालोगी। म तु सौगंध दे ता ँ। म तु तभी

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िनव दे खूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समिपत करोगी जब तु ारा ण पूरा होगा। म तु अपना वचन
तोडने नही ं दू ं गा। चाहे इसके िलए मुझे कई ज ों तक ही इंतजार ों ना करना पड़े ।" यह बात सुनकर सुनीता का दय जैसे
कटार के घाव से दो टु कड़े हो गया। अपने ीयतम के दय म वह िकतना दु ः ख दे रही थी? सुनीता ने अपने आपको ज ूजी को
समपण करना भी चाहा पर ज ूजी थे की मान नही ं रहे थे! वह ा करे ? अब तो ज ूजी सुनीता के कहने पर भी उसे कुछ नही ं
करगे। सुनीता दु ः ख और भावना क थित म और कुछ ना बोल सकी और ज ूजी से िलपट गयी। ज ूजी का खड़ा फनफनाता
ल सुनीता की चूत म घुसने के िलए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मािलक की नामज के कारण असहाय था। इस मज़बूरीम
जब सुनीता ज ूजी से िलपट गयी तो वह सुनीता के कॉ ूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।

ज ूजी ने सारी इधर उधर की बातों पर ान ना दे ते ए कहा, "दे खो सुनीता, तैरने का एक मूलभूत िस ांत समझो। जब आप
पानी म जाते हो तो यह समझलो की पानी आपको अपने अंदर नही ं रखना चाहता। हमारा शरीर पानी से ह ा है। पर हम इसिलए
डू बते ह ूंिक हम डू बना नही ं चाहते और इधर उधर हाथ पाँव मारते ह l पानी की सतह पर अगर आप अपना बदन ढीला छोड़
दगे और भरोसा रखोगे की पानी आपको डु बाएगा नही ं तो आप डू बगे नही ं। इसके बाद सुिनयोिजत ताल मेल से हाथ और पाँव
चलाइये। आप पानी म ना िसफ तैरगे ब आप पानी को काट कर आगे बढ़गे। यही सुिनयोिजत तालमेल से हाथ पैर चलाने को ही
तैरना कहते ह।" सुनीता ज ूजी की बात बड़े ान से सुन रही थी। उसे ज ूजी पर बड़ा ही ार आ रहा था। उस समय ज ूजी
का पूरा ान सुनीता को तैराकी िसखाने पर था। मनसे असहाय और दु खी सुनीता को लेकर ज ूजी िफर से गहरे पानी म प ँच गए
और िफर से सुनीता को पहले की तरहही ै स करने को कहा। धीरे धीरे सुनीता का आ िव ास बढ़ने लगा। सुनीता ज ूजी
की कमर छोड़ कर अपने आपको पानी की सतह पर रखना िसख गयी। इस िबच दो घंटे बीत चुके थे। ज ूजी ने सुनीता को कहा,
"आज के िलए इतना ही काफी है। बाकी हम कल करगे।" यह कह कर ज ूजी पानी के बाहर आगये और सुनीता अपना मन
मसोसती ई मिहलाओं के शावर म म चलीगयी।

सुनीता जब एकपडे बदल कर बाहर िनकली तो ज ूजी बाहर नही ं िनकले थे। सुनीता को उसके पित सुनीलजी और ोितजी आते
ए िदखाई िदए। दोनों ही काफी थके ए लग रहे थे। सुनीता को अंदाज हो गया की हो सकता है सुनीलजी की मन की चाहत उस
दोपहर को पूरी हो गयी थी। ोितजी भी पूरी तरह थकी ई थी। सुनीता को दे खते ही ोितजी ने अपनी आँ ख िनची ं करली ं।
सुनीता समझ गयी की पितदे व ने ोित जी की अ ी खासी चुदाई करी होगी। सुनीता ने जब अपने पित की और दे खा तो उ ोंने ने
भी झपते ए जैसे कोई गुनाह िकया हो ऐसे सुनीता से आँ ख से आँ ख िमला नही ं पाए। सुनीता मन ही मन मु ु रायी। वह अपने पित
के पास गयी और अपनी आवाज और हावभाव म काफी उ ाह लाने की कोिशश करते ए बोली, "डािलग, ज ूजी ना िसफ मै स
के ब तैराकी के भी कमालके िश क ह। म आज काफी तैरना िसख गयी।" सुनीलजी ने अपनी प ी का हाथ थामा और थोड़ी
दे र पकडे रखा। िफर िबना कुछ बोले कपडे बदल ने के िलए मरदाना म म चले गए। अब ोितजी और सुनीता आमने सामने
खड़े थे।

ोितजी अपने आपको रोक ना सकी और बोल पड़ी, "अ ा? मेरे पितदे वने तु तैरने के अलावा और कुछ तो नही ं िसखाया ना?"
सुनीता भाग कर ोित जी से िलपट गयी और बोली, "दीदी आप ऐसे ताने ों मार रही हो? ा आपको बुरा लगा? अगर ऐसा है
तो म कभी आपको िशकायत का मौक़ा नही ं दू ं गी। म ज ूजी के पास फरकुंगी भी नही ं। बस?"

ोित जी ने सुनीता को अपनी बाँहों म भरते ए कहा, "पगली, म तो तु ारी टांग खंच रही थी। म जानती ँ, मेरे पित तु तु ारी
मज बगैर कुछ भी नही ं करगे। और तुमने तो मुझे पहले ही बता िदया है। तो िफर म िचंता ों क ँ ? ब मुझे उलटी और िचंता
हो रही है। मुझे लग रहा है की कही ं िनराशा या िन लता का भाव आप और ज ूजी के स पर हावी ना हो जाए।" सुनीता को
गले लगाते ए ोितजी की आँ खों म आं सूं छलक आये। ोितजी सुनीता को छाती पर चीपका कर बोली, "सुनीता! मेरी तुमसे यही
िबनती है की तुम मेरे ज ूजी का ाल रखना। म और कुछ नही ं क ँगी।" सुनीता ने ोित जी के गाल पर चु ी करते ए कहा,
"दीदी, ज ूजी िसफ आपके ही नही ं है। वह मेरे भी ह। म उनका पूरा ाल। रखूंगी।"

कुछ ही दे र म सब कपडे बदल कर कप के डाइिनंग हॉल म खाना खाने प ंचे। खाना खाने के समय सुनीता ने महसूस िकया की

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ज ूजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दर ान वह कुछ बोले िबना चुप रहे। सुनीता ने सोचा की शायद ज ूजी उससे नाराज
थे। भोजन के बाद जब सब उठ खड़े ए तब ज ूजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर िवचारों म उलझे लग रहे थे। सुनीता को मन ही
मन अफ़सोस हो रहा था की ज ूजी जैसे रं गीले जांबाज़ को सुनीता ने कैसे रं गीन से गमगीन बना िदया था। सुनीता भी जानबूझ कर
खाने म दे र करती ई बैठी रही। ोितजी सबसे पहले भोजन कर "थक गयी ँ, थोड़ी दे र सोऊंगी" यह कह कर अपने कमरे की
और चल पड़ी। उसके पीछे पीछे सुनील भी, "आराम तो करना ही पड़े गा" यह कह कर उठ कर चल पड़े । जब दोनों िनकल पड़े
तब सुनीता ज ूजी के करीब जा बैठी और हलकेसे ज ूजी से बोली, "आप मेरे कारण दु खी ह ना?" ज ूजी ने सुनीता की और
कुछ सोचते ए आ य से दे खा और बोले, "नही ं तो। म आपके कारण ों परे शान होने लगा?" "तो िफर आप इतने चुपचाप ों
है?" सुनीता ने पूछा l "म कुछ समझ नही ं पा रहा ँ। यही गु ी उसुलझाने की कोिशश कर रहा ँ।" ज ूजी ने जवाब िदया।
"गु ी? कैसी गु ी?" सुनीता ने भोलेपन से पूछा। उसके मन म कही ं ना कही ं डर था की ज ूजी आने आप पर सुनीता के सामने
इतना िनयंत्रण रखने के कारण परे शान हो रहे होंगे।" "मेरी समझ म यह नही ं आ रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो
सकते ह?" ज ूजी कुछ गंभीर सोच म थे यह सुनीता समझ गयी। ज ूजी ने अपनी बात चालु रखते ए कहा, "एक कहावत है की
एक बार हो तो हादसा, दू सरी बार हो तो संयोग पर अगर तीसरी बार भी होता है तो समझो की खतरे की घंटी बज रही है।"

सुनीता बुद्धू की तरह ज ूजीको दे खती ही रही। उसकी समझम कुछभी नही ं आ रहा था। ज ूजी ने सुनीता के उलझन भरे चेहरे
की और दे खा और सुनीता का नाक पकड़ कर िहलाते ए बोले, "अरे मेरी बुद्धू रानी, पहली बार कोई मेरे घरम से मेरा पुराना
लैपटॉप और एक ही जूता चुराता है, यह तो मानलो हादसा आ। िफर कोई मेरा और तु ारे पितदे व सुनीलजी का पीछा करता है।
मानलो यह एक संयोग था l िफर कोई संिद िटकट चेकर का भेस पहन कर हमारे ही िड े म िसफ हमारे ही पास आ कर
हम से पूछ-ताछ करता है की हम कहाँ जा रहे ह। मानलो यह भी एक अद् भुत संयोग था। उसके बाद कोई े शन पर
हमारा ागत करता है, हम हार पहनाता है और हमारी फोटो खी ंचता है l ों भाई? हम लोग कौनसे िफ ार या ि केटर ह
जो हमारी फोटो खी ंची जाए? और आ खर म कोई िबना नंबर ेट की टै ी वाला हम आधे से भी कम दाम म े शन से लेकर
आता है और रा े म बड़े सलीके से तुम से हमारे काय म के बारे म इतनी पूछताछ करता है? ा यह सब एक संयोग था?"
सुनीता के खूबसूरत चेहरे पर कुछ भी समझ म ना आने के भाव जब ज ूजी ने दे खे तो वह बोले, "कुछ तो गड़बड़ है। सोचना
पड़े गा।" कह कर ज ूजी उठ खड़े ए और कमरे की और चल िदए। साथ साथ म सुनीता भी दौड़ कर पीछा करती ई उनके
पीछे पीछे चल दी। दोनों अपने अपने िवचारो म खोये ए अपने कमरे की और चल पड़े।

कनल साहब (ज ूजी) ने काफी समय पहले ही कप के मैनेजमट से दो कमरों का एक बड़ा ैट टाइप सुईट बुक करा िदया था।
उसम उनके दोनों बैड म को जोड़ता आ परदे से ढका एक िकवाड़ था। वह िकवाड़ दोनों तरफ से बंद िकया जा सकता था।
जब तक दोनों कमरों म रहने वाले ना चाह तब तक वह िकवाड़ अ र बंद ही रहता था। अगर वह िकवाड़ खुला हो तो एक दू सरे
के पलंग को दोनों ही जोड़ी दे ख सकती थी। दोनों ही बैड म म एक एक वाश म जुड़ा आ था। बैड म का दु सरा दरवाजा एक
साँझा बड़े डॉइं ग कम डाइिनंग म म खुलता था। सुईट के अंदर वेश उसी डॉइं ग म से ही हो सकता था। डॉइं ग म म वेश
करने के बाद ही कोई अपने कमरे म जा सकता था। जब कप म आगमन के तुरंत बाद सुबह म पहली बार दोनों कपल कमरों म
दा खल ए थे (चेक इन िकया था) तब सबसे पहले सुनीलने सुईटकी तारीफ़ करते ए ज ूजी से कहा था, "ज ूजी, यह तो आपने
कमाल का सुईट बुक कराया है भाई! िकतना बड़ा और बिढ़या है! खड़िकयों से िहमालय के बफ ले पहाड़ और खूबसूरत वािदयाँ
भी साफ़ साफ़ िदखती ह। मेरी सबसे एक ाथना है। म चाहता ँ की जब तक हम यहां रहगे, दोनों कमरों को जोड़ते ए इस
िकवाड़ को हम हमेशा खुला ही रखगे। म हम दोनों कपल के िबच कोई पदा नही ं चाहता। आप ा कहते ह?"

ज ूजी ने दोनों पि यों की और दे खा। ोित जी फ़ौरन सुनील से सहमित जताते ए बोली थी, "मुझे कोई आपि नही ं है। भाई
मान लो कभी भी िदन म या आधी रात म सोते ए अचानक ही कोई बातिचत करने का मन करे तो ूँ हम उठकर एक दू सरे का
दरवाजा खटखटा ने की जेहमत करनी पड़े ? इतना तो हम एक दू सरे से अनौपचा रक होना ही चािहए। िफर कई बार जब मेरा न
करे की म मेरी ारी छोटी बहन सुनीता के साथ थोड़ी दे र के िलए सो जाऊं तो सीधा ही चलकर चुचाप तु ारे पलंग पर आ सकती
ँ ना?" उस व ोितजी ने साफ़ साफ़ यह नही ं कहा की अगर दोनों कपल चाह तो िबना िकसी की नजर म आये एक दू सरे के
पलंग म सांझा एक साथ सो भी तो सकते ह ना? सुनीता सारी बात सुन कर परे शान हो रही थी। वह फ़ौरन अपने पित सुनीलको

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अपने कमरे म खंच कर ले गयी और बोली, "तुम पागल हो ा? तुम एक रात भी मुझे ार िकये िबना तो रह नही ं सकते। अगर
यह िकवाड़ खुला रखा तो िफर रात भर मुझे छे ड़ना मत। यह समझ लो।" अपनी प ी की िजद दे ख कर सुनीलने अपनी बीबी
सुनीता के कानों म फुसफुसाते ए कहा था, "डािलग, तु ी ने तो माना था की हम दोनों कपल एक दू सरे से पदा नही ं करगे। अब
ों िबदक रही हो? और अगर हम ार करगे भी तो कौनसा सबके सामने नंगे खड़े हो कर करगे? िब र म रजाई ओढ़कर भी तो
हम चुदाई कर सकते है ना?" यह सुन कर सुनीता का माथा ठनक गया। उसने तो अपने पित से कभी यह वादा नही ं िकया था की
वह ज ूजी और ोितजी से पदा नही ं करे गी। तब उसे याद आया की उसने ोितजीसे यह वादा ज र िकया था। तो ा
ोितजी ने उनदोनों के िबच की बातचीत सुनीलजी को बतादी थी ा? खैर जो भी हो, उसने वादा तो िकया ही था। सुनीलजी की
बात सुन कर हार कर सुनीता चुपचाप अपने काम म लग गयी थी।

दोपहर का खाना खाने के बाद चारों के जहन म अलग अलग िवचारों की बौछार हो रही थी। ोितजी पहली बार अ ी तरह
कुदरत के आँ गन म खुले आकाश के िनचे सुनीलसे चुदाई होने के कारण बड़ी ही संतु महसूस कर रही थी और कुछ गाना मन ही
मन गुनगुना रही ं थी ं। उनके पित ज ूजी अपनी ही उधेड़बुन म यह सोचनेम लगेथे की जो राज़था उसे कैसे सुलझाएं । उस राज़ को
सुलझाने का मन ही मन वह यास कर रहे थे। सुनीता मन ही मन खुश भी थी और दु खी भी। खुश इसिलए थी की उसने तैराकी के
कुछ ाथिमक पाठ ज ूजी से सीखे थे और इस िलए भी की उसे ज ूजी के ल को सहलाने के मौक़ा िमला था। वह दु खी इस
िलए थी की सब के चाहते ए भी वह ज ूजी का मन की इ ा पूरी नही ं कर सकती थी। सुनीलको दोनों हाथों म लड् डू नजर आ
रहे थे। िब र म वह अपनी बीबी को चोदगे और कही ं और मौक़ा िमला तो ोित को। दोपहर का खाना खाने के बाद अलग अलग
वजह से दोनों ही कपल थके ए थे। डाइिनंग हॉल से वापस आते ही ोितजी और ज ूजी अपने पलंग पर और सुनील और
सुनीता अपने पलंग पर ढे र हो कर िगर पड़े और फ़ौरन गहरी नी ंद सो गए। िबच का िकवाड़ खुला ही था।

शामको छे बजे ागत और प रचय का काय म था और साथ म सब मेहमानों को अगले सात िदन के ो ाम से अवगत कराना
था। उसके बाद खुले म कप फायर (एक आग की धुिन) के इदिगद कुछ िडं (शराब या जूस इ ािद) और नाच गाना और िफर
आ खर म खाना। शाम के पांच बजने वाले थे। सबसे पहले ज ूजी उठे । चुपचाप वह हलके पाँव वाश म म जाने के िलए तैयार
ए। उ ोंने अपने प ीकी और दे खा। वह अपने गाउन म गहरी नी ंद सोई ई बड़ी ही सु र लग रही थी। ोित के घने बाल पुरे
िसरहाने पर फैले ए थे। उसका चेहरा एक संतुि वाला, कभी हलकी सी मु ान भरा सु र ारा िदख रहा था। ज ूजी के मन म
िवचार आया की कही ं उस झरने के वाटर फॉल के पीछे सुनीलने उनकी बीबी को चोदा तो नही ं होगा? िवचार आते ही वह मन ही
मन मु ाये। हो सकता है सुनीलजी और ोित ने उस दोपहर अ ी खासी चुदाई की होगी। ूंिक ोितजी और सुनीलजी काफी
कुछ ादा ही दो ाना से एक दू सरे घुलिमल रहे थे। ज ूजी के मन म ाभािवक पसे कुछ जलन का भाव तो आ, पर उ ोंने
एक ही झटके म उसको िनकाल फका। वह ोित को बेतहाशा ार करते थे। ोित िसफ उनकी प ी ही नही ं थी। उनकी दो
भी थी। और ार म और दो ी म हम अपनों पर अपना अिधकार नही ं ार जताते ह। हम अपनी ख़ुशी से ादा अपने ारे की
खुशी के बारे म ही सोचते ह।

खुले ए िकवाड़ के दू सरी और जब ज ूजी ने नजर की तो दे खा की सुनील अपनी ं बीबी को अपनी बाँहों म घेरे ए गहरी नी ंद म
सो रहे थे। सुनीता अपने पित की बाँहों म पूरी तरह से उ हो कर िन ा का आनंद ले रही थी। ज ूजी फुत से वाश म म गए
और चंद िमनटों म ही तैयार हो कर बाहर आये। उ ोंने िफर अपनी प ी को जगाया। ोित आ खर एक फौजी की बीबी थी।
ज ूजी की एक हलकी आवाज से ही वह एकदम बैठ गयी। अपने पित को तैयार दे ख वह भी वाश म की और तैयार होने के िलए
अपने कपडे लेकर भागी। ज ूजी हलके से चलकर िबच वाले खुले िकवाड़ से अपने कमरे से सुनील और सुनीता के कमरे म आये।
ज ूजी ने सुनील और सुनीता के पलंग म बदहाल गहरी नीद
ं म लेटी ई सुनीता को दे खा। सुनीता का गाउन ऊपर उसकी जाँघों
तक आ गया था। अगर थोड़ा झुक कर टे ढ़ा होकर दो जाँघों के िबच म दे खा जाये तो शायद सुनीता की चूत भी िदख जाए। बस
उसकी चूत के कुछ िनचे तक गाउन चढ चुका था। सुनीता की दो जाँघों के िबच म गाउन के अंदर कुछ अँधेरे के कारण गाउन
सुनीता की ारी चूत को मु ल से छु पा पा रहा था। यह जािहर था की सुनीता ने गाउन के अंदर कुछ भी नही ं पहन रखा था।
ज ूजी को बेहाल लेटी ई सुनीता पर ब त सा ार आ रहा था। पता नही ं उ इससे पहले कभी िकसी औरत पर ऐसा आ ीयता
वाला भाव नही ं आ था। वह सुनीता को भले ही चोद ना पाएं पर सुनीता से साथ सो कर सारी सारी रात ार करने की उनके मन म

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बड़ी इ ा थी। उ ोंने जो कुछ भी थोड़ा सा व सुनीता को अपनी बाँहों म लेकर गुजारा था वह व उनके िलए अमू था।
सुनीता के बदन के श की याद आते ही ज ूजी के शरीर म एक क न सी िसहरन दौड़ गयी।

िसरहाने की साइड म खड़े होकर दे खा जाए तो गाउन के अंदर सुनीता के दो बड़े बू के िबच की खाई और उसके दो म पहाड़
की चोटी पर िवराजमान िन लो ँ तक का नजारा ल खड़ा कर दे ने वाला था। वह इसिलए की गहरी नी ंद म लेटे ए सुनील के
दोनों हाथ अपनी बीबी के उ नो ँ को नी ंद म ही दबा रहे थे। ज ूजी को सुनीलके भा की बड़ी ई ा ई। सुनील को सुनीता
के साथ पूरी रात गुजारने से रोकने वाला कोई नही ं था। वह जब चाहे सुनीता के बू दबा सकते थे, सुनीता की गाँड़ म अपना ल
घुसा सकते थे, सुनीता को जब चाहे चोद सकते थे। एक गहरी साँस ले कर ज ूजी ने िफर यह सोच तस ी की की िजस सुनील
को वह अित भा शाली मानते थे वही सुनील उनकी प ी ोित के आिशक थे। यह िवचार आते ही वह मन ही मन हंस पड़े । सच
कहा है, घर की मुग दाल बराबर। ज ूजी का बड़ा मन िकया की सुनील के हाथ हटा कर वह अपने हाथ सुनीता के गाउन म डाल
और सुनीता के म नरम और िफर भी स बू को दबाएं , सहलाएं और अ ी तरह से मसल द। सुनीता करवट लेकर पलंग के
एक छोर पर सो रही थी और उसके पित सुनील उसके पीछे सुनीताकी गाँड़म अपना ल वाला िह ा पाजामे के अंदर से
िबलकुल सुनीता की गाँड़ म जाम िकये ए सो रहे थे। दोनों िमयाँ बीबी इतनी गहरी नी ंद सो रहे थे की उ ज ूजी के आने का
एहसास नही ं आ l ज ूजी ने अपने आप पर बड़ा िनयं ण रखते ए सुनीता के बालों म उं गिलयां डाल उ बालों को उँ गिलयों से
कँघी करते ए हलके से कहा, "सुनीता, उठो।"

जब ज ूजी की हलकी आवाज का कोई असर नही ं आ तब ज ूजी सुनील के िसरहाने के पास गए और थोड़ी स ी और थोड़े
मजाक के अंदाज म सुनील से कहा, "दोपहर का आप दोनों के िमलन का काय म पूरा आ नही ं ा? उठो, अब आप एक सेना
के कप म ह। आप को कुछ िनयम पालन करने होंग। सुबह साढ़े चार बजे उठना पडे गा। उठकर िन िनयम से िनपट कर सबको
कुछ योग और हलकी फुलकी कसरत करनी पड़े गी। चलो ज ी तैयार हो जाओ। ठीक छे बजे ो म शु हो जाएगा। म जा रहा
ँ। आप तैयार हो कर मैदान म प ंिचए।" ज ूजी का करारा फरमान सुनकर सुनीता चौंक कर उठ गयी। उसने ज ूजी को पलंग
के पास म ही पूरा आम यूिनफाम म पूरी तरह से सुस खड़ा पाया। ज ूजी आम यूिनफाम म सटीक, शश और बड़े ही ारे
लग रहे थे। सुनीता ने मन ही मन उनकी बलाइयाँ ली ं। सुनीता ने एक हाथ से ज ूजी को सलूट करते ए कहा, "आप चिलए।
आपको कई काम करने होंग। हम समय पर प ँच जाएं गे।"

चंद िमनटों म ही सुनील उठ खड़े ए ए और वाश म की और भागे। सुनीता ने दे खा की ोितजी नहा कर बाहर िनकल रही थी ं।
तौिलये म िलपटी ई वह सुंदरता की जीती जागती मूरत समान िदख रही थी ं। सुनीता को वह िदन याद आया जब उसने ोितजी
की "मािलश" की थी। सुनीता उठ खड़ी ई और िकवाड़ पार कर वह ोितजी के पास प ंची। सुनीता को आते ए दे ख ोितजी
ने अपनी बाँह फैलायी ं और सुनीता को अपनी बाँहों म घेर िलया और िफर ार भरे श ों म बोली, 'सुनीता कैसी हो? मेरे पित ने
तु ादा छे ड़ा तो नही ं ना?" सुनीता ने शमाते ए कहा, "दीद झूठ नही ं बोलूंगी। िजतना छे ड़ना चािहए था उतना छे ड़ा। बस ादा
नही ं। पर मेरी छोडो अपनी बताओ। मेरे पित ने आपके साथ कुछ िकया की नही ?ं " ोितजी ने कहा, "बस मेरा भी कुछ वैसा ही
जवाब है। थोड़ा सा ही फक है। तु ारे पित ने िजतना कुछ करना था सब कर िलया, कुछ छोड़ा नही ं। अरी! तेरे शौहर तो बड़े ही
रं गीले ह यार! तेरी तो रोज मौज होती होगी। इतने गंभीर और प रप िदखने वाले सुनीलजी इतने रोमांिटक हो सकते ह, यह तो मने
सोचा तक नही ं था।" सुनीता अपने पित की िकसी और खूबसूरत ी से शंशा सुनकर उसे मु ल से हजम कर पायी। पर अब
तो आगे बढ़ना ही था। सुनीता ने ोितजी से कहा, "दीदी, लाइए म आपके बालों को आजकी पाट के िलए सजा दे ती ँ। म चाहती
ँ की आज मेरी दीदी अपनी खूबसूरती, जवानी और कमिसनता से सारे ही जवानों और अफसरों पर गजब का कहर ढाये! म
सबको िदखाना चाहती ँ की मेरी दीदी पाट म सब औरतों और लड़िकयों से ादा सु र लगे।"

सुनील जब वाश म म से तैयार होकर िनकले तो उ ोंने दे खा की सुनीता ोितजी को सजाने म लगी ई थी। ोितजी को आधे
अधूरे कपड़ों म दे ख कर सुनील ने अपने आप पर संयम रखते ए दोनों मिहलाओं को "बाई" कहा और खुद ज ूजी को िमलने
िनकल पड़े । शामके ठीक छह बजे जब सब ने अपनी जगह ली तब तक सुनीता और ोित जी प ंचे नही ं थे। मंच पर ज ूजी और
कप के अिधकारी कुछ गु गू म मशगूल थे। ज ूजी को भी मंच पर ख़ास थान िदया गया था। धीरे धीरे सारी कुिसयां भर गयी ं।

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ो ाम शु होने वाला ही था की ोितजी और सुनीता का वेश आ। उस समय सब लोग एक दू सरे से बात करने म इतने
मश फ थे की पूरा हॉल सब की आवाज से गूँज रहा था। जैसे ही सुनीता और ोितजी ने वेश िकया की सब तरफ स ाटा छा
गया। सब की िनगाह सुनीता और ोितजी पर गड़ी की गड़ी ही रह गयी ं। ोितजी ने ट और उसके ऊपर एक ि वाला
सतह पर सतह हो ऐसा सूत का सफ़ेद िचकन की कढ़ाई िकया आ टॉप पहना था। ोितजी के बाल सुनीता ने इतनी खूबसूरती से
सजाये थे की ोित नयी नवेली दु न की तरह लग रही ं थी ं। ोितजी का टॉप पीछे से खुला आ ाउज की तरह था। ोित जी
के सु ढ़ बू का उभार उनके टॉप से बाहर उछल कर िनकल ने की कोिशश कर रहा था। ोितजी के कू े इतने सुगिठत और
सुआकार लग रहे थे की लोगों की नजर उस पर िटकी ही रह जाती थी ं।

सुनीता ने साडी पहन र ी थी। ोितजी के मुकाबले सुनीता ादा शांत और मँजी ई औरत लग रही थी। साडी म भी सुनीता के
सारे अंगों के उतार चढ़ाव की कामुकता भरी झलक साफ़ साफ़ िदख रही थी। सुनीता की गाँड़ साडी म और भी उभर कर िदख
रही थी। जब धीरे धीरे सब ने अपने होश स ाले तब कप के मु ािधकारी ने एक के बाद एक सब का प रचय कराया। ज ू जी
का थान सभा के मंच पर था। कप के िश कों म से वह एक थे। वह सुबह की कसरत के िश क थे और उनके ुप के लीडर
मनोनीत िकये गए थे। जब उनका प रचय िकया गया तब ोितजी को भी मंच पर बुलाया गया और ज ूजी की "बेहतर अधािगनी"
(Better half) के प म उनका प रचय िदया गया। उस समय पूरा हॉल तािलयों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। क ान कुमार
सुनीलजी की बगल म ही बैठे ए थे। नीतू और उसके पित ि गेिडयर ख ा आगे बैठे ए थे। क ान कुमार के पाँव तले से जमीन
खसक गयी जब नीतू का प रचय ीमती ख ा के प म कराया गया। दोपहर के आराम के बाद क ान कुमार अ े खासे थ
िदख रहे थे। मेहमानों का ागत करते ए कप के मु खया ने बताया की हमारा पडोसी मु हमारे मु की एकता को आहत
करने की िफराक म है। चूँिक वह हमसे सीधा पंगा लेने म असमथ है इसिलए वह छ प से हम को एक के बाद एक घाव दे नेकी
कोिशश कर रहा है। वह अपने आतंक वािदयों को हमारे मु म भेज कर हमारे जवानों और नाग रकों को मार कर भय का
वातावरण फैलाना चाहता है। हालात गंभीर ह और हम सजग रहना है।

इन आतंकवादीयों को हमारे ही कुछ धोखेबाज नाग रक चंद पयों के लालच म आ य और ो ाहन दे ते ह। आतंकवादी अलग
अलग शहरों म आतंक फैलाने का ो ाम बना रहे ह। इन हालात म सेना के अिधकारीयों ने यह सोचा की एक आतंकी िव
नाग रक िश ण काय म चलाया जाए िजस म हमारे नाग रकों को आतंकीयों से कैसे िनपटा जाए और शहर म आतंकी हमला
होने पर कैसे हम उनका सामना करना चािहए इसके बारे म बताया जाए। उ ोंने बताया की इसी हेतु से यह ो ाम तैयार िकया
गया था।

सारे मेहमानोंको चार ुपम बाँटा गया था। क ान कुमार, नीतू , उसके पित ि गेिडयर साहब और उनके दो हम उ दो ,
ज ूजी, सुनीलजी, ोितजी और सुनीता एक ुप म थे। ऐसे तीन ुप और थे। कुल िमलाकर करीब छ ीस मेहमान थे। हर एक
ुप म नौ लोग थे। सुबह पाँच बजे योग और हलकी कसरत और उसके बाद चाय ना ा। बाद म सुबह सात बजे पहाड़ों म टैिकंग
का ो ाम था। दोपहर का खाना टैिकंग के आ खरी पड़ाव पर था। टैिकंग का रा ा पहले से ही तय िकया गया था और जगह जगह
तीरों के िनशान लगाए गए थे। प रचय और ो ाम की बात ख़ होते होते शाम के सात बज चुके थे। लाउड ीकर पर सब को
आग की धुिन के सामने िडं और नाच गाने के ो ाम म िह ा लेने का आमं ण िदया गया।

मजेकी बात यहथी की नीतू उसके पित ि गेिडयर साहब और कुमार भी सुनीता, सुनीलजी, ज ूजी और ोितजी वाली धुिन के
आसपास बैठे ए थे। ि गेिडयर ख ा, क ान कुमार के साथ बड़े चाव से बात कर रहे थे। क ान कुमार बार बार नीतु की और
दे ख कर अपनी नाराजगी जािहर करने की कोिशश कर रहे थे की ों नीतू ने उ अपनी शादी के बारे म नही ं कहा? तुरंत उ
याद आया की नीतू ने उ कहने की कोिशस तो की थी जब उसने कहा था की "िजंदगी म कुछ प र थितयां ऐसी आती ह की उ
झेलना ही पड़ता है।" पर ु उसके बाद बात ने कुछ और मोड़ ले लीया था और नीतू अपने बारे म बता नही ं सकी थी। अब जब नीतू
शादीशुदा है तो कुमार को अपना सपना चकनाचूर होते ए नजर आया। ि गेिडयर साहब ने कुमार से अपनी िजंदगी के बारे म
बताना शु िकया। उ ोंने बताया की कैसे नीतू और उसके के िपता ने ि गेिडयर साहब और उनकी गवासी प ी की सेवा की
थी। बादम नीतू के िपता की मौत के बाद नीतू को उ ोंने आ य िदया। उनके स नीतू से कुछ ादा ही िनजी हो गए। तब

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उ ोंने नीतू को समाज म बदनामी से बचानेके िलए शादी करली। ि गेिडयर साहब ने कुमार को यह भी बताया की वह उ म
उनसे काफी छोटी होने के कारण नीतू को अपनी प ी नही ं बेटी जैसा मानते ह। वह चाहते ह की अगर कोई मद नीतू को अपनाना
चाहता हो तो वह उसे तलाक दे कर ख़ुशी से िनतुकी शादी उस युवक से करा भी दगे।

ि गेिडयर साहब ने नीतू को बुलाकर अपने पास िबठाया और बोले, "नीतू बेटा, म जा रहा ँ। म थोड़ा थक भी गया ँ। तो आप
क ान कुमार और बाकी कनल साहब और इन लोगों के साथ ए जॉय करो। म िफर अपने हट म जाकर िव ाम क ं गा।" कह कर
ि गेिडयर साहब चल िदए। ि गेिडयर साहब के जाने के बाद सुनीता उठकर क ान कुमार के करीब जा बैठी। उसने कुमार को
कहा, "क ान साहब, नीतू आपसे अपनी शादी के बारे म कहना चाहती थी पर वह उस व उसम कहने की िह त न थी और
जब वह आपसे कहने लगी थी तो बात टल गयी और वह कह नही ं पायी। वह आपका िदल नही ं तोड़ना चाहती थी। आप उसको
समझ और उसे मा कर और दे खो यह समाँ और मौक़ा िमला है उसे जाया ना कर। आप दोनों घूमे िफर और ए जॉय कर। बाकी
आप खुद समझदार हो।" इतना कह कर सुनीता क ान कुमार को शरारत भरी हँसी दे कर, आँ ख मार कर वापस अपने पित
सुनील, ज ूजी और ोितजी के पास वापस आ गयी। उसे ख़ुशी ईकी अगर यह दो जवान िदल आपस म िमल कर ार म कुछ
समय एक साथ िबताते ह तो वह भी उनके िलए और खास कर नीतू के िलए ब त बड़ी बात होगी। शाम धीरे धीरे जवाँ हो रही थी।
ज ूजी और सुनील ने अपने जाम म ी भर चु ी पर चु ी ले रहे थे। सुनीता और ोितजी चाय के साथ कुछ ै ले रही ं
थी ं। ज ूजी की उलझन ख़ होने का नाम नही ं ले रही थी। सुनीता ने अपने पित सुनील को कहा, "ऐसा लगता है की कोई गंभीर
मामला है िजसके बारे म ज ूजी कुछ जानते ह पर हमसे शेयर करना नही ं चाहते। आप ज़रा जा कर पूिछए ना की ा बात है?"

सुनील ज ूजी के पास प ंचे। ज ूजी आम के कुछ अफसरान से गु गू कर रहे थे। कुछ दे र बाद जब ज ूजी फा रग ए तब
सुनील ने ज ूजी से पूछा, भाई, हम हम बताइये ना की ा बात है? आप इतने िचंितत ों ह?" ज ू जी ने सुनील की और दे ख
कर पूरी गंभीरता से कहा, "सुनीलजी, आपसे ा िछपा आ है? आप को भी तो िमिन ी से िहदायत िमली ई है की कुछ जासुस
हमारी सना के कुछ अफसरान के पीछे पड़े ए ह। वह हमारी सेना की गित-िविधयो ँ की गु जानकारी पाना चाहते ह। वह जानना
चाहते ह की हमारी सेना की ा रणनीित होगी। म सोच रहा था की कही ं जो हमारे साथ कुछ हादसे ए ह उससे इस बात का तो
कोई स नही ं है?" ज ूजी की बात सुनकर सुनील चौक गए और बोल पड़े , " ा इसका मतलब यह आ की पडोसी दे श के
जासूस हमारे पीछे पड़े ए ह? वह हम से कुछ स ाई उगलवाना चाहते ह?" सुनीता ने अपने पितके मुंह से यह श सुने तो उसके
चेहरे पर जैसे हवाइयाँ उड़ने लगी।ं उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ भय और आतंक के िनशान िदख रहे थे। सुनीता बोल उठी, "बापरे !
वह टै ी वाला और वह िटकट चेकर ा दु नों के जासूस थे? अब म सोचती ँ तो समझ म आता है की वह लोग वाकई िकतने
भयंकर लग रहे थे।" ज ूजी की और मुड़कर सुनीता बोली, "ज ूजी अब ा होगा?" ज ू जी ने सुनीता का हाथ थामा और
िदलासा दे ते ए बोले, " अपने न े से िदमाग को क ना दो। हम कुछ नही ं होगा। हम इतनी बड़ी िहंदु ानी फ़ौज के कप म ह
और उनकी िनगरानी म ह। मुझसे गलती ई की मने तु यह सब बताया।" तब सुनीता ने अपना खूबसूरत सीना तान कर कहा,
"हम भी भारत की श ह। म एक ाणी ँ और एक बार ठान लूँ तो सबसे िनपट सकती ँ। मुझे कोई डर नही ं।"

ोितजी ने सुनीता की दाढ़ी अपनी उँ गिलयों म पकड़ी और उसे िहलाते ए कहा, "अगर ाणी है तो िफर यह जूस ही ों पी
रही है? कुछ गरम पेय पी कर िदखा की तू भी वाकई म ाणी है" सुनीता ने ोितजी की और मुड़कर दे खा और बोली, "इसम
कौनसी बड़ी बात है? चलो दीदी डालो ास म ी और हम भी हमारे मद को िदखाते ह की हम जनाना भी मद से कोई कम
नही ं।" नीतू सुनीता का जोश और ज ा ता ुब से दे ख रही थी। उसने सुनीता की िह त टैन म दे ख थी। वाकई म तो सबकी जान
सुनीता ने ही बचाई थी ूंिक अगर सुनीता ने कुमार की टाँग कस के काफी दे र तक पकड़ र ी नही ं होती ं तो कुमार फुल ीड
म चल रही टैन से िगर पड़ते और नीतू और कुमार दोनों की मौत प ी थी। ोितजी ने सुनीता के िगलास म कुछ ादा और
अपने िगलास म कुछ कम ी डाली और सोडा से िमलाकर सुनीता को दी। ज ूजी और सुनील अपनी बीिबयों की करतूत
दे ख कर मन ही मन खुश हो रहे थे। अगर पी कर यह म हो गयी ं तो समझो उनकी रात का मजा कुछ और होगा। लाउड ीकर
पर डांस संगीत शु हो गया था। नीतू और कुमार बाँहों म बाँह डाले नाच रहे थे। उनको दे ख कर सुनीता ने ोितजी से कहा,
"लगता है यह दो जवान बदनों की हवस की आग इस या ा के दर ान ज र रं ग लाएगी।"

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सुनीता पर ी का रं ग चढ़ रहा था। झूमती ई सुनीता कुमार और नीतू डांस कर रहे थे वहाँ प ंची और दोनों के पास जाकर
नीतू का कंधा पकड़ कर बोली, "दे खो बेटा। म तुम दोनों से बड़ी ँ। म तु खु म खु ा कहती ँ की जब भी मौक़ा िमले मत
गंवाओ। िजंदगी चार िदनकी है, और जवानी िसफ दो िदन की। मौज करो। नीतू तु ारे पित ि गेिडयर साहब ने खुद तु िकसी भी
तरह से रोका नही ं है। ब वह तो तु कुमार से घुल िमल कर मौज करने के िलए कहते ह। वह तु बेटी मानते ह। वह जानते ह
की वह तु पित या ि यतम का मरदाना ार नही ं दे सकते। तो िफर सोचते ा हो? जवानीके दो िदन का फायदा उठाओ। अगर
आप के ार करने से िकसी का घर या िदल नही ं टू टता है, तो िफर िदल खोल कर ार करो। नीतू के कान के पास जा कर सुनीता
नीतू के कान म बोली, "हम भी यहां मौज करने आये ह।" िफर अपनी माँ ने दी ई कसम को याद कर सुनीता के चेहरे पर गमगीनी
छा गयी। सुनीता थराती आवाज म बोली, "पर बेटा मेरी तो साली तक़दीर ही खराब है। िजनसे म चुदाई करवाना चाहती थी उनसे
करवा नही ं सकती। कहते ह ना की "नसीब ही साला गांडू तो ा करे गा पांडु?" नीतू और कुमार िबना बोले सुनीता की और आ य
से एकटक दे ख रहे थे की सुनीताजी जो इतनी प रप लगती थी ं शराब के नशेम कैसे अपने मन की बात सबको बता रही थी।

सुनील और ोितजी हॉल की बाँहों म बाँह डाले घूम घूम कर डांस कर रहे थे। साथ साथ म जब मौक़ा िमलता था तब वह एक
दू सरे से एकदम िचपक भी जाते थे। सुनीता ने यह दे खा। उसकी नजर ज ूजी को ढू ं ढने लगी। ज ूजी कही ं नजर नही ं आ रहे थे।
जब सुनीता ने ान से दे खा तो पाया की ज ूजी वहाँ से काफी दू र एक दू सरे कोने म अपनी बीबी के करतब से बेखबर बाहर
आम कप के कुछ अफसरान से बात करने म मश फ थे। सुनीता को ी का सु र चढ़ रहा था। उसे ज ूजी के िलए बड़ा
अफ़सोस हो रहा था। सुनीता और ज ूजी आपस म एक दू सरे से एक होना चाहते थे पर सुनीता की माँ के वचन के कारण एक
नही ं हो सकते थे। यह जानते ए भी की सुनीता उनसे चुदवाने का ादा िवरोध नही ं करे गी, अगर वह सुनीता पर थोड़ी सी जोर
जबरद ी कर। पर ज ूजी अपने िस ांत पर िहमाचल की तरह अिडग थे। वह तब तक सुनीता को चुदाई के िलए नही ं कहगे जब
तक सुनीता ने माँ को िदया आ वचन पूरा नही ं हो जाता और वह वचन इस जनम म तो पूरा होना संभव नही ं था। मतलब रे ल की
दो पट रयों की तरह सुनीता और ज ूजी के बदन इस जनम म तो एक नही ं हो सकते थे। हालांिक सुनीताने कर िदया था की
चुदाई के िसवा वह सब कुछ कर सकते ह, पर अब तो ज ूजी ने यह भी तय कर िदयाथा की वह सुनीताको छे ड़गे भी नही ं। कारण
ज ूजी का ल ज ूजी के िनय ण म नही ं रहता था। जब जब भी सुनीता उनके करीब आती थी तो वह काबू के बाहर हो जाता
था और तब ज ूजी का िदमाग एकदम घूम जाता था। इस िलए वह सुनीता से दू र रहना ही पसंद करने लगे जो सुनीता को बड़ा
चुभ रहा था।

ोितजी सुनीता के पित के साथ िचपकी ई थी। कुमार और नीतू कुछ दे र डांस करने क बाद वहाँ से थोड़ी दू र कुछ गु गू कर
रहे थे। सुनीता से बात करने वाला कोई वहाँ नही ं था। सुनीता उठ खड़ी हो रही थी की एक साहब जो की आम वाले ही लग रहे थे
झूमते ए सुनीताके पास आये और बोले, "म मेजर कपूर ँ। लगता है आप अकेली ह। ा म आपके साथ डांस कर सकता ँ?"
सुनीता उठ खड़ी ई और मेजर साहब की खुली बाँहों म चली गयी और बोली, " ों नही ं? मेरे पित िकसी और औरत की बाँहों म
ह। पर सच क ं कपूर साहब? मुझे डांस करना नही ं आता।"

कपूर साहब ने कहा, "कोई बात नही ं। आप मेरे बदन से साथ झूमते ए िथरकते रिहये। धीरे धीर लय के साथ झूमते ए आप िसख
जाएं गे।" कपूर साहब करीब पतालीस साल के होंगे। आम की िनयिमत कसरत बगैरह की आदत के कारण उनका बदन सुगिठत
था और उनके चपल चहल कदमी से लगता था की वह बड़े फुत ले थे। उनके सर पर कुछ सफ़ेद बाल िदख रहे थे जो उनके सु र
चेहरे पर जँचते थे। सुनीता ने पूछा, " ा आप अकेले ह?" कपूर साहब ने फ़ौरन जवाब िदया, "नही ं, मेरी प ी भी आयी है।" िफर
दू र कोने की और इशारा करते ए उ ोंने कहा, "वह जो उस कोने म जी और डाक ू टॉप पहने ए सु र सी मिहला उस
अधेड़ पु ष के साथ डांस करती िदख रही है, वह मेरी प ी पूजा है।" सुनीता ने दे खा तो वह सु र मिहला एक आम अफसर के
साथ काफी करीबी से डांस कर रही थी।" सुनीता का मन िकया की वह पूछे की वह मर् द कौन था? पर िफर उसने पूछने की
ज रत नही ं समझी। कपूर साहबी काफी रोमांिटक लग रहे थे। वह सुनीता को एक के बाद एक कैसे े प लेने चािहए और कब
अलग हो जाना है और कब एक दू सरे से िचपक जाना है इ ािद िसखाने लगे। सुनीता तो वैसे ही बड़ी कुशा बु की थी और ज
ही वह संगीत के लय के साथ कपूर साहब का डांस म साथ दे ने लगी। कपूर साहबभी काफी मानी िमजाज के लग रहे थे। जब
बदन िचपका ने मौक़ा आता था तब कपूर साहब मौक़ा छोड़ते नही ं थे। वह सुनीता का बदन अपने बदन से िचपका लेते थे। सुनीता

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को महसूस आ की कपूर साहब का ल खड़ा हो गया था और जब कपूर साहब उससे िचपकते थे तब सुनीता उसे अपनी जाँघों
के िबच महसूस कर रही थी। पर उसे कुछ बुरा नही ं लगता था। वह भली-भाँित जानती थी ऐसे हालात म बेचारे मद का ल करे
तो ा करे ? ऐसे हालात म अगर औरत को भी कोई अपनी मज के पु ष के करीब आने का मौक़ा िमले तो ा उसकी चूत म
और उसकी चूँिचयों म हलचल मच नही ं जाती? तो भला पु ष का ही ा दोष? पु ष जाती तो वैसे ही चुदाई के िलए तड़पती रहती
है।

मेजर कपूर ने सुनीता से पूछा, "सुनीताजी ा आप के पित यहाँ नही ं है?" सुनीता ने सुनील को िदखाते ए कहा, "कपूर साहब! वह
सबसे खूबसूरत मिहला िजनके साथ डांस कर रही है वह मेरे पित ह।" कपूर साहब बोल पड़े , "अरे वह तो िमिसस जसवंत िसंह है।"
सुनीता ने कहा, "कमाल है साहब, आप अपने आप उ िमिसस जसवंत िसंह ों कह रहे ह?"हाँ वही ोितजी ह। दे खा आपने
वह िकतना करीबी से मेरे पित के साथ डांस कर रही ं ह?" कपूर साहब ने कहा, "तो िफर आपको िकसने रोका है? आप भी तो मेरे
साथ एकदम करीबी से डांस कर सकती ह।" सुनीता ने अपनी आँख नचाते ए पूछा, "अ ा? ा आप की प ी बुरा तो नही ं
मानेगी?" कपूर साहब ने कहा, "भाई अगर आपके पित बुरा नही ं मानगे तो मेरी प ी ों बुरा मानगी? वह तो खुद ही उन साहब की
बाँहों म िचपक कर डांस कर रही है।" सुनीता ने कहा, "ठीक है िफर तो।" बस इतना बोल कर सुनीता चुप हो गयी। कपूर साहब को
तो जैसे खुला लाइसस ही िमल गया हो वैसे वह सुनीता को अपनी बाँहों म दबाकर बड़ी उ टता से अपनी जाँघों से सुनीता की जांघ
रगड़ते ए डांस करना शु िकया। संगीत म चंद िमनटों का ेक आ। मेजर कपूर और सुनीता अलग ए। मेजर कपूर फ़ौरन
ी के दो िगलास ले आये और सुनीता को एक थमाते ए बोले, "दे खये मोहतरमा, म सरहद पर तैनात ँ। कल ही सरहद से
आया ँ। अगले ह े िफर सरहद पर लौटना है। िजस तरह से सरहद पर लड़ाई िछड़ने का माहौल है, पता नही ं कल ही बुलावा आ
जाये। और िफर पता नही ं म अपने पाँव से चलके आऊं या िफर दू सरों के कंधों पर। पता नही ं िफर हम िमल पाएं भी या नही ं। तो
ों हम दोनों अकेले ही इस समाँ को ए जॉय ना कर? कहते ह ना की "कल हो ना हो"

सुनीता को याद आया की ज ूजीने अपनी प ी ोित को भी यह श कहे थे। सुनीता सोच रही थी की इन श ोंम िकतनी
स ाई थी। उसने खुद कई सगे और स यों की लाश खुद दे खी ं थी।ं उसे अपने िपता की याद आ गयी। सुनीता ने भगवान् का
शु िकया की उसके िपता ज ी तो ए थे, पर उनको अपनी जान नही ं गँवानी पड़ी थी। सुनीता ने एक ही झटके म ी का
िगलास खाली कर िदया। यहाँ सुनीता के के बारे म एक बात कहनी ज री है। वैसे तो सुनीता एक साधारण सी भारतीय
नारी ही थी। वह थोड़ी सी वाचाल, बु की कुशा , शम ली, चंचल, चुलबुली और एक पित ता नारी थी। पर जब उसे शराब का
नशा चढ़ जाता था तब सुनीता की हरकत कुछ अजीबोगरीब हो जाती थी ं। सुनीता को जानने वाला यह मान ही नही ं सकता था की
वह सुनीता थी। उसके हावभाव, उसकी वाचा, उसके चलने एवं बोलने का ढं ग एकदम ही बदल जाता था। यह कहना मु ल था
की वह असल म सुनीता ही थी। सुनील को ऐसा अनुभव दो बार आ।

एक बार ऐसा आ की पाट म दो ों के आ ह से सुनीता ने कुछ ादा ही पी ली। िपने के कुछ दे र तक तो सुनीता बैठी सबकी
बात सुनती रही। िफर जब उसे नशे का शु र चढ़ने लगा तब सुनीता ने सुनीलजी के एक दो का हाथ पकड़ कर उस आदमी को
सुनील समझ कर उसे िचपक कर उसे सबके सुनते ए ज ी से घर चलने का आ ह करने लगी। वह जोर जोर से यही बोलती रही
की "पाट म आने से पहले तो तुम मुझे बार बार कहते थे की आज रात को िब र म सोने के बाद खूब मौज करगे? तो चलो ना,
अब पाट म दे र ों कर रहे हो? आज तो मेरा भी बड़ा मन कर रहा है। चलो ज ी करो, कही ं तु ारा मूड (??!!) ढीला ना पड़
जाए!" वह सुनीलजी का दो बेचारा समझ ही नही ं पाया की वह रोये या हँसे?

दू सरी बार सुनीता ने दो पेग ी के लगाए तब अचानक ही वह यो ांिगनी बन गयी और वहाँ खड़े ए सब को चुनौती दे ने लगी
की यिद उसके हाथ म ३०३ का राइफल होता तो वह यु म जाकर दु नों के दाँत ख े कर दे ती। और िफर वह वहाँ खडे ए
लोगों को ऐसे आदे श दे ने लगी जैसे वह सब लोग फ़ौज की कोई टु कड़ी हो और सुनीता को सेना के जवानों की टु कड़ी का लीडर
बनाया गया हो। सुनीता चाहती थी की उस का कमांड सुनकर वहाँ खडे लोग परे ड शु कर। वह "ले , राइट, आगे बढ़ो, पीछे
मूड़" इ ािद कमांड दे ने लगी थी। जब वह लोग उलझन म खड़े दे खते रहे तब सुनीता ने उन लोगों को ऐसा झाड़ना शु िकया की,
"शम नही ं आती, आप सब जवानों को? तन ाह फ़ौज से लेते हो और का पालन नही ं करते?" इ ािद। बड़ी मु ल से

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सुनील ने सबसे माफ़ी मांगी ं और सुनीता को समझा बुझा कर घर ले आये।

सुनील ने सुनीता को एक बार एक िवशेष साइ ािट को िदखाया तो उ ोंने कुछ टे करने के बाद कहा था, "िचंता की कोई
बात नही ं है। सुनीता की नशा हजम करने की मता दू सरे लोगों से काफी कम है। बस सुनीता को शराब से दू र रखा जाय तो कोई
िद त नही ं है। जैसे ही वह ादा नशीली शराब जैसे ी, रम, वोदका आिद थोड़ी सी ादा पी लेती ह तो उनका मन चंचल
हो उठता है। जब तक उनपर नशे का शु र छाया रहता है तब तक वह उस समय उनके मन म चल रही इ ा को अपने सामने ही
फलीभूत होते ए दे खती है। मतलब वह यातो अपने को कोई और समझ लेती है या िफर िकसी और को अपने मन पसंद िकरदार
म दे खने लगती है। अगर उस समय सुनीता के मन म शाह ख खानके बारे म िवचार होते ह तो वह िकसी भी को शाह ख
खान समझ लेती है और उससे उसी तरह पेश आती है। उस समय यिद उसका मन कोई िफ मए ं ग करने का होता है वह
खुद को ए र समझ लेती है और ए ं ग करने लग जाती है। नशा उतरते ही वह िफर अपनी मूल भूिमका म आ जाती है। उसे
पता तो चलता है की उसने कुछ गड़बड़ की थी। पर उसे याद नही ं रहता की उसने ा िकया था। तब िफर उसे अफ़सोस होने
लगता है और वह अपने िकये कराये के िलए माफ़ी मांगने लग जाती है और उस समय उसे स ालने वाले पर काफी एहसान मंद
हो जाती है।" साइ ािट की राय जान कर सुनीलजी की जान म जान आयी। इसी िलए सुनीलजी ख़ास ान रखते थे की सुनीता
को कोई ादा म पेय ( ी, रम, वोदका आिद) ना दे । जब कोई ादा आ ह करता तो सुनीता को सुनीलजी थोड़ा सा िबयर
िपने दे ते, पर बस एकाद घूँट अंदर जाते ही सुनीलजी उसका ास छीन लेते इस डर से की कही ं उसको चढ़ ना जाए और वह कोई
नया ही बवंडर खड़ा ना करदे । पर उस िदन शाम उस समय सुनीलजी कही ं आगे पीछे हो गए और नीतू, कुमार साहब बगैरह लोगों
ने िमलकर सुनीता को ी िपला ही दी।

नशे का सु र सुनीता पर छा रहा था। सेना के जवानों की शूरवीरता और बिलदानकी वह कायल थी। वह खुद भी दे श के िलए
बिलदान करने के िलए पूरी तरह तैयार थी। शराब का नशा चढ़ते ही सुनीता के िदमाग म जैसे कोई बवंडर सा उठ खड़ा आ।
उसको अपने सामने मेजर कपूर नही,ं कनल जसवंत िसंह (ज ूजी) िदखाई दे ने लगे। वह ज ूजी, जो दे श के िलए अपनी जान दे ने
के िलए सदै व तैयार रहते थे। वह ज ूजी िज ोंने सुनीता के िलए ा कुछ नही ं िकया? जब कपूर साहब ने सुनीता से कहा की वह
दे श के िलए अपनी जान तक दे ने के िलए तैयार थे तो सुनीता सोचने लगी, "जब ज ूजी दे श के िलए अपनी जान तक दे ने के िलए
तैयार थे तो भला ऐसे जाँबाज़ के िलए दे शवािसयों का भी कत बनता है की वह उनके िलए अपना सबकुछ कुबान करद। अगर
उनकी इ ा से करने की हो तो ा सुनीता को उनकी इ ा पूरी नही ं करनी चािहए?" सुनीता ने कपूर साहब से कहा,
"ज ूजी, आप मेरे पित की िचंता मत क रये। आप मेरे वचन की भी िचंता मत क रये। जब आप दे श के िलए अपनी जान तक का
बिलदान करने के िलए तैयार ह तो म आपको आगे बढ़ने से रोकूंगी नही ं। चिलए म तैयार ँ। पर यहां नही ं। यहां सब दे खगे। बोिलये
कहाँ चल?" कपूर साहब सुनीता को दे खते ही रहे। इनकी समझ म नही ं आया की यह ज ूजी कौन थे और सुनीता कौनसे वचन की
बात कर रही थी? सुनीता उ ज ूजी कह कर ों बुला रही थी? पर िफर उ ोंने सोचा, " ा फक पड़ता है? ज ूजी बनके ही
सही, अगर इतनी खूबसूरत मोहतरमा को चोदने का मौक़ा िमल जाता है तो ों छोड़ा जाये, जब वह खुद सामने चलकर आमं ण
दे रही थी?"

कपूर सर ने कहा, "मुझे कोई िचंता नही ं। आइये हम िफर इस भीड़ से कही ं दू र जाएँ जहां िसफ हम दोनों ही हों। और िफर हम
दोनों एक दू सरे म खो जाएँ ।" यह कह मेजर साहब ने सुनीता का हाथ पकड़ा और उसे थोड़ी दू र ले चले। सुनीता ने भी उतने जोश
और ारसे जवाब िदया, "ज ूजी, म आप को ार करने ले िलए ही तो ँ और र ंगी। आपको मुझे पूछने की ज रत नही।ं "
सुनीता नशे म झूमती ई मेजर साहब के पीछे पीछे चलती बनी। कपूर साहब के तो यह सुनकर वारे ारे हो गए। उ ोंने हाथ
बढ़ाकर सुनीता के टॉपके बटन खोलने शु िकये। सुनीता भी कपूर साहब की जाँघों के िबच म हाथ डालने वाली ही थी की
अचानक नजदीक म ही कपूर साहब को "सुनीता सुनीता" की पुकार सुनाई दी। वो आवाज सुनीलकी थी। उनकी आवाज सुनकर
कपूर साहब जैसे ज़मीन म गाड़ िदए गए हों, ऐसे थम गए। सुनीता अँधेरे म इधर उधर दे खने लगी की कौन उसे आवाज दे रहा था।
कुछ ही दे र म सुनील सुनीता और कपूर साहब के सामने हािजर ए। इतने घने अँधेरे म भी िसतारो ँ की हलकी रौशनी म अपने पित
को दे खते ही सुनीता झप सी गयी और भाग कर उनकी बाँहों म आ गयी और बोली, "सुनील दे खये ना! ज ूजी मुझसे कुछ ारी
सी बात कर रहे थे। वह मुझसे ार करना चाहते ह। ा म उनसे ार कर सकती ँ? तु कोई आपि तो नही ं है ना?" सुनील

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अपनी प ी सुनीता को ह ेब े दे खते ही रह गए। जब उ ोंने कपूर साहब को दे खा तो सुनीलजी कुछ ना बोल सके। वह समझ
गए की कपूर साहब सुनीता को फुसला कर वहाँ ले आये थे और नशे म धु सुनीता, कपूर साहब को ज ूजी समझ कर कपूर
साहब के साथ वहाँ आयी थी। सुनील िकसको ा कहे? सुनील को वहाँ दे खकर कपूर साहब शिम ा हो कर िसफ "आई ऍम
सॉरी" कह कर वहाँ से चलते बने और कुछ ही दे र म अँधेरे म ओझल हो गए। सुनील ने ार से सुनीता को गले लगाया और कहा,
"डािलग, अभी वापस चलते ह, िफर अपने कमरे म प ँच कर बात करते ह।"

सुनील ने अपनी प ी सुनीता को ार से पकड़ कर अपने साथ ले िलया और कटीन की और चल पड़े । कटीन म प ंचकर उ ोंने
सुनीता और अपने िलए िडनर मंगवाया और सुनीता को अपने हाथों से खलाकर सुनीता को ार से वैसे ही ब े की तरह पकड़
कर अपने ुईट की और चल िदए। रा े म सुनीता ने अपने पित का हाथ थाम कर उनसे नजर िमलाकर पूछा, "सुनील, आप
बताइये ना, ा मने शराब के नशे म कुछ उलिटपुलिट हरकत तो नही ं की?" सुनीलजी ने अपनी प ी की और ारसे दे ख कर
सुनीता के बालों म अपने हो ँठ से चु न करते ए कहा, "नही ं डािलग, कुछ नही ं आ। तुम थकी ई हो। थोड़ा आराम करोगी तो
सब ठीक हो जाएगा।" सुनीता अपने पित की बात सुनकर चुपचाप एक शरारत करते ए पकडे जाने वाले ब े की तरह उनके
साथ अपने कमरे म जा प ंची। वहाँ प ँचते ही सुनीता भागकर पलंगपर लेटने लगी पर सुनील ने सुनीता को ार से िबठाकर
उसका ट और टॉप िनकाल फका। िसफ ा और पटी पहने लेटी ई अपनी खूबसूरत बीबी को कुछ समय तक सुनील दे खते ही
रहे िफर उसे उसका नाइट गाउन पहनाने लगे। सुनीता ने जब अपने पित को कपडे बदलते ए पाया तो उसने उठकर अपने आप
अपना नाइट गाउन पहन िलया और अपने बदन को इधर उधर करते ए अपनी ा और पटी िनकाल फकी और लेट गयी। कोने म
जल रही िसगड़ी से दोनों कमरों म काफी आरामदायक तापमान था। सुनीलजी ने दे खा की सुनीता कुछ ही िमनटों म गहरी नी ंद सो
गयी। सुनील अपनी प ी को िब र पर बेहोश सी लेटी ई दे ख रहे थे। उसका गाउन पलंग पर फैला आ उसकी जाँघों के ऊपर
तक आ गया था। सुनीता की नंगी माँसल जाँघों को दे ख कर सुनील का ल खड़ा हो गया था। वह बेहाल लेटी ई अपनी बीबी को
दे ख रहे थे की कुछ ही पलों म सुनीलजी को अपनी प ी सुनीता के खराटे सुनाई दे ने लगे।

सुनील पलंग के पास से हट कर खड़की के पास खड़े हो कर सोचते ए अँधेरे म दू र दू र जंगल की और िसतारों की रौशनी म दे ख
रहे थे तब उ भौंकते और रोते ए भेिड़यों की आवाज सुनाई दी। उ ोंने कई बार शहर म भौंकते ए कु ों की आवाज सुनी थी
पर यह आवाज काफी डरावनी और अलग थी। सुनीलजी की समझ म यह नही ं आ रहा था की यह कैसी आवाज थी। तब सुनील ने
ज ूजी का हाथ अपने काँधों पर महसूस िकया। ज ूजी और ोित अपने कमरे म आ चुके थे। ोित कपडे बदल ने के िलए
वाश म म गयी थी। सुनील को खड़की के पास खड़ा दे ख कर ज ूजी वहाँ प ँच गए और उन के पीछे खड़े होकर ज ूजी ने
कहा, "यह जो आवाज आप सुन रहे हो ना, वह ा है जानते हो? यह कोई साधारण जंगली भेिड़ये की आवाज नही ं। यह आवाज
सेनाके तैयार िकयेगए ख़ास भयानक न के कु ों की आवाज है।" ज ूजी ने थोड़ा थम कर िफर बात आगे बढ़ाते ए कहा, "सेना
म इन कु ों को खास तालीम दी जाती है। इनका इ ेमाल ख़ास कर दु नों के बंदी िसपाही जब कैद से भाग जाते ह तब उनको
पकड़ ने के िलए िकया जाता है। उनको अं ेजी म "हाऊ " कहते ह। यह कु े "हाऊ ", जानलेवा होते ह। इनसे बचना लगभग
नामुमिकन होता है। कैद से भागे ए कैदी िसपाही के कपडे या जूते इ सुँघाये जाते ह। अगर कैदी को मार दे ना है तो इन हाउ
को कैिदयों के पीछे खु ा छोड़ िदया जाता है। हाउ उन कैिदयों को कुछ ही समय म जंगल म से ढूंढ िनकालते ह और उनको
चीरफाड़ कर खा जाते ह। अगर क़ैिदयों को िज़ंदा पकड़ना होता है तो सेना के जवान इन हाउ को र ी म बाँध कर उनके पीछे
दौड़ते रहते ह। यह हाउ कैदी की गंध सूंघते सूंघते उनको ज ही पकड़ लेते ह।" ज ूजी ने बड़ी गंभीरता से कहा, "सुनीलजी
मेरी समझ म यह नही ं आता की यह हाउ िकसके ह। हमारी सेना ने तो इस ए रया म कोई हाउ नही ं रखे। तो मुमिकन है की
यह दु नों के हाउ ह। अगर ऐसा है तो हमारी सीमा म दु नों के यह हाउ कैसे प ंचे? मुझे डर है की ज ही कुछ
भयानक घटना घटने वाली है।"

ज ूजीकी बात सुनकर सुनील चौंक गए। सुनील ने पूछा, "ज ूजी कही ं ऐसा तो नही ं की हमारी सेना के कुछ जवानों को दु नने
कैदी बना िलया हो?" ज ूजी ने अपने हाथ अपनी ाइल म झकझोरते ए कहा, "ऐसा कुछ भी नही ं आ। यही तो सोचनेवाली
बात है। कुछ ना कुछ तो खचड़ी पक रही है, और वह ा है हम नही ं पता।" सुनीलने घूमकर ज ूजी का हाथ थामकर कहा,
"ज ूजी, आप ब त ादा सोचते हो। भला दु न के िसपािहयों की इतनी िह त कहाँ की हमारी सीमा म घुस कर ऐसी हरकत

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कर? ा यह नही ं हो सकता की हम अपना िदमाग बेकार ही खपा रहे हों और वा व म यह आवाज जंगली भेिड़यों की ही हो?"
ज ूजी ने हार मानते ए कहा, "पता नही ं। हो भी सकता है।"

सुनील ने ज ूजी की नजरों से नजर िमलाते ए पलंग म लेटी ई अपनी बीबी सुनीता की और इशारा करते ए कहा, "िफलहाल
तो मुझे सुनीता के खराटों की दहाड़ का मुकाबला करना है। पता नही ं आपने उस पर ा वशीकरण म िकया है की वह आपकी
ही बात करती रहती है।" सुनील की बात सुनकर ज ूजी को जब सकते म आते ए दे खातो सुनील मु ु राये और िफरसे ज ूजी
का हाथ थाम कर अपने पलंग के पास ले गए जहां सुनीता जैसे घोड़े बेचकर बेहाल सी गहरी नी ंद सो रही थी। अपनी आवाज म
कुछ गंभीरता लाते ए सुनील ने कहा, "ज ूजी म आपसे एक बात पूछना चाहता ँ। ा आप बुरा तो नही ं मानगे?" बड़ी
मु लसे सुनीता की माँसल जाँघों परसे अपनी नजर हटाकर ज ूजीने आ य भरी िनगाहों से सुनीलजी की और दे खा। अपना सर
िहलाते ए ज ूजी ने िबना कुछ बोले यह इशारा िकया की वह बुरा नही ं मानगे। सुनील बोले, "ज ूजी, ा आप अब मुझे और
सुनीता को अपना अंतरं ग साथी नही ं मानते?" ज ूजी ने जवाब िदया, "हाँ म और ोित आप दोनों को अपना घिन अंतरं ग साथी
मानते ह। इसम पूछने वाली बात ा है?" सुनील ने कहा, "तब िफर ा हम दोनों पित प ी की जोिड़यों म कोई पदा होना
चािहए?" ज ूजी ने फ़ौरन कहा, "िबलकुल नही ं होना चािहए। पर आप यह ों पूछ रहे ह?" सुनील ने कहा, "म भी यही मानता ँ।
पर म यहां यह कहना चाहता ँ की कुछ बात इतनी नाजुक होती ह, की उ कहा नही ं जाना चािहए। हम लोगों को उ िबना कहे
ही समझ जाना चािहए। म हम दोनों पित पि यों के िबच के संबंधों की बात कर रहा ँ। म चाहता ँ की हम दोनों जोिड़यों के िबच
िकसी भी तरह का कोई भी परायापन ना रहे l अगर हम सब एक-दू सरे के घिन अंतरं ग ह तो िफर खास कर अपने पित या अपनी
प ी के ित एक दू सरे के पित या प ी से स के बारे म िकसी भी तरह का मािलकाना भाव ना र । मुझे यह कहने, सुनने या
महसूस करने म कोई परे शानी या िझझक ना हो की सुनीता आपसे बेतहाशा ार करती है और आपको भी वैसे ही ोितजी के
बारे म हो।" ज ूजी ने सुनीलजी का हाथ थामते ए कहा, "िबलकुल! मेरी और ोित की तो इस बारे म पहले से ही यह सहमित
रही है। िफर सुनील की और ार से दे खते ए ज ूजी बोले, "सुनील, आप िचंता ना कर। आप और ोित के िबच के भाव, इ ा
और स को म अ ी तरह जानता और समझता ँ। मेरे मन म आप और ोित को लेकर िकसी भी तरह की कोई दु भावना
नही ं है। आप दोनों मेरे अपने हो और हमेशा रहोगे। आप दोनों के िबच के कोई भी और िकसी भी तरह के स से मुझको कोई
भी आपि नही ं है ना होगी।"

पलंग पर मदहोश लेटी ई सुनीता की और दे खते ए अपनी आवाज म अफ़सोस ना आये यह कोिशश करते ए ज ूजी ने कहा,
"जहां तक मेरा और सुनीता के स का सवाल है, तो म यही क ंगा की सुनीता की अपनी कुछ मजबू रयां ह। म भी सुनीता से
बेतहाशा ार करता ँ। म सुनीता की बड़ी इ त करता ँ और साथ साथ म उसकी मजबुरोयों की भी बड़ी इ त करता ँ।" यह
कह कर ज ूजी िबना कुछ और बोले अपने मायूस चेहरे को सुनील की नज़रों से छु पाते ए, िबच वाले खुले िकवाड़ से अपने पलंग
पर जा प ंचे जहां ोित ने अपनी बाँह फैलाकर उनको अपने आहोश म ले िलया। दोनों पित प ी एक दू सरे से िलपट गए। सुनील
जी हैरान से दे ख रहे थे की उनकी िनगाहों की परवाह िकये बगैर ज ूजी ोित को पलंग पर िलटा कर उसके ऊपर चढ़ गए और
ोित के गाउन के ऊपर से ही ोित के बड़े म ों को दबाने लगे। दोनों कमरे पूरी तरह कािशत थे। सुनील ोित और ज ूजी
को अ ी तरह ार करते ए दे ख सकते थे। ज ूजी ने ोित के कानों म कुछ कहा। यह सुनकर ोित कुछ मु ु रायी और
उसने शरारत भरी नज़रों से सुनील की और अपना सर घुमा कर दे खा। िफर अपनी हथेली को िकस कर ोित ने एक फूंक मार
कर जैसे उस िकस को सुनील की िदशा म फकने का इशारा िकया और अपने पित ज ूजी के िनचे लेटी ई ोित अपने पित
ज ूजी के पयजामे म हाथ डाल कर उनका ल एक हाथ म पकड़ उसे सहलाने लगी। सुनीता के साथ िदन म ए कई िनजी
स क की वजह से ज ूजी काफी उ ेिजत थे। ोित का हाथ लगते ही ज ूजी का ल खड़ा होने लगा। ोित के थोड़े से
िहलाने पर ही उसने अपना पूरा लंबा और मोटा आकार धारण कर िलया।

ोित ने फ़टाफ़ट ज ूजी के पाजामे का नाडा खोला और अपने पित के ल को आज़ाद कर उस को ल ार से िहलाने और
सहलाने लगी। ज ूजी ने सुनीलजी की नज़रों के परवाह िकए बगैर ोित के छाती के आगे वाली िज़प खोल दी और ोित ने
उ नो ँ को दोनों हाथों की हथेिलयाँ फैलाकर उनसे खेलने लगे। ज ूजी और उनकी बीबी ोित की उनके पलंग पर हो रही
ेम ीड़ा दे ख कर सुनीलजी का ल भी उनके पाजामे म फुंफकारने लगा। उ ीने भी सुनीता की छाती वाली िज़प खोल कर

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सुनीता के उ नो ँ को अपने बंधन से आजाद िकया और अपने हाथों की हथेिलयों म लेकर वह भी उन से खेलने लगे। अपने
पित की हरकत महसूस कर सुनीता नी ंद म से जाग गयी। जागते ही उसे समझ म आया की शराब पीने के बाद उसने कुछ गलत
हरकत की थी। उसे धुंधला सा मेजर कपूर साहब का चेहरा याद आ रहा था पर आगे कुछ नही ं याद आ रहा था। सुनीता अपने आप
दोषी महसूस कर रही थी। उसे यह तो समझ म आ रहा था की कही ं ना कही ं उसने मेजर कपूर के साथ ऐसा कुछ िकया था िजससे
उसकी अपनी और उसके पित सुनील की इ त को उसने ठे स प ंचाई थी। अगर सुनील वहाँ सही समय पर नही ं प ँचते तो पता
नही ं शायद मेजर कपूर सुनीता को चोद ही दे ते और शायद इसके िलए सुनीता ने खुद सहमित िदखाई होगी ूंिक वरना इतने लोगों
के सामने उनकी ा िह त की वह सुनीता पर जबरद ी कर सके? सुनीता अपने पित सुनील की दोषी भी थी और साथ साथ म
आभारी भी थी ूंिक उ ोंने सुनीता को उस बदनामी और अपराध से बचा िलया, और िफर सुनीता का वचन भी ना टू टा। सुनीता ने
तय िकया की उसको इसके िलए अपने पित को कुछ पा रतोिषक (उपहार) तो दे ना ही चािहए। भला एक खूबसूरत प ी अपने पित
से अगर िदल खोल कर बिढ़या चुदाई करवाए तो उससे कोई भी पित के िलए और बिढ़या पा रतोिषक ा हो सकता है?

पर इस म एक और मु ल थी। ज ूजी के और उनके कमरे के िबच वाला िकवाड़ खुला जो था उपर से कमरे की बि यां भी जल
रही ं थी ं। ऐसे म अगर वह ं द चुदाई करवाना चाहे तो ख़ास करके उ चुदाई करते ए नंगी दे ख सकते ह। यह सच था की
सुनीता ज ूजी के सामने आधी से भी ादा नंगी तो ई ही थी, पर पूरी तरह से नंगी होना और चुदाई करवाते ए िकसी को
िदखाना एक अलग बात थी। हालांिक जब सुनीता यह सब सोच रही थी तब ोितजी अपने पित ज ूजीसे काफी कुछ से की
अठखेिलयां कर रही थी। सुनीता ने एक बार उन दोनों को नंगी हरकत करते ए दे खा भी। पर उसने िफर अपनी आँ ख िफरा ली ं
और उनकी हरकतों को अनदे खा कर िदया। सुनीता ने अपने पित को अपने पास खी ंचा और बोली, "हाय राम! इ तो दे खो! कैसे
खुल्लम खु ा बेशम से एक दू सरे से म ी कर रहे ह?" िफर कुछ बेिफ ी की अदा िदखाते ए सुनीता ने कहा, "वैसे मुझे कोई
फक नही ं पड़ता उ जो करना है वह करे ! आ खर वह पित प ी जो ह? पर म ऐसा आपके साथ खु मखु ा नही ं कर सकती
और कम से कम ज ूजी के सामने तो िबलकुल नही।ं "

सुनील ने सुनीता को अपनी बाँहों म खीच


ं ते ए कहा, "अरे यार तुम ना? बेकार की इन च रोंम पड़ी रहती हो। आजाओ चलो
खु म-खु ा ना सही, च र के िनचे तो करने दोगी लोगी ना? इनको दे ख कर तो मेरा ल भी खड़ा हो रहा है। ा तुम मेरा
इलाज नही ं करोगी?" सुनीता ने अपने पित सुनील से कहा, "हे भगवान्! म ों नही ं क ँ गी? म जानती ँ की टैन म म आपको
अ ी तरह से आनंद दे नही ं पायी। हमेशा कोई उठ जाएगा, कोई दे ख लेगा यह डर रहता था। पर आज मौक़ा है। मेरा भी मन आप
से जबरद करवाने का है। पर आपने तो यहां मेरे िलए इस िकवाड़ को खुला रख कर एक मुसीबत ही खड़ी कर दी है। अब म
आपसे कैसे खु मखु ा करवा सकती ँ? ा हम यह िकवाड़ बंद नही ं कर सकते?" सुनील ने अपनी बीबी की और दे खा और
उसे अपनी बाँहों म ले कर उसके गाउन म हाथ डालकर उसकी चूँिचयों को मसलते ए कहा, "जानेमन, हमने सब िमलकर यह
तय िकया था की हम दोनों कपल एक दू सरे के िबच पदा नही ं रखगे। तुमने यह वचन ोितजी को भी िदया था।" सुनीता अपने
पितकी बात सुनकर चुप हो गयी। िफर उसने अपने पित के कान म मुंह डाल कर धीरे से कहा, "ठीक है, पर लाइट तो बंद करो?"
सुनीलने कहा, "दे खो तुमने कहातो म मान गया की चलो च र के िनचे चोदगे। अब तुम कह रही हो लाइट बंद करो! तु ारी शत तो
हर पल बढ़ती ही जाती ह। लगता है तु चुदवाने का मूड़ नही ं है। अगर ऐसा है तो साफ़ साफ़ कहो। म तु परे शान नही ं करना
चाहता। पर अगर लाइट बंद करने म गया तो वह जो तु ारा आम वाला आिशक है ना? वह दहाड़ने लगेगा! अगर िफर भी तु
लाइट बंद करनी ही हो तो तुम उठो, म तो नही ं जाऊंगा। तु ी खड़ी हो कर जाओ और जाकर खुद ही लाइट बंद करो। िफर अगर
ज ूजी गु ा होंगे तो मुझे मत कहना।" सुनीता सोच म पड़ गयी। सुनील को बात तो सही थी। एक बार पहले भी तो सुनीता
ज ूजी से झाड़ खा चुकी थी जब सुनीता िमंग कॉ ू यूम म ज ूजी के सामने जाने म िहचिकचा रही थी।

कुछ सोच कर सुनीता ने कहा, "चलो ठीक है। आ खर वह िमयाँ बीबी ह तो हम भी तो िमयाँ बीबी ही है ना? अगर हम एक दू सरे से
से करते ह तो कौनसी नयी बात है? हर िमयाँ बीबी रात को से तो करते ही है ना?" सुनील ने सुनीता के मुंह पर हाथ रख कर
कहा, "डािलग! हम यहां घूमने आये ह। अगर तुम घुमा िफरा कर ना बोलो और अगर चुदाई की ही बात करती हो तो बोलो चु दाई
करवानी है! अगर ऐसा बोलोगी तो कौनसा पहाड़ टू ट पड़ने वाला है? खु म खु ा बोलो तो चोदने का और मजा आता है।" सुनीता
ने अपनी ही ला िणक अदा म अपने पित को दोनों हाथ जोड़कर णाम करती मु ा म कहा, "अ ा मेरे पितदे व, म हारी और तुम

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जीते। ठीक है भाई। चलो अब म से नही ं चुदाई ही क ँगी, बस? खुश? तो चलो, पर िफर मेरी चुदाई करने के िलए तैयार हो
जाओ।" सुनील ने अपना खड़ा ल अपनी बीबी के हाथों म दे ते ए कहा, "म तो कब का तैयार ँ यह दे खो।" सुनीता ने अपने पित
का ल सहलाते ए कहा, "हाँ भाई, यह तो िबलकुल लोहे की छड़ की तरह खड़ा है! और अपना रस भी खूब िनकाल रहा है!"
िफर थोड़ी धीमी आवाज म सुनीता ने अपने पित के कानों म अपना मुंह डाल कर फुफुसाते ए पूछा, "सच सच बताना, ा ोित
दीदी ने आज नहाते ए अंगूठा िदखाया ा? उ चोदने का मौक़ा नही ं िमला ा?" अपनी बीबी सुनीता की बात सुन कर
सुनीलजी थोड़ा सा झप गए और बोले, "दे खो डािलग! सच क ं? आज अगर म दस बार भी चोदुँ गा ना? तो भी मेरा ल ऐसा ही
खड़ा रहेगा ूंिक चुदाई का मौसम है। म तो इस कप म आने के िलए इसी िलए तैयार आ था की यहां आते ही हम सब िमलकर
खूब चुदाई करगे। शायद ज ूजी के मन म यह बात नही ं हो तो कह नही ं सकता। पर उन दोनों को अभी चुदाई की तैयारी करते
ए दे ख कर ऐसा तो नही ं लगता। और तुम यह मत कहना की तु पता नही ं था।" सुनीता समझ गयी की उसके पित ने भले ही
सीधासाधा ना माना हो की उ ोंने ोितजी को चोदा था। पर इधर उधर बात घुमाते ए यह कबूल कर ही िलया की उ ोंने
ोितजी की चुदाई उस वाटर फॉल के िनचे ज र ही की थी। पर बीबी जो थी! पित ने अगर ोितजी की चुदाई की तो वह ज र
उनसे कबूल करवाना चाहेगी।

सुनीता ने कहा, "तो िफर तुम भी खु मखु ा यह ों कबूल नही ं कर लेते हो की तुमने उस वाटर फॉल के िनचे दीदी को अ ी
तरह से चोदा था?" सुनीलजी की बोलती बंद हो गयी। अब वह झूठ तो बोल नही ं सकते थे। उनकी उलझन दे ख कर सुनीता
मु राई और बोली, "चलो, छोडो भी, मुझे झूठ सुनना अ ा नही ं लगेगा और सच बोलने की आपम िह त नही ं है। तो म कह दे ती
ँ की आज तुमने उस वाटर फॉल के िनचे दीदी को खूब अ ी तरह से चोदा था। अगर मेरी बात सही है तो तु कुछ बोलने की
ज रत नही ं है। और अगर मेरी बात गलत है तो तुम मना करो।" सुनील के चेहरे पर यह सुनकर हवाइयाँ उड़ने लगी ं। वह चुप रहे।
तब सुनीता ने मु राते ए कहा, "आपका ै िमना मानना पडे गा मेरे पितदे व! ोितजी को आज ही चंद घंटों पहले इतना चोदने के
बाद भी अगर तु ारा ल ऐसा तैयार है तो भाई मेरे खसम का जवाब नही ं।" िफर अपने पित का ल िहलाते ए सुनीता ने
अं ेजी झाड़ते ए कहा, आई एम् ाउड ऑफ़ यू िडअर ह ड!" सुनील धीरे धीरे बीबी की बात सुनकर थोड़ा स ले और च र से
अपने आपको ढकने की परवाह ना करते ए वह सुनीता के ऊपर चढ़ कर सुनीता को अपनी बाँहों म लेकर अपना मुंह सुनीता के
मुंह से सटाकर अपनी बीबी को गहरा चु न करने लगे। दोनों हाथों से सुनीता की मदम चूँिचयों को कुछ दे र तक मसलते रहे
और िफर बोले, "दे खो डािलग! अब हम दोनों कपल िम ता से कही ं आगे बढ़ चुके ह। ा यह सब हमने जानबूझ कर नही ं िकया
है? तुम ा यह मानती हो की नही?ं आज िमंग करते ए जो आ वह तो होना ही था। म तो कहता ँ, तुम भी ों बेचारे
ज ूजी को तड़पा रहीहो? ा फरक पड़ता है? म जानता ँ और तुम भी जानती हो की वह तु चोदने के िलए िकतने बेताब ह।
हम कौन दे खेगा की हमने ा िकया? अगर तुम यह सोच रही हो की कही ं आगे चलकर कभी हम दोनों के िबच कोई रं िजश हो
जाए तो कही ं म तुमपर तु ज ूजी से चुदवाने के बारे म ताना मा ं गा तो भरोसा रखो की ऐसा कभी भी नही ं होगा। इस बात का
मुझ पर पूरा भरोसा रखो। म कभी भी यह ताना नही ं मा ं गा। बोलो ा इसी िलए तुम अड़ी ई हो?"

सुनीता ने अपना सर िहलाते ए कहा, "डािलग! तुमतो बात का बतंगड़ बना रहे हो। ना भाई ना, ऐसी कोई बात नही ं है। मुझे मेरे
ल ट पित पर पूरा भरोसा है। म जानती ँ की तुम ऐसा कुछ भी बोलोगे नही ं। तुम बोल कैसे सकते हो? जब तुम खुद ही मेरे सामने
िकसी और की बीबी को चोदते हो तब? और अगर तुमने कही ं गलती से भी ऐसा उ ापु ा बोल िदया ना? तो म उसी व तु ारा
घर छोड़ कर चली जाउं गी। बात वह नही ं है।" सुनी ने पूछा, "तब बात ा है डािलग? बोलो ना? ा तुम माँ के िदए ए वचन से
िचंितत हो? तो िफर माफ़ करना, पर तु ारी माँ कहाँ यहां आकर दे खने वाली है की तुमने उसका वचन रखा या तोड़ा?" अपने पित
की बात सुनकर सुनीता अपने पित से एकदम अलग हो गयी। और कुछ रं िजश और कुछ गु े म बोली, "दे खो डािलग! म एक बात
साफ़ कर दे ती ँ। आपने और ज ूजी ने अगर िमलकर बीबी बदल कर चोदने की बात को अगर ए ी िकया है तो बोलो। तुमने
मुझे पहले से ही कहा था की ऐसी बात नही ं है l मने भी आपको पहले से ही कहा था की म कोई नैितकता की दे वी नही ं ँ। शादी से
पहले मने चुदवाया तो नही ं था पर जवानी के जोश म दो लड़कों का लंड ज र िहलाया था और उनका माल िनकाला भी था। म
तु इसके बारे म बता चुकी ँ। मने तु यह भी बताया था की ज ूजीने उस िसनेमा हॉल म अपना ल मुझसे छु वाया था और
उ ोंने मेरी ेअ ् स दबायी भी थी ं l आज झरने म िमंग सीखते ए जब म डूबने लगी थी तब अफरा-तफरी म आज िफर उनका
ल मेरे हाथों म आ गया था। उ ोंने जाने अनजाने म मेरी ेअ ् स भी दबायी थी ं। ब कुछ पल के िलए तो म भी अपना होशो

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हवास खो बैठी थी पर उ ोंने मुझे स ाला और कहा की वह मेरी माँ का िदया आ वचन मुझे तोड़ने नही ं दगे। वह एक स े
िदलके मािलक है और म भी एक राजपूतानी ँ। मने तु साफ़ कर बता िदया है और अब हम इस के बारे म बात ना कर तो ही
अ ा है।"

सुनीता ने अपने पित को झाड़ तो िदया पर उनकी बात सुनकर वह ब त गरम हो गयी थी। उसकी चूत म से रस चू ने लगा था। वह
ज ूजी से तो चुदवा नही ं सकती थी पर अपने पित से ज र चुदवा सकती थी। पित की उकसाने वाली बात सुनकर उसकी चुदवाने
की इ ा तेज हो गयी। सुनील तो अपना लोहे की छड़ जैसा ल लेकर तैयार ही थे। तब अचानकही सुनीताको ोितजी के
कराहने की आवाज सुनाई दी। सुनीता ने ना चाहते ए भी ज ूजी और ोित के कमरे की और मुड़कर दे खा तो पाया की ज ूजी
दोनों घुटनों पर बैठ कर अपनी बीबी ोितजी पर सवार ए थे और अपना मोटा लंबा लौड़ा बेचारी ोितजीकी छोटीसी चूतम पेले
जारहे थे। सुनीता ज ूजी और ोितजी की चुदाई दे खती ही रह गयी। चाहते ए भी वह अपनी नजर वहाँ से हटा नही ं सकी।
ज ूजी का जोश और ज ूजी के िचकने काश म चमकते ए ल को ोितजी की रस से लथपथ चूत म से अंदर बहार होते
ए दे ख सुनीता पर जैसे कोई तांि क स ोिहनी का वशीकरण िकया गया हो वैसे सुनीता एकटक ोितजी और ज ूजी की
खु मखु ा चुदाई दे खने लगी। वह भूल गयी की उसका पित का फुला आ िचकना ल उसकी हथेली म फराटे मार रहा था।
वैसे तो सुनील ने चुदाई के कुछ अ ील वीिडयोस सुनीता को िदखाए थे। पर यह पहली बार था की सुनीता कोई मद और औरत
लाइव चुदाई दे ख रही थी। उन वीिडयो को दे ख कर सुनीता को इतनी उ ेजना महसूस नही ं ई थी िजतनी उस समय उसकी दीदी
की सुनीता के अपने गु और ेमी ज ूजी को चोदते ए दे ख कर हो रही थी। सुनीता का रोम रोम रोमांच से इस िज़ंदा
साकार चुदाई दे ख कर क न महसूस कर रहा था।

सुनीता ने महसूस िकया की ोितजी की छोटी सी चूत म जब ज ूजी अपना घड़े जैसा ल घुसाते थे तो बेचारी छोटीसी
जयोितजी का पूरा बदन काँप उठता था। सुनीता को ज ूजी और ोितजी की चुदाई को म मु हो कर दे खते ए जब सुनील ने
दे खा तो सुनीता को िहलाकर बोले, "तुम तो अपनी चुदाई उनको िदखाना नही ं चाहती थी, पर अब उनको चोदते ए इतने ान से
दे खने म तु े कोई परहेज ों नही ं है? अरे भाई अगर तुम उनकी चुदाई दे ख सकती हो तो वह तु ारी चुदाई ों नही ं दे ख
सकते? यह कहाँ का ाय है?" सुनीता ने जबरन अपनी नजर ज ूजी के ल पर से हटायी ं और अपने पित की और दे ख कर
मु रायी और बोली, "तुम मद लोग बड़े ही बेशम हो। दे खो तो, ना तो तु ज ूजी और दीदी की चुदाई दे खने म कोई ल ाआ
रही है और ना तो ज ूजी को अपनी बीबी को हमारे सामने चोदने म कोई िहचिक?-चाहट महसूस होरही है।" सुनीलने कहा,
"डािलग, एक बात बताओ। ा हम सब नही ं जानते की हर मद लगभग हर रात को अपनी बीबी को चोदता है? ा हर औरत
अपने मद से रात को चुदवाती नही ं है? जब यह सब साफ़ साफ़ सब जानते ह तो िफर अपनों के सामने ही अगर हम अपनी अपनी
बीबी को चोदे तो यह बताओ की तु ा हज है? तु ी ने तो कबूल िकया था की तुम तु ारी दीदी और ज ूजी से कोई पदा नही ं
करोगी। तुम ने ोितजी से यह वादा भी िकया था की तुम ज ूजी अगर तु ारा बदन छु एं गे तो कोई िवरोध नही ं करोगी। तब अगर
यह िमयाँ बीबी चुदाई करते ह तो तु ों आपि हो रही है?"

सुनीता की नजर िफर बरबस ज ूजी और ोितजी की चुदाई की और चली गयी। इस बार सुनीता ने दे खा की ज ूजी ने भी
सुनीता की और दे खा। सुनीता को समझ नही ं आ रहा था की वह गु ाए या मु ाये। ज ूजी ने अपनी बीबी की चूत म ल पेलते
ए ही सुनीता की और दे खा और बड़ी ही सादगी से मु राये। सुनीता को शक आ की शायद उनकी मु ान म कुछ रं िजश की
झलक भी िदख रही थी। सुनीता यह जानती थी की उस समय कही ं ना कही ं ज ूजी के मन म यह भाव भी हो सकता है की काश
वह उस समय उनकीअपनी बीबी ोित को नही ं ब सुनीलजी की बीबी सुनीता को चोद रहे होते। यह सोचते ही सुनीता काँप
उठी। ज ूजी के ल को ोितजी की छोटी सी चूत म घुसते समय हर एक बार ोित जी की जो कराहट उनके मुंह से िनकल
जाती थी उससे सुनीता को अ ा खासा अंदाज हो रहा था की ोितजी चुदाई के आनंद के साथ साथ काफी मीठा दद भी बदा
कर रही होंगी। वह दद कैसा होगा? यह तो जब सुनीता ज ूजी से चुदवायेगी तब ही उसे पता लगेगा। सुनीता अब यह अ ी तरह
जान गयी थी की वह इस जनमम तो नही ं होगा। ोित जी भी अपने पित का घोड़े जैसा ल लेकर काफी उ ेिजत लग रही ं थी ं।
अपने पित के साथ साथ सुनीता ोितजी का ै िमना दे ख कर भी हैरान रह गयी। ोितजी ने सुनील से उस दोपहर चुदवाया था
यह तो थािपत हो चुका था। और सुनीता यह भी जानती थी की उसके पित कैसी जबरद चुदाई करते ह। जब वह चोदते ह तो

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औरत की जान िनकाल लेते ह।

सुनीता को इसका पूरा अनुभव था। सुनीता यह भी जानती थी की ोितजी की चूत का ार एकदम छोटा था। सुनील से चुदवाने के
बाद अगर वह ज ूजी के इतने मोटे ल से चुदवा रही थी तो मानना पडेगा की ोितजी की दद सहन करने की मता ब त
ादा थी। सुनीताने अपने मन ही मन म गहराई से सोचने लगी। आ खर उसके पित सुनीलकी बात तो सही थी। हर औरत अपने
मदसे चुदवातीतो है ही। हर मद भी लगभग हर रात को अपनी बीबी को चोदता ही है। यह तो पूरी दु िनया जानती है, चाहे वह इस
बातको िकसी से ना कहे। ज ूजी भी जानते थे की सुनील सुनीता को कैसे चोदते थे। ब उस रात टैन म तो ज र ज ूजी ने
सुनीता और सुनील की चुदाई क ल के अंदर होती ई दे ख भले ना हो पर महसूस तो ज र की होगी। जब उस समय ज ूजी
और ोितजी की चुदाई सुनीता बड़ी ही बेशम से खुद दे ख रही थी तो उसे कोई अिधकार नही ं था की वह ज ूजी और ोितजी
से अपनी चुदाई छु पाये। ा उन दोनों को भी सुनीता की चुदाई दे खने का अिधकार नही ं है? सुनीताके पास इस बातका कोई जवाब
नही ंथा। सुनीताने आ खर म हार कर अपने पितके कानोंम बोला, "सुनील, आपसे ना? बहस करना बेकार है। दे खये म आपकी बीबी
ँ। मेरी लाज की र ा करना आपका कत है। अगर आप ही मेरी इ त नीलाम करोगे तो िफर म कहाँ जाउं गी?" सुनील अपने
मन म ही मु ाये। उनको महसूस आ की उस रात पहेली बार उनकी बीबी सुनीता चुदाई के मामले म उनके साथ एक कदम
और चलने के िलए मानिसक प से तैयार ई थी। सुनील ने एक च र सुनीता पर डाल दी और उसका गाउन िनकाल िदया और
बोले, " ा तु कभी भी ऐसा लगा की ज ूजी, म और ोितजी हम तीनों म से कोई भी तु ारी इ त नही ं करता? ा तु ऐसा
शक है की अगर म तु चोदुँ गा तो तु ारी इ त हम तीनों की नजर म कम हो जायेगी? अरे भाई, हम पित प ी ह। अगर हम
चुदाई करती ह तो तु ारी इ त कैसे कम होगी?"

सुनीता ने अपने पित की बात का कोई जवाब नही ं िदय। सुनीता समझ गयी थी की उसके पित उसको तक म तो िजतने नही ं दगे।
सुनीता खुद ज ूजी और ोितजी की चुदाई दे ख कर काफी उ ेिजत हो गयी थी। उनकी खु म खुली चुदाई दे खकर उसकी
िहचिकचाहट कुछ तो कम ई ही थी, पर िफरभी जबतक सुनील ादा आ ह नही ं करं गे तो भला वह कैसे मान सकती है? आ खर
वह एक मािननी भी तो है? उसको िदखावा करना पडे गा की वह तो राजी नही ं थी, पर पित की िजद के आगे वह करे भी तो ा
करे ? सुनीता इस उलझन म थी की तब अचानक ही उ ज ूजी की हाँफती ए आवाज सुनाई दी।

वह बोले, "सुनीलजी और सुनीता, अब ादा बातचीत िकये िबना जो करना है ज ी करो। कल ज ी सुबह चार बजे ही उठ कर
पांच बजे मैदान पर प ँचना है।" सुनीता ने ज ूजी के पलंग की और दे खातो पाया की ज ूजी पूरी तरह जोशो खरोश से ोितजी
को चोद रहे थे और शायद उनका मामला अब ला े ज पर प ंचा आ था। ज ूजी कस कस के ोितजी की चूत म अपना
ल पेले जा रहे थे। पुरे कमरे म उनकी चुदाई की "फ , फ " की आवाज गूंज रही थी। जैसे ही ज ूजी का ल पूरा ोितजी
की चूत म घुस जाता था और उनका अंडकोष ोितजी की गांड पर फटाक फटाक थपेड़ मार रहा था, तो उस थपेड़ की "फ
फ " आवाज के साथ ोितजी की एक कराहट और ज ूजी का "उ फ... उ फ..." की आवाज भी उस आवाज म शािमल
होजाती थी। उनकी चुदाई की ती ता के कारण उनका पलंग इतना सॉिलड होते ए भी िहल रहा था। सुनीता ने दे खा की ोितजी
की खूबसूरत चूँिचयाँ ज ूजी के ध े के कारण ऐसी िहल रही ं थी ं जैसे तेज हवा म प े िहल रहे हों।

ज ूजी की चेतावनी सुनकर सुनील ने अपनी बीबी सुनीता की टांग फैलायी ं और अपनी उँ गिलयों से सुनीता की चूत के दोनों हो ँठों
को अलग कर अपना ल सुनीता के ेम िछ पर िटकाया। सुनीता ने भी अपना हाथ अपनी टांगों के िबच हाथ डाल कर अपने
पित का ल अपनी उँ गिलयों के िबच िटकाया और अपना पडू ऊपर कर अपने पित को चोदनेकी शु आत करने के िलए ध ा
मारने का इशारा िकया। जैसे सुनील ने चुदाई की शु आत की तो हर एक ध े के बाद धीरे धीरे सुनील का ल उनकी बीबी
सुनीता की चूत म थोड़ा थोड़ा कर अंदर अपना रा ा बनाने लगा। सुनील को आज दो दो महोतरमाओं को चोदने का सुअवसर
ा हो रहा था। दोनोंकी चूतम भी काफी फकथा। ोित जी की चूत काफी टाइट थी। जबिक उनकी बीबी सुनीता की चूत रसीली
और नरम थी िजससे उनके ल अंदर घुसने म ादा परे शानी नही ं होती थी। ोितजी की चूत उनको ल को इतना टाइट
पकड़ती थी की उनका लंड कभी ादा दब जाता तो कभी वह दबाव कम हो जाता था। इसके कारण ोित को चोदते ए उनके
जहन म काफी उ ेजना और रोमांच फ़ैल जाता था। सुनीता की चूत की तो बात ही कुछ और थी। रसीली और लचकदार होने के

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कारण उ सुनीता को चोदने म खूब आनंद िमलता था। उनका ल सुनीता के रस म सराबोर रहता था। पर िफर भी उनके ल
को सुनीता की चूत अपनी दीवारों म जकड कर रखती थी। सुनीता को चोदने म सबसे ादा मजा सुनीताके चेहरे के हावभाव
दे खनेम सुनीलको िमलता था। सुनीता अपनी चुदाई करवाते समय उसम इतनी म हो जाती थी की उसे उस समय अपनी चूत म हो
रहे उ ाद के अलावा कोई भी बा चीज़ का ान नही ं रहता था। कोई भी मद को औरत को चोदते समय अगर औरत चुदाई का
पूरा आनंद लेती है तो खूब मजा आता है। अगर औरत चुदाई करवाते समय खाली िन य बन पड़ी रहती है तो मद का आनंद भी
कम हो जाता है।

सुनीता चुदाई करवाते समय यह शेरनी की तरह दहाड़ने लगती थी। उसके पुरे बदन म चुदाई की उ ेजना फ़ैल जाती थी। जब एक
मद एक औरत चोदता है और उस चुदाईको औरत ए जॉय करती है तो मद को ब त ादा आनंद होता है। अ र हर मद की
यह तम ा होती है की औरत भी उस चुदाई का पूरा आनंद ले। चोदते समय अगर औरत चुदाई का आनंद लेती है लेती है और उस
उ ेजना का आनंद जब औरतके चेहरे पर िदखता है तो मद का चोदने का आनंद दु गुना हो जाता है। ूंिक मद को तब अपनी
चुदाई साथक ईं नजर आती है। सुनीताम वह ख़ास खूबीथी। सुनील जब जब भी सुनीता को चोदते थे तब सुनीता के चेहरे पर
उ ाद और उ ेजना का ऐसा जबरद भाव छा जाता था की सुनील का आनंद कई गुना बढ़ जाता था। उनका पु ष इस भाव से
पूरा संतु होता था। उ महसूस होता था की वह अपनी चुदाई करने की कला से अपने साथीदार को (सुनीता को) िकतना अद् भुत
आनंद दे पा रहे ह। अ र कई औरत अपने मन के भाव कट नही ं करती ं और पु ष बेचारा यह समझ नही ं पाता की वह अपनी
औरत को वह आनंद दे पाता है या नही ं। ोित जी की कराहटों से कमरा गूंजने लगा। िजस तरह ोितजी कराह रही ं थी ं यह साफ़
था की वह अपनी चरम पर प ँच रही ं थी ं। िफर उसम ज ूजी की भी आवाज जुड़ गयी। ज ूजी ोित के दोनों नों को कस के
पकड़ कर अपनी भौंह िसकुड़ कर ोितजी की चूत म अपना ल पेलते ए बोलने लगे, " ोित, आह्हः . ा बिढ़या पकड़ के
रखती हो आह्हः ... ओह्ह्ह...." करते ए ज ूजी के ल से ोित जी की चूत की गुफा म जोरदार फ़ ारा छूट पड़ा। उसके
साथ साथ ोितके मुंहसे भी हलकी सी चीख िनकल पड़ी। "ज ूजी, कमाल है! ा चोदते हो आप। ओह्ह्ह... आअह्ह्ह...
बापरे ......"

कुछ ही दे र म दोनों िमयाँ बीबी पलंग पर िनढाल होकर िगर पड़े । सुनीता ने दे खा की ज ूजी का वीय ोितजी की चूत से बाहर
िनकल रहा था। ज ूजी के वीय की तादाद इतनी ादा थी की ोितजी की चूत इतना ादा वीय समा नही ं पायी। सुनीता की
जान हथेली म आ गयी। अगर ज ूजी को कभी सुनीता को चोदने का अवसर िमल गया तो ज र इतने ादा वीय से वह
सुनीताको गभवती बना सकते ह। उधर सुनील सुनीता की चूत म अपना ल पेलने म लगे ए थे। सुनील ने सुनीता को च र के
अंदर ढक कर रखा आ था। खुद सारे कपडे िनकाल कर सुनीता का गाउन भी िनकाल कर दो नंगे बदन एक दू सरे को आनंद दे ने
म लगे ए थे। सुनीता अपने पित को ोितजी से कुछ ादा आनंद दे सके इस िफराक म थी। उसे पता था की उसी दोपहर को
पित सुनील ने कस के ोितजी की चुदाई की थी। सुनील ने सुनीता को चोदने की र ार बढ़ाई। सुनीता के चेहरे पर बदलते ए
भाव दे खते ही सुनीलका जोश बढ़ने लगा। सुनील के जोर जोर से ध े मारने के कारण ऊपर की च र खसक गयी और सुनीता
और सुनील ोितजी और ज ूजी के सामने नंगे चुदाई करते ए िदखाई िदए। सुनीता की आँ ख बंद थी ं उसे नही ं पता था की वह
ज ूजी को नंगी सुनील से चुदवाती िदख रही ं थी।ं सुनीता को पहली बार िबलकुल नंग धडंग दे ख कर ज ूजी दे खते ही रह गए।
सुनीता की चु याँ दबी ई होने के कारण पूरी तरह साफ़ िदख नही ं रही ं थी ं। सुनीता की कमर का घुमाव और उसके सपाट सतह
के िनचे सुनीलजी के बदन से ढकी ई सुनीता की चूत दे खने को ज ूजी बेताब हो रहे थे।

सुनीता की सुडौल नंगी ं जांघ इतनी खूबसूरत नजर आ रही ं थी ं की बस! ज ूजी ने गहरी साँस लेते ए लाचारी म अपनी नजर
सुनीता के नंगे बदन से हटाई। सुनील की तेज र ार से पडू उठाकर मुकाबला कर रही सुनीता को कहाँ पता था की उसे चुदवाने
का नजारा ज ूजी और ोितजी बड़े ारसे ले रहे थे? सुनील जब वीय छोड़ने के कगार पर प ँचने वाले ही थे सुनीता की आँ ख
खुली ं और उसने दे खा की उनको ढक रही च र हट चुकी थी और वह और उसके पित के नंगे बदन और उनकी चुदाई ज ूजी
और ोितजी ार से दे ख रहे थे। सुनीता को उस समय कोई ल ा या छोटापन का भाव नही ं महसूस आ। आ खर चुदाई करना
औरत और मद का धम है। भगवान् ने खुद यह भाव हम सब म िदया है। औरतके बगैर मद कैसे रह सकता है? दु िनया को चलानेके
िलए औरतका होना अिनवाय है। अपने पसंदीदा मद से चुदवाना औरत के िलए सौभा की बात है। सुनीता ने भी िह त कर के

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ोितजी और ज ूजीकी आँ ख से आँ ख िमलाई और मु ु रा दी। यह पहला मौका था जब सुनीता ने चुदाई को इतना सहज पम
ीकार िकया था। ज ूजीने आँ ख मारकर सुनीताको ो ाहन िदया की िचंता की कोई बात नही ं थी। इससे सुनीता को यह स े श
भी िमला की ज ूजी सुनीता की चुदाई करवाते ए दे ख कर भी उतनी ही इ त करते थे िजतनी की पहले करते थे। ोितजी जो
की अपनी खुद की चुदाई करवाके िनढाल पड़ी ई थी ं, उ ोंने भी उड़ती ई िकस दे कर ोित की खु मखु ा चुदाई को सलाम
िकया। सुनीलसे चुदवाते एभी सुनीताको जंगली कु ों की दहाड़ने की डरावनी आवाज सुनाई दे ती थी ं। सुनीता ने जब सुनील से
इसके बारे म पूछा तो सुनीलने ज ूजी से ई बात के बारे म सुनीता को बताया।

सुनील ने कहा, "ज ूजी को शंका है की दु न या आतंकवािदयों के जंगली कु े िजनको इं श म हाउ कहते ह उनको कुछ
ख़ास कामके िलए तैनात िकया हो, ऐसा हो सकता है। ज ूजी को आशंका थी की हो सकता है की अगले दो या तीन िदनों म कुछ
ना कुछ दु घटना हो सकती है l पर मुझे लगता है की ज ूजी इस बात को शायद थोड़ा ादा ही तूल दे रहे ह। मुझे नही ं लगता की
दु न म इतनी िह त है की हमारी ही सरहद म घुसकर हमारे ही ब ों को कैदी बनाने का सोच भी सके। यह आवाज जंगली
भेिड़यों की भी हो सकती है।" सुनील की बात से सेहमी ई सुनीता िबना कुछ बोले सुनीलजी के एक के बाद एक ध े झेलती रही।
सुनीलजी ने सुनीता की टांग अपने कंधे पर रखी ई थी। गाँड़ के िनचे रखे तिकये के कारण सुनीता की ारी चूत थोड़ी सी ऊपर
उठी ईथी िजससे सुनील का लंड िबलकुल उनकी बीबी सुनीता की चूत के ार के सामने रहे और पूरा का पूरा ल सुनीताकी
चूत म घुसे। सुनील धीमी र ार से सुनीता की चूत म अपना ल पेले जा रहे थे। र ार ज र धीमी थी पर ध ा इतना तगड़ा
होता था की उनका पूरा पलंग समेत सुनीता का पूरा बदन ध े से िहल जाता था। सुनीता के भरे ए बू सुनीलजी के लगाए ए
ध े के कारण हवा म उछल जाते और िफर जब सुनील का ल चूत के िसरे तक चला जाता और एक पल के िलए क जाते तो
वापस िगर् कर अपना आकार ले लेते। कामो ेजना के कारण सुनीता की िन ले ँ पूरी तरह से फूली ई थी ं। िन ले ँ थोड़े ऊपर उठे
ए फुंिसयों से भरी ई हलकी सी चॉकलेटी रं ग की गोल आकार वाली एरोलाओं पर ऐसी लग रही ं थी ं जैसे एक छोटा सा डं डा मनी
ाँट को िटकाने के िलए माली लोग रखते ह।

सुनील ने अपनी बीबी के उछलते ए नों को दे खा तो उस पर िटकी ई िन लो ँ को अपनी उँ गिलयों म िपचकाते ए उ ेिजत हो
गए और सुनीता के दोनों नो ँ को जोर से दबा कर ध े मार कर चुदाई का पूरा मजा लेने म जुट गए। ोित और ज ूजी सुनील
और सुनीता की चुदाई का सा ात पहली बार दे ख रहे थे। हकीकत म ऐसा कम ही होता है की आपको िकसी और कपल की
चुदाई का दे खने को िमले। हालांिक उनको सुनील का ल और सुनीता की चूत इतनी दू र से ठीक से िदख नही ं रही थी पर
जो कुछ भी अ ी तरह से िदख रहा था वह वाकई म दे खने लायक था। सुनील ने भी दे खा की खास तौर से ोितजी सुनीता की
चुदाई बड़े ान से दे ख रही थी। शायद वह यह दे खना चाहती हो की सुनील अपनी बीबी की चुदाई भी वैसे ही कर रहे थे जैसे की
सुनील ने कुछ ही घ ों पहले ोित की की थी। यह तो ी सुलभ इषा का िवषय था। कहते ह ना की "भला तु ारी कमीज मेरी
कमीजसे ादा सफ़ेद कैसे?" जािहर है सुनीता की चूत की पूरी नाली म चुदाई के कारण हो रहे कामुक घषण से सुनीता को
अद् भुत सा उ ाद होना चािहए था। पर सुनील की बात सुनकर उसका मन कही ं और उड़ रहा था। वह जाँबाज़ ज ूजी को मन ही
मन याद कर रही थी। हालांिक सुनील का ल ज ूजी के ल से उ ीस िबस हो सकता है, पर काश उस समय वह ल
ज ूजी का होता िजससे सुनील चोद रहे थे ऐसी एक ललक भरी क ना सुनीता की चूत म आग लगा रही थी।

सुनील के बदन की अकड़न से अपने पित का वीय छूटने वाला था यह सुनीता जान गयी। उसे भी तो अपना पानी छोड़ना था। वह
अपने पित सुनीलके ऊपर चढ़ कर सुनील को चोदना चाहती थी िजससे वह भी फ़ौरन अपने पित के साथ झड़ कर अपना पानी
छोड़ सके। पर उसे डर था की उधर ज ूजी उसे चुदाई करते ए दे ख लगे। एक होताहै औरतको नंगी दे खना। दु सरा होताहै िकसी
नंगी औरत की चुदाई होते ए दे खना। दोनों म अंतर होता है। और यहां तो सुनीता सुनील को चौदे गी। वह तो एक और भी अनूठी
बात हो जाती है। सुनीता का शमाना जायजथा। िफर भी सुनीता ने अपने पित से िहचिकचाते ए धीरे से कहा, "ऐसा लगता है की
तु ारा अब छूटने वाला है। थोड़ा को। मुझे भी तो मौका दो।" सुनील ने फ़ौरन कहा, "आ जाओ। मेरे पर चढ़ कर मुझे चोदो।
िदखादो सबको की िसफ मद ही औरत को चोदता है ऐसा नही ं है, औरत भी मद को चोद सकती है।"

सुनीता जब िहचिकचाने लगी तब सुनील ने कहा, "यही तो कमी है औरतों म। मद के साफ़ साफ़ आ ह करने पर भी औरत अपनी

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सीमा से बाहर नही ं आती।ं िफर कहती ं ह मद जातने उन को दबा रखा है? यह कहाँ का ाय है?" सुनीता ने जब यह सूना तो उसे
जोश आया। वह च र फक कर बैठ खड़ी ई और अपने दोनों घुटन अपने पित की दोनों टाँगों के बाहर की तरफ रख अपने घुटनों
पर अपना वजन लेते ए सुनीलजी के ऊपर चढ़ बैठी। ज ूजी ने जब सुनीताको िब र म अपने पित से चुदाई करवाती पोजीशन
म से उठ कर अपने पित को चोदने के िलए पित के ऊपर चढ़ते ए दे खा तो वह सुनीता की िह त दे ख कर दं ग रह गए। पहली
बार उ ोंने उस रात अपनी रातों नी ंद हराम करने वाली चेली को पूरा नंगी दे खा। सुनीता के अ ड़ न उठे ए जैसे ज ूजी को
पुकार रहे थे की "आओ और मुझे मसल दो।" सुनीता की पतली कमर और बैठा आ पेट का िह ा और उसके िबलकुल िनचे
सुनीता की चूत की झांटों की झांकी ज ूजी दे खते ही रह गए। अपनी ि यतमा को उसके ही पित को चोदते दे ख उ सीने म टीस
सी उठी। पर ा करे ? सुनीता ने अपने पित का ल अपनी चूत म डाल कर ऊपर से बड़े ार से अपने पित को चोदना शु
िकया। उसका ान िसफ अपनी चूत म घुसे ए ज ूजीके ल का ही था। हालांिक ल उसके पित का ही था पर सुनीता की
एक प रक ना थी की जैसे वह लण्ड ज ूजी का था िजसे वह अपनी चूत म घुसा कर चोद रही थी। इस क ना मा से ही
उसकी चूत म से उसका रस जोरशोर से रस ने लगा और ज ही वह अपने चरम के कगार पर जा प ंची। कुछ ही िमनटों म
सुनीलजी और सुनीता एक साथ झड़ गए। सुनीता के मुंह से िससकारी िनकली जो उसके चरम की उ ेजना को दशाता था।
सुनीलजी के मुंहसे "आहह..." िनकल पड़ी।

दोनों िमयाँ बीबी झड़ने के बाद ढे र हो गए। सुनीता जैसे अपने पित पर घुड़सवारी कर बैठी थी वैसी ही अपने पित का ल अपनी
चूत म रखे ए उनपर लुढ़क पड़ी। कुछ दे र तक पित के ऊपर पड़ी रहने के बाद, चुदाईसे थकी ई सुनीता ऊपर से हट कर पित
के बाजुम जाकर गहरी नीद
ं सो गयी। उसके सपने म सारी रात जंगली कु ों के चीखने की आवाज ही सुनाई दे रही ं थी ं।

सुबह चार बजे ही ज ूजी का पहाड़ी आवाज सारे हॉल म गूंज उठा। वह िनढाल सो रहे सुनील और सुनीता पर िच ा रहे थे। "अरे
सुनील उिठये! ४ बजने वाले ह। दे खये अब हम सेना के टाइम टेबल के िहसाबसे चलना पडे गा। रात को आपको जो भी करना हो
उसे ज िनपटा कर सोना पडे गा। ऐसे दे र तक लगे रहोगे तो ज ी उठ नही ं पाओगे।" ज ूजी की दहाड़ सुनकर सुनीता और
सुनील चौंक कर जाग उठे । सुनीता अपने कपडे पहनना तक भूल गयी थी। जैसे ही उसने ज ूजी की दहाड़ सुनी सुनीता ने िब रे
म ही क ल अपनी छाती के ऊपर तक खंच िलया और बैठ गयी। ज ूजी हमेशा की तरह सुबह बड़ी ज ी उठ कर तैयार हो
कर अपने सुस त सेना के यूिनफाम म आकिषत लग रहे थे। सुनीता खड़ी होने की थित म नही ं थी। वह क ल के िनचे नंगी
थी। दे र रात तक चुदाई कराने के बाद उसे कपडे पहनने का होश ही नही ं रहा था। सुनील ने पजामा पहन िलया था सो कूद कर
खड़े हो गए और बाथ म की और भागे। ज ूजी ने सुनीता को दे खा और कुछ बोलने लगे थे पर िफर चुप हो गए और घूम कर
कप के द र की और चलते बने। जैसे ही ज ूजी आँ खों से ओझल ए की सुनीता ने भाग कर बाहर का दरवाजा बंद िकया और
फ़टाफ़ट अपना गाउन पहन िलया। ोित जी वाश म म थी ं। वह जानती थी की जब ज ू जी के साथ आम से स ंिधत कोई
ो ाम होता है तो वह दे र िबलकुल बदा नही ं करते। सुनीता ने अपने कपडे तैयार िकये और सुनील के बाहर आने का इं तजार
करने लगी। कुछ ही दे र म तीनों: ोितजी, सुनील और सुनीता कप के मैदान म कसरत के िलए प ंच गए। सब लोग कतारम लग
गए। ज ूजी कही ं नजर नही ं आरहेथे। ाथिमक कसरत करने के बाद सब को दरी पर बैठने को कहा गया। जो उ म बड़े थे
उनके िलए कुछ कुिसयां रखी ं ई थी ं। सब के बैठने के बाद कनल ज ूजी भी वहाँ उप थत ए। उ ोंने सब को आं तांिकयों की
गितिविधयों के बारे म कहा और सबको सतक रहने की चेतावनी भी दी। यिद कोई सूरत म िकसी का आतंकवािदयों से या उनकी
हरकतों से सामना होता है तो कैसे आतंकवािदयों से मुकाबला िकया जा सकता है उसके बारे म भी उ ोंने कुछ ज री िहदायत
दी ं। सबको कटीन म ना े के िलए कहा गया। ना े की समय सीमा 30 िमनट दी गयी। सबने फ़टाफ़ट ना ा िकया। अगला
काय म था पहाड़ो म टैिकंग करना।

याने पहाडोंम उबड़ खाबड़ लंबा रा ा लकड़ी के सहारे चल कर तय करना। करीब दस िकलोमीटर दू र एक आम का छोटासा कप
बना आ था जहां दु पहर के खाने की व था थी। सबको वहाँ प ँचना था। सुनीता ने िस टों वाली ॉक पहनी थी। उस म सुनीता
की करारी जाँघ कमाल की िदख रही ं थी।ं ॉक घुटनो ँ से थोड़ी सी ऊपर तक थी ं। दे खने म वह िबलकुल अ ील नही ं लग रही थी।
ऊपर सुनीता ने सफ़ेद रं ग का ाउज पहना था और अंदर सफ़ेद रं ग की ा थी। उसका प रवेश िनहायत ही साधारण सा था पर
उसम भी सुनीताका यौवन और प िनखार रहाथा। सुनीता की गाँड़ का घुमाव और नो ँ का उभार ल खड़ा कर दे ने वाला था।

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ोितजी ने कुछ ल ी सी का ी पहन राखी थी। घुटनों से काफी िनचे पर यिद से काफी ऊपर वह का ी म ोितजी की घुमावदार
गोल गाँड़ का घुमाव सुहावना लग रहा था। ऊपर ोितजी ने मद वाला शट कमीज पहन रखा था। उस शट म भी उनके नो ँ का
उभार जरासा भी छु प नही ं रहा था। दोनों कािमिनयाँ ोितजी और सुनीता गजब की कािमनी लग रही ं थी ं। जब वह मैदान म प ंची ं
तो सबकी आँ ख उन दोनों की चूँिचयाँ और गाँड़ पर िटक गयी ं थी ं।

कटीन म सुनीता और ोितजीकी मुलाक़ात नीतू से ई। उसके पित ि गेिडयर ख ा साहब कही ं नजर नही ं आ रहे थे। नीतू ने
घुटनों तक प ंचता आ ट पहना था। उसकी करारी जाँघ खूबसूरत और से ी लग रही ं थी ं। ऊपर उसने िसलवटों वाला छोटी
बाँहों वाला टॉप पहना था। टॉप पीछे से खुला था जो एक पतली सी डोर से बंधा था। पीछे से नीतू की ा की प ी साफ़ िदख रही थी।
नीतू के अ ड़ न उसके छोटे से टॉप म समा नही ं रहे थे और उसके टॉप म से उभर कर बाहर आने की भरसक कोिशश म लगे
ए िदख रहे थे। ल ी और गोरी नीतू अपने गदराते ए बदन के कारण हर जवान मद के ल को जैसे चुनौती दे रही थी। नीतू ने
कपाल पर िटका लगा रखा था जो उसकी सुंदरता म चार चाँद लगा रहा था। "हेलो, हाई" होने के बाद सुनीता ने चुपके से जब नीतू
के कान म क ान कुमार के बारे म कुछ पूछा तो नीतू थोड़ा शमायी और बोली की उसे कुमार के बारे म कुछ भी पता नही ं था।
कुमार से उसकी मुलकात िसफ िपछली शामको ई थी उसके बाद पता नही ं वह कहाँ चले गएथे। सुनीता ने नीतू की कान म कुछ
और भी बताया िजसके कारण शम केमारे नीतू का मुंह लाल लाल हो गया। ोितजी ने यह दे खा पर कुछ ना बोली।

कुछ ही दे र म वहाँ कुमार और ि गेिडयर साहब हािजर ए। शायद हॉल के बाहर ही वह दोनों िमल गए थे और ि गेिडयर साहब
क ान कुमार की कमर म हाथ डाले उ साथ लेकर अपनी बीबी नीतू के सामने आकर खड़े ए। नीतू के पास प ँचते ही ख ा
साहब ने कुमार से कहा, "कुमार साहब, म ादा चल नही ं पाउँ गा इस िलए इस टैिकंग म म आ नही ं पाउँ गा। म चाहता ँ की आप
युवा लोग इस टैिकंग म जाएं और खूब मौज कर। मेरी ािहश है की आप नीतू के साथ ही रह और उसका ान रख। अगर आप
ऐसा करगे तो म आपका आभारी र ंगा।"

क ान कुमार ने झुक कर ख ा साहब का अिभवादन िकया और उनकी बात को ीकार कर नीतू की िज ेदारी लेने का वादा
िकया। सब टैिकंग म जाने के िलए तैयार हो गए थे। कनल जसवंत िसंह का इंतजार था, सो कुछ ही दे र म वह भी आ प ंचे और
सुबह के ठीक छह बजे सब वहाँ से टैिकंग म जाने के िलए िनकल पड़े ।

ोितजी ने दे खा की सुनीताने नीतूको आँ ख मार कर कुछ इशारा िकया िजसे दे ख कर नीतू शमा गयी और मु ु रा दी। ोित जी ने
सुनीता को कोहनी मारकर धीरे से पूछा, " ा बातहै सुनीता? तु ारे और नीतू के िबच म ा खचड़ी पक रही है?" सुनीता ने
शरारत भरी आँ खों से ोितजी की और दे खते ए, "दीदी हमारे िबच म कोई खचड़ी नही ं पक रही। मने उसे कहा, टैन म जो ना
हो सका वह आज हो सकता है। ा वह तैयार है?" ोितजी ने सुनीता की और आ य से दे खा और पूछा, "िफर नीतू ने ा
कहा?" सुनीता ने हाथ फैलाते ए ोितजी के ित अपनी िनराशा जताते ए कहा, "दीदी आप भी कमाल हो! भला कोई
िह दु ांनी औरत ऐसी बात का कोई जवाब दे गी ा? ा वह हाँ थोड़े ही कहेगी? वह मु ु रादी। बस यही उसका जवाब था।"
ोित ने आगे बढ़कर सुनीता के कान पकडे और बोली, "म समझती थी तू बड़ी सीधी सादी और भोली है। पर बाप रे बाप! तु तो
मुझसे भी ादा चंट िनकली!" सुनीता ने नकली अंदाज म जैसे कान म दद हो रहा हो ऐसे चीख कर धीरे से बोली, "दीदी म चेलीतो
आपकी ही ँ ना?" कनल जसवंत िसंह (ज ूजी) ने सबसे मािकग की गयी पगदं डी (छोटा चलने लायक रा ा) पर आगे बढ़ने के
िलए कहा।

एक जवान को सबसे आगे रखा और क ान कुमार और नीतू को उनके पीछे चलने को कहा। सब को िहदायत दी गयी की सबकी
अपनी सुर ा के िलए के िलए वह िनि त िकये गए रा े (पगदं डी) पर ही चल। पहाड़ों की चढ़ाई पहले तो आसान लग रही थी पर
धीरे धीरे थोड़ी किठन होती जा रही थी। सबसे आगे एक जवान ले नट थे। उनकी िज ेवारी थी की आगे से सबका ान रखे।
उसके फ़ौरन बाद नीतू और कुमार थे। नीतू फुत से दौड़ कर कुमार को चुनौती दे ती ई आगे भागती और कुमार उसके पीछे भाग
कर उसको पकड़ लेते। ज ूजी और सुनीता, नीतू और कुमार की अठखेिलयां दे खते ए एक दू सरे की और मु राते ए तेजी से
उनके पीछे चल रहे थे।

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आ खर म ोितजी और सुनील चल रहे थे। सुनील को चलने की ख़ास आदत नही ं थी इस के कारण वह धीरे धोरे प रों से बचते
ए चल रहे थे। ोितजी उनका साथ दे रही थी। नौ म से िसफ सात बचे थे। दो या ी म से एक ि गेिडयर साहब और एक और उ
दराज साहब ने टे ं ग म नही ं जाने का फैसला िलया था वह बेस कप पर ही क गए थे। रा े म जगह जगह िदशा सूचक िच
लगे ए थे िजससे ऊपर के कप की िदशा की सुचना िमलती रहती थी। खूबसूरत वािदयों और नज़ारे चारों और दे खने को िमलते थे।

सुनीता इन नजारों को दे खते ए कई जगह इतनी खो जाती थी उ दे खने के िलए वह क जाती थी, िजसके कारण ज ूजी को भी
क जाना पड़ता था। सब से आगे चल रहा जवान काफी तेजी से चल रहा था और शायद कािफले से ादा ही आगे िनकल गया
था। रा े म एक खूबसूरत नजारा िदखा िजसे दे ख कर नीतू क गयी और कुमार से बोली, "क ान साहब, सॉरी, कुमार! दे खो तो!
िकतना खूब सूरत नजारा है? वह दू र के बफ ले पहाड़ से िगर रहा यह छोटी सी युवा क ा सा यह झरना कैसे कील कील करता
आअ ड़म ी म बह रहा है? और पानीकी धुंद के कारण चारों तरफ कैसे बादल से छाये ए ह? लगता है जैसे आसमान
अपनी ि यतमा जमीन को चूम रहा हो।"

कुमार ने नीतू के हाथों म अपना हाथ दे ते ए कहा, "नीतू ज़रा बताओ तो, आसमान अपनी ीतमा धरती को कैसे चूम रहा है?"

नीतू ने कुछ शमाते ए कहा, "मुझे ा पता? तु ी ं बताओ."

कुमार ने नीतू के गालों पर ह ा सा चु न लेते ए कहा, "ऐसे?"

नीतू ने कहा, "भला कोई अपनी ि यतमा को ऐसे थोड़े ही चु न करता है?"

कुमार ने पूछा, "तो बताओ ना? िफर कैसे करता है?"

नीतू ने कहा, "म ों बताऊँ? ा तुम नही ं बता सकते?"

कुमार ने हँस कर एक ही झटके म नीतू को अपनी बाँहों म भरकर उसके लाल लाल चमकते हो ँठों पर अपने हो ँठ रख िदए और
एक हाथ नीचा कर नीतू की छाती पर हलके से रखते ए शम के मारे लाल हो रही नीतू को जोर से चूमने और उसकी चूँिचयों को
टॉप के ऊपर से ही मसलने म लग गए। अफ़रातफरी म नीतू ने कुमार के हाथ अपनी छाती पर से हटा िदए और बोली, "शम करो!
हमारे पीछे कनल साहब आ रहे ह। अगर हम यही रा े पर चलते रहे तो वह ज ही यहां प ँच जाएं गे।"

कुमार ने िनराशा भरे अंदाज म कहा, "तो िफर ा कर? कहाँ जाएं ?"

नीतू ने बहते ए झरने की और इशारा करते ए कहा, "हम इस पहाड़ी वाले रा े से थोड़ा िनचे उतर जाते ह। वहाँ थोड़ी सी खाई
जैसा िदख रहा है ना? वहाँ चलते ह। वहाँ से नजारा भी अ ा दे खने को िमलगा और हम कोई दे खेगा भी नही ं और कोई दखल भी
नही ं दे गा।"

कुमार ने िहचिकचाते ए कहा, "पर सेना के िनयम के अनुसार हम इस रा े से अलग नही ं चल सकते।"

नीतू ने मु राते ए कहा, "अ ा जनाब? ा आप सब काम िनयम के अनुसार ही करगे? ा हम जो कर रहे ह, िनयम के
अनुसार है?"

कुमार ने असहायता िदखाते ए अपने हाथ खड़े कर कहा,"हे भगवान्! इन औरतों से बचाये! ठीक है भाई। चलो, वहीँ चलते ह।"

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नीतू ने शरारत भरी नज़रों से कुमार की और दे खते ए कहा, "अ ा? लगता है जनाब का काफी औरतों से पाला पड़ा है?"

कुमार ने उसी अंदाजम कहा, "भाई एक ही औरत काफी है। ादा को तो म स ाल ही नही ं पाउँ गा।" ऐसा कह कर नीतू का हाथ
कस के पकड़ कर कुमार भाग कर मु रा े से िनचे उतर गए और िनचे की और एक गुफा जैसा बना आ था वहाँ एक बड़े
प र के पीछे जा प ंचे।

वहाँ प ँच कर कुमार ने कस कर नीतू को अपनी बाँहों म दबोच िलया और उसके हो ँठों पर दबा कर अपने हो ँठ रख िदए। दोनों
एक िशला का टेक लेकर खड़े एक दू सरे का रस चूसने म लग गए। नीतू के मुंहम कुमार ने अपनी जीभ डाल दी। नीतू कुमार की
िज ा को चूसकर उसकी लार िनगलती गयी। कुमार नीतू के रसीले हो ँठों का सारा रस चूस कर जैसे अपनी ास तृ करना चाहता
था। िपछले दो तीन िदनों से कुमार इन हो ँठों को चूमने और चूसने के सपने िदन रात दे खता रहता था। आज वही हो ँठ उसकी ास
बुझाने के िलए उसके सामने अपने आप ुत हो रहे थे। कुमार का एक हाथ नीतू ने गव से उ कड़क नो ँ को उसके टॉप के
ऊपर से मसलने म लगा था। इन अ ड़ मद म नो ँ ने कुमार की रातों की नी ंद हराम कर रखी थी। कुमार इन नो ँ को दबाने,
मसलने और चूसने के िलए बेताब था। वह उन पर अपना सर मलना चाहता था वह उन नों पर मंिडत ारी िन लों को चूमना,
चूसना और काटना चाहता था।

उधर नीतू कुमार से िमलकर उससे िमलन कर अपने जीवन की सबसे ारी पलों को भोगना चाहती थी। उसने उस से पहले कभी
िकसी युवा से स ोग नही ं िकया था। नीतू ने िसफ ि गेिडयर साहब से कुछ सालों पहले से िकया था। उसे याद भी नही ं था की
वह उसे वह उसे कैसा लगा था। नीतू भूल चुकी थी की जवानी ा होती है और बदन की भूख ा होती है। कुमार से िमलने पर जो
नीतू को महसूस आ वह उससे पहले उसे कभी महसूस नही ं आ था। नीतू ने अपनी चूत म सरसराहट और गीलापन काफी समय
के बाद या शायद पहली बार महसूस िकया था।

कुमार और नीतू के पीछे चल रहे ज ूजी ने अचानक ही नीतू और कुमार को मु पगदं डी से हट कर िनचे झरने के करीब
कंदराओं की और जाते ए दे खा तो वह जोर से िच ाकर उ सावधान करना चाहते थे की ऐसा करना काफी खतरनाक हो
सकता था। पर उनके जोर से िच ाने पर भी उनकी की आवाज कुमार और नीतू के कानों तक प ँच ना सकी। नदी के पानी के
तेज बहाव की कलकलाहट के शोर म भला उनकी आवाज वह दो तेजी से धड़कते िदल और सुलगते बदन कहाँ सुनने वाले थे?
ज ूजी वहीँ क गए। उ ोंने पीछ चल रही सुनीता की और दे खा। तेज चढ़ाई चढ़ते ए कदम कदम पर सुनीता का ॉक उसकी
जाँघों तक चढ़ जाता था। जब सुनीता आगे की और झक
ु ती तो उसके ाउज के पीछे िछपे ए उसके अ ड़ नो ँ के काफी बड़े
िह ों की झांकीहो जाती थी। ज ू जी क गए और जैसे ही सुनीता करीब आयी, ज ूजी ने सुनीता का हाथ थामा और उसे ऊपर
चढ़ाई चढ़ने म मदद की। सद के बावजूद, सुनीता के गुलाबी चेहरे पर पसीने की निदयाँ सी बह रही ं थी ं।

ज ूजी ने सुनीता को कहा, "सुनीता, मने अभी वहाँ दू र कुमार और नीतू को पगदं डी से हट कर िनचे नदी की और जाते ए दे खा
है। वह लोग मु रा ा छोड़ कर उस तरफ ों गए? ाउ पता नही ं है की ऐसा करना खतरे से खाली नही ं है? अब हम ा
कर?"

सुनीता ज ूजी की बात सुनकर हँस पड़ी और बोली, "तो? तो ा आ? ज ूजी, ा आप को दो धड़कते िदलों की आवाज नीतू
और कुमार म सुनाई नही ं दी? यह तो होना ही था।"

ज ूजी सुनीता की बात समझ नही ं पाए और अच े से सुनीता की और दे खते रह गए। तब सुनीता ने ज ूजी की नाक पकड़ कर
खी ंचते ए कहा, "मेरे बुद्धू ज ूजी! आप कुछ नही ं समझते। अरे भाई नीतू और कुमार हम उ होने के बजाय एक दू सरे से
काफी आकिषत ह? ा आपने उनकी आँ खों म बसा ार नही ं दे खा?" ज ूजी की आँ ख यह सुनकर फटी की फटी ही रह गयी ं।
वह बोल पड़े , " ा? पर नीतू तो शादीशुदा है?"

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सुनीता से हँसी रोकी नही ं जा रही थी। वह बोली, " हम दोनों भी तो शादीशुदा ह? तो ा हम दोनों....." यह बोल कर सुनीता
अचानक चुप हो गयी। उसे ानआया की कही ं इधरउधर बोल दे ने से ज ूजी आहत ना हों। सुनीता ज ूजी के घाव पर नमक
िछड़कने का काम सुनीता नही ं करना चाहती थी।

ज ूजी ने कहा, "इस कदर इस जंगल म अकेले इधर उधर घूमना ठीक नही ं

सुनीता ने ज ूजी का हाथ थाम कर दबाया और बोली, "यह यूिनफाम पहन कर आप को ा हो जाता है? अचानक आप इतने
बदल कैसे जाते हो? और आपने अपने पीछे यह बैकपैक म ा रखा आ है?"

ज ूजी ने सुनीता की और आ य से दे खा और बोले, "कैसे? म कहाँ बदला ँ? पीछे मेरे बैकपैक म कुछ ज री सामान रखा आ
है।"

सुनीता ने हँस कर कहा, "एक जवान मद और एक जवान खूबसूरत औरत मु माग छोड़कर जहां कोई नही ं हो ऐसी जगह भला
ों जाएं गे? उस बात को समझ कर ए जॉय करने के बजाय आप खतरे की बात कर रहे हो? अगर ख़तरा वहाँ हो सकता है, तो
खतरा यहां भी तो हो सकता है?"

ज ूजी ने कहा, "सुनीता, तुम नही ं जानती। िपछले दो तीन िदनों म इस ए रया म कुछ आशंका जनक घटनाएं हो रही ं ह। खैर, यह
सब बात को छोडो। चलो हम उ जा कर सावधान करते ह और मु रा े पर आ जाने के िलए कहते ह।"

सुनीता ने अपनी आँ ख नचाकर पूछा, "खबरदार! आप ऐसा कुछ नही ं करोगे। आप वहाँ जाकर िकसी के रं ग म भंग करोगे ा?"

ज ूजी ने कहा, "अगर कुछ ऐसा वैसा चल रहा होगा तो िफर हम वहाँ उनको िड ब नही ं करगे। पर उनको अकेला भी तो नही ं
छोड़ सकते।"

सुनीता ने कहा, "वह सब आप मुझ पर छोड़ दीिजये। आप चुपचाप मेरे साथ चिलए। हम लोग छु पते छु पाते चलते ह तािक वह दोनों
हम दे ख ना ल और िड ब ना हों। दे खते ह वहाँ वह दोनों ा पापड बेल रहे ह। और खबरदार! आप िबलकुल चुप रहना।"

सुनीता ने ज ूजी का हाथ थामा और दोनों चुपचाप नीतू और कुमार िजस िदशा म गए थे उस तरफ उनके पीछे िछपते िछपाते चल
पड़े । पीछे आ रहे ोितजी और सुनीलजी ने दू र से दे खा तो उ नजर आया की सुनीता ज ूजी का हाथ थामे मु माग से हट
कर िनचे नदी की कंदराओं की और बढ़ रही थी। आ य की बात यह थी की वह कभी पौधोंके पीछे तो कभी ल ी ल ी घाँस के
पीछे िछपते ए चल रहे थे।

मौक़ा िमलते ही ोित ने कहा, "सुनीलजी, दे खा आपने? आपकी पित ता प ी, मेरे पित का हाथ थामे कैसे हमसे िछप कर उ
अपने साथ खी ंचती ई उधर जा रही है? लगता है उसका सारा मान, वचन और राजपूतानी वाला नाटक आज बेपदा हो जाएगा।
मुझे प ा यकीन है की आज उसकी िनयत मेरे पित के िलए ठीक नही ं है l और मेरे पित भी तो दे खो! कैसे बेशम से उसके पीछे
पीछे छु पते छु पाते ए चल रहे ह। अरे भाई तु ारी चूत म खुजली हो रही है तो साफ़ साफ़ कहो। हम ने कहाँ रोका है ? पर यह
नाटक करने की ा ज रत है? चलो हम भी उनके पीछे चलते ह और दे खते ह की आज तु ारी बीबी और मेरे पित ा गुल
खलाते ह? हम भी वहाँ जा कर उनका पदाफाश करते ह।"

सुनीलजी ने कहा, "उ छोडो। शायद सुनीता को पेशाब जाना होगा। इसी िलए वह उस साइड हो गए ह। उनकी िचंता छोडो। आप
और हम आगे बढ़ते ह।" यह कह कर सुनीलजी ने ोितजी का हाथ थामा और उनके साथ मु रा े पर आगे जाने के िलए

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अ सर हो गए।

थोड़ा सा आगे बढ़ते ही सुनीता ने दोनों युवाओ ँ को एक दू सरे की बाँहों म कस के खड़े ए गाढ़ चु न म म होते ए दे खा।
कुमार नीतू के ाउज के ऊपर से ही नीतू की चूँिचयों को दबा रहे थे और मसल रहे थे। नीतू कुमार का सर अपने दोनों हाथों म
पकडे कुमार के होठ
ँ ों को ऐसे चूस रही थी जैसे कोई सपेरा िकसीको सांप डं स गया हो तो उसका जहर िनकालने के िलए घाव चूस
रहा हो। कुमार साहब का एक हाथ नीतू के बू दबा रहा था तो दु सरा हाथ नीतू की गाँड़ के गालों को भी ंच रहा था। इस
उ ेजना क दे ख कर ज ूजी और सुनीता वही ं क गए। सुनीता ने अपनी उं गली अपनी नाक पर लगा कर ज ूजी को
एकदम चुप रहने को इशारा िकया। ज ूजी समझ गए की सुनीता नही ं चाहती की इन वासना म म ए पं खयों को ज़रा भी
िड ब िकया जाए। ज ूजी ने सुनीता के कानों म कहा, "इन दोनों को हम यहां अकेला नही ं छोड़ सकते।" यह सुनकर सुनीता ने
अपनी भौंहों को खंच कर कुछ गु ा िदखाते ए ज ूजी के कान म फुसफुसाते ए कहा, "तो ठीक है, हम यही ं खड़े रहते ह जब
तक यह दोनों अपनी काम ीड़ा पूरी नही ं करते।" सुनीता ने वहाँ से हट कर एक घनी झाडी के पीछे एक प र पर ज ूजी को
बैठने का इशारा िकया जहाँसे ज ूजी ेम ीड़ा म िल उस युवा युगल को भलीभांित दे ख सके, पर वह उन दोनों को नजर ना
आये। चुकी वहाँ दोनों को बैठने की जगह नही ं थी इस िलए सुनीता ज ूजी के आगे आकर खड़ी हो गयी। वहाँ जमीन थोड़ी नीची
थी इस िलए सुनीता ने ज ूजी की टाँगे फैलाकर उन के आगे खड़ी हो गयी। ज ूजी ने सुनीता को अपनी और खी ंचा अपनी दो
टांगों के िबच म खड़ा कर िदया। सुनीता की कमर ज ूजी की टांगों के िबच म थी ं। घनी झािड़यों के पीछे दोनों अब नीतू और
कुमार की ेम ीड़ा अ ी तरह दे ख सकते थे।

इन से बेखबर, नीतू और कुमार काम वासना म िल एक दू सरे के बदन को संवार और चूम रहे थे। अचानक नीतू ने घूम कर
कुमार से पूछा, "कुमार ा कनल साहब हम को न दे ख कर हम ढूंढने की कोिशश तो नही ं करगे ना?"

कुमार ने नीतू को जो जवाब िदया उसे सुनकर ज ूजी का सर चकरा गया। कुमार ने कहा, "अरे कनल साहब के पास हमारे बारे म
समय कहाँ? उनका तो खुदका ही सुनीताजी से तगड़ा च र चल रहा है। अभी तुमने दे खा नही?ं कैसे वह दोनों एक दू सरे से
िचपक कर चल रहे थे? और उस रात टैन म वह दोनों एक ही िब रम ा कर रहे थे? बापरे ! यह पुरानी पीढ़ी तो हमसे भी तेज
िनकली।"

ज ूजी ने जब यह सूना तो उनका हाल ऐसा था की छु री से काटो तो खून ना िनकले। इन युवाओ ँ की बात सुनकर ज ूजी का मुंह
लाल हो गया। पर करे तो ा करे ? उ ोंने सुनीताकी ओर दे खा। सुनीता ने मु ु रा कर िफर एक बार अपने हो ँठों और नाक पर
उं गली रख कर ज ूजी को चुप रहने का इशारा िकया। सुनीता ने ज ूजी के कान म बोला, "आप चुप रिहये। अभी उनका समय
है। पर यह ब े बात तो सही कह रहे ह।" उस समय ज ूजी की शकल दे खने वाली थी।

नीतू ने िनचे की बहती नदी की और दे ख कर कुमार के हाथ पकड़ उ अपनी गोद म रखते ए कुमार के करीब खसक कर
कहा, "कुमार, दे खो तो! िकतना सु र नजारा िदख रहा है। यह नदी, ये बफ ले पहाड़ यह बादल! मन करता है यही ं रह जाऊं, यहां
से वापस ही ना जाऊं! काश व यही ं थम जाए!"

कुमर ने चारों और दे ख कर कहा, "म तो इस समय िसफ यह दे ख रहा ँ की कही ं कोई हम दे ख तो नही ं रहा?"

नीतू ने मुंह िबगाड़ते ए कहा, "कुमार तुम िकतने बोर हो! म यहां इतने सु र नजारों बात कर रही ँ और तुम कुछ और ही बात
कर रहे हो!"

कुमार ने नीतू का गोरा मुंह अपनी दोनों हथेिलयों म िलया और बोले, "मुझे तो यह चाँद से मुखड़े से ादा सु र कोई भी नजारा
नही ं लग रहा है। म इस मुखड़े को चूमते ही रहना चाहता ँ। म इस गोरे कमिसन बदन को दे खता ही र ं ऐसा मन करता है। मेरा
मन करता है की म तु ारे साथ हरदम र ं। हमारे ढे र सारे ब हों और हमारी िजंदगी का आखरी व तक हम एक दू सरे के

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साथ रह।" िफर एक गहरी साँस लेते ए कुमार ने कहा, "पर मेरी ऐसी तकदीर कहाँ?"

नीतू कुमार की और गौरसे और गंभीरता से दे खती रही और बोली, " ा तुम मेरे साथ हरदम रहना चाहते हो?"

कुमार ने दोनों हाथों को अपने हाथों म पकड़ा बोले, "हाँ। काश ऐसा हो सकता! पर तुम तो शादीशुदा हो।"

नीतू ने कहा, "दे खो, कहनेके िलए तो म शादीशुदा िमिसस ख ा ँ, पर वा व म िमस ख ा ही ँ। ि गेिडयर साहब मेरे पित नही ं
वा व म वह मेरे िपता ह और मुझे बेटी की ही तरह रखते ह। उ ोंने मुझे बदनामी से बचाने के िलए ही मेरे साथ शादी की। शादी
के बाद हमारा शारी रक स मु ल से शु के कुछ महीनों तक का भी नही ं रहा होगा। उसके बाद उनका ा
लड़खड़ाया और तबसे उ ोंने मुझे गलत इरादे से हाथ तक नही ं लगाया। उ ोंने मुझे एक बेटी की तरह ही रखा है। वह मेरे िलए
एक िपता की तरह मेरे िलए जोड़ीदार ढू ं ढ रहे ह। चूँिक वह सरकारी रकॉड म ऑिफिशयली मेरे पित ह, तो अगर कोई मेरा
मनपसंद पु ष मुझे ीकार करता है तो वह मुझे तलाक दे ने के िलए तैयार ह। म जानती ँ की तु ारे माता िपता शायद मुझे
ीकार ना कर। म इसकी उ ीद भी नही ं करती। पर अगर वा व म तुम तु ारा प रवार मुझे ीकार करने िलए तैयार हो और
सचम तुम मेरे साथ पूरी िजंदगी िबताना चाहते हो तो मेरे िपता (ख ा साहब) से बात क रये।"

नीतू इतना कह कर क गयी। वह कुमार की िति या दे खने लगी। नीतू की बात सुनकर कुमार कुछ गंभीर हो गए थे। उनका
ग ीर चेहरा दे ख कर नीतू हँस पड़ी और बोली, "कुमार साहब, म आपसे कोई लेनदे न नही ं कर रही ँ। म आप से यह उ ीद नही ं
रख रही ँ की आप अथवा आपका प रवार मुझे ीकार करे गा। उन बातों को छोिड़ये। आप मुझे अपना जीवन साथी बनाएं या
नही ं; हम यहां िजस हेतु से वह तो काम पूरा कर? वरना ा पता हम ना दे ख कर कनल साहब कही ं हमारी खोज शु ना करद।"
यह कह नीतू ने कुमार की पतलून म हाथ डाला।

कुमार का ल नीतू का श होते ही कड़ा होने लगा था। कुमार ने अपने पतलून की िझप खोली और अपनी िन र म से अपना
ल िनकाला। नीतू कुमार का ल हाथ म लेकर उसे सहलाने लगी। नीतू ने हँसते ए कहा, "कुमार यह तो एकदम तैयार है।
तुमतो वाकई बड़े ही रोमांिटक मूड म लग रहे हो।

कुमार ने नीतू के होठो ँ को चूमते ए अपना एक हाथ नीतू की ट को ऊपर उठा कर उसकी पटी को िनचे खसका कर उसकी
एक टाँग को ऊपर उठा कर नीतू की जाँघों के िबच उसकी चूत म उं गली डालते ए कहा, "तुम भी तो काफी गरम हो और पानी
बहा रही हो।"

बस इसके बाद दोनों म से कोई भी कुछभी बोलने की थित म नही ं थे। वही ं प र के सहारे खड़े खड़े कुमार और नीतू गहरे चु न
और आिलंगन म जकड़े ए थे। कुमार का एक हाथ नीतू की म गाँड़ को सेहला रहा था और दु सरा हाथ नीतू की उ ं ड चूँिचयों
को मसलने म लगा आ था।

नीतू ने कुमार से कहा, "जो करना है ज ी करो वरना वह कनल साहब आ जाएं गे तो कही ं रं ग म भंग ना कर द।"

ज ूजी कुमार और नीतू की बात सुनकर एक तरह शिम ा महसूस कर रहे थे तो दू सरी तरफ गरम भी हो रहे थे। पर उस समय
वह आम के यूिनफाम म थे। सुनीता ने पीछे घूम कर ज ूजी की पतलून म उनकी टाँगों के िबच दे खा तो पाया की नीतू और कुमार
की ेम ीड़ा दे ख कर ज ूजी का ल भी कड़क हो रहा था और उनकी पतलून म एक त ू बना रहा था। मन ही मन सुनीता
को हंसी आयी। सुनीता ज ूजी का हाल समझ सकती थी। ज ूजी एक प र पर िनचे टाँग लटका कर बैठे ए घनी झाडी के पीछे
नीतू और कुमार को दे ख रहे थे। सुनीता उनकी टाँगों के िबच म कुछ नीची जमीन पर खड़ी ई थी। सुनीता की पीठ ज ूजी के
लौड़े से सटी ई थी। ज ूजी की दोनों टांग सुनीता के कमर के आसपास फैली ई सुनीता को जकड़ी ई थी ं। ज ूजी का हाथ
अनायास ही सुनीता के बू को छू रहा था। ज ूजी अपना हाथ सुनीता के बू से छूने से बचाते रहते थे। सुनीताने ज ूजी का

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खड़ा ल अपनी पीठ पर महसूस िकया। सहज प से ही सुनीता ने अपनी कोहनी पीछे की और ज ूजी की जाँघों के िबच म
िटका दी ं। सुनीता ने अपनी कोहनी से ज ूजी का ल छु आ और कोहनी को िहलाते ए वह ज ूजी का ल भी िहला रही थी।
सुनीता की कोहनी के छूते ही ज ूजी का ल उनकी पतलून म फराटे मारने लगा

कुमार ने नीतू को उठा कर प र के पास हरी नरम घास की कालीन पर िलटा िदया। िफर बड़े ार से नीतू के ट को ऊपर
उठाया और उसकी पटी िनकाल फकी। उसे ट म से नीतू की करारी जाँघे और उनके िबच थत उसकी सु र रसीली चूत के
दशन ए। उसने ज ही नीतू की ट म मुंह डाल कर उसकी चूत को चूमा। नीतू को कुमार का लंड डलवाने की ज ी थी।
उसने कहा, "अरे ज ी करो। यह सब बाद म करते रहना। अभी तो तुम ऊपर चढ़ आओ और अपना काम करो। कही ं कोई आ
ना जाए और हम दे ख ना ले।" उसे ा पता था उन दोनों की चुदाई की पूरी िफ ज ूजी और सुनीता अ ी तरह से दे ख रहे थे।

कुमार ने अपना ल पतलून से जब िनकाला तब उसे ज ूजी ने दे खा तो उनके मुंहसे भाई हलकी सी "आह... " िनकल गयी।
शायद उ ोंने भी उसके पहले इतना बड़ा ल अपने िसवाय कभी िकसीका दे खा नही ं था। सुनीता ने पीछे मूड कर दे खा। ज ूजी
की ित या दे ख कर वह मु ु राई और ज ूजी की टांगों के िबच खड़े ए टट पर सुनीता ने अपना हाथ रखा। ज ूजी ने फ़ौरन
सुनीताका हाथ वहाँसे हटा िदया। सुनीता ने ज ूजीकी और दे खातो ज ूजी कुछ िहचिक-चाते ए बोले, "अभी म ूटी पर ँ। वैसे
भी अब म तु ारे साथ कोई भी हरकत नही ं क ं गा ूंिक िफर मेरी ही बदनामी होती है और हाथ म कुछ आता जाता नही ं है। मुझे
छोडो और इन ेमी पंिछयों को दे खो।"

सुनीता ने अपनी गदन घुमाई और दे खा की नीतू ने कुमार को अपनी बाँहों म दबोच रखा था और कुमार नीतू के ट को ऊंचा कर
अपनी पतलून को नीचा कर अपना ल अपने हाथों म सहला रहा था। नीतू ने फ़ौरन कुमार को अपना ल उसकी चूत म डालने
को बा िकया। कुमार ने दे खा की नीतू की चूत म से उसका रस रस रहा था। कुमार ने हलके से अपना ल नीतू की चूत के
िछ पर कि त िकया और िहलाकर उसके ल को घुसने की जगह बनाने की कोिशश की। नीतू की चूत एकदम टाइट थी। कई
महीनों या सालों स नही ं चुदने के कारण वह संकुडा गयी थी। वैसे भी नीतू की चूत का िछ छोटा ही था। कुमार ने धीरे धीरे जगह
बनाकर और अपने हाथों से अपना ल इधर उधर िहलाकर नीतू की टाइट चूत को फैलाने की कोिशश की। नीतू ने दद और डर
के मारे अपनी आँ ख मूंद ली ं थी ं। धीरे धीरे कुमार का मोटा और कडा ल नीतू की लगभग कँवारी चूत म घुसने लगा। नीतू मारे दद
के छटपटा रही थी पर अपने आप को इस मीठे दद को सहने की भी कोिशश कर रही थी। उसे पता था की धीरे धीरे यह दद गायब
हो जाएगा। कुमार ने धीरे धीरे अपनी गाँड़ के जोर से नीतू की चूत म ध े मारने शु िकये।

इस तरफ सुनीता का हाल भी दे खने वाला था। नीतू की चुदाई दे ख कर सुनीता की चूत म भी अजीब सी जलन और हलचल हो रही
थी। उ चोदने के िलए सदै व इ ु क उसके ारे ज ूजी वही ं खड़े थे। हकीकत म सुनीता अपनी पीठ म महसूस कर रही की
ज ूजी का ल उनकी पतलूनम फनफना रहाथा। पर दोनोंकी मजबू रयां थी ं। सुनीता ने िफर भी अपना हाथ पीछे िकया और
ज ूजी के बार बार सुनीता के हाथ को हटाने की नाकाम कोिशशों के बावजूद ज ूजी की जाँघों के िबच म डाल ही िदया। ज ूजी
के पतलून की िज़प खोलकर सुनीता ने बड़ी मु ल से िन र को हटा कर ज ूजी का िचकना और मोटा ल अपनी उँ गिलयों
म पकड़ा।

कुमार अब नीतू की अ ी तरह चुदाई कर रहे थे। दोनों टाँगों को पूरी तरह फैला कर नीतू कुमार के मोटे तगड़े ल से चुदवाने
का मजा ले रही थी। कुमार का ल जैसे ही नीतू की चूत पर फटकार मारता तो नीतू के मुंह से आह... िनकल जाती।

ज ूजी और सुनीता को वहाँ बैठे ए नीतू और कुमार की चुदाई का पूरा साफ़ साफ़ िदख रहा था। वह कुमार का मोटा ल
नीतू की चूत म घुसते ए साफ़ दे ख पा रहे थे। सुनीता ने ज ूजी की और दे खा और पूछा, "कनल साहब, आपके जहन म यह दे ख
कर ा हो रहा है?" ज ूजी का बुरा हाल था। एक और वह नीतू की चुदाई दे ख रहे थे तो दू सरी और सुनीता उनके ल को बड़े
ार से िहला रही थी। ज ूजी ने सुनीता के गाल पर जोरदार चूँटी भरते ए कहा, "मेरी ब ी, मुझसे ाऊं? तू मेरी ही चेली है
और मुझसे ही मजाक कर रही है? सुनीता, मेरे िलए यह बात मेरे िदल के अरमान, फीिलं और इमोशंस की है। मेरे मन म ा है,

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यह तू अ ी तरह जानती है। अब बात को आगे बढ़ाने से ा फायदा? िजस गाँव म जाना नही ं उसका रा ा ों पूछना?" सुनीता
को यह सुनकर झटका सा लगा। िजस इं सान ने उसके िलए इतनी क़ुरबानी की थी और जो उससे इतना बेतहाशा ार करता था
उसके हवाले वह अपना िज नही ं कर सकती थी। हालांिक सुनीता को खुदके अलावा कोई रोकने वाला नही ं था। सुनीता का दय
जैसे िकसी ने कटार से काट िदया ही ऐसा उसे लगा। वह ज ूजी की बात का कोई जवाब नही ं दे सकती थी। सुनीता ने िसफ
अपना हाथ िफर जबरद ीज ूजी की टाँगों के िबच म रखा और उनके ल को पतलून के ऊपर से ही सहलाते ए बोली, "म
मजाक नही ं कररही ज ूजी। ा सजा आप को अकेले को िमल रही है ? ा आप को नही ं लगता की म भी इसी आग म जल रही
ँ?" सुनीता की बात सुनकर ज ज
ू ी की आँ ख थोड़ी सी गीली हो गयी। उ ोंने सुनीता का हाथ थामा और बोले, "म तु ारा ब त
स ान करता ँ। म तु ारे वचन का और तु ारी मज़बूरी का भी स ान करता ँ और इसी िलए कहता ँ की मुझे मेरे हाल पर
छोड़ दो। ों मुझे उकसा रही हो?" सुनीता ने ज ूजी के पतलून के ऊपर से ही उनके ल पर हाथ िफराते उसे िहलाते ए कहा,
"ज ूजी, मेरी अपनी भी कुछ इ ाएं ह। अगर सब कुछ न सही तो थोड़ा ही सही। म आपको छू तो सकती ँ ना? म आपके नवाब
(ल ) से खेल तो सकती ँ ना? की यह भी मुझसे नकारोगे?"

सुनीता की बात का ज ूजी ने जवाब तो नही ं िदया पर सुनीता का हाथ अपनी टांगों से िबच से हटाया भी नही ं। सुनीताने फ़ौरन
ज ूजीकी िज़प खोली और िन र हटा कर उनके ल को अपनी कोमल उँ गिलयों म िलया और नीतू की अ ी सी हो रही
चुदाई दे खते ए सुनीता की उँ गिलयाँ ज ूजी के ल और उसके िनचे लटके ए उसके अंडकोष की थैली म लटके ई बड़े बड़े
गोलों से खेलनी लगी। सुनीता की उँ गिलयों का श होते ही ज ूजी का ल थनगनाने लगा। जैसे एक नाग को िकसीने छे ड़ िदया
हो वैसे दे खते ही दे खते वह एकदम खड़ा हो गया और फुंफकारने लगा। सुनीता की उँ गिलयों म ज ूजी के ल का िचकना पूव
रस महसूस होने लगा। दे खते ही दे खते ज ूजी का ल िचकनाहट से सराबोर हो गया। ज ूजी मारे उ ेजना से अपनी सीट पर
इधरउधर होने लगे।

उधर कुमार बड़े ार से और बड़ी फुत से नीतू की चूत म अपना ल पेले जा रहा था। कभी धीरे से तो कभी जोरदार झटके से
वह अपनी गाँड़ से पीछे से ऐसा ध ा मारता की नीतू का पूरा बदन िहल जाता। तो कभी अपना ल नीतू की चूत म अंदर घुसा
कर वहीँ थम कर नीतू के खूबसूरत चेहरे की और दे ख कर नीतू की िति या का इंतजार करता। जब नीतू ह ा दे कर उसे
ो ािहत करती तो वह भी मु ु राता और िफर सुनीता की चुदाई जारी रखता। कुछ दे र म नीतू का जोश और िह त बढ़ी और
वह कुमार के िनचे से बैठ खड़ी ई। उसने कुमार को िनचे लेटने को कहा। नीतू ने कहा, "अब तक तो तुम मुझे चोदते थे। अब
क ान साहब म तु चोदती ँ। तुमभी ा याद रखोगे की िकसी लड़की ने मुझे चोदा था।" और िफर नीतू ने कुमार के ऊपर
चढ़कर कुमार का फुला आ मोटा ल अपनी उँ गिलयों से अपनी चूत म घुसेड़ा और कूद कूद कर उसे इतने जोश से चोदने लगी
की कुमार की भी हवा िनकल गयी। कुमार का ल , नीतू की चूत म पूरा उसकी ब े दानी तक प ँच जाता।

यह दे खकर सुनीता भी मारे उ ेजना के ज ूजी का ल जोर से िहलाने लगी। ज ूजी की समझ म नही ं आ रहा था की वह
आँ ख मूँद कर सुनीता की उँ गिलयों से अपने ल को िहलवाने का मझा ल या आँख खुली रख कर नीतू की चुदाई दे खने का। दोनों
ही उनको पागल कर दे ने वाली चीज़ थी ं। ज ूजी सुनीता की आँ खों म दे खने लगे की उनका ल िहलाते व सुनीता के चेहरे पर
कैसे भाव आते थे। सुनीता यह दे खने की कोिशश कर रही थी की ज ूजी के चेहरे पर कैसे भाव थे। सुनीता कुमार की चुदाई दे ख
रही थी। उस समय उसके मन म ा भाव थे यह समझना ब त मु ल था। ा वह नीतू की जगह खुद को रख रही थी? तो िफर
कुमार की जगह कौन होगा? ज ूजी या िफर सुनीता के पित सुनीलजी?

नीतू के सर पर तो जैसे भुत सवार हो गया था। शायद नीतू को उसके जीवन म पहली बार एक जवाँ मद का फुला आ मोटा ल
अपनी चूत म लेने का मौक़ा िमला था। कुमार के ल की िघसने से नीतू की चूत म हो रहा घषण उसके पुरे बदन म आग लगा दे
रहा था। ऐसा पहले कभी नीतू ने महसूस नही ं िकया था। उसने पहले िसफ चुदाई की कहािनयां ही पढ़ी या सुनी थी ं या कोई कोई
बार एकाध वीिडयो दे खा था। ख ा साहब ने अपने कमजोर ढीले ल से बड़ी मु ल से ज र नीतू को चोद ने की कोिशश की
थी। वह भी कुछ िदनों तक ही। पर उस बात को तो जमाने बीत गए थे। वाकई म एक ह े क े जवाँ मद से चुदाई म कैसा आनंद
आता है वह नीतू पहली बार महसूस कर रही थी। नीतू इस बात का पूरा लाभ उठाना चाहती थी। उसे पता नही ं था की शायद उसे

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ऐसा मौक़ा िफर िमले या नही ं। नीतू उछल उछल कर कुमार के ल को ऐसे चोद रही थी िजससे कुमार का ल उसकी चूत की
नाली म आ खर तक प ंच जाए। नीतू के दोनों बू उछल उछल कर पटक रहे थे। कुमार ने नीतू का जोश दे खा तो वह भी जोश म
आकर िनचे अपनी गाँड़ उठाकर ऊपर की और जोरदार ध ा दे रहा था। दोनों ही के मुंह से आह्ह्ह्ह.... ओह.... उफ..... की
आवाज िनकल रही ं थी ं।

कुछ ही दे र म नीतू अपने चरम पर प ँच रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब से भाव कािशत हो रहे थे। एक तरह का अजीब सा
उ ाद और रोमांच उसके पुरे बदन को रोमांिचत कर रहा था। कुछ ध े मारने के बाद वह बोल पड़ी, "कुमार म अब छोड़ने वाली
ँ। तुम भी अपना वीय मुझ म छोड़ दो। आज म तैयारी के साथ ही आयी थी। म जानती थी की आज तुम मेरी लेने वाले हो और मुझे
छोड़ोगे नही ं।" कुमार ने नीतू के होंठ चूमते ए हाँफते ए र म कहा, "नीतू, आई लव यु! म तुझसे ब त ार करता ँ और तु
अपनी बनाना चाहता ँ। म तु आज ही नही ं, िजंदगी भर नही ं छोड़ना चाहता, अगर तु कोई एतराज ना हो तो। म तु रोज
चोदना चाहता ँ। ा तुम मेरी बनने के िलए तैयार हो?" नीतू ने कहा, "दे खो कुमार डािलग! यह व यह सब कहना का नही ं है।
कोई भी काम जोश म नही ं होश म करना चािहए। अभी तुम चुदाई के जोश म हो। जब यह सब हो जाए और तुम ठ े िदमाग से
सोचोगे तब तय करना की तुम मुझे अपनी बनाना चाहते हो या नही ं। अपने माता िपता से भी सलाह और मशवरा कर लो। कही ं ऐसा
ना हो की तुम तैयार हो पर तुंहारी फॅिमली साथ ना दे । म ऐसा नही ं चाहती।" कुमार ने कहा, "ओह...... नीतू डािलग, मेरा वीय भी
छूटने वाला है। पर म तु पुरे होशो हवास म कह रहा ँ की शादी तो म तुमसे ही क ं गा अगर ख ा साहब इजाजत द तौ।"

नीतू ने कहा, "ख ा साहब तो अपना िपता का धम अदा करना चाहते ह। वह मुझे कह रहे थे की उ ोंने कभी क ादान नही ं िकया।
उनके जीवन की इस कमी को वह मेरी शादी करा कर पूरी करना चाहते ह। बशत की कोई मुझे ीकार करे और ार से र े।
अगर तुम तैयार होंगे तो उनसे ादा खुश कोई नही ं होगा।" इतना बोल कर नीतू चुप हो गयी। उसने कुमार की चुदाई करने पर
अपना ान लगा िदया ूंिक वह अब झड़ने वाली थी। कुछ ही दे र म नीतू और कुमार झड़ कर शांत हो गए।

तो इस तरफ सुनीता ज ूजी का ल अपनी उँ गिलयों म जोर से िहला रही थी। साथ साथ म ज ूजी के चेहरे के भाव भी वह
पढ़ने की कोिशश कर रही थी। ज ूजी आँ ख मूँद कर अपने ल की अ ी खासी मािलश का आनंद महसूस कर रहे थे। नीतू
और कुमार को झड़ते ए दे खकर उनके ल के अंडकोष म छलाछल भरा वीय भी उनकी नािलयों म उछल ने लगा। सुनीता की
उँ गिलयों की कला से वह बाहर िनकलने को ाकुल हो रहा था। नीतू से हो रही कुमार की चुदाई दे ख कर सुनीता ने भी तेजी से
ज ूजी का ल िहलाना शु िकया िजसके कारण कुछ ही समयम ज ूजी की भौंह टेढ़ी सी होने लगी। वह अपना माल िनकाल
ने के कगार पर ही थे। एक ही झटके म ज ूजी अपना फ़ ारा रोक नही ं पाए और "सुनीता, तुम ा गजब का मुठ मार रही हो!!
अह्ह्ह्हह...... मेरा छूट गया.... कह कर वह एक तरफ टेढ़े हो गए। सुनीता की हथेली ज ूजी के ल के वीय से लथपथ भर चुकी
थी। सुनीता ने इधर उधर दे खा, कही ं हाथ पोंछने की व था नही ं थी। सुनीता ने साथ म ही रहे पेड़ की एक डाली पकड़ी और एक
टहनीसे कुछ प ों को तोड़ा। डाली अचानक सुनीता की हांथों से छूट गयी और तीर के कमान की तरह अपनी जगह एक झटके से
वापस होते ए डाली की आवाज ई।

चुदाई ख होने पर साथ साथ म लेटे ए कुमार और नीतू ने जब पौधों म आवाज सुनी तो वह चौक े हो गए। कुमार जोर से बोल
पड़े , "कोई है? सामने आओ।" ज ूजी का हाल दे खने वाला था। उ ोंने फ़टाफ़ट अपना ल अपनी पतलून म सरकाया और बोले,
"कौन है?" तब तक नीतू अपने कपडे ठीक कर चुकी थी। कुमार भी कनल साहब की आवाज सुनकर चौंक एकदम कड़क आम
की अटशन के पोज़ म खड़े हो गए और बोले, "सर! म क ान कुमार ँ।" ज ूजी ने डािलयों के प ों को हटाते ए कहा, "क ान
कुमार, एट इज़ (मतलब आरामसे खड़े रहो।)" उ ोंने िफर नीतू की और दे खते ए कुमार पूछा, "क ान तुम दोनों यहां ा कर
रहे हो?" जब कुमार की बोलती बंद हो गयी तब िबच म सुनीता बोल उठी, "कॅ न साहब, कनल साहब के कहने का मतलब यह है
की आप दोनों को मु माग से हट कर यहां नही ं आना चािहए था। यह जगह खतरे से खाली नही ं है।" कुमार साहब ने नजर नीची
कर कहा, "आई एम् सॉरी सर।" िफर नीतू की और इशारा कर कहा, "इनको कुदरत का नजारा दे खने की ख़ास इ ा ई थी। तो
हम दोनों यहां आ गए। आगे से ान रखूंगा सर।" ज ूजी ने कहा, "ठीक है। कुदरत का नजारा दे खना हो या कोई और वजह हो।

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आप को इनको स ाल ना है और अपनी और इनकी जान खतरे म नही ं डालनी है। समझे?"

कै ेन कुमार ने सलूट मारते ए कहा, "यस सर!" ज ूजी ने मु ु राते ए आगे बढ़कर नीतू के सर पर हाथ िफराते ए मु राते
ए कहा, "तु जो भी नजारा दे खना हो या जो भी करना हो, करो। पर स ाल कर के करो। तुम दोनों ब त अ े लग रहे हो।"
कह कर ज ूजी ने सुनीता को साथ साथम चलने को कहा। सुनीता को ज ूजी के साथ दे ख कर कै ेन कुमार और नीतू भी
मु ु राये। कै ेन कुमार ने सुनीता की और दे खा और चुपचाप चल िदए। कै ेन कुमार और नीतू भीगी िब ी की तरह कनल साहब
के पीछे पीछे चलते ए मु राह पर प ँच गए। इस बार जान बुझ कर ज ूजी ने सुनीता से कुमार और नीतू की और इशारा कर
धीरे चलनेको कहा। नीतू और कुमार की मैथुन लीला दे खने के बाद सुनीता को ज ूजी का रवैया काफी बदला आ नजर आया।
अब वह उनकी कामनाओं और भावनाओं की कदर करते ए नजर आये।

रा े से भटक जाने के िलए पहले शायद वह कै ेन कुमार को आड़े हाथों ले लेते। पर उ ोंने जब दोनों के िबच का आकषण और
उ ट ार दे खा तो कुमार को थोड़ी सी डाँट लगा कर छोड़ िदया। कनल साहब अब धीरे धीरे समझ रहे थे की जो कामबाण
उनके और सुनीता के दय को घायल कर रहा था वही कामबाण क ान कुमार और नीतू के दय कोभी घायल कर रहा था। जब
ार के कामबाण का तीर चलता है तो वह उ , जाती, समय, समाज का िलहाज नही ं करता। शादीशुदा हो या कंवारे , ब ों के माँ
बाप हों हो या िवधवा हो, इं सान घायल हो ही जाता है। हाँ, यह सच है की समाज ऐसी हरकतों को पसंद नही ं करता और इसी िलए
अ र यह सब कारोबार चोरी छु ी चलता है। आ खर कनल साहब और सुनीता भी तो शादीशुदा थे। नीतू और कुमार की मैथुन
लीला दे खने के बाद कनल साहब का नज रया कुछ बदल गया। वह कनल साहब नही ं ज ूजी के नज रये से नीतू और कुमार का
ार दे खने लगे। सुनीता यह प रवतन दे ख कर खुश ई।

धीरे धीरे पूरा कारवाँ गंत थान की और आगे बढ़ने लगा। सुनीता के पूछने पर ज ूजी ने बताया की करीब आधा रा ा ही तय
आ था। कुछ आगे जाने पर दू र से ज ूजी ने ऊपर की और नजर कर के सुनीता को िदखाया की उसके पित सुनील ोितजी
पास पास म एक प र लेटे ए सूरज की रौशनी अपने बदन को सेकते ए आराम कर रहे थे। इतने सद मौसम म भी सुनील के
पसीने छूट रहे थे। पहाड़ों की चढ़ाई के कारण वह बार बार क रहे थे। सुनीता और ोितजी भी करीब चार िकलो मीटर चलने के
बाद थके ए नजर आ रहे थे। नीतू और कुमार ादा दू र नही ं गए थे। वह एक दू सरे के साथ बात करते ए, खेलते ए आगे बढ़
रहे थे। पर जैसे चढ़ाई आने लगी, नीतू भी थकान और हाँफ के कारण थोड़ा चलकर क जाती थी। चुदाई म ए प र म से वह
काफी थकी ई थी।

कै ेन कुमार और कनल साहब को ऐसे चलने की आदत होने के कारण उनपर कोई ादा असर नही ं आ था पर असैिनक
नाग रकों के धीरे धीरे चलने के कारण सैिनकों को भी धीरे धीरे चलना पड़ता था। अचानक ही सब को वही जँगली कु ों की डरावनी
भौंकने की आवाज सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज ादा दू र से नही ं आ रही थी। लगता था जैसे कुछ जंगली भेिड़ये पहाड़ों म
काफी करीबी से दहाड़ रह हों। कािफला तीन िह ों म बँटा था। आगे ोितजी और सुनीलजी थे। उसके थोड़ा पीछे नीतू और
कै ेन कुमार चल रहे थे और आ खर म उनसे करीब १०० मीटर पीछे सुनीता और ज ूजी चल रहे थे।

भेिड़यों की डरावनी िचंघाड़ सुनकर ख़ास तौर से मिहलाओं की िस ीिप ी गुम होगयी। वह भाग कर अपने साथी के करीब प ँच
कर उनसे िचपक गयी ं। नीतू कुमार से, सुनीता ज ूजी से और ोितजी सुनील से िचपक कर डरावनी नज़रों से अपने साथी से
िबना कुछ बोले आँ खों से ही कर रही ं थी ं की "यह ा था? और अब ा होगा?" तब ज ूजी सुनीता को अपने से अलग कर,
अचानक ही िबना कुछ बोले, भागते ए रा े के करीब थोड़ी ही दु री पर एक पेड़ था उस पर चढ़ गए। सब अचरज से ज ूजी ा
कर रहे थे यह दे खते ही रहे की ज ूजी ने अपने बैकपैक (झोले) से एक जूता िनकाला और उसको एक डाल पर फीते से बाँध कर
लटका िदया। िफर फुत से िनचे उतरे और ज ी से सब को अपने रा े पर ज ी से चलने को कहा। जािहर था ज ूजी को कुछ
खतरे की आशंका थी। सब सैलािनयों का हाल बुरा था। सब ने ज ूजी को पूछना चाहा की वह ा कर रहे थे? उ ोंने अपना एक
जूता डाली पर ों लटकाया? पर ज ूजी ने उस समय उसका कोई जवाब दे ना ठीक नही ं समझा। उ ोंने िसफ इतना ही कहा,
"अब एकदम तेजी से हम अपनी मंिजल, याने ऊपर वाले कप म प ँच जाएं गे, उसके बाद म आपको बताऊंगा।"

153
सब फुत से आगे बढ़ने लगे। ज ूजी ने सब को एकसाथ रहने िहदायत दी तो पूरा ुप एक साथ हो गया। ज ूजी और कै ेन
कुमार ने अपनी अपनी िप ौल िनकाल ली ं। कनल साहब (ज ूजी) ने कै ेन कुमार को सबसे आगे रह कर िनगरानी करने को
कहा। उ ोंने नीतू और बाकी सबको िबच म एकजुट रहने के िलए कहा और खुद सबसे पीछे हो िलए। जब ज ूजी सबसे पीछे हो
िलए तब सुनीता भी ज ूजी के साथ हो ली। ज ूजी ने जब सुनीता को सब के साथ चलने को कहा तो सुनीता ने ज ूजी से कहा,
"म आप के साथ ही र ंगी। हमने तय िकया था ना की इस िटप दर ान म आप के साथ र ंगी और ोितजी सुनीलजी के साथ। तो
म आप के साथ ही र ंगी।" ज ूजी ने अपने कंधे िहलाकर लाचारी म अपनी ीकृित दे दी।

कािफला करीब एक या दो िकलोमीटर आगे चला होगा की सब को िफर वही जंगली कु ों की भयानक आवाज दु बारा सुनाई पड़ी।
उस समय वह आवाज िनचे की तरफ से आ रही थी। सब ने िनचे की और दे खा तो पाया की िजस पेड़ पर ज ूजी ने अपना एक
जूता लटकाया था उस पेड़ के आजुबाजु दो भयानक बड़े जंगली कु े भौंक रहे थे और उस पेड़ के इदिगद च र काट रहे थे। तब
ज ूजी ने कहा, "मेरा शक ठीक िनकला। वह भेिड़ये नही ं, हाउ ह। अब यह साफ़ हो गया है की दु न के कुछ िसपाही हमारी
सरहद म घुसने म कािमयाब हो गए ह और दु न कुछ चाल चल रहा है। धीरे धीरे सारी कहानी समझ आ जायेगी। िफलहाल हम
ऊपर के कप पर फ़ौरन प ंचना है।"

आम के हाउ की िचंघाड़ने की डरावनी आवाज सुनकर और हकीकत म उन भयानक बड़े डरावने जंगली कु ों को दे ख कर
सब सैलािनयों म जैसे िबजली का करं ट लग गया। सबके पॉंव म पिहये लग गए हों ऐसे सब की गित तेज हो गयी। सबकी थकान
और आराम करने की इ ा गायब ही हो गयी, िदल की धड़कन तेज हो गयी। कै ेन कुमार को िकसीको तेज चलने के िलए कहना
नही ं पड़ा। सब काश के सामान गित से ऊपर के कप की और लगभग दौड़ने लगे। अगर उस समय कोई गित नापक यं होता तो
शायद तेज चलने के कई रकॉड भी टू ट सकते थे। रा े म चलते चलते कनल साहब ने सब के साथ जुड़कर ख़ास तौर से सुनीता
की और दे ख कर कहा, "आप लोगों के मन म यह था ना की म िकस उधेड़बुन म था और मने पेड़ पर जूता ों लटकाया? और
यह जंगली भेिड़ये जैसे भयानक कु े ा कर रहे है? तो याद करो, ा तु याद है की कुछ ह े पहले मेरे घर म चोरी ई थी
िजसम मेरा एक पुराना लैपटॉप और िसफ एक ही जूता चोरी आ था? घर म इतना सारा माल पड़ा आ था पर चोरी िसफ दो चीज़ों
की ही ई थी? वह चोरी दु शमनों की खुिफया एजसीज ने करवाई थी तािक मेरे लैपटॉप से उ कोई जानकारी िमल सके। एक जूता
इस िलए चुराया था िजससे उस जूते को वह लोग अपने हाउ को सुंघा सके जो मेरी गंध सूंघ कर मुझे पकड़ सके। मुझे इसके
बारे म पहले से कुछ शक पहले से ही हो गया था। पर म भी इतना समझ नही ं पाया की दु न की इतनी जुरत कहाँ से ई की वह
हमारी ही सरहद म घुसकर ऐसी हरकत कर सके? ज र इसम हमारे ही कुछ लोग िमले ए ह। मने दू सरे जूते को स ाल कर
र ा आ था, तािक ज रत पड़ने पर म उन हाउ को बहका कर भुलावा दे सकूँ और उनको गुमराह कर सकूँ। आज सुबह
जब मने दे खा की वह हाउ मेरा ही पीछा कर रहे थे तब मने पेड़ पर वह जूता लटका कर कुछ घंटों के िलए उन हाउ को
गुमराह करने की कोिशश की और वह कोिशश कामयाब रही। वह हाउ मेरा पीछा करने के बजाय उस पेड़ के ही च र काट
रहे थे यह लड़ाई मेरे और उनके िबच की है। आप म सी िकसी को कुछ भी नही ं होगा।"

उस समय सब एक पहाड़ी के िनचे से गुजर रहे थे। अचानक जोरों से वही डरावनी हाउ की िचंघाड़ सुनाई दी। उस व एकदम
करीब ऊपर की और से आवाज आ रही थी। सब ने जब डर कर ऊपर दे खा तो सब चौंक गए। उपर से दो भारी भरखम जंगली
हाउ , िज ोंने सब लोगों का जीना हराम कर रखा था, वह जोरों से दहाड़ते ए कनल साहब के ऊपर कूद पड़े । लगभग पं ह
फुट की ऊंचाई से सीधे कनल साहब के ऊपर कूदने के कारण कनल साहब लड़खड़ा कर िगर पड़े । इस अफरातफरी म एक
हाउ ने बड़ी ताकत के साथ कनल साहब के हाथ से उनका रवा र छीन िलया। दु सरा हाउ कै ेन कुमार पर कूद पड़ा और
उसने उसी तरीके से कुमार के हाथ से रवा र छीन िलया। उतनी ही दे रम उनके िबलकुल पीछे लगभग दस से बारह घुड़सवारों ने
ब दु क तानकर सब को घेर िलया। सबा को "हड् स अप" करवा कर कािफले के मु खया ने पूछा, "आप म से जनाब सुनील
मडगाओंकर कौन है?" िफर सुनीलजी की और दे ख कर उसने अपनी जेब म से एक त ीर िनकाली। त ीर ज ू े शन पर ली
गयी थी जब सब टैन से सुबह उतरे थे। उसम सब के नाम एक कलम से िलखे ए थे। सुनीलजी का नाम पढ़कर सरदार ने सुनीलजी
को ढू ं ढ िलया और बोले, "आप जाने माने रपोटर सुनील मडगाओंकर है ना? हम आप की और कनल साहब की आव कता है।"

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बाकी सब की और दे खा और बोले, "अगर आप सब चुपचाप यहां से बगैर कोई हरकत िकये चल पड़ोगे तो आप को कोई नु ान
नही ं होगा।।" ोितजी, कै ेन कुमार और नीतू चुपचाप िबना कुछ बोले वहीँ ंिभत से खड़े रहे। कनल साहब और सुनीलजी की
और दे खकर मु खया ने एक साथीदार को कहा, "इ बाँध दो" जैसे ही ज ूजी को बाँधने के िलए साथीदार आगे बढ़ा की सुनीता
भी आगे बढ़ी और उस आदमी को कंधे से पकड़ कर कस के एक तमाचा उसके गाल पर जड़ िदया और एक ध ा मार कर उसे
िगरा िदया। िफर उनके मु खया की और भाग कर उसे भी पकड़ा और उसे उसकी ब दु क छीनने की कोिशश की। सुनीता साथ ही
साथ म िच ा कर कहने लगी, "अरे कु ों, शम करो। धोखा दे कर हमला करते हो? यह कनल साहब और सुनीलजी ा तु ारे
बाप का माल है की उ पकड़ कर तुम ले जाओगे? जब तक िह दु ान का एक भी मद अथवा औरत िज़ंदा है तब तक तु ारी यह
चाल कामयाब नही ं होगी। यह वीरों का दे श है बुझिदल और कायरों का नही ं।" मु खया सुनीता की इस हरकत से कुछ पलों तक तो
होकर मौन हो गया और सुनीता के भयानक प को दे खता ही रहा। उसने सोचा भी नही ं था की एक औरत म इतना दम हो
की इतने सारे ब दु क धा रयों के सामने ऐसी हरकत कर सके। िफर स ल कर वह आगे बढ़ा और बड़ा ही जबरद थ ड़ उसने
सुनीता के गाल पर दे मारा।

सरदार का हाथ भारी था और थ ड़ इतना तेज था की सुनीता िगर पड़ी और बेहोश हो गयी। उसके गाल लाल हो गये। सुनीता के
मुंह म से खून िनकलने लगा। िनचे िगर पड़ने से सुनीता की ट ऊपर उठने से सुनीता की जाँघ नंगी ं हो गयी ं। सुनीता ऐसे िगरी थी
की उसका टॉप भी ऊपर से कुछ खुल गया और सुनीता के करारे बू का उभार साफ़ िदखाई दे ने लगा। मु खया सुनीता की
खूबसूरती और बदन दे ख कर कुछ पल चुपचाप सुनीता के बदन को दे खता ही रहा। सुनीता की दबंगाई दे ख कर बाकी सब िसपाही
फुत सेअपनी बंदूक सबकी और तान कर खड़े हो गए। उनका सरदार हंस पड़ा और ठहाका मार कर हँसते ए बोला, "बड़ी
करारी औरत हे रे यह तो। बड़ा दम हैरे इसके अंदर। ा कस के थ ड़ मारा है इस बेचारे को। साला िगर ही पड़ा। बड़ी छ क
छ ो भी है यह औरत तो।" िफर मु खया अपने साथीयों की और दे ख कर बोला, "बाँध दो इस औरत को भी। ले चलते ह इसे भी।
बड़ी खूबसूरत जवान है ये। साली पलंग म भी इतनी ही गरम होगी यह तो। चलो यह औरत जनाब का िब र गरम करे गी आज रात
को। ऐसा माल दे ख कर ब त खुश होंग जनाब। मुझे अ ा खासा मोटा सा इनाम दगे। जनाब का िब र गरम करने के बाद म हम
सब िमलकर साली का मजा लगे।"

एक मोटा सा काला िसपाही सुनीता के पास आया। उसके बदसूरत काले मुंह म से उसके सफ़ेद दांत काली रात म तारों की तरह
चमक रहे थे। सुनीता को दे ख कर उसके मुंह म से एक बे दी और कामुक हंसी िनकल गयी। उसने सुनीता के दोनों हाथ और पाँव
पकड़ कर बाँध िदए। कािफले का सरदार ज ी म था। उसने वही कािलये को कहा, "इस नचिनया को तुम अपने साथ जकड कर
बाँध कर ले चलो। व जाया मत करो। कभी भी इनके िसपाही आ सकते ह।" बाकी दो सािथयों की और इशारा करके मु खया
बोला, "इस कनल को और इन रपोटर साहब को बाँध कर तुम दोनों अपने साथ ले चलो।" मु खया के के अनुसार सुनील,
कनल साहब और सुनीता को कस के बाँध कर तीनों िसपािहयों ने अपने घोड़े पर िबठा िदया। सुनीता को मोटे बदसूरत िसपाही ने
अपने आगे अपने बदन के साथ कस के बांधा और अपना घोडा दौड़ा िदया। दे खते ही दे खते सब पहाड़ों म गायब हो गए। कािफले
के पीछे उनके पालतू हाउ घोड़ों के साथ साथ दौड़ पड़े और दे खते ही दे खते कािफला सब की आं खोंसे ओझल होगया। उस
समय सुबह के करीब ११.३० बज रहे थे।

ोितजी, कै ेन कुमार और नीतू बाँवरे से ज ूजी, सुनीता और सुनील को आतंक वािदयों के साथ कैदी बनकर जाते ए दे खते ही
रह गए। उनकी समझ म नही ं आ रहा था की वह करे तो ा करे ? कै ेन कुमार ने सबसे पहले चु ी तोड़ते ए कहा, "हम तेजी से
चलकर सबसे पहले हमारे तीन साथीदारों की अगुआई की खबर ऊपर कप म जाकर दे नी होगी। हो सकता है वहाँ उनके पास
वायरलेस हों तािक यह खबर सब जगह फ़ैल जाए। िजससे पूरा आम हमारे साथीदारों को ढू ं ढने म लग जाए।" असहाय से वह तीनो
भागते ए थके, हारे परे शान ऊपर के कप म प ंचे। उनके प ँचते एक घंटा और बीत चुका था।

इधर सुनीता, ज ूजी और सुनील के हाथ पाँव बंधे ए थे और आँ खों पर प ी लगी ई थी। ज ूजी आँ खों पर प ी बंधे ए भी पूरी
तरह सतक थे। उनके दोनों हाथ कस के बंधे ए थे। घुड़सवार इधर उधर घोड़ों को घुमाते ए कोई नदी के िकनारे वाले रा े जा

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रहे थे ूंिक रा े म ज ूजी को पहाड़ों से िनचे की और बहती ई नदी के पानी के तेजी से बहने की आवाज का शोर सुनाई दे
रहा था। सुनीता का हाल सबसे बुरा था। उस मोटे बदसूरत काले ब े ने सुनीता को अपनी जाँघों के िबच अपने आगे िबठा रखा था।
सुनीता के दोनों हाथ पीछे कर के बाँध रखे थे। कािलये के ल को सुनीता के हाथ बार बार श कर रहे थे। जािहर है इतनी
खूबसूरत औरत जब गोद म बैठी हो तो भला िकस मद का ल खड़ा न होगा? कािलये का ल अजगर तरह फुला और खड़ा था
जो सुनीता अपने हांथों म महसूस कर रही थी। घोड़े को दौड़ाते दौड़ाते कािलया बार बार अपना हाथ सुनीता की छाती पर लगा दे ता
था और मौक़ा िमलने पर सुनीता की चूँिचयाँ जोरसे दबा दे ता था। कािलया इतने जोर से सुनीता के बू दबाता था की सुनीता के मुंह
से चीख िनकल जाती थी। पर उस शोर शराबे म भला िकसी को ा सुनाई दे गा? कािलया ने महसूस िकया की उसका ल सुनीता
की गाँड़ पर ट र मार रहा था तब उसने अपने पाजामे को ढीला िकया और घोड़े को दौड़ाते ए ही अपना मोटा हाथी की सूंढ़
जैसा काला लंबा तगड़ा ल पाजामे से बाहर िनकाल िदया। जैसे ही उसने अपना ल बाहर िनकाल िदया की वह सीधा ही
सुनीता के हाथों म जा प ंचा। सुनीता वैसे ही कािलये के ल से उसकी गाँड़ म ध े मारने के कारण ब त परे शान थी ऊपरसे
कािलये के ल का श होते ही वह काँप उठी। उसके हाथों म कािलये का ल ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई अजगर हो।

सुनीता को यह ही समझ नही ं आ रहा था की वह कहाँ से शु हो रहा था और कहाँ ख़तम हो रहा था। सुनीता को लगा की िजस
िकसी भी औरत को यह कािलया ने चोदा होगा वह बेचारी तो उसका लंड उसकी चूत म घुसते ही चूत फट जाने के कारण खून से
लथपथ हो कर मर ही गयी होगी। छोटी मोटी औरततो उस भसे जैसे कािलये से चुदवा ही नही ं सकती होगी। कािलये को चोदने के
िलए भी तो उसके ही जैसी भस ही चािहए होगी। यह सब सोच कर सुनीता की जान िनकले जा रही थी। उस िदन तकतो सुनीता यह
समझती थी की ज ूजी का ल ही सबसे बड़ा था। पर इस मोटे का ल तो ज ूजी के ल से भी तगड़ा था। ऊपर से उस
ल से इतनी ादा िचकनाहट िनकल रही थी की सुनीता के बंधे ए हाथ उस िचकनाहट से पूरी तरह िलपट चुके थे। सुनीता को
डर था की कही ं कािलया के मन म कािफले से अलग हो कर जंगल म घोड़ा रोक कर सुनीता को चोदने का कोई ख़याल ना आये।
सुनीता बारबार अपने कानों से बड़े ान से यह सुनने की कोिशश कर रही थी की कही ं वह मोटा कािफले को आगे जानेदे और खुद
पीछे ना रह जाए, वरना सुनीता की जान को मुसीबत आ सकती थी। कुछ दे र बाद सुनीता को महसूस आ की कािफले के बाकी
घुड़सवार शायद आगे िनकले जारहे थे और कािलये का घोड़ा शायद िपछड़ रहा था। मारे डर के सुनीता थर थर काँपने लगी। उसे
िकसी भी हाल म इस काले भसे से चुदवाने की कोई भी इ ा नही ं थी। सुनीता ने "बचाओ, बचाओ" बोल कर जोर शोरसे िच ाना
शु िकया। अचानक सुनीता की िच ाहट सुनकर कािलया चौंक गया। वह एकदम सुनीता की चूँिचयों पर जोर से चूँटी भरते ए
बोला, "चुप हो जाओ। मु खया खफा हो जाएगा।" सुनीता समझ गयी की उसे सरदार से चुदवाने के िलए ले जाया जा रहा था। जािहर
है सरदार को खुद सुनीता को चोदने से पहले कोई और चोदे वह पसंद नही ं होगा। इस मौके का फायदा तो उठाना ही चािहए।
दु सरा कािलया सरदार से काफी डरता था। सुनीता ने और जोर से िच ाना शु िकया, "बचाओ, बचाओ।"

कािलया परे शान हो गया। आगे कािफले म से िकसीने सुनीता के िच ाने की आवाज सुनली तो कािफला क गया। सब कािलया
की और दे खने लगे। कािलया अपना घोड़ा दौड़ा कर आगे चलने लगा। उसी व सुनीता को ज ूजी की आवाज सुनाई दी।
ज ूजी जोर से िच ा कर बोल रहे थे, "सुनीता तुम कहाँ हो? ा तुम ठीक तो हो?" सुनीताने सोचा की अगर उ ोंने ज ूजी को
अपना स ा हाल बताभी िदया तो वह कर कुछ भी नही ं पाएं गे, पर बेकार परे शान ही होंग। तब सुनीता ने जोर से िच ाकर जवाब
िदया "म यहां ँ। म ठीक ँ।" सुनीता ने िफर पीछे की और घूम कर कािलये से कहा, "अगर तुम मुझे और परे शान करोगे तो म
तु ारे सरदार को बता दू ं गी की तुम मुझे परे शान कर रहे हो।" कािलयेने कहा, "ठीक है। पर तुम िच ाना मत। राँड़, अगर तू
िच ायेगी तो अभी तो म कुछ नही ं क ँ गा पर मौक़ा िमलते ही म तुझे चोद कर तेरी चूत और गाँड़ दोनों फाड़ कर तुझे मार कर
जंगल म भेिड़यों को खलाने के िलए डाल दू ं गा और िकसीको पता भी नही ं चलेगा। तू मुझे जानती नही ं। अगर तू चुप रहेगी तो म
तुझे ादा परे शान नही ं क ँ गा। बस तू िसफ मेरा ल सहलाती रह।" कािलये की धमकी सुनकर सुनीता की हवा ही िनकल गयी।
उसकी बात भी सच थी। मौक़ा िमलते ही वह कुछ भी कर सकता था। अगर उस जानवर ने कही ं उसे जंगल म दोनों हाथ और पाँव
बाँध कर डाल िदया तो भेिड़ये भले ही उसे ना मार, पर पड़े पड़े चूंिटयाँ और मकोड़े ही उसके बदन को बोटी बोटी नोंच कर खा
सकते थे। इससे बेहतर है की थोड़ा बदा कर इस जानवरसे पंगा ना िलया जाए। सुनीता ने अपनी मुंडी िहलाकर "ठीक है। अब म
आवाज नही ं क ँ गी।" कह िदया। उसके बाद कािलये ने सुनीता की चूँिचयों को जोर से मसलना बंद कर िदया पर अपना ल वहाँ
से नही ं हटाया। सुनीता ने तय िकया की अगर कािलया ऐसे ही कािफले के साथ साथ चलता रहा तो वह नही ं िच ायेगी। सुनीता ने

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अपनी उं गलयों से िजतना हो सके, कािलये के ल को पकड़ कर सहलाना शु िकया।

दहशतगद का कािफला काफी घंटों तक चलता और दौड़ता ही रहा। कभी एकदम तेज चढ़ाव तो कभी एकदम ढलाव आता जाता
रहा। पर पुरे सफर दर ान एक बात साफ़ थी की नदी के पानी के बहाव का शोर हर जगह आ रहा था। इससे साफ़ जािहर होता
था की कािफला कोई नदी के िकनारे िकनारे आगे चल रहा था। सुनील और सुनीता काफी थक चुके थे। घोड़े भी हांफने लगे थे।
काफी घंटे बीत चुके थे। शाम ढल चुकी थी। सुनीता को महसूस आ की कािफला एक जगह क गया। तुरंत सुनीता की आँ खों से
प ी हटा दी गयी। सुनीता ने दे खा की पूरा कािफला एक गुफा के सामने खड़ा था। वहाँ काफी कम उजाला था। कुछ दे र म सुनीता
के हाथों से भी र ी खोल दी गयी।

सुनीताने ज ूजी और सुनीलको भी दे खा। उनके हाथों और पाँवकी र ी िनकाली जारही थी। सब काफी थके ए लग रहे थे।
कािफले के मु खया ने गुफा के अंदर से िकसी को बाहर बुलाया। दु शमन की सेना के यूिनफाम म सुस त एक अफसर आगे
आया और ज ूजी से हाथ िमलाता आ बोला, "मेरा नाम कनल नसीम है। कनल जसवंत िसंघजी आपका और सुनील
मडगाओंकरजी का ागत है। आप िबलकुल िनि रिहये। यहाँ आपको हमसे कोई खतरा नही ं है। हम िसफ आपसे कुछ
बातचीत करना और कुछ जानकारी हािसल करना चाहते ह। अब आप िहंदु ान की सरहद के दू सरी और आ चुके ह। अगर आप
सहयोग करगे तो हम आपको कोई तकलीफ नही ं प ंचाएं गे।" िफर सुनीता की और दे ख कर वह थोड़े अचरज म पड़े और उ ोंने
मु खया से पूछा, "अरे यह औरत कौन है? इ ों उठाकर लाये हो?" मु खया ने उनसे कहा, "यह सुनीता है जनाब। यह बड़ी
जाँबाज़ औरत है और जब हमने इन दोनों को कैद िकया तो यह अकेले ही हम से िभड़ने लगी। मने सोचा सरदार को यह जवान
औरत पेश करगे तो वह खुश हो जाएं गे।" तब सुनीलजी ने आगे बढ़कर कहा, "जनाब यह मेरी बेगम ह। आपके लोग उ भी
उठाकर ले आये ह।" कनल नसीम ने अपना सर झुकाते ए माफ़ी मांगते ए कहा, "म मुआफी माँगता ँ। यह बेवकूफ लोगों ने
बड़ी घिटया हरकत की है।" उस आम अफसर ने कहा, "अरे बेवकूफों, यह ा िकया तुमने? कही ं जनरल साहब नाराज ना हो
जाएँ तु ारी इस हरकत से।"

िफर थोड़ा क कर वह अफसर कुछ दे र चुप रहा और कुछ सोच कर बोला, "खैर चलो दे खो, आज रात को इस मोहतरमा को इन
साहबान के साथ ही रहने दो। सुबह जब जनरल साहब आ जाएं गे तब दे खगे।" िफर उस अफसर ने ज ूजी की और घूमकर कहा,
"अब आप आराम कीिजये। आपको हमारे जनरल साहब से सुबह िमलना होगा। वह आपसे कुछ ख़ास बातचीत करना चाहते ह।
हमने आपके िलए रात को आराम के िलए कुछ इं तेझामात िकये ह। इस वीरान जगह म हमसे ादा कुछ हो नही ं पाया है।
इं शाअ ाह अगर आप हमसे को-आपरे ट करगे तो िफर आप हमारी खाितरदारी दे खयेगा। िफलहाल हम उ ीद है आप इसे
कुबूल फरमाएं गे। चिलए ीज।" कनल नसीम एक बड़े से हाल म उनको ले गए। अंदर जाने का एक दरवाजा था जो लकड़ी का था
और उसके आगे एक और लोहे की ि ल वाला दरवाजा था। अंदर हॉल म एक बड़ा पलंग था और साथ म एक गुसलखाना था। एक
बड़ा मेज था। दो तीन कुिसयां रखी ं थी।ं बाकी कमरा खाली था।

कनल नसीम ने बड़ी िवन ता से ज ूजी से कहा, "मुझे माफ़ कीिजये, पर मोहतरमा के आने का कोई ान नही ं था इसिलए उनके
िलए कोई ख़ास इं तेजामात कर नही ं पाए ह। उ ीद है आप इसी म गुजारा कर लगे।" जो कािलया सुनीता को गोद म िबठाकर घोड़े
पर बाँध कर ले आया था वह वहीँ खड़ा था। उसकी और इशारा करते ए कनल नसीम ने कहा, "अगर आपको कोई भी चीज़ की
ज रत हो तो यह अ ु ल िमयाँ आपकी खाितरदारी म कोई कमी नही ं छोड़गे। तो िफर कल सुबह िमलगे। तब तक के िलए खुदा
हािफ़ज़।" यह कह कर कनल नसीम चल िदए। दरवाजे पर प ँचते ही जैसे कुछ याद आया हो ऐसे वह वापस घूमे और कनल
साहब की और दे ख कर बोले, "दे खये, अगर आप के मन म कोई भागने का ान हो ता ऐसी गलती भूल कर भी मत क रयेगा।
हमारे हाउ भूखे ह। वह आपकी गंध को अ ी तरह पहचानते ह। हमने उ खुला छोड़ रखा है। बाकी आप समझदार ह। खुदा
हािफ़ज़।" यह कह कर कनल नसीम रवाना ए। कािलया को दरवाजे पर ही तैनात िकया गया था। जैसे ही नसीम साहब गए,
कािलया की लोलुप नजर िफर से सुनीताके बदन पर मंडराने लगी ं। अब उसे एक तस ी थी की सरदार को मोहतरमा म कोई
िदलच ी नही ं थी। कािलया को लगा की अगर वह कैसे भी सुनीता को मना लेता है तो उसकी रात सुहानी बन सकती है।

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सुनील ने दोनों दरवाजे बंद कर िदए। कािलया दरवाजे के बाहर पहरे दारी म था। दरवाजा बंद होते ही सुनीता, सुनील और ज ूजी
इक े हो गए और एक दू सरे की और दे खने लगे। ज ूजी ने हो ँठों पर उं गली रख कर सब को चुप रहने का इशारा िकया और वह
पुरे कमरे की छानबीन करने म लग गए। उ ोंने पलंग, कुस , मेज, दरवाजे, खड़िकयाँ सब जगह बड़ी अ ी तरीके छानबीन की।
ज ूजी को कोई भी कैमरा, या ऐसा कोई खुिफया यं नही ं िमला। चैन की सांस लेते ए उ ोंने सुनील और सुनीता को कहा,
"हमारे दु न की सेना के अफसर हमसे हमारी सेना की गित िविधयों के बारे म खुिफया जानकारी हमसे लेना चाहते ह। दु न का
कुछ ान है। शायद वह हम पर कोई एक जगह हमला कर घुसपैठ करना चाहते ह। पर उ पता नही ं की हम कहाँ िकतने सतक
ह। वह हमारी खातरदारी तब तक करते रहगे जबतक हम उनको खबर दे ते रहगे। जैसे ही उनको लगा की हम उनसे को-आपरे ट
नही ं करगे तो वह हम या तो मार डालगे या िफर अपनी जेल म बंद कर दगे। यह तय है की हम हमारे मु से धोखा नही ं करगे।
कल जब उनके जनरल के सामने हमारी पेशी होगी तो वह जान जाएं गे की हम उ कुछ भी नही ं बताने वाले। वह हम खूब ास
दगे, मारगे, पीटगे, जलती ई आग के अंगारों पर चलाएं गे और पता नही ं ा ा जु करगे। हमारी भलाई इसी म है की हम इस
रात को ही कुछ भी कर यहां से भाग िनकल।

अब वापस कहानी पर

गम और पसीने के मारे ज ूजी, सुनीलजी और सुनीता, तीनों की हालत खराब थी। ऊबड़खाबड़ रा े पर इतना लंबा सफर वह भी
घोड़े पर हाथ पाँव बंधे ए करना थकावट दे नेवाला था। सुनीता लगभग बेहोशी की हालत म थी। एक तो इतना लंबा सफर उपरसे
कािलया की पुरे सफर के दौरान सुनीता के बू को दबाना और जाँघों पर हाथ िफराते िफराते सुनीता की चूत तक हाथ ले जाना
और मौक़ा िमलने पर पटी उठाकर चूत के अंदर उं गली घुसाने की कोिशश करते रहना बगैरह हरकतों से सुनीता एकदम थक
चुकी थी। ज ूजी के बारे म सोचते ए कई बार सुनीता उ ेिजत भी हो जाती थी और एकाध बार तो झड़ भी चुकी थी। उपर से
कािलया के अजगर जैसे ल े और मोटे ल से िनकली ई उसकी िचकनाहट ने सुनीता के पूरा हाथ को िचकनाहट से भर िदया
था।

जब ज ूजी ने कहा की उ भाग िनकलना चािहए तो सुनीता को उस मुसीबत के दर ान भी हँसी आगयी। ज ूजी ऐसे बात कर
रहे थे जैसे बाहर िनकलना ब ों का खेल हो। बाहर कािलया भसे जैसा पहलवान बैठा था, िजसके हाथ म भरी ई बंदूक थी। उपर
से कनल नसीम ने बात बात म उ सावध कर िदया था की बाहर ही उ ोंने भयानक हाउ भूखे छोड़ रख ह, िजनको ज ूजी के
बदन की भली भाँती पहचान थी। जािहर है की बाहर और भी िसपाही लोग पहरा दे रहे होंगे। ऐसे म भाग िनकलने का तो सवाल ही
नही ं था। कुछ ही दे रम िकसीने उनका दरवाजा खटखटाया। एक चौकीदार तीन ेट्स और खाना लेकर आया। उसने मेज पर
खाना लगा िदया। खाना सजा कर पहरे दार झुक कर चला गया। सुनीता और सुनीलजी ज ूजी की और दे ख ने लगे। ज ूजी ने
कहा, "दे खो कहावत है ना की बकरे को मारने के पहले अ ा खासा खलाया िपलाया जाता है। चलो आज रात को तो खापी ल।
सबने िमलकर खाया।

सुनीता को कुछ आराम करने की ज रत थी। सुनीता कमरे के साथ म ही लगे गुसलखाने (बाथ म) म गयी। बाथ म साफ़ सुथरा
था। बा ी म ठं डा साफ़ पानी भी था। सुनीता का नहाने का मन िकया। पर सवाल था की नहाने के बाद पोंछे िकससे और कपड़ा
ा बदल? सुनीता ने अपने पित सुनील को इशारा िकया और पास बुलाया। सुनीता ने कहा, "मुझे नहाना है। साफ़ होना है। उस गंदे
बदबूदार कािलये ने पुरे रा े म मेरी जान ही िनकाल ली है। मुझे इतना गंदा सा फील हो रहा है। पर ा क ँ ? ना तो कोई तौिलया
है और ना ही कोई बदलने के िलए कपड़ा।" सुनील ने कहा, "दे खो, हम कोई पांच िसतारा होटल म नही ं ठहरे ह। यह जेल है।
भगवान् इनका भला करे की इ ोने हम इतनी भी स िलयत दी है। वह सोच रहे होंगे की शायद हम स िलयत दे ने से हम उनको
सारी खुिफया खबर यूँ ही दे दगे। खैर जहां तक बात है तौिलये की और कपडे बदलने की, तो तुम नहा कर इ ी ं कपड़ों से पोंछ
लेना और इ सुखाने के िलए रख दे ना। इतनी गम म यह ज ही सुख जाएं गे।" सुनीता ने अपने पित की और अच े से दे खा और

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बोली, "तुम पागल हो? अरे मने अगर कपडे िभगोये और सुखाने के िलए र े तो िफर म ा पहन के सोऊंगी?" सुनील ने कहा,
"रोज कौन से कपडे पहन कर सोती हो?"

सुनीता ने अपने पित की और दे खा और बोली, "तु ारा जवाब नही ं। अरे एक ही तो पलंग है। और सोने वाले ह हम तीन। कोई पदा
भी नही ं है। तो ा म जस ूजी के साथ नंगी सो जाऊं?" सुनील ने कड़ी नज़रों से सुनीता की और दे खा और बोले, "वह सब तुम
जानो। अगर नंगी सो भी जाओगी तो यकीन मानो ज ूजी तुम पर चढ़ जाकर तु चोदगे नही।ं हम एक आपात थित म ह। यहां
हम सब यह सोचकर नही ं आये।" सुनीता ने एक गहरी साँस ली। पित के साथ बात करना बेकार था। सुनीता ने कहा, "चलो ठीक है,
सबसे पहले आप लोग नहालो या े श हो जाओ। िफर म सीचूंगी मुझे ा करना है।" सबसे पहले ज ूजी बाथ म म गए और
नहा कर जब बाहर िनकले तो उ ोंने एक छोटी सी िन र पहन र ी थी, अंदर के बाकी कपडे धो कर िनचोड़ कर पलंग पर ही
उ ोंने इधर उधर लटकाये। उ ोंने अपना यूिनफाम जराभी िगला नही ं िकया।

सुनीता ज ूजी के करारे बदन को दे खती ही रही। उनके बाजुओक


ं े शश माँसपेिशयाँ, उनका लंबा कद, उनके घने घुंघराले बाल
और छाती पर बालों का घना जंगल कोई भी ी को मोिहत करने वाला था। िन र म से उनका फनफनाते ल का आकार साफ़
साफ़ िदख रहा था। ज ूजी की सपाट गाँड़ और चौड़े सीने के िनचे िसमटा आ कई िसलवटदार पेट ज ूजी की िफटनेस का
गवाह था। जािहर था की वह िकसी भी औरत को चुदाई कर के पूरी तरह संतु करने म श म लग रहे थे। सुनील भी नहाकर
ज ूजी की ही तरह िन र पहनकर आगये। सुनील की िन र गीली होने से उनका ल तो जैसे नंगा सा ही िदख रहा था।
सुनीता ने उ एक ह ा सा ध ा मारकर हलकी सी हंसी दे कर ज ूजी ना सुने ऐसे कहा, "अरे तुम दे खो तो, तु ारा यह घ ा
कैसा नंगा िदखता है।" सुनील ने भी हंसी हंसी म सुनीता के कानों म कहा, "अ ा? तू हम दोनों के घ े ही दे खती रहती हो ा?"
िफर वह पलंग पार जा कर लेट गए। अपने पित की बात सुनकर शम से लाल लाल ई सुनीता आ खर म नहाने गयी।

सुनीता का पूरा बदन दद कर रहा था। उसकी कमर घुड़ सवारी से टेढ़ी सी हो गयी थी। पुरे रा े म कािलया का मोटा ल सुनीता
की गाँड़ को कुरे द रहा था। अगर सुनीता के हाथ पीछे बंधे ना होते तो शायद वह कािलया सुनीता की पटी ऊपर करके अपना मोटा
ल सुनीता की गाँड़ म डाल ही दे ता। हर बार जब कािलया सुनीता की कमर से उसका ट ऊपर और पटी िनचे खसका ने की
कोिशश करता, सुनीता उसका हाथ पकड़ लेती, िजससे कािलया सुनीता के िच ाने के डर से कुछ नही ं कर पाया था। सुनीता ने
बाथ म म जाने के पहले कमरे की सारी बि यां बुझा दी ं। िफर बाथ म का दरवाजा बंद कर सारे कपडे िनकाल कर पानी और
साबुन रगड़ रगड़ कर अपना बदन साफ़ िकया। वह कािलये की पसीने और उसके ल की िचकनाहट की बदबू से िनजाद पाने
की कोिशश म थी। अ ी तरह साफ़ होने के बाद सुनीता िसफ अपनी पटी पहन कर बाहर िनकली। उसने अपनी ट और टॉप
अ ी तरह धो कर िनचोड़ कर अपने साथ लेली तािक उसे कही ं सूखा सके। नहा कर बाहर िनकलते ए सुनीता ने जब हलके से
बाथ म का दरवाजा खोल कर दे खा की कमरे म अ ेरा था। सुनीता चुपचाप पलंग की और अपने पित के पास प ंची।

जैसे जैसे सुनीता की आँ ख अँधेरे से वािकफ ईं तो उसे कुछ कुछ िदखने लगा। सुनीता ने दे खा की ज ूजी सोये नही ं थे ब बैठे
ए थे। ा और पटी पहने ए होने के कारण सुनीता को बड़ी शम महसूस हो रही थी। शायद ज ूजी की आँ ख बंद थी ं। सुनीता
िबना आवाज िकये क ल के अंदर अपने पित के साथ घुस गयी। उसका हाथ अपने पित की िन र म फ़ैल रहे ल से टकराया।
ज ूजी सुनील की दू सरी तरफ बैठे ए कुछ गहरी सोचम डू बे ए लग रहे थे। सुनीता के पलंग म घुसते ही सुनील ने सुनीता की
भारी सी चूँिचयों को सहलाने लगे। इतनी ही दे र म सब चौंक गए जब बाहर से कािलया की "सुनीता.... सुनीता" गुराने की आवाज
सुनाई पड़ी।

कािलया की आवाज सुनकर सुनीता डर के मारे क ल म घुस गयी। तब अचानक चुटकी बजा कर ज ूजी बोले, "मेरी बात ान
से सुनो। हम यहां से बाहर िनकल कर भाग सकते ह। और वह भेिड़ये हाउ भी हमारा कुछ नही ं िबगाड़गे।" ज ूजी की बात
सुनकर सुनील और सुनीता अच े से उ सुनने के िलए तैयार हो गए। ज ूजी ने अपनी बात को जारी रखते ए कहा, "अगर
सुनीता हमारी मदद करे तो।" ज ूजी की बात सुनकर सुनील बोले, "हाँ सुनीता मदद ों नही ं करे गी? ा रा ा है, बताओ तो?"
ज ूजी ने कहा, "सुनीता को कािलया के पास जाना होगा। उसे फाँसना होगा।" ज ूजी की बात सुनकर सुनीता अकुला कर बोली,

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"कभी नही ं। अगर म उसके थोड़ी सी भी करीब गयी तो वह रा स मुझे छोड़ेगा नही ं। म जानती ँ पुरे रा े मने ा भुगता है। वह
वही ं का वही ं मुझ पर बला ार कर मुझे मार डालेगा।"

सुनीता को र े की आपबीती कहाँ भूलने वाली थी? सारे रा े म कािलया सुनीता को यही कहता रहता था, "सुनीता, मेरी जान तू
मुझे एक बार चोदने का मौक़ा दे दे। मेरे इस ल से म तुझे ऐसे चोदुँ गा की इसके बाद तुझे बाकी सारे ल फ़ालतू लगगे। उसके
बाद तू िसफ मुझ से ही चुदवाना चाहेगी। मेरी बात मानले, आज रात को म चुपचाप तुझे चोदुँ गा और िकसीको कानो कान खबर भी
नही ं होगी। बस एक बार राजी हो जा।" यह सुनकर सुनीता के कान पक गए थे। चुदवाना या फाँसना तो दू र, सुनीता उस कािलये की
शकल भी दे खना नही ं चाहती थी। ज ूजी ने कहा, "सुनीता, मेरा ान १००% सफल होगा। बस तु थोड़ी िह त और धीरज
रखनी होगी। समझा करो। बाहर कािलया बंदूक ले कर बैठा आ है। गली म भेिड़ये जैसे भूखे हाउ हमारा इंतजार कर रहेह।
ऐसेम हम कैसे बाहर िनकलगे? यहांसे छटकनेका िसफ एकही रा ाहै, कािलया तुम पर िफ़दा है। अगर तुम उसे कुछ भी समझा
बुझा कर पटा लोगी तो हम िनकल पाएं गे। मेरी बात मानो और कािलया को ललचाओ।"

सुनीता ने ज ूजी की बात का कोई जवाब नही ं िदया। तब सुनील बोले, "दे खो डािलग! या तो हम यहाँ सारी रात गुजार और कल
इन लोगों की मार खाएं । सबसे बुराहाल तो तु ारा होगा। एक बार यह लोग समझ गए की हम उनकी बात नही ं मानने वाले ह तो
यह लोग एक के बाद एक या तो कई लोग एक साथ तु ारे सु र बदन को भूखे भेिड़ये समान नोंच नोंच कर ची ंथड़े कर दगे। बाकी
तुम जानो।" सुनीता अपने पित की बात सुनकर डर के मारे काँपने लगी। उसे अपनी आँ खों के सामने अ ेरा िदखने लगा। उसे लगा
की उसके िलए तो एक और कुआं था तो दू सरी और खाई। अगर पित की बात मानी तो पता नही ं यह कािलया उसके साथ ा ा
करे गा। और नही ं मानी तो ा आ यह तो बता ही िदया था। सुनीता ने अपने पित सुनील से कहा, "तु पता है, मेरे साथ पुरे रा े
म वह कािलया ने ा ा िकया? उसने मेरे पुरे बदन को नोंचा, मेरे िपछवाड़े को अपने आगे से खूब कुरे दा और अपने हाथों से मेरी
छाती को मसल मसल कर मेरे सीने को लाल लाल कर िदया। पुरे रा े वह मुझे मनाता रहा की म उसके साथ एक रात गुजा ं ।
मुझे मरना है की म उसके साथ एक िमनट भी गुजा ं । बापरे मेरे बंधे हाथ म उसने अपना गवनर पकड़ा िदया था। बापरे , िकतना
बड़ा और मोटा था उसका गवनर! पता नही ं इसकी कोई बीबी है या नही ं। पर अगर है तो वह एक भस जैसी ही होगी ूंिक इस
कािलये का लेना कोई साधारण औरत का काम नही ं है। अब उसके साथ एक पल िबताना मेरे िलए पॉिसबल नही ं है। आई एम्
सॉरी।" सुनीता का डर दे खकर ज ूजीने कहा, "सुनीता, डरो मत। तु ारे साथ कुछ नही ं होगा। मेरी बात ान से सुनो।" उसके
बाद ज ूजी ने सुनीता को अपना ान बताया। ज ूजी की बात सुन-कर सुनीता को कुछ तस ी ई। सुनीता अपने पित
सुनीलजी की बाँहों म कुछ दे र आराम कर ने के िलए सो गयी।

हालांिक बार बार बाहर से कािलया की "सुनीता... सुनीता..." की आवाज सुनाई दे रही थी। ज ूजी वैसे ही बैठे ए सोच म डूबे ए
सही समय का इं तजार कर रहे थे। सुनीलभी इस िटपम ा ा रोमांचक और खतरनाक अनुभवोंके बारे म सोचते ए अपनी बीबी
की चूँिचयों को सहलाते ए तं ा म पड़े रहे। रात बीती जारही थी। सुनीता थकानके मारे कुछही मनटोंम गहरी नी ंद सो गयी।
ज ूजी की आँ ख म नी ंद का नामो िनशाँ नही ं था। सुनील कभी सो जाते तो कभी जाग जाते। बाहर से कािलये की "सुनीता......
सुनीता....." की पुकार कुछ िमनटों बाद सुनाई दे ती रहती थी। कुछ दे र बाद सुनीता को ज ूजी ने जगाया। सुनीता गहरी नीद
ं म से
चौंक कर जागी। काफी रात हो चुकी थी। रात के करीब बारह बजने वाले थे। ज ूजी ने सुनीता को इशारा िकया।

सुनीता दबे पाँव दरवाजे के पास गयी और उसने धीरे से अंदर का लकड़ीका दरवाजा खोला। बाहर का लोहे का दरवाजा बंद था।
दरवाजे के बाहर कािलया अपनी ब दु क हाथ म िलए बैठा था। सुनीता ने अंदर से "छी. ... छी.... " आवाज कर के कािलया को
बुलाया। कािलया ने फ़ौरन दे खा तो सुनीता को लोहे के दरवाजे के अंदर दे खा। सुनीता ने अपना हाथ बाहर िनकल कर कािलया को
नजदीक आने का इशारा िकया। कािलया कुछ दे र तक सुनीता के हाथ को दे खता ही रहा। वह शायद इस असमंजस म था की वह
दरवाजे के नजदीक जाए या नही।ं उसे डर था की कही ं इन लोगों के पास कुछ हिथयार तो नही ं िजनसे वह उसको मारने का ान
कर रहे हों। पर जब उसने दे खा की सुनीता िसफ ा और पटी पहने खड़ी थी तो उससे रहा नही ं गया और वह उठकर सुनीता के
पास गया। सुनीता ने अपने हो ँठों पर उं गली रखते ए धीमे आवाज म कहा, "सुनो, िबलकुल आवाज मत करो। अंदर मेरे पित और
कनल साहब गहरी नी ंद सो रहे ह, आवाज से कही ं वह जाग ना जाएँ । म अभी उनको गहरी नी ंद सुला कर आयी ँ।'

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िफर कािलया को और करीब बुलाकर लोहे का दरवाजा खोले िबना अंदर से ही एकदम धीरे से बोली, "दे खो, मुझे तुम ब त पसंद
हो। मुझे तु ारा गम बदन ब त पसंद है। पुरे रा े म तुमने मुझे ब त मजा कराया। तु ारा वह जो है ना? अरे वह...? वह ब त
बड़ा और लंबा है। मने रा े म िहलाया तो मुझे ब त अ ा लगा। ा तुम मुझसे ..... करना चाहते हो? ा तुम जो कहते थे की
तुम मुझे खूब मजे कराओगे वह करा सकते हो? तु ारे बॉस नाराज तो नही ं हो जाएं गे? यहाँ और कोई पहरे दार तो नही ं की हम
पकडे जाएं गे? म िकसीसे नही ं क ँगी। बोलो?" कािलया सुनीता को ह ाब ा दे खता ही रह गया। उसकी समझ म नही ं आया की
इतनी खूबसूरत लड़की कैसे उससे इतनी ज ी पट गयी। सुनीता ने उसके शक को दू र करने के िलए कहा, "दे खो आज तक मुझे
िकसीने इतने बड़े ल से से नही ं िकया। म हमेशा बड़े ल वाले से से करना चाहती थी। मेरे पित का ल एकदम छोटा
है। मुझे िबलकुल मजा नही ं आता। ा तुम मुझे चोदोगे?" सुनीता ने तय िकया की वह रा स सीधी बात ही समझेगा। से बगैरह
श वह शायद ना समझे। कािलया का चेहरा यह सुन कर खल उठा। उसका तो जीवन जैसे ध हो गया। आजतक उसने
खूबसूरत औरतों को चोदने के सपने ज र दे खे थे। पर हकीकत म उसने कभी सपने म भी यह सोचा नही ं था की एक िदन ऐसी
हसीना उसे सामने चलकर चुदवाने का ौता दे गी। कािलया ने लोहे के दरवाजे से मुंह लगा कर कहा, "दे खो, तुम बाहर आ जाओ।
मेरा घर बाजू म ही है। वहाँ कोई चौकीदार नही ं है। हम िपछले वाले दरवाजे से जाएं गे। यहां से जैसे िनकालगे ना उसके बाद तुरंत
बाएं म एक दरवाजा है। मेरे पास उसकी चाभी है। उसको खोलते ही मेरा घर है। हम वहाँ चलते ह।"

सुनीता ने अंदर की और दे ख कर कहा, "नही ं। तुम अंदर आजाओ। बाहर कोई भी हम दे ख सकता है। मेरे पित और कनल साहब
गहरी नी ंद सो रहे ह। तुम आ जाओ और मेरी भूख शांत करो।" कािलया कुछ दे र सोचता रहा तब सुनीता ने कहा, "ठीक है। लगता
है तु मुझ पर भरोसा नही ं है। तो म िफर सो जाती ँ। अगर तुम मेरी चुदाई कर मेरी भूख शांत करना नही ं चाहते हो तो म तु
छोडू ं गी नही ं। कल म तु ारे जनरल साहब को क ँगी की तुमने मेरे साथ ा ा िकया था।" कािलयाने सोचा नेकी और पूछ पूछ?
जब यह इतनी खूबसूरत औरत सामने चलकर चूदवाने का ोता दे रही है और ऊपर से धमकी दे रही है की अगर उसको नही ं
चोदा तो वह िशकायत कर दे गी, तो िफर सोचना ा? उसके पास ब दु क तो थी ही, तो िफर अगर कुछ गड़बड़ हो गयी तो वह
उनको गोली मार दे गा। यह सोच कािलया ने कहा, "ठीक है। तुम दरवाजा खोलो।" सुनीता के लोहे के दरवाजा खोलते ही कािलया
अपनी ब दु क लेकर डरते डरते कमरे के अंदर दा खल आ। कािलया ने सावधानी से चारों तरफ दे खा। चारों तरफ एकदम शा
थी। कोई हलचल नही ं थी।

पलंग पर से दोनों मद की खराट सुनाई दे रही थी। दरवाजे के पास ही ग ा िबछा आ था। उस ग े पर सुनीता सोइ होगी ऐसा
कािलया ने मान िलया। उसे अँधेरे म कुछ ादा साफ़ िदखाई नही ं दे रहा था। अंदर आते ही कािलया ने अपनी ब दु क दरवाजे से
थोड़ी अंदर की दीवार के सहारे र ी और सुनीता को अपनी बाहों म लेनेके िलये सुनीताकी और कमरे के अंदर आगे बढ़ा।
कािलया जैसे ही सुनीता के करीब प ंचा की ज ूजी और सुनीलजी दोनों पलंग पर र े ग े को लेकर कािलया पर टू ट पड़े । एक
ही जबर द झटके म दोनों ने कािलया को िगरा िदया और ग े म दबोच िलया िजससे उसके मुंह से कोई आवाज िनकल ना सके।

सुनीता ने फ़ौरन ब दु क अपने हाथों म ले ली। ज ूजी ने फ़टाफ़ट ग ा हटाया और सुनीता के हाथों से ब दु क लेकर कािलया की
कान प ी पर रख कर बोले, "अगर ज़रा सी भी आवाज की तो म तुझे भून दू ं गा। म िह दु ानी सेना का िसपाही ँ और दु नों को
मारने म मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। तुम अगर अपनी जानकी सलामती चाहते हो तो हम यहां से बाहर िनकालो। ा तुम हम बाहर
िनकालोगे या नही ं?" कािलया ने कनल साहब की और दे खा। उस अँधेरे म भी उसे कनल साहब का िवकराल चेहरा िदखाई दे रहा
था। वह समझ गया की कनल साहब कोरी धमकी नही ं दे रहे थे। कािलया ने फ़ौरन कनल साहब को अपना सर िहला कर कहा,
"ठीक है।" कनल साहब ने कािलया की कान प ी पर बंदूक का तेज ध ा दे कर कहा, "चलो और अपने कु ों को शांत करना
वरना तु और उ दोनों को गोली मार दू ं गा।" कािलया आगे और उसके पीछे कनल साहब कािलया की कान प ी पर बंदूक
सटाये ए और उनके पीछे सुनीलजी और सुनीता चल पड़े । वही रा ा जो कािलया ने सुनीता को बताया था उसी रा े पर कािलया
सबको अपने घर के पास ले गया।

अचानक दोनों हाउण्ड कनल साहब की गंध सूंघते ही भागते ए वहाँ प ंचे। कािलया ने झुक कर उन हाउ का गला थपथपाया

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तो वह हाउ वहाँ से चले गए। वह हाउ कािलया को भली भाँती जानते थे। जब कािलयाने उनका गला थपथपाया तो वह समझ
गए की अब उनको कनल साहब की गंध के पीछे नही ं दौड़ना है। अब यह आदमी उनका दो बन गया था ऐसा वह समझ गए।
हाउ से िनजात पाते ही कािलया उ लेकर आगे की और चल पड़ा। थोड़ा चलते ही वही नदी आ गयी िजसके िकनारे िकनारे वह
कािफला आया था। जैसे ही सब नदी के िकनारे प ंचे, कनल साहब ने अचानक ही बंदूक ऊपर की और उठायी और फुत से बड़े
ही सटीक चौकसी से और बड़ी ताकत से कािलया को सतक होने का कोई मौक़ा ना दे ते ए बंदूक का भारी िसरा कािलया के सर
पर दे मारा। कािलया के सर पर जैसे ही बंदूक का भारी िसरा लगा, तो कािलया च र खाकर जमीन पर िगर पड़ा। कािलया की
कानप ी से खून की धार िनकल पड़ी। इतने जोर का वार कािलया बदा नही ं कर पाया। एक उलटी कर कािलया वहीँ ढे र हो
गया।

सुनील और सुनीता ने ज ूजी का ऐसा भयावह प पहले नही ं दे खा था। उनके चेहरे पर हैरानगी दे ख कर कनल साहब ने कहा,
"यह लड़ाई है। यहाँ जान लेना या दे ना आम बात है। अगर हम ने इसको नही ं मारा होता तो वह हम को मार दे ता। अब हम इसकी
बॉडी को ऐसे िठकाने लगाना है िजससे वह दु न के िसपािहयों को आसानी से िमल ना सके तािक पहले दु न कािलया की बॉडी
ढू ं ढने म अपना काफी व गँवाएँ । और हम कुछ ादा व िमल सके।" ज ूजी का सोचने का त रका सुनकर सुनीता ज ूजी
की कायल हो गयी। ज ूजी ने कािलया की बॉडी को टांगों से नदी की और घसीटना चालु िकया। सुनील भी ज ूजी की मदद करने
आ गए। दोनों ने िमलकर कािलया की बॉडी को नदी के िकनारे एक ऐसी जगह ले आये जहां से उ ोंने दोनों ने िमलकर उसे
उछालकर िनचे नदी म फक िदया। नदी के पानी का बहाव पुर जोश म था। दे खते ही दे खते, नदी के बहाव म कािलया की बॉडी
गायब हो गयी।

वैसे ही चारों और काफी अ ेरा था। आकाश म काले घने बादल छाने लगे और बूंदा बांदी शु हो गयी थी। आगे रा ा साफ़
िदखाई नही ं दे रहा था। िदन की गम की जगह अब ठं डा मौसम हो रहा था। ज ूजी ने सुनील का हाथ थामा और उनके हाथोंम
कािलया की बंदूक थमा दी। ज ू जी ने सुनीता को कहा, "सुनीता तुम सबसे आगे चलो। म तु ारे पीछे चलूँगा। आ खर म सुनील
चलगे। हम सब पेड़ के साथ साथ चलगे और एक दू सरे के िबच म कुछ फैसला रखगे तािक यिद दु न की गोली का फाय रं ग हो
तो छु प सक और अगर एक को लग जाए तो दु सरा सावधान हो जाए।" िफर ज ूजी सुनील की और घूम कर बोले, "सुनीलजी अगर
हम कुछ हो जाये तो आप इस बंदूक को इ ेमाल करने से चूकना नही ं। अब हम बड़ी फुत से भाग िनकलना है। हमारे पास ादा
से ादा सुबह के पांच बजे तकका समय है। शायद उतना समय भी ना िमले। पर सुबह होते ही सब हम ढूंढने म लग जाएं गे। तब
तक कैसे भी हम सरहद पार कर हमारे मु की सरहद म प ँच जाना है।"

सुनील ने बंदूक अपने हाथ म लेते ए कहा, "यह तो ठीक है। पर मेरा काम कलम चलाना है, बंदूक नही ं। मुझे बंदूक चलाना आता
ही नही ं।" ज ूजी थोड़ा सा िचढ कर बोल उठे , "काश! यहां आपको बंदूक चलाने की टेिनंग दे ने का थोड़ा ादा समय होता। खैर
यह दे खये......." ऐसा कह कर ज ूजी ने सुनीलजी को करीब पाँच िमनट बंदूक का से ी कैच कैसे खोलते ह, गोली दागने के
समय कैसे पोजीशन लेते ह, गोली का िनशाना कैसे लेतेह वह सब समझाया। ज ूजी ने आ खर म कहा, "सुनीलजी, हम सबको
नदी के िकनारे िकनारे ही चलना है ूंिक आगे चलकर इसी नदी के िकनारे हमारा कप आएगा। थक जाने पर बेहतर यही होगा की
आराम करने के िलए भी हम लोग िकसी झाडी म छु प कर ही आराम करगे तािक अगर दु न हमारे करीब प ँच जाए तो भी वह
आसानी से हम ढूंढ ना सके।" काफी अँधेरा था और सुनील को ा समझ आया ा नही ं वह तो वह ही जाने पर आ खर म सुनील
ने कहा, "ज ूजी, िफलहाल तो आप बंदूक अपने पास ही र खये। व आने पर म इसे आप से ले लूंगा। अब म सबसे आगे चलता
ँ आप सुनीता के पीछे पीछे चिलए।"

सुनील ने आगे पोजीशन ले ली, करीब ५० कदम पीछे सुनीता और सबसे पीछे ज ूजी गन को हाथ म लेकर चल िदए। बा रश
काफी तेज होने लगी थी। रा ा िचकना और िफसलन वाला हो रहा था। तेज बा रश और अँधेरे के कारण रा ा ठीक नजर नही ं आ
रहा था। कई जगह रा ा ऊबड़खाबड़ था। वा व म रा ा था ही नही ं। सुनील नदीके िकनारे थोड़ा अंदाज से थोड़ा ान से दे ख
कर चल रहे थे। नदीम पानी काफी उफान पर था। कभी तो नदी एकदम करीब होती थी, कभी रा ा थोड़ी दू र चला जाता था तो
कई बार उनको कंदरा के ऊपर से चलना पड़ता था, जहां ऐसा लगता था जैसे नदी एकदम पाँव तले हो।

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उनको चलते चलते करीब एक घंटे से ादा हो गया होगा। वह काफी आगे िनकल चुके थे। सुनील काफी थकान महसूस कर रहे
थे। चलने म काफी िद त हो रही थी। ऐसे ही चलते चलते सुनील एक नदी के िबलकुल ऊपर एक कंदरा के ऊपर से गुजर रहे
थे। सुनील आगे िनकल गए, पर सुनीता का पाँव िफसला ूंिक सुनीता के पाँव के िनचे की िमटटी नदी के बहाव म धँस गयी और
दे खते ही दे खते सुनीता को जैसे जमीन िनगल गयी। पीछे आ रहे ज ूजी ने दे खा की सुनीता के पाँव के िनचे से जमीन धँस गयी थी
और सुनीता नदी के बहावम काफी िनचे जा िगरी। िगरते िगरते सुनीता के मुंह से जोरों की चीख िनकल गयी, "ज ूजी बचाओ..........
ज ूजी बचाओ........." जोर जोर से िच ाने लगी, और कुछ ही दे र म दे खते ही दे खते पानी के बहाव म सुनीता गायब हो गयी।"
उसी समय ज ूजीने जोरसे िच ाकर सुनीता को कहा, "सुनीता, डरना मत, म तु ारे पीछे आ रहा ँ।" यह कह कर उ ोंने
सुनीलजी की और बंदूक फकी और जोर से िच ाते ए सुनीलजी से कहा, "आप इसे स ालो, आप िबलकुल िचंता मत करो म
सुनीता को बचा कर ले आऊंगा। आप तेजी से आगे बढ़ो और नदी के िकनारे िकनारे पेड़ के पीछे छु पते छु पाते आगे बढ़ते रहो और
सरहद पार कर कप म प ंचो। भगवान् ने चाहा तो म आपको सुनीता के साथ कप म िमलूंगा।" ऐसा कह कर ज ूजी ने ऊपर से
छलाँग लगाई और िनचे नदी के पुरजोर बहाव म कूद पड़े । सुनीलजी को पानी म ज ूजी के िगरने की आवाज सुनाई दी और िफर
नदी के बहाव के शोर के कारण और कुछ नही ं सुनाई िदया।

सुनीलका सर इतनी तेजीसे हो रहे सारे घटनाच के कारण चकरा रहा था। वह समझ नही ं पा रहे थे की अचानक यह ा हो रहा
था? एक सेकंड म ही कैसे बाजी पलट जाती है। िजंदगी और मौत कैसे हमारे साथ खेल खेलते ह? ा हम कह सकते ह की अगले
पल ा होगा? िजंदगी के यह उतार चढ़ाव "कभी ख़ुशी, कभी गम" और "कल हो ना हो" जैसे लग रहे थे। वह थोड़ी दे र से
वहीँ खड़े रहे। िफर उनको ज ूजी की िसख याद आयी की उ फुत से िबना समय गँवाये आगे बढ़ना था। सुनील की सारी थकान
गायब हो गयी और लगभग दौड़ते ए वह आगे की और अ सर ए। जहां तक हो सके वह नदी के िकनारे पेड़ों और जंगल के
रा े ही चल रहे थे िजससे उ आसानी से दे खा ना जा सके। अँधरे ा छटने तक रा ा तय करना होगा। सुबह होने पर शायद उ
कही ं छु पना भी पड़े ।

ज ूजी ऊपर पहाड़ी से सीधे पानी म कूद पड़े । पानी का तेज बहाव के उपरांत पानी म कई जगह पानी म च वात (माने भँवर) भी
थे िजसम अगर फ़ँस गए तो िकसी नौिस खये के िलए तो वह मौत का कुआं ही सािबत हो सकता था। ऐसे भँवर म तो अ े अ े
तैराक भी फँस सकते थे। इनसे बचते ए ज ूजी आगे तैर रहे थे। िक त से पानी का बहाव उनके प म था। माने उनको तैरने के
िलए कोई मश त करने की ज रत नही ं थी। पर उ सुनीता को बचाना था। वह दू र दू र तक नजर दौड़ा कर सुनीता को ढूंढ ने
लगे। पर उनको सुनीता कही ं िदखाई नही ं दे रही थी। एक तो अँधेरा ऊपर से पानी का बहाव पुर जोश म था। सुनीता के िफसलने
और ज ूजी के कूदने के िबच जो दो िमनट का फासला रहा उसम नदी के बहाव म पता नही ं सुनीता िकतना आगे बह के िनकल
गयी होगी। ज ूजी को यह डर था की सुनीता को तैरना तो आता नही ं था तो िफर वह अपने आपको कैसे बच पाएगी उसकी िचंता
उ खाये जा रही थी। ज ूजी ने जोर से पानी म आगे की और तैरना चालु रखा साथ साथ म यह दे खते भी रहे की पानी के बहाव
म सुनीता कही ं िकनारे की और तो नही ं चली गयी? पानी का बहाव िजतना ज ूजी को आगे सुनीता के करीब ले जा रहा था उतना
ही सुनीता को भी तेजी से ज ूजी से दू र ले जा रहा था। सुनीता ने ज ूजी के िच ाने की और उसे बचाने के िलए वह आ रहे ह,
यह कहते ए उन की आवाज सुनी थी। पर उसे यकीन नही ंथा की नदी का इतना भयावह प दे ख कर वह अपनी जान इस तरह
जो खम म डालगे।

थोड़ी दू र िनकल जाने के बाद नदी के तेज बहाव म बहते ए सुनीता ने जब पीछे की और अपना सर घुमा के दे खा तो अँधेरे म ही
ज ूजी की परछाईं नदी म कूदते ए दे ख। उसे पूरा भरोसा नही ंथा की ज ूजी उसके पीछे कूदगे। इतने तेज पानी के बहाव म
कूदना मौत के मुंह म जाने के जैसा था। पर जब सुनीता ने दे खा की ज ूजी ने अपनी जान की परवाह नाकर उसे बचाने के िलए
इतने पुरजोश बहाव म पागल की तरह बहती नदी म कूद पड़े तो सुनीता के दय म ा भाव ए वह वणन करना असंभव था।
उस हालात म सुनीता को अपने पित से भी उ ीद नही ं थी की वह उसे बचाने के िलए ऐसे कूद पड़गे। सुनीता को तब लगा की उसे
िजतना अपने पित पर भरोसा नही ं था उतना ज ूजी के ित था। उसे पूरा भरोसा हो गया की ज ूजी उसे ज र बचा लगे। वह
जानती थी की ज ूजी िकतने द तैराक थे। सुनीता का सारा डर जाता रहा। उसका िदमाग जो एक तरहसे अपनी जान बचाने के

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िलए था, परे शान था; अब वह अपनी जान के खतरे से िनि हो गया। अब वह ठं डे िदमाग से सोचनी लगी की जो ख़तरा
सामने है उससे कैसे छु टकारा पाया जाये और कैसे ज ूजी के करीब जाया जाये तािक ज ूजी उसे उस तेज बहाव से उसे बाहर
िनकाल सक। अब सवाल यह था की इतने तेज बहाव म कैसे अपने बहने की गित कम की जाए तािक ज ूजी के करीब प ंचा
जासके। सुनीता जानती थी की उसे ना तो तैराकी आती थी नाही उसके अंदर इतनी मता थी की पानी के बहाव के िव वह तैर
सके।

उसे अपने आप को डू बनेसे भी बचाना था। उसके िलए एक ही रा ा था। जो ज ूजी ने उसे उस िदन झरने म तैरने के समय
िसखाया था। वह यह की अपने आपको पानी पर खुला छोड़ दो और डू बने का डर िबलकुल मन म ना रहे। सुनीता ने तैरने की
कोिशश ना करके अपने बदन को पानी म खु ा छोड़ िदया और जैसे पानी की सतह पर सीधा सो गयी जैसे मुदा सोता है। पानी का
बहाव उसे यं अपने साथ खी ंचे जा रहा था। अब उसकी ाथिमकता थी की अपनी गित को कम करे अथवा कही ं क जाए।
अपने बलबूते पर तो सुनीता यह कर नही ं सकती थी। कहावत है ना की "िह ते मदा तो मददे खुदा।" यानी अगर आप िह त
करगे तो खुदा भी आपकी मदद करे गा। उसी समय उसको दू र एक पेड़ जैसा िदखाई िदया जो नदी म डूबा आ था पर नदी के
साथ बह नही ं रहा था। इसका मतलब यह आ की पेड़ जमीन म गड़ा आ था और अगर सुनीता उस पेड़ के पास प ँच पायी तो
उसे पकड़ कर वह वहाँ थम सकती है िजससे ज ूजी जो पीछे से बहते ए आ रहे थे वह उसे िमल पाएं गे। सुनीता ने अपने
आपको पेड़ की सीध म िलया तािक कोिशश ना करने पर भी वह पेड़ के एकदम करीब जा पाए। उसे अपने आपको पेड़ से
टकराने से बचाना भी था। बहते बहते सुनीता पेड़ के पास प ँच ही गयी। पेड़ से टकराने पर उसे काफी खरोंच आयी ं और उस
च र म उसके कपडे भी फट गए। पर ख़ास बात यह थी की सुनीता अपनी गित रोक पायी और बहाव का मुकाबला करती ई
अपना थान कायम कर सकी। सुनीता ने अपनी पूरी ताकत से पेड़ को जकड कर पकड़ र ा। अब सारा पानी तेजी से उसके
पास से बहता आ जा रहा था। पर ूंिक उसने अपने आपको पेड़ की डालों के िबच म फाँस र ा था तो वह बह नही ं रही थी।
सुनीता ने कई डािलयाँ, पौधे और कुछ लकिड़यां भी बहते ए दे खी ं। पानी का तेज बहाव उसे बड़ी ताकत से खंच रहा था पर वह
टस की मस नही ं हो रही थी।

हालांिक उसके हाथ अब पानी के स बहाव का अवरोध करते ए कमजोर पड़ रहे थे। सुनीता की हथेली छील रही थी और उसे
तेज दद हो रहा था। िफर भी सुनीता ने िह त नही ं हारी। कुछ ही दे र म सुनीता को उसके नाम की पुकार सुनाई दी। ज ूजी जोर
शोर से "सुनीता..... सुनीता.... तुम कहाँ हो?" की आवाज से िच ा रहे थे और इधर उधर दे ख रहे थे। सुनीता को दू र ज ूजी का
इधर उधर फैलता आ हाथ का साया िदखाई िदया। सुनीता फ़ौरन ज ूजी के जवाब म जोर शोर से िच ाने लगी, "ज ूजी!!
ज ूजी....... ज ूजी..... म यहां ँ।" िच ाते िच ाते सुनीता अपना हाथ ऊपर की और कर जोर से िहलाने लगी। सुनीता को
जबरद राहत ई जब ज ूजी ने जवाब िदया, "तुम वहीँ रहो। म वहीँ प ंचता ँ। वहाँ से मत िहलना।"

पर होनी भी अपना खेल खेल रही थी। जैसे ही सुनीता ने अपने हाथ िहलाने के िलए ऊपर िकये और ज ूजी का ान आकिषत
करने के िलए िहलाये की पेड़ की डाल उसके हाथ से छूट गयी और दे खते ही दे खते वह पानी के तेज बहाव म िफर से बहने लगी।
ज ूजी ने भी दे खा की सुनीता िफर से बहाव म बहने लगी थी। उ कुछ िनराशा ज र ई पर चूँिक अब सुनीता को उ ोंने दे ख
िलया था तो उनम एक नया जोश और उ ाह पैदा हो गया था की ज र वह सुनीता को बचा पाएं गे। उ ोंने अपने तैरने की गित
और तेज कर दी। सुनीता और उनके िबच का फासला कम हो रहा था ूंिक सुनीता बहाव के सामने तैरने की कोिशश कर रही थी
और ज ूजी बहाव के साथ साथ जोर से तैरने की। दे खते ही दे खते ज ूजी सुनीता के पास प ंचे ही थे की अचानक सुनीता एक
भँवर म जा प ंची और उस के च र म फँस गयी। ज ूजीने दे खा की सुनीता पानी के अंदर क गयी पर एक ही जगह भँवर के
कारण गोल गोल घूम रही थी। पानी म खतरनाक भँवर हो रहे थे। उस भँवर म फंसना मतलब अ े खासे तैराक के िलए भी जानका
खतरा हो सकता था।

अगर उ ोंने सुनीता को फ़ौरन पकड़ा नही ं और सुनीता पानी के भँवर म िबच की और चली गयी तो सीधी ही अंदर चली जायेगी
और दम घुटने से और ादा पानी पीने से उसकी जान भी जा सकती थी। पर दू सरी तरफ एक और खतरा भी था। अगर वह अंदर

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चले गए तो उनकी जान को भी कोई कम ख़तरा नही ं था। एक बार भँवर म फँसने का मतलब उनके िलए भी जान जो खम म
डालना था। पर ज ूजी उस समय अपनी जान से ादा सुनीता की जान की िचंता म थे। िबना सोचे समझे ज ूजी भँवर के पास
प ँच गए और तेजी से तैरते ए सुिनता का हाथ इ ोने थाम िलया। जैसे ही सुनीता भँवर म फँसी तो उसने अपने बचने की आशा
खो दी थी। उसे पता था की इतने तेज भंवर म जाने की िह त ज ूजी भी नही ं कर पाएं गे। िकसी के िलए भी इतने तेज भँवर म
फँसना मतलब जान से हाथ धोने के बराबर था। पर जब ज ूजी ने सुनीता का हाथ अपने हाथ म थामा तो सुनीता के आ य का
िठकाना ना रहा। "यह कैसा पागल आदमी है? सुनीता को बचाने के िलए अपने जान की भी परवाह नही ं उसे?" सुनीता हैरान रह
गयी। उसे कोई उ ीद नही ं थी और नाही वह चाहती थी की ज ूजी अपनी जान खतरे म डाल कर उसे बचाये।

पर ज ूजी ने सुनीता का ना िसफ हाथ पकड़ा ब आगे तैर कर सुनीता को अपनी बाँहों म भर िलया और कस के सुनीता को
अपनी छाती से ऐसे लगा िलया जैसे वह कोई दो बदन नही ं एक ही बदन हों। सुनीता ने भी अपना जान बचाने के च रमज ूजी
को कस कर पकड़ िलया और अपनी दोनों बाजुओ ं से उनसे कस के िलपट गयी। भँवर बड़ा तेज था। ज ूजी इतने ए पट तैराक
होने के बावजूद उस भँवर म से िनकलने म नाकाम सािबत हो रहे थे। ऊपर से बा रश एकदम तेज हो गयी थी। पानी का बहाव तेज
होने के कारण भँवर काफी तेजी से घूम रहा था। ज ूजी और सुनीता भी उस तेज भँवर म तेजी से घूम रहे थे। घूमते घूमते वह दोनों
धीरे धीरे भँवर के क िबंदु (िजसे भँवर की आँ ख कहते ह) की और जा रहे थे। वह सबसे खतरनाक खाई जैसी जगह थी िजस के
पास प ँचते ही जो भी चीज़ वहाँ तक प ँचती थी वह समु र की गोद म गायब हो जाती थी। भंवर काफी गहरा होता है। २० फ़ीट
से लेकर १०० फ़ीट से भी ादा का हो सकता है।

ज ूजी का सर च र खा रहा था। भँवर इतनी तेजी से घूमर घूम रहा था की िकसी भी चीज़ पर फोकस कर रखना नामुमिकन
था। ज ूजी िफर भी अपना िदमाग कि त कर वहाँ से छूटने म बारे म सोच रहे थे। सुनीता अपनी आँ ख बंद कर जो ज ूजी करगे
और जो भगवान् को मंजूर होगा वही होगा यह सोचकर ज ूजी से िचपकी ई थी। थकान और घबराहट के कारण सुनीता ज ूजी
से करीब करीब बेहोशी की हालात म िचपकी ई थी। तब अचानक ज ूजी को एक िवचार आया जो उ ोंने कही ं पढ़ा था। उ ोंने
सुनीता को अपने से अलग करने के िलए उसके हाथ हटाए और अपने बदन से उसे दू र िकया। सुनीता को कस के पकड़ रखने के
उपरांत उ ोंने सुनीता और अपने बदन के िबच म कुछ अंतर रखा, िजससे भँवर के अंदर काफी अवरोध पैदा हो। एक वै ािनक
िस ांत के मुतािबक़ अगर कोई व ु अपकि त याने क ागी (से ी- ूगल) गित च म फंसी हो और उसम और अवरोध पैदा
िकया जाये तो वह उस व ु को क से बाहर फकने को कोिशश करे गी। सुनीता को अलग कर िफर भी उसे कस के पकड़ रखने
से पैदा ए अित र अवरोध के कारण दोनों ज ूजी और सुनीता भँवर से बाहर की और फक िदए गए।

ज ूजी ने फ़ौरन ख़ुशी के मारे सुनीता को कस कर छाती और गले लगाया और सुनीता को कहा, "शु है, हम लोग भँवर से बाहर
िनकल पाए। आज तो हम दोनों का अंितम समय एकदम करीब ही था। अब जब तक हम पानी के बाहर िनकल नही ं जाते बस तुम
बस मुझसे िचपकी रहो और बाकी सब मुझ पर छोड़ दो। मुझे पूरा भरोसा है की हम भगवान् ज र बचाएं गे।" सुनीता ने और कस
कर िलपट कर ज ूजी से कहा, "मेरे भगवान् तो आप ही ह। मुझे भगवान् पर िजतना भरोसा है उतना ही आप पर भरोसा है। अब
तो म आपसे िचपकी ही र ंगी। आज अगर म मर भी जाती तो मुझे कोई अफ़सोस नही ं होता ूंिक म आपकी बाँहों म मरती। पर
जब बचाने वाले आप हों तो मुझे मौत से कोई भी डर नही ं। पानी के तेज बहावम बहते बहते भी सुनीता ज ूजी से ऐसे िलपट गयी
जैसे सालों से कोई बेल एक पेड़ से िलपट रही हो। सुनीता को यह िचंता नही ं थी की उसका कौनसा अंग ज ूजी के कौनसे अंगसे
रगड़ रहाथा। उसके शरीर पर से कपडे फट चुके थे उसका भी उसे कोई ान नही ं था। सुनीता का टॉप और ा तक फट चूका
था। वह ज ूजी के गीले बदन से िलपट कर इतनी अद् भुत सुर ा महसूस कर रही थी िजतनी उसने शायद ही पहले महसूस की
होगी। भँवर म से िनकल ने के बाद ज ूजी अब काफी कुछ स ल गए थे। अब उनका ेय था की कैसे पानी की बहाव का साथ
िलए धीरे धीरे कोिशश कर के िकनारे की और बढ़ा जाए।

उ ोंने सुनीता के सर म चु न कर के कहा, "सुनीता अब तुम मुझे छोड़ कर पानी म तैर कर बह कर िकनारे की और जाने की
कोिशश करो। म तु ारे साथ ही ँ और तु ारी मदद क ं गा।" पर सुनीता कहाँ मानने वाली थी? सुनीता को अब कोई तरह की
िचंता नही ं थी। सुनीता ने कहा, "अब इस मुसीबत से आप अपना िपंड नही ं छु ड़ा सकते। अब म आपको छोड़ने वाली नही ं ँ। वैसे

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भी मुझम तैरने की िह त और ताकत नही ं है। अब आपको िकनारे ले जाना है तो ले जाओ और डु बाना है तो डु बाओ।" इतना बोल
कर सुनीता ज ूजी के बदन से िलपटी ई ही बेहोश हो गयी। सुनीता काफी थकी ई थी और उसने काफी पानी भी पी िलया था।
ज ूजी धीरे धीरे सुनीता को अपने बदन से िचपकाए ए पानी को काटते ए कम गहराई वाले पानी म प ँचने लगे और िफर तैरते,
हाथ पाँव मारते ए िगरते स लते कैसे भी िकनारे प ँच ही गए। िकनारे प ँचते ही ज ूजी सुनीता के साथ ही गीली िमटटी म ही
धड़ाम से िगर पड़े । सुनीता बेहोशी की हालत म थी। ज ूजी भी काफी थके ए थे। वह भी थकान के मारे िगर पड़े । सुनीता ने
बेहोशी की हालत म भी ज ूजी का बदन कस के जकड रखा था और िकनारे पर भी वह ज ूजी के साथ ऐसे िचपकी ई थी जैसे
िकसी गोंद से उसे ज ू जी से िचपका िदया गया हो। दोनों एक दू सरे से के बाजू म एकदू सरे से िलपटे ए भारी बा रश म लेटे ए
थे।

उस समय उन दोनों म से िकसी को यह िचंता नही ं थी की उनके बदन के ऊपर कौनसा कपड़ा था या नही ं था। ब उ यह भी
िचंता नही ं थी की कई रगते ए कीड़े मकोड़े उनको बदन को काट सकते थे। ज ूजी ने बेहोश सुनीता को धीरे से अपने से अलग
िकया। उ ोंने दे खा की सुनीता काफी पानी पी चुकी थी। ज ूजी ने पानी म से िनकलने के बाद पहली बार सुनीता के पुरे बदन को
नदी के िकनारे पर बेफाम लेटे ए दे खा। सुनीता का ट करीब करीब फट गया था और उसकी जाँघ पूरी तरह से नंगी िदख रही
थी। सुनीता की छोटी से पटी उसकी चूत के उभार को छु पाये ए थी। सुनीता का टॉप पूरा फट गया था और सुनीताकी छाती पर
िबखरा आ था। उसकी ा को कोई अतापता नही ं था। सुनीताके मदम न पूरी तरह आज़ाद फुले ए हलके हलके झोले खा
रहे थे। पर ज ूजी को यह सब से ादा िचंता थी सुनीता के हालात की। उ ोंने फ़ौरन सुनीता के बदन को अपनी दो जाँघों के
िबच म िलया और वह सुनीता के ऊपर चढ़ गए। दू र से दे खने वाला तो यह ही सोचता की ज ूजी सुनीता को चोदने के िलए उसके
ऊपर चढ़े ए थे। सुनीता का हाल भी तो ऐसा ही था। वह लगभग नंगी लेटी ई थी। उसके बदन पर उसकी चूत को िछपाने वाला
पटी का एक फटा आ टु कड़ा ही था और फटा आ टॉप इधरउधर बदन पर फैला आ था िजसे ज ूजी चाहते तो आसानी से
हटा कर फक सकते थे।

ज ूजी ने सुनीता के बू के ऊपर अपने दोनों हाथिलयाँ िटकायी ं और अपने पुरे बदन का वजन दे कर दोनों ही बू को जोर से
दबाते ए पानी िनकालने की कोिशश शु की। पहले वह बू को ऊपर से वजन दे कर दबाते और िफर उसे छोड़ दे ते। तीन चार
बार ऐसा करने पर एकदम सुनीता ने जोर से खांसी खाते ए काफी पानी उगल ना शु िकया। पानी उगल ने के बाद सुनीता िफर
बेहोश हो गयी। ज ूजी ने जब दे खा की सुनीता िफर बेहोश हो गयी तो वह घबड़ाये। उ ोंने सुनीता की छाती पर अपने कान रखे
तो उ लगा की शायद सुनीता की साँस क गयी थी। ज ूजी ने फ़ौरन सुनीता को कृि म साँस (आिटिफशल रे रे शन) दे ना
शु िकया। ज ू जी ने अपना मुंह सुनीता के मुंह पर सटा िलया और उसे अपने मुंह से अपनी ास उसे दे ने की कोिशश की।
अचानक ज ूजी ने महसूस िकया की सुनीता ने अपनी बाँह उठाकर ज ूजी का सर अपने हाथों म पकड़ा और ज ूजी के हो ँठों
को अपने हो ँठों पर कस के दबा कर ज ूजी के हो ँठों को चूसने लगी।

ज ूजी समझ गए की सुनीता पूरी तरह से होश म आ गयी थी और अब वह कुछ रोमांिटक मूड म थी। ज ूजी ने अपना मुँह हटा
ने की कोिशश की और बोले, "छोडो, यह ा कर रही हो?" तब सुनीता ने कहा, "अब तो म कुछ भी नही ं कर रही ँ। म ा कर
सकती ँ तुम अब दे खना।"

##
उधर....

सुनील की आँ खों के सामने िकतने समय के बाद भी सुनीता के िफसल कर नदी म िगर जाने का और ज ूजी के छलाँग लगा कर
नदी म कूदने का ने का चलिच की तरह बार बार आ रहा था। उ बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की उनम उतना
आ िव ास या यूँ किहये की साहस नही ं था की वह अपनी जान जो खमम डालकर अपनी बीबी को बचाएं । वह अपने आपको
कोस रहे थे की जो वह नही ं कर सके वह ज ूजी ने िकया। सुनील ने मन ही मन तय िकया की अगर मौक़ा िमला तो वह भी अपनी

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जान जो खम म डाल कर अपने अजीज़ को बचाने से चूकगे नही ं। आ खर दे श की आजादी के िलए कुरबािनयां दे नी ही पड़ती ं ह।
अब आगे अंजाम ा होगा: सुनीता िज़ंदा बचती है या नही ं, ज ूजी सुनीता को बचा पाते ह या नही ं और ाज ूजी खुद बच पाते
हौं या नही ं यह तो व ही बताएगा। अब सुनील को तो िसफ अपने आप को बचाना था।

अचानक ही तीन म से दो लोग जाते रहे। उ ना तो रा े का पता था और ना तो कौनसी िदशा म जाना है उसका पता था। ज ूजी
के बताये ए िनदश पर ही उ ोंने चलना ठीक समझा। सुनील ने अपनी आगे बढ़ने की गित और तेज कर दी। उ स ाल के भी
चलना था ूंिक उ ोंने दे खा था की नदी के एकदम करीब चलने म बड़ा ही खतरा था। सुनील की चाल दौड़ म बदल गयी। अब
उ बचाने वाले ज ूजी नही ं थे। अब जो भी करना था उ ही करना था। साथ म उनके पास गन भी थी।

अँधेरे म पेड़ों को ढू ं ढते ए िगरते लुढ़कते पर िजतना तेज चल सके उतनी तेजी से वह आगे बढ़ रहे थे। रा े म कई प र और
कीचड़ उनकी गित को धीमी कर दे ते थे। पर वह चलते रहे चलते रहे। उ कोई दद की परवाह नही ं करनी थी, ूंिक अगर
दु नों ने उनको पकड़ िलया तो उ मालुम था की जो दद वह दगे उसके सामने यह दद तो कुछ भी नही ं था। एक तरीके से दे खा
जाए तो सुनीता और ज ूजी नदी के तूफ़ान म ज र फँसे ए थे पर कमसे कम दु नोंकी फ़ौज से पकडे जाने का डरतो उ
नही ं था। ऐसी कई चीज़ों को सोचते ए अपनी पूरी ताकत से सुनील आगे बढ़ते रहे। चलते चलते करीब चार घंटे से ादा व हो
चुका था। सुबह के चार बजने वाले होंगे, ऐसा अनुमान सुनील ने लगाया। सुनील की िह त जवाब दे ने लगी थी। उनकी ताकत कम
होने लगी थी। अब वह चल नही ं रहे थे उनका आ बल ही उ चला रहा था। उनको यह होश नही ं था की वह कौनसे रा े पर
कैसे चल रहे थे। अचानक उ ोंने दू र ि ितज म ब दु क की गोिलयों की फाय रं ग की आवाज सुनी। उ ोंने ान से दे खा तो काफी
दु री पर आग की लपट उठी ई थी और काफी धुआं आसमान म दे खा जा रहा था। साथ ही साथ म दू र से लोगों की ददनाक चीख
और कराहट की आवाज भी ह ी फुलकी सुनाईदे रही थी। सुनील घबड़ा गए। उ लगा की शायद उनका पीछा करते करते
दु न के िसपाही उनके करीब आ चुके ह। सुनील को ज ी से कही ं ऐसी जगह छु पना था जहां से उनको आसानी से दे खा नही ं जा
सके। सुनीलजी ने डरके मारे चारों और दे खा। नदी के िकनारे थोड़ी दू र एक छोटीसी पहाड़ी और उसके िनचे घना जंगल उनको
िदखाई पड़ा। वह फ़ौरन उसके पास प ँचने के िलए भागे। अ ेरा छट रहा था। सूरज अभी उगने म समय था पर सूरज की लािलमा
उभर रही थी। सुनील को अपने आपको दु न की िनगाहों से बचाना था। वह भागते ए नजरे बचाते िछपते िछपाते पहाड़ी के िनचे
जा प ंचे। झािड़यों म छु पते ए तािक अगर दु न का कोई िसपाही उस तरफ हो तो उ दे ख ना सके, बड़ी सावधानी से आवाज
िकये िबना वह छु पने की जगह ढू ं ढने लगे। अचानक उ लगा की शायद थोड़ी ऊपर एक गुफा जैसा उ िदखा। वह गुफा काफी
करीब जाने पर ही िदखाई दी थी। दू र से वह गुफा नजर नही ं आती थी। सुनील फ़ौरन उस च ान पर जैसे तैसे चढ़ कर गुफा के
करीब प ंचे। ए रया म गुफा लगभग एक बड़े हॉल के िजतनी थी। उ लगा की शायद वहाँ कोई रहता होगा, ूंिक गुफा म दो
फटे ए ग े रखे थे, एक पानी का मटका था, कुछ िमटटी के और ए ुमीिनयम के बतन थेऔर एक कोने म एक चू ा और कुछ
राख थी िजससे यह लगता था जैसे िकसने वहाँ कुछ खाना पकाया होगा।

सुनील चुपचाप गुफा म घुस गए और बहार एक घांसफूस का लकड़ी और र ी से बंधा दरवाजे जैसा था (वह एक घाँस और लकड़ी
की फि यों का बना आवरण जैसा हीथा, दरवाजा नही )ं उससे गुफा को ढक िदया तािक िकसी को शक ना हो की वहाँ कोई गुफा
भी थी। सुनीलजी थकान से प हो गए थे। उनम कुछ भी करने की िह त और ताकत नही ं बची थी। खुद को बचाने के िलए जो
कुछ वह कर सकते थे उ ोंने िकया था अब बाकी उपरवाले के भरोसे छोड़ कर वह एक ग े पर ल े ए और लेटते ही उनकी
आँ ख लग गयी। उ पता नही ं लगा की िकतनी दे र हो गयी पर अचानक उनको िकसीने झकझोर कर जगाया। उनके कान म
काफी दद हो रहा था। चौंक कर सुनीलजी ने जब अपनी आँख खोली तो दे खा की एक औरत फटे ए कपड़ों म उनकी ही बंदूक
अपने हाथों म िलए ए उनके सर का िनशाना बना कर खड़ी थी और उ बंदूक के एक िसरे से दबा कर जगा रही थी। उस हालात
म ना चाहते ए भी उनकी नजर उस औरत के बदन पर घूमने लगी। हालांिक उस औरत के कपडे फटे ए और गंदे थे, उस औरत
की जवानी और बदन की कामुकता गजब की थी। उसकी फटी ई कमीज म से उसके उ नो ँ का उभार छु प नही ं पा रहा
था। औरत काफी ल े कद की और पतली कमर वाली करीब २६ से २८ साल की होगी।

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सुनीलजी ने दे खा तो उस औरत ने एक कटार जैसा बड़ा एक चाक़ू अपनी कमर म एक कपडे से लपेट रखा था। उसके पाँव फटे
ए सलवार म से उसकी म सुडौल जाँघे िदख रही ं थी ं। शायद उस औरत की चूत और उस कपडे म ादाअंतर नही ं था।
उसकी आँ ख तेज और नशीली लग रही थी ं। अचानक बंदूक का ध ा खाने के कारण सुनीलजी िगर पड़े । वह औरत उ ब दु क
से ध ा मारकर पूछ रही थी, " ा दे ख रहा है साले? पहले कोई औरत दे ख नही ं ा? तुम कौन हो बे? यहां कैसे आ प ंचे? सच
सच बोलो वरना तु ारी ही बंदूक से तु भून दू ं गी।" उस औरत के कमिसन बदन का मुआइना करने म खोये ए सुनीलजी बंदूक
का झटका लगते ही सुनीलजी वापस जमीन पर लौट आये। उ पता नही ं था यह औरत कौन थी। वह आम वाली तो नही ं लग
रहीथी ूंिक नातो उसने कोई यूिनफाम पहना था और ना ही उसके पास अपनी कोई बंदूक थी। ना ही उसने अपने कपडे ढं ग से
पहने ए थे। पर औरत थी कमालकी खूबसूरत। उसके बदन की कामुकता दे खते ही बनती थी। उस औरत ने सोते ए सुनीलजी
की ही बंदूक उनकी कानप ी पर दाग र ी थी। सुनीलजी को ऐसा लग रहा था जैसे वह औरत भी कुछ डरी ई और तनाव म थी।
सुनीलजी ने डरते ए अपने दोनों हाथ ऊपर उठाते ए कहा, "म यहां के िसपािहयों की जेल से भगा आ कैदी ँ। मेरे पीछे यहां
की सेना के कुछ िसपाही पड़े ह। पता नही ं ों?" सुनीलजी की बात सुनकर सुनीलजी को लगा की शायद उस औरत ने हलकी सी
चैन भरी साँस ली। बंदूक की नोक को थोड़ा िनचे करते ए उस औरत ने पूछा, "कमाल है? िसपाही पीछे पड़े है, और तु पता नही ं
ों? सच बोल रहा है ा? कहाँसे आयाहै तू?" सुनीलजीने कहा, "िहंदु ानी ँ म। हम पकड़ कर यहां के िसपाहीयो ने हम जेल म
बंद कर िदया था। हम तीन थे। जेल से तो हम भाग िनकले पर मेरे दो साथी नदी म बह गए। पता नही ं वह िज़ंदा ह या नही ं। म बच
गया और उन िसपािहयों से बचते िछपते ए म यहां प ंचा ँ।"

सुनीलजी ने दे खा की उनकी बात सुनकर उस औरत कुछ सोच म पड़ गयी। शायद उसे पता नही ं था की सुनीलजी की बात का
िव ास िकया जाये या नही ं। कुछ सोचने के बाद उस औरत ने अपनी ब दु क नीची की और बोली, "िफर यह बंदूक कहाँ से िमली
तुमको?" सुनीलजी ने राहत की एक गहरी साँस लेते ए कहा, "यह उन म से एक िसपाही की थी। हम ने उसे मार िदया और
उसकी बंदूक लेकर हम भागे थे। यह बंदूक उसकी है।" औरत ने सुनीलजी की कानप ी पर से बंदूक हटा दी और बोली, "अ ा?
तो तुम भी उन कु ों से भागे ए हो?" जैसे ही सुनीलजी ने "भी" श सुना तो वह काफी कुछ समझ गए। अपनी आवाज म हमदद
जताते ए वह बोले, " ा तुम भी उन िसपािहयों से भागी हो?" उस औरत ने बड़े ान से सुनीलजी की और दे खा और बोली, "तु
पता नही ं ा यहाँ ा हो रहा है?" सुनीलजी ने अपने मुंडी नकारा क इलाते ए कहा, "मुझे कैसे पता?" औरत ने कहा, "यह
साले कु े यहां की आम के िसपाही, हमारी ब यों को लुटते ह और हम औरतों को एक औरत को दस दस आदमी बला ार
करते ह और उनको चूंथने और रगड़ने के बाद उ जंगल म फक दे ते ह। मेरे पुरे कबीले को और मेरे घर को बबाद कर और जला
कर वह मेरे पीछे पड़े थे। म भी तु ारी तरह एक िसपाही को उसी की बंदूक से मार कर भागी और करीब सात िदन से इस गुफा म
िछपी ई ँ। मेरे पीछे भी वह भेिड़ये पड़े ए ह। पर एक दो िदन से लगता है की िहंदु ान की आम ने उनपर हमला बोला है तो
शायद वह उनके साथ लड़ाई म फँसे ए ह।"

सुनीलजी ने अपनी हमदद जारी रखते ए पूछा, "तुम इस गुफा म गुजारा कैसे करती हो? तु ारा गाँव कौनसा है और तु ारा नाम
ा है?" औरत ने कहा, "मेरा नाम आयेशा है। म यहां से करीब पं ह मील दू र एक गाँव म रहती थी। मेरे पुरे गाँव म साले कु ों ने
एक रात को डाका डाला और मेरा घर जला डाला। मेरे अ ू को मार िदया और दो िसपािहयों ने मुझे पकड़ा और मुझे घसीट कर
मुझ पर बला ार करने के िलए तैयार ए। तब मने उ फंसा कर मीठी बात कर के उनकी बंदूक ले ली और एक को तो वहीँ ठार
मार िदया। दु सरा भाग गया। म िफर वहाँ से भाग िनकली और भागते भागते यहां प ंची और तबसे यहां उन से िछपकर रह रही ँ।
म खरगोश बगैरह जो िमलता है उसका िशकार कर खाती ँ। एक रात म िछपकर नजदीक के गाँव म गयी तो वहाँ एक झौंपड़ी म
कुछ बतन और ग े र े ए थे। झौंपड़ी वालो ँ को उन गुंडों ने शायद मार िदया था। यह चुराकर म यहां ले आयी। "

सुनीलजी ने कहा, "हम दोनों की एक ही कहानी है। वह िसपाही हमारे पीछे भी पड़े ह। मुझे यहां से मेरे मु जाना है। मुझे पता
नही ं कैसे जाना है, कौनसे रा े से। ा तुम मेरी मदद करोगी?" आयेशा: "तुम अभी कही ं नही ं जा सकते। चारों और िसपाही पहरा
दे रहे ह। अभी पास वाले गाँव म कुछ िसपाही लोग कहर जता रहे ह। काफी िसपाही इस नदी के इदिगद पता नही ं िकसे ढूंढ रहे
ह। शायद तुम लोगों की तलाश जारी है। यहां से बाहर िनकलना खतरे से खाली नही ं है। एकाध दो िदन यहां रहना पडे गा। यह जगह
अब तक तो मेहफ़ूज़ है। पर पता नही ं कब कहाँ से कोई आ जाये। यह बंदूक तु ारे पास है वह अ ा है। कभी भी इसकी ज रत

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पड़ सकती है।" जब आयेशा यह बोल ही रही थी की उनको कुछ आदिमयों की आवाज सुनाई दी। आयेशा ने अपने हो ँठों पर
उं गली रख कर सुनीलजी को चुप रहने का इशारा िकया। धीरे से आयेशा ने गुफा के दरवाजे की आड़ म से दे खा तो कुछ साफ़
साफ़ नजर नही ं आ रहा था। आयेशा ने दरवाजा कुछ हटा कर दे खा और सुनीलजी को अपने पीछे आने का इशारा िकया। बंदूक
आयेशा के हाथ म ही थी। आयेशा िनशाना ताकने की पोजीशन म तैयार होकर धीरे से बाहर आयी और झुक कर इधर उधर दे खने
लगी।

गुफा के अंदर छु पे ए सुनीलजी ने दे खा की एक िसपाही ने आयेशा को गुफा के बाहर िनकलते ए दे ख िलया था। पहले तो
सुनीलजी का बदन डर से काँप उठा। अगर उस िसपाही ने बाकी िसपािहयों को खबर कर दी तो उनका पकडे जाना तय था।
सुनीलजी ने तयिकया की ज ूजी ने उ बंदूक दे कर और उसे चलाना सीखा कर उ भी िसपाही बना िदया था। अब तो वह जंग
म थे। जंग का एक मा उसूल यह ही था की यातो मारो या मरो। च ान पर रगते ए वह चुचाप आगे बढे और आयेशा के पाँव को
खंच कर उसे बाजू म िगरा िदया। अपने हो ँठों पर उं गली डाल कर चुप रहने का इशारा कर उ ोंने आयेशा की कमर म लटके बड़े
चाक़ू को िनकाला और पीछे च ान पर रगते ए च ान के िनचे कूद पड़े। वह िसपाही आयेशा की और िनशाना तान कर उसे गोली
मारने की िफराक म ही था। पीछे से बड़ी ही िसफ़त से लपक कर उस िसपाही के गले म चाक़ू िफरा कर उसके गले को दे खते ही
दे खते रट डाला। िसपाही के गले म से खून की धारा फ ारे जैसी फुट पड़ी। वह कुछ बोल ही नही ं पाया। कुछ पलों तक उसका
बदन तड़पता रहा और िफर शांत हो कर जमीन पर लुढ़क गया। । खून के कुछ ध े सुनीलजी के की शट पर भी पड़े । वैसे ही
सुनीलजी की कमीज इतनी ग ी थी की वह ध े उनके कमीज पर लगे ए कीचड़ और िमटटी म पता नही ं कहाँ गायब हो गए।

ऊपरसे दे खरही आयेशा जो सुनीलजीके अचानक ध ा मारने से िगरने के कारण गु े म थी, वह अचरज से सुनीलजी के कारनामे
को दे खती ही रह गयी। सुनीलजी ने उसे ध ा मार कर िगराया ना होता और उस िसपाही को उसकी कमरम रखे ए चाक़ू से मार
िदया ना होता तो वह िसपाही आयेशा को ज र गोली मार दे ता और बंदूक की गोली की आवाज से सारे िसपाही वहां प ँच जाते।
सुनीलजी की चालाकी से ना िसफ आयेशा की जान बच गयी ब सारे िसपिहयों को उस गुफा का पता चल नही ं पाया जहां
आयेशा और सुनीलजी छु पे ए थे। सुनीलजी उस िसपाही की बॉडी घसीट कर उस पहाड़ी के पीछे ले गए जहां िनचे काफी गहरी
खायी और घने पेड़ पौधे थे। उस बॉडी को सुनीलजी ने ऊपर से िनचे उस खायी म फक िदया। वह लाश िनचे घने जंगल के पेड़
पौधोंके िबच िगरकर गायब होगयी। सुनील जी के करतब को बड़ी ही आ य भरी नजरों से दे ख रही आयेशा सुनीलजी के वापस
आने पर गुफा म उन पर टू ट पड़ी और उनसे िलपट कर बोली, "मुझे पता नही ं था तुम इतने बहादु र और जांबाज़ हो।" आयेशाका
करारा बदन अपने बदन से िलपटा आ पाकर सुनीलजी की हालत खराब हो गयी। उस बेहाल हाल म भी उनका काफी समय से
बैठा आ ल उनके पतलून म खड़ा हो गया।

सुनीलजी को िलपटते ए आयेशा के दोनों भरे ए अ ड़ न सुनीलजी की बाजुओ ं को दबा रहे थे। आयेशा की चूत सुनीलजी के
ल को जैसे चुनौती दे रहे थी। सुनीलजी ने भी आयेशा को अपनी बाँहों म ले िलया और कांपते ए हाथों से आयेशा के बदनके
िपछवाड़े को सहलाने लगे। आयेशा ने अपने बदन को सुनीलजी के बदन से रगड़ते ए कहा, " म नही ं जानती आपका नाम ा है।
म यह भी नही ं जानती आप वाकई म है कौन और आप जो कह रहे हो वह सच है या नही ं। पर आपने मेरी जान बचाकर मुझे उन
बदमाशों से बचाया है इसका शुि या म कुछ भी दे कर अदा नही ं कर सकती। म ज र आपकी पूरी मदद क ँ गी और आपको
उन भेिड़यों से बचाकर आपके मु भेजने की भरसक कोिशश क ँ गी, चाहे इसम मेरी जान ही ों ना चली जाए। वैसे भी मेरी
जान आपकी ही दे न है।" मु ल से सुनीलजी ने अपने आपको स ाला और आयेशा को अपने बदन से अलग करते ए बोले,
"आयेशा, इन सब बातों के लये पूरी रात पड़ी है। हमने उनके एक िसपाही को मार िदया है। हालांिक उसकी बॉडी उनको ज ी
नही ं िमलेगी पर चूँिक उनका एक िसपाही ना िमलने से वह बड़े सतक हो जाएं गे और उसे ढू ं ढने लग जाएं गे। हम पुरे िदन बड़ी
सावधानी से चौक ा रहना है और यहां से मौक़ा िमलते ही भाग िनकलना है। पर हम यहां तब तक रहना पडे गा जब तक वह
िसपािहयों का िघराव यहां से हट ना जाए।"

सुनीलजी ने िसपाही की बॉडी िनचे िगराने पहले उसकी बंदूक ले ली थी। अब उनके पास दो बंदूक हो गयी ं। एक बंदूक आयेशा के
पास थी अब एक और बंदूक िसपाही से हिथया ली। आयेशा काफी खुश नजर आ रही थी। पहली बार उसे महसूस आ की उसने

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ना सही, उसके साथीदार परदे सी (सुनीलजी) ने उसके अ ूकी कतल का बदला िलया था। आयेशा को िसपाही के मरने का कोई
ग़म नही ं था। सुनीलजी ने जब दु न के िसपाही को मौत के घाट उतार िदया उस समय उनम एक गज़ब का जोश और जूनून था।
पर सुनीलजी जब च ान से चढ़कर गुफा म घुसे तब उनका मन बहोत दु खी था। उनके िलए यह सोचना भी नामुमिकन था की कभी
वह िकसी आदमी को इतनी बेरहमी से मार भी सकते ह। उनके मन म अपने आपके िलए एक िध ार सा भाव पैदा आ। उ
अपने आप पर नफरत हो गयी। जब वह गुफा म घुसे और जब आयेशा उनसे िलपट कर उ िकस करने लगी तो उनके मन म
अजीब से तूफ़ान उमड़ रहे थे। सुनीलजी को रोना आ रहा था। उनके िलए अपने जीवन का यह सबसे भयावह िदन था। जब
कािलया को ज ूजी ने मार िदया था तो उ बड़ा सदमा लगा था। पर उस समय वह काम ज ूजी ने िकया था, उ ोंने नही।ं जब
उस िसपाहीको यं सुनीलजीने अपने हाथों से मौतके घाट उतारा तो उ लगा की उनम एक अजीब सा प रवतन आया है। उ ोंने
महसूस िकया की वह एक खुनी थे और उ ोंने एक आदमी का क़ िकया था। हम यह समझना चािहए की जो िसपाही सरहद पर
हमारे िलए जान की बाजी लगा कर लड़ते ह, उ भी मरना या िकसी को मारना अ ा नही ं लगता, जैसे की हम अ ा नही ं लगता।
पर वह हमारे िलए और हमारे दे श के िलए मरते हऔर मारते ह। इसी िलए वह हमारे अित स ान और शंशा के पा ह।

सुनीलजी के करतब को बड़ी ही आ य भरी नजरों से दे ख रही आयेशा सुनीलजी के वापस आने पर गुफा म उन पर टू ट पड़ी और
उनसे िलपट कर बोली, "मुझे पता नही ं था तुम इतने बहादु र और जांबाज़ हो।" जब सुनीलजी ने आयेशा को कहा की उनको
सावधान रहने की ज रत है, तब आयेशा ने कहा, "इस च ान के िबलकुल िनचे एक छोटासा झरना है। म अ र वहाँ जा कर
नहाती ँ। वह गुफा म िछपा आ है। बाहर से कोई उसे दे ख नही ं सकता। तुम भी काफी थके ए हो और तु ारे कपडे भी गंदे गए
ह। चलो म तु वह झरना िदखाती ँ। तुम नहा लो और िफर िदन म थोड़ा आराम करो। म चौकीदारी क ँ गी की कही ं कोई
िसपाही इस तरफ आ तो नही ं रहा।" सुनीलजी ने आयेशा की और दे खा और मु राये और बोले, "मोहतरमा! मेरे पास बदलने के
िलए कोई कपडे नही ं है।" आयेशा ने शरारत भरे अंदाज म कहा, "कोई बात नही ं। तुम बगैर कपडे ही ऊपर आ जाना, म नही ं
दे खूंगी, बस!" ऐसा कह िबना सुनीलजी के जवाब का इं तजार िकये आयेशा ने सुनीलजी का हाथ थामा और उ खीच
ं कर हलके
कदमों से गुफा के पीछे िनचे एक झरने के पास ले गयी।

वहाँ प ँचते ही उसने ध ा मारकर सुनीलजी को झरने म जब धकेला तो सुनीलजी ने भी आयेशा को कस के पकड़ा और अपने
साथ आयेशा को लेकर धड़ाम से झरने म िगर पड़े । आयेशा हंसती ई सुनीलजी स िलपट गयी और बोली, "परदे सी, तुम तो बड़े ही
रोमांिटक भी हो यार!" सुनीलजी ने आयेशा को भी जकड कर पकड़ा। उनका मन उस समय कई पार रक िवरोधी भावनाओं से
पीिड़त था। िविध का िवधान भी कैसा िविच है? एक दु न के मु की औरत उनकी सबसे बड़ी दो और िहतैषी बन गयी थी।
उस समय के सुनीलजी के मन के भावों की क ना करना भी मु ल था। वह िसपाही तो थे नही।ं उ तो यही िसखाया गया था
की "अिहंसा परमो धम।" अिहंसा ही परम धम है। िसपाही का खून और उसका मृत शरीर दे ख कर सुनीलजी को उलटी जैसा होने
लगा था। जैसे तैसे उ ोंने अपने आप पर िनय ण रखा था। पर जब आयेशा ने उनकी बहादु री की शंशा की तो उनको रोना आ
गया और वह फुट फुट कर रोने लगे। आयेशा सुनीलजी के मनके भाव समझ रही थी। वह जानती थी की एक साधारण इं सान के
िलए ऐसा खूनखराबा दे खना िकतना किठन था। वह खुद भी तो उस नरसंहार के पहले एक आम औरत की तरह अपना जीवन बसर
करना चाहती थी। पर िवधाता ने उसे भी मरने मारने के िलए मजबूर कर िदया था और जब पहली बार उसने वह िसपाही को मार
डाला था तब उसे भी ऐसे ही फीिलंग ई थी।

आयेशा ने आगे बढ़कर सुनीलजी को अपनी बाँहों म ले िलया ए गाढ़ आिलंगन करके (कस के ज ी लगा कर) सुनीलजी के
बालों म उं गिलयां िफराते ए बोली, "ओ परदे सी, म समझ सकती ँ तु ारे मन म ा हो रहा है। म भी तो इस दौर से गुजर चुकी
ँ। पर हम लड़ाई के माहौल म है। ा कर, या तो हम उनके हाथों मारे जाएँ , या िफर उनको मार द। यहां शा और अमन के
िलए जगह ही नही ं छोड़ी है उ ोंने। मेरी माँ को मार िदया, मेरे अ ू को मार िदया और मेरी इ त लूटने पर आमादा हो गए थे
वह।" आयेशा ने सुनीलजी का सर अपनी छाती पर रख िदया। आयेशा का पूरा जवान गीला बदन, उसकी छाती पर उभरे ए
आयेशा के न की नरमी सुनीलजी के गालों को छू रही थी। आयेशा के बदन पर वैसे ही कम कपडे थे। जो थे वह गीले हो चुके थे
और आयेशा के बदन को दिशत कर रहेथे। सुनीलजी की आँ खों के सामने आयेशा के नों के उभार, आयेशा के बू के िबच
की खायी, यहां तक की उसकी िन ले ँ भी िदख रही ं थी ं। सुनीलजी ने दे खा की आयेशा भी शायद उनके शरीर के श से उ ेिजत

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हो गयी थी और उसकी िन ले ँ उ ेजना के मारे फूल कर एकदम स होरही थी ं। आयेशाकी नशीली आँ ख सुनीलजीकी आँ खों को
एकटक िनहार रही थी ं। सुनीलजी कीआँ खों म सावन भादो की तरह पछतावे के आं सू बहे जा रहे थे। आयेशा अपने मदम नों
से सुनीलजी की आँ ख बार बार पोंछ रही थी, और कहे जा रही थी, "बस परदे सी, काफी हो गया। म औरत ँ। मने भी एक िसपाही
को जान के घाट उतार िदया था। मुझे भी ब त बुरा लगा था। पर म ऐसे नही ं रोई। तुम तो मद हो। बस भी करो।" ऐसा कह आयेशा
ने अपने हाथ ऊपर कर अपनी कमीज उतार दी। सुनीलने जब दे खा की आयेशाने अपनी कमीज़ उतार दी और वह िसफ ा म ही
पानी म खड़ीथी, तो वह हो गए। आयेशाकी कमीज काफी ल ी थी और करीब करीब पुरे बदन को ढक रही थी। उसके हटने
से आयेशा का पतला पेट और पतली छोटी सी कमर िबलकुल नंगी िदखाई दे रही थी। सुनीलजी चुप हो गए। अब उनका ान
आयेशा की खली ई जवानी पर था। आयेशा की ा उसके उभरे पूरी तरह फुले ए नो ँ को बांध सकनेम पूरी तरह नाकािमयाब
थी। पानीम भीग जाने की वजहसे ा भी आयेशा के नो ँ का गोरापन और फुलाव िछपा नही ं पा रही थी।

आयेशा की ढू ं टी खूबसूरत सी उसके पेट के िनचे और चूत के उभार के ऊपर बड़ी ही खूबसूरत लग रही थी। आयेशा का सलवार
फटा आ था। आयेशा की जाँघ फ़टे ए सलवार म से िदख रही ं थी ं। आयेशा के सुआकार कू े उसकी सलवार के िनय ण म नही ं
थे। कमीज़ के िनकलते ही उनकी खूबसूरती सुनीलजी की आँ खों को अपने ऊपर से हटने नही ं दे रहे थे। उस फ़टीसी सलवार म से
भी आयेशा के दोनों म कू े और उसके िबच की दरार सलवार के पानी म गीला होने पर आयेशा की गाँड़ के दशन करा रहे थे।
आयेशा की गाँड़ के िबच की दरार दे ख कर सुनीलजी का मन िवचिलत होने लगा था। उनका ल उस दरार के िबच अपनी जगह
बनाने के िलए लालाियत हो उठा। सुनीलजी की फ़टी ई आँ खों पर
ान ना दे ते ए आयशा ने झक
ु कर अपनी कमीज़ झरने के
पानी म धोयी और उसे िनचोड़ कर एक प र रख दी। िफर बड़ी ही अदा से उसने अपनी सलवार िनकालदी। अब आयेशा िसफ
एक ा और पटी म ही थी। सलवार को भी उसने अ ी तरह धोया और िनचोड़ कर उसी प र पर रख िदया।

सुनीलजी की आँ खों के सामने अब आयेशा करीब करीब नंगी खड़ी थी। सुनीलजी आयेशा की जाँघों का कमल की नाल जैसा
आकार दे ख कर दे खते ही रह गए। उ ोंने िवधाता की एक बड़ी ही खूबसूरत रचना अपने सामने साकार न प म दे ख। कही ं भी
कोई कमी उस रचना म नही ं थी। मन ही मन सुनीलजी सोचने लगे की भगवान् ने औरत को िकतना खूबसूरत बनाया है। और उसम
भी उनकी इस रचना एकदम लाजवाब थी। आयेशा की दोनों जाँघों के िबच थत उसकी चूत का टीला अब नजर आ रहा था।
पानी म गीली होने के कारण आयेशा की पटी भी पारदशक हो गयी थी और आयेशा की िछपी ई ेम िबंदु (उसकी खूबसूरत चूत)
की झाँकी करा रही थी। आयेशा की झाँट अगर होंगी ं तो हलकी सी ही रही होंगी, ूंिक चूत के बाल नजर नही ं आ रहे थे। आयेशा
की गाँड़ के दोनों गाल (कू े) अब नंगे थे और पटी की प ी जो की गाँड़ की दरार म घुस चुकी थी वह ना तो आयेशा की गाँड़ को
छु पा सकती थी और ना तो गाँड़ के गालों के िबच की दरार को।

आयेशा सुनीलजी की नज़रों को नजर अंदाज करते ए सुनीलजी के पास आयी। उसने सुनील जी के दोनों हाथ ऊपर कर उनकी
शट और बादम बिनयान भी िनकाली और उ धो कर िनचोड़ कर अपने कपड़ों के साथ ही रख दी। िफर आयेशा ने धीरे से अपने
हाथों से सुनीलजी की पतलून की बे लूज की और पतलून खोली। आयेशा का हाथ अपनी पतलून पर लगते ही सुनीलजी के पुरे
बदन म झनझनाहट सी होने लगी। बे खुलते ही पतलून िनचे िगर गयी। सुनीलजी का मोटा खड़ा ल उनकी िन र म साफ़
साफ़ िदख रहा था। आयेशा ने सुनीलजी के ल को छु आ नही ं था। पर उनका ल एकदम फौजीकी तरह िन रम खड़ा होगया
था। सुनील जी के ल की और ान ना दे ते ए आयेशा ने उनकी पतलून भी पानी म अ ी तरह धोयी और पहले की ही तरह
अ ी तरह िनचोड़ कर प र पर रख दी। आ खर म आयेशा पानी म बैठ गयी अपने बदन को िघस िघस कर पानी को अपने हाथों
से अपने पर उछाल कर नहाने लगी। पानी म बैठे बैठे उसने सुनीलजी की और दे खा। सुनील जी बेचारे एक बूत की तरह आयेशा
की गित-िविधयां अच े से दे ख रहे थे। आयेशा ने सुनील जी के पाँव को पकड़ उ झकझोरा और कहा, "कमाल है! तुम कैसे मद
हो? एक औरत तु ारे कपडे इतने ार से िनकाल रही है और तुम हो की बूत की तरह खड़े हो और िहल ही नही ं रहे हो। अब म
तु ारी िन र भी िनकाल दू ा? या िफर तुम ही िनकाल कर मुझे धोने के िलए दोगे?" आयेशा का ताना सुनकर सुनीलजी चौके
और आयेशा के पास ही खड़े खड़े उ ोंने अपनी िन र अपने पाँव के िनचे की और सरका दी।

सुनीलजी की िन र का पदा हटते ही सुनीलजी का खड़ा और कडा ल खुलकर आयेशा के सामने आ खड़ा आ। आयेशा ने

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परदे सी का ल दे खा तो वह उसे दे खती ही रह गयी। उसके चेहरे पर शम की लािलमा सी छा गई। गुलाबी रं ग का पूरी तरह तना
आ इतना मोटा और लंबा ल दे ख कर उसके मन म ा भाव हो रहे थे उसकी क ना करना भी मु ल था। आयेशा
सुनीलजी के खुले और आ ां की और अपना उ सर उठाते ए ल को काफी दे र तक नजर उठा कर तो कभी झुका कर
दे खती रही। आयेशा जब आगे झुकी तो सुनीलजी को ऐसा लगा जैसे आयेशा उनके ल को उसके मुंह म लेकर उसे चूसने
लगेगी। पर आयेशा ने आगे झक
ु कर सुनीलजी के पांव के िनचे िगरी िन र को उठाया और बड़े ार से उसे अ ी तरह धोया।
िफर उसे िनचोड़ कर प र पर बाकी कपड़ों के साथ रख िदया। आयेशा यह सोचकर बेताब थी की परदे सी का अगला कदम ा
होगा। आयेशा उ ीद कर रही थी की परदे सी उसकी ा और पटी िनकाल कर उसको अपनी बाँहों म भर लेगा और उसके बरसों
से ासे बदन और ासी चूत की ास उस व बुझा दे गा। पर सुनीलजी को वैसे ही खोया आ दे ख कर आयेशा ने अपने ही
हाथो ँ से अपनी ा की प ी खोल दी और िफर थोड़ा झुक कर अपने पाँव ऊपर कर अपनी पटी भी उतार दी।

सुनीलजी बड़े ही अचरज और लोलुपता से िविध की सबसे खूबसूरत रचना को पूिणमा के चाँद की तरह अपनी पूरी कला म िबना
कोई आवरण के न प म दे खते ही रहे। एक और मरने मारने की बात थी तो दू सरी और एक खूबसूरत रचना उनको अपनी पूरी
खूबसूरती के दशन दे रही थी। सुनीलजी मन ही मन सोच रहे थे की हो सकता है इस िमलन से ही कोई नयी खूबसूरत रचना यह
धरती पर पैदा हो! पूरी तरह िबना िकसी आवरण के नंगी आयेशा को सुनीलजी ह ेब े खड़े खड़े दे खते ही रहे। उनके ल से
उनका पूव ाव बहना शु हो गया था। सुनीलजी ने पहली बार आयेशा की इतनी खूबसूरत चूत को पूरी तरह से अनावृत हाल म
दे खा। आयेशा की चूत सुनीलजी को ब त ही ादा सु र लग रही थी। सुनीलजी को वह और औरतों से अलग ही लग रही थी। यह
उनके मन का वहम था या हकीकत वह सुनीलजी समझ नही ं पा रहे थे। आयेशा की चूत की दरार एक महीन पतली रे खा की तरह
थी। उसके दोनों और उभरे ए चूत के हो ँठ कमालके खूबसूरत थे। चूत के ऊपर बाल नजर नही ं आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे
आयेशा ने अपनी झाँट के बाल कुछ ही समय पहले साफ़ िकये होंगे। पर ऐसाथा नही ं। ूंिक कुछ हलके फु े बाल िफर भी िदख
रहे थे। आयेशा की चूत के हो ँठों के आरपार आयेशा की खूबसूरत सुआकार ल ी जाँघ इतनी ललचाने वाली और अ े अ े मद
का पानी िनकाल दे ने वाली थी ं। चूत की सीध म ऊपर की और उभरा आ पेट जो और ऊपर जाकर पतली सी कमर म प रवितत
हो जाता था, कमाल का था। आयेशा ने जब दे खा की सुनीलजी िफर भी चुपचाप उसे दे ख रहे थे तो चेहरे पर िनराशा का भाव िलए
आयेशा जाने की तैयारी करने लगी तब सुनीलजी ने उसे रोक कर कहा, "अभी हमने खतरों से िनजात नही ं पायी है। हम दु न के
ए व रहते ए गािफल नही ं रह सकते। कही ं कभी कोई िसपाही हम दे ख ले और मार दे या पकड़ ले इससे बेहतर ह हम पूरी
तरह सावधान रह। पहले हम यह सुिनि त कर ल की दु न के िसपाही से हम कोई ख़तरा नही ं है।"

सुनीलजी की बात सुनकर िबना कुछ जवाब िदए िनराश ई आयेशा धुले ए सारे कपडे उठा कर जमीन का थोड़ा सा चढ़ाव चढ़
कर वापस गुफा म जाने लगी। नंगी चलती ई आयेशा के मटकते ए कू ों को सुनीलजी दे खते ही रहे। उ और उनके फुले ए
मोटे और ल े ल को इस तरह चुदाई करवाने के िलए इतनी इ ु क कािमनी को िनराशा करना बड़ा ही खटक रहा था। पर ा
करे ? व ही ऐसा था की थोड़ी सीभी लापरवाही उनकी जान ले सकती थी। आयेशा चुपचाप अपनी गुफा म प ंची और धुले ए
गीले कपडे उसने प र पर इधर उधर िबछा िदए। िफर अपने हाथ म एक बंदूक लेकर उसने गुफा के प ों से आ ािदत दरवाजे
की दरार म से बाहर दे खना शु िकया। कुछ ही दे र म सुनीलजी भी नंगे गुफा म पीछे से आ प ंचे। उ ोंने पीछे से आकर नंगी
खड़ी आयेशाको अपनी बाँहोंम िलया और अपना ल आयेशा की गांड की दरार से सटाते ए और आयेशा के उ ं ड दोनों नो ँ
को अपने दोनों हाथों म दबाते और मसलते ए बोले। "दे खो आयेशा, म कोई नामद नही ं ँ की तु ारे जैसी बला की खूबसूरत
औरत को नंगा दे ख कर मुझे कुछ नही ं होता। म इसी व तु मन से और बदन से मेरी बनाना चाहता ँ। म तु ारे और मेरे बदन
की ास बुझाना चाहता ँ। पर धीरज का फल मीठा होता है। पहले हम यह प ा करल की खतरा नजदीक नही ं। अब मुझ पर
हम दोनों के जान की िज ेवारी है।" आयेशा ने मुड़कर सुनीलजी के सर को अपने हाथों म िलया और सुनील के होठ
ँ ों से अपने हो ँठ
िचपका कर उ चूसते ए बोली, "म सोचती थी की यह मद तो पूरा छह फ़ीट ल ा और ह ाक ा है। इसका ल भी इतना लंबा,
मोटा, खड़ा और कडा है। िफर ा इस परदे सीके सीनेम िदल है की नही ं?"

आयेशा ने िफर ग े की और इशारा कर कहा, "तुम थके ए हो। तुम वहाँ थोड़ी दे र आराम करो। म यहां पैहरा दे रही ँ। कुछ भी

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होने पर म तु जगा दू ं गी। तु आराम की स ज रत है।" आयेशा ने िफर अपनी आँ ख नचाते ए शरारत भरे अंदाज़ म कहा,
"अगर तु ठीक आराम िमला तो तुम िफर से चु हो जाओगे और दो ों और दु नों दोनों को ही पूरा इ ाफ दे पाओगे।"

सुनीलजी ने आयेशाके पीछे अपना बदन सटाकर आयेशा के उ त नो ँ को अपनी उँ गिलयों म रगड़ते ए कहा, "म िहंदु ानी
जवान ँ। म फौजी ना सही पर िदल हमारे फौिजयों जैसा िदलफक रखता ँ। हम हमारे जवानों को दे श भ और दू सरे कड़े
िनयमों के साथ साथ मिहलाओं की इ ज़त करना िसखाते ह। हमारे फौजी जवान कभी भी मिहलाओं से बदसुलूकी या जबरद ी
नही ं करते। पर जो हमारी जानेमन होती है, उ हम छोड़ते भी नही ं। हम उ पूरी तरह से खुश और संतु करने का मादा रखते
ह।" आयेशा ने िफर अपनी आँ ख नचाते ए कहा, "अ ा?" आयेशा ने अपना हाथ पीछे िकया और सुनीलजी से थोड़ा अलग हो कर
सुनीलजी का ल अपनी उँ गिलयों म िलया। सुनीलजी की उ ेजना के कारण उनके ल के क िछ म से िचकना ाव रसना
शु हो गया था। अपनी उँ गिलयों से उस ाव को सुनीलजी के ल की सतह पर फैलाते ए आयेशा ने पूछा, "हाँ जी! तुम िजस
तरह अपनी िचकनाहट िनकाल रहे हो, यह तो साफ़ िदख रहा है। वैसे तुम करते ा हो?" सुनीलजी ने आयेशा के नंगे कमिसन पेट,
कमर और नािभ पर हाथ िफराते ए कहा, "अभी तो म एक बेहद खूबसूरत मोहतरमा के खुबरात बदन का जायजा ले रहा ँ और
उन से ार कर रहा ँ।" आयेशा ने कहा, "तुम तो कमाल हो! जब म चाहती ँ की तुम मुझसे ार करो, तो जनाब मुझे बड़े
उपदे श दे ने लगते ह की अभी हम चौक ा रहना है बगैरह बगैरह और जब म कहती ँ आराम करो तो जनाब को ार करने का
मन करता है? यह ा बात ई?" सुनीलजी ने आयेशा की कमर को पकड़ा, उसका हाथ अपने ल से हटाया और आयेशा की
कमर को पीछे की और खी ंचा और अपने ल को आयेशा की गाँड़ की दरार म घुसाया और खोखले ध े मारने लगे जैसे की
चोदते समय ध े मारते ह। िफर बोले, "इस समय तो म अपनी माशूका को मेरे ल को महसूस कराना चाहता ँ, बस। जैसा
तुमने कहा, मोहतरमा का सर आँ खों पर। अब म थोड़ी दे र आराम करलूं और तुम तब तक चौक ी रह कर नजर रखो।"

कुछ ही दे र म सुनीलजी थकान के मारे ग े पर गहरी नी ंद सो गए और खराटे मारने लगे। अब उनको कोई िचंता नही ं थी ूंिक
उनकी रखवाली करने वाली एक जांबाज औरत भरी बंदूक के साथ उनकी िहफाजत के िलए चौकी कर रही थी। पता नही ं िकतना
समय बीत चुका था। सुनीलजी को गहरी नी ंद म अजीब सा सपना दे ख रहे थे। सपने म उ ोंने दे खा की िजस कमरे म उ बंद
िकया गया था, उसम उनके और ज ूजी के हाथ पाँव बंधे ए थे और सुनीलजी और ज ूजी दोनों को एक र ी से कस कर पलंग
के साथ बाँध िदया गया था। उ ोंने दे खा की कािलये ने सुनीता के भी हाथ बाँध िदए थे और उसके मुंह पर प ी बांध दी थी।
कािलया के हाथ म वही बंदूक थी और वह ब दु क को सुनीलजी और ज ूजी की और तान कर सुनीता से बोल रहा था, "अब म
तु चोदुँ गा। तुमने ज़रा भी आवाज िनकाली या मेरा िवरोध िकया तो म तु ारे पित और इस आिशक को गोली मारकर यही ं ख़
कर दू ं गा। तुम नही ं जानती म िकतना खतरनाक ँ। मने कई लोगों को मार िदया है और इन सब को मारने म मुझे मारने म मुझे
कोई तकलीफ या दु ः ख नही ं होगा। कािलया ने अपने सारे कपडे एक के बाद िनकाल िदए और सुनीता के सामने नंगा खड़ा था।
उसका बड़ा मोटा ल कड़क खड़ा था और कािलया उसे सुनीता के मुंह के सामने िहला रहा था। वह चाहता था की सुनीता उसके
ल को चूसे। सुनीता ने अपना मुंह फेर िलया। जैसे ही सुनीता ने अपना मुंह फेर िलया तो कािलये ने कस के एक थ ड़ सुनीता के
कोमल गाल पर जड़ िदया। सुनीता दद के मारे कराहने लगी। सुनीता ने जब मुँह फेर िलया तो कािलया िच ाया, "साली र ी!
नखरे करती है? जानती नही ं म कौन ँ? म यहाँ का खूंखार छु रे बाज और ह ारा ँ। मुझे यहां के लोग कसाई कहते ह। मने
आजतक कमसे कम दस को ज र मार िदया होगा। अगर तुमने मेरा कहा नही ं माना तो तुम ारिवंह होगी। तु ारे दो साथीदार
िमलकर तेरह होंगे। तु ारे र ेदारों को तु ारी लाश भी नही ं िमलेगी।"

कािलया ने एक के बाद एक सुनीता के कपडे िनकाल िदए और उसकी जाँघों को चौड़ा िकया। अपना मोटा तगड़ा हाथ कािलया ने
सुनीता की दो जाँघों के िबच म डाल िदया और सुनीता की चूत म उं गली डाल कर उसका रस िनकाल कर उस उं गली को कािलये
ने अपने मुंह म डाली और उसे चाटने लगा। कािलये की यह हरकत दे ख कर ज ूजी पलंग पर ही तड़फड़ा रहे थे। उनके दे खने
की परवाह ना करते ए कािलये ने सुनीता का ाउज एक ही झटके म फाड़ डाला। सुनीता की ा को भी एक झटका लगा कर
खोल िदया और सुनीता की चूँिचयों को अपने दोनों हाथों से कािलया मसलने लगा। वह बार बार सुनीता की िन लो ँ पर अपना मुंह
लगा कर उ काटता था। सुनीता बेहाल हालात म पलंग पर लेटी ई थी। सुनीता का फटा आ ट उसकी जाँघोंसे काफी ऊपर
था। उसकी पटी गायब थी। कािलयेने पहले ही सुनीता का ाउज और ा फाड़ के फक दी होगी, ों की सुनीता के उ ादक
बू सुनीता की छाती पर छोटे टीले के सामान फूली िन लो ँ से सुशोिभत िदख रहे थे। ज ही कािलया अपने ल को उसकी
चूत म डालेगा इस डर से सुनीता िब र पर मचल कर जोर से िहल रही थी और डर से काँप रही थी। वह इसी िफराक म थी की
कैसे ना कैसे उस भसे जैसे रा स के भयानक ल े और मोटे ल से चुदवाना ना पड़े ।

173
सुनीता को पता था की यिद कािलये ने अपने उस ख े जैसे ल से उसे चोदातो उसके ल े ल से और दू सरे उसके िहंसक एवं
जोरदार ध ों से अपना ल सुनीता की चूतम पेलते ए कािलया सुनीता की चूत फाड़ कर रख दे गा और ा पता सुनीता
उसकी चुदाई झेल ना सके और कही ं ादा खून बहनेसे मर ना जाए? सुनीता की आँ खों म उस भय के कारण आतंक छाया आ
िदख रहा था। सुनीता की चूत साफ िदख रही थी। पर आ य की बात यह थी की सुनीलजी ने दे खा की उनकी बीबी सुनीता की चूत
म से पानी रस रहा था जो चुगली खा रहा था की सुनीता का मन उस डर के बावजूद कािलये से चुदाई के िलए उ ेिजत हो रहा था।
सुनीलजी समझ नही ं पाए की ऐसी हालत म भी उनकी प ी कािलये से चुदवाने के िलए भला कैसे उ ेिजत हो सकती है? पर खैर,
इनको तो मज़बूरी म चुपचाप कािलया ा करता है वह दे खना ही था। अपनी नंगी बीबी को दे ख कर सुनीलजी का ल भी तो
खड़ा हो गया था। वह भी तो अपनी दो टाँगों के िबच म गजब की हलचल महसूस कर रहे थे।

सुनीलजी ने अपने साथीदार ज ज ू ी की और दे खा। ज ूजी का ल ज र खड़ा हो गया था, ूंिक वह इधर उधर खसक कर
अपना खड़ा ल एडज करनेकी कोिशशकर रहेथे। सुनील जी ने दे खा की कािलया ने जब सुनीता के गाल पर करारा थ ड़ मार
िदया तो सुनीता कराह उठी। उसे लगा की कही ं उसके एकाध दांत कािलया की थ ड़ से टू ट ना गया हो। कािलया की आ ा पालन
करने के अलावा उसके पास कोई रा ा नही ं था। अपना लहराता आ ल जब कािलया सुनीता की मुँह के पास लाया और
अपे ा के साथ सुनीता की और दे खने लगा तो ना चाहते ए भी सुनीता ने कािलया के ल की और दे खा। इस बार उसकी िह त
नही ं थी की वह अपना मुंह फेर ले।

कािलया िफर िच ाया, "चलो चुसो मेरा ल ।" कािलये की िच ाहट सुनते ही सुनीता ने अपने मुंह से बोलने की कोिशश की और
अपने बंधे ए हाथो ँ को उठाकर कािलया को िदखाए। कािलया समझ गया की उसका ल चूसनेके िलए सुनीता का मुंह खोलना
ज री था। और अगर उसने मुंह खोला और िच ाई तो ज र सब जाग जाएं गे। कुछ सोचने के बाद कािलया ने तय िकया की
सुनीता के हाथ छोड़ने म कम जो खम था। उसने आगे बढ़कर सुनीता के हाथ खोल िदए। हाथ खुलते ही कािलये ने सुनीता के हाथों
म अपना ल पकड़ा िदया। सुनीता ने अपने हाथ म कािलये का ल पकड़ा और उसे डर के मारे िहलाने लगी। उसके हाथों म
कािलया ल ऐसा लग रहा था जैसे सुनीता ने हाथ म कोई अजगर पकड़ रखा हो। सुनीलजी बार बार सुनीता के चेहरे की और दे ख
रहे थे पर वह सुनीता के भावों को समझ नही ं पा रहे थे। कुछ ही दे र म कािलया से रहा नही ं गया और उसने अपने दोनों हाथो ँ से
सुनीता की टाँग चौड़ी की ं। कािलया झुक कर सुनीता की चूत दे खने लगा।

उसकी चूत का छोटा सा िछ दे ख कर उसने एक भयानक तरीके से ठहाका मार कर हंसा और बोला, "अरे रानी तेरी चूत का होल
तो बड़ा छोटा है। मेरा ल इतना मोटा। कैसे डलवायेगी उसको अपने अंदर? म तो तुंझे छोडूंगा नही ं।" यह कह कर कािलया
सुनीता के ऊपर चढ़ गया। उसके ऊपर सवार होकर उसने अपना ल सुनीता की चूत के िछ पर रखा और सुनीता से कहा,
"अब म तुझे यह मौक़ा दे ता ँ की तू मरे ल को सहला कर उसकी िचकनाहट से अपनी चूत गीली करले तािक तुझे ादा
परे शानी ना हो।" जैसे ही सुनीता ने कािलये का ल पकड़ कर उसे सहलाया और अपनी चूत के होंठों को िचकना िकया, कािलये
ने एक ही झटके म अपना ल सुनीता की चूत म घुसा िदया। सुनीलजी की समझ म यह नही ं आया की कैसे कािलया अपना इतना
मोटा ल सुनीता की चूत म घुसा पाया। उसके बाद कािलया अपने पडू से ध े मारकर सुनीताकी चूतम अपना ल पेलने लगा।
सुनीता की काराहट बढ़ती जा रही थी। पर सुनीता मुंह पर लगी प ी के कारण िच ा नही ं पा रही थी। कािलया एक के बाद एक
ध े मार कर अपना ल थोड़ा थोड़ा ादा अंदर घुसेड़ रहा था वैसे वैसे सुनीता की हलचल बढ़ रही थी।

सुनीलजी ने दे खा की सुनीता भी कािलये के साथ साथ चुदाई का मजा ले रही थी। सुनीलजी की झ ाहट का िठकाना ना रहा? वह
मन ही मन सोच रहे थे, "यह कैसी औरत है जो ऐसे भयानक आदमी से चुदवा कर मजे ले रही है?" सुनीता को काफी दे र तक
कािलये ने चोदा। सुनीता की चूत म से खून िनकल रहा था। सुनीलजी से दे खा नही ं गया। उ ोंने अपनी आँख मूँद ली ं। अचानक उ
महसूस आ की कमरे म ोित जी दा खल ई। वह अच े से दे खते रहे की दे खते ही दे खते वहाँ से सुनीता, कािलया, ज ूजी
सब पता नही ं कहाँ चले गए। उ ोंने यह भी महसूस िकया की उनके हाथ और पाँव खुले थे। ोित जी के बदन पर कोई कपड़ा
नही ं था। बापरे ! सुनीलजी ने महसूस िकया की ोितजी वैसी ही न ाव था म उनके पास आकर सो गयी ं और एक हाथ से उनके
खड़े ए ल को सहलाने लगी ं। उ ोंने यह भी महसूस िकया की उनके बदन पर भी कोई कपड़ा नही ं था। ोित का नंगा बदन
अब उनके नंगे बदन से सटकर लेटा था। ोित उनके ऊपर अपने नो ँ को रगड़ती ई बोली, "परदे सी, म जानती ँ तुम ज ी
ही चले जाओगे। तुम मेरे नही ं होने वाले, पर म कुछ दे र के िलए ही सही तु ारी बनना चाहती ँ। म चाहती ँ की इस िबरावान

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जंगल म तुम आज मुझे अपनी बनालो।"

सुनीलजी का माथा ठनक गया, उ समझ नही ं आया की ोित उ "परदे सी" ों कह रही थी। वह चौंक कर अपनी नी ंद म से
जग गए तो उ ोंने पाया की आयेशा नंगा रे शमी बदन उनसे सट कर लेटा आ था और आयेशा उनका ल हलके से सहला रही
थी। गुफा म पूरा अ ेरा छाया आ था। लगता था शाम ढल चुकी थी। आयेशा के घने बाल सुनीलजी के चेहरे पर िबखरे ए थे।
सुनीलजी ने आयेशा के नंगे बदन पर हाथ फेरा। उनके हाथ म आयेशा के पके ए आम से आयेशा के भरे ए न महसूस ए।
आयेशा ने सुनलीजी के कानों म कहा, "परदे सी, अब सारे दु न िसपाही भाग गए ह। एक िसपाही भागते ए िच ा रहा था। "भागो
और जान बचाओ। िहंदु ानी फौजवाले आ प ंचे ह। लगता है, तु ारे िसपािहयों ने उनको खदे ड़ िदया है। यहां उसके बाद पुरे िदन
कोई नजर नही ं आया। अब सारी रात हमारी है।"

सुनीलजी का सर चकरा रहा था। उ समझ नही ं आ रहा था की ा सच था और ा सपना। कािलया तो मर गया था िफर वह
कैसे सुनीता को चोदने आया और अचानक ोित की जगह आयेशा कहाँसे आगयी, उनकी समझ म नही ं आ रहा था। कई िदनों
की थकान और तनाव के कारण उनका िदमाग ठीक से काम नही ं कर रहा था। हालांिक िदन भर की नी ंद और आराम के बाद वह
काफी राहत महसूस कर रहे थे। आयेशा का रे शमी बदन उनके नंगे बदन से रगड़ रहा था। आयेशा के घने मुलायम बाल उनके
चेहरे और छाती पर िबखरे ए थे। उनके हाथों म आयेशा के म नो ँ और उनकी फूली ई िन ले ँ थी ं। आयेशा के न पके ए
फल की तरग पूरी तरह प रप थे पर ज़रा से भी ढीले नही ं थे। सुनील जी ने खुद महसूस िकया की उ शायद आयेशा से ार सा
हो गया था। आयेशा भी िबना बोले सुनीलजी के पुरे बदन को सहला रही थी, ार कर रहीथी। काफी समय वह चुप रहकर सुनील
जी के सारे अंगों को ार से सहलाती तो कभी कभी वह सुनीलजी के पुरे बदन को बार बार चुम कर "ओह! परदे सी, तुम िकतने
ारे हो। आज म पूरी तरहसे तु ारी बनना चाहती ँ। आज तुम मुझे जैसे चाहो जी भरके ार करो। तुम मुझसे जो चाहे करो। मुझे
एक रात म ही जनम जनम तक याद रहे ऐसा ार करो।" कभी यह बोलती तो कभी बस ार से सुनीलजी के पुरे बदन को चुपचाप
िबना बोले चूमती रहती। सुनीलजी आयेशा का ार दे ख कर दं ग रह गए। एक दु न दे श की लड़की उ िकतना ार करती थी।
वह दोनों जानते थे की उनका ार थोड़ी ही दे र के िलए था। कुछ ही दे र म सुनीलजी अपने रा े और आयेशा अपने रा े जुदा हो
जाने वाले थे। आयेशा का पूरा बदन रोमांच से काँप रहा था। आयेशा के रोंगटे खड़े होगये थे जो उसकी मानिसक उ ेजना दशाता
था।

सुनीलजी का ल भी एकम फौलादकी छड़ की तरह खड़ा हो गया था। आयेशा कभी उसे अपने हाथों म लेकर हलके से ार से
िहलाती थी तो कई बार झुक कर उनके ल की नोंक को चुम कर छोड़ दे ती। सुनीलजी आयेशा की पीठ सहलाते तो आयेशा की
गाँड़ पर हाथ िफराते। कई बार आयेशा की सपाट कमर पर हाथ िफराते तो कई बार आयेशा की जाँघों के िबच म हाथ डालकर
उसकी चूत के उभार को सहलाते। धीरे धीरे सुनीलजी की उ ेजना बढ़ने लगी। आयेशा भी अपनी धीरज की सीमा पर प ँच रही
थी। वह परदे सी के ल को अपनी चूत म महसूस करना चाहती थी। उसे कोई ा कहेगा इस की र ी भर की भी कोई िचंता नही ं
थी। सुनीलजी अब नीद ं की असर से पूरी तरह से बाहर आचुके थे। उनके सामने आयेशा थी जो उ अपना न , सुकोमल और
कमिसन बदन पेश कर रही थी। सुनीलजी ने आएशा के न बदन को दे खा तो था पर गौर से महसूस नही ं िकया था। अब उनके
पास मौक़ा था की वह आयेशा के न बदन को ार से सहलाये और उसकी ार भरी जांच पड़ताल कर सके। वह बदन पूरी रात
उनका था। सुनीलजी का एक हाथ आयेशा की छाती पर उसके नो ँ को सहला रहाथा तो दु सरा हाथ आयेशाके िपछवाड़े आयेशा
की सुकोमल और सुगिठत गाँड़ को सहलाने म लग गया। सुनीलजी ने जब से पहली बार आयेशा को दे खा था तबसे उनको आयेशा
की गाँड़ का आकार भली भाँित भाया था और उनके मन की इ ा थी की उनको मौक़ा िमलेगा तो वह आयेशा की गाँड़ को अ ी
तरह से सहलायगे और उसे चूमगे।

अ र मद को औरतों की गांड का घुमाव बड़ा ही आकिषत करता है। अ र कईलोग युवितयां, ए े स एवं सी रयल म काम
करने वाली अिभनेि यों की गाँड़ का आकार दे ख कर पागल हो जाते ह। सुनीलजी ने भी आयेशा की गाँड़ के गालों की कोमलता
और उस का करारापन अपने हाथों से महसूस िकया। वह बार बार आयेशा की गाँड़, उसके गालों, िबच की दरार म अपनी उं गिलयां
डाल कर आयेशा की युवा चा का मुआइना कर रहे थे। सुनीलजी बार बार आयेशा के बालों म अपना मुंह लगा कर उ चुम रहे
थे। आयेशा भी बार बार सुनीलजी से िचपक कर "मेरे परदे सी, मेरी जान। मेरे आका। कह कर उनके हर एक अंग को चूमती रहती
थी। आयेशा के बदन म कामुकता की आग लगी थी। इतने सालों के बाद उसे अपनी जवानी और जवानी भरा बदन िकसी मद को
सौपने का सपना साकार करने का मौक़ा िमला था। आयेशा को पूरी जवानी िज त, अपमान और मश त म गुजारनी पड़ी थी।

175
उसे अपने माँ बाप की िहफाज़त और महेनत करनी पड़ती थी। उसे अपना ाल भी नही ं आता था।

सुनीलजी ने आयेशा के सर से शु कर आयेशा के बाल, उसका कपाल, उसकी भौंह, आँ ख, नाक और होंठों को चूमने लगे। हाँठों
पर प ँच कर सुनीलजी ने आयेशा को अपनी बाँहों म कस के जकड़ा और अपना ल आयेशा की जाँघों के िबच म घुसाते ए वह
आयेशा के हो ँठ जोश से चूमने लगे। आयेशा के ऊपर के तो कभी िनचे के हो ँठ चूमते तो कभी आयेशाके मुंह म अपनी जुबाँ घुसा
कर उसे चूसने का मौक़ा दे ते। आयेशा भी सुनीलजी की जुबान को चूसती और उसकी लार िनगल जाती थी। उसे परदे सी के मुंहकी
लार और उसके बदन की खुशबू भा गयी थी। आयेशा के म बू सुनीलजी की छाती म िचपक गए थे। सुनीलजी का हाथ बार
बार आयेशा की पसिलयों की खाई से िफसलता आ उसकी गाँड़ के पास क जाता और धीरे से उन नाजुक मरमरी चा को
मसलनेके िलए लालाियत रहता था। हो ँठों का काफी रस िपनेके बाद सुनीलजी आयेशाकी गदन चूमने लगे। आयेशा की ल ी गदन
पर उसकी घनी जु िबखरी ई थी ं। उसके बाद आयेशा के कंधे और बाजुओ ं से होकर िबच की और बढ़ कर सुनीलजीका सबसे
अजीज़ थान आयेशाके बू पर आकर सुनीलजी की गाडी क गयी। दो बड़े बड़े गु ज और उसके उ र गोल चॉकलेट रं ग के
एरोला जो उ ेजना के कारण कई उभरी ई फुंिसयों से भरे ए थे। उन एरोला के बोचोबीच तने ए दो िशखर सामान फूली ई
िन ले ँ सुनील जी के हो ँठों के दबाने से और उ ािदत हो जाती थी ं। सुनीलजी कभी िन लो ँ को चूसते तो कभी नो ँ के पुरे उभार
को अपने मुंह म लेकर ऐसे चूसते जैसे ब ा माँ के नो ँ को उसका दू ध िपने के िलए चूसता है। सुनीलजी के नो ँ को चूसते ही
आयेशाका उ ाद बेकाबू होजाता था। अ र औरतों से स ोग करते समय मद को चािहए की उसके नो ँ का ख़ास ाल रख।
औरत के न से उनकी कामुकताका सीधा स है। कई बार चुदाई करते ए जब मद औरतके नो ँ का ान नही ं रखतातो
औरत बेचारी अपने नो ँ को खुद ही सहलाती दबाती रहती ह तािक उसके उ ाद म कोई कमी ना आये और उस स ोग को वह
पूरी तरह ए जॉय कर सके।

आयेशा के नो ँ को चूसते ए और उसकी िन लो ँ को काटते ए सुनीलजी का उ ाद बढ़ता जा रहा था। आयेशा के नो ँ को


सुनील जी ने इतनी उ टता से चूसा था की उसके बू पर लाल चकामे पड़ गए थे। पर आयेशा को इसका कोई गम नही ंथा। आज
उसे अपनेआिशक़ को पूरी ख़ुशी और उ ाद दे ना था और उससे अपनी िजंदगीकी सबसे खूबसूरत रातको यादगार बनाना था।
सुनीलजी जब आयेशा के नो ँ को जी भर के पी चुके तब वह आयेशा के सपाट पेट और पतली कमर के िबच थत ढूंटी याने नािभ
पर प ँच कर िफर क गए। आयेशा की नािभ के इद िगद चूमते ए उनके हो ँठ िनचे की और जाने लगे तब आयेशा ने शम के मारे
अपने दोनों हाथों से अपनी चूत छु पानी चाही। सुनीलजी ने ार से आयेशा के दोनों हाथों को हटा िदया और झुक कर ार से
आयेशा की चूत के उभार को चूमने लगे। सुनीलजी के हो ँठों के श अपनी चूत के करीब होते ए ही आयेशा मचल उठी। उसके
हो ँठोंसे एक हलकीसी टीस िनकल गयी। अना-यास ही आयेशा की टांग चौड़ी हो गयी ं। सुनील जी ने अपना सर आयेशा की जाँघों के
बीच म रख िदया और आयेशा की चूतके हो ँठों को चु न करने लगे। अपनी जीभ से सुनीलजी ने आयेशा की चूत के सवदनशील
हो ँठ के िबच वाली चा की कुरे दना शु िकया। आयेशा के उ ाद का िठकाना नही ं रहा। वह उ ाद से कराह उठी और बोली,
"अरे परदे सी, ा कर रहे हो? मुझे पागल कर दोगे ा?"

पर सुनीलजी यह सुनकर और जोश खरोश से आयेशा की चूत को चाटने म लग गए। आयेशा की चूत म से जैसे उसका उ ाद
फ ारे के प म फुट पड़ा। आयेशा की चूत म से उसका रस रसने लगा। सुनीलजी की जबान उस रस को चाटने लगी। आयेशा ने
सुनीलजी के ल को आवेश म जोर से िहलाना शु िकया। अब वह सुनीलजी से चुदवाना चाहती थी। वह चाहती थी की सुनीलजी
उस रात उसे खूब स ी और जोश से चोदे । वह चाहती तह की सुनीलजी के िमलन की याद वह पूरी िजंदगी भूल ना पाए। लेटी ई
आयेशा बैठ खड़ी ई और उसने सुनीलजी को खड़ा िकया और खुद सुनीलजी के क़दमों म आ बैठी। नंगे सुनीलजी के खड़े होते ही
उनका ल भी हवा म लहराने लगा। आयेशा ने सुनीलजी का ल अपने एक हाथ म िलया और उसे चूमा और ऊपर सुनीलजी
की ओर दे खा। सुनीलजी ने आयेशा के सर पर हाथ र ा और आयेशा के बाल अपनी उँ गिलयों से संवारने लगे और आयेशा आगे
ा करे गी उसका बेस ी से इं तजार करने लगे। आयेशा ने सुनीलजी के ल पर फैली ई िचकनाहट को अपने हाथ की उँ गिलयों
से उनके ल की सतह पर फैलाते ए उसे खासा ि बना िदया। सुनीलजी के ल की अ चा को मु ी म दबाकर आयेशा
ने उसे िहलाना शु िकया। कुछ दे र तक िहलाने के बाद आयेशा ने सुनीलजी के ल का अ भाग मुंह म िलया और उसे चूसा।
धीरे धीरे आयेशा ने सुनीलजी का ल अपने मुंह म लेकर अपना मुंह आगे पीछे करने लगी िजससे सुनीलजी का ल आयेशा के
मुंह को धीरे धीरे से चोद सके। सुनीलजी ने भी आयेशा की इ ा के मुतािबक़ आयेशा के मुंह को अपने ल से चोदना शु िकया।
आयेशा के मुंह को चोदते ए सुनीलजी ने आयेशा की चूत म अपनी दो उं गिलयां घुसेड़ दी ं। आयेशा के मुंह के साथ वह अपनी
उँ गिलयों से आयेशा की चूत को भी चोदने लगे। आयेशा मुंह म परदे सी का ल और चूत म उनकी उं गलयों से चुदवा ने का मजा

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ले रही थी। कुछ दे र तक चुदवाने के बाद आयेशा को अब परदे सी से असली चुदाई करवानी थी।

आयेशा ने कहा, "परदे सी, अब मेरा और इ ेहान मत लो। अब मेरा स ख हो रहा है। तुम जानते हो की म तुमसे चुदवाने के
िलए िकतनी तड़प रही ँ। अब मुझे अपने इस मोटे और ल े ल से खूब चोदो। इतना चोदो, इतना चोदो की मजा आ जाये।"
सुनीलजी ने अपनी माशूका आयेशा की बात सुनी तो उनम और भी जोश आगया। वह फुत से आयेशा को िलटा कर उसको अपनी
दो जांघों के िबच म जकड कर अपने घुटनों को जमीन पर िटका कर आयेशा की चूत पर अपना तगड़ा और लंबा ल लहराने
लगे। आयेशा ने सुनीलजी का ल अपने हाथों म िलया और सुनीलजीको शमाते ए कहा, "परदे सी, यह चूत तु ारी है। उसे शु
शु म स ाल कर चोदना। तु ारे मोटे लंड को एकदम अंदर मत घुसेड़ दे ना, मेरी चूत छोटी है और उसे एडज होने म थोड़ा
समय लगेगा। पर हाँ, एक बार सेट हो जाए िफर तुम मुझे खूब चोदना। आज म पूरी रात तुमसे चुदवाना चाहती ँ।" सुनीलजी ने
आयेशा के हो ँठों को चूमते ए उसके कानों म कहा, "भला म मेरी माशूका को हािन ों प ँचाऊँगा? तुम िनि रहो। ऐसा कह
कर सुनीलजी ने अपना ल आयेशा की चूत म थोड़ा सा घुसाया। आयेशा को ब त अ ा लगा और दद भी नही ं आ। सुनीलजी
का ल तना आ, खड़ा और कड़क ल की धमिनयों म गरम खून के तेज बहाव के कारण आयेशा को उसकी चूत म गरम
महसूस हो रहा था।

आयेशा की सालों की मंशा पूरी होने जा रही थी। वह ार भरी उ ेजक चुदाई का अनुभव जीवन म पहेली बारकर रही थी। उससे
पहले उसके पित ने उसे चोदा ज र था। पर उसम ना तो ताकत थी और ना ही दम ख़म। काफी शराब िपने के कारण उसका
ल चूत म जाने लायक कड़क भी नही ं हो पाता था। शायद एकाध बार आयेशा के पित ने आयेशा को ठीक ठाक चोदा था पर ना
तो उस चुदाई म ार का कोई एहसास था और ना ही उ ेजना का। सुनीलजी की चुदाई एकदम अलग थी। सुनीलजी जैसे ही
आयेशा की चूत म अपना ल थोड़ा सा घुसाते तो झुक कर आयेशा के हो ँठ तो कभी कपाल तो कभी न चुम लेते। साथ म वह
आयेशा की चूँिचया मसलना और िन लो ँको ारसे िपचकना भूलते न थे। सुनील जी के ल घुसाने की ि या भी बड़ी ही ार
भरी थी। उ यह ाल रखना था की माशूका को कम से कम दद हो और ादा से ादा आनंद िमले। इसिलए वह हर बार
थोड़ा सा लंड घुसाते िफर उसे िनकालते िफर दू सरी बार और थोड़ा ादा घुसाते और िफर िनकालते। ऐसा करते करते धीरे धीरे
आयेशा को पता भी नही ं चला की कब उ ोंने अपना पूरा ल आयेशा की चूत म घुसेड़ िदया।

आयेशा दद के कारण कम और उ ेजना के कारण कराह रही थी। ज ूजी चोदना बंद ना करद इस िलए आयेशा "ओह.....
आह..... माशा अ ाह...... वाकई परदे सी...... तु ारा जवाब नही ं...... " कराहते कराहते अपनी उ ेजना जता रही थी। उस कराहट
दद का एहसास ज र होगा पर उ ेजना काफी ादा थी। सुनीलजी जानते थे की आयेशा ार के िलए तरस रही थी। उसकी चूत
म फड़फड़ाहट तो महीनों या या सालों से हो रही होगी पर उस माहौल म कौन उसे ार जताये। लड़ाई म तो जबरद ी का ही
माहौल होता है। चुदाई और बला ार म भारी अंतर होता है। सुनीलजी ने जब अपना ल आयेशा की चूत म डाल िदया तो उ
ज़रा सा भी दोष या गुनाह का भाव महसूस नही ं आ, ूंिक वह चुदाई जबरद ी की नही ं ार की थी। उ ऐसा िबलकुल नही ं
लगा जैसे उ ोंने कोई अपराध िकया हो। आयेशा की महीनों या सालों की भड़क रही चूत की भूख अगर वह िमटा सके तो उनको
ऐसा लग रहा था जैसे उ ोंने एक बड़ा नेक काम िकया हो। अपना ल जब पूरी तरह आयेशा की चूत म डाल पाए तब सुनीलजी
आयेशा के बदन पर झक ु े और अपना ल सुनीता की चूतम जमा रखते ए धीरे से उ ोंने अपना वजन आयेशा के बदन पर रखा
और आयेशा के धनु सामान हो ँठों पर अपने हो ँठ रख कर आयेशा के कान म फुसफुसाते ए पूछा, "जानेमन कैसा महसूस हो
रहा है?" आयेशा ने अपनी आँ ख खोली ं और अपनी खूबसूरत घनी और नजाकत भरी पलक उठा कर सुनीलजी के चेहरे की और
दे खा और शम ली नयी नवेली दु न सा शमा कर बोली, "परदे सी, ा बताऊँ? आज तुमने मुझे हमारे इस बदन के िमलन से
अपना बना िदया है। तु ारे इस मोटे और ल े ल ने मुझे सही मायने म एक औरत की इ त ब ी है। आज म तु ारी
मदानगी को अपने बदन के कोने कोने म महसूस कर रही ँ। तु ारा ल मेरी ब ेदानी तक प ँच चुकाहै, और इं शाअ ाह म
खुदा से इबादत करती ँ की आज तुम मुझे अपने ब े की माँ बना सको तो मेरा जीवन कामयाब हो जाएगा।"

सुनीलजी आयेशा की बात सुनकर िपघल से गए। उनसे चुदवाते समय उ कभी िकसी औरत ने इतने ार भरे श नही ं कहे थे।
उ ोंने कई औरतोंको चोदा था। कई औरत उनपर िफ़दा थी ं, पर आयेशा ने उ ऐसी बात कह दी जो हर मद अपने साथ चुदाई
करवाने के िलए लेटी ई औरत से सुनना चाहता है। सुनीलजी ने तय िकया की वह उस रात आयेशा को इतना ार करगे िजतना
उ ोंने िकसी को नही ं िकया। सुनीलजी ने अपने हो ँठ आयेशा के हो ँठों से िचपका िदए और उसे और कुछ ना बोलपाने पर मजबूर
िकया। आयेशा के रसीले हो ँठों का रस वह िजंदगी भर के िलए चूसना चाहते थे। आयेशा के मुंह से िनकला रस भी इतना ािद था

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की वह बरबस ही आयेशा की मुंह की लार चूसते और िनगलते रहे। आयेशा के मुँह म अपनी जीभ डाल उसे अंदर बाहर करते ए
सुनीलजी आयेशा के मुँह को अपनी जुबान से पता नही ं िकतने समय तक चोदते रहे। िबच िबच म वह अपना ल ऊपर िनचे कर
आयेशा को यह िदलासादे रहेथे की अभी छूटनेम व लगेगा। सुनीलजी का ल अपनी चूत की सुरंग म पूरी तरह भर जाने के
कारण आयेशा की चूत पूरी तरह से अपना पूरा तनाव म थी। पर आयेशा की उ ेजना उसकी चूत की पूरी सुरंग के ायु की
फड़कन से सुनीलजी महसूस कर रहे थे। उनका ल बार बार आयेशा की चूत की दीवार एकदम दबा के पकड़ लेती ं तो कभी
थोड़ा कम दबाव होता। आयेशा भी उसकी इतनी उ ेजक चुदाई से उ ािदत हो कर परदे सी को कभी हो ँठों पर तो कभी उनकी
गदन पर, कभी उनके कानों को तो कभी उनकी दाढ़ी को अपने होंठों से परदे सी के बदन के िनचे दबी ई आयेशा चूमती रहती
थी। एक औरत ार भरी चुदाई िकतना ए जॉय कर सकती है यह आयेशा के चहरे के भाव बता दे ते थे।

कभी सुनीलजी के भारी भरखम ल के अंदर बाहर होने के कारण हो रहे दद के मारे आयेशा की भौंह िसकुड़ जाती थी ं, तो कभी
परदे सी के ल की गम उसे ऐसी उ ािदत कर दे ती थी की वह "आह...." बोल पड़ती थी। कभी परदे सी के ल के उसकी चूत
की सुरंग म सरकने से हो रहा उ ादक घषण उसे पागल कर दे ता था तो कभी परदे सी के लण्ड की उसकी ब ेदानी पर लगी
ठोकर से वह "ओह....." बोलकर क जाती थी। जैसे जैसे सुनीलजी ने धीरे धीरे अपनी चुदाई की र ार बढई, आयेशा भी उनके
साथ साथ परदे सी का ल ादा से ादा व उसकी चूत म रहे और घुसे उसकी िफराक म अपना पडू ऊपर उठाकर परदे सी
के तगड़े ल को और अंदर घुसने की जगह बनाने की कोिशश करती रहती थी। सुनीलजी की "उँ ह ......" और आयेशा की
"ओह...... आह......" से गुफा गूंज रही थी। आयेशा ने अपनी सुआकार टांग ऊपर उठाकर परदे सी के क ों पर र ी ई थी ं।
सुनीलजी का ल इं जन के िप न की तरह फुत से अंदर बाहर हो रहा था। आयेशा भी परदे सी के अंदर बाहर होते ए ल को
अपनी चूत की सुरंग म िघसवाने से हो रहे आनंद का अद् भुत अनुभव कर रही थी। सुनीलजी का ल अपनी िचकनाहट और
आयेशा की चूत से झर रहे ाव से पूरी तरह िचकनाहट से सराबोर हो चुका था। आयेशा को परदे सी के ल के घुसने और
िनकलने से ादा परे शानी नही ं हो रही थी। वह तो दद के भी मजे ले रही थी। सुनीलजी के हाथ आयेशा की भरपूर चूँिचयों को
जकड़े ए थे। परदे सी के ध ों से आयेशा का पूरा बदन िहल रहा था।

यह िसलिसला करीब आधे घंटे तक िबना के चलता रहा। दोनों ेिमयों म से कोई भी ज ी से झड़ने के िलए तैयार न था। शायद
वह तो पूरी रात ही चुदाई जारी रखना चाहते थे। पर आयेशा ने एक वा कहा िजसे सुनकर उसके परदे सी के ल म अद् भुत सी
मचलन होने लगी। आयेशा ने कहा, "परदे सी, म तु ारी बीबी बनकर इस तु ारे मोटे और तगड़े ल से तुमसे हररोज िदन हो या
रात कई बार चुदवाना चाहती ँ। पर यह कैसे होगा? ा तुम मुझे चोद कर छोड़ दोगे? ा तुम मुझे िजंदगी भर चोदना नही ं
चाहते?" आयेशा की बात सुनकर सुनीलजी काफी भावुक हो गए। उनके ल म वीय की मौंज तेज हो गयी। वीय की धमिनयों म
उनका वीय तेजी से दौड़ने लगा। सुनीलजी को लगा की अब झड़ने का समय आ गया है। उ ोंने आनन् फानन म अपनी माशूक़ा
आयेशा से कहा, "आयेशा, वह सब बाद म बात करगे, अभी तो म अपना माल छोड़ने वाला ँ। बोलो अंदर छोडू ं या बाहर? ा तुम
सचमुच म मेरे ब ों की माँ बनना चाहती हो? ा तुम मेरे बगैर मेरे ब ों को पाल सकोगी? कही ं लोग तु िबन ाही माँ कहके
परे शान तो नही ं करगे?" आयेशा ने बेिझझक कहा, "म ऐसे छोटे मोटे अनािड़यों से आसानी से िनपट लुंगी, पर हाँ, अगर हो सके तो
मुझे ज र तु ारे ब ों की माँ बनना है। तुम अपना सारा माल मेरी चूत म उं डेल दो। म भी तो दे खूं की िहंदु ानी वीय म िकतना
दम है?" आयेशा की बेबाक बात सुन कर सुनीलजी अचरज म पड़ गए। वह सोचने लगे " ा कोई औरत िसफ एक िदन की
मुलाक़ात म िकसी मद के िलए इतना सहने के िलए तैयार हो सकती है?"

सुनीलजी ने बड़े ारसे आयेशा को दु बारा चूमते ए आयेशा को चोदने की गित तेज कर दी। आयेशा भी अब पूरी तरह अपनी
चुदाई म अपना ान लगा रही थी। परदे सी के अंदर बाहर होते ए मोटे ल से वह चुदवाने का अनोखा आनंद ले रही थी। उसके
िलए उस रात का हर एक पल सालों जैसा था। उसका उ ाद भी अपनी पराका ा पर प ँच रहा था। आयेशा चाहती थी की उसका
झड़ना भी अपने परदे सी आिशक़ के साथ ही हो। आयेशा ने भी अपनी उ ेजना और उ ाद और बढ़ाने के िलए अपने पडू से
अपनी कमर को ऊपर कर अपने आिशक़ का ल और गहराई तक प ंचे और उसम और ादा हवस का जोश पैदा हो तािक
दोनों का झड़ना एक साथ ही हो। चंद पलों म आयेशा कराह उठी, "ओह...... परदे सी, तुम गज़ब की चुदाई कर रहे हो! आह.....
बापरे ...... ओह.... म झड़ रही ँ...... मुझे पकड़ो यार......आह..... कमाल हो गया....." सुनीलजी भी, "आयेशा, मेरा यकीन करो, मेरी

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इतनी ल ी िजंदगी म मुझे इस कदर महसूस नही ं आ। पता नही ं म तु ारा शुि या कैसे अदा क ँ ?" आयेशा ने पट से जवाब
िदया, " ार म शुि या नही ं कहते। यह तो हम अपने और अपनों के िलए करते ह। िफर शुि या कैसा? और िकए, म आज
आपको यहां नही ं छोड़ने वाली। आज आपको पूरी रात भर मेरी चुदाई करनी है। म तैयार ँ। कही ं आप ना मुकर जाना।"

आयेशा ने फ़टाफ़ट कपडे से पहले अपने आपको साफ़ िकया। अपनी चूत और उसके इदिगद सफाई की और िफर सुनीलजीके
ल को अ ी तरह से पोंछा और उसे चु न कर के उठ खड़ी ई। सुनीलजी आयेशा के कोमल और कमिसन नंगे बदन को
दे खते ही नही ं थकतेथे। सुनीलजी ने कहा, "अभी तो रात जवान है। म मुकरने वालों म से नही।ं पर हम अब िफलहाल कपडे पहन
लेते ह। हम यह दे ख कही ं कोई उं चनीच ना हो जाए।" आयेशा ने फ़ौरन उठकर परदे सी की नजर के िलए ख़ास नंगी चलती ई,
अपने कू े मटकाती ई सुखाये ए कपडे ले आयी। कपडे तब तक सुख चुके थे। सुनीलजी को उनके कपडे िदए। अपने कपडे
फुत से पहनते ए सुनीलजी बोले, "अब दो घंटे तुम आराम करोगी और म पहरा दू ं गा। हम ार करते ए भी गािफल नही ं रहना
है।" यह कह कर सुनीलजी गुफा के अंदर दरवाजे के पास बैठ गए और बाहर अँधेरे म कोई हलचल हो तो उसका ाल सावधानी
से रखने म लग गए।

आयेशा पुरे िदन की उ ेजना और रात के रोमाँच के कारण काफी थकी ई थी। पुरे िदन भर चौक ा रह कर पहरा दे ने के बाद
रातको परदे सी के तगड़े ल से अ ी तरह से और जोशो-खरोश से चुदाई करवाने के कारण आयेशा पूरी तरह थक चुकी थी।
सुनीलजी के कहने पर वह जैसे ही लेटी की िनढाल हो कर बेहोश सी गहरी नी ंद की गोद म प ँच गयी। जो कपडे आयेशा ने पहन
र े थे वह भी कई जगह से फ़टे ए और छोटे से थे। अ ी तरह से और बड़े ार से चुदने के बाद एक औरत के चेहरे पर जैसे
संतुि होती है वैसी संतुि आयेशा के चेहरे पर िदखाई दे रही थी। नी ंदम भी वह कभी कभार मु ु रा दे ती थी। शायद उसे अपने
आिशक़ परदे सी के ल का उसकी चूत म जो एहसास आ था वह उसे सपने म दु बारा अनुभव रहा था।

सुनीलजी ने खड़े खड़े ही लंबा फ़ैल कर लेटी ई आयेशाको दे खा। ज तसे उतरी र जैसी आयेशा के कपडे इधर उधर िबखरे
एथे। आयेशाके न ाउज और ा की परवाह ना करते ए सर उठा कर खड़े हों ऐसे िदख रहेथे। आयेशाकी सुआकार जाँघ
खुली ई थी ं और िबच के ेम भरी चूत को मु ल से छु पा पा रही ं थी।ं आयेशा को इतना नंगा दे खने और अपने ल से चोदने के
बाद भी आयेशा का ढका आ बदन दे ख करही सुनीलजी का ल िफर से खड़ा हो गया था। वह चाहते थे की आयेशा कम से कम
दोघंटे आरामकरे । सुनील जी ने दे खा की बेफाम ग े पर लेटी ई आयेशा गजब की सुंदर लग रही थी। उसकी टांग उसके बाजू,
उसके िबखरे बाल, उसकी पतली कमर सब सुनीलजी को िफर से उ ेिजत कर रहेथे। िवधाता का िवधानभी कैसा होता है? वह
आयेशा िजनको वह चंद घंटों पहले जानते तक नही ं थे वह उनकी िसफ हमसफ़र और हमराजही नही ं ब उनकी श ाभािगनी
(हम िब र) बन गयी थी। सुनील जी को गव आ की ऐसी मिहला जो उनके धम और दे श की नही ं थी वह भी उनपर आज अपनों
से ादा भरोसा कर रही थी। यहां तक की वह सुनीलजी का नाजायज कहे जाने वाले ब े को जनम दे ने के िलए आमादा थी।

सुनीलजी तीन घंटे तक बड़े ान और बारीकी से गुफाके बाहर दे ख कर पहरे दारी कर रहेथे। उ ोंने कही ंभी कोईभी तरह की
हलचल नही ं दे ख। चारों तरफ कदम शा का माहौल था। उ तस ी ई की दु नों की फ़ौज वापस अपने मुकाम पर चली
गयी थी। आधी रात िबत चुकी थी। कुछ ही घंटों म सुबह होने वाली थी। सुनीलजी का मन ख ा हो रहा था की एक व आएगा जब
उ आयेशा को छोड़ कर जाना पड़े गा। एक परायी औरत से िकतनी आ ीयता उतने कम समय म कैसे हो जाती है? उनके पास
शायद आज रात का ही समय था जो शायद उनके जीवनका सबसे यादगार समय बन सकता था। वह धीरे धीरे आयेशा के पास
प ंचे और उसके पास जाकर ग े पर आयेशा के साथ लेट गए। गहरी नी ंदम भी आयेशा के चेहरे पर हलकी मु ान िदखरही थी।
शायद वह उस रात के पहले हरके ार भरे घंटों को याद कर रहीथी। सुनीलजी ने लेटतेही आयेशा को अपनी बाँहों म िलया और
उसके कपाल पर एक ह ा सा चु न करके बोले, "उठो रानी, तुमने मुझे दो घंटे म ही जगाने के िलए कहा था, पर अब तीन घंटे
के बाद म आप को जगाने के िलए आया ँ। आयेशा "ऊँ........ सोने दो ना... ......." कह कर पलट कर सुनीलजी को बाँहों म आगयी
और उनसे िलपट कर सो गयी। सुनीलजी की बाँहों म आयेशा के मरमरा बदन का एहसास होते ही सुनीलजी का ल खड़ा
होगया। आयेशा की चूत िबलकुल सुनीलजी की ल को सट कर लगी ई थी। आयेशाके चुचुक सुनीलजीकी छाती पर दबे ए थे।
सुनीलजी ने कहा, "मेरी जानू, सुबह हो जायेगी तो िफर तु ारा पूरी रात भर ार करने का सपना अधूरा का अधूरा ही रह जाएगा।

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बाकी तु ारी मज ।"

जैसे ही आयेशा ने यह सुना तो एकदम बाँह खोल कर परदे सी को अपनी बाँहों म िसमट कर बोली, "परदे सी, म जाग रही ँ और
तु ारे ार के िलए तड़प रही ँ।" आयेशा ने अपनी बाँह फैला कर अपनी जाँघों म सुनीलजी की टांगों को दबोच िलया और
सुनीलजी से िचपक कर उनके हो ँठों से अपने हो ँठ िचपका कर बोली, "अब ना तो म सोऊंगी, ना आप। हम पूरी रात भर ार
करगे। तुम तैयार रहो।" सुनीलजी ने कहा, "म तो कभी से तैयार ँ।" आयेशा ने ार भरे हांथों से सुनील जी की पीठ सहलाना शु
िकया और जब सुनील जी ने अपने ल को आयेशा की टांगों के िबच म ध ा मार कर घुसेड़ ने की कोिशश की तो आयेशा हँस
कर बोली, "परदे सी, तुम तो िबलकुल तैयार लग रहे हो। तु ारा ल तो फौलादी छड़ की तरह तैयार है?" सुनीलजी ने आयेशा के
सलवार का नाडा खोलते ए कहा, "म दे खता ँ की ा तुम तैयार हो की नही ं?" नाडा खुलते ही सुनीलजी ने आयेशा की जाँघों के
िबच म अपना हाथ डाला और पाया की आयेशा की चूत म से उसका पानी रसना चालू हो गया था। सुनीलजी ने एक उं गली आयेशा
की चूत म डाली और उसे ार से उसकी चूत की चा पर रगड़ने लगे। आयेशा की चूत म सुनीलजी की उं गली का श होते ही
आयेशा के बदन म क न फ़ैल गया। आयेशा ग े पर सुनीलजी की बाँहों म मचलने लगी।

आयेशा ने सुनीलजी की आँ खों म आँ ख डालकर पूछा, "मेरे ारे परदे सी, ा मौक़ा िमला तो तुम तु ारी इस नाजायज बेगम और
उसके नाजायाज ब े को कभी िमलने आओगे?" सुनील जी ने पूछा, "आयेशा ा तुम वाकई म मेरे ब े को जनम दे ने पर आमादा
हो? म तो तु यही क ंगा की अगर तु ारा पी रयड िमस हो तो तुम फ़ौरन ब ेको िगरा दे ना। म तु ारे सरपर कोई बदनामी का
दाग दे खना नही ं चाहता।" आयेशा ने बड़ी ही नजाकत और ार भरी नज़रों से अपने आिशक़ की और दे खते ए कहा, "अरे
परदे सी, यह मु हैवानीयत का अ ा बन चुका है। यहाँ ार नही ं, पैसा, ताकत और हवस चलता है। यहां बात बात पर लोग एक
दू सरे को गोली से उड़ा दे ते ह। यहां औरतोंकी कोई इ त नही।ं इस मु मइ त ा और िज त ा? तुमने मुझे चंद घंटों के
िलए ही सही, पर जो ार और इ त दी है वह अगर मेरे पेट म ब े के प म पैदा होगी तो म उसे िजंदगी भर पालूंगी और उसे
इस जािहल दु िनया म एक अ ा इं सान बनाने की कोिशश क ँ गी।"

आयेशा की बात सुनकर सुनीलजी की आँ खोंम आँ सू आगये। आयेशा ने अपने आिशक़ के आँ सूं पोंछते ए कहा, "परदे सी, यह व
आँ सूं बहाने का नही ं है। यह व ार करने का है। आँ सूं बहाने के िलए तो पूरी िजंदगी पड़ी है। ार करने के िलए तो बस यही
व है।" आयेशा ने सुनील जी को ग े पर लेटने को कहा और खुद उठकर अपने घुटनो ँ पर सुनीलजी की कमर को अपनी टाँगों के
िबचम फँसा कर खड़ी ई और सुनील जी का ल अपनी उँ गिलयों म लेकर उसे ार से िहलाने लगी। सुनीलजी के ल की
धमिनयों म पहले से ही उनके वीय का दबाव बढ़ा आ था। सुनीलजी का ल अपनी माशूका से दु बारा िमलकर उसको ार
करने के िलए बेचैन था। थोड़ी दे र परदे सी का ल अपनी उँ गिलयों म पकड़ कर अपनी चूत के हो ँठों से रगड़ कर उसे ि कर
आयेशा ने अपनी चूत को नीचा िकया तािक अपने आिशक़ का ल वह अपनी चूत म घुसा सके। सुनीलजी का िचकनाहट भरा
वीय तभी भी आयेशा की चूत म भरा आ था। ल को चूत म घुसनेम पहलेसे ादा िद त अथवा दद नही ं आ। सुनीलजी ने
भी अपना पडू ऊपर कर आयेशाकी चूतम धीरे से अपना ल घुसाया। आयेशा की चूत अ ा खासा पानी छोड़ रही थी। आयेशाने
अपने आिशक़ के हाथ पकड़ कर अपने बू पर रख िदए। वह चाहती थी की चुदाई करवाते ए उसका आिशक़ उसकी चूँिचयों
को खूब मसलदे और दबा दबा कर उसका दू ध िनकालदे । खैर दू ध भले ही ना िनकले पर उसके बू पर िनशान तो पड़े ! सुनीलजी
ने फ़ौरन आयेशा के मदम नो ँ को दबा कर मसलना शु िकया और अपने ल को धीरे धीरे से आयेशा की चूत म घुसते ए
महसूस िकया। आयेशा ने धीरे धीरे अपनी टाँगों के बल पर उठकर और िफर बैठ कर अपने आिशक़ को चोदना शु िकया। कुछ
ही दे र म अपने आिशक़ का ल आयेशा की चूत म पूरा घुस गया।

आयेशा की सुनीलजी को चोदने की गित धीरे धीरे बढ़ने लगी। सुनीलजी ने पहली बार िकसी िवदे शी औरतसे इतने ारसे चुदवाया
था। उ ोंने कई िवदे शी औरतों को चोदा तो था पर उस रात की बात कुछ अलग ही थी। आयेशा के चेहरे पर जैसे पागलपन सवार
था। वह तेजी से अपने आिशक़ को चोदने म मशगूल थी। तब सुनीलजी ने उसे रोका और थोड़ा सा बैठ कर उ ोंने अपनी माशूका
के नो ँ को अपने मुंह म लेकर उ चूसने लगे। आयेशा अपने नों को परदे सी के मुंह म पाकर काफी उ ेिजत लग रही थी।
सुनील जी ने अपने दांतों से आयेशा के बू की िन लो ँ को ार से काटना शु िकया। आयेशा ने सुनील जी के मुंह म अपने नो ँ

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को चुसवाते ए ही धीरे धीरे उनके ल को चोदना जारी रखा। आयेशा की ारी सुआकार गाँड़ अपने आिशक़ को चोदने के िलए
बार बार ऊपर िनचे हो रही थी। सुनीलजी का ल "फचाक.... फचाक.... " आयेशाकी चूत म घुस रहा था और बाहर िनकल रहा
था।

सुनीलजी ने अपनी हाथ आयेशाके िथरकते नों से हटा कर आयेशा की गाँड़ पर िटका िदए और दोनों हाँथों से वह आयेशा की
करारी गाँड़के गालों को दबाने और खी ंचने लगे। उनका ल उनकी उँ गिलयोंके नजदीकम उस रातकी उनकी माशूका की चूत म
कहर ढा रहा था। आयेशा सुनीलजी के ल से और ादा आनंद लेना चाहती थी और उस िलए वह सुनीलजी के ल को अपनी
गाँड़ और पूरा बदन इधर उधर िहलाकर सुनीलजी के ल को अपनी चूत की सुरंग म घुमा रही थी। ल के इधरउधर घूमने से
आयेशा की चूत म अद् भुत घषण और उ ेजना पैदा हो रही थी। उसे अपने आिशक़ का ल अपनी चूत की सुरंग के हर कोने म
महसूस हो रहा था। आयेशा के इस तरह अपने बदन को घुमाने से सुनीलजी के बदन और ख़ास करके उनके ल पर गजब का
असर हो रहा था। इस बार ज ी झड़ने वाले नही ं थे। उ आयेशा को हर तरहसे चोदना था। सुिनलजी कुछ थम कर धीरे धीरे पर
आयेशा की चूत की पूरी गहराई तक अपना लण्ड घुसाने म मशगूल थे। कुछ दे र बाद सुनीलजी ने आयेशा को रोका और उसे उठ
खड़ी होने को कहा। िफर उ ोंने आयेशा को आगे की और झुका कर खुद उसक पीछे आ गए। आयेशा समझ गयी की उसका
आिशक़ उसे िपछे से डॉगी ाइल म चोदना चाहता था। आयेशा ने भी अपने आपको ठीक से एडजूट िकया तािक परदे सी उसकी
चूत म अपना ल गहराई तक डालसके। सुनीलजी ने आयेशा के िपछे से खड़े हो कर काफी दे र तक अ ी खासी चुदाई की।
आ खर म जब वह अपने चरम पर प ँचने लगे तब आयेशा ने उ कहा की वह अपना वीय आयेशाकी चूतम ही िनकालदे । फ़ौरन
आयेशा की चूत म जैसे गरम गरम मलाई की फौहार छूट पड़ी। सुनीलजी के लंडसे गाढ़ी मलाई का फ ारा छूट पड़ा। आयेशा उसे
अपनी चूत म फैलते ए महसूसिकया। वह मनसे अपने अ ाह को इबादत कर रही थी की आज रात की उसके आिशक़ की यह
सौगात उसके साथ िजंदगी भर रहे। कुछ ही दे र म आयेशा और उसका परदे सी आिशक़ िनढाल होकर एक दू सरे के ऊपर और
िफर बाजू म िगर पड़े । काफी दे र तक पड़े रहने के बाद जब उनकी सॉँस ठीक ई तो एकदू सरे से िलपट गए। आयशा बड़ी ही
भावुक हो उठी थी। उसकी आँ ख आँ सुओ ं से भरी ई थी ं। बार बार वह अपने परदे सी से िलपट कर बोल रही थी, "म कैसे जी
पाउं गी, तु ारे िबना। मेरा अब यहां कोई भी नही ं बचा है। एक तुम पहली बार मेरी िजंदगी म आये और मुझे वह ार िदया जो मुझे
पहले िकसीसे नही ं िमला। म तु ारे ार के बगैर कैसे जी पाउं गी?"

सुनीलजी की आँ खों म भी पानी आ गया। कैसे एक परदे सी औरत ने एक रात मही एक अजनबी को अपना बना िदया था! सुनीलजी
कुछ भी ना बोलकर चुप रहे। कुछ दे र बाद आयेशा शांत हो गयी। उसे तो वहीँ जीना था। वह सुनीलजी से कहने लगी, "चलो, अभी
अ ेरा है और कोई हलचल भी नही ं है। अगर हम अभी िनकल पड़े तो सुबह के पहले ही म तु सरहद पार करा दू ँ गी। िफर तु
आगे अपने आप आगे जाना पड़े गा। म वहाँ से वापस चली आउं गी। अगर दे र हो गयी तो कही ं हम पकडे नाजाएँ ।" सुनीलजी ने िफर
अपनी बाँह फैला कर आयेशा को अपने आगोश म ले िलया। आयेशाका नं बदन सुनील जी के नंग बदन के साथ जैसे एक हो
गया। दो पड़े सी अनजाने जीव एक िदन के िलए िमले और एक रात के बाद िफर अलग होने को तैयार हो गए। सुनीलजी ने आयेशा
के हो ँठों पर अपने हो ँठ रख िदए और उतना लमबा और ार भरा चु न िकया की शायद पहले उ ोंने िकसी औरत को इतना
लंबा चु न नही ं िकया होगा।

आयेशा कूद कर सुनीलजी की कमर म अपनी टाँगे लपेट कर उनसे चु न म म हो गयी। उनके आिलंगन से एक बार िफर
सुनीलजी का ल खड़ा होगया। आयेशा हंस कर ज ी ग े पर लेट गयी और बोली, "परदे सी एक आखरी बार मुझे चोदो। ज ी
करो समय ादा नही ं है।" आखरी बार सुनीलजी ने आयेशाकी चूतम अपना ल डाला और करीब दस िमनट की चुदाई के बाद
वह दोनों झड़ गए। ज ी से उठ कर खड़े होकर दोनों ने अपने आप को स ाला और गुफा के बाहर िनकल कर चल िदए।

##

ईधर...

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ज ूजी और सुनीता नदी के िकनारे गीली िमटटी म पड़े पड़े ही एक दू सरे की आँ खों म झाँक कर दे ख रहे थे। सुनीता ने अपने बाजू
ऊपर िकये और ज ूजी का सर अपने हाथोंम लेिलया और उनके हो ँठ अपने हो ँठोंसे िचपका िदए। सुनीताने ज ू जी के पुरे
बदनको अपने बदनसे सटानेपर मजबूर िकया। सुनीता के साथ ऐसे लेटने से ज ूजी का इन मु ल प र थितयों म भी ल खड़ा
हो गया। उ ोंने सुनीता से कहा, "यह ा कर रही हो?" और कह कर सुनीतासे दू र हटनेकी कोिशश की तो सुनीता ने कहा, "अब
आप दे खते जाओ, म ा ा कर सकती ँ?" ज ूजी हैरानी से सुनीता को दे खते रहे। सुनीता ने िफर से ज ूजी का सर पकड़ा
और दोनों गहरे चु न लेने ल एक दू सरे से िचपक गए। सुनीता की जान ज ूजी ने अपनी जान जो खम म डाल कर बचाई थी। यह
बात सुनीता के िलए ब त बड़ा मायना रखती थी। उसकी नज़रों म ज ूजी ने वह कर िदखाया जो उसके पित भी नही ं कर सके।
थकान और दद के मारे सुनीता की जान िनकली जारही थी।ज ूजी से अपना आधा नंगा बदन िचपका कर सुनीता को ज र जोश
आया था। सुनीता सोच रही थी की ज ूजी म पता नही ं िकतनी िछपी ई ताकत थी की इतने झंझट, प र म और नी ंद नहीहं ो पाने
पर भी वह काफी फुत ले लग रहे थे। सुनीता को मन म गव आ की ज ूजी ने सुनीताके ि यतम जैसा काम कर िदखाया था। आज
ज ूजी ने एक राजपूत जैसा काम कर िदखाया था। अब वह सुनीता के पुरे ार के लायक थे।

सुनीता के रसीले हो ँठोंका रस चूसते एभी ज ू जी के िदमाग म बचाव की रणनीित पुरे समय घूम रही थी। उ ोंने सुनीता को
कहा, "सुनीता, अब हम यहाँ से ज ी भाग िनकलना है। पता नही ं दु नो के िसपाही यहां कही ं ग ना लगा रहे हों। हम यह भी
पता नही ं की इस व हम कहाँ ह?" सुनीता ने उठते ए अपने कपड़ों के ऊपर से लगी िमटटी साफ़ करते ए कहा, "आपतो
खगोल शा के िन ात हो। िसतारों को दे ख कर भी बता सकते हो ना की हम कहाँ ह?" ज ूजी ने भी कपड़ों को साफ़ करते ए
कहा, "जहां तक मेरा अनुमान है, हम िहंदु ानकी बॉडरसे एकदम करीब ह। हो सकता है हम सरहद पार भी कर गए हों।" सुनीता
ने पूछा, "तो अब हम िकस तरफ जाएँ ?" ज ूजी ने सुनीता का हाथ पकड़ कर कहा, "हम इस नदी के िकनारे िकनारे ही चलना है।
हो सकता है हम आपके पित सुनीलजी िमल जाएँ । हो सकता है हम कोई एक रात या िदन गुजारने के िलए आिशयाना िमल जाए।"
सुनीता को तब समझ म आया की ज ूजी भी थके ए थे। ज ूजी लड़खड़ाती सुनीता का हाथ पकड़ उसे अपने साथ साथ
चलातेऔर हौसला दे ते ए नदी के िकनारे आगे बढ़ रहे थे तब उनको दू र दू र एक ब ी िदखाई दी। ज ूजी वहीँ क गए और
सुनीता की और घूमकर दे खा और पूछा, "दे खोतो सुनीता। ा तु वहाँकोई ब ी िदखाई दे रही है या यह मेरे मन का वहम है?"
सुनीता ने ान से दे खा तो वाकई दू र दू र िटमिटमाती ई एक ब ी जल रही थी। िबना सोचे समझे ज ू जी ने सुनीता का हाथ
पकड़ कर उस िदशा म चल पड़े िजस िदशा म उ वह ब ी िदखाई दे रही थी। वह घर िजसम ब ी जलती िदखाई दे रही थी वह
थोड़ी ऊंचाई पर था। चढ़ाई चढ़ते आ खर वहाँ प ँच ही गए। दरवाजे पर प ँचते ही उ ोंने एक बोड लगा आ दे खा। पुराना
िघसािपटा आ बोड पर िलखा था "डॉ. बादशाह खान यूनानी दवाखाना" ज ूजी ने बेल बजायी। उ ोंने सुनीता की और दे खा और
बोले, "पता नही ं इतने बजे हम इस हाल म दे ख कर वह दरवाजा खोलगे या नही ं?" पर कुछ ही दे र म दरवाजा खुला और एक सफ़ेद
दाढ़ी वाले बदन से ल े ह े क े काफी मोटे बड़े पेट वाले बुजुग ने कांपते ए हाथों से दरवाजा खोला।

ज ूजी ने अपना सर झुका कर कहा, "इतनी रात को आपको जगा ने के िलए म माफ़ी माँगता ँ। म िहंदु ानी फ़ौज से ँ। हम
लोग नदी के भंवर म फंस गए थे। जैसे तैसे हम अभी बाहर िनकल कर आये ह और थके ए हम एक रात के िलए आिशयाना ढू ं ढ
रहे ह। अगर आप को िद त ना हो तो ा आप हम सहारा दे सकते ह?" ज ूजी को बड़ा आ य आ जब डॉ र खान के
चेहरे पर एकदम स ताका भाव आया और उ ोंने फ़ौरन दरवाजा खोला और उन दोनों को अंदर बुलाया और िफर दरवाजा बंद
िकया। उसके बाद वह दोनों के करीब आ कर बोले, "आप िह दु ानी सरहद के अंदर तो ह, पर यहां सरहद थोड़ी कमजोर है।
दु न के िसपाही और दहशतगद यहाँ अ र घुस आते ह और मातम फैला दे ते ह। वह सरहद के उस तरफ भी और इस तरफ
भी अपनी मनमानी करते ह और िबना वजह लोगों को मार दे ते ह, लूटते ह और िफर सरहद पार भाग जाते ह। इस िलए मने यह
दवाखाना कुछ ऊंचाई पर रखा है। यहां से जो कोई आता है उस पर नजर राखी जा सकती है। म िह दु ांनी ँ और िहंदु ानी
फ़ौज की ब त इ त करता ँ।" िफर डॉ. खान ने उनको िनचे का एक कमरा िदखाया िजसम एक पलंग था और साथ म गुसल
खाना (बाथ म) था। डॉ. खान ने कहा, "आप और मोहतरमा इस कमरे म रात भर ही नही ं जब तक चाहे क सकते ह। म जा कर
कुछ खाना और मेरे पास जो मेरे सीधे सादे कपडे ह वह आप पहन सकते ह और मेरी बेटी के कपडे म लेके आता ँ, वह आपकी
बीबी पहन सकती ह।"

182
डॉ. खान ने सुनीता को जब ज ूजी की बीबी बताया तब ज ूजी आगे बढे और डॉ. खान को कहने जा रहे थे की सुनीता उनकी
बीबी नही ं थी, पर सुनीता ने ज ूजी का हाथ थामकर उ कुछ भी बोलने नही ं िदया और आगे आकर कहा, "सुिनए जी! डॉ. साहब
ठीक ही तो कह रहे ह।पता नही ं हम यहां कब तक कना पड़े ।" िफर डॉ. खान की तरफ मुड़ कर बोली, "डॉ. साहब आपका ब त
ब त शुि या।" ज ूजी और सुनीता को कमरे म छोड़ कर बाहर का मैन गेट बंद कर डॉ. खान ऊपर अपने घर म चले गए और
थोड़ी ही दे र म कुछ खाना जैसे ेड, जाम, दू ध, कुछ गरम की ई स ी लेकर आये और खुदके और अपनी बेटी के कपडे भी
साथम लेकर आए। खाना और कपडे मेज पर रख कर अ ाह हािफ़ज़ कह कर डॉ. खान सोने चले गए।

कमरे का दरवाजा बंद कर सुनीता ने दो थािलयों म खाना परोसा। ज ूजी और सुनीता वाकई म काफी भूखे थे। उ ोंने बड़े चाव से
खाना खाया और बतन साफ कर रख िदए। सुिनता ने िफर बाथ म म जा कर दे खा तो पानी गरम करने के िलए िबजली का रोड
रखा था और बा ी थी। पानी एकदम ठं डा था। ज ूजी ने कहा की वह पहले नहाना चाहते थे। ज ूजी ने सुनीता से पूछा, "सुनीता
तुमने मुझे ों रोका, जब डॉ. साहब ने तु मेरी प ी बताया?" सुनीताने कहा, "ज ूजी, म एक बात बताऊँ? आज जब आपने मुझे
अपनी जान जो खम म डालकर बचाया तो आपने वह िकया जो मेरे पित भी नही ं कर सके िजससे मेरी माँ को िदया आ वचन पूरा
हो गया। माँ ने मुझसे वचन िलया था की जो मद अपनी जान की परवाह ना कर के और मुझे खुशहाल रखना चाहेगा म उसे ही
अपना सव दू ं गी। अब कोई मुझे आपकी बीबी समझे तो मुझे कोई आपि नही ं है।" यह कह कर सुनीता ज ूजी को बाँहोंम
िलपट गयी। ज ूजी की आँ ख शायद उस सफरम पहली बार सुनीता की बात सुनकर नम यी। पर अपने आपको स ालते ए
ज ू जी बोले, "सुनीता, सच तो यह है की म भी थक गया ँ। खाना खाने के बाद मुझे स नी ंद आ रही है। पहले म नहाता ँ और
िफर आप नहाने जाना।" सुनीता ने ज ूजी से कहा, "आप अपने सारे कपडे बा ी म डाल दे ना। म उनको धो कर सूखा दू ं गी।"

सुनीताने बा ीम पानी भर कर रोडसे गरम करने रख िदया और सुनीता के गरम िकये ए पानी से ज ूजी नहाये और जब उ ोंने
डॉ. खानके लाये ए कपडे दे खे तो पाया की उनमसे एकभी उनको िफट नही ं हो रहा था। उनके कपडे काफी बड़े थे। कुता और
पजामा उनको िब ु िफट नही ं हो रहा था। सारे कपडे इतने ढीले थे की शायद उस पाजामे और कुत म ज ूजी जैसे दो आदमी
आ सकते थे। ज ूजी ने एक कुता और ढीलाढाला पजामा पहना पर वह इतने ढीले थे की उनको पहनना ना पहनना बराबर ही था।
जैसे तैसे ज ू जी ने कपडे पहने और फुत से पलंग की च रों और क लों के िबच म घुस गए।

सुनीता डॉ. खान साहब की बेटी के कपडे लेकर बाथ मम गयी तो दे खाकी ज ूजी के गंदे कपडे बा ी म डले ए थे। सुनीता ने
महसूस िकया की उनके कपड़ों म ज ूजी के बदन की खुशबु आ रही थी। सुनीता ने जनाना उ ुकता से ज ूजी िन र सूंघी तो
उसे ज ूजी के वीय की खुशबु भी आयी। सुनीता जान गयी की उसके बदन के करीब िचपकने से ज ूजी का वीय भी ाव तो हो
रहा था। सुनीता ने फटाफट अपने और ज ू जी के कपडे धोये और नहाने बैठ गयी। अपने न बदन को आईने म दे ख कर खुश
ई। इतनी थकान के बावजूद भी उसके चहरे की रौनक बरकरार थी। कमर के ऊपर और के िनचे घुमाव बड़ा ही आकषक था।
सुनीता को भरोसा हो गया की वह उतनी ही आकषक है िजतना पहले थी। सुनीता की गाँड़ पीछे से कमर के िनचे िगटार की तरह
उभर कर िदख रहीथी िजसको दे ख कर और श कर अ े अ े मद का भी वीय िलत हो सकताथा। सुनीताके बू कड़क
और एकदम टाइट पर पुरे फुले ए मदम खड़े लग रहे थे। उन नो ँ को दबाते ए सुनीता ने महसूस िकया की उसकी िन लं
भी उ ेजना के मारे फूल गयी थी ं। सुनीता के नों के चॉकलेटी रं ग के एरोला पर भी रोमांच के मारे कई छोटी छोटी फुंिसयां भी
िदख रही थी ं। सुनीता उ ेजना से अपने दोनों नो ँ को अपने ही हाथों से दबाती ई उस रात को ा होगा उसकी क ना करके
रोमांिचत हो रही थी। सुनीता ने साबुन से सारे कपडे अ ी तरह धोये और िनचोड़ कर कमरे म ही हीटर के पास सुखाने के िलए
रख िदये। उसम उसके भी कपडे थे। तौिलये से अपना साफ़ करने के बाद जब सुनीता ने डॉ. खान के लाये ए कपड़ों को दे खा तो
पाया की वह ब त ही छोटे थे। सलवार िबलकुल िफट नही ं बैठ रही थी और कमीज इतनी छोटी थी की बाँहों म भी नही ं घुस रही
थी।

शायद डॉ. खान अपनी पोती की सलवार कमीज गलती से उठा लाये होंगे ऐसा सुनीता को लगा। वह अपने सर पर हाथ लगा कर
सोचने लगी की अब ा होगा? यह कपडे वह पहन नही ं सकती थी। उसके अपने कपडे धोने के िलए रखे थे और गीले थे। अभी
ऊपर जा कर डॉ. खान चाचा को बुलाना भी ठीक नही ं लगा। अब करे तो ा करे ? अपना सर हाथम पकड़ कर बैठ गयी

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सुनीता।बस एक ही इलाज था या तो वह तौिलया पहने सोये या िफर िबना कपडे के ही सोये। तौिलया गीला होगा तो वह च र भी
गीली करे गा। वैसे ही डॉ. खान को तो उ ोंने आधी रातको जगा कर काफी परे शान िकया था। ऊपर से िफर जगाना ठीक नही ं
होगा। दू सरी बात, अगर सुनीता ने तय िकया की वह डॉ. खान चाचा को उठाएगी, तो वह जायेगी कौनसे कपडे पहनकर? अब तो
सुनीता के िलए बस एक ही रा ा बचा था की उसे िबना कपडे के ही सोना पड़े गा। िबना कपडे के ज ू जी के साथ सोना मतलब
साफ़ था। ज ूजी का हाथ अगर सुनीता के नंगे बादन को छू िलया और अगर उ पता चला की सुनीता िबना कपडे सोई है तो ना
चाहते एभी वह अपने आपपर क ोल रख नही ं पाएं गे। वह िकतनी भी कोिशश करे , उनका ल ही उनकी बात नही ं मानेगा।

सुनीता ने सोचा, "बेटा, आज तेरी चुदाई प ी है। अब तक तो ज ूजी के मोटे ल से बची रही, पर अब ना तो तेरे पास कोई
वजह है नाही तेरे पास कोई चारा है। तू जब उनके साथ नंगी सोयेगी तो ज ूजी की बात तो छोड़, ा तू अपने आप को रोक
पाएगी?" यह सवाल बार बार सुनीताके मनम उठ रहा था। जब तक सुनीता नहा कर आयी तब तक ज ूजी के खराटे शु हो चुके
थे। डरी, कांपती ई सुनीता डॉ. चाचा ने िदए ए कपडे लेकर उ अपनी छाती पर लगा कर चुपचाप िबना आवाज िकये िब रे म
जाकर ज ूजीकी बगलम ही सोगयी। सुनीताको उ ीद थी की शायद हो सकता है की ज ूजी का हाथ सुनीता के बदन को छु ए
ही नही ं। हालांिक यह नामुमिकन था। भला एक ही पलंग पर सो रहे दो बदन कैसे क दू सरे को छु ए बगैर रह सकते ह?

रात के दो बजने वाले थे। सुनीता पूरी तरह से व हीन िब रमज ूजी के साथ घुस गयी। िब र म एक ही क ल के िनचे उसने
ज ूजी ले बॉय को महसूस ा। ज ूजी गहरी नी ंद म सो रहे थे। सुनीता थोड़ी दे र सोचती रही की वह बगैर कपड़ों के कैसे
ज ूजी के साथ सोयेगी। पर अब तो सोना ही था। और अगर बीचम ज ूजी ने उस दबौच िलया तो सुनीता का चुदना तय था।

िब र म घुसने के बाद सुनीता दू सरी और करवट बदल कर लेट गयी। सुनीता की गाँड़ ज ूजी की पीठ कीऔर थी। सुनीता काफी
थकी ई थी। दे खते ही दे खते उसकी आँ ख लग गयी और सुनीता भी गहरी नी ंद म सो गयी। दोनों करीब दो घंटे तक तो वैसे ही मुद
की तरह सोते रहे। करीब दो घंटे बाद ज ूजी ने महसूस िकया की कोई उनके साथ सोया आ था। नी ंद म ज ूजी को सुनीता के
ही सपने आरहे थे। जो ज ूजी के मन म िछपे ए िवचार और आशंका थी ं वह उनके सपने म उजागर हो रही थी ं। ज ूजी ने दे खा
की कािलया दरवाजा खटखटा रहा था और "सुनीता सुनीता......" दरवाजा खटखटा ने की आवाज सुनकर सुनीता भगित ई ज ूजी
की ओर आयी। ज ूजी के गले लग कर सुनीता बोली, "ज ूजी, मुझे बचाओ, मुझे बचाओ। यह रा स मुझे चोद चोद कर मार
दे गा। इसका ल गडे के जैसा भयानक है। अगर उसने अपना ल मेरी चूत म डाला तो म तो मर ही जाउं गी। दरवाजा मत
खोलना ीज।" ज ूजीने सुनीताको अपनी बाँहोंम लेते ए कहा, "नही ं खोलूंगा, तुम िनि रहो।" पर कािलया दरवाजे पर जोर से
लात और घूंसे मार रहा था। दे खते दे खते कािलयाने दरवाजा तोड़ िदया। दरवाजा तोड़ कर उसने लपक कर सुनीता को ज ूजी के
पास से छीन िलया और सुनीता की साडी खंच कर उसे िनव करने लगा। दे खते ही दे खते सुनीता िसफ ाउज और पेटीकोट म
थी। कािलया ने बीभ हँसते ए सुनीता का ाउज एक ही झटके म फाड़ डाला, उसकी ा खंच कर उसके ै तोड़ डाले
और सुनीता का पेटीकोट और पटीभी फाड़कर उसको नंगा कर िदया।

अचानक सुनीता ने झुक कर कािलया के हाथ को अपने दांतों से काट िदया। दांत से चमड़े काटने पर कािलया दद से कराहने लगा।
कािलयाके हाथ से सुनीता छूट गयी और वैसी ही नंगी हालत म वह ज ू जी की और भागी। ज ूजी ने नंगी सुनीता को अपनी बाँहों
म िलया और उसको अपनी जाँघों के िबच कस कर हड़प िलया। ज ू जी ने दू सरे हाथ से अपना िप ौल िनकाला और उसका
िनशाना कािलया पर दाग कर उसे कई गोिलयां मारी ं। कािलया अपने खून म ही लथपथ होकर िगर पड़ा। ज ूजी ने िप ौल एक
तरफ रख कर नंगी सुनीता के बदन पर हाथ फेरते ए उसे िदलासा दे ने लगे। सुनीता की िचकनी चमड़ी पर ज ूजी की उँ गिलयाँ
सैर करने लगी ं। ज ू जी को पहली बार सुनीता ने बेिझझक अपना बदन सौंपा था। ज ूजी की छाती से सुनीता िचपकी ई थी।
सुनीताकी मोटी और नंगी चूँिचयाँ ज ूजी की चौड़ी छाती पर दबी ई चारों और फील गयी थी ं। ज ूजीका एक हाथ सुनीता की
पीठ पर ऊपर िनचे हो रहा था। ज ूजी का हाथ जब सुनीता की नंगी गाँड़ पर प ंचा तो क गया।

शायद वह सुनीता की गाँड़ को अ ी तरह सहलाना चाहते थे। ज ूजी नी ंद म ही सुनीता की गाँड़ सहला रहे थे। वह जानते थे की
वह नी ंद म थे। पर यह ा? उ लगा जैसे वाकई म वह सुनीता की गाँड़ ही सहला रहे थे। वह सुनीता की खुशबु से वािकफ थे।

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ा सुनीता उनके साथ म सो रही थी? ऐसा कैसे हो सकता था? सुनीता ने तो कसम खायी थी की वह उनके साथ सोयेगी नही ं जब
तक..... बगैरह बगैरह। पर हकीकत यह थी की उनके आहोश म एक नंगी औरत सोई ई थी और वह सुनीता ही हो सकती थी।
ज ूजी यह तो समझ गए की सुनीता को सोना तो उनके साथ ही था ूंिक एक ही बेड था। डॉ. खान भी उनको िमयाँ बीबी ही
समझ रहे थे। ज ूजी एकदम बैठ गए। उ ोंने तय िकया था की वह सुनीता के साथ नही ं सोयगे। और नंगी सुनीता के साथ तो
कतई नही ं। कही ं उनसे अपने आप पर क ोल नही ं रहा तो गजब हो जाएगा। सोचते ही उनका ल उठ खड़ा आ। ज ूजी
अपने आप पर बड़ा गु ा ए। साला थोड़ी सी सुनीता की भनक लग गयी की उठ खड़ा हो जाता है। सुनीता िकसी और की बीबी
है। तु ारे बाप की नही ं जो तुम उसका नाम सुनते ही खड़े हो जाते हो। ऐसे अपने ल को कोसने लगे। पर ल एक ऐसी चीज़ है
जो िकसीकी नही ं सुनता। ज ू जी का ल सुनीता के बदनकी खुशबु पहचानते ही उठ खड़ा हो गया। ज ूजी झुंझलाये। वह
आधी नी ंद म ही उठ खड़े ए और अपने ल को एडज करते ए वाश म की और बढे । हलचल से सुनीता भी उठ गयी थी
पर सोने का नाटक कर पड़ी रही।

ज ूजी को बड़ी नी ंद आ रही थी। पर वह नंगी सुनीता के साथ म सोने के कारण झ ा उठे । वाश मसे वापस आकर वे कुस पर
बैठे। उनका पयजामा उनकी कमर से बार बार िफसला जाता था। वह खंच खंच कर उसे ऊपर करते रहते थे। जब कुछ दे र तक
ज ूजी वापस पलंग पर नही ं लौट आये तो सुनीता ने करवट ली और उठ बैठी। उसने दे खा तो ज ूजी कुस पर बैठे बैठे खराटे
मार रहे थे। सुनीता उठी और उसने अपने बदन एक च र से ढका। ज ूजी की और मुंह कर के बोली, " ा आ? िब रे म ों
नही ं आ रहे हो?" ज ूजी ने कहा, "जब म तु ारे पास आता ँ तो अपने आप पर क ोल नही ं रखपाता। अब म तु ारी चाल म
नही ं आने वाला। अगर म वहाँ आ गया तो म अपने आप पर िनय ण नही ं कर सकूंगा। तुम सोजाओ। म यहां परही सो जाऊंगा ।"
यह कह कर ज ूजी ने सोफा पर ही अपने पाँव लंबे िकये। सुनीताको बड़ा गु ा आने लगा। अब तक वह चुदवाने के िलए तैयार
नही ं थी, तब तो ज ूजी फनफना रहे थे। अब वह तैयार ई तो यह साहब नखरे ों कर रहे थे? जब ज ू जी ने कहा, "तुम वहीँ
सो जाओ। म यही ं ठीक ँ।" तब सुनीता अपने आप पर क ोल नही ं कर पायी। उसने ने गु े हो कर कहा, "तुम ा सोच रहे हो?
म तु वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़ कर यह क ं की यहां आओ और मुझे करो......? मने तु नही ं कहा की मने तु अपने पित की
जगह पर ीकार िकया है। तुमने मेरी जान अपनी जान जो खम म डाल कर बचाई और मेरा ण पूरा िकया है।"

सुनीता कुछ दे र क गयी। िफर कुछ सोच कर बोली, "पर तुमने भी तो ण िलया था की जब तक म सुनीता हाथ जोड़ कर तु यह
नही ं क ँ की आओ और मुझे ार करो.... तब तक तुम मुझे मजबूर नही ं करोगे। तो लो म हाथ जोड़ती ँ और कहती ँ की आओ,
और मुझे करो....। म तुमसे करवाना चाहती ँ। सुनीता की बात सुनकर ज ूजी हँस पड़े । ज ी से उठ कर वह िब र पर आ गए
और सुनीता को अपनी बाँहों म लेकर बोले, "माननीयों को कभी हाथ नही ं जोड़ने चािहए। हाथ जोड़ने का काम हम पु षों का है। म
तु मेरे हाथ जोड़कर तु ारे खूबसूरत पाँव पकड़ कर ाथना करता ँ और पूछता ँ की हे मािननी ा तुम आज रात मुझसे
चुदवाओगी? दे खो सुनीता अगर तुमने मुझे ीकार िकया है तो मुझसे खुल कर बात करो। म ार करो यह श नही ं सुनना
चाहता। म साफ़ साफ़ सुनना चाहता ँ की तुम ा चाहती हो?" "सुनीता ने ज ूजी के कपडे िनकालते ए कहा," छोडोजी। आप
जो सुनना चाहते हो म बोलने वाली नही ं। खैर म भले ही ना बोलूं पर आपने तो बोल ही िदया है ना? म एक बार नही ं, आज रात कई
बार मुझे करना है। जब तक म थक कर ढे र ना हो जाऊं तब तक तुम मुझे करते ही रहना। आजसे म तु ारी सामािजक बीबी ना
सही, पर म तु ारी शारीरक बीबी ज र ँ। और यह हक मुझे कोई भी नही ं छीन सकता , ोितजी भी नही ं। ओके?"

ज ूजी सुनीता के जोश को दे खते ही रह गए। उ ोंने कहा, "ओके, मैडम। आपका अिधकार कोई भी छीन नही ं सकता। पर
आपके पित? ा वह नाराज नही ं होंग?े " सुनीताने ज ूजी की ओर दे खते ए कहा, "कमाल है? आप यह सवाल मुझसे पूछते हो?
ोितजी आपसे कुछतो छु पाती नही ं है। मेरे पित को मेरी िफ़ कहाँ? कहते ह ना की घरकी मुग दाल बराबर।? म तो घर की मुग
ँ। जब वह चाहगे म तो ँ ही। आप मेरे पित की नही ं अपनी बीबी की िचंता कीिजये जनाब। मेरे पित आपकी बीबी के पीछे लगे ए
ह। आगे आपकी मज ।" ज ूजी ने कहा, "म ोित की िचंता नही ं करता। वह पूरी तरह आज़ाद है। मेरी बीबी को मेरी तरह से पूरी
छूट है। ा आप को ऐसी छूट है?" सुनीताने कुछ खिसयाते ए कहा, "दे खोजी, मेरा मूड़ खराब मत करो। जब मेरे पित को पता
लगेगा तो दे खा जाएगा। दोष तो उनका ही है। जब म नदी म डूबने लगी थी तो वह ों नही ं कूद पड़े ? दु सरा उ ोंने मुझे आपकी
दे ख-भाल का िज ा ों िदया? इसका मतलब यह की वह कैसे ना कैसे मुझसे छु टकारा पाना चाहते थे। उ ोंने ोितजी के साथ

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रहने की िज ेवारी ली। आपभी तो उनके ष ं म शािमल हो ना? वरना आप ोितजी के साथ िप रम ों नही ं बैठे थे? अब
आप चुप हो जाओ और जो होता है उसे दे खते जाओ।" ऐसा कह कर सुनीता ने हाथ बढ़ाया और ज ूजी के पयजामा उतरने की
कोिशश करने लगी। सुनीता ज ूजी के कपडे ा िनकालती? ज ूजी के कपडे तो वैसे ही नकली ए थे। मोटे डॉ. खान के बड़े
कपडे शश बदन वाले पर पतले मजबूत ज ूजी को कहाँ िफट होते? कपड़ों के बटन खोलने की भी ज रत नही ं पड़ी। िनचे
खसकाते ही ज ूजी का पयजामा िनचे िगर गया। अंदर तो कुछ पहना था नही ं। ज ूजी का अजगर सा ल आधा सोया और
आधा जगा बाहर सुनीता के हाथोंम आगया। आधा सोया आ भी काफी लंबा और मोटा था। सुनीता ने वैसे तो उसे दे खा ही था। जब
सुनीता ने उसे अपने हाथों म िलया तब उसे पता चला की ज ूजी का लण्ड िकतना भरी था वह भी तब जब अभी पूरा कड़क भी
नही ं आ था। पर अब सोचने की बात यह थी की उसे अपनी चूत म कैसे डलवायेगी? यह सवाल था।

दे खने की बात और है और करने की और। ब े की सीज़े रयन िडलीवरीके समय डॉ रने उसकी चूत के िछ को टाइट सीलाथा।
उसके बाद अपने पित सुनीलजी से चुदवाते भी उसे क होता था। सुनील जी का ल भी कोई कम नही ं था। पर ज ू जीके
ल की बातही कुछ औरथी। सुनीता ने तय िकया था की हालांिक वह दोनों थके ए थे और उ शायद से से ादा आरामकी
ज रत थी, पर वह एक बार ज ूजी से चुदवाना ज र चाहती थी। सुनता ने ज ूजी को कई बार हड़का िदया था। अब वह उनको
एक स ान दे ना चाहती थी। माँ का वचन तो अब पूरा हो ही गया था। सुनीता ने ज ूजी का ल अपने हाथों म िलया और ार से
उसे धीरे धीरे िहलाने लगी। सुनीता के हाथम ही अपना ल आते ही ज ू जी मारे उ ेजना से मचलने लगे। उनको महीनो का
सपना शायद आज पूरा होने जा रहा था। ज ूजी ने पलट कर सुनीता की और दे खा और सुनीता के मुंह को अपने हाथों म पकड़
कर उसे बड़ी गमजोशी से चूमा। सुनीता की आँ खों म आँ ख डाल कर ज ूजी ने पूछा, "सुनीता, अगर म नदी म नही ं कूदता तो ा
मुझे यह मौक़ा िमलता?" सुनीता ने मु ाते ए कहा, "म अब आपको अ ी तरह जान गयी ँ। ऐसा हो ही नही ं सकता की मेरी
जान खतरे म हो और आप मुझे बचाने के िलए पहल ना कर। जहां तक मौके की बात है तो मेरी माँ को भी शायद इस बात का पूरा
अंदेशा होगा की मेरी िजंदगी म एक नौजवान आएगा और मुझे मौत के मुंह म से वापस िनकाल लाएगा। अब मेरी िजंदगी ही
आपकी है तो मेरा बदन और मेरी जवानी की तो बात ही ा? मेरी माँ ने भी यही सोचकर मुझसे वह वचन िलया था। जो आपने पूरा
िकया।"

ज ूजी ार से सुनीता का चेहरा दे खते रहे और सुनीता की करारी गाँड़ के ऊपर ार से अपना एक हाथ फेरते रहे। सुनीता
ज ूजी के ल म से िनकल रहा वाही ाव को अनुभव कर रही थी। ाव से ज ूजी का ल िचकनाहट से पूरी तरह सराबोर
हो गया था। सुनीता की चूत भी ज ूजी से िमलन से काफी उ ेिजत होने के कारण अपना ी रस रस रही थी। सुनीता ने ज ूजी
की मूंछ पर होने होंठ िफराते ए एक हाथ से ज ूजी का ल सहलाती और दू सरे हाथ से ज ूजी की पीठ पर अपना हाथ ऊपर
िनचे कर के ज ूजी के ायुओ ं का मुआइना कर रही थी। ज ूजी का कड़ा ल पूरा कड़क हो गया था। ज ूजीके बगलम ही
लेटकर सुनीता ने अपनी बाजुओ ं को ऊंचा कर ल ाया और ज ूजी को अपनी बाँहों म आने का िनम ण िदया। ज ूजी पलंग पर
उठ खड़े ए। उ ोने अपना कुता और पयजामा िनकाल फका और पलंग पर लेटी ई सुनीता की जाँघों के इदिगद, सुनीता की
जाँघों को अपनी टाँगों के िबच म रखे ए अपने घुटने पर बैठ गए। ज ूजी सुनीता के ऊपर बैठ कर उनके िबलकुल दो जाँघों के
िबच िनचे लेटी ई सुनीता के नंगे बदन को ार से दे खने लगे। सुनीता के चेहरे पर एक अजीब सा रोमांच का भाव था। ज ूजी
अपना ल उसकी चूत म डालगे यह सुनीता के िलए अनोखा अवसर था। बार बार सुनीता इसी के बारे म सोच रही थी। उसने
सपने म यह कई बार दे खा था जब ज ूजी अपना यह मोटा ल सुनीता की चूत म डाल कर उसे चोद रहे थे। सुनीता ने ज ूजी
का ल अपनी उं गिलयों म लेनेकी कोिशश की।

ज ूजी का ल पूरा फुला आ और अपनी पूरी ल ाई और मोटाई पा चुका आ था। ज ू जी का ल दे ख कर सुनीता को


डर से ादा ार उमड़ पड़ा। कािलया का ल दे खनेके बाद सुनीता को ज ूजी का ल बड़ा ारा लग रहा था। जीस ल से
पहले सुनीता काँप जाती थी, वही ल अब उसे सही लग रहा था। कािलया का गै ाके ल के जैसा ल दे ख कर सुनीता को
यकीन हो गया की दद तो खूब होगा, पर वह ज ूजी का ल अपनी चूत म ज रले पाएगी। सुनीता ने ार से ज ूजी की आँखों
से नजर िमलायी ं और मु ाती ई ज ूजी के ल को ार से सहलाने लगी। सहलाते सहलाते उसे ज ूजी पर ार उमड़ पड़ा
और सुनीता ने ज ू जी के सामने अपने हाथ ल ाए और उ अपने आगोश म लेने के िलए मचल उठी। ज ूजी ने अपना ल

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सुनीता की चूतपर िटकाते ए झुक कर सुनीताके हो ँठोंसे हो ँठ िमलाये। ज ू जी का ल सुनीता की चूत के आसपास इधर उधर
फैल गया और ज ूजी ने भी सुनीता को अपने आगोश म ले िलया। दोनों ेमी एक दू सरे की बाँहों म ऐसे िलपट गए और उनके होंठ
ऐसे एक दू सरे से भीच
ं गए जैसे कभी वह जुदा थे ही नही ं।

सुनीताने ज ूजीको िफर खड़ािकया और शमाते ए इशारा िकया की वह अपना ल सुनीता की चूत म डाले। पर आज ज ूजी
कोई ख़ास मूड़ म लग रहे थे। उ ोंने सुनीताके इशारे पर कोई ान ही नही ं िदया। वह चुपचाप ऐसे ही बूत बनकर बैठे रहे जैसे
कुछ सोच रहे हों। ज ूजी की यह करतूत दे खकर सुनीता झ ायी। सुनीता ने ज ूजी का ल उँ गिलयों म पकड़ कर उसम
हलकी सी चूँटी भरी। चूँटी भरने पर दद के कारण ज ूजीके मुंहसे "आउच..." िनकल गया। सुनीता ने ज ूजी का ल अपनी
उँ गिलयों म िलया और उनकी िचकनाहट पुरे ल पर फैलानी शु की। उसके बाद सुनीता ज ूजी का ल अपनी चूत की
सतह पर थोड़ी दे र तक हलके से िघसती रही। ज ूजी का हाथ सुनीता ने अपने म ों पर रख िदया। वह चाहती थी की जब
ज ूजी का मोटा कड़क फौलादी ल सुनीता की चूत म दा खल हो और तब जो दद वह महसूस करे तब ज ूजी की उं गिलयां
उसकी चूँिचयों के सहलाती रहे, तािक उससे हो रही उ ेजना म सुनीता को दद महसूस ना हो।

जब ज ूजी का ल काफी िचकना हो चुका तब सुनीता ने अपना पडू ऊपर उठाकर ज ूजी के ल को अपनी चूत म घुसेड़ने
की हलकी कोिशश की। ज ूजी ने महसूस िकया की उनका ल अंदर घुसने म िद त हो रही थी। पर सुनीता ज ूजी का
ल अपनी चूत म डलवाने के िलए बेचैनथी। ज ूजी ने अपना ल सुनीता की चूत म एक ह ा सा ध ा दे कर थोड़ा सा
घुसेड़ा। सुनीता के मुंह स एक छोटी सी आह.... िनकल पड़ी। ज ूजी सुनीता की आह सुन कर क गए। उ ोंने िचंता से सुनीता
की और दे खा। सुनीता ने ज ूजी के चहरे पर परे शानी के भाव दे खे तो मु ु रायी और िफर अपना पडू और ऊपर उठाकर
ज ूजी को ल अंदर डालने के िलए इशारा िकया। ज ूजी ने एक ध ा और िदया। ध ा दे ते ही ज ूजी का लंड का टोपा
सुनीता की चूत को फाड़ कर घुस गया। ना चाहते ए भी सुनीता चीख उठी। सुनीता की चीख सुनकर ज ूजी नवस हो गए और
अपना ल बाहर िनकाल िलया। जब ज ूजीने अपना ल बाहर िनकाला तो सुनीता बड़ी झ ायी। पर िफर उसे ज ूजी पर
ार भी आया। सुनीताने ज ू जी से ार से कहा, "मेरे राजा! यह ा कर रहे हो? डालो अंदर। मेरी िचंता मत करो। म तो ऐसे
चीखती र ंगी। ीज चोदो ना मुझे!" सुनीता की बात सुनकर ज ूजी मन म ही मु ाये। औरतों को समझना बड़ा मु ल होता
है। ज ूजी ने धीरे से अपना ल सुनीता की चूत म घुसेड़ा और एक ह ा सा ध ा मारा। सुनीता ने अपनी आँ ख मूँद ली ं।
ज ूजीने िफर एक ध ा और मारा। सुनीता के कपाल पर पसीने की बूँद िदखाई दे ने लगी। सुनीता का हाल दे ख कर ज ू जी
थोड़ा घबरा से गए और झुक कर सुनीता से पूछा, " ा चालु रखूं?"

सुनीता ने अपनी आँ ख खोली ं और मु रा कर थोड़ा सा हाँफते ए बोली, "ज ूजी, आपने कभी िकसी औरत को ब े को जनम
दे ते ए दे खा है? आज मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है। यह दद नही ं सुख है मेरे िलए। जैसे आप और आपके जवान दे श के िलए
जखम खा कर भी हँसते ह, वैसे ही आज मुझे आप मत रोिकये। आज म आपसे चुदकर जैसे माँ को िदया आ मेरा ण साकार कर
रही ँ। ीज आप चोिदये मुझे मत िकए।" ज ूजी ने धीरे धीरे अपना ल अंदर घुसेड़ना जारी रखा। उनकी नजर सुनीता के
चेहरे पर हर व िटकी रहती थी। सुनीता ने भी जब यह दे खा तो अपना दद छु पाते ए वह मु ु राने लगी और कृि म िदखावा
करती रही की जैसे उसे कोई दद नही ं आ। पर अपने कपाल पर इक ा आ पसीना कैसे छु पाती? वह सुनीता के दद की चुगली
कर दे ता था। ज ूजी सुनीता की जांबाजी पर िफ़दा हो गए। भगवान् ने औरतों को कैसा बनाया है? इतना सहन करने पर भी वह
अपने चेहरे पर एक िसकन भी नही ं आने दे ती?" ज ूजी ने धीरे धीरे सुनीता की चूत म अपना ल ादा गहरा घुसेड़ना जारी
रखा। एक ध ा मारते ही उनका आधा ल सुनीता की चूत की सुरंग म घुस गया। ज ूजी ने दे खा की उनके ध े से सुनीता
पलंग से ही उछल पड़ी। उसके मुंह से एक बड़ी जोर की चीख िनकलने वाली ही थी पर सुनीता ने बड़ी जबद कोिशश कर उसे
रोक ली। ज ूजी सुनीता की सहनशीलता दे ख हैरान रह गए। उ पता था की सुनीता को िकतना ादा दद अनुभव हो रहा होगा।
उनके ल को सुनीता की चूत ने िजतनी मजबूत पकड़ से जकड़ा आ था उससे यह पता लगाना मु ल नही ं था की सुनीता की
चूत की चा को िकतना ादा चौड़ा और खी ंचना पड़ रहा होगा। यह भगवान् की ही द है की औरत की चूत को भगवान् ने पता
नही ं िकतनी मािहम और मजबूत चमड़ी से बनाया होगा की इतनी ादा हद तक चौड़ी हो सकतीथी। इतनी ादा खंचाई होने के
कारण सुनीताको िकतना दद महसूस हो रहा होगा इसकी क ना करना भी मु ल था।

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ज ूजी सुनीता को इतना दद नही ं दे ना चाहते थे। पर दो चीज़ उनको मजबूर कर रही ं थी ं। पहले तो सुनीता का दु रा ह। सुनीता
उनसे चुदवाना चाहती थी। बस आगे पीछे कोई बात वह सुनने के िलए तैयार नही ं थी। दु सरा ज ूजी का साला कमीना ल । पता
नही ं इससे पहले िकसी भी औरत के िलए उसने इतना तूफ़ान नही ं मचाया था। पर सुनीता को दे खते ही (भले ही वह पूरी तरह कपडे
पहने ही ों ना हो?) ज ूजी का ल ऐसे फनफनाने लगता था जैसे कोई कई महीनों से भूखा आदमी अपने सामने ािद
मनपसंद ंजनों से भरा आ थाल दे ख कर फनफनाता है। ज ूजी के इस लण्ड घुसाने की ि या के दर ान सुनीता की आँ ख
बंद ही रही थी। कभी कभी सुनीता की भौंह िसकुड़ जाती ं थी ं। िफर ज ूजी कही ं दे ख ना ले यह डर से वह अपने चेहरे पर एक
मु ान ला दे ती थी। सुनीता की चूत की सुरंग म जैसे जैसे ज ूजी का ल घुसता गया, वैसे वैसे सुनीता के अंगों म फड़कन और
रोमांच बढ़ताही जा रहा था। "मेरे परम ि य, मेरे पित के सामान मेरे सव से चुदाई करवाके उनके जहनम आनंद दे कर मेरा
जीवन आज ध हो गया।" ऐसे िवचार बार बार सुनीता के मन म आते रहे। अपने ि यतम का ल अपनी चूत म महसूस करके
वह अपने आपको ध अनुभव कर रही थी। सुनीता ने अपनी िजंदगी म पहले कभी ऐसा सोचा भी नही ं था की िकसी पराये मद से
चुदवा कर वह कभी इस तरह अपने आपको ध महसूस करे गी।

ज ूजी के ल का एक एक ध ा ददके साथ सुनीता को एक गजब आनंद का अनुभव करा रहा था। साथ साथ म ज ूजी के
हाथों म अपने नों को दबवा कर वह आनंद को कई गुना बढ़ा रही थी। सुनीता को चोदने की ािहश िदल म िलए ए ज ूजी
पता नही ं शायद सिदयों से सुनीता की चूत के दशन चाहते रहे होंगे। शायद कई ज ों से ही उनके मन म सुनीता को चोदने कामना
रही होगी। ूंिक उ ोंने इससे पहले िकसी भी औरत को चोदने के बारे म इतनी उ टता और बेचैनी नही ं महसूस की थी। जब
जब भी सुनीता ने उ चोदने से रोका तो उ अपने िदल के कई हजार टु कड़े हो गए हों ऐसा लगता था। उनके जहन म इतनी
जलन और बे खी होती थी जैसे उनके जीवन म कोई रस रहा ही नही ं हो। जब सुनीताने सामने चलकर उ चोदने के िलए
आमंि त िकया तो उ लगा जैसे कोई अक नीय घटना घट रही हो। उ ोंने कभी सोचा भी नही ं था की सुनीता इस जनमम उनसे
कभी चुदवायेगी। उ ोंने तो यह अपने मन से मान ही िलया था की शायद उ सुनीता को चोदने का मौक़ा अब अगले जनम म ही
िमलेगा। इस िलए ज ूजी के िलए तो यह मौक़ा जैसे पुनज जैसा था।

उनको यकीन ही नही ं हो रहा था की वाकई म यह सब हो रहा था। उ यह सारी घटना एक सपने के सामान ही लग रही थी। और
ों ना लगे भी? िजस तरह सारी घटनाएं एक के बाद एक हो रही ं थी ं, ऐसा ज़रा भी लगता नही ं था की ा सच था और ा सपना?
हर एक पल, हर एक ल ा उ ेजना और रोमांच के साथ साथ रह से लबालब भरा आ था। अगले पल ा होगा िकसीको भी
क ना नही ं थी। जब सो रहे थे तब सपना भी वा िवक लगता था और जब जागते ए कुछ होता था तो ऐसा लगता था जैसे सपना
दे ख रहे हों। ज ूजी के िलए सुनीता का उनसे चुदाई के िलए तैयार होना भी एक ऐसी ही घटना थी।

सुनीता को ज ूजी का ल अपनी चूतम लेकर जो भाव होरहा था वह अवण यथा। एक तो ज ू जी उसके गु और माग दशक
थे। उसके अलावा वह उसको ब त चाहते थे। ज ूजी सुनीता पर अपनी जान िछड़कते थे। यह तो सािबत हो ही गया था। ऊपर से
उनके मन म सुनीता के िलए बड़ी स ान की भावना थी। ज ूजी का ल सुनीता की चूत म पहले कभी ना आ था ऐसा अनोखा
ार भरा उ ाद पैदा कर रहाथा। इसके कारण सुनीता की चूत म भी एक ऐसी फड़फ-ड़ाहट और क न हो रहा था िजसे ज ूजी
यं भी अनुभव कर रहे थे। सुनीता की चूत म इतना उ ाद हो रहा था की ज ूजी के हर एक ध े से वह अपने आपको गदगद
महसूस कर रही थी। सुनीता के पुरे बदन म रोमांच की उ ट लहर दौड़ जाती थी। सुनीता ने ज ूजी का मुंह अपने नों पर रखा
और उ नो ँ को चूमने और चूसने का आ ह िकया। वह रात सुनीताकी सबसे ादा यादगार रात थी। ज ूजी महसूस कर रहे
थे की सुनीता की चूत की दीवार कभी एकदम उनके ल को िसकुड़ कर जकड लेती ं तो कभी ढीला छोड़ दे ती ं। जैसे जैसे चूत
िसकुड़कर जकड़ लेती ं तो ज ूजी के ल और पुरे बदनम अजीब सा रोमांच और उ ेजक िसहरन फ़ैल जाती। सुनीता चाहती थी
की ज ूजी उसके पुरे बदन का आनंद उठाय। वह बार बार कभी ज ूजी के हाथ अपनी गाँड़ पर तो कभी अपने नो ँ पर तो
कभी अपनी चूत पर रख कर ज ूजी को उसे सहलाने के िलए बा करती। सुनीता की चूत म फड़कन इतनी तेज हो रही थी की
उसके िलए अब अपने आप पर िनय ण रखना नामुमिकन सा हो रहा था। सुनीता के नंगे बदन पर ज ूजी का हाथ िफराना ही
सुनीता को बेकाबू कर रहा था। सुनीता को यकीनथा की उसकी ब त बिढ़या अ ीखासी चुदाई होने वाली थी और वह दद के डर
के बावजूद भी अपने ि यतम ज ूजी से ऐसी घमासान और भ ी चुदाई के िलए बेकरार थी। पर ज ूजी के नंगे बदन का, उनके

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ल का और उनकी मांसल बाँहों का श मा से ही सुनीता का अंग अंग फड़क उठा था। जब पहली बार ज ूजी के ल ने
सुनीता की चूत म वेश िकया तो सुनीता को ऐसा लगा जैसे वह मर ही गयी। उसके पुरे बदन म उ ाद और रोमांच की एक अजीब
सी लहर दौड़ने लगी। उसे लगा की उसका पानी छूटने वाला ही था।

अगर ज ूजी को यह पता लग गया की सुनीता अपना पानी छोड़ने वाली है तो शायद ज ूजी अपनी चोदनेकी र ार कमकरद या
कही ं अपना ल बाहर ही ना िनकाल ल इस डर से सुनीता अपनी उं चाई पर प ंच के बावजूद अपने आप पर क ोल कर रहीथी।
पर जैसे जैसे ज ूजीने एक एक बाद एक ध े मारने शु िकया तो सुनीता िनय ण से बाहर हो गयी और ज ूजी की बाँह अपने
हाथों म जकड कर बोल पड़ी, "आहहह ... ओह्ह्ह... उ ..." ज ूजी ीज मुझे और जोरसे चोिदये, मेरा छूटने वाला है। पर
आप मत िकए।" एक बड़ी हलकी सी "आह... की िससकारी दे कर सुनीता ढे र हो गयी। ज ूजी ने दे खा की सुनीता झड़ चुकी है
तो वह अपना फुला आ ल सुनीता की चूत म से बाहर िनकालने लगे। सुनीता ने ज ूजी का हाथ थाम कर उ अपना ल
उसकी चूत म से बाहर िनकाल ने से रोका। सुनीता ने ज ूजी को चुदाई जारी रखने को कहा। पर ज ूजी ने कहा, "सुनीता, तुम
िचंता मत करो। म तैयार ही ँ। म ढीला नही ं पड़ने वाला। तुम कुछ पल आराम करलो।" सुनीता ने ज ूजी की और ऊपर आँ ख
उठा कर दे खा। सुनीता को अपनी चूत म ज ूजी का फड़फड़ाता आ कड़क छड़ सा स ल महसूस कर यकीन आ की
ज ूजी इस ेक के कारण ढीले नही ं पड़गे और उसकी चुदाई म कोई कमी नही ं आएगी।

कुछ दे र आराम करने के बाद सुनीता एकदम फुत से उठी और ज ूजी का ल अपनी चूत म ही गड़े ए रखते ए ज ूजी के
हो ँठों को चूमकर ज ूजी को कहने लगी, "ज ूजी म तैयार ँ। म भले ही झड़ जाऊं। पर आपको ढीला नही ं पड़ना है। मुझे पूरी
रात और पुरे िदन भर चोदना है।" सुनीता की बात सुनकर ज ूजी के हो ँठों पर ार भरी मु ान आ गयी। ज ूजी ने भी सुनीता
के हो ँठों को चूसते ए कहा, "सुनीता, तुम ा समझती हो? ा म इतनी आसानी से मेरी महीनों की अधूरी कामाि को ऐसे ही
छोड़ दू ं गा? मुझे भी मेरी सुनीता को रात भर चोदना है।" यह कह कर ज ूजी ने सुनीता को धीरे से सुलाया और िफर उसके ऊपर
ठीक से सवार हो कर सुनीता के दोनों फुले ए बॉल ( नो ँ) को अपनी हथेली और उँ गिलयों म मसलते ए सुनीता की चूत म अपना
ल अंदर बाहर करते ए उसे चोदने म एक बार िफर से मशगूल हो गए। ज ूजी एक के बाद एक फुत से अपना ल सुनीता
की चूत म पेले जा रहे थे। सुनीता भी अपनी गाँड़ उछाल उछाल कर ज ूजी के मोटे तगड़े ल को अपनी चूत म पूरा अंदर तक
लेने का यास करती थी। ज ूजी के हर एक ध े को सुनीता "उँ ह... उँ ह..." करती ई कराहती। ज ूजी भी हर एक ध े के
साथ साथ "उफ... उफ़..." करते ए सुनीता को चोदे जा रहे थे।

सुनीता ने अपनी टाँग उठाकर ज ूजी के कंधे की दोनों तरफ चौड़ी कर फैला रखी ं थी ं िजससे ज ज
ू ी को उसकी टाँगों के िबच म
घुसने म कोई िद त ना हो। पुरे कमरे म चुदाई की "फ ... फ ..." आवाज का उद् घोषहो रहाथा। ज ूजी का इतना मोटा ल
भी सुनीता की चूत म समा गया और सुनीता को कोई खून नही ं िनकला यह सुनीता के िलए एक राहत की बात थी। उस रात सुनीता
ने ज ूजी को उस रात तक िजतना तड़पाया था उसका पूरा मुआवजा दे ना चाहती थी। सुनीता उ वह आनंद दे ना चाहती थी जो
ोितजी उ नही ं दे पायी हो। इस िलए अलग अलग कोने से अपना बदन इधर उधर कर सुनीता ज ूजी का ल अपनी चूत के
हर कोने म महसूस करना चाहती थी। ज ूजी भी सुनीता के ऐसा करने से अद् भुत रोमांच अनुभव कर रहे थे। कुछ दे र की चुदाई
के बाद सुनीता ने ज ूजी को रोका। सुनीताने अपना सर ऊपर उठाकर ज ू जी के हो ँठ अपने हो ँठों प् रखे और उ चूमते ए
सुनीता ने कहा, "ज ूजी, आज से मेरे इस बदन पर आपका उतना ही हक़ है िजतना की मेरे पित का। हाँ , ूंिक म सुनीलजी की
सामािजक प ी ँ इस िलए म रोज आपके साथ सो नही ं सकती, पर आप जब चाहे मुझे चुदाई के िलए बुला सकते ह या िफर मेरे
बैड म म आ सकते ह। म जानती ँ की मेरे पित को इसम कोई आपि नही ं होगी। जहां तक ोितजी का सवाल है तो वह भी तो
आपसे मेरी चुदाई करवाने के िलए बड़ी उ ुक थी ं।" ज ूजी ने सुनीता को ार से चूमते ए कहा, "सुनीता, ोित ने मुझे वचन
िदया था की एक ना एक िदन वह तु मेरे िब र म मुझसे चुदवाने के िलए मना ही लेगी। यह आपसी समझौता मेरे और ोित के
िबच म तो पहले से ही थी। सुनीता तुम इतना समझ लो की म भी तु उतना ही ार करता ँ िजतना तुम मुझ से करती हो। हमारे
िसफ बदन ही नही ं िमले, आज हमारे दय भी िमले ह।"

सुनीता ने ज ूजी को चूमते ए कहा "मेरे राजा, आज हम और कोई बात नही ं करगे। हम ने ब त बात की, ब त ार भरी हरकत

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की, पर चुदाई का मौका तो अब िमला है। ज ूजी आप को पता नही ं, म इस ल े के िलए िकतनी बेबस थी। आप शायद नही ं
समझ पाएं गे एक ी की भावनाओं को। हम औरतों की चूत हमारी आँखों के साथ साथ हमारे िदल से जुडी है। आप मद का ल
िसफ आपकी आँ खों से जुड़ा है। यही फक है मद और औरतों की से करने की उ ेजना को भड़काने वाली चाभी म। आप मद
लोग शायद सु र औरत का कमिसन बदन दे ख कर उसे चोदने के िलए आमादा हो जाते हो। हम औरत लोग ादातर मद के
बदन से ज र आकिषत होते ह, पर उससे भी ादा हम मद के ार और हमारे िलए उसके मन म ाग या िनछावर होने की
भावना से ादा उ ेिजत होते ह। पहली बार शायद हम ज र आँ खों की बात मानते ह। पर आ खर म आँ खों से भी ादा हम
िदल की बात मानते ह। आप से तो म उसी िदन मानिसक प से चुदवाने के िलए तैयार हो गयी थी जब आप ने पहेली बार उस
िसनेमा हॉल म अपना ल मेरे हाथों म दे िदया था। मेरे पित के ल को छोड़ आप का ल मेरे िलए पहला मरदाना ल था
िजसे मैने अपने हाथों म िलया था। उसी समय मेरी चूत से मेरा पानी िनकल ने लगा था। आपका ल मेरे पित से कही ं भारी, मोटा
और लंबा है। पता नही ं िकतनी रात मने आपके ल को मेरी चूत म डलवाने के सपने दे खते ए गुजारी है। िकतनी रात मने अपने
पित चुदवाते ए भी यह समझ कर गुजारी ं थी ं की म मेरे पित से नही ं आपसे चुदवा रही ँ। उसके बाद जब आपने मेरी पढ़ाई के
िलए इतना ादा बिलदान िकया की मुझे अ ल दजा िदला कर ही छोड़ा। इसके कारण मेरे मन म आपके िलए वह भाव उमड़
पड़ा िजसे म कह नही ं सकती। जब म उस झरने म आपके सामने आधी नंगी हािजर ई और आपका बदन जब मेरे बदन को छु आ
तो मेरे धैय ने जवाब दे िदया। अगर उस िदन आपने मुझे रोका नही ं होता तो म माँ को िदया आ वचन तोड़कर भी आपसे चुदवाने
के िलए िबलकुल तैयार थी। मने अपने आप पर िनय ण िबलकुल खो िदया था। पर आपने अपना मरदाना धैय का लंत दशन
िदया और मुझे माँ का वचन तोड़ने से बचाया। पर अगर आपने मुझे उस िदन चोदा होता तो आपके िलए मेरे मन म आज जो भाव है
वह शायद नही ं रहता। आ खर म आपने अपनी जान का लगभग बिलदान दे कर मुझे बचाया तो माँ को िदया आ वचन भी पूरा
आ और आपने मुझे िबना मोल खरीद भी िलया। अब िसफ मेरा यह बदन, मेरा ी , मेरा ार यहां तक की मेरी जान भी आप
पर ोछावर है। आ खर म आज घर से िकतनी दू र, कुदरत की इन वािदयों के िबच निदओं, पहाड़ और झरनों के साि म आज
आप से चुदवाने की मेरी मनोकामना पूरी करने का अवसर मुझे िमला है। आज तक आपके और मेरे इतनी उ टता से एक दू सरे
को चोदने की गाढ़ इ ा और अवसर िमलने के बावजूद भी माँ की आ ा के कारण म आपकी श ा भािगनी नही ं बन सकी। आज
मुझे अवसर िमला है की म अपने तन, मन और माँ की इ ा पूरी क ँ और मेरे सारे अ को आपको समिपत क ँ ।"

ज ूजी सुनीता को दे खते ही रहे। सुनीता की आँ खों म से भाव के ार भरे आँ सूं बह रहे थे। उ ोंने सुनीता की चूत म ही अपने
ल को गाड़े रखे ए सुनीता को चूमा और बोले, "ि या, तुम मेरी अपनी हो। तुम मेरी प ी नही ं उससेभी कही ं अिधक हो। तुम ना
िसफ मेरी शै ा भािगनी हो, तुम मेरी अंतर आ ा हो। तु पा कर आज म खुद ध हो गया। पर जैसा की तुमने सबसे पहले कहा,
अभी हम अपना ान ार से भी ादा चुदाई म लगाना है ूंिक हमारे पास अभी भी ादा समय नही।ं कही ं ऐसा ना हो, हमारा
पीछा करते ए दु न के िसपाही यहां आ प ंचे। यह भी हो सकता है की हमारी ही सेना के जवान हम ढूंढते ए यहां आ प ंचे।"
सुनीता ने ज ूजी के मुंह म अपनी जीभ डाली और ज ूजी के मुंह को सुनीता जोश खरोश के साथ चोदने लगी। चोदते ए एक
बार जीभ हटा कर सुनीता ने कहा, "ज ूजी, आज मुझे आप ऐसे चोिदये जैसे आपने पहले िकसीको भी चोदा नहीहं ोगा। ोित जी
को भी नही ं। आपका यह मोटा तगड़ा ल म ना िसफ मेरी चूत के हर गिलयारे और कोने म, ब मेरे बदन के हर िह ेम
महसूस करना चाहती ँ।" यह कह कर सुनीता ने ज ूजी का वीय से लबालब भरा ल जो की सुनीता की चूत की गुफा म खोया
आ था, उसे अपनी उँ गिलयों म पकड़ा। सुनीता की चूत और ज ूजी के ल के िबच उं गली डाल कर सुनीता ने ज ूजी का
ल और अपनी चूत को अपनी कोमल उँ गिलयों से रगड़ा। सुनीता की नाजुक उँ गिलयों को छूने से ज ूजी का वीय उनके
अंडकोषों म फुंफकार मारते ए उनके ल की रगों म उछलने लगा। ज ूजी ने अपनी ि यतमा की इ ा पूरी करते ए अपना
ल सुनीता की ासी चूत म िफर से पेलना शु िकया।

ज ूजी का ल पूरी तरह फुला आ अपनी पूरी ल ाई और मोटाई पा चुका था। सुनीता की चूत के हर मोह े और गिलयारे म
वह जैसे एक बादशाह अपनी रयाया ( जा) के इलाके म उ सैर करता है वैसे ही ज ूजी का ल अपनी ि यतमा सुनीता की
चूत की सुरंग के हर कोने म हर सुराख म जाकर उसे टटोलता और उसे चूमता आ सुनीता की चूत के ार म से अंदर बाहर हो
रहा था। सुनीता के ी रस से सराबोर और ज ूजी के पूव ाव की िचकनाहट से लथपथ ज ूजी के मोटे ल को सुनीता की
चूत के अंदर बाहर जाने आने म पहले की तरह ादा िद त नही ं हो रही थी। पर िफर भी सुनीता की चूत की दीवारों को ज ूजी

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का ल काफी तनाव म रखे ए था। और इसके कारण ही सुनीता को अपनी चूत म एक अनोखा उ ाद हो रहा था। सुनीता
उछल उछल कर ज ूजी के ल को अपने अंदर गहराई तक डलवा रही थी। उसे इस ल को आज इतने महीनों से ना चुदवाने
की कसर जो िनकालनी थी। सुनीता ने थोड़ा ऊपर उठ कर ज ूजी के ल को अपनी चूत से अंदर बाहर जाते ए दे खना चाहा।
वह अपनी चुदाई को अनुभव तो कर रही थी पर साथ साथ उसे अपनी आँ खों से दे खना भी चाहती थी।

ज ूजी का िचकनाहट भरा ल उसने अपनी चूत म से घुसते ए और िनकलते ए दे खा तो उसे अपनी आँ खों पर िव ास नही ं
आ की ज ूजी का इतना मोटा ल अंदर लेने के िलये उसकी चूत िकतनी फूली ई थी। सुनीता ने कभी क ना भी नही ं की
होगी की इतना मोटा ल लेने के िलए उसकी चूत इतनी फ़ैल भी पाएगी और वह कभी ज ूजी का ल अपनी चूत म ले भी
पाएगी। ज ूजी का ल सफ़ेद िचकनाहट से लथपथ दे ख सुनीता को डर लगा की कही ं ज ूजी ने अपना वीय तो नही ं छोड़
िदया? अगर ऐसा आ तो िफर ज ूजी ढीले पड़ जायगे और वह सुनीता नही ं चाहती थी। पर ज ू जी की तेज र ार से चुदाई
करते दे ख कर और उसकी चूत म ज ूजी के ल की जो मोटाई और ल ाई तब भी बरकरार थी उसे महसूस कर के सुनीता को
यकीन हो गया की ज ूजी ने अपना वीय नही ं छोड़ा था और जो िचकनाहट वह दे ख रही थी वह ज ज
ू ी के ल म से िनकला
आ पूव ाव ही था। अपनी चुदाई का सा ात दे ख कर और ज ूजी का मोटा िचकनाहट से लथपथ ल अपनी फूली ई
चूत के अंदर बाहर िनकलते ए दे ख कर सुनीता की उ ेजना और बढ़ने लगी। उसका ी और उसका मन का उ ट भाव
उसकी चूत की झनझनाहट को ऐसे छे ड़ रहा था जैसे कोई िसतार बजाने वाला िसतार के तारों को अपनी उँ गिलयों से झनझ-नाहट
करता आ छे ड़ रहा हो।

जैसे जैसे सुनीता अपनी चुदाई दे खती गयी वैसे वैसे और ादा रोमांिचत होती गयी। सुनीता की चूत म उसका ी रस फ ारे सा
बहने लगा। सुनीता एक बार िफर अपने चरम पर प ँचने वाली थी। ज ूजी का ल उसकी चूत पर कहर ढा रहा था। इतनी
थकान और कम नी ंद के बावजूद ज ूजी का लंड कने का नाम नही ं ले रहा था। एक बार िफर सुनीता ने ज ूजी की कलाई
स ी से पकड़ी और "आह्ह्ह्हह्ह... अरे ... ऑफ़... ज ूजी आपका ल कमाल कर रहा है। मेरा छूट रहा है। पर आप िकएगा
नही ं। ीज चोिदये, चोदते जाइये।" कह कर सुनीता िफर ढे र सी िगर पड़ी। उसका बदन एकदल ढीला पड़ गया था। वह चुदाई की
थकान से हांफने लगी थी। ज ूजी ने सुनीता के मना करने पर भी अपने आपको रोका और अपनी ि यतमा को साँस लेने और
आराम का मौक़ा िदया। घंटों की थकान और नी ंद की कमी के कारण सुनीता और ज ूजी दोनों थके ए तो थे। पर कुछ घंटों के
आराम क बाद हालांिक उनकी थकाहट पूरी तरह ख तो नही ं ई थी, िफर भी उनम इतनी ऊजा का संचार ह चुका था की वह
दोनों और ख़ास कर सुनीता ज ज
ू ी के तगड़े ल को और अपनी ासी चूत को ज़रा भी आराम करने दे ना नही ं चाहती थी। दोनों
को एक दू सरे से पहली मुलाक़ात के महीनों के बाद पहली बार ऐसा मौक़ा िमला था जब उनकी महीनों की चाहत पूरी होने जा रही
थी। आराम करने का मौक़ा तो आगे चलकर खूब िमलेगा पर ा पता ऐसे एक दू सरे के नं बदन को इतने ार से िलपटने का
और एक दू सरे के बदन को इतने एक दू सरे म िमलाने का मौक़ा नाजाने िफर कब िमले? और अगर िमलेगा भी तो इन वािदयों और
ऐसे खुशनुमा नज़ारे म तो शायद ही िमले। यह सोच कर दोनों ेमी एक दू सरे के बदन को छोड़ना ही नही ं चाहते थे। भगवान् ने भी
ा दु िनया बनायी है? जब आप एक दू सरे को इतना चाहते हो तो एक पु ष और एक ी अपने ार का इजहार कैसे करे ?
भगवान् ने से याने चुदाई का एक ज रया ऐसा िदया िजससे वह दोनों एक दू सरे के अंद नी उ ट ार को अपने शरीर की
जुबान से चुदाई ारा कट कर सकते ह।

समाज ने ऐसे ार भरी चुदाई पर कई अलग अलग तरह के बंधन और िनयम लाद िदए ह। पर जब ार एक हद को पार कर
जाता है तो वह इन िनयमों और बंधनों को नही ं मानता और दो बदन सारे व ों के आवरण को छोड़ कर एक दू सरे के बदन की
कमी पूरी करने के िलए एक दू सरे के बदन को अंदर तक िमलाकर (एक दू सरे को चोद कर) इस कमी को पूरी करने की कोिशश
करते ह। और उसे ही ार भरा मैथुन कहते ह। ज ूजी और सुनीता उस रात ऐसा ही ार भरा मैथुन का आनंद ले रहे थे।
ज ूजी जानते थे की उनके पास अमयािदत समय नही ं था। इलाका खतरों से खाली नही ं था। हालांिक वह िह दु ानी सरहद म आ
चुके थे िफर भी सरहद के दू सरी और से दु न की फ़ौज कई बार िबना कारण गोली बारी करती रहती थी। उस समय कई अन-
जान नाग रक उन गोिलयों का िशकार भी हो जाते थे। कई जगह सरहद अ ी तरह प ी और सुरि त नही ं थी। वहाँ से दहशत
गद अ र घुस आते थे और कहर फैला कर वापस अपनी सरहद म लौट जाते थे। उ दु नों और िह दु ानी फ़ौज के ॉस

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फायर से भी बचना था और अपने कप म प ँचना था। कभी भी कोई दु शमन या िहंदु ानी फ़ौज का िसपाही भी छानबीन के िलये
दरवाजे पर द क दे सकता था। उस समय तक उनको तैयार हो जाना था। पर सुनीता और उनपर ार का ब त सवार था और
ख़ास कर सुनीता ज ूजी को आसानी से छोड़ने वाली नही ं थी। उसे महीनों से ना हो सकी उस चुदाई की सूद समेत वसूली जो
करनी थी।

सुनीता को उस रात कई बार झड़ना था उसे ऐसे कई ऐसे अदभूत ओगा म का अनुभव करना था जो सुनीता जानती थी की ज ूजी
ही उसे करा सकते थे। वह इतनी ज ी चुदाई से बाज आने वाली नही ं थी। तीसरी बार झड़ने के बाद सुनीता ने जब अपनी साँस
वापस पायी तो वह िदए से उठी और पलंग के सहारे घोड़ी बन कर कड़ी हो गयी. ज ूजी समझ गए की सुनीता कुितया ाइल म
(डॉगी ाइल) म पीछे से अपनी चूत चुदवाना चाहती थी। उसे ज ूजी के ल का डर अब नही ं रहा था। उसे पता था की जो भी
दद होगा वह उसे जो उ ट मादक अनुभव करा दे गा उसके मुकाबले म कुछ भी नही ं होगा। सुनीता को पता था की पीछे से चूत
चुदवाने से ज ूजी का ल उसकी चूत म और ादा अंदर घुसेगा। सुनीता की ब े दानी तो को तो ज ूजी का लंड वैसे ही
ठोकर मार रहा था। पर अब जब उनका ल और गहरा घुसेगा तो ा गजब ढायेगा उसके बारे म सुनीता को ज़रा भी आइिडया
नही ं था। पर वह यह सब झेलने के िलए तैयार थी।

सुनीता को पता था की अगर ार से चुदाई करवाने की अगर ठानही लीहो तो एक ी िकसी भी ल से चुदवा सकती है चाहे वह
िकतना बड़ा ों ना हो? दद ज र होगा और खूब होगा। पर यही तो ार की रीती है। जहां ार है वहाँ दद तो होता ही है। जब
ब ा होता है तो दद के मारे माँ की जान िनकल जाती है। पर िफर भी माँ ब े को जनम दे ने के िलए तैयार रहती ूंिक वहाँ ार
है। ज ूजी ने अपना ल सुनीता की चूत के पंखुिड़यों पर कुछ समय तक ार से रगड़ा। जब उ यकीन हो गया की उनका
ल इतना िचकना हो गया है की वह सुनीता की चूत म घुसने से सुनीता को उतना दद नही ं दे गा तब उ ोंने अपना ल सुनीता
की गाँड़ के सािन म ही सुनीता की चूत म पीछे से घुसेड़ा। ज ूजी सुनीता की करारी गाँड़ को दखते ही रहे। सुनीता की गाँड़ के
गालों को वह बड़े ही ार से सहलाते और दबाते रहे और ऐसा करते ए उ गजब का उ ाद भरे आनंद का अनुभव हो रहा था।
झक
ु ी खड़ी सुनीता के बाल उसके सर के िनचे जमीन तक लटके ए गजब िदख रहे थे। सुनीता के अ ड़ न और उसकी
िन ले ँ भी अब धरती की और उं गली कर रही ं थी ं। ज ूजी ने सुनीता की चूँिचयों को अपने दोनोंहाथों म पकड़ा और अपनी गाँड़ के
सहारे सुनीता की चूत म अपना ल और घुसेड़ने के िलए एक ध ा मारा।

ज ूजी के ल के ऊपर और सुनीता की चूत की सुरंग के अंदर सराबोर फैली ई िचकनाहट के कारण ज ूजी का ल अंदर
तो घुसा पर िफर वही सुनीता की चूत की सुरंग की चा को ऐसा खी ंचा की ब त िनय ण रखते और जरासा भी आवाज ना करने
की भरसक कोिशश करने के बावजूद सुनीता के मुंह म से चीख भरी कराह िनकल ही गयी। ज ूजी सुनीता की दद भरी कराहट
सुनकर क जाना चाहते थे। पर उनकी ि यतमा सुनीता कुछ अलग ही िमटटी से बनी थी। ज ूजी को थम कर अपना ल को
िनकालने का मौक़ा ना दे ते ए, सुनीता ने अपनी गाँड़ को पीछे धकेला और ना चाहते ए भी ज ूजी का ल सुनीता की चूत म
और घुस गया। सुनीता ने थोड़ा सा पीछे मुड़ कर अपने ि यतम की और दे खा और मु ु रा कर बोली, "मेरे ारे ि यतम, आप
आज मुझे ऐसे चोदो जैसे आपने कभी िकसीको चोदा ना हो। म यह दद झेल लूंगी ं। अगर मने आपको िवरह का दद िदया था तो म
अब खुद िमलन का दद ार से झेल लूंगी ं। पर मुझे िवरह का दद मत दो। मेरे िलए यह चुदाई का दद सही है पर तु ारे ल के
िवरह का दद मजूर नही ं। आज म पहली बार अपने ि यतम ज ू से चुदवा रही ँ। आज मेरी चूत को भले ही फाड़ दो पर बस खूब
चोदो।"

ज ूजी को सुनीता की ार भरे पागलपन पर हँसी आ गयी। वह सोचने लगे, भगवान् ने औरतों को पता नही ं कैसा बनाया है। वह
दद को भी ार के िलए सहन कर अपने ि यतम को आनंद दे ना चाहती ह। उ अपने ि यतमके आनंद म ही अपना आनंद
महसूस होता है चाहे उसम उनको िकतना भी दद ों नाहो। उ ोंने बरबस ही झक
ु कर सारी ी जाती को अपनी सलूट मारी
और अपने ल को सुनीता की चूत म पेलने म लग गए। एक और ध ा दे कर ज ूजी ने सुनीता की चूत म अपना आधा ल
घुसा िदया। धीरे धीरे बढती िचकनाहट के कारण एक के बाद एक धीरे ध े से उनका ल और अंदर और अंदर घुसता चला
गया और दे खते ही दे खते वह पूरा सुनीता की चूत की सुरंग म घुस गया। सुनीता की चूत की पूरी सुरंग ज ूजी के ल से पूरी

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तरह भर गयी। सुनीता को खुद ऐसा महसूस आ जैसे ज ूजी उसके बदन म वेश कर चुके थे और वह और ज ूजी एक हो
चुके थे। सुनीता अब ज ूजी से अलग नही ं थी। दो बदन ार म एक हो गए थे। सारी दू रयां ख़ हो चुकी थी ं।

सुनीता की चूत पुरे तनाव म इतनी दद भरे तरीके से खी ंची ई होनेके बावजूद भी सुनीताके उ ाद का कोई िठकाना ना था। उसे
अपने ी होने का गव था की उसने अपने ेमी को वह आनंद िदया था जो शायद ही उसके पहले िकसी ी ने उनको िदया हो।
और अपने ि यतम के उ ाद भरे ार के कारण सुनीता भी अपने जहन म एक गजब के उ ाद का अनुभव कर रही थी। उसका
ज ूजी से चुदवाने का सपना पूरा आ था यह उसके िलए एक अद् भुत अवसर था। राजपूतानी की नफरत जान लेवा होती है तो
उसका ार एक जान का संचार भी कर दे ता है। सुनीता की िदली गूढ़ इ ा थी की वह ज ूजी का ब ा अपने पेट म पाले। जब
ज ूजी ने पीछे से सुनीता की चूत म अपना पूरा ल घुसेड़ िदया तो सुनीता ज ूजी के ार को अपने बदन से छोड़ना नही ं
चाहती थी भले ही ों ना ज ूजी का ल सुनीता की चूत म से िनकल जाए। सुनीता ज ूजी की िज़ंदा िनशानी पूरी िजंदगी गले से
लगा कर रखना चाहती थी। सुनीता चाहती थी की ज ूजी के वीय से उसे एक नयी िजंदगी दे ने का मौक़ा िमले। उसे पता नही ं था
की उसके पित उसकी इजाजत दगे या नही ं। पर सुनीता एक राजपूतानी थी और अगर उसने ठान िलया तो िफर वह उसे पूरा
करे गी ही।

ज ूजी सुनीता की चूत म अपना ल जोश खरोश से पेले जा रहेथे। उनके अंडकोष म उनका गरम वीय खौल रहा था। सुनीता
की चूत की फड़कन से वह बाहर फुट फुट कर फ ारे के प म िनकलने के िलए बेताब था। सुनीता की चूत की अद् भुत पकड़
के कारण ज ूजी का धैय जवाब दे रहा था। अब समय आ गया था की वह महीनों की रोकी ई गम और वीय को खाली कर
अपना उ ाद से कुछ दे र के िलए ही सही पर िनजात पाएं । सुनीता ने ज ूजी के बदन के तनाव और चोदते ए उनकी ँकार की
ती ता से यह महसूस िकया की उसके ि यतम भी अपने चरम पर प ँचने वाले ह। तब उसने ज ूजी के ल के िप न के ध ों
को झेलते ए पीछे गदन कर एक शरारती मु ान दे ते ए कहा, "मेरे ि यतम, मेरी जान, तु अपना सारा वीय मेरी चूत म ही
उं डेलना है। अगर म तु ारे वीय से गभवती ई तो यह मेरे िलए बड़े सौभा की बात होगी। मुझे तुमसे एक ब ा चािहए। चाहे
इसके िलए ोितजी और सुनीलजी सहमत हों या नही ं। बोलो ा तुम मुझे गभवती बना सकते हो? तु तो कोई आपि नही ं ना?"
ज ूजी उ ाद के मारे कुछ भी बोलने की हालत म नही ं थे। उनका गरम वीय जो उनक अंडकोष और उनके ल की रग़ों म
खौल रहा था, फुंफकार रहा था उसे छोड़नाही था। और अगर उसे सुनीता की चूत म छोड़ा जाए तो उससे और अ ी बात ा हो
सकती है? उस समय उ सही या गलत सोचने की सूझबूझ नही ं थी। ज ूजी उस समय अपने ल के गुलाम थे। सुनीता भी
अपने उ ाद के िशखर पर प ँच गयी थी। ज ूजी के ध ों के साथ साथ सुनीता भी अपनी गाँड़ को पीछे ध ा मार कर अपनी
उ ेजना िदखा रही थी। ज ूजी के एक जोरदार ध े से ज ूजी के ल के क िबंदु थत िछ से उनके गरम गरम वीय का
फ ारा सुनीता ने अपनी चूत म फैलते ए महसूस िकया।

सुनीता की चूत तो पहले से ही ज ूजी के लण्ड से लबालब भरी ई थी। ज ूजी का गरम वीय इतनी तादाद म था की सुनीता की
चूत की सुरंग म उसके िलए कोई जगह ही नही ं होगी। पर िफर भी वह शायद सुनीता की चूत म से उसकी ब े दानी म वेश कर
गया। शायद सुनीता के ी अंकुर से ज ूजी का पु ष अंकुर िमल गया और शायद एक नयी िजंदगी का उदय इस धरती पर होने
के आगाज़ होने लगे। ज ूजी अपने ल के कुछ और ार भरे ध े मार के क गए। उनका वीय उनके एं ड कोष से िनकल
कर सुनीता की पूरी चूत को पूरी तरह भर चुका था। सुनीता और ज ूजी एक दू सरे से िचपके ए ऐसे ही कुछ दे र तक उसी
पोजीशन म खड़े रहे। धीरे से िफर ज ूजी ने अपना ल सुनीता की चूत म से बाहर िनकाला और कुछ दे र तक नंगी सुनीता की
चूत म से रस रहे अ ने मलाई से वीय को दे खते रहे। सुनीता ने दे खा की ढीला होने के बावजूद भी ज ूजी का ल इतना मोटा
और लंबा एक अजगर की तरह िचकनाहट से लथपथ उनकी टांगों के िबच म से लटक रहा था।

सुनीता ने फुत से लपक कर ज ूजी का ल अपने हाथों म िलया और अपना मुंह झुकाकर सुनीता ने ज ूजी का ल चाटना
शु िकया और दे खते ही दे खते अपनी जीभ से सुनीता ने ज ूजी का ल चाट कर साफ़ कर िदया। ज ूजी का मलाई सा वीय
वह गटक कर िनगल गयी। थके ए ज ूजी िनढाल हो कर पलंग पर िगर पड़े और कुछ ही दे र म खराटे मारने लगे। सुनीता ने

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बाथ म म जाकर अपनी चूत और जाँघों को साफ़ िकया। ज ूजी का वीय अपनी चूत म लेकर सुनीता बड़ी ही संतुि का अनुभव
कर रही थी। उसे उ ीद थी की उस सुबह की चुदाई से वह ज र माँ बनेगी और ज ूजी की िनशानी उसके गभ म होगी। अपने
आप को अ ी तरह साफ़ करने के बाद कपडे पहनने की ज रत ना समझते ए, सुनीता वैसी ही नंगी ज ूजी की बाहों म उनकी
रजाई म घुस कर लेट गयी। कुछ ही दे र म दोनों ेमी गहरी नी ंद के आगोश म जा प ं

सुबह की लािलमा आसमान म हलकी फुलकी िदख रही थी। सुनीता और ज ूजी को सोये ए शायद दो घंटे बीत चुके होंगे की
अचानक डॉ. खान के शफाखाने के दरवाजे की घंटी बज उठी। ज ूजी गहरी नी ंद म से अचानक जाग गए और अपने सूखे ए
कपडे अपने बदन पर डालते ए दरवाजे की और भागे। वह नही ं चाहते थे की इतनी ज ी सुबह डॉ. खान को घंटी सुनकर ऊपर
की मंिजल से िनचे उतरना पड़े । अफरा-तफ़री म अपने कपडे पहनते ए ज ूजी ने दरवाजा खोला तो दे ख कर हैरान रह गए की
सामने सुनीलजी ल लुहान हालात म सारे कपडे लाल ल से रं गे ए उनके सामने खड़ेथे।

***"**

आयेशा ने सुनीलजी का हाथ पकड़ा और साथ म अपनी अपनी ब दू क स ाले दोनों चल पड़े। चलते ए रा ा िदखाते आयेशा ने
सुनील जी का हाथ पकड़ा और बोली, "ओ परदे सी! आज तुझसे ार कर के तूने मुझे सही मायने म एक औरत होने का एहसास
िदलाया। एक औरत जब अपने मन पसंद मद से चुदवाती है ना, तो वह समझती है की उसका जीवन आबाद हो रहा है। यह तुम
मद लोग नही ं समझ सकते। एक औरत जब मद से चुदवाती है, तो यह मत समझो की वह िसफ अपने बदन का एक िह ा मद से
िमलाती है l औरत मद को ना िसफ अपनी चूत, ब सब कुछ दे दे ती है। हालांिक म मद नही ं ँ पर जो मने मद को समझा है
उस की बुिनयाद पर म कह रही ँ की मद को चुदाई के समय औरत की चूत और अपने ल के अलावा कुछ िदखता नही ं है।
उ औरत के ज ात से कोई मतलब नही ं होता l तुम उन मद म से नही ं हो। तुमने मेरे िलए अपनी जानको खतरे म डाल कर और
वह बेईमान फौजी के िबलकुल करीब जाकर अपने हाथों से उसका काम तमाम िकया। तुमने मेरे ज ातों की इ त की। म
तु ारी उ भर की शु गुजार ँ। जैसा की मने कहा था अगर म तु ारे ब े की माँ बन पायी तो यह मेरे िलए यह बड़े फ की
बात होगी, चाहे मुझे इसके िलए हमारे समाज से िकतनी ही िज त ों ना उठानी पड़े ।"

सुनीलजी ने आयेशा की गंवार भाषा म भी एक स ा ार दे खा तो वह गदगद हो उठे । उ ोंने आयेशा को अपनी बाँहों म िलया
और दोनों एक ार भरे गहरे चु न म जुट गए। अँधेरा छटने वाला था। समय कम बचा था। सूरज िनकलते ही पकडे जाने का डर
था। आयेशा उस े को भली भाँती जानती थी। उसने एक शाट कट जो पहाड़ी के रा े से जाता था उस से िह दु ान की सरहद म
घुसने का फैसला िकया। सुनील जी और आयेशा दोनों पहाड़ों की च ानों के पीछे अपने को छु पाते ए जब ऊंचाई पर प ंचे तो
जमीन पर रगते ए धीमी गित से आगे बढ़ रहे थे, तािक दु नों की नजर म ना आएं । आयेशा को यह लग रहा था की उसे परदे सी
से अलग होना पडे गा। इसिलए वह थोड़ी इमोशनल हो रही थी और मौक़ा िमलने पर सुनीलजी के हाथ को ले कर चूमने लगती थी।
जब वह दोनों पहाड़ी के ऊपर प ंच,े तब आयेशा ने सुनीलजी को मु ु राते ए दे खा और कहा, "दे खो परदे सी, वह जो कुिटया
िदख रही है, वह िह दु ान की सरहद म है।"

वह दोनों को िनकले ए करीब एक घंटा आ होगा की अचानक उनके ऊपर फाय रं ग शु हो गयी। फाय रं ग दु नों की िदशा
से आ रही थी। लगता था जैसे गोली बारी उनको िनशाने म रख कर नही ं चलायी जा रही थी। ूंिक गोली बड़ी दू र से आ रही थी
और अंधाधुंध फाय रं ग हो रही थी। शायद दु न की सेना िह दु ान की सरहद के अंदर कुछ आतंिकयों को भेज रही थी और
उनको कवर करने के िलए गोिलयां चलाई जा रही ं थी ं। आयेशा इतनी भयानक फाय रं ग से घबरा कर सुनीलजी की बाँहों म आगयी
थी। सुनीलजी की समझ म नही ं आ रहा था की फाय रं ग कहाँ से आ रही थी। तभी उ ोंने एक आतंकवादी को कुछ दु री पर दे खा।
आतंक वादी वहाँ छु पने की कोिशश कर रहा था। लगता था की उसके पास भारी बा द और मशीनगन थी। सुनीलजीने िबना कुछ
सोचे समझे, इससे पहले की वह उनको मार दे अपनी ब दु क उठाई और िनशाना लगा कर गोली छोड़ी। सुनीलजी को बड़ा आ य
आ जब वह आतंकवादी एकदम झुककर िगर पड़ा और तड़फड़ाने लगा। उनकी गोली ठीक िनशाने पर लगी थी। िजंदगी म
सुनीलजी ने पहेली ही गोली चलाई थी और ना िसफ वह ठीक िनशाने पर लगी पर उनकी गोलीसे एक आतंकवादी कोभी उ ोंने

194
मार िगराया।

सुनीलजी ने सूना की आयेशा पहले ड़र के मारे सुनीलजी की और दे ख रही थी। पर जब उ ोंने एक आतंकवादी को मार िगराया तो
वह अनायास ही ताली बजाने और नाचने लगी। आयेशा भाग कर आयी और सुनीलजी के गले िलपट गयी। दोनों ेमी कुछ दे र तक
ऐसे ही एक दू सरे के बा पाश म जुड़े रहे। अचानक ही एक गोली की सनसनाहट सुनी गयी, आयेशा के मुंह से चीख िनकली और
आयेशा बल खा कर सुनीलजी के ऊपर िगर पड़ी। उसकी छाती म से खून का फ ारा छूट पड़ा िजससे सुनीलजी के कपडे खून से
लाल लाल हो गए। सुनीलजी वहाँ ही लड़खड़ा कर िगर पड़े। आयेशा की साँस फूल रही थी। उसे शायद फेफड़े म गोली लगी थी।
अचानक एक और गोली सुनीलजी की बाँहों म जा लगी। दु सरा खून का फ ारा सुनीलजी की बाँहों म से फुट पड़ा। आयेशा ने जब
सुनीलजी की बाँहों म से खून िनकलते ए दे खा तो वह अपना दद भूल गयी और अपने कुत का एक छोर फाड़ कर उसने सुनीलजी
को बाँहों पर प ी बाँध दी। सुनीलजी की बाँहों म काफी दद हो रहा था।

इस तरफ आयेशा की साँसे टू ट रही थी ं। आयेशा ने सुनीलजी का हाथ पकड़ा। उससे ठीक से बोला नही ं जारहा था। िफर भी आयेशा
ने कहा, "परदे सी, लगता है हम यहां तक ही हमसफर रहगे। लगता है मेरा सफर यहां ख हो रहा है। हम राहों म चलते चलते
िमले और एक रात के िलए ही सही पर हम हम िबस्तर बने। मुक र तो दे खये। मने सोचा था की शायद तुम मुझे छोड़ कर अपने
वतन को चले जाओगे। पर आ उलटा ही। आज यह सफर म हम तु छोड़ कर जा रहे ह। अ ाह तु ारा इकबाल बुलंद रखे।
और हाँ, तुम छु पतेिछपाते िनचे वह कुिटया के पास प ँच जाना। वहाँ डॉ. खान ह। बड़े ही भले आदमी ह। वह तु ारा इलाज कर
दगे। तुम ज र वहाँ जाना।" यह कह कर आयेशा ने आखरी सांस ली और सुनीलजी की हाथ म से उसका हाथ छूट कर िनचे िगर
पड़ा। सुनीलजी अपने आपको मजबूत दय के मानते थे। पर आयेशा का हाथ जब उनके हाथ के िनचे िगर पड़ा तो उ ऐसा
सदमा लगा की जैसे उनका बड़ा ही करीबी कोई चला गया हो। एक ही रात की बात थी जब उनका और आयेशा का िमलन आ।
पर उनको ऐसा लगा जैसे सालों का साथ हो। पर एक ही पल म वह साथ छूट गया। सुनीलजी अपने आपको रोक नही ं पाए और
जोर शोर से फफक फफक कर रोने लगे। उनको रोते ए सुनने वाला और सां ना दे ने वाला कोई नही ं था। सुनीलजी एक च ान के
पीछे आयेशा का बदन घसीट कर ले गए। फाय रं ग जारी था और कने का नाम नही ं ले रहा था। सुनीलजी का वहाँ दु नों की
सरहद म कना खतरे से खाली नही ं था। कैसे भी कर उ िह दु ान की सरहद म दा खल होना ज री था। उनके पास आयेशा
की बॉडी को दफनाने का समय ही नही ं था।

सुनीलजी ने आयेशा की बॉडी को खसका कर च ान के पीछे ले जाकर कुछ डाल और प ों से उसे ढक िदया। िफर धीरे धीरे वह
उस कुिटया की ओर जमीन पर रगते ए चल पड़े । कुछ दे र चलने के बाद घनी झाडी म उ वही नदी िदखाई दी। िबना सोचे
समझे सुनील उसम कूद पड़े । उतनी ही दे र म उनपर फाय रं ग होने लगी। सुनीलजी ने पानी म डु बकी लगा कर गोिलयों से बचने
फुत से पानी के अंदर तैरने लगे। पानी का बहाव तेज था। पहाड़ों से पानी िनकल कर िनचे की और फुत से बह रहा था। बहाव
इतना तेज था और पानी इतना गहरा था की कोई भी तैराक उस म कूदने का साहस नही ं करे गा। यही जगह थी जहां पर सरहद म
कुछ झरझरापन था। यहाँ सैिनक िनगरानी कुछ कमजोर थी। इसका फायदा दु शमन के फौजी और आतंकवादी अ र उठाते रहते
थे।

सुनीलजी की बाँह का घाव अब दद दे ने लगा था। वह थके ए थे और उनको ऐसा लग रहा था की कही ं वह पानी म बेहोश ना हो
जाएँ । जैसे तैसे हाथ पाँव मारते ए वह िनचे की और तेजी से पानी म बह रहे थे। िजस िदशा म वह जा रहे थे उ ोंने अंदाज लगाया
की वह िह दु ानी सरहद म दा खल हो चुके ह। गोिलयों की फाय रं ग भी बंद हो चुकी थी। सुनीलजी ने अपना सर पानी से बाहर
िनकाला और दे खा की कुछ दू र म वह कुिटया नजर आ रही थी। सुनीलजी तैरते ए नदी के िकनारे आ गए। उनके बाँहों म स
दद हो रहा था। उनको टीटमट की ज रत थी। वह लुढ़कते ए पानी के बाहर िनकले। पर बाहर िनकल कर थोड़ा चलने पर ही ढे र
होकर िगर पड़े । थोड़ी दे र बाद जब वह होश म आये तो पाया की वह तो वही ं नदी के िकनारे लेटे ए थे और कुछ मछवारे उनको
ऊपर से दे ख रहे थे। उनम से एक मछवारे ने उ हाथ का सहारा दे कर उठाया। उस मछवारे ने सुनीलजी से कहा, "तु ारे घाव से
खून िनकल रहा है। इस तरफ डॉ. खान का शफाखाना है। वहाँ जाइये और अपना इलाज कराइये। इं शाअ ाह ठीक हो जाएगा।"

195
सुनीलजी वहाँ से लड़खड़ाते लुढ़कते ए डॉ. खान के शफाखाने पर प ंचे और वहाँ प ँचते ही उ ोंने दरवाजे की घंटी बजाई।
उनके पाँव से जमीन जैसे खसक गयी जब ज ूजी ने डॉ. खान के शफाखाने का दरवाजा खोला।

***"*

सुनीलजी का हाल दे ख कर ज ूजी बड़े ही आ य और आघात से सुनीलजी को दे खने लगे। सुनील जी के सारे कपडे एकदम भीगे
ए पर खून के लाल ध ों से पूरी तरह रं गे एथे। उनकी एक बांह से खून िनकल रहा था। ज ूजी ने फ़ौरन सुनीलजी को अंदर
बुला िलया और दरवाजा बंद करते बुए पूछा, " ा आ सुनील जी? यह ा है...?" इससे पहले की ज ूजी अपनी बात पूरी करे ,
सुनीलजी ज ूजी से िलपट गए और फफक फफक कर रोपड़े । उनकी आँ खों से आं सूं कने का नाम ही नाही ं ले रहे थे। ज ू जी
ने उनको अपना कमीज िनकाल ने के िलए कहा। यह सब आवाज सुनकर िब रे पर नंगी सो रही सुनीता जाग गयी और च र को
बदन पर लपेटे िब रे म बैठ गयी। उसने अपने पित का खून म लथपथ हाल दे खा तो सुनीता की तो जान ही िनकल गयी।

सुनीता को होश ही नही ं रहा की उसने बदन पर कोई भी कपड़ा नही ं पहना था। जब सुनीता िब र से उठ खड़ी ई तब उसे
अपनी न हालात का अंदाजा लगा। फ़ौरन उसने िब र से ही च र उठाई, अपने आपको ढका और भागती ई आकर जार जार
रोते ए अपने पित से िलपट गयी। सुनीलजी की आँ खों से आं सूं की गंगा जमुना बह रही थी। ज ूजी ने उनको गले लगा कर
सुनीलजी को काफी सां ना दे नेका यास िकया। सुनीता और ज ूजी ने पूछा की ा सुनीलजी को कही ं घाव है? तब सुनील जी ने
अपने कमीज की आ ीन उठाकर बाँह पर लगे ए घाव को िदखाया। ज ूजी भाग कर डॉ. खान की एक अलमारी म रखे ए
घाव पर प ी बगैरह लगाने वाले सामान को उठा लाये और उ ोंने और सुनीता ने उनकी मरहम प ी की। सुनीता भी अपने पित से
गले लग कर उनको ढाढस दे ने की कोिशश करने लगे। कुछ समय बीतने पर जब सुनीलजी कुछ शांत ए तो उ ोंने अपनी कहानी
ज ूजी और सुनीता को बतानी शु की।

सुनीलजी ने कहा, "ज ूजी, मने आज तक मेरी िजंदगी म पटाखा फोड़ने वाली ब दु क भी नही ं चलायीथी। पर आज रातको नािसफ
मने आपका असली फौजी प दे खा िजसम आपने एक ह े क े आदमी को गोली से भून िदया पर मने अपने हाथों से दु न के
एक फौजी को एक कटार से मौत के घाट भी उतार िदया। उतना ही नही,ं कुछ ही दे र के बाद मने एक आतंकवादी को भी मेरी
ब दु क से मार िगराया। मेरे सामने मने मेरी ही करीबी मिहला साथीदार को दु न की गोिलयों से छलनी होते ए दे खा। सुनीलजी
की बात सुन ज ूजी और सुनीता दोंनो चकम म आ गए। सुनीलजी की मिहला साथीदार? वह कौन थी? ज ूजी और सुनीता पहले
सुनीलजी की और िफर एक दू सरे की और ा क नजर से दे खने लगे।

सुनीलजी ने बताया की कैसे वह उस रात को ज ू जी से अलग होने के बाद अँधेरे म चलते चलते नदी िकनारे एक गॉंव से कुछ दू र
प ंचे और वहाँ उ ोंने कुछ ब दु क की फाय रं ग की आवाज सुनी। उसके बाद उ ोंने अपनी सारी कहानी बताई िजसम की उ ोंने
एक दु शमन के मु की लड़की की जान कैसे बचाई और काफी रात तक गुफा म छु पे रहने के बाद जब उस लड़की ने उनसे
वादा िकया की वह उ सरहद पार करा दे गी तब वह दोनों छु पते छु पाते गुफा से बाहर िनकले। अचानक ही दु न की और से
आये ए दहशतखोरों ने जब उ दे खा तो गोिलयां दागनी शु कर दी ं। सुनीलजी जी ने भी जवाबी कारवाई करते ए अपनी
ब दु क से एक आतंक वादी को ठार मार िदया, पर उस फाय रं ग म उस लड़की िजसका नाम आयेशा था उसे गोली लगी। वह
लड़की ने मरते ए भी सुनीलजी को डॉ र के घर का रा ा बताया जहां सुनीलजी को सुर ा िमलेगी और घाव का इलाज भी
होगा।

सुनीलजी थकान से चूर हो गए थे। उनम बोलने की भी ताकत नही ं थी। उ ोंने दे खा की उनकी प ी सुनीता ज ूजी के िब रम
नंगी सोई ई थी। उ समझने म दे र नही ं लगी की ा आ होगा। आ खर वह जो चाहते थे वह आ। पर उनम िह त नही ं थी
की वह कुछ बोले। उ ोंने हड़बड़ाहट म कपडे पहने ए ज ूजी को दे खा और च र म िलपटी ई अपनी प ी सुनीता को भी
दे खा। पर आगे कुछ बोले उसके पहले वह िब र पर ढे र हो कर िगर पड़े और फ़ौरन खराटे मारने लगे। सुनीता और ज ूजी एक
दू सरे की और दे खने लगे। सुनीता ने तुरंत आपने पित के पाँव से गीले जूते िनकाले। िफर उनका शट और पतलून भी िनकाला।

196
सुनीलजी के सारे कपडे ना िसफ भीगे ए थे पर खून के लाल ध ों से रं गे ए और गंदे थे। सुनीता ने अपने पित के सारे कपडे एक
के बाद एक िनकाले और गरम पानी से कपड़ा िभगो कर अपने पित के पुरे शरीर को ंज िकया। इस दर ान सुनीलजी गहरी नी ंद
म सोये ए ही थे। सुनीता ने उ पूरी तरह ार से िनव कर िदया और सुनीता और ज ूजी ने िब र म ठीक तरह से सुला कर
और ऊपर से क ल बगैरह ओढ़ा िदया। सुनीलजी को आराम से िब रे म सुलाकर ज ूजी फा रग ए ही थे की डॉ. खान की
आवाज उनको दरवाजे के बाहर से सुनाई दी।

डॉ. खान कह रहे थे, "कनल साहब, आज वैसे ही जु ा है। शफाखाना आज बंद है। आप आज के पुरे िदन और रात को आराम
करो, दु पहर को और शामको म आप तीनों के िलए खाना लेकर आऊंगा। आप कल सुबह तक यहां ही िकए। आप तीनों ही थके
ए ह। म एक ग ा और िभजवा दे ता ँ। कुछ ही दे र म ग ा और रजाई चटाई बगैरह लेकर डॉ. खान हािजर ए। डॉ. खान ने
ज ूजी से सुनीलजी की कहानी सुनी। कैसे आतंकवािदयों से उनका पाला पड़ा था, बगैरा। आ खर म गहरी साँस लेते ए डॉ. खान
बोले, "अ ाह, ना जाने कब ये मातमका माहौल थमेगा और चमन िफर इन वािदयों म लौटेगा? पर ब ों, यहां दु नों को
गोलीबारी का ादा असर नही ं होता ूंिक यहां से सरहद दु री पर है।" कनल साहब ने डॉ. खान से कहा, "डॉ र साहब आपका
ब त ब त शुि या। पर हम िहंदु ानी सेना बड़ी िश त से खोज रही होगी। हम चािहए की हम फ़ौरन हमारी सेना को इ ला करद
की हम यहां है तािक वह हम यहां से ले जाने की व था कर।" डॉ. खान ने अपना सर िहलाते ए कहा, "िपछले दो िदन से यहां
दहशत गद के कारण इं टरनेट और टे लीफोन सेवा ठ पड़ी ई है। वैसे भी टेलीफोन मु ल से चलता है। पर हाँ अगर मेरी
मुलाकात कोई िहंदु ानी फ़ौज के जवान से ई तो म उसे बताऊंगा की आप लोग यहाँ के ए ह। आप अपना नाम और पता
एक कागज़ म िलख कर मुझे दीिजये। जब तक सेना का बुलावा नही ं आता, आप िनि यहाँ िव ाम कीिजये। तब तक इन जनाब
का घाव भी कुछ ठीक होगा। आपके खाने िपने का सारा इं तजाम यहां है।"

ज ूजी इस भले आदमी को आभार से दे खते रहे। उ ोंने अपना, सुनीता का और सुनीलजी का नाम एक कागज़ पर िलख कर दे
िदया। िफर डॉ. खान ने सुनीता को सही कपडे भी ला िदए और सब के ना े का सामान दे कर वह ऊपर नमाज पढ़ने चले गए।
सुबह के करीब दस बज रहे थे। ज ूजी ने सुनीता की और दे खा। वह डॉ. खान की बड़ी लड़की के िदए ए डे स म कुछ खली
खली सी लग रही थी। दरवाजा बंद होते ही सुनीता ज ूजी की गोदम आ बैठी और ज ूजी की िचबुक अपनी उँ गिलयों म पकड़
कर अपने पित की और इशारा कर के बोली, "मेरे राजा, यह ा होगया? सुनीलजी की मानिसक हालत ठीक नही ं लग रही। अब
बताओ हम ा कर?" ज ू जी ने सुनीता को अपनी बाँहों म भर कर कहा, "जानेमन, पहले तो हम इ उठाय और कुछ् खाना
खलाएं । टेबल पर गरमागरम खाने की खुशबु आ रही है और म भूखा ँ। " सुनीता ने मजाक म हंसकर कहा, "ज ूजी आप तो
हरबार भूखे ही होते हो।" ज ूजी ने िफर सुनीता को अपनी बाँिहं म भरकर उसे चूमते ए कहा, तु ारे िलए तो म हरदम भूखा
होता ँ। पर म अभी खाने की बात कर रहा ँ।" सुनीता ने अपने पित की और इशारा करते ए कहा, "इनका ा कर?" ज ूजी ने
कहा, "सुनीलजी ब त ादा थके ए ह। वह ना िसफ शारी रक घावसे परे शान है, ब उनके मन पर काफी गहरा घाव है।
लगता है, उस िवदे शी लड़की से उनका लगाव कुछ ादा ही करीब का हो गया था। दे खो यह थोड़ी गंभीर बात है पर मुझे लगता है
एक ही रात म उस लड़की से सुनीलजी का शारी रक स भी आ लगता है।" सुनीता थोडा कटा करते ए थोड़ा टेढ़ा मुंह कर
बोली, "ज ूजी साफ़ साफ़ ों नही ं कहते की मेरे पित िकसी अनजान औरत को चोद कर आए ह?"

ज ूजी ने बड़ी गंभीरता से सुनीलजी की और दे खते ए कहा, "सुनीता, चुदाई को इतने हलके म मत लो। यह ार का अपमान है।
चुदाई दो तरह की होती है। एक तो कहते ह ना, "मारा ध ा, माल िनकाला, तुम कौन और हम कौन?" यह एक रीती है। भरी
जवानी के पुर जोश म कई बार कुछ लोग ऐसे चुदाई करते ह। ख़ास कर आजकल कॉलेज म कुछ िसफ चंद युवा युवती। पर तु ारे
पित ऐसे नही ं। म जानता ँ की आज तक वह िकतनी लड़िकयों को चोद चुके ह। पर अब वह बदल गए ह। उनका से का भाव
अब प रप हो गया है। वह भी तु ारी तरह हो गए ह। वह मानने लगे ह की चुदाई याने से , वह मन के िमलने से होना चािहए।
सुनीलजी का उस लड़की से स भी उसी क ा म था भले ही एक ही रात म आ हो। तु ारे पित ने अगर उस लड़की को चोदा
भी होगा तो उ ोंने खुद बताया की दोनों ने एक दू सरे के िलए जान ौछावर करने म कोई कसर नही ं छोड़ी। अफ़सोस इस बात
का है की वह लड़की अपनी जान गँवा बैठी। ख़ुशी इस बात की है की सुनीलजी बाल बाल बच गए।"

197
ज ूजी की बात सुन सुनीता कुछ झप सी गयी और ज ूजी के होठ
ँ ों से होंठ िमलाती ई बोली, "ज ूजी आप बड़े ही प रप और
सुलझे ए इं सान हो। म अपने पित को नही ं समझ पायी। आपने उ सही समझा। वाकई आप ठीक कहते ह।" ज ूजी ने सुनीता
के हो ँठों को चूमते ए कहा, "तुम जाओ और अपने पितको ार से उठाओ। पहले उनको खाना खलाते ह। बाद म ठं डा हो
जाएगा। िफर दे खते ह वह ा कहते ह।" सुनीता अपने पित सुनीलजी के पास गयी और उनके बालों को हलके से संवारते ए
उनके कानों म ार भरे श ों म बोली, "जानेमन सुनील, उठो तो, खाना आ गया है। थोड़ा खालो ीज? अभी गरम है। िफर ठं डा
हो जाएगा।" सुनीलजी ने आँ ख खोली ं और आधी नी ंद म ही दोनों की और दे खा। िफर िबना बोले ही िब रम लुढ़क पड़े ।" यह ब त
थक गए ह और वैसे भी उनको आराम की स ज रत है। उनको सोने दे ते ह। जब वह जग जाएं गे तो म उनके िलए खाना गरम
कर दू ं गी। अभी हम दोनों खा लेते ह और िफर हम भी आराम करते ह। आप भी ब त थके ए हो। आ खर फौिजयों को भी आराम
की ज रत होती है। म तो थकान और आधी अधूरी नी ंद के कारण चकनाचूर हो चुकी ँ। बस िब र म जाकर औंधी होकर सो
जाउं गी। आज पूरा िदन और पूरी रात बस सोना ही है।"

सुनीता ने फ़ौरन खाना परोसा और ज ूजी और सुनीता दोनों ने खाना खाया। सुनीता ने ज ूजी से पलंग की और इशारा कर कहा,
"आप पलंग पर सो जाओ। म िनचे फश पर इस ग े पर सो जाउं गी।" ज ूजी, " ों? तु फश पर ब त ठ लगेगी। म ग े पर
ों नही ं सो सकता?" सुनीता, "तो ा आपको ठ नही ं लगेगी? तो िफर ा कर?" ज ूजी, "तो हम दोनों भी पलंग पर सो जाते
ह। वैसे भी यह पलंग काफी बड़ा है। तुम अपने पित के साथ सो जाना म हट के सो जाऊंगा।" यह कह कर ज ूजी ने िनचे र ी
ई रजाई उठायी और पलंग एक छोर पर सो गए। सुनीता ने कहा, "ठीक है। म अपने पित के साथ सो जाउं गी।" यह कह कर
सुनीता ने सारे बतन उठाये और उ साफ़ कर सुनीलजी का खाना अलग से रख कर हाथ धो कर गाउन पहने ए िब र पर जा
प ंची। पलंग पर एक कोने म सुनीलजी सो रहे थे, दू से छोर पर ज ूजी थे। सुनीता िबच म जा कर लेट गयी। िब र म प ँच कर
सुनीता ने ज ूजी की रजाई खीच
ं ी और अपने ऊपर ओढ़दी। अपना हाथ पीछे कर सुनीता ने ज ूजी को अपनी और खंच िलया।
ज ूजी ने धीमे श ों म कुछ हलकी सी कड़वाहट के साथ कहा, "अरे ! तुम अपने पित के पास सो जाओ ना? मेरा ा है? म यही ं
ठीक ँ।" सुनीता ने जवाब िदया, "म अपने पितयों के साथही तो सोई ई ँ। मने तु भी मेरे पित के पम ीकार िकया है। अब
तुम मुझसे बच नही ं सकते।" ज ूजी के मुंह पर बरबस मु ान आ गयी। ज ूजी ने कहा, "नही ं। िसफ सोना ही नही ं है। अभी तो
हमारा िमलन पूरा नही ं आ। उसे भी तो पूरा करना है।"

सुनीता ने अपने पित की और इशारा करते ए कहा, "तो िफर इनका ा कर?" ज ूजी ने कहा, "यह तो आपका सामान है। इसे
तो आपको स ालना ही पडे गा।" सुनीता ने कहा, "ठीक है, मेरा जो भी सामान है उ म ही स ालूँगी।" यह कह कर सुनीता
करवट बदल कर अपने पित सुनीलजी के पास जा उनके शरीर से िलपट गयी। सुनीता ने अपनी एक टाँग उठायी और अपने पित
की जाँघ पर रख दी और सुनीलजी को अपनी बाँहों म घेर िलया। िफर सुनीता ने एक हाथ पीछे कर ज ूजी को अपनी और करीब
खी ंचा। ज ू जी को खसक कर सुनीता के पीछे उस की गाँड़ से अपना ल सटा कर लेटना पड़ा। सुनीता ने ज ूजी की एक
बाँह पकड़ कर अपने एक बाजू को ऊपर कर ज ूजी का हाथ अपने बाजू के िनचे बगल म से अपने म नो ँ पर रख िदया।
सुनीता चाहती थी की ज ूजी उसके नो ँ को सहलाते रह। तीनों गरम बदन एक दू सरे से िचपके ए लेट गए। कुछ दे र तक कमरे
म एकदम शा छा गयी। कुछ ही दे र म तीनों खराटे मारने लगे। चुर थकान की वजह से ना चाहते ए भी तीनों गहरी नी ंद सो
गए। चारों और स ाटा छाया आ था। खड़की म से दू र दू र तक कोई इं सान जानवर नजर नही ं आता था।

ऐसे ही कुछ घंटे बीत गए।

अचानक सुनीता के गाल पर कुछ पानी की बूंदड़ टपकने लगी। सुनीता ने आँ ख खोली ं तो पाया की उसके पित सुनीलजी सुनीता की
आँ खों म करीब से एकटक दे ख रहे थे। उनकी आँ खों से आँ सुंओ ं की धारा बह रही थी। सुनीता अपने पित के और करीब खसकी
और और उनसे और कस के िचपक गयी और बोली, "मेरी जान! ा बात है? इतने दु खी ों हो?" सुनीलजी ने सुनीता के होंठों पर
हलके से चु न िकया और बोले, "डािलग, आजतक मने िकसी पर हाथ तक नही ं उठाया। आज इ ी ं हाथों से मने दो इं सानों को
मौतके घाट उतार िदया। आज तक मने िकसी डे ड बॉडी को करीब से नही ं दे खा था। आज और कलम मने चार चार मृत शरीर को
मेरे हाथों म उठाया। म खुनी ँ, मने खून िकया है। मुझे माफ़ कर दो।" सुनीता ने अपने पित के सर को अपनी छाती से िचपका िदया
और बोली, "जानू, तुम कोई खुनी नही ं हो। तुमने कोई खून नही ं िकया। तुमने अपनी जानकी र ा की है और आ ा र ा करना हम

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सब का कत है। भगवान ी कृ ने भी ीमद भगवत गीता म अजुन को यही उपदे श िदया था की आ र ा से पीछे हटना
कायरता का िनशान है। जानू, तुम कायर नही ं और तुम खुनी भी नही ं हो। अगर तुमने उनको नही ं मारा होता तो वह तुमको मार
डालते।" ऐसा कह कर सुनीता ने अपने पित सुनील के ऊपर उठकर उनके हो ँठों से अपने होंठ िचपका िदए। अपने पित को िक़स
करते ए सुनीता उनको िदलासा िदलाती ई बार बार यही बोले जा रही थी की "मेरा जानू कतई खुनी नही ं है। वह िकसीका खून
कर ही नही ं सकता।" जैसे माँ अपने ब े को िदलासा दे ती रहती है ऐसे ही सुनीता अपने पित को यह भरोसा िदला रही थी की
उ ोंने कोई खून नही ं िकया। साथ ही साथ म अपने नों पर सुनीलजी का मुंह रगड़ कर सुनीता अपने नों का अ ादन भी
अपने पित को करवा रही थी। सुनीता चाहती थी की सुनीलजी का मूड़ जो नकारा क भावों म डूबा आ था वह कुछ रोमांिटक
िदशा म घूमे।

ज ूजी नी ंद से जाग गए और पित प ीकी चचा ान से सुन रहे थे। वहभी सुनीता के पीछे उसके और करीब आये और सुनीलजी
के आंसूं पोंछते ए बोले, "सुनीलजी आप ने दे श की और अपनी सुर ा की है और वा व म आप शाबाशी के पा हो। एक
साधारण नाग रक के िलए इस तरह अपनी र ा करना आसान नही ं है। आपने अपने दे श की भी र ा की है। वह ऐसे की, अगर
आप पकडे जाते तो आपको यह दु न बंधक बना दे ते और िफर अपनी सरकार से कुछ आतंकवादी छु ड़वाने के िलए िफरौती के
प म सौदे बाजी करते। हो सकता है मज़बूरी म सरकार मान भी जाती। इस नज रये से दे खा जाये तो आपने अपने आपकी सुर ा
कर के दे श सेवा की है।" सुनील जी ने ज ूजी को अपनी प ी सुनीता के पीछे दे खा तो अपना हाथ बढ़ा कर उनका हाथ अपने
हाथों म िलया। सुनीलजी ने ज ूजी से कहा, "ज ूजी, म बता नही ं सकता की सुनीता को बचाकर आपने मुझ पर िकतना बड़ा
एहसान िकया है। जो काम करने की मेरी िह त और कािबिलयत नही ं थी वह आपने कर िदखाया। म और सुनीता आपके सदा
ऋणी रहगे।"

अपनी प ी और िजगरी दो के सां ना और उ ाह से भरे वा सुनकर सुनीलजी का मूड़ िबलकुल बदल चुका था। अब वह
अपने पुराने शरारती अंदाज म आ गए थे। उ ोंने सुनीता को पकड़ा और जबरद ी करवट लेने को बा िकया। सुनीता अब
ज ूजी के मुंह से मुंह िमलाने के करीब थी। सुनीलजी ने सुनीता की गाँड़ म अपने पडू से ध ा माते ए कहा, "सुनीता अब तो
तु ारा ण पूरा आ की नही ं? अब तो तुम अपनी माँ को िदए ए वचन का पालन करोगी ना? ज ूजी ने अपनी जान जो खम म
डाल कर तु ारी जान बचायी। अब तो तुम मेरी ािहश पूरी करोगी ना?" सुनीता ने अपने पित को चूँटी भरते ए पर काफी शम
से गालों पर लाली िदखाते ए उसी अंदाज म कहा, "अब आपको ज ूजी का ऋणी होने की कोई आव कता नही ं है। उ ोंने
िकसी और को नही ं बचाया उ ोंने अपनी सुनीता को ही बचाया है। जहां तक आपकी ािहश पूरी करने का सवाल है तो म ा
क ं? आप दोनों मद ह। म तो आपकी ही िमलिकयत ँ। अब आप जैसा चाहगे, म वैसा ही क ँ गी।" सुनीता ने धीरे से सारी
िज ेवारी का टोकरा अपने पित के सर पर ही रख िदया। वैसे भी पि यां ऐसे नाजुक मामले म हमेशा वह जो करे गी वह पित के
ख़ुशी के िलए ही करती है यह िदखावा ज र करती है। सुनील

जी ने अपनी प ी को और ध ा दे ते ए ज ू जी से िबलकुल िचपकने को बा िकया और अपने पडू से और कड़क ल से


सुनीता की गाँड़ पर एक ध ा मारकर ज ूजी के हो ँठों से सुनीता के हो ँठ िचपका िदए। उ ोंने सुनीता का एक हाथ उठाया और
ज ूजी के बदन के ऊपर रख िदया िजससे सुनीता ज ूजी को अपनी बाँहों म ले सके।

ज ूजी ने बड़े ही सं ोच से सुनीलजी की ओर दे खा। सुनीलजी ने आँ ख मारकर ज ूजी को चुप रहने का इशारा िकया और अपना
हाथ भी अपनी बीबी के हाथ पर रख कर सुनीता को ज ूजी को बा पाश म बाँधने को बा िकया। सुनीता ने अपने पित सुनीलजी
की ओर अपना सर घुमा कर दे खा और कहा, "दे खये आज आपने दो दु न के फौजी और आतंकवादी को मार िदए इससे आप
को इतनी ादा रं िजश ई और आप इतना दु खी ए। हमारे फौजी नवजवानों को दे खये। लड़ाई म वह ना िसफ दु नों को मौत
के घाट उतारते ह, वह खुद दु नों की गोली पर बिलदान होते ह। दे श के िलए वह िकतना बड़ा बिलदान है? ज ूजी ने उस
कािलये को मारने म एक सेकंड का भी समय जाया नही ं िकया। अगर उस कािलये को चंद सेकंड ही िमल जाते तो वह हम सब को
मार दे ता।" िफर सुनीताने वापस ज ूजी की ओर घूम का दे खा और बोली, "ज ूजी, आप ने हम सब पर इतने एहसान िकये ह की
हम कुछ भी कर, हम आप का ऋण नही ं चुका सकते।" ऐसा कह कर सुनीता ने ज ूजी का सर अपनी छाती पर अपने उ

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नो ँ पर रख िदया और उनके सर को अपने नो ँ पर रगड़ने लगी। सुनीता ज ूजी के घुंघराले बालों को संवारने लगी। पुरे कमरे
म एक अ ंत ज ाती भावुक वातावरण हो गया। सुनीलजी और सुनीता की आँ खों म ार भरे आं सूं बहने लगे। सुनीलजी ने पीछे
से सुनीता को ध ा दे ते ए सुनीता को ज ूजी के आगोश म जाने को मजबूर कर िदया। ज ूजी ने सुनीता को अपनी बाँहों म भर
िलया और अपने बाजु लंबा करके सुनीलजी को भी अपने आगोश म लेना चाहा। सुनीता बेचारी दोनों मद के िबच म पीस रही थी।
एक तरफ उसके पित सुनीलजी और दू सरी और उसके अिति य ि यतम ज ू जी। सुनीता ने अपने पित सुनीलजी की ओर
ा क ि से दे खा। वह पूछना चाहती थी की ा वह ज ूजी के आगोश म जाए और उनको ार करे ।

सुनीलजी ने अपनी प ी की ओर दे खा और मु ु राते ए उसे कोहनी मारकर ज ूजी के और करीब धकेला और आँ ख की पालक
झपका कर आगे बढ़ने को ो ािहत िकया। सुनीता फ़ौरन ज ूजी के गले िलपट गयी और बोली, "आपने मुझे मरने से बचाया
इसके िलए आपका ब त ब त शुि या।" सुनीता की बात सुनकर ज ूजी कुछ नाराज से हो गए। उ ोंने सुनीता की पीठ थपथपाते
ए कहा, "सुनीता यह तुम लोग बार बार शुि या, शुि या कहते हो ना, तो मुझे परायापन महसूस होता है। ा कोई अपनों के िलए
काम करता है तो शुि या कहलवाना चाहता है? यह स ता िवदे शी है। हम तो एक दू सरों के िलए जो भी कुछ करते ह वह तो
ाभािवक प से ही करते ह। अब तुम दोनों सो जाओ। म भी थोड़ी दे र सो जाता ँ।" यह कह कर ज ूजी करवट बदल कर लेट
गए। सुनीता को समझ नही ं आया की ा वह सुनीता से ार करने से कतरा रहे थे या िफर सुनीलजी की हाजरी के कारण शमा
रहे थे। कुछ ही दे र म ज ूजी की खराट सुनाई दे ने लगी ं।

ज ूजी का खापन दे ख कर सुनीता को दु ः ख आ। िफर उसने सोचा की शायद सुनीलजी की हाजरी दे ख कर ज ूजी कुछ
असमंजस म पड़ गए थे। सुनीता ने करवट बदली और अपने पित के सामने घूम गयी। सुनीलजी पूरी तरह जाग चुके थे। सुनीता ने
अपने पित से कहा, " आप कुछ खा लीिजये न? खाना टे बल पर रखा है।" सुनीलजी ने हाँ म सर िहलाया तो सुनीता फ़ौरन उठ खड़ी
ई और अपने कपड़ों को स ालती ई खाना गरम कर सुनीलजी को परोसा और खुद सुनील जी के करीब की कुस म अपने
कू ों को िटकाके बैठ गयी। खाते खाते सुनील जी ने सुनीता से एकदम हलकी आवाज म पूछा तािक सो रहे ज ूजी सुन ना पाए
और जाग ना जाए, "सुनीता, यह तुमने ठीक नही ं िकया। ज ू जी ने तु ारे िलए इतना िकया और तुमने बस? खाली शुि या? ऐसे?
तु ज ूजी ने मरने से बचाया और तुम कह रही हो, बचाने के िलए शुि या? ऐसा शुि या तो अगर तु ारा माल िगर जाये और
उसे उठाकर कोई तु दे दे तो कहते ह। जान जो खम म डाल कर बचाने के िलये बस शुि या?" सुनीता ने मूड कर अपने पित की
ओर दे खा और बोली, " ा मतलब? ऐसे नही ं तो कैसे शुि या अदा क ँ ?" सुनीलजी ने कहा, "जाने मन, जब मने शादी के समय
आपके िलए दु िनया का सब कुछ कुबान करने की सौगंध खायी थी तो बादम आपने मुझे ा तोहफा िदया था?" सुनीता ने सोचकर
कहा, "तोहफा? मने आपको कोई तोहफा नही ं िदया था। मने तो आपको अपना सव और अपने आपको भी आपके हवाले कर
िदया था।" सुनील जी, "सुनीता डािलग, मने तो िसफ वादा ही िकया था, ज ूजी ने तो जैसे अपनी जान ही कुबान करदी थी और
आपको बचाया। ा आपका कोई फज नही ं बनता?"

सुनीता के गालों पर शम की लािलमा छा गयी। सुनीता की नजर िनचे झुक गयी ं। सुनीता समझ गयी थी की पित ा कहना चाहते
ह। हालांिक सुनीता ने ज ूजी से चंद घंटों पहले ही जम के चुदाई करवाई थी, पर अपने पित के सामने उसे इसके बारे म बात
करना भी एकदम अजीब सा लग रहा था। वह अपने पित के सामने ज ूजी से कैसी ार करे ? सुनीता ने शमाते ए कहा, "म
जानती ँ तुम ा चाहते हो। पर मुझे शम आती है।" सुनीलजी ने पूछा, "दे खो, जानेमन, म जानता ँ की तुम भी ज ूजी से ब त
ार करती हो। शम अथवा ल ा ार का एक अलंकार है। पर कभी कभी वह ार म बाधा भी बन सकता है। ा तु मेरे
सामने उ ार करने म शम आती है?" सुनीता ने ल ा से सर नीचा करके अपना सर िहलाते ए "हाँ" कहा। सुनीलजी का माथा
ठनक गया। वह अपनी बीबी को अपने सामने ज ूजी से चुदवाती ई दे खना चाहते थे। वह जानते थे की उसी रात को ही शायद
ज ूजी ने सुनीता की चुदाई कर के सुनीता को चोदने की शु आत तो कर ही दी थी। पर वह अपनी प ी को इस के बारे म पूछ
कर उसे उलझन म डालना नही ं चाहते थे। अब अगर वह अपनी बीबी को ज ू जी से चुदवाती ई नही ं दे ख पाए तो उनका सपना
अधूरा रह जाएगा। उ ोंने सुनीता से दबी आवाज म पूछा, "पर अगर म चोरी से छु प कर दे खूं तो?" सुनीता ने अपना सर िहला कर
मना कर िदया। सुनीता ने कहा, "तुम अपने सामने मुझसे यह सब ों करवाना चाहते हो?" सुनील जी ने कहा, "यह मेरी िदली
ािहश है।" सुनीता ने अपने पित की बात का कोई जवाब नही ं िदया।

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सुनीलजीने कहा, "ठीक है भाई। मने इसे ीकार िकया। तो िफर एक काम करो तु ज ूजी के सामने मुझसे चुदवाने म तो कोई
आपि नही ं है ना?" यह तो तुम एक बार कर ही चुकी हो?" सुनीता चुप हो गयी। वह इस बात से मना नही ं कर सकती थी। उसने
अपने पित से ज ूजी के दे खते ए अपनी चुदाई तो करवाई ही थी। तो अब कैसे मना करे ? सुनीता ने कुछ ना बोल कर अपने पित
को अपनी ीकृित दे दी। सुनीलजी जब उस कमरे म दा खल ए थे तो उ ोंने दे ख ही िलया था की सुनीता न अव था म िब र
म लेटी ई थी और ज ूजी ने भी अपने कपडे आनन फानन म ही पहन र ेl थे। इसका मतलब साफ़ था की सुनीता और ज ूजी
एक ही िब र म एक साथ नंगे सोये थे, तो ज ू जी को जानते ए यह सोचना किठन नही ं था की ज ूजी ने सुनीता को उसरात
ज र चोदा होगा। यह तो एकदम ाभािवक था। अगर एक ह ा-क ा नंगा जवान मद एक खूब सूरत न ी के साथ एक ही
िब र म रात भर सोता है तो उनके िबच चुदाई ना हो यह तो एक अक नीय घटना ही मानी जा सकती है। पर िफरभी सुनीलजी
खुद अपनी आँ खों से अपनी बीबी की चुदाई दे खना चाहते थे। और साथ साथ वह भी अपनी बीबी को िकसी और के सामने
चोदनाभी चाहते थे। वह चाहते थे की कोई और उनको उनकी बीबी को चोदते ए दे खे और िफर दोनों मद िमलकर सुनीता को
चोद। इसे इं श भाषा म " ी सम एम् एम् ऍफ़" याने दो मद िमलकर एक औरत को एक साथ या बारीबारी से एकदू सरे के सामने
चोद। अब जब सुनीता के माँ को िदए ए वचन की भली भाँित पूित हो चुकी थी तो सुनीताके अवरोध का बांध तो टू ट ही चुका था।
अब मौक़ा था की सुनीलजी अपनी ािहश या यूँ किहये की पागलपन पूरा करना चाहते थे। वह यह भी जान गए थे की सुनीता को
भी अब धीरे धीरे यह बात गले उतर ही गयी थी की उसके पित अब उससे यह " ी सम एम् एम् ऍफ़" करवाकर ही छोड़गे।

सुनीता ने सोचा, अब उसके पास कोई चारा भी तो नही ं था। पर सुनीताने तय िकया की वह पहल नही ं करे गी। अगर उसके पित या
ज ूजी, दोनों म से कोई एक पहल करे गा तो वह उसका साथ ज र दे गी। पर पहल नही ं करे गी। आ खर वह मािननी जो ठहरी।
सुनीता ने अपने पित को अपनी बाँहों म िलया और उ होठो ँ पर एक गहरा चु न करती ई बोली, "तुम ना, सुधरोगे नही ं। तुम
वाकई म ही मेरे पागल पित हो। तुम ने एक बार ठान िलया तो िफर तुम जो चाहते हो वह मुझसे करवाके ही छोड़ोगे। दे खो तुम यह
सब मुझसे करवा कर बड़ा ही जो खम ले रहे हो। अपनी बीबी को िकसीके हाथ म सौपना ठीक नही।ं खैर, चलो आप जा कर लेट
जाओ। म बतन साफ़ कर के आती ँ।" ज ही सुनीता ने सारे बतन और टेबल साफ़ कर ठीक सजा कर अपने आपको ठीक
ठाक कर वह सुनीलजी और ज ूजी के िबच म अपनी जगह पर जाकर अपने पित की रजाई म घुस गयी। सुनीलजी ने सोच ही
िलया था की अब उ अपनी पागल ािहश को पूरा करने का इससे अ ा मौक़ा िफर नही ं िमलेगा। उ ोंने सुनीता को ज ूजी
के सामने घुमा िदया और खुद सुनीता की गाँड़ म सुनीता के गाउन के ऊपर से अपना ल िटकाकर उ ोंने सुनीता को अपनी
दोनों टाँगों के िबच म जकड िलया। पीछे से सुनीलजी ने सुनीता के कान, उसकी गदन और उसके बालों को चूमना शु िकया। वह
सुनीता को चुदवाने के िलए तैयार कर रहे थे। सुनीताने अपने पितके इशारे और बात का कोई जवाब नही ं िदया। वह ज ूजी के
सामने ही उनकी छाती से छाती िमलाकर अपने पित की बाहों म ही िछप कर अपनी आँ ख बंद कर अपना सर िनचा कर आगे ा
होगा उसका इं तजार करती ई चुपचाप पड़ी रही।

सुनीलजी ने अपनी प ी सुनीता की पीठको ार से सहलाना शु िकया। हालांिक ज ूजी गहरी नी ंद सो रहे थे, अपने पित की
हरकत ज ूजी के सामने करते ए दे खकर सुनीता एकदम रोमांिचत हो उठी। सुनीता के पुरे बदन म एक िसहरन सी फ़ैल गयी।
सुनीलजी ने धीरे से अपनी बीबी के गाउन के अंदर अपना हाथ डाल कर उसके भरे ए नो ँ को अपनी हथेली म लेकर उसे बारी
बारी से सहलाना और दबाना शु िकया। ना चाहते ए भी सुनीताके होठों के िबच से िसस-कारी िनकल ही गयी। सुनीलजी ने
सुनीता की पीठ सहलाते ए कहा, "डािलग, यह सफर मेरे िलए एक अजीब, रोमांचक, उ ेजना से भरा और साथ साथ बड़ा ही
खतरनाक भी रहा। पर हर पल भगवान ने हमारा हर कदम पर साथ िदया। सब से बुरे व म भी आ खरी व म भगवान ने हम
बचा िलया। सबसे बड़ी बात यहरही की ज ू जी ने तु मौत के मुंह म से बचा के िनकाला। हमारे िलए तो ज ूजी भगवान के
सामान ह। ह की नही ं?" सुनीता ने थोड़ा ऊपर उठकर ज ूजी के हाथों को सहलाते ए कहा, "वह तो ह ही।" पित प ी दोनों
ज ूजी उनकी बात सुनकर उठ ना जाएँ इस िलए बड़ी ही हलकी आवाज म बात कर रहे थे।

सुनीलजी ने अपनी प ी सुनीतासे कहा, "सुनीता डािलग, जहां इतना गहरा ार होता है, वहाँ कुछ भी मायने नही ं रखता है। अब
आगे तुम समझदार हो, की तु ा करना चािहए।" सुनीता ने बड़े ही भोलेपन से कहा, "डािलग, मुझे नही ं मालुम, मुझे ा करना

201
चािहए। तु ी बताओ मुझे ा करना चािहए।" सुनीलजीने बड़े ही ारसे सुनीता के गाउन के पीछे के बटन खोलते ए कहा, "जो
चीज़ म तुम सबसे ादा मा र हो तुम वही करो। तुम बस ार करो।" सुनीताके बटन खुलते ही सुनीलजी ने अपनी बीबी का
गाउन क ों के िनचे सरका िदया। सुनीता के बड़े उ त व फूली ई िन लों के साथ गाउन से बाहर िनकल पड़े। पीछे से हाथ
डाल कर सुनीलजी ने अपनी बीबी दोनों फुले नो ँ को अपनी हथेिलयों म उठाया और उन जेली के समान डोलते ए नो ँ को
िहलाते ए सुनीलजी ने अपनी बीबी सुनीता से कहा, "जानेमन यह तु ारे दो गोल गु ज पर कोई भी मद अपनी जान ोछावर कर
सकता है।" यह कर सुनीलजी ने सुनीता के बॉल अपनी हथली म दबाने और मसलने शु िकये। सुनीता के मुंह से िफर से
िससकारी िनकल गयी। इस बार कुछ ादा ही ऊँची आवाज थी। सुनीता को डर था की कही ं उसकी िससकारी सुनकर ज ूजी
जाग ना जाएँ । सुनीलजी तो चाहतेथे की ज ूजी जाग जाएँ और यह सब दे ख। वह िजतना हो सके अपनी प ी को उकसाना चाहते
थे तािक उसकी कराहट और िसका रयों की आवाज बढे और ज ू जी उठ कर वह नजारा दे ख जो वह उ िदखाना चाहते थे।
सुनीलजी ने िसफ एक धोती जो डॉ. खान की अलमारी म िमली थी वह पहन र ी थी। उसकी गाँठ भी िब रे म पलटते ए छूट
गयी थी। वह िब र म नंगे ही सोये ए थे। अपनी प ी के दो म गु जों को अपने हाथों म मसलते ए और सुनीता की िन लों
को िपचकाते और अपनी बीबी की गाँड़ म पीछे से ध ा मारते ए कहा, "डािलग, ज ूजी हमारे िलए भगवान से भी ादा ह।
वह इस िलए की भगवान को कुछ भी करने के िलए िसफ इ ा करनी पड़ती है। जब की हम इं सानों को अपने ि यजन के िलए
कुछ करने के िलए महेनत और अपना आ समपण करना पड़ता है।

ज ूजी ने वह तु ारे िलए ों िकया? ूंिक वह तु िदलोजान से चाहते थे। वह तु ारे िलए कुछ भी कर सकते ह। तो ा तुम
उनके िलए कुछ कर नही ं सकती?" सुनीता ने अपने पित की बात का कुछ भी जवाब नही ं िदया। वह जानती थी की उसके पित ा
चाहते थे। पर वह ों अपना मुंह खोले? वह िसफ अपने पित के अपनी गाँड़ पर ध ा मरते ए ल को मेहसूस कर रही थी।
अपने पित का जाना पहचाना मोटा और लंबा लंड एकदम कड़क और जोशीला तैयार लग रहा था। सुनीता भी एक साथ दो ल से
चुदवाने के िवचार से ही काफी उ ेिजत हो रही थी। उसने कभी सोचा नही ं था की उसके दोनों ाणि य मद उसे एकसाथ चोदगे।
उसके पित तो तैयार थे, पर ाज ूजी भी तैयार होंगे? यह सुनीता को पता नही ं था। सुनीलजी ने जब अपनी प ी का कोई जवाब
नही ं िमला तो वह समझ गए की सुनीता तैयार तो है पर अपने मुंह से हाँ नही ं कहना चाहती। आ खर म वह मािननी जो ठहरी?
सुनील जी ने फ़ौरन सुनीता गाउन पूरा खोल कर उसे हटाना चाहा। सुनीता ने भी कोई िवरोध ना करते ए अपने हाथ और पाँव
ऊपर िनचे कर के उसे हटाने म सुनीलजी की मदद की। अब सुनीलजी और उनकी प ी सुनीता िब रे म एक़दम नंगे थे। सुनीलजी
ने िफर से अपना ल सुनीता की गाँड़ के गालों पर िटका िदया और हलके ध े मारने लगे। अपने पित का तगड़ा ल अब
उसकी गाँड़ को टोचने लगा तो सुनीता चंचल हो उठी। उससे रहा नही ं गया। सुनीता के मुंह से कुछ ादा ही जोर से कराहट
िनकल पड़ी। सुनीता समझ गयी की अब व आ प ंचा था जब उसके पित उसकी पीछे से चुदाई करगे। सुनीता जानती थी की
सुनीलजी को पीछे से चोदना ब त पसंद था।

सुनीता की दोनों चूँिचयों को अपने हाथों म पकड़ कर उ दबोचते ए सुनीता की गाँड़ की दरार म से होते ए सुनीता की रसीली
चूत म अपना ल पेलने के िलए उसके पित हमेशा ाकुल रहते थे। जब वह सुनीता को पीछे से चोदते थे तो अपना मुंह सुनीता
के घने बालों म मलते ए सुनीता की गदन, पीठ और क ों को बार बार चूमते रहते िजससे सुनीता का उ ाद सातव आसमान पर
प ंच जाता था। सुनीता को महसूस आ की ज ूजी सुनीता की कराहट सुनकर शायद उठ चुके थे। सुनीता के मन म उस समय
एकसाथ कई भाव जा त हो रहे थे। एक ज ूजी के इतने करीबसे दे खते ए की सुनीता अपने पित से कैसे चुदाई करवा रही है यह
सोच कर रोमांच का भाव, दु सरा िचंता का भाव की ज ूजी कही ं ई ा या दु ः ख से परे शान तो नही ं हो जाएं गे की सुनीता िकसी और
से चुद रही थी? तीसरा डर का भाव की कही ं उसी समय अगर ज ूजी का सुनीता को चोदने का मन िकया तो कही ं वह सुनीलजी
से सुनीता को चोदने के िलए बहस तो नही ं करगे? चौथा भावकी कही ं दोनों मद िमलकर सुनीता को एक साथ चोदने के िलए अगर
तैयार हो गए तो ा एक सुनीता की चूत म तो दु सरा उसकी गाँड़म तो अपना ल नही ं घुसाना चाहगे? सुनीता डर िचंता और
रोमांच से एकदम अिभभूत हो रही थी। सुनीता ने महसूस िकया की ज ूजी थोड़ा िहल रहे थे। उसका मतलब वह जाग गए थे।
सुनीताने दे खा की ज ूजीने अपनी आँ ख नही ं खोली ं थी। यह अ ा था। ूंिक भले ही ज ूजी ने महसूस िकया हो की सुनीता
अपने पित से चुदाई करवा रहीथी। पर नादे खते ए कुछ हद तक सुनीता की ल ा कम हो सकती थी। पर सुनीलजी ने कोई
कोिशश नही ं की वह सुनीता की गरम चूतम अपना ल डाल। वह तो सुनीता को इतना गरम करना चाहते थे की सुनीता आगे

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चलकर अपनी सारी ल ा और शम छोड़ कर, अगर ज ूजी उठ जाएँ तो भी अपने पित से िबनती करे की " ीज आप मुझे
चोिदये।"

सुनीलजी ने फुत से पलंगसे िनचे उतर कर सुनीता की जाँघ फैलायी।ं अपना मुंह सुनीता की जाँघों के िबच म रख कर वह सुनीता का
र ा आ ी रस चाटने लगे और अपनी जीभ डाल कर सुनीता की चूत को जीभ से कुरे दने लगे। सुनील जी की जीभ के अंदर
घुसते ही सुनीता अपनी आँ ख कस के मूंद के रखती ई एकदम पलंग पर चौक कर उछल पड़ी। उसके तन के ऊपर से क ल
हट गया। वह नंगी िदखने लगी। शायद ज ूजी ने भी एक आँ ख खोल कर सुनीता का कामातुर खूबसूरत कमिसन नंगा बदन दे ख
िलया था। ज ूजी ने यह भी दे खा की सुनीता के पित ज ूजी के उठने की परवाह ना करते ए सुनीता की चूत म अपनी जीभ डाल
कर अपनी बीबी को "िज ा मैथुन" करा रहे थे।

सुनीता पलंगके ऊपर उछल उछल कर उसे झेलने की कोिशश कर रही थी। थोड़ी दे र सुनीता का िज ा मैथुन करने के बाद
सुनीलजी वापस पलंग पर आ गए। सुनीलजी िफर वही सुनीता की गाँड़ पर अपना ल िटकाकर सुनीताको अपनी जाँघों के िबच म
जकड कर उसके मद म नो ँ को अपनी हथिलयों म दबाने लगे और सुनीता की फूली ई िन लों को िपचकाने म िफर
हो गए। सुनीलजी ने अपना हाथ सुनीता की पतली कमर और नािभ को सहलाते ए धीरे से िनचे ले जाकर उसकी चूत के ऊपर
वाले टीले से सरका कर सुनीता की चूत पर र ा। अपने पित का हाथ जब अपनी चूत के पास महसूस िकया तो सुनीता बोल पड़ी,
"डािलग यह ा कर रहे हो?" सुनीलजी ने कुछ ना बोलते ए सुनीता की पानी झरती चूत म अपनी दो उं गिलयाँ डाल दी ं और उसे
ार से अंदर बाहर करने लगे। सुनीता की (और शायद सब यों की) यह बड़ी कमजोरी होती है की जब पु ष उनकी चूत म
उँ गिलयाँ डालकर उनको ह मैथुन करते ह तब वह उसे झेलनेम नाकाम रहती ं ह। सुनीलजी कभी उँ गिलयों से सुनीता की चूतके
पंखुिड़यों को खोल कर ारसे उसे ऐसे रगड़ने लगे की सुनीता मचल उठी और उसके रोंगटे खड़े हो गए। बड़ी मु ल से वह
अपने पित को चुदाई करने के िलए आ ह करने से अपने आप को रोक पायी। जैसे जैसे सुनीलजी की उँ गिलयाँ फुत से सुनीता की
चूत म अंदर बाहर होने लगी,ं सुनीता की मचलन बढ़ने लगी। साथ साथ म सुनीता की चूत की फड़कन भी बढ़ने लगी। सुनीता
अपनी िससका रयां रोकने म नाकाम हो गयी। उसके मुंहसे बार बार "आहह ओ फ़... हाय... उ फ..." आवाजों वाली
िसका रयाँ बढ़तीही गयी ं। जािहर है की ऐसे माहौल म एक मद कैसे सो सकता है जब एक जवान औरत उसके बगल म एक ही
पलंग पर उसके साथ नंगी सोई ई जोर शोर से िसका रयाँ मार रही हो? ज ूजी उठ तो गए पर अपनी आँ ख मूंद कर पड़े रहे और
उ ीद करते रहे की उनको भी कभी कुछ मौक़ा िमलेगा।

सुनीलजी को भी शायद आइिडया हो गया था की ज ूजी उठ गए थे। सुनीलजी का आइिडया था की वह ऐसे हालत पैदा करद की
ज ूजी खु म-खु ा जािहर करने के िलए मजबूर हो जाएँ की वह उठ गए ह। सुनीलजी ने सुनीता की चूत म अपनी उँ गिलयों से
चोदने की फुत एकदम तेज करदी। उनकी उँ गिलयाँ सुनीता की चूत से इतनी फुत से अंदर बाहर होने लगी ं जैसे कोई इं जन म
िप न िसिलंडर के अंदर बाहर होता हो। सुनीताके िलए यह आ मण झेलना असंभव था। वह अपनी िससका रयोंको रोकनेम अब
पूरी तरह से नाकाम होरही थी। अब उसे परवाह नही ंथी की उसके साथम ही सोये ए ज ूजी उसकी कराहट सुनकर उठ जाएं गे।
वा व म तो कही ं ना कही ं उसके मन म भी िछपी ई इ ा थी की ज ूजी उठ जाएँ और सुनीता को उसके पित के साथ दोनों
िमलकर चोद। सारी कुशंका और िचंताओं के बावजूद सुनीताके मनम भी पित की यह इ ा पूरी करने का बड़ा मनतो थाही। जैसे
जैसे सुनील जी ने उं गलयों से चोदने की गित तेज कर दी तो सुनीता की िससका रयों ने कराहट का प ले िलया। सुनीता अब जोर
शोर से सुनीलजी को, "डािलग, यह ा कर रहे हो? अरे ... भाई तुम थोड़ा को तो...अरे यह कोई त रका है आह्ह... ओह...
अह्ह्ह्हह." इ ािद आवाज िनकालने लगी। पीछे से सुनीलजी अपना ल भी सुनीता की गांड के गालों पर घुसेड़ रहे थे।

सुनीलजी इस बात का ान रख रहेथे की उनका ल अभी जब तक उपयु समय ना आये तब तक सुनीता की चूत या गाँड़ म
ना घुसेड़। सुनीता अपने पित के उसकी गाँड़ म मारे जा रहे ध ों और उनकी उँ गिलयों की चुदाई से इतनी ादा उ ेिजत हो गयी
थी की उसने ज ूजी की बाह पकड़ी ं और अपने साथ साथ ज ूजी को भी िहलाने लगी। जब थोड़ी दे र तक ऐसा चलता रहा तो
मज़बूरी म ज ूजीने अपनी आँ ख खोली ं और सुनीता की और दे खा। सुनीता आँ ख बंद िकये ए अपने पित की उं गल चुदाई और
फ़ालतू के गाँड़ पर उनका कडा और खड़ा ल ध े मार रहा था उसे ए जॉय कर रही थी। ज ूजी ने एक हाथ सुनीता की नंगी

203
कमर पर रखातो सुनीताने अपनी आँ ख खोली ं। जब सुनीता की ज ूजी से आँ ख िमली ं तो वह शमके मारे िफर झुक गयी ं और िफर
सुनीता ने अपनी आँ ख बंद कर ली ं। पर सुनीता की कराहट क नही ं पा रही ं थी ं ूंिक उसके पित अपनी उँ गिलयों से सुनीता की
चूत म बड़े जोरसे चुदाई कर रहे थे। सुनीता ने अब तय िकया की जब ज ूजी ने उसे अपने पित से चुदते ए दे ख ही िलया था तो
अब फ़ालतू का पदा रखने का कोई फ़ायदा नही ं था। सुनीता तब ज ूजी की और खसकी और ज ूजी से िचपक गयी। सुनीता के
न पर सुनीलजीका हाथभी ज ूजी की छाती का श कर रहा था। सुनीलजी समझ गए की ज ूजी जग गए ह और सुनीता की
उं गली चुदाई दे ख रहे ह। सुनीलजी ने सुनीता की चूँिचयों से अपना हाथ हटाकर ज ूजी के क ों पर रख िदया। सुनीलजी ने तब
अपनी बीबी की उँ गिलयों से चुदाई रोक दी। उ ोंने अपने हाथों से ज ूजी का कंधा थोड़े जोर से दबाया और बोले, "ज ूजी, उठो।
म और सुनीता आपसे ाथना करते ह की आप अपनी ि या और मेरी बीबी का आ समपण ीकार करो।"

सुनीता की चूँिचयों को दबाते ए सुनीलजी बोले, "म जानता ँ आप इन नो ँ को सहलाने के िलए िकतने ादा उ ुक हो। म
सुनीता का पित आपसे कहता ँ की आजसे सुनीता के ार और बदन पर िसफ मेरे अकेले का ही हक़ नही ं होगा। सुनीता के ार
और बदन पर हम दोनों का साँझा हक़ होगा अगर सुनीता इसके िलए राजी हो तो।" िफर वह अपनी बीबी की और दे खते ए बोले,
"सुनीता डािलग तुम ा कहती हो?" सुनीता ने शम से अपनी नजर िनची ं कर ली ं और कुछ नही ं बोली। सुनीलजी ने ज ूजी का
हाथ पकड़ा और अपनी बीबी के खुले नों को उनके हाथ म पकड़ा िदए। ज ूजी ने सुनीलजी के सामने दे खा और िझझकते ए
सुनीता के नो ँ पर अपना हाथ िफराने लगे। हालांिक ज ूजी ने पहले भी सुनीता के म नो ँ का भलीभांित आनंद ले रखा था,
पर यह पहली बार आ था की सुनीता के पित ने सामने चलकर अपनी प ी के नो ँ को उनके हाथों म िदए थे। ज ूजी को इस
बात से एक अद् भुत रोमांच का अनुभव आ। ज ूजी की िहचिकचाहट सुनीलजी के वताव से काफी कम हो चुकी थी। उस समय
के ज ूजी के चेहरे के भाव दे खने लायक थे। जैसे कोई नई नवेली वधु शादी की पहली रात को पित के कमरे म पित के सामने
होती है और पित जब उसके कपड़ों को छूता है तो कैसे उसका पूरा बदन रोमांचा से िसहर उठता है ऐसा भाव उनको सुनीता के
भरे -भरे सुनीलजी के हाथों म उठाये ए नों को छूने से आ।

सुनीता का हाल तो उससे भी कही ं और बुरा था। उसकी जाँघों के िबच उसकी चूत म से तो जैसे रस की धार ही िनकल रही थी।
अपने पित के सामने ही िकसी और पु ष के हाथों अपने नो ँ को छु आना कैसा अनूठा और पुरे शरीर को रोमांच से भर दे ने वाला
होता है यह सुनीता ने अनुभव िकया। ज ूजी ने सुनीता के दोनों नो ँ को अपने हाथों की हथेिलयों म िलए और उनको झुक कर
चूमा। सुनीलजी ने सुनीता को अपनी बाँहों म जकड कर पीछे से सुनीता के क ों को चुम कर कहा, "ज ूजी, म सच कह रहा ँ।
हालांिक मेरे मनम सुनीताके िलए ब त ही अजीब भावथे और म जानताथा की आपको और सुनीता को भी इसके िलए कोई एतराज
नही ंथा l पर म यह चाहता था की सुनीता सामने चलकर मुझे अपने आपको पूरी ख़ुशी के साथ समिपत करे और उसकी माँ को
िदया आ वचन अगर पूरा ना हो तो ऐसा ना करे । अगर सुनीता की माँ को िदया आ वचन आपके और सुनीता के िहसाब से पूरा
हो गया है तो मुझे और कुछ नही ं कहना। सुनीता मेरी थी और रहेगी। वह आपकी प ी थी है और रहेगी। अगर वह मेरी शै ा
भािगनी ई तो उससे आपके अिधपत्य पर कोई भी असर नही ं होगा।" यह ार दीवाना पागल है। ना जाने ा करवाता है। कभी
ारी को खुद ही चोदे , कभी औरों से चुदवाता है।

ज ूजी ने पहले सुनीता के कपाल पर और िफर सुनीता के बालों पर, नाक पर, दोनों आँ खों पर, सुनीता के गालों पर और िफर हो ँठों
पर चु न िकया। ज ूजी सुनीता के हो ँठों पर तो जैसे थम ही गए। सुनीता के होठ
ँ ों के रस से वह रसपान करते थकते नही ं थे।
ज ूजीने सुनीता को अपनी बाँहों म ले िलया और सुनीता के हो ँठों से अपने हो ँठ कस कर भी ंच कर बोले, "सुनीता, म तु अपनी
बनाना चाहता ँ। ा तुम मुझे अपना सव अपण करने के िलए तैयार हो?" सुनीता बेचारी बोल ही कैसे सकती थी जब उसके
हो ँठ ज ँ ों से जैसे सील ही गए हों? िफर भी सुनीता ने अपनी आँ ख खोली ं और ज ूजी की आँ खों से ऑंख िमलाई और
ू ी के होठ

और अपना सर ऊपर िनचे िहला कर उसने अपनी सहमित जताई । सुनीता की आँ खों म उस समय उ ाद छाया आ था। आज
वह अपने पित के सामने अपने ि यतम से ार का ना िसफ इजहार करने वाली थी ब अपने ार को अपने पित से अिधप
(ऑथॉ रज़ेशन) भी करवाना चाहती थी। सुनीता समझ गयी थी की उस िदन उसे ज ूजी उसके पित के दे खते ए चोदगे।

सुनीता के पित सुनीलजी की ना िसफ इसम सहमित थी ब उनकी इ ा से ही यह मामला यहाँ तक प ँच पाया था। सुनीता जब

204
ज ूजी के चु नसे फा रग ई तो उसने ज ूजी और अपने पित को अपनी दोनों बाँहों म िलया। सुनीता की एक बाँह म उसके
पित थे और दू सरे बाँह म ज ूजी। सुनीता ने दोनों की और बारी बार से दे ख कर मु रा कर कहा, "हालांिक म एक औरत ँ
शायद इसी िलए म आप मद की एक बात समझ नही ं पायी। वैसे तो आप लोग अपनी बीिबयों पर बड़ा मािलकाना हक़ जताते हो।
उसे कहतेहो की 'म तु ारे ऊपर िकसी और की नजर को बदा नही ं क ँ गा।' तो िफर कैसे आप अपनी ारी प ी को िकसी
और के साथ सांझा कर सकते हो? िकसी और के साथ कैसे शेयर कर सकते हो? िकसी और को अपनी प ी के साथ स ोग करने
की इजाजत कैसे दे सकते हो?"

सुनीलजी ने जब यह सूना तो वह भी मु रा कर बोले, "म अपनी बात करता ँ। इसके तीन कारण है। पहला, मने अपने जीवन म
कई परायी यों को चोदा है। जब हम एक ही तरह का खाना रोज रोज घरम खाते ह तो कभी कभी मन करता है की कही ं बाहर
का खाना खाया जाए। तो पहली बात तो िविवधता की है। म तु ब त ब त चाहता ँ। म चाहता ँ की तुम भी पर पु ष स ोग
का आन उठाओ। िकसी दू सरे ल से चुदवाओ और महसूस करो की िकतना आनंद आता है। दू सरी बात यह है, की म जानता
ँ की मेरी प ी, यानी की तुम जब चुदाई करवाती हो तो मुझे िकतना आनंद दे ती हो। म ज ूजी को ब त पसंद करता ँ। तुम भी
ज ूजी को वाकई म ब त ेम करती हो। तो म चाहता ँ की तुम ज ूजी के कामातुर ार का और उनके मोटे कड़क ल का
अनुभव करो। अपने ारे से चुदवा कर कैसा अनुभव होता है यह जानो। और तीसरा कारण यह है की मुझे ज ूजी से कोई भी
खतरा नजर नही ं आता। ज ूजी शादीशुदा ह। अपनी प ी को खूब चाहते ह और वह तु मुझसे कभी छीन लेने की कोिशश नही ं
करगे। म कबुल करता ँ की म खुद ज ूजी की बीबी ोित से बड़ा ही आकिषत ँ। हमारे िबच शारीरक स भी ह। और इस
बात का पता शायद आप और ज ूजी को भी है।

सुनीता ने अपने पित की बात ीकारते ए कहा, "ज ूजी एक तरह से मरे उपपित होंगे। आप मेरे पित ह, तो मेरे उपपित ज ूजी
ह।" िफर सुनीता ने ज ूजी की और दे ख कर कहा, "यह मत समिझये की उपपित का थान छोटा है। उपपित का थान िबलकुल
कम नही ं होता। पित प ी के अिधकृत पित ह। पर उपपित प ीके मनम सदै व रहते ह। प ी होतीहै पितके साथ, पर मन उसका
उपपित के साथ होता है। कुछ नज रये से दे ख तो पित से उपपित का थान ादा भी हो सकता है।" िफर अपने पित की और
दे खते ए सुनीता ने कहा, "आप मेरे िलए दोनोंही अपनी अपनी जगह पर ब त मह पूण ह। कोई कम नही ं। एक ने मेरे जीवन को
सँवारा है तो दू सरे ने मुझे नया जीवन िदया है।" सुनीता ने अपने पित के ल पर अपना हाथ रखा। उसने पीछे हाथ कर पित के
ल को अपनी उँ गिलयों म पकड़ा। दू सरे हाथ से सुनीता ने ज ूजी के पयजामे पर हाथ िफरा कर उनका ल भी महसूस िकया।
ज ू जी का ल कड़क नही ं आ था, पर सुनीलजी का ल ना िसफ खड़ा हो कर फनफना रहा था ब अपने िछ छे रस का
ाव भी कर रहा था। सुनीता ने ज ूजी को अपना हाथ बार बार िहलाकर पयजामा िनकालने का इशारा िकया। ज ूजी ने फ़ौरन
पयजामे का नाडा खल कर अपने पायजामे को बाहर िनकाल फका। ज ूजी अब पूरी तरह नंगे हो चुके थे।

इस तरह उस पलंग पर तीन नंगे कामातुर बदन एक दू सरे से सट कर लेटे ए थे। सुनीलजी पलंग पर बैठ गए और ज ूजी की
और दे खने लगे। ज ूजी कुछ असमंजस म िदखाई िदए। सुनील जी ने ज ूजी का हाथ पकड़ा और उ खंच कर सुनीता की दो
टाँगों की और एक ह ाध ा मार कर प ंचाया। ज ूजी बेचारे इधर उधर दे खने लगे तब सुनीलजी ने ज ूजी का सर हाथ म
पकड़ कर अपनी बीबी की दो टांगों के िबच म घुसाया। सुनीता ने अनायास ही अपनी टांग चौड़ी कर दी।ं ज ूजी सुनीता की चौड़ी
टाँगों के बीच घुसे। सुनीता की रसीली चूत को दे खते ही उनका ल कड़क हो गया। सुनीता अपनी चूत हमेशा साफ़ रखती थी।
ज ूजी ने अपनी हथेली से सुनीता की चूत के सहलाना शु िकया। ज ूजीका हाथ छूते ही सुनीता की चूत म से रस रसना शु
हो गया। ज ूजी का आधा खड़ा ल दे खते ही ना िसफ सुनीता की ब सुनील जी की आँ ख भी फटी की फटी रह गयी ं। सुनीता
ने तो खैर ज ूजी का ल भली भाँती दे खा था और अपनी चूत म िलया भी था। पर सुनीलजी ने ज ूजी का ल इतने करीब से
पहली बार दे खा था। ना चाहते ए भी सुनीलजी का हाथ आगे बढ़ ही गया और उ ोंने ज ूजी का खड़ा मोटा ल अपनी हथेली
म उठाया। काफी भारी होने क बावजूद ज ूजी का ल काफी मोटा और लंबा था। उस िदन तक सुनील जी को अपने ल के
िलए बड़ा अिभमान था। वह मानते थे की उनका ल दे खकर अ ीअ ी लडिकयां ग खा जाती थी ं।

उ पता तो था ही की ज ूजी का ल काफी बड़ा है। पर इतने करीब से दे खने पर उ उसकी मोटाई का सही अंदाज लगा।

205
इतना मोटा ल सुनीता अपनी चूत म कैसे ले पाएगी वह सुनील जी की समझ से परे था। पर उनके िदमाग म ख़याल आया की
शायद उसी िदन सुबह सुनीता की चुदाई ज ूजी ने की होगी, ूंिक वह जब कमरे म दा खल ए थे तब सुनीता पलंग म नंगी सोई
ई थी। शायद ज ूजी भी उसके साथ नंगे ही सोये ए थे। सुनीलजी ने ज ूजी का ल अपने हाथों म पकड़ कर थोड़ी दे र
िहलाया। उ महसूस आ की ऐसा मोटा और लंबा ल अपनी चूत म डलवाने के िलए कोई भी औरत ा कुछ कर सकती है।
ै कल भी तो उनके सामने ही था। जब से ज ूजी उनकी िजंदगी म आये तबसे सुनीलजी ने महसूस िकया की सुनीता की से
की भूख अचानक बढ़ने लगी थी। ा पता सुनीता अपने पित से चुदवाते ए कही ं ज ू जी से चुदवाने के बारे म ना सोच रही हो?
थोड़ी दे र िहलाते ही ज ूजी का ल एकदम कड़क हो गया। उस समय सुनीलजीको लगाकी ज ूजी का ल उनके ल के
मुकाबले कमसे कम

एक इं च और लंबा और आधा इं च और मोटा ज र था। सुनीलजी का हाथ लगते ही ज ूजी के ल म अगर कोई िढलास रही
होगी वह भी ख़तम हो गयी और ज ूजी का ल लोहे की मोटी छड़ के समान खड़ा होकर ऊपर की और अपना मुंह ऊंचा कर
डोलने लगा।

सुनीलजी की उ ुकता की सीमा नही ं थी की उनकी बीबी जो उनके (सुनीलजी के) ल से ही परे शान थी उसने ज ूजी से कैसे
चुदवाया होगा? पर आ खर औरत की चूत का लचीलापन तो सब जानते ही ह। वह िकतना ही बड़ा ल ों ना हो, अपनी चूत म
ले तो सकती है बशत की वह जो दद होता है उसे झेलने के िलए तैयार हो। सुनीता को भी दद तो आ ही होगा। खैर अब सुनीलजी
अपनी प ी को अपने सामने ज ूजी से चुदवाती ई दे खना चाहते थे। वह यह भी दे खना चाहते थे की ज ूजी भी सुनीता को चोद
कर कैसा महसूस करते ह? सुनीलजी ने ज ूजी के ल को सुनीताकी चूतके ार पर टीका िदया। उस समय सुनीता की हालत
दे खने वाली थी। अपना ही पित अपनी प ी की चूत म गैर मद का लण्ड अपने हाथ से पकड़ कर रखे यह उसने कभी सोचा भी
नही ं था। ज ूजी के ल का सुनीता की चूत के छूने से सुनीता का पूरा बदन िसहर उठा। सुनीता ने दे खा की सुनीलजी बड़ी ही
उ ुकता से सुनीता के चेहरे के भाव पढ़ने की कोिशश कर रहे थे। सुनीता को पता नही ं था की वह चेहरे पर कैसे भाव लाये? एक
गैर पु ष, चाहे वह इतना करीबी दो बन गया था यहां तक की उसने सुनीता की जान भी बचाई थी, पर आ खर वह पित तो नही ं
था ना? िफर भी कैसे िवधाता ने उसे सुनीता को चोदने के िलए यु बनायी वह तो िक त का एक अजीब ही खेल था। आज वह
पडोसी, एक अजनबी सुनीता का हमिब र या यूँ किहये की सुनीता का उपपित बन गया था। सुनीता ने उसे उपपित का ओहदा दे
िदया था।

सुनीता ने अपने हाथ की उँ गिलयों म ज ूजी का ल पकड़ने की कोिशश की। उसे थोड़ा सहलाया तािक उसके ऊपर जमा आ
िचकना रस ज ूजी के पुरे लंड पर फैले िजससे वह सुनीता की चूत म आराम से घुस सके। अब सुनीताको अपने पितकी
इजाजतकी आव कता नही ं थी। उनके ही आ ह से ही यह सब हो रहा था। सुनीता की चूत म से भी धीरे धीरे उसका ेम रस रस
रहा था िजसके कारण ज ूजीका ल अ ा खासा िचकना था। सुनीता ने अपनी उँ गिलयों से उसके िसरे को खासा िचकना बना
िदया और कर अपनी चूत की पंखुिड़यों को खोल कर उस िदन दू सरी बार ज ूजी से चुदवाने के िलए तैयार हो गयी। अब उसे
पहले िजतना डर नही ं था। उसे िचंता ज र थी की उसकी चूत काफी खंच जायेगी, पर पहले की तरह उसे अपनी चूत फट जानेका
डर नही ं था। ज ूजी भी अब जान गए थे की सुनीता उनके ल के पेलने का मार झेल लेगी। जहां ेम होता है, वहाँ ेम के कारण
पैदा होते दद को झेलने की मता भी हो ही जाती है। कई सािह कारों ने सही कहा है की " ेम हमेशा दद ज र दे ता है।"

सुनीता ने एक बार अपने पित सुनीलजी की और दे खा। वह सुनीता की बगल म बैठ अपनी बीबी के नो ँ को सहला रहे थे और
ज ूजी के उनके इतने धाकड़ ल को अपनी बीबी की छोटी सी चूत म घुसने का इं तजार कर रहे थे। वह दे खना चाहते थे की
उनकी बीबी ज ूजी का ल घुसने के समय कैसा महसूस करे गी। दे खते ही दे खते ज ूजी ने अपना ल एक ध े म करीब
एक इ सुनीता की चूत म घुसेड़ िदया। सुनीता ने अपने होंठ भी ंच िलए तािक कही ं दद की आहट ना िनकल जाए। एक ध े म
इतना ल घुसते ही सुनीता ने अपनी आँ ख खोली ं। उसने पहले ज ूजी की और और िफर अपने पित की और दे खा। ज ूजी
आँ ख बंद करके अपने ल को सुनीता की चूत म महसूस कर आहे थी और उसका आनंद ले रहे थे। सुनीलजी को जासुजी का
अपनी बीबी की चूत म ल घुसते ए दे ख कुछ मन म इषा के भाव जागे। यह पहली बार आ था की सुनीता को िकसीने उनके

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सामने चोदा था। शयद उस िदन से पहले सुनीता को सुनीलजी के अलावा िकसी और ने पहले चोदा ही नही ं था। उनके िलए यह
अनुभव करना एक रोमांचकारी अनुभव था। पर अब उनका अपनी बीबी पर जो एकच हक़ था आज से वह बँट जाएगा। आजके
बाद सुनीताकी चूत ज ूजी के ल के िलए भी खुली रहेगी। खैर यह एक अिधकार की ि से कुछ नु ान सा लग रहा था पर
रोमांच और उ ेजना के ि कोण से यह एक अनोखा कदम था। आज से वह सुनीता से खु म खु ाज ूजी की चुदाई के बारे म
बातचीत कर सकगे और जब बात होगी तो उनके से म भी फक पडे गा और सुनीता भी अब खुलकर उनसे चुदवायेगी। यह
सुनीलजी के िलए एक बड़ी ही अ ी बात थी।

ज ूजी का ल पेलने की हरकत दे खकर सुनीलजी को भी जोश आ गया। उ ोंने सुनीता के बोल को जोर से दबाना शु िकया।
सुनीता के एक म े को एक हाथम जोर से िपचका कर उ ोंने उसकी िन ल इतने जोर से दबा दी की सुनीता ज ूजी के ल के
घुसने से नही ं पर सुनीलजी के म े दबाने से चीख पड़ी और बोली, "अरे जी, यह आप ा कर रहे हो? धीमेसे दबाओ ना?" उधर
ज ूजी ने एक और ध ा मारा और उनका ल ६ इं च तक सुनीता की चूत म घुस गया। सुनीता िफर से चीख उठी। इस बार
उसे वाकई म काफी दद हो रहा था, ूंिक ज ू जी ने एक ही ध े म ६ इं च ल अंदर घुसा िदया था। ज ूजी ने फटाफट
अपना ल वापस खंच िलया। सुनीता को राहत िमली पर अब उसे ज ूजी से अ ी तरह से चुदवाना था।

सुनीता के चेहरे पर पसीना आ रहा था। सुनीलजी ने िनचे झुक कर अपनी बीबी के कपाल को चुम कर उसका पसीना चाट गए।
िफर धीमे से बोले, " ादा दद तो नही ं होरहा ना मेरी जान?" सुनीता ने दद भरी िनगाहों से अपने पित की और दे खा और िफर चेहरे
पर मु राहट लाती ई बोली, "यह तो झेलना ही पडे गा। आपको खुश जो करना है।" सुनीता ने ज ूजी की और दे खा और अपना
पडू से ऊपर ध ा मारकर ज ूजी का ल थोड़ा और अंदर घुसड़ने की कोिशश की। ज ूजी समझ गए की सुनीता िकतना ही
दद हो, चुदाई को कने दे ना नही ं चाहती। ज ूजी भी तो कना नही ं चाहते थे। आज तो एक साथ दो काम सफल ए। एक तो
सुनीता को चोद ने का मौक़ा िमला और दू सरे सुनीताके पित की न िसफ पूण सहमित ब उनका साथ भी िमला।

िकसीकी बीबी को उसकी सहमितके साथ चोदना एक बात है, पर उसके पित की सहमित से उसे चोदने का मजा ही कुछ और है।
और जब पित भी साथ म सामने बैठ कर अपनी प ी की चुदाई ख़ुशी ख़ुशी दे खता हो तो बात कुछ और ही होती है। यह तो िज ोंने
अनुभव िकया होगा वह ही जान सकते ह। जब ऐसा होता है तो इसका मतलब है की आप अपना ाथ, अहंकार और अपना सव
एक दू सरे के ार के िलए ोछावर कर रहे हो। इसका मतलब है ना िसफ आप अपने दो को ब आप अपनी बीबी को भी
ब त ादा ार करते हो। पर इससे भी एक और बात उभर कर आती है। एक शादीशुदा औरत का एक पराये मद से चोरी
छु पके चुदवाना अ र होता रहता है। यह कोई नयी बात नही ं है। पर उस औरत का अपने मद की सहमित से या अपने मद के
आ हसे िकसी पराये मदसे चुदवाना एक दू सरे लेवल की ही बात है। इसम ना िसफ मद की बड़ाई है पर उससे भी ादा उस ी
का बड़ न है। अ र अपने पित के सामने िकसी गैर मद से चुदवाने म औरत कतराती ह, ूंिक अगर आगे चलके पित प ी म
कोई तनातनी ई तो पित प ी की उस करतूत को जािहर कर प ी के मुंह पर कािलख पोतने की कोिशश कर सकता है। इसी िलए
पित और प ी दोनों का बड़ न तब ादा होता है जब प ी िकसी गैर मद से अपने पित के सामने चुदवाती है। ऐसा तो तभी हो
सकता है जब पित और प ी म एक दू सरे के िलए अटू ट िव ास और ब त ादा ार हो।

सुनीलजी ने जब पहले सुनीता को ज ूजी से चुदवाने की बात की तो सुनीता को पूरा िव ास नही ं था की उसके पित सुनीलजी
सुनीता से उतना ार करते थे की कभी इस बातका नाजायज फायदा नही ं उठाएं गे। शायद इस िलए भी वह ज ूजी से चुदवाने के
िलये तैयार नही ं ई थी। उसे अपनी माँ को िदया आ वचन का सहारा (या बहाना ही कह लो) भी िमल गया था। पर सुनीता ने दे खा
की सुनीलजी ने जब डॉ. खान के िनक म ज ूजी और सुनीता को नं हालत म दे खा तो समझ तो गए की ज ूजी और सुनीता
ने उनकी गैर मौजदगी म चुदाई की थी। िफर भी उ ोंने कोई कड़वाहट नही ं िदखाई और ना ही कोई गलत िटप ी की। ब
वह तो ज ूजी का आभार जािहर करते रहे। तब सुनीता को यकीन हो गया की सुनीलजी ना िसफ अपनी बीबी माने सुनीता को खूब
ार करते थे ब वह ज ूजी से भी स ा ार करतेथे। जब ार स ा हो तो उसम िछपने िछपाने के लायक कुछ भी नही ं
होता। तब हम जो ठीक लगता है वह हम बेिझझक कह और कर सकते ह। अगर पित और प ी म एक दू सरे के िलए स ूण
िव ास होता है तब वह एक दू सरे के सामने िकसी भी गैर मद या औरत (जो की पित और प ी दोनों को ीकाय हो) को चु ी

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करना, गले लगना, यहां तक की उससे चोदना और चुदवाना भी हो सकता है। सुनीता को आज ऐसा ही सुअवसर िमला था जब की
उसे अपने पित म स ूण िव ास नजर आया। उसे यह िचंता नही ं थी की सुनीलजी आगे चलकर ज ूजी से चुदवाने के बारे म कभी
भी कोई नु ाचीनी करगे। ूंिक जब सुनीलजी ने खुद ज ूजी का ल अपने हाथो ँ म िलया और उसे ार िकया तो उससे बड़ी
बात कोई हो नही ं सकती थी।

सुनीता ने अपने पित सुनीलजीका हाथ पकड़ कर िफर ज ूजी के ल के पास ले गयी। उसकी इ ा थी की सुनीलजी ज ूजी
का ल ना िसफ अपने हाथ म ल, बािक उसे सहलाएं , उसे ार कर। सुनीलजी भी समझ गए की सुनीता को उनका ज ूजी का
ल पकड़ना अ ा लगा था। सुनीलजी के ऐसा करने से सुनीता को शायद यह दे ख कर शा हो गयी थी की सुनील जी भी
ज ूजी से उतनाही ार करते थे िजतना की सुनीता करतीथी। सुनीलजीने अपनी उं िगलयों की गोल अंगूठी जैसी रं ग बनायी और
सुनीता की चूत के ऊपर, सुनीता की चूत और ज ूजी के ल के िबच म जहां से ल अंदर बाहर हो रहा था वहाँ रखदी। अपनी
उँ गिलयोंकी रं ग सुनीलजी ने ज ूजी के लौड़े के आसपास घुमाकर उसको दबा ने की कोिशश की। पूरा लौड़ा तो उनकी उँ गिलयों
म नही ं आया पर िफर भी ज ूजी का िचकना ल सुनीलजी ने अपनी उँ गिलयों म दबाया और उसे ऊपर िनचे होते ए उसम भरी
िचकनाहट सुनीलजी की उँ गिलयों म से होकर िफर सुनीता की रसीली चूत म रसने लगी।

सुनीलजी ने करीब से अपनी बीबी की चूत म ज ूजी का तगड़ा मोटा ल कैसे अंदर बाहर हो रहा था वह पहली बार दे खा
तो उनके बदन म एक अजीब सी रोमांच भरी िसरहन फ़ैल गयी। अपनी बीबी की रसीली चूत म उ ोंने तो सैकड़ों बार अपना ल
पेला था। यह पहली बार था की ज ूजी का इतना मोटा और ल ा ल उनकी बीबी आज अपनी चूत म ना िसफ ले पा रही थी
ब उस ल से हो रही उसकी चुदाई का वह भरपूर आन भी उठा रही थी। सुनीलजी की उँ गिलयों से बनी रं ग जैसे सुनीता
की चूत के अलावा एक और चूत हो ऐसा अनुभव ज ूजी को करा रही थी। ज ूजी का ल इतना लंबा था की सुनीलजी की
उं गिलयां िबच म अंदर बाहर आ जाने से उनको कोई फरक नही ं पड़ रहा था। ब ज ूजी तो और भी उ ेिजत हो रहे थे। तो
इधर सुनीता भी अपने पित के इस सहयोग से खुश थी। धीरे धीरे ज ूजी की चुदाई की र ार बढ़ने लगी। पहले तो ज ूजी एक
ह ाध ा दे ते, िफर क जाते और िफर एक और ध ा दे ते और िफर क जाते। वह ऐसे ही बड़े ह े से, ार से और धीरे से
सुनीता की चूत म ल डाल और िनकाल रहे थे। जैसे जैसे सुनीता की कराहट िससका रयों म बदलती गयी,ं वैसे वैसे ज ूजी को
लगा की वह सुनीता को चोदने के गित बढ़ा सकते ह। पहले सुनीता दद के मारे कराहट िनकाल रही थी। उसके बाद जब सुनीता
की चूत ज ूजी के ल के िलए तैयार हो गयी तो कराहट िससका रयोंम बदलने लग गयी ं। सुनील जी समझ गए की उनकी बीबी
सुनीता को अब दद से ादा मझा आ रहा था। वह सुनीता की कराहट और िससका रयों से भलीभांित प रिचत थे। सुनीता के
हालात दे खकर वह खुद भी मजे ले रहे थे। आ खर यही तो वह दे खना चाहते थे।

ज ूजी ने ल को अंदर बाहर करने गित धीरे धीरे बढ़ाई। अब वह दो या तीन ध े म अपना लंड अंदर डालते। अभी वह िफर
भी अपनी पूरी तेजी से सुनीता को नही ं चोद रहे थे। पर शु के मुकाबले उ ोंने अब गित बढ़ा दी थी। ज ूजी अपना पूरा ल भी
अंदर नही ं डाल रहे थे। उनका ल करीब दो इं च चूत के बाहर ही रहता था। कमरे म तीन तरह की आवाज आ रही ं थी ं। एक तो
जैसे ही ज ूजी का ल सुनीताकी चूत म घुसता था तो सुनीता की चूत से शायद गैस िनकलने की आवाज "प ..." सी होती थी।
उसके साथ साथ सुनीता की उँ ह... , ओह्ह्ह्हह्ह ... आअह्ह्ह..." की आवाज और तीसरी ज ूजी के तेज चलती ई साँसों की
आवाज। जैसे जैसे समय हो रहा था ज ूजी के अंडकोष म उनका वीय फराटे मार रहा था। सुबह का आ उनका वीय ावकी
पूित जैसे हो चुकी थी। उनके अंडकोष की थैली म िफर से वीय लबालब भरा आ लग रहा था। सुनीलजी को लगा की ज ू जी
उनके होते ए सुनीता को चोदने म कुछ िहचिकचाहट महसूस कर रहे थे। जब सुनीता ने सुनीलजी का हाथ पकड़ कर ज ूजी के
ल के पास रखा था तो सुनीलजी को महसूस आ था की उनके ऐसा करनेसे ज ूजीका आ -िव ास कुछ बढ़ा आ था।
सुनीलजी को लगा की सुनीता को और ज ूजी को भरोसा िदलाने के िलए की उ सुनीता को ज ूजी से चुदवाने म कोई आपि
नही ं थी; सुनीलजी को कुछ और करना पडे गा। सुनीलजी ने ज ूजी को सुनीता को चोदने से रोका। िफर आगे बढ़ कर उ ोंने
ज ूजी को थोड़ा पीछे हटाया और झक
ु कर सुनीलजी ने ज ूजी के ल को अपने हो ँठों से चूमा। यह दे ख कर सुनीता के हो ँठों
पर बरबस मु ान आगयी। ज ूजी के तो तोते उड़ गये हों ऐसे दे खते ही रहे। पर इसका एक नतीजा यह आ की ज ूजी ने भी
सुनीलजी का लटकता ल अपना हाथ लंबा कर पकड़ा और उसे धीरे धीरे बड़े ार से सहलाने लगे।

208
अपने दोनों ि यतम को इस तरह से एक दू सरे से ार करे ए दे खकर सुनीताकी ख़ुशीका िठकाना नही ं रहा। अब उसे यकीन हो
गया की उसके दोनों मद एक दू सरे से और सुनीता से भी खूब ार करते थे। अब उसे जैसे पूरी खुली छूट िमल गयी थी की वह
अपने दोनों ि यतम से जैसे चाहे ार करे और जैसे चाहे चुदाई करवाए। सुनीता ने फ़ौरन आगे बढ़कर ज ूजी के सामने घुटनों के
बल बैठ गयी। जब उसके पित ने खुद ज ूजी का ल अपने हो ँठों से चूमा था तो िफर उसे ज ूजी का ल चूमने से परहेज
करने की ा ज रत थी? सुनीता ज ूजी को ऐसा ार करना चाहती थी की वह एक बार तो ोितजी को भी भूल जाएँ । सुनीता ने
ज ूजी का खड़ा मोटा और तगड़ा ल का िसरा अपने हो ँठों के िबच िलया और ार से उसके ऊपर अपनी जीभ घुमाने लगी।
ज ूजी का पूव वीय से और अपनी चूत के ाव से िलपटा आ ज ूजी के ल की िचकनाहट सुनीता अपनी जीभ से चाटने लगी।
ज ूजी का लंड ऐसा ख े जैसा था की उसे पूरा मुंह म लेना िकसी भी औरत के िलए बड़ा ही मु ल था। िफर भी सुनीताने
ज ूजी का ल अपने मुंहम मु लसे ही सही पर घुसाया ज र। ज ूजीभी बड़े ही आ यसे सुनीताका यह कार-नामा दे खते
रहे। उनका ल तो सुनीता की यह करतूत से फुला नही ं समा रहा था। ज ूजी का ल सुनीता की यह हरकत बदा करने म
मु ल अनुभव कर रहा था। ल के मन म शायद यह िवचार आया होगा की अगर ऐसा ादा दे र चला तो उसे अपना वीय
ज ी ही छोड़ना पडे गा। सुनीता ने ज ूजी की कुं ों को अपने दोनों हाथों म पकड़ रखा था और वह धीरे धीरे ज ूजी से अपना
मुंह चोदने के िलए इं िगत कर रही थी।

ज ूजी ने कभी सोचा भी नही ं था की सुनीता उनका ल कभी अपने मुंह म भी लेगी। आज अपनी ि यतमा से अपना ल चुसवा
कर वह चुदाई से भी ादा रोमांच का अनुभव कर रहे थे। उ ोंने सुनीता की इ ा पूरी करते ए सुनीता के मुंह को धीरे धीरे
चोदना शु िकया। सुनीताके गाल ऐसे फुले एथे की यह ाभािवक था की वह ज ूजी का ल बड़ी ही मु ल से अपने मुंह म
ले पा रही थी। घुटनों पर बैठे बैठे वह बार बार ज ूजी के चहरे के भाव पढ़ने की कोिशश कर रही थी। ा उसके ि यतम को
उसकी यह हरकत अ ी लग रही थी? ज ूजी के चेहरे के भाव दे ख कर यह समझना मु ल नही ं था की ज ूजी सुनीता की यह
हरकत का भरपूर आनंद उठा रहे थे। ज ूजी ने दे खा की उनका ल अपने मुंह म घुसाने म सुनीता को काफी क हो रहा था।
वह फ़ौरन फश पर उठ खड़े ए। उ ोंने ने सुनीता की दोनों बगल म अपना हाथ डाल कर सुनीता का ह ा फु ा बदन एक ही
झटके म ऊपर उठा िलया। ज ूजी की तगड़ी बाँहों को सुनीता को उठाने म कोई क महसूस नही ं आ।

ज ूजी ने सुनीता को उठाकर धीरे से उसकी चूत को अपने ऊपर की और टेढ़े ए ल के पास सटा िदया। िफर एक ही ध े म
अपने ल को सुनीता की चूत म घुसा िदया। सुनीता िफर मारे दद के चीख उठी। पर अपने आपको स ाले ए वह आगे झुकी
और ज ूजी के होंठ पर अपने हो ँठ रख कर ज ूजी के सर को अपनी बाँहों म समेट कर अपनी चूत म ज ूजी का ल महसूस
करती ई उनको बेतहाशा चूमने लगी और पागल की तरह ार करने लगी। ज ूजी सुनीता को अपनी बाँहों म उठाकर बड़े ही
ार से अपनी कमर से ध ा मार कर सुनीता को खड़े खड़े ही चोदने लगे। सुनीता भी ज ूजी के हाथों से अपने बदन को ऊपर
िनचे कर ज ूजी का ल अपनी चूत से अंदर बाहर जाते ए, रगड़ते ए अजीबो गरीब रोमांच का अनुभव कर रही थी। सुनीलजी
कैसे बैठे बैठे यह नजारा दे ख सकते थे? वह भी खड़े हो गए और खड़े ए कुछ दे र ज ूजी से अपनी बीबी की चुदाई का नजारा
दे खते रहे। िफर थोडा सा करीब जाकर सुनीलजी ने सुनीता के दोनों नो ँ को पकड़ा और वह उ दबाने और मसलने म मशगूल
हो गए। ज ूजी के ऊपर की और ध े मारने के कारण सुनीता का पूरा बदन और साथ साथ उसके म े भी उछल रहे थे। कुछ
दे र बाद ज ूजी ने सुनीता को धीरे से िफर से पलंग पर रखा। तब तक सुनीता की अ ी खासी चुदाई हो चुकी थी।

सुनीता के िलए खड़े ए ज ूजी से उनकी बाँहों को अपनी बगलम लेकर एक फूल की तरह अपने नंगे बदन को ऊपर उठाकर
अपनी चुदाई करवाने का मज़ा कुछ और ही था। सुनीता को महसूस आ जैसे उसको गु ाकषण का कोई िनयम ही लागू नही ं हो
रहा था। जैसे वह हवा म लहराती ई ज ूजीका मोटा तगड़ा ल अपनी चूतम से अंदर बाहर होते ए महसूस कर रही थी।
सुनीता को अपने ि यतम ज ूजी के बाजुओ ं म िकतनी ताकत थी उसका एहसास भी आ। जैसे सुनीता कोई फूल हो उस तरह
उसे ज ूजी ने आसानी से अपनी कमर तक उठा िलया था। उसके बाद उ ोंने सुनीता के दोनों पॉंव अपनी कमर पर िलपटा कर
सुनीता की रस भरी चूत म अपना मोटा और काफी लंबा ल डाल िदया था। सुनीता ने अपनी बाह ज ूजी के गले म लपेट रखी ं
थी ं। ज ूजी की कमर के सहारे सुनीता िटकी ई थी। ज ूजी के हो ँठ से अपने होंठ िमलाकर सुनीता ऊपर िनचे होकर ज ूजी से
बड़े ार से चुदवा भी रही थी और उनके ल को अपनी चूत म कूद कूद कर घुसेड़ कर उ चोद भी रही थी। ज ूजी से चुदाई

209
करवाते ए साथ ही साथ म सुनीता ज ूजी के मूंछों से िघरे ए रसीले हो ँठ चूसकर उनका मजा भी ले रही थी। कभी कभी
उ ेजना म वह ज ूजी की मूँछों कोचुम लेतीथी और कुछ बालोंको दांतोंम दबाकर उ खीच
ं कर ज ूजी को छे ड़ती भी रहती थी।
सुनीता की ऐसी अठखेिलयों के कारण ज ूजी और भी उ ेिजत हो जाते थे और सुनीता की और फुत से चुदाई करने लगते थे।
ज ूजीके बाजुओ ं के ायु फुले ए िदख रहे थे। सुनीता की गाँड़ के िनचे अपनी दोनों हथेिलयां रखे ज ूजी ने आसानी से उसे
ऊपर उठा रखा था। अपने दोनों हाथों की ताकत से सुनीता को थोड़ा सा ऊपर उठाकर और िफर िनचे लाकर सुनीता को जैसे हवा
म ही चोदना, यह उनके और सुनीता दोनों के िलए एक कामाि के धमाके की तरह नशेसे भरा आ था। ज ूजी कभी सुनीता को
ऊपर िनचे लाकर तो कभी सुनीता को वैसे ही हवा म रख कर अपनी कमर आगे पीछे कर अपना ल सुनीता की चूत म पेले जा
रहे थे। यह नजारा कोई पोन चलिच से कम नही ं था।

सुनीता के तेजी से हवा म लहराते ए म ों को सुनीताके पित सुनीलजीने पीछे खड़े होकर अपने दोनों हाथोंम पकड़ रखाथा और
वह उसे बार बार मसल रहे थे और सुनीताके नो ँ की िन लों को अपनी उँ गिलयों म बड़े ार से दबा और िपचका रहे थे।
ज ूजी के तेज ध ों से सुनीता का पूरा बदन इतनी तेजी से िहल रहा था की कई बार सुनीता के पीछे खड़े ए सुनीताके पित
सुनीलजी को भी सुनीता की गाँड़ से सटे ए होने के कारण अपने आप को स ालना पड़ता था। सुनीता को कभी इसतरहकी हवाम
लहराते ए चुदाई करवाने का मौक़ा नही ं िमला था। एक पित से चुदवाने म और एक गैर (ि यतम) से चुदवाने म यही फक होता है।
चूँिक पित को प ी को चोदने के िलए िकसी भी तरह की कोई ख़ास ज ोजहद नही ं करनी पड़ती इस िलए अ र पित के िलए तो
प ी को चोदना एक आम बात होती है। पर एक गैर मद के िलए एक खूबसूरत औरत िजसको वह कभी चोदने के सपने दे ख रहे
हों, जब उसे चोदने का मौक़ा िमले तो वह कोिशश करे गा की वह उस औरत को हर तरीके से और हर तरह से चोदे और इस तरह
से चोदे की वह इतनी खुश हो जाए की बार बार उसे उस गैर मद से चुदवाने का मन करे । ज ूजी को कई महीनों की ज ोजहद के
बाद सुनीता को चोदने का मौक़ा िमला था। सुनीता को चुदवाने के िलए राजी करना अपने आप म एक कवायद थी, एक परी ा थी
िजसे ज ूजीने कड़ी मेहनत के बाद सफलता से पास िकया था। अब ज ूजी के मन म एक ही बात थी की कैसे वह सुनीता को
ऐसे चोदे जैसे उसे पहले िकसीने चोदा ना हो। यहां तक की उसके पित ने भी ना चोदा हो, िजससे सुनीताका बार बार ज ूजीसे
चुदवाने का मन करे । एक औरतको ार और बड़े ही मजे से चोदनेके िलए औरत का कामातुर होना सोने म सुहागा की तरह होता
है। मद का कामातुर होकर औरत को चोदना एक बात है, पर कामातुर औरत को चोदना एक मद के िलए अद् भुत अनुभव होता है।
उस हाल म मद अनुभव करता है की औरत उसे बार बार अ ी तरहसे चोदने के िलए िम त करती है और चीख और िच ाकर
मद को जोर शोर से चोदने का आ ह करती है। मद के िलए यह अनुभव उसके ल के अंडकोष म भरे वीय म उफानसा लाता है
और और मद की कामुकता कई गुना बढ़ जाती है।

सुनीता को कमर पर िटका कर उसकी चूत को चोदनाभी ऐसाही था। सुनीता अपने आपपर काबू नही ं पा रही थी। अपने पितके
सामने होते ए भी वह ज ूजी को बार बार और जोश से चोदने के िलए आ ह कर रही थी। सुनीता का कामाि अपनी चरम
सीमापर धधक रहा था। इधर सुनील जी का ा हाल था? वह तो सातव आसमान म थे। वह अपनी िजंदगी म पहली बार अपनी
बीबी को िकसी गैर मद से चुदता दे ख रहे थे। और वह भी कैसे? उ ोंने खुद अपनी बीबी को कभी इस तरह से चोदा नही ं था। वह
ज ूजी की बाँहों के फुले ए ायुओ ं को दे खते ही रहे। ज ूजी ने िजस तरह सुनीता को एक हलके फूल की तरह उठा रखा था
और उसे चोदे जा रहे थे वह उनकी िलए कमाल का था। ा वह इस तरह से सुनीता को या ोित को उठाकर चोद पाएं गे?
सुनीलजी अपनी बीबी के पास आये तो सुनीताने अपने पित की और दे खा। अबतक सुनीता ज ूजीकी चुदाई म इतनी म थी की
उसे अपने पित को गौर से दे खना का मौक़ा नही ं िमला था। ज ू सुनीता की चूत म एक के बाद एक जोरदार ध े मार कर ल
पेले जाने के कारण सुनीता का पूरा बदन जोर से िहल रहा था। सुनीता ने िहलते ए बदन से भी अपने पित की और दे खा। वह
दे खना चाहती थी कही ं उनकी आँ खों म इषा जलन या हीनता का भाव तो नही ं था? पर सुनीता ने पाया की सुनील बड़े ही चाव से
सुनीता को चुदता आ दे ख रहे थे। जब सुनीता ने उनकी और दे खा तो सुनीलजी ने आँ ख मार कर सुनीता को तस ी दी की वह
खुश थे। सुनीता ने अपने पित सुनील जी की और अपने हाथ ल ाये। सुनीलजी को सुनीता अपने पास बुलाना चाहती थी। वह नही ं
चाहती थी की नए ेमी को पाने और उस से शारी रक स ोग करने की उ ेजना म वह अपने पित को मानिसक प से थोड़ा सा
भी आहत करे । सुनीता आज काफी कुछ पाने के ख़ुशी के बदले म अपने पित का ब मू ेम को थोड़ा सा भी खोना नही ं चाहती
थी। सुनीता के हाथ लंबा करते ही सुनीलजी सुनीता के और करीब आये। सुनीता ने बड़े ार से अपने पित का सर अपने बदन से

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िचपकाया और ज ूजी से चुदवाते ए ही सुनीताने अपने पितके बालोंम अपनी उँ गिलयों का कंघा बना कर सुनीता सुनीलजी के
बालों को बड़े ही ार संवारने लगी।

यह अद् भुत था। िमटटी के बने ए हम सब ऐसे ेम की िसफ क ना ही कर सकते ह। पर जहां एक दू सरे के िबच स ा
ार और िव ास हो यहां यह नािसफ संभव है, वहाँ यह एक अभूत उ ाद पूण ेम को पैदा कर सकता है िजसकी कोई कीमत
नही ं लगाई जा सकती। कई बार हम अपने अिभमान, इषा और डर के मारे ऐसे अनमोल अवसर गँवा दे ते ह। पर यह भी सच है की
सुनीता, सुनीलजी और ज ूजी के जैसी जोिड़यां भी तो अ र नही ं िमलती ं। ज ूजी ने जब पित प ी के ेम भरे आदान दान को
दे खा तो वह भी मन से काफी अिभभूत हो उठे । उ ोंने चुदाई रोक कर सुनीता की गुलाब की पंखुिड़यां जैसे होठो ँ को हलके से
चूमा। िफर धीरे से सुनीता को िनचे उतार कर वह सुनीलजी को िलपट गए। दो नंगे मरदाना बदन एक दू सरे के आिलंगन म म हो
गए। उनके आिलंगन म कोई भी शरीर का भाव नही ं था। बस एक दू सरे के ित ेम, स ान और िव ास था। ज ूजी चाहते थे की
वह भी सुनीता और सुनीलजी की चुदाई दे खे। ज ूजी ने सुनीलजी का खड़ा आ ल दे खा। उ ोंने उसे अपने हाथों म िलया और
उसे ार से सहलाने लगे। िफर ज ूजी ने सुनीताके बदन को पकड़ा और उसे उसके पित सुनीलजी के सामने कर िदया। सुनील
जी अपनी ताजा चुदी ई िनहायत ही खूबसूरत िदखती नंगी प ी को दे खने लगे। सुनीता की गीली चूत म से उसका ी रस रस
रहा था जो सुनीताकी नंगी खूबसूरत जाँघों को गीला कर पाँव पर बह रहाथा। तब तक ज ूजी ने अपना वीय नही ं छोड़ा था।

सुनीताको समझ नही ं आरहा था की ज ूजी ा चाहते थे। उसने कुछ असमंजस से ज ूजी की और दे खा। ज ूजी ने ार भरे
अंदाज से सुनीलजी और सुनीता के नंगे बदनों को दोनों हाथ से पकड़ कर िमला िदया। सुनीता के उ न उसके पित की छाती
से िचपक गए। ज ू जी ने पीछे से सुनीताकी खूबसूरत सुआकार गाँड़ पर ह ा सा ध ा िदया सो सुनील जी और सुनीता के बदन
और करीब आगये और एक दू सरे से पूरी तरह िचपक ही गए। सुनीता समझ गयी की ज ूजी सुनीलजी और सुनीता की चुदाई
दे खना चाहते थे। सुनीताने अपने पित की ओर ार और कामुकता भरी आँ खों से दे खा और एक हलकी सी मु ान सुनीता के होठ
ँ ों
पर आ गयी। सुनील जी ने हाथ बढ़ाकर अपनी न प ी को अपने न बदन से और िचपका िदया और वह सुनीता के हो ँठों पर
अपने हो ँठ रख कर उसे ारसे चूमने लगे। ज ूजी सुनीता के पीछे खड़े होकर सुनीता की गाँड़ म अपना ल िटका कर अपने
ल से सुनीता के गाँड़ की दरार को कुरे दते ए िचपक गए। सुनीता ने पीछे मुड़ कर हो ँठों पर मु ान िलए ज ूजी को और
दे खा। कही ं ज ूजी का इरादा सुनीता की गाँड़ मारने का तो नही ं था? पर ज ूजी ने आगे झुक कर सुनीता की गदन को चूमा और
सुनीता की आँ खों म ार भरी आँ ख डालकर उसे दे खतेरहे। ज ू जी ने अपने दोनों हाथ सुनीता के नो ँ पर रख िदए और सुनीता
के म ों को दबाने और मसलने लगे। सुनीता के पित सुनीलजी ने ज ूजी को अपनी प ी सुनीता के म ों को दबाते और मसलते
ए दे ख अपना मुंह एक म े पर रख िदया। सुनीता के म े की िन ल सुनीलजी ने अपने मुंह म ली और उसे चूसने और चबाने
लगे।

अपने पीछे ज ूजी का ल और आगे पित का ल सुनीता की गाँड़ और चूत को टोच रहा था। सुनीता उस समय चुदाई के मुड़
म थी। उस समय उसे कोई फक नही ं पड़ता था की उसके पित उसे चोदे या उसके ि यतम। वह चुदवाने के िलए बस बेस थी।
ज ूजी सुनीता को करीब आधे घंटे चोदते रहे और िफर भी उनको छूटने की आव कता नही ं पड़ी यह उनकी शारी रक मता
दशाता था। अ र सुनीता के पित तो दस िमनट म ही झड़ पड़ते थे। आ खर पित और ि यतम म यही तो फक होता है। सुनीता के
िलए यह सुनहरी मौक़ा था जब वह दोनों मद से चुदवाना चाहती थी। अ र ऐसा होता नही ं है। िहंदु ानी औरत के िलए एक ही
िब र पर एक साथ दो मद से चुदवाना लगभग नामुमिकन सा होता है। पर आज सुनीता के दोनों ेमी नंगे सुनीता को िमलकर
चोदने के मूड म थे। सुनीता ने अपने पित का हाथ पकड़ा और दू सरे हाथ से ज ूजी की कमर पकड़ कर सुनीता अपने दोनों
ेिमयों को पलंग पर ले गयी और खुद दोनों मद के िबच म जाकर लेट गयी।

ज ूजी सुनीता की उसके पित सुनीलजी ारा होती ई चुदाई दे खने के मूड म थे। यह जान कर सुनीता अपने पित की और घूमी
और अपने पित सुनील जी को अपनी दोनों बाँहों म घेर िलया। सुनीता अपने पित से िलपट गयी। अपना मुंह सुनीलजी के मुंह से सटा
कर और अपने हो ँठ अपने पित के हो ँठों से िमलाकर सुनीता ने सुनील जी को एक गहरा ार और उ ेजना भरा चु न िकया।
सुनीलजीभी म होकर अपनी न बीबी के सुकोमल और कमनीय बदन का अनुभव करते ए सुनीता के रसीले हो ँठों का आनंद

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लेने लगे। सुनीता ने अपने बदन को अपने पित से ऐसे िचपका िदया जैसे दोनों बदन एक ही हों। िफर अपनी एक टांग ऊपर
उठाकर उसने अपनी चूत को अपने पित के ल से सटा िदया। और अपने पित का जाना मना ल एक हाथ म पकड़ कर उसे
सहलाती ई सुनीता ने सुनीलजी के ल को अपनी चूत के वेश ार पर रख कर सुनील जी के ल को िहलाकर और अपनी
चूत के ार पर रगड़ कर उसके चूत म दा खल होनेकी जगह बनायी। एक ह ाध ामारकर सुनीताने अपने पित को उनका
ल अपनी चूतम डालने के िलए इं िगत िकया। सुनीलजी ज ूजी और सुनीता की चुदाई दे ख कर काफी उ ेिजत हो गए थे। उ
इं तजार था तो अपनी बीबी और अपने दो के इशारे का। सुनीता की चूत की सुरंग तो पहले से ही ज ूजी के पूव ाव और
सुनीता के अपने ी रस से पूरी ि एवं लथपथ हो चुकी थी। सुनीलजी के ल को अंदर घुसनेम कोई ादा मश त नही ं
करनी पड़ी। एक ही झटके म सुनीलजी ने अपना ल अपनी बीबी की जानी पहचानी चूत म डाल िदया। एक पल के िलए सुनीता
को अपनी चूत की चमड़ी खी ंचने से कुछ दद ज र आ पर वह जो स ोग का आनंद था उसकी तुलना म कुछ भी नही ं था।

अपने घरम तो सुनीता अपने पित से लगभग रोज ही चुदती रहती थी। पर उस िदन वह इस वजह से ादा उ ेिजत और शम ली
भी थी की उसकी चुदाई उसके पित िकसीकी नजरों के सामने करने वाले थे। ज ूजी नंगी सुनीता की उसके पित से चुदाई दे खने
वालेथे। सुनीताने पीछे मूड कर ज ू जी की और दे खा। ज ूजी अपना ल सुनीता की गाँड़ से सटाकर सुनीलजी से सुनीताकी
चुदाई का इं तजार कर रहे थे। नजर िमलते ही ज ूजी ने सुनीता की पलकों पर एक हलकी चु ी दी और आँ ख मारकर चुदाई
शु करवाने का इशारा िकया। सुनीता पलंग म दो मद के िबच ऐसी िपचकी ई थी की अगर ान से ना दे खा जाए तो शायद दो
मद के गठीले बदन के िबच म सुनीता का ह ा फु ा बदन तो िदखेही ना। पर दोनों मद सुनीता के कमिसन बदन का भरपूर
अनुभव कर रहे थे। ज ूजी सुनीता की भरी ई म गाँड़ को पीछे से टॉच रहे थे तो सुनीलजी सुनीता की चूत म अपना मोटा लंड
डालकर उसे चोदने के िलए तैयार थे। पीछे से ज ूजीने अपना ल सुनीता की गाँड़ की दरार म फँसा र ा था। वह अपने ल
को सुनीताकी गाँड़म डालना चाहते तो थे, पर जानते थेकी ऐसा करनसे सुनीता को अस क और दद होगा और चमड़ी फटने से
शायद खून भी बहने लगे। अपने आनंदके िलए कभी भी कोई स ा ेमी अपनी ेिमकाको दु खी करना नही ं चाहेगा। ज ू जी
जानते थे की कई लडिकयां और औरत अपनी गाँड़ म ल डलवाती थी ं। पर यह बात भी सही है की ऐसा करने से औरतोंको
बवासीर की िबमारी हो सकती है। ज ूजी का ल काफी मोटा और लंबा होने के कारण वह सुनीता की गाँड़ म उसे डालकर
सुनीता को दु ः ख प ंचाना नही ं चाहते थे।

सुनीता अपने पित सुनीलजी और अपने ि यतम ज ूजी के िबच म लेटी ई थी। एक तरफ उसके पित का खड़ा ल उसकी चूत
म घुस रहा था, तो पीछे ज ूजी का मोटा घ ा सुनीता गाँड़ की दरार म फँसा था। सुनीता को डर था की कही ं ज ूजी मोटा घोड़े
का सा ल उसकी गाँड़ म घुसड़ने की कोिशश नाकरे । पर ज ूजी का ऐसा कोई इरादा नही ं था। वह तो सुनीता की चूत के ही
दीवाने थे। बस वह सुनीता को अपने ल को सुनीता की गाँड़ पर महसूस करवाना चाहते थे। सुनीता ज ूजीका ल अपनी गाँड़
पर महसूस कर काफी उ ेिजतहो रहीथी। सुनीलजीने सुनीता की चूतम अपना ल पेलना शु िकया तब ज ू जी को भी मौक़ा
िमलाकी उनका ल भी सुनीता की गाँड़ म काफी टॉच रहा था। हालांिक ज ूजी ने अपना ल सुनीता की गाँड़ के िछ म नही ं
डाला था। अपने दोनों हाथों म ज ूजी ने सुनीता के भरे फुले ए नो ँ को दबा कर पकड़ रखा था।

सुनीता के जहन म एक अभूतपूव रोमांच और उ ेजना भरी ई थी। उसे अपने ी होने के गव की अनुभूित हो रही थी। अपने
बदन के ारा सुनीता अपने दो अित ि य मद को एक अनूठा अनुभव करा रही थी। सुनीता जानती थी की िजतना रोमांच सुनीता के
दय म उस समय दो मद से एक साथ चुदवाने म था शायद उतना ही या शायद उससे ादा अद् भुत रोमांच और उ ेजना का
अनुभव उसके दोनों ारे मद को भी उस समय हो रहा था। सुनीलजी ने अपनी प ी की रस भरी चूत म फुत से अपना ल
पेलना शु िकया। उनके चुदाई के झटके के कारण ना िसफ सुनीता का बदन जोर से िहल रहा था, ब उसके साथ साथ सुनीता
के पीछे िचपके ए ज ूजी का बदन भी जोर से िहल रहा था। उस समय ज ूजी, सुनीता और सुनील जी के बदन जैसे िमल कर
एक हो गए हों ऐसा िदख रहा था।

सुनीलजी दो मद से सुनीता को चुदवाने के अपने मन की इ ा पूरी होने के कारण काफी उ ेिजत और उ ािहत थे। उनकी बीबी
भी दो मद से िन ृं खल भाव से चुदवाने आनंद लेकर ब त उ ेिजत और खुश थी। उस रात सुनीलजी अपने आप को िनयंि त

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रखना नही ं चाहते थे। अपनी प ी को इस अनूठी प र थित म चोदते ए वह इतने ादा उ ेिजत हो गए थे की उनके िलए अपने
वीय को दबाये रखना काफी मु ल लग रहा था। वह अपनी बीबी की चूत की सुरंग म अपना वीय छोड़ना चाहते थे, पर उ पता
नही ं था की उस समय सुनीता की माहवारी की हालात ा थी। अपने अंडकोष म खौलते ए वीय चाप को वह रोक नही ं पा रहे थे।
वह एकदम उ ेिजत हो कर सुनीता के बदन से एकदम िचपक कर सुनीता की चूत म हलके हलके झटके मार कर उसे चोदनेलगे।
सालोंसे पितसे चुदवानेके अनुभव से सुनीता समझ गयी की उसके पित का धैय (या वीय) अब छूटने वाला था और वह झड़ने वाले थे
सुनीता ने पहले ही सोच समझ कर अपने आप को गभ धारणसे सुरि त रखनेके िलए आव क तैयारी कर र ी थी। घर से
िनकलने के पहले ही वह भली भाँती जानती थी की उस या ाम उसकी अ ी खासी चुदाई होने वाली थी।

सुनीता ने अपने पित के कानों म फुसफुसा कर शमाते ए कहा, "जानू, अपने आपको रोिकये मत। अपना सारा माल मुझ म िनकाल
दीिजये। आप के झड़ने के बाद मुझे ज ूजी से भी पेलना है। आप ने ज ूजी का मोटा और तगड़ा टू ल तो दे खा ही है। आप की
मलाई मेरे अंदर रहेगी तो मुझे ज ूजी का मोटा टू ल लेने म कुछ और आसानी रहेगी। सुनीताकी बात सुनकर सुनीलजी ने एक के
बाद एक हलके पर जोरदार ध े मार कर अपने ल को सुनीता की चूत म पेलते रहे। सुनीलजी के िदमाग म अचानक एक
धमाके के साथ उनके ल के िछ से फ ारे की तरह उनके वीय की िपचकारी िनकली और उनकी बीबी सुनीता की चूत की पूरी
सुरंग जैसे सुनीलजी के वीय से लबालब भर गयी। सुनीता को अपनी चूत म अपने पित के गरमा गरम वीय की िपचकारी छूटने का
अनुभव आ तो वह भी उ ेजना के चरम पर प ँच गयी। सुनीता के िलए भी उस िदन की घटना एक अद् भुत अनुभव और उ ेजना
का अनुभव था। वह भी अपने आप को रोकना नही ं चाहती थी। पित के साथ उनके बैड म म तो वह करीब करीब हर रोज चुदती
थी। और ऐसा करते ए रोमांच भी होता था। पर उस समय की बात कुछ और ही थी। पहाड़ों और वािदयों म कुदरत की गोद म
अपने ारे अझीझ दो मद से एक साथ चूदवाना िजंदगी का असाधारण अनुभव था। सुनीताका बदनभी उ ेजना के कारण कांपने
लगा और एक हलकी सी िससकारी के साथ सुनीता भी झड़ गयी। उस समय सुनीताके िदमाग म भी अभूतपूव सा उ ेजना भरा
धमाका जैसे आ। वह अपने पित की बाँहों म समा गयी और बार बार उनसे िचपक कर "सुनील आई लव यू वैरी मच" कहती ई
हांफती अनूठे रोमांच का एहसास करने लगी।

झड़ते ही सुनीता के िदमाग म जैसे एक अभूतपूव शा और ठहरे ए आनंदका अंतरानुभव आ। तन और मन म जैसे एक


धीरगंभीर पूणता तीत ई। अपने पित के साथ ऐसा अनुभव सुनीता ने शायद सुहागरात को ही िकया था। कुछ दे र आँ ख बंद कर
के शा से पड़े रह कर आराम करने के बाद सुनीता ने आँ ख खोल अपने पित की आँ खों म आँ ख िमलाकर दे खा। अपने ेमी और
अपने पित दोनों से अ ी खासी चुदाई होने के बाद अपनी बीबी के चेहरे पर कैसे भाव आते ह यह दे खने के िलए सुनीलजी तो बस
एकटक अपनी बीबी के संतृ चेहरे को दे खे जा रहे थे। सुनीता की आँ ख जैसेही मु ु राते ए अपने पितसे िमली ं तो सुनीताने शमा
कर अपनी नजर झक
ु ाली ं। पित ने अपनी बीबी सुनीता की ठु ी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाकर सुनीताके हो ठ
ँ ों पर ार
भरा चु न िकया। सुनीलजी जानते थे की ज ूजी का तो अभी तक काम पूरा नही ं आथा। सुनील जी ज ूजी की काफी ल े
अरसे तक बगैर झड़ने के चुदाई करने की मता से बड़े भािवत ए थे। उ ोंने दे खा था की ज ूजी ने सुनीता को करीब आधे घंटे
तक एक से बढ़ कर एक पोजीशन म रख कर िकतने बिढ़या तरीकेसे चोदा था और िफर भी वह झड़े नही ं थे। सुनीता ज र थक
गयी थी पर ज ूजी और उनका कड़ा ल दोनों वैसे के वैसे ही खड़े थे।

सुनीलजी को लगा की शायद ज ूजी को चोदने के िलए काफी औरत िमल जाती होंगी ं, िजसके कारण उनम इतनी िटकने की
मता आयी। पर सच यह था की ज ूजी तन से और मन से बड़े ही सजग और फुत लेथे। उनम एककठोर संक करने की
अद् भुत मता थी। ऐसी मता करीब करीब हर जवान म होनी चािहए और ादातर होती है। िबना थके मीलों तक चलते दौड़ते
और जमीन पर रगते ए यह मता एक सुिनयोिजत शारी रक ायाम सेना का िह ा के कारण पैदा होती है जो एक आम
नाग रक के िलए क ना की िवषय ही हो सकती है। सुनील जी दे खना चाहते थे की ऐसे करारे , फुत ले और शश बदन वाला
इं सान झड़नेपर कैसे महसूस करताहै। साथ साथ म वह सुनीताकी िफरसे अ ी खासी चुदाई दे खना चाहतेथे। सुनीलजी ने मु ु राते
ए अपनी बीबी को चुम कर उसके कंधे पर हाथ रख कर उसके बदन को करवट लेकर अपने दो की और घुमा िदया।

सुनीता तो पहले से ही ज ूजी का खड़ा कड़ा ल अपनी गाँड़ को टोचता आ महसूस कर ही रहीथी। उसके ऊपर ज ूजीके

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दोनों हाथ सुनीता के गोल गु जों को जकड़े ए थे। सुनीताको अब ज ूजी कावीय अपनी चूतकी सुरंगम उं डेलवाना था। सुनीता
के मन म आया की अ ा होता की उसने गभ िनरोधक सुर ा ना अपनायी होती। वह इस पूण शश जवान के वीय से पैदा ए
ब े की माँ अगर बनपाती तो उसकेिलए गवका िवषय होता। पर खैर, अभी वह ज ूजी का गरमा गरम वीय तो अपनी चूत की
सुरंग म खाली करवा ही सकती थी। सुनीता ने घूम कर ज ूजी की नज़रों से अपनी ी सहज ल ा भरी नजरे िमलायी ं। नजर
िमलते ही ज ू जी ने झक
ु कर अपनी ि यतमा सुनीता को अपनी बाँहों म समेट कर सुनीता रस भरे हो ँठों पर एक गहरा और ार
भरा चु न िकया। िफर अपना सर थोड़ा ऊपर उठाकर सुनीता के पीछे लेटे ए अपने दो और सुनीता के पित सुनीलजी की और
दे खा। शायद वह सुनीलजीसे उनकी बीबीको चोदनेकी सहमित मांगने की औपचा रकता पूरी करना चाहते थे। सुनीलजी समझ गए
और उ ोंने ज ूजीका हाथ जो नंगी सुनीता के िनत ों पर िटका आ था उसे पकड़ कर दबा कर अपनी अनुमित दे दी।

सुनीता ि य पित और ेमी की यह दो ी दे ख कर मन ही मन खुश हो रही थी। ऐसा सौभा ब त ही कम यों को ा होता
है। सुनीता ज ूजी के हो ँठोंसे अपने हो ँठ िमलाये और उनके ार भरे चु न को अपने रसीले हो ँठ सौंप कर और अपनी जीभ को
ज ूजी की जीभ से रगड़ कर सुनीता ज ूजी उसे चोदने के िलए लाला-ियत कर रही थी। ज ूजी को िनम णकी ज रत तो थी
नही ं। वह तो अपनी ेिमका को चोदने के िलए तैयार ही थे। पित की अनुमित भी िमल ही गयी थी। तो दे र िकस बात की? ज ूजीने
अपनी ेिमका और सुनीलजी की प ी सुनीताको अपने ही बगल म सुलाकर थोड़ा ऊपर िनचे एडज कर सुनीता की अपने ी
रस और सुनीलजी की मलाई से भरी ई चूत पर अपना लंबा, मोटा, छड़ के सामान तन कर खड़ा आ और ऊपर की ओर मुड़ा
आल सटा िदया। सुनीता को अपनी बाहों म पकड़ कर ज ूजी ने एक ह ा सा ध ा मारकर सुनीता को इशारा िकया की
वह उसे सही जगह पर रखे और थोड़ा सा अपनी चूत पर रगड़े । सुनीता भी तो तैयार थी। सुनीताने फुत से ज ूजी का ल अपनी
हथेली म पकड़ कर उसे अपनी चूत के ेम िछ के ार पर थोड़ा सा रगड़ कर रख िदया। सुनीता की चूत वैसेही अपने पित के
वीय की मलाई से लबालब भरी ई थी। उसे पता था की यिद ज ूजी थोड़ा सावधानी बरतगे तो उस समय उसे ज ूजी के इतने
मोटे ल को अंदर घुसाने म कोई ादा तकलीफ नही ं होगी।

सुनीता ने ज ूजी के ल को ेम िछ पर रख कर ज ूजी को उनकी छाती की िन ल पर एक ार भरा चु न िकया। यह


ज ूजी के िलए चुदाई शु करने का इशारा कहो या आदे श कहो, था। ज ूजी ने पहले थोड़ा सा अपना ल अपनी ेिमका की
चूत की सुरंग म घुसाया और पाया की सुनीलजी की मलाई से लबालब भरे ए होने के कारण उ अपने ल को अंदर घुसाने म
ादा िद त नही ं ई। पर िफर भी वह जानते थे की ेिमका की चूत तो अब उनकी ही होचुकी थी। उसे उनको सावधानीसे कोई
नु ान ना प ंचाए िबना चोदना था। उ सुनीता को एक अद् भुत आनंद भी दे ना था साथ म उ सुनीता की सेहत और दद का भी
ाल रखना था। ज ूजी चाहते थे की सुनीता को वह एक ऐसा अनूठा उ ाद भरा आनंदकी अनुभिू त कराएं की िजससे सुनीता
ज ूजी से वह आनंद अनुभव करने के िलए बार बार चुदवा ने के िलए मजबूर हो जाए। ज ूजीने िफर एक और ध ा िदया और
उनका ल सुनीता की चूत म आधा घुस गया। सुनीता को अपनी चूत के फैल कर अपनी पूरी मता से खंचा आ होने के कारण
थोड़ा सा क हो रहा था पर वह स था।

ज ूजी के ारे और गरम ल की अपनी चूत म उ ाद भरी अनुभिू त सुनीता के िलए वह दद सहने के िलए पया से काफी
ादा थी। सुनीता ने ज ूजी के ल को और घुसानेके िलए अपनी गाँड़ से ध ा िदया तािक वह ज ूजी को िबना बोले यह
एहसास िदलाना चाहती थी की उसे कोई ख़ास दद नही ं महसूस हो रहा था। ज ूजी ने एक और ध ा दे कर अपना ल लगभग
पूरा घुसेड़ िदया। ज ूजी का ल जो की पूरा तो नही ं घुस पाया था िफर भी सुनीता के मुंह से एक हलकी सी चीख िनकल पड़ी।
ज ूजी ने महसूस िकया की उस बार सुनीता की वह चीख म दद कम और उ ाद ादा था। सुनीता ने अपने पित सुनीलजी का
ल अपनी गाँड़ पर रगड़ता आ महसूस िकया। ज ूजी को अपनी बीबी को चोदने की शु आत करते ए दे ख कर ही उनका
ल जो की एकदम सो रहा था िफर से उठ कर खड़ा हो गया। सुनीता ने पीछे हाथ कर अपने पित का हाथ अपने हाथो ँ म लेकर
उसे दबाया।

सुनीलजी ने अपनी नंगी बीबी की कमर के ऊपर से अपना हाथ हटा कर पीछे से अपनी बीबी के फुले रस भरे गोल गु ज के
सामान म ों पर रख िदया और वह उसे ार से सहलाने और दबा कर मसलने लगे। अपने ेमी ज ूजी काल अपनी चूत म

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रहते ए अपने पित से अपने नों को मसलना सुनीता को कई गुना आनंद दे रहा था। उसे लगा की उस या ा म भले ही िकतने
ादा क ए हों, पर यह अनुभव के सामने वह सब गौण लगने लगे थे। सुनीताने अपनी गाँड़ िहला कर अपने पित का ल
अपनी गाँड़ की दरार म ला िदया। अगर सुनीलजी के मन म सुनीता की गाँड़ म उनका ल घुसाने की इ ा हो तो वह घुसा सकते
थे, यह इशारा सुनीता ने बोले िबना अपने पित को करना चाहती थी। पर सुनीलजी जानते थे की सुनीता को अपनी गाँड़ मरवाना
अ ा नही ं लगता था। कई बार सुनीता ने अपने पित को गाँड़ मारने से रोका था। शायद सुनीता की गाँड़ का िछ उसकी चूत के
िछ से भी छोटा था।

ज ूजी का ल कुछ ही दे र म ार से सुनीता की चूत म अंदर बाहर करने से लगभग पूरा ही घुस चुका था। सुनीता की चूत की
सुरंग पूरी भर चुकी थी। ज ूजी ने सोचा की अब और अपना ल अंदर घुसाने से सुनीता की ब े दानी और उसकी चूत की सुरंग
का फट जाने का डर था। ज ूजी ने इस कारण अपना ल उतना ही घुसा कर संतोष माना। सुनीता ज ूजी से पूरी तरह चुदवाना
चाहती थी। जैसे ज ूजी चाहते थे की वह सुनीता की ऐसी चुदाई कर की सुनीता को बार बार ज ूजी से चुदवाने का मन करे वैसे
ही सुनीता चाहती थीकी वह ज ूजीको ऐसा आनंद दे की ज ूजी का सुनीता को बारबार चोदने का मन करे । आग दोनों तरफ
बराबर की लगी ई थी। अब ऐसा नही ं होगा की सुनीता ज ूजी से चुदवाना नही ं चाहेगी। सुनीलजी भी यह भली भाँती जान गए थे
की अब सुनीता ज ूजी के मोटे ल से बार बार चुदवाना चाहेगी। वह भी उसके िलए तैयार थे। बदले म उ पता था की उनके
िलए ोित को चोदने का रा ा भी खुल जाएगा। ज ूजी हालांिक सुनीता को पहले भी चोद चुके थे पर सुनीता के िलए हर बार जब
भी ज ूजी का ल उसकी चूत म दा खल होता था तो पता नही ं ों, सुनीता के पुरे बदन म जैसे एक अजीब सी तीखी मीठी
िसहरन फ़ैल जाती थी। अपने पित से चुदवाना भी सुनीता को काफी आनंद दे ता था पर ज ूजी के ल की बात ही कुछ और थी।
शायद यह ज ूजी के ार करने के तरीके से या िफर ज ूजी के गठीले बदन के अनुभव से या िफर उनके भारी मोटे और ल े
ल से हो, पर ज ूजी का ल सुनीता की चूत म कुछ और ही उ ाद की लहर फैला दे ता था जैसे सुनीता के जहन मन उ ाद
को कोई सैलाब आया हो।

ज ूजी ने जैसे धीरे धीरे अपना ल सुनीता की चूत की सुरंग म पेलना शु िकया की सुनीता बार बार उ ािदत रोमांच से िसहरने
लगी। रोमांच के मारे उसके बदनके सारे बाल जैसे खड़े हो गए। उसकी चूत म अजीब सी िसहरन और फड़कन शु हो गयी। जैसे
ही चूत की सुरंग की चा फड़कती थी की वह ज ूजी के ल को एक वाइस की तरह जकड लेती थी। िजसके कारण ज ूजी
को एक अजीब अनूठा अहसास का अनुभव होता था। ज ूजी ने महसूस िकया की दू सरी बार सुनीता ज ूजी के ल को अंदर
लेते ए पहले की तरह िहचिकचा नही ं रही थी। वह एक अनुभवी ेिमका साथी की तरह चुदाई करवाने के िलए बड़े आ िव ास
से साथ दे रही थी। जैसे जैसे ज ूजी ने अपनी फुत बढ़ाई, सुनीता ने भी पूरा साथ दे ते ए अपने कू े उठा कर ज ूजी का पूरा
साथ िदया। एक चोदने वाले पु ष के िलए इससे अिधक और आनंद की बात ा हो सकती थी? सुनीता को और आनंद दे ने के
िलए ज ूजी थोड़ा टे ढ़ा होकर अपने ल को अलग अलग एं गल से सुनीता की सुरंग म चोदते जा रहे थे।

अब पीछे से सुनीता की गाँड़ पर अपना खड़ा ल रगड़ने की बारी सुनीता के पित सुनीलजी की थी। सुनीलजी ने पीछे से अपनी
बीबी की नंगी कमर पर अपने दोनों हाथ िटकाये ए थे और वह अपना ल सुनीता की गाँड़ की दरार म रगड़ते जा रहे थे। सुनीता
अपनी गाँड़ पर अपने पित का िफर से खड़ा ए ल को महसूस कर रही थी। सुनीता को उस िदन ज ूजी को पूरी ऊंचाई अपने
चरम तक ले जाने की इ ा थी। सुनीता ज ूजी से अलग अलग पोजीशन म चुदवाना चाहती थी और वह भी अपने पित के सामने।
सुनीलजी बार बार सुनीताको ज ूजी से चुदवाने के बारे म इशारा करते रहते थे। अब तक सुनीता पित की बात टालती रही थी। पर
आज उसे सुनहरा मौक़ा िमला था पित की इ ा पूरी करने का और सच बात तो यह भी थी की उसकी अपनी भी इ ा पूरी करने
का। सुनीता ने ज ू जी को क जाने का इशारा िकया। ज ूजी ने सुनीता की और ा क भाव से दे खा। सुनीता ने ज ूजी के
हो ँठों पर हलकी सी चु ी कर थोड़ा सा पीछे हट कर उनका ल अपनी चूत से िनकाल िदया और उस झूलते ए मोटे र े जैसा
ज ूजी का ल अपने हाथ म लेकर उसे ार से सहलाते ए अपने पित, जो की िब र म लेटे ए थे के पाँव के पास प ंची।

ज ूजी को अपनी बगलम खड़ा रख कर सुनीता ने सुनीलजी के दोनों पाँव चौड़े िकये और खुद िबच म आ गयी। बदन को घुटनों
पर िटकाकर अपनी गाँड़ ऊपर की और उठाकर सुनीताने आगे झुक कर अपने पित का ल के अ भाग (टोपे) को बड़े ार से

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चूमा और ज ूजी को अपने पीछे आने का इशारा िकया। ज ूजी सुनीता की इ ा समझ गए। सुनीता अपने पित का ल चूसते
ए खुद घोड़ी बनकर ज ूजी से पीछे से चुदवाना चाहती थी। ज ू जी ने आगे बढ़कर सुनीता की गाँड़से अपना ल सटा िदया।
सुनीता ने उसे अपने हाथ म पकड़ कर सहलाते ए अपनी चूत पर रगड़ा और धीरे से अपनी चूत की पंखुिड़यों को खोल कर उसके
िबच अपने ेम िछ म ह ा सा घुसाया। बाकी काम ज ूजी ने आगे से ध ा मार कर पूरा िकया। ज ूजी का ल पीछे से चूत
म घुसते ही सुनीता की चीख िनकल गयी। थोड़ा सा ध ा ादा लगने से और चूत िचकनी होने के कारण ज ूजी का ल काफी
अंदर घुस गया था। जैसे तैसे सुनीता ने अपने आप को स ाला। आगे सुनीता अपने पित का लंड चूस रही थी तो पीछे से ज ूजी
सुनीता को घोड़ी बनाकर सुनीताकी चूत म अपना ल पेलने लगे और उसे हलके ध े मार कर चोदने लगे। सुनीता की भरी ई
चूँिचयाँ हवा म म ी से झूल रही थी ं। ज ूजी ने अपने हाथ आगे कर उनको अपने दोनों हाथों की हथेिलयों म पकड़ा और उ
ारसे दबाने और मसलने लगे।

सुनीता ज ूजी के पीछे से लगते ए ध ों से पूरी तरह िहल रही थी और उसे अपने पित का ल चूसने म भी कुछ किठनाई हो
रही थी। यह दे खते ए ज ूजी ने सुनीता की नंगी कमर दोनों हाथों से पकड़ कर सुनीताको थोड़ा संतुिलत और थर करने की
कोिशश करते ए अपने पीछे ध े मारने की र ार कम की। पर ऐसा करने से ज ूजी का ल सुनीता की चूत म ादा
गहराई तक चला गया। सुनीता की चूत म अब उसे आगे जाने दे ने के िलए जगह ही नही ं थी। वह सुनीता की ब े दानी को ध े
मारने लगा। सुनीता िफर से चीख उठी। ज ूजी सुनीता की सहमी ई चीख सुनकर थोड़े िचंितत हो गए और थम गए। पर सुनीता
वैसेही खड़ी रही तो ज ूजी अपने ध े के पीछे जोश कम कर हलके हलके से ही सुनीता की चूत म अपना ल पेलने लगे।
सुनीता को अब मजा आ रहा था। सुनीलजी अपनी बीबी के बालों म अपनी उं गिलयां डाल कर सुनीता का माथा पकड़ कर अपने
ल को चुसवाने का मजा लेरहे थे। ऐसेही कुछ दे र चलता रहा तब सुनीलजीने थोड़ासा ऊपर उठकर अपनी बीबी सुनीता के कानों
के पास अपना मुंह लाकर (िजससे की पीछे से सुनीता को चोद रहे ज ूजी सुन ना सके) पूछा, "डािलग, इतना तो तुम कर ही चुकी
हो। तो ों ना आज तुम हम दोनों से एक साथ चुदवालो? बोलो, कर सकती हो?"

सुनीता ने अपनी आँ ख खोल कर अपने पित की और दे खा। उसकी आँ खोंम सवाल था की आ खर उसके पित ा चाहते थे?
सुनीलजी ने कहा, " ा तुम मेरे और ज ूजी से एक साथ चूत और गाँड़ मरवाना चाहोगी? अगर तुम िह त करो तो?" कह कर
सुनीलजी जैसे अपनी बीबी की िम त करते ए सुनीता के बालों को चूमने लगे। सुनीता ने धीमी आवाज म कहा, " ा तुम मुझे
मरवाना चाहते हो? सुनीलजी ने उतनी ही धीमी आवाज म अपनी बीबी की िम त करते ए कहा, "दे खो, मेरा तो अब ढीला पड़
चुका है। वह ा परे शान करे गा? और िफर म हबल तेल से उसे पूरी तरह सराबोर करकेही घुसाउँ गा। ीज? करने दो ना? बस
एक बार? थोड़े से समय के िलए ही?" अपने पितकी बचकाना बात सुनकर सुनीता की हंसी फुट पड़ी। इतने बड़े प कार, िजनका
हर तीसरे िदन टीवी पर सा ा ार होता है और आम जनता िजन के श ों का इतना िव ास करती है, वह अपनी बीबी के सामने
उसे दो मद से एक साथ चुदवाने के िलए कैसे िगड़िगड़ा रहे थे? सुनीता यह दे ख कर हैरान थी।

िकसीने सच ही कहा है की आ खर मद लोग िकतने ही बड़े ों ना हों? जब उनका पाला कोई से ी खूब सूरत औरत से पड़ता है
तो वह अपने ल के आगे िकतने लाचार हो जाते ह? यह उसने दे खा। सुनील जी जैसा बड़ा प कार भी अपनी िवल ण तृ ा
(फंतासी) के सामने अपनी बीबी को दो मद से एक साथ चुदवाने के िलए िकतना बेताब था? सुनीता सोचने लगी की ा िकया
जाए? उसका मन िकया की पित की इस ािहश को हर बार की तरह इस बार भी ठु करा कर ार से ज ूजी से चुदवा कर
अपनी जान छु ड़ाए। पर उस िदन सुनीता के िदमाग म भी एक तरह का चुदाई नशा छाया आ था। सुनीता ने उस िदन ऐसा काम
िकया था जो कोई भी ी के िलए और ख़ास कर भारतीय नारी के िलए सपने के सामान अक नीय था। सुनीता ने अपने पित के
दे खते ए अपने पड़ौसी और ि यतम ज ूजी से चुदाई करवाई थी। जब बात यहां तक ही प ँच गयी है तो िफर सुनीता ने सोचा
चलो एक कदम आगे भी चल लेते ह। वह अपने पित पर उस िदन बड़ी ही कायल थी। जब उसके पित सुनीलजी ने एकही िब रम
उसे ज ूजीके साथ न हालात म सोते ए दे खा तो जािहर थाकी ज ूजी ने उस रात उनकी बीबी सुनीता को चोदा ही होगा। पर
िफर भी वह ना िसफ कुछ भी ना बोले, ब उ ोंने यह सब जानते और समझते ए भी ज ू जी को बड़ा ार और दु लार िकया
और अपने आप को सुनीता को ना बचाने की िलए कोसा भी। सुनीता के मन म अपने पित के िलए बड़े ही गव और ार का भाव
उमड़ पड़ा। उसके मन के कोने म भी कही ं ना कही ं ऐसी िवल ण तृ ा रही होगी की कभी ना कभी वह दो मद से एक साथ

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चुदवाएगी। आज उसे उसके पित ने बड़े ही िम त करते ए जब आ ह िकया तो सुनीता उ मना नही ं कर पायी।

सुनीता ने हाँ तो नही ं कहा पर अपने पित के कान म धीमे से बोली, "जानू, यह दे खनाकी मुझे ादा दद ना हो।" सुनीता की बात
सुनकर सुनीलजी उछल पड़े । उनके मन की सबसे बड़ी िविच कामना शायद उनकी बीबी आज पूरी करे गी यह जान कर सुनीलजी
फ़ौरन उठे और वैसे ही नंगे चलकर कमरे म कुछ ढूंढने लगे। ज ूजी सुनीता की चूत म अपना ल पेलते ए दे ख रहे थे की पित
प ी म कुछ ाइवेट वातालाप चल रहा था। शायद वह उनको नही ं सुनना चािहए था इसी िलए सुनीता और सुनीलजी ने दोनों आपस
म गुपचुप कुछ घुसपुस कर रहे थे। जब सुनीलजी को पलंग पर से उठ कर एक तरफ हट कर कमरे म कुछ ढूंढते ए दे खा तो
सोचम पड़ गए की ा बात थी? कुछ ना कुछ खचड़ी तो ज र पक रही थी।

खैर वह सुनीता की चूत को पीछे से चोदने म ही मशगूल रहे। सुनीता की गाँड़ िजस तरह चुदाई होते ए छ का रही थी और
सुनीता उनके ध े से जैसे िहल रही थी, यह उनके िलए अितशय ही रोमांचकारी और उ ादक था। ज ूजी से पीछे से
चुदवाते ए सुनीता अपनी गाँड़ के गालों को कभी कभी चांटा मारती रहती थी तो कभी कभी अपनी चूत की पंखुिड़यों को अपनी
उँ गिलयों म पकड़ कर रगड़ रही थी। अपनी चूत की पंखुिड़यों को रगड़ते ए उसकी उं गिलया बरबस ज ूजी के बड़े घंटे को छू
जाती थी। ज ूजी का तगड़ा ल इं जनके िप न की तरह सुनीताकी चूतम से "फ फ " आवाज करता आ अंदर बाहर हो
रहा था। उसको छू कर भी सुनीताके पुरे बदनम कुछ हलचलसी हो जाती थी। शायद सुनीता की उ ादकता और भी तेज हो जाती
थी। कभी कभी ज ूजी का ल अपनी चूत म झेलते ए वह ज ूजी के हाथों के ऊपर अपने हाथ रख कर अपने खुद की चूँिचयों
को दबा कर अपनी उ ेजना करती रहती थी। ज ूजी से पीछे से चुदवाते ए सुनीता को एक अजीब सा ही भाव हो रहा था।
उसे घोड़ी बनकर चुदवाना ब त पसंद था और कई बार अपने पित से वह उस पोजीशन म चुदवा चुकी थी। पर उसे ज ूजी के
तगड़े ल से पीछे से चुदवाने म कुछ अजीब सा ही भाव हो रहा था।

सुनीता चाहती थी की उसिदन वह ज ूजीसे पूरा मन भरनेतक चुदाई करवातीही रहे। सुनीता आँ ख बंद कर ज ूजी के ल को
अपनी चूतके अंदर बाहर करने का आनंद लेर ही थी की अचानक ज ू जी थम गए और उ ोंने धीरे से अपना ल सुनीता की
चूतम से िनकाल िलया। सुनीताने पीछे मूड कर दे खा तो समझ गयी की अब उसके दोनों िछ ों म चुदाई होने वाली थी, ूंिक सुनील
जी ज ूजी के पीछे खड़े अपने ल पर कोई तेल जैसा िचकना ऑइं टमट लगा रहे थे। सुनीता को थोड़ा खसका कर ज ूजी
पलंग पर लेट गए और सुनीता को अपने बाजुओ ं को ल ा कर अपने ऊपर चढ़ने का आवाहन िकया। सुनीता ने ज ूजी की
भुजाओं को पकड़ कर अपने बदन को थोड़ा सा टेढ़ा हो कर ज ूजी के खड़े ल को, जो की छत की और िदशा सुचना करते ए
पहले की ही तरह अिडग और कड़क खड़ा था उसे अपनी चूत के क म िटका िदया। िफर हर बार की तरह उस ल को
उँ गिलयों म पकड़ कर उसे अपनी चूतकी पंखुिड़यों म रगड़ते ए अपनी चूतके क िबंदु िछ पर िटका िदया। थोड़ासा नीचे
झुककर अपना नंगा बदन नीचाकर ज ूजी के ल के िचकनाहट से लथपथ ल को धीरे से अपनी चूत म घुसाया। कुछ दे र तक
गाँड़ सिहत अपने िनचे वाले बदनको ऊपर िनचेकर वह ज ू जी को अपनी चूत से चोदने लगी। उस बार उसे कोई खास दद का
अनुभव नही ं आ। धीरे धीरे ज ूजी का ल सुनीता की चूत म काफी घुस गया। सुनीता ने िफर झुक कर ज ूजी के ऊपर अपने
पुरे बदन को िलटा िदया और ज ूजी के होंठों से अपने हो ँठ िमलाकर उसे चूमने और चूसने लगी। ऐसा करते ए सुनीता ने अपनी ं
गाँड़ थोड़ी सी और ऊपर की। सुनीलजी सुनीता को ज ूजी के ऊपर लेटने का ही इंतजार कर रहे थे।

जैसे ही सुनीता ज ूजी के ऊपर लेट गयी और अपनी गाँड़ थोड़ी सी ऊपर की की सुनीलजी को सुनीता की गाँड़ का छोटा सा िछ
िदख पड़ा। हालांिक सुनीता के ऐसा करने से ज ूजी का ल चूत म से काफी बाहर िनकला आ था पर चूँिक वह इतना लंबा था
की िफर भी वह सुनीता की चूत म काफी अंदर तक घुसा आथा। सुनीता को ज ूजीको चोदते ए दे खते दे खते वह अपने ल
पर कोई िचकनाहट भरा वाही जो तेल जैसा िचकना और ि था उसे भरपूर लगा रहे थे। सुनीता की गाँड़ का िछ दे खते ही
सुनीलजी ने वह ऑइं टमट अपनी उँ गिलयों म अ ी तरह लगाया और िफर वह उं गली सुनीता की गाँड़ के छे द म डाली। सुनीलजी
बार बार सुनीता की गाँड़ के छे द म ऑइं टमट से भरी ई उं गली डाल कर सुनीता की गाँड़ उस िचकने तेलसे भर दे ना चाहते थे
िजससे की वह जब अपना ल सुनीता की गाँड़ म डाल तो वह आसानी से उस िछ म घुस जाए।

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##

अ ी अ ी मािननीयाँ भी चुदवाने को बेताब ई!


पहले तो पित से ही चुदती थी, गैरों पर ों मोहताज ई!!

दवा जो वफ़ा का करते थे जो ढोल वफ़ा का पीटते थे!


ों वह झुक कर डॉगी बन ल लेने को सरताज ई!!

*******

ज ूजी िब र पर लेटे ए थे। सुनीता ज ूजी के ऊपर उनका ल अपनी चूत म िलए ए ज ूजी को ार भरा चुंबन कर रही
थी। अपनी गाँड़ थोड़ी ऊपर की और उठा कर वह सुनीलजी यानी अपने पितसे अपनी गाँड़ के िछ म िचकना तेल या ऑइं टमट
डलवा कर उसे ि करवा रही थी। सुनीलजी का ल पहले िजतना कडा तो रहा नही ं था िफर भी सुनीलजी का मन पहली बार
अपनी बीबी सुनीता की गाँड़ मारने के िलए मचल रहा था। अपनी बीबी की गाँड़ म अ ी तरह िचकनाहट भरा तेल डालनेके बाद
सुनीलजी ने अपना ल अपने हाथ म पकड़ा और उसे अपनी बीबी की गाँड़ के िछ के ार पर िटका िदया और एक ह ा
ध ा मारा। एकतो सुनील जी का ल ढीला पड़ गया था। दू सरे वह तेल से लबालब िलपटा आ था सो एकदम सरसराता आ
वह सुनीता की गाँड़ म घुस गया। इतनी आसानी से अपना ल घुस गया यह दे ख सुनील जी ने अपने पडू से एक ध ा मारा और
अपना पूरा ल सुनीता की गाँड़ म घुसा िदया। सुनीता की गाँड़ की सुरंग उतनी फैली ई तो थी नही ं। सुनीता को अचानक एक
टीस उठी और दद आ। वह कुछ ल ों के िलए सहम गयी। सुनीता चीखी तो नही ं पर वह उस दद को बदा करने के िलए
अपनी आँ ख भीचं कर कुछ दे र ज ूजी के ऊपर लेटी ई पड़ी रही। उस समय सुनीता की चूत म ज ूजी का ल और उसकी
गाँड़ म अपने पित का। सुनीता ने अपनी िजंदगी म पहली बार दो मद का ल एक साथ िलया था। यह अनुभव िकसी भी मिहला
के िलए बड़ा ही अजीब या अनूठा होता है और शायद कम ही मिहलाय ऐसा अनुभव करना चाहगी। सुनीता के उस िदन दो पित हो
गए। वह दो पित की प ी हो गयी। और दोनों ही पित सुनीता को एक साथ चोद रहे थे।

सुनीलजी ने पीछे से धीरे धीरे अपनी बीबीकी गाँड़ चोदनी शु की। सुनीता भी दद कुछ कम होने के बाद बेहतर महसूस कर
रहीथी। पहली बार िकसी ल का अपनी गांड म अनुभव कर सुनीता कुछ अजीब सा महसूस कर रही थी। उसे महसूस हो रहा था
की उसके बदन म दो ल एक दू सरे से रगड़ खा रहे थे। िबच म मा चा की पतली सतह ही थी। सुनीलजी ने धीरे धीरे अपनी
बीबी की गाँड़ म अपना ल हलके हलके ठोकना शु िकया। ज ूजी िनचे से और सुनीलजी ऊपर से और बेचारी सुनीता दो ह े
क े मद के िबच म िपचकी ईथी। पर उसे बेतहाशा उ ादक उ ेजना और रोमांच महसूस हो रहा था। िसफ इस िलए नही ं की
वह दो ल से एक साथ चुदवा रही थी, पर इस िलएभी की उसे आज अपने दोनों मद की एक िछपीसी िविच सी इ ा या लालसा
पूरी करने का मौक़ा िमल रहा था और साथ साथ म उसे अपने दो ेमी जो उस पर जान िछड़कते थे उ एक साथ ार करने का
मौक़ा िमल रहा था।

अपने पित का ल पहली बार गाँड़ म ले ने से उसे काफी दद तो आ, पर वह आज वह दद सहने के िलए तैयार थी। सुनीता को
ऐसा महसूस आ जैसे उसके पेट के िनचले वाला िह ा पूरी तरह से कोई ठोस सामान से भर गया हो। उसे ऐसे लगा जैसे वह
गभवती हो। उसके पेट म एक साथ दो कड़े मोटे ल घुस रहे थे िनकल रहे थे। ददनाक होने के बावजूद सुनीता को अपनी चूत
और गाँड़ एक साथ दो ल से चुदवाना अ ा लगा, चूँिक वह उसके ेिमयों के थे। सुनीलजी अपना ल धीरे धीरे अंदर बाहर
कर रहे थे जब की ज ूजी ने अपनी चोदने की र ार अ ी खासी बढ़ा दी थी। सुनीता को दोनों मद के एक एक ध े से उसकी
उ ेजना और बढ़ जाती थी।

सुनीता अपने ऊपर काबू नही ं रख पा रही थी। उसका बदन जैसे एक नयी ऊंचाई को छू रहा था। उसके हॉम और उसका ी
रस उसकी चूत म से रस की धारा समान रस रहा था। उसके िदमाग म एक अजीब सा नशा छाया आ था। सुनीता की सांस फूल
रही थी। ना चाहते ए भी उसके मुंह से रोमांच के मारे ची ा रयाँ िनकल जाती थी ं। सुनीता की चूत म अचानक मचलन ब त
ादा बढ़ गयी। वह अपने बदन पर िनय ण नही ं कर पा रही थी। ज ूजी की फुत ली चुदाई और सुनीलजी की गाँड़ म ल से
चुदाई के कारण सुनीता अपना आपा खो रही थी। उसका िदमाग घूम रहा था। सुनीता ने ज ूजी को अपनी बाँहों म कस के पकड़ा

218
और बोली, "ज ूजी मुझे खूब चोदो। आज म आप दोनोंसे खूब चुदवाना चाहती ँ। पता नही ं आगे यह मौक़ा िमले या ना िमले। यह
कहते ही सुनीता के िदमाग और मन म एक गजब का धमाका सा आ और "हाय राम... " कह कर सुनीता झड़ पड़ी।

ज ूजी को भी सुनीलजी का ल उनके ल से रगड़ खाता आ महसूस हो रहा था। दोनों मद के िलए भी यह अनुभव कोई
चम ार से कम नही ं था। कहाँ एक सेना का िविश स ाि त पदािधकारी और एक अित िविश प कार और कहाँ एक स ािनत
गृिहणी मिहला। पर तीनों ार के एक अजीब से िफतूर म म उस िदन सुनीता से िचपके ए थे और ऐसी ार भरी हरकत कर रहे
थे िजसके बारे म शायद उ ोंने सोचा तक नही ं था। तीनों के मन म कुछ अजीब से तरं ग लहरा रहे थे। ज ूजी ने अपना धैय स ाले
र ा था पर अब इस नए अनुभव की उ ेजना से वह जवाब दे ने लगा। अब वह अपने वीय पर काबू नही ं रख पा रहे थे। सुनीता का
जैसे छूट गया की ज ूजीका वीयका फ ारा भी सुनीता की चूत म गरम गरम लावा जैसे चारों तरफ फ़ैल रहा हो और अपनी गम
से पूरी गुफा की सुरंग को गमाता आ चूत की गुफा म जगह ना होने के कारण सुनीता चूत के बाहर िनकल रहा था। यह
दे खते ही सुनीताके पित सुनील जी भी अपने आप पर क ोल ना रख पाए और िपछे से सुनीता को िचपकते ए, "सुनीता, म तेरे
अंदर ही अपना माल िनकाल रहा ँ। " कह कर उ ोंने भी अपना सारा माल सुनीता की गाँड़ की सुरंग म िनकाल िदया।

पहली बार सुनीता ना िसफ दो मद से एक साथ चुदी ब दो मद का माल भी उसकी चूत और गाँड़ म डाला गया। सुनीता की
चूत और गाँड़ दोनों म से ही उसके पित और ि यतम के वीय की मलाई बाहर िनकल रही थी। सुनीता की ब े दानी म ज ूजी का
वीय जा चुका था। पर ा वह सुनीता के अ से िमलकर फलीभूत हो पायेगा? ा सुनीता ज ूजी का ब ा अपने गभ म ले
पायेगी? कोई भी सावधानी के िबना ज ूजी से काफी अ ी तरह से चुदवाने के कारण उसके मन म यह उठ रहा था। यह
सवाल सुनीता के मन म अजीब सी मचलन पैदा कर रहा था। सुनीता की मन की ािहश थी की उसे ज ूजी के वीय से गभ धारण
हो ूंिक वह चाहती थी की उसका ब ा एक िदन दे शकी सेवा म ऐसे ही लग जाए जैसे ज ूजी लगे ए थे। दु सरा आज नही ं तो
कल उसे अपने घर म िश होना था। तब वह ज ूजी से दू र हो सकती थी। तो वह अपने ब े को दे ख कर ही ज ूजी को याद
कर िलया करे गी।

साथ साथ म सुनीता को एक भरोसा भी था। अगर उस िदन उसे ज ूजी के वीय से गभ धारण नही ं पायी तो भी बाद म भी मौक़ा तो
िमलना ही था। सुनीता ने अपने पित को कह िदया था की अगर वह ज ूजी से एक बार चुदवायेगी तो वह आखरी बार नही ं
होगा। िफर वह ज ूजी से बार बार चुदवाना चाहेगी। तो सुनीलजी को उसे वह आझादी दे नी पड़े गी। सुनीताके पित सुनील जी को
उसम कोई आपि नही ं थी। सुनीता के पित सुनीलजी भी तो ोित को बार बार चोदने के सपने दे ख रहे थे। ोित को एक बार
चोदने से उनका मन नही ं भरा था। िजस जोश के साथ सुनीलजी से ोित ने चुदवाया था वह दे खने लायक था। सुनीलजी से उनकी
अपनी प ी सुनीता ने ऐसे कभी नही ं चुदवाया था। इसी िलए तो कहते ह की "घरकी मुग दाल बराबर।"

सुनीलजी, ज ूजी और साथ साथ म सुनीता के झड़ने से अब तीनों थकान महसूस कर रहे थे। सुनीता की चूत इतनी जबरद
चुदाई से सूज गयी थी और उसे दद भी महसूस हो रहा था। चुदवाते समय उ ाद म दद महसूस नही ं हो रहा था। पर जब चुदाई
ख़तम करके सब एक दू सरे से थोड़ा हट के लेटे तो सुनीता को दद महसूस आ। सुनीता उठकर अपने कपडे लेकर बाथ म म
गयी। उसने अपनी चूत और आसपास के सारे दाग और वीय के ध ों को साफ़ िकया। अपने बदन पर ठीक तरहसे साबुन लगाकर
वह नहायी। िफर अपने कपडे लेकर तौिलया लपेट कर वह बाहर िनकली तो सुनीलजी नंगधडं ग खड़े बाथ म के बाहर उसका
इं तजार कर रहे थे। सुनीता को उ ोंने अपनी बाँहों म लपेट िलया और उसे चु न करते ए वह सुनीता के कानों म बोले, "बीबी, म
आपका ब त आभारी ँ की आपने मेरे मन की ािहश आज पूरी की।" सुनीता ने अपने पित के होठ ँ ों अपने हो ँठ चुसवाते ए
उसी धीमे आवाज म कहा, "अब आप भी ोितजी को चोदने के िलए आझाद हो। अब हम दो कपल नही ं। अब हम एक जोड़ी ह।
ा अब हम जो जब िजससे चाहे स ोग कर सकते है ना?"

सुनीलजी ने सुनीता से कहा, "हाँ, िबलकुल। अब तु ज ूजी से चुदवाने म कोई रोकटोक नही ं है।" यह कह कर सुनीलजी
फ़टाफ़ट बाथ म म घुसे। सुनीता तौिलया लपेटे ए आगे बढ़ी और ज ूजी के पास प ंची। ज ूजी सुनीता को तौिलये म िलपटे
ए दे ख रहे थे। सुनीता अधा बदन िछपाए ए तौिलये म शमाते ए उनके सामने खड़ी थी। जब सुनीता ज ूजी के सामने आ खड़ी
ई, तो सुनीता ने दे खा की सुनीता को तौिलये म िलपटे ए आधी नंगी दे ख कर ज ूजी ढीला ल िफर खड़ा हो गया। सुनीता
हैरान रह गयी की उसकी इतनी भारी चुदाई करने के बाद और तीन बार झड़ने के बादभी ज ूजी का ल वैसे का वैसा ही खड़ा
हो गया था। सुनीता घबरा गयी की कही ं ज ूजी का िफर उसे चोदने का मन ना हो जाए। वह िफर से ज ूजी से चुदवाना तो

219
चाहती थी, पर उस समय उसकी चूत सूजी ई थी। ज ूजी ने अपनी बाँह ल ी कर सुनीता को अपने आगोश म ले िलया। सुनीता
ने भी अपने हो ँठों को आगे कर ज ूजीके हो ँठोंसे िमला िदए। दोनों गाढ़ चु न म जुट गए। सुनीताका तौिलया वैसे ही खुल गया।
ज ूजी सुिनता के दोनों गु जों को अपनी हथेिलयों म भर कर उ दबाकर अपना उ ाद करने लगे। सुनीता को लगा की
ज ूजी एक बार िफर उसे चोदने के िलए तैयार हो रहे थे। तब सुनीता ने अपने मन को स ालते ए ज ूजी की बाँह धीरे से और
बड़े ार से हटा कर कहा, "मेरे ि यतम, अभी नही ं। मुझे दद हो रहा है। पर अब तुम जब चाहोगे म तु ारे पास दौड़ी चली
आउं गी। िजतनी ाकुलता आपको है उससे कही ं ादा मुझे भी है। म अब तु ारी हो चुकी ँ और तुम जब चाहो मुझे भोग सकते
हो।" ज ूजी ने अपनी आँ ख सुनीता की आँ खों म डालकर कहा, " ारी सुनीता, आज म तुमसे वादा करता ँ की आज के बाद म
तु और ोित को छोड़कर िकसी भी औरत की और बुरी नजर से नही ं दे खूंगा। आज तुमने मेरी सारी इ ाएं मेरी सारी
मनोकामना पूरी कर दी ह। मुझे इससे और कुछ ादा नही ं चािहए। और हाँ, अब हम यहां से िनकले के िलए तैयार होना है।"

यह कह कर ज ूजी धीरे से सुनीता से थोड़ा हट कर खड़े ए। उनके खड़े होते ही उनका खड़ा ल हवा म झूलने लगा। सुनीता
ने झुक कर उसे बड़े ारसे चूमा और और उसका अ भाग अपने मुंह म लेकर उसे चाटने लगी। सुनीता ज ूजी के ल को
चाटती ई ऊपर नजर उठाकर ज ूजी की और दे खने लगी की अपना ल चुसवा कर ज ूजी के चेहरे पर कैसे भाव िदख
रहेथे। ज ू जी अपनी आँ ख बंद कर सुनीता से अपने ल को चुसवाने का मजा ले रहे थे। सुनीता के बड़े ार और दु लार से
ज ूजी का ल एक हाथ म पकड़ कर सहलाना और साथ साथ म मुंह म जीभ को िहलाते ए ल को अपने मुंह की लार से
सराबोर करते ए चूसवाने का अनुभव महसूस कर ज ूजी खड़े खड़े आँ ख मूँद कर मजे ले रहे थे। कुछ ही पलों म ज ूजी का
बदन जैसे ऐंठ सा गया। उनकी छाती की पसिलयां स हो गयी ं और वह मचलने लगे। इतनी बार सुनीता की चुदाई करते ए झड़
ने के बाद भी ज ूजी एक बार िफर अपना वीय सुनीता के मुंह या हाथ म छोड़ने के िलए तैयार हो रहे थे। सुनीता ने यह महसूस
िकया और फुत से ज ूजी का ल िहलाने और बड़े ार से चूसने लगी। ज ूजी का स बदन कुछ अजीब सा रोमांिचत होते
ए हलके से झटके खाने लगा। सुनीता ने जब ल को िहलाने की र ार और तेज की तब ज ूजी से रहा नही ं गया और एक
झटके से उनके ल के िछ से िफर एक बार उनकी मदानगी भरा वीय उनके ल से फुट पड़ा।

सुनीता ने इस बार ज ूजी के वीय के कुछ िह े को अपने मुंहम पाया। शायद पहली बार सुनीता उसे िनगल गयी। हालांिक वीय
िनगलने म उसे कोई ख़ास ाद का अनुभव तो नही ं आ, पर सुनीता अपने ि यतम को शायद यह अहसास िदलाना चाहती थी की
वह उ िकतना ार करती थी। एक औरत जब अपने ि य मद का ल मुंह म डाल कर चु ी है तो वह अपने मद को यह
अहसास िदलाना चाहती है की उसका ार िकतना गहरा और घना है। मद होने के नाते मेरा यह मानना है की अपना ल चुसवाने
म मद को औरत को चोदने से ादा मजा नही ं आता। पर हाँ ल चुसवाने से उसका अहम् संतु होता है। इसम औरत की मद
के ल को चूसने की कला म िकतनी कािबिलयत है यह भी एक ज री पहलु है। हालांिक औरत का उलटा है। अपनी चूत अपने
मद से चुसवाने म औरत को कही ं ादा रोमांच और आनंद की अनुभूित होती है ऐसा मुझे मेरी सारी सैया भािगिनओं ने कहा है।
जब जब मने अपना मुंह उनकी टांगों के िबच म रखा है, तब तब वह इतनी मचल जाती ं ह की बस, उ मचलती दे ख कर ही मजा
आ जाता है।

सुनीता हैरान रह गयी की काफी समय तक ज ूजी का गाढ़ा वीय उनके ल के िछ से िनकलता ही रहा। ज ूजी के वीय का
घनापन दे खते ए सुनीता के जेहन म एक िसहरन सी फ़ैल गयी। उसे लगभग यकी ं हो गया की जब ऐसा गाढ़ा वीय िजतनी मा ा म
उसकी चूत के सारे कोनों म फ़ैल गया था तो वह कही ं ना कही ं सुनीता के ी बीज से िमलकर ज र फलीभूत होगा। ा सुनीता
को ज ूजी गभवती बना पाएं गे? यह सुनीताके मन म घूमने लगा। खैर कुछ दे र वैसे ही खड़े रहने के बाद ज ूजी ने सुनीता को
पकड़ कर खड़ा िकया और उसे कस कर अपनी बाँहों म िलया। सुनीता और ज ूजी के न बदन एक दू सरे से रगने लगे। सुनीता
के गोल गु ज ज ूजी के घने बालों से भरे सीने से िपचक कर दब गए थे।

सुनीलजी यह कुछ दू र हट कर खड़े रह कर दे ख रहे थे। सुनीता अपना मुंह ज ूजी के मुंह के पास लायी और अपने हो ँठ
ज ूजी के हो ँठों से िमला िदए। एक बार िफर दोनों ेमी िमका घने आिलंगन म बंधे एक दू सरे के हो ँठों और िज ा को चूसने और
एक दू सरी के लार चूसने और िनगलने म जुट गए। ज ूजी अपनी ेिमका और अपने दो सुनीलजी की प ीको अपने आगोश म
लेकर काफी दे र तक उसे गहरा चु न करते रहे। फीर थोड़ा सा हट कर सुनीता के गालों पर एक हलकी सी प ी दे कर ह ा सा
मु रा कर बोले, "सुनीता, आज तुमने मुझे िजंदगी की ब त बड़ी चीज दी है। मुझे तुमने एक अमू पा रतोिषक िदया है। म
तु ारा यह एहसान कभी भी नही ं पाउँ गा।" सुनीता ने फ़ौरन ज ूजी के हो ँठों पर अपनी पतली सी हथेली रखते ए कहा, "ज ूजी,

220
यह पा रतोिषक मने नही ं, आपने मुझे िदया है और उसम मेरे पित का ब मू योगदान रहा है। यिद वह मुझे बार बार ो ािहत ना
करते तो मुझम यह िह त नही ं थी की म थोडीसी भी आगे बढ़ पाती। और दू सरी बात ार म ेमी कभी भी एक दू सरे का ध वाद
नही ं करते। म सदा आपकी ँ और आप सदा मेरे रहगे।" यह कहकर सुनीताने अपने पितकी और दे खा, सुनील जी ने अपना सर
िहलाते ए कहा, "िबलकुल। अब हम चारों एक दू सरे के हो चुके ह। हम चारों म कोई भेद या अ र का भाव नही ं आना चािहये । म
ोितजी भी इसम शािमल कर रहा ँ।"

अपने पित सुनीलजी की बात सुनकर सुनीता भाविवभोर हो गयी। उसे अपने पित पर गव आ। वह आगे बढ़कर अपने पित को
िलपट गयी और उनके गले म बाँह डाल कर बोली, "मुझे आप की प ी होने का गव है। शायद ही कोई पित अपनी प ी को इतना
स ान दे ता होगा। अब तक म पुरानी िढ़वादी िवचारों म खोई ई थी। म अब भी मानती ँ की पुराने िवचारों म भी बुराई नही ं है।
पर आज जो हमने अनुभव िकया वह एक तरहसे कह तो अलौिकक अनुभव है। आज हम दो जोिड़याँ एक हो गयी ं।"

******

तीनों ेमी शारी रक थकान के मारे कुछ दे र सो गए। कुछ दे र सोने के प ात उ बाहर कुछ हड़बड़ाहट महसूस ई। सबसे पहले
सुनीता फुत से उठी और भाग कर बाथ म म जाकर अपने बदन को साफ़कर उसने अपने कपडे पहन िलए।

जब सुनीता बाहर िनकली तो उसने दे खा की सुनीलजी और ज ूजी भी उनके पास जैसे भी कपडे थे वह पहन कर कमरे का
दवाजा खोलकर बाहर खड़े थे और कुछ सेना के अिधका रयों से बातचीत कर रहे थे। दरवाजे के पीछे खड़े ए सुनीता ने दे खा की
घर के बाहर भारतीय सेना की कई जीप खड़ी ई थी ं। ज ूजी सेना के कोई अिधकारी से बातचीत कर रहे थे। कुछ ही दे र म
ज ूजी और सुनीलजी उन से फा रग होकर कमरे के अंदर आये और बोले, "हमारी सेना ने हमारा पता लगा िलया है और वह हम
यहां से ले जाने के िलए आये ह। उ ोंने हम बताया की सेना ने आतंिकयों का वह अ ा जहां की हम लोगों को कैद िकया था उसे
दु न की सरहद म घुस कर उड़ा िदया है। िपछले दो िदनों से दोनों पडोसी की सेनाओं म जंग से हालात बन गए थे। पर हमारे
बहादु र जवानों ने दु नों को खदे ड़ िदया है और अब सरहद पर शा का माहौल है।" कुछ ही दे र म बादशाह खान साहब भी आ
प ंचे। ज ूजी और सुनीलजी ने उ झुक कर अिभवादन िकया और उनका ब त शुि या िकया। बादशाह खान की दो लडिकयां
और बीबी भी आयी ं और उनकी िवदाय लेते ए, ज ूजी, सुनीता और सुनीलजी सेना के जीप म बैठ कर अपने कप की और रवाना
ए।

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कप म सारे सैिनक जवान, अफसर, मिहलाय और कमचा रयों ने ज ूजी, सुनीलजी और सुनीता के प ँचते ही उनका बड़े जोश
खरोश से ागत िकया और उ फूलकी मालाएं पहनायी ं। सब जगह तािलयों की गड़गड़ाहट से उनका अिभवादन िकया गया।
उस शामको एक भ भोज का आयोजन िकया गया, िजसम उन तीनों को मंच पर बुलाकर तािलयों की गड़गड़ाहट के िबच ब त
स ान िकया गया और उनके परा म की सराहना की गयी।

सुनीता वापस आने के फ़ौरन बाद मौक़ा िमलते ही ोितजीके पास प ँच कर उनसे िलपट गयी ं। सुनीता के शिमदगी भरे चेहरे को
दे ख कर ोित जी समझ गयी ं की उनके पित ज ूजी ने सुनीता की चुदाई कर ही दी थी। ोितजी ने सुनीता को अपनी बाँहों म
जकड कर पूछा, " ों जानेमन? आ खर मेरे पित ने तु ारी िब ी मार ही दी ना? तुम तो मुझसे बड़ी ही बनती िफरती थी। कहती
थी म राजपूतानी ँ। म ऐसे इतनी आसानी से िकसीको अपना बदन नही ं सौपूंगी। अब ा आ जानेमन? म ना कहती थी? मेरे पित
ठान ले ना, तो िकसी को भी अपने वश म कर लेते ह। ऐसी आकषण की श है उनम।"

औरतों म ऐसी कहावत है की जब कोई मद िकसी औरत की भरसक कोिशशों के बाद चुदाई करने म कािमयाबी हािसल करता है तो
कहा जाता है की उसने आ खर म िब ी मार ही दी। मतलब आ खर म भरसक कोिशशों करने के बाद उस मद ने उस औरत को
अपने वश म कर ही िलया और उसे चुदवाने के िलए राजी कर के उसे चोद ही िदया।

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सुनीता समझ गयी की ोित जी का इशारा िकस और था। सुनीता ने भी अपनी मुंडी िहला कर कहा, " ोितजी, आपके पित ने
आ खर म मेरी िब ी मार ही दी।" और यह कह कर भाव मरे गदगद होकर रोने लगी।

ोितजी ने सुनीता को गले लगाकर कहा, "मेरी ारी छोटी बहना। बस अब शांत हो जा। जो आ वह तो होना ही था। मेरे पित को
म भली भाँती जानती ँ। वह जो कुछ भी ठान लेते ह वह कर के ही छोड़ते ह। तेरी िब ी तो मरनी ही थी।"

दोनों बहने एक दू र के गले िमलकर काफी भावुक होकर काफी दे र तक एक दू सरे की बाँहों म िलपटे ए खड़ी रही ं। िफर सुनीता ने
ोितजी के गालों म िचमटी भरते ए कहा, "मेरी िब ी मरवाने म आपका भी तो ब त बड़ा योगदान है। आप भी तो दाना पानी ले
कर मेरे पीछे ही पड़ गयी ं थी ं की मेरे पित से चुदवाले। अब म करती भी तो ा करती? एक तरफ आप, दू सरी तरफ मेरे पित और
बाकी कसर थी तो वह तु ारे रोमांिटक पित ज ूजी ने पूरी कर् ली। उनका तो माशा अ ा ा कहना? सब ने िमलकर मेरी
बेचारी िब ी को कही ं का नही ं छोड़ा।"

ोित जी और सुनीता दोनों कुछ दे र ऐसे ही िलपटे रहे और बाद म अलग हो कर दोनों ने यह तय िकया की उसके बाद वह एक
दू सरे से कोई पदा नही ं करगे।

सुनीता ने जब अपनी सारी कहानी सुनाई तो सुनकर ोित जी तो दं ग ही रह गयी।ं कैसे सुनीता को वह रा शी मोटू परे शान करता
रहा और आ खर म ज ूजी ने उ कैसे मार िदया और कैसे सुनीता को ज ूजी ने बचाया, यह सुनकर ोित भी भावुक हो गयी।
आ खर म सुनीता ने अपने आपको कैसे ज ूजी को समपण िकया वह सुनीता ने िव ार पूवक अपनी बड़ी बहन को बताया।

बाकी के उनिदनों की याद सब के िलए जैसे एक मधुर सपने के समान बन गयी।ं

हर रात, ोित जी सुनीलजी के िब र म और सुनीता ज ूजी की बाँहों म स ूण िनव होकर पूरी रात चुदाई करवाते। कभी
दोनों ही िब र पर लेट कर एक दू र के सामने ही एक दू सरे के पित से या िफर अपने ही पित से चुदवाती ं। कभी दोनों बहन अपने
ेिमयों के ऊपर चढ़ कर उनको चोदती ं तो कभी दोनों बहने एक दू सरे से िलपट कर एक दू सरे को घना आिलंगन कर एक दू सरे म
ही मगन हो जाती।ं

िदन म काफी चल कर पहािड़यों म घूमना। रा े म जब आसपास कोई ना हो तो एक दू सरे से की छे ड़छाड़ करना और शामको
थक कर वापस आना। पर रात म मौज करने का मौक़ा कभी नही ं चूकना। यह उनका िन म बना आ था।

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दे खते ही दे खते ह ा कहाँ बीत गया कोई पता ही नही ं चला। आ खर म वापस जाने की घडी आगयी। वापस जाने के िलए तैयार
होने पर सब िनराश िदख रहे थे। जो आनंद, उ ेजना और रोमांच उन सबको सेना के उस कप म आया था वह अब एक ना भूलने
वाला अनुभव बन कर इितहास बन गया था।

वापस जाने के िलए तैयार होते ए ोितजी, सुनीलजी, ज ूजी और सुनीता सब के जेहन म एक ही बात थी की जो समय उ ोंने
उन वािदयों, झरनों, घने बादलों, और जंगल म िबताया था वह एक अद् भुत रोमांचक, उ ेजना पूण और उ ादक इितहास था।
रोमांच, उ ेजना और उ ाद के वह िदन वह दोनों जोिड़यां कभी भी नही ं भूल पाएं गी ं।

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