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GANDHI AND EDUCATION

VALUE ADDITION COURSE - NEP


Unit – 1 Gandhi’s Philosophy
and education

गााँधी का दर्शन और शर्क्षा


DU – SOL - NCWEB
SATENDER PRATAP SINGH
EklavyaSnatak1

Telegram
SYLLABUS OF GANDHI AND EDUCATION

UNIT- I Gandhi's Philosophy and education


1. Gandhi's Philosophy on education.
2. Education for character building and moral development.
3. Education relating to health, hygiene, heritage, and handicraft.

UNIT- II Gandhi's Experiment in Education

1. Gandhi's educational ideas on use of Indian Language as a medium of Instruction, Textbook and Teacher.
2. Gandhi's educational thought on Elementary and Adult Education.
3. Gandhi's vision on Higher Education.

UNIT- Ill Gandhi's Educational Thought on Skill and Vocational Education

1. Rural development through Skill and Local Need Based eaucation.


2. Skill education in NEP 2020 and Gandhi .
3. Gandhi's Idea on Self-reliance (Swavalambi Shiksha) and its reflection in contemporary educational policy.
ग ां धी और शिक्ष क प ठ्यक्रम
यूनिट- I ग ां धी क दिशि और शिक्ष
1. शिक्ष पर ग ां धी क दिशि।
2. चररत्र निम शण और िै तिक निक स के शिए शिक्ष ।
3. स्ि स््य, स्िच्छि , निर सि और हस्िकि से सां बांतधि शिक्ष ।

यूनिट- II ग ां धी क शिक्ष में प्रयोग


1. निदे ि, प ठ्यपुस्िक और शिक्षक के म ध्यम के रूप में भ रिीय भ ष के उपयोग पर ग ां धी के िै क्षक्षक निच र।
2. प्र रां शभक और प्रौढ़ शिक्ष पर ग ां धी के िै क्षक्षक निच र।
3. उच्च शिक्ष पर ग ां धी की दृति।

यूनिट- III कौिि और व्य िस तयक शिक्ष पर ग ां धी के िै क्षक्षक निच र


1. कौिि और स्थ िीय आिश्यकि आध ररि शिक्ष के म ध्यम से ग्र मीण निक स।
2. एिईपी 2020 और ग ां धी में कौिि शिक्ष ।
3. आत्मनिभशरि पर ग ां धी क निच र (स्ि ििां बी शिक्ष ) और समक िीि शिक्ष िीति में इसक प्रतिबबिंब।
मह त्म ग ां धी
• मोहिद स करमचां द ग ां धी ।

• जन्म 2 अक्टूबर, 1869, पोरबां दर।

• मृत्यु 30 जििरी, 1948, ददल्िी।

• अल्रेड ह ई स्कू ि, र जकोट से िुरुआिी शिक्ष ।

• यूनििर्सिंटी कॉिे ज िां दि में , जह ां से उन्ह ें िे 1888 से 1891 में स्ि िक नकय ।

• ग ां धी 1893 -1915 दक्षक्षण अरीक में रहे , 1915 में ि पस भ रि िौटे ।

• स्ििां त्रि सां ग्र म की िड़ ई 1915 से 1947 िक ।

• भ रिीय िकीि, र जिीतिज्ञ, स म क्षजक सुध रक द िशनिक और शिक्ष ि दी

• भ रि के "र ष्ट्रनपि “ की उप तध।


शिक्ष पर ग ां धी जी क दिशि

➢ गाां धी का शिक्षा दिशन एक गतििीि अिध रण है ।

ू श निक स होि च नहए।


➢ उनका मानना था कक शिक्ष से मिुष्ट्य क सां पण

➢ उनके िै क्षक्षक किचार उभरते हुए भारतीय समाज के जीिन, जरूरताों और आकाां क्षाआों के शिए प्रासां कगक थे ।

➢ ग ां धी जी चाहते थे कक बच्चा जो कुछ भी सीखता है िह उसकी बढ़िी गतिनितध में आत्मस ि हो जाए।

➢ उनहाों ने शिक्षा की मौजूदा ब्रिकिि औपकनिे शिक प्रणािी की आिोचना की, शिक्षा की िास्तकिक प्रकिब्रत और उसके उदेशेय य का कनधाशरण ककया

➢ बुकनयादी शिक्षा प्रणािी उनके िै क्षक्षक दिशन का व्यिहाररक रूप है ।

➢ बुकनयादी शिक्षा युिा शिक्षार्थियाों को नै ब्रतक रूप से स्िस्थ, व्यक्ततगत रूप से स्ितां त्र, सामाक्षजक रूप से रचनात्मक, आर्थिक रूप से उत्पादक
और क्षजम्मे दार भकिष्य के नागररक बनने के शिए तै यार करने का चुनौतीपूणश कायश करती है

➢ जो युिाआों को कौिि दे कर स्िरोजगार बनाकर बे रोजगारी की समस्या को हि करने मों मददगार साकबत हो सकती है ।
ग ां धी के िै क्षक्षक दिशि के मूि शसि ां ि

❖ सत्य : सत्य ईश्वर प्र प्ति क स धि है जो जीिि क अां तिम िक्ष्य है । िह कहिे हैं 'सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर
ही सत्य है ।' इस प्रक र ग ां धी के दिशि में सत्य "ईश्वर" है ।

❖ अबहिंस : ग ां धी के अिुस र सत्य के प्रति समपशण केिि भक्क्ि और अबहिंस के सख्ि प िि के म ध्यम से ही
अभ्य स नकय ज सकि है । ग ां धी की अबहिंस दो क रक ें निडरि और सत्य ग्रह पर आध ररि थी।

1. निडरि : "निभशयि क अथश सभी ब हरी भय से मुक्क्ि है - बीम ररय ें क भय, ि रीररक चोट और मृत्यु, य
बे दखिी, अपिे निकटिम और तप्रय को खोिे क , प्रतिष्ठ खोिे य अपम ि करिे क , और इसी िरह।“

2. सत्य ग्रह: ग ां धी के अिुस र सत्य ग्रह नकसी पर निभशर िहीं करि है ब हर की मदद से , िह अपिी स री
िक्क्ि भीिर से प्र ति करि है । सत्य ग्रह क अथश है सत्य क दृढ़ि से प िि करि

❖ आत्म-अिुि सि और आत्म-िुशि ग ां धी हमे ि पनित्रि , त्य ग और से ि के उच्च आदि ों को ध रण करिे थे ।


शिक्ष पर ग ाँ धी जी के निच र

"शिक्ष से मे र ि त्पयश बच्चे और मिुष्ट्य - िरीर, मि और आत्म में सिशश्रेष्ठ क


एक सि ां गीण तचत्रण है । स क्षरि शिक्ष क अां ि िहीं है और ि ही िुरुआि भी
है । यह केिि एक स धि है

स क्षरि अपिे आप में कोई शिक्ष िहीं है । इसशिए, मैं बच्चे की शिक्ष की
िुरुआि उसे एक उपयोगी हस्िकि शसख कर और उसे प्रशिक्षण िुरू करिे के
क्षण से ही उत्प दि करिे में सक्षम बि िे के शिए करूांग । मे र म िि है नक मि
और आत्म क उच्चिम निक स सां भि है शिक्ष की ऐसी प्रण िी के िहि।
केिि हर हस्िकि को ि केिि य ां शत्रक रूप से शसख य ज ि च नहए, जै स
नक आज नकय ज ि है , बल्ल्क िै ज्ञ निक रूप से , य िी बच्चे को हर प्रनक्रय क
क्य ें और इस क रण पि होि च नहए।”
ग ाँ धी जी क शिक्ष के प्रति िजररय

➢ स ि से चौदह की आयु िक, प्रत्ये क बच्चे की शिक्ष नििःिुल्क, अनिि यश और स िशभौतमक होिी च नहए।
➢ शिक्ष क म ध्यम म िृभ ष होिी च नहए।
➢ उिक जोर 3R (Reading, Writing and Arithmetic) पढ़ि , शिखि और अां कगक्षणि की िुिि में 3H (Head, Heart
and Hand) शसर, हृदय और ह थ पर अतधक थ ।
➢ शिक्ष को शिक्ष के म ध्यम के रूप में कु छ शिल्प को नियोक्षजि करि च नहए ि नक बच्च अपिे जीिि के शिए आर्थिंक
आत्मनिभशरि प्र ति कर सके।
➢ शिक्ष से बच्चे में म ििीय मूल् ें क निक स होि च नहए।
➢ शिक्ष को उपयोगी, क्षजम्मे द र और गतििीि ि गररक ें क निम ण
श करि च नहए।
➢ शिक्ष द्व र ब िक की समस्ि गुति िक्क्िय ें क निक स उस समुद य के अिुस र होि च नहए क्षजसक िह अशभन्ि अां ग है ।
➢ शिक्ष को बच्चे के िरीर, मि, हृदय और आत्म के स मां जस्यपूणश निक स को प्र ति करि च नहए।
➢ स री शिक्ष नकसी उत्प दक शिल्प य उद्योग के म ध्यम से प्रद ि की ज िी च नहए और उस उद्योग के स थ एक उपयोगी सां बांध
स्थ नपि नकय ज ि च नहए।
➢ उद्योग ऐस होि च नहए नक बच्च व्य िह ररक क यश के म ध्यम से ि भक री क यश अिुभि प्र ति कर सके।

➢ कु छ उत्प दक क य ों के म ध्यम से शिक्ष को स्ि ििां बी बि य ज ि च नहए।

➢ शिक्ष को आर्थिंक स्ििां त्रि और आजीनिक के शिए आत्मनिभशरि की ओर िे ज ि च नहए।

➢ ग ां धी जी िे कह थ नक "स क्षरि कभी भी शिक्ष क अां ि य िुरुआि िहीं होिी च नहए”।

➢ यह केिि एक स धि है क्षजससे पुरुष ें और मनहि आें को शिक्षक्षि नकय ज सकि है ।

➢ उन्ह ें िे महसूस नकय नक सच्ची शिक्ष ि रीररक अां ग ें और म िशसक सां क य ें के उतचि व्य य म और प्रशिक्षण की म ां ग करिी है ।

➢ ग ां धी व्यक्क्ि और सम ज दोि ें को महत्ि दे िे हैं ।


ग ां धी और आदिशि द
➢ ग ां धी व्यक्क्ित्ि के स मां जस्यपूणश निक स में निश्व स करिे हैं और िक िि करिे हैं नक इस िक्ष्य को प्र ति करिे के
शिए निशभन्ि प्रक र की स म क्षजक सां स्कृति और ि रीररक गतिनितधय ाँ की ज सकिी हैं ।
➢ ग ां धी रूसो से सहमि हैं नक बच्च स्िभ ि से अच्छ होि है और उसकी शिक्ष की योजि बि िे समय हमें इस चे हरे
को ध्य ि में रखि च नहए।
➢ िह बच्चे के शिए स्ििां त्रि की िक िि करिे है । िह प्र कृतिक पररिे ि में बच्चे को शिक्षक्षि करिे के महत्ि पर बहुि
जोर दे ि है ।
➢ डे िी की िरह, ग ां धी क म िि थ नक ि स्िनिकि िह है क्षजसे सत्य नपि नकय ज सकि है । उिक कहि है नक
बच्चे को जीिि के प्रयोग ें से सीखि च नहए। व्य िह ररकि की पररयोजि पिति और ग ां धी की मूि योजि में कई
स म न्य बबिंदु हैं ।
➢ ग ां धी के निच र से मिुष्ट्य, सम ज और दे ि ें की प्रगति के शिए भौतिक निक स आिश्यक थ ।
➢ जीिि से जुड़ी शिक्ष , व्यिह र से बिी शिक्ष , नकसी उद्योग की मदद से बिी शिक्ष , स्ियां से जुड़ी शिक्ष आदद िे उन्हें
यथ थशि द ददय ।
ग ाँ धी जी के शिए शिक्ष क उद्देश्य य िक्ष्य
1. ग ां धी जी के अिुस र, "िड़क ें और िड़नकय ें में से सिशश्रेष्ठ को ब हर निक ििे एिां उिके शिक्षण में ि स्िनिक रुतच पै द करिे के

शिए ि रीररक, हस्िशिल्प ड्र इां ग और सां गीि को स थ-स थ शसख ि च नहए।"

2. उिक दृढ़ निश्व स हथ नक मि और हृदय की सच्ची शिक्ष ि रीररक अां ग ें के उतचि व्य य म से आ सकिी है ।

3. ग ाँ धी के अिुस र िरीर के निक स के स थ म िशसक और आप्त्मक निक स भी जरूरी है । उन्ह ें िे कह नक जै से म ां क दूध बच्चे के

िरीर के निक स के शिए शिए जरूरी होि है उसी म िशसक निक स के शिए शिक्ष आिश्यक है ।

4. ग ां धी िे मि के प्रशिक्षण की िुिि में हृदय के प्रशिक्षण की अतधक आिश्यकि महसूस की। उिकी र य में , "मि की सां स्कृति को

हृदय की सां स्कृति के अधीि होि च नहए।“

5. 27 मई, 1939 के हररजि में ग ां धी िे शिख , "मैं व्यक्क्िगि स्ििां त्रि को महत्ि दे ि हां , िे नकि आपको यह िहीं भूिि च नहए

मिुष्ट्य अनिि यश रूप से एक स म क्षजक प्र णी है । िह अपिी ििशम ि ल्स्थति िक बढ़ गय है स म क्षजक प्रगति की आिश्यकि आें के

शिए अपिे व्यक्क्िि द को सम योक्षजि करि सीखि च नहये ।"


6. ग ां धी के अिुस र "मैं िे शिक्ष की प्रनक्रय में सां स्कृति, हृदय और च ररशत्रक निक स को हमे ि सि े च्च स्थ ि

ददय है । मैं चररत्र निम ण


श को िै क्षक्षक निक स क प्रमुख एिां आिश्यक आध र म िि हाँ ।“

7. व्य िस तयक उद्देश्य: आर्थिंक िोषण के खखि फ सुरक्ष के रूप में क यश करिे के शिए आत्मनिभशरि के शिए

ु होिी च नहए। िे च हिे थे नक सभी पुरुष स्ि ििां बी बिें । इसशिए िे शिल्प-केखन्िि,
शिक्ष िौकरी उन्मख

स्ि ििां बी और औद्योनगक शिक्ष को बढ़ ि दे िे हैं ।


ग ां धी जी और स्िच्छि

➢ भ रि में ग ां धी जी िे ग ां ि की स्िच्छि के सां दभश में स िशजनिक रूप से पहि भ षण 14 फरिरी 1916 में तमििरी सम्मे िि के दौर ि
ददय थ । इस सम्मे िि में ग ां धी जी िे कह थ ‘ग ाँ ि की स्िच्छि के सि ि को बहुि पहिे हि कर शिय ज ि च नहये थ ।’
➢ ग ां धी जी िे स्कू िी और उच्च शिक्ष के प ठ्यक्रम ें में स्िच्छि को िुरांि ि तमि करिे की आिश्यकि पर जोर ददय थ ।
➢ ग ां धीजी िे रे ििे के िीसरे श्रे णी के नडब्बे में बै ठकर दे िभर में व्य पक दौरे नकए थे । िह भ रिीय रे ििे के िीसरे श्रे णी के नडब्बे की
गां दगी से स्िब्ध और भयभीि थे । उन्ह ें िे सम च र पत्र ें को शिखे पत्र के म ध्यम से इस ओर सबक ध्य ि आकृि नकय थ ।
➢ 25 शसिां बर 1917 को शिखे अपिे पत्र में उन्ह ें िे शिख , “इस िरह की सां कट की ल्स्थति में िो य त्री पररिहि को बां द कर दे ि
च नहये । क्षजस िरह की गां दगी और ल्स्थति इि नडब्ब ें में है उसे ज री िहीं रहिे ददय ज सकि क्य ें नक िह हम रे स्ि स््य और
िै तिकि को प्रभ निि करिी है ।”
➢ िषश 1920 में ग ां धीजी िे गुजर ि निद्य पीठ की स्थ पि की। यह निद्य पीठ आश्रम की जीिि पिति पर आध ररि थ , इसशिये िह ाँ
शिक्षक ें , छ त्र ें और अन्य स्ियां से िक ें और क यशकि आ
श ें को प्र रां भ से ही स्िच्छि के क यश में िग य ज ि थ ।
➢ ग ां धीजी िे इस ब ि पर जोर ददय नक ग्र मीण ें को अपिे आसप स और ग ाँ ि को स फ रखिे हुए स्िच्छि क म हौि निकशसि करिे
की िुरांि जरूरि के ब रे में शिक्षक्षि नकय ज ि च नहये ।
ग ाँ धी जी के अिुस र स्ि स््य, स्िच्छि

➢ ग ाँ धी जी के अिुस र स्ि स््य और स्िच्छि में शिक्ष को अिग स्थ ि िहीं ददय ज सकि अपिे स्ि स््य को बि ए
रखिे की कि और स्िच्छि क ज्ञ ि अपिे आप में अध्ययि क एक अिग निषय है । एक सुव्यिल्स्थि सम ज में
ि गररक स्ि स््य और स्िच्छि के नियम ें को ज ििे हैं और उिक प िि करिे हैं ।

➢ स्ि स््य और स्िच्छि के नियम ें की अज्ञ िि और उपे क्ष उि अतधक ां ि बीम ररय ें के शिए क्षजम्मे द र है हम रे बीच
बहुि अतधक मृत्यु दर निस्सां देह हम री कु िरिे ि िी गरीबी के क रण है , िे नकि अगर िोग ें को स्ि स््य और
स्िच्छि के ब रे में ठीक से शिक्षक्षि नकय ज ए िो इसे कम नकय ज सकि है ।

➢ यदद हम रे प स स्िस्थ ददम ग होि , िो हम सभी बहिंस को छोड़ दे िे और स्ि भ निक रूप से स्ि स््य के नियम ें क
प िि करिे हुए, हम रे प स नबि नकसी प्रय स के स्िस्थ िरीर होि ।
➢ स्ि स््य और स्िच्छि के मूिभूि नियम सरि और आस िी से सीखे ज िे ि िे हैं । कदठि ई उिके प िि

को िे कर है । जे से :-

✓ िुििम निच र ें पर निच र करें और सभी बे क र और अिुि निच र ें को दूर करें ।

✓ ददि और र ि ि जी हि में स ां स िें ।

ु ि स्थ नपि करें ।


✓ ि रीररक और म िशसक क य ों के बीच सां िि

✓ सीधे खड़े रहो, सीधे बै ठो, और अपिे प्रत्ये क क यश में स्िच्छ और स्िच्छ रहो,

✓ आपक भोजि आपके मि और िरीर को ठीक रखिे के शिए पय तश ि होि च नहए।

✓ मिुष्ट्य जै स ख ि है िै स ही बि ज ि है । आपक प िी, भोजि और हि स फ होिी च नहए,

ु िहीं ह ें गे, बल्ल्क आप अपिे आस-प स को उसी िीि गुि सफ ई से


✓ आप केिि व्यक्क्िगि सफ ई से सां िि

सां क्रतमि करें गे जो आप अपिे शिए च हिे हैं ।


हस्िकि से सां बांतधि शिक्ष
➢ मह त्म ग ां धी िे इस ब ि पर जोर ददय थ नक हस्िशिल्प को "ि केिि उत्प दि क यश के शिए बल्ल्क निद्य र्थिंय ें

की बुशि निकशसि करिे के शिए" शसख य ज ि च नहए।

➢ इस निच र को ऐतिह शसक आयोग ें और िीति की ररपोटश के अिुस र स म क्षजक रूप से उपयोगी और उत्प दक क यश

(SUPW) के रूप में स्कू ि ें में ि गू नकय गय है ।

➢ स म क्षजक रूप से उपयोगी और उत्प दक क यश (SUPW) को ज्य द िर एक िौक के रूप में म ि ज ि है ; यह

कढ़ ई, क्िे मॉडलििंग, ब ां स शिल्प, चमड़े क क म, तमट्टी के बिशि और कई अन्य स म क्षजक-स ां स्कृतिक रूप से

प्र सां नगक रचि त्मक रूप से उत्ते जक गतिनितधय ां हो सकिी हैं क्षजिमें आजीनिक को सक्षम करिे की क्षमि है ।

➢ कौिि और व्य िस तयक निकल्प ें से जुड़े होिे पर, SUPW बच्च ें के ह थ से क म करिे के िरीके को बदि सकि

है और क म और श्रम की गररम के प्रति उिके युि ददम ग को सक र त्मक रूप से प्रभ निि कर सकि है ।
➢ स क्षरि और शिक्ष क मििब क्य है ?, इस ब रे में ग ां धी बहुि अिग निच र थे ।

➢ ग ां धी क म िि थ नक शिक्ष क मििब बच्चे को छोटी उम्र से ही हस्िशिल्प बि ि शसख ि है ।

➢ ग ां धी िे कह नक स क्षरि पढ़िे और शिखिे के सरि क यश को सां दर्भिंि करिी है ।

➢ ग ां धी जी के अिुस र शिक्ष नकसी को 'शिक्षक्षि' करिे की प्रनक्रय िहीं हो सकिी। उिके अिुस र, शिक्ष क अथश कु छ ऐस है

जो मिुष्ट्य और बच्चे में , आत्म , मि और िरीर में सिशश्रेष्ठ को ब हर निक ििे के शिए शसख य ज ि है ।

➢ िह बच्च ें को य ां शत्रक िरीके से िहीं बल्ल्क िै ज्ञ निक िरीके से कु छ बि िे की प्रनक्रय के "क्य ें और कैसे " शसख िे में निश्व स

करिे थे ।

➢ िह बच्च ें को अपिे ह थ ें से क म करि शसख िे के महत्ि में निश्व स करिे थे ।

➢ ग ां धी िे यह भी स्पि रूप से कह नक पखिमी शिक्ष िे व्य िह ररक ज्ञ ि य अिुभि ें में योगद ि िहीं ददय ।

➢ उन्ह ें िे कह नक प ठ्यपुस्िक ें में केिि पढ़िे -शिखिे को महत्ि ददय ज ि है ि नक मौखखक ज्ञ ि को।

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