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श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली चतुर्थ अध्याय भाग २

06-08-2018, 07:26 AM
श्री जिन सहस्त्रनाम मन्त्रावली चतुर्थ अध्याय भाग २

३५१-ॐ ह्रीं अर्हं निर्मदाय नमः -शंकर रहित होने से,

३५२-ॐ ह्रीं अर्हं शान्ताय नमः -शांति प्राप्त करने से',

३५३-ॐ ह्रीं अर्हं निर्मोहाय नमः -मोह रहित होने से,

३५४ -ॐ ह्रीं अर्हं निरुपद्रवाय नमः -उपसर्ग आदि रहित होने से,

३५५-ॐ ह्रीं अर्हं निनिर्मेषाय नमः - पलको के नही झपकने से,

३५६-ॐ ह्रीं अर्हं निराहाराय नमः -कवलाहार ग्रहण नही करने से ,

३५७ -ॐ ह्रीं अर्हं निष्क्रियाय नमः -सांसारिक क्रियाओं रहित होने से,

३५८-ॐ ह्रीं अर्हं निरुपप्लवाय नमः -बाधारहित होने से,

३५९-ॐ ह्रीं अर्हं निष्कलंकाय नमः -कलंक रहित होने से,

३६०-ॐ ह्रीं अर्हं निरस्तैनसे नमः -समस्त एनस अर्थात पापो को दूर करने से ,

३६१-ॐ ह्रीं अर्हं निर्धूतागसे नमः -समस्त अपराधों को दूर करने से ,

३६२-ॐ ह्रीं अर्हं निरास्रव नमः -कर्मों के आस्रव रहित होने से,

३६३-ॐ ह्रीं अर्हं विशालाय नमः -विशालतम होने से ,

३६४-ॐ ह्रीं अर्हं विपुलज्योतिषे नमः -के वलज्ञानरूपी विशाल ज्योति के धारक होने से',

३६५-ॐ ह्रीं अर्हं अतुलाय नमः -उपमा रहित होने से,

३६६-ॐ ह्रीं अर्हं अचिंत्यवैभवाय नमः - अचिन्त्यवैभव होने से',

३६७-ॐ ह्रीं अर्हं सुसंवृताय नमः -नवीन कर्मों आस्रव को रोककर पूर्ण संवर होने से,

३६८-ॐ ह्रीं अर्हं सुगुप्तात्मने नमः -की आत्मा अतिशय सुरक्षित होने से अथवा गुप्तियों युक्त होने से
३६९-ॐ ह्रीं अर्हं सुभुते नमः -समस्त पदार्थों के भली प्रकार ज्ञाता होने से,

३७०-ॐ ह्रीं अर्हं सुनयतत्वविदे नमः -समीचीन नयों के यथार्थ रहस्यों के ज्ञाता होने से,

३७१ॐ ह्रीं अर्हं एकविद्याय नमः -के वलज्ञानरूपी एक विद्या के धारक होने से,

३७२-ॐ ह्रीं अर्हं महाविद्याय नमः -बड़ी बड़ी विद्याओं के धारक होने से,

३७३ -ॐ ह्रीं अर्हं मुनये नमः -प्रत्यक्षज्ञानी होने से,

३७४-ॐ ह्रीं अर्हं परिवृढाय नमः -सबके स्वामी होने से,

३७५-ॐ ह्रीं अर्हं पतये नमः -संसार के समस्त जीवों के रक्षक होने से,

३७६-ॐ ह्रीं अर्हं धीशाय नमः -बुद्धि के स्वामी होने से ,

३७७-ॐ ह्रीं अर्हं विद्यानिधये नमः -विद्याओं के भंडार होने से,

३७८-ॐ ह्रीं अर्हं साक्षिणे नमः -समस्त पदार्थों के प्रत्यक्ष ज्ञाता होने से ;

३७९- ॐ ह्रीं अर्हं विनेत्रे नमः -मोक्षमार्ग को प्रकट करने वाले होने से,

३८०-ॐ ह्रीं अर्हं विहतान्तकाय नमः -मृत्यु को नष्ट करनेवाले होने से,

३८१-ॐ ह्रीं अर्हं पित्रे नमः -चतुर्गति के समस्त जीवों रक्षक होने से

३८२- ॐ ह्रीं अर्हं पितामहाय नमः -समस्त जीवों के गुरु होने से,

३८३ -ॐ ह्रीं अर्हं पात्रे नमः -समस्त जीवों के पालन करने से ,

३८४-ॐ ह्रीं अर्हं पवित्राय नमः -अतिशय शुद् होने से

३८५- ॐ ह्रीं अर्हं पावनाय नमः -सबको शुद्ध करने से

३८६- ॐ ह्रीं अर्हं गतये नमः -के अनुरूप सभी भव्यजीव तपश्चरण द्वारा होने से ,

३८७-ॐ ह्रीं अर्हं त्रात्रे नमः -खंडाकार छेद निकाल कर गतिरहित होने से,

३८८-ॐ ह्रीं अर्हं भिषग्वराय नमः -जन्म-जरा-मृत्यु रूप रोगो को नष्ट करने के लिए उत्तम वैद्य होने ,

३८९-ॐ ह्रीं अर्हं वर्याय नमः -श्रेष्ठ होने से,


३९०-ॐ ह्रीं अर्हं वरदाय नमः - इच्छानुकू ल पदार्थों को प्रदान करने वाले होने से

३९१ -ॐ ह्रीं अर्हं परमाय नमः - ज्ञानादि लक्ष्मी अतिशय श्रेष्ठ होने से

३९२ -ॐ ह्रीं अर्हं पून्से नमः -आत्मा और परपुरुषों को पवित्र करने के कारण होने से,

३९३-ॐ ह्रीं अर्हं कवये नमः -द्वादशांग का वर्णन करने वाले होने से

३९४-ॐ ह्रीं अर्हं पुराणपुरुषाय नमः -अनादिकाल से होनेसे

३९५-ॐ ह्रीं अर्हं वर्षीयसे नमः -गुणों की अपेक्षा अतिशय वृद्ध होने से,

३९६-ॐ ह्रीं अर्हं वृषभाय नमः -श्रेष्ठ होने से,

३९७-ॐ ह्रीं अर्हं पुरवे नमः -आदिपुरुष होने से,

३९८-ॐ ह्रीं अर्हं प्रतिष्ठाप्रभवाय नमः -सम्मान अथवा स्थिरता के कारण,

३९९-ॐ ह्रीं अर्हं हेतवे नमः -समस्त उत्तम कार्यों के कारण होने से

४००-ॐ ह्रीं अर्हं भुवनैकपितामहाय नमः -संसार के एकमात्र गुरु होने से,
(This post was last modified: 06-23-2018, 10:14 AM by scjain
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