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परिचय
• भारतीय इततहास में प्रािंभिक मध्ययुगीन काल कई क्षेत्रों
में पररवततन के साथ एक बहुत ही महत्वपूर्त काल रहा है

• इस अवति के सबसे महत्वपूर्त पररवततनों में से एक क्षत्रिय


कबीले के रूप में िाजपूतों का उदय था

• प्रारंभभक ववद्वानों के अनुसार इस अवति को मध्यकालीन


रहिंदू भारत या राजपूत काल के रूप में संदभभित करते हैं

• राजपूतों ने भारतीय इततहास में पभिमी और मध्य भारत


को आकार देने में जो भूभमका भनभाई है

• वह उन्हें प्रारंभभक और उत्तर मध्यकालीन भारतीय


राजनीतत और सांस्कृततक इततहास का बहुत महत्वपूर्त
तत्व बनाती है

• राजपूत शब्द का अथत वकसी एक पररवार या कबीले से नहीं


बल्कि एक नई योद्धा वगग के समूह से था

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साक्ष्य
• राजपूतों की वंशावली और कालानुक्रभमक वववरर् इततहासकारों को अभिले खीय साक्ष्यों से प्राप्त हुए हैं
• राजा भोज के ग्वाभलयर भशलाले ख में कन्नौज के प्रततहारों का उल्ले ख रामायर् के लक्ष्मर् के वंशज के रूप में है
• हर्त का भशलाले ख चाहमानों को गोवाक के साथ जोड़ता है और यह दशातता है वक वह सूयत वंश से संबंतित थे
• बबजोभलया भिलाले ख चाहमान की वंशावली का पता देता है वक वह सामंत थे जो बाद में राजा बन गए
• ववभभन्न रूपों में सारहत्यिक साक्ष्य राजपूतों के इततहास के पुनभनिमातर् में बहुत मदद करते हैं
• ख्यात शब्द का शाब्दब्दक अथत अतीत का ले खन है
• जैसे – नैनसीरीख्यात , बांकीदासररख्यात , श्यामलदासरीख्यात

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➢ चारर् परंपरा के रूप में माने जाने वाले ले खन को
चािण सारित्य के रूप में जाना जाता है सारहि का यह
रूप एक काव्य रूप में भलखा गया था भजसमें ले खक
द्वारा राजा की प्रशंसा की गई थी

➢ चारर् सारहि का ववश्ले र्र् करते समय साविानी


पूवतक अवलोकन की आवश्यकता पड़ती है क्योंवक
उनमें संरक्षर् प्रदान करने वाले राजा की
अततशयोक्तिपूर्त वववरर् देने की प्रबल प्रवृक्तत्त होती है

➢ इस काल का प्रभसद्ध सारहि चंदबिदाई द्वािा भलखखत


पृथ्वीिाजिासो है इसमें राजपूतों के 4 वंशों की उत्पक्तत्त
अल्कि से हुई मानी जाती है

➢ कुल भमलाकर पृथ्वीराजरासो 36 राजपूत वंश का


उल्ले ख करता है एक कश्मीरी कवव जगनीक ने
पृथ्वीिाज बवजय मिाकाव्य भलखा जो हमें पृथ्वीराज
चौहान तृतीय के बारे में जानकारी देता है

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िाजपूत िब्द की परििाषा
• राजपूत शब्द एक शासक और सैन्य वगत
का प्रततभनतित्व करता है जो मूल रूप से
क्षतत्रय था

• इस शब्द का उपयोग एक ववशेर् योद्धा


वगत के भलए वकया गया था जो भारत के
उत्तर पभिमी रहस्से में उत्पन्न हुए थे

• राजपूतों ने अगली कुछ शताब्दब्दयों में


िीरे-िीरे अपने िाजनीत्रतक सामाभजक
औि सांस्कृत्रतक आधाि को मजबूत औि
बवस्तारित बकया

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राजपूत शब्द िाजपूि यानी िाजा का पुि िब्द का एक अपभ्रंि रूप प्रतीत होता है
राजपूत राजपुत्र/राजा का पुत्र अथातत भजसने आक्रमर्काररयों से अपनी राज्य या
मातृभूभम की रक्षा के भलए लड़ाई लड़ी
राजपूत शब्द का अथत है एक उच्चतर क्षतत्रय
इस शब्द का उपयोग वकसी ववभशष्ट क्षेत्र के लोगों के भलए वकया गया है

टवभनियर कहते हैं वक राजपूत एकमात्र


मूततिपूजक है जो बहादरु हैं और हक्तथयार प्रयोग
करने में के पेशे से जुड़े हैं

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िाजपूतों की उत्पत्ति का मूल भसद्धांत

स्वदेिी मूल भसद्धांत बवदेिी मूल भसद्धांत


स्वदेिी मूल भसद्धांत
अल्किकुल भसद्धांत अल्कि से राजपूतों की उत्पक्तत्त बताता है
राजस्थानी चारर् सारहि ने राजपूतों की उत्पक्तत्त के बारे में प्रभसद्ध अल्किकुल भमथक का
प्रचार वकया है पृथ्वीराज रासो में चौहान को अल्कि से जन्मा बताया था जो अल्किकुल से
संबंतित था
एक किानी के अनुसाि –
जब ववश्वाभमत्र गौतम अगस्त्य और अन्य ऋवर् आबू पवतत पर महान यज्ञ कर रहे थे
वह राक्षसों से परेशान थे इन राक्षसों को दंरित करने के भलए वभशष्ठ ने 3 योद्धाओ ं को यज्ञ
अल्कि कुंि से उत्पन्न वकया यह योद्धा थे : प्रत्रतिाि, चालुक्य औि पिमाि
• ले वकन जब प्रयास व्यथत हो गया तो वभशष्ठ ने विर से पववत्र यज्ञ वकया और चौहान नाम
के चौथे योद्धा का भनमातर् वकया

• रामायर् में एक और प्रचभलत कहानी है भजसके अनुसार ऋवर् वभशष्ठ ने अपनी इच्छा
पूरी करने वाली कामिेनु गाय को वापस पाने के भलए ववश्वाभमत्र के खखलाि लड़ने के
भलए कुछ योद्धा जैसे – िक, पल्लव, कंबोज आदद बनाए

• पिमािो को इसी तरह के एक उद्दे श्य के भलए बनाया गया था , यह मुख्य रूप से
आक्रामक योद्धा थे जो युद्ध के खखलाि लड़ने के भलए बनाए गए थे

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• चौहानों ने स्वयं को िगवान कृष्ण के परिवाि से संबंत्रधत सोमवंिी िोने का दावा बकया
है ले वकन अन्य साक्ष्यों में वे िगवान िाम से जुडे सौि परिवाि से उत्पन्न िोने का दावा
किते िैं

• पृथ्वीराज ववजय हम्मीर महावाक्य, सुरजन चररत आदद कृततयों में चौिानों को
सूयगवंिी बताया गया है रतनपाल के सेवड़ी ले ख से पता चलता है वक चौहान भगवान
इं द्र से उत्पन्न हुए थे

• सोि मूल के संदभत में वह यह मानते हैं वक पिले सौि िाजा इक्ष्वाकु थे इसभलए भजन
चौहानों ने इक्ष्वाकु के समय से पहले जन्म का दावा वकया था उन्हें सूयतवंशी नहीं माना
जा सकता चौहान लोगों को बचाने के भलए लड़ रहे थे और उन्हें क्षतत्रय माना जाता था

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बवदेिी मूल भसद्धांत
अले क्जेंडि कभनिंघम कहते हैं वक राजपूत कुर्ार्ों के वंशज थे पहली बार कनगल जेम्स टॉड ने कहा
था वक राजपूत भसक्तथयान मूल के है भजन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में ववभभन्न समूह में खुद को
संगरित वकया
समाज का रहस्सा बनने के बाद उन्होंने क्षतत्रय वर्त को आत्मसात वकया और पौराणर्क परंपराओ ं
के सौर और चंद्र पररवारों के साथ अपने वंश को जोड़ा इनके अनुसार ववभभन्न ववदेशी
जनजाततयां आई और समय के साथ खुद को भारतीय बनाया और उन में से श्रेष्ठ राजपूत शासक
बने कुछ परंपराएं जैसे - अश्वमेध यज्ञ , तोपखाने की पूजा आदद राजपूतों को उन लोगों से जोड़ते
हैं जो एक योद्धा बल के रूप में आए थे

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गुजगि प्रत्रतिाि जैसे प्रािंभिक िाजपूतों का संबंध गुजगि से था जो
हूर्ों के साथ आए थे स्मिथ ने बताया वक राजपूत भनचले दजे के
क्षतत्रय थे और बाद में सत्ता हाभसल करने से राजाओ ं का दजात
हाभसल वकया राजपूत भमभश्रत नस्ल के थे भजन्होंने बाद में क्षतत्रय
का दजात हाभसल कर भलया

डीआि िंडािकि ने कहा है वक गुजतर प्रततहारों के गुजतर प्रारंभभक


राजपूत थे और खजार जनजातत के थे जो शक और हूर्ों के साथ
भारतीय उपमहाद्वीप में आए थे ववदेशी जनजातत ने स्वदेशी
संस्कृतत और समाज में खुद को बदल भलया यह भारतीय इततहास
के भलए नया नहीं था

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िाल के परिप्रेक्ष्य

हाभलया दृखष्टकोर् अल्किकुल या चंद्र वंश की अविारर्ा से परे हैं

ऐसा नहीं है वक वपछली िारर्ाओ ं को पूरी तरह से खाररज कर ददया गया है

एक नए दृखष्टकोर् का उपयोग वकया गया है जो अविारर्ाओ ं का अतिक

ववश्ले र्र् करता है इततहासकार ने इन योद्धा समूह को भमभश्रत जातत का बताया

जो िीरे-िीरे राजपूतों में ववकभसत हुए

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❖ राजपूत सिस्त्र समूि थे जो युद्ध में
भाग ले ना चाहते थे और धीिे-धीिे
िासक बन गए

❖ पूरी िारर्ा को एक प्रवक्रया के रूप


में समझा जा सकता है भजसे
िाजपूतीकिण की प्रवक्रया कहा
जाता है

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❖ राजस्थान में वततमान सांिि क्षेि में िाकंििी
के साथ चािमान क्षेत्र की पहचान की जाती है

❖ इस क्षेत्र में कृबष बवकास औि िाजपूतों की


बस्तस्तयों के बडे समूि के भनयंिक के रूप में
उभरने की चचात करते हैं

❖ भजसके कारर् उनकी वृद्धद्ध अभिजात वगग के


रूप में हुई

❖ िीरे-िीरे आक्तथिक राजनीततक और सामाभजक


क्षेत्रों में भी गततशीलता आई

❖ जैसे-जैसे उनके भनयंत्रर् में भूभम बढ़ती गई


उन्होंने अपनी शक्ति का ववस्तार वकया

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उििी िाित में िाजपूत िाज्यों का उद्भव
• मिमूद गजनी की मृत्यु से ले कि मोिम्मद गौिी की
तराइन युद्ध तक की अवति में उत्तर भारत में कोई भी
बड़ा साम्राज्य नहीं था

• बहुत सारे छोटे -छोटे राजपूत राज्य आपसी युद्ध और


ईर्ष्ात से ग्रभसत थे

• 11वीं और 12वीं शताब्दी में अभनितता, अराजकता और


असहमतत भारतीय राजनीततक जीवन की ववशेर्ता थी

• कन्नौज पर महमूद गजनी के आक्रमर् के बाद


कमजोर प्रततहार शक्ति का पतन हो गया था

• भजससे कई छोटे राज्यों के उदय का मागत प्रशस्त हुआ


• गहड़वाल दोआब क्षेत्र में शासन कर रहे थे भजसकी राजिानी कन्नौज थी
ले वकन अब कन्नौज अपना पुराना वैभव हो चुका था

• उनकी की शक्ति का दस ू रा केंद्र वारार्सी था उन्होंने बंगाल के पाल और


ददल्ली के तोमर के साथ लड़ाई लड़ी चौहान राजस्थान में शक्तिशाली होते
गए

• चौहान लगातार गुजरात के सोलं की , चालूक्यों औि मालवा के पिमािों के


साथ लड़े चौहानों ने 1151 में ददल्ली को तोमर वंश जीत भलया

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▪ तत्रपक्षीय संघर्त जो पाल, प्रत्रतिाि औि िाष्ट्रकूट के बीच लड़ा
जा रहा था वह अब बहुपक्षीय हो गया भजसमें बहुत सारे
नवस्थावपत राजपूत राज्य भूभमका भनभा रहे थे

▪ मोहम्मद गोरी ने 1191 - 1192 में तराइन में जो युद्ध पृथ्वीराज


से लड़े और 1194 चंदावर में गहड़वाल शासक जयचंद्र को
पराभजत वकया

▪ इन तीन प्रमुख युद्धों ने उत्तर भारत की राजनीतत में बहुत


बड़ा पररवततन वकया और 1206 में ददल्ली सल्तनत की
स्थापना हुई

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