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सा य अ ध नयम भाग 3 : जा नए या होते ह त य, ववाधक त य एवं

सुसंगत त य
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सा य अ ध नयम भाग 3...

जा नए हमारा कानून
Shadab Salim
26 Jan 2020 10:15 AM

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सा य अ ध नयम के तहत पछले दो आलेख म हमने दे खा क सा य म सबूत का भार कस पर होता
है? इसके अलावा हमने यह भी दे खा क कस तरह एक ही सं वहार के भाग होने वाले त य क सुसंग त
या होती है और कस कार इसम रेस जे टे का स ांत कस कार लागू होता है।

सा य व ध : या होती है एक ही सं वहार के भाग होने वाले त य क सुसंग त, जा नए रेस


जे टे का स ांत

सा य अ ध नयम क इस सीरीज़ म हम अब समझगे क त य , ववाधक त य एवं सुसंगत त य या होते ह


और सा य के संदभ म इ ह कैसे दे खा जाता है।

सा य व ध का काय उन नयम का तपादन करना है, जनके ारा यायालय के सम त य सा बत


और खा रज कए जाते ह। कसी त य को सा बत करने के लए जो या अपनाई जा सकती है, उसके
नयम सा य व ध ारा तय कये जाते ह। सा य व ध अपने आप म अ यंत मह वपूण व ध है। सम त
भारत क याय या भारतीय सा य अ ध नयम 1872 क बु नयाद पर टक ई है। सा य अ ध नयम
आपरा धक तथा स वल दोन कार क व धय म नणायक भू मका नभाता है। इस सा य अ ध नयम के
मा यम से ही यह तय कया जाता है क सबूत को वीकार कया जाएगा या नह कया जाएगा।

अ ध नयम को बनाने का उ े य सा य के संबंध म स हताब व ध का नमाण करना है, जसके मा यम


से मूल व ध के स ांत तक प ंचा जा सके। इस सा य अ ध नयम के मा यम से ही जो इतने सारे
अ ध नयम बनाए गए ह, उनके ल य तक प ंचा जाता है। कोई भी कायवाही या अ भयोजन चलाया जाता
है, अ भयोजन पूण प से इस अ ध नयम पर ही आधा रत होता है। बना सा य अ ध नयम के अ भयोजन
चलाने क क पना भी नह क जा सकती है तथा कसी भी स वल राइट को बरकरार नह रखा जा सकता
है। सा य अ ध नयम 1872 अपने नमाण से आज तक सबसे कम संशो धत कया गया है।

त य , ववाधक त य एवं सुसंगत त य :

सा य अ ध नयम म त य, ववाधक त य एवं सुसंगत त य जैसे श द बारंबार आते ह। अ ध नयम को


समझने के लए सव थम हम इन तीन श द को गहनता से समझना होगा। य द ये तीन श द गहनता से
समझ लए जाते ह तो सा य अ ध नयम को समझना सरल होगा। सम त सा य अ ध नयम क धाराएं इन
तीन श द के ईद गद ही घूमती ह।

इन तीन श द को सा य अ ध नयम क प र ध माना जा सकता है। सम त सा य अ ध नयम इन तीन


श द के अंतगत ही रहता है। इस लेख के मा यम से हम तीन श द का अथ समझने का यास करगे।

त य:

सा य अ ध नयम क धारा 3 के अंतगत त य क प रभाषा द गई है। इस प रभाषा के अंतगत कुछ ांत


के मा यम से समझाने का यास कया गया है। त य होता या है, उसक कृ त या होती है, तथा उसका
अथ या है। सा य अ ध नयम म त य को कौन से अथ म लया जाए।
सा य अ ध नयम म सा य क प रभाषा से तीत होता है क सा य त य से संबं धत है, इस लए सा य
को मामले के त य तक ही सी मत रखना पड़ता है। इस योजन हेतु त य श द क प रभाषा आव यक हो
गई थी जो अ ध नयम म न न ल खत तरीके से द गई है-

त य से अ भ ेत है और उसके अंतगत आती है,

ऐसी कोई व तु ,व तु क अव था या व तु का संबंध जो इं य ारा बोधग य हो'

'कोई मान सक दशा जसका भान कसी को हो'

त य उसे कहा जाता है जसे मनु य भौ तक और मान सक प से तीत कर सके, आभास कर सके उसे
महसूस कर सके। व ध के अंतगत काय और लोप दोन को त य माना गया है। काय भी त य और लोप
भी त य है। हम इस बात को इस उदाहरण के मा यम से सकते ह।

काय

जैसे व ध ारा कसी को यह काय बताया गया है वह कसी क ह या नह करेगा। कसी भी


क ह या करने के लए तथा इस ह या के लए हम शा त द जाएगी, दं ड दया जाएगा। काय यही
है, जसे करने से नवा रत कया गया है।

लोप

जैसे व ध के अंतगत हम यह बताया गया है क हम आयकर हमारी सालाना आय पर येक वष भरना


होगा, परंतु हम आयकर नह भरते ह ,तो यह लोप है तथा आपरा धक लोप है, और इस लोप के लए हम
दं डत कया जाएगा।

कोई भी त य काय या लोप दोन हो सकते ह। त य इं य को मान सक व शारी रक प से आभास होता


है, त य को पहचाना जा सकता है, त य को महसूस कया जा सकता है, त य को समझा जा सकता है,
त य को दे खा जा सकता है, त य कसी भी भां त का हो सकता है।

दलवीर सह बनाम टे ट ऑफ पंजाब एआईआर 1987 एस सी 1328 के मामले म सु ीम कोट ने कहा


क सा य का मू यांकन एक त य का है, जसका व न य येक मामले क पा र थ तय पर नभर
करता है।

ववाधक त य ( Fact in issue)

ववाधक त य का अथ होता है जन त य पर ववाद है। कसी वाद या कायवाही के प कार उन त य पर


सहमत नह है उ ह ववाधक त य कहा जाता है। सा य अ ध नयम क धारा 3 के अंतगत जहां नवाचन
खंड दया गया है, ववाधक त य क प रभाषा भी द गई है।

" ववाधक त य" से अ भ ेत है और उसके अंतगत आता है,


ऐसा कोई भी त य जस अकेले ही से या अ य त य के संसग, म कसी ऐसे अ धकार, दा य व या
नय यता के, जसका कसी वाद या कायवाही म यान या या यान कया गया है, अ त व,
अन त व, कृ त या व तार क उ प अव यमेव होती ह।

ववाधक त य का आशय ववा दत त य से ही है, अथात जन त य पर ववाद है। कसी भी ववाद म


केवल एक प कार नह होता है। कसी ववाद म एक से अ धक ही प कार होते है, तथा इस ववाद का
कोई त य होता है,कोई कारण होता है जसे समझा जा सकता है दे खा जा सकता है आभास कया जाता
है।

ऐसे म कुछ प कार क ही त य पर सहमत होते ह क ही त य पर असहमत होते ह। प कार के भीतर


जन त य को लेकर ववाद होता है, उन त य को ववाधक त य कहा जाता है। इन त य के मा यम से
वाद क कृ त को समझा जाता है। ववाधक त य या होता है, इसे आप इस उदाहरण के मा यम से
समझ सकते ह।

जसे रा य ारा कसी के ऊपर कोई मुकदमा चलाया जाता है, कोई अ भयोजन लाया जाता है।
ऐसे म आरोपी पर जब आरोप तय कए जाते ह उस समय वह उन आरोप म से कन आरोप को
वीकार कर लेता है तथा क ही आरोप को अ वीकार भी कर सकता है, वह जन आरोप को वीकार
करता है यह उसका अ भवचन हो जाते ह तथा जन आरोप को वीकार नह करता है यह ववाधक त य
हो जाते ह।

कोई स वल कायवाही चल रही है। कसी ारा कसी अ य पर इस त य के अंतगत वाद


लाया गया है। कोई भू म कसी के क जे म है पर तु भू म का मा लकाना हक कोई अ य दावा
कर है। ऐसी स वल कायवाही लाई जाती है, जसके पास क ज़ा है वह इस बात का खंडन यह
कहते ए करता है क यह भू म मेरे पुरख क है तथा इस पर मेरा क जा भी है और मा लकाना हक भी है
तो इससे वधायक त य न न ह गे-

या भू म पर क ज़ा रखने वाले का मा लकाना हक़ है?

या भू म पर मा लकाना हक बताने वाले का दावा सही है?

ववाधक त य भ - भ भी हो सकते ह तथा कसी एक वाद म ब त सारे ववाधक त य हो सकते ह।


वह सभी त य को समझना अ यंत आव यक होता है। कोई भी वाद या कायवाही इन ववाधक त य के
आधार पर ही चलती है। सारे सा य इन ववाधक त य को सा बत और नासा बत करने हेतु ही दए जाते
ह, अथात सा य को पेश कया जाना इन त य को सा बत और नासा बत करना ही ल य होता है।

कसी ने कसी क ह या क है। ह या का आरोप लगाया गया है। अ भयोजन यह कह रहा है


क कसी ने ह या क है और आरोपी कहता है मने ह या नह क तो ऐसी प र थ त म ह या वह
आमुक ने क है या नह क है, यह ववाधक त य है।
अ भयोजन इस त य को सा बत करने के लए सा य तुत करेगा तथा वह आरोपी जस पर
अ भयोजन चलाया जा रहा है, वह इस बात को नासा बत करने के लए सा य तुत करेगा क ह या
उसके ारा नह क गई है। ववाधक त य यह हो सकता है क ह या के आरोपी ारा ह या क गई
है या नह क गयी है।

कसी त य को ववाधक त य तब ही माना जा सकता है जब वह यह शत पूरी करता है-

थम यह क उस त य के बारे म प कार म मतभेद हो।

सरा यह क वह इतना मह व रखता हो क उसी पर प कार के दा य व तथा अ धकार नभर करते ह।

जस सीमा तक प कार के दा य व तथा अ धकार कसी वशेष व ध के उपबंध पर नभर करते ह,उस
वशेष व ध के संबंध म ही जाना जा सकता है क ववा दत त य या है!

उदाहरणाथ य द असावधानी से क गई त के लए बाद लाया गया है तो कृ य व ध के असावधानी से


संबं धत नयम और प कार क कृ त के बारे म मतभेद यह तय करगे क ववाधक त व कौन से है।

अगर वाद का कहना है क तवाद उसके त सावधानी का कत रखता है, तवाद या कहे क
उसका कोई ऐसा कत नह था तो यह त य ऐसा कत था या नह ववा दत त य बन जाएगा। न कष
यह है क ववा दत त य ववाद क वषय व तु से संबंध रखने वाली व ध क आव यकता है,तथा
प कार के अ भभाषण पर नभर करते ह।

सुसंगत त य

यह इस अ ध नयम का सबसे मह वपूण श द है जसे सुसंगत त य कहा जाता है। इसक प रभाषा
अ ध नयम क धारा 3 म ही द गई है।

"एक त य सरे त य से सुसंगत कहा जाता है,जब क त य क सुसंगती से संबं धत इस अ ध नयम के


उपबंध म न द कार म से कसी भी एक कार से वह त य उस सरे त य से संस हो"

कौन सा त य सुसंगत है यह बताने के लए सा य अ ध नयम 1872 म एक पूरा अ याय दया गया है,
जसके मा यम से समझाने का यास कया गया है क कौन से त य सुसंगत ह गे। यह अ याय अ ध नयम
क धारा 5 से लेकर धारा 55 तक है। इन सभी धारा म कौन से त व सुसंगत ह गे इस पर वणन कया
गया है।

सुसंगत त य अ ध नयम का अ त मह वपूण श द है कसी भी व ध के व ाथ को सव थम इस बात को


समझना चा हए क कौन से त य सुसंगत ह गे।

यह ब त मह वपूण बात है, सुसंगत त य से मलकर ववाधक त य तक प ंचा जाता है। य द कसी वाद
म या कायवाही म सुसंगत त य को सा बत कर दया जाता है, नासा बत कर दया जाता है तो ववाधक
त य भी सा बत या नासा बत हो जाते ह। इस अ ध नयम के अनुसार कसी ववाद या कायवाही म अनेक
सुसंगत त य होते ह।

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