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अभय अग्रवाल
अभय अग्रवाल
काकी
ले खक का नाम - सियारामशरण गुप्त
नाम – अभय अग्रवाल
कक्षा – 10 ‘ब’
अनुक्रमाांक – 6
आमुख :
• लेखक पररचय
• कहानी का िाराांश
• शीषयक की िाियकता
• कहानी का उद्िे श्य
• चररत्र चचत्रण
• ननष्कषय
लेखक पररचय
सियाराम शरण गुप्त का जन्म चचरगाांव झाांिी में िन 1895 में हुआ िा। यह राष्र य कवव मैचिल शरण गुप्त के बडे भाई
अपनी प्रारां सभक सशक्षा परू करने के पश्चात यह घर पर ह दहांि अांग्रेजी तिा गज
ु राती भाषा िीखने लगे । िादहत्य िेवा में ल न
रहते हुए 9 माचय िन ् 1963 को इनका ननधन हो गया।
गुप्तजी युवावथिा में ह थवाथथ्य के रोग िे पीडडत हो गई। पाि में ह इनकी पत्नी का ननधन हो गया। इि प्रकार इन्हें अपने
जीवन में अनेक िांघषों का िामना करना पडा।
कहानी का िाराांश
• उि दिन बडे िवेरे जब श्यामू उता तो उिने िे खा कक िारे घर में रोना पीटना मचा हुआ है और उिकी माां परू े शर र पर कपडा ओढे
भूसम पर लेट है । घर के िभी लोग रो रहे िे।
जब लोग उिकी माां को शमशान ले जाने लगे तो उिने बहुत ववलाप ककया और रोते-रोते उनिे सलपट गया ककांतु लोगों ने उिे बडी
कदतनाई िे हटाया और काकी के िाह िांथकार में भी उिे जाने नह ां दिया। एक िािी ने बडी मुस्श्कल िे उिे घर पर ह रोके रखा।
यद्यवप घर के िभी बडे ििथयों ने उिे यह बताया िा कक उिकी काकी उिके मामा के यहाां गई है ककांतु िच तो एक न एक बार
िामने आ ह जाता है । पडोि के कुछ बच्चों िे ह श्यामू को भी यह बात पता चल गई की काकी मामा के यहाां नह ां ऊपर राम के यहाां
गई है । उि अबोध बालक का रोना तो िमय के िाि-िाि शाांत हो गया ककांतु उिके हृिय का िख
ु कम नह ां हुआ। वह घांटों अकेला बैता
आकाश की ओर ताका करता िा ।
1 दिन श्यामू ने एक पतांग आकाश की ओर उडती िे खी श्यामू खुश हो गया वह िोचने लगा वह खुि तो उड नह ां िकता परां तु ऊपर
राम के पाि पतांग भेज कर काकी को आकाश िे अपने पाि बल ु ा िकता है । इि कायय में उिने िबिे पहले वपता िे अनरु ोध ककया कक
वह शीघ्र ह उिे एक पतांग लाकर िे िें । वपता ने अपने अबोध बालक के भावों को ध्यानपव ू क
य िुनने िमझने व उिकी स्जज्ञािा को
जानने की कभी कोसशश नह ां की। काकी के िख ु में अपने को इतना घल ु ा दिया कक बच्चे की मनोिशा को नह ां िमझा और अपने िख ु
को बडा िख ु मानकर उिकी माांग की उपेक्षा कर ि । श्यामू िमझिार िा वह िमझ गया कक जो लोग बबना िया माया के मेर काकी
को जला कर आ गई वह इि काम में उिकी क्या िहायता करें गे। श्यामू अपने को न रोक िका। उिने िे खा कक ववश्वेश्वर की कोट
खांट
ू पर टां गा है उिकी जेब में िे उिने एक चवन्नी ननकाल और भागकर भोला पाि गया। िर्ु खया िािी का बेटा भोला उिका हम
उम्र समत्र िा तिा ववश्वािपात्र भी। श्यामू ने िार योजना उिे बताई। भोला ने कहा काकी जवाहर भैया सलख लें गे तुम और पैिे लाओ
और मोट रथिी बाांधकर काकी के पाि पतांग पहांु चाएांगे रथिी मजबत ू रहे गी तो काकी आिानी िे उतर पाएगी।
श्यामू ने कफर पहले वाला तर का अपनाया थटूल िरकाकर कोट की जेब में िे एक रुपया ननकाला । पतांग , रथिी, कागज पर
काकी – यह िार व्यवथिा कर िोनों श्यामू , भोला अांधेर कोतर िी कोटर में बैतकर खुशी-खुशी काम कर रहे िे । उिी िमय
ववश्वेश्वर क्रोचधत होकर कोतर में घि ु े भोला और श्यामू को धमकाकर पछ ू ा तम
ु ने मेरे कोट िे रूपए ननकाले? भोला डर गया मार के
डर िे उिने िारा राज खोल दिया की चोर श्यामू ने की है । ववश्वेश्वर ने िो तमाचे मारकर कहा- चोर करके जेल जाएगा। उन्होंने पतांग
फाड डाल । रथिी को िे खकर वह कुछ िमझ नह ां पाया उिने पछ ू ा कक यह रथिी ककिने मांगाई हैं ? भोला मखु बबर बन गया और कहाां
श्यामू इन रस्थियों को पतांग पर बाांधकर काकी को आकाश िे उतर लें गे। ववश्वेश्वर चककत रह गया। वह िोच भी नह ां िकते िे कक
बच्चे ककि तरह ककि माध्यम िे अपना िुख िख ु प्रकट करते हैं और उिके जीवन में आई कमी का एहिाि बडे नह ां कर पाते।
शीषयक की िाियकता
'काकी’ कहानी का किानक काकी के चारों ओर ह घूमता रहता है । श्यामू की काकी को जमीन पर सलटाया जाता है
। श्यामू ने बहुत उपद्रव मचाया और उिकी एक न चल । उिे धैयय दिया गया कक काकी मामा के यहाां गई है । पर िांगी
िाचियों िे पता चला कक वह भगवान के पाि गई है । पतांग के िहारे काकी को नीचे उतारने की बात श्यामू के मन मे
आती है । उिके सलए वह चोर भी करता है तिा भोला की िहायता भी लेता है । पतांग मोट रथिी िे भेजी जाएगी स्जि
पर काकी का नाम सलखा होगा। पर िार तैयार के पश्चात वाले पकडे जाते हैं । ववश्वेश्वर श्यामू के वपता उनकी योजना
को िुनकर है रान रह जाते हैं। इि प्रकार कहानी का आदि भी काकी िे होता है और अांत भी । अतः शीषयक पण ू य तहत
िाियक है ।
कहानी का उद्िे श्य
बाल मनोववज्ञान को असभव्यक्त करना ह कहानी का मख् ु य उद्िे श्य है । श्यामू की काकी की मत्ृ यु के पश्चात उिे
अपने समत्रों िे ज्ञात हुआ कक उिकी माां भगवान के पाि गई है । भगवान आिमान में रहते हैं। वह अक्िर आिमान में
ताकता रहता कक शायि काकी दिख जाए। बालमन कल्पना ओां का अिाह िागर होता है पतांग उडते िे खकर उिने
कल्पना की , कक वह पतांग के िहारे काकी को नीचे उतार िकता है । अपनी कल्पना को िाकार करने के सलए उिने जो
उपक्रम ककया वह दिखाना भी लेखक का उद्िे श्य है । बालक के मन की कोमल भावनाओां तिा उिके नछपे ििय को
दिखाना लेखक का उद्िे श्य है स्जिमें वे पण
ू य रूप िे िफल हुए । बच्चे अचधक िमय तक नह ां नछपा पाते हैं। श्यामू भोला
को बताता है और ववश्वेश्वर के गथ ु िे को िे खकर ककतने भोले शब्िों में उिे बता िे ता है स्जन्हें िन
ु कर वह भी अवाक रह
जाता है ।
चररत्र चचत्रण :
1. श्यामू
श्यामू एक भोला भाला बालक है । माां को जमीन में लेटा िे खकर वह िख ु ी होता है । वह
उििे अटूट प्रेम करता है । वह उिे ले जाने में व्यवधान उपस्थित करता है पर िमझाने
पर िमझ जाता है कक उिकी माां मामा के घर गई है । पर जब उिे पता चलता है कक उिकी
माां भगवान के पाि गई है तो बार-बार आिमान की ओर िे खता है जो उिकी स्जज्ञािु
प्रववृ ि का पररचायक है । वह िकारात्मक िोच का बालक है । उिे ववश्वाि िा कक एक
दिन वह अपनी कई को भगवान के घर िे अवश्य वापि लाएगा । उिकी कुशाग्र बद् ु चध ने
एक योजना बनाई । उिको कक्रयास्न्वत करने में िामने आने वाल हर अडचन को उिने
िरू ककया । त्वररत बद् ु चध के कारण उिने कायय को तुरांत अांजाम दिया । समत्र भोले की
तकयपण ू य बात ‘रथिी का प्रयोग’उिे पिांि आया । इि प्रकार श्यामू अनेक गण ु ों का थवामी
है ।
2. भोला
भोला िुर्खया िािी का लडका है और श्यामू का हम उम्र है । वह श्यामू का ववश्वािपात्र है इिसलए श्यामू अपनी िार योजना
उिे बताता है तिा उििे मिि भी माांगता है । उिकी िोच श्यामू िे अचधक िट क है की मोट रथिी चादहए पतल डोर िे
काकी कैिे उतरे गी । वह बडों की नाराजगी और मार िे बहुत डरता है इिसलए शीघ्र ह मुखबबर बनाकर िारा राज बता िे ता है ।
अतः भोला िच्चा समत्र, ववश्वािपात्र, पैर िख
ु कतर और िमझिार बालक है जो श्यामू की हर बात को िमझता है और
उिका िाि िे ता है ।
3. ववश्वेश्वर
ववश्वेश्वर श्यामू के वपता है पत्नी की मृत्यु का आघात उनके हृिय पर लगा हुआ है । वे
उिाि तिा ननराशा रहते हैं उनका मन ककिी काम में नह ां लगता है । ववश्वेश्वर अपने िख ु
में इतना डूब गए हैं कक वह श्यामू की मनोिशा पर ध्यान नह ां िे ते हैं और बाल बाल
मनोिशा का ज्ञान भी नह ां रखते हैं । वे स्जम्मेिार व्यस्क्त हैं । बच्चे के प्रनत स्जम्मेिार
ननभाते हैं । चोर जैिी बरु आित िे वेश्याओां को िरू रखना चाहते हैं इिसलए उिे मारते
े नशील थवभाव के व्यस्क्त हैं श्यामू की बात बोला के द्वारा िुनकर वे
पीटते भी हैं । वे िांवि
कट पतांग को उताते हैं और उि पर सलखी ‘काकी’ पढकर थतब्ध रह जाते हैं
तिष्कषष :
काकी’ कहानी एक बेटे के अपनी माां के सलए अटूट प्रेम को िशायती है । कहानी में श्यामू की काकी ह उिके सलए िब
कुछ होती हैं लेककन जब वह गुज़र जाती हैं तो श्यामू को बहुत धक्का लगता है ।
इिसलए वह हर मुमककन प्रयाि करता है अपनी ककी को नीचे लाने के सलए और इिी प्रयाि में वह ववश्वेश्वर की जेब िे
एक रूपए की चोर करता है और पतांग खर िकर उिपर काकी सलखकर आिमान में उडाता है ताकक वह अपनी काकी को
नीचे उतार िके।
लेककन कहानी के अांत में ववश्वेश्वर को चोर का िच भोला द्वारा पता लग जाता है स्जिके सलए वह श्यामू को बहुत
डाांटता और मारता है । हालाांकक जब वह िच जानता है तो ववश्वेश्वर एक पाांच िाल के बालक का अपनी मााँ के प्रनत ऐिा
थनेह िे खकर हतबद्
ु ्चध हो जाते हैं।