The Hidden Hindu Hindi Translation@VipBooksNovels

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द िहडन िहदू
3 पु तक क ंखला क पहली कड़ी
अ त गु ा

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अनु म
आभार
अज मे क मृित
1. अ ात सफर
2. अिनण त आरभ
3. असंब खुलासा
4. इितहास से िलए गए नाम
5. खुले सू
6. िद य युग
7. अ त व का दशन
8. रह यमयी िपटारा
9. पुरातन वतमान म

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10. पुरानी या या
11. मृत संजीवनी ve
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12. थम कोप
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13. गु प रवतन
14. अमर यो ा
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तीक
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आभार
मेर िलए िकसी भी आभार को िलखना संभव नह था िबना शु आत आप दोन से िकए। िपता ी, आप मेर सबसे
अ छ दो त थे, ह और हमेशा रहगे। माँ, मेर अंदर जो लेखक ह, वह आप ह।
बुलबुल गोयल, तुम इतनी िज ी हो! तुमने मेर ऊपर अपना भरोसा कभी कम नह होने िदया। तुम इतनी स त
हो िक मने एक बार जो सपना देखा, उसे तुमने मुझे कभी छोड़ने नह िदया। मेरी खुिशय क िलए तु हारी इसी िजद
और स ती क वजह से म तुमसे यार करता । मेर जीवन क ‘सफलता’ का हर अ र हो तुम।
अिव, अकसर तुम खुद को श द म जािहर नह करते, जबिक म एक लेखक । मेर छोट भाई (इतने भी छोट
नह ), हम दोन का संतुलन जबरद त ह। हम इस तरह क मीठ गीत सुनाते, पूर प रवार को तुमने सबसे भयंकर
तूफान से इस तरह िनकाला, जैसे कछ आ ही न हो।
अनु और अिव, अगर कोई जानना चाह िक प रवार क िलए याग करना या होता ह, तो उ ह तुम दोन से
सीखना चािहए। तुम दोन को पाकर म सच म गव और खुशी महसूस करता ।
आरा य, म छह वष से तु हारा इतजार कर रहा ...और म अनंत काल तक तु हारा इतजार क गा। म जानता

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एक िदन...िकसी-न-िकसी िदन आप लौटकर आएँग।े ve
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उनसे अपनी पहली मुलाकात मुझे हमेशा याद रहगी। उस समय आस-पास कमर नह थे, जो उनक िदखावे को
कद कर सक, न मीिडया था, जो उनक यवहार को सही-गलत बता सक। िफर भी उ ह ने मेरा वागत स ता
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से भरी सौ य मु कान क साथ िकया, और म भी उनक मोहक व िवन वभाव से मु ध होकर मु कराए िबना नह
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रह सका था।
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घर म पहने जाने वाले साधारण सूट म वह असाधारण मिहला िकसी भी िम व पड़ोसी क तरह ही िदख रही
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थी। वह असाधारण य , िजसे करोड़ लोग चाहते ह, सामा य सी ह क हर रग क टी-शट और काले क पट


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म था, िजसक हाथ ीस से सने थे। बाद म मुझे पता चला िक वह अपनी बाइक को ठीक करने म जुटा था।
ऐसे महा सफल लोग से े रत होने वाले मेर जैसे लोग क िलए यह िनराशाजनक लग सकता ह िक पहली
नजर म ऐसे लोग इतने असाधारण य लग रह थे? िफर भी, इस दंपती क िवन और सरल वभाव से आ त
होकर कछ ही देर म म पूरी तरह भूल गया िक म िकसक साथ था! िकसी को भी सहज थित म ले आने क
उनक जादुई मता से म हरान था। हर िदन उ ह लोग का इतना यार िमलता ह, िफर भी इस दंपती पर इसका
कोई नशा नह था और दोन उतने ही िवन , िवनीत और यावहा रक थे, िजतने िक वे लोग, िजनसे म आए िदन
िमलता रहता ।
म बात कर रहा प भूषण, प ी, मानद ले टनट कनल मह िसंह धोनी क , िज ह सब यार से ‘माही’
कहते ह। भ यता क उनक आभा को सा ी धोनी अपनी हसी और अपने भोलेपन से और भी बढ़ा रही थ , जो हर
मायने म उनक बेटर हाफ, उनक अधािगनी ह।
दोन का साथ सच म मन को मोह लेने वाला था, और म अपने साथ उनक वे याद लेकर आया, जो हमेशा मेर
साथ रहगी। सा ी और माही, आप दोन क उदारता क कारण मेरी िन ा िबना शत जीवन भर आपक ित बनी
रहगी।

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ऋिष अरोड़ा (बाबा), शुि या िक तुमने वह भूिमका िनभाई, जो तब कोई िनभाना नह चाहता था। मेर दो त,
तु ह सार जहाँ क खुिशयाँ िमल।
ी वीर ताप िसंह, आप पर म एक पु तक िलख सकता , लेिकन जब तक म ऐसा नह करता, तब तक
आपक अनकह वचन क ित यही मेरा सौभा य ह िक आप हमेशा मेर साथ रहगे।
या आप िकसी ऐसे वक ल को जानते ह, जो मदद क बहाने िकसी का खून न चूसता हो? म िक मत का धनी
िक म ऐसे एक नह , ब क दो िन वाथ वक ल को जानता , जो चार साल तक मेर िलए लड़ और अपने
काम क बदले मुझे पैसे लेने क बजाय पैस से मेरी मदद क । ीमती पूजा िवजयवग य और ी रा ल
िवजयवग य, आपक िन वाथ सहयोग क िलए म आज म आपका ऋणी र गा।
स े दो त हमार िलए वह प रवार होते ह, िजसे हम चुन सकते ह। रा ल अ वाल, मेर दो त, ऐसे ही एक
प रवार का िह सा बनने क िलए तु हारा ध यवाद।
हम जो आशीवाद िमलते ह, उनक ताकत से हम जीवन क सम या से लड़ पाते ह। ीमती सपना िचटनीस,
दूसरी माँ क प म आपको पाकर म ध य । लव यू मैम!
कभी-कभी हम जानना चाहते ह िक या कोई ऐसा दरवाजा ह, जहाँ हम िकसी भी व द तक दे सकते ह;
एक ऐसा दरवाजा, िजसक पीछ कोई ह, जो हम अपनी शरण म ले ले? ी रॉिबन भ , मेर िलए आपका दरवाजा

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वैसा ही ह। उस व मुझ पर िव ास करने क िलए आपका शुि या!
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अज मे क मृित
साल 2041
कमर म एक भयानक स ाटा था। ऐसा तीत हो रहा था, जैसे सब कछ क गया हो। कमर क सूनी दीवार क
बीच का थान उनक साँस क आवाज से गूँज रहा था। इससे पहले िक ीमती ब ा पृ वी से पूछ पात िक उसे
या परशान कर रहा था, वह पलटा और एक मजबूत आवाज क साथ बोला, “मने वष 2020 म सब कछ होते
ए वयं देखा ह और इसिलए म जानता िक उसक जैसा न ही पहले कभी कोई आ ह और न ही आगे कभी
होगा। वही परम स य ह और वही मृ यु और िवनाश क देवता क िलए एक अपरािजत चुनौती भी ह।”
“ऐसा कसे हो सकता ह? तुम कह रह हो िक तुमने अपने पैदा होने क पहले क चीज को देखा ह? यह
असंभव ह।” उ ेिजत होकर 75 वष या ीमती ब ा ने कहा। वे हरान थ िक कसे वष 2041 म 20 साल क उ
का लड़का 2020 म ई घटना को देख सकता ह!
“आप सही ह। म तब पैदा नह आ था, िकतु िफर भी म उस रॉस ीप क सुिवधा क म एक से अिधक प
म मौजूद था। मुझे सब कछ आज भी ऐसे याद ह, मानो म अभी भी वहाँ और सब कछ मेरी आँख क सामने हो

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रहा ह!” पृ वी ने कहा।
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पृ वी को देखते ए वे िफर बोल , “िपछले कछ वष म मने कई अिव सनीय घटना और रह यमय चीज
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को देखा ह। कछ चीज ऐसी ह, िजनका िव ान क पास भी कोई जवाब नह ह और इसिलए, म यह िव ास करने
पर मजबूर िक ऐसे कछ स य और रह य ज र ह, जो मेर जैसे एक औसत म त क क समझ से बाहर ह।”
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आँख से आँसू प छते ए वे आगे बोल , “म एक मामूली य क तरह सामा य जीवन यतीत करना चाहती थी
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और शांित से मरना चाहती थी। मुझे एक संतोषजनक मृ यु वष 2020 म ा हो सकती थी, तब सब कछ अ छा


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था। काश, म तब खुशी-खुशी मृ यु को ा कर पाती! लेिकन सब कछ बदल गया।” ीमती ब ा ने एक गहरी


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साँस ली और खुद को सँभालने क कोिशश क । पृ वी उ ह सँभलने का समय देते ए वहाँ चुपचाप खड़ा रहा।
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एक लंबे अंतराल क बाद वे बोल , “न तो म तब उस सबका िह सा बनना चाहती थी और न ही अब इस सब का


िह सा बनना चाहती , तुम यहाँ य आए हो?”
“ य िक म अभी भी उसे ढढ़ रहा और आप आिखरी य हो, िज ह ने उसे देखा था।” पृ वी ने आशा भरी
नजर से जवाब िदया।
ीमती ब ा पृ वी क आँख म देखते ए बोल , “मने अपना सब कछ उस अिभयान म खो िदया और मुझे
पता भी नह िक कसे और य ? हाँ, मने उसे देखा ह। पर मुझे अभी भी नह पता िक वह कौन था? तुमने कहा
िक तुम भी वहाँ उस ीप पर थे। तो बताओ मुझे, वष 2020 म उस ीप पर या आ था? तुमने कहा, तुम उसे
खोज रह हो। वह भी उस समय उस ीप पर था। तु ह पता होना चािहए िक वह कौन था? तु ह उसक बार म या
पता ह? बताओ मुझे।” तहक कात करते ए ीमती ब ा ने पूछा।
पृ वी कछ देर ीमती ब ा को देखता रहा, िफर आिखरकार उसने पूछा, “अगर म आपक सवाल का जवाब दूँ
तो या आप मुझे वह सब कछ बताएँगी, जो आप जानती ह?”
“म वादा करती िक म कछ नह छपाऊगी...बस, मुझे बताओ िक वष 2020 म ऐसा या आ, िजसने मेरी

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मृ यु क समय को बदल िदया? म यह िबना जाने नह मरना चाहती िक यह मेर ही साथ य आ और य मुझे
इसक िलए चुना गया?”
पृ वी ीमती ब ा क उन बूढ़ी व आशा भरी नजर को देख रहा था। उसने एक गहरी साँस ली और उ ह बताने
लगा...।

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1.
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अ ात सफर
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यह गिमय क उन दुलभ िदन म से एक था, जब सूय का काश अपने अिधकतम तर पर नह था। नीला
आसमान और सुबह क हवा तरोताजा कर देने वाली थी। कवल एक हलीकॉ टर क आवाज उस शांितमय
वातावरण को भंग करने क िलए काफ थी। इस उ म नजार क बीच हलीकॉ टर म एक आदमी बेहोश और
बेखबर लेटा आ था। चार बंदूकधारी उस पर ऐसे आँख गड़ाए बैठ थे, मानो अनंत काल से उसक आँख खुलने
क ती ा कर रह ह । उस आदमी का चेहरा सफद रग से पुता आ था और उसक दाढ़ी–मूँछ असामा य प से
बढ़ी ई थ । उसक लंबे, काले व िबखर ए बाल भी उसे और रह यमय बना रह थे। 40 साल क उ क िलए
वह काफ जवान तीत हो रहा था। उसका चेहरा तराशा आ और उसक वचा आकषक व चमकदार थी,
िजसने उसक चार ओर एक सुंदरता क आभा बनाई ई थी। उसका शरीर हलीकॉ टर क विन पर िहचकोले खा
रहा था और वह जब भी िहलता, उसका शरीर हवा म राख क कण छोड़ता जाता। उसक बेहोशी उसक आसपास
क लोग को यह सोचने से नह रोक रही थी िक वह कौन ह? जो भी उसे देखता, वह िज ासु और मोिहत हो
उठता।
पायलट ने घोषणा क , “11.6755 िड ी उ र, 92.7626 िड ी पूव; 3 िमनट म रॉस ीप पर लिडग करगे।”

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रॉस ीप अंडमान ीप-समूह का सबसे सुंदर ीप ह। यह पोट लेयर से 2 िकलोमीटर पूव िदशा म थत ह। यह
जगह दुलभ और मह वपूण जाितय क िवरासत क साथ-साथ कित क सबसे बेहतरीन उपहार—‘शांित’ म
मनु य को ख च लाती ह। ीप क सुंदरता क बीच एक गुंबद क आकार का उ तकनीक सुिवधा क था।
िवशु प से अनुसंधान क उ े य क िलए पृथ भूिम पर बनाया आ शानदार सा ा य, वैभवशाली पु ष को
भी भािवत कर देता था। नवीनतम एवं आधुिनक तकनीक से लैस यह सुिवधा क अ याधुिनक तटीय और समु ी
िनगरानी णाली का दावा करता था। इसक रचना और िनमाण कवल शीशे से िकया गया ह। इस सुिवधा क ने
सतह- ौ ोिगक का उ म योग िकया था। येक न हाथ लगाते ही ऐसे बात करना शु कर देती ह, जैसे
उ त जाित का िह सा हो। तापमान म और चार ओर क वायुमंडलीय दबाव म बदलाव लाना जीवन को
अक पनीय प से आसान बना रहा ह। इन पहलु म यह िजतना शानदार था, उससे भी अिधक यह सुर ा क
िलहाज से भावशाली था। धनुष क आकार क छत क हर एक कोने म गित संवेदक कमर लगाए गए थे। गुंबद
क अंदर कोई भी अकला नह था। जो जहाँ भी जाता, वहाँ एक िडिजटल आँख साथ जाती।
वीरभ , एक वै छक सेवािनवृ , भारतीय सेना का पूव ि गेिडयर, अपना क छोड़ सीधे गुंबद क वेश क
क ओर गया। वेश करते ही उसने चार सश पहरदार से िघर कदी को देखा। वे चार उसक हथकड़ी लगे और
आँख पर प ी बँधे बेसुध शरीर को बरामदे म से ख चते ए ला रह थे। उसक राख से सने नंगे पैर फश पर एक

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रा ता-सा बनाते जा रह थे। ve
‘यही वह य ह!’ वीरभ ने सोचा।
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कदी ने यूनतम कपड़ पहने ए थे; कवल एक छोट और पतले लँगोट ने उसक िनचले भाग को ढका आ था।
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उसका पूरा शरीर भ म से पुता आ और एक ा क माला उसक गले म लटक ई थी। उसक उलझे ए
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बाल का आधा िह सा जूड़ म िलपटा आ जंग लगे लोह क ि शूल से िवभूिषत था। वीरभ इस जगह 21 लोग
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क समूह क साथ एक िस यो रटी चीफ क प म आया था, िजनम बंदूकधारी और गा स भी शािमल थे। वह वहाँ
एक िवशेष काय क िलए गया था। अपने सं दाय म सबसे बेहतरीन पु ष होने क कारण उसे दुिनया भर क िविभ
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संगठन, गु व सामािजक अिभयान क िलए बुलाते थे। िकतु यह अिभयान उन सबसे अलग था।
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वीरभ लगभग 6 फ ट लंबा था। उसने अपने जीवन क िपछले 40 वष म अ छा जीवन यतीत िकया था,
िजसका पया िह सा उसने सेना को समिपत िकया था। उसका चेहरा एक मामूली य क तरह था, कोई खास
िवशेषताएँ नह थ । उसक वचा साँवली और रग ट जैसा बाल का कट उसक वभाव को और कठोर बना
देता था। उसक दोन हाथ पर ताजे ज म क िनशान उसक ारा लड़ी गई लड़ाइय क गंभीरता को कट करते
थे। उसका स त व गठीला शरीर उसक काली ज स, सफद टी-शट और भूर रग क लेदर जैकट क नीचे काफ
प िदखाई दे रहा था। उसक आँख काले एिवएटर च मे से ढक ई थ । वह हमेशा अपनी िप तौल, जो
उसक कमर पर जैकट से ढक रहती थी, उसक बार म हर प र थित म सचेत रहता था।
वीरभ ने एक गाड को उस आदमी क आँख पर से प ी हटाने और उसक हाथ को मु करने का आदेश
िदया। उसने अपना च मा उतारा और तब उसक दा आँख क नीचे एक िनशान िदखाई पड़ा। वीरभ क गहरी
काली आँख उस आदमी पर िटक ई थ और वह कछ पल क िलए हरान खड़ा रहा।
वीरभ और उसका बॉस उस आदमी क ती ा कर रह थे; हालाँिक, वह ठीक से नह जानता था िक य ?
वह बस, यह जानता था िक िजस आदमी को वे खोज रह थे, वह िमल गया था और उससे पूछताछ क जानी थी;

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हालाँिक वह नह जानता था िक िकस बार म? परतु यह सुिन त था िक ज र कछ गंभीर बात ह। उसक
अधीरता अपने चरम पर थी, य िक वह पूरी कहानी जानना चाहता था। वह सबसे गु और अंतरतम च म खड़
होने यो य था। यिद नह , तो उसे बुलाया ही य गया था?
उसने सबसे भावशाली मनु य क साथ काम िकया था और उनक तरीक को अ छ से जानता था। लेिकन
उसक यह नए उ अिधकारी अजीब थे। वे इस सबक बार म ब त िचंितत थे, िफर भी, सब कछ एक बड़ा रह य
रखने म कामयाब रह।
“वीरभ !” वेश क से एक प रिचत आवाज म अपने नाम क गूँज सुनकर वीरभ च क उठा। वह आवाज
डॉ. ीिनवासन, उसक बॉस क थी।
“जी सर।” उसने उ र िदया।
िजस य को वीरभ ने उ र िदया, वे 4 फ ट 8 इच लंबे, 65 वष य य थे और उनक वचा काले रग
क थी। उनक ह ठ गहर भूर रग क थे, िजससे पता लगता था िक वे धू पान क आदी थे। कवल उनक िसर क
आगे क िह से म कछ सफद बाल थे। एक और पहलू, जो उनक उ को दशाता था, वह था—उनका बेमेल और
नीरस पहनावा। डॉ. ीिनवासन ने सफद शट क ऊपर एक भूर रग का मैट सूट पहना था और उनक कॉलर से
लाल रग क चौड़ी टाई लटक ई थी। उ ह ने अपनी आँख पर एक अ चिलत, काले व चौकोर आकार का

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च मा भी पहना था। उनक गले म एक फ ता पड़ा आ था, िजसक िकनार उनक च मे से बँधे ए थे।
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डॉ. ीिनवासन क वेशभूषा हा या पद थी; लेिकन उनक आँख से अनुशासन झलकता था। उनका आचरण
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शीष अिधका रय को भी आदेश देने जैसा तीत होता था। वे अपने आसपास क लोग म उनसे िन न होने का भाव
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पैदा कर सकते थे। वे जब तक चुप रहते, तब तक ही हा या पद तीत होते। इस बात का आसानी से अंदाजा
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लगाया जा सकता था िक उ ह मजाक िब कल पसंद नह और वे अपने काम क ित अ यिधक समिपत रहने वाले
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य थे।
डॉ. ीिनवासन क पीछ डॉ. ब ा, एक गोर य खड़ थे। उ ह ने वीरभ और डॉ. ब ा का एक-दूसर से
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प रचय कराया। उन दोन ने एक-दूसर से हाथ िमलाया। वीरभ को डॉ. ीिनवासन और डॉ. ब ा सहकम तीत
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हो रह थे।
वीरभ को वे कछ अिधक स िच य नह लगे। अपने चेहर क हाव-भाव से वे उि न लग रह थे और
ऐसा लग रहा था, मानो वे यिथत ह । वे देखने म डॉ. ीिनवासन से भी अिधक पढ़-िलखे लग रह थे। उनक
आँख िकसी बुि जीवी क जैसी थ ।
डॉ. ब ा एक लंबे और लगभग 50 वष क उ क आदमी थे और वे िसख समुदाय का िह सा थे। उनक आँख
भूरी और चेहरा गोल-मटोल था। उ ह ने गहर लाल रग क शट और काली पतलून पहनी ई थी, जो उनक काले
चमड़ क जूत क साथ अ छी लग रही थी। उनक शरीर का यादातर मोटापा उनक पेट क चार ओर जमा आ
था। उनक दाढ़ी उनक मूँछ से मेल खाती ई एक अंदाज म कटी ई थी। उ ह ने अपने दाएँ हाथ म एक कड़ा
और बाएँ हाथ म रोमन सं या वाली एक उ क घड़ी पहनी ई थी।
“ या यह वही ह?” डॉ. ीिनवासन ने अपनी भारी आवाज और दि ण भारतीय लहजे म पूछा।
“आऊनो, सर!” वीरभ ने तेलुगू म जवाब िदया और तुरत अपने आप को ठीक करते ए कहा, “मेरा मतलब,
जी सर।”

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“तो हम िकसका इतजार कर रह ह? इसे पूछताछ क म लेकर जाओ।”
गा स कदी को पकड़कर ख चते ए वीरभ क पीछ चले। उ ह ने एक एल (L) आकित क गिलयार म वेश
िकया। डॉ. ीिनवासन सीधे चलते चले गए और वीरभ उनक पीछ चलता गया। गिलयारा एक तरफ सीधी दीवार
और दूसरी तरफ दरवाज क बीच था, जो बा ओर को मुड़ता था। उस दीवार क अंत म एकमा दरवाजे पर दो
सुर ाकम थे, िज ह ने उ ह अंदर जाने िदया।
वीरभ अब तक इस बात से अनिभ था िक इस आदमी से या पूछताछ क जानी ह?
िजस क म उ ह ने वेश िकया, वह 12 फ ट ऊचा एवं गुंबद क तरह, वह भी ऑलीशान सजावट से सुशोिभत
था।
कमर म टील क एक कस रखी ई थी, िजसम पैर रखने क िलए नीचे एक त ता, कमर िटकाने क िलए दो
लोह क रॉड, काले चमड़ का आसन और हथकड़ी लगे ए कस क ह थे संपूण क का सार दिशत कर रह
थे। वह एक योगशाला जैसा तीत हो रहा था। कस क चार ओर पॉिलश क ई लकड़ी क मेज रखी ई थ ।
हर मेज पर एक क यूटर रखा आ था। वहाँ एक ोजे टर भी छत से लटका आ था और उसक सामने सफद
पदा दीवार पर क ल से टगा आ था। बंदी बीच म कस पर बैठगा और नकता उससे कसे भी करक न क
उ र पता लगाएगा।

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र क ने आदमी को ख चकर बीच म कस पर धकला और कस पर लगी हथकिड़य से बाँध िदया। उसक
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कमर, िसर और पैर को भी चमड़ क प ी क सहार कस से बाँध िदया गया। िफलहाल उसक उगिलयाँ ही
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उसक शरीर का एकमा िहलने वाला िह सा थ ।
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इस दौरान वीरभ चुपचाप बैठा कमर को देख रहा था। उसे अहसास था िक न कवल बंदी, ब क कमर म
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बाक सब पर भी नजर रखी जा रही थी।


सुबह क लगभग 11 बज रह थे, जब आदमी को होश आने लगा। उसक आँख बंद थ , लेिकन वह महसूस कर
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सकता था िक कोई गीले कपड़ से उसक चेहर पर लगे सफद रग को साफ कर रहा था। उसने िकसी को उसक
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बार म बात करते ए सुना। बातचीत उसक एक अघोरी होने पर थी।


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“यह िकतना अजीब िदखता ह! यह कसा अि य प ह?” एक लड़क ने कहा।


“मुझे पता ह, यह कौन ह!” एक भरोसेमंद आवाज म जवाब आया। आवाज एक पु ष क थी।
“इस अजीब य का प रचय देने से पहले तुम बताओ िक तुम कौन हो?” लड़क ने पूछा।
“अिभलाष।” आदमी ने तुरत जवाब िदया।
“और तुम इसे कसे जानते हो?” लड़क ने पूछा।
“म इसे नह जानता और न ही यह जानता िक यह कौन ह; लेिकन म जानता िक यह एक अघोरी ह।”
“अघोरी?” लड़क ने आ य से पूछा, जैसे उसने यह श द पहले कभी सुना ही न हो!
“अघोरी। यह श द अपने आप म ही शरीर म कपन पैदा करने क िलए काफ ह। भारत और नेपाल क हर एक
गाँव या क बे म अघो रय क बार म कहािनयाँ ह। कहा जाता ह िक उनक पास कित पर िनयं ण करने हतु
असीिमत श याँ होती ह; जैसे िक मृ यु पर िवजय ा करना, भौितक व तु का ाकट ्य, मानव मांस एवं
मल को खाना और अ यिधक अशु ता म रहना तथा कभी-कभी तो पूरी तरह से न न भी रहना। अघोरी कई
भयंकर था म भी शािमल होते ह; जैसे शु -अशु क बीच क ं को ख म करने क िलए और मन क

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अ ैत अव था को ा करने क िलए मृत शरीर क साथ संभोग। वयं क खोज करने क िलए उन पर ऐसा जुनून
सवार रहता ह िक वे ऐसी कई क प, अशु और सामािजक वजना म िल रहते ह। वे मिदरापान करते ह,
नशीले पदाथ का सेवन करते ह और मांस खाते ह। कछ भी विजत नह माना जाता। लेिकन उनक ाचीन
परपरा को िविच बनाने वाली बात यह ह िक उनक मंिदर मशान घाट होते ह। उनक कपड़ मृत शरीर से आते
ह, जलाऊ लकड़ी अंितम सं कार क िचता से और भोजन नदी से। जब िकसी य क िचता जलाई जाती ह तो
वे मृतक क राख से खुद को पोत लेते ह और उनक ऊपर बैठकर यान करते ह। वे एक मानव खोपड़ी से बने
कटोर क साथ िभ ा माँगकर जीिवत रहते ह; लेिकन िफर भी अघोरी जीवन का सबसे च काने वाला पहलू उनका
नरभ ण ह। लाश, िज ह या तो नदी से ख चा गया ह (जैसे गंगा) या मशान घाट से ा िकया ह, उ ह क ी
और पक ई, दोन तरह से खाया जाता ह; य िक अघो रय का यह मानना ह िक िजसे दूसर लोग मृत य
मानते ह, वह वा तव म कछ नह , ब क एक ाकितक अव था ह, जो अब जीवन ऊजा से रिहत ह, जो कभी
उसम आ करती थी। इसिलए जहाँ नरभ ण आम लोग क िलए अस य, जंगली और अशु ह, वही अघो रय
क िलए यह संसाधनपूण और िढ़वािदता को एक आ या मक अ वेषण म बदलने का साधन ह िक कछ भी
अपिव या भगवान से अलग नह ह। वा तव म, वे इसे एक वै ािनक कोण से देखते ह िक त व कसे एक
प से दूसर प म प रवितत होता ह!

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“उ री भारत क सड़क पर कई अघोरी साथ घूमते, हाथ म खोपड़ी का कटोरा िलये देखे जा सकते ह। वे
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कभी भी अपने बाल को काटने क ज रत नह समझते। वे अपने शरीर का इ तेमाल कर भय और पूव
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धारणा पर िवजय पाने क िलए स य एवं भेदभावपूण पथ पर चलने और परम अव था को ा करने क
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साधना करते ह। सिदय से वे अपनी अजीब और रह यमय जीवन-शैली से दुिनया भर क लोग को मं मु ध


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करते आ रह ह।
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“अघो रय क इितहास को देखा जाए तो पता चलता ह िक सव थम अघोरी, िजसने भिव य क अघो रय क
जीवन क न व रखी, उसका नाम ‘क ना राम’ था। माना जाता ह िक वह 150 साल तक जीिवत रहा और 18व
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शता दी क अंितम चरण क दौरान उसक मृ यु हो गई।


@

“अघो रय का िव ास ह िक िशव परम और सवश मान, सवभूत और सव ह। उनक अनुसार, इस


ांड म जो कछ भी होता ह, वह िशव क इ छा से होता ह। देिवय म उनक िलए माँ काली का प सबसे
पिव ह।” एक और आवाज ने बातचीत म ह त ेप िकया। इस बार आवाज आदमी क ब त करीब थी।
डॉ. ब ा बातचीत म शािमल होकर बोले, “अघोरी दावा करते ह िक उनक पास आज क समय म मौजूद सबसे
घातक बीमा रय , यहाँ तक िक ए स व कसर क भी औषिधयाँ उपल ध ह। ये औषिधयाँ, िज ह वे ‘मानव तेल’ से
संबोिधत करते ह, वह एक शव क जलने क बाद जलने वाली आग से एकि त क जाती ह। हालाँिक, वै ािनक
प से उनका परी ण नह िकया गया ह, परतु अघो रय क अनुसार, वे अ यिधक भावशाली ह।” बंदी महसूस
कर सकता था िक डॉ. ब ा अघो रय पर अपने ान का काश डालते ए उसक हाथ म एक िस रज इजे ट कर
रह थे।
“बफ से ढक पहाड़ से लेकर गरम रिग तान और बाघ आ ांत जंगल तक वे उन सब थान पर रहने क िलए
जाने जाते थे, जहाँ कोई अ य मनु य जीिवत नह रह सकता।”
अिभलाष बात को आगे बढ़ाता आ बोला, “अघो रय क िलए कछ भी अशु , बुरा या िघनौना नह ह। उनक

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अनुसार, यिद आप सबसे िवकत काय करते ए भी ई र पर यान कि त कर पाते ह तो आप ई र क साथ
एक प हो जाते ह। अिधकतर आबादी क मशान घाट म एक शव क ऊपर बैठकर साधना करने क िह मत नह
होगी।
“अघो रय का मानना ह िक हर कोई एक अघोरी ही पैदा होता ह। एक नवजात ब ा अपने मल, गंदगी और
िखलौने क बीच अंतर नह करता; ब क सब से खेलता ह। वह माता-िपता और समाज क ारा बताए जाने पर ही
उनम अंतर करना शु करता ह। जैसे-जैसे ब ा बड़ा होता ह और भौितकवादी आधार पर चयन करने लगता ह,
तभी वह अघोरी होने क ल ण खो देता ह। हम ब को भगवान का प मानते ह।
“अघो रय का मानना ह िक शव क बीच संभोग करने से अलौिकक श य का ज म होता ह। मिहला
सािथय को भी मृतक क राख से पोता जाता ह। यौन ि या क दौरान ढोल पीटना और मं का जाप िकया जाता
ह। वे यह सुिन त करते ह िक िकसी भी मिहला को उसक साथ यौन संबंध बनाने क िलए मजबूर न िकया गया
हो और यह भी ज री ह िक मिहला को संभोग ि या क दौरान मािसक धम होना चािहए। अब, जब आप
वाराणसी जैसे शहर म नरभ ण का अ यास करते ह, जहाँ मांसाहारी भोजन क भी ित असहमित कट क जाती
ह, आप जानते ह िक आप अपने िलए मुसीबत पैदा कर रह ह। लेिकन आ यजनक बात यह ह िक सावजिनक
प से मानव मांस का सेवन करने क बाद भी उनक िखलाफ कोई िवशेष कारवाई नह क जाती ह! ऐसा इसिलए

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हो सकता ह िक वे मृत मानव मांस खाते ह और उसे खाने क िलए िकसी को मारते नह ह। स े अघोरी भोले,
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यार व दयालु होते ह और हमेशा िमलने पर आपको आशीवाद देते ह। वे अपना अिधकतर समय यान करने म
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और ‘ओ नमः िशवाय’ का जाप करने म िबताते ह।”
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‘ओ ’ श द उस बेहोश अघोरी क कान म गूँजा और धीर से उसने अपनी आँख खोल ।


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2.
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अिनण त आरभ
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दरवाजा खुला और एक मिहला अंदर आ । उ ह ने टीम को अपना प रचय देते ए अपना नाम डॉ. शािह ता
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बताया। वे एक िस मनोिचिक सक थ । उ ह स मोहन िव ा क े म उनक मह वपूण काय क िलए पुर कत


िकया गया एवं सराहा गया था और उनक अनुसंधान क िलए िव ीय सहायता भी दान क गई थी।
जैसी भी आव यकता पड़ती, उ ह सरकार अपने िलए या अपने ारा कह भी िनयु कर देती थी।
उ ह पुणे, महारा , उनक गृह रा य से बुलाया गया था। उनक उ लगभग 45 वष क आसपास थी। साढ़ पाँच
फ ट लंबी डॉ. शािह ता सुंदर, गोरी और सुसं कत मिहला थ । उनक य व से आदर एवं गव क झलक
िदखाई पड़ती थी और वे एक आशावादी आभा अपने चार ओर बनाए रखती थ । गहर भूर रग क बाल उनक पीठ
तक लहराते थे। वे एक सौ य मु कान अपने चेहर पर हमेशा रखती थ । इसक अलावा, उ ह ने कढ़ाई क ई
काले रग क एक करती, एक सफद पिटयाला सलवार, कध पर काले रग क ओढ़नी (भारतीय पारप रक
प रधान) और पैर म पारप रक जूितय का एक जोड़ा पहना आ था।
भगवान को एक साथ स दय और बुि बाँटने क िलए नह जाना जाता, लेिकन डॉ. शािह ता क पास ये दोन
थे। िसर से लेकर पाँव तक उ ह ने सभी कार क आ मक शांित और सफलता क िलए पहने जाने वाले र न को
पहना आ था। उनक बा भुजा पर एक ताबीज बँधा आ था, दाएँ हाथ म सोने क दो चूिड़याँ, गले म एक

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पतली सोने क चेन और उगिलय म र न से जिड़त कछ अँगूिठयाँ थ ।
वह आदमी अभी भी कस से बँधा आ था और उसक चार ओर जो चेहर थे, वे उसने कभी नह देखे थे।
अपने सामने छाए गहर कोहर क अलावा वह कवल मेज क चार ओर बैठ येक य क हलक परछा ही
देख पा रहा था। वह अवचेतन प से जगा आ था।
उसका अधचेतन अव था म होना उसे जबरद ती िदए गए नशीले य का भाव था। उसे सब धुँधला तीत हो
रहा था।
अपने सहकिमय से िमलने क बाद डॉ. शािह ता बंदी क सामने बैठ ग । िजस तरह से वह रोशनी का अ य त
होने क िलए अपनी आँख को िमचिमचा रहा था, उससे पता लग रहा था िक वह काफ देर से अँधेर म बैठा आ
था। डॉ. शािह ता क आँख समु क नीले रग जैसी ती और गहरी थ । उनक आँख म स मोहन क श थी।
आदमी को देखकर उ ह ऐसा लग रहा था िक वह भी कोई रह य अपने म छपाए बैठा ह। उसी समय उ ह यह भी
अहसास आ िक वह आदमी अब भी िब कल शांत और िन ंत था। उसक चेहर पर कोई भय या िचंता क
लहर िदखाई नह दे रही थी। वह साहसी और आ मिव ास से पूण तीत हो रहा था।
इस सबक बाद अब पूछताछ शु होने वाली थी।
इससे पहले िक वे कछ कह पात , आदमी सहजता से अपना प रचय देते ए बोला, “ओ शा ी।”

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यिद वह आदमी अपने आप को मु करने क या िच ाने क कोिशश करता तो डॉ. शािह ता को आ य
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नह होता, य िक ऐसा उ ह ने इससे पहले सभी मामल म अनुभव िकया ह; िकतु इस आदमी क धैय ने उ ह
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याकल कर िदया और उ ह ने डॉ. ीिनवासन क ओर देखा। आदमी ने भी अपना िसर डॉ. शािह ता क नजर क
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िदशा म घुमाया। डॉ. ीिनवासन क प झलक देखने क िलए उसे थोड़ा आगे तक देखना पड़ा। जैसे ही उसने
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ऐसा िकया, उसक आँख बड़ी हो ग और वह एकाएक िच ाया, “िच ा!”


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सभी लोग चिकत होकर उसक तरफ देखने लगे।


“ या?” परशान होकर भारी वर म डॉ. ब ा ने पूछा।
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आदमी डॉ. ीिनवासन को देखता रहा, जैसे वह उ ह लंबे समय क बाद देख रहा हो!
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डॉ. ीिनवासन ोिधत थे। उ ह लग रहा था िक उनका मजाक उड़ाया जा रहा ह।


वीरभ भी इस घटना से हरान था। वह इस तरह क आदमी से कभी नह िमला था।
अचानक से िकसी ने एक ई क साथ अघोरी क नाक को ढक िदया। ई से अजीब-सी गंध आ रही थी।
ओ शा ी धीर-धीर बेहोश हो गया। न कोई िवचार, न कोई भावना और सब कछ शांत हो गया।
उसे यह पता भी नह था िक वह अब स मोिहत होने वाला ह।
“तुम कौन हो?” डॉ. शािह ता ने बंदी से पूछा, जब वह पूरी तरह से िनयं ण म हो चुका था।
“ओ शा ी।” उसने बेहोशी क हालत म जवाब िदया।
“यह हम जानते ह, शा ीजी।” डॉ. शािह ता ने कहा, “हम वह बताओ, जो हम नह जानते।” उ ह ने आगे
कहा।
“तुम कछ नह जानते!” ओ शा ी बड़बड़ाया।
“हाँ, शा ीजी, हम चीज का ान नह ह। इसीिलए तुम यहाँ हो। लेिकन एक बात, जो हम िन त प से
जानते ह, वह यह ह िक तु हारा असली नाम ‘ओ शा ी’ नह ह।”

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“तु हारा असली नाम या ह?” डॉ. शािह ता ने दोहराया।
“मुझे याद नह ह।” ओ शा ी ने धीमी आवाज म कहा।
‘स मोिहत य ारा एक असामा य जवाब।’ डॉ. शािह ता ने सोचा।
अपने हाथ म एक पौरािणक पु तक क साथ कस पर बैठ अिभलाष ने कहा, “झूठ!”
“यह झूठ नह बोल सकता।” िवरोध करते ए डॉ. ब ा बोले, “उसे नारको िव ेषण क दवाइयाँ दी गई ह।”
डॉ. ब ा साफतौर पर हताश थे।
“नारको!” अिभलाष ने अनजान होकर कहा और डॉ. ब ा क ओर जवाब क िलए देखा।
“यह सच क दवा ह। इसे लेने क बाद कोई झूठ नह बोल सकता।” या या म कोई िदलच पी न रखते ए
डॉ. ब ा ने सं ेप म उ र िदया।
डॉ. ब ा का पूरा नाम डॉ. तेज ब ा था। वे एक ईमानदार और ौढ़ य थे। वे कवल तािककता और
बुि म ा ही समझते थे। थोड़ गु सैल भी थे। डॉ. ब ा का यवहार कई बार अ यािशत रहता था। िवल ण
प र थितय म ही वे आशावादी हो पाते थे।
“और वह स मोिहत भी ह।” डॉ. शािह ता ने डॉ. ब ा से सहमित जताते ए कहा।
दोन ने अिभलाष क ओर देखा। अिभलाष अपने कधे झटकते और फसफसाते ए बोला, “कछ चीज िचिक सा

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िव ान से पर ह।” और अपनी पु तक पढ़ने लगा। ve
अिभलाष ने अपने जीवन क 30 साल िहदू पौरािणक ंथ को पढ़ने म गुजार िदए थे और इसिलए उसे इस े
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म अपार ान था। अंिबकापुर नामक एक छोट से शहर म, राजपुरोिहत क, एक ा ण प रवार का वंशज होने क
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कारण उसे अंधिव ासी लोग ारा देवता क तरह पूजा जाता था। स मान और ित ा क उ तम प क
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साथ संप वह अपने कोण म गव से संरि त था। अपनी गलितय क िलए दूसर क आलोचना करना उसक
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वभाव म था।
वह 5 फ ट 8 इच लंबा, थुलथुले शरीर क साथ, काले रग का य था। उसने एक तंग सफद करता और
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नीली डिनम ज स पहनी ई थी, िजसम से िनकलती ई अपनी त द से वह अनजान था। वह पौरािणक कथा एवं
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अंधिव ास का क र अनुयायी था और यह उसक पहनावे से साफ िदखाई दे रहा था। उसने िविभ योजन क
िलए अनेक र न से जड़ी कई अँगूिठयाँ पहनी ई थ । िबना पूछ वह कभी भी, िकसी भी सम या म अपनी
अँगूिठय या ह क बार म िट पणी देने से नह चूकता था। उसक बाएँ हाथ क कलाई पर एक र ा सू बँधा था
और गले म ा क माला थी। उसक माथे पर ‘U’ आकार क चंदन का ितलक लगा आ था और पैर म
को हापुरी च पल थ । उसक कधे पर जूट से बना एक थैला टगा था, िजसम िहदू मं पर आधा रत कछ पु तक
थ।
“जो कछ भी याद ह, हम बताओ, शा ीजी।” मु े पर वापस आते ए डॉ. शािह ता बोल ।
ओ शा ी क चेहर पर अनेक भाव, जैसे-जैसे वह बोलता गया, बदलते गए—मु कान, शांित, िचंता और डर।
“मुझे बंदा बहादुर याद ह।” ओ शा ी आँख बंद िकए ही बड़बड़ाया।
डॉ. ब ा उस नाम को सुनकर आ यचिकत रह गए, मानो वह भी बंदा बहादुर को जानते ह !
“वह कौन ह?” अिभलाष ने पूछा।
“मेर जनरल।” शा ी ने कहा।

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“ या वह भी तु हारी टीम का िह सा ह?”
“हाँ!”
“वह अब कहाँ ह?”
“वह मर चुक ह।”
“वह कसे मरा?”
“उनक ह या क गई थी।”
“उसे िकसने मारा?”
“फ खिसयर ने।”
“तु ह और कोई याद ह?”
“संजय!”
“कौन संजय? संजय द ? संजय सूरी? या संजय लीला भंसाली?” अिभलाष ने यं य करते ए पूछा।
िजस लड़क ने अिभलाष से अघोरी क बार म सवाल िकया था, वह िखलिखलाकर हस पड़ी। एल.एस.डी.,
यानी िक लीसा सैमुएल डी’को टा। पेशे से एक हकर एल.एस.डी. ब त सार ऑनलाइन जालसाजी और बक खात
क ज ती म शािमल थी। 25 साल क उ म ही उसने भारतीय साइबर सेल का यान आकिषत कर िलया था;

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लेिकन वह इस बार म िब कल भी परशान नह थी। िबना िकसी उपािध क ही वह िनपुण थी। एल.एस.डी. एक
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सुंदर लड़क थी। िश ाचार म देसी एवं अप र कत थी, लेिकन अपने काम म चतुर और बुि मान थी। अपने काम
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क अित र वह सभी चीज क ित लापरवाह थी।
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“शायद संजय मांजरकर।” एल.एस.डी. ने मजाक करते ए कहा।


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एल.एस.डी. वभाव से बेिफ थी। उसक िज ा शायद ही कभी उसक िनयं ण म होती थी। उसका चेहरा
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आसानी से पढ़ा जा सकता था। कोई भी उसे देखकर उसक मन म चल रह िवचार को जान सकता था।
एल.एस.डी. एक छोट शहर से यहाँ आई थी, िजसक वजह से उसका एक िवशेष कार का अ भािवत लहजा
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था।
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उसक काले घुँघराले बाल थे। उसक आँख बादामी रग क थ । उसने ए सेसरीज क साथ फल वाली सफद
रग क स पहनी ई थी और एक काला मोटा च मा, जो उसे काफ मॉडन लुक दे रहा था और पैर म चमकदार
ऊची ही स उसक लंबे व सुडौल पैर को और सुंदर बना रही थी। उसने अपनी कलाई म अलग-अलग रग क
ेसलेट पहने थे और गले म एक क हाड़ी क आकार का पडट पहना था।
“संजय! गावलगन का बेटा।” ओ शा ी ने कहा।
“और तुम उसे कसे जानते हो?” शािह ता ने पूछा।
“वह संजय था, िजसने ह तनापुर क राजा धृतरा का यु क दौरान मागदशन िकया था।” ओ ने जवाब
िदया।
वह आगे बोला, “म जब ह तनापुर का धानमं ी था, तब उससे िमला था। मेरा नाम िवदुर था।”
अिभलाष एकदम से नाम क बार म सोचने लगा और धीर से बोला, “मने ये नाम पहले सुने ह।”
“खैर!” शािह ता आगे बढ़ना चाहती थ ।
“आपको समझ नह आ रहा ह, यह महाभारत काल म जीिवत होने का दावा कर रहा ह।” अिभलाष तेजी से

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बोला।
“तुम चाहते हो िक म इसक सभी पौरािणक बकवास पर िव ास क ?”
“यह बकवास नह ह...आप...”
इससे पहले िक अिभलाष अपना वा य पूरा कर पाता, शािह ता ने दूसरा न उससे पूछा।
“और कौन से नाम ह तु हार पास, शा ीजी?”
“सुषेण!” ओ शा ी ने एक मु कराहट क साथ जवाब िदया।
“तुमने सुषेण क प म या िकया?” शािह ता ने जोर देकर पूछा।
“म एक वै था।”
“कवल यही ह या तुमने और भी िकसी नाम का उपयोग िकया था?” शािह ता ने पूछा।
“म एक बार िव णु गु भी था।” उसने जवाब िदया।
शािह ता ने एक और नाम सुनते ही अपनी आँख तररते ए उ ेिजत होकर अपने हाथ हवा म झटक िदए।
“और तुमने िव णु गु क प म या िकया?” उ ह ने य ता से पूछा।
ओ शा ी कछ बड़बड़ाने लगा। पर वह या बोल रहा था, यह िकसी क समझ म नह आया।

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या ीव ित ित जरा प रतजय ती
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रोगा श व इव हर त देह ।
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आयु पर वतिभ घटािदवा भः
लोक तथा यिहतमाचरतीित िच ॥
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3.
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असंब खुलासा
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“मुझे नह समझ आ रहा ह िक यह आदमी या बोल रहा ह?” शािह ता उ ेिजत होकर िच ा ।
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ओ शा ी एक पल क िलए चुप रहा और िफर िबना िकसी चेतावनी क वहाँ मौजूद लोग क धारणा क
िवपरीत अचानक वह जाग उठा।
शािह ता, जो ओ शा ी क यादा पास बैठी ई थ , च क उठ और उससे दूरी बनाने क कोिशश म कस पर
से िगर पड़ । कमर म अ य सभी लोग भी हरान हो गए। शािह ता ने सोचा िक ‘यह कसे संभव ह? अभी एक घंटा
भी नह आ ह, यह एकदम से होश म कसे आ गया?’ उनक 300 से अिधक मरीज क अनुभव म आज तक
कोई आदमी िबना शारी रक परशानी क इतनी ज दी स मोिहत िन ा अव था से नह उठा था।
डॉ. ब ा भी उतने ही त ध थे। दवा क बार म उनका ान यह कहता था िक मरीज को खुराक िदए जाने क
8 घंट से पहले उसे होश नह आ सकता। इसने उनक ारा अ ययन और अ यास िकए सभी मापदंड क
अवहलना कर दी थी। एल.एस.डी. भी अपना भय िछपा नह पा रही थी। उनम से िकसी को भी समझ नह आ रहा
था िक या चल रहा ह!
ओ शा ी िबना मु होने क कोिशश िकए सभी को देख रहा था। उसने शांितमय तरीक से पूछा, “म यहाँ
य लाया गया ? तुम लोग को या चािहए?” वह िनराश लग रहा था।

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शािह ता ने उसक सवाल का उ र नह िदया। उसने डॉ. ीिनवासन क ओर देखा। ओ ने भी उनक तरफ
देखा।
“तुम यहाँ हो, य िक कछ जवाब ह, जो हम चािहए। हम या चािहए? कछ नह , बस वही जानकारी, जो
तु हार पास ह।” डॉ. ीिनवासन ने अपने रोबीले अंदाज म जवाब िदया।
“िकतना जानते हो मेर बार म?” ओ ने पूछा।
“खैर, अभी क िलए तो यादा कछ नह । बस, इतना ही िक ओ शा ी तु हारी असली पहचान नह ह और
तुम िकसी बंदा बहादुर व संजय को जानते हो और यह िक िवदुर और िव णु गु , तु हार ारा उपयोग िकए गए
अ य दो नकली नाम रह चुक ह।”
ओ शा ी ने अपनी आँख कसकर बंद कर ल और एक दुःख क लहर उसक चेहर पर छा गई।
इस समय डॉ. ीिनवासन अपना आपा खोते ए आिधका रक वर म बोले, “मेरा नाम डॉ. ीिनवासन राव ह।
म नेशनल इ टी ूट ऑफ साइस क युिनकशन एंड इ फॉमशन रसोसज का सेवािनवृ वै ािनक रह चुका और
अब म इस टीम का नेतृ व कर रहा ।”
“म जानता , आप कौन ह!” ओ ने जवाब िदया।
डॉ. ब ा ओ को दवा से इजे ट करने क िलए उसक करीब गए।

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ओम ने शु म िवरोध करने का यास िकया और चीखते ए बोला, “म िमडाजोलमा, लुनाइ ाजेपाम,
ve
बािब ूर स और अमोबािबटल से ितरि त । यह आपक सहायता यादा देर तक नह कर सकता।” ये ओ
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क बेहोश होने से पहले आिखरी श द थे। उसक तेज आवाज सुनकर दो र क उसे उसक जगह पर थामे रखने क
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िलए आ गए।
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डॉ. ब ा ने उन दवा क नाम सुनकर, जो नारकोिट स ट ट म योग क जाती ह और जो उ ह ने अभी ओ


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शा ी को भी दी थ , आ यचिकत रह गए। लेिकन उ ह ने कोई भाव कट नह िकया। डॉ. शािह ता ने उसे


अपने िनयं ण म लेने क िलए उसक ओर देखा।
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वे आराम से उसक सामने बैठ और उसक आँख म गहराई से देखने लग । शािह ता क सुंदर आँख म िकसी
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भी य को स मोिहत करने का जादू और श थी। वे िबना पलक झपकाए मधुर आवाज म बोलती थ । जब
उ ह ने ओ शा ी क कध को छआ, वह एकदम ढीला होकर एक तरफ लुढ़क गया।
डॉ. ीिनवासन क मन म वे अजीब श द दज हो गए—‘म जानता , तुम कौन हो!’ जो ओ क िलए िब कल
नह कहना चािहए था। डॉ. ीिनवासन ने आ य से सोचा, ‘यह कसे?’
“ या यह िफर से पूछताछ क िलए तैयार ह?” ीिनवासन ने पूछा।
डॉ. ब ा ने एक उपकरण म कछ पढ़कर कहा, “अभी नह , सर।”
“वह या बड़बड़ा रहा था?” एल.एस.डी. ने खी आवाज म पूछा।
“सं ...कत।” प रमल ने कहा।
प रमल 35 वष य य था, जो महारा क शेतफल नामक गाँव से आया था।
वह वभाव से अंतमुखी था। उसने भारतीय इितहास म पी-एच.डी. क थी। उसका अपने िवषय म ान
असीिमत था, लेिकन अपनी बात रखने क िलए उसम आ मिव ास क कमी थी। उसक आ मिव ास म कमी
का कारण था उसका हकलाना, जो उसक िलए दूसर क साथ तालमेल बैठाने म सबसे बड़ी बाधा था और

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इसिलए अकसर उसे लोग ारा नजरअंदाज िकया जाता था। उसक चु पी क कारण उसक उप थित या
अनुप थित का कोई भाव नह था।
प रमल 6 फ ट से 2 इच छोटा था। उसक वचा िचकनी थी और वह ब त खूबसूरत था। उसने भूर रग क
चेक क शट क साथ काले रग क ज स पहन रखी थी और सफद पो स वाले जूत।े उसक आँख एवं उसक
बाल दोन गहर काले रग क थे और बाल म तेल लगाया आ था। उसक भोले-भाले न और सुझाव क कारण
उसे टीम म उसका मनचाहा मह व नह िदया गया था।
“सं कत! इस शता दी म सं कत कौन बोलता ह?” एल.एस.डी. ने उ ेिजत होकर कहा।
“वह।” प रमल ने ओ शा ी क तरफ इशारा करते ए कहा।
“हाँ, लेिकन आज क समय म िकसक पास उसक भाषा समझने का समय ह?” एल.एस.डी. ने कहा।
“मेर पास।” प रमल ने िफर से उ र िदया।
“सुषेण।” अिभलाष ने धीर से अपने आप से कहा।
“ या?” एल.एस.डी. ने अिभलाष क आवाज सुनकर पूछा।
“कछ नह ।” अिभलाष अपने आप को वापस िनयिमत करते ए बोला।
एल.एस.डी. ने आ ह करते ए कहा, “नह , मने तु ह उस आदमी ारा कछ समय पहले िलये गए नाम को

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दोहराते ए सुना।” ve
अिभलाष ने जवाब िदया, “सुषेण।”
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“हाँ, वही नाम। यह या ह, बताओ मुझे।” एल.एस.डी. ने आ ह िकया। प रमल भी बातचीत म शािमल हो
ks

गया।
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“सुषेण ब त ही कम इ तेमाल िकया जाने वाला नाम ह। मेरी जानकारी क अनुसार, सुषेण ‘रामायण’ म एक
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वै का नाम था, िजसने भगवान ीराम क छोट भाई ल मण क लंका क युवराज मेघनाद क साथ यु म घायल
होने पर संजीवनी नामक जड़ी-बूटी, जो ब त मु कल से िहमालय पवत पर पाई जाती ह, वह मँगवाई थी। भगवान
Vi

राम ने हनुमानजी को सुषेण क सलाह क अनुसार, संजीवनी बूटी लाने का आदेश िदया था। हनुमानजी िहमालय
@

पवत पर प चने क बाद संजीवनी बूटी एवं अ य जड़ी-बूिटय म अंतर नह कर पाए और इसिलए उ ह ने पूरा
पवत ही अपने कध पर उठाकर क याकमारी क ओर उड़ान भरी, तािक सुषेण खुद ही चयन कर सक।”
“हाँ, मने वह पौरािणक त वीर देखी ह, िजसम हनुमानजी पहाड़ को लेकर उड़ रह ह। या तुम उसी क बात
कर रह हो?”
“हाँ, लेिकन मुझे रामायण म सुषेण क अंत का कोई उ ेख याद नह ह।”
“इस आदमी क बार म सब कछ असाधारण ह। मने इससे पहले जो कछ भी देखा ह, वह इसक करीब भी नह
था।” शािह ता ने कहा। वे अपने िवचार म खोई ई थ ।
अपने मन म आए िवचार को रोकते ए वे डॉ. ीिनवासन क ओर मुड़ और िवन ता से उनसे पूछा, “सर,
हम कम-से-कम प प से पता होना चािहए िक हम िकस उ े य से जाँच कर रह ह?”
सब ने जवाब क उ मीद करते ए डॉ. ीिनवासन क ओर देखा।
“तुम यहाँ इसी काम क िलए हो।” डॉ. ीिनवासन ने कहा, “इसिलए, अपने काम पर यान दो और िजतना हो
सक, उतना उससे बात जानने क कोिशश करो, तािक हम और अ छ से जान सक िक हम या कर रह ह!” डॉ.

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ीिनवासन शािह ता को घूरते ए बोले।
उनका वभाव ब त खा था और शािह ता क चेहर क भाव से यह लग रहा था िक उ ह यह बात अ छी नह
लगी। सभी लोग काम पर वापस लग गए।
प रमल डॉ. ब ा क तरफ गया और िचंितत वर म उनसे पूछा, “डॉ. ब ा, आ...आ...प ठीक तो ह...ह न?”
डॉ. ब ा प तः परशान िदख रह थे। वे अपने आप को सँभालते ए बोले, “ या? हाँ! हाँ।”
“हम ए...ए...एक दूस...सर को अ छ से नह जानते ह। ले...लेिकन हम यहाँ टीम क त...तरह काम कर रह
ह। आप क...कछ परशान लग रह ह। सब ठी...ठीक तो ह न?” प रमल ने िचंितत वर म दोहराया।
प रमल ारा िदखाए गई इस भावना से वे सहज महसूस कर रह थे और उ ह ने उसक कान म धीर से कहा,
“यह आदमी एक घंट क अंदर ही उठ गया।”
“तो?” प रमल को कछ समझ म नह आया।
“ऐसा कसे हो सकता ह? यह संभव नह ह।” डॉ. ब ा ने आ य से अपनी आँख बड़ी करक कहा।
“संभव नह ह! आपका या मतलब ह? हम सबने उसे उठते ए देखा।” प रमल ने भोलेपन क साथ पूछा।
“वही तो! वही चीज तो मुझे परशान कर रही ह। प रमल, उस दवा क कवल एक खुराक इनसान को चार से

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पाँच घंट तक सुला देती ह। या तुम जानते हो? पहली खुराक से वह बेहोश नह आ था। िफर मने उसे सामा य
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से दोगुनी खुराक दी। वह थोड़ी देर क िलए तं ा म आया, लेिकन िफर भी होश म था। मने उसे उतनी ही खुराक
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दोबारा दी। ऐसी खुराक एक य को मारने क िलए काफ ह और वह कवल एक घंट क अंदर ही िफर होश म
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आ गया।” डॉ. ब ा समझाते ए बोले।


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“यह मेरी जानकारी और यो यता पर एक निच ह। मुझे यह पता लगाना होगा िक यह कसे आ?” ढ़ता
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से डॉ. ब ा ने कहा।
जो कछ भी डॉ. ब ा ने कहा, वह प रमल क समझ से बाहर था। इसिलए उससे बचने क िलए उसने पूछा,
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“ या आपने यह डॉ. ीिनवासन को बताया?”


@

“हाँ, मने बताया। शायद डॉ. ीिनवासन को ओ शा ी ऐसी चीज का ान ह, िजनक बार म हम कछ नह
जानते। जब ओ शा ी ने डॉ. ीिनवासन को देखा तो उसने उ ह उनक उपनाम से पुकारा, ‘िच ा’!”
“उसे कसे पता चला?” प रमल हरान था।
“यही तो बात ह। उसे यह सब कसे पता हो सकता ह?”
“एक य , जो डॉ. ीिनवासन का उपनाम जानता ह और अपना खुद का नाम न जानने का दावा करता ह!”
“ या तुम िकसी िमशन पर हो?” डॉ. शािह ता दोबारा चौकस होकर बैठ ग ।
“हाँ।” ओ शा ी ने अपना िसर िहलाते ए जवाब िदया।
सभी क चेहर का रग उड़ गया।
डॉ. ीिनवासन क म त क क रखाएँ उनक उलझन को कट कर रही थ ।
एक आतंक से पूछताछ करने क बार म सोचकर ही, िजसे इतना मह व िदया जा रहा था िक अलग-अलग
े क सव े लोग को इस पृथ सुिवधा क म एक साथ लाया गया था, एल.एस.डी. तनाव त हो गई।
एक बार क िलए डॉ. शािह ता भी भयभीत हो गई थ ।

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“मुझे पता था! यह एक मुसलमान ह। यह एक मुसलमान जैसा िदखता भी ह।” गव से अिभलाष ने कहा।
लोग क बीच जाित और धम क नाम पर भेदभाव करने क उसक आदत थी। शािह ता ने उसे अनदेखा करते
ए आगे पूछा—
“तु हारा या मकसद ह?”
“छपाना और छपे रहना।” ओ ने कहा।
“ या छपाना?”
“मेरी व तुएँ।”
“तुम उ ह कहाँ छपाते हो?”
“मेरी मृितय म...और लॉकर म।”
“िकसक िलए तुम उसक र ा कर रह हो?”
“मानव जाित क िलए।” ओ ने एक िद य मु कान क साथ कहा।
िबना िकसी न क ओ ने कहा, “नह , म कोई आतंकवादी नह ।”
शािह ता ने अपना आपा खो िदया। वे बाक सब क ओर मुड़ और उ ह अहसास आ िक सभी एक ही नाव म

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थे। डॉ. ीिनवासन िकसी से फोन पर बात कर रह थे। उ ह ने शािह ता का चेहरा देखते ही फोन रख िदया और
पूछा, “ या आ?” ve
no
“मेर िबना िकसी न क ही इसने जवाब िदया। भला िकसने इससे एक आतंकवादी होने क बार म पूछा?”
शािह ता ने हरान और हताश होकर टीम से पूछा।
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“लीसा सैमुएल डी’को टा।” ओ ने जवाब िदया।


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“म प रमल से उसक आतंक होने क संभावना क बार म बात कर रही थी; लेिकन मने ब त धीर से बोला
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था।” एल.एस.डी. ने मानते ए कहा।


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प रमल ने सहमित जताते ए िसर िहलाया।


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“उसने कसे तु ह सुना और मने नह ?” िचंता से शािह ता का चेहरा गंभीर हो गया।


“म तु हार यादा करीब बैठी ।”
एल.एस.डी. नह जानती थी िक उसे या कहना चािहए, इसिलए वह चुप रही।
दोपहर हो चुक थी और ओ शा ी ने एक बार िफर से अपनी जा अव था का अहसास कराया। वीरभ ने
अपनी घड़ी क ओर देखा, जो दोपहर क 1.45 बजा रही थी। वह गा स को देखने कमर से बाहर गया। इस दौरान
ओ ने डॉ. शािह ता क भयभीत आँख को देखकर ऐसे कहा, जैसे एक िपता अपनी बेटी से कह रहा हो, “तु ह
अपने उ र ा करने क िलए ऐसा करने क आव यकता नह ह। म इस समय तु हारी िहरासत म । तुम जैसे
चाहो, मुझसे िनबट सकते हो। िबना िकसी भय क आगे बढ़ो। म िकसी को कोई हािन नह प चाऊगा। मने कभी
ऐसा नह िकया ह। मुझ पर भरोसा रखो, म तु हारी सहायता क गा।”
शािह ता को कछ बोलते नह बना।
डॉ. ब ा कमर क पार डॉ. ीिनवासन क पास गए और बोले, “मुझे इसे जाँचने क िलए आपक अनुमित
चािहए।” वे ब त यादा उ ेिजत थे। डॉ. ीिनवासन ने डॉ. ब ा क सहायता करने का क नह िकया। वे अपने
काम म लगे रह।

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शािह ता ओ को छोड़कर बाक लोग क पास चली ग ।
“हाँ, शािह ता?” डॉ. ीिनवासन ने उ ह अपनी ओर आते देख पूछा।
“सर, मेरा सुझाव ह िक हम िबना िकसी ग या स मोहन क उससे पूछताछ करने क कोिशश करते ह।”
शािह ता ने िवनती क ।
डॉ. ब ा को शािह ता क बात हा या पद लगी, लेिकन वह चुप रह।
“हम ऐसा कर सकते ह, लेिकन उसक श द क स ाई क िज मेदारी कौन लेगा? और यह कसे पता लगेगा
िक वह सच ही बोल रहा ह?” डॉ. ीिनवासन ने ढ़ता से अपनी बात कही।
“लेिकन इससे भी तो कछ नह हो रहा ह।” डॉ. शािह ता ने कहा।
“कपया मुझे एक बार उसक जाँच करने दीिजए, सर। मुझे उसक खून का सपल चािहए।” डॉ. तेज ने ाथना
क।
“वह कोई परी ण क चीज नह ह, िजस पर तुम खोज कर सको, तेज! म तु ह इस िवशेष अिधकार क
अनुमित नह दे सकता।” डॉ. ब ा को कवल यही जवाब िमला।
डॉ. ब ा और डॉ. शािह ता ने एक-दूसर क ओर देखा, जैसे कह रह ह िक ‘हम एक ही नाव म सवार ह।’
एक गहरी साँस क साथ शािह ता ने कहा, “ठीक ह, सर, तो अब हम या करना चािहए?”

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डॉ. ीिनवासन क फोन क घंटी बजी। उ ह ने फोन को अपनी जेब से िनकाला और कॉलर का नाम देखकर
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वह बेचैन हो गए।
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“आप सभी थोड़ी देर आराम क िजए और उसक बाद अगले सेशन क तैयारी कर।” फोन उठाने से पहले डॉ.
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ीिनवासन ने ज दबाजी म कहा। वे कमर क बाहर चले गए।


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डॉ. ीिनवासन क जाते ही वातावरण म कछ सहजता आ गई। एल.एस.डी. क चेहर पर एकदम से एक मु कान
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आ गई थी।
प रमल ने अिभलाष क ओर देखा और िफर एल.एस.डी. क ओर। डॉ. ब ा परशान थे, य िक उनक पास
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सवाल क जवाब नह थे।


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वैसे ही, डॉ. शािह ता क नजर ओ शा ी पर थी, जो उ सुकता से अपने आसपास क चीज और लोग को
देख रहा था। जैसे ही उसने शािह ता क ओर देखा, उ ह ने अपनी नजर मोड़ ल ।
उसी समय िस यो रटी चीफ वीरभ कमर म दो अ य गा स क साथ आया। वह भारी आवाज म बोला, “सभी
लोग कपया इस तरफ आएँ।” और अपने हाथ से ार क ओर इशारा िकया। सभी को कछ पल का समय लगा
बाहर िनकलने क िलए। वीरभ और ओ शा ी को 1 घंट क िलए कमर म अकले रहना था।
दूसरा कमरा जाँचकता ारा य त था। डॉ. तेज अपने प रवार से अपनी मातृभाषा म बात कर रह थे। प रमल,
एल.एस.डी. और अिभलाष आराम से लकड़ी क एक मेज क चार ओर बैठ ए थे। डॉ. शािह ता ने कछ समय
क िलए अकले रहना ही ठीक समझा। वे एक दूसरी मेज क पास बैठकर अपनी डायरी म कछ िलख रही थ ।
प रमल अपने श द क साथ संघष कर रहा था, एल.एस.डी. अपने उपकरण क साथ और अिभलाष अपने गव
म डबा आ था। वे अपने और अपने पेशे क बार म बात कर रह थे।
“आप भी हमार साथ आइए न, डॉ. शािह ता? चिलए, एक-दूसर को थोड़ा जाना जाए।” एल.एस.डी. ने डॉ.
शािह ता को आमंि त करते ए कहा।

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“ज र! म 5 िमनट म आती ।” डॉ. शािह ता ने कहा।
चूँिक वे उन सबसे व र थ , वे उनक बार म उनक फाइल क ारा सब कछ जानती थ । वे इन लोग क साथ
यह जानते ए आई थ िक उ ह िकन लोग क साथ काम करना होगा, लेिकन यह नह जानती थ िक िकतने समय
तक करना होगा? वे अिभलाष क बराबर वाली खाली कस पर बैठ ग । जैसे ही डॉ. शािह ता बैठ , अिभलाष
खड़ा होकर दूसरी तरफ चला गया और अपनी जगह प रमल क साथ बदल ली। सभी को उसका यह भेद भरा
यवहार िदखा और समझ म आया, िकतु िकसी ने कछ नह कहा। डॉ. शािह ता शिमदा हो ग ।
डॉ. ब ा अभी भी फोन पर बात कर रह थे।
“उस डायरी म या ह?” एल.एस.डी. ने खुले प से डॉ. शािह ता क हाथ म डायरी क ओर संकत करते ए
पूछा।
“म बस पूछताछ म होने वाली सभी सामा य और असामा य घटना का िहसाब रख रही । बाद म जाँच
करने म लाभदायी सािबत होता ह।” डॉ. शािह ता ने मु कान क साथ जवाब िदया।
“कौ...कौन सी असा...सामा य घटनाएँ?” प रमल ने अपने वाभािवक तरीक से पूछा।
“तुमने देखा, वह मामूली सवाल नह पूछता ह। जब वह होश म आता ह तो िचंितत होकर पूछता ह िक हम

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कौन ह, या कर रह ह आिद, मानो उसक मन म उसे पहले से ही पता हो िक वह एक िदन पकड़ा जाएगा।”
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“शा...शायद उसने यह पहले भी अनुभव िकया हो, शा...शायद उसे पता हो िक हम क... या ढढ़ रह ह!”
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प रमल ने ताव रखा।
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“इतने भा यशाली तो हम भी नह ह िक हम पता हो िक हम उससे या चाहते ह!” शािह ता ने एक अ स ता


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वाले लहजे म कहा।


“औ...और कौन से असामा य भा...भाव उसने य...य िकए ह?” प रमल ने हकलाते ए पूछा।
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“वह मेर ारा िकए गए स मोहन िव ा क जादू को िबना िकसी पूव संकत क तोड़ देता ह। यह एक तेज
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ि या ह, मानो वह सामा य प से सो रहा था और अचानक से उठ गया।” शािह ता ने चुटक बजाकर उसक


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एकदम से उठ जाने को समझाते ए कहा।


“डॉ. ब...ब ा भी वह दवा, िजसका सामा य प से अ...असर कछ घंट क िलए रहता ह, उस पर को...कोई
असर न हो...होने क कारण ब त िचंितत ह।” प रमल ने कहा।
“म य गत प से डॉ. ब ा क उप थित से भयभीत । पता नह य , वे हमेशा गु से म ही रहते ह!”
एल.एस.डी. ने कहा।
“डॉ. ब ा अ छ य ह। वे कछ मु कल समय से गुजर रह ह, और कछ नह ।” शािह ता ने समझाया।
“ओह...आप उ ह य गत प से जानती ह?” एल.एस.डी. ने पूछा।
“हाँ, हमने पहले एक साथ काम िकया ह।”
“तो? उ ह या परशानी हो रही ह?”
“वे सामा य प से ऐसा यवहार नह करते ह। दरअसल, वे इसिलए उदास ह, य िक उनक प नी मृ यु-
श या पर ह; हालाँिक, वे एक यात िचिक सक ह, लेिकन इसक बार म वे कछ नह कर सकते। बस, यही

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उनक िनराश होने का कारण ह।” शािह ता ने सहानुभूित जताते ए कहा।
एल.एस.डी. ने थित को समझे िबना ही अपनी राय बनाने क िलए खुद क आलोचना क और साथ ही उसे
शािह ता से कछ ई या ई िक उ ह ने यह सारी बात िकतनी आसानी से समझ ली।
कछ देर क िलए वहाँ शांित छा गई, य िक डॉ. शािह ता यह िवचार करने लग िक डॉ. ब ा िकस मानिसक
पीड़ा म ह गे?
एक समझदार य परशानी से पहले क तुलना म और समझदार बनकर िनकलता ह। डॉ. ब ा वा तव म
एक बुि मान य ह। डॉ. शािह ता ने िवचार िकया।
“प रमल, ओ शा ी ने सं कत म या कहा था?” डॉ. शािह ता ने बातचीत को िफर से शु करते ए पूछा।
प रमल ने कहा, “वह एक ोक था। मुझे पूरा समझ म नह आया, लेिकन मुझे लगता ह, वह तेजी से समय
क साथ मानव जीवन क घटने क बात कर रहा था, िजसका उसे आ य था। जैसे उसने बोला, म वैसे नह समझ
पाया, य िक मुझ तक प चने क िलए उसक आवाज ब त धीमी थी। यिद मुझे वह एक बार और सुनने को िमल
जाए तो उसका सटीक अनुवाद म आपको बता दूँगा।”
“म वह आसानी से कर सकती । म उससे दोबारा बुलवा सकती ।” डॉ. शािह ता ने आ मिव ास क साथ
जवाब िदया।

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“हम भिव य क िलए उसे रकॉड करना चािहए।” एल.एस.डी. ने सुझाव िदया।
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“ या? ह...हम पहले से ही रकॉ...कॉड नह कर रह ह या?” प रमल क आँख म आ य साफ िदखाई दे
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रहा था।
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उसी समय डॉ. ब ा भी वहाँ आए और अपना िसर पकड़कर बैठ गए।


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“नह ।” शािह ता ने जवाब िदया।


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“ य ?” प रमल ब त हरान था।


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“ य िक डॉ. ीिनवासन नह चाहते िक कछ भी रकॉड िकया जाए।” डॉ. ब ा ने बीच म कहा।


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“औ...और हम उनक आ...आदेश का पा...आ...लन कर रह ह?”


“हाँ, य िक वे बॉस ह।” एल.एस.डी. ने आँख घुमाते ए कहा।
“मुझे नह लगता िक वे बॉस ह।” अिभलाष ने सोचते ए कहा।
“ या मतलब ह तु हारा?” एल.एस.डी. ने पूछा।
डॉ. ब ा एवं शािह ता ने एक-दूसर क ओर देखा और इससे पहले िक कोई अिभलाष क बात पर यान दे
पाता, डॉ. ब ा ने रोकते ए कहा, “एल.एस.डी., या तुम मुझे िकसी क बार म जानकारी दे सकती हो?”
“सर, जैसे उपकरण और साधन यहाँ उपल ध ह, उससे म आपको िकसी क बार म कोई भी जानकारी दे सकती
। उनका अकाउट नंबर, पासवड, इ-मेल, वह िकस थान पर उप थत थे, वह अभी कहाँ ह? उनक फोन नंबर
और उनका य गत िववरण...उनक पैदा होने से लेकर अभी तक क सारी जानकारी।” एल.एस.डी. ने
आ मिव ास से कहा। उसक आँख म चमक थी।
“ठीक ह िफर, ओ शा ी क बार म तुम िजतना पता लगा सकती हो, लगाओ।” डॉ. ब ा ने सहमित जताते
ए कहा।

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ओ और वीरभ कछ समय से कमर म एक साथ थे। ओ पहले क ही तरह बँधा आ था। उसक थित म
कोई बदलाव नह था। वीरभ एक मेज क पास खाली बैठा आ था। ओ ने आिखरकार चु पी तोड़ते ए कहा,
“ या मुझे एक िगलास पानी िमल सकता ह?” उसने शु क आवाज म कहा। वीरभ को लगा, जैसे उसका गला
सूख रहा हो।
“इसक िलए पानी का एक िगलास लेकर आओ।” वीरभ ने िबना िहले एक गाड को आदेश िदया।
“तो तुम यहाँ िकतने समय से काम कर रह हो?” ओ ने बात शु करने क कोिशश क ।
“काफ समय से।” वीरभ ने टका-सा जवाब िदया।
ओ ने एक गहरी साँस ली और मु कराने लगा।
“तुम य मु करा रह हो?” वीरभ ने िचढ़कर पूछा।
“ज द ही बा रश होने वाली ह और मुझे उसक सुगंध एवं आवाज ब त पसंद ह।” ओ शा ी ने जवाब
िदया। उसक नजर वटीलेटर क ज रए िदख रह आकाश पर िटक ई थी।
उसने गाड ारा लाए गए पानी को गटागट पी िलया।
“बा रश? अभी? गिमय म! तुम पागल हो गए हो?” वीरभ ने कहा।
वीरभ को बाहर गिलयार म पैर क आवाज सुनाई दी। वह कमर से बाहर चला गया और बाक सब अंदर आ

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गए तथा कछ ही पल म सब लोग अपने थान पर बैठ गए। एल.एस.डी. उ साह क साथ चहक रही थी, य िक
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आिखरकार उसे कछ काम करने क िलए िदया गया था। अिभलाष असमंजस क भाव से ओ शा ी को एकटक
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देख रहा था।
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ओ शा ी भी अिभलाष को घूर रहा था। डॉ. ब ा दूसर सेशन क िलए तैयार थे। अचानक उ ह याद आया िक
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वे कछ भूल गए ह।
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एल.एस.डी. क पास जाकर वे फसफसाते ए बोले, “ओ ने एक लॉकर का भी िज िकया था, जहाँ वह


अपनी जानकारी सुरि त रखता ह। उसक बार म भी जाँच करना।”
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“जी सर!” एल.एस.डी. ने कहा।


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डॉ. ीिनवासन वापस अंदर आ गए और टीम क सभी सािथय का िनरी ण करते ए उ ह ने देखा िक डॉ.
शािह ता वहाँ मौजूद नह थ ।
“अिभलाष!” डॉ. ीिनवासन ने उसे पुकारा।
“डॉ. शािह ता को ढढ़कर यहाँ ले आओ।”
अिभलाष िसर िहलाते ए अ स ता क साथ यह सोचते ए िक ‘म ही य ?’ सीधे दरवाजे क ओर चला
गया। वह जानता था िक वह मिहला कहाँ िमलेगी! जैसी िक उसे उ मीद थी, वे अगले कमर म बैठी ई थ । वे
यान से अपने नो स का अ ययन कर रही थ ।
“आप अब भी यह ह?” उसने अिन छा से िबना िझझकते ए कहा।
“म बस, अपने ारा तैयार िकए गए नो स पढ़ रही थी। यह शायद हमारी सहायता...”
“डॉ. ीिनवासन आपको बुला रह ह।” अिभलाष ने उ ह टोकते ए कहा।
शािह ता ने ‘हाँ’ म िसर िहलाया।
डॉ. शािह ता और अिभलाष साथ चलने लगे। लैब म वेश करने से ठीक पहले शािह ता ने ढ़ता क साथ

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कोमल वर म कहा, “अिभलाष, तु ह अघो रय क बार म ब त कछ पता ह, िफर भी म तु हारी जानकारी म एक
चीज और लाना चाहती िक अघो रय का िस ांत होता ह िक वे िकसी ाणी या चीज क ित घृणा नह रखते।
उनका मानना ह िक जो घृणा करता ह, वह साधना नह कर सकता और मो नह ा कर सकता। हम, जो
हमेशा दूसर से नफरत करने क वजह तलाशते रहते ह, चाह वह धािमक िवचार , वचा क रग, भाषा, लिगक
िविभ ता, राजनीितक कोण, िलंग या न ल पर आधा रत हो। हम उनसे सीखना चािहए। बात का सार यह ह
िक मेरा यवहार लोग क साथ उनक य होने क आधार पर ह, न िक उनक जाित क आधार पर; और म
चा गी िक सामने वाला भी मुझसे वैसे ही यवहार कर। या तु ह बात समझ म आई?” शािह ता ने घूरते ए
कहा।
अिभलाष समझ गया और उसने ‘हाँ’ करते ए अपना िसर िहलाया।
जैसे ही उ ह ने लैब म वेश िकया, डॉ. ब ा डॉ. ीिनवासन से बात कर रह थे, “सर, हम या करगे, यिद िफर
से दवाइय का असर उस पर नह आ?” डॉ. ब ा परशान थे।
“हम देखगे।” डॉ. ीिनवासन ने जवाब िदया। डॉ. ब ा क श द को अनसुना कर िदया गया था।

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4.
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इितहास से िलए गए नाम


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डॉ. ीिनवासन ओ क पीछ क ओर कस पर बैठ गए।


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“िच ा, कपया ऐसा न कर। आप मुझसे जो भी पूछोगे, म उसम सहयोग करने क िलए तैयार ।” ओ शा ी
ने िवनती क । उसक नजर डॉ. ीिनवासन क ओर इशारा करते ए छत क ओर िटक ई थी। डॉ. ीिनवासन ने
डॉ. शािह ता और डॉ. ब ा क ओर देखा। उन दोन क चेहर ने भी इसी बात को य िकया।
“कपया शु कर।” डॉ. ीिनवासन ने असहमित जताते ए नाराजगी क साथ आदेश िदया। उनक चेहर पर
‘िच ा’ श द सुनकर झुँझलाहट प प से िदख रही थी।
ओ को िफर से दवा देकर दोबारा पूछताछ शु क गई।
पहला सवाल प रमल क िलए यान देने और उसे दूसर को उसका मतलब समझाने क िलए था।
“तुमने िव णु गु क प म या सलाह दी थी?” शािह ता ने बेहोश ओ से पूछा। ओ ने सं कत का ोक
दोहराया—
या ीव ित ित जरा प रतजय ती
रोगा श व इव हर त देह ।
आयु पर वतिभ घटािदवा भः

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लोक तथा यिहतमाचरतीित िच ॥
डॉ. शािह ता प रमल क ओर देख रही थ । उसने अँगूठ क इशार से काम हो जाने का संकत िदया।
“तुमने िव णु गु क प म िकसे सलाह दी थी?”
“चं गु मौय को।”
“तुम ओ शा ी य बने?”
“अपनी असली पहचान िछपाए रखने क िलए।”
“िकससे?”
“इस दुिनया से।”
“तु हारी वा तिवक पहचान या ह?” डॉ. शािह ता छपे ए उ र पता लगाने म स म थ ।
“मेरी सभी पहचान वा तिवक ह।”
शािह ता ने इस पर मानिसक प से गौर िकया—‘मेरी सभी पहचान वा तिवक ह।’
“तुम ओ शा ी क प म वाराणसी म या कर रह थे?”
“खोज।”
“खोज! िकसक ?”

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“सुभाष चं बोस क ।” ve
सभी सहकिमय ने आ य से एक-दूसर क ओर देखा। शािह ता नह जानती थ िक वे आगे या पूछ या
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कह? ‘यह ब त अजीब होता जा रहा ह’, ऐसा उ ह ने सोचा। आिखर म उ ह ने एक लंबी साँस ली और आगे
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बोल , “सुभाष चं बोस मर चुक ह।”


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“नह , वे मर नह ह। वे बस, एक दूसर नाम क साथ रह रह ह।” ओ ने ढ़ता क साथ कहा।


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“तुम ऐसा य सोचते हो िक वह मर नह ह और िकसी और नाम क साथ जी रह ह?”


“म ऐसा सोचता नह ; म जानता ।”
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“तु ह इस बात पर इतना िव ास कसे ह?” शािह ता ने पूछा।


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“ य िक म उ ह महाभारत काल से जानता ।”


शािह ता ने आँख घुमाते ए सोचा िक इस बात का कोई िसर-पैर नह ह।
“तुम उ ह य ढढ़ रह हो?”
इस न क जवाब ने अिभलाष को िहलाकर रख िदया।
“ य िक वह अ थामा ह।”
“अ ... या?” शािह ता को समझ नह आया।
अिभलाष अ थामा का नाम सुनकर उसक बात गौर से सुनने लगा और शािह ता क ओर आने लगा।
“अ थामा।” ओ ने दोहराया।
“उससे पूिछए िक वह िकस अ थामा क बात कर रहा ह?” अिभलाष ने शािह ता क कान म धीर से कहा।
“ ोणाचाय क पु अ थामा, जो क ण क ारा िदए गए शाप से अमर ह।” ओ ने िबना शािह ता क कछ
बोले जवाब िदया।
डॉ. शािह ता कवल ‘क ण’ ही समझ पा ।

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अिभलाष डॉ. ब ा क ओर मुड़कर बोला, “इसक बात का कोई मतलब नह बन रहा ह।”
शािह ता ने पूछा, “तुम और िकसक तलाश कर रह हो?”
टटती ई आवाज क साथ उसने बताया, “परशुराम क ।”
इन सबको उ ह ने िफजूल समझते ए पूछताछ जारी रखी।
“िव णु गु एक कोड नेम जैसा तीत होता ह।” डॉ. ब ा ने गंभीर िवचार करते ए कहा।
“या हो सकता ह, वह मानिसक प से अ व थ हो या दोहर य व का मरीज हो अथवा िफर थोड़ा पागल
हो!” उ ह ने आगे कहा।
“यह पुनज म का मामला भी हो सकता ह।” अिभलाष ने पौरािणक कोण क साथ कहा।
डॉ. ब ा ने उसक बात पर यान नह िदया।
“तुमने ओ नाम से पहले और िकन नाम का उपयोग िकया ह?” शािह ता ने पूछा।
“गोिवंदलाल यादव, भैरव िसंह, सुवण ताप र ी, बंिकमचं च वत , गुरशील िसंह खु र, िवदुर, ओ
शा ी, हाितम अली मौलवी, ोतीम दास, िव णु गु , कबीर, सुषेण, जयशंकर साद, मधुकर राव, अिधरयन।”
ओ ने रटी ई किवता क तरह बताया।
उसका उ ारण, लहजा और चेहर क भाव येक नाम क साथ बदल रह थे। भैरव िसंह, हाितम अली मौलवी,

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गुरशील िसंह खु र एवं सुवण ताप र ी ताकत और बहादुरी क वर म बोले गए थे। बंिकमचं च वत
ve
बंगाली तरीक से, कबीर और सुषेण शांित क लहर क साथ बोले गए थे।
no
उस कमर म हर कोई उसक वाभािवक और ुिट-रिहत िति या से अचंिभत था। यहाँ तक िक सबसे अ छ
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अिभनेता भी यह इतने अ छ से नह कर सकते थे।


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शािह ता ने तनाव दशाते ए अपना िसर पकड़ िलया। डॉ. ीिनवासन भी पहली बार हरान थे। एल.एस.डी. ने
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ओ क ारा बोले गए सभी नाम को िलख िलया था। प रमल शािह ता ारा िलखे गए नो स को पढ़ रहा था।
प रमल क मन म अचानक कछ आया और वह डॉ. ब ा क पास गया। इस दौरान ओ अ -मू छत अव था म
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नाम ले रहा था।


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“स...सर, जब ओ ने िव...िव णु गु का नाम िलया था, मुझे िव ास था िक वह 300 ईसा पूव क समय क
बात कर रहा ह; य िक िव णु गु चाण य का असली नाम था। औ...और वह चं गु मौय का मु य सलाहकार
था। आप मुझे पा...पागल समझ सकते ह, लेिकन...” प रमल ने अपने सामा य अिन त वर म कहा। लेिकन
उसे बीच म ही रोकते ए डॉ. ब ा ने कहा, “नह प रमल, म तु ह पागल नह समझता ; ब क यिद यह वा तव
म चाण य क बार म बात कर रहा ह तो यह उसी बंदा बहादुर क बार म बात कर रहा था, िजसे मने सोचा था,
िकतु िव ास नह िकया। मुझे बंदा बहादुर क बार म भी कछ पु करने क आव यकता ह। मुझे थोड़ा समय
दो।” डॉ. ब ा ने फोन पर कॉल करने क िलए मा माँगते ए कहा।
एल.एस.डी. प रमल क पास आई। वह ब त उ सािहत लग रही थी।
“मने तु हारी बातचीत सुन ली थी। 300 ईसा पूव, मतलब 2317 साल पहले। ह ना?” एल.एस.डी. हवा म
िहसाब लगाती ई बोली।
“ या यह संभव ह िक वह समय म आगे या पीछ जा सकता ह?” एल.एस.डी. क उ ेिजत अनुमान क कारण

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मानो उसक आँख बाहर आ गई ह ।
उस िवचार ने प रमल को किपत कर िदया और वह िचढ़कर बोला, “वह ए...एक धो...धोखेबाज क अलावा
क...कछ भी नह ह।”
“बीजी, सत ी अकाल!” (नम ते माँ) डॉ. ब ा फोन पर सामा य से यादा ऊची आवाज म बात कर रह थे,
य िक उनक 80 वष या माँ को सुनने म तकलीफ होती थी।
डॉ. ब ा क आवाज इतनी ऊची थी िक सब उ ह सुन सकते थे और चूँिक वहाँ ब त शांित थी, सभी लोग
आसानी से और यान से उनक बात सुन रह थे। यहाँ तक िक एल.एस.डी. ने भी अपना काम रोक िदया, िजससे
क -बोड पर बटन क भी आवाज आनी बंद हो गई थी।
“िजंदा रह पु र!” (जीते रहो पु ) दूसरी ओर से एक बूढ़ी आवाज आई।
“इक गल द सो मैनू, बंदा बहादुर कौन सी?” (मुझे एक बात बताओ, यह बंदा बहादुर कौन था?) डॉ. ब ा
ने पंजाबी म पूछा।
“पु र, बंदा िसंह बहादुर, ी गु गोिवंद िसंहजी दा जरनेल सी।” (बेटा, बंदा िसंह बहादुर, गु गोिवंद िसंहजी
क धान थे) एक साथ दो आवाज म ब त आदर व स मान क साथ जवाब आया। एक आवाज बूढ़ी माँ क थी।

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जब डॉ. ब ा ने दूसरी आवाज सुनी तो उ ह ने पीछ मुड़कर देखा और वे तुरत समझ गए िक वह िकसने बोला था।
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वे ओ को सभी सवाल क जवाब, जो वे अपनी माँ से पंजाबी म पूछ रह थे, देते देख च क उठ; य िक ओ
no
उनका जवाब अ -मू छत अव था म ऐसे दे रहा था, जैसे वे सवाल उससे िकए गए ह ! यह असाधारण था। डॉ.
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ब ा क पैर डगमगा रह थे, य िक जो कछ भी हो रहा था, वे उसक या या करने म िवफल थे। वे पहले से ही
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ब त क म थे और ज द-से-ज द इस जंजाल से बाहर िनकलना चाह रह थे।


“उ ा दा इतकाल िकस तरह होया सी?” (उनक मौत कसे ई थी?) डॉ. ब ा ने अपनी माँ से फोन पर धीर
pb

से पूछा, लेिकन ओ को यान से देख रह थे।


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“उ ा नू मुगल बादशाह फ खिसयर ने मरवाया सी।” (उ ह मुगल बादशाह, फ खिसयर ारा मरवाया गया
@

था) उनक फोन से और उनक पीछ से आवाज आई।


इससे डॉ. ब ा हरान रह गए और उ ह ने अपनी बातचीत को दूर से जारी रखने का फसला िकया, जहाँ से उ ह
सुना न जा सक। वे कमर से बाहर चले गए। कमर म सभी लोग हरान थे। वे इस बात क पु कर सकते थे िक
वह ाचीनकाल क बात कर रहा था और सभी सवाल क जवाब उसी भाषा म दे रहा था, िजसम वे पूछ जा रह थे
—पंजाबी; लेिकन कोई नह जानता था िक य ?
वहाँ क शांित भंग करते ए वीरभ अंदर आया। वह हाँफ रहा था, िजससे पता लगा िक वह भागते ए आया
था।
उसने एक बार ओ शा ी को देखा और लंबे-लंबे कदम रखता आ अंदर बढ़ता गया।
“ऐमी ऐंदी?” ( या आ?) डॉ. ीिनवासन ने तेलुगू म पूछा। वीरभ क हाव-भाव देखकर उ ह सबको
बातचीत म शािमल करना ठीक नह लगा।
“वशम पडत दी!” (बा रश हो रही ह!) भयभीत वीरभ ने जवाब िदया।
“आइते?” (तो या आ?)

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डॉ. ीिनवासन ओ शा ी को लेकर पहले ही ब त परशान थे, उ ह एक नया नाटक नह चािहए था।
“अतनि क गंटल कतम येला तेलुिसंडी?” (उसे घंट पहले ही यह बात कसे पता थी?) वीरभ ने ओ क
तरफ इशारा करते ए पूछा।
ओ ने भी उसी भाषा म कछ बोलना शु कर िदया—
“मे ागा उ णोि ता मूंड 2 िड ी तिगं ी तरवाता इडा 5 िड ी व क त गुमुखम पड दी। घाली लो तेमा
अिनिपनिच दी, तडी म ी सुवासना वोिचंदी। घाली 40 िकलोमीटर वेगम तो वो त दी वषम वो त दी अनी
अनुकनानु।”
(तापमान 2 िड ी नीचे िगर गया था, उसक बाद और 5 िड ी। हवा 40 िकलोमीटर ित घंट क र तार से चलने
लगी थी। म हवा म उमस महसूस कर सकता था और गीली िम ी क सुगंध भी। इसिलए मने अनुमान लगाया िक
बा रश होगी।) ओ शा ी ने िन त प से उ र िदया।
“आप सब लोग या बात कर रह हो?” डॉ. ब ा ने बीच म कमर म वेश करते ए कहा।
बाक सब भी बेस ी से जवाब का इतजार कर रह थे। वीरभ ने डॉ. ब ा और बाक लोग को समझाना शु
िकया। तभी डॉ. ीिनवासन ने कहा, “कछ नह ।” िकसी ने कोई िति या नह दी। डॉ. शािह ता एक बार िफर
परशान थ िक वे ओ शा ी से या पूछ; और इसिलए वे अगले आदेश क िलए अपने बॉस क ओर देख रही

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थ । एक घंटा पूरा होने को आया था और जैसी िक डॉ. ब ा को उ मीद थी, ओ शा ी ने िफर से होश म आने
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का संकत िदया। सेशन ख म हो चुका था। शाम होने वाली थी। कछ भी योजना क अनुसार नह आ और उनक
no
पुराने सवाल क जगह अब नए सवाल खड़ हो गए थे। इनम से अिधकतर सवाल क जवाब उन लोग क पास
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थे, जो जान-बूझकर उ ह छपा रह थे।


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“हम बात करने क ज रत ह।” डॉ. ब ा ने डॉ. शािह ता से कहा।


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“हम सबको बात करने क ज रत ह।” डॉ. शािह ता ने थक-हारकर कहा।


ओ शा ी िफर से होश म आ गया था। उसक चेहर पर उदासी का भाव था, य िक उसे अहसास हो चुका था
Vi

िक उससे अपने कछ और रह य का खुलासा हो गया था।


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डॉ. ीिनवासन छोट अंतराल क घोषणा करते ए कमर से बाहर िनकल गए।
डॉ. ब ा ने डॉ. शािह ता को दरवाजे क पास बुलाते ए कहा, “आप मुझसे लॉबी क आिखरी छोर पर
िमिलए।”
“मुझे लगता ह, हम सबको िमलना चािहए।” शािह ता ने उसी आशंका से जवाब िदया।
एल.एस.डी. ने एकदम से आकर कहा, “सर, मुझे कछ िमला ह।”
“यहाँ नह , हमार साथ आओ।” डॉ. ब ा यह कहते ए उसे अपने साथ लेकर चले गए।
“म बाक सबको बुलाकर लाती ।” डॉ. शािह ता ने कहा।
सभी क से बाहर चले गए और वीरभ गा स क साथ ओ शा ी पर नजर रखने अंदर आ गया।
लॉबी क आिखरी छोर पर प चकर प रमल ने सबसे पहले बात शु करते ए कहा, “वह अलग-अलग
स...सिदय का िज नह क...कर रहा ह। वह अलग-अलग यु...युग क बात कर रहा ह। ऐसा क...कसे हो
सकता ह?”
डॉ. शािह ता ने कहा, “यह आदमी मेरी समझ म नह आता। वह कहता ह िक उसका नाम ओ शा ी ह;

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लेिकन उसी समय रामायण का सुषेण और महाभारत का िवदुर होने का भी दावा करता ह, िजसका मतलब ह िक
वह चाहता ह िक हम यह मान ल िक उसने उ म बढ़ना बंद कर िदया ह! इसक अित र , वह सुभाष चं बोस
को अ थामा मानकर उनक खोज कर रहा ह। आिखर वह ह कौन?”
“सवाल यह ह िक वह ह या?” डॉ. ब ा ने िचढ़कर कहा।
“एल.एस.डी., तु ह या िमला ह?” उ ह ने पूछा।
“सर, ब त से च का देने वाले त य। मुझे ओ शा ी क बक खात क बार म पता चला ह। उन सब म काफ
धनरािश ह और वे सब देश क अलग-अलग रा य म ह।”
“ह म...और?” डॉ. ब ा ने पूछा।
“पहचान क तौर पर सभी खात पर उसक फोटो ह। मने उसक फोटो का इ तेमाल उसक ारा बताए गए सभी
नाम क िवषय म जानकारी को ढढ़ने क िलए िकया। मुझे पता चला िक ोितम दास क पास एक वैध ऑल इिडया
ाइिवंग लाइसस ह। गोिवंदलाल यादव क नाम से एक मतदाता पहचान-प ह। बंिकमचं च वत क नाम पर
पासपोट; मधुकर राव क पास डी.एस.पी. क लगभग 70 साल पुराने कई सार बॉ स और शेयर ह। यह वही िदन
ह, जब डी.एस.पी. को कानूनी प से मा यता दी गई थी और उसक शेयर क ारिभक सावजिनक पेशकश जारी

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क गई थी। वे शेयर मधुकर राव क िपता वकट रम ा राव क ारा खरीदे गए थे। वकट रम ा राव क मौजूदा
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खात पर भी ओ शा ी क फोटो ह। ओ शा ी क उ 40 साल ह और मधुकर राव क िपता क मौत भी
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सरकारी रकॉड क अनुसार 40 वष क उ म हो गई थी। मने उसक ारा बताए गए सभी नाम क िपता संबंधी
जानकारी को देखा ह।
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“अलग-अलग नाम, एक ही चेहरा! इसका मतलब ह िक वह 40 से 50 वष क अंतराल क साथ िपता और


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पु दोन था। ऐसा उसक ारा िलये गए सभी नाम क मामल म ह।


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“लॉकर क बात कर तो गुरशील िसंह खु र क नाम से, पंजाब म, पंजाब नेशनल बक का एक लॉकर ह।
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एस.पी. र ी हदराबाद म आं ा बक क एक लॉकर का मािलक ह। गुरशील िसंह क िपता को छोड़कर िकसी का


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कोई पुिलस रकॉड नह ह और उनका चेहरा भी ओ शा ी क चेहर से मेल खाता ह। वह भारत-पािक तान क
बॉडर पर पकड़ा गया था। वह उन लोग म से एक ह, जो कभी पािक तान क जेल म कद थे। ये सभी नाम
ित त सं थान और िव िव ालय से िशि त ह। अिधरयन एक डॉ टर ह। बी.सी. च वत ने पे रस क या ा
क ह। लेिकन मुझे िव णु गु क बार म कछ नह पता चला और न ही चं गु उसक ारा बताए गए नाम म से
िकसी से जुड़ा ह। यही हाल िवदुर और संजय का भी ह।” एल.एस.डी. को अपनी कला पर गव था।
इससे पहले िक एल.एस.डी. आगे बोल पाती, डॉ. ब ा ने िवचार करते ए पूछा, “उनक माँ क बार म कोई
जानकारी?”
“जब वे ब त छोट थे, तब उनक माता क मृ यु हो गई थी। उनक कोई त वीर नह िमल सक । इन सभी
नाम को कवल उनक िपता ने पाला ह।”
“यह एक संयोग नह हो सकता।” डॉ. शािह ता ने कहा।
‘उसने कहा था िक उसक सभी पहचान वा तिवक ह।’ शािह ता ने िवचार िकया।
“ या तु ह सुभाष चं बोस और इन सभी लोग क बीच कोई संबंध िमला?” डॉ. ब ा ने पूछा।

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“थोड़ा-ब त...जैसे िक कछ अजीब वा तिवक त य, िजनका दावा कछ लोग ारा सुभाष चं बोस क
जानकारी क संबंध म िकया जाता ह।” एल.एस.डी. ने खुलासा िकया।
“यही िक उनक एक िवमान दुघटना म मौत नह ई थी? यह स...सबको पता ह।” प रमल ने हकलाते ए
पूछा। उसक आँख म िचंता साफ िदखाई दे रही थी।
“हाँ, लेिकन इसक अलावा भी मुझे एक ब त अजीब चीज का पता चला ह। सुभाष चं बोस क मृ यु पाँच
बार, पाँच अलग नाम क साथ, भारत क पाँच अलग-अलग शहर म ई ह।” एल.एस.डी. ऐसे बोली, जैसे वह
एक बड़ रह य को उजागर कर रही हो।
“ या?” सभी एक साथ िच ाए।
“ह म...यह तो होना ही था। संसार से बाहर क हर व तु अंदर इस आदमी से जुड़ी ई ह।” डॉ. ब ा ने आरोप
लगाते ए कहा।
एल.एस.डी. डॉ. ब ा क मजाक पर मु कराते ए आगे बोली, “सुभाष चं बोस का ज म 23 जनवरी, 1897
को आ था। वे एक भारतीय रा वादी थे, िजनक अव ा आंदोलन म देशभ ने उ ह भारत का नायक बना िदया
था। लेिकन दूसर िव यु क दौरान भारत को अं ेजी कमत से आजाद कराने क यास म उ ह ने नाजी जमनी

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और सा ा यवादी जापान से सहायता ली थी, िजसने एक उलझन भरी िवरासत दी।
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“माननीय नेताजी 1920 और 1930 क दशक म इिडयन नेशनल कां ेस क नेता थे और वे 1938 एवं 1939 म
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कां ेस क अ य बने; लेिकन महा मा गांधी और कां ेस क उ अिधका रय से मतभेद क कारण उ ह कां ेस क
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नेतृ व से िन कािसत कर िदया गया था। स 1940 म भारत से बाहर जाने से पहले उ ह अं ेज ारा घर म
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नजरबंद रखा गया था।


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“माना जाता ह िक सुभाष चं बोस क मृ यु अग त 1945 म ताइहोक फॉरमोसा म (िजसे अब ताइपेइ, ताइवान
कहा जाता ह) एक िवमान दुघटना म ई थी। कई बुि जीिवय क राय म, सुभाष चं बोस क मृ यु थड िड ी
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ब स क कारण ई थी। लेिकन उनक कई समथक ने, िवशेष प से बंगाल म, उनक मृ यु क त य या


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प र थितय को मानने से इनकार कर िदया था और तब से इनकार ही करते आ रह ह। उनक मृ यु क कछ घंट


बाद ही सािजश भरी कहािनयाँ सामने आ , िजसम से कछ आज भी कायम ह, िजनम बोस से संबंिधत कछ भयंकर
का पिनक बात ह। बोस क जीिवत होने क कथाएँ वष 1945 म ही काफ चिलत हो गई थ , जब उ ह िद ी म
देखा गया था और माना जाता ह िक उ ह लाल िकले म मारा गया था। लेिकन 15 साल बाद, स 1960 म, पे रस
म ली गई एक त वीर म उ ह देखा गया था।
“ओ का एक नाम बंिकमचं च वत भी, स 1964 म, पे रस म सुभाष चं बोस क खोज करने क िलए
गया था। स 1964 म 27 मई को सुभाष चं बोस को भारत क पहले धानमं ी जवाहरलाल नेह क अंितम
सं कार क समय भी देखा गया था। स 1977 म एक बार िफर यह दावा िकया गया था िक वह म य देश क
िशवपुकलम म एक संत का जीवन यतीत कर रह थे और वह उनक मृ यु ई और अंितम सं कार कर िदया गया
था। इन सभी रह यमय कहािनय क बाद एक गुमनामी बाबा क कहानी ने ज म िलया। वे अपने समथक से परदे
क पीछ से ही बात करते थे। उ र देश क फजाबाद म गुमनामी बाबा क िव ासपा ने िकसी तरह उनक,
1944 म, जमनी जाने का खुलासा कर िदया था; उसी साल और समय, जब सुभाष चं बोस जमनी म एडॉ फ

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िहटलर से िमले थे। उनक िव ासपा ने यह भी बताया था िक वह पे रस क सुंदरता का गुणगान करते नह
थकते थे। ऐसा कोई रकॉड नह ह, जो गुमनामी बाबा क पे रस जाने क पु कर सक; लेिकन सुभाष चं बोस
अव य ही वहाँ गए थे। गुमनामी बाबा क िनजी िम ने यह भी बताया था िक वे जब भी अपने सुभाष चं बोस
होने क खबर सुनते, तुरत ही अपने रहने का थान बदल लेते थे।
“माना जाता ह िक उ ह ने 16 िसतंबर, 1985 को अपना देह- याग िकया था; लेिकन िदलच प बात इस तारीख
म नह , ब क उनक ज मितिथ म ह, जो संयोग से 23 जनवरी, 1897 ह। वही िदन, जब सुभाष चं बोस का
ज म आ था। यह कहने क ज रत नह ह िक ओ शा ी का िवचार ह िक सुभाष चं बोस अभी भी जीिवत ह;
और तो और, वह उ ह ढढ़ रहा ह।” एल.एस.डी. को जो कछ भी जानकारी िमली थी, उसने वह सब बता दी।
कछ पल क िलए सब शांत थे। सार टकड़ को जोड़ते ए वे समझने क कोिशश कर रह थे, लेिकन कछ भी
समझ म नह आया। कछ देर बाद डॉ. ब ा ने कहा, “प रमल, उस ोक का या मतलब था?”
प रमल ने िवन ता क साथ हकलाते ए जवाब िदया—
“बुढ़ापा मानव को बाघ क तरह डराता ह,
बीमा रयाँ शरीर पर श ु क तरह वार करती ह
जीवन फट मटक से पानी क तरह टपकता रहता ह;

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िफर भी लोग दूसर को नुकसान प चाने क बार म सोचते ह;
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वे अपने णभंगुर होने का अहसास नह करते,
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यह वा तव म आ य का िवषय ह। यह उस ोक का सटीक अथ ह।”
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“हम म से यह कोई नह जानता िक इस पूछताछ से हम िकस िदशा म जा रह ह? लेिकन एक य ह,


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िजसक पास हमार सार सवाल क जवाब ह और समय आ गया ह िक हम पता चले िक हम यहाँ िकस उ े य से
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आए ह? म डॉ. ीिनवासन क पास जा रहा । या तो म जवाब क साथ वापस आऊगा या इस जगह को अभी-
क-अभी छोड़कर चला जाऊगा। या कोई मेरा साथ देगा?” डॉ. ब ा ने पूछा।
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5.
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खुले सू
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लैब म एक बार िफर से वीरभ और ओ शा ी एक-दूसर क साथ रहने क िलए िववश थे। वीरभ को ब त
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से सवाल ने घेर रखा था; लेिकन वह ओ से कछ नह कह सकता था। उसने सोचा िक एक छोटी सी गलती भी
उसक बेदखली का कारण बन सकती ह। इसिलए, वह जान-बूझकर अपनी बेचैनी को सह रहा था।
जब से वीरभ अंदर आया था, तब से ही ओ उसे यान से देख रहा था।
“तुम ठीक तो हो?” ओ ने िचंता य करते ए कहा।
“हाँ! य ?” वीरभ अपने याल से बाहर िनकलता आ बोला।
“तुम तनाव म लग रह हो।” ओ ने कहा।
वीरभ दुिवधा म था िक जो बात उसे परशान कर रही ह, उसे कह या ऐसे ही जाने दे! कछ पल सोचते ए वह
चुप रहा; िकतु उसक उ सुकता बाक सब चीज पर भारी थी।
और इसिलए उसने पूछा, “तुम एक क म बैठ हो। तुम कसे जान सकते हो िक बा रश होने वाली थी, वह भी
मौसम म बदलाव आने से कई घंट पहले? इसक अलावा, तुमने हवा क गित का िहसाब लगाया, गीली िम ी क
सुगंध को सूँघ िलया और तापमान म िगरावट को भी महसूस कर िलया था। इस क म िब कल हवा नह ह। यह
तुमने कसे िकया?”

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वीरभ अिव ास से अपना िसर िहला रहा था।
ओ शा ी हलका-सा मु कराया।
“वा तव म, म यह भी जानता िक म भारत क दि णी तट पर थत एक ीप पर और म यह कवल
अपनी इि य क सहायता से बता सकता ।”
वीरभ क होश उड़ चुक थे।
“तुम यह नह जान सकते! जब तु ह हलीकॉ टर म लाया जा रहा था, तुम बेहोश थे और तु हारी आँख पर
प ी बँधी ई थी।”
“लेिकन मुझे यह सब पता ह। इसक िलए बस, कछ अनुभव और अ यास क आव यकता ह। यह तुम भी कर
सकते हो, कोई भी कर सकता ह।” ओ ने कधे झटकते ए वा तिवकता कट क ।
“कसे?” वीरभ को कछ समझ नह आ रहा था।
“जैसे तुम आसानी से अपनी आँख क मदद से िविभ रग म अंतर कर सकते हो, वैसे ही बस, यान कि त
करक िविभ तरग को महसूस करो, जैसे तुम आकाश म हवाई जहाज को गायब होते देख सकते हो और एक
चील को जैसे-जैसे वह ऊचा उड़ती जाती ह, िबंदु म प रवितत होते ए, वैसे ही तुम चीज को पास आते और दूर
जाते भी सूँघ सकते हो।”

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वीरभ ारा सीखे गए सभी तक और िव ेषण से पर ओ ने िव तार क साथ समझाया। वीरभ को और ब त
ve
कछ सुलझाना था, इसिलए उसने अपनी बुि न लगाते ए अगला न िकया—
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“तुम एक दि ण भारतीय नह हो, िफर भी तुम इतनी सहजता से ुिट-रिहत तेलुगू कसे बोल लेते हो?”
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“मने तेलुगू म कब बात क ?” ओ ने आ य क साथ पूछा।


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दोन हरान होकर एक-दूसर को देखने लगे। इससे पहले िक कोई कछ बोल पाता, डॉ. ीिनवासन ने क म
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वेश िकया। डॉ. ब ा भी डॉ. ीिनवासन क पीछ उसी समय वहाँ प च गए। वीरभ ने पहले डॉ. ीिनवासन
क ओर देखा और िफर डॉ. ब ा क ओर। डॉ. ब ा ने घमंड क साथ ओ शा ी को घूरा, िफर डॉ.
Vi

ीिनवासन से धीर से कहा, “हम आपसे बात करना चाहते ह।”


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“हम?” डॉ. ीिनवासन ने पूछा।


“हम सभी, सर।”
“अभी नह । हम इस सेशन क बाद लंच ेक म बात करगे।”
“सर, हम आपसे बात िकए िबना दूसरा सेशन शु नह करगे।” डॉ. ब ा ने जोर देते ए कहा।
“टीम क बाक लोग कहाँ ह?” डॉ. ीिनवासन ने िबफरते ए कहा।
“आपक द तर म। वे हम दोन का इतजार कर रह ह।” डॉ. ब ा ने कहा।
ओ एवं वीरभ उन दोन क ओर देख रह थे और उनक बात सुन रह थे। डॉ. ीिनवासन ने गु से म जोर से
एक फाइल मेज पर पटक दी और डॉ. ब ा क ओर बढ़। डॉ. ब ा दूसरी ओर मुड़कर कमर से बाहर चले गए।
डॉ. ीिनवासन कमर से बाहर जाते-जाते पीछ मुड़ और वीरभ को अपने पीछ आने का आदेश िदया। वीरभ
अिन छा से उनक पीछ गया। दो गाड ओ शा ी पर नजर रखने क िलए वह थे।
“तेल ब त यादा गरम हो चुका ह। थोड़ी-सी भी देरी ई तो कटी ई याज जल जाएगी।” ओ ने पीछ से
वीरभ को कहा। उसक चेहर पर एक मु कान थी।

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वीरभ डॉ. ीिनवासन क पीछ-पीछ कमर से बाहर चला गया। रा ते म, डॉ. ीिनवासन क ऑिफस म वेश
करने से पहले यह सुिन त करने क िलए उसने रसोई म झाँका। वह यह देखकर आ यचिकत रह गया िक
चू ह क आँच पर बरतन रखा आ था और रसोइया कह नह था। कटी ई याज चू ह क पास भूनने क िलए
रखी ई थी। तेल पया प से गरम था। वीरभ वहाँ प चा और याज को कड़ाही म पलट िदया। रसोइया
अचानक से आ गया और वीरभ को वहाँ देखकर हत भ रह गया।
दूसरी ओर, वीरभ डॉ. ीिनवासन क पीछ जाने क िलए शी ता से रसोई से बाहर िनकला। डॉ. ीिनवासन ने
ऑिफस म वेश करते ही वहाँ सबको खड़ होकर उनका इतजार करते पाया। डॉ. ीिनवासन उन सबको पार
करते ए अपनी कस क ओर गए और अपने रोबीले अंदाज म कस पर बैठ गए। उनक नजर डॉ. ब ा क ऊपर
थी। कमर म तनावपूण थित थी।
“वह कौन ह?” डॉ. ब ा ने वाभािवक न क साथ शु िकया।
“तेज, तुम यहाँ वह काय करने क िलए आए हो, िजसे करने क िलए तु ह यहाँ बुलाया गया ह। तु ह यहाँ मुझसे
न करने क िलए नह बुलाया गया ह।”
“मुझे जानने का अिधकार ह। वह आदमी कौन ह?” डॉ. ब ा ने और थोड़ा आ ह िकया। उनक पास टीम का
समथन था।

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डॉ. ीिनवासन अपमािनत महसूस करते ए एकदम से खड़ होकर बोले, “नह , यहाँ तु हार पास कोई अिधकार
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नह ह। तु हार सभी अिधकार मेर पास सुरि त ह।”
no
“सर, कपया शांत हो जाइए।” डॉ. शािह ता ने डॉ. ीिनवासन को रोकते ए आ ह िकया। उ ह ने कहा, “ओम
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क संबंध म हमारी अधूरी जानका रय क आधार पर हम एक अजीब से िन कष पर प चने क िलए मजबूर ह। हम


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सभी ब त बेचैन और उलझे ए ह।”


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शािह ता क श द को सुनकर डॉ. ीिनवासन थोड़ा शांत ए और िफर बोले, “आप म से िकसी को भी डरने
क कोई आव यकता नह ह। आप सभी यहाँ सुरि त ह।” डॉ. ीिनवासन क पीछ खड़ वीरभ ने भी सहमित म
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िसर िहलाया।
@

“हम भले ही यहाँ सुरि त ह , लेिकन यिद वह एक आतंकवादी ह तो शायद हमारा प रवार सुरि त न हो।” डॉ.
ब ा ने अपनी िचंता य करते ए कहा।
“वह एक आतंकवादी नह ह!” डॉ. ीिनवासन िफर से ोिधत हो उठ और अपनी भारी आवाज म िच ाए।
उनक आवाज दूर तक गूँजती ई तीत ई।
“आप इतने िव ास क साथ कसे कह सकते ह?” डॉ. ब ा िकसी क भी सनक और नखर क कारण पीछ
नह हटने वाले थे, इस समय तो िब कल भी नह ।
“मुझे पता ह।” डॉ. ीिनवासन ने हाथ को अपनी छाती क सामने बाँधते ए अपने आप को िनयंि त करते ए
कहा।
“आप और या जानते ह?” डॉ. ब ा ने पूछा। वह भी बदले म वही चीज कर रह थे।
डॉ. ीिनवासन ने अपने ह ठ बंद ही रखे। शािह ता डॉ. ीिनवासन क पास ग और उ ह कध पर थपथपाते
ए सां वना देते ए कस पर िबठाया। डॉ. शािह ता ने उ ह मेज पर रखा पानी का िगलास िदया। डॉ. ीिनवासन
ने पानी िपया। शािह ता ने बोलने से पहले उ ह आराम करने और सहज महसूस करने का समय िदया।

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“सर, हम कछ ऐसी चीज पता चली ह, जो हम परशान कर रही ह और हम कछ खुले सू क तरफ ले जा
रही ह। एल.एस.डी., कपया सर को सं ेप म बताओ।”
एल.एस.डी. ने ओ शा ी क संबंध म अपनी जानकारी का संि िववरण यह कहते ए दोहराया, “सर,
िजस आदमी को हम ‘ओ शा ी’ क नाम से जानते ह, उसक देश क िविभ िह स म कई पहचान ह। कह
उसका उ ेख खुद क िपता क प म ह तो कह खुद क पु क प म। एक ही चेहरा, िकतु अलग-अलग
नाम क साथ। मुझे उसक अ य पहचान क नाम पर दो मौजूदा लॉकर और ब त से बक खाते िमले ह, िजनम
काफ अिधक धनरािश मौजूद ह। कानूनी तौर पर वह करीब-करीब एक बेदाग य ह। वह एक यव थत
य िदखाई पड़ता ह, जो शायद िकसी भूिमगत आतंकवादी संगठन क िलए काम करता हो। वह एक अ यंत
गोपनीय िमशन पर हो सकता ह, िजसका हम अभी तक पता नह चला ह। एक बात, िजसका हम पता चला ह,
वह यह ह िक वह सुभाष चं बोस क खोज कर रहा ह, जो शायद सरकार और देश क िलए सबसे बड़ी िचंता
का िवषय हो।”
डॉ. ीिनवासन ने गौर से एल.एस.डी. क बात को सुना। डॉ. शािह ता वहाँ से बात को आगे ले जाते ए बोल ,
“स मोहन िन ा अव था क दौरान उसने उन लोग क बार म बात क ह, िज ह ने पहले युग म इस धरती पर
कदम रखा ह। हमम से कछ समझते ह िक उसे अपने सभी ज म याद ह और कछ सोचते ह िक वह दोहर

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य व का मरीज ह। यह भी हो सकता ह िक वह िकसी ाचीन गु समूह का सद य हो, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी
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कछ िछपे उ े य पर काय करते आ रह ह; लेिकन उसक कोई भी पहचान इनम से िकसी भी संभावना से मेल
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नह खाती ह।”
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जैसे ही डॉ. शािह ता ने बात करना बंद िकया, उस जगह स ाटा छा गया। शािह ता ने आगे कहा, “सर, यिद
oo

आप चाहते ह िक हम आपक सहायता कर तो इसक िलए आप जो जानते ह, वह हम बताकर आपको हमारी


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सहायता करनी होगी।”


“इस सुिवधा क क पीछ का या राज ह? हम उस आदमी को यहाँ य लाए ह? हम उससे या जानने क
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िलए संघष कर रह ह? सर, कपया आप जो जानते ह, हम बताइए।” डॉ. ब ा इस बार गु से से यादा हताश लग
@

रह थे।
हमेशा क तरह डॉ. ीिनवासन ने इस बार भी अपने चेहर पर कोई भाव कट नह िकया। उ ह ने एक गहरी
साँस ली और अपने पैर को देखने लगे, जैसे मन म कछ िहसाब लगा रह ह । कछ देर बाद वे बोले, “ठीक ह, म
जो कछ भी जानता , वह आप सबको बताऊगा; लेिकन उससे पहले तुमने जो उसक लॉकर क बार म बताया
था, उसक पूरी जानकारी मुझे चािहए।”
“हो गया, सर, यह लीिजए।” एल.एस.डी. ने अपनी तरफ से डॉ. ीिनवासन को एक कागज देते ए कहा, जो
उ ह ने वीरभ को दे िदया। वीरभ कागज लेते ही क से बाहर चला गया। वह जानता था िक उसे या करना ह!
डॉ. ीिनवासन ने अपनी मेज से जुड़ी ितजोरी को ब त यान से खोला और उसम से कछ त वीर एवं द तावेज
बाहर िनकालकर डॉ. शािह ता को िदए, िज ह ने एक-एक करक सब देखते ए बाक लोग म बाँट िदए। सभी
त वीर ओ शा ी क िविभ प और पहनावे म थ । हर त वीर क नीचे उनक िलए जाने वाली जगह और साल
िलखे ए थे। शािह ता ने एक-एक करक उ ह पढ़ा—1874 बनारस म, 1882 ह रयाणा म, 1888 म ास म,
1895 महारा म, 1902 करल म, 1916 लखनऊ म, 1930 स या ह आंदोलन, 1944 म सुभाष चं बोस क

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सेना क फॉरवड लॉक म, 1964 म जवाहरलाल नेह क अंितम सं कार म, 1984 म ीमती इिदरा गांधी क
अंितम सं कार म, 1991 म राजीव गांधी क अंितम सं कार म,
1998/2001/2005/2010/2011/2012/2013/2014/2015...
डॉ. ीिनवासन ने यान से सभी क चेहर को पढ़ते ए कहा, “ये सब मृ यु माण-प और कछ सरकारी
रकॉ स ह, जो इस बात क पु करते ह िक ओ शा ी ारा उपयोग िकए गए सभी नाम क मृ यु हो चुक ह;
िकतु जब वह िकसी जगह पर मर जाता ह तो दूसरी िकसी जगह पर जीिवत हो जाता ह। उ ेखनीय प से, वह
हर त वीर म एक ही उ का ह, न ही जवान और न ही बूढ़ा, लगभग 40 वष का।” समझने का समय देते ए
डॉ. ीिनवासन कछ देर चुप रह और दोबारा गंभीरता से बोले, “इसीिलए तुम सब यहाँ हो और तु ह यहाँ मुझसे
यह न करने क िलए नह बुलाया गया ह िक वह आदमी कौन ह, ब क म यहाँ तुम लोग से इस आदमी क
बार म जानकारी लेने क िलए उप थत । तुम सभी यहाँ इस रह यमय आदमी क बार म जवाब और उिचत
जानकारी पता लगाने क िलए एक गोपनीय िमशन का िह सा हो। याद रह, गु िमशन!”
डॉ. ब ा का मन शंका से भरा आ था और वे अपने आप को रोक नह सक।
“इस सं था का मािलक कौन ह?” डॉ. ब ा ने सीधे तरीक से पूछा।

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“ब त हो गया, तेज! तु ह बस, इतना ही जानने क आव यकता ह। अब तु हार पास कवल दो िवक प ह—
ve
अपने काम पर वापस लग जाओ या अपना सामान बा ँधो; तु हारी वापसी का बंध म करवा दूँगा।” डॉ.
no
ीिनवासन ने चेतावनी देते ए कहा। वे अपनी आवाज म ितर कार क भावना नह छपा पाए।
डॉ. ब ा थर खड़ रह। वे योगशाला म वापस जाने क िलए मुड़ने ही वाले थे िक तभी डॉ. शािह ता बोल
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पड़ , “सर, हम ह त लग जाएँगे पूरी जानकारी को ा करने क िलए, य िक ओ शा ी को हर घंट म होश


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आ जाता ह।”
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“ या तु हार पास कोई और सुझाव ह?” डॉ. ीिनवासन ने ऐसे पूछा, जैसे वे पहले से ही उ र जानते ह ।
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“जी सर, मेरा सुझाव ह िक हम उससे सीधे तरीक से बात कर, िबना िकसी बेहोश करने वाली औषिध या
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स मोहन क।” शािह ता ने ताव रखा।


“मुझे डर ह िक वह इस तरीक से कछ नह बोलेगा।” डॉ. ीिनवासन ने अपनी िचंता य करते ए कहा।
“वह बोलेगा, सर। उसे इस बात का कोई अंदाजा नह ह िक उसने अभी तक अपने बार म िकतना खुलासा
िकया ह! हम उसे यह िव ास िदला सकते ह िक हम उसक बार म सब कछ जानते ह और िफर वह होश म रहते
ए भी सब कछ बताएगा।”
“यह आप सभी क िलए एक जोिखम भरी ि या सािबत हो सकती ह।” डॉ. ीिनवासन ने चेतावनी देते ए
कहा।
डॉ. शािह ता यह जान चुक थ िक डॉ. ीिनवासन से कसे यवहार करना ह और कसे अपनी बात को मनवाना
ह। उनक इस समझदारीपूण तरीक म वह ताकत थी, जो िकसी दबंग य व को भी काबू म कर सकती थी।
इसिलए उ ह ने कहा, “सर, मने ब त से अपरािधय से पूछताछ क ह और अपने अनुभव से म आपको यह
िव ास िदला सकती िक इस आदमी से डरने क ज रत नह ह।”
“मुझे नह लगता िक हम उस पर िबना ग या स मोहन क िव ास कर सकते ह।” डॉ. ीिनवासन ने अपनी
धारणा पर कायम रहते ए कहा।

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“उसक चेतना से मुख तक आते-आते स य क व प म बदलाव क संभावना हमेशा रहगी।”
“हम लाइ िडट टर का उपयोग कर सकते ह और एल.एस.डी. उसे देखने व पढ़ने म हमारी सहायता कर
सकती ह।” डॉ. ब ा ऐसे बोले, जैसे ब त ही मह वपूण योजना बता रह ह ।
“सर, कछ उपकरण को मोट तार क मदद से उसक शरीर से जोड़ा जाएगा, जो उसक धड़कन और िवचार
क तरग को नोट करक न पर य क प म प रवितत कर दगी। यिद वह सही िति या करता ह तो हम
उसक मृितय का सटीक ितिबंब देख सकते ह—युग और समय क सू म िववरण क साथ। मने सही कहा न,
एल.एस.डी.?” शािह ता ने कहा।
“यह ब त मजेदार होगा!” एल.एस.डी. ने चहकते ए सुर म सुर िमलाया। उसक मुँह म यूइगगम होने क
वजह से उसने ये श द कछ लड़खड़ाते से बोले, िजसका उसे कछ अफसोस भी नह था। उसक यह कहते ही
सबने एकदम उसक तरफ देखा, जैसे कह रह ह , “इसे या आ?” सबक इस भाव-भंिगमा क
िति या व प उसने एकदम यूइगगम चबाना बंद कर िदया और शांति से काम म लग गई।
“सर, श द झूठ हो सकते ह, लेिकन िवचार वे छा अनुसार िनयंि त नह िकए जा सकते। यिद हम उसक
िवचार का य देख पाएँगे तो वह हमसे झूठ नह बोल पाएगा।” शािह ता ने कहा।
डॉ. ीिनवासन सभी संभव प रणाम क बार म अपने म त क म सोच-िवचार कर रह थे, जबिक सब लोग

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उनक इशार का इतजार कर रह थे। ve
शािह ता ने िवनती करते ए कहा, “सर, अब आपक बारी ह, अपने ारा चुने गए सव े िवशेष पर भरोसा
no
करने क ।”
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डॉ. ीिनवासन सहमत होने क िलए मजबूर थे। िकतु हामी भरने से पहले उ ह ने पूछा, “यिद यह सफल नह
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आ तो?”
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“िफर हम वही तरीका अपनाएँगे, जो हम अब तक करते आ रह ह।” डॉ. ब ा ने आ ासन देते ए कहा।
“सर, अब तक यह ब त मु कल रहा ह। उसक ारा बोले गए सभी वा य ने नए सवाल खड़ कर िदए ह
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और मुझे अब इस बात का कोई अंदाजा नह ह िक उससे या पूछा जाए?” शािह ता ने कहा।


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“ठीक ह, जो भी तु ह ठीक लगे, उसक साथ आगे बढ़ो; लेिकन शािह ता, सतक रहना। एक आव यक दूरी
ज र बनाए रखना। कोई रकॉिडग नह होगी। हम दोपहर क खाने क बाद शु करगे।” डॉ. ीिनवासन िचंितत
थे।
सभी दोपहर क भोजन क िलए भोजन क क ओर आगे बढ़; लेिकन डॉ. शािह ता योगशाला क ओर ग । वे
ओ क तरफ बढ़ और उसक सामने खड़ी हो ग । उ ह ने मु कराते ए कहा, “हलो! मेरा नाम शािह ता ह। मुझे
पहले अपना प रचय देने का मौका नह िमला था। ओ , तुम अपना भोजन कर लो। इस बीच म दूसर क साथ ।
अगर तु ह िकसी चीज क ज रत पड़ तो मुझे ज र बताना।” शािह ता ने ओ से िनकटता का यास िकया,
य िक भोजन क बाद उसे उसक चेतन अव था म बातचीत करने का काम करना था। मनोिव ान यह कहता ह
िक यिद आप एक बार िकसी य का िव ास हािसल कर लेते ह तो आपको उसक सभी राज भी पता लग जाते
ह।
“मने उनसे अनुरोध िकया था िक मुझे खोल द। म िव ाम क का उपयोग करना चाहता था।” ओ ने
िवन तापूवक कहा।

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“ओह! अव य, ओ । दरअसल, वे तुमसे बात करने या खुद कोई िनणय लेने क िलए अिधकत नह ह।
असुिवधा क िलए मा करो।” शािह ता ने आदरपूवक कहा।
उ ह ने ओ शा ी को िव ाम क तक साथ ले जाने क िलए एक गाड को आदेश िदया।
शािह ता अब दूसर सेशन क िलए आ त थ , य िक ओ उनक ित सुर ा मक या खा नह था।
जैसे ही गाड ने आदेश का पालन िकया, ओ मुड़ा और उसने कहा, “एक और बात, म शाकाहारी और मुझे
प ा गोभी पसंद नह । म आलू और दाल खा सकता । हरी िमच और नमक कपया अलग से।” ओ ने अपने
खाने का तरीका बताते ए कहा।
शािह ता क समझ म नह आया, लेिकन उसने िसर िहलाया। वह योगशाला से बाहर चली ग और जैसे ही
वह भोजन क म प च , मे यू देखकर िवचिलत हो ग । उ ह ने देखा िक मांसाहारी भोजन परोसा जा रहा ह और
दो स जयाँ—आलू व प ा गोभी। वह अपने आप को सँभालते ए बोल , “ओ क िलए मांसाहारी खाना मत
भेजना और न ही प ा गोभी। वह नह खाता ह।”
“आपको कसे पता?” एल.एस.डी. हरान थी।
“उसी ने मुझे बताया।” शािह ता ने जवाब िदया।
“ या?” एल.एस.डी. ने पूछा।

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“यही िक वह शाकाहारी ह और उसे प ा गोभी भी पसंद नह ह और यह िक उसे हरी िमच व नमक अलग से
ve
चािहए।”
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सब एक-दूसर को आ य से देख रह थे, जबिक शािह ता ने अपना भोजन करना शु कर िदया था।
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एल.एस.डी. कछ देर सोचने क बाद धीर से बोली, “खाने क मे यू म आलू व प ा गोभी ह, यह बात उसे
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कसे पता चली? इसक अलावा, यिद वह शाकाहारी ह तो उसे कसे पता चला िक मांसाहारी खाना पकाया जा
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रहा ह?”
शािह ता यह सुनकर बीच म ही क ग और गहर िवचार म खो ग ।
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ve
no
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6.
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िद य युग
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वहाँ कछ पल क शांित क बाद प रमल बोला, “सभी त वीर को दे...देखकर उसक दोहर य व या पुनज म
@

क संभा...भावनाएँ ख म हो जाती ह। अब नई या या या ह?”


कछ ण शांित म गुजरने क बाद एल.एस.डी. ने उ ह भंग करते ए कहा, “काल या ा!”
वह अपने लैपटॉप को देख रही थी। उसका सारा यान अपने उपकरण पर था।
“यह या अनाप-शनाप ह! काल या ा एक क पना ह। समय थैितक नह ह िक तुम उसम आगे या पीछ जा
सको। अतीत अतीत ह और भिव य अभी तक मूत प म नह ह।” अिभलाष ने एल.एस.डी. क बात क
आलोचना करते ए कहा। एल.एस.डी. ने उसक श द को अनसुना कर िदया।
डॉ. ब ा ने िफर सबको संबोिधत करते ए कहा, “प रमल का कहना ह िक िव णु गु , जो ओ खुद होने का
दावा करता ह, वह चाण य का दूसरा नाम ह और यह भी िक चं गु कोई और नह , ब क मौय सा ा य का
चं गु मौय ह।
“म प रमल पर िव ास करने क िलए मजबूर , य िक बंदा िसंह बहादुर और फ खिसयर, उसक ारा िलये
गए नाम, िसख कथा का िह सा ह। आप सभी ने कछ समय पहले फोन पर मेरी बातचीत को सुना होगा। अब म
इस बात क बार म आपक िवचार जानना चाहता ।”

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“डॉ. तेज, आप एक डॉ टर ह। आप इन सब म कसे िव ास कर सकते ह? यह िब कल तक से पर ह।”
शािह ता रोष म थ ।
“ठीक ह, डॉ. शािह ता, तो कपया आगे बढ़ और एल.एस.डी. ारा ढढ़ गए द तावेज म एक ही चेहर क इन
सभी लोग और उनक िपता को तािकक प से सही ठहराएँ।” डॉ. ब ा ने मुँहतोड़ जवाब देते ए कहा।
शािह ता अवा रह ग ।
“सर, ओ शा ी ारा बोला गया ोक मूल प से चाण य का ह।” एल.एस.डी. अभी भी अपनी खोज म
लगी ई थी।
“बंदा िसंह बहादुर कौन ह और चाण य का अतीत या ह?” अिभलाष ने पूछा। इससे पहले िक डॉ. ब ा बंदा
बहादुर क बार म कछ कह पाते, प रमल ने हकलाते ए जवाब िदया, लेिकन इस बार आ मिव ास क साथ।
“माना जाता ह िक चाण...ण य का ज म 350 ईसा पूव म आ था। लेिकन... यह एक िववाद का िवषय ह
और उनक ज म क बार म ब त सारी कहािनयाँ चिलत ह। बौ ंथ क अनुसार, उनका ज म- थान त िशला
ह। जैन शास... म उ ह एक िमला कहा गया ह, िजसका अथ यह ह िक वे दि ण भारत क मूल िनवासी थे।
एक और जैन मा यता क अनुसार, चाण...ण य का ज म गोला े क चन...क गाँव म एक ा ण च...िनम और

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उसक प नी चणे री क यहाँ आ था। अ य सू का मानना ह िक उनक िपता का नाम च...णक था और
ve
no
चाण य का नाम उनक िपता क नाम से िलया गया था। कछ सू क अनुसार, चाण य उ र भारत म रहने वाले
ा ण थे। वे वेद क िव ा एवं िव णु भगवान क भ थे। जैन कथन क अनुसार, उ ह ने अपनी वृ ाव था म
ks

जैन धम अपनाया था—चं... गु मौय क तरह।” प रमल ने वणन िकया।


oo

“चा...ण य एक भारतीय िश क, दाशिनक, अथशा ी, याय और राजक य सलाहकार थे। उ ह पारप रक


pb

प से कौिट य या िव णु गु क नाम से जाना जाता ह, िज ह ने ाचीन भारतीय राजनीित ंथ ‘अथशा ’ िलखा


Vi

ह। उ ह भारत म राजनीित िव ान और अथशा का जनक माना जाता ह और उनक काम को शा ीय अथशा


@

का णेता माना जाता ह। उनक काम गु सा ा य क आिखरी समय म िवलु हो गए थे और वष 1915 तक


दोबारा नह खोजे गए थे।” सभी ने ब त यान से प रमल का चाण य क बार म उ ेख सुना।
एल.एस.डी. अपने लैपटॉप म से उनक बार म और जानकारी पढ़ते ए आगे बोली, “ ारभ म वे त िशला
िव िव ालय म िश क थे। चाण य ने थम मौय स ाट चं गु मौय क स ा म आने क िलए सहायता क थी।
मौय सा ा य क थापना म मह वपूण भूिमका िनभाने क िलए उ ह यापक प से ेय िदया जाता ह। चाण य ने
दोन स ाट—चं गु एवं उसक पु िबंदुसार क मुख सलाहकार क प म सेवा क थी।
“एक िकवदंती क अनुसार, चाण य ने वान थ गमन िकया था, जहाँ उनक मृ यु अनाहार क कारण ई।
“हमचं ारा िलखी गई एक और कथा क अनुसार, चाण य क मृ यु िबंदुसार क एक मं ी सुबंधु क ष ं
ारा ई थी। वह चाण य को पसंद नह करता था। उसने िबंदुसार को बताया िक चाण य उसक माँ क मृ यु क
िज मेदार थे।
“िबंदुसार भयभीत व ोिधत था और जब चाण य को पता चला िक राजा उनसे ोिधत ह, तो उ ह ने अपने
जीवन का अंत करने का फसला िकया। जैन परपरा क अनुसार, उ ह ने अपने आप को िबना कछ खाए-िपए

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भूख से मार िदया था। इसी दौरान राजा को जब पूरी बात का पता चला िक चाण य उसक माँ क मृ यु क िलए
िज मेदार नह थे, िक वह एक दुघटना थी, तब उसने सुबंधु को चाण य से संथारा यागने हतु मनाने क िलए कहा।
इसक िवपरीत, सुबंधु ने चाण य क अंितम सं कार समारोह क योजना बनाई। वह चाण य को िजंदा जलाना
चाहता था। चाण य क मृ यु का कोई िन त उ ेख नह ह।”
अिभलाष बीच म बोला, “इसका मतलब ह िक चाण य क मृ यु भी अ प ह!”
“चाण य को भारत म महा िव ा क प म जाना जाता ह। ब त से रा वादी उ ह उन ारिभक लोग म
िगनते ह, िज ह ने संपूण उपमहा ीप क एक अिवभािजत भारतवष क प म क पना क थी।
“भारत क पूव रा ीय सुर ा सलाहकार िशवशंकर मेनन ने चाण य क ‘अथशा ’ क प और सटीक
िनयम क शंसा क ह, जो आज भी लागू होते ह।” एल.एस.डी. ने आगे बताया।
“बंदा बहादुर?” अिभलाष ने िफर से पूछा।
सभी ने उस िसख नाम पर रोशनी डालने क िलए डॉ. ब ा क ओर देखा। डॉ. ब ा ने कहा, “बंदा बहादुर का
ज म स 1670 म ‘लछमन देव’ नाम से आ था और बाद म वे एक िसख सेनापित बन गए थे। 15 वष क उ
म उ ह ने संत बनने क िलए घर छोड़ िदया और उ ह ‘माधो दास’ नाम िदया गया था।
“उ ह ने गोदावरी नदी क तट पर नांदेड़ म एक मठ क थापना क थी। स 1708 म गु गोिवंद िसंह से उनक

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भट ई थी और वे उनक िश य बन गए थे, िज ह ने उ ह एक नया नाम िदया—‘बंदा िसंह बहादुर’। गु गोिवंद
ve
िसंह क आशीवाद एवं अिधकार से उ ह ने यो ा क फौज बनाई और मुगल बादशाह क िव संघष छड़
no
िदया। पंजाब म अपनी स ा थािपत करने क बाद बंदा िसंह बहादुर ने जम दारी था को समा िकया और जमीन
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क मािलक को संपि क अिधकार िदए। स 1715 म बंदा िसंह बहादुर को गुरदास नांगल िकले से पकड़कर लोह
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क एक िपंजर म बंद कर िदया था। उनक टकड़ी क बाक िसख को भी पकड़ िलया गया था। सभी िसख को
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एक जुलूस म िद ी लाया गया, िजसम 780 िसख कदी थे, 2,000 क िसर भाल से लटकाए गए थे और जनता
म खौफ पैदा करने क िलए काट िदए गए िसख क िसर से भरी ई 700 गािड़याँ थ । उ ह िद ी क िकले म रखा
Vi

था, जहाँ उन पर अपना धम छोड़ने और इसलाम अपनाने क िलए दबाव डाला गया था। उनक मना करने पर उन
@

सभी को फाँसी क सजा सुना दी गई थी। ितिदन 100 िसख को िकले से बाहर लाया जाता था और उनक
सावजिनक ह या कर दी जाती थी। यह िसलिसला करीब 7 िदन तक चला। मुगल अपनी स ता रोक नह पा रह
थे; लेिकन िसख ने हताशा या िनराशा का कोई भाव नह िदखाया, ब क वे अपने भजन गाते रह; न ही कोई मौत
से डरा और न ही िकसी ने अपने धम को छोड़ा। बंदा िसंह बहादुर क फाँसी से पहले सरदार को उनक सामने
तािड़त िकया जाता था। उनक िसर को भाल से घ पा गया और बंदा िसंह बहादुर, जो जमीन पर उक ँ बैठ थे,
उनक चार ओर एक च म लगाया गया, िफर उ ह एक छोटी तलवार दी गई और अपने ही बेट अजय िसंह को
मारने का आदेश िदया गया। वे थर बैठ ए थे। उसी समय ज ाद आगे बढ़ा और छोट ब े को अपनी तलवार
से मारते ए उसक शरीर क दो िह से कर िदए। िफर शरीर से मांस क टकड़ काटकर बंदा क चेहर पर फक गए।
उसक िजगर को शरीर से िनकाल कर बंदा िसंह बहादुर क मुँह म ठसा गया। िपता िबना िकसी भावना क ऐसे ही
बैठा रहा। उनक धैय क परी ा अभी और भी ली जानी थी। ज ाद आगे बढ़ा और अपने खंजर क नुक ले िह से
को बंदा िसंह बहादुर क दा आँख म डालकर उनक पुतली को िनकाला और िफर दूसरी पुतली को। बंदा इस
सब क दौरान प थर क तरह थर बैठ ए थे। उनक चेहर पर दद का कोई नामोिनशान नह था। उस हवान ने

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िफर अपनी तलवार ली और बंदा क बाएँ पैर एवं उनक दोन हाथ को काट िदया; परतु बंदा का येक अंग िफर
भी ऐसे थर रहा, जैसे उनक ज मदाता ने उ ह शांित दान कर दी हो और अंत म, उसने उनक मांस को लाल
गरम िचमट से ख च िदया और जब उनक अ याचार म अब कछ भी नह बचा तो उनक शरीर को सैकड़ टकड़
म काटकर वे संतु ए।”
एल.एस.डी. अपना िसर लैपटॉप म गड़ाए बैठी रही और उससे लगातार क व ोल करती रही।
“चाण य और बंदा बहादुर क जीवनकाल क बीच बड़ा अंतराल ह। चाण य का ज म 350 ईसा पूव म आ
था, जबिक बंदा िसंह बहादुर स 1675 म इितहास क इसी दौर से संबंिधत ह।” एल.एस.डी. ने अपनी आँख
न पर गड़ाए ए कहा।
“लेिकन ओ शा ी ने कहा था िक उसने उन दोन क सलाहकार क प म काम िकया ह। लगभग 2,000
वष का अंतर। या बकवास ह!” डॉ. शािह ता ने उखड़ते ए कहा।
“म क गा िक वह िविभ युग क बार म बात कर रहा ह। उसने कह पर गावलगन क बेट संजय और
ह तनापुर क मं ी िवदुर का भी नाम िलया था।” अिभलाष अपने वाभािवक गव क साथ बोला।
“युग! अिभलाष हमारी भाषा म बात करो।” एल.एस.डी. ने यं या मक तरीक से जवाब िदया।
“ि य, इसे समझ पाना तु हार िलए असंभव ह।” और भी यं या मक मु कान क साथ अिभलाष ने िफर कहा।

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“िफर भी, तु ह हम समझाना चािहए।” डॉ. शािह ता बीच म बोल । ve
डॉ. शािह ता और एल.एस.डी. अिभलाष क बोलने का इतजार करते ए उसे देख रह थे।
no
“िहदू पुराण क अनुसार, समय को चार युग म िवभािजत िकया गया ह—सतयुग, ेता युग, ापर युग और
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किलयुग।
oo

शािह ता ने धीर-धीर समझते ए िसर िहलाया, “यिद यह कोई िस ांत ह तो इनम से येक युग म लगभग
pb

िकतने वष होते ह?”


अिभलाष ने एक कलम व कागज उठाया और शािह ता क न का उ र देते ए िलखना शु िकया
Vi

—“ ीमद ्भगवद ्गीता, जो युग का वणन करने वाला सबसे पहला ंथ ह, उसक अनुसार सतयुग क आयु
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देवता क 4,800 वष क बराबर ह; ेता युग 3,600 साल क बराबर ह; ापर युग 2,400 साल क बराबर और
किलयुग देवता क 1,200 साल क बराबर ह। एक देवता वष मनु य क 360 वष क बराबर ह और ये चार युग
4:3:2:1 क अनुपात म ह। अतः युग क अविध इस कार ह—
4,000 + 400 + 400 = 4,800 िद य युग (= 1728000 मानव वष) = 1 सतयुग
3,000 + 300 + 300 = 3,600 िद य युग (= 1296000 मानव वष) = 1 ेतायुग
2,000 + 200 + 200 = 2,400 िद य युग (= 864000 मानव वष) = 1 ापर युग
1,000 + 100 + 100 = 1,200 िद य युग (= 432000 मानव वष) = 1 किलयुग
“किलयुग क पूण होने क अविध आज से 42,700 वष ह, िजसका अथ यह ह िक किलयुग क अभी तक
कवल 5,000 वष यतीत ए ह।
“बुरी ताकत को न करने क िलए, धम क पुन थापना करने क िलए और ज म व मृ यु क च से भ को
मु करने क िलए भगवान िव णु समय-समय पर अवतार लेते ह और ऊपर विणत 4:3:2:1 का समयानुपात भी
िव णु क दस अवतार को इिगत करता ह, िजसे ‘दशावतार’ नाम से भी जाना जाता ह।
“िव णु क पहले चार अवतार सतयुग म कट ए थे, उसक बाद ेता म तीन अवतार ए, ापर म दो और

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दसवाँ अवतार किलयुग नामक वतमान युग म कट होगा। किलयुग ‘क क अवतार’ क कट होने क साथ ख म
होगा, ऐसा विणत ह, िजसक ारा दु का अंत होगा, सदाचा रय को मु िमलेगी और जो एक नए सतयुग क
शु आत करगा। मा यता क अनुसार, सतयुग म भगवान िव णु क साधना आ मानुभूित का साधन थी। इस युग
क दौरान अिधकतर लोग अ छाई क तीक थे। ेता युग म मनु य ने, अपने ान और श को सावभौिमक
आकषण क गुण से ऊपर उठाया, जो िक सकारा मक, नकारा मक और तट थ ऊजा तथा सृजना मक आकषण
व िवकषण क दो ुव का ोत ह। इस युग म लोग धम और जीवन क नैितक तरीक का पालन करते थे;
हालाँिक, सतयुग क तुलना म इस युग म ई रीय गुण म एक-चौथाई क कमी थी। भगवान ीराम, रामायण क
मुख पा , इस युग म रहते थे। ापर युग म मंिदर म भगवान क पूजा-अचना करना आ मानुभूित का साधन था।
इस काल तक ई रीय गुण 50 ितशत कम हो गए थे। हम किलयुग म रहते ह, ऐसे संसार म, जो अशु ता और
बुराई से भरा आ ह। स िच गुण रखने वाले लोग िदन-पर-िदन कम होते जा रह ह। बाढ़, भुखमरी, लड़ाई,
अपराध, छलावा और कपट इस युग को दशाते ह। लेिकन ंथ का कहना ह िक अंितम मु इस युग म ही ा
क जा सकती ह। यह भिव यवाणी क गई ह िक किलयुग क अंत म भगवान िशव ांड का अंत कर दगे और
सभी मूत पदाथ एक िवशाल प रवतन से गुजरगे। इस तरह क िवघटन क बाद भगवान ा िव का िफर से
िनमाण करगे और मानव जाित एक बार िफर ‘स य का तीक’ बन जाएगी।”

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“तुम इन युग क बीच का अंतर कछ श द म कसे कर सकते हो?” शािह ता ने पूछा।
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“सतयुग म संघष दो लोक क बीच था—देवलोक और असुर लोक। असुर लोक, दु ता क कारण, एक अलग
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ही लोक था।
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“ ेता युग म लड़ाई राम और रावण क बीच थी। भगवान और रा स दोन दो अलग रा य से राज करते थे,
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लेिकन एक ही लोक म प च गए थे।


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“ ापर युग म यु पांडव और कौरव क बीच था। वह युग था, िजसम अ छाई व बुराई एक ही प रवार म थी
और वह उसक बीच संघष था। हर एक गुजरते युग क साथ बुराई नजदीक आती गई—पहले एक ही दुिनया म,
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िफर एक ही रा य म और िफर एक ही प रवार म।


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“जानते हो, अब किलयुग म बुराई कहाँ ह? वह हमार अंदर ह। अ छाई व बुराई दोन हमार ही अंदर रहते ह।
िकसक िवजय होगी? कौन दूसर पर हावी होगा, हमार भीतर क अ छाई या बुराई?”
शािह ता ने उसे देखा। वह िवचिलत हो ग ।
“ या मुझे कोई बताएगा िक यहाँ चल या रहा ह और आिखर हम िकस पर या काम कर रह ह? आप सभी
का िदमाग खराब हो गया ह। ये चीज...यह सब असंभव ह और पौरािणक कथा म त या मक वा तिवकता
का कोई आधार नह ह।” डॉ. शािह ता ने गरजते ए कहा।
“कौन कहता ह ऐसा?” अिभलाष ने पूछा।
“िव ान! िव ान कहता ह! अगर आप लोग क कहािनयाँ पूरी हो गई ह तो या अब हम असली काम पर
वापस आ सकते ह?” शािह ता क इस तरह फट पड़ने क बाद कमर म स ाटा छा गया, जब तक अिभलाष
शािह ता क एकदम िवपरीत नह बोला।
“यह सब कवल कहािनयाँ नह , ब क हमारी िवरासत ह। यह हमारा अतीत ह और भा यवश या दुभा य से यह
सच भी ह। या आपको लगता ह िक िव ान से ऊपर कछ भी नह ह? मुझे आपसे एक सवाल पूछना ह। बताइए,

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आपक िव ान ने सूय और पृ वी क बीच क दूरी क खोज कब क थी?”
शािह ता ह क -ब क रह ग , य िक उनक पास इसका उ र नह था।
दूसरी ओर, एल.एस.डी. ने बड़ी तेजी क साथ अपनी खोजी द ता का दशन िदया। गूगल पर कछ क
करते ही उसने गव क साथ कहा, “स हव शता दी! िजयोवा ी कािसनी और जीन रचड ने सूय एवं पृ वी क
दूरी का पता लगाया था—140 लाख िकलोमीटर, अभी क आिधका रक आँकड़ से कवल 9 लाख िकलोमीटर
दूर।”
अिभलाष ने कहा, “हनुमान चालीसा म एक पं ह—युग सह योजन पर भानू, ली यो तािह मधुर फल
जानू।” उसने माकर उठाया और सफद रग क बोड पर कछ िलखने लगा।
“यहाँ एक युग 12,000 साल क बराबर ह। वैसे ही 1 सह = 1,000 और 1 योजन = 8 मील
युग × सह × योजन = पर भानु, िजसका मतलब ह—12,000 × 1,000 × 8 मील यानी िक 9,60,00,000
मील। म आपको यह भी बता दूँ िक 1 मील = 1.6 िकलोमीटर और 9,60,00,000 मील = 9,60,00,000 × 1.63
िकलोमीटर, जो िक लगभग 15.3 करोड़ िकलोमीटर सूय से दूर ह। उसक हाथ ने उसक गणना को बोड पर
दिशत कर िदया।
सब हरान खड़ एक-दूसर का चेहरा देख रह थे। डॉ. ब ा वापस अपनी कस क ओर बढ़। अिभलाष हाइट

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बोड पर िलखने म य त था। डॉ. ब ा क बैठने क बाद अिभलाष ने आगे कहा, “कवल इतना ही नह ,
ve ांड,
ह और अ य घटना का वेद म िव तृत वणन उस समय क लोग क िवशाल ान को दिशत करता ह, जो
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आधुिनक स यता क अ त व म आने से पहले ही मौजूद थे। एक वैिदक िवशेष सायण ने चौदहव शता दी
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ईसवी म काश क गित क खोज क थी। उनक कथन क अनुवाद अनुसार, ‘स मान सिहत म उस सूय को नमन
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करता , जो आधे िनमेष म 2,202 योजन क या ा करता ह।’ अब म िफर से आपको कछ घटनाएँ िदखाता ।”
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उसने हाइट बोड क ओर संकत करते ए कहा।


“1 योजन लगभग 9 मील क बराबर ह और एक िनमेष 1 सेकड का 16/75 भाग ह। अतः 2,202 योजन × 9
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मील × 75/8 िनमेष 1,85,794 मील ित सेकड क बराबर ह, जो उ ेखनीय प से वा तिवक मू य


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1,86,282.397 मील ित सेकड क बराबर ह। वा तव म, ऋ वेद 5.40.5 म एक ोक ह, िजसक अथ अनुसार,


‘ह सूय! जब तुम अव हो जाते हो उसक ारा, जो तु हार ही काश से कािशत ह (चं मा), तब पृ वी पर
अचानक अंधकार हो जाता ह।’
“यह सूय हण का एकदम सटीक वणन ह।” उसने माकर मेज पर रखते ए एक गहरी साँस छोड़ी, जैसे िकसी
ने उसक कध पर से बोझ उतार िदया हो।
हर कोई ब त यान से सुन रहा था और अिभलाष अपने ान का दशन कर रहा था, “ या आप उन दो भाइय
को जानते ह, िज ह ने हवाई जहाज का आिव कार िकया था?”
“राइट दस!” एल.एस.डी. ने तुरत जवाब िदया।
अिभलाष ने सहमित म िसर िहलाया। उसने कहा, “राइट दस ने हवाई जहाज का आिव कार उ ीसव शता दी
म िकया था; हालाँिक, हमारी पौरािणक कथा म सिदय पहले ही उसका िववरण, यांि क और संचालन का
वणन िकया गया ह, िज ह हम ‘िवमान’ कहते थे। वा तव म, ‘रामायण’ म पु पक िवमान का भी वणन ह।
‘महाभारत’ क ोणपव क अनुसार, िवमान का उ ेख एक ऐसी गोलाकार आकित क प म ह, जो पार से

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उ सिजत ती तम वायु वेग क सहार तेज गित से चल सकता ह।’
“वैमािनक शा म महिष भर ाज ने िवमान का वणन िकया ह, जो हमार वतमान पीढ़ी क िवमान क तुलना म
ब त अिधक उ त ह।”
अिभलाष क समझाने क तरीक से कमर म हर कोई रोमांिचत हो उठा था। शािह ता हालाँिक अभी भी भािवत
नह थ । उ ह ने िबना िकसी शम क मु कराते ए पूछा, “कब तक मुझे ये बकवास सहनी होगी?” कमर म
स ाटा छा गया।
प रमल उ ह घूरते ए बोला, “यह बकवास नह ह। मुझे िव ान पर संदेह नह ह; लेिकन आपको भी इस बात
से सहमत होना होगा िक हमार शा म सिदय पहले से ही ऐसा ब त कछ ह, जो िव ान क िलए अक पनीय
था। आप डॉ टर ह न? मुझे यक न ह िक आप ‘सु ुत संिहता’ क बार म जानती ह गी।” उसने शािह ता से पूछा
और उ ह ने सहमित म िसर िहलाया।
एल.एस.डी. ने तुरत कछ टाइप करते ए जवाब िदया, “हाँ, मुझे भी पता ह। यह श य िचिक सा िव ान पर
सबसे पुरानी, अ छी और उ क िट पिणय म से एक ह। सु ुत ारा िलखा गया यह दुिनया म सबसे पहला
िचिक सा िव कोश ह। सु ुत एक ाचीन भारतीय श य िचिक सक थे, िज ह ‘श य िचिक सा क सं थापक
जनक’ क प म जाना जाता ह। वे मूल प से वाराणसी म सि य दि ण भारत क एक िचिक सक थे। उनक

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नाम का सव थम उ ेख बॉवर अिभलेख म ह (चार से पाँच शता दी), जहाँ सु ुत क नाम क गणना िहमालय
ve
म रहने वाले दस साधु म क गई ह।
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“भारतीय ंथ म यह भी िलखा आ ह िक उ ह ने िचिक सा क देवता ध वंत र से वाराणसी म श य िचिक सा
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का ान सीखा था।”
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अिभलाष आ मिव ास से भरा महसूस कर रहा था, य िक अब उसक पास एक समथक था। उसने डॉ. ब ा
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क ओर देखा, जो ब त यान से सब सुन रह थे। जहाँ शािह ता को अभी भी संदेह था, वह एल.एस.डी. इस
बहस का आनंद ले रही थी। डॉ. ब ा अपनी कस से खड़ ए और सबको देखते ए कछ देर बाद बोले, “भले
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ही मुझे पौरािणक कथा क बार म यादा जानकारी नह ह, लेिकन हम इस त य क उपे ा नह कर सकते िक


@

िचिक सा प ितयाँ िव ान और आधुिनक िचिक सा क आने से ब त पहले ही शु हो गई थ । यह एक वै ािनक


पि का म घोषणा क गई थी िक जीिवत मनु य क दाँत क बेधन का थम एवं ाचीनतम माण मेहरगढ़ म पाया
गया था। 7,500 से 9,000 वष पूव मेहरगढ़ म एक कि तान म नौ वय क य य क 11 दाढ़ म बेधन क
माण िमले ह। अ थ श य िचिक सा क माण भी पाए गए, जो यह िन कष देते ह िक ाचीन भारत म श य
िचिक सा क तकनीक और उपकरण मौजूद थे। वा तव म, आयुवद म जड़ी-बूिटय ारा मू छत करने क
दवाइयाँ बनाई जाती थ ।”
दूसरी ओर, डॉ. ीिनवासन अपने फोन पर बात करते ए अपने ऑिफस म बैठ ए थे। वे िजस य से बात
कर रह थे, उसे ‘सर’ कहकर संबोिधत कर रह थे। ऐसा लग रहा था िक डॉ. ीिनवासन को फोन पर कछ आदेश
िदए जा रह ह। उ ह ने ‘सर’ को योगशाला और अ य सभी सद य क सुर ा का आ ासन िदया। िफर उ ह ने
समझाया िक टीम क अ य सद य क सुझाव पर यान देना य मह वपूण ह! अंत म, उ ह ने कहा, “ध यवाद,
सर!” और फोन रख िदया।
अगला सेशन िफर शु आ।

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7.
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अ त व का दशन
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सभी लोग उसी कमर म इक ए और अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए। शािह ता ओ क बराबर वाली कस
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पर बैठ ग । उ ह ने अपनी गदन को ख चते ए यह सुिन त करने क िलए देखा िक गा स इस बार सब क


सुर ा हतु आसपास ही रह। इस बार सभी लोग थित क संवेदनशीलता को समझ पा रह थे। वे कछ महसूस कर
रह थे और कछ डर-डर-से थे।
डॉ. ीिनवासन ओ क करीब आए और उसक सामने झुकते ए बोले, “हम तु ह या बुलाएँ? ओ ? या
बंिकम? शायद मधुकर? गु शील सही रहगा? या तुम िवदुर पसंद करोगे? आ य आ? तुमने ब त सी चीज
का खुलासा कर िदया ह। अब या तो हम बाक चीज भी उसी तरह जान ल या तुम खुद हम बता दो। मज तु हारी
ह। जबरद ती या वे छा से? िकसी भी तरह, हम जो चाहते ह, उसे हािसल कर लगे। या कहते हो?” डॉ.
ीिनवासन ने ितर कारपूण हसी क साथ कहा।
ओ ने कछ नह कहा। उसक चेहर से लग रहा था िक वह हार मान चुका ह। वह एक चोर क तरह परशान
लग रहा था, िजसे अभी-अभी बताया गया हो िक उसक ारा छपाए गए 10 लाख डॉलर का खजाना िमल गया ह।
डॉ. ीिनवासन सीधे खड़ होकर दूर चले गए और ओ को नई ि या समझाने क िलए डॉ. शािह ता को
आदेश िदया।

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शािह ता ने उसका पालन िकया।
“ओम, हम तु ह एक झूठ पकड़ने वाले उपकरण से जोड़ने जा रह ह, जो तु हार िवचार क तरग को य म
प रवितत करक न पर िदखाएगा।” शािह ता ने िवन तापूवक कहा, जैसे एक माँ अपने ब े को समझाती ह,
िजसे टीका लगने वाला हो।
“िजसका मतलब ह...” ओ ने धीर से कहा। तभी डॉ. ब ा एकाएक बीच म बोले, “िजसका मतलब ह िक
तुम झूठ नह बोल सकते, य िक तु हार िवचार उतने ही प प से दिशत ह गे, जैसे तुमने उ ह िजया ह। मुझे
यक न ह िक तु ह इस बात से कोई आपि नह होगी। या तु ह ह?” डॉ. ब ा ने पूछा।
“ या मेर पास कोई िवक प ह?” ओ ने कहा।
“नह ! डॉ. ब ा, शु कर।” डॉ. ीिनवासन ने आदेश देते ए कहा।
“जी सर!” डॉ. ब ा ने जवाब िदया।
ओ ने शािह ता क ओर देखा, जो पहले से ही उसक ओर सहानुभूित से देख रही थ । डॉ. ीिनवासन
योगशाला से बाहर गए और अपने ऑिफस क ओर जाते व उ ह ने वीरभ को फोन िकया।
“वीरभ , रपोट!” उ ह ने आदेश िदया।

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दूसरी ओर से वीरभ ने जवाब िदया, “सर, हमार लोग ने उन लॉकर को ज त कर िलया ह। वे कछ देर म
वहाँ प चते ही ह गे।” ve
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डॉ. ीिनवासन ने आदेश िदया िक जो कछ भी उस लॉकर म ह, वह ज द-से-ज द उनक पास लाया जाए।
वीरभ ने लॉकर का थान और पता देखते ए कहा, “सर, उसे अपने पास ही समिझए।”
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डॉ. ीिनवासन ने पूछा, “तु ह और िकतना समय चािहए?”


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वीरभ ने कछ पल क िलए या ा क समय का िहसाब लगाने क बाद कहा िक वह चीज उनक मेज पर
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ातःकाल रहगी। यह कहकर वीरभ चला गया। ीिनवासन ने डॉ. ब ा और टीम क बाक सद य से बात करना
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जारी रखा।
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डॉ. ीिनवासन क ऑिफस क बाहर वीरभ ने कछ फोन लगाए और िदए गए काम को समय पर पूरा करने क
यव था क ।
वीरभ (फोन पर)—“मुझ तक प चने म िकतना समय लगेगा?” दूसरी ओर से उ र सुनने क बाद वीरभ ने
कहा, “अपने पीछ कोई सबूत मत छोड़ना। मेर आदमी तु ह एक मुहरबंद िलफाफा दगे। उसे हािसल करने क बाद
उसे िलफाफ म िदए गए पते पर प चाना और उस य को देना, जो तु ह यह कोड बताएगा—5MW580YLF,
जो 100 पए क नोट पर एक सी रयल नंबर म िलखा होगा।”
वीरभ ने फोन रख िदया और दूसरा नंबर डायल िकया।
वीरभ (फोन पर)—“आज रात तक तु ह उसी पते पर पासल िमल जाएगा। उसे सुरि त रखना। तु हारा कोड
ह—5MW580YLF। ातःकाल पासल सुर ापूवक हलीकॉ टर क पायलट तक प चा देना। तु हारा भुगतान तु हार
खाते म प च चुका ह और 100 पए का नोट समय से पहले तुम तक प च जाएगा।”
योगशाला म एल.एस.डी. और डॉ. ब ा सभी तार को सही थान पर लगा रह थे और ऐसा करते ए एक-
दूसर से बातचीत कर रह थे।
अिभलाष इस दौरान शािह ता को न क सूची बनाने म सहायता कर रहा था।

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“आपको सुषेण से शु करना चािहए। उसक ारा खुलासा िकए गए नाम म से उसका अपना एक नाम।”
अिभलाष ने सुझाव िदया।
“िवशेष प से सुषेण य ? कोई और नाम य नह ?” शािह ता य थ ।
“ य िक यह मेर िवचार से सबसे पुराना ह और इस उलझे ए धागे का एक िसरा ह, िजसका दूसरा िसरा ओ
शा ी ह; या आप सतयुग क बार म उसक जानकारी पूछकर भी शु कर सकती ह।”
“म कछ उलझन म । सुषेण कौन था?” शािह ता ने माशीलता क साथ अिधकारपूण वर म जानने क
इ छा रखते ए पूछा।
“ठीक ह! ेता युग म, जो सतयुग क बाद आता ह, रामायण क दौरान राम और रावण क बीच यु म ल मण
को रावण क बेट मेघनाद ने घातक बाण मारा था। यह कहा जाता ह िक कवल एक ही जड़ी-बूटी म ल मण क
जीवन को बचाने क मता थी, िजसे ‘संजीवनी बूटी’ कहा जाता ह, जो िहमालय म ोणिग र पवत पर पाई जाती
थी। िजन वै ने संजीवनी बूटी का सुझाव िदया था, वे सुषेण थे। आपने ीहनुमानजी क महाकाय त वीर, अपने
बाएँ हाथ म पवत क साथ उड़ते ए देखी होगी। इसका मतलब ह, सुषेण वे ह, िज ह ने रामायण म, कथा क
अनुसार, संजीवनी बूटी मँगवाकर ल मण क जान बचाई थी, िजसक िलए हनुमानजी ने पूरा पवत उठा िलया था।”
अिभलाष ने समझाया।

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“तो तुम कहना चाहते हो िक सभी नाम क बीच संबंध जानने क िलए सुषेण से शु करना होगा, यानी िक ेता
ve
युग?” शािह ता ने अपने म त क से संदेह क बादल को हटाते ए कहा।
no
“आपने मुझसे जो कहा, मने वही िकया और मुझे कछ िमला।” एल.एस.डी. ने कहा।
ks

“ या?” अिभलाष ने उ सुकता से पूछा।


oo

“िवदुर को धृतरा का भाई माना जाता ह, जो अपने समय क सबसे ानी और समझदार य थे।”
pb

“और संजय?”
“संजय धृतरा क सलाहकार थे, िज ह ने संसार को देखने क िलए उनक क तरह भी काय िकया था।
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उनक िपता गावलगन थे।”


@

“यानी म सही था।” अिभलाष ने अपने सामा य गव क साथ कहा और एल.एस.डी. ने उसक गव को और
बढ़ाते ए वीकारा, “ह म! ऐसा ही लगता ह।”
“िब कल! आप देख रही ह, यह पागलपन लगता ह, लेिकन म गंभीर । इस आदमी और ेता युग क आदमी
क बीच ज र कोई संबंध ह। और यह ब त अजीब ह िक हमार सभी जवाब एक ही य क पास ह—ओ
शा ी क। इसिलए हम वह से शु करना चािहए।”
ओ को झूठ पकड़ने वाली मशीन से जोड़ने क बाद डॉ. ब ा बड़ी उ सुकता से अपने क यूटर म लग गए।
यह देख शािह ता भी अिभलाष को छोड़ डॉ. ब ा क साथ शािमल हो ग । जैसे ही डॉ. ीिनवासन ने योगशाला
म वेश िकया, डॉ. ब ा ने उ ह आवाज लगाते ए कहा, “सर, हम तैयार ह।”
डॉ. ीिनवासन ने शु क से देखते ए जवाब िदया। “तो शु करो।”
“ओ , कपया सहयोग करो। म तु ह िव ास िदलाती िक तु ह कोई नुकसान नह होगा।” शािह ता ने िनवेदन
करते ए कहा।
ओ ने अधूर मन से िसर िहलाया। डॉ. तेज और एल.एस.डी. ने मोट तार एवं कब स को ओ क शरीर से

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जोड़ा।
कछ ही ण म ओ ने खुद को जकड़ा आ पाया। तार उसक िसर, छाती, हाथ व पैर से दो िवपरीत िदशा
म जा रह थे। उसक िसर से जुड़ तार आगे क यूटर एवं मशीन से जुड़ थे, जो वह दूसरी तरफ ोजे टर न से
जुड़ ए थे और बाक क सीधे लाइ िडट टर म जा रह थे। डॉ. ब ा और एल.एस.डी. ने अपने िह से क तैयारी
कर दी थी और ओ ने भी अपनी आँख बंद कर ली।
शािह ता ने अिभलाष क सहायता से अपने न तैयार कर िलये थे। सभी शु करने क िलए तैयार थे; सभी
लाइट बंद कर दी गई थ । अँधेरा छा गया था। जो रोशनी मौजूद थी, वह क यूटर न से आ रही थी।
एल.एस.डी. ने अपने िस टम पर कछ बटन दबाए और आिखर म एंटर दबाया। जैसे ही उसने यह िकया, कछ
िपन ने कागज पर ाफ क आकित बनाते ए करद िदया। कछ ण क िलए न पर कछ छिवयाँ दिशत
और चली ग । ओ ने अपनी आँख खोल दी थ ।
जब ओ क आँख खुली होती थ , तब न पर कछ नह िदखता था। जैसे ही वह पलक झपकाता, कमर म
रोशनी बढ़ जाती। न पर िदन का समय, थान, लोग का पहनावा, मौसम, सं कित दिशत हो रहा था। इन
सबका कोई मतलब न िनकलते ए सब कछ ब त तेजी से चल रहा था।
कमर म गा स चौक े हो गए थे और िकसी अनचाही ि या से बचने क िलए उ ह ने अपनी बंदूक लोड कर

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ली थ । कमर म लोग क चेहर पर भी उलझन िदख रही थी, य िक ओ क िवचार ब त तेजी से बदल रह थे।
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शािह ता को अहसास आ िक ओ क िवचार को िनयंि त करना ज री ह, िजसक िलए उ ह ओ को शांित
no
और सुर ा का भाव महसूस कराना होगा।
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यह करने क िलए शािह ता ने ओ क कधे को पकड़ा और कोमल वर म कहा, “ओ , सब ठीक ह। शांत हो


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जाओ। तुम अकले नह हो। अपनी आँख खोलो और मुझे देखो। गहरी साँस लो और अपने शरीर को ढीला छोड़
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दो। आराम करो और खुद को तनाव-रिहत महसूस करो।”


जैसे ही शािह ता ने कहा, वैसे ही न पर त वीर धीर-धीर बदलने लग और य प प से िदखने लग ।
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त वीर एक क बाद दूसरी बदलने से पहले कछ देर क िलए ठहरने लगी।


@

डॉ. ीिनवासन ने गा स को चौक ा रहने का आदेश िदया। उनक आवाज ओ क कान म पड़ी और डॉ.
ीिनवासन ने खुद को न पर देखा। इसक बाद एक गाँव का य उ प आ। बहता पानी और हर जगह
ह रयाली का य िदखाई िदया। डॉ. ीिनवासन ने गहरी नजर से देखा और वे गंभीर हो गए। उसक बाद एक
सरकारी िव ालय, िघसी ई लकड़ी क बच पर बैठ कछ ब े और कछ अं ेज आदमी ई ट इिडया कपनी क
पोशाक पहने ए थे। त वीर भारत क वतं ता से पहले क लग रही थी। त वीर देखकर डॉ. ीिनवासन को ऐसा
झटका लगा, िजसने उ ह अंदर तक िहला िदया था।
शािह ता क अलावा सभी ने इस भाव-प रवतन और असहज हाव-भाव को महसूस िकया।
शािह ता ने कहा, “ओम, या तुम यह करने क िलए तैयार हो?” और जैसे ही उ ह ने यह कहा, न काली
हो गई।
“ह म!” ओ शा ी से जवाब आया।
लाइ िडट टर म से ‘बीप’ क आवाज आई, िजसका अथ था िक ओ सच म तैयार नह था। सभी क नजर
‘बीप’ क ओर मुड़ , ओ क भी। उसने िफर शािह ता को देखा, िजनक चेहर पर हलक मु कान थी। वे

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प रप ता क साथ बोल , “सब ठीक ह। म समझती , पर हम अब शु करना होगा। ओम, जब तुम अपनी
आँख खोलते हो तो हम य नह देख पाते ह। इसिलए, तु ह अपनी आँख को बोलते समय बंद रखना होगा।”
उ ह ने समझाया।
ओ ने शांित से अपनी आँख बंद कर ल । शािह ता ने पहले डॉ. ीिनवासन क ओर देखा और िफर डॉ. ब ा
क ओर। दोन ने धीर से िसर िहलाया। शािह ता ने गहरी साँस ली और ि या को शु िकया।
“सुषेण कौन ह?” शािह ता ने अपना पहला न पूछा।
ओ कछ देर क िलए शांत था; लेिकन वह जानता था िक उसक मृितयाँ सब कछ बता दगी, इसिलए वह
बोला, “वह म था।”
उसने जैसे ही यह कहा, न पर एक गाँव और ीप क जंगल क त वीर आ गई। नंगे पैर, धनुष व बाण
िलए ए, आिदवासी लोग को कम, लेिकन साफ कपड़ म देखा जा सकता था। पौध और फल क अ ुत
जाितयाँ, पहाड़ और ऊचे झरने क साथ वह एक उपजाऊ जमीन तीत हो रही थी।
“यह कौन सी जगह ह?” शािह ता ने पूछा।
“दि ण भारत का एक गाँव।” ओ ने जवाब िदया।
“तुम वहाँ या कर रह थे?”

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“म वहाँ एक वै था। लोग िविभ उपचार क िलए मेर पास आते थे। म पहाड़ पर उगने वाले हर एक जड़,
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छाल, प े और फल क बार म जानता था। मुझे हर बीमारी और उसक इलाज क बार म पता था।”
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“वा तव म यह गाँव कहाँ ह?” ो सािहत करते ए शािह ता ने पूछा।
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“गाँव का नाम सुिचं म ह। यह अब क याकमारी िजले, तिमलनाड क अंदर आता ह।”


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“तुमने िकसक जान बचाई थी?”


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“मने कई जान बचाई थ , िजनम से एक थे ल मण। मने यु क दौरान कई लोग और वानर क भी सेवा क
थी।”
Vi

“तु हारा मतलब ह, रामायण क ल मण?” शािह ता ने सुिन त करने क िलए पूछा।
@

“हाँ।”
ओ ने सोचना शु िकया और उसक ऐसा करते ही एक आदमी क छिव न पर मूत हो गई—लंबी
दाढ़ी, कस रया रग क कपड़ और लुंगी, लकड़ी क खड़ाऊ और िसर पर पगड़ी। उनक आसपास िन त प
से पौधे एवं जड़ी-बूिटयाँ थ और सामने कछ असामा य बरतन व मलहम थे तथा पानी म घुली ई कछ जड़ी-
बूिटयाँ। आदमी ओ शा ी से िब कल मेल खाता आ था। वही चेहरा, वही आदमी, जो वह आज ह। आदमी
एक बेहोश शरीर क पास बैठा था। उसक बराबर म एक और आदमी बेहोश य का हाथ पकड़कर रो रहा
था। वहाँ पर ब त सार वानर मुख वाले मनु य थे, जो सभी िचंितत नजर आ रह थे। यह प था िक न पर
िदख रह पा और कोई नह , ब क सुषेण, भगवान राम, ल मण एवं हनुमान थे।
“यह कसे संभव ह? तुम आज भी कसे जीिवत हो?” शािह ता ने इस झटक को दबाते ए साफ श द म पूछा।
“म तब से वृ नह आ । मुझे ब त बार थकान महसूस होती ह, लेिकन िबना खाए और आराम िकए ही म
अपने आप ऊजा से भर जाता । मुझे चोट लगती ह, म बीमार पड़ता ; लेिकन इससे पहले िक मृ यु मुझे अपने
अंदर समा ले, म व थ होना शु कर देता । म मरता नह ।” ओ ने खुलासा िकया।

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कमर क शांित असहजता म बदल गई और माहौल कछ उदास हो गया।
शािह ता शायद ही िकसी चीज पर िव ास कर पा रही थ , लेिकन िफर भी आगे बढ़ और पूछा, “तुम उस
समय कसे िदखते थे?”
अचानक से डॉ. ब ा अपनी कस पर से खड़ ए और चीखते ए बोले, “यह सब बकवास ह! नह , इसे
वीकार नह िकया जा सकता।”
जैसे ही वे गु से म गरजते ए बोले, उ ह ने दरवाजे क ओर चलना शु कर िदया।
ओ ने अपनी आँख खोल और कमर म अँधेरा छा गया। एक गाड ने िबजली जलाई। डॉ. ीिनवासन और
शािह ता डॉ. ब ा का रा ता रोकने क िलए उनक ओर भागे।
डॉ. ब ा क आवाज गूँजी, “सर, हम यहाँ एक मानिसक रोगी क साथ काम कर रह ह। म यह और नह सह
सकता। वह यहाँ क पनाएँ गढ़ रहा ह!”
“िफर लाइ िडट टर कोई आवाज य नह कर रहा?” डॉ. ीिनवासन ने तक करते ए पूछा।
“ य िक उसक न ज सामा य ह, जब कोई झूठ बोलता ह तो उसक र चाप म उतार-चढ़ाव होता ह और िदल
क धड़कन बढ़ जाती ह। हमारी मशीन ऐसे बदलाव क अनुसार हम सूिचत करती ह।” डॉ. ब ा ने कारण सिहत
उ र िदया।

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“और जो त वीर हम देख रह ह?” डॉ. ीिनवासन ने चुनौती देते ए पूछा।
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“जो त वीर हम देख रह ह, वह उसक याद नह , ब क उसक क पनाएँ ह, िज ह वह सच मानता ह। वह
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अपनी कहािनय व िवचार से भािवत ह और इस जुनून ने उसे यह िव ास िदलाया ह िक जो कछ भी वह बोल
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रहा ह, वह वा तव म उनका एक िह सा ह। वह अपनी क पना को ऐसे पढ़ता ह, जैसे उसने उ ह िजया हो!”
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डॉ. ब ा ने प िकया।
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“क पनाएँ धुँधली होती ह, तेज! वे कभी भी इतनी प नह हो सकत , िजतनी हम अभी उ ह देख रह ह।
कवल वा तिवक घटना और लोग को ही हमार िवचार म प प से देखा जा सकता ह।” डॉ. ब ा क
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यवधान से उ ेिजत होकर डॉ. ीिनवासन ने कहा।


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“िब कल सही! और यह आदमी ब त ढ़ता क साथ सोचता ह िक यह सब सच ह। इसिलए वह इसे कभी भी


क पना क प से सोचता ही नह ह। उसका मानना ह िक वह वहाँ मौजूद था और यह सब उसने िजया ह।” इस
थित पर डॉ. ब ा अपने िवचार म और अिधक ढ़ हो गए।
“सर, भारतीय पौरािणक ंथ , जैसे रामायण और बाक सब म यह सब िवशद प से विणत ह और उसने इतनी
गहनता से उन ंथ का अ ययन िकया ह िक वह यह सोचने लगा ह िक वह वा तव म उनका िह सा ह। उसे कभी
अहसास नह होता िक वह झूठ बोल रहा ह। वह बीमार ह, सर। यह एक असामा यता ह और इसक जैसे मामले
दुिनया भर म कई ह।” डॉ. ब ा ने जोर देते ए कहा।
“सेशन को यह समा करना पड़गा।” डॉ. ीिनवासन ने अपनी घड़ी देखते ए कहा।
“हम कल जारी रखगे। अब सभी रात क खाने क िलए इक हो जाइए।” यह कहकर वे वहाँ से चले गए।
कछ ही समय म पूछताछ क खाली हो गया। सुर ाकम ओ को एक गु थान पर ले गए और उसे
हथकड़ी लगा दी गई। चार ओर से सुर ाकिमय ने उसे घेर रखा था।
बाद म, सभी लोग िदन क बार म चचा करने लगे। जैसे ही उनका भोजन समा आ, डॉ. ब ा ने पूछा,

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“अिभलाष और प रमल, इस मामले म अपने िवचार हम बताओ।”
“ या यहाँ पर िकसी ने अ थामा और परशुराम क बार म सुना ह?” अिभलाष ने पूछा।
“हाँ।” भोले प रमल ने कहा।
“हाँ, कवल उनक बार म सुना ह।” डॉ. ब ा ने बताया।
“उनक बार म कभी नह सुना।” शािह ता ने धीर से कहा।
ौ ोिगक म द एल.एस.डी. ने जवाब िदया, “अभी इ ह गूगल िकया और कछ समझ आया।”
“ठीक ह! नाम म ‘परशु’ श द एक फरसा को दशाता ह। परशुराम का शा दक अथ ह—‘फरसे क साथ
राम’। वे िव णु भगवान क छठ अवतार और रणुका एवं ऋिष जमद न क पाँचव पु थे। िहदू धम म वे सात
िचरजीवि य म से एक ह। परशुराम को यादातर इ क स बार ि य का संहार करने क िलए जाना जाता ह,
जब श शाली राजा कातवीय ने उनक िपता क ह या कर दी थी। भागव परशुराम क ऐितहािसक िवरासत हहय
रा य से ारभ होती ह, जो आज क आधुिनक म य देश क इदौर शहर क पास मह र म थत ह। उ ह ने
भगवान िशव को कठोर तप या से स करक एक फरसा हािसल िकया था, िज ह ने इसक बाद उ ह यु कला
भी िसखाई।
“उनक परम भ , ती इ छा और िनरतर यान से स होकर भगवान िशव ने ी भागव राम (उनका

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असली नाम) को िद य अ से पुर कत िकया था, िजसम न न होने वाला अजय परशु शािमल था, िजससे
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उनका नाम ‘परशुराम’ पड़ा। तब भगवान िशव ने परशुराम को आदेश िदया िक वे पृ वी को दुराचा रय , रा स
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और अहका रय से मु कर। परशुराम िव णु क अ य अवतार ीराम और ीक ण को देखने क िलए काफ
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समय तक जीिवत रह। परशुराम क पास देवता क राजा इ ारा िदया गया भगवान िशव का िवजय धनुष भी
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था। ‘रामायण’ म परशुराम ने वह धनुष राजकमारी सीता क वयंवर क िलए उनक िपता जनक को िदया था।
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उ मीदवार क बल क परी ा हतु उ ह उस रह यमयी श को उठाकर उसक यंचा चढ़ानी थी। ीराम क
अित र और कोई भी सफल नह आ। लेिकन जब ीराम धनुष क यंचा चढ़ाने क कोिशश कर रह थे तो
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उनसे वह धनुष टट गया, िजससे एक भयंकर गजना ई, जो मह पवत क चोटी पर यान म लीन परशुराम क
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कान तक प च गई। ोिधत परशुराम ीराम का वध करने प चे और तब उ ह अहसास आ िक राम भी


भगवान िव णु क अवतार थे।
“परशुराम ने रामायण और महाभारत म भी म, कण और ोण क गु क प म मह वपूण भूिमका िनभाई थी।
ोण अिधकतर ोणाचाय क प म जाने जाते ह। आचाय का अथ ह—‘िश क’। वे सौ कौरव और पाँच पांडव
क गु थे।” अिभलाष िहदू धम से संबंिधत अवधारणा और त य को समझाने म िनपुण था।
“अब हम य भटक रह ह? अिभलाष, तुम या बात कहना चाहते हो?” शािह ता का िहदू धम पर लंबे-लंबे
या यान सुनने का मन नह था।
“कहानी का सार यह ह िक परशुराम हर युग म कट ए ह और वे अमर ह।”
“अिभलाष, तुमसे ये कहािनयाँ सुनना ब त िदलच प ह और तुम इ ह अ छी तरह से सुनाते भी हो। ये मेर ान
को और बढ़ा रही ह और शायद पूछताछ म भी काम आएँगी।” डॉ. ब ा ने कत ता क साथ कहा।
“ध यवाद! मुझे लगता ह िक मुझे यहाँ इसी क िलए बुलाया गया ह।” अिभलाष ने िवन तापूवक उ र िदया।
“मुझे अ थामा क बार म और बताओ।” डॉ. ब ा ने कहा।

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अिभलाष ने उ र िदया, “ ोणाचाय कौरव और पांडव क राजक य गु थे। वे िद य अ सिहत उ त सै य
कला म िनपुण थे। अजुन उनक सबसे ि य िश य थे।
“यह जानकर िक परशुराम अपनी संपि ा ण को दे रह थे, ोण उनक पास प चे। दुभा य से परशुराम क
पास कवल उनक श ा ही बचे थे। उ ह ने ोण को अ देने और उ ह कसे उपयोग करना ह, उसका ान
देने का ताव रखा। ोण ने सभी श ा एवं ‘आचाय’ क उपािध ा क और वे ोणाचाय कहलाए जाने
लगे।”
“अिभलाष, मने तुमसे अ थामा क बार म पूछा था, न िक िकसी ोणाचाय क बार म।” डॉ. ब ा ने कहा।
इसक जवाब म अिभलाष ने कहा, “सर, यह जानने क िलए िक अ थामा कौन ह, ोणाचाय क बार म
जानना आव यक ह। भगवान िशव जैसे परा मी पु क ा क िलए ोणाचाय ने कई वष तक भगवान िशव
क तप या क थी, िजससे उ ह ‘ ोणि ’, यानी िक अ थामा क ा ई।
“अ थामा क पास भगवान िशव क जैसी वीरता थी। अ थामा एक श शाली यो ा था, िजसने कौरव
क ओर से पांडव क िव लड़ाई लड़ी थी। यु म कवल अ थामा और उसक मामा कपाचाय ही जीिवत
बचे थे। अ थामा एक अजेय यो ा था, िजसे हिथयार क िव ान का गु माना जाता ह। उसे 64 कार क
कला और 18 िव ा एवं ान क शाखा म पूण िनपुणता ा थी। धािमक ंथ म कहा गया ह िक वह

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अगले यास और स ऋिषय म से एक होगा। अ थामा सात िचरजीिवय म से एक ह।
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“अ थामा अपने माथे पर एक मिण क साथ पैदा आ था, जो उसे मनु य से िन न जीिवत ािणय पर एक
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िवशेष श दान करती थी। सहनश म वह पवत क समान था और उसम अ न क ऊजा थी। गंभीरता म
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वह समु क समान था और रोष म सप िवष क समान।


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“मिण उसे ेत , रा स और िवषैले क ड़ एवं पशु से बचाती थी। ोणाचाय अपने पु से ब त ेम करते
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थे।
“ ोणाचाय और अ थामा ह तनापुर रा य (कौरव क िपता धृतरा का रा य) क ित िन ावान थे।
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अ थामा क िपता ोणाचाय सभी यो ा म सव े थे। भगवान ीक ण को पता था िक जब ोणाचाय क


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हाथ म धनुष व बाण हो, तब उ ह हराना असंभव था। ीक ण को यह भी पता था िक ोणाचाय अपने पु
अ थामा से ब त ेम करते थे, इसिलए उ ह ने युिध र और अ य पांडव को यह सुझाव िदया िक यिद वे उ ह
यह यक न िदला द िक उनक पु क यु े म मृ यु हो गई ह तो ोणाचाय दुःखी हो जाएँगे और दुःख म अपने
आप को िनर कर दगे।
“भगवान ीक ण ने यह सुझाव िदया िक भीम (पांडव म से एक) अ थामा नामक हाथी को मारकर
ोणाचाय क सामने यह दावा करगे िक उ ह ने ोणाचाय क पु अ थामा को मार िदया ह। हाथी को मारने क
बाद भीम ने जोर-जोर से यह घोषणा क िक उ ह ने अ थामा को मार डाला ह। िकतु ोणाचाय ने भीम क
कथन पर भरोसा नह िकया और वे युिध र (पांडव म सबसे बड़) क पास प चे। ोणाचाय को युिध र क
स य क ित ढ़ िन य का पता था और वे जानते थे िक वे कभी झूठ नह बोलगे। ोणाचाय युिध र क पास
प चे और उ ह ने पूछा िक या उनक पु क मृ यु हो चुक ह, उ र म युिध र ने कहा, ‘अ थामा क मृ यु
हो चुक ह; िकतु वह एक हाथी था, आपका पु नह ।’ क ण यह भी जानते थे िक युिध र क िलए झूठ बोलना
असंभव था। उनक आदेश पर अ य यो ा ने तुरही और शंख बजाते ए इस तरह से स ता का शोर मचाया

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िक ोणाचाय को कवल इतना ही सुनाई िदया िक ‘अ थामा क मृ यु हो चुक ह’; वे युिध र क उ र का
दूसरा िह सा नह सुन पाए।
“ यथा से प रपूण, अपने पु को मरा आ मानते ए ोणाचाय अपने रथ से उतर गए, अपने अ -श
याग िदए और समािध म बैठ गए। अपने ने को बंद कर उनक आ मा अ थामा क आ मा क खोज म
न ीय या ा कर वग म चली गई। जब वे िनह थे थे तो उ ह मार िदया गया था। इस कार, यु क अठारहव
िदन गु ोणाचाय भगवान क ण और पांडव ारा इ तेमाल िकए गए अनुिचत साधन ारा मार गए थे। इस घटना
से अ थामा को गहरा झटका लगा और उ ह ने िकसी भी मू य पर पांडव क अ याय को समा करने का
फसला िकया।
“कौरव क हार क बाद यु क आिखरी रात म अ थामा ब त ही बेचैन और परशान एक पेड़ क नीचे
बैठा आ था।
“एक उ ू ने कौए क समूह से लड़ते ए उसका यान आकिषत िकया। इससे उसे पांडव क िशिवर पर रात
म आ मण करने का िवचार आया। कछ जीिवत यो ा क साथ उसने रात को िशिवर पर आ मण िकया।
“अ थामा ने संपूण पांडव िशिवर जलाकर राख कर िदया। कछ भी नह बचा। वह आगे बढ़ा और पांडव
क सेना क कई मुख यो ा को भी मार डाला।

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“उसने पांडव क पाँच पु को यह सोचकर िक वे पांडव भाई ह, सोते समय मार िदया। कहानी क कछ
ve
सं करण म, वह जानता था िक वे पांडव नह थे, लेिकन िफर भी उ ह मार िदया, य िक वह उनक िपता को नह
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ढढ़ पाया। अ थामा का मानना था िक उसक िलए अचानक पांडव पर हमला करना उिचत था, य िक उसक
ks

िपता क भी ह या अ यायपूण ढग से क गई थी। हालाँिक वह अपने ितशोध को उिचत मानता था, लेिकन उसे
oo

अपने ही प क लोग ने चेतावनी दी थी िक ऐसा नह ह।


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“जब पांडव रात क बाद भगवान ीक ण क साथ िशिवर म लौट तो अ थामा क इस क य पर ोिधत
ीक ण ने अ थामा को किलयुग क अंत तक अमरता एवं मृत जीवन का शाप िदया और अ थामा क
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म तक क मिण को यह कहते ए ले िलया था िक ‘यह घाव कभी नह भरगा।’ यह थी अ थामा क कहानी।


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“यह कहानी अिव सनीय जैसी ह, िकतु िफर भी अ थामा क कथा पर िहदू धम क लोग को िव ास ह।
कहा जाता ह िक एक 5,000 वष य य भारत क उ र देश रा य क कछ मंिदर म रहते ए पाया गया ह।
जी- यूज क टीम ने िललौटी नाथ मंिदर, िशवराजपुर मंिदर एवं खैर र मंिदर जैसे मंिदर का दौरा िकया ह और
हर जगह अ थामा क कथा मौजूद थी। समाचार चैनल क िवशेष मंिदर क बंद दरवाज क बाहर पूरी रात
अपने कमर क साथ क थे, तािक पता चल सक िक कौन अंदर आता ह और ार खुलने से पहले मूितय को
फल व जल चढ़ाता ह। कोई नह आया; लेिकन सुबह-सुबह जब दरवाजे खोले गए तो उ ह ने पाया िक बंद
प रसर म ाथना पहले ही क जा चुक ह, य िक वहाँ जल और फल िबखर ए थे।
“ थानीय लोग का मानना ह िक यह 5,000 वष य य वा तव म महाका य महाभारत का अ थामा ह।
येक मंिदर म वह रोज ात:काल पूजा करता ह और भगवान एवं उनक मूितय को जल अपण करता ह। यह
हर िदन होता ह, जब मंिदर क दरवाजे बंद होते ह। रपोटर ने कहानी को स यािपत करने क िलए कछ डॉ टर ,
पुजा रय और थानीय िनवािसय से भी बात क ।
“एक दशक से भी अिधक पुराने अखबार क लेख म, जो छ य पर गए एक रलवे क कमचारी क बार म

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था, नवसारी (गुजरात) क जंगल म भटकने क दौरान उसने लगभग 12 फ ट क एक ब त लंबे आदमी को देखा
था, िजसक माथे पर एक घाव था। उसने उसक साथ बातचीत करने का दावा िकया और यह जाना िक भीम उससे
कह अिधक लंबा और मजबूत था।” अिभलाष ने अपनी बात पूरी करते ए कहा।
“ये और कछ नह , कवल कहािनयाँ ह। तुमने ोणाचाय का दोन बार वणन िकया ह...परशुराम और
अ थामा?” डॉ. ब ा ने पूछा।
“हाँ, अ थामा ोणाचाय क पु थे और परशुराम ोणाचाय क गु । माना जाता ह िक वे दोन अलग-अलग
युग म थे, हजार वष क अंतर क साथ। दरअसल, एक कथा क अनुसार, भारत क बुरहानपुर क पास थत एक
गाँव ह, जहाँ असीरगढ़ नामक एक िकला ह। थानीय लोग क अनुसार, अ थामा वहाँ अभी भी आता ह और
हर सुबह िकले म िशविलंग पर फल चढ़ाता ह। कछ अ य लोग ने अ थामा को िहमालय क तलहटी म
जनजाितय क बीच रहते और घूमते देखने का दावा िकया ह।” अिभलाष ने जवाब िदया।
“आइए, अब हम अपने सोने क क क ओर चलते ह।” एल.एस.डी. ने कहा।
वह तुरत अपनी कस से खड़ी हो गई। बाक सब ने भी अपनी सीट साथ ही छोड़ दी और सुर ाकिमय ारा
िनदिशत सभी अिभलाष क पीछ चल िदए।

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8.
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रह यमयी िपटारा
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वह आँधी वाली एक रात थी। अँधेर गिलयार म चलते समय रोशनी का एकमा ोत गिलयार क आिखरी छोर पर
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झूलता आ लप था।
एल.एस.डी. ने शािह ता को ‘गुड नाइट’ कहा और अपने कमर म जाते ही जूते उतारने लगी। उसका कमरा
काफ बड़ा था, पर उसम से सीलन क गंध आ रही थी। हालाँिक, वह पुराने फन चर एवं ल स से सुस त था,
पर ऐसा लग रहा था, जैसे िक उसका लंबे समय से उपयोग नह िकया गया था।
अगले कमर म शािह ता अपने ब क बार म िचंितत थ । वे कस पर बैठ ग तथा अधलेटी-सी छत को देखने
लग , जबिक बाक लोग अपने-अपने कमर म यव थत हो रह थे।
डॉ. शािह ता क आँख न द से भारी हो रही थ और शी ही वे सो ग । देर रात डॉ. शािह ता तेजी से उठ , जब
उ ह ने दरवाजे क बाहर िकसी क परछा को देखा और महसूस िकया, जैसे कोई बाहर चहलकदमी कर रहा हो।
वे तेजी से उठ और दरवाजा खोलकर बाहर देखने लग । डॉ. शािह ता अँधेर गिलयार क आिखरी छोर तक ग
और देखा िक वहाँ कोई नह था। उ ह एकमा तेज हवा क सनसनाती आवाज सुनाई दी। वे पीछ मुड़ और
अचानक एल.एस.डी. को अपने पीछ खड़ देखा। डॉ. शािह ता डर से चीख , “तुम यहाँ या कर रही हो?”
एल.एस.डी. लंबी साँस लेते ए बोली, “मुझे अकले डर लग रहा था। म आपक साथ रहना चाहती । या म

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आपक कमर म सो सकती ?”
डॉ. शािह ता ने अपना पसीना प छते ए सहमित म िसर िहलाया।
वे दोन कमर म अंदर ग । एल.एस.डी. ने अपना बैग दीवान पर रखा और उसे खोलना शु कर िदया।
डॉ. शािह ता ने पूछा, “ या तुमने िकसी क चलने क आवाज सुनी?”
एल.एस.डी. ने डरते ए जवाब िदया, “हाँ, मने अपनी िखड़क से िकसी क परछा देखी, पर अँधेर व हडफोन
होने क कारण कछ सुना नह । अ छा ह िक म कछ नह सुन पाई।”
वह मजाक करते ए बोली, “म कोई भूत देखना या सुनना नह चाहती। मुझे यह पुरानी जगह ठीक नह लगती।
ये हमेशा भुतहा होती ह।”
डॉ. शािह ता ने पानी का िगलास रखा और एल.एस.डी. को आ त करते ए उसक िवपरीत बोल , “भूत
जैसी कोई चीज नह होती।”
एल.एस.डी. ने उ सुकता से पूछा, “मुझे समझ नह आया िक आप बाहर या कर रही थ ?”
डॉ. शािह ता डरावनी परछा क कहानी गटक ग , य िक एल.एस.डी. पहले ही डरी ई थी। वे अपनी बात
को आगे बढ़ाते ए बोल , “म अपने प रवार क िलए िचंितत । म उनसे बात करना चाहती , पर अब काफ देर
हो गई ह।”

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एल.एस.डी. ने डॉ. शािह ता को सां वना देने क कोिशश क , “िचंता न कर, मुझे िव ास ह िक आपका
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प रवार ठीक होगा और हम ज द ही यहाँ से चलगे।” वह अपनी उगिलयाँ ॉस करती ई बोली।
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डॉ. शािह ता ने गहरी साँस ली और अपने िब तर क ओर चली ग ।
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एल.एस.डी. ने िफर अपना च मा उठाया, न खोली और कमर क शांित को लैपटॉप क बटन दबाने क
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आवाज से भंग कर िदया। डॉ. शािह ता तुरत ही सो ग ।


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इसी बीच, वीरभ ने अपने दो आदिमय क साथ, ब से को लेने हतु, रात क अंधकार म पीड बोट से पोट
लेयर तक क या ा क । कछ दूरी से दो आँख उसे ब सा लेते और सँभालते ए देख रही थ । जब वीरभ रॉस
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ीप क िलए वहाँ से िनकला तो एक अ ात य ारा उसका पीछा िकया जा रहा था।


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रात गुजर गई।


दरवाजे पर खटखटाने क आवाज से शािह ता क न द टट गई। उ ह ने कमर म एक िलफाफा पाया। िलफाफा
खोलते ही उ ह ने एल.एस.डी. को जगाया। िलफाफ म उनक सेशन क समय का िववरण था। बाहर ब त उजाला
था।
ना ते क बाद शािह ता एवं डॉ. ब ा डॉ. ीिनवासन क क क ओर गए, जबिक बाक सभी पूछताछ वाले
कमर क ओर।
इस दौरान वीरभ भी डॉ. ीिनवासन क कमर म गया और उ ह देखने लगा। वह दो बंदूकधा रय क साथ अपने
हाथ म दो ब से िलये उनक ओर बढ़ा। वे ओ क लॉकर थे।
“इ ह यह खोलो।” डॉ. ीिनवासन ने वीरभ को आदेश िदया।
डॉ. शािह ता और डॉ. ब ा वहाँ कछ िवचार-िवमश क िलए थे, अतः वे भी उसम शािमल हो गए।
जैसे ही उनक सामने ब से खुले, वे सब आ यचिकत रह गए। ब स म इितहास को अपने व प म दज
होने से पूव क िलखे गए अिभलेख थे। िकसी दूर थ भूिम पर सुरि त वे लेख यादातर सं कत म िलखे गए थे

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और कछ िहदी एवं ाकत म (पािल व सं कत का िम ण)।
वे आज क िदखने वाले कागज नह थे। वे ताँबे क प थे। येक प पर शीष क प म नाम अंिकत था। वे
ओ ारा दावा िकए गए उसक नाम थे।
एक पुरानी खरल भी ब से से िनकली। इसक अित र , कछ बड़ी व भारी अँगूिठयाँ, जो आजकल न ही योग
म और न ही देखने म आती ह।
िविभ शासनकाल म यापार हतु योग िकए गए ाचीन एवं दुलभ िस क और देवनागरी म िलखे गए प ,
यहाँ तक िक उदू म भी िलखे ए, िदखाई िदए।
“सर, लॉकर म मुझे एक छोटी सूचना और िमली ह, िजसे मने आपको सीधे देने क िलए सुरि त रखा ह।”
वीरभ ने बताया।
“सर, यह एक न शा ह, िजसक साथ कछ धातु क टकड़, पार क बोतल और एक पु तक ह।”
पु तक प एवं सफद कपड़ से बँधी थी, िजस पर खून क िनशान थे। पु तक पर धातु क िज द थी, िजस पर
कछ अंिकत था। डॉ. ब ा ने पु तक को अपने हाथ म िलया और बीच म से प े पलटने लगे। उनक आँख
पु तक म कछ िच देखते ही आ य से बड़ी हो ग । वह ऐसे ही प े पलटते रह, जैसे कछ खोज कर रह ह । वे
पलट और उ ह ने डॉ. ीिनवासन क ओर देखा, िज ह ने अपना हाथ एक संकत क तरह आगे बढ़ा िदया। डॉ.

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ब ा अभी प को और देखना चाहते थे, परतु उ ह ने पु तक डॉ. ीिनवासन क ओर बढ़ा दी।
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“यिद आपका काम हो गया हो तो या हम आगे बढ़?” डॉ. ीिनवासन ने तंज क लहजे म कहा।
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डॉ. ब ा ने धातु क टकड़ और न शे को देखा। डॉ. ीिनवासन ने कहा, “हाँ, यह एक न शा ह, पर िकस
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कार का?”
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“उ र तो यह बैठा ह कमर क अंदर। चलो, उससे सीधे पूछते ह।” शािह ता ने सुझाव िदया।
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“नह , अभी नह । उसे पता नह लगना चािहए िक यह सब हमार क जे म ह। पहले उससे पूछ जाने वाले न
क सूची तैयार करो।” डॉ. ीिनवासन ने आदेश िदया।
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“ठीक ह, सर।” शािह ता ने जवाब िदया।


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“एल.एस.डी. को मेर पास भेजो। वीरभ , तुम उनक साथ रहो। शािह ता, जब तक म वापस नह आता, शु
मत करना।” डॉ. ीिनवासन ने कहा।
वे सहमित से िसर िहलाकर चले गए और डॉ. ीिनवासन एल.एस.डी. क ती ा करते रह।
डॉ. ब ा ने लगभग भागते ए कमर म वेश िकया। उ ह ने ओ क तरफ उलझन भर ोध क से देखा
और अपने थान पर वापस जाकर क यूटर पर काय करने लगे। शािह ता डॉ. ब ा क पास ग और यह पाया िक
वे ब त उ ेिजत थे। वे उ सुकता क साथ क यूटर पर कछ खोज कर रह थे।
उ ह ने िचंता य करते ए पूछा, “तेज, आप या कर रह ह?”
डॉ. ब ा िबना न से नजर हटाए अपना काय करते रह।
“आप ठीक तो ह? देखो, हम सब भी उतने ही हरान एवं आ य...”
“श श...” डॉ. ब ा ने हाथ से शािह ता को चुप रहने का इशारा िकया और अपना काय करते रह।
शािह ता को बुरा लगा, पर िफर भी, वे कछ ण उनक पास खड़ी रह और िफर वहाँ से जाने क िलए पलट ।

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डॉ. ब ा ने उ ह वापस बुलाया।
“शािह ता!”
वे िफर से पलटकर वापस आ । उनक आँख न पर ही थ ।
“यह देखो।” डॉ. ब ा ने न को उनक तरफ सरकाया।
“यह या ह?”
डॉ. ब ा ने उ ह समझाना शु िकया—
“हमार शरीर क येक कोिशका म छोट-छोट इजन होते ह, िज ह ‘माइटोकॉ या’ कहा जाता ह, जो हम
हमारी आव यकता क अनुसार ऊजा दान करते ह। जब यह इजन जीण होने लगते ह तो हमारा शरीर ीण एवं
वृ होने लगता ह।”
“तेज, आपका या मतलब ह?”
“मतलब यह ह िक यिद यह माइटोकॉ या पुननवा होने लगे तो शरीर एक औसत मनु य से यादा लंबे समय
तक जी सकता ह।” डॉ. ब ा ने समझाया।
“तो आप यह कहना चाहते ह िक ओ क शरीर म ये छोट इजन कभी नह मर?” डॉ. शािह ता ने िवचार प
करने का यास िकया।

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तेज ने दूसरी तरह से बात को समझाने क कोिशश क , “वै ािनक ने आज खमीर क आयु, जो सामा यतः 6
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िदन क होती ह, उसे 10 ह त तक बढ़ाने का एक तरीका िनकाला ह।”
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“और इसका हमसे या संबंध ह?” शािह ता परशान थ ।
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“शािह ता, ये 10 ह ते मनु य जीवन क 800 वष क अनु प ह। जब 2 जीन आर.ए.एस. 2 और एस.सी.एच.


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को डी.एन.ए. से िनकाल िदया जाता ह तो इसक प रणाम व प खमीर का आयु य बढ़ जाता ह। यही जीन जब
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चूह से िनकाले जाते ह तो उसक आयु दोगुनी हो जाती ह।” डॉ. तेज ने आगे कहा।
“तो?” डॉ. शािह ता ने न िकया।
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“मनु य शरीर म आयु बढ़ाने वाले िविभ कार क ज स खोजे जा चुक ह। मेरी िचंता यह ह िक िव ान को हम
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मनु य क बार म यह दावा करने से पहले एक लंबा रा ता तय करना ह और मेरी िचंता ओ क दावे क िवपरीत
ह।”
“ या आप उसे अभी भी ामक समझ रह ह?” शािह ता ने पूछा और थोड़ा ककर बोल , “देखो तेज, उस
पर िव ास न करने क िलए मेर पास ब त से कारण ह, पर उसक िव सनीयता पर सवाल न उठाने क हजार
कारण भी ह।”
“मुझे उसक खून का नमूना चािहए।” डॉ. ब ा ने ढ़ता से कहा।
शािह ता ने असहमित से िसर िहलाया, “डॉ. ीिनवासन आपको ऐसा करने क अनुमित कभी नह दगे।”
इसी बीच डॉ. ीिनवासन एल.एस.डी. से अपने क म बात कर रह थे।
उ ह ने उसक सामने एक न शा फलाया और पूछा, “ या तुम यह सािबत कर सकती हो िक िन संदेह तुम
सव े हो? तु हार पास इस पहली को सुलझाने क िलए 6 घंट ह, जो िक इस न शे क जगह ढढ़ना ह तथा वह
हम आगे कहाँ ले जाएगी, यह बताना ह।”
एल.एस.डी. को चुनौितयाँ पसंद थ । वह उ ह खुले मन से वीकारा करती थी, य िक वे उसे उसक मता

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को जाँचने व सुधारने का अवसर देती थ और वयं पर और अिधक गौरवा वत बनाती थ । उसक आँख उ साह
से चमक उठ । उसने उनसे न शा िलया और मुड़ते ए बाहर चली गई। डॉ. ीिनवासन ने दबी आवाज म कहा,
“इसे हमार बीच ही रखना एल.एस.डी., िकसी और से एक भी श द नह कहना। तु हारा समय शु होता
ह...अब!”
थोड़ी देर बाद डॉ. ीिनवासन ने पूछताछ वाले क म वेश िकया।

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9.
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पुरातन वतमान म
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अगला सेशन अब शु होने को था। जैसे ही सब यव थत ए, शािह ता ने पूछताछ िफर से ारभ क ।


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“इन सभी वष म सुषेण क अलावा तुमने और कौन सी भूिमकाएँ िनभाई ह?”


न पर ब त तेजी से ब त सी जगह, चेहर व घटनाएँ बदलने लग ।
न पर ओ ने िभ -िभ कार क पारप रक वेशभूषा पहनी ई थी और न पर िदख रही जगह
िविभ शता दी एवं युग को दशा रही थी; परतु ओ का चेहरा जरा भी नह बदल रहा था।
जैसे ही उसने अपने सभी प को याद िकया—डर, अिन तता, खुशी, शांित, उ ेजना, आ य, प ा ाप क
भाव उसक चेहर पर कट ए और उसने अपनी आँख को कसकर बंद कर िलया।
जैसे ही कछ दुःखद उसक म त क से गुजरा, उसक आँख नम हो ग । उसने अपनी आँख खोल , जो खून
जैसी लाल हो रही थ । जैसे ही उसने ऐसा िकया, न से छिवयाँ गायब हो ग । वह ब त दुःखी और डरा आ
लग रहा था। जब उसे महसूस आ िक सब उसे ही देख रह ह, उसने अपने आप को िनयंि त िकया और एकदम
शांत महसूस करने लगा।
य िप वह इस त य से ब त यादा िवचिलत था िक उसक िजंदगी अजनबि य ारा एक चलिच क प म
देखी जा रही थी और ज द ही उनको रह य का पता चलने वाला था।

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कमर म सभी ने न पहचान सकने वाले य न पर देखे थे; परतु तीन चेहर को आसानी से समझा जा
सकता था। पहला, ब त ही सुंदर व सु िचपूण प तः एक मिहला का था, जो ओ क याद म गहराई से छपा
आ था। वह चेहरा ओ क सभी परशािनय का आधार था। उसे ायः िब कल अलग-अलग प रवेश म भी
देखा जा सकता था।
ओ और मिहला क बीच एक िवपरीत िच यह था िक ओ कभी बूढ़ा नह िदखा; जबिक वह हर आयु, जैसे
िकशोरी, त णी, प रप मिहला और वृ ी क तरह िदखाई दी। मिहला का जीवन-रिहत शरीर तीन अलग-
अलग युग म, तीन अलग-अलग वेशभूषा म ओ क साथ िदखाई िदया। जब तीसरी बार वह मृत िदखाई दी, ओ
ने उसी ण अपनी आँख खोल दी थ ।
दूसरा चेहरा, जो बार-बार सामने आ रहा था, वह एक मजबूत शरीर वाले य का था, जो ब त सार तीर व
धनुष िलये ए और एक क हाड़ी जैसे श , परशु—इसक अित र कछ ाचीन िवशाल श क साथ था।
तीसरा चेहरा िफर से एक मजबूत शरीर वाले य का था। उसक भाव भयंकर ोध वाले थे। ऐसा तीत हो
रहा था िक वह िबना भय क हर कार क यु क िलए त पर था।
“यह कौन ह?” एल.एस.डी. ने पूछा।
“परशुराम और अ थामा, हमार ंथ क दो िचरजीवी,” अिभलाष ने बताया।

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“दो?” एल.एस.डी. ने अिव ास क साथ कहा। ve
“िहदू पुराण म सात िचरजीवी य य का उ ेख ह। इन दो क अित र पाँच और भी ह।” न पर देखते
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ए अिभलाष ने उ र िदया।
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“वे कौन ह?” एल.एस.डी. ने पूछा।


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न पर असंब य क बदलने क ंखला क चलते रहने क बावजूद, िजनका कोई मतलब नह बन रहा
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था, अिभलाष ने एल.एस.डी. से कहना जारी रखा और न पर कछ अपनी बुि म ा से संबंिधत एवं यावहा रक
हल ढढ़ता रहा।
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“बाक िचरजीवी ह राजा बिल। भगवान िव णु क वामन अवतार ने असुर राज महाबली क अहकार क बाद
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उसका िवनाश िकया था, उसे पाताल लोक म रहने क िलए भेज िदया गया था, परतु बिल को वष म एक बार
पृ वी पर आने क अनुमित दी गई थी। वह िदन करल म ‘ओणम’ क प म मनाया जाता ह।
“िवभीषण, जो रावण क छोट भाई थे। िवभीषण ने भगवान ीराम क सहायता क थी, िज ह ने उ ह अमरता का
आशीवाद िदया था। राज थान क शहर कोटा म िवभीषण को समिपत एक मंिदर ह। भारत म ऐसा कवल वही
मंिदर ह!
“महाभारत क रचियता वेद यास भी अमर ह।
“कपाचाय, कौरव और पांडव क गु और अ थामा क मामा।
“और अंत म, ीहनुमानजी, जो किलयुग म अपने भ क र ा करते ह।”
डॉ. शािह ता को छोड़कर सभी अपने सामने हो रही घटना क खुलासे से हत भ थे। स मोहन क अपने
कायकाल म उ ह ने ओ से ब त अिधक ऊचे तर क िवचिलत मरीज को देखा था, अतः उ ह िकसी चीज से भी
अचरज नह आ।
उ ह ने अपना एक हाथ उसक हाथ पर सां वना देने क िलए रखा।

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“ओम, इन वष म सुषेण क अलावा तुम और िकस प म रह हो? धीर-धीर एक क बाद दूसरा जवाब दो।
अपना समय लो और शांत रहो।”
ओ ने शािह ता क ओर देखा और दोबारा बोलने से पहले अपनी आँख बंद कर ल ।
सुिवधा क से दूर, ीप क जंगल म अ याधुिनक मुखौट से झाँकती दो आँख िकसी चीज पर ऐसे गड़ी ई थ ,
जैसे चील अपने िशकार को देखती ह और कछ घिटत होने क ती ा कर रही थ । य क पास आधुिनक अ
एवं उ तकनीक उपकरण थे।
दूर थत कमर म दो वृ आँख सफद न को घूर रही थ , िजस पर सुिवधा क क अंदर योगशाला का
य िदख रहा था, जहाँ टीम क सभी सद य और ओ बैठ ए थे। आदमी क हाथ म ा क माला थी। उसने
एक से युलर फोन उठाया और अपनी आँख न पर गड़ाए ए रीडायल का बटन दबाया। उसने कछ ण
ती ा क , िफर देखा िक डॉ. ीिनवासन ने फोन उठाकर िसर िहलाया और धैय क साथ कहा, “जी, सर।”
पूछताछ क म न पर िसर से पैर तक सोने से सजा, सेवक व सेिवका से िघरा महल म एक आदमी
िदख रहा था। उसक पास ओ का चेहरा था। महल शाही व आिभजा य था। न पर त वीर आ-जा रही थ
और वह ओ कछ बड़बड़ा रहा था।
वह कह रहा था, “मने िजंदगी क सब रग देख ह। म धनवान एवं यात रहा , जब लोग मेरी सेवा और मेरा

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स मान करने क िलए लालाियत रहते थे; और इसक िवपरीत, म अ यंत द र ता म भी रहा ।”
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य म अब ओ ठड म काँपते ए िदख रहा था और उसक शरीर पर नाम मा क व थे। आधा रक
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संरचना से यह िदख रहा था िक िन संदेह दोन य म एक सदी क समय का अंतराल था।
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“म एक स ाट रहा । म एक गुलाम रहा ।” न पर त वीर ओ क वे सभी प िदखा रही थ ।


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इसक बाद ओ ीप क जंगल म अकला, ब त भयभीत और बेखबर-सा िदखाई िदया।


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“म बुरी तरह डरा आ और पूणतया अकले रहा । म अित ि यतम य रहा । म ब त बहादुर और एक
भीषण यो ा भी रहा ।”
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अब ओ को एक ब े क साथ देखा जा सकता था। उसक गोद म िवकलांग एवं बुरी तरह डरा आ और
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बगल म वही आकषक मिहला भी थी। वह त वीर मानो अनंत काल क िलए थर हो गई हो! तब ओ ने अपनी
आँख खोल , जो गीली हो गई थ । एक आँसू िबना िकसी बाधा क उसक गाल पर से लुढ़क गया। ओ ने िजस
थम य को देखा, वे शािह ता थ । वे भी िहल गई थ , परतु कछ नह बोल ।
ओ थर व शांत हो गया और िफर से कम भावना मक और अिधक यावहा रक होकर उसने कहा, “म
गोिवंदलाल यादव और ोितम दास एवं बी.सी. च वत रह चुका । म वकट रम ा राव रहा और बाद म
माधवराव क नाम से वयं क बेट क तरह रह चुका । म गुरशील िसंह और एस.पी. र ी रह चुका । अिधरयन
भी मेरी ब त सी पहचान म से एक ह।” उसक यह सब कहते समय न खाली ही थी।
अिभलाष शािह ता क ओर झुका और कहा, “उससे िव णु गु क बार म और पूिछए।”
शािह ता ने डॉ. ीिनवासन क ओर देखा, िज ह ने एक मौन सहमित दी।
“तुमने इतने नाम िलये, परतु वे हमार पास पहले से ही ह। वे सब सरकारी रकॉड म ह। पर तुमने एक नाम का
िज नह िकया—िव णु गु ।” डॉ. शािह ता ने न िकया।
एक धुँधली-सी त वीर न पर छा गई, जो हर बार गायब हो जाती थी।

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जो ओ अब िदखाई दे रहा था, वह गंजे क प म, ा ण क िविश िशखा क साथ िदखा। आदमी क माथे
पर भगवान िव णु का ‘U’ िच िदखाई िदया, िजसने सफद उ रीय व धोती पहन रखी थी।
ओ ने कहना शु िकया, “म चं गु मौय का मु य सलाहकार था। म उनक सिमित क सबसे मह वपूण
सद य म से एक होने क साथ उनका अ छा िम भी था। म हमार यु संबंधी िवषय क अित र उ ह
राजनीितक व य गत सलाह देता था। मुझे ‘चाण य’ क नाम से भी जाना जाता था।”
जैसे ही ओ ने यह कहा, न पर त वीर इतनी प हो गई िक उन सबको िबना िकसी संदेह क यह
अहसास हो गया िक वह चाण य ही ह। ओ क बोलते ए प रमल कछ गणना कर रहा था। जैसे ही उसने
समा िकया, कागज का एक टकड़ा िलये वह खड़ा आ और कमर को पार कर डॉ. ब ा क पास गया। कागज
पर शीषक था—‘सुषेण व चाण य क म य समय अंतराल एवं चाण य युग से वतमान का समय’।
डॉ. ब ा थोड़ी देर उस पर यान देने क बाद बोले, “यही तो म कह रहा —असंभव, अिव सनीय!” िफर वे
उठ और उ ह ने डॉ. ीिनवासन को कागज िदया।
डॉ. ीिनवासन ने यान से कागज को देखा, िजस पर ठीक से समझ म न आने वाली िलखावट म कछ िलखा
आ था—
सुषेण—7292 ईसा पूव म, चाण य—321 ईसा पूव म

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समय अंतराल—6971 वष
चाण य—321 ईसा पूव म, वतमान िदवस—2020
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समय अंतराल—2341 वष
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सुषेण—7292 ईसा पूव म, वतमान िदवस—2020


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कल समय अंतराल—9312 वष।


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वे िकसी तरह समझ गए और लंबी साँस लेते ए खड़ ए।


“पूछताछ जारी रखो। मेरी ती ा मत करना।” वे शािह ता क तरफ देखते ए बोले।
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इस दौरान एल.एस.डी. न शे म, अपने गैजे स क सहायता से, थान क संभव ाचीन कोड क ारा सभी
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िदशा म न शे को चार ओर घुमाकर कछ अथ खोजने म लगी ई थी। उसक उ सुकता और हाव-भाव से यह


प था िक वह न शे म रखांिकत थान का पता लगाने से कवल एक कदम ही दूर थी। यह टीम क िलए एक
और बड़ी वा तिवक खोज सािबत होने वाली थी।
उधर ीप क जंगल म, आदमी ने अपने ब ते म से एक उपकरण िनकाला और उसे चार भाग म िवभािजत कर
िदया। चार अलग-अलग उपकरण को जमीन पर खुला छोड़ने क बाद वे िनकट क इमारत क चार कोन क
पास चार अलग-अलग िदशा म फल गए। आदमी ने अपने टबलेट पर एक बटन दबाया और इमारत क 3डी
आकित उसक टबलेट पर िदखाई दी। छिव को इधर-उधर चलते ए लाल िबंदु ारा, जो लोग को दशा रह थे,
बािधत िकया जा रहा था। आदमी अब सं थान म वेश करने और बाहर आने वाले येक य पर नजर रख
सकता था।
डॉ. ीिनवासन एक कागज का टकड़ा िलये, िजस पर ओ क पूर जीवन काल क कछ िह स का वणन था,
परशान व अ त- य त-से गिलयार म घूम रह थे। वे ज द ही एक भारी काँच क दरवाजे क एकदम सीध म खड़
ए और अपनी आई.डी. िदखाई, दरवाजा सरकते ए खुला और उ ह अंदर जाने िदया।

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थोड़ी देर बाद उ ह ने अपने आप को एक अ य दरवाजे क सामने पाया, िजसक सुर ा दो सुर ाकम कर रह
थे। डॉ. ीिनवासन क रिटना जाँच क बाद ही दरवाजा खुला। दरवाजे दोन ओर सरकते ए बीच म से खुले और
उ ह अंदर जाने िदया।
परी ण क क अंदर डॉ. शािह ता कह रही थ , “तुमने जो कछ भी बताया, या तु ह उसका मतलब भी पता
ह? तुम हम यह िव ास िदलाने का यास कर रह हो िक तुम िजंदा थे।...”
ओ ने उ ह बीच म रोका।
“ ेता युग म।”
“और तुम चं गु मौय क शासनकाल म भी जीिवत थे?”
“म अब किलयुग म भी िजंदा और िकसी को भी कोई िव ास िदलाने का यास नह कर रहा ।”
डॉ. शािह ता ने गहरी साँस ली और धैय क साथ जवाब िदया, “ओम, इन सब वष क अविध का जोड़ हजार
वष ह। तुम हम िव ास िदलाना चाहते हो िक तुम रामायण और महाभारत क समय से जीिवत हो?”
“म सतयुग से जीिवत । ेता युग और ापर युग से होते ए अब म किलयुग म आपक सामने ।” ओ ने
एक िद य मु कान क साथ जवाब िदया।

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अिभलाष पूर समय ओ को ब त यान से सुन रहा था। उसने टोका, “ ापर युग म तुम कौन थे?”
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ओ ने आँख बंद करने से पहले उसक तरफ, िफर वापस शािह ता क ओर देखा और कहा, “मेर इितहास म
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ब त से नाम थे, परतु इन सब म ापर युग से संबंिधत िवदुर था।”
न पर त वीर इसका सबूत दे रही थी िक ओ क श द सरलता से कह गए त य ह। ये ओ एक क मती
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वेश और छाती तक लटकते ए वण आभूषण से सजा िदखाई िदया। उसक िसर पर एक विणम मुकट था, जो
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उसक ऐ य को और बढ़ा रहा था।


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वह एक आदमी क बराबर म खड़ा था, जो ने हीन तीत हो रहा था, जो राजा क िसंहासन पर, आँख पर प ी
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बँधी औरत—अनुमानतः रानी—क बराबर म बैठा िदख रहा था। अंधा राजा और आँख पर प ी बँधी रानी राजा
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धृतरा एवं उनक प नी गांधारी थे; जो कौरव क माता-िपता थे।


“िवदुर! राजा धृतरा क सौतेले भाई!” अिभलाष ने तेजी से कहा। अिभलाष ने स मान क साथ िसर झुकाकर
एवं हाथ जोड़कर िवन ता से पूछा, “इसका मतलब, आप वा तव म भगवान ीक ण से िमले ह? या वे ापर
युग म वा तव म आपक घर म ठहर थे?”
ओ क कछ िति या देने से पहले ही डॉ. शािह ता ने पूछा—
“तुम कब से जीिवत हो? तु ह जो कछ भी याद ह और तुम िजन प र थितय से गुजर हो, हम सब बताओ।”
ओ ने एक गहरी साँस ली और शािह ता ने इसम उसक असहायता को महसूस िकया। वह जानता था िक वह
फसा आ ह और इसक बार म यादा कछ नह कर सकता था, अतः उसने शु िकया।

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10.
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पुरानी या या
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इस दौरान डॉ. ीिनवासन ने िवशेष कारण से गु रखे गए एक थान म वेश िकया। काँच क एक दीवार से
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बने कमर को सावधानी से छपाया गया था। वे अपने साथ ओ क लॉकर म पाई गई पु तक लाए थे। उ ह ने वह
पु तक एक बूढ़ य को स प दी। वृ आदमी ने जैसे ही पु तक को िलया, उसक आँख उ साह से चमक उठ
और वह पु तक क प े पलटने लगा; परतु शी ही वह स ता ोध म बदल गई। लंबी चु पी क बाद आदमी ने
काँपती-सी आवाज म कहा, “पु तक का दूसरा भाग कहाँ ह?”
डॉ. ीिनवासन परशान और भयभीत खड़ थे। उ ह ने सोचा था िक पु तक पूरी ह, जबिक सुिवधा क क
िकसी भी सद य क िलए अबूझ भाषा, अजीब रखािच , न शा और पौध क होने से वह आसानी से समझ म
आने वाली नह थी। इससे पहले िक वे यह सब उस आदमी से कह पाते, वह आदमी ोध से चीखते ए बोला,
“मने कहा, पु तक का दूसरा भाग कहाँ ह?”
डॉ. ीिनवासन ने तेजी से जवाब िदया, “मुझे नह पता, सर। हम लॉकर से कवल यही पु तक िमली ह।” वह
ब त बुरी तरह से डर गए थे।
बूढ़ आदमी ने धीर से अपनी उगली क इशार से डॉ. ीिनवासन को अपने पास बुलाया। डॉ. ीिनवासन ने
आदेश का पालन िकया और आदमी क पुरानी व िघसी जीण कस क िनकट फश पर घुटन क बल झुक। बूढ़

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आदमी ने ीिनवासन क बाल को जकड़ा और बड़ी भयानकता से घूरते ए कहा, “इसे देखो, पढ़ो इसे, अनपढ़!
इस पु तक का हर दूसरा प ा गायब ह।” उसने पु तक को डॉ. ीिनवासन क मुँह पर फकते ए कहा, “सम
सं या वाले सभी पृ यहाँ ह और िवषम सं या वाले पृ दूसरी पु तक म ह। यह एक चाल ह, िजससे पु तक
एक-दूसर क िबना बेकार ह। दूसरी पु तक अब कहाँ ह?”
डॉ. ीिनवासन प पर नंबर नह देख सक, िफर भी ज दी से गलती वीकारते ए बोले, “हम यही सब ला
पाए, सर। डॉ. ब ा ने जैसे ही इस पु तक को देखा, वे समझ गए थे।”
बूढ़ आदमी ने घृणा क साथ जवाब िदया, “उसे डी.एन.ए. क रखािच और उनसे िनकले ज स को देखने क
बाद समझ म आया। भले ही वह भाषा समझकर पढ़ने म सफल हो जाए, वह चीज समझ सकता ह, पर इस
पु तक से कछ िन कष नह िनकाल सकता। इस पु तक से कोई भी िकसी प रणाम पर नह प च सकता, य िक
यह पूरी नह ह। तु ह लॉकर म और या िमला?”
“सर, हम िमली हर चीज आपक य गत योगशाला म भेज दी गई ह, एक न शे को छोड़कर, िजसे मने
एल.एस.डी. को सुलझाने क िलए िदया ह।” डॉ. ीिनवासन ने शु क गले क साथ कहा।
न शे क िज मा से बूढ़ आदमी क आँख म चमक आ गई।
“न शा? वह न शा ही दूसरी पु तक क चाबी ह। उसे सुलझाने म िकतना समय लगेगा?” उसने बे खी से

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पूछा। ve
“मुझे नह पता, सर।”
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“तो उससे पूछो और मुझे अभी बताओ।”
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“ठीक ह, सर।”
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डॉ. ीिनवासन भयभीत व अपमािनत महसूस करते ए तेजी से कमर से बाहर चले गए।
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ीप क जंगल म दूर, दूसरा य उसी तरह का मुखौटा चेहर पर लगाए, हाथ म एक ाचीन चाबी िलये पहले
वाले य क साथ आ गया। वे िजस इमारत पर नजर रख रह थे, उस पर धावा बोलने ही वाले थे। दोन ने अपनी
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घिड़य को एक ही समय पर सेट िकया और उनम से एक ने दूसर को इमारत क अंदर का भाग, इधर से उधर जाते
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लाल िबंद,ु वेश ार पर लगे संकतक िदखाए, िजनसे उ ह इमारत क अंदर घुसने क िलए िभड़ना था। उ ह ने
िबना कछ बोले तय िकया िक एक समान थान, जो िक इमारत क अंदर एक दरवाजा ह, पर िमलने से पहले
येक य िकतने लोग को मार िगराएगा।
वह पूछताछ क म ओ जैसे ही डॉ. शािह ता क न का उ र देने वाला था, एल.एस.डी. अपने दोन हाथ
ऊपर हवा म फकते ए खुशी से िच ाई जैसे वह अपने आपको अघोिषत मैराथन म िवजयी घोिषत कर रही हो!
सुर ा किमय ने च कते ए सतकता क साथ अपनी बंदूक उसक ओर तान द । सभी ने अपने िसर उसक ओर
घुमाए और डॉ. ीिनवासन ने कमर म वेश िकया। एल.एस.डी. ने चार ओर देखा और उसे अहसास आ िक
उसने या िकया! जैसे ही उसने डॉ. ीिनवासन को देखा, उसक भाव बदल गए। अचानक ही उसे एक िवजेता
नह , ब क एक छोटी ब ी क तरह महसूस आ, िजसने अपनी माँ का मनपसंद फलदान तोड़ िदया हो। उसने
डॉ. ीिनवासन क ओर आतंिकत व मा-याचक नजर से देखा। वह इतनी डरी ई थी िक उसक आँख म आँसू
आ गए।
डॉ. शािह ता उसे आ त करने क िलए उठ , पर डॉ. ीिनवासन ने उ ह ऐसा करने से रोक िदया।

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वे एल.एस.डी. क पास गए और उसका हाथ पकड़कर कमर से बाहर ले गए।
दरवाजा पार करते ही उ ह ने पूछा, “तुम य िच ा ?”
“ य िक मने आपक िदए न शे को सुलझा िलया, सर!”
“ब त अ छ! म उसी क िलए तु हार पास आ रहा था। वह कहाँ ह?”
“सर, उ ह ने न शे म जान-बूझकर थान क अ ांश और देशांतर आपस म बदल िदए ह। उनक ऊपर क
िड ी व दशमलव को आपस म बदला गया ह; जलाशय को भूिम और भूिम को जलाशय म बदल िदया गया ह,
तािक थान को आसानी से पहचाना न जा सक।”
“एल.एस.डी., इसम मेरी जरा भी िच नह ह। मुझे कवल जगह बताओ।” डॉ. ीिनवासन ने अधीरता से कहा।
एल.एस.डी. िफर से कमर क अंदर भागती ई गई, अपनी न से कागज क टकड़ पर कछ िलखा और एक
िमनट क अंदर वापस आ गई।
उसने परची डॉ. ीिनवासन को स पी और कहा, “यह पवत क ंखला, जंगल व गुफाएँ ीलंका म ह और
न शे म यह सटीक थान ह।” उसने एक िवशेष थान क ओर इशारा िकया, “यह एक पुरानी गुफा जैसी संरचना
ह।”
“ठीक ह, वापस अंदर जाओ।” डॉ. ीिनवासन ने बस, यही कहा।

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एल.एस.डी. को इतना मह वपूण काय करने पर उसक िह से क वह शंसा नह िमली, िजसक वह हकदार
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थी। वह वतः े रत लड़क थी और उसक िलए शंसा इतनी मह वपूण नह थी।
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उसने चुपचाप सहमित म िसर िहलाया और धीर से कहा, “ठीक ह, सर।” और वापस कमर म चली गई।
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डॉ. ीिनवासन ने हाथ म कागज िलये एक राहत क साँस ली और बूढ़ आदमी क सुरि त कमर क ओर चल
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पड़।
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योगशाला म ओ ने उ र देना जारी रखा, “एक िदन मने अपनी आँख तीन ऋिषय क साथ एक किटया म
खोल । किटया बड़ी थी और बाहर से आए अनुयाियय से भरी ई थी। मने उ ह िम ी क दीवार म बने छद से
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देखा। उनम से एक ऋिष मेर पास आए और बोले, ‘पु , तु ह कसा महसूस हो रहा ह?’ ”
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ओ ने जैसे ही आँख बंद करक घटना का वणन शु िकया, न पर त वीर चलनी शु हो ग , जहाँ एक
गोरा व लंबा, 50 वष से अिधक आयु का य मु कराता आ खड़ा था। उसने एक जोड़ी लकड़ी क खड़ाऊ
और एक सादा व सफद करता और धोती पहनी ई थी। उसक दा कलाई पर लाल व पीले रग क धागे
(कलावा) बँधे ए थे और बाएँ कधे से कमर क दा ओर एक जनेऊ जा रहा था।
“म उ ह व उनक साथ क वह पहली झलक कभी नह भूल सकता, य िक वे पहले य थे, िज ह मने
अपनी िजंदगी म देखा था।
“ ‘मुझे भूख लग रही ह। म कहाँ ?’
“ ‘यह पूछने से पहले िक तुम कहाँ हो, तु ह पूछना चािहए िक तुम कौन हो?’ ऋिष ने मु कराते ए जवाब
िदया।
“म उ ह बताना चाहता था िक म कौन था, परतु तभी मुझे अहसास आ िक म यह खुद नह जानता।” ओ ने
वीकार िकया।
“म कौन ?” मने उनसे पूछा।

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“इसीिलए तुमने यह कहा था िक तु ह अपना वा तिवक नाम नह पता, जब हमने इस बार म तुमसे पूछा था?”
अिभलाष ने टोका और उसे ओ को बीच म रोकने क िलए डॉ. शािह ता व डॉ. ब ा क घूरती नजर का सामना
करना पड़ा। अिभलाष उनक भाव पढ़ते ही समझ गया िक उसे चुप रहना ह। ओ ने अपनी बात जारी रखी और
न भी उसक अनुसार चलती रही।
जैसे ही ऋिष ने कमर म वेश िकया, बाक तीन ने ापूवक उनक आगे झुकते ए उनक चरण- पश िकए।
“आदरणीय ऋिष मेर बगल म बैठ गए और मेर िसर पर हाथ रखा।
“ ‘मुझे कछ भी याद य नह ह?’ मने पूछा।
“ ‘ य िक तु ह आव यकता नह ह। तुम 40 साल क हो, समझो िक इस संसार म यह तु हारा पहला िदन ह।
तु ह अभी िव ाम क आव यकता ह, य िक तु हार शरीर पर ब त से घाव ह—कछ तो िब कल ताजे, िजन पर
अभी टाँक लगाए गए ह। इसिलए अपने आप को क मत दो।’ ऋिष ने कहा।
“म िब तर पर लेटा आ था, िफर भी अपने हाथ व छाती पर घाव और टाँक देख सकता था।
“ ‘मुझे भूख लग रही ह,’ मने कहा।
“ ‘मुझे पता ह, पु । पर तु ह भोजन नह िदया जा सकता। तु ह अभी भूखे रहना होगा। अब तु ह सो जाना
चािहए।’ ऋिष ने मुझसे कहा।

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“दूसर ऋिषय म से एक ने कछ इशारा िकया। वे तुरत ही िम ी क पा म य लेकर आए। अपनी यास
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बुझाने क िलए मने ज दी से उसे गटक िलया। कछ देर क बाद म सो गया। जब म जागा, बाहर अँधेरा था। मने
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सोचा िक म कछ घंट क िलए सो गया था; परतु बाद म मुझे बताया गया िक म डढ़ सौ िदन, करीब चार महीन
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तक, गहरी िन ा म था। जब म सोया, वषा हो रही थी। इसका मतलब वे सही बोल रह थे; य िक जब म जागा,
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मेरी ह याँ तक ठड से जम रही थ । म अभी भी भूख से मरा जा रहा था और किटया म कछ भी नह बदला था।
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तीन ऋिष अभी भी अ न क पास बैठ जड़ी-बूिटय और कछ घोल पर काय कर रह थे।


“मने अपने आप को फश पर रखी चटाई पर लेट पाया। मेरा शरीर अभी भी घाव और टाँक से भरा आ था।
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व र ऋिष ने िफर से किटया म वेश िकया और सभी ने उ ह झुककर णाम िकया।


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“उ ह ने उनक अिभवादन को वीकारा और मेरी ओर देखा। वह मेर बराबर म आकर बैठ और मुझे एक बड़ा
पा िदया। दूसर ऋिष आए और उसम पानी भरने लगे, जब तक वह पूरा नह भर गया। मुझे नह पता था िक
उसक साथ या करना चािहए था!
“उ ह ने मुझे पा क ऊपर अपना चेहरा ले जाने का िनदश िदया और तब पहली बार मने अपना ितिबंब देखा।
मेरा चेहरा कटा-फटा और टाँक से भरा आ था। मेरा लगभग गंजा िसर यु क िनशान को दशा रहा था, िजसका
म एक िह सा रहा होऊगा। मेरी एक आँख िपघली ई थी और दूसरी क चार ओर काले िनशान थे। अपना दायाँ
कान गायब देखकर म डर गया। म एक रा स क तरह भयानक िदख रहा था।”
न पर ओ क य इतने िवचिलत करने वाले थे िक डॉ. शािह ता और एल.एस.डी. को दूसरी तरफ देखना
पड़ा। उसक चेहर पर कछ भी सामा य नह िदख रहा था। येक अंग खराब हो चुका था।
“ ‘पु , तुम कसा महसूस कर रह हो?’ ऋिष ने मुझसे पूछा।
“ ‘आप कौन ह?’ मने ित न िकया।
“ ‘म देवोदास । म ध वंत र क नाम से भी जाना जाता । तुम मुझे ‘कािशराज’ भी कह सकते हो। वे सब मुझे

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ऐसे ही बुलाते ह। अब मुझे बताओ, तुम कसा महसूस कर रह हो?’ काशीराज ने एक मु कान क साथ उ र िदया।
“ ‘मुझे भूख लग रही ह।’ मने दोहराया।
“ ‘मुझे पता ह, परतु दो पूिणमा बीत जाने पर ही तुम कछ ठोस हण कर सकते हो। तब तक तु ह भूख को
सहना सीखना होगा। तु ह कवल संत ारा तैयार औषिध का घोल लेना चािहए।’
“ ‘म कसे िजंदा र गा? म मर जाऊगा।’ मने तक िदया।
“ ‘तुम सह लोगे, जैसे तुम िपछले चार महीन से करते आ रह हो। वा तव म, यिद तुम कछ खाते हो तो तुम
िन त प से मर जाओगे। अब तु ह िव ाम करना चािहए।’ िवन ऋिष ने कहा।
“किटया को छोड़ने क िलए काशीराज दरवाजे तक गए ही थे, जब मने पूछा, ‘मुझे बताओ, म कौन ? मेरा
असली नाम या ह?’
“वे पीछ मुड़ और बोले, ‘तु हारा पूव म कोई नाम नह था। वतमान म तुम ‘मृ युंजय’ नाम से जाने जाओगे और
भिव य म तु हार कई नाम ह गे।’
“काशीराज ने तब किटया से बाहर आकर आवाज लगाई—सु ुत!”
ओ क मुँह से सु ुत का नाम सुनते ही सभी ने एक-दूसर क चेहर को आ य से देखा। सु ुत क बार म कही
गई येक बात का अथ अब समझ म आ रहा था। दस साधु, ध वंत र, िहमालय ंखला, औषिधय का ान, टीम

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क सामने येक चीज न पर थी। ve
“किटया क तीन साधु म से एक सु ुत थे। सु ुत खड़ ए और कहा, ‘जी गु देव!’ और किटया से बाहर चले
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गए।
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“कछ देर क बाद सु ुत अपने हाथ म जल पा िलये वापस आए और उसे मुझे दे िदया। घोल म से पुदीने जैसी
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गंध आ रही थी और वह हर रग का था। म िकसी भी खा पदाथ का िवरोध करने क िलए असमथ था, इसिलए म
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उसे एक ही घूँट म पी गया। उ ह ने मुझे चेहर पर मु कान िलये दयापूण से देखा। वे मुझसे बड़ थे। कछ िदन
बाद उ ह ने मुझे बताया था िक वह 49 वष क थे। ध वंत र लगभग 70 वष क आयु क थे।
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“वह जो कछ भी था, उसे पीने क बाद सु ुत ने वह मुझसे ले िलया और कहा, ‘म सु ुत । काशीराज ारा
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आयुवद का ान दान करने हतु चुने गए दस संत म से एक। हम काशीराज क पहले तीन िव ाथ ह। अभी इस
समय हम िहमालय क पवत- ंखला म िनवास कर रह ह। वह देव त ह और वह नाग ह।”
जैसे ओ बता रहा था, येक व तु ऐसे प थी, जैसे िक वह उनक आँख क ठीक सामने घिटत हो रही हो।
ध वंत र भगवान स श, परतु वृ िदखाई िदए। दूसरी ओर, सु ुत क लंबी दाढ़ी और शांत चेहरा था और देव त व
नाग िबना दाढ़ी-मूँछ क थे। सभी ने समान ाचीन पारप रक वेशभूषा धारण क थी और लकड़ी क च पल, िज ह
‘खड़ाऊ’ कहते ह, पहने ए थे।
“जब सु ुत मुझसे बात कर रह थे, देव त कले क प क एक गठरी िलये अंदर आए और उसे सु ुत को दे
िदया। मने एक श द नह कहा और कवल उनक बातचीत सुनता रहा।
“ ‘मृ युंजय, मुझे तु हार चोट क िनशान का माप इन पि य पर लेना ह, िजससे िक हम श य िचिक सा कर
सक और इ ह ठीक कर सक।’ देव त ने कहा।
“उसने माप िलया और कछ आयुविदक औषिध एवं जड़ी-बूिटय का लेप तैयार िकया और मेर घाव पर लगा
िदया। बीते समय क साथ म ठीक होता चला गया। महीन उनक साथ किटया म रहते-रहते म उनसे भलीभाँित

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प रिचत हो गया।
“जैसे-जैसे समय बीतता गया, मने उनक दैिनक िदनचया म सहायता करनी शु कर दी और उनसे चीज
सीखता गया। मुझे अपने और संसार क बार म कछ भी नह पता था, अतः उनक बीच रहते-रहते मने उनसे
सीखना शु कर िदया। उनक सहायता करते-करते मुझे आयुविदक औषिधय का ान ा होने लगा।
“सु ुत, ध वंत र क थम िव ाथ थे। िचिक सा िव ान क अ यास क अित र उ ह एक मह वपूण काय
स पा गया था। यह काय था िक उनक गु ध वंत र क िश ण का संकलन अपने अनुभव ारा वृि करक
पु तक क ंखला बनाना, जो आज क समय म जानी जाती ह...”
“सु ुत संिहता!” डॉ. ब ा ओ क पीछ से िच ाए।
ओ ने कोई यान नह िदया और आगे बढ़ा।
“सु ुत संिहता—सु ुत ारा िलखी गई श य िचिक सा पर एक मह वपूण उ क सं कत भा य ह और
आयुवद क तीन मूलभूत ंथ म से एक ह। यह दो भाग म बँटा आ ह—‘पूव तं ’ और ‘उ र तं ’। इसक 184
पाठ म 1,120 बीमा रयाँ, 64 खिनज ोत क सामि य एवं 57 पशु ोत पर आधा रत सामि य का वणन ह।”
शािह ता ने एल.एस.डी. से फसफसाते ए कहा, “प रमल ने सु ुत नाम का िज िकया था और तुमने उसक

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बार म पढ़ा था, जब अिभलाष िव ान क ऊपर अपनी पौरािणकता क े ता िस करने का यास कर रहा था।
सु ुत कौन ह?” ve
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“कहा जाता ह िक सु ुत मूलत: दि ण भारत क िचिक सक थे, जो वाराणसी म कायरत थे। वे गंगा नदी म
तैरते शव का योग ऐसे काय एवं अ यास क िलए करते थे, िजसका इससे पूव िकसी ने साहस भी नह िकया
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था; जैसे एक मृत शरीर क अंग को दूसर शरीर म जोड़ना। सव थम सु ुत नाम का उ ेख ‘बॉवर पांडिलिप’
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(चौथी व पाँचव शता दी) म ह, िजसम सु ुत का नाम िहमालय म िनवास करने वाले दस संत क सूची म से
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एक ह। ‘सु ुत संिहता’ का बाद म अरबी म अनुवाद आ, िफर अं ेजी म, िजसक अनुसार ही आधुिनक िव ान
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क ला टक सजरी बनी, िलखी और दिशत क गई। यह सब कहना अितशयो नह ह िक सु ुत िव क


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थम ला टक श य िचिक सक थे।” डॉ. ब ा ने दबी आवाज म कहा।


“और ध वंत र कौन ह, िज ह हमने न पर देखा, िजसका ओ ने उ ेख िकया था?” शािह ता ने ब त
उ सुकता से पूछा।
“काशीराज, देवोदास और गु ध वंत र सब एक ही य क नाम ह। ऐसा माना जाता ह िक ध वंत र
आयुविदक उपचार क भगवान ह।” अिभलाष ने या या क ।
“यह कहा जाता ह िक वही देवोदास ‘काशी क राजा’ क प म पुनः कट ए थे। ‘काशीराज’ क नाम से भी
उ ह जाना जाता ह।” एल.एस.डी. भी बातचीत म शािमल हो गई।
अिभलाष ने आगे बताया, “ध वंत र ने अ य देवता को वृ ता, रोग और मृ यु से भी मु कराया था। उ ह ने
अपने िहमालय आवास म दस साधु को श य िचिक सा क द ता म िनपुण िकया था। सु ुत को ध वंत र
अपना सव म उ रािधकारी मानते थे और उ ह ने उ ह आयुवद क अ य िव ा भी िसखाई थ ।
“ध वंत र को औषध िव ान क सभी िव ा का भगवान माना जाता ह। औषध िव ान पदाथ का एक बृह
कोश ह, िजसे कछ भाग म ‘ध वंत र िनघ ट’ क नाम से जाना जाता ह। इस े म पाया जाने वाला ाचीनतम
ंथ!

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“हम उ म वा य क िलए, िवशेषतया धनतेरस क अवसर पर, ध वंत र क पूजा करते ह, िजसे ध वंत र का
ज मिदवस माना जाता ह।” अिभलाष ने जानकारी दान करते ए कहा।
वहाँ बूढ़ आदमी क कमर म डॉ. ीिनवासन ने न शा एवं कागज का टकड़ा, िजस पर थान िच त था, बूढ़
आदमी को स पते ए राहत क साँस ली। उसने तेजी से प रणाम क िलए डॉ. ीिनवासन क शंसा क । डॉ.
ीिनवासन अभी तक उस सदमे से नह उबर पाए थे, जो उ ह ने िपछली बार कमर म आने पर अनुभव िकया था।
बूढ़ आदमी ने उपल ध क उ साह म पूरी तरह डबे होने क कारण डॉ. ीिनवासन क उदासी पर यान नह
िदया और इसक अलावा, उ ह िफर से आदेश िदया। डॉ. ीिनवासन क िलए नया काय यह था िक वीरभ को
न शे पर िच त थान पर भेजा जाए और वहाँ जो कछ भी िमले, उसे सीधे उनक पास लाया जाए। डॉ.
ीिनवासन ने चुपचाप बूढ़ आदमी से न शा िलया और कमर से बाहर चले गए।
कछ देर बाद, ीप क जंगल म िछपे धावा बोलने को तैयार दोन आदिमय ने देखा िक वीरभ सुिवधा क से
बाहर आ रहा था। उनक न पर सुिवधा क का 3डी िच िदख रहा था, जहाँ ओ को बंधक रखा गया था।
वीरभ िजस थान पर जा रहा था, वह ीलंका म था। रॉस ीप भारत क िब कल दि ण म होने क कारण उस
थान से यादा दूर नह था। वीरभ ने र क म से एक को एक िनजी हलीकॉ टर क यव था करने का आदेश
िदया, य िक उसे काय समा करने क िलए कम समय िदया गया था।

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ीप क जंगल म िछपे दोन आदिमय ने वीरभ क हाथ म न शे को देखा और तुरत ही प र थित को भाँप
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िलया। वह अपनी योजना बदलने क िलए मजबूर हो गए। उ ह ने िन य िकया िक उनम से एक वीरभ का पीछा
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करगा और दूसरा इमारत क घटना पर नजर रखेगा। उनम से एक ने अपने हिथयार का एक िह सा दूसर को
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िदया और वीरभ का पीछा करने क िलए चला गया। हवा म हलीकॉ टर का पीछा नीचे पानी म आधुिनक ती
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गित वाली नाव ारा िकया जा रहा था।


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जैसे ही डॉ. ीिनवासन पूछताछ क म लौट, प रमल और अिभलाष क बीच िवचार-िवमश बीच म ही क
गया। जैसे ही उ ह ने वेश िकया, उनक ित छाया न पर चमक उठी, जो सािबत करती थी िक बंद आँख
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क बावजूद ओ ने उनक उप थित को महसूस कर िलया।


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जैसे ही डॉ. ीिनवासन ने अपनी त वीर देखी, वे झुँझलाकर बोले, “म न पर य ? यहाँ या हो रहा ह?
तुम लोग को जो करने क िलए कहा गया ह, उसे गंभीरता से करक अपने-अपने घर वापस य नह जाते?” वे
गरजे।
उनका यवहार अ यािशत था, िजससे सभी दंग रह गए थे। डॉ. शािह ता और डॉ. ब ा उनक पास गए, यह
देखने क िलए िक वे ठीक तो ह! पर डॉ. ीिनवासन ने उन पर यान न देते ए उ ह तेजी से हाथ िहलाकर इशार
से वापस भेज िदया।
ओ एक जंगली अिभ य क साथ डॉ. ीिनवासन को घूर रहा था और डॉ. शािह ता को वापस अपनी तरफ
आते देखकर उसने आँख िफर बंद कर ल । शािह ता बैठ और ओ को आगे बढ़ने का संकत िदया।

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11.
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मृत संजीवनी
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“सु ुत संिहता को संकिलत करने म एक वष से भी अिधक का समय लगा था। येक िदन, िबना िकसी चूक
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क, सु ुत सवेर से ही कई घंट तक बोला करते थे और नाग िलखा करता था। देव त, उ ह िजस भी चीज क
आव यकता हो, उसम सहायता करता था और साथ ही मेरी देखभाल भी करता था; य िक मेर शरीर पर कई जगह
श य िचिक सा क गई थी, िजसे आप सब लोग आज क समय म ‘ ला टक सजरी’ क नाम से जानते ह।
इसिलए मुझे ब त अिधक देखभाल क आव यकता थी।
“मेर ठीक हो जाने क बाद, सु ुत और नाग को सुनने क अित र , म देव त क सहायता करता था।
काशीराज ायः यह सुिन त करने, िक म ठीक हो रहा और ंथ क गित जानने क िलए आते थे।
“जैसे-जैसे समय बीतता रहा, म उस थान का एक िह सा बनता गया। म शांितपूण जीवन जी रहा था। मेरी
सभी चोट क िनशान धीर-धीर गायब हो गए। कछ था, जो मुझे परशान कर रहा था। रोज रात को सु ुत काशीराज
क किटया म कछ समय क िलए जाते थे। उस समय िकसी को भी वहाँ वेश करने क अनुमित नह होती थी।
अतः एक िदन मने देव त से पूछा, ‘सु ुत गु जी क किटया म रोज रात को य जाते ह?’
“देव त ने भोलेपन से जवाब िदया, ‘म भी यही सोचता । और तो और, मने उनसे एक बार पूछा भी था, परतु
उ ह ने बताने से इनकार कर िदया था।’

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“नाग हमार क म था, अतः उसने उ र िदया, ‘वह मृत संजीवनी क बार म ान ा करने जाते ह।’
“हम दोन ने उसे देखा और तब देव त ने उससे पूछा, ‘यिद यह सच ह तो तु ह इस बार म कसे पता ह?’
“नाग ने उ र िदया, ‘म ब त बार उनक पीछ गया और मने उ ह मृत संजीवनी क ि या िलखते ए देखा
ह।’
“ ‘मृत संजीवनी या ह?’ मने पूछा।
“ ‘मृत संजीवनी मृत शरीर को जीिवत करने क एक चम कारी ि या ह।’ देव त ने कहा।
“ ‘परतु वह तो कहते ह िक कोई भी ऐसा नह कर सकता? कवल भगवान ही जीवन देने क श रखते ह।’
मने बचकाने तरीक से पूछा।
“ देव त ने जवाब िदया, ‘काशीराज वयं भगवान ह और...’
“ ‘और अगला म ,’ नाग ने टोकते ए कहा।
“ ‘अ छी बात यह ह िक सपने हमेशा सच नह होते।’ देव त ने कहा।
“ ‘ या मृत संजीवनी का योग आ ह या अभी तक सै ांितक ह?’ मने पूछा।
“ ‘तु ह या लगता ह, तुम िजंदा य हो? हमने तु ह एक वष पूव मृत देखा था। यिद मृत संजीवनी कवल एक

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िस ांत होता तो तुम ब त पहले ही राख हो चुक होते।” नाग ने कठोर वर म कहा, जो घृणा से भरा लग रहा
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था। म नाग क आसपास कभी भी सहज महसूस नह करता था; परतु यह समय तु छ बात पर िवचार करने का
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नह था। म उस समय ा ई सूचना से िहल गया था िक म एक परी ण क व तु —एक योग, कवल एक,
िजसे सफलता ा ई थी। उसी ण मने एक सामा य य क तरह महसूस करना बंद कर िदया। हीनता का
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भाव मेर अंदर पैदा हो गया।


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“ ‘म कसे मरा था?’ मने पूछा।


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“ ‘मने देव त क चेहर से जान िलया था िक उसे इन सब का खुलासा नह होने देना था। उसक चेहर पर इस
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बात का िज करने क िलए नाग क ित ोध भी िदखाई िदया; परतु तीन संत म सबसे कमजोर होने क कारण
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उसने ोध म कछ नह कहा। मेर म त क म अनिगनत न का गुबार उठा और उनक उ र देव त क पास थे।
“ ‘हम यह सब नह पता। हमने जब तु ह पहली बार देखा था, तुम मृत थे।’ देव त ने मेरी उ मीद तोड़ते ए
कहा।
“ ‘तुमने मुझे कहाँ पाया था?’
“ ‘हम नह पता, तुम कहाँ मर थे; परतु हाँ, हम पता ह िक तुम कहाँ पैदा ए थे!’ नाग ने यं या मक तरीक
से कहा।
“ ‘मुझे बताओ, शायद मुझे वह से कछ जवाब िमल जाए!’ म आशावादी था।
“ ‘ध वंत र क किटया म, वहाँ।’ उसने इशारा िकया, ‘जहाँ सु ुत ‘कसे दूसरा मृ युंजय बनाया जाए’ क
ि या िलख रह ह।’ नाग िखलिखलाकर हसा।
“पहली बार मेर अंदर कई कार क भावना ने ज म िलया, िवशेषतः नकारा मक।
“ देव त ने अपने हाथ से मेरा कधा थपथपाया और कहा, ‘हम तु हार बार म कछ नह पता; परतु सु ुत जानते
ह। शायद समय आने पर वे तु ह बताएँगे।’
“म सदैव उनक आ ा का पालन करता था। वा तव म, इस ण से पहले मेर अंदर उनक आ ा क अवहलना

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करने क इ छा कभी पैदा ही नह ई थी।
“कछ समय बाद सु ुत वापस आए और देव त एवं नाग को गहरी न द म पाया। मेर न मुझे परशान कर रह
थे। इसिलए, म जागा आ था। म अपने बार म, अपने जीवन, अपनी मृ यु और बाक सभी चीज क बार म जानना
चाहता था।
“सु ुत ने मुझे देखा और महसूस िकया िक कछ ठीक नह था। वे आए और मेर बगल म बैठ गए तथा अपनी
उगिलय से मेर बाल को सहलाया। ‘तुम अभी तक सोए य नह ?’ उ ह ने िचंता य करते ए पूछा।
“ ‘म कौन ?’ सु ुत एक ण म समझ गए िक या आ होगा, जब वे यहाँ नह थे। उ ह ने चतुराई क साथ
थित को सँभाला और कहने लगे, ‘तुम काशीराज क पु हो। उ ह ने तु ह एक उपहार क प म जीवन वापस
िदया ह। तुम मेर छोट भाई हो। अभी क िलए तु ह इतना ही जानना चािहए। कल का िदन हम सब क िलए
मह वपूण ह और तु ह सो जाना चािहए।’
“ ‘मृत संजीवनी या ह?’ मने जोर देते ए पूछा।
“जैसे ही वह नाम उनक कान म पड़ा, उ ह ने ोध भरी से नाग को देखा और आह भरते ए उ र
िदया, ‘िजस तरह से हमने तु ह बचाया, मृ युंजय। तु ह अब िजंदा रहने क िलए पोषण या जल क आव यकता
नह ह। तुम उ ह ले सकते हो, परतु हमारी तरह तु ह इनक और आव यकता नह ह। तु हारी अब या कभी भी

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आयु नह बढ़गी। इसी कारण तु ह ‘मृ युंजय’ नाम िदया गया ह। मृ यु (मौत), िवजय (जीत)—वह, िजसने
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मृ यु पर िवजय ा कर ली हो। तुम न कवल एक संपूण मनु य हो, ब क एक सामा य मनु य से कह अिधक
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उ त इस मनु यता का बु प हो।’
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“म इस रह यो ाटन से हरान था। सु ुत मेरी परशानी समझते ए आगे बोले, ‘ठीक ह, इस तरह सोचो। हम
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सभी एक समय-च म बँधे ह। समय, जो न कभी वापस जाता ह और न ठहरता ह। यह वह जहाज ह, िजसम
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येक य पथ पर आगे बढ़ता ह। समय येक जीवन क ेरक श ह। इस पृ वी पर ज म लेने वाले हर


जीवन क एक समय रखा और एक आयु ह; परतु तुम मेर भाई, इस घेर से बाहर हो गए हो। समय का देव व तु ह
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नह देख सकता। तुम उसक आँख क िलए अ य हो चुक हो। समय तु हार अंदर ठहर गया ह, मेर भाई! इस
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ण भी समय मुझे देख रहा ह और मेरी जीवन अविध से एक ण घटा रहा ह। मेर िलए समय लगातार चल रहा
ह; पर यह तु हार िलए थर ह। समय मुझे िकसी से बात करते देखता ह और सोचता ह िक म िकससे बात कर
रहा य िक उसे तुम नह िदखते, इसिलए मेरी आयु लगातार बढ़ रही ह और म एक िदन मर जाऊगा; परतु तुम
नह । यह मृत संजीवनी ह और तुम ध य हो िक तुम मृ युंजय हो।
“ ‘यिद यह पु तक सही हाथ म ह तो यह उन लोग क िलए वरदान ह, जो पहचान करने यो य ह िक कौन
पृ वी पर मानवता क सेवा करने हतु सदैव जीिवत रहने चािहए और िक ह िमटा देना चािहए! इसक िवपरीत, यह
पु तक यिद गलत हाथ म ह तो एक शाप ह। यह एक िव ासघाती अ ह। इसी कारण इसक सुर ा काशीराज
ारा क जाती ह, ‘सु ुत संिहता’ क तरह नह । इसका संकलन मेर अित र , जो उनका एकमा िव ासपा ह,
येक य क िलए गु रखा गया ह। म यह तु ह बता रहा , य िक इस गु थान क पीछ रहने का कारण
पूरा हो चुका ह। मृत संजीवनी को पूरा करने का उ े य ा कर िलया गया ह। गु देव शी ही हम अपना
सामान बाँधने और गु देव से ा ए ान से मानवता क सेवा हतु अपनी-अपनी राजधानी वापस जाने का िनदश
दगे।’

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“ ‘और मृत संजीवनी का या? म अब कहाँ जाऊगा और काशीराज आगे या करगे?’ मने उन पर न क
बौछार कर दी।
“ ‘गु जी ने मुझे अभी सूिचत नह िकया ह। जो कछ भी हमार जानने क िलए आव यक ह, वे सही समय पर
बता दगे। पर मुझे िव ास ह िक गु जी तु ह अपने पास रखगे; य िक तुम उनक रचना हो, उनक पु हो।’
“मेर मन म और भी संदेह थे, िज ह म प करना चाहता था। पर इससे पहले िक म कछ बोल पाता, सु ुत ने
आगे कहा, ‘अब बात करने क िलए ब त देर हो गई ह। हम सो जाना चािहए। कल एक मह वपूण िदन ह। िचंता
मत करो, कल हमार पास पया समय होगा। तुमने इतने महीन तक ती ा क ह, मुझे िव ास ह, तुम एक रात
और ती ा कर सकते हो। शुभ राि , मृ युंजय।’ सु ुत ने बातचीत समा कर दी और मुझे ात:काल क ती ा
करने क िलए छोड़ िदया।
“जब म सोया आ था, मने किटया म कछ हलचल सुनी। मने अपनी आँख खोल और देखा िक देव त व
नाग किटया छोड़ रह थे। सुबह हो गई थी। िफर मने काशीराज को उ ह सभी क िलए दावत तैयार करने का
आदेश देते ए सुना। थोड़ी देर बाद नाग वापस आया और अपनी चटाई क नीचे से कछ पि याँ लेकर चला
गया। म िफर से सो गया।
“जब म जागा, गु जी ने सभी को अपनी किटया क बाहर इक होने का िनदश िदया। वे बाहर आए और हम

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संबोिधत करते ए बोले, ‘संतो, ि य पु ो! मने अपना सारा ान आपको दान िकया ह। यही समय ह आप सब
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का अपने-अपने नगर वापस जाने, अपनी मानव जाित क सेवा व सुर ा करने का। आप कछ चुने ए लोग ह, जो
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सबसे पहले श य िचिक सक और र क बनगे। आप सब सव े िश ु रह ह और इसिलए मने आपक थान
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से पूव आप सबक िलए इस दावत का आयोजन करवाया ह। म एक वष क बाद अपने आगे क अनुसंधान को
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आपसे साझा करने क िलए आप सबसे िफर से िमलना चा गा।’


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“काशीराज ने सात संत को देव त व नाग ारा तैयार भोजन क िलए बैठाया और उ ह भोजन परोसने का
आदेश िदया। उ ह ने िफर इशार से सु ुत और मुझे अपनी किटया म उनक पीछ आने क िलए कहा। हम उनक
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किटया म उनक पीछ गए।


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“ ‘सु ुत, तुम मेर आ ाकारी एवं अ यंत ि य पु हो। बाक सबक िलए काय समा हो गया ह, परतु तु हार
िलए यह सब शु आ ह।’ काशीराज ने कहा।
“ ‘गु जी, मेरा थान आपक चरण म ह। यह मेर िलए स मान क बात होगी िक म आपक िनदश का पालन
क । कपया बताएँ।’
“ ‘मने तु ह यहाँ कने और मेरी सेवा करने क िलए तैयार नह िकया ह। तु हारा वा तिवक काय वहाँ बाहर
लोग क सेवा और सुर ा करना ह। तु हारा नाम औषध िव ान क े म विणम अ र म िलखा जाएगा।
ज रतमंद तक प चो और अपने कत य का पालन करो। परतु मेर पास तु ह देने क िलए कछ और िज मेदा रयाँ
भी ह।’ गु देव ने एक सौ य मु कान क साथ कहा।
“ ‘गु जी, मुझे बताएँ। म पूरी ा और िव ास क साथ इसे क गा।’
“ ‘मृ युंजय को अपने साथ लेकर जाओ। मृ युंजय को संसार क तौर-तरीक सीखने चािहए। तुम इसे यह
िसखाने क िलए सबसे उपयु हो। यहाँ िफर से वापस आने से पहले इसे पूर एक वष क िलए अपने साथ रखो
और इसक देखभाल अपने पु क तरह करो।’

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“सु ुत क आँख आँसु से भर गई थ । अपनी भावना को िनयंि त करते ए उ ह ने कहा, ‘गु जी, म यही
चाहता था, परतु आपसे कह न सका। आप मेर िबना कह ही हमेशा सब कछ जान जाते ह। म आज से ही इसक
पूरी िज मेदारी लेता ।’
“ ‘इसक अित र सु ुत, मृत संजीवनी यहाँ सुरि त नह होगी। यह बात शी फल जाएगी िक मृत संजीवनी
िलखी गई ह और दु श याँ इसे पाने क िलए आ जाएँगी।’ काशीराज ने िचंता य करते ए कहा।
“ ‘गु जी, यह संसार क िलए खजाना ह और आपक िनरतर अनुसंधान एवं अथक यास का प रणाम ह। म
इसे अपने साथ कसे ले जा सकता ? यह मेरी नह ह।’ सु ुत ने उि नता से कहा।
“काशीराज ने शांित से कहा, ‘और न ही मृ युंजय, मेर पु । पर तुम इन दोन अमू य, भगवान क देन क
अिभर क हो। िकसी अनैितक य क अपे ा यह तु हार हाथ म सुरि त ह।’
“म उ ह सुनते ए वह खड़ा था। ‘जैसी आपक आ ा, गु जी। आप मुझसे या चाहते ह?’ सु ुत आिखरकार
मान गए।
“ ‘इस ंथ को सुरि त रखने क शपथ लो, जब तक तुम इसे मुझे नह स प देते; और मृ युंजय इसम तु हारी
मदद करगा।’ काशीराज ने पु क । सु ुत ने भ य ंथ को अपने जीवन से यादा सुरि त रखने का वादा
िकया।

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“मने काशीराज को मृत संजीवनी सु ुत को देते ए देखा और कहते ए सुना, ‘अब तुम जा सकते हो और
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अपने सभी भाइय क साथ भोजन का आनंद लो।’
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“ ‘गु जी, जाने से पहले म एक िनवेदन करना चाहता ।’ सु ुत ने िवन ता से कहा।
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“ ‘हाँ!’
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“ ‘गु जी, मृ युंजय ब त याकल ह। वह अपना अतीत जानना चाहता ह। यही एक चीज ह, िजसम म उसक
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सहायता नह कर सकता। कपया इससे उबरने म उसक सहायता कर, अ यथा वह वो य नह बन पाएगा, जो
आप उसे बनाना चाहते ह।’
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“काशीराज मु कराए और मेरी ओर देखा। उ ह ने मुझे अपने िनकट बैठने क िलए कहा। मने अनुसरण िकया।
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‘तुम या जानना चाहते हो?’ उ ह ने िवन ता से पूछा।


“ ‘म कौन ? म कहाँ से आया ? म कसे मरा और आपने मुझे कसे ढढ़ा?’
“इससे पहले िक काशीराज उ र दे पाते, उ ह नाग ने टोका। उसने एक त तरी म रखे तीन खीर क कटोर क
साथ किटया म वेश िकया। वह बोला, ‘ मा कर, गु जी। यहाँ आज मेरा अंितम िदन ह और मने िबना आ ा
वेश करने क गलती क ह। मने बाहर ती ा क , परतु ब त देर हो रही थी। देव त सिहत सभी ने भोजन कर
िलया ह। अतः मने सोचा, इसे यहाँ आप सबक िलए ले आऊ, अ यथा यह अपना ताजा वाद खो देगी।’
“उसने हम सबको एक-एक कटोरा िदया। म चाहता था िक वह ज दी चला जाए, इसिलए मने तेजी से अपना
कटोरा ले िलया; य िक मुझे अपने उ र क ती ा थी। जैसे ही म पहला घूँट लेने वाला था, काशीराज ने मुझे
रोकते ए कहा, ‘नह मृ युंजय! तुमने लंबे समय से कछ नह खाया ह; ठीक 317 िदन, ि य। तु हार भोजन करने
से पहले 9 िदन और गुजरने चािहए।’
“मने अजीब सा महसूस करते ए कटोरा वापस त तरी पर रख िदया। काशीराज ने अपने कटोर से घूँट भरा।
चखते ही उ ह ने अजीब चेहरा बनाया और तुरत ही कछ समझ गए तथा सु ुत को उसे हण न करने क चेतावनी

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दी। खीर म िवषैली जड़ी-बूटी िमलाई गई थी। परतु उनक कछ करने से पहले ही नाग ने सु ुत पर धावा बोल
िदया। कवल सु ुत ही एक खतरा थे, जो ितरोध कर सकते थे। ध वंत र लड़ने क िलए ब त वृ थे और म
अपने जीवन म पहली बार इस तरह क िकसी घटना को देख रहा था।
“एक िमनट बाद मने देखा िक सु ुत क हाथ से खून बह रहा था। उन पर चाक से हमला िकया गया था,
िजसका वे अपने हाथ से बचाव कर रह थे। ध वंत र ने सु ुत क सहायता करने और नाग को रोकने का यास
िकया; परतु सब यथ था। सु ुत को असहाय और प त छोड़कर नाग ने ध वंत र पर धावा बोल िदया। सु ुत
िबना एक ण गँवाए मृत संजीवनी ंथ क तरफ भागे और उसे एक सफद कपड़ क टकड़ म लपेटकर मुझे स प
िदया। सफद कपड़ ने तब तक सु ुत का खून सोख िलया था। म वहाँ होने वाली येक घटना से पहले ही िहल
चुका था और इस बात ने उसे और बढ़ा िदया था। सु ुत ने मुझे यथाथ म लाने क िलए बुरी तरह िझंझोड़ा और मेरा
आतंिकत चेहरा अपने हाथ म लेकर फसफसाए—
“ ‘मृ युंजय’ भागो! िजतना तेज तुम भाग सकते हो और दि ण क तरफ िजतनी दूर जा सकते हो। पहाड़ी क
नीचे एक िदन मेरी ती ा करना। यिद म न आऊ तो आगे बढ़ जाना। इस पु तक को अपने जीवन से यादा
सुरि त रखना। कोई भी यह न जान पाए िक यह तु हार पास ह। अब जाओ मेर भाई, जाओ।’ सु ुत ने तेजी से
हाँफते ए कहा।

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“िफर वे ध वंत र को छड़ाने क िलए नाग पर टट पड़। यह आिखरी चीज थी, जो मने देखी। िफर म एक ब े
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क तरह भागा—अकला और डरा आ। म रा ते म थोड़ी देर का और मुझे लगभग 24 घंट लगे अपने गंत य
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तक प चने म। मने तब पूर एक िदन तक ती ा क , जैसे सु ुत ने कहा था। वे नह आए। िनराश होने क बजाय
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मने क पना करनी शु कर दी िक काशीराज और सु ुत उस भू-भाग से उतर रह ह और मुझ तक प चने म


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समय ले रह ह।
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“इस क पना म मने दूसर िदन, एक और िदन, िफर कछ और िदन तक ती ा क ; परतु वे कभी नह आए।
जब मने काशीराज क किटया को छोड़ा था, मने अ य सभी साधु को खुले आकाश क नीचे सोते ए देखा था।
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म लगभग एक वष तक िहमालय क पवत- ंखला म भटकता रहा। मेरी थित िबना िकसी देखभाल क हर
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बीतते िदन क साथ िबगड़ रही थी। मने जानवर को देखकर निदय से पानी पीना और जंगल से पि याँ खाना सीख
िलया था। म अ व थ हो गया था, भूख से और अनेक रोग से िसत था। यहाँ तक िक म गलती से जहरीली
औषिधयाँ भी खा गया था और जंगली जंतु ारा आ मण कर उनक भोजन क िलए इ तेमाल भी आ; परतु म
कभी नह मरा।
“मने जानवर क ज म और उनक मृ यु को देखकर जीवन-च को समझा। म भटकता रहा और एक िदन
पहाड़ से नीचे मने एक गाँव देखा। नाग का पु तक क िलए वह िहसा मक काय देखकर म मानव जाित से
भयभीत था, इसिलए मने उसक और पास न जाने का िवचार िकया। म जंगल एवं पहाड़ म वापस चला गया और
खुद को वह ले गया, जहाँ से मने शु िकया था।
“अब एक वष बीत गया था और म जैसे ही पहाड़ी क चोटी पर प चा, मने उस जगह पर चार तरफ ककाल
िबखर देख।े तब मुझे पता लगा िक िजस िदन म भागा था, उस िदन संत सो नह रह थे, ब क काफ समय पहले
ही मर चुक थे। म इतना न कभी पहले और न कभी उसक बाद रोया। म उन लोग क िलए रोता रहा, िजनको म
जानता था, जो मेर दो त थे, मेरा प रवार और मेरा सम त संसार थे। म वयं को अनाथ जैसा महसूस कर रहा था

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और एक अवशेष से दूसर तक भागता रहा; परतु म पहचान न सका िक कौन देव त, कौन ध वंत र और कौन
सु ुत ह! म सोचता था िक वे िकसी तरह िजंदा बच गए ह गे। मेर दय ने म त क को सां वना दी।
“म आकाश क ओर मुँह कर, घुटन क बल बैठकर यह सोचता रहा िक मेर रचनाकार कहाँ ह और उनक
ठीक होने क ाथना करता रहा।”

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12.
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थम कोप
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वीरभ िनदशानुसार ीलंका प च गया था। एक आधुिनक मुखौटा यु य ारा उसक गितिविधय का
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बारीक से पीछा िकया जा रहा था। वीरभ को वांिछत थान पर ले जाने क िलए एक ीलंकाई गाइड को काफ
धन िदया गया था। गाइड उसक िलए आव यकता पड़ने पर गोला-बा द क यव था करने क िलए भी सहमत
था। यह या ा कल बारह लोग से ारभ ई थी—एक को छोड़कर, जो उन सब का पीछा कर रहा था। उस
आदमी ने अपने साथी को फोन िकया, जो काय पूरा करने क िलए, सही समय क ती ा करते ए, ीप क
जंगल म क गया था।
ीप क जंगल म वह हमला करने क िलए पूरी तरह से तैयार था। उसने फोन उठाया, थोड़ा िसर िहलाया और
कहा, “हाँ।” िफर फोन काट िदया। िन त समय क ती ा करते ए उसने सूय क ओर देखा और िफर अपनी
घड़ी क ओर।
पूछताछ क म ओ अब भी बोल रहा था, डॉ. ीिनवासन का फोन बजा। सभी घंटी क आवाज से परशान हो
गए। कॉलर आई.डी. पर फोन करने वाले का नाम िदखाई दे रहा था, िजसे अनदेखा नह िकया जा सकता था।
अतः उ ह ने सब को जारी रखने का संकत िदया और फोन को उठाते ए कमर से बाहर िनकल गए।
“हाँ, वीरभ !”

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“सर, हम उस थान से लगभग 1 मील दूर ह और गाड़ी इससे आगे नह जा सकती। अब हम पैदल ह।”
वीरभ क आवाज फोन से गूँजी।
“वीरभ , तुम मेरी जानकारी म सबसे बहादुर और सबसे अ छ यो ा हो। तु ह वहाँ जो कछ भी िमले, मुझे वह
सही-सलामत लाकर दो। यह िजंदगी और मौत का सवाल ह। मुझे िनराश मत करना।”
“सर, म अपनी पूरी कोिशश क गा; परतु यह सुिवधाजनक होगा, यिद म जान सक िक हम या ढढ़ रह ह?”
थोड़ी देर चुप रहने क बाद डॉ. ीिनवासन ने जवाब िदया, “हम यह नह पता। शुभकामनाएँ!” और फोन रख
िदया।
इसक बाद वे बूढ़ आदमी क िनवास क क ओर मुड़ गए।
बूढ़ा आदमी अपने सामा य व प म बीमार और ोिधत बैठा आ था। वह न क ओर मुँह कर ओ को
और टीम को देख रहा था। डॉ. ीिनवासन ने उसे अभी-अभी फोन पर ई बातचीत क बार म बताया। बूढ़ आदमी
को वीरभ क गित क बार म जानने म जरा भी िच नह थी। वह कवल प रणाम सुनना चाहता था। उसक िलए
प रणाम दूसरी पु तक थी। इसिलए उसने सीधा सही सवाल पूछा, “ या उसे वह पु तक िमल गई?”
“नह , सर।” डॉ. ीिनवासन ने कहा।
“िफर तुम यहाँ िकसिलए आए हो?” बूढ़ आदमी ने पूछा।

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डॉ. ीिनवासन क पास जवाब नह था, अतः वे चुप खड़ रह।
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उधर पूछताछ क म ओ ने बताया—“म अपने िवचार म तथा अपने लोग को खोने क शोक म डबा आ
no
था और तब मने अपने आप को चार ओर कछ परछाइय से िघरा पाया। मने अपने आप को अपने पैर पर खड़ा
ks

िकया और मुझे अहसास आ िक जब म यहाँ आया तो कछ आदमी यहाँ िछपे ए थे और अब वे मेर पास आ रह
oo

थे। म यह जानता था िक वे परछाइयाँ मेरी ती ा नह कर रही थ ।


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डॉ. शािह ता ने एक बार क िलए उसे बीच म रोकते ए पूछा, “पवत म वे तु ह नह तो िफर िकसे ढढ़ रह
थे?”
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रॉस क जंगल म आदमी को अपने साथी से दूसरी बार फोन आया, िजसने ीलंका क गुफा क गितिविधय
@

क बार म सूिचत िकया।


वीरभ धातु क एक संदूक क साथ गुफा से बाहर आया। उसने डॉ. ीिनवासन से संपक िकया और संदूक क
बार म उ ह बताया। डॉ. ीिनवासन ने, दूसरी तरफ से, उसे संदूक खोलने का आदेश िदया। वीरभ अब उसे
खोलने का यास कर रहा था। दोन प इस बात क याशा म चुप हो गए िक इसक अंदर या ह?
“ब से क अंदर या ह?” ीप क जंगल म से आदमी फोन पर फसफसाया। वह आदमी और डॉ. ीिनवासन
ती ा कर रह थे। उसक साथी ने वही जवाब िदया, जो ओ शा ी ने डॉ. शािह ता को और वीरभ ने डॉ.
ीिनवासन को जवाब िदया।
“पु तक।”
वीरभ ने ‘मृत संजीवनी’ क दूसर भाग को अपने हाथ म िलया। डॉ. ीिनवासन ने पु तक क बार म सुनते ही
बूढ़ आदमी क ओर एक ण क िलए देखा। वह पहले ही पु तक क बार म जान गया था, जब उसने न शा देखा
था। बूढ़ा आदमी अपने घाव क िनशान क बराबर कले क प को काटने म य त था।
जब डॉ. ीिनवासन ने वीरभ क खोज क बार म उसे िफर से बताया।

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“पु तक!” डॉ. ीिनवासन ने ह ठ िहलाते ए कहा। बूढ़ आदमी का यान भंग हो गया और उसने उनक ओर
उ साह भरी मु कराहट से देखा।
जैसे ही वह िच ाया, उसम मानिसक असंतुलन क ल ण िदखे—“पु तक मेर पास लाओ। अभी, ज दी करो।
उसे िकतनी देर लगेगी? उससे कहो, िकसी भी चीज क िलए न क। सीधे पु तक मेर पास लाओ!” बूढ़ा आदमी
बार-बार यही बात दोहराता रहा।
डॉ. ीिनवासन उसक अ वाभािवक आचरण से चिकत एवं बुरी तरह डर गए थे; परतु उ ह ने पालन िकया और
जैसा बूढ़ आदमी ने कहा, वैसा उ ह ने वीरभ को आदेश िदया। बूढ़ य ने वयं से बड़बड़ाना शु कर िदया,
जैसे वह िवि हो। फोन कट गया।
जैसे ही ीप म आदमी ने पु तक क बार म सुना, वह तनाव म आ गया और उसक आवाज भारी हो गई। उसक
माथे क लक र गहरी हो ग । उसने अपनी मु ी कसकर बंद कर ली और लंबी साँस ली, जैसे िक अपने आपको
िकसी चीज क िलए तैयार कर रहा हो तथा गंभीर आवाज म फोन पर कहा, “पु तक को अपने क जे म लेने क
िलए जो हो सकता ह, करो। ज रत पड़ने पर िकसी को मारने म संकोच मत करना। ज दी वापस आओ। हमार
पास समय कम ह।”
डॉ. ीिनवासन का फोन िफर से बजा। फोन वीरभ का था।

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“हाँ, वीर!” डॉ. ीिनवासन ने उ र िदया। ve
“सर, हम कछ औजार और उपकरण भी यहाँ िमले ह। हमार पास एक बड़ा धनुष, कछ तीर व तरकश, एक
no
मुकट, एक सोने क कमरधानी, कछ अंिकत धा वक शा , आभूषण से भरा एक ब सा और सोने क कछ
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िस क ह। हम योगशाला म योग िकए जाने वाले कछ उपकरण और औजार भी िमले ह।”


oo

डॉ. ीिनवासन ने सुनने क बाद कहा, “तुम िजतना ला सकते हो, ले आओ; पर वीर, तु हार हाथ म जो पु तक
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ह, वह ाथिमकता ह।”
पूछताछ क म डॉ. शािह ता अपने काय म लगी ई थ ।
Vi

“इसक बाद या आ?” उ ह ने पूछा।


@

“एक वष बीत गया था। म अकला भटक रहा था। मुझे नह पता था िक भोजन या होता ह! म पवत म
भटकता रहा और वही मेरा घर बन गया था। एक वष क बाद म उस थान पर वापस आया, जहाँ मने ज म िलया
था। म साधु क, अपने प रवार क बीच था। बस, अब वे मुझसे बात नह कर रह थे। मृत लोग बात नह करते।
वह जैसे-जैसे बोलता गया, उसक याद क छोट-छोट िह से प प से लोग क अवशेष को दशाते ए,
जैसे ओ को याद थे और ओ क उस समय क दशा को न पर िदखा रह थे।
“चार ओर से परछाइयाँ अब मेर िनकट आ गई थ और चेहर अिधक साफ िदखाई दे रह थे। मेर पास अब जीने
क इ छा नह बची थी। सभी आदिमय क पास हिथयार थे और म यह देखने क िलए तैयार था िक मृ यु मेर िलए
या लेकर आएगी! इसिलए मने उनक तरफ कोई यान नह िदया और वही िकया, जो म चाहता था। म िदल
खोलकर रोया, जैसे कोई अनाथ बालक अपने माता-िपता क खो जाने पर रोता ह। म जानता था, मेर पास कछ ही
िदन बचे ह और वे आदमी मुझे कह दूर ले जाकर मार दगे। पूर वष भर म अकला था। मने अपने कपड़ नह
बदले थे। मुझे नह पता था िक दाढ़ी कसे साफ क जाती ह।”
“मेर पैर फट ए थे और मेर बाल मेरा चेहरा िछपाने िजतने लंबे हो गए थे। उस वेश म मुझे पवत म भटकता

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आ एक िवि य समझा जा सकता था। म मरने क िलए तैयार था, परतु उ ह मुझे मारना नह था। उ ह ने
मेर िसर पर तेज हार िकया। मेर चार ओर क दुिनया घूम गई और म बेहोश हो गया। कछ घंट क बाद जब मुझे
होश आया, मुझे अहसास आ िक मुझे जंजीर ारा कस से बाँधकर बंधक बनाकर रखा गया ह और चार तरफ
से मुझ पर िनशाना साधे, तीर व धनुष से यु सैिनक ने मुझे घेरा आ था।
“जो आदमी मेर सामने था, उनम से वह ऐसा तीत हो रहा था, िजसक एक आदेश पर मुझे तीर से भेद िदया
जाएगा।
“ ‘तु ह दूसरा अवसर नह िदया जाएगा। म जो पूछ, उसका जवाब दो। या तुम समझ गए?’ मुिखया ने दबी
आवाज म कहा। मने िसर िहलाया।
“ ‘तुम कौन हो? वे ककाल िकसक ह? तुम वहाँ या कर रह थे?’
“मने उसे अपना नाम बताया, और कछ नह । म नह जानता था िक मुझे िकतना बताना चािहए और िकतना
छपाना चािहए! इसिलए सब कछ िछपाने का सोचा और कहा, ‘मुझे नह पता, म वहाँ कसे प चा या वे लोग कौन
थे!’
“अपने म यवहार कशलता एवं आव यक आचरण क कमी क कारण मने एक पागल य क समान
यवहार िकया। वे मुझ पर िकसी भी कार का शक नह कर सक, य िक मेर पास कछ नह था। मने पु तक

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िछपा दी थ । थोड़ िदन म ही वे मान गए िक म उन पर एक बोझ से यादा कछ नह , िजसे िबना िकसी उपयोग
ve
क िदन म दो बार िखलाना पड़ता ह। अतः वे जान गए थे िक उनक िलए यही सबसे अ छा होगा िक या तो मुझे
no
मार द या मु कर द।”
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पूछताछ क म उप थत पूरी टीम यह सब एक चलिच क तरह न पर देख रही थी और मान चुक थी


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िक ओ का येक श द उसक जीवन क समान ही स ा ह।


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“इसिलए, एक िदन सेनापित ने अपने एक आदमी को आदेश िदया िक मुझे तुतनीय बनाया जाए, तािक वह
मुझे उनक राजा क पास ले जा सक। मेरी दाढ़ी बनाई गई और मुझे अ छ से नहलाया गया। इसक बाद मुझे एक
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जोड़ी नए व पहनने क िलए िदए गए। यह देखते ए िक मेर रहने म कोई खतरा नह ह, राजा ने मुझे मु करने
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का फसला सुनाया। जैसे ही म तैयार आ और दपण म खुद को देखा, मने जीवन म पहली बार मृ युंजय को
पहचाना। लेिकन मेरी स ता गायब हो गई, जैसे ही मुझे यह अहसास आ िक म एक पूण वय क आदमी , जो
िकसी काम का नह ह। म अंदर से खोखला था—िबना ेम क, घृणा क, शांित क, हलचल क, कोलाहल क;
बस, कवल स ाटा! मेर होने या न होने से िकसी को कोई फक नह । मेर आसपास बूढ़ और जवान दोन तरह क
स िच चेहर वाले य थे, जो भगवान क ारा एक-दूसर से िकसी-न-िकसी प म बँधे ए थे। अ छ और
बुर लोग से भर संसार म अकले रहने से बुरा या हो सकता था? मेरी आँख से आँसू बहने लगे। म अपने जीवन
का अंत नह कर सकता था, य िक म एक वचन से बँधा आ था, जो सु ुत ने मुझसे िलया था िक म पु तक क
सुर ा अपने जीवन से भी अिधक क गा। अ यथा मेर जीिवत रहने का कोई कारण नह था। वह वचन और वे
पु तक मेर शरीर से जीवन को अंदर-बाहर ख चती रह । म गु रहते ए धीर-धीर संसार क तौर-तरीक सीख रहा
था। कई बार म ऐसे रोग से त रहा, िजनका कोई उपचार नह था, परतु म कभी नह मरा।” ओ जैसे-जैसे
खुलासा करता रहा, न पर उसक मरती ई और नाजुक हालत िदखती रही।
“एक समय था, जब म एक महा पु ष क साथ, भोजन एवं आ य क बदले म, सेवक क तरह रह रहा था।

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वह कभी-कभी मुझे अपने पुराने व भी पहनने क िलए िदया करते थे। मेरा काय उनक ब क देखभाल
करना, उनक साथ खेलना और वह सब कछ करना, जो वे मुझसे करने क िलए कहते थे। इसक साथ-साथ म घर
क अ य घरलू काय, जैसे कपड़ क धुलाई, रोजाना क काम आिद करता था। ब क साथ खेलते-खेलते मने भी
ारिभक पढ़ाई-िलखाई क अलावा ब त सारी छोटी-छोटी चीज, जो वे करते थे, सीख ली थ ।
“जैसे-जैसे समय गुजरता गया, म उनक प रवार का सद य बन गया था। मेर साथ बाक सेवक से अ छा
यवहार िकया जाता था; परतु यह यादा िदन तक नह चला।”
ओ थोड़ी देर क िलए चुप रहा। सभी ने उसक ओर आँख म एक ही न िलये देखा िक य ?
“ या गलती ई?” डॉ. शािह ता ने पूछा।
“मेरी आयु नह बढ़ रही थी। इस बात ने मुझे परशान कर िदया िक मेर अलावा सभी समय क साथ बड़ हो रह
थे।
कमर म लोग ने ओ क िदमाग म गढ़ी इस बात को साफ देखा। ब को बड़ होते देखा जा सकता था,
प रवार क मुिखया भी कमजोर हो गए थे; परतु ओ म जरा-सा भी बदलाव नह िदखा।
दूसरी तरफ वीरभ अपने हाथ म पु तक को देख रहा था। वह बुरी तरह से खराब हो चुक थी। वीरभ को
यह समझ नह आया िक यह िकसी क िलए इतनी मह वपूण कसे हो सकती ह? वह अभी इस बात पर सोच-

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िवचार कर ही रहा था िक उसने बंदूक से गोिलयाँ चलने क आवाज सुनी और वह सतक हो गया। वह पीछ मुड़ा
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और इससे पहले िक कोई यह जान पाता िक गोिलयाँ कहाँ से चल रही थ , उसक कछ लोग मर चुक थे। वीरभ
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ने अपने चार आदिमय को गोली चलने वाली िदशा क ओर भागने और गोली चलाने वाले को िजंदा पकड़ने का
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आदेश िदया। बाक बचे ए लोग वीरभ क साथ पु तक को लेकर िवपरीत िदशा म अपने वाहन क ओर भागे।
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‘यह पु तक मह वपूण ह।’ वीरभ ने सोचा। जो लोग गोिलयाँ चलने वाली िदशा म भागे थे, उ ह नह पता था िक
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उनका सामना िकससे होने वाला ह। उ ह अपनी मृ यु से कछ ण पहले ही स य का पता चला। एक ण म उ ह


यह अहसास आ िक वे अपने ल य को परािजत नह कर सकते थे और अगले ही ण उनक शरीर से ाण
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िनकल गए। उनक ितिनिध क लड़ने क मता ऐसी थी िक कोई उसे परािजत नह कर सकता था। उसने यु
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करने क ाचीनतम कला का योग िकया, जो कला अब िवलु हो चुक थी। संभवतया चार आदिमय क मृ यु
पूरी तरह से यथ सािबत नह ई थी। इससे वीरभ को पु तक क साथ बच िनकलने का अवसर िमल गया था।
आदमी का उ े य सफल नह आ, परतु समा भी नह आ था। जैसे ही उसने उन आदिमय को मारा, वह
जान गया िक इसे कसे सुधारा जा सकता ह।
ीप क जंगल म आदमी को ीलंका से अपने साथी का फोन आया। उसने शी ता से सवाल िकया, “काम हो
गया?”
“नह , वह पु तक लेकर भाग गया ह। तैयार रहो।”
“तु ह िकतना समय लगेगा?”
“आधा घंटा, शायद कम। म उनक िब कल पीछ ।”
“ठीक ह, म उनसे िभड़ने क िलए तैयार । िकतने आदमी ह?”
“तीन लोग सुिवधा क क ओर जा रह ह और नौ मर चुक ह।”
डॉ. ीिनवासन पूछताछ क क ओर बीच रा ते म ही थे, जब उनका फोन बजा। फोन वीरभ का था।

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ज दबाजी म मुड़कर वापस क क ओर जाते ए उ ह ने फोन उठाया और कहा, “हाँ, वीर।” वे हाँफ रह थे।
दूसरी तरफ, घटना क इस तरह घटने से वीरभ भी हाँफ रहा था। वह खून से लथपथ था। उसने िकसी तरह
धे ए गले क साथ जवाब िदया, “सर, िकसी ने हम पर हमला कर िदया ह। हमार कई आदमी मार गए ह। सर,
यहाँ कछ ब त गंभीर चल रहा ह, जो हम नह जानते।”
डॉ. ीिनवासन भी इस रह यो ाटन से भयभीत थे। उ ह ने कभी कोई ह या नह देखी थी और उ ह इस तरह
क थित को सँभालने का कोई अनुभव नह था। वे दुगुनी तेजी से बूढ़ आदमी क ओर बढ़। उ ह ने वीरभ को
हो ड पर रखा। जैसे ही वे बूढ़ आदमी क पास प चे, उ ह ने देखा िक वह बुरी तरह पसीने से लथपथ था।
वे बड़बड़ाए, “हमार आदमी वहाँ ीलंका म मार िदए गए ह। वीरभ फोन पर ह। यहाँ या हो रहा ह? उस
पु तक म ऐसा या ह, जो लोग उसक िलए मर रह ह और ऐसा कौन हो सकता ह, जो हमारा दु मन हो? आप
हमसे या करवा रह ह? जवाब दीिजए।” डॉ. ीिनवासन गरजते ए बोले।
बूढ़ा आदमी खड़ा आ, डॉ. ीिनवासन क पास आया और उनसे फोन छीन िलया।
“पु तक कहाँ ह?” उसने पूछा।
“पु तक मेर पास ह।”
“तु ह यहाँ तक प चने म िकतना समय लगेगा?”

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“30 िमनट क आसपास। तुम कौन हो? डॉ. ीिनवासन कहाँ ह?”
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बूढ़ आदमी ने िबना िकसी न क या परवाह िकए फोन काट िदया। उसे यह परवाह नह थी िक कई लोग ने
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अपनी जान खो दी ह।
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डॉ. ीिनवासन बूढ़ आदमी क लड़खड़ाती टाँग, जो उससे सँभल नह पा रही थी, को देखते ए वह खड़ रह।
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उ ह ने वहाँ खड़, पागल -सा यवहार करते, दयाहीन ाणी को िसर से पैर तक अ छ से देखा, तब उ ह अहसास
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आ िक वह हर प र थित म, चाह अ छी हो या बुरी, िकसक साथ खड़ थे। बूढ़ा आदमी अब अपनी कस पर


कछ चीज इक ा करते ए बैठ गया।
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डॉ. ीिनवासन अपने आप को सँभालते ए छोट-छोट कदम क साथ आदमी क तरफ बढ़। उ ह ने उसे अपने
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सामने लाने क िलए उसक कस क ह थ को जकड़कर अचानक से कस को घुमाया। उ ह ने गु से से पूछा,


“आपने हम कहाँ फसाया ह? अगर वहाँ आदमी मार गए ह तो यहाँ भी मार जा सकते ह। जब तक मुझे मेरा
जवाब नह िमल जाता, म पूछताछ और बाक सभी काम अभी-क-अभी रोक रहा ।”
डॉ. ीिनवासन क आँख गु से से लाल हो गई थ । बूढ़ा आदमी अचानक खड़ा आ और डॉ. ीिनवासन क
बाँह पकड़कर उ ह एक झटक क साथ लगभग आठ फ ट पीछ धकल िदया। डॉ. ीिनवासन दीवार से जा टकराए
और दद से कराह उठ। बूढ़ा आदमी अपनी उ क िहसाब से ब त मजबूत और फत ला था। डॉ. ीिनवासन ने
कभी क पना भी नह क थी िक इस नाजुक-से िदखने वाले ाणी ारा उन पर शारी रक हमला हो सकता ह। बूढ़ा
आदमी पहली बार अपनी पीठ को सीधा करते ए डॉ. ीिनवासन क ठीक सामने खड़ा आ और उ ह घूरने लगा।
उसक आँख ब त बड़ी थ और उसने एक बार भी पलक नह झपकाई। उसक आँख क पुतिलयाँ बड़ी और
छोटी हो रही थ । डॉ. ीिनवासन डर से उसे एकटक देख रह थे और बूढ़ा आदमी उ ह गु से से। तब बूढ़ा आदमी
थर होकर न ता से बोला—
“यह तु हारी टीम नह ह। यह मेरी ह। मने उन सबको पैसे िदए ह और तु ह भी। मेर जीवन म कई नौकर रह ह।

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उनम से िज ह ने कभी ‘ या’ और ‘ य ’ नह पूछा, कवल वही सामा य मौत मर ह। तुम समझे?” उसने चेतावनी
दी।
िबना िकसी जवाब क ती ा िकए उसने पूछताछ क और उसम लोग को िदखाते ए न क ओर इशारा
िकया।
“उनक तरफ देखो। उनक चेहर क शांित को देखो। इस शांित क पीछ का कारण यह ह िक जो उ ह नह
जानना चािहए, वह उ ह नह पता। इसिलए वे बस, वही कर रह ह, जो उ ह बताया गया ह। उ ह आशा ह िक वे
वापस घर जाकर अपने प रवार से िमलगे, य िक उ ह तुम पर िव ास ह। अब तु हार पास दो िवक प ह—या तो
वे सब लोग अपने अनु रत न क साथ वापस घर चले जाएँ या तुम उनक िजंदिगय क बदले म मुझसे जवाब
जान लो!”
डॉ. ीिनवासन ने न पर उन सबक चेहर को देखा। उ ह अहसास आ िक उनम से कछ तो उनक ब से
भी छोट ह। उनक आँख आँसु से भर ग । बूढ़ आदमी को अपना जवाब िमल गया था। वह वापस अपनी कस
क ओर गया और थोड़ी दूर ककर आधा मुड़ते ए बोला, “अब और कोई न नह ।”
डॉ. ीिनवासन अवा खड़ रह। वे उसी ण क से बाहर चले गए और गिलयार क िकनार से आगे मुड़कर
उ ह ने अपने आँसू प छ तथा लंबी साँस ल । वे वहाँ कछ देर अपने आप को शांत करते ए खड़ रह। अचानक

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उ ह कछ याद आया और वे पूछताछ क क ओर भागे। ve
वहाँ ओ बोल रहा था—
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“मेर िवषय म बात चार ओर फल गई थ । शी ही उन बात ने मुझे शहर म चचा का िवषय बना िदया था।
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लोग मुझे ऐसे देखते थे, जैसे म िकसी दूसरी दुिनया से ! म शाम क चाय क बैठक म चचा का िवषय था। तब
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एक िदन कछ सैिनक मेर मािलक क घर आए और अगली सुबह मुझे अदालत म पेश करने का आदेश िदया। म
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अदालत क नाम से ही डर गया था और यह जानता था िक कसे न पूछ जाएँगे, य िक म उनम से िकसी का भी


उ र नह देना चाहता था। इसिलए म रात को घर से भाग गया। म उ ह अलिवदा या ेम और िचंता क दो श द
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कह-सुने िबना ही छोड़ आया। म पूर सा ा य से बाहर चला गया।


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“तो तुम कहाँ गए?” डॉ. शािह ता ने पूछा।


“मने दि ण क ओर चलना शु िकया। म महीन तक चलता रहा, जब तक मुझे बंजार ने नह अपनाया।
अपनी अकली या ा म म ब त िदन तक भूखा रहा और कमजोर भी पड़ा। मने ब त गंभीर चोट खा ; परतु वे
समय से पहले ही ठीक हो ग । मने लंबी बीमा रयाँ, ाकितक आपदाएँ और चरम जलवायु थित का सामना
िकया; परतु म मरा नह । म इन सबक बाद भी बच गया।”

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13.
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गु प रवतन
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उधर ीप क जंगल म आदमी बेस ी से अपनी िडिजटल घड़ी देख रहा था। उसे पता था िक वह समय नह गँवा
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सकता ह। ‘योजना को तुरत ही लागू करना होगा। मुझे अंितम बार उसे फोन करना होगा।’ उसने अपनी जेब से
सेलफोन बाहर िनकालते ए सोचा। सुिवधा क क अंदर अकले धावा बोलने से पहले वह जानना चाहता था िक
उसका साथी कहाँ ह? उसक साथी ने फोन नह उठाया। उसने अनुमान लगाया िक वह ल य क पास ही होगा।
उसक बाद उसने एक वॉइस मैसेज छोड़ने का िन य िकया, जो था—
“म योजना अनुसार सुिवधा क क अंदर जा रहा । तुम भी योजना क अनुसार ही चलना।”
उसने िफर अपने आप को भारी श क साथ अंदर जाने क िलए तैयार िकया। उसका चेहरा अभी भी एक
आधुिनक काले मुखौट क पीछ िछपा आ था। उसने सुिवधा क क मु य दरवाजे क ऊपर से छलाँग लगाई और
चार तरफ कमर क जाँच करते ए उसने एक थान पर कमरा देखा। रा ता साफ देखते ही उसने तीर चला
िदया। वह सीधा कमर क बीचोबीच लगा और उसे न कर िदया। िफर वह अपने ऑटोमैिटक धनुष-बाण क साथ
इमारत क अंदर चुपक से घुस गया। उसक आँख एक शीशे से ढक ई थी, जो एक च से उसक माथे पर बँधा
आ था। उसे शीशे पर अंदर उप थत आदिमय क त वीर, इमारत का 3D य सभी कमर व गिलयार सिहत
िदख रह थे, जो उसे उस क क ओर ले जा रह थे, जहाँ ओ को बंधक रखा गया था। वह शीशे से अपने ल य

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पर िनशाना साधकर उसे अपने तीर से भेद सकता था, वह भी िबना िकसी गलती क। उसक कमर पर एक बे ट से
बँधा ब ता था, िजसम सामने, पीछ और बगल म समान आकार क जेब थ । उसक दाएँ हाथ पर धातु का टकड़ा
कलाई से कोहनी तक बँधा था, िजसक आगे क तरफ एक तीर लगा आ था।
वह एक दूसरा ब ता अपनी पीठ पर िलये ए था, िजसम PDW 19 एसॉ ट राइफल थी। 250 फ ट क रज क
साथ वह पकड़ म 40 ितशत थर, बीस गुना तक अिधक यता और 25 गोिलय का प साइज था। वह
अपने आप 4.5 सेकड म रीलोड हो जाती थी; दो P-622 िप टल, 150 फ ट रज, 8 गोिलय का प साइज, जो
लोड होने म 3 सेकड का समय लेती थी।
कछ कदम सावधानी से चलने क बाद उसने एक सुर ाकम को बंदूक िलए ए गिलयार क दूसर छोर पर
देखा। वह धीर से र क क ओर बढ़ा। शीशे पर िदख रहा था िक वह र क से िकतनी दूर ह। वह तब का और
थर खड़ा रहा। शीशे पर हर रग म िलखा आया—‘ल य प च म ह।’ इससे हाथ और आँख का तीर एवं ल य
क बीच सामंज य थािपत करने म मदद िमली। िफर उसने पहला तीर चलाया, जो सीधे ल य पर जाकर लगा।
सुर ाकम तुरत मरकर िगर गया। वह सुर ाकम क तरफ भागा, यह सुिन त करते ए िक कोई आवाज न हो।
उसने अपनी बे ट से बँधे ब ते क एक जेब को टटोला और एक फाइबर लेट को िनकाला, उस पर समय सेट
िकया और एक छपे ए कोने म दीवार पर िचपका िदया। िफर वह दूसर आदमी को मार िगराने क िलए तैयार होते

ls
ए आगे बढ़ा।
ve
रॉस ीप क तट पर एक हलीकॉ टर उतरा, िजसका पीछा ती गित वाली एक नाव कर रही थी, जो समु को
no
चीरती ई उसी थान पर आकर क । दूसरा मुखौटा धारक हलीकॉ टर को धीर-धीर नीचे उतरते ए देख रहा था।
ks

उसने अपना ब ता उठाया और हलीकॉ टर क तरफ भागा। भागते-भागते उसने अपने हिथयार तैयार िकए। जैसे ही
oo

लोग हलीकॉ टर से उतर, उनका वागत गोिलय क बौछार से आ। कछ ने पलटकर आदमी क ओर गोिलयाँ
चला । वीरभ हलीकॉ टर से नीचे उतरा। वह जानता था िक जो पु तक उसक पास ह, वह एक खजाना ह। अतः
pb

िबना समय खराब िकए उसने अपनी जीप क िलए चार ओर देखा और ढढ़ते ही उसक तरफ भागा। आदमी
Vi

वीरभ क मंशा भाँप गया था और उसे असफल करने क िलए उसने जीप क टायर पर गोिलयाँ चला और िफर
@

चालक को भी गोली मार दी। वीरभ तुरत ही चालक क जगह बैठा और गाड़ी का इजन टाट कर िदया। वह
पंचर ए टायर वाली जीप से सुिवधा क क ओर भागा। बचे ए आदिमय ने वीरभ को बचाने क िलए अपनी
िजंदगी को दाँव पर लगाते ए गोली चलाने वाले को उलझा िलया।
पूछताछ क म न पर दाढ़ी वाला ओ सोने क कडल और जनजातीय मुकट िसर पर पहने ए िदखाई दे
रहा था, िजसे भगवान क तरह पूजा जा रहा था। ओ बोला, “म लोग को छल, कपट और धोखा देना नह
जानता था। म िकसी का भी अनुिचत लाभ नह उठाता था। कछ बूढ़ कहते थे िक म उनक िलए भगवान ारा भेजा
गया अवतार । उ ह िव ास था िक मेरी सेवा करना वयं भगवान क सेवा करने क समान ह। लोग ने मुझे
जानलेवा बीमा रय से व थ होते, ाकितक आपदा से िबना िकसी नुकसान क िनकलते देखा था। यह िव ास
चलता रहा और मेरी िजंदगी कछ समय क िलए िबना िकसी घटना क गुजरती रही। परतु तभी कछ युवक िकसी
अ ात बीमारी से मर गए। लोग क यान म आना शु हो गया था िक मेरी उ एक िदन भी नह बढ़ी थी, जब से
म उनक कबीले से जुड़ा था। जाित क सभी बड़-बूढ़, जो मुझम िव ास रखते और पूजते थे, वे सभी सामा य मौत
मर गए थे और उनक साथ ही उनका िव ास भी। समय बदल गया और उनक नेता भी बदल गए। म अब एक

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शाप क तरह देखा जाने लगा। ऐसा शाप, जो जवान रहने क िलए जवान लोग से उनक िजंदिगयाँ ख च लेता ह।
उ ह िव ास था िक युवक क मौत का कारण म था। उनम से कछ अभी भी मुझम ब त िव ास रखते थे और
मेर िलए लड़ते थे। परतु िव ास क उजाले पर डर का अंधकार छा रहा था। मुझे जाित से िन कािसत कर िदया
गया था। उ ह ने एक बड़ शाप क डर से मुझे मारने क कोिशश नह क ।
“म िफर से अकला था। अब म जान गया था िक मुझे अपनी पहचान और थान बदलते रहना होगा। कोई भी
मानिसक प से इस स य को वीकार करने क िलए तैयार नह था िक म अमर । तभी से म वयं को छपाता
आ रहा ; पर...”
पूछताछ क क कमर का दरवाजा जोर से खुला और डॉ. ीिनवासन अंदर आए। ओ सतक हो गया। दरवाजे
क अचानक जोर से खुलने से सभी का यान डॉ. ीिनवासन क ओर गया। आगबबूला डॉ. ीिनवासन ने ओ
को देखा और उसक तरफ बढ़।
“सर, आप या...” डॉ. ब ा ने कहा और उ ह डॉ. ीिनवासन ारा उगली क इशार से चुप रहने क िलए कहा
गया। डॉ. ीिनवासन ने अपने दोन हाथ से ओ को कसकर पकड़ा और गु से से उसक ओर घूरने लगे।
“सर, आपको या हो गया ह? आप या...” डॉ. शािह ता खड़ी हो ग । डॉ. ीिनवासन ने शािह ता क आँख

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म देखा और वे फौरन जान ग िक कछ भी न कहना ही उनक पास इस समय एकमा िवक प ह। डॉ.
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ीिनवासन ने पुनः ओ क ओर देखा और उसे हमेशा क तरह न क ती ा करते ए शांत व थर पाया।
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बूढ़ आदमी ने अपने क से यह सब देखा और एक पैिनक बटन दबा िदया।
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“ऐम आियंदी, िच ा?” ओ ने कहा।


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ओ क भाषा और लहजे म ‘ या आ, छोट?’ यह सुनते ही डॉ. ीिनवासन एकदम शांत हो गए। पर अगले
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ही ण उनका ऐम लौट आया और उ ह ने तेलुगू म जवाब िदया—


“नेनू िच ा कादू! न मानसू लो शनालू उ ाई। नाक समाधनन कवाली।”
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(म छोट नह ! मेर पास सवाल ह और मुझे सीधे जवाब चािहए।)


@

“सर, िच ा काकपोते, एम अनी िपलवाली? कजू?” ओ ने कहा।


(अगर छोट नह तो म तु ह या बुलाऊ, कजू?)
डॉ. ीिनवासन ने जवाब िदया, “नाक अला यववु िपलव , नीक एला तेलिस दी। नु वू यववु ?”
(इस नाम से अब कोई मुझे नह पुकारता। तुम यह कसे जानते हो? तुम कौन हो?)
ओ ने अपनी आँख बंद कर ल और न िफर से ऑन हो गई। जो त वीर िदखाई दे रही थी, उसम एक
पुराने टट-फट सरकारी कल क क ा म कछ छा आधी बाँह क सफद कमीज, िन कर और च पल पहने
लकड़ी क बच पर बैठ थे। उनम से कछ नंगे पैर थे। वे सब एक सहपाठी को परशान कर रह थे, जो रो रहा था।
तब ओ ने िश क क प म क ा म वेश िकया और सबको डाँटा, जो उस ब े को परशान कर रह थे। उसने
सभी को क ा से बाहर िनकाल िदया और मासूम िव ाथ क साथ बैठ गया तथा बातचीत कर उसे शांत िकया।
“नीक अदी गु तुंदा?” ओ ने शांित से कहा।
( या तु ह याद ह?)
डॉ. ीिनवासन क आँख आँसु से भर ग और वे िफर से ब क तरह रो पड़। वे अपना बचपन ओ क

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साथ देखने क बाद इस अिव सनीय बात को मानने क िलए मजबूर थे। उ ह अब ओ क कही ई हर बात पर
िव ास हो गया और वे उसे दया व आदर से देखने लगे।
कमर म उप थत िकसी को भी तेलुगू भाषा और त वीर क कछ भी जानकारी न होने क कारण कछ समझ
नह आ रहा था िक वहाँ या हो रहा ह!
डॉ. शािह ता उन दोन क पास आ और तभी एल.एस.डी. क क यूटर से बीप क आवाज आई। उसने न
क तरफ देखा, जो बूढ़ आदमी का चेहरा िदखाने से पहले ण भर क िलए काला हो गया था। एल.एस.डी. सतक
हो गई और उसने क -बोड पर एंटर का बटन एक बार दबाया। उसक न पर एक िडिजटल घड़ी 8.43 बजे
का समय िदखा रही थी और हर बीतते ण क साथ उलटी िगनती शु हो चुक थी। उसक आँख बड़ी हो ग
और उसने प रमल को देखा। वह पहले ही उसक तरफ देख रहा था। उसे भी वही बीप, वही चेहरा और वही
समय िमला। प रमल ने अिभलाष क बच क तरफ कछ कदम बढ़ाए और उसक कधे पर हाथ रखा। अचानक ही
हसमुख और बेपरवाह हकर एक प रप व समझदार य म बदल गई। वह बचकाना चेहरा अँधेर म गायब हो
गया था। अंतमुखी, शांत, सहमा-सा प रमल अचानक फत ला हो गया।
जैसे ही जीप और सुिवधा क क बीच क दूरी 2 िकलोमीटर से कम रह गई थी, आदमी ने—वीरभ क सभी
आदिमय को मारने क बाद—उसका पीछा करना शु कर िदया। वह अब उसका पीछा कर रहा था। उधर दूसरी

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तरफ, वीरभ पंचर ए टायर वाली जीप क साथ प च गया और इमारत क अंदर चला गया। उसका पूरा शरीर
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खून क िनशान से भरा आ था। यहाँ तक िक उसका चेहरा भी पूरी तरह खून से लथपथ था। वह बुरी तरह हाँफते
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ए सुिवधा क क अंदर घुसा और उसने डॉ. ीिनवासन को फोन िकया। सश सुर ाकिमय ने उसक सुर ा
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क िलए उसे चार तरफ से घेर िलया और वे ब त सतक हो गए।


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पूछताछ क म डॉ. ीिनवासन ने ओ से पूछा, “पु तक म या ह?”


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ओ इस िव ास क साथ मु कराया िक पु तक उस थान पर सुरि त ह, जहाँ उसने वयं उ ह छपाया था।


वह इस बात से अनिभ था िक उसक तरह पु तक भी रॉस ीप पर ही थ ।
Vi

“वे पु तक संसार क सबसे बड़ रह य, िजसे मृ यु कहते ह, का उ र ह। उनम वह ह, िजसे मनु य आज तक


@

खोज नह पाया। उनम अमरता को पाने क कजी ह। उनम मेर जैसे और मनु य को बनाने क ि या विणत ह।
समय येक िजंदगी क हर एक ण का िहसाब रखता ह, इसिलए तु हारी हर िदन आयु बढ़ती ह। पु तक म
सवश मान समय क से तु ह िछपाने क मता ह। क पना करो, समय क िलए तु हारा अ त व नह ह।
तु हार िलए मृ यु एक म ह। हर कोई, जो पु तक क मा यम से गुजरता ह, वह सदैव जीिवत रहगा।” कोई भी
अभी तक इस अचानक ए दय-प रवतन क पीछ का कारण नह समझ पाया था।
जैसे ही वे ओ क बात को समझने का यास कर रह थे, डॉ. ीिनवासन का फोन बजा। वह वीरभ था।
उ ह ने फोन उठाया।
“सर, मेर पास पु तक ह। म अब सुिवधा क म वेश कर रहा । िकसी ने हमारा ीप तक पीछा िकया ह।
सर, आप कहाँ ह?” वह भागने क कारण बुरी तरह हाँफते ए बोला।
वीरभ क चीखती-सी आवाज फोन से आ रही थी, िजसक कारण उसक ारा कह गए हर एक श द को ओ
ने सुना।
ओ को सदमा-सा लगा, जो उसक चेहर पर प िदखाई दे रहा था। पहली बार खुद को उसने ठगा आ

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महसूस िकया। उसक अपने पुराने िश य क ित भावनाएँ अचानक समा हो ग । उसने डॉ. ीिनवासन क ओर
खेपन से देखा, जब उ ह ने वीर भ को पूछताछ क क ओर बढ़ने और बाहर ककर ती ा करने का आदेश
िदया, जब तक वह वयं आकर उससे पु तक न ले ल। उ ह ने फोन काट िदया। उनक आँख अपराध-भाव से
भरी थ और चेहरा मा-याचना का तीक था। उ ह ने उसी भाव से कहा, “मुझसे गलती ई ह; पर मुझे इसका
पता नह था, इसिलए म अब इसे सुधा गा। मेर जाने से पहले कपया जान लीिजए िक म इस टीम का नेतृ व नह
कर रहा था, कोई और कर रहा था और आज से पहले म नह जानता था िक म गलत लोग क ओर से खड़ा ।
ये सब मासूम ह। ये ब ,े इ ह कछ नह पता।”
ओ ने िनराश होकर आँख बंद कर ल और बोला, “यह तुमने या िकया? तुम िकसक िलए काय कर रह
हो?”
“म सोच रहा था िक म पैस क िलए काम कर रहा , इसिलए मने काय को िव तार से जानने का कभी यास
नह िकया। ये सब सोच रह थे िक वे मेर िलए काम कर रह ह और चूँिक वे मेर िववेक पर भरोसा करते ह, उ ह ने
कछ नह पूछा। उसक गंदे हाथ से पु तक को बचाने क िलए मुझे अब जाना चािहए। मने एक अ य अपराध
िकया ह; परतु यिद म अपनी परी ा म असफल होता तो कपया मुझे मा करने का यास कर।” डॉ.
ीिनवासन ने कहा और उनका िसर संकोच एवं प ा ाप से झुक गया। अचानक वे मुड़ और उस दीवार क ओर

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बढ़, िजस पर बूढ़ आदमी क देखने क िलए कमरा लगाया गया था। उ ह ने उसे मार-मारकर चकनाचूर कर िदया।
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बूढ़ आदमी ने डॉ. ीिनवासन को कमर पर हार करते देखा और िफर न काला हो गया। वह बूढ़ा मु कराया।
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य िक कमर म एक और कमरा िछपा था।
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डॉ. ीिनवासन ने ओ का हाथ पकड़कर एक बार हलका सा दबाया और िफर वे जाने क िलए मुड़। ओ ने
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पूछा, “तु ह यह सब करने क िलए िकसने पैसे िदए ह?”


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“उसका नाम नाग ह। म बस, यही जानता ।” डॉ. ीिनवासन ने तेजी से कमर से बाहर जाते ए जवाब
िदया।
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ओ का चेहरा यह नाम सुनते ही पीला पड़ गया। वह भी अ य सब क तरह, जो उसक अमरता क कहानी


@

सुन रह थे, आ यचिकत रह गया।


जैसे ही डॉ. ीिनवासन बाहर गए, प रमल भी बाहर जाने लगा।
“प रमल!” डॉ. ब ा ने उसे बुलाया।
“िसगरट पीने जा रहा ।” प रमल ने िबना पीछ देखे कहा।
डॉ. ब ा और डॉ. शािह ता ने एक-दूसर को आ य से देखा, य िक इस बार प रमल हकलाया नह ; जबिक
एल.एस.डी. अपने क यूटर पर बटन दबाने म लगी रही। वह वा तव म ब त ज दी म िदखाई दे रही थी।
जैसे ही प रमल टीम क सद य क नजर से ओझल आ, वह िजतना तेज भाग सकता था, उतनी तेजी से रसोई
क ओर भागा, जो गिलयार क अंत म तीन बार दाएँ मुड़ने क बाद सुिवधा क क ठीक पीछ थी। वह रसोई म
प चा और रसोई एवं सुिवधा क क बीच क समान दीवार क सामने खड़ होकर िकसी चीज क बेचैनी से ती ा
कर रहा था। वह बार-बार अपनी घड़ी क ओर देख रहा था। नाग अभी भी सबक गितिविधय को यान से
देखते ए अपनी मेज क पीछ बैठा आ था।
डॉ. ब ा और डॉ. शािह ता कमर क बीचोबीच अपने आसपास क वातावरण म ए बदलाव को देखते ए दंग

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खड़ रह। वे डॉ. ीिनवासन को आँसू भरी आँख से, बड़ एहसान और स मान क साथ ओ से बात करते ए
देख रह थे। उनक हाव-भाव बता रह थे िक एल.एस.डी. और प रमल क तरह वे भी ब त ज दी म थे। अिभलाष
अब तक अपनी कस पर लेटा-सा मेज पर िसर रखकर सो रहा था।
एल.एस.डी. पूरी तरह से क यूटर म खोई ई थी और एक कोड को टाइप कर रही थी, जो उसक बाएँ पैर क
पंजे पर गुदा आ था। ‘1 को रिथयंस 15:51’ कोड िलखा था।
इसका मतलब था—मृ यु पर िवजय!
जैसे ही उसने क -बोड पर एंटर दबाया, वह दीवार—जहाँ प रमल इतजार कर रहा था—दरवाजे म बदल गई।
कछ ट िगर और एक टच न वाला क -पैड कोड पूछने लगा। उसने वही कोड टाइप िकया—‘1 को रिथयंस
15:51’ और दरवाजा खुल गया। वह दीवार क बीच 3 फ ट चौड़ा और 16 फ ट लंबा एक रा ता था। एक छोटा
िछपा आ कमरा िदखाई िदया, जो आज से पहले नह था; एक कमरा, जो मारने म यु होने वाले सभी कार
क हिथयार , बुलेट ूफ कवच और सूट से भरा था। रा ते म सफद काश था और सभी हिथयार दीवार पर लगे
थे। पहले दरवाजे क ठीक सामने एक दूसरा दरवाजा था। यह दरवाजा पीछ पूछताछ क म खुलता था। प रमल ने
िबना समय गँवाए चीज उठानी शु कर द ।
एल.एस.डी. ण भर को अकली होने क िलए लगातार सब पर नजर रखे ए थी। अब उसे वह ण िमल

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गया। वह पूछताछ क क िकनार म बने साधन क क ओर भागी।ve
आधुिनक मुखौटा लगाए पु ष ने बड़ी नृशंसता से गिलयार म, िबना िकसी शोर क, सुर ाकिमय को मार िदया
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था। तभी उसक साथी ने सुिवधा क म घुसकर यूिनफॉम म िदखने वाले सभी लोग को धड़ाधड़ मार िगराया।
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सुिवधा क म गोिलय क आवाज गूँज उठ , िजसने सभी को बहरा-सा कर िदया था। सभी सुर ाकम वेश ार
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क तरफ भागे, िजससे पहले साथी का रा ता साफ हो गया और उसक पूछताछ क तक प चने का ब त समय
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बच गया।
ओ ने भी डॉ. शािह ता और डॉ. ब ा क साथ गोिलय क आवाज सुनी। वह एकदम हरकत म आ गया और
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उनसे उसे मु करने क ाथना क ।


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अिभलाष ने अब भी कोई िति या नह क और सोता रहा। डॉ. ब ा उसक पास गए और डॉ. शािह ता अपने
िदमाग म सही व गलत क ं म फसी ओ क पास ग । डॉ. ब ा ने अिभलाष को जगाने क िलए िझंझोड़ा, पर
वह वहाँ वैसे ही लेटा रहा। डॉ. ब ा ने उसक न ज जाँची और उसे मरा आ पाया। डॉ. शािह ता घबरा ग और
ओ को खोलने लग । प रमल ने अिभलाष को उसी ण मार िदया था, जब उसने बूढ़ आदमी का चेहरा क यूटर
पर देखा था। कब और कसे, इस न का पूछताछ क म िकसी क भी पास कोई जवाब नह था।
डॉ. ीिनवासन क क गिलयार म प चे और वीरभ को उ ह पु तक देने क िलए कहा। वीरभ ने थित क
गंभीरता को न समझते ए पु तक उ ह दे दी। डॉ. ीिनवासन ने पु तक को कसकर अपनी छाती से लगाया और
वापस पूछताछ क क ओर बढ़। बूढ़ आदमी ने यह सब देखा। उसने एक ईयर पीस उठाया और एक बटन
दबाया।
वह अपनी भारी आवाज म फसफसाया, “िलज...?”
एल.एस.डी. ने साधन क म उसी कार क ईयरपीस से यान से सुना और जवाब िदया, “हाँ, सर।” वह एक
नल क ऊपर चढ़ी और साधन क क मचान पर रखे प च से बाहर और न िदखाई देने वाले एक बैग को

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ख चा।
रा ते से अंदर गया प रमल और जो उससे बाहर आया, दोन पूरी तरह से अलग आदमी थे, य िप वे एक ही
थे।
पूछताछ क म डॉ. ब ा और डॉ. शािह ता ओ को मु करने का यास कर ही रह थे िक एल.एस.डी.
बाहर िनकली। शािह ता और डॉ. ब ा ने उसम भीषण प रवतन देखा। उ ह ने देखा िक दो P622, 150 फ ट क
रज वाली और 8 गोिलय क प साइज वाली िप टल िलये ए वह उनक ओर बढ़ रही थी, जो 3 सेकड म
रीलोड हो जाती ह।
वही िप टल, िज ह अपनी जाँघ पर बाँधे ए आधुिनक मुखौटाधारी आदमी पूछताछ क क ओर बढ़ रहा था।
भारी गोला-बा द से लैस आदमी क साथी ने बजूका से एक ही वार म ब त से सुर ा किमय को एक साथ
मारते ए वेश ार को उड़ा िदया। सुर ाकिमय क िलए उस ीप क घने जंगल म आदमी को ढढ़ पाना असंभव
था। हर बीतते ण क साथ सूरज ढलता जा रहा था।
सुिवधा क म डॉ. ीिनवासन पूछताछ क म घुसे और जैसे ही उ ह ने एल.एस.डी. को देखा, वे तुरत समझ
गए िक सभी सद य इतने भोले नह थे, िजतना उ ह ने सोचा था। जब वे कमर म आए तो बुरी तरह हाँफ रह थे।
उ ह ने यह िदखाने का यास िकया, जैसे कछ भी न आ हो। परतु एल.एस.डी. ने उनका भा य िनधा रत कर िलया

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था। जैसे ही डॉ. ीिनवासन ने एल.एस.डी. क आँख म देखा, वह यं या मक तरीक से मु कराई। एल.एस.डी. ने
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बड़ी रता से डॉ. ीिनवासन क सीने म गोली मारकर उनसे पु तक छीन ली।
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डॉ. ीिनवासन फश पर िगर गए और उनक शरीर से खून बहने लगा। दद से छटपटाते ए उ ह ने ाण याग
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िदए। डॉ. ब ा और शािह ता डॉ. ीिनवासन को अपनी अंितम साँस लेते और एल.एस.डी. क र यवहार को
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देखते ए त ध खड़ रह गए। पछतावा उससे कोस दूर था। वहाँ बूढ़ा आदमी अपने क म एल.एस.डी. क हाथ
म पु तक देखकर मु करा उठा। एल.एस.डी. ने डॉ. ब ा और डॉ. शािह ता को िनशाने पर िलया और धमकाया,
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“िहलो मत! इससे पहले िक तु ह यह पता चले िक मुझे दोन हाथ एक साथ चलाने क आदत ह, तु हारी जान
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तु हार बनाने वाले क पास प च जाएगी।”


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ओ , जो अभी तक पूरी तरह से मु नह आ था, वह यह सब देखता रहा।


“तुम हम मारना चाहती हो? तुम हम सच म गोली मार दोगी, हाँ?” डॉ. शािह ता ने िह मत िदखाते ए कहा।
“अगर ज रत पड़ी तो!” एल.एस.डी. ने सपाट उ र िदया।
“िफर तुम िकसका इतजार कर रही हो?” शािह ता ने न िकया।
एल.एस.डी. ने बेशम क तरह मु कराते ए कहा, “अपने आदेश का!” और कमर क एकमा ार क ओर
बढ़ते ए उसने उसे अंदर से बंद कर िदया।
अपने रा ते म पूछताछ क क बाहर खड़ दो सुर ाकिमय क ह या, अपने मनपसंद एवं शांत तरीक से करने
क बाद आदमी ने अपना मुखौटा और लासेस उतार िदए। उसक बाल लंबे व सफद थे और शरीर सुगिठत था।
उसने अपने सीने से सुर ा कवच उतारा। उसने अपनी दोन कलाइय म सोने क बड़-बड़ कड़ पहने ए थे। उसने
अपने बाएँ हाथ से धनुष-बाण उठाया और पूछताछ क क दरवाजे को जोर से लात मारी।
प रमल गोला-बा द लेकर नाग क कमर म प चा और फश पर उसक घुटन क पास बैठ गया। नाग ने उसे
सहलाया। प रमल को लाड़- यार करते ए भी नाग क आँख न पर िदख रह य पर िटक ई थ ।

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अचानक उसने देखा िक कोई पूछताछ क क दरवाजे क बाहर खड़ आदमी को मारकर, दरवाजा तोड़कर खोलने
क कोिशश कर रहा ह। उसने न क तरफ इशारा करते ए प रमल को िदखाया।
प रमल, जो शांत बैठा था, एकदम से उ ंड हो उठा। वह एक झटक से खड़ा आ और ओ शा ी एवं
एल.एस.डी. क पास जाने लगा।

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14.
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अमर यो ा
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दूसर साथी ने बाहर का दरवाजा करीब-करीब खाली कर िदया था और अब उसे कवल वीरभ एवं उसक बचे
@

ए दो आदिमय से पार पाना था। डॉ. शािह ता ने कछ साहस िदखाते ए ओ को िफर से खोलना शु कर
िदया।
इसे भाँपते ए नाग ने एल.एस.डी. को दोन को मार देने और ओ को उसक पास जीिवत लाने का आदेश
िदया। एल.एस.डी. िफर से यं या मक प से मु कराई और डॉ. शािह ता एवं डॉ. ब ा पर अपने दोन हाथ से
िनशाना साधते ए एक साथ गोली चला दी। डॉ. ब ा अपनी सजगता क कारण तेजी से रा ते से हट गए। दूसरी
गोली ठीक तरह से अपने िनशाने पर लगी; परतु उसे नह , िजसक िलए थी। डॉ. शािह ता क आँख ओ पर थ ।
ओ क एल.एस.डी. पर और एल.एस.डी. क शािह ता पर थी, इसिलए उसक शािह ता को गोली मारने से
पहले ओ को सि य होने क िलए कछ समय िमल गया था। ओ ने िबना िकसी मंत य क िन वाथ र क को
बचाने क कोिशश म शािह ता क बदले वयं को आगे कर िदया। गोली उसक छाती पर लगी। शािह ता और
ओ दोन एक-दूसर से कछ दूरी पर िगर पड़। एल.एस.डी. को अहसास आ िक उसने ब त बड़ी गलती कर
दी ह। िबना सोचे उसने शािह ता पर िफर से िनशाना साधा। ओ फश पर पड़ा आ दद से छटपटाता असहाय
देखता रहा और डॉ. शािह ता क िसर पर एल.एस.डी. ने गोली मार दी।

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प रमल गु रा ते से सीधे पूछताछ क म प चने क िलए रसोई से होता आ िछपे ए कमर म घुसा। दूसरी
ओर पूछताछ क का मु य दरवाजा अब दूसरा ध का सह पाने क थित म नह था। एल.एस.डी. ने घायल
ओ को कॉलर से पकड़कर दीवार क ओर ख चा और साथ ही डॉ. ब ा क िलए चार तरफ देखने लगी। बाहर
गिलयार म वीरभ आदमी क इमारत म घुसते ही रसोई क दरवाजे से टकराते ए पीछ िगर गया। प रमल पूछताछ
क म घुसने क िलए पासवड डालकर दरवाजे का ताला खोल रहा था। पूछताछ क क अंदर, जहाँ एल.एस.डी.
प रमल क आने क ती ा कर रही थी, कछ ट िगर । ओ शा ी का खून बुरी तरह से बह रहा था। आदमी ने
अंितम बार जोर से लात मारी और तभी दरवाजा टटकर िगर गया। कमर म सभी अंदर आने वाले चेहर को
पहचानते ही दंग रह गए। चेहरा उन छिवय म से एक था, जो ओ क याद म अंिकत थी और इसिलए न पर
भी िदखाई दी थी। यह वह आदमी था, िजसे ओ हजार वष से खोजने क कोिशश कर रहा था। वह अतीत का
तीक था, जो वतमान क सामने सीधा खड़ा समय को चुनौती देने क िलए पूण प से तैयार था।
वह थे परशुराम!
उनक चेहर पर ोध और रोष था। उनक बड़ी-बड़ी आँख थ , िजनसे कछ भी नह छपाया जा सकता था और
इतने मजबूत हाथ, जो पवत को भी व त कर द।
दूसरी ओर से उनका साथी, िजसे वे सब अ थामा क नाम से जानते थे, अंदर आया। वीरभ ने उसे देखा और

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तुरत पहचान गया िक उसने उसे ओ क अ थामा एवं सुभाष चं बोस क याद म देखा था। वीरभ बुरी तरह
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डरा आ नाग क क क ओर भागा।
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परशुराम ने जैसे ही ओ को देखा, जो एल.एस.डी. ारा बंधक था और िजसका खून बह रहा था, उनक आँख
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ती रोष से जल उठ । उ ह ने एल.एस.डी. से ओ को बचाने क िलए अपना धनुष उठाया। तभी ट िगरी और


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दरवाजा खुल गया। एल.एस.डी. क पीछ से प रमल अंदर आया। वह परशुराम पर आ मण करने क िलए तैयार
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था। इससे पहले िक वे एल.एस.डी. को मार पाते, वह भागकर एल.एस.डी. क सामने आ गया और परशुराम पर
िनशाना साध िदया। अपने आप को प रमल से बचाने क िलए परशुराम का िनशाना चूक गया। इसी बीच
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एल.एस.डी. िछपे ए कमर म घुसी और अपने साथ ओ को भी घसीटते ए ले गई। ओ को ब त दद हो रहा


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था और उसने पाया िक काफ खून बह जाने क कारण उसक िलए खड़ रहना भी संभव नह था। डॉ. ब ा टील
क ऑपरशन वाली मेज क पीछ िछपे यह सब देख रह थे। परशुराम और प रमल दोन ने एक-दूसर पर गोली
चलाई; परतु इस मुठभेड़ म प रमल एल.एस.डी. एवं ओ को बचाकर िनकाल ले जाने म सफल रहा। उसने
एल.एस.डी. को दरवाजा बंद करने वाला बटन दबाने क िलए कहा, िजससे वह िफर बाहर से खोला नह जा
सकता था। एल.एस.डी. ने बटन दबाया और प रमल अंदर घुसने क िलए दरवाजे क ओर भागा। परशुराम जान
गए िक यह प रमल पर वार करने क िलए उनक पास आिखरी मौका होगा, इसिलए उ ह ने अपना फरसा िनकाला
और दरवाजे पर ोध म चीखते ए दे मारा। िनशाना सटीक था। िजस ताकत क साथ हिथयार फका गया था, वह
प रमल क दो िह से करने क िलए पया था, परतु उनक हार से पहले ही दरवाजा बंद हो गया और हिथयार
दरवाजे क दरार क बीच फसा रह गया।
परशुराम दरवाजे क ओर भागे; पर वह जान गए थे िक देर हो चुक ह। प रमल ने गु रा ते को पार िकया और
उसक पीछ एल.एस.डी. भी ओ को ख चती ई ला रही थी। वे रसोई म प चे और गिलयार क तरफ बढ़ते रह,
जो उ ह नाग क क तक ले जा रहा था। उ ह ने वीरभ को रसोई क गिलयार क तरफ आते देखा। वह भी उसी

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थान पर जा रहा था, जहाँ वे जाना चाहते थे। वीरभ ने भी उ ह रसोई से हिथयार क साथ बाहर आते देखा।
उनक नजर का अनुसरण करते ही उसने ओ को देखा, िजसका रसता आ खून उनक पीछ िनशान बनाता आ
रहा था। वीरभ यह य देखकर तंिभत खड़ा रहा। उसक अंत ेतना ने उसे प रमल पर िनशाना साधने क िलए
कहा। वह अपने अनुभव से यह जान गया था िक हमेशा अंत ेतना का पालन करना चािहए, इसिलए उसने अपनी
बंदूक उठाई और प रमल क ओर तान दी।
“तुम या कर रह हो? आिखर तुम हो कौन?” वह गरजा। उसक आवाज उस काँच क गिलयार म गूँज उठी।
इसक बदले म प रमल ने भी अपना हिथयार वीरभ क ओर तान िदया। एल.एस.डी. ने हाथ क इशार से
प रमल को उसक बंदूक नीचे करने क िलए कहा, परतु प रमल ने मानने से इनकार कर िदया। एल.एस.डी. ने तब
धीर से अपने हाथ से उसक बंदूक नीचे क ।
“वीरभ , हम भी तु हारी टीम का िह सा ह। हम इसे नाग सर क पास ले जा रह ह। कपया साथ चलो।”
“यह घायल कसे आ और नाग कौन ह?” वीरभ ने आँख ऊची करते ए पूछा।
“एक आदमी ने हम सब पर पूछताछ क क अंदर हमला िकया और इसे मारने क कोिशश क । हमने इसे
िकसी तरह बचा िलया। बाक कछ भी बताने क िलए समय नह ह। हम अपने बीच क चीज सुलझाने से पहले
एक सुरि त जगह पर प चना होगा। अभी क िलए बस इतना समझ लो िक हम एक ही टीम म ह। मुझ पर

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िव ास करो।” एल.एस.डी. ने अपने झूठ को छपाते ए जवाब िदया।
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ओ ने एल.एस.डी. का एक-एक श द सुना, पर उसने कछ नह कहा। ब त अिधक दद क कारण वह बोल
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नह पा रहा था और वह यह भी जानता था िक सच जान लेने क बाद वीरभ उन पर हमला कर देगा। ओ यह
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भी समझ गया था िक वीरभ का इन दोन कशल लड़ाक से जीत पाना संभव नह ह, इसिलए उसने उस व चुप
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रहना ही ठीक समझा।


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वीरभ ने कही गई बात पर सहमित जताते ए िसर िहलाया और उनक साथ क क ओर चल िदया। वीरभ
ने अब ओ को पकड़ रखा था और उसे चलने म मदद कर रहा था। वीरभ क साथ बातचीत म जो समय न
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आ था, उसने अ थामा एवं उनक बीच क दूरी को घटा िदया था और अब वह उनसे बस, एक मोड़ पीछ था।
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परशुराम भाग रह थे, िज ह पूछताछ क से रसोई तक का लंबा गिलयारा पार करना था, जो पूछताछ क क ठीक
पीछ तीन मोड़ दूर था।
क म नाग ने आिखरी बार न को देखा, यह िहसाब लगाने क िलए िक ओ को यहाँ तक लाने क िलए
उन सबको िकतना समय लगेगा। तब उसने न को बंद कर िदया और िहसाब लगाया िक वे 3 िमनट दूर ह।
िफर उसने न को एक तरफ सरकाया तो उसक पीछ दीवार पर लगा आ कोड से खुलने वाला ताला िनकल
आया। उसने िफर ताले क न क क -पैड पर कछ बटन दबाए।
अंदर-बाहर िनकलने वाले दरवाजे क दीवार को छोड़कर तीन दीवार म अचानक दरार उभर आ । उसने िफर
कछ और बटन दबाए तथा दरार से चार तरफ ब त से दरवाजे िनकल आए, जो िविभ िदशा क ओर अँधेर
रा त म खुल रह थे। जैसे ही दीवार हट और दरवाजे िदखे, फश क 8 फ ट एवं 5 फ ट क आकार क टाइल
अपनी सतह से नीचे धँस गई और अपने बराबर वाली टाइल क नीचे सरक गई, िजससे फश क नीचे िछपी ई
सीिढ़याँ सामने आ ग । नाग ने सुरि त तरीक से पु तक को खून से सने लाल रग क कपड़ म लपेट िलया, िजसे
िफर एक ब ते क अंदर कछ दवाइय और कछ अ य पु तक क साथ िछपा िदया। अब वह प रमल व

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एल.एस.डी. क आने क ती ा करने लगा और उसने क -पैड िफर से न क पीछ छपा िदया।
प रमल और एल.एस.डी. नाग क क क दरवाजे पर प चने ही वाले थे, िजसक सुर ा दो सुर ाकम कर
रह थे। वीरभ उनक पीछ था, य िक वह अपने साथ ओ का वजन भी ढो रहा था। वह िपछड़ गया था;
अ थामा और परशुराम को उ ह पकड़ने से रोकने क िलए कोई नह था। प रमल ने जैसे ही दरवाजा खोलने क
िलए कोड डाला, अ थामा आिखरी बार मुड़ा और अब वह उ ह देख सकता था। दोन ित ं ी लंबे गिलयार क
दोन िकनार पर खड़ थे, मु कल से 20 फ ट दूर—और अ थामा क सबसे पास वीरभ था।
अ थामा ने वीरभ पर िनशाना साधा, जो ओ को पकड़ ए था और सतकता क साथ प रमल एवं
एल.एस.डी. क तरफ बढ़ रहा था। वीरभ , एल.एस.डी. और प रमल—िजनक पीठ अ थामा क तरफ थी—
िबना िकसी अँदेशे क खड़ थे; परतु सुर ाकिमय ने उ ह देख िलया था और अंधाधुंध गोिलयाँ चलाने लगे। वीरभ ,
एल.एस.डी. एवं प रमल सावधान हो गए और उ ह अहसास आ िक खतरा िकतने पास मँडरा रहा था!
अ थामा का िनशाना अब सुर ाकिमय क ओर चला गया। जैसे ही उ ह ने एक क िसर म गोली मारी, एक
गोली उनक पीछ से आकर दूसर क छाती म लगी। पीछ मुड़ने पर उ ह ने परशुराम को सफल िनशाने क बाद हाथ
नीचे करते ए पाया।
इसी बीच प रमल और एल.एस.डी. ने क म घुसकर अंदर से अपने दु मन पर एक क बाद एक हमला करना

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शु कर िदया। वीरभ ने इस भाव म िक वह सही लोग क िलए लड़ रहा ह, ओ को दीवार क साथ नीचे
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िलटा िदया और ओ तथा टीम क अ य सद य को बचाने क िलए बहादुरी से लड़ा।
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उधर पूछताछ क म डॉ. ब ा अिभलाष क पास खड़ थे, िजसे प रमल ने तब धोखे से चुपचाप मार िदया था
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और िफर डॉ. शािह ता क पास जाकर फट-फटकर रो पड़।


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जैसे ही उ ह यह अहसास आ िक उनका जीवन अब भी दाँव पर लगा ह, उनका दुःख गायब हो गया। वे अभी
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जीिवत थे, पर कब तक, यह नह जानते थे। दूर से आती गोिलय क आवाज ने उनक िवचार को भंग कर िदया।
उ ह इमारत क दूसरी तरफ से बचकर िनकलने क िलए योजना बनानी थी। उ ह ने सबूत और जमीन पर फले
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ओ क खून का सपल, एल.एस.डी. का लैपटॉप, ओ क फाइल, िजसम उसक ारा योग िकए गए सभी नाम
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व त वीर थ , इक िकए और इमारत से चुपक से बाहर िनकल गए।


परशुराम ारा पहली गोली कधे म और िफर अ थामा ारा उसक छाती व पेट म मारने से पूव वीरभ एक
स े सैिनक क तरह लड़ा। वह ओ क गोद म िगर पड़ा और उसे बचा न पाने क िलए मा-याचना करते ए
ओ क चेहर क ओर देखते ए मर गया, ओ क आँख आँसु से भर ग ।
एल.एस.डी. क क अंदर से चीखती ई अपनी मु ी जोर से दरवाजे पर मार रही थी, जो ओ एवं वीरभ
और उसक बीच था। उसने वीरभ क ओर देखा और एक अंितम बार उसे देखने क उसक इ छा ई; परतु
प रमल ने उसे रोक िदया, य िक वह जानता था िक दु मन यादा दूर नह ह। ओ जैसे ही एल.एस.डी. क
चीखने क तरफ मुड़ा, उसने अपनी धुँधली नजर से नाग को प रमल और एल.एस.डी. क साथ खड़ देखा। वह
नाग को थोड़ा सा पहचान पाया। प रमल ने दूसरा दरवाजा मन मारते ए बंद कर िदया। अ थामा ओ क
ओर भागा, यह देखने क िलए िक वह ठीक तो ह; और परशुराम क क बंद दरवाजे क ओर भागे।
“गु जी, इसका ब त यादा खून बह रहा ह।” अ थामा िच ाए।
परशुराम दरवाजे पर िव फोटक लगाने म य त थे और बोले, “उसक कमीज फाड़कर घाव पर कसकर बाँध

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दो। वह मर नह सकता, पर वह बेहोश भी नह होना चािहए। उसे इस दरवाजे से दूर ले जाओ और हर समय
उसक साथ रहो। म उनक पीछ जा रहा ।”
“जैसी आपक आ ा, गु जी।”
अ थामा ओ को वापस रसोई म ले गए और ाथिमक िचिक सा क ब से क खोज करने लगे। ओ एक
मेज पर लेटा रहा। ओ ने पहले परशुराम को और िफर दरवाजे क ओर देखा। तभी उसने खुद को कछ बोल न
पाने क थित म पाया।
उसक पास इतने सवाल थे, परतु वह धीर-धीर अपनी चेतना खो रहा था।
“म युग से आपक खोज कर रहा । म जानता था, आप हो।” वह िकसी तरह से बोल पाया।
“तुम हमेशा से हमारी िनगाह म थे। हमने कभी तु हारा पीछा नह छोड़ा। तुम हम कभी नह ढढ़ पाए, य िक
हम यह नह चाहते थे।” अ थामा ने खुलासा िकया।
“आप यहाँ कसे प चे?”
“हम तु हार बक क लॉकर से कछ आदिमय का पीछा करते ए यहाँ रॉस ीप तक आए।”
ओ यह सब सुनकर हरान रह गया। उसे तब इस स ाई का अहसास आ िक वह जब इस थान पर नजरबंद
था, लोग ीलंका क गुफा तक भी प च गए। परशान होकर उसने पूछा, “पु तक कहाँ ह?”

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अ थामा क चेहर पर िनराशा छा गई। ve
“वह उनक पास ह, उनक क जे म। गु जी उनक पीछ गए ह।” अ थामा ने हताश होकर कहा।
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“आप मेर िलए य आए ह? आप मुझे य बचा रह ह?” ओ ने पूछा।
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“ य िक...तु हार पास अंितम चरण क चाबी ह।”


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ओ आ यचिकत रह गया और उसने अपने म त क म बढ़ते दबाव एवं भारीपन से जूझते ए उनक ओर
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देखा। धीर-धीर उसका म त क अंधकार म डब गया और वह मेज पर उनक सामने िगर गया।
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एल.एस.डी. एवं प रमल क म घुसे और उ ह ने अपने बॉस क साथ अपने आप को उस टाइल क नीचे छपा
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िलया, िजससे सीिढ़याँ िनकलती थ । टाइल िफर से अपने सही थान पर आ गई।
परशुराम ने लोह का दरवाजा उड़ा िदया और वे नाग क क म घुस।े उ ह ब त सार दरवाजे िदखे और तब वे
उलझन म आ गए िक अपने दु मन का पीछा करने क िलए कौन से दरवाजे को चुन? अब परशुराम ने चार तरफ
देखा। उ ह कछ भी असामा य नह िदखा। उ ह ने बेतरतीब ढग से एक दरवाजा चुना और उसे खोला। एक लंबा
गिलयारा िदखाई िदया। परशुराम ने उसक अंदर तेज भागना शु िकया, परतु दूसरा िसरा बंद पाने क बाद वे बेचैन
हो उठ। उ ह ने दूसर रा ते से कोिशश क , परतु सब यथ रहा। उ ह ने सुिवधा क क िविभ कोन म जो
िव फोटक लगाए थे, वे अब िकसी भी समय फट सकते थे, िजनसे ओ और अ थामा अनिभ थे। इसिलए
वह वापस रसोई क ओर भागे। वहाँ उ ह ने अ थामा को ओ क शरीर से गोली िनकालते ए पाया।
एल.एस.डी., प रमल और नाग वहाँ िब कल नह क। रा ता कशलतापूवक बनाया आ पूरी तरह से गु
था। वह समु क िकनार पर खुल रहा था।
तीन खुले आकाश क नीचे रतीली भूिम पर थे। एक पनड बी उनका पहले से ही इतजार कर रही थी। वे उस पर
चढ़ गए और पु तक सिहत ीप को छोड़कर चले गए।
परशुराम अ थामा क साथ जैसे ही इमारत से बाहर आए, वह व त हो गई। सु िचपूण ढग से बना सुिवधा

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क कछ ही िमनट म न हो गया।
उनक श ु ने भी यह घटते ए देखा, य िप ीप क दूसर छोर से।
“पु तक कहाँ ह?” अ थामा ने पूछा।
“वे उनक पास ह।” परशुराम ने जवाब िदया।
“और वे कहाँ ह?”
“पता नह ।”
“परतु पु तक उनक पास ह। हमारा अगला कदम या होगा?”
“हमारा अगला कदम ओ क सुर ा करना ह। उसक िलए यही समय ह िक वह अपने छपे ए अ त व को
जाने। अब उसे स य जानना चािहए िक वह मृ युंजय बनने से पहले कौन था; य िक जब हम अगली बार उनका
सामना करगे, वही हम बचाएगा।”
“पर अब हम उ ह कसे ढढ़गे? हमार पास कोई सुराग नह ह िक वे कहाँ गए ह गे!” अ थामा बेचैन होते जा
रह थे।
“वे हमार पास आएँगे। हम उ ह ढढ़ने नह जाना पड़गा।”
“वे य हमार पास आएँगे? उनक पास वह पहले ही ह, जो वे चाहते थे।”

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“वे ज दी जान जाएँगे िक अमर व क ताले क अंितम चाबी हमार पास ह।” परशुराम ने ओ क तरफ देखते
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ए कहा।
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“उ ह ओ क शरीर म बहते ध वंत र क र क एक बूँद क आव यकता अमर व क ि या को पूण करने
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क िलए पड़गी। इसक िलए वे िफर से हम खोजते ए आएँगे।”


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ीप क दूसर िकनार पर मृ यु से भयभीत डॉ. ब ा खून का सपल िलए िछपे ए थे।


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“गु जी, अब हम या कर?” अ थामा ने पूछा।


“हम कवल ती ा करनी ह।” परशुराम ने आ ासन िदया।
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परशुराम िशला क िकनार पर ि ितज म डबते सूय क स दय को िनहारते ढ़ता क साथ खड़ थे।
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अ थामा ने ओ से पूछा, “तु हार या िवचार ह? वह कौन था?”


“नाग !” ओ ने जवाब िदया।
“यह कसे संभव ह? नाग तो ब त पहले ही गायब हो चुका था।” अ थामा ने पूछा।
परशुराम ने सागर िकनार िशला पर खड़, हाथ बाँधे, डबते सूय को देखते ए उ र िदया, “ब त पहले
गायब...मरा नह , कवल गायब।”
पनड बी म नाग बेस ी से पु तक पढ़ने लगा था। प रमल पनड बी को चलाकर ीप से दूर ले गया।
एल.एस.डी. क आँख शू य थ ।
ब त दूर, ि ितज पर सूरज अपने पीछ अंधकार छोड़ते ए नीले आकाश क चमक को िलए डब रहा था।
सं या तक वे सागर क समीप, िशला क ऊपर, एक और लहर क टकराने क ती ा म खड़ रह; य िक इससे
पहले वाली लहर उसे तोड़ने म नाकाम रही थी।
वष 2041
जैसे ही पृ वी अपनी पानी क बोतल से, जो उसक ब ते म थी, एक घूँट पानी पीने क िलए थोड़ी देर का,

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ीमती ब ा तेजी से बोल , “तु ह यह सब कसे पता ह? तुम कौन हो? तुम य ओ शा ी को ढढ़ रह हो?”
पृ वी ने अपनी यास बुझाई और ीमती ब ा क नए न को सुना तथा शांित से उनक आँख म देखते ए
अपनी बोतल को वापस ब ते म रखने क बाद जवाब िदया, “ य िक वे मेर िपता ह।”
❑❑❑
आगे जारी...

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तीक
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• जो सबसे छोटा तीत होता ह, वह िवशालतम हो सकता ह।

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• युग का अंतहीन ांडीय च सतयुग से शु होकर ेता और ापर युग से होता आ किलयुग पर समा
होता ह और एक बार िफर सतयुग से उसका आरभ हो जाता ह।

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• अतु य भारत म एक रह यमयी खोज!

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• सात अमर लोग म से ढढ़ गए दो लोग। अ य (वेद यास, हनुमान, राजा महाबली, कपाचाय और िवभीषण)
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कहाँ ह?
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• ओ शा ी क कालिनरपे या ा सभी युग से जारी ह।


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• या अमर लोग क िलए भी समय समा हो सकता ह?

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