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Ancient India (2024) by Pcs Mantra
Ancient India (2024) by Pcs Mantra
भारत से बाहर तिस क्षेत्र में भारतीय सिंस्कृ तत, मत्सस्य परु ाण में सवमप्रथम वृहत्तर भारत की
धमम एविं व्यापार का व्यापक प्रसार भारतीय अवधारणा तिखाई पड़ती
मल
ू के लोगों द्वारा तकया गया उस क्षेत्र को
वृहतर भारत कहा िाता है। इततहास लेखन में वृहतर भारत िब्ि का
सबसे पहले प्रयोग राधाकुमिु मख ु िी ने अपनी
पस्ु तक भारत की मौतलक एकता में तकया।
वहृ त्तरभारत
दक्षिण– पूवीएक्षिया मध्यएक्षिया+ क्षतब्बत+ चीन
मलाया (मलेतिया)
वृहतर भारत में भारतीय सस्िं कृ तत का प्रसार इििं ोनेतिया के मध्य िावा प्रान्त के मगेलागिं
मख्ु यतः तीन रूपों में िेखने का तमलता है :- नगर में तस्थत 750-850 ईसवी के मध्य का
महायान बौद्ध तवहार है। इसका एक नाम
1. सास्िं कृ ततक उपतनवेि के रूप में मध्य
एतिया, श्रीलिंका, िावा सुमात्रा बेोतनमया, यविीप भी है। यह आि भी सिंसार में सबसे
श्याम (थाईलैंि), किंपचू (किंबोतिया) इन बड़ा बौद्ध तवहार है।
क्षेत्रों में भारतीय सस्िं कृ तत का प्रसार
आरसी मिमू िार इसे तवश्व का आठवािं आियम
सास्िं कृ ततक उपतनवेिों के रूप में हुआ।
2. आध्यातत्समक प्रसार चीन, िापान, कोररया कहते हैं।
आति िेिों में बोद्ध धमम के व्यापक प्रसार के (2)लारोजंगरंगमक्षदरं :-इसे प्रम्बानन मिंतिर
रूप में भारतीय सिंस्कृ तत का प्रसार हुआ। भी कहते है,ये मिंतिर भगवान तवष्ण,ु तिव और
3. व्यापार एविं वातणज्य के रूप में पतिमी ब्रह्मािी को समतपमत है। इस मतिं िर को भी
एतिया के िरू स्थ िेिों िैसे रोम, यनू ान यनू ेस्को द्वारा तवश्व धरोहर घोतित तकया िा
आति एसे िेि है तिनमे भारतीय सिंस्कृ तत चक ु ा है। यहािं तत्रिेवों के साथ उनके वाहनों के
का अतधक प्रसार नहीं हुआ ये के वल
तलए भी अलग से मिंतिर बना हुआ है।
व्यापाररक सिंबिंध तक ही सीतमत रहे।
भटार गरुु िावा की सबसे लोकतप्रय मतू तम
पूवीद्वीपसमूह है।
जावा:- इन्िोनेतिया का एक द्वीप तिसे वयगिं –िावा प्रािंत के छाया नाटक िो
यवद्वीप भी कहते हैं रामायण और महाभारत के कथानक पर
(1)बोरोबदु ू रस्तूप:- तनमामण–िैलेंद्र वि
िं ीय आधाररत है।
िासको द्वारा।
वास्तकु ार– समु ात्रा
गनु ाधमाम समु ात्रा का प्राचीन राज्य श्री तविय
खोि–टॉम्स चीनी यात्री इतत्ससग ने इस स्थान की िो बार
ररफ्लेन यात्रा की।
बोरोबिु रू बोक्षनिया
तवहार अथवा इििं ोतिया के द्वीपों में सबसे बड़ा द्वीप
बरबिु रू
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नोट्स
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
* िासक मलू वमाम ने बहुस्वणम यज्ञ करवाया व यह ितु नया का सबसे बड़ा मिंतिर है। इस मतन्िर
20 हिार गाये िान में िी। को कम्बोतिया के राष्रध्वि में भी स्थान तिया
गया है। यह मतन्िर मेरु पवमत का भी प्रतीक है।
बाली:- चौथी सिी में यहााँ तहन्िु राज्य की इसकी िीवारों पर भारतीय तहन्िू धमम ग्रन्थों के
स्थापना हुई। प्रसिंगों का तचत्रण है। इन प्रसिंगों में अप्सराएाँ
बहुत सन्ु िर तचतत्रत की गई हैं, असरु ों और
क्षहदं चीन िेवताओ िं के बीच समद्रु मन्थन का दृश्य भी
बमाि(मयांमार)– तिखाया गया है। तवश्व के सबसे लोकतप्रय
पैगानकाआनदं मक्षं दर–(मयांमार):- पयमटन स्थानों में से एक होने के साथ ही
तनमामता - क्यिंतित्सया। भवु नातित्सय (ग्राम वार), यनू ेस्को की सास्िं कृ ततक धरोहर भी है।
उयरू ोसोल ने इस मतिं िर का तवस्तृत अध्ययन
तकया। चंपा–चम्पा ितक्षण पवू म एतिया (पवू ी
बमाम को " पैगोिों का िेि" कहा िाता है। तहन्िचीन
(192-
कंबोक्षिया– 1832)
अकोरवाट मिंतिर में) तस्थत
एक
स्थान– प्राचीन
तसमररप तहन्िू राज्य
तसटी(मीकािंग था। यहााँ भारतीय सिंस्कृ तत का प्रचार प्रसार था
निी) और इसके रािाओ िं के सिंस्कृ त नाम थे। चम्पा
तनमामण– के लोग और रािा िैव थे।
सयू मवमाम चिंपा राज्य के पािंच प्रमख
ु प्रािंत थे िो
तवयतनाम में फै ले हुए थे।
तद्वतीय(1112–53) व ियवममन सप्तम नोट–महािनपि काल में अिंग की रािधानी
िैली– ख्मेर व चोल िैली चिंपा का इस से कोई सिंबिंध नहीं है। वो चिंपा
तबहार में तस्थत है।
ऐक्षतहाक्षसककाल:-
प्राचीनभारतीयइक्षतहासकाक्षवभाजन:- इस काल की िानकारी के स्त्रोत के रूप में तलतखत
एविं पठनीय स्त्रोत उपलब्ध हैं, भारतीय सिंिभम में यह
इततहासकारों ने इततहास कालखिंण्ि छठी िताब्िी पवू म से िरुु होता है।
के अध्ययन को सतु वधािनक बनाने के तलए प्राचीन
इततहास को तीन भागों में बािंटा है,
ई.प.ू (B.C.) औरई.(A.D.) मेंअंतर
1. प्रागैततहातसक काल
िीसस क्राइस्ट के िन्म से पूवम की घटनाओ िं को
2. आद्य- ऐततहातसक काल
इततहास में ई. प.ू (B.C.: Before Christ ) कहा
3. ऐततहातसक काल
िाता है इसमें समय आगे से पीछे की ओर चलता
है।
प्रागैक्षतहाक्षसककाल:-
ई. (A.D.: Anno Domini) अथामत ईसा के िन्म
इस काल की सिंज्ञा इततहास के उस काल खिंण्ि को िी
का विम इसमें समय पीछे से आगे की ओर चलता
िाती है तिसमें िानकारी के तलए तलतखत साधनों का
है।
पणू मता अभाव था साथ ही तत्सकालीन मानव सभ्यता
से कोसों िरू था। इस काल के इततहास के बारे में
िानकारी के स्त्रोत पत्सथर के उपकरण, तखलौने एविं
स्त्रोत
तमट्टी के बतमन हैं।
आद्य-ऐक्षतहाक्षसककाल:-
इस काल की सिंज्ञा इततहास के उसक काल खिंण्ि को
िी गई है, तिसकी िानकारी के स्त्रोत के रूप में
तलतखत साक्ष्य उपलब्ध है तकिंतु उसकी तलतप को
पढने में इततहासकार और तलतपकार सफल नहीं हो
पायें हैं। इस काल खिंि में तसिंधु काल की सभ्यता एविं
वैतिक काल का अध्ययन िातमल है।
वेिों को औपौरुिेय िेव तनतममत एविं श्रतु त सिंतहताओ िं पर तिये भाष्य का िसू रा स्तर है।
(सनु ा हुआ)माना िाता है, वेि िब्ि तवि से इनमें ििमन और ज्ञान की बातें तलखी हुई हैं,
तनकला है तिसका अथम है िानना, सामान्य रूप कममकाण्ि के बारे में ये चपु हैं। इनकी भािा वैतिक
से इसका अथम ज्ञान होता है। सस्िं कृ त है।
वेिों के सक
िं लनकताम कृ ष्ण द्वैपायन वेि व्यास इनको रहस्य ग्रिंथ भी कहा िाता है।
थे। उपक्षनषद
वेि चार है ऋग्वेि सामवेि यिवु ेि अथवमवेि उपतनिि का िातब्िक अथम है गरुु के समीप
इन चारों वेिों को सिंतहता भी कहते हैं। बैठ कर तिष्य िो ज्ञान प्राप्त करें ।
वेि सिंस्कृ त भािा पद्य में तलखे गए हैं वैतिक सातहत्सय का अिंततम भाग उपतनिि है
अपवाि स्वरूप यिवु ेि गद्य पद्य िोनों में है| इसतलए उपतनििों को वेिािंत भी कहते हैं
ब्राह्मण उपतनििों का प्रमख
ु तविय आत्समतवद्या है
िो यज्ञ की व्याख्या करें वही ब्राह्मण है, उपतनििों की रचना गिंगा निी घाटी में हुई है
ब्राह्मण ग्रथिं ों को वेिों का पररतिष्ट माना िाता है ।
इसमें वेिों की व्याख्या गद्य में की गई हैं ब्राह्मण
नारािसिं ी सातहत्सय से तवतित होता है तक प्रारिंतभक उल्लेख तमलता है एविं िैन ग्रथिं
वैतिक काल में इततहास लेखन की परिंपरा मौििू पउमचररयिं रामायण का िैन सिंस्करण है।
इनकी रचना 600 ई.प.ू से 300 ई.प.ू के मध्य हुई। लतलत तवस्तार इत्सयाति पस्ु तके सिंस्कृ त में ही है।
वसतु मत्र का तवभािा िास्त्र बौद्ध धमम की बाइतबल
प्रमख
ु धममसत्रू :- आपस्तिंभ धममसत्रू ( ितक्षण
कहा िाता है यह भी सिंस्कृ त भािा में ही तलखा
भारत में रतचत), गौतम धममसूत्र, वतिष्ठ धममसत्रू
गया है।
और तवष्णु धममसत्रू ।
धममपद- इसे बौद्ध धमम की गीता कहते हैं
वणमव्यवस्था, वणमसिंकर और तमश्रिातत का का
स्पष्ट वणमन सत्रू सातहत्सय में ही तमलता है।
तवष्णु धममसत्रू में ही सवमप्रथम अस्पृश्य िब्ि का जैनसाक्षहत्य
प्रयोग हुआ है। िैन सातहत्सय को आगम कहा िाता है िो
आपस्तभिं ने िस विम के ब्राह्मण को 100 विम के तद्वतीय िैन सिंगीतत में ही आगम तलतपबद्ध हुआ
राजनीक्षतिास्त्रसेसंबंक्षधतपुस्तकें
अथमिास्त्र:- कौतटल्य की इस पस्ु तक को 1905
में प्रोफे सर सामिास्त्री में मैसरू सिंग्राहालय से प्राप्त
कर 1909 में ई. में अनवु ाि कर प्रकातित
करवाया।
1.(a)क्षनमनपुरापाषाणकालः-
तनम्न परु ापािाण काल में मख्ु यतः 2 प्रकार के पत्सथरों
के प्रकार तमले तिसे सिंस्कृ तत कह कर इसे पािाण
काल से िोड़ा गया।
1.चापर—चाक्षपंगपेबुलसंस्कृक्षत
2.हैण्ि—एक्ससंस्कृक्षत
1.चापर—चांक्षपगपेबुलसंस्कृक्षतः-
इस काल के उपकरण पिंिाव के सोहन निी घाटी से
प्राप्त हुए इसीतलए इसे सोहन सिंस्कृ तत भी कहते हैं। 1.(b)मध्यपुरापाषाणकालः-
2.मध्यपाषाणकालः- प्रमुखस्थलः-
इस काल में प्रयोग होने वाले पत्सथर बहुत छोटे क्षचरांद— तबहार के छपरा तिले में तस्थत। यहााँ
होते थे इसीतलए इसे ‘माइक्रोतलथ’ कहते हैं। से प्रचरु मात्रा में हि्िी के उपकरण प्राप्त हुए।
मानव के अतस्थपिंिर अथामत मानव के अविेि बुजिहोम— श्रीनगर, से प्राप्त कब्रों से कुत्तों को
मध्य पािाण काल से ही तमलने प्रारम्भ हुए। मातलक के साथ िफनाया गया।
प्रमुखस्थलः- कोक्षडिहवा — इलाहाबाि (उ0प्र0) यहााँ से
बागोर — भीलवाड़ा (रािस्थान) भारत का चावल का प्रचीनतम साक्ष्य (6000 ई0पवू म) प्राप्त
सबसे बड़ा मध्यपािातणक आवास स्थल हुआ।
सराहनहरराय— उत्तर प्रिेि चौपानीमािों—इलाहाबाि, हाथ से तनतममत
महदहा—प्रतापगढ़ (उ0प्र0) हि्िी व सींग के मृिभािंि (तमट्टी के बतमन) प्राप्त हुए।
उपकरण तमले।
आदमगढ़— होिगािंबाि(म0प्र0) से पिपु ालन ताम्रपाषाणकालः-
के प्राचीनतम साक्ष्य तमले। मनष्ु य ने सवमप्रथम तिस धातु का प्रयोग तकया
लंघनाज—गुिरात वहा ताबिं ा थी।
वीरभानपुर— प0 बिंगाल इस काल का नामकरण भी इसी धातु के नाम पर
हुआ।
3.नवपाषाणकालः- ताम्र पािाण काल, हड़प्पा की कािंस्य यगु ीन
सिंस्कृ तत से ठीक पहले की है। अतः ताबािं तफर
नव पािाण काल के स्थलों की खोि का श्रेय
भारत में िॉ0 प्राइमरोि को िाता है। कािंसा का प्रयोग हुआ। परन्तु कालाक्रमानसु ार
अथामत समय से कई ताम्र सस्िं कृ ततया,िं हड़प्पा
अथामत कािंस्ययगु ीन सभ्यता के बाि भी आती है।
कुछताम्रपाषाणसंस्कृक्षतयाः-
आहार संस्कृक्षत — 2800-1500 ई.
प.ू , उियपरु
कायथासंस्कृक्षत— 2400-1700 ई.
प.ू , चिंबल निी
मालवा संस्कृक्षत — 1900-1400 ई.
प,ू ् नममिा क्षेत्र
रंगपरु सस्ं कृक्षत—1700-1400 ई. प.ू ,
गिु रात
जोवे संस्कृक्षत — 1500-900 ई. प.ू ,
महाराष्र (िैमाबाि व इनामगााँव)
प्रभास संस्कृक्षत:- 2000- 14000
ई.प.ू ,
सावलदा संस्कृक्षत:- 2300- 2000
ई.प.ू , धतु लया, महाराष्र
उत्तरप्रदेिसेजुडेताम्रपाषाणकालीनस्थल:-
1. खैरािीह 2. नहरन 3. सोहगौरा ( गोरखपरु )
पतनः- स्मरणीयतथ्यः-
इसके परवती चरण में 2000 से 1700 ई0 पू0 के सैन्धवकालीन महु रें सवामतधक मोहन िोिड़ों से
बीच तकसी समय हड़प्पा कालीन सभ्यता का तमली है।
स्वतन्त्र अतस्तत्सव धीर-धीरे तवलप्तु हो गया। सवामतधक सैन्धव परु ास्थल गिु रात से ही
इस सभ्यता के पतनोन्मख ु और अन्ततः तवलप्तु उत्सखतनत हुए हैं।
हो िाने के अनेक कारण हैं िो तनम्नतलतखत हैं- हड़प्पा सभ्यता में प्रत्सयेक नगर िो भागों में
तवभातित थे, िबतक धौलावीरा तीन भागों में
तवभातित था।
भारतसेबाहरक्षस्थतप्राक्सैन्धवस्थल:-
1.क्षसंन्ध:-कोटिीिी एविं आमरी
2. बलूक्षचस्तान:- क्वेटा, कुल्ली,
तकलेगल ु मोहम्मि, मेहरगढ़, अिंिीरा, झाबिं ।
आमरी की खोि ए.िी. मिमू िार ने की थी।
यहािं से बारहतसगिं ा एविं गैंिे की हतियों का
प्रमाण तमलता है।
कोटिीिी स्थान का अिंत िो भयानक
अतग्नकािंिों से हुआ।
मेहरगढ़ प्राक् सैन्धव का सबसे प्राचीन स्थल
है।
‘नाल’ से गरुड़ के आकार वाली एक महु र तमली
है, यह गरुड़ अपने पिंिे में सपम को िबाये हुए है।
वंिमंण्िल:- िसू रे मिंण्िल से सातवें मण्िल कृ ति सबिं तिं धत िानकारी चौथे मििं ल से प्राप्त होती
तक को, विंिमण्िल कहा िाता है, इन ऋतियों है से प्राप्त होती है।
के समहू को प्रगाथा कहा िाता है। गायत्री मिंत्र (तिसकी रचना तवश्वातमत्र ने की थी)
का उल्लेख तीसरे मण्िल में हैं।
(1)ितपथब्राह्मण:-
यह सबसे प्राचीन और सबसे बड़ा ब्राह्मण माना
िाता है।
इसके लेखक ऋति याज्ञवलक्य हैं।
सामाक्षजकव्यवस्थाः-
सगं मकाल
सगिं म यगु से तात्सपयम ितक्षण भारत के आरिंतभक इस सिंगम का एकमात्र ततमल व्याकरण ग्रिंथ
संस्थापक — श्री गप्ु त
इततहास का वह यगु है, िब ततमल कतवयों द्वारा बड़ी ‘तोलकातप्पयम्’ ही उपलब्ध है।
चन्द्रगुप्कतवताओ
सिंख्या में ततमल त प्रथमः- िं की (319-35 रचना कीई0)गई।
— गुप्त वंश का वास्तववक संस्थापक राजधानी – पाटलिपुत्र
तृतीयसगं म
सिंगम िब्ि कतवयों के समागम319 अथामईत0 साथ आनेसंवत ‘गुप्
में नया त संआयोजनस्
वत’ चिाया थल: उत्सतरी मिरु ा
का स्थल है। अध्
लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाहिक संबंध स्थावपत करने के य ि: नक्विकीरर
कारण अपने को “लिच्छनयः दौहित्र” किता था।
परम्परागत रूप से एक के पिात 3 सिंगम तीसरे सिंगम की यह तविेिता है तक इस समय की
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने के लसक्के” जारी ककया।
आयोतित तकए गए। सक िं तलत कतवतायें आि भी उपलब्ध हैं।
तीनों सिंगम मिु रै के पाि सम् य ुर िासकों
गुप्तः- इसकी भी उपाधध
के सिंरक्षण में – लिच्छनयःदौहित्रस, “ंगकववराज” मसाक्षहत्य
तवतभन्न स्थलों पर आयोतित तकए गए। सगम सातहत्सय मल ू सेरूप से ततमल भािा में तलखे गये।
ववजय अलभयानों की जानकारी — िं ‘प्रयाग प्रशास्स्त ’
सगिं म सातहत्सय की कतवताएिं 2 तविय-वस्तु (प्रेम प्रमख ु सगं मग्रथ ं क्षनमनक्षलक्षखतहै-
ननंसेट आथथर ने इसे “भारत का नेपोलियन” किा िै ।
व यद्ध ु ) पर आधररत थी, इस सातहत्सय की तोलकाक्षप्पयम:् - यह एक व्याकरण ग्रिंथ है।
तविेिता तत्सकालीन ततमल लसक्को समािपर वीणा बजाते िुए धचत्रत्रत
का उत्तर धमम ककया
, अथमगया
, काम,िै । मोक्ष की व्याख्या इस ग्रिंथ मे
इसकी पत्नीआयोजनस्
ध्रुवस्वालमनी थल: को मि रु ा करने के लिए शकों का आक्रमण
प्राप्त एतुत्ितु आौके। :यह
इस घटना
8 ग्रिंथकीों काजानकारी
सिंग्रह हैववशाखदत्त कृत “दे वी
, इसतलये इसको
अध्यि: ऋति अगस्त्सय चन्द्रगुप्तम” नामक ग्रन्द्थ सेअष्प्राप्त ट सिंग्रिोती
ह भीिैकहते
। हैं।
यह सिंगम सबसे अतधक समय तक चला, यह इस अष्ट सिंग्रह का प्रमुख ग्रिंथ पररपािल है िो
सिंगम कुल 4400 चन्द्रग विों तक चला। ततमल सिंग्रह का प्रथम सिंगीत सिंग्रह है।
ुप्त द्ववतीय ‘ववक्रमाहदत्य’:- अन्द्य नाम-दे वराज या “दे वगुप्त”
प्रथम सिंगम का कोई भी ग्रिंथ उपलब्ध नहीं है। इस अष्ट सिंग्रह का िसू रा प्रमुख ग्रिंथ अहनारू है
परमभागवत की उपाधध उसके धमथननष्ठ वैष्णव िोने की पुस्ष्ट करता िै ।
िो तक मिरु ा तनवासी रुद्रिममन ने तलखा ।
क्षद्वतीयसचााँंगदमी की मुरा का प्रचिन करने वािा पििा गुप्त शासक
ू
दस अयोजनस्
री राजधानी थल:कपाटप
— उज्जनयनी (ववद्या रु म/ अलवै पत्तुप्पातु:
एवं संस्कृनत का प्रलसद्ध केन्द्र) इससे पििे ववहदशा को दस ू री राजधानी बनाया
अध्यि: अगस्त्सय ( बाि में तोलकातप्पयर इसको िस गीत भी कहते हैं।
नवरत्नः-
अध्यक्ष बने) यह तृतीय सिंगम का ग्रिंथ है।
यह सिंगमअमरलसं 3700 िविों , वेताि भट्ट, धन्द्वंतरर, शंकु, घटकपरर, क्षपण, कालिदास, वरािलमहिर, वररूधच
तक चली। यह चेर रािाओ िं की कहानी है।
शक ववजेता किा जाता िै ।
फाह्यानः-
चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की।
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नोट्स हेतु
COMPLET BATCH & STUDY NOTES चन्द्र के पाटलिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
इस ग्रिंथ का प्रमखु भाग पतत्तनप्पालै है, तिसकी क्षिडपाक्षदकारम्
रचना रुद्रनकन्ननार ने की, इस कृ तत से प्रभातवत लेखक: इल िं गोआतिगल
होकर चोल िासक कररकाल ने लेखक को 16 यह चेर िासक िेनगट्टु वन का भाई था।
लाख स्वणम मुद्रािंए ईनाम में िी थीं। कहानी:- इस ग्रिंथ का नायक कोवलम एविं
उसकी पत्सनी कन्नगिं ी है, कोवलन को पाण्िय
कुरल: िासक नेिुिेतलयन ने फािंसी िी थी, तिसके
यह तीसरे सिंगम के प्रमख ु ग्रथिं कारण कन्नगी ने क्रोध से मिरु ा को िला िाला
पतिनेतकल्लकणक्कु के 18 भागों में से एक है, और चेर राज्य चली गई, और चेर राज्य में
इसके लेखक ततरुवल्लवु र हैं। कन्नगी सती की िेवी के रूप में स्थातपत हुई,
कुरल को ततमल सातहत्सय का आधार ग्रिंथ माना तिल्पातिकारम् में कन्नगी पिू ा का उल्लेख
िाता है, इसकी गणना सातहतत्सयक तत्रवगम में की तमलता है।
गई है। यह एक िैन कहानी है।
इसे ततमल सातहत्सय का बाइबल और पिंचमवेि तिल्पातिकारम् में 32 प्रकार के सतू ी वस्त्रों की
भी माना िाता है। चचाम है।
इसमें ततमल रािओ िं द्वारा अपने तकले के द्वारपाल
संगमकालके महाकाव्य के रूप में यवनों की तनयतु क्त का उल्लेख है।
सगिं म यगु में कुल 5 महाकाव्य हैं- इस ग्रिंथ को ततमल सातहत्सय का इतलयि माना
1. तिल्पातिकारम् िाता है ।
2. मतणमेखलै तकसी सातहत्सय की तल ु ना इतलयि से करने का
3. िीवकतचतिं ामतण कारण-
4. वलयपतत इक्षलयि
5. कुण्िलके ति
इनमें से प्रथम तीन ही उपलब्ध हैं, यद्यतप यह इतलयि या ईतलयि प्राचीन यनू ानी िास्त्रीय
सातहत्सय सिंगम सातहत्सय के अिंतगमत नहीं आते (क्लातसकल) महाकाव्य है, िो यरू ोप के
बतल्क यह सिंगम यगु के महाकाव्य हैं। आतिकतव होमर की रचना मानी िाती है। इसका
नामकरण ईतलयन नगर (राय) के यद्ध ु के वणमन के
कारण हुआ है। समग्र रचना 24 पस्ु तकों में तवभक्त
है इतलयि में राय राज्य के साथ ग्रीक लोंगो के
यद्ध
ु का वणमन है। इस महाकाव्य में राय के तविय
िेनगणान:- िेनगुट्टुवन
इसके बारे में प्रचतलत था तक यह पवू म िन्म में यह चेर विंि का सबसे प्रतापी रािा था।
मकड़ा था। इसको लाल चेर और भला चेर भी कहते थे।
सगिं म यगु के चोल िासकों ने चौथी सिी तक इसने चेर राज्य में पतत्सतनी पिू ा ( पत्सनी पिू ा)
िासन तकया, इसके बाि चोल िासन अिंधकार अथामत कण्णगी पिू ा प्रारिंभ की।
पणू म हो िाता है, तफर आगे चलकर 850 ई. में इसने ‘समद्रु को पीछे हटाने वाला’ की उपातध
तवियालय के नेतत्सृ व में चोल सत्सता का धारण की ।
पनु रुत्सथान हुआ। पेरुन्िेलन:- ितक्षण में गन्ने की खेती प्रारिंभ की।
चेरराज्य पाण्ि्यराज्य
रािधानी: वातिं ि या करुयरू रािधानी: मिरु ै
तद्वतीय रािधानी: तोंण्िी प्रारिंतभक रािधानी: कोरकई
राितचन्ह: धनिु राितचन्ह: मछली
सिंगम सातहत्सय में सवामतधक िानकारी चेर राज्य
की तमलती है। नेक्षियोन:-
यह पाण्ि्य विंि का प्रथम िासक था।
इसने समद्रु की पिू ा प्रािंरभ करवायी।
उरैयूर
यह सतू ी वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा कें द्र था, िो
तक चोलों की समृतद्ध का सबसे बिा कारण था।
चेरबंदरगाह
1. मि
ु रर ( मिु रीस)
2. करौरा
3. वािंति
4. बन्िर
5. तोण्िी
यह सभी पतिमी तट पर तस्थत चेरों के बििं रगाह
थे।
मि ु रर बिंिरगाह से यवन सोना भर कर लाते थे,
और भारत से गोल तमचम लेकर िाते थे, यहािं से
आगस्तस मतिं िर भी तमला है,
पाण्ि्यबंदरगाह
1 कोकम ई (पवू ी तट)
2. िातलयरू ( पवू ी तट)
3. नेलतसण्िा (पतिमी तट)
कोकम ई बिंिरगाह पाण्ि्य का सबसे महत्सवपणू म
बिंिरगाह था।
(3)अक्षजतके सकमबक्षलन:-
मत:-भौततकवािी या उच्छे िवािी
इनके अनसु ार पाप पण्ु य सत्सय असत्सय सब झठू है,
क्योंतक मृत्सयु के बाि कुछ नहीं होता, इसतलये
अपने आनन्ि के तलये िो इच्छा हो वही करना
चातहए।
इस प्रकार इनका मत लोकायत अथवा चावामक
ििमन के बहुत करीब है।
(4)पकुधकच्चायन:-
मत:-तनयततवािी
यह मत भी भौततकवािी था, इनका कहना था तक
सिंसार में न कोई तकसी को मारता है, और न कोई
मारा िाता है।
(5)सवं र- तत्ररत्सनों (सम्यक ज्ञान, सम्यक ििमन एविं (4) वैयाव्रत- िान िेना एविं पिू ा करना
सम्यक चररत्र) के अनसु ारण से कमों का िीव की ओर कायाक्लेि:-
बहाव रुक िाता है। यह तस्थतत सिंवर कहलाती है। इसके अिंतगमत उपवास के द्वारा आत्समहत्सया का
तवधान है।
(6)क्षनजिरा- तत्ररत्सन के अनसु रण से कमों का िीव की इस पद्धतत को सल िं ेखना पद्धतत या तनतिद्धी भी
ओर बहाव रुक िाता है। तिससे नए कमों का सिंचय कहा िाता है।
कक्षपलवस्त-ु
आनन्द- िद्ध
ु ोधन-
ये बद्ध
ु का चचेरा भाई था यह बद्ध ु का व्यतक्तगत ये एक मात्र ऐसे बौद्ध उपासक थे िो सिंघ की
सेवक था एविं तप्रय तिष्य था आनन्ि के अनरु ोध सिस्यता तलए तबना अहमता की तस्थतत को प्राप्त
पर ही बद्ध
ु सिंघ में मतहलाओ िं के प्रवेि की हुए थे।
अनमु तत िी गयी थी प्रथम बौद्ध सिंगीतत में आनन्ि
को धम्मधर की उपातध िी गयी थी। प्रसेनक्षजत-
ये कोसल के रािा थे।
क्षबक्षमबसार- बद्ध
ु की पहली लाल चन्िन की काष्ठ प्रततमा का
ये मगध का िासक तथा बुद्ध का तमत्र और तनमामण करवाया था।
सिंरक्षक था। तबतम्बसार और इसकी पत्सनी छे मा
बद्ध
ु के तिष्य/तिष्या थे। अजातित्रु-
यह तबतिं बसार के पत्रु और मगध के िासक थे।
सुभद्र(सुभद्द)- प्रारिंभ में यह िैन धमम का अनयु ायी था तकन्तु
बद्ध
ु ने अपना अिंततम उपिेि सभु द्द को ही तिया अन्त समय में इसने बौद्ध धमम स्वीकार कर तलया
था। था।
देवदत्त- अक्षनरुद्ध-
ये बद्ध
ु का घोर तवरोधी था तफर भी बद्ध
ु ने इसको यह एक धनी व्यापारी का पत्रु था बौद्ध बनने के
िीतक्षत तकया था इसने बद्ध
ु के िीवनकाल में ही बाि इसने सब त्सयाग तिया।
सौन्दरानंद:-
यह भी अश्वघोि द्वारा रतचत है।
इसमें बद्धु बे सौतेले भाई सौन्िरानिंि के बौद्ध धमम
ग्रहण करने का काव्यात्समक वणमन है।
वज्रसचू ी:-
यह भी अश्वघोि द्वारा रतचत है, इसमें
वणमव्यवस्था का खिंिन है, कुछ तवद्वान इसे
धममकीती की रचना मानते है।
अक्षभधममकोष:-
इसकी रचना वसबु धिं ने की थी।
क्षविुक्षद्धमग्ग:-
यह हीनयान सिंप्रिाय का ग्रिंथ है तिसकी रचना
बद्ध
ु घोि द्वारा की गई।
यहभीजाक्षनये:-
1. गािंधीिी ने गीता को तवश्व माता कहा है।
16.कमबोज:-
रािधानी: हाटक ( वैतिक यगु में- रािपरु )
वतममानक्षेत्र: इसमें पातकस्तान का रावलतपिंिी,
पेिावर, काबल ु घाटी का क्षेत्र िातमल था।
मगधराज्यकाउत्कषि
अन्यमहत्वपण ू ितथ्य:-
विम, उपविम, वारुची, कात्सयायन एविं पतणतन िैसे
तवद्वान निंि विंि काल में थे।
नन्ि विंि के िासकों ने माप की नई प्रणाली
निंिोपक्रमतनमानातप चलायी थी।
नन्िविंि पहला विंि था तिसने बड़े पैमाने पर
आहत तसक्के िारी तकये थे।
नन्ि विंि ने प्रथम वृहत मगध साम्राज्य की
स्थापना की थी। इन्होनें पाटतलपत्रु को समस्त
उत्सतर भारत का कें न्द्र बना तिया था।
सन्नाती गल
ु बगम, कनामटक
बराबरकीगुिाए:ं - मौयिकालीनअन्यअक्षभलेख
1.महास्थानअक्षभलेख:- पतिम बिंगाल के
बराबर गहु ा, तबहार के गया तिले के पास
बोगरा तिले से प्राप्त अकाल से सिंबिंतधत
िहानाबाि तिले में तस्थत हैं।
अतभलेख।
िैलकृ त वास्तक ु ला का सबसे प्राचीनतम 2. सोहगौरा ताम्रलेख:- उत्सतर प्रिेि के
उिाहरण बराबर की गफ ु ािंए हैं। गोरखपरु तिले में तस्थत इसमें भी अकाल के
बराबर में 4 गफ
ु ािंओ िं का तनमामण तकया गया था समय अनाि तवतरण और सरु तक्षत रखने का
तिसमें 3 का तनमामण अिोक ने एविं 1 गहु ा का उल्लेख है।
तनमामण ििरथ ने करवाया था। ये 4 गफ ु ािंये 3.लंपकअक्षभलेख:-यह अतभलेख काबल ु
तनम्नतलतखत हैं- से प्राप्त हुआ है और सीररयाई भािा में तलखा
(1)सदु ामाकीगि ु ा:- यह सबसे प्राचीन है। गया है।
इसका तनमामण अिोक ने राज्यातभिेक के 12वें 4.बनु ेरअक्षभलेख:- पेिावर के तनकट प्राप्त
विम में करवाया था। हुआ है, यह उत्सतर पतिम में प्राप्त ब्राह्मी तलपी
का अके ला अतभलेख है।
(2) क्षवश्व झोपडी गुिा:- इसका तनमामण 5.बाहापुरलेख:- नई तिल्ली से प्राप्त लघु
अिोक ने राज्यातभिेक के 12वें विम में करवाया तिलालेख।
था।
(3)कणिचौपडगि ु ा:- इसका तनमामण अिोक
ने राज्यातभिेक के 19वें विम करवाया था।
(4)लोमिऋक्षषगि ु ा:- यह गफु ा बराबर और
नागािमनु ी िोनों पहातड़यों पर तस्थत है, और
उत्सतरातधकारी अिोक का पौत्र ििरथ हुआ था। → प्रािंत ( सवोच्च अतधकारी : गवनमर/ कुमार/
आयमपत्रु )
तवष्णु परु ाण के अनसु ार, अिोक के बाि सयु िस
गद्दी पर बैठा उसके बाि ििरथ गद्दी पर बैठा। → मििं ल ( सवोच्च अतधकारी: प्रािेतिक/
तिव्यविान के अनसु ार, अिोक के बाि कुणाल महामात्सय/ प्रिेष्टा)
िासक बना
कुणाल:-यह अिंधा था, इसके नाम का िातब्िक → तविय/ आहार ( तिला {अतधकारी- तवियपतत}
अथम है, सिंिु र आिंखों वाला। इसकी उपातध
धममतववधमन थी। → स्थानीय ( 800 ग्रामों का समहू )
संप्रक्षत:-यह िैन धमम को मानने वाला था। → द्रोणमख
ु ( 400 ग्रामों का समहू )
जालौक:- िालौक िैव मतानयु ायी था, और
बौद्धों से घृणा करता था, कल्हण इसे कश्मीर में → खावमतटक ( 200 ग्रामों का समहू )
अिोक का उत्सतरातधकारी बताते हैं।
दिरथ:- अिोक की तरह इसकी उपातध → सिंग्रहण ( 10 ग्रामों का समहू ) {अतधकारी-
िेवनािंतप्रय थी, और यह आिीवक मत का गोप}
समथमक था।
→ ग्राम {प्रमख
ु - ग्रामीण}
वृहद्रथ:- अिंततम मौयम िासक था, इसे, इसके
सेनापतत पष्ु यतमत्र ििंगु ने इसे मार कर ििंगु विंि
की स्थापना की थी।
कें द्रीयप्रिासन:-
यनू ानी इततहासकारों के अनुसार चिंद्रगप्ु त मौयम मेगास्थनीि की इतिं िका से पाटतलपत्रु के नगर
की सेना में 6 लाख पैिल, 30 हिार अश्वारोही, प्रिासन के सिंबिंध में िानकारी तमलती है। नगर
9 हिार हाथी, तथा सम्भवत: 9 हिार रथ थे। प्रिासन का प्रमख ु नागरक था, िबतक
मेगस्थनीि के तववरण से स्पष्ट होता है तक सेना मेगास्थनीि ने इसे एतस्टनोमोई कहा।
का प्रबिंध छ: सतमततयों द्वारा होता था प्रत्सयेक मेगास्थनीि के अनुसार, नगर का प्रिासन 6
सतमतत में 5-5 सिस्य थे। सतमततयों द्वारा चलाया िाता था। प्रत्सयेक सतमतत
कौतटल्य ने भी सेना के चार अगिं ों का वणमन तकया में 5 सिस्य होते थे।
है, िो इस प्रकार है- सक्षमक्षत कायि
1- मोलबल:- पैतक ृ या स्थायी सेना
2- भृटक:- श्रेतणयों की सेना। तिल्प कला सतमतत सिकों एविं भवनों का तनमामण,
3- क्षमत्रबल:- तमत्र राज्य की सेना। नगर की सफाई व्यवस्था
4- अक्षमत्रबल:- अतमत्र राज्य की सेना तविेि सतमतत तविेतियों के खाने, रहने, िवा
इत्सयाति की व्यवस्था
5- अटवीबल :- ििंगली िाततयों की सेना
िनसख्िं या सतमतत िन्म-मृत्सयु का रतिस्टर तैयार
अथमिास्त्र में अतग्नबाण का तथा त्सवररत करना
तचतकत्ससा सेवा (एम्बल ु ेंस) का उल्लेख तमलता उद्योग व्यापार उद्योग एविं व्यापार पर तनयिंत्रण
है। सतमतत वस्तओ ु िं के मल्ू यों का तनधामरण
अथमिास्त्र में तीन प्रकार के यद्ध ु ों का वणमन वस्तु तनरीक्षक तमलावटी वस्तुओ िं पर रोक
तमलता है। सतमतत
1.प्रकाियुद्ध:- िो लड़ाई खल ु े तौर कर तनरीक्षक तवभाग से प्राप्त करों का
पर आमने-सामने से लड़ी िाये। सतमतत तववरण रखना एिंव करों की
चोरी को रोकना
2. कूट यद्ध ु :- इस यद्ध ु में कूट या
चालाकी का प्रयोग तकया िाये
3.तूष्टणी युद्ध :- गप्ु तचरों द्वारा ित्रु न्यायप्रिासन:-
राज्यों में अव्यवस्था पैिा की िाती थी
सबसे बड़ा न्यायालय रािा का न्यायालय एविं
तिससे ित्रु राज्य स्वत: समाप्त हो
सबसे छोटा न्यायालय ग्राम न्यायालय होता था।
िाता था।
धमिस्थ ीय:- यह िीवानी न्यायालय था, इसका
प्रमख
ु व्यावहाररक था।
कला
मौयम कला के िो भागों में बािंटा िाता है-
1. रािकीय कला
2. लोक कला
स्तूप मंक्षदर/नगर
स्तपू बद्ध
ु के महापररतनवामण के प्रतीक हैं, यद्यतप अिोक ने तवतस्ता निी के तट पर श्रीनगर की
स्तपू का प्रथम उल्लेख ऋग्वेि में तमलता है, स्थापना की, और यहािं पर उसने अिोके श्वर
अिोकद्वाराक्षनक्षमितस्तूप:- मिंतिर का तनमामण करवाया
बौद्ध ग्रिंथ आिोक को 84000 स्तपू ों को बनाने अिोक ने नेपाल में लतलतपतन नामक नगर
वाला मानते हैं, तिनमें कुछ प्रमख ु स्तपू तनम्न हैं- बसाया था।
1. सांची महास्तूप:- यह मध्य प्रिेि के
रायसेन तिले में तस्थत है, यह अिोक द्वारा
तीसरी िताब्िी में बनवाया गया था, बाि में मक्षू तिकला
अतग्नतमत्र िगिंु ने इसका िीणोंद्धार करवाया पत्थरकीमूक्षतियां(लोक-कला):-
था, इसकी खोि 1818 में तब्रतटि अफसर परखम– ये यक्ष की मतू ी है तिसे मतणभद्र कहा
िनरल टेलर ने की थी। गया है, यह मथरु ा के परखम से प्राप्त हुई है,
2. देउर कोठार स्तूप:- मध्य प्रिेि के रीवा परखम कुबेर के कािोध्यक्ष है।
तिले में तस्थत अिोक द्वारा तनतममत इस स्तपू
की खोि 1892 में की गई। क्षवक्षदिाएवंग्वाक्षलयरकीमतू ी:-यहािं से यक्ष-
2.सारनाथके स्तूप:- सारनाथ में कई प्रमख ु ों यतक्षणी की मूती प्राप्त हुई है।
स्तपू ों की श्रिंखला है, तिनमें धमेख स्तपू और
मलू गधिं कुटीर तवहार, धममरातिक स्तपू इत्सयाति
िातमल हैं,
मद्भ
ृ भाण्ि
मौयम काल के सबसे प्रमखु मृद्भाभाण्ि उत्सतरी काले
पातलस वाले मृद्भाभाण्ि (नािमन ब्लैक पोतलस वेयर/
NBPW) हैं।
अक्षग्न क्षमत्र:- ििंगु काल में सिंस्कृ त भािा एविं ब्राह्मण व्यवस्था
पष्ु यतमत्र के बाि अतग्नतमत्र िासक बना का पनु रूत्सथान हुआ। इसी काल में पहला स्मृतत
कातलिास कृ त मातल्वकातग्नत्रम् के अनसु ार ग्रिंथ मनस्ु मृतत की रचना की गई।
पष्ु यतमत्र ििंगु का पौत्र (अतग्नतमत्र का पत्रु )
वसतु मत्र ने यवनों को परास्त तकया, ध्यातव्य है
तक कातलिास की मातलकातग्नतमत्र का नायक
यही अतग्नतमत्र ििंगु है।
भागभद्र
यह इस विंि का नौंवा िासक था।
इसी भागभद्र के तवतििा तस्थत िरबार में
तक्षतिला के यनू ानी िासक, एतटयालकीिस का
रािितू हेतलयोिोरस आया था, हेतलयोिोरस ने
भागभद्र से प्रभातवत होकर भागवत् धमम स्वीकार
कर तलया था, और भागवत् धमम की स्मृतत में
तवतििा में एक तवष्णु मतिं िर और गरुण ध्वि स्तभिं
बनवाया था।
अंक्षतम िुंग िासक:- ििंगु विंि का अिंततम
िासक िेवभतू त था। इसकी हत्सया 73 ई. प.ू में
मोयोत्तरकालीनअन्यराजवंि
कक्षलगं के चेक्षदराजवि ं हाथीगुमिाअक्षभलेख
सिंस्थापक:- महामेघवाहन
खोिकताम:- तविप स्टतलंग (1825)
रािधानी :- कतलिंग
चेति रािविंि को इसके सिंस्थापक के नाम के भािा : प्राकृ त
कारण महामेघवाहन विंि भी कहते हैं। तलतप: ब्राह्मी
खारवेल(प्रथमिताब्दीई.पू.):-
उपातध:- कतलिंगातधपतत, वृद्धराि, आयम महाराि, अवतस्थतत: यह अतभलेख भवु नेश्वर तिले में
धममराि, तभक्षरु ाि। उियतगरी-खण्ितगरी पहातड़यों पर गफ ु ा सिंख्या 14
पर उत्सकीणम ( तलखा) है।
‘खारवेल महाराि’ की उपातध धारण करने वाला
मतू तम पिू ा का प्रमाण िेने वाला यह पहला
पहला िासक था।
अतभलेख है, इसमें वणमन है तक महापिमनिंि तिन
खारवेल िैन धमम का अनयु ायी था, खारवेल ने िैन आतितिन की मतू तम ले गया था उसे खारवेल
भवु नेश्वर में उियतगरी-खण्ितगरी गफ ु ाओ िं का अपनी रािधानी वापस लाया था।
तनमामण करवाया। नहरों का वणमन करने वाला यह प्राचीनतम
उियतगरी की गफ ु ाओ िं में रानी गफु ा सबसे बड़ी अतभलेख है, इसमें वणमन है तक खारवेल ने अपने
गफ राज्यातभिेक के पाच िं वें विम तनसतु ल से रािधानी
ु ा है, उियतगरी की अन्य गफ ु ाओ िं में गणेि
तक नहर का तवस्तार कराया।
गफ ु ा, हाथी गफ ु ा, स्वगमपरु ी गुफा, मिंचापरु ी गफ
ु ा
इसमें िैन तभक्षओ
ु िं को ग्रामिान तिये िाने का पहला
इत्सयाति प्रतसद्ध हैं। अतभलेख है।
अपने िासन काल के 11वें विम खारवेल ने सघिं इसमें यह भी वणमन है तक खारवेल ने तफ ू ान से नष्ट
ततमरिेि सिंघातकम को परातित कर तपथण्ु ि हुए कतलिंग का पनु मतनमामण करवाया।
नगर में गधों द्वारा हल चलवाया। इस अतभलेख में यह भी वणमन है तक यद्ध ु में िहािों
खारवेल के बारे में तवस्तृत िानकारी उसके तनम्न का प्रयोग होता था।
िो अतभलेखों के माध्यम से तमलती है-
आभीरवंि
(1) हाथी गम्ु फा अतभलेख
संस्थापक:-ईश्वरसेन
(2) मिंचपरु ी गहु ा लेख
ईश्वरसेन ने 248-49 ईस्वी में कलचरु र चेति
इसमें हाथी गम्ु फा अतभलेख सवामतधक महत्सवपणू म
सिंवत् चलाया।
अतभलेख हैं-
महाभाष्य कहता है तक आभीर तविेिी थे।
क्षमनांिर(160-120ई.पू.)—
सबसे प्रतसद्ध यवन िासक था। उसने भारत में
यनू ानी सत्ता को स्थातयत्सव प्रिान तकया।
तमनाििं र को नागसेन ने बौद्ध धमम की िीक्षा िी थी,
इसने बौद्ध तभक्षु नागसेन से वाितववाि के बाि
बौद्ध धमम स्वीकार कर तलया था।
यनू ातनयों के बाि भारत पर िकों का हमला और इसी उपलक्ष्य में तवक्रमातित्सय ने तवक्रम
हुआ। सिंवत् (57 ई.प.ू ) चलाया था।
िक भारत में िो िाखाओ िं में तवभातित थे-
पक्षिमीभारतके िक
1. उत्सतरी क्षत्रप:- इनमें तक्षतिला और मथरु ा के
इनकी भी िो िाखाएिं थीं-
िक िासक िातमल थे,
1. क्षहरात िक
2. पतिमी क्षत्रप:- नातसक एविं उज्िैन के िक
िासक। 2. कािममक िक
इसको तगररनार अतभलेख भी कहते हैं। गोन्दोिक्षनिस (20-41 ई.):- पहलव विंि का
तविद्ध ु गद्य सिंस्कृ त भािा में तलखा गया यह पहला सवामतधक ितक्तिाली िासक था।
अतभलेख है। खरोष्ठी तलतप में उत्सकीणम तख्तेबही अतभलेख (
सिु िमन झील का सवमप्रथम अतभलेख इसी पेिावर) में इसे गिु व्ु हर कहा गया है, फारसी में
अतभलेख में तमलता है, तिसमें तलखा है तक उसका नाम तबन्िफणम है तिसका अथम है ‘यि
रुद्रिामन ने अपने राज्यपाल सुतविाख के तनिेिन
में सिु िमन बािंध की मरम्मत करवायी। तवियी’।
रुद्रिामन ने सातवाहन नरे ि वतिष्ठीपत्रु पल ु वामी इसकी रािधानी तक्षतिला थी।
को िो बार हराया था। गोन्िोफातनमस के िासन काल में सेंट टाइम ईसाई
धमम का प्रचार करने के तलए भारत आये थे,
पक्षिमी भारत का अंक्षतम िक नरेि :- रुद्रतसिंह तिनकी मद्रास के तनकट हत्सया कर िी गई थी।
तृतीय था, तिसे गप्ु त िासक चिंद्रगप्ु त तद्वतीय ने िकों तथा पतथमयन िासकों ने सयिं क्ु त िासन का
परातित कर पतिमी क्षत्रपों के राज्य को अपने राज्य चलन प्रारिंभ तकया, तिसमें यवु राि सत्सता के
में तमलाया उपभोग में रािा का बाराबर का सहभागी होता
था।
इस साम्राज्य का अन्त कुिाणों द्वारा हुआ।
गुप्तवंि
गप्ु त रािविंि के साथ भारत का इततहास एकसंनये स्थापक — श्री गुप्त
चन्द्रगुप्तप्रथम(319-335 ई.)
यगु में प्रवेि करता है कुिाण साम्राज्य के पतन
चन्द्रगप्त प्रथमः- (319-35 ई0) — गुप्त वंश का वास्तववक
रािधानीसंस्–थापक राजधानी – पाटलिपुत्र
के बाि िेि मेंु एक सिी तक तवश्रृिंखलता फै ली पाटतलप त्रु
रही और इस अिान्त तस्थतत का319लाभई0उठाकर गप्तु ववत’िंि चिाया
में नया संवत ‘गप्ु त सं
का वास्ततवक सिंस्थापक
उत्सतरी भारत में कई छोटे-छोटे स्वतिंत्र राज्य उठ 319 ई0 में नया सिंवत ‘गप्तु सविं त’ चलाया- इस
लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाहिक संबंध स्थावपत करने के कारण वि अपने को “लिच्छनयः दौहित्र” किता था।
खड़े हुए। सविं त् का सवमप्रथम प्रयोग चद्रिं गप्ु त तद्वतीय के
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने कमथ े लसक्क े ” जारीख ककया।
रु ा अतभले में हुआ है,
मौयोत्सतर काल के बाि तिस विंि ने उत्सतर भारत
को एकता के सत्रू में बाधिं सम र
ु ग
ा वह वप्ु ि
िं तः-गप्ु इसकी
त वि
िं था,भी उपाधध – तलच्छवी की, “रािक
लिच्छनयःदौहित्र कववराज” ु मारी कुमार िेवी के साथ
इसी यगु में आकर वृहत्सतर भारत (Greater वैवातहक सिंबिंध स्थातपत तकया, और इस तववाह
ववजय अलभयानों की जानकारी — ‘प्रयाग प्रशास्स्त से’
India) की अवधारणा पणू म हुई, इसी काल में के उपलक्ष्य में गप्ु तों का पहला तसक्का तववाह
ननंसेट आथथर ने इसे “भारत का नेप्रकार/ पोलियन” राििम्किा पततिै।प्रकार चलाया।
परु ाणों महाकाव्यों एविं ििििम न को अिंततम रूप
तिया गया। लसक्को पर वीणा बजाते िुए धचत्रत्रत ककया गया िै ।
फाह्यानः-
चन्द्रगप्ु त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की।
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नोट्स हेतु
COMPLET BATCH & STUDY NOTES चन्द्र के पाटलिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
समद्रु गप्ु तकीयद्ध
ु नीक्षत:- 3.दक्षिणापथकीक्षवजय:-इस यद्ध ु में समद्रु
1 . अयािवति ( उत्तर भारत) की नीक्षत:- गप्ु त ने कुल 12 राज्यों को परातित तकया, इन
प्रसभोद्धरण अथमत् पणू मतया उखाड़ फें कना, एविं राज्यों के प्रतत समद्रु गप्ु त द्वारा ग्रहणमोक्षानग्रु ह
तवलय करना। नीतत अपनायी गई।
2.दक्षिणापथनीक्षत:- ग्रहणमोक्षानग्रु ह अथामत् ितक्षणापथ की तविय में सबसे महवपणू म
तवलय न करना, मात्र करि बनाकर छोड़ िेना, िासक काच िं ी का पल्लव िासक तवष्णगु प्ु त
वहीं िब परातित िासक के राज्य का साम्राज्य एरणपल्ल का िासक िमन, पालक्क का
का तवलय कर तलया िाता था, तो उसे तितग्विय िासक उग्रसेन, वेंगी का िासक हतस्तवमाम,
कहा गया है। कुिस्थलपरु का िासक धनििं य था।
3. आटक्षवक नीक्षत:- परचाररकीकृ त अथामत समद्रु गप्ु त की ितक्षण तविय को इततहासकार
सेवक बना िेना। राय चौधरी ने धममतविय की सिंज्ञा िी।
महात्माबुद्धकीबैठीहुईमूक्षतियााँ:- मंक्षदरवास्तुकलाकीिैक्षलयााँ
अभय की मद्रु ा — इसमें बद्ध ु पद्मासन मद्रु ा में बैठे तिल्प िास्त्र नामक ग्रिंथ के अनसु ार मिंतिर
हैं, िायााँ हाथ अभय की मुद्रा में उठा है। इसे वास्तक ु ला की तीन श्रेतणयािं बतायी गई है। इसे
आिीवाि की मुद्रा कहा िाता है। मतिं िरों की िैलीगत बनावट के आधार पर तथा
द्रक्षवडिैली साक्षहत्य
इस िैली के मतिं िरों में वगामकार गभमगहृ पाया िाता है। इस काल में अनेक स्मृततयों एविं सत्रू ों पर भाष्य
इसके उध्वम तवन्यास में तवमान सीढ़ीिार तथा तपरातमि तलखे गये अनेक परु ाणों तथा रामायण एविं
आकार के पाये िाते हैं। तवमान के ऊपर का िीिम भाग महाभारत को अिंततम रूप तिया गया। नारि,
स्ततू पका कहलाता है। कात्सयायन, पारािर, वृहस्पतत आति स्मृततयों की
द्रतवड़ िैली के मतिं िरों की मुख्य तविेिता एक रचना हुई।
तविाल प्रािंगण का पाया िाना है, इसके अिंिर
मिंतिर स्थातपत होता था। इस प्रािंगण में प्रायः
िलकिंु ि पाये िाते हैं, साथ ही कई कक्ष और
अन्य मतिं िर भी होते हैं।
प्रागिं ण का मख्ु य प्रवेि द्वार गोपरु म कहा िाता
था। इसके िीिम पर िोनों तरफ गाय के सींग िैसी
भास्करप्रथम
पस्ु तक: महाभास्कयम, लघभु ास्कयम और भाष्य
आयमभट्ट के तसद्धािंतों को आधार बनाकर
भास्कर प्रथम ने आयमभरट्टयम पर अश्मकतिंत्र
नाम से टीका तलखी।
भास्कराचायि(भास्करक्षद्वतीय):
िन्म: खानिेि, महाराष्र
पस्ु तक: तसद्धािंततिरोमतण
भास्कराचायम को कै लक ु लस का
अतवष्कारकताम माना िाता है।
इनकी पस्ु तक तसद्धािंततिरोमतण के चार भाग हैं,
1. लीलावती
2. बीिगतणत
3. ग्रहगतणत
4. गोला
लीलावती का फारसी अनवु ाि मगु लकाल में
फै िी ने तकया।
क्षचक्षकत्सािास्त्र
िश्रु तु , गप्ु तकाल के िल्यतचतकत्ससक
(प्लातस्टक सिमन) थे, इन्होनें प्लातस्टक सिमरी
में प्रयक्ु त होने वाले 121 यिंत्रों का वणमन तकया
है।
चिंद्रगप्ु त तवक्रमातित्सय के िरबार में आयमवु ेि के
प्रतसद्ध तचतकत्ससक धनवन्तरी थे, तिन्होन
तनघण्टु पस्ु तक तलखी।
नवनीतकम् एक आयवु ेि ग्रिंथ है तिसकी रचना
गप्ु त काल में हुई।
गप्ु तोत्तरकाल
राजनीक्षतकदिाः- तवके न्द्रीकरण के यगु का आरम्भ हुआ,
संस्थापक — श्री गप्ु त
• गप्तु काल के पतन के बाि भारतीय हिमवधमन के राज्यारोहण के साथ ही उसकी
चन्द्रगुप्त प्रथमः- (319-35 ई0) — गुप्त वंश का वास्तववक समातप्त
संस्थापक हुई।राजधानी – पाटलिपुत्र
रािनीततक इततहास में एक ऐसी प्रवृतत्त का
आतवभामव हुआ िो तवतभन्न ई0 मेंमेंलगभग
319रूपों नया संवत ‘गुप्त संवत’ चिाया
1000 ई0तक हावी रही। • हिम के पवू म वधमन विंि की रािधानी थानेश्वर
लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाहिक संबंध स्थावपत करने के कारण वि अपने को “लिच्छनयः दौहित्र” किता था।
• यह प्रवृतत्त थी — तवके न्द्रीकरण और थी। तकन्तु हिम ने कन्नौि को अपनी
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने के लसक्क े ” जारी ककया।
रािधानी बनाई।
क्षेत्रीयता की भावना।
• सातवीं सिी तक आते-आते पाटतलपत्रु के
समुर गुप्तः- इसकी भी उपाधध – लिच्छनयःदौहित्र, “कववराज”
चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की।
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नोट्स हेतु
COMPLET BATCH & STUDY NOTES
चन्द्र के पाटलिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
से लेकर 645 ई0 तक भारत में रहा। वह
नालन्िा के बौद्ध तवश्वतवद्यालय में पढ़ने के
तलए और भारत से बौद्ध ग्रन्थ बटोर कर ले
िाने के तलए आया था।
• वह सयू म, तिव एविं बद्ध
ु का उपासक था।
• हिम को तवद्वानों के सम्पोिक के रूप में नहीं
बतल्क तीन नाटकों तप्रयितिमका, रत्सनावली
तथा नागानन्ि के रतचयता के रूप में याि
तकया िाता है। उसे सातहत्सयाकार सम्राट
कहा गया है।
• हिम ितक्षण भारत में अपने साम्राज्य का
तवस्तार नहीं कर सका था। चालक्ु य नरे ि
पल
ु के तिन तद्वतीय से नममिा निी के तट पर
उसका यद्ध
ु हुआ था।
उपलक्षब्धः-
• गप्तु ोत्तर काल के नवेतित राज्यों पर सबसे
लम्बे समय तक िासन तकया।
• इन्होंने हूणों को परातित कर पवू ी भारत
को उनके आक्रमण से बचाया।
• गप्तु ों के उपरान्त उत्तर भारत में सबसे
तविाल राज्य स्थातपत तकया।