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The Hidden Hindu Hindi Translation@VipBooksNovels
The Hidden Hindu Hindi Translation@VipBooksNovels
The Hidden Hindu Hindi Translation@VipBooksNovels
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10. पुरानी या या
11. मृत संजीवनी ve
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12. थम कोप
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13. गु प रवतन
14. अमर यो ा
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तीक
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एक िदन...िकसी-न-िकसी िदन आप लौटकर आएँग।े ve
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उनसे अपनी पहली मुलाकात मुझे हमेशा याद रहगी। उस समय आस-पास कमर नह थे, जो उनक िदखावे को
कद कर सक, न मीिडया था, जो उनक यवहार को सही-गलत बता सक। िफर भी उ ह ने मेरा वागत स ता
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से भरी सौ य मु कान क साथ िकया, और म भी उनक मोहक व िवन वभाव से मु ध होकर मु कराए िबना नह
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रह सका था।
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घर म पहने जाने वाले साधारण सूट म वह असाधारण मिहला िकसी भी िम व पड़ोसी क तरह ही िदख रही
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म था, िजसक हाथ ीस से सने थे। बाद म मुझे पता चला िक वह अपनी बाइक को ठीक करने म जुटा था।
ऐसे महा सफल लोग से े रत होने वाले मेर जैसे लोग क िलए यह िनराशाजनक लग सकता ह िक पहली
नजर म ऐसे लोग इतने असाधारण य लग रह थे? िफर भी, इस दंपती क िवन और सरल वभाव से आ त
होकर कछ ही देर म म पूरी तरह भूल गया िक म िकसक साथ था! िकसी को भी सहज थित म ले आने क
उनक जादुई मता से म हरान था। हर िदन उ ह लोग का इतना यार िमलता ह, िफर भी इस दंपती पर इसका
कोई नशा नह था और दोन उतने ही िवन , िवनीत और यावहा रक थे, िजतने िक वे लोग, िजनसे म आए िदन
िमलता रहता ।
म बात कर रहा प भूषण, प ी, मानद ले टनट कनल मह िसंह धोनी क , िज ह सब यार से ‘माही’
कहते ह। भ यता क उनक आभा को सा ी धोनी अपनी हसी और अपने भोलेपन से और भी बढ़ा रही थ , जो हर
मायने म उनक बेटर हाफ, उनक अधािगनी ह।
दोन का साथ सच म मन को मोह लेने वाला था, और म अपने साथ उनक वे याद लेकर आया, जो हमेशा मेर
साथ रहगी। सा ी और माही, आप दोन क उदारता क कारण मेरी िन ा िबना शत जीवन भर आपक ित बनी
रहगी।
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वैसा ही ह। उस व मुझ पर िव ास करने क िलए आपका शुि या!
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रहा ह!” पृ वी ने कहा।
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पृ वी को देखते ए वे िफर बोल , “िपछले कछ वष म मने कई अिव सनीय घटना और रह यमय चीज
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को देखा ह। कछ चीज ऐसी ह, िजनका िव ान क पास भी कोई जवाब नह ह और इसिलए, म यह िव ास करने
पर मजबूर िक ऐसे कछ स य और रह य ज र ह, जो मेर जैसे एक औसत म त क क समझ से बाहर ह।”
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आँख से आँसू प छते ए वे आगे बोल , “म एक मामूली य क तरह सामा य जीवन यतीत करना चाहती थी
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साँस ली और खुद को सँभालने क कोिशश क । पृ वी उ ह सँभलने का समय देते ए वहाँ चुपचाप खड़ा रहा।
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1.
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अ ात सफर
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यह गिमय क उन दुलभ िदन म से एक था, जब सूय का काश अपने अिधकतम तर पर नह था। नीला
आसमान और सुबह क हवा तरोताजा कर देने वाली थी। कवल एक हलीकॉ टर क आवाज उस शांितमय
वातावरण को भंग करने क िलए काफ थी। इस उ म नजार क बीच हलीकॉ टर म एक आदमी बेहोश और
बेखबर लेटा आ था। चार बंदूकधारी उस पर ऐसे आँख गड़ाए बैठ थे, मानो अनंत काल से उसक आँख खुलने
क ती ा कर रह ह । उस आदमी का चेहरा सफद रग से पुता आ था और उसक दाढ़ी–मूँछ असामा य प से
बढ़ी ई थ । उसक लंबे, काले व िबखर ए बाल भी उसे और रह यमय बना रह थे। 40 साल क उ क िलए
वह काफ जवान तीत हो रहा था। उसका चेहरा तराशा आ और उसक वचा आकषक व चमकदार थी,
िजसने उसक चार ओर एक सुंदरता क आभा बनाई ई थी। उसका शरीर हलीकॉ टर क विन पर िहचकोले खा
रहा था और वह जब भी िहलता, उसका शरीर हवा म राख क कण छोड़ता जाता। उसक बेहोशी उसक आसपास
क लोग को यह सोचने से नह रोक रही थी िक वह कौन ह? जो भी उसे देखता, वह िज ासु और मोिहत हो
उठता।
पायलट ने घोषणा क , “11.6755 िड ी उ र, 92.7626 िड ी पूव; 3 िमनट म रॉस ीप पर लिडग करगे।”
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रा ता-सा बनाते जा रह थे। ve
‘यही वह य ह!’ वीरभ ने सोचा।
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कदी ने यूनतम कपड़ पहने ए थे; कवल एक छोट और पतले लँगोट ने उसक िनचले भाग को ढका आ था।
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उसका पूरा शरीर भ म से पुता आ और एक ा क माला उसक गले म लटक ई थी। उसक उलझे ए
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बाल का आधा िह सा जूड़ म िलपटा आ जंग लगे लोह क ि शूल से िवभूिषत था। वीरभ इस जगह 21 लोग
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क समूह क साथ एक िस यो रटी चीफ क प म आया था, िजनम बंदूकधारी और गा स भी शािमल थे। वह वहाँ
एक िवशेष काय क िलए गया था। अपने सं दाय म सबसे बेहतरीन पु ष होने क कारण उसे दुिनया भर क िविभ
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संगठन, गु व सामािजक अिभयान क िलए बुलाते थे। िकतु यह अिभयान उन सबसे अलग था।
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वीरभ लगभग 6 फ ट लंबा था। उसने अपने जीवन क िपछले 40 वष म अ छा जीवन यतीत िकया था,
िजसका पया िह सा उसने सेना को समिपत िकया था। उसका चेहरा एक मामूली य क तरह था, कोई खास
िवशेषताएँ नह थ । उसक वचा साँवली और रग ट जैसा बाल का कट उसक वभाव को और कठोर बना
देता था। उसक दोन हाथ पर ताजे ज म क िनशान उसक ारा लड़ी गई लड़ाइय क गंभीरता को कट करते
थे। उसका स त व गठीला शरीर उसक काली ज स, सफद टी-शट और भूर रग क लेदर जैकट क नीचे काफ
प िदखाई दे रहा था। उसक आँख काले एिवएटर च मे से ढक ई थ । वह हमेशा अपनी िप तौल, जो
उसक कमर पर जैकट से ढक रहती थी, उसक बार म हर प र थित म सचेत रहता था।
वीरभ ने एक गाड को उस आदमी क आँख पर से प ी हटाने और उसक हाथ को मु करने का आदेश
िदया। उसने अपना च मा उतारा और तब उसक दा आँख क नीचे एक िनशान िदखाई पड़ा। वीरभ क गहरी
काली आँख उस आदमी पर िटक ई थ और वह कछ पल क िलए हरान खड़ा रहा।
वीरभ और उसका बॉस उस आदमी क ती ा कर रह थे; हालाँिक, वह ठीक से नह जानता था िक य ?
वह बस, यह जानता था िक िजस आदमी को वे खोज रह थे, वह िमल गया था और उससे पूछताछ क जानी थी;
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च मा भी पहना था। उनक गले म एक फ ता पड़ा आ था, िजसक िकनार उनक च मे से बँधे ए थे।
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डॉ. ीिनवासन क वेशभूषा हा या पद थी; लेिकन उनक आँख से अनुशासन झलकता था। उनका आचरण
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शीष अिधका रय को भी आदेश देने जैसा तीत होता था। वे अपने आसपास क लोग म उनसे िन न होने का भाव
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पैदा कर सकते थे। वे जब तक चुप रहते, तब तक ही हा या पद तीत होते। इस बात का आसानी से अंदाजा
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लगाया जा सकता था िक उ ह मजाक िब कल पसंद नह और वे अपने काम क ित अ यिधक समिपत रहने वाले
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य थे।
डॉ. ीिनवासन क पीछ डॉ. ब ा, एक गोर य खड़ थे। उ ह ने वीरभ और डॉ. ब ा का एक-दूसर से
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प रचय कराया। उन दोन ने एक-दूसर से हाथ िमलाया। वीरभ को डॉ. ीिनवासन और डॉ. ब ा सहकम तीत
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हो रह थे।
वीरभ को वे कछ अिधक स िच य नह लगे। अपने चेहर क हाव-भाव से वे उि न लग रह थे और
ऐसा लग रहा था, मानो वे यिथत ह । वे देखने म डॉ. ीिनवासन से भी अिधक पढ़-िलखे लग रह थे। उनक
आँख िकसी बुि जीवी क जैसी थ ।
डॉ. ब ा एक लंबे और लगभग 50 वष क उ क आदमी थे और वे िसख समुदाय का िह सा थे। उनक आँख
भूरी और चेहरा गोल-मटोल था। उ ह ने गहर लाल रग क शट और काली पतलून पहनी ई थी, जो उनक काले
चमड़ क जूत क साथ अ छी लग रही थी। उनक शरीर का यादातर मोटापा उनक पेट क चार ओर जमा आ
था। उनक दाढ़ी उनक मूँछ से मेल खाती ई एक अंदाज म कटी ई थी। उ ह ने अपने दाएँ हाथ म एक कड़ा
और बाएँ हाथ म रोमन सं या वाली एक उ क घड़ी पहनी ई थी।
“ या यह वही ह?” डॉ. ीिनवासन ने अपनी भारी आवाज और दि ण भारतीय लहजे म पूछा।
“आऊनो, सर!” वीरभ ने तेलुगू म जवाब िदया और तुरत अपने आप को ठीक करते ए कहा, “मेरा मतलब,
जी सर।”
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र क ने आदमी को ख चकर बीच म कस पर धकला और कस पर लगी हथकिड़य से बाँध िदया। उसक
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कमर, िसर और पैर को भी चमड़ क प ी क सहार कस से बाँध िदया गया। िफलहाल उसक उगिलयाँ ही
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उसक शरीर का एकमा िहलने वाला िह सा थ ।
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इस दौरान वीरभ चुपचाप बैठा कमर को देख रहा था। उसे अहसास था िक न कवल बंदी, ब क कमर म
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सकता था िक कोई गीले कपड़ से उसक चेहर पर लगे सफद रग को साफ कर रहा था। उसने िकसी को उसक
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“उ री भारत क सड़क पर कई अघोरी साथ घूमते, हाथ म खोपड़ी का कटोरा िलये देखे जा सकते ह। वे
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कभी भी अपने बाल को काटने क ज रत नह समझते। वे अपने शरीर का इ तेमाल कर भय और पूव
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धारणा पर िवजय पाने क िलए स य एवं भेदभावपूण पथ पर चलने और परम अव था को ा करने क
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करते आ रह ह।
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“अघो रय क इितहास को देखा जाए तो पता चलता ह िक सव थम अघोरी, िजसने भिव य क अघो रय क
जीवन क न व रखी, उसका नाम ‘क ना राम’ था। माना जाता ह िक वह 150 साल तक जीिवत रहा और 18व
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हो सकता ह िक वे मृत मानव मांस खाते ह और उसे खाने क िलए िकसी को मारते नह ह। स े अघोरी भोले,
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यार व दयालु होते ह और हमेशा िमलने पर आपको आशीवाद देते ह। वे अपना अिधकतर समय यान करने म
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और ‘ओ नमः िशवाय’ का जाप करने म िबताते ह।”
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2.
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अिनण त आरभ
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दरवाजा खुला और एक मिहला अंदर आ । उ ह ने टीम को अपना प रचय देते ए अपना नाम डॉ. शािह ता
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यिद वह आदमी अपने आप को मु करने क या िच ाने क कोिशश करता तो डॉ. शािह ता को आ य
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नह होता, य िक ऐसा उ ह ने इससे पहले सभी मामल म अनुभव िकया ह; िकतु इस आदमी क धैय ने उ ह
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याकल कर िदया और उ ह ने डॉ. ीिनवासन क ओर देखा। आदमी ने भी अपना िसर डॉ. शािह ता क नजर क
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िदशा म घुमाया। डॉ. ीिनवासन क प झलक देखने क िलए उसे थोड़ा आगे तक देखना पड़ा। जैसे ही उसने
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आदमी डॉ. ीिनवासन को देखता रहा, जैसे वह उ ह लंबे समय क बाद देख रहा हो!
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िव ान से पर ह।” और अपनी पु तक पढ़ने लगा। ve
अिभलाष ने अपने जीवन क 30 साल िहदू पौरािणक ंथ को पढ़ने म गुजार िदए थे और इसिलए उसे इस े
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म अपार ान था। अंिबकापुर नामक एक छोट से शहर म, राजपुरोिहत क, एक ा ण प रवार का वंशज होने क
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कारण उसे अंधिव ासी लोग ारा देवता क तरह पूजा जाता था। स मान और ित ा क उ तम प क
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साथ संप वह अपने कोण म गव से संरि त था। अपनी गलितय क िलए दूसर क आलोचना करना उसक
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वभाव म था।
वह 5 फ ट 8 इच लंबा, थुलथुले शरीर क साथ, काले रग का य था। उसने एक तंग सफद करता और
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नीली डिनम ज स पहनी ई थी, िजसम से िनकलती ई अपनी त द से वह अनजान था। वह पौरािणक कथा एवं
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अंधिव ास का क र अनुयायी था और यह उसक पहनावे से साफ िदखाई दे रहा था। उसने िविभ योजन क
िलए अनेक र न से जड़ी कई अँगूिठयाँ पहनी ई थ । िबना पूछ वह कभी भी, िकसी भी सम या म अपनी
अँगूिठय या ह क बार म िट पणी देने से नह चूकता था। उसक बाएँ हाथ क कलाई पर एक र ा सू बँधा था
और गले म ा क माला थी। उसक माथे पर ‘U’ आकार क चंदन का ितलक लगा आ था और पैर म
को हापुरी च पल थ । उसक कधे पर जूट से बना एक थैला टगा था, िजसम िहदू मं पर आधा रत कछ पु तक
थ।
“जो कछ भी याद ह, हम बताओ, शा ीजी।” मु े पर वापस आते ए डॉ. शािह ता बोल ।
ओ शा ी क चेहर पर अनेक भाव, जैसे-जैसे वह बोलता गया, बदलते गए—मु कान, शांित, िचंता और डर।
“मुझे बंदा बहादुर याद ह।” ओ शा ी आँख बंद िकए ही बड़बड़ाया।
डॉ. ब ा उस नाम को सुनकर आ यचिकत रह गए, मानो वह भी बंदा बहादुर को जानते ह !
“वह कौन ह?” अिभलाष ने पूछा।
“मेर जनरल।” शा ी ने कहा।
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लेिकन वह इस बार म िब कल भी परशान नह थी। िबना िकसी उपािध क ही वह िनपुण थी। एल.एस.डी. एक
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सुंदर लड़क थी। िश ाचार म देसी एवं अप र कत थी, लेिकन अपने काम म चतुर और बुि मान थी। अपने काम
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क अित र वह सभी चीज क ित लापरवाह थी।
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एल.एस.डी. वभाव से बेिफ थी। उसक िज ा शायद ही कभी उसक िनयं ण म होती थी। उसका चेहरा
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आसानी से पढ़ा जा सकता था। कोई भी उसे देखकर उसक मन म चल रह िवचार को जान सकता था।
एल.एस.डी. एक छोट शहर से यहाँ आई थी, िजसक वजह से उसका एक िवशेष कार का अ भािवत लहजा
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था।
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उसक काले घुँघराले बाल थे। उसक आँख बादामी रग क थ । उसने ए सेसरीज क साथ फल वाली सफद
रग क स पहनी ई थी और एक काला मोटा च मा, जो उसे काफ मॉडन लुक दे रहा था और पैर म चमकदार
ऊची ही स उसक लंबे व सुडौल पैर को और सुंदर बना रही थी। उसने अपनी कलाई म अलग-अलग रग क
ेसलेट पहने थे और गले म एक क हाड़ी क आकार का पडट पहना था।
“संजय! गावलगन का बेटा।” ओ शा ी ने कहा।
“और तुम उसे कसे जानते हो?” शािह ता ने पूछा।
“वह संजय था, िजसने ह तनापुर क राजा धृतरा का यु क दौरान मागदशन िकया था।” ओ ने जवाब
िदया।
वह आगे बोला, “म जब ह तनापुर का धानमं ी था, तब उससे िमला था। मेरा नाम िवदुर था।”
अिभलाष एकदम से नाम क बार म सोचने लगा और धीर से बोला, “मने ये नाम पहले सुने ह।”
“खैर!” शािह ता आगे बढ़ना चाहती थ ।
“आपको समझ नह आ रहा ह, यह महाभारत काल म जीिवत होने का दावा कर रहा ह।” अिभलाष तेजी से
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या ीव ित ित जरा प रतजय ती
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रोगा श व इव हर त देह ।
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आयु पर वतिभ घटािदवा भः
लोक तथा यिहतमाचरतीित िच ॥
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3.
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असंब खुलासा
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“मुझे नह समझ आ रहा ह िक यह आदमी या बोल रहा ह?” शािह ता उ ेिजत होकर िच ा ।
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ओ शा ी एक पल क िलए चुप रहा और िफर िबना िकसी चेतावनी क वहाँ मौजूद लोग क धारणा क
िवपरीत अचानक वह जाग उठा।
शािह ता, जो ओ शा ी क यादा पास बैठी ई थ , च क उठ और उससे दूरी बनाने क कोिशश म कस पर
से िगर पड़ । कमर म अ य सभी लोग भी हरान हो गए। शािह ता ने सोचा िक ‘यह कसे संभव ह? अभी एक घंटा
भी नह आ ह, यह एकदम से होश म कसे आ गया?’ उनक 300 से अिधक मरीज क अनुभव म आज तक
कोई आदमी िबना शारी रक परशानी क इतनी ज दी स मोिहत िन ा अव था से नह उठा था।
डॉ. ब ा भी उतने ही त ध थे। दवा क बार म उनका ान यह कहता था िक मरीज को खुराक िदए जाने क
8 घंट से पहले उसे होश नह आ सकता। इसने उनक ारा अ ययन और अ यास िकए सभी मापदंड क
अवहलना कर दी थी। एल.एस.डी. भी अपना भय िछपा नह पा रही थी। उनम से िकसी को भी समझ नह आ रहा
था िक या चल रहा ह!
ओ शा ी िबना मु होने क कोिशश िकए सभी को देख रहा था। उसने शांितमय तरीक से पूछा, “म यहाँ
य लाया गया ? तुम लोग को या चािहए?” वह िनराश लग रहा था।
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ओम ने शु म िवरोध करने का यास िकया और चीखते ए बोला, “म िमडाजोलमा, लुनाइ ाजेपाम,
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बािब ूर स और अमोबािबटल से ितरि त । यह आपक सहायता यादा देर तक नह कर सकता।” ये ओ
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क बेहोश होने से पहले आिखरी श द थे। उसक तेज आवाज सुनकर दो र क उसे उसक जगह पर थामे रखने क
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िलए आ गए।
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वे आराम से उसक सामने बैठ और उसक आँख म गहराई से देखने लग । शािह ता क सुंदर आँख म िकसी
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भी य को स मोिहत करने का जादू और श थी। वे िबना पलक झपकाए मधुर आवाज म बोलती थ । जब
उ ह ने ओ शा ी क कध को छआ, वह एकदम ढीला होकर एक तरफ लुढ़क गया।
डॉ. ीिनवासन क मन म वे अजीब श द दज हो गए—‘म जानता , तुम कौन हो!’ जो ओ क िलए िब कल
नह कहना चािहए था। डॉ. ीिनवासन ने आ य से सोचा, ‘यह कसे?’
“ या यह िफर से पूछताछ क िलए तैयार ह?” ीिनवासन ने पूछा।
डॉ. ब ा ने एक उपकरण म कछ पढ़कर कहा, “अभी नह , सर।”
“वह या बड़बड़ा रहा था?” एल.एस.डी. ने खी आवाज म पूछा।
“सं ...कत।” प रमल ने कहा।
प रमल 35 वष य य था, जो महारा क शेतफल नामक गाँव से आया था।
वह वभाव से अंतमुखी था। उसने भारतीय इितहास म पी-एच.डी. क थी। उसका अपने िवषय म ान
असीिमत था, लेिकन अपनी बात रखने क िलए उसम आ मिव ास क कमी थी। उसक आ मिव ास म कमी
का कारण था उसका हकलाना, जो उसक िलए दूसर क साथ तालमेल बैठाने म सबसे बड़ी बाधा था और
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दोहराते ए सुना।” ve
अिभलाष ने जवाब िदया, “सुषेण।”
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“हाँ, वही नाम। यह या ह, बताओ मुझे।” एल.एस.डी. ने आ ह िकया। प रमल भी बातचीत म शािमल हो
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गया।
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“सुषेण ब त ही कम इ तेमाल िकया जाने वाला नाम ह। मेरी जानकारी क अनुसार, सुषेण ‘रामायण’ म एक
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वै का नाम था, िजसने भगवान ीराम क छोट भाई ल मण क लंका क युवराज मेघनाद क साथ यु म घायल
होने पर संजीवनी नामक जड़ी-बूटी, जो ब त मु कल से िहमालय पवत पर पाई जाती ह, वह मँगवाई थी। भगवान
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राम ने हनुमानजी को सुषेण क सलाह क अनुसार, संजीवनी बूटी लाने का आदेश िदया था। हनुमानजी िहमालय
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पवत पर प चने क बाद संजीवनी बूटी एवं अ य जड़ी-बूिटय म अंतर नह कर पाए और इसिलए उ ह ने पूरा
पवत ही अपने कध पर उठाकर क याकमारी क ओर उड़ान भरी, तािक सुषेण खुद ही चयन कर सक।”
“हाँ, मने वह पौरािणक त वीर देखी ह, िजसम हनुमानजी पहाड़ को लेकर उड़ रह ह। या तुम उसी क बात
कर रह हो?”
“हाँ, लेिकन मुझे रामायण म सुषेण क अंत का कोई उ ेख याद नह ह।”
“इस आदमी क बार म सब कछ असाधारण ह। मने इससे पहले जो कछ भी देखा ह, वह इसक करीब भी नह
था।” शािह ता ने कहा। वे अपने िवचार म खोई ई थ ।
अपने मन म आए िवचार को रोकते ए वे डॉ. ीिनवासन क ओर मुड़ और िवन ता से उनसे पूछा, “सर,
हम कम-से-कम प प से पता होना चािहए िक हम िकस उ े य से जाँच कर रह ह?”
सब ने जवाब क उ मीद करते ए डॉ. ीिनवासन क ओर देखा।
“तुम यहाँ इसी काम क िलए हो।” डॉ. ीिनवासन ने कहा, “इसिलए, अपने काम पर यान दो और िजतना हो
सक, उतना उससे बात जानने क कोिशश करो, तािक हम और अ छ से जान सक िक हम या कर रह ह!” डॉ.
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पाँच घंट तक सुला देती ह। या तुम जानते हो? पहली खुराक से वह बेहोश नह आ था। िफर मने उसे सामा य
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से दोगुनी खुराक दी। वह थोड़ी देर क िलए तं ा म आया, लेिकन िफर भी होश म था। मने उसे उतनी ही खुराक
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दोबारा दी। ऐसी खुराक एक य को मारने क िलए काफ ह और वह कवल एक घंट क अंदर ही िफर होश म
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“यह मेरी जानकारी और यो यता पर एक निच ह। मुझे यह पता लगाना होगा िक यह कसे आ?” ढ़ता
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से डॉ. ब ा ने कहा।
जो कछ भी डॉ. ब ा ने कहा, वह प रमल क समझ से बाहर था। इसिलए उससे बचने क िलए उसने पूछा,
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“हाँ, मने बताया। शायद डॉ. ीिनवासन को ओ शा ी ऐसी चीज का ान ह, िजनक बार म हम कछ नह
जानते। जब ओ शा ी ने डॉ. ीिनवासन को देखा तो उसने उ ह उनक उपनाम से पुकारा, ‘िच ा’!”
“उसे कसे पता चला?” प रमल हरान था।
“यही तो बात ह। उसे यह सब कसे पता हो सकता ह?”
“एक य , जो डॉ. ीिनवासन का उपनाम जानता ह और अपना खुद का नाम न जानने का दावा करता ह!”
“ या तुम िकसी िमशन पर हो?” डॉ. शािह ता दोबारा चौकस होकर बैठ ग ।
“हाँ।” ओ शा ी ने अपना िसर िहलाते ए जवाब िदया।
सभी क चेहर का रग उड़ गया।
डॉ. ीिनवासन क म त क क रखाएँ उनक उलझन को कट कर रही थ ।
एक आतंक से पूछताछ करने क बार म सोचकर ही, िजसे इतना मह व िदया जा रहा था िक अलग-अलग
े क सव े लोग को इस पृथ सुिवधा क म एक साथ लाया गया था, एल.एस.डी. तनाव त हो गई।
एक बार क िलए डॉ. शािह ता भी भयभीत हो गई थ ।
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थे। डॉ. ीिनवासन िकसी से फोन पर बात कर रह थे। उ ह ने शािह ता का चेहरा देखते ही फोन रख िदया और
पूछा, “ या आ?” ve
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“मेर िबना िकसी न क ही इसने जवाब िदया। भला िकसने इससे एक आतंकवादी होने क बार म पूछा?”
शािह ता ने हरान और हताश होकर टीम से पूछा।
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“म प रमल से उसक आतंक होने क संभावना क बार म बात कर रही थी; लेिकन मने ब त धीर से बोला
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डॉ. ीिनवासन क फोन क घंटी बजी। उ ह ने फोन को अपनी जेब से िनकाला और कॉलर का नाम देखकर
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वह बेचैन हो गए।
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“आप सभी थोड़ी देर आराम क िजए और उसक बाद अगले सेशन क तैयारी कर।” फोन उठाने से पहले डॉ.
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डॉ. ीिनवासन क जाते ही वातावरण म कछ सहजता आ गई। एल.एस.डी. क चेहर पर एकदम से एक मु कान
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आ गई थी।
प रमल ने अिभलाष क ओर देखा और िफर एल.एस.डी. क ओर। डॉ. ब ा परशान थे, य िक उनक पास
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वैसे ही, डॉ. शािह ता क नजर ओ शा ी पर थी, जो उ सुकता से अपने आसपास क चीज और लोग को
देख रहा था। जैसे ही उसने शािह ता क ओर देखा, उ ह ने अपनी नजर मोड़ ल ।
उसी समय िस यो रटी चीफ वीरभ कमर म दो अ य गा स क साथ आया। वह भारी आवाज म बोला, “सभी
लोग कपया इस तरफ आएँ।” और अपने हाथ से ार क ओर इशारा िकया। सभी को कछ पल का समय लगा
बाहर िनकलने क िलए। वीरभ और ओ शा ी को 1 घंट क िलए कमर म अकले रहना था।
दूसरा कमरा जाँचकता ारा य त था। डॉ. तेज अपने प रवार से अपनी मातृभाषा म बात कर रह थे। प रमल,
एल.एस.डी. और अिभलाष आराम से लकड़ी क एक मेज क चार ओर बैठ ए थे। डॉ. शािह ता ने कछ समय
क िलए अकले रहना ही ठीक समझा। वे एक दूसरी मेज क पास बैठकर अपनी डायरी म कछ िलख रही थ ।
प रमल अपने श द क साथ संघष कर रहा था, एल.एस.डी. अपने उपकरण क साथ और अिभलाष अपने गव
म डबा आ था। वे अपने और अपने पेशे क बार म बात कर रह थे।
“आप भी हमार साथ आइए न, डॉ. शािह ता? चिलए, एक-दूसर को थोड़ा जाना जाए।” एल.एस.डी. ने डॉ.
शािह ता को आमंि त करते ए कहा।
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कौन ह, या कर रह ह आिद, मानो उसक मन म उसे पहले से ही पता हो िक वह एक िदन पकड़ा जाएगा।”
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“शा...शायद उसने यह पहले भी अनुभव िकया हो, शा...शायद उसे पता हो िक हम क... या ढढ़ रह ह!”
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प रमल ने ताव रखा।
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“वह मेर ारा िकए गए स मोहन िव ा क जादू को िबना िकसी पूव संकत क तोड़ देता ह। यह एक तेज
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“हम भिव य क िलए उसे रकॉड करना चािहए।” एल.एस.डी. ने सुझाव िदया।
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“ या? ह...हम पहले से ही रकॉ...कॉड नह कर रह ह या?” प रमल क आँख म आ य साफ िदखाई दे
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रहा था।
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गए तथा कछ ही पल म सब लोग अपने थान पर बैठ गए। एल.एस.डी. उ साह क साथ चहक रही थी, य िक
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आिखरकार उसे कछ काम करने क िलए िदया गया था। अिभलाष असमंजस क भाव से ओ शा ी को एकटक
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देख रहा था।
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ओ शा ी भी अिभलाष को घूर रहा था। डॉ. ब ा दूसर सेशन क िलए तैयार थे। अचानक उ ह याद आया िक
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वे कछ भूल गए ह।
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डॉ. ीिनवासन वापस अंदर आ गए और टीम क सभी सािथय का िनरी ण करते ए उ ह ने देखा िक डॉ.
शािह ता वहाँ मौजूद नह थ ।
“अिभलाष!” डॉ. ीिनवासन ने उसे पुकारा।
“डॉ. शािह ता को ढढ़कर यहाँ ले आओ।”
अिभलाष िसर िहलाते ए अ स ता क साथ यह सोचते ए िक ‘म ही य ?’ सीधे दरवाजे क ओर चला
गया। वह जानता था िक वह मिहला कहाँ िमलेगी! जैसी िक उसे उ मीद थी, वे अगले कमर म बैठी ई थ । वे
यान से अपने नो स का अ ययन कर रही थ ।
“आप अब भी यह ह?” उसने अिन छा से िबना िझझकते ए कहा।
“म बस, अपने ारा तैयार िकए गए नो स पढ़ रही थी। यह शायद हमारी सहायता...”
“डॉ. ीिनवासन आपको बुला रह ह।” अिभलाष ने उ ह टोकते ए कहा।
शािह ता ने ‘हाँ’ म िसर िहलाया।
डॉ. शािह ता और अिभलाष साथ चलने लगे। लैब म वेश करने से ठीक पहले शािह ता ने ढ़ता क साथ
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“िच ा, कपया ऐसा न कर। आप मुझसे जो भी पूछोगे, म उसम सहयोग करने क िलए तैयार ।” ओ शा ी
ने िवनती क । उसक नजर डॉ. ीिनवासन क ओर इशारा करते ए छत क ओर िटक ई थी। डॉ. ीिनवासन ने
डॉ. शािह ता और डॉ. ब ा क ओर देखा। उन दोन क चेहर ने भी इसी बात को य िकया।
“कपया शु कर।” डॉ. ीिनवासन ने असहमित जताते ए नाराजगी क साथ आदेश िदया। उनक चेहर पर
‘िच ा’ श द सुनकर झुँझलाहट प प से िदख रही थी।
ओ को िफर से दवा देकर दोबारा पूछताछ शु क गई।
पहला सवाल प रमल क िलए यान देने और उसे दूसर को उसका मतलब समझाने क िलए था।
“तुमने िव णु गु क प म या सलाह दी थी?” शािह ता ने बेहोश ओ से पूछा। ओ ने सं कत का ोक
दोहराया—
या ीव ित ित जरा प रतजय ती
रोगा श व इव हर त देह ।
आयु पर वतिभ घटािदवा भः
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“सुभाष चं बोस क ।” ve
सभी सहकिमय ने आ य से एक-दूसर क ओर देखा। शािह ता नह जानती थ िक वे आगे या पूछ या
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कह? ‘यह ब त अजीब होता जा रहा ह’, ऐसा उ ह ने सोचा। आिखर म उ ह ने एक लंबी साँस ली और आगे
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गुरशील िसंह खु र एवं सुवण ताप र ी ताकत और बहादुरी क वर म बोले गए थे। बंिकमचं च वत
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बंगाली तरीक से, कबीर और सुषेण शांित क लहर क साथ बोले गए थे।
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उस कमर म हर कोई उसक वाभािवक और ुिट-रिहत िति या से अचंिभत था। यहाँ तक िक सबसे अ छ
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शािह ता ने तनाव दशाते ए अपना िसर पकड़ िलया। डॉ. ीिनवासन भी पहली बार हरान थे। एल.एस.डी. ने
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ओ क ारा बोले गए सभी नाम को िलख िलया था। प रमल शािह ता ारा िलखे गए नो स को पढ़ रहा था।
प रमल क मन म अचानक कछ आया और वह डॉ. ब ा क पास गया। इस दौरान ओ अ -मू छत अव था म
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“स...सर, जब ओ ने िव...िव णु गु का नाम िलया था, मुझे िव ास था िक वह 300 ईसा पूव क समय क
बात कर रहा ह; य िक िव णु गु चाण य का असली नाम था। औ...और वह चं गु मौय का मु य सलाहकार
था। आप मुझे पा...पागल समझ सकते ह, लेिकन...” प रमल ने अपने सामा य अिन त वर म कहा। लेिकन
उसे बीच म ही रोकते ए डॉ. ब ा ने कहा, “नह प रमल, म तु ह पागल नह समझता ; ब क यिद यह वा तव
म चाण य क बार म बात कर रहा ह तो यह उसी बंदा बहादुर क बार म बात कर रहा था, िजसे मने सोचा था,
िकतु िव ास नह िकया। मुझे बंदा बहादुर क बार म भी कछ पु करने क आव यकता ह। मुझे थोड़ा समय
दो।” डॉ. ब ा ने फोन पर कॉल करने क िलए मा माँगते ए कहा।
एल.एस.डी. प रमल क पास आई। वह ब त उ सािहत लग रही थी।
“मने तु हारी बातचीत सुन ली थी। 300 ईसा पूव, मतलब 2317 साल पहले। ह ना?” एल.एस.डी. हवा म
िहसाब लगाती ई बोली।
“ या यह संभव ह िक वह समय म आगे या पीछ जा सकता ह?” एल.एस.डी. क उ ेिजत अनुमान क कारण
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जब डॉ. ब ा ने दूसरी आवाज सुनी तो उ ह ने पीछ मुड़कर देखा और वे तुरत समझ गए िक वह िकसने बोला था।
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वे ओ को सभी सवाल क जवाब, जो वे अपनी माँ से पंजाबी म पूछ रह थे, देते देख च क उठ; य िक ओ
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उनका जवाब अ -मू छत अव था म ऐसे दे रहा था, जैसे वे सवाल उससे िकए गए ह ! यह असाधारण था। डॉ.
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ब ा क पैर डगमगा रह थे, य िक जो कछ भी हो रहा था, वे उसक या या करने म िवफल थे। वे पहले से ही
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“उ ा नू मुगल बादशाह फ खिसयर ने मरवाया सी।” (उ ह मुगल बादशाह, फ खिसयर ारा मरवाया गया
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थ । एक घंटा पूरा होने को आया था और जैसी िक डॉ. ब ा को उ मीद थी, ओ शा ी ने िफर से होश म आने
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का संकत िदया। सेशन ख म हो चुका था। शाम होने वाली थी। कछ भी योजना क अनुसार नह आ और उनक
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पुराने सवाल क जगह अब नए सवाल खड़ हो गए थे। इनम से अिधकतर सवाल क जवाब उन लोग क पास
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डॉ. ीिनवासन छोट अंतराल क घोषणा करते ए कमर से बाहर िनकल गए।
डॉ. ब ा ने डॉ. शािह ता को दरवाजे क पास बुलाते ए कहा, “आप मुझसे लॉबी क आिखरी छोर पर
िमिलए।”
“मुझे लगता ह, हम सबको िमलना चािहए।” शािह ता ने उसी आशंका से जवाब िदया।
एल.एस.डी. ने एकदम से आकर कहा, “सर, मुझे कछ िमला ह।”
“यहाँ नह , हमार साथ आओ।” डॉ. ब ा यह कहते ए उसे अपने साथ लेकर चले गए।
“म बाक सबको बुलाकर लाती ।” डॉ. शािह ता ने कहा।
सभी क से बाहर चले गए और वीरभ गा स क साथ ओ शा ी पर नजर रखने अंदर आ गया।
लॉबी क आिखरी छोर पर प चकर प रमल ने सबसे पहले बात शु करते ए कहा, “वह अलग-अलग
स...सिदय का िज नह क...कर रहा ह। वह अलग-अलग यु...युग क बात कर रहा ह। ऐसा क...कसे हो
सकता ह?”
डॉ. शािह ता ने कहा, “यह आदमी मेरी समझ म नह आता। वह कहता ह िक उसका नाम ओ शा ी ह;
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क गई थी। वे शेयर मधुकर राव क िपता वकट रम ा राव क ारा खरीदे गए थे। वकट रम ा राव क मौजूदा
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खात पर भी ओ शा ी क फोटो ह। ओ शा ी क उ 40 साल ह और मधुकर राव क िपता क मौत भी
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सरकारी रकॉड क अनुसार 40 वष क उ म हो गई थी। मने उसक ारा बताए गए सभी नाम क िपता संबंधी
जानकारी को देखा ह।
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“लॉकर क बात कर तो गुरशील िसंह खु र क नाम से, पंजाब म, पंजाब नेशनल बक का एक लॉकर ह।
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कोई पुिलस रकॉड नह ह और उनका चेहरा भी ओ शा ी क चेहर से मेल खाता ह। वह भारत-पािक तान क
बॉडर पर पकड़ा गया था। वह उन लोग म से एक ह, जो कभी पािक तान क जेल म कद थे। ये सभी नाम
ित त सं थान और िव िव ालय से िशि त ह। अिधरयन एक डॉ टर ह। बी.सी. च वत ने पे रस क या ा
क ह। लेिकन मुझे िव णु गु क बार म कछ नह पता चला और न ही चं गु उसक ारा बताए गए नाम म से
िकसी से जुड़ा ह। यही हाल िवदुर और संजय का भी ह।” एल.एस.डी. को अपनी कला पर गव था।
इससे पहले िक एल.एस.डी. आगे बोल पाती, डॉ. ब ा ने िवचार करते ए पूछा, “उनक माँ क बार म कोई
जानकारी?”
“जब वे ब त छोट थे, तब उनक माता क मृ यु हो गई थी। उनक कोई त वीर नह िमल सक । इन सभी
नाम को कवल उनक िपता ने पाला ह।”
“यह एक संयोग नह हो सकता।” डॉ. शािह ता ने कहा।
‘उसने कहा था िक उसक सभी पहचान वा तिवक ह।’ शािह ता ने िवचार िकया।
“ या तु ह सुभाष चं बोस और इन सभी लोग क बीच कोई संबंध िमला?” डॉ. ब ा ने पूछा।
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और सा ा यवादी जापान से सहायता ली थी, िजसने एक उलझन भरी िवरासत दी।
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“माननीय नेताजी 1920 और 1930 क दशक म इिडयन नेशनल कां ेस क नेता थे और वे 1938 एवं 1939 म
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कां ेस क अ य बने; लेिकन महा मा गांधी और कां ेस क उ अिधका रय से मतभेद क कारण उ ह कां ेस क
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नेतृ व से िन कािसत कर िदया गया था। स 1940 म भारत से बाहर जाने से पहले उ ह अं ेज ारा घर म
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“माना जाता ह िक सुभाष चं बोस क मृ यु अग त 1945 म ताइहोक फॉरमोसा म (िजसे अब ताइपेइ, ताइवान
कहा जाता ह) एक िवमान दुघटना म ई थी। कई बुि जीिवय क राय म, सुभाष चं बोस क मृ यु थड िड ी
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िफर भी लोग दूसर को नुकसान प चाने क बार म सोचते ह;
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वे अपने णभंगुर होने का अहसास नह करते,
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यह वा तव म आ य का िवषय ह। यह उस ोक का सटीक अथ ह।”
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िजसक पास हमार सार सवाल क जवाब ह और समय आ गया ह िक हम पता चले िक हम यहाँ िकस उ े य से
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आए ह? म डॉ. ीिनवासन क पास जा रहा । या तो म जवाब क साथ वापस आऊगा या इस जगह को अभी-
क-अभी छोड़कर चला जाऊगा। या कोई मेरा साथ देगा?” डॉ. ब ा ने पूछा।
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खुले सू
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लैब म एक बार िफर से वीरभ और ओ शा ी एक-दूसर क साथ रहने क िलए िववश थे। वीरभ को ब त
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से सवाल ने घेर रखा था; लेिकन वह ओ से कछ नह कह सकता था। उसने सोचा िक एक छोटी सी गलती भी
उसक बेदखली का कारण बन सकती ह। इसिलए, वह जान-बूझकर अपनी बेचैनी को सह रहा था।
जब से वीरभ अंदर आया था, तब से ही ओ उसे यान से देख रहा था।
“तुम ठीक तो हो?” ओ ने िचंता य करते ए कहा।
“हाँ! य ?” वीरभ अपने याल से बाहर िनकलता आ बोला।
“तुम तनाव म लग रह हो।” ओ ने कहा।
वीरभ दुिवधा म था िक जो बात उसे परशान कर रही ह, उसे कह या ऐसे ही जाने दे! कछ पल सोचते ए वह
चुप रहा; िकतु उसक उ सुकता बाक सब चीज पर भारी थी।
और इसिलए उसने पूछा, “तुम एक क म बैठ हो। तुम कसे जान सकते हो िक बा रश होने वाली थी, वह भी
मौसम म बदलाव आने से कई घंट पहले? इसक अलावा, तुमने हवा क गित का िहसाब लगाया, गीली िम ी क
सुगंध को सूँघ िलया और तापमान म िगरावट को भी महसूस कर िलया था। इस क म िब कल हवा नह ह। यह
तुमने कसे िकया?”
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वीरभ ारा सीखे गए सभी तक और िव ेषण से पर ओ ने िव तार क साथ समझाया। वीरभ को और ब त
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कछ सुलझाना था, इसिलए उसने अपनी बुि न लगाते ए अगला न िकया—
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“तुम एक दि ण भारतीय नह हो, िफर भी तुम इतनी सहजता से ुिट-रिहत तेलुगू कसे बोल लेते हो?”
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दोन हरान होकर एक-दूसर को देखने लगे। इससे पहले िक कोई कछ बोल पाता, डॉ. ीिनवासन ने क म
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वेश िकया। डॉ. ब ा भी डॉ. ीिनवासन क पीछ उसी समय वहाँ प च गए। वीरभ ने पहले डॉ. ीिनवासन
क ओर देखा और िफर डॉ. ब ा क ओर। डॉ. ब ा ने घमंड क साथ ओ शा ी को घूरा, िफर डॉ.
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डॉ. ीिनवासन अपमािनत महसूस करते ए एकदम से खड़ होकर बोले, “नह , यहाँ तु हार पास कोई अिधकार
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नह ह। तु हार सभी अिधकार मेर पास सुरि त ह।”
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“सर, कपया शांत हो जाइए।” डॉ. शािह ता ने डॉ. ीिनवासन को रोकते ए आ ह िकया। उ ह ने कहा, “ओम
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शािह ता क श द को सुनकर डॉ. ीिनवासन थोड़ा शांत ए और िफर बोले, “आप म से िकसी को भी डरने
क कोई आव यकता नह ह। आप सभी यहाँ सुरि त ह।” डॉ. ीिनवासन क पीछ खड़ वीरभ ने भी सहमित म
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िसर िहलाया।
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“हम भले ही यहाँ सुरि त ह , लेिकन यिद वह एक आतंकवादी ह तो शायद हमारा प रवार सुरि त न हो।” डॉ.
ब ा ने अपनी िचंता य करते ए कहा।
“वह एक आतंकवादी नह ह!” डॉ. ीिनवासन िफर से ोिधत हो उठ और अपनी भारी आवाज म िच ाए।
उनक आवाज दूर तक गूँजती ई तीत ई।
“आप इतने िव ास क साथ कसे कह सकते ह?” डॉ. ब ा िकसी क भी सनक और नखर क कारण पीछ
नह हटने वाले थे, इस समय तो िब कल भी नह ।
“मुझे पता ह।” डॉ. ीिनवासन ने हाथ को अपनी छाती क सामने बाँधते ए अपने आप को िनयंि त करते ए
कहा।
“आप और या जानते ह?” डॉ. ब ा ने पूछा। वह भी बदले म वही चीज कर रह थे।
डॉ. ीिनवासन ने अपने ह ठ बंद ही रखे। शािह ता डॉ. ीिनवासन क पास ग और उ ह कध पर थपथपाते
ए सां वना देते ए कस पर िबठाया। डॉ. शािह ता ने उ ह मेज पर रखा पानी का िगलास िदया। डॉ. ीिनवासन
ने पानी िपया। शािह ता ने बोलने से पहले उ ह आराम करने और सहज महसूस करने का समय िदया।
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य व का मरीज ह। यह भी हो सकता ह िक वह िकसी ाचीन गु समूह का सद य हो, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी
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कछ िछपे उ े य पर काय करते आ रह ह; लेिकन उसक कोई भी पहचान इनम से िकसी भी संभावना से मेल
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नह खाती ह।”
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जैसे ही डॉ. शािह ता ने बात करना बंद िकया, उस जगह स ाटा छा गया। शािह ता ने आगे कहा, “सर, यिद
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िलए संघष कर रह ह? सर, कपया आप जो जानते ह, हम बताइए।” डॉ. ब ा इस बार गु से से यादा हताश लग
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रह थे।
हमेशा क तरह डॉ. ीिनवासन ने इस बार भी अपने चेहर पर कोई भाव कट नह िकया। उ ह ने एक गहरी
साँस ली और अपने पैर को देखने लगे, जैसे मन म कछ िहसाब लगा रह ह । कछ देर बाद वे बोले, “ठीक ह, म
जो कछ भी जानता , वह आप सबको बताऊगा; लेिकन उससे पहले तुमने जो उसक लॉकर क बार म बताया
था, उसक पूरी जानकारी मुझे चािहए।”
“हो गया, सर, यह लीिजए।” एल.एस.डी. ने अपनी तरफ से डॉ. ीिनवासन को एक कागज देते ए कहा, जो
उ ह ने वीरभ को दे िदया। वीरभ कागज लेते ही क से बाहर चला गया। वह जानता था िक उसे या करना ह!
डॉ. ीिनवासन ने अपनी मेज से जुड़ी ितजोरी को ब त यान से खोला और उसम से कछ त वीर एवं द तावेज
बाहर िनकालकर डॉ. शािह ता को िदए, िज ह ने एक-एक करक सब देखते ए बाक लोग म बाँट िदए। सभी
त वीर ओ शा ी क िविभ प और पहनावे म थ । हर त वीर क नीचे उनक िलए जाने वाली जगह और साल
िलखे ए थे। शािह ता ने एक-एक करक उ ह पढ़ा—1874 बनारस म, 1882 ह रयाणा म, 1888 म ास म,
1895 महारा म, 1902 करल म, 1916 लखनऊ म, 1930 स या ह आंदोलन, 1944 म सुभाष चं बोस क
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“ब त हो गया, तेज! तु ह बस, इतना ही जानने क आव यकता ह। अब तु हार पास कवल दो िवक प ह—
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अपने काम पर वापस लग जाओ या अपना सामान बा ँधो; तु हारी वापसी का बंध म करवा दूँगा।” डॉ.
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ीिनवासन ने चेतावनी देते ए कहा। वे अपनी आवाज म ितर कार क भावना नह छपा पाए।
डॉ. ब ा थर खड़ रह। वे योगशाला म वापस जाने क िलए मुड़ने ही वाले थे िक तभी डॉ. शािह ता बोल
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आ जाता ह।”
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“ या तु हार पास कोई और सुझाव ह?” डॉ. ीिनवासन ने ऐसे पूछा, जैसे वे पहले से ही उ र जानते ह ।
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“जी सर, मेरा सुझाव ह िक हम उससे सीधे तरीक से बात कर, िबना िकसी बेहोश करने वाली औषिध या
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उनक इशार का इतजार कर रह थे। ve
शािह ता ने िवनती करते ए कहा, “सर, अब आपक बारी ह, अपने ारा चुने गए सव े िवशेष पर भरोसा
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करने क ।”
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डॉ. ीिनवासन सहमत होने क िलए मजबूर थे। िकतु हामी भरने से पहले उ ह ने पूछा, “यिद यह सफल नह
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आ तो?”
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“िफर हम वही तरीका अपनाएँगे, जो हम अब तक करते आ रह ह।” डॉ. ब ा ने आ ासन देते ए कहा।
“सर, अब तक यह ब त मु कल रहा ह। उसक ारा बोले गए सभी वा य ने नए सवाल खड़ कर िदए ह
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“ठीक ह, जो भी तु ह ठीक लगे, उसक साथ आगे बढ़ो; लेिकन शािह ता, सतक रहना। एक आव यक दूरी
ज र बनाए रखना। कोई रकॉिडग नह होगी। हम दोपहर क खाने क बाद शु करगे।” डॉ. ीिनवासन िचंितत
थे।
सभी दोपहर क भोजन क िलए भोजन क क ओर आगे बढ़; लेिकन डॉ. शािह ता योगशाला क ओर ग । वे
ओ क तरफ बढ़ और उसक सामने खड़ी हो ग । उ ह ने मु कराते ए कहा, “हलो! मेरा नाम शािह ता ह। मुझे
पहले अपना प रचय देने का मौका नह िमला था। ओ , तुम अपना भोजन कर लो। इस बीच म दूसर क साथ ।
अगर तु ह िकसी चीज क ज रत पड़ तो मुझे ज र बताना।” शािह ता ने ओ से िनकटता का यास िकया,
य िक भोजन क बाद उसे उसक चेतन अव था म बातचीत करने का काम करना था। मनोिव ान यह कहता ह
िक यिद आप एक बार िकसी य का िव ास हािसल कर लेते ह तो आपको उसक सभी राज भी पता लग जाते
ह।
“मने उनसे अनुरोध िकया था िक मुझे खोल द। म िव ाम क का उपयोग करना चाहता था।” ओ ने
िवन तापूवक कहा।
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“यही िक वह शाकाहारी ह और उसे प ा गोभी भी पसंद नह ह और यह िक उसे हरी िमच व नमक अलग से
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चािहए।”
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सब एक-दूसर को आ य से देख रह थे, जबिक शािह ता ने अपना भोजन करना शु कर िदया था।
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एल.एस.डी. कछ देर सोचने क बाद धीर से बोली, “खाने क मे यू म आलू व प ा गोभी ह, यह बात उसे
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कसे पता चली? इसक अलावा, यिद वह शाकाहारी ह तो उसे कसे पता चला िक मांसाहारी खाना पकाया जा
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रहा ह?”
शािह ता यह सुनकर बीच म ही क ग और गहर िवचार म खो ग ।
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िद य युग
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वहाँ कछ पल क शांित क बाद प रमल बोला, “सभी त वीर को दे...देखकर उसक दोहर य व या पुनज म
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उसक प नी चणे री क यहाँ आ था। अ य सू का मानना ह िक उनक िपता का नाम च...णक था और
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चाण य का नाम उनक िपता क नाम से िलया गया था। कछ सू क अनुसार, चाण य उ र भारत म रहने वाले
ा ण थे। वे वेद क िव ा एवं िव णु भगवान क भ थे। जैन कथन क अनुसार, उ ह ने अपनी वृ ाव था म
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भट ई थी और वे उनक िश य बन गए थे, िज ह ने उ ह एक नया नाम िदया—‘बंदा िसंह बहादुर’। गु गोिवंद
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िसंह क आशीवाद एवं अिधकार से उ ह ने यो ा क फौज बनाई और मुगल बादशाह क िव संघष छड़
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िदया। पंजाब म अपनी स ा थािपत करने क बाद बंदा िसंह बहादुर ने जम दारी था को समा िकया और जमीन
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क मािलक को संपि क अिधकार िदए। स 1715 म बंदा िसंह बहादुर को गुरदास नांगल िकले से पकड़कर लोह
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क एक िपंजर म बंद कर िदया था। उनक टकड़ी क बाक िसख को भी पकड़ िलया गया था। सभी िसख को
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एक जुलूस म िद ी लाया गया, िजसम 780 िसख कदी थे, 2,000 क िसर भाल से लटकाए गए थे और जनता
म खौफ पैदा करने क िलए काट िदए गए िसख क िसर से भरी ई 700 गािड़याँ थ । उ ह िद ी क िकले म रखा
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था, जहाँ उन पर अपना धम छोड़ने और इसलाम अपनाने क िलए दबाव डाला गया था। उनक मना करने पर उन
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सभी को फाँसी क सजा सुना दी गई थी। ितिदन 100 िसख को िकले से बाहर लाया जाता था और उनक
सावजिनक ह या कर दी जाती थी। यह िसलिसला करीब 7 िदन तक चला। मुगल अपनी स ता रोक नह पा रह
थे; लेिकन िसख ने हताशा या िनराशा का कोई भाव नह िदखाया, ब क वे अपने भजन गाते रह; न ही कोई मौत
से डरा और न ही िकसी ने अपने धम को छोड़ा। बंदा िसंह बहादुर क फाँसी से पहले सरदार को उनक सामने
तािड़त िकया जाता था। उनक िसर को भाल से घ पा गया और बंदा िसंह बहादुर, जो जमीन पर उक ँ बैठ थे,
उनक चार ओर एक च म लगाया गया, िफर उ ह एक छोटी तलवार दी गई और अपने ही बेट अजय िसंह को
मारने का आदेश िदया गया। वे थर बैठ ए थे। उसी समय ज ाद आगे बढ़ा और छोट ब े को अपनी तलवार
से मारते ए उसक शरीर क दो िह से कर िदए। िफर शरीर से मांस क टकड़ काटकर बंदा क चेहर पर फक गए।
उसक िजगर को शरीर से िनकाल कर बंदा िसंह बहादुर क मुँह म ठसा गया। िपता िबना िकसी भावना क ऐसे ही
बैठा रहा। उनक धैय क परी ा अभी और भी ली जानी थी। ज ाद आगे बढ़ा और अपने खंजर क नुक ले िह से
को बंदा िसंह बहादुर क दा आँख म डालकर उनक पुतली को िनकाला और िफर दूसरी पुतली को। बंदा इस
सब क दौरान प थर क तरह थर बैठ ए थे। उनक चेहर पर दद का कोई नामोिनशान नह था। उस हवान ने
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“िफर भी, तु ह हम समझाना चािहए।” डॉ. शािह ता बीच म बोल । ve
डॉ. शािह ता और एल.एस.डी. अिभलाष क बोलने का इतजार करते ए उसे देख रह थे।
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“िहदू पुराण क अनुसार, समय को चार युग म िवभािजत िकया गया ह—सतयुग, ेता युग, ापर युग और
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किलयुग।
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शािह ता ने धीर-धीर समझते ए िसर िहलाया, “यिद यह कोई िस ांत ह तो इनम से येक युग म लगभग
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—“ ीमद ्भगवद ्गीता, जो युग का वणन करने वाला सबसे पहला ंथ ह, उसक अनुसार सतयुग क आयु
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देवता क 4,800 वष क बराबर ह; ेता युग 3,600 साल क बराबर ह; ापर युग 2,400 साल क बराबर और
किलयुग देवता क 1,200 साल क बराबर ह। एक देवता वष मनु य क 360 वष क बराबर ह और ये चार युग
4:3:2:1 क अनुपात म ह। अतः युग क अविध इस कार ह—
4,000 + 400 + 400 = 4,800 िद य युग (= 1728000 मानव वष) = 1 सतयुग
3,000 + 300 + 300 = 3,600 िद य युग (= 1296000 मानव वष) = 1 ेतायुग
2,000 + 200 + 200 = 2,400 िद य युग (= 864000 मानव वष) = 1 ापर युग
1,000 + 100 + 100 = 1,200 िद य युग (= 432000 मानव वष) = 1 किलयुग
“किलयुग क पूण होने क अविध आज से 42,700 वष ह, िजसका अथ यह ह िक किलयुग क अभी तक
कवल 5,000 वष यतीत ए ह।
“बुरी ताकत को न करने क िलए, धम क पुन थापना करने क िलए और ज म व मृ यु क च से भ को
मु करने क िलए भगवान िव णु समय-समय पर अवतार लेते ह और ऊपर विणत 4:3:2:1 का समयानुपात भी
िव णु क दस अवतार को इिगत करता ह, िजसे ‘दशावतार’ नाम से भी जाना जाता ह।
“िव णु क पहले चार अवतार सतयुग म कट ए थे, उसक बाद ेता म तीन अवतार ए, ापर म दो और
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“तुम इन युग क बीच का अंतर कछ श द म कसे कर सकते हो?” शािह ता ने पूछा।
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“सतयुग म संघष दो लोक क बीच था—देवलोक और असुर लोक। असुर लोक, दु ता क कारण, एक अलग
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ही लोक था।
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“ ेता युग म लड़ाई राम और रावण क बीच थी। भगवान और रा स दोन दो अलग रा य से राज करते थे,
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“ ापर युग म यु पांडव और कौरव क बीच था। वह युग था, िजसम अ छाई व बुराई एक ही प रवार म थी
और वह उसक बीच संघष था। हर एक गुजरते युग क साथ बुराई नजदीक आती गई—पहले एक ही दुिनया म,
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“जानते हो, अब किलयुग म बुराई कहाँ ह? वह हमार अंदर ह। अ छाई व बुराई दोन हमार ही अंदर रहते ह।
िकसक िवजय होगी? कौन दूसर पर हावी होगा, हमार भीतर क अ छाई या बुराई?”
शािह ता ने उसे देखा। वह िवचिलत हो ग ।
“ या मुझे कोई बताएगा िक यहाँ चल या रहा ह और आिखर हम िकस पर या काम कर रह ह? आप सभी
का िदमाग खराब हो गया ह। ये चीज...यह सब असंभव ह और पौरािणक कथा म त या मक वा तिवकता
का कोई आधार नह ह।” डॉ. शािह ता ने गरजते ए कहा।
“कौन कहता ह ऐसा?” अिभलाष ने पूछा।
“िव ान! िव ान कहता ह! अगर आप लोग क कहािनयाँ पूरी हो गई ह तो या अब हम असली काम पर
वापस आ सकते ह?” शािह ता क इस तरह फट पड़ने क बाद कमर म स ाटा छा गया, जब तक अिभलाष
शािह ता क एकदम िवपरीत नह बोला।
“यह सब कवल कहािनयाँ नह , ब क हमारी िवरासत ह। यह हमारा अतीत ह और भा यवश या दुभा य से यह
सच भी ह। या आपको लगता ह िक िव ान से ऊपर कछ भी नह ह? मुझे आपसे एक सवाल पूछना ह। बताइए,
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बोड पर िलखने म य त था। डॉ. ब ा क बैठने क बाद अिभलाष ने आगे कहा, “कवल इतना ही नह ,
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ह और अ य घटना का वेद म िव तृत वणन उस समय क लोग क िवशाल ान को दिशत करता ह, जो
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आधुिनक स यता क अ त व म आने से पहले ही मौजूद थे। एक वैिदक िवशेष सायण ने चौदहव शता दी
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ईसवी म काश क गित क खोज क थी। उनक कथन क अनुवाद अनुसार, ‘स मान सिहत म उस सूय को नमन
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करता , जो आधे िनमेष म 2,202 योजन क या ा करता ह।’ अब म िफर से आपको कछ घटनाएँ िदखाता ।”
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नाम का सव थम उ ेख बॉवर अिभलेख म ह (चार से पाँच शता दी), जहाँ सु ुत क नाम क गणना िहमालय
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म रहने वाले दस साधु म क गई ह।
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“भारतीय ंथ म यह भी िलखा आ ह िक उ ह ने िचिक सा क देवता ध वंत र से वाराणसी म श य िचिक सा
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का ान सीखा था।”
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अिभलाष आ मिव ास से भरा महसूस कर रहा था, य िक अब उसक पास एक समथक था। उसने डॉ. ब ा
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क ओर देखा, जो ब त यान से सब सुन रह थे। जहाँ शािह ता को अभी भी संदेह था, वह एल.एस.डी. इस
बहस का आनंद ले रही थी। डॉ. ब ा अपनी कस से खड़ ए और सबको देखते ए कछ देर बाद बोले, “भले
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7.
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अ त व का दशन
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सभी लोग उसी कमर म इक ए और अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए। शािह ता ओ क बराबर वाली कस
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दूसरी ओर से वीरभ ने जवाब िदया, “सर, हमार लोग ने उन लॉकर को ज त कर िलया ह। वे कछ देर म
वहाँ प चते ही ह गे।” ve
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डॉ. ीिनवासन ने आदेश िदया िक जो कछ भी उस लॉकर म ह, वह ज द-से-ज द उनक पास लाया जाए।
वीरभ ने लॉकर का थान और पता देखते ए कहा, “सर, उसे अपने पास ही समिझए।”
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वीरभ ने कछ पल क िलए या ा क समय का िहसाब लगाने क बाद कहा िक वह चीज उनक मेज पर
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ातःकाल रहगी। यह कहकर वीरभ चला गया। ीिनवासन ने डॉ. ब ा और टीम क बाक सद य से बात करना
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जारी रखा।
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डॉ. ीिनवासन क ऑिफस क बाहर वीरभ ने कछ फोन लगाए और िदए गए काम को समय पर पूरा करने क
यव था क ।
वीरभ (फोन पर)—“मुझ तक प चने म िकतना समय लगेगा?” दूसरी ओर से उ र सुनने क बाद वीरभ ने
कहा, “अपने पीछ कोई सबूत मत छोड़ना। मेर आदमी तु ह एक मुहरबंद िलफाफा दगे। उसे हािसल करने क बाद
उसे िलफाफ म िदए गए पते पर प चाना और उस य को देना, जो तु ह यह कोड बताएगा—5MW580YLF,
जो 100 पए क नोट पर एक सी रयल नंबर म िलखा होगा।”
वीरभ ने फोन रख िदया और दूसरा नंबर डायल िकया।
वीरभ (फोन पर)—“आज रात तक तु ह उसी पते पर पासल िमल जाएगा। उसे सुरि त रखना। तु हारा कोड
ह—5MW580YLF। ातःकाल पासल सुर ापूवक हलीकॉ टर क पायलट तक प चा देना। तु हारा भुगतान तु हार
खाते म प च चुका ह और 100 पए का नोट समय से पहले तुम तक प च जाएगा।”
योगशाला म एल.एस.डी. और डॉ. ब ा सभी तार को सही थान पर लगा रह थे और ऐसा करते ए एक-
दूसर से बातचीत कर रह थे।
अिभलाष इस दौरान शािह ता को न क सूची बनाने म सहायता कर रहा था।
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“तो तुम कहना चाहते हो िक सभी नाम क बीच संबंध जानने क िलए सुषेण से शु करना होगा, यानी िक ेता
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युग?” शािह ता ने अपने म त क से संदेह क बादल को हटाते ए कहा।
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“आपने मुझसे जो कहा, मने वही िकया और मुझे कछ िमला।” एल.एस.डी. ने कहा।
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“िवदुर को धृतरा का भाई माना जाता ह, जो अपने समय क सबसे ानी और समझदार य थे।”
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“और संजय?”
“संजय धृतरा क सलाहकार थे, िज ह ने संसार को देखने क िलए उनक क तरह भी काय िकया था।
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“यानी म सही था।” अिभलाष ने अपने सामा य गव क साथ कहा और एल.एस.डी. ने उसक गव को और
बढ़ाते ए वीकारा, “ह म! ऐसा ही लगता ह।”
“िब कल! आप देख रही ह, यह पागलपन लगता ह, लेिकन म गंभीर । इस आदमी और ेता युग क आदमी
क बीच ज र कोई संबंध ह। और यह ब त अजीब ह िक हमार सभी जवाब एक ही य क पास ह—ओ
शा ी क। इसिलए हम वह से शु करना चािहए।”
ओ को झूठ पकड़ने वाली मशीन से जोड़ने क बाद डॉ. ब ा बड़ी उ सुकता से अपने क यूटर म लग गए।
यह देख शािह ता भी अिभलाष को छोड़ डॉ. ब ा क साथ शािमल हो ग । जैसे ही डॉ. ीिनवासन ने योगशाला
म वेश िकया, डॉ. ब ा ने उ ह आवाज लगाते ए कहा, “सर, हम तैयार ह।”
डॉ. ीिनवासन ने शु क से देखते ए जवाब िदया। “तो शु करो।”
“ओ , कपया सहयोग करो। म तु ह िव ास िदलाती िक तु ह कोई नुकसान नह होगा।” शािह ता ने िनवेदन
करते ए कहा।
ओ ने अधूर मन से िसर िहलाया। डॉ. तेज और एल.एस.डी. ने मोट तार एवं कब स को ओ क शरीर से
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ली थ । कमर म लोग क चेहर पर भी उलझन िदख रही थी, य िक ओ क िवचार ब त तेजी से बदल रह थे।
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शािह ता को अहसास आ िक ओ क िवचार को िनयंि त करना ज री ह, िजसक िलए उ ह ओ को शांित
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और सुर ा का भाव महसूस कराना होगा।
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जाओ। तुम अकले नह हो। अपनी आँख खोलो और मुझे देखो। गहरी साँस लो और अपने शरीर को ढीला छोड़
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डॉ. ीिनवासन ने गा स को चौक ा रहने का आदेश िदया। उनक आवाज ओ क कान म पड़ी और डॉ.
ीिनवासन ने खुद को न पर देखा। इसक बाद एक गाँव का य उ प आ। बहता पानी और हर जगह
ह रयाली का य िदखाई िदया। डॉ. ीिनवासन ने गहरी नजर से देखा और वे गंभीर हो गए। उसक बाद एक
सरकारी िव ालय, िघसी ई लकड़ी क बच पर बैठ कछ ब े और कछ अं ेज आदमी ई ट इिडया कपनी क
पोशाक पहने ए थे। त वीर भारत क वतं ता से पहले क लग रही थी। त वीर देखकर डॉ. ीिनवासन को ऐसा
झटका लगा, िजसने उ ह अंदर तक िहला िदया था।
शािह ता क अलावा सभी ने इस भाव-प रवतन और असहज हाव-भाव को महसूस िकया।
शािह ता ने कहा, “ओम, या तुम यह करने क िलए तैयार हो?” और जैसे ही उ ह ने यह कहा, न काली
हो गई।
“ह म!” ओ शा ी से जवाब आया।
लाइ िडट टर म से ‘बीप’ क आवाज आई, िजसका अथ था िक ओ सच म तैयार नह था। सभी क नजर
‘बीप’ क ओर मुड़ , ओ क भी। उसने िफर शािह ता को देखा, िजनक चेहर पर हलक मु कान थी। वे
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“म वहाँ एक वै था। लोग िविभ उपचार क िलए मेर पास आते थे। म पहाड़ पर उगने वाले हर एक जड़,
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छाल, प े और फल क बार म जानता था। मुझे हर बीमारी और उसक इलाज क बार म पता था।”
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“वा तव म यह गाँव कहाँ ह?” ो सािहत करते ए शािह ता ने पूछा।
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“मने कई जान बचाई थ , िजनम से एक थे ल मण। मने यु क दौरान कई लोग और वानर क भी सेवा क
थी।”
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“तु हारा मतलब ह, रामायण क ल मण?” शािह ता ने सुिन त करने क िलए पूछा।
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“हाँ।”
ओ ने सोचना शु िकया और उसक ऐसा करते ही एक आदमी क छिव न पर मूत हो गई—लंबी
दाढ़ी, कस रया रग क कपड़ और लुंगी, लकड़ी क खड़ाऊ और िसर पर पगड़ी। उनक आसपास िन त प
से पौधे एवं जड़ी-बूिटयाँ थ और सामने कछ असामा य बरतन व मलहम थे तथा पानी म घुली ई कछ जड़ी-
बूिटयाँ। आदमी ओ शा ी से िब कल मेल खाता आ था। वही चेहरा, वही आदमी, जो वह आज ह। आदमी
एक बेहोश शरीर क पास बैठा था। उसक बराबर म एक और आदमी बेहोश य का हाथ पकड़कर रो रहा
था। वहाँ पर ब त सार वानर मुख वाले मनु य थे, जो सभी िचंितत नजर आ रह थे। यह प था िक न पर
िदख रह पा और कोई नह , ब क सुषेण, भगवान राम, ल मण एवं हनुमान थे।
“यह कसे संभव ह? तुम आज भी कसे जीिवत हो?” शािह ता ने इस झटक को दबाते ए साफ श द म पूछा।
“म तब से वृ नह आ । मुझे ब त बार थकान महसूस होती ह, लेिकन िबना खाए और आराम िकए ही म
अपने आप ऊजा से भर जाता । मुझे चोट लगती ह, म बीमार पड़ता ; लेिकन इससे पहले िक मृ यु मुझे अपने
अंदर समा ले, म व थ होना शु कर देता । म मरता नह ।” ओ ने खुलासा िकया।
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“और जो त वीर हम देख रह ह?” डॉ. ीिनवासन ने चुनौती देते ए पूछा।
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“जो त वीर हम देख रह ह, वह उसक याद नह , ब क उसक क पनाएँ ह, िज ह वह सच मानता ह। वह
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अपनी कहािनय व िवचार से भािवत ह और इस जुनून ने उसे यह िव ास िदलाया ह िक जो कछ भी वह बोल
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रहा ह, वह वा तव म उनका एक िह सा ह। वह अपनी क पना को ऐसे पढ़ता ह, जैसे उसने उ ह िजया हो!”
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डॉ. ब ा ने प िकया।
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“क पनाएँ धुँधली होती ह, तेज! वे कभी भी इतनी प नह हो सकत , िजतनी हम अभी उ ह देख रह ह।
कवल वा तिवक घटना और लोग को ही हमार िवचार म प प से देखा जा सकता ह।” डॉ. ब ा क
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असली नाम) को िद य अ से पुर कत िकया था, िजसम न न होने वाला अजय परशु शािमल था, िजससे
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उनका नाम ‘परशुराम’ पड़ा। तब भगवान िशव ने परशुराम को आदेश िदया िक वे पृ वी को दुराचा रय , रा स
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और अहका रय से मु कर। परशुराम िव णु क अ य अवतार ीराम और ीक ण को देखने क िलए काफ
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समय तक जीिवत रह। परशुराम क पास देवता क राजा इ ारा िदया गया भगवान िशव का िवजय धनुष भी
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था। ‘रामायण’ म परशुराम ने वह धनुष राजकमारी सीता क वयंवर क िलए उनक िपता जनक को िदया था।
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उ मीदवार क बल क परी ा हतु उ ह उस रह यमयी श को उठाकर उसक यंचा चढ़ानी थी। ीराम क
अित र और कोई भी सफल नह आ। लेिकन जब ीराम धनुष क यंचा चढ़ाने क कोिशश कर रह थे तो
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उनसे वह धनुष टट गया, िजससे एक भयंकर गजना ई, जो मह पवत क चोटी पर यान म लीन परशुराम क
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अगले यास और स ऋिषय म से एक होगा। अ थामा सात िचरजीिवय म से एक ह।
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“अ थामा अपने माथे पर एक मिण क साथ पैदा आ था, जो उसे मनु य से िन न जीिवत ािणय पर एक
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िवशेष श दान करती थी। सहनश म वह पवत क समान था और उसम अ न क ऊजा थी। गंभीरता म
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“मिण उसे ेत , रा स और िवषैले क ड़ एवं पशु से बचाती थी। ोणाचाय अपने पु से ब त ेम करते
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थे।
“ ोणाचाय और अ थामा ह तनापुर रा य (कौरव क िपता धृतरा का रा य) क ित िन ावान थे।
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हाथ म धनुष व बाण हो, तब उ ह हराना असंभव था। ीक ण को यह भी पता था िक ोणाचाय अपने पु
अ थामा से ब त ेम करते थे, इसिलए उ ह ने युिध र और अ य पांडव को यह सुझाव िदया िक यिद वे उ ह
यह यक न िदला द िक उनक पु क यु े म मृ यु हो गई ह तो ोणाचाय दुःखी हो जाएँगे और दुःख म अपने
आप को िनर कर दगे।
“भगवान ीक ण ने यह सुझाव िदया िक भीम (पांडव म से एक) अ थामा नामक हाथी को मारकर
ोणाचाय क सामने यह दावा करगे िक उ ह ने ोणाचाय क पु अ थामा को मार िदया ह। हाथी को मारने क
बाद भीम ने जोर-जोर से यह घोषणा क िक उ ह ने अ थामा को मार डाला ह। िकतु ोणाचाय ने भीम क
कथन पर भरोसा नह िकया और वे युिध र (पांडव म सबसे बड़) क पास प चे। ोणाचाय को युिध र क
स य क ित ढ़ िन य का पता था और वे जानते थे िक वे कभी झूठ नह बोलगे। ोणाचाय युिध र क पास
प चे और उ ह ने पूछा िक या उनक पु क मृ यु हो चुक ह, उ र म युिध र ने कहा, ‘अ थामा क मृ यु
हो चुक ह; िकतु वह एक हाथी था, आपका पु नह ।’ क ण यह भी जानते थे िक युिध र क िलए झूठ बोलना
असंभव था। उनक आदेश पर अ य यो ा ने तुरही और शंख बजाते ए इस तरह से स ता का शोर मचाया
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“उसने पांडव क पाँच पु को यह सोचकर िक वे पांडव भाई ह, सोते समय मार िदया। कहानी क कछ
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सं करण म, वह जानता था िक वे पांडव नह थे, लेिकन िफर भी उ ह मार िदया, य िक वह उनक िपता को नह
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ढढ़ पाया। अ थामा का मानना था िक उसक िलए अचानक पांडव पर हमला करना उिचत था, य िक उसक
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िपता क भी ह या अ यायपूण ढग से क गई थी। हालाँिक वह अपने ितशोध को उिचत मानता था, लेिकन उसे
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“जब पांडव रात क बाद भगवान ीक ण क साथ िशिवर म लौट तो अ थामा क इस क य पर ोिधत
ीक ण ने अ थामा को किलयुग क अंत तक अमरता एवं मृत जीवन का शाप िदया और अ थामा क
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“यह कहानी अिव सनीय जैसी ह, िकतु िफर भी अ थामा क कथा पर िहदू धम क लोग को िव ास ह।
कहा जाता ह िक एक 5,000 वष य य भारत क उ र देश रा य क कछ मंिदर म रहते ए पाया गया ह।
जी- यूज क टीम ने िललौटी नाथ मंिदर, िशवराजपुर मंिदर एवं खैर र मंिदर जैसे मंिदर का दौरा िकया ह और
हर जगह अ थामा क कथा मौजूद थी। समाचार चैनल क िवशेष मंिदर क बंद दरवाज क बाहर पूरी रात
अपने कमर क साथ क थे, तािक पता चल सक िक कौन अंदर आता ह और ार खुलने से पहले मूितय को
फल व जल चढ़ाता ह। कोई नह आया; लेिकन सुबह-सुबह जब दरवाजे खोले गए तो उ ह ने पाया िक बंद
प रसर म ाथना पहले ही क जा चुक ह, य िक वहाँ जल और फल िबखर ए थे।
“ थानीय लोग का मानना ह िक यह 5,000 वष य य वा तव म महाका य महाभारत का अ थामा ह।
येक मंिदर म वह रोज ात:काल पूजा करता ह और भगवान एवं उनक मूितय को जल अपण करता ह। यह
हर िदन होता ह, जब मंिदर क दरवाजे बंद होते ह। रपोटर ने कहानी को स यािपत करने क िलए कछ डॉ टर ,
पुजा रय और थानीय िनवािसय से भी बात क ।
“एक दशक से भी अिधक पुराने अखबार क लेख म, जो छ य पर गए एक रलवे क कमचारी क बार म
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रह यमयी िपटारा
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वह आँधी वाली एक रात थी। अँधेर गिलयार म चलते समय रोशनी का एकमा ोत गिलयार क आिखरी छोर पर
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झूलता आ लप था।
एल.एस.डी. ने शािह ता को ‘गुड नाइट’ कहा और अपने कमर म जाते ही जूते उतारने लगी। उसका कमरा
काफ बड़ा था, पर उसम से सीलन क गंध आ रही थी। हालाँिक, वह पुराने फन चर एवं ल स से सुस त था,
पर ऐसा लग रहा था, जैसे िक उसका लंबे समय से उपयोग नह िकया गया था।
अगले कमर म शािह ता अपने ब क बार म िचंितत थ । वे कस पर बैठ ग तथा अधलेटी-सी छत को देखने
लग , जबिक बाक लोग अपने-अपने कमर म यव थत हो रह थे।
डॉ. शािह ता क आँख न द से भारी हो रही थ और शी ही वे सो ग । देर रात डॉ. शािह ता तेजी से उठ , जब
उ ह ने दरवाजे क बाहर िकसी क परछा को देखा और महसूस िकया, जैसे कोई बाहर चहलकदमी कर रहा हो।
वे तेजी से उठ और दरवाजा खोलकर बाहर देखने लग । डॉ. शािह ता अँधेर गिलयार क आिखरी छोर तक ग
और देखा िक वहाँ कोई नह था। उ ह एकमा तेज हवा क सनसनाती आवाज सुनाई दी। वे पीछ मुड़ और
अचानक एल.एस.डी. को अपने पीछ खड़ देखा। डॉ. शािह ता डर से चीख , “तुम यहाँ या कर रही हो?”
एल.एस.डी. लंबी साँस लेते ए बोली, “मुझे अकले डर लग रहा था। म आपक साथ रहना चाहती । या म
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एल.एस.डी. ने डॉ. शािह ता को सां वना देने क कोिशश क , “िचंता न कर, मुझे िव ास ह िक आपका
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प रवार ठीक होगा और हम ज द ही यहाँ से चलगे।” वह अपनी उगिलयाँ ॉस करती ई बोली।
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डॉ. शािह ता ने गहरी साँस ली और अपने िब तर क ओर चली ग ।
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एल.एस.डी. ने िफर अपना च मा उठाया, न खोली और कमर क शांित को लैपटॉप क बटन दबाने क
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इसी बीच, वीरभ ने अपने दो आदिमय क साथ, ब से को लेने हतु, रात क अंधकार म पीड बोट से पोट
लेयर तक क या ा क । कछ दूरी से दो आँख उसे ब सा लेते और सँभालते ए देख रही थ । जब वीरभ रॉस
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ब ा अभी प को और देखना चाहते थे, परतु उ ह ने पु तक डॉ. ीिनवासन क ओर बढ़ा दी।
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“यिद आपका काम हो गया हो तो या हम आगे बढ़?” डॉ. ीिनवासन ने तंज क लहजे म कहा।
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डॉ. ब ा ने धातु क टकड़ और न शे को देखा। डॉ. ीिनवासन ने कहा, “हाँ, यह एक न शा ह, पर िकस
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कार का?”
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“उ र तो यह बैठा ह कमर क अंदर। चलो, उससे सीधे पूछते ह।” शािह ता ने सुझाव िदया।
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“नह , अभी नह । उसे पता नह लगना चािहए िक यह सब हमार क जे म ह। पहले उससे पूछ जाने वाले न
क सूची तैयार करो।” डॉ. ीिनवासन ने आदेश िदया।
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“एल.एस.डी. को मेर पास भेजो। वीरभ , तुम उनक साथ रहो। शािह ता, जब तक म वापस नह आता, शु
मत करना।” डॉ. ीिनवासन ने कहा।
वे सहमित से िसर िहलाकर चले गए और डॉ. ीिनवासन एल.एस.डी. क ती ा करते रह।
डॉ. ब ा ने लगभग भागते ए कमर म वेश िकया। उ ह ने ओ क तरफ उलझन भर ोध क से देखा
और अपने थान पर वापस जाकर क यूटर पर काय करने लगे। शािह ता डॉ. ब ा क पास ग और यह पाया िक
वे ब त उ ेिजत थे। वे उ सुकता क साथ क यूटर पर कछ खोज कर रह थे।
उ ह ने िचंता य करते ए पूछा, “तेज, आप या कर रह ह?”
डॉ. ब ा िबना न से नजर हटाए अपना काय करते रह।
“आप ठीक तो ह? देखो, हम सब भी उतने ही हरान एवं आ य...”
“श श...” डॉ. ब ा ने हाथ से शािह ता को चुप रहने का इशारा िकया और अपना काय करते रह।
शािह ता को बुरा लगा, पर िफर भी, वे कछ ण उनक पास खड़ी रह और िफर वहाँ से जाने क िलए पलट ।
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तेज ने दूसरी तरह से बात को समझाने क कोिशश क , “वै ािनक ने आज खमीर क आयु, जो सामा यतः 6
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िदन क होती ह, उसे 10 ह त तक बढ़ाने का एक तरीका िनकाला ह।”
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“और इसका हमसे या संबंध ह?” शािह ता परशान थ ।
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को डी.एन.ए. से िनकाल िदया जाता ह तो इसक प रणाम व प खमीर का आयु य बढ़ जाता ह। यही जीन जब
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चूह से िनकाले जाते ह तो उसक आयु दोगुनी हो जाती ह।” डॉ. तेज ने आगे कहा।
“तो?” डॉ. शािह ता ने न िकया।
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“मनु य शरीर म आयु बढ़ाने वाले िविभ कार क ज स खोजे जा चुक ह। मेरी िचंता यह ह िक िव ान को हम
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मनु य क बार म यह दावा करने से पहले एक लंबा रा ता तय करना ह और मेरी िचंता ओ क दावे क िवपरीत
ह।”
“ या आप उसे अभी भी ामक समझ रह ह?” शािह ता ने पूछा और थोड़ा ककर बोल , “देखो तेज, उस
पर िव ास न करने क िलए मेर पास ब त से कारण ह, पर उसक िव सनीयता पर सवाल न उठाने क हजार
कारण भी ह।”
“मुझे उसक खून का नमूना चािहए।” डॉ. ब ा ने ढ़ता से कहा।
शािह ता ने असहमित से िसर िहलाया, “डॉ. ीिनवासन आपको ऐसा करने क अनुमित कभी नह दगे।”
इसी बीच डॉ. ीिनवासन एल.एस.डी. से अपने क म बात कर रह थे।
उ ह ने उसक सामने एक न शा फलाया और पूछा, “ या तुम यह सािबत कर सकती हो िक िन संदेह तुम
सव े हो? तु हार पास इस पहली को सुलझाने क िलए 6 घंट ह, जो िक इस न शे क जगह ढढ़ना ह तथा वह
हम आगे कहाँ ले जाएगी, यह बताना ह।”
एल.एस.डी. को चुनौितयाँ पसंद थ । वह उ ह खुले मन से वीकारा करती थी, य िक वे उसे उसक मता
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9.
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पुरातन वतमान म
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“दो?” एल.एस.डी. ने अिव ास क साथ कहा। ve
“िहदू पुराण म सात िचरजीवी य य का उ ेख ह। इन दो क अित र पाँच और भी ह।” न पर देखते
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ए अिभलाष ने उ र िदया।
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न पर असंब य क बदलने क ंखला क चलते रहने क बावजूद, िजनका कोई मतलब नह बन रहा
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था, अिभलाष ने एल.एस.डी. से कहना जारी रखा और न पर कछ अपनी बुि म ा से संबंिधत एवं यावहा रक
हल ढढ़ता रहा।
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“बाक िचरजीवी ह राजा बिल। भगवान िव णु क वामन अवतार ने असुर राज महाबली क अहकार क बाद
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उसका िवनाश िकया था, उसे पाताल लोक म रहने क िलए भेज िदया गया था, परतु बिल को वष म एक बार
पृ वी पर आने क अनुमित दी गई थी। वह िदन करल म ‘ओणम’ क प म मनाया जाता ह।
“िवभीषण, जो रावण क छोट भाई थे। िवभीषण ने भगवान ीराम क सहायता क थी, िज ह ने उ ह अमरता का
आशीवाद िदया था। राज थान क शहर कोटा म िवभीषण को समिपत एक मंिदर ह। भारत म ऐसा कवल वही
मंिदर ह!
“महाभारत क रचियता वेद यास भी अमर ह।
“कपाचाय, कौरव और पांडव क गु और अ थामा क मामा।
“और अंत म, ीहनुमानजी, जो किलयुग म अपने भ क र ा करते ह।”
डॉ. शािह ता को छोड़कर सभी अपने सामने हो रही घटना क खुलासे से हत भ थे। स मोहन क अपने
कायकाल म उ ह ने ओ से ब त अिधक ऊचे तर क िवचिलत मरीज को देखा था, अतः उ ह िकसी चीज से भी
अचरज नह आ।
उ ह ने अपना एक हाथ उसक हाथ पर सां वना देने क िलए रखा।
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स मान करने क िलए लालाियत रहते थे; और इसक िवपरीत, म अ यंत द र ता म भी रहा ।”
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य म अब ओ ठड म काँपते ए िदख रहा था और उसक शरीर पर नाम मा क व थे। आधा रक
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संरचना से यह िदख रहा था िक िन संदेह दोन य म एक सदी क समय का अंतराल था।
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“म बुरी तरह डरा आ और पूणतया अकले रहा । म अित ि यतम य रहा । म ब त बहादुर और एक
भीषण यो ा भी रहा ।”
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अब ओ को एक ब े क साथ देखा जा सकता था। उसक गोद म िवकलांग एवं बुरी तरह डरा आ और
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बगल म वही आकषक मिहला भी थी। वह त वीर मानो अनंत काल क िलए थर हो गई हो! तब ओ ने अपनी
आँख खोल , जो गीली हो गई थ । एक आँसू िबना िकसी बाधा क उसक गाल पर से लुढ़क गया। ओ ने िजस
थम य को देखा, वे शािह ता थ । वे भी िहल गई थ , परतु कछ नह बोल ।
ओ थर व शांत हो गया और िफर से कम भावना मक और अिधक यावहा रक होकर उसने कहा, “म
गोिवंदलाल यादव और ोितम दास एवं बी.सी. च वत रह चुका । म वकट रम ा राव रहा और बाद म
माधवराव क नाम से वयं क बेट क तरह रह चुका । म गुरशील िसंह और एस.पी. र ी रह चुका । अिधरयन
भी मेरी ब त सी पहचान म से एक ह।” उसक यह सब कहते समय न खाली ही थी।
अिभलाष शािह ता क ओर झुका और कहा, “उससे िव णु गु क बार म और पूिछए।”
शािह ता ने डॉ. ीिनवासन क ओर देखा, िज ह ने एक मौन सहमित दी।
“तुमने इतने नाम िलये, परतु वे हमार पास पहले से ही ह। वे सब सरकारी रकॉड म ह। पर तुमने एक नाम का
िज नह िकया—िव णु गु ।” डॉ. शािह ता ने न िकया।
एक धुँधली-सी त वीर न पर छा गई, जो हर बार गायब हो जाती थी।
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समय अंतराल—6971 वष
चाण य—321 ईसा पूव म, वतमान िदवस—2020
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समय अंतराल—2341 वष
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इस दौरान एल.एस.डी. न शे म, अपने गैजे स क सहायता से, थान क संभव ाचीन कोड क ारा सभी
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अिभलाष पूर समय ओ को ब त यान से सुन रहा था। उसने टोका, “ ापर युग म तुम कौन थे?”
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ओ ने आँख बंद करने से पहले उसक तरफ, िफर वापस शािह ता क ओर देखा और कहा, “मेर इितहास म
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ब त से नाम थे, परतु इन सब म ापर युग से संबंिधत िवदुर था।”
न पर त वीर इसका सबूत दे रही थी िक ओ क श द सरलता से कह गए त य ह। ये ओ एक क मती
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वेश और छाती तक लटकते ए वण आभूषण से सजा िदखाई िदया। उसक िसर पर एक विणम मुकट था, जो
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वह एक आदमी क बराबर म खड़ा था, जो ने हीन तीत हो रहा था, जो राजा क िसंहासन पर, आँख पर प ी
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बँधी औरत—अनुमानतः रानी—क बराबर म बैठा िदख रहा था। अंधा राजा और आँख पर प ी बँधी रानी राजा
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10.
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पुरानी या या
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इस दौरान डॉ. ीिनवासन ने िवशेष कारण से गु रखे गए एक थान म वेश िकया। काँच क एक दीवार से
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बने कमर को सावधानी से छपाया गया था। वे अपने साथ ओ क लॉकर म पाई गई पु तक लाए थे। उ ह ने वह
पु तक एक बूढ़ य को स प दी। वृ आदमी ने जैसे ही पु तक को िलया, उसक आँख उ साह से चमक उठ
और वह पु तक क प े पलटने लगा; परतु शी ही वह स ता ोध म बदल गई। लंबी चु पी क बाद आदमी ने
काँपती-सी आवाज म कहा, “पु तक का दूसरा भाग कहाँ ह?”
डॉ. ीिनवासन परशान और भयभीत खड़ थे। उ ह ने सोचा था िक पु तक पूरी ह, जबिक सुिवधा क क
िकसी भी सद य क िलए अबूझ भाषा, अजीब रखािच , न शा और पौध क होने से वह आसानी से समझ म
आने वाली नह थी। इससे पहले िक वे यह सब उस आदमी से कह पाते, वह आदमी ोध से चीखते ए बोला,
“मने कहा, पु तक का दूसरा भाग कहाँ ह?”
डॉ. ीिनवासन ने तेजी से जवाब िदया, “मुझे नह पता, सर। हम लॉकर से कवल यही पु तक िमली ह।” वह
ब त बुरी तरह से डर गए थे।
बूढ़ आदमी ने धीर से अपनी उगली क इशार से डॉ. ीिनवासन को अपने पास बुलाया। डॉ. ीिनवासन ने
आदेश का पालन िकया और आदमी क पुरानी व िघसी जीण कस क िनकट फश पर घुटन क बल झुक। बूढ़
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पूछा। ve
“मुझे नह पता, सर।”
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“तो उससे पूछो और मुझे अभी बताओ।”
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“ठीक ह, सर।”
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डॉ. ीिनवासन भयभीत व अपमािनत महसूस करते ए तेजी से कमर से बाहर चले गए।
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ीप क जंगल म दूर, दूसरा य उसी तरह का मुखौटा चेहर पर लगाए, हाथ म एक ाचीन चाबी िलये पहले
वाले य क साथ आ गया। वे िजस इमारत पर नजर रख रह थे, उस पर धावा बोलने ही वाले थे। दोन ने अपनी
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घिड़य को एक ही समय पर सेट िकया और उनम से एक ने दूसर को इमारत क अंदर का भाग, इधर से उधर जाते
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लाल िबंद,ु वेश ार पर लगे संकतक िदखाए, िजनसे उ ह इमारत क अंदर घुसने क िलए िभड़ना था। उ ह ने
िबना कछ बोले तय िकया िक एक समान थान, जो िक इमारत क अंदर एक दरवाजा ह, पर िमलने से पहले
येक य िकतने लोग को मार िगराएगा।
वह पूछताछ क म ओ जैसे ही डॉ. शािह ता क न का उ र देने वाला था, एल.एस.डी. अपने दोन हाथ
ऊपर हवा म फकते ए खुशी से िच ाई जैसे वह अपने आपको अघोिषत मैराथन म िवजयी घोिषत कर रही हो!
सुर ा किमय ने च कते ए सतकता क साथ अपनी बंदूक उसक ओर तान द । सभी ने अपने िसर उसक ओर
घुमाए और डॉ. ीिनवासन ने कमर म वेश िकया। एल.एस.डी. ने चार ओर देखा और उसे अहसास आ िक
उसने या िकया! जैसे ही उसने डॉ. ीिनवासन को देखा, उसक भाव बदल गए। अचानक ही उसे एक िवजेता
नह , ब क एक छोटी ब ी क तरह महसूस आ, िजसने अपनी माँ का मनपसंद फलदान तोड़ िदया हो। उसने
डॉ. ीिनवासन क ओर आतंिकत व मा-याचक नजर से देखा। वह इतनी डरी ई थी िक उसक आँख म आँसू
आ गए।
डॉ. शािह ता उसे आ त करने क िलए उठ , पर डॉ. ीिनवासन ने उ ह ऐसा करने से रोक िदया।
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एल.एस.डी. को इतना मह वपूण काय करने पर उसक िह से क वह शंसा नह िमली, िजसक वह हकदार
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थी। वह वतः े रत लड़क थी और उसक िलए शंसा इतनी मह वपूण नह थी।
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उसने चुपचाप सहमित म िसर िहलाया और धीर से कहा, “ठीक ह, सर।” और वापस कमर म चली गई।
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डॉ. ीिनवासन ने हाथ म कागज िलये एक राहत क साँस ली और बूढ़ आदमी क सुरि त कमर क ओर चल
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पड़।
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योगशाला म ओ ने उ र देना जारी रखा, “एक िदन मने अपनी आँख तीन ऋिषय क साथ एक किटया म
खोल । किटया बड़ी थी और बाहर से आए अनुयाियय से भरी ई थी। मने उ ह िम ी क दीवार म बने छद से
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देखा। उनम से एक ऋिष मेर पास आए और बोले, ‘पु , तु ह कसा महसूस हो रहा ह?’ ”
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ओ ने जैसे ही आँख बंद करक घटना का वणन शु िकया, न पर त वीर चलनी शु हो ग , जहाँ एक
गोरा व लंबा, 50 वष से अिधक आयु का य मु कराता आ खड़ा था। उसने एक जोड़ी लकड़ी क खड़ाऊ
और एक सादा व सफद करता और धोती पहनी ई थी। उसक दा कलाई पर लाल व पीले रग क धागे
(कलावा) बँधे ए थे और बाएँ कधे से कमर क दा ओर एक जनेऊ जा रहा था।
“म उ ह व उनक साथ क वह पहली झलक कभी नह भूल सकता, य िक वे पहले य थे, िज ह मने
अपनी िजंदगी म देखा था।
“ ‘मुझे भूख लग रही ह। म कहाँ ?’
“ ‘यह पूछने से पहले िक तुम कहाँ हो, तु ह पूछना चािहए िक तुम कौन हो?’ ऋिष ने मु कराते ए जवाब
िदया।
“म उ ह बताना चाहता था िक म कौन था, परतु तभी मुझे अहसास आ िक म यह खुद नह जानता।” ओ ने
वीकार िकया।
“म कौन ?” मने उनसे पूछा।
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“दूसर ऋिषय म से एक ने कछ इशारा िकया। वे तुरत ही िम ी क पा म य लेकर आए। अपनी यास
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बुझाने क िलए मने ज दी से उसे गटक िलया। कछ देर क बाद म सो गया। जब म जागा, बाहर अँधेरा था। मने
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सोचा िक म कछ घंट क िलए सो गया था; परतु बाद म मुझे बताया गया िक म डढ़ सौ िदन, करीब चार महीन
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तक, गहरी िन ा म था। जब म सोया, वषा हो रही थी। इसका मतलब वे सही बोल रह थे; य िक जब म जागा,
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मेरी ह याँ तक ठड से जम रही थ । म अभी भी भूख से मरा जा रहा था और किटया म कछ भी नह बदला था।
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“उ ह ने उनक अिभवादन को वीकारा और मेरी ओर देखा। वह मेर बराबर म आकर बैठ और मुझे एक बड़ा
पा िदया। दूसर ऋिष आए और उसम पानी भरने लगे, जब तक वह पूरा नह भर गया। मुझे नह पता था िक
उसक साथ या करना चािहए था!
“उ ह ने मुझे पा क ऊपर अपना चेहरा ले जाने का िनदश िदया और तब पहली बार मने अपना ितिबंब देखा।
मेरा चेहरा कटा-फटा और टाँक से भरा आ था। मेरा लगभग गंजा िसर यु क िनशान को दशा रहा था, िजसका
म एक िह सा रहा होऊगा। मेरी एक आँख िपघली ई थी और दूसरी क चार ओर काले िनशान थे। अपना दायाँ
कान गायब देखकर म डर गया। म एक रा स क तरह भयानक िदख रहा था।”
न पर ओ क य इतने िवचिलत करने वाले थे िक डॉ. शािह ता और एल.एस.डी. को दूसरी तरफ देखना
पड़ा। उसक चेहर पर कछ भी सामा य नह िदख रहा था। येक अंग खराब हो चुका था।
“ ‘पु , तुम कसा महसूस कर रह हो?’ ऋिष ने मुझसे पूछा।
“ ‘आप कौन ह?’ मने ित न िकया।
“ ‘म देवोदास । म ध वंत र क नाम से भी जाना जाता । तुम मुझे ‘कािशराज’ भी कह सकते हो। वे सब मुझे
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क सामने येक चीज न पर थी। ve
“किटया क तीन साधु म से एक सु ुत थे। सु ुत खड़ ए और कहा, ‘जी गु देव!’ और किटया से बाहर चले
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गए।
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“कछ देर क बाद सु ुत अपने हाथ म जल पा िलये वापस आए और उसे मुझे दे िदया। घोल म से पुदीने जैसी
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गंध आ रही थी और वह हर रग का था। म िकसी भी खा पदाथ का िवरोध करने क िलए असमथ था, इसिलए म
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उसे एक ही घूँट म पी गया। उ ह ने मुझे चेहर पर मु कान िलये दयापूण से देखा। वे मुझसे बड़ थे। कछ िदन
बाद उ ह ने मुझे बताया था िक वह 49 वष क थे। ध वंत र लगभग 70 वष क आयु क थे।
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“वह जो कछ भी था, उसे पीने क बाद सु ुत ने वह मुझसे ले िलया और कहा, ‘म सु ुत । काशीराज ारा
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आयुवद का ान दान करने हतु चुने गए दस संत म से एक। हम काशीराज क पहले तीन िव ाथ ह। अभी इस
समय हम िहमालय क पवत- ंखला म िनवास कर रह ह। वह देव त ह और वह नाग ह।”
जैसे ओ बता रहा था, येक व तु ऐसे प थी, जैसे िक वह उनक आँख क ठीक सामने घिटत हो रही हो।
ध वंत र भगवान स श, परतु वृ िदखाई िदए। दूसरी ओर, सु ुत क लंबी दाढ़ी और शांत चेहरा था और देव त व
नाग िबना दाढ़ी-मूँछ क थे। सभी ने समान ाचीन पारप रक वेशभूषा धारण क थी और लकड़ी क च पल, िज ह
‘खड़ाऊ’ कहते ह, पहने ए थे।
“जब सु ुत मुझसे बात कर रह थे, देव त कले क प क एक गठरी िलये अंदर आए और उसे सु ुत को दे
िदया। मने एक श द नह कहा और कवल उनक बातचीत सुनता रहा।
“ ‘मृ युंजय, मुझे तु हार चोट क िनशान का माप इन पि य पर लेना ह, िजससे िक हम श य िचिक सा कर
सक और इ ह ठीक कर सक।’ देव त ने कहा।
“उसने माप िलया और कछ आयुविदक औषिध एवं जड़ी-बूिटय का लेप तैयार िकया और मेर घाव पर लगा
िदया। बीते समय क साथ म ठीक होता चला गया। महीन उनक साथ किटया म रहते-रहते म उनसे भलीभाँित
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बार म पढ़ा था, जब अिभलाष िव ान क ऊपर अपनी पौरािणकता क े ता िस करने का यास कर रहा था।
सु ुत कौन ह?” ve
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“कहा जाता ह िक सु ुत मूलत: दि ण भारत क िचिक सक थे, जो वाराणसी म कायरत थे। वे गंगा नदी म
तैरते शव का योग ऐसे काय एवं अ यास क िलए करते थे, िजसका इससे पूव िकसी ने साहस भी नह िकया
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था; जैसे एक मृत शरीर क अंग को दूसर शरीर म जोड़ना। सव थम सु ुत नाम का उ ेख ‘बॉवर पांडिलिप’
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(चौथी व पाँचव शता दी) म ह, िजसम सु ुत का नाम िहमालय म िनवास करने वाले दस संत क सूची म से
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एक ह। ‘सु ुत संिहता’ का बाद म अरबी म अनुवाद आ, िफर अं ेजी म, िजसक अनुसार ही आधुिनक िव ान
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ीप क जंगल म िछपे दोन आदिमय ने वीरभ क हाथ म न शे को देखा और तुरत ही प र थित को भाँप
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िलया। वह अपनी योजना बदलने क िलए मजबूर हो गए। उ ह ने िन य िकया िक उनम से एक वीरभ का पीछा
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करगा और दूसरा इमारत क घटना पर नजर रखेगा। उनम से एक ने अपने हिथयार का एक िह सा दूसर को
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िदया और वीरभ का पीछा करने क िलए चला गया। हवा म हलीकॉ टर का पीछा नीचे पानी म आधुिनक ती
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जैसे ही डॉ. ीिनवासन पूछताछ क म लौट, प रमल और अिभलाष क बीच िवचार-िवमश बीच म ही क
गया। जैसे ही उ ह ने वेश िकया, उनक ित छाया न पर चमक उठी, जो सािबत करती थी िक बंद आँख
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जैसे ही डॉ. ीिनवासन ने अपनी त वीर देखी, वे झुँझलाकर बोले, “म न पर य ? यहाँ या हो रहा ह?
तुम लोग को जो करने क िलए कहा गया ह, उसे गंभीरता से करक अपने-अपने घर वापस य नह जाते?” वे
गरजे।
उनका यवहार अ यािशत था, िजससे सभी दंग रह गए थे। डॉ. शािह ता और डॉ. ब ा उनक पास गए, यह
देखने क िलए िक वे ठीक तो ह! पर डॉ. ीिनवासन ने उन पर यान न देते ए उ ह तेजी से हाथ िहलाकर इशार
से वापस भेज िदया।
ओ एक जंगली अिभ य क साथ डॉ. ीिनवासन को घूर रहा था और डॉ. शािह ता को वापस अपनी तरफ
आते देखकर उसने आँख िफर बंद कर ल । शािह ता बैठ और ओ को आगे बढ़ने का संकत िदया।
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11.
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मृत संजीवनी
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“सु ुत संिहता को संकिलत करने म एक वष से भी अिधक का समय लगा था। येक िदन, िबना िकसी चूक
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क, सु ुत सवेर से ही कई घंट तक बोला करते थे और नाग िलखा करता था। देव त, उ ह िजस भी चीज क
आव यकता हो, उसम सहायता करता था और साथ ही मेरी देखभाल भी करता था; य िक मेर शरीर पर कई जगह
श य िचिक सा क गई थी, िजसे आप सब लोग आज क समय म ‘ ला टक सजरी’ क नाम से जानते ह।
इसिलए मुझे ब त अिधक देखभाल क आव यकता थी।
“मेर ठीक हो जाने क बाद, सु ुत और नाग को सुनने क अित र , म देव त क सहायता करता था।
काशीराज ायः यह सुिन त करने, िक म ठीक हो रहा और ंथ क गित जानने क िलए आते थे।
“जैसे-जैसे समय बीतता रहा, म उस थान का एक िह सा बनता गया। म शांितपूण जीवन जी रहा था। मेरी
सभी चोट क िनशान धीर-धीर गायब हो गए। कछ था, जो मुझे परशान कर रहा था। रोज रात को सु ुत काशीराज
क किटया म कछ समय क िलए जाते थे। उस समय िकसी को भी वहाँ वेश करने क अनुमित नह होती थी।
अतः एक िदन मने देव त से पूछा, ‘सु ुत गु जी क किटया म रोज रात को य जाते ह?’
“देव त ने भोलेपन से जवाब िदया, ‘म भी यही सोचता । और तो और, मने उनसे एक बार पूछा भी था, परतु
उ ह ने बताने से इनकार कर िदया था।’
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िस ांत होता तो तुम ब त पहले ही राख हो चुक होते।” नाग ने कठोर वर म कहा, जो घृणा से भरा लग रहा
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था। म नाग क आसपास कभी भी सहज महसूस नह करता था; परतु यह समय तु छ बात पर िवचार करने का
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नह था। म उस समय ा ई सूचना से िहल गया था िक म एक परी ण क व तु —एक योग, कवल एक,
िजसे सफलता ा ई थी। उसी ण मने एक सामा य य क तरह महसूस करना बंद कर िदया। हीनता का
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“ ‘मने देव त क चेहर से जान िलया था िक उसे इन सब का खुलासा नह होने देना था। उसक चेहर पर इस
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बात का िज करने क िलए नाग क ित ोध भी िदखाई िदया; परतु तीन संत म सबसे कमजोर होने क कारण
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उसने ोध म कछ नह कहा। मेर म त क म अनिगनत न का गुबार उठा और उनक उ र देव त क पास थे।
“ ‘हम यह सब नह पता। हमने जब तु ह पहली बार देखा था, तुम मृत थे।’ देव त ने मेरी उ मीद तोड़ते ए
कहा।
“ ‘तुमने मुझे कहाँ पाया था?’
“ ‘हम नह पता, तुम कहाँ मर थे; परतु हाँ, हम पता ह िक तुम कहाँ पैदा ए थे!’ नाग ने यं या मक तरीक
से कहा।
“ ‘मुझे बताओ, शायद मुझे वह से कछ जवाब िमल जाए!’ म आशावादी था।
“ ‘ध वंत र क किटया म, वहाँ।’ उसने इशारा िकया, ‘जहाँ सु ुत ‘कसे दूसरा मृ युंजय बनाया जाए’ क
ि या िलख रह ह।’ नाग िखलिखलाकर हसा।
“पहली बार मेर अंदर कई कार क भावना ने ज म िलया, िवशेषतः नकारा मक।
“ देव त ने अपने हाथ से मेरा कधा थपथपाया और कहा, ‘हम तु हार बार म कछ नह पता; परतु सु ुत जानते
ह। शायद समय आने पर वे तु ह बताएँगे।’
“म सदैव उनक आ ा का पालन करता था। वा तव म, इस ण से पहले मेर अंदर उनक आ ा क अवहलना
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आयु नह बढ़गी। इसी कारण तु ह ‘मृ युंजय’ नाम िदया गया ह। मृ यु (मौत), िवजय (जीत)—वह, िजसने
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मृ यु पर िवजय ा कर ली हो। तुम न कवल एक संपूण मनु य हो, ब क एक सामा य मनु य से कह अिधक
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उ त इस मनु यता का बु प हो।’
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“म इस रह यो ाटन से हरान था। सु ुत मेरी परशानी समझते ए आगे बोले, ‘ठीक ह, इस तरह सोचो। हम
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सभी एक समय-च म बँधे ह। समय, जो न कभी वापस जाता ह और न ठहरता ह। यह वह जहाज ह, िजसम
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नह देख सकता। तुम उसक आँख क िलए अ य हो चुक हो। समय तु हार अंदर ठहर गया ह, मेर भाई! इस
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ण भी समय मुझे देख रहा ह और मेरी जीवन अविध से एक ण घटा रहा ह। मेर िलए समय लगातार चल रहा
ह; पर यह तु हार िलए थर ह। समय मुझे िकसी से बात करते देखता ह और सोचता ह िक म िकससे बात कर
रहा य िक उसे तुम नह िदखते, इसिलए मेरी आयु लगातार बढ़ रही ह और म एक िदन मर जाऊगा; परतु तुम
नह । यह मृत संजीवनी ह और तुम ध य हो िक तुम मृ युंजय हो।
“ ‘यिद यह पु तक सही हाथ म ह तो यह उन लोग क िलए वरदान ह, जो पहचान करने यो य ह िक कौन
पृ वी पर मानवता क सेवा करने हतु सदैव जीिवत रहने चािहए और िक ह िमटा देना चािहए! इसक िवपरीत, यह
पु तक यिद गलत हाथ म ह तो एक शाप ह। यह एक िव ासघाती अ ह। इसी कारण इसक सुर ा काशीराज
ारा क जाती ह, ‘सु ुत संिहता’ क तरह नह । इसका संकलन मेर अित र , जो उनका एकमा िव ासपा ह,
येक य क िलए गु रखा गया ह। म यह तु ह बता रहा , य िक इस गु थान क पीछ रहने का कारण
पूरा हो चुका ह। मृत संजीवनी को पूरा करने का उ े य ा कर िलया गया ह। गु देव शी ही हम अपना
सामान बाँधने और गु देव से ा ए ान से मानवता क सेवा हतु अपनी-अपनी राजधानी वापस जाने का िनदश
दगे।’
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संबोिधत करते ए बोले, ‘संतो, ि य पु ो! मने अपना सारा ान आपको दान िकया ह। यही समय ह आप सब
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का अपने-अपने नगर वापस जाने, अपनी मानव जाित क सेवा व सुर ा करने का। आप कछ चुने ए लोग ह, जो
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सबसे पहले श य िचिक सक और र क बनगे। आप सब सव े िश ु रह ह और इसिलए मने आपक थान
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से पूव आप सबक िलए इस दावत का आयोजन करवाया ह। म एक वष क बाद अपने आगे क अनुसंधान को
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“काशीराज ने सात संत को देव त व नाग ारा तैयार भोजन क िलए बैठाया और उ ह भोजन परोसने का
आदेश िदया। उ ह ने िफर इशार से सु ुत और मुझे अपनी किटया म उनक पीछ आने क िलए कहा। हम उनक
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“ ‘सु ुत, तुम मेर आ ाकारी एवं अ यंत ि य पु हो। बाक सबक िलए काय समा हो गया ह, परतु तु हार
िलए यह सब शु आ ह।’ काशीराज ने कहा।
“ ‘गु जी, मेरा थान आपक चरण म ह। यह मेर िलए स मान क बात होगी िक म आपक िनदश का पालन
क । कपया बताएँ।’
“ ‘मने तु ह यहाँ कने और मेरी सेवा करने क िलए तैयार नह िकया ह। तु हारा वा तिवक काय वहाँ बाहर
लोग क सेवा और सुर ा करना ह। तु हारा नाम औषध िव ान क े म विणम अ र म िलखा जाएगा।
ज रतमंद तक प चो और अपने कत य का पालन करो। परतु मेर पास तु ह देने क िलए कछ और िज मेदा रयाँ
भी ह।’ गु देव ने एक सौ य मु कान क साथ कहा।
“ ‘गु जी, मुझे बताएँ। म पूरी ा और िव ास क साथ इसे क गा।’
“ ‘मृ युंजय को अपने साथ लेकर जाओ। मृ युंजय को संसार क तौर-तरीक सीखने चािहए। तुम इसे यह
िसखाने क िलए सबसे उपयु हो। यहाँ िफर से वापस आने से पहले इसे पूर एक वष क िलए अपने साथ रखो
और इसक देखभाल अपने पु क तरह करो।’
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“मने काशीराज को मृत संजीवनी सु ुत को देते ए देखा और कहते ए सुना, ‘अब तुम जा सकते हो और
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अपने सभी भाइय क साथ भोजन का आनंद लो।’
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“ ‘गु जी, जाने से पहले म एक िनवेदन करना चाहता ।’ सु ुत ने िवन ता से कहा।
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“ ‘हाँ!’
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“ ‘गु जी, मृ युंजय ब त याकल ह। वह अपना अतीत जानना चाहता ह। यही एक चीज ह, िजसम म उसक
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सहायता नह कर सकता। कपया इससे उबरने म उसक सहायता कर, अ यथा वह वो य नह बन पाएगा, जो
आप उसे बनाना चाहते ह।’
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“काशीराज मु कराए और मेरी ओर देखा। उ ह ने मुझे अपने िनकट बैठने क िलए कहा। मने अनुसरण िकया।
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“िफर वे ध वंत र को छड़ाने क िलए नाग पर टट पड़। यह आिखरी चीज थी, जो मने देखी। िफर म एक ब े
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क तरह भागा—अकला और डरा आ। म रा ते म थोड़ी देर का और मुझे लगभग 24 घंट लगे अपने गंत य
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तक प चने म। मने तब पूर एक िदन तक ती ा क , जैसे सु ुत ने कहा था। वे नह आए। िनराश होने क बजाय
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समय ले रह ह।
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“इस क पना म मने दूसर िदन, एक और िदन, िफर कछ और िदन तक ती ा क ; परतु वे कभी नह आए।
जब मने काशीराज क किटया को छोड़ा था, मने अ य सभी साधु को खुले आकाश क नीचे सोते ए देखा था।
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म लगभग एक वष तक िहमालय क पवत- ंखला म भटकता रहा। मेरी थित िबना िकसी देखभाल क हर
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बीतते िदन क साथ िबगड़ रही थी। मने जानवर को देखकर निदय से पानी पीना और जंगल से पि याँ खाना सीख
िलया था। म अ व थ हो गया था, भूख से और अनेक रोग से िसत था। यहाँ तक िक म गलती से जहरीली
औषिधयाँ भी खा गया था और जंगली जंतु ारा आ मण कर उनक भोजन क िलए इ तेमाल भी आ; परतु म
कभी नह मरा।
“मने जानवर क ज म और उनक मृ यु को देखकर जीवन-च को समझा। म भटकता रहा और एक िदन
पहाड़ से नीचे मने एक गाँव देखा। नाग का पु तक क िलए वह िहसा मक काय देखकर म मानव जाित से
भयभीत था, इसिलए मने उसक और पास न जाने का िवचार िकया। म जंगल एवं पहाड़ म वापस चला गया और
खुद को वह ले गया, जहाँ से मने शु िकया था।
“अब एक वष बीत गया था और म जैसे ही पहाड़ी क चोटी पर प चा, मने उस जगह पर चार तरफ ककाल
िबखर देख।े तब मुझे पता लगा िक िजस िदन म भागा था, उस िदन संत सो नह रह थे, ब क काफ समय पहले
ही मर चुक थे। म इतना न कभी पहले और न कभी उसक बाद रोया। म उन लोग क िलए रोता रहा, िजनको म
जानता था, जो मेर दो त थे, मेरा प रवार और मेरा सम त संसार थे। म वयं को अनाथ जैसा महसूस कर रहा था
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no
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12.
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थम कोप
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वीरभ िनदशानुसार ीलंका प च गया था। एक आधुिनक मुखौटा यु य ारा उसक गितिविधय का
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बारीक से पीछा िकया जा रहा था। वीरभ को वांिछत थान पर ले जाने क िलए एक ीलंकाई गाइड को काफ
धन िदया गया था। गाइड उसक िलए आव यकता पड़ने पर गोला-बा द क यव था करने क िलए भी सहमत
था। यह या ा कल बारह लोग से ारभ ई थी—एक को छोड़कर, जो उन सब का पीछा कर रहा था। उस
आदमी ने अपने साथी को फोन िकया, जो काय पूरा करने क िलए, सही समय क ती ा करते ए, ीप क
जंगल म क गया था।
ीप क जंगल म वह हमला करने क िलए पूरी तरह से तैयार था। उसने फोन उठाया, थोड़ा िसर िहलाया और
कहा, “हाँ।” िफर फोन काट िदया। िन त समय क ती ा करते ए उसने सूय क ओर देखा और िफर अपनी
घड़ी क ओर।
पूछताछ क म ओ अब भी बोल रहा था, डॉ. ीिनवासन का फोन बजा। सभी घंटी क आवाज से परशान हो
गए। कॉलर आई.डी. पर फोन करने वाले का नाम िदखाई दे रहा था, िजसे अनदेखा नह िकया जा सकता था।
अतः उ ह ने सब को जारी रखने का संकत िदया और फोन को उठाते ए कमर से बाहर िनकल गए।
“हाँ, वीरभ !”
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डॉ. ीिनवासन क पास जवाब नह था, अतः वे चुप खड़ रह।
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उधर पूछताछ क म ओ ने बताया—“म अपने िवचार म तथा अपने लोग को खोने क शोक म डबा आ
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था और तब मने अपने आप को चार ओर कछ परछाइय से िघरा पाया। मने अपने आप को अपने पैर पर खड़ा
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िकया और मुझे अहसास आ िक जब म यहाँ आया तो कछ आदमी यहाँ िछपे ए थे और अब वे मेर पास आ रह
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डॉ. शािह ता ने एक बार क िलए उसे बीच म रोकते ए पूछा, “पवत म वे तु ह नह तो िफर िकसे ढढ़ रह
थे?”
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रॉस क जंगल म आदमी को अपने साथी से दूसरी बार फोन आया, िजसने ीलंका क गुफा क गितिविधय
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“हाँ, वीर!” डॉ. ीिनवासन ने उ र िदया। ve
“सर, हम कछ औजार और उपकरण भी यहाँ िमले ह। हमार पास एक बड़ा धनुष, कछ तीर व तरकश, एक
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मुकट, एक सोने क कमरधानी, कछ अंिकत धा वक शा , आभूषण से भरा एक ब सा और सोने क कछ
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डॉ. ीिनवासन ने सुनने क बाद कहा, “तुम िजतना ला सकते हो, ले आओ; पर वीर, तु हार हाथ म जो पु तक
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ह, वह ाथिमकता ह।”
पूछताछ क म डॉ. शािह ता अपने काय म लगी ई थ ।
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“एक वष बीत गया था। म अकला भटक रहा था। मुझे नह पता था िक भोजन या होता ह! म पवत म
भटकता रहा और वही मेरा घर बन गया था। एक वष क बाद म उस थान पर वापस आया, जहाँ मने ज म िलया
था। म साधु क, अपने प रवार क बीच था। बस, अब वे मुझसे बात नह कर रह थे। मृत लोग बात नह करते।
वह जैसे-जैसे बोलता गया, उसक याद क छोट-छोट िह से प प से लोग क अवशेष को दशाते ए,
जैसे ओ को याद थे और ओ क उस समय क दशा को न पर िदखा रह थे।
“चार ओर से परछाइयाँ अब मेर िनकट आ गई थ और चेहर अिधक साफ िदखाई दे रह थे। मेर पास अब जीने
क इ छा नह बची थी। सभी आदिमय क पास हिथयार थे और म यह देखने क िलए तैयार था िक मृ यु मेर िलए
या लेकर आएगी! इसिलए मने उनक तरफ कोई यान नह िदया और वही िकया, जो म चाहता था। म िदल
खोलकर रोया, जैसे कोई अनाथ बालक अपने माता-िपता क खो जाने पर रोता ह। म जानता था, मेर पास कछ ही
िदन बचे ह और वे आदमी मुझे कह दूर ले जाकर मार दगे। पूर वष भर म अकला था। मने अपने कपड़ नह
बदले थे। मुझे नह पता था िक दाढ़ी कसे साफ क जाती ह।”
“मेर पैर फट ए थे और मेर बाल मेरा चेहरा िछपाने िजतने लंबे हो गए थे। उस वेश म मुझे पवत म भटकता
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िछपा दी थ । थोड़ िदन म ही वे मान गए िक म उन पर एक बोझ से यादा कछ नह , िजसे िबना िकसी उपयोग
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क िदन म दो बार िखलाना पड़ता ह। अतः वे जान गए थे िक उनक िलए यही सबसे अ छा होगा िक या तो मुझे
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मार द या मु कर द।”
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“इसिलए, एक िदन सेनापित ने अपने एक आदमी को आदेश िदया िक मुझे तुतनीय बनाया जाए, तािक वह
मुझे उनक राजा क पास ले जा सक। मेरी दाढ़ी बनाई गई और मुझे अ छ से नहलाया गया। इसक बाद मुझे एक
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जोड़ी नए व पहनने क िलए िदए गए। यह देखते ए िक मेर रहने म कोई खतरा नह ह, राजा ने मुझे मु करने
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का फसला सुनाया। जैसे ही म तैयार आ और दपण म खुद को देखा, मने जीवन म पहली बार मृ युंजय को
पहचाना। लेिकन मेरी स ता गायब हो गई, जैसे ही मुझे यह अहसास आ िक म एक पूण वय क आदमी , जो
िकसी काम का नह ह। म अंदर से खोखला था—िबना ेम क, घृणा क, शांित क, हलचल क, कोलाहल क;
बस, कवल स ाटा! मेर होने या न होने से िकसी को कोई फक नह । मेर आसपास बूढ़ और जवान दोन तरह क
स िच चेहर वाले य थे, जो भगवान क ारा एक-दूसर से िकसी-न-िकसी प म बँधे ए थे। अ छ और
बुर लोग से भर संसार म अकले रहने से बुरा या हो सकता था? मेरी आँख से आँसू बहने लगे। म अपने जीवन
का अंत नह कर सकता था, य िक म एक वचन से बँधा आ था, जो सु ुत ने मुझसे िलया था िक म पु तक क
सुर ा अपने जीवन से भी अिधक क गा। अ यथा मेर जीिवत रहने का कोई कारण नह था। वह वचन और वे
पु तक मेर शरीर से जीवन को अंदर-बाहर ख चती रह । म गु रहते ए धीर-धीर संसार क तौर-तरीक सीख रहा
था। कई बार म ऐसे रोग से त रहा, िजनका कोई उपचार नह था, परतु म कभी नह मरा।” ओ जैसे-जैसे
खुलासा करता रहा, न पर उसक मरती ई और नाजुक हालत िदखती रही।
“एक समय था, जब म एक महा पु ष क साथ, भोजन एवं आ य क बदले म, सेवक क तरह रह रहा था।
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िवचार कर ही रहा था िक उसने बंदूक से गोिलयाँ चलने क आवाज सुनी और वह सतक हो गया। वह पीछ मुड़ा
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और इससे पहले िक कोई यह जान पाता िक गोिलयाँ कहाँ से चल रही थ , उसक कछ लोग मर चुक थे। वीरभ
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ने अपने चार आदिमय को गोली चलने वाली िदशा क ओर भागने और गोली चलाने वाले को िजंदा पकड़ने का
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आदेश िदया। बाक बचे ए लोग वीरभ क साथ पु तक को लेकर िवपरीत िदशा म अपने वाहन क ओर भागे।
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‘यह पु तक मह वपूण ह।’ वीरभ ने सोचा। जो लोग गोिलयाँ चलने वाली िदशा म भागे थे, उ ह नह पता था िक
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िनकल गए। उनक ितिनिध क लड़ने क मता ऐसी थी िक कोई उसे परािजत नह कर सकता था। उसने यु
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करने क ाचीनतम कला का योग िकया, जो कला अब िवलु हो चुक थी। संभवतया चार आदिमय क मृ यु
पूरी तरह से यथ सािबत नह ई थी। इससे वीरभ को पु तक क साथ बच िनकलने का अवसर िमल गया था।
आदमी का उ े य सफल नह आ, परतु समा भी नह आ था। जैसे ही उसने उन आदिमय को मारा, वह
जान गया िक इसे कसे सुधारा जा सकता ह।
ीप क जंगल म आदमी को ीलंका से अपने साथी का फोन आया। उसने शी ता से सवाल िकया, “काम हो
गया?”
“नह , वह पु तक लेकर भाग गया ह। तैयार रहो।”
“तु ह िकतना समय लगेगा?”
“आधा घंटा, शायद कम। म उनक िब कल पीछ ।”
“ठीक ह, म उनसे िभड़ने क िलए तैयार । िकतने आदमी ह?”
“तीन लोग सुिवधा क क ओर जा रह ह और नौ मर चुक ह।”
डॉ. ीिनवासन पूछताछ क क ओर बीच रा ते म ही थे, जब उनका फोन बजा। फोन वीरभ का था।
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“30 िमनट क आसपास। तुम कौन हो? डॉ. ीिनवासन कहाँ ह?”
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बूढ़ आदमी ने िबना िकसी न क या परवाह िकए फोन काट िदया। उसे यह परवाह नह थी िक कई लोग ने
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अपनी जान खो दी ह।
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डॉ. ीिनवासन बूढ़ आदमी क लड़खड़ाती टाँग, जो उससे सँभल नह पा रही थी, को देखते ए वह खड़ रह।
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उ ह ने वहाँ खड़, पागल -सा यवहार करते, दयाहीन ाणी को िसर से पैर तक अ छ से देखा, तब उ ह अहसास
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डॉ. ीिनवासन अपने आप को सँभालते ए छोट-छोट कदम क साथ आदमी क तरफ बढ़। उ ह ने उसे अपने
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उ ह कछ याद आया और वे पूछताछ क क ओर भागे। ve
वहाँ ओ बोल रहा था—
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“मेर िवषय म बात चार ओर फल गई थ । शी ही उन बात ने मुझे शहर म चचा का िवषय बना िदया था।
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लोग मुझे ऐसे देखते थे, जैसे म िकसी दूसरी दुिनया से ! म शाम क चाय क बैठक म चचा का िवषय था। तब
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एक िदन कछ सैिनक मेर मािलक क घर आए और अगली सुबह मुझे अदालत म पेश करने का आदेश िदया। म
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13.
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गु प रवतन
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उधर ीप क जंगल म आदमी बेस ी से अपनी िडिजटल घड़ी देख रहा था। उसे पता था िक वह समय नह गँवा
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सकता ह। ‘योजना को तुरत ही लागू करना होगा। मुझे अंितम बार उसे फोन करना होगा।’ उसने अपनी जेब से
सेलफोन बाहर िनकालते ए सोचा। सुिवधा क क अंदर अकले धावा बोलने से पहले वह जानना चाहता था िक
उसका साथी कहाँ ह? उसक साथी ने फोन नह उठाया। उसने अनुमान लगाया िक वह ल य क पास ही होगा।
उसक बाद उसने एक वॉइस मैसेज छोड़ने का िन य िकया, जो था—
“म योजना अनुसार सुिवधा क क अंदर जा रहा । तुम भी योजना क अनुसार ही चलना।”
उसने िफर अपने आप को भारी श क साथ अंदर जाने क िलए तैयार िकया। उसका चेहरा अभी भी एक
आधुिनक काले मुखौट क पीछ िछपा आ था। उसने सुिवधा क क मु य दरवाजे क ऊपर से छलाँग लगाई और
चार तरफ कमर क जाँच करते ए उसने एक थान पर कमरा देखा। रा ता साफ देखते ही उसने तीर चला
िदया। वह सीधा कमर क बीचोबीच लगा और उसे न कर िदया। िफर वह अपने ऑटोमैिटक धनुष-बाण क साथ
इमारत क अंदर चुपक से घुस गया। उसक आँख एक शीशे से ढक ई थी, जो एक च से उसक माथे पर बँधा
आ था। उसे शीशे पर अंदर उप थत आदिमय क त वीर, इमारत का 3D य सभी कमर व गिलयार सिहत
िदख रह थे, जो उसे उस क क ओर ले जा रह थे, जहाँ ओ को बंधक रखा गया था। वह शीशे से अपने ल य
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ए आगे बढ़ा।
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रॉस ीप क तट पर एक हलीकॉ टर उतरा, िजसका पीछा ती गित वाली एक नाव कर रही थी, जो समु को
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चीरती ई उसी थान पर आकर क । दूसरा मुखौटा धारक हलीकॉ टर को धीर-धीर नीचे उतरते ए देख रहा था।
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उसने अपना ब ता उठाया और हलीकॉ टर क तरफ भागा। भागते-भागते उसने अपने हिथयार तैयार िकए। जैसे ही
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लोग हलीकॉ टर से उतर, उनका वागत गोिलय क बौछार से आ। कछ ने पलटकर आदमी क ओर गोिलयाँ
चला । वीरभ हलीकॉ टर से नीचे उतरा। वह जानता था िक जो पु तक उसक पास ह, वह एक खजाना ह। अतः
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िबना समय खराब िकए उसने अपनी जीप क िलए चार ओर देखा और ढढ़ते ही उसक तरफ भागा। आदमी
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वीरभ क मंशा भाँप गया था और उसे असफल करने क िलए उसने जीप क टायर पर गोिलयाँ चला और िफर
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चालक को भी गोली मार दी। वीरभ तुरत ही चालक क जगह बैठा और गाड़ी का इजन टाट कर िदया। वह
पंचर ए टायर वाली जीप से सुिवधा क क ओर भागा। बचे ए आदिमय ने वीरभ को बचाने क िलए अपनी
िजंदगी को दाँव पर लगाते ए गोली चलाने वाले को उलझा िलया।
पूछताछ क म न पर दाढ़ी वाला ओ सोने क कडल और जनजातीय मुकट िसर पर पहने ए िदखाई दे
रहा था, िजसे भगवान क तरह पूजा जा रहा था। ओ बोला, “म लोग को छल, कपट और धोखा देना नह
जानता था। म िकसी का भी अनुिचत लाभ नह उठाता था। कछ बूढ़ कहते थे िक म उनक िलए भगवान ारा भेजा
गया अवतार । उ ह िव ास था िक मेरी सेवा करना वयं भगवान क सेवा करने क समान ह। लोग ने मुझे
जानलेवा बीमा रय से व थ होते, ाकितक आपदा से िबना िकसी नुकसान क िनकलते देखा था। यह िव ास
चलता रहा और मेरी िजंदगी कछ समय क िलए िबना िकसी घटना क गुजरती रही। परतु तभी कछ युवक िकसी
अ ात बीमारी से मर गए। लोग क यान म आना शु हो गया था िक मेरी उ एक िदन भी नह बढ़ी थी, जब से
म उनक कबीले से जुड़ा था। जाित क सभी बड़-बूढ़, जो मुझम िव ास रखते और पूजते थे, वे सभी सामा य मौत
मर गए थे और उनक साथ ही उनका िव ास भी। समय बदल गया और उनक नेता भी बदल गए। म अब एक
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म देखा और वे फौरन जान ग िक कछ भी न कहना ही उनक पास इस समय एकमा िवक प ह। डॉ.
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ीिनवासन ने पुनः ओ क ओर देखा और उसे हमेशा क तरह न क ती ा करते ए शांत व थर पाया।
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बूढ़ आदमी ने अपने क से यह सब देखा और एक पैिनक बटन दबा िदया।
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ओ क भाषा और लहजे म ‘ या आ, छोट?’ यह सुनते ही डॉ. ीिनवासन एकदम शांत हो गए। पर अगले
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तरफ, वीरभ पंचर ए टायर वाली जीप क साथ प च गया और इमारत क अंदर चला गया। उसका पूरा शरीर
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खून क िनशान से भरा आ था। यहाँ तक िक उसका चेहरा भी पूरी तरह खून से लथपथ था। वह बुरी तरह हाँफते
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ए सुिवधा क क अंदर घुसा और उसने डॉ. ीिनवासन को फोन िकया। सश सुर ाकिमय ने उसक सुर ा
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खोज नह पाया। उनम अमरता को पाने क कजी ह। उनम मेर जैसे और मनु य को बनाने क ि या विणत ह।
समय येक िजंदगी क हर एक ण का िहसाब रखता ह, इसिलए तु हारी हर िदन आयु बढ़ती ह। पु तक म
सवश मान समय क से तु ह िछपाने क मता ह। क पना करो, समय क िलए तु हारा अ त व नह ह।
तु हार िलए मृ यु एक म ह। हर कोई, जो पु तक क मा यम से गुजरता ह, वह सदैव जीिवत रहगा।” कोई भी
अभी तक इस अचानक ए दय-प रवतन क पीछ का कारण नह समझ पाया था।
जैसे ही वे ओ क बात को समझने का यास कर रह थे, डॉ. ीिनवासन का फोन बजा। वह वीरभ था।
उ ह ने फोन उठाया।
“सर, मेर पास पु तक ह। म अब सुिवधा क म वेश कर रहा । िकसी ने हमारा ीप तक पीछा िकया ह।
सर, आप कहाँ ह?” वह भागने क कारण बुरी तरह हाँफते ए बोला।
वीरभ क चीखती-सी आवाज फोन से आ रही थी, िजसक कारण उसक ारा कह गए हर एक श द को ओ
ने सुना।
ओ को सदमा-सा लगा, जो उसक चेहर पर प िदखाई दे रहा था। पहली बार खुद को उसने ठगा आ
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बढ़, िजस पर बूढ़ आदमी क देखने क िलए कमरा लगाया गया था। उ ह ने उसे मार-मारकर चकनाचूर कर िदया।
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बूढ़ आदमी ने डॉ. ीिनवासन को कमर पर हार करते देखा और िफर न काला हो गया। वह बूढ़ा मु कराया।
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य िक कमर म एक और कमरा िछपा था।
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डॉ. ीिनवासन ने ओ का हाथ पकड़कर एक बार हलका सा दबाया और िफर वे जाने क िलए मुड़। ओ ने
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“उसका नाम नाग ह। म बस, यही जानता ।” डॉ. ीिनवासन ने तेजी से कमर से बाहर जाते ए जवाब
िदया।
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गया। वह पूछताछ क क िकनार म बने साधन क क ओर भागी।ve
आधुिनक मुखौटा लगाए पु ष ने बड़ी नृशंसता से गिलयार म, िबना िकसी शोर क, सुर ाकिमय को मार िदया
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था। तभी उसक साथी ने सुिवधा क म घुसकर यूिनफॉम म िदखने वाले सभी लोग को धड़ाधड़ मार िगराया।
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सुिवधा क म गोिलय क आवाज गूँज उठ , िजसने सभी को बहरा-सा कर िदया था। सभी सुर ाकम वेश ार
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क तरफ भागे, िजससे पहले साथी का रा ता साफ हो गया और उसक पूछताछ क तक प चने का ब त समय
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बच गया।
ओ ने भी डॉ. शािह ता और डॉ. ब ा क साथ गोिलय क आवाज सुनी। वह एकदम हरकत म आ गया और
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अिभलाष ने अब भी कोई िति या नह क और सोता रहा। डॉ. ब ा उसक पास गए और डॉ. शािह ता अपने
िदमाग म सही व गलत क ं म फसी ओ क पास ग । डॉ. ब ा ने अिभलाष को जगाने क िलए िझंझोड़ा, पर
वह वहाँ वैसे ही लेटा रहा। डॉ. ब ा ने उसक न ज जाँची और उसे मरा आ पाया। डॉ. शािह ता घबरा ग और
ओ को खोलने लग । प रमल ने अिभलाष को उसी ण मार िदया था, जब उसने बूढ़ आदमी का चेहरा क यूटर
पर देखा था। कब और कसे, इस न का पूछताछ क म िकसी क भी पास कोई जवाब नह था।
डॉ. ीिनवासन क क गिलयार म प चे और वीरभ को उ ह पु तक देने क िलए कहा। वीरभ ने थित क
गंभीरता को न समझते ए पु तक उ ह दे दी। डॉ. ीिनवासन ने पु तक को कसकर अपनी छाती से लगाया और
वापस पूछताछ क क ओर बढ़। बूढ़ आदमी ने यह सब देखा। उसने एक ईयर पीस उठाया और एक बटन
दबाया।
वह अपनी भारी आवाज म फसफसाया, “िलज...?”
एल.एस.डी. ने साधन क म उसी कार क ईयरपीस से यान से सुना और जवाब िदया, “हाँ, सर।” वह एक
नल क ऊपर चढ़ी और साधन क क मचान पर रखे प च से बाहर और न िदखाई देने वाले एक बैग को
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था। जैसे ही डॉ. ीिनवासन ने एल.एस.डी. क आँख म देखा, वह यं या मक तरीक से मु कराई। एल.एस.डी. ने
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बड़ी रता से डॉ. ीिनवासन क सीने म गोली मारकर उनसे पु तक छीन ली।
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डॉ. ीिनवासन फश पर िगर गए और उनक शरीर से खून बहने लगा। दद से छटपटाते ए उ ह ने ाण याग
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िदए। डॉ. ब ा और शािह ता डॉ. ीिनवासन को अपनी अंितम साँस लेते और एल.एस.डी. क र यवहार को
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देखते ए त ध खड़ रह गए। पछतावा उससे कोस दूर था। वहाँ बूढ़ा आदमी अपने क म एल.एस.डी. क हाथ
म पु तक देखकर मु करा उठा। एल.एस.डी. ने डॉ. ब ा और डॉ. शािह ता को िनशाने पर िलया और धमकाया,
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“िहलो मत! इससे पहले िक तु ह यह पता चले िक मुझे दोन हाथ एक साथ चलाने क आदत ह, तु हारी जान
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14.
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अमर यो ा
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दूसर साथी ने बाहर का दरवाजा करीब-करीब खाली कर िदया था और अब उसे कवल वीरभ एवं उसक बचे
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ए दो आदिमय से पार पाना था। डॉ. शािह ता ने कछ साहस िदखाते ए ओ को िफर से खोलना शु कर
िदया।
इसे भाँपते ए नाग ने एल.एस.डी. को दोन को मार देने और ओ को उसक पास जीिवत लाने का आदेश
िदया। एल.एस.डी. िफर से यं या मक प से मु कराई और डॉ. शािह ता एवं डॉ. ब ा पर अपने दोन हाथ से
िनशाना साधते ए एक साथ गोली चला दी। डॉ. ब ा अपनी सजगता क कारण तेजी से रा ते से हट गए। दूसरी
गोली ठीक तरह से अपने िनशाने पर लगी; परतु उसे नह , िजसक िलए थी। डॉ. शािह ता क आँख ओ पर थ ।
ओ क एल.एस.डी. पर और एल.एस.डी. क शािह ता पर थी, इसिलए उसक शािह ता को गोली मारने से
पहले ओ को सि य होने क िलए कछ समय िमल गया था। ओ ने िबना िकसी मंत य क िन वाथ र क को
बचाने क कोिशश म शािह ता क बदले वयं को आगे कर िदया। गोली उसक छाती पर लगी। शािह ता और
ओ दोन एक-दूसर से कछ दूरी पर िगर पड़। एल.एस.डी. को अहसास आ िक उसने ब त बड़ी गलती कर
दी ह। िबना सोचे उसने शािह ता पर िफर से िनशाना साधा। ओ फश पर पड़ा आ दद से छटपटाता असहाय
देखता रहा और डॉ. शािह ता क िसर पर एल.एस.डी. ने गोली मार दी।
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तुरत पहचान गया िक उसने उसे ओ क अ थामा एवं सुभाष चं बोस क याद म देखा था। वीरभ बुरी तरह
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डरा आ नाग क क क ओर भागा।
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परशुराम ने जैसे ही ओ को देखा, जो एल.एस.डी. ारा बंधक था और िजसका खून बह रहा था, उनक आँख
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दरवाजा खुल गया। एल.एस.डी. क पीछ से प रमल अंदर आया। वह परशुराम पर आ मण करने क िलए तैयार
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था। इससे पहले िक वे एल.एस.डी. को मार पाते, वह भागकर एल.एस.डी. क सामने आ गया और परशुराम पर
िनशाना साध िदया। अपने आप को प रमल से बचाने क िलए परशुराम का िनशाना चूक गया। इसी बीच
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था और उसने पाया िक काफ खून बह जाने क कारण उसक िलए खड़ रहना भी संभव नह था। डॉ. ब ा टील
क ऑपरशन वाली मेज क पीछ िछपे यह सब देख रह थे। परशुराम और प रमल दोन ने एक-दूसर पर गोली
चलाई; परतु इस मुठभेड़ म प रमल एल.एस.डी. एवं ओ को बचाकर िनकाल ले जाने म सफल रहा। उसने
एल.एस.डी. को दरवाजा बंद करने वाला बटन दबाने क िलए कहा, िजससे वह िफर बाहर से खोला नह जा
सकता था। एल.एस.डी. ने बटन दबाया और प रमल अंदर घुसने क िलए दरवाजे क ओर भागा। परशुराम जान
गए िक यह प रमल पर वार करने क िलए उनक पास आिखरी मौका होगा, इसिलए उ ह ने अपना फरसा िनकाला
और दरवाजे पर ोध म चीखते ए दे मारा। िनशाना सटीक था। िजस ताकत क साथ हिथयार फका गया था, वह
प रमल क दो िह से करने क िलए पया था, परतु उनक हार से पहले ही दरवाजा बंद हो गया और हिथयार
दरवाजे क दरार क बीच फसा रह गया।
परशुराम दरवाजे क ओर भागे; पर वह जान गए थे िक देर हो चुक ह। प रमल ने गु रा ते को पार िकया और
उसक पीछ एल.एस.डी. भी ओ को ख चती ई ला रही थी। वे रसोई म प चे और गिलयार क तरफ बढ़ते रह,
जो उ ह नाग क क तक ले जा रहा था। उ ह ने वीरभ को रसोई क गिलयार क तरफ आते देखा। वह भी उसी
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िव ास करो।” एल.एस.डी. ने अपने झूठ को छपाते ए जवाब िदया।
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ओ ने एल.एस.डी. का एक-एक श द सुना, पर उसने कछ नह कहा। ब त अिधक दद क कारण वह बोल
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नह पा रहा था और वह यह भी जानता था िक सच जान लेने क बाद वीरभ उन पर हमला कर देगा। ओ यह
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भी समझ गया था िक वीरभ का इन दोन कशल लड़ाक से जीत पाना संभव नह ह, इसिलए उसने उस व चुप
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वीरभ ने कही गई बात पर सहमित जताते ए िसर िहलाया और उनक साथ क क ओर चल िदया। वीरभ
ने अब ओ को पकड़ रखा था और उसे चलने म मदद कर रहा था। वीरभ क साथ बातचीत म जो समय न
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आ था, उसने अ थामा एवं उनक बीच क दूरी को घटा िदया था और अब वह उनसे बस, एक मोड़ पीछ था।
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परशुराम भाग रह थे, िज ह पूछताछ क से रसोई तक का लंबा गिलयारा पार करना था, जो पूछताछ क क ठीक
पीछ तीन मोड़ दूर था।
क म नाग ने आिखरी बार न को देखा, यह िहसाब लगाने क िलए िक ओ को यहाँ तक लाने क िलए
उन सबको िकतना समय लगेगा। तब उसने न को बंद कर िदया और िहसाब लगाया िक वे 3 िमनट दूर ह।
िफर उसने न को एक तरफ सरकाया तो उसक पीछ दीवार पर लगा आ कोड से खुलने वाला ताला िनकल
आया। उसने िफर ताले क न क क -पैड पर कछ बटन दबाए।
अंदर-बाहर िनकलने वाले दरवाजे क दीवार को छोड़कर तीन दीवार म अचानक दरार उभर आ । उसने िफर
कछ और बटन दबाए तथा दरार से चार तरफ ब त से दरवाजे िनकल आए, जो िविभ िदशा क ओर अँधेर
रा त म खुल रह थे। जैसे ही दीवार हट और दरवाजे िदखे, फश क 8 फ ट एवं 5 फ ट क आकार क टाइल
अपनी सतह से नीचे धँस गई और अपने बराबर वाली टाइल क नीचे सरक गई, िजससे फश क नीचे िछपी ई
सीिढ़याँ सामने आ ग । नाग ने सुरि त तरीक से पु तक को खून से सने लाल रग क कपड़ म लपेट िलया, िजसे
िफर एक ब ते क अंदर कछ दवाइय और कछ अ य पु तक क साथ िछपा िदया। अब वह प रमल व
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शु कर िदया। वीरभ ने इस भाव म िक वह सही लोग क िलए लड़ रहा ह, ओ को दीवार क साथ नीचे
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िलटा िदया और ओ तथा टीम क अ य सद य को बचाने क िलए बहादुरी से लड़ा।
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उधर पूछताछ क म डॉ. ब ा अिभलाष क पास खड़ थे, िजसे प रमल ने तब धोखे से चुपचाप मार िदया था
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जैसे ही उ ह यह अहसास आ िक उनका जीवन अब भी दाँव पर लगा ह, उनका दुःख गायब हो गया। वे अभी
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जीिवत थे, पर कब तक, यह नह जानते थे। दूर से आती गोिलय क आवाज ने उनक िवचार को भंग कर िदया।
उ ह इमारत क दूसरी तरफ से बचकर िनकलने क िलए योजना बनानी थी। उ ह ने सबूत और जमीन पर फले
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ओ क खून का सपल, एल.एस.डी. का लैपटॉप, ओ क फाइल, िजसम उसक ारा योग िकए गए सभी नाम
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अ थामा क चेहर पर िनराशा छा गई। ve
“वह उनक पास ह, उनक क जे म। गु जी उनक पीछ गए ह।” अ थामा ने हताश होकर कहा।
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“आप मेर िलए य आए ह? आप मुझे य बचा रह ह?” ओ ने पूछा।
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ओ आ यचिकत रह गया और उसने अपने म त क म बढ़ते दबाव एवं भारीपन से जूझते ए उनक ओर
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देखा। धीर-धीर उसका म त क अंधकार म डब गया और वह मेज पर उनक सामने िगर गया।
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एल.एस.डी. एवं प रमल क म घुसे और उ ह ने अपने बॉस क साथ अपने आप को उस टाइल क नीचे छपा
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िलया, िजससे सीिढ़याँ िनकलती थ । टाइल िफर से अपने सही थान पर आ गई।
परशुराम ने लोह का दरवाजा उड़ा िदया और वे नाग क क म घुस।े उ ह ब त सार दरवाजे िदखे और तब वे
उलझन म आ गए िक अपने दु मन का पीछा करने क िलए कौन से दरवाजे को चुन? अब परशुराम ने चार तरफ
देखा। उ ह कछ भी असामा य नह िदखा। उ ह ने बेतरतीब ढग से एक दरवाजा चुना और उसे खोला। एक लंबा
गिलयारा िदखाई िदया। परशुराम ने उसक अंदर तेज भागना शु िकया, परतु दूसरा िसरा बंद पाने क बाद वे बेचैन
हो उठ। उ ह ने दूसर रा ते से कोिशश क , परतु सब यथ रहा। उ ह ने सुिवधा क क िविभ कोन म जो
िव फोटक लगाए थे, वे अब िकसी भी समय फट सकते थे, िजनसे ओ और अ थामा अनिभ थे। इसिलए
वह वापस रसोई क ओर भागे। वहाँ उ ह ने अ थामा को ओ क शरीर से गोली िनकालते ए पाया।
एल.एस.डी., प रमल और नाग वहाँ िब कल नह क। रा ता कशलतापूवक बनाया आ पूरी तरह से गु
था। वह समु क िकनार पर खुल रहा था।
तीन खुले आकाश क नीचे रतीली भूिम पर थे। एक पनड बी उनका पहले से ही इतजार कर रही थी। वे उस पर
चढ़ गए और पु तक सिहत ीप को छोड़कर चले गए।
परशुराम अ थामा क साथ जैसे ही इमारत से बाहर आए, वह व त हो गई। सु िचपूण ढग से बना सुिवधा
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“वे ज दी जान जाएँगे िक अमर व क ताले क अंितम चाबी हमार पास ह।” परशुराम ने ओ क तरफ देखते
ve
ए कहा।
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“उ ह ओ क शरीर म बहते ध वंत र क र क एक बूँद क आव यकता अमर व क ि या को पूण करने
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परशुराम िशला क िकनार पर ि ितज म डबते सूय क स दय को िनहारते ढ़ता क साथ खड़ थे।
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कहाँ ह?
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