Karmavikapa Purarpoosam 3 Pada

You might also like

Download as docx, pdf, or txt
Download as docx, pdf, or txt
You are on page 1of 1

॥ ३०॥

त्
तकथनम्
पुनर्वसुनक्षत्रस्य तृतीयचरणप्रायचित्तकथनम् ‌
श्चि

॥ शिव उवाच ॥

पुर्यामवन्तिकायां वै नापितो वसति प्रिये! । स्वकर्मणः परिष्टः कृषिकर्मरतः सदा ॥ १॥

भा० टी०--शिवजी कहते हैँ--हे देवि ! उजैन नगरी में एक नाई रहता था, वह अपने कर्म से भ्रष्ट था ओर
सदा खेती का काम किया करता था॥ १॥

पत्नी तस्य महादेवि परपुंसि रता सदा। कर्क नाम विख्याता दर्दुरा नाम नामतः ॥ २॥

भा० टी०--हे महादेवि ! उसकी स्त्री सदा परपुरुष से रमण करती थी, वह कर्क थी। उसका नाम दुर्दरा था॥
२॥

एकस्मिन्‌दिवसे देवि वैयो श्यो


धनसमन्वितः। स्वर्णकोटिं च संगृह्य निकटे तस्य चागतः ॥ २ ॥

भा० टी०--हे देवि ! एक दिन एक धनाय वैय श्य


करोड़ों रुपयों के सुवर्ण को ले कर उसके पास आया ॥ ३॥

नापितेन ततो देवि वैयो श्यो


धनसमन्वितः। अर्द्धरात्रे गते काले ततः खड्गेन वै हतः ॥ ४॥

भा० टी०-हे देवि! तब उस नाई ने धन से युक्त उस वैय श्य


को अर्द्ध रात्रि के समय तलवार से मार
दिया ॥ ४॥

द्रव्यं सर्वं गृहीत्वा तु तां पुरीं च ततस्त्यजन्‌। सर्वं स्वर्णं व्ययीकृत्वा न दानं च कृतं क्रचित्‌॥ ५॥

भा० टी०-फिर संपूर्णं द्रव्य को ग्रहण कर उस पुरी को त्याग कर संपूर्णं सुवर्ण को खर्च कर दिया ओर
कुछ भी दान नहीं
किया

॥ ५॥ एकदा समये देवि नापितेन सह स्त्रिया । प्रयागे मकरे मासि मासमेकं निरन्तरम्‌॥ ६॥

You might also like