तौज़ीहुल मसाइल सीसतानी

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तौज़ीहुल मसाइल

मत
ु ाबिक़े फ़तावाए

जईमल
ु हौजातल
ु इल्म़ीयह आयतल्
ु लाहहल उज़्मा

आकाए हाज सैय्यद अली हुसन


ै ़ी स़ीस्ताऩी दामा

जजल्लाहुल वारिफ़

(अनव
ु ादकः- सैय्यद मौ0 हाममद रिज़वी किािवी)

अलहसनैन इस्लामी नैटवकक

1
मक
ु द्दे मा

यह ककताि शीओं क़े मर्जेए आला हज़ित आयतल्


ु लाहहल उज़्मा आकाए सैय्यद

अली हुसन
ै ी सीस्तानी मद्द़े जज़ल्लहुल आली क़े फ़तवों पि मश्ु तममल है ताकक आपक़े

मक
ु जल्लदीन िोज़मिाक प़ेश आऩे वाल़े मसाइल का शिई हुक्म मालम
ू कि सकें।

मज्
ु तहहद की तकलीद

हज़ित इमाम हसन अस्किी (अ0) इशाकद फ़िमात़े है ः-

"लोगो को चाहहय़े कक फ़ुकहा (यानी अहकाम़े शिीयत को तफ़सील व तहक़ीक

(ववस्ताि एवं शोध) क़े साथ र्जानऩे वाल़े मज्


ु ताहहदीन) में स़े र्जो शख़्स (व्यजक्त)

अपऩे को गुनाहों स़े िचाता हो औि अपऩे दीन क़ी हहफ़ाज़त (धमक क़ी िक्षा) किता

हो (यानी दीन पि सख़्ती स़े कायम हो) अपनी नफ़्सानी ख़्वाहहशात का गल


ु ाम न

हो औि खद
ु अहकामी इलाही क़ी इताअत किता हो, उसक़ी तकलीद कि़े ।" इसक़े

िाद इमाम (अ0) ऩे फ़िमाया "य़े औसाफ़ चन्द शीअः फ़ुकहा में हैं, सि में नहीं ।"

(एहततर्जार्ज़े तििी जर्जल्द 2 सफ़्हा 263) ।

वलीय अस्र हज़ित इमाम महदी अज्र्जलल्लाहो तआला फ़िार्जम


ु शिीफ़ फ़िमात़े

है ः-

2
"गैित़े कुििा (दीर्ककालीन पिीक्षा) क़े ज़माऩे में प़ेश आऩे वाल़े हालात क़े

मसलमसल़े में हमािी हदीसों (कथनों) को ियान किऩे वाल़े िाववयों क़ी तिफ़ रूर्जउ

किो क्योंकक वह हमािी तिफ़ स़े तम


ु पि उसी तिह हुज्र्जत हैं जर्जस तिह हम

अल्लाह क़ी तिफ़ स़े हुज्र्जत हैं ।" (कमालद्


ु दीन व तमामन्
ु ऩेम शैख सदक
ू िह0)

आइम्मा ककिाम (अ0) क़े मन्


ु दरिर्जा िाला फ़िमद
ू ात (आज्ञाओं) क़े प़ेश़े नज़ि उन

तमाम लोंगो पि र्जो दिर्जाए इजज्तहाद पि फ़ाइज़ नहीं हैं अपऩे ज़माऩे क़े

र्जाम़ेउश्शिाइत मज्
ु तहहद (वह मज्
ु तहहद जर्जसमें सभी शतें पाईं र्जाती हों) क़ी

तकलीद किना वाजर्जि (अतनवायक) है क्योंकक इसक़े िगैि उनक़ी इिादात औि ऐस़े

तमाम आमाल जर्जन में तकलीद ज़रूिी है िाततल हो र्जात़े हैं।

इस्लाम़े अज़ीज़ (सम्मातनत इस्लाम) क़ी शिीअत़े गिु क ह क़े फ़ुरूईमसाइल का

तफ़्सीली मआखखज़ (कुिआन, हदीस, इर्जमाअ, अक़्ल) स़े शिई हुक्म इजस्तिाद

किऩे का नाम इजज्तहाद है औि मज्


ु ताहहद क़े िताए हुए फ़तवों को िगैि दलील क़े

र्जानना औि उन पि अमल किना तकलीद है । र्जो शख़्स रूत्िाए इजज्तहादी हामसल

कि चक
ु ा हो उसक़े मलय़े तकलीद किना र्जाएज़ नहीं, अलित्ता र्जो खद
ु मज्
ु तहहद न

हो उस पि तकलीद किना वाजर्जि है ।

अगिच़े इजज्तहाद औि तकलीद क़े अलावा एक तीसिी सिू त भी मजु म्कन है यानी

यह कक एहततयात पि अमल ककया र्जाए ल़ेककन यह हि क़े िस क़ी िात नहीं है ।

एहततयात पि वही शख़्स अमल कि सकता है र्जो मख़्


ु तमलफ़ मसाइल में तमाम

3
मर्ज
ु तहहदीन क़े इजख़्तलाफ़़ी फ़तवों स़े पिू ी तिह िाखिि हो औि ऐसा तिीका ए

अमल इजख़्तयाि कि सक़े जर्जसमें र्जाम़ेईयत पाई र्जाती हो। ज़ाहहि है कक यह काम

भी तकिीिन इजज्तहाद ही क़ी तिह दश्ु वाि औि मजु श्कल है । पस हमाि़े मलय़े दो ही

सिू तें िाक़ी िह र्जाती हैं यानी या मज्


ु ताहहद िनें या किि मज्
ु ताहहद क़ी तकलीद

किें । (इदािः)

अकवाले जिी

(स्वखणकम कथन)

"क्या तुमऩे पिू ी तिह समझ मलया है कक इस्लाम क्या है? यह एक ऐसा दीन

(धमक) है जर्जसक़ी ितु नयाद हक व सदाकत (यथाथक एवं सत्य) पि िखी गई है। यह

इल्म (ज्ञान) का ऐसा सिचश्मा िह


ृ त श्रोत) है जर्जसमें अक़्ल व दातनश (िजु दद एवं

ववव़ेक) क़ी मत
ु अद्हदद नहदयां (अऩेकों धािाऐं) िूटती हैं। यह एक ऐसा चचिाग

(दीप) है जर्जसस़े कई चचिाग (अऩेकों दीप) िौशन (ज्वमलत) होंग़े। यह एक िलन्द

िहनम
ु ा ममनाि है र्जो अल्लाह क़ी िाह (मागक) को िौशन किता है । यह उसल
ू ों औि

एततकादात (मसददान्तों एवं श्रददाओं) का एक ऐसा मर्जमआ


ू (संकलन) है र्जो

सदाकत औि हक़ीकत (सत्य एवं यथाथक) क़े हि मत


ु लाशी (खोर्ज किऩे वाल़े) को

इत्मीनान िख़्शता (सन्तजु टट प्रदान) किता है ।

4
ऐ लोगों ! र्जान लो कक अल्लाह तआला ऩे अपनी िितिीन खुशनद
ू ी क़ी र्जातनि

एक शानदाि िास्ता औि अपनी िन्दगी औि इिादत का िलन्द तिीन म़ेयाि किाि

हदया है । उसऩे इस़े अअला अहकाम, िलन्द उसल


ू ों, मह
ु कम दलाइल, नाकाबिल़े

तिदीद तफ़व्वक
ु औि मस
ु जल्लमः दातनश स़े नवाज़ा है ।

अि यह तुम्हािा काम है कक अल्लाह तआला ऩे उस़े र्जो शान एवं अज़मत

(वैभव एवं प्रततभा) िख़्शी (प्रदान क़ी) है उस़े कायम िखो। उस पि खुलस
ू ़े हदल स़े

(सहृदयतः) असल किो। उसक़े मोतककदात स़े इन्साफ़ किो। उसक़े अहकाम औि

फ़िामीन क़ी सहीह तौि पि तअमील (परिपालन) किो औि अपनी जज़न्दगीयों में

उस़े मन
ु ामसि मकाम (उचचत स्थान) दो।"

5
बिजस्मल्लाहहिक हमातनिक हीम

अल हम्दमु लल्लाह़े िजबिल आलमीन, वस्सलातो वस्सलामो अला अशिकफ़ल

अंबियाए वल मिु सलीन मोहम्महदंव्व व आल़ेहहत- तैतयिीनत्ताहहिीन,

वल्लअनतुद्दाइमतो अला अअदाइहहम अर्जमईन ममनल आन इला ककयामें

यौममद्दीन!

अहकामे तकलीद

मस ्अला नं0 1. हि मस
ु लमान क़े मलय़े उसल
ू ़े दीन को अज़ रूए िसीित (ववव़ेक

क़े आधाि पि) र्जानना ज़रूिी है क्योंकक उसल


ू ़े दीन में ककसी तौि पि तकलीद नहीं

क़ी र्जा सकती। यानी (अथाकत) यह नहीं हो सकता कक कोई शख़्स उसल
ू ़े दीन में

ककसी क़ी िात मसफ़क इस वर्जह स़े माऩे कक वह उन उसल


ू ों को र्जनता है। ल़ेककन

अगि कोई शख़्स इस्लाम क़े ितु नयादी अकाइद पि यक़ीन िखता हो औि उसका

इज़हाि किता हो अगिच़े यह इज़हाि अज़ रूए िसीित (ववव़ेक क़े आधाि पि) न हो

ति भी वह मस
ु लमान औि मोममन है । मलहाज़ा उस मस
ु लमान पि ईमान औि

इस्लाम क़े तमाम अहकाम र्जािी होंग़े। ल़ेककन "मस


ु जल्लमात़े दीन" को छोड़ कि

िाक़ी दीनी अहकामात में ज़रूिी है कक इन्सान या तो खुद मज्


ु ताहहद क़ी तकलीद

कि़े या अज़िाह़े अहततयात अपना फ़िीज़ा यंू अदा कि़े कक उस़े यक़ीन हो र्जाए कक

6
उसऩे अपनी शिई जज़म्म़ेदािी पिू ी कि दी है । मसलन अगि चन्द मज्
ु तहहद ककसी

अमल को हिाम किाि दें औि चन्द दस


ू िें कहें क़ी हिाम नहीं है तो उस अमल स़े

िाज़ िह़े , औि अगि िाज़ मज्


ु ताहहद ककसी अमल को वाजर्जि औि िाज़ मस्
ु तहि

गिदानें तो उस़े िर्जा लाए। मलहाज़ा र्जो अश्खास न तो मज्


ु तहहद हों औि न ही

एहततयात पि अमल पैिा हो सकें उनक़े मलय़े वाजर्जि है कक मज्


ु ताहहद क़ी तकलीद

किें ।

मस ्अला नं0 2. दीनी अहकामात में तकलीद का मतलि यह है कक ककसी

मज्
ु तहहद क़े फ़त्व़े पि अमल ककया र्जाए औि ज़रूिी है कक जर्जस मज्
ु ताहहद क़ी

तकलीद क़ी र्जाए वह मदक , िामलग, आककल, शीअः इसना अशिी, हलाल ज़ादा,

जज़न्दा औि आहदल हो। आहदल वह शख़्स है र्जो तमाम वाजर्जि कामों को िर्जा

लाए औि तमाम हिाम कामों को तकक (त्याग) कि़े । आहदल होऩे क़ी तनशानी यह है

कक वह िज़ाहहि (प्रत्यक्ष में ) एक अच्छा शख़्स हो औि उसक़े अहल़े मोहल्ला

हमसायों या हम नशीनों स़े उसक़े िाि़े में दयाकफ़्त ककया र्जाए तो वह उसक़ी

इच्छाई क़ी तस्दीक किें । अगि यह िात इज्मालन (संक्ष़ेप में ) मालम
ू हो कक दिप़ेश

मसाइल में मज्


ु तहहदीन क़े फ़त्व़े एक दस
ू ि़े स़े मख़्
ु तमलफ़ हैं तो ज़रूिी है कक उस

मज़्
ु तहहद क़ी तकलीद क़ी र्जाए, "अअलम" हो याअनी अपऩे ज़माऩे क़े दस
ू ि़े

मज्
ु तहहदों क़े मक
ु ािल़े में अहकाम़े इलाही को समझऩे क़ी ि़ेहति सलाहीयत

(योग्यता) िखता हो।

7
3. मज्
ु तहहद औि अअलम क़ी पहचान तीन तिीकों स़े हो सकती है (अव्वल) एक

शख़्स पि र्जो खद
ु साहि़े इल्म हो ज़ाती तौि पि (व्यजक्तगत रूप स़े) यक़ीन हो

औि वह मज्
ु तहहद औि अअलम को पहचान्ऩे क़ी सलाहहयत िखता हो। (दोयम) दो

अशखास र्जो आमलम औि आहदल हों नीज़ मज्


ु तहहद या अअलम को पहचानऩे का

मलका (दक्षता) िखतें हो, ककसी क़े मज्


ु तहहद या अअलम होऩे क़ी तस्दीक किें ।

िशते क़ी दो औि आमलम औि आहदल उनक़ी तिदीद न किें औि िज़ाहहि ककसी

का मज्
ु तहहद या अअलम होना एक काबिल़े एत़ेमाद शख़्स क़े कौल स़े भी साबित

हो र्जाता है । (सोयम) कुछ अहल़े इल्म (अहल़े खि


ु िः) र्जो मज्
ु तहहद औि अअलम

को पहचानऩे क़ी सलाहीयति िखत़े हों, ककसी क़े मज्


ु तहहद या अअलम होऩे क़ी

तस्दीक किें औि उनक़ी तस्दीक स़े इन्सान मत्ु मइन हो र्जाए।

4. अगि दिप़ेश मसाइल में दो या उसस़े ज़्यादा मज्


ु तहहदीन क़े इखततलाफ़़ी

फ़त्व़े इज्माली तौि पि मअमल


ू हों औि िाज़ क़े मक
ु ाबिल़े में िाज़ दस
ू िों का

अअलम होना भी मालम


ू हों औि ल़ेककन अगि अअलम क़ी पहचान आसान न हो

तो अहवत यह है कक आदमी तमाम मसाइल में उनक़े फ़त्वों में जर्जतना हो सक़े

एहततयात किें (यह मस ्अला तफ़सीली है औि उसक़े ियान का यह मकाम नहीं है )

औि ऐसी सिू त में र्जिकक एहततयात मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक उसका अमल

उस मज्
ु तहहद क़े फ़त्व़े क़े मत
ु ाबिक हो, जर्जसक़े अअलम होऩे का एहततमाल दस
ू ि़े

8
क़े मक
ु ाबिल़े में ज़्यादा हो। अगि दोनों क़े अअलम होऩे का एहततमाल यकसां हो

तो उस़े इजख़्तयाि है (कक जर्जसक़े फ़त्व़े पि चाह़े अमल कि़े ।)

5. ककसी मज्
ु तहहद का फ़त्वा हामसल किऩे क़े चाि तिीक़े हैं (अव्वल) खद

मज्
ु तहहद स़े (उसका फ़त्वा) सन
ु ना। (दोयम) ऐस़े दो आहदल अशखास स़े सन
ु ना र्जो

मज्
ु तहहद का फ़त्वा ियान किें । (सोयम) (मर्ज
ु तहहद) का फ़त्वा ककसी ऐस़े शख़्स स़े

सन
ु ना जर्जसक़े कौल पि इजत्मनान हो। (चहारूम) मज्
ु ताहहद क़ी ककताि (मसलन

तौज़ीहुल मसाइल) में पढ़ना, िशते कक उस ककताि क़ी स़ेहहत क़े िाि़े में इत्मीनान

हो।

6. र्जि तक इन्सान को यह यक़ीन न हो र्जाए कक मज्


ु तहहद का फ़त्वा िदल

चक
ु ा है वह ककताि में मलख़े हुए फ़त्व़े पि अमल कि सकता है औि अगि फ़त्व़े क़े

िदल र्जाऩे का एहततमाल हो तो छान िीन किना ज़रूिी नहीं।

7. अगि मज्
ु तहहद़े अअलम कोई फ़त्वा द़े तो उसका मक
ु जल्लद उस मस ्अल़े क़े

िाि़े में ककसी दस


ू ि़े मज्
ु तहहद क़े फ़त्व़े पि अमल नहीं कि सकता । ताहम अगि

वह (यानी मज्
ु तहहद़े अअलम) फ़त्वा न द़े िजल्क यह कह़े कक एहततयात इसमें है

कक यंू अमल ककया र्जाए मसअलन एहततयात इसमें है कक नमाज़ क़ी पहली औि

दस
ू िी िक् आत में सिू ाए अलहम्द क़े िाद एक औि पिू ी सिू त पढ़़े तो मक
ु जल्लद को

चाहहय़े कक या तो उस एहततयात पि जर्जस़े एहततयात़े वाजर्जि कहत़े हैं, अमल कि़े

या ककसी ऐस़े दस
ू ि़े मज्
ु तहहद क़े फ़त्व़े पि अमल कि़े जर्जसक़ी तकलीद र्जाएज़ हो

9
(मसलन फ़लअअलम) पस अगि वह (यानी दस
ू िा मज्
ु तहहद) फ़कत सिू ाए अलहम्द

को काफ़़ी समझता हो तो दस
ू िी सिू त तकक क़ी र्जा सकती है । र्जि मज्
ु तहहद़े

अअलम ककसी मस ्अल़े क़े िाि़े में कह़े कक महल्ल़े तअम्मल


ु या महल्ल़े इश्काल है

तो उसका भी यही हुक्म है ।

8. अगि मज्
ु तहहद़े अअलम ककसी मस ्अल़े क़े िाि़े में फ़त्वा द़े ऩे क़े िाद या

उसस़े पहल़े एहततयात लगाए मसलन यह कह़े कक नर्जीस ितकन कुि पानी में एक

मतकिा धोऩे स़े पाक हो र्जाता है अगिच़े एहततयात इस में है कक तीन मतकिा धोए

तो मक
ु जल्लद ऐसी एहततयात को तकक कि सकता है इस ककस्म क़ी एहततयात को

एहततयात़े मस्
ु तहि कहत़े हैं।

9. अगि वह मज्
ु तहहद जर्जसक़ी एक शख़्स तकलीद किता है फ़ौत हो र्जाए तो

र्जो हुक्म उसक़ी जज़न्दगी में था वही हुक्म उसक़ी वफ़ात क़े िाद भी है। बिनाििीं

अगि मिहूम मज्


ु तहहद जज़न्दा मज्
ु तहहदीन क़े मक
ु ाबिल़े में अअलम था तो वह

शख़्स जर्जस़े दिप़ेश मसाइल में दोनों मज्


ु तहहदीन क़े मािैन इखततलाफ़ का अगिच़े

इर्जमाली तौप पि इल्म हो उस़े मिहूम मज्


ु तहहद क़ी तकलीद पि िाक़ी िहना

ज़रूिी है। औि अगि जज़न्दा मज्


ु तहहद अअलम हो तो किि जज़न्दा मज्
ु तहहद क़ी

तिफ़ रूर्जुउ किना ज़रूिी है। इस मस ्अल़े में तकलीद स़े मअ


ु य्यन मज्
ु तहहद क़े

फ़त्व़े क़ी पैिवी किऩे (कस्द़े रूर्जूउ) को मसफ़क अपऩे मलय़े लाजज़म किाि द़े ना है न

कक उसक़े हुक्म क़े मत


ु ाबिक अमल किना।

10
10. अगि को शख़्स ककसी मस ्अल़े में एक मज्
ु तहहद क़े फ़त्व़े पि अमल कि़े

किि उस मज्
ु तहहद क़े फ़ौत हो र्जाऩे क़े िाद वह उसी मसअल़े में जज़न्दा मज्
ु तहहद

क़े फ़त्व़े पि अमल कि ल़े तो उस़े इस अम्र क़ी इर्जाज़त नहीं कक दोिािा मिहूम

मज्
ु तहहद क़े फ़त्व़े पि अमल कि़े ।

11. र्जो मसाइल इन्सान को अक्सि प़ेश आत़े िहत़े हैं उनको याद कि ल़ेना

वाजर्जि है ।

12. अगि ककसी शख़्स को कोई ऐसा मस ्अला प़ेश आए जर्जसका हुक्म उस़े

मालम
ू न हो तो लाजज़म है कक एहततयात कि़े या उन शिायत क़े मत
ु ाबिक

तकलीद कि़े जर्जनका जज़क्र ऊपि आ चक


ु ा है। ल़ेककन अगि इस मस ्अल़े में उस़े

अअलम क़े फ़त्व़े का इल्म न हो औि अअलम औि गैि अअलम क़ी आिा क़े

मख़्
ु तमलफ़ होऩे का मजु ज्मलन इल्म हो तो गैि अअलम क़ी तकलीद र्जाइज़ है ।

13. अगि कोई शख़्स मज्


ु तहहद का फ़त्वा ककसी दस
ू ि़े शख़्स को िताए ल़ेककन

मज्
ु तहहद ऩे अपना साबिका फ़त्वा िदल हदया हो तो उसक़े मलय़े दस
ू ि़े शख़्स को

फ़त्व़े क़ी तबदीली क़ी इवत्तला द़े ना ज़रूिी नहीं। ल़ेककन अखि फ़त्वा िताऩे क़े िाद

यह महसस
ू हो कक (शायद फ़त्वा िताऩे में) गलती हो गई है औि अगि अन्द़े शा हो

कक इस इवत्तला क़ी वर्जह स़े वह शख़्स अपऩे शिई वज़ीफ़़े क़े खखलाफ़ अमल कि़े गा

तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि र्जहााँ तक हो सक़े उस गलती का इज़ालः किें ।

11
14. अगि कोई मक
ु ल्लफ़ एक मद्
ु दत तक ककसी क़ी तकलीद क़े िगैि अअमाल

िर्जा लाता िह़े ल़ेककन िाद में ककसी मज्


ु तहहद क़ी तकलीद कि ल़े तो इस सिू त में

अगि मज्
ु तहहद उसक़े गज़
ु श्ता अअमाल क़े िाि़े में हुक्म लगाए कक वह सहीह है

तो वह सहीह मत
ु सव्वि होंग़े विना िाततल शम
ु ाि होंग़े।

अह्कामे तहाित

मत्ु लक औि मज़
ु ाफ़ पानी

15. पानी या मत्ु लक होता है या मज़


ु ाफ़ । "मज़
ु ाफ़" वह पानी है र्जो ककसी चीज़

स़े हामसल ककया र्जाए मसलन तििज़


ू का पानी (नारियल का पानी), गुलाि का

अकक (वगैिह) । उस पानी को भी मज़


ु ाफ़ कहत़े हैं र्जो ककसी दस
ू िी चीज़ स़े आलद
ू ा

हो मसलन गदला पानी र्जो इस हद तक मैला हो कक किि उस़े पानी न कहा र्जा

सक़े। इनक़े अलावा र्जो पानी हो, उस़े "आि़े मत्ु लक" कहत़े हैं औि उसक़ी पांच

ककस्में होती हैः

(अव्वल) कुि पानी, (दोयम) कलील पानी, (सोयम) र्जािी पानी, (चहारूम) िारिश

का पानी, (पंर्जुम) कुयें का पानी।

12
1. कुि पाऩीीः-

16. मशहूि कौल क़ी बिना पि कुि इतना पानी है र्जो एक ऐस़े ितकन को भि द़े

जर्जसक़ी लम्िाई, चौड़ाई औि गहिाई हि एक साढ़़े तीन िामलश्त हो औि इस बिना

पि उसका मज्मआ
ू ज़िक (गण
ु ा) 42.87 (=42587) िामलश्त होना ज़रूिी है ल़ेककन

ज़ाहहि यह है कक अगि छत्तीस िामलश्त भी हो तो काफ़़ी है । ताहम कुि पानी का

वज़न क़े मलहाज़ स़े तअय्यन


ु किना इश्काल स़े खाली नहीं है।

17. अगि कोई चीज़ ऐऩे नर्जीस हो मसलन प़ेशाि या खून या वह चीज़ र्जो

नजर्जस हो गई हो र्जैस़े कक नजर्जस मलिास ऐस़े पानी में चगि र्जाए जर्जसक़ी ममक़्दाि

एक कुि क़े ििािि हो औि उसक़े नतीर्ज़े में नर्जासत क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका पानी

में सिायत कि र्जाए तो पानी नजर्जस हो र्जाय़ेगा। ल़ेककन अगि ऐसी कोई तबदीली

वाक़े न हो तो नजर्जस नहीं होगा।

18. अगि ऐस़े पानी क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका जर्जसक़ी ममक़्दाि एक कुि क़े ििािि

हो नर्जासत क़े अलावा ककसी औि चीज़ में तबदील हो र्जाए तो वह पानी नजर्जस

नहीं होगा।

19. अगि कोई ऐऩे नर्जासत मसलन खन


ू ऐस़े पानी में र्जा चगि़े जर्जसक़ी

ममक़्दाि एक कुि स़े ज़्यादा हो औि उसक़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका तबदील कि द़े तो

उस सिू त में अगि पानी क़े उस हहस्स़े क़ी ममकदाि जर्जसमें कोई तबदीली वाक़े नहीं

हुई एक कुि स़े कम हो तो सािी पानी नजर्जस हो र्जाय़ेगा ल़ेककन अगि उसक़ी

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ममक़्दाि एक कुि या उसस़े ज़्यादा हो तो मसफ़क वह हहस्सा नजर्जस मत
ु सव्वि होगा

जर्जसक़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका तबदील हुआ है ।

20. अगि फ़व्वाि़े का पानी (यानी वह पानी र्जो र्जोश माि कि फ़व्वाि़े क़ी शक्ल

में उछल़े) ऐस़े दस


ू ि़े पानी स़े मत्त
ु मसल हो (ममल़े) जर्जसक़ी ममकदाि (मात्रा) एक कुि

क़े ििािि हो तो फ़व्वाि़े का पानी नर्जीस पानी को पाक कि द़े ता है । ल़ेककन अगि

नजर्जस पानी पि फ़व्वाि़े क़े पानी का एक कतिा (िंद


ू ) चगि़े तो उस़े पाक नहीं

किता, अलित्ता अगि फ़व्वाि़े क़े सामऩे कोई चीज़ िख दी र्जाए जर्जसक़े नतीर्ज़े में

उसका पानी कतिा कतिा होऩे स़े पहल़े नजर्जस पानी स़े मत्त
ु मसल हो र्जाए तो

नजर्जस पानी को पाक कि द़े ता है औि िहति यह है कक फ़व्वाि़े का पानी नजर्जस

पानी स़े मखलत


ू हो र्जाए।

21. अगि ककसी नजर्जस चीज़ को ऐस़े नल क़े नीचें धोयें र्जो ऐस़े (पाक) पानी स़े

ममला हुआ हो जर्जसक़ी ममकदाि (मात्रा) एक कुि क़े ििािि हो औि उस चीज़ क़ी

धोवन उस पानी स़े मत्त


ु ामसल हो र्जाए जर्जसक़ी ममकदाि कुि क़े ििािि हो तो वह

धोवन पाक होगी िशते क़ी उसमें नर्जासत क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका पैदा न हो औि

न ही उसमें ऐऩे नर्जासत क़ी आम़ेजज़श (ममलावट) हो।

22. अगि कुि पानी का कुछ हहस्सा र्जमकि िफ़क िन र्जाए औि कुछ हहस्सा

पानी क़ी शक्ल में िाक़ी िच़े जर्जसक़ी ममकदाि एक कुि स़े कम हो तो र्जो भी कोई

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नर्जासत उस पानी को छुएगी वह नर्जीस हो र्जाएगा औि िफ़क वपर्लऩे पि र्जो पानी

िऩेगा वह भी नजर्जस होगा।

23. अगि पानी क़ी ममकदाि (मात्रा) एक कुि क़े ििािि हो औि िाद में शक हो

कक आया अि भी कुि क़े ििािि है या नहीं तो उसक़ी हैमसयत अि भी एक कुि

पानी ही क़ी होगी यानी वह नर्जासत को भी पाक कि़े गा औि नर्जासत क़े इवत्तसाल

स़े नजर्जस भी नहीं होगा। इसक़े िि अक्स (ववपिीत) र्जो पानी एक कुि स़े कम था

अगि उसक़े मत
ु अजल्लक शक हो कक अि उसक़ी ममकदाि एक कुि क़े ििािि हो

गई है या नहीं तो उस़े एक कुि स़े कम ही समझा र्जाऐगा।

24. पानी का एक कुि क़े ििािि होना दो तिीकों स़े साबित हो सकता है

(अव्वल) इन्सान को खुद उसक़े िाि़े में यक़ीन या इजत्मनान हो, (दोयम) दो

आहदल मदक इस िाि़े में खिि दें ।

2. कलील पाऩीीः-

25. ऐस़े पानी को "कलील पानी" कहत़े हैं र्जो ज़मीन स़े न उिल़े औि जर्जसक़ी

ममकदाि एक कुि स़े कम हो। औि

26. र्जि कलील पानी ककसी नजर्जस चीज़ पि चगि़े या कोई नजर्जस चीज़ उस पि

चगि़े तो पानी नजर्जस हो र्जाएगा। अलित्ता अगि पानी नजर्जस चीज़ पि ज़ोि स़े चगि़े

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तो उसका जर्जतना हहस्सा नजर्जस चीज़ स़े ममल़ेगा नजर्जस हो र्जाएगा ल़ेककन िाक़ी

पाक होगा।

27. र्जो कलील पानी ककसी चीज़ पि ऐऩे नर्जासत दिू किऩे क़े मलय़े डाला र्जाए

वह नर्जासत स़े र्जूदा हो र्जाऩे क़े िाद नजर्जस हो र्जाता है । औि इसी तिह वह

कलील पानी र्जो ऐऩे नर्जासत क़े अलग हो र्जाऩे क़े िाद नजर्जस चीज़ को पाक

किऩे क़े मलय़े उस पि डाला र्जाए उसस़े र्जुदा हो र्जाऩे क़े िाद बिनािि सहततयात़े

लाजज़म मत
ु लकन नजर्जस है।

28. जर्जस कलील पानी स़े प़ेशाि या पखाऩे क़े मखारिर्ज धोए र्जाएं वह अगि

ककसी चीज़ को लग र्जायें तो पांच शिाइत क़े साथ उस़े नजर्जस नहीं कि़े गाः-

(अव्वल) पानी में नर्जासत क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका न पैदा हुआ हो। (दोयम) िाहि

स़े कोई नर्जासत उसस़े न आ ममली हो। (सोयम) कोई औि नर्जासत (मसलन खून)

प़ेशाि या पखाऩे क़े साथ न खारिर्ज हुई हो। (चहारूम) पखाऩे क़े ज़िे पानी में

हदखाई न दें । (पंर्जम


ु ) प़ेशाि या पखाऩे क़े मखारिर्ज पि मअमल
ू स़े ज़्यादा

नर्जासत न लगी हो।

3. जािी पाऩीीः-

र्जािी पानी वह है र्जो ज़मीन स़े उिल़े औि िहता हो मसलन चश्म़े का पानी या

काि़े ज़ का पानी।

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29. र्जािी पानी अगिच़े कुि स़े कम ही क्यों न हो नर्जासत क़े आ ममलऩे स़े

ति तक नजर्जस नहीं होता र्जि तक नर्जासत क़ी वर्जह स़े उसक़ी ि,ू िं ग या

ज़ाइका िदल न र्जाए।

30. अगि नर्जासत र्जािी पानी स़े आ ममल़े तो उसक़ी उतनी ममकदाि, जर्जसक़ी

ि,ू िं ग या ज़ाइका नर्जासत क़ी वर्जह स़े िदल र्जाए, नजर्जस है। अलित्ता उस पानी

का वह हहस्सा र्जो चश्में स़े मत्त


ु मसल हो पाक है, ख़्वाह उसक़ी ममकदाि कुि स़े कम

ही क्यों न हो। नदी क़ी दस


ू िी तिफ़ का पानी अगि एक कुि जर्जतना हो या उस

पानी क़े ज़रिय़े जर्जसमें (ि,ू िं ग या ज़ाइका क़ी) कोई तबदीली वाक़े नहीं हुई चश्म़े

क़ी तिफ़ क़े पानी स़े ममला हुआ हो तो पाक है विना नजर्जस है।

31. अगि ककसी चश्म़े का पानी र्जािी न हो ल़ेककन सिू त़े हाल यह हो कक र्जि

उसमें स़े पानी तनकाल लें तो दोिािा उसका पानी उिल पड़ता हो तो वह पानी

र्जािी पानी का हुक्म नहीं िखता यानी अगि नर्जासत उसस़े आ ममल़े तो नजर्जस हो

र्जाता है ।

32. नदी या नहि क़े ककनाि़े का पानी र्जो साककन (ठहिा) हो औि र्जािी पानी स़े

मत्त
ु मसल (ममला) हो, र्जािी पानी का हुक्म नहीं िखता।

33. अगि एक ऐसा चश्मा हो र्जो ममसाल क़े तौि पि सहदक यों में उिल पड़ता हो

ल़ेककन गममकयों में उसका र्जोश खत्म हो र्जाता हो उसी वक़्त र्जािी पानी क़े हुक्म

में आय़ेगा र्जि उसका पानी उिल पड़ता हो।

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34. अगि ककसी (तक
ु ी या ईिानी तज़क क़े) हम्माम क़े छोट़े हौज़ का पानी एक

कुि स़े कम हो ल़ेककन वह ऐस़े "वसीलाए आि" (र्जल साधन) स़े मत्त
ु मसल (ममला)

हो जर्जसका पानी हौज़ क़े पानी स़े ममलकि एक कुि िन र्जाता हो तो र्जि तक

नर्जासत क़े ममल र्जाऩे स़े उसक़ी िू औि ज़ाइका तबदील न हो र्जाए वह नजर्जस

नहीं होता।

35. हम्माम औि बिजल्डंग क़े नल्कों का पानी र्जो टोंहटयों औि शाविों क़े ज़िीय़े

िहता है अगि उस हौज़ क़े पानी स़े ममलकि र्जो उन नल्कों स़े मत्त
ु मसल हों एक

कुि क़े ििािि हो र्जाए तो नल्कों का पानी भी कुि पानी क़े हुक्म में शाममल होगा।

36. र्जो पानी ज़मीन पि िह िहा हो ल़ेककन ज़मीन स़े उिल न िहा हो अगि

वह एक कुि स़े कम हो औि उसमें नर्जासत ममल र्जाए तो वह नजर्जस हो र्जाए गा

ल़ेककन अगि वह पानी त़ेज़ी स़े िह िहा हो औि ममसाल क़े तौि पि अगि नर्जासत

उसक़े तनचल़े हहस्स़े को लग़े तो उसका ऊपि वाला हहस्सा नजर्जस नहीं होगा।

4. बारिश का पाऩीीः-

37. र्जो चीज़ नजर्जस हो औि ऐऩे नर्जासत उसमें न हो उस पि र्जहां र्जहां एक

िाि िारिश हो र्जाए पाक हो र्जाती है। ल़ेककन अगि िदन औि मलिास प़ेशाि स़े

नजर्जस हों र्जाएं तो बिनािि़े एहततयात उन पि दो िाि िारिश होना ज़रूिी है मगि

कालीन औि मलिास वगैिह का तनचोड़ना ज़रूिी नहीं है । ल़ेककन हल्क़ी सी िंद


ू ा

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िांदी काफ़़ी नहीं िजल्क इतनी िारिश लाजज़मी है कक लोग कहें कक िारिश हो िही

है ।

38. अगि िारिश का पानी ऐऩे नजर्जस पि ििस़े औि किि दस


ू िीं र्जगह छ ंट़े पड़ें

ल़ेककन ऐऩे नर्जासत उसमें शाममल न हों औि नर्जासत क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका भी

उसमें पैदा न हो तो वह पानी पाक है । पस अगि िारिश का पानी खून पि ििसऩे

स़े छ ंट़े पड़ें औि उनमें खून क़े ज़िाकत शाममल हों या खून क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका

पैदा हो गया हो तो वह पानी नजर्जस होगा।

39. अगि मकान क़ी अन्दरूनी या पिू ी छत पि ऐऩे नर्जासत मौर्जद


ू हो तो

िारिश क़े दौिान र्जो पानी नर्जासत को छू कि अन्दरूनी छत स़े टपक़े या पिनाल़े

स़े चगि़े वह पाक है । ल़ेककन र्जि िारिश थम र्जाए औि यह िात इल्म में आए कक

अि र्जो पानी चगि िहा है वह ककसी नर्जासत को छू कि आ िहा है, तो वह पानी

नजर्जस होगा।

40. जर्जस नजर्जस ज़मीन पि िारिश ििस र्जाए वह पाक हो र्जाती है औि अगि

िारिश का पानी ज़मीन पि िहऩे लग़े औि अन्दरूनी छत क़े उस मकाम पि र्जा

पहुाँचें र्जो नजर्जस है तो वह र्जगह भी पाक हो र्जाय़ेगी िशते क़ी हनज़


ू (अि तक)

िारिश हो िही हो।

41. नजर्जस ममट्टी क़े तमाम अज्ज़ा (अंशों) तक पानी पहुंच र्जाए तो ममट्टी

पाक हो र्जाय़ेगी।

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42. अगि िारिश का पानी एक र्जगह र्जमाअ हो र्जाए ख़्वाह (चाह़े ) एक कुि स़े

कम ही क्यों न हो िारिश ििसऩे क़े वक़्त वह (र्जमअशद


ु ा पानी) कुि का हुक्म

िखता है औि कोई नजर्जस चीज़ उसमें धोई र्जाए औि पानी नर्जासत क़ी ि,ू िं ग या

ज़ाइका किल
ू न कि़े तो वह नजर्जस चीज़ पाक हो र्जाय़ेगी।

43. अगि नजर्जस ज़मीन पि बिछ़े हुए पाक कालीन (या दिी) पि िारिश ििस़े

औि उसका पानी ििसऩे क़े वक़्त कालीन स़े नजर्जस ज़मीन पि पहुंच र्जाए तो

कालीन भी नजर्जस नहीं होगा औि ज़मीन भी पाक हो र्जाय़ेगी।

5. कुयें का पाऩीीः-

44. एक ऐस़े कुयें का पानी र्जो ज़मीन स़े उिलता हो अगिच़े ममकदाि में एक

कुि स़े कम हो नर्जासत पड़ऩे स़े उस वक़्त तक नजर्जस नहीं होगा र्जि तक उस

नर्जासत स़े उसक़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका िदल न र्जाए ल़ेककन मस्


ु तहि यह है कक

िाज़ नर्जासतों क़े चगिऩे पि कुयें स़े इतनी ममक़्दाि में पानी तनकाल दें र्जो

मफ़
ु स्सल ककतािों में दर्जक है।

45. अगि कोई नर्जासत कुयें में चगि र्जाए औि उसक़े पानी क़े ि,ू िं ग या

ज़ाइक़े को तबदील कि द़े तो र्जि कुयें क़े पानी में पैदाशद


ु ा यह तबदीली खत्म हो

र्जाय़ेगी पानी पाक हो र्जाय़ेगा औि िहति यह है कक वह पानी कुयें स़े उिल़े वाल़े

पानी में मखलत


ू हो र्जाए।

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46. अगि िारिश का पानी एक गढ़़े में र्जमअ हो र्जाए औि उसक़ी ममक़्दाि एक

कुयें स़े कम हो तो िारिश थमऩे क़े िाद नर्जासत क़ी आम़ेजज़श स़े वह पानी

नजर्जस हो र्जाय़ेगा।

पाऩी के अह्कामीः-

47. मज़
ु ाफ़ पानी (जर्जसक़े मअनी मस ्अला न0 15 में ियान हो चक
ु ़े हैं) ककसी

नजर्जस चीज़ को पाक नहीं किता, ऐस़े पानी स़े वज़


ु ू औि गस्
ु ल किना भी िाततल

है ।

48. मज़
ु ाफ़ पानी क़ी ममक़्दाि (मात्रा) अगिच़े एक कुि क़े ििािि हो अगि उसमें

नर्जासत का एक ज़िाक भी पड़ र्जाए तो नजर्जस हो र्जाता है । अलित्ता अगि ऐसा

पानी ककसी चीज़ पि ज़ोि स़े चगि़े तो उसका जर्जतना हहस्सा नजर्जस चीज़ स़े

मत्त
ु ामसल होगा नजर्जस हो र्जाय़ेगा औि र्जो मत्त
ु ामसल नहीं होगा वह पाक होगा

मसलन अगि अके गुलाि को गुलाि दान स़े नजर्जस हाथ पि तछड़का र्जाए तो

उसका जर्जतना हहस्सा हाथ को लग़ेगा नजर्जस होगा औि र्जो नहीं लग़ेगा वह पाक

होगा।

49. अगि वह मज़


ु ाफ़ पानी र्जो नजर्जस हो एक कुि क़े ििािि पानी या र्जािी

पानी में यंू ममल र्जाए कक किि उस़े मज़


ु ाफ़ पानी न कहा र्जा सक़े तो वह पाक हो

र्जाय़ेगा।

21
50. अगि एक पानी मत
ु लक था औि िाद में उसक़े िाि़े में यह मालम
ू न हो

कक मज़
ु ाफ़ हो र्जाऩे क़ी हद तक पहुंचा है या नहीं तो वह मत
ु लक पानी मत
ु सव्वि

होगा यानी नजर्जस चीज़ को पाक कि़े गा औि उसस़े वज़


ु ू औि गस्
ु ल किना भी सही

होगा औि अगि पानी मज़


ु ाफ़ मत
ु ासव्वि होगा यानी ककसी नजर्जस चीज़ को पाक

नहीं कि़े गा औि उसस़े वज़


ु ू औि गस्
ु ल किना भी िाततल होगा।

51. ऐसा पानी जर्जसक़े िाि़े में यह मालम


ू न हो कक मत
ु लक है या मज़
ु ाफ़

नर्जासत को पाक नहीं किता औि उसस़े वज़


ु ू औि गस्
ु ल किना भी िाततल है र्जंह
ू ी

कोई नर्जासत ऐस़े पानी स़े आ ममलती है तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि वह

नजर्जस हो र्जाता है ख़्वाह (चाह़े ) उसक़ी ममकदाि (मात्रा) एक कुि ही क्यों न हो।

52. ऐसा पानी जर्जसमें खून या प़ेशाि र्जैसी ऐऩे नर्जासत आ पड़़े औि उसक़ी ि,ू

िं ग या ज़ाइक़े को तबदील कि द़े नजर्जस हो र्जाता है ख़्वाह वह कुि क़े ििािि या

र्जािी पानी ही क्यों न हो ताहम उस पानी क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका ककसी ऐसी

नर्जासत स़े तबदील हो र्जाएं र्जो उसस़े िाहि है मसलन किीि पड़़े हुए मद
ु ाकि क़ी

वर्जह स़े उसक़ी िू िदल र्जाय़े तो अहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि वह नजर्जस हो

र्जाय़ेगा।

53. वह पानी जर्जसमें ऐऩे नर्जासत मसलन खून या प़ेशाि चगि र्जाए औि उसक़ी

ि,ू िं ग या ज़ाइका तबदील कि द़े अगि कुि क़े ििािि या र्जािी पानी स़े मत्त
ु ामसल

हो र्जाए या िारिश का पानी उस पि ििस र्जाए या हवा क़ी वर्जह स़े िारिश का

22
पानी उस पि चगि़े या िारिश का पानी उस दौिान र्जिकक िारिश हो िही हो पिनाल़े

स़े उस पि चगि़े औि र्जािी हो र्जाए तो इन तमाम सिू तों में उसमें वाक़े शद
ु ा

तबदीली ज़ाइल हो र्जाऩे पि ऐसा पानी पाक हो र्जाता है। ल़ेकक कौल़े अकवा क़ी

बिना पि ज़रूिी है कक िारिश का पानी या कुि पानी या र्जािी पानी उसमें मखलत

हो र्जाए।

54. अगि ककसी नजर्जस चीज़ को ि ममकदाि कुि पानी या र्जािी पानी स़े पाक

ककया र्जाए तो वह पानी र्जो िाहि तनकलऩे क़े िाद उसस़े टपक़े पाक होगा।

55. र्जो पानी पहल़े पाक हो औि यह इल्म न हो कक िाद में नजर्जस हुआ या

नहीं, वह पाक है औि र्जो पानी पहल़े नजर्जस हो औि मालम


ू न हो कक िाद में

पाक हुआ या नहीं, वह नजर्जस है।

56. कुत्त़े, सव
ु ि औि गैि ककतािी काकफ़ि का झट
ू ा िजल्क एहततयात़े मस्
ु तहि क़े

तौि पि ककतािी काकफ़ि का झट


ू ा भी नजर्जस है औि उसका खाना पीना हिाम है

मगि हिाम गोश्त र्जानवि का झट


ू ा पाक है औि बिल्ली क़े अलावा इस ककस्म क़े

िाक़ी तमाम र्जानविों क़े झट


ू ़े का खाना औि पीना मकरूह है ।

बैतुल ख़ला के अहकामीः-

57. इन्सान पि वाजर्जि है कक प़ेशाि औि पखाना कित़े वक़्त औि दस


ू ि़े मवाक़े

पि अपनी शमकगाहों को उन लोगों स़े र्जो िामलग हो ख़्वाह (चाह़े ) वह मां औि िहन

23
क़ी तिह उसक़े महिम ही क्यों न हों औि इसी तिह दीवानों औि उन िच्चों स़े र्जो

अच्छ़े ििू ़े क़ी तमीज़ िखत़े हों तछपाकि िख़े। ल़ेककन िीवी औि शौहि क़े मलय़े

अपनी शमकगाहों को एक दस
ू ि़े स़े तछपाना लाजज़म नहीं।

58. अपनी शमकगाहों को ककसी मखसस


ू चीज़ स़े तछपाना लाजज़म नहीं मसलन

हाथ स़े भी तछपा लें तो काफ़़ी है ।

59. प़ेशाि या पखाना कित़े वक़्त एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि िदन का

अगला हहस्सा यानी प़ेट औि सीना ककिल़े क़ी तिफ़ न हो औि न ही पश्ु त ककिल़े

क़ी तिफ़ हो।

60. अगि प़ेशाि या पखाना कित़े वक़्त ककसी शख़्स क़े िदन का अगला हहस्सा

रू ि ककिला या पश्ु त ि ककिला हो औि वह अपनी शमकगाह को ककिल़े क़ी तिफ़

स़े मोड़ ल़े तो यह काफ़़ी नहीं है औि अगि उसक़े िदन का अगला हहस्सा रू ि

ककिला या पश्ु त ि ककिला न हो तो एहततयात यह है कक शमकगाह को रू ि

ककिला या पश्ु त ि ककिला न मोड़़े।

61. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक इस्त़ेब्रा क़े मौक़े पि, जर्जसक़े अहकाम िाद में

ियान ककय़े र्जायेंग़े, नीज़ अगली औि वपछली शमकगाहों को पाक कित़े वक़्त िदन

का अगला हहस्सा रू ि ककिला औि पश्ु त ि ककिला न हो।

62. अगि कोई शख़्स इस मलय़े क़ी नामहिम उस़े न द़े ख़े, रू ि ककिला या पश्ु त

ि ककिला िैठऩे पि मर्जििू हो, तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

24
पश्ु त ि ककिला िैठ र्जाए, अगि पश्ु त ि ककिला िैठना मजु म्कन न हो तो रू ि

ककिला िैठ र्जाए। अगि ककसी औि वर्जह स़े रू ि ककिला या पश्ु त ि ककिला

िैठऩे पि मर्जििू हो तो भी यही हुक्म है।

63. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक िच्च़े को िफ़़े हार्जत क़े मलय़े रू ि ककिला

या पश्ु त ि ककिला न िैठाए। हां अगि िच्चा खुद ही इस तिह िैठ र्जाए तो िोकना

वाजर्जि नहीं है ।

64. चाि जगहों पि िफ़़् ए हाजत हिाम है ीः-

(1). िन्द गली में र्जिकक वहााँ िहऩे वालों ऩे इसक़ी इर्जाज़त न द़े िखी हो।

(2). उस कत ्अए ज़मीन में र्जो ककसी क़ी तनर्जी ममजल्कयत हो र्जि उसऩे िफ़् ए

हार्जत क़ी इर्जाज़त न द़े िखी हो।

(3). उन र्जगहों में र्जो मख़्सस


ू लोगों क़े मलय़े वक़्फ़ हों मसलन िाज़ मदिस़े।

(4). मोममनीन क़ी कब्रों क़े पास र्जिकक इस फ़़ेल स़े उनक़ी ि़े हुिमती हो। यही

सिू त हि उस र्जगह क़ी है र्जहााँ िफ़् ए हार्जत दीन या मज़हि क़े मक


ु द्दसात क़ी

तौहीन का मजू र्जि हो।

65. तीन सिू तों में मकअद (पखाना खारिर्ज होऩे का मकाम) फ़कत पानी स़े

पाक होता हैः-

(1). पाखाऩे क़े साथ कोई औि नर्जासत (मसलन खन


ू ) िाहि आई हो।

(2). कोई िैरूनी (िाहिी) नर्जासत मक् अद पि लग गई हो।

25
(3). मक् अद का अतिाफ़ मअमल
ू स़े ज़्यादा आलद
ू ा हो गया हो।

इन तीन सिू तों क़े अलावा मक् अद को या तो पानी स़े धोया र्जा सकता है या

उस तिीक़े मत
ु ाबिक र्जो िाद में ियान ककया र्जाय़ेगा कपड़़े या पत्थि वगैिा स़े भी

पाक ककया र्जा सकता है अगिच़े पानी स़े धोना िहति है।

66. प़ेशाि का मखिर्ज पानी क़े अलावा ककसी चीज़ स़े पाक नहीं होता। अगि

पानी कुि क़े ििािि हो या र्जािी हो तो प़ेशाि किऩे क़े िाद एक मतकिा धोना

काफ़़ी है । ल़ेककन अगि कलील पानी स़े धोया र्जाए तो एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना

पि दो मतकिा धोना चाहहय़े औि िहति यह है कक तीन मतकिा धोएं।

67. अगि मक् अद को पानी स़े धोया र्जाए तो ज़रूिी है कक पखाऩे का कोई ज़िाक

िाक़ी न िह़े अलित्ता िं ग या िू िाक़ी िह र्जाए तो कोई हर्जक नहीं औि अगि पहली

िाि ही वो मकाम यंू धल


ु र्जाए कक पखाऩे का कोई ज़िाक िाक़ी न िह़े तो दोिािा

धोना लाजज़म नहीं।

68. पत्थि, ढ़े ला, कपड़ा या इन्हीं र्जैसी दस


ू िी चीज़ें अगि खश्ु क औि पाक हों तो

उनस़े मक् अद को पाक ककया र्जा सकता है औि अगि उन्में मामल


ू ी नमी भी हो

र्जो मक् अद तक न पहुंच़े तो कोई हर्जक नहीं।

69. अगि मक् अद को पत्थि या ढ़े ल़े या कपड़़े स़े एक मतकिा साफ़ कि हदया

र्जाए तो काफ़़ी है ल़ेककन िहति यह है कक तीन मतकिा साफ़ ककया र्जाए औि (जर्जस

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चीज़ स़े साफ़ ककया र्जाए उसक़े) तीन टुकड़़े भी हों औि अगि तीन टुकड़ों स़े साफ़

न हो तो उतऩे मज़ीद टुकड़ों का इज़ाफ़ा किना चाहहय़े कक मक् अद बिल्कुल साफ़

हो र्जाए। अलित्ता अगि इतऩे छोट़े ज़िे िाक़ी िह र्जाएं र्जो नज़ि न आय़े तो कोई

हर्जक नहीं है ।

70. मक् अद को ऐसी चीज़ों स़े पाक किना हिाम है जर्जनका एहततिाम लाजज़म

हो (मसलन कापी या अखिाि का ऐसा कागज़ जर्जस पि अल्लाह तआला औि

पैगम्ििों क़े नाम मलखें हों) औि मकअद क़े हड्डी या गोिि स़े पाक होऩे में

इश्काल है।

71. अगि एक शख़्स को शक हो कक मक् अद पाक ककया है या नहीं तो उस पि

लाजज़म है कक उस़े पाक कि़े अगिच़े प़ेशाि या पखाना किऩे क़े िाद वह हम़ेशा

मत
ु अजल्लकः मकाम को फ़ौिन पाक किता हो।

72. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े िाद शक गज़


ु ि़े कक नमाज़ स़े पहल़े प़ेशाि

या पखाऩे का मखिर्ज पाक ककया था या नहीं तो उसऩे र्जो नमाज़ अदा क़ी है वह

सहीह है ल़ेककन आइन्दा नमाज़ों क़े मलय़े उस़े (मत


ु अजल्लकः मकामात को) पाक

किना ज़रूिी है।

27
इसततबिा

73. इसततििा एक मस्


ु तहि अमल है र्जो मदक प़ेशाि किऩे क़े िाद इस गिज़ स़े

अंर्जाम द़े त़े है ताकक इत्मीनान हो र्जाए कक अि प़ेशाि नाली में िाक़ी नहीं िहा।

इसक़ी कई तकीि़े हैं जर्जनमें स़े िहतिीन यह है कक प़ेशाि स़े फ़ारिग हो र्जाऩे क़े

िाद अगि मक् अद नजर्जस हो गया हो तो पहल़े उस़े पाक कि़े औि किि तीन

दफ़् आ िायें हाथ क़ी दिममयानी उं गली क़े साथ मक् अद स़े ल़ेकि उज़्व़े तनासल
ु क़ी

र्जड़ तक सौंत़े औि उसक़े िाद अगंठ


ू ़े को उज़्व़े तनासल
ु क़े ऊपि औि अगंठ
ू ़े क़े

साथ वाली उं गली को उसक़े नीच़े िखें औि तीन दफ़् आ सप


ु ािी तक सौंत़े औि किि

तीन दफ़् आ सप
ु ािी को मलें।

74. वह रूति
ू त र्जो कभी कभी औित स़े मल
ु ाअित या हं सी मज़ाक किऩे क़े

िाद मदक क़े आलए तनासल


ु स़े खारिर्ज होती है उस़े "मज़ी" कहत़े हैं औि वह पाक

है । अलावा अज़ीं वह रूतूित र्जो कभी कभी मनी क़े िाद खारिर्ज होती है जर्जस़े

"वदी" कहा र्जाता है पाक है िशते क़ी उसमें प़ेशाि क़ी आम़ेजज़श न हो। मज़ीद यह

कक र्जि ककसी शख़्स ऩे प़ेशाि क़े िाद इसततििा ककया हो औि उसक़े िाद रूतूित

खारिर्ज हो जर्जसक़े िाद शक हो कक वह प़ेशाि है या मज़कूिा वाला तीन रूति


ू तों में

स़े कोई एक है तो वह भी पाक है ।

75. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक इसततििा ककया है या नहीं औि उसक़े

प़ेशाि क़े मखिर्ज स़े रूतूित खारिर्ज हो जर्जसक़े िाि़े में वह न र्जानता हो कक पाक

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है या नहीं तो वह नजर्जस है। नीज़ यह कक अगि वह वज़
ु ू कि चक
ु ा हो वह भी

िाततल होगा। ल़ेककन अगि उस़े इस िाि़े में शक हो कक र्जो इसततििा उसऩे ककया

था वह सही था या नहीं औि इस दौिान रूति


ू त खारिर्ज हो औि वह न र्जानता हो

कक वह रूतूित पाक है या नहीं तो वह पाक होगी औि उसका वज़


ु ू भी िाततल न

होगा।

76. अगि ककसी शख़्स ऩे इसततििा न ककया हो औि प़ेशाि किऩे क़े िाद काफ़़ी

वक़्त गज़
ु ि र्जाऩे क़ी वर्जह स़े उस़े इत्मीनान हो क़ी प़ेशाि नाली में नहीं िहा था

औि इस दौिान रूति
ू त खारिर्ज हो औि उस़े शक हो क़ी पाक है या नहीं तो वह

रूतूित पाक होगी औि उसस़े वज़


ु ू भी िाततल न होगा।

77. अगि कोई शख़्स प़ेशाि क़े िाद इसततििा किक़े वज़
ु ू कि ल़े औि उसक़े

िाद रूति
ू त खारिर्ज हो जर्जसक़े िाि़े में उसका ख़्याल हो कक प़ेशाि है या मनी तो

उस पि वाजर्जि है कक एहततयातन गस्


ु ल कि़े औि वज़
ु ू भी कि़े अलित्ता अगि उसऩे

पहल़े वज़
ु ू न ककया हो तो वज़
ु ू कि ल़ेना काफ़़ी है ।

78. औित क़े मलय़े प़ेशाि क़े िाद इसततििा नहीं है। पस अगि कोई रूति
ू त

खारिर्ज हो औि शक हो कक यह प़ेशाि है या नहीं तो रूतूित पाक होगी औि उसक़े

वज़
ु ू औि गस्
ु ल को भी िाततल नहीं कि़े गी।

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िफ़़् ए हाजत के मुस्तहब्बात औि मकरूहात

79. हि शख़्स क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक र्जि भी िफ़् ए हार्जत क़े मलय़े र्जाए तो

ऐसी र्जगह िैठ़े र्जहां उस़े कोई न द़े ख़े। औि िैतुल खला (पाखाऩे) में दाखखल होत़े

वक़्त पहल़े िायां पांव अन्दि िख़े औि तनकालत़े वक़्त पहल़े दायां पावं िाहि िख़े।

औि यह मस्
ु तहि है कक िफ़् ए हार्जत क़े वक़्त (टोपी, दप
ु ट्ट़े वगैिा स़े) सि ढांप कि

िख़े औि िदन का िोझ िायें पांव पि डाल़े।

80. िफ़् ए हार्जत क़े वक़्त सिू र्ज औि चाद क़ी तिफ़ मह
ु ं किक़े िैठना मकरूह है

ल़ेककन अगि अपनी शमकगाह को ककसी तिह ढांप लें तो मकरूह नहीं है। अलावा

अज़ीं िफ़् ए हार्जत क़े मलय़े हवा क़े रूख क़े बिल मक
ु ाबिल नीज़ गली कूचों, िास्तों,

मकान क़े दिवाज़ों क़े सामऩे औि म़ेवादाि दिख़्तों क़े नीच़े िैठना भी मकरूह है

औि इस हालत में कोई चीज़ खाना या ज़्यादा वक़्त लगाना या दांयें हाथ स़े

ताहित किना भी मकरूह है औि यही सिू त िातें किऩे क़ी भी हैं ल़ेककन अगि

मर्जििू ी हो या जज़कि़े खुदा कि़े तो कोई हर्जक नहीं।

81. खड़़े होकि प़ेशाि किना औि सख़्त ज़मीन पि या र्जानविों क़े बिलों में या

पानी में बिल खस


ु स
ू साककन पानी में प़ेशाि किना मकरूह है ।

82. प़ेशाि औि पाखाना िोकना मकरूह है औि अगि िदन क़े मलय़े मक


ु म्मल

तौि पि मजु ज़ि हो तो हिाम है ।

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83. नमाज़ स़े पहल़े, सोऩे स़े पहल़े, मि
ु ामशित (संभोग) किऩे स़े पहल़े औि

इंज़ाल़े मनी क़े िाद प़ेशाि किना मस्


ु तहि है ।

31
नजासात

84. दस चीज़़े नजर्जस है ः-

(1) प़ेशाि, (2). पाखाना, (3). मनी, (4). मद


ु ाकि, (5). खन
ू , (6-7). कुत्ता औि

सव्ु वि, (8). काकफ़ि, (9). शिाि, (10). नर्जासतखोि है वान का पसीना ।

1, 2 पेशाब औि पाख़ानाीः-

85. इन्सान का औि हि उस है वान का जर्जसका गोश्त हिाम है औि जर्जसका

खून र्जहहन्दा है यानी अगि उसक़ी िग काटी र्जाए तो खून उछल कि तनकलता है,

प़ेशाि औि पाखाना नजर्जस है। ल़ेककन उन है वानों का पाखाना पाक है जर्जनका

गोश्त हिाम है मगि उनका खून उछल कि नहीं तनकलता। मसलन वह मछली

जर्जसका गोश्त हिाम है औि इस तिह गोश्त न िखऩे वाल़े छोट़े है वानों मसलन

मक्खी मच्छि (खटमल वपस्स)ू का फ़ुज़ला या आलाइश भी पाक है ल़ेककन हिाम

गोश्त है वान क़ी र्जो उछलऩे वाला खन


ू न िखता हो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना

पि उसक़े प़ेशाि स़े भी पिह़े ज़ किना ज़रूिी है ।

86. जर्जन परिन्दों का गोश्त हिाम है उनका प़ेशाि औि फ़ज़्ला पाक है ल़ेककन

उसस़े पिह़े ज़ ि़ेहति है।

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87. नर्जासत खौि हैवान का प़ेशाि औि पखाना नजर्जस है । औि इसी तिह उस

भ़ेड़ क़े िच्च़े का प़ेशाि औि पाखाना जर्जसऩे सव्ु विनी का दध


ू वपया हो नजर्जस है

जर्जसक़ी तफ़्सील िाद में आय़ेगी। इसी तिह उस है वान का प़ेशाि औि पाखाना भी

नजर्जस है जर्जसस़े ककसी इन्सान ऩे िदफ़़ेली क़ी हो।

3. मऩी (व़ीयय)

88. इन्सान क़ी औि हि उस र्जानवि क़ी मनी नजर्जस है जर्जस का खन


ू (जज़बह

होत़े वक़्त उसक़ी शहिग स़े) उछल कि तनकल़े। अगिच़े एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि वह है वान हलाल गोश्त ही क्यों न हो।

4. मुदायि

89. इन्सान क़ी औि उछलऩे वाला खून िखऩे वाल़े हि है वान क़ी लाश नजर्जस है

ख़्वाह वह (कुदिती तौि पि) खुद मिा हो या शिई तिीक़े क़े अलावा ककसी औि

तिीक़े स़े जज़बह ककया गया हो ।

मछली चकंू क उछलऩे वाला खून नहीं िखती इस मलय़े पानी में मि र्जाए तो भी

पाक है ।

90. लाश क़े वह अज्ज़ा जर्जन में र्जान नहीं होती पाक हैं मसलन पश्म, िाल,

हड्डडयां औि दांत।
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91. र्जि ककसी इन्सान या र्जहहन्दा खून वाल़े है वान क़े िदन स़े उसक़ी जज़न्दगी

क़े दौिान में गोश्त या कोई दस


ू िा ऐसा हहस्सा जर्जसमें र्जान हो र्जद
ु ा कि मलया

र्जाए तो वह नजर्जस है।

92. अगि होठों या िदन क़ी ककसी औि र्जगह स़े िािीक सी तह (पपड़ी0 उख़ेड़

ली र्जाए तो वह पाक है ।

93. मद
ु ाक मग
ु ़ी क़े प़ेट स़े र्जो अण्डा तनकल़े वो पाक है ल़ेककन उसका तछलका धो

ल़ेना ज़रूिी है।

94. अगि भ़ेड़ या िकिी का िच्चा (म़ेमना) र्ास खाऩे क़े काबिल होऩे स़े पहल़े

मि र्जाए तो वह पनीिमा या र्जो उसक़े शीिदान में होता है पाक है ल़ेककन शीिदान

िाहि स़े धो ल़ेना ज़रूिी है ।

95. िहऩे वाली तिल दवाइयां, इत्र, िौगन (त़ेल, र्ी), र्जूतों क़ी पामलश औि

सािन
ु जर्जन्हें िाहि स़े दिआमद (आयात) ककया र्जाता है अगि उनक़ी नर्जासत क़े

िाि़े में यक़ीन न हों तो पाक हैं ।

96. गोश्त, चि़ी औि चमड़ा जर्जसक़े िाि़े में एहततमाल हो कक ककसी ऐस़े र्जानवि

का है जर्जस़े शिई तिीक़े स़े जज़बहा ककया गया है पाक है । ल़ेककन अगि यह चीज़ें

ककसी काकफ़ि स़े लीं गईं हों या ककसी ऐस़े मस


ु लमान स़े ली गईं हों जर्जसऩे काकफ़ि

स़े लीं हों औि यह तहक़ीक न क़ी हो कक आया यह ककसी ऐस़े र्जानवि क़ी है जर्जस़े

शिई तिीक़े स़े जज़बहा ककया गया है या नहीं तो ऐस़े गोश्त औि चि़ी का खाना

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हिाम है अलित्ता ऐस़े चमड़़े पि नमाज़ र्जाईज़ है। ल़ेककन अगि यह चीज़ों

मस
ु लमानों क़े िाज़ाि स़े या ककसी मस
ु लमान स़े खिीदीं र्जाएं औि यह न मालम
ू हो

कक इसस़े पहल़े यह ककसी काकफ़ि स़े खिीदीं गईं थीं या एहततमाल इस िात का हो

कक तहक़ीक कि ली गई है तो ख़्वाह काकफ़ि ही स़े खिीदी र्जाए इस चमढ़़े पि

नमाज़ पढ़ना औि उस गोश्त औि चि़ी का खाना र्जाइज़ है ।

5. ख़़ून

97. इन्सान औि खन
ू ़े र्जहहन्दा िखऩे वाल़े हि है वान का खन
ू नजर्जस है। पस

ऐस़े र्जानविों मसलन मछली, मच्छि का खून र्जो उछल कि नहीं तनकलता पाक

है ।

98. जर्जन र्जानविों का गोश्त हलाल है अगि उन्हें शिई तिीक़े स़े जज़बहा ककया

र्जाए औि ज़रूिी ममक़्दाि में उसका खन


ू खारिर्ज हो र्जाए तो र्जो खन
ू िदन में

िाक़ी िह र्जाए वह पाक है ल़ेककन अगि (तनकलऩे वाला) खन


ू र्जानवि क़े मांस

खींचऩे स़े या उसका सि िलन्द र्जगह पि होऩे क़ी वर्जह स़े िदन में पलट र्जाए

तो वह नजर्जस होगा।

99. मग
ु ़ी क़े जर्जस अण्ड़े में खून का ज़िाक हो उसस़े एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना

पि पिह़े ज़ किना चाहहय़े। ल़ेककन अगि खन


ू ज़दी में हो तो र्जि तक उसका नाज़क

पदाक फ़ट न र्जाए सफ़ैदा िगैि इशकाल क़े पाक है ।

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100. वह खून र्जो िाज़ औकात चव
ु ाई कित़े हुए नज़ि आता है नजर्जस है औि

दध
ू को भी नजर्जस कि द़े ता है ।

101. अगि दांतो क़ी ि़े खो स़े तनकलऩे वाला खन


ू लआ
ु ि़े दहन स़े मखलत
ू हो

र्जाऩे पि खत्म हो र्जाए तो उस लआ


ु ि स़े पिह़े ज़ लाजज़म नहीं है।

102. र्जो खून चोट लगऩे क़ी वर्जह स़े नाखुन या खाल क़े नीच़े र्जम र्जाए अगि

उसक़ी शक्ल ऐसी होकक लोग उस़े खून न कहें तो वह पाक औि अगि खून कहें

औि वह ज़ाहहि हो र्जाए तो वह नजर्जस होगा। ऐसी सिू त में र्जिकक नाखुन या

खाल में सिु ाख हो र्जाए अगि खन


ू का तनकलना औि वज़
ु ू या गस्
ु ल क़े मलय़े उस

मकाम का पाक किना िहुत ज़्यादा तकलीफ़ का िाइस हो तो तयम्मम


ु कि ल़ेना

चाहहय़े।

103. अगि ककसी शख़्स को यह पता न चल़े कक खाल क़े नीच़े खून र्जम गया

है या चोट लगऩे क़ी वर्जह स़े गोश्त ऩे ऐसी शक्ल इजख़्तयाि कि ली है तो वह

पाक है ।

104. अगि खाना पकात़े हुए खन


ू का एक ज़िाक भी उसमें चगि र्जाए तो साि़े का

सािा खाना औि ितकन एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि नजर्जस हो र्जाएगा। उिाल

हिाित औि आग उन्हें पाक नहीं कि सकत़े।

36
105. ि़े म यानी वह ज़दक मवाद र्जो ज़ख़्म क़ी हालत ि़ेहति होऩे पि उसक़े चािों

तिफ़ पैदा हो र्जाता है उसक़े मत


ु अजल्लक अगि यह न मालम
ू हो कक उसमें खन

ममला हुआ है तो वह पाक होगा।

6, 7- कुत्ता औि सुवि

106. कुत्ता औि सव
ु ि र्जो ज़मीन पि िहत़े हैं हत्ता कक उनक़े िाल, हड्डडयां, पंर्ज़े,

नाखन
ू औि रूति
ू तें भी नजर्जस हैं अलित्ता समन्
ु दिी कुत्ता औि सव
ु ि पाक हैं।

8. काफफ़ि

107. काकफ़ि यानी वह शख़्स र्जो िािी तआला क़े वर्ज


ु द ू या उसक़ी वह्दातनयत

का मजु न्कि हो नजर्जस है । औि इसी तिह गल


ु ात (यानी वह लोग र्जो आइम्मा

(अ0) में स़े ककसी को खुदा कहें या यह कहें कक खुदा इमाम में समा गया है ) औि

खारिर्जी व नामसिी (वह लोग र्जो आइम्मा (अ0) स़े िैि औि िग़्जु ज़ का इज़हाि किें )

भी नजर्जस हैं।

इसी तिह वह शख़्स र्जो ककसी भी नि


ु व्ु वत या ज़ुरूितें दीन (यानी वह चीज़ें

जर्जन्हें मस
ु लमान दीन का र्जज़
ु समझत़े हैं मसलन नमाज़ औि िोज़़े) में स़े ककसी

एक का यह र्जानत़े हुए कक यह ज़रूरियात़े दीन हैं, मजु न्कि हो। नीज़ अहल़े ककताि

(यहूदी, ईसाई औि मर्जूसी) भी र्जो खात़ेमल


ु अंबिया हज़ित मोहम्मद इबऩे
37
अबदल्
ु लाह सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम क़ी रिसालत का इकिाि नहीं

कित़े मशहूि रिवायत क़ी बिना पि नजर्जस हैं अगिच़े उनक़ी तहाित का हुक्म िईद

नहीं ल़ेककन उनस़े भी पिह़े ज़ ि़ेहति है ।

108. काकफ़ि का तमाम िदन हत्ता कक उसक़े िाल, नाखुन औि रूतूितें भी

नजर्जस हैं।

109. अगि ककसी नािामलग िच्च़े क़े मां िाप या दादी दादा काकफ़ि हों तो वह

िच्चा भी नजर्जस है । अलित्ता अगि वह सझ


ू िझ
ू िखता हो, इस्लाम का इज़्हाि

किता हो औि अगि उनमें स़े (यानी सां िाप, या दादा दादी में स़े) एक भी

मस
ु लमान हो तो उस तफ़्सील क़े मत
ु ाबिक र्जो मस ्अला नं0 217 में आय़ेगी िच्चा

पाक है ।

110. अगि ककसी शख़्स क़े मत


ु अजल्लक यह इल्म न हो कक मस
ु लमान है या

नहीं औि अगि कोई अलामत उसक़े मस


ु लमान होऩे क़ी न हो तो वह पाक समझा

र्जाय़ेगा ल़ेककन उस पि इस्लाम क़े दस


ू ि़े अहकाम का इत्लाक नहीं होगा मसलन न

ही वह मस
ु लमान औित स़े शादी कि सकता है औि न ही उस़े मस
ु लमानों क़े

कबब्रस्तान में दफ़्न ककया र्जा सकता है ।

111. र्जो शख़्स (खानवादाए रिसालत क़े) िािह इमामों में स़े ककसी एक को भी

दश्ु मनी क़ी बिना पि गाली द़े वह नजर्जस है।

38
9. शिाब

112. शिाि नजर्जस है । औि एहततयात़े मस्


ु तहि कक बिना पि हि वह चीज़ भी

र्जो इन्सान को मस्त कि द़े औि माए हो नजर्जस है। औि अगि माए न हो र्जैस़े

भंग औि चिस तो वह पाक है ख़्वाह उसमें ऐसी चीज़़े डाल दें र्जो माए हों।

113. सन ्अती अलकुहल, र्जो दिवाज़़े, खखड़क़ी, म़ेज़ या कुस़ी वगैिा िं गऩे क़े

मलय़े इस्त़ेमाल होती है उसक़ी तमाम ककस्म़े पाक हैं।

114. अगि अगंिू औि अगंिू का िस खुद ि खुद या पकाऩे पि खमीि हो र्जाए

तो पाक है ल़ेककन उसका खाना पीना हिाम है ।

115. खर्जिू , मन
ु क़्का, ककशममश औि उनका शीिा ख़्वाह खमीि हो र्जायें तो भी

पाक हैं औि उनका खाना हलाल है।

116. "फ़ुक़्काअ" र्जो कक र्जौ स़े तैय्याि होती है औि उस़े आि़े र्जौ कहत़े हैं हिाम

है ल़ेककन उसका नजर्जस होना इश्काल स़े खाली नहीं है । औि गैि फ़ुक़्काअ यानी

ततबिी कवायद क़े मत


ु ाबिक हामसल कदाक, "आि़े र्जौ" जर्जस़े, "माउश्शईि" कहत़े हैं,

पाक है ।

10. नजासत खाने वाले है वान का पस़ीना

117. नर्जासत खाऩे वाल़े ऊंट का पसीना, औि हि उस है वान का पसीना जर्जस़े

इंसानी नर्जासत खाऩे क़ी आदत हो, नजर्जस है ।

39
118. र्जो शख़्स फ़़ेल़े हिाम स़े र्जुनि
ु हुआ हो उसका पसीना पाक है ल़ेककन

एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि उसक़े (पसीऩे क़े) साथ नमाज़ न पढ़ी र्जाए औि

हालत़े है ज़ में िीवी स़े जर्जमाअ किना, र्जिकक इस हालत का इल्म हो, हिाम स़े

र्जुनि
ु होऩे का हुक्म िखता है ।

119. अगि कोई शख़्स उन औकात में िीवी स़े जर्जमाअ कि़े जर्जनमें जर्जमाअ

हिाम है (मसलन िमज़ानल


ु मि
ु ािक में हदन क़े वक़्त) तो उसका पसीना हिाम स़े

र्जुनि
ु होऩे वाल़े पसीऩे का हुक्म नही िखता।

120. अगि हिाम स़े र्जन


ु ि
ु होऩे वाला गस्
ु ल क़े िर्जाए तयम्मम
ु कि़े औि

तयम्मम
ु क़े िाद उस़े पसीना आ र्जाए तो उस पसीऩे का वही हुक्म है र्जो

तयम्मम
ु स़े पहल़े वाल़े पसीऩे का था।

121. अगि कोई शख़्स हिाम स़े र्जुनि


ु हो र्जाए औि किि उस औित स़े जर्जमाअ

कि़े र्जो उसक़े मलय़े हलाल है तो उसक़े मलय़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस

पसीऩे क़े साथ नमाज़ न पढ़़े औि अगि पहल़े उस औित स़े जर्जमाअ कि़े र्जो

हलाल हो औि िाद में हिाम का मत


ु कक कि हो तो उसका पसीना हिाम स़े र्जन
ु ि
ु होऩे

वाल़े पसीऩे का हुक्म नहीं िखता।

नजासत साबबत होने के तिीके

122. हि चीज़ क़ी नर्जासत तीन तिीकों स़े साबित होती हैः-

40
(अव्वल) खुद इन्सान को यक़ीन या इत्मीनान हो कक फ़लां चीज़ नजर्जस है ।

अगि ककसी चीज़ क़े मत


ु अजल्लक महज़ गम
ु ान हो कक नजर्जस है तो उसस़े पिह़े ज़

किना लाजज़म नहीं। मलहाज़ा कहवा खानों औि होटलों में र्जहां लापिवाह लोग औि

ऐस़े लोग खात़े पीत़े हैं र्जो नर्जासत औि तहाित का मलहाज़ नहीं कित़े खाना खाऩे

क़ी सिू त यह है कक र्जि तक इन्सान को इत्मीनान न हो कक र्जो खाना उसक़े

मलय़े लाया गया है वह नजर्जस नहीं है, उसक़े खाऩे में कोई हिर्ज नहीं।

(दोव्वम
ु ) ककसी क़े पास कोई चीज़ हो औि वह उस चीज़ क़े िाि़े में कह़े कक

नजर्जस है औि वह शख़्स गलत ियानी न किता हो मसलन ककसी शख़्स क़ी िीवी

या नौकि या मल
ु ाजज़म कह़े कक ितकन या कोई दस
ू िी चीज़ र्जो उसक़े पास है

नजर्जस है तो वह नजर्जस शम
ु ाि होगी।

(सोव्वम
ु ) अगि दो आहदम आदमी कहें कक एक चीज़ नजर्जस है तो वह नजर्जस

शम
ु ाि होगी िशते क़ी वह उसक़े नजर्जस होऩे क़ी वर्जह ियान किें ।

123. अगि कोई शख़्स मसअल़े स़े अदम वाककफ़़ीयत क़ी बिना पि यह न र्जान

सक़े कक वह चीज़ नजर्जस है या पाक, मसलन उस़े यह इल्म न हो कक चंह


ू ़े क़ी

में गनी पाक है या नहीं तो उस़े चाहहय़े कक मसअला पछ


ू ल़े। ल़ेककन अगि मसअला

र्जानता हो औि ककसी चीज़ क़े िाि़े में उस़े शक हो कक पाक है या नहीं मसलन

उस़े शक हो कक वह चीज़ खून है या नहीं या यह न र्जानता हो कक मच्छि का

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खून है या इन्सान का तो वह चीज़ पाक शम
ु ाि होगी औि उसक़े िाि़े में छान िीन

किना या पछ
ू ना लाजज़म नहीं।

124. अगि ककसी नजर्जस चीज़ क़े िाि़े में शक हो कक (िाद में) पाक हुई है या

नहीं तो वह नजर्जस है । अगि ककसी पाक चीज़ क़े िाि़े में शक हो कक (िाद में )

नजर्जस हो गई है या नहीं तो वह पाक है। अगि कोई शख़्स उन चीज़ें क़े नजर्जस

या पाक होऩे क़े मत


ु अजल्लक पता चला भी सकता हो तो भी तहक़ीक ज़रूिी नहीं

है ।

125. अगि कोई शख़्स र्जानता हो कक र्जो दो ितकन या दो कपड़़े वह इस्त़ेमाल

किता है उन में स़े एक नजर्जस हो गया है ल़ेककन उस़े यह इल्म न हो कक उनमें

स़े कौन सा नजर्जस हुआ है तो दोनों स़े इजज्तनाि किना ज़रूिी है औि ममसाल क़े

तौि पि अगि यह र्जानता हो कक खुद उसका कपड़ा नजर्जस हुआ है या वह कपड़़े

र्जो उसक़े ज़़ेि़े इस्त़ेमाल नहीं है औि ककसी दस


ू ि़े शख़्स क़ी ममल्क़ीयत है तो ज़रूिी

नहीं कक अपऩे कपड़़े स़े इजज्तनाि कि़े ।

पाक च़ीज नजजस कैसे होत़ी है ीः-

126. अगि कोई पाक चीज़ ककसी नजर्जस चीज़ स़े लग र्जाए औि दोनों या उनमें

स़े एक इस कदि ति हो कक एक कक तिी दस


ू ि़े तक पहुाँच र्जाए तो पाक चीज़ भी

नजर्जस हो र्जाएगी औि अगि वह उसी तिी क़े साथ ककसी तीसिी चीज़ क़े साथ

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लग र्जाए तो उस़े भी नजर्जस कि द़े ती है औि मशहूि कौल है कक र्जो चीज़ नजर्जस

हो गई हो वह दस
ू िी चीज़ को भी नजर्जस कि द़े ती है ल़ेककन यक़े िाद दीगि़े कई

चीज़ों पि नर्जासत का हुक्म लगाना मजु श्कल है िजल्क तहाित का हुक्म लगाना

कुव्वत स़े खाली नहीं है । मसलन अगि दायां हाथ प़ेशाि स़े नजर्जस हो र्जाए औि

किि यह ति हाथ िायें हाथ को छू र्जाए तो िायां हाथ नजर्जस हो र्जाएगा। अि

अगि िायां हाथ खुश्क होऩे क़े िाद मसलन ति मलिास स़े छू र्जाए तो वह मलिास

भी नजर्जस हो र्जाएगा ल़ेककन अगि वह ति मलिास ककसी दस


ू िी ति चीज़ को लग

र्जाए तो वह चीज़ नजर्जस नहीं होगी औि अगि तिी इतनी कम हो कक दस


ू िी चीज़

को न लग़े तो पाक चीज़ नजर्जस नहीं होगी ख़्वाह वह ऐऩे नजर्जस को ही क्यों न

लगी हों।

127. अगि कोई पाक चीज़ नजर्जस चीज़ को लग र्जाए औि उन दोनों या ककसी

एक क़े ति होऩे क़े मत


ु अजल्लक ककसी को शक हो तो पाक चीज़ नजर्जस नहीं

होती।

128. ऐसी दो चीज़ें जर्जनक़े िाि़े में इन्सान को इल्म न हो कक उनमें स़े कौन

सी पाक है औि कौन सी नजर्जस अगि एक पाक औि ति चीज़ उनमें स़े ककसी

एक चीज़ को छू र्जाए तो उसस़े पिह़े ज़ किना ज़रूिी नहीं है ल़ेककन िाज़ सिू तों में

मसलन दोनों चीज़ें पहल़े नजर्जस थीं या यह कक कोई पाक चीज़ तिी क़ी हालत में

उनमें स़े ककसी एक को छू र्जाए (तो उसस़े इजज्तनाि ज़रूिी है) ।

43
129. अगि ज़मीन, कपड़ा या ऐसी दस
ू िी चीज़ें ति हों तो उनक़े जर्जस हहस्स़े को

नर्जासत लग़ेगी वह नजर्जस हो र्जाएगा। औि िाक़ी हहस्सा पाक िह़े गा। यही हुक्म

खीि़े औि खििज़
ू ़े वगैिा क़े िाि़े में है ।

130. र्जि शीि़े , त़ेल (र्ी) या ऐसी ही ककसी औि चीज़ क़ी सिू त ऐसी हो कक

अगि उसक़ी कुछ ममक़्दाि (मात्रा) तनकाल ली र्जाए तो उसक़ी र्जगह खाली न िह़े

तो र्जंू ही वह ज़िाक भि भी नजर्जस होगा साि़े का सािा नजर्जस हो र्जाएगा ल़ेककन

अगि उसक़ी सिू त ऐसी हो कक तनकालऩे क़े मकाम पि र्जगह खाली िह़े अगिच़े

िाद में पिु ी हो र्जाए तो मसफ़क वही हहस्सा नजर्जस होगा जर्जस़े नर्जासत लगी है।

मलहाज़ा अगि चह
ू ें क़ी में गनी उसमें चगि र्जाए तो र्जहां वह में गनी चगिी है वह

र्जगह नजर्जस औि िाकक पाक होगी।

131. अगि मक्खी या ऐसा ही कोई र्जानदाि एक ऐसी ति चीज़ पि िैठ़े र्जो

नजर्जस हो औि िाद अज़ां एक ति पाक चीज़ पि र्जा िैठ़े औि यह इल्म हो र्जाए

कक इस र्जानदाि क़े साथ नर्जासत थी तो पाक चीज़ नजर्जस हो र्जाए गी औि अगि

इल्म न हो तो पाक िह़े गी।

132. अगि िदन क़े ककसी हहस्स़े पि पसीना हो औि वह हहस्सा नजर्जस हो र्जाए

औि किि पसीना िह कि िदन क़े दस


ू ि़े हहस्सों तक चला र्जाए तो र्जहां र्जहां

पसीना िह़े गा िदन क़े वह हहस्स़े नजर्जस हो र्जाए ग़े, ल़ेककन अगि पसीना आग़े न

िढ़़े तो िाक़ी िदन पाक िह़े गा।

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133. र्जो िलगम नाक या गल़े स़े खारिर्ज हो अगि उसमें खून हो तो िलगम में

र्जहां खन
ू होगा नजर्जस औि िाक़ी हहस्सा पाक होगा मलहाज़ा अगि यह िलगम मह
ु ं

या नाक क़े िाहि लग र्जाए तो िदन क़े जर्जस मक


ु ाम क़े िाि़े में यक़ीन हो कक

नजर्जस िलगम इस पि लगा है औि जर्जस र्जगह क़े िाि़े में शक हो कक वहां

िलगम का नर्जासत वाला हहस्सा पहुाँचा है या नहीं तो वह पाक होगा।

134. अगि एक ऐसा लोटा मसर्जक़े पें दें में सिु ाख हो नजर्जस ज़मीन पि िख

हदया र्जाए औि उसस़े पानी िहना िंद हो र्जाए तो र्जो पानी उसक़े नीच़े र्जमा होगा,

वह उसक़े अन्दि वाल़े पानी स़े ममलकि यकर्ज हो र्जाए तो लोट़े का पानी नजर्जस

हो र्जाएगा ल़ेककन अगि लोट़े का पानी त़ेज़ी क़े साथ िहता िह़े तो नजर्जस नहीं

होगा।

135. अगि कोई चीज़ िदन में दाखखल होकि नर्जासत स़े र्जा ममल़े ल़ेककन िदन

स़े िाहि आऩे पि नर्जासत स़े आलद


ू ा न हो तो वह चीज़ पाक है । चन
ु ांच़े अगि

एतनमा का सामान या उसका पानी मक् अद में दाखखल ककया र्जाए या सईं
ु , चाकू

या कोई औि ऐसी चीज़ िदन में चभ


ु र्जाए औि िाहि तनकलऩे पि नर्जासत आलद
ू ा

न हो तो नजर्जस नहीं है । अगि थक


ू औि नाक का पानी जर्जस्म क़े अन्दि खून स़े

र्जा ममलें ल़ेककन िाहि तनकलऩे पि खून आलद


ू ा न हो तो उसका भी यही हुक्म है ।

45
अहकामे नजासात

136. कुिआऩे मर्जीद क़ी तहिीि औि विक को नजर्जस किना र्जिकक यह फ़़ेल

ि़ेहुमत
क ी में शम
ु ाि होता हो बिला शबु हा हिाम है औि अगि नजर्जस हो र्जाए तो

फ़ौिन पानी स़े धोना ज़रूिी है िजल्क अगि ि़ेहुमत


क ी का पहलू न भी तनकल़े ति भी

एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि कलाम़े पाक को नजर्जस किना हिाम औि पानी स़े

धोना वाजर्जि है।

137. अगि कुिआऩे मर्जीद क़ी जर्जल्द नजर्जस हो र्जाए औि उसस़े कुिआऩे

मर्जीद क़ी ि़ेहुमत


क ी होती हो तो जर्जल्द को पानी स़े धो द़े ना ज़रूिी है ।

138. कुिआऩे मर्जीद को ककसी ऐऩे नर्जासत मसलन खन


ू या मद
ु ाकि पि िखना

ख़्वाह वह ऐऩे नर्जासत खश्ु क ही क्यों न हो अगि कुिआऩे मर्जीद क़ी ि़ेहुमत
क ी का

िायस हो तो हिाम है।

139. कुिआऩे मर्जीद को नजर्जस िौशनाई स़े मलखना ख़्वाह एक हफ़क ही क्यों न

हो उस़े नजर्जस किऩे का हुक्म िखता है । अगि मलखा र्जा चक


ु ा हो तो उस़े पानी स़े

धो कि या छ ल कि ककसी औि तिीक़े स़े ममटा द़े ना ज़रूिी है ।

140. अगि काकफ़ि को कुिआऩे मर्जीद द़े ना ि़ेहुमत


क ी का मजू र्जि हो तो हिाम है

औि उसस़े कुिआऩे मर्जीद ल़े ल़ेनना वाजर्जि है ।

141. अगि कुिआऩे मर्जीद का एक विक या कोई ऐसी चीज़ जर्जसका एहततिाम

ज़रूिी हो मसलन ऐसा कागज़ जर्जस पि अल्लाह तआला का या निीय़े किीम

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सलल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम या ककसी इमाम (अ0) का नाम मलखा हो

िैतल
ु खला में चगि र्जाए तो उसका िाहि तनकालना औि उस़े धोना वाजर्जि है ख़्वाह

उस पि कुछ िकम ही क्यों न खचक किनी पड़़े। औि अगि उसका िाहि तनकालना

मम
ु ककन न हो तो ज़रूिी है कक उस वक़्त तक उस िैतुलखुला को इस्त़ेमाल न

ककया र्जाए र्जि तक यह यक़ीन ना हो र्जाए कक वह गलकि खत्म हो गया है । इसी

तिह अगि खाक़े मशफ़ा िैतुलखला में चगि र्जाए औि उसका तनकालना मम
ु ककन न

हो तो र्जि तक यह यक़ीन न हो र्जाए कक वह बिल्कुल खत्म हो चक


ु ़ी है, उस

िैतल
ु खला को इस्त़ेमान नहीं किना चाहहय़े।

142. नजर्जस चीज़ का खाना पीना या ककसी दस


ू ि़े को खखलाना वपलाना हिाम है

ल़ेककन िच्च़े या दीवाऩे को खखलाना वपलाना िज़ाहहि र्जाइज़ है औि अगि िच्चा

या दीवाना नजर्जस चगज़ा खाए या वपय़े या नजर्जस हाथ स़े चगज़ा को नजर्जस किक़े

खाए तो उस़े िोकना ज़रूिी नहीं।

143. र्जो नजर्जस चीज़ धोईं र्जा सकती हों उस़े ि़ेचऩे या उधाि द़े ऩे में कोई हर्जक

नहीं ल़ेककन उसक़े नजर्जस होऩे क़े िाि़े में र्जि यह दो शतें मौर्जद
ू हों तो खिीद ऩे

औि उधाि ल़ेऩे वाल़े को िताना ज़रूिी हैः-

(पहली शतक) र्जि अन्द़े शा हो कक दस


ू िा फ़िीक ककसी वाजर्जि हुक्म क़ी

मख
ु ामलफ़त का मत
ु कक कि होगा यानी उस (नजर्जस चीज़) को खाऩे या पीऩे में

47
इस्त़ेमाल कि़े गा। अगि ऐसा न हो तो िताना ज़रूिी नहीं है मसलन मलिास क़े

नजर्जस होऩे क़े िाि़े में िताना ज़रूिी नहीं जर्जस़े पहन कि वह दस
ू िा फ़िीक नमाज़

पढ़़े क्योंकक मलिास का पाक होना शते वाकई नहीं है.

(दस
ू िी शतक) र्जि ि़ेचऩे या उधाि द़े ऩे वाल़े को यह तवक़्को हो कक दस
ू िा फ़िीक

उसक़ी िात पि अमल कि़े गा औि अगि वह र्जानता हो कक दस


ू िा फ़िीक उसक़ी

िात पि अमल नहीं कि़े गा तो उस़े िताना ज़रूिी नहीं है।

144. अगि एक शख़्स ककसी दस


ू ि़े को नजर्जस चीज़ खात़े या नजर्जस मलिास स़े

नमाज़ पढ़त़े हुए द़े ख़े तो उस़े इस िाि़े में कुछ कहना ज़रूिी नहीं।

145. अगि र्ि का कोई हहस्सा या कालीन (या दिी) नजर्जस हो औि वह द़े ख़े

कक उसक़े र्ि आऩे वाल़े का िदन, मलिास या कोई औि चीज़ तिी क़े साथ नजर्जस

र्जगह स़े र्जा लगी है औि साहि़े खाना उसका िाइस हुआ तो दो शतों क़े साथ र्जो

मसअला नं0 143 में ियान हुई हैं उन लोगों को इस िाि़े में आगाह कि द़े ना

ज़रूिी है।

146. अगि म़ेज़िान को खाऩे खाऩे क़े दौिान पता चल़े कक चगज़ा नजर्जस है तो

दोंनो शतों क़े मत


ु ाबिक र्जो (मसअला नं0 143 में ) ियान हुईं हैं ज़रूिी है कक

म़ेहमानों को उसक़े मत
ु अजल्लक आगाह कि द़े । ल़ेककन अगि म़ेहमानों में स़े ककसी

को इस िात का इल्म हो र्जाए तो उसक़े मलय़े दस


ू िों को िताना ज़रूिी नहीं।

48
अलित्ता अगि वह उन लोगों क़े साथ यंू र्ल
ु ममल कि िहता हो कक उनक़े नजर्जस

होऩे क़ी वर्जह स़े वह खद


ु भी नर्जासत में मजु बतला होकि वाजर्जि अहकाम क़ी

मख
ु ामलफ़त का मत
ु कक कि होगा त उनको िताना ज़रूिी है।

147. अगि कोई उधाि ली हुइ चीज़ नजर्जस हो र्जाए तो उसक़े मामलक को दो

शतों क़े साथ र्जो मस ्अला 143 में ियान हुई हैं आगाह कि़े ।

148. अगि िच्चा कह़े कक कोई चीज़ नजर्जस है या कह़े कक उसऩे ककसी चीज़

को धो मलया है तो उसक़ी िात पि एततिाि नहीं किना चाहहय़े ल़ेककन अगि िच्च़े

क़ी उम्र मक
ु ल्लफ़ होऩे क़े किीि हो औि वह कह़े कक उसऩे एक चीज़ पानी स़े धोई

है र्जिकक वह चीज़ उसक़े इस्त़ेमाल में हो या िच्च़े का कौल एततमाद क़े काबिल

हो तो उसक़ी िात कुिल


ू कि ल़ेनी चाहहय़े औि यही हुक्म है र्जिकक िच्चा कह़े कक

वह चीज़ नजर्ज है ।

मत
ु जह्हिात

149. िािह चीज़़े ऐसी हैं र्जो नर्जासत को पाक किती हैं औि उन्हें मत
ु जह्हिात

कहा र्जाता हैः-

1- पानी, 2- ज़मीन, 3-सिू र्ज, 4-इसततहाला, 5-इंककलाि, 6- इजन्तकाल, 7-

इसलाम, 8-तिईयत, 9-ऐऩे नर्जासत का ज़ाइल हो र्जाना, 10- नर्जासत खाऩे वाल़े

49
है वान का इसततििा 11-मस
ु लमान का गायि हो र्जाना, 12-जज़बह़े ककय़े गय़े

र्जानवि क़े िदन स़े खन


ू का तनकल र्जाना।

1-पाऩी

140. पानी चाि शतों क़े साथ नजर्जस चीज़ को पाक किता हैः-

1. पानी मत्ु लक हो। मज़


ु ाफ़ पानी मसलन अिक़े गुलाि या अिक़े ि़ेद़े मश्ु क स़े

नजर्जस चीज़ पाक नहीं होती।

2. पानी पाक हो।

3. नजर्जस चीज़ को धोऩे क़े दौिान पानी मज़


ु ाफ़ न िन र्जाए। र्जि ककसी चीज़

को पाक किऩे क़े मलय़े पानी स़े धोया र्जाए औि उसक़े िाद मज़ीद धोना ज़रूिी न

हो तो वह भी लाज़ीम है कक उस पानी में नर्जासत क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका मौर्जूद न

हो ल़ेककन अगि धोऩे क़ी सिू त उसस़े मख़्


ु तमलफ़ हो (यानी वह आखखिी धोना न

हो) औि पानी क़ी ि,ू िं ग या ज़इका िदल र्जाए तो उसमें कोई हिर्ज नहीं। मसलन

अगि कोई चीज़ कुि पानी या कलील पानी स़े धोई र्जाए औि उस़े दो मतकिा धोना

ज़रूिी हो तो ख़्वाह पानी क़ी ि,ू िं ग या ज़ाइका पहली दफ़् आ धोऩे क़े वक़्त िदल

र्जाए ल़ेककन दस
ू िी दफ़् आ इस्त़ेमाल ककय़े र्जाऩे वाल़े पानी में ऐसी कोई तबदीली

रूनम
ु ा न हो तो वह चीज़ पाक हो र्जाऐगी।

50
4. नजर्जस चीज़ को पानी स़े धोऩे क़े िाद उसमें ऐऩे नर्जासत क़े ज़िाकत िाक़ी न

िहें । नजर्जस चीज़ को कलील पानी यानी एक कुि स़े कम पानी स़े पाक किऩे क़ी

कुछ औि शिाइत भी हैं जर्जनका जज़क्र ककया र्जा िहा है ः-

151. नजर्जस ितकन क़े अन्दरूनी हहस्स़े को कलील पानी स़े तीन दफ़् आ धोना

ज़रूिी है । कुि या र्जािी पानी का भी एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि यही हुक्म है

ल़ेककन जर्जस ितकन में कुत्त़े ऩे पानी या कोई माए चीज़ पी हो उस़े पहल़े पाक

ममट्टी स़े मांझना चाहहय़े किि उस ितकन स़े ममट्टी को दिू किना चाहहय़े, उसक़े

िाद कलील या कुि या र्जािी पानी स़े दो दफ़् आ धोना चाहहय़े। इसी तिह अगि

कुत्त़े ऩे ककसी ितकन को चाटा हो औि कोई चीज़ उसमें िाक़ी िह र्जाए तो उस़े धोऩे

स़े पहल़े ममट्टी स़े मांझ ल़ेना ज़रूिी है अलित्ता अगि कुत्त़े का लआ
ु ि ककसी ितकन

में चगि र्जाए तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उस़े ममट्टी स़े मांझऩे क़े िाद

तीन दफ़् आ पानी स़े धोना ज़रूिी है ।

152. जर्जस ितकन में कुत्त़े ऩे मह


ु ं डाला है अगि उसका मह
ु ं तंग हो तो उसमें

ममट्टी डाल कि खि
ू हहलायें ताकक ममट्टी ितकन क़े तमाम एतिाफ़ में पहुाँच र्जाए।

उसक़े िाद उस़े उसी तितीि क़े मत


ु ाबिक धोयें जर्जसका जज़क्र साबिकः मस ्अल़े में

हो चक
ु ा है।

51
153. अगि ककसी ितकन को सव्ु वि चाट़े या उसमें स़े कोई िहऩे वाली चीज़ पी

ल़े या उस ितकन में र्जंगली चह


ू ां मि गया हो तो उस़े कलील या कुि या र्जािी पानी

स़े सात मतकिा धोना ज़रूिी है ल़ेककन ममट्टी स़े मांझना ज़रूिी नहीं।

154. र्जो ितकन शिाि स़े नजर्जस हो गया हो उस़े तीन मतकिा धोना ज़रूिी है इस

िाि़े में कलील या कुि या र्जािी पानी क़ी कोई तख़्सीस नहीं ।

155. अगि ऐस़े ितकन को र्जो नजर्जस ममट्टी स़े तैयाि हुआ हो या जर्जसमें

नजर्जस पानी सिायत कि गया हो कुि या र्जािी पानी में डाल हदया र्जाए तो र्जहां

र्जहां वह पानी पहुाँच़े गा ितकन पाक हो र्जाय़ेगा औि अगि उस ितकन क़े अन्दरूनी

अज्ज़ा को भी पाक किना मकसद


ू हो तो उस़े कुि या र्जािी पानी में उतनी द़े ि तक

पड़़े िहऩे द़े ना चाहहय़े कक पानी तमाम ितकन में सिायत कि र्जाए। औि अगि उस

ितकन में कोई ऐसी नमी हो र्जो पानी क़े अन्दरूनी हहस्सों तक पहुाँच नें में माऩे हो

तो पहल़े उस़े खुश्क कि ल़ेना ज़रूिी है औि किि ितकन को कुि या र्जािी पानी में

डाल द़े ना चाहहय़े।

156. नजर्जस ितकन को कलील पानी स़े दो तिीक़े स़े धोया र्जा सकता हैः-

(पहला तिीका) ितकन को तीन दफ़् आ भिा र्जाए औि हि दफ़् आ खाली कि हदया

र्जाए।

52
(दस
ू िा तिीका) ितकन में तीन दफ़् आ मन
ु ामसि ममकदाि में पानी डालें औि हि

दफ़् आ पानी को यंू र्म


ु ायें कक वह तमाम नजर्जस मकामात तक पहुंच र्जाए औि

किि उस़े चगिा दें ।

157. अगि एक िड़ा ितकन मसलन द़े ग या मटका नजर्जस हो र्जाएं तो तीन

दफ़् आ पानी स़े भिऩे औि हि दफ़् आ खाली किऩे क़े िाद पाक हो र्जाता है । इसी

तिह अगि उसमें तीन दफ़् आ ऊपि स़े इस तिह पानी उं ड़ेलें कक उसक़ी तमाम

अतिाफ़ तक पहुाँच र्जाए औि हि दफ़् आ उसक़ी तह में र्जो पानी र्जमआ हो र्जाए

उसको तनकाल दें तो ितकन पाक हो र्जाएगा। औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

दस
ू िी औि तीसिी िाि जर्जस ितकन क़े ज़रिय़े पानी िाहि तनकाला र्जाए उस़े भी धो

मलया र्जाए।

158. अगि नजर्जस तांि़े वगैिा को वपर्ला कि पानी स़े धो मलया र्जाए तो उसका

ज़ाहहिी हहस्सा पाक हो र्जाएगा।

159. अगि तन्निू (तंदिू ) प़ेशाि स़े नजर्जस हो र्जाए औि उसमें ऊपि स़े एक

मतकिा यंू पानी डाला र्जाए कक उसक़ी तमाम अतिाफ़ तक पहुंच र्जाए तो तन्निू

पाक हो र्जाएगा औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक यह अमल दो दफ़् आ ककया

र्जाए औि अगि तन्निू प़ेशाि क़े अलावा ककसी औि चीज़ स़े नजर्जस हुआ हो तो

नर्जासत दिू किऩे क़े िाद मज़कूिा तिीक़े क़े मत


ु ाबिक उसमें एक दि् आ पानी

53
डालना काफ़़ी है औि ि़ेहति यह है कक तन्निू क़ी तह में एक गढ़ा खोद मलया र्जाए

जर्जसमें पानी र्जम ्आ हो सक़े किि उस पानी को तनकाल मलया र्जाए औि गढ़़े को

पाक ममट्टी स़े पिु कि हदया र्जाए।

160. अगि ककसी नजर्जस चीज़ को कुि या र्जािी पानी में एक दफ़् आ यंू डुिो

हदया र्जाए कक पानी उसक़े तमाम नजर्जस मकामत तक पहुंच र्जाए तो वह चीज़

पाक हो र्जाय़ेगी औि कालीन या दिी या मलिास वगैिा को पाक किऩे क़े मलय़े उस़े

तनचोड़ना औि इसी तिह स़े मलना या पांव स़े िगड़ना ज़रूिी नहीं है औि अगि

िदन या मलिास प़ेशाि स़े नजर्जस हो गया हो तो उस़े कुि पानी में दो दफ़् आ धोना

भी लाजज़म है ।

161. अगि ककसी ऐसी चीज़ को र्जो प़ेशाि स़े नजर्जस हो गई हो कलील पानी स़े

धोना मकसद
ू हो तो उस पि एक दफ़् आ यंू पानी िहा दें कक प़ेशाि उस चीज़ में

िाक़ी न िह़े तो वह चीज़ पाक हो र्जाय़ेगी। अलित्ता मलिास औि िदन पि दो

दफ़् आ पानी िहाना ज़रूिी है ताकक पाक हो र्जाए। ल़ेककन र्जहां तक मलिास,

कालीन, दिी औि उसस़े ममलती र्जल


ु ती चीज़ों का तअल्लक
ु है उन्हें हि दफ़् आ

पानी में डाल ऩे क़े िाद तनचोड़ना चाहहय़े ताकक गस


ु ाला उन में स़े तनकल र्जाए

(गस
ु ाला या धोवन उस पानी को कहत़े हैं र्जो ककसी धोई र्जाऩे वाली चीज़ स़े धल
ु ऩे

क़े दौिान या धल
ु र्जाऩे क़े िाद खुद ि खद
ु तनचोड़ऩे स़े तनकलता है ।)

54
162. र्जो चीज़ ऐस़े शीिख़्वाि लड़क़े या लड़क़ी क़े प़ेशाि स़े जर्जसऩे दध
ू क़े

अलावा कोई चगज़ा खाना शरू


ु न क़ी हो औि एहततयात क़ी बिना पि दो साल का

न हो, नजर्जस हो र्जाए तो उस पि एक दफ़् आ इस तिह पानी डाला र्जाए कक

तमाम नजर्जस मकामात पि पहुंच र्जाए तो वह चीज़ पाक हो र्जाय़ेगी ल़ेककन

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक मज़ीद एक िाि उस पि पानी डाला र्जाए मलिास,

कालीन औि दिी वगैिा को तनचोड़ना ज़रूिी नहीं।

163. अगि कोई चीज़ प़ेशाि क़े अलावा ककसी नर्जासत स़े नजर्जस हो र्जाए तो

वह नर्जासत दिू किऩे क़े िाद एक दफ़् आ कलील पानी उस पि डाला र्जाए। र्जि

वह पानी िह र्जाए तो वह चीज़ पाक हो र्जाती है अलित्ता मलिास औि उसस़े

ममलती र्जुलती चीज़ों को तनचोड़ ल़ेना चाहहय़े ताकक उनका धोवन तनकल र्जाए।

164. अगि ककसी नजर्जस चटाई को र्जो धागों स़े िन


ु ी हुई हो कुि या र्जािी पानी

में डुिो हदया र्जाए तो ऐऩे नर्जासत दिू होऩे क़े िाद वो पाक हो र्जाय़ेगी ल़ेककन

अगि उस़े कलील पानी स़े धोया र्जाए तो जर्जस तिह भी मजु म्कन हो उसका

तनचोड़ना भी ज़रूिी है (ख़्वाह उसम़े पांव ही क्यों न चलाऩे पड़ें) ताकक उसका

धोवन अलग हो र्जाए।

165. अगि गंदम


ु (ग़ेहूं, चावल, सािन
ु वगैिा का ऊपि वाला हहस्सा नजर्जस हो

र्जाए तो वह कुि या र्जािी पानी में डुिोऩे स़े पाक हो र्जाय़ेगा ल़ेककन अगि उनका

अन्दरूनी हहस्सा नजर्जस हो र्जाए तो कुि या र्जािी पानी उन चीज़ों क़े अन्दि तक

55
पहुंच र्जाए औि पानी मत
ु लक ही िह़े तो यह चीज़़े पाक हो र्जाय़ेगीं ल़ेककन ज़ाहहि

यह है कक सािन
ु औि उसस़े ममलती र्जल
ु ती चीज़ों क़े अन्दि आि़े मत
ु लक बिल्कुल

नहीं पहुंचता।

166. अगि ककसी शख़्स को इस िाि़े में शक हो कक नजर्जस पानी सािन


ु क़े

अन्दरूनी हहस्स़े तक सिायत कि गया है या नहीं तो वह हहस्सा पाक होगा।

167. अगि चावल या गोश्त या ऐसी ही ककसी चीज़ का ज़ाहहिी हहस्सा नजर्जस

हो र्जाए तो ककसी पाक प्याल़े या उसक़े ममस्ल ककसी चीज़ में िख कि एक दफ़् आ

उस पि पानी डालऩे औि किि िेंक द़े ऩे क़े िाद वह चीज़ पाक हो र्जाती है औि

अगि ककसी नजर्जस ितकन में िखें तो यह काम तीन दफ़् आ अनर्जाम द़े ना ज़रूिी है

औि इस सिू त में वह ितकन भी पाक हो र्जाय़ेगा ल़ेककन अगि मलिास या ककसी

ऐसी चीज़ को ितकन में डाल कि पाक किना मकसद


ू हो जर्जसका तनचोड़ना लाजज़म

है तो जर्जतनी िाि उस पि पानी डाला र्जाए उस़े तनचोड़ना ज़रूिी है औि ितकन को

उलट द़े ना चाहहय़े ताकक र्जो धोवन उसमें र्जमा हो गया हो वह िह र्जाए।

168. अगि ककसी नजर्जस मलिास को र्जो त़ेल या उस र्जैसी चीज़ स़े िं गा गया

हो कुि या र्जािी पानी में डुिोया र्जाए औि कपड़़े क़े िं ग क़ी वर्जह स़े पानी मज़
ु ाफ़

होऩे स़े कबल तमाम र्जगह पहुंच र्जाए तो वह मलिास पाक हो र्जाय़ेगा औि अगि

उस़े कलील पानी स़े धोया र्जाए औि तनचोड़ऩे पि उसमें स़े मज़
ु ाफ़ पानी न तनकल़े

तो वह मलिास पाक हो र्जाता है।

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169. अगि कपड़़े को कुि या र्जािी पानी में धोया र्जाए औि ममसाल क़े तौि पि

िाद में काई वगैिा कपड़़े में नज़ि आए औि यह अहततमाल न हो कक यह कपड़़े क़े

अन्दि पानी क़े पहुंचऩे में माऩे (िाधक) हुई है तो वह कपड़ा पाक है।

170. अगि मलिास या उसस़े ममलती र्जल


ु ती चीज़ क़े धोऩे क़े िाद ममट्टी का

ज़िाक या सािन
ु उसमें नज़ि आए औि एहततमाल हो कक यह कपड़़े क़े अन्दि पानी

क़े पहुंचऩे में माऩे हुआ है तो वह पाक है ल़ेककन अगि नजर्जस पानी ममट्टी या

सािन
ु में सिायत कि गया हो तो ममट्टी औि सािन
ु का ऊपि वाला हहस्सा पाक

औि उसका अन्दरूनी हहस्स नजर्जस होगा।

171. र्जि तक ऐऩे नर्जासत ककसी नजर्जस चीज़ स़े अलग न हो वह पाक नहीं

होगी ल़ेककन अगि िू या नर्जासत का िं ग उसमें िाक़ी िह र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं।

मलहाज़ा अगि खून मलिास पि स़े हटा हदया र्जाए औि मलिास धो मलया र्जाए औि

खून का िं ग मलिास पि िाक़ी भी िह र्जाए तो मलिास पाक होगा ल़ेककन अगि िू

या िं ग क़ी वर्जह स़े यह यक़ीन या एहततमाल पैदा हो कक नर्जासत क़े ज़िाकत इसमें

िाक़ी िह गय़े हैं तो वह नजर्जस होगी।

172. अगि कुि या र्जािी पानी में िदन क़ी नर्जासत दिू कि ली र्जाए तो िदन

पाक हो र्जाता है ल़ेककन अगि िदन प़ेशाि स़े नजर्जस हुआ हो तो उस सिू त में एक

दफ़् आ स़े पाक नहीं होगा ल़ेककन पानी स़े तनकल आऩे क़े िाद दोिािा उसमें

57
दाखखल होना ज़रूिी नहीं िजल्क अगि पानी क़े अंदि ही िदन पि हाथ ि़ेि लें कक

पानी दो दफ़् आ िदन तक पहुंच र्जाए तो काफ़़ी है।

173. अगि नजर्जस चगज़ा दांतों क़ी ि़े खों में िह र्जाए औि पानी मह
ु ं में भि कि

यंू र्म
ु ाया र्जाए कक तमाम नजर्जस चगज़ा तक पहुंच र्जाए तो वह चगज़ा पाक हो

र्जाती है ।

174. अगि सि या च़ेहि़े क़े िालों को कलील पानी स़े धोया र्जाए औि वह िाल

र्ऩे न हों तो उनस़े धोवन र्जुदा किऩे क़े मलय़े उन्हें तनचोड़ना ज़रूिी नहीं क्योंकक

मअमल
ू ी पानी खद
ु ि खद
ु र्जद
ु ा हो र्जाता है ।

175. अगि िदन या मलिास का कोई हहस्सा कलील पानी स़े धोया र्जाए तो

नजर्जस मकाम क़े पाक होऩे स़े उस मकाम स़े मत्त


ु मसल वह र्जगहें भी पाक हो

र्जायेंगी जर्जन तक धोत़े वक़्त उमम


ू न पानी पहुंच र्जाता है। मतलि यह है कक

नजर्जस मकाम तक अतिाफ़ को अलायहदा धोना ज़रूिी नहीं िजल्क वह नजर्जस

मकाम को धोऩे क़े साथ ही पाक हो र्जात़े हैं। औि एक पाक चीज़ एक नजर्जस

चीज़ क़े ििािि िख दें औि दोनों पि पानी डालें तो उसका भी यही हुक्म है ।

मलहाज़ा अगि एक नजर्जस उं गली को पाक किऩे क़े मलय़े सि उं गमलयों पि पानी

डालें औि नजर्जस पानी या पाक पानी सि उं गमलयों तक पहुंच र्जाए तो नजर्जस

उं गली क़े पाक होऩे पि तमाम उं गमलया पाक हो र्जायेंगी।

58
176. र्जो गोश्त या चि़ी नजर्जस हो र्जाए दस
ू िी चीज़ों क़ी तिह पानी स़े धोई र्जा

सकती है । यही सिू त उस िदन या मलिास क़ी है जर्जस पि थोड़ी िहुत चचकनाई हो

र्जो पानी को िदन या मलिास तक पहुंचऩे स़े न िोक़े।

177. अगि ितकन या िदन नजर्जस हो र्जाए औि िाद में इतन चचकना हो र्जाए

कक पानी उस तक न पहुंच सक़े औि ितकन या िदन को पाक किना मक़्सद


ू हो तो

पहल़े चचकनाई दिू किनी चाहहय़े ताकक पानी उन तक (यानी ितकन या िदन तक)

पहुंच सक़े।

178. र्जो नल कुि पानी स़े मत्त


ु मसल हो वह कुि पानी हुक्म िखता है ।

179. अगि ककसी चीज़ को धोया र्जाए औि यक़ीन हो र्जाए कक पाक हो गई है

ल़ेककन िाद में शक गुज़ि़े कक ऐऩे नर्जासत उसस़े दिू हुई है या नहीं तो ज़रूिी है

कक उस़े दोिािा पानी स़े धो मलया र्जाए औि यक़ीन कि मलया र्जाए कक ऐऩे

नर्जासत दिू हो गई है।

180. वह ज़मीन जर्जसमें पानी र्जज़्ि हो र्जाता हो ममलन ऐसी ज़मीन जर्जसक़ी

सत्ह ि़े त या िर्जिी पि मश


ु तममल हो अगि नजर्जस हो र्जाए तो कलील पानी स़े

पाक हो र्जाती है।

181. अगि वह ज़मीन जर्जसका फ़सक पत्थि या ईटों का हो या दस


ू िी सख़्त

ज़मीन जर्जसमें पानी र्जज़्ि न होता हो नजर्जस हो र्जाए तो कलील पानी स़े पाक हो

सकती है ल़ेककन ज़रूिी है कक उस पि इतना पानी चगिाया र्जाए कक िहऩे लग़े। र्जो

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पानी इस पि डाला र्जाए अगि वह ककसी गढ़़े स़े िाहि न तनकल सक़े औि ककसी

र्जगह र्जमआ हो र्जाए तो उस र्जगह को पाक किऩे का तिीका यह है कक

र्जमाअशद
ु ा पानी को कपड़़े या ितकन स़े िाहि तनकाल हदया र्जाए।

182. अगि मअहदनी नमक का डला या उस र्जैसी कोई औि चीज़ ऊपि स़े

नजर्जस हो र्जाए तो कलील पानी स़े पाक हो सकती है ।

183. अगि वपर्ली हुई नजर्जस शकि स़े कंद िना लें औि उस़े कुि या र्जािी

पानी में डाल दें तो वह पाक नहीं होगी।

2. जम़ीन

184. ज़मीन पांव क़े तलव़े औि र्जूत़े क़े तनचल़े हहस्स़े को चाि शतों स़े पाक

किती है ः-

(अव्वल) यह कक ज़मीन पाक हो।

(दोव्वम
ु ) एहततयात क़ी बिना पि खश्ु क हो।

(सोव्वम
ु ) एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि नर्जासत ज़मीन पि चलऩे स़े लगी हो।

(चाहरूम) ऐऩे नर्जासत मसलन खून औि प़ेशाि या मत


ु नजज्र्जस चीज़ मसलन

मत
ु नजज्र्जम ममट्टी पांव क़े तलव़े या र्जूत़े क़े तनचल़े हहस्स़े में लगी हो वह िास्ता

चलऩे या पांव ज़मीन पि िगड़ऩे स़े दिू हो र्जाए ल़ेककन अगि ऐऩे नर्जासत ज़मीन

पि चलऩे या ज़मीन पि िगड़ऩे स़े पहल़े ही दिू हो गई हो तो एहततयात़े लाजज़म

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क़ी बिना पि पाक नहीं होगी। अलित्ता यह ज़रूिी है कक ज़मीन ममट्टी या पत्थि

या ईंटों क़े फ़शक या उनस़े ममलती र्जल


ु ती चीज़ पि मश्ु तममल हो। कालीन या दिी

वगैिा या चटाई या र्ास पि चलऩे स़े पांव का नजर्जस तलवा या र्जत


ू ़े का नजर्जस

हहस्सा पाक नहीं होता।

185. पांव का तलवा या र्जूत़े क़े तनचला हहस्सा नजर्जस हो तो डामि या लकड़ी

क़े िऩे फ़शक पि चलऩे स़े पाक होना महल्ल़े इश्काल है ।

186. पांव क़े तलव़े या र्जत


ू ़े क़े तनचल़े हहस्स़े को पाक किऩे क़े मलय़े ि़ेहति है

कक पन्रह हाथ या उसस़े ज़्यादा फ़ासला ज़मीन पि चलें ख़्वाह पन्रह हाथ स़े कम

चलऩे या पांव ज़मीन पि िगड़ऩे स़े नर्जासत दिू हो गई हो।

187. पाक होऩे क़े मलय़े पांव या र्जूत़े क़े नजर्जस तलव़े का ति होना ज़रूिी नहीं

िजल्क खुश्क भी हो तो ज़मीन पि चलऩे स़े पाक हो र्जाता है ।

188. र्जि पांव या र्जत


ू ़े का नजर्जस तलवा ज़मीन पि चलऩे स़े पाक हो र्जाए तो

उसक़ी अहतिाफ़ क़े वह हहस्स़े भी जर्जन्हें उमम


ू न क़ीचड़ वगैिा लग र्जाती है पाक

हो र्जात़े हैं।

189. अगि ककसी ऐस़े शख़्स क़ी हाथ क़ी हथ़ेली या र्ट
ु ना नजर्जस हो र्जाए र्जो

हाथों औि र्ट
ु नों क़े िल चलता हो तो उसक़े िास्ता चलऩे में उसक़ी हथ़ेली या

61
र्ट
ु ऩे का पाक हो र्जाना महल्ल़े इश्काल है। यही सिू त लाठ औि मसनई
ू टांग क़े

तनचल़े हहस्स़े, चौपाए क़े नाल, मोटि गाडड़यों औि गाडड़यों क़े पहहयों क़ी है ।

190. अगि ज़मीन पि चलऩे क़े िाद नर्जासत क़ी िू या िं ग या िािीक ज़िे र्जो

नज़ि न आयें, पांव या र्जत


ू ़े क़े तलव़े स़े लग़े िह र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं। अगिच़े

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक ज़मीन पि इस कदि चला र्जाए कक वह भी ज़ाएल

हो र्जाएं।

191. र्जूत़े का अन्दरूनी हहस्सा ज़मीन पि चलऩे स़े पाक नहीं होता औि ज़मीन

पि चलऩे स़े मोज़़े क़े तनचल़े हहस्स़े का पाक होना भी महल्ल़े इश्काल है ल़ेककन

अगि मोज़़े का तनचला हहस्सा चमड़़े स़े ममलती र्जुलती चीज़ का िना हो (तो वह

ज़मीन पि चलऩे स़े पाक हो र्जाय़ेगा।)

62
3. स़ूिज

192. सिू र्ज- ज़मीन इमाित औि दीवाि को पांच शतों क़े साथ पाक किता है ः-

अव्वल- नजर्जस चीज़ इस तिह ति हो कक अगि दस


ू िी चीज़ उसस़े लग़े तो ति

हो र्जाए मलहाज़ा अगि वह चीज़ खश्ु क हो तो उस़े ककसी तिह ति कि ल़ेना चाहहय़े

ताकक धप
ू स़े खुश्क हो।

दोव्वम
ु - अगि ककसी चीज़ में ऐऩे नर्जासत हो तो धप
ू स़े खश्ु क किऩे स़े पहल़े

उस चीज़ स़े नर्जासत को दिू कि मलया र्जाए।

सोव्वम
ु - कोई चीज़ धप
ू में रूकावट न डाल़े। पस अगि धप
ू पदे , िादल या ऐसी

ही ककसी चीज़ क़े पीछ़े स़े उस चीज़ पि पड़़े औि उस़े खुश्क कि द़े तो वह चीज़

पाक नहीं होगी। अलित्ता अगि िादल इतना पतला हो कक धप


ू को न िोक़े तो कोई

हिर्ज नहीं।

चहारूम- फ़कत सिू र्ज नजर्जस चीज़ को खश्ु क कि़े । मलहाज़ा ममसाल क़े तौि पि

अगि नजर्जस चीज़ हवा औि धप


ू स़े खुश्क हो तो पाक नहीं होती। हां अगि हवा

इतनी हजल्क हो कक यह न कहा र्जा सक़े कक नजर्जस चीज़ को खुश्क किऩे में

उसऩे भी कोई मदद क़ी है तो किि कोई हिर्ज नहीं।

पंर्जुम- ितु नयाद औि इमाित क़े जर्जस हहस्स़े में नर्जासत सिायत कि गई है धप

स़े एक ही मतकिा खश्ु क हो र्जाए। पस अगि एक दफ़् आ धप


ू नजर्जस ज़मीन औि

इमाित पि पड़़े औि उसका सामना वाला हहस्सा खश्ु क कि़े औि दस


ू िी दफ़् आ

63
तनचल़े हहस्स़े को खुश्क कि़े तो उसका सामऩे वाला हहस्सा पाक होगा औि तनचला

हहस्सा नजर्जस िह़े गा।

193. सिू र्ज नजर्जस चटाई को पाक कि द़े ता है ल़ेककन अगि चटाई धाग़े स़े िन
ु ी

हुई हो तो धाग़े क़े पाक होऩे में इश्काल है । इसी तिह दिख़्त र्ास औि दिवाज़़े,

खखड़ककयां, सिू र्ज स़े पाक होऩे में इश्काल है ।

194. अगि धप
ू नजर्जस ज़मीन पि पड़़े औि इस में शक पैदा हो कक धप
ू पड़ऩे

क़े वक़्त ज़मीन ति थी कक नहीं या तिी धप


ू क़े ज़रिय़े खश्ु क हुई है या नहीं तो

वह ज़मीन नजर्जस होगी। औि अगि शक पैदा हो कक धप


ू पड़ऩे स़े पहल़े ऐऩे

नर्जासत ज़मीन पि स़े हटा दी गई थी या नहीं या यह कक कोई चीज़ धप


ू को माऩे

थी या नहीं तो किि भी वही सिू त होगी। (यानी ज़मीन नजर्जस िह़े गी ।)

195. अगि धप
ू नजर्जस दीवाि क़ी एक तिफ़ पड़़े औि उसक़े ज़रिय़े दीवाि क़ी

वह र्जातनि भी खश्ु क हो र्जाए कक जर्जस पि धप


ू नहीं पड़ी तो िईद (दिू ) नहीं क़ी

दीवाि दोनों तिफ़ स़े पाक हो र्जाए।

4. इसततहाला

196. अगि ककसी चीज़ क़ी जर्जंस यंू िदल र्जाए कक एक पाक चीज़ क़ी शक्ल

इजख़्तयाि कि ल़े तो वह पाक हो र्जाती है । ममसाल क़े तौि पि नजर्जस लकड़ी र्जल

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कि िाख हो र्जाए या कुत्ता नमक क़ी खान में चगिकि नमक िन र्जाए। ल़ेककन

अगि उसक़ी जर्जंस न िदल़े मसलन नजर्जस ग़ेहूं को पीस कि आटा िना मलया र्जाए

या (नजर्जस आट़े क़ी) िोटी पका ली र्जाए तो वह पाक नहीं होगी।

197. ममट्टी का लोटा औि दस


ू िी ऐसी चीज़ें र्जो नजर्जस ममट्टी स़े िनाईं र्जायें

नजर्जस हैं ल़ेककन वह कोयला र्जो नजर्जस लकड़ी स़े तैयाि ककया र्जाए अगि उसमें

लकड़ी क़ी कोई खासीयत िाक़ी न िह़े तो वह कोयला पाक है ।

198. ऐसी नजर्जस चीज़़े जर्जसक़े मत


ु अजल्लक इल्म न हो कक आया इसका

इसततहाला हुआ है या नहीं (यानी जर्जंस िदली है या नहीं) नजर्जस है ।

5. इंफकलाब

199. अगि शिाि खुद ि खुद या कोई चीज़ ममलाऩे स़े मसलन मसकाक औि

नमक ममलाऩे स़े मसकाक िन र्जाए तो पाक हो र्जाती है ।

200. वह शिाि र्जो नजर्जस अंगिू या उस र्जैसी ककसी दस


ू िी चीज़ स़े तैय्याि क़ी

गई हो या कोई नजर्जस चीज़ शिाि में चगि र्जाए तो मसकाक िन र्जाऩे स़े पाक नहीं

होती।

201. नजर्जस अंगूि, नजर्जस ककशममश औि नजर्जस खर्जूि स़े र्जो मसकाक तैयाि

ककया र्जाए वह नजर्जस है ।

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202. अगि अगंिू या खर्जूि क़े डंठल भी उनक़े साथ हों औि उनस़े मसकाक तैयाि

ककया र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं िजल्क उसी ितकन में खीि़े औि िैंगन वगैिा डालऩे

में भी कोई खिािी नहीं ख़्वाह अंगिू या खर्जिू क़े मसकाक िनऩे स़े पहल़े ही डालें

र्जाएं िशते कक मसकाक िनऩे स़े पहल़े उनमें नशा न पैदा हुआ हो।

203. अगि अंगूि क़े िस में आंच पि िखऩे स़े या खुद ि खुद र्जोश आ र्जाय़े

तो वह हिाम हो र्जाता है औि अगि वह इतना उिल र्जाए कक उसका दो ततहाई

हहस्सा खत्म हो र्जाए औि एक ततहाई िाक़ी िह र्जाए तो हलाल हो र्जाता है औि

मस ्अला (नं0 114) में िताया र्जा चक


ु ा है कक अगंिू का िस र्जोश द़े ऩे स़े नजर्जस

नहीं होता (मगि खाना पीनी हिाम है ) ।

204. अगि अंगूि क़े िस का दो ततहाई िगैि र्जोश में आए कम हो र्जाए औि

र्जो िाक़ी िच़े उसमें र्जोश आ र्जाए तो अगि लोग उस़े अंगूि का िस कहें , शीिा न

कहें तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि वो हिाम है ।

205. अगि अंगिू क़े िस क़े मत


ु अजल्लक यह मालम
ू न हो कक र्जोश में आया है

या नहीं तो वह हलाल है ल़ेककन अगि र्जोश में आ र्जाए औि यह यक़ीन न हो कक

उसका दो ततहाई कम हुआ है या नहीं तो वह हलाल नहीं होता।

206. अगि कच्च़े अंगूि क़े खोश़े म़े कुछ पक्क़े अंगिू भी हों औि र्जो िस उस

खोश़े स़े मलया र्जाए उस़े लोग अंगिू का िस न कहें औि उसमें र्जोश आ र्जाए तो

उसका पीना हलाल है।

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207. अगि अंगिू का एक दाना ककसी ऐसी चीज़ में चगि र्जाए र्जो आग पि

र्जोश खा िही हो औि वह भी र्जोश खाऩे लग़े ल़ेककन वह उस चीज़ में हल न हो

तो फ़कत उस दाऩे का खाना हिाम है।

208. अगि चन्द द़े गो में शीिा पकाया र्जाय़े तो र्जो चमचा र्जोश में आई हुई द़े ग

में डाला र्जा चक


ु ा हो उसका ऐसी द़े ग में भी डालना र्जायज़ है जर्जसमें र्जोश न

आया हो।

209. जर्जस चीज़ क़े िाि़े में यह मालम


ू न हो कक वह कच्च़े अंगूिों का िस है या

पक्क़े अंगिू ों का, अगि उसमें र्जोश आ र्जाए तो हलाल है।

6- इंततकाल

210. अगि इंसान का खून या उछलऩे वाला खून िखऩे वाल़े है वान का खून

कोई ऐसा है वान जर्जसमें उफ़कन खन


ू नहीं होता इस तिह चस
ू ल़े कक वह खन
ू उस

है वान क़े िदन का र्जुज़्व हो र्जाए। मसलन मच्छि, इंसान या है वान क़े िदन स़े

इस तिह खून चस
ू ़े तो वह खून पाक हो र्जाता है औि उस़े इजन्तकाल कहत़े हैं।

ल़ेककन इलार्ज क़ी गिज़ स़े इन्सान का र्जो खून र्जोंक चस


ू ती है वह र्जोंक क़े िदन

का र्जुज़्व नहीं िनता िजल्क इंसानी खून ही िहता है इसमलय़े वह नजर्जस है।

211. अगि कोई शख़्स अपऩे िदन पि िैठ़े हुए मच्छि को माि द़े औि वह खन

र्जो मच्छि ऩे चस


ू ा हो उसक़े िदन स़े तनकल़े तो ज़ाहहि यह है कक वह खन
ू पाक

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है क्योंकक वह खून इस काबिल था कक मच्छि क़ी चगज़ा िन र्जाए, अगि मच्छि

क़े खन
ू चस
ू ऩे औि माि़े र्जाऩे क़े दिममयान वक़्फ़ा िहुत कम हो, ल़ेककन एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक उस खन
ू स़े इस हालत में पिह़े ज़ किें ।

7- इसलाम

212. अगि कोई काकफ़ि "शहादतैन" पढ़ ल़े यानी ककसी भी ज़िान (भाषा) में

अल्लाह क़ी वहदानीयत औि खातमल


ु अंबिया हज़ित मोहम्मद सलल्लाहो अल़ेहै व

आल़ेही वसल्लम क़ी नि


ु व्ु वत क़ी गवाही द़े द़े तो मस
ु लमान हो र्जाता है । औि

अगिच़े वह मस
ु लमान होऩे स़े पहल़े नजर्जस क़े हुक्म में था ल़ेककन मस
ु लमान हो

र्जाऩे क़े िाद उसका िदन, थक


ू , नाक का पानी औि पसीना पाक हो र्जाता है ।

ल़ेककन मस
ु लमान होऩे क़े वक़्त अगि उसक़े िदन पि कोई ऐऩे नर्जासत हो तो

उस़े दिू किना औि उस मकाम को पानी स़े धोना ज़रूिी है िजल्क अगि मस
ु लमान

होऩे स़े पहल़े ही ऐऩे नर्जासत दिू हो चक


ु ़ी हो ति भी एहततयात़े वाजर्जि यह है कक

उस मकाम को पानी स़े धों डाल़े।

213. एक काकफ़ि क़े मस


ु लमान होऩे स़े पहल़े अगि उसका चगला मलिास उसक़े

िदन स़े छू गया हो तो उसक़े मस


ु लमान होऩे क़े वक़्त वह मलिास उसक़े िदन पि

हो या न हो एहततयात़े वार्जबि क़ी बिना पि उसस़े इजज्तनाि किना ज़रूिी है ।

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214. अगि काकफ़ि "शहादतैन" पढ़ ल़े औि यह न मालम
ू हो कक वह हदल स़े

मस
ु लमान हुआ है या नहीं तो वह पाक है। औि अगि यह इल्म हो कक वह हदल

स़े मस
ु लमान नहीं हुआ ल़ेककन ऐसी कोई िात उसस़े ज़ाहहि न हुई हो र्जो तौहीद

औि रिसालत क़ी शहादत क़े मनाफ़़ी हो तो सिू त वही है (यानी वह पाक है ) ।

8- तबईय्यत

215. तिईय्यत का मतलि है कोई नजर्जस चीज़ ककसी दस


ू िी चीज़ क़े पाक होऩे

क़ी वर्जह स़े पाक हो र्जाए।

216. अगि शिाि मसकाक हो र्जाए तो उसका ितकन भी उस र्जगह तक पाक हो

र्जाता है र्जहां तक शिाि र्जोश खाकि पहुंची हो औि अगि कोई कपड़ा या कोई

दस
ू िी चीज़ उमम
ू न उस (शिाि क़े ितकन) पि िखी र्जाती है औि उस स़े नजर्जस हो

गई हो तो वह भी पाक हो र्जाती है ल़ेककन अगि ितकन क़ी िैरूनी सत्ह उस शिाि

स़े आलद
ू हो र्जाए तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक शिाि क़े मसकाक हो र्जाऩे क़े िाद

उस सत्ह स़े पिह़े ज़ ककया र्जाए।

217. काकफ़ि का िच्चा िज़िीयाए तिईय्यत दो सिू तों में पाक हो र्जाता हैः-

1. र्जो काकफ़ि मदक मस


ु लमान हो र्जाए उसका िच्चा तहाित में उसक़े ताि़े है

औि इसी तिह िच्च़े क़ी मां या दादी या दादा मस


ु लमान हो र्जाएं ति भी यही

हुक्म है । ल़ेककन इस सिू त में िच्च़े क़ी तहाित का हुक्म इसस़े मशरूत है कक

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िच्चा उस नवमजु स्लम क़े साथ औि उसक़े ज़़ेि़े कफ़ालत हो नीज़ िच्च़े का कोई

काकफ़ि रिश्त़ेदाि उस िच्च़े क़े हमिाह न हो।

2. एक काकफ़ि िच्च़े को ककसी मस


ु लमान ऩे कैद कि मलया हो औि उस िच्च़े

क़े िाप या िज़


ु गु क (दादा या नाना वगैिह) में स़े कोई एक भी उसक़े हमिाह न हों।

इन दोनों सिू तों में िच्च़े क़ी तिईय्यत क़ी बिना पि पाक होऩे क़ी शतक यह है कक

वह र्जि िाशऊि हो र्जाए तो कुफ़्र इजख़्तयाि न कि़े ।

218. वह तख़्ता या मसल जर्जस पि मैतयत को गस्


ु ल हदया र्जाए औि वह कपड़ा

जर्जसस़े मैतयत क़ी शमकगाह ढांपी र्जाए नीज़ गस्साल क़े हाथ गस्
ु ल मक
ु म्मल होऩे

क़े िाद पाक हो र्जात़े हैं।

219. अगि कोई शख़्स ककसी चीज़ को पानी स़े धोए तो उस चीज़ क़े पाक होऩे

पि उस शख़्स का वह हाथ भी पाक हो र्जाता है जर्जस स़े वह उस चीज़ को धोता

है ।

220. अगि मलिास या उस ज़ैसी ककसी चीज़ को कलील पानी स़े धोया र्जाए

औि इतना तनचौड़ हदया र्जाए जर्जतना आम तौि पि तनचोड़ा र्जाता हो ताकक जर्जस

पानी स़े धोया गया है उसका धोवन तनकल र्जाए तो र्जो पानी उसमें िह र्जाए वो

पाक है ।

70
221. र्जि नजर्जस ितकन को कलील पानी स़े धोया र्जाए तो र्जो पानी ितकन को

पाक किऩे क़े मलय़े उस पि डाला र्जाए उसक़े िह र्जाऩे क़े िाद र्जो मअमल
ू ी पानी

उसमें िाक़ी िह र्जाए वह पाक है ।

9- ऐने नजासत का दि़ू होना

222. अगि ककसी हैवान का िदन ऐऩे नर्जासत मसलन खन


ू या नजर्जसशद
ु ा

चीज़ मसलन नजर्जस पानी स़े आलद


ू ा हो र्जाए तो र्जि वह नर्जासत दिू हो र्जाए

है वान का िदन पाक हो र्जाता है औि यही सिू त इन्सानी िदन क़े अन्दरूनी हहस्सों

ममसाल क़े तौि पि मह


ु ं या नाक औि कान क़े अन्दि वाल़े हहस्सों क़ी है कक वह

िाहि स़े नर्जासत लगऩे स़े नजर्जस हो र्जायेंग़े औि र्जि नर्जासत दिू हो र्जाए तो

पाक हो र्जायेंग़े ल़ेककन नर्जासत़े दाखखली मसलन दांतों क़े ि़े खों स़े खून तनकलऩे स़े

िदन का अन्दरूनी हहस्सा नजर्जस नहीं होता, औि यही हुक्म है कक र्जि ककसी

खारिर्जी चीज़ को िदन क़े अन्दरूनी हहस्स़े में नर्जासत़े दाखखली लग र्जाए तो वह

चीज़ नहीं होती। इस बिना पि अगि मसनई


ू दांत मंह
ु क़े अन्दि दस
ू ि़े दांतों क़े

ि़े खों स़े तनकल़े हुए खून स़े आलद


ू ा हो र्जायें तो उन दांतों को धोना लाजज़म नहीं है

ल़ेककन अगि उन मसनई


ू दांतों को नजर्जस चगज़ा लग र्जाए तो उनको धोना लाजज़म

है ।

71
223. अगि दांतों क़ी ि़े खों में चगज़ा लगी िह र्जाए औि किि मह
ंु क़े अन्दि खून

तनकल आए तो वह चगज़ा खन
ू ममलऩे स़े नजर्जस नहीं होगी।

224. होंठों औि आाँख क़ी पलकों क़े वह हहस्स़े र्जो िन्द कित़े वक़्त एक दस
ू ि़े

स़े ममल र्जात़े हैं वह अन्दरूनी हहस्स़े का हुक्म िखत़े हैं। अगि इस अन्दरूनी हहस्स़े

में खारिर्ज स़े कोई नर्जासत लग र्जाए तो इस अन्दरूनी हहस्स़े को धोना ज़रूिी नहीं

है । ल़ेककन वह मकामात जर्जनक़े िाि़े में इन्सान को यह इल्म न हो कक आया उन्हें

अन्दरूनी हहस्सा समझा र्जाए या ि़ेरूनी, अगि खारिर्ज स़े नर्जासत उन मकामात

पि लग र्जाए तो उन्हें धोना चाहहय़े।

225. अगि नजर्जस ममट्टी कपड़़े या खश्ु क कालीन, दिी या ऐसी ही ककसी औि

चीज़ को लग र्जाए औि कपड़़े वगैिा को यंू झाड़ा र्जाए कक नजर्जस ममट्टी उसस़े

अलग हो र्जाए तो उसक़े िाद ति चीज़ कपड़़े वगैिा को छू र्जाए तो वह नजर्जस

नहीं होगी।

10- नजासत खाने वाले है वान का इसततबिा

226. जर्जस है वान को इन्सानी नर्जासत खाऩे क़ी आदत पड़ गई हो उसका

प़ेशाि औि पखाना नजर्जस है औि अगि उस़े पाक किना मक़्सद


ू हो तो उसका

इसततििा किना ज़रूिी है यानी एक असे तक उस़े नर्जासत न खाऩे दें औि पाक

चगज़ा दें हत्ता कक इतनी मद्


ु दत गज़
ु ि र्जाए कक किि उस़े नर्जासत खाऩे वाला न

72
कहा र्जा सक़े। औि एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि नर्जासत खाऩे वाल़े ऊंट को

सालीस हदन तक, भ़ेड़ को दस हदन तक, मग


ु ाकिी को सात या पांच हदन तक औि

पालतू मग
ु ़ी को तीन हदन तक नर्जासत खाऩे स़े िाज़ िखा र्जाए। अगि यह मक
ु िक िः

मद्
ु दत गुज़िऩे स़े पहल़े ही उन्हें नर्जासत खाऩे वाला है वान न कहा र्जा सक़े (ति

भी उस मद्
ु दत तक उन्हें नर्जासत खाऩे स़े िाज़ िखना चाहहय़े) ।

11- मुसलमान का गायब हो जाना

अगि िामलग औि पाक़ी नापाक़ी समझऩे वाल़े मस


ु लमान का िदन या मलिास

या दस
ू िी अश्या मसलन ितकन औि दिी वगैिह र्जो उसक़े इस्त़ेमाल में हों नजर्जस

हो र्जायें औि किि वह वहां स़े चला र्जाए तो अगि कोई इन्सान यह समझ़े कक

उसऩे यह चीज़ें धोईं थीं तो वह पाक होंगी ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि है कक उनको

पाक न समझ़े मगि दर्जे ज़ैल चन्द शिायत क़े साथः

अव्वल – जर्जस चीज़ ऩे उस मस


ु लमान क़े मलिास को नजर्जस ककया है उस़े वह

नजर्जस समझता हो। मलहाज़ा अगि ममसाल क़े तौि पि उसका मलिास ति हो औि

काकफ़ि क़े िदन स़े छू गया हो औि वह उस़े नजर्जस न समझता हो तो उसक़े चल़े

र्जाऩे क़े िाद उसक़े मलिास को पाक नहीं समझना चाहहय़े।

दोव्वम
ु – उस़े इल्म हो कक उसका िदन या मलिास नजर्जस चीज़ स़े लग गया है ।

73
सोव्वम
ु – कोई शख़्स उस़े उस चीज़ को ऐस़े काम में इस्त़ेमाल कित़े हुए द़े ख़े

जर्जसमें उसका पाक होना ज़रूिी हो, मसलन उस़े उस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़त़े

हुए द़े ख़े।

चहारूम – इस िात का एहततमाल हो कक वह मस


ु लमान र्जो काम इस चीज़ क़े

साथ कि िहा है इसक़े िाि़े में उस़े इल्म है कक उस चीज़ का पाक होना ज़रूिी है।

मलहाज़ा ममसाल क़े तौि पि अगि वह मस


ु लमान यह नहीं र्जानता कक नमाज़ पढ़ऩे

वाल़े का मलिास पाक होना चाहहय़े औि नजर्जस मलिास क़े साथ ही नमाज़ पढ़ िहा

है तो ज़रूिी है कक इन्सान उस मलिास को पाक न समझ़े।

पंर्जुम - वह मस
ु लमान नजर्जस औि पाक चीज़ में फ़कक किता हो- पस अगि वह

मस
ु लमान नजर्जस औि पाक चीज़ में लापिवाई किता हो तो ज़रूिी है कक इन्सान

उस चीज़ को पाक न समझ़े।

228. अगि ककसी शख़्स को यक़ीनन या इत्मीनान हो कक र्जो चीज़ पहल़े

नजर्जस थी अि पाक हो गई है या दो आहदल अश्खास उसक़े पाक होनें क़ी खिि दें

औि उनक़ी शहादत उस चीज़ क़ी पाक़ी का र्जवाज़ िनें तो वह चीज़ पाक है । इसी

तिह वह शख़्स जर्जसक़े पास कोई नजर्जस चीज़ हो कह़े कक वह चीज़ पाक हो गई है

औि वह गलत ियान न हो या ककसी मस


ु लमान ऩे एक नजर्जस चीज़ को धोया हो

गोया यह मआलम
ू न हो कक उसऩे उस़े ठ क तिह स़े धोया है या नहीं तो वह

चीज़ भी पाक है ।

74
229. अगि ककसी ऩे एक शख़्स का मलिास धोऩे क़ी जज़म्म़ेदािी ली हो औि कह़े

कक मैंऩे उस़े धो हदया है औि उस शख़्स को उसक़े यह कहऩे स़े तसल्ली हो र्जाए

तो वह मलिास पाक है ।

230. अगि ककसी शख़्स क़ी यह हालत हो र्जाए कक उस़े ककसी नजर्जस चीज़ क़े

धोए र्जाऩे का यक़ीन ही न आए अगि वह उस चीज़ को जर्जस तिह लोग आमतौि

पि धोत़े हैं धो ल़े तो काफ़़ी है ।

12 –मअम़ूल के मुताबबक (जब़ीहा के) ख़़ून का बह जाना

231. र्जैसा कक मस ्अला 98 में िताया गया है कक ककसी र्जानवि को शिई

तिीक़े स़े जज़बहा किऩे क़े िाद उसक़े िदन स़े मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक (ज़रूिी ममकदाि

में ) खून तनकल र्जाए तो र्जो खून उसक़े िदन क़े अन्दि िाक़ी िह र्जाए वह पाक

है ।

232. मज़कूिा िाला हुक्म जर्जसका ियान मस ्अला 231 में हुआ है एहततयात

क़ी बिना पि उस र्जानवि स़े मख़्सस


ू है जर्जसका गोश्त हलाल हो। जर्जस र्जानवि का

गोश्त हिाम हो उस पि यह हुक्म र्जारि नहीं हो सकता िजल्क एहततयात़े मस्


ु तहि

क़ी बिना पि उसका इत्लाक हलाल गोश्त वाल़े र्जानवि क़े उन अअज़ा पि भी नहीं

हो सकता र्जो हिाम है ।

75
बतयनों के अहकाम

233. र्जो ितकन, कुत्त़े, सव्ु वि या मद


ु ाकि क़े चमड़़े स़े िनाया र्जाए उसमें ककसी

चीज़ का खाना, पीना र्जािकक तिी उसक़ी नर्जासत का मर्ज


ू ीि िनी हो, हिाम है ।

औि उस ितकन को वज़
ु ू औि गस्
ु ल औि ऐस़े दस
ू ि़े कामों में इस्त़ेमाल नहीं किना

चाहहय़े जर्जन्हें पाक चीज़ स़े अन्र्जाम द़े ना ज़रूिी हो औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है

कक कुत्त़े, सव्ु वि औि मद
ु ाकि क़े चमड़़े को ख़्वाह वह ितकन क़ी शक्ल में न भी हो

इस्त़ेमाल न ककया र्जाए।

234. सोऩे औि चांदी क़े ितकनों में खाना पीना िजल्क एहततयात़े वाजर्जि क़ी

बिना पि उनको ककसी तिह भी इस्त़ेमाल किना हिाम है ल़ेककन उनस़े कमिा

वगैिा सर्जाऩे या उन्हें अपऩे पास िखऩे में कोई हिर्ज नहीं गो उनका तकक कि द़े ना

अहवत है । औि सर्जावट या कबज़़े में िखऩे क़े मलय़े सोऩे औि चांदी क़े ितकन

िनाऩे औि उनक़ी खिीद व फ़िोख़्त किऩे का भी यही हुक्म है ।

235. इजस्तकान (शीश़े का छोटा सा चगलास जर्जसमें कहवा पीत़े हैं) का होल्डल

र्जो सोऩे या चांदी स़े िना हुआ हो अगि उस़े ितकन कहा र्जाए तो वह सोऩे औि

चांदी क़े ितकन का हुक्म िखता है औि अगि उस़े ितकन न कहा र्जाए तो उसक़े

इस्त़ेमाल में कोई हर्जक नहीं।

236. ऐस़े ितकनों क़े इस्त़ेमाल में कोई हिर्ज नहीं जर्जन पि सोऩे या चांदी का

पानी चढ़ाया गया हो।

76
237. अगि र्जस्त को सोऩे या चांदी में मखलत
ू (ममचश्रत) किक़े ितकन िनाय़े

र्जायें औि र्जस्त इतनी ज़्यादा ममकदाि में हो कक उस ितकन को सोऩे या चांदी का

ितकन न कहा र्जाए तो उसक़े इस्त़ेमाल में कोई हर्जक नहीं।

238. अगि चगज़ा सोऩे या चांदी क़े ितकन में िखी हो औि कोई शख़्स उस़े दस
ू ि़े

ितकन में उं ड़ेल ल़े तो अगि दस


ू िा ितकन आमतौि पि पहल़े ितकन में खाऩे का

ज़िीआ शम
ु ाि न हो तो ऐसा किऩे में कोई हर्जक नहीं है।

239. हुक्क़े क़े चचल्लम का सिु ाख वाला ढकना (सिपोश), तलवाि या छुिी, चाकू

का म्यान औि कुिआन िखऩे का डडबिा अगि सोऩे या चांदी स़े िऩे हों तो कोई

हिर्ज नहीं ताहम एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक सोऩे या चांदी क़ी िनी हुई

इत्रदानी, सम
ु ाकदानी औि अफ़़ीम दानी इस्त़ेमाल न क़ी र्जाय़े।

240. मर्जििू ी क़ी हालत में सोऩे चांदी क़े ितकनों में इतना खाऩे पीऩे में कोई

हिर्ज नहीं जर्जसस़े भक


ू ममट र्जाए ल़ेककन इसस़े ज़्यादा खाना पीना र्जायज़ नहीं।

241. ऐसा ितकन इस्त़ेमाल किऩे में कोई हिर्ज नहीं जर्जसक़े िाि़े में मालम
ू न हो

कक यह सोऩे या चांदी का है या ककसी औि चीज़ स़े िना हुआ है।

77
इबादात

वुज़ू

242. वज़
ु ू में वाजर्जि है कक च़ेहिा औि दोंनो हाथ धोय़े र्जायें औि सि क़े अगल़े

हहस्स़े औि दोंनो पांव क़े सामऩे वाल़े हहस्स़े का मसाह ककया र्जाए।

243. च़ेहि़े को लम्िाई में प़ेशानी क़े ऊपि उस र्जगह स़े ल़ेकि र्जहां सि क़े िाल

उगत़े हैं ठोड़ी क़े आखखिी ककनाि़े तक धोना ज़रूिी है औि चौढ़ाई में िीच क़ी उं गली

औि अंगठ
ू ़े क़े फ़ैलाव में जर्जतनी र्जगह आ र्जाय़े उस़े धोना ज़रूिी है । अगि इस

ममकदाि का ज़िा सा हहस्सा भी छूट र्जाए तो वज़


ु ू िाततल है। औि अगि इन्सान

को यह यक़ीन न हो कक ज़रूिी हहस्सा पिू ा धल


ु गया है तो यक़ीन किऩे क़े मलय़े

थोड़ा थोड़ा इधि उधि स़े धोना भी ज़रूिी है ।

244. अगि ककसी शख़्स क़े हाथ या च़ेहिा आम लोगों क़ी ितनस्ित िड़़े या छोट़े

हों तो उस़े द़े खना चाहहय़े क़ी आम लोग कहां तक अपना च़ेहिा धोत़े हैं किि वह

भी उतना ही धो डाल़े। अलावा अज़ी अगि उसक़ी प़ेशानी पि िाल उग़े हुएं हों या

सि क़े अगल़े हहस्स़े पि िाल न हों तो उस़े चाहहय़े क़ी आम अन्दाज़़े क़े मत
ु ाबिक

प़ेशानी धो डाल़े।

78
245. अगि इस िात का एहततमाल हो कक भवों, आंख क़े गोशों औि होठों पि

मैल या कोई दस
ू िी चीज़ र्जो पानी क़े उन तक पहुंचऩे में माऩे है औि उसका यह

एहततमाल लोगों क़ी नज़िों में दरूस्त हो तो उस़े वज़


ु ू स़े पहल़े तहक़ीक कि ल़ेनी

चाहहय़े। औि अगि कोई ऐसी चीज़ हो तो उस़े दिू किना चाहहय़े।

246. अगि च़ेहि़े क़ी जर्जल्द िालों क़े नीच़े स़े नज़ि आती हो तो पानी जर्जल्द

तक पहुंचाना ज़रूिी है औि अगि नज़ि न आती हो तो िालों का धोना काफ़़ी है

औि उनक़े नीच़े तक पानी पहुंचाना ज़रूिी नहीं।

247. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक आया उसक़े च़ेहि़े क़ी जर्जल्द िालों क़े

नीच़े स़े नज़ि आती है या नहीं तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

िालों को धोए औि पानी जर्जल्द तक भी पहुंचाए।

248. नाक क़े अन्दरूनी हहस्स़े औि होंठों औि आंखों क़े उन हहस्सों का र्जो िन्द

किऩे पि नज़ि नहीं आत़े धोना वाजर्जि नहीं है। ल़ेककन अगि ककसी इन्सान को

यह यक़ीन न हो कक जर्जन र्जगहों का धोना ज़रूिी है उनमें कोई र्जगह िाक़ी नहीं

िही तो वाजर्जि है कक उन अअज़ा का कुछ इज़ाफ़़ी हहस्सा भी धो ल़े ताकक उस़े

यक़ीन हो र्जाए। औि जर्जस शख़्स को इस (मज़कूिा) िात का इल्म न हो अगि

उसऩे र्जो वज़


ु ू ककया है उसमें ज़रूिी हहस्स़े धोऩे या न धोऩे क़े िाि़े में र्जानता हो

तो उस वज़
ु ू स़े उसऩे र्जो नमाज़ पढ़ी है वह सहीह है औि िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े

वज़
ु ू किना ज़रूिी नहीं है ।

79
249. एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना क़ी बिना पि ज़रूिी है कक हाथों औि उसी

तिह च़ेहि़े को ऊपि स़े नीच़े क़ी तिफ़ धोया र्जाए। अगि नीच़े स़े ऊपि क़ी तिफ़

धोए र्जायें तो वज़


ु ू िाततल होगा।

250. अगि हथ़ेली पानी स़े ति किक़े च़ेहि़े औि हाथों पि ि़ेिी र्जाए औि हाथ

में इतनी तिी हो कक उस़े ि़ेिऩे स़े पिू ़े च़ेहि़े औि हाथों पि पानी पहुंच र्जाए तो

काफ़़ी है। उन पि पानी का िहना ज़रूिी नहीं।

251. च़ेहिा धोऩे क़े िाद पहल़े दायां हाथ औि किि िायां हाथ कोहनी स़े

उं गमू लयों क़े मसिों तक धोना चाहहय़े।

252. अगि इंसान को यक़ीन न हो कक कोहनी को पिू ी तिह धो मलया है तो

यक़ीन किऩे क़े मलय़े कोहनी स़े ऊपि का कुछ हहस्सा भी धोना ज़रूिी है ।

253. जर्जस शख़्स ऩे च़ेहिा धोऩे स़े पहल़े अपऩे हाथों को कलाई क़े र्जोड़ तक

धोया हो उस़े चाहहय़े कक वज़


ु ू कित़े वक़्त उं गमलयों क़े मसिों तक धोए। अगि वह

मसफ़क कलाई क़े र्जोड़ तक धोय़ेगा तो उसका वज़


ु ू िाततल होगा।

254. वज़
ु ू में च़ेहि़े औि हाथों का एक दफ़् आ धोना वाजर्जि, दस
ू िी दफ़् आ धोना

मस्
ु तहि औि तीसिी दफ़् आ या इसस़े ज़्यादा िाि धोना हिाम है। एक दफ़् आ धोना

उस वक़्त मक
ु म्मल होगा र्जि वज़
ु ू क़ी तनयत स़े इतना पानी च़ेहि़े या हाथ पि

डाल़े कक वह पानी पिू ़े च़ेहि़े या हाथ पि पहुंच र्जाए औि एहततयातन कोई र्जगह

िाक़ी न िह़े मलहाज़ा अगि पहली दफ़् आ धोऩे क़ी तनयत स़े दस िाि भी च़ेहि़े पि

80
पानी डाल़े तो इसमें कोई हिर्ज नहीं है । यानी मसलन र्जि तक वज़
ु ू किऩे या च़ेहिा

धोऩे क़ी तनयत न कि़े पहली िाि शम


ु ाि नहीं होगा मलहाज़ा अगि चाह़े तो चन्द

िाि च़ेहि़े को धो ल़े औि आखखिी िाि च़ेहिा धोत़े वक़्त वज़


ु ू क़ी तनयत कि सकता

है । ल़ेककन दस
ू िी दफ़् आ धोऩे में तनयत का मोतिि होना इश्काल स़े खाली नहीं है

औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक अगिच़े वज़


ु ू क़ी तनयत स़े न भी हो तो एक

दफ़् आ धोऩे क़े िाद एक िाि स़े ज़्यादा च़ेहि़े या हाथों को न धोएं।

255. दोनों हाथ धोऩे क़े िाद सि क़े अगल़े हहस्स़े का मसह वज़
ु ू क़े पानी क़ी

उस तिी स़े किना चाहहय़े र्जो हाधों को लगी िह गई हो औि एहततयात़े मस्


ु तहि

यह है कक मसह दायें हाथ स़े ककया र्जाए र्जो ऊपि स़े नीच़े क़ी तिफ़ हो।

256. सि क़े चाि हहस्सों में स़े प़ेशानी स़े ममला हुआ एक हहस्सा वह मकाम है

र्जहां मसाह किना चाहहय़े। इस हहस्स़े में र्जहां भी औि जर्जस अन्दाज़ में भी मसा

किें काफ़़ी है । अगि च़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक तूल में एक उं गली क़ी

लम्िाई क़े औि अज़क में तीन ममली हुई उं गलीयो क़े लगभग मसह ककया र्जाए।

257. यह ज़रूिी नहीं कक सि का मसह जर्जल्द पि ककया र्जाए िजल्क सि क़े

अगल़े हहस्स़े क़े िालों पि किना भी दरू


ु स्त है ल़ेककन अगि ककसी क़े सि क़े िाल

इतऩे लम्ि़े हों कक मसलन अगि कंर्ा कि़े तो चहि़े पि आ चगिें या सि क़े ककसी

दस
ू ि़े हहस्स़े तक र्जा पहुंचें तो ज़रूिी है कक वह िालों क़ी र्जड़ों या मांग तनकाल कि

सि क़ी जर्जल्द पि मसह कि़े । औि अगि वह च़ेहि़े पि आ चगिऩे वाल़े या सि क़े

81
दस
ू ि़े हहस्सों तक पहुंचऩे वाल़े िालों को आग़े क़ी तिफ़ र्जमअ किक़े उन पि मसह

कि़े गा या सि क़े दस
ू ि़े हहस्सों क़े िालों पि र्जो आग़े को िढ़ आए हो मसह कि़े गा

तो ऐसा मसह िाततल है ।

258. सि क़े मसह क़े िाद वज़


ु ू क़े पानी क़ी उस तिी स़े र्जो हाथों में िाक़ी हो

पांव क़ी ककसी एक उं गली स़े ल़ेकि पांव क़े र्जोड़ तक मसह किना ज़रूिी है । औि

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक दांय़े पैि का दायें हाथ स़े औि िायें पैि का िायें हाथ

स़े मसह ककया र्जाए।

259. पांव पि मसह का अिज़ जर्जतना भी हो काफ़़ी है ल़ेककन ि़ेहति है कक तीन

र्जुड़ी हुई उं गूलीयों क़ी चौड़ाई क़े ििािि हो औि उसस़े भी ि़ेहति यह है कक पांव क़े

पिू ़े ऊपिी हहस्स़े का मसह पिू ी हथ़ेली स़े ककया र्जाए।

260. एहततयात यह है कक पांव का मसह कित़े वक़्त हाथ उं गमलयों क़े मसिो पि

िख़े औि किि पांव क़े उभाि क़ी र्जातनि खींच़े या हाथ पांव क़े र्जोड़ पि िख कि

उं गमलयों क़े मसिों क़ी तिफ़ खीचें । यह दरू


ु स्त नहीं क़ी पिू ा हाथ पांव पि िख़े औि

थोड़ा सा खींच।़े

261. सि औि पांव का मसह कित़े वक़्त हाथ उन पि खींचना ज़रूिी है । औि

अगि हाथ को साककन िख़े औि सि या पांव को उस पि चलाए तो िाततल है

ल़ेककन हाथ खींचऩे क़े वक़्त सि औि पांव मामल


ू ी हिकत किें तो हिर्ज नहीं।

82
262. जर्जस र्जगह का मसह किना हो वह खश्ु क होनी चाहहय़े। अगि वह इस

कदि ति हो कक हथ़ेली क़ी तिी उस पि असि न कि़े तो मसह िाततल है । ल़ेककन

अगि उस पि नमी हो या तिी इतनी कम हो कक वह हथ़ेली क़ी तिी स़े खत्म हो

र्जाए तो किि कोई हर्जक नहीं।

263. अगि मसह किऩे क़े मलय़े हथ़ेली पि तिी िाक़ी न िही हो तो उस़े दस
ू ि़े

पानी स़े ति नहीं ककया र्जा सकता िजल्क ऐसी सिू त में अपनी दाढ़ी क़ी तिी ल़ेकि

उसस़े मसह किना चाहहय़े। औि दाढ़ी क़े अलावा औि ककसी र्जगह स़े तिी ल़ेकि

मसह किना महल्ल़े इश्काल है।

264. अगि हथ़ेली क़ी तिी मसफ़क सि क़े मसह क़े मलय़े काफ़़ी हो तो एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक सि का मसह उस तिी स़े ककया र्जाए औि पांव क़े मसह क़े

मलय़े अपनी दाढ़ी स़े तिी हामसल कि़े ।

265. मोज़़े औि र्जूत़े पि मसह किना िाततल है । हां अगि सख़्त सदी क़ी वर्जह

स़े या चोि या दरिन्द़े वगैिह क़े खौफ़ स़े र्जत


ू ़े या मोज़़े न उताि़े र्जा सकें तो

एहततयात वाजर्जि यह है कक मोज़़े औि र्जत


ू ़े पि मसह किें औि तयम्मम
ु भी किें ।

औि तकैया क़ी सिू त में मोज़़े औि र्जत


ू ़े पि मसह किना काफ़़ी है ।

266. अगि पांव का ऊपि वाला हहस्सा नजर्जस हो औि मसह किऩे क़े मलय़े उस़े

धोया भी न र्जा सकता हो तो तयम्मम


ु किना ज़रूिी है।

83
इिततमास़ी वज
ु ़ू

267. इिततमासी वज़


ु ू यह है कक इन्सान च़ेहि़े औि हाथों को वज़
ु ू क़ी तनयत स़े

पानी में डुिो द़े । िज़ाहहि इिततमासी तिीक़े स़े धल


ु ़े हुए हाथ क़ी तिी स़े मसह

किऩे में कोई हिर्ज नहीं है। ल़ेककन ऐसा किना खखलाफ़़े एहततयात है ।

268. इिततमासी वज़


ु ू में भी च़ेहिा औि हाथ ऊपि स़े नीच़े क़ी तिफ़ धोऩे

चाहहयें। मलहाज़ा र्जि कोई शख़्स वज़


ु ू क़ी तनयत स़े च़ेहिा औि हाथ पानी में डुिोए

तो ज़रूिी है कक च़ेहिा प़ेशानी क़ी तिफ़ स़े औि हाथ कोहतनयों क़ी तिफ़ स़े डुिोए।

269. अगि कोई शख़्स िाज़ अअज़ा का वज़


ु ू इिततमासी तिीक़े स़े औि िाज़ का

गैि इिततमासी (यानी तितीिी) तिीक़े स़े कि़े कोई हिर्ज नहीं।

दआ
ु यें जजनका वज
ु ़ू किते वक़्त पढ़ना जरूिी है

270. र्जो शख़्स वज़


ु ू किऩे लग़े उसक़े मलय़े मस्
ु तहि है कक र्जि उसक़ी नज़ि

पानी पि पड़़े तो यह दआ
ु पढ़़े ः-

बिजस्मल्लाह़े व बिल्लाह़े वलहम्दो मलल्लाह़े र्जअलल माअ तहूिौं व लम ् यर्ज ्अल्हो

नर्जसा।

र्जि वज़
ु ू स़े पहल़े अपऩे हाथ धोए तो यह दआ
ु पढ़़े ः-

अल्लाहुम्मर्ज अल्नी ममनत्ताव्विीना वर्ज ्अलनी ममनल मत


ु तह्ह- िीना ।
84
कुल्ली कित़े वक़्त यह दआ
ु पढ़़े ः-

अल्लाहुम्मा लक्क़ेनी हुज्र्जती यौमा अल्काका व अजत्लक मलसानी ि़े जज़कि़े का ।

नाक में पानी डालत़े वक़्त यह दआ


ु पढ़़े ः-

अल्लाहुम्मा ला तुहरिम अलैय्या िीहल र्जन्नत़े वर्ज ् अल्नी ममम्मैंयशम्


ु मो िीहहा

व िौहहा व तीिहा ।

च़ेहिा धोत़े वक़्त यह दआ


ु पढ़़े ः-

अल्लाहुम्मा िैजय्यज़ वज्ही यौमा तसव्वदल


ु वर्ज
ु ूहो वला तुसजव्वद वज्ही यौमा

तबयज्र्जुल वर्ज
ु ूहो ।

दायां हाथ धोत़े वक़्त यह दआ


ु पढ़़े ः-

अल्लाहुम्मा अअततनी ककतािी ि़े यमीनी वल खल्


ु दा कफ़ल जर्जनाऩे यसािी व

हामसबनी हहसािैं य्यसीिा ।

िायां हाथ धोत़े वक़्त यह दआ


ु पढ़़े ः-

85
अल्लाहुम्मा ला तोअततनी ककतािी ि़ेमशमाली वला ममंव्विाए ज़हिी व ला

तर्ज ्अल्हा मगलल


ू तन
ु इला उनक
ु ़ी व अऊज़ोबिका ममंम्मक
ु त्त़े आततन नीिाऩे ।

सि का मसह कित़े वक़्त यह दआ


ु पढ़़े ः-

अल्ला हुम्मा सजबितनी अलजस्सिात़े यौमा तजज़ल्लो फ़़ीहहल अकदामो वर्ज ्अल

सअयी फ़़ी मा यिु ज़ीका अन्नी या ज़ल र्जलाल़े वल इकिाम ।

वुज़ू सहीह होने की शिायत

वज़
ु ू क़े सहीह होऩे क़े चन्द शिायत हैः-

(पहली शतक) वज़


ु ू का पानी पाक हो। एक कौल क़ी बिना पि वज़
ु ू का पानी चीज़ों

मसलन हलाल गोश्त क़े प़ेशाि, पाक मद


ु ाकि औि ज़ख़्स क़ी िीम स़े आलद
ू ा न हो

जर्जनस़े इन्सान को तर्न आती हो अगि च़े शिई मलहाज़ स़े (ऐसा पानी) पाक है

औि यह कौल एहततयात क़ी बिना पि है।

(दस
ू िी शतक) पानी मत
ु लक हो ।

86
271. नजर्जस या मज़
ु ाफ़ पानी स़े वज़
ु ू किना िाततल है ख़्वाह वज़
ु ू किऩे वाला

शख़्स उसक़े नजर्जस या मज़


ु ाफ़ होऩे क़े िाि़े में इल्म न िखता हो या भल
ू गया हो

कक वह नजर्जस या मज़
ु ाफ़ पानी है। मलहाज़ा अगि वह ऐस़े पानी स़े वज़
ु ू किक़े

नमाज़ पढ़ चक
ु ा हो तो सहीह वज़
ु ू किक़े दोिािा नमाज़ पढ़ना ज़रूिी है।

272. अगि एक शख़्स क़े पास ममट्टी ममल़े हुए मज़


ु ाफ़ पानी क़े अलावा औि

कोई पानी वज़


ु ू क़े मलय़े न हो औि नमाज़ का वक़्त तंग हो तो ज़रूिी है कक

तयम्मम
ु कि ल़े। ल़ेककन अगि वक़्त तंग न हो तो ज़रूिी है कक पानी क़े साफ़

होऩे का इन्त़ेज़ाि कि़े या ककसी तिीक़े स़े उस पानी को साफ़ कि़े औि वज़
ु ू कि़े ।

(तीसिी शतक) वज़


ु ू का पानी मि
ु ाह हो ।

273. ऐस़े पानी स़े वज़


ु ू किना र्जो गस्ि ककया गया हो या उसक़े िाि़े में यह

इल्म न हो कक इसका मामलक इसक़े इस्त़ेमाल पि िाज़ी है या नहीं हिाम औि

िाततल है। अलावा अगि च़ेहि़े औि हाथों स़े वज़


ु ू का पानी गस्ि क़ी हुई र्जगह पि

चगिता हो या वह र्जगह जर्जसमें वज़


ु ू कि िहा है गस्िी है औि वज़
ु ू किऩे क़े मलय़े

कोई औि र्जगह भी न हो तो मत
ु अजल्लका शख़्स का फ़िीज़ा तयम्मम
ु है। औि

अगि ककसी दस
ू िी र्जगह वज़
ु ू कि सकता हो तो ज़रूिी है कक दस
ू िी र्जगह वज़
ु ू कि़े ।

ल़ेककन अगि दोंनो सिू तों में गुनाह का इिततकाि कित़े हुए उसी र्जगह वज़
ु ू कि ल़े

तो उसका वज़
ु ू सहीह है ।

87
274. ककसी मरस़े क़े ऐस़े हौज़ स़े वज़
ु ू किऩे में कोई हिर्ज नहीं जर्जसक़े िाि़े में

यह इल्म न हो कक आया वह तमाम लोंगो क़े मलय़े वक़्फ़ ककया गया है या मसफ़क

मरस़े क़े तलिा क़े मलय़े वक़्फ़ है औि सिू त यह हो कक लोग उमम


ू न उसस़े वज़
ु ू

कित़े हों औि कोई मनअ न किता हो।

275. अगि कोई शख़्स एक मजस्र्जद में नमाज़ पढ़ना चाहता हो औि यह भी न

र्जानता हो कक आया इस मजस्र्जद का हौज़ तमाम लोगों क़े मलय़े वक़्फ़ है या मसफ़क

उन लोगों क़े मलय़े र्जो इस मजस्र्जद में नमाज़ पढ़त़े हैं तो उसक़े मलय़े उस हौज़ स़े

वज़
ु ू किना दरू
ु स्त नहीं ल़ेककन उमम
ू न वह लोग भी उस हौज़ स़े वज़
ु ू कित़े हों र्जो

उस मजस्र्जद में नमाज़ न पढ़ना चाहत़े हों औि कोई मनअ न किता हो तो वह

शख़्स भी उस हौज़ स़े वज़


ु ू कि सकता है ।

276. सिाय, मस
ु ाकफ़ि खानों औि ऐस़े ही दस
ू ि़े मकामात क़े हौज़ स़े उन लोगों

का र्जो उसमें मक
ु ़ीम न हो, वज़
ु ू किना उसी सिू त में दरू
ु स्त है र्जि उमम
ू न ऐस़े

लोग भी र्जो वहां मक


ु ़ीम न हो उस हौज़ स़े वज़
ु ू कित़े हों औि कोई मनअ न

किता हो।

277. िड़ी नहिों स़े वज़


ु ू किऩे में कोई हिर्ज नहीं अगिच़े इन्सान न र्जानता हो

कक उनका मामलक िाज़ी है या नहीं। ल़ेककन उन नहिों का मामलक वज़


ु ू किऩे स़े

मनअ कि़े या मालम


ू हो कक वह उनस़े वज़
ु ू किऩे पि िाज़ी नहीं या उनका मामलक

88
नािामलग या पागल हो तो एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उन नहिों क़े पानी स़े

वज़
ु ू न किें ।

278. अगि कोई शख़्स यह भल


ू र्जाए कक पानी गस्िी है औि उसस़े वज़
ु ू कि ल़े

तो उसका वज़
ु ू सहीह है । ल़ेककन अगि ककसी शख़्स ऩे खुद पानी गस्ि ककया हो

औि िाद में भल
ू र्जाए कक यह पानी गस्िी है औि उसस़े वज़
ु ू किल़े तो उसका वज़
ु ू

सहीह होऩे में इश्काल है ।

(चौथी शतक) वज़


ु ू का ितकन मि
ु ाह हो ।

(पांचवी शतक) वज़


ु ू का ितकन एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि सोऩे या चांदी का

िना हुआ न हो । इन दो शतों क़ी तफ़्सील िाद वाल़े मस ्अल़े में आ िही है ।

279. अगि वज़


ु ू का पानी गस्िी या सोऩे चांदी क़े ितकन में हो औि उस शख़्स

क़े पास उसक़े अलावा औि कोई पानी न हो तो अगि वह उस पानी को शिई

तिीक़े स़े दस
ू ि़े ितकन में उं ड़़ेल सकता हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक उस़े ककसी

दस
ू ि़े ितकन में उं ड़ेल ल़े औि किि उसस़े वज़
ु ू कि़े औि अगि ऐसा किना आसान न

हो तो तयम्मम
ु किना ज़रूिी है । औि अगि उसक़े पास उसक़े अलावा दस
ू िा पानी

मौर्जूद हो तो ज़रूिी है कक उसस़े वज़


ु ू कि़े । औि अगि वह इन दोनों सिू तों में वह

89
सहीह तिीक़े स़े अमल न कित़े हुए, उस पानी स़े र्जो गस्िी है या सोऩे चांदी क़े

ितकन में है वज़


ु ू किल़े तो उसका वज़
ु ू सहीह है ।

280. अगि ककसी हौज़ में ममसाल क़े तौि पि गस्ि क़ी हुई एक ईंट या एक

पत्थि लगा हो औि उफ़े आम में उस हौज़ में स़े पानी तनकालना उस ईंट या

पत्थि पि तसरूकफ़ न समझा र्जाए तो पानी का तनकालना हिाम है ल़ेककन उसस़े

वज़
ु ू किना सहीह है ।

181. अगि आइम्मा ए ताहहिीन (अ0) या उनक़ी औलाद क़े मजक़्िि़े क़े सहन में

र्जो पहल़े कबब्रस्तान था कोई हौज़ या नहि खोदी र्जाए औि यह इल्म न हो कक

सहन क़ी ज़मीन कबब्रस्तान क़े मलय़े वक़्फ़ हो चक


ु ़ी है तो उस हौज़ या नहि क़े

पानी स़े वज़


ु ू किऩे में कोई हिर्ज नहीं।

(छठ शतक) वज़


ु ू क़े अअज़ा धोत़े वक़्त औि मसह कित़े वक़्त पाक हों।

282. अगि वज़


ु ू मक
ु म्मल होऩे स़े पहल़े वह मक
ु ाम नजर्जस हो र्जाए जर्जस़े धोया

र्जा चक
ु ा है या जर्जसका मसह ककया र्जा चक
ु ा है तो वज़
ु ू सहीह है ।

283. अगि अअज़ाए वज़


ु ू क़े मसवा िदन का कोई हहस्सा नजर्जस हो तो वज़
ु ू

सहीह है ल़ेककन अगि पखाऩे या प़ेशाि क़े मक


ु ाम को पाक न ककया गया हो तो

किि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक पहल़े उन्हें पाक किें औि किि वज़
ु ू कि़े ।

90
284. अगि वज़
ु ू क़े अअज़ा में स़े कोई उज़्व नजर्जस हो औि वज़
ु ू किऩे क़े िाद

मत
ु अजल्लका शख़्स को शक गज़
ु ि़े कक आया वज़
ु ू किऩे स़े पहल़े उस उज़्व को

धोया था या नहीं तो वज़


ु ू सहीह है ल़ेककन उस नजर्जस मकाम को धोना ज़रूिी है ।

285. अगि ककसी क़े च़ेहि़े पि या हाथों पि कोई ऐसी खिाश या ज़ख़्म हो

जर्जसस़े खून न रूकता हो औि पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि न हो तो ज़रूिी है कक उस

उज़्व क़े सहीह सामलम अअज़ा को तितीिवाि धोऩे क़े िाद ज़ख़्म या खिाश वाल़े

हहस्स़े को कुि ििािि पानी या र्जािी पानी में डुिो द़े औि उस़े इस कर दिाए क़ी

खन
ू िन्द हो र्जाए औि पानी क़े अन्दि ही अपनी उं गली ज़ख़्म या खिाश पि िख

कि ऊपि स़े नीच़े क़ी तिफ़ खींच़े ताकक उस (खिाश या ज़ख़्म) पि पानी र्जािी हो

र्जाए, इस तिह उसका वज़


ु ू सहीह हो र्जाय़ेगा।

(सातवीं शतक) वज़


ु ू किऩे औि नमाज़ पढ़ऩे क़े मलय़े वक़्त काफ़़ी हो ।

286. अगि वक़्त इतना तंग हो कक मत


ु अजल्लका शख़्स वज़
ु ू कि़े तो सािी क़ी

सािी नमाज़ या उसका कुछ हहस्सा वक़्त क़े िाद पढ़ना पड़़े तो ज़रूिी है कक

तयम्मम
ु कि ल़े ल़ेककन अगि तयम्मम
ु औि वज़
ु ू क़े मलय़े तकिीिन यक़्सा वक़्त

दिकाि हो तो किि वज़


ु ू कि़े ।

287. जर्जस शख़्स क़े मलय़े नमाज़ का वक़्त तंग होऩे क़े िाइस तयम्मम
ु किना

ज़रूिी हो अगि वह कस्द़े कुिकत क़ी तनयत स़े या ककसी मस्


ु तहि काम मसलन

91
कुिआऩे मर्जीद पढ़ऩे क़े मलय़े वज़
ु ू कि़े तो उसका वज़
ु ू सहीह है । औि अगि उसी

नमाज़ को पढ़ऩे क़े मलय़े वज़


ु ू कि़े तो भी यही हुक्म है ल़ेककन उस़े कस्द़े कुिकत

हामसल नहीं होगा।

(आठवीं शतक) वज़


ु ू कस्द़े कुिकत यानी अल्लाह तआला क़ी रिज़ा क़े मलय़े ककया

र्जाए। अगि अपऩे आपको ठं डक पहुंचाऩे या ककसी औि तनयत स़े ककया र्जाए तो

वज़
ु ू िाततल है ।

288. वज़
ु ू क़ी तनयत ज़िान स़े या हदल स़े किना ज़रूिी नहीं िजल्क अगि एक

शख़्स वज़
ु ू क़े तमाम अफ़् आल अल्लाह तआला क़े हुक्म पि अमल किऩे क़ी नीयत

स़े िर्जा लाए तो काफ़़ी है।

(नवीं शतक) वज़


ु ू इस तितीि स़े ककया र्जाए जर्जसका जज़क्र ऊपि हो चक
ु ा है यानी

पहल़े च़ेहिा उसक़े िाद दायां औि किि िायां हाथ धोया र्जाए उसक़े िाद सि का

औि पांव का मसह ककया र्जाए औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक दोनों पांव का

एक साथ मसह न ककया र्जाए िजल्क िांय़े पांव का मसह दांय़े पांव क़े िाद ककया

र्जाए।

(दसवीं शतक) वज़


ु ू क़े अफ़् आल सि अंर्जाम द़े ऩे में फ़ामसला न हो।

92
289. अगि वज़
ु ू क़े अफ़् आल क़े दिममयान इतना फ़ासला हो र्जाए कक उफ़े आम

में मत
ु ावातति धोना न कहलाए तो वज़
ु ू िाततल है ल़ेककन अगि ककसी शख़्स को

कोई उज्र प़ेश आ र्जाए मसलन यह कक भल


ू र्जाए या पानी खत्म हो र्जाए तो उस

सिू त में बिला फ़ामसला धोऩे क़ी शतक मोअतिि नहीं है । िजल्क वज़
ु ू किऩे वाला

शख़्स जर्जस वक़्त चाह़े ककसी उज़्व को धो ल़े या उसका मसह कि ल़े तो इस

आशना में अगि उन मकामात क़ी तिी खुश्क हो र्जाए जर्जन्हें वह पहल़े धो चक
ु ा हो

या जर्जनका मसह कि चक
ु ा हो तो वज़
ु ू िाततल होगा, ल़ेककन अगि जर्जस उज़्व को

धोना है या मसह किना है मसफ़क उसस़े पहल़े धोए हुए या मसह ककय़े हुए उज़्व क़ी

तिी खश्ु क हो गई हो मसलन र्जि िायां हाथ धोत़े वक़्त दांयें हाथ क़ी तिी खुश्क

हो चक
ु ़ी हो ल़ेककन च़ेहिा ति हो तो वज़
ु ू सहीह है।

290. अगि कोई शख़्स वज़


ु ू क़े अफ़् आल बिला फ़ामसला अन्र्जाम द़े ल़ेककन गमक

हवा या िदन क़ी तप या ककसी औि ऐसी ही वर्जह स़े पहली र्जगहों क़ी तिी (यानी

उन र्जगहों क़ी तिी जर्जन्ह़े वह पहल़े धो चक


ु ा हो या जर्जनका मसह कि चक
ु ा हो)

खश्ु क हो र्जाए तो उसका वज़


ु ू सहीह है ।

291. वज़
ु ू क़े दौिान चलऩे कििऩे में कोई हर्जक नहीं मलहाज़ा अगि कोई शख़्स

च़ेहिा औि हाथ धोऩे क़े िाद चन्द कदम चल़े औि किि सि औि पांवो का मसह

कि़े तो उसका वज़


ु ू सही है।

93
(ग्यािहवीं शतक) इन्सान खुद अपना च़ेहिा औि हाथ धोए औि किि सि औि

पावों का मसह कि़े अगि कोई दस


ू िा उस़े वज़
ु ू किाए या उसक़े च़ेहि़े या हाथों पि

पानी डाल द़े या सि औि पांव का मसह किऩे में उसक़ी मदद कि़े तो उसका वज़
ु ू

िाततल है ।

292. अगि कोई शख़्स खुद वज़


ु ू न कि सकता हो तो ककसी दस
ू ि़े शख़्स स़े

मदद ल़े अगिच़े धोऩे औि मसह किऩे में हत्तल इम्कान दोनों क़ी मशककत ज़रूिी है ।

औि अगि वह शख़्स उर्जित मांग़े तो अगि उसक़ी अदायगी कि सकता हो तो औि

ऐसा किना उसक़े मलय़े माली तौि पि नक


ु सान द़े ह न हो तो उर्जित अदा किना

ज़ूरूिी है। नीज़ ज़रूिी है कक वज़


ु ू क़ी तनयत खुद कि़े औि अपऩे हाथ स़े मसह कि़े

औि अगि खुद दस
ू ि़े क़े साथ मशककत न कि सकता हो तो ज़रूिी है कक ककसी दस
ू ि़े

शख़्स स़े मदद ल़े र्जो उस़े वज़


ु ू कि वाए या इस सिू त में एहततयात़े वाजर्जि यह है

कक दोनों वज़
ु ू क़ी तनयत किें । औि अगि यह मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक

उसका नायि उसका हाथ पकड़ कि उसक़ी मसह क़ी र्जगहों पि ि़ेि़े औि अगि यह

मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक नायि उसक़े हाथ स़े तिी हामसल कि़े औि उस तिी

स़े उसक़े सि औि पांव का मसह कि़े ।

293. वज़
ु ू क़े र्जो भी अफ़् आल इन्सान िज़ात़े खुद अन्र्जाम द़े सकता हो ज़रूिी

है कक उन्हें अंर्जाम द़े ऩे क़े मलय़े दस


ू िों क़ी मदद न ल़े।

94
(िािहवीं शतक) वज़
ु ू किऩे वाल़े क़े मलय़े पानी क़े इस्त़ेमाल में कोई रूकावट न हो

294. जर्जस शख़्स को खौफ़ हो कक वज़


ु ू किऩे स़े िीमाि हो र्जाय़ेगा या उस पानी

स़े वज़
ु ू कि़े गा तो प्यासा िह र्जाय़ेगा उसका फ़िीज़ा वज़
ु ू नहीं है औि अगि उस़े

इल्म न हो कक पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि है औि वह वज़


ु ू कि ल़े औि उस़े वज़
ु ू

किऩे स़े नक
ु सान पहुंच़े तो उसका वज़
ु ू िाततल है ।

295. अगि च़ेहि़े या हाथों को इतऩे कम पानी स़े धोना, जर्जसस़े वज़
ु ू सहीह हो

र्जाता हो ज़िि िसां न हो, औि उसस़े ज़्यादाति ज़िि िसां हो तो ज़रूिी है कक कम

ममकदाि में ही वज़


ु ू कि़े ।

(त़ेिहवीं शतक) वज़


ु ू क़े अअज़ा तक पानी पहुंचऩे में कोई रूकावट न हो।

296. अगि ककसी शख़्स को मालम


ू हो कक वज़
ु ू क़े अअज़ा पि कोई चीज़ लगी

हुई है, ल़ेककन इस िाि़े में उस़े शक हो कक आया वह चीज़ पानी क़े उन अअज़ा

तक पहुंचऩे में माऩे है या नहीं तो ज़रूिी है कक या तो उस चीज़ को हटा द़े या

पानी उसक़े नीच़े तक पहुंचाए।

297. अगि नाखून क़े नीच़े मैल हो तो वज़


ु ू दरू
ु स्त है ल़ेककन अगि नाखून काटा

र्जाए औि उस मैल क़ी वर्जह स़े पानी खाल तक न पहुंच़े तो वज़


ु ू क़े मलय़े उस मैल

का दिू किना ज़रूिी है । अलावा अज़ी अगि नाखून मामल


ू स़े ज़्यादा िढ़ र्जाए तो

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जर्जतना हहस्सा मामल
ू स़े ज़्यादा िढ़ा हुआ हो उसक़े नीच़े स़े मैल तनकालना ज़रूिी

है ।

298. अगि ककसी क़े च़ेहि़े , हाथों, सि क़े अगल़े हहस्स़े या पांव क़े ऊपि वाल़े

हहस्स़े पि र्जल र्जाऩे या ककसी औि वर्जह स़े विम हो र्जाए तो उस़े धो ल़ेना औि

उस पि मसह कि ल़ेना काफ़़ी है औि अगि उसमें सिू ाख हो र्जाए तो पानी जर्जल्द

क़े नीच़े पहुंचाना ज़रूिी नहीं िजल्क अगि जर्जल्द का एक हहस्सा उखड़ र्जाए ति भी

यह ज़रूिी नहीं क़ी र्जो हहस्सा नहीं उखड़ा उसक़े नीच़े तक पानी पहुंचाया र्जाए

ल़ेककन र्जि उखड़ी हुई जर्जल्द कभी िदन स़े चचपक र्जाती हो औि कभी ऊपि उठ

र्जाती हो तो ज़रूिी है कक या तो उस़े काट दें या उसक़े नीच़े पानी पहुंचाए।

299. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक उसक़े वज़


ु ू क़े अअज़ा स़े कोई चीज़

चचपक़ी हुई है या नहीं औि उसका यह एहततमाल लोगों क़ी नज़िों में भी दरू
ु स्त हो

मसलन गाि़े स़े कोई काम किऩे क़े िाद शक हो कक गािा उसक़े हाथ स़े लगा िह

गया है या नहीं तो ज़रूिी है कक तहक़ीक कि ल़े या हाथ को इतना मलें कक

इत्मीनान हो र्जाए कक अगि उस पि गािा लगा िह गया था तो वह दिू हो गया है

या पानी उसक़े नीच़े पहुंच गया है ।

300. जर्जस र्जगह को धोना या जर्जस र्जगह का मसह किना हो अगि उस पि

मैल हो ल़ेककन वह मैल पानी क़े जर्जल्द तक पहुंचऩे में रूकावट न डाल़े तो कोई

हिर्ज नहीं। इसी तिह अगि पलस्ति वगैिह का काम किऩे क़े िाद सफ़़ेदी हाथ पि

96
लगी िह र्जाए र्जो पानी को जर्जल्द तक पहुंचऩे स़े न िोक़े तो उसमें भी कोई हिर्ज

नहीं। ल़ेककन अगि शक हो कक उन चीज़ों क़ी मौर्जद


ू गी पानी क़े जर्जल्द तक पहुंचऩे

में माऩे है या नहीं तो उन्हें दिू किना ज़रूिी है ।

301. अगि कोई शख़्स वज़


ु ू किऩे स़े पहल़े र्जानता हो कक वज़
ु ू क़े अअज़ा पि

ऐसी चीज़ मौर्जूद है र्जो उन तक पानी पहुंचऩे में माऩे है औि वज़


ु ू क़े िाद शक

कि़े कक वज़
ु ू कित़े वक़्त पानी उन अअज़ा तक पहुंचा है या नहीं तो उसका वज़
ु ू

सहीह है।

302. अगि वज़


ु ू क़े िाज़ अअज़ा में ऐसी रूकावट हो जर्जसक़े नीच़े पानी कभी तो

खुद ि खुद चला र्जाता हो औि कभी न पहुंचता हो औि इन्सान वज़


ु ू क़े िाद शक

कि़े कक पानी उसक़े नीच़े पहुंचा है या नहीं र्जिकक वह र्जानता हो कक वज़


ु ू क़े वक़्त

वह उस रुकावट क़े नीच़े पानी पह


ु ं चऩे क़ी र्जातनि मत
ु वज्र्जह न था तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक दोिािा वज़
ु ू कि़े ।

303. अगि कोई शख़्स वज़


ु ू किऩे क़े िाद वज़
ु ू क़े अअज़ा पि कोई ऐसी चीज़

द़े ख़े र्जो पानी क़े िदन तक पहुंचऩे में माऩे हो औि उस़े यह मालम
ू न हो कक वज़
ु ू

क़े वक़्त यह चीज़ मौर्जूद थी या िाद में पैदा हुई तो उसका वज़
ु ू सहीह है ल़ेककन

अगि वह र्जानता हो कक वज़


ु ू कित़े वक़्त वह रूकावट क़ी र्जातनि मत
ु वज्र्जह न था

तो एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक दोिािा वज़
ु ू कि़े ।

97
304. अगि ककसी शख़्स को वज़
ु ू क़े िाद शक हो कक र्जो चीज़ पानी क़े पहुंचऩे

में माऩे है वज़


ु ू क़े अअज़ा पि थी या नहीं तो उसका वज़
ु ू सहीह है ।

वज
ु ़ू के अहकाम

305. अगि कोई शख़्स वज़


ु ू क़े अफ़् आल औि शिायत पानी क़े पाक होऩे या

गस्िी न होऩे क़े िाि़े में िहुत ज़्यादा शक कि़े तो उस़े चाहहय़े कक अपऩे शक क़ी

पिवाह न कि़े ।

306. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक उसका वज़


ु ू िाततल हुआ है या नहीं तो

उस़े समझना चाहहय़े क़ी उसका वज़


ु ू िाक़ी है ल़ेककन अगि उसऩे प़ेशाि किऩे क़े

िाद इसततििा ककय़े िगैि वज़


ु ू कि मलया हो औि वज़
ु ू क़े िाद उसक़े मखिर्ज़े प़ेशाि

स़े ऐसी रूतूित खारिर्ज हुई हो जर्जसक़े िाि़े में वह यह न र्जानता हो कक प़ेशाि है

या कोई औि चीज़ तो उसका वज़


ु ू िाततल है ।

307. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक उसऩे वज़


ु ू ककया है या नहीं तो ज़रूिी

है कक वज़
ु ू कि़े ।

308. जर्जस शख़्स को मालम


ू हो कक उसऩे वज़
ु ू ककया है औि उसस़े हदस भी

वाक़े हो गया है मसलन उसऩे प़ेशाि ककया है ल़ेककन उस़े यह मालम


ू न हो कक

कौन सी िात पहल़े वाक़े हुई है अगि यह सिू त नमाज़ स़े प़ेश आए तो उस़े चाहहय़े

कक वज़
ु ू कि़े औि नमाज़ क़े दौिान प़ेश आए तो नमाज़ तोड़ कि वज़
ु ू किना ज़रूिी

98
है औि अगि नमाज़ क़े िाद प़ेश आए तो र्जो नमाज़ वह पढ़ चक
ु ा है वह सहीह है

अलित्ता दस
ू िी नमाज़ों क़े मलय़े नया वज़
ु ू किना ज़रूिी है।

309. अगि ककसी शख़्स को वज़


ु ू क़े िाद या वज़
ु ू क़े दौिान यक़ीन हो र्जाए कक

उसऩे िाज़ र्जगह नहीं धोई या उनका मसह नहीं ककया औि जर्जन अअज़ा को पहल़े

धोया हो या मसह ककया हो उनक़ी तिी ज़्यादा वक़्त गुज़ि र्जाऩे क़ी वर्जह स़े

खुश्क हो चक
ु ़ी हो तो उस़े चाहहय़े कक दोिािा वज़
ु ू कि़े ल़ेककन अगि वह तिी खुश्क

न हुई हो या हवा क़ी गम़ी या ककसी औि ऐसी वर्जह स़े खुश्क हो चक


ु ़ी हो तो

ज़रूिी है कक जर्जन र्जगहों क़े िाि़े में भल


ू गया हो उन्हें औि उनक़े िाद आऩे वाली

र्जगहों को धोए या उनका मसह कि़े औि अगि वज़


ु ू क़े दौिान ककसी उज़्व क़े धोऩे

या मसह किऩे क़े िाि़े में शक कि़े तो उसी हुक्म पि अमल किना ज़रूिी है।

310. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद शक हो कक उसऩे वज़
ु ू ककया

था या नहीं तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन आइन्दा नमाज़ों क़े मलय़े वज़
ु ू किना

ज़रूिी है।

311. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े दौिान शक हो कक आया उसऩे वज़
ु ू

ककया था या नहीं तो उसक़ी नमाज़ िाततल है । औि ज़रूिी है कक वह वज़


ु ू कि़े औि

नमाज़ दोिािा पढ़़े ।

99
312. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े िाद यह समझ़े कक उसका वज़
ु ू िाततल हो

गया था ल़ेककन शक हो कक उसका वज़


ु ू नमाज़ स़े पहल़े िाततल हुआ था या िाद

में तो र्जो नमाज़ पढ़ चक


ु ा है वह सहीह है।

313. अगि कोई शख़्स ऐस़े मिज़ में मबु तला हो कक उस़े प़ेशाि क़े कति़े चगित़े

िहत़े हों या पखाना िोकना का काहदि न हो तो अगि उस़े यक़ीन हो कक नमाज़ क़े

अव्वल वक़्त स़े ल़ेकि आखखि वक़्त तक उस़े इतना वक़्फ़ा ममल र्जाय़ेगा कक वज़
ु ू

किक़े नमाज़ पढ़ सक़े तो ज़रूिी है कक उस वक़्फ़़े क़े दौिान नमाज़ पढ़ ल़े औि

अगि उस़े मसफ़क इतनी मोहलत ममल़े र्जो नमाज़ क़े वाजर्जिात अदा किऩे क़े मलय़े

काफ़़ी हो तो उस दौिान मसफ़क नमाज़ क़े वाजर्जिात िर्जा लाना औि मस्


ु तहि

अफ़् आल मसलन अज़ान, इकामत औि कुनत


ू को तकक कि द़े ना ज़रूिी है।

314. अगि ककसी शख़्स को (िीमािी क़ी वर्जह स़े) वज़


ु ू किक़े नमाज़ का कुछ

हहस्सा पढ़ऩे क़ी मोहलत ममलती हो औि नमाज़ क़े दौिान एक दफ़् आ या चन्द

दफ़् आ उसका प़ेशाि या पाखाना खारिर्ज हो र्जाता हो तो एहततयात़े लाजज़म यह है

कक उस मोहलत क़े दौिान वज़


ु ू किक़े नमाज़ पढ़़े ल़ेककन नमाज़ क़े दौिान लाजज़म

नहीं है कक प़ेशाि या पाखाना खारिर्ज होऩे क़ी वर्जह स़े दोिािा वज़
ु ू कि़े अगिच़े

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक पानी का ितकन अपऩे साथ िख़े औि र्जि भी प़ेशाि

या पाखाना खारिर्ज हो वज़


ु ू कि़े औि िाक़ी मान्दा नमाज़ पढ़़े औि यह एहततयात

इस सिू त में है कक र्जि प़ेशाि या पाखाना खारिज़ होऩे का वक़्फ़ा तवील न हो या

100
दोिािा वज़
ु ू किऩे क़ी वर्जह स़े अिकाऩे नमाज़ क़े दिममयान फ़ामसला ज़्यादा न हो।

िसिू त़े दीगि एहततयात का कोई फ़ायदा नहीं।

315. अगि ककसी शख़्स को प़ेशाि या पाखाना िाि िाि यंू आता हो कक उस़े

वज़
ु ू किक़े नमाज़ का कुछ हहस्सा पढ़ऩे क़ी भी मोहलत न ममलती हो तो उसक़ी

हि नमाज़ क़े मलय़े बिला हश्काल एक वज़


ु ू काफ़़ी है- िजल्क अज़्हि यह है कक एक

वज़
ु ू चन्द नमाज़ों क़े मलय़े भी काफ़़ी है । मामसवा इसक़े कक ककसी दस
ू ि़े हदस में

मजु बतला हो र्जाए। औि ि़ेहति यह है कक हि नमाज़ क़े मलय़े एक िाि वज़


ु ू कि़े

ल़ेककन कज़ा सर्जद़े , कज़ा तशहहुद औि नमाज़़े एहततयात क़े मलय़े दस


ू िा वज़
ु ू ज़रूिी

नहीं है।

316. अगि ककसी शख़्स को प़ेशाि या पाखाना िाि िाि आता हो तो उसक़े

मलय़े ज़रूिी नहीं कक वज़


ु ू क़े िाद फ़ौिन नमाज़ पढ़़े अगिच़े ि़ेहति है कक नमाज़

पढ़ऩे में र्जल्दी कि़े ।

317. अगि ककसी शख़्स को प़ेशाि या पाखाना िाि िाि आता हो तो वज़
ु ू किऩे

क़े िाद अगि वह नमाज़ क़ी हालत में न हो ति भी उसक़े मलय़े कुिआऩे मर्जीद क़े

अलफ़ाज़ को छुना र्जायज़ है।

318. अगि ककसी शख़्स को कतिा कतिा प़ेशाि आता िहता हो तो उस़े चाहहय़े

कक नमाज़ क़े मलय़े एक ऐसी थ़ेली इस्त़ेमाल कि़े जर्जसमें रूई या कोई औि चीज़

िखी हो र्जो प़ेशाि को दस


ू िी र्जगहों तक पहुंचऩे स़े िोक़े औि एहततयात़े वाजर्जि यह

101
है कक नमाज़ स़े पहल़े नजर्जस शद
ु ा ज़कि (मलंग) को धोए। अलावा अज़ीं र्जो शख़्स

पाखाना िोकऩे पि काहदि न हो उस़े चाहहय़े क़ी र्जहां तक मजु म्कन हो नमाज़ पढ़ऩे

तक पखाऩे को दस
ू िी र्जगहों तक फ़ैलऩे स़े िोक़े औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक

अगि िाइस़े ज़हमत न हो तो हि नमाज़ क़े मलय़े मक् अद को धोए।

319. र्जो शख़्स प़ेशाि या पाखाऩे को िोकऩे पि कुदित न िखता हो तो र्जंहा

तक मजु म्कन हो नमाज़ में प़ेशाि या पाखाऩे को िोक़े चाह़े इस पि कुछ खचक

किना पड़़े िजल्क उसका मिज़ अगि आसानी स़े दिू हो सकता हो तो अपना इलार्ज

किाए।

320. र्जो शख़्स अपना प़ेशाि या पाखाना िोकऩे पि काहदि न हो उसक़े

स़ेह्हतयाि होऩे क़े िाद ज़रूिी नहीं कक र्जो नमाज़़े उसऩे मिज़ क़ी हालत में अपऩे

वज़ीफ़़े क़े मत
ु ाबिक पढ़ी हों उनक़ी कज़ा कि़े ल़ेककन अगि उसका मिज़ नमाज़

पढ़त़े हुए दिू हो र्जाए तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक र्जो नमाज़

उस वक़्त पढ़ी हो उस़े दोिािा पढ़़े ।

321. अगि ककसी शख़्स को यह आरिज़ा लाहहक हो कक रियाह िोकऩे पि काहदि

न हो तो ज़रूिी है कक उन लोगों क़े वज़ीफ़़े क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े र्जो प़ेशाि औि

पाखाना िोकऩे पि कुदित न िखत़े हों।

102
वह च़ीजें जजनके ललये वज
ु ़ू किना चाहहये

322. छः चीज़ों क़े मलय़े वज़


ु ू किना वाजर्जि है ः

अव्वलः- वाजर्जि नमाज़ों क़े मलय़े मसवाय नमाज़़े मैतयत क़े, औि मस्
ु तहि नमाज़ों

में वज़
ु ू शते स़ेह्हत है।

दोमः- उस सज्द़े औि तशह्हुद क़े मलय़े र्जो एक शख़्स भल


ू गया हो र्जिकक

उनक़े औि नमाज़ क़े दिममयान कोई हदस उसस़े सज़कद हुआ हो मसलन उसऩे

प़ेशाि ककया हो, ल़ेककन सज्दा ए सहव क़े मलय़े वज़


ु ू किना वाजर्जि नहीं।

सोमः- खानाए कािा क़े वाजर्जि तवाफ़ क़े मलय़े र्जो कक हर्ज औि उमिह क़े र्जज़

हों।

चहारूमः- वज़
ु ू किऩे क़ी मन्नत मानी हो या अहद ककया हो या कसम खाई हो।

पंर्जुमः- र्जि ककसी ऩे मन्नत मानी हो कक मसलन कुिआऩे मर्जीद का िोसा

ल़ेगा।

शशम
ु ः- नजर्जस शदः कुिआऩे मर्जीद को धोऩे क़े मलय़े या िैतल
ु खला वगैिा स़े

तनकालऩे क़े मलय़े र्जि कक मत


ु अजल्लकः शख़्स मर्जििू हो कि उस मकसद क़े मलय़े

अपना हाथ या िदन का कोई औि हहस्सा कुिआऩे मर्जीद क़े अलफ़ाज़ स़े मस

कि़े । ल़ेककन वज़


ु ू में सफ़क होऩे वाला वक़्त अगि कुिआऩे मर्जीद को धोऩे या उस़े

िैतुलखला स़े तनकालऩे में इतनी ताखीि का िाइस हो जर्जस स़े कलामल्
ु लाह क़ी

103
ि़ेहुिकमती होती हो तो ज़रूिी है कक वह वज़
ु ू ककय़े िगैि कुिआऩे मर्जीद को

िैतल
ु खला वगैिह स़े िाहि तनकाल ल़े या अगि नजर्जस हो गया हो तो उस़े धो

डाल़े।

323. र्जो शख़्स िवज़


ु ू न हो उसक़े मलय़े कुिआऩे मर्जीद क़े अल्फ़ाज़ को छूना

यानी अपऩे िदन का कोई हहस्सा कुिआऩे मर्जीद क़े अल्फ़ाज़ स़े लगाना हिाम है,

ल़ेककन अगि कुिआऩे मर्जीद का फ़ािसी ज़िान या ककसी औि ज़िान में तर्जम
ुक ा

ककया गया हो तो उस़े छूऩे में कोई इश्काल नहीं।

324. िच्च़े औि दीवाऩे को कुिआऩे मर्जीद क़े अल्फ़ाज़ को छूऩे स़े िोकना

वाजर्जि नहीं ल़ेककन अगि उनक़े ऐसा किऩे स़े कुिआऩे मर्जीद क़ी तौहीन होती हो

तो उन्हें िोकना ज़रूिी है ।

325. र्जो शख़्स िावज़


ु ू न हो उसक़े मलय़े अल्लाह तआला क़े नामों औि उन

मसफ़तों को छूना र्जो मसफ़क उसक़े मलय़े मख़्सस


ू हैं ख़्वाह ककसी ज़िान में मलखी हों

एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि हिाम हैं औि ि़ेहति यह है कक आंहज़ित सलल्लाहो

अल़ेहै वआल़ेही व सल्लम औि आइम्मा ए ताहहिीन (अ0) औि हज़ित फ़ाततमा

ज़हिा (अ0) क़े असमाए मि


ु ािक को भी न छुए।

104
326. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े वक़्त स़े पहल़े ितहाित होऩे क़े इिाद़े स़े वज़
ु ू

या गस्
ु ल कि़े तो सहीह है औि नमाज़ क़े वक़्त भी अगि नमाज़ क़े मलय़े तैयाि

होऩे क़ी तनयत स़े वज़


ु ू कि़े तो कोई हिर्ज नहीं।

327. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक (नमाज़ का) वक़्त दाखखल हो चक


ु ा

है औि वाजर्जि वज़
ु ू क़ी तनयत कि़े ल़ेककन वज़
ु ू किऩे क़े िाद उस़े पता चल़े कक

अभी वक़्त दाखखल नहीं हुआ था तो उसका वज़


ु ू सहीह है।

328. मैतयत क़ी नमाज़ क़े मलय़े, कबब्रस्तान र्जाऩे क़े मलय़े, मजस्र्जद या आइम्मा

(अ0) क़े हिम में र्जाऩे क़े मलय़े, कुिआऩे मर्जीद साथ िखऩे, उस़े पढ़ऩे, मलखऩे,

औि उसका हामशया छूऩे क़े मलय़े औि सोऩे क़े मलय़े वज़


ु ू किना मस्
ु तहि है। औि

अगि ककसी शख़्स का वज़


ु ू हो तो हि नमाज़ क़े मलय़े दोिािा वज़
ु ू किना मस्
ु तहि

है । औि मज़कूिा िाला कामों में स़े ककसी एक क़े मलय़े वज़


ु ू कि़े तो हि वह काम

कि सकता है र्जो िावज़


ु ू किना ज़रूिी है मसलन उस वज़
ु ू क़े साथ नमाज़ पढ़

सकता हो।

105
मजु ब्तलाते वज
ु ़ू

329. सात चीज़ें वज़


ु ू को िाततल कि द़े ती है ः-

1. प़ेशाि, 2. पाखाना, 3, म़ेद़े औि आंतों क़ी हवा र्जो मक् अद स़े खारिर्ज होती

है , 4. नींद जर्जसक़ी वर्जह स़े न आंखें द़े ख सकें न कान सन


ु सकें। ल़ेककन अगि

आंखें न द़े ख िही हों ल़ेककन कान सन


ु िहें हो तो वज़
ु ू िाततल नहीं होता, 5. ऐसी

हालत जर्जनमें अक़्ल ज़ाया हो र्जाती हो मसलन दीवानगी मस्ती या ि़ेहोशी, 6.

औितों का इजस्तहाज़ा जर्जसका जज़क्र िाद में आय़ेगा, 7. र्जनाित िजल्क एहततयात़े

मस्
ु तहि क़ी बिना पि हि वह काम जर्जसक़े मलय़े गस्
ु ल किना ज़रूिी है ।

जब़ीिा के अहकाम

वह चीज़ जर्जसक़े ज़ख़्म या टूटी हुई हड्डी िांधी र्जाती है औि वह दवा र्जो ज़ख़्म

या ऐसी ही ककसी चीज़ पि लगाई र्जाती है र्जिीिा कहलाती है।

330. अगि वज़


ु ू क़े अअज़ा में स़े ककसी पि ज़ख़्म या फ़ोड़ा हो या हड्डी टूटी

हुई औि उसका मंह


ु खुला हो औि पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि न हो तो उसी तिह वज़
ु ू

किना ज़रूिी है र्जैस़े आमतौि पि ककया र्जाता है।

331. अगि ककसी शख़्स क़े च़ेहि़े औि हाथों पि ज़ख़्म या फ़ोड़ा हो या उसक़े

(च़ेहि़े या हाथों) क़ी हड्डी टूटी हुई हो औि उसका मंह


ु खुला हो औि उस पि पानी

106
डालना नक
ु सान द़े ह हो तो उस़े ज़ख़्म क़े आस पास का हहस्सा इस तिह ऊपि स़े

नीच़े को धोना चाहहय़े र्जैसा वज़


ु ू क़े िाि़े में िताया गया है औि ि़ेहति यह है कक

अगि उस पि हाथ खींचना नक


ु सान द़े ह न हो तो ति हाथ उस पि खींच़े औि

उसक़े िाद पाक कपड़ा उस पि डाल दें औि गीला हाथ उस पि भी खींच।़े अलित्ता

अगि हड्डी टूटी हुई हो तो तयम्मम


ु किना लाजज़म है।

332. अगि ज़ख़्म या फ़ोडा या टूटी हुई हड्डी ककसी शख़्स क़े सि क़े अगल़े

हहस्स़े या पांव पि हो औि उसका मंह


ु खुला हो औि वह उस पि मसह न कि

सकता हो क्योंकक ज़ख़्म मसह क़ी पिू ी र्जगह पि फ़ैला हुआ हो या मसह क़ी र्जगह

का र्जो हहस्सा सहीह व सामलम हो उस पि मसह किना भी उसक़ी कुदित स़े िाहि

हो तो इस सिू त में ज़रूिी है कक तयम्मम


ु कि़े औि एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना

पि वज़
ु ू भी कि़े औि पाक कपड़ा ज़ख़्म वगैिह पि िख़े औि वज़
ु ू क़े पानी क़ी तिी

स़े र्जो हाथों पि लगी हो कपड़़े पि मसह कि़े ।

333. अगि िोड़़े या ज़ख़्म या टूटी हुई हड्डी का मंह


ु ककसी चीज़ स़े िन्द हो

औि उसका खोलना वगैिह तक्लीफ़ क़े मजु म्कन हो औि पानी भी उसक़े मलय़े

मजु ज़ि न हो तो उस़े खोल कि वज़


ु ू किना ज़रूिी है ख़्वाह ज़ख़्म वगैि च़ेहि़े औि

हाथों पि हो या सि क़े अगल़े हहस्स़े औि पांव क़े ऊपि वाल़े हहस्स़े पि हो।

334. अगि ककसी शख़्स का ज़ख़्म या िोड़ा या टूटी हुई हड्डी र्जो ककसी चीज़

स़े िंधी हुई हो उसक़े च़ेहि़े या हाथों पि हो औि उसको खोलना औि उस पि पानी

107
डालना मजु ज़ि हो तो ज़रूिी है कक आस पास क़े जर्जतऩे हहस्स़े को धोना मजु म्कन हो

उस़े धोए औि ज़वीिा पि वज़


ु ू कि़े ।

335. अगि ज़ख़्म का मंह


ु न खल
ु सकता हो औि खद
ु ज़ख्म औि र्जो चीज़ उस

पि लगाई गई हो पाक हो औि ज़ख़्म तक पानी पह


ु ं चना मजु म्कन हो औि मजु ज़ि

हो भी न हो तो ज़रूिी है क़ी पानी को ज़ख़्म क़े ऊपि स़े नीच़े क़ी तिफ़ पहुंचाए।

औि अगि ज़ख़्म या उसक़े ऊपि लगाई गई चीज़ नजर्जस हो औि उसका धोना औि

ज़ख़्म क़े मंह


ु तक पानी पहुंचाना मजु म्कन हो तो ज़रूिी है कक उस़े धोए औि वज़
ु ू

कित़े वक़्त पानी ज़ख़्म तक पहुंचाए। औि अगि पानी ज़ख़्म क़े मलय़े मजु ज़ि न हो

ल़ेककन या ज़ख़्म नजर्जस हो औि उस़े धोया न र्जा सकता हो तो ज़रूिी है कक

तयम्मम
ु कि़े ।

336. अगि ज़िीिा अअज़ाए वज़


ु ू क़े ककसी हहस्स़े पि िैला हुआ हो तो िज़ाहहि

वज़
ु ू ज़िीिा ही काफ़़ी है ल़ेककन अगि र्जिीिा तमाम अअज़ाए वज़
ु ू पि फ़ैला हुआ हो

तो एहततयात क़ी बिना पि तयम्मम


ु किना ज़रूिी है औि वज़
ु ू र्जिीिा भी किें ।

337. यह ज़रूिी नहीं कक र्जिीिा उन चीज़ों में स़े हों जर्जनक़े साथ नमाज़ पढ़ना

दरू
ु स्त है िजल्क अगि वह ि़े शम या उन है वानात क़े अज्ज़ा स़े िनी हो जर्जनका

गोश्त खाना र्जायज़ नहीं तो भी मसह किना र्जायज़ है ।

338. जर्जस शख़्स क़ी हथ़ेली औि उं गमलयों पि र्जिीिा हो औि वज़


ु ू कित़े वक़्त

उसऩे ति हाथ उस पि खींचा हो तो सि औि पांव का मसह उसी तिी स़े कि़े ।

108
339. अगि ककसी शख़्स क़े पांव क़े ऊपि वाल़े पिू ़े हहस्स़े पि र्जिीिा हो ल़ेककन

कुछ हहस्सा उं गमलयों क़ी तिफ़ स़े औऱ कुछ हहस्सा पांव क़े ऊपि वाल़े हहस्स़े क़ी

तिफ़ खल
ु ा हो तो र्जो र्जगह खल
ु ी है वहां पांव क़े ऊपि वाल़े हहस्स़े पि औि जर्जन

र्जगहों पि र्जिीिा है वहां र्जिीिा पि मसह किना ज़रूिी है ।

340. अगि च़ेहि़े या हाथों पि कई र्जिीि़े हों तो उनका दिममयाना हहस्सा धोना

ज़रूिी है औि अगि सि या पांव क़े ऊपि वाल़े हहस्स़े पि र्जिीिें हों तो उनक़े

दिममयानी हहस्स़े का मसह किना ज़रूिी है औि र्जहां र्जिीिें हों वहां र्जिीि़े क़े िाि़े

में अहकाम पि अमल किना ज़रूिी है ।

341. अगि र्जिीिा ज़ख़्म क़े आस पास क़े हहस्सों को मामल


ू स़े ज़्यादा ऱ्ेि़े हुए

हो औि उसका हटाना िगैि तकलीफ़ क़े मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक

मत
ु अजल्लका शख़्स तयम्मम
ु कि़े िर्जज़
ु इसक़े कक र्जिीिा तयम्मम
ु क़ी र्जगहों पि

हो क्योंकक उस सिू त में ज़रूिी है कक वज़


ु ू औि तयम्मम
ु दोनों दोनों कि़े औि दोनों

सिू तों में अगि र्जिीिा का हटाना िगैि तजक्लफ़ क़े मजु म्कन हो तो ज़रूिी है कक

उस़े हटा द़े । पस अगि ज़ख़्म च़ेहि़े या हाथों पि तो उसक़े आस पास क़ी र्जगहों को

धोए औऱ अगि सि या पांव क़े ऊपि वाल़े हहस्स़े पि हो तो आस पास क़ी र्जगह

का मसह कि़े औि ज़ख़्म क़ी र्जगह क़े मलय़े र्जिीि़े क़े एहकाम पि अमल कि़े ।

109
342. अगि वज़
ु ू क़े अअज़ा पि ज़ख़्म न हो या उनक़ी हड्डी टूटी हुई न हो

ल़ेककन ककसी दस
ू िी वर्जह स़े पानी उनक़े मलय़े मजु ज़ि हो तो तयम्मम
ु किना ज़रूिी

है ।

343. अगि वज़


ु ू क़े अअज़ा क़ी ककसी िग स़े खून तनकल आया हो औि उस़े

धोना मजु म्कन न हो तो तयम्मम


ु किना लाजज़म है। ल़ेककन अगि पानी उसक़े मलय़े

मजु ज़ि हो तो र्जिीिा क़े अहकाम पि अमल किना ज़रूिी है ।

344. अगि वज़


ु ू या गस्
ु ल क़ी र्जगह पि कोई ऐसी चीज़ चचपक गई हो जर्जसक

उतिाना मजु म्कन न हो या उस़े उतािऩे क़ी तक्लीफ़ नाकाबिल़े िदाकश्त हो तो

मत
ु अजल्लका शख़्सा का फ़िीज़ा तयम्मम
ु है । ल़ेककन अगि चचपक़ी हुई चीज़

तयम्मम
ु क़े मकामात पि हो तो उस सिू त में ज़रूिी है कक वज़
ु ू औि तयम्मम

दोनों कि़े औि अगि चचपक़ी हुई चीज़ दवा हो तो र्जिीिा क़े हुक्म में आती है।

345. गस्
ु ल़े मस़े मय्यत क़े अलावा तमाम ककस्म क़े गस्
ु लों में गस
ु ल़े र्जिीिा

वज़
ु ू ए र्जिीिा क़ी तिह है ल़ेककन एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि मक
ु ल्लफ़ शख़्स

क़े मलय़े ज़रूिी है कक गस्


ु ल़े तितीिी कि़े (इिततमासी न कि़े ) औि अज़्हि यह है कक

अगि िदन पि ज़ख़्म या िोड़ा हो तो मक


ु ल्लफ़ को गस्
ु ल या तयम्मम
ु का

इजख़्तयाि है। अगि वह गस्


ु ल को इजख़्तयाि किता है औि ज़ख़्म या िोड़़े पि

र्जिीिा न हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक ज़ख़्म या िोड़़े पि पाक कपड़ा िख़े

औि उस कपड़़े क़े ऊपि मसह कि़े । औि अगि िदन का कोई हहस्सा टूटा हुआ हो

110
तो ज़रूिी है कक गस्
ु ल कि़े औि एहततयातन र्जिीिा क़े ऊपि भी मसह कि़े औि

अगि र्जिीिा क़े ऊपि मसह किना मजु म्कन न हो या र्जो र्जगह टूटी हुई हो वह

खल
ु ी हुई हो तो तयम्मम
ु किना ज़रूिी है ।

346. जर्जस शख़्स का वज़ीफ़ा तयम्मम


ु हो अगि उसक़ी तयम्मम
ु क़ी िाज़

र्जगहों पि ज़ख़्म या िोड़ा हो या हड्डी टूटी हुई हो तो ज़रूिी है कक वह वज़


ु ू ए

र्जिीिा क़े अहकाम क़े मत


ु ाबिक तयम्मम
ु ़े र्जिीिा कि़े ।

347. जर्जस शख़्स को वज़


ु ू ए र्जिीिा या गस्
ु ल़े र्जिीिा किक़े नमाज़ पढ़ना ज़रूिी

हो अगि उस़े इल्म हो कक नमाज़ क़े आखखि वक़्त तक उसका उसका उज़्र दिू नहीं

होगा तो वह अव्वल वक़्त में नमाज़ पढ़ सकता है ल़ेककन अगि उस़े उम्मीद हो

कक आखखि वक़्त तक उसका उज़्र दिू हो र्जाएगा तो उसक़े मलय़े ि़ेहति यह है कक

इन्त़ेज़ाि कि़े औि अगि उसका उज़्र दिू न हो तो आखखि वक़्त में वज़
ु ू र्जिीिा या

गस्
ु ल़े र्जिीिा क़े साथ नमाज़ अदा कि़े । ल़ेककन अगि अव्वल वक़्त में नमाज़ पढ़

ल़े औि आखखि वक़्त तक उसका उज़्र दिू हो र्जाए तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है

कक वज़
ु ू या गस्
ु ल कि़े औि दोिािा नमाज़ पढ़़े ।

348. अगि कोई शख़्स आंख क़ी िीमािी क़ी वर्जह स़े पलकें मद
ंू कि िखता हो

तो ज़रूिी है कक वह तयम्मम
ु कि़े ।

111
349. अगि ककसी शख़्स को यह इल्म न हो कक आया उसका वज़ीफ़ा तयम्मम

है या वज़
ु ू ए र्जिीिा तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि तयम्मम
ु औि वज़
ु ू ए

र्जिीिा दोनों िर्जा लाऩे चाहहय़े।

350. र्जो नमाज़़े ककसी इन्सान ऩे वज़


ु ू ए र्जिीिा स़े पढ़ी हों वह सहीह हैं औि

वह उसी वज़
ु ू क़े साथ आइन्दा क़े नमाज़़े भी पढ़ सकता है ।

वाजजब गस्
ु ल

वाजर्जि गस्
ु ल सात हैः-

1.गस्
ु ल़े र्जनाित, 2. गस्
ु ल़े हैज़, 3. गस्
ु ल़े तनफ़ास, 4. गस्
ु ल़े इजस्तहाज़ा, 5.

गस्
ु ल़े मस़े म़ेतयत, 6. गस्
ु ल़े म़ेतयत औि 7. वह गस्
ु ल र्जो मन्नत या कसम वगैिह

क़ी वर्जह स़े वाजर्जि हो र्जाए।

जनाबत के अहकाम

351. दो चीज़ों स़े इन्सान र्जन


ु ि
ु हो र्जाता है अव्वल जर्जमाअ स़े औि दोम मनी

क़े खारिर्ज होऩे स़े ख़्वाह वह नींद क़ी हालत में तनकल़े या र्जागत़े में , कम हो या

ज़्यादा, शहवत क़े साथ तनकल़े या िगैि शहवत क़े औि उसका तनकलना

मत
ु अजल्लका शख़्स क़े इजख़्तयाि में हो या न हो।

112
352. अगि ककसी शख़्स क़े िदन स़े कोई रूतूित खारिर्ज हो औि वह यह न

र्जानता हो कक मनी (वीयक) है या प़ेशाि या कोई औि चीज़ औि अगि वह रूति


ू त

शहवत क़े साथ उछल कि तनकली हो औि उसक़े तनकलऩे क़े िाद िदन सस्
ु त हो

गया हो तो वह रूति
ू त मनी (वीयक) का हुक्म िखती है । ल़ेककन अगि इन तीन

अलामात में स़े सािी क़ी सािी या कुछ मौर्जूद न हों तो वह रूतूित मनी क़े हुक्म

में नहीं आय़ेगी । ल़ेककन अगि मत


ु अजल्लका शख़्स िीमाि हो तो किि ज़रूिी नहीं

क़ी वह रूतूित उछल कि तनकली हो औि उसक़े तनकलऩे क़े वक़्त िदन सस्
ु त हो

र्जाए िजल्क अगि मसफ़क शहवत क़े साथ तनकल़े तो वह रूति


ू त मनी क़े हुक्म में

होगी।

353. अगि ककसी ऐस़े शख़्स क़े मखिर्ज़े प़ेशाि स़े र्जो िीमाि न हो कोई ऐसा

पानी खारिर्ज हो जर्जसमें उन तीन अलामतों में स़े जर्जनका जज़क्र ऊपि वाल़े मसअल़े

म़े ककया गया है एक अलामत मौर्जूद हो औि उस़े यह इल्म न हो कक िाक़ी

अलामत भी उसमें मौर्जद


ू है या नहीं तो अगि उस पानी क़े खारिर्ज हो ऩे स़े पहल़े

उसऩे वज़
ु ू ककया हो तो ज़रू
ू िी है कक उसी वज़
ु ू को काफ़़ी समझ़े औि अगि वज़
ु ू

नहीं ककया था तो मसफ़क वज़


ु ू किना काफ़़ी है औि उस पि गस्
ु ल किना लाजज़म

नहीं।

354. मनी खारिर्ज होऩे क़े िाद इन्सान क़े मलय़े प़ेशाि किना मस्
ु तहि है औि

अगि प़ेशाि न कि़े औि गस्


ु ल क़े िाद उसक़े मखिर्ज़े प़ेशाि स़े रूतूित खारिर्ज हो

113
जर्जसक़े िाि़े में वह न र्जानता हो कक मनी है या कोई औि रूति
ू त तो वह रूतित

मनी का हुक्म िखती है ।

355. अगि कोई शख़्स जर्जमाअ कि़े औि उज़्व़े तनासल


ु सप
ु ािी क़ी ममक़्दाि तक

या उसस़े ज़्यादा औित क़ी फ़ज़क में दाखखल हो र्जाए तो ख़्वाह यह दख


ु ूल फ़ज़क में

हो या दि
ु िु में औि ख़्वाह वह िामलग हो या न िामलग औि ख़्वाह मनी खारिर्ज हो

या न हो दोनो र्जुनि
ु हो र्जात़े हैं।

356. अगि ककसी को शक हो कक उज़्व़े तनासल


ु सप
ु ािी क़ी ममक़्दाि तक दाखखल

हुआ है या नहीं तो उस पि गस्


ु ल वाजर्जि नहीं है।

357. नऊज़ो बिल्लाह अगि कोई शख़्स ककसी है वान क़े साथ वती कि़े औि

उसक़ी मनी खारिर्ज हो तो मसफ़क गस्


ु ल किना काफ़़ी है औि अगि मनी खारिर्ज न

हो औि उसऩे वती किऩे स़े पहल़े वज़


ु ू ककया हो तो ति भी मसफ़क गस्
ु ल काफ़़ी है

औि अगि वज़
ु ू न कि िखा हो तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक गस्
ु ल कि़े औि वज़
ु ू

भी कि़े औि मदक या लड़क़े स़े वती किऩे क़ी सिू त में भी यही हुक्म है ।

358. अगि मनी अपनी र्जगह स़े हिकत कि़े ल़ेककन खारिर्ज न हो या इन्सान

को शक हो कक मनी खारिर्ज हुई है या नही तो उस पि गस्


ु ल वाजर्जि नहीं है।

359. र्जो शख़्स गस्


ु ल न कि सक़े ल़ेककन तयम्मम
ु कि सकता हो वह नमाज़

का वक़्त दाखखल होऩे क़े िाद भी अपनी िीवी स़े जर्जमआ कि सकता है।

114
360. अगि कोई शख़्स अपऩे मलिास में मनी द़े ख़े औि र्जानता हो कक उसक़ी

अपनी मनी है औि उसऩे उस मनी क़े मलय़े गस्


ु ल न ककया हो तो ज़रू
ू िी है कक

गस्
ु ल कि़े औि जर्जन नमाज़ों क़े िाि़े में उस़े यक़ीन हो कक वह उसऩे मनी खारिर्ज

होऩे क़े िाद पढ़ी थी, उनक़ी कज़ा कि़े ल़ेककन उन नमाज़ों क़ी कज़ा ज़रूिी नहीं

जर्जनक़े िाि़े में एहततमाल हो कक वह उसऩे मनी खारिर्ज होऩे स़े पहल़े पढ़ी थीं।

वह च़ीजें जो मुजज्नब पि हिाम हैं

361. पांच चीज़़े र्जुनि


ु शख़्स पि हिाम हैः-

1. अपऩे िदन का कोई हहस्सा कुिआऩे मर्जीद क़े अल्फ़ाज़ या अल्लाह तआल़े

क़े नाम स़े ख़्वाह वह ककसी भी ज़िान में हो मस किना औि ि़ेहति यह है कक

पैगम्ििों, इमामों औि हज़ित़े ज़हिा (अ0) क़े नामों स़े भी अपना िदन मस न

किें ।

2. मजस्र्जदल
ु हिाम औि मजस्र्जद़े निवी में र्जाना ख़्वाह एक दिवाज़़े स़े दाखखल

होकि दस
ू ि़े दिवाज़़े स़े तनकल र्जाए।

3. मजस्र्जदल
ु हिाम औि मजस्र्जद़े निवी क़े अलावा दस
ू िी मजस्र्जदों में ठहिना

औि एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि इमामों क़े हिम में ठहिऩे क़ी भी यही हुक्म

है । ल़ेककन अगि इन मजस्र्जदों में स़े ककसी मजस्र्जद को उििू कि़े मसलन एक

दिवाज़़े स़े दाखखल होकि दस


ू ि़े स़े िाहि तनकल र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं।

115
4. एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ककसी मजस्र्जद में कोई चीज़ िखऩे या कोई

चीज़ उठाऩे क़े मलय़े दाखखल होना।

5. उन आयात में ककसी आयत का पढ़ना जर्जनक़े पढ़ऩे स़े सज्दा वाजर्जि हो

र्जाता है । औि वह आयतें चाि सिू तों में है ः-

1. कुिआऩे मर्जीद क़ी 32वी सिू त – अमलफ़ लाम्मीम तंज़ील।

2, 41वी सिू त – हाम्मीम सज्दः

3. 53वी सिू त – वन्नज्म।

4. 96वीं सिू त – अलक।

वह च़ीजें जो मजु ज्नब के ललये मकरूह हैं

362. नौ चीज़ें र्जुनि


ु क़े मलय़े मकरूह है ः-

1 औि 2. खाना पानी। ल़ेककन अगि हाथ मंह


ु धो ल़े औि कुल्ली कि ल़े तो

मकरूह नहीं है औि अगि मसफ़क हाथ धो ल़े तो भी किाहत कम हो र्जाय़ेगी।

3. कुिआऩे मर्जीद क़ी सात स़े ज़्यादा ऐसी आयात पढ़ना जर्जनमें सज्दा वाजर्जि

न हो।

4. अपऩे िदन का कोई हहस्सा कुिआऩे मर्जीद क़ी जर्जल्द, हामशया या अल्फ़ाज़

क़ी दिममयानी र्जगह स़े छूना।

5. कुिआऩे मर्जीद अपऩे साथ िखना।

116
6. सोना। अलित्ता अगि वज़
ु ू कि ल़े या पानी न होऩे क़ी वर्जह स़े गस्
ु ल क़े

िदल़े तयम्मम
ु कि ल़े तो किि सोना मकरूह नहीं है ।

7. में हदी या उसस़े ममलती र्जल


ु ती चीज़ स़े खखज़ाि किना।

8. िदन पि त़ेल मलना।

9. एहततलाम यानी सोत़े में मनी खारिर्ज होऩे क़े िाद जर्जमाअ किना।

गस्
ु ले जनाबत

363. गस्
ु ल़े र्जनाित वाजर्जि नमाज़ पढ़ऩे क़े मलय़े औि ऐसी दस
ू िी इिादत क़े

मलय़े वाजर्जि हो र्जाता है ल़ेककन नमाज़़े मैतयत, सज्दा ए सहव, सज्दा ए शक्र
ु औि

कुिआऩे मर्जीद क़े वाजर्जि सज्दों क़े मलय़े गस्


ु ल़े र्जनाित ज़रूिी नहीं है।

364. यह ज़रूिी नहीं कक गस्


ु ल क़े वक़्त नीयत कि़े कक वाजर्जि गस्
ु ल कि िहा

है , िजल्क फ़कत कुिकतन इलल्लाह यानी अल्लाह तआला क़ी रिज़ा क़े इिाद़े स़े

गस्
ु ल कि़े तो काफ़़ी है ।

365. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक नमाज़ का वक़्त हो गया है औि

गस्
ु ल़े र्जनाित क़ी तनयत कि ल़े ल़ेककन िाद में पता चल़े कक उसऩे वक़्त स़े पहल़े

गस्
ु ल कि मलया है तो उसका वज़
ु ू सहीह है।

366. गस्
ु ल़े र्जनाित दो तिीकों स़े अन्र्जाम हदया र्जा सकता है ः-

117
तितीिी व इिततमासी

तित़ीब़ी गस्
ु ल

367. तितीिी गस्


ु ल में एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि गस्
ु ल क़ी तनयत स़े

पहल़े पिू ा सि औि गदक न औि िाद में िदन धोना ज़रूिी है औि ि़ेहति यह है कक

िदन को पहल़े दाई तिफ़ स़े धोए िाद में िाई तिफ़ स़े धोए। औि तीनो अअज़ा में

स़े हि एक को गस्
ु ल क़ी तनयत स़े पानी क़े नीच़े हिकत द़े ऩे स़े तितीिी गस्
ु ल का

सहीह होना इशकाल स़े खाली नहीं है औि एहततयात इस पि इजक़्तफ़ा न किऩे में

है । औि अगि वह शख़्स र्जान िझ


ू कि या भल
ू कि या मस ्अला न र्जानऩे क़ी

वर्जह स़े िदन को सि स़े पहल़े धोए तो उसका गस्


ु ल िाततल है।

368. अगि कोई शख़्स िदन को सि स़े पहल़े धोए तो उसक़े मलय़े गस्
ु ल का

एआदा किना ज़रूिी नहीं िजल्क अगि िदन को दोिािा धो ल़े तो उसका गस्
ु ल

सहीह हो र्जाय़ेगा।

369. अगि ककसी शख़्स को इस िात का यक़ीन न हो कक उसऩे सि, गदक न व

जर्जस्म का दायां व िायां हहस्सा मक


ु म्मल तौि पि धो मलया है तो इस िात का

यक़ीन किऩे क़े मलय़े जर्जस हहस्स़े को धोए उसक़े साथ दस


ू ि़े हहस्स़े क़ी कुछ

ममक़्दाि भी दोना ज़रूिी है ।

118
370. अगि ककसी शख़्स को गस्
ु ल क़े िाद पता चला क़ी िदन का कुछ हहस्सा

धल
ु ऩे स़े िह गया है ल़ेककन यह इल्म न हो कक वह कौन सा हहस्सा है तो सि को

दोिािा धोना ज़रूिी नहीं औि िदन का मसफ़क वह हहस्सा धोना ज़रूिी है जर्जसक़े न

धोए र्जाऩे क़े िाि़े में एहततमाल पैदा हुआ हो।

371. अगि ककसी को गस्


ु ल क़े िाद पता चल़े कक उसऩे िदन का कुछ हहस्सा

नहीं धोया तो अगि वह िाई तिफ़ हो तो मसफ़क उसी ममक़्दाि का धो ल़ेना काफ़़ी है

औि अगि दाई तिफ़ हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उतनी ममक़्दाि धोऩे क़े

िाद िाई तिफ़ को दोिािा धोए औि अगि सि औि गदक न धल


ु ऩे स़े िह गई हो तो

ज़रूिी है कक उतनी ममक़्दाि धोऩे क़े िाद दोिािा िदन को धोए।

372. अगि ककसी शख़्स को दाई या िाई तिफ़ का कुछ हहस्सा धोए र्जाऩे क़े

िाि़े में शक गज़


ु ि़े तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक उतनी ममक़्दाि धोए औि अगि उस़े

सि या गदक न का कुछ हहस्सा धोए र्जाऩे क़े िाि़े में शक हो तो एहततयात़े लाजज़म

क़ी बिना पि सि औि गदक न धोऩे क़े िाद दायें औि िायें हहस्स़े को दोिािा धोना

ज़रूिी है।

इिततमास़ी गस्
ु ल

इिततमासी गस्
ु ल दो तिीको स़े अन्र्जाम हदया र्जा सकता हैः- दफ़् ई औि तरीज़ी।

119
373. गस्
ु ल़े इिततमासी दफ़् ई में ज़रूिी है कक एक लम्ह़े में पिू ़े िदन क़े साथ

पानी में डुिक़ी लगाए ल़ेककन गस्


ु ल किऩे स़े पहल़े एक शख़्स क़े साि़े िदन का

पानी स़े िाहि होना मोतिि नहीं है । िजल्क अगि िदन का कुछ हहस्सा पानी स़े

िाहि हो औि गस्
ु ल क़ी नीयत स़े पानी में गोता लगाए तो काफ़़ी है ।

374. गस्
ु ल़े इिततमासी तरीर्जी में ज़रूिी है कक गस्
ु ल क़ी नीयत स़े एक दफ़् आ

िदन को धोऩे का ख़्याल िखत़े हुए आहहस्ता आहहस्ता पानी में गोता लगाए। इस

गस्
ु ल में ज़रूिी है कक िदन का पिू ा हहस्सा गस्
ु ल किऩे स़े पहल़े पानी स़े िाहि हो।

375. अगि ककसी शख़्स को गस्


ु ल़े तितीिी क़े िाद पता चल़े कक उसक़े िदन क़े

कुछ हहस्स़े तक पानी नहीं पहुंचा है तो ख़्वाह वह उस मख़्सस


ू हहस्स़े क़े

मत
ु अजल्लक र्जानता हो या न र्जानता हो ज़रूिी है कक दोिािा गस्
ु ल कि़े ।

376. अगि ककसी शख़्स क़े पास गस्


ु ल़े तितीिी क़े मलय़े वक़्त न हो ल़ेककन

इितीमासी गस्
ु ल क़े मलय़े वक़्त हो तो ज़रूिी है कक इिततमासी गस्
ु ल कि़े ।

377. जर्जस शख़्स ऩे हर्ज या उमि़े क़े मलय़े एहिाम िांधा हो वह इिततमासी

गस्
ु ल नहीं कि सकता ल़ेककन अगि उसऩे भल
ू कि इितीमासी गस्
ु ल कि मलया हो

तो उसका गस्
ु ल सहीह है ।

120
गस्
ु ल के अहकाम

378. गस्
ु ल़े इिततमासी या गस्
ु ल़े तितीिी में साि़े गस्
ु ल स़े पहल़े साि़े जर्जस्म का

पाक होना ज़रूिी नहीं है िजल्क अगि पानी में गोता लगाऩे या गस्
ु ल क़े इिाद़े स़े

पानी िदन पि डालऩे स़े िदन पाक हो र्जाए तो गस्


ु ल सहीह होगा।

379. अगि कोई शख़्स हिाम स़े र्जुनि


ु हुआ हो औि गमक पानी स़े गस्
ु ल कि ल़े

तो अगिच़े उस़े पसीना भी आए ति भी उसका गस्


ु ल सहीह है औि एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक ठण्ड़े पानी स़े गस्
ु ल कि़े ।

380. गस्
ु ल में अगि िाल ििािि भी िदन अनधल
ु ा िह र्जाए तो गस्
ु ल िाततल है

ल़ेककन कान औि नाक क़े अन्दरूनी हहस्सों का औि हि उस चीज़ का धोना र्जो

िाततन शम
ु ाि होती है वाजर्जि नहीं है ।

381. अगि ककसी शख़्स को िदन क़े ककसी हहस्स़े क़े िाि़े में शक हो कक उसका

शम
ु ाि िदन क़े ज़ाहहि में है या िाततन में तो ज़रूिी है कक उस़े धोए।

382. अगि कान क़ी िाली का सिू ाख या उस र्जैसा कोई औि सिू ाख इस कदि

खुला हो कक उसका अन्दरूनी हहस्सा िदन का ज़ाहहि शम


ु ाि ककया र्जाए तो उस़े

धोना ज़रूिी है वनाक उसका धोना ज़रूिी नहीं है।

383. र्जो चीज़ िदन तक पानी पहुंचाऩे में माऩे हो ज़रूिी है कक इन्सान उस़े

हटा द़े औि अगि इसस़े प़ेशति कक उस़े यक़ीन हो र्जाए कक वह चीज़ हट गई है

गस्
ु ल कि़े तो उसका गस्
ु ल िाततल है।

121
384. अगि गस्
ु ल क़े वक़्त ककसी शख़्स को शक गज़
ु ि़े कक कोई ऐसी चीज़

उसक़े िदन पि है या नहीं र्जो िदन तक पानी पहुंचऩे में माऩे हो तो ज़रूिी है कक

छानिीन कि़े हत्ता कक मत्ु मइन हो र्जाए कक कोई ऐसी रूकावट नही है।

385. गस्
ु ल में उन छोट़े छोट़े िालों को र्जो िदन का र्जुज़्व का शम
ु ाि होता है

धोना ज़रूिी है औि लम्ि़े िालों को धोना वाजर्जि नहीं है िजल्क अगि पानी को

जर्जल्द तक इस तिह पहुंचाए कक लम्ि़े िाल ति न हो तो गस्


ु ल सहीह है ल़ेककन

अगि उन्हें धोए िगैि जर्जल्द तक पानी पहुंचाना मजु म्कन न हो तो उन्हें भी धोना

ज़रूिी है ताकक पानी िदन तक पहुंच र्जाए।

386. वह तमाम शिाइत र्जो वज़


ु ू क़े सहीह होऩे क़े मलय़े िताई र्जा चक
ु ़ी है

मसलन पानी का पाक होना औि गस्िी न होना वही शिाइत गस्


ु ल क़े सहीह होऩे

क़े मलय़े भी हैं। ल़ेककन गस्


ु ल में यह ज़रूिी नहीं कक इन्सान िदन को ऊपि स़े

नीच़े क़ी र्जातनि धोए। अलावा अज़ीं गस्


ु ल़े तितीिी में यह ज़रूिी नहीं कक सि औि

गदक न धोऩे क़े फ़ौिन िाद िदन को धोए मलहाज़ा अगि सि औि गदक न धोऩे क़े िाद

तवक़्कफ़ कि़े औि कुछ वक़्त गज़


ु िऩे क़े िाद िदन को धोए तो कोई हिर्ज नहीं

िजल्क ज़रूिी नहीं कक सि औि गदक न या तमाम िदन को एक साथ धोए पस अगि

ममसाल क़े तौि पि सि धोया हो औि कुछ द़े ि िाद गदकन धोए तो र्जायज़ है

ल़ेककन र्जो शख़्स प़ेशाि या पाखाना क़े तनकलऩे को न िोक सकता हो ताहम उस़े

122
प़ेशाि या पाखाना अन्दाज़न इतऩे वक़्त तक न आता हो कक गस्
ु ल कि क़े नमाज़

पढ़ ल़े तो ज़रूिी है कक फ़ौिन गस्


ु ल कि़े औि गस्
ु ल क़े िाद फ़ौिन नमाज़ पढ़ ल़े।

387. अगि कोई शख़्स यह र्जाऩे िगैि कक हम्माम वाला िाज़ी है या नहीं उसक़ी

उर्जित उधाि िखऩे का इिादा िखता हो तो ख़्वाह हम्माम वाल़े को िाद में इस

िात पि िाज़ी भी कि ल़े उसका गस्


ु ल िाततल है ।

388. अगि हम्माम वाला उधाि पि गस्


ु ल किाऩे क़े मलय़े िाज़ी हो ल़ेककन गस्
ु ल

किऩे वाला उसक़ी उर्जित न द़े ऩे या हिाम माल स़े द़े ऩे का इिादा िखता हो तो

उसका गस्
ु ल िाततल है ।

389. अगि कोई शख़्स हम्माम वाल़े को ऐसी िक़्म ितौि़े उर्जित द़े जर्जसका

खुम्स अदा न ककया गया हो तो अगिच़े वह हिाम का मत


ु कक कि होगा ल़ेककन

िज़ाहहि उसका गस्


ु ल सहीह होगा औि मस्
ु तहहक़्क़ीन को खुम्स अदा किना उसक़े

जज़म्म़े िह़े गा.

391. अगि कोई शख़्स शक कि़े कक उसऩे गस्


ु ल ककया है या नहीं तो ज़रूिी है

कक गस्
ु ल कि़े ल़ेककन अगि गस्
ु ल क़े िाद शक कि़े कक गस्
ु ल सहीह ककया है या

नहीं तो दोिािा गस्


ु ल किना ज़रूिी नहीं।

392. अगि गस्


ु ल क़े दौिान ककसी शख़्स स़े हदस़े असगि सर्जकद हो र्जाए मसलन

प़ेशाि कि द़े तो उस गस्


ु ल को तकक किक़े नए मसि़े स़े गस्
ु ल किना ज़रूिी नहीं है

िजल्क वह अपऩे उस गस्


ु ल को मक
ु म्मल कि सकता है इस सिू त में एहततयात़े

123
लाजज़म क़ी बिना पि वज़
ु ू किना भी ज़रूिी है । ल़ेककन अगि वह शख़्स गस्
ु ल़े

तितीिी स़े गस्


ु ल़े इिततमासी क़ी तिफ़ या गस्
ु ल़े इिततमासी स़े गस्
ु ल़े तितीिी या

इिततमासी तफ़् ई क़ी तिफ़ पलट र्जाए तो वज़


ु ू किना ज़रूिी नहीं है ।

393. अगि वक़्त कम क़ी वर्जह स़े मक


ु ल्लफ़ शख़्स का वज़ीफ़ा तयम्मम
ु हो

ल़ेककन इस ख़्याल स़े कक गस्


ु ल औि नमाज़ क़े मलय़े उसक़े पास वक़्त है गस्
ु ल कि़े

तो अगि उसऩे गस्


ु ल कस्द़े कुिकत स़े ककया है तो उसका गस्
ु ल सहीह है अगि च़े

उसऩे नमाज़ पढ़ऩे क़े मलय़े गस्


ु ल ककया हो।

394. र्जो शख़्स र्जन


ु ि
ु हो अगि वह शक कि़े कक उसऩे गस्
ु ल ककया है या नहीं

तो र्जो नमाज़़े वह पढ़ चक


ु ा है वह सहीह है ल़ेककन िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े गस्
ु ल

किना ज़रूिी है। औि अगि नमाज़ क़े िाद उसस़े हदस़े असगि साहदि हुआ हो तो

लाजज़म है कक वज़
ु ू भी कि़े औि अगि वक़्त हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि

र्जो नमाज़ पढ़ चक


ु ा है उस़े दोिािा पढ़़े ।

395. जर्जस शख़्स पि कई गस्


ु ल वाजर्जि हों वह उन सिक़ी तनयत कि क़े एक

गस्
ु ल कि सकता है औि ज़ाहहि यह है कक अगि उनमें स़े ककसी एक मख़्सस

गस्
ु ल का कस्द कि़े तो वह िाक़ी गस्
ु लों क़े मलय़े भी काफ़़ी है ।

396. अगि िदन क़े ककसी हहस्स़े पि कुिआऩे मर्जीद क़ी आयत या अल्लाह

तआला का नाम मलखा हुआ हो तो वज़


ु ू या गस्
ु ल़े तितीिी कित़े वक़्त उस़े चाहहय़े

124
क़ी पानी अपऩे िदन पि इस तिह पहुंचाए कक उसका हाथ उन तहिीिों को न

लगो।

397. जर्जस शख़्स ऩे गस्


ु ल़े र्जनाित ककया हो ज़रूिी नहीं कक नमाज़ क़े मलय़े

वज़
ु ू भी कि़े िजल्क दस
ू ि़े वाजर्जि गस्
ु लों क़े िाद मसवाए गस्
ु ल़े इजस्तहाज़ा ए

मत
ु वजस्सता औि मस्
ु तहि गस्
ु लों क़े जर्जनका जज़क्र मसअला 651 में आय़ेगा िगैि

वज़
ु ू नमाज़ पढ़ सकता है अगिच़े एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक वज़
ु ू भी कि़े ।

इजस्तहाजा

औितों को र्जो खून आत़े िहत़े हैं उनमें स़े एक खूऩे इजस्तहाज़ा है औि औित को

खूऩे इजस्तहाज़ा आऩे क़े वक़्त मस्


ु तहार्जा कहत़े हैं।

398. खूऩे इजस्तहाज़ा ज़्यादाति ज़दक िं ग का औि ठं डा होता है औि कफ़शाि औि

र्जलन क़े िगैि क़े होता है औि गाढ़ा भी नहीं होता ल़ेककन मजु म्कन है कक कभी

स्याह या सख
ु क औि गमक औि गाढ़ा हो औि कफ़शाि औि सोजज़श क़े साथ खारिर्ज

हो।

399. इजस्तहाज़ा तीन ककस्म का होता है ः- कलील, मत


ु वजस्सत औि कसीिः ।

कलीलः- यह है कक खन
ू मसफ़क उस़े रूई क़े ऊपि वाल़े हहस्स़े को आलद
ू ा कि़े र्जो

औित अपनी शमकगाह में िख़े औि उस रूई क़े अन्दि तक सिायत न कि़े ।

125
इजस्तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः- यह है कक खन
ू रुई क़े अन्दि तक चला र्जाए अगिच़े

उसक़े एक कोऩे तक ही हो औि रूई स़े उस कपड़़े तक न पहुंच़े र्जो औित उमम


ू न

खून िोकऩे क़े मलय़े िांधती हैं।

इजस्तहाज़ा ए कसीिः- यह है कक खून रूई स़े तर्जावज़


ु किक़े कपड़़े तक पहुंच

र्जाए।

इजस्तहाजा के अहकाम

400. इजस्तहाज़ा ए कलीलः में हि नमाज़ क़े मलय़े अलायहदा वज़


ु ू किना ज़रूिी

है औि एहततयात़े मस्
ु तहि कक बिना पि रूई को धो ल़े या उस़े तबदील कि द़े औि

अगि शमकगाह क़े ज़ाहहिी हहस्स़े पि खन


ू लगा हो तो उस़े भी धोना ज़रूिी है।

401. इजस्तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः में एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

औित अपनी नमाज़ों क़े मलय़े िोज़ाना एक गस्


ु ल कि़े औि यह भी ज़रूिी है कक

इजस्तहाज़ा ए कलीलः क़े वह अफ़् आल सि अंर्जाम दें र्जो साबिका मस ्अल़े में ियान

हो चक
ु ़े हैं चन
ु ांच़े अगि सबु ह क़ी नमाज़ क़े दौिान औित को इजस्तहाज़ा आ र्जाए

तो सबु ह क़ी नमाज़ क़े मलय़े गस्


ु ल किना ज़रूिी है । अगि र्जान िझ
ू कि या भल

कि सबु ह क़ी नमाज़ क़े मलय़े गस्


ु ल न कि़े तो ज़ौहि औि अस्र क़ी नमाज़ क़े मलय़े

126
गस्
ु ल किना ज़रूिी है औि अगि नमाज़़े ज़ौहि औि अस्र क़े मलय़े गस्
ु ल न कि़े तो

मगरिि औि इशा स़े पहल़े गस्


ु ल किना ज़रूिी है ख़्वाह खन
ू आ िहा हो या िन्द

हो चक
ु ा हो।

402. इजस्तहाज़ा ए कसीिः में एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

औित हि नमाज़ क़े मलय़े रूई औि कपड़़े का टुकड़ा तबदील कि़े या उस़े धोए। औि

एक गस्
ु ल फ़ज्र क़ी नमाज़ क़े मलय़े औि एक गस्
ु ल ज़ौहि औि अस्र क़ी औि एक

गस्
ु ल मगरिि व इशा क़ी नमाज़ क़े मलय़े किना ज़रूिी है औि ज़ौहि औि अस्र क़ी

नमाज़ों क़े दिममयान फ़ासला न िख़े। औि अगि फ़ामसला िख़े तो अस्र क़ी नमाज़

क़े मलय़े दोिािा गस्


ु ल किना ज़रूिी है । इसी तिह अगि मगरिि व इशा क़ी नमाज़

क़े दिममयान फ़ामसला िख़े तो इशा क़ी नमाज़ क़े मलय़े दोिािा गस्
ु ल किना ज़रूिी

है । यह मज़्कूिा अहकाम उस औित में हैं कक अगि खून िाि िाि रूई स़े पट्टी पि

पहुंच र्जाए। अगि रूई स़े पट्टी तक पहुंचऩे में इतना फ़ामसला हो कक औित उस

फ़ामसल़े क़े अन्दि एक नमाज़ या एक स़े ज़्यादा नमाज़ पढ़ सकती हो तो

एहततयात़े लाजज़म यह है कक र्जि खन


ू रूई स़े पट्टी तक पहुंच र्जाए तो रूई औि

पट्टी को तबदील कि ल़े या धो ल़े औि गस्


ु ल कि ल़े। इसी बिना पि अगि औित

गस्
ु ल कि़े औि मसलन ज़ौहि क़ी नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अस्र क़ी नमाज़ स़े पहल़े या

नमाज़ क़े दौिान दोिािा खून रूई स़े पट्टी पि पहुंच र्जाए तो अस्र क़ी नमाज़ क़े

मलय़े भी गस्
ु ल किना ज़रूिी है । ल़ेककन अगि फ़ामसला इतना हो कक औित उस

127
दौिान दो या दो स़े ज़्यादा नमाज़ें पढ़ सकती हो तो ज़ाहहि यह है कक उन नमाज़ों

क़े मलय़े दोिािा गस्


ु ल किना ज़रूिी नहीं है इन तमाम सिू तों में अज़्हि यह है कक

इजस्तहाज़ा ए कसीिः में गस्


ु ल किना वज़
ु ू क़े मलय़े भी काफ़़ी है ।

403. अगि खूऩे इजस्तहाज़ः नमाज़ क़े वक़्त स़े पहल़े भी आए औित ऩे उस

खून क़े मलय़े वज़


ु ू या गस्
ु ल न ककया हो तो नमाज़ क़े वक़्त वज़
ु ू या गस्
ु ल किना

ज़रूिी है अगिच़े वह उस वक़्त मस्


ु तहाज़ः न हो।

404. मस्
ु तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः जर्जसक़े मलय़े वज़
ु ू औि गस्
ु ल किना ज़रूिी है

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उस़े चाहहय़े कक पहल़े गस्


ु ल कि़े औि िाद में वज़
ु ू

कि़े ल़ेककन मस्


ु तहाज़ा ए कसीिः म़े अगि वज़
ु ू किना चाह़े तो ज़रूिी है कक वज़
ु ू

गस्
ु ल स़े पहल़े कि़े ।

405. अगि औित का इजस्तहाज़ा ए कलीलः सबु ह क़ी नमाज़ क़े िाद

मत
ु वजस्सतः हो र्जाए तो ज़रूिी है कक ज़ौहि औि अस्र क़ी नमाज़ क़े मलय़े गस्
ु ल

कि़े । औि अगि ज़ौहि औि अस्र क़ी नमाज़ क़े िाद मत


ु वजस्सतः हो तो मगरिि

औि इशा क़ी नमाज़ क़े मलय़े गस्


ु ल किना ज़रूिी है।

406. अगि औित का इजस्तहाज़ा ए कलीलः या मत


ु वजस्सतः सबु ह क़ी नमाज़ क़े

िाद कसीिः हो र्जाए औि वह औित उसी हालत पि िाक़ी िह़े तो मस ्अला न0.

402 में र्जो अहकाम गुज़ि चक


ु ़े हैं नमाज़़े ज़ौहि व अस्र औि मगरिि व इशा पढ़ऩे

क़े मलय़े उन पि अमल किना ज़रूिी है ।

128
407. मस्
ु तहाज़ा ए कसीिः क़ी जर्जस सिू त में ज़रूिी है कक नमाज़ औि गस्
ु ल क़े

दिममयान फ़ामसला न हो र्जैसा कक मस ्अला न0. 402 में गज़


ु ि चक
ु ा है अगि

नमाज़ का वक़्त दाखखल होऩे स़े पहल़े गस्


ु ल किऩे क़ी वर्जह स़े नमाज़ औि गस्
ु ल

में फ़ामसला हो र्जाए तो उस गस्


ु ल क़े साथ नमाज़ सहीह नहीं है औि यह

मस्
ु तहाज़ः नमाज़ क़े मलय़े दोिािा गस्
ु ल कि़े । औि यही हुक्म मस्
ु तहाज़ा ए

मत
ु वजस्सतः क़े मलय़े भी है ।

408. ज़रूिी है कक मस्


ु तहाज़ा ए कलीलः व मत
ु वजस्सतः िोज़ाना क़ी नमाज़ों क़े

अलावा जर्जनक़े िाि़े में हुक्म ऊपि ियान हो चक


ु ा है हि नमाज़ क़े मलय़े ख़्वाह वह

वाजर्जि हो या मस्
ु तहि, वज़
ु ू कि़े । ल़ेककन अगि वह चाह़े कक िोज़ाना क़ी वह नमाज़़े

र्जो वह पढ़ चक
ु ़ी हो एहततयातन दोिािा पढ़़े या र्जो नमाज़ें उसऩे तन्हा पढ़ीं हैं

दोिािा िार्जमाअत पढ़़े तो ज़रूिी है कक वह तमाम अफ़् आल िर्जा लाए जर्जनका

जज़क्र इसततहाज़ः क़े मसलमसल़े में ककया गया है अलित्ता अगि वह नमाज़़े

एहततयात. भल
ू ़े हुए सज्द़े औि भल
ू ़े हुए तशह्हुद क़ी िर्जा आविी नमाज़ क़े फ़ौिन

िाद कि़े औि इसी तिह सज्दा ए सहव ककसी भी सिू त में कि़े तो उसक़े मलय़े

इसततहाज़ः क़े अफ़् आल का अन्र्जाम द़े ना ज़रूिी नहीं है।

409. अगि ककसी मस्


ु तहाज़ः औित का खून रूक र्जाए तो उसक़े िाद र्जो पहली

नमाज़ पढ़़े मसफ़क उसक़े मलय़े इसततहाज़ः क़े अफ़् आल अन्र्जाम द़े ना ज़रूिी है ।

ल़ेककन िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े ऐसा किना ज़रूिी नहीं।

129
410. अगि ककसी औित को यह मालम
ू न हो कक उसका इजस्तहाज़ा कौन सा है

तो र्जि नमाज़ पढ़ना चाह़े ितौ एहततयात ज़रूिी है कक तह्क़ीक किऩे क़े मलय़े

थोड़ी सी रूई शमकगाह में िख़े औि कुछ द़े ि इजन्तज़ाि कि़े औि किि रूई तनकाल ल़े

औि र्जि उस़े पता चल र्जाए कक उसका इजस्तहाज़ः तीन अक़्साम में स़े कौन सी

ककस्म का है तो उस ककस्म क़ी इजस्तहाज़ः क़े मलय़े जर्जन अफ़् आल का हुक्म हदया

गया है उन्हें अन्र्जाम द़े । ल़ेककन अगि वह र्जानती हो कक जर्जस वक़्त तक वह

नमाज़ पढ़ना चाहती है उसका इजस्तहाज़ः तबदील नहीं होगा तो नमाज़ का वक़्त

दाखखल होऩे स़े पहल़े भी वह अपऩे िाि़े में तहक़ीक कि सकती है ।

411. अगि मस्


ु तहाज़ः अपऩे िाि़े में तहक़ीक किऩे स़े पहल़े नमाज़ में मश्गल

हो र्जाए तो अगि वह कुिकत का कस्द िखती हो औि उसऩे अपऩे वज़ीफ़़े क़े

मत
ु ाबिक अमल ककया हो मसलन उसका इजस्तहाज़ः कलीलः हो औि उसऩे

इजस्तहाज़ः कलीलः क़े मत


ु ाबिक अमल ककया हो तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन

अगि वह कुिकत का कस्द न िखती हो या उसका अमल उसक़े वज़ीफ़़े क़े मत


ु ाबिक

न हो मतलि उसका इजस्तहाज़ः मत


ु वजस्सतः हो औि उसऩे अमल इजस्तहाज़ः

कलीलः क़े मत
ु ाबिक ककया हो तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

412. अगि मस्


ु तहाज़ः अपऩे िाि़े में तहक़ीक न कि सक़े तो ज़रूिी है कक र्जो

उसका यक़ीनी वज़ीफ़ा हो उसक़े मत


ु ाबिक अमल कि़े मसलन अगि वह यह न

र्जानती हो कक उसका इजस्तहाज़ः कलीलः है या मत


ु वजस्सतः तो ज़रूिी है कक

130
इजस्तहाज़ः कलीलः क़े अफ़् आल अन्र्जाम द़े औि अगि वह यह न र्जानती हो क़ी

उसका इजस्तहाज़ः मत
ु वजस्सतः है या कसीिः तो ज़रूिी है कक इजस्तहाज़ा ए

मत
ु वजस्सतः क़े अफ़् आल अन्र्जाम द़े । ल़ेककन अगि वह र्जानती हो कक इसस़े प़ेशति

उस़े उन तीन अक़्साम में स़े कौन सी ककस्म का इजस्तहाज़ः था तो ज़रूिी है कक

उसी ककस्म क़े मत


ु ाबिक अपना वज़ीफ़ा अन्र्जाम द़े ।

413. अगि इजस्तहाज़ः का खून अपऩे इजबतदाई महकल़े पि जर्जस्म क़े अन्दि ही

हो औि िाहि न तनकल़े तो औित ऩे र्जो वज़


ु ू या गस्
ु ल ककया हुआ हो उस़े िाततल

नहीं किता ल़ेककन अगि िाहि आ र्जाए तो ख़्वाह ककतना ही कम क्यों न हो वज़
ु ू

औि गस्
ु ल को िाततल कि द़े ता है ।

414. मस्
ु तहाज़ः अगि नमाज़ क़े िाद अपऩे िाि़े में तहक़ीक कि़े औि खून न

द़े ख़े तो अगिच़े उस़े इल्म हो कक दोिािा खून आय़ेगा र्जो वज़
ु ू वह ककय़े हुए है उसी

स़े नमाज़ पढ़ सकती है ।

415. मस्
ु तहाज़ः औित अगि यह र्जानती हो कक जर्जस वक़्त वह वज़
ु ू या गस्
ु ल

में मशगल
ू हुई है खन
ू उसक़े िदन स़े िाहि नहीं आया औि न ही शमकगाह क़े

अन्दि है तो र्जि तक उस़े पाक िहऩे का यक़ीन हो नमाज़ पढ़ऩे में ताखीि कि

सकती है।

416. अगि मस्


ु तहाज़ः को यक़ीन हो कक नमाज़ का वक़्त गुज़िऩे स़े पहल़े पिू ी

तिह पाक हो र्जाय़ेगी या अन्दाज़न जर्जतना वक़्त नमाज़ पढ़ऩे में लगता है उसमें

131
खून आना िन्द हो र्जाय़ेगा तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

इजन्तज़ाि कि़े औि उस वक़्त नमाज़ पढ़़े र्जि पाक हो।

417. अगि वज़


ु ू औि गस्
ु ल क़े िाद में खन
ू आना िज़ाहहि िन्द हो र्जाए औि

मस्
ु तहाज़ः को मालम
ू हो कक अगि नमाज़ पढ़ऩे में ताखीि कि़े तो जर्जतनी द़े ि में

वज़
ु ू गस्
ु ल औि नमाज़ िर्जा लाय़ेगी बिल्कुल पाक हो र्जाय़ेगी तो एहततयात़े लाजज़म

क़ी बिना पि ज़रूिी है कक मव


ु ख़्खि कि द़े औि र्जि बिल्कुल पाक हो र्जाए दोिािा

वज़
ु ू औि गस्
ु ल कि क़े नमाज़ पढ़़े औि अगि खून क़े िज़ाहहि िन्द होऩे क़े वक़्त

नमाज़ का वक़्त तंग हो तो वज़


ु ू औि गस्
ु ल दोिािा किना ज़रूिी नहीं िजल्क र्जो

वज़
ु ू औि गस्
ु ल उसऩे ककय़े हुए हैं उन्हीं क़े साथ नमाज़ पढ़ सकती है।

418. मस्
ु तहाज़ा ए कसीिः र्जि खून स़े बिल्कुल पाक हो र्जाए अगि उस़े मालम

हो कक जर्जस वक़्त स़े उसऩे गजु ज़शता नमाज़ क़े मलय़े गस्
ु ल ककया था उस वक़्त

तक खून नहीं आया तो दोिािा गस्


ु ल किना ज़रूिी नहीं है िसिू त़े दीगि गस्
ु ल

किना ज़रूिी है। अगिच़े इस हुक्म का ितौि़े कुल्ली होना एहततयात क़ी बिना पि

है औि मस्
ु तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः में ज़रूिी नहीं है कक खन
ू स़े बिल्कुल पाक हो

र्जाए किि गस्


ु ल कि़े ।

419. मस्
ु तहाज़ा ए कलीलः को वज़
ु ू क़े िाद औि मस्
ु तहाज़ा ए मत
ु वजस्सत को

गस्
ु ल औि वज़
ु ू क़े िाद औि मस्
ु तहाज़ा ए कसीिः को गस्
ु ल क़े िाद (उन दो सिू तों

क़े अलावा र्जो मस ्अला 403 औि 415 में आई हैं) फ़ौिन नमाज़ में मशगल
ू होना

132
ज़रूिी है । ल़ेककन नमाज़ स़े पहल़े अज़ान औि इकामत कहऩे में कोई हर्जक नहीं औि

वह नमाज़ में मस्


ु तहि काम समलन कुनत
ू वगैिह पढ़ सकती है ।

420. अगि मस्


ु तहाज़ः जर्जसका वज़ीफ़ा यह हो कक वज़
ु ू या गस्
ु ल औि नमाज़ क़े

दिममयान फ़ामसला न िख़े अर्ि उसऩे अपऩे वज़ीफ़़े क़े मत


ु ाबिक अमल न ककया

हो तो ज़रूिी है कक वज़
ु ू या गस्
ु ल किऩे क़े िाद फ़ौिन नमाज़ में मशगल
ू हो र्जाए।

421. अगि औित का खूऩे इजस्तहाज़ः र्जािी िह़े औि िन्द होऩे में न आए औि

खून का िोकना उसक़े मलय़े मजु ज़ि न हो तो ज़रूिी है कक गस्


ु ल क़े फ़ौिन िाद खून

को िाहि आऩे स़े िोक़े औि अगि ऐसा किऩे में कोताही िते औि खन
ू तनकल आए

तो र्जो नमाज़ पढ़ ली हो उस़े दोिािा पढ़़े िजल्क एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

दोिािा गस्
ु ल कि़े ।

422. अगि गस्


ु ल कित़े वक़्त खून न रूक़े तो गस्
ु ल सहीह है ल़ेककन अगि

गस्
ु ल क़े दौिान इजस्तहाज़ा ए मत
ु ावजस्सतः इजस्तहाज़ा ए कसीिः हो र्जाए तो अज़

सि़े नव गस्
ु ल किना ज़रूिी है।

423. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक मस्
ु तहाज़ः िोज़़े स़े हो तो सािा हदन र्जहां

तक मजु म्कन हो खून को तनकल ऩे स़े िोक़े।

424. मशहूि कौल क़ी बिना पि मस्


ु तहाज़ा ए कसीिः का िोज़ा उस सिू त में

सहीह होगा कक जर्जस िात क़े िाद क़े हदन वह िोज़ा िखना चाहती हो उस िात क़ी

मगरिि औि इशा क़ी नमाज़ का गस्


ु ल कि़े । अलावा अज़ीं हदन क़े वक़्त वह गस्
ु ल

133
अन्र्जाम द़े र्जो हदन क़ी नमाज़ों क़े मलय़े वाजर्जि है । ल़ेककन कुछ िईद नहीं कक

उसक़े िोज़़े क़ी स़ेहत का इनहहसाि गस्


ु ल पि न हो। इसी तिह बिनािि अक़्वा

मस्
ु तहाज़ा ए सत
ु वजस्सतः में यह गस्
ु ल शते नहीं है।

425. अगि औित अस्र क़ी नमाज़ क़े िाद मस्


ु तहाज़ः हो र्जाए औि गरू
ु ि़े

आफ़ताि तक गस्
ु ल न कि़े तो उसका िोज़ा बिला इशकाल सहीह है ।

426. अगि ककसी औित का इजस्तहाज़ा ए कलीलः नमाज़ स़े पहल़े मत


ु वजस्सतः

या कसीिः हो र्जाए तो ज़रूिी है कक मत


ु वजस्सतः या कसीिः क़े अफ़् आल जर्जनका

ऊपि जज़क्र हो चक
ु ा है अंर्जाम द़े औि अगि इजस्तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः कसीिः हो

र्जाए तो चाहहय़े कक इजस्तहाज़ा ए कसीिः क़े मलय़े गस्


ु ल कि चक
ु ़ी हो तो उसका

यह गस्
ु ल ि़ेफ़ायदा होगा औि उस़े इजस्तहाज़ा ए कसीिः क़े मलय़े दोिािा गस्
ु ल

किना ज़रूिी है।

427. अगि नमाज़ क़े िाद ककसी औित का इजस्तहाज़ा ए मत


ु वजस्सतः कसीिः में

िदल र्जाए तो ज़रूिी है कक नमाज़ तोड़ द़े औि इजस्तहाज़ा ए कसीि क़े मलय़े गस्
ु ल

कि़े औि उसक़े दस
ू ि़े अफ़् आल अन्र्जाम द़े औि किि उसी नमाज़ को पढ़़े औि

एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि गस्
ु ल स़े पहल़े वज़
ु ू कि़े औि अगि उसक़े पास

गस्
ु ल क़े मलय़े वक़्त न हो तो गस्
ु ल क़े मलय़े तयम्मम
ु किना ज़रूिी है । औि अगि

तयम्मम
ु क़े मलय़े भी वक़्त न हो तो एहततयात क़ी बिना पि नमाज़ न तोड़़े औि

उसी हालत में खत्म कि़े । ल़ेककन ज़रूिी है कक वक़्त गज़


ु िऩे क़े िाद उसी नमाज़

134
क़ी कज़ा कि़े । औि इसी तिह अगि नमाज़ क़े दौिान उसका इजस्तहाज़ा ए कलीलः

इजस्तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः या कसीिः हो र्जाए तो ज़रूिी है कक नमाज़ को तोड़ द़े

औि इस्तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः कसीिः हो र्जाए तो ज़रूिी है कक नमाज़ को तोड़ द़े

औि इजस्तहाज़ा ए मत
ु वजस्सतः या कसीिः क़े अफ़् आल को अन्र्जाम द़े ।

428. अगि नमाज़ क़े दौिान खून िन्द हो र्जाए औि मस्


ु तहाज़ः को मालम
ू न

हो कक िाततन में भी खून िन्द हुआ है या नहीं तो अगि नमाज़ क़े िाद उस़े पता

चल़े कक खून पिू ़े तौि पि िन्द हो गया था औि उसक़े िाद इतना वसी वक़्त हो

कक पाक होकि दोिािा नमाज़ पढ़ सक़े तो अगि खन


ू िन्द हो ऩे स़े मायस
ू न हुई

हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि अपऩे वज़ीफ़ क़े मत


ु ाबिक वज़
ु ू या गस्
ु ल

कि़े औि नमाज़ दोिािा पढ़़े ।

429. अगि ककसी औित का इजस्तहाज़ा ए कसीिः मत


ु वजस्सतः हो र्जाए तो

ज़रूिी है कक पहली नमाज़ क़े मलय़े कसीिः का अमल औि िाद क़ी नमाज़ों क़े

मलय़े मत
ु वजस्सतः का अमल िर्जा लाए मसलन अगि ज़ौहि क़ी नमाज़ स़े पहल़े

इजस्तहाज़ा ए कसीिः मत
ु वजस्सतः हो र्जाए तो ज़रूिी है कक ज़ौहि क़ी नमाज़ क़े

मलय़े गस्
ु ल कि़े औि अस्र व मगरिि व इशा क़े मलय़े मसफ़क वज़
ु ू कि़े ल़ेककन अगि

नमाज़़े ज़ौहि क़े मलय़े गस्


ु ल न कि़े औि उसक़े पास मसफ़क नमाज़़े अस्र क़े मलय़े

वक़्त िाक़ी हो तो ज़रूिी है कक नमाज़़े अस्र क़े मलय़े गस्


ु ल कि़े औि अगि नमाज़़े

अस्र क़े मलय़े भी गस्


ु ल न कि़े तो ज़रूिी है कक नमाज़़े मगरिि क़े मलय़े गस्
ु ल कि़े

135
औि अगि उसक़े मलय़े भी गस्
ु ल न कि़े औि उसक़े पास मसफ़क नमाज़़े इशा क़े मलय़े

वक़्त हो तो नमाज़़े इशा क़े मलय़े गस्


ु ल किना ज़रूिी है।

430. अगि हि नमाज़ स़े पहल़े मजु स्तहाज़ा ए कसीि का खन


ू िन्द हो र्जाए औि

दोिािा आ र्जाए तो हि नमाज़ क़े मलय़े गस्


ु ल किना ज़रूिी है ।

431. अगि इजस्तहाज़ा ए कसीिः कलीलः हो र्जाए तो ज़रूिी है कक वह औित

पहली नमाज़ क़े मलय़े कसीिः वाल़े औि िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े कलीलः वाल़े

अफ़् आल िर्जा लाए औि इजस्तहाज़ा ए मत


ु वजस्सतः कलीलः हो र्जाए तो पहली

नमाज़ क़े मलय़े मत


ु वजस्सतः वाल़े औि िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े कलील वाल़े

अफ़् आल िर्जा लाना ज़रूिी है।

432. मस्
ु तहाज़ः क़े मलय़े र्जो अफ़् आल वाजर्जि है अगि वह उनमें स़े ककसी एक

को भी तकक कि द़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

433. मस्
ु तहाज़ा ए कलीलः या मत
ु वजस्सतः अगि नमाज़ क़े अलावा वह काम

अन्र्जाम द़े ना चाहती हो जर्जनक़े मलय़े वज़


ु ू का होना शतक है मसलन अपऩे िदन का

कोई हहस्सा कुिआऩे मर्जीद क़े अल्फ़ाज़ स़े मस किना चाहती हो तो नमाज़ अदा

किऩे क़े िाद वज़


ु ू किना ज़रूिी है औि वह वज़
ु ू र्जो नमाज़ क़े मलय़े ककया था

काफ़़ी नहीं है ।

434. जर्जस मस्


ु तहाज़ः ऩे अपऩे वाजर्जि गस्
ु ल कि मलय़े हों उसका मजस्र्जद में

र्जाना औि वहां ठहिना औि वह आयात पढ़ना जर्जनक़े पढ़ऩे स़े सज्दा वाजर्जि हो

136
र्जाता है औि उसक़े शौहि का उसक़े साथ मर्ज
ु ाममअत किना हलाल है । ख़्वाह उसऩे

वह अफ़् आल र्जो नमाज़ क़े मलय़े अन्र्जाम द़े ती थी (मसलन रूई औि कपड़़े क़े

टुकड़़े का तबदील किना) अंर्जाम न हदय़े हों औि िईद नहीं कक यह अफ़् आल िगैि

गस्
ु ल भी र्जायज़ हों अगिच़े एहततयात उनक़े तकक किऩे में है।

435. र्जो औित इजस्तहाज़ा ए कसीिः या मत


ु वजस्सतः में हो अगि वह चाह़े कक

नमाज़ क़े वक़्त स़े पहल़े उस आयत को पढ़़े जर्जसक़े पढ़ऩे स़े सज्दा वाजर्जि हो

र्जाता है या मजस्र्जद में तो एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक गस्
ु ल

कि़े औि उसका शौहि उसस़े मर्ज


ु ाममअत किना चाह़े तो ति भी यही हुक्म है ।

436. मस्
ु तहाज़ः पि नमाज़़े आयात का पढ़ना वाजर्जि है औि नमाज़़े आयात

अदा किऩे क़े मलय़े यौमीयः नमाज़ों क़े मलय़े ियान ककय़े गए तमाम अफ़् आल

अंर्जाम द़े ना ज़रूिी है ।

437. र्जि भी यौमीयः नमाज़ क़े वक़्त में नमाज़़े आयात मस्
ु तहाज़ः पि वाजर्जि

हो र्जाए औि वह चाह़े कक उन दोनों नमाज़ों को यक़े िाद दीगि़े अदा कि़े ति भी

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि वह उन दोनों को एक वज़


ु ू औि गस्
ु ल स़े नहीं पढ़

सकती।

438. अगि मस्


ु तहाज़ः कज़ा नमाज़ पढ़ना चाह़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ क़े मलय़े

वह अफ़् आल अन्र्जाम द़े र्जो अदा नमाज़ क़े मलय़े उस पि वाजर्जि हैं औि

137
एहततयात क़ी बिना पि कज़ा नमाज़ क़े मलय़े उन अफ़् आल पि इजक्तफ़ा नहीं कि

सकती र्जो कक उसऩे अदा नमाज़ क़े मलय़े अंर्जाम हदयें हों।

439. अगि कोई औित र्जानती हो कक र्जो खन


ू उस़े आ िहा है वह ज़ख़्म का

खून नहीं है ल़ेककन उस खून क़े इजस्तहाज़ः हैज़ या तनफ़ास होऩे क़े िाि़े में शक

औि शिअन वह खून है ज़ व तनफ़ास का हुक्म भी न िखता हो तो ज़रूिी है कक

इजस्तहाज़ः वाल़े अहकाम क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े । िजल्क अगि उस़े शक हो कक यह

खून इजस्तहाज़ः है या कोई दस


ू िा औि वह दस
ू ि़े खून क़ी अलामत भी न िखता हो

तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि इजस्तहाज़ः क़े अफ़् आल अन्र्जाम द़े ना ज़रूिी है।

है ज (माहवािी)

है ज़ वह खून है र्जो उमम


ू न हि महीऩे चन्द हदनों क़े मलय़े औितों क़े िहहम

(गभाकशय) स़े खारिर्ज होता है औि औित को र्जि हैज़ (माहवािी) का खन


ू आए तो

उस़े हाइज़ कहत़े हैं।

440. है ज़ का खून उमम


ू न गाढ़ा औि गमक होता है औि उसका िं ग स्याह या

सख
ु क होता है । वह उछलकि औि थोड़ी र्जलन क़े साथ खारिर्ज होता है ।

441. वह खून र्जो औितों को साठ ििस पिू ़े किऩे क़े िाद आता है हैज़ का

हुक्म नहीं िखता। एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक वह औितें र्जो गैि कुि़े शी है वह

पाच स़े साठ साल क़ी उम्र क़े दौिान खन


ू इस तिह द़े खें कक अगि वह पचास साल

138
स़े पहल़े खून द़े खतीं तो वह खून यक़ीकन है ज़ का हुक्म िखता तो वह मस्
ु तहाज़ः

वाल़े अहकाम िर्जा लायें औि उन कामों को तकक किें जर्जन्हें हाइज़ तकक किती है ।

442. अगि ककसी लड़क़ी को नौ साल क़ी उम्र तक पहुंचऩे स़े पहल़े खन
ू आए

तो वह है ज़ नहीं है।

443. हाममलः औि िच्च़े को दध


ू वपलाऩे वाली औित को भी हैज़ आना मजु म्कन

है औि हाममलः औि गैि हाममलः का हुक्म एक ही है । िस (फ़कक यह है कक)

हाममलः औित अपनी आदत क़े अय्याम शरू


ू होऩे क़े िीस िोज़ िाद भी अगि हैज़

क़ी अलामतों (माहवािी क़े लक्षणों) क़े साथ खन


ू द़े ख़े तो उसक़े मलय़े एहततयात क़ी

बिना पि ज़रूिी है कक वह उन कामों को तकक कि द़े जर्जन्हें हाइज़ तकक किती है

औि मस्
ु तहाज़ः क़े अफ़् आल भी िर्जा लाए।

444. अगि ककसी ऐसी लड़क़ी को खून आए जर्जस़े अपनी उम्र क़े नौ साल पिू ़े

होऩे का इल्म न हो औि उस खून में हैज़ क़ी अलामत न हों तो वह हैज़ नहीं है

औि अगि उस खन
ू में है ज़ क़ी अलामत हों तो उस पि हैज़ का हुक्म लगाना

महल्ल़े इश्काल है मगि यह कक इत्मीनान हो र्जाए कक यह है र्ज है उस सिू त में

यह मआलम
ू हो र्जाय़ेगा कक उसक़ी उम्र पिू ़े नौ साल हो गई है।

445. जर्जस औित को शक हो कक उसक़ी उम्र साठ साल हो गई है या नहीं

अगि वह खून द़े ख़े औि यह न र्जानती हो कक यह हैज़ या नहीं तो उस़े समझना

चाहहय़े कक उसक़ी उम्र साठ साल नहीं है ।

139
446. है ज़ क़ी मद्
ु दत तीन हदन स़े कम औि दस हदन स़े ज़्यादा नहीं होती औि

अगि खन
ू आऩे क़ी मद्
ु दत तीन हदन स़े भी कम हो तो वह हैज़ नहीं होगा।

447. है ज़ क़े मलय़े ज़रूिी है कक पहल़े तीन हदन लगाताि आए मलहाज़ा अगि

ममसाल क़े तौि पि ककसी औित को दो हदन खून आए किि एक हदन न आए औि

किि एक हदन आ र्जाए तो वह हैज़ नहीं है।

448. है ज़ क़ी इजबतदा में खून का िाहि आना ज़रूिी है ल़ेककन यह ज़रूिी नहीं

कक पिू ़े तीन हदन खन


ू तनकलता िह़े िजल्क अगि शमकगाह में खून मौर्जूद हो तो

काफ़़ी है औि अगि तीन हदनों में थोड़़े स़े वक़्त क़े मलय़े भी कोई औित पाक हो

र्जाए र्जैसा कक तमाम या िाज़ औितों क़े दिममयान मत


ु आिफ़ है ति भी वह हैज़

है ।

449. एक औित क़े मलय़े यह ज़रूिी है कक उसका खून पहली िात औि चौथी

िात को िाहि तनकल़े ल़ेककन यह ज़रूिी है कक दस


ू िी औि तीसिी िात को मन्
ु कतअ

न हो पस अगि पहल़े हदन सबु ह सव़ेि़े स़े तीसि़े हदन गरू


ु ि़े आफ़ताि तक

मत
ु वातति खन
ू आता िह़े औि ककसी वक़्त िन्द न हो तो वह है ज़ है। औि अगि

पहल़े हदन दोपहल स़े खून आना शरू


ू हो औि चौथ़े हदन उसी वक़्त िन्द हो तो

उसक़ी सिू त भी यही हुक्म है (यानी वह भी हैज़ है ) ।

450. अगि ककसी औित को तीन हदन मत


ु वातति खून आता िह़े किि वह पाक

हो र्जाए चन
ु ांच़े अगि किि वह दोिािा खन
ू द़े ख़े तो जर्जन हदनों में वह खून द़े ख़े

140
औि जर्जन हदनों में वह पाक हो उन तमाम हदनों को ममला कि अगि दस हदन स़े

ज़्यादा न हों तो जर्जन हदनों में वह खन


ू द़े ख़े वह हैज़ क़े हदन हैं ल़ेककन एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि पाक़ी क़े हदनों में वह उन तमाम उमिू को र्जो पाक औित

पि वाजर्जि औि हाइज़ क़े मलय़े हिाम है अंर्जाम द़े ।

451. अगि ककसी औित को तीन हदन स़े ज़्यादा औि दस हदन स़े कम खून

आए औि उस़े यह इल्म न हो कक या खन
ू िोड़़े या ज़ख़्म का है या हैज़ का तो

उस़े चाहहय़े क़ी उस खून को हैज़ न समझ़े।

452. अगि ककसी औित को ऐसा खन


ू आए कक जर्जसक़े िाि़े में उस़े इल्म न हो

कक ज़ख़्म का खून है या हैज़ का तो ज़रूिी है कक अपनी इिादत िर्जा लाती िह़े ।

ल़ेककन अगि उसक़ी साबिकः हालत हैज़ क़ी िही हो तो उस सिू त में उस़े है ज़ किाि

द़े ।

453. अगि ककसी औित को खून आए औि उस़े शक हो कक यह खून है ज़ है या

इजस्तहाज़ः तो ज़रूिी है कक हैज़ क़ी अलामत मौर्जद


ू होऩे क़ी सिू त में उस़े है ज़

किाि द़े ।

454. अगि ककसी औित को खून आए औि उस़े यह मआलम


ू न हो कक हैज़ या

िकाित का खून है तो ज़रूिी है कक अपऩे िाि़े में तहक़ीक कि़े यानी कुछ रूई

शमकगाह में िख़े औि थोड़ी द़े ि इजन्तज़ाि कि़े किि रूई िाहि तनकाल़े। पस अगि

141
खून रूई क़े अत्राफ़ में लगा हो तो िकाित है औि सािी क़ी सािी रूई खून में ति

हो र्जाए तो हैज़ है ।

455. अगि ककसी औित को तीन हदन स़े कम मद्


ु दत तक खन
ू आए औि किि

िन्द हो र्जाए औि तीन हदन क़े िाद खून आए तो दस


ू िा खून हैज़ है औि पहला

खून ख़्वाह वह उसक़ी आदत क़े हदनों ही में आया हो है ज़ नहीं है ।

हाइज के अहकाम

456. चन्द चीज़ें हाइज़ पि हिाम है ः-

1. नमाज़ या उस र्जैसी दीगि इिादतें जर्जन्हें वज़


ु ू या गस्
ु ल या तयम्मम
ु क़े साथ

अदा किना ज़रूिी है ल़ेककन उन इिादतों क़े अदा किऩे में कोई हिर्ज नहीं जर्जनक़े

मलय़े वज़
ु ,ू गस्
ु ल या तयम्मम
ु किना ज़रूिी नहीं र्जैसै नमाज़़े मैतयत।

2. वह तमाम चीज़ें र्जो मजु ज्नि पि हिाम हैं औि जर्जनका जज़क्र र्जनाित क़े

अहकाम में आ चक
ु ा है ।

3. औित क़ी फ़ज़क में जर्जमाअ (संभोग) किना र्जो मदक औि औित दोनों क़े मलय़े

हिाम है ख़्वाह दख
ु ूल मसफ़क सप
ु ािी क़ी हद तक ही हो औि मनी भी खारिर्ज न हो

िजल्क एहततयात़े वाजर्जि यह है कक सप


ु ािी स़े कम ममकदाि में भी दख
ु ूल न ककया

र्जाए नीज़ एहततयात क़ी बिना पि औित क़ी दि


ु िु में मर्ज
ु ाममअत न कि़े ख़्वाह वह

हाइज़ हो या न हो।

142
457. उन हदनों में भी जर्जमाअ किना हिाम है जर्जनमें औित का हैज़ यक़ीनी न

हो ल़ेककन शिअन उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक अपऩे आप को हाइज़ किाि द़े । पस

जर्जस औित को दस हदन स़े ज़्यादा खन


ू आया हो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक उस

हुक्म क़े मत
ु ाबिक जर्जसका जज़क्र िाद में ककया र्जाय़ेगा अपऩे आपको उतऩे हदन क़े

मलय़े हाइज़ किाि द़े जर्जतऩे हदन ती उसक़े कंु ि़े क़ी औितों क़ी आदत हो तो उसका

शौहि उन हदनों में उस स़े मर्ज


ु ाममअत नहीं कि सकता।

558. अगि मदक अपनी िीवी स़े हैज़ क़ी हालत में मर्ज
ु ाममअत कि़े तो उसक़े

मलय़े ज़रूिी है कक इजस्तगफ़ाि कि़े औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक कफ़्फ़ािा भी

अदा कि़े , उसका कफ़्फ़ािा मस ्अला 460 में ियान होगा।

459. हाइज़ स़े मर्ज


ु ाममअत क़े अलावा दस
ू िी लत्ु फ़ अन्दोजज़यों मसलन िोसो

कनाि क़ी मम
ु ातनअत नहीं है ।

460. है ज़ क़ी हालत में मर्ज


ु ाममअत का कफ़्फ़ािा हैज़ क़े पहल़े हहस्स़े में अट्ठािा

चनों क़े ििािि, दस


ू ि़े हहस्स़े में नौ चनों क़े ििािि औि तीसि़े हहस्स़े में साढ़़े चाि

चनों क़े ििािि मसक्कादाि सोना है । मसलन अगि ककसी औित को छः हदन हैज़

का खून आए औि उसका शौहि पहली या दस


ू िी िात या हदन में उसस़े जर्जमाअ

कि़े तो अट्ठािा चनों क़े ििािि सोना द़े अगि तीसिी या चौथी िात या हदन में

जर्जमाअ कि़े तो नौ चनों क़े ििािि सोना द़े औि अगि पांचवी या छठ िात में

जर्जमाअ कि़े तो साढ़़े चाि चनों क़े ििािि सोना द़े ।

143
461. अगि मसक्कादाि सोना मजु म्कन न हो तो मत
ु अजल्लका शख़्स उसक़ी

क़ीमत द़े औि अगि सोऩे क़ी उस वक़्त क़ी क़ीमत स़े र्जिकक उसऩे जर्जमाअ ककया

था उस वक़्त क़ी क़ीमत र्जिकक वह गिीि मोहतार्ज को द़े ना चाहता हो मख़्


ु तमलफ़

हो गई हो तो उस वक़्त क़ी क़ीमत क़े मत


ु ाबिक लगाए र्जि वह गिीि मोहतार्ज को

द़े ना चाहता हो।

462. अगि ककसी शख़्स ऩे हैज़ क़े पहल़े हहस्स़े में भी दस
ू ि़े हहस्स़े में भी औि

तीसि़े हहस्स़े में भी अपनी िीवी स़े जर्जमाअ ककया हो तो वह तीनों कफ़्फ़ाि़े द़े र्जो

सि ममलकि साढ़़े एक्तीस (6.506 ग्राम) हो र्जात़े हैं।

463. अगि कोई शख़्स हाइज़ स़े कई िाि जर्जमाअ कि़े तो ि़ेहति यह है कक हि

जर्जमाअ क़े मलय़े कफ़्फ़ािा द़े ।

464. अगि मदक को जर्जमाअ क़े दौिान मालम


ू हो र्जाए कक औित को हैज़ आऩे

लगा है तो ज़रूिी है कक फ़ौिन उस स़े र्जुदा हो र्जाए औि अगि र्जुदा न हो तो

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक कफ़्फ़ािा द़े ।

465. अगि कोई शख़्स हाइज़ स़े जज़ना (िलात्काि) कि़े या यह गम


ु ान कित़े हुए

ना महिम हाइज़ स़े जर्जमाअ कि़े कक वह उसक़ी अपनी िीवी है ति भी एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक कफ़्फ़ािा द़े ।

466. अगि कोई शख़्स ला इल्मी क़ी बिना पि भल


ू कि औित स़े हालत़े हैज़ में

मर्ज
ु ाममअत कि़े तो उस पि कफ़्फ़ािा नहीं।

144
467. अगि एक मदक यह ख़्याल कित़े हुए कक औित हाइज़ है उसस़े मर्ज
ु ाममअत

कि़े ल़ेककन िाद में मआलम


ू हो कक हाइज़ नहीं थी तो उस पि कफ़्फ़ािा नहीं।

468. र्जैसा कक तलाक क़े अहकाम में िताया र्जाय़ेगा औित को हैज़ क़ी हालत

में तलाक द़े ना िाततल है ।

469. अगि औित कह़े कक मैं हाइज़ हूाँ या यह कह़े कक मैं हैज़ स़े पाक हूाँ औि

वह गलत ियानी न किती हो तो उसक़ी िात कुिल


ू क़ी र्जाए ल़ेककन अगि गलत

ियान हो तो उसक़ी िात कुिल


ू किऩे में इश्काल है।

470. अगि कोई औित नमाज़ क़े दौिान हाइज़ हो र्जाए तो उसक़ी नमाज़

िाततल है ।

471. अगि औित नमाज़ क़े दौिान शक कि़े कक हाइज़ हुई है या नहीं तो

उसक़ी नमाज़ सही है। ल़ेककन अगि नमाज़ क़े िाद पता चल़े क़ी नमाज़ क़े दौिान

हाइज़ हो गई थी तो र्जो नमाज़ उसऩे पढ़ी है वह िाततल है।

472. औित क़े है ज़ स़े पाक हो र्जाऩे क़े िाद उस पि वाजर्जि है कक नमाज़ औि

दस
ू िी इिादत क़े मलय़े र्जो वज़
ु ,ू गस्
ु ल या तयम्मम
ु किक़े िर्जा लाना चाहहय़े गस्
ु ल

कि़े औि उसका तिीका गस्


ु ल़े र्जनाित क़ी तिह है औि ि़ेहति यह है कक गस्
ु ल स़े

पहल़े वज़
ु ू भी कि़े ।

473. औित क़े हैज़ स़े पाक हो र्जाऩे क़े िाद अगिच़े उसऩे गस्
ु ल न ककया हो

उस़े तलाक द़े ना सहीह है औि उसका शौहि उसस़े जर्जमअ भी कि सकता है ल़ेककन

145
एहततयात़े लाजज़म यह है कक जर्जमाअ शमकगाह धोऩे क़े िाद ककया र्जाए औि

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उसक़े गस्
ु ल किऩे स़े पहल़े मदक उसस़े जर्जमाअ न

कि़े । अलित्ता र्जि तक वह औित गस्


ु ल न कि़े वह दस
ू ि़े काम र्जो हैज़ क़े वक़्त

पि हिाम थ़े मसलन मजस्र्जद में ठहिना या कुिआऩे मर्जीद क़े अल्फ़ाज़ को छूना

उस पि हलाल नहीं होत़े।

474. अगि पानी (औित क़े) वज़


ु ू औि गस्
ु ल क़े मलय़े काफ़़ी न हो औि तकिीिन

इतना हो कक उसस़े गस्


ु ल कि सक़े तो ज़रूिी है कक गस्
ु ल कि़े औि ि़ेहति यह है

कक वज़
ु ू क़े िदल़े तयम्मम
ु कि़े औि अगि पानी मसफ़क वज़
ु ू क़े मलय़े काफ़़ी हो औि

इतना न हो कक उसस़े गस्


ु ल ककया र्जा सक़े तो ि़ेहति यह है कक वज़
ु ू कि़े औि

गस्
ु ल क़े िदल़े तयम्मम
ु किना ज़रूिी है औि अगि दोनों में स़े ककसी क़े मलय़े भी

पानी न हो तो गस्
ु ल क़े िदल़े तयम्मम
ु किना ज़रूिी है औि ि़ेहति यह है कक वज़
ु ू

क़े िदल़े भी तयम्मम


ु कि़े ।

475. र्जो नमाज़़े औित ऩे हैज़ क़ी हालत में न पढ़ी हों उनक़ी कज़ा नहीं ल़ेककन

िमज़ान क़े वह िोज़़े र्जो हैज़ क़ी हालत में न िख़े हों ज़रूिी है कक उनक़ी कज़ा कि़े

औि इसी तिह एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि र्जो िोज़़े मन्नत क़ी वर्जह स़े

मअ
ु य्यन हदनों में वाजर्जि हुए हों औि उसऩे है ज़ क़ी हालत में वह िोज़़े न िख़े हों

तो ज़रूिी है कक उनक़ी कज़ा कि़े ।

146
476. र्जि नमाज़ का वक़्त हो र्जाए औि औित यह र्जान ल़े (यानी उस़े यक़ीन

हो) क़ी अगि वह नमाज़ पढ़ऩे में द़े ि कि़े गी तो हाइज़ हो र्जाय़ेगी तो ज़रूिी है कक

फ़ौिन नमाज़ पढ़़े औि अगि उस़े फ़कत एहततमाल हो कक नमाज़ में ताखीि किऩे

स़े वह हाइज़ हो र्जाय़ेगी तो भी एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि यही हुक्म है।

477. अगि औित नमाज़ पढ़ऩे में ताखीि कि़े औि अव्वल़े वक़्त में स़े इतना

वक़्त गज़
ु ि र्जाए जर्जतना क़ी हदस स़े पानी क़े ज़िीए, औि एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि तयम्मम
ु क़े ज़िीय़े, तहाित हामसल किक़े नमाज़ पढ़ऩे में लगता औि

उस़े है ज़ आ र्जाए तो उस नमाज़ क़ी कज़ा उस औित पि वाजर्जि है । ल़ेककन र्जल्दी

पढ़ऩे औि ठहि ठहि क़े पढ़ऩे औि दस


ू िी िातों क़े िाि़े में ज़रूिी है कक अपनी

आदत का मलहाज़ कि़े मसलन एक औित र्जो सफ़ि में नहीं है अव्वल़े वक़्त में

नमाज़़े ज़ौहि न पढ़़े तो उसक़ी कज़ा उस सिू त में वाजर्जि होगी र्जिकक हदस स़े

तहाित हामसल किऩे क़े िाद चाि िक् अत नमाज़ पढ़ऩे क़े ििािि वक़्त अव्वल़े

ज़ौहि स़े गज़


ु ि र्जाए औि वह हाइज़ हो र्जाए औि उस औित क़े मलय़े र्जो सफ़ि में

हो तहाित हामसल किऩे क़े िाद दो िक् अत पढ़ऩे क़े ििािि वक़्त गज़
ु ि र्जाना भी

काफ़़ी है।

478. अगि एक औित नमाज़ क़े आखिी वक़्त में खून स़े पाक हो र्जाए औि

उसक़े पास अन्दाज़न इतना वक़्त हो कक गस्


ु ल कि क़े एक या एक स़े ज़्यादा

147
िक् अत पढ़ सक़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़़े औि अगि न पढ़़े तो ज़रूिी है कक

उसक़ी कज़ा िर्जा लाए।

479. अगि एक हाइज़ क़े पास (हैज़ स़े पाक होऩे क़े िाद) गस्
ु ल क़े मलय़े वक़्त

न हो ल़ेककन तयम्मम
ु कि क़े नमाज़ वक़्त क़े अन्दि पढ़ सकती हो तो एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक वह नमाज़ तयम्मम


ु क़े साथ पढ़़े औि अगि न पढ़़े तो कज़ा

कि़े । ल़ेककन अगि वक़्ती तंगी स़े कत ्ए नज़ि ककसी औि वर्जह स़े उसका फ़िीज़ा

ही तयम्मम
ु किना हो मसलन पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि हो तो ज़रूिी है कक

तयम्मम
ु किक़े वह नमाज़ पढ़़े औि अगि न पढ़़े तो ज़रूिी है कक उसक़ी कज़ा

कि़े ।

480. अगि ककसी औित को हैज़ स़े पाक हो र्जाऩे क़े िाद शक हो कक नमाज़ क़े

मलय़े वक़्त िाक़ी है या नहीं तो उस़े चाहहय़े क़ी नमाज़ पढ़ ल़े।

481. अगि कोई औित इस ख़्याल स़े नमाज़ न पढ़़े कक हदस स़े पाक होऩे क़े

िाद एक िक् अत नमाज़ पढ़ऩे क़े मलय़े भी उसक़े पास वक़्त नहीं है ल़ेककन िाद में

उस़े पता चल़े कक वक़्त था तो उस नमाज़ क़ी कज़ा िर्जा लाना ज़रूिी है ।

482. हाइज़ क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक नमाज़ क़े वक़्त अपऩे आप को खून स़े

पाक कि़े औि रूई या कपड़़े का टुकड़ा िदल़े औि वज़


ु ू कि़े औि अगि वज़
ु ू न कि

सक़े तो तयम्मम
ु कि़े औि नमाज़ क़ी र्जगह पि रू िककिला िैठ कि जज़क्र, दआ

औि सलवात में मशगल


ू हो र्जाए।

148
483. हाइज़ क़े मलय़े कुिआऩे मर्जीद का पढ़ना औि उस़े अपऩे साथ िखना औि

अपऩे िदन का कोई हहस्सा उसक़े अल्फ़ाज़ क़े दिममयानी हहस्स़े स़े छूना नीज़

में हदी य उस र्जैसी ककसी औि चीज़ स़े खखज़ाि किना मकरूह है ।

हाइज की फकस्में

484. हाइज़ क़ी छः ककस्में हैः-

1. वक़्त औि अदद क़ी आदत िखऩे वाली औितः- यह वह औित है जर्जस़े यक़े

िाद दीगि़े दो महीनों में एक मअ


ु य्यन वक़्त पि हैज़ आए औि उसक़े हैज़ क़े हदनों

क़ी तादाद भी दोनों महीनों में एक र्जैसी हो मसलन यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में

उस़े महीऩे क़ी पहली तािीख स़े सातवीं तािीख तक खून आता हो।

2. वक़्त क़ी आदत िखऩे वाली औितः- यह वह औित है जर्जस़े यक़े िाद दीगि़े

दो महीनों में मअ
ु य्यन वक़्त पि हैज़ आए ल़ेककन उसक़े हैज़ क़े हदनों क़ी तादाद

दोनों महीनों में एक र्जैसी न हो। मसलन यक़े िाद दीगि़े उस़े महीऩे क़ी पहली

तािीख में खून आना शरूउ हो ल़ेककन वह पहल़े महीऩे में सातवें दीन औि दस
ू ि़े

महीऩे में आठवें दीन खून स़े पाक हो।

3. अदद क़ी आदत िखऩे वाली औितः- यह वह औित है जर्जसक़े हैज़ क़े हदनों

क़ी तादाद यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में एक र्जैसी हो ल़ेककन हि महीऩे खन
ू आऩे

149
का वक़्त यकसां न हो । मसलन पहल़े महीऩे में उस़े पांचवीं स़े दसवीं तािीख तक

औि दस
ू ि़े महीऩे में िािहवीं स़े सत्तिहवीं तािीख तक खन
ू आता हो।

4. मज़्
ु तरििः- यह वह औित है जर्जस़े चन्द महीऩे पहल़े खन
ू आया हो ल़ेककन

उसक़ी आदत मअ
ु य्यन न हुई हो या उसक़ी साबिका आदत बिगड़ गई हो औि नई

आदत न िनी हो।

5. मबु तदीअहः- यह वह औित है जर्जस़े पहली दफ़् आ खून आया हो।

6. नामसयहः- यह वह औित है र्जो अपनी आदत भल


ू चक
ु ़ी हो। इनमें स़े हि

ककस्म क़ी औित क़े मलय़े अलायहदा अलायहदा अहकाम हैं जर्जनका जज़क्र आइन्दा

मसाइल में ककया र्जाय़ेगा।

1. वक़्त औि अदद की आदत िखने वाली औित

485. र्जो औितें वक़्त औि अदद क़ी आदत िखती है उनक़ी दो ककस्में हैः-

(अव्वल) वह औित जर्जस़े यक़े िाद दीगि़े दो महीनों स़े एक मअ


ु य्यन वक़्त पि

खून आए औि वह औि वह एक मअ
ु य्यन वक़्त पि ही पाक भी हो र्जाए मसलन

यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में उस़े महीऩे क़ी पहली तािीख को खून आए औि वह

सातवें िोज़ पाक हो र्जाए तो उस औित क़ी है ज़ क़ी आदत महीऩे क़ी पहली तािीख

स़े सातवीं तािीख तक है ।

150
(दोयम) वह औित जर्जस़े यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में मअ
ु य्यन वक़्त पि खून

आए औि र्जि तीन या ज़्यादा हदन तक खन


ू आ चक
ु ़े तो वह एक या ज़्यादा हदनों

क़े मलय़े पाक हो र्जाए औि किि उस़े दोिािा खन


ू आ र्जाए औि उन तमाम हदनों

क़ी तादाद जर्जनमें उस़े खून आया है िशम


ु ल
ू उन दिममयानी हदनों क़े जर्जनमें वह

पाक िही है दस स़े ज़्यादा न हो औि दोनों महीनों में तमाम हदन जर्जनमें उस़े खून

आया औि िीच क़े वह हदन जर्जनमें पाक िही हो एक जर्जतऩे हों तो उसक़ी आदत

उन तमाम हदनों क़े मत


ु ाबिक किाि पाय़ेगी जर्जनमें उस़े खन
ू आया ल़ेककन उन

हदनों को शाममल नहीं कि सकती जर्जनक़े दिममयान पाक िही हो। पस लाजज़म है

कक जर्जन हदनों में उस़े खून आया हो औि जर्जन हदनों में वह पाक िही हो दोनों

महीनों में उनक़ी तादाद एक जर्जतनी हो मसलन अगि पहल़े महीऩे में औि इसी

तिह दस
ू ि़े महीऩे में उस़े पहली तािीख स़े तीसिी तािीख तक खून आए औि किि

तीन हदन पाक िह़े औि किि तीन हदन दोिािा खून आए तो उस औित क़ी आदत

छः हदन क़ी हो र्जाय़ेगी औि अगि उस़े दस


ू ि़े महीऩे में आऩे वाल़े खन
ू क़े हदनों क़ी

तादाद उसस़े कम या ज़्यादा हो तो यह औित वक़्त क़ी आदत िखती है, अदद

नहीं।

486. र्जो औित वक़्त क़ी आदत िखती हो ख़्वाह अदद क़ी आदत िखती हो या

न िखती हो अगि उस़े आदत क़े वक़्त या उसस़े एक दो हदन या उसस़े भी ज़्यादा

151
हदन पहल़े खून र्जाए र्जिकक यह कहा र्जाए कक उसक़ी आदत वक़्त स़े कबल हो गई

है अगि उस खन
ू में है ज़ क़ी अलामात न भी हों ति भी ज़रूिी है कक उन अहकाम

पि अमल कि़े र्जो हाइज़ क़े मलय़े ियान ककय़े गय़े हैं। औि अगि िाद में उस़े पता

चल़े कक वह हैज़ का खून नहीं था मसलन वह तीन हदन स़े पहल़े पाक हो र्जाए तो

ज़रूिी है कक र्जो इिादत उसऩे अंर्जाम न दी हों उनक़ी कज़ा कि़े ।

487. र्जो औित वक़्त औि अदद क़ी आदत िखती हो अगि उस़े आदत क़े

तमाम हदनों में औि आदत स़े चन्द हदन पहल़े औि आदत क़े चन्द िाद खून आए

औि वह कुल ममलाकि दस हदन स़े ज़्यादा न हो तो वह साि़े का सािा हैज़ है, औि

अगि यह मद्
ु दत दस हदन स़े िढ़ र्जाए तो र्जो खून उस़े आदत क़े हदनों में आता

है वह हैज़ है, औि र्जो आदत स़े पहल़े या िाद में आया है वह इजस्तहाज़ा है, औि

र्जो इिादत वह आदत स़े पहल़े औि िाद क़े हदनों में िर्जा नहीं लाई उसक़ी कज़ा

किना ज़रूिी है। औि अगि आदत क़े तमाम हदनों में औि साथ ही आदत स़े कुछ

हदन पहल़े उस़े खन


ू आए औि उन सि हदनों को ममलाकि उनक़ी तादाद दस स़े

ज़्यादा न हो तो सािा है ज़ है, औि अगि हदनों क़ी तादाद दस स़े ज़्यादा हो र्जाए

तो मसफ़क आदत क़े हदनों में आना वाला खून है ज़ है, अगि च़े उसमें हैज़ क़ी

अलामत न हों औि उसस़े पहल़े आऩे वाला खून हैज़ क़ी अलामत क़े साथ हो।

औि र्जो खून उसस़े पहल़े आए वह इजस्तहाज़ा है औि अगि उन हदनों में इिादत न

कक हो तो ज़रूिी है कक उसक़ी कज़ा कि़े । औि अगि आदत क़े तमाम हदनों में

152
औि साथ ही आदत क़े चन्द हदन िाद खून आए औि कुल हदनों क़ी तादाद

ममलाकि दस स़े ज़्यादा न हो तो साि़े का सािा हैज़ है औि अगि यह तादाद दस

स़े िढ़ र्जाए तो मसफ़क आदत क़े हदनों में आऩे वाला खन
ू है ज़ है औि िाक़ी

इजस्तहाज़ा है ।

488. र्जो औित वक़्त औि अदद क़ी आदत िखती हो अगि उस़े आदत क़े कुछ

हदनों में या आदत स़े पहल़े खून आए औि उन तमाम हदनों को ममलाकि उनक़ी

तादाद दस स़े ज़्यादा न हो तो वह साि़े का सािा हैज़ है। औि अगि उन हदनों क़ी

तादाद दस स़े िढ़ र्जाए तो जर्जन हदनों में उस़े हस्ि़े आदत खन
ू आया है औि पहल़े

क़े चन्द हदन शाममल कि क़े आदत क़े हदनों क़ी तादाद पिू ी होऩे तक हैज़ औि

शरू
ु क़े हदनों को इजस्तहाज़ा किाि द़े । औि अगि आदत क़े कुछ हदनों क़े साथ

साथ आदत क़े िाद क़े कुछ हदनों में खन


ू आए औि उन सि हदनों को ममलाकि

उनक़ी तादाद दस स़े ज़्यादा न हो तो साि़े का सािा हैज़ है औि अगि दस स़े िढ़

र्जाए तो उस़े चाहहय़े कक जर्जन हदनों में आदत क़े मत


ु ाबिक खन
ू आया है उसमें िाद

क़े चन्द हदन ममलाकि जर्जन हदनों क़ी मर्जमई


ू तादाद उसक़ी आदत क़े हदनों क़े

ििािि हो र्जाए उन्हें है ज़ औि िाक़ी को इजस्तहाज़ा किाि द़े ।

489. र्जो औित आदत िखती हो अगि उसका खून तीन या ज़्यादा हदन तक

आऩे क़े िाद रूक र्जाए औि किि दोिािा खून आए औि उन दोनों खून का

दिममयानी फ़ामसला दस हदन स़े कम हो औि उन सि हदनों क़ी तादाद जर्जनमें खून

153
आया है िशम
ु ल
ू उन दिममयानी हदनों क़े जर्जनमें पाक िही हो दस स़े ज़्यादा हो,

मसलन पांच हदन खन


ू आया हो किि पांच हदन रूक गया हो किि पांच हदन

दोिािा आया हो तो उसक़ी चन्द सिू तें है ः-

1. वह तमाम खून या उसक़ी कुछ ममक़्दाि र्जो पहली िाि द़े खें आदत क़े हदनों

में हों औि दस
ू िा खून र्जो पाक होऩे क़े िाद आया है आदत क़े हदनों में न हो। इस

सिू त में ज़रूिी है कक पहल़े तमाम खून को हैज़ औि दस


ू ि़े खून को इजस्तहाज़ा

किाि द़े ।

2. पहला खन
ू आदत क़े हदनों में न आए औि दस
ू िा तमाम खन
ू या उसक़ी कुछ

ममक़्दाि आदत क़े हदनों में आए तो ज़रूिी है कक दस


ू ि़े तमाम खून को है ज़ औि

पहल़े को इजस्तहाज़ा किाि द़े ।

3. दस
ू ि़े औि पहल़े खून क़ी कुछ ममक़्दाि आदत क़े हदनों में आए औि अय्यामें

आदत में आना वाला पहला खून तीन हदन स़े कम न हो, उस सिू त में वह मद्
ु दत

ि मए दिममयान में पाक िहऩे क़ी मद्


ु दत, औि आदत क़े हदनों में आऩे वाल़े दस
ू ि़े

खन
ू क़ी मद्
ु दत, दस हदन स़े ज़्यादा न हो तो खन
ू हैज़ है, औि एहततयात़े वाजर्जि

यह है कक वह पाक़ी क़ी मद्


ु दत में पाक औित क़े काम भी अंर्जाम द़े औि वह

काम र्जो हाइज़ पि हिाम है तकक कि़े । औि दस


ू ि़े खून क़ी वह ममक़्दाि र्जो आदत

क़े हदनों क़े िाद आए इजस्तहाज़ा है । औि खूऩे अव्वल क़ी वह ममक़्दाि र्जो अय्याम़े

आदत स़े पहल़े आई हो औि उफ़कन कहा र्जाए कक उसक़ी आदत वक़्त स़े कबल हो

154
गई है तो वह खून, है ज़ का हुक्म िखता है। ल़ेककन अगि उस खून पि हैज़ का

हुक्म लगाऩे स़े दस


ू ि़े खन
ू क़ी भी कुछ ममक़्दाि र्जो आदत क़े हदनों में थी, या साि़े

का सािा खन
ू , है ज़ क़े दस हदन स़े ज़्यादा हो र्जाए तो उस सिू त में वह खन
ू खन
ू ़े

इजस्तहाज़ा का हुक्म िखता है मसलन अगि क़ी आदत महीऩे क़ी तीसिी स़े दसवीं

तािीख तक हो औि उस़े ककसी महीऩे क़ी पहली स़े छठ तािीख तक खून आए

औि किि दो हदन क़े मलय़े िन्द हो र्जाए औि किि पन्रहवीं तािीख तक आए तो

तीसिी स़े दसवीं तािीख तक है ज़ है औि ग्यािहवीं स़े पन्रहवीं तक आऩे वाला खून

इजस्तहाज़ा है ।

4. पहल़े औि दस
ू ि़े खून क़ी कुछ ममक़्दाि आदत क़े हदनों में आए ल़ेककन

अय्यामें आदत में आऩे वाला पहला खून तीन हदन स़े कम हो इस सिू त में िईद

नहीं है कक जर्जतनी मद्


ु दत उस औित को अय्यामें आदत में खून आया है उस़े

आदत स़े पहल़े आऩे वाल़े खून क़ी कुछ मद्


ु दत क़े साथ ममलाकि तीन हदन पिू ़े

कि़े औि उन्हें अय्याम़े है ज़ किाि द़े । पस अगि ऐसा हो कक वह दस


ू ि़े खन
ू क़ी उस

मद्
ु दत को र्जो आदत क़े हदनों में आया है उस़े है ज़ किाि द़े । मतलि यह है कक

वह मद्
ु दत औि पहल़े खून क़ी वह मद्
ु दत जर्जस़े हैज़ किाि हदया है औि उनक़े

दिममयान पाक़ी क़ी मद्


ु दत सि ममलाकि दस हदन स़े तर्जावज़
ु न किें तो यह सि

अय्याम़े हैज़ है, वनाक दस


ू िा खून इजस्तहाज़ा है औि िाज़ सिू तों में ज़रूिी है कक

पहल़े पिू ़े खून को हैज़ किाि द़े , न कक उस खास ममक़्दाि को जर्जस़े पहल़े खून क़ी

155
कमी पिू ा किऩे क़े मलय़े वह लाजज़मी तौि पि हैज़ किाि द़े ती, औि इसमें दो शतें

है ः-

(अव्वल) उस़े अपनी आदत स़े कुछ हदन पहल़े खून आया हो कक उसक़े िाि़े में

यह कहा र्जाए कक उसक़ी आदत तबदील होकि वक़्त स़े पहल़े हो गई है ।

(दोम) वह उस़े हैज़ किाि द़े तो यह लाजज़म न आए कक उसक़े दस


ू ि़े खून क़ी

कुछ ममक़्दाि र्जो कक आदत क़े हदनों में आया हो है ज़ क़े दस हदन स़े ज़्यादा हो

र्जाए मसलन अगि औित क़ी आदत महीऩे क़ी चौथी तािीख स़े दस तािीख तक

थी औि उस़े महीऩे क़े पहल़े हदन स़े चौथ़े हदन क़े आखखिी वक़्त तक खून आए

औि दो हदन क़े मलय़े पाक हो औि किि दोिािा उस़े पन्रह तािीख तक खून आए

तो इस सिू त में, पहला पिू ़े का पिू ा हैज़ है औि इसी तिह दस


ू िा वह खून भी र्जो

दसवें हदन क़े आखखिी वक़्त तक आए हैज़ का खून है ।

490. र्जो औित वक़्त औि अदद क़ी आदत िखती हो अगि उस़े आदत क़े वक़्त

खून न आए िजल्क उसक़े अलावा ककसी औि वक़्त हैज़ क़े हदनों क़े ििािि हदनों

में है ज़ क़ी अलामत क़े साथ खून आए तो ज़रूिी है कक उसी खून को हैज़ किाि द़े

ख़्वाह वह आदत क़े वक़्त स़े पहल़े आए या िाद में आए।

156
491. र्जो औित वक़्त औि अदद क़ी आदत िखती हो अगि उस़े आदत क़े वक़्त

तीन या तीन स़े ज़्यादा हदन तक खन


ू आए ल़ेककन उसक़े हदनों क़ी तादाद उसक़ी

आदत क़े हदनों स़े कम या ज़्यादा हो औि पाक होऩे क़े िाद उस़े दोिािा इतऩे

हदनों क़े मलय़े खून आए जर्जतनी उसक़ी आदत हो तो उसक़ी चन्द सिू तें है ः-

1. दोनों खून क़े हदनों औि उनक़े दिममयान पाक िहऩे क़े हदनों को ममलाकि

दस हदन स़े ज़्यादा न हो तो उस सिू त में दोनों खून हैज़ शम


ु ाि होंग़े।

2. दोनों खून क़े दिममयान पाक िहऩे क़ी मद्


ु दत दस हदन या दस हदन स़े

ज़्यादा हो तो उस सिू त में दोनों खन


ू में स़े हि एक को एक मस्
ु तककल है ज़ किाि

हदया र्जाय़ेगा।

3. उन दोनों खून क़े दिममयान पाक िहऩे क़ी मद्


ु दत दस हदन स़े कम हो

ल़ेककन उन दोनों खन
ू को औि दिममयान में पाक िहऩे क़ी सािी मद्
ु दत को

ममलाकि दस हदन स़े ज़्यादा हो तो उस सिू त में ज़रूिी है कक पहल़े आऩे वाल़े

खन
ू को हैज़ औि दस
ू ि़े को इजस्तहाज़ा किाि द़े ।

492. र्जो औित वक़्त औि अदद क़ी आदत िखती हो अगि उस़े दस हदन स़े

ज़्यादा हदन तक खून आए तो र्जो खून उस़े आदत क़े हदनों में आए ख़्वाह वह हैज़

क़ी अलामत न भी िखता हो ति भी हैज़ है औि र्जो खून आदत क़े हदनों क़े िाद

आए ख़्वाह वह हैज़ क़ी अलामत भी िखता हो इजस्तहाज़ा है। मसलन एक ऐसी

औित जर्जसक़ी है ज़ क़ी तािीख महीऩे क़ी पहली तािीख स़े सातवीं तािीख तक हो

157
उस़े पहली स़े िािहवीं तक खून आए तो पहल़े सात हदन हैज़ िक़ीया पांच हदन

इजस्तहाज़ा क़े होंग़े।

2. वक़्त की आदत िखने वाली औित

493. र्जो औितें वक़्ती आदत िखती हैं औि उनक़ी आदत क़ी पहली तािीख

मअ
ु य्यन हो उनक़ी दो ककस्में हैः-

1. वह औित जर्जस़े यक़े िाद दीगि़े दो महीऩे में मअ


ु य्यन वक़्त पि खन
ू आए

औि चन्द हदनों िाद िन्द हो र्जाए ल़ेककन दोनों महीनों में खन


ू आऩे क़े हदनों क़ी

तादाद मख़्
ु तमलफ़ हो, मसलन उस़े यक़े िाद दीगि़े महीनों क़ी पहली तािीख को

खून आए ल़ेककन पहल़े महीऩे में सातवें हदन औि दस


ू ि़े महीऩे में आठवें हदन िन्द

हो । ऐसी औित को चाहहय़े क़ी महीऩे क़ी पहली तािीख को अपनी आदत किाि द़े

2. वह औित जर्जस़े यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में मअ


ु य्यन वक़्त पि तीन या

ज़्यादा हदन खून आए औि किि िन्द हो र्जाए औि किि दोिािा खून आए औि उन

तमाम हदनों क़ी तादाद जर्जनमें खून आया है मए उन दिममयानी हदनों क़े जर्जनमें

खून िन्द िहा है दस स़े ज़्यादा न हो ल़ेककन दस


ू ि़े महीनें में हदनों क़ी तादाद पहल़े

महीऩे स़े कम या ज़्यादा हो मसलन पहल़े महीऩे में आठ हदन औि दस


ू ि़े महीऩे में

158
नौं हदन िनत़े हों तो उस औित को भी चाहहय़े क़ी महीऩे क़ी पहली तािीख को

अपनी हैज़ क़ी तािीख का पहला हदन किाि द़े ।

494. वह औित र्जो वक़्त क़ी आदत िखती हो अगि उसको आदत क़े हदनों में

या आदत स़े दो या तीन हदन पहल़े खन


ू आए तो ज़रूिी है कक वह औित उन

अहकाम पि अमल कि़े र्जो हाइज़ क़े मलय़े ियान ककय़े गए हैं औि उस सिू त क़ी

तफ़्सील मस ्अला 486 में गज़


ु ि चक
ु ़ी है । ल़ेककन उन दो सिू तों क़े अलावा मसलन

यह कक आदत स़े इस कर पहल़े खन


ू आए कक यह न कहा र्जा सक़े कक आदत

वक़्त स़े कबल हो गई है िजल्क यह कहा र्जाए कक आदत क़ी मद्


ु दत क़े अलावा

(यानी दस
ू ि़े वक़्त में) खून आया है या यह कहा र्जाए कक आदत क़े िाद खून

आया है चन
ु ांच़े वह खून हैज़ क़ी अलामत क़े साथ आए तो ज़रूिी है कक उन

अहकाम पि अमल कि़े र्जो हाइज़ क़े मलय़े ियान ककय़े गए हैं। औि अगि खून में

है ज़ क़ी अलामत न हों ल़ेककन वह औित यह र्जान ल़े कक खन


ू तीन हदन तक

र्जािी िह़े गा ति भी यही हुक्म है । औि अगि यह न र्जानती हो कक खन


ू तीन हदन

तक र्जािी िह़े गा या नहीं तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक वह काम र्जो मस्


ु तहाज़ा

पि वाजर्जि है अंर्जाम द़े औि वह काम र्जो हाइज़ पि हिाम है तकक कि़े ।

495. र्जो औित वक़्त क़ी आदत िखती है अगि उस़े आदत क़े हदनों में खून

आए औि उस खून क़ी मद्


ु दत दस हदन स़े ज़्यादा हो औि हैज़ क़ी तनशातनयों क़े

159
ज़रिय़े उसक़ी मद्
ु दत मअ
ु य्यन कि सकती हो तो अहवत यह है कक अपऩे

रिश्त़ेदािों में स़े िाज़ औितों क़ी आदत क़े मत


ु ाबिक है ज़ किाि द़े चाह़े वह रिश्त़े

मां क़ी तिफ़ स़े हो या िाप क़ी तिफ़ स़े जज़न्दा हो या मद


ु ाक ल़ेककन उसक़ी दो शतें

है ः-

1. उस़े अपऩे है ज़ क़ी ममक़्दाि औि उस रिश्त़ेदाि औित क़ी आदत क़ी ममक़्दाि

में फ़कक का इल्म न हो मसलन यह कक वह खुद नौर्जवान हो औि ताकत क़े

मलहाज़ स़े कवी औि दस


ू िी औित उम्र क़े मलहाज़ स़े यास क़े नज़्दीक हो तो ऐसी

सिू त में मअमल


ू न आदत क़ी ममक़्दाि कम होती है इसी तिह वह खद
ु उम्र क़े

मलहाज़ स़े यास क़े नज़दीक हो औि रिश्त़ेदाि औित नौर्जवान हो।

2. उस़े उस औित क़ी आदत क़ी ममक़्दाि में औि उसक़ी दस


ू िी रिश्त़ेदाि औितों

क़ी आदत क़ी ममक़्दाि में कक जर्जनमें पहली शतक मौर्जूद है इजख़्तलाफ़ का इल्म न

हो ल़ेककन अगि इजख़्तलाफ़ इतना कम हो कक उस़े इखततलाफ़ शम


ु ाि न ककया

र्जाता हो तो कोई हर्जक नहीं है औि उस औित क़े मलय़े भी यही हुक्म है र्जो वक़्त

क़ी आदत िखती है औि आदत क़े हदनों में कोई खन


ू न आए ल़ेककन आदत क़े

वक़्त क़े अलावा कोई खून आए र्जो दस हदन स़े ज़्यादा हो औि हैज़ क़ी ममक़्दाि

को तनशातनयों क़े ज़िीए मअ


ु य्यन न कि सक़े।

160
496. वक़्त क़ी आदत िखऩे वाली औित अपनी आदत क़े अलावा वक़्त में आऩे

वाल़े खन
ू को हैज़ किाि नहीं द़े सकती, मलहाज़ा अगि उस़े आदत का इजबतदाई

वक़्त मालम
ू हो मसलन हि महीऩे क़ी पहली को खन
ू आता हो औि कभी पांचव़े

औि कभी छठ को खून स़े पाक होती हो चन


ु ांच़े उस़े ककसी एक महीऩे में िािह

हदन खून आए औि वह हैज़ क़ी तनशातनयों क़े ज़िीय़े उसक़ी मद्


ु दत मअ
ु य्यन न

कि सक़े तो चाहहय़े क़ी महीऩे क़ी पहली को हैज़ क़ी पहली तािीख किाि द़े औि

उसक़ी तादाद क़े िाि़े में र्जो कुछ पहल़े मस ्अल़े में ियान ककया गया है उस पि

अमल कि़े । औि अगि उसक़ी आदत क़ी दिममयानी या आखखिी तािीख मालम
ू हो

चन
ु ांच़े अगि उस़े दस हदन स़े ज़्यादा खून आए तो ज़रूिी है कक उसका हहसाि इस

तिह कि़े कक आखखिी या दिममयानी तािीख में स़े एक उसक़ी आदत क़े हदनों क़े

मत
ु ाबिक हो।

497. र्जो औित वक़्ती आदत िखती हो औि उस़े दस हदन स़े ज़्यादा खून आए

औि खन
ू को मस ्अला 495 में िताए गए तिीक़े स़े मअ
ु य्यन न कि सक़े मसलन

उस खन
ू में हैज़ क़ी अलामत न हों या पहल़े िताई गईं दो शतों में स़े एक शतक न

हो तो उस़े इजख़्तयाि है कक तीन हदन स़े दस हदन तक जर्जतऩे हदन है ज़ क़ी

ममक़्दाि क़े मन
ु ामसि समझ़े है ज़ किाि द़े । छः या आठ हदनों को अपऩे हैज़ क़ी

ममक़्दाि क़े मन
ु ामसि समझऩे क़ी सिू त में ि़ेहति यह है कक सात हदनों को है ज़

किाि द़े । ल़ेककन ज़रूिी है कक जर्जन हदनों को वह हैज़ किाि द़े वह हदन उसक़ी

161
आदत क़े वक़्त क़े मत
ु ाबिक हों र्जैसा कक पहल़े मस ्अल़े में ियान ककया र्जा चक
ु ा

है ।

3. अदद की आदत िखने वाली औित

498. र्जो औित अदद क़ी आदत िखती हैं उनक़ी दो ककस्में हैः-

1. वह औित जर्जसक़े हैज़ क़े हदनों क़ी तादाद यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में

यकसां हो ल़ेककन उसक़े खन


ू आऩे का वक़्त एक र्जैसा न हो उस सिू त में जर्जतऩे

हदन उस़े खून आए वही उसक़ी आदत होगी। मसलन अगि पहल़े महीऩे में उस़े

पहली तािीख स़े पांचवी तािीख तक औि दस


ू ि़े महीऩे में ग्यािहवीं तािीख तक खून

आए तो उसक़ी आदत पांच हदन होगी।

2. वह औित जर्जस़े यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में स़े हि एक में तीन या तीन स़े

ज़्यादा हदनों तक खन
ू आए औि एक या उसस़े ज़्यादा हदनों क़े मलय़े िन्द हो र्जाए

औि किि दोिािा खन
ू आए औि खून आऩे का वक़्त पहल़े महीऩे में औि दस
ू ि़े

महीऩे में मख़्


ु तमलफ़ हो उस सिू त में अगि उन तमाम हदनों क़ी तादाद जर्जनमें खून

आया है ि मए उन दिममयानी हदनों क़े जर्जनमें खून िन्द िहा है दस स़े ज़्यादा न

हो औि दोनों महीनों में स़े हि एक में उनक़ी तादाद भी यकसां हो तो वह तमाम

हदन जर्जनमें खन
ू आया है उसक़े हैज़ क़ी आदत क़े हदन शम
ु ाि ककय़े र्जाय़ेगें औि

उन दिममयानी हदनों में जर्जनमें खन


ू नहीं आया एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है

162
कक र्जो काम पाक औित पि वाजर्जि हैं अंर्जाम द़े औि र्जो काम हाइज़ पि हिाम हैं

उन्हें तकक कि़े , मसलन अगि पहल़े महीऩे में उस़े पहली तािीख स़े तीसिी तािीख

तक खन
ू आए औि किि दो हदन तक क़े मलय़े िन्द हो र्जाए औि किि दोिािा तीन

हदन खून आए औि दस
ू ि़े महीऩे में ग्यािहवीं तािीख स़े त़ेिहवीं तािीख तक खून

आए औि दो हदन क़े मलय़े िन्द हो र्जाए औि किि दोिािा तीन हदन खून आए तो

उस औित क़ी आदत छः हदन क़ी होगी। औि अगि पहल़े महीऩे में उस़े आठ हदन

खून आए औि दस
ू ि़े महीऩे में चाि हदन खून आए औि किि िन्द हो र्जाए औि

किि दोिािा खन
ू आए औि खन
ू क़े हदनों औि दिममयान में खन
ू क़े िन्द हो र्जाऩे

वाल़े हदनों क़ी मर्जमई


ू तादाद आठ हदन हो तो ज़ाहहिन यह औित अदद क़ी आदत

नहीं िखती, िजल्क मज़्


ु तरििः शम
ु ाि होगी जर्जसका हुक्म िाद में ियान ककया

र्जाय़ेगा।

499. र्जो औित अदद क़ी आदत िखती हो अगि उस़े अपनी आदत क़ी तादाद

स़े कम या ज़्यादा हदन खन


ू आए औि उन हदनों क़ी तादाद दस स़े ज़्यादा न हो

तो उन तमाम हदनों को हैज़ किाि द़े । औि अगि उसक़ी आदत स़े ज़्यादा खन

आए औि दस हदन स़े ज़्यादा तर्जावज़


ु कि र्जाए तो अगि तमाम का तमाम खून

एक र्जैसा हो तो खून आऩे क़ी इजबतदा स़े ल़ेकि उसक़ी आदत क़े हदनों तक है ज़

औि िाक़ी हदनों को इजस्तहाज़ा किाि द़े । औि अगि आऩे वाला तमाम खून एक

र्जैसा न हो िजल्क कुछ हदन हैज़ क़ी अलामत क़े साथ औि कुछ हदन इजस्तहाज़ा

163
क़ी अलामत क़े साथ हो, पस अगि हैज़ क़ी अलामत क़े साथ आऩे वाल़े खून क़े

हदनों क़ी तादाद उसक़ी आदत क़े हदनों क़े ििािि हो तो ज़रूिी है कक उन हदनों को

है ज़ औि िाक़ी हदनों को इजस्तहाज़ा किाि द़े , औि अगि उन हदनों क़ी तादाद

जर्जनमें खून हैज़ क़ी अलामत क़े साथ आया हो आदत क़ी हदनों स़े ज़्यादा हो तो

मसफ़क आदत क़े हदन हैज़ औि िाक़ी हदन इजस्तहाज़ा है, औि अगि है ज़ क़ी

अलामत क़े साथ आऩे वाल़े खून क़े हदनों क़ी तादाद आदत क़े हदनों स़े कम हो तो

ज़रूिी है कक उन हदनों क़े साथ औि हदनों को ममलाकि आदत क़ी मद्


ु दत पिू ी कि़े

औि उनको है ज़ औि िाक़ी हदनों को इजस्तहाज़ा किाि द़े ।

4. मज़्
ु तरिबीः

500. मज़्
ु तरििः यानी वह औित जर्जस़े चन्द महीऩे खून आए ल़ेककन वक़्त औि

अदद दोनों क़े मलहाज़ स़े उसक़ी आदत मअ


ु य्यन न हुई हो अगि उस़े दस हदन स़े

ज़्यादा खून आए औि सािा खून एक र्जैसा हो मसलन तमाम खून हैज़ क़ी

तनशातनयों क़े साथ या इजस्तहाज़ा क़ी तनशातनयों क़े साथ आया हो तो उसका हुक्म

आदत िखऩे वाली औित का हुक्म है कक जर्जस़े अपनी आदत क़े अलावा वक़्त में

खून आए, औि अलामत क़े ज़रिय़े है ज़ को इजस्तहाज़ा स़े तमीज़ न द़े सकती हो

तो एहततयात क़ी बिना पि उस़े चाहहय़े कक अपनी रिश्त़ेदाि औितों में स़े िाज़

औितों क़ी आदत क़े मत


ु ाबिक हैज़ किाि द़े औि अगि यह मजु म्कन न हो तो तीन

164
औि दस हदन में स़े ककसी एक अदद को उस तफ़्सील क़े मत
ु ाबिक र्जो मस ्अला

495 औि 497 में ियान क़ी गई है, अपऩे है ज़ क़ी आदत किाि द़े ।

501. अगि मज़्


ु तरििः को दस हदन स़े ज़्यादा खन
ू आए जर्जसमें स़े चन्द हदनों

क़े खून में हैज़ क़ी अलामात औि चन्द दस


ू ि़े हदनों में इजस्तहाज़ा क़ी अलामात हो

तो अगि वह खून जर्जसमें हैज़ क़ी अलामात हों तीन हदन स़े कम या दस हदन स़े

ज़्यादा मद्
ु दत तक न आया हो तो उस तमाम खून को हैज़ औि िाक़ी को

इजस्तहाज़ा किाि दें । औि अगि तीन हदन स़े कम औि दस हदन स़े ज़्यादा हो तो

है ज़ क़े हदनों क़ी तादाद मालम


ू किऩे क़े मलय़े ज़रूिी है कक र्जो हुक्म साबिकः

मस ्अल़े में गज़


ु ि चक
ु ा है उसक़े मत
ु ाबिक अमल कि़े औि अगि उस साबिकः खून

को हैज़ किाि द़े ऩे क़े िाद दस हदन गज़


ु िऩे स़े पहल़े दोिािा हैज़ क़ी अलामात क़े

साथ खून आए तो िईद नहीं कक उसको इजस्तहाज़ा किाि द़े ना ज़रूिी हो।

5. मुब्तहदअीः

502. मबु तहदअः यानी उस औित को जर्जस़े पहली िाि खून आया हो दस हदन

स़े ज़्यादा खून आए औि वह तमाम खून र्जो मबु तहदअः को आया है एक र्जैसा हो

तो उस़े चाहहय़े कक अपऩे कंु ि़े वामलयों क़ी आदत क़ी ममकदाि को हैज़ औि िाक़ी

को उन दो शतों क़े साथ इजस्तहाज़ा किाि द़े र्जो मस ्अला 495 में ियान हुई हैं।

औि अगि यह मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक मस ्अला 497 में दी गई तफ़्सील

165
क़े मत
ु ाबिक तीन औि दस हदन में स़े ककसी एक अदद को अपऩे है ज़ क़े हदन

किाि द़े ।

503. अगि मबु तहदअः को दस स़े ज़्यादा हदन तक खन


ू आए र्जिकक चन्द हदन

आऩे वाल़े खून में हैज़ क़ी अलामात औि चन्द हदन आऩे वाल़े खून में इजस्तहाज़ा

क़ी अलामात हों तो जर्जस खून में है ज़ क़ी अलामात हों वह तीन हदन स़े कम औि

दस हदन स़े ज़्यादा न हों वह सािा है ज़ है । ल़ेककन खून में हैज़ क़ी अलामात थीं

उसक़े िाद दस हदन गज़


ु िऩे स़े पहल़े दोिािा खून आए औि उसमें भी हैज़ क़ी

अलामात हों मसलन पांच हदन स्याह खन


ू औि नौ हदन ज़दक औि किि दोिािा पांच

हदन स्याह खून आए तो उस़े चाहहय़े कक पहल़े आऩे वाल़े खून को है ज़ औि िाद में

आऩे वाल़े दोनों खून को इजस्तहाज़ा किाि द़े र्जैसा कक मज़्


ु तरििः क़े मत
ु अजल्लक

िताया गया है ।

504. अगि मबु तहदअः को दस स़े ज़्यादा हदनों तक खून आए र्जो चन्द हदन

है ज़ क़ी अलामात क़े साथ औि चन्द हदन इजस्तहाज़ा क़ी अलामात क़े साथ हो

ल़ेककन जर्जस खन
ू में है ज़ क़ी अलामात हों वह तीन हदन स़े कम मद्
ु दत तक आया

हो तो चाहहय़े क़ी उस़े है ज़ किाि द़े औि हदनों क़ी ममक़्दाि स़े मत


ु अजल्लक मस ्अला

501 में िताए गए तिीक़े पि अमल कि़े ।

166
6. नालसयीः

505. नामसयः यानी वह औित र्जो अपनी आदत क़ी ममक़्दाि भल


ू चक
ु ़ी हो,

उसक़ी चन्द ककस्में हैः

उनमें स़े एक यह है कक अदद क़ी आदत िखऩे वाली औित अपनी आदत क़ी

ममक़्दाि भल
ू चक
ु ़ी हो अगि उस औित को खून आए जर्जसक़ी मद्
ु दत तीन हदन स़े

कम औि दस हदन स़े ज़्यादा न हो तो ज़रूिी है कक वह उन तमाम हदनों को हैज़

किाि द़े औि अगि दस हदन स़े ज़्यादा हो तो उसक़े मलय़े मज़्


ु तरििः का हुक्म है

र्जो मस ्अला 500 औि 501 में ियान ककया गया है मसफ़क एक फ़कक क़े साथ औि

वह फ़कक यह है कक जर्जन अय्याम को वह है ज़ किाि द़े िही है वह उस तादाद स़े

कम न हों जर्जस तादाद क़े मत


ु अजल्लक वह र्जानती है कक उसक़े हैज़ क़े हदनों क़ी

तादाद उसस़े कम नहीं होती (मसलन यह है कक वह र्जानती है कक पांच हदन स़े

कम उस़े खून नहीं आता तो पांच हदन को हैज़ किाि द़े गी) इसी तिह उन अय्याम

स़े भी ज़्यादा हदनों को हैज़ किाि नहीं द़े सकती जर्जनक़े िाि़े में उस़े इल्म है कक

उसक़ी आदत क़ी ममक़्दाि उन हदनों स़े ज़्यादा नहीं होती (मसलन वह र्जानती है

कक पांच हदनों स़े ज़्यादा उस़े खन


ू नहीं आता तो पांच हदन स़े ज़्यादा हैज़ किाि

नहीं द़े सकती) । औि इस र्जैसा हुक्म नाककस अदद िखऩे वाली औित पि भी

लाजज़म है यानी वह औित जर्जस़े आदत क़े हदनों क़ी ममक़्दाि तीन हदन स़े ज़्यादा

औि दस हदन स़े कम होऩे में शक हो। मसलन जर्जस़े हि महीऩे में छः या सात

167
हदन खून आता हो वह है ज़ क़ी अलामत क़े ज़रिए या अपनी िाज़ कंु ि़े वामलयों क़ी

आदत क़े मत
ु ाबिक या ककसी एक अदद को इजख़्तयाि कि क़े दस हदन स़े ज़्यादा

खन
ू आऩे क़ी सिू त में दोनों अददों (छः या सात) स़े कम या ज़्यादा हदनों को हैज़

किाि नहीं द़े सकती।

168
है ज के मुतफ़रिय क मसाइल

506. मबु तहदअः, मज़्


ु तरििः, नामसयः औि अदद क़ी आदत िखऩे वाली औितों

को अगि खून आए जर्जसमें हैज़ क़ी अलामात हों या यक़ीन हो कक यह खून तीन

हदन तक आय़ेगा तो उन्हें चाहहय़े कक इिादात तकक कि दें औि अगि िाद में उन्हें

पता चल़े कक यह हैज़ नहीं था तो उन्हें चाहहय़े कक र्जो इिादात िर्जा न लाईं हो

उनक़ी कज़ा किें ।

507. र्जो औित हैज़ क़ी आदत िखती हो ख़्वाह यह आदत है ज़ क़े वक़्त क़े

एततिाि स़े हो या है ज़ क़े अदद क़े एततिाि स़े या वक़्त औि अदद दोनों क़े

एततिाि स़े हो। अगि उस़े यक़े िाद दीगि़े दो महीनों में अपनी आदत क़े िि

खखलाफ़ खून आए जर्जसका वक़्त या हदनों क़ी तादाद या वक़्त औि हदन दोनों क़ी

तादाद यकसां हो तो उसक़ी आदत जर्जस तिह इन दो महीनों में उस़े खून आया है

उसमें तबदील हो र्जाती है । मसलन अगि पहल़े उस़े महीऩे क़ी पहली तािीख स़े

सातवीं तािीख तक खून आता था औि किि िन्द हो र्जाता था मगि दो महीनों में

उस़े दसवीं तािीख स़े सत्तिहवीं तािीख तक खून आया हो औि किि िन्द हुआ हो

तो उसक़ी आदत दसवीं तािीख स़े सत्तिहवीं तािीख तक हो र्जाय़ेगी।

508. एक महीऩे स़े मिु ाद खून क़े शरू


ू होऩे स़े तीस हदन तक है। महीऩे क़ी

पहली तािीख स़े महीऩे क़ी आखखि तक नहीं है।

169
509. अगि ककसी औित को उमम
ू न महीऩे में एक मतकिा खून आता हो ल़ेककन

ककसी एक महीऩे में दो मतकिा आ र्जाए औि उस खन


ू में है ज़ क़ी अलामात हों तो

अगि उन दिममयानी हदनों क़ी तादाद जर्जनमें उस़े खन


ू नहीं आया दस हदन स़े कम

न हो तो उस़े चाहहय़े क़ी दोनों खून को हैज़ किाि द़े ।

510. अगि ककसी औित को तीन या उसस़े ज़्यादा हदनों तक ऐसा खून आए

जर्जसमें हैज़ क़ी अलामात हों औि उसक़े िाद दस या उसस़े ज़्यादा हदनों तक ऐसा

खून आए जर्जसमें इजस्तहाज़ा क़ी अलामात हों औि उसक़े िाद दोिािा तीन हदनों

तक हैज़ क़ी अलामतों क़े साथ खन


ू आए तो उस़े चाहहय़े क़ी पहल़े औि आखखिी

खून को जर्जसमें हैज़ क़ी अलामात हों हैज़ किाि द़े ।

511. अगि ककसी औित का खून दस हदन स़े पहल़े रूक र्जाए औि उस़े यक़ीन

हो कक उसक़े िाततन में खूऩे हैज़ नहीं है तो उस़े चाहहय़े क़ी अपनी इिादात क़े

मलय़े गस्
ु ल कि़े अगिच़े गुमान िखती हो कक दस हदन पिू ़े होऩे स़े पहल़े दोिािा

खन
ू आ र्जाय़ेगा। ल़ेककन अगि उस़े यक़ीन हो कक दस हदन पिू ़े होऩे स़े पहल़े उस़े

दोिािा खन
ू आ र्जाय़ेगा तो र्जैस़े ियान हो चक
ु ा उस़े चाहहय़े क़ी एहततयातन गस्
ु ल

कि़े औि अपनी इिादात िर्जा लाए औि र्जो चीज़़े हाइज़ पि हिाम हैं उस़े तकक कि़े ।

512. अगि ककसी औित का खून दस हदन गज़


ु िऩे स़े पहल़े िन्द हो र्जाए औि

इस िात का एहततमाल हो कक उसक़े िाततन में खूऩे हैज़ है तो उस़े चाहहय़े क़ी

अपनी शमकगाह में रूई िख कि कुछ द़े ि इजन्तज़ाि कि़े । ल़ेककन उस मद्
ु दत स़े कुछ

170
ज़्यादा इजन्तज़ाि कि़े र्जो आम तौि पि औितें हैज़ स़े पाक होऩे क़ी मद्
ु दत क़े

दिममयान किती हैं उसक़े िाद तनकाल़े, पस अगि खन


ू खत्म हो गया हो तो गस्
ु ल

कि़े औि इिादात िर्जा लाए औि अगि खन


ू िन्द न हुआ हो या थोड़ा सा ज़दक

पानी लगा हो पस अगि वह हैज़ क़ी मअ


ु य्यन आदत न िखती हो या उसक़ी

आदत दस हदन क़ी हो या अभी उसक़ी आदत क़े दस हदन तमाम न हुए हों तो

उस़े चाहहय़े कक इजन्तज़ाि कि़े , औि अगि दस हदन स़े पहल़े खन


ू खत्म हो र्जाए तो

गस्
ु ल कि़े औि अगि दसवें हदन क़े खातमें पि खून आना िन्द हो या खून दस

हदन क़े िाद भी आता िह़े तो दसवें हदन गस्


ु ल कि़े औि अगि उसक़ी आदत दस

हदनों स़े कम हो औि वह र्जानती हो कक दस हदन खत्म होऩे स़े पहल़े या दसवें

हदन क़े खात्में पि खन


ू िन्द हो र्जाय़ेगा तो गस्
ु ल किना ज़रूिी नहीं है औि अगि

एहततमाल हो कक उस़े दस हदन तक खून आय़ेगा तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

एक हदन क़े मलय़े इिादत तकक कि़े औि औि दसवें हदन तक भी इिादत को तकक

कि सकती है औि यह हुक्म मसफ़क उस औित क़े मलय़े मख़्सस


ू है जर्जस़े आदत स़े

पहल़े लगाताि खन
ू नहीं आता था वनाक आदत क़े गज़
ु िऩे क़े िाद इिादत तकक

किना र्जायज़ नहीं है।

513. अगि कोई औित चन्द हदनों को हैज़ किाि द़े औि इिादत न कि़े ल़ेककन

िाद में उस़े पता चल़े कक हैज़ नहीं था तो उस़े चाहहय़े क़ी र्जो नमाज़ें औि िोज़ें वह

उन हदनों में िर्जा नहीं लाईं उनक़ी कज़ा किा औि अगि चन्द हदन इस ख़्याल स़े

171
इिादात िर्जा लाती िही हो कक है ज़ नहीं है औि िाद में उस़े पता चल़े कक हैज़ था

तो अगि उन हदनों में उसऩे िोज़़े भी िख़े हों तो उसक़ी कज़ा किना ज़रूिी है ।

तनफ़ास

514. िच्च़े का पहला र्जुज़्व मां क़े प़ेट स़े िाहि आऩे क़े वक़्त स़े र्जो खून

औित को आए अगि वह दस हदन स़े पहल़े या दसवें हदन क़े खात्म़े पि िन्द हो

र्जाए तो वह खन
ू ़े तनफ़ास है औि तनफ़ास क़ी हालत में औित को नफ़्सा कहत़े हैं।

515. र्जो खून औित को िच्च़े का पहला र्जुज़्व िाहि आऩे स़े पहल़े आए वह

तनफ़ास नहीं है ।

516. यह ज़रूिी नहीं है कक िच्च़े क़ी खखल्कत मक


ु म्मल हो िजल्क अगि उसक़ी

खखल्कद नामक
ु म्मल हो ति भी अगि उस़े िच्चा र्जनना कहा र्जा सकता हो तो वह

खन
ू र्जो औित को दस हदन तक आए खन
ू ़े तनफ़ास है ।

517. यह हो सकता है कक खूऩे तनफ़ास एक ल़ेह्ज़ा स़े ज़्यादा न आए ल़ेककन

वह दस हदन स़े ज़्यादा नहीं आता।

518. अगि ककसी औित को शक हो कक इस्कात हुआ है या नहीं या र्जो

इस्कात हुआ है वह िच्चा था या नहीं तो उसक़े मलय़े तहक़ीक किना ज़रूिी नहीं

औि र्जो खन
ू उस़े आए वह शिअन तनफ़ास नहीं है ।

172
519. मजस्र्जद में ठहिना औि दस
ू ि़े अफ़् आल र्जो हाइज़ पि हिाम हैं एहततयात

क़ी बिना पि नफ़्सा पि भी हिाम हैं औि र्जो कुछ हाइज़ पि वाजर्जि है वह नफ़्सा

पि भी वाजर्जि है ।

520. र्जो औित तनफ़ास क़ी हालत में हो उस़े तलाक द़े ना औि उसस़े जर्जमाअ

किना हिाम है ल़ेककन अगि उसका शौहि उसस़े जर्जमाअ कि़े तो उस पि बिला

इश्काल कफ़्फ़ािा नहीं।

521. र्जि औित तनफ़ास क़े खून स़े पाक हो र्जाए तो उस़े चाहहय़े कक गस्
ु ल कि़े

औि अपनी इिादात िर्जा लाए औि अगि िाद में एक या एक िाि स़े ज़्यादा खन

आए तो खून आऩे वाल़े हदनों को पाक िहऩे वाल़े हदनों स़े ममलाकि अगि दस हदन

स़े कम हो तो सािा खूऩे तनफ़ास है । औि ज़रूिी है कक दिममयान में पाक िहऩे क़े

हदनों में एहततयात क़ी बिना पि र्जो काम पाक औित पि वाजर्जि है अंर्जाम द़े ,

औि र्जो काम नफ़्सा पि हिाम है उन्हें तकक कि़े औि अगि उन हदनों में कोई िोज़ा

िखा हो तो ज़रूिी है कक उनक़ी कज़ा कि़े । औि अगि िाद में आऩे वाला खन
ू दस

हदन स़े तर्जावज़


ु कि र्जाए औि वह औित अदद क़ी आदत न िखती हो तो खन

क़ी वह ममक़्दाि र्जो दस हदन क़े अन्दि आई है उस़े तनफ़ास औि दस हदन क़े िाद

आऩे वाल़े खून को इजस्तहाज़ा किाि द़े । औि अगि वह औित अदद क़ी आदत

िखती हो तो ज़रूिी है कक एहततयातन आदत क़े िाद आऩे वाल़े तमाम खून क़ी

173
मद्
ु दत में र्जो काम मस्
ु तहाज़ा क़े मलय़े हैं अंर्जाम द़े औि र्जो काम नफ़्सा पि हिाम

है उन्हें तकक कि़े ।

522. अगि औित खन


ू ़े तनफ़ास स़े पाक हो र्जाए औि एहततमाल हो कक उसक़े

िाततन में खूऩे तनफ़ास है तो उस़े चाहहय़े क़ी कुछ रूई अपनी शमकगाह में दाखखल

कि़े औि कुछ द़े ि िाद इजन्तज़ाि कि़े किि अगि वह पाक हो तो इिादात क़े मलय़े

गस्
ु ल कि़े ।

523. अगि औित को तनफ़ास का खून दस हदन स़े ज़्यादा आए औि वह है ज़ में

आदत िखती हो तो आदत क़े िाििि हदनों क़ी मद्


ु दत तनफ़ास औि िाक़ी

इजस्तहाज़ा है । औि अगि आदत न िखती हो तो दस हदन तक तनफ़ास औि िाक़ी

इजस्तहाज़ा है । औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक र्जो औित आदत िखती हो वह

आदत क़े िाद क़े हदन स़े औि र्जो औित आदत न िखती हो वो दसवें हदन क़े िाद

स़े िच्च़े क़ी पैदाइश क़े अट्ठािवें हदन तक इजस्तहाज़ा क़े अफ़् आल िर्जा लाए औि

वह काम र्जो नफ़्सा पि हिाम हैं उन्हें तकक कि़े ।

524. अगि ककसी औित को जर्जसक़ी है ज़ क़ी आदत दस हदन स़े कम हो अपनी

आदत स़े ज़्यादा हदन खून आए तो उस़े चाहहय़े क़ी अपनी आदत क़े हदनों क़ी

तादाद को तनफ़ास किाि द़े औि उसक़े िाद उस़े इजख़्तयाि है कक दस हदन तक

नमाज़ तकक कि़े या मस्


ु तहाज़ा क़े अहकाम पि अमल कि़े । ल़ेककन एक हदन क़ी

नमाज़ तकक किना ि़ेहति है । औि अगि खून दस हदन क़े िाद भी आता िह़े तो

174
उस़े चाहहय़े कक आदत क़े हदनों क़े िाद दसवें हदन तक भी इजस्तहाज़ा किाि द़े

औि र्जो इिादात वह उन हदनों में िर्जा नहीं लाई उनक़ी कज़ा कि़े । मसलन जर्जस

औित क़ी आदत छः हदनों क़ी हो अगि उस़े छः हदन स़े ज़्यादा खन
ू आए तो उस़े

चाहहय़े क़ी छः हदनों को तनफ़ास किाि द़े औि सातवें, आठवें , नवें औि दसवें हदन

उस़े इजख़्तयाि है कक या तो इिादात तकक कि़े या इजस्तहाज़ा क़े अफ़् आल िर्जा लाए

औि अगि उस़े दस हदन स़े ज़्यादा खून आया हो तो उसक़ी आदत क़े िाद क़े हदन

स़े वह इजस्तहाज़ा होगा।

525. र्जो औित हैज़ में आदत िखती हो अगि उस़े िच्चा र्जनऩे क़े िाद एक

महीऩे तक या एक महीऩे स़े ज़्यादा मद्


ु दत तक लगाताि खन
ू आता िह़े तो उसक़ी

आदत क़े हदनों क़ी तादाद क़े ििािि खूऩे तनफ़ास है औि र्जो खून तनफ़ास क़े िाद

दस हदन तक आए ख़्वाह वह उसक़ी माहाना आदत क़े हदनों में आया हो

इजस्तहाज़ा है । मसलन ऐसी औित जर्जसक़े हैज़ क़ी आदत हि महीऩे क़ी िीस

तािीख स़े सत्ताइस तािीख तक हो अगि वह महीऩे क़ी दस तािीख को िच्चा र्जऩे

औि एक महीना या उसस़े ज़्यादा मद्


ु दत तक उस़े मत
ु वातति खन
ू आए तो

सत्तिहवीं तािीख तक तनफ़ास औि सत्तिहवी तािीख स़े दस हदन तक का खून

हत्ताकक वह खून भी र्जो िीस तािीख स़े सत्ताइस तक उसक़ी आदत क़े हदनों में

आया है इजस्तहाज़ा होगा औि दस हदन गुज़िऩे क़े िाद र्जो खून उस़े आए अगि

वह आदत क़े हदनों में हो तो हैज़ है ख़्वाह उसमें है ज़ क़ी अलामत हो या न हों।

175
औि अगि वह खून उसक़ी आदत क़े हदनों में न आया हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है

कक अपनी आदत क़े हदनों का इजन्तज़ाि कि़े अगिच़े उसक़े इजन्तज़ाि क़ी मद्
ु दत

एक महीना या एक महीऩे स़े ज़्यादा हो र्जाए औि ख़्वाह उस मद्


ु दत में र्जो खन

आए उसमें हैज़ क़ी अलामात हों। औि अगि वह वक़्त क़ी आदत वाली औित न

हो औि उसक़े मलय़े मजु म्कन हो तो ज़रूिी है कक वह अपऩे हैज़ क़ी अलामत क़े

ज़रिए मअ
ु य्यन कि़े औि अगि मजु म्कन न हो र्जैसा कक तनफ़ास क़े िाद दस हदन

र्जो खून आए वह सािा एक र्जैसा हो औि एक महीऩे या चन्द महीऩे उन्हीं

अलामात क़े साथ आता िह़े तो ज़रूिी है कक हि महीऩे में अपऩे कंु ि़े क़ी िाज़

औितों क़े हैज़ क़ी र्जो सिू त हो वही अपऩे मलय़े किाि द़े औि अगि यह मजु म्कन

न हो तो र्जो अदद अपऩे मलय़े मन


ु ामसि समझती है इजख़्तयाि कि़े औि इन तमाम

उमिू क़ी तफ़्सील हैज़ क़ी िहस में गज़


ु ि चक
ु ़ी है ।

526. र्जो औित हैज़ में अदद क़े मलहाज़ स़े आदत न िखती हो अगि उस़े िच्चा

र्जनऩे क़े िाद एक महीऩे तक या एक महीऩे स़े ज़्यादा मद्


ु दत तक खन
ू आए तो

उसक़े पहल़े दस हदनों क़े मलय़े वही हुक्म है जर्जसका जज़क्र मस ्अला 523 में हो

चक
ु ा है औि दस
ू िी दहाई में र्जो खून आए वह इजस्तहाज़ा है औि र्जो खून उसक़े

िाद आए मजु म्कन है वह हैज़ हो औि मजु म्कन है इजस्तहाज़ा हो औि है ज़ किाि

द़े ऩे क़े मलय़े ज़रूिी है कक उस हुक्म क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े जर्जसका जज़क्र साबिका

मस ्अल़े में गज़


ु ि चक
ु ा है।

176
गस्
ु ले मसे मैतयत

527. अगि कोई शख़्स ककसी ऐस़े मद


ु ाक इंसान क़े िदन को छुए र्जो ठं डा हो

चक
ु ा हो औि जर्जस़े गस्
ु ल न हदया गया हो यानी अपऩे िदन का कोई हहस्सा उसस़े

लगाए तो उस़े चाहहय़े कक गस्


ु ल़े मस़े मैतयत कि़े । ख़्वाह उसऩे नीन्द क़ी हालत में

उसका िदन छुआ हो या ि़ेदािी क़े आलम में, औि ख़्वाह इिादी तौि पि छुआ हो

या गैि इिादी तौि पि हत्ता क़ी अगि उसका नाखून या हड्डी मद


ु े क़े नाखून या

हड्ड़ी स़े छू र्जाए ति भी उस़े चाहहय़े कक गस्


ु ल कि़े ल़ेककन अगि मद
ु ाक है वान को

छुए तो उस पि गस्
ु ल वाजर्जि नहीं है ।

528. जर्जस मद
ु े का तमाम िदन ठं डा न हुआ हो उस़े छूऩे स़े गस्
ु ल वाजर्जि नहीं

होता ख़्वाह उसऩे िदन का र्जो हहस्सा छुआ हो वह ठं डा हो चक


ु ा हो।

529. अगि कोई शख़्स अपऩे िाद मद


ु े क़े िदन स़े लगाए या अपना िदन मद
ु े

क़े िालों स़े लगाए तो उस पि गस्


ु ल वाजर्जि नहीं है ।

530. मद
ु ाक िच्च़े को छूऩे पि हत्ता कक ऐस़े मसक्त शद
ु ा िच्च़े को छूऩे पि जर्जसक़े

िदन में रूह दाखखल हो चक


ु ़ी हो गस्
ु ल़े मस़े मैतयत वाजर्जि है। इस बिना पि अगि

मद
ु ाक िच्चा पैदा हुआ हो औि उसका िदन ठं डा हो चक
ु ा हो औि वह मां क़े ज़ाहहिी

हहस्स़े को छू र्जाए तो मां को चाहहय़े कक गस्


ु ल़े मस़े मैतयत कि़े िजल्क अगि

177
ज़ाहहिी हहस्स़े को मस न कि़े ति भी मां को चाहहय़े क़ी एहततयात़े वाजर्जि क़ी

बिना पि गस्
ु ल़े मस़े मैतयत कि़े ।

531. र्जो िच्चा मां क़े मि र्जाऩे औि उसका िदन ठं डा हो र्जाऩे क़े िाद पैदा हो

अगि वह मां क़े िदन क़े ज़ाहहिी हहस्स़े को मस कि़े तो उस पि वाजर्जि है कक

र्जि िामलग हो तो गस्


ु ल़े मस़े मैतयत कि़े िजल्क अगि मां क़े िदन क़े ज़ाहहिी

हहस्स़े को मस न कि़े ति भी एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक वह िच्चा

िामलग होऩे क़े िाद गस्


ु ल़े मस़े मैतयत कि़े ।

532. अगि कोई शख़्स एक ऐसी मैतयत को मस कि़े जर्जस़े तीन गस्
ु ल मक
ु म्मल

तौि पि हदय़े र्जा चक


ु ़े हों तो उस पि गस्
ु ल वाजर्जि नहीं होता। ल़ेककन अगि वह

तीसिा गस्
ु ल मक
ु म्मल होऩे स़े पहल़े उसक़े िदन क़े ककसी हहस्स़े को मस कि़े तो

ख़्वाह उस हहस्स़े को तीसिा गस्


ु ल हदया र्जा चक
ु ा हो उस शख़्स क़े मलय़े गस्
ु ल़े मस़े

मैतयत किना ज़रूिी है ।

533. अगि कोई दीवाना या नािामलग िच्चा मैतयत को मस कि़े तो दीवाऩे को

आककल होऩे औि िच्च़े को िामलग होऩे क़े िाद गस्


ु ल़े मस़े मैतयत किना ज़रूिी है ।

534. अगि ककसी जज़न्दा शख़्स क़े िदन स़े या ककसी ऐस़े मद
ु े क़े िदन स़े जर्जस़े

गस्
ु ल न हदया गया हो एक हहस्सा र्जुदा हो र्जाए औि इसस़े पहल़े कक र्जुदा होऩे

वाल़े हहस्स़े को गस्


ु ल हदया र्जाए कोई शख़्स उस़े मस कि ल़े तो कौल़े अक़्वा क़ी

बिना पि अगिच़े उस हहस्स़े में हड्डी हो, गस्


ु ल़े मस़े मैतयत किना ज़रूिी नहीं।

178
535. एक ऐसी हड्डी क़े मस किऩे स़े जर्जस़े गस्
ु ल न हदया गया हो ख़्वाह वह

मद
ु े क़े िदन स़े र्जद
ु ा हुई हो या जज़न्दा शख़्स क़े िदन स़े गस्
ु ल वाजर्जि नहीं है ।

औि दांत ख़्वाह मद
ु े क़े िदन स़े र्जद
ु ा हुए हों या जज़न्दा शख़्स क़े िदन स़े, उनक़े

मलय़े भी यही हुक्म है।

536. गस्
ु ल़े मस़े मैतयत का तिीका वही है र्जो गस्
ु ल़े र्जनाित का है ल़ेककन जर्जस

शख़्स ऩे मैतयत को मस ककया हो अगि वह नमाज़ पढ़ना चाह़े तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक वज़
ु ू भी कि़े ।

537. अगि कोई शख़्स कई मैतयतों को मस कि़े या एक मैतयत को कई िाि

मस कि़े तो एक गस्
ु ल काफ़़ी है ।

538. जर्जस शख़्स ऩे मैतयत को मस किऩे क़े िाद गस्


ु ल न ककया हो उसक़े

मलय़े मजस्र्जद में ठहिना औि िीवी स़े जर्जमाअ किना औि उन आयात का पढ़ना

जर्जनमें सज्दा वाजर्जि है मम्नउ


ू नहीं है ल़ेककन नमाज़ औि उस र्जैसी इिादत क़े

मलय़े गस्
ु ल किना ज़रूिी है ।

मुह्तजि के अहकाम

539. र्जो मस
ु लमान मह्
ु तज़ि हो यानी र्जांकनी क़ी हालत में हो ख़्वाह मदक हो

या औित, िड़ा हो या छोटा, उस़े एहततयात क़ी बिना पि िसिू त़े इमकान पश्ु क क़े

िल यंू मलटाना चाहहय़े कक उसक़े पांव क़े तल्व़े ककबला रूख हों।

179
540. औला यह है कक र्जि तक मैतयत का गस्
ु ल मक
ु म्मल न हो उस़े भी

रूिककबला मलटायें। ल़ेककन र्जि उसका गस्


ु ल मक
ु म्मल हो र्जाए तो ि़ेहति यह है

कक उस़े उस हालत में मलटायें जर्जस तिह उस़े नमाज़़े र्जनाज़ा पढ़ात़े वक़्त मलटात़े

हैं।

541. र्जो शख़्स र्जांकनी क़ी हालत में हो उस़े एहततयात क़ी बिना पि रूिककबला

मलटाना हि मस
ु लमान पि वाजर्जि है मलहाज़ा वह शख़्स र्जो र्जांकनी क़ी हालत में है

िाज़ी हो औि किि कामसि भी हो (यानी िामलग औि आककल हो) तो इस काम क़े

मलय़े उसक़े वली स़े इर्जाज़त ल़ेना ज़रूिी नहीं है । इसक़े अलावा ककसी दस
ू िी सिू त

में उसक़े वली स़े इर्जाज़त ल़ेना एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है।

542. मस्
ु तहि है कक र्जो शख़्स र्जांकनी क़ी हालत में हो उसक़े सामऩे शहादतैन,

िािह इमामों क़े नाम औि दस


ू ि़े दीनी अकाइद इस तिह दहु िायें र्जायें कक वह

समझ ल़े। औि उसक़ी मौत क़े वक़्त तक इन चीज़ों क़ी तकिाि किना भी मस्
ु तहि

है ।

543. मस्
ु तहि है कक र्जो शख़्स र्जांकनी क़ी हालत में हो उस़े मन्
ु दरिर्जः ज़ैल

दआ
ु इस तिह सन
ु ाई र्जाए कक वह समझ ल़ेः-

अल्लाहुम्मग ् कफ़िमलयल कसीिा ममंम्मआसीका

वक़्िल ममजन्नन यसीिा ममन तआततका या मैय्यंक् िलल


180
यसीिा व यअफ़ु अतनल कसीिा इक़्िल

ममजन्नल यसीिा वअफ़ु अजन्नल कसीिा इन्नका

अन्तल अफ़ुव्वल
ु गफ़ूिो अल्लाहुम्महकमन
ू ी

फ़ इन्नका िहीमन
ु ।

544. ककसी क़ी र्जान सख़्ती स़े तनकल िही हो तो अगि उस़े तक्लीफ़ न हो तो

उस़े उस र्जगह ल़े र्जाना र्जहां वह नमाज़ पढ़ा किता था मस्


ु तहि है ।

545. र्जो शख़्स र्जांकनी क़े आलम में हो उसक़ी आसानी क़े मलय़े (यानी इस

मक़्सद स़े कक उसक़ी र्जान आसानी स़े तनकल र्जाए) उसक़े मसिहाऩे सिू ा ए यासीन,

सिू ा ए सफ़्फ़ात, सिू ा ए अहज़ाि, आयतल


ु कुस़ी औि सिू ा ए एिाफ़ क़ी 54 वीं

आयत औि सिू ा ए िकिा क़ी आखिी तीन आयत का पढ़ना मस्


ु तहि है िजल्क

कुिआऩे मर्जीद जर्जतना भी पढ़ा र्जा सक़े पढ़ा र्जाए.

546. र्जो शख़्स र्जांकनी क़े आलम में हो उस़े तन्हा छोड़ना औि कोई भािी चीज़

उसक़े प़ेट पि िखना औि र्जन


ु ि
ु औि हाइज़ का उसक़े किीि होना इसी तिह उसक़े

पास ज़्यादा िातें किना, िोना औि मसफ़क औितों को छोड़ना मकरूह है।

181
मिने के बाद के अहकाम

547. मस्
ु तहि है कक मिऩे क़े िाद मैतयत क़े आंख़े औि होट िन्द कि हदय़े

र्जाएं औि उसक़ी ठोड़ी को िांध हदया र्जाए नीज़ उसक़े हाथ औि पांव सीध़े कि

हदय़े र्जाएं औि उसक़े ऊपि कपड़ा डाल हदया र्जाए। औि अगि मौत िात को वाक़े

हो तो र्जहां मौत वाक़े हुई हो वहां चचिाग र्जलाय़े (िौशनी कि द़े ) औि र्जनाज़़े में

मशिकत क़े मलय़े मोममनीन को इवत्तलाअ द़े औि मैतयत को दफ़्न किऩे में र्जल्दी

कि़े । ल़ेककन अगि उस शख़्स क़े मिऩे का यक़ीन न हो तो इजन्तज़ाि कि़े ताकक

सिू त़े हाल वाज़़ेह हो र्जाए। अलावा अज़ीं अगि मैतयत हाममला हो औि िच्चा उसक़े

प़ेट में जज़न्दा हो तो ज़रूिी है कक दफ़्न किऩे में इतना तवक़्कुफ़ किें कक उसका

पहलू चाक कि क़े िच्चा िाहि तनकाल लें औि किि उस पहलू को सी दें ।

गस्
ु ल, कफ़न, नमाज औि दफ़्न का वुज़ूब

548. ककसी मस
ु लमान का गस्
ु ल, हुनत
ू , कफ़न, नमाज़़े मैतयत औि दफ़्न ख़्वाह

वह इसना अशिी शीअः न भी हो उसक़े वली पि वाजर्जि है । ज़रूिी है कक वली खद


इन कामों को अंर्जाम द़े या ककसी दस


ू ि़े को इन कामों क़े मलय़े मअ
ु य्यन कि़े औि

अगि कोई शख़्स इन कामों को वली क़ी इर्जाज़त स़े अंर्जाम द़े तो वली पि स़े

वर्ज
ु ि ू साककत हो र्जाता है िजल्क दफ़्न औि उसक़ी मातनन्द दस
ू ि़े उमिू को कोई

शख़्स वली क़ी इर्जाज़त क़े िगैि अंर्जाम द़े ति भी वली स़े वर्ज
ु ि ू साककत हो र्जाता
182
है औि इन उमिू को दोिाि अंर्जाम द़े ऩे क़ी ज़रूित नहीं औि अगि मैतयत का कोई

वली न हो या वली उन कामों को अंर्जाम द़े ऩे स़े मनाअ कि़े ति भी िाक़ी

मक
ु ल्लफ़ लोगों पि वाजर्जि़े ककफ़ाई है कक मैतयत क़े इन कामों को अंर्जाम द़े औि

अगि िाज़ मक
ु ल्लफ़ लोगों ऩे अंर्जाम हदया तो दस
ू िों पि स़े वज़
ु ूि साककत हो

र्जाता है। चन
ु ांच़े अगि कोई भी अंर्जाम न द़े तो तमाम मक
ु ल्लफ़ लोग गुनाहगाि

होगें औि वली क़े मनअ किऩे क़ी सिू त में उसस़े इर्जाज़त ल़ेऩे क़ी शतक खत्म हो

र्जाती है ।

549. अगि कोई शख़्स तज्हीज़ो तक्फ़़ीन क़े कामों में मशगल
ू हो र्जाए तो दस
ू िों

क़े मलय़े इस िाि़े में कोई इक़्दाम किना वाजर्जि नहीं ल़ेककन अगि वह इन कामों

को अधिू ा छोड़ दें तो ज़रूिी है कक दस


ू ि़े इन्हें पायए तक्मील तक पहुंचायें।

550. अगि ककसी शख़्स को इत्मीनान हो कक दस


ू िा मैतयत को (नहलाऩे,

कफ़्नाऩे औि दफ़्नाऩे) क़े कामों में मशगल


ू है तो उस पि वाजर्जि नहीं है कक

मैतयत क़े (मत


ु ज़जक्किा) कामों में क़े िाि़े में इक़्दाम कि़े ल़ेककन अगि उस़े

(मत
ु ज़जक्किा कामों क़े न होऩे का) महज़ शक या गम
ु ान हो तो ज़रूिी है कक

इक़्दाम कि़े ।

551. अगि ककसी शख़्स को मालम


ू हो कक मैतयत का गस्
ु ल या कफ़न या

नमाज़ या दफ़्न गलत तिीक़े स़े हुआ है तो ज़रूिी है कक इन कामों को दोिािा

अंर्जाम द़े । ल़ेककन अगि उस़े िाततल होऩे का गुमान हो (यानी यक़ीन न हो) या

183
शक हो कक दरू
ु स्त था या नहीं तो किि इस िाि़े में कोई इक़्दाम किना ज़रूिी

नहीं।

552. औित का वली उसका शौहि है औि औित क़े अलावा वह अश्खास कक

जर्जनको मैतयत स़े मीिास ममलती है उसी तितीि स़े जर्जसका जज़क्र मीिास क़े

मख
ु ततलफ़ तबकों में आय़ेगा, दस
ू िों पि मक
ु द्दम है । मैतयत का िाप मैतयत क़े

ि़ेट़े पि, औि मैतयत का दादा उसक़े भाई पि, औि मैतयत का पदिी व मादिी भाई

उसक़े मसफ़क पदिी भाई या मादिी भाई पि, औि उसका पदिी भाई उसक़े मादिी

भाई पि, औि उसक़े चाचा उसक़े मामू पि मक


ु द्दम होऩे में इश्काल है । चन
ु ांच़े इस

मसलमसल़े में एहततयात क़े (तमाम) तकाज़ों को प़ेश़े नज़ि िखना चाहहय़े।

553. नािामलग िच्चा औि दीवाना मैतयत क़े कामों को अंर्जाम द़े ऩे क़े मलय़े

वली नहीं िन सकत़े औि बिल्कुल इसी तिह वह शख़्स भी र्जो गैि हाजज़ि हो वह

खुद या ककसी शख़्स को मामिू कि क़े मैतयत स़े मत


ु अजल्लक उमिू को अंर्जाम न

द़े सकता हो तो वह भी वली नहीं िन सकता।

554. अगि कोई शख़्स कह़े कक मैं मैतयत का वली हूाँ या मैतयत क़े वली ऩे मझ
ु ़े

इर्जाज़त दी है कक मैतयत क़े गस्


ु ल, कफ़्न व दफ़्न को अंर्जाम दं ू या कह़े कक मैं

मैतयत क़े दफ़्न स़े मत


ु अजल्लक कामों में मैतयत का वली हूं औि उसक़े कहऩे में

इत्मीनान हामसल हो र्जाए या मैतयत उसक़े तसरूकफ़ में हो या दो आहदल शख़्स

गवाही दें तो उसका कौल किल


ू कि ल़ेना चाहहय़े।

184
555. अगि मिऩे वाला अपऩे गस्
ु ल, कफ़्न, दफ़्न औि नमाज़ क़े मलय़े अपऩे

वली क़े अलावा ककसी औि को मक


ु िक कि़े तो इन उमिू क़ी ववलायत उसी शख़्स क़े

हाथ में है औि यह ज़रूिी नहीं कक जर्जस शख़्स को मैतयत ऩे वसीयत क़ी हो कक

वह खुद इन कामों को अंर्जाम द़े ऩे का जज़म्म़ेदाि िऩे औि इस वसीयत को किल


कि़े ल़ेककन अगि किल


ू कि ल़े तो ज़रूिी है कक उस पि अमल कि़े ।

गस्
ु ले मैतयत की कैफ़ीयत

556. मैतयत को तीन गस्


ु ल द़े ऩे वाजर्जि हैः- पहला ऐस़े पानी स़े जर्जसमें ि़ेिी क़े

पत्त़े ममलें हुए हों, दस


ू िा ऐस़े पानी स़े जर्जसमें काफ़ूि ममला हुआ हो औि तीसिा

खामलस पानी स़े।

557. ज़रूिी है कक ि़ेिी औि काफ़ूि न इस कर ज़्यादा हों कक पानी मज़


ु ाफ़ हो

र्जाए औि न इस कर कम हो कक यह न कहा र्जा सक़े कक ि़ेिी औि काफ़ूि उस

पानी में नहीं ममलाए गए हैं।

558. अगि ि़ेिी औि काफ़ूि इतनी ममक़्दाि में न ममल सकें जर्जतनी क़ी ज़रूिी है

तो एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि जर्जतनी ममक़्दाि मय
ु स्सि आए पानी में डाल

दी र्जाए।

559. अगि कोई शख़्स एहिाम क़ी हालत में मि र्जाए तो उस़े काफ़ूि क़े पानी

स़े गस्
ु ल नहीं द़े ना चाहहय़े िजल्क उसक़े िर्जाए खालीस पानी स़े गस्
ु ल द़े ना चाहहय़े

185
ल़ेककन अगि वह हज्र्ज़े तमत्तो का एहिाम हो औि वह तवाफ़ औि तवाफ़ क़ी

नमाज़ औि सई को मक
ु म्मल कि चक
ु ा हो या हज्र्ज़े ककिान या इफ़िाद क़े एहिाम

में हो औि सि मंड
ु ा चक
ु ा हो तो इन दो सिू तों में उसको काफ़ूि क़े पानी स़े गस्
ु ल

द़े ना ज़रूिी है।

560. अगि ि़ेिी या काफ़ूि या उनमें स़े कोई एक न ममल सक़े या उसका

इस्त़ेमाल र्जाइज़ न हो मसलन यह कक गस्िी हो तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी

है कक उनमें स़े हि उस चीज़ क़े िर्जाए जर्जसका ममलना मजु म्कन न हो मैतयत को

खामलस पानी स़े गस्


ु ल हदया र्जाए औि एक तयम्मम
ु भी किाया र्जाए।

561. र्जो शख़्स मैतयत को गस्


ु ल द़े ज़रूिी है कक वह अक़्लमन्द औि मस
ु लमान

हो औि कौल़े मश्हूि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक वह इसना अशिी हो औि गस्


ु ल क़े

मसाइल स़े भी वाककफ़ हो औि ज़ाहहि यह है कक र्जो िच्चा अच्छ़े औि ििु ़े क़ी

तमीज़ िखता हो अगि वह गस्


ु ल को सहीह तिीक़े स़े अंर्जाम द़े सकता हो तो

उसका गस्
ु ल द़े ना भी काफ़़ी है । चन
ु ांच़े अगि इसना अशिी मस
ु लमान क़ी मैतयत

को उसक़े हम मज़्हि क़े मत


ु ाबिक गस्
ु ल द़े तो मोममऩे इसना अशिी स़े जज़म्म़ेदािी

साककत हो र्जाती है । ल़ेककन वह इस्ना अशिी शख़्स मैतयत का वली हो तो उस

सिू त में जज़म्म़ेदािी उसस़े साककत नहीं होती।

562. र्जो शख़्स गस्


ु ल द़े ज़रूिी है कक वह कुिकत क़ी नीयत िखता हो यानी

अल्लाह तआला क़ी खुशनद


ू ी क़े मलय़े गस्
ु ल द़े ।

186
563. मस
ु लमान क़े िच्च़े को ख़्वाह वह वलदजु ज़्ज़ना ही क्यों न हो गस्
ु ल द़े ना

वाजर्जि है औि काकफ़ि औि उसक़ी औलाद का गस्


ु लो कफ़न औि दफ़्न शिीअत में

नहीं है। औि र्जो शख़्स िचपन स़े दीवाना हो औि दीवानगी क़ी हालत में िामलग

हो र्जाए अगि वह इस्लाम क़े हुक्म हो तो ज़रूिी है कक उस़े गस्


ु ल दें ।

564. अगि एक िच्चा चाि महीऩे या उसस़े ज़्यादा का होकि साककत हो र्जाए

तो उस़े गस्
ु ल द़े ना ज़रूिी है िजल्क अगि चाि महीऩे स़े भी कम का हो ल़ेककन

उसका पिू ा िदन िन चक


ु ा हो दो एहततयात क़ी बिना पि उसको गस्
ु ल द़े ना ज़रूिी

है । इन दो सिू तों क़े अलावा एहततयात क़ी बिना पि उस़े कपड़़े में लप़ेट कि िगैि

गस्
ु ल हदय़े दफ़्न कि द़े ना चाहहय़े।

565. मदक औित को गस्


ु ल नहीं द़े सकता, इसी तिह औित मदक को गस्
ु ल नही

द़े सकती। ल़ेककन िीवी अपऩे शौहि को गस्


ु ल द़े सकती है औि शौहि भी अपनी

िीवी को गस्
ु ल द़े सकता है अगिच़े एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक िीवी अपऩे

शौहि को औि शौहि अपनी िीवी को हालत़े इजख़्तयाि में गस्


ु ल न द़े ।

566. मदक इतनी छोटी लड़क़ी को गस्


ु ल द़े सकता है र्जो मम
ु य
ै ज़ न हो औि

औित भी इतऩे छोट़े लड़क़े को गस्


ु ल द़े सकती है र्जो मम
ु य
ै ज़ न हो।

567. अगि मदक क़ी मैतयत को गस्


ु ल द़े ऩे क़े मलय़े मदक न ममल सक़े तो वह

औितें र्जो उसक़ी किाितदाि औि महिम हों मसलन मां िहन िुि़ी औि खाला या

वह औितें र्जो रिज़ाअत या तनकाह क़े सिि स़े उसक़ी महिम हो गई हों उस़े गस्
ु ल

187
द़े सकती हैं, औि इसी तिह अगि औित क़ी मैतयत को गस्
ु ल द़े ऩे क़े मलय़े कोई

औि औित न हो तो र्जो मदक उसक़े किाितदाि औि महिम हों या रिज़ाअत या

तनकाह क़े सिि स़े उसक़े महिम हो गए हों उस़े गस्


ु ल द़े सकत़े हैं। दोनों सिू तों में

मलिास क़े नीच़े स़े गस्


ु ल द़े ना ज़रूिी नहीं है अगिच़े इस तिह गस्
ु ल द़े ना अहवत है

मसवाय शमकगाह क़े (जर्जन्हें मलिास क़े नीच़े ही स़े गस्


ु ल द़े ना चाहहय़े)।

568. अगि मैतयत औि गस्साल दोनों मदक हों या दोनों औित हों तो र्जाइज़ है

कक शमकगाह क़े अलावा मैतयत का िाक़ी िदन ििहना हो ल़ेककन ि़ेहति यह है कक

मलिास क़े नीच़े स़े गस्


ु ल हदया र्जाए।

569. मैतयत क़ी शमकगाह पि नज़ि डालना हिाम है औि र्जो शख़्स उस़े गस्
ु ल द़े

िहा हो अगि वह उस पि नज़ि डाल़े तो गुनाहगाि है ल़ेककन उसस़े गस्


ु ल िाततल

नहीं होता।

570. अगि मैतयत क़े िदन क़े ककसी हहस्स़े पि ऐऩे नर्जासत हो तो ज़रूिी है

कक उस हहस्स़े को गस्
ु ल द़े ऩे स़े पहल़े ऐऩे नर्जासत दिू कि़े औि औला यह है कक

गस्
ु ल शरू
ू किऩे स़े पहल़े मैतयत का तमाम िदन पाक हो।

571. गस्
ु ल़े मैतयत गस्
ु ल़े र्जनाित क़ी तिह है औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक

र्जि तक मैतयत को गस्


ु ल़े तितीिी मजु म्कन हो गस्
ु ल़े इिततमासी न हदया र्जाए औि

गस्
ु ल़े तितीिी में भी ज़रूिी है कक दाहहनी तिफ़ को िाई तिफ़ स़े पहल़े धोया र्जाए

188
औि अगि मजु म्कन हो तो एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि िदन क़े तीनों हहस्सों

में स़े ककसी हहस्स़े को पानी में न डुिोया र्जाए िजल्क पानी उसक़े ऊपि डाला र्जाए।

572. र्जो शख़्स है ज़ या र्जनाित क़ी हालत में मि र्जाए उस़े गस्
ु ल़े है ज़ या गस्
ु ल़े

र्जनाित द़े ना ज़रूिी नहीं ह िजल्क मसफ़क गस्


ु ल़े मैतयत उसक़े मलय़े काफ़़ी है ।

573. मैतयत को गस्


ु ल द़े ऩे क़ी उर्जित ल़ेना एहततयात क़ी बिना पि हिाम है

औि अगि कोई शख़्स उर्जित ल़ेऩे क़े मलय़े मैतयत को इस तिह गस्
ु ल द़े कक यह

गस्
ु ल द़े ना कस्द़े कुिकत क़े मनाफ़़ी हो तो गस्
ु ल िाततल है ल़ेककन गस्
ु ल क़े

इजबतदाई कामों क़ी उर्जित ल़ेना हिाम नहीं है ।

574. मैतयत क़े गस्


ु ल में गस्
ु ल़े र्जिीिा र्जाइज़ नहीं है औि अगि पानी मय
ु स्सि

न हो या उसक़े इजस्तमाल में कोई अम्र माऩे हो तो ज़रूिी है कक गस्


ु ल क़े िदल़े

मैतयत को एक तयम्मम
ु किाए औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक तीन तयम्मम

किाए र्जायें औि उन तीन तयम्मम


ु में स़े एक में माकफ़जज़्ज़म्मा क़ी नीयत कि़े

यानी र्जो शख़्स तयम्मम


ु किा िहा हो यह नीयत कि़े कक यह तयम्मम
ु उस शिई

जज़म्म़ेदािी को अंर्जाम द़े ऩे क़े मलय़े किा िहा हूं र्जो मझ
ु पि वाजर्जि है ।

575. र्जो शख़्स मैतयत को तयम्मम


ु किा िहा हो उस़े चाहहय़े कक अपऩे हाथ

ज़मीन पि माि़े औि मैतयत क़े च़ेहि़े औि हाथों क़ी पश्ु त पि ि़ेि़े औि एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक अगि मजु म्कन हो तो मैतयत को उसक़े अपऩे हाथों स़े भी

तयम्मम
ु किाए।

189
कफ़न के अहकाम

576. मस
ु लमान मैतयत को तीन कपड़ों का कफ़न द़े ना ज़रूिी है जर्जन्हें लंग
ु ,

कुताक औि चादि कहा र्जाता है ।

577. एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक लंग


ु ऐसी हो र्जो नाफ़ स़े र्ट
ु नों तक

िदन क़े अतिाफ़ को ढांप ल़े औि ि़ेहति यह है कक सीऩे स़े पांव तक पहुंच़े औि

(कुताक या) प़ेिाहन एहततयात क़ी बिना पि ऐसा हो कक कंधों क़े मसिों स़े आधी

वपन्डमलयों तक तमाम िदन को ढांप़े औि ि़ेहति यह है कक पांव तक पहुंच़े औि

चादि क़ी लम्िाई इतनी होनी चाहहय़े कक पिू ़े िदन को ढांप द़े औि एहततयात यह

है कक चादि कक लम्िाई इतनी होनी चाहहय़े क़े मैतयत क़े पांव औि सि क़ी तिफ़

स़े चगिह द़े सकें औि उसक़ी चौड़ाई इतनी होनी चाहहय़े कक उसका एक ककनािा

दस
ू ि़े ककनाि़े पि आ सक़े।

578. लंग
ु क़ी इतनी ममक़्दाि र्जो नाफ़ स़े र्ट
ु नों तक क़े हहस्स़े को ढांप ल़े औि

(कुते या) पैिाहन क़ी इतनी ममक़्दाि र्जो कंध़े स़े तनस्फ़ वपन्डली तक ढांप ल़े कफ़न

क़े मलय़े वाजर्जि है औि उस ममक़्दाि स़े ज़्यादा र्जो कुछ साबिकः मस ्अल़े में िताया

गया है वह कफ़न क़ी मस्


ु तहि ममक़्दाि है ।

579. वाजर्जि ममक़्दाि क़ी हद तक कफ़न जर्जसका जज़क्र साबिकः मस ्अल़े में हो

चक
ु ा है मैतयत क़े अस्ल माल स़े मलया र्जाता है औि ज़ाहहि यह है कक मस्
ु तहि

190
ममक़्दाि क़ी हद तक कफ़न मैतयत क़ी शान औि उफ़े आम को प़ेश़े नज़ि िखत़े

हुए मैतयत क़े अस्ल माल स़े मलया र्जाए अगिच़े एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक

वाजर्जि ममक़्दाि स़े ज़ायद कफ़न उन वारिसों क़े हहस्स़े स़े न मलया र्जाए र्जो अभी

िामलग न हुए हों।

580. अगि ककसी शख़्स ऩे वसीयत क़ी हो कक मस्


ु तहि कफ़न क़ी ममक़्दाि

जर्जसका जज़क्र दो साबिकः मसाइल में आ चक


ु ा है उसक़े ततहाई माल स़े ली र्जाए

या यह वसीयत क़ी हो कक उसका ततहाई माल खुद उस पि खचक ककया र्जाए

ल़ेककन उसक़े मस्रफ़ का तअय्यन


ु न ककया हो या मसफ़क उसक़े कुछ हहस्स़े क़े मस्रफ़

का तअय्यन
ु ककया हो तो मस्
ु तहि कफ़न उसक़े ततहाई माल स़े मलया र्जा सकता

है ।

581. अगि मिऩे वाल़े ऩे यह वसीयत न क़ी हो कक कफ़न उसक़े ततहाई माल

स़े मलया र्जाए औि मत


ु अजल्लका अश्खास चाहें कक उसक़े अस्ल माल स़े लें तो र्जो

ियान मस ्अला 579 में गज़


ु ि चक
ु ा है उसस़े ज़्यादा न लें। मसलन वह मस्
ु तहि

काम र्जो मअमल


ू न अंर्जाम न हदय़े र्जात़े हों औि र्जो मैतयत क़ी शान क़े मत
ु ाबिक

भी न हों तो उनक़ी अदायगी क़े मलय़े हिचगज़ अस्ल माल स़े न लें औि बिल्कुन

इसी तिह अगि कफ़न मअमल


ू स़े ज़्यादा क़ीमती हो तो इज़ाफ़़ी िकम को मैतयत

क़े अस्ल माल स़े नहीं ल़ेना चाहहय़े ल़ेककन र्जो विसा िामलग है अगि वह अपऩे

191
हहस्स़े स़े ल़ेऩे क़ी इर्जाज़त दें तो जर्जस हद तक वह लोग इर्जाज़त दें उनक़े हहस्स़े

स़े मलया र्जा सकता है।

582. औित क़े कफ़न क़ी जज़म्म़ेदािी शौहि पि है ख़्वाह वह अपना माल भी

िखती हो इसी तिह अगि औित को उस तफ़्सील क़े मत


ु ाबिक र्जो तलाक क़े

अहकाम में आय़ेगी तलाक़े िर्जई दी गई हो औि इद्दत खत्म होऩे स़े पहल़े मि

र्जाए तो शौहि क़े मलय़े ज़रूिी है कक उस़े कफ़न द़े औि अगि शौहि िामलग न हो

या दीवाना हो तो शौहि क़े वली को चाहहय़े कक उसक़े माल स़े औित को कफ़न द़े ।

583. मैतयत को कफ़न द़े ना उसक़े किाितदािों पि वाजर्जि नहीं गो उसक़ी

जज़न्दगी में अखिार्जात क़ी कफ़ालत उन पि वाजर्जि िही हो।

584. एहततयात यह है कक कफ़न क़े तीनों कपड़ों में स़े हि एक कपड़ा इतना

िािीक न हो कक मैतयत का िदन उसक़े नीच़े स़े नज़ि आए ल़ेककन अगि इस तिह

हो कक तीनों कपड़ों को ममलाकि मैतयत का िदन उसक़े नीच़े स़े नज़ि न आए तो

बिनािि अक़्वा काफ़़ी है ।

585. गस्ि क़ी गई चीज़ का कफ़न द़े ना ख़्वाह कोई दस


ू िी चीज़ मय
ु स्सि न हो

ति भी र्जाइज़ नहीं है पस अगि मैतयत का कफ़न गस्िी हो औि उसका मामलक

िाज़ी न हो तो वह कफ़न उसक़े िदन स़े उताि ल़ेना चाहहय़े। ख़्वाह उसको दफ़्न

भी ककया र्जा चक
ु ा हो ल़ेककन िाज़ सिू तों में (उसक़े िदन स़े कफ़न उतािना र्जाइज़

नहीं) जर्जसक़ी तफ़्सील क़ी गंर्ज


ु ाइश इस मकाम पि नहीं है ।

192
586. मैतयत को नजर्जस चीज़ या खामलस ि़े शमी कपड़़े का कफ़न द़े ना (र्जाइज़

नहीं) औि एहततयात क़ी बिना पि सोऩे क़े पानी स़े काम ककय़े हुए कपड़़े का कफ़न

द़े ना (भी) र्जाइज़ नहीं ल़ेककन मर्जििू ी क़ी हालत में कोई हिर्ज नहीं है।

587. मैतयत को नजर्जस मद


ु ाकि क़ी खाल का कफ़न द़े ना इजख़्तयािी हालत में

र्जाइज़ नहीं है िजल्क पाक मद


ु ाकि क़ी खाल का कफ़न द़े ना भी र्जाइज़ नहीं है । औि

एहततयात क़ी बिना पि ककसी ऐस़े कपड़़े का कफ़न द़े ना र्जो ि़े शमी हो या उस

र्जानवि क़ी ऊन स़े तैयाि ककया गया हो जर्जसका गोश्त खाना हिाम हो इजख़्तयािी

हालत में र्जाइज़ नहीं है । ल़ेककन अगि कफ़न हलाल गोश्त र्जानवि क़ी खाल या

िाल औि ऊन का हो तो कोई हिर्ज नहीं अगिच़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक इन

दोनों चीज़ों का भी कफ़न न हदया र्जाए।

588. अगि मैतयत का कफ़न उसक़ी अपनी नर्जासत या ककसी दस


ू िी नर्जासत स़े

नजर्जस हो र्जाए औि अगि ऐसा किऩे स़े कफ़न ज़ाए न होता हो तो जर्जतना हहस्सा

नजर्जस हुआ है उस़े धोना या काटना ज़रूिी है ख़्वाहा मैतयत को कब्र में ही क्यों न

उतािा र्जा चक
ु ा हो। औि अगि उसका धोना या काटना मजु म्कन न हो ल़ेककन िदल

द़े ना मजु म्कन हो तो ज़रूिी है कक िदल दें ।

589. अगि कोई ऐसा शख़्स मि र्जाए जर्जसऩे हर्ज या उमि़े का एहिाम िांध

िखा हो तो उस दस
ू िों क़ी तिह कफ़न पहनाना ज़रूिी है औि उसका सि औि च़ेहिा

ढांप द़े ऩे में कोई हिर्ज नहीं।

193
590. इंसान का अपनी जज़न्दगी में कफ़न, ि़ेिी औि काफ़ूि का तैयाि िखना

मस्
ु तहि है ।

हनत
़ू के अहकाम

591. गस्
ु ल द़े ऩे क़े िाद वाजर्जि है कक मैतयत को हनत
ू ककया र्जाए यानी उसक़ी

प़ेशानी, दोनों हथ़ेमलयों, दोनों र्ट


ु नों औि दोनों पांव क़े अंगठ
ू ों पि काफ़ूि इस तिह

मला र्जाए कक काफ़ूि उस पि िाक़ी िह़े ख़्वाह कुछ काफ़ूि िगैि मल़े िाक़ी िच़े

औि मस्
ु तहि यह है कक मैतयत क़ी नाक पि भी काफ़ूि मला र्जाए। काफ़ूि वपसा

हुआ औि ताज़ा होना चाहहय़े औि अगि पिु ाना होऩे क़ी वर्जह स़े उसक़ी खुशिू

ज़ाइल हो गई हो तो काफ़़ी नहीं।

592. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक काफ़ूि पहल़े मैतयत क़े प़ेशानी पि मला

र्जाए। ल़ेककन दस
ू ि़े मकामात पि मलऩे में तितीि ज़रूिी नहीं है।

593. ि़ेहति यह है कक मैतयत को कफ़न पहनाऩे स़े पहल़े हनत


ू ककया र्जाए।

अगिच़े कफ़न पहनाऩे क़े दौिान या उसक़े िाद भी हनन


ू त किें तो कोई हिर्ज नहीं

है ।

594. अगि कोई ऐसा शख़्स मि र्जाए जर्जसऩे हर्ज या उमि़े क़े मलय़े एहिाम िांध

िखा हो तो उस़े हनत


ू किना र्जाइज़ नहीं है मगि उन दो सिू तों में (र्जाइज़ है )

जर्जनका जज़क्र मस ्अला 559 में गज़


ु ि चक
ु ा है ।

194
595. ऐसी औित जर्जसका शौहि मि गया हो औि अभी इद्दत िाक़ी हो अगिच़े

खश
ु िू लगाना उसक़े मलय़े हिाम है ल़ेककन अगि वह मि र्जाए तो उस़े हनत
ू किना

वाजर्जि है ।

596. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक मैतयत को मश्ु क, अंिि (ऊद) औि दस
ू िी

खुशिय
ू ें न लगाई र्जायें औि उन्हें काफ़ूि क़े साथ भी न ममलाया र्जाए।

597. मस्
ु तहि है कक सैतयदश्ु शह
ु दा इमाम हुसन
ै (अ0) क़ी कब्ऱे मि
ु ािक क़ी

ममट्टी (खाक़े मशफ़ा) क़ी कुछ ममक़्दाि काफ़ूि में ममला ली र्जाए ल़ेककन उस काफ़ूि

को ऐस़े मकामात पि नहीं लगाना चाहहय़े र्जहां लगाऩे स़े खाक़े मशफ़ा क़ी ि़े हुमत
क ी

हो औि यह भी ज़रूिी है कक र्जि वह काफ़ूि क़े साथ ममल र्जाए तो उस़े काफ़ूि न

कहा र्जा सक़े।

598. अगि काफ़ूि न ममल सक़े या फ़कत गस्


ु ल क़े मलय़े काफ़़ी हो तो हनत

किना ज़रूिी नहीं औि अगि गस्


ु ल क़ी ज़रूित स़े ज़्यादा हो ल़ेककन तमाम सात

अअज़ा क़े मलय़े काफ़़ी न हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि चाहहय़े कक पहल़े

प़ेशानी पि औि अगि िच र्जाए तो दस


ू ि़े मकामात पि मला र्जाए।

599. मस्
ु तहि है कक (दिख्त क़ी) दो तिोताज़ा टहतनयां मैतयत क़े साथ कब्र में

िखी र्जायें।

195
नमाजे मैतयत के अहकाम

600. हि मस
ु लमान क़ी मैतयत पि औि ऐस़े िच्च़े क़ी मैतयत पि र्जो इस्लाम क़े

हुक्म में हो औि पिू ़े छः साल का हो चक


ु ा हो नमाज़ पढ़ना वाजर्जि है ।

601. एक ऐस़े िच्च़े क़ी मैतयत पि र्जो छः साल का न हुआ हो ल़ेककन नमाज़

को र्जानता हो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि नमाज़ पढ़ना चाहहय़े औि अगि

नमाज़ को न र्जानता हो तो िर्जाअ क़ी नीयत स़े नमाज़ पढ़ऩे में कोई हिर्ज नहीं

औि वह िच्चा र्जो मद
ु ाक पैदा हुआ हो उसक़ी मैतयत पि नमाज़ पढ़ना वाजर्जि नहीं

है ।

602. मैतयत क़ी नमाज़ – उस़े गस्


ु ल द़े न,़े हनत
ू किऩे औि कफ़न पहनाऩे क़े

िाद पढ़नी चाहहय़े औि अगि इन उमिू स़े पहल़े या उनक़े दिममयान पढ़ी र्जाए तो

ऐसा किना ख़्वाह भल


ू चक
ू या मस ्अल़े स़े ला इल्मी क़ी बिना पि ही क्यों न हो

काफ़़ी नहीं है ।

603. र्जो शख़्स मैतयत क़ी नमाज़ पढ़नी चाह़े उसक़े मलय़े ज़रूिी नहीं कक उसऩे

वज़
ु ,ू गस्
ु ल या तयम्मम
ु कि िखा हो औि उसका िदन औि मलिास पाक हो औि

अगि उसका मलिास गस्िी हो ति भी कोई हिर्ज नहीं। अगिच़े ि़ेहति यह है कक

उन चीज़ों का ख़्याल िख़े र्जो दस


ू िी नमाज़ों में लाजज़मी हैं।

604. र्जो शख़्स नमाज़़े मैतयत पढ़ िहा हो उस़े चाहहय़े कक रू ि-ककबला हो औि

यह भी वाजर्जि है कक मैतयत को नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े सामऩे पश्ु त क़े िल यंू

196
मलटाया र्जाए कक मैतयत का सि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े दाईं तिफ़ हो औि पांव िाई

तिफ़ हों।

605. एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक जर्जस र्जगह एक शख़्स

मैतयत क़ी नमाज़ पढ़़े वह गस्िी न हो औि यह भी ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़ऩे क़ी

र्जगह मैतयत क़े मकाम स़े ऊंची न हो ल़ेककन मअमल


ू ी पस्ती या िलन्दी में कोई

हिर्ज नहीं।

606. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े को चाहहय़े कक मैतयत स़े दिू न हो ल़ेककन र्जो शख़्स

नमाज़़े मैतयत िा र्जमाअत पढ़ िहा हो अगि वह मैतयत स़े दिू हो र्जिकक सफ़़े

िाहम मत्त
ु मसल हों तो कोई हिर्ज नहीं।

607. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े को चाहहय़े कक मैतयत क़े सामऩे खड़ा हो ल़ेककन अगि

नमाज़ िा र्जमाअत पढ़ी र्जाए औि र्जमाअत क़ी सफ़ मैतयत क़े दोनों तिफ़ स़े

गुज़ि र्जाए तो उन दोनों क़ी नमाज़ में र्जो मैतयत क़े सामऩे न हों कोई इशकाल

नहीं है।

608. एहततयात क़ी बिना पि मैतयत औि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े दिममयान पदाक

या दीवाि या कोई औि ऐसी चीज़ हाइल नहीं होनी चाहहय़े ल़ेककन अगि मैतयत

ताित
ू में या ऐसी ही ककसी औि चीज़ में िखी हो तो कोई हिर्ज नहीं।

197
609. नमाज़ पढ़त़े वक़्त ज़रूिी है कक मैतयत क़ी शमकगाह ढक़ी हुई हो। औि

अगि उस़े कफ़न पहनाना मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक उसक़ी शमकगाह को

लकड़ी या ईंट या ऐसी ही ककसी औि चीज़ स़े ढांक दें ।

610. नमाज़ मैतयत खड़़े होकि औि कुिकत क़ी नीयत स़े पढ़नी चाहहय़े औि

नीयत कित़े वक़्त मैतयत को मअ


ु य्यम कि ल़ेना चाहहय़े मसलन नीयत किनी

चाहहय़े कक इस मैतयत पि कुिकतन इलल्लाह नमाज़ पढ़ िहा हूं।

611. अगि कोई शख़्स खड़़े होकि नमाज़़े मैतयत न पढ़ सकता हो तो िैठ कि

पढ़ ल़े।

612. अगि मिऩे वाल़े ऩे वसीयत क़ी हो कक कोई मखसस


ू शख़्स उसक़ी नमाज़

पढ़ाए तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक वह शख़्स मैतयत क़े वली स़े इर्जाज़त

हामसल कि़े ।

613. मैतयत पि कई दफ़ा नमाज़ पढ़ना मकरूह है ल़ेककन अगि मैतयत ककसी

साहि़े इल्म व तक़्वा क़ी हो तो मकरूह नहीं है।

614. अगि मैतयत को र्जान िझ


ू कि या भल
ू चक
ू क़ी वर्जह स़े या ककसी उज़्र

क़ी बिना पि िगैि नमाज़ पढ़़े दफ़्त कि हदया र्जाए या दफ़्न कि द़े ऩे क़े िाद पता

चल़े कक र्जो नमाज़ उस पि पढ़ी र्जा चक


ु ़ी है वह िाततल है तो मैतयत पि नमाज़

पढ़ऩे क़े मलय़े उसक़ी कब्र को खोलना र्जाइज़ नहीं ल़ेककन र्जि तक उसका िदन

पाश पाश न हो र्जाए औि जर्जन शिाइत का नमाज़़े मैतयत क़े मसलमसल़े में जज़क्र

198
आ चक
ु ा है उनक़े साथ िर्जाअ क़ी स़े उसक़ी कब्र पि नमाज़ पढ़ऩे में कोई हिर्ज

नहीं है।

नमाजे मैतयत का तिीका

615. मैतयत क़ी नमाज़ में पांच तक्िीि़े हैं औि अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला शख़्स

मन्
ु दरिर्जए ज़ैल तितीि क़े साथ पांच तक्िीिें कह़े तो काफ़़ी है ।

नीयत किऩे औि पहली तक्िीि पढ़ऩे क़े िाद कह़े ः

अश्हद ु अल्लाइलाहा इल्लल्लाहो व अश्हद ु अन्ना मोहम्मदन िसल


ू ल्
ु लाह –

औि दस
ू िी तक्िीि क़े िाद कह़े ः

अल्लाहुम्मा स्वल्ल़े अला मोहम्महदन व आल़े मोहम्महदन

औि तीसिी तक्िीि क़े िाद कह़े ः

अल्लाहुम्मजग़्जफ़ि मललमोममनीना वल मोममनात़े

औि चौथी तक्िीि क़े िाद अगि मैतयत मदक हो तो कह़े –

अल्लाहुम्मजग़्जफ़ि ल़े हाज़ल मैतयत

199
औि अगि मैतयत औित हो तो कह़े –

अल्लाहुम्मजग़्जफ़ि ल़े हाजज़हहल मैतयत –

औि उसक़े िाद पांचवीं तक्िीि पढ़़े ।

औि ि़ेहति यह है कक पहली तक्िीि क़े िाद कह़े ः अश्हद ु अल्लाइलाहा

इल्लल्लाहो वह्दहू ला शिीका लहू व अश्हदो अन्ना मोहम्मदन व अबदहु ू व िसल


ू ह
ु ू

असकलहू बिलहक़्क़े िशीिों व नज़ीिम ् िैना यदै इस्सअत़े।

औि दस
ू िी तक्िीि क़े िाद कह़े ः अल्लाहुम्मा स्वल्ल़े अला मोहम्महदंव व आल़े

मोहम्महदंव व िारिक अला मोहम्महदंव व आल़े मोहम्महदंव विहम मोहम्मदों व

अला मोहम्महदन कअफ़्ज़ल़े मा सल्लैता व िािक्ता व तिह्हम्ता अला इब्राहीमा व

आल़े इब्राहीमा इन्नका हमीदम्


ु मर्जीद व स्वल्ल़े अला र्जमीइल अंबियाए वल

मस
ु ल
क ीना वश्शह
ु दाए वजस्सद्दीक़ीना व र्जमीए इिाहदल्लाहहस स्वाल़ेहीना।

औि तीसिी तक्िीि क़े िाद कह़े ः अल्लाहुम्मजग़्जफ़ि मलल मोममनीना वल मोममनात़े

वल मजु स्लमीना वल मस
ु मलमात़े अलअहयाए ममनहुम वल अम्वात़े ताि़ेए िैनना व

िैनहुम बिल खैिात़े इन्नका मर्ज


ु ीिद
ु दअवात़े इन्नका अला कुल्ल़े शयइन कदीरून।

200
औि अगि मैतयत मदक हो तो चौथी तक्िीि क़े िाद कह़े ः

अल्लाहुम्मा इन्ना हाज़ा अबदक


ु ा वबनो अजबदका वबना अमततका नज़ला बिका व

अन्ता खैिो मज़मू लम बिही, अल्लाहुम्मा इन्ना ला नअलमो ममन्हो इल्ला खैिा व

अन्ता अअलमो बिही ममन्ना अल्लाहुम्मा इनकाना मोजह्सन्न फ़जज़द फ़़ी एह्साऩेही

व इनकाना मस
ु ीअन फ़तर्जावज़ अन्हो वजग़्जफ़ि लहू अल्लाहुम्मर्ज अल्हो अन्दका फ़़ी

अअला इल्लीयीना वख्लफ़


ु अला अहमलही कफ़ल गाबििीना वहकम्हो ि़ेिहतम़ेका या

अहकमिाकहहमीना। उसक़े िाद पांचवी तक्िीि पढ़़े ः – ल़ेककन अगि मैतयत औित हो तो

चौथी तक्िीि क़े िाद कह़े ः- अल्लाहुम्मा इन्ना हाजज़ही अमतक


ु ा वबनतो अजबदका

वबनतो अमततका नज़लत बिका व अन्ता खैिो मंजज़लम बिही अल्लाहुम्मा इन्ना ला

नअलमो ममन्हा इल्ला खैिा व अन्ता अअलमो बिहा ममन्ना अल्लाहुम्मा इन कानत

मोहमसनतन फ़जज़द फ़़ी एह्सातनहा व इन कानत मस


ु ीअतन फ़तर्जावज़ अन्हा

वजग़्जफ़ि लहा अल्लाहुम्मर्ज अल्हा इन्दका फ़़ी अअला इल्लीयीना वखलफ़


ु अला

अहमलहा कफ़ल गाबििीना वहकमहा ि़ेिहमततका या अहकमिाकहहमीना।

616. तक्िीिें औि दआ
ु यें (तसलसल
ु क़े साथ) यक़े िाद दीगि़े इस तिह पढ़नी

चाहहय़े कक नमाज़ अपनी शक्ल न खो द़े ।

201
617. र्जो शख़्स मैतयत क़ी नमाज़ िा र्जमाअत पढ़ िहा हो ख़्वाह वह मक्
ु तदी ही

हो उस़े चाहहय़े कक उसक़ी दआ


ु यें औि तक्िीिें भी पढ़़े ।

नमाजे मैतयत के मस्


ु तहब्बात

618. चन्द चीज़़े नमाज़़े मैतयत क़े मलय़े मस्


ु तहि हैः

1. र्जो शख़्स नमाज़़े मैतयत पढ़़े वह वज़


ु ,ू गस्
ु ल या तयम्मम
ु कि़े । औि

एहततयात इसमें है कक तयम्मम


ु उस वक़्त कि़े र्जि वज़
ु ू औि गस्
ु ल किना मजु म्कन

न हो या उस़े खद्शा हो कक अगि वज़


ु ू या गस्
ु ल कि़े गा तो नमाज़ में शिीक न हो

सक़ेगा।

2. अगि मैतयत मदक हो तो इमाम या र्जो शख़्स अक़ेला मैतयत पि नमाज़ पढ़

िहा हो मैतयत क़े मशकम क़े सामऩे खड़ा हो औि अगि मैतयत औित हो तो उसक़े

सीऩे क़े सामऩे खड़ा हो।

3. नमाज़ नंग़े पांव पढ़ी र्जाए।

4. हि तक्िीि में हाथों को िलन्द ककया र्जाए।

5. नमाज़ी औि मैतयत क़े दिममयान इतना कम फ़ामसला हो कक अगि नमाज़ी

मलिास को हिकत दो तो वह र्जनाज़़े को छू र्जाए।

6. नमाज़़े मैतयत र्जमाअत क़े साथ पढ़ी र्जाए।

7. इमाम तक्िीिें औि दआ
ु यें िलन्द आवाज़ स़े पढ़़े औि मक़्
ु तदी आहहस्ता पढ़ें ।

202
8. नमाज़़े ि र्जमाअत में मक़्
ु तदी ख़्वाह एक ही शख़्स क्यों न हो इमाम क़े पीछ़े

खड़ा हो।

9. नमाज़ पढ़ऩे वाला मैतयत औि मोममनीन क़े मलय़े कसित स़े दआ


ु कि़े ।

10. िा र्जमाअत नमाज़ स़े पहल़े तीन िाि, अस्सलात कह़े ।

11. नमाज़ ऐसी र्जगह पढ़ी र्जाए र्जहां नमाज़़े मैतयत क़े मलय़े लोग जज़यादाति

र्जात़े हों।

12. अगि हाइज़ नमाज़़े मैतयत र्जमाअत क़े साथ पढ़़े तो अक़ेली खड़ी हो औि

नमाजज़यों क़ी सफ़ में न खड़ी हो।

619. नमाज़़े मैतयत मजस्र्जदों में पढ़ना मकरूह है ल़ेककन मसजर्जदल


ु हिाम में

पढ़ना मकरूह नहीं है।

दफ़्न के अहकाम

620. मैतयत को इस तिह ज़मीन में दफ़्न किना वाजर्जि है कक उसक़ी िू िाहि

न आए औि दरिन्द़े भी उसका िदन िाहि न तनकाल सकें औि अगि इस िात का

खौफ़ हो कक दरिन्द़े उसका िदन िाहि तनकाल लेंग़े तो कब्र को ईटों वगैिा स़े

पख़्
ु ता कि द़े ना चाहहय़े।

621. अगि मैतयत को ज़मीन में दफ़्न किना मजु म्कन न हो तो दफ़्न किऩे क़े

िर्जाए उस़े कमि़े या ताित


ू में िखा र्जा सकता है।

203
622. मैतयत को कब्र में दायें पहलू इस तिह मलटाना चाहहय़े क़े उसक़े िदन का

सामऩे का हहस्सा रू िककबला हो।

623. अगि कोई शख़्स कश्ती में मि र्जाए औि उसक़ी मैतयत क़े खिाि होऩे का

इम्कान न हो औि उस़े कश्ती में िखऩे में भी कोई अम्र माऩे न हो तो लोगों को

चाहहय़े कक इजन्तज़ाि किें ताकक खश्ु क़ी तक पहुंच र्जायें औि उस़े ज़मीन में दफ़्न

कि दें वनाक चाहहय़े क़ी उस़े कश्ती में ही गस्


ु ल द़े कि हनत
ू किें औि कफ़न पहनायें

औि नमाज़़े मैतयत पढ़ऩे क़े िाद उस़े चटाई में िख कि उसका मंह
ु िन्द कि दें

औि समंद
ु ि में डाल दें या कोई भािी चीज़ उसक़े पांव में िांधकि समंद
ु ि में डाल दें

औि र्जहां तक मजु म्कन हो उस़े ऐसी र्जगह नहीं चगिाना चाहहय़े र्जहां र्जानवि उस़े

फ़ौिन लक़्
ु मा िना लें।

624. अगि इस िात का खौफ़ हो कक दश्ु मन कब्र खोदकि मैतयत का जर्जस्म

िाहि तनकाल ल़ेगा औि उसक़े कान या नाक या दस


ू ि़े अअज़ा काट ल़ेगा तो अगि

मजु म्कन हो तो साबिकः मस ्अल़े में ियान ककय़े गए तिीक़े क़े मत


ु ाबिक उस़े समंद
ु ि

में डाल द़े ना चाहहय़े।

625. अगि मैतयत को कब्र में डालना औि उसक़ी कब्र को पख़्


ु ता किना ज़रूिी

हो तो उसक़े अखिार्जात मैतयत क़े अस्ल माल स़े ल़े सकत़े हैं।

626. अगि कोई काकफ़ि औित मि र्जाए औि उसक़े प़ेट में मिा हुआ िच्चा हो

औि उस िच्च़े का िाप मस
ु लमान हो तो उस औित को कब्र में िायें पहलू ककबल़े

204
क़ी तिफ़ पीठ किक़े मलटाना चाहहय़े ताकक िच्च़े का मंह
ु ककबल़े क़ी तिफ़ हो औि

अगि प़ेट में मौर्जद


ू िच्च़े क़े िदन में अभी र्जान न पड़ी हो ति भी एहततयात़े

मस्
ु तहि क़ी बिना पि यही हुक्म है।

627. मस
ु लमान को काकफ़िों क़े कबब्रस्तान में दफ़्न किना औि काकफ़ि को

मस
ु लमानों क़े कबब्रस्तान में दफ़्न किना र्जाइज़ नहीं है ।

628. मस
ु लमान को ऐसी र्जगह र्जहां उसक़ी ि़े हुमत
क ी होती हो मसलन र्जहां कूड़ा

कककट औि गंदगी िेंक़ी र्जाती हो दफ़्न किना र्जाइज़ नहीं है ।

629. मैतयत को गस्िी ज़मीन में या ऐसी ज़मीन में र्जो दफ़्न क़े अलावा ककसी

दस
ू ि़े मक्सद मसलन मजस्र्जद क़े मलय़े वक़्फ़ हो दफ़्न किना र्जाइज़ नहीं है ।

630. ककसी मैतयत क़ी कब्र को खोद कि ककसी दस


ू ि़े मद
ु े को उस कब्र में दफ़्न

किना र्जाइज़ नहीं ल़ेककन अगि कब्र पिु ानी हो गई हो औि पहली मैतयत का

तनशान िाक़ी न िह गया हो तो दफ़्न कि सकत़े हैं।

631. र्जो चीज़ मैतयत स़े र्जद


ु ा हो र्जाए ख़्वाह वह उसक़े िाल, नाखुन या दांत ही

हों उस़े उसक़े साथ ही दफ़्न किना द़े ना चाहहय़े औि अगि र्जद
ु ा होऩे वाली चीज़ें

अगिच़े वह दांत, नाखुन या िाल ही क्यों न हों मैतयत को दफ़्नाऩे क़े िाद ममलें

तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उन्हें ककसी दस


ू िी र्जगह दफ़्न कि द़े ना चाहहय़े।

औि र्जो नाखुन औि दांत इंसान क़ी जज़न्दगी में ही उसस़े र्जुदा हो र्जायें उन्हें दफ़्न

किना मस्
ु तहि है।

205
632. अगि कोई शख़्स कुयें में मि र्जाए औि उस़े िाहि तनकालना मजु म्कन न

हो तो चाहहय़े कक कुयें का मंह


ु िन्द कि दें औि उस कुयें को ही उसक़ी कब्र किाि

दें ।

633. अगि कोई िच्चा मां क़े प़ेट में मि र्जाए औि उसका मां क़े प़ेट में िहना

मां क़ी जज़न्दगी क़े मलय़े खतिनाक हो तो चाहहय़े क़ी उस़े आसान तिीक़े स़े िाहि

तनकालें। चन
ु ांच़े अगि उस़े टुकड़़े टुकड़़े किऩे पि भी मर्जििू हो तो ऐसा किऩे में

कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन चाहहय़े क़ी अगि उस औित का शौहि अहल़े फ़न हो तो

िच्च़े को उसक़े ज़रिय़े िाहि तनकालें औि अगि यह मजु म्कन न हो तो अहल़े फ़न

औित क़े ज़रिय़े स़े तनकालें औि अगि यह मजु म्कन हो तो ऐस़े महिम मदक क़े

ज़रिय़े तनकालें र्जो अहल़े फ़न हो औि अगि यह भी मजु म्कन न हो तो न महिम

मदक र्जो अहल़े फ़न हो िच्च़े को िाहि तनकाल़े औि अगि कोई ऐसा शख़्स भी

मौर्जूद न हो तो कफ़ि र्जो शख़्स अहल़े फ़न न हो वह भी िच्च़े को िाहि तनकाल

सकता है।

634. अगि मां मि र्जाए औि िच्चा उसक़े प़ेट में जज़न्दा हो अगिच़े उस िच्च़े

क़े जज़न्दा िहऩे क़ी उम्मीद न हो ति भी ज़रूिी है कक हि उस र्जगह को चाक किें

र्जो िच्च़े क़ी सलामती क़े मलय़े ि़ेहति है औि िच्च़े को िाहि तनकालें औि किि

उस र्जगह को टांक़े लगा दें ।

206
दफ़्न के मुस्तहब्बात

635. मस्
ु तहि है कक मत
ु अजल्लका अश्खास कब्र को एक मत
ु वजस्सत इंसान क़े

कद क़े लगभग खोदें औि मैतयत को नज़दीक तिीन कबब्रस्तान में दफ़्न किें

मामसवा इसक़े कक र्जो कबब्रस्तान दिू हो वह ककसी वर्जह स़े ि़ेहति हो मसलन वहां

ऩेक लोग दफ़्न ककय़े गयें हों या ज़्यादा लोग वहां फ़ाततहा पढ़ऩे र्जात़े हों। यह भी

मस्
ु तहि है कक र्जनाज़ा कब्र स़े चन्द गज़ दिू ज़मीन पि िख दें औि तीन दफ़् आ

कि क़े थोड़ा थोड़ा कब्र क़े नज़दीक ल़े र्जायें औि हि दफ़् आ ज़मीन पि िखें औि

किि उठायें औि चौथी दफ़् आ कब्र म़े उताि दें औि अगि मैतयत मदक हो तो तीसिी

दफ़् आ ज़मीन पि इस तिह िखें कक उसका सि कब्र क़ी तनचली तिफ़ हों औि

चौथी दफ़् आ सि क़ी तिफ़ स़े कब्र में उताि दें औि कब्र में उताि त़े वक़्त एक

कपड़ा कब्र क़े ऊपि तान लें। यह भी मस्


ु तहि है कक र्जनाज़ा िड़़े आिाम क़े साथ

ताित
ू स़े तनकालें औि कब्र में दाखखल किें औि वह दआ
ु यें पढ़ें जर्जन्हें पढ़ऩे क़े

मलय़े कहा गया है दफ़्न किऩे स़े पहल़े औि दफ़्न कित़े वक़्त पढ़ें औि मैतयत को

कब्र में िखऩे क़े िाद उसक़े कफ़न क़ी चगिहें खोल दें औि उसका रूख़्साि ज़मीन

पि िख दें औि उसक़े सि क़े नीच़े ममट्टी का तककया िना दें औि उसक़ी पीठ क़े

पीछ़े कच्ची ईटें या ढ़े ल़े िख दें ताकक मैतयत चचत न हो र्जाए औि इसस़े प़ेशति

कक कब्र िन्द किें दायां हाथ मैतयत क़े दायें कंध़े पि मािें औि िायां हाथ ज़ोि स़े

मैतयत क़े िायें कंध़े पि िखें औि मंह


ु उसक़े कान क़े किीि ल़े र्जायें औि उस़े ज़ोि

207
स़े हिकत दें औि तीन दफ़् आ कहें – इस्मअ इफ़हम या फ़ुलानबना फ़ुलातनन। औि

फ़ुलां इबऩे फ़ुलां क़ी र्जगह मैतयत औि उसक़े िाप का नाम लें। मसलन अगि

मैतयत का नाम मस
ू ा औि उसक़े िाप का नाम इमिान हो तो तीन दफ़् आ कह़े ः

इस्मअ इफ़्हम (तीन िाि) या मस


ू बना इमिान – उसक़े िाद कहें हल अन्ता

अलल अहहदल लज़ी फ़ािक़्तना अलैह़े ममन शहादत़े अंल्ला इलाहा इल्लल्लाहो

वह्दहू ला शिीका लहू व अन्ना मोहम्मदन सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही अबदहु ू व

िसल
ू ह
ु ू व सैतयदन
ु निीयीना व खातमल
ु मस
ु ल
क ीना व अन्ना अलीयन अमीरूल

मोममनीना व सैतयदल
ु वसीयीना व इमामतु नफ़्तिज़ल्लाहो तातहू अलल आलमीना व

अन्नल हसना वल हुसन


ै ा व अलीतयिनल हुसन
ै ा व मोहम्मदबना अलीतयन व

र्जाअफ़िबना मोहम्महदन व मस
ू ाबना र्जाअफ़ि व अलीतयबऩे मस
ू ा व मोहम्मदबना

अलीतयन व अलीतयबना मोहम्महदन वल हसनबना अलीतयन वल काइमल हुज्र्जतल

महदीया सलवातुल्लाह़े अलैहहम अइम्मतुल मोममनीना व हुज्र्जतुल्लाह़े अलल खल्क़े

अज्मईना व आइम्मतका आइम्मतो हुदन अििािन या फ़ुलानबना फ़ुलातनन (औि

फ़ुलां इबऩे फ़ुलां क़ी िर्जाय मैतयत का औि उसक़े िाप का नाम लें औि किि कहें )

इज़ा अताकल मलकातनल मक


ु रिक िाऩे िसल
ू न
ै ़े ममन इंहदल्लाह़े तिािका व तआला व

सअलका अंिकजबिका व अन्निीतयका व अन दीतनका व अन ककतािीका व अन

ककबलततका व अन अइम्मततका फ़ला तखफ़ व ला तह्ज़न व कुल फ़़ी र्जवाि़ेहहमा

अल्लाहो िबिी व मोहम्मदन


ु सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही नबिय्यी वल इसलामों

208
दीनी वल कुिआनो ककतािी वल कअितो ककबलती व अमीरूल मोममनीना अलीयबु नो

अिी तामलबिन इमामी वल हसनबु नो अलीतयतनल मज्


ु तिा इमामी वल हुसन
ै बु नो

अलीतयतनश शहीदो ि़े किकलाअ इमामी व अलीयन


ु ज़ैनल
ु आबिदीना इमामी व

मोहम्मदोतनल िाककिो इमामी व मस


ू ल काजज़मो इमामी व अलीयतु नकज़ा इमामी व

मोहम्मदोतनल र्जवादो इमामी व अलीयतु नल हादी इमामी वल हसनल


ु अस्किीयो

इमामी वल हुज्र्जतुल मन्


ु तज़िो इमामी हाउलाए सलावातुल्लाह़े अलैहहम अज़्मईना

अइम्मती व सादती व कादती व शफ़


ु आई ि़ेहहम अतवल्ला व ममन अअदाएहहम

अतिकिओ कफ़द्दतु नया वल आखखित़े सम्


ु माअअलम या फ़ुलानबना फ़ुलांतनन (औि

फ़ुलां इबऩे फ़ुलां क़ी िर्जाय मैतयत का औि उसक़े िाप का नाम लें औि किि कहें )

अन्नल्लाहा तिािका व तआला ऩेअमिक बिो व अन्ना मोहम्मदन सल्लल्लाहो अलैह़े

व आल़ेही ऩेअमिक सल
ू ो व अन्ना अलीयबना अिी तामलबिन व औलादहुल

मअसम
ू ीनल अइम्मतइल इसनय अशिा ऩेअमल अइम्मतो व अन्ना मा र्जाअ ि़ेही

मोहम्मदन
ु सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही हक़्कुन व अन्नल मौता हक़्कुन व सव
ु ाला

मन्
ु करिंव व नक़ीरिन कफ़ल कब्ऱे हक़्कुन वल िअसा हक़्कुन वन्नश
ु िू ा हक़्कुन

वजस्सिाता हक़्कुन वल मीज़ाना हक़्कुन व ततायिु ल कुतुि़े हक़्कुन वअन्नल र्जन्नता

हक़्कुन वन्नािा हक़्कुन व अन्नस्साअता आत़ेयतुल्लािै िा फ़़ीहा व अन्नल्लाहा

यि ्असो मन कफ़ल कुििू ़े । (कफ़ि कहें ) अजफ़्हम्ता या फ़ुलानों (फ़ुला क़े िर्जाय मैतयत

का नाम लें औि उसक़े िाद कहें ) – सबितकल्लाहो बिल कौमलस्साबित़े हदाकल्लाहो

209
इला मसिाततम्मस्
ु तक़ीममन अिक फ़ल्लाहो िैनका व िैना औमलयाइका फ़़ी मस्
ु तकरिक म

ममंिकह्मत़ेही, (उसक़े िाद कहें ) – अल्लाहुम्मा र्जाकफ़ल अिज़़े अन र्जंिह


ै ़े व अस ्इद

ि़ेरूह़े ही इलैका व लक़्क़ेही ममनका िह


ु ाकनन अल्लाहम्मा अफ़्वका अफ़्वका।

636. मस्
ु तहि है कक र्जो शख़्स मैतयत को कब्र में उताि़े वह िा तहाित, ििहना

सि औि ििहना पा हो औि मैतयत क़ी पांयती क़ी तिफ़ स़े कब्र स़े िाहि तनकल़े

औि मैतयत क़े अज़ीज़़े अकििा क़े अलावा र्जो लोग मौर्जूद हों वह हाथ क़ी पश्ु त स़े

कब्र पि ममट्टी डालें औि इन्ना मलल्लाह़े व इन्नाइलैह़े िार्ज़ेऊन पढ़ें । अगि मैतयत

औित हो तो उसका महिम उस़े कब्र में उताि़े औि अगि महिम न हो तो उसक़े

अज़ीज़ व अकििा उस़े कब्र में उतािें ।

637. मस्
ु तहि है कक कब्र मिु बिअ या मस्
ु ततील िनाई र्जाए औि ज़मीन स़े

तकिीिन चाि उं गल िलन्द हो औि उस पि कोई (कतिा या) तनशानी या लगा दी

र्जाए ताकक पहचानऩे में गलती न हो औि कब्र पि पानी तछड़का र्जाए औि पानी

तछड़कऩे क़े िाद र्जो लोग मौर्जद


ू हों वह अपनी उं गमलयां कब्र क़ी ममट्टी में गाड़

कि सात दफ़् अ सिू ा ए कर पढ़़े औि मैतयत क़े मलय़े मजग़्जफ़ित तलि किें औि यह

दआ
ु पढ़़े ः अल्लाहुम्मा ज़ाकफ़ल अिज़़े अन र्जंिह
ै ़े व अस ्इद इलैका रूहहू मन

मसवाका।

210
638. मस्
ु तहि है कक र्जो लोग र्जनाज़़े क़ी मश
ु ायअत क़े मलय़े आए हों उनक़े चल़े

र्जाऩे क़े िाद मैतयत का वली या वह शख़्स जर्जस़े वली इर्जाज़त द़े मैतयत को उन

दआ
ु ओं क़ी तल्क़ीन कि़े र्जो िताई गई हैं।

639. दफ़्न क़े िाद मस्


ु तहि है कक मैतयत क़े पसमादगान को पस
ु ाक हदया र्जाए

ल़ेककन अगि इतनी मद्


ु दत गज़
ु ि चक
ु ़ी हो कक पस
ु ाक द़े ऩे में उनका दख
ु ताज़ा हो

र्जाए तो पस
ु ाक न द़े ना ि़ेहति है । यह भी मस्
ु तहि है कक मैतयत क़े अहल़े खाना क़े

मलय़े तीन हदन तक खाना भ़ेर्जा र्जाए। उनक़े पास िैठकि औि उनक़े र्ि में खाना

मकरूह है।

640. मस्
ु तहि है कक इंसान अज़ीज़ अकििा क़ी मौत पि खुसस
ू ि़ेट़े क़ी मौत

पि सब्र कि़े औि र्जि भी मैतयत क़ी याद आए इन्नामलल्लाह़े व इन्ना इलैह़ेिार्ज़ेऊन

पढ़़े औि मैतयत क़े मलय़े कुिआन ख़्वानी कि़े औि मां िाप क़ी कब्रों पि र्जाकि

अल्लाह तआला स़े अपनी हार्जतें तलि कि़े औि कब्र को पख़्


ु तः कि द़े ताकक र्जल्दी

टूट िूट न र्जाए।

641. ककसी क़ी मौत पि भी इंसान क़े मलय़े एहततयात क़ी बिना पि र्जाइज़ नहीं

कक अपना च़ेहिा औि िदन ज़ख़्मी कि़े औि अपऩे िाल नोच़े ल़ेककन सि औि च़ेहि़े

का पीटना बिनािि अक़्वा र्जाइज़ है ।

211
642. िाप औि भाई क़े अलावा ककसी क़ी मौत पि गि़े िान चाक किना

एहततयात क़ी बिना पि र्जाइज़ नहीं है औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक िाप औि

भाई क़ी मौत पि भी गि़े िान चाक न ककया र्जाए।

643. अगि औित मैतयत क़े सोग में अपना च़ेहिा ज़ख़्मी कि क़े खून आलद

कि ल़े या िाल नोच़े तो एहततयात क़ी बिना पि वह एक गल


ु ाम आज़ाद कि़े या

दस फ़क़ीिों को खाना खखलाए या उन्हें कपड़़े पहनाए औि अगि मदक अपनी िीवी

या फ़ज़कन्द क़ी मौत पि अपना गि़े िान या मलिास िाड़़े तो उसक़े मलय़े भी यही

हुक्म है ।

644. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक मैतयत पि िोत़े वक़्त आवाज़ िलन्द न क़ी

र्जाए।

212
नमाजे वह्शत

645. मन
ु ामसि है कक मैतयत क़े दफ़्न क़े िाद पहली िात को उसक़े मलय़े दो

िक् अत नमाज़़े वह्शत पढ़ी र्जाए औि उसक़े पढ़ऩे का तिीका यह है कक पहली

िक् अत में सिू ा ए अलहम्द क़े िाद एक दफ़् आ आयतुल कुस़ी औि दस


ू िी िक् अत

में सिू ा ए अलहम्द क़े िाद दस दफ़् अ सिू ा ए कर पढ़ा र्जाए औि सलाम़े नमाज़ क़े

िाद कहा र्जाएः- अल्लाहुम्मा स्वल्ल़े अला मोहम्महदंव व आल़े मोहम्महदंव वि ्अस

सवािहा इलाकब्ऱे िुलातनन। औि लफ़्ज़़े फ़ुलां क़ी िर्जाए मैतयत का नाम मलया

र्जाए।

646. नमाज़़े वह्शत मैतयत क़े दफ़्न क़े िाद पहली िात को ककसी वक़्त भी पढ़ी

र्जा सकती है ल़ेककन ि़ेह्ति यह है कक अव्वल़े शि में नमाज़़े इशा क़े िाद पढ़ी

र्जाए।

647. अगि मैतयत को ककसी दिू क़े शहि में ल़े र्जाना मक़्सद
ू हो या ककसी औि

वर्जह स़े उसक़े दफ़्न में ताखीि हो र्जाए तो नमाज़़े वह्शत को उस साबिका तिीक़े

क़े मत
ु ाबिक दफ़्न क़ी पहली िात तक मल्
ु तवी कि द़े ना चाहहय़े।

213
नब्शे कब्र

648. ककसी मस
ु लमान का नबश़े कब्र यानी उस कब्र का खोलना ख़्वाह वह

िच्चा या दीवाना ही क्यों न हो हिाम है हां अगि उसका िदन ममट्टी क़े साथ

ममलकि ममट्टी हो चक
ु ा हो तो किि कोई हिर्ज नहीं।

649. इमाम ज़ादों, शहीदों, आमलमों औि स्वाल़ेह लोगों क़ी कब्रों को उर्जाड़ना

ख़्वाह उन्हें फ़ौत हुए सालहा साल गज़


ु ि चक
ु ़े हों औि उनक़े िदन खाक हो गए हो,

अगि उनक़ी ि़े हुमत


क ी होती हो तो हिाम है।

वो स़ूितें ऐस़ी हैं जजनमें कब्र का खोदना हिाम नहीं है ीः

650. चन्द सिू तें ऐसी हैं जर्जनमें कब्र का खोदना हिाम नहीं हैः

1. र्जि मैतयत को गस्िी ज़मीन में दफ़्न ककया गया हो औि ज़मीन का मामलक

उसक़े वहां िहऩे पि िाज़ी न हो।

2. र्जि कफ़न या कोई औि चीज़ र्जो मैतयत क़े साथ दफ़्न क़ी गई हो गस्िी हो

औि उसका मामलक इस िात पि िज़ामन्द न हो कक वह कब्र में िह़े औि अगि

खुद मैतयत क़े माल में स़े कोई चीज़ र्जो उसक़े वारिसों को ममली हो उसक़े साथ

दफ़्न हो गई हो औि उसक़े वारिस इस िाद पि िाज़ी न हों कक वह चीज़ कब्र में

िह़े तो उसक़ी भी यही सिू त है। अलित्ता अगि मिऩे वाल़े ऩे वसीयत क़ी हो कक

दआ
ु या कुिआऩे मर्जीद या अंगूठ उसक़े साथ दफ़्न क़ी र्जाए औि उसक़ी वसीयत

214
पि अमल ककया गया हो तो उन चीज़ों को तनकालऩे क़े मलय़े कब्र को नहीं खोला

र्जा सकता। इसी तिह उन िाज़ सिू तों में भी र्जि ज़मीन या कफ़न में स़े कोई एक

चीज़ गस्िी हो या कोई औि गस्िी चीज़ मैतयत क़े साथ दफ़्न हो गई हो तो कब्र

को नहीं खोला र्जा सकता ल़ेककन यहा उन तमाम सिू तों क़ी तफ़्सील ियान किऩे

क़ी गंर्जाइश नहीं है ।

3. र्जि कब्र का खोलना मैतयत क़ी ि़े हुमत


क ी का मजू र्जि न हो औि मैतयत को

िगैि गस्
ु ल हदय़े या िगैि कफ़न पहनाए दफ़्न ककया गया हो या पता चल़े कक

मैतयत का गस्
ु ल िाततल था या उस़े शिई अहकाम क़े मत
ु ाबिक कफ़न नहीं हदया

गया था या कब्र में ककबल़े क़े रूख पि नहीं मलटाया गया था।

4. र्जि कोई ऐसा हक साबित किऩे क़े मलय़े र्जो नबश़े कब्र स़े अहम हो मैतयत

का िदन द़े खना ज़रूिी है।

5. र्जि मैतयत को ऐसी र्जगह पि दफ़्न ककया गया हो र्जहां उसक़ी ि़े हुमत
क ी

होती हो मसलन उस़े काकफ़िों क़े कबब्रस्तान में या उस र्जगह दफ़्न ककया गया हो

र्जहां गलाज़त औि कूड़ा कककट िेंका र्जाता हो।

6. र्जि ककसी ऐस़े शिई मक़्सद क़े मलय़े कब्र खोदी र्जाए जर्जसक़ी अहम्मीयत

कब्र खोलऩे स़े ज़्यादा हो मसलन ककसी जज़न्दा िच्च़े को ऐसी हाममला औित क़े

प़ेट स़े तनकालना मत्लि


ू हो जर्जस़े दफ़्न कि हदया गया हो।

215
7. र्जि यह खौफ़ हो कक दरिन्दा मैतयत को चीि िाड़ डाल़ेगा या सैलाि उस़े िहा

ल़े र्जाय़ेगा या दश्ु मन उस़े तनकाल ल़ेगा।

8. मैतयत ऩे वसीयत क़ी हो कक उस़े दफ़्न किऩे स़े पहल़े मक


ु द्दस मकामात क़ी

तिफ़ मन्
ु तककल ककया र्जाए औि ल़े र्जात़े वक़्त उसक़ी ि़े हुमत
क ी भी न होती हो

ल़ेककन र्जान िझ
ू कि या भल
ू ़े स़े ककसी दस
ू िी र्जगह दफ़्ना हदया गया हो तो ि़े

हुमत
क ी न होऩे क़ी सिू त में कब्र खोलकि उस़े मक
ु द्दस मकामात क़ी तिफ़ ल़े र्जा

सकत़े हैं।

मस्
ु तहब गस्
ु ल

651. इस्लाम क़ी मक


ु द्दस शिीअत में िहुत स़े गस्
ु ल मस्
ु तहि हैं जर्जनमें स़े

कुछ यह है ः

1. गस्
ु ल़े र्जम
ु ा- इसका वक़्त सबु ह क़ी अज़ान क़े िाद स़े सिू र्ज गरू
ु ि होऩे तक है

औि ि़ेहति यह है कक ज़ोहि क़े किीि िर्जा लाया र्जाए (औि अगि कोई शख़्स उस़े

ज़ोहि तक अंर्जाम न द़े तो ि़ेहति है कक अदा औि कज़ा क़ी तनयत ककय़े िगैि

गरू
ु ि़े आफ़ताि तक िर्जा लाए) औि अगि र्जुमा क़े हदन गस्
ु ल न कि़े तो मस्
ु तहि

है कक हफ़्त़े क़े हदन सबु ह स़े गरू


ु ि़े आफ़ताि तक उसक़ी कज़ा िर्जा लाए। औि र्जो

शख़्स र्जानता हो कक उस़े र्जम


ु ा क़े हदन पानी मय
ु स्सि न होगा तो वह रिर्जाअन

र्जम
ु अिात क़े हदन गस्
ु ल अंर्जाम द़े सकता है औि मस्
ु तहि है कक इंसान गस्
ु ल़े र्जम
ु ा

216
कित़े वक़्त यह दआ
ु पढ़़े ः अश्हदों अंल्लाइलाहा इल्लल्लाहो वह्दहू ला शिीका लहू व

अन्ना मोहम्मदन अबदहु ू व िसल


ू ह
ु ू अल्ला हुम्मा स्वल्ल़े अला मोहम्महदंव व आल़े

मोहम्महदंन वर्ज ्अलनी ममनत्तव्वािीना वर्ज ्अलनी ममनलमत


ु तह्हिीना।

2 ता 7. माह़े िमज़ान क़ी पहली औि सत्तिहवीं िात औि उन्नीसवीं, इक्क़ीस्वीं

औि त़ेईसवीं िातों क़े पहल़े हहस्स़े का गस्


ु ल औि चौिीसवीं िात का गस्
ु ल है ।

8-9. ईदल
ु फ़ुत्र औि ईद़े कुिाकन क़े हदन का गस्
ु ल – इसका वक़्त सबु ह क़ी

अज़ान स़े सिू त गरू


ु ि होऩे तक है औि ि़ेहति यह है कक ईद कक नमाज़ स़े पहल़े

कि मलया र्जाए।

10-11. माह़े जज़लहहज्र्जः क़े आठवें औि नवें हदन का गस्


ु ल औि ि़ेहति यह है

कक नवें हदन का गस्


ु ल ज़ोहि क़े नज़दीक ककया र्जाए।

12. उस शख़्स का गस्


ु ल जर्जसऩे अपऩे िदन का कोई हहस्सा ऐसी मैतयत स़े

मस ककया हो जर्जस़े गस्


ु ल हदया गया हो।

13. एहिाम का गस्


ु ल।

14. हिमें मक्का में दाखखल होऩे का गस्


ु ल।

15. मक्कए मक
ु माक में दाखखल होऩे का गस्
ु ल।

16. खानाए कािा क़ी जज़याित का गस्


ु ल।

17. कािा में दाखखल होऩे का गस्


ु ल।

18. जज़बहा औि नहि क़े मलय़े गस्


ु ल।

217
19. िाल मंड
ू ऩे क़े मलय़े गस्
ु ल।

20. हिम़े मदीना में दाखखल होऩे का गस्


ु ल।

21. मदीना ए मन
ु व्विा में दाखखल होऩे का गस्
ु ल।

22. मजस्र्जद़े निवी में दाखखल होऩे का गस्


ु ल।

23. निीय़े किीम सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम क़ी कब्ऱे मत


ु ह्हि स़े

ववदाअ होऩे का गस्


ु ल।

24. दश्ु मन क़े साथ मि


ु ाहला किऩे का गस्
ु ल।

25. नव ज़ाईदा िच्च़े का गस्


ु ल।

26. इजस्तखािा किऩे का गस्


ु ल।

27. तलि़े िािां का गस्


ु ल।

652. फ़ुकहा ऩे मस्


ु तहि गस्
ु लों क़े िाि में िहुत स़े गस्
ु लों का जज़क्र फ़िमाया है

जर्जनमें स़े चन्द यह है ः-

1. माह़े िमज़ान क़ी तमाम ताक िातों का गस्


ु ल औि उसक़ी आखखिी दहाई क़ी

िातों का गस्
ु ल औि उसक़ी तीसवीं िात क़े आखखिी हहस्स़े में दस
ू िा गस्
ु ल।

2. माह़े जज़लाहहज्र्जा क़े चौिीसवें हदन का गस्


ु ल।

3. ईद़े नव िोज़ क़े हदन औि पन्रहवीं शािान औि सत्तिहवी ििीउल अव्वल औि

जज़ल कादा क़े पच्चीसवें हदन का गस्


ु ल।

218
4. उस औित का गस्
ु ल जर्जसऩे अपऩे शौहि क़े अलावा ककसी औि क़े मलय़े खश्ु िू

इस्त़ेमाल क़ी हो।

5. उस शख़्स का गस्
ु ल र्जो मस्ती हालत में सो गया हो।

6. उस शख़्स का गस्
ु ल र्जो ककसी सल
ू ी चढ़़े हुए इंसान को द़े खऩे गया हो औि

उस़े द़े खा भी हो ल़ेककन अगि इवत्तफ़ाकन मर्जििू ी क़ी हालत में नज़ि गई हो या

ममसाल क़े तौि पि अगि शहादत द़े ऩे गया हो तो गस्


ु ल मस्
ु तहि नहीं है ।

7. दिू या नज़दीक स़े मअसम


ू ीन (अ0) क़ी जज़याित क़े मलय़े गस्
ु ल। ल़ेककन

अहवत यह है कक यह तमाम गस्


ु ल िर्जाअ क़ी तनयत स़े िर्जा लाए र्जायें।

653. उन मस्
ु तहि गस्
ु लों क़े साथ जर्जनका जज़क्र मसअला 651 में ककया गया है

इंसान ऐस़े काम मसलन नमाज़ अंर्जाम द़े सकता है जर्जनक़े मलय़े वज़
ु ू लाजज़म है

(यानी वज़
ु ू किना ज़रूिी नहीं है ) ल़ेककन र्जो गस्
ु ल ितौि़े िर्जाअ ककय़े र्जायें वह वज़
ु ू

क़े मलय़े ककफ़ायत नहीं कित़े (यानी साथ साथ वज़


ु ू किना भी ज़रूिी है ) ।

654. अगि कई मस्


ु तहि गस्
ु ल ककसी शख़्स क़े जज़म्म़े हों औि वह सिक़ी

नीयत कि क़े एक गस्


ु ल कि ल़े तो काफ़़ी है ।

तयम्मुम

सात सिू तों में वज़


ु ू औि गस्
ु ल क़े िर्जाय तयम्मम
ु किना चाहहय़ेः-

219
तयम्मम
ु की पहली सि़ू त

वज़
ु ू या गस्
ु ल क़े मलय़े ज़रूिी ममक़्दाि में पानी किना मह
ु ै या किना मजु म्कन न

हो।

655. अगि इंसान आिादी हो तो ज़रूिी है कक वज़


ु ू औि गस्
ु ल क़े मलय़े पानी

मह
ु ै या किऩे क़े मलय़े इतनी र्जुस्तर्जी कि़े कक बिल आखखि उसक़े ममलऩे स़े न

उम्मीद हो र्जाए औि अगि बियािान में हो तो ज़रूिी है कक िास्तों में या अपऩे

ठहिऩे क़ी र्जगहों में या उसक़े आस पास वाली र्जगहों में पानी तलाश कि़े औि

एहततयात़े लाजज़म यह है कक वहां क़ी ज़मीन न हमवाि हो या दिख़्तों क़ी कसित

क़ी वर्जह स़े िाह चलना दश्ु वाि हो तो चािो अतिाफ़ में स़े हि तिफ़ पिु ाऩे ज़माऩे

में कमान क़े चचल्ल़े पि चढ़ा कि िेंक़े र्जाऩे वाल़े तीि क़ी पवाकज़ क़े फ़ामसल़े क़े

ििािि पानी क़ी तलाश में र्जाए। वनाक हि तिफ़ अन्दाज़न दो िाि िेंक़े र्जाऩे वाल़े

तीि क़े फ़ामसल़े क़े ििािि र्जुस्तर्जू कि़े ।

656. अगि चाि अत्राफ़ में स़े िाज़ हमवाि औि िाज़ ना हमवाि हों तो र्जो

तिफ़ हमवाि हों उसमें दो तीिों क़ी पवाकज़ 1 (मर्जमलसीय़े अव्वल कुद्समसिक हू ऩे

मन ला यह्ज़रू
ु हुल फ़क़ीह क़ी शहक में तीि क़े पवाकज़ क़ी ममक़्दाि दो सौ कदम

मअ
ु य्यन फ़िमाई है।) क़े ििािि औि र्जो तिफ़ ना हमवाि हो उसमें एक तीि क़ी

पवाकज़ क़े ििािि पानी तलाश कि़े ।

220
657. जर्जस तिफ़ पानी क़े न होऩे का यक़ीन हो उस तिफ़ तलाश किना ज़रूिी

नहीं।

658. अगि ककसी शख़्स क़ी नमाज़ का वक़्त तंग न हो औि पानी हामसल किऩे

क़े मलय़े उसक़े पास वक़्त हो औि उस़े यक़ीन या इत्मीनान हो कक जर्जस फ़ामसल़े

तक उसक़े मलय़े पानी तलाश किना ज़रूिी है उस स़े दिू पानी मौर्जूद है तो उस़े

चाहहय़े कक पानी हामसल किऩे क़े मलय़े वहां र्जाए ल़ेककन अगि वहां र्जाना मशक़्कत

का िाइस हो या पानी िहुत ज़्यादा दिू हो कक लोग यह कहें कक उसक़े पास पानी

नहीं है तो वहां र्जाना लाजज़म नहीं औि अगि पानी मौर्जद


ू होऩे का गम
ु ान हो तो

किि भी वहां र्जाना ज़रूिी नहीं है ।

659. यह ज़रूिी नहीं कक इंसान खुद पानी क़ी तलाश में र्जाए िजल्क वह ककसी

औि ऐस़े शख़्स को भ़ेर्ज सकता है जर्जसक़े कहऩे पि उस़े इत्मीनान हो औि इस

सिू त में अगि एक शख़्स कई अश्खास क़ी तिफ़ स़े र्जाए तो काफ़़ी है ।

660. अगि इस िात का एहततमाल हो कक ककसी शख़्स क़े मलय़े अपऩे सफ़ि क़े

सामान में या पड़ाव डालऩे क़ी र्जगह पि या काकफ़ल़े में पानी मौर्जद
ू है तो ज़रूिी

है कक इस कदि र्जुस्तर्जू कि़े कक उस़े पानी क़े न होऩे का इत्मीनान हो र्जाए या

उसक़े हुसल
ू स़े ना उम्मीद हो र्जाए।

221
661. अगि एक शख़्स नमाज़ क़े वक़्त स़े पहल़े पानी तलाश कि़े औि हामसल

न कि पाए औि नमाज़ क़े वक़्त तक उसी र्जगह िह़े तो अगि पानी ममलऩे का

एहततमाल हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक दोिािा पानी क़ी तलाश में र्जाए।

662. अगि नमाज़ का वक़्त दाखखल होऩे क़े िाद तलाश कि़े औि पानी हामसल

न कि पाए औि िाद वाली नमाज़ क़े वक़्त तक उसी र्जगह िह़े तो अगि पानी

ममलऩे का एहततमाल हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक दोिािा पानी क़ी तलाश

में र्जाए।

663. अगि ककसी शख़्स क़ी नमाज़ का वक़्त तंग हो या उस़े चोि, डाकू औि

दरिन्द़े का खौफ़ हो या पानी तलाश इतनी कहठन हो कक वह सऊित को िदाकश्त न

कि सक़े तो तलाश ज़रूिी नहीं।

664. अगि कोई शख़्स पानी क़ी तलाश न कि़े हत्ता क़ी नमाज़ का वक़्त तंग हो

र्जाए औि पानी तलाश किऩे क़ी सिू त में पानी ममल सकता था तो वह गुनाह का

मत
ु कक कि हुआ ल़ेककन तयम्मम
ु क़े साथ उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

665. अगि कोई शख़्स इस यक़ीन क़ी बिना पि पानी क़ी तलाश में न र्जाए कक

उस़े पानी नहीं ममल सकता औि तयम्मम


ु कि क़े नमाज़ पढ़ ल़े औि िाद में उस़े

पता चल़े कक अगि तलाश किता तो पानी ममल सकता था तो एहततयात़े लाजज़म

क़ी बिना वज़


ु ू कि क़े नमाज़ को दोिािा पढ़़े ।

222
666. अगि ककसी शख़्स को तलाश किऩे पि पानी न ममल़े औि ममलऩे स़े

मायस
ू होकि तयम्मम
ु क़े साथ नमाज़ पढ़ ल़े औि नमाज़ क़े िाद उस़े पता चल़े

कक र्जहां उसऩे तलाश ककया था वहां पानी मौर्जद


ू था तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

667. जर्जस शख़्स को यक़ीन हो कक नमाज़ का वक़्त तंग है अगि वह पानी

तलाश ककय़े िगैि तयम्मम


ु कि क़े नमाज़ पढ़ ल़े औि नमाज़ क़े िाद औि वक़्त

गुज़िऩे स़े पहल़े उस़े पता चल़े कक पानी तलाश किऩे क़े मलय़े उसक़े पास वक़्त था

तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक दोिािा नमाज़ पढ़़े ।

668. अगि नमाज़ का वक़्त दाखखल होऩे क़े िाद ककसी शख़्स का वज़
ु ू िाक़ी हो

औि उस़े मालम
ू हो कक अगि उसऩे अपना वज़
ु ू िाततल कि हदया तो दोिािा वज़
ु ू

किऩे क़े मलय़े पानी नहीं ममल़ेगा या वज़


ु ू नहीं कि पाय़ेगा तो इस सिू त में अगि

वह अपना वज़
ु ू ििकिाि िख सकता हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना उस़े चाहहय़े

कक उस़े िाततल न कि़े ल़ेककन अगि ऐसा शख़्स यह र्जानत़े हुए भी कक गस्
ु ल न

कि पाय़ेगा अपनी िीवी स़े जर्जमाअ कि सकता है।

669. अगि कोई शख़्स नमाज़ स़े पहल़े िा वज़


ु ू हो औि उस़े मालम
ू हो कक

अगि उसऩे अपना वज़


ु ू िाततल कि हदया तो दोिािा वज़
ु ू किऩे क़े मलय़े पानी

मह
ु ै या किना उसक़े मलय़े मजु म्कन न होगा तो इस सिू त में अगि वह अपना वज़
ु ू

ििकिाि िख सकता हो तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उस़े िाततल न कि़े ।

223
670. र्जि ककसी क़े पास फ़कत गस्
ु ल या वज़
ु ू क़े मलय़े पानी हो औि वह र्जानता

हो कक उस़े चगिा द़े ऩे क़ी सिू त में मज़ीद पानी नहीं ममल सक़ेगा तो अगि नमाज़

का वक़्त दाखखल हो गया हो तो उस पानी का चगिाना हिाम है औि एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक नमाज़ क़े वक़्त स़े पहल़े भी न चगिाए।

671. अगि कोई शख़्स यह र्जानत़े हुए कक उस़े पानी न ममल सक़ेगा, नमाज़ का

वक़्त दाखखल होऩे क़े िाद अपना वज़


ु ू िाततल कि द़े या र्जो पानी उसक़े पास हो

उस़े चगिा द़े तो अगि च़े उसऩे (हुक्म़े मस ्अला क़े) िह अक्स काम ककया है,

तयम्मम
ु क़े साथ उसक़ी नमाज़ सहीह होगी ल़ेककन एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक

उस नमाज़ क़ी कज़ा भी कि़े ।

तयम्मुम की दस
़ू िी स़ूित

672. अगि कोई शख़्स िढ़


ु ाप़े या कमज़ोिी क़ी वर्जह स़े चोि, डाकू औि र्जानवि

वगैिा क़े खौफ़ स़े या कुयें स़े पानी तनकालऩे क़े वसाइल मय
ु स्सि न होऩे क़ी वर्जह

स़े पानी हामसल न कि सक़े तो उस़े चाहहय़े क़ी तयम्मम


ु कि़े । औि अगि पानी

मह
ु ै या किऩे या इस्त़ेमाल किऩे में उस़े इतनी तक्लीफ़ उठानी पड़़े र्जो नाकाबिल़े

िदाकश्त हो तो उस सिू त में भी यही हुक्म है । ल़ेककन आखखिी सिू त में अगि

तयम्मम
ु न कि़े औि वज़
ु ू कि़े तो उसका वज़
ु ू सहीह होगा।

224
673. अगि कुयें स़े पानी तनकालऩे क़े मलय़े डोल औि िस्सी वगैिा ज़रूिी हो

औि मत
ु अजल्लका शख़्स मर्जििू हो कक उन्हें खिीद़े या ककिाए पि हामसल कि़े तो

ख़्वाह उनक़ी ककमत आम भाव स़े कई गन


ु ा ही ज़्यादा क्यों न हो उस़े चाहहय़े क़ी

उन्हें हामसल कि़े । औि अगि पानी अपनी असली क़ीमत स़े मंहगा ि़ेचा र्जा िहा हो

तो उसक़े मलय़े भी यही हुक्म है। ल़ेककन अगि इन चीज़ों क़े हुसल
ू पि इतना खचक

आता हो कक उसक़ी र्ज़ेि इर्जाज़त न द़े ती हो तो किि इन चीज़ों का मह


ु ै या किना

वाजर्जि नहीं है ।

674. अगि कोई शख़्स मर्जििू हो कक पानी मह


ु ै या किऩे क़े मलय़े कज़क ल़े तो

कज़क ल़ेना ज़रूिी है ल़ेककन जर्जस शख़्स को इल्म हो या गुमान हो कक वह अपऩे

कज़े क़ी अदायगी नहीं कि सकता उसक़े मलय़े कज़क ल़ेना वाजर्जि नहीं है ।

675. अगि कुआं खोदऩे में कोई मशक़्कत न हो तो मत


ु अजल्लका शख़्स को

चाहहय़े कक पानी मह
ु ैया किऩे क़े मलय़े कुआं खोद़े ।

676. अगि कोई शख़्स िगैि एहसान िख़े कुछ पानी द़े तो उस़े कुिल
ू कि ल़ेना

चाहहयें।

तयम्मुम की त़ीसिी स़ूित

677. अगि ककसी शख़्स को पानी इस्त़ेमाल किऩे स़े अपनी र्जान पि िन र्जाऩे

या िदन में कोई ऐि या मिज़ पैदा होऩे या मौर्जद


ू ा मिज़ क़े तल
ू ानी या शदीद हो

225
र्जाऩे या इलार्ज मआ
ु मलर्जा में दश
ु वािी पैदा होऩे का खौफ़ हो तो उस़े चाहहय़े कक

तयम्मम
ु कि़े । ल़ेककन अगि पानी क़े ज़िि को ककसी तिीक़े स़े दिू कि सकता हो

मसलन यह कक पानी को गमक किऩे स़े ज़िि दिू हो सकता हो तो पानी गमक कि

क़े वज़
ु ू कि़े औि गस्
ु ल किना ज़रूिी हो तो गस्
ु ल कि़े ।

678. ज़रूिी नहीं कक ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि है

िजल्क अगि ज़िि का एहततमाल हो औि यह एहततमाल आम लोगों क़ी नज़िों में

मअकूल हो औि इस एहततमाल स़े उस़े खौफ़ लाहहक हो र्जाए तो तयम्मम


ु किना

ज़रूिी है।

679. अगि कोई शख़्स ददे चश्म में मबु तला हो औि पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि हो

तो ज़रूिी है कक तयम्मम
ु कि़े ।

680. अगि कोई शख़्स ज़िि क़े यक़ीन या खौफ़ क़ी वर्जह स़े तयम्मम
ु कि़े औि

उस़े नमाज़ स़े पहल़े इस िात का पता चल र्जाए कक पानी उसक़े मलय़े नक्
ु सान द़े ह

नहीं तो उसका तयम्मम


ु िाततल है। औि अगि इस िात का पता नमाज़ क़े िाद

चल़े तो वज़
ु ू या गस्
ु ल कि क़े दोिािा नमाज़ पढ़ना ज़रूिी है ।

681. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि नहीं है औि

गस्
ु ल या वज़
ु ू कि ल़े िाद में उस़े पता चल़े कक पानी उसक़े मलय़े मजु ज़ि था तो

उसका वज़
ु ू औि गस्
ु ल दोनों िाततल हैं।

226
तयम्मम
ु की चौथ़ी सि़ू त

682. अगि ककसी शख़्स को यह खौफ़ हो कक पानी स़े गस्


ु ल या वज़
ु ू कि ल़ेऩे

क़े िाद वह प्यास क़ी वर्जह स़े ि़ेताि हो र्जाय़ेगा तो ज़रूिी है कक तयम्मम
ु कि़े

औि इस वर्जह स़े तयम्मम


ु क़े र्जाइज़ हो र्जाऩे क़ी तीन सिू तें है ः-

1. अगि पानी वज़


ु ू या गस्
ु ल किऩे में सफ़क कि द़े तो वह खुद फ़ौिी तौि पि या

िाद में ऐसी प्यास में मबु तला हो र्जो उसक़ी हलाकत या अलालत (िीमािी) का

मजू र्जि होगी या जर्जसका िदाकश्त किना उसक़े मलय़े सख़्त तक्लीफ़ का िाइस होगा।

2. उस़े खौफ़ हो कक जर्जन लोगों क़ी हहफ़ाज़त किना उस पि वाजर्जि है वह कहीं

प्यास स़े हलाक या िीमाि न हो र्जायें।

3. अपऩे अलावा ककसी दस


ू ि़े क़ी खातति ख़्वाह वह इंसान हो या है वान, डिता हो

औि उसक़ी हलाकत या िीमािी या ि़ेतािी उस़े गिां गज़


ु िती हो ख़्वाह मोहतिम

नफ़
ु ू स में स़े हो या गैि मोहतिम नफ़
ु ू स में स़े हो इन तीन सिू तों क़े अलावा ककसी

सिू त में पानी होत़े हुए तयम्मम


ु किना र्जाइज़ नहीं है ।

683. अगि ककसी शख़्स क़े पास उस पाक पानी क़े अलावा र्जो वज़
ु ू या गस्
ु ल क़े

मलय़े हो इतना नजर्जस पानी भी हो जर्जतना उस़े पीऩे क़े मलय़े दिकाि है तो ज़रूिी

है कक पाक पानी पीऩे क़े मलय़े िख ल़े औि तयम्मम


ु कि क़े नमाज़ पढ़़े ल़ेककन

अगि पानी उसक़े साचथयों क़े पीऩे क़े मलय़े दिकाि हो तो वह पाक पानी स़े गस्
ु ल

या वज़
ु ू कि सकता है ख़्वाह उसक़े साथी प्यास िझ
ु ाऩे क़े मलय़े नजर्जस पानी पीऩे

227
पि ही क्यों न मर्जििू हों िजल्क अगि वह लोग उस पानी क़े नजर्जस होऩे क़े िाि़े

में न र्जानत़े हों या यह कक ककसी नर्जासत स़े पिह़े ज़ न कित़े हों तो लाजज़म है

कक पाक पानी को वज़


ु ू या गस्
ु ल क़े मलय़े सफ़क कि़े औि इसी तिह पानी अपऩे

ककसी र्जानवि या नािामलग िच्च़े को वपलाना चाह़े ति भी ज़रूिी है कक उन्हें वह

नजर्जस पानी वपलाए औि पाक पानी स़े वज़


ु ू या गस्
ु ल कि़े ।

तयुम्मुम की पांचव़ीं स़ूित

684. अगि ककसी शख़्स का िदन या मलिास नजर्जस हो औि उसक़े पास इतनी

ममक़्दाि में पानी हो कक उसस़े वज़


ु ू या गस्
ु ल कि ल़े तो िदन या मलिास धोऩे क़े

मलय़े पानी न िचता हो तो ज़रूिी है कक िदन या मलिास धोए औि तयम्मम


ु कि

क़े नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि उसक़े पास ऐसी कोई चीज़ न हो जर्जस पि तयम्मम

कि़े तो ज़रूिी है कक पानी वज़


ु ू या गस्
ु ल क़े मलय़े इस्त़ेमाल कि़े औि नजर्जस िदन

या मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े ।

तयम्मुम की छठी स़ूित

685. अगि ककसी शख़्स क़े पास मसवाए ऐस़े पानी या ितकन क़े जर्जसका

इस्त़ेमाल किना हिाम हो कोई औि पानी या ितकन न हो मसलन र्जो पानी या

228
ितकन उसक़े पास हो वह गस्िी हो औि उसक़े अलावा उसक़े पास कोई पानी या

ितकन न हो तो उस़े चाहहय़े कक वज़


ु ू औि गस्
ु ल क़े िर्जाए तयम्मम
ु कि़े ।

तयम्मम
ु की सातव़ीं सि़ू त

686. र्जि वक़्त इतना तंग हो कक अगि एक शख़्स वज़


ु ू या गस्
ु ल कि़े तो सािी

नमाज़ या उसका कुछ हहस्सा वक़्त क़े िाद पढ़ा र्जा सक़े तो ज़रूिी है कक

तयम्मम
ु कि़े ।

687. अगि कोई शख़्स र्जान िझ


ू कि नमाज़ पढ़ऩे में इतनी ताखीि कि़े कक वज़
ु ू

या गस्
ु ल का वक़्त िाक़ी न िह़े तो वह गन
ु ाह का मत
ु कक कि होगा ल़ेककन तयम्मम

क़े साथ उसक़ी नमाज़ सहीह है । अगि च़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस

नमाज़ क़ी कज़ा भी कि़े ।

688. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक वह वज़


ु ू या गस्
ु ल कि़े तो नमाज़ का

वक़्त िाक़ी िह़े गा या नहीं तो ज़रूिी है कक तयम्मम


ु कि़े ।

689. अगि ककसी शख़्स ऩे वक़्त क़ी तंगी क़ी वर्जह स़े तयम्मम
ु ककया हो औि

नमाज़ क़े िाद वज़


ु ू कि सकऩे क़े िावर्जद
ू न ककया हो हत्ता क़ी र्जो पानी उसक़े

पास था वह ज़ाए हो र्जाए तो इस सिू त में उसका फ़िीज़ा तयम्मम


ु हो तो

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े दोिािा तयम्मम
ु कि़े ।

ख़्वाह वह तयम्मम
ु र्जो उसऩे ककया था न टूटा हो।

229
690. अगि ककसी शख़्स क़े पास पानी हो ल़ेककन वक़्त क़ी तंगी क़े िाइस

तयम्मम
ु कि क़े नमाज़ पढ़ऩे लग़े औि नमाज़ क़े दौिान र्जो पानी उसक़े पास था

वह ज़ाए हो र्जाए औि अगि उसका फ़िीज़ा तयम्मम


ु हो तो एहततयात़े मस्
ु तहि यह

है कक िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े दोिािा तयम्मम


ु कि़े ।

691. अगि ककसी शख़्स क़े पास इतना वक़्त हो कक वज़


ु ू या गस्
ु ल कि सक़े

औि नमाज़ को उसक़े मस्


ु तहि अफ़आल मसलन इकामत औि कुनत
ू क़े िगैि पढ़

ल़े तो ज़रूिी है कक गस्


ु ल या वज़
ु ू कि ल़े औि उसक़े मस्
ु तहि अफ़आल क़े िगैि

नमाज़ पढ़़े िजल्क अगि सिू ा पढ़ऩे जर्जतना वक़्त भी न िचता हो तो ज़रूिी है कक

गस्
ु ल या वज़
ु ू कि़े औि िगैि सिू ा क़े नमाज़ पढ़़े ।

वह च़ीजें जजन पि तयम्मुम किना सहीह है

692. ममट्टी, ि़े त, ढ़े ल़े औि िोढ़ी या पत्थि पि तयम्मम


ु किना सहीह है ल़ेककन

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक अगि ममट्टी मय
ु स्सि हो तो ककसी दस
ू िी चीज़ पि

तयम्मम
ु न ककया र्जाए। औि अगि ममट्टी न हो तो ि़े त या ढ़े ल़े पि औि अगि

ि़े त औि ढ़े ला भी न हो तो किि िोढ़ी या पत्थि पि तयम्मम


ु ककया र्जाए।

693. जर्जप्सम औि चन
ू ़े क़े पत्थि पि तयम्मम
ु किना सहीह है नीज़ उस

गदोंगबु िाि पि र्जो कालीन, कपड़़े औि उन र्जैसी दस


ू िी चीज़ों पि र्जमाअ हो र्जाता

है , अगि उफ़े आम में उस़े नमक ममट्टी शम


ु ाि ककया र्जाता हो तो उस पि तयम्मम

230
सहीह है। अगिच़े एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक इजख़्तयाि क़ी हालत में उस पि

तयम्मम
ु न कि़े । इसी तिह एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि इजख़्तयाि क़ी हालत

में पक्क़े जर्जप्सम औि चन


ू ़े पि औि पक्क़ी हुई ईट औि दस
ू ि़े मअहदनी पत्थि

मसलन अक़ीक वगैिा पि तयम्मम


ु न कि़े ।

694. अगि ककसी शख़्स को ममट्टी, ि़े त, ढ़े ल़े या पत्थि न ममल सकें तो ज़रूिी

है कक ति ममट्टी पि तयम्मम
ु कि़े औि अगि ति ममट्टी न ममल़े तो ज़रूिी है कक

कालीन, दिी या मलिास औि उन र्जैसा दस


ू िी चीज़ों क़े अन्दि या ऊपि मौर्जूद उस

मख़्
ु तसि स़े गदोगबु िाि स़े र्जो उफ़े आम में ममट्टी शम
ु ाि न होता हो तयम्मम
ु कि़े

औि अगि इनमें स़े कोई चीज़ भी दस्तयाि न हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है

कक तयम्मम
ु क़े िगैि नमाज़ पढ़़े ल़ेककन वाजर्जि है कक िाद में उसक़ी कज़ा पढ़़े ।

695. अगि कोई शख़्स कालीन, दिी औि उन र्जैसी चीज़ों को झाड़कि ममट्टी

मह
ु ै या कि सकता हो तो उसका गदक आलद
ू चीज़ों पि तयम्मम
ु किना िाततल है

औि इसी तिह अगि ति ममट्टी को खश्ु क कि क़े उसस़े सख


ू ी ममट्टी हामसल कि

सकता हो तो ति ममट्टी पि तयम्मम


ु किना िाततल है।

696. जर्जस शख़्स क़े पास पानी न हो ल़ेककन िफ़क हो औि उस़े वपर्ला सकता

हो तो उस़े वपर्ला कि पानी िनाना औि उसस़े वज़


ु ू या गस्
ु ल किना ज़रूिी है औि

अगि ऐसा किना मजु म्कन न हो औि उसक़े पास कोई ऐसी चीज़ भी न हो जर्जस

पि तयम्मम
ु किना सहीह हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक दस
ू ि़े वक़्त में नमाज़

231
को कज़ा कि़े औि ि़ेहति यह है कक िफ़क स़े वज़
ु ू या गस्
ु ल क़े अअज़ा को ति कि़े

औि अगि ऐसा किना भी मजु म्कन न हो तो िफ़क पि तयम्मम


ु कि ल़े औि वक़्त

पि भी नमाज़ पढ़़े ।

697. अगि ममट्टी औि ि़े त क़े साथ सख


ू ी र्ास क़ी तिह कोई चीज़ (मसलन

िीर्ज, कमलयां) ममली हुई हों जर्जस पि तयम्मम


ु किना िाततल हो तो मत
ु अजल्लका

शख़्स उस पि तयम्मम
ु नहीं कि सकता। ल़ेककन अगि वह चीज़ इतनी कम हो कक

उस़े ममट्टी या ि़े त में न होऩे क़े ििािि समझा र्जा सक़े तो उस ममट्टी औि ि़े त

पि तयम्मम
ु सहीह है।

698. अगि एस शख़्स क़े पास कोई ऐसी चीज़ न हो जर्जस पि तयम्मम
ु ककया

र्जा सक़े औि उसका खिीदना या ककसी औि तिह हामसल किना मजु म्कन हो तो

ज़रूिी है कक उस तिह मह
ु ै या कि ल़े।

699. ममट्टी क़ी दीवाि पि तयम्मम


ु किना सहीह है औि एहततयात़े मस्
ु तहि

यह है कक खश्ु क ज़मीन या खश्ु क ममट्टी क़े होत़े हुए ति ज़मीन या ति ममट्टी

पि तयम्मम
ु न ककया र्जाए।

700. जर्जस चीज़ पि इंसान तयम्मम


ु कि़े उसका पाक होना ज़रूिी है औि अगि

उसक़े पास कोई ऐसी पाक चीज़ न हो जर्जस पि तयम्मम


ु किना सहीह हो तो उस

पि नमाज़ वाजर्जि नहीं ल़ेककन ज़रूिी है कक उसक़ी कज़ा िर्जा लाए औि ि़ेहति यह

है कक वक़्त में भी नमाज़ पढ़़े ।

232
701. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक एक चीज़ पि तयम्मम
ु किना सहीह

है औि उस पि तयम्मम
ु कि ल़े िाद अंर्जा उस़े पता चल़े कक उस चीज़ पि

तयम्मम
ु किना िाततल था तो ज़रूिी है कक र्जो नमाज़ें उस तयम्मम
ु क़े साथ पढ़ी

हैं उन्हें दोिािा पढ़़े ।

702. जर्जस चीज़ पि कोई शख़्स तयम्मम


ु कि़े ज़रूिी है कक वह गस्िी न हो

पस अगि वह गस्िी ममट्टी पि तयम्मम


ु कि़े तो उसका तयम्मम
ु िाततल है ।

703. गस्ि क़ी हुई फ़ज़ा में तयम्मम


ु किना िाततल नहीं है मलहाज़ा अगि कोई

शख़्स अपनी ज़मीन पि अपऩे हाथ ममट्टी पि माि़े औि किि बिला इर्जज़ात दस
ू ि़े

क़ी ज़मीन में दाखखल हो र्जाए औि हाथों को प़ेशानी पि ि़ेि़े तो उसका तयम्मम

सहीह होगा अगि च़े वह गुनाह का मत


ु कक कि हुआ है ।

704. अगि कोई शख़्स भल


ू ़े स़े या गफ़्लत स़े गस्िी चीज़ पि तयम्मम
ु कि ल़े

तो तयम्मम
ु सहीह है ल़ेककन अगि वह खुद कोई चीज़ गस्ि कि़े औि किि भल

र्जाए कक गस्ि क़ी है तो उस चीज़ पि तयम्मम


ु क़े सहीह होऩे में इश्काल है ।

705. अगि कोई शख़्स गस्िी र्जगह में मह्िस


ू हो औि उस र्जगह का पानी औि

ममट्टी दोनों गस्िी हों तो ज़रूिी है कक तयम्मम


ु कि क़े नमाज़ पढ़़े ।

706. जर्जस चीज़ पि तयम्मम


ु ककया र्जाए एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी

है कक उस पि गदों गि
ु ाि मौर्जूद हो र्जो कक हाथों पि लग र्जाए औि उस पि हाथ

233
मािऩे क़े िाद ज़रूिी है कक इतऩे ज़ोि स़े हाथों को न झाड़़े कक सािी गदक झड़

र्जाए।

707. गढ़़े वाली ज़मीन, िास्त़े क़ी ममट्टी औि ऐसी शोि ज़मीन जर्जस पि नमक

क़ी तह न र्जमी हो तयम्मम


ु किना मकरूह है औि अगि उस पि नमक क़ी तह

र्जम गई हो तो तयम्मम
ु िाततल है।

वुज़ू या गस्
ु ल के बदले तयम्मुम किने का तिीका

708. वज़
ु ू या गस्
ु ल क़े िदल़े ककय़े र्जाऩे वाल़े तयम्मम
ु में चाि चीज़ें वाजर्जि हैः-

1. नीयत

2. दोनों हथ़ेमलयों को एक साथ ऐसी चीज़ पि मािऩे या िखना जर्जस पि

तयम्मम
ु किना सहीह हो। औि एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि दोनों हाथ एक

साथ ज़मीन पि मािऩे या िखऩे चाहहयें।

3. पिू ी प़ेशानी पि दोनों हथ़ेलीयों को ि़ेिना औि इसी तिह एहततयात़े लाजज़म

क़ी बिना पि उस मकाम स़े र्जहां सि क़े िाल उगत़े हैं भवों औि नाक क़े ऊपि

तक प़ेशानी क़े दोनों तिफ़ दोनों हथ़ेलीयों को ि़ेिना। औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह

है कक हाथ भवों तक भी ि़ेि़े र्जाए।

4. िाई हथ़ेली को दायें हाथ क़ी तमाम पश्ु त पि औि उसक़े िाद दाईं हाथ़ेली को

िायें हाथ क़ी तमाम पश्ु त पि ि़ेिना।

234
709. एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक तयम्मम
ु ख़्वाह वज़
ु ू क़े िदल़े हो या गस्
ु ल

क़े िदल़े उस़े तितीि स़े ककया र्जाए यानी यह है कक एक दिआ हाथ ज़मीन पि

माि़े र्जायें औि प़ेशानी औि हाथों क़ी पश्ु त पि ि़ेि़े र्जायें औि किि एक दफ़आ

ज़मीन पि माि़े र्जायें औि हाथों क़ी पश्ु त का मसह ककया र्जाए।

तयम्मुम के अहकाम

710. अगि एक शख़्स प़ेशानी या हाथों क़ी पश्ु त क़े ज़िां स़े हहस्स़े का भी मसह

न कि़े तो उसका तयम्मम


ु िाततल है । कत ्ए नज़ि इसस़े कक उसऩे अमदन मसह

न ककया हो या मस ्अला न र्जानता हो या मस ्अला भल


ू गया हो ल़ेककन िाल क़ी

खाल तनकालऩे क़ी ज़रूित भी नहीं अगि यह कहा र्जा सक़े कक तमाम प़ेशानी औि

हाथों का मसह हो गया है तो इतना ही काफ़़ी है ।

711. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन न हो कक हाथ क़ी तमाम पश्ु त पि मसह

कि मलया है तो यक़ीन हामसल किऩे क़े मलय़े ज़रूिी है कक कलाई स़े कुछ ऊपि

वाल़े हहस्स़े का भी मसह कि़े ल़ेककन उं गमलयों क़े दिममयान मसह किना ज़रूिी

नहीं।

712. तयम्मम
ु किऩे वाल़े को प़ेशानी औि हाथों क़ी पश्ु त क़ी मसह एहततयात

क़ी बिना पि ऊपि स़े नीच़े क़ी र्जातनि किना ज़रूिी है औि यह अफ़् आल एक

235
दस
ू ि़े स़े मत्त
ु मसल होऩे चाहहय़े औि अगि इन अफ़् आल क़े दिममयान इतना फ़ासला

द़े कक लोग यह न कहें क़ी तयम्मम


ु कि िहा है तो तयम्मम
ु िाततल है।

713. नीयत कित़े वक़्त लाजज़म नहीं कक इस िात का तअय्यन


ु कि़े कक उसका

तयम्मम
ु गस्
ु ल क़े िदल़े है या वज़
ु ू क़े िदल़े ल़ेककन र्जहां दो तयम्मम
ु अंर्जाम द़े ना

ज़रूिी हों तो लाजज़म है कक उन में स़े हि एक को मअ


ु य्यन कि़े औि अगि उस

पि एक तयम्मम
ु वाजर्जि हो औि नीयत कि़े कक मैं इस वक़्त अपना वज़ीफ़ा

अंर्जाम द़े िहा हूाँ तो अगिच़े वह मअ


ु य्यन किऩे में गलती कि़े (कक वह तयम्मम

गस्
ु ल क़े िदल़े है या वज़
ु ू क़े िदल़े) उसका तयम्मम
ु सहीह है ।

714. एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि तयम्मम
ु में प़ेशानी, हाथों क़ी हथ़ेलीयां

औि हाथों क़ी पश्ु त र्जहां तक कक मजु म्कन हो ज़रूिी है कक पाक हों।

715. इंसान को चाहहय़े कक हाथ पि मसह कित़े वक़्त अगठ


ू उताि द़े औि

अगि प़ेशानी या हाथों क़ी पश्ु त या हथ़ेमलयों पि कोई रूकावट हो मसलन उन पि

कोई चीज़ चीपक़ी हुई हो तो ज़रूिी है कक उस़े हटा द़े ।

716. अगि ककसी शख़्स क़ी प़ेशानी या हाथों क़ी पश्ु त पि ज़ख़्म हो औि उस

पि कपड़ा या पट्टी वगैिा िंधी हो जर्जसको खोला न र्जा सकता हो तो ज़रूिी है कक

उस क़े ऊपि हाथ ि़ेि़े । औि अगि हथ़ेली ज़ख़्मी हो औि उस पि कपड़ा या पट्टी

िंधी हो जर्जस़े खोला न र्जा सकता हो तो ज़रूिी है कक कपड़़े या पट्टी वगैिा सम़ेत

236
उस चीज़ पि हाथ माि़े जर्जस पि तयम्मम
ु किना सहीह हो औि किि प़ेशानी औि

हाथों क़ी पश्ु त पि ि़ेि़े ।

717. अगि ककसी शख़्स क़ी प़ेशानी औि हाथों क़ी पश्ु त पि िाल हों तो कोई

हिर्ज नहीं ल़ेककन अगि सि क़े िाल प़ेशानी पि आ चगि़े हों तो ज़रूिी है कक उन्हें

पीछें हटा दें ।

718. अगि एहततमाल हो कक प़ेशानी औि हथ़ेमलयों या हाथों क़ी पश्ु त पि कोई

रूकावट है औि यह एहततमाल लोगों क़ी नज़िों में मअकूल हों तो ज़रूिी है कक

छान िीन कि़े ताकक उस़े यक़ीन या इत्मीनान हो र्जाए कक रूकावट मौर्जद
ू नहीं है।

719. अगि ककसी शख़्स का वज़ीफ़ा तयम्मम


ु हो औि वह खुद तयम्मम
ु न कि

सकता हो तो ज़रूिी है कक ककसी दस


ू ि़े शख़्स स़े मदद ल़े ताकक वह मददगाि

मत
ु अजल्लका शख़्स क़े हाथों को उस चीज़ पि माि़े जर्जस पि तयम्मम
ु किना सहही

हो औि किि मत
ु अजल्लका शख़्स क़े हाथों को उसक़ी प़ेशानी औि दोनों हाथों क़ी

पश्ु त पि िख द़े ताकक इम्कान क़ी सिू त में वह खद


ु अपनी दोनों हथ़ेमलयों को

प़ेशानी औि दोनों हाथों क़ी पश्ु त पि ि़ेि़े औि अगि यह मजु म्कन न हो तो नायि

क़े मलय़े ज़रूिी है कक मत


ु अजल्लका शख़्स को खुद उसक़े हाथों स़े तयम्मम
ु किाए

औि अगि ऐसा किना मजु म्कन न हो तो नायि क़े मलय़े ज़रूिी है कक अपऩे हाथों

को उस चीज़ पि माि़े जर्जस पि तयम्मम


ु किना सहीह हो औि किि मत
ु अजल्लका

शख़्स क़ी प़ेशानी औि हाथों क़ी पश्ु त पि ि़ेि़े । इन दोनों सिू तों में एहततयात़े

237
लाजज़म क़ी बिना पि दोनों शख़्स तयम्मम
ु क़ी तनयत किें ल़ेककन पहली सिू त में

खद
ु मक
ु ल्लफ़ क़ी नीयत काफ़़ी है।

720. अगि कोई शख़्स तयम्मम


ु क़े दौिान शक कि़े कक वह उसका कोई हहस्सा

भल
ू गया है या नहीं औि उस हहस्स़े का मौका गज़
ु ि गया हो तो वह अपऩे शक

का मलहाज़ न कि़े औि अगि मौका न गुज़िा हो तो ज़रूिी है कक उस हहस्स़े का

तयम्मम
ु कि़े ।

721. अगि ककसी शख़्स को िायें हाथ का मसह किऩे क़े िाद शक हो कक आया

उसऩे तयम्मम
ु दरू
ु स्त ककया है या नहीं तो उसका तयम्मम
ु सहीह है औि अगि

उसका शक िायें हाथ क़े मसह क़े िाि़े में हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक उसका

मसह कि़े मसवाय इसक़े कक लोग यह कहें कक तयम्मम


ु स़े फ़ारिग हो चक
ु ा है

मसलन उस शख़्स ऩे कोई ऐसा काम ककया हो जर्जसक़े मलय़े तहाित शतक है या

तसलसल
ु खत्म हो गया हो।

722. जर्जस शख़्स का वज़ीफ़ा तयम्मम


ु हो अगि वह नमाज़ क़े पिू ़े वक़्त में उज़्र

खत्म होऩे स़े मायस


ू हो र्जाए तो तयम्मम
ु कि सकता है औि अगि उसऩे ककसी

दस
ू िी वाजर्जि या मस्
ु तहि काम क़े मलय़े तयम्मम
ु ककया हो औि नमाज़ क़े वक़्त

तक उसका उज़्र िाक़ी हो (जर्जसक़ी वर्जह स़े उसका वज़ीफ़ा तयम्मम


ु है ) तो उसी

तयम्मम
ु क़े साथ नमाज़ पढ़ सकता है ।

238
723. जर्जस शख़्स का वज़ीफ़ा तयम्मम
ु हो अगि उस़े इल्म हो कक आखखि वक़्त

तक उसका उज़्र िाक़ी िह़े गा या वह उज़्र क़े खत्म होऩे स़े मायस
ू हो तो वक़्त क़े

वसी होत़े हुए वह तयम्मम


ु क़े साथ नमाज़ पढ़ सकता है । ल़ेककन अगि वह

र्जानता हो कक आखखि वक़्त तक उसका उज़्र दिू हो र्जाय़ेगा तो ज़रूिी है कक

इजन्तज़ाि कि़े औि वज़


ु ू या गस्
ु ल कि क़े नमाज़ पढ़़े । िजल्क अगि वह आखखि

वक़्त तक उज़्र क़े खत्म होऩे स़े मायस


ू न हो तो मायम
ू होऩे स़े पहल़े तयम्मम

किक़े नमाज़ नहीं पढ़ सकता।

724. अगि कोई शख़्स वज़


ु ू या गस्
ु ल न कि सकता हो औि उस़े यक़ीन हो कक

उसका उज़्र दिू होऩे वाला नहीं है या दिू होऩे स़े मायस
ू हो तो वह अपनी कज़ा

नमाज़़े तयम्मम
ु क़े साथ पढ़ सकता है ल़ेककन अगि िाद में उज़्र खत्म हो र्जाए तो

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक वह नमाज़़े वज़
ु ू या गस्
ु ल कि क़े दोिािा पढ़़े औि

अगि उस़े उज़्र दिू होऩे स़े मायस


ू ी न हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि कज़ा

नमाज़ों क़े मलय़े तयम्मम


ु नहीं कि सकता।

725. र्जो शख़्स वज़


ु ू या गस्
ु ल न कि सकता हो उसक़े मलय़े र्जाइज़ है कक

मस्
ु तहि नमाज़ें हदन िात क़े उन नवाकफ़ल क़ी तिह जर्जनका वक़्त मअ
ु य्यन है

तयम्मम
ु कि क़े पढ़़े , ल़ेककन अगि मायस
ू न हो कक आखखि वक़्त तक उसका उज़्र

दिू हो र्जाय़ेगा तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक वह नमाज़ें उनक़े अव्वल़े वक़्त में

न पढ़़े ।

239
726. जर्जस शख़्स ऩे एहततयातन गस्
ु ल़े र्जिीिा औि तयम्मम
ु ककया हो अगि वह

गस्
ु ल औि तयम्मम
ु क़े िाद नमाज़ पढ़़े औि नमाज़ क़े िाद उसस़े हदस़े असगि

साहदि हो मसलन अगि वह प़ेशाि कि़े तो िाद क़ी नमाज़ों क़े मलय़े ज़रूिी है कक

वज़
ु ू कि़े औि अगि हदस नमाज़ स़े पहल़े साहदि हो तो ज़रूिी है कक उस नमाज़

क़े मलय़े भी वज़


ु ू कि़े ।

727. अगि कोई शख़्स पानी न ममलऩे क़ी वर्जह स़े या ककसी औि उज़्र क़ी

बिना पि तयम्मम
ु कि़े तो उज़्र क़े खत्म हो र्जाऩे क़े िाद उसका तयम्मम
ु िाततल

हो र्जाता है।

728. र्जो चीज़ें वज़


ु ू को िाततल किती हैं वह वज़
ु ू क़े िदल़े ककय़े हुए तयम्मम

को भी िाततल किती हैं। औि र्जो चीज़ें गस्


ु ल को िाततल किती है वह गस्
ु ल क़े

िदल़े ककय़े हुए तयम्मम


ु को भी िाततल किती हैं।

729. अगि कोई शख़्स गस्


ु ल न कि सकता हो औि चन्द गस्
ु ल उस पि वाजर्जि

हों तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक उन गस्


ु लों क़े िदल़े एक तयम्मम
ु कि़े औि

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उन गस्
ु लों में स़े हि एक क़े िदल़े एक तयम्मम

कि़े ।

730. र्जो शख़्स गस्


ु ल न कि सकता हो वह कोई ऐसा काम अंर्जाम द़े ना चाह़े

जर्जसक़े मलय़े गस्


ु ल वाजर्जि हो तो ज़रूिी है कक गस्
ु ल क़े िदल़े तयम्मम
ु कि़े औि

240
र्जो शख़्स वज़
ु ू न कि सकता हो अगि वह कोई ऐसा काम अंर्जाम द़े ना चाह़े

जर्जसक़े मलय़े वज़


ु ू वाजर्जि हो तो ज़रूिी है कक वज़
ु ू क़े िदल़े तयम्मम
ु कि़े ।

731. अगि कोई गस्


ु ल़े र्जनाित क़े िदल़े तयम्मम
ु कि़े तो नमाज़ क़े मलय़े वज़
ु ू

किना ज़रूिी नहीं है ल़ेककन अगि दस


ू ि़े गस्
ु लों क़े िदल़े तयम्मम
ु कि़े तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक वज़
ु ू भी कि़े औि अगि वह वज़
ु ू न कि सक़े तो वज़
ु ू क़े िदल़े

एक औि तयम्मम
ु कि़े ।

732. अगि कोई शख़्स र्जनाित क़े िदल़े तयम्मम


ु कि़े ल़ेककन िाद में उस़े

ककसी ऐसी सिू त स़े दो चाि होना पड़़े र्जो वज़


ु ू को िाततल कि द़े ती हो औि िाद

क़ी नमाज़ों क़े मलय़े गस्


ु ल भी न कि सकता हो तो ज़रूिी है कक वज़
ु ू कि़े औि

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक तयम्मम
ु भी कि़े । औि अगि वज़
ु ू न कि सकता हो

तो ज़रूिी है कक उसक़े िदल़े तयम्मम


ु कि़े औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उस

तयम्मम
ु को माफ़़ी जज़म्मा क़ी नीयत स़े िर्जा लाए (यानी र्जो कुछ म़ेि़े जज़म्म़े है

उस़े अंर्जाम द़े िहां हूाँ।

733. ककसी शख़्स को कोई काम अंर्जाम द़े ऩे मसलन नमाज़ पढ़ऩे क़े मलय़े वज़
ु ू

या गस्
ु ल क़े िदल़े तयम्मम
ु किना ज़रूिी हो तो अगि वह पहल़े तयम्मम
ु में वज़
ु ू

क़े िदल़े तयम्मम


ु या गस्
ु ल क़े िदल़े तयम्मम
ु क़ी नीयत कि़े औि दस
ू िा तयम्मम

अपऩे वज़ीफ़़े को अंर्जाम द़े ऩे क़ी नीयत स़े कि़े तो यह काफ़़ी है।

241
734. जर्जस शख़्स का फ़िीज़ा तयम्मम
ु हो अगि वह ककसी काम क़े मलय़े

तयम्मम
ु कि़े तो र्जि तक उसका तयम्मम
ु औि उज़्र िाक़ी है वह उन कामों को

कि सकता है र्जो वज़


ु ू या गस्
ु ल कि क़े किऩे चाहहयें ल़ेककन अगि उसका उज़्र

वक़्त क़ी तंगी हो या उसऩे पानी होत़े हुए नमाज़़े मैतयत या सोऩे क़े मलय़े

तयम्मम
ु ककया हो तो वह फ़कत उन कामों को अंर्जाम द़े सकता है जर्जनक़े मलय़े

उसऩे तयम्मम
ु ककया हो।

735. चन्द सिू तों में ि़ेहति यह है कक र्जो नमाज़़े इंसान ऩे तयम्मम
ु क़े साथ

पढ़ी हों उनक़ी कज़ा कि़े ः-

1. पानी क़े इस्त़ेमाल स़े डिता हो औि उसऩे र्जान िझ


ू कि अपऩे आप को र्जुनि

कि मलया हो औि तयम्मम
ु कि क़े नमाज़ पढ़ी हो।

2. यह र्जानत़े हुए या गुमान कित़े हुए कक उस़े पानी न ममल सक़ेगा अमदन

अपऩे आप को र्जुनि
ु कि मलया हो औि तयम्मम
ु कि क़े नमाज़ पढ़ी हो।

3. आखखि वक़्त तक पानी क़ी तलाश में न र्जाए औि तयम्मम


ु कि क़े नमाज़

पढ़़े औि िाद में उस़े पत़े चल़े कक तलाश किता तो उस़े पानी ममल र्जाता।

4. र्जान िझ
ू कि नमाज़ पढ़ऩे में ताखीि क़ी हो औि आखखि़े वक़्त में तयम्मम

कि क़े नमाज़ पढ़ी हो।

5. यह र्जानत़े हुए या गुमान कित़े हुए कक पानी नहीं ममल़ेगा र्जो पानी उसक़े

पास था उस़े चगिा हदया हो औि तयम्मम


ु कि क़े नमाज़ पढ़ी हो।

242
अह्कामे नमाज

नमाज़ दीनी अअमाल में स़े ि़ेहतिीन अमल है । अगि यह दिगाह़े इलाही में

किल
ू हो गई तो दस
ू िी इिादात भी किल
ू हो र्जायेंगी औि अगि यह किल
ू न हुई

तो दस
ू ि़े अअमाल भी किल
ू न होगें । जर्जस तिह इंसान अगि हदन िात में पांच

दफ़् आ नहि में नहाए धोए तो उसक़े िदन पि मैल कुचैल नहीं िहती उसी तिह

पांच वक़्ता नमाज़ भी इंसान को गुनाहों स़े पाक कि द़े ती है औि ि़ेहति है कक

इंसान नमाज़़े अव्वल़े वक़्त पढ़़े । र्जो शख़्स नमाज़ को मअमल


ू ी औि गैि अहम

समझ़े वह उस शख़्स क़ी मातनन्द है र्जो नमाज़ न पढ़ता हो। िसल


ू ़े अकिम

स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम ऩे फ़िमाया है कक, र्जो शख़्स नमाज़ को

अहम्मीयत न द़े औि उस़े मअमल


ू ी चीज़ समझ़े वह अज़ाि़े आखखित का मस्
ु तहक

है । एक हदन िसल
ू ़े अकिम स्वल्लाल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम मजस्र्जद में

तशिीफ़ फ़िमा थ़े कक एक शख़्स मजस्र्जद में दाखखल हुआ औि नमाज़ पढ़ऩे में

मश्गल
ू हो गया ल़ेककन रूकू औि सर्ज
ु द ू मक
ु म्मल तौि पि िर्जा न लाया, इस पि

हुज़ूि स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम ऩे फ़िमाया कक अगि यह शख़्स इस

हालत में मि र्जाए र्जिकक इसक़े नमाज़ पढ़ऩे का यह तिीका है तो यह हमाि़े दीन

पि नहीं मि़े गा। इस इंसान को ख़्याल िखना चाहहय़े कक नमाज़ र्जल्दी र्जल्दी न

पढ़़े औि नमाज़ क़ी हालत में खुदा क़ी याद में िह़े औि खुज़उ
ू व खुशउ
ू औि
243
संर्जीदगी स़े नमाज़ पढ़़े औि यह ख़्याल िख़े कक ककस हस्ती स़े कलाम कि िहा है

औि अपऩे आपको खद
ु ा वन्द़े आलम क़ी अज़मत औि िज़
ु गु ़ी क़े मक
ु ाबिल़े में

हक़ीि औि नाचीज़ समझ़े। अगि इंसान नमाज़ क़े दौिान पिू ी तिह इन िातों क़ी

तिफ़ मत
ु वज्र्जह िह़े तो वह अपऩे आप स़े ि़ेखिि हो र्जाता है र्जैसा कक नमाज़ क़ी

हालत में अमीरूल मोममनीन इमाम अली (अ0) क़े पांव स़े तीि खींच मलया गया

औि आप (अ0) को खिि तक न हुई। अलावा अज़ीं नमाज़ पढ़ऩे वाल़े को चाहहय़े

कक तौिा व इसततग़्जफ़ाि कि़े औि न मसफ़क उन गुनाहों को र्जो नमाज़ किल


ू होऩे में

माऩे होत़े हैं मसलन हसद, तकबििु , गीित, हिाम खाना, शिाि पीना औि खम्
ु स व

ज़कात का अदा न किना – तकक कि़े िजल्क तमाम गुनाह तकक कि द़े औि इसी

तिह ि़ेहति है कक र्जो काम नमाज़ का सवाि र्टात़े हैं वह न कि़े मसलन और्ंऩे

क़ी हालत में या प़ेशाि िोक कि नमाज़ क़े मलय़े न खड़ा हो औि नमाज़ क़े मौक़े

पि आस्मान क़ी र्जातनि न द़े ख़े औि वह काम कि़े र्जो नमाज़ का सवाि िढ़ात़े हैं

मसलन अक़ीक क़ी अंगठ


ू औि पाक़ीज़ा मलिास पहऩे, कंर्ी औि ममसवाक कि़े

नीज़ खश्ु िू लगाए।

वाजजब नमाजें

छः नमाज़़े वाजर्जि हैः-

1.िोज़ाना क़ी नमाज़ें,

244
2.नमाज़़े आयात,

3.नमाज़़े मैतयत,

4.खानए कअिा क़े वाजर्जि तवाफ़ क़ी नमाज़,

5.िाप क़ी कज़ा नमाज़ें र्जो िड़़े ि़ेट़े पि वाजर्जि हैं,

6.र्जो नमाज़़े इर्जािा, मन्नत, कसम औि अह्द स़े वाजर्जि हो र्जाती हैं औि

नमाज़़े र्जुमा िोज़ाना नमाज़ों में स़े है।

िोजाना की वाजजब नमाजें

िोज़ाना क़ी वाजर्जि नमाज़ें पांच है ः-

ज़ोहि औि अस्र (हि एक चाि िक् अत) मगरिि (तीन िक् अत) इशा (चाि

िक् अत) औि फ़ज्र (दो िक् अत) ।

736. इंसान सफ़ि में हो तो ज़रूिी है कक चाि िक् अती नमाज़ें उन शिाइत क़े

साथ र्जो िाद में ियान होंगी दो िक् अत पढ़़े ।

जोहि औि अस्र की नमाज का वक़्त

737. अगि लकड़ी या ककसी ऐसी ही सीधी चीज़ को जर्जस शाखखस कहत़े हैं

हमवाि ज़मीन में गाड़ा र्जाए तो सबु ह क़े वक़्त र्जि सिू त तल
ु ह
ू उ होता है उसका
245
साया मगरिि क़ी तिफ़ पड़ता है औि र्जंू र्जंू सिू र्ज ऊंचा होता र्जाता है उसका साया

र्टता र्जाता है औि हमाि़े शहि़े में ज़ोहि़े शिई क़े वक़्त कमी क़े आखखिी दिर्ज़े पि

पहुंच र्जाता है औि ज़ोहि गज़


ु िऩे क़े िाद उसका साया मशरिक क़ी तिफ़ हो र्जाता

है औि र्जंू र्जंू सिू र्ज मगरिि क़ी तिफ़ ढलता है साया िढ़ता र्जाता है । इस बिना

पि र्जि साया कमी क़े आखखिी दिर्ज़े तक पहुंच़े औि दोिािा िढ़ऩे लग़े तो पता

चलता है कक ज़ोहि़े शिई का वक़्त हो गया है । ल़ेककन िाज़ शहिों मसलन मक्कए

मक
ु िक मा में र्जहां िाज़ औकात ज़ोहि क़े वक़्त साया बिल्कुल खत्म हो र्जाता है र्जि

साया दोिािा ज़ाहहि होता है तो मालम


ू हो र्जाता है कक ज़ोहि का वक़्त हो गया है।

738. ज़ोहि औि अस्र क़ी नमाज़ का वक़्त ज़वाल़े आफ़्ताि स़े गुरूि़े आफ़्ताि

तक है ल़ेककन अगि को शख़्स र्जान िझ


ू कि अस्र क़ी नमाज़ को ज़ोहि क़ी नमाज़

पहल़े पढ़़े तो उसक़ी अस्र क़ी नमाज़ िाततल है मसवाए इसक़े कक आखखिी वक़्त तक

एक नमाज़ स़े ज़्यादा पढ़ऩे का वक़्त िाक़ी न हो क्योंकक ऐसी सिू त में अगि उसऩे

ज़ोहि क़ी नमाज़ नहीं पढ़ी तो उसक़ी ज़ोहि क़ी नमाज़ कज़ा होगी औि उस़े चाहहय़े

कक अस्र क़ी नमाज़ पढ़़े औि अगि कोई शख़्स उस वक़्त स़े पहल़े गलत फ़हमी क़ी

बिना पि अस्र क़ी पिू ी नमाज़ ज़ोहि क़ी नमाज़ स़े पहल़े पढ़ ल़े तो उसक़ी नमाज़

सहीह है औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस नमाज़ को नमाज़़े ज़ोहि किाि द़े

औि माकफ़जज़्ज़म्मा क़ी नीयत स़े चाि िक् अत औि पढ़़े ।

246
739. अगि कोई शख़्स ज़ोहि क़ी नमाज़ पढ़ऩे स़े पहल़े गलती स़े अस्र क़ी

नमाज़ पढ़ऩे लग र्जाए औि नमाज़ क़े दौिान उस़े पत़े चल़े कक उसस़े गलती हुई है

तो उस़े चाहहय़े कक नीयत नमाज़़े ज़ोहि क़ी र्जातनि ि़ेि द़े । यानी नीयत कि़े कक

र्जो कुछ मैं पढ़ चक


ु ा हूाँ औि पढ़ िहा हूाँ औि पढ़ूंगा वह तमाम क़ी तमाम नमाज़़े

ज़ोहि है औि र्जि नमाज़ खत्म कि़े तो उसक़े िाद अस्र क़ी नमाज़ पढ़़े ।

नमाजे जुमा के अहकामीः-

740. र्जुमा क़ी नमाज़ सबु ह क़ी नमाज़ क़ी तिह दो िक् अत क़ी है । इसमें औि

सबु ह क़ी नमाज़ में फ़कक यह है कक इस नमाज़ स़े पहल़े दो खुत्ि़े भी हैं। र्जुमा क़ी

नमाज़ वाजर्जि़े तख ्ईिी है । इसस़े मिु ाद यह है कक र्जुमा क़े हदन मक


ु ल्लफ़ को

इजख़्तयाि है कक अगि नमाज़़े र्जुमा क़े शिाइत मौर्जूद हों तो र्जुमा क़ी नमाज़ पढ़़े

या ज़ोहि क़ी नमाज़ पढ़़े । मलहाज़ा अगि इंसान र्जम


ु ा क़ी नमाज़ पढ़़े तो वह ज़ोहि

क़ी नमाज़ क़ी ककफ़ायत किती है (यानी किि ज़ोहि क़ी नमाज़ पढ़ना ज़रूिी नहीं)

जुमा की नमाज वाजजब होने की चन्द शतें हैं-

(अव्वल) वक़्त का दाखखल होना र्जो कक ज़वाल़े आफ़्ताि है औि उसका वक़्त़े

अव्वल ज़वाल़े उफ़ी है । पस र्जि भी उस़े ताखीि हो र्जाए, उसका वक़्त खत्म हो

र्जाता है औि किि ज़ोहि क़ी नमाज़ अदा किनी चाहहय़े।


247
(दोम) नमाज़ पढ़ऩे वालों क़ी तादाद र्जो कक िमअ इमाम पांच अफ़्राद है औि

र्जि तक पांच मस
ु लमान इकट्ठ़े न हों र्जम
ु ा क़ी नमाज़ वाजर्जि नहीं होती।

(सोम) इमाम का र्जाम़ेए शिाइत़े इमामत होना – मसलन अदालत वगैिा र्जो कक

इमाम़े र्जमाअत में मोअतिि हैं औि नमाज़़े र्जमाअत क़ी िह्स में िताया र्जाय़ेगा।

अगि यह शतक पिू ी न हो तो र्जुमा क़ी नमाज़ वाजर्जि नहीं होती।

जुमा की नमाज के सहीह होने की चन्द शतें हैं –

(अव्वल) िा र्जमाअत पढ़ा र्जाना। पस यह नमाज़ फ़ुिादा अदा किना सहीह नहीं

औि र्जि मक़्
ु तदी नमाज़ क़ी दस
ू िी िक् अत क़े रूकू स़े पहल़े इमाम क़े साथ शाममल

हो र्जाए तो उसक़ी नमाज़ सहीह है औि वह उस नमाज़ पि एक िक् अत का

इज़ाफ़ा कि़े गा औि अगि वह रूकू में इमाम को पा ल़े (यानी नमाज़ में शाममल हो

र्जाए) तो उसक़ी नमाज़ का सहीह होना मजु श्कल है औि एहततयात़े तकक नहीं होती

(यानी उस़े ज़ोहि क़ी नमाज़ पढ़नी चाहहय़े)।

(दोम) नमाज़ स़े पहल़े दो खुत्ि़े पढ़ना। पहल़े खुत्ि़े में खतीि अल्लाह तअला क़ी

हम्द व सना ियान कि़े नीज़ नमाजज़यों को तक़्वा औि पिह़े ज़गािी क़ी तल्क़ीन

कि़े । किि कुिआऩे मर्जीद का एक छोटा सिू ा पढ़ कि (ममम्िि पि लम्हा दो लम्हा)

िैठ र्जाए औि किि खड़ा हो औि दोिािा अल्लाह तअला क़ी हम्द व सना िर्जा

लाए। किि हज़ित िसल


ू ़े अकिम सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम औि

248
आइम्मा ए ताहहिीन (अ0) पि दरू
ु द भ़ेर्ज़े औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक

मोममनीन औि मोममनात क़े मलय़े इजस्तग़्जफ़ाि (िजख़्शश क़ी दआ


ु ) कि़े । ज़रूिी है कक

खत्ु ि़े नमाज़ स़े पहल़े पढ़़े र्जायें। पस अगि नमाज़ दो खत्ु िों स़े पहल़े शरू
ू कि ली

र्जाए तो सहीह नहीं होगी औि ज़वाल़े आफ़्ताि स़े पहल़े खुत्ि़े पढ़ऩे में इश्काल है

औि ज़रूिी है कक र्जो शख़्स खुत्ि़े पढ़़े वह खुत्ि़े पढ़ऩे क़े वक़्त खड़ा हो। मलहाज़ा

अगि वह िैठ कि खुत्ि़े पढ़़े गा तो सहीह नहीं होगा औि दो खुत्िों क़े दिममयान

िैठकि फ़ामसला द़े ना लाजज़म औि वाजर्जि है । औि ज़रूिी है कक मख़्


ु तसि लम्हों क़े

मलय़े िैठ़े। औि यह भी ज़रूिी है कक इमाम़े र्जमाअत औि खतीि यानी र्जो शख़्स

खुत्ि़े पढ़़े – एक ही शख़्स हो, औि अक़्वा यह है कक खुत्ि़े में तहाित शतक नहीं है

अगिच़े इजश्तिात (यानी शतक होना) अहवत है । औि एहततयात क़ी बिना पि अल्लाह

तअला क़ी हम्द व सना इसी तिह पैगम्िि़े अकिम (स0) औि अइम्मतुल

मस
ु मलमीन पि अििी ज़िान म़े दरू
ु द भ़ेर्जना मोअत्िि है औि उसस़े ज़्यादा में

अििी मोअत्िि नहीं है । िजल्क अगि हाजज़िीन क़ी अक्सिीयत अििी न र्जानती हो

तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक तक़्वा क़े िाि़े में वअज़ व नसीहत कित़े वक़्त र्जो

ज़िान हाजज़िीन र्जानत़े हैं उसी तक़्वा क़ी नसीहत कि़े ।

(सोम) यह कक र्जुमा क़ी दो नमाज़ों क़े दिममयान एक फ़सकख स़े कम फ़ामसला न

हो। पस र्जि र्जुमा क़ी दस


ू िी नमाज़ एक फ़सकख स़े कम फ़ामसल़े पि काइम हो औि

दो नमाज़़े वयक वक़्त पढ़ी र्जायें तो दोनों िाततल होंगी औि अगि एक नमाज़ को

249
दस
ू िी नमाज़ पि सिकत हामसल हो ख़्वाह वह तक्िीितुल एहिाम क़ी हद तक ही

क्यों न हो तो वह (नमाज़ जर्जस़े सिकत हामसल हो) सहीह होगी औि दस


ू िी िाततल

होगी, ल़ेककन अगि नमाज़ क़े िाद पता चल़े कक एक फ़सकख स़े कम फ़ामसल़े पि

र्जुमा क़ी एक औि नमाज़ इसस़े पहल़े या इसक़े साथ साथ काइम हुई थी तो ज़ोहि

क़ी नमाज़ वाजर्जि नहीं होगी औि इसस़े कोई फ़कक नहीं पड़ता कक इस िात का

इल्म वक़्त में हो या वक़्त क़े िाद हो। औि र्जुमा क़ी नमाज़ का काइम किना

मज़्कूिा फ़ामसल़े क़े अन्दि र्जुमा क़ी दस


ू िी नमाज़ का काइम किऩे में उस वक़्त

माऩे होता है र्जि वह नमाज़ खद


ु सहीह औि र्जाम़ेउश्शिाइत हो वनाक उसक़े माऩे

होऩे में इश्कल है। औि ज़्यादा एहततमाल उसक़े माऩे न होऩे का है।

741. र्जि र्जुमा क़ी एक ऐसी नमाज़ काइम हो र्जो शिाइत को पिू ी किती हो

औि नमाज़ काइम किऩे वाला इमाम़े वक़्त या उसका नायि हो तो उस सिू त में

नमाज़़े र्जुमा में हाजज़ि होना वाजर्जि है। औि उस सिू त क़े अलावा हाजज़ि होना

वाजर्जि नहीं है । पहली सिू त में हाजज़िी क़े वर्ज


ु ि ू क़े मलय़े चन्द चीज़ें मोअतिि हैः-

(अव्वल) मक
ु ल्लफ़ मदक हो – औि र्जम
ु ा क़ी नमाज़ में हाजज़ि होना औितों क़े

मलय़े वाजर्जि नहीं है ।

(दोम) आज़ाद होना – मलहाज़ा गल


ु ामों क़े मलय़े र्जुमा क़ी नमाज़ में हाजज़ि होना

वाजर्जि नहीं है ।

250
(सोम) मक
ु ़ीम होना – मलहाज़ा मस
ु ाकफ़ि क़े मलय़े र्जुमा क़ी नमाज़ में शाममल

होना वाजर्जि नहीं है । उस मस


ु ाकफ़ि में जर्जसका फ़िीज़ा कस्र हो औि जर्जस मस
ु ाकफ़ि

नें इमामत क़ी कस्द ककया हो औि उसका फ़िीज़ा पिू ी नमाज़ पढ़ना हो कोई फ़कक

नहीं है।

(चहारुम) िीमाि औि अंधा न होना – मलहाज़ा बिमाि औि अंध़े शख़्स पि र्जुमा

क़ी नमाज़ वाजर्जि नहीं है।

(पंर्जुम) िढ़
ू ा न होना – मलहाज़ा िढ़
ू ों पि यह नमाज़ वाजर्जि नहीं है ।

(शशम
ु ) यह कक खद
ु इंसान क़े औि उस र्जगह क़े दिममयान र्जहां र्जम
ु अ
ु क़ी

नमाज़ काइम हो दो फ़सकख स़े ज़्यादा फ़ामसला न हो औि र्जो शख़्स दो फ़सकख क़े

मसि़े पि हो उसक़े मलय़े हाजज़ि होना वाजर्जि है औि इसी तिह वह शख़्स जर्जसक़े

मलय़े र्जुमा क़ी नमाज़ में िारिश या सख़्त सदी क़ी वर्जह स़े हाजज़ि होना मजु श्कल

या दश्ु वाि हो तो हाजज़ि होना वाजर्जि नहीं है ।

742. चन्द अहकाम जर्जनका तअल्लक


ु र्जुमा क़ी नमाज़ स़े है यह है ः-

(अव्वल) जर्जस शख़्स पि र्जुमा क़ी नमाज़ साककत हो गई हो औि उसका उस

नमाज़ में हाजज़ि होना वाजर्जि न हो उसक़े मलय़े र्जाइज़ है कक ज़ोहि क़ी नमाज़

अव्वल़े वक़्त में अदा किऩे क़ी र्जल्दी कि़े ।

251
(दोम) इमाम को खुत्ि़े क़े दौिान िातें किना मकरूह है ल़ेककन अगि िातों क़ी

वर्जह स़े खत्ु िा सन


ु ऩे में रूकावट हो तो एहततयात क़ी बिना पि िातें किना र्जाइज़

नहीं है। औि र्जो तादाद नमाज़़े र्जम


ु ा क़े वाजर्जि होऩे क़े मलय़े मोअतिि है उसमें

औि उसस़े ज़्यादा क़े दिममयान कोई फ़कक नहीं है।

(सोम) एहततयात क़ी बिना पि दोनों खुत्िों का तवज्र्जोह स़े सन


ु ना वाजर्जि है

ल़ेककन र्जो लोग खुत्िों क़े मअना न समझत़े हों उनक़े मलय़े तवज्र्जोह स़े सन
ु ा

वाजर्जि नहीं है ।

(चहारुम) र्जम
ु ा क़े हदन क़ी दस
ू िी अज़ान बिद्अत है औि यह वही अज़ान है

जर्जस़े आम तौि पि तीसिी अज़ान कहा र्जाता है ।

(पंर्जुम) ज़ाहहि यह है कक र्जि इमाम़े र्जुमा खुत्िा पढ़ िहा हो तो हाजज़ि होना

वाजर्जि नहीं है ।

(शशम
ु ) र्जि र्जुमा क़ी नमाज़ क़े मलय़े अज़ान दी र्जा िही हो तो खिीद व

फ़िोख़्त उस सिू त में र्जिकक वह नमाज़ में माऩे हो हिाम है औि अगि ऐसा न हो

तो किि हिाम नहीं है औि अज़्हि यह है कक खिीद व फ़िोख़्त हिाम होऩे क़ी सिू त

में भी मआ
ु मला िाततल नहीं होता।

(हफ़्तुम) अगि ककसी शख़्स पि र्जुमा क़ी नमाज़ में हाजज़ि होना वाजर्जि हो औि

वह उस नमाज़ को तकक कि़े औि ज़ोहि क़ी नमाज़ िर्जा लाए तो अज़्हि यह है कक

उसक़ी नमाज़ सहीह होगी।

252
मग़्रिब औि इशा की नमाज का वक़्त

743. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक र्जि तक मचिक क़ी र्जातनि क़ी वह सख


ु ़ी र्जो

सिू र्ज गरू


ु ि होऩे क़े िाद ज़ाहहि होती है इंसान क़े सि पि स़े न गज़
ु ि र्जाए वह

मचिि क़ी नमाज़ न पढ़़े ।

744. मचिि औि इशा क़ी नमाज़ का वक़्त मख़्


ु ताि शख़्स क़े मलय़े आधी िात

तक िहता है ल़ेककन जर्जन लोंगो को कोई उज़्र हो मसलन भल


ू र्जाऩे क़ी वर्जह स़े

या नीन्द या हैज़ या उन र्जैस़े दस


ू ि़े उमिू क़ी वर्जह स़े आधी िात स़े पहल़े नमाज़

पढ़ सकत़े हों तो उनक़े मलय़े मचिि औि इशा क़ी नमाज़ का वक़्त फ़ज्र तुलउ
ू होऩे

तक िाक़ी िहता है। ल़ेककन इन दोनों नमाज़ों क़े दिममयान मत


ु वज्र्जह होऩे क़ी

सिू त में तितीि मोअतिि है यानी इशा क़ी नमाज़ को र्जान िझ


ू कि मचिि क़ी

नमाज़ स़े पहल़े पढ़़े तो िाततल है । ल़ेककन अगि इशा क़ी नमाज़ अदा किऩे क़ी

ममक़्दाि स़े ज़्यादा वक़्त िाक़ी न िहा हो तो उस सिू त में लाजज़म है कक इशा क़ी

नमाज़ को मचिि क़ी नमाज़ स़े पहल़े पढ़़े ।

745. अगि कोई शख़्स गलत फ़हमी क़ी बिना पि इशा क़ी नमाज़ मचिि क़ी

नमाज़ स़े पहल़े पढ़ ल़े औि नमाज़ क़े िाद इस अम्र क़ी र्जातनि मत
ु वज्र्जह हो तो

उसक़ी नमाज़ सहीह है औि ज़रूिी है कक मचिि क़ी नमाज़ उसक़े िाद पढ़़े ।

253
746. अगि कोई शख़्स मचिि क़ी नमाज़ पढ़ऩे स़े पहल़े भल
ू कि इशा क़ी नमाज़

पढ़ऩे में मश्गल


ू हो र्जाए औि नमाज़ क़े दौिान उस़े पता चल़े कक उसऩे गलती क़ी

है औि अभी वह चौथी िक् अत क़े रूकू तक न पहुंचा हो तो ज़रूिी है कक मचिि

क़ी तिफ़ नीयत ि़ेि ल़े औि नमाज़ को तमाम कि़े औि िाद में इशा क़ी नमाज़

पढ़़े औि अगि चौथी िक् अत क़े रूकू में र्जा चक


ु ा हो तो उस़े इशा क़ी नमाज़ किाि

द़े औि खत्म कि़े औि िाद में मचिि क़ी नमाज़ िर्जा लाए।

747. इशा क़ी नमाज़ का वक़्त मख़्


ु ताि शख़्स क़े मलय़े आधी िात है औि िात

का हहसाि सिू र्ज गरू


ु ि होऩे क़ी इजबतदा स़े तल
ु ए
ू फ़ज्र तक है ।

748. अगि कोई शख़्स इजख़्तयािी हालत में मचिि औि इशा क़ी नमाज़ आधी

िात तक न पढ़़े तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक अज़ाऩे सबु ह स़े

पहल़े कज़ा औि अदा क़ी नीयत ककय़े िगैि इन नमाज़ों को पढ़़े ।

सुब्ह की नमाज का वक़्त

749. सबु ह क़ी अज़ान क़े किीि मचश्रक क़ी तिफ़ स़े एक सफ़ैदी ऊपि उठती है

जर्जस़े फ़ज्ऱे अव्वल कहा र्जाता है । र्जि यह सफ़ैदी िैल र्जाए तो वह फ़ज्ऱे दोम औि

सबु ह क़ी नमाज़ का अव्वल़े वक़्त है औि सबु ह क़ी नमाज़ का आखखिी वक़्त सिू र्ज

तनकलऩे तक है।

254
औकाते नमाज के अहकाम

750. इंसान नमाज़ में उस वक़्त मश्गल


ू हो सकता है र्जि उस़े यक़ीन हो र्जाए

कक वक़्त दाखखल हो गया है या दो आहदल मदक वक़्त दाखखल होऩे क़ी खिि दें

िजल्क ककसी वक़्त शनास शख़्स क़ी र्जो काबिल़े इत्मीनान हो अज़ान या वक़्त

दाखखल होऩे क़े िाि़े में गवाही पि भी इजक़्तफ़ा ककया र्जा सकता है ।

751. अगि कोई शख़्स ककसी ज़ाती उज़्र मसलन िीनाई न होऩे या कैद खाऩे में

होऩे क़ी वर्जह स़े नमाज़ का अव्वल वक़्त दाखखल होऩे का यक़ीन न कि सक़े तो

ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़ऩे में ताखीि कि़े हत्ता क़ी उस़े यक़ीन या इत्मीनान हो र्जाए

कक वक़्त दाखखल हो गया है । इसी तिह अगि वक़्त दाखखल होऩे का यक़ीन होऩे

में ऐसी चीज़ माऩे हो र्जो मसलन िादल, गि


ु ाि या इन र्जैसी दस
ू िी चीज़ों (मसलन

धंध
ु ) क़ी तिह उमम
ू न प़ेश आती हो तो एहहतयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उसक़े

मलय़े भी यही हुक्म है।

752. अगि मज़्कूिा िाला तिीक़े स़े ककसी शख़्स को इत्मीनान हो र्जाए कक

नमाज़ का वक़्त हो गया है औि वह नमाज़ में मश्गल


ू हो र्जाए ल़ेककन नमाज़ क़े

िाद उस़े पता चल़े कक अभी वक़्त दाखखल नहीं हुआ तो उसक़ी नमाज़ िाततल है

औि अगि नमाज़ क़े िाद पता चल़े कक उसऩे सािी नमाज़ वक़्त स़े पहल़े पढ़ी तो

उसक़े मलय़े भी यही हुक्म है ल़ेककन अगि नमाज़ क़े दौिान उस़े पता चल़े कक वक़्त

255
दाखखल हो गया है या नमाज़ क़े िाद पता चल़े कक नमाज़ पढ़त़े हुए वक़्त दाखखल

हो गया था तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

753. अगि कोई शख़्स इस अम्र क़ी र्जातनि मत


ु वज्र्जह न हो कक वक़्त क़े

दाखखल होऩे का यक़ीन कि क़े नमाज़ में मश्गल


ू होना चाहहय़े ल़ेककन नमाज़ क़े

िाद उस़े मालम


ू हो कक उसऩे सािी नमाज़ वक़्त में पढ़ी है तो उसक़ी नमाज़ सहीह

है औि अगि उस़े पता चल र्जाए कक उसऩे वक़्त स़े पहल़े नमाज़ पढ़ी है या उस़े

पता चल़े न चल़े कक वक़्त में पढ़ी है या वक़्त स़े पहल़े पढ़ी है तो उसक़ी नमाज़

िाततल है। िजल्क अगि नमाज़ क़े िाद उस़े पता चल़े कक नमाज़ क़े दौिान वक़्त

दाखखल हो गया था ति भी उस़े चाहहय़े क़ी नमाज़ को दोिािा पढ़़े ।

754. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक वक़्त दाखखल हो गया है औि नमाज़

पढ़ऩे लग़े ल़ेककन नमाज़ क़े दौिान शक कि़े कक वक़्त दाखखल हुआ है या नहीं तो

उसक़ी नमाज़ िाततल है ल़ेककन अगि नमाज़ क़े दौिान उस़े यक़ीन हो कक वक़्त

दाखखल हो गया है औि शक कि़े क़ी जर्जतनी नमाज़ पढ़ी है वह वक़्त पि पढ़ी है

या नहीं तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

755. अगि नमाज़ का वक़्त इतना तंग हो कक नमाज़ क़े िाद मस्
ु तहि अफ़् आल

अदा किऩे स़े नमाज़ क़ी कुछ ममक़्दाि वक़्त क़े िाद पढ़नी पड़ती हो तो ज़रूिी है

कक वह मस्
ु तहि उमिू को छोड़ द़े मसलन अगि कुनत
ू पढ़ऩे क़ी वर्जह स़े नमाज़

का कुछ हहस्सा वक़्त क़े िाद पढ़ना पड़ता हो तो उस़े चाहहय़े क़ी कुनत
ू न पढ़़े ।

256
756. जर्जस शख़्स क़े पास नमाज़ क़ी फ़कत एक िक् आत अदा किऩे का वक़्त

हो उस़े चाहहय़े कक नमाज़ अदा क़ी नीयत स़े पढ़़े अलित्ता उस़े र्जान िझ
ू कि नमाज़

में इतनी ताखीि नहीं किनी चाहहय़े।

757. र्जो शख़्स सफ़ि में न हो अगि उसक़े पास गरू


ु ि़े आफ़ताि तक पांच

िक् अत नमाज़ पढ़ऩे क़े अन्दाज़़े क़े मत


ु ाबिक वक़्त हो तो उस़े चाहहय़े कक ज़ोहि

औि अस्र क़ी दोनों नमाज़़े पढ़़े ल़ेककन अगि उसक़े पास उसस़े कम वक़्त हो तो

उस़े चाहहय़े कक मसफ़क अस्र क़ी नमाज़ पढ़़े औि िाद में ज़ोहि क़ी नमाज़ क़ी कज़ा

कि़े औि इसी तिह अगि आधी िात तक उसक़े पास पांच िक् अत पढ़ऩे क़े अन्दाज़़े

क़े मत
ु ाबिक वक़्त हो तो उस़े चाहहय़े क़ी मिीि औि इशा क़ी नमाज़ पढ़़े औि

अगि वक़्त इसस़े कम हो तो उस़े चाहहय़े कक मसफ़क इशा क़ी नमाज़ पढ़़े औि िाद

में अदा औि कज़ा क़ी नीयत ककय़े िगैि नमाज़़े मचिि पढ़़े ।

758. र्जो शख़्स सफ़ि में हो अगि गरू


ु ि़े आफ़ताि तक उसक़े पास तीन िक् अत

नमाज़ पढ़ऩे क़े अन्दाज़़े क़े मत


ु ाबिक वक़्त हो तो उस़े चाहहय़े कक ज़ोहि औि अस्र

क़ी नमाज़ पढ़़े औि अगि इस स़े कम वक़्त हो तो उस़े चाहहय़े कक मसफ़क अस्र क़ी

नमाज़ पढ़़े औि ज़ोहि क़ी कज़ा कि़े औि अगि आधी िात तक उसक़े पास चाह

िक् अत नमाज़ पढ़ऩे क़े मत


ु ाबिक वक़्त हो तो उस़े चाहहय़े कक मगरिि औि इशा

क़ी नमाज़ पढ़़े औि अगि नमाज़ क़े तीन िक् अत क़े ििािि वक़्त हो तो उस़े

चाहहय़े कक पहल़े इशा क़ी नमाज़ पढ़़े औि िाद में मगरिि क़ी नमाज़ िर्जा लाए

257
ताकक नमाज़ मगरिि क़ी एक िक् आत वक़्त में अंर्जाम दी र्जाए, औि अगि नमाज़

क़ी तीन िक् अत स़े कम वक़्त िाक़ी हो तो ज़रूिी है कक पहल़े इशा क़ी नमाज़ पढ़़े

औि िाद में मगरिि क़ी नमाज़ अदा औि कज़ा क़ी नीयत ककय़े िगैि पढ़़े औि

अगि इशा क़ी नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद मालम


ू हो र्जाए कक आधी िात होऩे में एक

िक् आत या उसस़े ज़्यादा िक् अत़े पढऩे क़े मलय़े वक़्त िाक़ी है तो उस़े चाहहय़े क़ी

मगरिि क़ी नमाज़ फ़ौिन अदा क़ी नीयत स़े िर्जा लाए।

759. इंसान क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक नमाज़ अव्वल़े वक़्त में पढ़़े औि इसक़े

मत
ु ाबिक िहुत ज़्यादा ताक़ीद क़ी गई है औि जर्जतना अव्वल़े वक़्त क़े किीि हो

ि़ेहति है मामसव इसक़े कक उसमें ताखीि ककसी वर्जह ि़ेहति हो मसलन इसमलय़े

इजन्तज़ाि कि़े कक नमाज़ र्जमाअत क़े साथ पढ़़े ।

760. र्जि इंसान क़े पास कोई ऐसा उज़्र हो कक अगि अव्वल़े वक़्त में नमाज़

पढ़ना चाह़े तो तयम्मम


ु कि क़े नमाज़ पढ़ऩे पि मर्जििू हो औि उस़े इल्म हो कक

उसका उज़्र आखखि़े वक़्त तक िाक़ी िह़े गा या आखखि़े वक़्त तक उज़्र क़े दिू होऩे स़े

मायस
ू हो तो वह अव्वल़े वक़्त में तयम्मम
ु कि क़े नमाज़ पढ़ सकता है ल़ेककन

अगि मायस
ू न हो तो ज़रूिी है कक उज़्र दिू होऩे तक इजन्तज़ाि कि़े औि अगि

उसका उज़्र दिू न हो तो आखखि़े वक़्त में नमाज़ पढ़़े औि यह ज़रूिी नहीं कक इस

कदि इजन्तज़ाि कि़े कक नमाज़ क़े मसफ़क वाजर्जि अफ़् आल अन्र्जाम द़े सक़े िजल्क

उसक़े पास मस्


ु तहिात़े नमाज़ मसलन अज़ान, इकामत औि कुनत
ू क़े मलय़े भी

258
वक़्त हो तो तयम्मम
ु क़े अलावा दस
ू िी मर्जिरू ियों क़ी सिू त में अगिच़े उज़्र दिू

होऩे स़े मायस


ू न हुआ हो उसक़े मलय़े र्जाइज़ है कक अव्वल़े वक़्त में नमाज़ पढ़़े ।

ल़ेककन अगि वक़्त क़े दौिान उसका उज़्र दिू हो र्जाए तो ज़रूिी है कक दोिािा

नमाज़ पढ़़े ।

761. अगि एक शख़्स नमाज़ क़े मसाइल औि शक्क़ीयात औि सहवीयात का

इल्म न िखता हो औि उस़े इस िात का एहततमाल हो कक उस़े नमाज़ क़े दौिान

इन मसाइल में स़े कोई न कोई मसअला प़ेश आय़ेगा औि उसक़े याद न किऩे क़ी

वर्जह स़े ककसी लाजज़मी हुक्म क़ी मख


ु ामलफ़त होती हो तो ज़रूिी है कक उन्हें

सीखऩे क़े मलय़े नमाज़ को मव


ु ख़्खि कि द़े ल़ेककन अगि उस़े उम्मीद हो कक सहीह

तिीक़े स़े नमाज़ अंर्जाम द़े सकता है औि अव्वल़े वक़्त में नमाज़ पढ़ऩे में मश्गल

हो र्जाए पस अगि नमाज़ में कोई ऐसा मस ्अला न प़ेश आए जर्जसका हुक्म न

र्जानता हो तो उसक़ी नमाज़ सहीह है। औि अगि कोई ऐसा मस ्अला प़ेश आ र्जाए

जर्जसका हुक्म न र्जानता हो तो उसक़े मलय़े र्जाइज़ है कक जर्जन दो िातों का

एहततमाल हो उनमें स़े एक पि अमल कि़े औि नमाज़ खत्म कि़े ताहम ज़रूिी है

कक नमाज़ क़े िाद मस ्अला पछ


ू ़े औि अगि उसक़ी नमाज़ िाततल साबित हो तो

दोिािा पढ़़े औि अगि सहीह हो तो दोिािा पढ़ना लाजज़मी नहीं है।

762. अगि नमाज़ का वक़्त वसी हो औि कज़क ख़्वाह भी अपऩे कज़क का

मत
ु ालिा कि़े तो अगि मजु म्कन हो तो ज़रूिी है कक पहल़े कज़ाक अदा कि़े औि िाद

259
में नमाज़ पढ़़े । औि अगि कोई दस
ू िा वाजर्जि काम प़ेश आ र्जाए जर्जस़े फ़ौिन िर्जा

लाना ज़रूिी हो तो उसक़े मलय़े भी यही हुक्म है । मसलन अगि द़े ख़े कक मजस्र्जद

नजर्जस हो गई है तो ज़रूिी है कक पहल़े मजस्र्जद को पाक कि़े औि िाद में नमाज़

पढ़़े औि अगि मज़कूिा िाला दोनों सिू तों में पहल़े नमाज़ पढ़़े तो गुनाह का

मत
ु कक कि होगा ल़ेककन उसक़ी नमाज़ सहीह होगी।

वह नमाजें जो तित़ीब से पढ़ऩी जरूिी हैं

763. ज़रूिी है कक इंसान नमाज़़े अस्र नमाज़़े ज़ोहि क़े िाद औि नमाज़़े इशा

नमाज़़े मगरिि क़े िाद पढ़़े औि अगि र्जानिझ


ू कि नमाज़़े अस्र नमाज़़े ज़ोहि स़े

पहल़े पढ़़े औि नमाज़़े इशा नमाज़़े मगरिि स़े पहल़े पढ़़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल

है ।

764. अगि कोई शख़्स नमाज़़े ज़ोहि क़ी नीयत स़े नमाज़ पढ़नी शरू
ु कि़े तो

नमाज़ क़े दौिान उस़े याद आए कक नमाज़़े ज़ोहि पढ़ चक


ु ा है तो वह नीयत को

नमाज़़े अस्र क़ी र्जातनि नहीं मोड़ सकता िजल्क ज़रूिी है कक नमाज़ तोड़ कि

नमाज़़े अस्र पढ़़े औि मगरिि औि इशा में भी यही सिू त है।

765. अगि नमाज़़े अस्र क़े दौिान ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक उसऩे नमाज़़े

ज़ोहि नहीं पढ़ी है औि वह नीयत को नमाज़़े ज़ोहि क़ी तिफ़ मोड़ द़े तो र्जंू ही उस़े

याद आए कक वह नमाज़़े ज़ोहि पढ़ चक


ु ा है तो नीयत को नमाज़़े अस्र क़ी तिफ़

260
मोड़ द़े औि नमाज़ मक
ु म्मल कि़े । ल़ेककन अगि उसऩे नमाज़ क़े िाज़ अज्ज़ा को

ज़ोहि क़ी नीयत स़े अंर्जाम न हदया हो या ज़ोहि क़ी नीयत स़े अंर्जाम हदया हो तो

उस सिू त में उन अज्ज़ा को अस्र क़ी नीयत स़े दोिािा अंर्जाम द़े । ल़ेककन अगि वह

र्जुज़ एक िक् अत का रूकू हो या दो सज्द़े हों तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि

नमाज़ िाततल है ।

766. अगि ककसी शख़्स को नमाज़़े अस्र क़े दौिान शक हो कक उसऩे नमाज़़े

ज़ोहि पढ़ी है या नहीं तो ज़रूिी है कक अस्र क़ी नीयत स़े नमाज़ तमाम कि़े औि

िाद में ज़ोहि क़ी नमाज़ पढ़़े । ल़ेककन अगि वक़्त इतना कम हो कक नमाज़ पढ़ऩे

क़े िाद सिू र्ज डूि र्जाता हो औि एक िक् अत नमाज़ क़े मलय़े भी वक़्त िाक़ी न

िचता हो तो लाजज़म नहीं है कक नमाज़़े ज़ोहि क़ी कज़ा पढ़़े ।

767. अगि ककसी को नमाज़़े इशा क़े िाद शक हो र्जाए कक उसऩे मगरिि पढ़ी

है या नहीं तो ज़रूिी है कक इशा क़ी नीयत स़े नमाज़ खत्म कि़े औि िाद में

मगरिि क़ी नमाज़ पढ़़े । ल़ेककन अगि वक़्त इतना कम हो कक नमाज़ खत्म होऩे

क़े िाद आधी िात हो र्जाती हो औि एक िक् अत नमाज़ का वक़्त भी न िचता हो

तो नमाज़़े मगरिि क़ी कज़ा उस पि लाजज़म नहीं है ।

768. अगि कोई शख़्स नमाज़़े इशा क़ी चौथी िक् अत क़े रूकू में पहुंचऩे क़े िाद

शक कि़े कक उसऩे नमाज़़े मगरिि पढ़ी है या नहीं तो ज़रूिी है कक नमाज़

261
मक
ु म्मल कि़े । औि अगि िाद में मगरिि क़ी नमाज़ क़े मलय़े वक़्त िाक़ी हो तो

मगरिि क़ी नमाज़ भी पढ़ी।

769. अगि कोई शख़्स र्जो उसऩे पढ़ ली हो एहततयातन दोिािा पढ़़े औि नमाज़

क़े दौिान उस़े याद आए कक उस नमाज़ स़े पहल़े वाली नमाज़ नहीं पढ़ी तो वह

नीयत को उस नमाज़ क़ी तिफ़ नहीं मोड़ सकता मसलन र्जि वह नमाज़़े अस्र

एहततयातन पढ़ िहा हो अगि उस़े याद आए कक उसऩे नमाज़़े ज़ोहि नहीं पढ़ी तो

वह नीयत को नमाज़़े ज़ोहि क़ी तिफ़ नहीं मोड़ सकता।

770. नमाज़़े कज़ा क़ी नीयत नमाज़़े अदा क़ी तिफ़ औि नमाज़़े मस्
ु तहि क़ी

नीयत नमाज़़े वाजर्जि क़ी तिफ़ मोड़ना र्जाइज़ नहीं है ।

771. अगि अदा नमाज़ का वक़्त वसी हो तो इंसान नमाज़ क़े दौिान यह याद

आऩे पि कक उसक़े जज़म्म़े कोई कज़ा नमाज़ है, नीयत को नमाज़़े कज़ा क़ी तिफ़

मोड़ सकता है िशते कक नमाज़़े कज़ा क़ी तिफ़ नीयत मोड़ना मजु म्कन हो। मसलन

अगि वह नमाज़़े ज़ोहि में मश्गल


ू हो तो नीयत को कज़ाए सि
ु ह क़ी तिफ़ उस़े

सिू त में मोड़ सकता है कक तीसिी िक् अत क़े रूकू में न दाखखल हुआ हो।

मुस्तहब नमाजें

772. मस्
ु तहि नमाज़़े िहुत सी हैं जर्जन्हें नफ़ल कहत़े हैं औि मस्
ु तहि नमाज़ों

स़े िोज़ाआना क़े नफ़्लों क़ी िहुत ज़्यादा ताक़ीद क़ी गई है। यह नमाज़़े िोज़़े र्जम
ु ा

262
क़े अलावा चौंतीस िक् अत हैं। जर्जनमें स़े आठ िक् अत ज़ोहि क़ी, आठ िक् अत अस्र

क़ी, चाि िक् अत मगरिि क़ी, दो िक् अत इशा क़ी, ग्यािा िक् अत नमाज़़े शि (यानी

तहज्र्जद
ु ) क़ी औि दो िक् अत सबु ह क़ी होती हैं। औि चकंू क एहततयात़े वाजर्जि क़ी

बिना पि इशा क़ी दो िक् अत नफ़ल िैठकि पढ़नी ज़रूिी है इस मलय़े वह एक

िक् अत शम
ु ाि होती है । ल़ेककन र्जुमा क़े हदन ज़ोहि औि अस्र क़ी सोला िक् अत

नफ़ल पि चाि िक् अत का इज़ाफ़ा हो र्जाता है । औि ि़ेहति है कक यह पिू ी क़ी पिू ी

िीस िक् अतें ज़वाल स़े पहल़े पढ़ी र्जायें।

773. नमाज़़े शि क़ी ग्यािा िक् अतों स़े आठ िक् अतें नाकफ़लाए शि क़ी नीयत

स़े औि दो िक् अत नमाज़़े शफ़अ क़ी नीयत स़े औि एक िक् अत नमाज़़े वत्र क़ी

नीयत स़े पढ़नी ज़रूिी हैं औि नाकफ़लए शि का मक


ु म्मल तिीका दआ
ु क़ी ककतािों

में मज़्कूि है ।

774. नफ़ल नमाज़ें िैठकि भी पढ़ी र्जा सकती हैं ल़ेककन िाज़ फ़ुकहा कहत़े हैं

कक इस सिू त में ि़ेहति है कक िैठ कि पढ़ी र्जाऩे वाली नफ़ल नमाज़ क़ी दो

िक् अतों को एक िक् अत शम


ु ाि ककया र्जाए मसलन र्जो शख़्स ज़ोहि क़ी नफ़लें

जर्जसक़ी आठ िक् अतें है िैठकि पढ़ना चाह़े तो उसक़े मलय़े ि़ेहति है कक सोला

िक् अतें पढ़़े औि अगि चाह़े कक नमाज़़े ववत्र िैठकि पढ़़े तो एक एक िक् अत क़ी दो

नमाज़ें पढ़़े । ताहम इस काम का ि़ेहति होना मालम


ू नहीं है ल़ेककन िर्जा क़ी नीयत

स़े अंर्जाम द़े तो कोई इश्काल नहीं है ।

263
775. ज़ोहि औि अस्र क़ी नफ़्ली नमाज़ें सफ़ि में नहीं पढ़नी चाहहयें औि अगि

इशा क़ी नफ़्लें िर्जा क़ी नीयत स़े पढ़ी र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं है ।

िोजाना की नफ़्लों का वक़्त

776. ज़ोहि क़ी नफ़्लें नमाज़ें ज़ोहि स़े पहल़े पढ़ी र्जाती हैं। औि र्जहां तक

मजु म्कन हो उस़े ज़ोहि क़ी नमाज़ स़े पहल़े पढ़ा र्जाए। औि उसका वक़्त अव्वल़े

ज़ोहि स़े ल़ेकि ज़ोहि क़ी नमाज़ अदा किऩे तक िाक़ी िहता है। ल़ेककन अगि कोई

शख़्स ज़ोहि क़ी नफ़्लों को उस वक़्त तक मव


ु ख्खि कि द़े कक शाखखस क़े साए क़ी

वह ममक़्दाि र्जो ज़ोहि क़े िाद पैदा हो सात में स़े दो हहस्सों क़े ििािि हो र्जाए

मसलन शाखखस क़ी लम्िाई सात िामलश्त औि साए क़ी ममक़्दाि दो िामलश्त हो तो

इस सिू त में ि़ेहति यह है कक इंसान ज़ोहि क़ी नमाज़ पढ़़े ।

777. अस्र क़ी नफ़्लें अस्र क़ी नमाज़ स़े पहल़े पढ़ी र्जाती हैं। औि र्जि तक

मजु म्कन हो उस़े अस्र क़ी नमाज़ स़े पहल़े पढ़ा र्जाए। औि उसका वक़्त अस्र क़ी

नमाज़ अदा किऩे तक िाक़ी िहता है । ल़ेककन अगि कोई शख़्स अस्र क़ी नफ़्लें उस

वक़्त तक मव
ु ख्खि कि द़े कक शाखखस क़े साए क़ी वह ममक़्दाि र्जो ज़ोहि क़े िाद

पैदा हो सात में स़े चाि हहस्सों तक पहुंच र्जाए तो उस सिू त में ि़ेहति है कक

इंसान अस्र क़ी नमाज़ पढ़़े औि अगि ज़ोहि या अस्र क़ी नफ़्लें उस क़े मक
ु िक िा

वक़्त क़े िाद पढ़ना चाह़े तो ज़ोहि क़ी नफ़्लें नमाज़़े ज़ोहि क़े िाद औि अस्र क़ी

264
नफ़्लें नमाज़़े अस्र क़े िाद पढ़ सकता है । ल़ेककन एहततयात क़ी बिना पि अदा औि

कज़ा क़ी नीयत न कि़े ।

778. मगरिि क़ी नफ़्लों का वक़्त नमाज़़े मगरिि खत्म होऩे क़े िाद होता है

औि र्जहां तक मजु म्कन हो उस़े मगरिि क़ी नमाज़ क़े िौिन िाद िर्जा लाए ल़ेककन

अगि कोई शख़्स उस सख


ु ़ी क़े खत्म होऩे तक र्जो सिू र्ज क़े गरु
ु ि होऩे क़े िाद

आसमानन में हदखाई द़े ती है मजग़्जऱि क़ी नफ़्लों में ताखीि कि़े तो उस वक़्त ि़ेहति

यह है कक इशा क़ी नमाज़ पढ़़े ।

779. इशा क़ी नफ़्लों का वक़्त नमाज़़े इशा खत्म होऩे क़े िाद स़े आधी िात

तक है औि ि़ेहति है कक नमाज़़े इशा खत्म होऩे क़े फ़ौिन िाद पढ़ी र्जाए।

780. सबु ह क़ी नफ़्लें सबु ह क़ी नमाज़़े स़े पहल़े पढ़ी र्जाती हैं औि उसका वक़्त

नमाज़़े शि का वक़्त खत्म होऩे क़े िाद स़े शरू


ु होता है औि सबु ह क़ी नमाज़ अदा

होऩे तक िाक़ी िहता है औि र्जहां तक मजु म्कन हो सबु ह क़ी नफ़्लें सबु ह क़ी नमाज़

स़े पहल़े पढ़नी चाहहय़े ल़ेककन अगि कोई शख़्स सबु ह क़ी नफ़्लें मचश्रक क़ी सख
ु ़ी

ज़ाहहि होऩे क़े िाद न पढ़़े तो उस सिू त में यह है कक सबु ह क़ी नमाज़ पढ़़े ।

781. नमाज़़े शि का अव्वल़े वक़्त मश्हूि कौल क़ी बिना पि आधी िात है औि

सबु ह क़ी अज़ान तक उसका वक़्त िाक़ी िहता है। औि ि़ेहति यह है कक सबु ह क़ी

अज़ान क़े किीि पढ़ी र्जाए

265
782. मस
ु ाकफ़ि औि वह शख़्स जर्जसक़े मलय़े नमाज़़े शि का आधी िात क़े िाद

अदा किना मजु श्कल हो उस़े अव्वल़े शि में भी अदा कि सकता है ।

नमाजे गफ़
ु ै ला

783. मश्हूि मस्


ु तहि नमाज़ों में स़े एक नमाज़़े गफ़
ु ै ला है र्जो मजग़्जऱि औि इशा

क़ी नमाज़ क़े दिममयान पढ़ी र्जाती है। इसक़ी पहली िक् अत में अलहम्द क़े िाद

ककसी दस
ू िी सिू त क़े िर्जाए यह आयत पढ़नी ज़रूिी है ः- व ज़न्नन
ू ़े इज़ ् ज़हिा

मग
ु ाजज़िन फ़ज़न्ना अंल्लन तजक़्दिा अलैह़े फ़नादा कफ़ज़्ज़ुलम
ु ात़े अंल्ला इलाहा

अल्ला अन्ता सबु हानाका इन्नी कुन्तो ममनज़ ज़ामलमीना फ़स्तर्जबना लहू व

नज्र्जैनाहो ममनल गम्म़े व कज़ामलका नजंु र्जल मोममनीन। औि दस


ू िी िक् अत में

अलहम्द क़े िाद िर्जाए ककसी औि सिू त क़े यह आयत पढ़़े ः- व इन्दहू मफ़ाततहुल

गैि़े ला यअलमह
ु ा इल्ला हुवा व यअलमो मा कफ़ल ििे वल िहि़े व मा तस्कुतो

ममंव विकततन इल्ला यअलमह


ु ा व ला हबिततन फ़़ी ज़ुलम
ु ाततल अज़े व ला िजत्िंव

व ला याबिमसन इल्ला फ़़ी ककताबिम मम्


ु िीन। औि इसक़े कुनत
ू में यह पढ़़े ः-

अल्लाहुम्मा इन्नी अस ्अलक


ु ा ि़े मफ़ाततहहल गैबिल्लती ला यअतमह
ु ा इल्ला अन्ता

अन तुस्वजल्लया अला मोहम्महदंव व आल़े मोहम्महदंव व अन तफ़् अलिी कज़ा व

कज़ा। औि कज़ा व कज़ा क़े िर्जाए अपनी हार्जतें ियान कि़े औि उसक़े िाद कह़े ः-

अल्लाहुम्मा अन्ता वलीयो ऩेमती वल काहदिो अला तल़ेिती तअलमु हार्जती

266
फ़असअलक
ु ा ि़े हक़्क़े मोहम्महदंव व आल़े मोहम्महदन अलैह़े व अलैहहममस्
ु सलामु

लम्मा कज़ैतहा ली। ककबल़े क़े अहकाम

784. िवानए कअिः र्जो मक्कए मक


ु ाकिकमा में है वह हमािा ककबला है मलहाज़ा

(हि मस
ु लमान क़े मलय़े) ज़रूिी है कक उसक़े सामऩे खड़़े होकि नमाज़ पढ़़े । ल़ेककन

र्जो शख़्स उसस़े दिू हो अगि वह इस तिह खड़ा हो कक लोग कहें कक ककबल़े क़ी

तिफ़ मंह
ु किक़े नमाज़ पढ़ िहा है तो काफ़़ी है। औि दस
ू ि़े काम र्जो ककबल़े क़ी

तिफ़ मंह
ु कि क़े अंर्जाम द़े ऩे ज़रूिी हैं मसलन है वानात को जज़बहा किना उनका

भी यही हुक्म है ।

785. र्जो शख़्स खड़ा होकि वाजर्जि नमाज़ पढ़ िहा हो ज़रूिी है कक उसका सीना

औि प़ेट ककबल़े क़ी तिफ़ हो। िजल्क उसका च़ेहिा ककबल़े स़े िहुत ज़्यादा कििा हुआ

नहीं होना चाहहय़े औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उसक़े पांव क़ी उं गमलया भी

ककबल़े क़ी तिफ़ हों।

786. जर्जस शख़्स को िैठकि नमाज़ पढ़नी हो ज़रूिी है कक उसका सीना औि

प़ेट नमाज़ क़े वक़्त ककबल़े क़ी तिफ़ हो, िजल्क उसका च़ेहिा भी ककबल़े स़े िहुत

ज़्यादा कििा हुआ न हो।

787. र्जो शख़्स िैठकि नमाज़ न पढ़ सक़े ज़रूिी है कक दायें पहलू क़े िल यंू

ल़ेट़े कक उसक़े िदन का अगला हहस्सा ककबल़े क़ी तिफ़ हो औि अगि यह मजु म्कन

न हो तो ज़रूिी है कक िायें पहलू क़े िल यंू ल़ेट़े कक उसक़े िदन का अगला हहस्सा

267
ककबला क़ी तिफ़ हो। औि र्जि तक दायें पहलू क़े िल ल़ेट कि नमाज़ पढ़ना

मजु म्कन हो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि िायें पहलू क़े िल ल़ेट कि नमाज़ न

पढ़ें । औि अगि यह दोनों सिू तें मजु म्कन न हों तो ज़रूिी है कक पश्ु त क़े िल यंू

ल़ेट़े कक उसक़े पांव क़े तल्व़े ककबल़े क़ी तिफ़ हों।

788. नमाज़़े एहततयात, भल


ू ा हुआ सज्दा औि भल
ू ा हुआ तशहहुद ककबल़े क़ी

तिफ़ मंह
ु कि क़े अदा किना ज़रूिी है औि एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि

सज्दाए सहव भी ककबल़े क़ी तिफ़ मंह


ु कि क़े अदा कि़े ।

789. मस्
ु तहि नमाज़ िास्ता चलत़े हुए औि सवािी क़ी हालत में पढ़ी र्जा सकती

है औि अगि इंसान इन दोनों हालतों में मस्


ु तहि नमाज़ पढ़़े तो ज़रूिी नहीं कक

उसका मंह
ु ककबल़े क़ी तिफ़ हो।

790. र्जो शख़्स नमाज़ पढ़ना चाह़े ज़रूिी है कक ककबल़े क़ी सम्त का तअय्यन

किऩे क़े मलय़े कोमशश कि़े ताकक ककबल़े क़ी सम्त क़े िाि़े में यक़ीन या ऐसी

कैकफ़यत र्जो यक़ीन क़े हुक्म में हो, मसलन दो आहदल आदममयों क़ी गवाही

हामसल कि ल़े औि अगि ऐसा न कि सक़े तो ज़रूिी है कक मस


ु लमानों क़ी

मजस्र्जद क़े म़ेहिाि स़े या उनक़ी कब्रों स़े या दस


ू ि़े तिीकों स़े र्जो गुमान पैदा हो

उसक़े मत
ु ाबिक अमल कि़े हत्ता क़ी अगि ककसी ऐस़े फ़ामसक या काकफ़ि क़े कहऩे

पि र्जो साइंसी कवायद क़े ज़िीए ककबल़े का रूख पहचानता हो ककबल़े क़े िाि़े में

गुमान पैदा कि़े तो वह भी काफ़़ी है ।

268
791. र्जो शख़्स ककबल़े क़ी सम्त क़े िाि़े में गुमान कि़े अगि वह उस स़े कवी

ति गम
ु ान पैदा कि सकता हो तो अपऩे गम
ु ान पि अमल नहीं कि सकता।

मसलन अगि म़ेहमान साहि़े खाना क़े कहऩे पि ककबल़े क़ी सम्त क़े िाि़े में गम
ु ान

पैदा कि ल़े ल़ेककन ककसी दस


ू ि़े तिीक़े स़े ज़्यादा कवी गुमान पैदा कि सकता हो

तो उस़े साहि़े खाना क़े कहऩे पि अमल नहीं किना चाहहय़े।

792. अगि ककसी क़े पास ककबल़े का रूख मत


ु अय्यन किऩे का कोई ज़िीआ न

हो (मसलन कुतुि नम
ु ा) या कोमशश क़े िावर्जूद उसका गुमान ककसी एक तिफ़ न

र्जाता हो तो उसका ककसी भी तिफ़ मंह


ु किक़े नमाज़ पढ़ना काफ़़ी है औि

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक अगि नमाज़ का वक़्त वसी हो तो चाि नमाज़ें चािों

तिफ़ मंह
ु कि क़े पढ़़े (यानी वही एक नमाज़ चाि मतकिा एक एक सम्त क़ी

र्जातनि मंह
ु किक़े पढ़़े )।

793. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन या गुमान हो कक ककबला दो में स़े एक

तिफ़ है तो ज़रूिी है कक दोनों तिफ़ मंह


ु किक़े नमाज़ पढ़़े ।

794. र्जो शख़्स कई तिफ़ मंह


ु किक़े नमाज़ पढ़ना चाहता हो अगि वह ऐसी दो

नमाज़़े पढ़ना चाह़े र्जो ज़ोहि औि अस्र क़ी तिह यक़े िाद दीगि़े पढ़नी ज़रूिी हैं तो

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक पहली नमाज़ मख़्
ु तमलफ़ सम्तों क़ी तिफ़ मंह
ु किक़े

पढ़़े औि िाद में दस


ू िी नमाज़ शरू
ु कि़े ।

269
795. जर्जस शख़्स को ककबल़े क़ी सम्त का यक़ीन न हो अगि वह नमाज़ क़े

अलावा कोई ऐसा काम किना चाह़े र्जो ककबल़े क़ी तिफ़ मंह
ु किक़े किना ज़रूिी है

मसलन अगि वह कोई है वान जज़बहा किना चाहता हो तो उस़े चाहहय़े क़ी गम
ु ान

पि अमल कि़े औि अगि गुमान पैदा किना मजु म्कन न हो तो जर्जस तिफ़ मंह

किक़े वह काम अंर्जाम द़े वह दरू


ु स्त है ।

नमाज में बदन का ढांपना

796. ज़रूिी है कक मदक ख़्वाह उस़े कोई भी न द़े ख िहा हो नमाज़ क़ी हालत में

अपनी शमकगाहों को ढांप़े औि ि़ेहति यह है कक नाफ़ स़े र्ट


ु नो तक िदन भी ढांप़े।

797. ज़रूिी है कक औित नमाज़ क़े वक़्त अपना तमाम िदन हत्ता कक सि औि

िाल भी ढांप़े औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक पांव क़े तल्व़े भी ढांप।़े अलित्ता

च़ेहि़े का जर्जतना हहस्सा वज़


ु ू में धोया र्जाता है औि कलाइयों तक औि टखनों तक

पांव का ज़ाहहिी हहस्सा ढांपना ज़रूिी नहीं है । ल़ेककन यह यक़ीन किऩे क़े मलय़े कक

उसऩे िदन क़ी वाजर्जि ममक़्दाि ढांप ली है ज़रूिी है कक च़ेहि़े क़े अतिाफ़ का कुछ

हहस्सा औि कलाइयों स़े नीच़े कुछ हहस्सा भी ढांप़े।

798. र्जि इंसान भल


ू ़े हुए सज्द़े या भल
ू ़े हुए तशहहुद क़ी कज़ा िर्जा ला िहा हो

तो ज़रूिी है कक अपऩे आप को इस तिह ढांप़े जर्जस तिह नमाज़ क़े वक़्त ढांपा

270
र्जाता है औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक सज्दा ए सहव अदा किऩे क़े वक़्त भी

अपऩे आप को ढांप।़े

799. अगि इंसान झान िझ


ू कि या मसअला न र्जानऩे क़ी वर्जह स़े गलती कित़े

हुए नमाज़ में अपनी शमकगाह न ढांप़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

800. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े दौिान पता चल़े कक उसक़ी शमकगाह नंगी

है तो ज़रूिी है कक अपनी शमकगाह तछपाए औि उस पि लाजज़म नहीं है कक नमाज़

दोिािा पढ़़े । ल़ेककन एहततयात यह है कक र्जि उस़े पता चल़े कक उसक़ी शमकगाह

नंगी है तो उसक़े िाद नमाज़ का कोई र्जज़


ु अंर्जाम न द़े । ल़ेककन अगि उस़े नमाज़

क़े िाद पता चल़े कक नमाज़ क़े िाद उसक़ी शमकगाह नंगी थी तो उसक़ी नमाज़

सहीह है।

801. अगि ककसी शख़्स का मलिास खड़़े होऩे क़ी हालत में उसक़ी शमकगाह को

ढांप ल़े ल़ेककन मजु म्कन हो दस


ू िी हालत में मसलन रुकुउ औि सर्ज
ु ूद क़ी हालत में

न ढांप़े तो अगि शमकगाह क़े नंगा होऩे क़े वक़्त उस़े ककसी ज़िीए स़े ढांप ल़े तो

उसक़ी नमाज़ सहीह है । ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस मलिास क़े साथ

नमाज़ न पढ़़े ।

802. इंसान नमाज़ में अपऩे आप को र्ास िूस क़े दिख़्तों में (िड़़े) पत्तों स़े

ढांप सकता है । ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उन चीज़ों स़े उस वक़्त ढांप़े

र्जि उसक़े पास कोई औि चीज़ न हो।

271
803. इंसान क़े पास मर्जििू ी क़ी हालत में शमकगाह तछपाऩे क़े मलय़े कोई चीज़

न हो तो अपनी शमकगाह क़ी खाल नम


ु ायााँ न होऩे क़े मलय़े गािा या उस र्जैसी

ककसी दस
ू िी चीज़ को लीप पोत कि उस़े तछपाए।

804. अगि ककसी शख़्स क़े पास कोई ऐसी चीज़ न हो जर्जसस़े वह नमाज़ में

अपऩे आप को ढांप़े औि अभी वह ऐसी चीज़ ममलऩे स़े मायस


ू भी न हुआ हो तो

ि़ेहति यह है कक नमाज़ पढ़ऩे में ताखीि कि़े औि अगि कोई चीज़ न ममल़े तो

आखखि़े वक़्त में अपऩे वज़ीफ़़े क़े मत


ु ाबिक नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि अव्वल़े वक़्त

में नमाज़ पढ़़े औि उसका उज़्र आखखि़े वक़्त तक िाक़ी न िह़े तो एहततयात़े वाजर्जि

यह है कक नमाज़ को दोिािा पढ़़े ।

805. अगि ककसी शख़्स क़े पास र्जो नमाज़ पढ़ना चाहता हो आपऩे आप को

ढांपऩे क़े मलय़े दिख़्त क़े पत्त़े, र्ास, गािा या दलदल न हो औि आखखि़े वक़्त तक

ककसी ऐसी चीज़ क़े ममलऩे स़े मायस


ू हो जर्जसस़े वह अपऩे आपको तछपा सक़े

अगि उस़े इस िात का इत्मीनान हो कक कोई शख़्स उस़े नहीं द़े ख़ेगा तो वह खड़ा

होकि उसी तिह नमाज़ पढ़़े जर्जस तिह इजख़्तयािी हालत में रुकुउ औि सर्ज
ु द ू क़े

साथ नमाज़ पढ़त़े हैं। ल़ेककन अगि उस़े इस िात का एहततमाल हो कक कोई शख़्स

उस़े द़े ख ल़ेगा तो ज़रूिी है कक इस तिह नमाज़ पढ़़े कक उसक़ी शमकगाह नज़ि न

आए मसलन िैठकि नमाज़ पढ़़े या रुकुउ औि सर्ज


ु ूद र्जो इजख़्तयािी हालत में

अंर्जाम द़े त़े हैं तकक कि़े औि रुकुउ औि सर्ज


ु ूद को इशाि़े स़े िर्जा लाए औि

272
एहततयात़े लाजज़म यह है कक नंगा शख़्स नमाज़ क़ी हालत में अपनी शमकगाह को

अपऩे िाज़ अअज़ा क़े ज़िीए मसलन िैठा हो तो दोनों िानों स़े औि खड़ा हो तो

दोनों हाथों स़े तछपा ल़े।

नमाज़ी के ललबास की शतें

806. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े मलिास क़ी छः शतें है ः-

(1). पाक हो।

(2). मि
ु ाह हो।

(3). मद
ु ाकि क़े अज्ज़ा स़े न िना हो।

(4). हिाम गोश्त है वान क़े अज्ज़ा स़े न िना हो।

(5 औि 6) अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला मदक हो तो उसका मलिास खामलस ि़े शम

औि ज़िदोज़ी का िना हुआ न हो। इन शतों क़ी तफ़्सील आइन्दा मसाइल में िताई

दाय़ेगी।

पहली शतकः-

807. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का मलिास पाक होना ज़रूिी है । अगि कोई शख़्स

हालत़े इजख़्तयाि में नजर्जस िदन या नजर्जस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े तो उस क़ी

नमाज़ िाततल है ।

273
808. अगि कोई शख़्स अपनी कोताही क़ी वर्जह स़े यह न र्जानता हो कक

नजर्जस िदन औि मलिास क़े साथ नमाज़ िाततल है औि नजर्जस िदन या मलिास

क़े साथ मलिास पढ़़े तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है।

809. अगि कोई शख़्स मस ्अला न र्जानऩे क़ी वर्जह स़े कोताही क़ी बिना पि

ककसी नजर्जस चीज़ क़े िाि़े में यह न र्जानता हो कक नजर्जस है मसलन यह न

र्जानता हो कक काकफ़ि का पसीना नजर्जस है औि उस (पसीऩे) क़े साथ नमाज़ पढ़़े

तो उसक़ी नमाज़ एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि िाततल है।

810. अगि ककसी शख़्स को यह यक़ीन हो कक उस का िदन या मलिास नजर्जस

नहीं है औि उसक़े नजर्जस होऩे क़े िाि़े में उस़े नमाज़ क़े िाद पता चल़े तो उसक़ी

नमाज़ सहीह है ।

811. अगि कोई शख़्स यह भल


ू र्जाए कक उसका िदन या मलिास नजर्जस है

औि उस़े नमाज़ क़े दौिान या उसक़े िाद याद आए चन


ु ांच़े अगि उसऩे लापिवाही

औि अहमीयत न द़े ऩे क़ी वर्जह स़े भल


ु ा हदया हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना

पि ज़रूिी है कक वह नमाज़ को दोिािा पढ़़े औि अगि वह वक़्त गज़


ु ि गया हो तो

उसक़ी कज़ा कि़े । औि इस सिू त क़े अलावा ज़रूिी नहीं है कक वह नमाज़ को

दोिािा पढ़़े । ल़ेककन अगि नमाज़ क़े दौिान उस़े याद आए तो ज़रूिी है कक उस

हुक्म पि अमल कि़े र्जो िाद वाल़े मसअल़े में ियान ककया र्जाय़ेगा।

274
812. र्जो शख़्स वसी वक़्त में नमाज़ में मशगल
ू हो अगि नमाज़ क़े दौिान उस़े

पता चल़े कक उस का िदन या मलिास नजर्जस है औि उस़े यह एहततमाल हो कक

नमाज़ शरू
ू किऩे क़े िाद नजर्जस हुआ है तो उस सिू त में िदन या मलिास पाक

किऩे या मलिास तबदील किऩे या मलिास उताि द़े ऩे स़े नमाज़ न टूट़े तो नमाज़

क़े दौिान िदन या मलिास पाक कि़े या मलिास तबदील कि़े या अगि ककसी औि

चीज़ ऩे उसक़ी शमकगाह को ढांप िखा हो तो मलिास उताि द़े ल़ेककन र्जि यह सिू त

हो कक अगि िदन या मलिास पाक कि़े या अगि मलिास िदल़े या उताि़े तो नमाज़

टूटती हो या अगि मलिास उताि़े तो नंगा हो र्जाता हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि ज़रूिी है कक दोिािा पाक मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े ।

813. र्जो शख़्स तंग वक़्त में नमाज़ में मशगल


ू हो अगि नमाज़ क़े दौिान उस़े

पता चल़े कक उसका मलिास नजर्जस है औि उस़े यह एहततमाल हो कक नमाज़ शरू


किऩे क़े िाद नजर्जस हुआ है तो अगि यह सिू त हो कक मलिास पाक किऩे या

िदलऩे या उतािऩे स़े नमाज़ टूटती हो औि वह मलिास उताि सकता हो तो ज़रूिी

है कक मलिास को पाक कि़े या िदल़े या अगि ककसी औि चीज़ ऩे उसक़ी शमकगाह

को ढांप िखा हो तो मलिास उताि द़े औि नमाज़ खत्म कि़े ल़ेककन अगि ककसी

औि चीज़ ऩे उसक़ी शमकगाह को ढांप िखा हो औि वह मलिास पाक न कि सकता

हो औि उस़े िदल भी न सकता हो तो ज़रूिी है कक उसी नजर्जस मलिास क़े साथ

नमाज़ को खत्म कि़े ।।

275
814. कोई शख़्स र्जो तंग वक़्त में मशगल
ू हो औि नमाज़ क़े दौिान पता चल़े

कक उसका िदल नजर्जस है औि उस़े यह एहततमाल हो कक नमाज़ शरू


ु किऩे क़े

िाद नजर्जस हुआ हो तो अगि सिू त यह हो कक िदन पाक किऩे स़े नमाज़ न

टूटती हो तो िदन को पाक कि़े औि अगि नमाज़ टूटती हो तो ज़रूिी है कक उसी

हालत में नमाज़ खत्म कि़े औि उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

815. ऐसा शख़्स र्जो अपऩे िदन या मलिास क़े पाक होऩे क़े िाि़े में शक कि़े

औि र्जुस्तर्जू क़े िाद कोई चीज़ न पाकि औि नमाज़ पढ़़े औि नमाज़ क़े िाद उस़े

पता चल़े कक उसका िदन या मलिास नजर्जस था तो उसक़ी नमाज़ सहीह है औि

अगि उसऩे र्जुस्तर्जू न क़ी हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

नमाज़ को दोिािा पढ़़े औि अगि वक़्त गज़


ु ि गया हो तो उसक़ी कज़ा कि़े ।

816. अगि कोई शख़्स अपना मलिास धोए औि उस़े यक़ीन हो र्जाए कक मलिास

पाक हो गया है, उसक़े साथ नमाज़ पढ़़े औि नमाज़ क़े िाद उस़े पता चल़े कक

पाक नहीं हुआ था तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

817. अगि कोई शख़्स अपऩे िदन या मलिास में खन


ू द़े ख़े औि उस़े यक़ीन हो

कक यह नजर्जस खून में स़े नहीं है मसलन उस़े यक़ीन हो कक मच्छि का खून है

ल़ेककन नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद उस़े पता चल़े कक यह उस खून में स़े है जर्जसक़े साथ

नमाज़ नहीं पढ़ी र्जा सकती तो उसक़ी नमाज़ सहीह है।

276
818. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक उसक़े िदन या मलिास में र्जो खून है

वह ऐसा नजर्जस खन
ू है जर्जसक़े साथ नमाज़ सहीह है मसलन उस़े यक़ीन हो कक

ज़ख़्म औि फ़ोड़़े का खन
ू है ल़ेककन नमाज़ क़े िाद उस़े पता चल़े कक यह ऐसा खन

है जर्जसक़े साथ नमाज़ िाततल है तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

819. अगि कोई शख़्स यह भल


ू र्जाए कक एक चीज़ नजर्जस है या गीला िदन

या गीला मलिास उस चीज़ स़े छू र्जाए औि उसी भल


ू क़े आलम में वह नमाज़ पढ़

ल़े औि नमाज़ क़े िाद उस़े याद आए तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन अगि

उसका गीला िदन उस चीज़ को छू र्जाए जर्जसका नजर्जस होना वह भल


ू गया है

औि अपऩे आप को पाक ककय़े िगैि वह गस्


ु ल कि़े औि नमाज़ पढ़़े तो उसका

गस्
ु ल औि नमाज़ िाततल है मामसवा इसक़े कक गस्
ु ल किऩे स़े िदन भी पाक हो

र्जाए। औि अगि वज़


ु ू क़े गील़े अअज़ा का कोई हहस्सा उस चीज़ स़े छू र्जाए जर्जसक़े

नजर्जस होऩे क़े िाि़े में वह भल


ू गया है औि इसस़े पहल़े कक वह उस हहस्स़े को

पाक कि़े वह वज़


ु ू कि़े औि नमाज़ पढ़़े तो उसका वज़
ु ू औि नमाज़ दोनों िाततल हैं

मामसवा इसक़े कक वज़


ु ू किऩे स़े वज़
ु ू क़े अअज़ा भी पाक हो र्जायें।

820. जर्जस शख़्स क़े पास मसफ़क एक मलिास हो अगि उसका िदन औि मलिास

नजर्जस हो र्जाए औि उसक़े पास उनमें स़े एक को पाक किऩे क़े मलय़े पानी हो तो

एहततयात़े लाजज़म यह है कक िदन को पाक कि़े औि नजर्जस मलिास क़े साथ

नमाज़ पढ़़े । औि मलिास को पाक कि क़े नजर्जस िदन क़े साथ नमाज़ पढ़ना

277
र्जाइज़ नहीं है । ल़ेककन अगि मलिास क़ी नर्जासत िदन क़ी नर्जासत स़े िहुत

ज़्यादा हो या मलिास क़ी नर्जासत िदन क़ी नर्जासत क़े मलहाज़ स़े ज़्यादा शदीद

हो तो उस़े इजख़्तयाि है कक मलिास औि िदन में स़े जर्जस़े चाह़े पाक कि़े ।

821. जर्जस शख़्स क़े पास नजर्जस मलिास क़े अलावा कोई मलिास न हो ज़रूिी है

कक नजर्जस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े औि उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

822. जर्जस शख़्स क़े पास दो मलिास हों अगि वह यह र्जानता हो कक इनमें स़े

एक नजर्जस है ल़ेककन यह न र्जानता हो कक कौन सा नजर्जस है औि उसक़े पास

वक़्त हो तो ज़रूिी है कक दोनों क़े साथ नमाज़ पढ़़े (यानी एक दफ़् आ एक मलिास

पहन कि औि एक दफ़् आ दस
ू िा मलिास पहन कि दो दफ़् आ वही नमाज़ पढ़़े )

मसलन अगि वह ज़ोहि औि अस्र क़ी नमाज़ पढ़ना चाह़े तो ज़रूिी है कक हि एक

मलिास स़े एक नमाज़ ज़ोहि क़ी औि एक नमाज़ अस्र क़ी पढ़़े ल़ेककन अगि वक़्त

तंग हो तो जर्जस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़ ल़े काफ़़ी है।

दस
ू िी शतक

823. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का मलिास मि


ु ाह होना ज़रूिी है। पस अगि एक शख़्स

र्जो र्जानता हो कक गस्िी मलिास पहनना हिाम है या कोताही क़ी वर्जह स़े मसअला

का हुक्म न र्जानता हो औि र्जान िझ


ू कि उस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े तो

एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है । ल़ेककन अगि मलिास में वह चीज़ें

278
जर्जनस़े अगिच़े शमकगाह को ढांपा र्जा सकता हो ल़ेककन नमाज़ पढ़ऩे वाल़े ऩे उन्हें

हालत़े नमाज़ में न पहन िखा हो मसलन िड़ा रूमाल या लंगोटी र्जो र्ज़ेि में िखी

हो औि इसी तिह वह चीज़ें जर्जन्हें नमाज़ी ऩे पहन िखा हो अगिच़े उसक़े पास एक

मि
ु ाह सत्रपोश भी हो ऐसी तमाम सिू तों में इन (इज़ाफ़़ी) चीज़ों क़े गस्िी होऩे स़े

नमाज़ में कोई फ़कक नहीं पड़ता अगिच़े एहततयात उनक़े तकक कि द़े ऩे में है ।

824. र्जो शख़्स यह र्जानता हो कक गस्िी मलिास पहनना हिाम है ल़ेककन उस

मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़ऩे का हुक्म न र्जानता हो अगि वह र्जान िझ


ू कि गस्िी

मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े तो ज़ैसा कक साबिका मसअल़े में तफ़्सील स़े िताया

गया है एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

825. अगि कोई शख़्स न र्जानता हो या भल


ू र्जाए कक उसका मलिास गस्िी है

औि उस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है । ल़ेककन अगि वह

शख़्स खुद उस मलिास को गस्ि कि़े औि किि भल


ू र्जाए कक उसऩे गस्ि ककया है

औि उसी मलिास में नमाज़ पढ़़े तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल

है ।

826. अगि ककसी शख़्स को इल्म न हो या भल


ू र्जाए कक उसका मलिास गस्िी

है ल़ेककन नमाज़ क़े दौिान उस़े पता चल र्जाए औि उसक़ी शमकगाह ककसी दस
ू िी

चीज़ स़े ढक़ी हुई हो औि वह फ़ौिन या नमाज़ का तसलसल


ु तोड़़े िगैि गस्िी

मलिास उताि सकता हो तो ज़रूिी है कक फ़ौिन उस मलिास को उताि द़े औि अगि

279
उसक़ी शमकगाह ककसी दस
ू िी चीज़ स़े ढक़ी हुई न हो या वह गस्िी मलिास को

फ़ौिन न उताि सकता हो या अगि मलिास का उतािना नमाज़ क़े तसलसल


ु को

तोड़ द़े ता हो औि सिू त यह हो कक उसक़े पास एक िक् अत पढ़ऩे जर्जतना वक़्त भी

हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ को तोड़ द़े औि उस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े र्जो

गस्िी न हो औि अगि इतना वक़्त न हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ क़ी हालत में

मलिास उताि द़े औि ििहना लोगों क़ी नमाज़ क़े मत


ु ाबिक नमाज़ खत्म कि़े ।

827. अगि कोई शख़्स अपनी र्जान क़ी हहफ़ाज़त क़े मलय़े गस्िी मलिास क़े साथ

नमाज़ पढ़़े या ममसाल क़े तौि पि गस्िी मलिास क़े साथ इस मलय़े नमाज़ पढ़़े

ताकक चोिी न हो र्जाए तो उसक़ी नमाज़ सहीह है।

828. अगि कोई शख़्स उस िकम स़े मलिास खिीद़े जर्जसका खुम्स उसऩे अदा न

ककया हो तो उस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़ऩे क़े मलय़े वही हुक्म है र्जो गस्िी

मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़ऩे का है ।

तीसिी शतक

829. ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का मलिास औि हि वह चीज़ र्जो शमकगाह

तछपाऩे क़े मलय़े नाकाफ़़ी है एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि जर्जहहन्दा खून वाल़े

मद
ु ाक है वान क़े अअज़ा स़े न िनी हो िजल्क अगि मलिास उस मद
ु ाक है वान मसलन

280
मछली औि सांप स़े तैयाि ककया र्जाए जर्जसका खून जर्जहहन्दा नहीं होता तो

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उसक़े साथ नमाज़ न पढ़ी र्जाए।

830. अगि नजर्जस मद


ु ाकि क़ी ऐसी चीज़ मसलन गोश्त औि खाल जर्जसमें रूह

होती है नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े हमिाह हो तो कुछ िईद नहीं है कक उसक़ी नमाज़

सहीह हो।

831. अगि हलाल गोश्त मद


ु ाकि क़ी कोई ऐसी चीज़ जर्जसमें रुह न होती हो

मसलन िाल औि ऊन नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े हमिाह हो या उस मलिास क़े साथ

नमाज़ पढ़़े र्जो इन चीज़ों स़े तैयाि ककया गया हो तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

चौथी शतक

832. ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का मलिास – उन चीज़ों क़े अलावा र्जो

मसफ़क शमकगाह तछपाऩे क़े मलय़े नाकाफ़़ी है मसलन र्जुिाकि – र्जानविों क़े अअज़ा स़े

तैयाि ककया हुआ न हो िजल्क एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि हि उस र्जानवि क़े

अअज़ा स़े िना हुआ न हो जर्जसका गोश्त खाना हिाम है । इसी तिह ज़रूिी है कक

नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का मलिास औि िदन हिाम गोश्त र्जानवि क़े प़ेशाि, पाखाऩे,

पसीऩे, दध
ू औि िाल स़े आलद
ू ा न हो ल़ेककन अगि हिाम गोश्त र्जानवि का एक

िाल उसक़े मलिास पि लगा हो तो कोई हिर्ज नहीं है। इसी तिह नमाज़ गज़
ु ाि क़े

281
हमिाह इन में स़े कोई चीज़ अगि डडबिया (या िोतल वगैिा) में िन्द िखी हो ति

भी कोई हिर्ज नहीं है।

833. हिाम गोश्त र्जानवि मसलन बिल्ली क़े मंह


ु या नाक का पानी या कोई

दस
ू िी रुतूित नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े िदन या मलिास पि लगी हो औि अगि वह

ति हो तो नमाज़ िाततल है । ल़ेककन अगि खुश्क हो औि उसका ऐन र्जुज़्व ज़ाइल

हो गया हो तो नमाज़ सहीह है ।

834. अगि ककसी का िाल या पसीना या लआ


ु ि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े िदन या

मलिास पि लगा हो तो कोई हिर्ज नहीं। इसी तिह मवाकिीद, मोम औि शहद उसक़े

हमिाह हो ति भी नमाज़ पढ़ना र्जाइज़ है ।

835. अगि ककसी को शक हो कक मलिास हलाल गोश्त र्जानवि स़े तैयाि ककया

गया है या हिाम गोश्त र्जानवि स़े तो ख़्वाह वह मकामी तौि पि तैयाि ककया गया

हो या दि आमद ककया गया हो उसक़े साथ नमाज़ पढ़ना र्जाइज़ है।

836. यह मालम
ू नहीं है कक सीपी हिाम गोश्त है वान क़े अअज़ा में स़े है

मलहाज़ा सीप (क़े िटन वगैिा) क़े साथ नमाज़ पढ़ना र्जाइज़ है ।

837. समिू का मलिास (Mink Fur) औि इसी तिह चगलहिी क़ी पोस्तीन पहन

कि नमाज़ पढ़ऩे में कोई हिर्ज नहीं है ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

चगलहिी क़ी पोस्तीन क़े साथ नमाज़ न पढ़ी र्जाए।

282
838. अगि कोई शख़्स ऐस़े मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़़े जर्जसक़े मत
ु अजल्लक वह

न र्जानता हो या भल
ू गया हो कक हिाम गोश्त र्जानवि स़े तैयाि हुआ है तो

एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि उस नमाज़ को दोिािा पढ़़े ।

पांचवीं शतक

839. ज़िदोज़ी का मलिास पहनना मदों क़े मलय़े हिाम है औि उसक़े साथ

नमाज़ पढ़ना िाततल है ल़ेककन औितों क़े मलय़े नमाज़ में या नमाज़ क़े अलावा

उसक़े पहनऩे में कोई हिर्ज नहीं है ।

840. सोना पहनना मसलन सोऩे क़ी ज़ंर्जीि गल़े में पहनना, सोऩे क़ी अंगूठ

हाथ में पहनना, सोऩे क़ी र्ड़ी कलाई में िांधना औि सोऩे क़ी ऐनक लगाना मदों

क़े मलय़े हिाम है औि इन चीज़ों क़े साथ नमाज़ पढ़ना िाततल है । ल़ेककन औितों

क़े मलय़े नमाज़ में औि नमाज़ क़े अलावा इन चीज़ों क़े इस्त़ेमाल में कोई हिर्ज

नहीं ।

841. अगि कोई शख़्स न र्जानता हो या भल


ू गया हो कक उसक़ी अंगठ
ू या

मलिास सोऩे का है या शक िखता हो औि उसक़े साथ नमाज़ पढ़़े तो उसक़ी

नमाज़ सहीह है ।

छटी शतक

283
842. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े मदक का मलिास ह्त्ता कक एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना

पि टोपी औि इज़ाििन्द भी खामलस ि़े शम का नहीं होना चाहहए औि नमाज़ क़े

अलावा भी खामलस ि़े शम पहनना मदों क़े मलय़े हिाम है।

843. अगि मलिास का तमाम अस्ति या उसका कुछ हहस्सा खामलस ि़े शम का

हो तो मदक क़े मलय़े उसका पहनना हिाम औि उसक़े साथ नमाज़ पढ़ना िाततल है ।

844. र्जि ककसी मलिास क़े िाि़े में यह इल्म न हो कक खामलस ि़े शम का है या

ककसी औि चीज़ का िना हुआ है तो उसका पहनना र्जाइज़ है औि उसक़े साथ

नमाज़ पढ़ऩे में कोई हिर्ज नहीं है ।

845. ि़े शमी रुमाल या उसी र्जैसी कोई चीज़ मदक क़ी र्ज़ेि में हो तो कोई हिर्ज

नहीं है औि वह नमाज़ को िाततल नहीं किती।

846. औित क़े मलय़े नमाज़ में या उसक़े अलावा ि़े शमी मलिास पहनऩे में कोई

हिर्ज नहीं है ।

847. मर्जििू ी क़ी हालत में गस्िी औि खामलस ि़े शमी औि ज़िदोज़ी का मलिास

पहनऩे में कोई हिर्ज नहीं । इसक़े अलावा र्जो शख़्स यह मलिास पहनऩे पि मर्जििू

हो औि उसक़े पास कोई औि मलिास न हो तो वह इन मलिासों क़े साथ नमाज़

पढ़ सकता है ।

284
848. अगि ककसी शख़्स क़े पास गस्िी मलिास क़े अलावा कोई मलिास न हो

औि वह यह मलिास पहनऩे पि मर्जििू न हो तो उस़े चाहहय़े कक उन एहकाम क़े

मत
ु ाबिक नमाज़ पढ़़े र्जो ििहना लोगों क़े मलय़े िताए गय़े हैं।

849. अगि ककसी क़े पास दरिन्द़े क़े अज्ज़ा स़े िऩे हुए मलिास क़े अलावा औि

कोई मलिास न हो औि वह यह मलिास पहनऩे पि मर्जििू हो तो उस मलिास क़े

साथ नमाज़ पढ़ सकता है औि अगि मलिास पहनऩे पि मर्जििू न हो तो उस़े

चाहहय़े कक उन अहकाम क़े मत


ु ाबिक नमाज़ पढ़़े र्जो ििहना लोगों क़े मलए िताए

गए हैं। औि अगि उसक़े पास गैि मशकािी हिाम र्जानविों क़े अज्ज़ा स़े तैयाि शद
ु ा

मलिास क़े मसवा दस


ू िा मलिास न हो औि वह उस मलिास को पहनऩे पि मर्जििू

न हो तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक दो दफ़् आ नमाज़ पढ़़े । एक िाि उसी

मलिास क़े साथ औि एक िाि उस तिीक़े क़े मत


ु ाबिक जर्जस का जज़क्र ििहना लोगों

क़ी नमाज़ में ियान हो चक


ु ा है।

850. अगि ककसी मदक क़े पास खामलस ि़े शमी या ज़ििफ़्ती मलिास क़े मसवा

कोई मलिास न हो औि वह मलिास पहनऩे पि मर्जििू न हो तो ज़रूिी है कक उन

अहकाम क़े मत
ु ाबिक नमाज़ पढ़़े र्जो ििहना लोगों क़े मलय़े िताए गय़े हैं।

851. अगि ककसी क़े पास ऐसी कोई चीज़ न हो जर्जसस़े वह अपनी शमकगाहों को

नमाज़ में ढांप सक़े तो वाजर्जि है कक ऐसी चीज़ ककिाए पि ल़े या खिीद़े ल़ेककन

अगि उस पि उसक़ी है मसयत स़े ज़्यादा खचक उठता हो या सिू त यह हो कक इस

285
काम क़े मलय़े खचक िदाकश्त कि़े तो उसक़ी हालत तिाह हो र्जाए तो उन अहकाम क़े

मत
ु ाबिक नमाज़ पढ़़े र्जो ििहना लोगों क़े मलय़े िताए गए हैं।

852. जर्जस शख़्स क़े पास मलिास न हो अगि कोई दस


ू िा शख़्स उस़े मलिास

िख़्श द़े या उधाि द़े द़े तो अगि मलिास का किल


ू किना उस पि गिां न गुिज़ता

हो तो ज़रूिी है कक उस़े किल


ू कि ल़े िजल्क अगि उधाि ल़ेना या िखमशश क़े तौि

पि तलि किना उसक़े मलय़े तक्लीफ़ का िाइस न हो तो ज़रूिी है कक जर्जस क़े

पास मलिास हो उसस़े उधाि मांग ल़े या िखमशश क़े तौि पि तलि कि़े ।

853. अगि कोई शख़्स ऐसा मलिास पहनना चाह़े जर्जसका कपड़ा, िं ग या मसलाई

रिवार्ज क़े मत
ु ाबिक न हो तो अगि उसका पहनना उसक़ी शान क़े खखलाफ़ औि

तौहीन का िाइस हो तो उसका पहनना हिाम है। ल़ेककन अगि वह उस मलिास क़े

साथ नमाज़ पढ़़े औि उसक़े पास शमकगाह तछपाऩे क़े मलय़े फ़कत वही मलिास हो

तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

854. अगि मदक ज़नाना मलिास पहऩे औि औित मदाकना मलिास पहऩे औि उस़े

अपनी ज़ीनत किाि द़े तो एहततयात क़ी बिना पि उसका पहनना हिाम है। ल़ेककन

उस मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़ना हि सिू त में सहीह है ।

855. जर्जस शख़्स को ल़ेटकि नमाज़ पढ़नी चाहहय़े अगि उसका मलहाफ़ दरिन्द़े

क़े अज्ज़ा स़े िजल्क एहततयात क़ी बिना पि हिाम गोश्त र्जानवि क़े अज्ज़ा स़े िना

हो या नजर्जस या ि़े शमी हो औि उस़े पहनावा कहा र्जा सक़े तो उसस़े भी नमाज़

286
र्जाइज़ नहीं है । ल़ेककन अगि उस़े महज़ अपऩे ऊपि डाल मलया र्जाए तो कोई हिर्ज

नहीं औि उसस़े नमाज़ िाततल नहीं होती अलित्ता गदील़े क़े इस्त़ेमाल में ककसी

हालत में भी कोई किाहत नहीं मसवा इसक़े कक उसका कुछ हहस्सा इंसान अपऩे

ऊपि लप़ेट ल़े औि उस़े उफ़े आम में पहनना कहा र्जाए तो इस सिू त में उस का

भी वही हुक्म है र्जो मलहाफ़ का है ।

जजन स़ूितों में नमाज़ी का बदन औि ललबास पाक होना जरूिी नहीं

856. तीन सिू तों में जर्जनक़ी तफ़्सील नीच़े ियान क़ी र्जा िही है अगि नमाज़

पढ़ऩे वाल़े का िदन या मलिास नजर्जस भी हो तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ः-

(1). उसक़े िदन क़े ज़ख़्म, र्जिाहत या िोड़़े क़ी वर्जह स़े उसक़े मलिास या िदन

पि खून लग र्जाए।

(2). उसक़े िदन या मलिास पि हदिहम – जर्जसक़ी ममक़्दाि तक़्ऱीिन अंगठ


ू ़े क़े

ऊपि वाली चगिह क़े ििािि है – क़ी ममक़्दाि स़े कम खून लग र्जाए।

(3). वह नजर्जस िदन या मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़ऩे पि मर्जििू हो।

इनक़े अलावा एक औि सिू त में अगि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का मलिास नजर्जस भी

हो तो उसक़ी नमाज़ सहीह है औि वह सिू त यह है कक उसका छोटा मलिास

मसलन मोज़ा औि टोपी नजर्जस हो।

287
इन चािों सिू तों क़े मफ़
ु स्सल अहकाम आइन्दा मस ्अलों में ियान ककय़े र्जायेंग़े।

857. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े िदन या मलिास पि ज़ख़्म या र्जिाहत या

फ़ोड़़े का खन
ू हो तो वह उस खन
ू क़े साथ उस वक़्त तक नमाज़ पढ़ सकता है

र्जि तक ज़ख़्म या र्जिाहत या फ़ोड़़े ठ क न हो र्जाए औि उसक़े िदन या मलिास

पि ऐसी पीप हो र्जो खून क़े साथ तनकली हो या ऐसी दवाई हो र्जो ज़ख़्म पि

लगाई गई हो औि नजर्जस हो गई हो औि नजर्जस हो गई हो तो उसक़े भी यही

हुक्म है ।

858. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े िदन या मलिास पि ऐसी खिाश या ज़ख़्म का

खून लगा हो र्जो र्जल्दी ठ क हो र्जाता हो औि जर्जसका धोना आसान हो तो उसक़ी

नमाज़ िाततल है ।

859. अगि िदन या मलिास क़ी ऐसी र्जगह र्जो ज़ख़्म स़े फ़ामसल़े पि हो ज़ख़्म

क़ी रुतूित स़े नजर्जस हो र्जाए तो उसक़े साथ नमाज़ पढ़ना र्जाइज़ नहीं है ल़ेककन

अगि मलिास या िदन क़ी वह र्जगह र्जो उमम


ू न ज़ख़्म क़ी रुति
ू त स़े आलद
ू ा हो

र्जाती है उस ज़ख़्म क़ी रुति


ू त स़े नजर्जस हो र्जाए तो उसक़े साथ नमाज़ पढ़ऩे में

कोई हिर्ज नहीं है।

860. अगि ककसी शख़्स क़े िदन या मलिास को उस िवासीि स़े जर्जस क़े मस्स़े

िाहि न हों या उस ज़ख़्म स़े र्जो मंह


ु औि नाक वगैिा क़े अन्दि हों खून लग र्जाए

तो ज़ाहहि यह है कक वह उसक़े साथ नमाज़ पढ़ सकता है अलित्ता उस िवासीि क़े

288
खून क़े साथ नमाज़ पढ़ना बिला इश्काल र्जाइज़ है जर्जसक़े मस्स़े मक् अद क़े िाहि

हों।

861. अगि कोई ऐसा शख़्स जर्जसक़े िदन पि ज़ख़्म हों अपऩे िदन या मलिास

पि ऐसा खून द़े ख़े र्जो हदिहम स़े ज़्यादा हो औि यह न र्जानता हो कक यह खून

ज़ख़्म का है या कोई औि खून है तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उस खून क़े

साथ नमाज़ न पढ़़े ।

862. अगि ककसी शख़्स क़े िदन पि चन्द ज़ख़्म हों औि वह एक दस


ू ि़े क़े इस

कर नज़्दीक हों कक एक ज़ख़्म शम


ु ाि होत़े हों तो र्जि तक वह ज़ख़्म ठ क न हो

र्जायें उनक़े खून क़े साथ नमाज़ पढ़ऩे में कोई हिर्ज नहीं है ल़ेककन अगि वह एक

दस
ू ि़े स़े इतऩे दिू हों कक उनमें स़े हि ज़ख़्म एक अलायहदा ज़ख़्म शम
ु ाि हो तो

र्जो ज़ख़्म ठ क हो र्जाए ज़रूिी है कक नमाज़ क़े मलय़े िदन औि मलिास को धो कि

उस खून स़े पाक कि़े ।

863. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े िदन या मलिास पि सई


ु क़ी नोक क़े ििािि

भी हैज़ का खन
ू लगा हो तो उसक़ी नमाज़ िाततल है। औि एहततयात क़ी बिना पि

नजर्जस है वानात मसलन सव्ु वि, मद


ु ाकि औि हिाम गोश्त र्जानवि नीज़ तनफ़ास औि

इजस्तहाज़ा क़ी भी यही सिू त है । ल़ेककन दस


ू िा खून मसलन इंसान या हलाल गोश्त

है वान क़े खून क़ी छ ंट िदन क़े कई हहस्सों पि लगी हो ल़ेककन मज्मई
ू ममक़्दाि

एक हदिहम स़े कम हो तो उसक़े साथ नमाज़ पढ़ऩे में कोई हिर्ज नहीं है ।

289
864. र्जो खून िगैि अस्ति क़े कपड़़े पि चगि़े औि दस
ू िी तिफ़ पहुंच र्जाए वह

एक खन
ू शम
ु ाि होता है ल़ेककन अगि कपड़़े क़े दस
ू िी तिफ़ अलग स़े खन
ू आलद
ू ा

हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उनमें स़े हि एक को अलायहदा खन


ू शम
ु ाि ककया र्जाए

पस अगि वह खून र्जो कपड़़े क़े सामऩे क़े रुख औि वपछली तिफ़ है मज्मई
ू तौि

पि एक हदिहम स़े कम हो तो उसक़े साथ नमाज़ सहीह है औि अगि उसस़े ज़्यादा

हो तो उसक़े साथ नमाज़ िाततल है ।

865. अगि अस्ति वाल़े कपड़़े पि चगि़े औि उसक़े अस्ति तक पहुंच र्जाए या

अस्ति पि चगि़े औि कपड़़े तक पहुंच र्जाए तो ज़रूिी है कक हि खन


ू को अलग

अलग शम
ु ाि ककया र्जाए। ल़ेककन अगि कपड़़े का खून औि अस्ति का खून इस

तिह ममल र्जाए कक लोगों क़े नज़्दीक एक खून शम


ु ाि हो तो अगि कपड़़े का खून

औि अस्ति का खून ममलाकि एक हदिहम स़े कम हो तो उसक़े साथ नमाज़ सहीह

है औि अगि ज़्यादा हो तो नमाज़ िाततल है ।

866. अगि िदन या मलिास पि एक हदिहम स़े कम खन


ू हो औि कोई रुति
ू त

उस खन
ू स़े ममल र्जाए औि उसक़े अत्राफ़ को आलद
ू ा कि द़े तो उसक़े साथ नमाज़

िाततल है ख़्वाह खून औि रुतूित उसस़े ममली है एक हदिहम क़े ििािि न हो

ल़ेककन अगि रुतूित मसफ़क खून स़े ममल़े औि उसक़े एतिाफ़ को आलद
ू ा न कि़े तो

ज़ाहहि यह है कक उसक़े साथ नमाज़ पढ़ऩे में कोई हिर्ज नहीं है।

290
867. अगि िदन या मलिास पि खून न हो ल़ेककन रुतूित लगऩे क़ी वर्जह स़े

खन
ू स़े नजर्जस हो र्जायें तो अगिच़े र्जो ममक़्दाि नजर्जस हुई है वह एक हदिहम स़े

कम हो तो उसक़े साथ भी नमाज़ नहीं पढ़ी र्जा सकती।

868. िदन या मलिास पि र्जो खून हो अगि वह एक हदिहम स़े कम हो औि

कोई दस
ू िी नर्जासत उसस़े आ लग़े मसलन प़ेशाि का एक कतिा उस पि चगि र्जाए

औि वह िदन या मलिास स़े लग र्जाए तो उसक़े साथ नमाज़ पढ़ना र्जाइज़ नहीं

िजल्क अगि िदन औि मलिास तक न भी पहुंच़े ति भी एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि उसमें नमाज़ पढ़ना सहीह नहीं है ।

869. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का छोटा मलिास मसलन टोपी औि मोज़ा, जर्जसस़े

शमकगाह को न ढांपा र्जा सकता हो, नजर्जस हो र्जाए औि वह एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि नजर्जस मद
ु ाकि या नजर्जसल
ु ऐन हैवान मसलन कुत्त़े (क़े अअज़ा) स़े न िना

हो तो उसक़े साथ नमाज़ सहीह है औि इसी तिह अगि नजर्जस अंगूठ क़े साथ

नमाज़ पढ़ी र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं।

870. नजर्जस चीज़ मसलन नजर्जस रूमाल, चािी औि चाकू का नमाज़ पढऩे वाल़े

क़े पास होना र्जाइज़ है औि िईद नहीं है कक मत्ु लक नजर्जस मलिास (र्जो पहना

हुआ न हो) उसक़े पास हो ति भी नमाज़ को कोई ज़िि न पहुंचाए (यानी उसक़े

पास होत़े हुए नमाज़ सहीह हो।

291
871. अगि कोई र्जानतो हो कक र्जो खून उसक़े मलिास या िदन पि है वह एक

हदिहम स़े कम है ल़ेककन इस अम्र का एहततमाल हो कक यह उस खन


ू में स़े है र्जो

मआ
ु फ़ नहीं है तो उसक़े मलय़े र्जाइज़ है कक उस खन
ू क़े साथ नमाज़ पढ़़े औि

उसका धोना ज़रूिी नहीं है।

872. अगि वह खून र्जो एक शख़्स क़े मलिास या िदन पि हो एक हदिहम स़े

कम हो औि उस़े यह इल्म न हो कक यह उस खून में स़े है र्जो मआ


ु फ़ नहीं है

नमाज़ पढ़ ल़े औि किि उस़े पता चल़े कक यह उस खून में स़े था र्जो मआ
ु फ़ नहीं

है तो उसक़े मलय़े दोिािा नमाज़ पढ़ना ज़रूिी नहीं है औि उस वक़्त भी यही हुक्म

है र्जि वह यह समझता हो कक खून एक हदिहम स़े कम है औि नमाज़ पढ़ ल़े

औि िाद में पता चल़े कक उसक़ी ममक़्दाि एक हदिहम या उसस़े ज़्यादा थी, उस

सिू त में भी दोिािा नमाज़ पढ़ऩे क़ी ज़रूिी नहीं है ।

वह च़ीजें जो नमाज़ी के ललबास में मुस्तहब हैं

873. चन्द चीज़ें नमाज़ी क़े मलिास में मस्


ु तहि हैं कक जर्जनमें स़े तह्तुलहनक क़े

साथ अमामा, अिा, सफ़ैद मलिास, साफ़ सथ


ु िा मलिास, खुशिू लगाना औि अक़ीक

क़ी अंगूठ पहनना।

292
वह च़ीजें जो नमाज़ी के ललबास में मकरूह हैं

874. चन्द चीज़ें नमाज़ी क़े मलिास में मकरूह हैं जर्जनमें स़े मसयाह, मैला औि

तंग मलिास औि शिािी का मलिास पहनना या उस शख़्स का मलिास पहनना र्जो

नर्जासत स़े पिह़े ज़ न किता हो औि ऐसा मलिास पहनना जर्जस पि च़ेहि़े क़ी

तस्वीि िनी हो। इसक़े अलावा मलिास क़े िटन खुल़े होना औि ऐसी अंगूठ पहनना

जर्जस पि च़ेहि़े क़ी तस्वीि िनी हो मकरूह है ।

293
नमाज पढ़ने की जगह

नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़ी र्जगह क़ी सात शतें है ः-

पहली शतक यह है कक वह मि
ु ाह हो।

875. र्जो शख़्स गस्िी र्जगह पि अगिच़े वह कालीन, तख्त औि इसी तिह क़ी

दस
ू िी चीज़ें हों, नमाज़ पढ़ िहा हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उसक़ी

नमाज़ िाततल है ल़ेककन गस्िी छत क़े नीच़े औि गस्िी खैम़े में नमाज़ पढ़ऩे में

कोई हिर्ज नहीं है।

876. ऐसी र्जगह नमाज़ पढ़ना जर्जसक़ी मन्फ़अत ककसी औि क़ी ममजल्कयत हो

तो मन्फ़अत क़े मामलक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि वहां नमाज़ पढ़ना गस्िी र्जगह पि

नमाज़ पढ़ऩे क़े हुक्म में है मसलन ककिाय़े क़े मकान में मामलक मकान या उस

शख़्स क़ी इर्जाज़त क़े िगैि कक जर्जसऩे वह मकान ककिाय़े पि मलया है नमाज़ पढ़़े

तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है औि अगि मिऩे वाल़े ऩे

वसीयत क़ी हो कक उसक़े माल का तीसिा हहस्सा फ़ुलां काम पि खचक ककया र्जाए

तो र्जि तक कक तीसि़े हहस्स़े को र्जद


ु ा न ककया र्जाए उसक़ी र्जायदाद में नमाज़

नहीं पढ़ी र्जा सकती।

294
877. अगि कोई शख़्स मजस्र्जद में िैठा हो औि दस
ू िा शख़्स उस़े िाहि तनकाल

कि उसक़ी र्जगह पि कबज़ा कि़े औि उस र्जगह नमाज़ पढ़़े तो उसक़ी नमाज़

सहीह है अगिच़े उसऩे गन


ु ाह ककया है ।

878. अगि कोई शख़्स ककसी ऐसी र्जगह नमाज़ पढ़़े जर्जसक़े गस्िी होऩे का उस़े

इल्म न हो औि नमाज़ क़े िाद उस़े पता चल़े या ऐसी र्जगह नमाज़ पढ़़े जर्जसक़े

गस्िी होऩे को वह भल
ू गया हो औि नमाज़ क़े िाद उस़े याद आय़े तो उसक़ी

नमाज़ सहीह है । ल़ेककन कोई ऐसा शख़्स जर्जसऩे खुद वह र्जगह गस्ि क़ी हो औि

वह भल
ू र्जाए औि वहां नमाज़ पढ़़े तो उसक़ी नमाज़ एहततयात क़ी बिना पि

िाततल है ।

879. अगि कोई शख़्स र्जानता हो कक यह गस्िी र्जगह है औि इसमें तसरूकफ़

हिाम है ल़ेककन उस़े यह इल्म न हो कक गस्िी र्जगह पि नमाज़ पढ़ऩे में इश्काल

है औि वह वहां नमाज़ पढ़़े तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

880. अगि कोई शख़्स वाजर्जि नमाज़ सवािी क़ी हालत में पढ़ऩे पि मर्जििू हो

औि सवािी का र्जानवि या उसक़ी ज़ीन या नअल गस्िी हो तो उसक़ी नमाज़

िाततल है औि अगि वह शख़्स उस र्जानवि पि सवािी क़ी हालत में मस्


ु तहि

नमाज़ पढ़ना चाह़े तो उसक़ी भी यही हुक्म है ।

295
881. अगि कोई शख़्स ककसी र्जायदाद में दस
ू ि़े का शिीक हो औि उसका हहस्सा

र्जद
ु ा न हो तो अपऩे मशककतदाि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि वह उस र्जायदाद पि तसरूकफ़

नहीं कि सकता औि उस पि नमाज़ नहीं पढ़ सकता।

882. अगि कोई शख़्स एक ऐसी िकम स़े र्जायदाद खिीद़े जर्जसका खुम्स उसऩे

अदा न ककया हो तो उस र्जायदाद पि उसका तसरूकफ़ हिाम है औि उसमें उसक़ी

नमाज़ र्जाइज़ नहीं है।

883. अगि ककसी र्जगह का मामलक ज़िान स़े नमाज़ पढ़ऩे क़ी इर्जाज़त द़े द़े

औि इंसान को इल्म हो कक वह हदल स़े िाज़ी नहीं है तो उस र्जगह पि नमाज़

पढ़ना र्जाइज़ नहीं है औि अगि इर्जाज़त न द़े ल़ेककन इंसान को यक़ीन हो कक वह

हदल स़े िाज़ी है तो नमाज़ पढ़ना र्जाइज़ है ।

884. जर्जस मत
ु वफ़्फ़़ी ऩे ज़कात औि उस़े र्जैस़े दस
ू ि़े वाजर्जिात अदा न ककय़े हों

उसक़ी र्जायदाद में तसरूकफ़ किना, अगि वाजर्जिात क़ी अदायगी में माऩे न हो,

मसलन उसक़े र्ि में विसा क़ी इर्जाज़त स़े नमाज़ पढ़ी र्जाए तो इश्काल नहीं है।

इसी तिह अगि कोई शख़्स वह िकम र्जो मत


ु वफ़्फ़़ी क़े जज़म्म़े हो अदा कि द़े या

ज़मानत द़े कक अदा कि द़े गा तो उसक़ी र्जायदाद में तसरूकफ़ किऩे में भी कोई

इश्काल नहीं है।

296
885. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी लोगो का मकरूज़ हो तो उसक़ी र्जायदाद में तसरूकफ़

किना उस मद
ु े क़ी र्जायदाद में तसरूकफ़ क़े हुक्म में है जर्जसऩे ज़कात औि उसक़ी

मातनन्द दस
ू ि़े माली वाजर्जिात अदा न ककय़े हों।

886. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े जज़म्म़े कज़क न हो ल़ेककन उसक़े िाज़ विसा कममसन

या मज्नन
ू या गैि हाजज़ि हों तो उनक़े वली क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उसक़ी र्जायदाद

में तसरूकफ़ हिाम है औि उसमें नमाज़ र्जाइज़ नहीं है ।

887. ककसी क़ी र्जायदाद में नमाज़ पढ़ना उस सिू त में र्जाइज़ है र्जिकक उसका

मामलक सिीहन इर्जाज़त द़े या कोई ऐसी िात कह़े जर्जसमें मालम
ू हो कक उसऩे

नमाज़ पढ़ऩे क़ी इर्जाज़त द़े दी है । मसलन अगि इसस़े समझा र्जा सकता है उसऩे

नमाज़ पढ़ऩे क़ी इर्जाज़त भी द़े दी है या मामलक क़े िाज़ी होऩे पि दस


ू िी वर्ज
ु ूहात

क़ी बिना पि इत्मीनान िखता हो।

888. वसी व अिीज़ ज़मीन में नमाज़ पढ़ना र्जाइज़ है अगिच़े उसक़े मामलक

कममसन या मज्नन
ू हो या वहां नमाज़ पढ़ऩे पि िाज़ी न हो। इसी तिह वह ज़मीऩे

कक जर्जनक़े दिवाज़़े औि हदवाि न हों उनमें उनक़े मामलक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि

नमाज़ पढ़ सकत़े हैं। ल़ेककन अगि मामलक कममसन या मज्नन


ू हो या उसक़े िाज़ी

न हो ऩे का गुमान हो तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक वहां नमाज़ न पढ़ी र्जाए।

297
दस
ू िी शतक

889. ज़रूिी है कक नमाज़ी क़ी र्जगह वाजर्जि नमाज़ों में ऐसी न हो कक त़ेज़

हिकत नमाज़ी क़े खड़़े होऩे या रूकूउ औि सर्ज


ु द ू किऩे में माऩे हो िजल्क

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उसक़े िदन को साककन िखऩे में भी

माऩे न हो औि अगि वक़्त क़ी तंगी या ककसी औि वर्जह स़े ऐसी र्जगह मसलन

िस, ट्रक, कश्ती या ि़े लगाड़ी में नमाज़ पढ़़े तो जर्जस कर मजु म्कन हो िदन क़े

ठहिाव औि ककबल़े क़ी मसम्त का ख़्याल िख़े औि अगि ट्रांस्पोटक स़े ककसी दस
ू िी

तिफ़ मड़
ु र्जाए तो अपना मंह
ु ककबल़े क़ी तिफ़ मोड़ द़े ।

890. र्जि गाड़ी, कश्ती या ि़े लगाड़ी वगैिा खड़ी हुई हों तो उनमें नमाज़ पढ़ऩे में

कोई हिर्ज नहीं औि इसी तिह र्जि चल िहीं हो तो इस हद तक न हहलर्जुल िही

हों कक नमाज़ी क़े िदन क़े ठहिाव में हाइल हों।

891. गंदम
ु , र्जौ औि उन र्जैसी दस
ू िी अज्नास क़े ढ़े ि पि र्जो हहल़े र्जुल़े िगैि

नहीं िह सकत़े नमाज़ िाततल है । (िोरियें क़े ढ़े ि मिु ाद नहीं हैं।)

(तीसिी शतक)

ज़रूिी है कक इंसान ऐसी र्जगह नमाज़ पढ़़े र्जहां नमाज़ पिू ी पढ़ ल़ेऩे का

एहततमाल हो। ऐसी र्जगह नमाज़ पढ़ना सहीह नहीं है जर्जसक़े मत


ु ाजल्लक उस़े

यक़ीन हो कक मसलन हवा औि िारिश या भीड़ भाड़ क़ी वर्जह स़े वहां पिू ी नमाज़

298
न पढ़ सक़ेगा गो इत्त़ेफ़ाक स़े पिू ी पढ़ ल़े।

892. अगि कोई शख़्स ऐसी र्जगह नमाज़ न पढ़़े र्जहां ठहिना हिाम हो मसलन

ककसी ऐसी मख्दश


ू छत क़े नीच़े र्जो अंकिीि चगिऩे वाली हो तो वह गुनाहा का

मत
ु कक कि होगा ल़ेककन उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

893. ककसी ऐसी चीज़ पि नमाज़ पढ़ना सहीह नहीं है जर्जस पि खड़ा होना या

िैठना हिाम हो मसलन कालीन क़े ऐस़े हहस्स़े पि र्जहां अल्लाह तआला का नाम

मलखा हो। चंकू क यह (इस्म़े खद


ु ा) कस्द़े कुिकत में माऩे है इस मलय़े (नमाज़ पढ़ना)

सहीह नहीं है।

(चौथी शतक)

जर्जस र्जगह इंसान नमाज़ पढ़़े उसक़ी छत इतनी नीची न हो कक सीधा खड़ा न

हो सक़े औि न ही वह र्जगह इतनी मख़्


ु तसि हो कक रूकू औि सज्द़े क़ी गंर्ज
ु ाइश

न हो।

894. अगि कोई शख़्स ऐसी र्जगह नमाज़ पढ़ऩे पि मर्जििू हो र्जहां बिल्कुल

सीधा खड़ा होना मजु म्कन न हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक िैठकि नमाज़ पढ़़े

औि अगि रूकू औि सर्ज


ु द ू अदा किऩे का इम्कान न हो तो उसक़े मलय़े सि स़े

इशािा कि़े ।

299
895. ज़रूिी है कक पैगम्िि़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम

औि अइम्मए अहल़े िैत (अ0) क़ी कब्र क़े आग़े अगि उनक़ी ि़े हुमत
क ी होती हो तो

नमाज़ न पढ़़े । इसक़े अलावा ककसी औि सिू त में इश्काल नहीं।

(पांचवी शतक)

अगि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़ी र्जगह नजर्जस हो तो इतनी मति


ूक न हो कक उसक़ी

रुतूित नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े िदन या मलिास तक पहुंच़े ल़ेककन अगि सज्द़े में

प़ेशानी िखऩे क़ी र्जगह नजर्जस हो तो ख़्वाह वह खुश्क भी हो नमाज़ िाततल है

औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक नमाज़ पढ़ऩे क़ी र्जगह हिचगज़ नजर्जस न हो।

(छटी शतक)

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक औित मदक स़े पीछ़े खड़ी हो औि

कम अज़ कम उसक़े सज्दा किऩे क़ी र्जगह सज्द़े क़ी हालत में मदक क़े दो ज़ानू क़े

ििािि फ़ामसल़े पि हो।

896. अगि कोई औित मदक क़े ििािि या आग़े खड़ी हो औि दोनों ियक वक़्त

नमाज़ पढ़ऩे लगें तो ज़रूिी है कक दोिािा नमाज़ पढ़ें । औि यही हुक्म है अगि एक

दस
ू ि़े स़े पहल़े नमाज़ क़े मलय़े खड़ा हो।

300
897. अगि मदक औि औित एक दस
ू ि़े क़े ििािि खड़़े हों या औित आग़े खड़ी हो

औि दोनों नमाज़ पढ़ िह़े हों ल़ेककन दोनों क़े दिममयान दीवाि या पदाक या कोई

औि ऐसी चीज़ हाइल हो कक एक दस


ू ि़े को न द़े ख सकें या उनक़े दिममयान दस

हाथ स़े ज़्यादा फ़ामसला हो तो दोनों क़ी नमाज़ सहीह है ।

(सातवीं शतक)

नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़ी प़ेशानी िखऩे क़ी र्जगह, दो ज़ानू औि पांव क़ी उं गमलयां

िखऩे क़ी र्जगह स़े चाि ममली हुई उं गमलयों क़ी ममक़्दाि स़े ज़्यादा ऊंची या नीची

न हो। इस मस ्अल़े क़ी तफ़्सील सज्द़े क़े अहकाम में आय़ेगी।

898. ना महिम मदक औि औित का एक ऐसी र्जगह होना र्जहां गुनाह में

मबु तला होऩे का एहततमाल हो हिाम है । एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक ऐसी र्जगह

नमाज़ भी न पढ़ें ।

899. जर्जस र्जगह मसताि िर्जाया र्जाता हो औि उस र्जैसी चीज़़े इस्त़ेमाल क़ी

र्जाती हों वहां नमाज़ पढ़ना िाततल नहीं है गो उनका सन


ु ना औि इस्त़ेमाल किना

गुनाह है ।

900. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक इजख़्तयाि क़ी हालत में खाना ए कअिा क़े

अन्दि औि उसक़ी छत क़े ऊपि वाजर्जि नमाज़ न पढ़ी र्जाए। ल़ेककन मज्ििू ी क़ी

हालत में कोई इश्काल नहीं है ।

301
901. खाना ए कअिा क़े अन्दि औि उसक़ी छत क़े ऊपि नफ़्ली नमाज़ें पढ़ऩे

में कोई हिर्ज नहीं है िजल्क मस्


ु तहि है कक खाना ए कअिा क़े अन्दि हि रुक्न क़े

मक
ु ाबिल दो िक् अत नमाज़ पढ़ी र्जाए।

वह मकामात जहां नमाज पढ़ना मुस्तहब है

902. इस्लाम क़ी मक


ु द्दस शिीअत में िहुत ताक़ीद क़ी गई है कक नमाज़

मजस्र्जद में पढ़ी र्जाए। दतु नया भि क़ी सािी मजस्र्जदों में सिस़े ि़ेहति मजस्र्जदल

हिाम औि उसक़े िाद मजस्र्जद़े निवी (स0) है औि उसक़े िाद मजस्र्जद़े कूफ़ा औि

उसक़े िाद मजस्र्जद़े िैतुल मक


ु द्दस का दिर्जा है । उसक़े िाद शहि क़ी र्जाम़े

मजस्र्जद औि उसक़े िाद मोहल्ल़े क़ी मजस्र्जद औि उसक़े िाद िाज़ाि क़ी मजस्र्जद

का नम्िि आता है।

903. औित क़े मलय़े ि़ेहति है कक नमाज़ ऐसी र्जगह पढ़़े र्जो ना महिम स़े

महफ़ूज़ होऩे क़े मलहाज़ स़े दस


ू िी र्जगहों स़े ि़ेहति हो ख़्वाह वह र्जगह मकान या

मजस्र्जद या कोई औि र्जगह हो।

904. आइम्मा ए अहल़े िैत (अ0) क़े हिमों में नमाज़ पढ़ना मस्
ु तहि है िजल्क

मजस्र्जद में नमाज़ पढ़ऩे स़े ि़ेहति है औि रिवायत है कक हज़ित अमीरुल मोममनीन

(अ0) क़े हिम़े पाक में नमाज़ पढ़ना दो लाख नमाज़ों क़े ििािि है ।

302
905. मजस्र्जद में ज़्यादा र्जाना औि उस मजस्र्जद में र्जाना र्जो आिाद न हो

(यानी र्जहां लोग िहुत कम नमाज़ पढ़ऩे आत़े हों) मस्


ु तहि है औि अगि कोई

शख़्स मजस्र्जद क़े पड़ोस में िहता हो औि कोई उज़्र भी न िखता हो तो उसक़े मलय़े

मजस्र्जद क़े अलावा ककसी औि र्जगह नमाज़ पढ़ना मकरूह है ।

906. र्जो शख़्स मजस्र्जद में न आता हो, मस्


ु तहि है कक इंसान उसक़े साथ

ममलकि खाना न खाए, अपऩे कामों में उसस़े मजश्विा न कि़े , उसक़े पड़ोस में न

िह़े औि न उसस़े औित का रिश्ता ल़े औि न उस़े रिश्ता द़े । (यानी उसका सोशल

िाइकाट कि़े ) ।

वह मकामात जहां नमाज पढ़ना मकरूह है

907. चन्द मकामात पि नमाज़ पढ़ना मकरूह है जर्जनमें स़े कुछ यह हैं-

1. हम्माम,

2. शोि ज़मीन,

3. ककसी इंसान क़े मक


ु ाबिल,

4. उस दिवाज़़े क़े मक
ु ाबिल र्जो खुला हो।

5. सड़क, गली औि कूच़े में िशते कक गज़


ु िऩे वालों क़े मलय़े िाइस़े ज़हमत न

हो औि अगि उन्हें ज़हमत हो तो उनक़े िास्त़े में रुकावट डालना हिाम है ।

6. आग औि चचिाग क़े मक
ु ाबिल।

303
7. िाविची खाऩे में हि उस र्जगह र्जहां आग क़ी भट्टी हो।

8. कुयें क़े औि ऐस़े गढ़़े क़े मक


ु ाबिल जर्जसमें प़ेशाि ककया र्जाता हो।

9. र्जानदाि क़े फ़ोटो या मर्ज


ु स्सम़े क़े सामऩे मगि यह कक उस़े ढांप हदया र्जाए।

10. ऐस़े कमि़े में जर्जसमें र्जुनि


ु शख़्स मौर्जूद हो।

11. जर्जस र्जगह फ़ोटो हो ख़्वाह वह नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े सामऩे न हो।

12. कब्र क़े मक


ु ाबिल।

13. कब्र क़े ऊपि।

14. दो कब्रों क़े दिममयान।

15. कबब्रस्तान में ।

908. अगि कोई शख़्स लोगों क़ी िहगुज़ि पि नमाज़ पढ़ िहा हो या कोई औि

शख़्स उसक़े सामऩे खड़ा हो तो नमाज़ी क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक अपऩे सामऩे कोई

चीज़ िख ल़े औि अगि वह चीज़ लकड़ी या िस्सी हो तो भी काफ़़ी है।

मजस्जद के अहकाम

909. मजस्र्जद क़ी ज़मीन अन्दरूनी औि ि़ेरूनी छत औि अन्दरूनी दीवाि को

नजर्जस किना हिाम है औि जर्जस शख़्स को पता चल़े कक इनमें स़े कोई एक

मकाम नजर्जस हो गया है तो ज़रूिी है कक उसक़ी नर्जासत को फ़ौिन दिू कि़े औि

304
एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक मजस्र्जद क़ी दीवाि क़े ि़ेरूनी हहस्स़े को भी नजर्जस न

ककया र्जाए औि अगि वह नजर्जस हो र्जाए तो नर्जासत का हटाना लाजज़म नहीं

ल़ेककन अगि दीवाि का ि़ेरूनी हहस्सा नजर्जस किना मजस्र्जद क़ी ि़े हुिमती का

सिि हो तो कत ्अन हिाम है औि इस कदि नर्जासत का ज़ाइल किना कक जर्जसस़े

ि़े हुमत
क ी खत्म हो र्जाए ज़रूिी है ।

910. अगि कोई शख़्स मजस्र्जद को पाक किऩे पि काहदि न हो या उस़े मदद

क़ी ज़रूित हो र्जो दस्तयाि न हो तो मजस्र्जद का पाक किना उस पि वाजर्जि नहीं

ल़ेककन यह समझता हो कक अगि दस


ू ि़े को इवत्तलाअ द़े गा तो यह काम हो र्जाय़ेगा

तो ज़रूिी है कक उस़े इवत्तलाअ द़े ।

911. अगि मजस्र्जद क़ी कोई र्जगह नजर्जस हो गई हो जर्जस़े खोद़े या तोड़़े िगैि

पाक किना मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक उस र्जगह को खोदें या तोड़ें र्जिकक

र्जुज़्वी तौि पि खोदना या तोड़ना पड़़े या ि़े हुमत


क ी का खत्म होना मक
ु म्मल तौि

पि खोदऩे या तोड़ऩे पि मौकूफ़ हो वनाक तोड़ऩे में इश्काल है । र्जो र्जगह खोदी गई

हो उस़े पिु किना औि र्जो र्जगह तोड़ी गई हो उस़े तअमीि किना वाजर्जि नहीं है

ल़ेककन मजस्र्जद क़ी कोई चीज़ मसलन ईंट अगि नजर्जस हो गई हो तो मजु म्कन

सिू त में उस़े पानी स़े पाक किक़े ज़रूिी है कक उसक़ी असली र्जगह पि लगा हदया

र्जाए।

305
912. अगि कोई शख़्स मजस्र्जद को गस्ि कि़े औि उसक़ी र्जगह र्ि या ऐसी ही

कोई चीज़ तअमीि कि़े या मजस्र्जद इस कदि टूट फ़ूट र्जाए कक उस़े मजस्र्जद न

कहा र्जाए ति भी एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि उस़े नजर्जस न कि़े ल़ेककन उस़े

पाक किना वाजर्जि नहीं।

913. अइम्मा ए अहल़े िैत (अ0) में स़े ककसी इमाम का हिम नजर्जस किना

हिाम है। अगि उनक़े हिमों में स़े कोई हिम नजर्जस हो र्जाए औि उसका नजर्जस

िहना उसक़ी ि़े हुमत


क ी का सिि हो तो उसका पाक किना वाजर्जि है िजल्क

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक ख़्वाह ि़े हुमत
क ी न होती हो ति भी पाक ककया र्जाए।

914. अगि मजस्र्जद क़ी चटाई नजर्जस हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उस़े धोकि पाक

किें औि अगि चटाई का नजर्जस होना मजस्र्जद क़ी ि़े हुमत


क ी शम
ु ाि होता हो औि

वह धोऩे स़े खिाि होती हो औि नजर्जस हहस्स़े का काट द़े ना ि़ेहति हो तो ज़रूिी है

कक उस़े काट हदया र्जाए।

915. अगि ककसी ऐन नर्जासत या नजर्जस चीज़ को मजस्र्जद में ल़े र्जाऩे स़े

मजस्र्जद क़ी ि़े हुमत


क ी हो तो उसका मजस्र्जदों में ल़े र्जाना हिाम है िजल्क एहहतयात़े

मस्
ु तहि यह है कक अगि ि़े हुमत
क ी न होती हो ति भी ऐऩे नर्जासत को मजस्र्जद में

न ल़े र्जाया र्जाए।

916. अगि मजस्र्जद में मर्जमलस़े अज़ा क़े मलय़े ककनात तानी र्जाए औि फ़शक

बिछाया र्जाए औि मसयाह पदे लटकाए र्जायें औि चाय का सामान उसक़े अन्दि ल़े

306
र्जाया र्जाए तो अगि यह चीज़ें मजस्र्जद क़े तकद्दस
ु को पामाल न किती हों औि

नमाज़ पढ़ऩे में भी माऩे न होतीं हों तो कोई हिर्ज नहीं।

917. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक मजस्र्जद क़ी सोऩे स़े ज़ीनत न किें औि

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक मजस्र्जद को इंसान औि है वान क़ी तिह र्जानविों क़ी

तस्वीिों स़े भी न सर्जाया र्जाए।

918. अगि मजस्र्जद टूट िूट भी र्जाए ति भी न तो उस़े ि़ेचा र्जा सकता है औि

नहीं ममजल्कयत औि सड़क में शाममल ककया र्जा सकता है।

919. मजस्र्जद क़े दिवाज़ों, खखड़ककयों औि दस


ू िी चीज़ों को ि़ेचना हिाम है औि

अगि मजस्र्जद टूट िूट र्जाए ति भी ज़रूिी है कक इन चीज़ों को उसी मजस्र्जद क़ी

मिम्मत क़े मलय़े इस्त़ेमाल ककया र्जाए औि अगि उस मजस्र्जद क़े काम क़ी न िही

हों तो ज़रूिी है कक ककसी दस


ू िी मजस्र्जद क़े काम में लाया र्जाए औि अगि दस
ू िी

मजस्र्जदों क़े काम क़ी भी न िहीं हो तो उन्हें ि़ेचा र्जा सकता है औि र्जो िकम

हामसल हो वह िसिू त़े इम्कान उसी मजस्र्जद क़ी मिम्मत पि वनाक दस


ू िी मजस्र्जद

क़ी मिम्मत पि खचक क़ी र्जाए।

920. मजस्र्जद का तअमीि किना औि ऐसी मजस्र्जद क़ी मिम्मत किना र्जो

मख्दश
ू हो मस्
ु तहि है, औि अगि मजस्र्जद इस कदि मख्दश
ू हो कक उसक़ी

मिम्मत मजु म्कन न हो तो उस़े चगिा कि दोिािा तअमीि ककया र्जा सकता है

307
िजल्क अगि मजस्र्जद टूटी िूटी न हो ति भी उस़े लोगों क़ी ज़रूित क़ी खातति

चगिा कि वसी ककया र्जा सकता है।

921. मजस्र्जद को साफ़ सथ


ु िा िखना औि उसमें चचिाग र्जलाना मस्
ु तहि है औि

अगि कोई मजस्र्जद में र्जाना चाह़े तो मस्


ु तहि है कक खुशिू लगाए औि पाक़ीज़ा

क़ीमती मलिास पहऩे औि अपऩे र्जूतों क़े तलवों क़े िाि़े में तहक़ीक कि़े कक कहीं

नर्जासत तो नहीं लगी हुई। नीज़ यह है कक मजस्र्जद में दाखखल होत़े वक़्त पहल़े

दायां पांव औि िाहि तनकलत़े वक़्त पहल़े िायां पांव िख़े औि इसी तिह मस्
ु तहि

है कक सि लोगों स़े पहल़े मजस्र्जदों में आए औि सि स़े िाद में तनकल़े।

922. र्जि कोई शख़्स मजस्र्जद में दाखखल हो तो मस्


ु तहि है कक दो िक् अत

नमाज़़े तहीयत व एहततिाम़े मजस्र्जद क़ी नीयत स़े पढ़़े औि अगि वाजर्जि नमाज़

या कोई औि मस्
ु तहि नमाज़ पढ़़े ति भी काफ़़ी है।

923. अगि इंसान मर्जििू न हो तो मजस्र्जद में सोना, दतु नयावी कामों क़े िाि़े में

गफ़्
ु तगु ू किना औि कोई काम कार्ज किना औि अश ्आि पढ़ना जर्जनमें नसीहत औि

काम क़ी िात न हो मकरूह है । नीज़ मजस्र्जद में थक


ू ना, नाक क़ी आलाइश िेंकना

औि िलगम थक
ू ना भी मकरूह है िजल्क िाज़ सिू तों में हिाम है । औि इसक़े

अलावा गुमशद
ु ा (शख़्स या चीज़) को तलाश कित़े हुए आवाज़ को िलन्द किना

भी मकरूह है । ल़ेककन अज़ान क़े मलय़े आवाज़ को िलन्द किऩे क़ी मम


ु ातनअत

नहीं है।

308
924. दीवाऩे को मजस्र्जद में दाखखल होऩे द़े ना मकरूह है औि इसी तिह उस

िच्च़े को भी दाखखल होऩे द़े ना मकरूह है र्जो नमाज़ी क़े मलय़े िाइस़े ज़हमत हो या

एहततमाल हो कक वह मजस्र्जद को नजर्जस कि द़े गा। इन दो सिू तों क़े अलावा िच्च़े

को मजस्र्जद में आऩे द़े ऩे में कोई हिर्ज नहीं। उस शख़्स का भी मजस्र्जद में र्जाना

मकरूह है जर्जसऩे प्याज़, लहसन


ु या इनस़े मश
ु ाि़ेह कोई चीज़ खाई हो कक जर्जसक़ी

िू लोगों को नागवाि गुज़िती हो।

अजान औि इकामत

925. हि मदक औि औित क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक िोज़ाना क़ी वाजर्जि नमाज़ों स़े

पहल़े अज़ान औि इकामत कह़े औि ऐसा किना दस


ू िी वाजर्जि या मस्
ु तहि नमाज़ों

क़े मलय़े मशरूउ नहीं ल़ेककन ईद़े कफ़त्र औि ईद़े कुिाकन स़े पहल़े र्जिकक नमाज़ िा

र्जमाअत पढ़़े तो मस्


ु तहि है कक तीन मतकिा, अस सलात कहें ।

926. मस्
ु तहि है कक िच्च़े क़ी पैदाइश क़े पहल़े हदन या नाफ़ उखड़ऩे स़े पहल़े

उसक़े दायें कान में अज़ान औि िायें कान में इकामत कही र्जाए।

927. अज़ान अट्ठािा र्जुम्लों पि मश


ु तममल है ः-

अल्लाहो अक्ििो अल्लाहो अक्ििो अल्लाहो अक्ििो अल्लाहो अक्ििो,

अश्हदो अंल्ला इलाहा इल्लल्लाहो अश्हदो अंल्ला इलाहा इल्लल्लाहो,

अश्हदो अन्ना मोहम्मदिक सल


ू ल्
ु लाह अश्हदो अन्ना मोहम्मदिक सल
ू ल्
ु लाह,

309
है या अलस्सलात़े है या अलस्सलात़े,

है या अलल फ़लाह़े हैया अलल फ़लाह़े ,

है या अला खैरिल अमल़े है या अला खैरिल अमल़े,

अल्लाहो अक्ििो अल्लाहो अक्ििो,

लाइलाहा इल्लल्लाहो लाइलाहा इल्लल्लाहो।

औि इकामत क़े सत्रा र्जुम्ल़े हैं यानी अज़ान क़ी इजबतदा स़े दो मतकिा अल्लाहो

अक्ििो औि आखखि में एक मतकिा ला इलाहा इल्लल्लाहो कम हो र्जाता है औि

है या अला खैरिल अमल़े कहऩे क़े िाद दो दि् आ कद कामततस्सलातो का इज़ाफ़ा

कि द़े ना ज़रूिी है ।

928. अश्हदो अन्ना अलीयन वलीयल्


ु लाह़े अज़ान औि इकामत का र्जुज़्व नहीं है

ल़ेककन अगि अश्हदो अन्ना मोहम्मदिक सल


ू ल्
ु लाह़े क़े िाद कुिकत क़ी नीयत स़े कहा

र्जाए तो अच्छा है ।

अजान औि इकामत का तजयमा

अल्लाहो अक्ििो यानी खुदाए लआला इसस़े िज़


ु ुगक ति है कक उसक़ी तअिीफ़ क़ी

र्जाए। अश्हदो अंल्ला इलाहा इल्लल्लाह यानी मैं गवाही द़े ता हूं कक यकता औि

ि़ेममस्ल अल्लाह क़े अलावा कोई औि पिजस्तश क़े काबिल नहीं है ।

310
अश्हदो अन्ना मोहम्मदिक सल
ू ल्
ु लाह यानी मैं गवाही द़े ता हूं कक मोहम्मद इबऩे

अबदल्
ु लाह स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम अल्लाह क़े पैगम्िि औि उसी

क़ी तिफ़ स़े भ़ेर्ज़े हुए हैं।

अश्हदो अन्ना अलीयन अमीिल मोममनीना वलीयल्


ु लाह यानी गवाही द़े ता हूं कक

हज़ित अली (अ0) मोममनीन क़े अमीि औि तमाम मख्लक


ू पि अल्लाह क़े वली

हैं।

है या अलस्सलात़े यानी नमाज़ क़ी तिफ़ र्जल्दी किो।

है या अलल फ़लाह़े यानी रूस्तगािी क़े मलय़े र्जल्दी किो।

है या अला खैरिल अमल़े यानी ि़ेहतिीन काम (नमाज़) क़े मलय़े र्जल्दी किो।

कद़् कामततस्सलात़े य ्अनी बित्तहक़ीक नमाज़ काइम हो गई।

ला इलाहा इल्लल्लाहो यानी यकता औि ि़े ममस्ल अल्लाह क़े अलावा कोई

पिजस्तश क़े काबिल नहीं।

929. ज़रूिी है कक अज़ान औि इकामत क़े र्जम्


ु लों क़े दिममयान ज़्यादा फ़ामसला

न हो औि अगि उनक़े दिममयान मअमल


ू स़े ज़्यादा फ़ामसला िखा र्जाए तो ज़रूिी

है कक अज़ान औि इकामत दोिािा शरू


ू स़े कही र्जायें।

930. अगि अज़ान या इकामत में आवाज़ को गल़े में इस तिह ि़ेि़े कक चगना

हो र्जाए यानी अज़ान औि इकामत इस तिह कह़े र्जैस़े लहवो लइि औि ख़ेलकूद

311
क़ी महकफ़लों में अवाज़ तनकालऩे का दस्तिू है तो वह हिाम है औि अगि चगना न

हो तो मकरूह है।

931. तमाम सिू तों में र्जि कक नमाज़ी दो नमाज़ों को तल़े ऊपि अदा कि़े अगि

उसऩे पहली नमाज़ क़े मलय़े अज़ान कही तो िाद वाली नमाज़ क़े मलय़े अज़ान

साककत है। ख़्वाह दो नमाज़ों का र्जमअ किना ि़ेहति हो या न हो मसलन अिफ़ा

क़े हदन र्जो नवी जज़लहहज्र्जा का हदन है ज़ोहि औि अस्र क़ी नमाज़ों का र्जमअ

किना औि ईद़े कुिाकन क़ी िात में मचिि औि इशा क़ी नमाज़ों का र्जमअ किना

उस शख़्स क़े मलय़े र्जो मश ्अरूल हिाम में हो। इन सिू तों में अज़ान का साककत

होना इसस़े मशरूत है कक दो नमाज़ों क़े दिममयान बिल्कुल फ़ामसला न हो या

िहुत कम फ़ामसला हो ल़ेककन नफ़ल औि तअक़ीिात पढ़ऩे स़े कोई फ़कक नहीं पड़ता

औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक इन सिू तों में अज़ान मशरूइयत क़ी नीयत स़े

कही र्जाए िजल्क आखखिी दो सिू तों में अज़ान कहना मन


ु ामसि नहीं है अगिच़े

मशरूइयत क़ी तनयत स़े न हो।

932. अगि नमाज़़े र्जमाअत क़े मलय़े अज़ान औि इकामत कही र्जा चक
ु ़ी हो तो

र्जो शख़्स उस र्जमाअत क़े साथ नमाज़ पढ़ िहा हो उसक़े मलय़े ज़रूिी नहीं कक

अपनी नमाज़ क़े मलय़े अज़ान औि इकामत कह़े ।

933. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े मलय़े मजस्र्जद में र्जाए औि द़े ख़े कक नमाज़़े

र्जमाअत खत्म हो चक
ु ़ी है तो र्जि तक सफ़ें टूट न र्जायें औि लोग मन्
ु तमशि न हो

312
र्जायें वह नमाज़ क़े मलय़े अज़ान औि इकामत न कह़े । यानी उन दोनों का कहना

मस्
ु तहि़े ताक़ीदी नहीं िजल्क अगि अज़ान द़े ना चाहता हो तो ि़ेहति यह है कक

िहुत आहहस्ता कह़े औि अगि दस


ू िी नमाज़़े र्जमाअत काइम किना चाहता हो तो

हिचगज़ अज़ान व इकामत न कह़े ।

934. ऐसी र्जगह र्जहां नमाज़़े र्जमाअत अभी अभी खत्म हुई हो औि सफ़ें न

टूटी हों अगि कोई शख़्स वहां तन्हा या दस


ू िी र्जमाअत क़े साथ र्जो काइम हो िही

हो नमाज़ पढ़ना चाह़े तो छः शतों क़े साथ अज़ान औि इकामत उस पि स़े साककत

हो र्जाती हैः-

1. नमाज़़े र्जमाअत मजस्र्जद में हो – औि अगि मजस्र्जद में न हो तो अज़ान

औि इकामत का साककत होना मालम


ू नहीं।

2. उस नमाज़ क़े मलय़े अज़ान औि इकामत कही र्जा चक


ु ़ी हो।

3. नमाज़़े र्जमाअत िाततल न हो।

4. उस शख़्स क़ी नमाज़ औि नमाज़़े र्जमाअत एक ही र्जगह पि हो। मलहाज़ा

अगि नमाज़़े र्जमाअत मजस्र्जद क़े अन्दि पढ़ी र्जाए औि वह शख़्स मजस्र्जद क़ी

छत पि नमाज़ पढ़ना चाह़े तो मस्


ु तहि है कक अज़ान औि इकामत कह़े ।

5. नमाज़़े र्जमाअत अदा हो। ल़ेककन इस िात क़ी शतक नहीं कक खुद उसक़ी

नमाज़ भी अदा हो।

313
6. उस शख़्स क़ी नमाज़ औि नमाज़़े र्जमाअत का वक़्त मश्ु तिक हो मसलन

दोनों नमाज़़े ज़ोहि या दोनों नमाज़़े अस्र पढ़ें या नमाज़़े ज़ोहि र्जमाअत स़े पढ़ी र्जा

िही है औि वह शख़्स नमाज़़े अस्र पढ़़े औि र्जमाअत क़ी नमाज़, अस्र क़ी नमाज़

हो औि अगि र्जमाअत क़ी नमाज़़े अस्र हो औि आखखिी वक़्त में वह चाह़े कक

मचिि क़ी नमाज़ अदा पढ़़े तो अज़ान औि इकामत उस पि स़े साककत नहीं होगी।

935. र्जो शतें साबिका मस ्अल़े में ियान क़ी गई हैं अगि कोई शख़्स उनमें स़े

तीसिी शतक क़े िाि़े में शक कि़े यानी उस़े शक हो कक र्जमाअत क़ी नमाज़ सहीह

थी या नहीं तो उस पि स़े अज़ान औि इकामत साककत नहीं है । ल़ेककन अगि

दस
ू िी पांच शिाइत में स़े ककसी एक क़े िाि़े में शक कि़े तो ि़ेहति है कक िर्जाए

मतलवू वयत क़ी नीयत स़े अज़ान औि इकामत कह़े ।

936. अगि कोई शख़्स ककसी दस


ू ि़े क़ी अज़ान र्जो एलान या र्जमाअत क़ी

नमाज़ क़े मलय़े कही र्जाए, सन


ु ़े तो मस्
ु तहि है कक उसका र्जो हहस्सा सन
ु ़े खुद भी

उस़े आहहस्ता आहहस्ता दोहिाए।

937. अगि ककसी शख़्स ऩे ककसी दस


ू ि़े क़ी अज़ान औि इकामत सन
ु ी हो ख़्वाह

उसऩे उन र्जुमलों को दोहिाया हो या न दोहिाया हो तो अगि अज़ान औि इकामत

औि उस नमाज़ क़े दिममयान र्जो वह पढ़ना चाहता हो ज़्यादा फ़ामसला न हुआ हो

तो वह अपनी नमाज़ क़े मलय़े अज़ान औि इकामत कह सकता है ।

314
938. अगि कोई मदक औित क़ी अज़ान को लज़्ज़त क़े कस्द स़े सन
ु ़े तो उसक़ी

अज़ान साककत नहीं होगी िजल्क अगि मदक का इिादा लज़्ज़त हामसल किऩे का न

हो ति भी उसक़ी अज़ान साककत होऩे में इश्काल है।

939. ज़रूिी है कक नमाज़़े ज़माअत क़ी अज़ान औि इकामत मदक कह़े ल़ेककन

औितों क़ी नमाज़़े र्जमाअत में अगि औित अज़ान औि इकामत कह द़े तो काफ़़ी

है ।

940. ज़रूिी है कक इकामत अज़ान क़े िाद कही र्जाए अलावा अज़ीं इकामत में

मोअतिि है कक खड़़े होकि औि हदस स़े पाक होकि वज़


ु ू या गस्
ु ल या तयम्मम

कि क़े कही र्जाए।

941. अगि कोई शख़्स अज़ान औि इकामत क़े र्जुमल़े िगैि तितीि क़े कह़े

मसलन है या अललफ़लाह का र्जुमला है या अलस्सलाह स़े पहल़े कह़े तो ज़रूिी है

कक र्जहां स़े तितीि बिगड़ी हो वहां स़े दोिािा कह़े ।

942. ज़रूिी है कक अज़ान औि इकामत क़े दिममयान फ़ामसला न हो औि अगि

उनक़े दिममयान इतना फ़ामसला हो र्जाए कक र्जो अज़ान कही र्जा चक


ु ़ी है उस़े उस

इकामत क़ी अज़ान न शम


ु ाि ककया र्जा सक़े तो मस्
ु तहि है कक दोिािा अज़ान कही

र्जाए। अलावा अज़ीं अगि अज़ान औि इकामत क़े औि नमाज़ क़े दिममयान इतना

फ़ामसला हो र्जाए कक अज़ान औि इकामत उस नमाज़ क़ी अज़ान औि इकामत

315
शम
ु ाि न हो तो मस्
ु तहि है कक उस नमाज़ क़े मलय़े दोिािा अज़ान औि इकामत

कही र्जाए।

943. ज़रूिी है कक अज़ान औि इकामत सहीह अििी में कही र्जायें। मलहाज़ा

अगि कोई शख़्स उन्हें गलत अििी में कह़े या एक हफ़क क़ी र्जगह कोई दस
ू िा हफ़क

कह़े या मसलन उनका तर्जकमा उदक ू ज़िान में कह़े तो सहीह नहीं है ।

944. ज़रूिी है कक अज़ान औि इकामत, नमाज़ का वक़्त दाखखल होऩे क़े िाद

कही र्जाएं औि अगि कोई शख़्स अमदन या भल


ू कि वक़्त स़े पहल़े कह़े तो

िाततल है मगि ऐसी सिू त में र्जिकक वसत़े नमाज़ में वक़्त दाखखल हो तो उस

नमाज़ पि सहीह हुक्म लग़ेगा कक जर्जसका मस ्अला 752 में जज़क्र हो चक


ु ा है।

945. अगि कोई शख़्स इकामत कहऩे स़े पहल़े शक कि़े कक अज़ान कही है या

नहीं तो ज़रूिी है कक अज़ान कह़े औि अगि इकामत कहऩे में मशगल


ू हो र्जाए

औि शक कि़े कक अज़ान कही है या नहीं तो अज़ान कहना ज़रूिी नहीं।

946. अगि अज़ान औि इकामत कहऩे क़े दौिान कोई र्जम


ु ला कहऩे स़े पहल़े

एक शख़्स शक कि़े कक उसऩे इसस़े पहल़े वाला र्जम


ु ला कहा है या नहीं तो ज़रूिी

है कक जर्जस र्जुमल़े क़ी अदायगी क़े िाि़े में उस़े शक हुआ हो उस़े अदा कि़े ल़ेककन

अगि उस़े अज़ान या इकामत का कोई र्जुमला अदा कित़े हुए शक हो कक उसऩे

उसस़े पहऩे वाला र्जुमला कहा है या नहीं तो उस र्जुमल़े को कहना ज़रूिी नहीं।

316
947. मस्
ु तहि है कक अज़ान कहत़े वक़्त इंसान ककबल़े क़ी तिफ़ मंह
ु कि क़े

खड़ा हो औि वज़
ु ू या गस्
ु ल क़ी हालत में हो औि हाथों को कानो पि िख़े औि

आवाज़ को िलन्द कि़े औि खींच़े औि अज़ान क़े र्जम


ु लों क़े दिममयान कदि़े

फ़ामसला द़े औि र्जुमलों क़े दिममयान िातें न कि़े ।

948. मस्
ु तहि है कक इकामत कहत़े वक़्त इंसान का िदन साककन हो औि

अज़ान क़े मक
ु ाबिल़े में इकामत आहहस्ता कह़े औि उसक़े र्जुमलों को एक दस
ू ि़े स़े

ममला न द़े । ल़ेककन इकामत क़े दिममयान उतना फ़ामसला न द़े जर्जतना अज़ान क़े

र्जम
ु लों क़े दिममयान द़े ता है ।

949. मस्
ु तहि है कक अज़ान औि इकामत क़े दिममयान एक कदम आग़े िढ़़े या

थोड़ी द़े ि क़े मलय़े िैठ र्जाए या सज्दा कि़े या अल्लाह का जज़क्र कि़े या दआ
ु पढ़़े

या थोड़ी द़े ि क़े मलय़े साककत हो र्जाए या कोई िात कि़े या दो िक् अत नमाज़ पढ़़े

ल़ेककन नमाज़़े फ़ज्र क़ी अज़ान औि इकामत क़े दिममयान कलाम किना औि

नमाज़़े मचिि क़ी अज़ान औि इकामत क़े दिममयान नमाज़ पढ़ना (यानी दो

िक् अत नमाज़ पढ़ना) मस्


ु तहि नहीं है ।

950. मस्
ु तहि है कक जर्जस शख़्स को अज़ान द़े ऩे पि मक
ु िक ि ककया र्जाए वह

आहदल औि वक़्त शनास हो, नीज़ यह कक िलन्द आहं ग हो औि ऊंची र्जगह पि

अज़ान द़े ।

317
नमाज के वाजजबात

1.नीयत, 2.ककयाम, 3.तक्िीितुल एहिाम, 4.रूकू, 5.सर्ज


ु ूद, 6.ककिअत, 7.जज़क्र,

8.तशहहुद, 9.सलाम, 10.तितीि, 11.मव


ु ालात यानी अज्ज़ा ए नमाज़ का पयदि

पय िर्जा लाना।

951. नमाज़ क़े वाजर्जिात में स़े िाज़ उसक़े रुक्न हैं यानी अगि इंसान उन्हें

िर्जा न लाए तो ऐसा किना अमदन हो या गलती स़े हो नमाज़ िाततल हो र्जाती है

औि िाज़ वाजर्जिात रुक्न नहीं हैं यानी अगि वह गलती स़े छूट र्जायें तो नमाज़

िाततल नहीं होती।

नमाज़ क़े अकाकन पांच है ः-

1. नीयत

2. तक्िीितल
ु एहिाम (यानी नमाज़ शरू
ु कित़े वक़्त अल्लाहो अक्िि कहना)।

3. रूकू स़े मत्त


ु मसल ककयाम यानी रूकू में र्जाऩे स़े पहल़े खड़ा होना।

4. रूकू।

5. हि िक् अत में दो सज्द़े । औि र्जहां तक ज़्यादती का तअल्लक


ु है अगि

ज़्यादती अमदन हो तो िगैि ककसी शतक क़े नमाज़ िाततल है । औि अगि गलती स़े

हुई हो तो रूकू में या एक ही िक् अत क़े दो सज्दों में ज़्यादती स़े एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि नमाज़ िाततल है वनाक िाततल नहीं।

318
नीयत

952. ज़रूिी है कक इंसान नमाज़ कुिकत क़ी नीयत स़े यानी खद


ु ावन्द़े किीम क़ी

खुशनद
ू ी हामसल किऩे क़े मलय़े पढ़़े औि यह ज़रूिी नहीं कक नीयत को अपऩे हदल

स़े गज़
ु ाि़े या मसलन ज़िान स़े कह़े कक चाि िक् अत नमाज़़े ज़ोहि पढ़ता हूं कुिकतन

इलल्लाह।

953. अगि कोई शख़्स ज़ोहि क़ी नमाज़ में या अस्र क़ी नमाज़ में नीयत कि़े

कक चाि िक् अत नमाज़ पढ़ता हूं ल़ेककन इस अम्र का तअय्यन


ु न कि़े कक नमाज़़े

ज़ोहि है या अस्र क़ी तो उसक़ी नमाज़ िाततल है। नीज़ ममसाल क़े तौि पि ककसी

शख़्स पि नमाज़़े ज़ोहि क़ी कज़ा वाजर्जि हो औि वह उस कज़ा नमाज़ या नमाज़़े

ज़ोहि को ज़ोहि क़े वक़्त में पढ़ना चाह़े तो ज़रूिी है कक र्जो नमाज़ वह पढ़़े नीयत

में उसका तअय्यन


ु कि़े ।

954. ज़रूिी है कक इंसान शरू


ू स़े आखखि तक अपनी नीयत पि काइम िह़े अगि

वह नमाज़ में इस तिह गाकफ़ल हो र्जाए कक अगि कोई पछ


ू ़े कक वह क्या कि िहा

है तो उसक़ी समझ में न आए कक क्या र्जवाि द़े तो तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

955. ज़रूिी है कक इंसान फ़कत खद


ु ावन्द़े आलम क़ी खश
ु नद
ू ी हामसल किऩे क़े

मलय़े नमाज़ पढ़़े पस र्जो शख़्स रिया कि़े यानी लोगों को हदखाऩे क़े मलय़े नमाज़

319
पढ़़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ख़्वाह यह नमाज़ पढ़ना फ़कत लोगों को या खुदा

औि लोगों दोनों को हदखाऩे क़े मलय़े हो।

956. अगि कोई शख़्स नमाज़ का कुछ हहस्सा भी अल्लाह तआला र्जल्ला शानहू

क़े अलावा ककसी औि क़े मलय़े िर्जा लाए ख़्वाह वह हहस्सा वाजर्जि हो मसलन सिू ा

ए अलहम्द, या मस्
ु तहि हो, मसलन कुनत
ू औि अगि गैि़े खद
ु ा का यह कस्द पिू ी

नमाज़ पि मह
ु ीत हो या उस िड़़े हहस्स़े क़े तदारुक स़े ित
ु लान लाजज़म आता हो तो

उसक़ी नमाज़ िाततल है । औि अगि नमाज़ तो खुदा क़े मलय़े पढ़़े ल़ेककन लोगों को

हदखाऩे क़े मलय़े ककसी खास र्जगह मसलन मजस्र्जद में पढ़़े या ककसी खास वक़्त

मसलन अव्वल़े वक़्त में पढ़़े या ककसी खास कायद़े स़े मसलन िा र्जमाअत पढ़़े तो

उसक़ी नमाज़ भी िाततल है ।

तक्िीितुल एहिाम

957. हि नमाज़ क़े शरू


ू में अल्लाहो अक्िि कहना वाजर्जि औि रुक्न है औि

ज़रूिी है कक इंसान अल्लाह क़े हुरूफ़ औि अक्िि क़े हुरूफ़ औि दो कमलम़े पय दि

पय कह़े औि यह भी ज़रूिी है कक यह दो कमलम़े सहीह अििी में कह़े र्जायें औि

अगि कोई शख़्स गलत अििी में कह़े या मसलन उनका उदक ू तर्जकमा किक़े कह़े तो

सहीह नहीं है।

320
958. एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक इंसान नमाज़ क़ी तक्िीितुल एहिाम को

उस चीज़ स़े मसलन इकामत या दआ


ु स़े र्जो वह तक्िीि स़े पहल़े पढ़ िहा हो न

ममलाए।

959. अगि कोई शख़्स चाह़े कक अल्लाहो अक्िि को उस र्जुमल़े क़े साथ र्जो

िाद में पढ़ता हो मसलन बिजस्मल्लाहहिक मातनकिहीम स़े ममलाए तो ि़ेहति यह है कक

अक्िि क़ी आखखिी हफ़क िा पि प़ेश द़े ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक वाजर्जि

नमाज़ में उस़े न ममलाए।

960. तक्िीितल
ु एहिाम कहत़े वक़्त ज़रूिी है कक इंसान का िदन साककन हो

औि अगि कोई शख़्स र्जान िझ


ू कि इस हालत में तक्िीितल
ु एहिाम कह़े कक

उसका िदन हिकत में हो तो (उसक़ी तक्िीि) िाततल है।

961. ज़रूिी है कक तक्िीि, अलहम्द, सिू ा, जर्जक्र औि दआ


ु कम स़े कम इतनी

आवाज़ में पढ़़े कक खद


ु सन
ु सक़े औि अगि ऊंचा सन
ु ऩे या िहिा होऩे क़ी वर्जह स़े

या शोिोगल
ु क़ी वर्जह स़े न सन
ु सक़े तो इस तिह कहना ज़रूिी है कक अगि कोई

माऩे न हो तो सन
ु ल़े।

962. र्जो शख़्स ककसी िीमािी क़ी बिना पि गंगू हो र्जाए या उसक़ी ज़िान में

कोई नक़्स हो जर्जसक़ी वर्जह स़े अल्लाहो अक्िि न कह सकता हो तो ज़रूिी है कक

जर्जस तिह भी मजु म्कन हो उस तिह कह़े औि अगि बिल्कुन ही न कह सकता हो

तो ज़रूिी है कक हदल में कह़े औि उसक़े मलय़े उं गली स़े इस तिह इशािा कि़े कक

321
र्जो तक्िीि स़े मन
ु ामसित िखता हो। औि अगि हो सक़े तो ज़िान औि होंट को भी

हिकत द़े औि अगि कोई पैदाइशी गंग


ू ा हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक वह अपनी

ज़िान औि होंट को इस तिह हिकत द़े कक र्जो ककसी शख़्स क़े तक्िीि कहऩे स़े

मश
ु ाि़ेह हो औि उसक़े मलय़े अपनी उं गली स़े भी इशािा कि़े ।

963. इंसान क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक तक्िीितुल एहिाम क़े िाद कह़े ः या

मोहमसनो कद अताकल मस
ु ीओ व कद असितुल मोहमसनो अंय्यतर्जावज़ अतनल

मस
ु ीए अन्तल मोहमलनो व अनल मस
ु ीओ ि़ेहक्क़े मोहम्महदंव व आल़े मोहम्महदन

स्वल्ल़े अला मोहम्महदंव व आल़े मोहम्महदंव व तर्जावज़ अन किीह़े मा तअलमो

ममन्नी। (यानी) ए अपऩे िन्दों पि एहसान किऩे वाल़े खुदा ! यह गुनाहगाि िन्दा

त़ेिी िािगाह में आया है औि तूऩे हुक्म हदया है कक ऩेक लोग गुनाहगािों स़े

दिगज़
ु ा किें – तू एहसान किऩे वाला है औि मैं गन
ु ाहगाि हूं मोहम्मद

(स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम) औि आल़े मोहम्मद (अ0) पि अपनी

िहमतें नाजज़ल फ़िमा औि मोहम्मद (स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम)

औि आल़े मोहम्मद (अ0) क़े तफ़


ु ै ल म़ेिी ििु ाइयों स़े जर्जन्हें तू र्जानता है, दि गज़
ु ि

फ़िमा।

964. (इंसान क़े मलय़े) मस्


ु तहि है कक नमाज़ क़ी पहली तक्िीि औि नमाज़ क़ी

दिममयानी तक्िीिें कहत़े वक़्त हाथों को कानों क़े ििािि तक ल़े र्जाए।

322
965. अगि कोई शख़्स शक कि़े कक तक्िीितुल एहिाम कही है या नहीं औि

ककिअत में मशगल


ू हो र्जाए तो अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े औि अगि कुछ भी

न पढ़ा हो तो ज़रूिी है कक तक्िीि कह़े ।

966. अगि कोई शख़्स तक्िीितुल एहिाम कहऩे क़े िाद शक कि़े कक सहीह

तिीक़े स़े तक्िीि कही है या नहीं तो ख़्वाह उसऩे आग़े कुछ पढ़ा हो या न पढ़ा हो

अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

ककयाम यानी खड़ा होना

967. तक्िीितुल एहिाम कहऩे क़े मौक़े पि ककयाम औि रूकू स़े पहल़े वाला

ककयाम – ककयाम मत्त


ु मसल ि रूकू – रुक्न है । ल़ेककन अलहम्द औि सिू ा पढ़ऩे क़े

मौक़े पि ककयाम औि रूकू क़े िाद ककयाम रुक्न नहीं है औि अगि कोई शख़्स

उस़े भल
ू चक
ू क़ी वर्जह स़े तकक कि द़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

968. तक्िीितुल एहिाम कहऩे स़े पहल़े औि उसक़े िाद थोड़ी द़े ि तक खड़ा

होना वाजर्जि है ताकक यक़ीन हो र्जाए कक तक्िीि ककयाम क़ी हालत में कही गई

है ।

969. अगि कोई शख़्स रूकू किना भल


ू र्जाए औि अलहम्द औि सिू ा क़े िाद

िैठ र्जाए औि किि उस़े याद आए कक रूकू नहीं ककया तो ज़रूिी है कक खड़ा हो

र्जाए औि रूकू में र्जाए। ल़ेककन अगि सीधा खड़ा हुए िगैि झक
ु ़े होऩे क़ी हालत में

323
रूकू कि़े तो चकंू क वह ककयाम मत्त
ु मसल ि रूकू िर्जा नहीं लाया इस मलय़े उसका

यह रूकू ककफ़ायत नहीं किता।

970. जर्जस वक़्त एक शख़्स तक्िीितल


ु एहिाम या ककिअत क़े मलय़े खड़ा हो

ज़रूिी है कक िदन को हिकत न द़े औि ककसी तिफ़ न झक


ु ़े औि एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि इखततयाि क़ी हालत में ककसी र्जगह ट़े क न लगाए ल़ेककन

अगि ऐसा किना ि अम्ऱे मर्जििू ी हो तो कोई इश्काल नहीं।

971. अगि ककयाम क़ी हालत में कोई शख़्स भल


ू ़े स़े िदन को हिकत द़े या

ककसी तिफ़ झक
ु र्जाए या ककसी र्जगह ट़े क लगा ल़े तो कोई इश्काल नहीं है ।

972. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक ककयाम क़े वक़्त इंसान क़े दोनों पांव ज़मीन

पि हों। ल़ेककन यह ज़रूिी नहीं कक िदन का िोझ दोनों पांव पि हो चन


ु ांच़े अगि

एक पांव पि भी हो तो कोई इश्काल नहीं।

973. र्जो शख़्स ठ क तौि पि खड़ा हो सकता हो अगि वह अपऩे पांव एक दस


ू ि़े

स़े इतना र्जद


ु ा िख़े कक उस पि खड़ा होना साहदक न आता हो तो उसक़ी नमाज़

िाततल है । औि इसी तिह अगि मअमल


ू क़े खखलाफ़ पैिों को खड़ा होऩे क़ी हालत

में िहुत खुला िख़े तो एहततयात क़ी बिना पि यही हुक्म है। 974. र्जि इंसान

नमाज़ में कोई वाजर्जि जज़क्र पढ़ऩे में मश्गल


ू हो तो ज़रूिी है कक उसका िदन

साककन हो औि मस्
ु तहि जज़क्र में मश्गल
ू हो ति भी एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना

पि यही हुक्म है औि जर्जस वक़्त हि कर आग़े या पीछ़े होना चाह़े या िदन को

324
दांय़े या िांय़े र्जातनि थोड़ी सी हिकत द़े ना चाह़े तो ज़रूिी है कक उस वक़्त कुछ न

पढ़ें ।

975. अगि मत
ु हरिक क िदन क़ी हालत में कोई शख़्स मस्
ु तहि जज़क्र पढ़़े मसलन

रूकू स़े सज्द़े में र्जाऩे क़े वक़्त तक्िीि कह़े औि उस जज़क्र क़े कस्द स़े कह़े

जर्जसका नमाज़ में हुक्म हदया गया है तो वह जज़क्र सहीह नहीं ल़ेककन उसक़ी

नमाज़ सहीह है। औि ज़रूिी है कक इंसान ि़े हौमलल्लाह़े व कुव्वत़ेही अकूमो व

अक् उद उस वक़्त कह़े र्जि खड़ा हो िहा हो।

976. हाथों औि उं गमलयों को अलहम्द पढ़त़े वक़्त हिकत द़े ऩे में कोई हिर्ज नहीं

अगिच़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उन्हें भी हिकत न दी र्जाए।

977. अगि कोई शख़्स अलहम्द औि सिू ा पढ़त़े वक़्त या तस्िीहात पढ़त़े वक़्त

ि़े इखततयाि इतनी हिकत कि़े कक िदन साककन होऩे क़ी हालत स़े खारिर्ज हो

र्जाए तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक िदन क़े दोिािा साककन होऩे पि र्जो कुछ

उसऩे हिकत क़ी हालत में पढ़ा था, दोिािा पढ़़े ।

978. नमाज़ क़े दौिान अगि कोई शख़्स खड़़े होऩे क़े काबिल न हो तो ज़रूिी है

कक िैठ र्जाए औि अगि िैठ भी न सकता हो तो ज़रूिी है कक ल़ेट र्जाए ल़ेककन

र्जि तक उसक़े िदन को सक


ु ू न हामसल न हो ज़रूिी है कक कोई वाजर्जि जज़क्र न

पढ़़े ।

325
979. र्जि तक इंसान खड़़े होकि नमाज़ पढ़ सकता हो ज़रूिी है कक न िैठ़े

मसलन अगि खड़ा होऩे क़ी हालत में ककसी का िदन हिकत किता हो या वह

ककसी चीज़ पि ट़े क लगाऩे पि या िदन को थोड़ा सा ट़े ढ़ा किऩे पि मर्जििू हो तो

ज़रूिी है कक र्जैस़े भी हो सक़े खड़ा होकि नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि वह ककसी तिह

भी खड़ा न हो सकता हो तो ज़रूिी है कक सीधा िैठ र्जाए औि िैठ कि नमाज़

पढ़़े ।

980. र्जि तक इंसान िैठ सक़े ज़रूिी है कक वह ल़ेट कि नमाज़ न पढ़़े औि

अगि वह सीधा होकि न िैठ सक़े तो ज़रूिी है कक र्जैस़े भी मजु म्कन हो िैठ़े औि

अगि बिल्कुल न िैठ सक़े तो र्जैसा कक ककबल़े क़े अहकाम में कहा गया है ज़रूिी

है कक दायें पहलू ल़ेट़े औि दायें पहलू पि न ल़ेट सकता हो तो िायें पहलू पि ल़ेट़े।

औि एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक र्जि तक दायें पहलू पि ल़ेट

सकता हो िायें पहलू पि न ल़ेट़े औि अगि दोनों तिफ़ ल़ेटना मजु म्कन न हो तो

पश्ु त क़े िल इस तिह ल़ेट़े कक उसक़े तल्व़े ककबल़े क़ी तिफ़ हों।

981. र्जो शख़्स िैठ कि नमाज़ पढ़ िहा हो अगि वह अलहम्द औि सिू ा पढ़ऩे

क़े िाद खड़ा हो सक़े औि रूकू खड़ा होकि िर्जा ला सक़े तो ज़रूिी है कक खड़ा हो

र्जाए औि ककयाम क़ी हालत स़े रूकू में र्जाए औि अगि ऐसा न कि सक़े तो ज़रूिी

है कक रूकू भी िैठ कि िर्जा लाए।

326
982. र्जो शख़्स ल़ेट कि नमाज़ पढ़ िहा हो गि वह नमाज़ क़े दौिान इस

काबिल हो र्जाए कक िैठ सक़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ क़ी जर्जतनी ममक़्दाि मजु म्कन

हो िैठ कि पढ़़े औि अगि खड़ा हो सक़े तो ज़रूिी है कक जर्जतनी ममक़्दाि मजु म्कन

हो खड़ा होकि पढ़़े ल़ेककन र्जि तक उसक़े िदन को सक


ु ू न हामसल न हो र्जाए

ज़रूिी है कक कोई वाजर्जि जज़क्र न पढ़़े ।

983. र्जो शख़्स िैठ कि नमाज़ पढ़ िहा हो अगि नमाज़ क़े दौिान इस काबिल

हो र्जाए कक खड़ा हो सक़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ क़ी जर्जतनी ममक़्दाि मजु म्कन हो

खड़ा होकि पढ़़े ल़ेककन र्जि तक उसक़े िदन को सक


ु ू न न हामसल हो र्जाए ज़रूिी है

कक कोई वाजर्जि जज़क्र न पढ़़े ।

984. अगि ककसी ऐस़े शख़्स को, र्जो खड़ा हो सकता हो, यह खौफ़ हो कक खड़़े

होऩे स़े िीमाि हो र्जाय़ेगा या उस़े कोई तक्लीफ़ होगी तो वह िैठ कि नमाज़ पढ़

सकता है औि अगि िैठऩे स़े भी तक्लीफ़ का डि हो तो ल़ेट कि नमाज़ पढ़

सकता है।

985. अगि ककसी शख़्स को इस िात क़ी उम्मीद हो कक आखखि़े वक़्त में खड़ा

होकि नमाज़ पढ़ सक़ेगा औि वह अव्वल़े वक़्त में नमाज़ पढ़ ल़े औि औि आखखि़े

वक़्त में खड़ा होऩे पि काहदि हो र्जाए तो ज़रूिी है कक दोिािा नमाज़ पढ़़े ल़ेककन

अगि खड़ा होकि नमाज़ पढ़ऩे स़े मायस


ू हो औि अव्वल़े वक़्त में नमाज़ पढ़ ल़े

327
िाद अज़ ्आाँ वह खड़़े होऩे क़े काबिल हो र्जाए तो ज़रूिी नहीं कक दोिािा नमाज़

पढ़़े ।

986. (इंसान क़े मलय़े) मस्


ु तहि है कक ककयाम क़ी हालत में जर्जस्म सीधा िख़े

औि कंधों को नीच़े क़ी तिफ़ ढीला छोड़ा द़े नीज़ हाथों को िानों पि िख़े औि

उं गमलयों को िाहम ममलाकि िख़े औि तनगाह सज्द़े क़ी र्जगह पि मककू ज़ िख़े औि

िदन का िोझ दोनों पांव पि यकसां डाल़े औि खुशउ


ू औि खुज़उ
ू क़े साथ खड़ा हो

औि पांव आग़े पीछ़े न िख़े औि अगि मदक हो तो पांव क़े दिममयान तीन िैली हुई

उं गमलयों स़े ल़ेकि एक िामलश्त तक का फ़ामसला िख़े औि अगि औित हो तो दोनों

पांव ममलाकि िख़े।

ककिाअत

987. ज़रूिी है कक इंसान िोज़ाना क़ी वाजर्जि नमाज़ों क़ी पहली औि दस


ू िी

िक् अत में पहल़े अलहम्द औि उसक़े िाद एहततयात क़ी बिना पि एक पिू ़े सिू ़े क़ी

ततलावत कि़े औि वज़्ज़ुहा औि अलम नशिा क़ी सिू तें औि इसी तिह सिू ा ए फ़़ील

औि कुिै श एहततयात क़ी बिना पि नमाज़ में एक सिू त सम


ु ाि होती हैं।

988. अगि नमाज़ का वक़्त तंग हो या इंसान ककसी मर्जििू ी क़ी वर्जह स़े सिू ा

न पढ़ सकता हो मसलन उस़े खौफ़ हो कक अगि सिू ा पढ़़े गा तो चोि या दरिन्दा

या कोई औि चीज़ उस़े नक्


ु सान पहुंचाय़ेगी या उस़े ज़रूिी काम हो तो अगि वह

328
चाह़े तो सिू ा न पढ़़े िजल्क वक़्त तंग होऩे क़ी सिू त में औि खौफ़ क़ी िाज़ हालतों

में ज़रूिी है कक वह सिू ा न पढ़़े ।

989. अगि कोई शख़्स र्जान िझ


ू कि अलहम्द स़े पहल़े सिू ा पढ़़े तो उसक़ी

नमाज़ िाततल होगी ल़ेककन अगि गल्ती स़े अलहम्द स़े पहल़े सिू ा पढ़़े औि पढ़ऩे

क़े दौिान याद आए तो ज़रूिी है कक सिू ा को छोड़ा द़े औि अलहम्द पढ़ऩे क़े िाद

सिू ा शरू
ू स़े पढ़़े ।

990. अगि कोई शख़्स अलहम्द औि सिू ा या उनमें स़े ककसी एक का पढ़ना

भल
ू र्जाए औि रूकू में र्जाऩे क़े िाद उस़े याद आए तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

991. अगि रूकू क़े मलय़े झक


ु ऩे स़े पहल ककसी शख़्स को याद आए कक उसऩे

अलहम्द औि सिू ा नहीं पढ़ा तो ज़रूिी है कक पढ़़े औि अगि यह याद आए कक सिू ा

नहीं पढ़ा तो ज़रूिी है कक फ़कत सिू ा पढ़़े ल़ेककन अगि उस़े याद आए कक फ़कत

अलहम्द नहीं पढ़ी तो ज़रूिी है कक पहल़े अलहम्द औि उसक़े िाद दोिािा सिू ा पढ़़े

औि अगि झक
ु भी र्जाए ल़ेककन रूकू क़ी हद तक पहुंचऩे स़े पहल़े याद आए कक

अलहम्द औि सिू ा या फ़कत सिू ा या फ़कत अलहम्द नहीं पढ़ी तो ज़रूिी है कक

खड़ा हो र्जाए औि इसी हुक्म क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े ।

992. अगि कोई शख़्स र्जान भझ


ू कि फ़ज़क नमाज़ में उन चाि सिू ों में स़े कोई

एक सिू ा पढ़़े जर्जनमें आयाए सज्दा हो औि जर्जनका जज़क्र मस ्अला 361 में ककया

गया है तो वाजर्जि है कक आयए सज्दा पढ़ऩे क़े िाद सज्दा कि़े ल़ेककन अगि

329
सज्दा िर्जा लाए तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है औि ज़रूिी है

कक उस़े दोिािा पढ़़े औि अगि सज्दा न कि़े तो अपनी नमाज़ र्जािी िख सकता है

अगिच़े सज्दा न कि क़े उसऩे गन


ु ाह ककया है।

993. अगि कोई शख़्स भल


ू कि ऐसा सिू ा पढ़ना शरू
ू कि द़े जर्जसमें सज्दा

वाजर्जि हो ल़ेककन आयए सज्दा पि पहुंचऩे स़े पहल़े उस़े ख़्याल आ र्जाए तो ज़रूिी

है कक उस सिू ़े को छोड़ द़े औि कोई दस


ू िा सिू ा पढ़़े औि आयए सज्दा पढ़ऩे क़े

िाद ख़्याल आए तो ज़रूिी है कक जर्जस तिह साबिक मस ्अल़े में कहा गया है

अमल कि़े ।

994. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े दौिान ककसी दस


ू ि़े को आयाए सज्दा पढ़त़े हुए

सन
ु ़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन एहततयात क़ी बिना पि सज्द़े का इशािा

कि़े औि नमाज़ खत्म किऩे क़े िाद उसका सज्दा िर्जा लाए।

995. मस्
ु तहि नमाज़ों में सिू ा पढ़ना ज़रूिी नहीं है ख़्वाह वह नमाज़ मन्नत

मानऩे क़ी वर्जह स़े ही क्यों न वाजर्जि हो गई हो। ल़ेककन अगि कोई शख़्स िाज़

ऐसी मस्
ु तहि नमाज़ें उनक़े अहकाम क़े साथ पढ़ना चाह़े मसलन नमाज़़े वहशत कक

जर्जनमें मख़्सस
ू सिू तें पढ़नी होती हैं तो ज़रूिी है कक वही सिू तें पढ़़े ।

996. र्जुमआ
ु क़ी नमाज़ में औि र्जुमआ
ु क़े हदन ज़ोहि क़ी नमाज़ में पहली

िक् अत में अलहम्द क़े िाद सिू ा र्जुमआ


ु औि दस
ू िी िक् अत में अलहम्द क़े िाद

सिू ा ए मन
ु ाकफ़कून पढ़ना मस्
ु तहि है । औि अगि कोई शख़्स इनमें स़े कोई एक

330
सिू ा पढ़ना शरू
ू कि द़े तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उस़े छोड़ कि कोई दस
ू िा

सिू ा नहीं पढ़ सकता।

997. अगि कोई शख़्स अलहम्द क़े िाद सिू ा ए एख़्लास या सिू ा ए काकफ़रून

पढ़ऩे लग़े तो वह उस़े छोड़कि दस


ू िा सिू ा नहीं पढ़ सकता अलित्ता अगि नमाज़़े

र्जुमआ
ु या र्जुमआ
ु क़े हदन नमाज़़े ज़ोहि में भल
ू कि सिू ा ए र्जुमआ
ु औि सिू ा ए

मन
ु ाकफ़कून क़ी िर्जाए उन दो सिू तों में स़े कोई सिू ा पढ़़े तो उन्हें छोड़ सकता है

औि सिू ा ए र्जुमआ
ु औि सिू ा ए मन
ु ाकफ़कून पढ़ सकता है औि एहततयात़े मस्
ु तहि

यह है कक अगि तनस्फ़ तक पढ़ चक


ु ा हो तो किि इन सिू ों को न छोड़़े।

998. अगि कोई शख़्स र्जुमआ


ु क़ी नमाज़ में या र्जुमआ
ु क़े हदन ज़ोहि क़ी

नमाज़ में र्जान िझ


ू कि सिू ा ए एख़्लास या सिू ा ए काकफ़रून पढ़़े तो ख़्वाह वह

तनस्फ़ तक न पहुंचा हो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उन्हें छोड़ कि सिू ा ए

र्जुमआ
ु औि सिू ा ए मन
ु ाकफ़कून नहीं पढ़ सकता।

999. अगि कोई शख़्स नमाज़ में सिू ा ए एख़्लास या सिू ा ए काकफ़रून क़े

अलावा कोई दस
ू िा सिू ा पढ़़े तो र्जि तक तनस्फ़ तक न पहुंचा हो उस़े छोड़ सकता

है औि दस
ू िा सिू ा पढ़ सकता है औि तनस्फ़ तक पहुंचऩे क़े िाद िगैि ककसी वर्जह

क़े उस सिू ़े को छोड़ कि दस


ू िा सिू ा पढ़ना एहततयात क़ी बिना पि र्जाइज़ नहीं।

1000. अगि कोई शख़्स ककसी सिू ़े का कोई हहस्सा भल


ू र्जाए या ि अम्ऱे

मर्जििू ी मसलन वक़्त क़ी तंगी या ककसी औि वर्जह स़े उस़े मक


ु म्मल न कि सक़े

331
तो वह उस सिू ़े को छोड़ कि कोई दस
ू िा सिू ा पढ़ सकता है ख़्वाह तनस्फ़ तक ही

पहुंच चक
ु ा हो या वह सिू ा ए एख़्लास या सिू ा ए काकफ़रून ही हो।

1001. मदक पि एहततयात क़ी बिना पि वाजर्जि है कक सबु ह औि मचिि व इशा

क़ी नमाज़ों में अलहम्द औि सिू ा िलन्द आवाज़ स़े पढ़़े औि मदक औि औित दोनों

पि एहततयात क़ी बिना पि वाजर्जि है कक नमाज़़े ज़ोहि व अस्र में अलहम्द औि

सिू ा आहहस्ता पढ़ें ।

1002. एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक मदक सबु ह औि मचग्रि व इशा क़ी

नमाज़ में ख़्याल िख़े कक अलहम्द औि सिू ा क़े तमाम कमलमात हत्ता कक उनक़े

आखखिी हफ़क तक िलन्द आवाज़ स़े पढ़़े ।

1003. सबु ह क़ी नमाज़ औि मचिि व इशा क़ी नमाज़ में औित अलहम्द औि

सिू ा िलन्द आवाज़ स़े या आहहस्ता र्जैसा चाह़े पढ़ सकती है। ल़ेककन अगि ना

महिम उसक़ी आवाज़ सन


ु िहा हो औि उसका सन
ु ना हिाम हो तो अहततयात क़ी

बिना पि आहहस्ता पढ़़े ।

1004. अगि कोई शख़्स जर्जस नमाज़ को िलन्द आवाज़ स़े पढ़ना ज़रूिी है उस़े

अमदन आहहस्ता पढ़़े या र्जो नमाज़ आहहस्ता पढ़नी ज़रूिी है उस़े अमदन िलन्द

आवाज़ स़े पढ़़े तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है । ल़ेककन अगि

भल
ू र्जाऩे क़ी वर्जह स़े या मसअला न र्जानऩे क़ी वर्जह स़े ऐसा कि़े तो (उसक़ी

नमाज़) सहीह है । नीज़ अलहम्द औि सिू ा पढ़ऩे क़े दौिान भी अगि वह मत


ु वज्र्जह

332
हो र्जाए कक उसस़े गलती हुई है तो ज़रूिी नहीं कक नमाज़ को र्जो हहस्सा पढ़ चक
ु ा

हो उसस़े दोिािा पढ़़े ।

1005. अगि कोई शख़्स अलहम्द औि सिू ा पढ़ऩे क़े दौिान अपनी आवाज़

मअमल
ू स़े ज़्यादा िलन्द कि़े मसलन उन सिू तों को ऐस़े पढ़़े ज़ैस़े कक फ़याकद कि

िहा हो तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1006. इंसान क़े मलय़े ज़रूिी है कक नमाज़ क़ी ककिअत को सीख ल़े ताकक गलत

न पढ़़े औि र्जो शख़्स ककसी तिह भी पिू ़े सिू ा ए अलहम्द को न सीख सकता हो

जर्जस कदि भी सीख सकता हो सीख़े औि पढ़़े ल़ेककन अगि वह ममक़्दाि िहुत कम

हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि कुिआन क़े दस


ू ि़े सिू ों में स़े जर्जस कदि सीख

सकता हो उसक़े साथ ममलाकि पढ़़े औि अगि न कि सकता हो तो तस्िीह को

उसक़े साथ ममलाकि पढ़़े औि अगि पिू ़े सिू ़े को न सीख सकता हो तो ज़रूिी नहीं

कक उसक़े िदल़े कुछ पढ़़े । औि हि हाल में एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक नमाज़

को र्जमाअत क़े साथ िर्जा ला लाए।

1007. अगि ककसी को अलहम्द अच्छ तिह याद न हो औि वह सीख सकता

हो औि नमाज़ का वक़्त वसी हो तो ज़रूिी है कक सीख ल़े औि अगि वक़्त तंग हो

औि वह इस तिह पढ़़े र्जैसा कक गुजज़श्ता मस ्अलों में कहा गया है तो उसक़ी

नमाज़ सहीह है ल़ेककन अगि मजु म्कन हो तो अज़ाि स़े िचऩे क़े मलय़े र्जमाअत क़े

साथ नमाज़ पढ़़े ।

333
1008. वाजर्जिात़े नमाज़ सीखाऩे क़ी उर्जित ल़ेना एहततयात क़ी बिना पि हिाम

है ल़ेककन मस्
ु तहबिात़े नमाज़ सीखाऩे क़ी उर्जित ल़ेना र्जाइज़ है।

1009. अगि कोई शख़्स अलहम्द औि सिू ा का कोई कमलमा न र्जानता हो या

र्जान िझ
ू कि उस़े न पढ़़े या एक हफ़क क़े िर्जाए दस
ू ि़े हफ़क कह़े मसलन ज़ाद क़े

िर्जाए ज़ो कह़े या र्जहां ज़ैि औि ज़िि क़े िगैि पढ़ना ज़रूिी हो वहा ज़ैि औि ज़िि

लगाए या तश्दीद हज़फ़ कि द़े तो उसक़ी नमार्ज िाततल है ।

1010. अगि इंसान ऩे कोई कमलमा जर्जस तिह याद ककया हो उस़े सहीह

समझता हो औि नमाज़ में उसी तिह पढ़़े औि िाद में उस़े पता चल़े कक उसऩे

गलत पढ़ा है तो उसक़े मलय़े नमाज़ का दोिािा पढ़ना ज़रूिी नहीं।

1011. अगि कोई शख़्स ककसी लफ़्ज़ क़े ज़िि ज़़ेि स़े वाककफ़ न हो या यह न

र्जानता हो कक वह लफ़्ज़ (छोटी) ह़े स़े अदा किना चाहहय़े या हाए हुत्ती स़े तो

ज़रूिी है कक सीख ल़े औि लफ़्ज़ को दो (या दो स़े ज़ाइद) तिीको स़े अदा कि़े ।

औि अगि उस़े लफ़्ज़ गलत पढ़ना कुिआन या जज़क्ऱे खद


ु ा शम
ु ाि न हो तो उसक़ी

नमाज़ िाततल है। औि अगि दोनों तिीकों स़े पढ़ना सहीह हो मसलन एहहदनस

मसिातल मस्
ु तक़ीमा को दो दफ़् आ (सीन) स़े औि एक दफ़् आ (साद) स़े पढ़़े तो इन

दोनों तिीकों स़े पढ़ऩे में कोई मज़


ु ाइका नहीं।

1012. उलमा ए तज़्वीद का कहना है कक अगि ककसी लफ़्ज़ में वाव हो औि

उस़े लफ़्ज़ स़े पहल़े वाल़े हफ़क पि प़ेश हो औि उस लफ़्ज़ में वाव क़े िाद हफ़क

334
हम्ज़ा हो मसलन सइ
ू न हो पढ़ऩे वाल़े को चाहहय़े कक उस वाव को मद क़े साथ

खींच कि पढ़़े । इसी तिह अगि ककसी लफ़्ज़ में अमलफ़ हो औि उस लफ़्ज़ में

अलीफ़ स़े पहल़े वाल़े हफ़क पि ज़िि हो औि उस लफ़्ज़ में अलीफ़ क़े िाद वाला

हफ़क हमज़ा है मसलन र्जाअ तो ज़रूिी है कक उस लफ़्ज़ क़े अमलफ़ को खींच कि

पढ़ें । औि अगि ककसी लफ़्ज़ में य़े हो औि उस लफ़्ज़ में य़े स़े पहल़े वाल़े हफ़क पि

ज़़ेि हो औि उस लफ़्ज़ में य़े स़े िाद वाला हफ़क हमज़ा हो मसलन र्जीअ तो ज़रूिी

है कक य़े को मद क़े साथ पढ़ें औि अगि इन हुरूफ़ वा अमलफ़ औि या क़े िाद

हमज़ा क़े िर्जाए कोई साककन हफ़क हो यानी उस पि ज़िि, ज़़ेि या प़ेश में स़े कोई

हिकत न हो ति भी इन तीनों हुरूफ़ को मद क़े साथ पढ़ना ज़रूिी है । ल़ेककन

ज़ाहहिन ऐस़े मआ
ु मल़े में ककिअत का सहीह होना मद पि मौकूफ़ नहीं। मलहाज़ा

र्जो तिीका िताया गया है अगि कोई उस पि अमल न कि़े ति भी उसक़ी नमाज़

सहीह है ल़ेककन वलज़्ज़ल्लीन र्जैस़े अल्फ़ाज़ में तश्दीद औि अमलफ़ का पिू ़े तौि पि

अदा होना मद पि थोड़ा सा तवक़्कुफ़ किऩे स़े है मलहाज़ा ज़रूिी है कक अमलफ़ को

थोड़ा सा खींचकि पढ़़े । 1013. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक इंसान नमाज़ में

वक़्फ़ ि हिकत औि वस्ल ि सक


ु ू न न कि़े औि वक़्फ़ ि हिकत क़े मअनी यह हैं

कक ककसी लफ़्ज़ क़े आखखि में ज़़ेि, ज़िि, प़ेश पढ़़े औि उस लफ़्ज़ औि उसक़े िाद

क़े लफ़्ज़ क़े दिममयान फ़ामसला द़े मसलन कह़े अिक हमातनिक हीम़े औि अिक हीम़े क़े

मीम को ज़़ेि द़े औि उसक़े िाद कदि़े फ़ामसला द़े औि कह़े , मामलक़े यौममद्दीऩे

335
औि वस्ल िसक
ु ू न क़े मअना यह है कक ककसी लफ़्ज़ क़े ज़़ेि, र्जिि या प़ेश न पढ़़े

औि उस लफ़्ज़ को िाद क़े लफ़्ज़ स़े र्जोड़ द़े । मसलन यह कह़े अिक हमातनिक हीम औि

अिक हीम क़ी मीम को ज़़ेि न द़े औि फ़ौिन मामलक़े यौममद्दीन कह़े ।

1014. नमाज़ क़ी तीसिी औि चौथी िक् अत में फ़कत एक दफ़् आ अलहम्द या

एक दफ़् आ तस्िीहात़े अिकआ पढ़ी र्जा सकती है यानी नमाज़ पढ़ऩे वाला एक

दफ़् आ कह़े सबु हानल्लाह़े वलहम्दो मलल्लाह़े वला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकिि

औि ि़ेहति यह है कक तीन दफ़् आ कह़े । औि एक िक् अत में अलहम्द औि दस


ू िी

िक् अत में तस्िीहात भी पढ़ सकता है । औि ि़ेहति यह है कक दोनों िक् अतो में

तस्िीहात पढ़़े ।

1015. अगि वक़्त तंग हो तो तस्िीहात़े अिकआ एक दफ़् आ पढ़ना चाहहय़े औि

अगि इस कदि वक़्त भी न हो तो िईद नहीं कक एक दफ़् आ सबु हानल्लाह कहना

लाजज़म हो।

1016. एहततयात क़ी बिना पि मदक औि औित दोनों पि वाजर्जि है कक नमाज़

क़ी तीसिी औि चौथी िक् अत में अलहम्द या तस्िीहात़े अिकआ आहहस्ता पढ़ें ।

1017. अगि कोई शख़्स तीसिी औि चौथी िक् अत में अलहम्द पढ़़े तो वाजर्जि

नहीं कक उसक़ी बिजस्मल्लाह भी आहहस्ता पढ़़े ल़ेककन मक्


ु तदी क़े मलय़े एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक बिजस्मल्लाह भी आहहस्ता भी।

336
1018. र्जो शख़्स तस्िीहात याद न कि सकता हो या उन्हें ठ क ठ क पढ़ न

सकता हो ज़रूिी है कक वह तीसिी औि चौथी िक् अत में अलहम्द पढ़़े ।

1019. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़ी पहली दो िक् अतों में यह ख़्याल कित़े हुए

कक यह आखखिी दो िक् अतें हैं तस्िीहात पढ़़े ल़ेककन रूकू स़े पहल़े उस़े सहीह सिू त

का पता चल र्जाए तो ज़रूिी है कक अलहम्द औि सिू ा पढ़़े औि अगि उस़े रूकू क़े

िाद पता चल़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1020. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़ी आखखिी दो िक् अतों में यह ख़्याल कित़े हुए

कक यह पहली दो िक् अतें हैं अलहम्द पढ़़े या नमाज़ क़ी पहली दो िक् अतों में यह

ख़्याल कित़े हुए कक यह आखखिी दो िक् अतें हैं अलहम्द पढ़़े तो सहीह सिू त का

ख़्वाह रूकू स़े पहल़े पता चल़े या िाद में उसक़ी नमाज़ सहीह है।

1021. अगि कोई शख़्स तीसिी या चौथी िक् अत में अलहम्द पढ़ना चाहता हो

ल़ेककन तस्िीहात उसक़ी ज़िान पि आ र्जायें या तस्िीहात पढ़ना चाहता हो ल़ेककन

अलहम्द उसक़ी ज़िान पि आ र्जाए औि अगि उसक़े पढ़ऩे का बिल्कुल इिादा न

था तो ज़रूिी है कक उस़े छोड़ कि दोिािा अलहम्द या तस्िीहात पढ़़े ल़ेककन अगि

ितौि़े कुल्ली बिला इिादा न हो र्जैस़े कक उसक़ी आदत वही कुछ पढ़ऩे क़ी हो र्जो

उसक़ी ज़िान पि आया है तो वह उसी को तमाम कि सकता है औि उसक़ी नमाज़

सहीह है।

337
1022. र्जीस शख़्स क़ी आदत तीसिी औि चौथी िक् अत में तस्िीहात पढ़ऩे क़ी

हो अगि वह अपनी आदत स़े गफ़्लत िित़े औि अपऩे वज़ीफ़़े क़ी अदायगी क़ी

नीयत स़े अलहम्द पढ़ऩे लग़े तो वही काफ़़ी है औि उसक़े मलय़े अलहम्द या

तस्िीहात दोिािा पढ़ना ज़रूिी नहीं।

1023. तीसिी औि चौथी िक् अत में तस्िीहात क़े िाद इजस्तग़्जफ़ाि किना

मस्
ु तहि है मसलन अस्तजग़्जफ़रुल्लाहा िबिी व अतूिो इलैह़े या कह़े अल्लाहुम्मजग़्जफ़ि

ली औि अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला रूकू क़े मलय़े झक


ु ऩे स़े पहल़े इसततग़्जफ़ाि पढ़ िहा

हो या उसस़े फ़ारिग हो चक
ु ा हो औि उस़े शक हो र्जाए कक उसऩे अलहम्द या

तस्िीहात पढ़ी है या नहीं तो ज़रूिी है कक अलहम्द या तस्िीहात पढ़़े ।

1024. अगि तीसिी या चौथी िक् अत में या रूकू में र्जात़े हुए शक कि़े कक

अलहम्द या तस्िीहात पढ़ी है या नहीं तो अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1025. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला शक कि़े कक आया उसऩे कोई आयत या

र्जम
ु ला दरु
ु स्त पढ़ा है या नहीं मसलन शक कि़े कक कुल हुवल्लाहो अहद दरु
ु स्त

पढ़ा है या नहीं तो वह अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ल़ेककन अगि एहततयातन वही

आयत या र्जुमला दोिािा सहीह तिीक़े स़े पढ़ द़े तो कोई हिर्ज नहीं औि अगि कई

िाि भी शक कि़े तो कई िाि पढ़ सकता है । हां अगि वस्वस़े क़ी हद तक पहुंच

र्जाए औि अगि किि भी दोिािा पढ़़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि नमाज़

दोिािा पढ़़े ।

338
1026. मस्
ु तहि है कक पहली िक् अत में अलहम्द पढ़ऩे स़े पहल़े अऊज़ोबिल्लाह़े

ममनश शैतातनिक र्जीम कह़े औि ज़ोहि अस्र क़ी पहली औि दस


ू िी िक् अतों में

बिजस्मल्लाह िलन्द आवाज़ स़े कह़े औि अलहम्द औि सिू ा को मम


ु य
ै ज़ किक़े पढ़़े

औि हि आयत क़े आखखि पि वक़्फ़ कि़े यानी उस़े िाद वाली आयत क़े साथ न

ममलाए औि अलहम्द औि सिू ा पढ़त़े वक़्त आयात क़े मअनों क़ी तिफ़ तवज्र्जह

िख़े। औि अगि र्जमाअत स़े नमाज़ पढ़ िहा हो तो इमाम़े र्जमाअत क़े सिू ा ए

अलहम्द खत्म किऩे क़े िाद औि अगि फ़रूदा नमाज़ पढ़ िहा हो तो सिू ा ए

अलहम्द पढ़ऩे क़े िाद कह़े अलहम्दोमलल्लाह़े िजबिल आलमीन औि सिू ा ए कुल

हुवल्लाहो अहद पढ़ऩे क़े िाद एक या दो तीन दफ़् आ कज़ामलकल्लाहो िबिी या

तीन दफ़् आ कज़ामलकल्लाहो िबिना कह़े औि सिू ा पढ़ऩे क़े िाद औि थोड़ी द़े ि रुक़े

औि उसक़े िाद रूकू स़े पहल़े क़ी तक्िीि कह़े या कुनत


ू पढ़़े ।

1027. मस्
ु तहि है कक तमाम नमाज़ों क़ी पहली िक् अत में सिू ा ए कर औि

दस
ू िी िक् अत में सिू ा ए एख़्लास पढ़़े ।

1028. पंचगाना नमाज़ों में स़े ककसी एक नमाज़ में भी इंसान का सिू ा ए

एख़्लास का न पढ़ना मकरूह है ।

1029. एक ही सांस में सिू ा ए कुल हुवल्लाहो अहद का पढ़ना मकरूह है।

1030. र्जो सिू ा इंसान पहली िक् अत में पढ़़े उसका दस


ू िी िक् अत में पढ़ना

मकरूह है। ल़ेककन अगि सिू ा ए एख़्लास दोनों िक् अतों में पढ़़े तो मकरूह नहीं है ।

339
रुकू

1031. ज़रूिी है कक हि िक् अत में ककिअत क़े िाद इस कदि झक


ु ़े कक अपनी

उं गमलयों क़े मसि़े र्ट


ु ऩे पि िख सक़े औि इस अमल को रूकू कहत़े हैं।

1032. अगि रूकू जर्जतना झक


ु र्जाए ल़ेककन अपनी उं गमलयों क़े मसि़े र्ट
ु नों पि

न िख़े तो कोई हिर्ज नहीं।

1033. अगि कोई शख़्स रूकू आम तिीक़े क़े मत


ु ाबिक न िर्जा लाए मसलन

िायें या दायें र्जातनि झक


ु र्जाए तो ख़्वाह उसक़े हाथ र्ट
ु नों तक पहुंच भी र्जायें

उसका रूकू सहीह नहीं है।

1034. ज़रूिी है कक झक
ु ना रूकू क़ी नीयत स़े हो मलहाज़ा अगि ककसी औि

काम क़े मलय़े मसलन ककसी औि र्जानवि को मािऩे क़े मलय़े झक


ु ़े तो उस़े रूकू

नहीं कहा र्जा सकता िजल्क ज़रूिी है कक खड़ा हो र्जाए औि दोिािा रूकू क़े मलय़े

झक
ु ़े औि इस अमल क़ी वर्जह स़े रुक्न में इज़ाफ़ा नहीं होता औि नमाज़ िाततल

नहीं होती।

1035. जर्जस शख़्स क़े हाथ या र्ट


ु ऩे दस
ू ि़े लोगों क़े हाथों या र्ट
ु नों स़े

मख़्
ु तमलफ़ हों मसलन उसक़े हाथ इतऩे लम्ि़े हों कक अगि मअमल
ू ी सा भी झक
ु ़े

तो र्ट
ु नों तक पहुंच र्जायें या उसक़े र्ट
ु ऩे दस
ू ि़े लोगों क़े र्ट
ु नों क़े मक
ु ाबिल़े में

340
नीच़े हों औि उस़े हाथ र्ट
ु नों तक पहुंचाऩे क़े मलय़े िहुत ज़्यादा झक
ु ना पड़ता हो

तो ज़रूिी है कक इतना झक
ु ़े कक जर्जतना उमम
ू न लोग झक
ु त़े हैं।

1036. र्जो शख़्स िैठकि रूकू कि िहा हो उस़े इस कदि झक


ु ना ज़रूिी है कक

उसका च़ेहिा उसक़े र्ट


ु नों क़े बिल मक
ु ाबिल र्जा पहुंच़े औि ि़ेहति है कक इतना

झक
ु ़े कक उसका च़ेहिा सज्द़े क़ी र्जगह क़े किीि र्जा पहुंच।़े

1037. ि़ेहति यह है कक इजख़्तयाि क़ी हालत में रूकू में तीन दफ़् आ

सबु हानल्लाह या एक दफ़् आ सबु हाना िजबियल अज़ीम़े व ि़ेहम्द़े ही कह़े औि ज़ाहहि

यह है कक र्जो जज़क्र भी इतना ममक़्दाि में कहा र्जाए काफ़़ी है । ल़ेककन वक़्त क़ी

तंगी औि मर्जििू ी क़ी हालत में एक दफ़् आ सबु हानल्लाह कहना ही काफ़़ी है ।

1038. जज़क्ऱे रूकू मस


ु लसल औि सहीह अििी में पढ़ना चाहहय़े औि मस्
ु तहि है

कक उस़े तीन या पांच या सात दफ़् आ िजल्क इसस़े भी ज़्यादा पढ़ा र्जाए।

1039. रूकू क़ी हालत में ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़ऩे वाल़े का िदन साककन हो

नीज़ ज़रूिी है कक वह अपऩे इजख़्तयाि स़े िदन को इस तिह हिकत न द़े कक उस

पि साककन होना साहदक न आए हत्ता कक एहततयात क़ी बिना पि अगि वह

वाजर्जि जज़क्र में मश्गल


ू न हो ति भी यही हुक्म है।

1040. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला उस वक़्त र्जिकक रूकू का वाजर्जि जज़क्र अदा

कि िहा हो ि़े इजख़्तयाि इतनी हिकत कि़े कक िदन क़े सक


ु ू न क़ी हालत में होऩे

स़े खारिर्ज हो र्जाए तो ि़ेहति यह है कक िदन क़े सक


ु ू न हामसल किऩे क़े िाद

341
दोिािा जज़क्र को िर्जा लाए ल़ेककन अगि इतनी कम मद्
ु दत क़े मलय़े हिकत कि़े

कक िदन क़े सक
ु ू न होऩे क़ी हालत स़े खारिर्ज न हो या उं गमलयों को हिकत द़े तो

कोई हिर्ज नहीं।

1041. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला इसस़े प़ेशति कक रूकू जर्जतना झक


ु ़े औि उसका

िदन सक
ु ू न हामसल कि़े र्जान िझ
ू कि जज़क्ऱे रूकू पढ़ना शरू
ू कि द़े तो उसक़ी

नमाज़ िाततल है ।

1042. अगि एक शख़्स वाजर्जि जज़क्र कि क़े खत्म होऩे स़े पहल़े र्जान िझ
ू कि

सि रूकू स़े उठा ल़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है औि अगि सहवन सि उठा ल़े औि

इसस़े प़ेशति क़ी रूकू क़ी हालत स़े खारिर्ज हो र्जाए उस़े याद आए कक उसऩे जज़क्ऱे

रूकू खत्म नहीं ककया तो ज़रूिी है कक रुकू र्जाए औि जज़क्र पढ़़े । औि अगि उस़े

रूकू क़ी हालत में खारिर्ज होऩे क़े िाद याद आए तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1043. अगि एक शख़्स जज़क्र क़ी ममक़्दाि क़े मत


ु ाबिक रूकू क़ी हालत में न िह

सकता हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उसका िककय्या हहस्सा रूकू स़े उठत़े

हुए पढ़़े ।

1044. अगि कोई शख़्स मिज़ वगैिा क़ी वर्जह स़े रूकू में अपना िदन साककन

न िख सक़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन ज़रूिी है कक रूकू क़ी हालत स़े

खारिर्ज होऩे स़े पहल़े वाजर्जि जज़क्र उस तिीक़े स़े अदा कि़े र्जैस़े ऊपि ियान ककया

गया है ।

342
1045. र्जि कोई शख़्स रूकू क़े मलय़े न झक
ु सकता हो तो ज़रूिी है कक ककसी

चीज़ का सहािा ल़ेकि रूकू िर्जा लाए औि अगि सहाि़े क़े ज़रिय़े भी मअमल
ू क़े

मत
ु ाबिक रूकू न कि सक़े तो ज़रूिी है कक इस कदि झक
ु ़े कक उफ़कन उस़े रूकू कहा

र्जा सक़े औि अगि इस कदि न झक


ु सक़े तो ज़रूिी है कक रूकू क़े मलय़े सि स़े

इशािा कि़े ।

1046. जर्जस शख़्स को रूकू क़े मलय़े सि स़े इशािा किना ज़रूिी हो अगि वह

इशािा किऩे पि काहदि न हो तो ज़रूिी है कक रूकू क़ी नीयत क़े साथ आंखों को

िन्द कि़े औि जज़क्ऱे रूकू पढ़़े औि रूकू स़े उठऩे क़ी नीयत स़े आंखों को खोल द़े

औि अगि इस काबिल न हो तो एहततयात क़ी बिना पि हदल में रूकू क़ी तनयत

कि़े औि अपऩे हाथ स़े रूकू क़े मलय़े इशािा कि़े औि जज़क्ऱे रूकू पढ़़े ।

1047. र्जो शख़्स खड़़े होकि रूकू न कि सक़े ल़ेककन र्जि िैठा हुआ हो तो रूकू

क़े मलय़े झक
ु सकता हो तो ज़रूिी है कक खड़़े होकि नमाज़ पढ़़े औि रूकू क़े मलय़े

सि स़े इशािा कि़े । औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक एक दफ़् आ किि नमाज़ पढ़़े

औि उसक़े रूकू क़े वक़्त िैठ र्जाए औि रूकू क़े मलय़े झक


ु र्जाए।

1048. अगि कोई शख़्स रूकू क़ी हद तक पहुंचऩे क़े िाद सि को उठा ल़े औि

दोिािा रूकू किऩे क़ी हद तक झक


ु ़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1049. ज़रूिी है कक जज़क्ऱे रूकू खत्म होऩे क़े िाद सीधा खड़ा हो र्जाए औि र्जि

उसका िदन सक
ु ू न हामसल कि ल़े उसक़े िाद सज्द़े में र्जाए औि अगि र्जान

343
िझ
ू कि खड़ा होऩे स़े पहल़े या िदन क़े सक
ु ू न हामसल किऩे स़े पहल़े सज्द़े में चला

र्जाए तो उसक़ी नमाज़ िाततल है।

1050. अगि कोई शख़्स रूकू अदा किना भल


ू र्जाए औि इसस़े प़ेशति क़ी सज्द़े

क़ी हालत में पहुंच़े उस़े याद आ र्जाए तो ज़रूिी है कक खड़ा हो र्जाए औि किि रूकू

में र्जाए। औि झक
ु ़े हुए होऩे क़ी हालत में अगि रूकू क़ी र्जातनि लौट र्जाए तो

काफ़़ी नहीं।

1051. अगि ककसी शख़्स को प़ेशानी ज़मीन पि िखऩे क़े िाद याद आए कक

उसऩे रूकू नहीं ककया तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक लौट र्जाए औि खड़ा होऩे क़े

िाद रूकू िर्जा लाए। औि अगि उस़े दस


ू ि़े सज्द़े में याद आए तो एहततयात़े लाजज़म

क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1052. मस्
ु तहि है कक इंसान रूकू में र्जाऩे स़े पहल़े सीधा खड़ा होकि तक्िीि

कह़े औि रूकू में र्ट


ु नों को पीछ़े क़ी तिफ़ धक़ेल़े। पीठ को हमवाि िख़े। गदक न को

खींच कि पीठ क़े ििािि िख़े। दोनों पांव क़े दिममयान द़े ख़े। जज़क्र स़े पहल़े या िाद

में दरु
ु द पढ़़े औि र्जि रूकू क़े िाद उठ़े औि सीधा खड़ा हो तो िदन क़े सक
ु ू न क़ी

हालत में होत़े हुए सम़ेअल्लाहो ल़ेमन हम़ेदा कह़े ।

1053. औितों क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक रूकू में हाथों को र्ट
ु नों स़े ऊपि िखें औि

र्ट
ु नों को पीछ़े क़ी तिफ़ न धक़ेलें।

344
सर्ज
ु ूद

1054. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े मलय़े ज़रूिी है कक वाजर्जि औि मस्


ु तहि नमाज़ों क़ी

हि िक् अत में रूकू क़े िाद दो सज्द़े कि़े । सज्दा यह है कक खास शक्ल में प़ेशानी

को खज़
ु उू क़ी नीयत स़े ज़मीन पि िख़े औि नमाज़ क़े सज्द़े क़ी हालत में वाजर्जि

है कक दोनों हथ़ेमलयां, दोनों र्ट


ु ऩे औि दोनों पांव क़े अंगूठ़े ज़मीन पि िख़े र्जायें।

1055. दो सज्द़े ममलकि एक रुक्न हैं औि अगि कोई शख़्स वाजर्जि नमाज़ में

अमदन या भल
ू ़े स़े एक िक् अत में दोनों सज्द़े तकक कि द़े तो उसक़ी नमाज़

िाततल है ।

1056. अगि कोई शख़्स र्जान िझ


ू कि एक सज्दा कम या ज़्यादा कि द़े तो

उसका हुक्म िाद में ियान ककया र्जाऐगा।

1057. र्जो शख़्स प़ेशानी ज़मीन पि िख सकता हो अगि र्जान िझ


ू कि या

सहवन प़ेशानी ज़मीन पि न िख़े तो ख़्वाह िदन क़े दस


ू ि़े हहस्स़े ज़मीन स़े लग भी

गए हों तो उसऩे सज्दा नहीं ककया ल़ेककन अगि वह प़ेशानी ज़मीन पि िख द़े औि

सहवन िदन क़े दस


ू ि़े हहस्स़े ज़मीन पि न िख़े या सहवन जज़क्र न पढ़़े तो उसका

सज्दा सहीह है।

1058. ि़ेहति यह है कक इजख़्तयाि क़ी हालत में सज्द़े में तीन दफ़् आ

सबु हानल्लाह या एक दफ़् आ सबु हाना िजबियल अअला व ि़ेहम्द़े ही पढ़़े औि ज़रूिी है

कक यह र्जुमल़े मस
ु लसल औि सहीह अििी में कह़े र्जायें औि ज़ाहहि यह है कक

345
जज़क्र का पढ़ना काफ़़ी है ल़ेककन एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

उतनी ही ममक़्दाि में हो औि मस्


ु तहि है कक, सबु हाना िजबियल अअला व ि़ेहम्द़े ही

तीन या पांच या सात दफ़् आ या इसस़े भी ज़्यादा मतकिा पढ़़े ।

1059. सज्द़े क़ी हालत में ज़रूिी है कक नमाज़ी का िदन साककन हो औि हालत़े

इजख़्तयाि में उस़े अपऩे िदन को इस तिह हिकत नहीं द़े ना चाहहय़े कक सक
ु ू न क़ी

हालत स़े तनकल र्जाए औि र्जि वाजर्जि जज़क्र में मश्गल


ू न हो तो एहततयात क़ी

बिना पि यही हुक्म है ।

1060. इसस़े प़ेशति क़ी प़ेशानी ज़मीन स़े लग़े औि िदन सक


ु ू न हामसल कि ल़े

कोई शख़्स र्जान िझ


ू कि जज़क्ऱे सज्दा पढ़़े या जज़क्र खत्म होऩे स़े पहल़े र्जान

िझ
ू कि सि सज्द़े स़े उठा ल़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1061. अगि इसस़े प़ेशति कक प़ेशानी ज़मीन पि लग़े कोई शख़्स सहवन जज़क्ऱे

सज्दा पढ़़े औि इसस़े प़ेशति क़ी सि सज्द़े स़े उठाए उस़े पता चल र्जाए कक उसऩे

गलती क़ी है तो ज़रूिी है कक साककन हो र्जाए औि दोिािा जज़क्र पढ़़े ।

1062. अगि ककसी शख़्स को सि सज्द़े स़े उठा ल़ेऩे क़े िाद पता चल़े कक उसऩे

जज़क्ऱे सज्दा खत्म होऩे स़े पहल़े सि उठा मलया है तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1063. जर्जस वक़्त कोई शख़्स जज़क्ऱे सज्दा पढ़ िहा हो अगि वह र्जान िझ
ू कि

सात अअज़ाए सज्दा में स़े ककसी एक को ज़मीन पि स़े उठाए तो उसक़ी नमाज़

िाततल हो र्जाय़ेगी ल़ेककन जर्जस वक़्त जज़क्र पढ़ऩे में मश्गल


ू न हो अगि प़ेशानी क़े

346
अलावा कोई उज़्वो ज़मीन पि स़े उठा ल़े औि दोिािा िख द़े तो कोई हिर्ज नहीं है ।

ल़ेककन अगि ऐसा किना उसक़े िदन क़े साककन होऩे क़े मनाफ़़ी हो तो उस सिू त

में एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1064. अगि जज़क्ऱे सज्दा खत्म होऩे स़े पहल़े कोई शख़्स सहवन प़ेशानी ज़मीन

पि स़े उठा ल़े तो उस़े दोिािा ज़मीन पि नहीं िख सकता औि ज़रूिी है कक उस़े

एक सज्दा शम
ु ाि कि़े ल़ेककन अगि दस
ू ि़े अअज़ा सहवन ज़मीन पि स़े उठा ल़े तो

ज़रूिी है कक उन्हें दोिािा ज़मीन पि िख़े औि जज़क्र पढ़़े ।

1065. पहल़े सज्द़े का जज़क्र खत्म होऩे क़े िाद र्जरूिी है कक िैठ र्जाए हत्ता कक

उसका िदन सक
ु ू न हामसल कि ल़े औि किि दोिािा सज्द़े में र्जाए।

1066. नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़ी प़ेशानी िखऩे क़ी र्जगह र्ट
ु नों औि पांव क़ी

उं गमलयों क़े मसिों क़ी र्जगह स़े चाि ममली हुई उं गमलयों स़े ज़्यादा िलन्द या पस्त

नहीं होनी चाहहय़े। िजल्क एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उसक़ी प़ेशानी क़ी र्जगह

उसक़े खड़़े होऩे क़ी र्जगह स़े चाि ममली हुई उं गमलयों स़े ज़्यादा नीची या ऊंची भी

न हो।

1067. अगि ककसी ऐसी ढलवान र्जगह में अगिच़े उसका झक


ु ाव सहीह तौि पि

मालम
ू न हो नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़ी प़ेशानी क़ी र्जगह उसक़े र्ट
ु नों औि पांव क़ी

उं गमलयों क़े मसिों क़ी र्जगह स़े चाि ममली हुई उं गमलयों स़े ज़्यादा िलन्द या पस्त

हो तो उसक़ी नमाज़ में इश्काल है ।

347
1068. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला अपनी प़ेशानी को गलती स़े एक ऐसी चीज़ पि

िख द़े र्जो र्ट


ु नों औि पांव क़ी उं गमलयों क़े मसिों क़ी र्जगह स़े चाि ममली हुई

उं गमलयों स़े ज़्यादा िलन्द हों औि उनक़ी िलन्दी इस कदि हो कक यह न कह सकें

कक सज्द़े क़ी हालत में है तो ज़रूिी है कक सि को उठाए औि ऐसी चीज़ पि

जर्जसक़ी िलन्दी चाि ममली हुई उं गमलयों स़े ज़्यादा न हो िख़े औि अगि उसक़ी

िलन्दी इस कदि हो कक कह सकें कक सज्द़े क़ी हालत में है तो किि वाजर्जि जज़क्र

पढ़ऩे क़े िाद मत


ु वज्र्जह हो तो सि सज्द़े स़े उठाकि नमाज़ को तमाम कि सकता

है । औि अगि वाजर्जि जज़क्र पढ़ऩे स़े पहल़े मत


ु वज्र्जह हो तो ज़रूिी है कक प़ेशानी

को हटा कि उस चीज़ पि िख़े कक जर्जसक़ी िलन्दी चाि ममली उं गमलयों क़े ििािि

या उसस़े कम हो औि वाजर्जि जज़क्र पढ़़े औि अगि प़ेशानी को हटाना मजु म्कन न

हो तो वाजर्जि जज़क्र को उसी हालत में पढ़़े औि नमाज़ को तमाम कि़े औि ज़रूिी

नहीं कक नमाज़ को दोिािा पढ़़े ।

1069. ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़ी प़ेशानी औि उस चीज़ क़े दिममयान

जर्जस पि सज्दा किना सहीह है कोई दस


ू िी चीज़ न हो पस अगि सज्दागाह इतनी

मैली हो कक प़ेशानी सज्दागाह को न छुए तो उसका सज्दा िाततल है । ल़ेककन अगि

सज्दागाह का िं ग तबदील हो गया हो तो कोई हिर्ज नहीं।

1070. ज़रूिी है कक सज्द़े में दोनों हथ़ेमलयां ज़मीन पि िख़े ल़ेककन मर्जििू ी क़ी

हालत में हाथों क़ी पश्ु त भी ज़मीन पि िख़े तो कोई हिर्ज नहीं औि अगि हाथों क़ी

348
पश्ु त भी ज़मीन पि िखना मजु म्कन न हो तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

हाथों क़ी कलाइयां ज़मीन पि िख़े औि अगि उन्हें भी न िख सक़े तो किि कुहनी

तक र्जो हहस्सा भी मजु म्कन हो ज़मीन पि िख़े औि अगि यह भी मजु म्कन न हो

तो किि िाज़ू का िखना भी काफ़़ी है ।

1071. (नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े मलय़े) ज़रूिी है कक सज्द़े में पांव क़े दोनों अंगूठ़े

ज़मीन पि िख़े ल़ेककन ज़रूिी नहीं कक दोनों अंगूठों क़े मसि़े ज़मीन पि िख़े िजल्क

उन्का ज़ाहहिी औि िाततनी हहस्सा भी िख़े तो काफ़़ी है । औि अगि पांव क़ी दस


ू िी

उं गमलयां या पांव का ऊपि वाला हहस्सा ज़मीन पि िख़े या नाखन


ु लम्ि़े होऩे क़ी

बिना पि अंगूठों क़े मसि़े ज़मीन पि न लगें तो नमाज़ िाततल है औि जर्जस शख़्स

ऩे कोताही औि मस ्अला न र्जानऩे क़ी वर्जह स़े अपनी नमाज़ें इस तिह पढ़ी हों

ज़रूिी है कक उन्हें दोिािा पढ़़े ।

1072. जर्जस शख़्स क़े पांव क़े अंगूठों क़े मसिों स़े कुछ हहस्सा कटा हुआ हो

ज़रूिी है कक जर्जतना िाक़ी हो वह ज़मीन पि िख़े औि अगि अंगठ


ू ों का कुछ

हहस्सा भी न िचा हो औि अगि िचा भी हो तो िहुत छोटा हो तो एहततयात क़ी

बिना पि ज़रूिी है कक िाक़ी उं गमलयों को ज़मीन पि िख़े औि अगि उसक़ी कोई

भी उं गमल न हो तो पांव का जर्जतना हहस्सा भी िाक़ी िचा हो उस़े ज़मीन पि िख़े।

1073. अगि कोई शख़्स मअमल


ू क़े खखलाफ़ सज्दा कि़े मसलन सीऩे औि प़ेट

को ज़मीन पि हटकाए या पांव को कुछ िैलाए चन


ु ांच़े अगि कहा र्जाए कक उसऩे

349
सज्दा ककया है तो उसक़ी नमाज़ सहीह है। ल़ेककन अगि कहा र्जाए कक उसऩे पांव

िैलाए हैं औि उस पि सज्दा किना साहदक न आता हो तो उसक़ी नमाज़ िाततल

है ।

1074. सज्दागाह या दस
ू िी चीज़ र्जीस पि नमाज़ पढ़ऩे वाला सज्दा कि़े ज़रूिी

है कक पाक हो ल़ेककन अगि ममसाल क़े तौि पि सज्दागाह को नजर्जस फ़शक पि िख

द़े या सज्दागाह क़ी एक तिफ़ नजर्जस हो औि वह प़ेशानी पाक तिफ़ िख़े तो कोई

हिर्ज नहीं है ।

1075. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़ी प़ेशानी पि िोड़ा या ज़ख़्म या इस तिह क़ी

कोई चीज़ हो जर्जसक़ी बिना पि वह प़ेशानी ज़मीन पि न िख सकता हो मसलन

अगि वह िोड़ा पिू ी प़ेशानी को न ऱ्ेि़े हुए हो ज़रूिी है कक प़ेशानी क़े स़ेहतमन्द

हहस्स़े स़े सज्दा कि़े औि अगि प़ेशानी क़ी स़ेहतमन्द र्जगह पि सज्दा किना इस

िात पि मौकूफ़ हो कक ज़मीन को खोद़े औि िोड़़े को गढ़़े में औि स़ेहतमन्द र्जगह

क़ी उतनी ममक़्दाि ज़मीन पि िख़े कक सज्द़े क़े मलय़े काफ़़ी हो तो ज़रूिी है कक

उस काम को अंर्जाम द़े ।

1076. अगि िोड़ा या ज़ख़्म तमाम प़ेशानी पि िैला हुआ हो तो नमाज़ पढ़ऩे

वाल़े क़े मलय़े ज़रूिी है कक अपऩे च़ेहि़े क़े कुछ हहस्स़े स़े सज्दा कि़े औि एहततयात़े

लाजज़म यह है कक अगि ठोड़ी स़े सज्दा कि सकता हो तो ठोड़ी स़े सज्दा कि़े औि

अगि न कि सकता हो तो प़ेशानी क़े दोनों अत्राफ़ में स़े एक तिफ़ स़े सज्दा कि़े

350
औि अगि च़ेहि़े स़े सज्दा किना ककसी तिह भी मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक

सज्द़े क़े मलय़े इशािा कि़े ।

1077. र्जो शख़्स िैठ सकता हो ल़ेककन प़ेशानी ज़मीन पि न िख सकता हो

ज़रूिी है कक जर्जस कदि भी झक


ु सकता हो झक
ु ़े औि सज्दागाह या ककसी दस
ू िी

चीज़ को जर्जस पि सज्दा सहीह हो ककसी िलन्द चीज़ पि िख़े औि अपनी प़ेशानी

उस पि इस तिह िख़े कक लोग कहें कक इसऩे सज्दा ककया है । ल़ेककन ज़रूिी है कक

हथ़ेमलयों औि र्ट
ु नों औि पांव क़े अंगूठों को को मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक ज़मीन पि

िख़े।

1078. अगि कोई ऐसी िलन्द चीज़ न हो जर्जस पि नमाज़ पढ़ऩे वाला

सज्दागाह या कोई दस
ू िी चीज़ जर्जस पि सज्दा किना सहीह हो िख सक़े औि कोई

शख़्स भी न हो र्जो मसलन सज्दागाह को उठाए औि पकड़़े ताकक वह शख़्स उस

पि सज्दा कि़े तो एहततयात यह है कक सज्दागाह या दस


ू िी चीज़ को जर्जस पि

सज्गा कि िहा हो हाथ स़े उठाए औि उस पि सज्दा कि़े ।

1079. अगि कोई शख़्स बिल्कुल ही सज्दा न कि सकता हो तो ज़रूिी है कक

सज्द़े क़े मलय़े सि स़े इशािा कि़े औि अगि ऐसा न कि सक़े तो ज़रूिी है कक

आंखों स़े इशािा कि़े औि अगि आंखों स़े भी इशािा न कि सकता हो तो एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक हाथ वगैिा स़े सज्द़े क़े मलय़े इशािा कि़े औि

हदल में भी सज्द़े क़ी नीयत कि़े औि वाजर्जि जज़क्र अदा कि़े ।

351
1080. अगि ककसी शख़्स क़ी प़ेशानी ि़े इजख़्तयाि सज्द़े क़ी र्जगह स़े उठ र्जाए

तो ज़रूिी है कक हत्तलइम्कान उस़े दोिािा सज्द़े क़ी र्जगह पि न र्जाऩे द़े कत ्ए

नज़ि इसक़े कक उसऩे सज्द़े का जज़क्र पढ़ा हो या न पढ़ा हो यह एक सज्दा शम


ु ाि

होगा। औि अगि सि को न िोक सक़े औि वह ि़े इजख़्तयाि दोिािा सज्द़े क़ी र्जगह

पहुंच र्जाए तो वही एक सज्दा शम


ु ाि होगा। ल़ेककन अगि वाजर्जि जज़क्र न अदा

ककया हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस़े कुिकत़े मत्ु लका क़ी नीयत स़े अदा

कि़े ।

1081. र्जहां इंसान क़े मलय़े तकैया किना ज़रूिी है वहां वह कालीन या इस तिह

क़ी चीज़ पि सज्दा कि़े औि यह ज़रूिी नहीं कक नमाज़ क़े मलय़े ककसी दस
ू िी र्जगह

र्जाए या नमाज़ को मव
ु ख्खि कि़े ताकक उसी र्जगह पि उस सिि क़े खत्म होऩे क़े

िाद नमाज़ अदा कि़े । ल़ेककन अगि चटाई या ककसी दस


ू िी चीज़ पि सज्दा किना

सहीह हो अगि वह इस तिह सज्दा कि़े कक तकैय़े क़ी मख


ु ामलफ़त न होती हो तो

ज़रूिी है कक किि वह कालीन या उसस़े ममलती र्जल


ु ती चीज़ पि सज्दा न कि़े ।

1082. अगि कोई शख़्स (परिन्दों क़े) पिों स़े भि़े गद्द़े या इसी ककस्म क़ी

ककसी दस
ू िी चीज़ पि सज्दा कि़े जर्जस पि जर्जस्म सक
ु ू न क़ी हालत में न िह़े तो

उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1083. अगि इंसान क़ीचड़ वाली ज़मीन पि नमाज़ पढ़ऩे पि मर्जििू हो औि

िदन औि मलिास का आलद


ू ा हो र्जाना उसक़े मलय़े मशक्कत का मजू र्जि हो तो

352
ज़रूिी है कक सज्दा औि तशह्हुद मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक िर्जा लाए औि अगि ऐसा

किना मशक्कत का मजू र्जि हो तो ककयाम क़ी हालत में सज्द़े क़े मलय़े सि स़े

इशािा कि़े औि तशह्हुद खड़़े होकि पढ़़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह होगी।

1084. पहली िक् अत में औि मसलन नमाज़़े ज़ोहि, नमाज़़े अस्र औि नमाज़़े

इशा क़ी तीसिी िक् अत में जर्जसमें तशह्हुद नहीं है एहततयात़े वाजर्जि यह है कक

इंसान दस
ू ि़े सज्द़े क़े िाद थोड़ी द़े ि क़े मलय़े सक
ु ू न स़े िैठ़े औि किि खड़ा हो।

353
वह च़ीजें जजन पि सज्दा किना सहीह है ।

1085. सज्दा ज़मीन पि औि उन चीज़ों पि किना ज़रूिी है र्जो खाई औि पहनी

न र्जाती हों औि ज़मीन स़े उगती हों मसलन लकड़ी औि दिख़्तों क़े पत्तों पि

सज्दा कि़े । खाऩे औि पहनऩे क़ी चीज़ों मसलन ग़ेहूं, र्जौ औि कपास पि औि उन

चीज़ों पि र्जो ज़मीन क़े अअज़ा शम


ु ाि नहीं होती मसलन सोऩे, चााँदी औि इसी

तिह क़ी दस
ू िी चीज़ों पि सज्दा किना सहीह नहीं है ल़ेककन तािकोल औि

गंदािीिोज़ा को मर्जििू ी क़ी हालत में दस


ू िी चीज़ों क़े मक
ु ाबिल़े में , कक जर्जन पि

सज्दा किना सहीह नहीं, सज्द़े क़े मलय़े अव्वलीयत द़े ।

1086. अंगूि क़े पत्तों पि सज्दा किना र्जिकक वह कच्च़े हों औि उन्हें मअमल
ू न

खाया र्जाता हो र्जाइज़ नहीं। इस सिू त क़े अलावा उन पि सज्दा किऩे में ज़ाहहिन

कोई हिर्ज नहीं।

1087. र्जो चीज़ें र्जमीन स़े उगती हैं औि है वानात क़ी खोिाक हैं मसलन र्ास

औि भस
ू ा उन पि सज्दा किना सहीह है ।

1088. जर्जन िूलों को खाया नहीं र्जाता उन पि सज्दा सहीह है िजल्क उन खानों

क़ी दवांओं पि भी सज्दा सहीह है र्जो ज़मीन स़े उगती हैं औि उन्हें कूट कि या

र्जोश द़े कि उनका पानी पीत़े हैं मसलन गुल़े िनफ़शा औि गल


ु ़े गावज़िान पि भी

सज्दा सहीह है।

354
1089. ऐसी र्ास र्जो िाज़ शहिों में खाई र्जाती हो औि िाज़ शहिों में खाई तो

न र्जाती हो ल़ेककन वहां उस़े अश्या ए खद


ु क नी में शम
ु ाि ककया र्जाता हो उस पि

सज्दा सहीह नहीं औि कच्च़े िलों पि सज्दा किना सहीह नहीं है ।

1090. चन
ू ़े क़े पत्थि औि जर्जप्सम पि सज्दा किना सहीह है औि एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक इजख़्तयाि क़ी हालत में पख़्
ु ता जर्जप्सम औि चन
ू ़े औि ईंट औि

ममट्टी क़े पक्क़े हुए ितकनों औि उनस़े ममलती र्जुलती चीज़ों पि सज्दा न ककया

र्जाए।

1091. अगि कागज़ को ऐसी चीज़ स़े िनाया र्जाए कक जर्जस पि सज्दा किना

सहीह है, मसलन लकड़ी औि भस


ू ़े स़े, तो उस पि सज्दा ककया र्जा सकता है औि

इसी तिह अगि रुई या कतान स़े िनाया गया हो तो भी उस पि सज्दा किना

सहीह है ल़ेककन ि़े शम या अिि़े शम औि इसी तिह ककसी चीज़ स़े िनाया गया हो

तो उस पि सज्दा किना सहीह नहीं है ।

1092. सज्द़े क़े मलय़े खाक़े मशफ़ा सि चीज़ों स़े ि़ेहति है उसक़े िाद ममट्टी,

ममट्टी क़े िाद पत्थि औि पत्थि क़े िाद र्ास।

1093. अगि ककसी क़े पास ऐसी चीज़ न हो जर्जस पि सज्दा किना सहीह है या

अगि हो तो सदी या ज़्यादा गम़ी वगैिा क़ी वर्जह स़े उस पि सज्दा न कि सकता

हो तो ऐसी सिू त में तािकोल औि गन्दािीिोज़ा को सज्द़े क़े मलय़े दस


ू िी चीज़ों पि

अव्वलीयत हामसल है ल़ेककन अगि उन पि सज्दा किना मजु म्कन न हो तो ज़रूिी

355
है कक अपऩे मलिास या अपऩे हाथों क़ी पश्ु त या ककसी दस
ू िी चीज़ पि कक हालत़े

इजख़्तयाि में उस पि सज्दा र्जाइज़ नहीं सज्दा कि़े ल़ेककन एहततयात़े मस्
ु तहि यह

है कक र्जि तक अपऩे कपड़ों पि सज्दा मजु म्कन हो ककसी दस


ू िी चीज़ पि सज्दा न

कि़े ।

1094. क़ीचड़ पि औि ऐसी नमक ममट्टी पि जर्जस पि प़ेशानी सक


ु ू न स़े न हटक

सक़े सज्दा किना िाततल है ।

1095. अगि पहल़े सज्द़े में सज्दागाह प़ेशानी स़े चचपक र्जाए तो दस
ू ि़े सज्द़े क़े

मलय़े उस़े छुड़ा ल़ेना चाहहय़े।

1096. जर्जस चीज़ पि सज्दा किना हो अगि नमाज़ पढ़ऩे क़े दौिान वह गुम हो

र्जाए औि नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े पास कोई ऐसी चीज़ न हो जर्जस पि सज्दा किना

सहीह हो तो तितीि मस ्अला 1093 में िताई गई है उस पि अमल कि़े ख़्वाह

वक़्त तंग हो या वसी, नमाज़ को तोड़कि उसका इआदा कि़े ।

1097. र्जि ककसी शख़्स को सज्द़े क़ी हालत में पता चल़े कक उसऩे अपनी

प़ेशानी ककसी ऐसी चीज़ पि िखी है जर्जस पि सज्दा किना िाततल है चन


ु ांच़े वाजर्जि

जज़क्र अदा किऩे स़े पहल़े मत


ु वज्र्जह हो तो ज़रूिी है कक अपनी प़ेशानी को उस

चीज़ पि जर्जस पि सज्दा किना सहीह है, लाए औि वाजर्जि जज़क्र पढ़़े ल़ेककन अगि

प़ेशानी लाना मजु म्कन न हो तो उसी हालत में वाजर्जि जज़क्र अदा कि सकता है

औि उसक़ी नमाज़ हि दो सिू त में सहीह है ।

356
1098. अगि ककसी शख़्स को सज्द़े क़े िाद पता चल़े कक उसऩे अपनी प़ेशानी

ककसी ऐसी चीज़ पि िखी है जर्जस पि सज्दा किना िाततल है तो कोई हिर्ज नहीं।

1099. अल्लाह तआला क़े अलावा ककसी दस


ू ि़े को सज्दा किना हिाम है । अवाम

में स़े िाज़ लोग र्जो आइम्मा (अ0) क़े मज़ािात़े मक


ु द्दसा क़े सामऩे प़ेशानी ज़मीन

पि िखत़े हैं अगि वह अल्लाह तआला का शक्र


ु अदा किऩे क़ी नीयत स़े ऐसा किें

तो कोई हिर्ज नहीं। वनाक ऐसा किना हिाम है ।

सज्दे के मुस्तहब्बात औि मकरूहात

1100. चन्द चीज़ें सज्द़े में मस्


ु तहि हैः-

1. र्जो शख़्स खड़ा होकि नमाज़ पढ़ िहा हो वह रूकू स़े सि उठाऩे क़े िाद

मक
ु म्मल तौि पि खड़़े होकि औि िैठ कि नमाज़ पढ़ऩे वाला रूकू क़े िाद पिू ी

तिह िैठ कि सज्द़े में र्जाऩे क़े मलय़े तक्िीि कह़े ।

2. सज्द़े में र्जात़े वक़्त मदक पहल़े अपनी हथ़ेमलयों औि औित अपऩे र्ट
ु नों को

ज़मीन पि िख़े।

3. नमाज़ी नाक को सज्दागाह या ककसी ऐसी चीज़ पि िख़े जर्जस पि सज्दा

किना दरू
ु स्त हो।

4. नमाज़ी सज्द़े क़ी हालत में हाथ क़ी उं गमलयों को ममलाकि कानों क़े पास इस

तिह िख़े कक उनक़े मसि़े रू िककबला हों।

357
5. सज्द़े में दआ
ु कि़े , अल्लाह तआला स़े हार्जत तलि कि़े , औि यह दआ
ु पढ़़े ः

या खैिलस ्ऊलीना व या खैिल मोअतीना अज़क़्


ु नी वज़क
ुक अयाली ममन फ़जज़्लका

फ़न्नाका ज़ल
ु फ़जज़्लल अज़ीम।

यानी ऐ उन सि में स़े ि़ेहतिीन जर्जनस़े क़ी मांगा र्जाता है औि ऐ उन सि स़े

ििति र्जो अता कित़े हैं। मझ


ु ़े औि म़ेि़े अहलोअयाल को अपऩे फ़ज़्लो किम स़े

रिज़्क अता फ़िमा क्योंकक तू ही फ़ज़्ल़े अज़ीम का मामलक है ।

6. सज्द़े क़े िाद िांई िान पि िैठ र्जाए औि दायें पांव का ऊपि वाला हहस्सा

(यानी पश्ु त) िायें पांव क़े तलव़े पि िख़े।

7. हि सज्द़े क़े िाद र्जि िैठ र्जाए औि िदन को सक


ु ू न हामसल हो र्जाए तो

तक्िीि कह़े ।

8. पहल़े सज्द़े क़े िाद र्जि िदन को सक


ु ू न हामसल हो र्जाए तो अस्तजग़्जफ़रुल्लाहा

िबिी व अतूिो इलैह् कह़े ।

9. सज्दा ज़्यादा द़े ि तक अंर्जाम द़े औि िैठऩे क़े वक़्त हाथों को िानों पि

िख़े।ट

10. दस
ू ि़े सज्द़े में र्जाऩे क़े मलय़े िदन क़े सक
ु ू न क़ी हालत में अल्लाहो अकिि

कह़े ।

11. सज्द़े में दरू


ु द पढ़़े ।

358
12. सज्द़े स़े ककयाम क़े मलय़े उठत़े वक़्त पहल़े र्ट
ु नों को औि उनक़े िाद हाथों

को ज़मीन स़े उठाए।

13. मदक कोहतनयों औि प़ेट को ज़मीन स़े न ममलायें नीज़ िाज़ओ


ु ं को पहलू स़े

र्जुदा िखें औि औितें कोहतनयां औि प़ेट ज़मीन पि िदन क़े अअज़ा को एक दस


ू ि़े

स़े ममला लें। इनक़े अलावा दस


ू ि़े मस्
ु तहबिात भी हैं जर्जनका जज़क्र मफ़
ु स्सल

ककतािों में मौर्जूद हैं।

1101. सज्द़े में कुिआऩे मर्जीद पढ़ना मकरूह है । औि सज्द़े क़ी र्जगह को गदो

गि
ु ाि झाड़ऩे क़े मलय़े िंू क मािना भी मकरूह है िजल्क अगि िंू क मािऩे क़ी वर्जह

स़े दो हफ़क भी मंह


ु स़े अमदन तनकल र्जायें तो एहततयात क़ी बिना पि नमाज़

िाततल है औि इनक़े अलावा औि मकरूहात क़ी जज़क्र भी औि मफ़


ु स्सल ककतािों

में आया है।

कुिआने मज़ीद के वाजजब सज्दे

1102. कुिआऩे मर्जीद क़ी चाि सिू तों यानी वन्नज्म, इकिा, अमलफ़ लाम्मीम

तंज़ील औि हाम्मीम सज्दा में स़े हि एक में एक आया ए सज्दा है जर्जस़े अगि

इंसान पढ़़े या सन
ु ़े तो आयत खत्म होऩे क़े िाद फ़ौिन सज्दा किना ज़रूिी है औि

अगि सज्दा किना भल


ू र्जाए तो र्जि भी उस़े याद आए सज्दा कि़े औि ज़ाहहि यह

359
है कक आया ए सज्दा गैि इजख़्तयािी हालत में सन
ु ़े तो सज्दा वाजर्जि नहीं है

अगिच़े ि़ेहति यह है कक सज्दा ककया र्जाए।

1103. अगि इंसान सज्द़े क़ी आयत सन


ु ऩे क़े वक़्त खद
ु भी वह आयत पढ़़े तो

ज़रूिी है कक दो सज्द़े कि़े ।

1104. अगि नमाज़ क़े अलावा सज्द़े क़ी हालत में कोई शख़्स आया ए सज्दा

पढ़़े या सन
ु ़े तो ज़रूिी है कक सि उठाए औि दोिािा सज्दा कि़े ।

1105. अगि इंसान सोए हुए शख़्स या दीवाऩे या िच्च़े स़े र्जो कुिआन को

कुिआन समझकि न पढ़ िहा हो सज्द़े क़ी आयत सन


ु ़े या उस पि कान धि़े तो

सज्दा वाजर्जि है। ल़ेककन अगि ग्रामोफ़ोन या ट़े परिकाडकि स़े (रिकाडक शद
ु ा आया ए

सज्दा) सन
ु ़े तो सज्दा वाजर्जि नहीं। औि सज्द़े क़ी आयत ि़े डडयो पि ट़े प रिकाडक क़े

ज़रिए नश्र क़ी र्जाए ति भी यही हुक्म है। ल़ेककन अगि कोई शख़्स ि़े डडयो स्ट़े शन

स़े (ििाह़े िास्त नशिीयात में ) सज्द़े क़ी आयत पढ़़े औि इंसान उस़े ि़े डडयो पि सन
ु ़े

तो सज्दा वाजर्जि है।

1106. कुिआन का वाजर्जि सज्दा किऩे क़े मलय़े एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि

ज़रूिी है कक इंसान क़ी र्जगह गस्िी न हो औि एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि

उसक़ी प़ेशानी िखऩे क़ी र्जगह उसक़े र्ट


ु ऩे औि पांव क़ी उं गमलयों क़े मसिों क़ी चाि

ममली हुई उं गमलयों स़े ज़्यादा ऊंची या नीची न हो ल़ेककन यह ज़रूिी नहीं कक

उसऩे वज़
ु ू या गस्
ु ल ककया हुआ हो या ककबला रूख हो या अपनी शमकगाह को

360
तछपाए या उसका िदन औि प़ेशानी िखऩे क़ी र्जगह पाक हो। इसक़े अलावा र्जो

शिाइत नमाज़ पढ़ऩे वाल़े क़े मलय़े ज़रूिी है वह शिाइत कुिआऩे मर्जीद का वाजर्जि

सज्दा अदा किऩे वाल़े क़े मलिास क़े मलय़े नहीं है ।

1107. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक कुिआऩे मर्जीद क़े वाजर्जि सज्द़े में इंसान

अपनी प़ेशानी सज्दागाह या ककसी ऐसी चीज़ पि िख़े जर्जस पि सज्दा किना सहीह

हो औि एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि िदन क़े दस
ू ि़े अअज़ा ज़मीन पि इस

तिह िख़े जर्जस तिह नमाज़ क़े मसलमसल़े में िताया गया है ।

1108. र्जि इंसान कुिआऩे मर्जीद का वाजर्जि सज्दा किऩे क़े इिाद़े स़े प़ेशानी

ज़मीन पि िख़े द़े तो ख़्वाह कोई जज़क्र भी पढ़़े ति भी काफ़़ी है औि जज़क्र का

पढ़ना मस्
ु तहि है। औि ि़ेहति है कक यह पढ़़े ः-

ला इलाहा इल्लल्लाहो हक़्कन हक़्का, ला इलाहा इल्लल्लाहो ईमानौं व तस्दीका,

ला इलाहा इल्लल्लाहो उिद


ू ीयतौं व रिक़्का, सर्जद्तोलका या िबि़े तअबिद
ु ौं व

रिक़्का, मस्
ु तंककफ़ौ व ला मस्
ु तजक्ििा, िल अना अबदन
ु ज़लीलन
ु ज़ईफ़ुन खाइफ़ुन

मस्
ु तर्जीरुन।

तशह्हुद

1109. सि वाजर्जि औि मस्


ु तहि नमाज़ों क़ी दस
ू िी िक् अत में औि नमाज़़े

मचिि क़ी तीसिी िक् अत में औि ज़ोहि, अस्र औि इशा क़ी चौथी िक् अत में इंसान

361
क़े मलय़े ज़रूिी है कक दस
ू ि़े सज्द़े क़े िाद िैठ र्जाए औि िदन क़े सक
ु ू न क़ी हालत

में तशह्हुद पढ़़े यानी कह़े ः

अश्हदो अंल्ला इलाहा इल्लल्लाहो वह्दहू ला शिीका लहू व अश्हदो अन्ना

मोहम्मदन अबदहु ू व िसल


ू ह
ु ू अल्लाहुम्मा स्वल्ल़े अला मोहम्महदंव व आल़े मोहम्मद

औि अगि कह़े अश्हदो अंल्ला इलाहा इल्लल्लाहो व अश्हदो अन्ना मोहम्मदन

स्वल्लाहो अलैह़े व आल़ेही अबदहु ू व िसल


ु ह
ु ू तो बिनािि अक़्वा काफ़़ी है। औि

नमाज़़े ववत्र में भी तशह्हुद पढ़ना ज़रूिी है।

1110. ज़रूिी है कक तशह्हुद क़े र्जम


ु ल़े सहीह अििी में औि मअमल
ू क़े

मत
ु ाबिक मस
ु लसल कह़े र्जायें।

1111. अगि कोई शख्स तशह्हुद पढ़ना भल


ू र्जाए औि खड़ा हो र्जाए, औि रूकू

स़े पहल़े उस़े याद आए कक उसऩे तशह्हुद नहीं पढ़ा तो ज़रूिी है कक िैठ र्जाए औि

तशह्हुद पढ़़े औि किि दोिािा खड़ा हो औि उस िक् अत में र्जो कुछ पढ़ना ज़रूिी है

पढ़़े औि नमाज़ को खत्म कि़े । औि एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि नमाज़ क़े

िाद ि़ेर्जा ककयाम क़े मलय़े दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए औि अगि उस़े रूकू में या

उसक़े िाद याद आए तो ज़रूिी है कक नमाज़ तमाम कि़े औि नमाज़ क़े सलाम क़े

िाद एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि तशह्हुद क़ी कज़ा कि़े । औि ज़रूिी है कक

भल
ू ़े हुए तशह्हुद क़े मलय़े दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

362
1112. मस्
ु तहि है कक तशह्हुद क़ी हालत में इंसान िायें िान पि िैठ़े औि दायें

पांव क़ी पश्ु त को िायें पांव क़े तल्व़े पि िख़े औि तशह्हुद स़े पहल़े कह़े , अलहम्दो

मलल्लाह औि यह भी मस्
ु तहि है कक हाथ िानों पि िख़े औि उं गमलयां एक दस
ू ि़े क़े

साथ ममलाए औि अपऩे दामन पि तनगाह डाल़े औि तशह्हुद में सलावात क़े िाद

कह़े , व तकबिल शफ़ाअतहू वफ़कअ दिर्जतहू ।

1113. मस्
ु तहि हो कक औितें तशहहुद पढ़त़े वक़्त अपनी िाऩे ममलाकि िखें ।

नमाज़ का सलाम

1114. नमाज़ क़ी आखखिी िक् अत क़े तशह्हुद क़े िाद र्जि नमाज़ी िैठा हो औि

उसका िदन सक
ु ू न क़ी हालत में तो मस्
ु तहि है कक वह कह़े ः

अस्सलामो अलैका अय्यह


ु न्निीयो व िहमतल्
ु लाह़े व ििकातह
ु ू औि उसक़े िाद

ज़रूिी है कक कह़े , अस्सलामो अलैकुम औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

अस्सलामो अलैकुम क़े र्जुमल़े क़े साथ व िहमतुल्लाह़े व ििकातुहू क़े र्जुमल़े का

इज़ाफ़ा कि़े या यह कह़े अस्सलामो अलैना व अला इिाहदल्लाहहस्स्वाल़ेहीन ल़ेककन

अगि इस सलाम को पढ़़े तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उसक़े िाद अस्सलामो

अलैकुम भी कह़े ।

1115. अगि कोई शख़्स नमाज़ का सलाम कहना भल


ू र्जाए औि उस़े ऐस़े वक़्त

याद आए र्जि अभी नमाज़ क़ी शक्ल खत्म न हुई हो औि उसऩे कोई ऐसा काम

363
भी न ककया हो जर्जस़े अमदन औि सहवन किऩे स़े नमाज़ िाततल हो र्जाती हो,

मसलन ककबल़े क़ी तिफ़ पीठ किना, तो ज़रूिी है कक सलाम कह़े औि उसक़ी

नमाज़ सहीह है ।

1116. अगि कोई शख़्स नमाज़ का सलाम कहना भल


ू र्जाए औि उस़े ऐस़े वक़्त

याद आए र्जि नमाज़ क़ी शक्ल खत्म हो गई हो तो उसऩे कोई ऐसा काम ककया

हो जर्जस़े अमदन या सहवन किऩे स़े नमाज़ िाततल हो र्जाती है, मसलन ककबल़े क़ी

तिफ़ पीठ किना तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

तितीि

1117. अगि कोई शख़्स र्जान िझ


ू कि नमाज़ क़ी तितीि उलट द़े मसलन

अलहम्द स़े पहल़े सिू ा पढ़ ल़े या रूकू स़े पहल़े सज्द़े िर्जा लाए तो उसक़ी नमाज़

िाततल हो र्जाती है।

1118. अगि कोई शख़्स नमाज़ का कोई रुक्न भल


ू र्जाए औि उसक़े िाद का

रुक्न िर्जा लाए मसलन रूकू किऩे स़े पहल़े दो सज्द़े कि़े तो उसक़ी नमाज़

एहततयात क़ी बिना पि िाततल है ।

1119. अगि कोई शख़्स नमाज़ का कोई रुक्न भल


ू र्जाए औि ऐसी चीज़ िर्जा

लाए र्जो उसक़े िाद हो औि रुक्न न हो मसलन इस स़े पहल़े क़ी दो सज्द़े कि़े

364
तशह्हुद पढ़ल़े तो ज़रूिी है कक रुक्न िर्जा लाए औि र्जो कुछ भी भल
ू कि उसस़े

पहल़े पढ़ा हो उस़े दोिािा पढ़़े ।

1120. अगि कोई शख़्स कोई ऐसी चीज़ भल


ू र्जाए र्जो रुक्न न हो औि उसक़े

िाद का रुकन िर्जा लाए मसलन अलहम्द भल


ू र्जाए औि रूकू में चला र्जाए तो

उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1121. अगि कोई शख़्स कोई ऐसी चीज़ भल


ू र्जाए र्जो रुक्न न हो औि उस

चीज़ को िर्जा लाए र्जो उसक़े िाद हो औि वह भी रुक्न न हो मसलन अलहम्द

भल
ू र्जाए औि सिू ा पढ़ ल़े तो ज़रूिी है कक र्जो चीज़ भल
ू गया हो वह िर्जा लाए

औि उसक़े िाद वह चीज़ र्जो भल


ू कि पहल़े पढ़ ली हो दोिािा पढ़़े ।

1122. अगि कोई शख़्स पहला सज्दा इस ख़्याल स़े िर्जा लाए कक दस
ू िा सज्दा

है या दस
ू िा सज्दा इस ख़्याल स़े िर्जा लाए कक पहला सज्दा है तो उसक़ी नमाज़

सहीह है औि उसका पहला सज्दा, पहला सज्दा औि दस


ू िा सज्दा, दस
ू िा सज्दा

शम
ु ाि होगा।

मव
ु ालात

1123. ज़रूिी है कक इंसान नमाज़ मव


ु ालात क़े साथ पढ़़े यानी नमाज़ क़े

अफ़् आल मसलन रूकू, सर्ज


ु द ू औि तशह्हुद तवातिु औि तसलसल
ु क़े साथ िर्जा

लाए। औि र्जो चीज़ें भी नमाज़ में पढ़़े मअमल


ू क़े मत
ु ाबिक पै दि पै पढ़़े औि

365
अगि उनक़े दिममयान इतना फ़ामसला डाल़े कक लोग यह न कहें कक नमाज़ पढ़

िहा है तो उसक़ी नमाज़ िाततल है।

1124. अगि कोई शख़्स नमाज़ में सहवन हुरुफ़ या र्जम्


ु लों क़े दिममयान

फ़ामसला द़े औि फ़ामसला इतना न हो कक नमाज़ क़ी सिू त ििकिाि न िह़े तो

अगि वह अभी िाद वाल़े रुक्न में मश्गल


ू न हुआ तो ज़रूिी है कक वह हुरूफ़ या

र्जुमल़े मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक पढ़़े औि अगि िाद क़ी कोई चीज़ पढ़ी र्जा चक
ु ़ी हो तो

ज़रूिी है कक उस़े दहु िाए औि अगि िाद क़े रुक्न में मशगल
ू हो गया हो तो उसक़ी

नमाज़ सहीह है ।

1125. रूकू औि सर्ज


ु ूद को तूल द़े ना औि िड़ी सिू तें पढ़ना मव
ु ालात को नहीं

तोड़ता।

कुनत
़ू

1126. तमाम वाजर्जि औि मस्


ु तहि नमाज़ों में दस
ू िी िक् अत स़े पहल़े कुनत

पढ़ना मस्
ु तहि है ल़ेककन नमाज़़े शफ़अ में ज़रूिी है कक उस़े िर्जाअन पढ़ें औि

नमाज़़े ववत्र में भी िावर्जूद़े क़े एक िक् अत क़ी होती है रूकू स़े पहल़े कुनत
ू पढ़ना

मस्
ु तहि है। औि नमाज़़े र्जुमआ
ु क़ी हि िक् अत में एक कुनत
ू , नमाज़़े आयात में

पांच कुनत
ू , नमाज़़े ईद़े कफ़त्र व कुिाकन क़ी पहली िक् अत में पांच कुनत
ू औि दस
ू िी

िक् अत में चाि कुनत


ू हैं।

366
1127. मस्
ु तहि है कक कुनत
ू पढ़त़े वक़्त हाथ च़ेहि़े क़े सामऩे औि हथ़ेमलयां एक

दस
ू ि़े क़े साथ ममला कि आस्मान क़ी तिफ़ िख़े औि अंगठ
ू ों क़े अलावा िाक़ी

उं गमलयों को आपस में ममलाए औि तनगाह हथ़ेमलयों पि िख़े।

1128. कुनत
ू में इंसान र्जो जज़क्र भी पढ़़े ख़्वाह एक दफ़् आ, सबु हानल्लाह ही कह़े

काफ़़ी है। औि ि़ेहति यह है कक यह दआ


ु पढ़़े ः-

ला इलाहा इल्लल्लाहुल हलीमल


ु किीम, लाइलाहा इल्लल्लाहुल अलीयल
ु अज़ीम

सबु हानल्लाह़े िजबिस्समावाततस सिा ए िजबिल अिज़ीनस्सिाए व माफ़़ीहहन्ना व

मािैनाहुन्ना व िजबिल अमशकल अज़ीम, वलहम्दो मलल्लाह़े िजबिल आलमीन।

1129. मस्
ु तहि है कक इंसान कुनत
ू िलन्द आवाज़ स़े पढ़़े ल़ेककन अगि एक

शख़्स र्जमाअत क़े साथ नमाज़ पढ़ िहा हो औि इमाम उसक़ी आवाज़ सन
ु सकता

हो तो उसका िलन्द आवाज़ स़े कुनत


ू पढ़ना मस्
ु तहि नहीं है।

1130. अगि कोई शख़्स अमदन कुनत


ू न पढ़़े तो उसक़ी कज़ा नहीं औि अगि

भल
ू र्जाए औि इस स़े पहल़े कक रूकू क़ी हद तक झक
ु ़े उस़े याद आ र्जाए तो

मस्
ु तहि है कक खड़ा हो र्जाए औि कुनत
ू पढ़़े । औि अगि रूकू में याद आ र्जाए तो

मस्
ु तहि है कक रूकू क़े िाद कज़ा कि़े औि अगि सज्द़े म़े याद आ र्जाए तो

मस्
ु तहि है कक सलाम क़े िाद उसक़ी कज़ा कि़े ।

367
नमाज का तजुम
य ा

1.सिू ा ए अलहम्द का तर्जम


ुक ाः-

बिजस्मल्लाहहिक हमातनिक हीम, बिजस्मल्लाह़े यानी मैं इजबतदा किता हूं खुदा क़े नाम

स़े , उस ज़ात क़े नाम स़े जर्जसमें तमाम कमालात यक्र्जा हैं औि र्जो हि ककस्म क़े

नक्स स़े मन
ु ज्र्जा है। अिक हमाऩे उसक़ी िहमत वसी औि ि़ेइजन्तहा है। अिक हीम़े

उसक़ी िहमत ज़ाती औि अज़ली व अिदी है । अलहम्दोमलल्लाह़े िजबिल आलमीना

यानी सना उस खद
ु ा वन्द क़ी ज़ात स़े मखसस
ू है र्जो तमाम मौर्जद
ू ात का पालऩे

वाला है । अिक हमातनिक हीम इसक़े मअनी िताए र्जा चक


ु ़े हैं। मामलक़े यौममद्दीऩे यानी

वह तवाना ज़ात कक र्जज़ा क़े हदन क़ी हुक्मिानी उसक़े हाथ में है । ईय्याका नअिद
ु ु

व ईय्याका नस्तईन यानी हम फ़कत त़ेिी ही इिादत कित़े हैं औि फ़कत तुझी स़े

मदद तलि कित़े हैं। एहहदनस मसिातल मस्


ु तक़ीमा यानी हम़े िाह़े िास्त क़ी

र्जातनि हहदायत फ़िमा र्जो कक दीऩे इस्लाम है । मसिातल्लज़ीना अन ्अम्ता अलैहहम

यानी उन लोगों क़े िास्त़े क़ी र्जातनि जर्जन्हें तूऩे अपनी ऩेमतें अता क़ी हैं र्जो

अंबिया औि अंबिया क़े र्जानशीन हैं। गैरिल मग़्जज़ूि़े अलैहहम वलज़्ज़ाल्लीना यानी न

उन लोगों क़े िास्त़े क़ी र्जातनि जर्जन पि त़ेिा गज़ि हुआ औि न उनक़े िास्त़े क़ी

र्जातनि र्जो गुमिाह हैं।

368
2.सिू ा ए एख़्लास का तर्जम
ुक ाः-

बिजस्मल्ला हहिक हमा तनिक हीम, इसक़े मअना िताए र्जा चक


ु ़े हैं। कुल हुवल्लाहो

अहदन
ु यानी मोहम्मद स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम आप कह दें

खुदावन्दा वही है र्जो यकता खुदा है । अल्लाहुस्समदो यानी वह खुदा र्जो तमाम

मौर्जूदात स़े ि़ेतनयाज़ है । लम यमलद व लम यल


ू द यानी न उसक़ी कोई औलाद है

औि न वह ककसी क़ी औलाद है। वलम यकंु ल्लहू कुफ़ूवन अहदन


ु औि मख़्लक
ू ात

में स़े कोई भी उसक़े ममस्ल नहीं है ।

3.रूकू, सर्ज
ु ूद औि उनक़े िाद क़े मस्
ु तहि अज़्काि का तर्जम
ुक ाः-

सबु हाना िजबियल अज़ीमें व ि़ेहम्द़े ही यानी म़ेिा पिविहदगाि हि ऐि हि नक़्स स़े

पाक औि मन
ु ज़्ज़ा है, मैं उसक़ी सताइश में मश्गल
ू हूं। सबु हाना िजबियल अअला व

ि़ेहम्द़े ही यानी म़ेिा पिविहदगाि र्जो सिस़े िालाति है औि हि ऐि औि हि नक़्स

स़े पाक औि मन
ु ज़्ज़ा है, मैं उसक़ी सताइश में मश्गल
ू हूं। सम़ेअल्लाहो ल़ेमन

हम़ेदहू यानी र्जो कोई खुदा क़ी सताइश किता है खुदा उस़े सन
ु ता है औि कुिल

किता है । अस्तजग़्जफ़रुल्लाहा िबिी व अतूिो इलैह यानी मैं मजग़्जफ़ित तलि किता हूं

उस खद
ु ावन्द स़े र्जो म़ेिा पालऩे वाला है औि उसक़ी तिफ़ रुर्जउ
ू किता हूं।

ि़ेहौजल्ललाह़े व कुव्वत़ेही अकूमो व अक् उद यानी मैं खद


ु ा तआला क़ी मदद स़े

उठता औि िैठता हूं।

369
4.कुनत
ू का तर्जम
ुक ाः-

ला इलाहा इल्लल्लाहुल हलीमल


ु किीम यानी कोई खद
ु ा पिजस्तश क़े लाइक नहीं

मसवाय उस यकता औि ि़ेममस्ल खद


ु ा क़े र्जो साहि़े हहल्म व किम है। ला इलाहा

इल्लल्लाहुल अलीयल
ु अज़ीम यानी कोई खुदा पिजस्तश क़े लाइक नहीं मसवाय उस

यकता औि ि़ेममस्ल खुदा क़े र्जो िलन्द मतकिा औि िज़


ु गु क है । सबु हानल्लाह़े

िजबिस्समावाततस सिए व िजबिल अिज़ीनस्सिए यानी पाक औि मन


ु ज़्ज़ा है वह

खुदा र्जो सात आसमानों औि सात ज़मीनों का पिविहदगाि है। वमा फ़़ीहहन्ना व

मािैनाहुन्ना व िजबिल अमशकल अज़ीम यानी वह हि उस चीज़ का पिविहदगाि है

र्जो आसमानों औि ज़मीनों में औि उनक़े दिममयान है औि अशे अअज़म का

पिविहदगाि है । वल्हम्दो मलल्लाह़े िजबिल आलमीन औि हम्द व सना उस खुदा क़े

मलय़े मख़्सस
ू है र्जो तमाम मौर्जूदात का पालऩे वाला है ।

5.तस्िीहात़े अिकआ का तर्जम


ुक ाः-

सबु हानल्लाह़े वल हम्दो मलल्लाह़े व ला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अक्ििो यानी

खुदा तआला पाक औि मन


ु ज़्ज़ा है औि सना उसी क़े मलय़े मख़्सस
ू है औि उस

ि़ेममस्ल खद
ु ा क़े अलावा कोई खद
ु ा पिजस्तश क़े लाइक नहीं औि वह इसस़े िालाति

है कक उसक़ी (कमा हक़्कहू) तौसीफ़ क़ी र्जाए। 6.तशह्हुद औि सलाम का तर्जुम


क ाः-

370
अलहम्दो मलल्लाह़े , अश्हदो अंल्ला इलाहा इल्लल्लाहो वह्दहू ला शिीका लहू यानी

सताइश पिविहदगाि क़े मलय़े मख़्सस


ू है औि मैं गवाही द़े ता हूं कक मसवाय उस

खद
ु ा क़े र्जो यकता है औि जर्जसका कोई शिीक नहीं कोई औि खद
ु ा पिजस्तश क़े

लाइक नहीं है । व अश्हदो अन्ना मोहम्मदन अबदोहू व िसल


ू ह
ु ू औि मै गवाही द़े ता

हूं कक मोहम्मद स्वल्लाहो अलैह़े व आल़ेही वसल्लम खुदा क़े िन्द़े औि उसक़े िसल

हैं। अल्लाहुम्मा स्वल्ल़े अला मोहम्महदंव व आल़े मोहम्मद यानी ऐ खुदा िहमत

भ़ेर्ज मोहम्मद औि आल़े मोहम्मद पि। व तकबिल शफ़ाअतहू वफ़कअ दिर्जतहू यानी

िसल
ू ल्
ु लाह क़ी शफ़ाअत किल
ू कि औि आाँहज़ित का दिर्जा अपऩे नज़दीक िलन्द

कि। अस्सलामो अलैका अय्यह


ु न्निीयो व िहमतुल्लाह़े व ििकातुहू यानी ऐ अल्लाह

क़े िसल
ू (स0) आप पि हमािा सलाम हो औि आप पि अल्लाह क़ी िहमतें औि

ििकतें हों। अस्सलामो अलैना व अला इिाहदल्लाहहस्स्वाल़ेहीना यानी हम नमाज़

पढ़ऩे वालों पि औि तमाम स्वाल़ेह िन्दों पि अल्लाह क़ी तिफ़ स़े सलामती हो।

अस्सलामो अलैकुम व िहमतल्


ु लाह़े व ििकातह
ु ू यानी तम
ु मोममनीन पि खद
ु ा क़ी

तिफ़ स़े सलामती औि िहमत व ििकत हो।

ताकीबाते नमाज

1131. मस्
ु तहि है कक नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद इंसान कुछ द़े ि क़े मलय़े तअक़ीिात

यानी जज़क्र, दआ
ु औि कुिआऩे मर्जीद पढ़ऩे में मश्गल
ू िह़े । औि ि़ेहति यह है कक

371
इसस़े पहल़े वह अपनी र्जगह स़े हिकत कि़े कक उसका वज़
ु ू या तयम्मम
ु िाततल हो

र्जाए रु िककबला होकि तअक़ीिात पढ़़े औि यह ज़रूिी नहीं कक तअक़ीिात अििी

में हो ल़ेककन ि़ेहति है कक इंसान वह दआ


ु यें पढ़़े र्जो दआ
ु ओं क़ी ककतािों में िताई

गई हैं औि तस्िीह़े फ़ाततमा (स0) उन ताककिात में स़े है जर्जनक़ी िहुत ज़्यादा

ताक़ीद क़ी गई है। यह तस्िीह इस तितीि स़े पढ़नी चाहहय़ेः-

34 िाि अल्लाहो अक्िि। उसक़े िाद 33 दफ़् आ अलहम्दो मलल्लाह औि उसक़े

िाद 33 दफ़् आ सबु हानल्लाह। औि सबु हानल्लाह अलहम्दोमलल्लाह स़े पहल़े भी पढ़ा

र्जा सकता है ल़ेककन ि़ेहति है कक अलहम्दो मलल्लाह क़े िाद पढ़़े ।

1132. इंसान क़े मलय़े मस्


ु तहि है कक नमाज़ क़े िाद सज्दा ए शक्र
ु िर्जा लाए

औि इतना काफ़़ी है कक शक्र


ु क़ी नीयत स़े प़ेशानी ज़मीन पि िख़े ल़ेककन ि़ेहति है

कक सौ दफ़् आ या तीन दफ़् आ या एक दफ़् आ शक


ु िन मलल्लाह या अफ़्वन कह़े

औि यह भी मस्
ु तहि है कक र्जि इंसान को कोई ऩेमत ममल़े या कोई मस
ु ीित टल

र्जाए तो सज्दा ए शक्र


ु िर्जा लाए।

पैगम्बिे अकिम (स0)पि सलवात (दरु


ु द)

1133. र्जि भी इंसान हज़ित िसल


ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व

सल्लम का इस्म़े मि
ु ािक मोसलन मोहम्मद (स0) या अहमद (स0) या आाँहज़ित

का लकि औि कुनीयत मसलन मस्


ु तफ़ा (स0) औि अिल
ु कामसल (स0) ज़िान स़े

372
अदा कि़े या सन
ु ़े तो ख़्वाह वह नमाज़ में ही क्यों न हो मस्
ु तहि है कक सलवात

भ़ेर्ज़े।

1134. हज़ित िसल


ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम का इस्म़े

मि
ु ािक मलखत़े वक़्त मस्
ु तहि है कक इंसान सलवात (स0) भी मलख़े औि ि़ेहति है

कक र्जि आंहज़ित को याद कि़े तो सलवात भ़ेर्ज़े।

मुजब्तलाते नमाज

1135. िािह चीज़ें नमाज़ को िाततल किती हैं औि उन्हें मजु बतलात कहा र्जाता

है ः-

1. नमाज़ क़े दौिान नमाज़ क़ी शतों में स़े कोई शतक मफ़्कूद हो र्जाए मसलन

नमाज़ पढ़त़े हुए मत


ु अजल्लका शख़्स को पता चल़े कक जर्जस कपड़़े स़े उसऩे

सत्रपोशी क़ी हुई है वह गस्िी है ।

2. नमाज़ क़े दौिान अमदन या सहवन या मर्जििू ी क़ी वर्जह स़े इंसान ककसी

ऐसी चीज़ स़े दो चाि हो र्जो वज़


ु ू या गस्
ु ल को िाततल कि द़े । मसलन उसका

प़ेशान खता हो र्जाए अगिच़े एहततयात क़ी बिना पि इस तिह नमाज़ क़े आखखिी

सज्द़े क़े िाद सहवन या मर्जििू ी क़ी बिना पि हो ताहम र्जो शख़्स प़ेशाि या

373
पाखाना न िोक सकता हो अगि नमाज़ क़े दौिान उसका प़ेशाि या पाखाना तनकल

र्जाए औि वह उस तिीक़े पि अमल कि़े र्जो अहकाम़े वज़


ु ू क़े ज़ैल में िताया गया

है तो उसक़ी नमाज़ िाततल नहीं होगी औि इसी तिह अगि नमाज़ क़े दौिान

मस्
ु तहाज़ा को खून आ र्जाए तो अगि वह इजस्तहाज़ा स़े मत
ु अजल्लक अहकाम क़े

मत
ु ाबिक अमल कि़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1136. जर्जस शख़्स को ि़े इजख़्तयाि नीन्द आ र्जाए अगि उस़े यह पता न चल़े

कक वह नमाज़ क़े दौिान सो गया था या उसक़े िाद सोया तो ज़रूिी नहीं क़ी

नमाज़ दोिािा पढ़़े िशते क़ी यह र्जानता हो कक र्जो कुछ नमाज़ में पढ़ा है वह इस

कदि था कक उस़े उफ़े आम में नमाज़ कहें ।

1137. अगि ककसी शख़्स को इल्म हो कक वह अपनी मज़़ी स़े सोया था ल़ेककन

शक कि़े कक नमाज़ क़े िाद सोया था या नमाज़ क़े दौिान यह भल


ू गया कक

नमाज़ पढ़ िहा है औि सो गया तो उस शतक क़े साथ र्जो साबिका मस ्अल़े में

ियान क़ी गई है उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1138. अगि कोई शख़्स नींद स़े सज्द़े क़ी हालत में ि़ेदाि हो र्जाए औि शक

कि़े कक आया नमाज़ क़े आखखिी सज्द़े में है या सज्दा ए शक्र


ु में है तो अगि उस़े

इल्म हो कक ि़े इजख़्तयाि सो गया था तो ज़रूिी है कक नमाज़ दोिािा पढ़़े औि

र्जानता हो कक अपनी मज़़ी स़े सोया था औि इस िात का एहततमाल हो कक

गफ़्लत क़ी वर्जह स़े नमाज़ क़े सज्द़े में सो गया था तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

374
3. यह चीज़ मजु बतलात़े नमाज़ में स़े है कक इंसान अपऩे हाथों को आजर्जज़ी औि

अदि क़ी नीयत स़े िांध़े ल़ेककन इस काम क़ी वर्जह स़े नमाज़ का िाततल होना

एहततयात क़ी बिना पि है औि अगि मशरुइयत क़ी नीयत स़े अंर्जाम द़े तो उस

काम क़े हिाम होऩे में कोई इश्काल नहीं है ।

139. अगि कोई शख़्स भल


ू ़े स़े या मर्जििू ी स़े या तक़ीय्या क़ी वर्जह स़े या

ककसी औि काम मसलन हाथ खर्ज


ु ाऩे औि ऐस़े ही ककसी काम क़े मलय़े हाथ पि

हाथ िख ल़े तो कोई हिर्ज नहीं है ।

4. मजु बतलात़े नमाज़ में स़े एक यह है कक अलहम्द पढ़ऩे क़े िाद आमीन कह़े ।

आमीन कहऩे स़े नमाज़ का इस तिह िाततल होना गैि़े मामम


ू में एहततयात क़ी

बिना पि है। अगिच़े आमीन कहऩे को र्जाइज़ समझत़े हुए आमीन कह़े तो उसक़े

हिाम होऩे में कोई इश्काल नहीं है । िहि हाल अगि आमीन को गलती या तक़ीय्या

क़ी वर्जह स़े कह़े तो उसक़ी नमाज़ में कोई इश्काल नहीं है ।

5. मजु बतलात़े नमाज़ में स़े है कक िगैि ककसी उज्र क़े ककबल़े स़े रुख ि़ेि़े ल़ेककन

अगि ककसी उज्र मसलन भल


ू कि या ि़ेइजख़्तयािी क़ी बिना पि मसलन त़ेज़ हवा

क़े थप़ेड़़े उस़े ककबल़े स़े ि़ेि दें चन


ु ांच़े अगि दायें या िायें सम्त तक न पहुंच़े तो

375
उसक़ी नमाज़ सहीह है । ल़ेककन ज़रूिी है कक र्जैस़े ही उज्र दिू हो फ़ौिन ही अपना

ककबला दरू
ु स्त कि़े । औि अगि दायें या िायें तिफ़ मड़
ु र्जाए ख़्वाह ककबल़े क़ी तिफ़

पश्ु त हो या न हो अगि उसका उज़्र भल


ू ऩे क़ी वर्जह स़े हो औि जर्जस वक़्त

मत
ु वज्र्जह हो औि नमाज़ को तोड़ द़े तो उस़े दोिािा ककबला रुख होकि पढ़ सकता

हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ को दोिािा पढ़़े । अगिच़े उस नमाज़ क़ी एक िक् अत

वक़्त में पढ़़े वनाक उसी नमाज़ पि इजक्तफ़ा कि़े औि उस पि कज़ा लाजज़म नहीं

औि यही हुक्म है अगि ककबल़े स़े उसका कििना ि़े इजख़्तयािी क़ी हालत में हो

चन
ु ांच़े ककबल़े स़े किि़े िगैि अगि नमाज़ को दोिािा वक़्त में पढ़ सकता हो।

अगिच़े वक़्त में एक िक् अत ही पढ़ी र्जा सकती हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ को नए

मसि़े स़े पढ़़े वनाक ज़रूिी है कक उसी नमाज़ को तमाम कि़े इआदा औि कज़ा उस

पि लाजज़म नहीं है।

1140. अगि फ़कत अपऩे च़ेहि़े को ककबल़े स़े र्म


ु ाए ल़ेककन उसका िदन ककबल़े

क़ी तिफ़ हो चन
ु ांच़े इस हद तक गदक न को मोड़़े कक अपऩे सि क़े पीछ़े कुछ द़े ख

सक़े तो उसक़े मलय़े भी वही हुक्म है र्जो ककबल़े स़े किि र्जाऩे वाल़े क़े मलय़े है

जर्जसका जज़क्र पहल़े ककया र्जा चक


ु ा है। औि अगि अपनी गदकन को थोड़ा सा मोड़़े

कक उफ़कन कहा र्जाए कक उसक़े िदन का अगला हहस्सा ककबल़े क़ी तिफ़ है तो

उसक़ी नमाज़ िाततल नहीं होगी अगिच़े यह काम मकरूह है ।

376
6. मजु बतलात़े नमाज़ में स़े एक यह है कक अमदन िात कि़े अगिच़े ऐसा

कमलमा हो कक जर्जसमें एक हफ़क स़े ज़्यादा न हो अगि वह हफ़क िा मअनी हो

मसलन (काफ़) कक जर्जसक़े अििी ज़िान में मअना हहफ़ाज़ात किो क़े हैं या कोई

औि मअना समझ में आत़े हों मसलन (ि़े) उस शख़्स क़े र्जवाि में कक र्जो हुरूफ़़े

तहज्र्जी क़े हफ़े दोम क़े िाि़े में सवाल कि़े औि अगि उस लफ़्ज़ स़े कोई मअना

भी समझ में न आत़े हों औि दो या दो स़े ज़्यादा हफ़ों स़े मिु क्कि हो ति भी

एहततयात क़ी बिना पि (वह लफ़्ज़) नमाज़ को िाततल कि द़े ता है ।

1141. अगि कोई शख़्स सहवन ऐसा कमलमा कह़े जर्जसक़े हुरूफ़ एक या उसस़े

ज़्यादा हों तो ख़्वाह वह कमलमा मअनी भी िखता हो उस शख़्स क़ी नमाज़ िाततल

नहीं होती ल़ेककन एहततयात क़ी बिना पि उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक ज़ैसा कक िाद

में जज़क्र आय़ेगा नमाज़ क़े िाद वह सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

1142. नमाज़ क़ी हालत में खांसऩे या डकाि ल़ेऩे में कोई हिर्ज नहीं औि

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि नमाज़ में इजख़्तयािन आह न भि़े औि न ही चगयाक

कि़े । औि आंख औि आह औि इन्ही र्जैस़े अल्फ़ाज़ का अमदन कहना नमाज़ को

िाततल कि द़े ता है

1143. अगि कोई शख़्स कोई कमलमा जज़क्र क़े कस्द स़े कह़े मसलन जज़क्र क़े

कस्द स़े अल्लाहो अक्िि कह़े औि उस़े कहत़े वक़्त आवाज़ को िलन्द कि़े ताकक

दस
ू ि़े शख़्स को ककसी चीज़ क़ी तिफ़ मत
ु वज्र्जह कि़े तो इसमें कोई हिर्ज नहीं।

377
औि इसी तिह अगि कोई कमलमा जज़क्र क़े कस्द स़े कह़े अगिच़े र्जानता हो कक

इस काम क़ी वर्जह स़े कोई ककसी मतलि क़ी तिफ़ मत


ु वज्र्जह हो र्जाय़ेगा तो कोई

हिर्ज नहीं ल़ेककन अगि बिलकुल जज़क्र का कस्द न कि़े या जज़क्र का कस्द भी हो

औि ककसी िात क़ी तिफ़ मत


ु वज्र्जह भी किना चाहता हो तो इसमें इश्काल है।

1144. नमाज़ में कुिआन पढ़ऩे (चाि आयतों का हुक्म कक जर्जनमें वाजर्जि सज्दा

है ककिअत क़े अहकाम मस ्अला न0 992 में ियान हो चक


ु ा है) औि दआ
ु किऩे में

कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक अििी क़े अलावा ककसी औि

ज़िान में दआ
ु न कि़े ।

1145. अगि कोई िगैि कस्द र्जज़


ु ईयत अमदन या एहततयातन अलहम्द औि

सिू ़े क़े ककसी हहस्स़े या अज़्काि़े नमाज़ क़ी तकिाि कि़े तो कोई हिर्ज नहीं।

1146. इंसान को चाहहय़े कक नमाज़ क़ी हालत में ककसी को सलाम न कि़े औि

अगि कोई दस
ू िा शख़्स उस़े सलाम कि़े तो ज़रूिी है कक र्जवाि द़े ल़ेककन र्जवाि

सलाम क़ी मातनन्द होना चाहहय़े यानी ज़रूिी है कक अस्ल सलाम पि इज़ाफ़ा न हो

मसलन र्जवाि में य़े नहीं कहना चाहहय़े सलामन


ु अलैकुम व िहमतल्
ु लाह़े व

ििकातुहू िजल्क एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक र्जवाि में अलैकुम या

अलैक क़े लफ़्ज़ को सलाम क़े लफ़्ज़ पि मक


ु द्दम न िख़े। अगि वह शख़्स कक

जर्जसऩे सलाम ककया है उसऩे इस तिह न ककया हो िजल्क एहततयात़े मस्


ु तहि यह

है कक र्जवाि मक
ु म्मल तौि पि द़े जर्जस तिह कक उसऩे सलाम ककया हो मसलन

378
अगि कहा हो सलामन
ु अलैकुम तो र्जवाि में कह़े सलामन
ु अलैकुम औि अगि

कहा हो अस्सलामो अलैकुम तो कहें अस्सलामो अलैकुम औि अगि कहा हो

सलामन
ु अलैक तो कह़े सलामन
ु अलैक ल़ेककन अलैकुमस्
ु सलाम क़े र्जवाि में र्जो

लफ़्ज़ चाह़े कह सकता है।

1147. इंसान को चाहहय़े कक ख़्वाह वह नमाज़ क़ी हालत में हो या न हो सलाम

का र्जवाि फ़ौिन द़े औि अगि र्जान भझ


ू कि या भल
ू ़े स़े सलाम का र्जवाि द़े ऩे में

इतना तवक़्कुफ़ कि़े कक अगि र्जवाि द़े तो वह उस सलाम का र्जवाि शम


ु ाि न हो

तो अगि वह नमाज़ क़ी हालत में हो तो ज़रूिी है कक र्जवाि न द़े औि अगि

नमाज़ क़ी हालत में न हो तो र्जवाि द़े ना वाजर्जि नहीं है ।

1148. इंसान को सलाम का र्जवाि इस तिह द़े ना ज़रूिी है कक सलाम किऩे

वाला सन
ु ल़े ल़ेककन अगि सलाम किऩे वाला िहिा हो या सलाम कह कि र्जल्दी

स़े गज़
ु ि र्जाए चन
ु ांच़े मजु म्कन हो तो सलाम का र्जवाि इशाि़े स़े या उसी तिह

ककसी तिीक़े स़े उस़े समझा सक़े तो र्जवाि द़े ना ज़रूिी है। इस सिू त क़े अलावा

र्जवाि द़े ना नमाज़ क़े अलावा ककसी औि र्जगह पि ज़रूिी नहीं औि नमाज़ में

र्जाइज़ नहीं है ।

1149. वाजर्जि है कक नमाज़ी सलाम क़े र्जवाि को सलाम क़ी नीयत स़े कह़े ।

औि दआ
ु का कस्द किऩे में भी कोई हिर्ज नहीं यानी खुदावन्द़े आलम स़े उस

शख़्स क़े मलय़े सलामती चाह़े जर्जसऩे सलाम ककया हो।

379
1150. अगि औित या ना महिम मदक या वह िच्चा र्जो अच्छ़े ििु ़े में तमीज़

कि सकता हो नमाज़ पढ़ऩे वाल़े को सलाम कि़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ पढ़ऩे

वाला उसक़े सलाम का र्जवाि द़े औि अगि औित सलामन


ु अलैका कहकि सलाम

कि़े तो र्जवाि में कह सकता है सलामन


ु अलैक़े यानी काफ़ को ज़़ेि द़े ।

1151. अगि नमाज़ पढ़ऩे वाला सलाम का र्जवाि न द़े तो वह गुनाहगाि है

ल़ेककन उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1152. अगि कोई शख़्स नमाज़ पढ़ऩे वाल़े को इस तिह गलत सलाम कि़े कक

वह सलाम ही शम
ु ाि न हो तो उसक़े सलाम का र्जवाि द़े ना र्जाइज़ नहीं है ।

1153. ककसी ऐस़े शख़्स को सलाम का र्जवाि द़े ना र्जो ममज़ाह औि तमस्खिु क़े

तौि पि सलाम कि़े औि ऐस़े गैि मजु स्लम मदक औि औित क़े सलाम का र्जवाि

द़े ना र्जो जज़म्मी न हो वाजर्जि नही नहीं है औि अगि जज़म्मी हो तो एहततयात़े

वाजर्जि क़ी बिना पि उनक़े र्जवाि में कमलमा ए अलैका कह द़े ना काफ़़ी है ।

1154. अगि कोई शख़्स ककसी गिु ोह को सलाम कि़े तो उन सि पि सलाम का

र्जवाि द़े ना वाजर्जि है ल़ेककन अगि उनमें स़े एक शख़्स र्जवाि द़े द़े तो काफ़़ी है।

1155. अगि कोई शख़्स ककसी गुिोह को सलाम कि़े औि र्जवाि एक ऐसा

शख़्स द़े जर्जसका सलाम किऩे वाल़े को सलाम किऩे का इिादा न हो तो (उस

शख़्स क़े र्जवाि द़े ऩे क़े िावर्जूद) सलाम का र्जवाि उस गिु ोह पि वाजर्जि है ।

380
1156. अगि कोई शख़्स ककसी गिु ोह को सलाम कि़े औि उस गुिोह में स़े र्जो

शख़्स नमाज़ में मश्गल


ू हो वह शक कि़े कक सलाम किऩे वाल़े का इिादा उस़े भी

सलाम किऩे का था या नहीं तो ज़रूिी है कक र्जवाि न द़े औि अगि नमाज़ पढ़ऩे

वाल़े को यक़ीन हो कक उस शख़्स का इिादा उस़े भी सलाम किऩे का था ल़ेककन

कोई शख़्स सलाम का र्जवाि द़े द़े तो उस सिू त में भी यह हुक्म है । ल़ेककन अगि

नमाज़ पढ़ऩे वाल़े को मालम


ू हो कक सलाम किऩे वाल़े का इिादा उस़े भी सलाम

किऩे का था औि कोई दस
ू िा र्जवाि द़े तो ज़रूिी है कक सलाम का र्जवाि द़े ।

1157. सलाम किना मस्


ु तहि है औि इस अम्र क़ी िह
ु त ताक़ीद क़ी गई है कक

सवाि पैदल को औि खड़ा हुआ शख़्स िैठ़े हुए को औि छोटा िड़़े को सलाम कि़े ।

1158. अगि दो शख़्स आपस में एक दस


ू ि़े को सलाम किें तो एहततयात़े वाजर्जि

क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उनमें स़े हि एक दस


ू ि़े को उसक़े सलाम का र्जवाि द़े ।

1159. अगि इंसान नमाज़ पढ़ िहा हो तो मस्


ु तहि है कक सलाम का र्जवाि उस

सलाम स़े ि़ेहति अल्फ़ाज़ में द़े मसलन अगि कोई शख़्स सलामन
ु अलैकुम कह़े तो

र्जवाि में कह़े सलामन


ु अलैकुम व िहमतल्
ु लाह़े ।

7. नमाज़ क़े मजु बतलात में स़े एक आवाज़ क़े साथ औि र्जान िझ
ू कि हं सना है।

अगिच़े ि़ेइजख़्तयाि हं स़े। औि जर्जन िातों क़ी वर्जह स़े हं स़े वह इजख़्तयािी हो िजल्क

एहततयात क़ी बिना पि जर्जन िातों क़ी वर्जह स़े हं सी आई हो अगिच़े वह

381
इजख़्तयािी न भी हों ति भी वह नमाज़ क़े िाततल होऩे का मजु र्जि होगी ल़ेककन

अगि र्जान िझ
ू कि िगैि आवाज़ या सहवन आवाज़ क़े साथ हं स़े तो ज़ाहहि यह है

कक उसक़ी नमाज़ में कोई इश्काल नहीं।

1160. अगि हं सी क़ी आवाज़ िोकऩे क़े मलय़े ककसी शख़्स क़ी हालत िदल र्जाए

मसलन उसका िं ग सख
ु क हो र्जाए तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक वह नमाज़

दोिािा पढ़़े ।

8. एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि यह नमाज़ क़े मजु बतलात में स़े है कक इंसान

दतु नयावी काम क़े मलय़े र्जान िझ


ू कि आवाज़ स़े या िगैि आवाज़ क़े िोए ल़ेककन

अगि खौफ़़े खुदा स़े या आखखित क़े मलय़े िोए तो ख़्वाह आहहस्ता िोए या िलन्द

आवाज़ स़े िोए कोई हिर्ज नहीं िजल्क यह ि़ेहतिीन अअमाल में स़े हैं।

9. नमाज़ िाततल किऩे वाली चीज़ों में स़े है कक कोई ऐसा काम कि़े जर्जसस़े

नमाज़ क़ी शक्ल िाक़ी न िह़े मसलन उछलना कूदना औि इसी तिह का कोई

अमल अंर्जाम द़े ना। ऐसा किना अमदन हो या भल


ू चक
ू क़ी वर्जह स़े हो ल़ेककन

जर्जस काम स़े नमाज़ क़ी शक्ल तबदील न होती हो मसलन हाथ स़े इशािा किना

इसमें कोई हिर्ज नहीं है ।

382
1161. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े दौिान इस कदि साककत हो र्जाए कक लोग

यह न कहें कक नमाज़ पढ़ िहा है तो उसक़ी नमाज़ िाततल हो र्जाती है ।

1162. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े दौिान कोई काम कि़े या कुछ द़े ि साककत

िह़े औि शक कि़े कक उसक़ी नमाज़ टूट गई है या नहीं तो ज़रूिी है कक नमाज़ को

दोिािा पढ़़े औि ि़ेहति यह है कक नमाज़ पिू ी कि़े औि किि दोिािा पढ़़े ।

10. मजु बतलात़े नमाज़ में स़े एक खाना औि पीना है। पस अगि कोई शख़्स

नमाज़ क़े दौिान इस तिह खाए या वपय़े कक लोग यह न कह़े कक नमाज़ पढ़ िहा

है तो ख़्वाह उसका यह फ़़ेल अमदन हो या भल


ू चक
ू कक वर्जह स़े हो उसक़ी

नमाज़ िाततल हो र्जाती है । अलित्ता र्जो शख़्स िोज़ा िखना चाहता हो अगि वह

सबु हा क़ी अज़ान स़े पहल़े मस्


ु तहि नमाज़ पढ़ िहा हो औि प्यासा हो औि उस़े डि

हो कक अगि नमाज़ पिू ी कि़े गा तो सबु ह हो र्जाय़ेगी तो अगि पानी उसक़े सामऩे

दो तीन कदम क़े फ़ामसल़े पि हो तो वह नमाज़ क़े दौिान पानी पी सकता है।

ल़ेककन ज़रूिी है कक कोई ऐसा काम, मसलन ककबल़े स़े मंह


ु ि़ेिना न कि़े र्जो

नमाज़ को िाततल किता है ।

1163. अगि ककसी का र्जान िझ


ू कि खाना या पीना नमाज़ क़ी शक्ल को खत्म

न भी कि़े ति भी एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक नमाज़ को दोिािा

383
पढ़़े ख़्वाह नमाज़ का तसलसल
ु खत्म हो यानी यह न कहा र्जाए कक नमाज़ को

मस
ु लसल पढ़ िहा है या नमाज़ का तसलसल
ु खत्म न हो।

1164. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े दौिान कोई ऐसी चगज़ा तनगल ल़े र्जो उसक़े

मंह
ु या दांतों क़े ि़े खों में िह गई हो तो उसक़ी नमाज़ िाततल नहीं होती। इसी तिह

अगि ज़िा भी कन्द या शकि या उन्हीं र्जैसी कोई चीज़ मंह


ु में िह गई हो औि

नमाज़ क़ी हालत में आहहस्ता आहहस्ता र्ल


ु कि प़ेट में चली र्जाए तो कोई हिर्ज

नहीं।

11. मजु बतलात़े नमाज़ में स़े दो िक् अती या तीन िक् अती नमाज़ क़ी िक् अतों में

या चाि िक् अती नमाज़ों क़ी पहली िक् अतों शक किना है । नमाज़ पढ़ऩे वाला शक

क़ी हालत पि िाक़ी िह़े ।

12. मजु बतलात़े नमाज़ में स़े यह भी है कक कोई शख़्स नमाज़ का रुक्न र्जान

िझ
ू कि या भल
ू कि कम कि द़े या एक ऐसी चीज़ को र्जो रुक्न नहीं है र्जान

िझ
ू कि र्टाए या र्जान िझ
ू कि कोई चीज़ नमाज़ में िढ़ाए। इसी तिह अगि ककसी

रुक्न मसलन रूकू या दो सज्दों को एक िक् अत में गलती स़े िढ़ा द़े तो एहततयात़े

वाजर्जि क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल हो र्जाय़ेगी, अलित्ता भल


ू ़े स़े तक्िीितुल

एहिाम क़ी जज़यादती नमाज़ को िाततल नहीं किती।

384
1165. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े िाद शक कि़े कक दौिाऩे नमाज़ उसऩे कोई

ऐसा काम ककया है या नहीं र्जो नमाज़ को िाततल किता हो तो उसक़ी नमाज़

सहीह है।

वह च़ीजें जो नमाज में मकरूह हैं

1166. इसी शख़्स का नमाज़ में अपना च़ेहिा दाईं या िाई र्जातनि इतना कम

मोड़ना कक लोग यह न कहं सकें कक उसऩे अपना मंह


ु ककबल़े स़े मोड़ मलया है

मकरूह है विना र्जैसा कक ियान हो चक


ु ा है उसक़ी नमाज़ िाततल है । औि यह भी

मकरूह है कक कोई शख़्स नमाज़ में अपनी आंखें िन्द कि़े या दायीं औि िायीं

तिफ़ र्म
ु ाए औि अपनी ड़ाढ़ी औि हाथों स़े ख़ेल़े औि उं गमलया एक दस
ू ि़े में

दाखखल कि़े औि थक
ू ़े औि कुिआऩे मर्जीद या ककसी औि ककताि या अंगूठ क़ी

तहिीि को द़े ख़े। औि यह भी मकरूह है कक अलहम्द, सिू ा औि जज़क्र पढ़त़े वक़्त

ककसी क़ी िात सन


ु ऩे क़े मलय़े खामोश हो र्जाए िजल्क हि वह काम र्जो कक खज़
ु ूउ

व खुशउ
ू को कल ्अदम (खत्म) कि द़े , मकरूह है।

1167. र्जि इंसान को नींद आ िही हो औि उस वक़्त भी र्जि उसऩे प़ेशाि या

पखाना िोक िखा हो नमाज़ पढ़ना मकरूह है औि इसी तिह नमाज़ क़ी हालत में

ऐसा मोज़ा पहनना भी मकरूह है र्जो पांव को र्जकड़ ल़े औि इनक़े अलावा दस
ू ि़े

मकरूहात भी भी मफ़
ु स्सल ककतािों में ियान ककय़े गय़े हैं।

385
वह स़ूितें जजनमें वाजजब नमाजें तोड़ी जा सकत़ी हैं

1168. इजख़्तयािी हालत में वाजर्जि नमाज़ को तोड़ना एहततयात़े वाजर्जि क़ी

बिना पि हिाम है ल़ेककन माल क़ी हहफ़ाज़त औि माली या जर्जस्मानी ज़िि स़े

िचऩे क़े मलय़े नमाज़ तोड़ऩे में कोई हिर्ज नहीं िजल्क ज़ाहहिन वह तमाम अहम

दीनी औि दतु नयावी काम र्जो नमाज़ी को प़ेश आयें उनक़े मलय़े नमाज़ तोड़ऩे में

कोई हिर्ज नहीं।

1169. अगि इंसान अपनी र्जान क़ी हहफ़ाज़त या ककसी ऐस़े शख़्स क़ी र्जान क़ी

हहफ़ाज़त जर्जसक़ी र्जान क़ी हहफ़ाज़त वाजर्जि हो या ऐस़े माल क़ी हहफ़ाज़त जर्जसक़ी

तनगहदाश्त वाजर्जि हो औि वह नमाज़ तोड़़े िगैि मजु म्कन न हो तो इंसान को

चाहहय़े कक नमाज़ तोड़ द़े ।

1170. अगि कोई शख़्स वसी वक़्त में नमाज़ पढ़ऩे लग़े औि कज़क ख़्वाह उसस़े

अपऩे कज़े का मत
ु ालिा कि़े औि वह उसका कज़ाक नमाज़ क़े दौिान अदा कि

सकता हो तो ज़रूिी है कक उसी हालत में अदा कि द़े औि अगि िगैि नमाज़ तोड़़े

उसका कज़क चक
ु ाना मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ तोड़ द़े औि उसका

कज़ाक अदा कि़े औि िाद में नमाज़ पढ़़े ।

1171. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े दौिान पता चल़े कक मजस्र्जद नजर्जस है

औि वक़्त तंग हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ तमाम कि़े औि अगि वक़्त वसी हो

386
औि मजस्र्जद को पाक किऩे स़े नमाज़ न टूटती हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ क़े

दौिान उस़े पाक कि़े औि िाद में िाक़ी नमाज़ पढ़़े औि अगि नमाज़ टूट र्जाती हो

औि नमाज़ क़े िाद मजस्र्जद को पाक किना मजु म्कन न हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी

है कक नमाज़ तोड़ द़े औि मजस्र्जद को पाक कि़े औि िाद में नमाज़ पढ़़े ।

1172. जर्जस शख़्स क़े मलय़े नमाज़ को तोड़ना ज़रूिी हो अगि वह नमाज़ खत्म

कि़े (पिू ी कि़े ) तो वह गुनाहगाि होगा ल़ेककन उसक़ी नमाज़ सहीह है अगिच़े

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक दोिािा नमाज़ पढ़़े ।

1173. अगि ककसी शख़्स को ककिअत या रूकू क़ी हद तक झक


ु ऩे स़े पहल़े याद

आ र्जाए कक वह अज़ान औि इकामत या फ़कत इकामत कहना भल


ू गया है औि

नमाज़ का वक़्त वसी हो तो मस्


ु तहि है कक उन्हें कहऩे क़े मलय़े नमाज़ तोड़ द़े

िजल्क अगि नमाज़ खत्म होऩे स़े पहल़े उस़े याद आए कक उन्हें भल
ू गया था ति

भी मस्
ु तहि है कक उन्हें कहऩे क़े मलय़े नमाज़ तोड़ द़े ।

शक्कीयाते नमाज

नमाज़ क़े शक्क़ीयात क़ी 22 ककस्में हैं। उनमें स़े सात इस ककस्म क़े शक हैं र्जो

नमाज़ को िाततल कित़े हैं औि छः इस ककस्म क़े हैं जर्जनक़ी पिवाह नहीं किनी

चाहहय़े औि िाक़ी नौ इस ककस्म क़े शक हैं र्जो सहीह हैं।

387
वह शक जो नमाज को बाततल किते हैं

1174. र्जो शक नमाज़ को िाततल कित़े हैं वह यह हैः-

1. दो िक् अती वाजर्जि नमाज़ मसलन नमाज़़े सबु ह औि नमाज़़े मस


ु ाकफ़ि क़ी

िक् अतों क़ी तादाद क़े िाि़े में शक अलित्ता नमाज़़े मस्
ु तहि औि नमाज़़े एहततयात

क़ी िक् अतों क़ी तादाद क़े िाि़े में शक नमाज़ को िाततल नहीं किता।

2. तीन िक् अती नमाज़ क़ी तादाद क़े िाि़े में शक।

3. चाि िक् अती नमाज़ में कोई शक कि़े कक उसऩे एक िक् अत पढ़ी है या

ज़्यादा पढ़ी है ।

4. चाि िक् अती नमाज़ में दस


ू ि़े सज्द़े में दाखखल होऩे स़े पहल़े नमाज़ी शक कि़े

कक उसऩे दो िक् अतें पढ़ी हैं या ज़्यादा पढ़ी हैं।

5. दो औि छः िक् अतों में या दो औि पांच िक् अतों में शक कि़े ।

6. तीन औि छः िक् अतों में या तीन औि छः स़े ज़्यादा िक् अतों में शक कि़े ।

7. चाि औि छः िक् अतों क़े दिममयान शक या चाि औि छः स़े ज़्यादा िक् अतों

क़े दिममयान शक जर्जसक़ी तफ़्सील आग़े आय़ेगी।

1175. अगि इंसान को नमाज़ िाततल किऩे वाल़े शक


ु ू क में स़े कोई शक प़ेश

आए तो ि़ेहति यह है कक र्जैस़े ही उस़े शक हो नमाज़ न तोड़़े िजल्क इस कदि

388
गौिो कफ़क्र कि़े कक नमाज़ क़ी शक्ल ििकिाि न िह़े या यक़ीन या गुमान हामसल

होऩे स़े ना उम्मीद हो र्जाए।

वह शक जजनकी पिवाह नहीं किऩी चाहहये

1176. वह शक
ु ू क जर्जनक़ी पिवाह नहीं किनी चाहहय़े मन्
ु दरिर्जा ज़ैल हैः-

1. उस फ़़ेल में शक जर्जसक़े िर्जा लाऩे का मौका गज़


ु ि गया हो। मसलन इंसान

रूकू में शक कि़े कक उसऩे अलहम्द पढ़ी हैं या नहीं।

2. सलाम़े नमाज़ क़े िाद शक।

3. नमाज़ का वक़्त गुज़ि र्जाऩे क़े िाद शक।

4. कसीरुश्शक का शक – यानी उस शख़्स का शक र्जो िहुत ज़्यादा शक किता

हो।

5. िक् अतों क़ी तादाद क़े िाि़े में इमाम का शक र्जि कक मामम
ू उनक़ी तादाद

र्जानतो हो। औि इसी तिह मामम


ू का शक र्जि कक इमाम नमाज़ क़ी िक् अतों क़ी

तादाद र्जानता हो।

6. मस्
ु तहि नमाज़ों औि नमाज़़े एहततयात क़े िाि़े में शक।

389
1. जजस फ़ेल का मौका गज
ु ि गया हो उसमें शक किना

1177. अगि नमाज़ी नमाज़ क़े दौिान शक कि़े कक उसऩे नमाज़ का एक

वाजर्जि फ़़ेल अंर्जाम हदया है या नहीं मसलन उस़े शक हो कक अलहम्द पढ़ी या

नहीं र्जिकक उस साबिक काम को अमदन तकक कि क़े जर्जस काम में मशगल
ू हो

उस काम में शिअन मशगल


ू नहीं होना चाहहय़े या मसलन सिू ा पढ़त़े वक़्त शक

कि़े कक अलहम्द पढ़ी है या नहीं तो ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

इस सिू त क़े अलावा ज़रूिी है कक जर्जस चीज़ क़ी अंर्जाम द़े ही क़े िाि़े में शक हो

िर्जा लाए।

1178. अगि नमाज़ी कोई आयत पढ़त़े हुए शक कि़े कक इसस़े पहल़े क़ी आयत

पढ़ी है या नहीं या जर्जस वक़्त आयत का आखखिी हहस्सा पढ़ िहा हो शक कि़े कक

इसका पहला हहस्सा पढ़ा है या नहीं तो ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी पिवाह न

कि़े ।

1179. अगि नमाज़ रूकू या सर्ज


ु ूद क़े िाद शक कि़े कक उनक़े वाजर्जि अफ़् आल

मसलन जज़क्र औि िदन का सक


ु ू न क़ी हालत में होना – उसऩे अंर्जाम हदय़े हैं या

नहीं तो ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1180. अगि नमाज़ी सज्द़े में र्जात़े वक़्त शक कि़े कक रूकू िर्जा लाया है या

नहीं या शक कि़े कक रूकू क़े िाद खड़ा हुआ था या नहीं तो ज़रूिी है कक अपऩे

शक क़ी पिवाह न कि़े ।

390
1181. अगि नमाज़ी खड़ा होत़े वक़्त शक कि़े कक सज्दा या तशह्हुद िर्जा लाया

है या नहीं तो ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1182. र्जो शख़्स िैठ कि या ल़ेट कि नमाज़ पढ़ िहा हो अगि अलहम्द या

तस्िीहात पढ़ऩे क़े वक़्त शक कि़े कक सज्दा या तशह्हुद िार्जा लाया है या नहीं तो

ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े औि अगि अलहम्द या तस्िीहात में

मशगल
ू होऩे स़े पहल़े शक कि़े कक सज्दा या तशह्हुद िार्जा लाया है या नहीं तो

ज़रूिी है कक िर्जा लाए।

1183. अगि नमाज़ी शक कि़े कक नमाज़ का कोई रुक्न िर्जा लाया है या नहीं

औि उसक़े िाद आऩे वाल़े फ़़ेल में मशगल


ू न हुआ हो तो ज़रूिी है कक उस़े िर्जा

लाए मसलन अगि तशह्हुद पढ़ऩे स़े पहल़े शक कि़े कक दो सज्द़े िर्जा लाया है या

नहीं तो ज़रूिी है कक िर्जा लाए औि अगि िाद में उस़े याद आए कक वह उस

रुक्न को िर्जा लाया था तो एक रूक्न िढ़ र्जाऩे क़ी वर्जह स़े एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है।

1184. अगि नमाज़ी शक कि़े कक एक ऐसा अमल र्जो नमाज़ का रुक्न नहीं है

िर्जा लाया है या नहीं औि उसक़े िाद आऩे वाल़े फ़़ेल में मशगल
ू न हुआ हो तो

ज़रूिी है कक उस़े िर्जा लाए मसलन अगि सिू ा पढ़ऩे स़े पहल़े शक कि़े कक

अलहम्द पढ़ी है या नहीं तो ज़रूिी है कक अलहम्द पढ़़े औि अगि उस़े अंर्जाम द़े ऩे

391
क़े िाद उस़े याद आए कक उस़े पहल़े ही िर्जा ला चक
ु ा था तो चंकू क रुक्न ज़्यादा

नहीं हुआ इस मलय़े उसक़ी नमाज़ सहीह है।

1185. अगि नमाज़ी शक कि़े कक एक रुक्न िर्जा लाया है या नहीं मसलन र्जि

तशह्हुद पढ़ िहा हो शक कि़े कक दो सज्द़े िर्जा लाया है या नहीं औि अपऩे शक

क़ी पिवाह न कि़े औि िाद में उस़े याद आए कक उस रुक्न को िर्जा नहीं लाया तो

अगि वह िाद वाल़े रुक्न में मशगल


ू न हुआ हो तो ज़रूिी है कक उस रुक्न को

िर्जा लाए औि अगि िाद वाल़े रुक्न में मशगल


ू हो गया हो तो उसक़ी नमाज़

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि िाततल है । मसलन अगि िाद वाली िक् अत क़े

रूकू स़े पहल़े उस़े याद आए कक दो सज्द़े नहीं िर्जा लाया तो ज़रूिी है कक िर्जा

लाए औि अगि रूकू में या उसक़े िाद उस़े याद आए (कक दो सज्द़े नहीं िर्जा

लाया) तो उसक़ी नमाज़ी र्जैसा कक िर्जा लाया गया, िाततल है।

1186. अगि नमाज़ी शक कि़े कक वह एक गैि रुक्नी अमल िर्जा लाया है या

नहीं औि उसक़े िाद वाल़े अमल में मशगल


ू हो चक
ु ा हो तो ज़रूिी है कक अपऩे

शक क़ी पिवाह न कि़े । मसलन जर्जस वक़्त सिू ा पढ़ िहा हो शक कि़े कक अलहम्द

पढ़ी है या नहीं तो ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े अलित्ता अगि उस़े

कुछ द़े ि में याद आ र्जाए कक इस अमल को िर्जा नहीं लाया औि अभी िाद वाल़े

रुक्न में मशगल


ू न हुआ हो तो ज़रूिी है कक उस अमल को िर्जा लाए औि अगि

िाद वाल़े रुक्न में मशगल


ू हो गया हो तो उसक़ी नमाज़ सहीह है । इस बिना पि

392
मसलन अगि कुनत
ू में उस़े याद आ र्जाए कक उसऩे अलहम्द नहीं पढ़ी थी तो

ज़रूिी है कक पढ़़े औि अगि यह िात उस़े रूकू में याद आए तो उसक़ी नमाज़

सहीह है।

1187. अगि नमाज़ी शक कि़े कक उसऩे नमाज़ का सलाम पढ़ा है या नहीं औि

तअक़ीिात या दस
ू िी नमाज़ में मशगल
ू हो र्जाए या कोई ऐसा काम कि़े र्जो नमाज़

को ििकिाि नहीं िखता औि वह हालत़े नमाज़ स़े खारिर्ज हो गया हो तो ज़रूिी है

कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े औि अगि इन सिू तों स़े पहल़े शक कि़े तो ज़रूिी

है कक सलाम पढ़़े अगि शक कि़े कक सलाम पढ़ा है या नहीं तो र्जहां भी हो अपऩे

शक क़ी पिवाह न कि़े ।

393
2. सलाम के बाद शक किना

1188. अगि नमाज़ी सलाम़े नमाज़ क़े िाद शक कि़े कक उसऩे नमाज़ सहीह

तौि पि पढ़ी है या नहीं मसलन शक कि़े कक रूकू अदा ककया है या नहीं या चाि

िक् अती नमाज़ क़े सलाम क़े िाद शक कि़े कक चाि िक् अती नमाज़ पढ़ी है या

पांच तो वह अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ल़ेककन अगि उस़े दोनों तिफ़ नमाज़ क़े

िाततल होऩे का शक हो मसलन चाि िक् अती नमाज़ क़े सलाम क़े िाद शक कि़े

कक तीन िक् अती पढ़ी है या पांच िक् अत तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

3. वक़्त के बाद शक किना

1189. अगि कोई शख़्स नमाज़ का वक़्त गज़


ु िऩे क़े िाद शक कि़े कक उसऩे

नमाज़ पढ़ी है या नहीं या गम


ु ान कि़े कक नहीं पढ़ी तो उस नमाज़ का पढ़ना

लाजज़म नहीं ल़ेककन अगि वक़्त गज़


ु िऩे स़े पहल़े शक कि़े कक नमाज़ पढ़ी है या

नहीं तो ख़्वाह गुमान कि़े कक पढ़ी है किि भी ज़रूिी है कक वह नमाज़ पढ़़े ।

1190. अगि कोई शख़्स वक़्त गुज़िऩे क़े िाद शक कि़े कक उसऩे नमाज़ दरू
ु स्त

पढ़ी है या नहीं तो अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1191. अगि नमाज़़े ज़ोहि औि अस्र का वक़्त गज़


ु ि र्जाऩे क़े िाद नमाज़ी र्जान

ल़े कक चाि िक् अत नमाज़ पढ़ी है ल़ेककन यह मालम


ू न हो कक ज़ोहि क़ी नीयत स़े

394
पढ़ी है या अस्र क़ी नीयत स़े तो ज़रूिी है कक चाि िकअत नमाज़़े कज़ा उस नमाज़

क़ी नीयत स़े पढ़़े र्जो उस पि वाजर्जि है।

1192. अगि मचिि औि इशा क़ी नमाज़ का वक़्त गज़


ु िऩे क़े िाद नमाज़ी को

पता चल़े कक उसऩे एक नमाज़ पढ़ी है ल़ेककन यह इल्म न हो कक तीन िक् अती

नमाज़ पढ़ी है या चाि िक् अती तो ज़रूिी है कक मचिि औि इशा दोनों नमाज़ो क़ी

कज़ा कि़े ।

4. कस़ीरुश्शक का शक किना

1193. ससीरुश्शक वह शख़्स है र्जो िहुत ज़्यादा शक कि़े इस मअनी में कक

वह लोग र्जो उसक़ी मातनन्द हैं उनक़ी तनस्ित वह हवास़े फ़ि़े ि अस्िाि क़े होऩे या

न होऩे क़े िाि़े में ज़्यादा शक कि़े । पस र्जहां हवास को फ़ि़े ि द़े ऩे वाला सिि न

हो औि हि तीन नमाज़ों में एक दफ़् अ शक कि़े तो ऐसा शख़्स अपऩे शक क़ी

पिवाह न कि़े ।

1194. अगि कसीरुश्शक नमाज़ क़े अज्ज़ा में स़े ककसी र्जुज़्व क़े अंर्जाम द़े ऩे क़े

िाि़े में शक कि़े तो उस़े यंू समझना चाहहय़े कक उस र्जुज़्व को अंर्जाम द़े हदया है।

मसलन अगि शक कि़े कक रूकू ककया है या नहीं तो उस़े समझना चाहहय़े कक रूकू

कि मलया है औि अगि ककसी ऐसी चीज़ क़े िाि़े में शक कि़े र्जो मजु बतल़े नमाज़ है

395
मसलन शक कि़े कक सबु ह क़ी नमाज़ दो िक् अत पढ़ी है या तीन िक् अत तो यहीं

समझ़े नमाज़ ठ क पढ़ी है।

1195. जर्जस शख़्स को नमाज़ क़े ककसी र्जज़्


ु व क़े िाि़े में ज़्यादा शक होता हो,

इस तिह कक वह ककसी मख़्सस


ू र्जुज़्व क़े िाि़े में कुछ ज़्यादा (ही) शक किता

िहता हो, अगि वह नमाज़ क़े ककसी र्जुज़्व क़े िाि़े में शक कि़े तो ज़रूिी है कक

शक क़े अहकाम पि अमल कि़े । मसलन ककसी को ज़्यादा शक इस िात में होता

हो कक सज्दा ककया है या नहीं, अगि उस़े रूकू किऩे क़े िाद शक हो तो ज़रूिी है

कक शक क़े हुक्म पि अमल कि़े यानी अगि भी सज्द़े में न गया हो तो रूकू कि़े

औि सज्द़े में चला गया हो तो शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1196. र्जो शख़्स ककसी मख़्सस


ू नमाज़ मसलन ज़ोहि क़ी नमाज़ में ज़्यादा शक

किता हो अगि वह ककसी दस


ू िी नमाज़ मसलन अस्र क़ी नमाज़ में शक कि़े तो

ज़रूिी है कक शक क़े अहकाम पि अमल कि़े ।

1197. र्जो शख़्स ककसी मख़्सस


ू र्जगह पि नमाज़ पढ़त़े वक़्त ज़्यादा शक किता

हो अगि वह ककसी दस
ू िी र्जगह नमाज़ पढ़़े औि उस़े शक पैदा हो तो ज़रूिी है कक

शक क़े अहकाम पि अमल कि़े ।

1198. अगि ककसी शख़्स को इस िाि़े में शक हो कक कसीरुश्शक हो गया है या

नहीं तो ज़रूिी है कक शक क़े अहकाम पि अमल कि़े औि कसीरुश्शक शख़्स को

396
र्जि तक यक़ीन न हो र्जाए कक वह लोगों क़ी आम हालत पि लौट आया है । अपऩे

शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1199. अगि कसीरुश्शक शख़्स शक कि़े कक एक रुक्न िर्जा लाया है या नहीं

औि वह इस शक क़ी पिवाह भी न कि़े औि किि उस़े याद आए कक वह रुक्न

िर्जा नहीं लाया औि उसक़े िाद क़े रुक्न में मशगल


ू न हुआ हो तो ज़रूिी है कक

उस रुक्न को िर्जा लाए औि अगि िाद क़े रुक्न में मशगल


ू हो गया हो तो उसक़ी

नमाज़ एहततयात क़ी बिना पि िाततल है मसलन अगि शक कि़े कक रूकू ककया है

या नहीं औि इस शक क़ी पिवाह न कि़े औि दस


ू ि़े सज्द़े स़े पहल़े उस़े याद आए

कक रूकू नहीं ककया था तो ज़रूिी है कक रूकू कि़े औि अगि दस


ू ि़े सज्द़े क़े दौिान

उस़े याद आए तो उसक़ी नमाज़ एहततयात क़ी बिना पि िाततल है ।

1200. र्जो शख़्स ज़्यादा शक किता हो अगि वह शक कि़े कक कोई ऐसा अमल

र्जो रुक्न न हो अंर्जाम हदया है या नहीं औि इस शक क़ी पिवाह न कि़े औि िाद

में उस़े याद आए कक वह अमल अंर्जाम नहीं हदया तो अगि अंर्जाम द़े ऩे क़े मकाम

स़े अभी न गज़


ु िा हो तो ज़रूिी है कक उस़े अंर्जाम द़े औि अगि उसक़े मकाम स़े

गुज़ि गया हो तो उसक़ी नमाज़ सहीह है । मसलन अगि शक कि़े कक अलहम्द

पढ़ी है या नहीं औि अलहम्द पढ़़े औि रूकू में याद आए तो उसक़ी नमाज़ सहीह

है ।

397
5. इमाम औि मक्
ु तदी का शक

1201. अगि इमाम़े र्जमाअत नमाज़ क़ी िक् अतों क़ी तादाद में शक कि़े ।

मसलन शक कि़े कक तीन िक् अतें पढ़ी है या चाि िक् अतें औि मक्
ु तदी को यक़ीन

या गम
ु ान हो कक चाि िक् अतें पढ़ी हैं औि वह यह िात इमाम़े र्जमाअत क़े इल्म

में ल़े आए कक चाि िक् अतें पढ़ी हैं तो इमाम को चाहहय़े कक नमाज़ को तमाम कि़े

औि नमाज़़े एहततयात का पढ़ना ज़रूिी नहीं औि अगि इमाम को यक़ीन या

गुमान हो कक ककतनी िक् अतें पढ़ी हैं औि मक्


ु तदी नमाज़ क़ी िक् अतों क़े िाि़े में

शक कि़े तो उस़े चाहहय़े कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

6. मस्
ु तहब नमाज में शक

1202. अगि कोई शख़्स मस्


ु तहि नमाज़ क़ी िक् अतों में शक कि़े औि शक

अदद क़ी ज़्यादती क़ी तिफ़ हो र्जो नमाज़ को िाततल किती है तो उस़े चाहहय़े कक

यह समझ ल़े कक कम िक् अतें पढ़ी हैं मसलन अगि सबु ह क़ी नफ़्लों में शक कि़े

कक दो िक् अतें पढ़ी हैं या तीन तो यह समझ़े कक दो पढ़ीं हैं। औि अगि तादाद क़ी

ज़्यादती वाला शक नमाज़ को िाततल न कि़े मसलन अगि नमाज़ी शक कि़े कक

दो िक् अतें पढ़ीं तो शक क़ी जर्जस तिफ़ पि भी अमल कि़े उसक़ी नमाज़ सहीह है।

1203. रुक्न का कम होना नफ़ल नमाज़ को िाततल कि द़े ता है ल़ेककन रुक्न

का ज़्यादा होना उस़े िाततल नहीं किता। पस अगि नमाज़ी नफ़ल क़े अफ़् आल में

398
स़े कोई फ़़ेल भल
ू र्जाए औि यह िात उस़े उस वक़्त याद आए र्जि वह उसक़े िाद

वाल़े रुक्न में मशगल


ू हो चक
ु ा हो तो ज़रूिी है कक उस फ़़ेल को अंर्जाम द़े औि

दोिािा उस रुक्न को अंर्जाम द़े मसलन अगि रूकू क़े दौिान उस़े याद आए कक

सिू तुल हम्द नहीं पढ़ी तो ज़रूिी है कक वापस लौट़े औि अलहम्द पढ़़े औि दोिािा

रूकू में र्जाए।

1204. अगि कोई शख़्स नफ़ल क़े अफ़् आल में स़े ककसी फ़़ेल क़े मत
ु अजल्लक

शक कि़े ख़्वाह वह फ़़ेल रुक्नी हो या गैि रुक्नी औि इसका मौका न गज़


ु िा हो तो

ज़रूिी है कक उस़े अंर्जाम द़े औि अगि मौका गज़


ु ि गया हो तो अपऩे शक क़ी

पिवाह न कि़े ।

1205. अगि ककसी शख़्स को दो िक् अत मस्


ु तहि नमाज़ में तीन या ज़्यादा

िक् अतों क़े पढ़ ल़ेऩे का गुमान हो तो चाहहय़े कक उस गुमान क़ी पिवाह न कि़े

औि उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन अगि उसका गुमान दो िक् अतों का या उसस़े

कम का हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उसी गम


ु ान पि अमल कि़े मसलन

अगि उस़े गम
ु ान हो कक एक िक् अत पढ़ी है तो ज़रूिी है कक एहततयात क़े तौि पि

एक िक् अत औि पढ़़े ।

1206. अगि कोई शख़्स नफ़ल नमाज़ में कोई ऐसा काम कि़े जर्जसक़े मलय़े

वाजर्जि नमाज़ में सज्दा ए सहव वाजर्जि हो र्जाता हो या एक सज्दा भल


ू र्जाए तो

399
उसक़े मलय़े ज़रूिी है नहीं कक नमाज़ क़े िाद सज्दा ए सहव या सज्द़े क़ी कज़ा

िर्जा लाए।

1207. अगि कोई शख़्स शक कि़े कक मस्


ु तहि नमाज़ पढ़ी है या नहीं औि

उसका नमाज़़े र्जाफ़ि़े तय्याि क़ी तिह कोई मक


ु िक ि वक़्त न हो तो उस़े समझ ल़ेना

चाहहय़े कक नहीं पढ़ी। औि अगि उस मस्


ु तहि नमाज़ का गौमीया नवाकफ़ल क़ी

तिह वक़्त मक
ु िक ि हो औि उस वक़्त क़े गुज़िऩे स़े पहल़े मत
ु अजल्लका शख़्स शक

कि़े कक उस़े अंर्जाम हदया है या नहीं तो उसक़े मलय़े भी यही हुक्म है। ल़ेककन

अगि वक़्त गज़


ु िऩे क़े िाद शक कि़े कक वह नमाज़ पढ़ी है या नहीं तो अपऩे शक

क़ी पिवाह न कि़े ।

सहीह शुक़ूक

1208. अगि ककसी को नौ सिू तों में चाि िक् अती नमाज़ क़ी िक् अतों क़ी तादाद

क़े िाि़े में शक हो तो उस़े चाहहय़े क़ी फ़ौिन गौिो कफ़क्र कि़े औि अगि यक़ीन या

गुमान शक क़ी ककसी एक तिफ़ हो र्जाए तो उसी को इजख़्तयाि कि़े औि नमाज़

को तमाम कि़े वनाक उन अहकाम क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े र्जो ज़ैल में िताए र्जा िह़े

हैं।

वह नौ सिू तें यह है ः-

400
1.दस
ू ि़े सज्द़े क़े दौिान दो िक् अतें पढ़ीं हैं या तीन। इस सिू त में उस़े यंू समझ

ल़ेना चाहहय़े कक तीन िक् अतें पढ़ी हैं औि एक औि िक् अत पढ़़े किि नमाज़ को

तमाम कि़े औि एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि नमाज़ क़े िाद एक िक् अत नमाज़़े

एहततयात खड़़े होकि िर्जा लाए।

2.दस
ू ि़े सज्द़े क़े दौिान अगि शक कि़े कक दो िक् अतें पढ़ी हैं या चाि तो यह

समझ ल़े कक चाि पढ़ी हैं औि नमाज़ को तमाम कि़े औि िाद में दो िक् अत़े

नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि िर्जा लाए।

3.अगि ककसी को दस
ू ि़े सज्द़े क़े दौिान शक हो र्जाए कक दो िक् अत़े पढ़ीं हैं या

तीन या चाि तो उस़े यह समझ ल़ेना चाहहय़े कक चाि पढी हैं औि वह नमाज़

खत्म होऩे क़े िाद दो िक् अत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि औि िाद में दो िक् अत

िैठकि िर्जा लाए।

4. अगि ककसी शख़्स को दस


ू ि़े सज्द़े क़े दौिान शक हो कक उसऩे चाि िक् अतें

पढ़ी हैं या पांच तो वह यह समझ़े कक चाि पढ़ी हैं औि इस ितु नयाद पि नमाज़

पिू ी कि़े औि नमाज़ क़े िाद दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए। औि िईद नहीं कक यही

हुक्म हि उस सिू त में हो र्जहां चाि िक् अत औि उसस़े कम औि उसस़े ज़्यादा

िक् अतों में दस


ू ि़े सज्द़े क़े दौिान शक हो तो चाि िक् अतें किाि द़े कि दोनों शक

क़े अअमाल अंर्जाम द़े । यानी इस एहततमाल क़ी बिना पि कक चाि िक् अत स़े

ज़्यादा पढ़ी हैं िाद में दो सज्दा ए सहव भी कि़े । औि तमाम सिू तों में अगि पहल़े

401
सज्द़े क़े िाद औि दस
ू ि़े सज्द़े में दाखखल होऩे स़े पहल़े साबिका चाि शक में स़े

एक उस़े प़ेश आए तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

5. नमाज़ क़े दौिान जर्जस वक़्त भी ककसी को तीन िक् अत औि चाि िक् अत क़े

दिममयान शक हो ज़रूिी है कक यह समझ ल़े कक चाि िक् अतें पढी हैं औि नमाज़

को तमाम कि़े औि िाद में एक िक् अत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि या दो

िक् अत िैठ कि पढ़़े ।

6. अगि ककयाम क़े दौिान ककसी को चाि िक् अतों औि पांच िक् अतों क़े िाि़े में

शक हो र्जाए तो ज़रूिी है कक िैठ र्जाए औि तशह्हुद औि नमाज़ का सलाम पढ़़े

औि एक िक् अत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि या दो िक् अत िैठ कि पढ़़े ।

7. अगि ककयाम क़े दौिान ककसी को तीन औि पांच िक् अतों क़े िाि़े में शक हो

र्जाए तो ज़रूिी है कक िैठ र्जाए औि तशह्हुद औि नमाज़ का सलाम पढ़़े औि दो

िक् अत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि पढ़़े ।

8. अगि ककयाम क़े दौिान ककसी को तीन, चाि औि पांच िक् अतों क़े िाि़े में

शक हो र्जाए तो ज़रूिी है कक िैठ र्जाए औि तशह्हुद पढ़़े औि सलाम़े नमाज़ क़े

िाद दो िक् अत़े नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि औि िाद में दो िक् अत िैठ कि पढ़़े ।

9. अगि ककयाम क़े दौिान ककसी को पांच औि छः िक् अतों क़े िाि़े में शक हो

र्जाए तो ज़रूिी है कक िैठ र्जाए औि तशह्हुद औि नमाज़ का सलाम पढ़़े औि दो

402
सज्दा ए सहव िर्जा लाए औि एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि इन चाि सितों में

ि़ेर्जा ककयाम क़े मलय़े दो सज्दा ए सहव भी िर्जा लाए।

1209. अगि ककसी को सहीह शक


ु ू क में स़े कोई शक हो र्जाए औि नमाज़ का

वक़्त इतना तंग हो कक नमाज़ अज़ सि़े नव न पढ़ सक़े तो नमाज़ नहीं तोड़नी

चाहहय़े औि ज़रूिी है कक र्जो मसअला ियान ककया गया है उसक़े मत


ु ाबिक अमल

कि़े । िजल्क अगि नमाज़ का वक़्त वसी हो ति भी एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

नमाज़ न तोड़़े औि र्जो मसअला पहल़े ियान ककया गया है उस पि अमल कि़े ।

1210. अगि नमाज़ क़े दौिान इंसान को उन शक


ु ू क में स़े कोई शक लाहहक हो

र्जाए जर्जनक़े मलय़े नमाज़़े एहततयात वाजर्जि है औि वह नमाज़ को तमाम कि़े तो

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक नमाज़़े एहततयात पढ़़े औि नमाज़़े एहततयात पढ़़े

िगैि अज़ सि़े नव नमाज़ न पढ़़े औि अगि वह कोई ऐसा फ़़ेल अंर्जाम द़े ऩे स़े

पहल़े र्जो नमाज़ को िाततल किता हो अज़ सि़े नव नमाज़ पढ़़े तो एहततयात क़ी

बिना पि उसक़ी दस
ू िी नमाज़ भी िाततल है ल़ेककन अगि कोई ऐसा फ़़ेल अंर्जाम

द़े ऩे क़े िाद र्जो नमाज़ को िाततल किता हो नमाज़ में मशगल
ू हो र्जाए तो उसक़ी

दस
ू िी नमाज़ सहीह है।

1211. र्जि नमाज़ को िाततल किऩे वाल़े शक


ु ू क में स़े कोई शक इंसान को

लाहहक हो र्जाए औि वह र्जानता हो कक िाद क़ी हालत में मन्


ु तककल हो र्जाऩे पि

उसक़े मलय़े यक़ीन या गुमान पैदा हो र्जाय़ेगा तो उस सिू त में र्जिकक उसका

403
िाततल शक शरू
ू क़ी दो िक् अत में हो उसक़े मलय़े शक क़ी हालत में नमाज़ र्जािी

िखना र्जाइज़ नहीं है। मसलन अगि ककयाम क़ी हालत में उस़े शक हो कक एक

िक् अत पढ़ी है या ज़्यादा पढ़ी है औि वह र्जानता हो कक अगि रूकू में र्जाए तो

ककसी एक तिफ़ यक़ीन या गुमान पैदा कि़े गा तो इस हालत में उसक़े मलय़े रूकू

किना र्जाइज़ नहीं है औि िाकक िाततल शक


ु ू क में िज़ाहहि अपनी नमाज़ र्जािी िख

सकता है ताकक उस़े यक़ीन या गुमान हामसल हो र्जाए। 1212. अगि ककसी शख़्स

को गुमान पहल़े एक तिफ़ ज़्यादा हो औि िाद में उसक़ी नज़ि में दोनों अतिाफ़

ििािि हो र्जायें तो ज़रूिी है कक शक क़े अहकाम पि अमल कि़े औि अगि पहल़े

ही दोनों अतिाफ़ उसक़ी नज़ि में ििािि हों औि अहकाम क़े मत


ु ाबिक र्जो कुछ

उसका वज़ीफ़ा है उस पि अमल क़ी ितु नयाद िख़े औि िाद में उसका गुमान दस
ू िी

तिफ़ चला र्जाए तो ज़रूिी है कक उसी तिफ़ को इजख़्तयाि कि़े औि नमाज़ को

तमाम कि़े ।

1213. र्जो शख़्स यह न र्जानता हो कक उसका गम


ु ान एक तिफ़ ज़्यादा है या

दोनों अतिाफ़ उसक़ी नज़ि में ििािि हैं तो ज़रूिी है कक शक क़े अहकाम पि

अमल कि़े ।

1214. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े िाद मालम


ू हो कक नमाज़ क़े दौिान

वह शक क़ी हालत में था मसलन उस़े शक था कक उसऩे दो िक् अतें पढ़ी हैं या

तीन िक् अतें पढ़ी हैं औि उसक़े अपऩे अफ़् आल क़ी ितु नयाद तीन िक् अतों पि िखी

404
हो ल़ेककन उस़े यह इल्म न हो कक उसक़े गुमान में यह था कक उसऩे तीन िक् अतें

पढीं हैं या दोनों अतिाफ़ उसक़ी नज़ि में ििािि थीं तो नमाज़़े एहततयात पढ़ना

ज़रूिी है।

1215. अगि ककयाम क़े िाद शक कि़े कक दो सज्द़े ककय़े थ़े या नहीं औि उसी

वक़्त उस़े उन शक
ु ू क में स़े कोई शक हो र्जाए र्जो दो सज्द़े तमाम होऩे क़े िाद

लाहहक होता है तो सहीह होता है मसलन वह शक कि़े कक मैंऩे दो िक् अतें पढ़ी हैं

या तीन औि वह उस शक क़े मत
ु ाबिक अमल कि़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है

ल़ेककन अगि उस़े तशह्हुद पढ़त़े वक़्त उन शक


ु ू क में स़े कोई शक लाहहक हो र्जाए

तो बिल फ़ज़क उस़े यह इल्म हो कक दो सज्द़े अदा ककय़े हैं तो ज़रूिी है कक यह

समझ़े कक यह ऐसी दो िक् अत में स़े है जर्जसमें तशह्हुद नहीं होता तो उसक़ी

नमाज़ िाततल है। उस ममसाल क़ी तिह र्जो गज़


ु ि चक
ु ़ी है वनाक उसक़ी नमाज़

सहीह है र्जैस़े कोई शक कि़े कक दो िक् अत पढ़ी हैं या चाि िक् अत।

1216. अगि कोई शख़्स तशह्हुद में मशगल


ू होऩे स़े पहल़े या उन िक् अतों में

जर्जनमें तशह्हुद नहीं है ककयाम स़े पहल़े शक कि़े कक एक या दो सज्द़े िर्जा लाया

है या नहीं औि उसी वक़्त उस़े उन शक


ु ू क में स़े कोई शक लाहहक हो र्जाए र्जो दो

सज्द़े तमाम होऩे क़े िाद सहीह हो तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1217. अगि कोई शख़्स ककयाम क़ी हालत में तीन औि चाि िक् अतों क़े िाि़े में

या तीन औि चाि औि पांच िक् अतों क़े िाि़े में शक कि़े औि उस़े यह भी याद आ

405
र्जाए कक उसऩे उसस़े पहली िक् अत का एक सज्दा या दोनों सज्द़े अदा नहीं ककय़े

तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1218. अगि ककसी का शक ज़ाइल हो र्जाए औि कोई दस


ू िा शक उस़े लाहहक हो

र्जाए मसलन पहल़े शक कि़े कक दो िक् अतें पढ़ी हैं या तीन िक् अतें औि िाद में

शक कि़े कक तीन िक् अतें पढ़ी हैं या चाि िक् अतें तो ज़रूिी है कक दस
ू ि़े शक क़े

मत
ु ाबिक अहकाम पि अमल कि़े ।

1219. र्जो शख़्स नमाज़ क़े िाद शक कि़े कक नमाज़ क़ी हालत में ममसाल क़े

तौि पि उसऩे दो औि चाि िक् अतों क़े िाि़े में शक ककया था या तीन औि चाि

िक् अतों क़े िाि़े में शक ककया था तो वह हि दो शक क़े हुक्म पि अमल कि

सकता है । औि नमाज़ को भी तोड़ सकता है । औि र्जो काम नमाज़ को िाततल

कि सकता है उस़े किऩे क़े िाद दोिािा नमाज़ पढ़़े ।

1220. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े िाद पता चल़े कक नमाज़ क़ी हालत में

उस़े ऐसा शक लाहहक हो गया था ल़ेककन यह न र्जानता हो कक वह शक नमाज़

को िाततल किऩे वाल़े शक


ु ू क में स़े था या सहीह शक
ु ू क में स़े था औि अगि सहीह

शक
ु ू क में स़े था तो उसका तअल्लक
ु सहीह शक
ु ू क क़ी कौन सी ककस्म स़े था तो

उसक़े मलय़े र्जाइज़ है कक नमाज़ को कलअदम किाि द़े औि दोिािा पढ़़े ।

1221. र्जो शख़्स िैठ कि नमाज़ पढ़ िहा हो अगि उस़े ऐसा शक लाहहक हो

र्जाए जर्जसक़े मलय़े उस़े एक िक् अत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि या दो िक् अत िैठ

406
कि पढ़नी चाहहय़े तो ज़रूिी है कक एक िक् अत िैठ कि पढ़़े औि अगि वह ऐसा

शक कि़े जर्जसक़े मलय़े उस़े दो िक् अत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि पढ़नी चाहहय़े

तो ज़रूिी है कक दो िक् अत िैठ कि पढ़़े ।

1222. र्जो शख़्स खड़ा होकि नमाज़ पढ़ता हो अगि वह नमाज़़े एततयात पढ़ऩे

क़े वक़्त खड़ा होऩे स़े आजर्जज़ हो तो ज़रूिी है कक नमाज़़े एहततयात उस शख़्स क़ी

तिह पढ़़े र्जो िैठ कि नमाज़ पढ़ता है औि जर्जसका हुक्म साबिका मसअल़े में

ियान हो चक
ु ा है।

1223. र्जो शख़्स िैठ कि नमाज़ पढ़ता हो अगि नमाज़़े एहततयात पढ़ऩे क़े

वक़्त खड़ा हो सक़े तो ज़रूिी है कक उस शख़्स क़े वज़ीफ़़े क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े

र्जो खड़ा होकि नमाज़ पढ़ता है।

407
नमाजे एहततयात पढ़ने का तिीका

1224. जर्जस शख़्स पि नमाज़़े एहततयात वाजर्जि हो ज़रूिी है कक नमाज़ क़े

सलाम क़े फ़ौिन िाद नमाज़़े एहततयात क़ी नीयत कि़े औि तक्िीि कह़े किि

अलहम्द पढ़़े औि रूकू में र्जाए औि दो सज्द़े िर्जा लाए। पस अगि उस पि एक

िक् अत नमाज़़े एहततयात वाजर्जि हो तो दो सज्दों क़े िाद तशह्हुद औि सलाम

पढ़़े । औि अगि उस पि दो िक् अत नमाज़़े एहततयात वाजर्जि हो तो दो सज्दों क़े

िाद पहली िक् अत क़ी तिह एक औि िक् अत िर्जा लाए औि तशह्हुद क़े िाद

सलाम पढ़़े ।

1225. नमाज़़े एहततयात में सिू ा औि कुनत


ू नहीं है औि एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि ज़रूिी है कक यह नमाज़ आहहस्ता पढ़़े औि नीयत ज़िान पि न लाए

औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उसक़ी बिजस्मल्लाह भी आहहस्ता पढ़़े ।

1226. अगि ककसी शख़्स को नमाज़़े एहततयात पढ़ऩे स़े पहल़े मालम
ू हो र्जाए

कक र्जो नमाज़ उसऩे पढ़ी थी वह सहीह थी तो उसक़े मलय़े नमाज़़े एहततयात पढ़ना

ज़रूिी नहीं औि अगि नमाज़़े एहततयात क़े दौिान भी यह इल्म हो र्जाए तो उस

नमाज़ को तमाम किना ज़रूिी नहीं।

1227. अगि नमाज़़े एहततयात पढ़ऩे स़े पहल़े ककसी शख़्स को मालम
ू हो र्जाए

कक उसऩे नमाज़ क़ी िक् अत में कम पढ़ी थी औि नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद उसऩे कोई

ऐसा काम न ककया हो र्जो नमाज़ को िाततल किता हो तो ज़रूिी है कक उसऩे

408
नमाज़ को र्जो हहस्सा न पढ़ा हो उस़े पढ़़े औि ि़े महल सलाम क़े मलय़े एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि दो सज्दा ए सहव अदा कि़े औि अगि उसस़े कोई ऐसा फ़़ेल

सज़कद हुआ है र्जो नमाज़ को िाततल किता हो मसलन ककबल़े क़ी र्जातनि पीठ क़ी

हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ को दोिािा पढ़़े ।

1228. अगि ककसी शख़्स को नमाज़़े एहततयात क़े िाद पता चल़े कक उसक़ी

नमाज़ में कमी नमाज़़े एहततयात क़े ििािि थी मसलन तीन िक् अतों औि चाि

िक् अतों क़े दिममयान शक क़ी सिू त में एक िक् अत नमाज़़े एहततयात पढ़़े औि

िाद में मालम


ू हो कक उसऩे नमाज़ क़ी तीन िक् अतें पढ़ी थीं तो उसक़ी नमाज़

सहीह है।

1229. अगि ककसी शख़्स को नमाज़़े एहततयात पढ़ऩे क़े िाद पता चल़े कक

नमाज़ में र्जो कमी हुई थी वह नमाज़़े एहततयात स़े कम थी मसलन दो िक् अतों

औि चाि िक् अतों क़े मािैन शक क़ी सिू त में दो िक् अत नमाज़़े एहततयात पढ़़े

औि िाद में मालम


ू हो कक उसऩे नमाज़ क़ी तीन िक् अतें पढ़ी थीं तो ज़रूिी है कक

नमाज़ दोिािा पढ़़े ।

1230. अगि ककसी शख़्स को नमाज़़े एहततयात पढ़ऩे क़े िाद पता चल़े कक

नमाज़ में र्जो कमी हुई थी वह नमाज़़े एहततयात स़े ज़्यादा थी मसलन तीन

िक् अतों औि चाि िक् अतों क़े मािैन शक क़ी सिू त में एक िक् अत नमाज़़े

एहततयात पढ़़े औि िाद में मालम


ू हो कक नमाज़ क़ी दो िक् अतें पढ़ी थीं औि

409
नमाज़़े एहततयात क़े िाद कोई ऐसा काम ककया हो र्जो नमाज़ को िाततल किता हो

मसलन ककबल़े क़ी र्जातनि पीठ क़ी हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ दोिािा पढ़़े औि

अगि कोई ऐसा काम न ककया हो र्जो नमाज़ को िाततल किता हो तो उस सिू त में

भी एहततयात़े लाजज़म यह है कक नमाज़ दोिािा पढ़़े औि िाकक मांदा एक िक् अत

ज़म किऩे पि इजक़्तफ़ा न कि़े ।

1231. अगि कोई शख़्स तीन औि चाि िक् अतों में शक कि़े औि जर्जस वक़्त

वह एक िक् अत नमाज़ खड़़े होकि पढ़ िहा हो उस़े याद आए कक उसऩे नमाज़ क़ी

दो िक् अतें पढ़ी थीं तो उसक़े मलय़े िैठ कि दो िक् अत नमाज़़े एहततयात पढ़ना

ज़रूिी नहीं।

1232. अगि कोई शख़्स तीन औि चाि िक् अतों में शक कि़े औि जर्जस वक़्त

वह एक िकअत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि पढ़ िहा हो उस़े याद आए क़ी उसऩे

नमाज़ क़ी तीन िक् अतें पढ़ी थीं तो ज़रूिी है कक नमाज़़े एहततयात को छोड़ द़े

चन
ु ांच़े रूकू में दाखखल होऩे स़े पहल़े उस़े याद आया हो तो एक िक् अत ममलाकि

पढ़़े औि उसक़ी नमाज़ सहीह है औि एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़ाइद सलाम

क़े मलय़े दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए औि अगि रूकू में दाखखल होऩे क़े िाद याद

आए तो ज़रूिी है कक नमाज़ दोिािा पढ़़े औि एहततयात क़ी बिना पि िाक़ी मांदा

िक् अत ज़म किऩे पि इकततफ़ नहीं कि सकता।

410
1233. अगि कोई शख़्स दो औि तीन औि चाि िक् अतों में शक कि़े औि जर्जस

वक़्त वह दो िक् अत नमाज़़े एहततयात खड़़े होकि पढ़ िहा हो उस़े याद आए कक

उसऩे नमाज़ क़ी तीन िक् अतें पढ़ी थीं तो यहां भी बिल्कुल वही हुक्म र्जािी हो

जर्जसका जज़क्र साबिका मस ्अल़े में ककया गया है।

1234. अगि ककसी को नमाज़़े एहततयात क़े दौिान पता चल़े कक उसक़ी नमाज़

में कमी नमाज़़े एहततयात स़े ज़्यादा या कम थी तो यहां भी बिल्कुल वही हुक्म

र्जािी होगा जर्जसका जज़क्र मस ्अला 1232 में ककया गया है। 1235. अगि कोई

शख़्स शक कि़े कक र्जो नमाज़़े एहततयात उस पि वाजर्जि थी वह उस़े िर्जा लाया है

या नहीं तो नमाज़ का वक़्त गुज़ि र्जाऩे क़ी सिू त में अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े

औि अगि वक़्त िाक़ी हो तो उस सिू त में र्जिकक शक औि नमाज़ क़े दिममयान

ज़्यादा वक़्फ़ा भी न गुज़िा हो औि उसऩे कोई ऐसा काम भी न ककया हो मसलन

ककबल़े स़े मंह


ु मोड़ना र्जो नमाज़ को िाततल किता हो तो ज़रूिी है कक नमाज़़े

एहततयात पढ़़े औि अगि कोई ऐसा काम ककया हो र्जो नमाज़ को िाततल किता हो

या नमाज़ औि उसक़े शक क़े दिममयान ज़्यादा वक़्फ़ा हो गया हो तो एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि नमाज़ दोिािा पढ़ना ज़रूिी है ।

1236. अगि एक शख़्स नमाज़़े एहततयात में एक िक् अत क़ी िर्जाए दो िक् अत

पढ़ ल़े तो नमाज़़े एहततयात िाततल हो र्जाती है औि ज़रूिी है कक दोिािा अस्ल

411
नमाज़ पढ़़े । औि अगि वह नमाज़ में कोई रुक्न िढ़ा द़े तो एहततयात़े लाजज़म क़ी

बिना पि उसका भी यही हुक्म है ।

1237. अगि ककसी शख़्स को नमाज़़े एहततयात पढ़त़े हुए उस नमाज़ क़े

अफ़् आल में स़े ककसी एक क़े मत


ु ाजल्लक शक हो र्जाए तो अगि उसका मौका न

गुज़िा हो तो उस़े अंर्जाम द़े ना ज़रूिी है औि अगि उसका मौका गज़


ु ि गया हो तो

ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े मसलन अगि शक कि़े कक अलहम्द

पढ़ी है या नहीं औि अभी रूकू में न गया हो तो ज़रूिी है कक अपऩे शक क़ी

पिवाह न कि़े ।

1238. अगि कोई शख़्स नमाज़़े एहततयात क़ी िक् अतों क़े िाि़े में शक कि़े औि

ज़्यादा िक् अतों क़ी तिफ़ शक किना नमाज़ को िाततल किता हो तो ज़रूिी है कक

शक क़ी ितु नयाद कम पि िख़े औि ज़्यादा िक् अतों क़ी तिफ़ शक किना नमाज़

को िाततल न किता हो तो ज़रूिी है कक उसक़ी ितु नयाद ज़्यादा पि िख़े मसलन

र्जि वह दो िक् अत नमाज़़े एहततयात पढ़ िहा हो अगि शक कि़े कक दो िक् अतें

पढ़ी हैं या तीन तो चंकू क ज़्यादा क़ी तिफ़ शक किना नमाज़ को िाततल किता है

इस मलय़े उस़े चाहहय़े क़ी समझ ल़े कक उसऩे दो िक् अतें औि अगि शक कि़े कक

उसऩे एक िक् अत पढ़ी है या दो िक् अतें पढ़ी हैं तो चकंू क ज़्यादती क़ी तिफ़ शक

किना नमाज़ को िाततल नहीं किता इस मलय़े उस़े समझना चाहहय़े क़े दो िक् अत़े

पढ़ी हैं।

412
1239. अगि नमाज़़े एहततयात में कोई ऐसी चीज़ र्जो रुक्न न हो सहवन कम

या ज़्यादा हो र्जाए तो उसक़े मलय़े सज्दा ए सहव नहीं है ।

1240. अगि कोई शख़्स नमाज़़े एहततयात क़े सलाम क़े िाद शक कि़े कक वह

उस नमाज़ क़े अज्ज़ा औि शिाइत में स़े कोई एक र्जुज़्व या शतक अंर्जाम द़े चक
ु ा है

या नहीं तो वह अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1241. अगि कोई शख़्स नमाज़़े एहततयात में तशह्हुद पढ़ना या एक सज्दा

किना भल
ू र्जाए औि उस तशह्हुद या सज्द़े का अपनी र्जगह पि तदारुक भी

मजु म्कन न हो तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक सलाम़े नमाज़ क़े िाद सज्द़े क़ी

कज़ा कि़े ।

1242. अगि ककसी शख़्स पि नमाज़़े एहततयात औि एक सज्द़े क़ी कज़ा या दो

सज्दा ए सहव वाजर्जि हों तो ज़रूिी है कक पहल़े नमाज़़े एहततयात िर्जा लाए।

1243. नमाज़ क़ी िक् अतों क़े िाि़े में गम


ु ान का हुक्म यक़ीन क़े हुक्म क़ी तिह

है मसलन अगि कोई शख़्स यह न र्जानता हो कक एक िक् अत पढ़ी है या दो

िक् अतें पढ़ी हैं औि गम


ु ान कि़े कक दो िक् अतें पढ़ी हैं तो वह समझ़े कक दो िक् अतें

पढ़ी हैं। औि अगि चाि िक् अती नमाज़ में गुमान कि़े कक चाि िक् अती पढ़ी हैं तो

उस़े नमाज़़े एहततयात पढ़ऩे क़ी ज़रूित नहीं ल़ेककन अफ़् आल क़े िाि़े में गुमान

किना शक का हुक्म िखता है पस अगि वह गुमान कि़े क़े रूकू ककया है औि

अभी सज्द़े में न दाखखल हुआ हो तो ज़रूिी है कक रूकू को अंर्जाम द़े , औि अगि

413
वह गुमान कि़े कक अलहम्द नहीं पढ़ी है औि सिू ़े में दाखखल हो चक
ु ा हो तो गुमान

क़ी पिवाह न कि़े औि उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1244. िोज़ाना क़ी वाजर्जि नमाज़ों औि दस


ू िी वाजर्जि नमाज़ों क़े िाि़े में शक

औि सहव औि गुमान क़े हुक्म में कोई फ़कक नहीं है । मसलन ककसी को अगि

नमाज़़े आयात क़े दौिान शक हो कक एक िक् अत पढ़ी है या दो िक् अतें तो चकंू क

उसका शक दो िक् अती नमाज़ में है मलहाज़ा उसक़ी नमाज़ िाततल है। औि अगि

वह गुमान कि़े कक यह दस
ू िी िक् अत है या पहली िक् अत तो अपऩे गुमान क़े

मत
ु ाममक नमाज़ को तमाम कि़े ।

सज्दा ए सहव

1245. ज़रूिी है कक इंसान सलाम़े नमाज़ क़े िाद पांच चीज़ों क़े मलय़े उस तिीक़े

क़े मत
ु ाबिक जर्जसका आइन्दा जज़क्र होगा दो सज्दा ए सहव िर्जा लाएः-

1. नमाज़ क़ी हालत में सहवन कलाम किना।

2. र्जहां सलाम़े नमाज़ न कहना चाहहय़े वहां सलाम कहना। मसलन भल


ू कि

पहली िक् अत में सलाम पढ़ना।

3. तशह्हुद भल
ू र्जाना।

414
4. चाि िक् अती नमाज़ में दस
ू ि़े सज्द़े क़े दौिान शक किना कक चाि िक् अतें

पढ़ी हैं या पांच, या शक किना कक चाि िक् अतें पढ़ी हैं या छः बिलकुल उसी तिह

र्जैस़े कक सहीह शक
ु ू क क़े नम्िि 4 में गज़
ु ि चक
ु ा है ।

5. नमाज़ क़े िाद इज्मालन यह र्जानना कक नमाज़ में गलती स़े कोई चीज़ कम

या ज़्यादा हो गई है ।

इन पांच सिू तों में अगि नमाज़ क़े सहीह होऩे का हुक्म हो तो एहततयात क़ी

बिना पि पहली, दस
ू िी औि पांचवी सिू त में औि अक़्वा क़ी बिना पि तीसिी औि

चौथी सिू त में सज्दा ए सहव अदा किना ज़रूिी है । औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है

कक अगि एक सज्दा भल
ू र्जाए या र्जहां खड़ा होना ज़रूिी हो मसलन अलहम्द औि

सिू ा पढ़त़े वक़्त वहां गलती स़े िैठ र्जाए या र्जहां िैठना ज़रूिी हो मसलन तशह्हुद

पढ़त़े वक़्त वहां गलती स़े खड़ा हो र्जाए तो दो सज्दा ए सहव अदा कि़े िजल्क हि

उस चीज़ क़े मलय़े र्जो गलती स़े नमाज़ में कम या ज़्यादा हो र्जाए दो सज्दा ए

सहव कि़े । उन चन्द सिू तों क़े अहकाम आइन्दा मसाइल में ियान होंग़े।

1246. अगि इंसान गलती स़े या इस ख़्याल स़े कक वह नमाज़ पढ़ चक


ु ा है

कलाम कि़े तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक दो सज्दा ए सहव कि़े ।

415
1247. उस आवाज़ क़े मलय़े र्जो खांसऩे स़े पैदा होती है सज्दा ए सहव वाजर्जि

नहीं ल़ेककन अगि कोई गलती स़े नालओ िक


ु ा कि़े या (सदक ) आह भि़े या (लफ़्ज़़े)

आह कह़े तो ज़रूिी है कक एहततयात क़ी बिना पि सज्दा ए सहव कि़े ।

1248. अगि कोई शख़्स एक ऐसी चीज़ को र्जो उसऩे गलत पढ़ी हो दोिािा

सहीह तौि पि पढ़़े तो उसक़े दोिािा पढ़ऩे पि सज्दा ए सहव वाजर्जि नहीं है।

1249. अगि कोई शख़्स नमाज़ में गलती स़े कुछ द़े ि िात़े किता िह़े औि

उमम
ू न उस़े एक दफ़् आ िात किना समझा र्जाता हो तो उसक़े मलय़े नमाज़ क़े

सलाम क़े िाद दो सज्दा ए सहव काफ़़ी है।

1250. अगि कोई शख़्स गलती स़े तस्िीहात़े अिकआ न पढ़़े तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक नमाज़ क़े िाद दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

1251. र्जहां नमाज़ का सलाम नहीं कहना चाहहय़े अगि कोई शख़्स गलती स़े

अस्सलामो अलैना व अला इिाहदल्लाहहस्स्वाल़ेहीन कह द़े या अस्सलामो अलैकुम

कह़े तो अगिच़े उसऩे व िहमतल्


ु लाह़े व ििकातह
ु ू न कहा हो तो ति भी एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक दो सज्दा ए सहव कि़े । ल़ेककन अगि गलती स़े

अस्सलामो अलैका अय्यह


ु न्निीयो व िहमतुल्लाह़े व ििकातह
ु ू कह़े तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

1252. र्जहां सलाम नहीं पढ़ना चाहहय़े अगि कोई शख़्स गलती स़े वहां तीनों

सलाम पढ़ ल़े तो उसक़े मलय़े दो सज्दा ए सहव काफ़़ी हैं।

416
1253. अगि कोई शख़्स एक सज्दा या तशह्हुद भल
ू र्जाए औि िाद क़ी िक् अत

क़े रूकू स़े पहल़े उस़े याद आए तो ज़रूिी है कक पलट़े औि (सज्दा या तशह्हुद)

िर्जा लाए औि नमाज़ क़े िाद एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि ि़ेर्जा ककयाम क़े

मलय़े दो सज्दा ए सहव कि़े ।

1254. अगि ककसी शख़्स को रूकू में या उसक़े िाद याद आए कक वह उसस़े

पहली िक् अत में एक सज्दा या तशह्हुद भल


ू गया है तो ज़रूिी है कक सलाम़े

नमाज़ क़े िाद सज्द़े क़ी कज़ा कि़े औि तशह्हुद क़े मलय़े दो सज्दा ए सहव कि़े ।

1255. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े सलाम क़े िाद र्जान िझ
ू कि सज्दा ए सहव

न कि़े तो उसऩे गुनाह ककया है औि एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

जर्जस कर र्जल्दी हो सक़े उस़े अदा कि़े औि अगि भल


ू कि उसऩे सज्दा ए सहव

नहीं ककया तो जर्जस वक़्त भी उस़े याद आए ज़रूिी है कक फ़ौिन सज्दा कि़े औि

उसक़े मलय़े नमाज़ का दोिािा पढ़ना ज़रूिी नहीं।

1256. अगि कोई शख़्स शक कि़े कक मसलन उस पि दो सज्दा ए सहव

वाजर्जि हुए हैं या नहीं तो उनका िर्जा लाना उसक़े मलय़े ज़रूिी नहीं।

1257. अगि कोई शख़्स शक कि़े कक मसलन उस पि दो सज्दा ए सहव

वाजर्जि हुए हैं या चाि तो उसका दो सज्द़े अदा किना काफ़़ी है ।

1258. अगि ककसी शख़्स को इल्म हो कक दो सज्दा ए सहव में स़े एक सज्दा

ए सहव नहीं िर्जा लाया औि तदारुक भी मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक दो सज्दा

417
ए सहव िर्जा लाए औि अगि उस़े इल्म हो कक उसऩे सहवन तीन सज्द़े ककय़े हैं

तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक दोिािा दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

सज्दा ए सहव का तिीका

1259. सज्दा ए सहव क़ी तिीका यह है कक सलाम़े नमाज़ क़े िाद इंसान फ़ौिन

सज्दा ए सहव क़ी नीयत कि़े एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि प़ेशानी ककसी ऐसी

चीज़ पि िख द़े जर्जस पि सज्दा किना सहीह हो औि एहततयात मस्


ु तहि यह है

कक सज्दा ए सहव में जज़क्र पढ़़े औि ि़ेहति है कक कह़े ः बिजस्मल्लाह़े व बिल्लाह़े

अस्सलामो अलैका अय्यह


ु न्निीयो व िहमतुल्लाह़े व ििकातुहू इसक़े िाद उस़े

चाहहय़े कक िैठ र्जाए औि दोिािा सज्द़े में र्जाए औि मज़कूिा जज़क्र पढ़़े औि िैठ

र्जाए औि तशह्हुद क़े िाद कह़े अस्सलामो अलैकुम औि औला यह है कक व

िहमतल्
ु लाह़े व ििकातह
ु ू का इज़ाफ़ा कि़े ।

भल
़ू े हुए सज्दे औि तशह्हुद की कजा

1260. अगि इंसान सज्दा औि तशह्हुद भल


ू र्जाए औि नमाज़ क़े िाद उनक़ी

कज़ा िर्जा लाए तो ज़रूिी है कक वह नमाज़ क़ी तमाम शिाइत मसलन िदन औि

मलिास का पाक होना औि रू िककबला होना औि दीगि शिाइत पिू ी किता हो।

418
1261. अगि इंसान कई दफ़् आ सज्दा किना भल
ू र्जाए मसलन एक सज्दा

पहली िक् अत में औि एक सज्दा दस


ू िी िक् अत में भल
ू र्जाए तो ज़रूिी है कक

नमाज़ क़े िाद उन दोनों सज्दों क़ी कज़ा िर्जा लाए औि ि़ेहति यह है कक भल
ू ी

हुई हि चीज़ क़े मलय़े एहततयातन दो सज्दा ए सहव कि़े ।

1262. अगि इंसान एक सज्दा औि एक तशह्हुद भल


ू र्जाए तो एहततयातन हि

एक क़े मलय़े दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

1263. अगि इंसान दो िक् अतों में स़े दो सज्द़े भल


ू र्जाए तो उसक़े मलय़े ज़रूिी

नहीं कक कज़ा कित़े वक़्त तितीि स़े िर्जा लाए।

1264. अगि इंसान नमाज़ क़े सलाम औि सज्द़े क़ी कज़ा क़े दिममयान कोई

ऐसा काम कि़े जर्जसक़े अमदन या सहवन किऩे स़े नमाज़ िाततल हो र्जाती है

मसलन पीठ ककबल़े क़ी तिफ़ कि़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक सज्द़े क़ी कज़ा

क़े िाद दोिािा नमाज़ पढ़़े ।

1265. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े सलाम क़े िाद याद आए कक आखखिी

िक् अत का एक सज्दा या तशह्हुद भल


ू गया है तो ज़रूिी है कक लौट र्जाए औि

नमाज़ को तमाम कि़े औि एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक पहल़े

सज्द़े क़ी कज़ा कि़े औि िाद में सज्दा ए सहव कि़े ।

1266. अगि एक शख़्स नमाज़ क़े सलाम औि सज्द़े क़ी कज़ा क़े दिममयान

कोई ऐसा काम कि़े जर्जसक़े मलय़े सज्दा ए सहव वाजर्जि हो र्जाता हो मसलन भल
ू ़े

419
स़े कलाम कि़े तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक पहल़े सज्द़े क़ी

कज़ा कि़े औि िाद में दो सज्दा ए सहव कि़े ।

1267. अगि ककसी शख़्स को यह इल्म न हो कक नमाज़ में सज्दा भल


ू ा है या

तशह्हुद तो ज़रूिी है कक सज्द़े क़ी कज़ा कि़े औि दो सज्दा ए सहव अदा कि़े ।

औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक तशह्हुद क़ी भी कज़ा कि़े ।

1268. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक सज्दा या तशह्हुद भल


ू ा है या नहीं

तो उसक़े मलय़े उनक़ी कज़ा किना या सज्दा ए सहव अदा किना वाजर्जि नहीं है ।

1269. अगि ककसी शख़्स को इल्म हो कक सज्दा भल


ू गया है औि शक कि़े कक

िाद क़ी िक् अत क़े रूकू स़े पहल़े उस़े याद आया था औि उस़े िर्जा लाया था या

नहीं तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उसक़ी कज़ा कि़े ।

1270. जर्जस शख़्स पि सज्द़े क़ी कज़ा ज़रूिी हो, अगि ककसी दस
ू ि़े काम क़ी

वर्जह स़े उस पि सज्दा ए सहव वाजर्जि हो र्जाए तो ज़रूिी है कक एहततयात क़ी

बिना पि नमाज़ अदा किऩे क़े िाद अव्वलन सज्द़े क़ी कज़ा कि़े औि उसक़े िाद

सज्दा ए सहव कि़े ।

1271. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद भल


ू ़े हुए सज्द़े

क़ी कज़ा िर्जा लाया है या नहीं औि नमाज़ का वक़्त न गुज़िा हो तो उस़े चाहहय़े

क़ी सज्द़े क़ी कज़ा कि़े ल़ेककन अगि नमाज़ का वक़्त भी गुज़ि गया हो तो

एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उसक़ी कज़ा किना ज़रूिी है।

420
नमाज के अज्जा औि शिाइत को कम या ज़्यादा किना

1272. र्जि नमाज़ क़े वाजर्जिात में स़े कोई चीज़ र्जान िझ
ू कि कम या ज़्यादा

क़ी र्जाए तो ख़्वाह वह एक हफ़क ही क्यों न हो नमाज़ िाततल है ।

1273. अगि कोई शख़्स मस ्अला न र्जानऩे क़ी वर्जह स़े नमाज़ क़े अिकान में

स़े कोई एक कम कि द़े तो नमाज़ िाततल है। औि वह शख़्स र्जो (ककसी दिू

उफ़्तादा मकाम पि िहऩे क़ी वर्जह स़े) मसाइल तक िसाई किऩे स़े कामसि हो या

वह शख़्स जर्जसऩे ककसी हुज्र्जत (मोअतिि शख़्स या ककताि वगैिा) पि एततमाद

ककया हो अगि वाजर्जि़े गैि रुक्नी को कम कि़े या ककसी रुक्न को ज़्यादा कि़े तो

नमाज़ िाततल नहीं होती। चन


ु ांच़े अगि मस ्अला न र्जानऩे क़ी वर्जह स़े अगिच़े

कोताही क़ी वर्जह स़े हो सबु हा औि मिीि औि इशा क़ी नमाज़ों में अलहम्द औि

सिू ा आहहस्ता पढ़़े या ज़ोहि औि अस्र क़ी नमाज़ों में अलहम्द औि सिू ा आवाज़ स़े

पढ़़े या सफ़ि कि़े ज़ोहि, अस्र औि इशा क़ी नमाज़ों क़ी चाि िक् अतें पढ़़े तो उसक़ी

नमाज़ सहीह है ।

1274. अगि नमाज़ क़े दौिान ककसी शख़्स का दयान इस तिफ़ र्जाए कक उसका

वज़
ु ू या गस्
ु ल िाततल था या वज़
ु ू या गस्
ु ल ककय़े िगैि नमाज़ पढ़ऩे लगा है तो

ज़रूिी है कक नमाज़ तोड़ द़े औि दोिािा वज़


ु ू या गस्
ु ल क़े साथ पढ़़े औि अगि इस

421
तिफ़ उसका दयान नमाज़ क़े िाद र्जाए तो ज़रूिी है कक वज़
ु ू या गस्
ु ल क़े साथ

दोिािा नमाज़ पढ़़े औि अगि नमाज़ का वक़्त गज़


ु ि गया हो तो उसक़ी कज़ा कि़े ।

1275. अगि ककसी शख़्स को रूकू में पहुंचऩे क़े िाद याद आए कक पहल़े वाली

िक् अत क़े दो सज्द़े भल


ू गया है तो उसक़ी नमाज़ एहततयात क़ी बिना पि िाततल

है औि अगि यह िात उस़े रूकू में पहुंचऩे स़े पहल़े याद आए तो ज़रूिी है कक

वापस मड़
ु ़े औि दो सज्द़े िर्जा लाए औि किि खड़ा हो र्जाए औि अलहम्द औि सिू ा

या तस्िीहात पढ़़े औि नमाज़ को तमाम कि़े औि नमाज़ क़े िाद एहततयात़े

मस्
ु तहि क़ी बिना पि ि़े महल ककयाम क़े मलय़े दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

1276. अगि ककसी शख़्स को अस्सलामो अलैना औि अस्सलामो अलैकुम कहऩे

स़े पहल़े याद आए कक वह आखखिी िक् अत क़े दो सज्द़े िर्जा नहीं लाया तो ज़रूिी

है कक दो सज्द़े िर्जा लाए औि दोिािा सज्द़े औि तशह्हुद औि सलाम पढ़़े .

1277. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े सलाम स़े पहल़े याद आए कक उसऩे

नमाज़ क़े आखखिी हहस्स़े क़ी एक या एक स़े ज़्यादा िक् अतें नहीं पढी तो ज़रूिी है

कक जर्जतना हहस्सा भल
ू गया हो उस़े िर्जा लाए।

1278. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े सलाम क़े िाद याद आए कक उसऩे

नमाज़ क़े आखखिी हहस्स़े क़ी एक या एक स़े ज़्यादा िक् अतें नहीं पढ़ीं औि उसस़े

ऐसा काम भी सिज़द हो चक


ु ा हो कक अगि वह नमाज़ में अमदन या सहव ककया

र्जाए तो नमाज़ को िाततल कि द़े ता हो मसलन उसऩे ककबल़े क़ी तिफ़ पीठ क़ी हो

422
तो उसक़ी नमाज़ िाततल है औि अगि उसऩे कोई ऐसा काम न ककया हो जर्जसका

अमदन या सहवन किना नमाज़ को िाततल किता हो तो ज़रूिी है कक जर्जतना

हहस्सा पढ़ना भल
ू गया हो उस़े फ़ौिन िर्जा लाए औि ज़ाइद सलाम क़े मलय़े

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि दो सज्दा ए सहव कि़े ।

1279. र्जि कोई शख़्स नमाज़ क़े सलाम क़े िाद एक काम अंर्जाम द़े र्जो अगि

नमाज़ क़े दौिान अमदन या सहवन ककया र्जाए तो नमाज़ को िाततल कि द़े ता हो

मसलन पीठ ककबल़े क़ी तिफ़ कि़े औि िाद में उस़े याद आए कक वह दो आखखिी

सज्द़े िर्जा नहीं लाया तो उसक़ी नमाज़ िाततल है औि अगि नमाज़ को िाततल

किऩे वाला कोई काम किऩे स़े पहल़े उस़े यह िात याद आए तो ज़रूिी है कक र्जो

दो सज्द़े अदा किना भल


ू गया है उन्हें िर्जा लाए औि दोिािा तशह्हुद औि सलाम

पढ़़े औि र्जो सलाम पहल़े पढ़ा हो उसक़े मलय़े एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि दो

सज्दा ए सहव कि़े ।

1280. अगि ककसी शख़्स को पता चल़े कक उसऩे नमाज़ वक़्त स़े पहल़े पढ़ ली

है तो ज़रूिी है कक दोिािा पढ़़े औि अगि वक़्त गज़


ु ि गया हो तो कज़ा कि़े । औि

अगि यह पता चल़े कक ककबल़े क़ी तिफ़ पीठ कि क़े पढ़ी है औि अभी वक़्त न

गुज़िा हो तो ज़रूिी है कक दोिािा पढ़़े औि अगि वक़्त गुज़ि चक


ु ा हो औि तिद्दद

का मशकाि हो तो कज़ा ज़रूिी है वनाक कज़ा ज़रूिी नहीं। औि अगि पता चल़े कक

ककबल़े क़ी शम
ु ाली या र्जुनि
ू ी सम्त क़े दिममयान नमाज़ अदा क़ी है औि वक़्त

423
गुज़िऩे क़े िाद पता चल़े तो कज़ा ज़रूिी नहीं ल़ेककन अगि वक़्त गज़
ु िऩे स़े पहल़े

मत
ु वज्र्जह हो औि ककबल़े क़ी सम्त तबदील किऩे स़े मअज़िू न हो मसलन ककबल़े

क़ी सम्त तलाश किऩे में कोताही क़ी हो तो एहततयात क़ी बिना पि दोिािा नमाज़

पढ़ना ज़रूिी है।

मुसाफफ़ि की नमाज

ज़रूिी है कक मस
ु ाकफ़ि ज़ोहि, अस्र औि इशा क़ी नमाज़ आठ शते होत़े हुए कस्र

िर्जा लाए यानी दो िक् अत पढ़़े ।

(पहली शतक)

उसका सफ़ि आठ फ़सकख शिई स़े कम न हो औि फ़सकख़े शिई साढ़़े पांच

ककलोमीटि स़े कऱे कम होता है (मीलों क़े हहसाि स़े आठ फ़सकख़े शिई तकिीिन

28 मील िनत़े हैं) ।

1281. जर्जस शख़्स क़े र्जाऩे औि वापस आऩे क़ी मर्जमई


ू मसाफ़त ममला कि

आठ फ़सकख हो औि ख़्वाह उसक़े र्जाऩे क़ी या वापसी क़ी मसाफ़त चाि फ़सकख स़े

कम हो या न हो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े । इस बिना पि अगि र्जाऩे

क़ी मसाफ़त तीन फ़सकख औि वापसी क़ी पांच फ़सकख या उसक़े िि अक्स हो तो

ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े । इस बिना पि अगि र्जाऩे क़ी मसाफ़त तीन

424
फ़सकख औि वापसी क़ी पांच फ़सकख या उसक़े िि अक्स हो तो ज़रूिी है कक नमाज़

कस्र यानी दो िक् अती पढ़़े ।

1282. अगि सफ़ि पि र्जाऩे औि वापस आऩे क़ी मसाफ़त आठ फ़सकख हो तो

अगिच़े जर्जस हदन वह गया हो उसी हदन या उसी िात को वावपस पलट कि न

आए ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र पढ़़े ल़ेककन इस सिू त में ि़ेहति है कक एहततयातन

पिू ी नमाज़ भी पढ़़े ।

1283. अगि एक मख़्


ु तसि सफ़ि आठ फ़सकख स़े कम हो या इंसान को इल्म न

हो कक उसका सफ़ि आठ फ़सकख है या नहीं तो उस़े नमाज़ कस्र कि क़े नहीं पढ़नी

चाहहय़े औि अगि शक कि़े कक उसका सफ़ि आठ फ़सकख है या नहीं तो उसक़े मलय़े

तह्क़ीक किना ज़रूिी नहीं औि ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1284. अगि एक आहदल या काबिल़े एततमाद शख़्स ककसी को िताए कक उसका

सफ़ि आठ फ़सकख है औि वह उसक़ी िात स़े मत्ु मईन हो तो ज़रूिी है कक नमाज़

कस्र कि क़े पढ़़े ।

1285. ऐसा शख़्स जर्जस़े यक़ीन हो कक उसका सफ़ि आठ फ़सकख है अगि नमाज़

कस्र किक़े पढ़़े औि िाद में उस़े पता चल़े कक आठ फ़सकख न था तो ज़रूिी है कक

पिू ी नमाज़ पढ़़े औि अगि वक़्त गज़


ु ि गया हो तो उसक़ी कज़ा िर्जा लाए।

1286. जर्जस शख़्स को यक़ीन हो कक जर्जस र्जगह वह र्जाना चाहता है वहां सफ़ि

आठ फ़सकख नहीं या शक हो कक आठ फ़सकख है या नहीं औि िास्त़े में उस़े मालम


425
हो र्जाए कक उसका सफ़ि आठ फ़सकख था तो गो थोड़ा सा सफ़ि िाक़ी हो ज़रूिी है

कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े औि अगि पिू ी नमाज़ पढ़ चक


ु ा हो तो ज़रूिी है कक

दोिािा कस्र पढ़़े । ल़ेककन अगि वक़्त गज़


ु ि गया हो तो कज़ा ज़रूिी नहीं है ।

1287. अगि दो र्जगहों का दिममयानी फ़ामसला चाि फ़सकख स़े कम हो औि कोई

शख़्स कई दफ़् आ उनक़े दिममयान र्जाए औि आए तो ख़्वाह उन तमाम मसाफ़तों

का फ़ामसला ममलाकि आठ फ़सकख भी हो र्जाए उस़े नमाज़ पिू ी पढ़नी ज़रूिी है।

1288. अगि ककसी र्जगह र्जाऩे क़े दो िास्त़े हों औि उनमें स़े एक िास्ता आठ

फ़सकख स़े कम औि दस
ू िा आठ फ़सकख या उसस़े ज़्यादा हो तो अगि इंसान वहां

उस िास्त़े स़े र्जाए र्जो आठ फ़सकख है तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

औि अगि उस िास्त़े स़े र्जाए र्जो आठ फ़सकख नहीं है तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़

पढ़़े ।

1289. आठ फ़सकख क़ी इजबतदा उस र्जगह स़े हहसाि किना ज़रूिी है कक र्जहां स़े

गज़
ु ि र्जाऩे क़े िाद आदमी मस
ु ाकफ़ि शम
ु ाि होता है औि गामलिन वह र्जगह शहि

क़ी इजन्तहा होती है ल़ेककन िाज़ िहुत िड़़े शहिों में मजु म्कन है वह शहि का

आखखिी मोहल्ला हो।

426
(दस
ू िी शतक)

मस
ु ाकफ़ि अपऩे सफ़ि क़ी इजबतदा स़े ही आठ फ़सकख तय किऩे का इिादा िखता

हो यानी यह र्जानता हो कक आठ फ़सकख तक का फ़ामसला तय कि़े गा मलहाज़ा

अगि वह उस र्जगह तक का सफ़ि कि़े र्जो आठ फ़सकख स़े कम हो औि वहां

पहुंचऩे क़े िाद ककसी ऐसी र्जगह र्जाऩे का इिादा कि़े जर्जसका फ़ामसला तय कदाक

फ़ामसल़े स़े ममलाकि आठ फ़सकख हो र्जाता हो तो चकंू क वह शरू


ू स़े आठ फ़सकख तय

किऩे का इिादा नहीं िखता था इसमलय़े ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि

वहां स़े आठ फ़सकख आग़े र्जाऩे का इिादा कि़े या मसलन चाि फ़सकख र्जाना चाहता

हो औि किि चाि फ़सकख तय कि क़े अपऩे वतन या ऐसी र्जगह वापस र्जाना

चाहता हो र्जहां उसका इिादा दस हदन ठहिऩे का हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र

कि क़े पढ़़े ।

1290. जर्जस शख़्स को यह इल्म न हो कक उसका सफ़ि ककतऩे फ़सकख का है

मसलन ककसी गम
ु शद
ु ा (शख़्स या चीज़) को ढूंढऩे क़े मलय़े सफ़ि कि िहा हो औि

न र्जानता हो कक उस पा ल़ेऩे क़े मलय़े उस़े कहां तक र्जाना पड़़ेगा तो ज़रूिी है कक

पिू ी नमाज़ पढ़़े । ल़ेककन अगि वापसी पि उसक़े वतन या उस र्जगह तक का

फ़ामसला र्जहां वह दस हदन ककयाम किना चाहता हो आठ फ़सकख या उसस़े ज़्यादा

िनता हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े मज़ीद ििआं अगि वह सफ़ि

427
पि र्जाऩे क़े दौिान इिादा कि़े कक वह मसलन चाि फ़सकख क़ी मसाफ़त र्जात़े हुए

औि चाि फ़सकख क़ी मसाफ़त वहां आत़े हुए तय कि़े गा तो ज़रूिी है कक नमाज़

कस्र किक़े पढ़़े ।

1291. मस
ु ाकफ़ि को नमाज़ कस्र कि क़े उस़े सिू त में पढ़नी ज़रूिी है र्जि उसका

आठ फ़सकख तय किऩे का पख़्


ु ता इिादा हो मलहाज़ा अगि कोई शख़्स शहि स़े िाहि

र्जा िहा हो औि ममसाल क़े तौि पि उसका इिादा यह हो कक अगि कोई साथी

ममल गया तो आठ फ़सकख क़े सफ़ि पि चला र्जाऊंगा औि उस़े इत्मीनान हो कक

साथी ममल र्जाय़ेगा तो उस़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी ज़रूिी है औि अगि उस़े इस

िाि़े में इत्मीनान हो तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1292. र्जो शख़्स आठ फ़सकख सफ़ि तय किऩे का इिादा िखता हो वह अगिच़े

हि िोज़ थोड़ा फ़ामसला तय कि़े औि र्जि हद्द़े तिख्खुस जर्जसक़े मअनी मस ्अला

1327 में आयेंग़े – तक पहुंच र्जाए तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ल़ेककन

अगि हि िोज़ िहुत कम फ़ामसला तय कि़े तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक अपनी

नमाज़ पिू ी भी पढ़़े औि कस्र भी कि़े ।

1293. र्जो शख़्स सफ़ि में ककसी दस


ू ि़े क़े इजख़्तयाि में हो मसलन नौकि र्जो

अपऩे आका क़े साथ सफ़ि कि िहा हो अगि उस़े इल्म हो कक उसका सफ़ि आठ

फ़सकख का है तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े औि अगि उस़े इल्म न हो

तो पिू ी नमाज़ पढ़़े औि इस िाि़े में पछ


ू ना ज़रूिी नहीं।

428
1294. र्जो शख़्स सफ़ि में ककसी दस
ू ि़े क़े इजख़्तयाि में हो अगि वह र्जानता हो

या गम
ु ान िखता हो कक चाि फ़सकख तक पहुंचऩे स़े पहल़े उसस़े र्जद
ु ा हो र्जाय़ेगा

औि सफ़ि नहीं कि़े गा तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1295. र्जो शख़्स सफ़ि में ककसी दस


ू ि़े क़े इजख़्तयाि में हो अगि उस़े इत्मीनान

न हो कक चाि फ़सकख तक पहुंचऩे स़े पहल़े उसस़े र्जुदा नहीं होगा औि सफ़ि र्जािी

िख़ेगा तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि उस़े इत्मीनान हो अगिच़े

एहततमाल िहुत कम हो कक उसक़े सफ़ि में कोई रुकावट पैदा होगी तो ज़रूिी है

कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

(तीसिी शतक)

िास्त़े में मस
ु ाकफ़ि अपऩे इिाद़े स़े किि न र्जाए। पस अगि वह चाि फ़सकख तक

पहुंचऩे स़े पहल़े अपना इिादा िदल द़े या उसका इिादा मत


ु ज़ल्ज़ल हो र्जाए तो

ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1296. अगि कोई शख़्स कुछ फ़ामसला तय किऩे क़े िाद र्जो कक वापसी क़े

सफ़ि को ममलाकि आठ फ़सकख हो सफ़ि तकक कि द़े औि पख़्


ु ता इिादा कि ल़े कक

उसी र्जगह िह़े गा या दस हदन गज़


ु िऩे क़े िाद वापस र्जाय़ेगा या वापस र्जाऩे औि

ठहिऩे क़े िाि़े में कोई फ़ैसला न कि पाए तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

429
1297. अगि कोई शख़्स कुछ फ़ामसला तय किऩे क़े िाद र्जो कक वापसी क़े

सफ़ि को ममलाकि आठ फ़सकख हो सफ़ि तकक कि द़े औि वापस र्जाऩे का पख़्


ु ता

इिादा कि ल़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े अगिच़े वह उस र्जगह दस

हदन स़े कम मद्


ु दत क़े मलय़े ही िहना चाहता हो।

1298. अगि कोई शख़्स ककसी ऐसी र्जगह र्जाऩे क़े मलय़े र्जो आठ फ़सकख दिू हो

सफ़ि शरू
ु कि़े औि कुछ िास्ता तय किऩे क़े िाद ककसी औि र्जगह र्जाना चाह़े

औि जर्जस र्जगह स़े उसऩे सफ़ि शरू


ू ककया है वहां स़े उस र्जगह तक र्जहां वह अि

र्जाना चाहता है आठ फ़सकख िनत़े हों तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1299. अगि कोई शख़्स आठ फ़सकख तक फ़ामसला तय किऩे स़े पहल़े

मत
ु िद्हदद हो र्जाए कक िाक़ी िास्ता तय कि़े या नहीं औि दौिाऩे तिद्दद
ु सफ़ि न

कि़े औि िाद में िाक़ी िास्ता तय किऩे का पख़्


ु ता इिादा कि ल़े तो ज़रूिी है कक

सफ़ि क़े खाततम़े तक नमाज़ कस्र पढ़़े ।

1300. अगि कोई शख़्स आठ फ़सकख का फ़ामसला तय किऩे स़े पहल़े तिद्दद

का मशकाि हो र्जाए कक िाक़ी िास्ता तय कि़े या नहीं औि हालत़े तिद्दद


ु में कुछ

फ़ामसला तय कि ल़े औि िाद में पख़्


ु ता इिादा कि ल़े कक आठ फ़सकख मज़ीद सफ़ि

कि़े गा या ऐसी र्जगह र्जाए कक र्जहां तक र्जाना औि आना आठ फ़सकख हो ख़्वाह

उसी हदन या उसी िात वहां स़े वापस आए या न आए औि वहां दस हदन स़े कम

ठहिऩे का इिादा हो तो ज़रूिी है कक सफ़ि क़े खाततम़े तक नमाज़ कस्र पढ़़े ।

430
1301. अगि कोई शख़्स आठ फ़सकख का फ़ामसला तय किऩे स़े पहल़े मत
ु िद्हदद

हो र्जाए कक िाक़ी िास्ता तय कि़े या नहीं औि हालत़े तिद्दद


ु में कुछ फ़ामसला

तय कि ल़े औि िाद में पख़्


ु ता इिादा कि ल़े कक िाक़ी िास्ता भी तय कि़े गा चन
ु ांच़े

उसका िाक़ी सफ़ि आठ फ़सकख स़े कम हो तो पिू ी नमार्ज पढ़ना ज़रूिी है। ल़ेककन

उस सिू त में र्जिकक तिद्दद


ु स़े पहल़े क़ी तय कदाक मसाफ़त औि तिद्दद
ु क़े िाद

क़ी तय कदाक मसाफ़त ममलाकि आठ फ़सकख हो तो अज़्हि यह है कक नमाज़ कस्र

पढ़़े ।

(चौथी शतक)

मस
ु ाकफ़ि आठ फ़सकख तक पहुंचऩे स़े पहल़े अपऩे वतन स़े गुज़िऩे औि वहां

तवक़्कुफ़ किऩे या ककसी र्जगह दस हदन या उसस़े ज़्यादा हदन िहऩे का इिादा न

िखता हो। पस र्जो शख़्स यह चाहता हो कक आठ फ़सकख पहुंचऩे स़े पहल़े अपऩे

वतन स़े गज़


ु ि़े औि वहां तवक़्कुफ़ कि़े या दस हदन ककसी र्जगह पि िह़े तो ज़रूिी

है कक नमाज़ पिू ी पढ़़े ।

1302. जर्जस शख़्स को यह इल्म न हो कक आठ फ़सकख तक पहुंचऩे स़े पहल़े

अपऩे वतन स़े गज़


ु ि़े गा या तवक़्कुफ़ कि़े गा या नहीं या ककसी र्जगह दस हदन

ठहिऩे का कस्द कि़े गा या नहीं तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

431
1303. वह शख़्स र्जो आठ फ़सकख तक पहुंचऩे स़े पहल़े अपऩे वतन स़े गुज़िना

चाहता हो ताकक वहां तवक़्कुफ़ कि़े या ककसी र्जगह दस हदन िहना चाहता हो औि

वह शख़्स भी र्जो वतन स़े गज़


ु िऩे या ककसी र्जगह दस हदन िहऩे क़े िाि़े में

मत
ु िद्हदद हो अगि वह दस हदन कहीं िहऩे या वतन स़े गुज़िऩे का इिादा तकक भी

कि द़े ति भी ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि िाक़ी मांदा औि वापसी

का िास्ता ममलाकि आठ फ़सकख हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र किक़े पढ़़े ।

(पांचवीं शतक)

मस
ु ाकफ़ि हिाम काम क़े मलय़े सफ़ि न कि़े औि अगि हिाम काम मसलन चोिी

किऩे क़े मलय़े सफ़ि कि़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ पिू ी पढ़़े । औि अगि खुद सफ़ि

ही हिाम हो जर्जसक़ी र्जातनि प़ेशकदमी शिअन हिाम हो या औित शौहि क़ी

इर्जाज़त क़े िगैि ऐस़े सफ़ि पि र्जाए र्जो उस पि वाजर्जि न हो तो उसक़े मलय़े भी

यही हुक्म है । ल़ेककन अगि सफ़ि़े हर्ज क़े सफ़ि क़ी तिह वाजर्जि हो तो नमाज़ कस्र

कि क़े पढ़नी ज़रूिी है ।

1304. र्जो सफ़ि वाजर्जि न हो अगि मां िाप क़ी औलाद स़े मौहबित क़ी वर्जह

स़े उनक़े मलय़े अज़ीयत का िाइस हो तो हिाम है औि ज़रूिी है कक इंसान इस

सफ़ि में पिू ी नमाज़ पढ़़े औि (िमज़ान का महीना हो तो) िोज़ा भी िख़े।

432
1305. जर्जस शख़्स का सफ़ि हिाम न हो औि वह ककसी हिाम काम क़े मलय़े

भी सफ़ि न कि िहा हो वह अगिच़े सफ़ि में गन


ु ाह भी कि़े मसलन गीित कि़े या

शिाि वपय़े ति भी ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र किक़े पढ़़े ।

1306. अगि कोई शख़्स ककसी वाजर्जि काम को तकक किऩे क़े मलय़े सफ़ि कि़े

तो ख़्वाह सफ़ि में उसक़ी कोई दस


ू िी गिज़ हो या न हो उस़े पिू ी नमाज़ पढ़नी

चाहहय़े। पस र्जो शख़्स मकरूज़ हो औि अपना कज़क चक


ु ा सकता हो औि कज़क

ख़्वाह मत
ु ालिा भी कि़े तो अगि वह सफ़ि कित़े हुए अपना कज़क अदा न कि सक़े

औि कज़क चक
ु ाऩे स़े फ़िाि हामसल किऩे क़े मलय़े सफ़ि कि़े तो ज़रूिी है कक पिू ी

नमाज़ पढ़़े । ल़ेककन अगि उसका सफ़ि ककसी औि काम क़े मलय़े हो तो अगिच़े वह

सफ़ि में तके वाजर्जि का मत


ु कक कि भी हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1307. अगि ककसी शख़्स का, सफ़ि में सवािी का र्जानवि का, या सवािी क़ी

कोई औि चीज़ जर्जस पि वह सवाि हो गस्िी हो या अपऩे मामलक स़े फ़िाि होऩे

क़े मलय़े सफ़ि कि िहा हो या वह गस्िी ज़मीन पि सफ़ि कि िहा हो तो ज़रूिी है

कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1308. र्जो शख़्स ककसी ज़ामलम क़े साथ सफ़ि कि िहा हो अगि वह मर्जििू न

हो औि उसका सफ़ि किना ज़ामलम क़े ज़ुल्म किऩे म़े मदद का मजू र्जि हो तो उस़े

पिू ी नमाज़ पढ़नी ज़रूिी है औि अगि मर्जििू हो या ममसाल क़े तौि पि ककसी

433
मज़लम
ू को छुड़ाऩे क़े मलय़े उस ज़ामलम क़े साथ सफ़ि कि़े तो उसक़ी नमाज़ कस्र

होगी।

1309. अगि कोई शख़्स सैि व तफ़िीह (यानी वपकतनक) क़ी गिज़ स़े सफ़ि कि़े

तो उसका सफ़ि हिाम नहीं है औि ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1310. अगि कोई शख़्स मौर्ज म़ेल़े औि सैि व तफ़िीह कक मलय़े मशकाि को

र्जाए तो उसक़ी नमाज़ र्जात़े वक़्त पिू ी है औि वापसी पि अगि मसाफ़त क़ी हद

पिू ी हो तो कस्र है उस सिू त में कक उसक़ी हद़े मसाफ़त पिू ी हो औि मशकाि पि

र्जाऩे क़ी मातनन्द न हो मलहाज़ा अगि हुसल


ू ़े मआश क़े मलय़े मशकाि को र्जाए तो

उसक़ी नमाज़ कस्र है। औि अगि कमाई औि अफ़्ज़ाइश़े दौलत क़े मलय़े र्जाए तो

उसक़ी मलय़े भी यही हुक्म है अगिच़े उस सिू त में एहततयात यह है कक नमाज़

कस्र किक़े भी पढ़़े औि पिू ी भी पढ़़े ।

1311. अगि कोई शख़्स गुनाह का काम किऩे क़े मलय़े सफ़ि कि़े औि सफ़ि स़े

वापसी क़े वक़्त फ़कत उसक़ी वापसी का सफ़ि आठ फ़सकख हो तो ज़रूिी है कक

नमाज़ कस्र किक़े पढ़़े औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक अगि उसऩे तौिा न कक

हो तो नमाज़ कस्र कि क़े भी पढ़़े औि पिू ी भी पढ़़े ।

1312. जर्जस शख़्स का सफ़ि गुनाह का सफ़ि हो अगि वह सफ़ि क़े दौिान

गुनाह का इिादा तकक कि द़े ख़्वाह िाक़ी मांदा मसाफ़त या ककसी र्जगह र्जाना औि

वापस आना आठ फ़सकख हो या न हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र किक़े पढ़़े ।

434
1313. जर्जस शख़्स ऩे गुनाह किऩे क़ी गिज़ स़े गुनाह न ककया हो अगि वह

िास्त़े में तय कि़े कक िक़ीया िास्ता गन


ु ाह क़े मलय़े तय कि़े गा तो उस़े चाहहय़े क़ी

नमाज़ पिू ी पढ़़े अलित्ता उसऩे र्जो नमाज़़े कस्र कि क़े पढ़ी हो वह सहीह हैं।

(छठ शतक)

उन लोगों में स़े न हो जर्जनक़े ककयाम क़ी कोई (मस्


ु तककल) र्जगह नहीं होती औि

उनक़े र्ि उनक़े साथ होत़े हैं। यानी उन सहिा नशीनों (खानािदोशों) क़ी मातनन्द

र्जो बियािानों में र्म


ू त़े िहत़े हैं औि र्जहां कहीं अपऩे मलय़े औि अपऩे मव़ेमशयों क़े

मलय़े दाना पानी द़े खत़े हैं वहीं ड़ेिा डाल द़े त़े हैं औि किि कुछ हदनों क़े िाद दस
ू िी

र्जगह चल़े र्जात़े हैं। पस ज़रूिी है कक ऐस़े लोग सफ़ि में पिू ी नमाज़ पढ़ें ।

1314. अगि कोई सहिा नशीन मसलन र्जाए ककयाम औि अपऩे है वानात क़े

मलय़े चिागाह तलाश किऩे क़े मलय़े सफ़ि कि़े औि माल व असिाि उसक़े हमिाह

हो तो वह पिू ी नमाज़ पढ़़े वनाक अगि उसका सफ़ि आठ फ़सकख हो तो नमाज़ कस्र

कि क़े पढ़़े ।

1315. अगि कोई सहिा नशीन हर्ज, जज़याित, ततर्जाित या इनस़े ममलत़े र्जुलत़े

ककसी मक़्सद स़े सफ़ि कि़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

435
(सातवीं शतक)

उस शख़्स का प़ेशा सफ़ि न हो। पस जर्जस शख़्स का प़ेशा सफ़ि हो यानी या

तो उसका काम ही फ़कत सफ़ि किना हो इस हद तक कक लोग उस़े कसीरुस्सफ़ि

कहें या उसऩे र्जो प़ेशा अपऩे मलय़े इजख़्तयाि ककया हो उसका इनहहसाि सफ़ि किऩे

पि हो मसलन साििान, ड्राइवि, गल्लािान औि मल्लाह। इस ककस्म क़े अफ़िाद

अगिच़े अपऩे ज़ाती मक़्सद मसलन र्ि का सामान ल़े र्जाऩे या अपऩे र्ि वालों

को मन्
ु तककल किऩे क़े मलय़े सफ़ि किें तो ज़रूिी है कक नमाज़ पिू ी पढ़ें औि जर्जस

शख़्स का प़ेशा सफ़ि हो इस मस ्अल़े में उस शख़्स क़े मलय़े भी यही हुक्म है र्जो

ककसी दस
ू िी र्जगह पि काम किता हो (या उसक़ी पोजस्टं ग दस
ू िी र्जगह पि हो) औि

वह हि िोज़ या दो हदन में एक मतकिा वहां तक का सफ़ि किता हो औि लौट

आता हो। मसलन वह शख़्स जर्जसक़ी िहाइश एक र्जगह हो औि काम मसलन

ततर्जाित, मअ
ु जल्लमी वगैिा दस
ू िी र्जगह हो।

1316. जर्जस शख़्स क़े प़ेश़े का तअल्लक


ु सफ़ि स़े हो अगि वह ककसी दस
ू ि़े

मक़्सद मसलन हर्ज या जज़याित क़े मलय़े सफ़ि कि़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र

कि क़े पढ़़े ल़ेककन अगि उफ़े आम में कसीरुस्सफ़ि कहलाता हो तो कस्र न कि़े ।

ल़ेककन अगि ममसाल क़े तौि पि ड्राइवि अपनी गाड़ी जज़याित क़े मलय़े ककिाए पि

चलाए औि जज़म्नन खुद भी ज़्याित कि़े तो हि हाल में ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़

पढ़़े ।

436
1317. वह िाि ििदाि र्जो हाजर्जयों को मक्का पहुंचाऩे क़े मलय़े सफ़ि किता हो

अगि उसका प़ेशा सफ़ि किना हो तो र्जरूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े औि अगि

उसका प़ेशा सफ़ि किना न हो औि मसफ़क हर्ज क़े हदनों में िाि ििदािी क़े मलय़े

सफ़ि किता हो तो उसक़े मलय़े एहततयात़े वाजर्जि यह है कक नमाज़ पिू ी भी पढ़़े

औि कस्र किक़े भी पढ़़े । ल़ेककन अगि सफ़ि क़ी मद्


ु दत कम हो मसलन दो - तीन

हफ़्त़े तो िईद नहीं है कक उसक़े मलय़े नमाज़ कस्र किक़े पढ़ऩे का हुक्म हो।

1318. जर्जस शख़्स का प़ेशा िाि ििदािी हो औि वह दिू दिाज़ मकामात स़े

हाजर्जयों को मक्का ल़े र्जाता हो अगि वह साल का काफ़़ी हहस्सा सफ़ि में िहता हो

तो उस़े पिू ी नमाज़ पढ़नी ज़रूिी है।

1319. जर्जस शख़्स का प़ेशा साल क़े कुछ हहस्सें में सफ़ि किना हो मसलन एक

ड्राइवि र्जो मसफ़क गममकयों या सहदक यों क़े हदनों में अपनी गाड़ी ककिाए पि चलाता हो

ज़रूिी है कक उस सफ़ि में नमाज़ पिू ी पढ़़े औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक कस्र

किक़े भी पढ़़े औि पिू ी भी पढ़़े ।

1320. ड्राइवि औि ि़ेिी वाला र्जो शहि क़े आसपास दो तीन फ़सकख में आता

र्जाता हो अगि वह इवत्तफ़ाकन आठ िसकख क़े सफ़ि पि चला र्जाए तो ज़रूिी है कक

नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1321. जर्जसका प़ेशा मस


ु ाकफ़ित है अगि दस हदन या उसस़े ज़्यादा असाक अपऩे

वतन में िह र्जाए तो ख़्वाह वह इजबतदा स़े दस हदन िहऩे का इिादा िखता हो या

437
िगैि इिाद़े क़े इतऩे हदन िह़े तो ज़रूिी है कक दस हदन क़े िाद र्जि पहल़े सफ़ि

पि र्जाए तो नमाज़ पिू ी पढ़़े औि अगि अपऩे वतन क़े अलावा ककसी दस
ू िी र्जगह

िहऩे का कस्द किक़े या िगैि कस्द क़े दस हदन वहां मक


ु ़ीम िह़े तो उसक़े मलय़े

भी यही हुक्म है ।

1322. चािवादाि (वह सौदागि र्जो चौपाय़े पि सौदा लाद कि ि़ेचता है ) जर्जसका

प़ेशा सफ़ि किना हो अगि वह अपऩे वतन या वतन क़े अलावा ककसी औि र्जगह

कस्द कि क़े या िगैि कस्द क़े दस हदन िह़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक दस

हदन क़े िाद र्जि वह पहला सफ़ि कि़े तो नमाज़़े मक


ु म्मल औि कस्र दोनों पढ़़े ।

1323. चािवादाि औि साििान क़ी तिह जर्जनका प़ेशा सफ़ि किना है अगि

मअमल
ू स़े ज़्यादा सफ़ि उनक़ी मशक़्कत औि थकावट का सिि हो तो ज़रूिी है

कक नमाज़ कस्र कि़े ।

1324. सैलानी क़ी र्जो शहि ि शहि मसयाहत किता हो औि जर्जसऩे अपऩे मलय़े

कोई वतन मअ
ु य्यन न ककया हो वह पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1325. जर्जस शख़्स का प़ेशा सफ़ि किना न हो अगि मसलन ककसी शहि या

गांव में उसका कोई सामान हो औि वह उस़े ल़ेऩे क़े मलय़े सफ़ि पि सफ़ि कि़े तो

ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े । मगि यह कक उसका सफ़ि इस कदि ज़्यादा

हो कक उस़े उफ़कन कसीरुस्सफ़ि कहा र्जाए।

438
1326. र्जो शख़्स तके वतन कि क़े दस
ू िा वतन अपनाना चाहता हो अगि

उसका प़ेशा सफ़ि न हो तो सफ़ि क़ी हालत में उस़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी

ज़रूिी है।

(आठवीं शतक)

मस
ु ाकफ़ि हद्द़े तिख़्खस
ु तक पहुंच र्जाए ल़ेककन वतन क़े अलावा हद्द़े तिख़्खस

मोअतिि नहीं है औि र्जंू ही कोई शख़्स अपनी इकामतगाह स़े तनकल़े उसक़ी

नमाज़ कस्र है ।

1327. हद्द़े तिख़्खस


ु वह र्जगह है र्जहां स़े अहल़े शहि मस
ु ाकफ़ि को न द़े ख

सकें औि उसक़ी अलामत यह है कक वह अहल़े शहि को न द़े ख सक़े।

1328. र्जो मस
ु ाकफ़ि अपऩे वतन वापस आ िहा हो र्जि तक वह अपऩे वतन

वापस न पहुंच़े कस्र नमाज़ पढ़ना ज़रूिी है औि ऐस़े ही र्जो मस


ु ाकफ़ि वतन क़े

अलावा ककसी औि र्जगह दस हदन ठहिना चाहत़े हों वह र्जि तक उस र्जगह न

पहुंच़े उसक़ी नमाज़ कस्र है।

1329. अगि शहि इतनी िलन्दी पि वाक़े हो कक वहां क़े िामशन्द़े दिू स़े हदखाई

दें या इस कदि नश़ेि में वाक़े हो कक अगि इंसान थोड़ा सा दिू भी र्जाए तो वहां

क़े िामशन्दों को न द़े ख सक़े तो उसक़े शहि क़े िहऩे वालों में स़े र्जो शख़्स सफ़ि

में हो र्जि वह इतना दिू चला र्जाए कक अगि वह शहि हमवाि ज़मीन पि होता तो

439
वहां क़े िामशन्द़े उस र्जगह स़े द़े ख़े न र्जा सकत़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि

क़े पढ़़े औि इसी तिह अगि िास्त़े क़ी िलन्दी या पस्ती मअमल
ू स़े ज़्यादा हो तो

ज़रूिी है कक मअमल
ू का मलहाज़ िख़े।

1330. अगि कोई शख़्स ऐसी र्जगह स़े सफ़ि कि़े र्जहां कोई िहता न हो तो र्जि

वह ऐसी र्जगह पहुंच़े कक अगि कोई उस मकाम (यानी सफ़ि शरू


ू किऩे क़े मकाम)

पि िहता हो तो वहां स़े नज़ि न आता तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1331. कोई शख़्स कश्ती या ि़े ल में िैठ़े औि हद्द़े तिख़्खस


ु तक पहुंचऩे स़े

पहल़े पिू ी नमाज़ क़ी नीयत स़े नमाज़ पढ़ऩे लग़े तो अगि तीसिी िक् अत क़े रूकू

स़े पहल़े हद्द़े तिख़्खस


ु तक पहुंच र्जाए तो कस्र नमाज़ पढ़ना ज़रूिी है।

1332. र्जो सिू त पीछल़े मसअल़े में गज़


ु ि चक
ु ़ी है उसक़े मत
ु ाबिक अगि तीसिी

िक् अत क़े रूकू क़े िाद हद्द़े तिख़्खुस तक पहुंच़े चो उस नमाज़ को तोड़ सकता है

औि ज़रूिी है कक उस़े कस्र कि क़े पढ़़े ।

1333. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो र्जाए कक वह हद्द़े तिख़्खस


ु तक पहुंच

चक
ु ा है औि नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े औि उसक़े िाद मालम
ू हो कक नमाज़ क़े

वक़्त हद्द़े तिख़्खुस तक नहीं पहुंचा था तो नमाज़ दोिािा पढ़ना ज़रूिी है। चन
ु ांच़े

र्जि तक हद्द़े तिख़्खस


ु तक न पहुंचा हो तो नमाज़ पिू ी पढ़ना ज़रूिी है । औि उस

सिू त में र्जिकक हद्द़े तिख़्खुस स़े गज़


ु ि चक
ु ा हो नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े । औि

440
अगि वक़्त तनकल चक
ु ा हो तो नमाज़ को उसक़े फ़ौत होत़े वक़्त र्जो हुक्म था

उसक़े मत
ु ाबिक अदा कि़े ।

1334. अगि मस
ु ाकफ़ि क़ी कुव्वत़े िामसिा गैि मअमल
ू ी हो तो उस़े उस मकाम

पि पहुंच कि नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी ज़रूिी है र्जहां स़े मत


ु वजस्सत कुव्वत क़ी

आंख अहल़े शहि को न द़े ख सक़े।

1335. अगि मस
ु ाकफ़ि को सफ़ि क़े दौिान ककसी मकाम पि शक हो कक हद्द़े

तिख़्खुस तक पहुंचा है या नहीं तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1336. र्जो मस
ु ाकफ़ि सफ़ि क़े दौिान अपऩे वतन स़े गज़
ु ि िहा हो अगि वहां

तवक़्कुफ़ कि़े तो ज़रूिी है कक वहां कस्र औि पिू ी नमाज़ दोनों पढ़़े ।

1337. र्जो मस
ु ाकफ़ि अपनी मस
ु ाकफ़ित क़े दौिान अपऩे वतन पहुंच र्जाए औि

वहां कुछ द़े ि ठहि़े तो ज़रूिी है कक र्जि तक वहां िह़े पिू ी नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि

वह चाह़े कक वहां स़े आठ फ़सकख क़े फ़ामसल़े पि चला र्जाए या मसलन चाि फ़सकख

र्जाए औि कफ़ि चाि फ़सकख तय कि क़े लौट़े तो जर्जस वक़्त वह हद्द़े तिख़्खस
ु पि

पहुंच़े ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1338. जर्जस र्जगह को इंसान ऩे अपनी मस्


ु तककल सक
ु ू नत औि िद
ू ोिाश क़े मलय़े

मन्
ु तखि ककया हो वह उसका वतन है ख़्वाह वह वहां पैदा हुआ हो औि वह उसका

आिाई वतन हो या उसऩे खुद उस र्जगह को जज़न्दगी िसि किऩे क़े मलय़े

इजख़्तयाि ककया हो।

441
1339. अगि कोई शख़्स इिादा िखता हो कक थोड़ी सी मद्
ु दत एक ऐसी र्जगह

िह़े र्जो उसका वतन नहीं है औि िाद में ककसी औि र्जगह चला र्जाए तो वह

उसका वतन तसव्विु नहीं होता।

1340. अगि ककसी र्जगह को जज़न्दगी गज़


ु ािऩे क़े मलय़े इजख़्तयाि कि़े अगिच़े

वह हम़ेशा िहऩे का कस्द न िखता हो ताहम ऐसा हो कक उफ़े आम में उस़े वहां

मस
ु ाकफ़ि न कह़े औि अगिच़े वक़्ती तौि पि दस हदन या दस हदन स़े ज़्यादा दस
ू िी

र्जगह िह़े इसक़े िावर्जूद पहली र्जगह ही को उसक़ी जज़न्दगी गर्ज


ु ािऩे क़ी र्जगह

कहें ग़े औि वही र्जगह उसक़े वतन का हुक्म िखती है।

1341. र्जो शख़्स दो मकामात पि जज़न्दगी गज़


ु ािता हो मसलन छः महीऩे एक

शहि में औि छः महीऩे दस


ू ि़े शहि में िहता हो तो दोनों मकामात उसका वतन हैं।

नीज़ अगि उसऩे दो मकामात स़े ज़्यादा मकामात को जज़न्दगी िसि किऩे क़े मलय़े

इजख़्तयाि कि िखा हो तो वह सि उसका वतन शम


ु ाि होत़े हैं।

1342. िाज़ फ़ुक़्हा ऩे कहा है कक र्जो शख़्स ककसी एक र्जगह सक


ु ू नती मकान

का मामलक हो अगि वह मस
ु लसल छः महीऩे वहां िह़े तो जर्जस वक़्त तक मकान

उसक़ी ममजल्कयत में है यह र्जगह उसक़े वतन का हुक्म िकती है । पस र्जि भी वह

सफ़ि क़े दौिान वहां पहुंच़े ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े अगिच़े यह हुक्म साबित

नहीं है।

442
1343. अगि एक शख़्स ककसी ऐस़े मकाम पि पहुंच़े र्जो ककसी ज़माऩे में उसका

वतन िहा हो औि िाद में उसऩे उस़े तकक कि हदया हो तो ख़्वाह उसऩे कोई नया

वतन अपऩे मलय़े मन्


ु तखि न भी ककया हो ज़रूिी है कक वहां पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1344. अगि ककसी मस


ु ाकफ़ि का ककसी र्जगह पि मस
ु लसल दस हदन िहऩे का

इिादा हो या वह र्जानता हो कक ि अमि़े मर्जििू ी दस हदन तक एक र्जगह िहना

पड़़ेगा तो वहां उस़े पिू ी नमाज़ पढ़नी ज़रूिी है।

1345. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि ककसी र्जगह दस हदन िहना चाहता हो तो ज़रूिी

नहीं कक उसका इिादा पहली िात या ग्यािहवीं िात वहां िहऩे का हो र्जंह
ू ी वह

इिादा कि़े कक पहल़े हदन क़े तुलए


ू आफ़ताि स़े दसवें हदन क़े गरू
ु ि़े आफ़ताि तक

वहां िह़े गा, ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े औि ममसाल क़े तौि पि उसका इिादा

पहल़े हदन ज़ोहि स़े ग्यािहवें हदन क़ी ज़ोहि तक वहां िहऩे का हो तो उसक़े मलय़े

भी यही हुक्म है ।

1346. र्जो मस
ु ाकफ़ि ककसी र्जगह दस हदन िहना चाहता हो उस़े उस सिू त में

पिू ी नमाज़ पढ़नी ज़रूिी है र्जि वह साि़े क़े साि़े हदन एक र्जगह िहना चाहता हो।

पस अगि वह ममसाल क़े तौि पि चाह़े क़े दस हदन नर्जफ़ औि कूफ़ा या त़ेहिान

औि शम़ेिान (या किाची औि र्ारू) में िह़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े

पढ़़े ।

443
1347. र्जो मस
ु ाकफ़ि ककसी र्जगह दस हदन िहना चाहता हो अगि वह शरू
ू स़े ही

कस्द िखता हो कक उन दस हदनों क़े दिममयान उस र्जगह क़े आसपास ऐस़े

मकामात पि र्जाय़ेगा र्जो हद्द़े तिख़्खस


ु तक या उसस़े ज़्यादा दिू हों तो अगि

उसक़े र्जाऩे औि आऩे क़ी मद्


ु दत उफ़क में दस हदन ककयाम क़े मनाफ़़ी न हो तो

पिू ी नमाज़ पढ़़े औि अगि मनाफ़़ी हो तो नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े । मसलन अगि

इजबतदा ही स़े इिादा हो कक एक हदन या एक िात क़े मलय़े वहां स़े तनकल़ेगा तो

यह ठहिऩे क़े कस्द क़े मनाफ़़ी है औि ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

ल़ेककन अगि उसका कस्द यह हो कक मसलन आध़े हदन िाद तनकल़ेगा औि किि

लौट़े गा अगिच़े उसक़ी वापसी िात होऩे क़े िाद हो तो ज़रूिी है कक नमाज़ पिू ी

पढ़़े । मगि उस सिू त में कक उसक़े िाि िाि तनकलऩे क़ी वर्जह स़े उफ़कन यह कहा

र्जाए कक दो या उसस़े ज़्यादा र्जगह ककयाम पज़ीन है (तो नमाज़ कस्र पढ़़े )।

1348. अगि ककसी मस


ु ाकफ़ि का ककसी र्जगह दस हदन िहऩे का मस
ु म्मम इिादा

न हो मसलन उसका इिादा यह हो कक अगि उसका साथी आ गया या िहऩे को

अच्छा मकान ममल गया तो दस हदन वहां िह़े गा तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि

क़े पढ़़े ।

1349. र्जि कोई शख़्स ककसी र्जगह दस हदन िहऩे का मस


ु म्मम इिादा िखता

हो अगि उस़े इस िात का एहततमाल हो कक उसक़े वहां िहऩे में कोई रुकावट पैदा

444
होगी औि उसका यह एहततमाल उकला क़े नज़दीक मअकूल हो तो ज़रूिी है कक

नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1350. अगि मस
ु ाकफ़ि को इल्म हो कक महीना खत्म होऩे में मसलन दस या

दस हदन स़े ज़्यादा हदन िाक़ी है औि ककसी र्जगह महीऩे क़े आखखि तक िहऩे का

इिादा कि़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ पिू ी पढ़़े ल़ेककन अगि उस़े इल्म न हो कक

महीना खत्म होऩे में ककतऩे हदन िाक़ी हैं औि महीऩे क़े आखखि तक वहां िहऩे का

इिादा कि़े तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े अगिच़े जर्जस वक़्त उसऩे इिादा

ककया था उस वक़्त स़े महीऩे क़े आखखिी हदन तक दस या उस स़े ज़्यादा हदन

िनत़े हों।

1351. अगि मस
ु ाकफ़ि ककसी र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा कि़े औि एक चाि

िक् अती नमाज़ पढ़ऩे स़े पहल़े वहां िहऩे का इिादा तकक कि द़े या मज़
ु िज़ि हो कक

वहां िह़े या कहीं औि चला र्जाए तो ज़रूिी है कक नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ल़ेककन

अगि चाि िक् अती नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद वहां िहऩे का इिादा तकक कि द़े या

मज़
ु िज़ि हो र्जाए तो ज़रूिी है कक जर्जस वक़्त तक वहां िह़े नमाज़ पिू ी पढ़़े ।

1352. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि जर्जसऩे एक र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा ककया हो

िोज़ा िख ल़े औि ज़ोहि क़े िाद वहां िहऩे का इिादा तकक कि द़े र्जिकक उसऩे एक

चाि िक् अती नमाज़ पढ़ ली हो तो र्जि तक वहां िह़े उसक़े िोज़़े दरु
ु स्त हैं औि

ज़रूिी है कक अपनी नमाज़ें पिू ी पढ़़े औि अगि उसऩे चाि िक् अती नमाज़ न पढ़ी

445
हो तो एहततयातन उस हदन का िोज़ा पिू ा किना नीज़ उसक़ी कज़ा िखना ज़रूिी

है । औि ज़रूिी है कक अपनी नमाज़ें कस्र कि क़े पढ़़े औि िाद क़े हदनों में वह

िोज़ा भी नहीं िख सकता।

1353. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि जर्जसऩे एक र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा ककया हो

वहां िहऩे का इिादा तकक कि द़े औि शक कि़े कक वहां िहऩे का इिादा तकक किऩे

स़े पहल़े एक चाि िक् अती नमाज़ पढ़ी थी या नहीं तो ज़रूिी है कक अपनी नमाज़ें

कस्र कि क़े पढ़़े ।

1354. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि नमाज़ को कस्र किक़े पढ़ऩे क़ी नीयत स़े नमाज़ में

मश्गल
ू हो र्जाए औि नमाज़ क़े दौिान मस
ु म्मम इिादा कि ल़े कक दस या उसस़े

ज़्यादा हदन वहां िह़े गा तो ज़रूिी है कक नमाज़ को चाि िक् अती पढ़ कि खत्म

कि़े ।

1355. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि जर्जसऩे एक र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा ककया हो

पहली चाि िक् अती नमाज़ क़े दौिान अपऩे इिाद़े स़े िाज़ आ र्जाए औि अभी

तीसिी िक् अत में मशगल


ू न हुआ हो तो ज़रूिी है कक दो िक् अती पढ़ कि खत्म

कि़े औि अपनी िाक़ी नमाज़ें, कस्र किक़े पढ़़े औि इसी तिह अगि तीसिी िक् अत

में मशगल
ू हो गया हो औि रूकू में न गया हो तो ज़रूिी है कक िैठ र्जाए औि

नमाज़ को िसिू त़े कस्र खत्म कि़े औि अगि रूकू में चला गया हो तो अपनी

446
नमाज़ तोड़ सकता है औि ज़रूिी है कक उस नमाज़ को दोिािा कस्र कि क़े पढ़़े

औि र्जि तक वहां िह़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़़े ।

1356. जर्जस मस
ु ाकफ़ि ऩे दस हदन ककसी र्जगह िहऩे का इिादा ककया हो अगि

वहां दस हदन स़े ज़्यादा िह़े तो र्जि तक वहां स़े सफ़ि न कि़े ज़रूिी है कक नमाज़

पिू ी पढ़़े औि यह ज़रूिी नहीं कक दोिािा दस हदन िहऩे का इिादा कि़े ।

1357. जर्जस मस
ु ाकफ़ि ऩे ककसी र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा ककया हो ज़रूिी

है कक वाजर्जि िोज़़े िख़े औि मस्


ु तहि िोज़ा भी िख सकता है औि ज़ोहि, अस्र औि

इशा क़ी नफ़्लें भी पढ़ सकता है। 1358. अगि एक मस


ु ाकफ़ि जर्जसऩे ककसी र्जगह

दस हदन िहऩे का इिादा ककया हो एक चाि िक् अती नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद या वहां

दस हदन िहऩे क़े िाद अगिच़े उसऩे एक भी पिू ी नमाज़ न पढ़ी हो यह चाह़े कक

एक ऐसी र्जगह र्जाए र्जो चाि फ़सकख स़े कम फ़ामसल़े पि हो औि किि लौट आए

औि अपनी पहली र्जगह पि दस हदन या उसस़े कम मद्


ु दत क़े मलय़े र्जाए तो

ज़रूिी है कक र्जाऩे क़े वक़्त स़े वापसी तक औि वापसी क़े िाद अपनी नमाज़़े पिू ी

पढ़़े । ल़ेककन अगि उसका अपनी इकामत क़े मकाम पि वापस आना फ़कत इस

वर्जह स़े हो कक वह उसक़े सफ़ि क़े िास्त़े में वाक़े हो औि उसका सफ़ि शिई

मसाफ़त (यानी आठ फ़सकख) का हो तो उसक़े मलय़े ज़रूिी है कक र्जाऩे औि आऩे क़े

दौिान औि ठहिऩे क़ी र्जगह में नमाज़ कस्र किक़े पढ़़े । 1359. अगि कोई मस
ु ाकफ़ि

जर्जसऩे ककसी र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा ककया हो एक चाि िक् अती नमाज़

447
पढ़ऩे क़े िाद चाह़े कक ककसी औि र्जगह चला र्जाए जर्जसका फ़ामसला आठ फ़सकख स़े

कम हो औि दस हदन वहां िह़े तो ज़रूिी है कक िवानगी क़े वक़्त औि उस र्जगह

र्जहां पि वह दस हदन िहऩे का इिादा िखता हो अपनी नमाज़ें पिू ी पढ़़े ल़ेककन

अगि वह र्जगह र्जहां पि वह र्जाना चाहता हो आठ फ़सकख या उसस़े ज़्यादा दिू हो

तो ज़रूिी है कक िवानगी क़े वक़्त अपनी नमाज़़े कस्र कि क़े पढ़़े औि अगि वहां

दस हदन न िहना चाहता हो तो ज़रूिी है कक जर्जतऩे हदन वहां िह़े उन हदनों क़ी

नमाज़़े भी कस्र कि क़े पढ़़े ।

1360. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि जर्जसऩे ककसी र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा ककया

हो एक चाि िक् अती नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद ककसी ऐसी र्जगह र्जाना चाह़े जर्जसका

फ़ामसला चाि फ़सकख स़े कम हो औि मज़


ु बज़ि ् हो कक अपनी पहली र्जगह पि वापस

आए या नहीं या उस र्जगह वापस आऩे स़े बिल्कुल गाकफ़ल हो या यह चाह़े कक

वापस हो र्जाए ल़ेककन मज़


ु बज़ि ् हो कक दस हदन उस र्जगह ठहि़े या नहीं या वहां

दस हदन िहऩे या वहां स़े सफ़ि किऩे स़े गाकफ़ल हो र्जाए तो ज़रूिी है कक र्जाऩे क़े

वक़्त स़े वापसी तक औि वापसी क़े िाद अपनी नमाज़ें पिू ी पढ़़े ।

1361. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि इस ख़्याल स़े कक उसक़े साथी ककसी र्जगह दस हदन

िहना चाहत़े हैं उस र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा कि़े औि एक चाि िक् अती

नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद उस़े पता चल़े कक उसक़े साचथयों ऩे ऐसा कोई इिादा नहीं

448
ककया था तो अगिच़े वह खुद भी वहां िहऩे का ख़्याल तकक कि द़े ज़रूिी है कक

र्जि तक वहां िह़े नमाज़ पिू ी पढ़़े ।

1362. अगि कोई मस


ु ाकफ़ि इवत्तफ़ाकन ककसी र्जगह तीस हदन िह र्जाए मसलन

तीस क़े तीस हदनों में वहां स़े चल़े र्जाऩे या वहां िहऩे क़े िाि़े में मज़
ु िज़ि िहा हो

तो तीस हदन गज़


ु िऩे क़े िाद अगिच़े वह थोड़ी मद्
ु दत ही वहां िह़े ज़रूिी है कक

नमाज़ पिू ी पढ़़े ।

1363. र्जो मस
ु ाकफ़ि नौ हदन या उसस़े कम मद्
ु दत क़े मलय़े एक र्जगह िहना

चाहता हो अगि वह उस र्जगह नौ हदन या उसस़े कम मद्


ु दत गज़
ु ािऩे क़े िाद नौ

हदन या उसस़े कम मद्


ु दत क़े मलय़े दोिािा वहां िहऩे का इिादा कि़े औि इसी तिह

तीस हदन गज़


ु ि र्जायें तो ज़रूिी है कक एक्तीसवें हदन पिू ी नमाज़ पढ़़े ।

1364. तीस हदन गज़


ु िऩे क़े िाद मस
ु ाकफ़ि को उस सिू त में नमाज़ पिू ी पढ़नी

ज़रूिी है र्जि वह तीस हदन एक ही र्जगह िहा हो पस अगि उसऩे उस मद्


ु दत का

कुछ हहस्सा एक र्जगह औि कुछ हहस्सा दस


ू िी र्जगह गज़
ु ािा हो तीस हदन क़े िाद

भी उस़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी ज़रूिी है ।

449
मुतफ़रिय क मसाइल

1365. मस
ु ाकफ़ि मजस्र्जदल
ु हिाम, मजस्र्जद़े निवी औि मजस्र्जद़े कूफ़ा में िजल्क

मक्का ए मक
ु रिक मा, मदीना ए मन
ु व्विा औि कूफ़़े क़े पिू ़े शहिों में अपनी नमाज़

पिू ी पढ़ सकता है नीज़ हज़ित़े सैतयदश्ु शह


ु दा (अ0) क़े हिम में भी कब्ऱे मत
ु ह्हि स़े

पच्चीस गज़ क़े फ़ामसल़े तक मस


ु ाकफ़ि अपनी पिू ी नमाज़ पढ़ सकता है।

1366. अगि कोई ऐसा शख़्स जर्जस़े मालम


ू हो कक वह मस
ु ाकफ़ि है औि उस़े

नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी ज़रूिी है । उन चाि र्जगहों क़े अलावा जर्जनका जज़क्र

साबिका मस ्अल़े में ककया गया है ककसी औि र्जगह र्जान िझ


ू कि पिू ी नमाज़ पढ़़े

तो उसक़ी नमाज़ िाततल है औि अगि भल


ू र्जाए कक मस
ु ाकफ़ि को नमाज़ कस्र कि

क़े पढ़नी चाहहय़े औि पिू ी नमाज़ पढ़ ल़े तो उसक़े मलय़े भी यही हुक्म है ल़ेककन

भल
ू र्जाऩे क़ी सिू त में अगि उस़े नमाज़ क़े वक़्त क़े िाद यह िात याद आए तो

उस नमाज़ का कज़ा किना ज़रूिी नहीं।

1367. र्जो शख़्स र्जानता हो कक वह मस


ु ाकफ़ि है औि उस़े नमाज़ कस्र कि क़े

पढ़नी ज़रूिी है अगि वह पिू ी नमाज़ पढ़़े औि अभी नमार्ज का वक्त िाक़ी हो तो

उस़े नमार्ज दि
ु ािा पढ़नी होगी औप अगि नमार्ज का वक्त खत्म हो चक
ु ा है तो

अहततयात क़ी बिना पि उस़े उस नमार्ज क़ी कज़ा किनी पढ़़े गी।

1368. र्जो मस
ु ाकफ़ि यह न र्जानता हो कक उस़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी ज़रूिी

है अगि वह पिू ी नमाज़ पढ़़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है।

450
1369. र्जो मस
ु ाकफ़ि र्जानता हो कक उस़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी चाहहय़े अगि

वह कस्र नमाज़ क़े वअज़ खस


ु स
ू ीयात स़े नावाककफ़ हो मसलन यह न र्जानता हो

कक आठ फ़सकख क़े सफ़ि में नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी ज़रूिी है तो अगि वह पिू ी

नमाज़ पढ़ ल़े औि नमाज़ क़े वक़्त में इस मस ्अल़े का पता चल र्जाए तो

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक दोिािा नमाज़ पढ़़े औि अगि दोिािा

न पढ़़े तो उसक़ी कज़ा कि़े ल़ेककन अगि नमाज़ का वक़्त गज़


ु िऩे क़े िाद उस़े

(हुक्म़े मस ्अला) मालम


ू हो तो उस नमाज़ क़ी कज़ा नहीं है ।

1370. अगि एक मस
ु ाकफ़ि र्जानता हो कक उस़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी चाहहय़े

औि वह इस गुमान में पिू ी नमाज़ पढ़ ल़े कक उसका सफ़ि आठ फ़सकख स़े कम है

तो र्जि उस़े पता चल़े कक उसका सफ़ि आठ फ़सकख का था तो ज़रूिी है कक र्जो

नमाज़ पिू ी पढ़ी हो उस़े दोिािा कस्र कि क़े पढ़़े औि अगि उस़े इस िात का पता

नमाज़ का वक़्त गज़


ु ि र्जाऩे क़े िाद चल़े तो कज़ा ज़रूिी नहीं।

1371. अगि कोई शख़्स भल


ू र्जाए कक वह मस
ु ाकफ़ि है औि पिू ी नमाज़ पढ़ ल़े

औि उस़े नमाज़ क़े वक़्त क़े अन्दि ही याद आ र्जाए तो उस़े चाहहय़े कक कस्र कि

क़े पढ़़े औि अगि नमाज़ क़े वक़्त क़े िाद याद आए तो उस नमाज़ क़ी कज़ा उस

पि वाजर्जि नहीं।

1372. जर्जस शख़्स को पिू ी नमाज़ पढ़नी ज़रूिी है अगि वह उस़े कस्र कि क़े

पढ़़े तो उसक़ी नमाज़ हि सिू त में िाततल है अगिच़े एहततयात क़ी बिना पि ऐसा

451
मस
ु ाकफ़ि हो र्जो ककसी र्जगह दस हदन िहऩे का इिादा िखता हो औि मस ्अल़े का

हुक्म न र्जानऩे क़ी वर्जह स़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़ी हो।

1373. अगि एक शख़्स चाि िक् अती नमाज़ पढ़ िहा हो औि नमाज़ क़े दौिान

उस़े याद आए कक वह तो मस
ु ाकफ़ि है या इस अम्र क़ी तिफ़ मत
ु वज्र्जह हो कक

उसका सफ़ि आठ फ़सकख है औि वह अभी तीसिी िक् अत क़े रूकू में न गया हो तो

ज़रूिी है कक नमाज़ को दो िक् अतों पि ही तमाम कि द़े औि अगि तीसिी िक् अत

क़े रूकू में र्जा चक


ु ा हो तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है औि

अगि उसक़े पास एक िक् अत पढ़ऩे क़े मलय़े भी वक़्त िाक़ी हो तो ज़रूिी है कक

नमाज़ को नए मसि़े स़े कस्र कि क़े पढ़़े ।

1374. अगि ककसी मस


ु ाकफ़ि को नमाज़़े मस
ु ाकफ़ि क़ी िाज़ खस
ु स
ू ीयात का इल्म

न हो मसलन वह यह र्जानता हो कक अगि चाि फ़सकख तक र्जाए औि वापसी में

चाि फ़सकख का फ़ामसला तय कि़े तो उस़े नमाज़ कस्र कि क़े पढ़नी ज़रूिी है औि

चाि िक् अत वाली नमाज़ क़ी नीयत स़े नमाज़ में मशगल
ू हो र्जाए औि तीसिी

िक् अत क़े रूकू स़े पहल़े मस ्अला उसक़ी समझ में आ र्जाए तो ज़रूिी है कक

नमाज़ को दो िक् अतों पि ही तमाम कि द़े औि अगि वह रूकू में इस अम्र क़ी

र्जातनि मत
ु वज्र्जह हो तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है औि उस

सिू त में अगि उसक़े पास एक िक् अत पढ़ऩे क़े मलय़े भी वक़्त िाक़ी हो तो ज़रूिी

है कक नमाज़ को नए मसि़े स़े कस्र कि क़े पढ़़े ।

452
1375. जर्जस मस
ु ाकफ़ि को पिू ी नमाज़ पढ़नी ज़रूिी हो अगि वह मस ्अला न

र्जानऩे क़ी वर्जह स़े दो िक् अती नमाज़ क़ी नीयत स़े पढ़ऩे लग़े औि नमाज़ क़े

दौिान मस ्अला उसक़ी समझ में आ र्जाए तो ज़रूिी है कक चाि िक् अतें पढ़ कि

नमाज़ को तमाम कि़े औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक नमाज़ खत्म होऩे क़े

िाद दोिािा उस नमाज़ को चाि िक् अती पढ़़े ।

1376. जर्जस मस
ु ाकफ़ि ऩे अभी नमाज़ न पढ़ी हो अगि वह नमाज़ का वक़्त

खत्म होऩे स़े पहल़े अपऩे वतन पहुंच र्जाए या ऐसी र्जगह पहुंच़े र्जहां दस हदन

िहना चाहता हो तो ज़रूिी है कक पिू ी नमाज़ पढ़़े औि र्जो शख़्स मस


ु ाकफ़ि न हो

अगि उसऩे नमाज़ क़े अव्वल़े वक़्त में नमाज़ न पढ़ी हो औि सफ़ि इजख़्तयाि कि़े

तो ज़रूिी है कक सफ़ि में नमाज़ कस्र किक़े पढ़़े ।

1377. जर्जस मस
ु ाकफ़ि को नमाज़ कस्र कि क़े पढ़ना ज़रूिी हो अगि उसक़ी

ज़ोहि या अस्र या इशा क़ी नमाज़ कज़ा हो र्जाए तो अगिच़े वह उसक़ी कज़ा उस

वक़्त िर्जा लाए र्जि वह सफ़ि में न हो ज़रूिी है कक उसक़ी दो िक् अती कज़ा कि़े ।

औि अगि इन तीन नमाज़ों में स़े ककसी ऐस़े शख़्स क़ी कोई नमाज़ कज़ा हो र्जाए

र्जो मस
ु ाकफ़ि न हो तो ज़रूिी है कक चाि िक् अती कज़ा िर्जा लाए अगिच़े यह कज़ा

उस वक़्त िर्जा लाए र्जि वह सफ़ि में हो।

1378. मस्
ु तहि है कक मस
ु ाकफ़ि हि कस्र नमाज़ क़े िाद तीस मतकिा

सबु हानल्लाह़े वलहम्दो मलल्लाह़े व ला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकिि कह़े औि

453
ज़ोहि, अस्र औि इशा क़ी तअक़ीिात क़े मत
ु अजल्लक िहुत ज़्यादा ताक़ीद क़ी गई है

िजल्क ि़ेहति है कक मस
ु ाकफ़ि इन तीन नमाज़ों क़ी तअक़ीि में यही जज़क्र साठ

मतकिा पढ़़े ।

कजा नमाज

1379. जर्जस शख़्स ऩे अपनी यौममया नमाज़ें उनक़े वक़्त में न पढ़ी हों तो

ज़रूिी है कक उनक़ी कज़ा िर्जा लाए अगिच़े वह नमाज़ क़े तमाम वक़्त क़े दौिान

सोया िहा हो या उसऩे मदहोशी क़ी वर्जह स़े नमाज़ न पढ़ी हो औि यही हुक्म है

उस नमाज़ का र्जो मन्नत मानऩे क़ी वर्जह स़े मोअय्यन वक़्त में उस पि वाजर्जि

हो चक
ु ़ी हो। ल़ेककन नमाज़़े ईद़े कफ़त्र औि नमाज़़े ईद़े कुिाकन क़ी कज़ा नहीं है। ऐस़े

ही र्जो नमाज़ ककसी औित ऩे हैज़ या तनफ़ास क़ी हालत में न पढ़ी हों उनक़ी कज़ा

वाजर्जि नहीं ख़्वाह वह यौममया नमाज़ें हो या कोई औि हों।

1380. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ क़े वक़्त क़े िाद पता चल़े कक र्जो नमाज़

उसऩे पढ़ी थी वह िाततल थी तो ज़रूिी है कक उस नमाज़ क़ी कज़ा कि़े ।

1381. जर्जस शख़्स पि ककसी नमाज़ क़ी कज़ा हो र्जाए ज़रूिी है कक उसक़ी

कज़ा पढ़ऩे में कोताही न कि़े अलित्ता उसका फ़ौिन पढ़ना वाजर्जि नहीं है ।

1382. जर्जस शख़्स पि ककसी नमाज़ क़ी कज़ा (वाजर्जि) हो वह मस्


ु तहि नमाज़

पढ़ सकता है ।

454
1383. अगि ककसी शख़्स को एहततमाल हो कक कज़ा नमाज़ उसक़े जज़म्म़े है या

र्जो नमाज़ें पढ़ चक


ु ा है वह सहीह नहीं थीं तो मस्
ु तहि है कक एहततयातन उन

नमाज़ों क़ी कज़ा कि़े ।

1384. यौममया नमाज़ों क़ी कज़ा में तितीि लाजज़म नहीं है मसवाय उन नमाज़ों

क़े जर्जनक़ी अदा में तितीि है मसलन एक हदन क़ी ज़ोहि व अस्र या मगरिि व

इशा। अगिच़े दस
ू िी नमाज़ों में भी तितीि का मलहाज़ िखना ि़ेहति है ।

1385. अगि कोई शख़्स चाह़े कक यौममया नमाज़ों क़े अलावा चन्द नमाज़ों

मसलन नमाज़़े आयात क़ी कज़ा कि़े या ममसाल क़े तौि पि चाह़े कक ककसी एक

यौममया नमाज़ क़ी औि चन्द गैि यौममया नमाज़ों क़ी कज़ा कि तो उनका तितीि

क़े साथ कज़ा किना ज़रूिी नहीं है।

1386. अगि कोई शख़्स उन नमाज़ों क़ी तितीि भल


ू र्जाए र्जो उसऩे नहीं पढ़ीं

तो ि़ेहति है कक उन्हें इस तिह पढ़़े कक उस़े यक़ीन हो र्जाए कक उसऩे वह उसी

तिह तितीि स़े पढ़ी हैं जर्जस तितीि स़े वह कज़ा हुई थीं। मसलन अगि ज़ोहि क़ी

एक नमाज़ औि मगरिि क़ी एक नमाज़ क़ी कज़ा उस पि वाजर्जि हो औि उस़े यह

मालम
ू न हो कक कौन सी पहल़े कज़ा हुई थी तो पहल़े एक नमाज़़े मगरिि औि

उसक़े िाद एक नमाज़ ज़ोहि औि दोिािा नमाज़़े मगरिि पढ़़े या पहल़े एक नमाज़़े

ज़ोहि औि उसक़े िाद एक नमाज़़े मगरिि औि कफ़ि दोिािा एक नमाज़़े ज़ोहि पढ़़े

455
ताकक उस़े यक़ीन हो र्जाए कक र्जो नमाज़ भी पहल़े कज़ा हुई थी वह पहल़े ही पढ़ी

गई है।

1387. अगि ककसी शख़्स स़े एक हदन क़ी नमाज़़े ज़ोहि औि ककसी औि हदन

क़ी नमाज़़े अस्र या दो नमाज़़े ज़ोहि या दो नमाज़़े अस्र कज़ा हुई हों औि उस़े

मालम
ू न हो कक कौन सी पहल़े कज़ा हुई है तो अगि दो नमाज़ें चाि िक् अती इस

नीयत स़े पढ़़े कक उनमें स़े पहली नमाज़ पहल़े हदन क़ी कज़ा है औि दस
ू िी दस
ू ि़े

हदन क़ी कज़ा है तो तितीि हामसल होऩे क़े मलय़े काफ़़ी है ।

1388. अगि ककसी शख़्स क़ी एक नमाज़़े ज़ोहि औि एक नमाज़़े इशा या एक

नमाज़़े अस्र औि एक नमाज़़े इशा कज़ा हो र्जाए औि उस़े यह न मालम


ू हो कक

कौन सी पहल़े कज़ा हुई है तो ि़ेहति है कक उन्हें इस तिह पढ़़े कक उस़े यक़ीन हो

र्जाए कक उसऩे उस़े तितीि स़े पढ़ा है मसलन अगि उसस़े एक नमाज़़े ज़ोहि औि

एक नमाज़़े इशा कज़ा हुई हो औि उस़े यह इल्म न हो कक पहल़े कौन सी कज़ा

हुई थी तो वह पहल़े एक नमाज़़े ज़ोहि औि उसक़े िाद एक नमाज़़े इशा औि किि

दोिािा एक नमाज़़े ज़ोहि या पहल़े एक नमाज़़े इशा उसक़े िाद एक नमाज़़े ज़ोहि

पढ़़े या पहल़े एक नमाज़़े इशा उसक़े िाद एक नमाज़़े ज़ोहि औि किि दोिािा एक

नमाज़़े इशा पढ़़े ।

1389. अगि ककसी शख़्स को मालम


ू हो कक उस ऩे एक चाि िक् अती नमाज़

नहीं पढ़ी ल़ेककन यह इल्म न हो कक वह ज़ोहि क़ी नमाज़ थी या इशा क़ी तो

456
अगि वह एक चाि िक् अती नमाज़ क़ी कज़ा क़ी नीयत स़े पढ़़े र्जो उसऩे नहीं पढ़ी

तो काफ़़ी है औि उस़े इजख़्तयाि है कक वह नमाज़ िलन्द आवाज़ स़े पढ़़े या

आहहस्ता पढ़़े ।

1390. अगि ककसी शख़्स क़ी मस


ु लसल पांच नमाज़ें कज़ा हो र्जायें औि उस़े यह

मालम
ू न हो कक उनमें स़े पहली कौन सी थी तो अगि वह नौ नमाज़ें तितीि स़े

पढ़़े मसलन नमाज़़े सबु हा स़े शरू


ू कि़े औि ज़ोहि व अस्र औि मगरिि व इशा पढ़ऩे

क़े िाद दोिािा नमाज़़े सबु हा औि ज़ोहि व अस्र औि मगरिि पढ़़े तो उस़े तितीि

क़े िाि़े में यक़ीन हामसल हो र्जाय़ेगा।

1391. जर्जस शख़्स को मालम


ू हो कक उसक़ी यौममया नमाज़ों में स़े कोई न कोई

एक न एक हदन क़ी कज़ा हुई है ल़ेककन उनक़ी तितीि न र्जानता हो तो ि़ेहति

यह है कक पांच हदन िात क़ी नमाज़ें पढ़़े औि अगि छः हदनों में स़े उसक़ी छः

नमाज़ें कज़ा हुई हों तो छः हदन िात क़ी नमाज़ें पढ़़े औि इसी तिह हि उस नमाज़

क़े मलय़े जर्जसस़े उसक़ी कज़ा नमाज़ों में इज़ाफ़ा हो। एक मज़ीद हदन िात क़ी

नमाज़़े पढ़़े ताकक उस़े यक़ीन हो र्जाए कक उसऩे नमाज़ें तितीि स़े पढ़ी हैं जर्जस

तितीि स़े कज़ा हुई थीं मसलन अगि सात हदन क़ी सात नमाज़ें न पढ़ी हों तो

सात हदन िात क़ी नमार्जों क़ी कज़ा कि़े ।

1392. ममसाल क़े तौि पि अगि ककसी क़ी चन्द सबु ह क़ी नमाज़ें या चन्द

ज़ोहि क़ी नमाज़ें कज़ा हो गई हों औि उनक़ी तादाद न र्जानता हो या भल


ू गया हो

457
मसलन यह न र्जानता हो कक वह तीन थीं, चाि थीं या पांच तो अगि वह छोट़े

अदद क़े हहसाि स़े पढ़ ल़े तो काफ़़ी है, ल़ेककन ि़ेहति यह है कक उतनी नमाज़ें पढ़़े

कक उस़े यक़ीन हो र्जाए कक सािी कज़ा नमाज़ें पढ़ ली हैं मसलन अगि वह भल

गया हो कक उसक़ी ककतनी नमाज़ें कज़ा हुई थीं औि उस़े यक़ीन हो कक दस स़े

ज़्यादा थीं तो एहततयातन सबु ह क़ी दस नमाज़ें पढ़़े ।

1393. जर्जस शख़्स गुज़श्ता हदनों क़ी फ़कत नमाज़ कज़ा हुई हो उसक़े मलय़े

ि़ेहति है कक अगि उस हदन क़ी नमाज़ क़ी फ़ज़ीलत का वक़्त खत्म न हुआ हो

तो पहल़े कज़ा पढ़़े औि उसक़े िाद उस हदन क़ी नमाज़ में मश्गल
ू हो। औि अगि

उसक़ी गज़
ु श्ता हदनों क़ी कोई नमाज़ कज़ा न हुई हो ल़ेककन उसी हदन क़ी एक या

एक स़े ज़्यादा नमाज़ें कज़ा हुई हों तो अगि उस हदन क़ी नमाज़ क़ी फ़ज़ीलत का

वक़्त खत्म न हुआ हो तो ि़ेहति यह है कक उस हदन क़ी कज़ा नमाज़ें अदा नमाज़

स़े पहल़े पढ़़े ।

1394. अगि ककसी शख़्स को नमाज़ पढ़त़े हुए याद आए कक ककसी हदन क़ी

एक या ज़्यादा नमाज़ें उस स़े कज़ा हो गई हैं या गज़


ु श्ता हदनों क़ी मसफ़क एक

नमाज़ उसक़े जज़मम़े है तो अगि वक़्त वसी हो औि नीयत को कज़ा नमाज़ क़ी

तिफ़ ि़ेिना मजु म्कन हो औि उस हदन क़ी नमाज़ क़ी फ़ज़ीलत का वक़्त खत्म न

हुआ हो तो ि़ेहति यह है कक कज़ा नमाज़ क़ी नीयत कि़े । मसलन अगि ज़ोहि क़ी

नमाज़ में तीसिी िक् अत क़े रूकू स़े पहल़े उस़े याद आए कक उस हदन क़ी सबु ह क़ी

458
नमाज़ कज़ा हुई है औि अगि ज़ोहि क़ी नमाज़ का वक़्त भी तंग न हो तो नीयत

को सबु ह क़ी नमाज़ क़ी तिफ़ ि़ेि द़े औि नमाज़ को दो िक् अती तमाम कि़े औि

उसक़े िाद नमाज़़े ज़ोहि पढ़़े । हााँ अगि वक़्त तंग हो या नीयत को कज़ा नमाज़

क़ी तिफ़ न ि़ेि सकता हो मसलन नमाज़़े ज़ोहि क़ी तीसिी िक् अत क़े रूकू में उस़े

याद आए कक उसऩे सबु हा क़ी नमाज़ नहीं पढ़ी तो चंकू क अगि वह सबु ह क़ी नमाज़

क़ी नीयत किना चाह़े तो एक रूकू र्जो कक रुक्न है ज़्यादा हो र्जाता है इस मलय़े

नीयत को सबु ह क़ी कज़ा तिफ़ न ि़ेि़े ।

1395. अगि गज़


ु श्ता हदनों क़ी कज़ा नमाज़ें एक शख़्स क़े जज़म्म़े हों औि हदन

क़ी (र्जि नमाज़ पढ़ िहा है ) एक या एक स़े ज़्यादा नमाज़ें भी उसस़े कज़ा हो गई

हों औि उन सि नमाज़ों को पढ़ऩे क़े मलय़े उसक़े पास वक़्त न हो या वह उन सि

को उसी हदन न पढ़ना चाहता हो तो मस्


ु तहि है कक उस हदन क़ी कज़ा नमाज़ों को

अदा नमाज़ स़े पहल़े पढ़़े औि ि़ेहति यह है कक साबिका नमाज़ पढ़ऩे क़े िाद उन

कज़ा नमाज़ों को र्जो उस हदन अदा नमाज़ स़े पहल़े पढ़ी हों दोिािा पढ़़े ।

1396. र्जि तक इंसान जज़न्दा है ख़्वाह वह अपनी कज़ा नमाज़ें पढ़ऩे स़े कामसि

ही क्यों न हो कोई दस
ू िा शख़्स उसक़ी कज़ा नमाज़ें नहीं पढ़ सकता ।

1397. कज़ा नमाज़ िा र्जमाअत भी पढ़ी र्जा सकती है ख़्वाह इमाम़े र्जमाअत

क़ी नमाज़ अदा हो या कज़ा हो औि यह ज़रूिी नहीं कक दोनों एक ही नमाज़ पढ़ें

459
मसलन अगि कोई शख़्स सबु ह क़ी कज़ा नमाज़ को इमाम क़ी नमाज़़े ज़ोहि या

नमाज़़े अस्र क़े साथ पढ़़े तो कोई हिर्ज नहीं है।

1398. मस्
ु तहि है कक समझदाि िच्च़े को (यानी उस िच्च़े को र्जो ििु ़े भल़े क़ी

समझ िखता हो) नमाज़ पढ़ऩे औि दस


ू िी इिादत िर्जा लाऩे क़ी आदत डाली र्जाए

िजल्क मस्
ु तहि है कक उस़े कज़ा नमाज़़े पढ़ऩे पि भी आमद ककया र्जाए।

बाप की कजा नमाजें जो बडे बेटे पि वाजजब हैं

1399. िाप ऩे अपनी कुछ नमाज़ें न पढ़ी हों औि उनक़ी कज़ा पढ़ऩे पि काहदि

हो तो अगि उसऩे अम्ऱे खुदावन्दी क़ी ना फ़िमानी कित़े हुए उनको तकक न ककया

हो तो एहततयात क़ी बिना पि उसक़े िड़़े ि़ेट़े पि वाजर्जि है कक िाप क़े मिऩे क़े

िाद उसक़ी कज़ा नमाज़ें पढ़़े या ककसी को उर्जित द़े कि पढ़वाए औि मााँ क़ी कज़ा

नमाज़ें उस पि वाजर्जि नहीं अगिच़े ि़ेहति है (कक मााँ क़ी कज़ा नमाज़ें भी पढ़़े )।

1400. अगि िड़़े ि़ेट़े को शक हो कक कोई कज़ा नमाज़ उसक़े िाप क़े जज़म्म़े थी

या नहीं तो उस पि कुछ भी वाजर्जि नहीं।

1401. अगि िड़़े ि़ेट़े को मालम


ू हो कक उसक़े िाप क़े जज़म्म़े कज़ा नमाज़ें थीं

औि शक हो कक उसऩे वह पढ़ी थी या नहीं तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि

ज़रूिी है कक उनक़ी कज़ा िर्जा लाए।

460
1402. अगि यह मालम
ू न हो कक िड़ा ि़ेटा कौन सा है तो िाप क़ी कज़ा ककसी

ि़ेट़े पि भी वाजर्जि नहीं है ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक ि़ेट़े िाप क़ी कज़ा

नमाज़ आपस में तक़्सीम कि लें या उन्हें िर्जा लाऩे क़े मलय़े कुआक अन्दाज़ी कि

लें।

1403. अगि मिऩे वाल़े ऩे वसीयत क़ी हो कक उसक़ी कज़ा नमाज़ों क़े मलय़े

ककसी को अर्जीि िनाया र्जाए (यानी ककसी स़े उर्जित पि नमाज़ें पढ़वाई र्जायें) तो

अगि अर्जीि उसक़ी नमाज़ें सहीह तौि पि पढ़ द़े तो उसक़े िाद िड़़े ि़ेट़े पि कुछ

वाजर्जि नहीं है ।

1404. अगि िड़ा ि़ेटा अपनी मााँ क़ी कज़ा नमाज़ें पढ़ना चाह़े तो ज़रूिी है कक

िलन्द आवाज़ स़े या आहहस्ता नमाज़ पढ़ऩे क़े िाि़े में अपऩे वज़ीफ़़े क़े मत
ु ाबिक

अमल कि़े तो ज़रूिी है कक अपनी मााँ क़ी सबु ह मगरिि औि इशा क़ी कज़ा नमाज़ें

िलन्द आवाज़ स़े पढ़़े ।

1405. जर्जस शख़्स क़े जज़म्म़े ककसी नमाज़ क़ी कज़ा हो अगि वह िाप औि मााँ

क़ी नमाज़ें भी कज़ा किना चाह़े तो उनमें स़े र्जो भी पहल़े िर्जा लाए सहीह है ।

1406. अगि िाप क़े मिऩे क़े वक़्त िड़ा ि़ेटा नािामलग या हदवाना हो तो उस

पि वाजर्जि नहीं कक र्जि िामलग या आककल हो र्जाए तो िाप क़ी कज़ा नमाज़ें पढ़़े ।

1407. अगि िड़ा ि़ेटा िाप क़ी कज़ा नमाज़ें पढ़ऩे स़े पहल़े मि र्जाए तो दस
ू ि़े

ि़ेट़े पि कुछ भी वाजर्जि नहीं।

461
नमाजे जमाअत

1408. वाजर्जि नमाज़ें खुसस


ू न यौममया नमाज़ें र्जमाअत क़े साथ पढ़ना मस्
ु तहि

है औि मजस्र्जद क़े पड़ोस में िहऩे वाल़े को औि उस शख़्स को र्जो मजस्र्जद क़ी

अज़ान सन
ु ता हो नमाज़़े सबु ह औि मगरिि व इशा र्जमाअत क़े साथ पढ़ऩे क़ी

बिलखस
ु स
ू िहुत ज़्यादा ताक़ीद क़ी गई है ।

1409. मोअतिि रिवायत क़े मत


ु ाबिक िा र्जमाअत नमाज़ फ़ुिादा नमाज़ स़े

पच्चीस गुना अफ़्ज़ल है ।

1410. ि़े एततनाई िितत़े हुए नमाज़़े र्जमाअत में न शिीक होना र्जाइज़ नहीं है

औि इंसान क़े मलय़े यह मन


ु ामसि नहीं है कक िगैि उज़्र क़े नमाज़़े र्जमाअत को

तकक कि़े ।

1411. मस्
ु तहि है कक इंसान सब्र कि़े ताकक नमाज़ र्जमाअत क़े साथ पढ़़े औि

वह िा र्जमाअत नमाज़ र्जो मख़्


ु तसि पढ़ी र्जाए उस फ़ुिादा नमाज़ स़े ि़ेहति है र्जो

अव्वल़े वक़्त में फ़ुिादा यानी तन्हा पढ़ी र्जाए औि वह नमाज़़े िा र्जमाअत र्जो

फ़ज़ीलत क़े वक़्त में न पढ़ी र्जाए औि फ़ुिादा नमाज़ र्जो फ़ज़ीलत क़े वक़्त में पढ़ी

र्जाए उन दोनों नमाज़ों में कौन सी ि़ेहति है मालम


ू नहीं।

462
1412. र्जि र्जमाअत क़े साथ नमाज़ पढ़ी र्जाऩे लग़े तो मस्
ु तहि है कक जर्जस

शख़्स ऩे तन्हा नमाज़ पढ़ी हो वह दोिािा र्जमाअत क़े साथ पढ़़े औि अगि उस़े

िाद में पता चल़े कक उसक़ी पहली नमाज़ िाततल थी तो दस


ू िी नमाज़ काफ़़ी है ।

1413. अगि इमाम़े र्जमाअत या मक्


ु तदी र्जमाअत क़े साथ नमाज़ पढऩे क़े िाद

उसी नमाज़ को दोिािा र्जमाअत क़े साथ पढ़ना चाह़े तो अगिच़े उसका मस्
ु तहि

होना साबित नहीं ल़ेककन िर्जाअन दोिािा पढ़ऩे क़ी मम


ु ानअत नहीं है।

1414. जर्जस शख़्स को नमाज़ में इस कर वसवसा होता हो कक उस नमाज़ क़े

िाततल होऩे का मजू र्जि िन र्जाता हो औि मसफ़क र्जमाअत क़े साथ नमाज़ पढ़ऩे स़े

उस़े वसवस़े स़े नर्जात ममलती हो तो ज़रूिी है कक वह नमाज़ र्जमाअत क़े साथ

पढ़़े ।

1415. अगि िाप या मााँ अपनी औलाद को हुक्म दें कक नमाज़ र्जमाअत क़े

साथ पढ़़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि है कक नमाज़ र्जमाअत क़े साथ पढ़़े अलित्ता र्जि

भी वामलदै न क़ी तिफ़ स़े अम्र व नही महबित क़ी वर्जह स़े हो औि उसक़ी

मख
ु ामलफ़त स़े उन्हें अज़ीयत होती हो तो औलाद क़े मलय़े उनक़ी मख
ु ामलफ़त किना

अगिच़े सिकशी क़ी हद तक न हो ति भी हिाम है।

1416. मस्
ु तहि नमाज़ ककसी भी र्जगह एहततयात क़ी बिना पि र्जमाअत क़े

साथ नहीं पढ़ी र्जा सकती ल़ेककन नमाज़़े इजस्तसका र्जो तलि़े िािां क़े मलय़े पढ़ी

र्जाती है र्जमाअत क़े साथ पढ़ सकत़े हैं औि इसी तिह वह नमाज़ र्जो पहल़े वाजर्जि

463
िही हो औि किि ककसी वर्जह स़े मस्
ु तहि हो गई हों मसलन नमाज़़े ईद़े कफ़त्र औि

नमाज़़े ईद़े कुिाकन र्जो इमाम म़ेहदी (अ0) क़े ज़माऩे तक वाजर्जि थी औि उनक़ी

गैित क़ी वर्जह स़े मस्


ु तहि हो गई है ।

1417. जर्जस वक़्त इमाम़े र्जमाअत यौममया नमाज़ों में स़े कोई नमाज़ पढ़ िहा

हो तो उसक़ी इकततदा कोई सी भी यौममया नमाज़ में क़ी र्जा सकती है।

1418. अगि इमाम़े र्जमाअत यौममया नमाज़ में स़े कज़ा शद


ु ा अपनी नमाज़ पढ़

िहा हो या ककसी दस
ू ि़े शख़्स कक ऐसी नमाज़ क़ी कज़ा पढ़ िहा हो जर्जसका कज़ा

होना यक़ीनी हो तो उसक़ी इकततदा क़ी र्जा सकती है ल़ेककन अगि वह अपनी या

ककसी दस
ू ि़े क़ी नमाज़ एहततयातन पढ़ िहा हो तो उसक़ी इकततदा र्जाइज़ नहीं

मगि यह कक मक्
ु तदी भी एहततयातन पढ़ िहा हो औि इमाम क़ी एहततयात का

सिि मक्
ु तदी क़ी एहततयात का भी सिि हो ल़ेककन ज़रूिी नहीं कक मक्
ु तदी क़ी

एहततयात का कोई दस
ू िा सिि न हो।

1419. अगि इंसान को यह इल्म न हो कक र्जो नमाज़ इमाम पढ़ िहा है वह

वाजर्जि पंर्जगाना नमाज़ों में स़े है या मस्


ु तहि नमाज़ है तो उस नमाज़ में उस

इमाम क़ी इकततदा नहीं क़ी र्जा सकती ।

1420. र्जमाअत क़े सहीह होऩे क़े मलय़े यह शतक है कक इमाम औि मक्
ु तदी क़े

दिममयान औि इसी तिह एक मक्


ु तदी औि दस
ू ि़े ऐस़े मक्
ु तदी क़े दिममयान र्जो

उस मक्
ु तदी औि इमाम क़े दिममयान वामसता हो कोई चीज़ हाइल न हो औि

464
हाइल चीज़ स़े मिु ाद वह चीज़ है र्जो उन्हें एक दस
ू ि़े स़े र्जुदा कि़े ख़्वाह द़े खऩे में

माऩे हो र्जैस़े पदाक या दीवाि वगैिा या द़े खऩे में हाइल न हो र्जैस़े शीशा पस अगि

नमाज़ क़ी तमाम या िाज़ हालतों में इमाम औि मक्


ु तदी क़े दिममयान या मक्
ु तदी

औि दस
ू ि़े ऐस़े मक्
ु तदी क़े दिममयान र्जो इजस्तसाल का ज़िीआ हो कोई ऐसी चीज़

हाइल हो र्जाए तो र्जमाअत िाततल होगी औि र्जैसा कक िाद में जज़क्र होगा औित

इस हुक्म स़े मस्


ु तसना है।

1421. अगि पहली सफ़ क़े लम्िा होऩे क़ी वर्जह स़े उसक़े दोनों तिफ़ खड़़े होऩे

वाल़े लोग इमाम़े र्जमाअत को न द़े ख सकें ति भी वह इजक्तदा कि सकत़े हैं औि

इसी तिह अगि दस


ू िी सफ़ों में स़े ककसी सफ़ क़ी लम्िाई क़ी वर्जह स़े उस क़े दोनों

तिफ़ खड़़े होऩे वाल़े लोग अपऩे स़े आग़े वाली सफ़ को न द़े ख सकें ति भी वह

इजक्तदा कि सकत़े हैं।

1422. अगि र्जमाअत क़ी सफ़़े मजस्र्जद क़े दिवाज़़े तक पहुंच र्जायें तो र्जो शख़्स

दिवाज़़े क़े सामऩे सफ़ क़े पीछ़े खड़ा हो उसक़ी नमाज़ सहीह है नीज़ र्जो अश्खास

उस शख़्स क़े पीछ़े खड़़े होकि इमाम़े र्जमाअत क़ी इकततदा कि िह़े हों उनक़ी

नमाज़ भी सहीह है िजल्क उन लोगों क़ी नमाज़ भी सहीह है र्जो दोनों तिफ़ खड़़े

नमाज़ पढ़ िह़े हों औि ककसी दस


ू ि़े मक्
ु तदी क़े तवस्सत
ु स़े र्जमाअत स़े मत्त
ु मसल

हों।

465
1423. र्जो शख़्स सत
ु ून क़े पीछ़े खड़ा हो अगि वह दाई या िाई तिफ़ स़े ककसी

दस
ू ि़े मक्
ु तदी क़े तवस्सत
ु स़े इमाम़े र्जमाअत स़े इवत्तसाल न िखता हो तो वह

इजक्तदा नहीं कि सकता।

1424. इमाम़े र्जमाअत क़े खड़़े होऩे क़ी र्जगह ज़रूिी है कक मक्
ु तदी क़ी र्जगह स़े

ज़्यादा ऊाँची न हो ल़ेककन अगि मअमल


ू ी ऊाँची हो तो कोई हिर्ज नहीं नीज़ अगि

ढलवान ज़मीन हो औि इमाम उस तिफ़ खड़ा हो र्जो ज़्यादा िलन्द हो तो अगि

ढलवान ज़्यादा न हो औि इस तिह हो कक उमम


ू न उस ज़मीन को मस
ु त्तह कहा

र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं।

1425. (नमाज़़े र्जमाअत में ) अगि मक्


ु तदी क़ी र्जगह इमाम क़ी र्जगह स़े ऊाँची

हो तो कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन अगि इस कर ऊाँची हो कक यह न कहा र्जा सक़े कक

वह एक र्जगह र्जमअ हुए हैं तो र्जमाअत सहीह नहीं है।

1426. अगि उन लोगों क़े दिममयान र्जो एक सफ़ में खड़़े हों एक समझदाि

िच्चा यानी ऐसा िच्चा र्जो अच्छ़े ििु ़े क़ी समझ िखता हो खड़ा हो र्जाए औि लोग

न र्जानत़े हों कक उसक़ी नमाज़ िाततल है तो इजक़्तदा कि सकत़े हैं।

1427. इमाम क़ी तक्िीि क़े िाद अगि अगली सफ़ क़े लोग नमाज़ क़े मलय़े

तैयाि हों औि तक्िीि कहऩे ही वाल़े हों तो र्जो शख़्स पीछली सफ़ में खड़ा हो वह

तक्िीि कह सकता है ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक वह इजन्तज़ाि कि़े

ताकक अगली सफ़ वाल़े तक्िीि कह लें।

466
1428. अगि कोई शख़्स र्जानता हो कक अगली सफ़ों में स़े एक सफ़ क़ी नमाज़

िाततल है तो वह पीछली सफ़ों में इजक्तदा नहीं कि सकता ल़ेककन अगि उस़े यह

इल्म न हो कक उस सफ़ क़ी लोगों क़ी नमाज़ सहीह है या नहीं तो इजक्तदा कि

सकता है।

1429. र्जि कोई शख़्स र्जानता हो कक इमाम क़ी नमाज़ िाततल है मसलन उस़े

इल्म हो कक इमाम वज़


ु ू स़े नहीं है तो ख़्वाह इमाम इस अम्र क़ी र्जातनि मत
ु वज्र्जह

न भी हो वह शख़्स उसक़ी इकततदा नहीं कि सकता।

1430. अगि मक्


ु तदी को नमाज़ क़े िाद पता चल़े कक इमाम आहदल न था या

काकफ़ि था या ककसी वर्जह स़े मसलन वज़


ु ू न होऩे क़ी वर्जह स़े उसक़ी नमाज़

िाततल थी तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1431. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े दौिान शक कि़े कक उसऩे इजक़्तदा क़ी है या

नहीं चन
ु ांच़े अलामतों क़ी वर्जह स़े उस़े इत्मीनान हो र्जाए कक इजक़्तदा क़ी है

मसलन ऐसी हालत में हो कक र्जो मक्


ु तदी का वज़ीफ़ा है मसलन इमाम को

अलहम्द औि सिू ा पढ़त़े हुए सन


ु िहा हो तो ज़रूिी है कक नमाज़़े र्जमाअत क़े साथ

ही खत्म कि़े िसिू त़े दीगि ज़रूिी है कक नमाज़ फ़ुिादा क़ी नीयत स़े खत्म कि़े ।

1432. अगि नमाज़ क़े दौिान मक्


ु तदी िगैि ककसी उज़्र क़े फ़ुिादा क़ी नीयत कि़े

तो उसक़ी र्जमाअत क़े सहीह होऩे में इश्काल है । ल़ेककन उसक़ी नमाज़ सहीह है

मगि यह कक उस ऩे फ़ुिादा क़ी नमाज़ में उसका र्जो वज़ीफ़ा है, उस पि अमल न

467
ककया हो या ऐसा काम र्जो फ़ुिादा नमाज़ को िाततल किता है अंर्जाम हदया हो

अगिच़े सहवन हो मसलन रूकू ज़्यादा ककया हो िजल्क िाज़ सिू तों में अगि फ़ुिादा

नमाज़ में उसका र्जो वज़ीफ़ा है उस पि अमल न ककया हो तो भी उसक़ी नमाज़

सहीह है । मसलन अगि नमाज़ क़ी इजबतदा स़े फ़ुिादा क़ी नीयत न हो औि

ककिअत भी न क़ी हो ल़ेककन रूकू में उस़े ऐसा कस्द किना पड़़े तो ऐसी सिू त में

फ़ुिादा क़ी नीयत स़े तमाम खत्म कि सकता है औि उस़े दोिािा पढ़ना ज़रूिी नहीं

है ।

1433. अगि मक्


ु तदी इमाम क़े अलहम्द औि सिू ा पढ़ऩे क़े िाद ककसी उज़्र क़ी

वर्जह स़े फ़ुिादा क़ी नीयत कि़े तो अलहम्द औि सिू ा पढ़ना ज़रूिी नहीं है। ल़ेककन

अगि (इमाम क़े) अलहम्द औि सिू ा खत्म किऩे स़े पहल़े फ़ुिादा क़ी नीयत कि़े तो

एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक (अलहम्द औि सिू ़े क़ी) जर्जतनी ममक़्दाि

इमाम ऩे पढ़ी हो वह भी पढ़़े ।

1434. अगि कोई शख़्स नमाज़़े र्जमाअत क़े दौिान फ़ुिादा क़ी नीयत कि़े तो

किि वह दोिािा र्जमाअत क़ी नीयत नहीं कि सकता ल़ेककन अगि मज़
ु बज़ि हो कक

फ़ुिादा क़ी नीयत कि़े या न कि़े औि िाद में नमाज़ को र्जमाअत क़े साथ तमाम

किऩे का मस
ु म्मम इिादा कि़े तो उसक़ी र्जमाअत सहीह है ।

468
1435. अगि कोई शख़्स शक कि़े कक नमाज़ क़े दौिान उसऩे फ़ुिादा क़ी नीयत

क़ी है या नहीं तो ज़रूिी है कक यह समझ ल़े कक उसऩे फ़ुिादा क़ी नीयत नहीं क़ी

है ।

1436. अगि कोई शख़्स उस वक़्त इजक़्तदा कि़े र्जि इमाम रूकू में हो औि

इमाम क़े रूकू में शिीक हो र्जाए अगिच़े इमाम ऩे रूकू का जज़क्र पढ़ मलया हो उस

शख़्स क़ी नमाज़ सहीह है औि वह एक िक् अत नमाज़ शम


ु ाि होगी ल़ेककन अगि

वह शख़्स िकऱे रूकू क़े झक


ु ़े ताहम इमाम को रूकू में न पा सक़े तो वह महज़

अपनी नमाज़ फ़ुिादा क़ी नीयत स़े खत्म कि सकता है ।

1437. अगि कोई शख़्स उस वक़्त इजक़्तदा कि़े र्जि इमाम रूकू में हो औि

िकऱे रूकू क़े झक


ु ़े औि शक कि़े कक इमाम क़े रूकू में शिीक हुआ है या नहीं तो

अगि उसका मौका तनकल गया हो मसलन रूकू क़े िाद शक कि़े तो ज़ाहहि यह है

कक उसक़ी र्जमाअत सहीह है। इसक़े अलावा दस


ू िी सिू त में नमाज़ फ़ुिादा क़ी

नीयत स़े पिू ी कि सकता है।

1438. अगि कोई शख़्स उस वक़्त इजक़्तदा कि़े र्जि इमाम रूकू में हो औि

इसस़े पहल़े क़ी वह िकऱे रूकू झक


ु ़े इमाम रूकू स़े सि उठा ल़े तो उस़े इजख़्तयाि है

कक फ़ुिादा क़ी नीयत कि क़े नमाज़ पिू ी कि़े या कुिकत़े मत्ु लका क़ी नीयत स़े

इमाम क़े साथ सज्द़े में र्जाए औि सज्द़े क़े िाद ककयाम क़ी हालत में तक्िीितुल

469
एहिाम औि ककसी जज़क्र का कस्द ककय़े िगैि दोिािा तक्िीि कह़े औि नमाज़

र्जमाअत क़े साथ पढ़़े ।

1439. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़ी इजबतदा में अलहम्द औि सिू ा क़े दौिान

इजक़्तदा कि़े औि इवत्तफ़ाकन इसस़े पहल़े कक वह रूकू में र्जाए इमाम अपना सि

रूकू स़े उठा ल़े तो उस शख़्स क़ी नमाज़ सहीह है।

1440. अगि कोई शख़्स नमाज़ क़े मलय़े ऐस़े वक़्त पहुाँच़े र्जि इमाम नमाज़ का

आखखिी तशह्हुद पढ़ िहा हो औि वह शख़्स चाहता हो कक नमाज़़े र्जमाअत का

सवाि हामसल कि़े तो ज़रूिी है कक नीयत िांधऩे औि तक्िीितल


ु एहिाम कहऩे क़े

िाद िैठ र्जाए औि महज़ कुिकत क़ी नीयत स़े तशह्हुद इमाम क़े साथ पढ़़े ल़ेककन

सलाम न कह़े औि इजन्तज़ाि कि़े ताकक इमाम नमाज़ का सलाम पढ़ ल़े उसक़े

िाद वह शख़्स खड़ा हो र्जाए औि दोिािा नीयत ककय़े िगैि औि तक्िीि कह़े िगैि

अलहम्द औि सिू ा पढ़़े औि उस़े अपनी नमाज़ क़ी पहली िक् अत शम


ु ाि कि़े ।

1441. मक्
ु तदी को इमाम स़े आग़े नहीं खड़ा होना चाहहय़े िजल्क एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक अगि मक्


ु तदी ज़्यादा हों तो इमाम क़े ििािि न खड़़े हों। ल़ेककन

अगि मक्
ु तदी एक आदमी हो तो इमाम क़े ििािि में खड़़े होऩे में कोई हर्जक नहीं।

1442. अगि इमाम औि मक्


ु तदी औित हो तो अगि उस औित औि इमाम क़े

दिममयान या औित औि दस
ू ि़े मदक मक्
ु तदी क़े दिममयान र्जो औित औि इमाम क़े

दिममयान इवत्तसाल का ज़िीआ हो पदाक वगैिा लगा हो तो कोई हर्जक नहीं।

470
1443. अगि नमाज़ शरू
ू होऩे क़े िाद इमाम औि मक्
ु तदी क़े दिममयान या

मक्
ु तदी औि उस शख़्स क़े दिममयान जर्जसक़े तवस्सत
ु स़े मक्
ु तदी इमाम स़े

मत्त
ु मसल हो पदाक या कोई दस
ू िी चीज़ हाइल हो र्जाए तो नमाज़ िाततल हो र्जाती है

औि लाजज़म है कक मक्
ु तदी फ़ुिादा नमाज़ क़े वज़ीफ़़े पि अमल कि़े ।

1444. एहततयात़े वाजर्जि है कक मक्


ु तदी क़े सज्द़े क़ी र्जगह औि इमाम क़े खड़़े

होऩे क़ी र्जगह क़े िीच एक डग स़े ज़्यादा फ़ामसला न हो औि अगि इंसान एक

ऐस़े मक्तदी क़े तवस्सत


ु स़े र्जो उसक़े आग़े खड़ा हो इमाम स़े मत्त
ु मसल हो ति भी

यही हुक्म है औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक मक्
ु तदी क़े खड़़े होऩे क़ी र्जगह

औि उसस़े आग़े वाल़े शख़्स क़े खड़़े होऩे क़ी र्जगह क़े दिममयान इसस़े ज़्यादा

फ़ामसला न हो र्जो इंसान क़ी हालत़े सज्दा में होती है।

1445. अगि मक्


ु तदी ककसी ऐस़े शख़्स क़े तवस्सत
ु स़े इमाम स़े मत्त
ु मसल हो,

जर्जसऩे उसक़ी दाई तिफ़ या िाई तिफ़ इजक़्तदा क़ी हो औि सामऩे स़े इमाम स़े

मत्त
ु मसल न हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उस शख़्स स़े

जर्जसऩे उसक़ी दाई तिफ़ या िाईं तिफ़ इजक़्तदा क़ी हो एक डग स़े ज़्यादा फ़ामसल़े

पि न हो।

1446. अगि नमाज़ क़े दौिान मक्


ु तदी औि इमाम या मक्
ु तदी औि उस शख़्स

क़े दिममयान जर्जसक़े तवस्सत


ु स़े मक्
ु तदी इमाम स़े मत्त
ु मसल हो एक डग स़े ज़्यादा

471
फ़ामसला हो र्जाए तो वह तन्हा हो र्जाता है औि अपनी नमाज़ फ़ुिादा क़ी नीयत स़े

र्जािी िख सकता है ।

1447. र्जो लोग अगली सफ़ में हों अगि उन सि क़ी नमाज़ खत्म हो र्जाए औि

वह फ़ौिन दस
ू िी नमाज़ क़े मलय़े इमाम क़ी इजक़्तदा न किें तो पीछली सफ़ वालों

क़ी नमाज़़े र्जमाअत िाततल हो र्जाती हैं िजल्क अगि फ़ौिन ही इजक़्तदा कि लें किि

भी वपछली सफ़ क़ी र्जमाअत सहीह होऩे में इश्काल है ।

1448. अगि कोई शख़्स दस


ू िी िक् अत में इजक़्तदा कि़े तो उसक़े मलय़े अलहम्द

औि सिू ा पढ़ना ज़रूिी नहीं अलित्ता कुनत


ू औि तशह्हुद इमाम क़े साथ पढ़़े औि

एहततयात यह है कक तशह्हुद पढ़त़े वक़्त हाथों क़ी उाँ चगलयााँ औि पांव क़े तलवों

का अगला हहस्सा ज़मीन पि िख़े औि र्ट


ु ऩे उठा ल़े औि तशह्हुद क़े िाद ज़रूिी है

कक इमाम क़े साथ खड़ा हो र्जाए औि अलहम्द को तमाम कि़े औि अपऩे रूकू में

इमाम स़े ममल र्जाए औि अगि पिू ी अलहम्द पढ़ऩे क़े मलय़े वक़्त न हो तो

अलहम्द को छोड़ सकता है औि इमाम क़े साथ रूकू में र्जाए। ल़ेककन इस सिू त में

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक नमाज़ को फ़ुिादा क़ी नीयत स़े पढ़़े ।

1449. अगि कोई शख़्स उस वक़्त इजक़्तदा कि़े र्जि इमाम चाि िक् अती नमाज़

क़ी दस
ू िी िक् अत पढ़ िहा हो तो ज़रूिी है कक अपनी नमाज़ क़ी दस
ू िी िक् अत में

र्जो इमाम क़ी तीसिी िक् अत होगी दो सज्दों क़े िाद िैठ र्जाए औि वाजर्जि ममक़्दाि

में तशह्हुद पढ़़े औि किि उठ खड़ा हो औि अगि तीन दफ़् आ तस्िीहात पढ़ऩे का

472
वक़्त न िखता हो तो ज़रूिी है कक एक दफ़् आ पढ़़े औि रूकू में अपऩे आप को

इमाम क़े साथ शिीक कि़े ।

1450. अगि इमाम तीसिी या चौथी िक् अत में हो औि मक्


ु तदी र्जानता हो कक

अगि इकततदा कि़े गा औि अलहम्द पढ़़े गा तो इमाम क़े साथ रूकू में शाममल न हो

सक़ेगा तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक इमाम क़े रूकू में र्जाऩे तक

इजन्तज़ा कि़े औि उसक़े िाद इजक़्तदा कि़े ।

1451. अगि कोई शख़्स इमाम क़े तीसिी या चौथी िक् अत में ककयाम क़ी

हालत में होऩे क़े वक़्त इजक़्तदा कि़े तो ज़रूिी है कक अलहम्द औि सिू ा पढ़़े औि

अगि सिू ा पढ़ऩे क़े मलय़े वक़्त न हो तो ज़रूिी है कक अलहम्द तमाम कि़े औि

रूकू में इमाम क़े साथ शिीक हो र्जाए औि अगि पिू ी अलहम्द पढ़ऩे क़े मलय़े वक़्त

न हो तो अलहम्द को छोड़कि इमाम क़े साथ रूकू में र्जाए ल़ेककन इस सिू त में

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक फ़ुिादा क़ी नीयत स़े नमाज़ पिू ी कि़े ।

1452. अगि एक शख़्स र्जानता हो कक अगि वह सिू ा औि कुनत


ू पढ़़े तो रूकू

में इमाम क़े साथ शिीक नहीं हो सकता औि वह अमदन सिू ा या कुनत
ू पढ़़े औि

रूकू में इमाम क़े साथ शिीक न हो तो उसक़ी र्जमाअत िाततल हो र्जाती है औि

ज़रूिी है कक वह फ़ुिादा तौि पि नमाज़ पढ़़े ।

1453. जर्जस शख़्स को इत्मीनान हो कक अगि सिू ा शरू


ू कि़े या उस़े तमाम कि़े

तो िशते कक सिू ा ज़्यादा लम्िा न हो वह रूकू में इमाम क़े साथ शिीक हो र्जाय़ेगा

473
तो उसक़े मलय़े ि़ेहति यह है कक सिू ा शरू
ू कि़े ल़ेककन अगि सिू ा इतना ज़्यादा

तवील हो कक उस़े इमाम का मक्


ु तदी न कहा र्जा सक़े तो ज़रूिी है कक उस़े शरू
ू न

कि़े औि अगि शरू


ू कि चक
ु ा हो तो उस़े पिू ा न कि़े ।

1454. र्जो शख़्स यक़ीन िखता हो कक सिू ा पढ़कि इमाम क़े साथ रूकू में शिीक

हो र्जाय़ेगा औि इमाम क़ी इजक़्तदा खत्म नहीं होगी मलहाज़ा अगि वह सिू ा पढ़

कि इमाम क़े साथ रूकू में शिीक न हो सक़े तो उसक़ी र्जमाअत सहीह है।

1455. अगि इमाम ककयाम क़ी हालत में हो औि मक्


ु तदी को इल्म न हो कक

वह कौन सी िक् अत में है तो वह इजक़्तदा कि सकता है ल़ेककन ज़रूिी है कक

अलहम्द औि सिू ा कुिकत क़ी नीयत स़े पढ़़े अगिच़े िाद में उस़े पता चल र्जाए कक

इमाम क़ी पहली या दस


ू िी िक् अत थी।

1456. अगि कोई शख़्स इस ख़्याल स़े कक इमाम पहली या दस


ू िी िक् अत में है

अलहम्द औि सिू ा न पढ़़े औि रूकू क़े िाद उस़े पता चल र्जाए कक इमाम तीसिी

या चौथी िक् अत में था तो मक्


ु तदी क़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन अगि उस़े रूकू स़े

पहल़े इस िात का पता चल र्जाए तो ज़रूिी है कक अलहम्द औि सिू ा पढ़़े औि

अगि वक़्त तंग हो तो मसअला 1451 क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े ।

1457. अगि कोई शख़्स मस्


ु तहि नमाज़ पढ़ िहा हो औि र्जमाअत काइम हो

र्जाए औि उस़े यह इत्मीनान न हो कक अगि मस्


ु तहि नमाज़ को तमाम कि़े गा तो

र्जमाअत क़े साथ शिीक हो सक़ेगा तो मस्


ु तहि यह है कक र्जो नमाज़ पढ़ िहा हो

474
उस़े छोड़ द़े औि नमाज़़े र्जमाअत में शाममल हो र्जाए िजल्क अगि उस़े यह

इत्मीनान न हो कक पहली िक् अत में शिीक हो सक़ेगा ति भी मस्


ु तहि है कक उसी

हुक्म क़े मत
ु ाबिक अमल कि़े ।

1459. अगि कोई शख़्स तीन िक् अती या चाि िक् अती नमाज़ पढ़ िहा हो औि

र्जमाअत काइम हो र्जाए औि अभी तीसिी िक् अत क़े रूकू में न गया हो औि उस़े

यह इत्मीनान न हो कक अगि नमाज़ को पिू ा कि़े गा तो र्जमाअत में शिीक हो

सक़ेगा तो मस्
ु तहि है कक मस्
ु तहि नमाज़ क़ी नीयत क़े साथ उस नमाज़ को दो

िक् अत पि खत्म कि द़े औि र्जमाअत क़े साथ शिीक हो र्जाए।

1460. अगि इमाम क़ी नमाज़ खत्म हो र्जाए औि मक्


ु तदी तशह्हुद या पहला

सलाम पढ़ऩे में मशगल


ू हो तो उसक़े मलय़े फ़ुिादा यानी तन्हा नमाज़ क़ी नीयत

किना लाजज़मी नहीं।

1461. र्जो शख़्स इमाम स़े एक िक् अत पीछ़े हो उसक़े मलय़े ि़ेहति यह है कक

र्जि इमाम आखखिी िक् अत का तशह्हुद पढ़ िहा हो तो हाथों कक उाँ गमलयााँ औि

पााँव क़े तलवों का अगला हहस्सा ज़मीन पि िख़े औि र्ट


ु नों को िलन्द कि़े औि

इमाम क़े सलाम किऩे का इजन्तज़ाि कि़े औि किि खड़ा हो र्जाए औि अगि उसी

वक़्त फ़ुिादा का कस्द किना चाह़े तो कोई हिर्ज नहीं। इमाम़े र्जमाअत क़े शिाइत

1462. इमाम़े र्जमाअत क़े मलय़े ज़रूिी है कक िामलग, आककल, शीआ, इसना

अशिी, आहदल औि हलालज़ादा हो औि नमाज़ सहीह पढ़ सकता हो नीज़ अगि

475
मक्
ु तदी मदक हो तो उसका इमाम भी मदक होना ज़रूिी है औि दस साला िच्च़े क़ी

इजक़्तदा सहीह होना अगिच़े वर्जह स़े खाली नहीं, ल़ेककन इश्काल स़े भी खाली नहीं

है ।

1463. र्जो शख़्स पहल़े एक इमाम को आहदल समझता था अगि शक कि़े कक

वह अि भी अपनी अदालत पि काइम है या नहीं ति भी उसक़ी इजक़्तदा कि

सकता है।

1464. र्जो शख़्स खड़ा होकि नमाज़ पढ़ता हो वह ककसी ऐस़े शख़्स क़ी इजक़्तदा

नहीं कि सकता र्जो िैठ कि या ल़ेट कि नमाज़ पढ़ता हो औि र्जो शख़्स िैठ कि

नमाज़ पढ़ता हो वो ककसी ऐस़े शख़्स क़ी इजक़्तदा नहीं कि सकता र्जो ल़ेट कि

नमाज़ पढ़ता हो।

1465. र्जो शख़्स िैठ कि नमाज़ पढ़ता हो वह उस शख़्स क़ी इजक़्तदा कि

सकता है र्जो िैठ कि नमाज़ पढ़ता हो ल़ेककन र्जो शख़्स ल़ेट कि नमाज़ पढ़ता हो

उसका ककसी ऐस़े शख़्स क़ी इजक़्तदा किना र्जो ल़ेट कि या िैठ कि नमाज़ पढ़ता

हो महल्ल़े इश्काल है ।

1466. अगि इमाम़े र्जमाअत ककसी उज़्र क़ी वर्जह स़े नजर्जस मलिास या

तयम्मम
ु या र्जिीि़े ह क़े वज़
ु ू स़े नमाज़ पढ़़े तो उसक़ी इजक़्तदा क़ी र्जा सकती है।

476
1467. अगि इमाम ककसी ऐसी िीमािी में मबु तला हो जर्जसक़ी वर्जह स़े वह

प़ेशाि औि पाखाना न िोक सकता हो तो उसक़ी इजक़्तदा क़ी र्जा सकती है नीज़

र्जो औित मस्


ु तहज़ा न हो वह मस्
ु तहाज़ा औित क़ी इजक़्तदा कि सकती है।

1468. ि़ेहति यह है कक र्जो शख़्स र्जज़


ु ाम या िसक का मिीज़ हो वह इमाम़े

र्जमाअत न िऩे औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उस (सज़ा याफ़्ता) शख़्स क़ी

जर्जस पि शिई हद र्जािी हो चक


ु ़ी हो इजक़्तदा न क़ी र्जाए।

नमाजे जमाअत के अहकाम

1469. नमाज़ क़ी नीयत कित़े वक़्त ज़रूिी है कक मक्


ु तदी इमाम को मअ
ु य्यन

कि़े ल़ेककन इमाम का नाम र्जानना ज़रूिी नहीं औि अगि नीयत कि़े कक मैं

मौर्जूदा इमाम़े र्जमाअत क़ी इजक़्तदा किता हूाँ तो उसक़ी नमाज़ सहीह है।

1470. ज़रूिी है कक मक्


ु तदी अलहम्द औि सिू ा क़े अलावा नमाज़ क़ी सि चीज़ें

खुद पढ़़े ल़ेककन अगि उसक़ी पहली औि दस


ू िी िक् अत इमाम क़ी तीसिी औि चौथी

िक् अत हो तो ज़रूिी है कक अलहम्द औि सिू ा भी पढ़़े । 1471. अगि मक्


ु तदी

नमाज़़े सबु ह व मगरिि व इशा क़ी पहली औि दस


ू िी िक् अत में इमाम क़ी अलहम्द

औि सिू ा पढ़ऩे क़ी आवाज़ सन


ु िहा हो तो ख़्वाह वह कमलमात को ठ क तिह न

समझ सक़े उस़े अलहम्द औि सिू ा नहीं पढ़ना चाहहय़े औि अगि इमाम क़ी आवाज़

477
न सन
ु पाए तो मस्
ु तहि है कक अलहम्द औि सिू ा पढ़़े ल़ेककन ज़रूिी है कक

आहहस्ता पढ़़े औि अगि सहवन िलन्द आवाज़ में पढ़़े तो कोई हिर्ज नहीं।

1472. अगि मक्


ु तदी इमाम क़ी अलहम्द औि सिू ़े क़ी ककिअत क़े िाज़

कमलमात सन
ु ल़े तो जर्जस कर न सन
ु सक़े वह पढ़ सकता है ।

1473. अगि मक्


ु तदी सहवन अलहम्द औि सिू ा पढ़़े या यह ख़्याल कित़े हुए

कक र्जो आवाज़ सन
ु िहा है वह इमाम क़ी नहीं है अलहम्द औि सिू ा पढ़़े औि िाद

में उस़े पता चल़े कक इमाम क़ी आवाज़ थी तो उसक़ी नमाज़ सहीह है।

1474. अगि मक्


ु तदी शक कि़े कक इमाम क़ी आवाज़ सन
ु िहा है या नहीं या

कोई आवाज़ सन
ु ़े औि यह न र्जानता हो कक इमाम क़ी आवाज़ है या ककसी औि

क़ी तो वह अलहम्द औि सिू ा पढ़ सकता है ।

1475. मक्
ु तदी को नमाज़़े ज़ोहि व अस्र क़ी पहली औि दस
ू िी िक् अत में

एहततयात क़ी बिना पि अलहम्द औि सिू ा नहीं पढ़ना चाहहय़े औि मस्


ु तहि है कक

उनक़े िर्जाए कोई जज़क्र पढ़़े ।

1476. मक्
ु तदी को तक्िीितल
ु एहिाम इमाम स़े पहल़े नहीं कहनी चाहहय़े िजल्क

एहततयात़े वाजर्जि यह है कक र्जि तक इमाम तक्िीि न कह चक


ु ़े मक्
ु तदी तक्िीि

न कह़े ।

1477. अगि मक्


ु तदी सहवन इमाम स़े पहल़े सलाम कह द़े तो उसक़ी नमाज़

सहीह है औि ज़रूिी नहीं कक वह दोिािा इमाम क़े साथ सलाम कह़े िजल्क ज़ाहहि

478
यह है कक अगि र्जान िझ
ू कि भी इमाम स़े पहल़े सलाम कह द़े तो कोई हिर्ज

नहीं है।

1478. अगि मक्


ु तदी तक्िीितल
ु एहिाम क़े अलावा नमाज़ क़ी दस
ू िी चीज़ें

इमाम स़े पहल़े पढ़ ल़े तो कोई हर्जक नहीं ल़ेककन अगि उन्हें सन
ु ल़े या यह र्जान

ल़े कक इमाम उन्हें ककस वक़्त पढ़ता है तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक इमाम स़े

पहल़े न पढ़़े ।

1479. ज़रूिी है कक मक्


ु तदी र्जो कुछ नमाज़ में पढ़ा र्जाता है उसक़े अलावा

नमाज़ क़े दस
ू ि़े अफ़् आल मसलन रूकू औि सर्ज
ु द ू इमाम क़े साथ या उसस़े थोड़ी

द़े ि िाद िर्जा लाए औि अगि वह उन अफ़् आल को अमदन इमाम स़े पहल़े या

उसस़े काफ़़ी द़े ि िाद अंर्जाम द़े तो उस क़ी र्जमाअत िाततल होगी। ल़ेककन अगि

फ़ुिादा शख़्स क़े वज़ीफ़़े पि अमल कि़े तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ।

1480. अगि मक्


ु तदी भल
ू कि इमाम स़े पहल़े रूकू स़े सि उठा ल़े औि इमाम

रूकू में ही हो तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक दोिािा रूकू में चला र्जाए

औि इमाम क़े साथ ही सि उठाए। इस सिू त में रूकू क़ी ज़्यादती र्जो कक रुक्न है

नमाज़ को िाततल नहीं किती ल़ेककन अगि वह दोिािा रूकू में र्जाए औि इसस़े

प़ेशति कक वह इमाम क़े साथ रूकू में शिीक हो इमाम सि उठा ल़े तो एहततयात

क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

479
1481. अगि मक्
ु तदी सहवन सि सज्द़े स़े उठा ल़े औि द़े ख़े कक इमाम अभी भी

सज्द़े में है तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक दोिािा सज्द़े में चला र्जाए

औि अगि दोनों सज्दों में यही इत्त़ेफ़ाक हो र्जाए तो दो सज्दों क़े ज़्यादा हो र्जाऩे

क़ी वर्जह स़े र्जो कक रुक्न है नमाज़ िाततल नहीं होती।

1482. र्जो शख़्स सहवन इमाम स़े पहल़े सज्द़े स़े सि उठा ल़े अगि उस़े दोिािा

सज्द़े में र्जाऩे पि मालम


ू हो कक इमाम पहल़े ही सज्द़े स़े सि उठा चक
ु ा है तो

उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन अगि दोनों ही सज्दों में ऐसा इवत्तफ़ाक हो र्जाए तो

एहततयात क़ी बिना पि उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1483. अगि मक्


ु तदी गलती स़े सि रूकू या सज्द़े स़े उठा ल़े औि सहवन या

इस ख़्याल स़े कक दोिािा रूकू या सज्द़े में लौट र्जाऩे स़े इमाम क़े साथ न शिीक

हो सक़ेगा रूकू या सज्द़े में न र्जाए तो उसक़ी र्जमाअत औि नमाज़ सहीह है ।

1484. अगि मक्


ु तदी सज्द़े स़े सि उठा ल़े औि द़े ख़े कक इमाम सज्द़े में है औि

इस ख़्याल स़े कक यह इमाम का पहला सज्दा है औि इस नीयत स़े कक इमाम क़े

साथ सज्दा कि़े , सज्द़े में चला र्जाए औि िाद में उस़े मालम
ू हो कक यह इमाम का

दस
ू िा सज्दा था तो यह मक्
ु तदी का दस
ू िा सज्दा शम
ु ाि होगा औि इस ख़्याल स़े

सज्द़े में र्जाए कक यह इमाम का दस


ू िा सज्दा है औि िाद में मालम
ू हो कक यह

इमाम का पहला सज्दा था तो ज़रूिी है कक इस नीयत स़े सज्दा तमाम कि़े कक

इमाम क़े साथ सज्दा कि िहा हूाँ औि किि दोिािा इमाम क़े साथ सज्द़े में र्जाए

480
औि दोनों सिू तों में ि़ेहति यह है कक नमाज़ को र्जमाअत क़े साथ तमाम कि़े औि

किि दोिािा भी पढ़़े ।

1485. अगि कोई मक्


ु तदी सहवन इमाम स़े पहल़े रूकू में चला र्जाए औि सिू त

यह हो कक अगि दोिािा ककयाम क़ी हालत में आ र्जाए तो इमाम क़ी ककिअत का

कुछ हहस्सा सन
ु सक़े तो अगि वह सि उठा ल़े औि दोिािा इमाम क़े साथ रूकू में

र्जाए तो उसक़ी नमाज़ सहीह है औि अगि वह र्जान िझ


ू कि दोिािा ककयाम क़ी

हालत में न आए तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1486. अगि मक्


ु तदी सहवन इमाम स़े पहल़े सज्द़े में चला र्जाए औि सिू त यह

हो कक अगि दोिािा ककयाम क़ी हालत में आए तो इमाम क़ी ककिअत का कोई

हहस्सा न सन
ु सक़े तो अगि वह इस नीयत स़े कक इमाम क़े साथ नमाज़ पढ़़े ,

अपना सि उठा ल़े औि इमाम क़े साथ रूकू में र्जाए तो उसक़ी र्जमाअत औि

नमाज़ सहीह है औि अगि वह अमदन दोिािा ककयाम क़ी हालत में न आए तो

उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन फ़ुिादा शम


ु ाि होगी।

1487. अगि मक्


ु तदी गलती स़े इमाम स़े पहल़े सज्द़े में चला र्जाए तो अगि वह

इस कस्द स़े कक इमाम क़े साथ नमाज़ पढ़़े अपना सि उठा ल़े औि इमाम क़े साथ

सज्द़े में र्जाए तो उसक़ी नमाज़ सहीह है औि अगि अमदन सज्द़े स़े सि न उठाए

तो उसक़ी नमाज़ सहीह है ल़ेककन वह फ़ुिादा शम


ु ाि होगी।

481
1488. अगि इमाम गलती स़े एक ऐसी िक् अत में कुनत
ू पढ़ द़े , जर्जसमें कुनत

न हो या एक ऐसी िक् अत में जर्जसमें तशह्हुद न हो गलती स़े तशह्हुद पढ़ऩे लग़े

तो मक्
ु तदी को कुनत
ू औि तशह्हुद नहीं पढ़ना चाहहय़े ल़ेककन इमाम स़े पहल़े न

रूकू में र्जा सकता है औि न इमाम क़े खड़़े होऩे स़े पहल़े खड़ा हो सकता है िजल्क

ज़रूिी है कक इमाम क़े तशह्हुद औि कुनत


ू खत्म किऩे तक इजन्तज़ाि कि़े औि

िाक़ी मांदा नमाज़ उसक़े साथ पढ़़े ।

जमाअत में इमाम औि मुक्तदी के फ़िाइज

1489. अगि मक्


ु तदी मसफ़क एक मदक हो तो मस्
ु तहि है कक इमाम क़े दाई तिफ़

खड़ा हो औि अगि एक औित हो ति भी मस्


ु तहि है कक इमाम क़े दाई तिफ़ खड़ी

हो ल़ेककन ज़रूिी है कक उसक़े सज्दा किऩे क़ी र्जगह इमाम स़े उसक़े सज्द़े क़ी

हालत में दो ज़ानू क़े फ़ामसल़े पि हो औि अगि एक मदक औि एक औित या एक

मदक औि चन्द औितें हो तो मस्


ु तहि है कक मदक इमाम क़े दाई र्जातनि औि औित

या औितें इमाम क़े पीछ़े खड़ी हों औि अगि चन्द मदक औि एक या चन्द औितें

हों तो मदों का इमाम क़े पीछ़े औि औितों का मदों क़े पीछ़े खड़ा होना मस्
ु तहि

है ।

482
1490. अगि इमाम औि मक्
ु तदी दोनों औितें हों तो एहततयात़े वाजर्जि यह है

कक सि एक दस
ू िी क़े ििािि ििािि खड़ी हों औि इमाम मक्
ु तदीयों स़े आग़े न

खड़ी हो।

1491. मस्
ु तहि है कक इमाम सफ़ क़े दिममयान में आग़े खड़ा हो औि साहिाऩे

इल्म व फ़ज़्ल औि तक़्वा व विअ पहली सफ़ में खड़़े हों।

1492. मस्
ु तहि है कक र्जमाअत क़ी सफ़ें मन
ु ज़्ज़म हों औि र्जो अश्खास एक

सफ़ में खड़़े हों उनक़े दिममयान फ़ामसला न हो औि उनक़े कंध़े एक दस


ू ि़े क़े कंधों

स़े ममल़े हुए हों।

1493. मस्
ु तहि है कक कदकामततस्सलात कहऩे क़े िाद मक्
ु तदी खड़़े हो र्जायें।

1494. मस्
ु तहि है कक इमाम़े र्जमाअत उस मक्
ु तदी क़ी हालत का मलहाज़ कि़े

र्जो दस
ू िों स़े कमज़ोि हो औि कुनत
ू औि रूकू औि सर्ज
ु ूद को तूल न द़े िर्जज़
ु उस

सिू त क़े कक उस़े इल्म हो कक तमाम वह अशखास जर्जन्होंऩे उस क़ी इजक़्दता क़ी है

तल
ू द़े ऩे क़ी र्जातनि माइल हैं।

1495. मस्
ु तहि है कक इमाम़े र्जमाअत अलहम्द औि सिू ा नीज़ िलन्द आवाज़

स़े पढ़़े र्जाऩे वाल़े अज़्काि पढ़त़े हुए अपनी आवाज़ को इतना िलन्द कि़े कक दस
ू ि़े

सन
ु सकें ल़ेककन ज़रूिी है कक आवाज़ मन
ु ामसि हद स़े ज़्यादा िलन्द न कि़े ।

1496. अगि इमाम को हालत़े रूकू में मालम


ू हो र्जाए कक कोई शख़्स अभी

अभी आया है औि इजक़्तदा किना चाहता है तो मस्


ु तहि है कक रुकउ को मअमल

483
स़े दग
ु ना तूल द़े औि किि खड़ा हो र्जाए ख़्वाह उस़े मालम
ू हो र्जाए कक कोई दस
ू िा

शख़्स भी इजक़्तदा क़े मलय़े आया है।

नमाजे जमाअत के मकरूहात

1497. अगि र्जमाअत क़ी सफ़ों में र्जगह हो तो इंसान क़े मलय़े तन्हा खड़ा होना

मकरूह है।

1498. मक्
ु तदी का नमाज़ क़े अज़काि को इस तिह पढ़ना कक इमाम सन
ु ल़े

मकरूह है।

1499. र्जो मस
ु ाकफ़ि ज़ोहि, अस्र औि इशा क़ी नमाज़ें कस्र कि क़े पढ़ता हो उस

क़े मलय़े इन नमाज़ों में ककसी ऐस़े शख़्स क़ी इजक़्तदा किना मकरूह है र्जो

मस
ु ाकफ़ि न हो औि र्जो शख़्स मस
ु ाकफ़ि न हो उसक़े मलय़े मकरूह है कक इन

नमाज़ों में मस
ु ाकफ़ि क़ी इजक़्तदा कि़े ।

नमाजे आयात

1500. नमाज़़े आयात जर्जसक़े पढ़ऩे का तिीका िाद में ियान होगा तीन चीज़ों

क़ी वर्जह स़े वाजर्जि होती हैः-

1. सिू र्ज ग्रहन,

484
2. चांद ग्रहन, अगिच़े उसको कुछ हहस्स़े को ही ग्रहन लग़े औि ख़्वाह इंसान

पि उसक़ी वर्जह स़े खौफ़ भी तािी न हुआ हो।

3. ज़लज़ला, एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि, अगिच़े उसस़े कोई भी खौफ़ज़दा

न हुआ हो।

अलित्ता िादलों क़ी गिर्ज, बिर्जली क़ी कड़क, सख


ु क व मसयाह आंधी औि इन्हीं

र्जैसी दस
ू िी आसमानी तनशातनयााँ जर्जनस़े अकसि लोग खौफ़ज़दा हो र्जायें औि इसी

तिह ज़मीन क़े हाहदसात मसलन (दरिया औि) समन्


ु दि क़े पानी का सख
ू र्जाना

औि पहाड़ों का चगिना जर्जनस़े अकसि लोग खौफ़ज़दा हो र्जात़े हैं इन सिू तों में भी

एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि नमाज़़े आयात तकक नहीं किना चाहहय़े।

1501. जर्जन चीज़ों क़े मलय़े नमाज़़े आयात पढ़ना वाजर्जि है अगि वह एक स़े

ज़्यादा वक
ु ू पज़ीि हो र्जायें तो ज़रूिी है कक इंसान उनमें स़े हि एक क़े मलय़े एक

नमाज़़े आयात पढ़़े मसलन अगि सिू र्ज को भी ग्रहन लग र्जाए औि ज़लज़ला भी

आ र्जाए तो दोनों क़े मलय़े दो अलग अलग नमाज़ें पढ़नी ज़रूिी हैं।

1502. अगि ककसी शख़्स पि कई नमाज़़े आयात वाजर्जि हों ख़्वाह वह सि उस

पि एक ही चीज़ क़ी वर्जह स़े वाजर्जि हुई हों मसलन सिू र्ज को तीन दफ़् आ ग्रहन

लगा हो औि उसऩे उसक़ी नमाज़ें न पढ़ी हों या मख़्


ु तमलफ़ चीज़ों क़ी वर्जह स़े

मसलन सिू र्ज ग्रहन औि चांद ग्रहन औि ज़लज़ल़े क़ी वर्जह स़े उस पि वाजर्जि हुई

485
हों तो उनक़ी कज़ा कित़े वक़्त ज़रूिी नहीं कक वह सि इस िात का तअय्यन
ु कि़े

कक कौन सी कज़ा कौन सी चीज़ क़े मलय़े कि िहा है।

1503. जर्जन चीज़ों क़े मलय़े नमाज़़े आयात पढ़ना वाजर्जि है वह जर्जस शहि में

वक
ु ू पज़ीि हो फ़कत उसी शहि क़े लोगों क़े मलय़े ज़रूिी है कक नमाज़़े आयात पढ़़े

औि दस
ू ि़े मकामात क़े लोगों क़े मलय़े उसका पढ़ना वाजर्जि नहीं है .

1504. र्जि सिू र्ज या चांद को ग्रहन लगऩे लग़े तो नमाज़़े आयात का वक़्त शरू

हो र्जाता है औि उस वक़्त तक िहता है र्जि तक वह अपनी साबिका हालत पि

लौट न आयें। अगिच़े ि़ेहति यह है कक इतनी ताखीि न कि़े क़े ग्रहन खत्म होऩे

लग़े। ल़ेककन नमाज़़े आयात क़ी तकमील सिू र्ज या चांद ग्रहन खत्म होऩे क़े िाद

भी कि सकत़े हैं।

1505. अगि कोई शख़्स नमाज़़े आयात पढ़ऩे में इतनी ताखीि कि द़े या चांद

या सिू र्ज ग्रहन स़े तनकलना शरू


ू हो र्जाए तो अदा क़ी नीयत में कोई हिर्ज नहीं है

ल़ेककन उसक़े मक
ु म्मल तौि पि ग्रहन स़े तनकल र्जाऩे क़े िाद नमाज़ पढ़़े तो किि

ज़रूिी है कक कज़ा क़ी नीयत कि़े ।

1506. अगि चांद या सिू र्ज को ग्रहन लगऩे क़ी मद्


ु दत एक िक् अत नमाज़ क़े

ििािि या उसस़े भी कम हो तो र्जो नमाज़ वह पढ़ िहा है अदा है औि यही हुक्म

है अगि उनक़े ग्रहन क़ी मद्


ु दत उसस़े ज़्यादा हो ल़ेककन इंसान नमाज़ न पढ़़े यहााँ

486
तक कक ग्रहन खत्म होऩे में एक िक् अत पढ़ऩे क़े ििािि या उसस़े कम वक़्त

िाक़ी हो।

1507. र्जि कभी ज़लज़ला, िादलों क़ी गिर्ज, बिर्जली क़ी कड़क, औि उसी र्जैसी

चीज़ें वक
ु ू पज़ीि हों तो अगि उनका वक़्त वसी हो तो नमाज़़े आयात को फ़ौिन

पढ़ना ज़रूिी नहीं है िसिू त़े दीगि ज़रूिी है कक फ़ौिन नमाज़़े आयात पढ़़े यानी

इतनी र्जल्दी पढ़़े कक लोगों क़ी नज़िों में ताखीि किना शम


ु ाि न हो अगि ताखीि

कि़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक िाद में अदा औि कज़ा क़ी नीयत ककय़े िगैि

पढ़़े ।

1508. अगि ककसी शख़्स को चााँद या सिू र्ज को ग्रहन लगऩे का पता न चल़े

औि उनक़े ग्रहन स़े िाहि आऩे क़े िाद पता चल़े कक पिू ़े सिू र्ज या पिू ़े चांद को

ग्रहन लगा था तो ज़रूिी है कक नमाज़़े आयात क़ी कज़ा कि़े ल़ेककन अगि उस़े यह

पता चल़े कक कुछ हहस्स़े को ग्रहन लगा था तो नमाज़़े आयात क़ी कज़ा उस पि

वाजर्जि नहीं है ।

1509. अगि कुछ लोग यह कहें कक चााँद को या यह कहें कक सिू र्ज को ग्रहन

लगा है औि इंसान को ज़ाती तौि पि उनक़े कहऩे स़े यक़ीन या इत्मीनान हामसल

न हो इसमलय़े वह नमाज़़े आयात न पढ़़े औि िाद में पता चल़े कक उन्होंऩे ठ क

कहा था तो उस सिू त में र्जिकक पिू ़े चााँद को या पिू ़े सिू र्ज को ग्रहन लगा हो

नमाज़़े आयात पढ़़े ल़ेककन अगि कुछ हहस्स़े को ग्रहन लगा हो तो नमाज़़े आयात

487
का पढ़ना उस पि वाजर्जि नहीं है। औि यही हुक्म उस सिू त में है र्जिकक दो

आदमी जर्जनक़े आहदल होऩे क़े िाि़े में इल्म न हो यह कहें कक चााँद को या सिू र्ज

को ग्रहन लगा है औि िाद में मालम


ू हो कक वह आहदल थ़े।

1510. अगि इंसान को माहहिीऩे फ़लक़ीयात क़े कहऩे पि र्जो इल्मी कायद़े क़ी

रू स़े सिू र्ज को औि चााँद को ग्रहन लगऩे का वक़्त र्जानत़े हों इत्मीनान हो र्जाए

कक सिू र्ज को या चााँद को गहन लगा है तो ज़रूिी है कक नमाज़़े आयात पढ़़े औि

इसी तिह अगि वह कहें कक सिू र्ज या चााँद को फ़लां वक़्त ग्रहन लग़ेगा औि इतनी

द़े ि तक िह़े गा औि इंसान को उनक़े कहऩे स़े इत्मीनान हामसल हो र्जाए तो उनक़े

कहऩे पि अमल किना ज़रूिी है।

1511. अगि ककसी शख़्स को इल्म हो र्जाए कक र्जो नमाज़़े आयात उसऩे पढ़ी है

वह िाततल थी तो ज़रूिी है कक दोिािा पढ़़े औि अगि वक़्त गज़


ु ि गया हो तो

उसक़ी कज़ा िर्जा लाए।

1512. अगि यौममया नमाज़ क़े वक़्त नमाज़़े आयात भी इंसान पि वाजर्जि हो

र्जाए औि उसक़े पास दोनों क़े मलय़े वक़्त हो तो र्जो भी पहल़े पढ़ ल़े कोई हिर्ज

नहीं है औि अगि दोनों में स़े ककसी एक का वक़्त तंग हो तो पहल़े वह नमाज़ पढ़़े

जर्जसका वक़्त हो औि अगि दोनों का वक़्त तंग हो तो ज़रूिी है कक यौममया

नमाज़ पढ़़े ।

488
1513. अगि ककसी शख़्स को यौममया नमाज़ पढ़त़े हुए इल्म हो र्जाए कक

नमाज़़े आयात का वक़्त तंग है औि यौममया नमाज़ का वक़्त भी तंग हो तो

ज़रूिी है कक पहल़े यौममया नमाज़ को तमाम कि़े औि िाद में नमाज़़े आयात पढ़़े

औि अगि यौममया नमाज़ का वक़्त तंग न हो तो उस़े तोड़ द़े औि पहल़े नमाज़़े

आयात औि उसक़े िाद यौममया नमाज़ िर्जा लाए।

1514. अगि ककसी शख़्स को नमाज़़े आयात पढ़त़े हुए इल्म हो र्जाए कक

यौममया नमाज़ का वक़्त तंग है तो ज़रूिी है कक नमाज़़े आयात को छोड़ द़े औि

यौममया नमाज़ को पढ़ऩे में मशगल


ू हो र्जाए औि यौममया नमाज़ को तमाम किऩे

क़े िाद इसस़े पहल़े क़ी कोई ऐसा काम कि़े र्जो नमाज़ को िाततल किता हो तो

िाक़ी मांदा नमाज़़े आयात वहीं स़े पढ़़े र्जहां स़े छोड़ी थी।

1515. र्जि औित हैज़ या तनफ़ास क़ी हालत में हो औि सिू र्ज या चांद को

ग्रहन लग र्जाए या ज़लज़ला आ र्जाए तो उस पि नमाज़़े आयात वाजर्जि नहीं है

औि न ही उसक़ी कज़ा है ।

489
नमाजे आयात पढ़ने का तिीका

1516. नमाज़़े आयात क़ी दो िक् अतें हैं औि हि िक् अत में पांच रूकू हैं। इस क़े

पढ़ऩे का तिीका यह है कक नीयत किऩे क़े िाद इंसान तक्िीि कह़े औि एक

दफ़् आ अलहम्द औि एक पिू ा सिू ा पढ़़े औि रूकू में र्जाए औि किि रूकूउ स़े सि

उठाए औि किि दोिािा एक दफ़् आ अलहम्द औि एक सिू ा पढ़़े औि किि रूकू में

र्जाए। इस अमल को पांच दफ़् आ अंर्जाम द़े औि पांचवें रूकू स़े ककयाम क़ी हालत

में वापस आऩे क़े िाद दो सज्द़े िर्जा लाए औि किि उठ खड़ा हो औि पहली

िक् अत क़ी तिह दस


ू िी िक् अत िर्जा लाए औि तशह्हुद औि सलाम पढ़ कि नमाज़

तमाम कि़े ।

1517. नमाज़़े आयात में यह भी मम्


ु क़ीन है कक इंसान नीयत किऩे औि तक्िीि

औि अलहम्द पढ़ऩे क़े िाद एक सिू ़े क़ी आयतों क़े पांच हहस्स़े कि़े औि एक

आयत या उसस़े कुछ ज़्यादा पढ़़े िजल्क एक आयत स़े कम भी पढ़ सकता है

ल़ेककन एहततयात क़ी बिन पि ज़रूिी है कक मक


ु म्मल र्जुमला हो औि उसक़े िाद

रूकू में र्जाए औि किि खड़ा हो र्जाए औि अलहम्द पढ़़े िगैि उसी सिू ़े का दस
ू िा

हहस्सा पढ़़े औि रूकू में र्जाए इसी तिह इस अमल को दोहिाता िह़े हत्ता क़ी पांचवें

रूकू स़े पहल़े सिू ़े को खत्म कि द़े । मसलन सिू ा ए फ़लक में पहल़े

बिजस्मल्लाहहिक हमतनिक हीम कुल अऊज़ो ि़े िजबिल फ़लक़े पढ़़े औि रूकू में र्जाए उसक़े

िाद खड़ा हो औि पढ़़े , ममन शिे मा खलका किि रूकू में र्जाए औि किि खड़ा हो

490
औि पढ़़े ममन शिे गास़ेककन इज़ा वकिा औि दोिािा रूकू में र्जाए। उसक़े िाद खड़ा

हो औि पढ़़े , व ममन शरिक न नफ़्फ़ासात़े कफ़ल उकद़े औि रूकू में चला र्जाए औि

किि खड़ा हो र्जाए औि पढ़़े , व ममन शिे हामसहदन इज़ा हसद औि सक़े िाद पांचवें

रूकू में र्जाए औि (रूकू स़े) खड़ा होऩे क़े िाद दो सज्द़े कि़े औि दस
ू िी िक् अत भी

पहली िक् अत क़ी तिह िर्जा लाए औि उसक़े िाद दस


ू ि़े सज्द़े क़े िाद तशह्हुद औि

सलाम पढ़़े । औि यह भी र्जाइज़ है कक सिू ़े को पांच स़े कम हहस्सों में तकसीम कि़े

ल़ेककन जर्जस वक़्त भी सिू ा खत्म कि़े लाजज़मी है कक िाद वाल़े रूकू स़े पहल़े

अलहम्द पढ़़े ।

1518. अगि कोई शख़्स नमाज़़े आयात क़ी एक िक् अत में पांच दफ़् आ

अलहम्द औि सिू ा पढ़़े औि दस


ू िी िक् अत में एक दफ़् आ अलहम्द पढ़़े औि सिू ़े को

पांच हहस्सों में तकसीम कि द़े तो कोई हिर्ज नहीं है ।

1519. र्जो चीज़ें यौममया नमाज़ में वाजर्जि औि मस्


ु तहि हैं वह नमाज़़े आयात

में भी वाजर्जि औि मस्


ु तहि हैं अलित्ता अगि नमाज़़े आयात र्जमाअत क़े साथ हो

िही हो तो अज़ान औि इकामत क़ी िर्जाय तीन दफ़् आ ितौि़े िर्जा, अस्सलाम कहा

र्जाए ल़ेककन अगि यह नमाज़ र्जमाअत क़े साथ न पढ़ी र्जा िही हो तो कुछ कहऩे

क़ी ज़रूित नहीं।

491
1520. नमाज़़े आयात पढ़ऩे वाल़े क़े मलय़े मस्
ु तहि है कक रूकू स़े पहल़े औि

उसक़े िाद तक्िीि कह़े औि पांचवें औि दसवें रूकू क़े िाद तक्िीि स़े पहल़े,

सम़ेअल्लाहो ल़ेमन हम़ेदा भी कह़े ।

1521. दस
ू ि़े , चौथ़े, छठें , आठवें औि दसवें रूकू स़े पहल़े कुनत
ू पढ़ना मस्
ु तहि

है औि अगि कुनत
ू मसफ़क दसवें रूकू स़े पहल़े पढ़ मलया र्जाए ति भी काफ़़ी है ।

1522. अगि कोई शख़्स नमाज़़े आयात में शक कि़े कक ककतनी िक् अतें पढ़ी हैं

औि ककसी नतीर्ज़े पि न पहुंच सक़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ।

1523. अगि (कोई शख़्स र्जो नमाज़़े आयात पढ़ िहा हो) शक कि़े कक वह

पहली िक् अत क़े आखखिी रूकू में है या दस


ू िी िक् अत क़े पहल़े रूकू में औि ककसी

नतीर्ज़े पि न पहुाँच सक़े तो उसक़ी नमाज़ िाततल है ल़ेककन अगि ममसाल क़े तौि

पि शक कि़े कक चाि रूकू िर्जा लाया है या पांच औि उस का यह शक सज्द़े में

र्जाऩे स़े पहल़े हो तो जर्जस रूकू क़े िाि़े में उस़े शक हो कक िर्जा लाया है या नहीं

उस़े अदा किना ज़रूिी है ल़ेककन अगि सज्द़े क़े मलय़े झक


ु गया हो तो ज़रूिी है

कक अपऩे शक क़ी पिवाह न कि़े ।

1524. नमाज़़े आयात का हि रूकू रुक्न है औि अगि उन में अमदन या कमी

या ि़ेशी हो र्जाए तो नमाज़ िाततल है । औि यही हुक्म है अगि सहवन कमी हो या

एहततयात क़ी बिना पि ज़्यादा हो।

492
ईदे फफ़त्र औि ईदे कुबायन की नमाज

1525. इमाम़े अस्र (अ0) क़े ज़माना ए हुज़ूि में ईद़े कफ़त्र व ईद़े कुिाकन क़ी

नमाज़ें वाजर्जि हैं औि उनका र्जमाअत क़े साथ पढ़ना ज़रूिी है ल़ेककन हमाि़े ज़माऩे

में र्जि इमाम़े अस्र (अ0) गैित़े कुििा में हैं यह नमाज़ें मस्
ु तहि हैं औि िा

र्जमाअत व फ़ुिादा दोनों तिह पढ़ी र्जा सकती हैं।

1526. नमाज़़े ईद़े कफ़त्र व कुिाकन का वक़्त ईद क़े हदन तुलए


ू आफ़ताि स़े ज़ोहि

तक है ।

1527. ईद़े कुिाकन क़ी नमाज़ सिू र्ज चढ़ आऩे क़े िाद पढ़ना मस्
ु तहि है औि ईद़े

कफ़त्र में मस्


ु तहि है कक सिू र्ज चढ़ आऩे क़े िाद इफ़्ताि ककया र्जाए कफ़तिा हदया

र्जाए औि िाद में दोगाना ए ईद अदा ककया र्जाए।

1528. ईद़े कफ़त्र व कुिाकन क़ी नमाज़ दो िक् अत है जर्जसक़ी पहली िक् अत में

अलहम्द औि सिू ा पढ़ऩे क़े िाद ि़ेहति यह है कक पााँच तक्िीि क़े िाद एक औि

तक्िीि क़े दिममयान एक कुनत


ू पढ़़े औि पााँचवीं तक्िीि क़े िाद एक औि तक्िीि

कह़े औि रूकू में चला र्जाए औि किि दो सज्द़े िर्जा लाए औि उठ खड़ा हो औि

दस
ू िी िक् अत में चाि तक्िीिें कह़े औि हि दो तक्िीि क़े दिममयान कुनत
ू पढ़़े औि

चौथी तक्िीि क़े िाद एक औि तक्िीि कहकि रूकू में चला र्जाए औि रूकू क़े िाद

दो सज्द़े कि़े औि तशह्हुद पढ़़े औि सलाम कहकि नमाज़ को तमाम कि द़े ।

493
1529. ईद़े कफ़त्र व कुिाकन क़ी नमाज़ क़े कुनत
ू में र्जो दआ
ु औि जज़क्र भी पढ़ा

र्जाए काफ़़ी है ल़ेककन ि़ेहति है कक यह दआ


ु पढ़ी र्जाएः-

अल्लाहुम्मा अहलल ककिरियाए वल अज़मत़े व अहलल र्जूद़े वल र्जिरूत़े व

अहलल अफ़्व़े विक हमत़े व अहलत्तकवा वल मजग़्जफ़ित़े अस ्अलक


ु ा ि़ेहक़्क़े हाज़ल

यौममल्लज़ी र्जअल्तहू मलल मस


ु ल़ेमीना ईदौं वल़े मोहम्महदन सल्लल्लाहो अलैह़े व

आल़ेही ज़ुखिौं व शिफ़ौं व किामतौं व मज़ीदा अन तुसजल्लया अला मोहम्महदंव्व

आल़े मोहम्महदन व अन तद
ु खखलनी फ़़ी कुल्ल़े खैरिन अद्खल्ता फ़़ीह़े मोहम्मदौं व

अला मोहम्मद व अन तख
ु रिर्जनी ममन कुल्ल़े सइ
ू न अखिर्जता ममन्हो मोहम्मदौं व

आला मोहम्मद सलवातक


ु ा अलैह़े व अलैहहम अज्मईन अल्लाहुम्मा इन्नी

अस ्अलक
ु ा खैिा मा सअलका ि़ेही इिादक
ु स्साल़ेहून व अऊज़ो ि़ेका ममम्मस तआज़ा

ममन्हो इिादस
ु ल मख़्
ु ल़ेसन

1530. इमाम़े अस्र (अ0) क़े ज़माना ए गैित में अगि नमाज़़े ईद़े कफ़त्र व ईद़े

कुिाकन र्जमाअत स़े पढ़ी र्जाए तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक इसक़े िाद दो खुतूि़े

पढ़़े र्जायें औि ि़ेहति यह है कक ईद़े कफ़त्र क़े खुतूि़े में कफ़त्ऱे क़े अहकाम ियान हों

औि ईद़े कुिाकन क़े खत


ु ूि़े में कुिाकनी क़े अहकाम ियान ककय़े र्जायें।

494
1531. ईद क़ी नमाज़ क़े मलय़े कोई सिू ा मख़्सस
ू नहीं है ल़ेककन ि़ेहति यह है

कक पहली िक् अत में (अलहम्द क़े िाद) सिू ा ए गामशया (88 वां सिू ा) पढ़ा र्जाए

या पहली िक् अत में सिू ा ए अअला (87 वां सिू ा) औि दस


ू िी िक् अत में सिू ा ए

शम्स पढ़ा र्जाए।

1532. नमाज़़े ईद खुल़े मैदान में पढ़ना मस्


ु तहि है ल़ेककन मक्का ए मक
ु रिक मा

में मस्
ु तहि है कक मजस्र्जदल
ु हिाम में पढ़ी र्जाए।

1533. मस्
ु तहि है कक नमाज़़े ईद क़े मलय़े पैदल औि पा ििहना औि िावकाि

तौि पि र्जायें औि नमाज़ स़े पहल़े गस्


ु ल किें औि सफ़ैद अम्मामा सि पि िांधें।

1534. मस्
ु तहि है कक नमाज़़े ईद में ज़मीन पि सज्दा ककया र्जाए औि तक्िीिें

कहत़े वक़्त हाथों को िलन्द ककया र्जाए औि र्जो शख़्स नमाज़़े ईद पढ़ िहा हो

ख़्वाह वह इमाम़े र्जमाअत हो या फ़ुिादा नमाज़ पढ़ िहा हो नमाज़ िलन्द आवाज़

स़े पढ़़े ।

1535. मस्
ु तहि है कक ईद़े कफ़त्र क़ी िात को मचिि व इशा क़ी नमाज़ क़े िाद

औि ईद़े कफ़त्र क़े क़े हदन नमाज़़े सबु ह क़े िाद औि नमाज़़े ईद़े कफ़त्र क़े िाद यह

तक्िीिें कही र्जाय़ेः-

अल्लाहो अक्िि, अल्लाहो अक्िि, ला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अक्िि,

अल्लाहो अक्िि व मलल्लाहहल हम्द, अल्लाहो अक्ििो अलामा हदाना।

495
1536. ईद़े कुिाकन में दस नमाज़ों क़े िाद जर्जनमें स़े पहली नमाज़ें ईद क़े हदन

क़ी नमाज़़े ज़ौहि है औि औि आखखिी िािहवीं तािीख क़ी नमाज़़े सबु ह है इन

तक्िीिात का पढ़ना मस्


ु तहि है जर्जनका जज़क्र साबिका मस ्अल़े में हो चक
ु ा है औि

उसक़े िाद, अल्लाहो अक्ििो अला मा िज़क़्ना मममिहीमततल अन ्आम़े वलहम्दो

मलल्लाह़े अला मा अबललाना। पढ़ना भी मस्


ु तहि है ल़ेककन अगि ईद़े कुिाकन क़े

मौक़े पि इंसान ममना में हो तो मस्


ु तहि है कक यह तक्िीिें पन्रह नमाज़ों क़े िाद

पढ़़े जर्जन में स़े पहली नमाज़ ईद क़े हदन नमाज़़े ज़ोहि औि आखिी त़ेिहवीं

जज़लहहज्र्जा क़ी नमाज़़े सबु ह है।

1537. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक औितें नमाज़़े ईद पढ़ऩे क़े मलय़े न र्जायें

ल़ेककन यह एहततयात उम्र िसीदा औितों क़े मलय़े नहीं है ।

1538. नमाज़़े ईद में भी दस


ू िी नमाज़ों क़ी तिह मक्
ु तदी को चाहहय़े कक

अलहम्द औि सिू ा क़े अलावा नमाज़ क़े अज़्काि खद


ु पढ़़े ।

1539. अगि मक्


ु तदी उस वक़्त पहुंच़े र्जि इमाम नमाज़ क़ी कुछ तक्िीि़े कह

चक
ु ा हो तो इमाम क़े रूकू में र्जाऩे क़े िाद ज़रूिी है कक जर्जतनी तक्िीिें औि कुनत

उसऩे इमाम क़े साथ नहीं पढ़ी उन्हें पढ़़े औि अगि हि कुनत
ू में एक दफ़् आ

सबु हानल्लाह या एक दफ़् आ अलहम्दो मलल्लाह कह द़े तो काफ़़ी है ।

496
1540. अगि कोई शख़्स नमाज़़े ईद में उस वक़्त पहुंच़े र्जि इमाम रूकू में हो

तो वह नीयत कि क़े औि नमाज़ क़ी पहली तक्िीि कह कि रूकू में र्जा सकता है ।

1541. अगि कोई शख़्स नमाज़़े ईद में एक सज्दा भल


ू र्जाए तो ज़रूिी है कक

नमाज़ क़े िाद उस़े िर्जा लाए। औि इसी तिह कोई ऐसा फ़़ेल नमाज़़े ईद में सज़कद

हो जर्जसक़े मलय़े यौममया नमाज़ में सज्दा ए सहव लाजज़म है तो नमाज़़े ईद पढ़ऩे

वाल़े क़े मलय़े ज़रूिी है कक दो सज्दा ए सहव िर्जा लाए।

नमाज के ललये अज़ीि बनाना

1542. इंसान क़े मिऩे क़े िाद उन नमाज़ों औि दस


ू िी इिादतों क़े मलय़े र्जो वह

जज़न्दगी में न िर्जा लाया हो ककसी दस


ू ि़े शख़्स को अर्जीि िनाया र्जा सकता है

यानी वह नमाज़ें उस़े उर्जित द़े कि पढ़वाई र्जा सकती हैं औि अगि कोई शख़्स

िगैि उर्जित मलय़े उन नमाज़ों औि दस


ू िी इिादतों को िर्जा लाए ति भी सहीह है।

1543. इंसान िाज़ मस्


ु तहि कामों मसलन हर्ज व उमि़े औि िौज़ा ए िसल

(सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम) या कुििू ़े अइम्मा (अ0) क़ी जज़याित क़े

मलय़े जज़न्दा अश्खास क़ी तिफ़ स़े अर्जीि िन सकता है औि यह भी कि सकता है

कक मस्
ु तहि काम अंर्जाम द़े कि उस का सवाि मद
ु ाक या जज़न्दा अश्खास को हहदया

कि द़े ।

497
1544. र्जो शख़्स मैतयत क़ी कज़ा नमाज़ क़े मलय़े अर्जीि िऩे उसक़े मलय़े ज़रूिी

है कक या तो मज्
ु तहहद हो या नमाज़ तकलीद क़े मत
ु ाबिक सहीह तिीक़े पि अदा

कि़े या एहततयात पि अमल कि़े िशते कक मवारिद़े एहततयात को पिू ी तिह

र्जानता हो।

1545. ज़रूिी है कक अर्जीि नीयत कित़े वक़्त मैतयत को मअ


ु य्यन कि़े औि

ज़रूिी नहीं कक मैतयत का नाम र्जानता हो िजल्क अगि नीयत कि़े कक मैं यह

नमाज़ उस शख़्स क़े मलय़े पढ़ िहा हूाँ जर्जस क़े मलय़े मैं अर्जीि हुआ हूाँ तो काफ़़ी है ।

1546. ज़रूिी है कक अर्जीि र्जो अमल िर्जा लाए उसक़े मलय़े नीयत कि़े कक र्जो

कुछ मैतयत क़े जज़म्म़े है वह िर्जा ला िहा हूाँ औि अगि अर्जीि कोई अमल अंर्जाम

द़े औि उसका सवाि मैतयत को हहदया कि द़े तो यह काफ़़ी नहीं है।

1547. अर्जीि ऐस़े शख़्स को मक


ु िक ि किना ज़रूिीह है जर्जसक़े िाि़े में इत्मीनान

हो कक वह अमल को िर्जा लाय़ेगा।

1548. जर्जस शख़्स को मैतयत क़ी नमाज़ों क़े मलय़े अज़ीि िनाया र्जाए अगि

उसक़े िाि़े में पता चल़े कक वह अमल को िर्जा नहीं लाया या िाततल तौि पि िर्जा

लाया है तो दोिािा (ककसी दस


ू ि़े शख़्स को) अर्जीि मक
ु िक ि किना ज़रूिी है ।

1549. र्जि कोई शख़्स शक कि़े कक अर्जीि ऩे अमल अंर्जाम हदया है या नहीं

अगिच़े वह कह़े कक मैंऩे अंर्जाम द़े हदया है ल़ेककन उसक़ी िात पि इत्मीनान न हो

498
तो ज़रूिी है कक दोिािा अर्जीि मक
ु िक ि कि़े । औि अगि शक कि़े कक उस ऩे सहीह

तौि पि अंर्जाम हदया है या नहीं तो उस़े सहीह समझ सकता है ।

1550. र्जो शख़्स कोई उज़्र िखता हो मसलन तयम्मम


ु किक़े या िैठ कि

नमाज़ पढ़ता हो उस़े एहततयात क़ी बिना पि मैतयत क़ी नमाज़ों क़े मलय़े अर्जीि

बिल्कुल मक
ु िक ि न ककया र्जाए अगिच़े मैतयत क़ी नमाज़ें भी इसी तिह कज़ा हुई

हों।

1551. मदक औित क़ी तिफ़ स़े अर्जीि िन सकता है औि औित मदक क़ी तिफ़

स़े अर्जीि िन सकती है औि र्जहााँ तक नमाज़ िलन्द आवाज़ स़े पढ़ऩे का सवाल है

ज़रूिी है कक अर्जीि अपऩे वज़ीफ़़े क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े ।

1552. मैतयत क़ी कज़ा नमाज़ों में तितीि वाजर्जि नहीं है मसवाय उन नमाज़ों क़े

जर्जनक़ी अदा में तितीि है मसलन एक हदन क़ी नमाज़़े ज़ोहि व अस्र या मगरिि

व इशा र्जैसा कक पहल़े जज़क्र हो चक


ु ा है।

1553. अगि अर्जीि क़े साथ तय ककया र्जाए कक अमल को एक मख़्सस


ू तिीक़े

स़े अंर्जाम द़े गा तो ज़रूिी है कक उस अमल को उसी तिीक़े स़े अंर्जाम द़े औि अगि

कुछ तय न हुआ हो तो ज़रूिी है कक वह अमल अपऩे वज़ीफ़़े क़े मत


ु ाबिक अंर्जाम

द़े औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक अपऩे वज़ीफ़़े औि मैतयत क़े वज़ीफ़़े में स़े र्जो

भी एहततयात क़े ज़्यादा किीि हो उस पि अमल कि़े मसलन अगि मैतयत का

499
वज़ीफ़ा तस्िीहात़े अििआ तीन दफ़् आ पढ़ना था औि उसक़ी अपनी तक्लीफ़ एक

दफ़् आ पढ़ना हो तो तीन दफ़् आ पढ़़े ।

1554. अगि अर्जीि क़े साथ यह तय न ककया र्जाए कक नमाज़ क़े मस्
ु तहबिात

ककस ममक़्दाि में पढ़़े गा तो ज़रूिी है कक उमम


ू न जर्जतऩे मस्
ु तहबिात पढ़़े र्जात़े हैं

उन्हें िर्जा लाए।

1555. अगि इंसान मैतयत क़ी कज़ा नमाज़ों क़े मलय़े कई अश्खास को अर्जीि

मक
ु िक ि कि़े तो र्जो कुछ मस ्अला न0 1552 में िताया गया है उसक़ी बिना पि

ज़रूिी नहीं कक वह हि अर्जीि क़े मलय़े वक़्त मअ


ु य्यन कि़े ।

1556. अगि कोई शख़्स अर्जीि िऩे कक ममसाल क़े तौि पि एक साल में मैतयत

क़ी नमाज़ें पढ़ द़े गा औि साल खत्म होऩे स़े पहल़े मि र्जाए तो उन नमाज़ों क़े

मलय़े जर्जन क़े िाि़े में इल्म हो कक वह िर्जा नहीं लाया ककसी औि शख़्स को अर्जीि

मक
ु िक ि ककया र्जाए औि जर्जन नमाज़ों क़े िाि़े में एहततमाल हो कक वह उन्हें नहीं

िर्जा लाया एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उनक़े मलय़े भी अर्जीि मक


ु िक ि ककया

र्जाए।

1557. जर्जस शख़्स को मैतयत क़ी कज़ा नमाज़ों क़े मलय़े अर्जीि मक
ु िक ि ककया हो

औि उसऩे उन सि नमाज़ों क़ी उर्जित भी वसल


ू कि ली हो अगि वह सािी नमाज़ें

पढ़ऩे स़े पहल़े मि र्जाए तो अगि यह तय ककया गया हो कक सािी नमाज़ें वह खुद

ही पढ़़े गा तो उर्जित द़े ऩे वाल़े िाक़ी नमाज़ों क़ी तय शद


ु ा उर्जित वापस ल़े सकतें हैं

500
या इर्जािा को फ़स्ख कि सकत़े हैं औि उसक़ी उर्जितुल ममस्ल द़े सकत़े हैं। औि

अगि यह तय न ककया गया हो कक सािी नमाज़़े अर्जीि खद


ु पढ़़े गा तो ज़रूिी है

कक अर्जीि क़े विसा उस क़े माल में स़े िाक़ी मांदा नमाज़ों क़े मलय़े ककसी को

अर्जीि िनायें ल़ेककन अगि उसऩे कोई माल न छोड़ा हो तो उस क़े विसा पि कुछ

भी वाजर्जि नहीं है ।

1558. अगि अर्जीि मैतयत क़ी सि कज़ा नमाज़ें पढ़ऩे स़े पहल़े मि र्जाए औि

उसक़े अपऩे जज़म्में भी कज़ा नमाज़ें हों तो मस ्अला ए साबिका में र्जो तिीका

िताया गया है उस पि अमल किऩे क़े िाद अगि फ़ौतशद


ु ा अर्जीि क़े माल स़े कुछ

िच़े औि इस सिू त में र्जिकक उसऩे वसीयत क़ी हो औि उसक़े विसा भी इर्जाज़त

दें तो उसक़ी सि नमाज़ों क़े मलय़े अर्जीि मक


ु िक ि ककया र्जा सकता है औि अगि

विसा इर्जाज़त न दें तो माल का तीसिा हहस्सा उसक़ी नमाज़ों पि सफ़क ककया र्जा

सकता है।

501
िोजे के अहकाम

(शिीअत़े इस्लाम में ) िोज़ा स़े मिु ाद है खद


ु ावन्द़े आलम क़ी रिज़ा क़े मलय़े इंसान

अज़ाऩे सबु ह स़े मचिि तक नौ चीज़ों स़े र्जो िाद में ियान क़ी र्जायेंगी पिह़े ज़ कि़े ।

ऩीयत

1559. इंसान क़े मलए िोज़़े क़ी नीयत हदल स़े गज़
ु ािना या मसलन यह कहना

कक, मैं कल िोज़ा िखंग


ू ा ज़रूिी नहीं िजल्क उस का इिादा किना काफ़़ी है कक वह

अल्लाह तआला क़ी रिज़ा क़े मलय़े अज़ाऩे सबु ह स़े मचिि तक कोई भी ऐसा काम

नहीं कि़े गा जर्जसस़े िोज़ा िाततल होता हो औि यह यक़ीन हामसल किऩे क़े मलय़े

इस तमाम वक़्त में वह िोज़़े स़े िहा है ज़रूिी है कक कुछ द़े ि अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े

औि कुछ द़े ि मचिि क़े िाद भी ऐस़े काम किऩे स़े पिह़े ज़ न कि़े जर्जन स़े िोज़ा

िाततल हो र्जाता है।

1560. इंसान माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़ी हि िात उस स़े अगल़े हदन क़े िोज़़े

क़ी नीयत कि सकता है औि ि़ेहति यह है कक उस महीऩे क़ी पहली िात को ही

साि़े महीऩे क़े िोज़ों क़ी नीयत कि़े ।

1561. वह शख़्स जर्जसका िोज़ा िखना का इिादा हो उसक़े मलय़े माह़े िमज़ान में

िोज़़े क़ी नीयत का आखखिी वक़्त अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े है । यानी अज़ाऩे सबु ह स़े

502
पहल़े िोज़़े क़ी नीयत ज़रूिी है अगिच़े नीन्द या ऐसी ही ककसी वर्जह स़े अपऩे

इिाद़े क़ी तिफ़ मत


ु वज्र्जह न हो।

1562. जर्जस शख़्स न ऐसा कोई काम न ककया हो र्जो िोज़़े को िाततल कि़े तो

वह जर्जस वक़्त भी हदन में मस्


ु तहि िोज़़े क़ी नीयत कि ल़े अगिच़े मगरिि होऩे में

कम वक़्त ही िह गया हो, उस का िोज़ा सहीह है।

1563. र्जो शख़्स माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों औि उसी तिह वाजर्जि िोज़ों

में जर्जन क़े हदन मअ


ु य्यन हैं िोज़़े क़ी नीयत ककय़े िगैि अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े सो

र्जाए अगि वह ज़ोहि स़े पहल़े ि़ेदाि हो र्जाए औि िोज़़े क़ी नीयत कि़े तो उसका

िोज़ा सहीह है औि अगि वह ज़ोहि क़े िाद ि़ेदाि हो तो एहततयात क़ी बिना पि

ज़रूिी है कक कुिकत़े मत
ु लका क़ी नीयत न कि़े औि उस हदन क़े िोज़़े क़ी कज़ा भी

िर्जा लाए।

1564. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों क़े अलावा कोई दस
ू िा

िोज़ा िखना चाह़े तो ज़रूिी है कक उस िोज़़े को मअ


ु य्यन कि़े मसलन नीयत कि़े

कक मैं कज़ा या कफ़्फ़ाि़े का िोज़ा िख िहा हूाँ ल़ेककन माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में

यह नीयत किना ज़रूिी नहीं कक मैं साि़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक का िोज़ा िख िहा हूाँ

िजल्क अगि ककसी को इल्म न हो या भल


ू र्जाए कक माह़े िमज़ान है औि ककसी

दस
ू ि़े िोज़़े क़ी नीयत कि़े ति भी वह िोज़ा माह़े िमज़ान का िोज़ा शम
ु ाि होगा।

503
1565. अगि कोई शख़्स यह र्जानता हो कक िमज़ान का महीना है औि र्जानिझ

कि माह़े िमज़ान क़े िोज़़े क़े अलावा ककसी दस


ू ि़े िोज़़े क़ी नीयत कि़े तो वह िोज़ा

जर्जसक़ी उसऩे नीयत क़ी है वह िोज़ा शम


ु ाि नहीं होगा औि इसी तिह वह माह़े

िमज़ान का िोज़ा भी शम
ु ाि नहीं होगा अगि वह नीयत कस्द़े कुिकत क़े मनाफ़़ी हो

िजल्क अगि मनाफ़़ी न हो ति भी एहततयात क़ी बिना पि वह िोज़ा माह़े िमज़ान

का िोज़ा शम
ु ाि नहीं होगा।

1566. ममसाल क़े तौि पि अगि कोई माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े पहल़े िोज़़े क़ी

नीयत कि़े ल़ेककन िाद में मालम


ू हो कक यह दस
ू िा िोज़ा या तीसिा िोज़ा था तो

उसका िोज़ा सहीह है ।

1567. अगि कोई शख़्स अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े िोज़़े क़ी नीयत किऩे क़े िाद

ि़ेहोश हो र्जाए औि किि उस़े हदन में ककसी वक़्त होश आ र्जाए तो एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक उस हदन का िोज़ा तमाम कि़े औि उसक़ी कज़ा भी िर्जा लाए।

1568. अगि कोई शख़्स अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े िोज़़े क़ी नीयत कि़े औि किि

ि़ेहोश हो र्जाए औि किि उस़े हदन में ककसी वक़्त होश आ र्जाए तो एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक उस हदन का िोज़ा तमाम कि़े औि उसक़ी कज़ा भी िर्जा लाए।

1569. अगि कोई शख़्स अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े िोज़़े क़ी नीयत कि़े औि सो र्जाए

औि मचिि क़े िाद ि़ेदाि हो तो उसका िोज़ा सहीह है।

504
1570. अगि ककसी शख़्स को इल्म न हो या भल
ू र्जाए कक माह़े िमज़ान है औि

ज़ोहि स़े पहल़े इस अम्र क़ी र्जातनि मत


ु वज्र्जह हो औि इस दौिान कोई ऐसा काम

कि चक
ु ा हो र्जो िोज़़े को िाततल किता है तो उसका िोज़ा िाततल होगा ल़ेककन यह

ज़रूिी है कक मचिि तक कोई ऐसा काम न कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किता हो औि

माह़े िमज़ान क़े िाद िोज़़े क़ी कज़ा भी कि़े । औि अगि ज़ोहि क़े िाद मत
ु वज्र्जह

हो तो कोई ऐसा काम भी न ककया हो र्जो िोज़़े को िाततल किता हो तो उसका

िोज़ा सहीह है ।

1571. अगि माह़े िमज़ान में िच्चा अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े िामलग हो र्जाए तो

ज़रूिी है कक िोज़ा िख़े औि अगि अज़ाऩे सबु ह क़े िाद िामलग हो तो उस हदन का

िोज़ा उस पि वाजर्जि नहीं है ल़ेककन अगि मस्


ु तहि िोज़ा िखऩे का इिादा कि

मलया हो तो इस सिू त में एहततयात क़ी बिना पि उस हदन क़े िोज़़े को पिू ा किना

ज़रूिी है।

1572. र्जो शख़्स मैतयत क़े िोज़़े िखऩे क़े मलय़े अर्जीि िना हो या उसक़े जज़म्म़े

कफ़्फ़ाि़े क़े िोज़ें हों अगि वह मस्


ु तहि िोज़़े िख़े तो कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन अगि

कज़ा िोज़़े ककसी क़े जज़म्म़े हों तो वह मस्


ु तहि िोज़़े नहीं िख सकता औि अगि

भल
ू कि मस्
ु तहि िोज़ा िख ल़े तो इस सिू त में अगि ज़ोहि स़े पहल़े याद आ र्जाए

तो उसका िोज़ा कल ्अदम हो र्जाता है औि वह अपनी नीयत वाजर्जि िोज़़े क़ी

र्जातनि मोड़ सकता है । औि अगि वह ज़ोहि क़े िाद मत


ु वज्र्जह हो तो एहततयात

505
क़ी बिना पि उसका िोज़ा िाततल है औि अगि उस़े मचिि क़े िाद याद आए तो

तो उसक़े िोज़़े का सहीह होना इश्काल स़े खाली नहीं।

1573. अगि माह़े िमज़ान क़े िोज़़े क़े अलावा कोई दस


ू िा मख़्सस
ू िोज़ा इंसान

पि वाजर्जि हो मसलन उसऩे मन्नत मानी हो कक एक मक


ु िक ि हदन को िोज़ा िख़ेगा

औि र्जान िझ
ू कि अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े नीयत न कि़े तो उसका िोज़ा िाततल है

औि अगि उस़े मालम


ू न हो कक उस हदन का िोज़ा उस पि वाजर्जि है या भल

र्जाए औि ज़ोहि स़े पहल़े उस़े याद आए तो अगि उसऩे कोई ऐसा काम न ककया

हो र्जो िोज़़े को िाततल किता हो औि िोज़़े क़ी नीयत कि ल़े तो उसका िोज़ा सहीह

है औि अगि ज़ोहि क़े िाद उस़े याद आए तो माह़े िमज़ान क़े िोज़़े में जर्जस

एहततयात का जज़क्र ककया गया है उसका ख़्याल िख़े। 1574. अगि कोई शख़्स

ककसी गैि मअ
ु य्यन वाजर्जि िोज़़े क़े मलय़े मसलन िोज़ा ए कफ़्फ़ािा क़े मलय़े ज़ोहि

क़े नज़दीक तक अमदन नीयत न कि़े तो कोई हिर्ज नहीं िजल्क अगि नीयत स़े

पहल़े मस
ु म्मम इिादा िखता हो कक िोज़ा नहीं िख़ेगा या मज़
ु बज़ि हो कक िोज़ा िख़े

या न िख़े तो अगि उसऩे कोई ऐसा काम न ककया हो र्जो िोज़़े को िाततल किता

हो औि ज़ोहि स़े पहल़े िोज़़े क़ी नीयत कि ल़े तो उसका िोज़ा सहीह है।

1575. अगि कोई काकफ़ि माह़े िमज़ान में ज़ोहि स़े पहल़े मस
ु लमान हो र्जाए

औि अज़ाऩे सबु ह स़े उस वक़्त तक कोई ऐसा काम न ककया हो र्जो िोज़़े को

िाततल किता हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक िोज़़े क़ी नीयत

506
कि़े औि िोज़़े को तमाम कि़े औि अगि हदन का िोज़ा न िख़े तो उसक़ी कज़ा

िर्जा लाए।

1576. अगि कोई िीमाि शख़्स माह़े िमज़ान क़े ककसी हदन में ज़ोहि स़े पहल़े

तन्दरु
ु स्त हो र्जाए औि उसऩे उस वक़्त तक कोई ऐसा काम न ककया हो र्जो िोज़़े

को िाततल किता हो तो नीयत कि क़े उस हदन का िोज़ा िखना ज़रूिी है औि

अगि ज़ोहि क़े िाद तन्दरु


ु स्त हो तो उस हदन का िोज़ा उस पि वाजर्जि नहीं है ।

1577. जर्जस हदन क़े िाि़े में इंसान को शक हो कक शािान क़ी आखखिी तािीख

है या िमज़ान क़ी पहली तािीख, उस हदन का िोज़ा िखना उस पि वाजर्जि नहीं है

औि अगि िोज़ा िखना चाह़े तो िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़़े क़ी नीयत नहीं कि

सकता ल़ेककन नीयत कि़े कक अगि िमज़ान है तो िमज़ान का िोज़ा है औि अगि

िमज़ान नहीं है तो कज़ा िोज़ा या उसी र्जैसा कोई औि िोज़ा है िईद नहीं क़ी

उसका िोज़ा सहीह हो ल़ेककन ि़ेहति यह है कक कज़ा िोज़़े वगैिा क़ी नीयत कि़े

औि अगि िाद में पता चल़े कक माह़े िमज़ान था तो िमज़ान का िोज़ा शम


ु ाि होगा

ल़ेककन अगि नीयत सीफ़क िोज़़े क़ी कि़े औि िाद में मालम
ू हो कक िमज़ान था ति

भी काफ़़ी है।

1578. अगि ककसी हदन क़े िाि़े में इंसान को शक हो कक शािान क़ी आखखिी

तािीख है या िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़ी पहली तािीख तो वह कज़ा या मस्
ु तहि या ऐस़े

507
ककसी औि िोज़़े क़ी नीयत कि क़े िोज़ा िख ल़े औि हदन में ककसी वक़्त उस़े पता

चल़े कक माह़े िमज़ान है तो ज़रूिी है कक माह़े िमज़ान क़े िोज़़े क़ी नीयत कि ल़े।

1579. अगि ककसी मअ


ु य्यन वाजर्जि िोज़़े क़े िाि़े में मसलन िमज़ानल
ु मि
ु ािक

क़े िोज़़े क़े िाि़े में इंसान मज़


ु बज़ि हो कक अपऩे िोज़़े को िाततल कि़े या न कि़े या

िोज़़े को िाततल किऩे का कस्द कि़े तो ख़्वाह उसऩे र्जो कस्द ककया हो उस़े तकक

कि द़े औि कोई ऐसा काम भी न कि़े जर्जस में िोज़ा िाततल होता हो उसका िोज़ा

एहततयात क़ी बिना पि िाततल हो र्जाता है।

1580. अगि कोई शख़्स र्जो मस्


ु तहि या ऐसा वाजर्जि िोज़ा मसलन कफ़्फ़ाि़े का

िोज़ा िख़े हुए हो जर्जसका वक़्त मअ


ु य्यन न हो ककसी ऐस़े काम का कस्द कि़े र्जो

िोज़़े को िाततल किता हो या मज़


ु बज़ि हो कक कोई ऐसा काम कि़े या न कि़े तो

अगि वह कोई ऐसा काम न कि़े औि वाजर्जि िोज़़े में ज़ोहि स़े पहल़े औि मस्
ु तहि

िोज़़े में गरु


ु ि स़े पहल़े िोज़़े क़ी नीयत कि ल़े तो उस का िोज़ा सहीह है । वह चीज़ें

र्जो िोज़़े को िाततल किती हैं

वो च़ीजें िोजे को बाततल कि दे त़ी है ।

1581. चन्द चीज़ें िोज़़े को िाततल कि द़े ती है ः-

1. खाना औि पीना।

2. जर्जमाअ किना।

508
3. इस्त़ेम्ना- यानी इंसान अपऩे साथ या ककसी दस
ू ि़े क़े साथ जर्जमाअ क़े

अलावा ऐसा फ़़ेल कि़े जर्जसक़े नतीर्ज़े में मनी खारिर्ज हो।

4. खद
ु ा ए तआला पैगम्िि़े अकिम (सल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम)

औि आइम्मा ए ताहहिीन (अ0) स़े कोई झठ


ू िात मंसि
ू किना।

5. गि
ु ाि हल्क तक पहुाँचाना।

6. मश्हूि कौल क़ी बिना पि पिू ा सि पानी में डुिाना।

7. अज़ाऩे सबु ह तक र्जनाित या है ज़ औि तनफ़ास क़ी हालत में िहना।

8. ककसी सय्याल चीज़ स़े हुक़्ना (एतनमा) किना।

9. कै किना।

इन मबु तलात क़े तफ़्सीली अहकाम

1.खाना औि प़ीना

1582. अगि िोज़ादाि इस अम्र क़ी र्जातनि मत


ु वज्र्जह होत़े हुए कक िोज़़े स़े है

कोई चीज़ र्जानिझ


ू कि खाए या वपय़े तो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है । कता ए

नज़ि इस स़े कक वह चीज़ ऐसी हो जर्जस़े उमम


ू न खाया या वपया र्जाता हो मसलन

िोटी औि पानी या ऐसी हो जर्जस़े उमम


ू न खाया या वपया न र्जता हो मसलन

ममट्टी औि दिख़्त का शीिा ख़्वाह कम हो या ज़्यादा हत्ता कक अगि िोज़ादाि

509
ममसवाक माँह
ु स़े तनकाल़े औि दोिािा माँह
ु में ल़े र्जाए औि उसक़ी तिी तनगल ल़े

ति भी िोज़ा िाततल हो र्जाता है मसवाए इस सिू त क़े कक ममसवाक क़ी तिी लआ


ु ि़े

दहन में र्ल


ु ममल कि इस तिह खत्म हो र्जाए कक उस़े ि़ेरुनी तिी न कहा र्जा

सक़े।

1583. र्जि िोज़ादाि खाना खा िहा हो अगि उस़े मालम


ू हो र्जाए कक सबु ह हो

गई है तो ज़रूिी है कक र्जो लक़्


ु मा माँह
ु में हो उस़े उगल द़े औि अगि र्जान िझ

कि वह लक
ु मा तनगल ल़े तो उसका िोज़ा िाततल है । औि उस हुक्म क़े मत
ु ाबिक

जर्जसका जज़क्र िाद में होगा उस पि कफ़्फ़ािा भी वाजर्जि है।

1584. अगि िोज़ादाि गलती स़े कोई चीज़ खा ल़े या पी ल़े तो उसका िोज़ा

िाततल नहीं होता।

1585. र्जो इंर्ज़ेक्शन उज़्व को ि़ेहहस कि द़े त़े हैं या ककसी औि मकसद क़े मलय़े

इस्त़ेमाल होत़े हैं अगि िोज़ादाि उन्हें इस्त़ेमाल कि़े तो कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन

ि़ेहति यह है कक उन इंर्ज़ेक्शनों स़े पिह़े ज़ ककया र्जाए र्जो दवा औि चगज़ा क़े

िर्जाय इस्त़ेमाल होत़े हैं।

1586. अगि िोज़ादाि दांतों क़ी ि़े खों में िाँसी हुई कोई चीज़ अमदन तनगल ल़े

तो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है ।

1587. र्जो शख़्स िोज़ा िखना चाहता हो उसक़े मलय़े अज़ाऩे सबु ह स़े पहल़े दांतों

में खखलाल किना ज़रूिी नहीं है । ल़ेककन अगि उस़े इल्म हो कक र्जो चगज़ा दांतों क़े

510
ि़े खों में िह गई है वह हदन क़े वक़्त प़ेट में चली र्जाय़ेगी तो खखलाल किना ज़रूिी

है ।

1588. मंह
ु का पानी नीगलऩे स़े िोज़ा िाततल नहीं होता ख़्वाह तश
ु ़ी वगैिा क़े

तसव्विु स़े ही मंह


ु में पानी भि आया हो।

1589. सि औि सीऩे का िलगम र्जि तक मंह


ु क़े अंदि वाल़े हहस्स़े तक न

पहुंच़े उस़े तनगलऩे में कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन अगि मंह
ु में आ र्जाए तो एहततयात़े

वाजर्जि है कक उस़े थक
ू द़े ।

1590. अगि िोज़ादाि को इतनी प्यास लग़े कक उस़े प्यास स़े मि र्जाऩे का

खौफ़ हो र्जाए या उस़े नक़्


ु सान का अन्द़े शा हो या इतनी सख्ती उठाना पड़़े र्जो उस

क़े मलय़े नाकाबिल़े िदाकश्त हो तो इतना पानी पी सकता है कक उन उमिू का खौफ़

खत्म हो र्जाए ल़ेककन उसका िोज़ा िाततल हो र्जाय़ेगा औि अगि माह़े िमज़ान हो

तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उसस़े ज़्यादा पानी न वपय़े औि

हदन क़े िाक़ी हहस्स़े में वह काम किऩे स़े पिह़े ज़ कि़े जर्जसस़े िोज़ा िाततल हो

र्जाता है ।

1591. िच्च़े या परिन्द़े को खखलाऩे क़े मलय़े चगज़ा का चिाना या चगज़ा का

चखना औि इसी तिह क़े काम किना जर्जस में चगज़ा उमम
ू न हल्क तक नहीं

पहुंचती ख़्वाह वह इवत्तफ़ाकन हल्क तक पहुंच र्जाए तो िोज़़े को िाततल नहीं किती,

ल़ेककन अगि इंसान शरू


ू स़े र्जानता हो कक यह चगज़ा हल्क तक पहुंच र्जाय़ेगी तो

511
उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है औि ज़रूिी है कक उसक़ी कज़ा िर्जा लाए औि

कफ़्फ़ािा भी उस पि वाजर्जि है ।

1592. इंसान (मअमल


ू ी) नकाहत क़ी वर्जह स़े िोज़ा नहीं छोड़ सकता, ल़ेककन

अगि नकाहत इस हद तक हो कक उमम


ू न िदाकश्त न हो सक़े तो किि िोज़ा छोड़ऩे

में कोई हिर्ज नहीं है ।

2.जजमाअ (सम्भोग)

1593. जर्जमाअ िोज़़े को िाततल कि द़े ता है ख़्वाह उज़्व़े तनासल


ु सप
ु ािी तक ही

दाखखल हो औि मनी भी खारिर्ज न हो।

1594. अगि आला ए तनासल


ु सप
ु ािी स़े कम दाखखल हो औि मनी भी खारिर्ज

न हो तो िोज़ा िाततल नहीं होता ल़ेककन जर्जस शख़्स क़ी सप


ु ािी कटी हुई हो अगि

वह सप
ु ािी क़ी ममक़्दाि स़े कमति ममक़्दाि दाखखल कि़े तो अगि यह कहा र्जाए कक

उसऩे हमबिस्तिी क़ी है तो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाय़ेगा।

1595. अगि कोई शख़्स अमदन जर्जमाअ का इिादा कि़े औि किि शक कि़े कक

सप
ु ािी क़े ििािि दख
ु ल
ू हुआ था या नहीं तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उसका

िोज़ा िाततल है औि ज़रूिी है कक उस िोज़़े क़ी कज़ा िर्जा लाए ल़ेककन कफ़्फ़ािा

वाजर्जि नहीं है ।

512
1596. अगि कोई शख़्स भल
ू र्जाए कक िोज़़े स़े है औि जर्जमाअ कि़े या उस़े

जर्जमाअ पि इस तिह मर्जििू ककया र्जाए कक उसका इजख़्तयाि िाक़ी न िह़े तो

उसका िोज़ा िाततल नहीं होगा अलित्ता अगि जर्जमाअ क़ी हालत में उस़े याद आ

र्जाए कक िोज़़े स़े है या मर्जििू ी खत्म हो र्जाए तो ज़रूिी है कक फ़ौिन तकक कि़े औि

अगि ऐसा न कि़े तो उसका िोज़ा िाततल है ।

3.इस्तेम्ना (हस्तमैथुन)

1597. अगि िोज़ादाि इस्त़ेम्ना कि़े (इस्त़ेमना क़े मअनी मस ्अला 1581 में

िताए र्जा चक
ु ़े हैं) तो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है।

1598. अगि ि़े इजख़्तयािी क़ी हालत में ककसी क़ी मनी खारिर्ज हो र्जाए तो

उसका िोज़ा िाततल नहीं है।

1599. अगिच़े िोज़ादाि को इल्म हो कक अगि हदन में सोय़ेगा तो उस़े

एहततलाम हो र्जाय़ेगा यानी सोत़े में उसक़ी मनी खारिर्ज हो र्जाय़ेगी ति भी उसक़े

मलय़े सोना र्जाइज़ है ख़्वाह न सोऩे क़ी वर्जह स़े उस़े कोई तक्लीफ़ न भी हो औि

उस़े एहततलाम हो र्जाए तो उसका िोज़ा िाततल नहीं होता।

1600. अगि िोज़ादाि मनी खारिर्ज होत़े वक़्त नीन्द स़े ि़ेदाि हो र्जाए तो उस

पि यह वाजर्जि नहीं कक मनी को तनकलऩे स़े िोक़े।

513
1601. जर्जस िोज़ादाि को एहततलाम हो गया हो तो वह प़ेशाि कि सकता है

ख़्वाह उस़े यह इल्म हो कक प़ेशाि किऩे स़े िाक़ी मांदा मनी नाली स़े िाहि आ

र्जाय़ेगी।

1602. र्जि िोज़ादाि को एहततलाम हो र्जाए उस़े मालम


ू हो कक मनी नाली में िह

गई है औि वह गस्
ु ल स़े पहल़े प़ेशाि नहीं कि़े गा तो गस्
ु ल क़े िाद मनी उस क़े

जर्जस्म स़े खारिर्ज नहीं होगी तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक गस्
ु ल स़े पहल़े

प़ेशाि कि़े ।

1603. र्जो शख़्स मनी तनकालऩे क़े इिाद़े स़े छ़े ड़छाड़ औि हदललगी कि़े तो

ख़्वाह मनी न भी तनकल़े तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक िोज़़े को

तमाम कि़े औि उसक़ी कज़ा भी िर्जा लाए।

1604. अगि िोज़ादाि मनी तनकालऩे क़े इिाद़े क़े िगैि ममसाल क़े तौि पि

अपनी िीवी स़े छ़े ड़छाड़ औि हाँ सी मज़ाक कि़े औि उस़े इत्मीनान हो कक मनी

खारिर्ज नहीं होगी तो अगिच़े इवत्तफ़ाकन मनी खारिर्ज हो र्जाए उसका िोज़ा सहीह

है । अलित्ता अगि उस़े इत्मीनान न हो तो उस सिू त में र्जि मनी खारिर्ज होगी तो

उसका िोज़ा िाततल हो र्जाय़ेगा।

514
4. ख़द
ु ा औि िसल
़ू (स0) पि बोह्तान बााँधना

1605. अगि िोज़ादाि ज़िान स़े या मलख कि या इशाि़े स़े या ककसी औि तिीक़े

स़े अल्लाह तआला या िसल


ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम या

आपक़े (िि हक) र्जा नशीनों में स़े ककसी स़े र्जानिझ
ू कि कोई झठ
ू िात मंसि

कि़े तो अगिच़े वह फ़ौिन कह द़े कक मैंऩे झठ


ू कहा है या तौिा कि ल़े ति भी

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उसका िोज़ा िाततल है औि एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी

बिना पि हज़ित फ़ाततमा ज़हिा सलवातुल्लाह़े अलैहा औि तमाम अंबिया ए

मस
ु ल
क ीन (अ0 स0) औि उन क़े र्जा नशीनों स़े भी कोई झठ
ू िात मंसि
ू किऩे का

यही हुक्म है ।

1606. अगि (िोज़ादाि) कोई ऐसी रिवायत नक़्ल किना चाह़े जर्जसक़े कतई होऩे

क़ी दलील न हो औि उसक़े िाि़े में उस़े यह इल्म न हो कक सच है या झठ


ू तो

एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक जर्जस शख़्स स़े वह रिवायत हो या

जर्जस ककताि में मलखी द़े खी हो उसका हवाला द़े ।

1607. अगि ककसी रिवायत क़े िाि़े में एततकाद िखता हो कक वह वाकई कौल़े

खद
ु ा या कौल़े पैगम्िि स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम है औि उस़े

अल्लाह तआला या पैगम्िि़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम स़े

मंसि
ू कि़े औि िाद में मालम
ू हो कक यह तनस्ित सही नहीं थी तो उसका िोज़ा

िाततल नहीं होगा।

515
1608. अगि िोज़ादाि ककसी चीज़ क़े िाि़े में यह र्जानत़े हुए कक झठ
ू है उस़े

अल्लाह तआला औि िसल


ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम स़े

मंसि
ू कि़े औि िाद में उस़े पता चल़े कक र्जो कुछ उसऩे कहा था वह दरु
ु स्त था तो

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक िोज़़े को तमाम कि़े औि उसक़ी कज़ा

भी िर्जा लाए।

1609. अगि िोज़ादाि ककसी ऐस़े झठ


ू को र्जो खुद िोज़ादाि ऩे नहीं िजल्क ककसी

दस
ू ि़े ऩे गढ़ा हो र्जानिझ
ू कि अल्लाह तआला या िसल
ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े

व आल़ेही व सल्लम या आपक़े (ििहक) र्जानशीनों स़े मंसि


ू कि द़े तो एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि उसका िोज़ा िाततल हो र्जाय़ेगा ल़ेककन अगि जर्जसऩे झठ
ू गढ़ा

हो उसका कौल नक़्ल कि़े तो कोई हिर्ज नहीं।

1610. अगि िोज़ादाि स़े सवाल ककया र्जाए कक क्या िसल


ू ़े मोहतशम

स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम ऩे ऐसा फ़िमाया है औि वह अमदन र्जहााँ

र्जवाि नहीं द़े ना चाहहय़े वहााँ इस्िात में द़े औि र्जहााँ इस्िात में द़े ना चाहहय़े वहााँ

अमदन नहीं में द़े तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उसका िोज़ा िाततल हो

र्जाता है ।

1611. अगि कोई शख़्स अल्लाह तआला या िसल


ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े

व आल़ेही व सल्लम का कौल़े दरु


ु स्त नक़्ल कि़े औि िाद में कह़े कक मैंऩे झठ

कहा है या िात को झठ
ू िात उनस़े मंसि
ू कि़े औि दस
ू ि़े हदन र्जिकक िोज़ा िखा

516
हुआ हो कह़े कक र्जो कुछ मैंऩे गज़
ु श्ता िात कहा था वह दरु
ु स्त है तो उसका िोज़ा

िाततल हो र्जाता है ल़ेककन अगि वह रिवायत क़े (सहीह या गलत होऩे क़े) िाि़े में

िताए (तो उसका िोज़ा िाततल नहीं होता)।

5. गब
ु ाि को हल्क तक पहुंचाना

1612. एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि कसीफ़ गि


ु ाि का हल्क तक पहुंचाना िोज़़े

को िाततल कि द़े ता है ख़्वाह गि


ु ाि ककसी ऐसी चीज़ का हो जर्जसका खाना हलाल

हो मसलन आटा या ककसी ऐसी चीज़ का हो जर्जसका खाना हिाम हो मसलन

ममट्टी।

1613. अक़्वा यह है कक गैि़े कसीफ़ गि


ु ाि हल्क तक पहुंचऩे स़े िोज़ा िाततल हो

र्जाता है ।

1614. अगि हवा क़ी वर्जह स़े गि


ु ाि पैदा हो औि इंसान मत
ु वज्र्जह होऩे औि

एहततयात कि सकऩे क़े िावर्जूद एहततयात न कि़े औि गि


ु ाि उसक़े हल्क तक

पहुंच र्जाए तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है ।

1615. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक िोज़ादाि मसग्ऱेट औि तम्िाकू वगैिा का धव


ु ां

भी हल्क तक न पहुंचाए।

1616. अगि इंसान एहततयात न कि़े औि गि


ु ाि या धव
ु ां वगैिा हल्क में चला

र्जाए तो अगि उस़े यक़ीन या इत्मीनान था कक यह चीज़ें हल्क में न पहुंचेंगी तो

517
उसका िोज़ा सहीह है ल़ेककन उस़े गुमान था कक यह हल्क तक नहीं पहुंचेंगी तो

ि़ेहति यह है कक िोज़ा क़ी कज़ा िर्जा लाए।

1617. अगि कोई शख़्स यह भल


ू र्जाए कक िोज़़े स़े है एहततयात न कि़े या ि़े

इजख़्तयाि गि
ु ाि वगैिा उसक़े हल्क तक पहुंच र्जाए तो उसका िोज़ा िाततल नहीं

होता।

6. सि को पाऩी में डुबोना

1618. अगि िोज़ादाि र्जानिझ


ू कि सािा सि पानी में डुिो द़े ख़्वाह उस का

िाक़ी िदन पानी स़े िाहि िह़े मश्हूि कौल क़ी बिना पि उसका िोज़ा िाततल हो

र्जाता है ल़ेककन िईद नहीं कक ऐसा किना िोज़़े को िाततल न कि़े । अगिच़े ऐसा

किऩे में शदीद किाहत है औि मजु म्कन हो तो उसस़े एहततयात किना ि़ेहति है ।

1619. अगि िोज़ादाि अपऩे तनस्फ़ सि को एक दफ़् आ औि िाक़ी तनस्फ़ सि

को दस
ू िी दफ़् आ पानी में डुिोए तो उसका िोज़ा सहीह होऩे में कोई इश्काल नहीं

है ।

1620. अगि सािा सि पानी में डूि र्जाए तो ख़्वाह कुछ िाल पानी स़े िाहि भी

िह र्जायें तो उसका हुक्म भी मस ्अला 1618 क़ी तिह है ।

518
1621. पानी क़े अलावा दस
ू िी सैयाल चीज़ों मसलन दध
ू में सि डुिोऩे स़े िोज़़े

को कोई ज़िि नहीं पहुंचता औि मज़


ु ाफ़ पानी में भी सि डुिोऩे का भी यही हुक्म

है ।

1622. अगि िोज़ादाि ि़ेइजख़्तयाि पानी में चगि र्जाए औि उसका पिू ा सि पानी

में डूि र्जाए या भल


ू र्जाए कक िोज़़े स़े है औि सि पानी में डुिो ल़े तो उसक़े िोज़़े

में कोई इश्काल नहीं है ।

1623. अगि कोई िोज़ादाि यह ख़्याल कित़े हुए अपऩे आप को पानी में चगिा

द़े कक उसका सि पानी में नहीं डूि़ेगा ल़ेककन उसका पिू ा सि पानी में डूि र्जाए तो

उसक़े िोज़़े में बिल्कुल इश्काल नहीं है ।

1624. अगि कोई शख़्स भल


ू र्जाए कक िोज़़े स़े है औि सि पानी में डुिो द़े तो

अगि पानी में डुि़े हुए उस़े याद आए कक िोज़़े स़े है तो ि़ेहति यह है कक िोज़ादाि

फ़ौिन अपना सि पानी स़े िाहि तनकाल़े औि अगि न तनकाल़े तो उसका िोज़ा

िाततल नहीं होगा।

1625. अगि कोई शख़्स िोज़ादाि क़े सि को ज़ििदस्ती पानी में डुिो द़े तो

उसक़े िोज़़े में कोई इश्काल नहीं है ल़ेककन र्जिकक अभी वह पानी में है दस
ू िा शख़्स

अपना हाथ हटा ल़े तो ि़ेहति यह है कक फ़ौिन अपना सि पानी स़े िाहि तनकाल

ल़े।

519
1626. अगि िोज़ादाि गस्
ु ल क़ी नीयत स़े सि पानी में डुिो द़े तो उसका िोज़ा

औि गस्
ु ल दोनों सहीह हैं।

1627. अगि कोई िोज़ादाि ककसी को डूिऩे स़े िचाऩे क़ी खातति सि को पानी

में डुिो द़े ख़्वाह उस शख़्स को िचाना वाजर्जि ही क्यों न हो तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक िोज़़े क़ी कज़ा िर्जा लाए।

7. अजाने सुब्ह तक जनाबत, है ज औि तनफ़ास की हालत में िहना

1628. अगि र्जुनि


ु शख़्स माह़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक में र्जानिझ
ू कि अज़ाऩे सबु ह

तक गस्
ु ल न कि़े तो उसका िोज़ा िाततल है औि जर्जस शख़्स का वर्जीफ़ा तयम्मम

हो औि वह र्जानिझ
ू कि तयम्मम
ु न कि़े तो उसका िोज़ा भी िाततल है औि माह़े

िमज़ान क़ी कज़ा का हुक्म भी यही है।

1629. अगि र्जन


ु ि
ु शख़्स माह़े िमज़ान क़े िोज़ों औि उनक़ी कज़ा क़े अलावा

उन वाजर्जि िोर्जों में जर्जनका वक़्त माह़े िमर्जान क़ी िोज़ों क़ी तिह मअ
ु य्यन है

र्जानिझ
ू कि अज़ाऩे सबु ह तक गस्
ु ल न कि़े तो अज़हि यह है कक उसका िोज़ा

सहीह है।

1630. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़ी ककसी िात में र्जुनि
ु हो

र्जाए तो अगि वह अमदन गस्


ु ल न कि़े हत्ता कक वक़्त तंग हो र्जाए तो ज़रूिी है

520
कक तयम्मम
ु कि़े औि िोज़ा िख़े औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उसक़ी कज़ा

भी िर्जा लाए।

1631. अगि र्जन


ु ि
ु शख़्स माह़े िमज़ान में गस्
ु ल किना भल
ू र्जाए औि एक हदन

क़े िाद उस़े याद आए तो ज़रूिी है कक उस हदन का िोज़ा कज़ा कि़े औि अगि

चन्द हदनों क़े िाद याद आए तो उतऩे हदनों क़े िोर्जों क़ी कज़ा कि़े जर्जतऩे हदनों क़े

िाि़े में उस़े यक़ीन हो कक वह र्जुनि


ु या मसलन अगि उस़े यह इल्म न हो कक

तीन हदन र्जुनि


ु िहा था या चाि हदन तो ज़रूिी है कक तीन हदनों क़े िोर्जों क़ी

कज़ा कि़े ।

1632. अगि एक ऐसा शख़्स अपऩे आप को र्जुनि


ु कि ल़े जर्जसक़े पास माह़े

िमज़ान क़ी िात में गस्


ु ल औि तयम्मम
ु में स़े ककसी क़े मलय़े भी वक़्त न हो तो

उसका िोज़ा िाततल है औि उस पि कज़ा औि कफ़्फ़ाि दोनों वाजर्जि हैं।

1633. अगि िोज़ादाि यह र्जानऩे क़े मलय़े र्जुस्तर्जू कि़े कक उसक़े पास वक़्त है

कक नहीं औि गम
ु ान कि़े कक उसक़े पास गस्
ु ल क़े मलय़े वक़्त है औि अपऩे आप

को र्जन
ु ि
ु कि ल़े औि िाद में उस़े पता चल़े कक वक़्त तंग था औि तयम्मम
ु कि

क़े िोज़ा िख़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उस हदन क़े िोज़़े

क़ी कज़ा कि़े ।

1634. र्जो शख़्स माह़े िमज़ान क़ी ककसी िात को र्जुनि


ु हो औि र्जानता हो कक

अगि सोय़ेगा तो सबु ह तक ि़ेदाि न होगा, उस़े िगैि गस्


ु ल ककय़े नहीं सोना चाहहय़े

521
औि अगि वह गस्
ु ल किऩे स़े पहल़े अपनी मिज़ी स़े सो र्जाए औि सबु ह तक ि़ेदाि

न हो तो उसका िोज़ा िाततल है औि कज़ा औि कफ़्फ़ािा दोनों उस पि वाजर्जि हैं।

1635. र्जि र्जन


ु ि
ु माह़े िमज़ान क़ी िात में सो कि र्जाग उठ़े तो एहततयत़े

वाजर्जि यह है कक अगि वह ि़ेदाि होऩे क़े िाि़े में मत्ु मइन हो तो गस्
ु ल स़े पहल़े न

सोए अगिच़े इस िात का एहततमाल हो कक अगि दोिािा सो गया तो सबु ह क़ी

अज़ान स़े पहल़े ि़ेदाि हो र्जाय़ेगा।

1636. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ान क़ी ककसी िात में र्जुनि
ु हो औि यक़ीन

िखता हो कक अगि सो गया तो सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े ि़ेदाि हो र्जाय़ेगा औि

उसका मस
ु म्मम इिादा हो कक ि़ेदाि होऩे क़े िाद गस्
ु ल कि़े गा औि इस इिाद़े क़े

साथ सो र्जाए औि अज़ान तक सोता िह़े तो उसका िोज़ा सहीह है । औि अगि कोई

शख़्स सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े ि़ेदाि होऩे क़े िाि़े में मत्ु मइन हो तो उस क़े मलए

भी यही हुक्म है ।

1637. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ान क़ी ककसी िात में र्जन
ु ि
ु हो औि उस़े

इल्म हो या एहततमाल हो कक अगि सो गया तो सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े ि़ेदाि

हो र्जाय़ेगा औि वह इस िात स़े गाकफ़ल हो कक ि़ेदाि होऩे क़े िाद उस पि गस्


ु ल

किना ज़रूिी है तो उस सिू त में र्जिकक वह सो र्जाए औि सबु ह क़ी अज़ान तक

सोया िह़े एहततयात क़ी बिना पि उस पि कज़ा वाजर्जि हो र्जाती है। 1638. अगि

कोई शख़्स माह़े िमज़ान क़ी ककसी िात में र्जुनि


ु हो औि उस़े यक़ीन हो या

522
एहततमाल इस िात का हो कक अगि वह सो गया तो सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े

ि़ेदाि हो र्जाय़ेगा औि वह ि़ेदाि होऩे क़े िाद गस्


ु ल न किना चाहता हो तो उस

सिू त में र्जि कक वह सो र्जाए औि ि़ेदाि न हो उसका िोज़ा िाततल है औि कज़ा

औि कफ़्फ़ािा उस क़े मलय़े लाजज़म हैं। औि इसी तिह अगि ि़ेदाि होऩे क़े िाद उस़े

तिद्दद
ु हो कक गस्
ु ल कि़े या न कि़े तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि यही हुक्म

है । 1639. अगि र्जन


ु ि
ु शख़्स माह़े िमज़ान क़ी ककसी िात में सो कि र्जाग उठ़े

औि उस़े यक़ीन हो या इस िात का एहततमाल हो कक अगि दोिािा सो गया तो

सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े ि़ेदाि हो र्जाय़ेगा औि वह मस


ु म्मम इिादा भी िखता हो

कक ि़ेदाि होऩे क़े िाद गस्


ु ल कि़े गा औि दोिािा सो र्जाए औि अज़ान तक ि़ेदाि न

हो तो ज़रूिी है कक ितौि़े सज़ा उस हदन का िोज़ा कज़ा कि़े । औि अगि दस


ू िी

नीन्द स़े ि़ेदाि हो र्जाय़े औि तीसिी दफ़् आ सो र्जाए औि सबु ह क़ी अज़ान तक

ि़ेदाि न हो तो ज़रूिी है कक उस हदन क़े िोज़़े क़ी कज़ा कि़े औि एहततयात़े

मस्
ु तहि क़ी बिना पि कफ़्फ़ािा भी द़े ।

1640. र्जि इंसान को नीन्द में एहततलाम हो र्जाए तो पहली, दस


ू िी औि तीसिी

नीन्द स़े मिु ाद वह नीन्द है कक इंसान (एहततलाम स़े) र्जागऩे क़े िाद सोए ल़ेककन

वह नीन्द जर्जसमें एहततलाम हुआ पहली नीन्द शम


ु ाि नहीं होती।

1641. अगि ककसी िोज़ादाि को हदन में एहततलाम हो र्जाए तो उस पि फ़ौिन

गस्
ु ल किना वाजर्जि नहीं।

523
1642. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ान में सबु ह क़ी अज़ान क़े िाद र्जाग़े औि

यह द़े ख़े कक उस़े एहततलाम हो गया है तो अगिच़े उस़े मालम


ू हो कक यह

एहततलाम अज़ान स़े पहल़े हुआ है उसका िोज़ा सहीह है ।

1643. र्जो शख़्स िमज़ानल


ु मि
ु ािक का कज़ा िोज़ा िखना चाहता हो औि वह

सबु ह क़ी अज़ान तक र्जुनि


ु िह़े तो अगि उसका इस हालत में िहना अमदन हो तो

उस हदन का िोज़ा नहीं िख सकता औि अमदन न हो तो िोज़ा िख सकता है

अगिच़े एहततयात यह है कक िोज़ा न िख़े।

1644. र्जो शख़्स िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े कज़ा िोज़़े िखना चाहता हो अगि वह

सबु ह क़ी अज़ान क़े िाद ि़ेदाि हो औि द़े ख़े कक उस़े एहततलाम हो गया है औि

र्जानता हो कक यह एहततलाम उस़े सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े हुआ है तो अक़्वा क़ी

बिना पि उस हदन माह़े िमज़ान क़े िोज़़े क़ी कज़ा क़ी नीयत स़े िोज़ा िख सकता

है ।

1645. अगि माह़े िमज़ान क़े कज़ा िोज़ों क़े अलावा ऐस़े वाजर्जि िोज़ों में कक

जर्जनका वक़्त मअ
ु य्यन नहीं है मसलन कफ़्फ़ाि़े क़े िोज़़े में कोई शख़्स अमदन

अज़ाऩे सबु ह तक र्जन


ु ि
ु िह़े तो अज़हि यह है कक उसका िोज़ा सहीह है ल़ेककन

ि़ेहति है कक उस हदन क़े अलावा ककसी दस


ू ि़े हदन िोज़ा िख़े।

1646. अगि िमज़ान क़े िोर्जों में औित सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े है ज़ या

तनफ़ास स़े पाक हो र्जाए औि अमदन गस्


ु ल न कि़े या वक़्त तंग होऩे क़ी सिू त में

524
– अगिच़े उसक़े इजख़्तयाि में हो औि िमज़ान का िोज़ा हो – तयम्मम
ु न कि़े तो

उसका िोज़ा िाततल है औि एहततयात क़ी बिना पि माह़े िमज़ान क़े कज़ा िोज़़े का

भी यही हुक्म है (यानी उसका िोज़ा िाततल है ) औि इन दो क़े अलावा दीगि सिू तों

में िाततल नहीं अगिच़े अहवत यह है कक गस्


ु ल कि़े । माह़े िमज़ान में जर्जस औित

क़ी शिई जज़म्म़ेदािी है ज़ या तनफ़ास क़े गस्


ु ल क़े िदल़े तयम्मम
ु हो औि इसी तिह

एहततयात क़ी बिना पि िमज़ान क़ी कज़ा में अगि र्जानिझ


ू कि अज़ाऩे सबु ह स़े

पहल़े तयम्मम
ु न कि़े तो उसका िोज़ा िाततल है ।

1647. अगि कोई औित माह़े िमज़ान में सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े है ज़ या

तनफ़ास स़े पाक हो र्जाए औि गस्


ु ल क़े मलय़े वक़्त न हो तो ज़रूिी है कक तयम्मम

कि़े औि सबु ह क़ी अज़ान तक ि़ेदाि िहना ज़रूिी नहीं है । जर्जस र्जुनि
ु शख़्स का

वज़ीफ़ा तयम्मम
ु हो उसक़े मलय़े भी यही हुक्म है ।

1648. अगि कोई औित माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में सबु ह क़ी अज़ान क़े नज़्दीक

है ज़ या तनफ़ास स़े पाक हो र्जाए औि गस्


ु ल या तयम्मम
ु ककसी क़े मलय़े वक़्त

िाक़ी न हो तो उसका िोज़ा सहीह है ।

1649. अगि कोई औित सबु ह क़ी अज़ान क़े िाद है ज़ या तनफ़ास क़े खून स़े

पाक हो र्जाए या हदन में उस़े हैज़ या तनफ़ास का खून आ र्जाए तो अगिच़े यह

खून मचिि क़े किीि ही क्यों न आए उसका िोज़ा िाततल है ।

525
1650. अगि औित है ज़ का तनफ़ास का गस्
ु ल किना भल
ू र्जाए औि उस़े एक

हदन या कई हदन क़े िाद याद आए तो र्जो िोज़़े उसऩे िख़े हों सहीह हैं।

1651. अगि औित माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में सबु ह क़ी अज़ान स़े पहल़े है ज़ या

तनफ़ास स़े पाक हो र्जाए औि गस्


ु ल किऩे में कोताही कि़े औि सबु ह क़ी अज़ान

तक गस्
ु ल न कि़े औि वक़्त तंग होऩे क़ी सिू त में तयम्मम
ु भी न कि़े तो उसका

िोज़ा िाततल है ल़ेककन अगि कोताही न कि़े मसलन मंत


ु जज़ि हो कक ज़नाना

हम्माम मय
ु स्सि आ र्जाए ख़्वाह उस मद्
ु दत में तीन दफ़् आ सोए औि सबु ह क़ी

अज़ान तक गस्
ु ल न कि़े औि तयम्मम
ु किऩे में भी कोताही न कि़े तो उसका

िोज़ा सहीह है ।

1652. र्जो औित इजस्तहाज़ा ए कसीिा क़ी हालत में हो अगि वह अपऩे गस्
ु लों

को उस तफ़्सील क़े साथ न िर्जा लाए जर्जसका जज़क्र मस ्अला 402 में ककया गया

है तो उसका िोज़ा सहीह है । ऐस़े ही इजस्तहाज़ा ए मत


ु वजस्सता में अगिच़े औित

गस्
ु ल न भी कि़े , उसका िोज़ा सहीह है ।

1653. जर्जस शख़्स ऩे मैतयत को मस ककया हो यानी अपऩे िदन का कोई

हहस्सा मैतयत क़े िदन स़े छुआ हो वह गस्


ु ल़े मस़े मैतयत क़े िगैि िोज़ा िख सकता

है अगि िोज़़े क़ी हालत में भी मैतयत को मस कि़े तो उसका िोज़ा िाततल नहीं

होता।

526
8. हुक़्ना लेना

1654. सैयाल चीज़ स़े हुक़्ना (एतनमा) अगिच़े ि अमि़े मर्जििू ी औि इलार्ज क़ी

गिज़ स़े मलया र्जाए िोज़़े को िाततल कि द़े ता है ।

9. उल्टी किना

1655. अगि िोज़ादाि र्जानिझ


ू कि कै (उल्टी) कि़े तो अगिच़े वह िीमािी वगैिा

क़ी वर्जह स़े ऐसा किऩे पि मर्जििू हो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है ल़ेककन

अगि सहवन या ि़े इजख़्तयाि हो कि कै कि़े तो कोई हिर्ज नहीं।

1656. अगि कोई शख़्स िात को ऐसी चीज़ खा ल़े जर्जसक़े िाि़े में मालम
ू हो कक

उस क़े खाऩे क़ी वर्जह स़े हदन में ि़े इजख़्तयाि कै आय़ेगी तो एहततयात़े मस्
ु तहि

यह है कक उस हदन का िोज़ा कज़ा कि़े ।

1657. अगि िोज़ादाि कै िोक सकता हो औि ऐसा किना उसक़े मलय़े मजु ज़ि

औि तक्लीफ़ का िाइस न हो तो ि़ेह्ति यह है कक कै को िोक़े। 1658. अगि

िोज़ादाि क़े हल्क में मक्खी चली र्जाए या चन


ु ांच़े वह इस हद तक अन्दि चली गई

हो कक उसक़े नीच़े ल़े र्जाऩे को तनगलना न कहा र्जाए तो ज़रूिी नहीं कक उस़े िाहि

तनकाला र्जाए औि उसका िोज़ा सहीह है ल़ेककन अगि मक्खी काफ़़ी हद तक अन्दि

न गई हो तो ज़रूिी है कक िाहि तनकाल़े अगिच़े उसको कै कि क़े ही तनकालऩे पड़़े

527
मगि यह कक कै किऩे में िोज़ादाि को ज़िि औि तक्लीफ़ न हो औि अगि वह कै

न कि़े औि उस़े तनगल ल़े तो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाय़ेगा।

1659. अगि िोज़ादाि सहवन कोई चीज़ तनगल ल़े औि उसक़े प़ेट में पहुंचऩे स़े

पहल़े उस़े याद आ र्जाए कक िोज़़े स़े है तो उस चीज़ का तनकालना लाजज़मी नहीं

औि उसका िोज़ा सहीह है ।

1660. अगि ककसी िोज़ादाि को यक़ीन हो कक डकाि ल़ेऩे क़ी वर्जह स़े कोई

चीज़ उसक़े हल्क स़े िाहि आ र्जाय़ेगी तो एहततयात क़ी बिना पि उस़े र्जानिझ
ू कि

डकाि नहीं ल़ेनी चाहहए ल़ेककन उस़े यक़ीन न हो तो कोई हिर्ज नहीं।

1661. अगि िोज़ादाि डकाि ल़े औि कोई चीज़ उसक़े हल्क या मंह
ु में आ र्जाए

तो ज़रूिी है कक उस़े उगल द़े औि अगि वह चीज़ ि़ेइजख़्तयाि प़ेट में चली र्जाए तो

उसका िोज़ा सहीह है ।

उन च़ीजों के अहकाम जो िोजे को बाततल कित़ी हैं।

1662. अगि इंसान र्जानिझ


ू कि औि इजख़्तयाि क़े साथ कोई ऐसा काम कि़े

र्जो िोज़़े को िाततल किता हो तो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है औि अगि कोई

ऐसा काम र्जानिझ


ू कि न कि़े तो किि इश्काल नहीं ल़ेककन अगि र्जुनि
ु सो र्जाए

औि उस तफ़्सील क़े मत
ु ाबिक र्जो मस ्अला 1639 में ियान क़ी गई है सबु ह क़ी

अज़ान तक गस्
ु ल न कि़े तो उसका िोज़ा िाततल है । चन
ु ांच़े अगि इंसान न र्जानता

528
हो कक र्जो िातें िताई गई हैं उनमें स़े िाज़ िोज़़े को िाततल किती हैं यानी र्जाहहल

कामसि हो औि इंकाि भी न किता हो (िअलफ़ाज़़े दीगि मक


ु जस्सि न हो) या यह

कक शिई हुज्र्जत पि एततमाद िखता हो औि खाऩे पीऩे औि जर्जमाअ क़े अलावा

उन अफ़् आल में स़े ककसी फ़़ेल को अंर्जाम द़े तो उसका िोज़ा िाततल नहीं होगा।

1663. अगि िोज़ादाि सहवन कोई ऐसा काम कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किता हो

औि इस गुमान स़े कक उसका िोज़ा िाततल हो गया है दोिािा अमदन कोई ऐसा ही

काम कि़े तो उस का िोज़ा िाततल हो र्जाता है ।

1664. अगि कोई चीज़ ज़ििदस्ती िोज़ादाि क़े हल्क में उं ड़ेल दी र्जाए तो उसका

िोज़ा िाततल नहीं होता ल़ेककन अगि उस़े मज्ििू ककया र्जाए मसलन उस़े कहा र्जाए

कक अगि तुम चगज़ा नहीं खाओग़े तो हम तुम्ह़े माली या र्जानी नक़्


ु सान पहुाँचायेंग़े

औि वह नक़्
ु सान स़े िचऩे क़े मलय़े अपऩे आप कुछ खा ल़े तो उसका िोज़ा िाततल

हो र्जाय़ेगा

1665. िोज़ादाि को ऐसी र्जगह नहीं र्जाना चाहहय़े जर्जसक़े िाि़े में वह र्जानता हो

कक लोग कोई चीज़ उसक़े हल्क में डाल दें ग़े या उस़े िोज़ा तोड़ऩे पि मज्ििू किें ग़े

औि अगि ऐसी र्जगह र्जाए या ि अम्ऱे मज्ििू ी वह खुद कोई ऐसा काम कि़े र्जो

िोज़़े को िाततल किता हो तो उसका िोज़ा िाततल हो र्जाता है औि अगि कोई चीज़

उसक़े हल्क में उं ड़ेल दें तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि यही हुक्म है ।

529
वह च़ीजें जो िोजादाि के ललये मकरूह हैं

1666. िोज़ादाि क़े मलय़े कुछ चीज़ें मकरूह हैं औि उनमें स़े िाज़ यह हैः-

1. आाँख में दवा डालना औि सम


ु ाक लगाना र्जि कक उसका मज़ा या िू हल्क में

पहुाँच।़े

2. हि ऐसा काम किना र्जो कमज़ोिी का िाइस हो मसलन फ़स्द खुलवाना औि

हम्माम र्जाना।

3. (नाक स़े) नास खीचना िशते क़ी यह इल्म न हो कक हल्क तक पहुंचग


़े ी औि

अगि यह इल्म हो कक हल्क तक पहुंचग


़े ी तो उसका इस्त़ेमाल र्जाइज़ नहीं है ।

4. खश्ु िद
ू ाि र्ास (औि र्जड़ी िहू टयााँ) संर्
ू ना।

5. औित का पानी में िैठना।

6. शय्याफ़ इस्त़ेमाल किना यानी ककसी खुश्क चीज़ स़े एतनमा ल़ेना।

7. र्जो मलिास पहन िखा हो उस़े ति किना।

8. दांत तनकलवाना औि हि वह काम किना जर्जसक़ी वर्जह स़े मंह


ु स़े खून

तनकल़े।

9. ति लकड़ी स़े ममसवाक किना।

10. बिला वर्जह पानी या कोई औि सैयाल चीज़ मंह


ु में डालना।

औि यह भी मकरूह है मनी तनकालऩे क़े कस्द क़े िगैि इंसान अपनी िीवी का

िोसा ल़े या शहवत अंग़ेज़ काम कि़े औि अगि ऐसा किना मनी तनकालऩे क़े कस्द

530
स़े हो औि मनी न तनकल़े तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि िोज़ा िाततल हो

र्जाता है ।

ऐसे मवाके जजनमें िोजा की कजा औि कफ़्फ़ािा वाजजब हो जाते हैं।

1667. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ान क़े िोज़़े को खाऩे, पीऩे या हम बिस्तिी

या इजस्तमना या र्जनाित पि िाक़ी िहऩे क़ी वर्जह स़े िाततल कि़े र्जिकक र्जब्र औि

नाचािी क़ी बिना पि नहीं िजल्क अमदन औि इजख़्तयािन ऐसा ककया हो तो उस

पि कज़ा क़े अलावा कफ़्फ़ािा भी वाजर्जि होगा औि र्जो कोई मत


ु ज़जक्किा उमिू क़े

अलावा ककसी औि तिीक़े स़े िोज़ा िाततल कि़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

वह कज़ा क़े अलावा कफ़्फ़ािा भी द़े ।

1668. जर्जन उमिू का जज़क्र ककया गया है अगि उन में स़े ककसी फ़़ेल को

अंर्जाम द़े र्जिकक उस़े पख्


ु ता यक़ीन हो कक उस अमल स़े उस का िोज़ा िाततल नहीं

होगा तो उस पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं है ।

िोजे का कफ़्फ़ािा

1669. माह़े िमज़ान का िोज़ा तोड़ऩे क़े कफ़्फ़ाि़े क़े तौि पि ज़रूिी है कक इंसान

एक गल
ु ाम आज़ाद कि़े या उन अहकाम क़े मत
ु ाबिक र्जो आइन्दा मस ्अल़े में

ियान ककय़े र्जायेंग़े दो महीऩे िोज़़े िख़े या साठ फ़क़ीिों को प़ेट भि कि खाना

खखलाए या हि फ़क़ीि को एक मद
ु तक़्ऱीिन 3/4 ककलो तआम यानी गंदम
ु या र्जौ
531
या िोटी वगैिा द़े औि अगि यह अफ़् आल अंर्जाम द़े ना उसक़े मलय़े मजु म्कन न हो

तो ि कऱे इम्कान सदका द़े ना ज़रूिी है औि अगि यह मजु म्कन न हो तो तौिा व

इजस्तगफ़ाि कि़े औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक जर्जस वक़्त (कफ़्फ़ािा द़े ऩे क़े)

काबिल हो र्जाए कफ़्फ़ािा द़े ।

1670. र्जो शख़्स माह़े िमज़ान क़े िोज़़े क़े कफ़्फ़ाि़े क़े तौि पि दो माह िोज़़े

िखना चाह़े तो ज़रूिी है कक एक पिू ा महीना औि उसस़े अगल़े महीऩे क़े एक हदन

तक मस
ु लसल िोज़़े िख़े औि अगि िाक़ी मांदा िोज़़े मस
ु लसल न भी िख़े तो कोई

इश्काल नहीं।

1671. र्जो शख़्स माह़े िमज़ान क़े िोज़़े क़े कफ़्फ़ाि़े क़े तौि पि दो माह िोज़़े

िखना चाह़े ज़रूिी है कक वह िोज़़े ऐस़े वक़्त न िख़े जर्जसक़े िाि़े में वह र्जानता हो

कक एक महीऩे औि एक हदन क़े दिममयान ईद़े कुिाकन क़ी तिह कोई ऐसा हदन आ

र्जाय़ेगा जर्जसका िोज़ा िखना हिाम है।

1672. जर्जस शख़्स को मस


ु लसल िोज़़े िखना ज़रूिी है अगि वह उन क़े िीच में

िगैि उज़्र क़े एक हदन िोज़ा न िख़े तो ज़रूिी है कक दोिािा अज़ सि़े नव िोज़़े

िख़े।

1673. अगि उन हदनों क़े दिममयान जर्जन में मस


ु लसल िोज़़े िखऩे ज़रूिी है

िोज़ादाि को कोई गैि इजख़्तयािी उज़्र प़ेश आ र्जाए मसलन हैज़ या तनफ़ास या

ऐसा सफ़ि जर्जस़े इजख़्तयाि किऩे पि वह मर्जििू हो तो उज़्र क़े दिू होऩे क़े िाद

532
िोज़ों का अज़ ् सि़े नव िखना उसक़े मलय़े वाजर्जि नहीं िजल्क उज़्र दिू होऩे क़े िाद

िाक़ी मांदा िोज़़े िख़े।

1674. अगि कोई शख़्स हिाम चीज़ स़े अपना िोज़ा िाततल कि द़े ख़्वाह वह

चीज़ िज़ात़े खुद हिाम हो र्जैस़े शिाि औि जज़ना या ककसी वर्जह स़े हिाम हो र्जाए

र्जैस़े कक हलाल चगज़ा जर्जस का खाना इंसान क़े मलय़े बिल उमम
ू मजु ज़ि हो या वह

अपनी िीिी स़े हालत़े है ज़ में मर्ज


ु ाममअत कि़े तो एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक

मज्मअ
ू न कफ़्फ़ािा द़े । यानी उस़े चाहहय़े कक एक गल
ु ाम आज़ाद कि़े औि दो महीऩे

िोज़़े िख़े औि साठ फ़क़ीिों को प़ेट भि कि खाना खखलाए या उनमें स़े हि फ़क़ीि

को एक मद
ु गंदम
ु या र्जौ या िोटी वगैिा द़े औि अगि यह तीनों चीज़ें उसक़े मलय़े

मजु म्कन न हो तो उनमें स़े र्जो कफ़्फ़ािा मजु म्कन हो, द़े ।

1675. अगि िोज़ादाि र्जानिझ


ू कि अल्लाह तआला या निीय़े अकिम

स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही वसल्लम स़े कोई झट


ू ी िात मंसि
ू कि़े तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक मज्मअ
ू न कफ़्फ़ािा वाजर्जि है ल़ेककन एहततयात़े मस्
ु तहि यह है

कक हि दफ़् आ क़े मलय़े एक कफ़्फ़ािा द़े ।

1676. अगि िोज़ादाि माह़े िमज़ान क़े एक हदन में कई दफ़् आ जर्जमाअ या

इजस्तम्ना कि़े तो उस पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि है ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

हि दफ़् आ क़े मलय़े एक एक कफ़्फ़ािा द़े ।

533
1677. अगि िोज़ादाि माह़े िमज़ान क़े एक हदन में जर्जमाअ औि इसततम्ना क़े

अलावा कई दफ़् आ कोई दस


ू िा ऐसा काम कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किता हो तो

उन सि क़े मलय़े बिला इश्काल मसफ़क एक कफ़्फ़ािा काफ़़ी है ।

1678. अगि िोज़ादाि जर्जमाअ क़े अलावा कोई दस


ू िा ऐसा काम कि़े र्जो िोज़़े को

िाततल किता हो औि किि अपनी ज़ौर्जा स़े मर्ज


ु ाममअत भी कि़े तो दोनों क़े मलय़े

एक कफ़्फ़ािा काफ़़ी है।

1679. अगि िोज़ादाि कोई ऐसा काम कि़े र्जो हलाल हो औि िोज़़े को िाततल

किता हो मसलन पानी पी ल़े औि उसक़े िाद कोई दस


ू िा ऐसा काम कि़े र्जो हिाम

हो औि िोज़़े को िाततल किता हो मसलन हिाम चगज़ा खा ल़े तो एक कफ़्फ़ािा

काफ़़ी है।

1680. अगि िोज़ादाि डकाि ल़े औि कोई चीज़ उसक़े मंह


ु में आ र्जाए तो अगि

वह उस़े र्जानिझ
ू कि तनगल ल़े तो उसका िोज़ा िाततल है औि ज़रूिी है कक उसक़ी

कज़ा कि़े औि कफ़्फ़ािा भी उस पि वाजर्जि हो र्जाता है औि अगि उस चीज़ का

खाना हिाम हो मसलन डकाि ल़ेत़े वक़्त खन


ू या ऐसी खोिाक र्जो चगज़ा क़ी

तअिीफ़ में न आती हो उसक़े मंह


ु में आ र्जाए औि वह उस़े र्जानिझ
ू कि तनगल

ल़े तो ज़रूिी है कक उस िोज़़े क़ी कज़ा िर्जा लाए औि एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना

पि मज्मअ
ू न कफ़्फ़ािा भी द़े ।

534
1681. अगि कोई शख़्स मन्नत माऩे कक एक खास हदन िोज़ा िख़ेगा तो अगि

वह उस हदन र्जानिझ
ू कि अपऩे िोज़़े को िाततल कि द़े तो ज़रूिी है कक कफ़्फ़ािा

द़े औि उसका कफ़्फ़ािा उसी तिह है र्जैस़े कक मन्नत तोड़ऩे पि है ।

1682. अगि िोज़ादाि एक ऐस़े शख़्स क़े कहऩे पि र्जो कह़े कक मचिि का वक़्त

हो गया है औि जर्जसक़े कहऩे पि एततमाद न हो िोज़ा इफ़्ताि कि ल़े औि िाद में

उस़े पता चल़े कक मचिि का वक़्त नहीं हुआ या शक कि़े कक मचिि का वक़्त हुआ

है या नहीं तो उस पि कज़ा औि कफ़्फ़ािा दोनों वाजर्जि हो र्जात़े हैं।

1683. र्जो शख़्स र्जानिझ


ू कि अपना िोज़ा िाततल कि ल़े औि अगि वह ज़ोहि

क़े िाद सफ़ि कि़े या कफ़्फ़ाि़े स़े िचऩे क़े मलय़े ज़ोहि स़े पहल़े सफ़ि कि़े तो उस

पि स़े कफ़्फ़ािा साककत नहीं होता िजल्क अगि ज़ोहि स़े पहल़े इवत्तफ़ाकन उस़े

सफ़ि किना पड़़े ति भी कफ़्फ़ािा उस पि वाजर्जि है ।

1684. अगि कोई शख़्स र्जानिझ


ू कि अपना िोज़ा तोड़ द़े औि उसक़े िाद कोई

उज़्र पैदा हो र्जाए मसलन है ज़ या तनफ़ास या िीमािी में मबु तला हो र्जाए तो

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक कफ़्फ़ािा द़े ।

1685. अगि ककसी शख़्स को यक़ीन हो कक आर्ज माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़ी

पहली तािीख है औि वह र्जानिझ


ू कि िोज़ा तोड़ द़े ल़ेककन िाद में उस़े पता चल़े

कक शािान क़ी आखखिी तािीख है तो उस पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं है।

535
1686. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक आर्ज िमज़ान क़ी आखखिी तािीख है

या शव्वाल क़ी पहली तािीख है औि वह र्जानिझ


ू कि िोज़ा तोड़ द़े औि िाद में

पता चल़े कक पहली शव्वाल है तो उस पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं है ।

1687. अगि एक िोज़ादाि माह़े िमज़ान में अपनी िोज़ादाि िीवी स़े जर्जमाअ कि़े

तो अगि उसऩे िीवी को मर्जििू ककया हो तो अपऩे िोज़़े का कफ़्फ़ािा औि

एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक अपनी िीवी क़े िोज़़े का भी कफ़्फ़ािा द़े औि

अगि िीवी जर्जमाअ पि िाज़ी हो तो हि एक पि एक एक कफ़्फ़ािा वाजर्जि हो र्जाता

है ।

1688. अगि कोई औित अपऩे िोज़ादाि शौहि को जर्जमाअ किऩे पि मर्जििू कि़े

तो उस पि शौहि क़े िोज़़े का कफ़्फ़ािा अदा किना वाजर्जि नहीं है ।

1689. अगि िोज़ादाि माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में अपनी िीवी को जर्जमाअ पि

मर्जििू कि़े औि जर्जमाअ क़े दौिान औित भी जर्जमाअ पि िाज़ी हो र्जाए तो

एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक मदक दो कफ़्फ़ाि़े द़े औि औित एक

कफ़्फ़ािा द़े ।

1690. अगि िोज़ादाि माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में अपनी िोज़ादाि िीवी स़े र्जो सो

िही हो जर्जमाअ कि़े तो उस पि एक कफ़्फ़ािा वाजर्जि हो र्जाता है औित का िोज़ा

सहीह है औि उस पि कफ़्फ़ािा भी वाजर्जि नहीं है।

536
1691. अगि शौहि अपनी िीवी को या िीवी अपऩे शौहि को जर्जमाअ क़े अलावा

कोई ऐसा काम किऩे पि मर्जििू कि़े जर्जसस़े िोज़ा िाततल हो र्जाता हो तो उन

दोनों में स़े ककसी पि भी कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं है।

1692. र्जो आदमी सफ़ि या िीमािी क़ी वर्जह स़े िोज़ा न िख़े वह अपनी

िोज़ादाि िीवी को जर्जमाअ पि मर्जििू नहीं कि सकता ल़ेककन अगि मर्जििू कि़े

ति भी मदक पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं।

1693. ज़रूिी है कक इंसान कफ़्फ़ािा द़े ऩे में कोताही न कि़े ल़ेककन फ़ौिी तौि पि

द़े ना भी ज़रूिी नहीं।

1694. अगि ककसी शख़्स पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि हो औि वह कई साल तक न द़े

तो कफ़्फ़ाि़े में कोई इज़ाफ़ा नहीं होता।

1695. जर्जस शख़्स को ितौि कफ़्फ़ािा एक हदन साठ फ़क़ीिों को खाना खखलाना

ज़रूिी हो अगि साठ फ़क़ीि मौर्जूद हों तो वह एक फ़क़ीि को एक मद


ु स़े ज़्यादा

खाना नहीं द़े सकता या एक फ़क़ीि को एक स़े ज़ाइद मतकिा प़ेट भि खखलाए औि

उस़े अपऩे कफ़्फ़ाि़े में ज़्यादा अफ़िाद को खाना खखलाना शम


ु ाि कि़े अलित्ता वह

फ़क़ीि क़े अहलो अयाल में स़े हि एक को एक मद


ु द़े सकता है ख़्वाह वह छोट़े ही

क्यों न हों।

1696. र्जो शख़्स माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़़े क़ी कज़ा कि़े अगि वह ज़ोहि

क़े िाद र्जानिझ


ू कि कोई ऐसा काम कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किता हो तो ज़रूिी

537
है कक दस फ़क़ीिों को फ़दक न फ़दक न एक मद
ु खाना द़े औि अगि न द़े सकता हो तो

तीन िोज़़े िख़े।

वह सिू तें जर्जन में फ़कत िोज़़े क़ी कज़ा वाजर्जि है

1697. र्जो सिू तें ियान हो चक


ु ़ी हैं उनक़े अलावा इन चन्द सिू तों में इंसान पि

मसफ़क िोज़़े क़ी कज़ा वाजर्जि है औि कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं है।

1. एक शख़्स माह़े िमज़ान क़ी िात में र्जन


ु ि
ु हो र्जाए औि र्जैसा कक मस ्अला

1639 में तफ़्सील स़े िताया गया है सबु ह क़ी अज़ान तक दस


ू िी नीन्द स़े ि़ेदाि न

हो।

2. िोज़़े को िाततल किऩे वाला काम तो न ककया हो ल़ेककन िोज़़े क़ी नीयत न

कि़े या रिया कि़े (यानी लोगों पि ज़ाहहि कि़े कक िोज़़े स़े हूाँ) या िोज़ा न िखऩे का

इिादा कि़े इसी तिह अगि ऐस़े काम का इिादा कि़े र्जो िोज़ो को िाततल किता हो

तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उस हदन क़े िोज़़े क़ी कज़ा िखना ज़रूिी है।

3. माह़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक में गस्
ु ल़े र्जनाित किना भल
ू र्जाए औि र्जनाित क़ी

हालत में एक या कई हदन िोज़़े िखता िह़े ।

4. माह़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक में यह तहक़ीक ककय़े िगैि कक सबु ह हुई या नहीं कोई

ऐसा काम कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किता हो औि िाद में पता चल़े कक सबु ह हो

चकु क थी तो इस सिू त में एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक कुिकत़े मत


ु लका क़ी

538
नीयत स़े उस हदन उन चीज़ों स़े इजज्तनाि कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किती हैं औि

उस हदन क़े िोज़़े क़ी कज़ा भी कि़े ।

5. कोई कह़े कक सबु ह नहीं हुई औि इंसान उसक़े कहऩे क़ी बिना पि कोई ऐसा

काम कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किता हो औि िाद में पता चल़े कक सबु ह हो गई

थी।

6. कोई कह़े कक सबु ह हो गई है औि इंसान उसक़े कहऩे पि यक़ीन न कि़े या

समझ़े कक मज़ाक कि िहा है औि खुद तहक़ीक न कि़े औि कोई ऐसा काम कि़े

र्जो िोज़़े को िाततल किता हो औि िाद में मालम


ू हो कक सबु ह हो गई थी।

7. नािीना या उस र्जैसा कोई शख़्स ककसी क़े कहऩे पि जर्जसका कौल उसक़े

मलय़े शिअन हुज्र्जत हो, िोज़ा इफ़्ताि कि ल़े कक मचिि हो गई है औि िाद में

मालम
ू हो कक मचिि का वक़्त नहीं हुआ था।

8. इंसान को यक़ीन या इत्मीनान हो कक मचिि हो गई है औि वह िोज़ा

इफ़्ताि कि ल़े औि िाद में पता चल़े कक मचिि नहीं हुई थी ल़ेककन अगि मत्लअ

अब्र आलद
ू हो औि इंसान उस गम
ु ान क़े तहत इफ़्ताि कि ल़े कक मचिि हो गई है

औि िाद में मालम


ू हो कक मचिि नहीं हुई थी तो एहततयात क़ी बिना पि उस़े

सिू त में कज़ा वाजर्जि है ।

9. इंसान प्यास क़ी वर्जह स़े कुल्ली कि़े यानी पानी मंह
ु में र्म
ु ाय़े औि ि़े

इजख़्तयाि पानी प़ेट में चला र्जाए। अगि नमाज़़े वाजर्जि क़े वज़
ु ू क़े अलावा ककसी

539
वज़
ु ू में कुल्ली क़ी र्जाए तो एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि उसक़े मलय़े भी यही

हुक्म है ल़ेककन अगि इंसान भल


ू र्जाए कक िोज़़े स़े है औि पानी गल़े स़े उति र्जाए

या प्यास क़े अलावा ककसी दस


ू िी सिू त में कक र्जहां कुल्ली किना मस्
ु तहि है – र्जैस़े

वज़
ु ू कित़े वक़्त – कुल्ली कि़े औि पानी ि़े इजख़्तयाि प़ेट में चला र्जाए तो उसक़ी

कज़ा नहीं है ।

10. कोई शख़्स मर्जििू ी, इज़ततिाि या तकैया क़ी हालत में िोज़ा इफ़्ताि कि़े तो

उस पि िोज़ा क़ी कज़ा िखना लाजज़म है ल़ेककन कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं।

1698. अगि िोज़ादाि पानी क़े अलावा कोई चीज़ मंह


ु में डाल़े औि वह ि़े

इजख़्तयाि प़ेट में चली र्जाए या नाक में पानी डाल़े औि वह ि़े इजख़्तयाि (हल्क क़े)

नीच़े उति र्जाए तो उस पि कज़ा वाजर्जि नहीं है।

1699. िोज़ादाि क़े मलय़े ज़्यादा कुजल्लयााँ किना मकरूह है औि अगि कुल्ली क़े

िाद लआ
ु ि़े दहन तनगलना चाह़े तो ि़ेहति है कक पहल़े तीन दफ़् आ लआ
ु ि़े दहन

को थक
ू द़े ।

1700. अगि ककसी शख़्स को मालम


ू हो या उस़े एहततमाल हो कक कुल्ली किऩे

स़े ि़े इजख़्तयाि पानी उसक़े हल्क में चला र्जाय़ेगा तो ज़रूिी है कक कुल्ली न कि़े ,

औि अगि र्जानता हो कक भल
ू र्जाऩे क़ी वर्जह स़े पानी उसक़े हल्क में चला र्जाय़ेगा

ति भी एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि यही हुक्म है ।

540
1701. अगि ककसी शख़्स को माह़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक में तहक़ीक किऩे क़े िाद

मालम
ू न हो कक सबु ह हो गई है औि वह कोई ऐसा काम कि़े र्जो िोज़़े को िाततल

किता हो औि िाद में मालम


ू हो कक सबु ह हो गई थी तो उसक़े मलय़े िोज़़े क़ी कज़ा

किना ज़रूिी नहीं।

1702. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक मचिि हो गई है या नहीं तो वह

िोज़ा इफ़्ताि नहीं कि सकता ल़ेककन अगि उस़े शक हो कक सबु ह हो गई है या

नहीं तो वह तहक़ीक किऩे स़े पहल़े ऐसा काम कि सकता है र्जो िोज़़े को िाततल

किता हो।

कजा िोजे के अहकाम

1703. अगि कोई दीवाना अच्छा हो र्जाए तो उसक़े मलए आलम़े दीवांगी क़े

िोज़ों क़ी कज़ा वाजर्जि नहीं।

1704. अगि कोई काकफ़ि मस


ु लमान हो र्जाए तो उस पि ज़माना ए कुफ़्र क़े

िोज़ों क़ी कज़ा वाजर्जि नहीं है ल़ेककन अगि एक मस


ु लमान काकफ़ि हो र्जाए औि

किि दोिािा मस
ु लमान हो र्जाए तो ज़रूिी है कक अय्याम़े कुफ़्र क़े िोज़़े क़ी कज़ा

िर्जा लाय़े।

541
1705. र्जो िोज़़े इंसान क़ी ि़ेहवासी क़ी वर्जह स़े छूट र्जायें ज़रूिी है कक उनक़ी

कज़ा िर्जा लाए ख़्वाह जर्जस चीज़ क़ी वर्जह स़े वह ि़ेहवास हुआ हो वह इलार्ज क़ी

गिज़ स़े ही खाई हो।

1706. अगि कोई शख़्स ककसी उज़्र क़ी वर्जह स़े चन्द हदन िोज़़े न िख़े औि

िाद में शक कि़े कक उसका उज़्र ककस वक़्त ज़ाइल हुआ था तो उसक़े मलय़े वाजर्जि

नहीं कक जर्जतनी मद्


ु दत िोज़़े न िखऩे का ज़्यादा एहततमाल हो उसक़े मत
ु ाबिक

कज़ा िर्जा लाए मसलन अगि कोई शख़्स िमज़ानल


ु मि
ु ािक स़े पहल़े सफ़ि कि़े

औि उस़े मालम
ू न हो कक माह़े मि
ु ािक क़ी पांचवीं तािीख को सफ़ि स़े वापस

आया था या छटी को, या मसलन उसऩे माह़े मि


ु ािक क़े आखखि में सफ़ि शरू

ककया हो औि माह़े मि
ु ािक खत्म होऩे क़े िाद वापस आया हो। औि उस़े पता न

हो कक पच्चीसवीं िमज़ान को सफ़ि ककया था या छबिीसवीं को तो दोनों सिू तों में

वह कमति हदनों याअनी पांच िोज़ों क़ी कज़ कि सकता है अगिच़े एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक ज़्यादा हदनों यानी छः हदनों क़ी कज़ा कि़े ।

1707. अगि ककसी शख़्स पि कई साल क़े माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों क़ी

कज़ा वाजर्जि हो तो जर्जस साल क़े िोज़ों क़ी कज़ा पहल़े किना चाह़े कि सकता है

ल़ेककन अगि आखखिी िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों क़ी कज़ा का वक़्त तंग हो

मसलन आखखिी िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े पांच िोज़ों क़ी कज़ा उसक़े जज़म्म़े हो औि

542
आइन्दा िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े शरू
ू होऩे में भी पांच ही हदन िाक़ी हों तो ि़ेहति यह

है कक पहल़े आखखिी िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों क़ी कज़ा िर्जा लाए।

1708. अगि ककसी शख़्स पि कई साल क़े माह़े िमज़ान क़े िोज़ों क़ी कज़ा

वाजर्जि हो औि वह िोज़़े क़ी नीयत कित़े वक़्त मअ


ु य्यन न कि़े कक कौन स़े

िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े िोज़़े क़ी कज़ा कि िहा है तो उसका शम
ु ाि आखखिी माह़े

िमज़ान क़ी कज़ा में नहीं होगा।

1709. जर्जस शख़्स ऩे िमज़ानल


ु मि
ु ािक का कज़ा िोज़ा िखा हो वह उस िोज़़े

को ज़ोहि स़े पहल़े तोड़ सकता है ल़ेककन अगि कज़ा का वक़्त तंग हो तो ि़ेहति है

कक िोज़ा न तोड़़े।

1710. अगि ककसी ऩे मैतयत का कज़ा िोज़ा िखा हो तो ि़ेहति है कक ज़ोहि क़े

िाद िोज़ा न तोड़़े।

1711. अगि कोई िीमािी या हैज़ या तनफ़ास क़ी वर्जह स़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े

िोज़़े न िख़े औि उस मद्


ु दत क़े गज़
ु िऩे स़े पहल़े कक जर्जसमें वह उन िोज़ों क़ी र्जो

उसऩे नहीं िख़े थ़े कज़ा कि सकता हो मि र्जाए तो उन िोज़ों क़ी कज़ा नहीं है ।

1712. अगि कोई शख़्स िीमािी का वर्जह स़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़़े न िख़े

औि उसक़ी िीमािी आइन्दा िमज़ान तक तूल खींच र्जाए तो र्जो िोज़़े उसऩे न िख़े

हों उनक़ी कज़ा उस पि वाजर्जि नहीं है औि ज़रूिी है कक हि हदन क़े मलए एक मद


तआम यानी गंदम


ु या र्जौ या िोटी वगैिा फ़क़ीि को द़े ल़ेककन अगि ककसी उज़्र

543
मसलन सफ़ि क़ी वर्जह स़े िोज़़े न िख़े औि उसक उज़्र आइन्दा िमज़ानल
ु मि
ु ािक

तक िाक़ी िह़े तो ज़रूिी है कक र्जो िोज़़े न िख़े हों उनक़ी कज़ा कि़े एहततयात़े

वाजर्जि है कक हि एक हदन क़े मलय़े एक मद


ु तआम भी फ़क़ीि को द़े । 1713.

अगि कोई शख़्स िीमािी का वर्जह स़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़़े न िख़े औि

िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े िाद उसक़ी िीमािी दिू हो र्जाए ल़ेककन कोई दस
ू िा उज़्र

लाहहक हो र्जाए जर्जसक़ी वर्जह स़े वह आइन्दा िमज़ानल


ु मि
ु ािक तक कज़ा िोज़़े न

िख सक़े तो ज़रूिी है कक र्जो िोज़़े न िख़े हों उनक़ी कज़ा िर्जा लाए नीज़ अगि

िमज़ानल
ु मि
ु ािक में िीमािी क़े अलावा कोई औि उज़्र िखता हो औि िमज़ानल

मि
ु ािक तक िीमािी क़ी वर्जह स़े िोज़़े न िख सक़े तो र्जो िोज़़े न िख़े हों ज़रूिी है

कक उनक़ी कज़ा िर्जा लाए औि एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि हि हदन क़े मलय़े

एक मद
ु तआम भी फ़क़ीि को द़े ।

1714. अगि कोई शख़्स ककसी उज़्र क़ी वर्जह स़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक में िोज़़े न

िख़े औि िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े िाद उसका उज़्र दिू हो र्जाए औि वह आइन्दा

िमज़ानल
ु मि
ु ािक तक अमदन िोज़़े क़ी कज़ा न िर्जा लाए तो ज़रूिी है कक िोज़ों

क़ी कज़ा कि़े औि हि हदन क़े मलय़े एक मद


ु तआम भी फ़क़ीि को द़े ।

1715. अगि कोई शख़्स कज़ा िोज़़े िखऩे में कोताही कि़े हत्ता कक वक़्त तंग हो

र्जाए औि वक़्त क़ी तंगी में उस़े कोई उज़्र प़ेश आ र्जाए तो ज़रूिी है कक िोज़ों क़ी

कज़ा कि़े औि एहततयात क़ी बिना पि हि एक हदन क़े मलए एक मद


ु तआम

544
(चगज़ा) फ़क़ीि को द़े । औि अगि उज़्र दिू होऩे क़े िाद मस
ु म्मम इिादा िखता हो

कक िोज़ों क़ी कज़ा िर्जा लाय़ेगा ल़ेककन कज़ा िर्जा लाऩे स़े पहल़े तंग वक़्त में उस़े

कोई उज़्र प़ेश आ र्जाए तो उस सिू त में भी यही हुक्म है ।

1716. अगि इंसान का मिज़ चन्द साल तूल खींच र्जाए तो ज़रूिी है कक

तन्दरु
ु स्त होऩे क़े िाद आखखिी िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े छुट़े हुए िोज़ों क़ी कज़ा िर्जा

लाए औि उसस़े वपछल़े सालों क़े माह हाए मि


ु ािक क़े हि हदन क़े मलए एक मद

तआम फ़क़ीि को द़े ।

1717. जर्जस शख़्स क़े मलए हि िोज़़े क़े एवज़ एक मद


ु तआम फ़क़ीि को द़े ना

ज़रूिी हो वह चन्द हदनों का कफ़्फ़ािा एक ही फ़क़ीि को द़े सकता है ।

1718. अगि कोई शख़्स िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों क़ी कज़ा किऩे में कई साल

क़ी तािवीि कि द़े तो ज़रूिी है कक कज़ा कि़े औि पहल़े साल में तािवीि किऩे क़ी

बिना पि हि िोज़़े क़े मलए एक मद


ु तआम फ़क़ीि को द़े ल़ेककन िाक़ी कई साल क़ी

तािवीि क़े मलए उस पि कुछ भी वाजर्जि नहीं है।

1719. अगि कोई शख़्स िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़़े र्जानिझ
ू कि न िख़े तो

ज़रूिी है कक उन क़ी कज़ा िर्जा लाए औि हि हदन क़े मलए दो महीऩे िोज़़े िख़े या

साठ फ़क़ीिों को खाना द़े या एक गल


ु ाम आज़ाद कि़े औि अगि आइन्दा िमज़ानल

मि
ु ािक तक उन िोज़ों क़ी कज़ा न कि़े तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि हि

हदन क़े मलए एक मद


ु तआम कफ़्फ़ािा भी द़े ।

545
1720. अगि कोई शख़्स र्जान िझ
ू कि िमज़ानल
ु मि
ु ािक का िोज़ा न िख़े औि

हदन में कई दफ़् आ जर्जमाअ या इसततम्ना कि़े तो अक़्वा क़ी बिना पि कफ़्फ़ािा

मक
ु िक ि नहीं होगा (एक कफ़्फ़ािा काफ़़ी है ) ऐस़े ही अगि कई दफ़् आ कोई औि ऐसा

काम कि़े र्जो िोज़़े को िाततल किता हो मसलन कई दफ़् आ खाना खाए ति भी

एक कफ़्फ़ािा काफ़़ी है।

1721. िाप क़े मिऩे क़े िाद िड़़े ि़ेट़े क़े मलए एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि

ज़रूिी है कक िाप क़े िोज़ों क़ी कज़ा उसी तिह िर्जा लाए र्जैस़े कक नमाज़ क़े

मसलमसल़े में मस ्अला 1399 में तफ़्सील स़े िताया गया है ।

1722. अगि ककसी क़े िाप ऩे माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों क़े अलावा कोई

दस
ू ि़े वाजर्जि िोज़़े मसलन सन्
ु नती िोज़़े न िख़े हों तो एहततयात़े मस्
ु तहि यह है

कक िड़ा ि़ेटा उन िोज़ों क़ी कज़ा िर्जा लाए ल़ेककन अगि िाप ककसी क़े िोज़ों क़े

मलए अर्जीि िना हो औि उस ऩे वह िोज़़े न िख़े हों तो उन िोज़ों क़ी कज़ा िड़़े ि़ेट़े

पि वाजर्जि नहीं है ।

मस
ु ाफफ़ि के िोजों के अहकाम

1723. जर्जस मस
ु ाकफ़ि क़े मलए सफ़ि में चाि िक् अती नमाज़ क़े िर्जाय दो

िक् अत पढ़ना ज़रूिी हो उस़े िोज़ा नहीं िखना चाहहय़े ल़ेककन वह मस


ु ाकफ़ि र्जो पिू ी

546
नमाज़ पढ़ता हो मसलन वह शख़्स जर्जसका प़ेशा ही सफ़ि हो या जर्जसका सफ़ि

ककसी नर्जाइज़ काम क़े मलए हो ज़रूिी है कक सफ़ि में िोज़ा िख़े।

1724. माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में सफ़ि किऩे में कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन िोज़़े स़े

िचऩे क़े मलए सफ़ि किना मकरूह है औि इसी तिह माह़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़ी

चौिीसवीं तािीख स़े पहल़े सफ़ि किना (भी मकरूह है ) िर्जज़


ु उस सफ़ि क़े र्जो

हर्ज, उमिा या ककसी ज़रूिी काम क़े मलए हो।

1725. अगि माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों क़े अलावा ककसी खास हदन का

िोज़ा इंसान पि वाजर्जि हो या एततकाफ़ क़े हदनों में स़े तीसिा हदन हो तो उस हदन

सफ़ि नहीं कि सकता औि अगि सफ़ि में हो औि उसक़े मलए ठहिना मजु म्कन हो

तो ज़रूिी है कक दस हदन एक र्जगह ककयाम किऩे क़ी नीयत कि़े औि उस हदन

िोज़ा िख़े ल़ेककन अगि उस हदन का िोज़ा मन्नत क़ी वर्जह स़े वाजर्जि हुआ हो तो

ज़ाहहि यह है कक उस हदन सफ़ि किना र्जाइज़ है औि ककयाम क़ी नीयत किना

वाजर्जि नहीं। अगिच़े ि़ेहति यह है कक र्जि तक सफ़ि किऩे क़े मलए मर्जििू न हो

सफ़ि न कि़े औि अगि सफ़ि में हो तो ककयाम किऩे क़ी नीयत कि़े ।

1726. अगि कोई शख़्स मस्


ु तहि िोज़़े क़ी मन्नत माऩे ल़ेककन उसक़े मलए हदन

मअ
ु य्यन न कि़े तो वह शख़्स सफ़ि में ऐसा मन्नती िोज़ा नहीं िख सकता ल़ेककन

अगि मन्नत माऩे कक सफ़ि क़े दौिान एक मख़्सस


ू हदन िोज़ा िख़ेगा तो ज़रूिी है

कक वह िोज़ा सफ़ि में िख़े नीज़ अगि मन्नत माऩे कक सफ़ि में हो या न हो एक

547
मख़्सस
ू हदन का िोज़ा िख़ेगा तो ज़रूिी है कक अगिच़े सफ़ि में हो ति भी उस

हदन का िोज़ा िख़े।

1727. मस
ु ाकफ़ि तलि़े हार्जत क़े मलए तीन हदन मदीना ए तैतयिा में मस्
ु तहि

िोज़ा िख सकता है। औि अहवत यह है कक वह तीन हदन िध


ु , र्जुमअिात औि

र्जुमआ
ु हों।

1728. कोई शख़्स जर्जस़े यह इल्म न हो कक मस


ु ाकफ़ि का िोज़ा िखना िाततल

है , अगि सफ़ि में िोज़ा िख ल़े औि हदन ही हदन में उस़े हुक्म़े मस ्अला मालम
ू हो

र्जाए तो उसका िोज़ा िाततल है ल़ेककन अगि मचिि तक हुक्म मालम


ू न हो तो

उसका िोज़ा सहीह है ।

1729. अगि कोई शख़्स यह भल


ू र्जाए कक वह मस
ु ाकफ़ि है या यह भल
ू र्जाए

कक मस
ु ाकफ़ि का िोज़ा िाततल होता है औि सफ़ि क़े दौिान िोज़ा िख ल़े तो उसका

िोज़ा िाततल है ।

1730. अगि िोज़ादाि ज़ोहि क़े िाद सफ़ि कि़े तो ज़रूिी है कक एहततयात क़ी

बिना पि अपऩे िोज़़े को तमाम कि़े औि अगि ज़ोहि स़े पहल़े सफ़ि कि़े औि िात

स़े ही सफ़ि का इिादा िखता हो तो उस हदन का िोज़ा नहीं िख सकता ल़ेककन हि

सिू त में हद्द़े तिख़्खुस तक पहुंचऩे स़े पहल़े ऐसा कोई काम नहीं किना चाहहय़े

र्जो िोज़़े को िाततल किता हो वनाक उस पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि होगा।

548
1731. अगि मस
ु ाकफ़ि िमज़ानल
ु मि
ु ािक में ख़्वाह वह फ़ज्र स़े पहल़े सफ़ि में

हो या िोज़़े स़े हो औि सफ़ि कि़े औि ज़ोहि स़े पहल़े अपऩे वतन पहुंच र्जाए या

ऐसी र्जगह पहुंच र्जाए र्जहााँ वह दस हदन ककयाम किना चाहता हो औि उसऩे कोई

ऐसा काम न ककया हो र्जो िोज़़े को िाततल किता हो तो ज़रूिी है कक उस हदन का

िोज़ा िख़े औि अगि कोई ऐसा काम ककया हो र्जो िोज़़े को िाततल किता हो तो

उस हदन का िोज़ा उस पि वाजर्जि नहीं है।

1732. अगि मस
ु ाकफ़ि ज़ोहि क़े िाद अपऩे वतन पहुाँच़े या ऐसी र्जगह पहुाँच़े

र्जहााँ दस हदन ककयाम किना चाहता हो तो वह उस हदन का िोज़ा नहीं िख

सकता।

1733. मस
ु ाकफ़ि औि वह शख़्स र्जो ककसी उज़्र क़ी वर्जह स़े िोज़ा न िख सकता

हो उसक़े मलए माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में हदन क़े वक़्त जर्जमाअ किना औि प़ेट

भि कि खाना औि पीना मकरूह है ।

वह लोग जजन पि िोजा िखना वाजजब नहीं

1734. र्जो शख़्स िढ़


ु ाप़े क़ी वर्जह स़े िोज़ा न िख सकता हो या िोज़ा िखना

उसक़े मलए शदीद तक्लीफ़ का िाइस हो उस पि िोज़ा वाजर्जि नहीं है ल़ेककन िोज़ा

न िखऩे क़ी सिू त में ज़रूिी है कक हि िोज़़े क़े एवज़ एक मद


ु तआम यानी गंदम

या र्जौ या िोटी या उन स़े ममलती र्जल


ु ती कोई चीज़ फ़क़ीि को द़े ।

549
1735. र्जो शख़्स िढ़
ु ाप़े क़ी वर्जह स़े माह़े िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े िोज़़े न िख़े

अगि वह िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़े िाद िोज़़े िखऩे क़े काबिल हो र्जाय़े तो एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक र्जो िोज़़े न िखें हो उनक़ी कज़ा िर्जा लाए।

1736. अगि ककसी शख़्स को कोई ऐसी िीमािी हो जर्जसक़ी वर्जह स़े उस़े िहुत

ज़्यादा प्यास लगती हो औि वह प्यास िदाकश्त न कि सकता हो या प्यास क़ी

वर्जह स़े उस़े तक्लीफ़ होती हो तो उस पि िोज़ा वाजर्जि नहीं है ल़ेककन िोज़ा न

िखऩे क़ी सिू त में ज़रूिी है कक हि िोज़़े क़े एवज़ एक मद


ु तआम फ़क़ीि को द़े

औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक जर्जतनी ममक़्दाि अशद ज़रूिी हो उस स़े ज़्यादा

पानी न वपय़े औि िाद में र्जि िोज़ा िखऩे क़े काबिल हो र्जाए तो र्जो िोज़़े न िख़े

हों एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि उन क़ी कज़ा िर्जा लाए।

1737. जर्जस औित का वज़ ्ए हम्ल का वक़्त किीि हो, उसका िोज़ा िखना खुद

उसक़े मलए या उसक़े होऩे वाल़े िच्च़े क़े मलए मजु ज़ि हो उस पि िोज़ा वाजर्जि नहीं

है औि ज़रूिी है कक वह हि हदन क़े एवज़ एक मद


ु तआम फ़क़ीि को द़े औि

ज़रूिी है कक दोनों सिू तों में र्जो िोज़़े न िख़े हों उनक़ी कज़ा िर्जा लाए।

1738. र्जो औित िच्च़े को दध


ू वपलाती हो औि उसका दध
ू कम हो ख़्वाह वह

िच्च़े क़ी मााँ हो या दाया औि ख़्वाह िच्च़े को मफ़्


ु त दध
ू वपला िही हो अगि

उसका िोज़ा िखना खुद उसक़े या दध


ू पीऩे वाल़े िच्च़े क़े मलए मजु ज़ि हो तो उस

औित पि िोज़ा िखना वाजर्जि नहीं है औि ज़रूिी है कक हि एक हदन क़े एवज़ एक

550
मद
ु तआम फ़क़ीि को द़े औि दोनों सिू तों में र्जो िोज़़े न िख़े हों उन क़ी कज़ा

किना ज़रूिी है। ल़ेककन एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि यह हुक्म मसफ़क उस सिू त

में है र्जिकक िच्च़े को दध


ू वपलाऩे का इनहहसाि उसी पि हो। ल़ेककन अगि िच्च़े

को दध
ू वपलाऩे का कोई औि तिीका हो मसलन कुछ औितें ममल कि िच्च़े को

दध
ू वपलायें तो ऐसी सिू त में इस हुक्म क़े साबित होऩे में इश्काल है ।

महीने की पहली तािीख़ साबबत होने का तिीका

1739. महीऩे क़ी पहली तािीख (मन्


ु दरिर्जा ज़ैल) चाि चीज़ों स़े साबित होती है।

1. इंसान खुद चांद द़े ख़े।

2. एक ऐसा गिु ोह जर्जसक़े कहऩे पि यक़ीन या इत्मीनान हो र्जाए यह कह़े कक

हमऩे चााँद द़े खा है औि इस तिह हि वह चीज़ जर्जसक़ी ितौलत यक़ीन या

इत्मीनान हो र्जाए।

3. दो आहदल मदक यह कहें कक हमऩे िात को चांद द़े खा है ल़ेककन अगि वह

चांद क़े अलग अलग औसाफ़ ियान किें तो पहली तािीख साबित नहीं होगी। औि

यही हुक्म है अगि उनक़ी गवाही स़े इखततलाफ़ हो। या उस क़े हुक्म में इखततलाफ़

हो। मसलन शहि क़े िहुत स़े लोग चांद द़े खऩे क़ी कोशीश किें ल़ेककन दो आहदल

आदममयों क़े अलावा कोई दस


ू िा चांद द़े खऩे का दअवा न कि़े या कुछ लोग चांद

द़े खऩे क़ी कोशीश किें औि उन लोगों में स़े दो आहदल चांद द़े खऩे का दअवा किें

551
औि दस
ू िों को चांद नज़ि न आए हालांकक उन लोगों में स़े दो औि आहदल आदमम

ऐस़े हों र्जो चांद क़ी र्जगह पहचानच़े, तनगाह क़ी त़ेज़ी औि दीगि खस
ु स
ू ीयात में

उन पहल़े दो आदममयों क़ी मातनन्द हों (औि वह चांद द़े खऩे का दअवा न किें ) तो

ऐसी सिू त में दो आहदल आदममयों क़ी गवाही स़े महीऩे क़ी पहली तािीख साबित

नहीं होगी।

4. शािान क़ी पहली तािीख स़े तीस हदन गुज़ि र्जायें जर्जन क़े गुज़िऩे पि माह़े

िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़ी पहली तािीख साबित हो र्जाती है औि िमज़ानल
ु मि
ु ािक स़े

तीस हदन गज़


ु ि र्जायें जर्जनक़े गज़
ु िऩे पि शव्वाल क़ी पहली तािीख साबित हो र्जाती

है ।

1740. हाककम़े शिअ क़े हुक्म स़े महीऩे क़ी पहली तािीख साबित नहीं होती औि

एहततयात क़ी रिआयत किना औला है ।

1741. मन
ु जज्र्जमों क़ी प़ेशीनगोई स़े महीऩे क़ी पहली तािीख साबित नहीं होती

ल़ेककन अगि इंसान को उनक़े कहऩे स़े यक़ीन या इत्मीनान हो र्जाए तो ज़रूिी है

कक उस पि अमल कि़े ।

1742. चांद का आसमान पि िलन्द होना या उसका द़े ि स़े गरू


ु ि होना इस

िात क़ी दलील नहीं कक साबिका िात चांद िात थी औि इसी तिह अगि चांद क़े

552
चगदक हल्का हो तो यह इस िात क़ी दलील नहीं है कक पहली का चांद गज़
ु श्ता िात

तनकला था।

1743. अगि ककसी शख़्स पि माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़ी पहली तािीख साबित

न हो औि वह िोज़ा न िख़े ल़ेककन िाद में साबित हो र्जाए कक गज़


ु श्ता िात ही

चांद िात थी तो ज़रूिी है कक उस हदन क़े िोज़़े क़ी कज़ा कि़े ।

1744. अगि ककसी शहि में महीऩे क़ी पहली तािीख साबित हो र्जाए तो दस
ू ि़े

शहिों में भी कक जर्जनका उफ़ुक उस शहि में मत्त


ु हहद हो महीऩे क़ी पहली तािीख

होती है । यहााँ पि उफ़ुक क़े मत्त


ु हहद होऩे स़े मिु ाद यह है कक अगि पहल़े शहि में

चांद हदखाई द़े तो दस


ू ि़े शहि में भी अगि िादल क़ी तिह कोई रुकावट न हो तो

चांद हदखाई द़े ता है।

1745. महीऩे क़ी पहली तािीख ट़े लीग्राम (औि फ़ैक्स या ट़े ल़ेक्स) स़े साबित

नहीं होती मसवाय इस सिू त क़े कक इंसान को इल्म हो कक यह पैगाम दो आहदल

मदों क़ी शहादत क़ी रू स़े या ककसी दस


ू ि़े ऐस़े तिीक़े स़े आया है र्जो शअकन

मोअतिि है ।

1746. जर्जस हदन क़े मत


ु अजल्लक इंसान को इल्म न हो कक िमज़ानल
ु मि
ु ािक

का आखखिी हदन है या शव्वाल का पहला हदन उस हदन ज़रूिी है कक िोज़ा िख़े

ल़ेककन अगि हदन ही हदन उस़े पता चल र्जाए कक आर्ज यकुम शव्वाल (िोज़़े ईद)

है तो ज़रूिी है कक िोज़ा इफ़्ताि कि ल़े।

553
1747. अगि कोई शख़्स कैद में हो औि माह़े िमज़ान क़े िाि़े में यक़ीन न कि

सक़े तो ज़रूिी है कक गम
ु ान पि अमल कि़े ल़ेककन अगि कवी गम
ु ान पि अमल

कि सकता हो तो ज़ईफ़ गम
ु ान पि अमल नही कि सकता औि अगि गम
ु ान पि

अमल मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है कक जर्जस महीऩे क़े िाि़े में एहततमाल हो कक

िमज़ान है उस महीऩे में िोज़़े िख़े ल़ेककन ज़रूिी है कक वह उस महीऩे को याद

िख़े। चन
ु ांच़े िाद में उस़े मालम
ू हो कक वह माह़े िमज़ान या उसक़े िाद का ज़माना

था तो उसक़े जज़म्म़े कुछ नहीं है । ल़ेककन अगि मालम


ू हो कक माह़े िमज़ान स़े

पहल़े का ज़माना था तो ज़रूिी है कक िमज़ान क़े िोज़ों क़ी कज़ा कि़े ।

हिाम औि मकरूह िोजे

1748. ईद़े कफ़त्र औि ईद़े कुिाकन क़े हदन िोज़ा िखना हिाम है। नीज़ जर्जस हदन

क़े िाि़े में इंसान को यह इल्म न हो कक शािान क़ी आखखिी तािीख है या

िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़ी पहली तो अगि वह उस हदन पहली िमज़ानल
ु मि
ु ािक क़ी

नीयत स़े िोज़ा िख़े तो हिाम है ।

1749. अगि औित क़े मस्


ु तहि (नफ़्ली) िोज़़े िखऩे स़े शौहि क़ी हक तलफ़़ी

होती हो तो औित का िोज़ा िखना हिाम है औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक

ख़्वाह शौहि क़ी हक तलफ़़ी न भी होती हो उसक़ी इर्जाज़त क़े िगैि मस्
ु तहि

(नफ़्ली) िोज़ा न िख़े।

554
1750. अगि औलाद का मस्
ु तहि िोज़ाः- मााँ िाप क़ी औलात स़े शफ़कत क़ी

वर्जह स़े - - मााँ क़े मलए अज़ीयत का मजू र्जि हो तो औलाद क़े मलए मस्
ु तहि िोज़़े

िखना हिाम है ।

1751. अगि ि़ेटा िाप क़ी इर्जाज़त क़े िगैि मस्


ु तहि िोज़ा िख ल़े औि हदन क़े

दौिान िाप उस़े (िोज़ा िखऩे स़े) मना कि़े तो अगि ि़ेट़े का िाप क़ी िात न

मानना कफ़तिी शफ़कत क़ी वर्जह स़े अज़ीत का मजू र्जि हो तो ि़ेट़े को चाहहए कक

िोज़ा तोड़ द़े ।

1752. अगि कोई शख़्स र्जानता हो कक िोज़ा िखना उसक़े मलए ऐसा मजु ज़ि

नहीं है कक जर्जसक़ी पिवाह क़ी र्जाए तो अगिच़े तिीि कह़े कक मजु ज़ि है उसक़े मलए

ज़रूिी है कक िोज़ा िख़े औि अगि कोई शख़्स यक़ीन या गुमान िखता हो कक िोज़ा

उसक़े मलए मजु ज़ि है तो अगिच़े तिीि कह़े कक मजु ज़ि नहीं है ज़रूिी है कक वह

िोज़ा न िख़े औि अगि वह िोज़ा िख़े र्जिकक िोज़ा िखना वाकई मजु ज़ि हो या

कस्द़े कुिकत स़े न हो तो उसका िोज़ा सहीह नहीं है ।

1753. अगि ककसी शख़्स को एहततमाल हो कक िोज़ा िखना उसक़े मलए ऐसा

मजु ज़ि है कक जर्जसक़ी पिवाह क़ी र्जाए औि इस एहततमाल क़ी बिना पि (उस क़े

हदल में ) खौफ़ पैदा हो र्जाए तो अगि उस का एहततमाल लोगों क़ी नज़ि में सहीह

हो तो उस़े िोज़ा नहीं िखना चाहहय़े। औि अगि वह िोज़ा िख ल़े तो साबिका

मस ्अल़े क़ी तिह उस सिू त में भी उस का िोज़ा सहीह नहीं है ।

555
1754. जर्जस शख़्स को एततमाद हो कक िोज़ा िखना उसक़े मलए मजु ज़ि नहीं

अगि वह िोज़ा िख ल़े औि मचिि क़े िाद उस़े पता चल़े कक िोज़ा िखना उसक़े

मलय़े ऐसा मजु ज़ि था कक जर्जसक़ी पिवाह क़ी र्जाती तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना

पि उस िोज़़े क़ी कज़ा किना ज़रूिी है ।

1755. मन्
ु दरिर्जा िाला िोज़ों क़े अलावा औि भी िोज़़े हिाम हैं र्जो मफ़
ु स्सल

ककतािों में मज़्कूि हैं।

1756. आशिू क़े हदन िोज़ा िखना मकरूह है औि उस हदन का िोज़ा भी मकरूह

है जर्जसक़े िाि़े में शक हो कक अिफ़ा का हदन है या ईद़े कुिाकन का।

मस्
ु तहब िोजे

1757. िर्जज़
ु हिाम औि मकरूह िोज़ों क़े जर्जनका जज़क्र ककया गया है साल क़े

तमाम हदनों में िोज़़े मस्


ु तहि हैं औि िाज़ हदनों क़े िोज़़े िखऩे क़ी िहुत ताक़ीद क़ी

गई है जर्जनमें स़े चन्द यह हैं

1. हि महीऩे क़ी पहली औि आखखिी र्जुम ्अिात औि पहला िध


ु र्जो महीऩे क़ी

दसवीं तािीख क़े िाद आए। औि अगि कोई शख़्स यह िोज़़े न िख़े तो मस्
ु तहि है

कक उनक़ी कज़ा कि़े औि अगि िोज़ा बिल्कुल न िख सकता हो तो मस्


ु तहि है कक

हि हदन क़े िदल़े एक मद


ु तआम या 12/6 नखद
ु मसक्कादाि चांदी फ़क़ीि को द़े ।

2. हि महीऩे क़ी त़ेिहवीं, चौदहवीं औि पन्रहवीं तािीख।

556
3. िर्जि औि शािान क़े पिू ़े महीऩे क़े िोज़़े। या उन दो महीनों में जर्जतऩे िोज़़े

िख सक़े ख़्वाह वह एक ही हदन क्यों न हो।

4. ईद़े नविोज़ का हदन।

5. शव्वाल क़ी चौथी स़े नवीं तािीख तक।

6. ज़ी कअदा क़ी पहली तािीख स़े नवीं तािीख (यौम़े अिफ़ा) तक।

7. जज़लहहज्र्जा क़ी पहली तािीख स़े नवीं तािीख (यौम़े अिफ़ा) तक ल़ेकन अगि

इंसान िोज़़े क़ी वर्जह स़े पैदा होऩे वाली कमज़ोिी क़ी बिना पि यौम़े अिफ़ा क़ी

दआ
ु यें न पढ़ सक़े तो उस हदन िोज़ा िखना मकरूह है।

8. ईद़े सईद़े गदीि का हदन (18 जज़ल हहज्र्जा)

9. िोज़़े मि
ु ाहहला (24 जज़लहहज्र्जा)

10. मोहिक मल
ु हिाम क़ी पहली, तीसिी औि सातवीं तािीख।

11. िसल
ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही वसल्लम क़ी ववलादत का हदन

(17 ििीउल अव्वल)

12. र्जमाहदल अव्वल क़ी पन्रह तािीख।

नीज़ा (ईद़े ि़ेअसत) यानी िसल


ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही वसल्लम

क़े एलाऩे रिसालत क़े हदन (27 िर्जि) भी िोज़ा िखना मस्
ु तहि है । औि र्जो शख़्स

मस्
ु तहि िोज़ा िख़े उसक़े मलए वाजर्जि नहीं है कक उस़े इखततताम तक पहुाँचाए

िजल्क अगि उसका मोममन भाई उस़े खाऩे क़ी दअवत द़े तो मस्
ु तहि है कक उसक़ी

557
दावत किल
ू कि ल़े औि हदन में ही िोज़ा खोल ल़े ख़्वाह ज़ोहि क़े िाद ही क्यों न

हो।

वह सि़ू तें जजनमें मब्ु तलाते िोजा से पहे ज मस्


ु तहब है

1758. (मन्
ु दरिर्जा ज़ैल) पांच अश्खास क़े मलए मस्
ु तहि है कक अगिच़े िोज़़े स़े न

हों माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में उन अफ़् आल स़े पहे ज़ किें र्जो िोज़़े को िाततल कित़े

हैं।

1. वह मस
ु ाकफ़ि जर्जसऩे सफ़ि में कोई ऐसा काम ककया हो र्जो िोज़़े को िाततल

किता हो औि वह ज़ोहि स़े पहल़े अपऩे वतन या ऐसी र्जगह पहुंच र्जाए र्जहााँ वह

दस हदन िहना चाहता हो।

2. वह मस
ु ाकफ़ि र्जो ज़ोहि क़े िाद अपऩे वतन या ऐसी र्जगह पहुंच र्जाए र्जहां

वह दस हदन िहना चाहता हो। औि इसी तिह अगि ज़ोहि स़े पहल़े उन र्जगहों पि

पहुंच र्जाए र्जिकक वह सफ़ि में िोज़ा तोड़ चक


ु ा हो ति भी यही हुक्म है।

3. वह मिीज़ र्जो ज़ोहि क़े िाद तन्दरुस्त हो र्जाए औि यही हुक्म है अगि

ज़ोहि स़े पहल़े तन्दरुस्त हो र्जाए अगिच़े उसऩे कोई ऐसा काम (भी) ककया हो र्जो

िोज़़े को िाततल किता हो औि इसी तिह अगि ऐसा काम न ककया हो तो उसका

हुक्म मस ्अला 1576 में गज़


ु ि चक
ु ा है।

4. वह औित र्जो हदन में हैज़ या तनफ़ास क़े खन


ू स़े पाक हो र्जाए।

558
1759. िोज़ादाि क़े मलए मस्
ु तहि है कक िोज़ा इफ़्ताि किऩे स़े पहल़े मचिि औि

इशा क़ी नमाज़ पढ़़े ल़ेककन अगि कोई दस


ू िा शख़्स उस का इजन्तज़ाि कि िहा हो

या उस़े इतनी भक
ू लगी हो कक हुज़िू ़े कल्ि क़े साथ नमाज़ न पढ़ सकता हो तो

ि़ेहति है कक िोज़ा इफ़्ताि कि़े ल़ेककन र्जहााँ तक मजु म्कन हो नमाज़ फ़ज़ीलत क़े

वक़्त में ही अदा कि़े ।

ख़म्
ु स के अहकाम

1760. ख़म्
ु स सात च़ीजों पि वाजजब है ीः-

1. कािोिाि (या िोज़गाि) का मन


ु ाफ़ा।

2. मअहदनी कानें।

3. गड़ा हुआ खज़ाना।

4. हलाल माल र्जो हिाम माल में मखलत


ू हो र्जाए।

5. गोताखोिी स़े हामसल होऩे वाल़े समन्


ु री मोती औि मंग
ू ़े।

6. र्जंग में ममलऩे वाला माल़े गनीमत।

7. मश्हूि कौल क़ी बिना पि वह ज़मीन र्जो जज़म्मी काकफ़ि ककसी मस


ु लमान स़े

खिीद़े ।

559
ज़ैल में इनक़े अहकाम तफ़्सील स़े ियान ककय़े र्जायेंग़े।

1.कािोबाि का मन
ु ाफ़ा

1761. र्जि इंसान ततर्जाित, सन ्अत व हहफ़कत या दस


ू ि़े काम धंदों स़े रुपया पैसा

कमाए, ममसाल क़े तौि पि अगि कोई अर्जीि िन कि ककसी मत


ु वफ़्फ़़ी क़ी नमाज़ें

पढ़़े औि िोज़ा िख़े औि इस तिह कुछ रुपया कमाए मलहाज़ा अगि वह कमाई खद

उसक़े औि उसक़े अहलो अयाल क़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो तो ज़रूिी

है कक ज़ायद कमाई का खुम्स यानी पांचवां हहस्सा उस तिीक़े क़े मत


ु ाबिक द़े

जर्जसक़ी तफ़्सील िाद में ियान होगी।

1762. अगि ककसी को कमाई ककय़े िगैि कोई आमदनी हो र्जाए मसलन कोई

शख़्स उस़े ितौि़े तोहफ़ा कोई चीज़ द़े औि वह उसक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े

ज़्यादा हो तो ज़रूिी है कक उस का खम्


ु स द़े । 1763. औित को र्जो महि ममलता है

औि शौहि, िीवी को तलाक़े खुलअ द़े ऩे क़े एवज़ र्जो माल हामसल किता है उन पि

खुम्स नहीं है, औि इसी तिह र्जो मीिास इंसान को ममल़े उस का भी मीिास क़े

मोअतिि कवाइद क़ी रू स़े यही हुक्म है। औि अगि उस मस


ु लमान को र्जो शीअह

है ककसी औि ज़िीए स़े मसलन पदिी रिश्त़ेदाि क़ी तिफ़ स़े मीिास ममल़े तो उस

माल को फ़वायद में शम


ु ाि ककया र्जाय़ेगा औि ज़रूिी है कक उसका खम्
ु स द़े । इसी

तिह अगि उस़े िाप औि ि़ेट़े क़े अलावा ककसी औि तिफ़ स़े मीिास ममल़े कक जर्जस

560
का खुद उस़े गुमान तक न हो तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक वह मीिास अगि

उसक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो तो उसका खम्


ु स द़े ।

1764. अगि ककसी शख़्स को कोई मीिास ममल़े औि उस़े मालम


ू हो कक जर्जस

शख़्स स़े उस़े यह मीिास ममली है उसऩे उस का खुम्स नहीं हदया था तो ज़रूिी है

कक वारिस उस का खुम्स द़े । इसी तिह अगि खुद उस माल पि खुम्स वाजर्जि न

हो औि वारिस को इल्म हो कक जर्जस शख़्स स़े उस़े वह माल वविस़े में ममला है

उस शख़्स क़े जज़म्म़े खुम्स वाजर्जिल


ु अदा था तो ज़रूिी है कक उस क़े माल में

खम्
ु स अदा कि़े । ल़ेककन दोनों सिू तों में जर्जस शख़्स स़े माल वविस़े में ममला हो

अगि वह खुम्स द़े ऩे का मोअतककद न हो या यह कक वह खुम्स द़े ता ही न हो तो

ज़रूिी नहीं कक वारिस वह खुम्स अदा कि़े र्जो उस शख़्स पि वाजर्जि था।

1765. अगि ककसी शख़्स ऩे ककफ़ायत मशआिी क़े सिि साल भि क़े अखिार्जात

क़े िाद कुछ िकम पस अन्दाज़ क़ी हो तो ज़रूिी है कक उस िचत का खुम्स द़े ।

1766. जर्जस शख़्स क़े तमाम अखिार्जात कोई दस


ू िा शख़्स िदाकश्त किता हो तो

ज़रूिी है कक जर्जतना माल उसक़े हाथ आए उस का खम्


ु स द़े ।

1767. अगि कोई शख़्स अपनी र्जायदाद कुछ खास अफ़िाद मसलन अपनी

औलाद क़े मलए वक़्फ़ कि द़े औि वह लोग उस र्जायदाद में ख़ेती िाड़ी औि

शर्जिकािी किें औि उस स़े मन


ु ाफ़ा कमायें औि वह कमाई उनक़े साल भि क़े

अखिार्जात स़े ज़्यादा हो तो ज़रूिी है कक उस कमाई का खुम्स दें । नीज़ यह कक

561
अगि वह ककसी औि तिीक़े स़े उस र्जायदाद स़े नफ़् अ हामसल किें मसलन उस़े

ककिाय़े या ठ क़े पि द़े दें तो ज़रूिी है कक नफ़् अ क़ी र्जो ममक़्दाि उनक़े साल भि

क़े अखिार्जात में ज़्यादा हो उस का खम्


ु स दें ।

1768. र्जो माल ककसी फ़क़ीि नें वाजर्जि या मस्


ु तहि सदक़े क़े तौि पि हामसल

ककया हो वह उस क़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो या र्जो माल उस़े हदया

गया है उस स़े उसऩे नफ़् अ कमाया हो मसलन उसऩे एक ऐस़े दिख़्त स़े र्जो उस़े

हदया गया हो म़ेवा हामसल ककया हो औि वह उसक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े

ज़्यादा हो तो ज़रूिी है कक उसका खम्


ु स द़े । ल़ेककन र्जो माल उस़े ितौि खम्
ु स या

ज़कात हदया गया हो औि वह उसक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो तो

ज़रूिी नहीं कक उस का खुम्स द़े ।

1769. अगि कोई शख़्स ऐसी िकम स़े कोई चीज़ खिीद़े जर्जसका खुम्स न हदया

गया हो यानी ि़ेचऩे वाल़े स़े कह़े कक, मैं यह चीज़ उस िकम स़े खिीद िहा हूं,

अगि ि़ेचऩे वाला शीआ इस्ना अशिी हो तो ज़ाहहि यह है कक कुल माल क़े

मत
ु अजल्लक मआ
ु मला दरु
ु स्त है औि खम्
ु स का तअल्लक
ु उस चीज़ स़े हो र्जाता है

र्जो उसऩे उस िकम स़े खिीदी है औि (इस मआ


ु मल़े में ) हाककम़े शअक क़ी इर्जाज़त

औि दस्तखत क़ी ज़रूित नहीं है ।

1770. अगि कोई शख़्स कोई चीज़ खिीद़े औि मआ


ु मला तय किऩे क़े िाद

उसक़ी क़ीमत उस िकम स़े अदा कि़े जर्जसका खुम्स न हदया गया हो तो र्जो

562
मआ
ु मला उसऩे ककया है वह सहीह है औि र्जो िकम उसऩे फ़िोमशन्दा को दी है

उस क़े खम्
ु स क़े मलए वह खम्
ु स क़े मस्
ु तहक़्क़ीन का मकरुज़ है ।

1771. अगि कोई शीआ इस्ना अशिी मस


ु लमान कोई ऐसा माल खिीद़े जर्जसका

खुम्स न हदया गया हो तो उसका खुम्स ि़ेचऩे वाल़े क़ी जज़म्म़ेदािी है औि खिीदाि

क़े मलए कुछ नहीं।

1772. अगि कोई शख़्स ककसी शीआ इस्ना अशिी मस


ु लमान को कोई ऐसी

चीज़ ितौि अतीया द़े जर्जसका खुम्स न हदया गया हो तो उसक़े खुम्स क़ी अदायगी

क़ी जज़म्म़ेदािी अतीया द़े ऩे वाल़े पि है औि (जर्जस शख़्स को अतीया हदया गया हो)

उसक़े जज़म्म़े कुछ नहीं।

1773. अगि इंसान को ककसी काकफ़ि स़े या ऐस़े शख़्स स़े र्जो खुम्स द़े ऩे पि

एततकाद न िखता हो कोई ममल़े तो उस माल का खुम्स द़े ना वाजर्जि नहीं है ।

1774. ताजर्जि, दक
ु ानदाि, कािीगि औि इस ककस्म क़े दस
ू ि़े लोगों क़े मलए

ज़रूिी है कक उस वक़्त स़े र्जि उन्होंऩे कािोिाि शरू


ु ककया हो, एक साल गज़
ु ि

र्जाए तो र्जो कुछ उनक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो उसका खम्
ु स दें । औि

र्जो शख़्स ककसी काम धन्द़े स़े कमाई न किता हो अगि उस़े इवत्तफ़ाकन कोई

नफ़् अ हामसल हो र्जाए तो र्जि उस़े यह नफ़् अ ममल़े उस वक़्त स़े एक साल गज़
ु िऩे

क़े िाद जर्जतनी ममक़्दाि उसक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो ज़रूिी है कक

उसका खुम्स द़े ।

563
1775. साल क़े दौिान जर्जस वक़्त भी ककसी शख़्स को मन
ु ाफ़ा ममल़े वह उस का

खम्
ु स द़े सकता है औि उसक़े मलए यह भी र्जाइज़ है कक साल क़े खत्म होऩे तक

उसक़ी अदायगी को मव
ु ख़्खि कि द़े औि अगि वह खम्
ु स अदा किऩे क़े मलए

शम्सी साल (िोमन कैल़ेण्डि) इजख़्तयाि क़ेि तो कोई हिर्ज नहीं।

1776. अगि कोई ताजर्जि या दक


ु ानदाि खुम्स द़े ऩे क़े मलए साल क़ी मद्
ु दत

मअ
ु य्यन कि़े औि उस़े मन
ु ाफ़ा हामसल हो ल़ेककन वह साल क़े दौिान मि र्जाए तो

ज़रूिी है कक उसक़ी मौत क़े अखिार्जात उस मन


ु ाफ़ा में ममन्हा कि क़े िाक़ी मांदा

का खम्
ु स हदया र्जाए।

1777. अगि ककसी शख़्स क़े िगिज़़े ततर्जाित खिीद़े हुए माल क़ी क़ीमत िढ़

र्जाए औि वह उस़े न ि़ेच़े औि साल क़े दौिान उसक़ी क़ीमत चगि र्जाए तो जर्जतनी

ममक़्दाि तक क़ीमत िढ़ी हो उस का खुम्स वाजर्जि नहीं है ।

1778. अगि ककसी शख़्स क़े िगिज़़े ततर्जाित खिीद़े हुए माल क़ी क़ीमत िढ़

र्जाए औि वह इस उम्मीद पि कक अभी इस क़ी क़ीमत औि िढ़़े गी उस माल को

साल क़े खाततम़े क़े िाद तक फ़िोख़्त न कि़े औि किि उसक़ी क़ीमत चगि र्जाए तो

जर्जस ममक़्दाि तक क़ीमत िढ़ी हो उस का खुम्स द़े ना वाजर्जि है । 1779. ककसी

शख़्स ऩे माल़े ततर्जाित क़े अलावा कोई माल खिीद कि या उसी क़ी तिह ककसी

तिीक़े स़े हामसल ककया हो जर्जसका खुम्स वह अदा कि चक


ु ा हो तो अगि उस क़ी

क़ीमत िढ़ र्जाए औि वह उस़े ि़ेच द़े तो ज़रूिी है कक जर्जस कदि उस चीज़ क़ी

564
क़ीमत िढ़ी है उस का खुम्स द़े । इसी तिह मसलन अगि कोई दिख़्त खिीद़े औि

उसमें िल लगें या (भ़ेड़ खिीद़े औि वह) भ़ेड़ मोटी हो र्जाए तो अगि उन चीज़ों क़ी

तनगाह दाश्त स़े उसका मकसद नफ़् अ कमाना था तो ज़रूिी है कक उनक़ी क़ीमत

में र्जो इज़ाफ़ा हुआ हो उस का खुम्स द़े िजल्क अगि उसका मक़्सद नफ़् अ कमाना

न भी िहा हो ति भी ज़रूिी है कक उन का खुम्स द़े ।

1780. अगि कोई शख़्स इस ख़्याल स़े िाग (में पौद़े ) लगाए कक क़ीमत िढ़

र्जाऩे पि उन्हें ि़ेच द़े गा तो ज़रूिी है कक फ़लों क़ी औि दिख़्तों क़ी नशवोनम
ु ा औि

िाग क़ी िढ़ी हुई क़ीमत का खम्


ु स द़े ल़ेककन अगि उसका इिादा यह िहा हो कक

उन दिख़्तों क़े िल ि़ेच कि उनस़े नफ़् अ कमाएगा तो फ़कत िलों का खुम्स द़े ना

ज़रूिी है।

1781. अगि कोई शख़्स ि़ेदमश्ु क औि चन


ु ाि वगैिा क़े दिख़्त लगाए तो ज़रूिी

है कक हि साल उनक़े िढ़ऩे का खुम्स द़े औि इसी तिह अगि मसलन उन दिख़्तों

क़ी उन शाखों स़े नफ़् अ कमाए र्जो उमम


ू न हि साल काटी र्जाती हैं औि तन्हा उन

शाखों क़ी क़ीमत या दस


ू ि़े फ़ाइदों को ममला कि उसक़ी आमदनी उसक़े साल भि

क़े अखिार्जात स़े िढ़ र्जाए तो ज़रूिी है कक हि साल क़े खाततम़े पि उस ज़ाइद

िकम का खुम्स द़े ।

1782. अगि ककसी शख़्स क़ी आमदनी क़ी मत


ु अद्हदद ज़िाए हों मसलन

र्जायदाद का ककिाया आता हो औि खिीदो फ़िोख़्त भी किता हो औि उन तमाम

565
ज़िाए ततर्जाित क़ी आमदनी औि अखिार्जात औि तमाम िकम का हहसाि ककताि

यकर्जा हो तो ज़रूिी है कक साल क़े खाततम़े पि र्जो कुछ उसक़े अखिार्जात स़े

ज़ाइद हो उसका खम्


ु स अदा कि़े । औि अगि एक ज़िीए स़े नफ़् अ कमाए औि दस
ू ि़े

ज़िीए स़े नक़्


ु सान उठाए तो वह एक ज़िीए क़े नक़्
ु सान का दस
ू ि़े ज़िीए क़े नक़्
ु सान

स़े तदारुक कि सकता है। ल़ेककन अगि उसक़े दो मजु ख़्तमलफ़ प़ेश़े हों मसलन

ततर्जाित औि जज़िाअत किता हो तो उस सिू त में एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि

वह एक प़ेश़े क़े नक़्


ु सान का तदारुक दस
ू ि़े प़ेश़े क़े नफ़् अ स़े नहीं कि सकता।

1783. इंसान र्जो अखिार्जात फ़ाइदा हामसल किऩे क़े मलए मसलन दलाली औि

िाि ििदािी क़े मसलमसल़े में खचक कि़े तो उन्हें मन


ु ाफ़ा में स़े ममन्हा कि सकता है

औि उतनी ममक़्दाि का खुम्स अदा किना लाजज़म नहीं।

1784. कािोिाि क़े मन


ु ाफ़़े स़े कोई शख़्स साल भि में र्जो कुछ खोिाक, मलिास,

र्ि क़े साज़ो सामान, मकान क़ी खिीदािी, ि़ेट़े क़ी शादी, ि़ेटी क़े र्जह़े ज़ औि

जज़याित वगैिा पि खचक कि़े उस पि खम्


ु स नहीं है िशते क़ी ऐस़े अखिार्जात उसक़ी

है मसयत स़े ज़्यादा न हों औि उसऩे फ़ुज़ल


ू खच़ी भी न क़ी हो।

1785. र्जो माल इंसान मन्नत औि कफ़्फ़ाि़े पि खचक कि़े वह सालाना

अखिार्जात का हहस्सा है। इसी तिह वह माल भी उसक़े सालाना अखिार्जात का

हहस्सा है र्जो वह ककसी को तोहफ़़े या इन ्आम क़े तौि पि द़े िशते कक उसक़ी

है मसयत स़े ज़्यादा न हो।

566
1786. अगि इंसान अपनी लड़क़ी क़ी शादी क़े वक़्त तमाम र्जह़े ज़ इकट्ठा तैयाि

न कि सकता हो तो वह उस़े कई सालों में थोड़ा थोड़ा कि क़े र्जमअ कि सकता है

चन
ु ांच़े अगि र्जह़े ज़ तैयाि न किना उसक़ी शान क़े खखलाफ़ हो औि वह साल क़े

दौिान उसी साल क़े मन


ु ाफ़़े स़े कुछ र्जह़े ज़ खिीद़े र्जो उसक़ी हैमसयत स़े िढ़ कि न

हो तो उस पि खुम्स द़े ना लाजज़म नहीं है औि अगि वह र्जह़े ज़ उसक़ी हैमसयत स़े

िढ़ कि हो या एक साल क़े मन


ु ाफ़़े स़े दस
ू ि़े साल तैयाि ककया गया हो तो उसका

खुम्स द़े ना ज़रूिी है ।

1787. र्जो माल ककसी शख़्स ऩे जज़याित़े िैतल्


ु लाह (हर्ज) औि दस
ू िी जज़याित क़े

सफ़ि पि खचक ककया हो उस साल क़े अखिार्जात में शम


ु ाि होता है जर्जस साल में

खचक ककया र्जाए तो र्जो कुछ वह दस


ू ि़े साल में खचक कि़े उसका खुम्स द़े ना ज़रूिी

है ।

1788. र्जो शख़्स ककसी प़ेश़े या ततर्जाित वगैिा स़े मन


ु ाफ़ा हामसल कि़े अगि

उसक़े पास कोई औि माल भी हो जर्जस पि खम्


ु स वाजर्जि न हो तो वह अपऩे साल

भि क़े अखिार्जात का हहस्सा फ़कत अपऩे मन


ु ाफ़़े को मद्द़े नज़ि िखत़े हुए कि

सकता है।

1789. र्जो सामान ककसी शख़्स ऩे साल भि इस्त़ेमाल किऩे क़े मलए अपऩे

मन
ु ाफ़़े स़े खिीदा हो अगि साल क़े आखखि में उस स़े कुछ िच र्जाए तो ज़रूिी है

कक उसका खुम्स द़े औि अगि खुम्स उस क़ी क़ीमत क़ी सिू त में द़े ना चाह़े औि

567
र्जि वह सामान खिीदा था उसक़े मक
ु ाबिल़े में उसक़ी क़ीमत िढ़ गई हो तो ज़रूिी

है कक साल क़े खाततम़े पि र्जो क़ीमत हो उसका हहसाि लगाए।

1790. कोई शख़्स खम्


ु स द़े ऩे स़े पहल़े अपऩे मन
ु ाफ़़े में स़े र्ि़े लू इस्त़ेमाल क़े

मलए सामान खिीद़े अगि उसक़ी ज़रूित मन


ु ाफ़ा हामसल होऩे वाल़े साल क़े िाद

खत्म हो र्जाए तो ज़रूिी नहीं क़ी उसका खुम्स द़े औि अगि दौिाऩे साल उसक़ी

ज़रूित खत्म हो र्जाए तो भी यही हुक्म है। ल़ेककन अगि वह सामान उन चीज़ों में

स़े हो र्जो उमम


ू न आइन्दा सालों में इस्त़ेमाल क़े मलए िखी र्जाती हो र्जैस़े सदी औि

गम़ी क़े कपड़़े तो उन पि खम्


ु स नहीं होता। इस सिू त क़े अलावा जर्जस वक़्त भी

उस सामान क़ी ज़रूित खत्म हो र्जाए एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उसका खुम्स द़े

औि यही सिू त ज़नाना ज़़ेविात क़ी है र्जिकक औित का उन्हें ितौि़े ज़ीनत

इस्त़ेमाल किऩे का ज़माना गज़


ु ि र्जाए।

1791. अगि ककसी शख़्स को साल क़े शरू


ू में मन
ु ाफ़ा न हो औि वह अपऩे

सिमाए स़े खचक उठाए औि साल क़े खत्म होऩे स़े पहल़े उस़े मन
ु ाफ़ा हो र्जाए तो

उसऩे र्जो कुछ सिमाए में स़े खचक ककया है उस़े मन


ु ाफ़ा स़े ममन्हा कि सकता है।

1792. अगि ककसी शख़्स को ककसी साल में मन


ु ाफ़ा न हो तो वह उस साल क़े

अखिार्जात को आइन्दा साल क़े मन


ु ाफ़़े स़े ममन्हा नहीं कि सकता।

568
1793. अगि सिमाए का कुछ हहस्सा ततर्जाित वगैिा में डूि र्जाए तो जर्जस कदि

सिमाया डूिा हो इंसान उतनी ममक़्दाि उस साल क़े मन


ु ाफ़़े स़े ममन्हा कि सकता

है ।

1794. अगि ककसी शख़्स क़े माल में स़े सिमाए क़े अलावा कोई औि चीज़

ज़ाए हो र्जाए तो उस चीज़ को मन


ु ाफ़़े में स़े मह
ु ै या नहीं कि सकता ल़ेककन अगि

उस़े उसी साल में उस चीज़ क़ी ज़रूित पड़ र्जाए तो वह उस साल क़े दौिान अपऩे

मन
ु ाफ़़े स़े मह
ु ै या कि सकता है।

1795. अगि ककसी शख़्स को सािा साल कोई मन


ु ाफ़ा न हो औि वह अपऩे

अखिार्जात कज़क ल़ेकि पिू ़े कि़े तो वह आइन्दा सालों क़े मन


ु ाफ़़े स़े कज़क क़ी िकम

ममन्हा नहीं कि सकता ल़ेककन अगि साल क़े शरू


ू में अपऩे अखिार्जात पिू ़े किऩे

क़े मलए कज़क ल़े औि साल खत्म होऩे स़े पहल़े मन


ु ाफ़ा कमाए तो अपऩे कज़े क़ी

िकम उस मन
ु ाफ़़े में ममन्हा कि सकता है । औि इसी तिह पहली सिू त में वह उस

कज़क को उस साल क़े मन


ु ाफ़़े स़े अदा कि सकता है औि मन
ु ाफ़ा क़ी उस ममक़्दाि

स़े खम्
ु स का कोई तअल्लक
ु नहीं।

1796. अगि कोई शख़्स माल िढ़ाऩे क़ी गिज़ स़े या ऐसी इमलाक खिीदऩे क़े

मलए जर्जसक़ी उस़े ज़रूित न हो कज़क ल़े तो वह उस साल क़े मन


ु ाफ़ा स़े उस कज़क

को अदा नहीं कि सकता। हां र्जो माल ितौि़े कज़क मलया हो या र्जो चीज़ उस कज़क

569
स़े खिीदी हो अगि वह तलफ़ हो र्जाए तो उस सिू त में वह अपना कज़क उस साल

क़े मन
ु ाफ़ा स़े अदा कि सकता है।

1797. इंसान हि उस चीज़ का जर्जस पि खम्


ु स वाजर्जि हो चक
ु ा हो उसी चीज़

क़ी शक्ल में खुम्स द़े सकता है औि अगि चाह़े तो जर्जतना खुम्स उस पि वाजर्जि

हो उसक़ी क़ीमत क़े ििािि िकम भी द़े सकता है ल़ेककन अगि ककसी दस
ू िी जर्जंस

क़ी सिू त में जर्जस पि खुम्स वाजर्जि न हो द़े ना चाह़े तो महल्ल़े इश्काल है िर्जुज़

इस क़े कक ऐसा किना हाककम़े शअक क़ी इर्जाज़त स़े हो।

1798. जर्जस शख़्स क़े माल पि खम्


ु स वाजर्जिल
ु अदा हो औि साल गज़
ु ि गया

हो ल़ेककन उसऩे खुम्स न हदया हो औि खुम्स द़े ऩे का इिादा भी न िखता हो वह

उस माल में तसरुक फ़ नहीं कि सकता िजल्क एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि अगि

खुम्स द़े ऩे का इिादा िखता हो ति भी वह तसरुक फ़ नहीं कि सकता।

1799. जर्जस शख़्स को खुम्स अदा किना हो वह यह नहीं कि सकता कक उस

खम्
ु स को अपऩे जज़म्म़े ल़े यानी अपऩे आप को खम्
ु स क़े मस्
ु तहक़्क़ीन का मकरूज़

तसव्विु कि़े औि सािा माल इस्त़ेमाल किता िह़े औि अगि इस्त़ेमाल कि़े औि वह

माल तलफ़ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका खुम्स द़े ।

1800. जर्जस शख़्स को खुम्स अदा किना हो अगि वह हाककम़े शअक स़े

मफ़
ु ाहहमत कि क़े खुम्स को अपऩे जज़म्म़े ल़े ल़े तो सािा माल इस्त़ेमाल कि

570
सकता है औि मफ़
ु ाहहमत क़े िाद उस साल स़े र्जो मन
ु ाफ़ा उस़े हामसल हो वह

उसका अपना माल है।

1801. र्जो शख़्स कािोिाि में ककसी दस


ू ि़े क़े साथ शिीक हो अगि वह अपऩे

मन
ु ाफ़़े पि खुम्स द़े द़े औि उसका हहस्स़ेदाि खुम्स न द़े औि आइन्दा साल वह

हहस्स़ेदाि उस माल को जर्जसका खुम्स उस ऩे नहीं हदया साझ़े में सिमाए क़े तौि

पि प़ेश कि़े तो वह शख़्स (जर्जसऩे खुम्स अदा कि हदया हो) अगि मशआ इस्ना

अशिी मस
ु लमान हो तो उस माल को इस्त़ेमाल में ला सकता है ।

1802. अगि नािामलग िच्च़े क़े पास कोई सिमाया हो औि उस स़े मन


ु ाफ़ा

हामसल हो तो अक़्वा क़ी बिना पि उसका खुम्स द़े ना होगा औि उसक़े वली पि

वाजर्जि है कक उसका खुम्स द़े औि अगि वली खुम्स न द़े तो िामलग होऩे क़े िाद

वाजर्जि है कक वह खुद खुम्स अदा द़े ।

1803. जर्जस शख़्स को ककसी दस


ू ि़े शख़्स स़े कोई माल ममल़े औि उस़े शक हो

कक (माल द़े ऩे वाल़े) दस


ू ि़े शख़्स ऩे उसका खम्
ु स हदया है या नहीं तो वह (माल

हामसल किऩे वाला शख़्स) उस माल में तसरुक फ़ कि सकता है । िजल्क अगि यक़ीन

भी हो कक उस दस
ू ि़े शख़्स ऩे खुम्स नहीं हदया ति भी अगि वह शीआ इस्ना

अशिी मस
ु लमान हो तो उस माल में तसरुक फ़ कि सकता है।

571
1804. अगि कोई शख़्स कािोिाि क़े मन
ु ाफ़ा स़े साल क़े दौिान ऐसी र्जायदाद

खिीद़े र्जो उसक़ी साल भि क़ी ज़रूिीयात औि अखिार्जात में शम


ु ाि हो तो उस पि

वाजर्जि है कक साल क़े खाततमें पि उसका खम्


ु स द़े औि अगि खम्
ु स न द़े औि उस

र्जायदाद क़ी क़ीमत िढ़ र्जाए तो लाजज़म है कक उसक़ी मौर्जूदा क़ीमत पि खुम्स द़े

औि र्जायदाद क़े अलावा कालीन वगैिा क़े मलए भी यही हुक्म है।

1805. जर्जस शख़्स ऩे शरू


ु स़े (यअनी र्जि स़े उस पि खम्
ु स क़ी अदायगी

वाजर्जि हुई हो) खुम्स न हदया हो ममसाल क़े तौि पि अगि वह कोई र्जायदाद

खिीद़े औि उसक़ी क़ीमत िढ़ र्जाए औि अगि उसऩे यह र्जायदाद इस इिाद़े स़े न

खिीदी हो कक उसक़ी क़ीमत िढ़ र्जाय़ेगी तो ि़ेच द़े गा। मसलन ख़ेती िाड़ी क़े मलए

ज़मीन खिीदी हो औि उसक़ी क़ीमत उस िकम स़े अदा क़ी हो जर्जस पि खुम्स न

हदया हो तो ज़रूिी है कक क़ीमत़े खिीद पि खुम्स द़े औि अगि मसलन ि़ेचऩे वाल़े

को वह िकम दी है जर्जस पि खुम्स न हदया हो औि उस़े कहा हो कक मैं यह

र्जायदाद उस िकम स़े खिीदता हूं तो ज़रूिी है कक उस र्जायदाद क़ी मौर्जद


ू ा क़ीमत

पि खम्
ु स द़े ।

1806. जर्जस शख़्स ऩे शरू


ु स़े (यअनी र्जि स़े उस पि खम्
ु स क़ी अदायगी

वाजर्जि हुई ) खुम्स न हदया हो अगि उसऩे कािोिाि क़े मन


ु ाफ़ा स़े कोई ऐसी चीज़

खिीदी हो जर्जसक़ी उसको ज़रूित न हो औि उस़े मन


ु ाफ़ा कमाए एक साल गुज़ि

गया हो तो ज़रूिी है कक उसका खुम्स द़े औि अगि उसऩे र्ि का साज़ो सामान

572
औि ज़रूित क़ी चीज़ें अपनी है मसयत क़े मत
ु ाबिक खिीदी हों औि र्जानता हो कक

उसऩे यह चीज़ें उस साल क़े दौिान उस मन


ु ाफ़़े स़े खिीदी हैं जर्जस साल में उस़े

मन
ु ाफ़ा हुआ है तो उन पि खम्
ु स द़े ना लाजज़मी नहीं ल़ेककन अगि उस़े यह मअलम

हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक हाककम़े शअक स़े मफ़


ु ाहहमत कि़े ।

2. मअहदऩी कानें

1807. सोऩे, चााँदी, सीस़े, तांि,़े लोह़े (र्जैसी धातों क़ी कानें, नीज़ वपट्रौमलयम,

कोयल़े, फ़़ीिोज़़े, अक़ीक, कफ़टककिी या नमक क़ी कानें औि (इसी तिह क़ी) दस
ू िी

कानें अन्फ़ाल क़े ज़ुमि़े में आती हैं यअनी यह इमाम़े अस्र (अ0) क़ी ममजल्कयत है ।

ल़ेककन अगि कोई शख़्स उनमें स़े कोई चीज़ तनकाल़े र्जि कक शअकन कोई हिर्ज न

हो तो वह उस़े अपनी ममजल्कयत किाि द़े सकता है औि अगि वह चीज़ तनसाि क़े

मत
ु ाबिक हो तो ज़रूिी है कक उसका खम्
ु स द़े ।

1808. कान स़े तनकली हुई चीज़ का तनसाि 15 ममस्काल मिु व्वर्जा मसक्क़ेदाि

सोना है । यअनी अगि कान स़े तनकली हुई ककसी चीज़ क़ी क़ीमत 15 ममस्काल

मसक्कादाि सोऩे तक पहुंच र्जाए तो ज़रूिी है कक उस पि र्जो अख़्रार्जात आय़े हों

उन्हें ममन्हा कि क़े र्जो िाक़ी िच़े उसका खुम्स द़े ।

1809. जर्जस शख़्स ऩे कान स़े मन


ु ाफ़ा कमाया हो औि र्जो चीज़ कान स़े

तनकाली हो अगि उसक़ी क़ीमत 15 ममस्काल मसक्कादाि सोऩे तक न पहुाँच़े तो

573
उस पि खुम्स ति वाजर्जि होगा र्जि मसफ़क यह मन
ु ाफ़ा या उस क़े दस
ू ि़े मन
ु ाफ़़े ही

उस मन
ु ाफ़़े को ममलाकि उसक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो र्जायें।

1810. जर्जप्सम, चन
ू ा, चचक्नी ममट्टी औि सख
ु क ममट्टी पि एहततयात़े लाजज़म

क़ी बिना पि मअहदनी चीज़ों क़े हुक्म का इत्लाक होता है मलहाज़ा अगि यह चीज़ें

हद्द़े तनसाि तक पहुंच र्जायें तो साल भि क़े अखिार्जात तनकालऩे स़े पहल़े उन का

खुम्स द़े ना ज़रूिी है ।

1811. र्जो शख़्स कान स़े कोई चीज़ तनकाल़े तो ज़रूिी है कक उसका खुम्स द़े

ख़्वाह वह कान ज़मीन क़े ऊपि हो या ज़़ेि़े ज़मीन औि ख़्वाह ऐसी ज़मीन हो र्जो

ककसी क़ी ममजल्कयत हो या ऐसी ज़मीन में हो जर्जसका कोई मामलक न हो।

1812. अगि ककसी शख़्स को यह मअलम


ू हो कक र्जो चीज़ उस ऩे कान स़े

तनकाली है उसक़ी क़ीमत 15 ममस्काल मसक्कादाि सोऩे क़े ििािि है या नहीं तो

एहततयात़े लाजज़म यह है कक अगि मजु म्कन हो तो वज़न कि क़े या ककसी औि

तिीक़े स़े उस क़ी क़ीमत मअलम


ू कि़े ।

1813. अगि कई अफ़्राद ममल कि कान स़े कोई चीज़ तनकालें औि उसक़ी

क़ीमत 15 ममस्काल मसक्कादाि सोऩे तक पहुंच र्जाए ल़ेककन उन में स़े हि एक का

हहस्सा उस ममक़्दाि स़े कम हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक खुम्स द़े ।

1814. अगि कोई शख़्स उस मअहदनी चीज़ को र्जो ज़़ेि़े ज़मीन दस


ू ि़े क़ी

ममजल्कयत में हो उसक़ी इर्जाज़त क़े िगैि उसक़ी ज़मीन खौद कि तनकाल़े तो

574
मश्हूि कौल यह है कक र्जो चीज़ दस
ू ि़े क़ी ज़मीन स़े तनकाली र्जाए वह उसी मामलक

क़ी है ल़ेककन यह िात इश्काल स़े खाली नहीं औि ि़ेहति यह है कक िाहम

मआ
ु मला तय कि़े औि अगि आपस में समझोता न हो सक़े तो हाककमें शअक क़ी

तिफ़ रुर्जूउ कि़े ताकक वह उस तनाज़ों का फ़ैसला कि़े ।

3. गडा हुआ दफ़ीना

1815. दफ़़ीना वह माल है र्जो ज़मीन या दिख़्त या पहाड़ या दीवाि में गड़ा

हुआ हो औि कोई उस़े वहां स़े तनकाल़े औि उसक़ी सिू त यह हो कक उस़े दफ़़ीना

कहा र्जा सक़े।

1816. अगि इंसान को ककसी ऐसी ज़मीन स़े दफ़़ीना ममल़े र्जो ककसी क़ी

ममजल्कयत न हो तो वह उस़े अपऩे कबज़़े में ल़े सकता है यअनी अपनी ममजल्कयत

में ल़े सकता है ल़ेककन उसका खम्


ु स द़े ना ज़रूिी है।

1817. दफ़़ीऩे का तनसाि 105 ममस्काल मसक्कादाि चांदी औि 15 ममस्काल

मसक्कादाि सोना है । यअनी र्जो चीज़ दफ़़ीऩे स़े ममल़े अगि उसक़ी क़ीमत उन दोनों

में स़े ककसी एक क़े भी ििािि हो तो उसका खुम्स द़े ना वाजर्जि है ।

1818. अगि ककसी शख़्स को ऐसी ज़मीन स़े दफ़़ीना ममल़े र्जो उसऩे ककसी स़े

खिीदी हो औि उस़े मअलम


ू हो कक यह उन लोगों का माल नहीं है र्जो इसस़े पहल़े

इस ज़मीन क़े मामलक थ़े औि वह यह न र्जानता हो कक मामलक मस


ु लमान है या

575
जज़म्मी है औि वह खुद या उसक़े वारिस जज़न्दा हैं तो वह उस दफ़़ीऩे को अपऩे

कबज़़े में ल़े सकता है ल़ेककन उसका खम्


ु स द़े ना ज़रूिी है । औि अगि उस़े

एहततमाल हो कक यह साबिका मामलक का माल है र्जि कक ज़मीन औि इसी तिह

दफ़़ीना या वह र्जगह जज़म्नन ज़मीन में शाममल होऩे क़ी बिना पि उसका हक हो

तो ज़रूिी है कक उस़े इवत्तलाअ द़े औि अगि यह मअलम


ू हो कक उस का माल नहीं

तो उस शख़्स को इवत्तलाअ द़े र्जो उस स़े पहल़े भी उस ज़मीन का मामलक था औि

उस पि उन सा हक था औि इसी तितीि स़े उन तमाम लोगों को इवत्तलाअ द़े र्जो

खद
ु उसस़े पहल़े उस ज़मीन क़े मामलक िह़े हों औि उस पि उन का हक हो औि

अगि पता चल़े कक वह उनमें स़े ककसी का भी माल नहीं है तो किि वह उस़े अपऩे

कबज़़े में ल़े सकता है ल़ेककन उस का खुम्स द़े ना ज़रूिी है ।

1819. अगि ककसी शख़्स को ऐस़े कई ितकनों स़े माल ममल़े र्जो एक र्जगह दफ़्न

हों औि उस माल क़ी मज्मई


ू क़ीमत 105 ममस्काल चांदी या 15 ममस्काल सोऩे क़े

ििािि हो तो ज़रूिी है कक उस माल का खम्


ु स द़े ल़ेककन अगि मख़्
ु तमलफ़

मकामात स़े दफ़़ीऩे ममलें तो उन में स़े जर्जस दफ़़ीऩे क़ी क़ीमत मज़कूिा ममक़्दाि

तक पहुंच र्जाए उस पि खुम्स वाजर्जि है औि जर्जस दफ़़ीऩे क़ी क़ीमत उस ममक़्दाि

तक न पहुंच़े उस पि खुम्स वाजर्जि नहीं है।

576
1820. र्जि दो अश्खास को ऐसा दफ़़ीना ममल़े जर्जसक़ी क़ीमत 105 ममस्काल

चांदी या 15 ममस्काल सोऩे तक पहुंचती हो ल़ेककन उनमें स़े हि एक का हहस्सा

उतना न िनता हो तो उस पि खम्


ु स अदा किना ज़रूिी नहीं है।

1821. अगि कोई शख़्स र्जानवि खिीद़े औि उसक़े प़ेट स़े कोई माल ममल़े तो

अगि उस़े एहततमाल हो कक यह माल ि़ेचऩे वाल़े या पहल़े मामलक का है औि वह

र्जानवि पि औि र्जो कुछ उसक़े प़ेट स़े ििआमद हुआ है उस पि हक िखता है तो

ज़रूिी है कक इवत्तलाअ द़े औि अगि मअलम


ू हो कक वह माल उनमें स़े ककसी एक

का भी नहीं है तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक उस का खम्


ु स द़े अगिच़े वह माल

दफ़़ीऩे क़े तनसाि क़े ििािि न हो औि यह हुक्म मछली औि उसक़ी मातनन्द दस


ू ि़े

ऐस़े र्जानविों क़े मलए भी है जर्जनक़ी कोई शख़्स ककसी मख़्सस


ू र्जगह में अफ़ज़ाइश

व पवकरिश कि़े औि उनक़ी चगज़ा का इजन्तज़ाम कि़े । औि अगि समन्


ु दि या दरिया

स़े उस़े पकड़़े तो ककसी को उसक़ी इवत्तलाअ द़े ना लाजज़मी नहीं।

4. वह हलाल माल जो हिाम माल में मख़्ल़ूत हो जाए

1822. अगि हलाल माल हिाम माल क़े साथ इस तिह ममल र्जाए कक इंसान

उन्हें एक दस
ू ि़े स़े अलग न कि सक़े औि हिाम माल क़े मामलक औि उस माल

क़ी ममक़्दाि का भी इल्म न हो औि यह भी इल्म न हो कक हिाम माल क़ी

ममक़्दाि खम्
ु स स़े कम है या ज़्यादा तो तमाम माल का खम्
ु स कुिकत़े मत्ु लका क़ी

577
नीयत स़े ऐस़े शख़्स को द़े र्जो खुम्स का औि माल़े मज्हूलल
ु मामलक का मस्
ु तहक

है औि खम्
ु स द़े ऩे क़े िाद िाक़ी माल उस शख़्स पि हलाल है।

1823. अगि हलाल माल हिाम माल स़े ममल र्जाए औि इंसान हिाम क़ी

ममक़्दाि - - ख़्वाह वह खुम्स स़े कम हो या ज़्यादा - - र्जानता हो ल़ेककन उसक़े

मामलक को न र्जानता हो तो ज़रूिी है कक उतनी ममक़्दाि उस माल क़े मामलक क़ी

तिफ़ स़े सदका कि द़े औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक हाककम़े शअक स़े भी

इर्जाज़त ल़े।

1824. अगि हलाल माल हिाम माल स़े ममल र्जाए औि इंसान को हिाम क़ी

ममक़्दाि का इल्म न हो ल़ेककन उस माल क़े मामलक को पहचानता हो औि दोनों

एक दस
ू ि़े को िाज़ी न कि सकें तो ज़रूिी है कक जर्जतनी ममक़्दाि क़े िाि़े में यक़ीन

हो कक दस
ू ि़े का माल है वह उस़े द़े द़े । िजल्क अगि वह माल उसक़ी अपनी गलती

स़े मख़्लत
ू हुए हों तो एहततयात क़ी बिना पि जर्जस माल क़े िाि़े में उस़े एहततमाल

हो कक यह दस
ू ि़े का है उस़े इस माल स़े ज़्यादा द़े ना ज़रूिी है।

1825. अगि कोई शख़्स हिाम स़े मख़्लत


ू हलाल माल का खम्
ु स द़े द़े औि िाद

में उस़े पता चल़े कक हिाम क़ी ममक़्दाि खुम्स स़े ज़्यादा थी तो ज़रूिी है कक

जर्जतनी ममक़्दाि क़े िाि़े में इल्म हो कक खम्


ु स स़े ज़्यादा थी उस़े उसक़े मामलक क़ी

तिफ़ स़े सदका कि द़े ।

578
1826. अगि कोई शख़्स हिाम स़े मख़्लत
ू हलाल माल का खुम्स द़े या ऐसा

माल जर्जस क़े मामलक को न पहचानता हो मामलक क़े मामलक क़ी तिफ़ स़े सदका

कि द़े औि िाद में उस का मामलक ममल र्जाए तो अगि वह िाज़ी न हो तो

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उसक़े माल क़े ििािि उस़े द़े ना ज़रूिी है।

1827. अगि हलाल माल हिाम माल स़े ममल र्जाए औि हिाम क़ी ममक़्दाि

माअलम
ू हो औि इंसान र्जानता हो कक उसका मामलक चन्द लोगों में स़े ही कोई है

ल़ेककन यह न र्जानता हो कक वह कौन है तो उन सि को इवत्तलाअ द़े चन


ु ांच़े उन

में स़े कोई एक कह़े कक यह म़ेिा माल है औि दस


ू ि़े कहें कक हमािा माल नहीं या

उस माल क़े िाि़े में लाइल्मी का इज़हाि किें तो उसी पहल़े शख़्स को वह माल द़े

द़े औि अगि दो या दो स़े ज़्यादा आदमी कहें कक यह हमािा माल है औि सल्


ु ह या

इस तिह ककसी तिीक़े स़े वह मआ


ु मला हल न हो तो ज़रूिी है कक तनाज़ो क़े हल

क़े मलए हाककम़े शअक स़े रुर्जउ


ू किें औि अगि वह सि लाइल्मी का इज़्हाि किें औि

िाहम सल्
ु ह भी न किें तो ज़ाहहि यह है कक उस माल क़े मामलक का तअय्यन

कुिआ क़े ज़िीए होगा औि एहततयात यह है कक हाककम़े शअक या उस का वक़ील

कुिआ अन्दाज़ी क़ी तनगिानी कि़े ।

579
5. गव्वास़ी से हालसल फकये हुए मोत़ी

1828. अगि गव्वसी क़े ज़िीए यअनी समन्


ु दि में गोता लगा कि या दस
ू ि़े मोती

तनकालें र्जायें तो ख़्वाह ऐसी चीज़ों में स़े हो र्जो उगती है या मअहदनीयात में स़े हों

अगि उसक़ी क़ीमत 18 चऩे सोऩे क़े ििािि हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका खम्
ु स

हदया र्जाए ख़्वाह उन्हें एक दफ़् आ में समन्


ु दि स़े तनकाला गया हो या एक स़े

ज़्यादा दफ़् आ में िशते क़ी पहली दफ़् आ औि दस


ू िी दफ़् आ गोता लगाऩे में ज़्यादा

फ़ामसला न हो मसलन यह कक दो मौसमों में गव्वासी क़ी हो। िसिू त़े दीगि हि

एक दफ़् आ में 18 चऩे सोऩे क़ी क़ीमत क़े ििािि न हो तो उसका खुम्स द़े ना

वाजर्जि नहीं है । औि इसी तिह गव्वासी में शिीक तमाम गोता खोिों में स़े हि एक

का हहस्सा 18 चऩे सोऩे क़ी क़ीमत क़े ििािि न हो तो उन पि खम्


ु स द़े ना वाजर्जि

नहीं है।

1829. अगि समन्


ु दि में गोता लगाए िगैि दस
ू ि़े ज़िाए स़े मोती तनकाल़े र्जायें

तो एहततयात क़ी बिना पि उन पि खुम्स वाजर्जि है ल़ेककन अगि कोई शख़्स

समन्
ु दि क़े पानी क़ी सत्ह या समन्
ु दि क़े ककनाि़े स़े मोती हामसल कि़े तो उन का

खम्
ु स उस़े उस सिू त में द़े ना ज़रूिी है र्जि र्जो मोती उस़े दस्तयाि हुए हों वह

तन्हा या उसक़े कािोिाि क़े दस


ू ि़े मन
ु ाफ़़े स़े ममलाकि उसक़े साल भि क़े

अखिार्जात स़े ज़्यादा हो।

580
1830. मछमलयों औि उन दस
ू ि़े (आिी) र्जानविों का खुम्स जर्जन्ह़े इंसान समन्
ु दि

में गोता लगाए िगैि हामसल किता है उस सिू त में वाजर्जि होता है र्जि उन चीज़ों

स़े हामसल कदाक मन


ु ाफ़ा तन्हा या कािोिाि क़े दस
ू ि़े मन
ु ाफ़़े स़े ममलाकि उसक़े साल

भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हो।

1831. अगि इंसान कोई चीज़ तनकालऩे का इिादा ककय़े िगैि समन्
ु दि में गोता

लगाए औि इवत्तफ़ाक स़े कोई मोती उसक़े हाथ लग र्जाए औि वह उस़े अपनी

ममजल्कयत में ल़ेऩे का इिादा कि़े तो उस का खुम्स द़े ना ज़रूिी है िजल्क एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक हि हाल में उसका खम्


ु स द़े ।

1832. अगि इंसान समन्


ु दि में गोता लगाए औि कोई र्जानवि तनकाल लाए

औि उसक़े प़ेट में स़े उस़े कोई मोती ममल़े तो अगि वह र्जानवि सीपी क़ी मातनन्द

हो जर्जसक़े प़ेट में उमम


ू न मोती होत़े हैं औि वह तनसाि तक पहुंच र्जाए तो ज़रूिी

है कक उसका खुम्स द़े औि अगि वह कोई ऐसा र्जानवि हो जर्जसऩे इवत्तफ़ाकन

मोती तनगल मलया हो तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक अगिच़े वह हद्द़े तनसाि

तक न पहुंच़े ति भी उसका खम्


ु स द़े ।

1833. अगि कोई शख़्स िड़़े दरियाओं मसलन दज्ला औि फ़ुिात में गोता

लगाए औि मोती तनकाल लाए तो अगि उस दरिया में मोती पैदा होत़े हों तो

ज़रूिी है कक (र्जो मोती तनकाल़े) उनका खम्


ु स द़े ।

581
1834. अगि कोई शख़्स पानी में गोता लगाए औि कुछ अंिि तनकाल लाए औि

उसक़ी क़ीमत 18 चऩे सोऩे या उसस़े ज़्यादा हो तो ज़रूिी है कक उस का खम्


ु स द़े

िजल्क अगि पानी क़ी सत्ह या समन्


ु दि क़े ककनाि़े स़े भी हामसल कि़े तो उसका भी

यही हुक्म है ।

1835. जर्जस शख़्स का प़ेशा गोता खोिी हो या कान कनी हो अगि वह उन का

खुम्स अदा कि द़े औि किि उसक़े साल भि क़े अखिार्जात स़े कुछ िच र्जाए तो

उसक़े मलए यह लाजज़म नहीं कक दोिािा खम्


ु स अदा कि़े ।

1836. अगि िच्चा कोई मअहदनी चीज़ तनकाल़े या उस़े कोई दफ़़ीना ममल र्जाए

या समन्
ु दि में गोता लगाकि मोती तनकाल लाए तो िच्च़े का वली उसका खुम्स द़े

औि अगि वली खुम्स अदा न कि़े तो ज़रूिी है कक िच्चा िामलग होऩे क़े िाद

खुम्स अदा कि़े औि इसी तिह अगि उस क़े पास हिाम माल में हलाल माल ममला

हुआ हो तो ज़रूिी है कक उसका वली उस माल को पाक कि़े ।

6. माले गऩीमत

1837. अगि मस
ु लमान इमाम (अ0) क़े हुक्म स़े कुफ़्फ़ाि स़े र्जंग कि़े औि र्जो

चीज़ र्जंग में उनक़े हाथ लग़े उन्हें गनीमत कहा र्जाता है औि उस माल क़ी

हहफ़ाज़त या उसक़ी नक़्लो हम्ल वगैिा क़े मसारिफ़ ममन्हा कि ऩे क़े िाद औि र्जो

िकम इमाम (अ0) अपनी मसल़ेहत क़े मत


ु ाबिक खचक किें औि र्जो माल खास

582
इमाम (अ0) का हक है उस़े अलायहदा किऩे क़े िाद िाक़ीमांदा पि खुम्स अदा

ककया र्जाए। माल़े गनीमत पि खम्


ु स साबित होऩे में अन्फ़ाल स़े हो वह तमाम

मस
ु लमानों क़ी मश
ु तकाक ममजल्कयत है अगिच़े र्जंग इमाम (अ0) क़ी इर्जाज़त स़े न

हो।

1838. अगि मस
ु लमान काकफ़िों स़े इमाम (अ0) क़ी इर्जाज़त क़े िगैि र्जंग कि़े

औि उन स़े माल़े गनीमत हामसल हो तो र्जो गनीमत हामसल हो वह इमाम (अ0)

क़ी ममजल्कयत है औि र्जंग किऩे वालों का उसमें कोई हक नहीं।

1839. र्जो कुछ काकफ़िों क़े हाथ में है अगि उसका मामलक मोहतिमल
ु माल

यअनी मस
ु लमान या काकफ़ि़े जज़म्मी हो तो उस पि गनीमत क़े अहकाम र्जािी नहीं

होंग़े।

1840. काकफ़ि़े हि़ी का माल चिु ाना औि उस र्जैसा कोई काम किना अगि

खखयानत औि नक़्ज़़े अम्न में शम


ु ाि हो तो हिाम है औि इस तिह र्जो चीज़ें उन

स़े हामसल क़ी र्जायें एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उन्हें लौटा दी र्जाए।

1841. मश्हूि यह है कक नामसिी का माल मोममन अपऩे मलए ल़े सकता है

अलित्ता उस का खुम्स द़े ल़ेककन यह हुक्म इश्काल स़े खाली नहीं है।

583
7. वह जम़ीन जो जजम्म़ी काफफ़ि फकस़ी मस
ु लमान से ख़िीदे

1842. अगि काकफ़ि़े जज़म्मी ककसी मस


ु लमान स़े ज़मीन खिीद़े तो मश्हूि कौल

क़ी बिना पि उस का खुम्स उसी ज़मीन स़े या अपऩे ककसी दस


ू ि़े माल स़े द़े

ल़ेककन खम्
ु स क़े आम कवायद क़े मत
ु ाबिक उस सिू त में खम्
ु स क़े वाजर्जि होऩे में

इश्काल है।

ख़ुम्स का मसिफ़

1843. ज़रूिी है कक खुम्स दो हहस्सों में तक़्सीम ककया र्जाए। उसका एक हहस्सा

सादात का हक है औि ज़रूिी है कक ककसी फ़क़ीि सैयद या यतीम सैय्यद या ऐस़े

सैय्यद को हदया र्जाए र्जो सफ़ि में नाचाि हो गया हो। औि दस


ू िा हहस्सा इमाम

(अ0) का है र्जो ज़रूिी है कक मौर्जूदा ज़माऩे में र्जाममइश शिाइत मज्


ु तहहद को

हदया र्जाए या ऐस़े कामों पि जर्जस क़ी वह मज्


ु तहहद इर्जाज़त द़े खचक ककया र्जाए

औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक वह मर्जकअ अअलम उमम


ू ी मसल़ेहतों स़े आगाह

हो।

1844. जर्जस यतीम सैय्यद को खम्


ु स हदया र्जाए ज़रूिी है कक वह फ़क़ीि भी हो

ल़ेककन र्जो सैय्यद सफ़ि में नाचाि हो र्जाए वह ख़्वाह अपऩे वतन में फ़क़ीि न भी

हो उस़े खुम्स हदया र्जा सकता है।

584
1845. र्जो सैय्यद सफ़ि में नाचाि हो गया हो अगि उसका सफ़ि गुनाह का

सफ़ि हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उस़े खम्


ु स न हदया र्जाए।

1846. र्जो सैय्यद आहदल न हो उस़े खस्


ु म हदया र्जा सकता है ल़ेककन र्जो

सैय्यद इसना अशिी न हो ज़रूिी है कक उस़े खुम्स न हदया र्जाए।

1847. र्जो सैय्यद गुनाह का काम किता हो अगि उस़े खम्


ु स द़े ऩे स़े गुनाह

किऩे में उसक़ी मदद होती हो तो उस़े खम्


ु स न हदया र्जाए औि अहव्त यह है कक

उस सैय्यद को भी खुम्स न हदया र्जाए र्जो शिाि पीता हो या नमाज़ न पढ़ता हो

या अलातनया गन
ु ाह किता हो गो खम्
ु स द़े ऩे स़े उस़े गन
ु ाह किऩे में मदद न

ममलती हो।

1848. र्जो शख़्स कह़े कक मैं सैय्यद हूं उस़े उस वक़्त तक खम्
ु स न हदया र्जाए

र्जि तक दो आहदल अश्खास उसक़े सैय्यद होऩे क़ी तसदीक न कि दें या लोगों में

उसका सैय्यद होऩे इतना मशहूि हो कक इंसान को यक़ीन औि इत्मीनान हो र्जाए

कक वह सैय्यद है।

1849. कोई शख़्स अपऩे शहि में सैय्यद मशहूि हो औि उसक़े सैय्यद न होऩे

क़े िाि़े में र्जो िातें क़ी र्जाती हों इंसान को उन पि यक़ीन या इत्मीनान न हो तो

उस़े खुम्स हदया र्जा सकता है।

1850. अगि ककसी क़ी िीवी सैतयदानी हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि

ज़रूिी है कक शौहि उस़े इस मक़्सद क़े मलए खुस्म न द़े कक वह उस़े अपऩे ज़ाती

585
इस्त़ेमाल में ल़े आए ल़ेककन अगि दस
ू ि़े लोगों क़ी कफ़ालत उस औित पि वाजर्जि

हो औि वह उन अखिार्जात क़ी अदायगी स़े कामसि हो तो इंसान क़े मलए र्जाइज़ है

कक अपनी िीवी को खस्


ु म द़े ताकक ज़़ेि़े कफ़ालत लोगों पि खचक कि़े । औि उस

औित को इस गिज़ स़े खुस्म द़े ऩे क़े िाि़े में भी यही हुक्म है र्जिकक वह (यह

िकम) अपऩे गैि वाजर्जि अखिार्जात पि सफ़क कि़े (यअनी इस मक़्सद क़े मलए उस़े

खुस्म नहीं द़े ना चाहहय़े)।

1851. अगि इंसान पि ककसी सैय्यद क़े या ऐसी सैतयदानी क़े अखिार्जात

वाजर्जि हों र्जो उसक़ी िीवी न हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि वह उस

सैय्यद या सैतयदानी क़े खोिाक औि पोशाक को अखिार्जात औि िाक़ी वाजर्जि

अखिार्जात अपऩे खम्


ु स स़े अदा नहीं कि सकता। हां अगि वह उस सैय्यद या

सैतयदानी को खुम्स क़ी कुछ िकम इस मकसद स़े द़े कक वह वाजर्जि अखिार्जात क़े

अलावा उस़े दस
ू िी ज़रूिीयात पि खचक कि़े तो कोई हिर्ज नहीं।

1852. अगि ककसी फ़क़ीि सैय्यद क़े अखिार्जात ककसी दस


ू ि़े शख़्स पि वाजर्जि

हों औि वह शख़्स उस सैय्यद क़े अखिार्जात िदाकश्त न कि सकता हो या

इसततताअत िखता हो ल़ेककन न द़े ता हो तो उस सैय्यद को खुम्स हदया र्जा सकता

है ।

1853. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक ककसी एक फ़क़ीि सैय्यद को उसक़े एक

साल क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा खुम्स न हदया र्जाए।

586
1854. अगि ककसी शख़्स क़े शहि में कोई मस्
ु तहक सैय्यद न हो औि उस़े

यक़ीन या इत्मीनान हो कक कोई ऐसा सैय्यद िाद में भी नहीं ममल़ेगा या र्जि तक

कोई मस्
ु तहक सैय्यद ममल़े खम्
ु स क़ी हहफ़ाज़त किना मजु म्कन न हो तो ज़रूिी है

कक खुम्स दस
ू ि़े शहि में ल़े र्जाए औि मस्
ु तहक को पहुंचा द़े औि खुम्स दस
ू ि़े शहि

ल़े र्जाऩे क़े अखिार्जात खुम्स में स़े ल़े सकता है। औि अगि खुम्स तलफ़ हो र्जाए

तो अगि उस शख़्स ऩे उस क़ी तनगहदाश्त में कोताही ििती हो तो ज़रूिी है कक

उस का एवज़ द़े औि अगि कोताही न ििती हो तो उस पि कुछ भी वाजर्जि नहीं

है ।

1855. र्जि ककसी शख़्स क़े अपऩे शहि में खुम्स का मस्
ु तहक शख़्स मौर्जूद न

हो तो अगिच़े उस़े यक़ीन या इत्मीनान हो कक िाद में ममल र्जाय़ेगा औि खुम्स क़े

मस्
ु तहक शख़्स क़े ममलऩे तक खुम्स क़ी तनगहदाश्त भी मजु म्कन हो ति भी वह

खुम्स दस
ू ि़े शहि ल़े र्जा सकता है औि अगि वह खुम्स क़ी तनगहदाश्त में कोताही

न िित़े औि वह तलफ़ हो र्जाए तो उसक़े मलए कोई चीज़ द़े ना ज़रूिी नहीं ल़ेककन

वह खम्
ु स क़े दस
ू िी र्जगह ल़े र्जाऩे क़े अखिार्जात खम्
ु स में स़े नहीं ल़े सकता।

1856. अगि ककसी शख़्स क़े अपऩे शहि में खुम्स का मस्
ु तहक ममल र्जाए ति

भी वह खुम्स दस
ू ि़े शहि ल़े र्जाकि मस्
ु तहक को पहुंचा सकता है अलित्ता खुम्स

का एक शहि स़े दस
ू ि़े शहि ल़े र्जाना इस कर ताखीि का मजू र्जि न हो कक खुम्स

पहुंचाऩे में सस्


ु ती शम
ु ाि हो ल़ेककन ज़रूिी है कक उस़े ल़े र्जाऩे क़े अखिार्जात खुद

587
अदा कि़े औि इस सिू त में अगि खुम्स ज़ाए हो र्जाए तो अगिच़े उस ऩे उसक़ी

तनगहदाश्त में कोताही न ििती हो वह उसका जज़म्म़ेदाि है ।

1857. अगि कोई शख़्स हाककम़े शअक क़े हुक्म स़े खम्
ु स दस
ू ि़े शहि ल़े र्जाए औि

वह तलफ़ हो र्जाए तो उसक़े मलए दोिािा खुम्स द़े ना लाजज़म नहीं औि इसी तिह

अगि वह खुम्स हाककम़े शअक क़े वक़ील को द़े द़े र्जो खुम्स क़ी वसल
ू ी पि मामिू हो

औि वह वक़ील खुम्स को एक शहि स़े दस


ू ि़े शहि ल़े र्जाए तो उसक़े मलए भी यही

हुक्म है ।

1858. यह र्जाइज़ नहीं कक ककसी चीज़ क़ी क़ीमत उस क़ी अस्ल क़ीमत स़े

ज़्यादा लगा कि उस़े ितौि़े खुम्स हदया र्जाए औि र्जैसा कक मस ्अला 1797 में

िताया गया है कक ककसी दस


ू िी जर्जन्स क़ी शक्ल में खुम्स अदा किना मामसवा

सोऩे औि चााँदी क़े मसक्कों औि उन्हीं र्जैसी दस


ू िी चीज़ों क़े हि सिू त में महल्ल़े

इश्काल है।

1859. जर्जस शख़्स को मस्


ु तहक शख़्स स़े कुछ ल़ेना हो औि चाहता हो कक

अपना कज़ाक खम्


ु स क़ी िकम स़े ममन्हा कि ल़े तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि

ज़रूिी है कक या तो हाककम़े शअक स़े इर्जाज़त ल़े या खुम्स उस शख़्स को द़े द़े औि

िाद में मस्


ु तहक शख़्स उस़े वह माल कज़े क़ी अदायगी क़े तौि पि लौटा द़े औि

वह यह भी कि सकता है कक खुम्स क़े मस्


ु तहक शख़्स क़ी इर्जाज़त स़े उसका

वक़ील िन कि खुद उसक़ी तिफ़ स़े खुम्स ल़े ल़े औि उसस़े अपना कज़ाक चक
ु ा ल़े।

588
1860. मामलक, खुम्स क़े मस्
ु तहक शख़्स स़े यह शतक नहीं कि सकता कक वह

खम्
ु स ल़ेऩे क़े िाद उस़े वापस लौटा द़े । ल़ेककन अगि मस्
ु तहक शख़्स खम्
ु स ल़ेऩे क़े

िाद उस़े वापस द़े ऩे पि िाज़ी हो र्जाए तो इस में कोई हिर्ज नहीं है । मसलन जर्जस

शख़्स क़े जज़म्म़े खुम्स क़ी ज़्यादा िकम वाजर्जिल


ु अदा हो औि वह फ़क़ीि हो गया

हो औि चाहता हो कक खुम्स क़े मस्


ु तहक लोगों का मकरूज़ न िह़े तो अगि खुम्स

का मस्
ु तहक शख़्स िाज़ी हो र्जाए कक उसस़े खुम्स ल़े कि किि उसको िख़्श द़े तो

इस में कोई हिर्ज नहीं है।

जकात के अहकाम

1861. ज़कात चन्द चीज़ों पि वाजर्जि हैः

1. ग़ेहूाँ, 2. र्जौ, 3. खर्जिू , 4. ककशममश, 5. सोना, 6. चांदी, 7. ऊंट, 8. गाय,

9. भ़ेड़, िकिी, 10. एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि माल़े ततर्जाित।

अगि कोई शख़्स इन दस चीज़ों में स़े ककसी एक का मामलक हो तो उन शिाइत

क़े तहत जर्जन का जज़क्र िाद में ककया र्जाय़ेगा ज़रूिी है कक र्जो ममकदाि मक
ु िक ि क़ी

गई है उस़े उन मसारिफ़ में स़े ककसी एक मद में खचक कि़े जर्जन का हुक्म हदया

गया है ।

589
1862. सल्
ु त र्जो ग़ेहूाँ क़ी तिह एक नमक अनार्ज है औि जर्जस़े ि़े तछल्क़े का र्जौ

भी कहत़े हैं औि अलस पि र्जो ग़ेहूाँ क़ी एक ककस्म है औि सनआ (यमन) क़े

लोगों क़ी चगज़ा है एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि र्जकात द़े ना ज़रूिी है।

जकात वाजजब होने की शिाइत

1863. ज़कात मज़कूिा दस चीज़ों पि इस सिू त में वाजर्जि होती है र्जि माल

उस तनसाि क़ी ममक़्दाि तक पहुंच र्जाए जर्जसका जज़क्र िाद में ककया र्जाय़ेगा औि

वह माल इंसान क़ी अपनी ममजल्कयत हो औि उसका मामलक आज़ाद हो।

1864. अगि इंसान ग्यािा महीऩे गाय, भ़ेड़ िकिी, ऊंट, सोऩे या चांदी का

मामलक िह़े तो अगिच़े िािहवें महीऩे क़ी पहली तािीख को ज़कात उस पि वाजर्जि

हो र्जाय़ेगी ल़ेककन ज़रूिी है कक अगल़े साल क़ी इजबतदा का हहसाि िािहवें महीऩे

क़े खाततम़े क़े िाद स़े कि़े ।

1865. सोऩे, चांदी औि माल़े ततर्जाित पि ज़कात क़े वाजर्जि होऩे क़ी शतक यह है

कक उन चीज़ों का मामलक िामलग औि आककल हो। ल़ेककन ग़ेहूं, र्जौ, खर्जिू ,

ककशममश औि इसी तिह ऊंट, गाय औि भ़ेड़ िकरियों में मामलक का िामलग औि

आककल होना शतक नहीं है।

1866. ग़ेहूं औि र्जौ पि ज़कात उस वक़्त वाजर्जि होती है र्जि उन्हें ग़ेहूं औि र्जौ

कहा र्जाए। ककशममश पि र्जकात उस वक़्त वाजर्जि होती है र्जि वह अभी अंगिू क़ी

590
ही सिू त में हो। औि खर्जूि पि ज़कात उस वक़्त वाजर्जि होती है र्जि (वह पक

र्जायें औि) अिि उस़े तमि कहें । ल़ेककन ग़ेहूं औि र्जौ में ज़कात का तनसाि द़े खऩे

औि ज़कात द़े ऩे का वक़्त वह होता है, र्जि यह गल्ला खमलयान में पहुंच़े औि उस

(क़ी िामलयों) स़े भस


ू ा औि दाना अलग ककया र्जाए। र्जिकक खर्जिू औि ककशममश

में यह वक़्त वह होता है र्जि उन्हें उताि ल़ेत़े हैं। उस वक़्त को खुश्क होऩे का

वक़्त भी कहत़े हैं।

1867. ग़ेहूं, र्जौ, ककशममश औि खर्जूि में ज़कात साबित होऩे क़े मलए र्जैसा कक

साबिका मस ्अल़े में िताया गया है अक़्वा क़ी बिना पि मोअतिि नहीं है कक उन

का मामलक उनमें तसरुक फ़ कि सक़े। पस अगि मामलक गायि हो औि माल भी

उस क़े या उसक़े वक़ील क़े हाथ में न हो मसलन ककसी ऩे उन चीज़ों को गस्ि

कि मलया हो ति भी ज़कात उन चीज़ों में साबित है ।

1868. सोऩे, चांदी औि माल़े ततर्जाित में ज़कात साबित होऩे क़े मलए, र्जैसा कक

ियान हो चक
ु ा, ज़रूिी है कक मामलक आककल हो अगि मामलक पिू ा साल या साल

का कुछ हहस्सा दीवाना िह़े तो उस पि ज़कात वाजर्जि नहीं है।

1869. अगि गाय, भ़ेड़, ऊंट, सोऩे औि चांदी, का मामलक साल का कुछ हहस्सा

मस्त (ि़ेहवास) या ि़ेहोश िह़े तो ज़कात उस पि स़े साककत नहीं होती औि इसी

तिह ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि ककशममश का मामलक ज़कात वाजर्जि होऩे क़े मौक़े पि

मस्त या ि़ेहोश हो र्जाए तो भी यही हुक्म है ।

591
1870. ग़ेहूं, र्जौ, खर्जिू औि ककशममश क़े अलावा दस
ू िी चीज़ों में ज़कात साबित

होऩे क़े मलए यह शतक है कक मामलक उस माल में तसरुक फ़ किऩे क़ी कुदित िखता

हो पस अगि ककसी ऩे उस माल को गस्ि कि मलया हो औि मामलक उस माल में

तसरुक फ़ न कि सकता हो तो उसमें ज़कात नहीं है।

1871. अगि ककसी ऩे सोना औि चांदी या कोई औि चीज़ जर्जस पि ज़कात द़े ना

वाजर्जि हो ककसी स़े कज़क ली हो औि वह चीज़ एक साल तक उस क़े पास िह़े तो

ज़रूिी है कक उसक़ी ज़कात द़े औि जर्जसऩे कज़क हदया हो उस पि कुछ वाजर्जि नहीं

है ।

गेह़ूं, जौ, खजि़ू औि फकशलमश की जकात

1872. ग़ेहूं, र्जौ, खर्जिू औि ककशममश पि ज़कात उस वक़्त वाजर्जि होती है र्जि

वह तनसाि क़ी हद तक पहुंच र्जायें औि उन का तनसाि तीन सौ साअ है र्जो एक

गुिोह़े (उलमा) क़े िकौल तक़्ऱीिन 847 ककलो होता है।

1873. जर्जस अंगूि, खर्जिू , र्जौ औि गें हू पि ज़कात वाजर्जि हो चक


ु ़ी हो अगि

कोई शख़्स खुद या उसक़े अहलो अयाल उस़े खा लें या मसलन वह यह अज्नास

ककसी फ़क़ीि को ज़कात क़ी नीयत क़े िगैि द़े द़े तो ज़रूिी है कक जर्जतनी ममक़्दाि

इस्त़ेमाल क़ी हो उस पि ज़कात द़े ।

592
1874. अगि ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि अंगिू पि ज़कात वाजर्जि होऩे क़े िाद उन

चीज़ों का मामलक मि र्जाए तो जर्जतनी ज़कात िनती हो वह उसक़े माल स़े द़े नी

ज़रूिी है ल़ेककन अगि वह शख़्स ज़कात वाजर्जि होऩे स़े पहल़े मि र्जाए तो वह

वारिस जर्जसका हहस्सा तनसाि तक पहुंच र्जाए – ज़रूिी है कक अपऩे हहस्स़े क़ी

ज़कात खुद अदा कि़े ।

1875. र्जो शख़्स हाककम़े शअक क़ी तिफ़ स़े ज़कात र्जमा किऩे पि मामिू हो वह

ग़ेहूं औि र्जौ क़े खमलयान में भस


ू ा (औि दाना) अलग किऩे क़े वक़्त औि खर्जूि

औि अंगिू क़े खश्ु क होऩे क़े वक़्त ज़कात का मत


ु ालिा कि सकता है औि अगि

मामलक न द़े औि जर्जस चीज़ पि ज़कात वाजर्जि हो गई हो वह तलाफ़ हो र्जाए तो

ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े ।

1876. अगि ककसी शख़्स क़े खर्जूि क़े दिख़्तों, अंगूि क़ी ि़ेलों या ग़ेहूं औि र्जौ

क़े ख़ेतों (क़ी पैदावाि) का मामलक िनऩे क़े िाद उन चीर्जों पि ज़कात वाजर्जि हो

र्जाए तो ज़रूिी है कक उन पि ज़कात द़े ।

1877. अगि ग़ेहूं, र्जौ औि अंगिू पि ज़कात वाजर्जि होऩे क़े िाद कोई शख़्स

ख़ेतों औि दिख़्तों को ि़ेच द़े तो ि़ेचऩे वाल़े पि उन अज्नास क़ी ज़कात वाजर्जि है

औि र्जि वह ज़कात अदा कि द़े तो खिीदऩे वाल़े पि कुछ वाजर्जि नहीं है ।

1878. अगि कोई शख़्स ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि या अंगूि खिीद़े औि उस़े इल्म हो कक

ि़ेचऩे वाल़े ऩे उनक़ी ज़कात द़े दी है या शक कि़े कक उस ऩे ज़कात दी है या नहीं

593
तो उस पि कुछ वाजर्जि नहीं है औि अगि उस़े मअमल
ू हो कक ि़ेचऩे वाल़े ऩे उन

पि ज़कात नहीं दी तो ज़रूिी है कक वह खद


ु उस पि ज़कात द़े द़े ल़ेककन अगि

ि़ेचऩे वाल़े ऩे दग्ल ककया हो तो वह ज़कात द़े ऩे क़े िाद उसस़े रुर्जउ
ू कि सकता है

औि ज़कात क़ी ममक़्दाि का उस स़े मत


ु ालिा कि सकता है।

1879. अगि ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि अंगूि का वर्जन ति होऩे क़े वक़्त तनसाि क़ी

हद तक पहुंच र्जाए औि खुश्क होऩे क़े वक़्त उस हद स़े कम हो र्जाए तो उस पि

ज़कात वाजर्जि नहीं है।

1880. अगि कोई शख़्स ग़ेहूं, र्जौ औि खर्जिू को खश्ु क होऩे क़े वक़्त स़े पहल़े

खचक कि़े तो अगि वह खुश्क हो कि तनसाि पि पिू ी उतिें तो ज़रूिी है कक उनक़ी

ज़कात द़े ।

1881. खर्जूि क़ी तीन ककस्में हैं –

1. वह जर्जस़े खुश्क ककया र्जाता है (यअनी छुआि़े ) उसक़ी ज़कात का हुक्म ियान

हो चक
ु ा है।

2. रुति – वह र्जो रुति (पक़ी हुई िसदाि) होऩे क़ी हालत में खाई र्जाती है ।

3. वह र्जो कच्ची ही खाई र्जाती है ।

दस
ू िी ककस्म क़ी ममक़्दाि अगि खश्ु क होऩे तक तनसाि क़ी हद तक पहुंच र्जाए

तो एहततयात़े मस्
ु तहि है कक उसक़ी ज़कात दी र्जाए। र्जहां तक तीसिी ककस्म का

तअल्लक
ु है ज़ाहहि यह है कक उस पि ज़कात वाजर्जि नहीं है ।

594
1882. जर्जस ग़ेहूं, र्जौ, खर्जिू औि ककशममश क़ी ज़कात ककसी शख़्स ऩे द़े दी हो

अगि वह चन्द साल उसक़े पास पड़ी भी िह़े तो उन पि दोिािा ज़कात वाजर्जि नहीं

होगी।

1883. अगि ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि अंगूि (क़ी काश्त) िािानी या नहिी ज़मीन पि

क़ी र्जाए या ममस्त्री जज़िाअत क़ी तिह उन्हें ज़मीन क़ी नमी स़े फ़ाइदा पहुंच़े तो

उन पि ज़कात दसवां हहस्सा है औि अगि उनक़ी मसंचाई (झील या कुयें वगैिा) क़े

पानी स़े िज़िीअए डोल क़ी र्जाए तो उन पि ज़कात िीसवां हहस्सा है ।

1884. अगि ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि अंगिू (क़ी काश्त) िारिश क़े पानी स़े भी

स़ेिाि हो औऱ उस़े डोल वगैिा क़े पानी स़े भी फ़ाइदा पहुंच़े तो अगि यह मसचांई

ऐसी हो कक आम तौि पि कहा र्जा सक़े कक उनक़ी मसचाई डोल वगैिा स़े क़ी गई

है तो उस पि ज़कात िीसवां हहस्सा है। औि अगि यह कहा र्जाए कक यह नहि

औि िारिश क़े पानी स़े स़ेिाि हुए हैं तो उन पि ज़कात का दसवां हहस्सा है औि

अगि मसंचाई क़ी सिू त यह हो कक आम तौि पि कहा र्जाए कक दोनों ज़िाए स़े

स़ेिाि हुए हैं तो उस पि ज़कात साढ़़े सात फ़़ीसद है।

1885. अगि कोई शक कि़े कक आम तौि पि कौन सी िात सहीह समझी

र्जाय़ेगी औि उस़े इल्म न हो कक मसंचाई क़ी सिू त ऐसी है कक लोग आम तौि पि

595
कहें कक दोनों ज़िाए स़े मसंचाई हुई या यह कहें कक मसलन िारिश क़े पानी स़े हुई

है तो अगि वह साढ़़े सात फ़़ीसदी ज़कात द़े तो काफ़़ी है ।

1886. अगि कोई शक कि़े औि उस़े इल्म न हो कक उमम


ू न लोग कहत़े हैं कक

दोनों ज़िा ए स़े मसंचाई हुई है या यह कहत़े हैं कक डोल वगैिा स़े हुई है तो उस

सिू त में िीसवां हहस्सा द़े ना काफ़़ी है औि अगि इस िात का एहततमाल भी हो कक

उमम
ू न लोग कहें कक िारिश क़े पानी स़े स़ेिाि हुई है ति भी यही हुक्म है ।

1887. अगि ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि अंगिू िारिश औि नहि क़े पानी स़े स़ेिाि हों

औि उन्हें डोल वगैिा क़े पानी क़ी हार्जत न हो ल़ेककन उनक़ी मसंचाई डोल क़े पानी

स़े भी हुई हो औि डोल क़े पानी स़े आमदनी में इज़ाफ़़े में कोई मदद न ममली हो

तो उन पि ज़कात दसवां हहस्सा है औि अगि डोल वगैिा क़े पानी स़े मसंचाई हुई

हो औि नहि औि िारिश क़े पानी क़ी हार्जत न हो ल़ेककन नहि औि िारिश क़े

पानी स़े भी स़ेिाि हों औि उसस़े आमदनी में इज़ाफ़़े में कोई मदद न ममली हो तो

उन पि ज़कात िीसवां हहस्सा है।

1888. अगि ककसी ख़ेत क़ी मसंचाई डोल वगैिा स़े क़ी र्जाए औि उसस़े मल
ु ाहहका

(ममली हुई) ज़मीन में ख़ेती िाड़ी क़ी र्जाए औि वह मल


ु ाहहका ज़मीन उस ज़मीन स़े

फ़ाइदा उठाए औि उस़े मसंचाई क़ी ज़रूित न िह़े तो जर्जस ज़मीन क़ी मसंचाई डोल

वगैिा स़े क़ी गई है उस क़ी ज़कात िीसवां हहस्सा औि उस स़े मल


ु ाहहका ख़ेत क़ी

ज़कात एहततयात क़ी बिना पि दसवां हहस्सा है।

596
1889. र्जो अखिार्जात ककसी शख़्स ऩे ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि अंगिू पि ककय़े हों

उन्हें वह फ़स्ल क़ी आमदनी स़े ममन्हा कि क़े तनसाि का हहसाि नहीं लगा सकता

मलहाज़ा अगि उनमें स़े ककसी एक का वज़न अखिार्जात का हहसाि लगाऩे स़े पहल़े

तनसाि क़ी ममक़्दाि तक पहुंच र्जाए तो ज़रूिी है कक उस पि ज़कात द़े ।

1890. जर्जस शख़्स ऩे जज़िाअत में िीर्ज इस्त़ेमाल ककया हो ख़्वाह वह उस क़े

पास मौर्जूद हो या उस ऩे खिीदा हो, वह तनसाि का हहसाि उस िीर्ज को फ़स्ल

क़ी आमदनी स़े ममन्हा कि क़े नहीं िख सकता िजल्क ज़रूिी है कक तनसाि का

हहसाि पिू ी फ़स्ल को मद्द़े नज़ि िखत़े हुए लगाए।

1891. र्जो कुछ हुकूमत असली माल स़े (जर्जस पि ज़कात वाजर्जि हो) ितौि

मह्सल
ू ल़े ल़े उस पि ज़कात वाजर्जि नहीं है । मसलन अगि ख़ेत क़ी पैदावाि

2000 ककलो हो औि हुकूमत उसमें स़े 100 ककलो ितौि लगान क़े ल़े ल़े तो

ज़कात फ़कत 1900 ककलो पि वाजर्जि है ।

1892. एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि इंसान यह नहीं कि सकता कक र्जो

अखिार्जात उसऩे ज़कात वाजर्जि होऩे स़े पहल़े ककय़े हों उन्हें वह पैदावाि स़े ममन्हा

कि़े औि मसफ़क िाक़ी मांदा पि ज़कात द़े ।

1893. ज़कात वाजर्जि होऩे क़े िाद र्जो अखिार्जात ककय़े र्जायें औि र्जो कुछ

ज़कात क़ी ममक़्दाि क़ी तनस्ित खचक ककया र्जाए वह पैदावाि स़े ममन्हा नहीं ककया

597
र्जा सकता अगिच़े एहततयात क़ी बिना पि हाककम़े शअक या उसक़े वक़ील स़े उसको

खचक किऩे क़ी इर्जाज़त भी ल़े ली हो।

1894. ककसी शख़्स क़े मलए यह वाजर्जि नहीं कक वह इजन्तज़ाि कि़े ताकक र्जौ

औि ग़ेहूं खमलयान तक पहुंच र्जायें औि अंगिू औि खर्जूि क़े खुश्क होऩे का वक़्त

हो र्जाए किि ज़कात द़े िजल्क र्जंू ही ज़कात वाजर्जि हो र्जाइज़ है कक ज़कात क़ी

ममक़्दाि का अन्दाज़ा लगाकि वह क़ीमत ितौि ज़कात द़े ।

1895. ज़कात वाजर्जि होऩे क़े िाद मत


ु अजल्लका शख़्स यह कि सकता है कक

खड़ी फ़स्ल काटऩे या खर्जिू औि अंगिू को चन


ु ऩे स़े पहल़े ज़कात मस्
ु तहक शख़्स

या हाककम़े शअक या उसक़े वक़ील को मश


ु तकाक तौि पि प़ेश कि द़े औि उसक़े िाद

वह अखिार्जात में शिीक होंग़े।

1896. र्जि कोई शख़्स फ़स्ल या खर्जूि औि अंगूि क़ी ज़कात ऐन माल क़ी

शक्ल में हाककम़े शअक या मस्


ु तहक शख़्स या उन क़े वक़ील को द़े द़े तो उसक़े

मलए ज़रूिी नहीं कक बिला मआ


ु वज़ा मश
ु तकाक तौि पि उन चीज़ों क़ी हहफ़ाज़त कि़े

िजल्क वह फ़स्ल क़ी कटाई या खर्जिू औि अंगिू क़े खश्ु क होऩे तक माल़े ज़कात

अपनी ज़मीन में िहऩे क़े िदल़े उज्रत का मत


ु ालिा कि सकता है ।

1897. अगि इंसान कई शहिो में ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि या अंगूि का मामलक हो औि

उन शहिों में फ़स्ल पकऩे का वक़्त एक दस


ू ि़े स़े मख़्
ु तमलफ़ हो औि उन पि सि

शहिों स़े फ़स्ल औि म़ेव़े एक ही वक़्त में दस्तयाि न होत़े हों औि यह सि एक

598
साल क़ी पैदावाि शम
ु ाि होतें हों तो अगि उनमें स़े र्जो चीज़ पहल़े पक र्जाए वह

तनसाि क़े मत
ु ाबिक हो तो ज़रूिी है कक उस पि उसक़े पकऩे क़े वक़्त ज़कात द़े

औि िाक़ी मांदा अज्नास पि उस वक़्त ज़कात द़े र्जि वह दस्तयाि हों औि अगि

पहल़े पकऩे वाली चीज़ तनसाि क़े ििािि न हो तो इजन्तज़ाि कि़े ताकक िाक़ी

अज्नास पक र्जायें। किि अगि सि ममला कि तनसाि क़े ििािि हो र्जायें तो उन

पि ज़कात वाजर्जि है औि अगि तनसाि क़े ििािि न हों तो उन पि ज़कात वाजर्जि

नहीं है।

1898. अगि खर्जिू औि अंगिू क़े दिख़्त साल में दो दफ़् आ िल दें औि दोनों

मतकिा क़ी पैदावाि र्जम ्अ किऩे पि तनसाि क़े ििािि हो र्जाए तो एहततयात क़ी

बिना पि उस पैदावाि पि ज़कात वाजर्जि है।

1899. अगि ककसी शख़्स क़े पास गैि खुश्कशद


ु ा खर्जूिें हों या अंगूि हों र्जो

खुश्क होऩे क़ी सिू त में तनसाि क़े मत


ु ाबिक हों तो अगि उनक़े ताज़ा होऩे क़ी

हालत में वह ज़कात क़ी नीयत स़े उतनी ममक़्दाि ज़कात क़े मसिफ़ में ल़े आए

जर्जतनी उनक़े खश्ु क होऩे पि ज़कात क़ी उस ममक़्दाि क़े ििािि हो र्जो उस पि

वाजर्जि है तो उसमें कोई हिर्ज नहीं है।

1900. अगि ककसी शख़्स पि खश्ु क खर्जिू या ककशममश क़ी ज़कात वाजर्जि हो

तो वह उन क़ी ज़कात ताज़ा खर्जूि या अंगिू क़ी शक्ल में नहीं द़े सकता िजल्क

अगि वह खश्ु क खर्जिू या ककशममश क़ी ज़कात क़ी क़ीमत लगाए औि अंगिू या

599
ताज़ा खर्जिू ें या ककशममश या कोई औि खश्ु क खर्जूिें इस क़ीमत क़े तौि पि द़े तो

उसमें भी इश्काल है नीज़ अगि ककसी पि ताज़ा खर्जिू या अंगिू क़ी ज़कात वाजर्जि

हो तो वह खश्ु क खर्जिू या ककशममश द़े कि वह ज़कात अदा नहीं कि सकता िजल्क

अगि वह क़ीमत लगाकि कोई खर्जूि या अंगूि द़े तो अगिच़े वह ताज़ा ही हो

उसमें इश्काल है ।

1901. अगि कोई ऐसा शख़्स मि र्जाए र्जो मकरूज़ हो औि उसक़े पास ऐसा

माल भी हो जर्जस पि ज़कात वाजर्जि हो चक


ु ़ी हो तो ज़रूिी है कक जर्जस माल पि

ज़कात वाजर्जि हो चक
ु ़ी हो पहल़े उसमें स़े तमाम ज़कात दी र्जाए औि उसक़े िाद

उस का कज़ाक अदा ककया र्जाए।

1902. अगि कोई ऐसा शख़्स मि र्जाए र्जो मकरूज़ हो औि उसक़े पास ग़ेहूं,

र्जौ, खर्जिू या अंगूि भी हो औि इसस़े पहल़े कक उन अज्नास पि ज़कात वाजर्जि हो

उसक़े वसाक उस का कज़ाक ककसी दस


ू ि़े माल स़े अदा कि दें तो जर्जस वारिस का

हहस्सा तनसाि क़ी ममक़्दाि तक पहुंचता हो ज़रूिी है कक ज़कात द़े औि अगि इसस़े

पहल़े कक ज़कात उन अज्नास पि वाजर्जि हो मत


ु ावफ़्फ़़ी का कज़ाक अदा न किें औि

अगि उसका माल फ़कत उस कज़े स़े ज़्यादा हो र्जिकक मत


ु वफ़्फ़़ी पि उतना कज़क

हो कक अगि उस़े अदा किऩे चाह़े तो अदा कि सकें ज़रूिी है कक ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि

औि अंगिू में स़े कुछ ममक़्दाि भी कज़कख़्वाह को दें । मलहाज़ा र्जो कुछ कज़कख़्वाह को

600
दें उस पि ज़कात नहीं है औि िाक़ी मांदा माल पि वारिसों में स़े जर्जस का भी

हहस्सा ज़कात क़े तनसाि क़े ििािि हो उसक़ी ज़कात द़े ना ज़रूिी है ।

1903. जर्जस शख़्स क़े पास अच्छ औि र्हटया दोनों ककस्म क़े ग़ेहूं, र्जौ, खर्जिू

औि अंगूि हों जर्जन पि ज़कात वाजर्जि हो गई हो उसक़े मलए एहततयात़े वाजर्जि यह

है कक अच्छ़े औि र्हटया दोनों अक़्साम में स़े अलग अलग ज़कात तनकाल़े।

सोने का तनसाब

1904. सोऩे क़े तनसाि दो हैं –

उसका पहला तनसाि िीस ममस्काल़े शिई है र्जिकक हि ममस्काल़े शिई 18 नखुद

का होता है। पस जर्जस वक़्त सोऩे क़ी ममक़्दाि िीस ममस्काल़े शिई तक, र्जो

आर्जकल क़े पन्रह ममस्काल क़े ििािि होत़े हैं, पहुंच र्जाए औि वह दस
ू िी शिाइत

भी पिू ी होती हों र्जो ियान क़ी र्जा चक


ु ़ी हैं तो ज़रूिी है कक इंसान उस का

चालीसवां हहस्सा र्जो 1 (9) नखुद क़े ििािि होता है ज़कात क़े तौि पि द़े औि

अगि सोना उस ममक़्दाि तक न पहुंच़े तो उस पि ज़कात वाजर्जि नहीं है । औि

उसका दस
ू िा तनसाि चाि ममस्काल़े शिई है र्जो आर्जकल क़े तीन ममस्काल क़े

ििािि होता है यअनी अगि पन्रह ममस्काल पि तीन ममस्काल का इज़ाफ़ा हो र्जाए

तो ज़रूिी है कक मसफ़क 15 ममस्काल पि ज़कात द़े इस सिू त में इज़ाफ़़े यअनी अगि

तीन ममस्काल इज़ाफ़ा हो तो ज़रूिी है कक तमाम तक ममक़्दाि पि ज़कात द़े औि

601
अगि इज़ाफ़ा तीन ममस्काल स़े कम हो तो र्जो ममक़्दाि िढ़ी हो उस पि कोई

ज़कात नहीं है।

चांदी का तनसाब

1905. चांदी क़े तनसाि दो हैं -

इस का पहला तनसाि 105. मिु व्वर्जा ममस्काल है मलहाज़ा र्जि चांदी क़ी ममक़्दाि

105 ममस्काल तक पहुंच आए औि दस


ू िी शिाइत भी पिू ी किती हो र्जो ियान क़ी

र्जा चक
ु ़ी हैं तो ज़रूिी है कक इंसान उसका ढ़ाई फ़़ीसदी र्जो दो ममस्काल औि 15

नखुद िनता है ितौि ज़कात द़े औि अगि वह उस ममक़्दाि तक न पहुंच़े तो उस

पि ज़कात वाजर्जि नहीं है औि उसका दस


ू िा तनसाि 21 ममस्काल है यअनी अगि

105 ममस्काल 21 ममस्काल का इज़ाफ़ा हो र्जाए तो ज़रूिी है कक 105 ममस्काल

पि ज़कात द़े औि र्जो इज़ाफ़ा हुआ है उस पि ज़कात नहीं है औि जर्जतना भी

इज़ाफ़ा होता र्जाए यही हुक्म है यअनी अगि 21 ममस्काल का इज़ाफ़ा हो तो वह

ममक़्दाि जर्जसका इज़ाफ़ा हुआ है औि र्जो 21 ममस्काल स़े कम है औि उस पि

ज़कात नहीं है । इस बिना पि इंसान क़े पास जर्जतना सोना या चांदी हो अगि वह

उसका चालीसवां हहस्सा ितौि ज़कात द़े तो वह ऐसी ज़कात अदा कि़े गा र्जो उस

पि वाजर्जि थी औि अगि वह ककसी वक़्त ममक़्दाि स़े कुछ ज़्यादा द़े मसलन अगि

ककसी क़े पास 110 ममस्काल चांदी हो औि वह उसका चालीसवां हहस्सा द़े तो 105

602
ममस्काल क़ी ज़कात तो वह होगी र्जो उस पि वाजर्जि थी औि 5 ममस्काल पि वह

ऐसी ज़कात द़े गा र्जो उस पि वाजर्जि न थी।

1906. जर्जस शख़्स क़े पास तनसाि क़े मत


ु ाबिक सोना या चांदी हो अगिच़े वह

उस पि ज़कात द़े द़े ल़ेककन र्जि तक उसक़े पास सोना या चांदी पहल़े तनसाि स़े

कम न हो र्जाए ज़रूिी है कक हि साल उन पि ज़कात द़े ।

1907. सोऩे औि चांदी पि ज़कात उस सिू त में वाजर्जि होती है र्जि वह ज़रूिी

है कक ढल़े हुए मसक्कों क़ी सिू त में हों औि उनक़े ज़िीए ल़ेन द़े न का रिवार्ज हो

औि अगि उनक़ी मह
ु ि ममट भी चक
ु ़ी हो ति भी ज़रूिी है कक उन पि ज़कात दी

र्जाए।

1908. वह मसक्कादाि सोना या चांदी जर्जन्हें औितें ितौि ज़़ेवि पहनती हों र्जि

तक वह िाइर्ज हों यअनी सोऩे औि चांदी क़े मसक्कों क़े तौि पि उनक़े ज़िीए ल़ेन

द़े न होता हो एहततयात क़ी बिना पि उनक़ी ज़कात द़े ना वाजर्जि है ल़ेककन अगि

उनक़े ज़िीए ल़ेन द़े न का रिवार्ज िाक़ी न हो तो उन पि ज़कात वाजर्जि नहीं है ।

1909. जर्जस शख़्स क़े पास सोना औि चांदी दोनों हों अगि उनमें स़े कोई भी

पहल़े तनसाि क़े ििािि न हो मसलन उसक़े पास 104 ममस्काल चांदी औि 15

ममस्काल सोना हो तो उस पि ज़कात वाजर्जि नहीं है ।

1910. र्जैसा कक पहल़े िताया गया है कक सोऩे औि चांदी पि ज़कात उस सिू त

में वाजर्जि होती है र्जि वह ग्यािा महीऩे तनसाि क़ी ममक़्दाि क़े मत
ु ाबिक ककसी

603
शख़्स क़ी ममजल्कयत में िह़े औि अगि ग्यािा महीनों में ककसी वक़्त सोना औि

चांदी तनसाि स़े कम हो र्जायें तो उस शख़्स पि ज़कात वाजर्जि नहीं है ।

1911. अगि ककसी शख़्स क़े पास सोना औि चांदी हो औि वह ग्यािा महीऩे क़े

दौिान उन्हें ककसी दस


ू िी चीज़ स़े िदल ल़े या उन्हें वपर्ला ल़े तो उस पि ज़कात

वाजर्जि नहीं है ल़ेककन अगि वह ज़कात स़े िचऩे क़े मलए उनको सोऩे या चांदी स़े

िदल ल़े यअनी सोऩे को सोऩे औि चांदी को चांदी या सोऩे स़े िदल ल़े तो

एहततयात़े वाजर्जि है कक ज़कात द़े ।

1912. अगि कोई शख़्स िािहवें महीऩे में सोना या चांदी वपघ्लाए तो ज़रूिी है

कक उन पि ज़कात द़े औि अगि वपर्लाऩे क़ी वर्जह स़े उन का वज़न या क़ीमत

कम हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उन चीज़ों को वपर्लाऩे स़े पहल़े र्जो ज़कात उस पि

वाजर्जि थी वह द़े ।

1913. अगि ककसी शख़्स क़े पास र्जो सोना औि चांदी हो उसमें स़े कुछ िहढ़या

औि कुछ र्हटया ककस्म का हो तो वह िहढ़या क़ी ज़कात िहढ़या में स़े औि र्हटया

क़ी ज़कात र्हटया में स़े द़े सकता है । ल़ेककन एहततयात क़ी बिना पि वह र्हटया

हहस्स़े में स़े तमाम ज़कात नहीं द़े सकता िजल्क ि़ेहति यह है कक सािी ज़कात

िहढ़या सोऩे औि चांदी में स़े द़े ।

1914. सोऩे औि चांदी क़े मसक्क़े जर्जनमें मअमल


ू स़े ज़्यादा दस
ू िी धातु क़ी

आमोजज़श हो अगि उन्हें चांदी औि सोऩे क़े मसक्क़े कहा र्जाता हो तो उस सिू त में

604
र्जि वह तनसाि क़ी हद तक पहुंच र्जायें उन पि ज़कात वाजर्जि है गो उनका

खामलस हहस्सा तनसाि क़ी हद तक न पहुंच़े ल़ेककन अगि उन्हें सोऩे औि चांदी क़े

मसक्क़े न कहा र्जाता हो ख़्वाह उन का खामलस हहस्सा तनसाि क़ी हद तक पहुंच

भी र्जाए उन पि ज़कात का वाजर्जि होना महल्ल़े इश्काल है।

1915. जर्जस शख़्स क़े पास सोऩे औि चांदी क़े मसक्क़े हों अगि उनमें दस
ू िी

धातु क़ी आमोजज़श मअमल


ू क़े मत
ु ाबिक हो तो अगि वह शख़्स उनक़ी ज़कात

सोऩे औि चांदी क़े ऐस़े मसक्कों में द़े जर्जनमें दस


ू िी धात क़ी आमोजज़श मअमल
ू स़े

ज़्यादा हो या ऐस़े मसक्कों में द़े र्जो सोऩे औि चांदी क़े िऩे हुए न हों ल़ेककन यह

मसक्क़े इतनी ममक़्दाि में हों कक उनक़ी क़ीमत उस ज़कात क़ी क़ीमत क़े ििािि हो

र्जो उस पि वाजर्जि हो गई है तो उसमें कोई हिर्ज नहीं है ।

ऊंट, गाय औि भेड बकिी की जकात

1916. ऊंट, गाय औि भ़ेड़, िकिी क़ी ज़कात क़े मलए उन शिाइत क़े अलावा

जर्जनका जज़क्र आ चक
ु ा है एक शतक औि भी है वह यह है कक है वान सािा साल

मसफ़क (खुदिौ) र्जंगली र्ास चिता हो मलहाज़ा अगि सािा साल या उस का कुछ

हहस्सा काटी हुई र्ास खाए या ऐसी चािागाह में चि़े र्जो खुद उस शख़्स क़ी

(यअनी है वान क़े मामलक क़ी) या ककसी दस


ू ि़े शख्स क़ी ममजल्कयत हो तो उस

है वान पि ज़कात नहीं है ल़ेककन अगि वह है वान साल भि में एक या दो हदन

605
मामलक क़ी मम्लक
ू ा र्ास (या चािा) खाए तो उसक़ी ज़कात वाजर्जि है । ल़ेककन

ऊंट, गाय औि भ़ेड़ क़ी ज़कात वाजर्जि होऩे में एहततयात क़ी बिना पि यह शतक

नहीं है कक सािा साल है वान ि़ेकाि िह़े िजल्क अगि आियािी या हल चलाऩे या

उन र्जैस़े उमिू में उन है वानों स़े इजस्तफ़ादा ककया र्जाए तो एहततयात क़ी बिना पि

ज़रूिी है कक उनक़ी ज़कात द़े ।

1917. अगि कोई शख़्स अपऩे ऊंट, गाय औि भ़ेड़ क़े मलए एक ऐसी चािागाह

खिीद़े जर्जसमें ककसी ऩे काश्त न क़ी हो या उस़े ककिाए (या ठ क़े) पि हामसल कि़े

तो उस सिू त में ज़कात का वाजर्जि होना मजु श्कल है अगिच़े ज़कात का द़े ना

अह्वात है ल़ेककन अगि वहां र्जानवि चिाऩे का महसल


ू अदा कि़े तो ज़रूिी है कक

ज़कात द़े ।

ऊंट के तनसाब

1918. ऊंट क़े तनसाि िािह हैं -

1. पांच ऊंट – औि उनक़ी ज़कात एक भ़ेड़ है औि र्जि तक ऊंटों क़ी तादाद इस

हद तक न पहुंच,़े ज़कात (वाजर्जि) नहीं है।

2. दस ऊंट – औि उनक़ी ज़कात दो भ़ेड़ें है ।

3. पन्रह ऊंट – औि उनक़ी ज़कात तीन भ़ेड़ें हैं।

4. िीस ऊंट – औि उनक़ी ज़कात चाि भ़ेड़ें हैं।

606
5. पच्चीस ऊंट -- औि उनक़ी ज़कात पांच भ़ेड़ें हैं।

6. छबिीस ऊंट -- औि उनक़ी ज़कात एक ऐसा ऊंट है र्जो दस


ू ि़े साल में दाखखल

हो चक
ु ा हो।

7. छत्तीस ऊंट -- औि उनक़ी ज़कात एक ऐसा ऊंट है र्जो तीसि़े साल में दाखखल

हो चक
ु ा हो।

8. तछयालीस ऊंट -- औि उनक़ी ज़कात एक ऐसा ऊंट है र्जो चौथ़े साल में

दाखखल हो चक
ु ा हो।

9. एक्सठ ऊंट -- औि उनक़ी ज़कात एक ऐसा ऊंट है र्जो पांचवें साल में

दाखखल हो चक
ु ा हो।

10. तछहत्ति ऊंट -- औि उनक़ी ज़कात दो ऐस़े ऊंट हैं र्जो तीसि़े साल में दाखखल

हो चक
ु ़े हों।

11. एक्यानव़े ऊंट -- औि उनक़ी ज़कात दो ऐस़े ऊंट हैं र्जो चौथ़े साल में

दाखखल हों।

12. एक सौ एक्क़ीस ऊंट औि इसस़े ऊपि जर्जतऩे होत़े र्जायेंग़े ज़रूिी है कक

ज़कात द़े ऩे वाला या तो उन का चालीस स़े चालीस तक हहसाि कि़े औि हि

चालीस ऊंटों क़े मलए एक ऐसा ऊंट द़े र्जो तीसि़े साल में दाखखल हो चक
ु ा हो या

पचास स़े पचास तक हहसाि कि़े औि हि पचास ऊंटों क़े मलए एक ऊंट द़े र्जो चौथ़े

साल में दाखखल हो चक


ु ा हो या चालीस औि पचास दोनों में हहसाि कि़े ल़ेककन हि

607
सिू त में इस तिह हहसाि किना ज़रूिी है कक कुछ िाक़ी न िच़े या अगि िच़े भी

तो नौ स़े ज़्यादा न हो मसलन उसक़े पास 140 ऊंट हों तो ज़रूिी है कक एक सौ

क़े मलए दो ऐस़े ऊंट द़े र्जो चौथ़े साल में दाखखल हो चक
ु ें हों औि चालीस क़े मलए

एक ऐसा ऊंट द़े र्जो तीसि़े साल में दाखखल हो चक


ु ा हो औि र्जो ऊंट ज़कात में

हदया र्जाए उसका मादा होना ज़रूिी है।

1919. दो तनसािों क़े दिममयान ज़कात वाजर्जि नहीं है मलहाज़ा अगि एक शख़्स

र्जो ऊंट िखता हो उनक़ी तादाद पहल़े तनसाि र्जो पांच है, िढ़ र्जाए तो र्जि तक

वह दस
ू ि़े तनसाि तक र्जो दस है न पहुंच़े ज़रूिी है कक फ़कत पांच पि ज़कात द़े

औि िाक़ी तनसािों क़ी सिू त भी ऐसी ही है।

गाय का तनसाब –

1920. गाय क़े दो तनसाि हैं –

इस का पहला तनसाि तीस है। र्जि ककसी शख़्स क़ी गायों क़ी तादाद तीस तक

पहुंच र्जाए औि वह शिाइत भी पिू ी होती हों जर्जनका जज़क्र ककया र्जा चक
ु ा है तो

ज़रूिी है कक गाय का ऐसा िच्चा र्जो दस


ू ि़े साल में दाखखल हो चक
ु ा हो ज़कात क़े

तौि पि द़े औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक वह िछड़ा हो। औि उसका दस


ू ाि

तनसाि चालीस है औि उसक़ी ज़कात एक ितछया है र्जो तीसि़े साल में दाखखल हो

चक
ु ़ी हो औि तीस औि चालीस क़े दिममयान ज़कात वाजर्जि नहीं है। मसलन जर्जस

608
शख़्स क़े पास उन्तालीस गायें हों ज़रूिी है कक मसफ़क तीस क़ी ज़कात द़े औि अगि

उसक़े पास चालीस स़े ज़्यादा गायें हों तो र्जि तक उनक़ी तादाद साठ तक न पहुंच

र्जाए ज़रूिी है कक मसफ़क चालीस पि ज़कात द़े । औि र्जि उनक़ी तादाद साठ तक

पहुंच र्जाए तो चकंू क यह तादाद पहल़े तनसाि स़े दग


ु नी है इसमलए ज़रूिी है कक दो

ऐस़े िछड़़े ितौि ज़कात द़े र्जो दस


ू ि़े साल में दाखखल हो चक
ु ़े हों औि इसी तिह र्जंू

र्जंू गायों क़ी तादाद िढ़ती र्जाए ज़रूिी है कक या तो तीस स़े तीस तक हहसाि कि़े

या चालीस स़े चालीस तक या तीस औि चालीस दोनों का हहसाि कि़े औि उन पि

उस तिीक़े क़े मत
ु ाबिक ज़कात द़े र्जो िताया गया है। ल़ेककन ज़रूिी है कक इस

तिह हहसाि कि़े कक कुछ िाक़ी न िच़े औि अगि कुछ िच़े तो नौ स़े ज़्यादा न हो

मसलन अगि उसक़े पास सत्ति गायें हों तो ज़रूिी है कक तीस औि चालीस क़े

मत
ु ाबिक हहसाि कि़े औि तीस क़े मलए तीस क़ी औि चालीस क़े मलए चालीस क़ी

ज़कात द़े क्योंकक अगि वह तीस क़े मलहाज़ स़े हहसाि कि़े गा तो दस गायें िगैि

ज़कात हदय़े िह र्जायेंगी।

भेड का तनसाब

1921. भ़ेड़ क़े पांच तनसाि हैं –

पहला तनसाि चालीस है – औि उसक़ी ज़कात एक भ़ेड़ है औि र्जि तक भ़ेड़ों क़ी

तादाद चालीस तक न पहुंच़े उन पि ज़कात नहीं है ।

609
दस
ू िा तनसाि 121 है – औि उसक़ी ज़कात दो भ़ेड़ें हैं।

तीसिा तनसाि 201 है – औि उसक़ी ज़कात तीन भ़ेड़ें हैं।

चौथा तनसाि 301 है – औि उसक़ी ज़कात चाि भ़ेड़ें हैं।

पांचवा तनसाि 400 औि उसस़े ऊपि ह औि उनका हहसाि सौ स़े सौ तक किना

ज़रूिी है औि हि सौ भ़ेड़ों पि एक भ़ेड़ दी र्जाए औि यह ज़रूिी नहीं कक ज़कात

उन्हीं भ़ेड़ों में स़े दी र्जाए िजल्क अगि कोई औि भ़ेड़ें दी र्जायें या भड़ों क़ी क़ीमत

क़े ििािि नकदी द़े दी र्जाए तो काफ़़ी है।

1922. दो तनसािों क़े दिममयान ज़कात वाजर्जि नहीं है मलहाज़ा अगि ककसी क़ी

भ़ेड़ों क़ी तादाद पहल़े तनसाि स़े र्जो कक चालीस है ज़्यादा हो ल़ेककन दस
ू ि़े तनसाि

तक र्जो 121 है न पहुंची हो तो उस़े चाहहए कक मसफ़क चालीस पि ज़कात द़े औि

र्जो तादाद उसस़े ज़्यादा हो उस पि ज़कात नहीं है औि उसक़े िाद क़े तनसािों क़े

मलए भी यही हुक्म है।

1923. ऊंट, गायें औि भ़ेड़ें र्जि तनसाि क़ी हद तक पहुंच र्जायें तो ख़्वाह वह

सि नि हों या मादा या कुछ नि हों औि कुछ मादा उन पि ज़कात वाजर्जि है ।

1924. ज़कात क़े जज़म्न में गाय औि भैंस एक जर्जन्स शम


ु ाि होती है औि अििी

औि गैि अििी ऊंट एक जर्जन्स हैं। इसी तिह भ़ेड़, िकि़े औि दं ि


ु ़े में कोई फ़कक

नहीं है।

610
1925. अगि कोई शख़्स ज़कात क़े तौि पि भ़ेड़ द़े तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी

बिना पि ज़रूिी है कक वह कम अज़ कम दस


ू ि़े साल में दाखखल हो चकु क हो औि

अगि िकिी द़े तो एहततयातन ज़रूिी है कक वह तीसि़े साल में दाखखल हो चकु क

हो।

1926. र्जो भ़ेड़ कोई शख़्स ज़कात क़े तौि पि द़े अगि उसक़ी क़ीमत उसक़ी

भ़ेड़ों स़े मअमल


ू ी सी कम भी हो तो कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन ि़ेहति है कक ऐसी भ़ेड़

द़े जर्जसक़ी क़ीमत उसक़ी हि भ़ेड़ स़े ज़्यादा हो। नीज़ गाय औि ऊंट क़े िाि़े में भी

यही हुक्म है ।

1927. अगि कई अफ़िाद िाहम हहस्स़ेदाि हों तो जर्जस जर्जस का हहस्सा पहल़े

तनसाि तक पहुंच र्जाए ज़रूिी है कक ज़कात द़े औि जर्जसका हहस्सा पहल़े तनसाि स़े

कम हो उस पि ज़कात वाजर्जि नहीं।

1928. अगि एक शख़्स क़ी गायें या ऊंट या भ़ेड़़े मख़्


ु तमलफ़ र्जगहों पि हों औि

वह सि ममलाकि तनसाि क़े ििािि हों तो ज़रूिी है कक उन क़ी ज़कात द़े ।

1929. अगि ककसी शख़्स क़ी गायें, भ़ेड़ें, या ऊंट िीमाि औि ऐिदाि हों ति भी

ज़रूिी है कक उन क़ी ज़कात द़े ।

1930. अगि ककसी शख़्स क़ी सािी गायें, भ़ेड़ें या ऊंट िीमाि या ऐिदाि या िढ़
ू ़े

हों तो वह खुद उन्हीं में स़े ज़कात द़े सकता है ल़ेककन अगि वह सि तन्दरुस्त, ि़े

ऐि औि र्जवान हों तो वह उनक़ी ज़कात में िीमाि या ऐिदाि या िढ़


ू ़े र्जानवि नहीं

611
द़े सकता िजल्क अगि उन में स़े िअज़ तन्दरुस्त औि िअज़ िीमाि कुछ ऐिदाि

औि कुछ ि़े ऐि औि कुछ िढ़


ू ़े औि कुछ र्जवान हों तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक

उनक़ी ज़कात में तन्दरुस्त ि़े ऐि औि र्जवान र्जानवि द़े ।

1931. अगि कोई शख़्स ग्यािा महीऩे खत्म होऩे स़े पहल़े अपनी गायें, भ़ेड़ें औि

ऊंट ककसी दस
ू िी चीज़ स़े िदल ल़े या र्जो तनसाि िनता हो उस़े उसी जर्जन्स क़े

उतऩे ही तनसाि स़े िदल ल़े मसलन चालीस भ़ेड़ें द़े कि चालीस औि भ़ेड़ें ल़े ल़े तो

अगि ऐसा किना ज़कात स़े िचऩे क़ी नीयत स़े न हो तो उस पि ज़कात वाजर्जि

नहीं है। ल़ेककन अगि ज़कात स़े िचऩे क़ी नीयत स़े हो तो उस सिू त में र्जिकक

दोनों चीज़ें एक ही नौईयत का फ़ाइदा िखती हों मसलन दोनों भ़ेड़ें दध


ू द़े ती हों तो

एहततयात़े लाजज़म यह है कक उसक़ी ज़कात द़े ।

1932. जर्जस शख़्स को गाय, भ़ेड़ औि ऊंट क़ी ज़कात द़े नी ज़रूिी हो अगि वह

उनक़ी ज़कात अपऩे ककसी दस


ू ि़े माल स़े द़े तो र्जि तक उन र्जानविों क़ी तादाद

तनसाि स़े कम न हो ज़रूिी है कक हि साल ज़कात द़े औि अगि वह ज़कात उन्हीं

र्जानविों में स़े द़े औि वह पहल़े तनसाि स़े कम हो र्जायें तो ज़कात उस पि वाजर्जि

नहीं है मसलन र्जो शख़्स चालीस भ़ेड़ें िखता हो अगि वह उनक़ी ज़कात अपऩे

दस
ू ि़े माल स़े द़े द़े तो र्जि तक उसक़ी भ़ेड़ें चालीस स़े कम न हों ज़रूिी है कक हि

साल एक भ़ेड़ द़े औि अगि वह खुद उन भ़ेड़ों में स़े ज़कात द़े तो र्जि तक उनक़ी

तादाद चालीस तक न पहुंच र्जाए उस पि ज़कात वाजर्जि नहीं है।

612
माले ततजाित की जकात

जर्जस माल का इंसान मआ


ु वज़ा द़े कि मामलक हुआ हो औि उस ऩे वह माल़े

ततर्जाित औि फ़ाइदा हामसल किऩे क़े मलए मह्फ़ूज़ िखा हो तो एहततयात क़ी बिना

ज़रूिी है कक (मन्
ु दरिर्जा ज़ैल) चन्द शिाइत क़े साथ उसक़ी ज़कात द़े र्जो चालीसवां

हहस्सा है ।

1. मामलक िामलग औि आककल हो।

2. माल तनसाि क़ी ममक़्दाि तक पहुंच गया हो औि वह तनसाि सोऩे औि चांदी

क़े तनसाि क़े ििािि है ।

3. जर्जस वक़्त स़े उस माल स़े फ़ाइदा उठाऩे क़ी नीयत क़ी हो, उस पि एक

साल गज़
ु ि र्जाए।

4. फ़ाइदा उठाऩे क़ी नीयत पिू ़े साल िाक़ी िह़े । पस अगि साल क़े दौिान उस

क़ी नीयत िदल र्जाए मसलन उसको अखिार्जात क़ी मद में सफ़क किऩे क़ी नीयत

कि़े तो ज़रूिी नहीं कक उस पि ज़कात द़े ।

5. मामलक उस माल में पिू ा साल तसरुक फ़ कि सकता हो।

6. तमाम साल उसक़े सिमाय़े क़ी ममक़्दाि या उसस़े ज़्यादा पि खिीदाि मौर्जूद

हो। पस अगि साल क़े कुछ हहस्स़े में सिमाय़े क़े कमति माल का खिीदाि हो तो

उस पि ज़कात द़े ना वाजर्जि नहीं है ।

613
जकात का मसिफ़

1933. ज़कात का माल आठ मसिफ़ में खचक हो सकता हैः-

1. फ़क़ीिः- वह (गिीि मोहतार्ज) शख़्स जर्जसक़े पास अपऩे औि अपऩे अहलो

अयाल क़े मलए साल भि क़े अखिार्जात न हों – फ़क़ीि है। ल़ेककन जर्जस शख़्स क़े

पास कोई हुनि या र्जायदाद या सिमाया हो जर्जसस़े वह अपऩे साल भि क़े

अखिार्जात पिू ़े कि सकता हो वह फ़क़ीि नहीं है।

2. ममस्क़ीनः- वह शख़्स र्जो फ़क़ीि स़े ज़्यादा तंगदस्त हो, ममस्क़ीन है ।

3. वह शख़्स र्जो इमाम़े अस्र (अ0) या नायि़े इमाम क़ी र्जातनि स़े इस काम

पि मामिू हो कक ज़कात र्जम ्अ कि़े , उसक़ी तनगहदाश्त कि़े , हहसाि क़ी र्जांच

पड़ताल कि़े औि र्जम ्अ ककया हुआ माल इमाम (अ0) या नायि़े इमाम या फ़ुकिा

(व मसाक़ीन) को पहुंचाए।

4. वह कुफ़्फ़ाि जर्जन्हें ज़कात दी र्जाए तो वह दीऩे इस्लाम क़ी र्जातनि माइल हों

या र्जंग में या र्जंग क़े अलावा मस


ु लमानों क़ी मदद किें इसी तिह वह मस
ु लमान

जर्जनका ईमान उन चीज़ों पि र्जो पैगम्िि़े इस्लाम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व

सल्लम लाए हैं कमज़ोि हो ल़ेककन अगि उन को ज़कात दी र्जाए तो उनक़े ईमान

क़ी तकवीयत का सिि िन र्जाए या र्जो मस


ु लमान (शहनशाह़े ववलायत) इमाम

अली (अ0) क़ी ववलायत पि ईमान नहीं िखत़े ल़ेककन अगि उनको ज़कात दी र्जाए

614
तो वह अमीरुल मोममनीन (अ0) क़ी ववलायत़े (कुििा) क़ी तिफ़ माइल हों औि उस

पि ईमान ल़े आयें।

5. गल
ु ामों को खिीद कि उन्हें आज़ाद किना – जर्जस क़ी तफ़्सील उसक़े िाद में

ियान हुई है ।

6. वह मकरुज़ र्जो अपना कज़क अदा न कि सकता हो।

7. फ़़ी सिीमलल्लाह – यअनी वह काम जर्जनका फ़ाइदा तमाम मस


ु लमानों को

पहुंचता हो मसलन मजस्र्जद िनाना, ऐसा मदिज़ा तअमीि किना र्जहां दीनी

तअलीम दी र्जाती हो, शहि क़ी सफ़ाई किना नीज़ सड़कों को पख़्
ु ता िनाना औि

उन्हें चौड़ा किना औि उन ही र्जैस़े दस


ू ि़े काम किना।

8. इबनस्
ु सिील – यअनी वह मस
ु ाकफ़ि र्जो सफ़ि में नाचाि हो गया हो।

यह वह मंद़े हैं र्जहााँ ज़कात खचक होती है ल़ेककन अक़्वा क़ी बिना पि मामलक

ज़कात को इमाम या नायि़े इमाम क़ी इर्जाज़त क़े िगैि मद न0 3 औि मद न0

4 में खचक नहीं कि सकता औि इसी तिह एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि मद न0

7 का हुक्म भी यही है औि मज़्कूिा मदों क़े अहकाम आइन्दा मसाइल में ियान

ककय़े र्जायेंग़े।

1934. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक फ़क़ीि औि ममस्क़ीन अपऩे औि अपऩे

अहलो अयाल क़े साल भि क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा ज़कात न ल़े औि अगि उस क़े

615
पास कुछ िकम या जर्जन्स हो तो फ़कत उतनी ही ज़कात ल़े जर्जतनी िकम या

जर्जन्स उस क़े साल भि क़े अखिार्जात क़े मलए कम पड़ती हो।

1935. जर्जस शख़्स क़े पास अपऩे पिू ़े साल का खचक हो अगि वह उस का कुछ

हहस्सा इस्त़ेमाल कि ल़े औि िाद में शक कि़े कक र्जो कुछ िाक़ी िचा है वह उस

क़े साल भि क़े अखिार्जात क़े मलए काफ़़ी है या नहीं तो वह ज़कात नहीं ल़े

सकता।

1936. जर्जस हुनिमन्द या साहि़े र्जायदाद या ताजर्जि क़ी आमदनी उसक़े साल

भि क़े अखिार्जात स़े कम हो वह अपऩे अखिार्जात क़ी कमी पिू ी किऩे क़े मलए

ज़कात ल़े सकता है औि लाजज़म नहीं है कक वह अपऩे काम क़े औज़ाि या

र्जायदाद या सिमाया अपऩे अखिार्जात क़े मसिफ़ में ल़े आए।

1937. जर्जस फ़क़ीि क़े पास अपऩे औि अपऩे अहलो अयाल क़े मलए साल भि

का खचक न हो ल़ेककन एक र्ि का मामलक हो जर्जस में वह िहता हो या सवािी क़ी

चीज़ िखता हो औि उन क़े िगैि गज़


ु ि िसि न कि सकता हो ख़्वाह यह सिू त

अपनी इज़्ज़त िखऩे क़े मलए ही हो वह ज़कात ल़े सकता है औि र्ि क़े सामान,

ितकनों औि गम़ी व सदी क़े कपड़ों औि जर्जन चीज़ों क़ी उस़े ज़रूित हो उनक़े मलए

भी यही हुक्म है औि र्जो फ़क़ीि यह चीज़ें न िखता हो अगि उस़े उनक़ी ज़रूित हो

तो ज़कात में स़े खिीद सकता है ।

616
1938. जर्जस फ़क़ीि क़े मलए हुनि सीखना मजु श्कल न हो एहततयात़े वाजर्जि क़ी

बिना पि ज़कात पि जज़न्दगी िसि न कि़े ल़ेककन र्जि तक हुनि सीखऩे में मश्गल

हो ज़कात ल़े सकता है ।

1939. र्जो शख़्स पहल़े फ़क़ीि िहा हो औि वह कहता हो कक मैं फ़क़ीि हूं तो

अगिच़े उसक़े कहऩे पि इंसान को इत्मीनान न हो किि भी उस़े ज़कात द़े सकता

है । ल़ेककन जर्जस शख़्स क़े िाि़े में मअलम


ू न हो कक वह पहल़े फ़क़ीि िहा है या

नहीं तो एहततयात क़ी बिना पि र्जि तक उसक़े फ़क़ीि होऩे का इत्मीनान न कि

ल़े उसको ज़कात नहीं द़े सकता।

1940. र्जो शख़्स कह़े कक मैं फ़क़ीि हूं औि पहल़े फ़क़ीि न िहा हो अगि उसक़े

कहऩे पि इत्मीनान न होता हो तो एहततयात़े वाजर्जि है कक उसको ज़कात न दी

र्जाए।

1941. जर्जस शख़्स पि ज़कात वाजर्जि हो अगि कोई फ़क़ीि उसका मकरुज़

(कज़कदाि) हो तो वह ज़कात द़े त़े हुए अपना कज़क उसमें स़े वसल
ू कि सकता है ।

1942. अगि फ़क़ीि मि र्जाए औि उसका माल इतना न हो कक जर्जतना उसको

कज़ाक द़े ना हो तो कज़कख़्वाह कज़े को ज़कात में शम


ु ाि कि सकता है िजल्क अगि

मत
ु वफ़्फ़़ी का माल उस पि वाजर्जिल
ु अदा कज़े क़े ििािि हो औि उसक़े वसाक

उसका कज़ाक अदा न किें या ककसी औि वर्जह स़े कज़कख़्वाह अपना कज़ाक वापस न

ल़े सकता हो ति भी वह अपना कज़ाक ज़कात में शम


ु ाि कि सकता है ।

617
1943. यह ज़रूिी नहीं कक कोई शख़्स र्जो चीज़ फ़क़ीि को ितौि़े ज़कात द़े उस

क़े िाि़े में उस़े िताए कक यह ज़कात है िजल्क अगि फ़क़ीि ज़कात ल़ेऩे में

खखफ़्फ़त मह्सस
ू किता हो तो मस्
ु तहि है कक उस़े माल तो ज़कात क़ी नीयत स़े

हदया र्जाए ल़ेककन उसका ज़कात होना उस पि ज़ाहहि न ककया र्जाए।

1944. अगि कोई शख़्स यह खयाल कित़े हुए ककसी को ज़कात द़े कक वह

फ़क़ीि है औि िाद में उस़े पता चल़े कक वह फ़क़ीि न था या मस ्अल़े में नावाककफ़

होऩे क़ी बिना पि ककसी ऐस़े शख़्स को ज़कात द़े द़े जर्जस क़े मत
ु अजल्लक उस़े

इल्म हो कक वह फ़क़ीि नहीं है तो यह काफ़़ी नहीं है मलहाज़ा उसऩे र्जो चीज़ उस

शख़्स को ितौि़े ज़कात दी थी अगि वह िाक़ी हो तो ज़रूिी है कक उस शख़्स स़े

वावपस ल़ेकि मस्


ु तहक को द़े सकता है औि अगि ल़ेऩे वाल़े को यह इल्म न था

कक वह माल़े ज़कात है तो उसस़े कुछ नहीं ल़े सकता औि इंसान को अपऩे माल

स़े ज़कात का एवज़ मस्


ु तहक को द़े ना ज़रूिी है ।

1945. र्जो शख़्स मकरूज़ हो औि कज़ाक अदा न कि सकता हो अगि उसक़े पास

अपना साल भि का खचक भी हो ति भी अपना कज़ाक अदा किऩे क़े मलए ज़कात ल़े

सकता है ल़ेककन ज़रूिी है कक उसऩे र्जो माल ितौि़े कज़क मलया हो उस़े ककसी

गुनाह क़े काम में खचक न ककया हो।

1946. अगि इंसान एक ऐस़े शख़्स को ज़कात द़े र्जो मकरूज़ हो औि अपना

कज़ाक अदा न कि सकता हो औि िाद में उस़े पता चल़े कक उस शख़्स ऩे र्जो कज़ाक

618
मलया था गुनाह क़े काम पि खचक ककया था तो अगि मकरूज़ फ़क़ीि हो तो इंसान

ऩे र्जो कुछ उस़े हदया हो उस़े सहम़े फ़ुकिा में शम


ु ाि कि सकता है ।

1947. र्जो शख़्स मकरूज़ हो औि अपना कज़ाक अदा न कि सकता हो अगिच़े

वह फ़क़ीि न हो ति भी कज़कख़्वाह कज़े को र्जो उस़े मकरूज़ स़े वसल


ू किना है

ज़कात में शम
ु ाि कि सकता है।

1948. जर्जस मस
ु ाकफ़ि का ज़ाद़े िाह खत्म हो र्जाए या उसक़ी सवािी काबिल़े

इस्त़ेमाल न िह़े अगि उसका सफ़ि गुनाह क़ी गिज़ स़े न हो औि वह कज़क ल़ेकि

या अपनी कोई चीज़ ि़ेच कि मंजज़ल़े मक़्सद


ू तक न पहुंच सकता हो तो अगिच़े

वह अपऩे वतन में फ़क़ीि न भी हो तो ज़कात ल़ेकि या अपनी कोई चीज़ ि़ेच कि

सफ़ि क़े अखिार्जात हामसल कि सकता हो तो वह फ़कत उतनी ममक़्दाि में ज़कात

ल़े सकता है जर्जसक़े ज़िीए वह अपनी मंजज़ल तक पहुंच र्जाए।

1949. र्जो मस
ु ाकफ़ि सफ़ि में नाचाि हो र्जाए औि ज़कात ल़े अगि उसक़े वतन

पहुंच र्जाऩे क़े िाद ज़कात में स़े कुछ िच र्जाए उस़े ज़कात द़े ऩे वाल़े को वापस न

पहुंचा सकता हो तो ज़रूिी है कक वह ज़ाइद माल हाककम़े शअक को पहुंचा द़े औि

उस़े िता द़े कक वह माल़े ज़कात है ।

619
मुस्तहक़्कीने जकात के शिाइत

1950. (माल का) मामलक जर्जस शख़्स को अपनी ज़कात द़े ना चाहता हो ज़रूिी

है कक वह शीआ इस्ना अशिी हो। अगि इंसान ककसी को शीआ समझत़े हुए ज़कात

द़े द़े औि िाद में पत़े चल़े कक वह शीआ न था तो ज़रूिी है कक दोिािा ज़कात द़े ।

1951. अगि कोई शीआ िच्चा या दीवाना फ़क़ीि हो तो इंसान उस क़े सि

पिस्त को इस नीयत स़े ज़कात द़े सकता है कक वह र्जो कुछ द़े िहा है वह िच्च़े

या दीवाऩे क़ी ममल्क़ीयत होगी।

1952. अगि इंसान िच्च़े या दीवाऩे तक न पहुंच सक़े तो वह खुद या ककसी

अमानत दाि शख़्स क़े ज़िीए ज़कात का माल उन पि खचक कि सकता है औि र्जि

ज़कात उन लोगों पि खचक क़ी र्जा िही हो तो ज़रूिी है कक ज़कात द़े ऩे वाला ज़कात

क़ी नीयत कि़े ।

1953. र्जो फ़क़ीि भीक मांगता हो उस़े ज़कात दी र्जा सकती है ल़ेककन र्जो

शख़्स माल़े ज़कात गन


ु ाह क़े काम पि खचक किता हो ज़रूिी है कक उस़े ज़कात न

दी र्जाए िजल्क एहततयात यह है कक वह शख़्स जर्जस़े ज़कात द़े ना गुनाह क़ी तिफ़

माइल किऩे का सिि हो अगिच़े वह उस़े गुनाह क़े काम में न भी खचक कि़े उस़े

ज़कात न दी र्जाए।

620
1954. र्जो शख़्स शिाि पीता हो या नमाज़ न पढ़ता हो औि इसी तिह र्जो

शख़्स खल्
ु लम खल्
ु ला गन
ु ाह़े किीिा का मत
ु कक कि होता हो एहततयात़े वाजर्जि यह है

कक उस़े ज़कात न दी र्जाए।

1955. र्जो शख़्स मकरूज़ हो औि अपना कज़ाक अदा न कि सकता हो उसका

कज़ाक ज़कात स़े हदया र्जा सकता है ख़्वाह उस शख़्स क़े अखिार्जात ज़कात द़े ऩे

वाल़े ही पि क्यों न हों।

1956. इंसान उन लोगों क़े अखिार्जात जर्जनक़ी कफ़ालत उस पि वाजर्जि हो

मसलन औलाद क़े अखिार्जात – ज़कात स़े अदा नहीं कि सकता ल़ेककन अगि वह

खुद औलाद का खचाक न द़े तो दस


ू ि़े लोग उन्हें ज़कात द़े सकत़े हैं।

1957. अगि इंसान अपऩे ि़ेट़े को ज़कात इस मलए द़े ताकक वह उस़े अपनी

िीवी औि नौकि औि नौकिानी पि खचक कि़े तो उसमें कोई हिर्ज नहीं है ।

1958. िाप अपऩे ि़ेट़े को सहम़े फ़़ी सिीमलल्लाह में स़े इल्मी औि दीनी ककतािें

जर्जनक़ी ि़ेट़े को ज़रूित हो खिीद कि नहीं द़े सकता। ल़ेककन अगि रिफ़ाह़े आम्मा

क़े मलए उन ककतािों क़ी ज़रूित हो तो एहततयात क़ी बिना पि हाककम़े शअक स़े

इर्जाज़त ल़े ल़े।

1959. र्जो िाप ि़ेट़े क़ी शादी क़ी इजस्तताअत न िखता हो वह ि़ेट़े क़ी शादी क़े

मलए ज़कात में स़े खचक कि सकता है औि ि़ेटा भी िाप क़े मलए ऐसा ही कि

सकता है।

621
1960. ककसी ऐसी औित को ज़कात नहीं दी र्जा सकती जर्जस का शौहि उस़े

खचक द़े ता हो औि ऐसी औित जर्जस़े उस का शौहि खचक न द़े ता हो ल़ेककन र्जो

हाककम़े शअक स़े रुर्जउ


ू कि क़े शौहि को खचक द़े ऩे पि मर्जििू कि सकती हो उस़े

ज़कात न दी र्जाए।

1961. जर्जस औित ऩे मत


ु ्अ ककया हो अगि वह फ़क़ीि हो तो उस का शौहि

औि दस
ू ि़े लोग उस़े ज़कात द़े सकत़े हैं। हााँ अगि अक़्द क़े मौक़े पि शौहि ऩे यह

शतक किल
ू क़ी हो कक उसका खचक द़े गा या ककसी औि वर्जह स़े उसका खचक द़े ना

शौहि पि वाजर्जि हो औि वह उस औित क़े अखिार्जात द़े ता हो तो उस औित को

ज़कात नहीं दी र्जा सकती।

1962. औित अपऩे फ़क़ीि शौहि को ज़कात द़े सकती है ख़्वाह शौहि वह

ज़कात उस औित पि ही क्यों न खचक कि़े ।

1963. सैयय्द गैि सैय्यद स़े ज़कात नहीं ल़े सकता ल़ेककन अगि खुम्स औि

दस
ू ि़े ज़िाए आमदनी उसक़े अखिार्जात क़े मलए काफ़़ी न हों औि अगि गैि़े सैय्यद

स़े ज़कात ल़ेऩे पि मर्जििू हो तो उस स़े ज़कात ल़े सकता है ।

1964. जर्जस शख़्स क़े िाि़े में मअलम


ू न हो कक सैय्यद है या गैि सैय्यद उस़े

ज़कात दी र्जा सकती है ।

622
जकात की ऩीयत

1965. ज़रूिी है कक इंसान ि कस्द़े कुिकत यानी अल्लाह तिािका तआला क़ी

खुशनद
ू ी क़ी नीयत स़े ज़कात द़े औि अपनी नीयत में मअ
ु य्यन कि़े कक र्जो कुछ

द़े िहा है वह माल क़ी ज़कात है या ज़कात़े कफ़तिा है िजल्क ममसाल क़े तौि पि

अगि ग़ेहूं औि र्जौ क़ी क़ी ज़कात उस पि वाजर्जि हो औि वह कुछ िकम ज़कात

क़े तौि पि द़े ना चाह़े तो उस क़े मलए यह ज़रूिी है कक वह मअ


ु य्यन कि़े कक ग़ेहूं

क़ी ज़कात द़े िहा है या र्जौ क़ी।

1966. अगि ककसी शख़्स पि मत


ु अद्हदद चीज़ों क़ी ज़कात वाजर्जि हो औि वह

ज़कात में कोई चीज़ द़े ल़ेककन ककसी भी चीज़ क़ी नीयत न कि़े तो र्जो चीज़ उसऩे

ज़कात में दी है अगि उसक़ी जर्जन्स वही हो र्जो उन चीज़ों में स़े ककसी एक क़ी है

तो वह उसी जर्जन्स क़ी शम


ु ाि होगी। फ़ज़क किें कक ककसी शख़्स पि चालीस भ़ेड़ों

औि 15 ममस्काल सोऩे क़ी ज़कात वाजर्जि है , अगि वह मसलन एक भ़ेड़ ज़कात

में द़े औि उन चीज़ों में स़े (कक जर्जन पि ज़कात वाजर्जि है ) ककसी क़ी भी नीयत न

कि़े तो वह भ़ेड़ों क़ी ज़कात शम


ु ाि होगी ल़ेककन अगि वह चांदी क़े मसक्क़े या

किें सी नोट द़े या र्जो उन (चीज़ों) क़े हम जर्जन्स नहीं है तो िअज़ (उलमा) क़े

िकौल वह (मसक्क़े या नोट) उन तमाम (चीज़ों) पि हहसाि स़े िांट हदय़े र्जायें

ल़ेककन यह िात इश्काल स़े खाली नहीं है िजल्क एहततमाल यह है कक वह उन

623
चीज़ों में स़े ककसी क़ी भी (ज़कात) शम
ु ाि न होंग़े औि (नीयत न किऩे तक)

मामलक़े माल क़ी ममजल्कयत िहें ग़े।

1967. अगि कोई शख़्स अपऩे माल क़ी ज़कात (मस्


ु तहक तक) पहुंचाऩे क़े मलए

ककसी को वक़ील िनाय़े तो र्जि वह माल़े ज़कात वक़ील क़े हवाल़े कि़े तो

एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ज़रूिी है कक नीयत कि़े कक र्जो कुछ उसका वक़ील

िाद में फ़क़ीि को द़े गा वह ज़कात है औि अहवत यह है कक ज़कात फ़क़ीि तक

पहुंचऩे क़े वक़्त तक वह उस नीयत पि काइम िह़े ।

1968. अगि कोई शख़्स माल़े ज़कात कस्द़े कुिकत क़े िगैि ज़कात क़ी नीयत स़े

हाककम़े शअक या फ़क़ीि को द़े द़े तो अक़्वा क़ी बिना पि वह माल़े ज़कात में शम
ु ाि

होगा अगिच़े उसऩे कस्द़े कुिकत क़े िगैि अदा कि क़े गुनाह ककया है।

जकात के मुतफ़रिय क मसाइल

1969. एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक इंसान ग़ेहूं औि र्जौ को भस


ू ़े स़े

अलग किऩे क़े मौक़े पि औि खर्जूि औि अंगूि क़े खश्ु क होऩे क़े वक़्त ज़कात

फ़क़ीि को द़े द़े या अपऩे माल स़े अलायहदा कि द़े । औि ज़रूिी है कक सोऩे, चांदी,

गाय, भ़ेड़ औि ऊंट क़ी ज़कात ग्यािा महीऩे खत्म होऩे क़े िाद फ़क़ीि को द़े या

अपऩे माल स़े अलायहदा कि द़े ल़ेककन अगि वह शख़्स ककसी फ़क़ीि का मन्
ु तजज़ि

624
हो या ककसी ऐस़े फ़क़ीि को ज़कात द़े ना चाहता हो र्जो ककसी मलहाज़ स़े (दस
ू ि़े पि)

िितिी िखता हो तो वह यह कि सकता है कक ज़कात अलायहदा न कि़े ।

1970. ज़कात अलायहदा किऩे क़े िाद एक शख़्स क़े मलए लाजज़म नहीं कक उस़े

फ़ौिन मस्
ु तहक शख़्स को द़े ल़ेककन अगि ककसी ऐस़े शख़्स तक उसक़ी िसाई हो,

जर्जस़े ज़कात दी र्जा सकती हो तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक ज़कात द़े ऩे में

ताखीि न कि़े ।

1971. र्जो शख़्स ज़कात मस्


ु तहक शख़्स को पहुंचा सकता हो अगि वह उस़े

ज़कात न पहुंचाए औि उसक़े कोताही िितऩे क़ी वर्जह स़े माल़े ज़कात तलफ़ हो

र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े ।

1972. र्जो शख़्स ज़कात मस्


ु तहक तक पहुंचा सकता हो अगि वह उस़े ज़कात

न पहुंचाए औि माल़े ज़कात हहफ़ाज़त किऩे क़े िावर्जूद तलफ़ हो र्जाए औि ज़कात

अदा किऩे में ताखीि क़ी कोई सहीह वर्जह न हो तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े ।

ल़ेककन अगि ताखीि किऩे क़ी कोई सहीह वर्जह थी मसलन एक खास फ़क़ीि

उसक़ी नज़ि में था या थोड़ा थोड़ा कि क़े फ़ुकिा को द़े ना चाहता था तो उसका

ज़ाममन होना मअलम


ू नहीं है ।

1973. अगि कोई शख़्स ज़कात (ऐन उसी) माल स़े अदा कि़े तो वह िाक़ी

मांदा माल में तसरुक फ़ कि सकता है औि अगि वह ज़कात अपऩे ककसी दस


ू ि़े माल

स़े अदा कि द़े तो उस पिू ़े माल में तसरुक फ़ कि सकता है।

625
1974. इंसान ऩे र्जो माल़े ज़कात अलायहदा ककया हो उस़े अपऩे मलय़े उठा कि

उसक़ी र्जगह कोई दस


ू िी चीज़ नहीं िख सकता।

1975. अगि उस माल़े ज़कात स़े र्जो ककसी शख़्स स़े र्जो ककसी शख़्स ऩे

अलायहदा कि हदया हो कोई मनफ़अत हामसल हो मसलन र्जो भ़ेड़ ितौि़े ज़कात

अलायहदा क़ी हो वह िच्चा र्जऩे तो वह मन्फ़अत फ़क़ीि का माल है ।

1976. र्जि कोई शख़्स माल़े ज़कात अलायहदा कि िहा हो अगि उस वक़्त कोई

मस्
ु तहक मौर्जूद हो तो ि़ेहति है कक ज़कात उस़े द़े द़े िर्ज
ू ज़ु उस सिू त क़े कक कोई

ऐसा शख़्स उसक़ी नज़ि में हो जर्जस़े ज़कात द़े ना ककसी वर्जह स़े ि़ेहति हो।

1977. अगि कोई शख़्स हाककम़े शअक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस माल स़े

कािोिाि कि़े र्जो उसऩे ज़कात क़े मलए अलायहदा कि हदया हो औि उसमें खखसािा

हो र्जाए तो उस़े ज़कात में कोई कमी नहीं किनी चाहहए ल़ेककन अगि मन
ु ाफ़ा हो

तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक मस्


ु तहक को द़े द़े ।

1978. अगि कोई शख़्स इसस़े पहल़े क़ी ज़कात उस पि वाजर्जि हो कोई चीज़

ितौि़े ज़कात फ़क़ीि को द़े द़े तो वह ज़कात में शम


ु ाि नहीं होगी औि अगि उस

पि ज़कात वाजर्जि होऩे क़े िाद वह चीज़ र्जो उसऩे फ़क़ीि को दी थी तलफ़ न हुई

हो औि फ़क़ीि अभी तक फ़क़ीिी में मबु तला हो तो ज़कात द़े ऩे वाला उस चीज़ को

र्जो उसऩे फ़क़ीि को दी थी ज़कात में शम


ु ाि कि सकता है ।

626
1979. अगि फ़क़ीि यह र्जानत़े हुए कक ज़कात एक शख़्स पि वाजर्जि नहीं हुई

उसस़े कोई चीज़ ितौि ज़कात ल़े ल़े औि वह चीज़ फ़क़ीि क़ी तहवील में तलफ़ हो

र्जाए तो फ़क़ीि उस का जज़म्म़ेदाि है औि र्जि ज़कात उस शख़्स पि वाजर्जि हो

र्जाए औि फ़क़ीि उस वक़्त तक तंगदस्त हो तो र्जो चीज़ उस शख़्स ऩे फ़क़ीि को

दी थी उस का एवज़ ज़कात में शम


ु ाि कि सकता है।

1980. अगि कोई फ़क़ीि यह न र्जानत़े हुए कक ज़कात एक शख़्स पि वाजर्जि

नहीं हुई है उसस़े कोई चीज़ ितौि़े ज़कात ल़े ल़े औि वह फ़क़ीि क़ी तहवील में

तलफ़ हो र्जाए तो फ़क़ीि जज़म्म़ेदाि नहीं है औि द़े ऩे वाला शख़्स उस चीज़ का

एवज़ ज़कात में शम


ु ाि नहीं कि सकता।

1981. मस्
ु तहि है कक गाय, भ़ेड़ औि ऊंट क़ी ज़कात आिरूमंद (सफ़ैदपोश

गिीि गिु िा) को दी र्जाए औि ज़कात द़े ऩे में अपऩे रिश्त़ेदािों को दस
ू िों पि, अहल़े

इल्म को ि़ेइल्म लोगों पि, औि र्जो लोग हाथ न फ़ैलात़े हों उन को मंगतों पि

तिर्जीह दी र्जाए। हां अगि फ़क़ीि को ककसी औि वर्जह स़े ज़कात द़े ना ि़ेहति हो

तो किि मस्
ु तहि है कक ज़कात उस को दी र्जाए।

1982. ि़ेहति है कक ज़कात अलातनया दी र्जाए औि मस्


ु तहि सदका पोशीदा तौि

पि हदया र्जाए।

1983. र्जो शख़्स ज़कात द़े ना चाहता हो अगि उसक़े शहि में कोई मस्
ु तहक न

हो औि वह ज़कात उसक़े मलए मअ


ु य्यन मद में भी सफ़क न कि सकता हो तो

627
अगि उस़े उम्मीद न हो कक िाद में कोई मस्
ु तहक शख़्स अपऩे शहि में ममल

र्जाय़ेगा तो ज़रूिी है कक ज़कात दस


ू ि़े शहि में ल़े र्जाए औि ज़कात क़ी मअ
ु य्यन

मद में सफ़क कि़े । औि उस शहि में ल़े र्जाऩे क़े अखिार्जात हाककम़े शअक क़ी

इर्जाज़त स़े माल़े ज़कात में स़े ल़े सकता है। औि अगि माल़े ज़कात तलफ़ हो र्जाए

तो वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

1984. अगि ज़कात द़े ऩे वाल़े को अपऩे शहि में कोई मस्
ु तहक ममल र्जाए ति

भी वह माल़े ज़कात दस
ू ि़े शहि ल़े र्जा सकता है ल़ेककन ज़रूिी है कक उस शहि में

ल़े र्जाऩे क़े अखिार्जात खद


ु िदाकश्त कि़े औि अगि माल़े ज़कात तलफ़ हो र्जाए तो

वह खुद जज़म्म़ेदाि है िर्जज़


ु उस सिू त क़े कक माल़े ज़कात दस
ू ि़े शहि में हाककम़े

शअक क़े हुक्म स़े ल़े गया हो।

1985. र्जो शख़्स ग़ेहूं, र्जौ, ककशममश औि खर्जिू ितौि़े ज़कात द़े िहा हो इन

अज्नास क़े नाप तोल क़ी उर्जित उसक़ी अपनी जज़म्म़ेदािी है।

1986. जर्जस शख़्स को ज़कात में 2 ममस्काल औि 15 नखद


ु या इस स़े ज़्यादा

चांदी द़े नी हो वह एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि 2 ममस्काल औि 15 नखद
ु स़े

कम चांदी ककसी फ़क़ीि को न द़े नीज़ अगि चांदी क़े अलावा कोई दस
ू िी चीज़

मसलन ग़ेहूं औि र्जौ दोनों हों औि उनक़ी क़ीमत 2 ममस्काल औि 15 नखुद चांदी

तक पहुंच र्जाए तो एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि वह एक फ़क़ीि को उस स़े

कम न द़े ।

628
1987. इंसान क़े मलए मकरूह है कक मस्
ु तहक स़े दख़्वाकस्त कि़े कक र्जो ज़कात

उसऩे उस स़े ली है उसी क़े हाथ फ़िोख़्त कि द़े ल़ेककन अगि मस्
ु तहक ऩे र्जो चीज़

ितौि़े ज़कात ली है उस़े ि़ेचना चाह़े तो र्जि उसक़ी क़ीमत तय हो र्जाए तो जर्जस

शख़्स ऩे मस्


ु तहक को ज़कात दी हो उस चीज़ को खिीदऩे क़े मलए उसका हक

दस
ू िों पि फ़ायक है ।

1988. अगि ककसी शख़्स को शक हो कक र्जो ज़कात उस पि वाजर्जि हुई थी वह

उसऩे दी है या नहीं औि जर्जस माल में ज़कात वाजर्जि हुई थी वह भी मौर्जूद हो तो

ज़रूिी है कक ज़कात द़े ख़्वाह उसका शक गुज़श्ता साल क़ी ज़कात क़े मत
ु अजल्लक

ही क्यों न हो। औि (जर्जस माल में ज़कात वाजर्जि हुई थी) अगि वह ज़ाए हो चक
ु ा

हो तो अगिच़े उसी साल क़े मत


ु अजल्लक ही शक क्यों न हो उस पि ज़कात नहीं

है ।

1989. फ़क़ीि यह नहीं कि सकता कक ज़कात ल़ेऩे स़े पहल़े उस क़ी ममक़्दाि स़े

कम ममक़्दाि पि समझौता कि ल़े या ककसी चीज़ को उसक़ी क़ीमत स़े ज़्यादा

क़ीमत पि ितौि़े ज़कात किल


ू कि़े । औि इसी तिह मामलक भी यह नहीं कि

सकता कक मस्
ु तहक को इस शतक पि ज़कात द़े कक वह मस्
ु तहक उस़े वापस कि

द़े गा ल़ेककन अगि मस्


ु तहक ज़कात ल़ेऩे क़े िाद िाज़ी हो र्जाए औि उस ज़कात को

उस़े वापस कि द़े तो कोई हिर्ज नहीं मसलन ककसी शख़्स पि िहुत ज़्यादा ज़कात

वाजर्जि हो औि फ़क़ीि हो र्जाऩे क़ी वर्जह स़े वह ज़कात अदा न कि सकता हो औि

629
उसऩे तौिा कि ली हो तो अगि फ़क़ीि िाज़ी हो र्जाए कक उसस़े ज़कात ल़े कि किि

उस़े िख़्श द़े तो कोई हिर्ज नहीं।

1990. इंसान कुिआऩे मर्जीद, दीनी ककतािें या दआ


ु क़ी ककतािें सहम़े फ़़ी

सिीमलल्लाह स़े खिीद कि वक़्फ़ नहीं कि सकता ल़ेककन अगि रिफ़ाह़े आम्मा क़े

मलए उन चीज़ों क़ी ज़रूित हो तो एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि हाककम़े शअक स़े

इर्जाज़त ल़े ल़े।

1991. इंसान माल़े ज़कात स़े र्जायदाद खिीद कि अपनी औलाद या उन लोगों

को वक़्फ़ नहीं कि सकता जर्जनका खचक उस पि वाजर्जि हो ताकक वह उस र्जायदाद

क़ी मनफ़अत अपऩे मसिफ़ में ल़े आयें।

1992. हर्ज औि जज़याित वगैिा पि र्जाऩे क़े मलए इंसान फ़़ी सिीमलल्लाह क़े

हहस्स़े स़े ज़कात ल़े सकता है अगिच़े वह फ़क़ीि न हो या अपऩे साल भि क़े

अखिार्जात क़े मलए ज़कात ल़े चक


ु ा हो ल़ेककन यह उस सिू त में है र्जिकक उसका

हर्ज औि जज़याित वगैिा क़े मलए र्जाना लोगों क़े मफ़ाद में हो औि एहततयात क़ी

बिना पि ऐस़े लोगों में ज़कात खचक किऩे क़े मलए हाककम़े शअक स़े इर्जाज़त ल़े ल़े।

1993. अगि एक मामलक अपऩे माल क़ी ज़कात द़े ऩे क़े मलए ककसी फ़क़ीि को

वक़ील िनाए औि फ़क़ीि को यह एहततमाल हो कक मामलक का इिादा यह था कक

वह खुद (यअनी फ़क़ीि) उस माल स़े कुछ न ल़े तो उस सिू त में वह कोई चीज़

630
उसमें स़े अपऩे मलए नहीं ल़े सकता औि अगि फ़क़ीि को यह यक़ीन हो कक

मामलक का इिादा यह नहीं था तो वह अपऩे मलए भी ल़े सकता है ।

1994. अगि कोई फ़क़ीि ऊंट, गायें, भ़ेड़ें, सोना औि चांदी ितौि़े ज़कात हामसल

कि़े औि उनमें वह सि शिाइत मौर्जूद हों र्जो ज़कात वाजर्जि होऩे क़े मलए ियान

क़ी गई हैं ज़रूिी है कक फ़क़ीि उन पि ज़कात द़े ।

1995. अगि दो अश्खास एक ऐस़े माल में हहस्सादाि हों जर्जसक़ी ज़कात वाजर्जि

हो चकु क हो औि उनमें स़े एक अपऩे हहस्स़े क़ी ज़कात द़े द़े औि िाद में वह माल

तकसीम कि ल़े (औि र्जो शख़्स ज़कात द़े चक


ु ा हो) अगिच़े उस़े इल्म हो कक

उसक़े साथी ऩे अपऩे हहस्स़े क़ी ज़कात नहीं दी औि न ही िाद में द़े गा तो उस का

अपऩे हहस्स़े में तसरुक फ़ किना इश्काल नहीं िखता।

1996. अगि खुम्स औि ज़कात ककसी शख़्स क़े जज़म्म़े वाजर्जि हो औि कफ़्फ़ािा

औि मन्नत वगैिा भी उस पि वाजर्जि हो औि वह मकरूज़ भी हो औि उन सि क़ी

अदायगी न कि सकता हो तो अगि वह माल जर्जस पि खम्


ु स या ज़कात वाजर्जि

हो चक
ु ़ी हो तलफ़ न हो गया हो तो ज़रूिी है कक खम्
ु स औि ज़कात द़े औि अगि

वह माल तलफ़ हो गया हो तो कफ़्फ़ाि़े औि नज़्र स़े पहल़े ज़कात, खुम्स औि कज़क

अदा कि़े ।

1997. जर्जस शख़्स क़े जज़म्म़े खुम्स या ज़कात हो औि हर्ज भी उस पि वाजर्जि

हो औि वह मकरूज़ भी हो अगि वह मि र्जाए औि उसका माल उन तमाम चीज़ों

631
क़े मलए काफ़़ी न हो औि अगि वह माल जर्जस पि खुम्स या ज़कात वाजर्जि हो

चक
ु ़ी हो तलफ़ न हो गया हो तो ज़रूिी है कक खम्
ु स या ज़कात अदा क़ी र्जाए औि

उसका िाक़ी मांदा माल जर्जस पि खम्


ु स या ज़कात वाजर्जि हो चक
ु ़ी हो तलफ़ हो

गया हो तो ज़रूिी है कक उसका माल कज़क क़ी अदायगी पि खचक ककया र्जाए औि

अगि ज़्यादा िचा हो तो उस़े खुम्स औि ज़कात पि तकसीम कि हदया र्जाए।

1998. र्जो शख़्स इल्म हामसल किऩे में मश्गल


ू हो वह जर्जस वक़्त इल्म हामसल

न कि़े उस वक़्त अपनी िोज़ी कमाऩे क़े मलए काम कि सकता है। अगि उसका

इल्म हामसल किना वाजर्जि़े ऐनी हो तो फ़ुकिा क़े हहस्स़े स़े उसको ज़कात द़े सकत़े

हैं औि अगि उस इल्म का हामसल किना अवामी िह्िद


ू क़े मलए हो तो फ़़ी

सिीमलल्लाह क़ी मद स़े एहततयात क़ी बिना पि हाककम़े शअक क़ी इर्जाज़त स़े उसको

ज़कात द़े ना र्जाइज़ है औि इन दो सिू तों क़े अलावा उसको ज़कात द़े ना र्जाइज़ नहीं

है ।

जकाते फफ़त्रा

1999. ईदल
ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि़े आफ़्ताि क़े वक़्त र्जो शख़्स िामलग औि

आककल हो औि न फ़क़ीि हो औि न दस
ू ि़े का गल
ु ाम हो ज़रूिी है कक अपऩे मलए

औि उन लोगों क़े मलए र्जो उसक़े हां खाना खात़े हों फ़़ी कस एक साअ जर्जसक़े िाि़े

में कहा र्जाता है कक तकिीिन तीन ककलो होता उन चगज़ाओं में र्जो उसक़े शहि

632
(या इलाक़े) में इस्त़ेमाल होती हों मसलन ग़ेहूं या र्जौ या खर्जूि या ककशममश या

चावल या र्जव
ु ाि मस्
ु तहक शख़्स को द़े औि अगि इनक़ी िर्जाय उनक़ी क़ीमत

नकदी क़ी शक्ल में द़े ति भी काफ़़ी है औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक र्जो

चगज़ा उसक़े शहि में आम तौि पि इस्त़ेमाल न होती हो चाह़े वह ग़ेहूं, र्जौ, खर्जिू

या ककशममश हो, न द़े ।

2000. जर्जस शख़्स क़े पास अपऩे औि अपऩे अहलोअयाल क़े मलए साल भि का

खचक न हो औि उस का कोई िोज़गाि भी न हो जर्जसक़े ज़िीए वह अपऩे

अहलोअयाल का साल भि का खचक पिू ा कि सक़े वह फ़क़ीि है औि उस पि कफ़त्रा

द़े ना वाजर्जि नहीं है ।

2001. र्जो लोग ईदल


ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि क़े वक़्त ककसी शख़्स क़े हां खाऩे वाल़े

समझ़े र्जायें ज़रूिी है कक वह शख़्स उनका कफ़त्रा द़े , कत ्ए नज़ि इसस़े कक वह

छोट़े हों या िड़़े, मस


ु लमान हों या काकफ़ि, उनका खचाक उस पि वाजर्जि हो या न

हो औि उसक़े शहि में हों या ककसी दस


ू ि़े शहि में ।

2002. अगि कोई शख़्स एक ऐस़े शख़्स को र्जो उसक़े हां खाना खाऩे वाला

गिदाना र्जाए, उस़े दस


ू ि़े शहि में नम
ु ाइन्दा मक
ु िक ि कि़े कक उसक़े (यअनी साहि़े

खाना क़े) माल स़े अपना कफ़त्रा द़े द़े औि उस़े इत्मीनान हो कक वह शख़्स कफ़त्रा द़े

द़े गा तो खुद साहि़े खाना क़े मलए उसका कफ़त्रा द़े ना ज़रूिी नहीं है।

633
2003. र्जो म़ेहमान ईदल
ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि स़े पहल़े साहि़े खाना क़ी

िज़ामन्दी स़े उसक़े र्ि आए औि उसक़े हां खाना खाऩे वालों में अगिच़े वक़्ती तौि

पि शम
ु ाि हो उसका कफ़त्रा साहि़े खाना पि वाजर्जि है।

2004. र्जो म़ेहमान ईदल


ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि स़े पहल़े साहि़े खाना क़ी िज़ामन्दी

क़े िगैि उसक़े र्ि आए औि कुछ मद्


ु दत साहि़े खाना क़े हां िह़े उस का कफ़त्रा

एहततयात क़ी बिना पि वाजर्जि है औि इसी तिह अगि इंसान को ककसी का खचाक

द़े ऩे पि मर्जििू ककया न गया हो तो उसक़े कफ़त्ऱे क़े मलए भी यही हुक्म है ।

2005. र्जो म़ेहमान ईदल


ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि क़े िाद वारिद हो अगि वह साहि़े

खाना क़े हां खाना खाऩे वाला शम


ु ाि हो तो उस का कफ़त्रा साहि़े खाना पि

एहततयात क़ी बिना पि वाजर्जि है औि अगि खाना खाऩे वाला शम


ु ाि न हो तो

वाजर्जि नहीं है। ख़्वाह साहि़े खाना ऩे गरू


ु ि स़े पहल़े उस़े दअवत दी हो औि वह

इफ़्ताि भी साहि़े खाना क़े र्ि पि ही कि़े ।

2006. अगि कोई शख़्स ईदल


ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि क़े वक़्त दीवाना हो औि

उसक़ी दीवांगी ईदल


ु कफ़त्र क़े हदन ज़ोहि क़े वक़्त तक िाक़ी िह़े तो उस पि कफ़त्रा

वाजर्जि नहीं है वनाक एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि लाजज़म है कक कफ़त्रा द़े ।

2007. गरू
ु ि़े आफ़ताि स़े पहल़े अगि कोई िच्चा िामलग हो र्जाए या कोई

दीवाना आककल हो र्जाए या कोई फ़क़ीि गनी हो र्जाए तो अगि वह कफ़तिा वाजर्जि

होऩे क़ी शिाइत पिू ी किता हो तो ज़रूिी है कक कफ़तिा द़े ।

634
2008. जर्जस शख़्स पि ईदल
ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि क़े वक़्त कफ़त्रा वाजर्जि न हो

अगि ईद क़े हदन ज़ोहि क़े वक़्त स़े पहल़े तक कफ़त्रा होऩे क़ी शिाइत उसमें मौर्जद

हो र्जायें तो एहततयात़े वाजर्जि1 यह है कक कफ़त्रा द़े ।

2009. अगि कोई काकफ़ि ईदल


ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि़े आफ़ताि क़े िाद मस
ु लमान

हो र्जाए तो उस पि कफ़त्रा वाजर्जि है ल़ेककन अगि एक ऐसा मस


ु लमान र्जो शीआ न

हो वह ईद का चांद द़े खऩे क़े िाद शीआ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक कफ़त्रा द़े ।

2010. जर्जस शख़्स क़े पास मसफ़क अन्दाज़न एक साथ ग़ेहूं ऐसी ही कोई जर्जन्स

हो उसक़े मलए मस्


ु तहि है कक कफ़त्रा द़े औि अगि उसक़े अहलो अयाल भी हों औि

वह उनका भी कफ़त्रा द़े ना चाहता हो तो वह ऐसा कि सकता है कक कफ़त्ऱे क़ी नीयत

स़े एक साथ ग़ेहूं वगैिा अपऩे अहलो अयाल में स़े ककसी एक को द़े द़े औि वह

इसी नीयत स़े दस


ू ि़े को द़े द़े औि वह इसी तिह द़े त़े िहें हत्ताकक वह जर्जन्स

खानदान क़े आखखिी फ़दक तक पहुंच र्जाए औि ि़ेहति है कक र्जो चीज़ आखखिी फ़दक

को ममल़े वह ककसी ऐस़े शख़्स को द़े र्जो खद


ु उन लोगों में स़े न हो जर्जन्होंऩे कफ़त्रा

एक दस
ू ि़े को हदया है औि अगि उन लोगों में स़े कोई नािामलग हो तो उसका

सिपिस्त उसक़ी िर्जाय कफ़तिा ल़े सकता है औि एहततयात यहै है कक र्जो चीज़

नािामलग क़े मलए ली र्जाए वह ककसी दस


ू ि़े को न दी र्जाए।

2011. अगि ईदल


ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि क़े िाद ककसी क़े हां िच्चा पैदा हो तो

उसका कफ़त्रा द़े ना वाजर्जि नहीं है ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक र्जो अश्खास

635
गरू
ु ि क़े िाद स़े ईद क़े हदन ज़ौहि स़े पहल़े तक साहि़े खाना क़े हां खाना खाऩे

वालों में समझ़े र्जायें वह उन सिका कफ़त्रा द़े ।

2012. अगि कोई शख़्स ककसी क़े हां खाना खाता हो औि गरू
ु ि स़े पहल़े ककसी

दस
ू ि़े क़े हां खाना खाऩे वाला हो र्जाए तो उसका कफ़त्रा उसी शख़्स पि वाजर्जि है

जर्जसक़े हां वह खाना खाऩे वाला िन र्जाए मसलन अगि औित गरू
ु ि स़े पहल़े

शौहि क़े र्ि चली र्जाए तो ज़रूिी है कक शौहि उसका कफ़त्रा द़े ।

2013. जर्जस शख़्स का कफ़त्रा ककसी दस


ू ि़े शख़्स पि वाजर्जि हो उस पि अपना

कफ़त्रा खद
ु द़े ना वाजर्जि नहीं है ।

2014. जर्जस शख़्स का कफ़त्रा ककसी दस


ू ि़े शख़्स पि वाजर्जि हो अगि वह न द़े

तो एहततयात क़ी बिना पि कफ़त्रा खुद उस शख़्स पि द़े ना वाजर्जि हो र्जाता है र्जो

शिाइत मस ्अला 1999 में ियान हुई है। अगि वह मौर्जूद हों तो अपना कफ़त्रा खुद

अदा कि़े ।

2015. जर्जस शख़्स का कफ़त्रा ककसी दस


ू ि़े शख़्स पि वाजर्जि हो अगि वह खद

अपना कफ़त्रा द़े द़े तो जर्जस शख़्स पि उसका कफ़त्रा वाजर्जि हो उस पि स़े उसक़ी

अदायगी का वर्ज
ु ूि साककत नहीं होता।

2016. जर्जस औित का शौहि उसका खचक न द़े ता हो अगि वह ककसी दस


ू ि़े क़े

हां खाना खाती हो तो उसका कफ़त्रा उस शख़्स पि वाजर्जि है जर्जसक़े हां वह खाना

636
खाती है औि अगि वह ककसी क़े हां खाना न खाती हो औि फ़क़ीि भी न हो तो

ज़रूिी है कक अपना कफ़त्रा खद


ु द़े ।

2017. गैि़े सैय्यद, सैय्यद को कफ़त्रा नहीं द़े सकता हालांकक अगि सैय्यद उसक़े

हां खाना खाता हो ति भी उसका कफ़त्रा वह ककसी दस


ू ि़े सैय्यद को नहीं द़े सकता।

2018. र्जो िच्चा मां या दाया का दध


ू पीता हो उसका कफ़त्रा उस शख़्स पि

वाजर्जि है र्जो मां या दाया क़े अखिार्जात िदाकश्त किता हो ल़ेककन अगि मां या

दाया का खचक खुद िच्च़े क़े माल स़े पिू ा हो तो िच्च़े का कफ़त्रा ककसी पि वाजर्जि

नहीं है।

2019. इंसान अगिच़े अपऩे अहलो अयाल का खचक हिाम माल स़े द़े ता हो,

ज़रूिी है कक उनका कफ़त्रा हलाल माल स़े द़े ।

2020. अगि इंसान ककसी शख़्स को उर्जित पि िख़े र्जैस़े ममस्त्री, िढ़ई या

खखदमतगाि औि उसका खचक इस तिह द़े कक वह उसका खाना खाऩे वालों में

शम
ु ाि हो तो ज़रूिी है कक उसका कफ़त्रा भी द़े ल़ेककन अगि उस़े मसफ़क काम क़ी

मज़दिू ी द़े तो उस (अर्जीि) का कफ़त्रा अदा किना उस पि वाजर्जि नहीं है ।

2021. अगि कोई शख़्स ईदल


ु कफ़त्र क़ी िात गरू
ु ि स़े पहल़े फ़ौत हो र्जाए तो

उसका औि उसक़े अहलो अयाल का कफ़त्रा उसक़े माल स़े द़े ना वाजर्जि नहीं है ।

ल़ेककन अगि गरू


ु ि क़े िाद फ़ौत हो तो मश्हूि कौल क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

उसका औि उसक़े अहलो अयाल का कफ़त्रा उसक़े माल स़े हदया र्जाए ल़ेककन यह

637
हुक्म इश्काल स़े खाली नहीं है औि इस मसअल़े में एहततयात क़े पहलू को तकक

नहीं किना चाहहए।

जकाते फफ़त्रा का मसिफ़

2022. कफ़त्रा एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उन शीआ इसना अशिी फ़ुकिा को

द़े ना ज़रूिी है, र्जो उन शिाइत पि पिू ़े उतित़े हों जर्जनका जज़क्र ज़कात क़े

मस्
ु तहक़्क़ीन में हो चक
ु ा है औि अगि शहि में शीआ इसना अशिी फ़ुकिा न ममलें

तो दस
ू ि़े मस
ु लमान फ़ुकिा को कफ़त्रा द़े सकता है ल़ेककन ज़रूिी है कक ककसी भी

सिू त में नामसिी को न हदया र्जाए।

2023. अगि कोई शीआ िच्चा फ़क़ीि हो तो इंसान यह कि सकता है कक कफ़त्रा

उस पि खचक कि़े या उसक़े सिपिस्त को द़े कि उस़े िच्च़े क़ी ममजल्कयत किाि द़े ।

2024. जर्जस फ़क़ीि को कफ़त्रा हदया र्जाए ज़रूिी नहीं कक वह आहदल हो ल़ेककन

एहततयात़े वाजर्जि यह है कक शिािी औि ि़ेनमाज़ी को औि उस शख़्स को र्जो

खुल्लम खुल्ला गुनाह किता हो कफ़त्रा न हदया र्जाए।

2025. र्जो शख़्स कफ़त्रा नार्जाइज़ कामों में खचक किता हो ज़रूिी है कक उस़े कफ़त्रा

न हदया र्जाए।

2026. एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक एक फ़क़ीि को एक साअ स़े कम कफ़त्रा न

हदया र्जाए। अलित्ता अगि एक साअ स़े ज़्यादा हदया र्जाए तो कोई इश्काल नहीं है ।

638
2027. र्जि ककसी जर्जन्स क़ी क़ीमत उसी जर्जन्स क़ी मअमल
ू ी ककस्म स़े दग
ु नी

हो, मसलन ककसी ग़ेहूं क़ी क़ीमत मअमल


ू ी ककस्म क़े ग़ेहूं क़ी क़ीमत स़े दग
ु नी हो

तो अगि कोई शख़्स उस (िहढ़या जर्जन्स) का आधा साअ ितौि़े कफ़त्रा द़े तो यह

काफ़़ी नहीं है िजल्क अगि वह आधा साअ कफ़त्रा क़ी क़ीमत क़ी नीयत स़े भी द़े तो

भी काफ़़ी नहीं है ।

2028. इंसान आधा साअ एक जर्जन्स का मसलन ग़ेहूं का औि आधा साअ

ककसी दस
ू िी जर्जन्स मसलन र्जौ का ितौि़े कफ़त्रा नहीं द़े सकता िजल्क अगि यह

आधा आधा साअ कफ़त्ऱे क़ी क़ीमत क़ी नीयत स़े भी द़े तो काफ़़ी नहीं है ।

2029. इंसान क़े मलए मस्


ु तहि है कक ज़कात द़े ऩे में अपऩे फ़क़ीि रिश्त़ेदािों औि

हमसायों को दस
ू ि़े लोगों पि तिर्जीह द़े औि ि़ेहति यह है कक अहल़े इल्मों फ़ज़्ल

औि दींदाि लोगों को दस
ू ि़े लोगों पि तिर्जीह दें ।

2030. अगि इंसान यह ख़्याल कित़े हुए कक एक शख़्स फ़क़ीि है उस़े कफ़त्रा द़े

औि िाद में मअलम


ू हो कक वह फ़क़ीि न था तो अगि उसऩे र्जो माल फ़क़ीि को

हदया था वह खत्म न हो गया हो तो ज़रूिी है कक वापस ल़े ल़े औि मस्


ु तहक को

द़े द़े औि अगि वापस न ल़े सकता हो तो ज़रूिी है कक खुद अपऩे माल स़े कफ़त्ऱे

का एवज़ द़े औि अगि वह माल खत्म हो गया हो ल़ेककन ल़ेऩे वाल़े को इल्म हो

कक र्जो कुछ उसऩे मलया है वह कफ़त्रा है तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े औि

639
अगि उस़े यह इल्म न हो तो एवज़ द़े ना उस पि वाजर्जि नहीं है औि ज़रूिी है कक

इंसान कफ़त्ऱे का एवज़ द़े ।

2031. अगि कोई शख़्स कह़े कक मैं फ़क़ीि हूं तो उस़े कफ़त्रा नहीं हदया र्जा

सकता िर्जुज़ उस सिू त क़े कक इंसान को उसक़े कहऩे स़े इत्मीनान हो र्जाए या

इंसान को इल्म हो कक वह पहल़े फ़क़ीि था।

जकाते फफ़त्रा के मुतफ़रियक मसाइल

2032. ज़रूिी है कक इंसान कफ़त्रा कुिकत क़े कस्द स़े यअनी अल्लाह तिािका

तआला क़ी खुशनद


ू ी क़े मलए द़े औि उस़े द़े त़े वक़्त कफ़त्ऱे क़ी नीयत कि़े ।

2033. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक स़े पहल़े कफ़त्रा द़े द़े तो यह

सहीह नहीं है औि ि़ेहति यह है कक माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक में भी कफ़त्रा न द़े

अलित्ता अगि माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक स़े पहल़े ककसी फ़क़ीि को कज़ाक द़े औि र्जि

कफ़त्रा उस पि वाजर्जि हो र्जाए, कज़े को कफ़त्ऱे में शम


ु ाि कि ल़े तो कोई हिर्ज नहीं

है ।

2034. ग़ेहूं या कोई दस


ू िी चीज़ र्जो कफ़त्ऱे क़े तौि पि दी र्जाए ज़रूिी है कक

उसमें कोई औि जर्जन्स या ममट्टी न ममली हुई हो। औि अगि उसमें कोई ऐसी

चीज़ ममली हुई हो औि खामलस माल एक साअ तक पहुंच र्जाए औि ममली हुई

चीज़ र्जद
ु ा ककय़े िगैि इस्त़ेमाल क़े काबिल हो या र्जद
ु ा किऩे में हद स़े ज़्यादा

640
ज़हमत न हो या र्जो चीज़ ममली हुई हो वह इतनी कम हो कक काबिल़े तवज्र्जुह न

हो तो कोई हिर्ज नहीं है ।

2035. अगि कोई शख़्स ऐिदाि चीज़ कफ़त्ऱे क़े तौि पि द़े तो एहततयात़े वाजर्जि

क़ी बिना पि काफ़़ी नहीं है।

2036. जर्जस शख़्स को कई अश्खास का कफ़त्रा द़े ना हो उसक़े मलए ज़रूिी नहीं

कक सािा कफ़त्रा एक ही जर्जन्स स़े द़े मसलन अगि िअज़ अफ़िाद का कफ़त्रा ग़ेहूं स़े

औि िअज़ दस
ू िों का र्जौ स़े द़े तो काफ़़ी है।

2037. ईद क़ी नमाज़ पढ़ऩे वाल़े शख़्स को एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि ईद

क़ी नमाज़ स़े पहल़े कफ़त्रा द़े ना ज़रूिी है ल़ेककन अगि कोई शख़्स नमाज़़े ईद न पढ़़े

तो कफ़त्ऱे क़ी अदायगी में ज़ौहि क़े वक़्त तक ताखीि कि सकता है ।

2038. अगि कोई शख़्स कफ़त्ऱे क़ी नीयत स़े अपऩे माल क़ी कुछ ममक़्दाि

अलायहदा कि द़े औि ईद क़े हदन ज़ौहि क़े वक़्त तक मस्


ु तहक को न द़े तो र्जि

भी वह माल मस्
ु तहक को द़े कफ़त्ऱे क़ी नीयत कि़े ।

2039. अगि कोई शख़्स कफ़त्ऱे वाजर्जि होऩे क़े वक़्त कफ़त्रा न द़े औि अलग भी

न कि़े तो उसक़े िाद अदा औि कज़ा क़ी नीयत ककय़े िगैि कफ़त्रा द़े ।

2040. अगि कोई शख़्स कफ़त्रा अलग कि द़े तो वह उस़े अपऩे मसिफ़ में ला

कि दस
ू िा माल उसक़ी र्जगह ितौि कफ़त्रा नहीं िख सकता।

641
2041. अगि ककसी शख़्स क़े पास ऐसा माल हो जर्जसक़ी क़ीमत कफ़त्रा स़े ज़्यादा

हो तो अगि वह शख़्स कफ़त्रा न द़े औि नीयत कि़े कक उस माल क़ी कुछ ममक़्दाि

कफ़त्ऱे क़े मलए होगी तो ऐसा किऩे में इश्काल है ।

2042. ककसी शख़्स ऩे र्जो माल कफ़त्ऱे क़े मलए अलग ककया हो अगि वह तलफ़

हो र्जाए तो अगि वह शख़्स फ़क़ीि तक पहुंच सकता था औि उसऩे कफ़त्रा द़े ऩे में

ताखीि क़ी हो या उसक़ी हहफ़ाज़त किऩे में कोताही क़ी हो तो ज़रूिी है कक उसका

एवज़ द़े औि अगि फ़क़ीि तक नहीं पहुंच सकता था औि उसक़ी हहफ़ाज़त में

कोताही न क़ी हो तो किि जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2043. अगि कफ़त्रा द़े ऩे वाल़े क़े अपऩे इलाक़े में मस्
ु तहक ममल र्जाए तो

एहततयात़े वाजर्जि यह है कक कफ़त्रा दस


ू िी र्जगह न ल़े र्जाए औि अगि दस
ू िी र्जगह

ल़े र्जाए औि वह तलफ़ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े ।

हज के अह्काम

2044. िैतल्
ु लाह क़ी जज़याित किऩे औि उन अअमाल को िर्जा लाऩे का नाम

हर्ज है जर्जनक़े वहां िर्जा लाऩे का हुक्म हदया गया है औि उसक़ी अदायगी हि उस

शख़्स क़े मलए र्जो मन्


ु दारिर्जा ज़ैल शिाइत पिू ी किता हो तमाम उम्र में एक दफ़् आ

वाजर्जि है ः-

अव्वल – इंसान िामलग हो।

642
दोम – आककल औि आज़ाद हो।

सोम – हर्ज पि र्जाऩे क़ी वर्जह स़े कोई ऐसा नार्जाइज़ काम किऩे पि मर्जििू न

हो जर्जसका तकक किना हर्ज किऩे स़े ज़्यादा अहम हो या कोई ऐसा वाजर्जि तकक न

होता हो र्जो हर्ज स़े ज़्यादा अहम हो।

चाहरूम – इजस्तताअत िखता हो औि साहि़े इजस्तताअत होना चन्द चीज़ों पि

मन्
ु हमसि हैः-

1. इंसान िास्त़े का खचक औि इसी तिह अगि ज़रूित हो तो सवािी िखता हो

या इतना माल िखता हो जर्जसस़े उन चीज़ों को मह


ु ै या कि सक़े।

2. इतनी स़ेहत औि ताकत हो कक ज़्यादा मशक़्कत क़े िगैि मक्का ए मक


ु रिक मा

र्जा कि हर्ज कि सकता हो।

3. मक्का ए मक
ु रिक मा र्जाऩे क़े मलए िास्त़े में कोई रुकावट न हो औि अगि

िास्ता िन्द हो या इंसान को डि हो कक िास्त़े में उसक़ी र्जान या आिरू चली

र्जाय़ेगी या उसका माल छ न मलया र्जाय़ेगा तो उस पि हर्ज वाजर्जि नहीं है ल़ेककन

अगि वह दस
ू ि़े िास्त़े स़े र्जा सकता हो तो अगिच़े वह िास्ता ज़्यादा तवील हो

ज़रूिी है कक उस िास्त़े स़े र्जाए िर्जज़


ु इसक़े कक वह िास्ता इस कदि दिू औि गैि

मअरूफ़ हो कक लोग कहें कक हर्ज का िास्ता िन्द है।

4. उसक़े पास इतना वक़्त हो कक मक्का ए मक


ु िक मा पहुंच कि हर्ज क़े अअमाल

िर्जा ला सक़े।

643
5. जर्जन लोगों क़े अखिार्जात उस पि वाजर्जि हों मसलन िीवी, िच्च़े औि जर्जन

लोगों क़े अखिार्जात िदाकश्त किना लोग उसक़े मलए ज़रूिी समझत़े हों उनक़े

अखिार्जात उसक़े पास मौर्जद


ू हों।

6. हर्ज स़े वापसी क़े िाद वह मआश क़े मलए कोई हुनि या ख़ेती या र्जायदाद

िखता हो या किि कोई दस


ू िा ज़िीआ ए आमदनी िखता हो यअनी इस तिह न हो

कक हर्ज क़े अखिार्जात क़ी वर्जह स़े वापसी पि मर्जििू हो र्जाए औि तंगी तुश़ी में

जज़न्दगी गज़
ु ाि़े ।

2045. जर्जस शख़्स क़ी ज़रूित अपऩे ज़ाती मकान क़े िगैि पिू ी न हो सक़े उस

पि हर्ज उस वक़्त वाजर्जि है र्जि उसक़े पास मकान क़े मलए भी िकम हो।

2046. र्जो औित मक्का ए मक


ु िक मा र्जा सकती हो अगि वापसी क़े िाद उसक़े

पास उसका अपना कोई माल न हो औि ममसाल क़े तौि पि उसका शौहि भी

फ़क़ीि हो औि उस़े खचक न द़े ता हो औि वह औित उसित में जज़न्दगी गज़


ु ािऩे पि

मर्जििू हो र्जाए तो उस पि हर्ज वाजर्जि नहीं।

2047. अगि ककसी शख़्स क़े पास हर्ज क़े मलए ज़ाद़े िाह औि सवािी न हो औि

दस
ू िा उस़े कह़े कक तुम हर्ज पि र्जाओ मैं तुम्हािा सफ़ि खचक दं ग
ू ा औि तुम्हाि़े

सफ़ि़े हर्ज क़े दौिान तुम्हाि़े अहलो अयाल को भी खचक द़े ता िहूंगा तो अगि उस़े

इत्मीनान हो र्जाए कक वह शख़्स उस़े खचक द़े गा तो उस पि हर्ज वाजर्जि हो र्जाता

है ।

644
2048. अगि ककसी शख़्स को मक्का ए मक
ु िक मा र्जाऩे औि वापस आऩे का खचक

द़े हदया र्जाए कक वह हर्ज कि ल़े तो अगिच़े वह मकरूज़ भी हो औि वापसी पि

गज़
ु ि िसि किऩे क़े मलए माल भी न िखता हो उस पि हर्ज वाजर्जि हो र्जाता है

ल़ेककन अगि इस तिह हो कक हर्ज क़े सफ़ि का ज़माना उसक़े कािोिाि औि काम

का ज़माना हो कक अगि हर्ज पि चला र्जाए तो अपना कज़क मक


ु िक ि वक़्त पि अदा

न कि सकता हो या अपनी गज़


ु ि िसि क़े अखिार्जात साल क़े िाक़ी हदनों में

मह
ु ै या न कि सकता हो तो उस पि हर्ज वाजर्जि नहीं है ।

2049. अगि ककसी को मक्का ए मक


ु िक मा तक र्जाऩे औि र्जाऩे क़े अखिार्जात

नीज़ जर्जतनी मद्


ु दत वहां र्जाऩे औि आऩे में लग़े उस मद्
ु दत क़े मलए उसक़े अहलो

अयाल क़े अखिार्जात द़े हदय़े र्जायें औि उसस़े कहा र्जाए कक हर्ज पि र्जाओ ल़ेककन

यह सि मसारिफ़ उसक़ी ममजल्कयत में न हदय़े र्जायें तो उस सिू त में र्जिकक उस़े

इत्मीनान हो कक हदए हुए अखिार्जात का उसस़े किि मत


ु ालिा नहीं ककया र्जाय़ेगा

उस पि हर्ज वाजर्जि हो र्जाता है।

2050. अगि ककसी शख़्स को इतना माल द़े हदया र्जाए र्जो हर्ज क़े मलए काफ़़ी

हो औि यह शतक लगाई र्जाए कक जर्जस शख़्स ऩे माल हदया है माल ल़ेऩे वाला

मक्का ए मक
ु िक मा क़े िास्त़े में उसक़ी खखदमत कि़े गा तो जर्जस़े माल हदया र्जाय़े

उस पि हर्ज वाजर्जि नहीं होता।

645
2051. अगि ककसी शख़्स को इतना माल हदया र्जाए कक उस पि हर्ज वाजर्जि हो

र्जाए औि वह हर्ज कि़े तो अगिच़े िाद में वह खद


ु भी (कहीं स़े) माल हामसल कि

ल़े दस
ू िा हर्ज उस पि वाजर्जि नहीं है ।

2052. अगि कोई शख़्स िगिज़़े ततर्जाित ममसाल क़े तौि पि र्जद्दा र्जाए औि

इतना माल कमाए कक अगि वहां स़े मक्का र्जाना चाह़े तो इजस्तताअत िखऩे क़ी

वर्जह स़े ज़रूिी है कक हर्ज कि़े औि अगि वह हर्ज कि ल़े तो ख्वाह वह िाद में

इतनी दौलत कमा ल़े कक खुद अपऩे वतन स़े भी मक्का ए मक


ु िक मा र्जा सकता हो

ति भी उस पि दस
ू िा हर्ज वाजर्जि नहीं है ।

2053. अगि कोई इस शतक पि अर्जीि िऩे कक वह खुद एक दस


ू ि़े शख़्स क़ी

तिफ़ स़े हर्ज कि़े गा तो अगि वह खुद हर्ज को न र्जा सक़े औि चाह़े कक ककसी

दस
ू ि़े को अपनी र्जगह भ़ेर्ज द़े तो ज़रूिी है कक जर्जसऩे उस़े अर्जीि िनाया है उस़े

इर्जाज़त ल़े।

2054. अगि कोई साहि़े इजस्तताअत हो कि हर्ज को न र्जाए औि किि फ़क़ीि

हो र्जाए तो ज़रूिी है कक ख़्वाह उस़े ज़हमत ही क्यों न उठानी पड़़े िाद में हर्ज कि़े

औि अगि वह ककसी भी तिह हर्ज को न र्जा सकता हो औि कोई उस़े हर्ज किऩे

क़े मलए अर्जीि िनाए तो ज़रूिी है कक मक्का ए मक


ु िक मा में िह़े औि किि अपना

हर्ज िर्जा लाए ल़ेककन अगि अर्जीि िऩे औि उर्जित नक़्द ल़े ल़े औि जर्जस शख़्स

ऩे उस़े अर्जीि िनाया हो वह इस िात पि िाज़ी हो कक उस क़ी तिफ़ स़े हर्ज दस
ू ि़े

646
साल िर्जा लाया र्जाए र्जिकक वह इत्मीनान न िखता हो तो ज़रूिी है कक अर्जीि

पहल़े साल खद
ु अपना हर्ज कि़े औि उस शख़्स का हर्ज जर्जसऩे उसको अर्जीि

िनाया था दस
ू ि़े साल क़े मलए उठा िख़े।

2055. जर्जस साल कोई शख़्स साहि़े इजस्तताअत हुआ हो अगि उसी साल

मक्का ए मक
ु िक मा चला र्जाए औि मक
ु िक िा वक़्त पि अिफ़ात औि मश ्अरूल हिाम

में न पहुंच सक़े औि िाद में सालों में साहि़े इजस्तताअत न हो तो उस पि हर्ज

वाजर्जि नहीं है मसवाय इसक़े कक चंद साल पहल़े स़े साहि़े इजस्तताअत िहा हो औि

हर्ज पि न गया हो तो उस सिू त में ख़्वाह ज़हमत ही क्यों न उठानी पड़़े उस़े हर्ज

किना ज़रूिी है।

2056. अगि कोई शख़्स साहि़े इजस्तताअत होत़े हुए हर्ज न कि़े औि िाद में

िढ़
ु ाप़े, िीमािी या कमज़ोिी क़ी वर्जह स़े हर्ज न कि सक़े औि इस िात स़े ना

उम्मीद हो र्जाए कक िाद में खुद हर्ज कि सक़ेगा तो ज़रूिी है कक ककसी दस


ू ि़े को

अपनी तिफ़ स़े हर्ज क़े मलए भ़ेर्ज द़े िजल्क अगि ना उम्मीद न भी हुआ हो तो

एहततयात़े वाजर्जि यह है कक एक अर्जीि मक


ु िक ि कि़े औि अगि िाद में इस काबिल

हो र्जाए तो खुद भी हर्ज कि़े औि अगि उसक़े पास ककसी साल पहली दफ़् आ

इतना माल हो र्जाए र्जो हर्ज क़े मलए काफ़़ी हो औि िढ़


ु ाप़े या िीमािी या कमज़ोिी

क़ी वर्जह स़े हर्ज न कि सक़े औि ताकत (व स़ेहत) हामसल किऩे स़े ना उम्मीद हो

ति भी यही हुक्म है औि इन तमाम सिू तों में एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

647
जर्जसक़ी तिफ़ स़े हर्ज क़े मलए र्जा िहा हो अगि वह मदक हो तो ऐस़े शख़्स को

नायाि िनाए जर्जसका हर्ज पि र्जाऩे का पहला मौका हो (यअनी इसस़े पहल़े हर्ज

किऩे न गया हो)

2057. र्जो शख़्स हर्ज किऩे क़े मलए ककसी दस


ू ि़े क़ी तिफ़ स़े अर्जीि हो ज़रूिी है

कक उसक़ी तिफ़ स़े तवाफ़ुजन्नसा भी कि़े औि अगि न कि़े तो अर्जीि पि उसक़ी

िीवी हिाम हो र्जाय़ेगी।

2058. अगि कोई शख़्स तवाफ़ुजन्नसा सहीह तौि पि न िर्जा लाए या उसको

िर्जा लाना भल
ू र्जाए औि चन्द िोज़ िाद उस़े याद आए औि िास्त़े स़े वापस होकि

िर्जा लाए तो सहीह है ल़ेककन अगि वापस होना उसक़े मलए िाइस़े मशक़्कत हो तो

तवाफ़ुजन्नसा क़ी िर्जा आविी क़े मलए ककसी को नायि िना सकता है ।

मुआमलात

ख़िीद व फ़िोख़्त के अह्काम

2059. एक बयोपािी क़े मलए मन


ु ामसि है कक खिीद व फ़िोख़्त क़े मसलमसल़े में

जर्जन मसाइल का (उमम


ू न) सामना किना पड़ता है उनक़े अह्काम सीख ल़े िजल्क

अगि मसाइल न सीखऩे क़ी वर्जह स़े ककसी वाजर्जि हुक्म क़ी मख
ु ामलफ़त किऩे का

अन्द़े शा हो तो मसाइल सीखना लाजज़म व लािद


ु है । हज़ित इमाम र्जअफ़ि़े साहदक

648
अलैहहस्सलातो वस्सलाम स़े रिवायत है कक र्जो शख़्स खिीद व फ़िोख़्त किना

चाहता हो उसक़े मलए ज़रूिी है कक उनक़े अह्काम सीख़े औि अगि उन अह्काम

को सीखऩे स़े पहल़े खिीद व फ़िोख़्त कि़े गा तो िाततल या मश


ु तिह मआ
ु मला

किऩे क़ी वर्जह स़े हलाकत में पड़़ेगा।

2060. अगि कोई मस ्अल़े स़े नावाककफ़़ीयत क़ी बिना पि यह न र्जानता हो कक

उसऩे र्जो मआ
ु मला ककया है वह सहीह है या िाततल तो र्जो माल उसऩे हामसल

ककया हो उस़े इस्त़ेमाल नहीं कि सकता मगि यह कक उस़े इल्म हो र्जाए कक दस


ू िा

फ़िीक उस माल को इस्त़ेमाल किऩे पि िाज़ी है तो उस सिू त में वह इस्त़ेमाल कि

सकता है अगिच़े मआ
ु मला िाततल हो।

2061. जर्जस शख़्स क़े पास माल न हो औि कुछ अखिार्जात उस पि वाजर्जि हों,

मसलन िीवी िच्चों का खचक तो ज़रूिीह कक कािोिाि कि़े । औि मस्


ु तहि कामों क़े

मलए मसलन अहलो अयाल क़ी खुशहाली औि फ़क़ीिों क़ी मदद किऩे क़े मलए

कािोिाि किना मस्


ु तहि है ।

ख़िीद व फ़िोख़्त के मस्


ु तहब्बात

खिीद व फ़िोख़्त में चन्द चीज़ें मस्


ु तहि शम
ु ाि क़ी गई हैं –

1.- फ़क़्र औि उस र्जैसी कैफ़़ीयत क़े मसवा जर्जन्स क़ी क़ीमत में खिीदािों क़े

दिममयान फ़कक न कि़े ।

649
2.- अगि वह नक़्
ु सान में न हो तो चीज़ें ज़्यादा मंहगी न ि़ेच।़े

3.- र्जो चीज़ ि़ेच िहा हो वह कुछ ज़्यादा द़े औि र्जो चीज़ खिीद िहा हो वह

कम ल़े।

4.- अगि कोई शख़्स सौदा किऩे क़े िाद पशीमान होकि उस चीज़ को वापस

किना चाह़े तो वापस ल़े ल़े।

मकरूह मुआमलात

2062. खास खास मआ


ु मलात जर्जन्हें मकरूह शम
ु ाि ककया गया है यह हैं –

1. र्जायदाद का ि़ेचना िर्जज़


ु इसक़े कक उसस़े दस
ू िी र्जायदाद खिीदी र्जाए।

2. गोश्त फ़िोशी का प़ेशा इखततयाि किना।

3. कफ़न फ़िोशी का प़ेशा इखततयाि किना।

4. ऐस़े (ओछ़े ) लोगों स़े मआ


ु मला किना जर्जनक़ी सहीह तिबियत न हुई हो।

5. सबु ह क़ी अज़ान स़े सिू र्ज तनकलऩे क़े वक़्त तक मआ


ु मला किना।

6. ग़ेहूं, र्जौ औि उन र्जैसी दस


ू िी अर्जनास क़ी खिीद व फ़िोख़्त को अपना प़ेशा

किाि द़े ना।

7. अगि मस
ु लमान कोई जर्जन्स खिीद िहा हो तो उसक़े सौद़े में दख्लअन्दाज़ी

किक़े खिीदाि िनऩे का इज़्हाि किना।

650
हिाम मुआमलात

2063. िहुत स़े मआ


ु मलात हिाम हैं जर्जनमें स़े कुछ यह हैं –

1. नश्शा आवि मशरूिात, गैि मशकािी कुत्त़े औि सव्ु वि क़ी खिीद फ़िोख़्त हिाम

है औि एहततयात क़ी बिना पि नजर्जस मद


ु ाकि क़े मत
ु अजल्लक भी यही हुक्म है।

इनक़े अलावा दस
ू िी नर्जासत क़ी खिीद व फ़िोख़्त उस सिू त में र्जाइज़ है र्जिकक

ऐऩे नजर्जस स़े हलाल फ़ाइदा हामसल किना मक़्सद


ू हो मसलन गोिि औि पाखाऩे

स़े खाद िनायें अगिच़े एहततयात इसमें है कक उनक़ी खिीद व फ़िोख़्त स़े भी

पिह़े ज़ ककया र्जाए।

2. जर्जन्सी माल क़ी खिीद व फ़िोख़्त।

3. उन चीज़ों क़ी खिीद व फ़िोख़्त भी एहततयात क़ी बिना पि हिाम है जर्जन्हें

बिल उमम
ू माल़े ततर्जाित न समझा र्जाता हो मसलन दरिन्दों क़ी खिीद व फ़िोख़्त

उस सिू त में र्जिकक उनस़े मन


ु ामसि हद तक हलाल फ़ाइदा न हो।

4. उन चीज़ों क़ी खिीद व फ़िोख़्त जर्जन्हें आम तौि पि फ़कत हिाम काम में

इस्त़ेमाल कित़े हों मसलन र्जुए का सामान।

5. जर्जस ल़ेन द़े ऩे में रििा (सद


ू ) हो।

6. वह ल़ेन द़े ऩे जर्जसमें ममलावट हो यअनी ऐसी चीज़ का ि़ेचना जर्जसमें दस
ू िी

चीज़ इस तिह ममलाई गई हो कक ममलावट का पता न चल सक़े औि ि़ेचऩे वाला

भी खिीदाि को न िताए मसलन ऐसा र्ी ि़ेचना जर्जसमें चि़ी ममलाई गई हो।

651
हज़ित िसल
ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही वसल्लम का इशाकद है, र्जो

शख़्स ममलावट कि क़े कोई चीज़ ककसी मस


ु लमान क़े हाथ ि़ेचता है या मस
ु लमानों

को नक़्
ु सान पहुंचाता है या उनक़े साथ मक्र व फ़ि़े ि स़े काम ल़ेता है वह म़ेिी

उम्मत में स़े नहीं है औि र्जो मस


ु लमान अपऩे मस
ु लमान भाई को ममलावट वाली

चीज़ ि़ेचता है तो अल्लाह तआला उसक़ी िोज़ी स़े ििकत उठा ल़ेता है औि उसक़ी

िोज़ी क़े िास्तों को तंग कि द़े ता है औि उस़े उसक़े हाल पि छोड़ द़े ता है।

2064. र्जो पाक चीज़ नजर्जस हो गई हो औि उस़े पानी स़े धोकि पाक किना

मजु म्कन हो तो उस़े फ़िोख़्त किऩे में कोई हिर्ज नहीं है औि अगि धोना मजु म्कन

न हो ति भी यही हुक्म है ल़ेककन अगि उसका हलाल फ़ाइदा उफ़े आम में उसक़े

पाक होऩे पि मन्


ु हमसि न हो मसलन िअज़ अक़्साम क़े त़ेल िजल्क अगि उसका

हलाल फ़ाइदा पाक होऩे पि मौकूफ़ हो औि उसका मन


ु ामसि हद तक हलाल फ़ाइदा

हो ति भी उसका ि़ेचना र्जाइज़ है ।

2065. अगि कोई शख़्स नजर्जस चीज़ ि़ेचना चाह़े तो ज़रूिी है कक वह उसक़ी

नर्जासत क़े िाि़े में खिीदाि को िता द़े औि अगि उस़े न िताए तो वह एक हुक्म़े

वाजर्जि क़ी मख
ु ामलफ़त का मत
ु कक कि होगा मसलन नजर्जस पानी को वज़
ु ू या गस्
ु ल

में इस्त़ेमाल कि़े गा औि उसक़े साथ अपनी वाजर्जि नमाज़ पढ़़े गा या उस नजर्जस

चीज़ को खाऩे या पीऩे में इस्त़ेमाल कि़े गा अलित्ता अगि यह र्जानता हो कक उस़े

652
िताऩे स़े कोई फ़ाइदा नहीं क्योंकक वह लापवाक शख़्स है औि नजर्जस पाक का

ख़्याल नहीं िखता तो उस़े िताना ज़रूिी नहीं।

2066. अगिच़े खाऩे वाली औि न खाऩे वाली नजर्जस दवाओं क़ी खिीद व

फ़िोख़्त र्जाइज़ है ल़ेककन उनक़ी नर्जासत क़े मत


ु अजल्लक खिीदाि को उस सिू त में

िता द़े ना ज़रूिी है जर्जसका जज़क्र साबिका मस ्अल़े में ककया गया है।

2067. र्जो त़ेल गैि इस्लामी मम


ु ामलक स़े दिआमद ककय़े र्जात़े हैं अगि उन क़े

नजर्जस होऩे क़े िाि़े में इल्म न हो तो उनक़ी खिीि व फ़िोख़्त में कोई हिर्ज नहीं

औि र्जो चि़ी ककसी है वान क़े मि र्जाऩे क़े िाद हामसल क़ी र्जाती है अगि उस़े

काकफ़ि स़े लें या गैि इसलामी मम


ु ामलक स़े मंगायें तो उस सिू त में र्जिकक उस क़े

िाि़े में एहततमाल हो कक ऐस़े है वान क़ी है जर्जस शिई तिीक़े स़े जज़बहा ककया गया

है तो वह पाक है औि उसक़ी खिीद व फ़िोख़्त र्जाइज़ है ल़ेककन उसका खाना

हिाम है औि ि़ेचऩे वाल़े क़े मलए ज़रूिी है कक वह इस कैकफ़यत स़े खिीदाि को

आगाह कि़े क्योंकक खिीदाि को आगाह न किऩे क़ी सिू त में वह ककसी वाजर्जि

हुक्म क़ी मख
ु ामलफ़त का मत
ु कक कि होगा र्जैस़े कक मस ्अला 2065 में गज़
ु ि चक
ु ा है।

2068. अगि लोमड़ी या उस र्जैस़े र्जानवि को शिई तिीक़े स़े जज़बहा न ककया

र्जाए या वह खुद मि र्जायें तो उनक़ी खाल क़ी खिीद व फ़िोख़्त एहततयात क़ी

बिना पि र्जाइज़ नहीं है ।

653
2069. र्जो चमड़ा गैि इसलामी मम
ु ामलक स़े दि आमद ककया र्जाए या काकफ़ि

स़े मलया र्जाए अगि उसक़े िाि़े में एहततमाल हो कक एक ऐस़े र्जानवि का है जर्जस़े

शिई तिीक़े स़े जज़बहा ककया गया है तो उसक़ी खिीद व फ़िोख़्त र्जाइज़ है औि

इसी तिह उसमें नमाज़ भी अक़्वा क़ी बिना पि सहीह होगी।

2070. र्जो त़ेल औि चि़ी है वान क़े मिऩे क़े िाद हामसल क़ी र्जाए या वह चमड़ा

र्जो मस
ु लमान स़े मलया र्जाए औि इंसान को इल्म हो कक उस मस
ु लमान ऩे यह

चीज़ काकफ़ि स़े ली है ल़ेककन यह तहक़ीक नहीं क़ी कक यह ऐस़े है वान क़ी है जर्जस़े

शिई तिीक़े स़े जज़बहा ककया गया है या नहीं अगिच़े उस पि तहाित का हुक्म

लगता है औि उसक़ी खिीद औि फ़िोख़्त र्जाइज़ है ल़ेककन उस त़ेल या चि़ी का

खाना र्जाइज़ नहीं है ।

2071. नशा आवि मशरूिात का ल़ेन द़े न हिाम औि िाततल है ।

2072. गस्िी माल का ि़ेचना िाततल है औि ि़ेचऩे वाल़े ऩे र्जो िकम खिीदाि स़े

ली हो उस़े वापस किना ज़रूिी है।

2073. अगि खिीदाि संर्जीदगी स़े सौदा किऩे का इिादा िखता हो ल़ेककन उसक़ी

नीयत यह हो कक र्जो चीज़ खिीद िहा है उसक़ी क़ीमत नहीं द़े गा तो उसका यह

सोचना सौद़े क़े सहीह होऩे में माऩे नहीं औि ज़रूिी है कक खिीदाि उस सौद़े क़ी

क़ीमत ि़ेचऩे वाल़े को द़े ।

654
2074. अगि खिीदाि चाह़े कक र्जो माल उसऩे उधाि खिीदा है उसक़ी क़ीमत

िाद में हिाम माल स़े द़े गा ति भी मआ


ु मला सहीह है अलित्ता ज़रूिी है कक

जर्जतनी क़ीमत उसक़े जज़म्म़े हो हलाल माल स़े द़े ताकक उसका उधाि चक
ु ता हो

र्जाए।

2075. मस
ू ीक़ी (संगीत) क़े आलात मसलन मसताि औि तंििू ा क़ी खिीद व

फ़िोख़्त र्जाइज़ नहीं है औि एहततयात क़ी बिना पि छोट़े छोट़े साज़ र्जो िच्चों क़े

खखलोऩे होत़े हैं उनक़े मलए भी यही हुक्म है । ल़ेककन (हलाल औि हिाम में

इस्त़ेमाल होऩे वाल़े) मश


ु तकका आलात मसलन ि़े डडयो औि ट़े परिकाडक क़ी खिीद व

फ़िोख़्त में कोई हिर्ज नहीं िशते कक उन्हें हिाम कामों में इस्त़ेमाल किऩे का

इिादा न हो।

2076. अगि कोई चीज़ कक जर्जसस़े र्जाइज़ फ़ाइदा उठाया र्जा सकता हो इस

नीयत स़े ि़ेची र्जाए कक उस़े हिाम मसिफ़ में लाया र्जाए मसलन अंगूि इस नीयत

स़े ि़ेचा र्जाए कक उसस़े शिाि तैयाि क़ी र्जाए तो उसका सौदा हिाम िजल्क

एहततयात क़ी बिना पि िाततल है । ल़ेककन अगि कोई शख़्स अंगिू इस मक़्सद स़े

न ि़ेच़े औि फ़कत यह र्जानता हो कक खिीदाि अंगूि स़े शिाि तैयाि कि़े गा तो

ज़ाहहि यह है कक सौद़े में कोई हिर्ज नहीं।

2077. र्जानदाि का मर्ज


ु स्समा िनाना एहततयात क़ी बिना पि मत्ु लकन हिाम है

(मत्ु लकन स़े मिु ाद यह है कक मर्ज


ु स्समा काममल िनाया र्जाए या नाककस) ल़ेककन

655
उन क़ी खिीद व फ़िोख़्त मम्नन
ू नहीं है अगिच़े अहवत यह है कक उस़े भी तकक

ककया र्जाए ल़ेककन र्जानदाि क़ी नक्काशी अक़्वा क़ी बिना पि र्जाइज़ है ।

2078. ककसी ऐसी चीज़ का खिीदना हिाम है र्जो र्जए


ु या चोिी या िाततल सौद़े

स़े हामसल क़ी गई हो औि अगि कोई ऐसी चीज़ खिीद ल़े तो ज़रूिी है कक उसक़े

असली मामलक को लौटा द़े ।

2079. अगि कोई शख़्स ऐसा र्ी ि़ेच़े जर्जसमें चि़ी क़ी ममलावट हो औि उस़े

मअ
ु य्यन कि द़े मसलन कह़े कक मैं, यह एक मन र्ी ि़ेच िहा हूं तो उस सिू त में

र्जि उसमें चि़ी क़ी ममक़्दाि इतनी ज़्यादा हो कक उस़े र्ी न कहा र्जाए तो

मआ
ु मला िाततल है औि अगि चि़ी क़ी ममक़्दाि इतनी कम हो कक उस़े चि़ी ममला

हुआ कहा र्जाए तो मआ


ु मला सहीह है ल़ेककन खिीदऩे वाल़े को माल ऐिदाि होऩे

क़ी बिना पि हक हामसल है कक वह मआ


ु मला खत्म कि सकता है औि अपना पैसा

वापस ल़े सकता है औि अगि चि़ी र्ी स़े र्जुदा है तो चि़ी क़ी जर्जतनी ममक़्दाि क़ी

ममलावट है उसका मआ
ु मला िाततल है औि चि़ी क़ी र्जो क़ीमत ि़ेचऩे वाल़े ऩे ली

है वह खिीदाि क़ी है औि चि़ी ि़ेचऩे वाल़े का माल है औि गाहक उसमें र्जो

खामलस र्ी है उसका मआ


ु मला भी खत्म कि सकता है ल़ेककन अगि मअ
ु य्यन न

कि़े िजल्क मसफ़क एक मन र्ी िता कि ि़ेच़े ल़ेककन द़े त़े वक़्त चि़ी ममला हुआ र्ी

द़े तो गाहक वह र्ी वापस कि क़े खामलस र्ी का मत


ु ालिा कि सकता है ।

656
2080. जर्जस जर्जन्स को नाप तोल कि ि़ेचा र्जाता है अगि कोई ि़ेचऩे वाला उसी

जर्जन्स क़े िदल़े में िढ़ा कि ि़ेच़े मसलन एक मन ग़ेहूं क़ी क़ीमत ड़ेढ़ मन ग़ेहूं

वसल
ू कि़े तो यह सद
ू औि हिाम है िजल्क अगि दो जर्जन्सों में स़े एक ि़े ऐि औि

दस
ू िी ऐिदाि हो या एक जर्जन्स िहढ़या औि दस
ू िी र्हटया हो या उनक़ी क़ीमतों में

फ़कक हो तो अगि ि़ेचऩे वाला र्जो ममक़्दाि द़े िहा हो उस स़े ज़्यादा ल़े ति भी सद

है औि हिाम है मलहाज़ा अगि वह साबित तांिा द़े कि उसस़े ज़्यादा ममक़्दाि में टूटा

हुआ तांिा ल़े या साबित ककस्म का पीतल द़े कि उसस़े ज़्यादा ममक़्दाि टूटा हुआ

पीतल ल़े या गढ़ा हुआ सोना द़े कि उसस़े ज़्यादा ममक़्दाि में िगैि गढ़ा हुआ सोना

ल़े तो यह भी सद
ू औि हिाम है।

2081. ि़ेचऩे वाला र्जो चीज़ ज़ाइद ल़े अगि वह जर्जन्स स़े मख़्
ु तमलफ़ हो र्जो वह

ि़ेच िहा है मसलन एक मन ग़ेहूं को एक मन ग़ेहूं औि कुछ नक़्द िकम क़े एवज़

ि़ेच़े ति भी यह सद
ू औि हिाम है िजल्क अगि वह कोई चीज़ ज़ाइद न ल़े ल़ेककन

यह शतक लगाए कक खिीदाि उसक़े मलए कोई काम कि़े तो यह भी सद


ू औि हिाम

है ।

2082. र्जो शख़्स कोई चीज़ कम ममक़्दाि में द़े िहा हो तो अगि वह उसक़े साथ

कोई औि चीज़ शाममल कि द़े मसलन एक मन ग़ेहूं औि एक रूमाल को ड़ेढ़ मन

ग़ेहूं क़े एवज़ में ि़ेच़े तो इसमें कोई हिर्ज नहीं उस सिू त में र्जिकक उसक़ी नीयत

यह हो कक वह रूमाल उस ज़्यादा ग़ेहूं क़े मक


ु ाबिल़े में है औि मआ
ु मला भी नक़्द

657
हो औि इसी तिह अगि दोनों तिफ़ स़े कोई चीज़ िढ़ा दी र्जाए मसलन एक शख़्स

एक मन ग़ेहूं औि एक रूमाल को ड़ेढ़ मन ग़ेहूं औि एक रूमाल क़े एवज़ ि़ेच़े तो

उस क़े मलए भी यही हुक्म है मलहाज़ा अगि उनक़ी नीयत यह हो कक एक का

रूमाल औि आधा मन ग़ेहूं दस


ू ि़े क़े रूमाल क़े मक
ु ाबिल़े में है तो इसमें कोई

इश्काल नहीं है।

2083. अगि कोई शख़्स कोई ऐसी चीज़ ि़ेच़े र्जो मीटि औि गज़ क़े हहसाि स़े

ि़ेची र्जाती है मसलन कपड़ा या ऐसी चीज़ ि़ेच़े र्जो चगन कि ि़ेची र्जाती है मसलन

अखिोट औि अण्ड़े औि ज़्यादा ल़े मसलन दस अण्ड़े द़े औि ग्यािा ल़े तो इसमें

कोई हिर्ज नहीं। ल़ेककन अगि ऐसा हो कक मआ


ु मल़े में दोनों चीज़ें एक ही जर्जन्स

स़े हों औि मद्


ु दत मअ
ु य्यन हो तो इस सिू त में मआ
ु मल़े क़े सहीह होऩे में इश्काल

है । मसलन दस अखिोट नक़्द द़े औि िािह अखिोट एक महीऩे क़े िाद ल़े। औि

किं सी नोटों का फ़िोख़्त किना भी इसी र्जुमि़े में आता है मसलन तूमान को नोटों

क़ी ककसी दस
ू िी जर्जन्स क़े िदल़े में मसलन दीनाि या डॉलि क़े िदल़े में नक़्द या

मअ
ु य्यन मद्
ु दत क़े मलए ि़ेच़े तो इसमें कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन अगि अपनी ही

जर्जन्स क़े िदल़े ि़ेचना चाह़े औि िहुत ज़्यादा ल़े तो मआ


ु मला मअ
ु य्यन मद्
ु दत क़े

मलए नहीं होना चाहहए मसलन सौ तूमान नक़्द द़े औि एक सौ दस तूमान छः

महीऩे क़े िाद ल़े तो इस मआ


ु मल़े क़े सहीह होऩे में इश्काल है ।

658
2084. अगि ककसी जर्जन्स को अकसि शहिों में नाप तोल कि ि़ेचा र्जाता हो

औि िअज़ शहिों में उसका ल़ेन द़े न चगन कि होता हो तो अक़्वा क़ी बिना पि उस

जर्जन्स को उस शहि क़ी तनस्ित र्जहां चगन कि ल़ेन द़े न होता है दस


ू ि़े शहि में

ज़्यादा ककमत पि ि़ेचना र्जाइज़ है औि इसी तिह उस सिू त में र्जि शहि

मख़्
ु तमलफ़ हों औि ऐसा गलिा दिममयान में न हो (यअनी यह न कहा र्जा सक़े कक

अकसि शहिों में यह जर्जन्स नाप तोल कि बिकती है या चगन कि बिकती है ) तो

हि शहि में वहां क़े रिवार्ज क़े मत


ु ाबिक हुक्म लगाया र्जाय़ेगा।

2085. उन चीज़ों में र्जो तोल कि या नाप कि ि़ेची र्जाती हैं अगि ि़ेची र्जाऩे

वाली चीज़ औि उसक़े िदल़े में दी र्जाऩे वाली चीज़ एक जर्जन्स स़े न हों औि ल़ेन

द़े न भी नक़्द हो तो ज़्यादा ल़ेऩे में कोई हिर्ज नहीं है ल़ेककन अगि ल़ेन द़े न

मअ
ु य्यन मद्
ु दत क़े मलए हो तो उसमें इशकाल है। मलहाज़ा अगि कोई शख़्स एक

मन चावल को दो मन ग़ेहूं क़े िदल़े में एक महीऩे क़ी मद्


ु दत तक ि़ेच़े तो उस

ल़ेन द़े न का सहीह होना इश्काल स़े खाली नहीं।

2086. अगि एक शख़्स पक्क़े म़ेवों का सौदा कच्च़े म़ेवों स़े कि़े तो ज़्यादा नहीं

ल़े सकता औि मश्हूि (उलमा) ऩे कहा है कक एक शख़्स र्जो चीज़ ि़ेच िहा हो औि

उसक़े िदल़े में र्जो कुछ ल़े िहा हो अगि वह दोनों एक ही चीज़ स़े िनी हों तो

ज़रूिी है कक मआ
ु मल़े में इज़ाफ़ा न ल़े मसलन अगि वह एक गाय का दही ि़ेच़े

659
औि उसक़े िदल़े में ड़ेढ़ मन गाय का पनीि हामसल कि़े तो यह सद
ू है औि हिाम

है ल़ेककन इस हुक्म क़े कुल्ली होऩे में इश्काल है ।

2087. सद
ू क़े एततिाि स़े ग़ेहूं औि र्जौ एक शम
ु ाि होत़े हैं मलहाज़ा ममसाल क़े

तौि पि अगि कोई शख़्स एक मन ग़ेहूं द़े औि उसक़े िदल़े में एक मन पांच स़ेि

र्जौ ल़े तो यह सद
ू है औि हिाम है। औि ममसाल क़े तौि पि अगि दस मन र्जौ

इस शतक प़े खिीद़े कक ग़ेहूं क़ी फ़सल उठाऩे क़े वक़्त दस मन ग़ेहूं िदल़े में द़े गा तो

चंकू क र्जौ उसऩे नक़्द मलय़े हैं औि ग़ेहूं कुछ मद्


ु दत क़े िाद द़े िहा है मलहाज़ा यह

उसी तिह है र्जैस़े इज़ाफ़ा मलया हो इस मलए हिाम है।

2088. िाप, ि़ेटा औि ममयां िीवी एक दस


ू ि़े स़े सद
ू ल़े सकत़े हैं औि इसी तिह

मस
ु लमान एक ऐस़े काकफ़ि स़े र्जो इस्लाम क़ी पनाह में न हो सद
ू ल़े सकता है

ल़ेककन एक ऐस़े काकफ़ि स़े र्जो इस्लाम क़ी पनाह में है सद


ू का ल़ेन द़े न हिाम है

अलित्ता मआ
ु मला तय कि ल़ेऩे क़े िाद अगि सद
ू द़े ना उसक़ी शिीअत में र्जाइज़

हो तो उसस़े सद
ू ल़े सकता है।

बेचने वाले औि ख़िीदाि की शिाइत

2089. ि़ेचऩे वाल़े औि खिीदाि क़े मलए छः चीज़ें शतक हैं –

1. – िामलग हों।

2. – आककल हों।

660
3. – सफ़़ीह न हों यअनी अपना माल अहमकाना कामों में खचक न कित़े हों।

4. – खिीद व फ़िोख़्त का इिादा िखत़े हों। पस अगि कोई मज़ाक में कह़े कक

मैंऩे अपना माल ि़ेचा तो मआ


ु मला िाततल होगा।

5. – ककसी ऩे उन्हें खिीद फ़िोख़्त पि मर्जििू न ककया हो।

6. – र्जो जर्जन्स औि उसक़े िदल़े में र्जो चीज़ एक दस


ू ि़े को द़े िह़े हों उसक़े

मामलक हों। औि उनक़े िाि़े में अह्काम आइन्दा मसाइल में ियान ककय़े र्जायेंग़े।

2090. ककसी ना िामलग िच्च़े क़े साथ सौदा किना र्जो आज़ादाना तौि पि सौदा

कि िहा हो िाततल है ल़ेककन उन कम क़ीमत चीज़ों में जर्जनक़ी खिीद व फ़िोख्त

का रिवार्ज है अगि ना िामलग मगि समझदाि िच्च़े क़े साथ ल़ेन द़े न हो र्जाए (तो

सहीह है )। औि अगि सौदा उसक़े सिपिस्त क़े साथ हो औि ना िामलग मगि

समझदाि िच्चा ल़ेन द़े न का सीगा र्जािी कि़े तो सौदा हि सिू त में सहीह है िजल्क

अगि जर्जन्स या िकम ककसी दस


ू ि़े आदमी का माल हो औि िच्चा ि है मसयत

वक़ील उस माल क़े मामलक क़ी तिफ़ स़े वह माल ि़ेच़े या उस िकम स़े कोई चीज़

खिीद़े तो ज़ाहहि यह है कक सौदा सहीह है अगिच़े वह समझदाि िच्चा आज़ादाना

तौि पि उस माल या िकम में (हक़्क़े) तसकरुफ़ िखता हो औि इसी तिह अगि

िच्चा इस काम में वसीला हो कक िकम ि़ेचऩे वाल़े को द़े औि जर्जस खिीदाि तक

पहुंचाए या जर्जस खिीदाि को द़े औि िकम ि़ेचऩे वाल़े को पहुंचाए तो अगिच़े

661
िच्चा समझदाि न हो, सौदा सहीह है क्योंकक दिअस्ल दो िामलग अफ़िाद ऩे

आपस में सौदा ककया है ।

2091. अगि कोई शख़्स इस सिू त में कक एक िामलग िच्च़े स़े सौदा किना

सहीह न हो उसस़े कोई चीज़ खिीद़े या उसक़े हाथ कोई चीज़ ि़ेच़े तो ज़रूिी है कक

र्जो जर्जन्स या िकम उस िच्च़े स़े ल़े अगि वह खुद िच्च़े का माल हो तो उसक़े

सिपिस्त को औि अगि ककसी औि का माल हो तो उस क़े मामलक को द़े द़े या

उसक़े मामलक क़ी रिज़ामन्दी हामसल कि़े औि अगि सौदा किऩे वाला शख़्स उस

जर्जन्स या िकम क़े मामलक को न र्जानता हो औि उस का पता लगाऩे का कोई

ज़रिआ भी न हो तो उस शख़्स क़े मलए ज़रूिी है कक र्जो चीज़ उसऩे िच्च़े स़े ली

हो वह उस चीज़ क़े मामलक क़ी तिफ़ स़े ि उनवाऩे मज़ामलम (ज़ुल्मन औि ना

हक ली हुई चीज़) ककसी फ़क़ीि को द़े द़े औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक इस

काम में हाककम़े शअक स़े इर्जाज़त ल़े।

2092. अगि कोई शख़्स एक समझदाि िच्च़े स़े इस सिू त में सौदा कि़े र्जिकक

उसक़े साथ सौदा किना सहीह न हो औि उस ऩे र्जो जर्जन्स या िकम िच्च़े को दी

हो वह तलफ़ हो र्जाए तो ज़ाहहि यह है कक वह शख़्स िच्च़े स़े उसक़े िामलग होऩे

क़े िाद या उसक़े सिपिस्त स़े मत


ु ालिा कि सकता है औि अगि िच्चा समझदाि

न हो तो किि वह शख़्स मत
ु ालि़े का हक नहीं िखता।

662
2093. अगि खिीदाि या ि़ेचऩे वाल़े को सौदा किऩे पि मर्जििू ककया र्जाए औि

सौदा हो र्जाऩे क़े िाद वह िाज़ी हो र्जाए औि ममसाल क़े तौि पि कह़े कक मैं िाज़ी

हूं तो सौदा सहीह है ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक मआ
ु मल़े का सीगा

दोिािा पढ़ा र्जाए।

2094. अगि इंसान ककसी का माल उसक़ी इर्जाज़त क़े िगैि ि़ेच द़े औि माल

का मामलक उस क़े ि़ेचऩे पि िाज़ी न हो औि इर्जाज़त न द़े तो सौदा िाततल है।

2095. िच्च़े का िाप औि दादा नीज़ िाप का वसी औि दादा का वसी िच्च़े का

माल फ़िोख़्त कि सकत़े हैं औि अगि सिू त़े हाल का तकाज़ा हो तो मर्ज
ु तहहद़े

आहदल भी दीवाऩे शख़्स या यतीम का माल या ऐस़े शख़्स का माल र्जो गायि हो

फ़िोख़्त कि सकता है।

2096. अगि कोई शख़्स ककसी का माल गस्ि कि क़े ि़ेच डाल़े औि माल क़े

बिक र्जाऩे क़े िाद उसका मामलक सौद़े क़ी इर्जाज़त द़े द़े तो सौदा सहीह है औि

र्जो चीज़ गस्ि किऩे वाल़े ऩे खिीदाि को दी हो औि उस चीज़ र्जो मन


ु ाफ़ा सौद़े क़े

वक़्त स़े हामसल हो वह खिीदाि क़ी ममजल्कयत है औि र्जो चीज़ खिीदाि ऩे दी हो

औि उस चीज़ स़े र्जो मन


ु ाफ़ा सौद़े क़े वक़्त स़े हामसल हो वह उस शख़्स क़ी

ममजल्कयत है जर्जसका माल गस्ि ककया गया हो।

2097. अगि कोई शख़्स ककसी का माल गस्ि कि क़े ि़ेच द़े औि उसका इिादा

यह हो कक उस माल क़ी क़ीमत खुद उसक़ी ममजल्कयत होगी औि अगि माल का

663
मामलक सौद़े क़ी इर्जाज़त द़े द़े तो सौदा सहीह है ल़ेककन माल क़ी क़ीमत मामलक

क़ी ममजल्कयत होगी न कक गामसि क़ी।

जजन्स औि उसके एवज की शिाइत

2098. र्जो चीज़ ि़ेची र्जाए औि र्जो चीज़ उसक़े िदल़े में ली र्जाए उसक़ी पांच

शतें हैं –

1. – नाप, तोल या चगनती वगैिा क़ी शक्ल में उसक़ी ममक़्दाि मअलम
ू हो।

2. – ि़ेचऩे वाला उन चीज़ों को तहवील में द़े ऩे का अहल हो। अगि अहल न हो

तो सौदा सहीह नहीं है ल़ेककन अगि वह उसको ककसी दस


ू िी चीज़ क़े साथ ममला

कि ि़ेच़े जर्जस़े वह तहवील में द़े सकता हो तो इस सिू त में ल़ेन द़े न सहीह है

अलित्ता ज़ाहहि यह है कक अगि खिीदाि उस चीज़ को र्जो खिीदी हो अपऩे कबज़़े

में ल़े सकता हो अगिच़े ि़ेचऩे वाला उस़े उसक़ी तहवील में द़े ऩे का अहल न हो तो

भी ल़ेन द़े न सहीह है मसलन र्जो र्ोड़ा भाग गया हो अगि उस़े ि़ेच़े औि खिीदऩे

वाला उस र्ोड़़े को ढूंढ सकता हो तो उस सौद़े में कोई हिर्ज नहीं औि वह सहीह

होगा औि उस सिू त में ककसी िात क़े इज़ाफ़़े क़ी ज़रूित नहीं है।

3. – वह खुसस
ू ीयात र्जो जर्जन्स औि एवज़ में मौर्जूद हों औि जर्जनक़ी वर्जह स़े

सौद़े में लोगों क़ी हदलचस्पी में फ़कक पड़ता हो मअ


ु य्यन कि दी र्जायें।

664
4. – ककसी दस
ू ि़े का हक उस माल स़े इस तिह वािस्ता न हो कक माल क़ी

ममजल्कयत स़े खारिर्ज होऩे स़े दस


ू ि़े का हक ज़ाए हो र्जाए।

5. – ि़ेचऩे वाला खद
ु उस जर्जन्स को ि़ेच़े न कक उसक़ी मनफ़अत को। पस

ममसाल क़े तौि पि अगि मकान क़ी एक साल क़ी मनफ़अत ि़ेची र्जाए तो सहीह

नहीं है ल़ेककन अगि खिीदाि नक़्द क़ी िर्जाए अपनी ममजल्कयत का मन


ु ाफ़ा द़े

मसलन ककसी स़े कालीन या दिी वगैिा खिीद़े औि उसक़े एवज़ अपऩे मकान का

एक साल का मन
ु ाफ़ा उस़े द़े द़े तो इसमें कोई हिर्ज नहीं। इन सि क़े अह्काम

आइन्दा मसाइल में ियान ककय़े र्जायेंग़े।

2099. जर्जस जर्जन्स का सौदा ककसी शहि में तोल कि या नाप कि ककया र्जाता

हो उस शहि में ज़रूिी है कक उस जर्जन्स को तोल कि या नाप कि ही खिीद़े

ल़ेककन जर्जस शहि में उस जर्जन्स का सौदा उस़े द़े ख कि ककया र्जाता हो उस शहि

में वह उस़े द़े ख कि खिीद सकता है।

2100. जर्जस चीज़ क़ी खिीद व फ़िोख़्त तोल कि क़ी र्जाती हो उसका सौदा नाप

कि भी ककया र्जा सकता है । ममसाल क़े तौि पि अगि एक शख़्स दस मन ग़ेहूं

ि़ेचना चाह़े तो वह एक ऐसा पैमाना जर्जसमें एक मन ग़ेहूं समाता हो दस मतकिा

भि कि ल़े सकता है ।

2101. अगि मआ
ु मला चौथी शतक क़े अलावा र्जो शिाइत ियान क़ी गई हैं उन

में स़े कोई एक शतक न होऩे क़ी बिना पि िाततल हो ल़ेककन ि़ेचऩे वाला औि

665
खिीदाि एक दस
ू ि़े क़े माल पि तसकरुफ़ किऩे पि िाज़ी हों तो उनक़े तसकरुफ़ किऩे

में कोई हिर्ज नहीं।

2102. र्जो चीज़ वक़्फ़ क़ी र्जा चक


ु ़ी हो उस का सौदा िाततल है ल़ेककन अगि

वह चीज़ इतनी खिाि हो र्जाए कक जर्जस फ़ाइद़े क़े मलए वक़्फ़ क़ी गई है वह

हामसल न ककया र्जा सक़े या वह चीज़ खिाि होऩे वाली हो मसलन मजस्र्जद क़ी

चटाई इस तिह फ़ट र्जाए कक उस पि नमाज़ न पढ़ी र्जा सक़े तो र्जो शख़्स

मत
ु वल्ली है या जर्जस मत
ु वल्ली र्जैस़े इजख़्तयािात हामसल हों वह उस़े ि़ेच द़े तो

कोई हिर्ज नहीं औि एहततयात क़ी बिना पि र्जहां तक मजु म्कन हो उसक़ी क़ीमत

उसी मजस्र्जद क़े ककसी ऐस़े काम पि खचक क़ी र्जाए र्जो वक़्फ़ किऩे वाल़े क़े मक़्सद

स़े किीिति है ।

2103. र्जि उन लोगों क़े मािैन जर्जनक़े मलए माल वक़्फ़ ककया गया हो ऐसा

इजख़्तलाफ़ पैदा हो र्जाए कक अन्द़े शा हो कक अगि वक़्फ़ शद


ु ा माल फ़िोख़्त न

ककया गया तो माल या ककसी क़ी र्जान तलफ़ हो र्जाय़ेगी तो िअज़ (फ़ुकहा) ऩे

कहा है कक वह ऐसा कि सकत़े हैं कक माल ि़ेच कि िकम ऐस़े काम पि खचक किें

र्जो वक़्फ़ किऩे वाल़े क़े मक़्सद स़े किीि हो ल़ेककन यह हुक्म महल्ल़े इश्काल है।

हां अगि वक़्फ़ किऩे वाला यह शतक लगाए कक वक़्फ़ क़े ि़ेच द़े ऩे में कोई मसलहत

हो तो ि़ेच हदया र्जाए तो इस सिू त में उस़े ि़ेचऩे में कोई हिर्ज नहीं है।

666
2104. र्जो र्जायदाद ककसी दस
ू ि़े को ककिाय़े पि दी गई हो उसक़ी खिीद व

फ़िोख़्त में कोई हिर्ज नहीं है ल़ेककन जर्जतनी मद्


ु दत पि उस़े ककिाय़े पि दी गई हो

उतनी मद्
ु दत क़ी आमदनी साहि़े र्जायदाद का माल है औि अगि खिीदाि को यह

इल्म न हो कक वह र्जायदाद ककिाय़े पि दी र्जा चक


ु ़ी है या इस गुमान क़े तहत कक

ककिाय़े क़ी मद्


ु दत थोड़ी है उस र्जायदाद को खिीद ल़े तो र्जि उस़े हक़ीकत़े हाल

का इल्म हो वह सौदा फ़स्ख कि सकता है।

ख़िीद व फ़िोख़्त का स़ीगा

2105. ज़रूिी नहीं कक खिीद व फ़िोख़्त का सीगा अििी ज़िान में र्जािी ककया

र्जाए मसलन अगि ि़ेचऩे वाला फ़ािसी (या उदक )ू में कह़े कक मैंऩे यह माल इतनी

िकम पि ि़ेचा औि खिीदाि कह़े कक मैंऩे किल


ू ककया तो सौदा सहीह है ल़ेककन

यह ज़रूिी है कक खिीदाि औि ि़ेचऩे वाला (मआ


ु मल़े का) हदली इिादा िखत़े हों

यअनी दो र्जुमल़े कहऩे स़े उनक़ी मिु ाद खिीद व फ़िोख़्त हो।

2106. अगि सौदा कित़े वक़्त सीगा न पढ़ा र्जाए ल़ेककन ि़ेचऩे वाला उस माल

क़े मक
ु ाबिल़े में र्जो वह खिीदाि स़े ल़े अपना माल उसक़ी ममजल्कयत में द़े द़े तो

सौदा सहीह है औि दोनों अश्खास मत


ु अजल्लका चीज़ों क़े मामलक हो र्जात़े हैं।

667
फ़लों की ख़िीद व फ़िोख़्त

2107. जर्जन फ़लों क़े िूल चगि चक


ु ़े हों औि उनमें दाऩे पड़ चक
ु ़े हों अगि उनक़े

आफ़त (मसलन िीमािीयों औि क़ीड़ों क़े हमलों) स़े महफ़ूज़ होऩे या न होऩे क़े िाि़े

में इस तिह इल्म हो कक उस दिख़्त क़ी पैदावाि का अन्दाज़ा लगा सकें तो उसक़े

तोड़ऩे स़े पहल़े उसका ि़ेचना सहीह है िजल्क अगि मअलम


ू न भी हो कक आफ़त

स़े महफ़ूज़ है या नहीं ति भी अगि दो साल या उसस़े ज़्यादा असे क़ी पैदावाि या

िलों क़ी मसफ़क उतनी ममक़्दाि र्जो उस वक़्त क़ी हो ि़ेची र्जाए िशते कक उस क़ी

ककसी हद तक मामलयत हो तो मआ
ु मला सहीह है।

इसी तिह अगि ज़मीन क़ी पैदावाि या ककसी दस


ू िी चीज़ को उसक़े साथ ि़ेचा

र्जाए तो मआ
ु मला सहीह है ल़ेककन इस सिू त में एहततयात़े लाजज़म यह है कक

दस
ू िी चीज़ (र्जो जर्जम्नन ि़ेच िहा हो वह) ऐसी हो कक अगि िीर्ज समिआवि न हों

सकें तो खिीदाि क़े सिमाए को डूिऩे स़े िचाए।

2108. जर्जस दिख़्त पि िल लगा हो, दाऩे िनऩे औि िूल चगिऩे स़े पहल़े

उसका ि़ेचना र्जायज़ है ल़ेककन ज़रूिी है कक उसक़े साथ कोई औि चीज़ भी ि़ेच़े

र्जैसा कक इसस़े पहल़े वाल़े मस ्अल़े में ियान ककया गया है या एक साल स़े ज़्यादा

मद्
ु दत का िल ि़ेच।़े

668
2109. दिख्त पि लगी हुई वह खर्जूिें र्जो ज़दक या सख
ु क हो चक
ु ़ी हों उनको ि़ेचऩे

में कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन उनक़े एवज़ में ख्वाह उसी दिख़्त क़ी खर्जिू ें हों या ककसी

औि दिख़्त क़ी खर्जिू ें न दी र्जायें अलित्ता अगि एक शख़्स का खर्जिू का दिख़्त

ककसी दस
ू ि़े शख़्स क़े र्ि में हो तो अगि उस दिख़्त क़ी खर्जूिों को तखमीना लगा

मलया र्जाए औि दिख्त का मामलक उन्हें र्ि क़े मामलक को ि़ेच द़े औि खर्जूिों को

उसका एवज़ाना किाि हदया र्जाए तो कोई हिर्ज नहीं।

2110. खीि़े , िैगन, सजबज़यां औि उन र्जैसी (दस


ू िी) चीज़ें र्जो साल में कई

दफ़् आ उतिती हों अगि वह उग आई हों औि यह तय कि मलया र्जाए कक खिीदाि

उन्हें साल में ककतनी दफ़् आ तोड़़ेगा तो उन्हें ि़ेचऩे में कोई हिर्ज नहीं है ल़ेककन

अगि उगी न हों तो उन्हें ि़ेचऩे में इश्काल है ।

2111. अगि दाना आऩे क़े िाद गंदम


ु क़े खोश़े को गंदम
ु स़े र्जो खुद उसस़े

हामसल होती है या ककसी दस


ू ि़े खोश़े क़े एवज़ ि़ेच हदया र्जाए तो सौदा सहीह नहीं

है ।

नक़्द औि उधाि के अह्काम

2112. अगि ककसी जर्जन्स को नक़्द ि़ेचा र्जाए तो सौदा तय पा र्जाऩे क़े िाद

खिीदाि औि ि़ेचऩे वाला एक दस


ू ि़े स़े जर्जन्स औि िकम का मत
ु ालिा कि सकत़े हैं

औि उस़े अपऩे कबज़़े में ल़े सकत़े हैं। मंकूल चीज़ों मसलन कालीन औि मलिास

669
को कबज़़े में द़े ऩे औि गैि मंकूला चीज़ों मसलन र्ि औि ज़मीन को कबज़़े में द़े ऩे

स़े मिु ाद यह है कक उन चीज़ों स़े दस्त ििदाि हो र्जाए औि उन्हें फ़िीक सानी क़ी

तहवील में इस तिह द़े द़े कक र्जि वाह चाह़े उसमें तसरुक फ़ कि सक़े औि (वाज़़ेह

िह़े ) मख़्
ु तमलफ़ चीज़ों में तसरुक फ़ मख़्
ु तमलफ़ तिीक़े स़े होती है।

2113. उधाि क़े मआ


ु मल़े में ज़रूिी है कक मद्
ु दत ठ क ठ क मअलम
ू हो।

मलहाज़ा अगि चीज़ इस वअद़े पि ि़ेच़े कक वह उसक़ी क़ीमत फ़स्ल उठऩे पि ल़ेगा

तो चंकू क उस क़ी मद्


ु दत ठ क ठ क मअ
ु य्यन नहीं हुई इस मलए सौदा िाततल है।

2114. अगि कोई शख़्स अपना माल उधाि ि़ेच़े तो र्जो मद्
ु दत तय हुई हो

उसक़ी मीआद पिू ी होऩे स़े पहल़े वह खिीदाि स़े उसक़े एवज़ का मत
ु ालिा नहीं कि

सकता ल़ेककन अगि खिीदाि मि र्जाए औि उसका अपना कोई माल हो तो ि़ेचऩे

वाला तय शद
ु ा मीआद पिू ी होऩे स़े पहल़े ही र्जो िकम ल़ेनी हो उसका मत
ु ालिा

मिऩे वाल़े क़े विसा स़े कि सकता है।

2115. अगि कोई शख़्स एक चीज़ उधाि ि़ेच़े तो तय शद


ु ा मद्
ु दत गज़
ु िऩे क़े

िाद वह खिीदाि स़े उसक़े एवज़ का मत


ु ालिा कि सकता है ल़ेककन अगि खिीदाि

अदायगी न कि सकता हो तो ज़रूिी है कक ि़ेचऩे वाला उस़े मोहलत द़े या सौदा

खत्म कि द़े औि अगि वह चीज़ र्जो ि़ेची है मौर्जूद हो तो वापस ल़े ल़े।

2116. अगि कोई शख़्स एक ऐस़े फ़दक को जर्जस ककसी चीज़ क़ी क़ीमत मअलम

न हो उसक़ी कुछ ममक़्दाि उधाि द़े औि उसक़ी क़ीमत उस़े न िताए तो सौदा

670
िाततल है । ल़ेककन अगि ऐस़े शख़्स को जर्जस़े जर्जन्स क़ी नक़्द क़ीमत मअलम
ू हो

उधाि पि मंहग़े दामों पि ि़ेच़े मसलन कह़े कक र्जो जर्जन्स मैं तम्
ु हें उधाि द़े िहा हूं

उसक़ी क़ीमत स़े जर्जस पि मैं नक़्द ि़ेचता हूं एक पैसा फ़़ी रुपया ज़्यादा लंग
ू ा औि

खिीदाि उस शतक को किल


ू कि ल़े तो ऐस़े सौद़े में कोई हिर्ज नहीं है।

2117. अगि एक शख़्स ऩे कोई जर्जन्स उधाि फ़िोख़्त क़ी हो औि उसक़ी क़ीमत

क़ी अदायगी क़े मलए मद्


ु दत मक
ु िक ि क़ी गई हो तो अगि ममसाल क़े तौि पि आधी

मद्
ु दत गज़
ु िऩे क़े िाद (फ़िोख़्त किऩे वाला) वाजर्जिल
ु अगा िकम में कटौती कि द़े

औि िाक़ीमांदा िकम नक़्द ल़े ल़े तो इसमें कोई हिर्ज नहीं है ।

मआ
ु मला ए सलफ़ की शिाइत

2118. मआ
ु मला ए सलफ़ (प़ेशगी सौदा) स़े मिु ाद यह है कक कोई शख़्स नक़्द

िकम ल़ेकि पिू ा माल र्जो वह मक


ु िक िा मद्
ु दत क़े िाद तहवील में द़े गा, ि़ेच द़े

मलहाज़ा अगि खिीदाि कह़े कक मैं यह िकम द़े िहा हूं ताकक मसलन छः महीऩे

िाद फ़लां चीज़ ल़े लंू औि ि़ेचऩे वाला कह़े कक मैंऩे किल
ू ककया या ि़ेचऩे वाला

िकम ल़े ल़े औि कह़े कक मैंऩे फ़लां चीज़ ि़ेची औि उसका कबज़ा छः महीऩे िाद

दं ग
ू ा तो सौदा सहीह है ।

2119. अगि कोई शख़्स सोऩे या चांदी क़े मसक्क़े ितौि़े सलफ़ ि़ेच़े औि उसक़े

एवज़ चांदी या सोऩे क़े मसक्क़े ल़े तो सौदा िाततल है । ल़ेककन अगि कोई ऐसी

671
चीज़ या मसक्क़े र्जो सोऩे या चांदी क़े न हों ि़ेच़े औि उनक़े एवज़ कोई दस
ू िी चीज़

या सोऩे या चांदी क़े मसक्क़े ल़े तो सौदा उस तफ़्सील क़े मत


ु ाबिक सहीह है र्जो

आइन्दा मस ्अल़े क़ी सातवीं शतक में िताई र्जाय़ेगी औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है

कक र्जो माल ि़ेच़े उसक़े एवज़ िकम ल़े, कोई दस


ू िा माल न ल़े।

2120. मआ
ु मला ए सलफ़ में सात शतें हैं –

1. उन खुसस
ू ीयात को जर्जनक़ी वर्जह स़े ककसी चीज़ क़ी क़ीमत में फ़कक पड़ता हो

मअ
ु य्यन कि हदया र्जाए ल़ेककन ज़्यादा तफ़्सीलात में र्जाऩे क़ी ज़रूित नहीं िजल्क

इसी कदि काफ़़ी है कक लोग कहें क़े उसक़ी खस


ु स
ू ीयात मअलम
ू हो गई हैं।

2. इसस़े पहल़े कक खिीदाि औि ि़ेचऩे वाला एक दस


ू ि़े स़े र्जुदा हो र्जायें खिीदाि

पिू ी क़ीमत ि़ेचऩे वाल़े को द़े या अगि ि़ेचऩे वाला खिीदाि का उतनी ही िकम का

मकरूज़ हो औि खिीदाि को उसस़े र्जो कुछ ल़ेना हो उस़े माल क़ी क़ीमत में

हहसाि कि ल़े औि ि़ेचऩे वाला उस़े किल


ू कि़े औि अगि खिीदाि उस माल क़ी

क़ीमत क़ी कुछ ममक्दाि ि़ेचऩे वाल़े को द़े द़े तो अगिच़े उस ममक़्दाि क़ी तनस्ित

स़े सौदा सहीह है ल़ेककन ि़ेचऩे वाला सौदा फ़स्ख कि सकता है।

3. मद्
ु दत को ठ क ठ क मअ
ु य्यन ककया र्जाए मसलन ि़ेचऩे वाला कह़े कक

फ़स्ल का कबज़ा कटाई पि दं ग


ू ा तो चंकू क इसस़े मद्
ु दत का ठ क ठ क तअय्यन

नहीं होता इस मलए सौदा िाततल है ।

672
4. जर्जन्स का कबज़ा द़े ऩे क़े मलए ऐसा वक़्त मअ
ु य्यन ककया र्जाए जर्जसमें ि़ेचऩे

वाला जर्जन्स का कबज़ा द़े सक़े ख़्वाह वह जर्जन्स कामयाि हो या न हो।

5. जर्जन्स का कबज़ा द़े ऩे क़ी र्जगह का तअय्यन


ु एहततयात क़ी बिना पि

मक
ु म्मल तौि पि ककया र्जाए। ल़ेककन अगि तिफ़ैन क़ी िातों स़े र्जगह का पता

चल र्जाए तो उसका नाम ल़ेना ज़रूिी नहीं है ।

6. उस जर्जन्स का तोल या नाप मअ


ु य्यन ककया र्जाए औि जर्जस चीज़ का सौदा

उमम
ू न द़े ख कि ककया र्जाता है अगि उस़े ितौि़े सलफ़ ि़ेचा र्जाए तो इसमें कोई

हिर्ज नहीं है। ल़ेककन ममसाल क़े तौि पि अखिोट औि अण्डों क़ी िअज़ ककस्मों में

तअदाद का फ़कक ज़रूिी है कक इतना हो कक लोग उस़े अहममयत न दें ।

7. जर्जस चीज़ को ितौि़े सलफ़ ि़ेचा र्जाए अगि वह ऐसी हों जर्जन्हें तोलकि या

नाप कि ि़ेचा र्जाता है तो उसका एवज़ उसी जर्जन्स स़े न हो िजल्क एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि दस


ू िी जर्जन्स में स़े भी ऐसी चीज़ न हो जर्जस़े तोलकि या

नाप कि ि़ेचा र्जाता है औि अगि वह चीज़ जर्जस़े ि़ेचा र्जा िहा है उन चीज़ों में स़े

हो जर्जन्हें चगनकि ि़ेचा र्जाता हो तो एहततयात क़ी बिना पि र्जाइज़ नहीं है कक

उसका एवज़ खुद उसी क़ी जर्जन्स स़े ज़्यादा ममक़्दाि में मक
ु िक ि कि़े ।

673
मआ
ु मला ए सलफ़ के अह्काम

2121. र्जो जर्जन्स ककसी ऩे ितौि़े सलफ़ खिीदी हो उस़े वह मद्
ु दत खत्म होऩे

स़े पहल़े ि़ेचऩे वाल़े क़े मसवा ककसी औि क़े हाथ नहीं ि़ेच सकता औि मद्
ु दत

खत्म होऩे क़े िाद अगिच़े खिीदाि ऩे उसका कबज़ा न भी मलया हो उस़े ि़ेचऩे में

कोई हिर्ज नहीं। अलित्ता िलों क़े अलावा जर्जन गल्लों मसलन ग़ेहूं औि र्जौ वगैिा

को तोल कि या नाप कि फ़िोख़्त ककया र्जाता है उन्हें अपऩे कबज़़े में ल़ेऩे स़े

पहल़े उनका ि़ेचना र्जायज़ नहीं है मामसवा इसक़े कक ग्राहक ऩे जर्जस क़ीमत पि

खिीदी हों उसी क़ीमत पि या उसस़े कम क़ीमत पि ि़ेच।़े

2122. सलफ़ क़े ल़ेन द़े न में अगि ि़ेचऩे वाला मद्
ु दत खत्म होऩे पि उस चीज़

का कबज़ा द़े जर्जसका सौदा हुआ है तो खिीदाि क़े मलए ज़रूिी है कक उस़े किल
ू कि़े

अगिच़े जर्जस चीज़ का सौदा हुआ है उसस़े ि़ेहति चीज़ द़े िहा हो र्जिकक उस चीज़

को उसी जर्जन्स में शम


ु ाि ककया र्जाए।

2123. अगि ि़ेचऩे वाला र्जो जर्जन्स द़े वह उस जर्जन्स स़े र्हटया हो जर्जसका

सौदा हुआ है तो खिीदाि उस़े किल


ू किऩे स़े इंकाि कि सकता है ।

2124. अगि ि़ेचऩे वाला उस जर्जन्स क़ी िर्जाय जर्जस का सौदा हुआ है कोई

दस
ू िी जर्जन्स द़े औि खिीदाि उस़े ल़ेऩे पि िाज़ी हो र्जाए तो कोई इश्काल नहीं है ।

2125. र्जो चीज़ ितौि़े सलफ़ ि़ेची गई हो अगि वह खिीदाि क़े हवाल़े किऩे क़े

मलए तय शद
ु ा वक़्त पि दस्तयाि न हो सक़े तो खिीदाि को इजख़्तयाि है कक

674
इजन्तज़ाि कि़े ताकक ि़ेचऩे वाला उस़े मह
ु ै या कि द़े या सौदा फ़स्ख कि द़े औि र्जो

चीज़ ि़ेचऩे वाल़े को दी हो उस़े वापस ल़े ल़े औि एहततयात क़ी बिना पि वह चीज़

ि़ेचऩे वाल़े को ज़्यादा क़ीमत पि नहीं ि़ेच सकता।

2126. अगि एक शख़्स कोई चीज़ ि़ेच़े औि मआ


ु हदा कि़े कक कुछ मद्
ु दत िाद

वह चीज़ खिीदाि क़े हवाल़े कि द़े गा औि उसक़ी क़ीमत भी कुछ मद्


ु दत िाद ल़ेगा

तो ऐसा सौदा िाततल है ।

सोने चांदी को सोने चांदी के एवज बेचना

2127. अगि सोऩे को सोऩे स़े या चांदी को चांदी स़े ि़ेचा र्जाए तो वह

मसक्कादाि हो या न हो अगि उनमें स़े एक का वज़न दस


ू ि़े स़े ज़्यादा हो तो ऐसा

सौदा हिाम औि िाततल है ।

2128. अगि सोऩे को चांदी स़े या चांदी को सोऩे स़े नक़्द ि़ेचा र्जाए तो सौदा

सहीह है औि ज़रूिी नहीं कक दोनों का वज़न ििािि हो। ल़ेककन अगि मआ


ु मल़े में

मद्
ु दत मअ
ु य्यन हो तो िाततल है ।

2129. अगि सोऩे या चांदी को सोऩे या चांदी क़े एवज़ ि़ेचा र्जाए तो ज़रूिी है

कक ि़ेचऩे वाला औि खिीदाि एक दस


ू ि़े स़े र्जुदा होऩे स़े पहल़े जर्जन्स औि उसका

एवज़ एक दस
ू ि़े क़े हवाल़े कि दें औि अगि जर्जस चीज़ क़े िाि़े में मआ
ु मला तय

675
हुआ है उसक़ी कुछ ममक़्दाि भी एक दस
ू ि़े क़े हवाल़े न क़ी र्जाए तो मआ
ु मला

िाततल है ।

2130. अगि ि़ेचऩे वाल़े या खिीदाि में स़े कोई एक तय शद


ु ा माल पिू ा पिू ा

दस
ू ि़े क़े हवाल़े कि द़े ल़ेककन दस
ू िा (माल क़ी मसफ़क) कुछ ममक़्दाि हवाल़े कि़े औि

किि वह एक दस
ू ि़े र्जुदा हो र्जायें तो अगिच़े इतनी ममक़्दाि क़े मत
ु ाअजल्लक

मआ
ु मला सहीह है ल़ेककन जर्जसको पिू ा माल न ममला हो वह सौदा फ़स्ख कि

सकता है।

2131. अगि चांदी क़ी कान क़ी ममट्टी को खामलस चांदी स़े औि सोऩे क़ी कान

क़ी सोऩे क़ी ममट्टी को खामलस सोऩे स़े ि़ेचा र्जाए तो सौदा िाततल है । मगि यह

कक र्जि र्जानत़े हों कक मसलन चांदी क़ी ममट्टी क़ी ममक़्दाि खामलस चांदी क़ी

ममक़्दाि क़े ििािि है। ल़ेककन र्जैसा कक पहल़े कहा र्जा चक


ु ा है चांदी क़ी ममट्टी को

सोऩे क़े एवज़ औि सोऩे क़ी ममट्टी को चांदी क़े एवज़ ि़ेचऩे में कोई इश्काल नहीं

है ।

मआ
ु मला फ़स्ख़ फकये जाने की सि़ू तें

2132. मआ
ु मला फ़स्ख किऩे क़े हक को खखयाि कहत़े हैं औि खिीदाि औि

ि़ेचऩे वाला ग्यािा सिू तों में मआ


ु मला फ़स्ख कि सकत़े हैं –

676
1. जर्जस मर्जमलस में मआ
ु मला हुआ है वह ििखास्त न हुई हो अगिच़े सौदा हो

चक
ु ा हो उस़े खखयाि़े मर्जमलस कहत़े हैं।

2. खिीद व फ़िोख़्त क़े मआ


ु मल़े में खिीदाि या ि़ेचऩे वाला नीज़ दस
ू ि़े

मआ
ु मलात में तिफ़ैन में स़े कोई एक मग़्जिन
ू हो र्जाए इस़े खखयाि़े गिन कहत़े हैं

(मग़्जिन
ू स़े मिु ाद वह शख़्स है जर्जस क़े साथ फ़्राड ककया गया हो) खखयाि क़ी इस

ककस्म का मंशा उफ़े आम में शते इिततकाज़ी होता है यअनी हि मआ


ु मल़े में

फ़िीकैन क़े जज़ह्न में यह शतक मौर्जूद होती है कक र्जो माल हामसल कि िहा है

उसक़ी क़ीमत माल स़े िहुत ज़्यादा कम नहीं र्जो वह अदा कि िहा है औि अगि

उसक़ी क़ीमत कम हो तो वह मआ
ु मल़े को खत्म किऩे का हक िखता है । ल़ेककन

उफ़े खास क़ी चन्द सिू तों में इिततकाज़ी शतक दस


ू िी तिह हो मसलन यह शतक हो

कक अगि र्जो माल मलया हो वह िहहलाज़़े क़ीमत उस माल स़े कम हो र्जो उसऩे

हदया है तो दोंनो (माल) क़े दिममयान र्जो कमी ि़ेशी होगी उस का मत


ु ालिा कि

सकता है औि अगि मजु म्कन न हो सक़े तो मआ


ु मल़े को खत्म कि द़े औि ज़रूिी

है कक इस ककस्म क़ी सिू तों में उफ़े खास का ख़्याल िखा र्जाए।

3. सौदा कित़े वक़्त यह तय ककया र्जाए कक मक


ु िक िा मद्
ु दत तक फ़िीकैन को

या ककसी एक फ़िीक को सौदा फ़स्ख किऩे का इजख़्तयाि होगा उस़े खखयाि़े शतक

कहत़े हैं।

677
4. फ़िीकैन में स़े एक फ़िीक अपऩे माल को उसक़ी अजस्लयत स़े ि़ेहति िना

कि प़ेश कि़े जर्जसक़ी वर्जह स़े दस


ू िा फ़िीक उस में हदलचस्पी ल़े या उसक़ी

हदलचस्पी उसमें िढ़ र्जाए उस़े खखयाि तद्लीस कहत़े हैं।

5. फ़िीकैन में स़े एक फ़िीक दस


ू ि़े क़े साथ शतक कि़े कक वह फ़लां काम अन्र्जाम

द़े गा औि इस शतक पि अमल न हो या शतक क़ी र्जाए कक एक फ़िीक दस


ू ि़े फ़िीक

को एक मख़्सस
ू ककस्म का मअ
ु य्यन माल द़े गा औि र्जो माल हदया र्जाए उसमें वह

खुसस
ू ीयत न हों, उस सिू त में वह शतक लगाऩे वाला फ़िीक मआ
ु मल़े को फ़स्ख कि

सकता है। उस़े खखयाि़े तखल्लफ़


ु ़े शतक कहत़े हैं।

6. दी र्जाऩे वाली जर्जन्स या उसक़े एवज़ में कोई ऐि हो उस़े खखयाि़े ऐि कहत़े

हैं।

7. यह पता चल़े कक फ़िीकैन ऩे जर्जस जर्जन्स का सौदा ककया है उसक़ी कुछ

ममक़्दाि ककसी औि शख़्स का माल है। इस सिू त में अगि उस ममक़्दाि का मामलक

सौद़े पि िाज़ी न हो तो खिीदऩे वाला सौदा फ़स्ख कि सकता है या अगि उतनी

ममक़्दाि क़ी अदायगी कि चक


ु ा हो तो उस़े वापस ल़े सकता है। उस़े खखयाि़े मशककत

कहत़े हैं।

8. जर्जस मअ
ु य्यन जर्जन्स को दस
ू ि़े फ़िीक ऩे न द़े खा हो अगि उस जर्जन्स का

मामलक उस़े उसक़ी खुसस


ू ीयात िताए औि िाद में मअलम
ू हो कक र्जो खुसस
ू ीयात

उसऩे िताई थीं वह उसमें नहीं हैं या दस


ू ि़े फ़िीक ऩे पहल़े उस जर्जन्स को द़े खा था

678
औि उसका ख़्याल था कक वह खुसस
ू ीयात अि उसमें िाक़ी नहीं है तो इस सिू त में

दस
ू िा फ़िीक मआ
ु मला फ़स्ख कि सकता है। इस़े खखयाि़े रूयत कहत़े हैं।

9. खिीदाि ऩे र्जो जर्जन्स खिीदी हो अगि उसक़ी क़ीमत तीन हदन तक न द़े

औि वह ि़ेचऩे वाल़े ऩे भी वह जर्जन्स खिीदाि क़े हवाल़े न क़ी हो तो ि़ेचऩे वाला

सौद़े को खत्म कि सकता है ल़ेककन ऐसा उस सिू त में हो सकता है र्जि ि़ेचऩे

वाल़े ऩे खिीदाि को क़ीमत अदा किऩे क़ी मोहलत दी हो ल़ेककन मद्
ु दत मअ
ु य्यन

न क़ी हो। औि अगि उसको मोहलत बिल्कुल न दी हो तो ि़ेचऩे वाला क़ीमत क़ी

अदायगी में मअमल


ू ी सी ताखीि स़े भी सौदा खत्म कि सकता है औि अगि उस़े

तीन हदन स़े ज़्यादा मोहलत दी हो तो मद्


ु दत पिू ी होऩे स़े पहल़े सौदा खत्म नहीं

कि सकता। इसस़े यह मअलम


ू हो र्जाता है कक र्जो जर्जन्स ि़ेची है अगि वह िअज़

ऐस़े िलों क़ी तिह हो र्जो एक हदन िाक़ी िहऩे स़े ज़ाए हो र्जात़े हैं चन
ु ाच़े खिीदाि

िात तक उसक़ी क़ीमत न द़े औि यह शतक भी न कि़े कक क़ीमत द़े ऩे में ताखीि

कि़े गा तो ि़ेचऩे वाला सौदा खत्म कि सकता है । इस़े खखयाि ताखीि कहत़े हैं।

10. जर्जस शख़्स ऩे कोई र्जानवि खिीदा हो वह तीन हदन तक सौदा फ़स्ख कि

सकता है औि र्जो चीज़ उसऩे ि़ेची हो अगि उसक़े एवज़ में खिीदाि ऩे र्जानवि

हदया हो तो र्जानवि ि़ेचऩे वाला भी तीन हदन तक सौदा फ़स्ख कि सकता है । इस़े

खखयाि़े है वान कहत़े हैं।

679
11. ि़ेचऩे वाल़े ऩे र्जो चीज़ ि़ेची हो अगि उसका कबज़ा न द़े सक़े मसलन र्जो

र्ोड़ा उसऩे ि़ेचा हो वह भाग गया हो तो उस सिू त में खिीदाि सौदा फ़स्ख कि

सकता है। इस़े खखयाि़े तअज़्ज़िु ़े तसलीम कहत़े हैं।

(खखयाित क़ी) इन तमाम अक़्साम क़े (तफ़्सीली) अह्काम आइन्दा मसाइल में

ियान ककय़े र्जायेंग़े।

2133. अगि खिीदाि को जर्जन्स क़ी क़ीमत का इल्म न हो या वह सौदा कित़े

वक़्त गफ़लत िित़े औि उस चीज़ को आम क़ीमत स़े महं गा खिीद़े औि यह

क़ीमत़े खिीद िड़ी हद तक महं गी हो तो वह सौदा खत्म कि सकता है िशते क़ी

सौदा खत्म कित़े वक़्त जर्जस कदि फ़कक हो वह भी मौर्जूद हो औि अगि फ़कक

मौर्जूद न हो तो उसक़े िाि़े में मअलम


ू नहीं कक वह सौदा खत्म कि सकता है ।

नीज़ अगि ि़ेचऩे वाल़े को जर्जन्स क़ी क़ीमत का इल्म न हो या सौदा कित़े वक़्त

गफ़लत िित़े औि उस जर्जन्स को उसक़ी क़ीमत स़े सस्ता ि़ेच़े औि िड़ी हद तक

सस्ता ि़ेच़े तो साबिका शतक क़े मत


ु ाबिक सौदा खत्म कि सकता है ।

2134. मशरूत खिीद व फ़िोख़्त में र्जिकक ममसाल क़े तौि पि एक लाख रूपय़े

का मकान पचास हज़ाि रूपय़े में ि़ेच हदया र्जाए औि तय ककया र्जाए कक अगि

ि़ेचऩे वाला मक
ु िक िा मद्
ु दत तक िकम वापस तक द़े तो सौदा फ़स्ख कि सकता है

680
तो अगि खिीदाि औि ि़ेचऩे वाला खिीद व फ़िोख़्त क़ी नीयत िखत़े हों तो सौदा

सहीह है।

2135. मशरूत खिीद व फ़ोिख़्त में अगि ि़ेचऩे वाल़े को इत्मीनान हो कक

खिीदाि मक
ु िक िा वक़्त में िकम अदा न कि सकऩे क़ी सिू त में माल उस़े वापस

कि द़े गा तो सौदा सहीह है ल़ेककन अगि वह मद्


ु दत खत्म होऩे तक िकम अदा न

कि सक़े तो वह खिीदाि स़े माल क़ी वापसी का मत


ु ालिा किऩे का हक नहीं

िखता औि अगि खिीदाि मि र्जाए तो उसक़े विसा स़े माल क़ी वापसी का

मत
ु ालिा नहीं कि सकता।

2136. अगि कोई शख़्स उम्दा चाय में र्हटया चाय क़ी ममलावट कि क़े उम्दा

चाय क़े तौि पि ि़ेच़े तो खिीदाि सौदा फ़स्ख कि सकता है।

2137. अगि खिीदाि को पता चल़े कक र्जो मअ


ु य्यन माल उसऩे खिीदा है वह

ऐिदाि है मसलन एक र्जानवि खिीद़े औि (खिीदऩे क़े िाद) उस़े पता चल़े कक

उसक़ी एक आंख नहीं है मलहाज़ा अगि यह ऐि माल में सौद़े स़े पहल़े था औि उस़े

इल्म नहीं था तो वह सौदा फ़स्ख कि सकता है औि माल ि़ेचऩे वाल़े को वापस

कि सकता है औि अगि वापस किना मजु म्कन न हो मसलन उस माल में कोई

तबदीली हो गई हो या ऐसा तसरूकफ़ कि मलया गया हो र्जो वापसी में रूकावट िन

िहा हो तो उस सिू त में वह ि़े ऐि औि ऐिदाि माल क़ी क़ीमत क़े फ़कक का हहसाि

किक़े ि़ेचऩे वाल़े स़े (फ़कक) क़ी िकम वापस ल़े ल़े मसलन अगि उसऩे कोई माल

681
चाि रूपय़े में खिीदा हो औि उस़े उसक़े ऐिदाि होऩे का इल्म हो र्जाए तो अगि

ऐसा ही ि़े ऐि माल (िाज़ाि में ) आठ रूपय़े का औि ऐिदाि छः रूपय़े का हो तो

चंकू क ि़े ऐि औि ऐिदाि क़ी क़ीमत का फ़कक एक चौथाई है इसमलय़े उसऩे जर्जतनी

िकम दी है उसका चौथाई यअनी एक रूपया ि़ेचऩे वाल़े स़े वापस ल़े सकता है।

2138. अगि ि़ेचऩे वाल़े को पता चल़े कक उसऩे जर्जस मअ


ु य्यन ऐवज़ क़े िदल़े

अपना माल ि़ेचा है उसमें ऐि है तो अगि वह ऐि उस एवज़ में सौद़े स़े पहल़े

मौर्जूद था औि उस़े इल्म न हुआ हो तो वह सौदा फ़स्ख कि सकता है औि वह

एवज़ उसक़े मामलक को वापस कि सकता है ल़ेककन अगि तबदीली या तसरूकफ़ क़ी

वर्जह स़े वापस न कि सक़े तो ि़े ऐि औि ऐिदाि क़ी क़ीमत का फ़कक उस काइद़े

क़े मत
ु ाबिक ल़े सकता है जर्जसका जज़क्र साबिका मसअल़े में ककया गया है ।

2139. अगि सौदा किऩे क़े िाद औि कबज़ा द़े ऩे स़े पहल़े माल कोई ऐि पैदा

हो र्जाए तो खिीदाि सौदा फ़स्ख कि सकता है । नीज़ र्जो चीज़ माल क़े एवज़ दी

र्जाए अगि उसमें सौदा किऩे क़े िाद औि कबज़ा द़े ऩे स़े पहल़े कोई ऐि पैदा हो

र्जाए तो ि़ेचऩे वाला सौदा फ़स्ख कि सकता है औि अगि फ़िीकैन क़ीमत का फ़कक

ल़ेना चाहें तो सौदा तय न होऩे क़ी सिू त में चीज़ को लौटाना र्जायज़ है ।

2140. अगि ककसी शख़्स को माल क़े ऐि का इल्म सौदा किऩे क़े िाद हो तो

अगि वह (सौदा खत्म किना) चाह़े तो ज़रूिी है कक फ़ौिन सौद़े को खत्म कि द़े

682
औि – इखततलाफ़ क़ी सिू तों को प़ेश़े नज़ि िखत़े हुए अगि मअलम
ू स़े ज़्यादा

ताखीि तो वह सौद़े को खत्म नहीं कि सकता।

2141. र्जि ककसी शख़्स को कोई जर्जन्स खिीदऩे क़े िाद उसक़े ऐि का पता

चल़े तो ख़्वाह ि़ेचऩे वाला उस पि तैयाि न भी हो खिीदाि सौदा फ़स्ख कि सकता

है औि दस
ू ि़े खखयाित क़े मलए भी यही हुक्म है ।

2142. चाि सिू तों में खिीदाि माल में ऐि होऩे क़ी बिना पि सौदा फ़स्ख नहीं

कि सकता है औि न ही क़ीमत का फ़कक ल़े सकता है ।

1. खिीदत़े वक़्त माल क़े ऐि स़े वाककफ़ हो।

2. माल क़े ऐि को किल


ू कि़े ।

3. सौदा कित़े वक़्त कह़े , अगि माल में ऐि हुआ ति भी वापस नहीं करूगां

औि क़ीमत का फ़कक भी नहीं लग


ू ां।

4. सौद़े क़े वक़्त ि़ेचऩे वाला कह़े – मैं इस माल को र्जो ऐि भी इसमें है उसक़े

साथ ि़ेचता हूं। ल़ेककन अगि वह ऐि का तअय्यन


ु कि द़े औि कह़े – मैं इस माल

को फ़लां ऐि क़े साथ ि़ेच िहा हूं। औि िाद में मअलम


ू हो कक माल में कोई दस
ू िा

ऐि भी है तो र्जो ऐि ि़ेचऩे वाल़े ऩे मअ


ु य्यन न ककया हो उसक़ी बिना पि खिीदाि

वह माल वापस कि सकता है औि अगि वापस न कि सक़े तो क़ीमत का फ़कक ल़े

सकता है।

683
2143. अगि खिीदाि को मअलम
ू हो कक माल में एक ऐि है औि उस़े वसल

किऩे क़े िाद उसमें कोई औि ऐि तनकल आए तो वह सौदा फ़स्ख नहीं कि सकता

ल़ेककन ि़े ऐि औि ऐिदाि माल का फ़कक ल़े सकता है ल़ेककन अगि वह ऐिदाि

है वान (र्जानवि) खिीद़े औि खखयाि क़ी मद्


ु दत र्जो कक तीन हदन है गुज़िऩे स़े

पहल़े उस है वान में ककसी औि ऐि का पता चल र्जाए तो गो खिीदाि ऩे उस़े

अपनी तहवील में ल़े मलया हो किि भी वह उस़े वापस कि सकता है। नीज़ अगि

फ़कत खिीदाि को कुछ मद्


ु दत तक सौदा फ़स्ख किऩे का हक हामसल हो औि उस

मद्
ु दत क़े दौिान माल में कोई दस
ू िा ऐि तनकल र्जाए तो अगिच़े खिीदाि ऩे वह

माल अपनी तहवील में ल़े मलया हो वह सौदा फ़स्ख कि सकता है ।

2144. अगि ककसी शख़्स क़े पास ऐसा माल हो जर्जस़े उसऩे खुद अपनी आंख

स़े न द़े खा हो औि ककसी दस


ू ि़े शख़्स ऩे माल क़ी खुसस
ू ीयात उस़े िताई हों औि

वही खुसस
ू ीयात खिीदाि को िताए औि वह माल उस क़े हाथ ि़ेच द़े औि िाद में

उस़े (यअनी मामलक को) पता चल़े कक वह माल उसस़े ि़ेहति खस


ु स
ू ीयात का

हाममल है तो वह सौदा फ़स्ख कि सकता है।

मुतफ़रिय क मसाइल

2145. अगि ि़ेचऩे वाला खिीदाि को ककसी जर्जन्स क़ी क़ीमत़े खिीद िताए तो

ज़रूिी है कक वह तमाम चीज़ें भी उस़े िताए जर्जनक़ी वर्जह स़े माल क़ी क़ीमत

684
र्टती िढ़ती है अगिच़े उसी क़ीमत पि (जर्जस पि खिीदा है ) या उसस़े भी कम

क़ीमत पि ि़ेच।़े मसलन उस़े िताना ज़रूिी है कक माल नक़्द खिीदा है या उधाि

मलहाज़ा अगि माल क़ी कुछ खस


ु स
ू ीयात न िताए औि खिीदाि को िाद में मअलम

हो तो वह सौदा फ़स्ख कि सकता है।

2146. अगि इंसान कोई जर्जन्स ककसी को द़े औि उसक़ी क़ीमत मअ


ु य्यन कि

द़े औि कह़े – यह जर्जन्स इस क़ीमत पि ि़ेचो औि इसस़े ज़्यादा जर्जतनी क़ीमत

वसल
ू किोग़े वह तुम्हािी म़ेहनत क़ी उर्जित होगी, तो उस सिू त में वह शख़्स उस

क़ीमत स़े ज़्यादा जर्जतनी क़ीमत भी वसल


ू कि़े वह जर्जन्स क़े मामलक का माल

होगा औि ि़ेचऩे वाला मामलक स़े फ़कत म़ेहनताना ल़े सकता है ल़ेककन अगि

मआ
ु हदा ितौि़े र्जआ
ु ला हो औि माल का मामलक कह़े कक अगि तूऩे यह जर्जन्स

इस क़ीमत स़े ज़्यादा पि ि़ेची तो फ़ाजज़ल आमदनी त़ेिा माल है तो इसमें कोई

हिर्ज नहीं।

2147. अगि कस्साि नि र्जानवि का गोश्त कह कि मादा का गोश्त ि़ेच़े तो

वह गन
ु ाहगाि होगा मलहाज़ा अगि वह उस गोश्त को मअ
ु य्यन कि द़े औि कह़े कक

मैं यह नि र्जानवि का गोश्त ि़ेच िहा हूं तो खिीदाि सौदा फ़स्ख कि सकता है ।

औि अगि कस्साि उस गोश्त को मअ


ु य्यन न कि़े औि खीिदाि को र्जो गोश्त

ममला हो (यअनी मादा का गोश्त) वह उस पि िाज़ी न हो तो ज़रूिी है कक कस्साि

उस़े नि र्जानवि का गोश्त द़े ।

685
2148. अगि खिीदाि िज़्ज़ाज़ स़े कह़े कक मझ
ु ़े ऐसा कपड़ा चाहहय़े जर्जसका िं ग

कच्चा न हो औि िज़्ज़ाज़ एक ऐसा कपड़ा उसक़े हाथ फ़िोख़्त कि़े जर्जसका िं ग

कच्चा हो तो खिीदाि सौदा फ़स्ख कि सकता है।

2149. ल़ेन द़े न में कसम खाना अगि सच्ची हो तो मकरूह है औि अगि झठ

हो तो हिाम है।

लशिाकत के अह्काम

2150. दो आदमी अगि िाहम तय किें कक अपऩे मश्ु तिक माल स़े बयोपाि कि

क़े र्जो कुछ नफ़् अ कमायेंग़े उस़े आपस में तक़्सीम कि ल़ेगें औि वह अििी या

ककसी औि ज़िान में मशिाकत का मसगा पढ़ें या कोई ऐसा काम किें जर्जसस़े ज़ाहहि

होता हो कक वह एक दस
ू ि़े क़े शिीक िनना चाहत़े हैं तो उनक़ी मशिाकत सहीह है ।

2151. अगि चन्द अश्खास उस मज़दिू ी में र्जो वह अपनी म़ेहनत स़े हामसल

कित़े हों एक दस
ू ि़े क़े साथ मशिाकत किें मसलन चन्द हज्र्जाम आपस में तय किें

कक र्जो उर्जित हामसल होगी उस़े आपस में तक़्सीम कि ल़ेगें तो उनक़ी मशिाकत

सहीह नहीं है । ल़ेककन अगि िाहम तय कि लें कक मसलन हि एक क़ी आधी

मज़दिू ी मअ
ु य्यन मद्
ु दत तक क़े मलए दस
ू ि़े क़ी आधी मज़दिू ी क़े िदल़े में होगी तो

मआ
ु मला सहीह है औि उन में स़े हि एक दस
ू ि़े क़ी मज़दिू ी में शिीक होगा।

686
2152. अगि दो अश्खास आपस में इस तिह मशिाकत किें कक उन में स़े हि

एक अपनी जज़म्म़ेदािी पि जर्जन्स खिीद़े औि उसक़ी क़ीमत क़ी अदायगी का खद


भी जज़म्म़ेदाि हो ल़ेककन र्जो जर्जन्स उन्होंऩे खिीदी हो उसक़े नफ़् अ में एक दस


ू ि़े क़े

साथ शिीक हों तो ऐसी मशिाकत सहीह नहीं। अलित्ता अगि उनमें स़े हि एक दस
ू ि़े

को अपना वक़ील िनायें कक र्जो कुछ वह उधाि ल़े िहा है उसमें उस़े शिीक कि क़े

यअनी जर्जसको अपऩे औि अपऩे हहस्सादाि क़े मलए खिीद़े जर्जसक़ी बिना पि दोनों

मकरूज़ हो र्जायें तो दोनो में स़े हि एक जर्जन्स में शिीक हो र्जाय़ेगा।

2153. र्जो अशखास मशिाकत क़े ज़िीए एक दस


ू ि़े क़े शिीक़ेकाि िन र्जायें उनक़े

मलए ज़रूिी है कक िामलग औि आककल हों नीज़ यह कक इिाद़े औि इखततयाि क़े

साथ मशिाकत किें औि यह भी ज़रूिी है कक वह अपऩे माल में तसरूकफ़ कि सकत़े

हों मलहाज़ा चकंू क सफ़़ीह – र्जो अपना माल अहमकाना औि फ़ुज़ूल कामों पि खचक

किता है अपऩे माल में तसरूकफ़ का हक नहीं िखता अगि वह ककसी क़े साथ

मशिाकत कि़े तो सहीह नहीं है ।

2154. अगि मशिाकत क़े मआ


ु हद़े में यह शतक लगाई र्जाए कक र्जो शख़्स काम

कि़े गा या र्जो दस
ू ि़े शिीक स़े ज़्यादा काम कि़े गा या जर्जस क़े काम क़ी दस
ू ि़े क़े

काम क़े मक
ु ाबिल़े में ज़्यादा अहम्मीयत है उस़े मन
ु ाफ़ा में ज़्यादा हहस्सा ममल़ेगा

तो ज़रूिी है कक र्जैसा तय ककया गया हो मअ


ु जल्लका शख़्स को उस क़े मत
ु ाबिक

दें । औि इसी तिह अगि शतक लगाई र्जाए कक र्जो शख़्स काम नहीं कि़े गा या

687
ज़्यादा काम नहीं कि़े गा या जर्जसक़े काम क़ी दस
ू ि़े क़े काम क़े मक
ु ाबिल़े में ज़्यादा

अहम्मीयत नहीं है उस़े मन


ु ाफ़ा का ज़्यादा हहस्सा ममल़ेगा ति भी शतक सहीह है ।

औि र्जैसा तय ककया गया हो मत


ु अजल्लका शख़्स को उस क़े मत
ु ाबिक दें ।

2155. अगि शिु का तय कि़े कक सािा मन


ु ाफ़ा ककसी एक शख़्स का होगा या

सािा नक़्
ु सान ककसी एक को िदाकश्त किना होगा तो मशिाकत सहीह होऩे में

इश्काल है।

2156. अगि शिु का यह तय न किें कक ककसी एक शिीक को ज़्यादा मन


ु ाफ़ा

ममल़ेगा तो अगि उन में स़े हि का सिमाया एक जर्जतना हो तो नफ़् अ नक़्


ु सान भी

उन क़े मािैन ििािि तक़्सीम होगा औि उन का सिमाया ििािि ििािि न हो तो

ज़रूिी है कक नफ़् अ नक़्


ु सान सिमाय़े क़ी तनस्ित स़े तक़्सीम किें । मसलन अगि द़े

अफ़िाद मशिाकत किें औि एक का सिमाया दस


ू ि़े क़े सिमाय़े स़े दग
ु ना हो तो

नफ़् अ नक़्
ु सान में भी उस का हहस्सा दस
ू ि़े स़े दग
ु ना होगा ख़्वाह दोनों एक जर्जतना

काम किें या एक थोड़ा काम कि़े या बिल्कुल काम न कि़े ।

2157. अगि मशिकत क़े मआ


ु हद़े में यह तय ककया र्जाए कक दोनों शिीक ममल

कि खिीद व फ़िोख़्त किें ग़े या हि एक इनकफ़िादी तौि पि ल़ेन द़े न किऩे का

मर्जाज़ होगा या उन में स़े फ़कत एक शख़्स ल़ेन द़े न कि़े गा या तीसिा शख़्स

उर्जित पि ल़ेन द़े न कि़े गा तो ज़रुिी है कक उस मआ


ु हद़े पि अमल किें ।

688
2158. अगि शिु का यह मअ
ु य्यन न किें कक उन में स़े कौन सिमाय़े क़े साथ

खिीद व फ़िोख़्त कि़े गा तो उन में स़े कोई भी दस


ू ि़े क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस

सिमाय़े स़े ल़ेन द़े न नहीं कि सकता।

2159. र्जो शिीक मशिाकत क़े सिमाय़े पि इखततयाि िखता हो उसक़े मलए

ज़रूिी है कक मशिाकत क़े मआ


ु हद़े पि अमल कि़े मसलन अगि उसस़े तय ककया

गया हो कक उधाि खिीद़े गा या नक़्द ि़ेचग


़े ा या ककसी खास र्जगह स़े खिीद़े गा तो

र्जो मआ
ु हदा तय पाया है उसक़े मत
ु ाबिक अमल किना ज़रूिी है औि अगि उसक़े

साथ कुछ तय न हुआ हो तो ज़रूिी है कक मअमल


ू क़े मत
ु ाबिक ल़ेन द़े न कि़े

ताकक मशिाकत को नक़्


ु सान न हो। नीज़ अगि आम िववश क़े अलिक ग़्जम हो तो सफ़ि

में मशिाकत का माल अपऩे हमिाह न ल़े र्जाए।

2160. र्जो शिीक मशिाकत क़े सिमाए स़े सौद़े किता हो अगि र्जो कुछ उसक़े

साथ तय ककया गया हो उसक़े िि खखलाफ़ खिीद व फ़िोख़्त कि़े या अगि कुछ

तय न ककया गया हो औि मअमल


ू क़े खखलाफ़ सौदा कि़े तो उन दोनों सिू तों में

अगिच़े अक़्वा कौल क़ी बिना पि मआ


ु मला सहीह है ल़ेककन अगि मआ
ु मला

नक़्
ु सान द़े ह हो या मशिाकत क़े माल में स़े कुछ माल ज़ाए हो र्जाए तो जर्जस शिीक

ऩे मआ
ु हद़े या आम िववश क़े अलिक ग़्जम अमल मलया हो वह जज़म्म़ेदाि है।

2161. र्जो शिीक मशिाकत क़े सिमाए स़े कािोिाि किता हो अगि वह फ़ुज़ूल

खच़ी न कि़े औि सिमाए क़ी तनगाहदाश्त में भी कोताही न कि़े औि किि

689
इवत्तफ़ाकन उस सिमाए क़ी कुछ ममक़्दाि या साि़े का सािा सिमाया तलफ़ हो र्जाए

तो वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2162. र्जो शिीक मशिाकत क़े सिमाय़े स़े कािोिाि किता हो अगि वह कह़े कक

सिमाया तलफ़ हो गया है तो अगि दस


ू ि़े शिु का क़े नज़्दीक मोतिि शख़्स हो तो

ज़रूिी है कक उसका कहना मान ल़े। औि अगि दस


ू ि़े शिु का क़े नज़्दीक वह मोतिि

शख़्स न हो तो शिु का हाककम़े शअक क़े पास उसक़े खखलाफ़ दावा कि सकत़े हैं

ताकक हाककम़े शअक कज़ावत क़े उसल


ू ों क़े मत
ु ाबिक तनाज़ों का फ़ैसला कि़े ।

2163. अगि तमाम शिीक उस इर्जाज़त स़े र्जो उन्होंऩे एक दस


ू ि़े को माल में

तसरूकफ़ क़े मलए द़े िखी हो किि र्जायें तो उन में स़े कोई भी मशिाकत क़े माल में

तसरूकफ़ नहीं कि सकता औि अगि उन में स़े एक अपनी दी हुई इर्जाज़त स़े किि

र्जाए तो दस
ू ि़े शिु का को तसरूकफ़ का कोई हक नहीं ल़ेककन र्जो शख़्स अपनी दी हुई

इर्जाज़त स़े किि गया हो वह मशिाकत क़े माल में तसरूकफ़ कि सकता है।

2164. र्जि शिु का में स़े कोई एक तकाज़ा कि़े कक मशिाकत का सिमाया

तक़्सीम कि हदया र्जाए तो अगिच़े मशिाकत क़ी मअ


ु य्यना मद्
ु दत में अभी कुछ

वक़्त िाक़ी हो दस
ू िों को उसका कहना मान ल़ेना ज़रूिी है मगि यह कक उन्होंऩे

पहल़े ही (मआ
ु हदा कित़े वक़्त) सिमाए क़ी तक़्सीम को िद कि हदया हो (यअनी

किल
ू न ककया हो) या माल क़ी तक़्सीम शिु का क़े मलए काबिल़े जज़क्र नक़्
ु सान का

मजू र्जि हो (तो उसक़ी िात किल


ू नहीं किनी चाहहए)।

690
2165. अगि शिु का में स़े कोई मि र्जाए या दीवाना या ि़ेहवास हो र्जाए तो

दस
ू ि़े शिु का मशिाकत क़े माल में तसरूकफ़ नहीं कि सकत़े औि अगि उनमें स़े कोई

सफ़़ीह हो र्जाए यअनी अपना माल अहमकाना औि फ़ुज़ल


ू कामों में खचक कि़े तो

दोनों शिीक होंग़े।

2166. अगि शिीक अपऩे मलए कोई चीज़ उधाि खिीद़े तो उस नफ़् अ नक़्
ु सान

का वह खुद जज़म्म़ेदाि है ल़ेककन अगि मशिाकत क़े मलए खिीद़े औि मशिाकत क़े

मआ
ु हद़े में उधाि मआ
ु मला किना भी शाममल हो तो किि नफ़् अ नक़्
ु सान में दोनों

शिीक होंग़े।

2167. अगि मशिाकत क़े सिमाए स़े कोई मआ


ु मला ककया र्जाए औि िाद में

मअलम
ू हो कक मशिाकत िाततल थी तो अगि सिू त यह हो कक मआ
ु मला किऩे क़ी

इर्जाज़त में मशिाकत क़े सहीह होऩे क़ी कैद न थी यअनी अगि शिु का र्जानत़े होत़े

कक मशिाकत दरु
ु स्त नहीं है ति भी वह एक दस
ू ि़े क़े माल में तसरूकफ़ पि िाज़ी

होत़े तो मआ
ु मला सहीह है औि र्जो कुछ इस मआ
ु मल़े स़े हामसल हो वह उन

सिका माल है औि अगि सिू त यह न हो तो र्जो लोग दस


ू िों क़े तसरूकफ़ पि िाज़ी

न हों अगि वह यह कह दें कक हम इस मआ


ु मल़े पि िाज़ी हैं तो मआ
ु मला सहीह

है वनाक िाततल है। दोनों सिू तों में उनमें स़े जर्जसऩे भी मशिाकत क़े मलए काम ककया

हो अगि उसऩे बिला मआ


ु वज़ा काम किऩे क़े इिाद़े स़े न ककया हो तो वह अपनी

म़ेहनत का मआ
ु वज़ा मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक दस
ू ि़े शिु का स़े उनक़े मफ़ाद का खयाल

691
िखत़े हुए ल़े सकता है । ल़ेककन अगि काम किऩे का मआ
ु वज़ा उस फ़ाइद़े क़ी

ममक़्दाि स़े ज़्यादा हो र्जो वह मशिाकत सहीह होऩे क़ी सिू त में ल़ेता तो िस उसी

कर फ़ाइदा ल़े सकता है ।

692
सल्
ु ह के अहकाम

2168. सल्
ु ह स़े मिु ाद है कक इंसान ककसी दस
ू ि़े शख़्स क़े साथ इस िात पि

इवत्तफ़ाक कि़े कक अपऩे माल स़े या अपऩे माल क़े मन


ु ाफ़ा स़े कुछ ममक़्दाि दस
ू ि़े

को द़े द़े या अपना कज़क या हक छोड़ द़े ताकक दस


ू िा भी उसक़े एवज़ अपऩे माल

या मन
ु ाफ़ा क़ी कुछ ममक़्दाि उस़े द़े द़े या कज़क या हक स़े दस्तििदाि हो र्जाए।

िजल्क अगि कोई शख़्स एवज़ मलए िगैि ककसी स़े इवत्तफ़ाक कि़े औि अपना माल

या माल क़े मन
ु ाफ़ा क़ी कुछ ममक़्दाि उसको द़े द़े या अपना कज़क या हक छोड़ द़े

ति भी सल्
ु ह सहीह है।

2169. र्जो शख़्स अपना माल ितौि़े सल्


ु ह दस
ू ि़े को द़े उसक़े मलए ज़रूिी है कक

वह िामलग औि आककल हो औि सल्


ु ह का कस्द िखता हो नीज़ यह कक ककसी ऩे

उस़े सल्
ु ह पि मर्जििू न ककया हो औि ज़रूिी है कक सफ़़ीह या दीवामलया होऩे क़ी

बिना पि उस़े अपऩे माल में तसरूकफ़ किऩे स़े न िोका गया हो।

2170. सल्
ु ह का सीगा अििी में पढ़ना ज़रूिी नहीं िजल्क जर्जन अलफ़ाज़ स़े इस

िात का इज़हाि हो कक फ़िीकैन ऩे आपस में सल्


ु ह क़ी है (वह सल्
ु ह) सहीह है ।

2171. अगि कोई शख़्स अपनी भ़ेड़ें चिवाह़े को द़े ताकक वह मसलन एक साल

उनक़ी तनगहदाश्त कि़े औि उनक़े दध


ू स़े खुद इजस्तफ़ादा कि़े औि र्ी क़ी कुछ

ममक़्दाि मामलक को द़े तो चिवाह़े क़ी म़ेहनत औि उस र्ी क़े मक


ु ाबिल़े में वह

693
शख़्स भ़ेड़ों क़े दध
ू पि सल्
ु ह कि ल़े तो मआ
ु मला सहीह है िजल्क अगि भ़ेड़़े चिवाह़े

को एक साल क़े मलए इस शतक क़े साथ इर्जाि़े पि द़े कक वह उनक़े दध


ू स़े

इसततफ़ादा कि़े औि उसक़े एवज़ उस़े कुछ र्ी द़े मगि यह कैद न लगाए कक

बिलखुसस
ू उन्हीं भ़ेड़ों क़े दध
ू का र्ी हो तो इर्जािा सहीह है।

2172. अगि कोई कज़कख़्वाह उस कज़क क़े िदल़े र्जो उस़े मकरूज़ स़े वसल
ू किना

है या अपऩे हक क़े िदल़े उस शख़्स स़े सल्


ु ह किना चाह़े तो यह सल्
ु ह उस सिू त

में सहीह है र्जि दस


ू िा उस़े किल
ू कि ल़े ल़ेककन अगि कोई शख़्स अपऩे कज़क या

हक स़े दस्तििदाि होना चाह़े तो दस


ू ि़े का किल
ू किना ज़रूिी नहीं।

2173. अगि मकरूज़ अपऩे कज़क क़ी ममक़्दाि र्जानता हो र्जिकक कज़कख़्वाह को

इल्म न हो औि कज़कख़्वाह को र्जो कुछ ल़ेना हो उसस़े कम पि सल्


ु ह कि ल़े

मसलन उसको पचास रूपय़े ल़ेऩे हों औि दस रूपय़े पि सल्


ु ह कि ल़े तो िाक़ीमांदा

िकम मकरूज़ क़े मलए हलाल नहीं है । मसवाय उस सिू त क़े कक वह जर्जतऩे कज़क का

द़े नदाि है उसक़े मत


ु लअजल्लक खद
ु कज़कख़्वाह को कज़े क़ी ममक़्दाि का इल्म होता

ति भी वह उसी ममक़्दाि (यअनी दस रूपय़े) पि सल्


ु ह कि ल़ेता।

2174. अगि दो आदममयों क़े पास कोई माल मौर्जूद हो या एक दस


ू ि़े क़े जज़म्म़े

कोई माल िाक़ी हो औि उन्हें यह इल्म हो कक उन दोनों अमवाल में स़े एक माल

दस
ू ि़े माल स़े ज़्यादा है तो चंकू क उन दोनों अमवाल को एक दस
ू ि़े क़े एवज़ फ़िोख़्त

किना सद
ू होऩे क़ी बिना पि हिाम है इस मलए उन दोनों में एक दस
ू ि़े क़े एवज़

694
सल्
ु ह किना भी हिाम है िजल्क अगि उन दोनों अमवाल में स़े एक दस
ू ि़े स़े ज़्यादा

होऩे का इल्म न भी हो ल़ेककन ज़्यादा होऩे का एहततमाल हो तो एहततयात़े लाजज़म

क़ी बिना पि उन दोनों में एक दस


ू ि़े क़े एवज़ सल्
ु ह नहीं क़ी र्जा सकती।

2175. अगि दो अश्खास को एक शख़्स स़े या दो अश्खास को दो अश्खास स़े

कज़ाक वसल
ू किना हो औि वह अपनी अपनी तलि पि एक दस
ू ि़े स़े सल्
ु ह किना

चाहत़े हों चन
ु ांच़े अगि सल्
ु ह किना सद
ू का िाइस न हो र्जैसा कक साबिका मस ्अल़े

में कहा गया है तो कोई हिर्ज नहीं है मसलन अगि दोनों क़े दस मन ग़ेहूं वसल

किना हो औि एक का ग़ेहूं अअला औि दस


ू ि़े का दिममयाऩे दिर्ज़े का हो औि दोनों

क़ी मद्
ु दत पिू ी हो चक
ु ़ी है तो उन दोनों का आपस में मस
ु ालहत किना सहीह है ।

2176. अगि एक शख़्स को ककसी स़े अपना कज़ाक कुछ मद्


ु दत क़े िाद वापस

ल़ेना हो औि वह मकरूज़ क़े साथ मक


ु िक िा मद्
ु दत स़े पहल़े मअ
ु य्यन ममक़्दाि स़े

कम पि सल्
ु ह कि ल़े औि उसका मक़्सद यह हो कक अपऩे कज़े का कुछ हहस्सा

मआ
ु फ़ कि द़े औि िाक़ीमांदा नक़्द ल़े ल़े तो इसमें कोई हिर्ज नहीं औि यह हुक्म

उस सिू त में है कक कज़ाक सोऩे या चांदी क़ी शक्ल में या ककसी ऐसी जर्जन्स क़ी

शक्ल में हो र्जो नाप कि या तोल कि ि़ेची र्जाती है औि अगि जर्जन्स इस ककस्म

क़ी न हो तो कज़कख़्वाह क़े मलए र्जाइज़ है कक अपऩे कज़े क़ी मकरूज़ स़े या ककसी

औि शख़्स स़े कमति ममक़्दाि पि सल्


ु ह कि ल़े या ि़ेच द़े र्जैसा कक मस ्अला

2297 में ियान होगा।

695
2177. अगि दो अश्खास ककसी चीज़ पि आपस में सल्
ु ह कि लें तो एक दस
ू ि़े

क़ी िज़ामन्दी स़े उस सल्


ु ह को तोड़ सकत़े हैं नीज़ अगि सौद़े क़े मसलमसल़े में दोनों

को या ककसी एक को सौदा फ़स्ख किऩे का हक हदया गया हो तो जर्जसक़े पास

हक है वह सल्
ु ह को फ़स्ख कि सकता है ।

2178. र्जि तक खिीदाि औि ि़ेचऩे वाला एक दस


ू ि़े स़े र्जुदा न हो गाए हों वह

सौद़े को फ़स्ख कि सकत़े हैं। नीज़ अगि खिीदाि एक र्जानवि खिीद़े तो वह तीन

हदन तक सौदा फ़स्ख किऩे का हक िखता है । इसी तिह अगि एक खिीदाि खिीदी

हुई जर्जन्स क़ी क़ीमत तीन हदन तक अदा न कि़े औि जर्जन्स को अपनी तहवील में

न ल़े तो र्जैसा कक मस ्अला 2132 में ियान हो चक


ु ा है ि़ेचऩे वाला सौद़े को फ़स्ख

कि सकता है। ल़ेककन र्जो शख़्स ककसी माल पि सल्


ु ह कि़े वह उन तीनों सिू तों में

सल्
ु ह फ़स्ख किऩे का हक नहीं िखता। ल़ेककन अगि सल्
ु ह का दस
ू िा फ़िीक इस

शते पि अमल न कि़े तो उस सिू त में सल्


ु ह फ़स्ख क़ी र्जा सकती है औि इसी

तिह िाक़ी सिू तों में भी जर्जनका जज़क्र खिीद व फ़िोख़्त क़े अह्काम में आया है

सल्
ु ह फ़स्ख क़ी र्जा सकती है मगि मस
ु ालहत क़े दोनों फ़िीकों में स़े एक को

नक़्
ु सान हो तो उस सिू त में मअलम
ू नहीं कक सौदा फ़स्ख ककया र्जा सकता है (या

नहीं)।

696
2179. र्जो चीज़ िज़िीआ ए सल्
ु ह ममल़े अगि वह ऐिदाि हो तो सल्
ु ह फ़स्ख क़ी

र्जा सकती है ल़ेककन अगि मत


ु अजल्लका शख़्स ि़े ऐि औि ऐिदाि क़े माि़ेन क़ीमत

का फ़कक ल़ेना चाह़े तो इसमें इश्काल है।

2180. अगि कोई शख़्स अपऩे माल क़े ज़िीए दस


ू ि़े स़े सल्
ु ह कि़े औि उसक़े

साथ शतक ठहिाए औि कह़े , जर्जस चीज़ पि मैनें तुम स़े सल्
ु ह क़ी है म़ेि़े मिऩे क़े

िाद मसलन तुम उस़े वक़्फ़ कि दोग़े, औि दस


ू िा शख्स भी उस को किल
ू कि ल़े

तो ज़रूिी है कक उस शतक पि अमल कि़े ।

फकिाये के अह्काम

2181. कोई चीज़ ककिाय़े पि द़े ऩे वाल़े औि ककिाय़े पि ल़ेऩे वाल़े क़े मलए ज़रूिी

है कक िामलग औि आककल हों औि ककिाया लोऩे या ककिाया द़े ऩे का काम अपऩे

इखततयाि स़े कि़े । औि यह भी ज़रूिी है कक अपऩे माल में तसरूकफ़ का हक िखत़े

हों। मलहाज़ा चंकू क सफ़़ीह अपऩे माल में तसरूकफ़ किऩे का हक नहीं िखता इस

मलए वह कोई चीज़ ककिाय़े पि ल़े सकता है औि न द़े सकता है । इसी तिह र्जो

शख़्स हदवामलया हो चक
ु ा हो वह उन चीज़ों को ककिाय़े पि नहीं द़े सकता जर्जनमें

वह तसरूकफ़ का हक न िखता हो औि न वह उन में स़े कोई चीज़ ककिाय़े पि ल़े

सकता है ल़ेककन अपनी खखदमात को ककिाय़े पि प़ेश कि सकता है ।

697
2182. इंसान दस
ू ि़े क़ी तिफ़ स़े वक़ील िन कि उसका माल ककिाय़े पि द़े

सकता है या कोई माल उसक़े मलए ककिाय़े पि ल़े सकता है।

2183. अगि िच्च़े का सिपिस्त या उसक़े माल का मन्


ु तजज़म िच्च़े का माल

ककिाय़े पि द़े या िच्च़े को ककसी का अर्जीि मक


ु िक ि कि द़े तो कोई हिर्ज नहीं औि

अगि िच्च़े क़े िामलग होऩे क़े िाद क़ी कुछ मद्
ु दत को भी इर्जाि़े क़ी मद्
ु दत का

हहस्सा किाि हदया र्जाए तो िच्चा िामलग होऩे क़े िाद िाक़ीमांदा इर्जािा फ़स्ख कि

सकता है अगिच़े सिू त यह हो कक अगि िच्च़े क़े िामलग होऩे क़ी कुछ मद्
ु दत को

इर्जािा क़ी मद्


ु दत का हहस्सा न िनाया र्जाता तो यह िच्च़े क़े मलए मसलहत क़े

अलिक ग़्जम होता। हां अगि वह मसलहत कक जर्जसक़े िाि़े में यह इल्म हो कक शाि़े ए

मक
ु द्दस इस मसलहत को तकक किऩे पि िाज़ी नहीं है उस सिू त में अगि हाककम़े

शअक क़ी इर्जाज़त स़े इर्जािा वाक़े हो र्जाए तो िच्चा िामलग होऩे क़े िाद इर्जािा

फ़स्ख कि सकता है ।

2184. जर्जस नािामलग िच्च़े का सिपिस्त न हो उस़े मज्


ु तहहद क़ी इर्जाज़त क़े

िगैि मज़दिू ी पि नहीं लगाया र्जा सकता औि जर्जस शख़्स क़ी िसाई मज्
ु तहहद तक

न हो वह एक मोममन शख़्स क़ी इर्जाज़त ल़ेकि र्जो आहदल हो िच्च़े को मज़्दिू ी

पि लगा सकता है ।

2185. इर्जािा द़े ऩे वाल़े औि इर्जािा ल़ेऩे वाल़े क़े मलए ज़रूिी नहीं कक सीगा

अििी में पढ़ें िजल्क अगि ककसी चीज़ का मामलक दस


ू ि़े स़े कह़े कक मैंऩे अपना

698
माल तुम्हें इर्जाि़े पि हदया औि दस
ू िा कह़े कक मैंऩे किल
ू ककया तो इर्जािा सहीह है

िजल्क अगि वह मंह


ु स़े कुछ भी न कह़े औि मामलक अपना माल इर्जाि़े क़े कस्द

स़े मस्
ु ताजर्जि को द़े औि वह भी इर्जाि़े क़े कस्द स़े ल़े तो इर्जािा सहीह होगा।

2186. अगि कोई शख़्स चाह़े कक इर्जाि़े का सीगा पढ़़े िगैि कोई काम किऩे क़े

मलए अर्जीि िन र्जाए तो र्जंू ही वह काम किऩे में मश्गल


ू होगा इर्जािा सहीह हो

र्जाय़ेगा।

2187. र्जो शख़्स िोल न सकता हो अगि वह इशाि़े स़े समझा द़े कक उसऩे

कोई चीज़ इर्जाि़े पि दी है या इर्जाि़े पि ली है तो इर्जािा सहीह है ।

2188. अगि कोई शख़्स मकान या दक


ु ान या कश्ती या कमिा इर्जाि़े पि ल़े

औि उसका मामलक यह शतक लगाए कक मसफ़क वह इस स़े इजस्तफ़ादा कि सकता है

तो मस्
ु ताजर्जि उस़े ककसी दस
ू ि़े को इस्त़ेमाल क़े मलए इर्जाि़े पि नहीं द़े सकता

िर्जज़
ु इसक़े कक वह नया इर्जािा इस तिह हो कक उसक़े फ़वाइद भी खुद मस्
ु ताजर्जि

स़े मख़्सस
ू हों। मसलन एक औित एक मकान या कमिा ककिाया पि ल़े औि िाद

में शादी कि ल़े औि कमिा या मकान अपनी िहाइश क़े मलए ककिाय़े पि द़े द़े

(यअनी शौहि को ककिाय़े पि द़े क्योंकक िीवी क़ी िहाइश का इजन्तज़ाम भी शौहि

क़ी जज़म्म़ेदािी है ) औि अगि मामलक ऐसी कोई शतक न लगाए तो मस्


ु ताजर्जि उस़े

दस
ू िो को ककिाय़े पि द़े सकता है । अलित्ता माल को मस्
ु ताजर्जि़े दोम क़े मसपद
ु क

किऩे क़े मलए एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक मामलक स़े इर्जाज़त ल़े ल़े

699
ल़ेककन अगि वह यह चाह़े कक जर्जतऩे ककिाय़े पि मलया है उसस़े ज़्यादा ककिाय़े पि

द़े अगिच़े (ककिाया िकम न हो) दस


ू िी जर्जन्स स़े हो तो ज़रूिी है कक उसऩे

मिम्मत औि सफ़़ेदी वगैिा किाई हो या उसक़ी हहफ़ाज़त क़े मलए कुछ नक़्
ु सान

िदाकश्त ककया हो तो उस़े ज़्यादा ककिाय़े पि द़े सकता है ।

2189. अगि अर्जीि मस्


ु ताजर्जि स़े यह शतक तय कि़े कक वह फ़कत उसी का

काम कि़े गा तो िर्जज़


ु उस सिू त क़े जर्जसका जज़क्र साबिका मस ्अल़े में ककया गया

है उस अर्जीि को ककसी दस
ू ि़े शख़्स को ितौि़े इर्जािा नहीं हदया र्जा सकता औि

अगि अर्जीि कोई ऐसी शतक न लगाए तो उस़े दस


ू ि़े को इर्जाि़े पि द़े सकता है

ल़ेककन र्जो चीज़ इर्जाि़े पि द़े िहा है ज़रूिी है कक उसक़ी क़ीमत उस इर्जाि़े स़े

ज़्यादा हो र्जो अर्जीि क़े मलए किाि हदया है । औि इसी तिह अगि कोई शख़्स खुद

ककसी का अर्जीि िन र्जाए औि ककसी दस


ू ि़े शख़्स को वह काम किऩे क़े मलए कम

उर्जित पि िख ल़े तो उसक़े मलए भी यही हुक्म है (यानी वह उस़े कम उर्जित पि

नहीं िख सकता) ल़ेककन अगि उसऩे काम क़ी कुछ ममक़्दाि खद


ु अंर्जाम दी हो तो

किि दस
ू ि़े को कम उर्जित पि भी िख सकता है।

2190. अगि कोई शख़्स मकान, दक


ु ान, कमि़े औि कश्ती क़े अलावा कोई औि

चीज़ मसलन ज़मीन ककिाय़े पि ल़े औि ज़मीन का मामलक उसस़े यह शतक न कि़े

कक मसफ़क वही उसस़े इजस्तफ़ादा कि सकता है तो अगि जर्जतऩे ककिाय़े पि उसऩे

वह चीज़ ली है उसस़े ज़्यादा ककिाय़े पि द़े तो इर्जािा सहीह होऩे में इश्काल है।

700
2191. अगि कोई शख़्स मकान पि दक
ु ान मसलन एक साल क़े मलए सौ रुपया

ककिाय़े पि ल़े औि उसका आधा हहस्सा खद


ु इस्त़ेमाल कि़े तो दस
ू िा हहस्सा सौ

रुपया ककिाय़े पि चढ़ा सकता है ल़ेककन अगि वह चाह़े कक मकान या दक


ु ान का

आधा हहस्सा उसस़े ज़्यादा ककिाय़े पि चढ़ा द़े जर्जस पि उसऩे खुद वह मकान या

दक
ु ान ककिाय़े पि ली है मसलन रूपया ककिाय़े पि द़े द़े तो ज़रूिी है कक

उसऩे उसमें मिम्मत वगैिा का काम किाया हो।

फकिाये पि हदये जाने वाले माल की शिाइत

2192. र्जो माल इर्जाि़े पि हदया र्जाए उस क़े चन्द शिाइत है ः-

1. – वह माल मअ
ु य्यन हो। मलहाज़ा अगि कोई शख़्स कह़े कक मैंऩे अपऩे

मकानात में स़े एक मकान तुम्हें ककिाय़े पि हदया तो यह दरू


ु स्त नहीं है।

2. – मस्
ु ताजर्जि यअनी ककिाय़े पि ल़ेऩे वाला उस माल को द़े ख ल़े या इर्जाि़े पि

द़े ऩे वाला शख़्स अपऩे माल क़ी खस


ु स
ू ीयात इस तिह ियान कि़े कक उसक़े िाि़े में

मक
ु म्मल मअलम
ू ात हामसल हो र्जायें।

3. – इर्जाि़े पि हदय़े र्जाऩे वाल़े माल को दस


ू ि़े फ़िीक को मसपद
ु क किना मजु म्कन

हो मलहाज़ा उस र्ोड़़े को इर्जाि़े पि द़े ना र्जो भाग गया हो अगि मस्


ु ताजर्जि उसको

न पकड़ सक़े तो इर्जािा िाततल है औि अगि पकड़ सक़े तो इर्जािा सहीह है ।

701
4. – उस माल स़े इजस्तफ़ादा किना, उसक़े खत्म होऩे या कलअदम हो र्जाऩे पि

मौकूफ़ न हो मलहाज़ा िोटी, िलों औि दस


ू िी खद
ु क नी अश्या को खाऩे क़े मलए ककिाय़े

पि द़े ना सहीह है।

5. – माल स़े वह फ़ाइदा उठाना मजु म्कन हो जर्जसक़े मलए उस़े ककिाय़े पि हदया

र्जाए। मलहाज़ा ऐसी ज़मीन का जज़िाअत क़े मलए ककिाय़े पि द़े ना जर्जसक़े मलए

िारिश का पानी काफ़़ी न हो औि वह दरिया क़े पानी स़े भी स़ेिाि न होती हो

सहीह नहीं है।

6. र्जो चीज़ ककिाय़े पि दी र्जा िही हो वह ककिाय़े पि द़े ऩे वाल़े का अपना माल

हो औि अगि ककसी दस
ू िा का माल ककिाय़े पि हदया र्जाए तो मआ
ु मला उस सिू त

में सहीह है र्जिकक उस माल का मामलक िज़ामन्द हो।

2193. जर्जस दिख़्त में अभी िल न लगा हो उसका इस मक़्सद स़े ककिाय़े पि

द़े ना कक उसक़े िल स़े इजस्तफ़ादा ककया र्जाय़ेगा दरु


ु स्त है औि इसी तिह एक

र्जानवि को उसक़े दध
ू क़े मलए ककिाय़े पि द़े ऩे का भी यही हुक्म है ।

2194. औित इस मक़्सद क़े मलए अर्जीि िन सकती है कक उसक़े दध


ू स़े

इजस्तफ़ादा ककया र्जाए (यअनी ककसी दस


ू ि़े क़े िच्च़े को उर्जित पि दध
ू वपला

सकती है ) औि ज़रूिी नहीं कक वह उस मक़्सद क़े मलए शौहि स़े इर्जाज़त ल़े।

702
ल़ेककन अगि उसक़े दध
ू वपलाऩे में शौहि क़ी हक तलफ़़ी होती हो तो किि उसक़ी

इर्जाज़त क़े िगैि औित अर्जीि नहीं िन सकती।

फकिाये पि हदये जाने वाले माल से इसततफ़ादा की शिाइत

2195. जर्जस इसततफ़ाद़े क़े मलए माल ककिाय़े पि हदया र्जाता है उसक़ी चाि शतें

है ः-

1. इसततफ़ादा किना हलाल हो। मलहाज़ा दक


ु ान को शिाि ि़ेचऩे या शिाि

ज़खीिा (स्टोि) किऩे क़े मलए ककिाय़े पि द़े ना औि है वान (र्जानवि) को शिाि क़ी

नक़्लों हम्ल क़े मलए ककिाय़े पि द़े ना िाततल है ।

2. वह अमल शिीअत में बिला मआ


ु वज़ा अंर्जाम द़े ना वाजर्जि न हो। औि

एहततयात क़ी बिना पि इसी ककस्म क़े कामों में स़े है हलाल औि हिाम मसखाना

औि मद
ु ों क़ी तर्जहीज़ व तक्फ़़ीन किना। मलहाज़ा इन कामों क़ी उर्जित ल़ेना

र्जायज़ नहीं है औि एहततयात क़ी बिना पि मोतिि है कक इस इसततफ़ाद़े क़े मलए

िकम द़े ना लोगों क़ी नज़िों में फ़ुज़ल


ू न हो।

3. र्जो चीज़ ककिाय़े पि दी र्जाए अगि वह कसीरूल फ़वाइद (औि कसीरुल

मकामसद) हो तो र्जो फ़ाइदा उठाऩे क़ी मस्


ु ताजर्जि को इर्जाज़त हो उस़े मअ
ु य्यन

ककया र्जाए। मसलन एक ऐसा र्जानवि ककिाय़े पि हदया र्जाए जर्जस पि सवािी भी

क़ी र्जा सकती हो औि माल भी लादा र्जा सकता हो तो उस़े ककिाय़े पि द़े त़े वक़्त

703
यह मअ
ु य्यन किना ज़रूिी है कक मस्
ु ताजर्जि उस़े फ़कत सवािी क़े मक़्सद क़े मलए

या फ़कत िािििदािी क़े मक़्सद क़े मलए इस्त़ेमाल कि सकता है या उसस़े हि तिह

इजस्तफ़ादा कि सकता है ।

4. इजस्तफ़ादा किऩे क़ी मद्


ु दत का तअय्यन
ु कि मलया र्जाए औि यह इजस्तफ़ादा

मद्
ु दत मअ
ु य्यन कि क़े हामसल ककया र्जा सकता है मसलन मकान या दक
ु ान

ककिाय़े पि द़े कि या काम का तअय्यन


ु कि क़े हामसल ककया र्जा सकता है मसलन

दज़़ी क़े साथ तय कि मलया र्जाए कक वह एक मअ


ु य्यन मलिास मख़्सस
ू डडज़ाइन

में मसय़ेगा।

2196. अगि इर्जाि़े क़ी शरु


ु आत का तअय्यन
ु न ककया र्जाए तो उसक़े शरू
ु उ होऩे

का वक़्त इर्जाि़े का सीगा पढ़ऩे क़े िाद स़े होगा।

2197. ममसाल क़े तौि पि अगि मकान एक साल क़े मलए ककिाय़े पि हदया

र्जाए औि मआ
ु हद़े क़ी इजबतदा का वक़्त सीगा पढ़ऩे स़े एक महीना िाद स़े मक
ु िक ि

ककया र्जाए तो इर्जािा सहीह है अगिच़े र्जि सीगा पढ़ा र्जा िहा हो वह मकान ककसी

दस
ू ि़े क़े पास ककिाय़े पि हो।

2198. अगि इर्जाि़े क़ी मद्


ु दत का तअय्यन
ु न ककया र्जाए िजल्क ककिाय़ेदाि स़े

कहा र्जाए कक र्जि तक तुम इस मकान में िहोग़े दस रूपय़े माहिाि ककिाया दोग़े

तो इर्जािा सहीह नहीं है ।

704
2199. अगि मामलक मकान, ककिाय़ेदाि स़े कह़े कक मैंऩे तुझ़े यह मकान दस

रुपय़े माहवाि ककिाय़े पि हदया औि उसक़े िाद भी तम


ु जर्जतनी मद्
ु दत उसमें िहोग़े

उसका ककिाया दस रुपय़े महीना होगा तो उस सिू त में इर्जाि़े क़ी मद्
ु दत क़ी

इजबतदा का तअय्यन
ु कि मलया र्जाए या उसक़ी इिततदा का इल्म हो र्जाए तो

पहल़े महीऩे का इर्जािा सहीह है।

2200. जर्जस मकान में मस


ु ाकफ़ि औि ज़ायि ककयाम कित़े हों औि यह इल्म न

हो कक वह ककतनी मद्
ु दत तक वहां िहें ग़े अगि वह मामलक मकान स़े तय कि लें

कक मसलन एक िात का एक रुपया दें ग़े औि मामलक मकान इस पि िाज़ी हो र्जाए

तो उस मकान स़े इजस्तफ़ादा किऩे में कोई हिर्ज नहीं ल़ेककन चंकू क इर्जाि़े क़ी

मद्
ु दत तय नहीं क़ी गई मलहाज़ा पहली िात क़े अलावा इर्जािा सहीह नहीं है औि

मामलक मकान िात क़े िाद र्जि भी चाह़े उन्हें तनकाल सकता है ।

फकिाये के मुतफ़रिय क मसाइल

2201. र्जो माल मस्


ु ताजर्जि इर्जाि़े क़े तौि पि द़े िहा हो ज़रूिी है कक वह माल

मअलम
ू हो। मलहाज़ा अगि ऐसी चीज़ें हों जर्जन का ल़ेन द़े न तोल कि ककया र्जाता

हो मसलन ग़ेहूं तो उनका वज़न मालम


ू होना ज़रूिी है, औि अगि ऐसी चीज़ें हों

जर्जनका ल़ेन द़े न चगन कि ककया र्जाता है मसलन िाइर्जल


ु वक़्त मसक्क़े तो ज़रूिी

है कक उनक़ी तअदाद मअ
ु य्यन हो, औि अगि वह चीज़ें र्ोड़़े औि भ़ेड़ क़ी तिह हों

705
तो ज़रूिी है कक ककिाया ल़ेऩे वाला उन्हें द़े ख ल़े या मस्
ु ताजर्जि उनक़ी खुसस
ू ीयात

िता द़े ।

2202. अगि ज़मीन जज़िाअत (ख़ेती) क़े मलए ककिाय़े पि दी र्जाए औि उसक़ी

उर्जित उसी ज़मीन क़ी पैदावाि किाि दी र्जाए र्जो उस वक़्त मौर्जूद न हो या

कुल्ली तौि पि कोई चीज़ उसक़े जज़म्म़े किाि द़े इस शतक पि कक वह उसी ज़मीन

क़ी पैदावाि स़े अदा क़ी र्जाय़ेगी तो इर्जािा सहीह नहीं है औि अगि उर्जित (यअनी

उस ज़मीन क़ी पैदावाि) इर्जािा कित़े वक़्त मौर्जूद हो तो किि कोई हिर्ज नहीं है।

2203. जर्जस शख़्स ऩे कोई चीज़ ककिाय़े पि दी हो वह उस चीज़ को ककिायादाि

क़ी तहवील में द़े ऩे स़े पहल़े ककिाया मांगऩे का हक नहीं िखता नीज़ अगि कोई

शख़्स ककसी काम क़े मलए अर्जीि िना हो तो र्जि तक वह काम अंर्जाम न द़े द़े

उर्जित का मत
ु ालिा किऩे का हक नहीं िखता मगि िाअज़ सिू तों में, मसलन हक

क़ी अदायगी क़े मलए अर्जीि जर्जस़े उमम


ू न अमल अंर्जाम द़े ऩे स़े पहल़े उर्जित द़े दी

र्जाती है (उर्जित का मत
ु ालिा किऩे का हक िखता है ।

2204. अगि कोई शख़्स ककिाय़े पि दी गई चीज़ ककिायादाि क़ी तहवील में द़े

द़े तो अगिच़े ककिायादाि उस चीज़ पि कबज़ा न कि़े या कबज़ा हामसल कि ल़े

ल़ेककन इर्जािा खत्म होऩे तक उसस़े फ़ाइदा न उठाए किि भी ज़रूिी है कक किि भी

मामलक को उर्जित अदा कि़े ।

706
2205. अगि एक शख़्स कोई काम एक मअ
ु य्यन हदन में अंर्जाम द़े ऩे क़े मलए

अर्जीि िन र्जाए औि उस हदन वह काम किऩे क़े मलए तैयाि हो र्जाए तो जर्जस

शख़्स ऩे उस़े अर्जीि िनाया है ख़्वाह वह उस हदन उसस़े काम न ल़े – ज़रूिी है कक

उसक़ी उर्जित उस़े द़े द़े । मसलन अगि ककसी दज़़ी को एक मअ


ु य्यन हदन मलिास

सीऩे क़े मलए अर्जीि िनाए औि दज़़ी उस हदन काम किऩे पि तैयाि हो तो अगच़े

मामलक उस़े सीऩे क़े मलए कपड़ा न द़े ति भी ज़रूिी है कक उसक़ी मज़दिू ी द़े द़े ।

कता ए नज़ि इसस़े कक दज़़ी ि़ेकाि िहा हो या उसऩे अपना या ककसी दस


ू ि़े का

काम ककया हो।

2206. अगि इर्जाि़े क़ी मद्


ु दत खत्म हो र्जाऩे क़े िाद मअलम
ू हो कक इर्जािा

िाततल था तो मस्
ु ताजर्जि क़े मलए ज़रूिी है कक आम तौि पि उस चीज़ का र्जो

ककिाया होता है माल क़े मामलक को द़े द़े मसलन अगि वह एक मकान सौ रुपय़े

ककिाय़े पि एक साल क़े मलए ल़े ल़े औि िाद में उस़े पता चल़े कक इर्जािा िाततल

था तो तो अगि उस मकान का ककिाया आम तौि पि पचास रुपय़े हो तो ज़रूिी है

कक पचास रुपय़े द़े औि अगि उसका ककिाया आम तौि पि दो सौ रुपय़े हो तो

अगि मकान ककिाय़े पि द़े ऩे वाला मामलक मकान हो या उसका वक़ील़े मत्ु लक हो

औि आम तौि पि र्ि क़े ककिाय़े क़ी र्जो शहक हो उस़े र्जानता हो तो ज़रूिी नहीं कक

मस्
ु ताजर्जि सौ रुपय़े स़े ज़्यादा द़े औि अगि उसक़े िि अक्स सिू त हो तो ज़रूिी है

कक मस्
ु ताजर्जि दो सौ रुपय़े द़े नीज़ अगि इर्जाि़े क़ी कुछ मद्
ु दत गुज़िऩे क़े िाद

707
मअलम
ू हो कक इर्जािा िाततल था तो र्जो मद्
ु दत गज़
ु ि चक
ु ़ी हो उस पि भी यही

हुक्म र्जािी होगा।

2207. जर्जस चीज़ को इर्जाि़े पि मलया गया हो अगि वह तलफ़ हो र्जाए औि

मस्
ु ताजर्जि ऩे उसक़ी तनगहदाश्त में कोताही न ििती हो औि उस़े गलत तौि पि

इस्त़ेमाल न ककया हो तो (किि वह उस चीज़ क़े तलफ़ होऩे का) जज़म्म़ेदाि नहीं

है । इस तिह ममसाल क़े तौि पि अगि दज़़ी को हदया गया कपड़ा तलफ़ हो र्जाए

तो अगि दज़़ी ऩे ि़े एहततयात न क़ी हो औि कपड़़े क़ी तनगहदाश्त में भी कोताही

न ििती हो तो ज़रूिी है कक वह उसका एवज़ उसस़े तलि न कि़े ।

2208. र्जो चीज़ ककसी कािीगि ऩे ली हो अगि वह उस़े ज़ाए कि द़े तो (वह

उसका) जज़म्म़ेदाि है।

2209. अगि कस्साि ककसी र्जानवि का सि काट डाल़े औि उस़े हिाम कि द़े तो

ख़्वाह उसऩे मज़दिू ी ली हो या बिला मआ


ु वज़ा जज़बहा ककया हो ज़रूिी है कक

र्जानवि क़ी क़ीमत उसक़े मामलक को अदा कि़े ।

2210. अगि कोई शख़्स एक र्जानवि ककिाय़े पि ल़े औि मअ


ु य्यन कि़े कक

ककतना िोझ उस पि लाद़े गा तो अगि वह उस पि मअ


ु य्यन ममक़्दाि स़े ज़्यादा

िोझ लाद़े औि इस वर्जह स़े र्जानवि मि र्जाए या ऐिदाि हो र्जाए तो मस्


ु ताजर्जि

जज़म्म़ेदाि है। नीज़ अगि उसऩे िोझ क़ी ममक़्दाि मअ


ु य्यन न क़ी हो औि मअलम

स़े ज़्यादा िोझ र्जानवि पि लाद़े औि र्जानवि मि र्जाए या ऐिदाि हो र्जाए ति भी

708
मस्
ु ताजर्जि जज़म्म़ेदाि है औि दोनों सिू तों में मस्
ु ताजर्जि क़े मलए यह भी ज़रूिी है

कक मअलम
ू स़े ज़्यादा उर्जित अदा कि़े ।

2211. अगि कोई शख़्स है वान को ऐसा (नाज़क


ु ) सामान लादऩे क़े मलए ककिाय़े

पि द़े र्जो टूटऩे वाला हो औि र्जानवि किसल र्जाए या भाग खड़ा हो औि सामान

को तोड़ िोड़ द़े तो र्जानवि का मामलक जज़म्म़ेदाि नहीं है। हां अगि मामलक

र्जानवि को मअलम
ू स़े ज़्यादा माि़े या ऐसी हिकत कि़े जर्जसक़ी वर्जह स़े र्जानवि

चगि र्जाए औि लदा हुआ सामान तोड़ द़े तो मामलक जज़म्म़ेदाि है।

2212. अगि कोई शख़्स िच्च़े का खतना कि़े औि वह अपऩे काम में कोताही

या गलती कि़े मसलन उसऩे मअलम


ू स़े ज़्यादा (चमड़ा) काटा हो औि वह िच्चा

मि र्जाए या उसमें कोई नक़्


ु स पैदा हो र्जाए तो वह जज़म्म़ेदाि है औि अगि उसऩे

कोताही या गलती न क़ी हो औि िच्चा खतना किऩे स़े ही मि र्जाए या उसमें

कोई ऐि पैदा हो र्जाए चन


ु ांच़े इस िात क़ी तश्खीस क़े मलए कक िच्च़े क़े मलए

नक़्
ु सान द़े ह है या नहीं उसक़ी तिफ़ रुर्जउ
ू न ककया गया हो नीज़ वह यह भी न

र्जानता हो कक िच्च़े को नक़्


ु सान होगा तो उस सिू त में वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2213. अगि मआ
ु मलर्ज अपऩे हाथ स़े ककसी मिीज़ को दवा द़े या उसक़े मलए

दवा तैयाि किऩे को कह़े औि दवा खाऩे क़ी वर्जह स़े मिीज़ को नक़्
ु सान पहुंच़े या

वह मि र्जाए तो मआ
ु मलर्ज जज़म्म़ेदाि है अगिच़े उसऩे इलार्ज किऩे में कोताही न

क़ी हो।

709
2214. र्जि मआ
ु मलर्ज ककसी मिीज़ स़े कह द़े कक अगि तुम्हें कोई ज़िि पहुंचा

तो मैं जज़म्म़ेदाि नहीं हूं औि पिू ी एहततयात स़े काम ल़े ल़ेककन इसक़े िावर्जद

मिीज़ को ज़िि पहुंच़े या वह मि र्जाए तो मआ


ु मलर्ज जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2215. ककिाय़े पि ल़ेऩे वाला औि जर्जस शख़्स ऩे कोई चीज़ ककिाय़े पि दी हो,

वह एक दस
ू ि़े क़ी िज़ामन्दी स़े मआ
ु मला फ़स्ख कि सकत़े हैं औि अगि इर्जाि़े में

यह शतक आइद कि़े कक वह दोनों या उनमें स़े कोई एक मआ


ु मल़े को फ़स्ख किऩे

का हक िखता है तो वह मआ
ु हद़े क़े मत
ु ाबिक इर्जािा फ़स्ख कि सकत़े हैं।

2216. अगि माल इर्जाि़े पि द़े ऩे वाल़े मस्


ु ताजर्जि को पता चल़े कक वह र्ाट़े में

िहा है तो अगि इर्जािा किऩे क़े वक़्त वह इस अम्र क़ी र्जातनि मत


ु वज्र्जह न था

कक वह र्ाट़े में है तो वह उस तफ़्सील क़े मत


ु ाबिक र्जो मस ्अला 2132 में गज़
ु ि

चक
ु ़ी है इर्जािा फ़स्ख कि सकता है ल़ेककन अगि इर्जाि़े क़े सीग़े में यह शतक आइद

क़ी र्जाए कक अगि उनमें स़े कोई र्ाट़े में भी होगा तो उस़े इर्जािा फ़स्ख किऩे का

हक नहीं होगा तो किि वह इर्जािा फ़स्ख नहीं कि सकत़े।

2217. अगि एक शख़्स कोई चीज़ इर्जाि़े पि द़े औि इसस़े पहल़े कक उसका

कबज़ा मस्
ु ताजर्जि को द़े कोई औि शख़्स उस चीज़ को गस्ि कि ल़े तो मस्
ु ताजर्जि

इर्जािा फ़स्ख कि सकता है औि र्जो चीज़ उसऩे इर्जाि़े पि द़े ऩे वाल़े को दी हो उस़े

वापस ल़े सकता है । या (यह भी कि सकता है कक) इर्जािा फ़स्ख न कि़े औि

जर्जतनी मद्
ु दत वह चीज़ गामसि क़े पास िही हो उसक़ी आमतौि पि जर्जतनी

710
उर्जित िऩे वह गामसि स़े ल़े ल़े। मलहाज़ा अगि मस्
ु ताजर्जि एक है वान का एक

महीऩे का इर्जािा दस रुपय़े क़े एवज़ कि़े औि कोई शख़्स उस है वान को दस हदन

क़े मलए गस्ि कि ल़े औि आम तौि पि उसका दस हदन का इर्जािा पन्रह रुपय़े

हो तो मस्
ु ताजर्जि पन्रह रुपय़े गामसि स़े ल़े सकता है ।

2218. अगि कोई दस


ू िा शख़्स मस्
ु ताजर्जि को इर्जािा कदाक चीज़ अपनी तहवील

में न ल़ेऩे द़े या तहवील में ल़ेऩे क़े िाद उस पि नार्जाइज़ कबज़ा कि ल़े या उसस़े

इजस्तफ़ादा किऩे में हाइल हो तो मस्


ु ताजर्जि इर्जािा फ़स्ख नहीं कि सकता औि

मसफ़क यह हक िखता है कक उस चीज़ का आम तौि पि जर्जतना ककिाया िनता हो

वह गामसि स़े ल़े ल़े।

2219. अगि इर्जाि़े क़ी मद्


ु दत खत्म होऩे स़े पहल़े मामलक अपना माल

मस्
ु ताजर्जि क़े हाथ ि़ेच डाल़े तो इर्जािा फ़स्ख नहीं होता औि मस्
ु ताजर्जि को चाहहय़े

कक उस चीज़ का ककिाया मामलक को द़े औि अगि (मामलक मस्


ु ताजर्जि क़े अलावा)

उस (माल) को ककसी औि शख़्स क़े हाथ ि़ेच द़े ति भी यही हुक्म है ।

2220. अगि इर्जाि़े क़ी मद्


ु दत शरु
ु उ होऩे स़े पहल़े र्जो चीज़ इर्जाि़े पि ली है वह

उस इजस्तफ़ाद़े क़े काबिल न िह़े जर्जसका तअय्यन


ु ककया गया था तो इर्जािा िाततल

हो र्जाता है औि मस्
ु ताजर्जि इर्जाि़े क़ी िकम मामलक स़े वापस ल़े सकता है औि

अगि सिू त यह हो कक उस माल स़े थोड़ा सा इजस्तफ़ादा ककया र्जा सकता हो तो

मस्
ु ताजर्जि इर्जािा फ़स्ख कि सकता है।

711
2221. अगि एक शख्स कोई चीज़ इर्जाि़े पि ल़े औि वह कुछ मद्
ु दत गुज़िऩे

क़े िाद र्जो इजस्तफ़ादा मस्


ु ताजर्जि क़े मलए तय ककया गया हो उसक़े काबिल न िह़े

तो िाक़ी मांदा मद्


ु दत क़े मलए इर्जािा िाततल हो र्जाता है औि मस्
ु ताजर्जि गज़
ु िी

हुई मद्
ु दत का इर्जािा उर्जितुल ममस्ल यअनी जर्जतऩे हदन वह चीज़ इस्त़ेमाल क़ी

हो उतऩे हदनों क़ी आम उर्जित द़े कि इर्जािा फ़स्ख कि सकता है।

2222. अगि कोई शख़्स ऐसा मकान ककिाय़े पि द़े जर्जसक़े मसलन दो कमि़े हों

औि उनमें स़े एक कमिा टूट िूट र्जाए ल़ेककन इर्जाि़े पि द़े ऩे वाला उस कमि़े को

(मिम्मत कि क़े) इस तिह िना द़े जर्जसमें साबिका कमि़े क़े मक


ु ाबिल़े में काफ़़ी

फ़कक हो तो उसक़े मलए वही हुक्म है र्जो उसस़े पहल़े वाल़े वाल़े मस ्अल़े में िताया

गया है औि अगि इस तिह न हो िजल्क इर्जाि़े पि द़े ऩे वाला उस़े फ़ौिन िना द़े

औि उसस़े इजस्तफ़ादा किऩे में भी कत ्अन फ़कक वाक़े न हो तो इर्जािा िाततल नहीं

होता। औि ककिाय़ेदाि भी इर्जाि़े को फ़स्ख नहीं कि सकता ल़ेककन अगि कमि़े क़ी

मिम्मत में कदि़े तािवीि हो र्जाए औि ककिाय़ेदाि उसस़े इजस्तफ़ादा न कि पाए तो

उसस़े तािवीि क़ी मद्


ु दत तक का इर्जािा िाततल हो र्जाता है। औि ककिाय़ेदाि चाह़े

तो सािी मद्
ु दत का इर्जािा भी फ़स्ख कि सकता है अलित्ता जर्जतनी मद्
ु दत उसऩे

कमि़े स़े इजस्तफ़ादा ककया है उसक़ी उर्जितल


ु ममस्ल द़े ।

2223. अगि माल ककिाय़े पि द़े ऩे वाला या मस्


ु ताजर्जि मि र्जाए तो इर्जािा

िाततल नहीं होता ल़ेककन अगि मकान का फ़ाइदा मसफ़क उसक़ी जज़न्दगी में ही

712
उसका हो मसलन ककसी दस
ू ि़े शख़्स ऩे वसीयत क़ी हो कक र्जि तक वह (इर्जाि़े

पि द़े ऩे वाला) जज़न्दा है मकान क़ी आमदनी उसका माल होगा तो अगि वह

मकान ककिाय़े पि द़े द़े औि इर्जाि़े क़ी मद्


ु दत खत्म होऩे स़े पहल़े मि र्जाए तो

उसक़े मिऩे क़े वक़्त स़े इर्जािा िाततल है औि अगि मौर्जूदा मामलक उस इर्जाि़े क़ी

तस्दीक कि द़े तो इर्जािा सहीह है औि इर्जाि़े पि द़े ऩे वाल़े क़ी मौत क़े िाद इर्जाि़े

क़ी र्जो मद्


ु दत िाक़ी होगी उसक़ी उर्जित उस शख़्स को ममल़ेगी र्जो मौर्जूदा मामलक

हो।

2224. अगि कोई शख़्स ककसी म़ेमाि को इस मक़्सद स़े वक़ील िनाए कक वह

उसक़े मलए कािीगि मह


ु ै या क़ेि तो अगि म़ेमाि ऩे र्जो कुछ उस शख़्स स़े मलया है

कािीगिों को उसस़े कम द़े तो ज़ाइद माल उस पि हिाम है औि उसक़े मलए ज़रूिी

है कक वह िकम उस शख़्स को वापस कि द़े ल़ेककन अगि म़ेमाि अर्जीि िन र्जाए

कक इमाित को मक
ु म्मल कि द़े गा औि वह अपऩे मलए यह इजख़्तयाि हामसल कि

ल़े क़े खद
ु िनाय़ेगा या दस
ू ि़े स़े िनवाय़ेगा तो उस सिू त में कक कुछ काम खद
ु कि़े

औि िाक़ी मांदा दस
ू िों स़े उस उर्जित पि किवाए जर्जस पि वह खद
ु अर्जीि िना है

तो ज़ाइद िकम उस क़े मलए हलाल होगी।

2225. अगि िं गि़े ज़ वअदा कि़े कक मसलन कपड़ा नील स़े िं ग़ेगा तो अगि वह

नील क़े िर्जाय उस़े ककसी औि चीज़ स़े िं ग द़े तो उस़े उर्जित ल़ेऩे का कोई हक

नहीं।

713
जजआला के अह्काम

2226. जर्जआल स़े मिु ाद यह है कक इंसान वअदा कि़े कक अगि एक काम उसक़े

मलए अंर्जाम हदया र्जाय़ेगा तो वह उसक़े िदल़े कुछ माल ितौि़े इनआम द़े गा।

मसलन यह कह़े कक र्जो उसक़ी गुमशद


ु ा चीज़ िि आमद कि़े गा वह उस़े दस रुपय़े

(इनआम) द़े गा तो र्जो शख़्स इस काम का वअदा कि़े उस़े र्जाइल औि र्जो शख़्स

वह काम अंर्जाम द़े उस़े आममल कहत़े हैं औि इर्जाि़े व जर्जआल़े में िअज़ मलहाज़ा

स़े फ़कक है । उन में स़े एक यह है कक इर्जाि़े में सीगा पढ़ऩे क़े िाद अर्जीि क़े मलए

ज़रूिी है कक काम अंर्जाम द़े औि जर्जसऩे उस़े अर्जीि िनाया हो वह उर्जित क़े मलए

उसका मकरूज़ हो र्जाता है ल़ेककन जर्जआला में अगिच़े आममल एक मअ


ु य्यन शख़्स

हो ताहम हो सकता है कक वह काम में मश्गल


ू न हो। पस र्जि तक वह काम

अंर्जाम न द़े , र्जाइल उस का मकरूज़ नहीं होता।

2227. र्जाइल क़े मलए ज़रूिी है कक िामलग औि आककल हो औि इनआम का

वअदा अपऩे इिाद़े औि इजख़्तयाि स़े कि़े औि शिअन अपऩे माल में तसरूकफ़ कि

सकता हो। इस बिना पि सफ़़ीह का जर्जआला सहीह नहीं है औि बिल्कुल उसी तिह

दीवामलया शख़्स का जर्जआला उन अमवाल में सहीह नहीं है जर्जनमें तसरूकफ़ का हक

न िखता हो।

714
2228. र्जाइल र्जो काम लोगों स़े किाना चाहता हो, ज़रूिी है कक वह हिाम या ि़े

फ़ाइदा न हो औि न ही उन वाजर्जिात में स़े हो जर्जनका बिला मआ


ु वज़ा िर्जा लाना

शिअन लाजज़म हो। मलहाज़ा अगि कोई कह़े कक र्जो शख़्स शिाि वपय़ेगा या िात

क़े वक़्त ककसी आककलाना मक़्सद क़े िगैि एक तािीक र्जगह पि र्जाय़ेगा या

वाजर्जि नमाज़ पढ़़े गा मैं उस़े दस रुपय़े दं ग


ू ा तो जर्जआला सहीह नहीं है।

2229. जर्जस माल क़े िाि़े में मआ


ु हदा ककया र्जा िहा हो ज़रूिी नहीं है कक उस़े

उसक़ी पिू ी खुसस


ू ीयात का जज़क्र किक़े मअ
ु य्यन ककया र्जाए िजल्क अगि सिू त़े

हाल यह हो कक काम किऩे वाल़े को मअलम


ू हो कक इस काम को अंर्जाम द़े ऩे क़े

मलए इक़्दाम किना हहमाकत शम


ु ाि न होगा तो काफ़़ी है । मसलन अगि र्जाइल यह

कह़े कक अगि तुमऩे इस माक को दस रुपय़े स़े ज़्यादा क़ीमत पि ि़ेचा तो इज़ाफ़़ी

िकम तुम्हािी होगी तो जर्जआला सहीह है औि इसी तिह अगि र्जाइल यह कह़े कक

र्जो कोई म़ेिा र्ोड़ा ढ़ूढ कि लाय़ेगा मैं उस़े र्ोड़़े में तनस्फ़ मशिाकत या दस मन

ग़ेहूं दं ग
ू ा तो भी जर्जआला सहीह है ।

2230. अगि काम क़ी उर्जित मक


ु म्मल तौि पि मबु हम हो मसलन र्जाइल यह

कह़े कक र्जो म़ेिा िच्चा तलाश कि द़े गा मैं उस़े िकम दं ग


ू ा ल़ेककन िकम क़ी

ममक़्दाि का तअय्यन
ु न कि़े तो अगि कोई शख़्स उस काम को अंर्जाम द़े तो

ज़रूिी है कक र्जाइल उस़े उतनी उर्जित द़े जर्जतनी आम लोगों क़ी नज़िों में उस

अमल क़ी उर्जित किाि पा सक़े।

715
2231. अगि आममल ऩे र्जाइल क़े कौल व किाि स़े पहल़े ही वह काम कि

हदया हो या कौल व किाि क़े िाद इस नीयत स़े यह काम अंर्जाम द़े कक उसक़े

िदल़े िकम नहीं ल़ेगा तो किि वह उर्जित का हकदाि नहीं।

2232. इसस़े पहल़े कक आममल काम शरु


ु उ कि़े र्जाइल जर्जआला को मंसख
ू कि

सकता है।

2233. र्जि आममल ऩे काम शरु


ु उ कि हदया हो अगि उसक़े िाद र्जाइल

जर्जआला मंसख
ू किना चाह़े तो इसमें इश्काल है ।

2234. आममल काम को अधिू ा छोड़ सकता है ल़ेककन अगि काम अधिू ा छोड़ऩे

पि र्जाइल को या जर्जस शख़्स क़े मलए यह काम अंर्जाम हदया र्जा िहा है कोई

नक़्
ु सान पहुंचता हो तो ज़रूिी है कक काम को मक
ु म्मल कि़े । मसलन अगि कोई

शख़्स कह़े कक र्जो कोई म़ेिी आंख का इलार्ज कि द़े मैं उस़े इस कदि मआ
ु वज़ा

दं ग
ू ा औि डाक्टि उसक़ी आंख का आपि़े शन कि द़े औि सिू त यह हो कक अगि वह

इलार्ज मक
ु म्मल न कि़े तो आंख में ऐि पैदा हो र्जाए तो ज़रूिी है कक अपना

अमल तक्मील तक पहुंचाए औि अगि अधिू ा छोड़ द़े तो र्जाइल स़े उर्जित ल़ेऩे का

उस़े कोई हक नहीं।

2235. अगि आममल काम अधिू ा छोड़ द़े औि वह काम ऐसा हो र्जैस़े र्ोड़ा

तलाश किना कक जर्जसक़े मक


ु म्मल ककय़े िगैि उर्जित का कोई फ़ाइदा न हो तो

आममल र्जाइल स़े ककसी चीज़ का मत


ु ालिा नहीं कि सकता। औि अगि र्जाइल

716
उर्जित को काम मक
ु म्मल किऩे स़े मशरूत कि द़े ति भी यही हुक्म है । मसलन

वह कह़े कक र्जो म़ेिा मलिास मसय़ेगा मैं उस़े दस रुपय़े दं ग


ू ा ल़ेककन अगि उसक़ी

मिु ाद यह हो कक जर्जतना काम ककया र्जाय़ेगा उतनी उर्जित द़े गा तो किि र्जाइल को

चाहहय़े कक जर्जतना काम हुआ हो उतनी उर्जित आममल को द़े द़े अगिच़े एहततयात

यह है कक दोनों मस
ु ालहत क़े तौि पि एक दस
ू ि़े को िाज़ी कि लें।

मज
ु ािआ के अह्काम

2236. मज़
ु ािआ क़ी चन्द ककस्में हैं। उन में स़े एक यह है कक (ज़मीन का)

मामलक काश्तकाि (मज़


ु ाि़े ) स़े मआ
ु हदा कि क़े अपनी ज़मीन उसक़े इजख़्तयाि में द़े

ताकक वह उसमें काश्तकािी कि़े औि पैदावाि का कुछ हहस्सा मामलक को द़े ।

2237. मज़
ु ािआ क़ी चन्द शिाइत हैं—

1. ज़मीन का मामलक काश्तकाि स़े कह़े कक मैंऩे ज़मीन तम्


ु ह़े ख़ेती िाड़ी क़े

मलए दी है औि काश्तकाि भी कह़े कक मैंऩे किल


ू क़ी है या िगैि इसक़े कक ज़िानी

कुछ कहें मामलक काश्तकाि को ख़ेती िाड़ी क़े इिाद़े स़े ज़मीन द़े द़े औि काश्तकाि

किल
ू कि ल़े।

2. ज़मीन का मामलक औि काश्तकाि दोनों िामलग औि आककल हों औि िंटाई

का मआ
ु हदा अपऩे इिाद़े औि इखततयाि स़े किें औि सफ़़ीह न हों। औि इसी तिह

ज़रूिी है कक मामलक दीवामलया न हो। ल़ेककन अगि काश्तकाि दीवामलया हो औि

717
उसका मज़
ु ािआ किना उन अमवाल में तसरूकफ़ न कह लाए जर्जनमें उस़े तसरूकफ़

किना मनअ था तो ऐसी सिू त में कोई इश्काल नहीं।

3. मामलक औि काश्तकाि में स़े हि एक ज़मीन क़ी पैदावाि में स़े कुछ हहस्सा

तनस्फ़ या एक ततहाई वगैिा ल़े ल़े। मलहाज़ा अगि कोई भी अपऩे मलए कोई हहस्सा

मक
ु िक ि न कि़े या मसलन मामलक कह़े कक इस ज़मीन में ख़ेती िाड़ी किो औि र्जो

तुम्हािा र्जी चाह़े मझ


ु ़े द़े द़े ना तो यह दरु
ु स्त नहीं है औि इसी तिह अगि पैदावाि

क़ी एक मअ
ु य्यन ममक़्दाि दस मन काश्तकाि या मामलक क़े मलए मक
ु िक ि कि दी

र्जाए तो यह भी सहीह नहीं है ।

4. एहततयात क़ी बिना पि हि एक का हहस्सा ज़मीन क़ी पिू ी पैदावाि में

मश्ु तिक हो। अगिच़े अज़हि यह है कक यह शतक मोतिि नहीं है । इसी बिना पि

अगि मामलक कह़े कक इस ज़मीन में ख़ेती िाड़ी किो औि ज़मीन क़ी पैदावाि का

पहला आधा हहस्सा जर्जतना भी हो तुम्हािा होगा औि दस


ू िा आधा हहस्सा म़ेिा तो

मज़
ु ािआ सहीह है ।

5. जर्जतनी मद्
ु दत क़े मलए ज़मीन काश्तकाि क़े कबज़़े में िहनी चाहहए उस़े

मअ
ु य्यन कि द़े औि ज़रूिी है कक वह मद्
ु दत इतनी हो कक उस मद्
ु दत में पैदावाि

हामसल होना मजु म्कन हो औि अगि मद्


ु दत क़ी इजबतदा एक मखसस
ू हदन स़े औि

मद्
ु दत का इखततताम पैदावाि ममलऩे को मक
ु िक ि कि द़े तो काफ़़ी है ।

718
6. ज़मीन काबिल़े काश्त हो। औि अगि उसमें अभी काश्त किना मजु म्कन न हो

ल़ेककन ऐसा काम ककया र्जा सकता हो जर्जस स़े काश्त मजु म्कन हो र्जाए तो

मज़
ु ािआ सहीह है ।

7. काश्तकाि र्जो चीज़ काश्त किना चाह़े , ज़रूिी है कक उसको मअ


ु य्यन कि

हदया र्जाए। मसलन मअ


ु य्यन कि़े कक चावल है या ग़ेहूं औि अगि चावल है तो

कौन सी ककस्म का चावल है । ल़ेककन अगि ककसी मखसस


ू ककस्म क़ी काश्त प़ेश़े

नज़ि न हो तो उसका मअ
ु य्यन किना ज़रूिी नहीं है इसी तिह अगि कोई मखसस

चीज़ प़ेश़े नज़ि हो औि उसका इल्म हो तो लाजज़म नहीं है कक उसक़ी वज़ाहत भी

कि़े ।

8. मामलक ज़मीन को मअ
ु य्यन कि द़े । यह शतक उस सिू त में है र्जिकक मामलक

क़े पास ज़मीन क़े चन्द कतआत हों औि उन कत ्आत क़े लवाजज़म़े काश्तकािी में

फ़कक हो। ल़ेककन अगि उन में कोई फ़कक न हो तो ज़मीन को मअ


ु य्यन किना

लाजज़म नहीं है। मलहाज़ा अगि मामलक काश्तकाि स़े कह़े कक ज़मीन क़े इन

कत ्आत में स़े ककसी एक में ख़ेती िाड़ी किो औि उस कत ् ए को मअ


ु य्यन न कि़े

तो मज़
ु ािआ सहीह है ।

9. र्जो खचक उनमें स़े हि एक को किना ज़रूिी हो उस़े मअ


ु य्यन कि दें ल़ेककन

र्जो खचक हि एक को किना ज़रूिी हो अगि उसका इल्म हो तो किि उसक़ी वज़ाहत

किना लाजज़म नहीं।

719
2238. अगि मामलक काश्तकाि स़े तय कि़े कक पैदावाि क़ी कुछ ममक़्दाि एक

क़ी होगी औि र्जो िाक़ी िच़ेगा उस़े वह आपस में तक़्सीम कि लेंग़े तो मज़
ु ािआ

िाततल है अगिच़े उन्हें इल्म हो कक इस ममक़्दाि को अलाहदा किऩे क़े िाद कुछ

न कुछ िाक़ी िच र्जाय़ेगा। हां अगि आपस में यह तय कि लें कक िीर्ज क़ी र्जो

ममक़्दाि काश्त क़ी गई है या टै क्स क़ी र्जो ममक़्दाि हुकूमत ल़ेती है वह पैदावाि स़े

तनकाली र्जाय़ेगी औि र्जो िाक़ी िच़ेगा उस़े दोनों क़े दिममयान तक़्सीम ककया

र्जाय़ेगा तो मज़
ु ािआ सहीह है।

2239. अगि मज़


ु ािआ क़े मलए कोई मद्
ु दत मअ
ु य्यन क़ी हो कक जर्जसमें उमम
ू न

पैदावाि दस्तयाि हो र्जाती है ल़ेककन अगि इवत्तफ़ाकन मअ


ु य्यन मद्
ु दत खत्म हो

र्जाए औि पैदावाि दस्तयाि न हुई हो तो अगि मद्


ु दत मअ
ु य्यन कित़े वक़्त यह

िात भी शाममल थी यअनी दोनों इस िात पि िाज़ी थ़े कक मद्


ु दत खत्म होऩे क़े

िाद अगिच़े पैदावाि दस्तयाि न हो मज़


ु ािआ खत्म हो र्जाय़ेगा तो उस सिू त में

अगि मामलक इस िात पि िाज़ी हो कक उर्जित या िगैि उर्जित फ़स्ल उसक़ी

ज़मीन में खड़ी िह़े औि काश्तकाि भी िाज़ी हो तो कोई हिर्ज नहीं औि अगि

मामलक िाज़ी न हो तो काश्तकाि को मर्जििू कि सकता है कक फ़स्ल ज़मीन में स़े

काट ल़े औि अगि फ़स्ल काट ल़ेऩे स़े काश्तकाि को कोई नक़्
ु सान पहुंच़े तो

लाजज़म नहीं कक मामलक उस़े उसका एवज़ द़े ल़ेककन अगिच़े काश्तकाि मामलक को

720
कोई चीज़ द़े ऩे पि िाज़ी हो ति भी वह मामलक को मर्जििू नहीं कि सकता कक

वह फ़स्ल अपनी ज़मीन पि िहऩे द़े ।

2240. अगि कोई ऐसी सिू त प़ेश आ र्जाए कक ज़मीन में ख़ेती िाड़ी किना

मजु म्कन न हो मसलन ज़मीन का पानी िन्द हो र्जाए तो मज़


ु ािआ खत्म हो र्जाता

है औि अगि काश्तकाि बिला वर्जह ख़ेती िाड़ी न कि़े तो अगि र्जमीन उसक़े

तसरूकफ़ में िही हो औि मामलक का उसमें कोई तसरूकफ़ न िहा हो तो ज़रूिी है कक

आम शहक क़े हहसाि स़े उस मद्


ु दत का ककिाया मामलक को द़े ।

2241. ज़मीन का मामलक औि काश्तकाि एक दस


ू ि़े क़ी िज़ामन्दी क़े िगैि

मज़
ु ािआ (का मआ
ु हदा मंसख
ू नहीं कि सकत़े। ल़ेककन अगि मज़
ु ािआ क़े मआ
ु हद़े

क़े मसलमसल़े में उन्होंऩे शतक क़ी हो कक उनमें स़े दोनों को या ककसी एक को

मआ
ु मला फ़स्ख किऩे का हक हामसल होगा तो र्जो मआ
ु हदा उन्होंऩे कि िखा हो

उसक़े मत
ु ाबिक मआ
ु मला फ़स्ख कि सकत़े हैं। इसी तिह अगि उन दोनों में स़े

एक फ़िीक तय शद
ु ा शिाइत क़े खखलाफ़ अमल कि़े तो दस
ू िा फ़िीक मआ
ु मला

फ़स्ख कि सकता है ।

2242. अगि मज़


ु ािआ क़े मआ
ु हद़े क़े िाद मामलक या काश्तकाि मि र्जाए तो

मज़
ु ािआ मंसख
ू नहीं हो र्जाता िजल्क उनक़े वारिस उनक़ी र्जगह ल़े ल़ेत़े हैं। ल़ेककन

अगि काश्तकाि मि र्जाए औि उन्होंऩे मज़


ु ािआ में यह शतक िखी थी कक काश्तकाि

खुद काश्त कि़े गा तो मज़


ु िआ मंसख
ू हो र्जाता है । ल़ेककन अगि र्जो काम उसक़े

721
जज़म्म़े थ़े वह मक
ु म्मल हो गाए हों तो उस सिू त में मज़
ु ािआ मंसख
ू नहीं होता

औि उसका हहस्सा उसक़े विसा को द़े ना ज़रूिी है। औि र्जो दस


ू ि़े हुकूक काश्तकाि

को हामसल हों वह भी उसक़े विसा को मीिास में ममल र्जात़े हैं औि विसा मामलक

को इस िात पि मर्जििू कि सकत़े हैं कक मज़


ु ािआ खत्म होऩे तक फ़स्ल उसक़ी

ज़मीन में खड़ी िह़े ।

2243. अगि काश्त क़े िाद पता चल़े कक मज़


ु ािआ िाततल था तो अगि र्जो िीर्ज

डाला गया हो वह मामलक का माल हो तो र्जो फ़स्ल हाथ आय़ेगी वह भी उसी का

माल होगी औि ज़रूिी है कक काश्तकाि क़ी उर्जित औि र्जो कुछ उसऩे खचक ककया

हो औि काश्तकाि क़े ममलक


ू ा जर्जन िैलों औि दस
ू ि़े र्जानविों ऩे ज़मीन पि काम

ककया हो औि उनका ककिाया काश्तकाि को द़े । औि अगि िीर्ज काश्तकाि का माल

हो तो फ़स्ल भी उसी का माल है औि ज़रूिी है कक ज़मीन का ककिाया औि र्जो

कुछ मामलक ऩे खचक ककया हो औि उन िैलों औि दस


ू ि़े र्जानविों का ककिाया र्जो

मामलक का माल हो औि जर्जन्होंऩे उस जज़िाअत पि काम ककया हो मामलक को द़े ।

औि दोनों सिू तों में आम तौि पि र्जो हक िनता हो अगि उसक़ी ममक़्दाि तयशद
ु ा

ममक़्दाि स़े ज़्यादा हो औि दस


ू ि़े फ़िीक को उसका इल्म हो तो ज़्यादा ममक़्दाि द़े ना

वाजर्जि नहीं।

2244. अगि िीर्ज काश्तकाि का माल हो औि काश्त क़े िाद फ़िीकैन को पता

चल़े कक मज़
ु ािआ िाततल था तो अगि मामलक औि काश्तकाि िज़ामन्द हों कक

722
उज़ित पि या बिला उर्जित फ़स्ल ज़मीन पि खड़ी िह़े तो कोई इश्काल नहीं है

औि अगि मामलक िाज़ी न हो तो (उलमा क़े) एक गिु ोह ऩे कहा है कक फ़स्ल

पकऩे स़े पहल़े ही वह काश्तकाि को मर्जििू कि सकता है कक उस़े काट ल़े औि

अगिच़े काश्तकाि इस िात पि तैयाि हो कक वह मामलक को कोई चीज़ द़े द़े ति

भी वह उस़े फ़स्ल अपनी ज़मीन में िहऩे द़े ऩे पि मर्जििू नहीं कि सकता ल़ेककन

यह कौल इश्काल स़े खाली नहीं है औि ककसी भी सिू त में मामलक काश्तकाि को

मर्जििू नहीं कि सकता कक वह ककिाया द़े कि फ़स्ल उसक़ी ज़मीन में खड़ी िहऩे

द़े हत्ता कक उसस़े ज़मीन का ककिाया तलि न कि़े (ति भी फ़स्ल खड़ी िहऩे पि

मर्जििू नहीं कि सकता)।

2245. अगि ख़ेत क़ी पैदावाि र्जमा किऩे औि मज़


ु ािआ क़ी मीआद खत्म होऩे

क़े िाद ख़ेत क़ी र्जड़ें ज़मीन में िह र्जायें औि दस


ू ि़े साल सि सबज़ हो र्जायें औि

पैदावाि दें तो अगि मामलक ऩे काश्तकाि क़े साथ जज़िाअत क़ी र्जड़ों में इजश्तिाक

का मआ
ु हदा न ककया हो तो दस
ू ि़े साल क़ी पैदावाि िीर्ज क़े मामलक का माल है ।

मुसाकात औि मुगािसा के अह्काम

2246. अगि इंसान ककसी क़े साथ इस ककस्म का मआ


ु हदा कि़े मसलन िलदाि

दिख़्तों को जर्जनका िल खुद उसका माल हो या उस िल पि उसका इजख़्तयाि हो

एक मक
ु िक िा मद्
ु दत क़े मलए ककसी दस
ू ि़े शख़्स क़े मसपद
ु क कि द़े ताकक वह उनक़ी
723
तनगाहदाश्त कि़े औि उन्हें पानी द़े औि जर्जतनी ममक़्दाि वह आपस में तय किें

उसक़े मत
ु ाबिक वह उन दिख़्तों का िल ल़े लें तो ऐसा मआ
ु मला मस
ु ाकात

(आियािी) कहलाता है ।

2247. र्जो दिख़्त िल नहीं द़े त़े अगि उनक़ी कोई दस


ू िी पैदावाि हो मसलन पत्त़े

औि िूल हों कक र्जो कुछ न कुछ मामलयत िखत़े हों मसलन में हदी (औि पान) क़े

दिख्त कक उसक़े पत्त़े काम आत़े हैं, उनक़े मलए मस


ु ाकात का मआ
ु मला सहीह है।

2248. मस
ु ाकात क़े मआ
ु मल़े में सीगा पढ़ना लाजज़म नहीं िजल्क अगि दिख़्त

का मामलक मस
ु ाकात क़ी नीयत स़े उस़े ककसी क़े मसपद
ु क कि द़े औि जर्जस शख़्स

को काम किना हो वह भी उसी नीयत स़े काम में मश्गल


ू हो र्जाए तो मआ
ु मला

सहीह है।

2249. दिख़्तों का मामलक औि र्जो शख़्स दिख़्तों क़ी तनगाहदाश्त क़ी

जज़म्म़ेदािी ल़े ज़रूिी है कक दोनों िामलग औि आककल हों औि ककसी ऩे उन्हें

मआ
ु मला किऩे पि मर्जििू न ककया हो नीज़ यह भी ज़रूिी है कक सफ़़ीह न हों।

इसी तिह ज़रूिी है कक मामलक दीवामलया न हो। ल़ेककन अगि िागिान दीवामलया

हो औि मस
ु ाकात का मआ
ु मला किऩे क़ी सिू त में उन अम्वाल में तसरूकफ़ किना

लाजज़म न आए जर्जनमें तसरूकफ़ किऩे स़े उस़े िोका गया हो तो कोई इश्काल नहीं

है ।

724
2250. मस
ु ाकात क़ी मद्
ु दत मअ
ु य्यन होनी चाहहए। औि इतनी मद्
ु दत होना

ज़रूिी है कक जर्जसमें पैदावाि का दस्तयाि होना मजु म्कन हो। औि अगि फ़िीकैन

उस मद्
ु दत क़ी इजबतदा मअ
ु य्यन कि दें औि उसका इजख़्तताम उस वक़्त को किाि

दें र्जि उसक़ी पैदावाि दस्तयाि हो तो मआ


ु मला सहीह है ।

2251. ज़रूिी है कक हि फ़िीक का हहस्सा पैदावाि का आधा या ततहाई या उसी

क़ी मातनन्द हो औि अगि यह मआ


ु हदा किें कक मसलन सौ मन म़ेवा मामलक का

औि िाक़ी काम किऩे वाल़े का होगा तो मआ


ु मला िाततल है।

2252. लाजज़म नहीं है कक मस


ु ाकात का मआ
ु मला पैदावाि ज़ाहहि होऩे स़े पहल़े

तय कि लें। िजल्क अगि पैदावाि ज़ाहहि होऩे क़े िाद मआ


ु मला किें औि कुछ काम

िाक़ी िह र्जाए र्जो कक पैदावाि में इज़ाफ़़े क़े मलए या उसक़ी ि़ेहतिी या उस़े

नक़्
ु सान स़े िचाऩे क़े मलए ज़रूिी हो तो मआ
ु मला सहीह है। ल़ेककन अगि इस तिह

क़े कोई काम िाक़ी न िह़े हों कक र्जो आियािी क़ी तिह दिख़्त क़ी पिवरिश क़े

मलए ज़रूिी हैं या म़ेवा तोड़ऩे या उसक़ी हहफ़ाज़त र्जैस़े कामों में स़े िाक़ी िह र्जात़े

हैं तो किि मस
ु ाकात क़े मआ
ु मल़े का सहीह होना महल्ल़े इश्काल है ।

2253. खििज़
ू ़े औि खीि़े वगैिा क़ी ि़ेलों क़े िाि़े में मस
ु ाकात का मआ
ु मला

बिनािि़े अज़्हि सहीह है ।

2254. र्जो दिख़्त िारिश क़े पानी या ज़मीन क़ी नमी स़े इजस्तफ़ादा किता हो

औि जर्जस़े आिपाशी क़ी ज़रूित न हो अगि उस़े मसलन दस


ू ि़े ऐस़े कामों क़ी

725
ज़रूित हो र्जो मस ्अला 2252 में ियान हो चक
ु ़े हैं तो उन कामों क़े िाि़े में

मस
ु ाकात का मआ
ु मला किना सहीह है ।

2255. दो अफ़िाद जर्जन्होंऩे मस


ु ाकात क़ी हो िाहमी िज़ामन्दी स़े मआ
ु मला

फ़स्ख कि सकत़े हैं औि अगि मस


ु ाकात क़े मआ
ु हद़े क़े मसलमसल़े में यह शतक तय

किें कक उन दोनों को या उनमें स़े ककसी एक को मआ


ु मला फ़स्ख किऩे का हक

होगा तो उनक़े तय कदाक मआ


ु हद़े क़े मत
ु ाबिक मआ
ु मला फ़स्ख किऩे में कोई

इश्काल नहीं औि अगि मस


ु ाकात क़े मआ
ु मल़े में कोई शतक तय किें औि उस शतक

पि अमल न हो तो जर्जस शख़्स क़े फ़ाइद़े क़े मलए वह शतक तय क़ी गई हो वह

मआ
ु मला फ़स्ख कि सकता है।

2256. अगि मामलक मि र्जाए तो मस


ु ाकात का मआ
ु मला फ़स्ख नहीं होता

िजल्क उसक़े वारिस उसक़ी र्जगह पात़े हैं।

2257. दिख़्तों क़ी पवकरिश जर्जस शख़्स क़े मसपद


ु क क़ी गई हो अगि वह मि र्जाए

औि मआ
ु हद़े में यह कैद औि शतक आइद न क़ी गई हो कक वह खद
ु दिख़्तों क़ी

पवकरिश कि़े गा तो उसक़े पिसा उसक़ी र्जगह ल़े ल़ेत़े हैं औि अगि विसा न खद

दिख़्तों क़ी पवकरिश का काम अंर्जाम दें औि न ही उस मक़्सद क़े मलए ककसी को

अर्जीि मक
ु िक ि किें तो हाककम़े शअक मद
ु े क़े माल स़े ककसी को अर्जीि मक
ु िक ि कि

द़े गा औि र्जो आमदनी होगी उस़े मद


ु े क़े विसा औि दिख़्तों क़े मामलक क़े मािैन

तक़्सीम कि द़े गा औि अगि फ़िीकैन ऩे मआ


ु मल़े में यह कैद लगाई हो कक वह

726
शख़्स खुद दिख़्तों क़ी पवकरिश कि़े गा तो उसक़े मिऩे क़े िाद मआ
ु मला फ़स्ख हो

र्जाय़ेगा।

2258. अगि यह शतक तय क़ी र्जाए कक तमाम पैदावाि मामलक का मामलक होगी

तो मस
ु ाकात िाततल है ल़ेककन ऐसी सिू त में पैदावाि मामलक का माल होगा औि

जर्जस शख़्स ऩे काम ककया हो वह उर्जित का मत


ु ालिा नहीं कि सकता ल़ेककन

अगि मस
ु ाकात ककसी औि वर्जह स़े िाततल हो तो ज़रूिी है कक मामलक आियािी

औि दस
ू ि़े काम किऩे क़ी उर्जित दिख़्तों क़ी तनगहदाश्त किऩे वाल़े को मअमल
ू क़े

मत
ु ाबिक द़े ल़ेककन अगि मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक उर्जित तय शद
ु ा उर्जित स़े ज़्यादा

हो औि वह उसस़े मत्त
ु ़ेलअ हो तो तय शद
ु ा उर्जित स़े ज़्यादा द़े ना लाजज़म नहीं।

2259. मग
ु ािसा यह है कक कोई शख़्स ज़मीन दस
ू ि़े को मसपद
ू क कि द़े ताकक वह

दिख़्त लगाए औि र्जो कुछ हामसल हो वह दोनों का माल हो तो बिना िि़े अज़्हि

यह मआ
ु मला सहीह है अगिच़े एहततयात यह है कक ऐस़े मआ
ु मल़े को तकक कि़े ।

ल़ेककन उस मआ
ु मल़े क़े नतीर्ज़े पि पहुंचऩे क़े मलए कोई औि मआ
ु मला अंर्जाम द़े

तो िगैि इश्काल क़े वह मआ


ु मला सहीह है, मसलन फ़िीकैन ककसी तिह िाहम

सल्
ु ह औि इवत्तफ़ाक कि लें या नए दिख़्त लगाऩे में शिीक हो र्जायें किि िागिान

अपनी खखदमात मामलक़े ज़मीन को िीर्ज िोऩे, दिख़्तों क़ी तनगहदाश्त औि

आियािी किऩे क़े मलए एक मअ


ु य्यन मद्
ु दत तक ज़मीन क़ी पैदावाि क़े तनस्फ़

फ़ाइद़े क़े एवज़ ककिाय़े पि प़ेश कि़े ।

727
वह अश्ख़ास जो अपने माल में तसरूयफ़ नहीं कि सकते

2260. र्जो िच्चा िामलग न हुआ हो वह अपनी जज़म्म़ेदािी औि अपऩे माल में

शिअन तसरूकफ़ नहीं कि सकता अगिच़े अच्छ़े औि ििु ़े को समझऩे में हद्द़े

कमाल औि रूश्त तक पहुंच गया हो औि सिपिस्त क़ी इर्जाज़त इस िाि़े में कोई

फ़ाइदा नहीं िखती। ल़ेककन चन्द चीज़ों में िच्च़े का तसरूकफ़ किना सहीह है उन में

स़े कम क़ीमत वाली चीज़ों क़ी खिीद व फ़िोख़्त किना है र्जैस़े कक मसअला 2090

में गज़
ु ि चक
ु ा है । इसी तहि िच्च़े का अपऩे खूनी रिश्त़ेदािों औि किीिी रिश्त़ेदािों

क़े मलए वसीयत किना, जर्जसका ियान मस ्अला 2706 में आय़ेगा। लड़क़ी में

िामलग होऩे क़ी अलामत यह हैं कक वह नौ कमिी साल पिू ़े कि ल़े औि लड़क़े क़े

िामलग होऩे क़ी अलामत तीन चीज़ों में स़े एक होती है।

1. नाफ़ क़े नीच़े औि शमकगाह स़े ऊपि सख़्त िालों का उगना।

2. मनी का खारिर्ज होना।

3. बिनािि मश्हूि उम्र क़े पन्रह कमिी साल पिू ़े किना।

2261. च़ेहि़े पि औि होंठों क़े ऊपि सख़्त िालों का उगना िईद नहीं कक िल
ु ग
ू त

क़ी अलामत हों, ल़ेककन सीऩे पि औि िगल क़े नीच़े िालों का उगना औि आवाज़

का भािी हो र्जाना औि ऐसी ही दस


ू िी अलामत िल
ु ग
ू त क़ी तनशातनयां नहीं है मगि

उनक़ी वर्जह स़े इंसान िामलग होऩे का यक़ीन कि़े ।

728
2262. दीवाना अपऩे माल में तसरूकफ़ नहीं कि सकता। इसी तिह दीवामलया

यअनी वह शख़्स जर्जस़े उसक़े कज़कख़्वाहों क़े मत


ु ालि़े पि हाककम़े शअक ऩे अपऩे

माल में तसरूकफ़ किऩे स़े मनअ कि हदया हो कज़कख़्वाहों क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस

माल में तसरूकफ़ नहीं कि सकता औि इसी तिह सफ़़ीह यअनी वह शख़्स र्जो

अपना माल अहमकाना औि फ़ुज़ूल कामों में खचक किता हो, सिपिस्त क़ी इर्जाज़त

क़े िगैि अपऩे माल में तसरूकफ़ नहीं कि सकता।

2263. र्जो शख़्स कभी आककल औि कभी दीवाना हो र्जाए उसका दीवांगी क़ी

हालत में अपऩे माल में तसरूकफ़ किना सहीह नहीं है ।

2264. इंसान को इजख़्तयाि है कक मिज़ुल मौत क़े आलम में अपऩे आप पि या

अपऩे अहलोअयान औि म़ेहमानों पि औि उन कामों पि र्जो फ़ुज़ूल खच़ी में शम


ु ाि

न हों जर्जतना चाह़े सफ़क कि़े । औि अगि अपऩे माल को उसक़ी (अस्ल) क़ीमत पि

फ़िोख़्त कि़े या ककिाए पि द़े तो कोई इश्काल नहीं है। ल़ेककन अगि मसलन

अपना माल ककसी को िख़्श द़े या िाइर्ज क़ीमत स़े सस्ता फ़िोख़्त कि़े तो जर्जतनी

ममक़्दाि उसऩे िख़्श दी है या जर्जतनी सस्ती फ़िोख़्त क़ी है अगि वह उसक़े माल

क़ी ततहाई क़े ििािि या उसस़े कम हो तो उसका तसरूकफ़ किना सहीह है । औि

अगि एक ततहाई स़े ज़्यादा हो तो विसा क़ी इर्जाज़त द़े ऩे क़ी सिू त में उसका

तसरूकफ़ किना सहीह है । औि अगि विसा इर्जाज़त न दें तो ततहाई स़े ज़्यादा में

उसका तसरूकफ़ िाततल है ।

729
वकालत के अह्काम

वकालत स़े मिु ाद यह है कक वह काम जर्जस़े इंसान खद


ु किऩे का हक िखता हो,

र्जैस़े कोई मआ
ु मला किना, उस़े दस
ू ि़े क़े मसपद
ु क कि द़े ताकक वह उसक़ी तिफ़ स़े

वह काम अंर्जाम द़े मसलन ककसी को अपना वक़ील िनाए ताकक वह उसका मकान

ि़ेच द़े या ककसी औित स़े उसका अक़्द कि द़े । मलहाज़ा सफ़़ीह चंकू क अपऩे माल में

तसरूकफ़ किऩे का हक नहीं िखता इस मलए वह मकान ि़ेचऩे क़े मलए ककसी को

वक़ील नहीं िना सकता।

2265. वकालत में सीगा पढ़ना लाजज़म नहीं िजल्क अगि इंसान दस
ू ि़े शख़्स को

समझा द़े कक उसऩे उस़े वक़ील मक


ु िक ि ककया है औि वह भी समझा द़े कक उसऩे

वक़ील िनना किल


ू कि मलया है मसलन एक शख़्स अपना माल दस
ू ि़े को द़े ताकक

वह उस़े उसक़ी तिफ़ स़े ि़ेच द़े औि दस


ू िा शख़्स वह माल ल़े ल़े तो वकालत सहीह

है ।

2266. अगि इंसान एक ऐस़े शख़्स को वक़ील मक


ु िक ि कि़े जर्जसक़ी िहाइश दस
ू ि़े

शहि में हो औि उसको वकालतनामा भ़ेर्ज द़े औि वह वकालतनामा किल


ू कि ल़े

तो अगिच़े वकालत नामा उस़े कुछ असे िाद ही ममल़े किि भी वकालत सहीह है ।

2267. मव
ु जक्कल यअनी वह शख़्स र्जो दस
ू ि़े को वक़ील िनाए औि वह शख़्स

र्जो वक़ील िऩे ज़रूिी है कक दोनों आककल हों औि (वक़ील िनाऩे औि वक़ील िनऩे

730
का) इक़्दाम कस्द औि इजख़्तयाि स़े किें औि मव
ु जक्कल क़े मआ
ु मल़े में िल
ु ग
ू भी

मोतिि है । मगि उन कामों में जर्जनको मम


ु य
ै ज़ िच्च़े का अंर्जाम द़े ना सहीह है

(उनमें िल
ु ग
ू शतक नहीं है )।

2268. र्जो काम इंसान अंर्जाम न द़े सकता हो या शिअन अंर्जाम द़े ना ज़रूिी न

हो उस़े अंर्जाम द़े ऩे क़े मलए वह दस


ू ि़े का वक़ील नहीं िन सकता। मसलन र्जो

शख़्स हर्ज का अहिाम िांध चक


ु ा हो चकंू क उस़े तनकाह का सीगा नहीं पढ़ना चाहहए

इस मलए वह सीगा ए तनकाह पढ़ऩे क़े मलए दस


ू ि़े का वक़ील नहीं िन सकता।

2269. अगि कोई शख़्स अपऩे तमाम काम का तअय्यन


ु न कि़े तो वकालत

सहीह नहीं है । हां अगि वक़ील को चन्द कामों में स़े एक काम जर्जसका वह खुद

इंततखाि कि़े अंर्जाम द़े ऩे क़े मलए वक़ील िनाए मसलन उसको वक़ील िनाए कक

या उसका र्ि फ़िोख़्त कि़े या ककिाय़े पि द़े तो वकालत सहीह है ।

2270. अगि (मव


ु जक्कल) वक़ील को मअज़ूल कि द़े यअनी र्जो काम उसक़े

जज़म्म़े लगाया हो उसस़े िितिफ़ कि द़े तो वक़ील अपनी मअज़ल


ू ी क़ी खिि ममल

र्जाऩे क़े िाद उस काम को (मव


ु जक्कल क़ी र्जातनि स़े) अंर्जाम नहीं द़े सकता

ल़ेककन मअज़ूली क़ी खिि ममलऩे स़े पहल़े उसऩे वह काम कि हदया हो तो सहीह

है ।

2271. मव
ु जक्कल ख़्वाह मौर्जूद न हो वक़ील खुद को वकालत स़े कनािा कश

कि सकता है ।

731
2272. र्जो काम वक़ील क़े मसपद
ु क ककया गया हो, उस काम क़े मलए वह ककसी

दस
ू ि़े शख़्स को वक़ील मक
ु िक ि नहीं कि सकता ल़ेककन अगि मव
ु जक्कल ऩे उस़े

इर्जाज़त न दी हो कक ककसी को वक़ील मक


ु िक ि कि़े तो जर्जस तिह उसऩे हुक्म हदया

है उसी तिह वह अमल कि सकता है मलहाज़ा अगि उसऩे कहा हो कक म़ेि़े मलए

एक वक़ील मक
ु िक ि किो तो ज़रूिी है कक उसक़ी तिफ़ स़े वक़ील मक
ु िक ि कि़े ल़ेककन

अज़ खुद ककसी को वक़ील मक


ु िक ि नहीं कि सकता।

2273. अगि वक़ील मव


ु जक्कल क़ी इर्जाज़त स़े ककसी को उसक़ी तिफ़ स़े वक़ील

मक
ु िक ि कि़े तो पहला वक़ील दस
ू ि़े वक़ील को मअज़ल
ू नहीं कि सकता औि अगि

पहला वक़ील मि र्जाए या मव


ु जक्कल उस़े मअज़ूल कि द़े ति भी दस
ू ि़े वक़ील क़ी

वकालत िाततल नहीं होती।

2274. अगि वक़ील मव


ु जक्कल क़ी इर्जाज़त स़े ककसी को खुद अपनी तिफ़ स़े

वक़ील मक
ु िक ि कि़े तो मव
ु जक्कल औि पहला वक़ील उस वक़ील को मअज़ूल कि

सकत़े हैं औि अगि पहला वक़ील मि र्जाए या मअज़ल


ू हो र्जाए तो दस
ू िी वकालत

िाततल हो र्जाती है।

2275. अगि (मव


ु जक्कल) ककसी काम क़े मलए चन्द अश्खास को वक़ील मक
ु िक ि

कि़े औि उन स़े कह़े कक उनमें स़े हि एक ज़ाती तौि पि उस काम को कि़े तो उन

में स़े हि एक उस काम को अंर्जाम द़े सकता है औि अगि उनमें स़े एक मि र्जाए

तो दस
ू िों क़ी वकालत िाततल नहीं होती, ल़ेककन अगि यह कहा हो कक सि ममल

732
कि अंर्जाम दें तो उनमें स़े कोई तन्हा उस काम को अंर्जाम नहीं द़े सकता औि

अगि उनमें स़े एक मि र्जाए तो िाक़ी अश्खास क़ी वकालत िाततल हो र्जाती है ।

2276. अगि वक़ील या मव


ु जक्कल मि र्जाए तो वकालत िाततल हो र्जाती है ।

नीज़ जर्जस चीज़ में तसरूकफ़ क़े मलए ककसी शख़्स को वक़ील मक
ु िक ि ककया र्जाए

अगि वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए मसलन जर्जस भ़ेड़ को ि़ेचऩे क़े मलए ककसी को

वक़ील मक
ु िक ि ककया गया हो अगि वह भ़ेड़ मि र्जाए तो वकालत िाततल हो

र्जाय़ेगी। ल़ेककन अगि कभी कभी दीवांगी औि ि़ेहवासी का दौिा पड़ता हो तो

वकालत का िाततल होना दीवांगी औि ि़ेहवासी क़ी मद्


ु दत में हत्ताकक दीवांगी औि

ि़ेहवासी खत्म होऩे क़े िाद भी मत्ु लकन महल्ल़े इश्काल है ।

2277. अगि इंसान ककसी को अपऩे काम क़े मलए वक़ील मक


ु िक ि कि़े औि उस़े

कोई चीज़ द़े ना तय कि़े तो काम क़ी तक्मील क़े िाद ज़रूिी है कक जर्जस चीज़ का

द़े ना तय ककया हो वह उस़े द़े द़े ।

2278. र्जो माल वक़ील क़े इजख़्तयाि में हो अगि वह उसक़ी तनगहदाश्त में

कोताही िित़े या जर्जस तसरूकफ़ क़ी उस़े इर्जाज़त दी गई हो उसक़े अलावा कोई

तसरूकफ़ उसमें न कि़े औि इवत्तफ़ाकन वह माल तलफ़ हो र्जाए तो उसक़े मलए

उसका एवज़ द़े ना ज़रूिी नहीं।

2279. र्जो माल वक़ील क़े इजख़्तयाि में हो अगि वह उसक़ी तनगहदाश्त में

कोताही िित़े या जर्जस तसरूकफ़ क़ी उस़े इर्जाज़त दी गई हो उसस़े तर्जावज़


ु कि़े औि

733
वह माल तलफ़ हो र्जाए तो वह (वक़ील) जज़म्म़ेदाि है । मलहाज़ा जर्जस मलिास क़े

मलए उस़े कहा र्जाए कक उस़े ि़ेच दो अगि वह उस़े पहन ल़े औि वह मलिास तलफ़

हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े ।

2280. अगि वक़ील को माल में जर्जस तसरूकफ़ क़ी इर्जाज़त दी गई हो उसक़े

अलावा कोई तसरूकफ़ कि़े मसलन उस़े जर्जस मलिास क़े ि़ेचऩे क़े मलए कहा र्जाए

वह उस़े पहन ल़े औि िाद में वह तसरूकफ़ कि़े जर्जसक़ी उस़े इर्जाज़त दी गई हो तो

तसरूकफ़ सहीह है ।

कजय के अह्काम

मोममनीन को खुसस
ू न ज़रूित मन्द मोममनीन को कज़क द़े ना उन मस्
ु तहि कामों

में स़े है जर्जनक़े मत


ु अजल्लक अहादीस में काफ़़ी ताक़ीद क़ी गई है । िसल
ू ़े अकिम

स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही वसल्लम स़े रिवायत है, र्जो शख़्स अपऩे मस
ु लमान

भाई को कज़क द़े उसक़े माल में ििकत होती है औि मलाइका उस पि (खद
ु ा क़ी)

िहमत ििसात़े हैं औि अगि वह मकरूज़ स़े नम़ी िित़े तो िगैि हहसाि क़े औि

त़ेज़ी स़े पल
ु ़े मसिात पि स़े गज़
ु ि र्जाय़ेगा औि ककसी शख़्स स़े उसका मस
ु लमान

भाई कज़क मांग़े औि वह न द़े तो बिहहश्त उस पि हिाम हो र्जाती है ।

2281. कज़क में सीगा पढ़ना लाजज़म नहीं िजल्क अगि एक शख़्स दस
ू ि़े को कोई

चीज़ कज़क क़ी नीयत स़े द़े औि दस


ू िा भी उसी नीयत स़े ल़े तो कज़क सहीह है।
734
2282. र्जि भी मकरूज़ अपना कज़ाक अदा कि़े तो कज़क ख़्वाह को चाहहए कक उस़े

किल
ू कि ल़े। ल़ेककन अगि कज़क अदा किऩे क़े मलए कज़क ख़्वाह क़े कहऩे स़े या

दोनों क़े कहऩे स़े एक मद्


ु दत मक
ु िक ि क़ी हो तो उस सिू त में कज़कख़्वाह उस मद्
ु दत

क़े खत्म होऩे स़े पहल़े अपना कज़क वापस ल़ेऩे स़े इंकाि कि सकता है।

2283. अगि कज़क क़े सीग़े में कज़क क़ी वापसी क़ी मद्
ु दत मअ
ु य्यन कि दी र्जाए

औि मद्
ु दत का तअय्यन
ु मकरूज़ क़ी दख़्वाकस्त पि हो या र्जातनिैन क़ी दख़्वाकस्त

पि कज़कख़्वाह उस मअ
ु य्यन मद्
ु दत क़े खत्म होऩे स़े पहल़े कज़क क़ी अदायगी का

मत
ु ालिा नहीं कि सकता। ल़ेककन अगि मद्
ु दत का तअय्यन
ु कज़कख़्वाह क़ी

दख़्वाकस्त पि हुआ हो या कज़े क़ी वापसी क़े मलए कोई मद्


ु दत मअ
ु य्यन न क़ी गई

हो तो कज़कख़्वाह र्जि भी चाह़े अपऩे कज़क क अदायगी का मत


ु ालिा कि सकता है ।

2284. अगि कज़कख़्वाह अपऩे कज़क क़ी अदायगी का मत


ु ालिा कि़े औि मकरूज़

कज़क अदा कि सकता हो तो उस़े चाहहए कक फ़ौिन अदा कि़े औि अगि अदायगी

में ताखीि कि़े तो गन


ु ाहगाि है ।

2285. अगि मकरूज़ क़े पास एक र्ि कक जर्जसमें वह िहता हो औि र्ि क़े

अस्िाि औि उन लवाजज़मात कक जर्जनक़ी उस़े ज़रूित हो औि उनक़े िगैि उस़े

पिीशानी हो औि कोई चीज़ न हो तो कज़कख़्वाह उसस़े कज़क क़ी अदायगी का

मत
ु ालिा नहीं कि सकता। िजल्क उस़े चाहहए कक सब्र कि़े हत्ताकक मकरूज़ कज़क

अदा किऩे क़े काबिल हो र्जाए।

735
2286. र्जो शख़्स मकरूज़ हो औि अपना कज़ाक अदा न कि सकता हो तो अगि

वह कोई ऐसा काम कार्ज कि सकता हो र्जो उसक़ी शायाऩे शान हो तो एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक काम कार्ज कि़े औि अपना कज़क अदा कि़े । बिलखस


ु स
ू ऐस़े शख़्स

क़े मलए जर्जसक़े मलए काम किना आसान हो या उसका प़ेशा ही काम कार्ज किना

हो िजल्क उस सिू त में काम का वाजर्जि होना कुव्वत स़े खाली नहीं।

2287. जर्जस शख़्स को अपना कज़कख़्वाह न ममल सक़े औि मस्


ु तकबिल म़े उसक़े

या उसक़े वारिस क़े ममलऩे क़ी उम्मीद भी न हो तो ज़रूिी है कक वह कज़े का

माल कज़कख़्वाह क़ी तिफ़ स़े फ़क़ीि को द़े द़े औि एहततयात क़ी बिना पि ऐसा

किऩे क़ी इर्जाज़त हाककम़े शअक स़े ल़े ल़े औि अगि उसका कज़कख़्वाह सैतयद न हो

तो एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक कज़े का माल सैतयद फ़क़ीि को न द़े । ल़ेककन

अगि मकरूज़ को कज़कख़्वाह या उसक़े वारिस क़े ममलऩे क़ी उम्मीद हो तो ज़रूिी है

कक इंकाि कि़े औि उसको तलाश कि़े औि अगि वह न ममल़े तो वसीयत कि़े कक

अगि वह मि र्जाए औि कज़कख़्वाह या उसका वारिस ममल र्जाए तो उसका कज़क

उसक़े माल स़े अदा ककया र्जाए।

2288. अगि ककसी मैतयत का माल उसक़े कफ़न या दफ़्न क़े वाजर्जि अखिार्जात

औि कज़क स़े ज़्यादा न हो तो उसका माल उन्हीं उमिू पि खचक किना ज़रूिी है औि

उसक़े वारिस को कुछ नहीं ममल़ेगा।

736
2289. अगि कोई शख़्स सोऩे या चांदी क़े मसक्क़े वगैिा कज़क ल़े औि िाद में

उन क़ी क़ीमत कम हो र्जाए तो अगि वह वही ममक़्दाि र्जो उसऩे ली थी वापस

कि़े तो काफ़़ी है औि अगि उनक़ी क़ीमत िढ़ र्जाए तो लाजज़म है कक उतनी ही

ममक़्दाि वापस कि र्जो ली थी ल़ेककन दोनों सिू तों में अगि मकरूज़ औि कज़कख़्वाह

ककसी औि िात पि िज़ामन्द हो र्जायें तो इसमें कोई इश्काल नहीं।

2290. ककसी शख़्स ऩे र्जो माल कज़क मलया हो अगि वह तलफ़ न हुआ हो औि

माल का मामलक उसका मत


ु ालिा कि़े तो एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक मकरूज़

वही माल मामलक को द़े द़े ।

2291. अगि कज़क द़े ऩे वाला शतक आइद कि़े कक वह जर्जतनी ममक़्दाि में माल द़े

िहा है उसस़े ज़्यादा वापस ल़ेगा मसलन एक मन ग़ेहूं द़े औि शतक आइद कि़े कक

एक मन पांच ककलों वापस लंग


ू ा या दस अण्ड़े द़े औि कह़े कक ग्यािा अण्ड़े वापस

लंग
ू ा तो यह सद
ू औि हिाम है िजल्क अगि तय कि़े कक मकरूज़ उसक़े मलए कोई

काम कि़े गा या र्जो चीज़ ली हो वह ककसी दस


ू िी जर्जन्स क़ी ममक़्दाि क़े साथ वापस

कि़े गा मसलन तय कि़े कक (मकरूज़ ऩे) र्जो एक रूपया मलया है वापस कित़े वक़्त

उसक़े साथ माचचस क़ी एक डडबिया भी द़े तो यह सद


ू होगा औि हिाम है। नीज़

अगि मकरूज़ क़े साथ शतक कि़े कक र्जो चीज़ वह कज़क ल़े िहा है उस़े एक मखसस

तिीक़े स़े वापस कि़े गा मसलन अनगढ़़े सोऩे क़ी कुछ ममक़्दाि उस़े द़े औि शतक कि़े

कक गढ़ा हुआ वापस कि़े गा ति भी यह सद


ू औि हिाम होगा अलित्ता अगि

737
कज़कख़्वाह कोई शतक न लगाए िजल्क मकरूज़ खुद कज़े क़ी ममक़्दाि स़े कुछ ज़्यादा

वापस द़े तो कोई इश्काल नहीं िजल्क (ऐसा किना) मस्


ु तहि है।

2292. सद
ू द़े ना सद
ू ल़ेऩे क़ी तिह हिाम है ल़ेककन र्जो शख़्स सद
ू पि कज़क ल़े

ज़ाहहि यह है कक वह उसका मामलक हो र्जाता है अगिच़े औला यह है कक उसमें

तसरूकफ़ न कि़े औि अगि सिू त यह हो कक तिफ़ैन ऩे सद


ू का मआ
ु हदा न भी

ककया होता औि िकम का मामलक इस िात पि िाज़ी होता कक कज़क ल़ेऩे वाला उस

िकम में तसरूकफ़ कि ल़े तो मकरूज़ िगैि ककसी इश्काल क़े उस िकम में तसरूकफ़

कि सकता है ।

2293. अगि कोई शख़्स ग़ेहूं या उसी र्जैसी कोई चीज़ सद


ू ी कज़े क़े तौि पि ल़े

औि उसक़े ज़िीए काश्त कि़े तो ज़ाहहि यह है कक वह पैदावाि का मामलक हो र्जाता

है अगिच़े औला यह है कक उसस़े र्जो पैदावाि हामसल हो उसमें तसरूकफ़ न कि़े ।

2294. अगि एक शख़्स कोई मलिास खिीद़े औि िाद में उसक़ी क़ीमत कपड़़े क़े

मामलक को सद
ू ी िकम स़े या ऐसी हलाल िकम स़े र्जो सद
ू ी कज़े पि ली गई िकम

क़े साथ मख्लत


ू हो गई हो अदा कि़े तो उस मलिास क़े पहनऩे या उसक़े साथ

नमाज़ पढ़ऩे में कोई इश्काल नहीं ल़ेककन अगि ि़ेचऩे वाल़े स़े कह़े कक मैं यह

मलिास उस िकम स़े खिीद िहा हूं तो उस मलिास को पहनना हिाम है औि उस

मलिास क़े साथ नमाज़ पढ़ऩे का हुक्म नमाज़ गज़


ु ाि क़े मलिास क़े अह्काम में

गुज़ि चक
ु ा है।

738
2295. अगि कोई शख़्स ककसी ताजर्जि को कुछ िकम द़े औि दस
ू ि़े शहिों में उस

ताजर्जि स़े कम िकम ल़े तो इसमें कोई इश्काल नहीं औि उस़े सफ़ेििाअत कहत़े हैं।

2296. अगि कोई शख़्स ककसी को कुछ िकम इस शतक पि द़े कक चन्द हदन

िाद दस
ू ि़े शहि में उसस़े ज़्यादा ल़ेगा मसलन 999 रुपय़े द़े औि दस हदन िाद

दस
ू ि़े शहि में उसक़े िदल़े एक हज़िा रुपय़े ल़े तो अगि यह िकम (यअनी 990

औि हज़ाि रुपय़े) ममसाल क़े तौि पि सोऩे या चांदी क़ी िनी हों तो यह सद
ू औि

हिाम है ल़ेककन र्जो शख़्स ज़्यादा ल़े िहा हो अगि वह इज़ाफ़़े क़े मक
ु ाबिल़े में कोई

जर्जन्स द़े या कोई काम कि द़े तो किि इश्काल नहीं ताहम वह आम िाइर्ज नोट

जर्जन्हें चगनकि शम
ु ाि ककया र्जाता हो अगि उन्हें ज़्यादा मलया र्जाए तो कोई

इश्काल नहीं मामसवा उस सिू त क़े कक कज़क हदया हो औि ज़्यादा क़ी अदायगी क़ी

शतक लगाई हो तो उस सिू त में हिाम है या उधाि पि ि़ेच़े औि जर्जन्स औि उसका

एवज़ एक ही जर्जन्स स़े हों तो उस सिू त में मआ


ु मल़े का सहीह होना इश्काल स़े

खाली नहीं है ।

2297. अगि ककसी शख़्स को ककसी स़े कुछ कज़क ल़ेना हो औि वह चीज़ सोना

या चांदी या नापी या तोली र्जाऩे वाली जर्जन्स न हो तो वह शख़्स उस चीज़ को

मकरूज़ या ककसी औि क़े पास कम क़ीमत पि ि़ेच कि उसक़ी क़ीमत नक़्द वसल

कि सकता है । इसी बिना पि मौर्जूदा दौि में र्जो च़ेक औि हुंडडयां कज़कख़्वाह

मकरूज़ स़े ल़ेता है उन्हें वह िैंक क़े पास या ककसी दस


ू ि़े शख़्स क़े पास उसस़े कम

739
क़ीमत पि जर्जस़े आम तौि पि भाव चगिना कहत़े हैं ि़ेच सकता है औि िाक़ी िकम

नक़्द ल़े सकता है क्योंकक िाइर्जल


ु वक़्त नोटों का ल़ेन द़े न नाप तोल स़े नहीं होता।

हवाला दे ने के अह्काम

2298. अगि कोई शख़्स अपऩे कज़कख़्वाह को हवाला द़े कक वह अपना कज़क एक

औि शख़्स स़े ल़े ल़े औि कज़कख़्वाह इस िात को किल


ू कि ल़े तो र्जि हवाला उन

शिाइत क़े साथ जर्जनका जज़क्र िाद में आय़ेगा मक


ु म्मल हो र्जाए तो जर्जस शख़्स क़े

नाम हवाला हदया गया है वह मकरूज़ हो र्जाय़ेगा औि उसक़े िाद कज़कख़्वाह पहल़े

मकरूज़ स़े अपऩे कज़क का मत


ु ालिा नहीं कि सकता।

2299. मकरूज़ औि कज़कख्वाह औि जर्जस शख़्स का हवाला हदया र्जा सकता हो

ज़रूिी है कक सि िामलग औि आककल हों औि ककसी ऩे उन्हें मर्जििू न ककया हो

नीज़ ज़रूिी है कक सफ़़ीह न हों यअनी अपना माल अहमकाना औि फ़ुज़ूल कामों में

खचक न कित़े हों औि यह भी मोतिि है कक मकरूज़ औि कज़कख़्वाह दीवामलया न

हों। हां अगि हवाला ऐस़े शख़्स क़े नाम हो र्जो पहल़े स़े हवाला द़े ऩे वाल़े का

मकरूज़ न हो तो अगिच़े हवाला द़े ऩे वाला दीवामलया भी हो कोई इश्काल नहीं है ।

2300. ऐस़े शख़्स क़े नाम हवाला द़े ना र्जो मकरूज़ न हो उस सिू त में सहीह

नहीं है र्जि वह हवाला किल


ू न क़ेि। नीज़ अगि कोई शख़्स चाह़े कक र्जो शख़्स

एक जर्जन्स क़े मलए उसका मकरूज़ है उसक़े नाम दस


ू िी जर्जन्स का हवाला मलख़े।
740
मसलन र्जो शख़्स र्जौ का मकरूज़ हो उसक़े नाम ग़ेहूं हवाला मलख़े तो र्जि तक

वह शख़्स किल
ू न कि़े हवाला सहीह नहीं है । िजल्क हवाला द़े ऩे क़ी तमाम सिू तों

में ज़रूिी है कक जर्जस शख़्स क़े नाम हवाला ककया र्जा िहा है वह हवाला किल
ू कि़े

औि अगि किल
ू न कि़े तो बिनािि़े अज़्हि (हवाला) सहीह नहीं है ।

2301. इंसान र्जि हवाला द़े तो ज़रूिी है कक वह उस वक़्त मकरूज़ हो मलहाज़ा

अगि वह ककसी स़े कज़क ल़ेना चाहता हो तो र्जि तक उसस़े कज़क न ल़े ल़े उस़े

ककसी नाम का हवाला नहीं द़े सकता ताकक र्जो कज़क उस़े िाद में द़े ना हो वह पहल़े

ही उस शख़्स स़े वसल


ू कि ल़े।

2302. हवाला क़ी जर्जन्स औि ममक़्दाि कफ़ल वाक़े मअ


ु य्यन होना ज़रूिी है पस

अगि हवाला द़े ऩे वाला ककसी शख़्स का दस मन ग़ेहूं औि दस रुपय़े का मकरूज़

हो औि कज़कख़्वाह को हवाला द़े कक उन दोनों कज़ों में स़े कोई एक फ़लां शख़्स स़े

ल़े औि उस कज़क को मअ
ु य्यन न कि़े तो हवाला दरु
ु स्त नहीं है ।

2303. अगि कज़क वाकई मअ


ु य्यन हो ल़ेककन हवाला द़े ऩे क़े वक़्त मकरूज़ औि

कज़कख़्वाह को उसक़ी ममक़्दाि या जर्जन्स का इल्म न हो तो हवाला सहीह है

मसलन अगि ककसी शख़्स ऩे दस


ू ि़े का कज़ाक िजर्जस्टि में मलखा हो औि िजर्जस्टि

द़े खऩे स़े पहल़े हवाला द़े द़े औि िाद में िजर्जस्टि द़े ख़े औि कज़कख़्वाह को कज़े क़ी

ममक़्दाि िता द़े तो हवाला सहीह होगा।

741
2304. कज़कख्वाह को इजख़्तयाि है कक हवाला किल
ू न कि़े अगिच़े जर्जसक़े नाम

का हवाला हदया र्जाए वह दौलतमन्द हो औि हवाल़े क़े अदा किऩे में कोताही भी

न कि़े ।

2305. र्जो शख़्स हवाला द़े ऩे वाल़े का मकरूज़ न हो अगि हवाला किल
ू कि़े तो

अज़्हि यह है कक हवाला अदा किऩे स़े पहल़े हवाला द़े ऩे वाल़े स़े हवाल़े क़ी

ममक़्दाि का मत
ु ालिा कि सकता है । मगि यह कक र्जो कज़क जर्जसक़े नाम हवाला

हदया गया है उसक़ी मद्


ु दत मअ
ु य्यन हो औि अभी वह मद्
ु दत खत्म न हुई हो तो

उस सिू त में वह मद्


ु दत खत्म होऩे स़े पहल़े हवाल़े द़े ऩे स़े हवाल़े क़ी ममक़्दाि का

मत
ु ालिा नहीं कि सकता अगिच़े उसऩे अदायगी कि दी हो औि उसी तिह अगि

कज़कख़्वाह अपऩे कज़क स़े थोड़ी ममक़्दाि पि सल्


ु ह कि़े तो वह हवाला द़े ऩे वाल़े स़े

फ़कत उतनी (थोड़ी) ममक़्दाि का ही मत


ु ालिा कि सकता है।

2306. हवाला क़ी शिाइत पिू ी होऩे क़े िाद हवाला द़े ऩे वाला औि जर्जसक़े नाम

हवाला हदया र्जाए हवाला मंसख


ू नहीं कि सकत़े औि वह शख़्स जर्जसक़े नाम का

हवाला हदया गया है हवाला क़े वक़्त फ़क़ीि न हो तो अगिच़े वह िाद में फ़क़ीि हो

र्जाए तो खज़कख़्वाह भी हवाल़े को मंसख


ू नहीं कि सकता। यही हुक्म उस वक़्त है

र्जि (वह शख़्स जर्जसक़े नाम का हवाला हदया गया हो) हवाला द़े ऩे क़े वक़्त वह

शख़्स मालदाि न हुआ हो कज़कख़्वाह हवाला मंसख


ू कि क़े अपना कज़क हवाला द़े ऩे

742
वाल़े स़े ल़े सकता है। ल़ेककन अगि वह मालदाि हो गया हो तो मअलम
ू नहीं कक

मआ
ु मल़े को कफ़स्ख कि सकता है (या नहीं)।

2307. अगि मकरूज़ औि कज़कख़्वाह औि जर्जसक़े नाम का हवाला हदया गया हो

या उनमें स़े ककसी एक ऩे अपऩे हक में हवाला मंसख


ू किऩे का मआ
ु हदा ककया हो

तो र्जो मआ
ु हदा उन्होंऩे ककया हो उसक़े मत
ु ाबिक वह हवाला मंसख
ू कि सकत़े हैं।

2308. अगि हवाला द़े ऩे वाला खुद कज़कख़्वाह का कज़ाक अदा कि द़े यह काम

उस शख़्स क़ी ख़्वाहहश पि हुआ हो जर्जसक़े नाम का हवाला हदया गया हो र्जिकक

वह हवाला द़े ऩे वाल़े का मकरूज़ भी हो तो वह र्जो कुछ हदया हो उसस़े ल़े सकता

है औि अगि उसक़ी ख़्वाहहश क़े िगैि अदा ककया हो या वह हवाला हदहहन्दा का

मकरूज़ न हो तो किि उसऩे र्जो कुछ हदया है उसका मत


ु ालिा उस स़े नहीं कि

सकता।

िहन के अह्काम

2309. ि़े हन यह है कक इंसान कज़क क़े िदल़े अपना माल या जर्जस माल क़े मलए

ज़ाममन िना हो वह माल ककसी क़े पास चगिवी िखवाए कक अगि ि़े हन िखवाऩे

वाला कज़ाक न लौटा सक़े या ि़े हन न छुड़ा सक़े तो ि़े हन ल़ेऩे वाला शख़्स उसका

एवज़ उसक़े माल स़े ल़े सक़े।

743
2310. ि़े हन में सीगा पढ़ना लाजज़म नहीं है िजल्क इतना काफ़़ी है कक चगिवी

द़े ऩे वाल अपना माल चगिवी िखऩे क़ी नीयत स़े चगिवी ल़ेऩे वाल़े को द़े द़े औि

वह उसी नीयत स़े ल़े ल़े तो ि़े हन सहीह है।

2311. ज़रूिी है कक चगिवी िखवाऩे वाला औि चगिवी िखऩे वाला िामलग औि

आककल हों औि ककसी ऩे उन्हें इस मआ


ु मल़े क़े मलए मर्जििू न ककया हो औि यह

भी ज़रूिी है कक माल चगिवी िखवाऩे वाला दीवामलया औि सफ़़ीह न हो –

दीवामलया औि सफ़़ीह क़े मअनी मस ्अला 2262 में िताए र्जा चक


ु ़े हैं – औि अगि

दीवामलया हो ल़ेककन र्जो माल वह चगिवी िखवा िहा है उसका अपना माल न हो

या उन अमवाल में स़े न हो जर्जसक़े तसरूकफ़ किऩे स़े मनअ ककया गया हो तो

कोई इश्काल नहीं है ।

2312. इंसान वह माल चगिवी िख सकता है जर्जसमें वह शिअन तसरूकफ़ कि

सकता हो औि अगि ककसी दस


ू ि़े का माल उसक़ी इर्जाज़त स़े चगिवी िख द़े तो भी

सहीह है।

2313. जर्जस चीज़ को चगिवी िखा र्जा िहा हो ज़रूिी है कक उसक़ी खिीद व

फ़िोख़्त सहीह हो। मलहाज़ा अगि शिाि या उस र्जैसी चीज़ चगिवी िखी र्जाए तो

दरु
ु स्त नहीं है।

744
2314. जर्जस चीज़ को चगिवी िखा र्जा िहा है उसस़े र्जो फ़ाइदा होगा वह उस

चीज़ क़े मामलक क़ी ममजल्कयत होगा ख़्वाह वह चगिवी िखवाऩे वाला हो या कोई

दस
ू िा शख़्स हो।

2315. चगिवी िखवाऩे वाल़े ऩे र्जो माल ितौि चगिवी मलया हो उस माल को

उसक़े मामलक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि ख़्वाह चगिवी िखवाऩे वाला हो या कोई दस
ू िा

शख़्स ककसी दस
ू ि़े क़ी ममजल्कयत में नहीं द़े सकता। मसलन वह ककसी दस
ू ि़े को

वह माल न िख़्श सकता है न ि़ेच सकता है। ल़ेककन अगि वह उस माल को

ककसी को िख़्श द़े या फ़िोख़्त कि द़े औि मामलक िाद में इर्जाज़त द़े तो कोई

इश्काल नहीं है।

2316. अगि चगिवी िखऩे वाला उस माल को र्जो उसऩे ितौि चगिवी मलया हो

उसक़े मामलक क़ी इर्जाज़त स़े ि़ेच द़े तो माल क़ी तिह उसक़ी क़ीमत चगिवी नहीं

होगी। औि यही हुक्म है अगि मामलक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि ि़ेच द़े औि मामलक

िाद में इर्जाज़त द़े (यअनी उस माल क़ी क़ीमत वसल


ू क़ी र्जाए वह उस माल क़ी

तिह चगिवी नहीं होगी) ल़ेककन अगि चगिवी िखवाऩे वाला उस चीज़ को चगिवी

िखऩे वाल़े क़ी इर्जाज़त स़े ि़ेच द़े ताकक उसक़ी क़ीमत को चगिवी किाि द़े तो

ज़रूिी है कक मामलक क़ी इर्जाज़त स़े ि़ेच द़े औि उसक़ी मख


ु ामलफ़त किऩे क़ी सिू त

में मआ
ु मला िाततल है । मगि यह कक चगिवी िखऩे वाल़े ऩे उसक़ी इर्जाज़त ही हो

(तो किि मआ
ु मला सहीह है )।

745
2317. जर्जस वक़्त मकरूज़ को कज़क अदा कि द़े ना चाहहए मगि कज़कख़्वाह उस

वक़्त मत
ु ालिा कि़े औि मकरूज़ अदायगी न कि़े तो उस सिू त में र्जिकक

कज़कख़्वाह माल को फ़िोख़्त कि क़े अपना कज़ाक उसक़े माल स़े वसल
ू किऩे का

इजख़्तयाि िखता हो वह चगिवी ककय़े हुए माल को फ़िोख्त कि क़े अपना कज़ाक

वसल
ू कि सकता है। औि अगि इजख़्तयाि न िखता हो तो ज़रूिी है कक हाककम़े

शअक स़े उस माल को ि़ेच कि उसक़ी क़ीमत स़े अपना कज़ाक वसल
ू किऩे क़ी

इर्जाज़त ल़े औि दोनों सिू तों में अगि कज़े स़े ज़्यादा क़ीमत वसल
ू हो तो ज़रूिी है

कक ज़्यादा माल मकरूज़ को द़े द़े ।

2318. अगि मकरूज़ क़े पास उस मकान क़े अलावा जर्जसमें वह िहता हो औि

उस सामान क़े अलावा जर्जसक़ी उस़े ज़रूित हो औि कोई चीज़ न हो तो कज़कख़्वाह

उसस़े अपऩे कज़े का मत


ु ालिा नहीं कि सकता ल़ेककन मकरूज़ ऩे र्जो माल ितौि

चगिवी हदया हो अगिच़े वह मकान औि सामान ही क्यों न हो कज़कख़्वाह उस़े ि़ेच

कि अपना कज़क वसल


ू कि सकता है ।

जालमन होने के अह्काम

2319. अगि कोई शख़्स ककसी दस


ू ि़े का कज़ाक अदा किऩे क़े मलए ज़ाममन

िनना चाह़े तो उसका ज़ाममन िनना उस वक़्त सहीह होगा र्जि वह ककसी लफ़्ज़

स़े अगिच़े वह अििी ज़िान में न हो या ककसी अमल स़े कज़कख़्वाह को समझा द़े

746
कक मैं तुम्हाि़े कज़क क़ी अदायगी क़े मलए ज़ाममन िान गया हूं औि कज़कख़्वाह भी

अपनी िज़ामन्दी का इज़हाि कि द़े औि (इस मसलमसल़े में ) मकरूज़ का िज़ामन्द

होना शतक नहीं।

2320. ज़ाममन औि कज़कख़्वाह दोनों क़े मलए र्जरूिी है कक िामलग औि आककल

हों औि ककसी ऩे उन्हें इस मआ


ु मल़े पि मर्जििू न ककया हो नीज़ ज़रूिी है कक वह

सफ़़ीह भी न हों औि इसी तिह ज़रूिी है कक खज़कख़्वाह दीवामलया न हो ल़ेककन

यह शिाइत मकरूज़ क़े मलए नहीं है मसलन अगि कोई शख़्स िच्च़े या दीवाऩे या

सफ़़ीह का कज़क अदा किऩे क़े मलए ज़ाममन िऩे तो ज़मानत सहीह है।

2321. र्जि कोई शख़्स ज़ाममन िनऩे क़े मलए कोई शतक िख़े मसलन यह कह़े

कक अगि मकरूज़ तम्


ु हािा कज़क अदा न कि़े तो मैं तुम्हािा कज़क अदा कि दग
ू ां, तो

उसक़े ज़ाममन होऩे में इश्काल है ।

2322. इंसान जर्जस शख़्स क़े कज़क क़ी ज़मानत द़े िहा है ज़रूिी है कक वह

मकरूज़ हो मलहाज़ा अगि कोई शख़्स ककसी दस


ू ि़े शख़्स स़े कज़क ल़ेना चाहता हो

तो र्जि तक वह कज़क न ल़े ल़े उस वक़्त तक कोई शख़्स उसका ज़ाममन नहीं िन

सकता।

2323. इंसान उसी सिू त में ज़ाममन िन सकता है र्जि कज़क, कज़कख़्वाह औि

मकरूज़ (यह तीनों) कफ़ल वाक़े मअ


ु य्यन हों मलहाज़ा अगि दो अश्खास ककसी एक

शख्स क़े कज़कख्वाह हों औि इंसान कह़े कक मैं तुम में स़े एक का कज़क अदा कि

747
दं ग
ू ा तो चकंू क उसऩे इस िात को मअ
ु य्यन नहीं ककया कक वह उनमें स़े ककस का

कज़क अदा कि़े गा इस मलए उसका ज़ाममन िाततल है । नीज़ अगि ककसी को दो

अश्खास स़े कज़क वसल


ू किना हो औि कोई शख़्स कह़े कक मैं ज़ाममन हूं कक उन दो

में स़े एक का कज़क तम्


ु हें अदा कि दं ग
ू ा तो चंकू क उसऩे इस िात को मअ
ु य्यन नहीं

ककया कक दोनों में स़े ककसका कज़क अदा कि़े गा इस मलए उसका ज़ाममन िनना

िाततल है । औि इसी तिह अगि ककसी ऩे एक दस


ू ि़े शख़्स स़े ममसाल क़े तौि पि

दस मन ग़ेहूं औि दस रुपय़े ल़ेऩे हों औि कोई शख़्स कह़े कक मैं तुम्हाि़े दोनों कज़ों

में स़े एक क़ी अदायगी का ज़ाममन हूं औि उस चीज़ को मअ


ु य्यन न कि़े कक वह

ग़ेहूं क़े मलए ज़ाममन है या रुपयों क़े मलए तो यह ज़मानत सहीह नहीं है ।

2324. अगि कज़कख़्वाह अपना कज़क ज़ाममन को िख़्श द़े तो ज़ाममन मकरूज़ स़े

कोई चीज़ नहीं ल़े सकता औि अगि वह कज़े क़ी कुछ ममक्दाि उस़े िख़्श द़े तो

वह (मकरूज़ स़े) उस ममक़्दाि का मत


ु ालिा नहीं कि सकता।

2325. अगि कोई शख़्स ककसी का कज़ाक अदा किऩे क़े मलए ज़ाममन िन र्जाए

तो किि वह ज़ाममन होऩे स़े मक


ु ि नहीं सकता।

2326. एहततयात क़ी बिना पि ज़ाममन औि कज़कख़्वाह यह शतक नहीं कि सकत़े

कक जर्जस वक़्त चाहें ज़ाममन क़ी ज़मानत मंसख


ू कि दें ।

2327. अगि इंसान ज़ाममन िनऩे क़े वक़्त कज़कख़्वाह का कज़ाक अदा किऩे क़े

काबिल हों तो ख़्वाह वह (ज़ाममन) िाद में दीवामलया हो र्जाए कज़कख्वाह उसक़ी

748
ज़मानत मंसख
ू किक़े पहल़े मकरूज़ स़े कज़क क़ी अदायगी का मत
ु ालिा नहीं कि

सकता। औि इसी तिह अगि ज़मानत द़े त़े वक़्त ज़ाममन कज़क अदा किऩे पि

काहदि न हो ल़ेककन कज़कख़्वाह यह िात मानत़े हुए उसक़े ज़ाममन िनऩे पि िाज़ी

हो र्जाए ति भी यही हुक्म है ।

2328. अगि इंसान ज़ाममन िनऩे क़े वक़्त कज़कख़्वाह का कज़ाक अदा किऩे पि

काहदि न हो औि कज़कख्वाह सिू त़े हाल स़े लाइल्म होऩे क़ी बिना पि उसक़ी

ज़मानत मंसख
ू किना चाह़े तो इस में इश्काल है खुसस
ू न उस सिू त में र्जिकक

कज़कख़्वाह क़े इस अम्र क़ी र्जातनि मत


ु वज्र्जह होऩे स़े पहल़े ज़ाममन कज़े क़ी

अदायगी पि काहदि न हो र्जाए।

2329. अगि कोई शख़्स मकरूज़ क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उसका कज़ाक अदा किऩे

क़े मलए ज़ाममन िन र्जाए तो वह कज़ाक अदा किऩे पि मकरूज़ स़े कुछ नहीं ल़े

सकता।

2330. अगि कोई शख़्स मकरूज़ क़ी इर्जाज़त स़े उसक़े कज़े क़ी अदायगी का

ज़ाममन िन र्जाए तो जर्जस ममक़्दाि क़े मलए ज़ाममन िना हो – अगिच़े स़े अदा

किऩे स़े पहल़े – मकरूज़ स़े उसका मत


ु ालिा कि सकता है ल़ेककन जर्जस जर्जन्स क़े

मलए वह मकरूज़ था उसक़ी िर्जाय कोई औि जर्जन्स कज़कख्वाह को द़े तो र्जो चीज़

दी हो उसका मत
ु ालिा मकरूज़ नहीं कि सकता मसलन अगि मकरूज़ को दस मन

ग़ेहूं द़े नी हो औि ज़ाममन दस मन चावल द़े द़े तो ज़ाममन मकरूज़ स़े दस मन

749
चावल का मत
ु ालिा नहीं कि सकता ल़ेककन अगि मकरूज़ खुद चावल द़े ऩे पि

िज़ामन्द हो र्जाए तो किि कोई इश्काल नहीं।

कफ़ालत के अह्काम

2331. कफ़ालत स़े मिु ाद यह है कक कोई शख़्स जज़म्मा ल़े कक जर्जस वक़्त

कज़कख़्वाह चाह़े गा वह मकरूज़ को उसक़े मसपद


ु क कि द़े गा। औि र्जो शख़्स इस

ककस्म क़ी जज़म्म़ेदािी किल


ू कि़े उस़े कफ़़ील कहत़े हैं।

2332. कफ़ालत उस वक़्त सहीह है र्जि कफ़़ील कोई स़े भी अल्फ़ाज़ में ख़्वाह

वह अििी क़े न भी हों, या ककसी अमल स़े कज़कख़्वाह को यह िात समझा द़े कक

मैं जज़म्मा ल़ेता हूं कक जर्जस वक़्त तुम चाहोग़े मैं मकरूज़ को तुम्हाि़े हवाल़े कि

दं ग
ू ा औि कज़कख़्वाह भी इस िात को किल
ू कि ल़े औि एहततयात क़ी बिना पि

कफ़ालत क़े सहीह होऩे क़े मलए मकरूज़ क़ी िज़ामन्दी भी मोतिि है। िजल्क

एहततयात यह है कक कफ़ालत क़े मआ


ु मल़े में उसी तिह मकरूज़ को भी एक

फ़िीक होना चाहहए यअनी मकरूज़ औि कज़कख़्वाह दोनों कफ़ालत को किल


ू किें ।

2333. कफ़़ील क़े मलए ज़रूिी है कक िामलग औि आककल हो औि उस़े कफ़़ील

िनऩे पि मर्जििू न ककया गया हो औि वह इस िात पि काहदि हो कक जर्जसका

कफ़़ील िऩे उस़े हाजज़ि कि सक़े औि इसी तिह उस सिू त में र्जि मकरूज़ को

750
हाजज़ि किऩे क़े मलए कफ़़ील को अपना माल खचक किना पड़़े तो ज़रूिी है कक वह

सफ़़ीह औि दीवामलया न हो।

2334. इन पांच चीज़ों में स़े कोई एक कफ़ालत को कलअदम (खत्म) कि द़े ती

है ः-

1. कफ़़ील मकरूज़ को कज़कख़्वाह क़े हवाल़े कि द़े या वह खुद अपऩे आपको

कज़कख़्वाह क़े हवाल़े कि द़े ।

2. कज़कख़्वाह का कज़ाक अदा कि हदया र्जाए

3. कज़कख्वाह अपऩे कज़े स़े दस्तििदाि हो र्जाए या उस़े ककसी दस


ू ि़े क़े हवाल़े

कि द़े ।

4. मकरूज़ या कफ़़ील में स़े एक मि र्जाए।

5. कज़कख़्वाह कफ़़ील को कफ़ालत स़े ििी उजज़्ज़म्मा किाि द़े द़े ।

2335. अगि कोई शख़्स मकरूज़ को कज़कख्वाह स़े ज़ििदस्ती आज़ाद किा द़े

औि कज़कख़्वाह क़ी पहुंच मकरूज़ तक न हो सक़े तो जर्जस शख़्स ऩे मकरूज़ को

आज़ाद किाया हो ज़रूिी है कक वह मकरूज़ को कज़कख़्वाह क़े हवाल़े कि द़े या

उसका कज़क अदा कि़े ।

751
अमानत के अह्काम

2336. अगि एक शख़्स कोई माल ककसी को द़े औि कह़े यह तम्


ु हाि़े पास

अमानत िह़े गा औि वह भी किल


ू कि़े या कोई लफ़्ज़ कह़े िगैि माल का मामलक

उस शख़्स को समझा द़े कक वह उस़े माल िखवाली क़े मलए द़े िहा है औि वह भी

िखवाली क़े मक़्सद स़े ल़े ल़े तो ज़रूिी है कक अमानतदािी क़े उन अह्काम क़े

मत
ु ाबिक अमल कि़े र्जो िाद में ियान होंग़े।

2337. ज़रूिी है कक अमानतदाि औि वह शख़्स र्जो माल ितौि़े अमानत द़े दोनों

िामलग औि आककल हों औि ककसी ऩे उन्हें मर्जििू न ककया हो मलहाज़ा अगि कोई

शख़्स ककसी माल को दीवाऩे या िच्च़े क़े पास अमानत क़े तौि पि िख़े या दीवाना

या िच्चा कोई माल ककसी क़े पास अमानत क़े तौि पि िख़े तो सहीह नहीं है । हां

समझदाि िच्चा ककसी दस


ू ि़े क़े माल को उसक़ी इर्जाज़त स़े ककसी क़े पास अमानत

िख़े तो र्जाइज़ है । इसी तिह ज़रूिी है कक अमानत िखवाऩे वाला सफ़़ीह औि

दीवामलया न हो ल़ेककन अगि दीवामलया हो ताहम र्जो माल उसऩे अमानत क़े तौि

पि िखवाया हो वह उस माल में स़े न हो जर्जसमें उस़े तसरूकफ़ किऩे स़े मनअ

ककया गया है तो उस सिू त में कोई इश्काल नहीं है नीज़ उस सिू त में र्जिकक माल

क़ी हहफ़ाज़त किऩे क़े मलए अमानतदाि को अपना माल खचक किना पड़़े तो ज़रूिी

है कक वह सफ़़ीह औि दीवामलया न हो।

752
2338. अगि कोई शख़्स िच्च़े स़े कोई चीज़ उसक़े मामलक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि

ितौि अमानत किल


ू कि ल़े तो ज़रूिी है कक वह चीज़ उसक़े मामलक को द़े द़े

औि अगि वह चीज़ ख़्वाह िच्च़े का माल हो तो लाजज़म है कक वह चीज़ िच्च़े क़े

सिपिस्त तक पहुंचा द़े , औि अगि वह माल उन लोगों क़े पास पहुंचाऩे स़े पहल़े

तलफ़ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े मगि इस डि स़े कक खुदानख़्वास्ता

तलफ़ हो र्जाए उस माल को उसक़े मामलक तक पहुंचाऩे क़ी नीयत स़े मलया हो तो

उस सिू त में अगि उसऩे माल क़ी हहफ़ाज़त किऩे औि उस़े मामलक तक पहुंचाऩे

में कोताही न क़ी हो तो वह ज़ाममन नहीं है औि अगि अमानत क़े तौि पि माल

द़े ऩे वाला दीवाना हो ति भी यही हुक्म है ।

2339. र्जो शख़्स अमानत क़ी हहफ़ाज़त न कि सकता हो अगि अमानत िखवाऩे

वाला उसक़ी इस हालत स़े िाखिि न हो तो ज़रूिी है कक वह शख़्स अमानत किल


न कि़े ।

2340. अगि इंसान साहि़े माल को समझाए कक वह उस माल क़ी हहफ़ाज़त क़े

मलए तौयाि नहीं औि उस माल को अमानत क़े तौि पि किल


ू न कि़े औि साहि़े

माल किि भी माल छोड़ कि चला र्जाए औि वह माल तलफ़ हो र्जाए तो जर्जस

शख़्स ऩे अमानत किल


ू न क़ी हो वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ल़ेककन एहततयात़े मस्
ु तहि

यह है कक अगि मजु म्कन हो तो उस माल क़ी हहफ़ाज़त कि़े ।

753
2341. र्जो शख़्स ककसी क़े पास कोई चीज़ ितौि अमानत िखवाए वह अमानत

को जर्जस वक़्त चाह़े मंसख


ू कि सकता है औि इसी तिह अमीन भी र्जि चाह़े उस़े

मंसख
ू कि सकता है ।

2342. अगि कोई शख़्स अमानत क़ी तनगहदाश्त तकक कि द़े औि अमानतदािी

मंसख
ू कि द़े तो ज़रूिी है कक जर्जस कदि र्जल्द हो सक़े माल उसक़े मामलक या

मामलक क़े वक़ील या सिपिस्त को पहुंचा द़े या उन्हें इवत्तलाअ द़े कक वह माल क़ी

(मज़ीद) तनगहदाश्त क़े मलए तैयाि नहीं है औि अगि वह िगैि उज़्र क़े माल उन

तक न पहुंचाए या इवत्तलाअ न द़े औि माल तलफ़ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका

एवज़ द़े ।

2343. र्जो शख़्स अमानत किल


ू कि़े अगि उसक़े पास उस़े िखऩे क़े मलए

मन
ु ामसि र्जगह न हो तो ज़रूिी है कक उसक़े मलए मन
ु ामसि र्जगह हामसल कि़े औि

अमानत क़ी इस तिह तनगहदाश्त कि़े कक लोग यह न कहें कक उसऩे तनगहदाश्त

में कोताही क़ी है औि अगि वह इस काम में कोताही कि़े औि अमानत तलफ़ हो

र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े ।

2344. र्जो शख़्स अमानत किल


ू कि़े अगि वह उसक़ी तनगहदाश्त में कोताही न

कि़े औि न ही तअद्दी कि़े औि इवत्तफ़ाकन वह माल तलफ़ हो र्जाए तो वह शख़्स

जज़म्म़ेदाि नहीं है ल़ेककन अगि वह उस माल क़ी हहफ़ाज़त में कोताही क़ेि औि

माल को ऐसी र्जगह िख़े र्जहां वह ऐसा गैि महफ़ूज़ हो कक अगि कोई ज़ामलम

754
खिि पाए तो ल़े र्जाए या वह इस माल में तअद्दी कि़े यअनी मामलक क़ी इर्जाज़त

क़े िगैि उस माल में तसरूकफ़ कि़े मसलन मलिास को इस्त़ेमाल कि़े या र्जानवि

पि सवािी कि़े औि वह तलफ़ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ उसक़े मामलक

को द़े ।

2345. अगि माल का मामलक अपऩे माल क़ी तनगहदाश्त क़े मलए कोई र्जगह

मअ
ु य्यन कि द़े औि जर्जस शख़्स ऩे अमानत किल
ू क़ी हो उसस़े कह़े कक, तुम्हें

चाहहय़े कक यहीं माल का ख़्याल िखो औि अगि उसक़े ज़ाए हो र्जाऩे का एहततमाल

हो ति भी तम
ु उसको कहीं औि ल़े र्जाना, तो अमानत किल
ू किऩे वाला उस़े

ककसी औि र्जगह नहीं ल़े र्जा सकता औि अगि वह माल को ककसी दस


ू िी र्जगह ल़े

र्जाए औि वह तलफ़ हो र्जाए तो अमीन जज़म्म़ेदाि है ।

2346. अगि माल का मामलक अपऩे माल क़ी तनगहदाश्त क़े मलए कोई र्जगह

मअ
ु य्यन कि़े ल़ेककन ज़ाहहिन वह यह कह िहा हो कक उसक़ी नज़ि में वह र्जगह

कोई खस
ु स
ू ीयत नहीं िखती िजल्क वह र्जगह माल क़े मलए महफ़ूज़ र्जगहों में स़े

एक है तो वह शख़्स जर्जसऩे अमानत किल


ू क़ी है उस माल को ककसी ऐसी र्जगह

र्जो ज़्यादा महफ़ूज़ हो या पहली र्जगह जर्जतनी महफ़ूज़ हो ल़े र्जा सकता है औि

अगि माल वहां तलफ़ हो र्जाए तो वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2347. अगि माल का मामलक हम़ेशा क़े मलए दीवाना या ि़ेहवास हो र्जाए तो

अमानत का मआ
ु मला खत्म हो र्जाय़ेगा औि जर्जस शख़्स ऩे उसस़े अमानत किल

755
क़ी हो उस़े चाहहय़े कक फ़ौिन अमानत उसक़े सिपिस्त को पहुंचा द़े या उसक़े

सिपिस्त को खिि कि़े औि अगि वह शिई उज़्र क़े िगैि माल दीवाऩे क़े सिपिस्त

को न पहुंचाए औि उस़े खिि किऩे में भी कोताही िित़े औि माल तलफ़ हो र्जाए

तो उस़े चाहहए कक उसका एवज़ द़े । ल़ेककन अगि माल क़े मामलक पि कभी कभाि

दीवांगी या ि़ेहवासी का दौिा पड़ता हो तो इस सिू त में अमानत का मआ


ु मला

िाततल होऩे में इश्काल है ।

2348. अगि माल का मामलक मि र्जाए तो अमानत का मआ


ु मला िाततल हो

र्जाता है मलहाज़ा अगि उस माल में ककसी दस


ू ि़े का हक न हो तो वह माल उसक़े

वारिस को ममलता है औि ज़रूिी है कक अमानतदाि उस माल को उसक़े वारिस तक

पहुंचाए या उस़े इवत्तलाअ द़े । औि अगि वह शिई उज़्र क़े िगैि माल को उसक़े

वारिस क़े हवाल़े न कि़े औि खिि द़े ऩे में भी कोताही िित़े औि माल ज़ाए हो तो

वह जज़म्म़ेदाि है ल़ेककन अगि वह माल इस मलए वारिस को न द़े औि उस़े खिि

द़े ऩे में भी कोताही कि़े कक र्जानना चाहता हो कक वह शख़्स र्जो कहता है कक

मैतयत का वारिस हूं वाककअय ठ क कहता है या नहीं या यह र्जानना चाहता हो कक

कोई औि शख़्स मैतयत का वारिस है या नहीं औि अगि (इस तह्क़ीक क़े िीच)

माल तलफ़ हो र्जाए तो वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2349. अगि माल का मामलक मि र्जाए औि माल क़ी ममजल्कयत का हक उसक़े

विसा को ममल र्जाए तो जर्जस शख़्स ऩे अमानत किल


ू क़ी हो ज़रूिी है कक माल

756
तमाम विसा को द़े या उस शख़्स को द़े जर्जस़े माल द़े ऩे पि सि विसा िज़ामन्द

हों। मलहाज़ा अगि वह दस


ू ि़े विसा क़ी इर्जाज़त क़े िगैि तमाम माल फ़कत एक

वारिस को द़े द़े तो वह दस


ू िों क़े हहस्सों का जज़म्म़ेदाि है ।

2350 जर्जस शख़्स ऩे अमानत किल


ू क़ी हो अगि वह मि र्जाए या हम़ेशा क़े

मलए दीवाना या ि़ेहवास हो र्जाए तो अमानत का मआ


ु मला िाततल हो र्जाय़ेगा औि

उसक़े सिपिस्त या वारिस को चाहहय़े कक जर्जस कदि र्जल्द हो सक़े माल क़े

मामलक को इवत्तलाअ द़े या अमानत उस तक पहुंचाए। ल़ेककन अगि कभी कभाि

(या थोड़ी मद्


ु दत क़े मलए) दीवाना या ि़ेहवास होता हो तो उस सिू त में अमानत

का मआ
ु मला िाततल होऩे में इश्काल है ।

2351. अगि अमानतदाि अपऩे आप में मौत क़ी तनशातनयां द़े ख़े तो अगि

मजु म्कन हो तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक अमानत को उसक़े मामलक

सिपिस्त या वक़ील तक पहुंचा द़े या उसको इवत्तलाअ द़े औि अगि यह मजु म्कन

न हो तो ज़रूिी है कक ऐसा िन्दोिस्त कि़े कक उस़े इत्मीनान हो र्जाए कक उसक़े

मिऩे क़े िाद माल उसक़े मामलक को ममल र्जाय़ेगा मसलन वसीयत कि़े औि उस

वसीयत पि गवाह मक
ु िक ि कि़े औि माल क़े मामलक का नाम औि माल क़ी जर्जन्स

औि खुसस
ू ीयात औि महल्ल़े वकूउ वसी औि गवाहों को िता द़े ।

2352. अगि अमानत दाि अपऩे आप में मौत क़ी तनशातनयां द़े ख़े औि र्जो

तिीका इसस़े पहल़े मस ्अल़े में िताया गया है उसक़े मत


ु ाबिक अमल न कि़े तो वह

757
उस अमानत का ज़ाममन होगा मलहाज़ा अगि अमानत ज़ाए हो र्जाए तो ज़रूिी है

कक उसका एवज़ द़े । ल़ेककन अगि वह र्जााँिि हो र्जाए या कुछ मद्


ु दत गज़
ु िऩे क़े

िाद पशीमान हो र्जाए औि कुछ (साबिका मस ्अल़े में ) िताया गया है उस पि

अमल कि़े तो अज़्हि यह है कक वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

आरिया के अह्काम

2353. आरिया स़े मिु ाद यह है कक इंसान अपना माल दस


ू ि़े को द़े ताकक वह

उस माल स़े इजस्तफ़ादा कि़े औि उसक़े एवज़ कोई चीज़ उसस़े न ल़े।

2354. आरिया में सीगा पढ़ना लाजज़म नहीं औि अगि ममसाल क़े तौि पि कोई

शख़्स ककसी को मलिास आरिया क़े कस्द स़े द़े औि वह भी उसी कस्द स़े ल़े तो

आरिया सहीह है ।

2355. गस्िी चीज़ या उस चीज़ को ितौि़े आरिया द़े ना र्जो कक आरिया द़े ऩे

वाल़े का माल हो ल़ेककन उसक़ी आमदनी उसऩे ककसी दसि़े शख़्स क़े मसपद
ु क कि दी

हो मसलन उस़े ककिाय़े पि द़े िखा हो, उस सिू त में सहीह है र्जि गस्िी चीज़ का

मामलक या वह शख़्स जर्जसऩे आरिया दी र्जाऩे वाली चीज़ को ितौि इर्जािा ल़े िखा

हो औि उसक़े ितौि़े आरिया द़े ऩे पि िाज़ी हो।

2356. जर्जस चीज़ क़ी मनफ़अत ककसी शख़्स क़े मसपद


ु क हो मसलन उस चीज़ को

ककिाए पि ल़े िखा हो तो उस़े ितौि आरिया द़े सकता है ल़ेककन एहततयात क़ी

758
बिना पि मामलक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस शख़्स क़े हवाल़े नहीं कि सकता जर्जसऩे

उस़े ितौि़े आरिया मलया है।

2357. अगि दीवाना, िच्चा, दीवामलया औि सफ़़ीह अपना माल आरियतन दें तो

सहीह नहीं है । ल़ेककन अगि (उनमें स़े ककसी का) सिपिस्त आरिया द़े ऩे क़ी

मसलहत समझता हो औि जर्जस शख़्स का वह सिपिस्त है उसका माल आरियतन

द़े द़े तो इसमें कोई इश्काल नहीं। इसी तिह जर्जस शख़्स ऩे माल आरियतन मलया

हो उस तक माल पहुंचाऩे क़े मलए िच्चा वसीला िऩे तो कोई इश्काल नहीं है।

2358. आरियतन ली हुई चीज़ क़ी तनगहदाश्त में कोताही न कि़े औि उसस़े

मअमल
ू स़े ज़्यादा इजस्तफ़ादा भी न कि़े औि इवत्तफ़ाकन वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए

तो वह शख़्स जज़म्म़ेदाि नहीं है ल़ेककन अगि तिफ़ैन आपस में यह शतक किें कक

अगि वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए तो आरियतन ल़ेऩे वाला जज़म्म़ेदाि होगा या र्जो

चीज़ आरियतन ली हो वह सोना या चांदी हो तो उसका एवज़ द़े ना ज़रूिी है।

2359. अगि कोई शख़्स सोना या चांदी आरियतन ल़े औि यह तय ककया हो

कक अगि तलफ़ हो गया हो तो जज़म्म़ेदाि नहीं होगा किि तलफ़ हो र्जाए तो वह

शख़्स जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2360. अगि आरिया पि द़े ऩे वाला मि र्जाए तो आरिया पि ल़ेऩे वाल़े क़े मलए

ज़रूिी है कक र्जो तिीका अमानत क़े मामलक क़े फ़ौत हो र्जाऩे क़ी सिू त में मस ्अला

2348 में िताया गया है उसी क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े ।

759
2361. अगि आरिया द़े ऩे वाल़े क़ी कैफ़़ीयत यह हो कक वह शिअन अपऩे माल

में तसरूकफ़ न कि सकता हो मसलन दीवाना या ि़ेहवास हो र्जाए तो आरिया ल़ेऩे

वाल़े क़े मलए ज़रूिी है कक उसी तिीक़े क़े मत


ु ाबिक अमल कि़े र्जो मस ्अला 2347

में अमानत क़े िाि़े में उस र्जैसी सिू त में ियान ककया गया है।

2362. जर्जस शख़्स ऩे कोई चीर्ज आरियतन दी हो वह र्जि भी चाह़े उस़े मंसख

कि सकता है औि जर्जसऩे कोई चीज़ आरियतन ली हो वह भी र्जि चाह़े उस़े मंसख


कि सकता है ।

2363. ककसी ऐसी चीज़ का आरियतन द़े ना जर्जसस़े हलाल इजस्तफ़ादा न हो

सकता हो मसलन लहव व लइि औि कुमाििाज़ी क़े आलात औि खाऩे पीऩे में

इस्त़ेमाल किऩे क़े मलए सोऩे औि चांदी क़े ितकन आरियतन द़े ना – िजल्क

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि हि ककस्म क़े इस्त़ेमाल क़े मलए आरियतन द़े ना –

िाततल है औि तज़ ्ईन व आिाइश क़े मलए आरियतन द़े ना र्जाइज़ है अगिच़े

एहततयात न द़े ऩे में है ।

2364. भ़ेड़ (िकरियों) को उनक़े दध


ू औि उन स़े इजस्तफ़ादा किऩे क़े मलए नीज़

नि है वान को मादा हैवानात क़े साथ ममलाप क़े मलए आरियतन द़े ना सहीह है ।

2365. अगि ककसी चीज़ को आरियतन ल़ेऩे वाला उस़े उसक़े मामलक या

मामलक क़े वक़ील या सिपिस्त को द़े द़े औि उसक़े िाद वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए

तो उस चीज़ को आरियतन ल़ेऩे वाला जज़म्म़ेदाि नहीं है ल़ेककन अगि वह माल क़े

760
मामलक या वक़ील या सिपिस्त क़ी इर्जाज़त क़े िगैि माल को ख़्वाह ऐसी र्जगह ल़े

र्जाए र्जहां माल का मामलक उस़े उमम


ू न ल़े र्जाता हो मसलन र्ोड़़े को अस्तिल में

िांध द़े र्जो उसक़े मामलक ऩे उसक़े मलए तैयाि ककया हो औि िाद में र्ोड़ा तलफ़

हो र्जाए या कोई उस़े तलफ़ कि द़े तो आरियतन ल़ेऩे वाला जज़म्म़ेदाि है।

2366. अगि एक शख़्स कोई नजर्जस चीर्ज आरियतन द़े तो उस सिू त में उस़े

चाहहय़े कक मस ्अला 2065 में गज़


ु ि चक
ु ा है – उस चीज़ क़े नर्जीस होऩे क़े िाि़े में

आरियतन ल़ेऩे वाल़े शख़्स को िता द़े ।

2367. र्जो चीज़ ककसी शख़्स ऩे आरियतन ली हो उस़े उसक़े मामलक क़ी

इर्जाज़त क़े िगैि ककसी दस


ू ि़े को ककिाय़े पि या आरियतन नहीं द़े सकता।

2368. र्जो चीज़ ककसी शख़्स ऩे आरियतन न ली हो अगि वह उस़े मामलक क़ी

इर्जाज़त स़े ककसी औि शख़्स को आरियतन द़े द़े तो अगि जर्जस शख़्स ऩे पहल़े

वह चीज़ आरियतन ली हो मि र्जाए या दीवाना हो र्जाए तो दस


ू िा आरिया िाततल

नहीं होता।

2369. अगि कोई शख़्स र्जानता हो कक र्जो माल उसऩे आरियतन मलया है वह

गस्िी है तो ज़रूिी है कक वह माल उसक़े मामलक को पहुंचा द़े औि वह उस़े

आरियतन द़े ऩे वाल़े को नहीं द़े सकता।

2370. अगि कोई शख़्स ऐसा माल आरियतन ल़े जर्जसक़े मत


ु अजल्लक र्जानता हो

कक वह गस्िी है औि वह उसस़े फ़ाइदा उठाए औि उसक़े हाथ स़े वह माल तलफ़

761
हो र्जाए तो मामलक उस माल का एवज़ औि र्जो फ़ाइदा आरियतन ल़ेऩे वाल़े ऩे

उठाया है उसका एवज़ उसस़े या जर्जसऩे माल गस्ि ककया हो उसस़े तलि कि

सकता है औि अगि मामलक आरियतन ल़ेऩे वाल़े स़े एवज़ ल़े ल़े तो आरियतन

ल़ेऩे वाला र्जो कुछ मामलक को द़े उसका मत


ु ालिा आरियतन द़े ऩे वाल़े स़े नहीं कि

सकता।

2371. अगि ककसी शख़्स को यह मअलम


ू न हो कक उसऩे र्जो माल आरियतन

मलया है वह गस्िी है औि उसक़े पास होत़े हुए वह माल तलफ़ हो र्जाए तो अगि

माल का मामलक उसका एवज़ उसस़े ल़े ल़े तो वह भी र्जो कुछ माल क़े मामलक

को हदया हो उसका मत
ु ालिा आरियतन द़े ऩे वाल़े स़े कि सकता है । ल़ेककन अगि

उसऩे र्जो चीज़ आरियतन ली हो वह सोना या चांदी हो या ितौि़े आरिया द़े ऩे वाल़े

ऩे उसस़े शतक क़ी हो कक अगि वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए तो वह उसका एवज़ द़े गा

तो किि उसऩे माल का र्जो एवज़ माल क़े मामलक को हदया हो उसका मत
ु ालिा

आरियतन द़े ऩे वाल़े स़े नहीं कि सकता।

तनकाह के अह्काम

अक़्द़े इजज़्दवार्ज क़े ज़िीए औित, मदक पि औि मदक , औित पि हलाल हो र्जात़े हैं

औि अक़्द क़ी दो ककस्में हैं पहली दाइमी औि दस


ू िी गैि दाइमी। मक
ु िक िा वक़्त क़े

मलए अक़्द अक़्द़े दाइमी उस़े कहत़े हैं जर्जसमें इजज़्दवार्ज क़ी मद्
ु दत मअ
ु य्यन न
762
हो औि वह हम़ेशा क़े मलए हो औि जर्जस औित स़े इस ककस्म का अक़्द ककया

र्जाए उस़े दाइमा कहत़े हैं। औि गैि दाइमी अक़्द वह है जर्जसमें इजज़्दवार्ज क़ी

मद्
ु दत मअ
ु य्यन हो मसलन औित क़े साथ एक र्ंट़े या एक हदन या एक महीऩे

या एक साल या उसस़े ज़्यादा मद्


ु दत क़े मलए अक़्द ककया र्जाए ल़ेककन उस अक़्द

क़ी मद्
ु दत औित औि मदक क़ी तमाम उम्र स़े ज़्यादा नहीं होनी चाहहए क्योंकक उस

सिू त में अक़्द िाततल हो र्जाय़ेगा। र्जि औित स़े इस ककस्म का अक़्द ककया र्जाए

तो उस़े अक़्द़े मत
ु अ या सीगा कहत़े हैं।

2372. इज़हदवार्ज ख़्वाह दाइमी हो या गैि दाइमी उसमें सीगा (तनकाह क़े िोल)

पढ़ना ज़रूिी है । औित औि मदक का महज़ होना औि इसी तिह (तनकाहनामा)

मलखना काफ़़ी नहीं है। तनकाह का सीगा या तो औित औि मदक खुद पढ़त़े हैं या

ककसी को वक़ील मक
ु िक ि कि ल़ेत़े हैं ताकक वह उनक़ी तिफ़ स़े पढ़ द़े ।

2373. वक़ील का मदक होना लाजज़म नहीं िजल्क औित भी तनकाह का सीगा

पढ़ऩे क़े मलए ककसी दस


ू ि़े क़ी र्जातनि स़े वक़ील हो सकती है।

2374. औित औि मदक को र्जि तक इत्मीनान न हो र्जाए कक उनक़े वक़ील ऩे

सीगा पढ़ हदया है उस वक़्त तक वह एक दस


ू ि़े को महिमाना नज़िों स़े नहीं द़े ख

सकत़े औि इस िात का गुमान कक वक़ील ऩे सीगा पढ़ हदया है काफ़़ी नहीं है।

िजल्क अगि वक़ील कह द़े कक मैंऩे सीगा पढ़ हदया है ल़ेककन उसक़ी िात पि

इत्मीनान न हो तो उसक़ी िात पि भिोसा किना महल्ल़े इश्काल है ।

763
2375. अगि कोई औित ककसी को वक़ील मक
ु िक ि कि़े औि कह़े कक तुम म़ेिा

तनकाह दस हदन क़े मलए फ़लां शख़्स क़े साथ पढ़ दो औि दस हदन क़ी इजबतदा

को मअ
ु य्यन न कि़े तो वह (तनकाहख़्वान) वक़ील जर्जन दस हदनों क़े मलए चाह़े

उस़े उस मदक क़े तनकाह में द़े सकता है ल़ेककन अगि वक़ील को मअलम
ू हो कक

औित का मक़्सद ककसी खास हदन या र्ंट़े का है तो किि उस़े चाहहय़े कक औित

क़े कस्द क़े मत


ु ाबिक सीगा पढ़़े ।

2376. अक़्द़े दाइमी या अक़्द़े गैि दाइमी का सीगा पढ़ऩे क़े मलए एक शख़्स दो

अश्खास क़ी तिफ़ स़े वक़ील िन सकता है औि इंसान यह भी कि सकता है कक

औित क़ी तिफ़ स़े वक़ील िन र्जाए औि उसस़े खुद दाइमी या गैि दाइमी तनकाह

कि ल़े ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक तनकाह दो अश्खास पढ़ें ।

तनकाह पढ़ने का तिीका

2377. अगि औित औि मदक खुद अपऩे दाइमी तनकाह का सीगा पढ़ें तो महि

मअ
ु य्यन किऩे क़े िाद पहल़े औित कह़े , ज़व्वज्तुका नफ़्सी अलस ् मसदाककल

मअलम
ू , यअनी मैंऩे उस महि पि र्जो मअ
ु य्यन हो चक
ु ा है अपऩे आपको तुम्हािी

िीिी िनाया औि उसक़े लम्ह़े भि िाद मदक कह़े , कबिल्तुत ् तज़्वीर्जा यअनी मैंऩे

इजज़्दवार्ज को किल
ू ककया, तो तनकाह सहीह है। औि अगि वह ककसी दस
ू ि़े को

वक़ील मक
ु िक ि किें कक उनक़ी तिफ़ स़े सीगा ए तनकाह पढ़ द़े तो अगि ममसाल क़े

764
तौि पि मदक का नाम अहमद औि औित का नाम फ़ाततमा हो औि औित का

वक़ील कह़े , ज़व्वज्तो मव


ु जक्कलका अहमदा मव
ु जक्कलती फ़ाततमता अलस ् मसदाककल

मअलम
ू , औि उसक़े लम्हा भि िाद मदक का वक़ील कह़े , कबिल्तत
ु तज़्वीर्जा ल़े

मव
ु जक्कली अहमदा अलस मसदाककल मअलम
ू तो तनकाह सहीह होगा औि

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक मदक र्जो लफ़्ज़ कह़े वह औित क़े कह़े र्जाऩे वाल़े

लफ़्ज़ क़े मत
ु ाबिक हो मसलन अगि औित, ज़व्वज्तो कह़े तो मदक भी कववल्तत

तज़्वीर्जा कह़े औि कबिल्तुन ् तनकाह न कह़े ।

2378. अगि खद
ु औित औि मदक चाहें तो गैि दाइमी तनकाह का सीगा तनकाह

क़ी मद्
ु दत औि महि मअ
ु य्यन किऩे क़े िाद पढ़ सकत़े हैं। मलहाज़ा अगि औित

कह़े ज़व्वर्जतक
ु ान नफ़्सी कफ़ल्मद्
ु दततल मअलम
ू त़े अलल महरिल मअलम
ू औि

उसक़े लम्हा भि िाद मदक कह़े कबिल्तो तो तनकाह सहीह है। औि अगि वह ककसी

औि शख़्स को वक़ील िनाय़े औि पहल़े औित का वक़ील मदक क़े वक़ील स़े कह़े ,

ज़व्वज्तो मव
ु जक्कतली मव
ु जक्कलका कफ़लमद्
ु दततल मअलम
ू त़े अलल महरिल

मअलम
ू औि उसक़े िाद मदक का वक़ील मअमल
ू ी तवक़्कुफ़ क़े िाद कह़े , कबिल्तत

तज़वीर्जा ल़ेमव
ु जक्कली हाकज़ा तो तनकाह सहीह होगा।

तनकाह की शिाइत

2379. तनकाह क़ी चन्द शतें हैं र्जो ज़ैल में दर्जक क़ी र्जाती हैं –

765
1. एहततयात क़ी बिना पि तनकाह का सीगा सहीह अििी में पढ़ा र्जाए औि

अगि खद
ु मदक औि औित सीगा सहीह अििी न पढ़ सकत़े हों तो अििी क़े अलावा

ककसी दस
ू िी ज़िान में पढ़ सकत़े हैं औि ककसी शख़्स को वक़ील िनाना लाजज़म

नहीं है । अलित्ता उन्हें चाहहय़े कक वह अल्फ़ाज़ कहें र्जो ज़व्वज्तो औि कबिल्तो का

मफ़्हूम अदा कि सकें।

2. मदक औि औित या उनक़े वक़ील र्जो कक सीगा पढ़ िह़े हों वह कस्द़े इंशा

िखत़े हों यअनी अगि खुद मदक औि औित सीगा पढ़ िह़े हों तो औित का

ज़व्वज्तक
ु ा नफ़्सी कहना इस नीयत स़े हो कक खद
ु को उसक़ी िीवी किाि द़े औि

मदक का कबिल्तुत ् तज़वीर्जा कहना इस नीयत स़े हो कक वह उसका अपनी िीवी

िनना किल
ू कि़े औि अगि मदक औि औित क़े वक़ील सीगा पढ़ िह़े हों तो

ज़व्वज्तो व कबिल्तो कहऩे स़े उनक़ी नीयत यह हो कक वह मदक औि औित

जर्जन्होंऩे उन्हें वक़ील िनाया है एक दस


ू ि़े क़े ममयां िीवी िन र्जायें।

3. र्जो शख़्स सीगा पढ़ िहा हो ज़रूिी है कक वह आककल हो औि एहततयात क़ी

बिना पि उस़े िामलग भी होना चाहहय़े। ख़्वाह वह अपऩे मलय़े सीगा पढ़़े या ककसी

दस
ू ि़े क़ी तिफ़ स़े वक़ील िनाया गया हो।

4. अगि औित औि मदक क़े वक़ील या उनक़े सिपिस्त सीगा पढ़ िह़े हों तो वह

तनकाह क़े वक़्त औित औि मदक को मअ


ु य्यन कि लें मसलन उनक़े नाम लें या

उनक़ी तिफ़ इशािा किें । मलहाज़ा जर्जस शख़्स क़ी कई लड़ककयां हों अगि वह ककसी

766
मदक स़े कह़े ज़व्वज्तक
ु ा एह्दा िनाती यअनी मैंऩे अपनी ि़ेहटयों में स़े एक को

तम्
ु हािी िीवी िनाया औि वह मदक कह़े , कबिल्तो यअनी मैंऩे किल
ू ककया तो चकंू क

तनकाह कित़े वक़्त लड़क़ी को मअ


ु य्यन नहीं ककया गया इस मलय़े तनकाह िाततल

है ।

5. औित औि मदक इज़हदवार्ज पि िाज़ी हों। हां अगि औित िज़ाहहि नापसंदीदगी

स़े इर्जाज़त द़े औि मअलम


ू हो कक हदल स़े िाज़ी है तो तनकाह सहीह है।

2380. अगि तनकाह में एक हफ़क भी गलत पढ़ा र्जाए र्जो उसक़े मअनी िदल द़े

तो तनकाह िाततल है।

2381. वह शख़्स र्जो तनकाह का सीगा पढ़ िहा हो अगि ख़्वाह वह इज्माली

तौि पि तनकाह क़े मअनी र्जानता हो औि उसक़े मअनी को हक़ीक़ी शक्ल द़े ना

चाहता हो तो तनकाह सहीह है। औि यह लाजज़म नहीं कक वह तफ़्सील क़े साथ

सीग़े क़े मअनी र्जानता हो मसलन या र्जानना (ज़रूिी नहीं है ) कक अििी ज़िान क़े

मलहाज़ स़े फ़़ेल या फ़ायल कौन सा है ।

2382. अगि ककसी औित का तनकाह उसक़ी इर्जाज़त क़े िगैि ककसी मदक स़े कि

हदया र्जाए औि िाद में औित औि मदक उस तनकाह क़ी इर्जाज़त द़े दें तो तनकाह

सहीह है।

767
2383. अगि औित औि मदक दोनों को या उनमें स़े ककसी एक को इजज़्दवार्ज पि

मर्जििू ककया र्जाए औि तनकाह पढ़़े र्जाऩे क़े िाद वह इर्जाज़त द़े दें तो तनकाह

सहीह है औि ि़ेहति यह है कक दोिािा तनकाह पढ़ा र्जाए।

2384. िाप औि दादा अपऩे नािामलग लड़क़े या लड़क़ी (पोत़े या पोती) या

दीवाऩे फ़ज़कन्द का र्जो दीवांगी क़ी हालत में िामलग हुआ हो तनकाह कि सकत़े हैं

औि र्जि वह िच्चा िामलग हो र्जाए या दीवाना आककल हो र्जाए तो उन्होंऩे उसका

र्जो तनकाह ककया हो अगि उसमें कोई खिािी हो तो उन्हें उस तनकाह को ििकिाि

िखऩे या खत्म किऩे का इजख़्तयाि है औि अगि कोई खिािी न हो औि िामलग

लड़क़े औि लड़क़ी में स़े कोई एक अपऩे उस तनकाह को मंसख


ू कि़े तो तलाक या

दोिािा तनकाह पढ़ऩे क़ी एहततयात तकक नहीं होती।

2385. र्जो लड़क़ी मसऩे िल


ु ग
ू को पहुंच चकु क हो औि िशीदा हो यअनी अपना

भला ििु ा समझ सकती हो अगि वह शादी किना चाह़े औि कंु वािी हो तो –

एहततयात क़ी बिना पि – उस़े चाहहय़े कक अपऩे िाप या दादा स़े इर्जाज़त ल़े

अगिच़े वह खद
ु मख़्
ु तािी स़े अपनी जज़न्दगी क़े कामों को अंर्जाम द़े ती हो अलित्ता

मां औि भाई स़े इर्जाज़त ल़ेना लाजज़म नहीं।

2386. अगि लड़क़ी कंु वािी न हो या कंु वािी हो ल़ेककन िाप या दादा उस मदक क़े

साथ उस़े शादी किऩे क़ी इर्जाज़त न द़े त़े हों र्जो उफ़कन व शिअन उसका हम पल्ला

हो या िाप औि दादा ि़ेटी क़ी शादी क़े मआ


ु मल़े में ककसी तिह शिीक होऩे क़े मलए

768
िाज़ी न हों या दीवांगी या उस र्जैसी ककसी दस
ू िी वर्जह स़े इर्जाज़त द़े ऩे क़ी

अहमलयत न िखत़े हों तो इन तमाम सिू तों में उनस़े इर्जाज़त ल़ेना लाजज़म नहीं

है । इसी तिह उन क़े मौर्जद


ू न होऩे या ककसी दस
ू िी वर्जह स़े इर्जाज़त ल़ेना

मजु म्कन न हो औि लड़क़ी का शादी किना ि़ेहद ज़रूिी हो तो िाप औि दादा स़े

इर्जाज़त ल़ेना लाजज़म नहीं है ।

2387. अगि िाप या दादा अपऩे ना िामलग लड़क़े (या पोत़े) क़ी शादी कि दें

तो लड़क़े (या पोत़े) को चाहहय़े कक िामलग होऩे क़े िाद उस औित का खचक द़े

िजल्क िामलग होऩे स़े पहल़े भी र्जि उसक़ी उम्र इतनी हो र्जाए कक वह उस लड़क़ी

स़े लज़्ज़त उठाऩे क़ी काबिलीयत िखता हो औि लड़क़ी भी इस कदि छोटी न हो

कक शौहि उस स़े लज़्ज़त न उठा सक़े तो िीवी क़े खचक का जज़म्म़ेदाि लड़का है

औि इस सिू त क़े अलावा भी एहततमाल है कक िीवी खचक क़ी मस्


ु तहक हो। पस

एहततयात यह है कक मस
ु ालहत वगैिा क़े ज़िीए मस ्अल़े को हल कि़े ।

2388. अगि िाप या दादा अपऩे ना िामलग लड़क़े (या पोत़े) क़ी शादी कि दें

तो अगि लड़क़े क़े पास तनकाह क़े वक़्त कोई माल न हो तो िाप या दादा को

चाहहय़े कक उस औित का महि द़े औि यही हुक्म है अगि लड़क़े (या पोत़े) क़े

पास कोई माल हो ल़ेककन िाप या दादा ऩे महि अदा किऩे क़ी ज़मानत दी हो।

औि इन दो सिू तों क़े अलावा अगि उसका महि महरुल ममस्ल स़े ज़्यादा न हो या

ककसी मसलहत क़ी बिना पि उस लड़क़ी का महि महरुल ममस्ल स़े ज़्यादा हो तो

769
िाप या दादा ि़ेट़े (या पोत़े) क़े माल स़े महि अदा कि सकत़े हैं विना ि़ेट़े (या

पोत़े) क़े माल स़े महरुल ममस्ल स़े ज़्यादा महि नहीं द़े सकत़े मगि यह कक िच्चा

िामलग होऩे क़े िाद उनक़े इस काम को कबल


ू कि़े ।

वह सिू तें जर्जनमें मदक या औित तनकाह फ़स्ख कि सकत़े हैं

2389. अगि तनकाह क़े िाद मदक को पता चल़े कक औित में तनकाह क़े वक़्त

मन्
ु दरिर्जा ज़ैल छः उयि
ू में स़े कोई ऐि मौर्जूद था तो उसक़ी वर्जह स़े तनकाह को

फ़स्ख कि सकता हैः-

1. दीवानगी – अगिच़े कभी कभाि होती हो।

2. र्जुज़ाम।

3. िसक। (सि़ेद दाग)

4. अंधापन।

5. अपाहहर्ज होना। अगिच़े ज़मीन पि न र्मसटती हो।

6. िच्चादानी में गोश्त या हड्डी हो। ख़्वाह जर्जमाअ औि हम्ल क़े मलए माऩे हो

या न हो। औि अगि मदक को तनकाह क़े िाद पता चल़े कक औित तनकाह क़े वक़्त

इफ़्ज़ा हो चक
ु ़ी थी यअनी उसका प़ेशाि औि हैज़ का मखिर्ज या हैज़ औि पाखाऩे

का मखिर्ज एक हो चक
ु ा था तो इस सिू त में तनकाह को फ़स्ख किऩे में इश्काल है

औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक अक़्द को फ़स्ख किना चाह़े तो तलाक भी द़े ।

770
2390. अगि औित को तनकाह क़े िाद पता चल़े कक उसक़े शौहि का आला ए

तनासल
ु नहीं है, या तनकाह क़े िाद जर्जमाअ किऩे स़े पहल़े, या जर्जमाअ किऩे क़े

िाद, उसका आला ए तनासल


ु कट र्जाए, या ऐसी िीमािी में मबु तला हो र्जाए कक

सोहित औि जर्जमाअ न कि सकता हो ख़्वाह वह िीमािी तनकाह क़े िाद औि

जर्जमाअ किऩे स़े पहल़े, या जर्जमाअ किऩे क़े िाद ही क्यों न लाहहक हुई हो। उन

तमाम सिू तों में औित तलाक क़े िगैि तनकाह को खत्म कि सकती है। औि अगि

औित को तनकाह क़े िाद पता चल़े कक उसका शौहि तनकाह क़े पहल़े दीवाना था

या तनकाह क़े िाद – ख़्वाह जर्जमाअ स़े पहल़े, या जर्जमाअ क़े िाद – दीवाना हो

र्जाए, या उस़े (तनकाह क़े िाद) पता चल़े कक तनकाह क़े वक़्त उसक़े फ़ोत़े तनकाल़े

गय़े थ़े या मसल हदय़े गय़े थ़े, या उस़े पता चल़े कक तनकाह क़े वक़्त र्जुज़ाम या

िसक में मबु तला था तो इन तमाम सिू तों में अगि औित इजज़्दवार्जी जज़न्दगी

ििकिाि न िखना औि तनकाह किऩे को खत्म किना चाह़े तो एहततयात़े वाजर्जि

यह है कक उसका शौहि या उसका सिपिस्त औित को तलाक द़े । ल़ेककन उस सिू त

में कक उसका शौहि जर्जमाअ न कि सकता हो औि औित तनकाह को खत्म किना

चाह़े तो उस पि लाजज़म है कक पहल़े हाककम़े शअक उस़े एक साल क़ी मोहलत द़े गा

मलहाज़ा अगि इस दौिान वह उस औित या ककसी दस


ू िी औित स़े जर्जमाअ न कि

सक़े तो उसक़े िाद औित तनकाह को खत्म कि सकती है।

771
2391. अगि औित इस बिना पि तनकाह खत्म कि द़े कक उसका शौहि नामदक

है तो ज़रूिी है कक शौहि उस़े आधा महि द़े ल़ेककन अगि उन दस


ू ि़े नकाइस में

जर्जनका जज़क्र ऊपि ककया गया है ककसी एक क़ी बिना पि मदक या औित तनकाह

खत्म कि दें तो अगि मदक ऩे औित क़े साथ जर्जमाअ न ककया हो तो वह ककसी

चीज़ का जज़म्म़ेदाि नहीं है औि अगि जर्जमाअ ककया हो तो ज़रूिी है कक पिू ा महि

द़े । ल़ेककन अगि मदक औित क़े उन उयि


ू क़ी वर्जह स़े तनकाह खत्म कि़े जर्जन का

ियान मस ्अला 2389 में हो चक


ु ा है औि उसऩे औित क़े साथ जर्जमाअ न ककया

हो तो ज़रूिी है कक औित को पिू ा महि द़े ।

2392. अगि मदक या औित र्जो कुछ वह है उसस़े ज़्यादा िढ़ा चढ़ा कि उनक़ी

तअिीफ़ क़ी र्जाए ताकक वह शादी किऩे में हदलचस्पी लें ख़्वाह यह तअिीफ़ तनकाह

क़े जज़म्न में हो या उसस़े पहल़े – उस सिू त में कक उस तअिीफ़ क़ी ितु नयाद पि

तनकाह हुआ हो – मलहाज़ा अगि तनकाह क़े िाद दस


ू ि़े फ़िीक को इस िात का

गलत होना मअलम


ू हो र्जाए तो वह तनकाह को खत्म कि सकता है औि इस

मस ्अल़े क़े तफ़्सीली अह्काम मसाइल़े मन्


ु तखखि र्जैसी दस
ू िी ककतािों में ियान

ककय़े गए हैं।

772
वह औितें जजन से तनकाह किना हिाम है

2393. उन औितों क़े साथ र्जो इंसान क़ी महिम हों इजज़्दवार्ज हिाम है मसलन

मां, िहन, ि़ेटी, िुि़ी, खाला, भतीर्जी, भांर्जी, सास।

2394. अगि कोई शख़्स ककसी औित स़े तनकाह कि़े चाह़े उसक़े साथ जर्जमाअ

न भी कि़े तो उस औित क़ी मां, नानी औि दादी औि जर्जतना मसलमसला ऊपि

चला र्जाए सि औितें उस मदक क़ी महिम हो र्जाती हैं।

2395. अगि कोई शख़्स ककसी औित स़े तनकाह कि़े औि उसक़े साथ

हमबिस्तिी कि़े तो किि उस औित क़ी लड़क़ी, नवासी, पोती औि जर्जतना

मसलमसला नीच़े चला र्जाए सि औितें उस मदक क़ी महिम हो र्जाती हैं ख़्वाह वह

अक़्द क़े वक़्त मौर्जूद हों या िाद में पैदा हों।

2396. अगि ककसी मदक ऩे एक औित स़े तनकाह ककया हो ल़ेककन हमबिस्तिी न

क़ी हो तो र्जि तक वह औित उसक़े तनकाह में िह़े एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि

उस वक़्त तक उस क़ी लड़क़ी स़े शादी न कि़े ।

2397. इंसान क़ी िुि़ी औि खाला औि उसक़े िाप क़ी िुि़ी औि खाला औि

दादा क़ी िुि़ी औि खाला, िाप क़ी मां (दादी) औि मां क़ी िुि़ी औि खाला औि

नानी औि नाना क़ी िुि़ी औि खाला औि जर्जस कदि यह मसलमसला ऊपि चला

र्जाए सि उसक़े महिम हैं।

773
2398. शौहि का िाप औि दादा औि जर्जस कदि यह मसलमसला ऊपि चला र्जाए

औि शौहि का ि़ेटा, पोता औि नवासा जर्जस कदि भी यह मसलमसला नीच़े चला

र्जाए औि ख़्वाह वह तनकाह क़े वक़्त दतु नया में मौर्जद


ू हों या िाद में पैदा हों सि

उसक़ी िीवी क़े महिम हैं।

2399. अगि कोई शख़्स ककसी औित स़े तनकाह कि़े तो ख़्वाह तनकाह दाइमी हो

या गैि दाइमी र्जि तक वह औित उसक़ी मंकूहा है वह उसक़ी िहन क़े साथ

तनकाह नहीं कि सकता।

2400. अगि कोई शख़्स उस तितीि क़े मत


ु ाबिक जर्जसका जज़क्र तलाक क़े

मसाइल में ककया र्जाय़ेगा अपनी िीवी को तलाक़े िर्जई द़े द़े तो वह इद्दत क़े

दौिान उसक़ी िहन स़े तनकाह नहीं कि सकता ल़ेककन तलाक़े िाइन क़ी इद्दत क़े

दौिान उसक़ी िहन स़े तनकाह कि सकता है औि मत


ु अ क़ी इद्दत क़े दौिान

एहततयात़े वाजर्जि यह है कक औित क़ी िहन स़े तनकाह न कि़े ।

2401. इंसान अपनी िीवी क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उसक़ी भतीर्जी या भांर्जी स़े

शादी नहीं कि सकता ल़ेककन अगि वह िीवी क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उन स़े तनकाह

कि ल़े औि िाद में िीवी इर्जाज़त द़े द़े तो किि कोई इश्काल नहीं।

2402. अगि िीवी को पता चल़े कक उसक़े शौहि ऩे उसक़ी भतीर्जी या भांर्जी स़े

तनकाह कि मलया है औि खामोश िह़े तो अगि वह िाद में िाज़ी हो र्जाए तो

तनकाह सहीह है औि अगि िज़ामन्दी द़े द़े तो किि कोई इश्काल नहीं।

774
2403. अगि इंसान खाला या िुि़ी क़ी लड़क़ी स़े शादी किऩे स़े पहल़े (नऊज़ों

बिल्लाह) खाला या िुि़ी स़े जज़ना कि़े तो किि वह उसक़ी लड़क़ी स़े एहततयात क़ी

बिना पि शादी नहीं कि सकता।

2404. अगि कोई शख़्स अपनी िुि़ी क़ी लड़क़ी या खाला क़ी लड़क़ी स़े शादी

कि़े औि उसस़े हमबिस्तिी किऩे क़े िाद उसक़ी मां स़े जज़ना कि़े तो यह िात

उनक़ी र्जुदाई का मजू र्जि नहीं िनती औि अगि उसस़े तनकाह क़े िाद ल़ेककन

जर्जमाअ किऩे स़े पहल़े उसक़ी मां स़े जज़ना कि़े ति भी यही हुक्म है अगिच़े

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उस सिू त में तलाक द़े कि उसस़े (यअनी िुि़ी ज़ाद

या खाला ज़ाद िहन स़े) र्जुदा हो र्जाए।

2405. अगि कोई शख़्स अपनी िुि़ी या खाला क़े अलावा ककसी औि औित स़े

जज़ना कि़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उसक़ी ि़ेटी क़े साथ शादी न कि़े

िजल्क अगि ककसी औित स़े तनकाह कि़े औि उसक़े साथ जर्जमाअ किऩे स़े पहल़े

उसक़ी मां क़े साथ जज़ना कि़े तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस औित स़े र्जद
ु ा

हो र्जाए ल़ेककन अगि उसक़े साथ जर्जमाअ कि ल़े औि िाद में उसक़ी मां स़े जज़ना

कि़े तो ि़ेशक औित स़े र्जुदा होना लाजज़म नहीं।

2406. मस
ु लमान औित काकफ़ि मदक स़े तनकाह नहीं कि सकती। मस
ु लमान मदक

भी अहल़े ककताि क़े अलावा काकफ़ि औितों स़े तनकाह नहीं कि सकता। ल़ेककन

यहूदी औि ईसाई औितों क़ी मातनन्द अहल़े ककताि औितों स़े मत


ु अ किऩे में कोई

775
हिर्ज नहीं औि एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि उनस़े दाइमी अक़्द न ककया र्जाए

औि िअज़ कफ़िक़े मसलन नामसिी र्जो अपऩे आप को मस


ु लमान समझत़े हैं

कुफ़्फ़ाि क़े हुक्म में हैं औि मस


ु लमान मदक औि औितें उनक़े साथ दाइमी या गैि़े

दाइमी तनकाह नहीं कि सकत़े।

2407. अगि कोई शख़्स एक ऐसी औित स़े जज़ना कि़े र्जो िर्जई तलाक क़ी

इद्दत गुज़ाि िही हो तो एहततयात क़ी बिना पि – वह औित उस पि हिाम हो

र्जाती है औगि ऐसी औित क़े साथ जज़ना कि़े र्जो मत


ु अ या तलाक़े िाइन या

वफ़ात क़ी इद्दत गज़


ु ाि िही हो तो िाद में उसक़े साथ तनकाह कि सकता है

अगिच़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उसस़े शादी न कि़े । औि िर्जई तलाक औि

िाइन तलाक औि मत
ु अ क़ी इद्दत औि वफ़ात क़ी इद्दत क़े मअनी तलाक क़े

अह्काम में िताए र्जायेंग़े।

2408. अगि कोई शख़्स ककसी ऐसी औित स़े जज़ना कि़े र्जो ि़े शौहि हो मगि

इद्दत में न हो तो एहततयात क़ी बिना पि तौिा किऩे स़े पहल़े उसस़े शादी नहीं

कि सकता। ल़ेककन अगि ज़ानी क़े अलावा कोई दस


ू िा शख़्स (उस औित क़े) तौिा

किऩे स़े पहल़े उसक़े साथ शादी किना चाह़े तो कोई इश्काल नहीं है । मगि उस

सिू त में कक वह औित जज़नाकाि मशहूि हो तो एहततयात क़ी बिना पि उस

(औित) क़े तौिा किऩे स़े पहल़े उसक़े साथ शादी किना र्जाइज़ नहीं है । इसी तिह

कोई मदक जज़नाकाि मशहूि हो तो तौिा किऩे स़े पहल़े उसक़े साथ शादी किना

776
र्जाइज़ नहीं है औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक अगि कोई शख़्स जज़नाकाि

औित स़े जर्जस स़े खद


ु उसऩे या ककसी दस
ू ि़े ऩे मंह
ु काला ककया हो शादी किना

चाह़े तो हैज़ आऩे तक सब्र कि़े औि हैज़ आऩे क़े िाद उसक़े साथ शादी कि ल़े।

2409. अगि कोई शख़्स एक ऐसी औित स़े तनकाह कि़े र्जो दस
ू ि़े क़ी इद्दत में

हो तो अगि मदक औि औित दोनों या उसमें स़े कोई एक र्जानता हो कक औित क़ी

इद्दत खत्म नहीं हुई औि यह भी र्जानत़े हो कक इद्दत क़े दौिान औित स़े तनकाह

किना हिाम है तो अगिच़े मदक ऩे तनकाह क़े िाद औित स़े जर्जमाअ न भी ककया हो

वह हम़ेशा क़े मलए उस पि हिाम हो र्जाय़ेगी।

2410. अगि कोई शख़्स ककसी ऐसी औित स़े तनकाह कि़े र्जो दस
ू ि़े क़ी इद्दत

में हो औि उसस़े जर्जमाअ कि़े तो ख़्वाह उस़े यह इल्म न हो कक वह औित इद्दत

में है या यह न र्जानता हो कक इद्दत क़े दौिान औित स़े तनकाह किना हिाम है

वह औित हम़ेशा क़े मलए उस पि हिाम हो र्जाय़ेगी।

2411. अगि कोई शख़्स यह र्जानत़े हुए कक औित शौहिदाि है औि (उसस़े शादी

किना हिाम है ) उसस़े शादी कि़े तो ज़रूिी है कक उस औित स़े र्जद


ु ा हो र्जाए औि

िाद में उसस़े तनकाह नहीं किना चाहहए। औि अगि उस शख़्स को यह इल्म न हो

कक औित शौहिदाि है ल़ेककन शादी क़े िाद हमबिस्तिी क़ी हो ति भी एहततयात

क़ी बिना पि यही हुक्म है ।

777
2412. अगि शौहिदाि औित जज़ना कि़े – तो एहततयात क़ी बिना पि – वह

ज़ानी पि हम़ेशा क़े मलए हिाम हो र्जाती है ल़ेककन शौहि पि हिाम नहीं होती औि

अगि तौिा व इजस्तगफ़ाि न कि़े औि अपऩे अमल पि िाक़ी िह़े (यअनी

जज़नाकािी तकक न कि़े ) तो ि़ेहति यह है कक उसका शौहि उस़े तलाक द़े द़े ल़ेककन

शौहि को चाहहए कक उसका महि भी द़े ।

2413. जर्जस औित को तलाक ममल गई हो औि र्जो औित मत


ु अ में िही हो

उसक़े शौहि ऩे मत


ु अ क़ी मद्
ु दत िख़्श दी हो या मत
ु अ क़ी मद्
ु दत खत्म हो गई

हो अगि वह कुछ असे क़े िाद दस


ू िा शौहि कि़े औि किि उस़े शक हो कक दस
ू ि़े

शौहि स़े तनकाह क़े वक़्त पहल़े शौहि क़ी इद्दत खत्म हुई थी या नहीं तो वह

अपऩे शक क़ी पवाक न कि़े ।

2414. इग़्जलाम किवाऩे वाल़े लड़क़े क़ी मां, िहन औि ि़ेटी इग़्जलाम किऩे वाल़े

पि – र्जिकक (इग़्जलाम किऩे वाला) िामलग हो – हिाम हो र्जात़े हैं। औि इग़्जलाम

किवाऩे वाला मदक हो या इग़्जलाम किऩे वाला नािामलग हो ति भी एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि यही हुक्म है । ल़ेककन अगि उस़े गम


ु ान हो कक दख
ु ल
ू हुआ था

या शक कि़े कक दख
ु ल
ू हुआ या नहीं तो किि वह हिाम नहीं होंग़े।

2415. अगि कोई शख़्स ककसी लड़क़े क़ी मां या िहन स़े शादी कि़े औि शादी

क़े िाद उस लड़क़े स़े इग़्जलाम कि़े तो एहततयात क़ी बिना पि वह औितें उस पि

हिाम हो र्जाती हैं।

778
2416. अगि कोई शख़्स एहिाम क़ी हालत में र्जो अअमाल़े हर्ज में स़े एक

अमल है ककसी औित स़े शादी कि़े तो उसका तनकाह िाततल है औि अगि औित

को मअलम
ू था कक एहिाम क़ी हालत में शादी किना हिाम है तो एहततयात़े

वाजर्जि यह है कक िाद में उस मदक स़े शादी न कि़े ।

2417. र्जो औित एहिाम क़ी हालत में हो अगि वह एक ऐस़े मदक स़े शादी कि़े

र्जो एहिाम क़ी हालत में न हो तो उसका तनकाह िाततल है औि अगि औित को

मअलम
ू था कक एहिाम क़ी हालत में शादी किना हिाम है तो एहततयात़े वाजर्जि

यह है कक िाद में उस मदक स़े शादी न कि़े ।

2418. अगि मदक तवाफ़ुजन्नसा र्जो हर्ज औि उमिा ए मफ़्र


ु ादा क़े अअमाल में स़े

एक अमल है िर्जा न लाए तो उसक़ी िीवी औि दस


ू िी औितें उस पि हलाल नहीं

होतीं औि अगि औित तवाफ़ुजन्नसा न कि़े तो उसका शौहि औि दस


ू ि़े मदक उस पि

हलाल नहीं होत़े ल़ेककन अगि वह िाद में तवाफ़ुजन्नसा िर्जा लायें तो मदक पि

औितें औि औितों पि मदक हलाल हो र्जात़े हैं।

2419. अगि कोई शख़्स नािामलग लड़क़ी स़े तनकाह कि़े तो उसक़ी लड़क़ी क़ी

उम्र नौ साल होऩे स़े पहल़े उसक़े साथ जर्जमाअ किना हिाम है । ल़ेककन अगि

जर्जमाअ कि़े तो अज़हि यह है कक लड़क़ी क़े िामलग होऩे क़े िाद उसस़े जर्जमाअ

किना हिाम नहीं है ख़्वाह उस़े इफ़्ज़ा ही हो गया हो। इफ़ज़ा क़े मअनी मस ्अला

2389 में िताए र्जा चक


ु ़े हैं ल़ेककन अहवत यह है कक उस़े तलाक द़े द़े ।

779
2420. जर्जस औित को तीन मतकिा तलाक दी र्जाए वह शौहि पि हिाम हो

र्जाती है । हां अगि उन शिाइत क़े साथ जर्जन का जज़क्र तलाक क़े अह्काम में ककया

र्जाय़ेगा वह औित दस
ू ि़े मदक स़े शादी कि़े तो दस
ू ि़े शौहि क़ी मौत या उसस़े तलाक

हो र्जाऩे क़े िाद औि इद्दत गज़


ु ि र्जाऩे क़े िाद उसका पहला शौहि दोिािा उसक़े

साथ तनकाह कि सकता है ।

दाइम़ी अक़्द के अह्काम

2421. जर्जस औित का दाइमी तनकाह हो र्जाए उसक़े मलए हिाम है कक शौहि

क़ी इर्जाज़त क़े िगैि र्ि स़े िाहि तनकल़े ख़्वाह उसका तनकलना शौहि क़े हक क़े

मनाफ़़ी न भी हो। नीज़ उसक़े मलए ज़रूिी है कक र्जि भी शौहि जर्जंसी लज़्ज़तें

हामसल किना चाह़े तो उसक़ी ख़्वाहहश पिू ी कि़े औि शिई उज़्र क़े िगैि शौहि को

हमबिस्तिी स़े न िोक़े। औि उसक़ी चगज़ा, मलिास, िहाइश औि जज़न्दगी क़ी िाक़ी

ज़रूिीयात का इजन्तज़ाम र्जि तक वह अपनी जज़म्म़ेदािी पिू ी कि़े , शौहि पि वाजर्जि

है । औि अगि वह यह चीज़ें मह
ु ै या न कि़े तो ख़्वाह उनक़े मह
ु ैया किऩे पि कुदित

िखता हो या न िखता हो वह िीवी का मकरूज़ है ।

2422. अगि कोई औित हमबिस्तिी औि जर्जंसी लज़्ज़तों क़े मसलमसल़े में शौहि

का साथ द़े कि उसक़ी ख़्वाहहश पिू ी न कि़े तो िोटी, कपड़़े औि मकान का वह

जज़म्म़ेदाि नहीं है, अगिच़े वह शौहि क़े पास ही िह़े औि अगि वह कभी कभाि

780
अपनी इन जज़म्म़ेदरियों को पिू ा न कि़े तो मशहूि कौल क़े मत
ु ाबिक ति भी िोटी,

कपड़़े औि मकान का शौहि पि हक नहीं िखती। ल़ेककन यह हुक्म महल्ल़े इश्काल

है औि हि सिू त में बिना इश्काल उसका महि कलअदम नहीं होता।

2423. मदक को यह हक नहीं कक िीवी को र्ि़े लू खखतमत पि मर्जििू कि़े ।

2424. िीवी को सफ़ि क़े अखिार्जात, वतन में िहऩे क़े अखिार्जात स़े ज़्यादा हों

तो अगि उसऩे सफ़ि शौहि क़ी इर्जाज़त स़े ककया हो तो शौहि क़ी जज़म्म़ेदािी है

कक वह उन अखिार्जात को पिू ा कि़े । ल़ेककन अगि वह सफ़ि गाड़ी या र्जहाज़ वगैिा

क़े ज़िीए हो तो ककिाय़े औि सफ़ि क़े दस


ू ि़े ज़रूिी अखिार्जात क़ी वह खद

जज़म्म़ेदाि है ल़ेककन अगि उसका शौहि उस़े सफ़ि में साथ ल़े र्जाना चाहता हो तो

उसक़े मलए ज़रूिी है कक िीवी क़े सफ़िी अखिार्जात िदाकश्त कि़े ।

2425. जर्जस औित का खचक उसक़े शौहि क़े जज़म्म़े हो औि शौहि उस़े खचक न द़े

तो वह अपना खचक शौहि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उसक़े माल स़े ल़े सकती है औि

अगि न ल़े सकती हो औि मर्जििू हो कक अपनी मआश का खद


ु िन्दोिस्त कि़े

औि मशकायत किऩे क़े मलए हाककम़े शअक तक उसक़ी िसाई न हो ताकक वह उसक़े

शौहि को अगिच़े कैद कि क़े ही – खचक द़े ऩे पि मर्जििू कि़े तो जर्जस वक़्त वह

अपनी मआश का िन्दोिस्त किऩे में मशगल


ू हो उस वक़्त शौहि क़ी इताअत उस

पि वाजर्जि नहीं है ।

781
2426. अगि ककसी मदक क़ी मसलन दो िीववयााँ हों औि वह उनमें स़े एक क़े

साथ एक िात िह़े तो उस पि वाजर्जि है कक चाि िातों में स़े एक िात दस


ू िी क़े

पास भी गज़
ु ाि़े औि उस सिू त क़े अलावा औित क़े पास िहना वाजर्जि नहीं है । हां

यह लाजज़म है कक उसक़े पास िहना बिल्कुल ही तकक न कि द़े औि औला औि

अहवत यह है कक हि चाि िातों में स़े एक िात मदक अपनी दाइमी मंकूहा िीवी क़े

पास िह़े ।

2427. शौहि अपनी र्जवान िीवी स़े चाि महीऩे स़े ज़्यादा मद्
ु दत क़े मलए हम

बिस्तिी तकक नहीं कि सकता मगि यह कक हमबिस्तिी उसक़े मलए नक़्


ु सान द़े ह या

िहुत ज़्यादा तक्लीफ़ का िाइस हो या उस क़ी िीवी खुद चाि महीऩे स़े ज़्यादा

मद्
ु दत क़े मलए हमबिस्तिी तकक किऩे पि िाज़ी हो या शादी कित़े वक़्त तनकाह क़े

जज़म्न में चाि महीऩे स़े ज़्यादा मद्


ु दत क़े मलए हमबिस्तिी तकक किऩे क़ी शतक िखी

गई हो औि इस हुक्म में एहततयात क़ी बिना पि शौहि क़े मौर्जूद होऩे या

मस
ु ाकफ़ि होऩे या औित क़े मंकूहा या मम्तआ
ू होऩे में कोई फ़कक नहीं है ।

2428. अगि दाइमी तनकाह में महि मअ


ु य्यन न ककया र्जाए तो तनकाह सहीह है

औि अगि औित क़े साथ जर्जमाअ कि़े तो उस़े चाहहए कक उसका महि उसी र्जैसी

औितों क़े महि क़े मत


ु ाबिक द़े अलित्ता अगि मत
ु अ में महि मअ
ु य्यन न ककया

र्जाए तो मत
ु अ िाततल हो र्जाता है ।

782
2429. अगि दाइमी तनकाह पढ़त़े वक़्त महि द़े ऩे क़े मलए मद्
ु दत न मअ
ु य्यन

क़ी र्जाए तो औित महि ल़ेऩे स़े पहल़े शौहि को जर्जमाअ किऩे स़े िोक सकती है

कतए नज़ि इस स़े कक मदक महि द़े ऩे पि काहदि हो या न हो ल़ेककन अगि वह

महि द़े ऩे स़े पहल़े जर्जमाअ पि िाज़ी हो औि शौहि उस स़े जर्जमाअ कि़े तो िाद में

वह शिई उज़्र क़े िगैि शौहि को जर्जमाअ किऩे स़े नहीं िोक सकती।

मुअय्यन मुद्दत का तनकाह

2430. औित क़े साथ मत


ु अ किना अगिच़े लज़्ज़त हामसल किऩे क़े मलए न हो

ति भी सही है।

2431. एहततयात़े वाजर्जि यह है कक शौहि ऩे जर्जस औित स़े मत


ु अ ककया हो

उसक़े साथ चाि महीऩे स़े ज़्यादा जर्जमाअ तकक न कि़े ।

2432. जर्जस औित क़े साथ मत


ु अ ककया र्जा िहा हो अगि वह तनकाह में यह

शतक आयद कि़े कक शौहि उसस़े जर्जमाअ न कि़े तो तनकाह औि उसक़ी आयद कदाक

शतक सहीह है औि शौहि फ़कत उसस़े दस


ू िी लज़्ज़तें हामसल कि सकता है। ल़ेककन

अगि वह िाद में जर्जमाअ क़े मलए िाज़ी हो र्जाए तो शौहि उसस़े जर्जमाअ कि

सकता है। औि दाइमी अक़्द में भी यही हुक्म है ।

2433. जर्जस औित क़े साथ मत


ु अ ककया गया हो ख़्वाह वह हाममला हो र्जाए

ति भी खचक का हक नहीं िखती।

783
2434. जर्जस औित क़े साथ मत
ु अ ककया गया हो वह हमबिस्तिी का हक नहीं

िखती औि शौहि स़े मीिास भी नहीं पाती औि शौहि भी उसस़े मीिास नहीं पाता।

ल़ेककन अगि – उन में स़े ककसी फ़िीक ऩे या दोनों ऩे – मीिास पाऩे क़ी शतक िखी

हो तो उस शतक का सहीह होना महल्ल़े इश्काल है ल़ेककन एहततयात का खयाल

िह़े ।

2435. जर्जस औित स़े मत


ु अ ककया गया हो अगिच़े उस़े यह मअलम
ू हो कक वह

खचक औि हमबिस्तिी का हक नहीं िखती उसका तनकाह सहीह है औि इस वर्जह स़े

कक वह इन उमिू स़े नावाककफ़ थी उसका शौहि पि कोई हक नहीं िनता।

2436. जर्जस औित स़े मत


ु अ ककया गया हो अगि वह शौहि क़ी इर्जाज़त क़े

िगैि र्ि स़े िाहि र्जाय़े औि उसक़े िाहि र्जाऩे क़ी वर्जह स़े शौहि क़ी हक तलफ़़ी

हो तो उसका िाहि र्जाना हिाम है औि उस सिू त में र्जिकक उसक़े िाहि र्जाऩे स़े

शौहि क़ी हक तलफ़़ी न होती हो ति भी एहततयात़े मस्


ु तहि क़ी बिना पि शौहि

क़ी इर्जाज़त क़े िगैि र्ि स़े िाहि न र्जाए।

2437. अगि कोई औित ककसी मदक को वक़ील िनाए कक मअ


ु य्यन मद्
ु दत क़े

मलए औि मअ
ु य्यन िकम क़े एवज़ उसका खुद अपऩे साथ सीगा पढ़़े औि वह

शख़्स उसका दाइमी तनकाह अपऩे साथ पढ़ ल़े या मद्


ु दत मक
ु िक ि ककय़े िगैि या

िकम का तअय्यन
ु ककय़े िगैि मत
ु अ का सीगा पढ़ द़े तो जर्जस वक़्त औित को इन

उमिू का पता चल़े – अगि वह इर्जाज़त द़े द़े तो तनकाह सहीह है वनाक िाततल है ।

784
2438. अगि महिम होऩे क़े मलए – मसलन – िाप या दादा अपनी नािामलग

लड़क़ी या लड़क़े का तनकाह मअ


ु य्यन मद्
ु दत क़े मलए ककसी स़े पढ़ें तो उस सिू त

में अगि उस तनकाह क़ी वर्जह स़े कोई फ़साद न हो तो तनकाह सहीह है ल़ेककन

अगि नािामलग लड़का शादी क़ी उस पिू ी मद्


ु दत में जर्जंसी लज़्ज़त ल़ेऩे क़ी बिल्कुल

सलाहीयत न िखता हो या लड़क़ी ऐसी हो कक वह उसस़े बिल्कुल लज़्ज़त न ल़े

सकता हो तो तनकाह का सहीह होना महल्ल़े इशकाल है।

2439. अगि िाप या दादा अपनी िच्ची का र्जो दस


ू िी र्जगह हो औि यह

मअलम
ू न हो कक वह जज़न्दा भी है या नहीं महिम िन र्जाऩे क़ी खातति ककसी

औित स़े तनकाह कि दें औि ज़ौजर्जयत क़ी मद्


ु दत इतनी हो कक जर्जस औित स़े

तनकाह ककया गया हो उसस़े इसततम्ताअ हो सक़े तो ज़ाहहिी तौि पि महिम िनऩे

का मकसद हामसल हो र्जाय़ेगा औि अगि िाद में मअलम


ू हो कक तनकाह क़े वक़्त

वह िच्ची जज़न्दा न थी तो तनकाह िाततल है औि वह लोग र्जो तनकाह क़ी वर्जह

स़े िज़ाहहि महिम िन गए थ़े ना महिम हैं।

2440. जर्जस औित क़े साथ मत


ु अ ककया गया हो अगि मदक उसक़ी तनकाह में

मअ
ु य्यन क़ी हुई मद्
ु दत िख़्श द़े तो अगि उसऩे उसक़े साथ हमबिस्तिी क़ी हो तो

मदक को चाहहए क़ी तमाम चीज़ें जर्जन का वादा ककया गया था उस़े द़े औि अगि

हमबिस्तिी न क़ी हो तो आधा महि द़े ना वाजर्जि है औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है

कक सािा महि उस़े द़े द़े ।

785
2441. मदक यह कि सकता है कक जर्जस औित क़े साथ उसऩे पहल़े मत
ु अ ककया

हो औि अभी उसक़ी इद्दत खत्म न हुई हो उस स़े दाइमी अक़्द कि ल़े या दोिािा

मत
ु अ कि ल़े।

अह्काम

तनगाह डालने के अह्काम

2442. मदक क़े मलए ना महिम औित का जज़स्म द़े खना औि इसी तिह उसक़े

िालों का द़े खना ख़्वाह लज़्ज़त क़े इिाद़े स़े हो या उसक़े िगैि – हिाम में मबु तला

होऩे का खौफ़ हो या न हो – हिाम है। औि उसक़े चहि़े पि नज़ि डालना औि

हाथों को कोहतनयों तक द़े खना अगि लज़्ज़त क़े इिाद़े स़े हो या हिाम में मबु तला

हो ऩे का खौफ़ हो तो हिाम है । िजल्क एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक लज़्ज़त क़े

इिाद़े क़े िगैि औि हिाम में मबु तला होऩे का खौफ़ न हो ति भी न द़े ख़े। इसी

तिह औित क़े मलए ना महिम मदक क़े जर्जस्म पि नज़ि डालना हिाम है ल़ेककन

अगि औित मदक क़े जर्जस्म क़े उन हहस्सों मसलन सि, दोनों हाथों, औि दोनों

वपंडमलयों पि जर्जन्हें उफ़कन तछपाना ज़रूिी नहीं है लज़्ज़त क़े इिाद़े क़े िगैि नज़ि

डाल़े औि हिाम में मबु तला होऩे का खौफ़ न हो तो कोई इश्काल नहीं है ।

786
2443. वह ि़े पदाक औितें जर्जन्हें अगि कोई पदाक किऩे क़े मलए कह़े तो उसको

अहम्मीयत न द़े ती हों, उनक़े िदन क़ी तिफ़ द़े खऩे में, अगि लज़्ज़त का कस्द

औि हिाम में मबु तला होऩे का खौफ़ न हो, तो कोई इश्काल नहीं। औि इस हुक्म

में काकफ़ि औि गैि काकफ़ि औितों में कोई फ़कक नहीं है। औि इसी तिह उन क़े

हाथ, च़ेहि़े औि जर्जस्म क़े दस


ू ि़े हहस्स़े जर्जन्हें वह तछपाऩे क़ी आदी नहीं, कोई फ़कक

नहीं है।

2444. औित को चाहहए कक वह – अलावा हाथ औि च़ेहि़े क़े – सि क़े िाल औि

अपना िदन ना महिम मदक स़े तछपाए औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक अपना

िदन औि सि क़े िाल उस लड़क़े स़े भी तछपाए र्जो अभी िामलग तो न हुआ हो

ल़ेककन (इतना समझदाि हो कक) अच्छ़े औि ििु ़े को समझता हो औि एहततमाल हो

कक औित क़े िदन पि उसक़ी नज़ि पड़ऩे स़े उसक़ी जर्जंसी ख़्वाहहश ि़ेदाि हो

र्जाय़ेगी। ल़ेककन औित ना महिम मदक क़े सामऩे च़ेहिा औि कलाइयों तक हाथ

खल
ु ़े िख सकती है ल़ेककन उस सिू त में कक हिाम में मबु तला होऩे का खौफ़ हो या

ककसी मदक को हाथ औि च़ेहिा हदखाना हिाम में मबु तला किऩे क़े इिाद़े स़े हो तो

उन दोनों सिू तों में उनका खुला िखना र्जाइज़ नहीं है ।

2445. िामलग मस
ु लमान क़ी शमकगाह द़े खना हिाम है । अगिच़े ऐसा किना शीश़े

क़े पीछ़े स़े या आईऩे में या साफ़ शफ़्फ़ाफ़ पानी वगैिा में ही क्यों न हो। औि

एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि यही हुक्म है काकफ़ि औि उस िच्च़े क़ी शमकगाह

787
क़ी तिफ़ द़े खऩे का र्जो अच्छ़े ििु ़े को समझता हो, अलित्ता ममयां िीवी एक दस
ू ि़े

का पिू ा िदन द़े ख सकत़े हैं।

2446. र्जो मदक औि औित आपस में महिम हों अगि वह लज़्ज़त क़ी नीयत न

िखत़े हों तो शमकगाह क़े अलावा एक दस


ू ि़े का पिू ा िदन द़े ख सकत़े हैं।

2447. एक मदक को दस
ू ि़े मदक का िदन लज़्ज़त क़ी नीयत स़े नहीं द़े खना

चाहहए औि एक औित का दस
ू िी औित क़े िदन को लज़्ज़त क़ी नीयत स़े द़े खना

हिाम है।

2448. अगि कोई मदक ककसी ना महिम औित को पहचानता हो अगि वह ि़ेपदाक

औितों में स़े न हो तो एहततयात क़ी बिना पि उस़े उसक़ी तस्वीि नहीं द़े खना

चाहहए।

2449. अगि एक औित ककसी दस


ू िी औित का या अपऩे शौहि क़े अलावा

ककसी मदक का एतनमा किना चाह़े या उसक़ी शमकगाह को धो कि पाक किना चाह़े

तो ज़रूिी है कक अपऩे हाथ पि कोई चीज़ लप़ेट ल़े ताकक उसका हाथ उस (औित

या मदक ) क़ी शमकगाह पि न लग़े। औि अगि एक मदक ककसी दस


ू ि़े मदक या अपनी

िीवी क़े अलावा ककसी दस


ू िी औित का एतनमा किना चाह़े या उसक़ी शमकगाह को

धोकि पाक किना चाह़े तो उसक़े मलए भी यही हुक्म है ।

2450. अगि औित ना महिम मदक स़े अपनी ककसी ऐसी िीमािी का इलार्ज

किाऩे पि मर्जििू हो, जर्जसका इलार्ज वह ि़ेहति तौि पि कि सकता हो तो वह

788
औित उस ना महिम मदक स़े अपना इलार्ज किा सकती है । चन
ु ांच़े वह मदक इलार्ज

क़े मसलमसल़े में उसक़े द़े खऩे या उसक़े िदन को हाथ लगाऩे पि मर्जििू हो तो

(ऐसा किऩे में ) कोई इश्काल नहीं ल़ेककन अगि वह महज़ द़े ख कि इलार्ज कि

सकता हो तो ज़रूिी है कक उस औित क़े िदन को हाथ न लगाए औि अगि मसफ़क

हाथ लगाऩे स़े इलार्ज कि सकता हो तो किि ज़रूिी है कक उस औित पि तनगाह

न डाल़े।

2451. अगि ककसी शख़्स का इलार्ज किऩे क़े मसलमसल़े में उसक़ी शमकगाह पि

तनगाह डालऩे पि मर्जििू हो तो एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उस़े चाहहय़े कक

आईना सामऩे िख़े औि उसमें द़े ख़े। ल़ेककन अगि शमकगाह पि तनगाह डालऩे क़े

अलावा कोई चािा न हो तो (ऐसा किऩे में ) कोई इश्काल नहीं। औि अगि शमकगाह

पि तनगाह डालऩे क़ी मद्


ु दत आईऩे में द़े खऩे क़ी मद्
ु दत स़े कम हो ति भी यही

हुक्म है ।

शादी ब्याह के मख़्


ु तललफ़ मसाइल

2452. र्जो शख़्स शादी न किऩे क़ी वर्जह स़े हिाम फ़़ेल में मबु तला होता हो उस

पि वाजर्जि है कक शादी कि़े ।

2453. अगि शौहि तनकाह में मसलन यह शतक आयद कि़े कक औित कंु वािी हो

औि तनकाह क़े िाद मअलम


ू हो कक वह कंु वािी नहीं, तो शौहि तनकाह को फ़स्ख

789
कि सकता है अलित्ता अगि फ़स्ख कि़े तो कंु वािी होऩे औि कंु वािी न होऩे क़े

मािैन मक
ु िक ि कदाक महि में र्जो फ़कक हो वह ल़े सकता है।

2454. ना महिम मदक औि औित का ककसी ऐसी र्जगह साथ होना र्जहां औि

कोई न हो र्जिकक उस सिू त में िहकऩे का अंद़ेशा भी हो – हिाम है । चाह़े वह

र्जगह ऐसी हो र्जहां कोई भी आ सकता हो। अलित्ता अगि िहकऩे का अंद़ेशा न हो

तो कोई इश्काल नहीं है ।

2455. अगि कोई मदक औित का महि तनकाह में मअ


ु य्यन कि द़े औि उसका

इिादा यह हो कक वह महि नहीं द़े गा तो (उसका तनकाह नहीं टूटता िजल्क) सहीह

है । ल़ेककन ज़रूिी है कक महि अदा कि़े ।

2456. र्जो मस
ु लमान इस्लाम स़े खारिर्ज हो र्जाए औि कुफ़्र इखततयाि कि़े तो

उस़े मत
ु द
क कहत़े हैं औि मत
ु द
क क़ी दो ककस्में हैं – 1. मत
ु द
क ़े कफ़तिी, 2. मत
ु द
क ़े

ममल्ली। मत
ु द
क ़े कफ़तिी वह शख़्स है जर्जसक़ी पैदाइश क़े वक़्त उसक़े मां िाप दोनों

या उन में स़े कोई एक मस


ु लमान हो औि वह खद
ु भी अच्छ़े ििु ़े को पहचानऩे क़े

िाद मस
ु लमान हुआ हो ल़ेककन िाद में काकफ़ि हो र्जाए, औि मत
ु द
क ़े ममल्ली उस क़े

िि अक्स है (यअनी वह शख़्स है जर्जसक़ी पैदाइश क़े वक़्त मां िाप दोनों या उनमें

स़े एक भी मस
ु लमान न हो)।

2457. अगि औित शादी क़े िाद मत


ु द
क हो र्जाए तो उसका तनकाह टूट र्जाता है

औि अगि उसक़े शौहि ऩे उसक़े साथ जर्जमाअ न ककया हो तो उसक़े मलए इद्दत

790
नहीं है । औि अगि जर्जमाअ क़े िाद मत
ु द
क हो र्जाए ल़ेककन याइसा हो चक
ु ़ी हो या

िहुत छोटी हो ति भी यही हुक्म है । ल़ेककन अगि उसक़ी उम्र है ज़ आऩे वाली

औितों क़े ििािि हो तो उस़े चाहहय़े कक उस दस्तिू क़े मत


ु ाबिक जर्जसका जज़क्र

तलाक क़े अह्काम में ककया र्जाय़ेगा इद्दत गज़


ु ाि़े । औि (उलमा क़े मािैन) मश्हूि

यह है कक अगि इद्दत क़े दौिान मस


ु लमान हो र्जाए तो उसका तनकाह (नहीं टूटता

यअनी) िाक़ी िहता है औि यह हुक्म वर्जह स़े खाली नहीं है अगिच़े ि़ेहति यह है

कक एहततयात क़ी रिआयत तकक न हो। औि याइसा उस औित को कहत़े हैं जर्जसक़ी

उम्र पचास साल हो गई हो औि उम्र िसीदा होऩे क़ी वर्जह स़े उस़े है ज़ न आता हो

औि दोिािा आऩे क़ी उम्मीद न हो।

2458. अगि कोई मदक शादी क़े िाद मत


ु द
क ़े कफ़तिी हो र्जाए तो उसक़ी िीवी उस

पि हिाम हो र्जाती है औि उस औित क़े मलए ज़रूिी है कक वफ़ात क़ी इद्दत क़े

ििािि जर्जसका ियान तलाक क़े अह्काम में होगा इद्दत िख़े।

2459. अगि कोई मदक शादी क़े िाद मत


ु द
क ़े ममल्ली हो र्जाए तो उसका तनकाह

टूट र्जाता है । मलहाज़ा अगि उसऩे अपनी िीवी क़े साथ जर्जमाअ ककया हो या वह

औित याइसा या िहुत छोटी हो तो उसक़े मलए इद्दत नहीं है औि अगि वह मदक

जर्जमाअ क़े िाद मत


ु द
क हो औि उसक़ी िीवी उन औितों क़ी हममसन हो जर्जन्हें हैज़

आता हो तो ज़रूिी है कक वह औित तलाक क़ी इद्दत क़े ििािि जर्जसका जज़क्र

तलाक क़े अह्काम में आय़ेगा इद्दत िख़े औि मश्हूि यह है कक अगि उसक़ी

791
इद्दत खत्म होऩे स़े पहल़े उसका शौहि मस
ु लमान हो र्जाए तो उसका तनकाह

काइम िहता है । औि यह हुक्म भी वर्जह स़े खाली नहीं है। अलित्ता एहततयात का

ख़्याल िखना ि़ेहति है ।

2460. अगि औित अक़्द में मदक पि शतक आइद कि़े कक उस़े (एक मअ
ु य्यन)

शहि स़े िाहि न ल़े र्जाए औि मदक भी इस शतक को किल


ू कि ल़े तो ज़रूिी है कक

उसक़ी िज़ामन्दी क़े िगैि उस शहि स़े िाहि न ल़े र्जाए।

2461. अगि ककसी औित क़ी पहल़े शौहि स़े लड़क़ी हो तो िाद में उसका दस
ू िा

शौहि उस लड़क़ी का तनकाह अपऩे उस लड़क़े स़े कि सकता है र्जो उस िीवी स़े न

हो नीज़ अगि ककसी लड़क़ी का तनकाह अपऩे ि़ेट़े स़े कि़े तो िाद में उस लड़क़ी

क़ी मां स़े खुद भी तनकाह कि सकता है ।

2462. अगि कोई औित जज़ना स़े हाममला हो र्जाए तो िच्च़े को चगिाना उसक़े

मलय़े र्जाइज़ नहीं है ।

2463. अगि कोई मदक ककसी ऐसी औित स़े जज़ना कि़े र्जो शौहिदाि न हो औि

ककसी दस
ू ि़े क़ी इद्दत में भी न हो चन
ु ांच़े िाद में उस औित स़े शादी कि ल़े औि

कोई िच्चा पैदा हो र्जाए तो इस सिू त में कक र्जि वह यह न र्जानत़े हो कक िच्चा

हलाल नत
ु फ़़े स़े है या हिाम नत
ु फ़़े स़े तो वह िच्चा हलाल ज़ादा है।

2464. अगि ककसी मदक को यह मअलम


ू न हो कक एक औित इद्दत में है औि

वह उसस़े तनकाह कि़े तो अगि औित को भी इस िाि़े में इल्म न हो औि उनक़े

792
हां िच्चा पैदा हो तो वह हलाल ज़ादा होगा औि शिअन उन दोनों का िच्चा होगा।

ल़ेककन अगि औित को इल्म था कक वह इद्दत म़े है औि इद्दत क़े दौिान तनकाह

किना हिाम है तो शिअन वह िच्चा िाप का होगा औि मज़कूिा दोनों सिू तों में

उन दोनों का तनकाह िाततल है औि र्जैस़े कक ियान हो चक


ु ा है वह दोनों एक दस
ू ि़े

पि हिाम हैं।

2465. अगि कोई औित यह कह़े कक मैं याइसा हूं तो उसक़ी यह िात किल

नहीं किनी चाहहय़े ल़ेककन अगि कह़े कक मैं शौहिदाि नहीं हूं तो उसक़ी िात मान

ल़ेना चाहहए ल़ेककन अगि वह गलत ियान हो तो उस सिू त में एहततयात यह है

कक उसक़े िाि़े में तह्क़ीक क़ी र्जाए।

2466. अगि कोई शख़्स ककसी ऐसी औित स़े शादी कि़े जर्जसऩे कहा हो कक म़ेिा

शौहि नहीं है औि िाद में कोई औि शख़्स कह़े कक वह औित उसक़ी िीवी है तो

र्जि तक यह िात साबित न हो र्जाए कक वह सच कह िहा है उसक़ी िात को

किल
ू नहीं किना चाहहय़े।।

2467. र्जि तक लड़का या लड़क़ी दो साल क़े न हो र्जायें, िाप, िच्चों को

उनक़ी मााँ स़े र्जुदा नहीं कि सकता औि अहवत औि औला यह है कक िच्च़े को

सात साल तक उसक़ी मााँ स़े र्जुदा न कि़े ।

2468. अगि रिश्ता मांगऩे वाल़े क़ी हदयानतदािी औि अखलाक स़े खुश हो तो

ि़ेहति यह है कक लड़क़ी का हाथ उसक़े हाथ में द़े ऩे स़े इन्काि न कि़े । पैगम्िि़े

793
अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही वसल्लम स़े रिवायत है कक, र्जि भी कोई

शख़्स तम्
ु हािी लड़क़ी का रिश्ता मांगऩे आए औि तम
ु उस शख़्स क़े अखलाक औि

हदयानतदािी स़े खश
ु हो तो अपनी लड़क़ी क़ी शादी उस स़े कि दो। अगि ऐसा न

किोग़े तो गोया ज़मीन पि एक िहुत िड़ा कफ़तना िैल र्जाय़ेगा।

2469. अगि िीवी शौहि क़े साथ इस शतक पि अपऩे महि क़ी मस
ु ालहत कि़े

(यअनी महि उस़े िख़्श द़े ) कक वह दस


ू िी शादी नहीं कि़े गा तो वाजर्जि है कक वह

दस
ू िी शादी न कि़े । औि िीवी को भी महि ल़ेऩे का कोई हक नहीं है।

2470. र्जो शख़्स वलदजु ज़्ज़ना हो अगि वह शादी कि ल़े औि उसक़े हां िच्चा

पैदा हो तो वह हलाल ज़ादा है।

2471. अगि कोई शख़्स माह़े िमज़ानल


ु मि
ु ािक क़े िोज़ों में या औित क़े हाइज़

होऩे क़ी हालत में उसस़े जर्जमाअ कि़े तो गुनाहगाि है ल़ेककन अगि इस जर्जमाअ क़े

नतीर्ज़े में उनक़े हां कोई िच्चा पैदा हो तो वह हलालज़ादा है ।

2472. जर्जस औित को यक़ीन हो कक उसका शौहि सफ़ि में फ़ौत हो गया है

अगि वह वफ़ात क़ी इद्दत क़े िाद शादी कि़े औि िाद अज़ां उसका पहला शौहि

सफ़ि स़े (जज़न्दा सलामत) वापस आ र्जाए तो ज़रूिी है कक दस


ू ि़े शौहि स़े र्जुदा हो

र्जाए औि वह पहल़े शौहि पि हलाल होगी। ल़ेककन अगि दस


ू ि़े शौहि ऩे उसस़े

जर्जमाअ ककया हो तो औित क़े मलए ज़रूिी है कक इद्दत गुज़ाि़े औि दस


ू ि़े शौहि

794
को चाहहय़े कक उस र्जैसी औितों क़े महि क़े मत
ु ाबिक उस़े महि अदा कि़े ल़ेककन

इद्दत (क़े ज़माऩे) का खचक (दस


ू ि़े शौहि क़े जज़म्म़े) नहीं है।

दध
़ू पपलाने के अह्काम

2473. अगि कोई औित एक िच्च़े को उन शिाइत क़े साथ दध


ू वपलाए र्जो

मस ्अला 2483 में ियान होंगी तो वह िच्चा मन्


ु दरिर्जा ज़ैल लोगों का महिम िन

र्जाता हैः-

1. खद
ु वह औित – औि उस़े रिज़ाई मााँ कहत़े हैं।

2. औित का शौहि र्जो दध


ू का मामलक है – औि उस़े रिज़ाई िाप कहत़े हैं।

3. उस औित का िाप औि मााँ – औि र्जहां तक यह मसलमसला ऊपि चला र्जाए

अगिच़े वह उस औित क़े रिज़ाई मां िाप ही क्यों न हों।

4. उस औित क़े वह िच्च़े र्जो पैदा हो चक


ु ़े हों या िाद में पैदा हों।

5. उस औित क़ी औलाद क़ी औलाद ख़्वाह यह मसलमसला जर्जस कदि नीच़े चला

र्जाए औि औलाद क़ी औलाद ख़्वाह हक़ीक़ी हो ख़्वाह उसक़ी औलाद ऩे उन िच्चों

को दध
ू वपलाया हो।

6. उस औित क़ी िहनें औि भाई ख़्वाह वह रिज़ाई ही क्यों न हों यअनी दध


पीऩे क़ी वर्जह स़े उस औित क़े िहन औि भाई िन गए हों।

7. उस औित का चचा औि िुि़ी ख़्वाह वह रिज़ाई ही क्यों न हों।

795
8. उस औित का मामंू औि खाला ख़्वाह वह रिज़ाई ही क्यों न हों।

9. उस औित क़े उस शौहि क़ी औलाद र्जो दध


ू का मामलक है । औि र्जहां तक

भी यह मसलमसला नीच़े चला र्जाए अगिच़े उसक़ी औलाद रिज़ाई ही क्यों न हों।

10. उस औित क़े उस शौहि क़े मां िाप र्जो दध


ू का मामलक है । औि र्जहां तक

भी यह मसलमसला ऊपि चलता र्जाए।

11. उस औित क़े उस शौहि क़े भाई िहन र्जो दध


ू का मामलक है ख़्वाह वह

उसक़े रिज़ाई िहन भाई ही क्यों न हों।

12. उस औित का र्जो शौहि दध


ू का मामलक है उसक़े चचा औि िुकियााँ औि

मामंू औि खालायें – औि र्जहां तक यह मसलमसला ऊपि चला र्जाए औि अगिच़े वह

रिज़ाई ही क्यों न हों। औि इनक़े अलावा कई औि वह लोग भी दध


ू वपलाऩे क़ी

वर्जह स़े महिम िन र्जात़े हैं जर्जनका जज़क्र आइन्दा मसाइल में ककया र्जाय़ेगा।

2474. अगि कोई औित ककसी िच्च़े को उन शिाइत क़े साथ दध


ू वपलाए जर्जन

का जज़क्र मस ्अला 2483 में ककया र्जाय़ेगा तो उस िच्च़े का िाप उन लड़ककयों स़े

शादी नहीं कि सकता जर्जन्हें वह औित र्जन्म द़े औि अगि उन में स़े कोई एक भी

लड़क़ी अभी उसक़ी िीवी हो तो उसका तनकाह टूट र्जाय़ेगा। अलित्ता उसका उस

औित क़ी रिज़ाई लड़क़ीयों स़े तनकाह किना र्जाइज़ है अगिच़े एहततयात़े मस्
ु तहि

यह है कक उनक़े साथ भी तनकाह न कि़े नीज़ एहततयात क़ी बिना पि वह उस

औित क़े उस शौहि क़ी ि़ेहटयों स़े तनकाह नहीं कि सकता र्जो दध
ू का मामलक है

796
अगिच़े वह उस शौहि क़ी रिज़ाई ि़ेहटयां हों मलहाज़ा अगि उस वक़्त उनमें स़े कोई

औित उसक़ी िीवी हो तो एहततयात क़ी बिना पि उसका तनकाह टूट र्जाता है।

2475. अगि कोई औित ककसी िच्च़े को उन शिाइत क़े साथ दध


ू वपलाए

जर्जनका जज़क्र मस ्अला 2483 में ककया र्जाय़ेगा तो उस औित का वह शौहि र्जो

दध
ू का मामलक है उस िच्च़े क़ी िहनों का महिम नहीं िन र्जाता ल़ेककन

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक वह उनस़े शादी न कि़े नीज़ शौहि क़े रिश्त़ेदाि भी

उस िच्च़े क़े भाई िहनों क़े महिम नहीं िन र्जात़े।

2476. अगि कोई औित एक िच्च़े को दध


ू वपलाए तो वह उसक़े भाईयों क़ी

महिम नहीं िन र्जाती औि उस औित क़े रिश्त़ेदाि भी उस िच्च़े क़े भाई िहनों क़े

महिम नहीं िन र्जात़े।

2477. अगि कोई शख़्स उस औित स़े जर्जसऩे ककसी लड़क़ी को पिू ा दध
ू वपलाया

हो तनकाह कि ल़े औि उसस़े मर्ज


ु ामअत (संभोग) कि ल़े तो किि वह उस लड़क़ी

स़े तनकाह नहीं कि सकता।

2478. अगि कोई शख़्स ककसी लड़क़ी स़े तनकाह कि ल़े तो किि वह उस औित

स़े तनकाह नहीं कि सकता जर्जसऩे उस लड़क़ी को दध


ू वपलाया हो।

2479. कोई शख़्स उस लड़क़ी स़े तनकाह नहीं कि सकता जर्जस़े उस शख़्स क़ी

मां या दादी ऩे दध


ू वपलाया हो। नीज़ अगि ककसी शख़्स क़े िाप क़ी िीवी ऩे

(यअनी उसक़ी सौत़ेली मां ऩे) उस शख़्स क़े िाप का मसलक


ू ा दध
ू ककसी लड़क़ी

797
को वपलाया हो तो वह उस लड़क़ी स़े तनकाह नहीं कि सकता। औि अगि कोई

शख़्स ककसी दध
ू पीती िच्ची स़े तनकाह कि़े औि उसक़े िाद उसक़ी मां या दादी या

उसक़ी सौत़ेली मां उस िच्ची को दध


ू वपला द़े तो तनकाह टूट र्जाता है ।

2480. जर्जस लड़क़ी को ककसी शख़्स क़ी िहन या भाभी ऩे भाई क़े दध
ू स़े पिू ा

दध
ू वपलाया हो वह शख़्स उस लड़क़ी स़े तनकाह नहीं कि सकता। औि र्जि ककसी

शख़्स क़ी भांर्जी, भतीर्जी या िहन या भाई क़ी पोती या नवासी ऩे उस िच्ची को

दध
ू वपलाया हो ति भी यही हुक्म है ।

2481. अगि कोई औित अपनी लड़क़ी क़े िच्च़े को (यअनी अपऩे नवास़े या

नवासी को) पिू ा दध


ू वपलाए तो वह लड़क़ी अपऩे शौहि पि हिाम हो र्जाय़ेगी। औि

अगि कोई औित उस िच्च़े को दध


ू वपलाए र्जो उस लड़क़ी क़े शौहि क़ी दस
ू िी

िीवी स़े पैदा हुआ हो ति भी यही हुक्म है ल़ेककन अगि कोई औित अपऩे ि़ेट़े क़े

िच्च़े को (यअनी अपऩे पोत़े या पोती को) दध


ू वपलाए तो उसक़े ि़ेट़े क़ी िीवी

(यअनी दध
ू वपलाई क़ी िहू) र्जो उस दध
ू पीत़े िच्च़े क़ी मां है अपऩे शौहि पि

हिाम नहीं होगी।

2482. अगि ककसी लड़क़ी क़ी सौत़ेली मां उस लड़क़ी क़े शौहि क़े िच्च़े को उस

लड़क़ी क़े िाप क़ी मसलक


ू ा दध
ू वपलाए तो उस एहततयात क़ी बिना पि जर्जसका

जज़क्र मसअला 2474 में ककया गया है वह लड़क़ी अपऩे शौहि पि हिाम हो र्जाती

है ख़्वाह वह िच्चा उस लड़क़ी क़े ित्न स़े या ककसी दस


ू िी औित क़े ित्न स़े हो।

798
दध
़ू पपलाने से महिम बनने की शिाइत

2483. िच्च़े को र्जो दध


ू वपलाना महिम िनऩे का सिि िनता है उसक़ी आठ

शतें हैं –

1. िच्चा जज़न्दा औित का दध


ू वपय़े। पस अगि वह मद
ु ाक औित क़े वपस्तान

(छाती) स़े दध
ू वपय़े तो उसका कोई फ़ाइदा नहीं।

2. औित का दध
ू फ़़ेल़े हिाम का नतीर्जा न हो। पस अगि ऐस़े िच्च़े का दध
ू र्जो

वलदजु ज़्ज़ना हो ककसी दस


ू ि़े िच्च़े को हदया र्जाए तो उस दध
ू क़े तवस्सत
ु स़े वह

दस
ू िा िच्चा ककसी का महिम नहीं िऩेगा।

3. िच्चा वपस्तान स़े दध


ू वपय़े। पस अगि दध
ू उसक़े हल्क में उन्ड़ेला र्जाए तो

ि़ेकाि है।

4. दध
ू खामलस हो औि ककसी दस
ू िी चीज़ स़े ममला हुआ न हो।

5. दध
ू एक ही शौहि का हो। पस जर्जस औित को दध
ू उर्जिता हो अगि उस़े

तलाक हो र्जाए औि वह अक़्द़े सानी कि ल़े औि दस


ू ि़े शौहि स़े हाममला हो र्जाए

औि िच्चा र्जनऩे तक उसक़े पहल़े शौहि का दध


ू उसमें िाक़ी हो मसलन अगि उस

िच्च़े को खुद िच्चा र्जनऩे क़े कबल पहल़े शौहि का दध


ू आठ दफ़् आ औि वज़ए

हम्ल क़े िाद दस


ू ि़े शौहि का दध
ू सात दफ़् आ वपलाए तो वह िच्चा ककसी का भी

महिम नहीं िनता।

799
6. िच्चा ककसी िीमािी क़ी वर्जह स़े दध
ू क़ी कै न कि द़े औि अगि कै कि द़े

तो िच्चा महिम नहीं िनता है।

7. िच्च़े को इस कदि दध
ू वपलाया र्जाए कक उसक़ी हड्डडयां उस दध
ू स़े मज़ित

हों औि िदन का गोश्त भी उस स़े िऩे औि अगि इस िात का इल्म न हो कक

इस कदि दध
ू वपया है या नहीं तो अगि उसऩे एक हदन औि एक िात या पन्रह

दफ़् आ प़ेट भि कि दध
ू वपया हो ति भी (महिम होऩे क़े मलए) काफ़़ी है र्जैसा कक

इसका तफ़्सीली जज़क्र आऩे वाल़े मस ्अल़े में ककया र्जाय़ेगा ल़ेककन अगि इस िात

का इल्म हो कक उस क़ी हड्डडयां इस दध


ू स़े मज़ित
ू नहीं हुई औि उस का गोश्त

भी उस स़े नहीं िना हालांकक िच्च़े ऩे एक हदन औि एक िात या पन्रह दफ़् आ

दध
ू वपया हो तो उस र्जैसी सिू त में एहततयात का ख़्याल किना ज़रूिी है।

8. िच्च़े क़ी उम्र क़े दो साल मक


ु म्मल न हुए हों औि अगि उसक़ी उम्र दो साल

होऩे क़े िाद उस़े दध


ू वपलाया र्जाए तो वह ककसी का महिम नहीं िनता िजल्क

अगि ममसाल क़े तौि पि वह उम्र क़े दो साल मक


ु म्मल होऩे स़े पहल़े आठ दफ़् आ

औि उसक़े िाद सात दफ़् आ दध


ू वपय़े ति भी वह ककसी का महिम नहीं िनता।

ल़ेककन अगि दध
ू वपलाऩे वाली औित को िच्चा र्जऩे दो साल स़े ज़्यादा मद्
ु दत

गुज़ि चक
ु ़ी हो औि उसका दध
ू अभी िाक़ी हो औि वह ककसी िच्च़े को दध
ू वपलाए

तो वह िच्चा उन लोगों का महिम िन र्जाता है जर्जन का जज़क्र ऊपि ककया गया

है ।

800
2484. दध
ू पीऩे क़ी वर्जह स़े महिम िनऩे क़े मलए ज़रूिी है कक एक हदन िात

िच्चा चगज़ा न खाए औि न ककसी दस


ू िी औित का दध
ू वपय़े ल़ेककन अगि इतनी

थोड़ी चगज़ा खाए कक लोग यह न कहें कक उसऩे िीच में चगज़ा खाई है तो किि

कोई इश्काल नहीं। नीज़ यह भी ज़रूिी है कक पन्रह मतकिा एक ही औित का दध


वपय़े। हााँ अगि दध


ू वपत़े हुए सांस ल़े या थोड़ा सा सब्र कि़े गोया कक र्जि उसऩे

पहली िाि वपस्तान मंह


ु में मलया था उस वक़्त स़े ल़ेकि उसक़े स़ेि हो र्जाऩे तक

एक दफ़् आ दध
ू पीना ही शम
ु ाि ककया र्जाए तो इस में कोई इश्काल नहीं।

2485. अगि कोई औित अपऩे शौहि का दध


ू ककसी िच्च़े को वपलाए िाद अज़ां

(उसक़े िाद) अक़्द़े सानी कि ल़े औि दस


ू ि़े शौहि का दध
ू ककसी औि िच्च़े को

वपलाए तो वह दो िच्च़े आपस में महिम नहीं िनत़े अगिच़े ि़ेहति यह है कक वह

आपस में शादी न किें ।

2486. अगि कोई औित एक शौहि का दध


ू कई िच्चों को वपलाए तो वह सि

आपस में नीज़ उस आदमी क़े औि उस औित क़े जर्जस ऩे उन्हें दध
ू वपलाया है

महिम िन र्जात़े हैं।

2487. अगि ककसी शख़्स क़ी कई िीववयां हों औि उन में स़े हि एक उन

शिाइत क़े साथ र्जो ियान क़ी गई हैं एक एक िच्च़े को दध


ू वपला द़े तो वह सि

िच्च़े आपस में औि उस आदमी क़े औि उन तमाम औितों क़े महिम िन र्जात़े

हैं।

801
2488. अगि ककसी शख़्स क़ी दो िीववयों का दध
ू उतिता हो औि उनमें स़े एक

ककसी िच्च़े को ममसाल क़े तौि पि आठ मतकिा औि दस


ू िी सात मतकिा दध
ू वपला

द़े तो वह िच्चा ककसी का भी महिम नहीं िनता।

2489. अगि कोई औित एक शौहि का पिू ा दध


ू एक लड़क़े औि एक लड़क़ी को

वपलाए तो उस लड़क़ी क़े िहन भाई उस लड़क़े क़े िहन भाईयों क़े महिम नहीं िन

र्जात़े।

2490. कोई शख़्स अपनी िीवी क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उन औितों स़े तनकाह नहीं

कि सकता र्जो दध
ू पीऩे क़ी वर्जह स़े उसक़ी िीवी क़ी भांजर्जयां या भतीजर्जयां िन

गई हों नीज़ अगि कोई शख़्स ककसी लड़क़े स़े इग़्जलाम कि़े तो वह उस लड़क़े क़ी

रिज़ाई ि़ेटी, िहन, मां औि दादी स़े यअनी उन औितों स़े र्जो दध
ू पीऩे क़ी वर्जह

स़े उसक़ी ि़ेटी, िहन, मां औि दादी िन गई हों तनकाह नहीं कि सकता। औि

एहततयात क़ी बिना पि र्जि कक मलवातत किऩे वाला िामलग न हो या मलवातत

किाऩे वाला िामलग हो ति भी यही हुक्म है ।

2491. जर्जस औित ऩे ककसी शख़्स क़े भाई को दध


ू वपलाया हो वह उस शख़्स

क़ी महिम नहीं िन र्जाती अगिच़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस स़े शादी न

कि़े ।

2492. कोई आदमी दो िहनों स़े (एक ही वक़्त में ) तनकाह नहीं कि सकता

अगिच़े वह रिज़ाई िहनें ही हों यअनी दध


ू पीऩे क़ी वर्जह स़े एक दस
ू िी क़ी िहनें

802
िन गई हों औि अगि वह दो औितों स़े शादी कि़े औि िाद में उस़े पता चल़े कक

वह आपस में िहनें हैं तो उस सिू त में र्जि कक उसक़ी शादी एक ही वक़्त में हुई

हो अज़हि यह है कक दोनों तनकाह िाततल हैं। औि अगि तनकाह एक ही वक़्त में

न हुआ हो तो पहला तनकाह सहीह औि दस


ू िा िाततल है।

2493. अगि कोई औित अपऩे शौहि का दध


ू उन अश्खास को वपलाए जर्जन का

जज़क्र ज़ैल में ककया गया है तो उस औित का शौहि उस पि हिाम नहीं होता

अगिच़े ि़ेहति यह है कक एहततयात क़ी र्जाए।

1. अपऩे भाई औि िहन को।

2. अपऩे चचा, िुि़ी, मामंू औि खाला को।

3. अपऩे चचा औि मामंू क़ी औलाद को।

4. अपऩे भतीर्ज़े को।

5. अपऩे र्ज़ेठ या द़े वि औि नन्द को।

6. अपऩे भांर्ज़े या अपऩे शौहि क़े भांर्ज़े को।

7. अपऩे शौहि क़े चचा, िुि़ी, मामंू औि खाला को।

8. अपऩे शौहि क़ी दस


ू िी िीवी क़े नवास़े या नवासी को।

2494. अगि कोई औित ककसी शख़्स क़ी िुि़ीज़ाद या खालाज़ाद िहन को दध

वपलाए तो वह (औित) उस शख़्स क़ी महिम नहीं िनती ल़ेककन एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक वह शख़्स उस औित स़े शादी न कि़े ।

803
2495. जर्जस शख़्स क़ी दो िीववयां हों अगि उसक़ी एक िीवी दस
ू िी िीवी क़े

चचा क़े ि़ेट़े को दध


ू वपलाए तो जर्जस औित क़े चचा क़े ि़ेट़े ऩे दध
ू वपया है वह

अपऩे शौहि पि हिाम नहीं होगी।

दध
़ू पपलाने के आदाब

2496. िच्च़े को दध
ू वपलाऩे क़े मलए सि औितों स़े ि़ेहति उसक़ी मााँ है । औि

मां क़े मलए मन


ु ामसि है कक िच्च़े को दध
ू वपलाऩे क़ी उर्जित अपऩे शौहि स़े न ल़े

औि शौहि क़े मलए अच्छ िात यह है कक उस़े उर्जित द़े औि अगि िच्च़े क़ी मां,

दाया (दध
ू मां) क़े मक
ु ाबिल़े में ज़्यादा उर्जित ल़ेना चाह़े तो शौहि िच्च़े को उस स़े

ल़े कि दाया क़े मसपद


ु क कि सकता है ।

2497. मस्
ु तहि है कक िच्च़े क़ी दाया शीआ इसना अशिी होशमन्द, पाक दामन

औि खश
ु शक्ल हो। औि मकरूह है कक वह गिी, गैि शीआ इसना अशिी, िद

सिू त, िद अखलाक या हिामज़ादी हो। औि यह भी मकरूह है कक उस औित को

ितौि दाया मन्


ु तखि ककया र्जाए, जर्जसका दध
ू ऐस़े िच्च़े स़े हो र्जो वलदजु ज़्ज़ना हो।

804
दध
़ू पपलाने के मुख़्तललफ़ मसाइल

2498. औितों क़े मलए ि़ेहति है कक वह हि एक क़े िच्च़े कक दध


ू न वपलाय़े

क्योंकक हो सकता है कक वह यह याद न िख सकें कक उन्होंऩे ककस ककस को दध


वपलाया है औि (मजु म्कन है कक) िाद में दो महिम एक दस


ू ि़े स़े तनकाह कि लें।

2499. अगि मजु म्कन हो तो मस्


ु तहि है कक िच्च़े को 21 महीऩे दध
ू वपलाया

र्जाए। औि दो साल स़े ज़्यादा दध


ू वपलाना मन
ु ामसि नहीं है।

2500. अगि दध
ू वपलाऩे क़ी वर्जह स़े शौहि का हक तलफ़ न होता हो तो

औित शौहि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि ककसी दस


ू ि़े शख़्स क़े िच्च़े को दध
ू वपला सकती

है ।

2501. अगि ककसी औित का शौहि एक शीि ख़्वाि िच्ची स़े तनकाह कि़े औि

वह औित उस िच्ची को दध
ू वपलाए तो मशहूि कौल क़ी बिना पि वह औित

अपऩे शौहि क़ी सास िन र्जाती है औि उस पि हिाम हो र्जाती है । ल़ेककन यह

हुक्म इशकाल स़े खाली नहीं है औि एहततयात का ख़्याल िखना चाहहए।

2502. अगि कोई शख़्स चाह़े क़ी उसक़ी भाभी उसक़ी महिम िन र्जाए तो

िअज़ फ़ुकहा ऩे फ़िमाया है कक उस़े चाहहए कक ककसी शीि ख़्वाि िच्ची स़े ममसाल

क़े तौि पि दो हदन क़े मलए मत


ु अ कि ल़े औि उन दोनों में उन शिाइत क़े साथ

जर्जनका जज़क्र मस ्अला 2483 में ककया गया है उसक़ी भाभी उस िच्ची को दध

805
वपलाए ताकक वह उसक़ी िीवी क़ी मां िन र्जाए। ल़ेककन यह हुक्म उस सिू त में

र्जि भाभी भाई क़े ममलक


ू ा दध
ू स़े उस िच्ची को वपलाए महल्ल़े इश्काल है ।

2503. अगि कोई मदक ककसी औित स़े शादी किऩे स़े पहल़े कह़े कक रिज़ाअत

क़ी वर्जह स़े वह औित मझ


ु पि हिाम है मसलन कह़े कक मैं ऩे उस औित क़ी मां

का दध
ू वपया है तो अगि इस िात क़ी तस्दीक मजु म्कन हो तो वह उस औित स़े

शादी नहीं कि सकता औि अगि यह िात शादी क़े िाद कह़े औि खुद औित भी

इस िात को किल
ू कि़े तो उनका तनकाह िाततल है । मलहाज़ा अगि मदक ऩे उस

औित स़े हमबिस्तिी न क़ी हो या क़ी हो ल़ेककन हमबिस्तिी क़े वक़्त औि को

मअलम
ू हो कक वह उस मदक पि हिाम है तो औित का कोई महि नहीं औि अगि

औित को हमबिस्तिी क़े िाद पता चल़े कक वह उस मदक पि हिाम थी तो ज़रूिी है

कक शौहि उस र्जैसी औितों क़े महि क़े मत


ु ाबिक उस़े महि द़े ।

2504. अगि कोई औित शादी स़े पहल़े कह द़े कक रिज़ाअत क़ी वर्जह स़े मैं इस

मदक पि हिाम हूं औि इसक़ी तस्दीक मजु म्कन हो तो वह उस मदक स़े शादी नहीं

कि सकती औि अगि वह यह िात शादी क़े िाद कह़े तो उसका कहना ऐसा ही है

र्जैस़े कक मदक शादी क़े िाद कह़े कक वह औित उस पि हिाम है औि इसक़े

मत
ु अजल्लक हुक्म साबिका मस ्अल़े में ियान हो चक
ु ा है ।

2505. दध
ू वपलाना र्जो महिम िनऩे का सिि है दो चीज़ों स़े साबित होता हैः-

806
1. एक ऐसी र्जमाअत का खिि द़े ना जर्जसक़ी िात पि यक़ीन या इत्मीनान हो

र्जाए।

2. दो आहदल मदक इसक़ी गवाही दें ल़ेककन ज़रूिी है कक वह दध


ू वपलाऩे क़ी

शिाइत क़े िाि़े में भी ितायें मसलन कहें कक हम ऩे फ़लां िच्च़े को चौिीस र्ंट़े

फ़लां औित क़े वपस्तान स़े दध


ू पीत़े द़े खा है औि उसऩे उस दौिान कोई औि चीज़

भी नहीं खाई औि इसी तिह उन िाक़ी शिाइत को भी वामशगाफ़ लफ़्ज़ों में ियान

किें जर्जनका जज़क्र मस ्अला 2483 में ककया गया है। अलित्ता एक मदक औि दो

औितों या चाि औितों क़ी गवाही स़े र्जो सि क़े सि आहदल हों रिज़ाअत का

साबित होना महल्ल़े इश्काल है।

2506. अगि इस िात में शक हो कक िच्च़े ऩे इतनी ममक़्दाि में दध


ू वपया है

र्जो महिम िनऩे का सिि है या नहीं वपया है या गुमान हो कक उस ऩे इतनी

ममक़्दाि में दध
ू वपया है तो िच्चा ककसी का भी महिम नहीं होता ल़ेककन ि़ेहति

यह है कक एहततयात क़ी र्जाए।

तलाक के अह्काम

2507. र्जो मदक अपनी िीवी को तलाक द़े उसक़े मलए ज़रूिी है कक िामलग औि

आककल हो ल़ेककन अगि दस साल का िच्चा अपनी िीवी को तलाक द़े तो उसक़े

िाि़े में एहततयात का ख़्याल िखें औि इसी तिह ज़रूिी है कक मदक अपऩे इजख़्तयाि

807
स़े तलाक द़े औि अगि उस़े अपनी िीवी को तलाक द़े ऩे पि मर्जििू ककया र्जाए तो

तलाक िाततल है औि यह भी ज़रूिी है कक वह शख़्स तलाक क़ी नीयत िखता हो

मलहाज़ा अगि वह मसलन मज़ाक में तलाक का सीगा कह़े तो तलाक सहीह नहीं

है ।

2508. ज़रूिी है कक औित तलाक क़े वक़्त है ज़ या तनफ़ास स़े पाक हो औि

उसक़े शौहि ऩे उस पाक़ी क़े दौिान उस स़े हमबिस्तिी न क़ी हो औि उन दो शतों

क़ी तफ़्सील आइन्दा मसाइल में ियान क़ी र्जाय़ेगी।

2509. औित को है ज़ या तनफ़ास क़ी हालत में तीन सिू तों में तलाक द़े ना सहीह

है ः-

1. शौहि ऩे तनकाह क़े िाद उस स़े हमबिस्तिी न क़ी हो।

2. मअलम
ू हो कक वह हाममला है । औि अगि यह िात मअलम
ू न हो औि

शौहि उस़े हैज़ क़ी हालत में तलाक द़े द़े औि िाद में शौहि को पता चल़े कक वह

हाममला थी तो वह तलाक िाततल है अगिच़े एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस़े

दोिािा तलाक द़े ।

3. मदक गैि हाजज़िी या ऐसी ही ककसी औि वर्जह स़े अपनी िीवी स़े र्जुदा हो औि

यह मअलम
ू न हो सकता हो कक औित हैज़ या तनफ़ास स़े पाक है या नहीं।

ल़ेककन उस सिू त में एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि ज़रूिी है कक मदक इजन्तज़ाि

808
कि़े ताकक िीवी स़े र्जद
ु ा होऩे क़े िाद कम अज़ कम एक महीना गज़
ु ि र्जाए उसक़े

िाद उस़े तलाक द़े ।

2510. अगि कोई शख़्स औित को हैज़ स़े पाक समझ़े औि उस़े तलाक द़े द़े

औि िाद में पता चल़े कक वह है ज़ क़ी हालत में थी तो उसक़ी तलाक िाततल है

औि अगि शौहि उस़े हैज़ क़ी हालत में समझ़े औि तलाक द़े द़े औि िाद में

मअलम
ू हो कक वह पाक थी तो तलाक सहीह है।

2511. जर्जस शख़्स को इल्म हो कक उसक़ी िीवी हैज़ या तनफ़ास क़ी हालत में

है अगि वह िीवी स़े र्जुदा हो र्जाए मसलन सफ़ि इजख़्तयाि कि़े औि उस़े तलाक

द़े ना चाहता हो तो उस़े चाहहए कक उतनी मद्


ु दत सब्र कि़े जर्जस में उस़े यक़ीन या

इत्मीनान हो र्जाए कक वह औित हैज़ या तनफ़ास स़े पाक हो गई है औि र्जि वह

यह र्जान ल़े कक औित पाक है उस़े तलाक द़े औि अगि उस़े शक हो ति भी यही

हुक्म है ल़ेककन इस सिू त में गायि शख़्स क़ी तलाक क़े िाि़े में मस ्अला 2509 में

र्जो ियान हुई है उन का ख्याल िख़े।

2512. र्जो शख़्स अपनी िीवी स़े र्जुदा हो अगि उस़े तलाक द़े ना चाह़े तो अगि

वह मअलम
ू कि सकता हो कक उसक़ी िीवी है ज़ या तनफ़ास क़ी हालत में है या

नहीं तो अगिच़े है ज़ क़ी आदत या उन दस


ू िी तनशातनयों को र्जो शिअ में मअ
ु य्यन

809
हैं द़े खत़े हुए उस़े तलाक द़े औि िाद में मअलम
ू हो कक वह है ज़ या तनफ़ास क़ी

हालत में थी तो उसक़ी तलाक सहीह है।

2513. अगि कोई शख़्स अपनी िीवी स़े र्जो हैज़ या तनफ़ास स़े पाक हो हम

बिस्तिी कि़े औि किि उस़े तलाक द़े ना चाह़े तो ज़रूिी है कक सब्र कि़े हत्ता कक उस़े

दोिािा हैज़ आ र्जाए औि किि वह पाक हो र्जाए ल़ेककन अगि ऐसी औित को हम

बिस्तिी क़े िाद तलाक दी र्जाए जर्जसक़ी उम्र नौ साल स़े कम हो या मअलम
ू हो

कक वह हाममला है तो उसमें कोई इश्काल नहीं औि अगि औित याइसा हो ति भी

यही हुक्म है ।

2514. अगि कोई शख़्स ऐसी औित स़े हमबिस्तिी कि़े र्जो हैज़ या तनफ़ास स़े

पाक हो औि उसी पाक़ी क़ी हालत में उस़े तलाक द़े द़े औि िाद में मअलम
ू हो कक

वह तलाक द़े ऩे क़े वक़्त हाममला थी तो वह तलाक िाततल है औि एहततयात़े

मस्
ु तहि यह है कक शौहि उस़े दोिािा तलाक द़े ।

2515. अगि कोई शख़्स ऐसी औित स़े हमबिस्तिी कि़े र्जो हैज़ या तनफ़ास स़े

पाक हो किि वह उस स़े र्जद


ु ा हो र्जाए मसलन सफ़ि इजख़्तयाि कि़े । मलहाज़ा अगि

वह चाह़े कक सफ़ि क़े दौिान उस़े तलाक द़े औि उसक़ी पाक़ी या ना पाक़ी क़े िाि़े

में र्जान सकता हो तो ज़रूिी है कक इतनी मद्


ु दत सब्र कि़े कक औित को उसक़ी

पाक़ी क़े िाद है ज़ आए औि वह दोिािा पाक हो र्जाए औि एहततयात़े वाजर्जि यह है

कक वह मद्
ु दत एक महीऩे स़े कम न हो।

810
2516. अगि कोई मदक ऐसी औित को तलाक द़े ना चाहता हो जर्जस पैदायशी तौि

पि या ककसी िीमािी क़ी वर्जह स़े है ज़ न आता हो औि उस उम्र क़ी दस


ू िी औितों

को हैज़ आता हो तो ज़रूिी है कक र्जि उसऩे ऐसी औित स़े जर्जमाअ ककया हो उस

वक़्त स़े तीन महीऩे तक उसस़े जर्जमाअ न कि़े औि िाद में उस़े तलाक द़े द़े ।

2517. ज़रूिी है कक तलाक का सीगा सहीह अििी में लफ़्ज़़े तामलकुन क़े साथ

पढ़ा र्जाए औि दो आहदल मदक उस़े सन


ु ें। अगि शौहि खुद तलाक का सीगा पढ़ना

चाह़े औि ममसाल क़े तौि पि उसक़ी िीवी का नाम फ़ाततमा हो तो ज़रूिी है कक

कह़े – ज़ौर्जती फ़ाततमतो तामलकुन औि अगि औित मअ


ु य्यन हो तो उसका नाम

ल़ेना लाजज़म नहीं है। औि अगि मदक अििी में तलाक का सीगा न पढ़ सकता हो

औि वक़ील भी न िना सक़े तो वह जर्जस ज़िान में चाह़े हि उस लफ़्ज़ क़े ज़रिय़े

तलाक द़े सकता है औि र्जो अििी लफ़्ज़ क़े हम मअना हो।

2518. जर्जस औित स़े मत


ु अ ककया गया हो मसलन एक साल या एक महीऩे क़े

मलए उस स़े तनकाह ककया गया हो उस़े तलाक द़े ऩे का कोई सवाल नहीं। औि

उसका आज़ाद होना इस िात पि मन


ु हमसि है कक या तो मत
ु अ क़ी मद्
ु दत खत्म

हो र्जाए या मदक उस़े मद्


ु दत िख़्श द़े औि वह इस तिह स़े उसस़े कह़े , मैऩे मद्
ु दत

तुझ़े िख़्श दी । औि ककसी को इस पि गवाह किाि द़े ना औि उस औित का है ज़

स़े पाक होना लाजज़म नहीं।

811
तलाक की इद्दत

2519. जर्जस लड़क़ी क़ी उम्र (पिू ़े ) नौ साल न हुई हो – औि र्जो औित याइसा

हो चक
ु ़ी हो – उस क़ी कोई इद्दत नहीं होती। यअनी अगिच़े शौहि ऩे उसस़े

मर्ज
ु ाममअत क़ी हो, तलाक क़े िाद वह फ़ौिन दस
ू िा शौहि कि सकती है।

2520. जर्जस लड़क़ी क़ी उम्र (पिू ़े ) नौ साल हो चक


ु ़ी हो औि र्जो औित याइसा न

हो उसका शौहि उस स़े मर्ज


ु ाममअत कि़े तो अगि वह उस़े तलाक द़े तो ज़रूिी है

कक वह (लड़क़ी या) औित तलाक क़े िाद इद्दत िख़े औि आज़ाद औित क़ी

इद्दत यह है कक र्जि उसका शौहि उस़े पाक़ी क़ी हालत में तलाक द़े तो उसक़े

िाद वह इतनी मद्


ु दत सब्र कि़े कक दो दफ़् आ हैज़ स़े पाक हो र्जाए औि र्जंू ही उस़े

तीसिी दफ़् आ हैज़ आए तो उसक़ी इद्दत खत्म हो र्जाती है औि वह दस


ू िा तनकाह

कि सकती है ल़ेककन अगि शौहि औित स़े मर्ज


ु ाममअत किऩे स़े पहल़े उस़े तलाक

द़े द़े तो उसक़े मलए कोई इद्दत नहीं यअनी वह तलाक क़े फ़ौिन िाद दस
ू िा

तनकाह कि सकती है ल़ेककन अगि शौहि क़ी मनी र्जज़्ि या उस र्जैसी ककसी वर्जह

स़े उसक़ी शमकगाह में दाखखल हुई हो तो उस सिू त में अज़हि क़ी बिना पि ज़रूिी

है कक वह इद्दत िख़े।

2521. जर्जस औित को हैज़ न आता हो ल़ेककन उस का मसन उन औितों र्जैसा

हो जर्जन्हें हैज़ आता हो अगि उसका शौहि मर्ज


ु ाममअत किऩे क़े िाद उस़े तलाक द़े

द़े तो ज़रूिी है कक तलाक क़े िाद तीन महीऩे क़ी इद्दत िख़े।

812
2522. जर्जस औित क़ी इद्दत तीन महीऩे हो अगि उस़े चांद क़ी पहली तािीख

को तलाक दी र्जाए तो ज़रूिी है कक तीन कमिी महीऩे तक यअनी र्जि चांद द़े खा

र्जाए उस वक़्त स़े तीन महीऩे तक इद्दत िख़े औि अगि उस़े महीऩे क़े दौिान

(ककसी औि तािीख को) तलाक दी र्जाए तो ज़रूिी है कक उस महीऩे क़े िाक़ी हदनों

में उस क़े िाद आऩे वाल़े दो महीऩे औि चौथ़े महीऩे क़े उतऩे हदन जर्जतऩे हदन

पहल़े महीऩे स़े कम हो इद्दत िख़े ताकक तीन महीऩे मक


ु म्मल हो र्जायें मसलन

अगि उस़े महीऩे क़ी िीसवीं तािीख को गरुि क़े वक़्त तलाक दी र्जाए औि यह

महीना उन्तीस हदन का हो तो ज़रूिी है कक नौ हदन उस महीऩे क़े औि उसक़े िाद

दो महीऩे औि उसक़े िाद चौथ़े महीऩे क़े िीस हदन इद्दत िख़े िजल्क एहततयात़े

वाजर्जि है कक चौथ़े महीऩे क़े एक्क़ीस हदन इद्दत िख़े ताकक पहल़े महीऩे क़े जर्जतऩे

हदन इद्दत िखी है उन्हें ममलाकि हदनों क़ी तअदाद तीस हो र्जाए।

2523. अगि हाममला औित को तलाक दी र्जाए तो उसक़ी इद्दत वज़ए हम्ल

या इस्कात़े हम्ल तक है मलहाज़ा ममसाल क़े तौि पि अगि तलाक क़े एक र्ंट़े िाद

िच्चा पैदा हो र्जाए तो उस औित क़ी इद्दत खत्म हो र्जाय़ेगी। ल़ेककन यह हुक्म

उस सिू त में है र्जि वह िच्चा साहहिए इद्दत का शिई ि़ेटा हो मलहाज़ा अगि

औित जज़ना स़े हाममला हुई हो औि शौहि उस़े तलाक द़े तो उसक़ी इद्दत िच्च़े क़े

पैदा होऩे स़े खत्म नहीं होती।

813
2524. जर्जस लड़क़ी ऩे उम्र क़े नौ साल मक
ु म्मल कि मलय़े हों औि र्जो औित

याइसा न हो अगि वह ममसाल क़े तौि पि ककसी शख़्स स़े एक महीऩे या एक

साल क़े मलए मत


ु अ कि़े तो अगि उस का शौहि उस स़े मर्ज
ु ाममअत कि़े औि उस

औित क़ी मद्


ु दत तमाम हो र्जाए या शौहि उस़े मद्
ु दत िख़्श द़े तो ज़रूिी है कक

वह इद्दत िख़े। पस अगि उस़े हैज़ आए तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

वह हैज़ क़े ििािि इद्दत िख़े औि तनकाह न कि़े औि अगि हैज़ न आए तो

पैंतामलस हदन शौहि किऩे स़े इर्जततनाि कि़े औि हाममला होऩे क़ी सिू त में अज़हि

क़ी बिना पि उसक़ी इद्दत िच्च़े क़ी पैदाइश या इस्कात होऩे तक है । अगिच़े

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक र्जो मद्
ु दत़े वज़ए हम्ल या पैंतामलस हदन में स़े

ज़्यादा हो उतनी मद्


ु दत क़े मलए इद्दत िख़े।

2525. तलाक क़ी इद्दत उस वक़्त शरू


ु उ होती है र्जि सीगा का पढ़ना खत्म हो

र्जाता है ख़्वाह औित को पता चल़े या न चल़े कक उस़े तलाक हो गई है पस अगि

उस़े इद्दत क़े (क़े ििािि मद्


ु दत) गज़
ु िऩे क़े िाद पता चल़े कक उस़े तलाक हो गई

है तो ज़रूिी नहीं कक वह दोिािा इद्दत िख़े।

वफ़ात की इद्दत

2526. अगि कोई औित ि़ेवा हो र्जाए तो उस सिू त में र्जि कक वह आज़ाद हो

अगि वह हाममला न हो तो ख़्वाह वह याइसा हो या शौहि ऩे उस स़े मत


ु अ ककया
814
हो या शौहि ऩे उसस़े ममर्जाममअत न क़ी हो ज़रूिी है कक चाि महीऩे औि दस हदन

इद्दत िख़े औि अगि हाममला हो तो ज़रूिी है कक वज़ ्ए हम्ल तक इद्दत िख़े

ल़ेककन अगि चाि महीऩे औि दस हदन गज़


ु िऩे स़े पहल़े िच्चा पैदा हो र्जाए तो

ज़रूिी है कक शौहि क़ी मौत क़े िाद चाि महीऩे तक सब्र कि़े औि इस इद्दत को

वफ़ात क़ी इद्दत कहत़े हैं।

2527. र्जो औित वफ़ात क़ी इद्दत में हो उस क़े मलए िं ग बििं गा मलिास

पहनना, सम
ु ाक लगाना औि इसी तिह दस
ू ि़े ऐस़े काम र्जो ज़ीनत में शम
ु ाि होत़े हों

हिाम हैं।

2528. अगि औित को यक़ीन हो र्जाए कक उस का शौहि मि चक


ु ा है औि

इद्दत़े वफ़ात तमाम होऩे क़े िाद वह दस


ू िा तनकाह कि़े औि किि उस़े मअलम
ू हो

कक उसक़े शौहि क़ी मौत िाद में वाक़ेअ हुई है तो ज़रूिी है कक दस


ू ि़े शौहि स़े

अलायहदगी इजख़्तयाि कि़े औि एहततयात क़ी बिना पि उस सिू त में र्जिकक वह

हाममला हो वज़ए हम्ल तक दस


ू ि़े शौहि क़े मलए वतीए शबु हा क़ी इद्दत िख़े --

र्जो कक तलाक क़ी इद्दत क़ी तिह है । औि उसक़े िाद पहल़े शौहि क़े मलए इद्दत़े

वफ़ात िख़े औि अगि हाममला न हो तो पहल़े शौहि क़े मलए इद्दत़े वफ़ात औि

उसक़े िाद दस
ू ि़े शौहि क़े मलए वतीए शबु हा क़ी इद्दत िख़े।

2529. जर्जस औित का शौहि लापता हो या लापता होऩे क़े हुक्म में हो उसक़ी

इद्दत़े वफ़ात शौहि क़ी मौत क़ी इवत्तला ममलऩे क़े वक़्त स़े शरू
ु उ होती है न कक

815
शौहि क़ी मौत क़े वक़्त स़े। ल़ेककन इस हुक्म का उस औित क़े मलए होना र्जो

नािामलग हो या पागल हो इशकाल है ।

2530. अगि औित कह़े कक म़ेिी इद्दत खत्म हो गई है तो उसक़ी िात काबिल़े

किल
ू है मगि यह कक वह गलत ियान मश्हूि हो तो उस सिू त में एहततयात क़ी

बिना पि उसक़ी िात काबिल़े किल


ू नहीं है । मसलन वह कह़े कक मझ
ु ़े एक महीऩे

में तीन दफ़् अ खून आता है तो इस िात क़ी तस्दीक नहीं क़ी र्जाय़ेगी। मगि यह

कक उस क़ी सह़े मलयां औि रिश्त़ेदाि औितें इस िात क़ी तस्दीक किें कक उसक़ी है ज़

क़ी आदत ऐसी ही थी।

तलाके बाइन औि तलाके िज ़्ई

2531. तलाक़े िाइन वह है कक जर्जस क़े िाद मदक अपनी औित क़ी तिफ़ रुर्जूउ

किऩे का हक नहीं िखता यअनी कक िगैि तनकाह क़े दोिािा उस़े अपनी िीवी नहीं

िना सकता औि इस तलाक क़ी छः ककस्में हैं –

1. उस औित को दी गई तलाक जर्जसक़ी उम्र अभी नौ साल न हुई हो।

2. उस औित को दी गई तलाक र्जो याइसा हो।

3. उस औित को दी गई तलाक जर्जस क़े शौहि ऩे तनकाह क़े िाद उसस़े

जर्जमाअ न ककया हो।

816
4. जर्जस औित को तीन दफ़् आ तलाक दी गई हो उस़े दी र्जाऩे वाली तीसिी

तलाक।

5. खल
ु अ औि मि
ु ािात क़ी तलाक।

6. हाककम़े शअक का उस औित को तलाक द़े ना जर्जसका शौहि न उसक़े

अखिार्जात िदाकश्त किता हो न उस़े तलाक द़े ता हो, जर्जनक़े अह्काम िाद में ियान

ककय़े र्जायेंग़े।

औि इन तलाकों क़े अलावा र्जो तलाकें हैं वह िर्जई हैं जर्जसका मतलि यह है कक

र्जि तक औित इद्दत में हो शौहि उस स़े रुर्जउ


ू कि सकता है ।

2532. जर्जस शख़्स ऩे अपनी औित को िर्जई तलाक दी हो उसक़े मलए उस

औित को उस र्ि स़े तनकाल द़े ना या जर्जस में वह तलाक द़े ऩे क़े वक़्त मक
ु ़ीम थी

हिाम है अलित्ता िअज़ मौकों पि – जर्जन में स़े एक यह है कक औित जज़ना कि़े

तो उस़े र्ि स़े तनकाल द़े ऩे में कोई इश्काल नहीं। नीज़ यह भी हिाम है कक औित

गैि ज़रूिी कामों क़े मलए शौहि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस र्ि स़े िाहि र्जाए।

रुज़ू किने के अह्काम

2533. िर्ज ्ई तलाक में मदक दो तिीकों स़े औित क़ी तिफ़ रुर्जूउ कि सकता है ः-

1. ऐसी िातें कि़े जर्जस स़े मत


ु िश्श़ेह हो कक उसऩे उस़े दोिािा अपनी िीवी िना

मलया है ।

817
2. कोई काम कि़े औि उस काम स़े रुर्जूउ का कस्द कि़े औि ज़ाहहि यह है कक

जर्जमाअ किऩे स़े रुर्जउ


ू साबित हो र्जाता है ख़्वाह उसका कस्द रुर्जउ
ू किऩे का न

भी हो। िजल्क िअज़ (फ़ुकहा) का कहना है कक अगिच़े रुकूउ का कस्द न हो मसफ़क

मलपटाऩे औि िोसा ल़ेऩे स़े रुर्जउ


ू साबित हो र्जाता है अलित्ता यह कौल इश्काल स़े

खाली नहीं है ।

2534. रुर्जूउ किऩे में मदक क़े मलए लाजज़म नहीं कक ककसी को गवाह िनाए या

अपनी िीवी को (रुर्जउ


ू क़े मत
ु अजल्लक) इवत्तलाअ द़े िजल्क अगि िगैि इस क़े कक

ककसी को पता चल़े वह खद


ु ही रुर्जउ
ू कि ल़े तो उसका रुर्जउ
ू किना सहीह है ।

ल़ेककन अगि इद्दत खत्म हो र्जाऩे क़े िाद मदक कह़े कक मैंऩे इद्दत क़े दौिान ही

रुर्जूउ कि मलया था तो लाजज़म है कक इस िात को साबित कि़े ।

2535. जर्जस मदक ऩे औित को िर्ज ्ई तलाक दी हो अगि वह उस स़े कुछ माल

ल़े ल़े औि उस स़े मस


ु ालहत कि ल़े कक अि तुझ स़े रुर्जूउ नहीं करूंगा तो अगिच़े

यह मस
ु ालहत दरू
ु स्त है औि मदक पि वाजर्जि है कक रुर्जउ
ू न कि़े ल़ेककन इस स़े

मदक क़े रुर्जउ


ू किऩे का हक खत्म नहीं होता औि अगि वह रुर्जउ
ू कि़े तो र्जो

तलाक द़े चक
ु ा है वह अलायहदगी का मजू र्जि नहीं िनती।

2536. अगि कोई शख़्स अपनी िीवी को दो दफ़् आ तलाक द़े कि उसक़ी तिफ़

रुर्जूउ कि ल़े या उस़े दो दफ़् आ तलाक द़े औि हि तलाक क़े िाद उस स़े तनकाह

कि़े या एक तलाक क़े िाद रुर्जूउ कि़े औि दस


ू िी तलाक क़े िाद तनकाह कि़े तो

818
तीसिी तलाक क़े िाद वह उस मदक पि हिाम हो र्जाय़ेगी ल़ेककन अगि औित तीसिी

तलाक क़े िाद ककसी दस


ू ि़े मदक स़े तनकाह कि़े तो वह पांच शतों क़े साथ पहल़े मदक

पि हलाल होगी यअनी उस औित स़े दोिािा तनकाह कि सक़ेगा।

1. दस
ू ि़े शौहि का तनकाह दाइमी हो। पस अगि ममसाल क़े तौि पि वह एक

महीऩे या एक साल क़े मलए उस औित स़े मत


ु अ कि ल़े तो उस मदक स़े

अलायहदगी क़े िाद पहला शौहि उस स़े तनकाह नहीं कि सकता।

2. दस
ू िा शौहि जर्जमाअ कि़े औि एहततयात़े वाजर्जि यह है कक जर्जमाअ फ़ुज़क में

कि़े ।

3. दस
ू िा शौहि उस़े तलाक द़े या मि र्जाए।

4. दस
ू ि़े शौहि क़ी तलाक क़ी इद्दत या वफ़ात क़ी इद्दत खत्म हो र्जाए।

5. एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि दस


ू िा शौहि जर्जमाअ कित़े वक़्त िामलग हो।

तलाके ख़ुलअ

2537. उस औित क़ी तलाक को र्जो अपऩे शौहि क़ी तिफ़ माइल न हो औि

उस स़े नफ़ित किती हो अपना महि या कोई औि माल उस़े िख़्श द़े ताकक वह

उस़े तलाक द़े द़े तलाक़े खुलअ कहत़े हैं। औि तलाक़े खुलअ में अज़हि क़ी बिना

पि मोतिि है कक औित अपऩे शौहि स़े इस कदि शदीद नफ़ित किती हो कक उस़े

वज़ीफ़ा ए ज़ौर्जीयत अदा न किऩे क़ी धमक़ी द़े ।

819
2538. र्जि शौहि खद
ु तलाक़े खुलअ का सीगा पढ़ना चाह़े तो अगि उसक़ी िीवी

का नाम मसलन फ़ाततमा हो तो एवज़ ल़ेऩे क़े िाद कह़े , ज़ौर्जती फ़ाततमतो

खालअतह
ु ा अला मा िज़लत औि एहततयात़े मस्
ु तहि क़ी बिना पि, हहया तामलकुन

भी कह़े यअनी मैंऩे अपनी िीवी फ़ाततमा को उस माल क़े एवज़ र्जो उसऩे मझ
ु ़े

हदया है तलाक़े खुलअ द़े िहा हूं औि वह आज़ाद है । औि अगि औित मअ


ु य्यन हो

तो तलाक़े खुलअ में औि नीज़ तलाक़े मि


ु ाित में उसका नाम ल़ेना लाजज़म नहीं।

2539. अगि कोई औित ककसी शख़्स को वक़ील मक


ु िक ि कि़े ताकक वह उस का

महि उसक़े शौहि को िख़्श द़े औि शौहि भी उसी शख़्स को वक़ील मक


ु िक ि कि़े

ताकक वह उसक़ी िीवी को तलाक द़े द़े तो अगि ममसाल क़े तौि पि शौहि का

नाम मौहम्मद औऱ िीवी का नाम फ़ाततमा हो तो वक़ील सीगा ए तलाक यंू पढ़़े ,

अन मव
ु जक्कलती फ़ाततमता िज़ल्तो महिहा ल़े मव
ु जक्कली मोहम्महदन ल़ेयखलअहा

अलैह़े, औि उसक़े िाद बिला फ़ामसला कह़े , ज़ौर्जतो मव


ु जक्कली खालअतुहा अला मा

िज़लत हहया तामलकुन,। औि अगि औित ककसी को वक़ील मक


ु िक ि कि़े कक उसक़े

शौहि को महि क़े अलावा कोई औि चीज़ िख़्श द़े ताकक उस का शौहि उस़े तलाक

द़े द़े तो ज़रूिी है कक वक़ील लफ़्ज़़े महिहा क़ी िर्जाय उस चीज़ का नाम ल़े

मसलन अगि औित ऩे सौ रुपय़े हदय़े हों तो ज़रूिी है कक कह़े , िज़लत म़ेअता

रुपया।

820
तलाके मब
ु ाित

2540. अगि ममयां िीवी दोनों एक दस


ू ि़े को न चाहत़े हों औि अगि एक दस
ू ि़े

स़े नफ़ित कित़े हों औि औित मदक को कुछ माल द़े ताकक वह उस़े तलाक द़े द़े

तो उस़े तलाक़े मि
ु ाित कहत़े हैं।

2541. अगि शौहि मि


ु ाित का सीगा पढ़ना चाह़े तो अगि मसलन औित का

नाम फ़ाततमा हो तो ज़रूिी है कक कह़े , िािातो ज़ौर्जती फ़ाततमता अला मा िज़लत,

औि एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि, फ़हहया तामलकुन भी कह़े । यअनी मैं औि

म़ेिी िीवी फ़ाततमा उस अता क़े मक


ु ाबिल में र्जो उसऩे क़ी है एक दस
ू ि़े स़े र्जुदा हो

गए हैं पस वह आज़ाद है। औि अगि वह शख़्स ककसी को वक़ील मक


ु िक ि कि़े तो

ज़रूिी है कक वक़ील कह़े , अनककिला मव


ु जक्कली िािातो ज़ौर्जतहू फ़ाततमता अला

मा िज़लत फ़हहया तामलकुन औि दोनों सिू तों में कमलमा अला मा िज़लत क़ी

िर्जाय अगि ि़ेमा िज़लत कह़े तो कोई इश्काल नहीं है ।

2542. खुलअ औि मि
ु ािात क़ी तलाक का सीगा अगि मजु म्कन हो तो सहीह

अििी में पढ़ा र्जाना चाहहए औि अगि मजु म्कन न हो तो उसका हुक्म तलाक क़े

हुक्म र्जैसा है जर्जसका ियान मस ्अला 2517 में गज़


ु ि चक
ु ा है । ल़ेककन अगि औित

मि
ु ािात क़ी तलाक क़े मलय़े शौहि को अपना माल िख़्श द़े । मसलन उदक ू में कह़े

कक – मैंऩे तलाक ल़ेऩे क़े मलय़े फ़लां माल तुम्हें िख़्श हदया, तो कोई इश्काल नहीं।

821
2543. अगि कोई औित तलाक़े खुलअ या तलाक़े मि
ु ािात क़ी इद्दत क़े दौिान

अपनी िजख़्शश स़े किि र्जाए तो शौहि उसक़ी तिफ़ रुर्जउ


ू कि सकता है औि

दोिािा तनकाह क़े िगैि उस़े अपनी िीवी िना सकता है।

2544. र्जो माल शौहि तलाक़े मि


ु ािात द़े ऩे क़े मलए ल़े ज़रूिी है कक वह औित

क़े महि स़े ज़्यादा न हो ल़ेककन तलाक़े खुलअ क़े मसलमसल़े में मलया र्जाऩे वाला

माल अगि महि स़े ज़्यादा भी हो तो कोई इश्काल नहीं।

तलाक के मुख़्तललफ़ अह्काम

2545. अगि कोई आदमी ककसी ना महिम औित स़े इस गुमान में जर्जमाअ कि़े

कक वह उसक़ी िीवी है तो ख़्वाह औित को इल्म हो कक वह उस का शौहि नहीं है

या गुमान कि़े कक उस का शौहि है ज़रूिी है कक इद्दत िख़े।

2546. अगि कोई आदमी ककसी औित स़े यह र्जानत़े हुए जज़ना कि़े कक वह

उसक़ी िीवी नहीं है तो अगि औित को इल्म हो कक वह आदमी उसका शौहि नहीं

है उसक़े मलए इद्दत िखना ज़रूि नहीं। ल़ेककन अगि उस़े शौहि होऩे का गुमान हो

तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक वह औित इद्दत िख़े।

2547. अगि कोई शख़्स ककसी औित को वगकलाए कक वह अपऩे शौहि स़े

मत
ु अजल्लक इज़हदवार्जी जज़म्म़ेदारियां पिू ी न कि़े ताकक इस तिह शौहि उस़े तलाक

822
द़े ऩे पि मर्जििू हो र्जाए औि वह खुद उस औित क़े साथ शादी कि सक़े तो तलाक

औि तनकाह सहीह है ल़ेककन दोनों ऩे िहुत िड़ा गन


ु ाह ककया है ।

2548. अगि औित तनकाह क़े मसलमसल़े में शौहि स़े शतक कि़े कक अगि उसका

शौहि सफ़ि इजख़्तयाि कि़े या मसलन छः महीऩे उस़े खचक न द़े तो तलाक का हक

औित को हामसल होगा तो यह शतक िाततल है । ल़ेककन अगि शतक कि़े कक अभी स़े

शौहि क़ी तिफ़ स़े वक़ील है कक अगि वह मस


ु ाकफ़ित इजख़्तयाि कि़े या छः महीऩे

तक उस क़े अखिार्जात पिू ़े न कि़े तो वह अपऩे आप को तलाक द़े गी तो इसमें

कोई इश्काल नहीं है ।

2549. जर्जस औित का शौहि लापता हो र्जाए अगि वह दस


ू िा शौहि किना चाह़े

तो ज़रूिी है कक मज्
ु तहहद़े आहदल क़े पास र्जाए औि उसक़े हुक्म क़े मत
ु ाबिक

अमल कि़े ।

2550. दीवाऩे क़े िाप दादा उसक़ी िीवी को तलाक द़े सकत़े हैं।

2551. अगि िाप या दादा अपऩे नािामलग लड़क़े (या पोत़े) का ककसी औित स़े

मत
ु अ कि दें औि मत
ु अ क़ी मद्
ु दत में उस लड़क़े क़े मक
ु ल्लफ़ होऩे क़ी कुछ

मद्
ु दत भी शाममल हो मसलन अपऩे चौदा साला लड़क़े का ककसी औित स़े दो

साल क़े मलए मत


ु अ कि द़े तो अगि उस में लड़क़े क़ी भलाई हो तो वह (यअनी

िाप या दादा) उस औित क़ी मद्


ु दत िख़्श सकत़े हैं ल़ेककन लड़क़े क़ी दाइमी िीवी

को तलाक नहीं द़े सकत़े।

823
2552. अगि कोई शख़्स दो आदममयों को शिअ क़ी मक
ु िक ि कदाक अलामत क़ी रू

स़े आहदल मसझ़े औि अपनी िीवी को उनक़े सामऩे तलाक द़े द़े तो कोई औि

शख़्स जर्जसक़े नज़दीक उन दो आदममयों क़ी अदालत साबित न हो उस औित क़ी

इद्दत खत्म होऩे क़े िाद उस क़े साथ खुद तनकाह कि सकता है या उस़े ककसी

दस
ू ि़े क़े तनकाह में द़े सकता है अगिच़े एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक उस क़े साथ

तनकाह स़े इजज्तनाि कि़े औि दस


ू ि़े का तनकाह भी उस क़े साथ न कि़े ।

2553. अगि कोई शख़्स अपनी िीवी क़े इल्म में लाए िगैि उस़े तलाक द़े द़े तो

अगि वह उसक़े अखिार्जात उसी तिह स़े जर्जस तिह उस वक़्त द़े ता था र्जि वह

उसक़ी िीवी थी औि मसलन एक साल क़े िाद उस स़े कह़े कक, मैं एक साल हुआ

तुझ़े तलाक द़े चक


ु ा हूाँ, औि इस िात को शिअन साबित भी कि द़े तो र्जो चीज़ें

उसऩे इस मद्
ु दत में उस औित को मह
ु ै या क़ी हों औि वह उन्हें अपऩे इस्त़ेमाल में

न लाई हो उसस़े वापस ल़े सकता है ल़ेककन र्जो चीज़ें उसऩे इस्त़ेमाल कि ली हों

उनका मत
ु ालिा नहीं कि सकता।

824
गस्ब के अह्काम

गस्ि क़े मअनी यह हैं कक कोई शख़्स ककसी क़े माल पि या हक पि ज़ल्
ु म

(औि धौंस या धांधली) क़े ज़िीए काबिज़ हो र्जाए औि यह िहुत िड़़े गन


ु ाहों में स़े

एक गुनाह है जर्जसका मत
ु कक कि ककयामत क़े हदन सख़्त अज़ाि में चगिफ़्ताि होगा।

र्जनाि़े िसल
ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम स़े रिवायत है, र्जो

शख़्स ककसी दस
ू ि़े क़ी एक िामलश्त ज़मीन पि गस्ि कि़े ककयामत क़े हदन उस

ज़मीन को उसक़े सात तिकों सम़ेत तौक क़ी तिह उसक़ी गदक न में डाल हदया

र्जाय़ेगा।

2554. अगि कोई शख़्स लोगों को मजस्र्जद या मदिस़े या पल


ु या दस
ू िी ऐसी

र्जगहों स़े र्जो रिफ़ाह़े आम्मा क़े मलए िनाई गई हों इजस्तफ़ादा न किऩे द़े तो उसऩे

उनका हक गस्ि ककया है । इसी तिह अगि कोई शख़्स मजस्र्जद में अपऩे (िैठऩे

क़े) मलए र्जगह मख़्


ु तस कि़े औि दस
ू िा कोई शख़्स उस़े उस र्जगह स़े तनकाल द़े

औि उस़े उस र्जगह स़े इजस्तफ़ादा न किऩे द़े तो वह गन


ु ाहगाि है ।

2555. अगि चगिवी िखवाऩे वाला औि चगिवी िखऩे वाला यह तय कि़े कक र्जो

चीज़ चगिवी िखी र्जा िही हो वह चगिवी िखऩे वाल़े या ककसी तीसि़े शख़्स क़े पास

िखी र्जाए तो चगिवी िखवाऩे वाला उसका कज़क अदा किऩे स़े पहल़े उस चीज़ को

825
वापस नहीं ल़े सकता औि अगि वह चीज़ वापस ली हो तो ज़रूिी है कक फ़ौिन

लौटा द़े ।

2556. र्जो माल ककसी क़े पास चगिवी िखा गया हो अगि कोई औि शख़्स उस़े

गस्ि कि ल़े तो माल का मामलक औि चगिवी िखऩे वाला दोनों गामसि स़े गस्ि

क़ी हुई चीज़ का मत


ु ालिा कि सकत़े हैं औि अगि वह चीज़ गामसि स़े वापस ल़े

लें तो वह चगिवी ही िह़े गी औि अगि वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए औि वह उस का

एवज़ हामसल किें तो वह एवज़ भी अस्ली चीज़ क़ी चगिवी िह़े गा।

2557. अगि इंसान कोई चीज़ गस्ि कि़े तो ज़रूिी है कक उसक़े मामलक को

लौटा द़े औि अगि वह चीज़ ज़ाए हो र्जाए औि उसक़ी कोई क़ीमत हो तो ज़रूिी है

कक उस का एवज़ मामलक को द़े ।

2558. र्जो चीज़ गस्ि क़ी गई हो अगि उसस़े कोई नफ़् अ हो मसलन गस्ि क़ी

हुई भ़ेड़ का िच्चा पैदा हो तो वह उसक़े मामलक का माल है नीज़ ममसाल क़े तौि

पि अगि ककसी ऩे कोई मकान गस्ि कि मलया हो तो ख़्वाह गामसि उस मकान में

न िह़े ज़रूिी है कक उसका ककिाया मामलक को द़े ।

2559. अगि कोई शख़्स िच्च़े या दीवाऩे स़े कोई चीज़ र्जो उस (िच्च़े या

दीवाऩे) का माल हो गस्ि कि़े तो ज़रूिी है कक वह चीज़ उसक़े सिपिस्त को द़े द़े

औि अगि वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका एवज़ द़े ।

826
2560. अगि दो आदमी ममलकि ककसी चीज़ को गस्ि किें चन
ु ांच़े वह दोनों उस

चीज़ पि तसल्लत
ु िखत़े हों तो उनमें स़े हि एक उस पिू ी चीज़ का ज़ाममन है

अगिच़े उन में स़े हि एक र्जद


ु ागाना तौि पि उस़े गस्ि न कि सकता हो।

2561. अगि कोई शख़्स गस्ि क़ी हुई चीज़ को ककसी दस


ू िी चीज़ स़े ममला द़े

मसलन र्जो ग़ेहूं गस्ि क़ी हो उस़े र्जौ स़े ममला द़े तो अगि उसका र्जुदा किना

मजु म्कन हो तो ख़्वाह उस में ज़हमत ही क्यों न हो ज़रूिी है कक उन्हें एक दस


ू ि़े स़े

अलायहदा कि़े औि (गस्ि क़ी हुई चीज़) उसक़े मामलक को वापस कि द़े ।

2562. अगि कोई शख़्स ततलाई चीज़ मसलन सोऩे क़ी िामलयों को गस्ि कि़े

औि उसक़े िाद उस़े वपर्ला द़े तो वपर्लाऩे स़े पहल़े औि वपर्लाऩे क़े िाद क़ी

क़ीमत में र्जो फ़कक हो ज़रूिी है कक वह मामलक को अदा कि़े चन


ु ांच़े अगि क़ीमत

में र्जो फ़कक पड़ा हो वह न द़े ना चाह़े औि कह़े कक मैं उस़े पहल़े क़ी तिह िना दं ग
ू ा

तो मामलक मर्जििू नहीं कक उस क़ी िात किल


ू कि़े औि मामलक भी उस़े मर्जििू

नहीं कि सकता कक उस़े पहल़े क़ी तिह िना द़े ।

2563. जर्जस शख़्स ऩे कोई चीज़ गस्ि क़ी हो अगि वह उसमें ऐसी तबदीली कि़े

कक उस चीज़ क़ी हालत पहल़े स़े ि़ेहति हो र्जाए मसलन र्जो सोना गस्ि ककया हो

उस क़े िन्
ु द़े िना द़े तो अगि माल का मामलक उस़े कह़े कक मझ
ु ़े माल इसी हालत

में (यअनी िन्


ु द़े क़ी शक्ल में ) दो तो ज़रूिी है कक उस़े द़े द़े औि र्जो ज़हमत उसऩे

उठाई हो (यअनी िन्


ु द़े िनाऩे पि र्जो महनत क़ी हो) उसक़ी मज़दिू ी नहीं ल़े सकता

827
औि इसी तिह वह यह हक नहीं िखता कक मामलक क़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस चीज़

को उसक़ी पहली हालत में ल़े आए ल़ेककन अगि उसक़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस चीज़

को पहल़े र्जैसा कि द़े या औि ककसी शक्ल में तबदील कि़े तो मअलम


ू नहीं है कक

दोनों सिू तों में क़ीमत का र्जो फ़कक है उस का ज़ाममन है या (नहीं)।

2564. जर्जस शख़्स ऩे कोई चीज़ गस्ि क़ी हो अगि वह उसमें कोई ऐसी

तबदीली कि़े कक उसक़ी हालत पहल़े स़े ि़ेहति हो र्जाए औि साहि़े माल उस़े उस

चीज़ क़ी पहली हालत में वापस किऩे को कह़े तो उसक़े वाजर्जि है कक उस़े पहली

हालत में ल़े आए औि अगि तबदीली किऩे क़ी वर्जह स़े उस चीज़ क़ी क़ीमत

पहली हालत स़े कम हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उसका फ़कक मामलक को द़े मलहाज़ा

अगि कोई शख़्स गस्ि ककए हुए सोऩे का हाि िना ल़े औि उस सोऩे का मामलक

कह़े कक तुम्हाि़े मलए लाजज़म है कक उस़े पहली शक्ल में ल़े आओ तो अगि

वपर्लाऩे क़े िाद सोऩे क़ी क़ीमत उसस़े कम हो र्जाए जर्जतनी हाि िनाऩे स़े पहल़े

थी तो गामसि क़े मलए ज़रूिी है कक क़ीमतों म़े जर्जतना फ़कक हो उसक़े मामलक को

द़े ।

2565. अगि कोई शख़्स उस ज़मीन में र्जो उसऩे गस्ि क़ी हो ख़ेती िाड़ी कि़े

या दिख़्त लगाए तो जज़िाअत, दिख़्त औि िल खुद उसका माल है औि ज़मीन

का मामलक इस िात पि िाज़ी न हो कक दिख़्त उस ज़मीन में िह़े तो जर्जसऩे वह

ज़मीन गस्ि क़ी हो ज़रूिी है कक ख़्वाह ऐसा किना उसक़े मलए नक़्
ु सानद़े ह ही क्यों

828
न हो वह फ़ौिन अपनी जज़िाअत या दिख़्तों को ज़मीन स़े उख़ेड़ ल़े नीज़ ज़रूिी है

कक जर्जतना मद्
ु दत जज़िाअत औि दिख़्त उस ज़मीन में िह़े हों उतनी मद्
ु दत का

ककिाया ज़मीन क़े मामलक को द़े औि र्जो खिाबियां ज़मीन में पैदा हुई हों उन्हें

दरू
ु स्त कि़े मसलन र्जहां दिख़्तों को उख़ेड़ऩे स़े ज़मीन में गढ़़े पड़ गए हों उस

र्जगह को हमवाि कि़े औि अगि उन खािबियों क़ी वर्जह स़े ज़मीन क़ी क़ीमत

पहल़े स़े कम हो र्जाए तो ज़रूिी है कक क़ीमत में र्जो फ़कक पड़़े वह भी अदा कि़े

औि वह ज़मीन क़े मामलक को इस िात पि मर्जििू नहीं कि सकता कक ज़मीन

उसक़े हाथ ि़ेच द़े या ककिाय़े पि द़े द़े नीज़ ज़मीन का मामलक भी उस़े मर्जििू

नहीं कि सकता कक दिख़्त या जज़िाअत उसक़े हाथ ि़ेच द़े ।

2566. अगि ज़मीन का मामलक इस िात पि िाज़ी हो र्जाए कक जज़िाअत औि

दिख़्त उसक़ी ज़मीन में िह़े तो जर्जस शख़्स ऩे ज़मीन गस्ि क़ी हो उसक़े मलए

लाजज़म नहीं कक जज़िाअत औि दिख़्तों को उख़ेड़़े ल़ेककन ज़रूिी है कक र्जि ज़मीन

गस्ि क़ी हो उस वक़्त स़े ल़ेकि मामलक क़े िाज़ी होऩे तक क़ी मद्
ु दत का ज़मीन

का ककिाया द़े ।

2567. र्जो चीज़ ककसी ऩे गस्ि क़ी हो अगि वह तलफ़ हो र्जाए तो अगि वह

चीज़ गाय औि भ़ेड़ क़ी तिह क़ी हो जर्जनक़ी क़ीमत उनक़ी ज़ाती खसस
ू ीयात क़ी

बिना पि उकला क़ी नज़ि में फ़दक न फ़दकन मख़्


ु तमलफ़ होती है तो ज़रूिी है कक

गामसि उस चीज़ क़ी क़ीमत अदा कि़े औि अगि उस वक़्त औि ज़रूित मख़्
ु तमलफ़

829
होऩे क़ी वर्जह स़े उस क़ी िाज़ाि क़ी क़ीमत िदल गई हो तो ज़रूिी है कक वह

क़ीमत द़े र्जो तलफ़ होऩे क़े वक़्त थी औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक गस्ि

किऩे क़े वक़्त स़े ल़ेकि तलफ़ होऩे तक उस चीज़ क़ी र्जो ज़्यादा स़े ज़्यादा क़ीमत

िही हो वह द़े ।

2568. र्जो चीज़ ककसी ऩे गस्ि क़ी हो अगि वह तलफ़ हो र्जाए तो अगि वह

ग़ेहूं औि र्जौ क़ी मातनन्द हो जर्जनक़ी फ़दकन फ़दक न क़ीमत का ज़ाती खुसस
ू ीयात क़ी

बिना पि िाहम फ़कक नहीं होता हो ज़रूिी है कक (गामसि ऩे) र्जो चीज़ गस्ि क़ी हो

उसी र्जैसी चीज़ मामलक को द़े ल़ेककन र्जो चीज़ द़े ज़रूिी है कक उसक़ी ककस्म

अपनी खुसस
ू ीयात में उस गस्ि क़ी हुई चीज़ क़ी ककस्म क़े मातनन्द हो र्जो कक

तलफ़ हो गई है मसलन अगि िहढ़या ककस्म का चावल गस्ि ककया था तो र्हटया

ककस्म का नहीं द़े सकता।

2569. अगि एक शख़्स भ़ेड़ र्जैसी कोई चीज़ गस्ि कि़े औि वह तलफ़ हो र्जाए

तो अगि उसक़ी िाज़ाि क़ी क़ीमत में फ़कक न पड़ा हो ल़ेककन जर्जतनी मद्
ु दत में

मसलन फ़िेह हो गई हो औि किि तलफ़ हो र्जाए तो ज़रूिी है कक फ़िेह होऩे क़े

वक़्त क़ी क़ीमत अदा कि़े ।

2570. र्जो चीज़ ककसी ऩे गस्ि क़ी हो अगि कोई औि शख़्स वही चीज़ उसस़े

गस्ि कि़े औि किि वह तलफ़ हो र्जाए तो माल का मामलक उन दोनों में स़े हि

एक स़े उसका एवज़ ल़े सकता है या उन दोनों में स़े हि एक स़े उसक़े एवज़ क़ी

830
कुछ ममक़्दाि का मत
ु ालिा कि सकता है मलहाज़ा अगि माल का मामलक उस का

एवज़ पहल़े गामसि स़े ल़े ल़े तो पहल़े गामसि ऩे र्जो कुछ हदया हो वह दस
ू ि़े

गामसि स़े ल़े सकता है । ल़ेककन अगि माल का मामलक उसका एवज़ दस
ू ि़े गामसि

स़े ल़े ल़े तो उसऩे र्जो कुछ हदया है उसका मत


ु ालिा दस
ू िा गामसि पहल़े गामसि स़े

नहीं कि सकता।

2571. जर्जस चीज़ को ि़ेचा र्जाए अगि उसमें मआ


ु मल़े क़ी शतों में स़े कोई एक

मौर्जूद न हो मसलन जर्जस चीज़ क़ी खिीद व फ़िोख़्त वज़्न कि क़े किनी ज़रूिी

हो अगि उस का मआ
ु मला िगैि वज़्न ककय़े ककया र्जाए तो मआ
ु मला िाततल है

औि अगि ि़ेचऩे वाला औि खिीदाि मआ


ु मल़े स़े कता ए नज़ि इस िात पि

िज़ामन्द हों कक एक दस
ू ि़े क़े माल में तसरूकफ़ किें तो कोई इश्काल नहीं वनाक र्जो

चीज़ उन्होंऩे एक दस
ू ि़े स़े ली हो वह गस्िी माल क़ी मातनन्द है औि उनक़े मलए

ज़रूिी है कक एक दस
ू ि़े क़ी चीज़ें वापस कि दें औि अगि दोनों में स़े जर्जस क़े भी

हाथों दस
ू ि़े का माल तलफ़ हो र्जाए तो ख़्वाह उस़े मअलम
ू हो या न हो कक

मआ
ु मला िाततल था ज़रूिी है कक उस का एवज़ द़े ।

2572. र्जि एक शख़्स कोई माल ककसी ि़ेचऩे वाल़े स़े इस मक़्सद स़े ल़े कक

उस़े द़े ख़े या कुछ मद्


ु दत अपऩे पास िख़े ताकक अगि पसन्द आए तो खिीद ल़े तो

अगि वह माल तलफ़ हो र्जाए तो मश्हूि कौल क़ी बिना पि ज़रूिी है कक उसका

एवज़ उसक़े मामलक को द़े ।

831
गम
ु शद
ु ा माल पाने के अह्काम

2573. अगि ककसी शख़्स को ककसी दस


ू ि़े का गम
ु शद
ु ा ऐसा माल ममल़े र्जो

है वानात में स़े न हो औि जर्जसक़ी कोई ऐसी तनशानी भी न हो जर्जसक़े ज़िीए उसक़े

मामलक का पता चल सक़े तो ख़्वाह उसक़ी क़ीमत एक हदिहम 12 चऩे मसक्क़ेदाि

चांदी स़े कम हो या न हो वह अपऩे मलय़े ल़े सकता है ल़ेककन एहततयात़े मस्


ु तहि

है कक वह शख़्स उस माल को उसक़े मामलक क़ी तिफ़ स़े फ़क़ीिों को सदका कि

द़े ।

2574. अगि कोई इंसान कहीं चगिी हुई चीज़ पाए जर्जसक़ी क़ीमत एक हदिहम

स़े कम हो तो अगि उसका मालकक मअलम


ू हो ल़ेककन इंसान को यह इल्म न हो

कक वह उसक़े उठाऩे पि िाज़ी है या नहीं तो वह उसक़ी इर्जाज़त क़े िगैि उस चीज़

को नहीं उठा सकता औि अगि उसक़े मामलक का इल्म न हो तो एहततयात़े वाजर्जि

यह है कक उसक़े मामलक क़ी तिफ़ स़े सदका कि द़े औि र्जि भी उसका मामलक

ममल़े औि सदका द़े ऩे पि िाज़ी न हो तो उस़े उसका एवज़ द़े द़े ।

2575. अगि कोई शख़्स एक ऐसी चीज़ पाए जर्जस पि कोई ऐसी तनशानी हो

जर्जस क़े ज़िीए उसक़े मामलक का पता चलाया र्जा सक़े तो अगिच़े उस़े मअलम
ू हो

कक उसका मामलक एक ऐसा काकफ़ि है जर्जसका माल मोहतिम है तो उस सिू त में

कक उस चीज़ क़ी क़ीमत एक हदिहम तक पहुंच र्जाए तो ज़रूिी है कक जर्जस हदन

832
वह चीज़ ममली हो उसस़े एक साल तक लोगों क़ी िैठकों (या मर्जमलसों) में उसका

ऐलान कि़े ।

2576. अगि इंसान खद


ु ऐलान न किना चाह़े तो ऐस़े आदमी को अपनी तिफ़

स़े ऐलान किऩे क़े मलए कह सकता है जर्जसक़े मत


ु अजल्लक उस़े इत्मीनान हो कक

वह ऐलान कि द़े गा।

2577. अगि मज़कूिा शख़्स एक साल तक ऐलान कि़े औि माल का मामलक न

ममल़े तो उस सिू त में र्जि कक वह माल हिम़े पाक (मक्का) क़े अलावा ककसी

र्जगह स़े ममला हो वह उस़े उसक़े मामलक क़े मलए अपऩे पास िख सकता है ताकक

र्जि भी वह ममल़े उस़े द़े द़े या माल क़े मामलक क़ी तिफ़ स़े फ़क़ीिों को सदका कि

द़े । औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक वह खुद न ल़े औि अगि वह माल उस़े हिम़े

पाक में ममला हो तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उस़े सदका कि द़े ।

2578. अगि एक साल तक ऐलान कि ऩे क़े िाद भी माल का मामलक न ममल़े

औि जर्जस़े वह माल ममला हो वह उसक़े मामलक क़े मलए उस़े अपऩे पास िख ल़े

(यअनी र्जि मामलक ममल़ेगा उस़े द़े दं ग


ू ा) औि वह माल तलफ़ हो र्जाए तो अगि

उसऩे माल क़ी तनगहदाश्त में कोताही न ििती हो औि तअद्दी भी न क़ी हो तो

किि वह जज़म्म़ेदाि नहीं है ल़ेककन अगि वह माल उस क़े मामलक क़ी तिफ़ स़े

सदका कि चक
ु ा हो तो माल क़े मामलक को इजख़्तयाि है कक उस सदक़े पि िाज़ी

833
हो र्जाए या अपऩे माल क़े एवज़ का मत
ु ालिा कि़े औि सदक़े का सवाि सदका

किऩे वाल़े को ममल़ेगा।

2579. जर्जस शख़्स को कोई माल ममला हो अगि वह उस तिीक़े क़े मत


ु ाबिक

जर्जसका जज़क्र ऊपि ककया गया है अमदन ऐलान न कि़े तो पहल़े (ऐलान न कि क़े

अगिच़े) उसऩे गुनाह ककया है ल़ेककन अि उस़े एहततमाल हो कक (ऐलान किना)

मफ़
ु ़ीद होगा तो किि भी उस पि वाजर्जि है कक ऐलान कि़े ।

2580. अगि दीवाऩे या नािामलग िच्च़े को कोई ऐसी चीज़ ममल र्जाए जर्जसमें

अलामत मौर्जद
ू हो औि उसक़ी क़ीमत एक हदिहम क़े ििािि हो तो उसका

सिपिस्त ऐलान कि सकता है । िजल्क अगि वह चीज़ सिपिस्त ऩे िच्च़े या दीवाऩे

स़े ल़े ली हो तो उस पि वाजर्जि है कक ऐलान कि़े । औि अगि एक साल तक

ऐलान कि़े किि भी माल का मामलक न ममल़े तो ज़रूिी है कक र्जो कुछ मस ्अला

2577 में िताया गया है उसक़े मत


ु ाबिक अमल कि़े ।

2581. अगि इंसान उस साल क़े दौिान जर्जसमें वह (ममलऩे वाल़े माल क़े िाि़े

में ) ऐलान कि िहा हो माल क़े मामलक क़े ममलऩे स़े ना उम्मीद हो र्जाए तो –

एहततयात क़ी बिना पि – ज़रूिी है कक हाककम़े शअक क़ी इर्जाज़त स़े उस माल को

सदका कि द़े ।

2582. अगि उस साल क़े दौिान जर्जसमें (इंसान ममलऩे वाल़े माल क़े िाि़े में )

ऐलान कि िहा हो वह माल तलफ़ हो र्जाए तो अगि उस शख़्स ऩे उस माल क़ी

834
तनगहदाश्त में कोताही क़ी हो या तअद्दी यअनी ि़ेर्जा इस्त़ेमाल कि़े तो वह

ज़ाममन है कक उसका एवज़ उसक़े मामलक को द़े औि ज़रूिी है कक ऐलान किता

िह़े औि अगि कोताही या तअद्दी न क़ी हो तो किि उस पि कुछ वाजर्जि नहीं है।

2583. अगि कोई माल जर्जस पि को तनशानी (या मािका) हो औि उसक़ी

क़ीमत एक हदिहम तक पहुंचती हो ऐसी र्जगह ममल़े जर्जसक़े िाि़े में मअलम
ू हो कक

ऐलान क़े ज़िीए उसका मामलक नहीं ममल़ेगा तो ज़रूिी है कक (जर्जस शख़्स को वह

माल ममला हो) वह पहल़े हदन ही उस़े – एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना पि हाककम़े

शअक क़ी इर्जाज़त स़े उसक़े मामलक क़ी तिफ़ स़े फ़क़ीिों को सदका कि द़े औि

ज़रूिी नहीं कक वह साल खत्म होऩे तक इजन्तज़ाि कि़े ।

2584. अगि ककसी शख़्स को कोई ऐसी चीज़ ममल़े औि वह उस़े अपना माल

समझत़े हुए उठा ल़े औि िाद में उस़े पता चल़े कक वह उस का माल नहीं है तो

र्जो अह्काम इसस़े पहल़े वाल़े मसाइल में ियान ककय़े गए हैं उन्हीं क़े मत
ु ाबिक

अमल कि़े ।

2585. र्जो चीज़ ममली हो ज़रूिी है कक उसका इस तिह ऐलान ककया र्जाए कक

अगि उस का मामलक सन
ु ़े तो उस़े गामलि गुमान हो कक वह चीज़ उसका माल है

औि ऐलान किऩे में मख़्


ु तमलफ़ मवाक़े क़े मलहाज़ स़े फ़कक होता है मसलन िाज़

औकात इतना ही काफ़़ी है कक, मझ


ु ़े कोई चीज़ ममली है, ल़ेककन िाज़ दीगि सिू तों

में ज़रूिी है कक उस चीज़ क़ी जर्जन्स का तअय्यन


ु कि़े मसलन यह कह़े कक, सोऩे

835
का एक टुकड़ा मझ
ु ़े ममला है, औि िाज़ सिू तों में उस चीज़ क़ी िाज़ खुसस
ू ीयात

का भी इज़ाफ़ा ज़रूिी है मसलन कह़े , सोऩे क़ी िामलयां, मझ


ु ़े ममली हैं, ल़ेककन

िहिहाल ज़रूिी है कक उस चीज़ क़ी तमाम खस


ु स
ू ीयात का जज़क्र न कि़े त कक वह

चीज़ मअ
ु य्यन हो र्जाए।

2586. अगि ककसी को कोई चीज़ ममल र्जाए औि दस


ू िा शख़्स कह़े कक यह म़ेिा

माल है औि उसक़ी तनशातनयां भी िता द़े तो वह चीज़ उस दस


ू ि़े शख़्स को उस

वक़्त द़े ना ज़रूिी है र्जि उस़े इत्मीनान हो र्जाए कक यह उसी का माल है । औि यह

ज़रूिी नहीं कक वह शख़्स ऐसी तनशातनयां िताए जर्जनक़ी तिफ़ उमम


ू न माल का

मामलक भी तवज्र्जोह नहीं द़े ता।

2587. ककसी शख़्स को र्जो चीज़ ममली हो उसक़ी क़ीमत एक हदिहम तक पहुंच़े

तो अगि वह ऐलान न कि़े औि उस चीज़ को मजस्र्जद या ककसी दस


ू िी र्जगह र्जहां

लोग र्जमा होत़े हों िख द़े औि वह चीज़ तलफ़ हो र्जाए या कोई दस


ू िा शख़्स उठा

ल़े तो जर्जस शख़्स को वह चीज़ पड़ी हुई ममली हो वह जज़म्म़ेदाि है ।

2588. अगि ककसी शख़्स को कोई चीज़ ममल र्जाए र्जो एक साल तक िाक़ी न

िहती हो तो ज़रूिी है कक उन तमाम खुसस


ू ीयात क़े साथ र्जि तक क़ी वह िाक़ी

िह़े उस चीज़ क़ी हहफ़ाज़त कि़े र्जो उसक़ी क़ीमत िाक़ी िखऩे में अहम्मीयत िखती

हो औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक उस मद्


ु दत क़े दौिान इसका ऐलान भी किता

िह़े औि अगि उसका मामलक न ममल़े तो एहततयात क़ी बिना पि – हाककम़े शअक

836
या उसक़े वक़ील क़ी इर्जाज़त स़े उसक़ी क़ीमत का तअय्यन
ु कि़े औि उस़े ि़ेच द़े

औि उन पैसों को अपऩे पास िख़े औि उसक़े साथ साथ ऐलान भी र्जािी िख़े औि

अगि एक साल तक उसका मामलक न ममल़े तो ज़रूिी है कक र्जो कुछ मस ्अला

2577 में िताया गया है उसक़े मत


ु ाबिक अमल कि़े ।

2589. र्जो चीज़ ककसी को पड़ी हुई ममली हो अगि वज़


ु ू कित़े वक़्त या नमाज़

पढ़त़े वक़्त वह उसक़े पास हो औि अगि वह मामलक क़े ममलऩे क़ी सिू त में उस़े

न लौटाना चाहता हो तो उसका वज़


ू ू औि नमाज़ िाततल नहीं होगी।

2590. अगि ककसी शख़्स का र्जत


ू ा उठा मलया र्जाए औि उसक़ी र्जगह ककसी

औि का र्जूता िख हदया र्जाए औि अगि वह शख़्स र्जानता हो कक र्जो र्जूता िखा है

वह उस शख़्स का माल है र्जो उसका र्जूता ल़े गया है औि वह इस िात पि िाज़ी

हो कक र्जो र्जत
ू ा वह ल़े गया है उसक़े एवज़ उसका र्जत
ू ा िख ल़े तो वह अपऩे र्जूत़े

क़े िर्जाए वह र्जूता िख सकता है औि इसी तिह अगि वह शख़्स र्जानता हो कक

वह शख़्स उसका र्जत


ू ा नाहक औि ज़ल्
ु मन ल़े गया है ति भी यही हुक्म है ल़ेककन

इस सिू त में ज़रूिी है कक उस र्जत


ू ़े क़ी क़ीमत उसक़े अपऩे र्जत
ू ़े क़ी क़ीमत स़े

ज़्यादा न हो वनाक ज़्यादा क़ीमत क़े मत


ु अजल्लक मज़्हूलल
ु मामलक का हुक्म र्जािी

होगा औि इन दो सिू तों क़े अलावा उस र्जूत़े पि मज़्हूलल


ु मामलक का हुक्म र्जािी

होगा।

837
2591. अगि इंसान क़े पास मज्हूलल
ु मामलक का माल हो औि उस माल पि

लफ़्ज़़े गम
ु शद
ु ा का इत्लाक न होता हो तो उस सिू त में र्जि उस़े इत्मीनान हो र्जाए

कक उसक़े माल पि तसरूकफ़ किऩे पि उसका मामलक िाज़ी होगा तो जर्जस तिह भी

वह उस माल में तसरूकफ़ किना चाह़े उसक़े मलए र्जाइज़ है । औि अगि इत्मीनान न

हो तो इंसान क़े मलए लाजज़म है कक उसक़े मामलक को तलाश कि़े औि उसक़े

मामलक क़े ममलऩे स़े मायस


ू होऩे क़े िाद उस माल को ितौि सदका फ़क़ीि को

द़े ना ज़रूिी है। औि एहततयात़े लाजज़म यह है कक हाककम़े शअक क़ी इर्जाज़त स़े

सदका द़े औि अगि िाद में माल का मामलक ममल र्जाए औि सदका द़े ऩे पि िाज़ी

न हो तो एहततयात क़ी बिना पि उस़े उसका एवज़ द़े ना ज़रूिी है ।

838
है वानात को लशकाि औि जब्ह किने के अह्काम

2592. है वान र्जंगली हो या पालतू – हिाम गोश्त है वानों क़े अलावा, जर्जन का

ियान खाऩे औि पीऩे वाली चीज़ों क़े अह्काम में आय़ेगा, उसको इस तिीक़े क़े

मत
ु ाबिक ज़बह ककया र्जाए, र्जो िाद में िताया र्जाय़ेगा, तो उसक़ी र्जान तनकल

र्जाऩे क़े िाद, उसका गोश्त हलाल औि िदन पाक है । ल़ेककन ऊाँट, मछली औि

हटड्डी को ज़बह ककय़े िगैि खाना हलाल हो र्जाय़ेगा जर्जस तिह कक आइन्दा

मसाइल में ियान ककया र्जाय़ेगा।

2593. वह र्जंगली हैवान जर्जन का गोश्त हलाल हो मसलन हहिन, चकोि औि

पहाड़ी िकिी औि वह है वान जर्जन का गोश्त हलाल हो औि र्जो पहल़े पालतू िह़े हों

औि िाद में र्जंगली िन गए हों मसलन पालतू गाय औि ऊाँट र्जो भाग गए हों

औि र्जंगली िन गए हों अगि उन्हें उस तिीक़े क़े मत


ु ाबिक मशकाि ककया र्जाए

जर्जस का जज़क्र िाद में होगा तो वह पाक औि हलाल हैं ल़ेककन हलाल गोश्त वाल़े

पालतू है वान मसलन भ़ेड़ औि र्ि़े लू मग


ु क औि हलाल गोश्त वाल़े वह र्जंगली है वान

र्जो तिबियत क़ी वर्जह स़े पालतू िन र्जायें मशकाि किऩे स़े पाक औि हलाल नहीं

होत़े।

2594. हलाल गोश्त वाला र्जंगली हैवान मशकाि किऩे स़े उस सिू त में हलाल

होता है र्जि वह भाग सकता हो या उड़ सकता हो। मलहाज़ा हहिन का वह िच्चा

839
र्जो भाग न सक़े औि चकोि का वह िच्चा र्जो उड़ न सक़े मशकाि किऩे स़े पाक

औि हलाल नहीं होत़े औि अगि कोई शख़्स हहिनी को औि उसक़े ऐस़े िच्च़े को

र्जो भाग न सकता हो एक ही तीि स़े मशकाि कि़े तो हहिनी हलाल औि िच्चा

हिाम होगा।

2595. हलाल गोश्त वाला वह है वान र्जो उछलऩे वाला खून न िखता हो मसलन

मछली अगि खुद ि खुद मि र्जाए तो पाक है ल़ेककन उसका गोश्त खाया नहीं र्जा

सकता।

2596. हिाम गोश्त वाला वह है वान र्जो उछलऩे वाला खन


ू न िखता हो मसलन

सांप उसका मद
ु ाक पाक है ल़ेककन ज़बह किऩे स़े वह हलाल नहीं होता।

2597. कुत्ता औि सव्ु वि ज़बह किऩे स़े औि मशकाि किऩे स़े पाक नहीं होत़े औि

उनका गोश्त खाना भी हिाम है औि वह हिाम गोश्त वाला हैवान र्जो भ़ेडड़य़े औि

चीत़े क़ी तिह चीड़िाड़ किऩे वाला औि गोश्त खाऩे वाला हो अगि उस़े उस तिीक़े

स़े ज़बह ककया र्जाए जर्जस का जज़क्र िाद में ककया र्जाय़ेगा या तीि या उसी तिह क़ी

ककसी चीज़ स़े मशकाि ककया र्जाए तो पाक है ल़ेककन उसका गोश्त हलाल नहीं होता

औि अगि उसका मशकाि मशकािी कुत्त़े क़े ज़िीए ककया र्जाए तो उस का िदन पाक

होऩे में भी इश्काल है।

2598. हाथी, िीछ औि िन्दि र्जो कुछ जज़क्र हो चक


ु ा है उसक़े मत
ु ाबिक है वानों

का हुक्म िखत़े हैं ल़ेककन हशिात (क़ीड़़े मकूड़़े) औि वह िहुत छोट़े है वानात र्जो ज़़ेि़े

840
ज़मीन िहत़े हैं र्जैस़े चह
ू ा औि गोह (वगैिा) अगि उछलऩे वाला खून िखत़े हों औि

उन्हें जज़बहा ककया र्जाए या मशकाि ककया र्जाए तो उनका गोश्त औि खाल पाक

नहीं होंग़े।

2599. अगि जज़न्दा है वान क़े प़ेट स़े मद


ु ाक िच्चा तनकाला र्जाए तो उस का

गोश्त खाना हिाम है ।

है वानात को जब्ह किने का तिीका

2600. है वान को ज़बह किऩे का तिीका यह है कक उसक़ी गदक न क़ी चाि िड़ी

िगों को मक
ु म्मल तौि पि काटा र्जाए, उन में मसफ़क चीिा लगाना या मसलन मसफ़क

गला काटना एहततयात क़ी बिना पि काफ़़ी नहीं है औि दि हक़ीकत यह चाि िगों

को काटना न हुआ। मगि (शिअन ज़िीहा उस वक़्त सहीह होता है ) र्जि उन चाि

िगों को गल़े क़ी चगिह स़े नीच़े स़े काटा र्जाए औि वह चाि में सांस क़ी नाली औि

खाऩे क़ी नाली औि वह मोटी िगें हैं र्जो सास क़ी नाली क़े दोनों तिफ़ होती हैं।

2601. अगि कोई शख़्स चाि िगों में स़े िाज़ को काट़े औि किि है वान क़े मिऩे

तक सब्र कि़े औि िाक़ी िग़े िाद में काट़े तो उसका कोई फ़ाइदा नहीं ल़ेककन उस

सिू त में र्जिकक चािों िगें है वान क़ी र्जान तनकलऩे स़े पहल़े काट दी र्जायें मगि

हसि़े मअमल
ू मस
ु लसल न काटी र्जायें तो वह है वान पाक औि हलाल होगा अगिच़े

एहततयात़े मस्
ु तहि यह है कक मस
ु लसल काटी र्जायें।

841
2602. अगि भ़ेडड़या ककसी भ़ेड़ का गला इस तिह िाड़ द़े कक गदक न क़ी उन

चाि िगों में स़े जर्जन्हें ज़बह कित़े वक़्त काटना ज़रूिी है कुछ भी िाक़ी न िह़े तो

वह भ़ेड़ हिाम हो र्जाती है औि अगि मसफ़क सांस क़ी नाली बिल्कुल िाक़ी न िह़े

ति भी यही हुक्म है। िजल्क अगि भ़ेडड़या गदक न का कुछ हहस्सा िाड़ द़े औि चािों

ि गें सि स़े लटक़ी हुई या िदन स़े लगी हुई िाक़ी िहें तो एहततयात क़ी बिना पि

वह भ़ेड़ हिाम है ल़ेककन अगि िदन का कोई दस


ू िा हहस्सा िाड़़े तो उस सिू त में

र्जि कक भ़ेड़ अभी जज़न्दा हो औि उस तिीक़े क़े मत


ु ाबिक ज़बह क़ी र्जाए जर्जसका

जज़क्र िाद में होगा तो वह हलाल औि पाक होगी।

है वान को जब्ह किने की शिाइत

2603. है वान को ज़बह किऩे क़ी चन्द शतें हैं –

1. र्जो शख़्स ककसी है वान को ज़बह कि़े ख़्वाह मदक हो या औित उसक़े मलए

ज़रूिी है कक मस
ु लमान हो औि वह मस
ु लमान िच्चा भी र्जो मसझदाि हो यअनी

ििु ़े भल़े क़ी समझ िखता हो है वान को ज़बह कि सकता है ल़ेककन गैि ककतािी

कुफ़्फ़ाि औि उन कफ़कों क़े लोग र्जो कुफ़्फ़ाि क़े हुक्म में हैं मसलन नवामसि अगि

ककसी है वान को ज़बह किें तो वह हलाल नहीं होगा िजल्क ककतािी काकफ़ि (मसलन

यहूदी औि ईसाई) भी ककसी है वान को ज़बह कि़े अगिच़े बिजस्मल्लाह भी कह़े तो

भी एहततयात क़ी बिना पि वह है वान हलाल नहीं होगा।

842
2. है वान को उस चीज़ स़े ज़बह ककया र्जाए र्जो लोह़े (या स्टील) क़ी िनी हुई हो

ल़ेककन अगि लोह़े क़ी चीज़ दस्तयाि न हो तो उस़े ककसी ऐसी त़ेज़ चीज़ मसलन

शीश़े औि पत्थि स़े भी ज़बह ककया र्जा सकता है र्जो उस क़ी चािों िगों को काट द़े

अगिच़े ज़बह किऩे क़ी (फ़ौिी) ज़रूित प़ेश न आई हो।

3. ज़बह कित़े वक़्त है वान ककबल़े क़ी तिफ़ हो। है वान का ककबला रुख होना

ख़्वाह वह िैठा हो या खड़ा हो दोनों हालतों में ऐसा हो र्जैस़े इंसान नमाज़ में

ककबला रुख होता है। अगि है वान दाई तिफ़ या िाई तिफ़ ल़ेटा हो तो ज़रूिी है कक

है वान क़ी गदक न औि उसका प़ेट ककबला रुख हो औि उसका पांव हाथ औि मंह
ु का

ककबला रुख होना लाजज़म नहीं है । औि र्जो शख़्स र्जानता हो कक ज़बह कित़े वक़्त

ज़रूिी है कक है वान ककबला रुख हो अगि वह र्जान िझ


ू कि उसका मंह
ु ककबल़े क़ी

तिफ़ न कि़े तो हैवान हिाम हो र्जाता है । ल़ेककन अगि ज़बह किऩे वाला भल
ू र्जाए

या मस ्अला न र्जानता हो या ककबल़े क़े िाि़े में उस़े इजश्तिाह हो या यह न र्जानता

हो कक ककबला ककस तिफ़ है या है वान का मंह


ु ककबल़े क़ी तिफ़ न कि सकता हो

तो किि इश्काल नहीं औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक है वान को ज़बह किऩे

वाला भी ककबला रुख हो।

4. कोई शख़्स ककसी है वान को ज़बह कित़े वक़्त या ज़बह स़े कुछ पहल़े ज़बह

किऩे क़ी नीयत स़े खुदा का नाम ल़े औि मसफ़क बिजस्मल्लाह कह द़े तो काफ़़ी है

िजल्क अगि मसफ़क अल्लाह कह द़े तो िईद नहीं कक काफ़़ी हो। औि अगि ज़बह

843
किऩे क़ी नीयत क़े िगैि खुदा का नाम ल़े तो वह है वान पाक नहीं होता औि

उसका गोश्त भी हिाम है । ल़ेककन अगि भल


ू र्जाऩे क़ी वर्जह स़े खद
ु ा का नाम न

ल़े तो इश्काल नहीं है।

5. ज़बह होऩे क़े िाद है वान हिकत कि़े अगिच़े ममसाल क़े तौि पि मसफ़क आाँख

या दम
ु को हिकत द़े या अपना पांव ज़मीन पि माि़े औि यह हुक्म उस सिू त में

है र्जि ज़बह कित़े वक़्त है वान का जज़न्दा होना मशकूक हो औि अगि मशकूक न

हो तो यह शतक ज़रूिी नहीं है ।

6. है वान क़े िदन स़े उतना खन


ू तनकल़े जर्जतना मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक तनकलता

है । पस अगि खून उसक़ी िगों में रुक र्जाए औि उस स़े खून न तनकल़े या खून

तनकला हो ल़ेककन उस है वान क़ी नौअ क़ी तनस्ित कम हो तो वह है वान हलाल

नहीं होगा। ल़ेककन अगि खून कम तनकलऩे क़ी वर्जह यह हो कक उस है वान का

ज़बह किऩे स़े पहल़े खून िह चक


ु ा हो तो इश्काल नहीं है।

7. है वान को गल़े क़ी तिफ़ स़े ज़बह ककया र्जाए औि एहततयात़े मस्
ु तहि यह है

कक गदक न को अगली तिफ़ स़े काटा र्जाए औि छुिी को गदक न क़ी पश्ु त में र्ोंप कि

इस तिह अगली तिफ़ न लाया र्जाए कक उसक़ी गदक न पश्ु त क़ी तिफ़ स़े कट र्जाए।

2604. एहततयात क़ी बिना पि र्जाइज़ नहीं है कक है वान क़ी र्जान तनकलऩे स़े

पहल़े उसका सि तन स़े र्जुदा ककया र्जाए अगिच़े ऐसा किऩे स़े है वान हिाम नहीं

होता – ल़ेककन लापवाकई या छुिी त़ेज़ होऩे क़ी वर्जह स़े सि र्जुदा हो र्जाए तो

844
इश्काल नहीं है औि इसी तिह एहततयात क़ी बिना पि है वान क़ी गदक न चीिना औि

उस सफ़़ेद िग को र्जो गदक न क़े मोहिों स़े है वान क़ी दम


ु तक र्जाती है औि नखाअ

कहलाती है है वान क़ी र्जान तनकलऩे स़े पहल़े काटना र्जाइज़ नहीं है।

ऊाँट को नहि किने का तिीका

2605. अगि ऊंट को नहि किना मक़्सद


ू हो ताकक र्जान तनकलऩे क़े िाद वह

पाक औि हलाल हो र्जाए तो ज़रूिी है कक उन शिाइत क़े साथ र्जो है वान को ज़बह

किऩे क़े मलए िताई गई हैं छुिी या कोई औि चीज़ र्जो लोह़े (या स्टील) क़ी िनी

हुई हो औि काटऩे वाली हो ऊाँट क़ी गदक न औि सीऩे क़े दिममयान र्जौफ़ में र्ोंप द़े

औि ि़ेहति यह है कक ऊाँट उस वक़्त खड़ा हो ल़ेककन अगि वह र्ट


ु ऩे ज़मीन पि

ट़े क द़े या ककसी पहलू ल़ेट र्जाए औि ककबला रुख हो उस वक़्त छुिी उस क़ी गदक न

क़ी गहिाई में र्ोंप दी र्जाए तो कोई इशकाल नहीं है ।

2606. अगि ऊाँट क़ी गदक न क़ी गहिाई में छुिी र्ोंपऩे क़े िर्जाय उस़े ज़बह ककया

र्जाए (यअनी उसक़ी गदक न क़ी चाि िगें काटी र्जायें) या भ़ेड़ औि गाय औि उन र्जैस़े

दस
ू ि़े है वानात क़ी गदक न क़ी गहिाई में ऊंट क़ी तिह छुिी र्ोंपी र्जाए तो उनका

गोश्त हिाम औि िदन नजर्जस है ल़ेककन अगि ऊंट क़ी चाि िगें काटी र्जायें औि

अभी वह जज़न्दा हो तो मज़कूिा तिीक़े क़े मत


ु ाबिक उसक़ी गदक न क़ी गहिाई में

छुिी र्ोंपी र्जाए तो उसका गोश्त हलाल औि िदन पाक है । नीज़ अगि गाय या

845
भ़ेड़ औि उन र्जैस़े हैवानात क़ी गदक न क़ी गहिाई में छुिी र्ोंपी र्जाए औि अभी वह

जज़न्दा हो कक उन्हें ज़बह कि हदया र्जाए तो वह पाक औि हलाल है ।

2607. अगि कोई हैवान सककश हो र्जाए औि उस तिीक़े क़े मत


ु ाबिक र्जो शअक ऩे

मक
ु िक ि ककया है ज़बह (या नहि) किना मजु म्कन न हो मसलन कुयें में चगि र्जाए

औि इस िात का एहततमाल हो कक वहीं मि र्जाएगा औि उसका मज़कूिा तिीक़े क़े

मत
ु ाबिक ज़बह (या नहि) किना मजु म्कन न हो तो उसक़े िदन पि र्जहां कहीं भी

ज़ख़्म लगाया र्जाए औि उस ज़ख़्म क़े नतीर्ज़े में उसक़ी र्जान तनकल र्जाए वह

है वान हलाल है औि उसका रू िककबला होना लाजज़म नहीं ल़ेककन ज़रूिी है कक

दस
ू िी शिाइत र्जो है वान को ज़बह किऩे क़े िाि़े में िताई गई है उसमें मौर्जूद हों।

है वानात को जब्ह किने के मुस्तहब्बात

2608. फ़ुकहा रिज़वानल्


ु लाह़े अलैहहम ऩे है वानात को ज़बह किऩे में कुछ चीज़ों

को मस्
ु तहि शम
ु ाि ककया हैः-

1. भ़ेड़ को ज़बह कित़े वक़्त उसक़े दोनों हाथ औि एक पांव िांध हदय़े र्जायेंग़े

औि दस
ू िा पांव खुला िखा र्जाए। औि गाय को ज़बह कित़े वक़्त उसक़े चािों हाथ

पांव िांध हदय़े र्जायें औि दम


ु खुली िखी र्जाए। औि ऊाँट को नहि कित़े वक़्त अगि

वह िैठा हुआ हो तो उसक़े दोनों हाथ नीच़े स़े र्ट


ु ऩे तक या िगल क़े नीच़े एक

दस
ू ि़े स़े िांध हदय़े र्जायें औि उसक़े पांव खल
ु ़े िख़े र्जायें औि मस्
ु तहि है कक परिन्द़े

846
को ज़बह किऩे क़े िाद छोड़ हदया र्जाए ताकक वह अपऩे पि औि िाल िड़िड़ा

सक़े।

2. है वान को ज़बह (या नहि) किऩे स़े पहल़े उसक़े सामऩे पानी िखा र्जाए।

3. (ज़बह या नहि कित़े वक़्त) ऐसा काम ककया र्जाए कक है वान को कम स़े कम

तक्लीफ़ हो मसलन छुिी खूि त़ेज़ कि ली र्जाए औि है वान को र्जल्दी ज़बह ककया

र्जाए।

है वानात के जब्ह किने के मकरूहात

2609. है वानात को ज़बह कित़े वक़्त िाज़ रिवायात में चन्द चीज़ें मकरूह शम
ु ाि

क़ी गयी हैं –

1. है वान क़ी र्जान तनकलऩे स़े पहल़े उसक़ी खाल उतािना।

2. है वान को ऐसी र्जगह ज़बह किना र्जहां उसक़ी नस्ल का दस


ू िा है वान उस़े द़े ख

िहा हो।

3. शि़े र्जुमअ को या र्जुमअ क़े हदन ज़ौहि स़े पहल़े है वान का ज़बह किना।

ल़ेककन अगि ऐसा किना ज़रूित क़े तहत हो तो उसमें कोई ऐि नहीं।

4. जर्जस चौपाए को इंसान ऩे पाला हो उस़े खुद अपऩे हाथ स़े ज़बह किना।

847
हग़्रथयािों से लशकाि किने के अह्काम

2610. अगि हलाल गोश्त र्जंगली है वान का मशकाि हचथयािों क़े ज़िीए ककया

र्जाए औि वह मि र्जाए तो पांच शतों क़े साथ वह है वान हलाल औि उसका िदन

पाक होता हैः-

1. मशकाि का हचथयाि छुिी औि तलवाि क़ी तिह काटऩे वाला हो या ऩेज़़े औि

तीि क़ी तिह त़ेज़ हो ताकक त़ेज़ होऩे क़ी वर्जह स़े है वान क़े िदन को चाक कि द़े

औि अगि है वान का मशकाि र्जाल या लकड़ी या पत्थि या उन्हीं र्जैसी चीज़ों क़े

ज़िीए ककया र्जाए तो वह पाक नहीं होता औि उसका खाना भी हिाम है । औि

अगि है वान का मशकाि िन्दक


ू स़े ककया र्जाए औि उसक़ी गोली इतनी त़ेज़ हो कक

है वान क़े िदन में र्स


ु र्जाए औि उस़े चाक कि द़े तो वह है वान पाक औि हलाल

है । औि अगि गोली त़ेज़ न हो िजल्क दिाव क़े साथ है वान क़े िदन में दाखखल हो

औि उस़े माि द़े या अपनी गम़ी क़ी वर्जह स़े उसका िदन र्जला द़े औि उस र्जलऩे

क़े असि स़े है वान मि र्जाए तो उस है वान क़े पाक औि हलाल होऩे में इश्काल है ।

2. ज़रूिी है कक मशकािी मस
ु लमान हो या ऐसा मस
ु लमान िच्चा हो र्जो ििु ़े भल़े

को समझता हो औि अगि गैि ककतािी काकफ़ि या वह शख़्स र्जो काकफ़ि क़े हुक्म

में हो र्जैस़े नामसिी ककसी है वान का मशकाि कि़े तो वह मशकाि हलाल नहीं है।

िजल्क ककतािी काकफ़ि भी अगि मशकाि कि़े औि अल्लाह का नाम भी ल़े ति भी

एहततयात क़ी बिना पि वह है वान हलाल नहीं होगा।

848
3. मशकािी हचथयाि उस है वान को मशकाि किऩे क़े मलए इस्त़ेमाल कि़े औि

अगि मसलन कोई शख़्स ककसी र्जगह को तनशाना िना िहा हो औि इवत्तफ़ाकन

एक है वान को माि द़े तो वह है वान पाक नहीं है औि उसका खाना भी हिाम है।

4. हचथयाि चलात़े वक़्त मशकािी अल्लाह का नाम ल़े औि बिना िि़े अक़्वा अगि

तनशाऩे पि लगऩे स़े पहल़े अल्लाह का नाम ल़े तो भी काफ़़ी है। ल़ेककन अगि र्जान

िझ
ू कि अल्लाह तआला का नाम न ल़े तो मशकाि हलाल नहीं होता अलित्ता भल

र्जाए तो कोई इश्काल नहीं।

5. अगि मशकािी है वान क़े पास उस वक़्त पहुंच़े र्जि वह मि चक


ु ा हो या अगि

जज़न्दा हो तो ज़बह किऩे क़े मलए वक़्त न हो या ज़बह क़े मलए वक़्त होत़े हुए वह

उस़े ज़बह न कि़े हत्ता कक वह मि र्जाए तो है वान हिाम है।

2611. अगि दो अशखास (ममलकि) एक है वान का मशकाि किें औि उन में स़े

एक मज़कूिा पिू ी शिाइत क़े साथ मशकाि कि़े ल़ेककन दस


ू ि़े क़े मशकाि में मज़कूिा

शिाइत में स़े कुछ कम हों मसलन उन दोनों में स़े एक अल्लाह तआला का नाम

ल़े औि दस
ू िा र्जान िझ
ू कि अल्लाह तआला का नाम न ल़े तो है वान हलाल नहीं

है ।

2612. अगि तीि लगऩे क़े िाद ममसाल क़े तौि पि है वान पानी में चगि र्जाए

औि इंसान को इल्म हो कक है वान तीि लगऩे औि पानी में चगिऩे स़े मिा है तो

849
वह है वान हलाल नहीं है िजल्क अगि इंसान को यह इल्म न हो कक वह फ़कत

तीि स़े मिा है ति भी वह है वान हलाल नहीं है।

2613. अगि कोई शख़्स गस्िी कुत्त़े या गस्िी हचथयाि स़े ककसी है वान का

मशकाि कि़े तो मशकाि हलाल है औि खुद मशकािी का माल हो र्जाता है ल़ेककन इस

िात का अलावा कक उस ऩे गुनाह ककया है ज़रूिी है कक हचथयाि या कुत्त़े क़ी

उर्जित उसक़े मामलक को द़े ।

2614. अगि मशकाि किऩे क़े हचथयाि मसलन तलवाि स़े है वान क़े िाज़ अअज़ा

मसलन हाथ औि पांव उस क़े िदन स़े र्जद


ु ा कि हदय़े र्जायें तो वह उज़्व हिाम है

ल़ेककन अगि मस ्अला 2610 में मज़कूिा शिाइत क़े साथ उस है वान को ज़बह

ककया र्जाए तो उसका िाक़ीमांदा िदन हलाल हो र्जाय़ेगा। ल़ेककन अगि मशकाि क़े

हचथयाि स़े मज़कूिा शिाइत क़े साथ है वान क़े िदन क़े दो टुकड़़े कि हदय़े र्जायें

औि सि औि गदक न एक हहस्स़े में िहें औि इंसान उस वक़्त मशकाि क़े पास पहुंच़े

र्जि उसक़ी र्जान तनकल चक


ु ़ी हो तो दोनों हहस्स़े हलाल हैं। औि अगि है वान

जज़न्दा हो ल़ेककन उस़े ज़बह किऩे क़े मलए वक़्त न हो ति भी यही हुक्म है ।

ल़ेककन अगि ज़बह किऩे क़े मलए वक़्त हो औि मजु म्कन हो कक है वान कुछ द़े ि

जज़न्दा िह़े तो वह हहस्सा जर्जसमें सि औि गदक न न हो हिाम है औि वह हहस्सा

जर्जसमें सि औि गदकन हो उस़े शअक क़े मअ


ु य्यन कदाक तिीक़े क़े मत
ु ाबिक ज़बह

ककया र्जाए तो हलाल है वनाक वह भी हिाम है ।

850
2615. अगि लकड़ी या पत्थि या ककसी दस
ू िी चीज़ स़े जर्जसस़े मशकाि किना

सहीह नहीं है ककसी है वान क़े दो टुकड़़े कि हदय़े र्जायें तो वह हहस्सा जर्जसमें सि

औि गदक न न हों हिाम है औि अगि है वान जज़न्दा हो औि मजु म्कन हो कक कुछ द़े ि

जज़न्दा िह़े औि उस़े शअक क़े मअ


ु य्यन कदाक तिीक़े क़े मत
ु ाबिक ज़बह ककया र्जाए तो

वह हहस्सा जर्जसमें सि औि गदक न हों हलाल है वनाक वह हहस्सा भी हिाम है ।

2616. र्जि ककसी हैवान का मशकाि ककया र्जाए या उस़े ज़बह ककया र्जाए औि

उसक़े प़ेट स़े जज़न्दा िच्चा तनकल़े तो अगि उस िच्च़े को शअक क़े मअ
ु य्यन कदाक

तिीक़े क़े मत
ु ाबिक ज़बह ककया र्जाए तो हलाल वनाक हिाम है।

2617. अगि ककसी है वान का मशकाि ककया र्जाए या उस़े ज़बह ककया र्जाए औि

उसक़े प़ेट स़े मद


ु ाक िच्चा तनकल़े तो उस सिू त में कक र्जि िच्चा उस है वान को

ज़बह किऩे स़े पहल़े न मिा हो औि इसी तिह र्जि वह िच्चा है वान क़े प़ेट स़े द़े ि

स़े तनकलऩे क़ी वर्जह स़े न मिा हो अगि उस िच्च़े क़ी िनावट मक
ु म्मल हो औि

ऊन या िाल उसक़े िदन पि उग़े हुए हों तो वह िच्चा पाक औि हलाल है ।

लशकािी कुत्ते से लशकाि किना

2618. अगि मशकािी कुत्ता ककसी हलाल गोश्त वाल़े र्जंगली हैवान का मशकाि

कि़े तो उस है वान क़े पाक होऩे औि हलाल होऩे क़े मलए छः शतें हैं –

851
1. कुत्ता इस तिह सध
ु ाया हुआ हो कक र्जि भी उस़े मशकाि पकड़ऩे क़े मलए भ़ेर्जा

र्जाए औि र्जि उस़े र्जाऩे स़े िोका र्जाए तो रुक र्जाए। ल़ेककन अगि मशकाि स़े

नज़्दीक होऩे औि मशकाि को द़े खऩे क़े िाद उस़े र्जाऩे स़े िोका र्जाए औि न रुक़े

तो कोई हिर्ज नहीं है औि लाजज़म है कक उसक़ी आदत ऐसी हो कक र्जि तक

मामलक न पहुंच़े मशकाि को न खाए िजल्क अगि उसक़ी आदत यह हो कक अपऩे

मामलक स़े पहुंचऩे स़े पहल़े मशकाि स़े कुछ खा ल़े तो भी हिर्ज नहीं है औि इसी

तिह अगि उस़े मशकाि का खून पीऩे क़ी आदत हो तो इश्काल नहीं।

2. उसका मामलक उस़े मशकाि क़े मलए भ़ेर्ज़े औि अगि वह अपऩे आप ही

मशकाि क़े पीछ़े र्जाए औि ककसी हैवान को मशकाि कि ल़े तो उस है वान का खाना

हिाम है । िजल्क अगि कुत्ता मशकाि क़े पीछ़े लग र्जाए औि िाद में उसका मामलक

हांक लगाए ताकक वह र्जल्दी मशकाि तक पहुंच़े तो अगिच़े वह मामलक क़ी आवाज़

क़ी वर्जह स़े त़ेज़ भाग़े किि भी एहततयात़े वाजर्जि क़ी बिना पि उस मशकाि को

खाऩे स़े इजज्तनाि किना ज़रूिी है ।

3. र्जो शख़्स कुत्त़े को मशकाि क़े पीछ़े लगाए ज़रूिी है कक मस


ु लमान हो उस

तफ़्सील क़े मत
ु ाबिक र्जो असलहा स़े मशकाि किऩे क़ी शिाइत में ियान हो चक
ु ़ी

हैं।

852
4. कुत्त़े को मशकाि क़े पीछ़े भ़ेर्जत़े वक़्त मशकािी अल्लाह तआला का नाम ल़े

औि अगि र्जान भझ
ू कि अल्लाह तआला का नाम न ल़े तो मशकाि हिाम है

ल़ेककन अगि भल
ू र्जाए तो इश्काल नहीं।

5. मशकाि को कुत्त़े क़े काटऩे स़े र्जो ज़ख़्म आए वह उसस़े मि़े । मलहाज़ा अगि

कुत्ता मशकाि का गला र्ोंट द़े या मशकाि दौड़ऩे या डि र्जाऩे क़ी वर्जह स़े मि र्जाए

तो हलाल नहीं है ।

6. जर्जस शख़्स ऩे कुत्त़े को मशकाि क़े पीछ़े भ़ेर्जा हो अगि वह (मशकाि ककय़े गए

है वान क़े पास) उस वक़्त पहुंच़े र्जि वह मि चक


ु ा हो तो अगि जज़न्दा हो तो उस़े

ज़बह किऩे क़े मलए वक़्त न हो ल़ेककन मशकाि क़े पास पहुंचना गैि मअमल
ू ी

ताखीि क़ी वर्जह स़े न हो। औि अगि ऐस़े वक़्त पहुंच़े र्जि उस़े ज़बह किऩे क़े

मलय़े वक़्त हो ल़ेककन वह है वान को ज़बह न कि़े हत्ता कक वह मि र्जाए तो वह

है वान हलाल नहीं है।

2619. जर्जस शख़्स ऩे कुत्त़े को मशकाि क़े पीछ़े भ़ेर्जा हो अगि वह मशकाि क़े

पास उस वक़्त पहुंच़े र्जि वह उस़े ज़बह कि सकता हो तो ज़बह किऩे क़े

लवाजज़मात मसलन अगि छुिी तनकालऩे क़ी वर्जह स़े वक़्त गज़
ु ि र्जाए औि है वान

मि र्जाए तो हलाल है ल़ेककन अगि उसक़े पास ऐसी कोई चीज़ हो जर्जस स़े है वान

को ज़बह कि़े औि वह मि र्जाए तो बिनािि़े एहततयात वह हलाल नहीं होता

853
अलित्ता उस सिू त में अगि वह शख़्स उस है वान को छोड़ द़े ताकक कुत्ता उस़े माि

डाल़े तो वह है वान हलाल हो र्जाता है ।

2620. अगि कई कुत्त़े मशकाि क़े पीछ़े भ़ेर्ज़े र्जायें औि वह सि ममलकि ककसी

है वान का मशकाि किें तो अगि वह सि क़े सि उन शिाइत को पिू ा कित़े हों र्जो

मस ्अला 2618 में ियान क़ी गई हैं तो मशकाि हलाल है औि अगि उन में स़े एक

कुत्ता भी उन शिाइत को पिू ा न कि़े तो मशकाि हिाम है ।

2621. अगि कोई शख़्स कुत्त़े को ककसी हैवान क़े मशकाि क़े मलए भ़ेर्ज़े औि वह

कुत्ता कोई दस
ू िा है वान मशकाि कि ल़े तो वह मशकाि हलाल औि पाक है औि जर्जस

है वान क़े पीछ़े भ़ेर्जा गया हो उस़े भी औि एक औि है वान को भी मशकाि कि ल़े

तो वह दोनों हलाल औि पाक हैं।

2622. अगि चन्द अश्खास ममलकि एक कुत्त़े को मशकाि क़े मलए भ़ेर्जें औि उन

में स़े एक शख़्स र्जान िझ


ू कि खुदा का नाम न ल़े तो वह मशकाि हिाम है नीज़

र्जो कुत्त़े मशकाि क़े पीछ़े भ़ेर्ज़े गयें हो अगि उनमें स़े एक कुत्ता इस तिह सध
ु ाया

हुआ न हो र्जैसा कक मस ्अला 2618 में िताया गया है तो वह हिाम है।

2623. अगि िाज़ या मशकािी कुत्त़े क़े अलावा कोई औि है वान ककसी र्जानवि का

मशकाि कि़े तो वह मशकाि हलाल नहीं है ल़ेककन अगि कोई शख़्स उस मशकाि क़े

पास पहुंच र्जाए औि वह भी जज़न्दा हो औि उस तिीक़े मत


ु ाबिक र्जो शअक में

मअ
ु य्यन है उस़े ज़बह कि ल़े तो किि वह हलाल है ।

854
मछली औि हटड्ड़ी का लशकाि

2624. अगि उस मछली को, र्जो पैदाइश स़े तछल्क़े वाली हो, अगिच़े ककसी

आिज़ी वर्जह स़े उसका तछल्का उति गया हो, पानी में स़े जज़न्दा पकड़ मलया र्जाए

औि वह पानी स़े िाहि आकि मि र्जाए तो वह पाक है औि उसका खाना हलाल

है । औि अगि वह पानी में मि र्जाए तो पाक है ल़ेककन उसका खाना हिाम है।

मगि यह कक वह मछ़े ि़े क़े र्जाल क़े अन्दि पानी में मि र्जाए तो उस सिू त में

उसका खाना हलाल है । औि जर्जस मछली क़े तछल्क़े न हों अगिच़े उस़े पानी में

जज़न्दा पकड़ मलया र्जाए औि पानी क़े िाहि आ कि मि़े – वह हिाम है।

2625. अगि मछली (उछल कि) पानी स़े िाहि आ चगि़े या पानी क़ी लहि उस़े

िाहि िेंक द़े या पानी उति र्जाए औि मछली खश्ु क़ी पि िह र्जाए तो अगि उसक़े

मिऩे स़े पहल़े कोई शख़्स उस़े हाथ स़े या ककसी औि ज़िीए स़े पकड़ ल़े तो वह

मिऩे क़े िाद हलाल है ।

2626. र्जो शख़्स मछली का मशकाि कि़े उसक़े मलए लाजज़म नहीं कक मस
ु लमान

हो या मछली को पकड़त़े वक़्त खुदा का नाम ल़े ल़ेककन यह ज़रूिी है कक

मस
ु लमान द़े ख़े या ककसी औि ज़िीए स़े उस़े (यअनी मस
ु लमान को) यह इत्मीनान

हो गया हो कक मछली को पानी स़े जज़न्दा पकड़ा है या वह मछली उस क़े र्जाल में

पानी क़े अन्दि मि गई है।

855
2627. जर्जस मिी हुई मछली क़े मत
ु अजल्लक मअलम
ू न हो कक उस़े पानी स़े

जज़न्दा पकड़ा गया है या मद


ु ाक हालत में पकड़ा गया है अगि वह मस
ु लमान क़े हाथ

में हो तो हलाल है । ल़ेककन अगि काकफ़ि क़े हाथ में हो तो ख़्वाह वह कह़े कक

उसऩे उस़े जज़न्दा पकड़ा है है, हिाम है मगि यह कक इत्मीनान हो कक उस काकफ़ि

ऩे मछली को पानी स़े जज़न्दा पकड़ा है या वह मछली उसक़े र्जाल में पानी क़े

अन्दि मि गई है (तो हलाल है )।

2628. जज़न्दा मछली का खाना र्जाइज़ है ल़ेककन ि़ेहति यह है कक उस़े जज़न्दा

खाऩे स़े पिह़े ज़ ककया र्जाए।

2629. अगि जज़न्दा मछली को भन


ू मलया र्जाए या उस़े पानी क़े िाहि मिऩे स़े

पहल़े ज़बह कि हदया र्जाय़े तो उसका खाना र्जाइज़ है एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक

उस़े खाऩे स़े पिह़े ज़ ककया र्जाए।

2630. अगि पानी स़े िाहि मछली क़े दो टुकड़़े कि मलय़े र्जायें औि उनमें स़े

एक टुकड़ा जज़न्दा होऩे क़ी हालत में चगि र्जाए तो र्जो टुकड़ा पानी स़े िाहि िह

र्जाए उस़े खाना र्जाइज़ है औि एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक उस़े खाऩे स़े पिह़े ज़

ककया र्जाए।

2631. अगि हटड्डी को हाथ स़े या ककसी औि ज़िीए स़े जज़न्दा पकड़ मलया

र्जाए तो वह मि र्जाऩे क़े िाद हलाल है औि यह लाजज़म नहीं कक उसका पकड़ऩे

वाला मस
ु लमान हो औि उस़े पकड़त़े वक़्त अल्लाह तआला का नाम ल़े। ल़ेककन

856
अगि मद
ु ाक हटड्डी काकफ़ि क़े हाथ में हो औि यह मअलम
ू न हो कक उसऩे उस़े

जज़न्दा पकड़ा था या नहीं तो अगिच़े वह कह़े कक उस ऩे जज़न्दा पकड़ा था वह

हिाम है।

2632. जर्जस हटड्डी क़े पि अभी तक न उग़े हों औि उड़ न सकती हो उसका

खाना हिाम है ।

खाने प़ीने की च़ीजों के अह्काम

2633. हि वह परिन्दा र्जो शाहीन, उकाि औि िाज़ क़ी तिह चीिऩे, िाड़ऩे औि

पंर्ज़े वाला हो हिाम है औि ज़ाहहि यह है कक हि वह परिन्दा र्जो उड़त़े वक़्त पिों

को मािता कम, ि़े हिकत ज़्यादा िखता है औि पंर्ज़ेदाि है, हिाम होता है । औि हि

वह परिन्दा र्जो उड़त़े वक़्त पिों को मािता ज़्यादा औि ि़े हिकत कम िखता है,

वह हलाल है । इसी फ़कक क़ी बिना पि हिाम गोश्त परिन्दों को हलाल गोश्त परिन्दों

में स़े उनक़ी पवाकज़ क़ी कैकफ़यत द़े ख कि पहचाना र्जा सकता है । ल़ेककन अगि

ककसी परिन्द़े क़ी पवाकज़ क़ी कैफ़़ीयत मअलम


ू न हो तो अगि वह परिन्दा मोटा,

संगदाना औि पांव क़ी पश्ु त पि कांटा िखता हो तो वह हलाल है औि अगि इन में

स़े एक भी अलामत न िखता हो तो वह हिाम है। औि एहततयात़े लाजज़म यह है

कक कव्व़े क़ी तमाम अक़्साम हत्ता कक ज़ाग (पहाड़ी कव्व़े) स़े भी इजज्तनाि ककया

र्जाए औि जर्जन परिन्दों का जज़क्र हो चक


ु ा है उन क़े अलावा दस
ू ि़े तमाम परिन्द़े

857
मसलन मग
ु ,क कित
ू ि औि चचडड़या यहां तक कक शत
ु ुिमग
ु क औि मोि भी हलाल हैं।

ल़ेककन िाज़ परिन्दों र्जैस़े हुदहुद औि अिािील को ज़बह किना मकरूह है । औि र्जो

है वानात उड़त़े हैं मगि पि नहीं िखत़े मसलन चमगादड़ हिाम हैं। औि एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि ज़ंििू (मभड़, शहद क़ी मक्खी, ततैया) मच्छि औि उड़ऩे वाल़े

दस
ू ि़े क़ीड़़े मकूड़़े का भी यही हुक्म है ।

2634. अगि उस हहस्स़े को जर्जस में रूह हो जज़न्दा है वान स़े र्जुदा कि मलया

र्जाए मसलन जज़न्दा भ़ेड़ क़ी चकती या गोश्त क़ी कुछ ममक़्दाि काट ली र्जाए तो

वह नजर्जस औि हिाम है ।

2635. हलाल गोश्त है वानात क़े कुछ अज्ज़ा हिाम हैं औि उनक़ी तअदाद चौदा

है ः-

1. खून। 2. फ़ुज़्ला। 3. उज़्व़े तनासल


ु । 4. शमकगाह। 5. िच्चादानी। 6. गद
ु द
ू ।

7. कपिू ़े । 8. वह चीज़ र्जो भ़ेर्ज़े में होती है औि चऩे क़े दाऩे क़ी शक्ल क़ी होती

है । 9. हिाम मग़्जज़ र्जो िीढ़ क़ी हड्डी क़े दोनों तिफ़ होता है। 10. बिनािि़े

एहततयात़े लाजज़म वह िगें र्जो िीढ़ क़ी हड्डी क़े दोनों तिफ़ होती हैं। 11. वपत्ता।

12. ततल्ली। 13. मसाना। 14. आाँख का ढ़े ला।

यह सि चीज़ें परिन्दों क़े अलावा हलाल गोश्त हैवानात में हिाम हैं। औि परिन्दों

का खून औि उन का फ़ुज़्ला बिला इश्काल हिाम है । ल़ेककन इन दो चीज़ों (खून

औि फ़ुज़्ल़े) क़े अलावा परिन्दों में वह चीज़ें हों र्जो ऊपि ियान क़ी गई तो उनका

858
हिाम होना एहततयात क़ी बिना पि है।

2636. हिाम गोश्त है वानात का प़ेशाि पीना हिाम है औि उसी तिह हलाल

गोश्त है वान – हत्ता कक एहततयातत़े लाजज़म क़ी बिना पि ऊंट क़े प़ेशाि का भी

यही हुक्म है । ल़ेककन इलाम क़े मलए ऊंट, गाय औि भ़ेड़ का प़ेशाि पीऩे में इश्काल

नहीं है।

2637. चचकनी ममट्टी खाना हिाम है नीज़ ममट्टी औि िर्जिी खाना एहततयात़े

लाजज़म क़ी बिना पि यही हुक्म िखता है अलित्ता (मल्


ु तानी ममट्टी क़े मम
ु ामसल)

दाचगस्तानी औि आिमीतनयाई ममट्टी वगैिा इलार्ज क़े मलए िहालत़े मर्जििू ी खाऩे

में इश्काल नहीं है । औि हुसल


ू ़े मशफ़ा क़ी गिज़ स़े (सैतयदश्ु शहदा इमाम हुसन

अलैहहस्साल क़े मज़ाि़े मि


ु ािक क़ी ममट्टी यअनी) खाक़े मशफ़ा क़ी थोड़ी सी

ममक़्दाि खाना र्जाइज़ है । औि ि़ेहति यह है कक खाक़े मशफ़ा क़ी कुछ ममक़्दाि पानी

में हल कि ली र्जाए ताकक वह (हल हो कि) खत्म हो र्जाए औि िाद में उस पानी

को पी मलया र्जाए।

2638. नाक का पानी औि सीऩे का िलगम र्जो मंह


ु में आ र्जाए उसका

तनगलना हिाम नहीं है नीज़ उस चगज़ा क़े तनगलऩे में र्जो खखलाल कित़े वक़्त

दांतों क़ी ि़े खों स़े तनकल़े कोई इश्काल नहीं है।

859
2639. ककसी ऐसी चीज़ का खाना हिाम है र्जो मौत का सिि िऩे या इंसान क़े

मलए सख़्त नक़्


ु सानद़े ह हो।

2640. र्ोड़़े, खच्चि औि गध़े खाना मकरूह है औि कोई शख़्स उन स़े िदफ़़ेली

कि़े तो वह है वान हिाम हो र्जाता है औि र्जो नस्ल िदफ़़ेली क़े िाद पैदा हो

एहततयात क़ी बिना पि वह भी हिाम हो र्जाती है औि उनका प़ेशाि औि लीद

नजर्जस हो र्जाती है ज़रूिी है कक उन्हें शहि स़े िाहि ल़े र्जा कि दस


ू िी र्जगह ि़ेच

हदया र्जाए औि अगि िदफ़़ेली किऩे वाला उस है वान का मामलक न हो तो उस पि

लाजज़म है कक उस हैवान क़ी क़ीमत उस क़े मामलक को द़े । औि अगि कोई शख़्स

हलाल गोश्त है वान मसलन गाय या भ़ेड़ स़े िदफ़़ेली कि़े तो उनका प़ेशाि औि

गोिि नजर्जस हो र्जाता है औि उन का गोश्त खाना हिाम है औि एहततयात क़ी

बिना पि उन का दध
ू पीऩे का औि उनक़ी र्जो नस्ल िदफ़़ेली क़े िाद पैदा हो उस

का भी यही हुक्म है। औि ज़रूिी है कक ऐस़े है वान को फ़ौिन ज़बह कि क़े र्जला

हदया र्जाय़े औि जर्जस ऩे उस है वान क़े साथ िदफ़़ेली क़ी हो अगि वह उस का

मामलक न हो तो उसक़ी क़ीमत उस क़े मामलक को अदा कि़े ।

2641. अगि िकिी का िच्चा सव्ु विनी का दध


ू इतनी ममक़्दाि में पी ल़े कक

उसका गोश्त औि हड्डडयां उसस़े कुव्वत हामसल किें तो खुद वह औि उसक़ी नस्ल

हिाम हो र्जाती हैं औि अगि वह उसस़े कम ममक़्दाि में दध


ू वपय़े तो एहततयात क़ी

बिना पि लाजज़म है कक उसका इजस्तििा ककया र्जाए औि उसक़े िाद वह हलाल हो

860
र्जाता है औि उसका इजस्तििा यह है कक सात हदन पाक दध
ू वपय़े औि अगि उस़े

दध
ू क़ी हार्जत न हो तो सात हदन र्ास खाए। औि भ़ेड़ का शीिख़्वाि िच्चा गाय

का िच्चा औि दस
ू ि़े हलाल गोश्त है वानों क़े िच्च़े – एहततयात़े लाजज़म क़ी बिना

पि – िकिी क़े िच्च़े क़े हुक्म में हैं। औि नर्जासत खाऩे वाल़े है वान का गोश्त

खाना भी हिाम है औि अगि उसका इजस्तििा ककया र्जाए तो हलाल हो र्जाता है

औि उसक़े इजस्तििा क़ी तिक़ीि मस ्अला 226 में ियान हुई है ।

2642. शिाि पीना हिाम है औि अहादीस में उस़े गुनाह़े किीिा िताया गया है ।

हज़ित इमाम र्जाफ़ि़े साहदक अलैहहस्साल स़े रिवायत है कक आप ऩे फ़िमाया,

शिाि ििु ाइयों क़ी र्जड़ औि गुनाहों का मंिअ है । र्जो शख़्स शिाि वपय़े वह अपनी

अक़्ल खो िैठता है औि उस वक़्त खुदा ए तआला को नहीं पहचानता, कोई भी

गुनाह किऩे स़े नहीं चक


ु ता। ककसी शख़्स का एहततिाम नहीं किता, अपऩे किीिी

रिश्त़ेदािों क़े हुकूक का पास नहीं किता, खुल्लम खुल्ला ििु ाई किऩे स़े नहीं

शमाकता। पस ईमान औि खद
ु ा शनासी को रूह उसक़े िदन स़े तनकल र्जाती है औि

नाककस खिीस रूह र्जो खद


ु ा क़ी िहमत स़े दिू होती है उसक़े िदन में िह र्जाती है।

खुदा औि उसक़े फ़रिश्त़े नीज़ अंबिया व मिु सलीन औि मोममनीन उस पि लअनत

भ़ेर्जत़े हैं, चालीस हदन तक उसक़ी नमाज़ नहीं किल


ू होती, ककयामत क़े हदन

उसका च़ेहिा मसयाह होगा औि उसक़ी ज़िान (कुत्त़े क़ी तिह) मह


ंु स़े िाहि तनकली

861
हुई होगी, उसक़ी िाल सीऩे पि टपकती होगी औि वह प्यास क़ी मशद्दत स़े वावैला

कि़े गा।

2643. जर्जस दस्तिख़्वान पि शिाि पी र्जा िही हो उस पि चन


ु ी हुई कोई चीज़

खाना हिाम है औि इसी तिह उस दस्तिख़्वान पि िैठना जर्जस पि शिाि पी र्जा

िही हो, अगि उस पि िैठऩे स़े इंसान शिाि पीऩे वालों में शम
ु ाि होता हो तो

एहततयात क़ी बिना पि, हिाम है ।

2644. हि मस
ु लमान पि वाजर्जि है कक उसक़े अड़ोस पड़ोस में र्जि कोई दस
ू िा

मस
ु लमान भक
ू या प्यास स़े र्जां िलि हो तो उस़े िोटी औि पानी द़े कि मिऩे स़े

िचाए।

खाना खाने के आदाब

2645. खाना खाऩे क़े आदाि में चन्द चीज़ें मस्


ु तहि शम
ु ाि क़ी गयी हैं –

1. खाना खाऩे स़े पहल़े खाऩे वाला दोनों हाथ धोए।

2. खाना खा ल़ेऩे क़े िाद अपऩे हाध धोए औि रूमाल (तौमलय़े वगैिा) स़े खश्ु क

कि़े ।

3. म़ेज़िान सि स़े पहल़े खाना खाना शरू


ु कि़े औि सि क़े िाद खाऩे स़े हाथ

खींच़े औि खाना शरू


ु किऩे स़े कबल म़ेज़िान सिस़े पहल़े अपऩे हाथ धोए उस क़े

िाद र्जो शख़्स उसक़ी दाई तिफ़ िैठा हो वह धोए इसी तिह मसलमसल़ेवाि हाथ

862
धोत़े िहें हत्ता कक नौित उस शख़्स तक आ र्जाए र्जो उसक़े िाई तिफ़ िैठा हो औि

खाना खा ल़ेऩे क़े िाद र्जो शख़्स म़ेज़िान क़ी िाई तिफ़ िैठा हो सि स़े पहल़े वह

हाथ धोए औि इसी तिह धोत़े चल़े र्जायें हत्ता कक नौित म़ेज़िान तक पहुंच र्जाए।

4. खाना खाऩे स़े पहल़े बिजस्मल्लाह पढ़़े ल़ेककन अगि एक दस्तिख़्वान पि

अनवाओ अक़्साम क़े खाऩे हों तो उन में स़े हि खाऩे स़े पहल़े बिजस्मल्लाह पढ़ना

मस्
ु तहि है ।

5. खाना दायें हाथ स़े खाए।

6. तीन या ज़्यादा उं गमलयों स़े खाना खाए औि दो उं गमलयों स़े न खाए।

7. अगि चन्द अश्खास दस्तिख़्वान पि िैठें तो हि एक अपऩे सामऩे स़े खाना

खाए।

8. छोट़े छोट़े लक़्


ु में िना कि खाए।

9. दस्तिख़्वान पि द़े ि तक िैठ़े औि खाऩे को तूल द़े ।

10. खाना खि
ू अच्छ तिह चिा कि खाए।

11. खाना खा ल़ेऩे क़े िाद अल्लाह तआला का शक्र


ु िर्जा लाए।

12. उं गमलयों को चाट़े ।

13. खाना खाऩे क़े िाद दांतों में खखलाल कि़े अलित्ता िै हान क़े ततंक़े या खर्जिू

क़े दिख़्त क़े पत्त़े स़े खखलाल न कि़े ।

863
14. र्जो चगज़ा दस्तिख़्वान स़े िाहि चगि र्जाए उस़े र्जमअ कि़े औि खा ल़े

ल़ेककन अगि र्जंगल में खाना खाए तो मस्


ु तहि है कक र्जो कुछ चगि़े उस़े दरिन्दों

औि र्जानविों क़े मलए छोड़ द़े ।

15. हदन औि िात क़ी इजबतदा में खाना खाए औि हदन क़े दिममयान में औि

िात क़े दिममयान में न खाए।

16. खाना खाऩे क़े िाद पीठ क़े िल ल़ेट़े औि दायां पांव िायें पांव पि िख़े।

17. खाना शरू


ु कित़े वक़्त औि खा ल़ेऩे क़े िाद नमक चख़े।

18. िल खाऩे स़े पहल़े उन्हें पानी स़े धो ल़े।

वह बातें जो खाना खाते वक़्त मकरूह हैं

2646. खाना खात़े वक़्त चन्द चीज़ें मज़्मम


ू शम
ु ाि क़ी गई हैं –

1. भि़े प़ेट पि खाना खाना।

2. गमक खाना खाना।

3. र्जो चीज़ खाई या पी र्जा िही हो उस़े िंू क मािना।

4. दस्तिख़्वान पि खाना लग र्जाऩे क़े िाद ककसी औि चीज़ का मंत


ु जज़ि होना।

5. िोटी को छुिी स़े काटना।

6. िहुत ज़्यादा खाना – रिवायत में है कक खद


ु ावन्द़े आलम क़े नज़्दीक िहुत

ज़्यादा खाना सिस़े ििु ी चीज़ है।

864
7. खाना खात़े वक़्त दस
ू िों क़े मंह
ु क़ी तिफ़ द़े खना।

8. िोटी को ितकन क़े नीच़े िखना।

9. हड्डी स़े चचप्क़े हुए गोश्त को यंू खाना कक हड्डी पि बिल्कुल गोश्त िाक़ी न

िह़े ।

10. उस िल का तछल्का उतािना र्जो तछल्क़े क़े साथ खाया र्जाता है ।

11. िल पिू ा खाऩे स़े पहल़े िेंक द़े ना।

पाऩी प़ीने के आदाब

2647. पानी पीऩे क़े आदाि में चन्द चीज़ें शम


ु ाि क़ी गई हैं –

1. पानी चस
ू ऩे क़े तज़क पि वपय़े।

2. पानी हदन में खड़़े होकि वपय़े।

3. पानी पीऩे स़े पहल़े बिजस्मल्लाह औि पीऩे क़े िाद अलहम्दमु लल्लाह कह़े ।

4. पानी (गटागट न वपय़े िजल्क) तीन सांस में वपय़े।

5. पानी ख़्वाहहश क़े मत


ु ाबिक वपय़े।

6. पानी पीऩे क़े िाद हज़ित इमाम हुसन


ै अलैहहस्साल औि उनक़े अहल़े हिम

को याद कि़े औि उनक़े काततलों पि लअनत भ़ेर्ज़े।

वह िातें र्जो पानी पीत़े वक़्त मकरूह हैं –

865
2648. ज़्यादा पानी पीना, मिु ग्गन खाऩे क़े िाद पानी पीना औि िात को खड़़े

हो कि पानी पीना मज़्मम


ू शम
ु ाि ककया र्जाता है । अलावा अज़ीं पानी िायें हाथ स़े

पीना औि इसी तिह कूज़़े (वगैिा) क़ी टूटी हुई र्जगह स़े औि उस र्जगह स़े पीना

र्जहां कूज़़े का दस्ता हो मज़्मम


ू शम
ु ाि ककया गया है ।

मन्नत औि अहद के अह्काम

2649. मन्नत यह है कक इंसान अपऩे आप पि वाजर्जि कि ल़े कक अल्लाह

तआला क़ी रिज़ा क़े मलए कोई अच्छा काम कि़े गा या कोई ऐसा काम जर्जसका न

किना ि़ेहति हो तकक कि द़े गा।

2650. मन्नत में सीगा पढ़ना ज़रूिी है। औि यह लाजज़म नहीं कक सीगा अििी

में ही पढ़ा र्जाए मलहाज़ा अगि कोई शख़्स कह़े कक, म़ेिा मिीज़ स़ेहतयाि हो गया

तो अल्लाह तआला क़ी खातति मझ


ु पि लाजज़म है कक मैं दस रुपय़े फ़क़ीि को दं ,ू

तो उसक़ी मन्नत सहीह है।

2651. ज़रूिी है कक मन्नत मानऩे वाला िामलग औि आककल हो नीज़ अपऩे

इिाद़े औि इखततयाि क़े साथ मन्नत माऩे। मलहाज़ा ककसी ऐस़े शख़्स का मन्नत

मानना जर्जस़े मर्जििू ककया र्जाए या र्जो र्जज़्िात में आकि िगैि इिाद़े क़े ि़े

इजख़्तयाि मन्नत माऩे तो सहीह नहीं है ।

866
2652. कोई सफ़़ीह अगि मन्नत माऩे मसलन यह कक कोई चीज़ फ़क़ीि को

द़े गा तो उसक़ी मन्नत सहीह नहीं है। औि इसी तिह अगि कोई दीवामलया शख़्स

मन्नत माऩे कक मसलन अपऩे अस्ल माल में स़े जर्जस में तसरुक फ़ किऩे स़े उस़े

िोक हदया गया हो कोई चीज़ फ़क़ीि को द़े गा तो उसक़ी मन्नत सहीह नहीं है।

2653. शौहि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि औित का उन कामों में मन्नत मानना र्जो

शौहि क़े हुकूक क़े मनाफ़़ी हो सहीह नहीं है । औि इसी तिह औित का अपऩे माल

में शौहि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि मन्नत मानना महल्ल़े इश्काल है । ल़ेककन (अपऩे

माल में स़े शौहि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि) हर्ज किना, ज़कात औि सदका द़े ना औि

मां िाप स़े हुस्ऩे सल


ु क
ू औि रिश्त़ेदािों स़े मसला ए िहहमी किना (सहीह है )।

2654. अगि औित शौहि क़ी इर्जाज़त क़े िगैि या उसक़ी इर्जाज़त स़े मन्नत

माऩे तो शौहि उसक़ी मन्नत खत्म नहीं कि सकता औि न ही उस़े मन्नत पि

अमल किऩे स़े िोक सकता है।

2655. अगि ि़ेटा िाप क़ी इर्जाज़त क़े िगैि या उसक़ी इर्जाज़त स़े मन्नत माऩे

तो ज़रूिी है कक उस पि अमल कि़े ल़ेककन अगि िाप या मां उस़े इस काम स़े

जर्जसक़ी उसऩे मन्नत मानी हो इस तिह मन ्अ किें कक उनक़े मनअ किऩे क़े िाद

उस पि अमल किना उसक़े मलए ि़ेहति न हो तो उसक़ी मन्नत कलअदम हो

र्जाय़ेगी।

867
2656. इंसान ककसी ऐस़े काम क़ी मन्नत मान सकता है जर्जस़े अंर्जाम द़े ना

उसक़े मलए मजु म्कन हो मलहाज़ा र्जो शख़्स मसलन पैदल चलकि किकला न र्जा

सकता हो अगि वह मन्नत माऩे कक वहां तक पैदल आय़ेगा तो उसक़ी मन्नत

सहीह नहीं है।

2657. अगि कोई शख़्स मन्नत माऩे कक कोई हिाम या मकरूह काम अंर्जाम

द़े गा या कोई वाजर्जि या मस्


ु तहि काम तकक कि द़े गा तो उसक़ी मन्नत सहीह नहीं

है ।

2658. अगि कोई शख़्स मन्नत माऩे कक ककसी मि


ु ाह काम किऩे को अंर्जाम

द़े गा या तकक कि़े गा मलहाज़ा अगि उस काम का िर्जा लाना औि तकक किना हि

मलहाज़ स़े मसावी हो तो उसक़ी मन्नत सहीह नहीं है औि अगि उस काम का

अंर्जाम द़े ना ककसी मलहाज़ स़े ि़ेहति हो औि इंसान मन्नत भी उसी मलहाज़ स़े

माऩे मसलन मन्नत माऩे कक कोई (खास) चगज़ा खाय़ेगा ताकक अल्लाह क़ी इिादत

क़े मलए उस़े तवानाई हामसल हो तो उसक़ी मन्नत सहीह है । औि अगि उस काम

का तकक किना ककसी मलहाज़ स़े ि़ेहति हो औि इंसान मन्नत भी उसी मलहाज़ स़े

माऩे कक उस काम को तकक कि द़े गा मसलन चंकू क तंिाकू मजु ज़ि़े (स़ेहत) है इस

मलए मन्नत माऩे कक उस़े इस्त़ेमाल नहीं कि़े गा तो उसक़ी मन्नत सहीह है।

ल़ेककन अगि िादद में तम्िाकू का इस्त़ेमाल तकक किना उसक़े मलए नक़्
ु सानद़े ह हो

तो उसक़ी मन्नत कलअदम हो र्जाय़ेगी।

868
2659. अगि कोई शख़्स मन्नत माऩे कक वाजर्जि नमाज़ ऐसी र्जगह पढ़़े गा र्जहां

िर्जाए खद
ु नमाज़ पढ़ऩे का सवाि ज़्यादा नहीं मसलन मन्नत माऩे कक नमाज़

कमि़े में पढ़़े गा तो अगि वहां नमाज़ पढ़ना ककसी स़े ि़ेहति हो मसलन चंकू क वहां

खलित है इस मलए इंसान हुज़ूि़े कबल पैदा कि सकता है अगि उसक़े मन्नत

मानऩे का मक़्सद यही है तो मन्नत सहीह है ।

2660. अगि एक शख़्स कोई अमल िर्जा लाऩे क़ी मन्नत तो ज़रूिी है कक वह

अमल उसी तिह िर्जा लाए जर्जस तिह मन्नत मानी हो मलहाज़ा अगि मन्नत माऩे

कक महीऩे क़ी पहली तािीख को सदका द़े गा या िोज़ा िख़ेगा या (महीऩे क़ी पहली

तािीख को) अव्वल़े माह क़ी नमाज़ पढ़़े गा तो अगि उस हदन स़े पहल़े या िाद में

उस अमल को िर्जा लाए तो काफ़़ी नहीं है । इसी तिह अगि कोई शख़्स मन्नत

माऩे कक र्जि उसका मिीज़ स़ेहतयाि हो र्जाय़ेगा तो वह सदका द़े गा तो अगि उस

मिीज़ क़े स़ेहतयाि होऩे स़े पहल़े सदका द़े द़े तो काफ़़ी नहीं है ।

2661. अगि कोई शख़्स िोज़ा िखऩे क़ी मन्नत माऩे ल़ेककन िोज़ो का वक़्त

औि तअदाद मअ
ु य्यन न कि़े तो अगि िोज़ा िख़े तो काफ़़ी है । अगि नमाज़ पढ़ऩे

क़ी मन्नत माऩे औि नमाज़ों क़ी ममक़्दाि औि खुसस


ू ीयात मअ
ु य्यन न कि़े तो

अगि एक दो िक् अती नमाज़ पढ़ ल़े तो काफ़़ी है । औि अगि मन्नत माऩे क़ी

सदका द़े गा औि सदक़े क़ी जर्जन्स औि ममक़्दाि मअ


ु य्यन न कि़े तो अगि ऐसी

चीज़ द़े कक लोग कहें कक उस ऩे सदका हदया है तो किि उसऩे अपनी मन्नत क़े

869
मत
ु ाबिक अमल कि हदया है औि अगि मन्नत माऩे कक कोई काम अल्लाह

तआला क़ी खश
ु नद
ू ी क़े मलए िर्जा लाय़ेगा तो अगि एक (दो िक् अती) नमाज़ पढ़

ल़े या एक िोज़ा िख ल़े या कोई चीज़ सदका द़े द़े तो उसऩे अपनी मन्नत तनभा

ली है ।

2662. अगि कोई शख़्स मन्न्त माऩे कक एक खास हदन िोज़ा िख़ेगा तो ज़रूिी

है कक उसी हदन िोज़ा िख़े औि अगि र्जानिझ


ू कि िोज़ा न िख़े तो ज़रूिी है कक

उस हदन क़े िोज़़े क़ी कज़ा क़े अलावा कफ़्फ़ािा भी द़े औि अज़हि यह है कक

उसका कफ़्फ़ािा कसम का कफ़्फ़ािा है र्जैसा कक िाद में ियान ककया र्जाय़ेगा

ल़ेककन उस हदन वह इखततयािन यह कि सकता है कक सफ़ि कि़े औि िोज़ा न

िख़े औि अगि सफ़ि में हो तो लाजज़म नहीं कक ठहिऩे क़ी नीयत कि क़े िोज़ा िख़े

औि उस सिू त में र्जि कक सफ़ि क़ी वर्जह स़े या ककसी दस


ू ि़े उज़्र मसलन िीमािी

या हैज़ क़ी वर्जह स़े िोज़ा न िख़े तो लाजज़म है कक िोज़़े क़ी कज़ा क़ेि ल़ेककन

कफ़्फ़ािा नहीं है ।

2663. अगि इंसान हालत़े इजख़्तयाि में अपनी मन्नत पि अमल न कि़े तो

कफ़्फ़ािा द़े ना ज़रूिी है ।

2664. अगि कोई शख़्स एक मअ


ु य्यन वक़्त तक कोई अमल तकक किऩे क़ी

मन्नत माऩे तो उस वक़्त क़े गज़


ु िऩे क़े िाद उस अमल को िर्जा ला सकता है

औि अगि उस वक़्त क़े गुज़िऩे स़े पहल़े भल


ू कि या ि अम्ऱे मर्जििू ी उस अमल

870
को अंर्जाम द़े तो उस पि कुछ वाजर्जि नहीं है ल़ेककन किि भी लाजज़म है कक वह

वक़्त आऩे तक उस अमल को अंर्जाम न द़े औि अगि उस वक़्त क़े आऩे स़े पहल़े

िगैि उज़्र क़े उस अमल को दोिािा अंर्जाम द़े तो ज़रूिी है कक कफ़्फ़ािा द़े ।

2665. जर्जस शख़्स ऩे कोई अमल तकक किऩे क़ी मन्नत मानी हो औि उसक़े

मलए कोई वक़्त मअ


ु य्यन न ककया हो अगि वह भल
ू कि या िअम्ऱे मर्जििू ी या

गफ़लत क़ी वर्जह स़े उस अमल को अंर्जाम द़े तो उस पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं है

ल़ेककन उस क़े िाद र्जि भी िहालत़े इजख़्तयाि उस माल को िर्जा लाए ज़रूिी है कक

कफ़्फ़ािा द़े ।

2666. अगि कोई शख़्स मन्नत माऩे कक हि हफ़्त़े एक मअ


ु य्यन हदन का

मसलन र्जुमए
ु का िोज़ा िख़ेगा तो अगि एक र्जुमए
ु क़े हदन ईद़े कफ़त्र या ईद़े

कुिाकन पड़ र्जाए या र्जुमा क़े हदन उस़े कोई औि उज़्र मसलन सफ़ि दिप़ेश हो या

है ज़ आ र्जाए तो ज़रूिी है कक उस हदन िोज़ा न िख़े औि उसक़ी कज़ा िर्जा लाए।

2667. अगि कोई शख़्स मन्नत माऩे कक एक मअ


ु य्यन ममक़्दाि में सदका द़े गा

तो अगि वह सदका द़े ऩे स़े पहल़े मि र्जाए तो उसक़े माल में स़े उतनी ममक़्दाि में

सदका द़े ना लाजज़म नहीं है औि ि़ेहति यह है कक उसक़े िामलग विसा मीिास में

स़े अपऩे हहस्स़े स़े उतनी ममक़्दाि मैतयत क़ी तिफ़ स़े सदका द़े दें ।

871
2668. अगि कोई शख़्स मन्नत माऩे कक एक मअ
ु य्यन फ़क़ीि को सदका द़े गा

तो वह ककसी दस
ू ि़े फ़क़ीि को नहीं द़े सकता औि अगि वह मअ
ु य्यन कदाक फ़क़ीि

मि र्जाए तो एहततयात़े मस्


ु तहि यह है कक सदका उसक़े पस्मांदागान को द़े ।

2669. अगि कोई मन्नत माऩे कक आइम्मा (अ0) में स़े ककसी एक मसलन

हज़ित इमाम हुसन


ै (अ0) क़ी जज़याित स़े मश
ु िक फ़ होगा तो अगि ककसी उज़्र क़ी

वर्जह स़े उन इमाम (अ0) क़ी जज़याित न कि सक़े तो उस पि कुछ भी वाजर्जि

नहीं है।

2670. जर्जस शख़्स ऩे जज़याित किऩे क़ी मन्नत मानी हो ल़ेककन गस्
ु ल़े जज़याित

औि उसक़ी नमाज़ क़ी मन्नत न मानी हो तो उसक़े मलए उन्हें िर्जा लाना लाजज़म

नहीं है।

2671. अगि कोई शख़्स ककसी इमाम या इमामज़ाद़े क़े हिम क़े मलए माल खचक

किऩे क़ी मन्नत माऩे औि कोई खास मसिफ़ मअ


ु य्यन न कि़े तो ज़रूिी है कक

उस माल को उस हिम क़ी तामीि (व मिम्मत) िौशतनयों औि कालीन वगैिा पि

सफ़क कि़े ।

2672. अगि कोई शख़्स ककसी इमाम क़े मलय़े कोई चीज़ नज़्र कि़े तो अगि

ककसी मअ
ु य्यन मसिफ़ क़ी नीयत क़ी हो तो ज़रूिी है कक उस चीज़ को उसी

मसिफ़ में लाए औि अगि ककसी मअ


ु य्यन मसिफ़ क़ी नीयत न क़ी हो तो ज़रूिी

है कक उस़े ऐस़े मसिफ़ में ल़े आए र्जो इमाम स़े तनस्ित िखता हो मसलन उस

872
इमाम (अ0 स0 ) क़े नादाि ज़ाइिीन पि खचक कि़े या उस इमाम क़े हिम क़े

मसारिफ़ पि खचक कि़े या ऐस़े कामों में खचक कि़े र्जो इमाम का तजज़्किा आम

किऩे का सिि हों। औि अगि कोई चीज़ ककसी इमाम ज़ाद़े क़ी नज़्र कि़े ति भी

यही हुक्म है ।

2673. जर्जस भ़ेड़ को सदक़े क़े मलए या ककसी इमाम क़े मलए नज़्र ककया र्जाए

अगि वह नज़्र क़े मसिफ़ में लाए र्जाऩे स़े पहल़े दध


ू द़े या िच्चा र्जऩे तो वह (दध

या िच्चा) उस का माल है जर्जस ऩे उस भ़ेड़ को नज़्र ककया हो मगि यह कक

उसक़ी नीयत आम हो (यअनी नज़्र किऩे वाल़े ऩे उस भ़ेड़, उसक़े िच्च़े औि दध

वगैिा सि चीज़ों क़ी मन्नत मानी हो तो वह सि नज़्र है ) अलित्ता भ़ेड़ क़ी ऊन

औि जर्जस ममक़्दाि में वह फ़िि़ेह हो र्जाए नज़्र का र्जुज़्व है ।

2674. र्जि कोई मन्नत माऩे कक अगि उसका मिीज़ तन्दरू


ु स्त हो र्जाए या

उसका मस
ु ाकफ़ि वापस आ र्जाए तो वह फ़लां काम कि़े गा तो अगि पता चल़े कक

मन्नत मानऩे स़े पहल़े मिीज़ तन्दरू


ु स्त हो गया था या मस
ु ाकफ़ि वापस आ गया

था तो किि मन्नत पि अमल किना लाजज़म नहीं।

2675. अगि िाप या मां मन्नत मानें कक अपनी ि़ेटी क़ी शादी सैतयदज़ाद़े स़े

किें ग़े तो िामलग होऩे क़े िाद लड़क़ी इस िाि़े में खुद मख़्
ु ताि है औि वामलदै न क़ी

मन्नत क़ी कोई अहम्मीयत नहीं।

873
2676. र्जि कोई शख़्स अल्लाह तआला स़े अहद कि़े कक र्जि उसक़ी कोई

मअ
ु य्यन शिई हार्जत पिू ी हो र्जाय़ेगी तो फ़लां काम कि़े गा। पस र्जि उसक़ी हार्जत

पिू ी हो र्जाए तो ज़रूिी है कक वह काम अंर्जाम द़े । नीज़ अगि कोई हार्जत न होत़े

हुए अहद कि़े कक फ़ंला काम अंर्जाम द़े गा तो वह काम किना उस पि वाजर्जि हो

र्जाता है ।

2677. अह्द में भी मन्नत क़ी तिह सीगा पढ़ना ज़रूिी है । औि (उलमा क़े

िीच) मशहूि यह है कक कोई शख़्स जर्जस काम क़े अंर्जाम द़े ऩे का अह्द कि़े ज़रूिी

है कक या तो वाजर्जि औि मस्
ु तहि नमाज़ों क़ी तिह इिादत हो या ऐसा काम हो

जर्जस का अंर्जाम द़े ना शिअन उस क़े तकक किऩे स़े ि़ेहति हो ल़ेककन ज़ाहहि यह है

कक यह िात मोतिि नहीं है । िजल्क अगि उस तिह हो र्जैस़े मस ्अला 2680 में

कसम क़े अह्काम में आय़ेगा, ति भी अह्द सहीह है औि उस काम को अंर्जाम

द़े ना सहीह है।

2678. अगि कोई शख़्स अपऩे अह्द पि अमल न कि़े तो ज़रूिी है कक कफ़्फ़ािा

द़े औि साठ फ़क़ीिों को प़ेट भि खाना खखलाए या दो महीऩे मस


ु लसल िोज़़े िख़े या

एक गल
ु ाम आज़ाद कि़े ।

874
कसम खाने के अह्काम

2679. र्जि कोई शख़्स कसम खाए कक फ़लां काम अंर्जाम द़े गा या तकक कि़े गा

मसलन कसम खाए कक िोज़ा िख़ेगा या तम्िाकू इस्त़ेमाल नहीं कि़े गा तो अगि

िाद में र्जानिझ


ू कि इस कसम क़े खखलाफ़ अमल कि़े तो ज़रूिी है कक कफ़्फ़ािा द़े

यअनी एक गल
ु ाम आज़ाद कि़े या दस फ़क़ीिों को प़ेट भि खाना खखलाए या उन्हें

पोशाक पहनाए औि अगि इन आमाल को िर्जा न ला सकता हो तो ज़रूिी है कक

तीन हदन िोज़ा िख़े औि यह भी ज़रूिी है कक िोज़़े मस


ु लसल िख़े।

2680. कसम क़ी चन्द शतें हैं –

1. र्जो शख़्स कसम खाए ज़रूिी है कक वह िामलग औि आककल हो नीज़ अपऩे

इिाद़े औि इजख़्तयाि स़े कसम खाए। मलहाज़ा िच्च़े या दीवाऩे या ि़ेहवास या उस

शख़्स का कसम खाना जर्जस़े मर्जििू ककया गया हो दरू


ु स्त नहीं है। अगि कोई

शख़्स र्जज़्िात में आकि बिला इिादा या ि़ेइजख़्तयाि कसम खाए तो उसक़े मलए भी

यही हुक्म है ।

2. (कसम खाऩे वाला) जर्जस काम क़े अंर्जाम द़े ऩे क़ी कसम खाए ज़रूिी है कक

वह हिाम या मकरूह न हो औि जर्जस काम क़े तकक किऩे क़ी कसम खाए ज़रूिी है

कक वह वाजर्जि या मस्
ु तहि न हो। औि अगि कोई मि
ु ाह काम किऩे क़ी कसम

खाए तो अगि उकला क़ी नज़ि में उस काम को अंर्जाम द़े ना उसको तकक किऩे स़े

ि़ेहति हो तो उसक़ी कसम सहीह है । िजल्क दोनों सिू तों में अगि उसका अंर्जाम

875
द़े ना या तकक किना उकला क़ी नज़ि में ि़ेहति न हो ल़ेककन खुद उस शख़्स क़े

मलए ि़ेहति हो ति भी उसक़ी कसम सहीह है ।

3. (कसम खाऩे वाला) अल्लाह तआला क़े नामों में स़े ककसी ऐस़े नाम क़ी

कसम खाए र्जो उस ज़ात क़े मसवा ककसी औि क़े मलए इस्त़ेमाल न होता हो

मसलन खुदा औि अल्लाह – औि अगि ऐस़े नाम क़ी कसम खाए र्जो उस ज़ात क़े

मसवा ककसी औि क़े मलय़े भी इस्त़ेमाल होता हो ल़ेककन अल्लाह तआला क़े मलय़े

इतनी कसित स़े इस्त़ेमाल होता हो कक र्जि भी कोई वह नाम ल़े तो खुदा ए

िज़
ु गु क व ििति क़ी ज़ात ही जज़हन में आती हो मसलन अगि कोई खामलक औि

िाजज़क क़ी कसम खाए तो कसम सहीह है। िजल्क अगि ककसी ऐस़े नाम क़ी कसम

खाए कक र्जि उस नाम को तन्हा िोला र्जाए तो उस स़े मसफ़क ज़ात़े िािी तआला ही

जज़हन में न आती हो ल़ेककन उस नाम को कसम खाऩे क़े मकाम में इस्त़ेमाल

ककया र्जाए तो ज़ात़े हक ही जज़हन में आती हो मसलन समीइ औि िसीि (क़ी

कसम खाए) ति भी उसक़ी कसम सहीह है।

4. (कसम खाऩे वाला) कसम क़े अल्फ़ाज़ ज़िान पि लाए – ल़ेककन अगि गंग
ू ा

शख़्स इशाि़े स़े कसम खाए तो सहीह है औि इसी तिह वह शख़्स र्जो िात किऩे

पि काहदि न हो अगि कसम को मलख़े औि हदल में नीयत कि ल़े तो काफ़़ी है

िजल्क इसक़े अलावा सिू तों में भी (काफ़़ी है – नीज़) एहततयात तकक नहीं होगी।

876
5. (कसम खाऩे वाल़े क़े मलय़े) कसम पि अमल किना मजु म्कन हो। औि अगि

कसम खाऩे क़े वक़्त उसक़े मलए उस पि अमल किना मजु म्कन हो ल़ेककन िाद में

आजर्जज़ हो र्जाए औि उसऩे अपऩे आप को र्जानिझ


ू कि आजर्जज़ न ककया हो तो

जर्जस वक़्त स़े आजर्जज़ होगा उस वक़्त स़े उसक़ी कसम या अह्द पि अमल किऩे

स़े इतनी मशक़्कत उठानी पड़़े र्जो उसक़ी िदाकश्त स़े िाहि हो तो उस सिू त में भी

यही हुक्म है ।

2681. अगि िाप ि़ेट़े को या शौहि, िीवी को कसम खाऩे स़े िोक़े तो उनक़ी

कसम सहीह नहीं है।

2682. अगि ि़ेटा, िाप क़ी इर्जाज़त क़े िगैि औि िीवी, शौहि क़ी इर्जाज़त क़े

िगैि कसम खाए तो िाप औि शौहि उनक़ी कसम फ़स्ख कि सकत़े हैं।

2683. अगि इंसान भल


ू कि या मर्जििू ी क़ी वर्जह स़े या गफ़लत क़ी बिना पि

कसम पि अमल न कि़े तो उस पि कफ़्फ़ािा वाजर्जि नहीं है । औि अगि उस़े

मर्जििू ककया र्जाए कक कसम पि अमल न कि़े ति भी यही हुक्म है । औि वह भी

कसम खाए मसलन यह कह़े कक वल्लाह मैं अभी नमाज़ में मशगल
ू होता हूं औि

वहम क़ी वर्जह स़े मशगल


ू न हो तो अगि उस का वहम ऐसा हो कक उसक़ी वर्जह

स़े मर्जििू होकि कसम पि अमल न कि़े तो उस पि कफ़्फ़ािा नहीं है।

877
2684. अगि कोई शख़्स कसम खाए कक मैं र्जो कुछ कह िहा हूं सच कह िहा हूं

तो अगि वह सच कह िहा है तो उस का कसम खाना मकरूह है औि अगि झट


िोल िहा है तो हिाम है िजल्क मक


ु द्दमात क़े फ़ैसल़े क़े वक़्त झट
ू ी कसम खाना

गुनाह़े किीिा में स़े है ल़ेककन अगि वह अपऩे आप को या ककसी दस


ू ि़े मस
ु लमान

को ककसी ज़ामलम क़े शि स़े नर्जात हदलाऩे क़े मलय़े झट


ू ी कसम खाए तो इसमें

इश्काल नहीं िजल्क िाज़ औकात ऐसी कसम खाना वाजर्जि हो र्जाता है ताहम अगि

तौरिया किना मजु म्कन हो – यअनी कसम खात़े वक़्त कसम क़े अल्फ़ाज़ क़े

ज़ाहहिी मफ़हूम को छोड़कि दस


ू ि़े मतलि क़ी नीयत कि़े औि र्जो मतलि उसऩे

मलया है उस को ज़ाहहि न कि़े – तो एहततयात़े लाजज़म यह है कक तौरिया कि़े ।

मसलन अगि कोई ज़ामलम ककसी को अज़ीयत द़े ना चाह़े औि ककसी दस


ू ि़े शख़्स स़े

पछ
ू ़े कक क्या तुम ऩे फ़लां शख़्स को द़े खा है ? औि उस ऩे उस शख़्स को एक

ममनट कबल द़े खा हो तो वह कह़े कक मैंऩे उस़े नहीं द़े खा औि कस्द यह कि़े कक

इस वक़्त स़े पांच ममनट पहल़े मैंऩे उस़े नहीं द़े खा।

वक़्फ़ के अह्काम

2685. अगि एक शख़्स कोई चीज़ वक़्फ़ कि़े तो वह उसक़ी ममजल्कयत स़े

तनकल र्जाती है औि वह खुद या दस


ू ि़े लोग न ही वह चीज़ ककसी को िख़्श सकत़े

878
हैं औि न ही उस़े ि़ेच सकत़े हैं ल़ेककन िाज़ सिू तों में जर्जन का जज़क्र मस ्अला

2102 औि मस ्अला 2103 में ककया गया है उस़े ि़ेचऩे में इश्काल नहीं।

2686. यह लाजज़म है कक वक़्फ़ का सीगा अििी में पढ़ा र्जाए िजल्क ममसाल क़े

तौि पि अगि कोई शख़्स कह़े कक मैंऩे यह ककताि तामलि ए इल्मों क़े मलय़े वक़्फ़

कि दी है तो वक़्फ़ सहीह है। िजल्क अमल स़े भी साबित हो र्जाता है। मसलन

अगि कोई शख़्स वक़्फ़ क़ी नीयत स़े चटाई मजस्र्जद में डाल द़े या ककसी इमाित

को मजस्र्जद क़ी नीयत स़े इस तिह िनाए र्जैस़े मजस्र्जद िनाई र्जाती है तो वक़्फ़

साबित हो र्जाय़ेगा। औि उमम


ू ी औकाफ़ मसलन मजस्र्जद, मदिसा या ऐसी चीज़ें र्जो

आम लोगों क़े मलय़े वक़्फ़ क़ी र्जायें या मसलन फ़ुकिा औि सादात क़े मलय़े वक़्फ़

क़ी र्जायें उन क़े वक़्फ़ स़े सहीह होऩे में ककसी का किल
ू किना लाजज़म नहीं है

िजल्क बिनािि़े अज़हि खुसस


ू ी औकाफ़ मसलन र्जो चीज़ें औलाद क़े मलए वक़्फ़ क़ी

र्जायें उन में भी किल


ू किना मोतिि नहीं है ।

2687. अगि कोई शख़्स अपनी ककसी चीज़ को वक़्फ़ किऩे क़े मलय़े मअ
ु य्यन

किऩे क़े वक़्त स़े उस माल को हम़ेशा क़े मलय़े वक़्फ़ कि द़े औि ममसाल क़े तौि

पि अगि वह कह़े कक यह माल म़ेि़े मिऩे क़े िाद वक़्फ़ होगा तो चंकू क वह माल

सीगा पढ़ऩे क़े वक़्त स़े उसक़े मिऩे क़े वक़्त तक वक़्फ़ नहीं िहा इस मलय़े वक़्फ़

सहीह नहीं है । नीज़ अगि कह़े कक यह माल दस साल तक वक़्फ़ िह़े गा औि किि

वक़्फ़ नहीं होगा या यह कह़े कक यह माल दस साल क़े मलय़े वक़्फ़ होगा किि पांच

879
साल क़े मलय़े वक़्फ़ नहीं होगा औि किि दोिािा वक़्फ़ हो र्जाय़ेगा तो वह वक़्फ़

सहीह नहीं है।

2688. अगि कोई शख़्स अपनी ककसी चीज़ को वक़्फ़ किऩे क़े मलय़े मअ
ु य्यन

कि़े औि वक़्फ़ किऩे स़े भी पच्छताए या मि र्जाए तो वक़्फ़ वक


ु ू उ पज़ीि नहीं

होता।

2689. खुसस
ू ी वक़्फ़ उस सिू त में सहीह है र्जि वक़्फ़ किऩे वाला वक़्फ़ का

माल पहली पश्ु त यअनी जर्जन लोगों क़े मलय़े वक़्फ़ ककया गया है उनक़े या उनक़े

वक़ील या सिपिस्त क़े तसरूकफ़ में द़े द़े । ल़ेककन अगि कोई शख़्स कोई चीज़ अपऩे

नािामलग िच्चों क़े मलए वक़्फ़ कि द़े औि इस नीयत स़े कक वक़्फ़ कदाक चीज़ उन

क़ी ममजल्कयत हो र्जाए उस चीज़ क़ी तनगहदािी कि़े तो वक़्फ़ सहीह है।

2690. ज़ाहहि यह है कक आम औकाफ़ मसलन मदिसों औि मसाजर्जद वगैिा में

कबज़ा मोतिि नहीं है िजल्क मसफ़क वक़्फ़ किऩे स़े उनका वक़्फ़ होना साबित हो

र्जाता है ।

2691. ज़रूिी है कक वक़्फ़ किऩे वाला िामलग औि आककल हो नीज़ कस्द औि

इजख़्तयाि िखता हो औि शअकन अपऩे माल में तसरूकफ़ कि सकता हो मलहाज़ा

अगि सफ़़ीह – यअनी वह शख़्स र्जो अपना माल अहमकाना मालों में खचक किता

हो – कोई चीज़ वक़्फ़ कि़े तो चकंू क वह अपऩे माल में तसरूकफ़ किऩे का हक नहीं

िखता इस मलए (उसका ककया हुआ वक़्फ़) सहीह नहीं।

880
2692. अगि कोई शख़्स ककसी माल को ऐस़े िच्च़े क़े मलय़े वक़्फ़ कि़े र्जो मां क़े

प़ेट में हो औि अभी पैदा न हुआ हो तो उस वक़्फ़ का सहीह होना महल्ल़े इश्काल

है । औि लाजज़म है कक एहततयात मलहूज़ िखी र्जाए ल़ेककन अगि कोई माल ऐस़े

लोगों क़े मलय़े वक़्फ़ ककया र्जाए र्जो अभी मौर्जूद हों औि उनक़े िाद उन लोगों क़े

मलय़े वक़्फ़ ककया र्जाए र्जो िाद में पैदा हों तो अगिच़े वक़्फ़ कित़े वक़्त वह मां क़े

प़ेट में भी न हों वह वक़्फ़ सहीह है मसलन एक शख़्स कोई चीज़ अपनी औलाद

क़े मलय़े वक़्फ़ कि़े कक उनक़े िाद उसक़े पोतों क़े मलय़े वक़्फ़ होगी औि (औलाद

क़े) हि गिु ोह क़े िाद आऩे वाल़े गिु ोह उस वक़्फ़ स़े इजस्तफ़ादा कि़े गा तो वक़्फ़

सहीह है।

2693. अगि कोई शख़्स ककसी चीज़ को अपऩे आप पि वक़्फ़ कि़े मसलन कोई

दक
ु ान वक़्फ़ कि द़े ताकक उसक़ी आमदनी उसक़े मिऩे क़े िाद उसक़े मजक़्िि़े पि

खचक क़ी र्जाए तो वह वक़्फ़ सहीह नहीं है । ल़ेककन ममसाल क़े तौि पि वह कोई

माल फ़ुकिा क़े मलए वक़्फ़ कि द़े औि खद


ु भी फ़क़ीि हो र्जाए तो वक़्फ़ क़े मन
ु ाफ़़े

स़े इजस्तफ़ादा कि सकता है।

2694. र्जो चीज़ ककसी शख़्स ऩे वक़्फ़ क़ी हो अगि उसऩे उसका मत
ु वल्ली भी

मअ
ु य्यन ककया हो तो ज़रूिी है कक हहदायात क़े मत
ु ाबिक अमल हो औि अगि

वाककफ़ ऩे मत
ु वल्ली मअ
ु य्यन न ककया हो औि माल मख़्सस
ू अफ़िाद पि मसलन

अपनी औलाद क़े मलय़े वक़्फ़ ककया हो तो वह उसस़े इजस्तफ़ादा किऩे में खुद

881
मख़्
ु ताि है औि अगि िामलग न हों तो किि उन का सिपिस्त मख़्
ु ताि है औि

वक़्फ़ स़े इजस्तफ़ादा किऩे क़े मलय़े हाककमें शअक क़ी इर्जाज़त लाजज़म नहीं है ल़ेककन

ऐस़े काम जर्जसमें वक़्फ़ क़ी ि़ेहतिी या आइन्दा नस्लों क़ी भलाई हो मसलन वक़्फ़

क़ी तअमीि किना या वक़्फ़ को ककिाए पि द़े ना कक जर्जस में िाद वाल़े तिक़े क़े

मलए फ़ाइदा है तो उसका मख़्


ु ताि हाककम़े शअक है।

2695. अगि ममसाल क़े तौि पि कोई शख़्स ककसी माल को फ़ुकिा या सादात

क़े मलए वक़्फ़ कि़े या इस मक़्सद स़े वक़्फ़ कि़े कक उस माल का मन


ु ाफ़ा ितौि़े

खैिात हदया र्जाए तो उस सिू त में कक उसऩे वक़्फ़ क़े मलए मत


ु वल्ली मअ
ु य्यन न

ककया हो इस का इजख़्तयाि हाककम़े शअक को है ।

2696. अगि कोई शख़्स ककसी इमलाक को मख़्सस


ू अफ़िाद मसलन अपनी

औलाद क़े मलए वक़्फ़ कि़े ताकक एक पश्ु त क़े िाद दस


ू िी पश्ु त उस स़े इजस्तफ़ादा

कि़े तो अगि वक़्फ़ का मत


ु वल्ली उस माल को ककिाए पि द़े द़े औि उस क़े िाद

मि र्जाए तो इर्जािा िाततल नहीं होता। ल़ेककन अगि उस इमलाक का मत


ु वल्ली न

हो औि जर्जन लोगों क़े मलय़े वह इमलाक वक़्फ़ हुई है उन में स़े एक पश्ु त उस़े

ककिाए पि द़े द़े औि इर्जाि़े क़ी मद्


ु दत क़े दौिान वह पश्ु त मि र्जाए औि र्जो पश्ु त

उसक़े िाद हो वह उस इर्जाि़े क़ी तस्दीक न कि़े तो इर्जािा िाततल हो र्जाता

र्जाय़ेगा औि उस सिू त में अगि ककिायादाि ऩे पिू ी मद्


ु दत का ककिाया अदा कि

882
िखा हो तो मिऩे वाल़े क़ी मौत क़े वक़्त स़े इर्जाि़े क़ी मद्
ु दत क़े खाततम़े तक का

ककिाया उस (मिऩे वाल़े) क़े माल स़े ल़े सकता है।

2697. अगि वक़्फ़ कदाक इमलाक ििाकद हो र्जाए तो उस क़े वक़्फ़ क़ी है मसयत

नहीं िदलती िर्ज


ु ज़ु उस सिू त क़े कक वक़्फ़ क़ी हुई चीज़ ककसी खास मक़्सद क़े

मलए वक़्फ़ हो औि वह मक़्सद फ़ौत हो र्जाए। मसलन ककसी शख़्स ऩे कोई िाग

ितौि़े िाग वक़्फ़ ककया हो तो अगि वह िाग खिाि हो र्जाए तो वक़्फ़ िाततल हो

र्जाय़ेगा औि वक़्फ़ कदाक माल वाककफ़ क़ी ममजल्कयत में दोिािा दाखखल हो र्जाय़ेगा।

2698. अगि ककसी इमलाक क़ी कुछ ममक़्दाि वक़्फ़ हो औि कुछ ममक़्दाि वक़्फ़

न हो औि वह इमलाक तक़्सीम न क़ी गई हो तो वह शख़्स जर्जस़े तसरूकफ़ किऩे

का इजख़्तयाि है र्जैस़े हाककम़े शअक वाककफ़ का मत


ु वल्ली औि वह लोग जर्जन क़े

मलए वक़्फ़ ककया गया है िाखिि लोगों क़ी िाय क़े मत


ु ाबिक वक़्फ़ शद
ु ा हहस्सा

र्जुदा कि सकत़े हैं।

2699. अगि वक़्फ़ का मत


ु वल्ली खखयानत कि़े मसलन उसका मन
ु ाफ़ा मअ
ु य्यन

मदों में इस्त़ेमाल न कि़े तो हाककम़े शअक उसक़े साथ ककसी अमीन शख़्स को लगा

द़े ताकक वह मत
ु वल्ली को खखयानत स़े िोक़े औि अगि वह मजु म्कन न हो तो

हाककम़े शअक उसक़ी र्जगह कोई हदयानतदाि मत


ु वल्ली मक
ु िक ि कि सकता है।

883
2700. र्जो कालीन (वगैिा) इमाम िािगाह क़े मलए वक़्फ़ ककया गया हो उस़े

नमाज़ पढ़ऩे क़े मलए मजस्र्जद में नहीं ल़े र्जाया र्जा सकता ख़्वाह वह मजस्र्जद

इमाम िाहगाह स़े मल


ु हहक ही क्यों न हो।

2701. अगि कोई इमलाक ककसी मजस्र्जद क़ी मिम्मत क़े मलए वक़्फ़ क़ी र्जाए

तो अगि उस मजस्र्जद को मिम्मत क़ी ज़रूित न हो औि इस िात क़ी तवक़्को भी

न हो कक आइन्दा या कुछ असे िाद उस़े मिम्मत क़ी ज़रूित होगी नीज़ उस

इमलाक क़ी आमदनी को र्जमअ कि क़े हहफ़ाज़त किना भी मजु म्कन न हो कक िाद

में उस मजस्र्जद क़ी मिम्मत में लगा दी र्जाए तो उस सिू त में एहततयात़े लाजज़म

यह है कक इमलाक क़ी आमदनी को उस काम में सफ़क कि़े र्जो वक़्फ़ किऩे वाल़े क़े

मक़्सद
ू स़े नज़्दीकति हो मसलन उस मजस्र्जद क़ी कोई दस
ू िी ज़रूित पिू ी कि दी

र्जाए या ककसी दस
ू िी मजस्र्जद क़ी तामीि में लगा दी र्जाए।

2702. अगि कोई शख़्स कोई इमलाक वक़्फ़ कि़े ताकक उसक़ी आमदनी मजस्र्जद

क़ी मिम्मत पि खचक क़ी र्जाए औि इमाम़े र्जमाअत को औि मजस्र्जद क़े मव


ु जज़्ज़न

को दी र्जाए तो उस सिू त में कक उस शख़्स ऩे हि एक क़े मलए कुछ ममक़्दाि

मअ
ु य्यन क़ी हो तो ज़रूिी है कक आमदनी उसी क़े मत
ु ाबिक खचक क़ी र्जाए औि

अगि मअ
ु य्यन न क़ी हो तो ज़रूिी है कक पहल़े मजस्र्जद क़ी मिम्मत किाई र्जाए

औि किि अगि कुछ िच़े तो मत


ु वल्ली उस़े इमाम़े र्जमाअत औि मव
ु जज़्ज़न क़े

884
दिममयान जर्जस तिह मन
ु ामसि समझ़े तक़्सीम कि द़े ल़ेककन ि़ेहति है कक यह

दोनों अश्खास तक़्सीम क़े मत


ु अल्लीक एक दस
ू ि़े स़े मस
ु ालहत कि लें।

885
वस़ीयत के अह्काम

2703. वसीयत यह है कक इंसान ताक़ीद कि़े कक उसक़े मिऩे क़े िाद उसक़े

मलए फ़लां फ़लां काम ककय़े र्जायें या यह कह़े कक उसक़े मिऩे क़े िाद उस क़े माल

में स़े कोई चीज़ ककसी शख़्स क़ी ममजल्कयत में द़े दी र्जाए या खैिात क़ी र्जाए या

उमिू ़े खैिीया पि सफ़क क़ी र्जाए या अपनी औलाद क़े मलए औि र्जो लोग उसक़ी

कफ़ालत में हों उनक़े मलए ककसी को तनगिां औि सिपिस्त मक


ु िक ि कि़े औि जर्जस

शख़्स को वसीयत क़ी र्जाए उस़े वसी कहत़े हैं।

2704. र्जो शख़्स िोल न सकता हो अगि वह इशाि़े स़े अपना मक़्सद समझा द़े

तो वह हि काम क़े मलए वसीयत कि सकता है िजल्क र्जो शख़्स िोल सकता हो

अगि वह भी इशाि़े स़े वसीयत कि़े कक उस का मक़्सद मसझ में आ र्जाए तो

वसीयत सहीह है ।

2705. अगि ऐसी तहिीि ममल र्जाए जर्जस पि मिऩे वाल़े क़े दस्तखत या मोहि

सबत हो तो अगि उस तहिीि स़े उस का मक़्सद समझ में आ र्जाए औि पता चल

र्जाए कक यह चीज़ उसऩे वसीयत क़ी गिज़ स़े मलखी है तो उसक़े मत


ु ाबिक अमल

किना चाहहए ल़ेककन अगि पता चल़े कक मिऩे वाल़े का मक़्सद वसीयत किना नहीं

था औि उसऩे कुछ िात़े मलखी थीं ताकक िाद में उनक़े मत


ु ाबिक वसीयत कि़े तो

ऐसी तहिीि ितौि़े वसीयत काफ़़ी नहीं है ।

886
2706. र्जो शख़्स वसीयत कि़े ज़रूिी है कक िामलग औि आककल हो, सफ़़ीह न

हो औि अपऩे इजख़्तयाि स़े वसीयत कि़े मलहाज़ा नाबिलग िच्च़े का वसीयत किना

सहीह नहीं है । मगि यह कक िच्चा दस साल का हो औि उसऩे अपऩे रिश्त़ेदािों क़े

मलए वसीयत क़ी हो या आम खैिात में खचक किऩे क़ी वसीयत क़ी हो तो उन दोनों

सिू तों में उस क़ी वसीयत सहीह है औि अगि अपऩे रिश्त़ेदािों क़े अलावा ककसी

दस
ू ि़े क़े मलए वसीयत कि़े या सात साला िच्चा यह वसीयत कि़े कक, उसक़े

अमवाल में स़े थोड़ी सी चीज़ ककसी शख़्स क़े मलए है या ककसी शख़्स को द़े दी

र्जाए, तो वसीयत का नाकफ़ज़ होना महल्ल़े इश्काल है औि इन दोनों सिू तों में

एहततयात का ख़्याल िखा र्जाए औि अगि कोई शख़्स सफ़़ीह हो तो उसक़ी वसीयत

क़े अमवाल में नाकफ़ज़ नहीं है । ल़ेककन अगि उसक़ी वसीयत अमवाल क़े अलावा

दस
ू ि़े उमिू में हो मसलन उन मख़्सस
ू कामों क़े मत
ु अजल्लक हो र्जो मौत क़े िाद

मैतयत क़े मलए अंर्जाम हदय़े र्जात़े हैं तो वह वसीयत नाकफ़ज़ है।

2707. जर्जस शख़्स ऩे ममसाल क़े तौि पि अमदन अपऩे आप को ज़ख़्मी कि

मलया हो या ज़हि खा मलया हो जर्जसक़ी वर्जह स़े उसक़े मिऩे का यक़ीन या गम


ु ान

पैदा हो र्जाए अगि वह वसीयत कि़े कक उस क़े माल क़ी कुछ ममक़्दाि ककसी

मख़्सस
ू मसिफ़ में लाई र्जाए औि उसक़े िाद वह मि र्जाए तो उसक़ी वसीयत

सहीह नहीं है।

887
2708. अगि कोई शख़्स वसीयत कि़े कक उसक़ी इमलाक में स़े कोई चीज़ ककसी

दस
ू ि़े का माल होगी तो उस सिू त में र्जिकक वह दस
ू िा शख़्स वसीयत को किल

कि ल़े ख़्वाह उस का किल


ू किना वसीयत किऩे वाल़े क़ी जज़न्दगी में ही क्यों न

हो वह चीज़ मस
ू ी क़ी मौत क़े िाद उसक़ी ममजल्कयत हो र्जाय़ेगी।

2709. र्जि इंसान अपऩे आप में मौत क़ी तनशातनयां द़े ख ल़े तो ज़रूिी है कक

लोगों क़ी अमानतें फ़ौिन उनक़े मामलकों को वापस कि द़े या उन्हें इवत्तला द़े द़े ।

उस तफ़्सील क़े मत
ु ाबिक र्जो मस ्अला 2351 में ियान हो चक
ु ़ी है । औि अगि वह

लोगों का मकरूज़ हो औि कज़े क़ी अदायगी का वक़्त आ गया हो औि कज़क ख़्वाह

अपऩे कज़े का मत
ु ालिा भी कि िहा हो तो ज़रूिी है कक कज़ाक अदा कि द़े औि

अगि वह खुद कज़ाक अदा किऩे क़े काबिल न हो या कज़े क़ी अदायगी का वक़्त न

आया हो या कज़कख़्वाह अभी मत


ु ालिा न कि िहा हो तो ज़रूिी है कक ऐसा काम

कि़े जर्जस स़े इत्मीनान हो र्जाए कक उसका कज़क उसक़ी मौत क़े िाद कज़कख़्वाह को

अदा कि हदया र्जाय़ेगा मसलन इस सिू त में कक उसक़े कज़े का ककसी दस


ू ि़े को

इल्म न हो वह वसीयत कि़े औि गवाहों क़े सामऩे वसीयत कि़े ।

2710. र्जो शख़्स अपऩे आप में मौत क़ी तनशातनयां द़े ख िहा हो अगि ज़कात,

खुम्स औि मज़ामलस उस क़े जज़म्म़े हों औि वह उन्हें उस वक़्त अदा न कि

सकता हो ल़ेककन उस क़े पास माल हो या इस िात का एहततमाल हो कक कोई

दस
ू िा शख़्स यह चीज़ें अदा कि द़े गा तो ज़रूिी है कक वसीयत कि़े औि अगि उस

888
पि हर्ज वाजर्जि हो तो उस का भी यही हुक्म है ल़ेककन अगि वह शख़्स उस वक़्त

अपऩे शिई वाजर्जिात अदा कि सकता हो तो ज़रूिी है कक फ़ौिन अदा कि द़े

अगिच़े वह अपऩे आप में मौत क़ी तनशातनयां न द़े ख़े।

2711. र्जो शख़्स अपऩे आप में मौत क़ी तनशातनयां द़े ख िहा हो अगि उसक़ी

नमाज़ें औि िोज़़े कज़ा हुए हैं तो ज़रूिी है कक वसीयत कि़े कक उसक़े माल स़े उन

इिादात क़ी अदायगी क़े मलय़े ककसी को अर्जीि िनाया र्जाए िजल्क अगि उसक़े

पास माल न हो ल़ेककन इस िात का एहततमाल हो कक कोई शख़्स बिला मआ


ु वज़ा

यह इिादात िर्जा लाय़ेगा ति भी उस पि वाजर्जि है कक वसीयत कि़े ल़ेककन अगि

अपना कोई हो मसलन िड़ा लड़का हो औि वह शख़्स र्जानता हो कक अगि उस़े

खिि दी र्जाए तो वह उसक़ी कज़ा नमाज़ें औि िोज़़े िर्जा लाय़ेगा तो उस़े खिि

द़े ना ही काफ़़ी है, वसीयत किना लाजज़म नहीं।

2712. र्जो शख़्स अपऩे आप में मौत क़ी तनशातनयां द़े ख िहा हो अगि उसका

माल ककसी क़े पास या ऐसी र्जगह तछपा हुआ हो जर्जसका विसा को इल्म न हो तो

अगि ला इल्मी क़ी वर्जह स़े विसा का हक तलफ़ होता हो तो ज़रूिी है कक उन्हें

इवत्तलाअ द़े औि यह लाजज़म नहीं कक वह अपऩे नािामलग िच्चों क़े मलय़े तनगिां

औि सिपिस्त मक
ु िक ि कि़े ल़ेककन उस सिू त में र्जि कक तनगिां का न होना माल

क़े तलफ़ होऩे का सिि हो या खुद िच्चों क़े मलए नक़्


ु सानद़े ह हो तो ज़रूिी है कक

उनक़े मलए एक अमीन तनगिां मक


ु िक ि कि़े ।

889
2713. वसी का आककल होना ज़रूिी है। नीज़ र्जो उमिू मस
ू ी स़े मत
ु अजल्लक हैं

औि इसी तिह एहततयात क़ी बिना पि र्जो उमिू दस


ू िों स़े मत
ु अजल्लक हैं ज़रूिी है

कक वसी उनक़े िाि़े में मत्ु मइन हो औि ज़रूिी है कक मस


ु लमान का वसी भी

एहततयात क़ी बिना पि मस


ु लमान औि अगि मस
ू ी फ़कत नािामलग िच्च़े क़े मलए

इस मक़्सद स़े वसीयत कि़े ताकक वह िचपन में सिपिस्त स़े इर्जाज़त मलए िगैि

तसरूकफ़ कि सक़े तो एहततयात क़ी बिना पि दरू


ु स्त नहीं है । ल़ेककन अगि मस
ू ी का

मक़्सद यह हो कक िामलग होऩे क़े िाद या सिपिस्त क़ी इर्जाज़त स़े तसरूकफ़ कि़े

तो कोई इश्काल नहीं है ।

2714. अगि कोई शख़्स कई लोगों को अपना वसी मअ


ु य्यन कि़े तो अगि

उसऩे इर्जाज़त दी हो कक उनमें स़े हि एक तन्हा वसीयत पि अमल कि सकता है

तो लाजज़म नहीं कक वह वसीयत अंर्जाम द़े ऩे में एक दस


ू ि़े स़े इर्जाज़त लें औि

अगि वसीयत किऩे वाल़े ऩे ऐसी कोई इर्जाज़त न दी हो तो ख़्वाह उसऩे कहा हो

या न कहा हो कक दोनों ममल कि वसीयत पि अमल किें उन्हें चाहहय़े कक एक

दस
ू ि़े क़ी िाय क़े मत
ु ाबिक वसीयत पि अमल किें औि अगि वह ममल कि वसीयत

पि अमल किऩे पि तैयाि न हों औि ममल कि अमल न किऩे पि कोई उज़्ऱे शिई

न हो तो हाककम़े शअक उन्हें ऐसा किऩे पि मर्जििू कि सकता है औि अगि वह

हाककम़े शअक का हुक्म न मानें या ममलकि अमल न किऩे का दोनों क़े पास कोई

890
शिई उज़्र हो तो वह उनमें स़े ककसी एक क़ी र्जगह कोई औि वसी मक
ु िक ि कि

सकता है।

2715. अगि कोई अपनी वसीयत स़े मन्


ु हरिफ़ हो र्जाए मसलन पहल़े वह यह

कह़े कक उसक़े माल का तीसिा हहस्सा फ़लां शख़्स को हदया र्जाय़े औि िाद में कह़े

कक उस़े न हदया र्जाए तो वसीयत कलअदम हो र्जाती है । औि अगि कोई शख़्स

अपनी वसीयत में तबदीली कि द़े मसलन पहल़े एक शख़्स को अपऩे िच्चों का

तनगिां मक
ु िक ि कि़े औि िाद में उसक़ी र्जगह ककसी दस
ू ि़े शख़्स को तनगिां मक
ु िक ि

कि द़े तो उसक़ी पहली वसीयत कलअदम हो र्जाती है औि ज़रूिी है कक उसक़ी

दस
ू िी वसीयत पि अमल ककया र्जाए।

2716. अगि एक शख़्स कोई ऐसा काम कि़े जर्जसस़े पता चल़े कक वह अपनी

वसीयत स़े मंह


ु रिफ़ हो गया है मसलन जर्जस मकान क़े िाि़े में वसीयत क़ी हो कक

वह ककसी को हदया र्जाए उस़े ि़ेच द़े या – पहली वसीयत को प़ेश़े नज़ि िखत़े हुए

– ककसी दस
ू ि़े शख़्स को उस़े ि़ेचऩे क़े मलए वक़ील मक
ु िक ि कि द़े तो वसीयत

कलअदम हो र्जाती है।

2717. अगि कोई शख़्स वसीयत कि़े कक एक मअ


ु य्यन चीज़ ककसी शख़्स को

दी र्जाए औि िाद में वसीयत कि़े कक उस चीज़ का तनस्फ़ हहस्सा ककसी औि

शख़्स को हदया र्जाए तो ज़रूिी है कक उस चीज़ क़े दो हहस्स़े ककय़े र्जायें औि उन

दोनों अश्खास में स़े हि एक को एक हहस्सा हदया र्जाए।

891
2718. अगि कोई शख़्स अपऩे मिज़ क़ी हालत में जर्जस मिज़ स़े वह मि िहा

है अपऩे माल क़ी कुछ ममक़्दाि ककसी शख़्स को िख़्श द़े औि वसीयत कि़े कक

मिऩे क़े िाद माल क़ी कुछ ममक़्दाि ककसी औि शख़्स को भी दी र्जाए तो अगि

उसक़े माल का तीसिा हहस्सा दोनों माल क़े मलए काफ़़ी न हो औि विसा उस

ज़्यादा ममक़्दाि क़ी इर्जाज़त द़े ऩे पि तैयाि न हों तो ज़रूिी है कक पहल़े र्जो माल

उसऩे िख़्शा है वह तीसि़े हहस्स़े स़े द़े दें औि उसक़े िाद र्जो माल िाक़ी िच़े वह

वसीयत क़े मत
ु ाबिक खचक किें ।

2719. अगि कोई शख़्स वसीयत कि़े कक उसक़े माल का तीसिा हहस्सा न ि़ेचा

र्जाए औि उसक़ी आमदनी एक मअ


ु य्यन काम में खचक क़ी र्जाए तो उसक़े कहऩे क़े

मत
ु ाबिक अमल किना ज़रूिी है।

2720. अगि कोई शख़्स ऐस़े मिज़ क़ी हालत में जर्जस मिज़ स़े वह मि र्जाए

यह कह़े कक वह इतनी ममक़्दाि में ककसी शख़्स का मकरूज़ है तो अगि उस पि

यह तोहमत लगाई र्जाए कक उस ऩे यह िात विसा को नक़्


ु सान पहुंचाऩे क़े मलय़े

क़ी है तो र्जो ममक़्दाि कज़े क़ी उस ऩे मअ


ु य्यन क़ी है वह उस क़े माल क़े तीसि़े

हहस्स़े स़े दी र्जाय़ेगी औि अगि उस पि यह तोहमत न लगाई र्जाए तो उसका

इकिाि नाकफ़ज़ है औि कज़ाक उसक़े अस्ल माल स़े अदा किना ज़रूिी है।

2721. जर्जस शख़्स क़े मलए इंसान वसीयत कि़े कक कोई चीज़ उस़े दी र्जाए यह

ज़रूिी नहीं कक वसीयत किऩे क़े वक़्त वह वर्ज


ु ूद िखता हो। मलहाज़ा अगि कोई

892
इंसान वसीयत कि़े कक र्जो िच्चा फ़लां औित क़े प़ेट स़े पैदा होगा उस िच्च़े को

फ़लां चीज़ दी र्जाए ल़ेककन अगि वह िच्चा वसीयत किऩे वाल़े क़ी मौत क़े िाद

पैदा हो तो लाजज़म है कक वह चीज़ उस़े दी र्जाए ल़ेककन अगि वह वसीयत किऩे

वाल़े क़ी मौत क़े िाद वह (िच्चा) पैदा न हो औि वसीयत एक स़े ज़्यादा मकामसद

क़े मलए समझी र्जाए तो ज़रूिी है कक उस माल को ककसी ऐस़े दस


ू ि़े काम में सफ़क

ककया र्जाए र्जो वसीयत किऩे वाल़े क़े मक़्सद स़े ज़्यादा किीि हो वनाक विसा खुद

उस़े आपस में तक़्सीम कि सकत़े हैं। ल़ेककन अगि वसीयत कि़े कक मिऩे क़े िाद

उसक़े माल में स़े कोई चीज़ ककसी शख़्स का माल होगी तो अगि वह शख़्स

वसीयत किऩे वाल़े क़ी मौत क़े वक़्त मौर्जूद हो तो वसीयत सहीह है वनाक िाततल

है । औि जर्जस चीज़ क़ी उस शख़्स क़े मलए वसीयत क़ी गई हो (वसीयत िाततल

होऩे क़ी सिू त में ) विसा उस़े आपस में तक़्सीम कि सकत़े हैं।

2722. अगि इंसान को पता चल़े कक ककसी ऩे उस़े वसी िनाया है तो अगि वह

वसीयत किऩे वाल़े को इवत्तला द़े द़े कक उसक़ी वसीयत पि अमल किऩे पि

आमादा नहीं है तो लाजज़म नहीं कक वह उसक़े मिऩे क़े िाद उस वसीयत पि

अमल कि़े ल़ेककन अगि वसीयत कुतनंदा क़े मिऩे स़े पहल़े इंसान को यह पता न

चल़े कक उसऩे उस़े वसी िनाया है या पता चल र्जाए ल़ेककन उस़े यह इवत्तलाअ न

द़े कक वह (यअनी जर्जस़े वसी मक


ु िक ि ककया गया है ) उसक़ी (यअनी मस
ू ी क़ी)

वसीयत पि अमल किऩे पि आमादा नहीं है तो अगि वसीयत पि अमल किऩे में

893
कोई ज़हमत न हो तो ज़रूिी है कक उसक़ी वसीयत पि अमल दि आमद कि़े नीज़

अगि मस
ू ी क़े मिऩे स़े पहल़े वसी ककसी वक़्त उस अम्र क़ी र्जातनि मत
ु वज्र्जह हो

कक मिज़ क़ी मशद्दत क़ी वर्जह स़े या ककसी औि उज़्र क़ी बिना पि मस
ू ी ककसी

दस
ू ि़े शख़्स को वसीयत नहीं कि सकता तो एहततयात क़ी बिना पि ज़रूिी है कक

वसी वसीयत को किल


ू कि ल़े।

2723. जर्जस शख़्स ऩे वसीयत क़ी हो कक अगि वह मि र्जाए तो वसी को यह

इजख़्तयाि नहीं कक वह ककसी दस


ू ि़े को मैतयत का वसी मअ
ु य्यन कि़े औि खुद उन

कामों स़े ककनािाकश हो र्जाए ल़ेककन अगि उस़े इल्म हो कक मिऩे वाल़े का यह

मक़्सद नहीं था कक खुद वसी ही उन कामों को अंर्जाम द़े ऩे में शिीक हो िजल्क

उसका मक़्सद फ़कत यह था कक काम कि हदय़े र्जायें तो वसी ककसी दस


ू ि़े शख़्स

को उन कामों क़ी अंर्जामद़े ही क़े मलए अपनी तिफ़ स़े वक़ील मक


ु िक ि कि सकता है ।

2724. अगि कोई शख़्स दो अफ़िाद को एकट्ठ़े वसी िनाए तो अगि उन दोनों

में स़े एक मि र्जाए या दीवाना या काकफ़ि हो र्जाए तो हाककम़े शअक उसक़ी र्जगह

एक औि शख़्स को वसी मक
ु िक ि कि़े गा। औि अगि दोनों मि र्जायें या काकफ़ि या

दीवाऩे हो र्जायें तो हाककम़े शअक दो दस


ू ि़े अश्खास को उनक़ी र्जगह मअ
ु य्यन कि़े गा

ल़ेककन अगि एक शख़्स वसीयत पि अमल कि सकता हो तो दो अश्खास का

मअ
ु य्यन किना लाजज़म नहीं।

894
2725. अगि वसी तन्हा ख़्वाह वक़ील मक
ु िक ि कि क़े या दस
ू ि़े को उर्जित द़े कि

मत
ु वफ़्फ़़ी क़े काम अंर्जाम न द़े सक़े तो हाककम़े शअक उसक़ी मदद क़े मलय़े एक

औि शख़्स मक
ु िक ि कि़े गा।

2726. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े माल क़ी कुछ ममक़्दाि वसी क़े हाथ स़े तलफ़ हो

र्जाए तो अगि वसी ऩे उसक़ी तनगहदाश्त में कोताही या तअद्दी क़ी हो मसलन

अगि मत
ु वफ़्फ़़ी ऩे उस़े वसीयत क़ी हो कक माल क़ी इतनी ममक़्दाि फ़लां शहि क़े

फ़क़ीिों को द़े द़े औि वसी माल को दस


ू ि़े शहि ल़े र्जाए औि वह िास्त़े में तलफ़ हो

र्जाए तो वह जज़म्म़ेदाि है औि अगि उसऩे कोताही या तअद्दी न क़ी हो तो

जज़म्म़ेदाि नहीं है ।

2727. अगि इंसान ककसी शख़्स को वसी मक


ु िक ि कि़े औि कह़े कक अगि वह

शख़्स (यानी वसी) मि र्जाए तो किि फ़लां शख़्स वसी होगा तो र्जि पहला वसी

मि र्जाए तो दस
ू ि़े वसी क़े मलए मत
ु वफ़्फ़़ी क़े काम अंर्जाम द़े ना ज़रूिी है ।

2728. र्जो हर्ज मत


ु वफ़्फ़़ी पि वाजर्जि हो नीज़ कज़ाक औि माली वाजर्जिात

मसलन खम्
ु स ज़कात औि मज़ामलम जर्जन का अदा किना वाजर्जि हो उन्हें

मत
ु ावफ़्फ़़ी क़े अस्ल माल स़े अदा किना ज़रूिी है ख़्वाह मत
ु वफ़्फ़़ी ऩे उनक़े मलए

वसीयत भी क़ी हो।

2729. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का कज़े स़े औि वाजर्जि हर्ज स़े औि उन शिई वाजर्जिात

स़े र्जो उस पि वाजर्जि हों मसलन खुम्स औि ज़कात औि मज़ामलम स़े ज़्यादा हो

895
तो अगि उसऩे वसीयत क़ी हो कक उसक़े माल का तीसिा हहस्सा या तीसि़े हहस्स़े

क़ी कुछ ममक़्दाि एक मअ


ु य्य्न मसिफ़ में लाई र्जाए तो उसक़ी वसीयत पि अमल

किना ज़रूिी है औि अगि वसीयत न क़ी हो तो र्जो कुछ िच़े वह विसा का माल

है ।

2730. र्जो मसिफ़ मत


ु वफ़्फ़़ी ऩे मअ
ु य्यन ककया हो अगि उसक़े माल क़े तीसि़े

हहस्स़े स़े ज़्यादा हो तो माल क़े तीसि़े हहस्स़े स़े ज़्यादा क़े िाि़े में उस क़ी

वसीयत उस सिू त में सहीह है सि विसा कोई ऐसी िात या ऐसा काम किें जर्जसस़े

मअलम
ू हो कक उन्होंऩे वसीयत क़े मत
ु ाबिक अमल किऩे क़ी इर्जाज़त द़े दी है औि

उन का मसफ़क िाज़ी होना काफ़़ी नहीं है औि अगि वह मस


ू ी क़ी ि़े हलत क़े कुछ असे

िाद भी इर्जाज़त दें तो सहीह है औि अगि िाज़ विसा इर्जाज़त द़े दें औि िाज़

वसीयत को िद्द कि दें तो जर्जन्होंऩे इर्जाज़त दी हो उनक़े हहस्सों क़ी हद तक

वसीयत सहीह औि नाकफ़ज़ है।

2731. र्जो मसिफ़ मत


ु वफ़्फ़़ी ऩे मअ
ु य्यन ककया हो अगि उस पि उसक़े माल क़े

तीसि़े हहस्स़े स़े ज़्यादा लागत आती हो औि उस क़े मिऩे स़े पहल़े विसा उस

मसिफ़ क़ी इर्जाज़त द़े दें (यअनी यह इर्जाज़त द़े दें कक उनक़े हहस्स़े स़े वसीयत

को मक
ु म्मल ककया र्जा सकता है ) तो उसक़े मिऩे क़े िाद वह अपनी दी हुई

इर्जाज़त स़े मंह


ु रिफ़ नहीं हो सकत़े।

896
2732. अगि मिऩे वाला वसीयत कि़े कक उसक़े माल क़े तीसि़े हहस्स़े स़े खुम्स

औि ज़कात या कोई औि कज़ाक र्जो उसक़े जज़म्म़े हो हदया र्जाए औि उसक़ी कज़ा

नमाज़ों औि िोज़ों क़े मलए अर्जीि मक


ु िक ि ककया र्जाए औि कोई मस्
ु तहि काम

मसलन फ़क़ीिों को खाना खखलाना भी अंर्जाम हदया र्जाए तो ज़रूिी है कक पहल़े

उसका कज़ाक माल क़े तीसि़े हहस्स़े स़े हदया र्जाए औि अगि कुछ िच र्जाए तो

नमाज़ों औि िोज़ों क़े मलए अर्जीि मक


ु िक ि ककया र्जाए औि अगि किि भी कुछ िच

र्जाए तो र्जो मस्


ु तहि काम उसऩे मअ
ु य्यन ककया हो उस पि सफ़क ककया र्जाए औि

अगि उसक़े माल का तीसिा हहस्सा मसफ़क उसक़े कज़े क़े ििािि हो औि विसा भी

ततहाई माल स़े ज़्यादा खचक किऩे क़ी इर्जाज़त न दें तो नमाज़, िोज़ों औि मस्
ु तहि

कामों क़े मलए क़ी गई वसीयत िाततल है ।

2733. अगि कोई शख़्स वसीयत कि़े कक उसका कज़ाक अदा ककया र्जाए औि

उसक़ी नमाज़ों औि िोज़ों क़े मलए अर्जीि मक


ु िक ि ककया र्जाए औि कोई मस्
ु तहि

काम भी अंर्जाम हदया र्जाए तो अगि उसऩे यह वसीयत न क़ी हो कक वह चीज़ें

माल क़े तीसि़े हहस्स़े स़े दी र्जायें तो ज़रूिी है कक उसका कज़ाक अस्ल माल स़े हदया

र्जाए औि किि र्जो कुछ िच र्जाए उसका तीसिा हहस्सा नमाज़, िोज़ों (र्जैसी

इिादात) औि उन मस्
ु तहि कामों क़े मसिफ़ में लाया र्जाए र्जो उसऩे मअ
ु य्यन

ककय़े हैं औि उस सिू त में र्जिकक तीसिा हहस्सा (उन कामों क़े मलए) काफ़़ी न हो

अगि विसा इर्जाज़त दें तो उसक़ी वसीयत पि अमल किना चाहहय़े औि अगि वह

897
इर्जाज़त न दें तो नमाज़ औि िोज़ों क़ी कज़ा क़ी उर्जित माल क़े तीसि़े हहस्स़े स़े

द़े नी चाहहए औि अगि उसमें स़े कुछ िच र्जाए तो वसीयत किऩे वाल़े ऩे र्जो

मस्
ु तहि काम मअ
ु य्यन ककया हो उस पि खचक किना चाहहए।

2734. अगि कोई शख़्स कह़े कक मिऩे वाल़े ऩे वसीयत क़ी थी कक इतनी िकम

मझ
ु ़े दी र्जाए तो अगि दो आहदल मदक उसक़े कौल क़ी तस्दीक कि दें या वह

कसम खाए औि एक आहदल शख़्स उसक़े कौल क़ी तस्दीक कि द़े या एक आहदल

मदक औि दो आहदल औितें या किि चाि आहदल औितें उसक़े कौल क़ी गवाही दें

तो जर्जतनी ममक़्दाि वह िताए उस़े द़े द़े नी ज़रूिी है औि अगि एक आहदल औित

गवाही द़े तो ज़रूिी है कक जर्जस चीज़ का वह मत


ु ालिा कि िहा हो उसका चौथाई

हहस्सा उस़े हदया र्जाए औि अगि दो आहदल औितें गवाही दें तो उसका तनस्फ़

हदया र्जाए औि अगि तीन आहदल औितें गवाही दें तो उसका तीन चौथाई हदया

र्जाए नीज़ अगि दो ककतािी काकफ़ि मदक अपऩे मज़हि में आहदल हों उसक़े कौल

क़ी तस्दीक किें तो उस सिू त में र्जिकक मिऩे वाला वसीयत किऩे पि मर्जििू हो

गया हो औि आहदल मदक औि औितें भी वसीयत क़े मौक़े पि मौर्जद


ू न िह़े हों तो

वह शख़्स मत
ु वफ़्फ़़ी क़े माल स़े जर्जस चीज़ का मत
ु ालिा कि िहा हो वह उस़े द़े

द़े नी ज़रूिी है।

2735. अगि कोई शख़्स कह़े कक मैं मत


ु वफ़्फ़़ी का वसी हूाँ ताकक उसक़े माल को

फ़लां मसिफ़ में ल़े आऊं या कह़े कक मत


ु वफ़्फ़़ी ऩे मझ
ु ़े अपऩे िच्चों का तनगिां

898
मक
ु िक ि ककया था तो उसका कौल उस सिू त में किल
ू किना चाहहए र्जिकक दो

आहदल मदक उसक़े कौल क़ी तस्दीक किें ।

2736. अगि मिऩे वाला वसीयत कि़े कक उसक़े माल क़ी इतनी ममक़्दाि फ़लां

शख़्स क़ी होगी औि वह शख़्स वसीयत को किल


ू किऩे या िद किऩे स़े पहल़े मि

र्जाए तो र्जि तक उसक़े विसा वसीयत को िद न कि दें वह उस चीज़ को किल


कि सकत़े हैं ल़ेककन यह हुक्म उस सिू त में है कक वसीयत किऩे वाला अपनी

वसीयत स़े मन्


ु हरिफ़ न हो र्जाए वनाक वह (यअनी वसी या उसक़े विसा) उस चीज़

पि कोई हक नहीं िखत़े।

म़ीिास के अह्काम

2737. र्जो अशखास मत


ु वफ़्फ़़ी स़े रिश्त़ेदािी क़ी बिना पि तकाक पात़े हैं उनक़े

तीन गिु ोह हैं –

1. पहला गिु ोह मत
ु वफ़्फ़़ी का िाप, मां औि औलाद हैं। औि औलाद क़े न होऩे

क़ी सिू त में औलाद क़ी औलाद है । र्जहां तक यह मसलमसला नीच़े चला र्जाए। उन

में स़े र्जो कोई मत


ु वफ़्फ़़ी स़े ज़्यादा किीि हो वह तकाक पाता है औि र्जि तक उस

गुिोह में स़े एक शख़्स भी मौर्जूद हो दस


ू िा गुिोह तकाक नहीं पाता।

2. दस
ू िा गुिोह – दादा, दादी, नाना, नानी, िहन औि भाई हैं। औि भाई औि

िहन न होऩे क़ी सिू त में उनक़ी औलाद हैं। उनमें स़े र्जो कोई मत
ु वफ़्फ़़ी स़े ज़्यादा
899
किीि हो वह तकाक पाता है। औि र्जि तक उस गुिोह में स़े एक शख़्स भी मौर्जूद

हो तीसिा गिु ोह तकाक नहीं पाता।

3. तीसिा गिु ोह – चचा, िुि़ी, माम,ू खाला औि उनक़ी औलाद है औि र्जि तक

मत
ु वफ़्फ़़ी क़े चचाओं, िुकियों औि खालाओं में स़े एक शख़्स भी जज़न्दा हो उनक़ी

औलाद तकाक नहीं पाती ल़ेककन अगि मत


ु वफ़्फ़़ी का पदिी चचा औि मां िाप दोनों

क़ी तिफ़ स़े चचाज़ाद भाई मौर्जूद हो तो तकाक िाप औि मां क़ी तिफ़ स़े चचाज़ाद

भाइयों को ममल़ेगा औि पदिी चचा को नहीं ममल़ेगा ल़ेककन अगि चचा या

चचाज़ाद भाई मत
ु अद्हदद हों या मत
ु वफ़्फ़़ी क़ी िीवी जज़न्दा हो – तो यह हुक्म

इश्काल स़े खाली नहीं है ।

2738. अगि खुद मत


ु वफ़्फ़़ी का चचा, िुि़ी, मामं,ू खाला औि उनक़ी औलाद या

औलाद न हो तो उसक़े िाप औि मां क़े चचा, िुि़ी, मामंू औि खाला तकाक पात़े

हैं। औि अगि वह न हों तो उनक़ी औलाद तकाक पाती हैं औि अगि वह भी न हों

तो मत
ु वफ़्फ़़ी क़े दादा, दादी औि नाना, नानी क़े चचा, िुि़ी, मामंू औि खाला

तकाक पात़े हैं औि अगि वह भी न हों तो उनक़ी औलाद तकाक पाती है।

2739. िीवी औि शौहि र्जैसा कक िाद में तफ़्सील स़े िताया र्जाय़ेगा एक दस
ू ि़े

स़े तकाक पात़े हैं।

900
पहले गुिोह की म़ीिास

2740. अगि पहल़े गुिोह में स़े मसफ़क एक शख़्स मत


ु वफ़्फ़़ी का वारिस हो

मसलन िाप या मां या एक लौता ि़ेटा या एक लौती ि़ेटी हो तो मत


ु वफ़्फ़़ी का

तमाम माल उस़े ममलता है औि अगि ि़ेट़े औि ि़ेहटयां वारिस हों तो माल को यंू

तक़्सीम ककया र्जाता है कक हि ि़ेटा ि़ेटी स़े दग


ु ना हहस्सा पाता है ।

2741. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत उसका िाप औि उसक़ी मां हो तो माल

क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जनमें स़े दो हहस्स़े िाप औि एक हहस्सा मां को

ममलता है। ल़ेककन अगि मत


ु वफ़्फ़़ी क़े दो भाई या चाि िहनें या एक भाई औि दो

िहनें हों र्जो सि क़े सि मस


ु लमान, आज़ाद औि एक िाप क़ी औलाद हों ख़्वाह

उनक़ी मां हक़ीक़ी हो या सौत़ेली हो औि कोई भी मां हाममला न हो तो अगिच़े वह

मत
ु वफ़्फ़़ी क़े िाप औि मां क़े होत़े हुए तकाक नहीं पात़े ल़ेककन उनक़े होऩे क़ी वर्जह

स़े मां को माल का छठा हहस्सा ममलता है औि िाक़ी माल िाप को ममलता है।

2742. र्जि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत उसका िाप, मां औि एक ि़ेटी हो

मलहाज़ा अगि उसक़े गुज़श्ता मस ्अल़े में ियान कदाक शिाइत िखऩे वाल़े दो पदिी

भाई या चाि पदिी िहनें या एक पदिी भाई औि दो पदिी िहनें न हों तो माल क़े

पांच हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं। िाप औि मां उनमें स़े एक एक हहस्सा ल़ेत़े हैं औि ि़ेटी

तीन हहस्स़े ल़ेती है । औि अगि मत


ु वफ़्फ़़ी क़े साबिका ियान कदाक शिाइत वाल़े दो

पदिी भाई या चाि पदिी िहनें या एक पदिी भाई औि दो पदिी िहनें भी हों तो

901
एक कौल क़े मत
ु ाबिक माल क़े – साबिका तितीि क़े मत
ु ाबिक – पांच हहस्स़े ककय़े

र्जायेंग़े औि उन अफ़िाद क़े वर्ज


ु द ू स़े कोई असि नहीं पड़ता ल़ेककन (उलमा क़े

िीच) मशहूि यह है कक इस सिू त में माल छः हहस्सों में तक़्सीम होगा। उस में स़े

िाप औि मां को एक एक हहस्सा औि ि़ेटी को तीन हहस्स़े ममलत़े हैं औि र्जो एक

हहस्सा िाक़ी िच़ेगा उसक़े किि चाि हहस्स़े ककय़े र्जायेंग़े जर्जस में स़े एक हहस्सा

िाप को औि तीन हहस्स़े ि़ेटी हो ममलत़े हैं। नतीर्ज़े क़े तौि पि मत


ु वफ़्फ़़ी क़े माल

क़े 24 हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जनमें स़े 15 हहस्स़े ि़ेटी को, 5 हहस्स़े िाप को औि 4

हहस्स़े मां को ममलत़े हैं। चंकू क यह हुक्म इश्काल स़े खाली नहीं इस मलए मां क़े

हहस्स़े में 1/5 औि 1/6 में र्जो फ़कक है उसमें एहततयात को तकक न ककया र्जाए।

2743. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत उसका िाप, मां औि एक ि़ेटा हो तो

माल क़े छः हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जन में स़े िाप औि मां को एक एक हहस्सा औि

ि़ेट़े को चाि हहस्स़े ममलत़े हैं औि अगि मत


ु वफ़्फ़़ी क़े (मसफ़क) चन्द ि़ेट़े हों या

(मसफ़क) चन्द ि़ेहटयां हों तो वह उन चाि हहस्सों को आपस में मस


ु ावी तौि पि

तक़्सीम कि ल़ेत़े हैं औि अगि ि़ेट़े भी हों तो उन चाि हहस्सों को इस तिह

तक़्सीम ककया र्जाता है कक हि ि़ेट़े को एक ि़ेटी स़े दग


ु ना हहस्सा ममलता है ।

2744. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत िाप या मां औि एक या कई ि़ेट़े हों

तो माल क़े छ हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जनमें स़े एक हहस्सा िाप या मां को औि

902
पांच हहस्स़े ि़ेट़े को ममलत़े हैं औि अगि कई ि़ेट़े हों तो उन पांच हहस्सों को आपस

में मस
ु ावी तौि पि तक़्सीम कि ल़ेत़े हैं।

2745. अगि िाप या मां मत


ु वफ़्फ़़ी क़े ि़ेटों औि ि़ेहटयों क़े साथ उसक़े वारिस

हों तो माल क़े छः हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जनमें स़े एक हहस्सा िाप या मां को

ममलता है औि िाक़ी हहस्सों में यंू तक़्सीम ककया र्जाता है कक हि ि़ेट़े को ि़ेटी स़े

दग
ु ना ममल़े।

2746. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत िाप या मां औि एक ि़ेटी हो तो माल

क़े चाि हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जनमें स़े एक हहस्सा िाप या मां को औि िाक़ी तीन

हहस्स़े ि़ेटी को ममलत़े हैं।

2747. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत िाप या मां औि चन्द ि़ेहटयां हों तो

माल क़े पांच हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं उनमें स़े एक हहस्सा िाप या मां को ममलता है

औि चाि हहस्स़े ि़ेहटयां आपस में मस


ु ावी तौि पि तक़्सीम कि ल़ेती हैं।

2748. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़ी औलाद न हो तो उसक़े ि़ेट़े क़ी औलाद – ख़्वाह वह

ि़ेटी ही क्यों न हो – मत
ु वफ़्फ़़ी क़े ि़ेट़े का हहस्सा पाती है औि ि़ेटी क़ी औलाद –

ख़्वाह वह ि़ेटा ही क्यों न हो – मत


ु वफ़्फ़़ी क़ी ि़ेटी का हहस्सा पाती है । मसलन

अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का एक नवासा (ि़ेटी का ि़ेटा) औि एक पोती (ि़ेट़े क़ी ि़ेटी) हो

तो माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जायेंग़े जर्जन में स़े एक हहस्सा नवास़े को औि दो

हहस्स़े पोती को ममलेंग़े।

903
दस
़ू िे गुिोह की म़ीिास

2749. र्जो लोग रिश्त़ेदािी क़ी बिना पि मीिास पात़े हैं उन का दस


ू िा गुिोह

मत
ु वफ़्फ़़ी का दादा, दादी, नाना, नानी, भाई औि िहऩे हैं औि अगि उसक़े भाई

िहनें न हों तो उनक़ी औलाद मीिास पाती है ।

2750. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का वारिस फ़कत एक भाई या एक िहन हो तो सािा

माल उस को ममलता है औि अगि कई सग़े भाई या कई सगी िहऩे हों तो माल

उन में ििािि ििािि तक़्सीम हो र्जाता है औि अगि सग़े भाई भी हों औि िहनें

भी तो हि भाई को िहन स़े दग


ु ना हहस्सा ममलता है । मसलन अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े

दो सग़े भाई औि एक सगी िहन हो तो माल क़े पांच हहस्स़े ककय़े र्जायेंग़े जर्जन में

स़े हि भाई को दो हहस्स़े ममलेंग़े औि िहन को एक हहस्सा ममल़ेगा।

2751. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े सग़े भाई िहन मौर्जद
ू हों तो पदिी भाई औि िहनें

जर्जन क़ी मां मत


ु वफ़्फ़़ी क़ी सौत़ेली मां हो मीिास नहीं पात़े औि अगि उसक़े सग़े

भाई िहन न हों औि फ़कत एक पदिी भाई हो या एक पदिी िहन हो तो सािा

माल उसको ममलता है । औि अगि उसक़े कई पदिी भाई या कई पदिी िहनें हों तो

माल उनक़े दिममयान मस


ु ावी तौि पि तक़्सीम हो र्जाता है औि अगि उसक़े पदिी

भाई भी हों औि पदिी िहनें भी हो तो हि भाई को िहन स़े दग


ु ना हहस्सा ममलता

है ।

904
2752. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का वारिस फ़कत एक मादिी िहन या भाई हो र्जो िाप

क़ी तिफ़ स़े मत


ु वफ़्फ़़ी क़ी सौत़ेली िहन या सौत़ेला हो तो सािा माल उस़े ममलता

है औि अगि चन्द मादिी भाई हों या चन्द मादिी िहनें हों या चन्दा मादिी भाई

औि िहनें हों तो माल उन क़े दिममयान मस


ु ावी तौि पि तक़्सीम हो र्जाता है।

2753. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े सग़े भाई िहनें औि पदिी भाई िहनें औि एक मादिी

भाई या एक मादिी िहन हो तो पदिी भाई िहनों को तकाक नहीं ममलता औि माल

क़े छः हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जनमें स़े एक हहस्सा मादिी भाई या मादिी िहन को

ममलता है औि िाक़ी हहस्स़े सग़े भाई िहनों को ममलत़े हैं औि हि भाई दो िहनों

क़े ििािि हहस्सा पाता है।

2754. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े सग़े भाई िहनें औि पदिी भाई िहनें औि चन्द

मादिी भाई िहनें हों तो पदिी भाई िहनों को तकाक नहीं ममलता औि माल क़े तीन

हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जन में स़े एक हहस्सा मादिी भाई िहनें आपस में ििािि

ििािि तक़्सीम कित़े हैं औि िाक़ी दो हहस्स़े सग़े भाई िहनों को इस तिह हदय़े

र्जात़े हैं कक हि भाई का हहस्सा िहन स़े दग


ु ना होता है।

2755. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस मसफ़क पदिी भाई िहनें औि एक मादिी भाई

या एक मादिी िहन हों तो माल क़े छः हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं। उन में स़े एक हहस्सा

मादिी भाई या मादिी िहन को ममलता है औि िाक़ी हहस्स़े पदिी िहन भाइयों में

इस तिह तक़्सीम ककय़े र्जात़े हैं कक हि भाई को िहन स़े दग


ु ना हहस्सा ममलता है ।

905
2756. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत पदिी भाई िहनें औि चन्द मादिी भाई

िहनें हों तो माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं। उनमें स़े एक हहस्सा मादिी भाई

िहनें आपस में ििािि ििािि तक़्सीम कि ल़ेत़े हैं औि िाक़ी दो हहस्स़े पदिी िहन

भाइयों को इस तिह ममलत़े हैं कक हि भाई का हहस्सा िहन स़े दग


ु ना होता है।

2757. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत उसक़े भाई िहनें औि िीवी हों तो िीवी

अपना तकाक उस तफ़्सील क़े साथ ल़ेगी र्जो िाद में ियान क़ी र्जाय़ेगी औि भाई

िहनें अपना तकाक उस तिह लेंग़े र्जैस़े कक गज़


ु श्ता मसाइल में िताया गया है नीज़

अगि कोई औित मि र्जाए औि उसक़े वारिस फ़कत उसक़े भाई िहनें औि शौहि

हों तो तनस्फ़ माल शौहि को ममल़ेगा औि िहनें औि भाई उस तिीक़े स़े तकाक

पायेंग़े जर्जसका जज़क्र गुज़श्ता मसाइल में ककया गया है ल़ेककन िीवी या शौहि क़े

तकाक पाऩे क़ी वर्जह स़े मादिी भाई िहनों क़े हहस्स़े में कोई कमी नहीं होगी ताहम

सग़े भाई िहनों या पदिी भाई िहनों क़े हहस्स़े में कमी होगी मसलन अगि ककसी

मत
ु वजफ़्फ़या क वारिस उस का शौहि औि मादिी िहन भाई औि सग़े िहन भाई

हों तो तनस्फ़ माल शौहि को ममल़ेगा औि अस्ल माल क़े तीन हहस्सों में स़े एक

हहस्सा मादिी िहन भाइयों को ममल़ेगा औि र्जो कुछ िच़े वह सग़े िहन भाइयों का

माल होगा। पस अगि उस का कुल माल छः रुपय़े हो तो तीन रुपय़े शौहि को

औि दो रुपय़े मादिी िहन भाइयों को औि एक रुपया सग़े िहन भाइयों को

ममल़ेगा।

906
2758. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े भाई िहनें न हों तो उनक़े तके का हहस्सा उनक़ी

(यअनी भाई िहनों क़ी) औलाद को ममल़ेगा औि मादिी भाई िहनों क़ी औलाद का

हहस्सा उन क़े मािैन ििािि तक़्सीम होता है औि र्जो हहस्सा पदिी भाई िहनों क़ी

औलाद या सग़े भाई िहनों क़ी औलाद को ममलता है उसक़े िाि़े में मशहूि है कक

हि लड़का दो लड़ककयों क़े ििािि हहस्सा पाता है ल़ेककन कुछ िईद नहीं है कक

उनक़े मािैन भी तकाक ििािि ििािि तक़्सीम हो औि अहवत यह है कक वह

मस
ु ालहत क़ी र्जातनि रुर्जउ
ू किें ।

2759. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का वारिस फ़कत दादा या फ़कत दादी या फ़कत नाना

या फ़कत नानी हों तो मत


ु वफ़्फ़़ी का तमाम माल उस़े ममल़ेगा औि अगि मत
ु वफ़्फ़़ी

का दादा या नाना मौर्जूद हो तो उसक़े िाप (यअनी मत


ु वफ़्फ़़ी क़े पिदादा या

पिनाना) को तकाक नहीं ममलता औि अगि ककसी मत


ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत उसक़े

दादा औि दादी हों तो माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जन में स़े दो हहस्स़े दादा

को औि एक हहस्सा दादी को ममलता है औि अगि वह नाना औि नानी हों तो वह

माल को ििािि ििािि तक़्सीम कि ल़ेत़े हैं।

2760. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस एक दादा या दादी औि एक नाना या नानी

हों तो माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जायेंग़े जर्जन में स़े दो हहस्स़े दादा या दादी को

ममलेंग़े औि एक हहस्सा नाना या नानी को ममल़ेगा।।

907
2761. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस दादा औि दादी औि नाना औि नानी हों तो

माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जन में स़े एक हहस्सा नाना औि नानी आपस

में ििािि ििािि तक़्सीम कि ल़ेत़े हैं औि िाक़ी दो हहस्स़े दादा औि दादी को

ममलत़े हैं जर्जन में दादा का हहस्सा दो ततहाई होता है ।

2762. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत उसक़ी िीवी औि दादा, दादी औि

नाना, नानी हों तो िीवी अपना हहस्सा उस तफ़्सील क़े मत


ु ाबिक ल़ेती है र्जो िाद

म़े ियान होगी औि अस्ल माल क़े तीन हहस्सों में स़े एक हहस्सा नाना औि नानी

को ममलता है औि वह आपस में ििािि ििािि तक़्सीम कि ल़ेत़े हैं औि िाक़ी

मांदा (यअनी िीवी औि नाना, नानी क़े िाद र्जो कुछ िच़े) दादा औि दादी को

ममलता है जर्जस में स़े दादा, दादी क़े मक


ु ाबिल़े में दग
ु ना ल़ेता है। औि अगि

मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस उसका शौहि औि दादा या नाना औि दादी या नानी हों तो

शौहि को तनस्फ़ माल ममलता है औि दादा, नाना औि दादी, नानी उन अह्काम क़े

मत
ु ाबिक तकाक पात़े हैं जर्जनका जज़क्र गज़
ु श्ता मसाइल में हो चक
ु ा है ।

2763. भाई, िहन, भाईयों, िहनों क़े साथ दादा, दादी या नाना, नानी औि

दादाओं, दाहदयों या नानाओं नातनयों क़े इजज्तमाअ क़ी चन्द सिू तें हैं –

1. नाना या नानी औि भाई या िहन सि मां क़ी तिफ़ स़े हों। उस सिू त में

माल उन क़े दिममयान मस


ु ावी तौि पि तक़्सीम हो र्जाता है अगिच़े वह मज़
ु क्कि

औि मव
ु न्नस क़ी हैमसयत स़े मख़्
ु तमलफ़ हों।

908
2. दादा या दादी क़े साथ भाई या िहन िाप क़ी तिफ़ स़े हों। उस सिू त में भी

उन क़े मािैन माल मस


ु ावी तौि पि तक़्सीम होता है िशते कक वह सि मदक हों

औि सि औितें हों औि अगि मदक औि औितें हों तो किि वह मदक हि औित क़े

मक
ु ाबिल़े में दग
ु ना हहस्सा ल़ेता है ।

3. दादा या दादी क़े साथ भाई या िहन मां औि िाप क़ी तिफ़ स़े हों उस सिू त

में भी वही हुक्म है वो गज़


ु श्ता सिू त में है औि यह र्जानना चाहहय़े कक अगि

मत
ु वफ़्फ़़ी क़े पदिी भाई या िहन, सग़े भाई या िहन क़े साथ र्जम ्अ हो र्जायें तो

तन्हा पदिी भाई या िहन मीिास नहीं पात़े (िजल्क सभी पात़े हैं)।

4. दाद़े , दाहदयां औि नाऩे नातनयां हों ख़्वाह वह सि क़े सि मदक हों या औितें

या मख़्
ु तमलफ़ हों या इसी तिह सग़े भाई औि िहनें हों उस सिू त में र्जो मादिी

रिश्त़ेदाि भाई, िहन औि नाऩे नातनयां हों तके में उन का एक ततहाई हहस्सा है

औि उन क़े दिममयान ििािि तक़्सीम हो र्जाता है। ख़्वाह वह मदक औि औित क़ी

है मसयत स़े एक दस
ू ि़े स़े मख़्
ु तमलफ़ हों औि उन में स़े र्जो पदिी रिश्त़ेदाि हों उनका

हहस्सा दो ततहाई है जर्जन में स़े हि मदक को हि औित क़े मक


ु ाबिल़े में दग
ु ना

ममलता है औि अगि उन में कोई फ़कक न हो औि सि मदक औि सि औितें हों तो

किि वह तकाक उन में ििािि ििािि तक़्सीम हो र्जाता है ।

5. दादा, दादी या मां क़ी तिफ़ स़े भाई, िहन क़े साथ र्जमअ हो र्जायें उस सिू त

में अगि िहन या भाई बिलफ़ज़क एक हो तो उस़े माल का छठा हहस्सा ममलता है

909
औि अगि कई हों तो तीसिा हहस्सा उन क़े दिममयान ििािि ििािि तक़्सीम हो

र्जाता है औि र्जो िाक़ी िच़े वह दादा या दादी का माल है औि अगि दादा या दादी

दोनों हों तो दादा को दादी क़े मक


ु ाबिल़े में दग
ु ना हहस्सा ममलता है ।

6. नाना या नानी िाप क़ी तिफ़ स़े भाई क़े साथ र्जमा हो र्जायें। उस सिू त में

नाना या नानी का तीसिा हहस्सा है ख़्वाह उन में स़े एक ही हो औि दो ततहाई

भाई का हहस्सा है ख़्वाह वह भी एक ही हो औि अगि उस नाना या नानी क़े साथ

िाप क़ी तिफ़ स़े िहन हो औि वह एक ही हो तो वह आधा हहस्सा ल़ेती है औि

अगि कई िहनें हों तो दो ततहाई ल़ेती हैं औि हि सिू त में नाना या नानी का

हहस्सा एक ततहाई ही है औि अगि िहन एक ही हो तो सि क़े हहस्स़े द़े कि तके

का छठा हहस्सा िच्च र्जाता है औि उसक़े िाि़े में एहततयात़े वाजर्जि मस


ु ालहत में

है ।

7. दादा या दाहदयां हों औि कुछ नाना नातनयां हों औि उन क़े साथ पदिी भाई

या िहन हो ख़्वाह वह एक ही हो या कई हों उस सिू त में नाना या नानी का

हहस्सा एक ततहाई है औि अगि वह ज़्यादा हों तो यह उन क़े मािैन मस


ु ावी तौि

पि तक़्सीम हो र्जाता है ख़्वाह वह मदक औि औित क़ी है मसयत स़े मख़्


ु तमलफ़ ही हों

औि िाक़ी मांदा दो ततहाई दाद़े या दादी औि पदिी भाई या िहन का है औि अगि

वह मदक औि औित क़ी हैमसयत स़े मख़्


ु तमलफ़ हों तो फ़कक क़े साथ औि अगि

मख़्
ु तमलफ़ न हों तो ििािि में तक़्सीम हो र्जाता है । औि अगि उन दादों, नानों या

910
दाहदयों, नातनयों क़े साथ मादिी भाई या िहन हों तो नाना या नानी का हहस्सा

मादिी भाई या िहन क़े साथ एक ततहाई है र्जो उन क़े दिममयान ििािि ििािि

तक़्सीम हो र्जाता है अगिच़े वह िहै मसयत मदक औि औित एक दस


ू ि़े स़े मख़्
ु तमलफ़

हों औि दादा या दादी का हहस्सा दो ततहाई हैं र्जो उन क़े मािैन इजख़्तलाफ़ क़ी

सिू त में (यअनी िहैमसयत मदक औि औित इखततलाफ़ क़ी सिू त में ) फ़कक क़े साथ

वनाक ििािि ििािि तक़्सीम हो र्जाता है ।

8. भाई औि िहनें हों जर्जन में स़े कुछ पदिी औि कुछ मादिी हों औि उन क़े

साथ दादा या दादी हों उस सिू त में अगि मादिी भाई या िहन एक हो तो तके में

उसका छठा हहस्सा है औि अगि एक स़े ज़्यादा हों तो तीसिा हहस्सा है र्जो उन क़े

मािैन ििािि ििािि तक़्सीम हो र्जाता है औि िाक़ी तकाक पदिी भाई या िहन औि

दादा या दादी का है र्जो उन क़े िहैमसयत मदक औि औित मख़्


ु तमलफ़ न होऩे क़ी

सिू त में उन क़े मािैन ििािि ििािि तक़्सीम हो र्जाता है औि मख़्


ु तमलफ़ होऩे क़ी

सिू त में फ़कक स़े तक़्सीम होता है औि अगि उन भाईयों या िहनों क़े साथ नाना

या नानी हों तो नाना या नानी औि मादिी भाईयों या िहनों को ममला कि सि का

हहस्सा एक ततहाई होता है औि उन क़े मािैन ििािि ििािि तक़्सीम हो र्जाता है

औि पदिी भाईयों या िहनों का हहस्सा दो ततहाई होता है औि र्जो उन में िहैमसयत

मदक औि औित इजख़्तलाफ़ क़ी सिू त में फ़कक स़े औि इखततलाफ़न होऩे क़ी सिू त में

ििािि ििािि तक़्सीम हो र्जाता है ।

911
2764. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े भाई या िहनें हों तो भाईयों या िहनों क़ी औलाद को

मीिास नहीं ममलती ल़ेककन अगि भाई क़ी औलाद औि िहन क़ी औलाद का मीिास

पाना भाईयों औि िहनों क़ी मीिास स़े मज़


ु ाहहम न हो तो किि इस हुक्म का

इतलाक नहीं होता। मसलन अगि मत


ु वफ़्फ़़ी का पदिी भाई औि नाना हो तो पदिी

भाई को मीिास क़े दो हहस्सा औि नाना को एक ततहाई हहस्सा ममल़ेगा औि उस

सिू त में अगि मत


ु वफ़्फ़़ी क़े मादिी भाई का ि़ेटा भी हो तो भाई का ि़ेटा नाना क़े

साथ एक ततहाई में शिीक हो र्जाता है ।

त़ीसिे गुिोह की म़ीिास

2765. मीिास पाऩे वालों क़े तीसि़े गुिोह में चचा, िुि़ी, मामंू औि खाला औि

उन क़ी औलाद हैं। औि र्जैसा कक ियान हो चक


ु ा है अगि पहल़े औि दस
ू ि़े गिु ोह में

स़े कोई वारिस मौर्जूद न हो तो किि यह लोग तकाक पात़े हैं।

2766. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का वारिस फ़कत एक चचा या एक िुि़ी हो तो ख़्वाह

वह सगा हो यअनी वह औि मत
ु वफ़्फ़़ी एक मां िाप क़ी औलाद हों या पदिी हों या

मादिी हो सािा माल उस़े ममलता है औि अगि चन्दा चचा या चन्द िुकियां हों

औि वह सि सग़े या सि पदिी हों तो उन क़े दिममयान माल ििािि तक़्सीम

होगा। औि अगि चचा औि िुकियां दोनों हों औि सि सग़े हों या सि पदिी हों तो

912
बिनािि़े अक़्वा चचा को िुकियों स़े दग
ु ना हहस्सा ममलता है। मसलन अगि दो

चचा औि एक िुि़ी मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस हों तो माल पांच हहस्सों में तक़्सीम

ककया र्जाता है जर्जस में स़े एक हहस्सा िुि़ी को ममलता है औि िाक़ीमांदा चाि

हहस्सों को दोनों चचा आपस में ििािि ििािि तक़्सीम कि लेंग़े।

2767. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस फ़कत कुछ मादिी चचा या कुछ मादिी

िुकियां हों तो मत
ु वफ़्फ़़ी का माल उन क़े मािैन मस
ु ावी तौि पि तक़्सीम होगा

औि अगि वारिस मादिी चचा औि मादिी िुि़ी हो तो चचा को िुि़ी स़े दो गुना

तकाक ममल़ेगा अगिच़े एहततयात यह है कक चचा को जर्जतना ज़्यादा हहस्सा ममला है

उस पि िाहम तजस्फ़या किें ।

2768. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस चचा औि िुकियां हों औि उन में स़े कुछ

पदिी औि कुछ मादिी औि कुछ सग़े हों औि पदिी चचाओं औि िुकियों को तकाक

नहीं ममलता औि अक़्वा यह है कक अगि मत


ु वफ़्फ़़ी का एक मादिी चचा या एक

मादिी िुि़ी हो तो माल क़े छः हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जन में स़े एक हहस्सा मादिी

चचा या िुि़ी को हदया र्जाता है औि िाक़ी हहस्स़े सग़े चचाओं औि िुकियों को

ममलत़े हैं औि बिल फ़ज़क अगि सग़े चचा औि िुकियां न हों तो वह हहस्स़े पदिी

चचाओं औि िुकियों को ममलत़े हैं। औि अगि मत


ु वफ़्फ़़ी क़े मादिी चचा औि

मादिी िुकियां भी हों तो माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं जर्जन में स़े दो हहस्स़े

सग़े चचाओं औि िुकियों को ममलत़े हैं औि बिल फ़ज़क अगि सग़े चचा औि

913
िुकियां न हों तो पदिी चचा औि पदिी िुि़ी को तकाक ममलता है औि एक हहस्सा

मादिी चचा औि िुि़ी को ममलता है औि मशहूि यह है कक मादिी चचा औि

मादिी िुि़ी का हहस्सा उन क़े मािैन ििािि ििािि तक़्सीम होगा ल़ेककन िईद

नहीं कक चचा को िुि़ी स़े दग


ु ना हहस्सा ममल़े अगिच़े एहततयात इस में है कक

िाहम तसकफ़या किें ।

2769. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का वारिस फ़कत एक मामंू या एक खाला हो तो सािा

माल उस़े ममलता है औि अगि कई मामंू भी हों औि खालायें भी हों औि सि सग़े

या पदिी या मादिी हों तो िईद नहीं कक मामंू को खाला स़े दग


ु ना तकाक ममल़े

ल़ेककन ििािि ममलऩे का एहततमाल भी है मलहाज़ा एहततयात को तकाक नहीं किना

चाहहए।

2770. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का वारिस फ़कत एक या चन्द मादिी मामंू या खलायें

औि सग़े मामंू औि खलायें हों औि पदिी मामंू औि खलायें हों तो पदिी मामओ
ु ं

औि खालाओं को तकाक न ममलना महल्ल़े इश्काल है । िहिहाल िईद नहीं कक मामंू

को खाला स़े दग
ु ना हहस्सा ममल़े। ल़ेककन एहततयातन िाहम रिज़ामन्दी स़े मआ
ु मला

किना चाहहए।

2771. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस एक या चन्द मामंू या एक या चन्द खालायें

या मामंू औि खाला औि एक या चन्द चचा या एक या चन्द िुकियां या चचा

औि िुि़ी हों तो माल तीन हहस्सों में तक़्सीम ककया र्जाता है । उन में स़े एक

914
हहस्सा मामंू या खाला को या दोनों को ममलता है औि िाक़ी दो हहस्स़े चचा या

िुि़ी को या दोनों को ममलत़े हैं।

2772. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस एक मामंू या एक खाला औि चचा औि िुि़ी

हों तो अगि चचा औि िुि़ी सग़े हों या पदिी हों तो माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े

र्जाता हैं उन में स़े एक हहस्सा मामंू या खाला को ममलता है, औि अक़्वा क़ी बिना

पि िाक़ी में स़े दो हहस्स़े चचा को औि एक हहस्सा िुि़ी को ममलता है, मलहाज़ा

माल क़े नौ हहस्स़े होंग़े जर्जन में स़े तीन हहस्स़े मामंू या खाला को औि चाि हहस्स़े

चचा को औि दो हहस्स़े िुि़ी को ममलेंग़े।

2773. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस एक मामंू या एक खाला औि एक मादिी चचा

या एक मादिी िुि़ी औि सग़े या पदिी चचा औि िुकियां हों तो माल को तीन

हहस्सों में तक़्सीम ककया र्जाता है जर्जन में स़े एक हहस्सा मामंू या खाला को हदया

र्जाता है। औि िाक़ी दो हहस्सों को चचा औि िुि़ी आपस में तक़्सीम किें ग़े औि

िईद नहीं कक चचा को िुि़ी स़े दग


ु ना हहस्सा ममल़े अगिच़े एहततयात का ख़्याल

िखना ि़ेहति है ।

2774. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस चन्द मामंू या चन्द खालायें हों र्जो सग़े या

पदिी या मादिी हों औि उसक़े चचा औि िुकियां भी हों तो माल क़े तीन हहस्स़े

ककय़े र्जात़े हैं। उन में स़े दो हहस्स़े उस दस्तूि क़े मत


ु ाबिक र्जो ियान हो चक
ु ा है

915
चचाओं औि िुकियों क़े मािैन तक़्सीम हो र्जात़े हैं औि िाक़ी एक हहस्सा मामंू

औि खालायें, र्जैसा कक मस ्अला 2770 में गज़


ु ि चक
ु ा है, आपस म़े तक़्सीम किें ग़े।

2775. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस मादिी मामंू या चन्द खालायें औि चन्द सग़े

मामंू औि खालायें हों या फ़कत पदिी मामंू औि खालायें औि चचा व िुि़ी हों तो

माल क़े तीन हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं। उन में स़े दो हहस्स़े, उस दस्तिू क़े मत
ु ाबिक

र्जो ियान हो चक
ु ा है चचा औि िुि़ी आपस में तक़्सीम किें ग़े औि िईद नहीं कक

िाक़ी मांदा तीसि़े हहस्स़े क़ी तक़्सीम में िाक़ी विसा क़े हहस्स़े ििािि हों।

2776. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े चचा औि िुकियां औि मामंू औि खालायें न हों तो

माल क़ी र्जो ममक़्दाि चचाओं औि िुकियों को ममलना चाहहए वह उन क़ी औलाद

को औि र्जो ममक़्दाि मामओ


ु ं औि खालाओं को ममलनी चाहहए वह उन क़ी औलाद

को दी र्जाती है।

2777. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़े वारिस उस क़े िाप क़े चचा, िुकियां, मामंू औि

खालायें औि उस क़ी मां क़े चचा, िुकियां, मामंू औि खालायें हों तो माल क़े तीन

हहस्स़े ककय़े र्जात़े हैं। उन में स़े एक हहस्सा मत


ु वफ़्फ़़ी क़ी मां क़े चचाओं, फ़ुकियों

औि खालाओं को ितौि ममिास ममल़ेगा। औि मशहूि कौल क़ी बिना पि माल उन

क दिममयान ििािि ििािि तक़्सीम कि हदया र्जाय़ेगा ल़ेककन एहततयात क़े तौि

पि मस
ु ालहत का ख़्याल िखना चाहहए। औि िाक़ी दो हहस्सों क़े तीन हहस्स़े ककय़े

र्जात़े हैं औि उन में स़े एक हहस्सा मत


ु वफ़्फ़़ी क़े िाप क़े मामंू औि खालायें (यअनी

916
नजन्हयाली रिश्त़ेदाि) उसक़ी कैकफ़यत क़े मत
ु ाबिक आपस में ििािि ििािि िांट

ल़ेत़े हैं औि िाक़ी दो हहस्स़े भी उसी कैफ़़ीयत क़े मत


ु ाबिक मत
ु वफ़्फ़़ी क़े िाप क़े

चचाओं औि िुकियों (यअनी दचधयाली रिश्त़ेदािों) को ममलता हैं।

ब़ीव़ी औि शौहि की म़ीिास

2778. अगि कोई औित ि़े औलाद मि र्जाए तो उसक़े साि़े माल का तनस्फ़

हहस्सा शौहि को औि िाक़ी मांदा दस


ू ि़े विसा को ममलता है। औि अगि ककसी

औित क़ी पहल़े शौहि स़े या ककसी औि शौहि स़े औलाद हो तो साि़े माल का

चौथाई हहस्सा शौहि को औि िाक़ी मांदा दस


ू ि़े विसा को ममलता है ।

2779. अगि कोई आदमी मि र्जाए औि उस क़ी कोई औलाद न हो तो उसक़े

माल का चौथाई हहस्सा उसक़ी िीवी को औि िाक़ी दस


ू ि़े विसा को ममलता है । औि

अगि उस आदमी क़ी उस िीवी स़े या ककसी औि िीवी स़े औलाद हो तो माल का

आठवां हहस्सा िीवी को औि िाक़ी दस


ू ि़े विसा को ममलता है । औि र्ि क़ी ज़मीन,

िाग, ख़ेत औि दस
ू िी ज़मीनों में स़े औित खुद ज़मीन ितौि़े मीिास हामसल किती

है औि न ही उस क़ी क़ीमत में स़े कोई तकाक पाती है। नीज़ वह र्ि क़ी फ़ज़ां में

कायम चीज़ों मसलन इमाित औि दिख़्तों स़े तकाक नहीं पाती ल़ेककन उन क़ी

क़ीमत क़ी सिू त में तकाक पाती है, औि र्जो दिख़्त, ख़ेत औि इमाितें िाग क़ी

ज़मीन, मज़रूआ ज़मीन औि दस


ू िी ज़मीनों में हो उन का भी यही हुक्म है ।

917
2780. जर्जन चीज़ों में स़े औित तकाक नहीं पाती मसलन िहायशी मकान क़ी

ज़मीन अगि उन में तसरुक फ़ किना चाह़े तो ज़रूिी है कक विसा स़े इर्जाज़त ल़े औि

विसा र्जि तक औित का हहस्सा न द़े दें उन क़े मलए र्जायज़ नहीं कक उस क़ी

इर्जाज़त क़े िगैि उन चीज़ों में मसलन इमाितों औि दिख़्तों में तसरुक फ़ किें जर्जन

क़ी क़ीमत स़े वह तकाक पाती है।

2781. अगि इमाित औि दिख़्त वगैिा क़ी क़ीमत लगाना मक़्सद


ू हो तो र्जैसा

कक क़ीमत लगाऩे वालों का मअमल


ू होता है कक जर्जस ज़मीन में वह है उस क़ी

खस
ु मू सयत को प़ेश़े नज़ि िख़े िगैि उन का हहसाि किें कक उन क़ी ककतनी क़ीमत

है , न कक उन्हें ज़मीन स़े उखड़़े हुए फ़ज़क कि क़े उन क़ी क़ीमत लगायें औि न ही

उन क़ी क़ीमत का हहसाि इस तिह किें कक वह िगैि ककिाए क़े उस ज़मीन में

उसी हालत में िाक़ी िहें यहां तक कक उर्जड़ र्जायें।

2782. नहिों का पानी िहऩे क़ी र्जगह औि इसी तिह क़ी दस


ू िी र्जगह ज़मीन

का हुक्म िखती है औि ईंटें औि दस


ू िी चीज़ें र्जो उस में लगाई गई हों वह इमाित

क़े हुक्म में हैं।

2783. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी क़ी एक स़े ज़्यादा िीववयां हों ल़ेककन औलाद कोई न हो

तो माल का चौथा हहस्सा औि अगि औलाद हो तो माल का आठवां हहस्सा उस

तफ़्सील क़े मत
ु ाबिक जर्जस का ियान हो चक
ु ा है सि िीववयों में मस
ु ावी तौि पि

तक़्सीम होता है ख़्वाह शौहि ऩे उन सि क़े साथ या उन में स़े िाज़ क़े साथ

918
हमबिस्तिी न भी क़ी हो। ल़ेककन अगि उस ऩे एक ऐस़े मिज़ क़ी हालत में जर्जस

मिज़ स़े उस क़ी मौत वाक़े हुई है ककसी औित स़े तनकाह ककया हो औि उस़े स़े

हम बिस्तिी न क़ी हो तो वह औित उस स़े तकाक नहीं पाती औि वह महि का हक

भी नहीं िखती है ।

2784. अगि कोई औित मिज़ क़ी हालत में ककसी मदक स़े शादी कि़े औि उसी

मिज़ में मि र्जाए तो ख़्वाह मदक ऩे उसस़े हमबिस्तिी न भी क़ी हो तो वह उस क़े

तके में हहस्स़ेदाि है।

2785. अगि औित को उस तितीि स़े तलाक़े िर्जई दी र्जाए जर्जस का जज़क्र

तलाक क़े अह्काम में ककया र्जा चक


ु ा है औि वह इद्दत क़े दौिान मि र्जाए तो

शौहि उस स़े तकाक पाता है। इसी तिह अगि शौहि उस इद्दत क़े दौिान फ़ौत हो

र्जाए तो िीवी उस स़े तकाक पाती है ल़ेककन इद्दत गज़


ु िऩे क़े िाद या िाइन तलाक

क़ी इद्दत क़े दौिान उन में स़े कोई एक मि र्जाए तो दस


ू िा उस स़े तकाक नहीं

पाता।

2786. अगि शौहि मिज़ क़ी हालत में अपनी िीवी को तलाक द़े द़े औि िािह

कमिी महीऩे गज़


ु िऩे स़े पहल़े मि र्जाए तो औित तीन शतें पिू ी किऩे पि उसक़ी

मीिास स़े तकाक पाती है ः-

919
1. औित ऩे उस मद्
ु दत में दस
ू िा शौहि न ककया हो औि अगि दस
ू िा शौहि

ककया हो तो उस़े मीिास नहीं ममल़ेगी अगिच़े एहततयात यह है कक सल्


ु ह कि लें

(यअनी मत
ु वफ़्फ़़ी क़े विसा औित स़े मस
ु ालहत कि लें)।

2. तलाक औित क़ी मिज़ी औि दख़्वाकस्त पि न हुई हो वनाक उस़े मीिास नहीं

ममल़ेगी ख़्वाह तलाक हामसल किऩे क़े मलए उस ऩे अपऩे शौहि को कोई चीज़ दी

हो या न दी हो।

3. शौहि ऩे जर्जस मिज़ में औित को तलाक दी हो उस मिज़ क़े दौिान उस

मिज़ क़ी वर्जह स़े या ककसी औि वर्जह स़े मि गया हो। मलहाज़ा अगि वह उस

मिज़ स़े मशफ़ायाि हो र्जाए औि ककसी वर्जह स़े मि र्जाए तो औित उस स़े मीिास

नहीं पाती।

2787. र्जो कपड़़े मदक ऩे अपनी िीवी को पहनऩे क़े मलए फ़िाहम ककय़े हों

अगिच़े वह उन कपड़ों को पहन चक


ु ़ी हो किि भी शौहि क़े मिऩे क़े िाद वह शौहि

क़े माल का हहस्सा होंग़े।

म़ीिास के मख़्
ु तललफ़ मसाइल

2788. मत
ु वफ़्फ़़ी का कुिआऩे मर्जीद, अंगूठ , तलवाि औि र्जो कपड़़े वह पहन

चक
ु ा हो वह िड़़े ि़ेट़े का माल है औि अगि पहली तीन चीज़ों में स़े मत
ु वफ़्फ़़ी ऩे

कोई चीज़ एक स़े ज़्यादा छोड़ी हो मसलन उस ऩे कुिआऩे मर्जीद क़े दो नस्
ु ख़े या

920
दो अंगूहठयां छोड़ी हों तो एहततयात़े वाजर्जि यह है कक उस का िड़ा ि़ेटा उन क़े

िाि़े में दस
ू ि़े विसा को मस
ु ालहत कि़े औि इन चाि चीज़ों क़े साथ ि़े हल, िन्दक
ू ,

खंर्जि औि उन र्जैस़े दस
ू ि़े हचथयािों को भी ममला दें तो वर्जह स़े खाली नहीं ल़ेककन

एहततयात़े वाजर्जि यह है कक िड़ा ि़ेटा इन चीज़ों स़े मत


ु अजल्लक दस
ू ि़े विसा स़े

मस
ु ालहत कि़े ।

2789. अगि ककसी मत


ु वफ़्फ़़ी क़े िड़़े ि़ेट़े एक स़े ज़्यादा हों मसलन दो िीववयों

स़े दो ि़ेट़े ियकवक़्त पैदा हों तो जर्जन चीज़ों का जज़क्र ककया र्जा चक
ु ा है उन्हें

ििािि ििािि आपस में तक़्सीम किें ।

2790. अगि मत
ु वफ़्फ़़ी मकरूज़ हो तो अगि उसका कज़क उस क़े माल क़े िाििि

या उस स़े ज़्यादा हो तो ज़रूिी है कक िड़ा ि़ेटा उस माल स़े भी उस का कज़क अदा

कि़े र्जो उस क़ी ममजल्कयत है औि जर्जन का साबिका मस ्अल़े में जज़क्र ककया गया

है या उस क़ी क़ीमत क़े िाििि अपऩे माल स़े द़े । औि अगि मत


ु वफ़्फ़़ी का कज़क

उसक़े माल स़े कम हो औि जज़क्रशद


ु ा चन्द चीज़ों क़े अलावा र्जो िाक़ी माल उस़े

मीिास में ममला हो अगि वह भी उस का कज़क अदा किऩे क़े मलए काफ़़ी न हो तो

ज़रूिी है कक िड़ा ि़ेटा उन चीज़ों स़े या अपऩे माल स़े उस का कज़क द़े औि अगि

िाक़ी माल कज़क अदा किऩे क़े मलए काफ़़ी हो ति भी एहततयात़े लाजज़म यह है कक

िड़ा ि़ेटा र्जैस़े कक पहल़े िताया गया है कज़क अदा किऩे में मशककत कि़े । मसलन

अगि मत
ु वफ़्फ़़ी का तमाम माल साठ रुपय़े का हो औि उन में स़े िीस रुपय़े क़ी

921
वह चीज़ें हों र्जो िड़़े ि़ेट़े का माल है औि उस पि तीस रुपय़े का कज़क हो तो िड़़े

ि़ेट़े को चाहहए कक उन चीज़ों में स़े दस रुपय़े मत


ु वफ़्फ़़ी क़े कज़क क़े मसलमसल़े में

द़े ।

2791. मस
ु लमान काकफ़ि स़े तकाक पाता है ल़ेककन काकफ़ि ख़्वाह वह मस
ु लमान

मत
ु वफ़्फ़़ी का िाप या ि़ेटा ही क्यों न हो उस स़े तकाक नहीं पाता।

2792. अगि कोई शख़्स अपऩे रिश्त़ेदािों में स़े ककसी को र्जानिझ
ू कि औि

नाहक कत्ल कि द़े तो वह उस स़े तकाक नहीं पाता। ल़ेककन अगि वह शख़्स गलती

स़े मािा र्जाए मसलन अगि कोई शख़्स (गल


ु ़ेल स़े) हवा में पत्थि फ़ेंकऩे (या हवाई

फ़ायरिंग कि़े ) औि वह इवत्तफ़ाकन उस क़े ककसी रिश्त़ेदाि को लग र्जाए औि वह

मि र्जाए तो वह मिऩे वाल़े स़े तकाक पाय़ेगा ल़ेककन उस क़े कत्ल क़ी हदयत में स़े

तकाक पाना महल्ल़े इश्काल है ।

2793. र्जि ककसी मत


ु वफ़्फ़़ी क़े विसा तकाक तक़्सीम किना चाहें तो वह िच्चा

र्जो अभी मां क़े प़ेट में हो औि जज़न्दा पैदा हो तो मीिास का हकदाि होगा उस

सिू त में र्जि कक एक स़े ज़्यादा िच्चों क़े पैदा होऩे का एहततमाल न हो औि

इत्मीनान न हो कक वह िच्चा लड़क़ी है तो एहततयात क़ी बिना पि एक लड़क़े का

हहस्सा अलायहदा कि द़े औि र्जो माल उस स़े ज़्यादा हो वह आपस में तक़्सीम

कि लें। िजल्क अगि अगि एक स़े ज़्यादा िच्च़े होऩे का कवी एहततमाल हो

मसलन औित क़े प़ेट में दो या तीन िच्च़े होऩे का एहततमाल हो उन क़े हहस्स़े

922
अलायहदा किें । मसलन अगि एक लड़क़े या एक लड़क़ी क़ी ववलादत हो तो ज़ायद

तके को विसा आपस में तक़्सीम कि लें।

923
चन्द फफ़क़्ही इजस्तलाहात

(र्जो इस ककताि में इस्त़ेमाल हुई हैं)

एहततयातः- वह तिीका ए अमल जर्जस स़े अमल क़े मत


ु ाबिक़े वाककआ होऩे का

यक़ीन हामसल हो र्जाए।

एहततयात़े लाजज़मः- एहततयात़े वाजर्जि। द़े खखए लफ़्ज़ लाजज़म।

एहततयात़े मस्
ु तहिः- फ़त्व़े क़े अलावा एहततयात है, इस मलए इसका मलहाज़

ज़रूिी नहीं होता।

एहततयात़े वाजर्जिः- वह हुक्म र्जो एहततयात क़े मत


ु ाबिक हो औि फ़क़ीह ऩे उस

क़े साथ फ़तवा न हदया हो। ऐस़े मसाइल में मक


ु जल्लद उस मज्
ु तहहद क़ी तकलीद

किता है र्जो अअलम क़े िाद इल्म में सि स़े िढ़ कि हो।

एहततयात तकक नहीं किना चाहहए (एहततयात का ख़्याल िह़े ) – जर्जस मस ्अल़े में

यह इजस्तलाह आए अगि उस में मज्


ु तहहद का फ़तवा मज़कूि न हो तो इस का

मतलि एहततयात़े वाजर्जि होगा, औि अगि मज्


ु तहहद का फ़तवा भी मज़कूिा हो तो

इस स़े एहततयात क़ी ताक़ीद मक़्सद


ू होती है ।

अहवतः- एहततयात क़े मत


ु ाबिक।

924
इश्काल हैः- इस अमल क़ी वर्जह स़े तक्लीफ़़े शिई साककत न होगी। इस़े अंर्जाम

न द़े ना चाहहए। इस मस ्अल़े में ककसी दस


ू ि़े मज्
ु तहहद क़ी तिफ़ रुर्जउ
ू ककया र्जा

सकता है िशते उस क़े साथ फ़तवा न हो।

अज़हिः- ज़्यादा ज़ाहहि। मस ्अल़े स़े मत


ु अजल्लक दलायल स़े ज़्यादा नज़दीक

दलीलों क़े साथ मन्


ु तबिक होऩे क़े मलहाज़ स़े ज़्यादा िाज़़ेह्। यह मज्
ु तहहद का

फ़तवा है।

इफ़्ज़ाः- खुलना – प़ेशाि औि है ज़ का मकाम एक हो र्जाना या है ज़ औि पखाऩे

क़े मकाम का एक हो र्जाना या तीनों मकामात का एक हो र्जाना।

अक़्वाः- कवी नज़िीया।

औलाः- ि़ेहति, ज़्यादा मन


ु ामसि।

ईकाअः- वह मआ
ु मला र्जो यकतिफ़ा तौि पि वाक़े हो र्जाता है औि उस़े किल

किऩे वाल़े क़ी ज़रूित नहीं होती र्जैस़े तलाक में मसफ़क तलाक द़े ना ही काफ़़ी होता

है , किल
ू किऩे क़ी ज़रूित नहीं होती।

िईद है ः- फ़तवा इसक़े मत


ु ाबिक नहीं है।

र्जाहहल़े कामसिः- मस ्अल़े स़े नावाककफ़ ऐसा शख़्स र्जो ककसी दिू उफ़्तादा मकाम

पि िहऩे क़ी वर्जह स़े हुक्म़े मस ्अला तक िसाई हामसल किऩे में कामसि हो।

925
र्जाहहल़े मक
ु जस्सिः- वह नावाककफ़ शख़्स जर्जस क़े मलए मसाइल का सीखना

मजु म्कन िहा हो ल़ेककन उसऩे कोताही क़ी हो औि र्जानिझ


ू कि मसाइल मअलम
ू न

ककय़े हों।

हाककम़े शअकः- वह मज्


ु तहहद र्जाम़े उश शिायत जर्जस का हुक्म शिई कवानीन क़ी

ितु नयाद पि नाकफ़ज़ हो।

हदस़े असगिः- हि वह चीज़ जर्जसक़ी वर्जह स़े नमाज़ क़े मलए वज़
ु ू किना पड़़े।

यह सात चीज़ें हैं, 1.प़ेशाि, 2.पाखाना, 3.रियाह, 4.नीन्द, 5.अक़्ल को ज़ायल किऩे

वाली चीज़ें मसलन दीवांगी, मस्ती या ि़ेहोशी, 6.इजस्तहाज़ा, 7.जर्जन चीज़ों क़ी

वर्जह स़े गस्


ु ल वाजर्जि होता है ।

हदस़े अकििः- वह चीज़ जर्जसक़ी वर्जह स़े नमाज़ क़े मलए गस्
ु ल किना पड़़े र्जैस़े

एहततलाम, जर्जमाअ।

हद्द़े तिख़्खुसः- मसाफ़त क़ी वह हद र्जहां स़े अज़ान क़ी आवाज़ सन


ु ाई न द़े

औि आिादी क़ी दीवािें हदखाई न दें ।

हिामः- हि वह अमल, जर्जस का तकक किना शिीअत क़ी तनगाहों में ज़रूिी हो।

हदिहमः- 12 6/10 चनों क़े ििािि मसक्कादाि चांदी तकिीिन 12.50 ग्राम।

जज़म्मी काफ़़ीिः- यहूदी, ईसाई औि मर्जस


ू ी र्जो इस्लामी मममलकत में िहत़े हों

औि इस्लाम क़े इजज्तमाई कवानीन क़ी पािन्दी का वादा किऩे क़ी वर्जह स़े

इस्लामी हुकूमत उन क़ी र्जान, माल औि आिरू क़ी हहफ़ाज़त कि़े ।

926
िर्जा ए मत्लि
ू ीयतः- ककसी अमल को मतलि
ू ़े पवकिहदगाि होऩे क़ी उम्मीद में

अंर्जाम द़े ना।

रुर्जउ
ू किनाः- पलटना। इसका इस्त़ेमाल दो मकामात पि हुआ हैः- 1. अअलम

जर्जस मस ्अल़े में एहततयात़े वाजर्जि का हुक्म द़े औि उस मस ्अल़े में ककसी दस
ू ि़े

मज्
ु तहहद क़ी तक़्लीद किना। 2. िीवी को तलाक़े िर्जई द़े ऩे क़े िाद इद्दत क़े

दौिान ऐसा कोई अमल अंर्जाम द़े ना या ऐसी कोई िात कहना जर्जस स़े इस िात

का पता चल़े कक उस़े दोिािा िीवी िना मलया है।

शाखखसः- ज़ोहि का वक़्त मअलम


ू किऩे क़े मलए ज़मीन में गाड़ी र्जाऩे वाली

लकड़ी।

शाि़े ः- खुदावन्द़े आलम, िसल


ू ़े अकिम स्वल्लल्लाहो अलैह़े व आल़ेही व सल्लम।

तलाकः- आज़ादी – शिीअत क़े िताए हुए तिीक़े स़े तनकाह तोड़ना।

तलाक़े िाइनः- वह तलाक जर्जस क़े िाद मदक को रुर्जूउ किऩे का हक नहीं होता।

तफ़्सीलात तलाक क़े िाि में द़े खीए।

तलाक़े खल
ु अः- उस औित क़ी तलाक र्जो शौहि को नापसन्द किती हो औि

तलाक ल़ेऩे क़े मलए शौहि को अपना महि या कोई माल िख़्श द़े । तफ़्सीलात

तलाक क़े िाि में द़े खखए।

तलाक़े िर्ज ्ईः- वह तलाक जर्जस में मदक इद्दत क़े दौिान औित क़ी तिफ़ रुर्जूउ

कि सकता है । इस क़े अह्काम तलाक क़े िाि में ियान हुए हैं।

927
तलाक़े मि
ु ािातः- वह तलाक जर्जस में ममयां िीवी दोनों एक दस
ू ि़े स़े मत
ु नजफ़्फ़ि

हों औि औित तलाक क़े मलए शौहि को कुछ माल िख़्श द़े ।

तवाफ़़े तनसाः- हर्ज औि उमिा ए मफ़


ु िदा का आखखिी तवाफ़ जर्जस़े अंर्जाम न द़े ऩे

स़े हर्ज या उमिा ए मफ़


ु िदा किऩे वाल़े पि हमबिस्तिी हिाम िहती है ।

ज़ाहहि यह है ः- फ़तवा यह है कक (मसवाय इस क़े कक इिाित में इसक़े खखलाफ़

कोई किीना मौर्जूद हो)।

ज़ौहि़े शिईः- ज़ौहि़े शिई का मतलि आधा हदन गज़


ु िना है। मसलन अगि हदन

िािा र्ंट़े का हो तो तल
ु ए
ू आफ़ताि क़े छः र्ंटा गज़
ु िऩे क़े िाद औि अगि त़ेिा र्ंट़े

का हो तो साढ़़े छः र्ंट़े गज़


ु िऩे क़े िाद औि अगि ग्यािा र्ंट़े का हो तो साढ़़े पांच

र्ंट़े गुज़िऩे क़े िाद ज़ौहि़े शिई का वक़्त है । औि ज़ौहि़े शिई का वक़्त र्जो कक

तुलए
ू आफ़ताि क़े िाद आधा हदन गज़
ु िऩे स़े गरू
ु ि़े आफ़ताि तक है िाज़ मवाक़े

पि िािा िर्ज़े स़े चन्द ममनट पहल़े औि कभी िािा िर्ज़े स़े चन्द ममनट िाद होता

है ।

अदालतः- वह मअनवी कैकफ़यत र्जो तक़्वा क़ी वर्जह स़े इंसान में पैदा होती है ।

औि जर्जसक़ी वर्जह स़े वह वाजर्जिात को अंर्जाम द़े ता है औि मह


ु िक मात को तकक

किता है ।

अक़्दः- मआ
ु हदा ए तनकाह।

फ़त्वाः- शिई मसाइल में मज्


ु तहहद का नज़िीया।

928
कुिआन क़े वाजर्जि सज्द़े ः- कुिआन में पन्रह आयतें ऐसी हैं जर्जन क़े पढ़ऩे या

सन
ु ऩे क़े िाद खद
ु ावन्द़े आलम क़ी अज़मत क़े सामऩे सर्जदा किना चाहहय़े। उन में

स़े चाि मकामात पि सज्दा वाजर्जि औि ग्यािा मकामात पि मस्


ु तहि (मंदि
ू ) है ।

आयात़े सज्दा मन्


ु दरिर्जा ज़ैल हैः-

कुिआन क़े मस्


ु तहि सज्द़े ः- 1. पािा 9. सिू ा ए अअिाफ़ – आखिी आयत।

2. पािा 13. सिू ा ए िअद – आयत 15।

3. पािा 14. सिू ा ए नहल – आयत 49।

4. पािा 15. सिू ा ए िनी इस्राईल – आयत 107।

5. पािा 16. सिू ा ए मियम – आयत 58।

6. पािा 17. सिू ा ए हर्ज – आयत 18।

7. पािा 17. सिू ा ए हर्ज – आयत 77।

8. पािा 19. सिू ा ए फ़ुिकान – आयत 60।

9. पािा 19. सिू ा ए नमल – आयत 25।

10. पािा 23. सिू ा ए स्वाद – आयत 24।

11. पािा 30. सिू ा ए इंमशकाक् – आयत 21।

कुिआन क़े वाजर्जि सज्द़े ः- 1. पािा 21. सिू ा ए सज्दा – आयत 15।

2. पािा 24. सिू ा ए अलीफ़ लाम मीम तंज़ील – आयत 37।

3. पािा 27. सिू ा ए वन्नज्म – आखिी आयत।

929
4. पािा 30. सिू ा ए अलक – आखिी आयत।

कस्द़े इंशाः- खिीद व फ़िोख़्त क़े मातनन्द ककसी एतिािी चीज़ को उस स़े मित
ूक

अल्फ़ाज़ क़े ज़िीए आलम़े वर्ज


ु द ू में लाऩे का इिादा।

कस्द़े कुिकत (कुिकत क़ी नीयत) – मिजज़य़े पवकिहदगाि स़े किीि होऩे का इिादा।

कुव्वत स़े खाली नहीः- फ़तवा यह है । (मसवाय इसक़े कक इिाित में इसक़े िि

खखलाफ़ कोई किीना मौर्जूद हो।

कफ़्फ़ािा ए र्जमअ (मर्जमअ


ू न कफ़्फ़ािा) – तीनों कफ़्फ़ाि़े 1. साठ िोज़़े िखना, 2.

साठ फ़क़ीिों को प़ेट भि खाना खखलाना, 3. गल


ु ाम आज़ाद किना।

लाजज़मः- वाजर्जि, अगि मज्


ु तहहद ककसी अम्र क़े वाजर्जि व लाजज़म होऩे का

इजस्तफ़ादा आयात औि रिवायत स़े इस तिह कि़े कक उस का शाि़े क़ी तिफ़ मंसि

किना मजु म्कन हो तो उसक़ी तअिीि लफ़्ज़़े वाजर्जि स़े क़ी र्जाती है औि अगि उस

क़े वाजर्जि व लाजज़म होऩे को ककसी औि ज़िीए मसलन अकली दलाइल स़े समझा

हो इस तिह कक उस का शोि क़ी तिफ़ मंसि


ू किना मजु म्कन न हो तो उसक़ी

तअिीि लफ़्ज़़े लाजज़म स़े क़ी र्जाती है। एहततयात़े वाजर्जि औि एहततयात़े लाजज़म

में भी इसी फ़कक को प़ेश़े नज़ि िखना चाहहए। िहिहाल मक


ु जल्लद क़े मलए मकाम़े

अमल में वाजर्जि औि लाजज़म में कोई फ़कक नहीं है ।

930
मि
ु ाहः- वह अमल र्जो शिीअत क़ी तनगाहों में न काबिल़े सताइश हो औि न

काबिल़े मज़म्मत (यह लफ़्ज़ वाजर्जि, हिाम, मस्


ु तहि औि मकरूह क़े मक
ु ाबिल़े में

है ।)

नजर्जसः- हि वह चीज़ र्जो ज़ाती तौि पि पाक हो ल़ेककन ककसी नजर्जस चीज़ स़े

बिलवामसता या ििाह़े िास्त ममल र्जाऩे क़ी वर्जह स़े नजर्जस हो गई हो।

मज्हूलल
ु मामलकः- वह माल जर्जस का मामलक मअलम
ू न हो।

महिमः- वह किीिी रिश्त़ेदाि जर्जन स़े कभी तनकाह नहीं ककया र्जा सकता।

मोहरिमः- र्जो शख़्स हर्ज या उमि़े क़े एहिाम में हो।

महल्ल़े इश्काल हैः- इस में इश्काल है, इस अमल का सहीह व मक


ु म्मल होना

मश
ु ककल है (मक
ु जल्लद इस मसअल़े में दस
ू ि़े मज्
ु तहहद क़ी तिफ़ रुर्जूउ कि सकता

है िशते कक उसक़े साथ फ़तवा न हो।)

महल्ल़े तअम्मल
ु है ः- एहततयात किना चाहहए (मक
ु जल्लद इस मस ्अल़े में दस
ू ि़े

मज्
ु तहहद क़ी तिफ़ रुर्जउ
ू कि सकता है िशते कक उस क़े साथ फ़तवा न हो।)

मस
ु ल्लमात़े दीनः- वह ज़रूिी औि कत ्ई उमिू र्जो दीऩे इस्लाम का र्जज़्
ु वें

लायंफ़क हैं औि जर्जन्ह़े साि़े मस


ु लमान दीन का लाजज़मी र्जज़्
ु व मानत़े है र्जैस़े

नमाज़, िोज़़े क़ी फ़िजज़यत औि उन का वर्ज


ु ूि। इन उमिू को ज़रूिीयत़े दीन औि

कतईयात़े दीन भी कहत़े हैं क्योंकक यह वह उमिू हैं जर्जन का तस्लीम किना दाइिा

ए इस्लाम क़े अन्दि िहऩे क़े मलए अज़ िस ज़रूिी है ।

931
मस्
ु तहिः- पसन्दीदा – र्जो शाि़े ए मक
ु द्दस को पसन्द हो ल़ेककन उस़े वाजर्जि न

किाि द़े । हि वह हुक्म जर्जस को किऩे में सवाि हो ल़ेककन तकक किऩे में गन
ु ाह न

हो।

मकरूहः- नापसन्दीदा – वह काम जर्जसका अंर्जाम द़े ना हिाम न हो ल़ेककन

अंर्जाम न द़े ना ि़ेहति हो।

तनसािः- मअ
ु य्यना ममक़्दाि या मअ
ु य्यना हद।

वाजर्जिः- हि वह अमल जर्जस का अंर्जाम द़े ना शिीअत क़ी तनगाहों में फ़ज़क हो।

वाजर्जि़े तखईिीः- र्जि वर्ज


ु ि ू दो चीज़ों में ककसी एक स़े मत
ु अजल्लक हो तो उन

में स़े हि एक को वाजर्जि़े तखईिी कहत़े हैं र्जैस़े िोज़़े क़े कफ़्फ़ाि़े में तीन चीज़ों क़े

तिममयान इजख़्तयाि होता है-- 1. साठ िोज़़े िखना, 2. साठ फ़क़ीिों को खाना

खखलाना, 3. गल
ु ाम आज़ाद किना।

वाजर्जि़े ऐनीः- वह वाजर्जि र्जो हि शख़्स पि खुद वाजर्जि हो र्जैस़े नमाज़, िोज़ा।

वाजर्जि़े ककफ़ाईः- ऐसा वाजर्जि जर्जस़े अगि कुछ लोग अंर्जाम द़े दें तो िाक़ी लोगों

स़े साककत हो र्जाए र्जैस़े गस्


ु ल़े मैतयत सि पि वाजर्जि है ल़ेककन अगि कुछ लोग

उस़े अंर्जाम द़े दें तो िाक़ी लोगों स़े साककत हो र्जाय़ेगा।

वक़्फ़ः- अस्ल माल को ज़ाती ममजल्कयत स़े तनकाल कि उसक़ी मनकफ़अत को

मख़्सस
ू अफ़िाद या उमिू ़े खैिीया क़े साथ मखसस
ू कि द़े ना।

वलीः- सिपिस्त – मसलन िाप, दादा, शौहि या हाककम़े शिअ।

932
शिई औज़ान औि अअशािी औज़ान 5 नखुद (चऩे) – एक ग्राम।

12 6/10 नखद
ु ः- तकिीिन 3.50 ग्राम।

8 नखद
ु (या एक ममस्काल़े शिई) – तकिीिन 3.50 ग्राम।

1 दीनाि (या एक ममस्काल़े शिई) – तकिीिन 3.50 ग्राम।

एक ममस्काल़े सैिफ़़ी (24 नखुद) – तकिीिन 5 ग्राम।

एक मद
ु ः- तकिीिन 750 ग्राम।

एक साअः- तकिीिन 3 ककलो ग्राम।

एक कुि (पानी) – तकिीिन 377 ककलो ग्राम।

नोटः- मसअला 1365 में पच्चीस गज़ को पच्चीस ज़िाअ (चौदा गज़) पढ़ा

र्जाय़े।

933
[[अलहम्दो मलल्लाह ककताि तौज़ीहुल मसाइल (आयतल्
ु लाह सीसतानी) पिू ी

टाईप हो गई खद
ु ा वंद़े आलम स़े दआ
ु गौ हुं कक हमाि़े इस अमल को कुिल
ु ििमाऐ

औि इमाम हुसन
ै (अ.) िाउनड़ेशन को तिक्क़ी इनायत ििमाए कक जर्जन्होऩे इस

ककताि को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवकक) क़े मलऐ टाइप किाया।

सैय्यद मौहम्मद उवैस नकवी 07:12:2015]]

934
फेहिीस्त

तौज़ीहुल मसाइल ...................................................................................... 1

मक
ु द्द़े मा ................................................................................................ 2

अहकाम़े तकलीद...................................................................................... 6

अह्काम़े तहाित ..................................................................................... 12

1. कुि पानीः- ............................................................................................................................................ 13

2. कलील पानीः- ....................................................................................................................................... 15

3. र्जािी पानीः- .......................................................................................................................................... 16

4. िारिश का पानीः- ................................................................................................................................. 18

5. कुयें का पानीः- ..................................................................................................................................... 20

पानी क़े अह्कामः- ................................................................................................................................... 21

िैतल
ु खला क़े अहकामः- ......................................................................................................................... 23

64. चाि र्जगहों पि िफ़् ए हार्जत हिाम है ः- .............................................................................................. 25

इसततििा .................................................................................................................................................. 28

िफ़् ए हार्जत क़े मस्


ु तहबिात औि मकरूहात............................................................................................. 30

नर्जासात ............................................................................................... 32

1, 2 प़ेशाि औि पाखानाः- ........................................................................................................................ 32

3. मनी (वीयक) ........................................................................................................................................... 33

4. मद
ु ाकि .................................................................................................................................................... 33

5. खून....................................................................................................................................................... 35

6, 7- कुत्ता औि सव
ु ि ................................................................................................................................. 37

935
8. काकफ़ि .................................................................................................................................................. 37

9. शिाि .................................................................................................................................................... 39

10. नर्जासत खाऩे वाल़े है वान का पसीना ................................................................................................ 39

नर्जासत साबित होऩे क़े तिीक़े ................................................................................................................ 40

पाक चीज़ नजर्जस कैस़े होती है ः- ............................................................................................................. 42

अहकाम़े नर्जासात..................................................................................................................................... 46

मत
ु जह्हिात ............................................................................................ 49

1-पानी ...................................................................................................................................................... 50

2. ज़मीन ................................................................................................................................................... 60

3. सिू र्ज ..................................................................................................................................................... 63

4. इसततहाला ............................................................................................................................................ 64

5. इंककलाि ................................................................................................................................................ 65

6- इंततकाल ............................................................................................................................................... 67

7- इसलाम ................................................................................................................................................. 68

8- तिईय्यत.............................................................................................................................................. 69

9- ऐऩे नर्जासत का दिू होना ................................................................................................................... 71

10- नर्जासत खाऩे वाल़े है वान का इसततििा ............................................................................................ 72

11- मस
ु लमान का गायि हो र्जाना ........................................................................................................... 73

12 –मअमल
ू क़े मत
ु ाबिक (ज़िीहा क़े) खन
ू का िह र्जाना ....................................................................... 75

ितकनों क़े अहकाम .................................................................................................................................... 76

इिादात ................................................................................................ 78

वज़
ु ू...................................................................................................... 78

इिततमासी वज़
ु ू ......................................................................................................................................... 84

936
दआ
ु यें जर्जनका वज़
ु ू कित़े वक़्त पढ़ना ज़रूिी है ...................................................................................... 84

वज़
ु ू सहीह होऩे क़ी शिायत ..................................................................................................................... 86

वज़
ु ू क़े अहकाम ....................................................................................................................................... 98

वह चीज़ें जर्जनक़े मलय़े वज़


ु ू किना चाहहय़े .............................................................................................. 103

मजु बतलात़े वज़


ु ू ..................................................................................... 106

र्जिीिा क़े अहकाम.................................................................................................................................. 106

वाजर्जि गस्
ु ल ....................................................................................... 112

र्जनाित क़े अहकाम ............................................................................................................................... 112

वह चीज़ें र्जो मजु ज्नि पि हिाम हैं......................................................................................................... 115

वह चीज़ें र्जो मजु ज्नि क़े मलय़े मकरूह हैं .............................................................................................. 116

गस्
ु ल़े र्जनाित......................................................................................................................................... 117

तितीिी गस्
ु ल ......................................................................................................................................... 118

इिततमासी गस्
ु ल..................................................................................................................................... 119

गस्
ु ल क़े अहकाम ................................................................................................................................... 121

इजस्तहाज़ा ............................................................................................................................................... 125

इजस्तहार्जा क़े अहकाम ........................................................................................................................... 126

है ज़ (माहवािी) ........................................................................................................................................ 138

हाइज़ क़े अहकाम .................................................................................................................................. 142

हाइज़ क़ी ककस्में .................................................................................................................................... 149

1. वक़्त औि अदद क़ी आदत िखऩे वाली औित .................................................................................. 150

2. वक़्त क़ी आदत िखऩे वाली औित .................................................................................................... 158

3. अदद क़ी आदत िखऩे वाली औित .................................................................................................... 162

4. मज़्
ु तरििः ............................................................................................................................................ 164

937
5. मबु तहदअः ........................................................................................................................................... 165

6. नामसयः............................................................................................................................................... 167

है ज़ क़े मत
ु फ़रिकक मसाइल ..................................................................................................................... 169

तनफ़ास ................................................................................................................................................... 172

गस्
ु ल़े मस़े मैतयत ................................................................................. 177

मह्
ु तज़ि क़े अहकाम............................................................................. 179

मिऩे क़े िाद क़े अहकाम....................................................................................................................... 182

गस्
ु ल, कफ़न, नमाज़ औि दफ़्न का वर्ज
ु ूि............................................................................................... 182

गस्
ु ल़े मैतयत क़ी कैफ़़ीयत ...................................................................................................................... 185

कफ़न क़े अहकाम .................................................................................................................................. 190

हनत
ू क़े अहकाम ................................................................................................................................... 194

नमाज़़े मैतयत क़े अहकाम ...................................................................................................................... 196

नमाज़़े मैतयत का तिीका ....................................................................................................................... 199

नमाज़़े मैतयत क़े मस्


ु तहबिात ................................................................................................................ 202

दफ़्न क़े अहकाम ................................................................................................................................... 203

दफ़्न क़े मस्


ु तहबिात .............................................................................................................................. 207

नमाज़़े वह्शत......................................................................................................................................... 213

नबश़े कब्र................................................................................................................................................ 214

वो सिू तें ऐसी हैं जर्जनमें कब्र का खोदना हिाम नहीं है ः ........................................................................ 214

मस्
ु तहि गस्
ु ल ........................................................................................................................................ 216

तयम्मम
ु ............................................................................................. 219

तयम्मम
ु क़ी पहली सिू त ....................................................................................................................... 220

तयम्मम
ु क़ी दस
ू िी सिू त ....................................................................................................................... 224

938
तयम्मम
ु क़ी तीसिी सिू त ...................................................................................................................... 225

तयम्मम
ु क़ी चौथी सिू त ........................................................................................................................ 227

तयम्
ु मम
ु क़ी पांचवीं सिू त ...................................................................................................................... 228

तयम्मम
ु क़ी छठ सिू त ......................................................................................................................... 228

तयम्मम
ु क़ी सातवीं सिू त ..................................................................................................................... 229

वह चीज़ें जर्जन पि तयम्मम


ु किना सहीह है ......................................................................................... 230

वज़
ु ू या गस्
ु ल क़े िदल़े तयम्मम
ु किऩे का तिीका................................................................................ 234

तयम्मम
ु क़े अहकाम ............................................................................................................................. 235

अह्काम़े नमाज़.................................................................................... 243

वाजर्जि नमाज़ें ........................................................................................................................................ 244

िोज़ाना क़ी वाजर्जि नमाज़ें...................................................................................................................... 245

ज़ोहि औि अस्र क़ी नमाज़ का वक़्त..................................................................................................... 245

नमाज़़े र्जुमा क़े अहकामः-...................................................................................................................... 247

र्जुमा क़ी नमाज़ वाजर्जि होऩे क़ी चन्द शतें हैं- ..................................................................................... 247

र्जुमा क़ी नमाज़ क़े सहीह होऩे क़ी चन्द शतें हैं – ............................................................................... 248

742. चन्द अहकाम जर्जनका तअल्लक


ु र्जुमा क़ी नमाज़ स़े है यह है ः- .......................................................... 251

मचिि औि इशा क़ी नमाज़ का वक़्त ................................................................................................... 253

सबु ह क़ी नमाज़ का वक़्त ...................................................................................................................... 254

औकात़े नमाज़ क़े अहकाम .................................................................................................................... 255

वह नमाज़ें र्जो तितीि स़े पढ़नी ज़रूिी हैं ............................................................................................. 260

मस्
ु तहि नमाज़ें ...................................................................................................................................... 262

िोज़ाना क़ी नफ़्लों का वक़्त................................................................................................................... 264

नमाज़़े गफ़
ु ै ला ......................................................................................................................................... 266

नमाज़ में िदन का ढांपना ..................................................................................................................... 270

939
नमाज़ी क़े मलिास क़ी शतें .................................................................................................................... 273

जर्जन सिू तों में नमाज़ी का िदन औि मलिास पाक होना ज़रूिी नहीं ................................................... 287

वह चीज़ें र्जो नमाज़ी क़े मलिास में मस्


ु तहि हैं ..................................................................................... 292

वह चीज़ें र्जो नमाज़ी क़े मलिास में मकरूह हैं ...................................................................................... 293

नमाज़ पढ़ऩे क़ी र्जगह ........................................................................................................................... 294

पहली शतक यह है कक वह मि
ु ाह हो। ................................................................................................. 294

दस
ू िी शतक ........................................................................................................................................... 298

(तीसिी शतक) ....................................................................................................................................... 298

(चौथी शतक)......................................................................................................................................... 299

(पांचवी शतक) ....................................................................................................................................... 300

(छटी शतक) .......................................................................................................................................... 300

(सातवीं शतक) ...................................................................................................................................... 301

वह मकामात र्जहां नमाज़ पढ़ना मस्


ु तहि है ......................................................................................... 302

वह मकामात र्जहां नमाज़ पढ़ना मकरूह है ........................................................................................... 303

मजस्र्जद क़े अहकाम ............................................................................................................................... 304

अज़ान औि इकामत............................................................................................................................... 309

अज़ान औि इकामत का तर्जकमा ............................................................................................................. 310

नमाज़ क़े वाजर्जिात................................................................................................................................ 318

नमाज़ क़े अकाकन पांच है ः-................................................................................................................. 318

नीयत ................................................................................................................................................. 319

तक्िीितल
ु एहिाम .............................................................................................................................. 320

ककयाम यानी खड़ा होना .................................................................................................................... 323

ककिाअत ............................................................................................................................................. 328

रुकू ..................................................................................................................................................... 340

940
सर्ज
ु ूद .................................................................................................................................................. 345

वह चीज़ें जर्जन पि सज्दा किना सहीह है । ............................................................................................ 354

सज्द़े क़े मस्


ु तहबिात औि मकरूहात ..................................................................................................... 357

कुिआऩे मर्जीद क़े वाजर्जि सज्द़े ............................................................................................................ 359

तशह्हुद .............................................................................................................................................. 361

नमाज़ का सलाम ............................................................................................................................... 363

तितीि ................................................................................................................................................ 364

मव
ु ालात.............................................................................................................................................. 365

नमाज़ का तर्जम
ुक ा ................................................................................................................................... 368

1.सिू ा ए अलहम्द का तर्जम


ुक ाः- .......................................................................................................... 368

2.सिू ा ए एख़्लास का तर्जम


ुक ाः- ........................................................................................................... 369

3.रूकू, सर्ज
ु ूद औि उनक़े िाद क़े मस्
ु तहि अज़्काि का तर्जम
ुक ाः- ........................................................ 369

4.कुनत
ू का तर्जम
ुक ाः- .......................................................................................................................... 370

5.तस्िीहात़े अिकआ का तर्जम


ुक ाः- ......................................................................................................... 370

ताक़ीिात़े नमाज़ ..................................................................................................................................... 371

पैगम्िि़े अकिम (स0)पि सलवात (दरु


ु द) .............................................................................................. 372

मजु बतलात़े नमाज़ ................................................................................................................................... 373

वह चीज़ें र्जो नमाज़ में मकरूह हैं ......................................................................................................... 385

वह सिू तें जर्जनमें वाजर्जि नमाज़ें तोड़ी र्जा सकती हैं.............................................................................. 386

शक्क़ीयात़े नमाज़ ................................................................................................................................... 387

वह शक र्जो नमाज़ को िाततल कित़े हैं ................................................................................................ 388

वह शक जर्जनक़ी पिवाह नहीं किनी चाहहय़े .......................................................................................... 389

1. जर्जस फ़़ेल का मौका गज़


ु ि गया हो उसमें शक किना ....................................................................... 390

2. सलाम क़े िाद शक किना ................................................................................................................. 394

941
3. वक़्त क़े िाद शक किना .................................................................................................................... 394

4. कसीरुश्शक का शक किना ................................................................................................................ 395

5. इमाम औि मक्
ु तदी का शक .............................................................................................................. 398

6. मस्
ु तहि नमाज़ में शक ..................................................................................................................... 398

सहीह शक
ु ू क ........................................................................................................................................... 400

नमाज़़े एहततयात पढ़ऩे का तिीका......................................................................................................... 408

सज्दा ए सहव ........................................................................................................................................ 414

सज्दा ए सहव का तिीका ...................................................................................................................... 418

भल
ू ़े हुए सज्द़े औि तशह्हुद क़ी कज़ा................................................................................................... 418

नमाज़ क़े अज्ज़ा औि शिाइत को कम या ज़्यादा किना ..................................................................... 421

मस
ु ाकफ़ि क़ी नमाज़ ............................................................................................................................... 424

(पहली शतक) ........................................................................................................................................ 424

(दस
ू िी शतक) ........................................................................................................................................ 427

(तीसिी शतक) ....................................................................................................................................... 429

(चौथी शतक)......................................................................................................................................... 431

(पांचवीं शतक) ....................................................................................................................................... 432

(छठ शतक) .......................................................................................................................................... 435

(सातवीं शतक) ...................................................................................................................................... 436

(आठवीं शतक) ...................................................................................................................................... 439

मत
ु फ़रिक क मसाइल.................................................................................................................................. 450

कज़ा नमाज़ ........................................................................................................................................... 454

िाप क़ी कज़ा नमाज़ें र्जो िड़़े ि़ेट़े पि वाजर्जि हैं ................................................................................... 460

नमाज़़े र्जमाअत ...................................................................................................................................... 462

नमाज़़े र्जमाअत क़े अहकाम .................................................................................................................. 477

942
र्जमाअत में इमाम औि मक्
ु तदी क़े फ़िाइज़ .......................................................................................... 482

नमाज़़े र्जमाअत क़े मकरूहात ................................................................................................................ 484

नमाज़़े आयात ........................................................................................................................................ 484

नमाज़़े आयात पढ़ऩे का तिीका ............................................................................................................. 490

ईद़े कफ़त्र औि ईद़े कुिाकन क़ी नमाज़ ...................................................................................................... 493

नमाज़ क़े मलय़े अर्जीि िनाना ................................................................................................................ 497

िोज़़े क़े अहकाम .................................................................................. 502

नीयत ..................................................................................................................................................... 502

वो चीज़ें िोज़़े को िाततल कि द़े ती है । ................................................................................................... 508

1.खाना औि पीना .................................................................................................................................. 509

2.जर्जमाअ (सम्भोग) ............................................................................................................................... 512

3.इस्त़ेम्ना (हस्तमैथन
ु ) .......................................................................................................................... 513

4. खुदा औि िसल
ू (स0) पि िोह्तान िााँधना.......................................................................................... 515

5. गि
ु ाि को हल्क तक पहुंचाना ............................................................................................................. 517

7. अज़ाऩे सबु ह तक र्जनाित, है ज़ औि तनफ़ास क़ी हालत में िहना....................................................... 520

8. हुक़्ना ल़ेना ......................................................................................................................................... 527

9. उल्टी किना ........................................................................................................................................ 527

उन चीज़ों क़े अहकाम र्जो िोज़़े को िाततल किती हैं। ........................................................................... 528

वह चीज़ें र्जो िोज़ादाि क़े मलय़े मकरूह हैं.............................................................................................. 530

ऐस़े मवाक़े जर्जनमें िोज़ा क़ी कज़ा औि कफ़्फ़ािा वाजर्जि हो र्जात़े हैं। .................................................. 531

िोज़़े का कफ़्फ़ािा.................................................................................................................................... 531

वह सिू तें जर्जन में फ़कत िोज़़े क़ी कज़ा वाजर्जि है ............................................................................ 538

कज़ा िोज़़े क़े अहकाम............................................................................................................................ 541

मस
ु ाकफ़ि क़े िोज़ों क़े अहकाम ................................................................................................................ 546

943
वह लोग जर्जन पि िोज़ा िखना वाजर्जि नहीं .......................................................................................... 549

महीऩे क़ी पहली तािीख साबित होऩे का तिीका ................................................................................... 551

हिाम औि मकरूह िोज़़े.......................................................................................................................... 554

मस्
ु तहि िोज़़े .......................................................................................................................................... 556

वह सिू तें जर्जनमें मबु तलात़े िोज़ा स़े पहे ज़ मस्


ु तहि है .......................................................................... 558

खम्
ु स क़े अहकाम ................................................................................ 559

1760. खुम्स सात चीज़ों पि वाजर्जि है ः-................................................................................................. 559

1.कािोिाि का मन
ु ाफ़ा ............................................................................................................................ 560

2. मअहदनी कानें ................................................................................................................................... 573

3. गड़ा हुआ दफ़़ीना .............................................................................................................................. 575

4. वह हलाल माल र्जो हिाम माल में मख़्लत


ू हो र्जाए ........................................................................ 577

5. गव्वासी स़े हामसल ककय़े हुए मोती................................................................................................... 580

6. माल़े गनीमत .................................................................................................................................... 582

7. वह ज़मीन र्जो जज़म्मी काकफ़ि ककसी मस


ु लमान स़े खिीद़े .............................................................. 584

खम्
ु स का मसिफ़ ................................................................................. 584

ज़कात क़े अहकाम ............................................................................... 589

ज़कात वाजर्जि होऩे क़ी शिाइत .............................................................................................................. 590

ग़ेहूं, र्जौ, खर्जूि औि ककशममश क़ी ज़कात ............................................................................................... 592

सोऩे का तनसाि ..................................................................................................................................... 601

चांदी का तनसाि ..................................................................................................................................... 602

ऊंट, गाय औि भ़ेड़ िकिी क़ी ज़कात ..................................................................................................... 605

ऊंट क़े तनसाि ........................................................................................................................................ 606

गाय का तनसाि –.................................................................................................................................. 608

944
भ़ेड़ का तनसाि ....................................................................................................................................... 609

माल़े ततर्जाित क़ी ज़कात ....................................................................................................................... 613

ज़कात का मसिफ़.................................................................................................................................. 614

मस्
ु तहक़्क़ीऩे ज़कात क़े शिाइत ............................................................................................................. 620

ज़कात क़ी नीयत ................................................................................................................................... 623

ज़कात क़े मत
ु फ़रिक क मसाइल................................................................................................................. 624

ज़कात़े कफ़त्रा ....................................................................................... 632

ज़कात़े कफ़त्रा का मसिफ़ ........................................................................................................................ 638

ज़कात़े कफ़त्रा क़े मत


ु फ़रिकक मसाइल ....................................................................................................... 640

हर्ज क़े अह्काम ................................................................................... 642

मआ
ु मलात .............................................................................................................................................. 648

खिीद व फ़िोख़्त क़े अह्काम ................................................................. 648

खिीद व फ़िोख़्त क़े मस्


ु तहबिात ........................................................................................................... 649

मकरूह मआ
ु मलात ................................................................................................................................. 650

हिाम मआ
ु मलात .................................................................................................................................... 651

ि़ेचऩे वाल़े औि खिीदाि क़ी शिाइत ...................................................................................................... 660

जर्जन्स औि उसक़े एवज़ क़ी शिाइत ...................................................................................................... 664

खिीद व फ़िोख़्त का सीगा .................................................................... 667

फ़लों क़ी खिीद व फ़िोख़्त..................................................................... 668

नक़्द औि उधाि क़े अह्काम ................................................................................................................. 669

मआ
ु मला ए सलफ़ क़ी शिाइत .............................................................................................................. 671

मआ
ु मला ए सलफ़ क़े अह्काम .............................................................................................................. 674

945
सोऩे चांदी को सोऩे चांदी क़े एवज़ ि़ेचना ............................................................................................. 675

मआ
ु मला फ़स्ख ककय़े र्जाऩे क़ी सिू तें .................................................................................................... 676

मत
ु फ़रिक क मसाइल ............................................................................... 684

मशिाकत क़े अह्काम............................................................................. 686

सल्
ु ह क़े अहकाम ................................................................................. 693

ककिाय़े क़े अह्काम ............................................................................... 697

ककिाय़े पि हदय़े र्जाऩे वाल़े माल क़ी शिाइत ............................................. 701

ककिाय़े पि हदय़े र्जाऩे वाल़े माल स़े इसततफ़ादा क़ी शिाइत......................... 703

ककिाय़े क़े मत
ु फ़रिक क मसाइल ................................................................................................................ 705

जर्जआला क़े अह्काम ............................................................................. 714

मज़
ु ािआ क़े अह्काम ............................................................................ 717

मस
ु ाकात औि मग
ु ािसा क़े अह्काम ........................................................ 723

वह अश्खास र्जो अपऩे माल में तसरूकफ़ नहीं कि सकत़े....................................................................... 728

वकालत क़े अह्काम ............................................................................. 730

कज़क क़े अह्काम .................................................................................. 734

हवाला द़े ऩे क़े अह्काम ......................................................................... 740

िहन क़े अह्काम .................................................................................. 743

946
ज़ाममन होऩे क़े अह्काम ....................................................................... 746

कफ़ालत क़े अह्काम............................................................................. 750

अमानत क़े अह्काम ............................................................................. 752

आरिया क़े अह्काम .............................................................................. 758

तनकाह क़े अह्काम ............................................................................... 762

तनकाह पढ़ऩे का तिीका ......................................................................................................................... 764

तनकाह क़ी शिाइत ............................................................................... 765

वह औितें जर्जन स़े तनकाह किना हिाम है ............................................................................................ 773

दाइमी अक़्द क़े अह्काम........................................................................................................................ 780

मअ
ु य्यन मद्
ु दत का तनकाह .................................................................................................................. 783

तनगाह डालऩे क़े अह्काम ...................................................................... 786

शादी बयाह क़े मख़्


ु तमलफ़ मसाइल ......................................................................................................... 789

दध
ू वपलाऩे क़े अह्काम ......................................................................... 795

दध
ू वपलाऩे स़े महिम िनऩे क़ी शिाइत ................................................................................................ 799

दध
ू वपलाऩे क़े आदाि ............................................................................................................................ 804

दध
ू वपलाऩे क़े मख़्
ु तमलफ़ मसाइल ........................................................................................................ 805

तलाक क़े अह्काम ................................................................................................................................. 807

तलाक क़ी इद्दत ................................................................................................................................... 812

वफ़ात क़ी इद्दत ................................................................................. 814

तलाक़े िाइन औि तलाक़े िर्ज ्ई ............................................................................................................. 816

947
रुर्जू किऩे क़े अह्काम ............................................................................................................................ 817

तलाक़े खल
ु अ ......................................................................................................................................... 819

तलाक़े मि
ु ाित ........................................................................................................................................ 821

तलाक क़े मख़्


ु तमलफ़ अह्काम ................................................................................................................ 822

गस्ि क़े अह्काम ................................................................................. 825

गुमशद
ु ा माल पाऩे क़े अह्काम ............................................................... 832

है वानात को मशकाि औि ज़बह किऩे क़े अह्काम ...................................... 839

है वानात को ज़बह किऩे का तिीका ........................................................................................................ 841

है वान को ज़बह किऩे क़ी शिाइत .......................................................................................................... 842

ऊाँट को नहि किऩे का तिीका ............................................................................................................... 845

है वानात को ज़बह किऩे क़े मस्


ु तहबिात................................................................................................. 846

है वानात क़े ज़बह किऩे क़े मकरूहात ..................................................................................................... 847

हचथयािों स़े मशकाि किऩे क़े अह्काम ................................................................................................... 848

मशकािी कुत्त़े स़े मशकाि किना ................................................................................................................ 851

मछली औि हटड्डी का मशकाि ............................................................................................................... 855

खाऩे पीऩे क़ी चीज़ों क़े अह्काम............................................................................................................ 857

खाना खाऩे क़े आदाि ........................................................................... 862

वह िातें र्जो खाना खात़े वक़्त मकरूह हैं .............................................................................................. 864

पानी पीऩे क़े आदाि .............................................................................................................................. 865

मन्नत औि अहद क़े अह्काम ............................................................................................................... 866

कसम खाऩे क़े अह्काम ........................................................................ 875

वक़्फ़ क़े अह्काम ................................................................................. 878


948
वसीयत क़े अह्काम.............................................................................. 886

मीिास क़े अह्काम ............................................................................... 899

पहल़े गिु ोह क़ी मीिास .......................................................................... 901

दस
ू ि़े गिु ोह क़ी मीिास............................................................................................................................ 904

तीसि़े गिु ोह क़ी मीिास .......................................................................................................................... 912

िीवी औि शौहि क़ी मीिास.................................................................................................................... 917

मीिास क़े मख़्


ु तमलफ़ मसाइल ................................................................................................................ 920

चन्द कफ़क़्ही इजस्तलाहात ...................................................................... 924

ि़ेहिीस्त ............................................................................................. 935

949

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