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Karmavikapa Purarpoosam 3 Pada
Karmavikapa Purarpoosam 3 Pada
Karmavikapa Purarpoosam 3 Pada
त्
तकथनम्
पुनर्वसुनक्षत्रस्य तृतीयचरणप्रायचित्तकथनम्
श्चि
॥ शिव उवाच ॥
भा० टी०--शिवजी कहते हैँ--हे देवि ! उजैन नगरी में एक नाई रहता था, वह अपने कर्म से भ्रष्ट था ओर
सदा खेती का काम किया करता था॥ १॥
पत्नी तस्य महादेवि परपुंसि रता सदा। कर्क नाम विख्याता दर्दुरा नाम नामतः ॥ २॥
भा० टी०--हे महादेवि ! उसकी स्त्री सदा परपुरुष से रमण करती थी, वह कर्क थी। उसका नाम दुर्दरा था॥
२॥
द्रव्यं सर्वं गृहीत्वा तु तां पुरीं च ततस्त्यजन्। सर्वं स्वर्णं व्ययीकृत्वा न दानं च कृतं क्रचित्॥ ५॥
भा० टी०-फिर संपूर्णं द्रव्य को ग्रहण कर उस पुरी को त्याग कर संपूर्णं सुवर्ण को खर्च कर दिया ओर
कुछ भी दान नहीं
किया
॥ ५॥ एकदा समये देवि नापितेन सह स्त्रिया । प्रयागे मकरे मासि मासमेकं निरन्तरम्॥ ६॥