Slide 2 Hindii

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उपसंहार

भारतीय समाज सदिय ों से वर्ण-व्यवस्था की बेद़िय ों में जक़िा रहा है। इस वर्ण- व्यवस्था
की कलुदित मानदसकता ने मनुष्य-मनुष्य के मध्य अलगाव पैिा कर दिया, दजसके चलते
पूरा भारत ब्राह्मर्, क्षदिय, वैश्य और शूद्र इन चार ों वर्ों मैं बोंट गया। इसी वर्ण-व्यवस्था
के चलते सबसे दनकृष्ट वगण शूद्र क दशक्षा और ज्ञान से वोंदचत कर दिया गया। दकसी भी
धादमणक अनुष्ठान एवों कायों में उनकी उपस्थस्थदत दनदिद्ध कर िी गई तथा उनक अपने से
ऊपर तीन विों की सेवा करने का कायण थ प दिया। इस प्रकार उनक तमाम अदधकार ों
से वोंदचत कर उनका जीवन नरक तुल्य बना दिया गया।

आधुदनक समय में सादहत्य व समाज में ज 'िदलत' शब्द चचाण में आया उसके मूल में यही
शूद्र है । शूद्र की अवधारर्ा प्राचीन सन्दभण एवों िदलत की अवधारर्ा वतणमान सन्दभण में
जााँ ची एवों परखी जा सकती है।

'िदलत' शब्द की अवधारर्ा व्यस्थिपरक कम ह कर समुिायपरक अदधक है तथा यह


दकसी जादत दवशेि के दलए प्रयुि नहीों ह ता अथाण त् 'िदलत' शब्द का अथण, दजसका िलन
हुआ ह , ज िबाया-कुचला गया ह , दजसके साथ अन्याय-अत्याचार दकये गये ह ों तथा
दजसका एक स ची समझी सादजश के तहत उत्पी़िन व श िर् दकया गया ह ।

सादहत्य समाज का िपणर् है अतः समाज में व्याप्त ऐसी घ र दवडम्बना का प्रदतदबम्व सादहत्य
में ह ना आवश्यक है। प्राचीन समय से लेकर आधुदनक काल तक िदलत चेतना दकसी-न-
दकसी स्वरूप में दवद्यमान थी लेदकन इसकी व्यापकता आधुदनक काल की िे न है क् दों क
आधुदनककाल में िदलत अपने अदधकार ों की मााँ ग तथा अन्याय व अत्याचार ों के स्थखलाफ
सोंघिण करता हुआ दिखाई िे ता है । इस दृदष्ट से यह युग िदलत, पीद़ित, श दित जादतय ों के
दलए स्वर्णयुग से कम नहीों है ।

दहन्दी सादहत्य जगत में िदलत सादहत्य का प्रािु भाण व इसी सोंघिण का पररर्ाम है दजसके
माध्यम से िदलत ों ने नये मानवीय एवों समतामूलक समाज के दनमाणर् की आधारदशला
रखी तथा इसका आधार स्र त िदलत ों के मसीहा डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे दजन् न ों े िदलत
सादहत्य क दवकास पथ पर आगे बढ़ने के दलए प्रेररत दकया। उनकी दवचारधारा िदलत
सादहत्य का सैद्धास्थिक आधार बनी क् दों क अम्बेडकर िशणन िदलत सादहत्य का प्रेरर्ा
स्र त है। उन् न ों े िदलत सादहत्य क आज एक अलग पहचान दिलवाई है । प्रस्तुत श ध
प्रबन्ध में इन्ीों स्र त ों क आधार बनाकर समकालीन िदलत सादहत्य का दवश्लेिर्ात्मक
अध्ययन दकया गया है ।

आधुदनक काल में अनेक िदलत सादहत्यकार अपनी रचनाओों के माध्यम से िदलत सादहत्य
का सृजन कर रहे हैं। इस दृदष्ट से िे खा जाय त समकालीन िदलत सादहत्य का
दवश्लेिर्ात्मक अध्ययन एक दवस्तृत एवों वृहि् कायण बन जाता है अतः श ध की मयाण िाओों
क ध्यान में रखते हुए ओर अपने अध्ययन क वस्तुदनष्ठ बनाने के दलए समकालीन िदलत
सादहत्यकार ों एवों उनकी रचनाओों का समावेश दकया और 'वतणमान पररदृश्य में दहों िी
सादहत्य का िदलत दवमशण में य गिान' नामक दविय पर लघु श धकायण प्रस्तुत दकया दजसमें
वतणमान व समकालीन िदलत सादहत्य की दवदवध दवधाओों का दवश्लेिर्ात्मक अध्ययन
प्रस्तुत दकया है ।

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