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COMPLET BATCH & STUDY NOTES


प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
वहृ त्‍तर‍भारत

भारत से बाहर तिस क्षेत्र में भारतीय सिंस्कृ तत, मत्सस्य परु ाण में सवमप्रथम वृहत्तर भारत की
धमम एविं व्यापार का व्यापक प्रसार भारतीय अवधारणा तिखाई पड़ती
मल
ू के लोगों द्वारा तकया गया उस क्षेत्र को
वृहतर भारत कहा िाता है। इततहास लेखन में वृहतर भारत िब्ि का
सबसे पहले प्रयोग राधाकुमिु मख ु िी ने अपनी
पस्ु तक भारत की मौतलक एकता में तकया।

वहृ त्‍तर‍भारत‍
दक्षिण‍– पूवी‍एक्षिया‍ मध्‍य‍एक्षिया‍+ क्षतब्‍बत‍+ चीन

(A) पवू ी‍द्वीप‍समूह‍ (B) क्षहन्‍द-चीन खोतान

िावा कम्बिू (कम्बोतिया)


वामयान

समु ात्रा बमाम (म्यािंमार) कुची

बाली चम्पा (अन्नाम ) ततब्बत

बोतनमया स्थाम (थाईलैंि )

मलाया (मलेतिया)

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नोट्स
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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

वृहतर भारत में भारतीय सस्िं कृ तत का प्रसार इििं ोनेतिया के मध्य िावा प्रान्त के मगेलागिं
मख्ु यतः तीन रूपों में िेखने का तमलता है :- नगर में तस्थत 750-850 ईसवी के मध्य का
महायान बौद्ध तवहार है। इसका एक नाम
1. सास्िं कृ ततक उपतनवेि के रूप में मध्य
एतिया, श्रीलिंका, िावा सुमात्रा बेोतनमया, यविीप भी है। यह आि भी सिंसार में सबसे
श्याम (थाईलैंि), किंपचू (किंबोतिया) इन बड़ा बौद्ध तवहार है।
क्षेत्रों में भारतीय सस्िं कृ तत का प्रसार
आरसी मिमू िार इसे तवश्व का आठवािं आियम
सास्िं कृ ततक उपतनवेिों के रूप में हुआ।
2. आध्यातत्समक प्रसार चीन, िापान, कोररया कहते हैं।
आति िेिों में बोद्ध धमम के व्यापक प्रसार के (2)‍लारो‍जंगरंग‍मक्षदरं ‍:-‍इसे प्रम्बानन मिंतिर
रूप में भारतीय सिंस्कृ तत का प्रसार हुआ। भी कहते है,ये मिंतिर भगवान तवष्ण,ु तिव और
3. व्यापार एविं वातणज्य के रूप में पतिमी ब्रह्मािी को समतपमत है। इस मतिं िर को भी
एतिया के िरू स्थ िेिों िैसे रोम, यनू ान यनू ेस्को द्वारा तवश्व धरोहर घोतित तकया िा
आति एसे िेि है तिनमे भारतीय सिंस्कृ तत चक ु ा है। यहािं तत्रिेवों के साथ उनके वाहनों के
का अतधक प्रसार नहीं हुआ ये के वल
तलए भी अलग से मिंतिर बना हुआ है।
व्यापाररक सिंबिंध तक ही सीतमत रहे।
भटार गरुु िावा की सबसे लोकतप्रय मतू तम
पूवी‍द्वीप‍समूह‍ है।
जावा:- इन्िोनेतिया का एक द्वीप तिसे वयगिं –िावा प्रािंत के छाया नाटक िो
यवद्वीप भी कहते हैं रामायण और महाभारत के कथानक पर
(1)‍बोरोबदु ू र‍स्‍तूप:- तनमामण–िैलेंद्र वि
िं ीय आधाररत है।
िासको द्वारा।
वास्तकु ार– समु ात्रा
गनु ाधमाम समु ात्रा का प्राचीन राज्य श्री तविय
खोि–टॉम्स चीनी यात्री इतत्ससग ने इस स्थान की िो बार
ररफ्लेन यात्रा की।
बोरोबिु रू बोक्षनिया
तवहार अथवा इििं ोतिया के द्वीपों में सबसे बड़ा द्वीप
बरबिु रू
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नोट्स
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
* िासक मलू वमाम ने बहुस्वणम यज्ञ करवाया व यह ितु नया का सबसे बड़ा मिंतिर है। इस मतन्िर
20 हिार गाये िान में िी। को कम्बोतिया के राष्रध्वि में भी स्थान तिया
गया है। यह मतन्िर मेरु पवमत का भी प्रतीक है।
बाली:- चौथी सिी में यहााँ तहन्िु राज्य की इसकी िीवारों पर भारतीय तहन्िू धमम ग्रन्थों के
स्थापना हुई। प्रसिंगों का तचत्रण है। इन प्रसिंगों में अप्सराएाँ
बहुत सन्ु िर तचतत्रत की गई हैं, असरु ों और
क्षहदं ‍चीन िेवताओ िं के बीच समद्रु मन्थन का दृश्य भी
बमाि(मयांमार)– तिखाया गया है। तवश्व के सबसे लोकतप्रय
पैगान‍का‍आनदं ‍मक्षं दर–‍(मयांमार):- पयमटन स्थानों में से एक होने के साथ ही
तनमामता - क्यिंतित्सया। भवु नातित्सय (ग्राम वार), यनू ेस्को की सास्िं कृ ततक धरोहर भी है।
उयरू ोसोल ने इस मतिं िर का तवस्तृत अध्ययन
तकया। चंपा–चम्पा ितक्षण पवू म एतिया (पवू ी
बमाम को " पैगोिों का िेि" कहा िाता है। तहन्िचीन
(192-
कंबोक्षिया– 1832)
अकोरवाट मिंतिर में) तस्थत
एक
स्थान– प्राचीन
तसमररप तहन्िू राज्य
तसटी(मीकािंग था। यहााँ भारतीय सिंस्कृ तत का प्रचार प्रसार था
निी) और इसके रािाओ िं के सिंस्कृ त नाम थे। चम्पा
तनमामण– के लोग और रािा िैव थे।
सयू मवमाम चिंपा राज्य के पािंच प्रमख
ु प्रािंत थे िो
तवयतनाम में फै ले हुए थे।
तद्वतीय(1112–53) व ियवममन सप्तम नोट–महािनपि काल में अिंग की रािधानी
िैली– ख्मेर व चोल िैली चिंपा का इस से कोई सिंबिंध नहीं है। वो चिंपा
तबहार में तस्थत है।

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नोट्स हेतु
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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
मध्‍य‍एक्षिया‍/‍क्षतब्‍बत/‍चीन‍ अयोध्या
बामयान‍:- यह अफगातनस्तान में तस्थत है। ‍अयोध्‍या‍की‍स्थापना–‍‍रामायण के
यहािं पर महात्समा बद्ध
ु की सबसे बड़ी मतू ी थी अनसु ार तववस्वान (सयू म) के पत्रु वैवस्वत मनु
तिसे 2001 में तातलबान ने तोड़ तिया था। महाराि द्वारा अयोध्या की स्थापना की गई
थी।
‍िाक्षब्दक‍अथि–‍भतवष्य का योद्धा ,लड़ा
िाना
अन्य‍नाम– साके त ,कोिल, सैया
बौद्ध और िैन सातहत्सय में में अयोध्या को
पािंच तीथंकर ऋिभनाथ, अतितनाथ,
अतभनिंिननाथ, सतु मतनाथ और अनिंतनाथ
खोतान‍:- की िन्मस्थली बताया गया है।
1. यह वतममान चीन में तस्थत है।
तविेि में अयोध्या – थाईलैंि में अयत्सु या’
2. पवू म में यह एक तहिंन्िू बहुल था,
और इििं ोनेतिया में ‘योग्यकाताम’ िहरों के
तिसकी स्थापना अिोक के पत्रु
नाम अयोध्या के नाम पर रखा गए है
कुणाल ने की थी।
फाहयान ने खोतान में बौद्ध तिक्षा के प्रमख ु महािनपि काल में कौिल महािनपि
कें न्द्र गोमती तवहार का उल्लेख तकया है। की प्रथम रािधानी अयोध्या थी।
िगिंु विंि के धनिेव का सिंस्कृ त भािा में
कूची:-‍यह भी चीन में तस्थत है इसे परु ाणों में
‘कुिद्वीप कहा गया है। ईसा पवू म पहली िताब्िी का अतभलेख
अयोध्या में तमला है।
क्षतब्‍बत:- ततब्बती तवद्वान पद्मसम्भव को समद्रु गप्तु के ब्राह्मी एविं खरोष्ठी तलतप में तािंबे
िसू रा बद्ध
ु कहा िाता है। व चाििं ी के तसक्के अयोध्या से प्राप्त हुए हैं।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
प्राचीन‍भारतीय‍इक्षतहास‍का‍‍क्षवभाजन‍एव‍ं स्‍त्रोत

ऐक्षतहाक्षसक‍काल:-‍
प्राचीन‍भारतीय‍इक्षतहास‍का‍क्षवभाजन‍:- इस काल की िानकारी के स्त्रोत के रूप में तलतखत
एविं पठनीय स्त्रोत उपलब्ध हैं, भारतीय सिंिभम में यह
इततहासकारों ने इततहास कालखिंण्ि छठी िताब्िी पवू म से िरुु होता है।
के अध्ययन को सतु वधािनक बनाने के तलए प्राचीन
इततहास को तीन भागों में बािंटा है,
ई.प.ू ‍(‍B.C.) और‍ई.‍(A.D.) में‍अंतर‍
1. प्रागैततहातसक काल
िीसस क्राइस्ट के िन्म से पूवम की घटनाओ िं को
2. आद्य- ऐततहातसक काल
इततहास में ई. प.ू (B.C.: Before Christ ) कहा
3. ऐततहातसक काल
िाता है इसमें समय आगे से पीछे की ओर चलता
है।
प्रागैक्षतहाक्षसक‍काल:-‍
ई. (A.D.: Anno Domini) अथामत ईसा के िन्म
इस काल की सिंज्ञा इततहास के उस काल खिंण्ि को िी
का विम इसमें समय पीछे से आगे की ओर चलता
िाती है तिसमें िानकारी के तलए तलतखत साधनों का
है।
पणू मता अभाव था साथ ही तत्सकालीन मानव सभ्यता
से कोसों िरू था। इस काल के इततहास के बारे में
िानकारी के स्त्रोत पत्सथर के उपकरण, तखलौने एविं
स्‍त्रोत‍
तमट्टी के बतमन हैं।

आद्य-ऐक्षतहाक्षसक‍काल:-‍
इस काल की सिंज्ञा इततहास के उसक काल खिंण्ि को
िी गई है, तिसकी िानकारी के स्त्रोत के रूप में
तलतखत साक्ष्य उपलब्ध है तकिंतु उसकी तलतप को
पढने में इततहासकार और तलतपकार सफल नहीं हो
पायें हैं। इस काल खिंि में तसिंधु काल की सभ्यता एविं
वैतिक काल का अध्ययन िातमल है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
पुराताक्षत्व‍ ‍क‍स्‍त्रोत  तसक्कों का अध्ययन- न्यमू ैसमेतटक्स ।
 भारतीय मद्रु ा पररिि -इलाहाबाि में 1910 में
अक्षभलेख स्थातपत ।
अतभलेख पत्सथर अथवा धातु िैसी अपेक्षाकृ त कठोर  भारतीय उपमहाद्वीप के आरिंतभक तसक्के आहत
सतहों पर उत्सकीणम तकये गये पाठन सामग्री को कहते तसक्के हैं।
है। िासक इसके द्वारा अपने आिेिो को इस तरह  सवमप्रथम तसक्कों पर लेख तलखवाने का कायम
उत्सकीणम करवाते थे, तातक लोग उन्हे िेख सके एविं पढ़ तहििं यवन िासकों ने तकया
सके और पालन कर सकें ।
 स्वणि‍ क्षसक्का:- सवमप्रथम तहन्ि यवन िासकों
अतभलेखों के अध्ययन को एपीग्राफी कहते हैं वहीं
ने स्वणम तसक्का िारी तकया सवमप्रथम तहििं ी यवन
प्राचीन तलतपयों का अध्ययन "पेतलयोग्राफी"
िासक तमनाििं र था तिसने स्वणम तसक्का िारी
कहलाता है। हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त अतभलेख वेसे
तकया था ,कुिाण िासकों में सवमप्रथम तवम
तो सबसे प्राचीन माने िाते हैं, परिंतु उन्हें अभी तक न
कै ितफिेसस ने भारतविम में स्वणम तसक्का
पढ़पाने के कारण उनकी प्राचीनता तसद्ध नहीं होती है
चलाया अतधकािंि इततहासकार तवम
अत: मध्य एतिया के बोगिकोई से प्राप्त 1400 पवू म
कै ितफिेसस को ही भारत में सवमप्रथम स्वणम
का अतभलेख सवामतधक प्राचीन माना िाता है। यह
तसक्का िारी करने का श्रेय िेते हैं िबतक तमनािंिर
अतभलेक कीलक तलतप में है तिसकी खोि वीकलर
का स्वणम तसक्का कौिािंबी से प्राप्त हो चक
ु ा है।
महोिय ने 1907 ईस्वी में की थी। ितक्षण भारत में
नोट-‍ उत्तर‍ प्रदेि‍ लोक‍ सेवा‍ आयोग‍ भारत‍ में‍
मतिं िरों की िीवारों पर चोल कालीन अतभलेख तमलते
सविप्रथम‍ स्वणि‍ क्षसक्का‍ चलाने‍ का‍ श्रेय‍ क्षवम‍
हैं भारत की प्राचीनतम अतभलेख अिोक के हैं तिसे
कै िक्षििेसस‍को‍देता‍है।‍
सवमप्रथम िेम्स तप्रिंसेप ने पढ़ा था। अतभलेख तसक्कों
गप्तु िासकों में सवमप्रथम स्वणम तसक्का चलाने का श्रेय
की अपेक्षा ज्यािा प्रमातणक साक्ष्य के रूप में स्वीकार
चिंद्रगप्तु प्रथम को है।
तकया िाते हैं क्योंतक यह रािाओ िं की घोिणा होते हैं।
साक्षहक्षत्यक‍स्‍त्रोत
‍क्षसक्का(coin)
तसक्के अथामत मद्रु ा भी भारतीय इततहास को िानने
धाक्षमिक‍ग्रंथ
का प्रमखु स्रोत है इससे ना तसफम तत्सकालीन िासकों
की आतथमक तस्थतत के बारे में िानकारी तमलती है
बतल्क इसके साथ-साथ धातुओ िं व रािनीततक तस्थतत धातममक ग्रिंथों में मख्ु यतः तीन तवभािन है
की भी िानकारी प्राप्त होती है 1-ब्राह्मण सातहत्सय
 भारतीय मुद्रा िास्त्र के िनक- िेम्स तप्रिंसेप 2-बौद्ध सातहत्सय

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
3-िैन सातहत्सय ग्रथिं ों में रािा परीतक्षत के बाि एविं तबम्बसार से
(नोट-‍क्षनमनक्षलक्षखत‍स्रोत‍भारतीय‍इक्षतहास‍को‍ पहले की घटनाओ िं की िानकारी तमलती है।
जानने‍के ‍स्रोत‍के ‍रूप‍में‍जानकारी‍के ‍क्षलए‍रखे‍  हर वेि का एक या एक से अतधक
गए‍हैं‍इन‍का‍क्षवस्तृत‍वणिन‍उनसे‍संबंक्षधत‍चैप्टर‍ ब्राह्मणग्रन्थ है।
में‍क्षमलेगा।) आरण्यक
 आरण्यक तहन्िू धमम के पतवत्रतम और
1.‍ब्राह्मण‍साक्षहत्‍य‍‍ सवोच्च ग्रन्थ वेिों का गद्य वाला खण्ि है। ये
वेद‍ वैतिक वाङ्मय का तीसरा तहस्सा है और वैतिक

 वेिों को औपौरुिेय िेव तनतममत एविं श्रतु त सिंतहताओ िं पर तिये भाष्य का िसू रा स्तर है।

(सनु ा हुआ)माना िाता है, वेि िब्ि तवि से  इनमें ििमन और ज्ञान की बातें तलखी हुई हैं,
तनकला है तिसका अथम है िानना, सामान्य रूप कममकाण्ि के बारे में ये चपु हैं। इनकी भािा वैतिक
से इसका अथम ज्ञान होता है। सस्िं कृ त है।

 वेिों के सक
िं लनकताम कृ ष्ण द्वैपायन वेि व्यास  इनको रहस्य ग्रिंथ भी कहा िाता है।
थे। उपक्षनषद‍
 वेि चार है ऋग्वेि सामवेि यिवु ेि अथवमवेि  उपतनिि का िातब्िक अथम है गरुु के समीप
इन चारों वेिों को सिंतहता भी कहते हैं। बैठ कर तिष्य िो ज्ञान प्राप्त करें ।
 वेि सिंस्कृ त भािा पद्य में तलखे गए हैं  वैतिक सातहत्सय का अिंततम भाग उपतनिि है
अपवाि स्वरूप यिवु ेि गद्य पद्य िोनों में है| इसतलए उपतनििों को वेिािंत भी कहते हैं
ब्राह्मण‍  उपतनििों का प्रमख
ु तविय आत्समतवद्या है
 िो यज्ञ की व्याख्या करें वही ब्राह्मण है,  उपतनििों की रचना गिंगा निी घाटी में हुई है
ब्राह्मण ग्रथिं ों को वेिों का पररतिष्ट माना िाता है ।
इसमें वेिों की व्याख्या गद्य में की गई हैं ब्राह्मण

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
नारािंसी‍साक्षहत्य इसतलए इस ग्रथिं का नाम "चतनु मतविततसाहहस्त्री

 इसमें रािाओ िं व ऋतियोाँ के स्ततु तपरक गीत सिंतहता" पड़ा

है  बौद्ध ग्रिंथ ििरथ िातक में इसकी कथा का

 नारािसिं ी सातहत्सय से तवतित होता है तक प्रारिंतभक उल्लेख तमलता है एविं िैन ग्रथिं

वैतिक काल में इततहास लेखन की परिंपरा मौििू पउमचररयिं रामायण का िैन सिंस्करण है।

थी।  1930 के ििक में रामास्वामी पेररयार ने

वेदांग‍ सच्ची रामायण का लेखन भी तकया था।


 सवमप्रथम 12 वीं िताब्िी में ततमल में
 वेिों को समझने के तलए छह वेिागिं ों की
रामायण का अनुवाि कम्बन ने "ईरामावतारम"
रचना की गई यह वैतिक सातहत्सय का भाग नहीं
नाम से तकया।
माने गए हैं ।
 मगु ल काल में रामायण का फारसी अनवु ाि
 प्रमख
ु वेिािंग तनम्न है-
अकबर के समय अब्िल
ु कातिर बिायनू ी ने व
 व्याकरण (मख
ु )
िाहिहािं के समय इब्नहरकरण ने तकया।
 ज्योतति (नेत्र)
 बिंगाल में रामायण का अनवु ाि कृ ततबास ने
 तनरुक्त (कान)
तकया इसे बगिं ाल की बाइतबल कहा िाता है।
 तिक्षा (नातसका)
 कल्पसत्रू (हाथ)
महाभारत
 छिंि (पैर)
 परिंपरा के अनसु ार इस ग्रिंथ के तलतपक भगवान
रामायण
श्री गणेि थे लेतकन सातहत्सय में इसे वेिव्यास की
 रामायण वाल्मीतक द्वारा तलखा गया आति कृ तत माना िाता है ।
काव्य है इसमें सात काििं (अध्याय) हैं मल
ू रूप
 महाभारत में कुल 18 पवम ( अध्याय) हैं
से इसमें 6000 श्लोक थे िो बढ़कर 24000 हुए

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 भगवद्गीता इसके भीष्म पवम का भाग है िािंतत पवम पुराण‍
महाभारत का सबसे बड़ा पवम है  परु ाणों के रचतयता लोमहिमक व उनके पत्रु
 महाभारत का प्राचीन नाम िय था इसतलए उग्रश्रवा को माना िाता है कहीं-कहीं वेिव्यास
उसको "ियसतिं हता" भी कहते हैं । को भी परु ाणों का कताम माना िाता है।
 महाभारत के तविय में यह भी कहा िाता है तक  परु ाण भतवष्य िैली में तलखे गए हैं
इसे परू ा परू ा एक बार में कभी नहीं पढ़ना चातहए  इसमें तििनु ाग विंि से लेकर गप्तु विंि तक
क्योंक रोग व्यातधयािं आ िाती हैं। के इततहास की िानकारी तमलती है।
अनुवाद- ततमल में पेरूनिेवनार ने भारतबेिवा  परु ाणों में ही कृ त ,त्रेता, द्वापर एविं कलयगु
नाम से महाभारत का अनवु ाि तकया ,तेलगु ु में नामक चार यगु बताए गए हैं श्रीराम का सिंबिंध
महाभारत का अनवु ाि ननैया प्रारिंभ तकया और त्रेता व कृ ष्ण का द्वापर से था।
ततकन्ना ने पणू म तकया। ननैया महाभारत का अनवु ाि
 मत्सस्य परु ाण सबसे अतधक प्राचीन परु ाण है।
करते समय पागल हो गए थे।
 महात्समा ज्योततबा फूले ने 1876 में
 माधव किाली ने असतमया में महाभारत का
‘धममततृ ीयरत्सन (परु ाणों का भिंिाफोड़)’ नामक
अनवु ाि तकया
पस्ु तक तलखी, िबतक रामास्वामी नायकर ने
 मालधर वसू ने भगवत गीता का बाग्िं ला परु ाणों को पररयों की कथा कहा।
अनवु ाि श्री कृ ष्ण तविय नाम से तकया।
 वेित्रयी :- ऋग्वेि, सामवेि एविं यिवु ेि को कहते
 महाभारत का फारसी अनवु ाि अकबर के हैं ।
समय रिनामा नाम से अब्िल
ु कातिर बिायिंनू ी ने  प्रस्थानत्रई- उपतनिि, ब्रह्मसूत्र एविं गीता को
तकया।
प्रस्थानत्रई कहा िाता है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
धमि‍सूत्र  कुछ बौद्ध सातहत्सय सिंस्कृ त में भी तलखा गया
 धममसत्रू ों में वणामश्रम- धमम, व्यतक्तगत आचरण तिसमें वसतु मत्र अश्वघोि एविं नागािमनु की
रािा एविं प्रिा आति के कतमव्य का तवधान है। रचनाएिं प्रमख
ु है अविानितक, तिव्याविान

 इनकी रचना 600 ई.प.ू से 300 ई.प.ू के मध्य हुई। लतलत तवस्तार इत्सयाति पस्ु तके सिंस्कृ त में ही है।
वसतु मत्र का तवभािा िास्त्र बौद्ध धमम की बाइतबल
 प्रमख
ु धममसत्रू :- आपस्तिंभ धममसत्रू ( ितक्षण
कहा िाता है यह भी सिंस्कृ त भािा में ही तलखा
भारत में रतचत), गौतम धममसूत्र, वतिष्ठ धममसत्रू
गया है।
और तवष्णु धममसत्रू ।
 धममपद‍- इसे बौद्ध धमम की गीता कहते हैं
 वणमव्यवस्था, वणमसिंकर और तमश्रिातत का का
स्पष्ट वणमन सत्रू सातहत्सय में ही तमलता है।
 तवष्णु धममसत्रू में ही सवमप्रथम अस्पृश्य िब्ि का जैन‍साक्षहत्य
प्रयोग हुआ है।  िैन सातहत्सय को आगम कहा िाता है िो

 आपस्तभिं ने िस विम के ब्राह्मण को 100 विम के तद्वतीय िैन सिंगीतत में ही आगम तलतपबद्ध हुआ

क्षत्रीय से बड़ा बताया है। था


 िैतनयों की प्राचीनतम रचना अधममगधी में है
भगवती सत्रू ,भद्रबाहु चररत्र ,पररतिष्टपवमन,
कल्पसत्रू कुवलयमाला इत्सयाति प्रमख
ु िैन ग्रथिं है
बौद्ध‍साक्षहत्‍य‍
तिनसे भारतीय इततहास के बारे में भी तवस्तृत
 प्राचीन भारत के इततहास को िानने का एक
िानकाररयािं तमलती हैं।
प्रमख
ु स्रोत बौद्ध ग्रिंथ भी हैं प्रारिंतभक बौद्ध ग्रिंथ
मध्य गिंगा निी घाटी अथामत तबहार एविं पवू ी उत्तर
अन्‍य‍साक्षहत्‍य
प्रिेि में तलखे गए प्राचीनतम बौद्ध ग्रिंथ पाली
भािा में तलखे गए तिनमें से प्रमख
ु तत्रतपटक है व्याकरण‍ग्रंथ:-
1-अष्टाध्याई -पातणतन

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
2-महाभाष्य-पतििं तल  पिंचतिंत्र:- तवष्णु िमाम
3-वततमका-कात्सयायन  कृ त्सयकल्पतरू:- लक्ष्मीधर (गोतवि चििं
 पातणतन, कात्सयायन एविं पतिंितल को 'मतु नत्रय' गहड़वाल का मिंत्री)
कहा िाता है  यतु क्तकल्पतरु:- भोि
4 -तोल्कातप्पयम- 'तद्वतीय सिंगम' का एक मात्र िेि  िक्र
ु नीतत :-िक्र
ु ाचायम
ग्रिंथ है। अगस्त्सय ऋति के बारह योग्य तिष्यों में से एक
क्षवदेिी‍याक्षत्रयों‍के ‍क्षववरण
'तोल्कातप्पयर' द्वारा यह ग्रथिं तलखा गया था। सत्रू
िैली में रचा गया यह ग्रथिं ततमल भािा का प्राचीनतम
व्याकरण ग्रथिं है।
क्षचक्षकत्सा‍संबध
ं ी‍पुस्तकें :-
 रस रत्सनाकर- नागािमनु
 चरक सतिं हता- चरक
 अष्टािंग हृिय वाग्भट
 आयवु ेि िीतपका चक्रपातण ित्त( यह चरक
सतिं हता की टीका है)
 िातलहोत्र- परमार रािा भोि

राजनीक्षत‍िास्‍त्र‍से‍संबंक्षधत‍पुस्‍तकें
 अथमिास्त्र:- कौतटल्य की इस पस्ु तक को 1905
में प्रोफे सर सामिास्त्री में मैसरू सिंग्राहालय से प्राप्त
कर 1909 में ई. में अनवु ाि कर प्रकातित
करवाया।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भारत‍के ‍क्षवक्षभन्न‍नाम‍और‍उनके ‍स्त्रोत
 ईसामी ने अपनी रचनाओें में भारत को
कुछ तविेिी सवमप्रथम तसिंधु तट वातसयों के सिंपकम में
तहन्िस्ु तान कह कर सिंबोतधत तकया है वहीं अमीर
आए इसीतलए उन्होंने भ्रमवि परू े िेि को ही तसधिं ु या
खसु रों भारत को तहििं कहता है।
इििं स नाम से पक ु ारा।
 वृहत्सतर भारत (Greater India) की अवधारणा
 कुछ इततहासकार भारत नाम को एक परु ाने
सवमप्रथम मत्सस्यपरु ाण में तमलती है तिसमें भारत
प्राचीन रािविंि भरत से स्वीकृ त करते हैं उनका
विम के साथ ताम्रपणी ( श्रीलिंका), समु ात्रा, िावा,
राज्य सरस्वती व यमनु ा नतियों के बीच में था
किंबोतिया, सतहत आठ द्वीप िातमल थे।
 िैन धमम के अनसु ार उनके प्रथम तीथंकर
 सप्तसैंधव- सरस्वती, तवपािा,परुष्णी, तवतस्ता,
ऋिभिेव के पत्रु सम्राट भरत के नाम पर िेि का
अतस्कनी और तसधिं ु इन सात नतियों द्वारा तसतिं चत
नाम भारत पड़ा।
क्षेत्र को आयों द्वारा सप्तसैंधव कहा गया।
 परु ाणों व अिोक के अतभलेखों में हमारे िेि का ध्यातव्य है तक सप्तसैंधव में अफगातनस्तान तसिंधु
नाम ििंबिू ीप तमलता है भारत में िम्बिू ीप नामक
पिंिाब भी िातमल थे।
वृक्ष बहुतायत में तमलने के कारण इसको िम्मू
 मनु स्मृतत में सस्वती एविं दृिद्वती के बीच का क्षेत्र
िीप कहा गया।
ब्रह्मावतम तथा गगिं ा यमनु ा िोआब क्षेत्र ब्रह्मतिम
 यनू ातनयों ने इस िेि को 'इतिं िया' कहकर पक ु ारा, नाम से वतणमत है।
सवमप्रथम इतिं िया िब्ि का प्रयोग पािंचवी िताब्िी
ईसा पवू म में इततहास के तपता हेरोिोटस ने तकया
उसके बाि इतिं िया िब्ि का प्रयोग मेगास्थनीि ने
तकया
 चीतनयों ने भारत को तयन-तू कहा।
 भारत विम का सबसे पहला नाम भारत
(भरधवि) खारवेल के हाथी गम्ु फा अतभलेख
में आया।
 एक प्रिेि के रूप में सबसे पहले भारत का वणमन
पातणनी की अष्टाध्याई में है।
 भारत का नाम तहििं स्ु तान सवमप्रथम 262 ईसवी में
ईरान के ससानी िासक िाहपरु प्रथम के 'नक्िे
रुस्तम' अतभलेख में तमलता है

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
प्रागैक्षतहाक्षसक‍काल

अविेि िावा ( एतिया) में तमले हैं, ये 17


लाख विम परु ाने हैं।
3. क्षनएन्‍िरथल‍मानव:- इनके अविेि िममनी
की तनएन्िर वैली में तमले हैं, ये मानव के ऐसे
पहले पवू मि थे िो तहमाच्छातित क्षेत्र से होते
हुए समिीतोष्ण क्षेत्रों में पहुचिं गये
तनएन्िरथल ने सवमप्रथम िव तवसमिन तक्रया
अपनाई।
4. होमोसेक्षपयंन्‍स:- यह आधतु नक मानव है,
तिसने पणू मत: सीधे खिे होकर चलना, भािा
मानव‍क्षवकास‍का‍क्रम:-‍ प्रयोग समहू में रहना, इत्सयाति क्षमताएिं
 प्रागैततहातसक मानव के िीवश्म मुख्यत: तवतकतसत कीं।
प्लीस्टोतसन यगु की चट्टानों से तमलें हैं। क्रोमेगनन‍ मानव‍ :- यह होमोसेतपयिंन्स की
 भारत के तिवातलक पहातियों से उन वानरों के उपिातत थी, वतममान मानव का अिंततम पवू मि,
िीवश्म तमले हैं, तिनसे मानव और वतममान पररवार बनाकर गफ ु ाओ िं में तनवास, पत्सथर, हाथी
वानरों का अन्तत: तवकास हुआ। इन्हें िािंत के हतथयार एविं आभिू ण, िानवरों के खाल
रामातपथेकस नाम तिया गया है। के वस्त्र, कला प्रेमी तचत्रकार, िवाधान की प्रथा,
 इसके बाि मानव तवकास का क्रम तनम्न तलतखत इसके प्रथम अविेि फ्ासिं के क्रोममेगनन घाटी
है- से मैकग्रीगर महोिय ने सन 1820 में खोिा था।
1. आस्‍रेलोक्षपक्षथकस:- के न्या के ओल्िबु ाई
गोिम के तकु ामना झील में इसका 48 लाख विम प्रागैक्षतहाक्षसक‍काल:-‍
का िीवाश्म पाया गया, इसतलये इन्हें मानव  प्रागैततहातसक काल या प्रस्तर यगु ीन सिंस्कृ ततयों
का पवू मि माना िाता है, इन्हें प्रोटोमानव या को पहली बार िेनमाकम के तवद्वान सी.िे.
आद्य मानव कहा िाता है , ये प्रथम मानव थॉम्पसन ने 1820 में मानव इततहास को
थे िो खड़े होकर चलने लगे। कोपेनहेगन सिंग्रहालय की सामग्री के आधार पर
2. क्षपथेकेन्‍रोपस‍ या‍ होमोइरेक्ट‍ स:- सीधे तीन वगों में तवभातित तकया-
खिे होकर चलने वाला कतप मानव तिनके

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इसको तवभािन करने का एक आधार यह भी है
तक प्रागैततहातसक काल के िो औिार एविं
हतथयार प्राप्त हुए वे पत्सथर अथामत पािाण के है
इसतलए मानव इततहास के प्रारतम्भक काल के
पािाण काल का नाम तिया गया।
मानव सभ्यता के इस प्रारतम्भक काल को तीन
भागों में बाटतें हैं-
1.‍ पुरापाषाण‍ काल ( तनम्न परु ापािाण, मध्य
परु ापािाण, उच्च परु ापािाण)
पत्सथर के टुकड़े, तिनके तकनारे पानी के बहाव में रगड़
2.‍मध्य‍पाषाण‍काल
खाकर तचकने और सपाट हो िाते है, पेबल ु कहे िाते
3.‍नव‍पाषाण‍काल
है।
1.‍पुरापाषाण‍कालः-
2.‍हैण्ि‍एक्स‍संस्कृक्षतः-
‍इस काल में मनष्ु य पणू म रूप से तिकार पर तनभमर था,
 सवमप्रथम रावटम ब्रसू फूट ने 1863 ई0 में मद्रास के
मनष्ु य को अतग्न का ज्ञान था पर अतग्न के प्रयोग से
पास पल्लवरम में प्रथम हैण्ि एक्स (हाथ की
अनिान था।
कुल्हाड़ी) प्राप्त की, इन्हीं रावटम बसू फ्ूट को
प्रमख ु ‍स्थलः-
भारतीय प्रागैततहातसक परु ातत्सव का िनक मानते
 भीमवेटका (M.P.) तचतत्रत गफ ु ाएिं व िैलाश्रय
हैं।
प्राप्त हुए।
 हैण्ि एक्स सिंस्कृ तत के उपकरण मद्रास के
 बेलन घाटी (U.P.) — इलाहाबाि, तमिामपरु
बािमिरु ाई व अततरमपक्कम से प्राप्त हुए।

1.‍(a)‍क्षनमन‍पुरापाषाण‍कालः-
तनम्न परु ापािाण काल में मख्ु यतः 2 प्रकार के पत्सथरों
के प्रकार तमले तिसे सिंस्कृ तत कह कर इसे पािाण
काल से िोड़ा गया।
1.‍चापर‍—‍चाक्षपंग‍पेबुल‍संस्कृक्षत
2.‍हैण्ि‍—‍एक्स‍संस्कृक्षत‍
1.‍चापर‍—‍चांक्षपग‍पेबुल‍संस्कृक्षतः-
इस काल के उपकरण पिंिाव के सोहन निी घाटी से
प्राप्त हुए इसीतलए इसे सोहन सिंस्कृ तत भी कहते हैं। 1.‍(b)‍मध्यपुरापाषाण‍कालः-

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
इसको फलक सस्िं कृ तत भी कहते है, फलक  स्थलों के अततररक्त ओिारों की सवमप्रथम खोि
अथामत पत्सथरों को तोड़कर बनाया औिार। इस काल में, उ0प्र0 के टोंस निी घाटी में 1860में
1.‍(C)‍उच्च‍पुरापाषाण‍कालः- लेमेन्सरु ीयर ने खोिे।
 मनष्ु य ने ब्लेि सरीखे नक
ु ीले पत्सथरों का प्रयोग  नवपािातणक स्थल ‘मेहरगढ़’ (ब्लतू चस्तान) से
इस काल में तकया। ही कृ ति का साक्ष्य प्राप्त हुआ
 आधतु नक मानव होमोसेतपयिंस का तवकास इसी  िबतक कृ ति का प्राचीनतम साक्ष्य लहुरािेव से
काल में हुआ। तमले है।

2.‍मध्य‍पाषाण‍कालः- प्रमुख‍स्थलः-
 इस काल में प्रयोग होने वाले पत्सथर बहुत छोटे  क्षचरांद‍— तबहार के छपरा तिले में तस्थत। यहााँ
होते थे इसीतलए इसे ‘माइक्रोतलथ’ कहते हैं। से प्रचरु मात्रा में हि्िी के उपकरण प्राप्त हुए।
 मानव के अतस्थपिंिर अथामत मानव के अविेि  बुजिहोम‍— श्रीनगर, से प्राप्त कब्रों से कुत्तों को
मध्य पािाण काल से ही तमलने प्रारम्भ हुए। मातलक के साथ िफनाया गया।
प्रमुख‍स्थलः-  कोक्षडिहवा‍ — इलाहाबाि (उ0प्र0) यहााँ से
 बागोर‍ — भीलवाड़ा (रािस्थान) भारत का चावल का प्रचीनतम साक्ष्य (6000 ई0पवू म) प्राप्त
सबसे बड़ा मध्यपािातणक आवास स्थल हुआ।
 सराह‍नहर‍राय‍— उत्तर प्रिेि  चौपानी‍मािों‍—‍इलाहाबाि, हाथ से तनतममत
 महदहा‍—‍प्रतापगढ़ (उ0प्र0) हि्िी व सींग के मृिभािंि (तमट्टी के बतमन) प्राप्त हुए।
उपकरण तमले।
 आदमगढ़‍— होिगािंबाि(म0प्र0) से पिपु ालन ताम्र‍पाषाण‍कालः-
के प्राचीनतम साक्ष्य तमले।  मनष्ु य ने सवमप्रथम तिस धातु का प्रयोग तकया
 लंघनाज‍—‍गुिरात वहा ताबिं ा थी।
 वीरभानपुर‍— प0 बिंगाल  इस काल का नामकरण भी इसी धातु के नाम पर
हुआ।
3.‍नव‍पाषाण‍कालः-  ताम्र पािाण काल, हड़प्पा की कािंस्य यगु ीन
सिंस्कृ तत से ठीक पहले की है। अतः ताबािं तफर
 नव पािाण काल के स्थलों की खोि का श्रेय
भारत में िॉ0 प्राइमरोि को िाता है। कािंसा का प्रयोग हुआ। परन्तु कालाक्रमानसु ार
अथामत समय से कई ताम्र सस्िं कृ ततया,िं हड़प्पा
अथामत कािंस्ययगु ीन सभ्यता के बाि भी आती है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

कुछ‍ताम्रपाषाण‍संस्कृक्षतयाः-
 आहार‍ संस्कृक्षत‍ —‍ 2800-1500 ई.
प.ू , उियपरु
 कायथा‍संस्कृक्षत‍— 2400-1700 ई.
प.ू , चिंबल निी
 मालवा‍ संस्कृक्षत‍ —‍ 1900-1400 ई.
प,ू ् नममिा क्षेत्र
 रंगपरु ‍सस्ं कृक्षत‍—‍1700-1400 ई. प.ू ,
गिु रात
 जोवे‍ संस्कृक्षत‍ —‍ 1500-900 ई. प.ू ,
महाराष्र (िैमाबाि व इनामगााँव)
 प्रभास‍ संस्‍कृक्षत:-‍ 2000- 14000
ई.प.ू , ‍
 सावलदा‍ संस्‍कृक्षत:-‍ 2300- 2000
ई.प.ू , धतु लया, महाराष्र

उत्‍तर‍प्रदेि‍से‍जुडे‍ताम्र‍पाषाण‍कालीन‍स्‍थल:-‍
1. खैरािीह 2. नहरन 3. सोहगौरा ( गोरखपरु )

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क्षसन्धु‍घाटी‍सभ्यता
 1921 में सवमप्रथम इस सभ्यता के अविेि  चिंतु क पतिमी पिंिाब के तनकट हड़प्पा स्थल
पातकस्तान के िाहीवाल तिले के हड़प्पा नामक सबसे पहले खोिा गया इसतलए इसे तसन्धु घाटी
स्थान से तमले इसतलये इसे हड़प्पा सभ्यता कहा सभ्यता कहते हैं।
गया।  हड़प्पा सभ्यता के प्रारतम्भक स्थल तसन्धु निी के
 हड़प्पा सभ्यता तवश्व की प्राचीनतम सभ्यताओ िं में आस पास के तन्द्रत थे इस कारण तसन्धु निी घाटी
से एक है, तसिंधु निी व उसकी सहायक नतियों के या सैन्धव सभ्यता कहते हैं।
प्रिेिों में इस सभ्यता का तवकास हुआ था । कुछ  तसन्धु के तनवातसयों ने प्रथम बार कािंस्य धातु का
तवद्वान तो इसका समय 1000 विम ई.प.ू बताते हैं प्रयोग तकया इसतलए इसे कािंस्य यगु ीन सभ्यता
और कुछ तवद्वान तो इसका समय 2500 ई.प.ू भी कहते हैं।
मानते हैं।  हड़प्पा सभ्यता के उिय को प्रथम नगरीय क्रातन्त
 िॉ.रािबली पाण्िे ने इस सभ्यता का काल भी कहते हैं।
5000 ई.प.ू मना है। िॉ.सी.ऐल. फ्े बी ने इस
सभ्यता का समय 2800 से 2500 ई.प.ू माना है। सभ्‍यता‍क्षवस्‍तार:-
िॉ.फ्ें कफटम ने इसका काल 2800 ई.प.ू माना है  इस सभ्यता का मुख्य तवस्तार भारत एविं
तथा िॉ.धममपाल अग्रवाल ने रे तियोकाबमन-14 पातकस्तान िेिों में था लेतकन अल्प रूप में तसिंन्धु
परीक्षण प्रणाली के आधार पर इस सभ्यता का सभ्यता का तवस्तार अफगातनस्तान में भी था।
समय 2300 ई.प.ू से 1750 ई.पू.बताया है। क्योंतक अफगातनस्तान से सोतमघई और
 यद्दतप तसिंधु सभ्यता के उिय काल के तविय में मतु ण्िगाक सैन्धव स्थल तमले हैं।
तवद्वानों में मतभेि हैं परिंतु इसमें कोई सिंिहे नहीं क्षसन्‍धु‍सभ्यता‍का‍क्षवस्तारः‍‍‍(अक्षन्तम‍छोर)
की यह तवश्व की प्राचीनतम सभ्यताओ िं में से एक
है।
 इस काल खण्ि के 3 नाम प्रचतलत है और तीनों
का अतभप्राय एक है।
1.‍क्षसन्धु‍घाटी‍सभ्यता
2.‍हडप्पा‍सभ्यता
3.‍कांस्य‍युगीन‍सभ्यता‍

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
नोट:‍-‍तसधिं ु घाटी सभ्यता का ितक्षणी स्थल मेरठ में 2.‍पज ं ाब:-‍‍रोपड़ ( रूपनगर), सघिं ोल, ढेर- मािरा,
तस्थत है, लेतकन नवीनतम खोिों के आधार पर उत्सतर सिंघोल, बाड़ा, चक 86, कोटलातनहगिं खान।
प्रिेि के बल ु िंििहर का मानपरु स्थल ितक्षणतम होगा 3.‍ हररयाणा:- राखीगढ़ी कुणाल, तमताथल,
( लोक सेवा आयोग आलमगीरपरु को ही मानता है बणावली, बाल,ू तससवल
अत: आप आलमगीरपरु के तहसाब से ही एग्िाम में 4.‍ राजस्‍थान:- कालीबिंगा, बालाथल एविं
उत्सतर िें हााँ तवकल्प अगर मानपरु है तब मानपरु तरखानवालािेरा ।
होगा।) 5.‍उत्‍तर‍प्रदेि:-‍ आलमगीरपरु ( मेरठ),अम्बाखेड़ी,
Note:- सैन्धव‍सभ्यता‍का‍आकार‍क्षत्रभज ु ाकार‍है।‍ बड़गाविं , हुलास (सहारनपरु ), माण्िी (मिु फ्फरनगर)
स्थल उत्खननकताि क्षस्थक्षत सनौली (बागपत)।
हड़प्पा ियाराम पििं ाब  सनौली (बागपत) से 100 से अतधक मानव
साहनी (पातकस्तान) िवाधान, एक साथ 3 िवों वाला कब्र तमले हैं,
मोहनिोिड़ो आर िी तसन्ध यह उत्सतर हड़प्पा स्थल है।
बनिी (पातकस्तान)  माण्िं िी (मिु फ्फरनगर) से टकसाल गृह का साक्ष्य
सत्सु कागेिोर अलमस्टाइन बलतू चस्तान तमला है।
(पातकस्तान) 6.‍गुजरात:-‍सवामतधक सैन्धव स्थल यहीं से प्राप्त
चन्हूिाड़ो मैके तसन्ध हुए हैं।
पातकस्तान (A)‍ कच्‍छ‍ का‍ रण:-‍ सरु कोटिा, धौलावीरा,
रोपड़ यज्ञित्त िमाम पििं ाब (भारत) देसलपुर‍
(B) ‍ खम‍भात‍ की‍ खाडी:-‍ लोथल, रिंगपरु ,
कालीबिंगा बी.बी.लाल
गगिं ानगर कुनतु ासी, रोिति, प्रभासपाटन, नागेश्वर, तिकारपरु ,
(रािस्थान) तेलोि, भोगन्नार।
आलमगीरपरु यज्ञित्त िमाम मेरठ (उ0प्र0)  रोिति और रिंगपरु हड़प्पोत्सतर स्थल ( हड़प्पा
धौलावीरा आर.एस. तवष्ट कच्छ का रण सभ्यता के बाि) हैं।
लोथल एस.आर. राव अहमिाबाि 7.‍महाराष्‍ट‍र:-‍‍िैमाबाि
(कातठयावाड़ा)
 ऐसे स्थल िो प्राक् हड़प्पा, हिप्पाकालीन एविं
प्रदेि‍ के ‍ आधार‍ पर‍ वतिमान‍ भारत‍ में‍ क्षस्थत‍ हिप्पोत्सतर, तीनों काल का प्रतततनतधत्सव करते हैं-
सैन्ध
‍ व‍स्‍थल:-‍ सरु कोटिा, धौलावीरा, राखीगढ़ी और मािंिा।
1. जम‍म‍ू कश्‍मीर:-‍मािंिा

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सैन्ध
‍ व‍सभ्‍यता‍के ‍क्षनमािता‍ रायबहािरु ियाराम साहनी ने पतिमी पििं ाब
 मख्ु य रूप से चार प्रिाततयों के अविेि प्राप्त (वतममान-पातकस्तान) के मोण्टगोमरी तिले में
हुए।– रावी निी के तट पर हिप्पा को खोिा इसतलये
हड़प्पा की खोि का श्रेय उन्हीं को िाता है।
1.‍प्रोटोऑस्‍रेलायि:- यह सैन्धव क्षेत्र में आने  िान मािमल ने सवमप्रथम इसे तसन्धु सभ्यता नाम
वाली पहली प्रिातत थी। इततहासकारों के तिया।
अनसु ार वतममान में यह मध्य भारत में अनसु तू चत  उसके बाि बड़े पैमाने पर उत्सखनन कायम प्रारम्भ
िातत एविं िनिातत के रूप में तवद्यमान है। तकए गए और एक परू ी नगरीय सभ्यता तवश्व के
सामने प्रगट हुई।
2.‍भ-ू मध्‍य‍सागरीय‍(‍मेक्षि‍टेररयन):- सैन्धव
सभ्यता के मख्ु य तनमामता इसी प्रिातत को माना प्रमुख‍स्थलों‍से‍समबक्षन्धत‍महत्वपूणि‍तथ्य
िाता है। िो तक वतममान में ितक्षण भारत में बसी
हुई है। हडप्पाः-
खोिकताम:- ियाराम साहनी ( 1921)
3.‍ अड‍पाइन:-‍ यह प्रिातत गिु रात, महाराष्र,
उत्सखनन:- ियाराम साहनी, माधवस्वरूप वत्सस, सर
तसन्धु प्रिेि एविं गिंगा के मैिानों में पाये िाती हैं। मातटमन व्हीलर।
क्षविेषताये:-‍
1. मंगोलायि:-‍यह प्रिातत तहमालयी प्रिेि
 12 कमरों का अन्नागार यहााँ की तविेिता है।
एविं पवू ी भारत में पायी िाती है।
 हड़प्पा के आवास क्षेत्र के ितक्षण में एक
क्रतबस्तान तस्थत है तिसे R-37 समातध नाम
कै से प्रकाि में आयी सैन्धव सभ्यताः-
तिया गया।
 चाल्सम मैसन ऐसे पहले व्यतक्त थे तिन्होनें 1826
 इसे सैन्धव सभ्यता का अधमऔद्योतगक नगर भी
में सातहवाल तिले में तस्थत एक हड़प्पा टीले का
कहा िाता है।
उल्लेख तकया था, लेतकन उनकी इस बात पर
 एक स्त्री के गभम के पौधा तनकलता हुआ तिखाया
तकसी ने ध्यान नहीं तिया।
गया है िो उवमरता का प्रतीक है।
 1853 में कतनघिंम को हड़प्पा से प्राप्त वृिभ की
 यहािं पर िो टीले तमले हैं तिसमें से एक Mound-
आकृ तत वाली एक महु र तमली तिसे गलती से
AB एविं Mound - F हैं।
कतनघिंम ने तविेिी महु र मान तलया।
 हड़प्पा को तोरण द्वार का नगर कहा िाता है।
 विम 1921 में भारतीय परु ातत्सव सवेक्षण तवभाग
के महातनिेिक सर िान मािमल के तनिेिन में

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 हड़प्पा एविं मोहनिोििो के बीच की िरू ी 642  इस स्थान से कोई भी कतब्रस्तान नहीं तमला है।
तक.मी. थी, यद्यतप भी तपगट महोिय ने हड़प्पा  इसका नगर कच्ची ईटोंिं के चबूतरे पर तनतममत था।
एविं मोहनिोिड़ो को तसन्धु सभ्यता की िड़ु वा  कािंसे की नारी मतू तम (पणू मतः नग्न), सतू ी कपड़ा
रािधानी कहा है। मद्रु ा पर अिंतकत पिपु तत नाथ की महु र, पिु ारी
की मतू तम इत्सयाति सामग्री मोहनिोिड़ो से प्राप्त हुई।
मोहनजोदडोः-  मोहनिोिड़ो से तमली एक महु र पर समु ेररयन नाव
खोिकताम:- राखल िास बनिी ( 1922) का अिंकन है।
उत्सखनन:- प्रारिंभ में राखल िास बनिी, मािमल एविं  चािंिी के कलि के रूप में चाििं ी का प्राचीनतम
उनके सातथयों द्वारा और बाि में िे.एच. मैके और साक्ष्य यहीं से तमला है।
आिाि भारत में िे. एफ. िेल्स ने तकया।

क्षविेषताये:-‍
अन्‍य‍नाम:- स्तपू ों का िहर, रे तगस्तान का बगीचा,
कालीबंगाः-
मृतकों का टीला, तसिंध का बाग  खोिकताम:- अमलानििं घोि
 मोहनिोिड़ो का सबसे प्रतसद्ध उपनाम मृतकों का  उत्सखनन:- बी.बी.लाल एविं थापर
टीला है िो तसन्धी भािा का िब्ि है।  ितब्िक अथम — काले रिंग की चतू ड़या
 मोहनिोिड़ो बाढ़ के कारण सात बार उिड़ा और  क्षविेषताये:-‍
बसा, इसकी पतु ष्ट मािमल ने उत्सखनन के िौरान  यहािं से एक यग्ु म िवाधान का साक्ष्य तमला है
सात परतों के तमलने से की। और यहीं से िवों के अत्सयोंतष्ट सस्िं कार की तीन
 इसकी सवमतधक महत्सपणू म स्थल है तविाल तवतधयों का पता चलता है।
स्नानागार, मािमल ने इसे तत्सकालीन तवश्व का एक  ितु े हुए खेत के साक्ष्य तमले
आियमिनक तनमामण कहा है परन्तु तविाल  कालीबिंगा से ऊिंट की हति्ियािं प्राप्त हुई हैं।
अन्नागार यहााँ की सबसे बड़ी इमारत है।  हवनकुण्ि के साक्ष्य, हाथी िािंत की किंघी, कािंसे
 मोहनिोिड़ो क्षेत्रफल की दृतष्ट से सबसे बड़ा नगर का िपमण, अिंलकृ त ईट,िं बालक की खोपड़ी में छ:
है। छे ि ( सम्भवत: िल्यतचतकत्ससा का प्रमाण) प्राप्त
 मलेररया बीमारी का प्राचीनतम साक्ष्य यहीं से हुआ है।
प्राप्त हुआ है।  कालीबिंगा में हड़प्पा कालीन सािंस्कृ ततक यिंगु के
 बनु े कपड़ों का प्राचीनतम साक्ष्य मोहनिोिड़ो से पााँच स्तरों का पता चलता है।
प्राप्त हुआ है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 कुछ तवद्वान इसे सैन्धव सभ्यता की तीसरी  यह सैन्धव सिंस्कृ तत के अततररक्त प्राक् हड़प्पा
रािधानी मानते हैं। सस्िं कृ तत तिसे झक
ू र सस्िं कृ तत एविं झागिं र सस्िं कृ तत
कहते है, के अविेि तमले हैं।
लोथलः-  चन्हूिाड़ों में तकसी भी िगु म का प्रमाण नहीं तमला
 खोजकताि:- एस.आर.राव 1954-55 है।
 उत्‍खनन:- एस.आर.राव  चन्हूिाड़ों से वक्राकार ईटेिं प्राप्त हुई है।
 उपनाम‍:- लघु हिप्पा, लघु मोहनिोिड़ो  यहााँ मनके व सीप उत्सपािन का के न्द्र था।
 क्षविेषतायें:-‍  यहािं से मतहलाओ िं के सौंियम प्रसाधान िैसे
 भारत का पतिम एतिया से व्यापार का प्रमख ु तलतपतस्टक, पॉउिर इत्सयाति तमले हैं।
बन्िरगाह स्थल।  चन्हूिािो एकमात्र एसा स्थल है िहािं से तमट्टी की
 िहािों का गोिी बािा (िाक-यािम) प्राप्त हुआ। पक्की हुई पाइपनमु ा नातलयों का प्रयोग तकया
 फारस की महु र, घोड़े की मतू तम, तीन यगु ल गया है।
समातधयााँ प्राप्त हुई।
धौलावीरा‍–
 लोथल की सिंम्पणू म बस्ती एक ही रक्षा प्राचीर से
तघरी थी।  खोजकताि:- िे.पी.िोिी
 यहािं पर भी कालीबिंगा की भािंतत एक तछद्र यक्ु त  उत्‍खनन:- आर.एस.तवष्ट 1967
बालक की खोपड़ी प्राप्त हुई है िो तक  उपनाम‍:- सफे ि किंु आ
िल्यतचतकत्ससा का प्रमाण हो सकता है।  क्षविेषताये:-
 यहािं से वृत्सताकार एविं चतमिु ाकार अतग्नवेिी पायी  गिु रात के कच्छ में तस्थत
गई है।  भारत में खोिे गए िो तविाल नगरों में से एक —
 लोथल से हाथी िािंत का बना हुआ एक पैमाना 1. धौलावीरा, 2. राखीगढ़ी
(Scale) भी प्राप्त हुआ है।  अन्य हड़प्पा सिंस्कृ तत के नगर िो भागों (1-
तकला/िगु म, 2-तनचले नगर) में तवभातित थे तकन्तु
चन्हुदाडोः- इनसे अलग धौलावीरा तीन प्रमख ु भागों में
 खोजकताि:- एन.िी. मिूमिार 1931 तवभातित था।
 उत्‍खनन:- मैके  यहािं से नेवले की, पत्सथर की मतू ी पायी गई है।
 उपनाम‍:- सैन्धव सभ्यता का ओद्यौतगक नगर
 क्षविेषताय:-

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 धौलावीरा की िल सिंरक्षण तकनीक बहुत तफर आवास क्षेत्र के साक्ष्य तमलते हैं। पतिम के
तवतिष्ट थी, उन्होंने बाधिं बनाये और िलाियों टीले पर गढ़ी अथवा िगु म के साक्ष्य तमले हैं।
में पानी सिंग्रह तकया।  लोथल एविं सरु कोटता के िगु म और नगर क्षेत्र िोनों
 यहािं से िस खािंचे वाला एक लेख ( साइनबोिम) एक ही रक्षा प्रचीर से तघरे हैं।
प्राप्त हुआ है।  हड़प्पा सभ्यता के तकसी तकसी भी परु ास्थल से
तकसी भी मिंतिर के अविेि नहीं तमले हैं के वल
बनावली‍–‍ मोहनिोिड़ों की एक मात्र ऐसा स्थान है िहााँ से
 उत्‍खनन: आर.एस. तवष्ट एक स्तपू का अविेि तमला है। यद्यतप इसे कुिाण
कालीन माना गया है।
 क्षविेषतायें:-‍
 सडकें ‍:- सड़कें गतलयााँ एक तनधामररत योिना के
 यहािं से तमट्टी का हल, रसोईघर अतग्नकिंु ि के
अनसु ार तनतममत की गई हैं। मख्ु य मागम उत्तर से
साक्ष्य तमले हैं।
ितक्षण तििा की ओर िाते हैं तथा सड़कें एक
 बनावली सैंन्धव सिंस्कृ तत के तीनों स्तरों ( प्राक्,
िसू रे को समकोण पर काटती हुई िाल सी प्रतीत
तवकतसत और उत्सतर) का प्रतततनतधत्सव करता है। होती थीं।
 नाक्षलयााँ‍:- िल तनकास प्रणाली तसन्धु सभ्यता
रोपड:-‍ की अतद्वतीय तविेिता थी िो हमें अन्य तकसी
 खोजकताि‍: बी.बी.लाल 1950 भी समकालीन सभ्यता में नहीं प्राप्त होती।
 उत्‍खननकताि: यज्ञित्सत िमाम  कालीबिंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएाँ थे।
 क्षविेषतायें:-‍  ईटें‍ :- हड़प्पा, मोहनिोिड़ो और अन्य प्रमख ु
 यहािं से मातलक के साथ कुत्सते को िफनाने के नगर पकाई गई ईटोंिं से पणू मतः बने थे, िबतक
साक्ष्य तमले हैं। कालीबगिं ा व रिंगपरु नगर कच्ची ईटोंिं के बने थे।
 आिािी के बाि सवमप्रथम इसी स्थान का  सभी प्रकार के ईटोंिं की एक तविेिता थी। वे एक
उत्सखनन प्रारिंभ हुआ। तनतित अनपु ात में बने थे और अतधकािंितः
आयताकार थे, तिनकी लम्बाई उनकी चौड़ाई
नगर‍क्षनयोजनः- की िनु ी तथा उिंचाई या मोटाई चौड़ाई की आधी
 हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रभाविाली तविेिता थी अथामत् लम्बाई चौड़ाई तथा मौटाई का
उसकी नगर योिना एविं िल तनकास प्रणाली है। अनपु ात 4:2:1 था।
 प्राप्त नगरों के अविेिों से पवू म एविं पतिम तििा में
िो टीले हैं। पवू म तििा में तस्थत टीले पर नगर या

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सामाक्षजक‍व्यवस्थाः- मातृिवे ी, परुु ििेवता (पिपु ततनाथ), तलगिं -योतन,
 समाि की इकाई परम्परागत तौर पर पररवार थी। वृक्ष प्रतीक, पिु िल आति की पिू ा की िाती
मातृिवे ी की पिू ा तथा महु रों पर अतिं कत तचत्र से थी।
यह पररलतक्षत होता है हड़प्पा समाि सम्भवतः  मोहनिोिड़ों से प्राप्त एक सील पर तीन मख ु
मातृसत्तात्समक था। वाला एक परुु ि ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है।
 नगर तनयोिन िगु ,म मकानों के आकार व रूपरे खा उसके तसर पर तीन सींग है उसके बायिं ी ओर एक
तथा िवों के िफनाने के ढिंग को िेखकर ऐसा गैंिा और भैंसा तथा िायीं ओर एक हाथी एक
प्रतीत होता है तक सैन्धव समाि अनेक वगों िैसे व्याघ्र एविं तहरण है। इसे पिपु तत तिव का रूप
परु ोतहत, व्यापारी, अतधकारी, तिल्पी, िुलाहे माना गया है। मािमल ने इन्हें ‘आद्यतिव’ बताया।
एविं श्रतमकों में तवभातित रहा होगा।  हड़प्पा सभ्यता से स्वातस्तक, चक्र और क्रास के
 तसन्धु सभ्यता के तनवासी िाकाहारी एविं भी साक्ष्य तमलते हैं। स्वातस्तक और चक्र सयू म
मासिं ाहारी िोनों थे। भोज्य पिाथों में गेहू,ाँ िौं, पिू ा का प्रतीक था।
मटर, ततल, सरसों, खिरू , तरबिू ा, गाय, सअ ु र,  मतू तमपिू ा का आरम्भ सम्भवतः सैन्धव सभ्यता से
बकरी का मािंस, मछली, घतड़याल, कछुआ होता है।
आति का मािंस प्रमख ु रूप में खायें िाते थे। आक्षथिक‍जीवनः-
 िवों की अन्त्सयोतष्ट सिंस्कार में तीन प्रकार के  सैन्धव सभ्यता में कोई फावड़ा या फाल नहीं
अन्िं त्सयोतष्ट के प्रमाण तमले हैं- तमला है परन्तु कालीबगिं ा में हड़प्पा-पवू म अवस्था
1.पणू म समातधकरण — इसमें सम्पणू म िव को में कूड़ो (हल रे खा) से ज्ञात होता है तक हड़प्पा
भतू म में िफना तिया िाता था। काल में रािस्थान के खेतों में हल िोते िाते थे।
2. आतिं िक समातधकरण — इसमें पिु पतक्षयों  नौ प्रकार के फसलों की पहचान की गई है —
के खाने के बाि बचे िेि भाग को भतू म में िफना चावल (गिु रात एविं रािस्थान) गेह,ूाँ िौ, खिरू ,
तिया िाता था। तरबिू , मटर, राई, ततल आति । तकन्तु सैन्धव
सभ्यता के मुख्य खाद्यन्न गेहूाँ एविं िौ थे।
धाक्षमिक‍जीवनः-  लोथल में चावल के अविेि प्राप्त हुए हैं।
 मख्ु यतः प्रकृ तत पिू ा थी।  सवमप्रथम कपास उत्सपन्न करने का श्रेय तसन्धु
 परु ास्थलों से प्राप्त तमट्टी की मतू तमयों, पत्सथर की सभ्यता के लोगों को था।
छोटी मतू तमयों, महु रों, पत्सथर तनतममत तलगिं एविं
योतनयों, मृिभाण्िो पर तचतत्रत तचन्हों से यह पिपु ालन:- हड़प्पा लोग बैल, भेंड़, बकरी, सअ
ु र
पररलतक्षत होता है तक धातममक तवचार धारा आति पालते थे।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 ऐसी कोई मूततम नहीं तमलती है तिस पर गाय की लघ‍ु मण ृ मक्षू तियााँ:-
आकृ तत खिु ी हो। कूबड़ वाला साड़िं इस सस्िं कृ तत  तसन्ध प्रिेि में भारी सख्िं या में आग में पकी तमट्टी
में तविेि महत्सव रखता है। ( िो टेराकोटा कहलाती है) की बनी मतू तमकाएिं
 गिु रात के तनवासी हाथी पालते थे। (तफगररन) तमली है। इनका प्रयोग या तो तखलौने
के रूप में या पज्ू य प्रततमाओ िं के रूप में होता था।
क्षिडप‍ एवं‍ तकनीकी:-‍ ‍ सैन्धव लोग पत्सथर के इनमें कुत्ते, भेंड़, गाय, बैल और बन्िर की
अनेक प्रकार के औिार प्रयोग करते थे, तााँबे के साथ प्रततकृ ततयााँ तमलती हैं।
तटन तमलाकर कािंसा तैयार तकया िाता था, तकन्तु  यद्यतप नर और नारी िोनों की मृण्मतू तमयााँ तमली हैं
हड़प्पा में कााँसे के औिार बहुतायात से नहीं तमलते तथातप नारी मृण्मतू तमयों की सिंख्या से अतधक हैं।
है।
 हड़प्पा समाि के तितल्पयों में कसेरों के समिु ाय व्यापारः-
का महत्सवपणू म स्थान था।  तसन्धु सभ्यता के लोगों के िीवन में व्यापार का
बड़ा महत्सव था। इसकी पतु ष्ट हड़प्पा, मोहनिोिड़ो
क्षलक्षपः- तथा लोथल में अनाि के बड़े-बड़े कोठरों तथा
 हड़प्पा तलतप भावतचत्रात्समक (तपक्टोग्राफ) है ढेर सारी सीलों (मृण्मुद्राओ)िं एक रूप तलतप और
और उनकी तलखावट क्रमिः िायीं ओर से बायीं मानकीकृ त माप-तौलों के अतस्तत्सव से होती है।
ओर की िाती थी।  हड़प्पाई लोग व्यापार में धातु के तसक्कों का
 सैन्धव तलतप मल ू रूप से िेिी है और उसका प्रयोग नहीं करते थे, सारे आिान-प्रिान वस्तु
पतिम एतिया की तलतपयों से कोई सम्बन्ध नहीं तवतनमय द्वारा करते थे।
है।  समु ेररयन लेखों से ज्ञात होता है तक उन नगरों के
 मुहरें:-‍हड़प्पा सिंस्कृ तत की सवोत्तम कलाकृ ततयााँ व्यापारी ‘मेलहु ा’ के व्यापाररयों के साथ वस्तु
है उसकी महु रे । अब तक लगभग 2000 महु रे तवतनमय करते थे ‘मेलहु ा’ का समीकरण तसन्ध
प्राप्त हुई है। इनमें से अतधकाििं महु रे लगभग 500 प्रिेि से तकया गया है।
मोहनिोिड़ो से तमली है।  लोथल से फारस की महु रें तथा कालीबिंगा से
 अतधकािंि महु रों लघु लेखों के साथ-साथ एक बेलनाकार महु रें भी तसनधु सभ्यता के व्यापार के
तसिंगी सािंि् भैस, बाघ, बकरी और हाथी की साक्ष्य प्रस्ततु करते हैं।
आकृ ततयााँ खोिी गई हैं।
 महु रों के बनाने में सवामतधक उपयोग सेलखड़ी
(Steatite) का तकया गया है।

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आयात‍ की‍ स्थल‍(िेत्र) क्षवद्वान पतन‍के ‍कारण
जाने‍ वाली‍ गािमन चाइल्ि बाह्य व आयों के आक्रमण
वस्तुएाँ एविं व्हीलर
तटन ईरान (मध्य एतिया) िान मािमल, बाढ़
अफगातनस्तान मैके एविं एस.
तााँबा खेतड़ी (रािस्थान) आर. राव
बलतू चस्तान आरे ल स्टाइन, िलवायु पररवतमन
चााँिी ईरान, अफगातनस्तान ए.एन. घोि
सोना अफगातनस्तान, फारस, एम.आर. भतू ातत्सवक पररवतमन
ितक्षण भारत (कनामटक) साहनी
लािविम बिक्खिािं (अफगातनस्तान), िान मािमल प्रिासतनक तितथलता
मेसोपोटातमया के य0ू आर0 प्राकृ ततक आपिा
सीसा ईरान, रािस्थान, कनेिी
अफगातनस्तान, ि0 भारत एम.तितमतत्रयेव भौततक रासायतनक
तहमालय क्षेत्र (रूसी तवस्फोट या अदृश्य गाि
सेलखड़ी बलतू चस्तान, रािस्थान, इततहासकार)
गिु रात िब्ल्य.ू एफ. तविेिी व्यापार में कमी के
अल्ब्राइट कारण पतन

पतनः- स्मरणीय‍तथ्यः-
 इसके परवती चरण में 2000 से 1700 ई0 पू0 के  सैन्धवकालीन महु रें सवामतधक मोहन िोिड़ों से
बीच तकसी समय हड़प्पा कालीन सभ्यता का तमली है।
स्वतन्त्र अतस्तत्सव धीर-धीरे तवलप्तु हो गया।  सवामतधक सैन्धव परु ास्थल गिु रात से ही
 इस सभ्यता के पतनोन्मख ु और अन्ततः तवलप्तु उत्सखतनत हुए हैं।
हो िाने के अनेक कारण हैं िो तनम्नतलतखत हैं-  हड़प्पा सभ्यता में प्रत्सयेक नगर िो भागों में
तवभातित थे, िबतक धौलावीरा तीन भागों में
तवभातित था।

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 स्वातस्तक तचन्ह सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की Note- उत्तर‍ प्रदेि‍ से‍ समबंक्षधत‍ सैन्धव‍
िेन है। इस तचन्ह से सयू ोपासना का अनमु ान स्थल‍–
लगाया िाता है।
 अतग्नकुण्ि लोथल एविं कालीबिंगा से प्राप्त हुए हैं।
 कालीबािंगा एविं बनवाली में िो सािंस्कृ ततक UPPCS के ‍क्षविेष‍सन्दभि‍में‍
अवस्थाओ िं — प्राक् (पवू म) हड़प्पा एविं हड़प्पा आलमगीरपरु मेरठ (उत्सखनन यज्ञित्त
कालीन के ििमन होते हैं। िमाम द्वारा )
 घोड़े की िानकारी मोहनिोिड़ो, लोथल तथा अम्बखेिी सहारनपरु (उत्सखनन
सरु कोतड़ा से प्राप्त हुई है। मधसु िू न
 हड़प्पा सभ्यता में मातृिवे ी की उपासना नरहरिेिपाण्िेय ने
सवामतधक प्रचतलत थी। करवाया )
 हड़प्पा सभ्यता में चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल बड़गािंव सहारनपरु (उत्सखनन
से प्राप्त हुए है। मधसु िू न नरहर
 महु रें सवामतधक सेलखड़ी (Steatite) की थी। िेिपाण्िेय ने करवाया )
हुलास सहारनपरु
 धान की भसू ी लोथल एविं रिंगपुर से प्राप्त हुई है।
मािंिी मिु फ्फरनगर
 धातु तनतममत मतू तमयों में सवामतधक महत्सवपू णू म
सनौली बागपत
मोहनिोिड़ो से प्राप्त एक नतमकी की कािंस्य मतू तम
है।
क्षबहार‍में‍सैन्धव‍सभ्यता‍का‍कोई‍स्थल‍प्राप्त‍नहीं‍
 हररयाणा के तहसार तिले में सरस्वती निी के तट
हुआ‍है‍क्यों‍क्षक‍आलमगीरपुर‍(मेरठ‍)‍ही‍सबसे‍
पर तस्थत प्राक्-हड़प्पाकालीन परु ास्थल कुणाल
पूवी‍सीमा‍थी‍|
से चािंिी के िो मक ु ु ट तमले हैं।
 मनके बनाने के कारखाने लोथल एविं चन्हूिड़ो से
 लोथल एविं कालीबिंगा से यग्ु म समातधयााँ तमली
हैं।

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प्राक्‍हडप्‍पा‍संस्‍कृक्षत‍(प्राक्‍सैन्‍धव)‍:-‍ तसधिं ु सभ्यता से तमले िेवताओ िं के प्रतीक तचन्ह:-


 नवपािण काल के बाि और तवकतसत हड़प्पा महु र ताबीि बाघ िेवी
से पवू म िो बतस्तयािं थीं, उनको प्राक् हड़प्पा स्वातस्तक सयू ोपसना
सिंस्कृ तत कहते हैं। इनको प्रारिंतभक हड़प्पा सािंड़ भगवान की सवारी
सस्िं कृ तत भी कहते हैं। मछली खाता मगरमच्छ निी िेवता का तचन्ह
भैंस िेवी-िेवताओ िं का ितू
 भारत‍में‍ क्षस्थत‍प्रमुख‍प्राक्‍सैन्‍धव‍स्‍थल‍
:-‍

1.‍ हरर‍याणा:- बणावली, राखीगढ़ी, तससवल,


तमताथल, बालू
2.‍राजस्‍थान:- सोथी, कालीबिंगा

 भारत‍से‍बाहर‍क्षस्थत‍प्राक्‍सैन्‍धव‍स्‍थल:-‍
1.‍क्षसंन्‍ध‍:-‍कोटिीिी एविं आमरी
2.‍ बलूक्षचस्‍तान:-‍ क्वेटा, कुल्ली,
तकलेगल ु मोहम्मि, मेहरगढ़, अिंिीरा, झाबिं ।
 आमरी की खोि ए.िी. मिमू िार ने की थी।
यहािं से बारहतसगिं ा एविं गैंिे की हतियों का
प्रमाण तमलता है।
 कोटिीिी स्थान का अिंत िो भयानक
अतग्नकािंिों से हुआ।
 मेहरगढ़ प्राक् सैन्धव का सबसे प्राचीन स्थल
है।
‘नाल’ से गरुड़ के आकार वाली एक महु र तमली
है, यह गरुड़ अपने पिंिे में सपम को िबाये हुए है।

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वैक्षदक‍काल
 तसिंधु सभ्यता के पतन के बाि अतस्तत्सव में आई  वैतिक सिंस्कृ तत, ग्रामीण सिंस्कृ तत थी, आयों को
वैतिक सिंस्कृ तत का अध्ययन ऋगवैतिक और तलतप की िानकारी न होने के कारण वेि श्रवण
उत्सतर वैतिक भागों के अिंतगमत तकया िाता है, परिंपरा द्वारा पीढ़ी-िर-पीढ़ी पहुचाँ ाये िाते थे,
वैतिक काल की िानकारी वेिों से प्राप्त होती है। इसतलए वेिों को ‘श्रतु त’ भी कहा िाता है।
ब्राह्मण में वेि सबसे परु ाना है, वेि का िातब्िक  सपिं णू म वैतिक सातहत्सय को िो भागों में बाटिं ा िाता
अथम है-िानना, वैतिक सिंस्कृ तत के सिंस्थापक है-
आयम थे। आयम िब्ि सस्िं कृ त भािा से तलया गया 1. श्रुक्षत‍साक्षहत्य‍
है िो भािाई समहू का पयामय होने के साथ-साथ 2. स्मृक्षत‍साक्षहत्य
श्रेष्ठ, अतभिात्सय व स्वतन्त्र तस्थतत को ििामता है।
1.श्रुक्षत‍साक्षहत्य‍:- ‍
आयों‍के ‍मूल‍क्षनवास‍के ‍संम‍बध‍में‍ क्षवद्वानों‍के ‍ श्रतु त सातहत्सय में वेिों के अततररक्त ब्राह्मण, आरण्यक
क्षवचार:-‍ एविं उपतनिि् आते हैं, ये लिंबे समय तक श्रवण परम्परा
के माध्यम से चलते रहे तथा बाि में इनका सिंकलन
क्षवद्वान मूल‍क्षनवास‍मत तकया गया।
अतवनाि चिंद्र सप्त सैधिंव (भारत)  वेिों का सिंकलन कृ ष्ण द्वैपायन व्यास ने तकया
िॉ. सम्िं पणू ामनििं सप्त सैंधव (भारत) था, इसतलए वे वेिव्यास कहलाए।
एल.िी. कल्ल कश्मीर (भारत)
गगिं ानाथ झा सरस्वती व द्विित् ी निी 2. स्मृक्षत‍साक्षहत्य:-
(भारत) मनष्ु यों द्वारा रतचत है। इसमें वेिागिं , सत्रू एविं ग्रथिं
रािबली पाण्िें मध्य िेि ( भारत) िातमल हैं।
प.िं बालगगिं ाधर उत्सतरी ध्रवु
ततलक वेद:-
ियानिंि सरस्वती ततब्बत
 वेिों की भािा सस्िं कृ त एविं तलपी ब्राह्मी है।
प्रो. पेन्का िममनी
 इनकी सख्िं या चार है-
गाइल्स हगिं री अथवा िेन्यबू
1.‍ऋग्वेद
नेहररगिं व प्रो. ितक्षणी रूस
2.‍सामवेद
गािमन चाइल्ि
3.‍यजवु ेद‍
मैक्स मल ू र मध्य एतिया
4.‍अथविवेद

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1. ऋग्वेद
 ऋग्वेि की रचना सप्तसेन्धव प्रिेि में सरस्वती मंण्‍िल‍ संबंक्षधत‍ऋक्षष‍
निी के तट पर हुई, इसकी रचना तततथ को लेकर िसू रा गृहत्ससमि
तवद्वानों में मतभेि है, तफर भी सामान्य तौर पर तीसरा तवश्वातमत्र
ऋग्वेि को 1500 ई.प.ू से 1000 ई. प.ू तक माना चौथा वामिेव
िाता है और इसके बाि उत्सतरवैतिक काल का पाचिं वािं अत्री
प्रारिंभ माना िाता है। छठवािं भारद्वाि
 ऋग्वेि का ईरानी ग्रिंथ अवेस्ता के साथ काफी सातवािं वतिष्ठ
समानता है, अवेस्ता एविं ऋग्वेि भारोपीय (इििं ो- आठवािं कण्व
यरू ोपीयन) भािा के िो प्राचीन ग्रथिं हैं, लेतकन परू े नौंवािं अिंतगरा
भारोपीय भािा पररवार में ऋग्वेि सबसे
प्राचीनतम ग्रिंथ है।  िसिं वा मिंण्िल:- इस मण्िल के ऋतियों को
 ऋग्वेि में ही गोत्र िब्ि का उल्लेख सवमप्रथम बार सम्मतलत रूप से महासुक्ता कहा िाता है, सयू म
तमलता है। सक्ु त, परुु ि सक्ु त, नासिीय सुक्त िसवें मिंण्िल
के ही भाग हैं।
 ऋग्वेि में कुल 10 मण्िल (11 बालतखल्य  1. परुु ि सक्ु त :- इसमें वणमव्यवस्था की
सतहत) एविं 1028 सक्त
ू हैं। इसमें 10,580 मिंत्र है प्राचनीतम िानकारी तमलती है, परुु ि सक्ु त में ही
तिसमें 118 िहु राऐ गए हैं। अतः कुल 10,462 िद्रू िब्ि का प्रथम बार वणमन आया है, इसमें
मत्रिं हैं। तलखा है तक आति परुु ि के मख ु से ब्राह्मण,
भिु ाओ िं से क्षत्रीय, पेट/ ििंघा से वैश्य और पैर से
ऋग्‍वेद‍के ‍मंण्‍िल:- िद्रू वणम की उत्सपतत्त हुई है, िसवें मिंण्िल के परुु ि
प्रथम‍मण्ं ‍िल:- इस मण्िं िल के कई सक्ू त कई सक्ु त में ही परुु रवा-उवमिी सिंवाि है।
ऋतियों के द्वारा तमलकर तलखे गये, इस मण्िल
के ऋतियों को िततचन: कहा िाता है, इसमें 20 नासदीय‍सुक्‍त:-‍इसमें सबसे प्रथम बार तनगमणु
रािाओ िं के यद्ध
ु का उल्लेख है। ब्रह्म (एके श्वरवाि) का उल्लेख आया है। ‍

वंि‍मंण्‍िल‍:- िसू रे मिंण्िल से सातवें मण्िल  कृ ति सबिं तिं धत िानकारी चौथे मििं ल से प्राप्त होती
तक को, विंिमण्िल कहा िाता है, इन ऋतियों है से प्राप्त होती है।
के समहू को प्रगाथा कहा िाता है।  गायत्री मिंत्र (तिसकी रचना तवश्वातमत्र ने की थी)
का उल्लेख तीसरे मण्िल में हैं।

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 सातवााँ मण्िल वरूण को समतपमत हैं एविं नवें  इसमें िनु िेप एविं अिीगतम की कथा का वणमन
मण्िल के 114 सक्त ू ों में सोम का वणमन है। तमलता है तिसमें अिीगतम ने अपने पत्रु को 100
 तवििु ी मतहलाएाँ:- लोपामद्रु ा, तसक्ता, अपाला, गायों के बिले बेच तिया।
घोिा आति ने कुछ ऋचाओ िं की रचना की।  प्रतसद्ध कथन 'चरै वेतत चरै वेतत' का उल्लेख भी
 ऋग्वेि में इन मतहलाओ िं को ब्रह्मावतिनी कहा एतरे य ब्राह्मण में तमलता है।
गया है।  एतरे य ब्राह्मण में रािा की उत्सपतत्त का वणमन
 ऋग्वेि में यमनु ा का उल्लेख तीन बार एविं गिंगा तमलता है तथा इसमें यह भी बताया गया है तक
का उल्लेख एक बार हुआ है। उतरी साम्राज्य को वैराज्य तथा यहािं का रािा
 इस वेि में सोमरस का वणमन सवामतधक बार हुआ तवराट, ितक्षणी साम्राज्य को भोज्य तथा यहािं का
है तथा इन्द्र को परु िं िर (तकला तोड़ने वाला) कहा रािा सवमराट, पवू ी साम्राज्य को स्वराज्य तथा
गया है। यहािं का रािा स्वराट और पतिमी साम्राज्य को
 ऋग्वेि में परू साम्राज्य तथा यहािं का रािा को सम्राट कहलाता
ु ि िेवताओ िं की प्रधानता है। इन्द्र का
वणमन सबसे अतधक 250 बार तकया गया है एविं था।
अतग्न का 200 बार तकया गया है। नोटः प्रतसद्ध महावाक्य 'प्रज्ञानिं ब्रह्म' का उल्लेख
एतरे य उपतनिि में तमलता है न तक एतरे य ब्राह्मण
ऋग्‍वेद‍के ‍ब्राह्मण‍ग्रंथ‍:- में।
1. ऐतरे य ब्राह्मण  इसमें िर- िोरु- िमीन को सिंघिम का मल ू कारण
2. कौतितकी बताया गया है।
 ऐतरे य ब्राह्मण में िनपि एविं रािसयू यज्ञ का
(1)‍ऐतरेय‍ब्राह्मण‍:-‍‍ उल्लेख तमलता है।
 इसका सिंकलन महीिास ने तकया था। इन्हीं (2)‍कौक्षषतकी‍ब्राह्मण‍:-‍
महीिास की मााँ इतरा के नाम पर इसका नाम  इसका िसू रा नाम ििंखायन ब्राह्मण है, तिसमें
एतरे य पड़ा। तवतभन्न यज्ञों का वणमन है।
 एतरे य ब्राह्मण में अनिंत, अथाह, अगाध सागर की  कौतितकी ब्राह्मण के सिंकलनकताम कुतितक
चचाम तमलती है। ऋति है।
 एतरे य ब्राह्मण में प्रतसद्ध ऐरिं ा महातभिेक का वणमन  आयवु ेि, ऋग्वेि का उपवेि है।
तमलता है।
 एतरे य ब्राह्मण में पत्रु ी के िन्म को ि:ु खों का ऋग्‍वेद‍के ‍उपक्षनषद‍:-‍
कारण बताया गया है। 1. ऐतरे य

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2. कौतितकी  गिंधवमवेि सामवेि का उपवेि है।
 सामवेि में कुल मिंत्रों की सिंख्या 1549 है। इनमें
ऋग्‍वेद‍के ‍अरण्‍यक‍:-‍ से 75 मत्रिं ों के अततररक्त, िेि ऋग्वेि से तलेए गए
1. ऐतरे य हैं।
2. कौतितकी
सामवेद‍के ‍ब्राह्मण‍:-‍
अरण्‍यक‍क्‍या‍होते‍हैं‍? 1. ताि्य
अरण्यक िब्ि का अथम वन मे तलखा िाने 2. िैमनीय
वाला है और इन्हे वन-पस्ु तक कहा िाता है।
यह मख्ु यत: ििंगलों में रहने वाले सिंन्यातसयों ताि्य:- यह आकार में बहुत बड़ा है इसतलये इसे
महाब्राह्मण भी कहते हैं, इसमें कुल 25 अध्याय हैं
और छात्रों के तलये तलखी गई थीं। ये ब्राह्मणों
इसतलये इसे पिंचतवि भी कहा िाता है, इसका एक
के उपसिंहारत्समक अिंि है, इनमें ििमन और अन्य नाम अिभतु ब्राह्मण भी है।
रहस्यवाि का वणमन होता है। इनकी सिंख्या
सात है। सामवेद‍के ‍उपक्षनषद‍:-‍
1. छािंन्िोग्य उपतनिि:-
2. सामवेदः- 2. के न उपतनिि
 सामवेि गायी िाने वाली ऋचाओ िं का सिंकलन 3. िैमनीय उपतनिि
है, तिनके परु ोतहत उद्गाता कहलाते थे।
 यह वेि पद्य ( Poerty) में है। (1)‍छांन्‍दोग्‍य‍उपक्षनषद:-‍छािंन्िोग्य उपतनिि सबसे
 सामवेि के प्रथम रचनाकार िैतमनीय माने िाते प्राचीन उपतनिि है। यद्यतप कृ ष्ण का पहला उल्लेख
हैं, बाि में सक ु माम ऋति ने इसका और तवस्तार ऋग्वेि में तमलता है, लेतकन िेवकीनिंिन कृ ष्ण का
तकया। उल्लेख पहली बार छान्िं िोग्य उपतनिि में ही तमलता
है। इसी में उद्दालक आरुतण एविं इनके पत्रु श्वेतके तु के
 गीता में श्री कृ ष्ण ने स्वयिं को वेिों मे सामवेि कहा
बीच सिंवाि का उल्लेख तमलता है।
है।
 सामवेि सयू म िेवता को समतपमत है।
(2) के न‍ उपक्षनषद:-‍ इसमें ब्रह्मा के स्वरूप को
 सामवेि से ही सवमप्रथम सात स्वरों की िानकारी समझाने के तलए प्रश्नोत्सतर िैली में गरुु -तिष्य सिंवाि
प्राप्त होती है। इसतलए इसे भारतीय सगिं ीत का है।
िनक माना िाता है।

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3. यजवु ेदः-  ितपथ ब्राह्मण में रामकथा, िलप्लावन परुु िमेघ
 यिवु ेि में अनष्ठु ानों, कममकाण्िों तथा यज्ञ सबिं धिं ी का वणमन उपनयन सस्िं कार का वणमन तविेह माधव
मिंत्रों का सिंकलन है। इनके परु ोतहत को अध्वयमु की कथा इत्सयाति का वणमन है।
कहते थे।  ितपथ ब्राह्मण में स्त्री को अद्धांतगिंनी कहा गया
 यह गद्य एविं पद्य िोनों में रतचत है एविं इसके िो है।
उपभाग हैं-  कृ ष्ण यिवु ेि का ब्राह्मण ग्रिंथ तैततरीय ब्राह्मण एविं
1. कृष्‍टण‍यज ु वेद‍(गद्य)‍ िक्ु ल यिवु ेि का ब्राह्मण ग्रिंथ ितपथ ब्राह्मण है।
2. िुक्ल‍यजुवेद‍(पद्य)  यिवु ेि का उपवेि धनवु ेि है।
 ितपथ ब्राह्मण में कृ ति एविं तसिंचाई का उल्लेख
 िक्ु ल यिुवेि के भी िो भाग हैं- तमलता है।
1. कण्व
2. माध्यातन्िनी यजिवु ेद‍के ‍उपक्षनषद‍:-‍
1. वृहिारण्यक
 कृ ष्ण यिवु ेि के चार भाग हैं- 2. कठोपतनिि
1. मैत्रीय 3. इिोपतनिि
2. तैतत्तरीय 4. श्वेताश्वर
3. कठ 5. मैत्रायतण उपतनिि
4. कतपष्ठल 6. तैत्सतरीय उपतनिि

 यजवु ेद‍के ‍ब्राह्मण‍ग्रथ


ं :-
1. ितपथ ब्राह्मण (िक्ु ल यिुवेि)
2. तैततरीय ब्राह्मण (कृ ष्ण यिुवेि)

(1)‍ितपथ‍ब्राह्मण‍:-‍
 यह सबसे प्राचीन और सबसे बड़ा ब्राह्मण माना
िाता है।
 इसके लेखक ऋति याज्ञवलक्य हैं।

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(1)‍वहृ दारण्‍यक‍उपक्षनषद:-  ‘अतततथ िेवो भव, खबू अन्न उपिाओ, सिा
 इसे अरण्यक और उपतनिि िोनों कहा िाता है, सत्सय बोलो इत्सयाति कथन यहीं से तलये गये हैं।
िो तक इसके नाम से ही स्पष्ट है। ‍
4.अथविवेदः-
 प्रतसद्ध याज्ञवल्क्य -गागी सवािंि वृहिारण्यक का
ही भाग है।  अथवमवेि चौथा एविं अतिं तम वेि है, तिसकी रचना
अथवाम ऋति ने की थी।
(2)‍कठोपक्षनषद:-‍  अथवमवेि के मिंत्र रोग नािक, िाि-ू टोना, तववाह
 इसमें यम नतचके ता का सविं ाि है। गीत आति से सिंबिंतधत हैं।
 इसका उपवेि अथवमवेि है।
(3)‍श्‍वेताश्‍वर‍उपक्षनषद:-  अथवमवेि का कोई आरण्यक ग्रिंथ नहीं है।
इसमें मोक्ष एविं नवधा भतक्त की सक िं ल्पना है, इसी  अथवमवेि के परु ोतहत को ब्रह्मा कहते थे।
उपतनिि में ब्रह्मा की प्रातप्त हेतु योग एविं यौतगक  इसी वेि में सभा और सतमतत को प्रिापतत की िो
तक्रयाओ िं पर बल तिया गया है। पतु त्रयााँ कहा गया है।
 चााँिी एविं गन्ने का सवमप्रथम उल्लेख अथवमवेि में
(5) मैत्रायक्षण‍उपक्षनषद:-‍ ही तमलता है।
 इसमे स्त्री की तल ु ना िुआ एविं िराब से की गई  मगध, अगिं और अयोध्या का उल्लेख अथवमवेि
है।
में हुआ है, अथवमवेि में मगध के लोगों को ब्रात्सय
 इसमें तत्रमतू ी का उल्लेख हुआ है।
कहा गया है।
 ‘भतू म माता है, और मैं उसका पत्रु हु’िं यह
(6)‍तैत्त‍ रीय‍उपक्षनषद‍:-‍ अथवमवेि के पृथ्वीसक्ू त में उतल्लतखत है।

वेद परु ोक्षहत उपवेद ब्राह्मण उपक्षनषद्


ऋग्वेि होतृ आयवु ेि ऐतरे य, कौिीतकी ऐतरे य, कौतितततक
सामवेि उद्गाता गिंन्धवमवेि िैतमनीय, तािंि्य छान्िोग्योपतनिि,
िैतमनीय, उपतनिि
यिवु ेि अध्वयम धनवु ेि ितपथ, तैत्सतरीय कठोपतनिि,् वृहिारण्यक,
इिोपतनिि,् श्वेतास्वर
अथवमवेि ब्रह्मा अथवम गोपथ मण्ु िकोपतनिि,
वेि प्रश्नोपतनिि्
माण्िुक्योपतनिि

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अथविवेद‍का‍ब्राह्मण‍ग्रथ
ं :-‍ वैक्षदकोत्‍तर‍साक्षहत्‍य
1. गोपथ ब्राह्मण  वैतिकोत्सतर सातहत्सय में मुख्य रूप से वेिािंग,
उपवेि और स्मृतत ग्रथिं रखे िाते हैं
अथविवेद‍के ‍उपक्षनषद:-‍ वेदांगः-
 वैतिक मल ू ग्रिंथ का अथम समझने के तलए वेिािंगों
(1)‍माण्‍िूक्य‍ ोपक्षनषद:- सबसे छोटा उपतनिि अथामत वेि के अिंगभतू िास्त्रों की रचना की गयी।
 वेिािंग गद्य भािा में तलखे गये हैं।
(2)‍ मुण्‍िकोपक्षनषद:-‍ ‘सत्सयमेव ियते’ यही से
ये‍वेदांग‍हैं‍–‍
तलया गया है।
 तिक्षा (उच्चारण तवतध)
3.‍प्रश्‍नोपक्षनषद‍‍
 कल्प (कममकािंि)
उपक्षनषद्ः-  व्याकरण
 उपतनिि वेिों का अिंततम भाग है इसतलए इन्हें  तनरूक्त (भािा तवज्ञान)
वेिान्त भी कहते हैं।  छन्ि
 उपतनििों में हमें िािमतनक तचिंतन तमलते हैं।  ज्योतति
 उपतनििों की कुल सिंख्या 108 है, तिसमें से 11
महत्सवपूणम हैं। कड‍प‍का अथम है कममकाण्ि, ऐसे तवतध तनयम िो सत्रू
 इिोपतनिि् में गीता का तनष्काम कमम का पहला में तलखे गये कल्पसत्रू कहलाते हैं, इसके तीन भाग हैं-
तववरण तमलता है।
1.‍श्रोत‍सत्रू ‍:- इसी का एक भाग िल्ु व सत्रू है,
 नतचके ता-यम का सविं ाि कठोपतनिि में है।
तिसमें यज्ञवेतियों को मापने के तलए रे खा गतणत
 वृहिारण्यक उपतनिि में अहम-ब्रह्मातस्म
का उल्लेख है।
उतल्लतखत है।
 वृहिारण्यक उपतनिि् में ही पनु िमन्म का तसद्धान्त 2.‍गहृ ‍सूत्र‍:- इसके रचतयता आश्वलायन माने
एविं याज्ञवल्क्य-गगी सिंवाि का वणमन है। िाते हैं।
 श्र्वेताश्र्वर उपतनिि में सवमप्रथम भतक्त िब्ि का
उल्लेख तमलता है। 3. धमि‍ सत्रू ‍ :- इसमें वणामश्रम, परुु िाथम,
रािनैततक, सामातिक और धातममक कतमव्य
तमलते हैं, इसके रचतयता आपस्तम्ब माने िाते
हैं।

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 िासों की मतु क्त का तनयम सवमप्रथम इसी स्मृतत
स्मृक्षत‍ग्रंथः- में तमलता है।
 स्मृतत ग्रिंथ के अिंतगमत स्मृतत, धममिास्त्र एविं परु ाण  इसमें तनयोग प्रथा और तस्त्रयों के पनु मतववाह की
आते हैं। अनमु तत िी गई है।
 ये तहन्िू धमम के काननू ी ग्रिंथ भी कहे िाते हैं।
मनस्ु मक्षृ त‍(‍ई.प.ू ‍200) :- क्षवष्‍ट‍णु‍स्‍मृक्षत:-‍
 यह सबसे प्राचीन स्मृतत-ग्रिंथ हैं। मेघातततथ,  यह भी गप्ु तकालीन स्मृतत मानी िाती है।
गोतवन्िराि, भरूतच एविं कल्लुक भट्ट, मनस्ु मृतत  इसमें मद्रु ाओ िं का तववेचन प्रमख
ु रूप से तिया
पर टीका तलखने वाले तवद्वान हैं। गया है। ‍
 इस स्मृतत की मल ू रचना मौयामत्सतर यगु मे ििंगु
काल में हुई। देवल‍स्‍मृक्षत‍:-‍
 मनस्ु मृतत में आयम सस्िं कृ तत के चार क्षेत्र ब्रह्मवतम,  यह स्मृतत पवू म मध्यकाल से सिंबिंतधत है।
ब्रह्मतिम, मध्यिेि और आयामवतम का उल्लेख है।  इसमें उन तहन्िओ ु िं को पनु : तहन्िू धमम में िातमल
करने का तनयम तमलता है तिन्होनें पवू म में मतु स्लम
याज्ञवडक्य‍स्मृक्षत‍(‍ई.पू.‍100) :- धमम अपना तलया था।
 इसके भाष्यकार हैं- तवज्ञानेश्वर, अपराकम एविं
तवश्वरूप। परु ाणः-
 मनु ने तनयोग प्रथा की तनििं ा की लेतकन  परु ाण की सिंख्या 18 है।
याज्ञवल्क्य ने नहीं।  इनका सिंकलन गप्तु काल में हुआ तथा इनमें
 याज्ञवल्क्य ने तवधवा को समस्त ऐततहातसक विंिावतलयािं तमलती हैं।
उत्सतरातधकाररयों में प्रथम स्थान तिया।  मत्सस्य, वाय,ु तवष्ण,ु तिव, ब्रह्मािंि, भागवत कुछ
 इसी स्मृतत ने तस्त्रयों को सवमप्रथम सिंम्पतत्त का महत्सवपणू म परु ाण हैं।
अतधकार प्रिान तकया।  तवष्णु के िस अवतारों का तववरण मत्सस्य परु ाण
से प्राप्त होता है, यह सबसे प्राचीन परु ाण है।

नारद‍स्‍मक्षृ त‍:- भौगोक्षलक‍क्षवस्तारः-


 यह स्मृतत गप्ु तकालीन है।  आयों की आरतम्भक इततहास की िानकारी का
मख्ु य स्रोत ऋग्वेि है।

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 ऋग्वैतिक काल की िसू री सवामतधक पतवत्र निी था। िन के अतधपतत को िनपतत या रािा कहा
सरस्वती थी। ऋग्वेि में सरस्वती को “निीतमा” िाता था। िेि या राज्य के तलए राष्र िब्ि आया
(नतियों में प्रमखु ) कहा गया है। है।
 ऋग्वेि में आयम तनवास स्थल के सवमत्र ‘सप्त  ऋग्वेि में सभा, सतमतत, तविथ तथा गण िैसे
सैन्धव’ िब्ि का प्रयोग तकया गया है। अनेक कबीलाई पररििों का उल्लेख है। ये
 सरस्वती और दृिद्वती नतियों के मध्य का प्रिेि सगिं ठन (पररििें) तवचारात्समक सैतनक एविं धातममक
अत्सयन्त पतवत्र माना िाता है। तिसे ब्रह्मावतम कहा कायम िेखते ते।
िाता है।  ऋग्वैतिक काल में मतहलाएाँ भी सभा एविं तविथ
 ऋग्वैतिक कालीन नतियााँ में भाग लेती थी।
नदी‍ प्राचीन‍नाम‍  ऋग्वेि में ‘इन्द्र’ को ‘परु न्िर’ कहा गया है।
सतलि िततु द्र  रत्सनी :- अन्य पिातधकारी िैसे:- सतू , रथकार
रावी परुष्णी और कमामर भी थे तिन्हें रत्सनी कहा िाता था,
चेनाब अतस्कनी रािा समेत कुल बारह रत्सनी होते थे ये
झेलम तवतस्ता राज्यातभिेक के अवसर पर उपतस्थत होते थे।
व्यास तवपािा  परु प िगु मपतत होता था तथा सैतनक कायम भी करता
काबल ु कुभा था।
गिंिक सिानीरा दिराज्ञ‍युद्ध
 ऋग्वेि के सातवें मण्िल में इस यद्धु का वणमन
राजनीक्षतक‍व्यवस्थाः- है।
 तपतृसत्तात्समक पररवार आयों के कबीलाई समाि  भारत विंि के रािा सिु ास तथा अन्य िस
की बतु नयािी इकाई थी। रािाओ िं के साथ िािराज्ञ यद्ध ु हुआ तिनमें
पााँच आयम तथा आयेत्तर िनों के प्रधान थे। यह
 ऋग्वेि में आयों के पााँच कबीले के होने की विह ििराज्ञ यद्ध
ु (िस रािाओ िं के साथ लड़ाई)
से उन्हें पिंचिन्य कहा गया है। ये थे:- अन,ु द्रुहय, परुष्णी निी के तट पर हुआ।
परुु , तवु मस तथा यद्ध
ु ।  िसरािाओ िं के सिंघ में अन,ु द्रहु, यि,ु तवु मस,
 ग्राम, तवि और िन ये उच्चतर इकाई थे। ग्राम परुु , अतनल, पक्क, भलानस, तविातणनी और
सम्भवतः कई पररवारों के समहू को कहते थे। तिव िातमल थे, तिनके प्रमुख तवश्वातमत्र थे।
‘ग्रामणी’ ग्राम का प्रधान होता था।  ििराज्ञ यद्ध
ु में सिु ास की तविय हुई। परातित
िनों में सबसे प्रमखु परुु थे। कालान्तर में भरतों
 तवश्व कई गााँवों समहू था इसका प्रधान ‘तविपतत’ और परुु ओ िं के बीच मैत्री हो गई और कुरु नाम
कहलाता था। अनेक तविों का समहू िन होता से एक नया कुल बन गया।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
क्षवदथ:-  पररवार समाि की आधारभतू ईकाई थी। पररवार
 यह आयों की सवामतधक प्राचीन सिंस्था थी। इसे का प्रधान को कुलप या गृहपतत कहा िाता था।
िनसभा भी कहा िाता था।  ऋग्वैतिक काल में वणम व्यवस्था के तचन्ह तिखाई
 इसका उल्लेख ऋग्वेि में 122 बार आया है। िेते हैं।
 तविथ में ही उपि का तववरण होता था।  ऋग्वेि का प्रथम तथा 10वािं मण्िल सबसे अिंत
में िोड़ा गया।
 समाि में तनयोग प्रथा प्रचतलत थी, तिसमें
सभा:- तवधवा स्त्री अपने िेवर या अन्य परुु ि से तववाह
 यह वृद्ध (श्रेष्ठ) एविं अतभिात (सभ्रिं ान्त) लोगों की कर सकती थी।
सिंस्था थी। सभा के तविय में उल्लेखनीय बात यह  ऋग्वैतिक सभा में तस्त्रयों को रािनीतत में भाग लेने
है तक इसकी उत्सपतत्त ऋग्वेि के उत्तरकाल में हुई तथा सम्पतत्त सम्बन्धी अतधकार प्राप्त नहीं थे।
थी। क्षििा:-
 ये वतममान ससिं ि की राज्यसभा की भातिं त थी।  तिक्षा के द्वार तस्त्रयों के तलए खल ु े थे, कन्याओ िं
को वैतिक तिक्षा िी िाती थी।
 इसमें मतहलायें तहस्सा लेती थीं, और उन्हें
सभावती कहा िाता था, उत्सतर वैतिक काल में  पत्रु ी का ‘उपनयन सिंस्कार’ तकया िाता था,
इसमें मतहलाओ िं की भागीिारी बिंि कर िी गई। तस्त्रयों को यज्ञ करने का अतधकार था।
 ऋग्वेि में इसका उल्लेख आठ बार तमलता है।  ऋग्वेि में लोपामद्रु ा, घोिा, तसकता, अपाला एविं
तवश्वारा िैसी तवििु ी तस्त्रयों का उल्लेख तमलता
सक्षमक्षत:- है, इन तवििु ी तस्त्रयों को ऋिी कहा गया है।
 यह के न्द्रीय रािनीततक सिंस्था (सामान्य िनता  गाय को ‘अघन्या’ (न मारने योग्य) माना िाता
था।
की प्रतततनतध सभा) थी, सतमतत रािा की
तनयतु क्त, पिच्यतु करने व उस पर तनयिंत्रण रखती
थी। क्षववाह‍व्‍यवस्था:-‍
 ऋग्वेि में इसका उल्लेख 9 बार तमलता है।  ऋग्वेि काल में सामान्य तववाह के अततररक्त िो
प्रकार के अिंतवमणीय तववाह होते थे-
 इसकी तुलना वतममान सिंसि की लोक सभा से
की िाती है।
(1)‍अ‍नुलोम‍क्षववाह‍:-‍िब परुु ि उच्च वणम का
 सतमतत के सभापतत को ईिान कहा िाता था।
हो और कन्या तनम्न वणम की हो।

सामाक्षजक‍व्यवस्थाः-

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(2)‍प्रक्षतलोम‍क्षववाह:-‍इसमें परुु ि तनम्न वणम होता है तक वे एक सावमभौतमक सत्ता में तवश्वास
का व कन्या उच्च वणम की होती थी। रखते हुए भी बहुलवािी हो गये थे।
 मख्ु यत: ऋग्वैतिक िेवकुल में िेतवयों की नण्यता
आक्षथिक‍जीवनः- थी, सभी िेवता प्राकृ ततक ितक्तयों के प्रतीक थे।
 कृ ति योग्य भतू म को ‘उवमरा’ अथवा क्षेत्र कहा  ऋग्वेि में सबसे महत्सवपणू म िेवता इन्द्र को
िाता था। ‘परु न्िर’ भी कहा गया है, उन्हें विाम का िेवता भी
 वास्तव में आयों की आतथमक तस्थतत का माना गया है, ऋग्वेि में इन्द्र की स्ततु त में 250
मलू ाधार पिधु न ‘गाय’ मद्रु ा की भााँतत समझी सक्त
ू है।
िाती थी। अतधकािंि लड़ाइयााँ गायों के तलए  िसू रा महत्सवपणू म िेवता अतग्न है, वैतिक काल में
लड़ी गयी थी, ऋग्वेि में ‘गाय’ का 176 बार अतग्न िेवताओ िं व मनष्ु यों के मध्य मध्यस्थ था,
उल्लेख तकया गया है। इसके माध्यम से िेवताओ िं की आहुततयााँ िी
 गाय के बाि िसू रा प्रमख ु पिु घोड़ा था क्योंतक िाती थी।
घोड़े का प्रयोग रथों में होता था।  ऋग्वेि में अतग्न की स्ततु त में 200 सक्त
ू तमलते हैं।
 तवतनमय के माध्यम के रूप में ‘तनष्क’ का भी  तीसरा प्रमख ु िेवता वरूण था िो िलतनतध का
उल्लेख हुआ है। प्रतततनतधत्सव करता है।
 बेकनाट (सिू खोर) वे ऋणिाता थे िो बहुत  वरूण को ऋतस्य गोपा कहा गया है अथामत् वह
अतधक ब्याि लेते ते। प्राकृ ततक घटना क्रम का सिंयोिक समझा िाता
 गतवतष्ट अथामत् गायों की ‘गवेिणा’ ही यद्ध ु का था, उसे असरु भी कहा गया है।
पयामय माना िाता था। इसी प्रकार गवेिण, गोि,ु  सोम को पेय पिाथम िेवता माना िाता है, ऋग्वेि
गव्य, गम्य आति सभी िब्ि युद्ध के तलए प्रयक्त ु का नवम् मण्िल सोम की स्ततु त करता है।
होते थे।  मरुत:- आिंधी-तफ ू ान के िेवता है।
 ऋग्वेि में एक ही अनाि अथामत् यव का उल्लेख  पजिन्य:- विाम का िेवता।
हुआ है।  अरण्यानी‍:- ऋग्वैतिक काल में ििंगल की िेवी
थी
ऋग्वैक्षदक‍धमिः-  रुद्र:- यह क्रोध, गस्ु सा इत्सयाति के प्रतीक िेवता
 ऋग्वैतिक लोग तिस सावमभौतमक सत्ता में तवश्वास थे, इन्हें औतितधयों का सिंरक्षक एविं तचतकत्ससक
रखते थे वह एकश्वरवाि थी, ऋग्वेि अनेक बताया गया है।
िेवताओ िं का अतस्तत्सव मानता है, इससे स्पष्ट

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उत्‍तर‍वैक्षदक‍काल‍
 भारतीय इततहास में उस काल को तिसमें  तविेह के िनक, कै के य के अश्वपतत, कािी के
सामवेि, यिवु ेि एविं अथवमवेि तथा ब्राह्मण अिातित्रु और पािंचाल के प्रवाहण िाबातल।
ग्रन्थों, आरण्यकों एविं उपतनििों की रचना हुई,  उत्तरवैतिक काल में पािंचाल सवामतधक तवकतसत
को उत्तर वैतिक काल कहा िाता है। राज्य था, ितपथ ब्राह्मण में इन्हें वैतिक सभ्यता
 ितपथ ब्राह्मण में बताया गया है तक माधव का सवमश्रेष्ठ प्रतततनतध कहा गया है।
सरस्वती निी के तकनारे अपने परु ोतहत गौतम  उत्सतर वैतिक काल में राितन्त्र ही िासन का
राहुगण के साथ तनवास करते थे, माधव ने आधार था पर कहीं-कहीं पर गणराज्यों के
वैश्वानर अतग्न को महिंु में धारण कर तलया, तफर उिाहरण भी तमलते हैं।
वह अतग्न माधव से तनकलकर पृथ्वी पर आ  उत्तर वैतिक काल में तनयतमत करों तक प्रततष्ठा
तगरी, और सबकुछ िलाती हुई पवू म की ओर बढ़ स्थातपत हुई।
चली, लेतकन सिानीरा निी (गिंण्िक निी) को
अतग्न नहीं िला पायी, यहीं पर तमथला राज्य सामाक्षजक‍संगठनः-
तस्थत था, अत: आयम सभ्यता का प्रसार पवू म में
 उत्तर वैतिक काल का समाि चार वणों में तवभक्त
तमथला तक ही रहा।
था:- ब्राह्मण, रािन्य या क्षतत्रय, वैश्य और िद्रू ।
 इस यगु की सभ्यता का के न्द्र पिंिाब से बढ़कर
 इस काल में यज्ञ का अनष्ठु ान अत्सयतधक बढ़ गया
कुरुक्षेत्र (तिल्ली और गगिं ा-यमनु ा िोआब का
था तिससे ब्रह्मणों की ितक्त में अपार वृतद्ध हुई।
उत्तर भाग) में आ गया था।
 इस काल में वणम व्यवस्था का आधार कमम पर
 इस सिंस्कृ तत का मख्ु य के न्द्र मध्य िेि था।
आधाररत न होकर िातत पर आधाररत हो गया
 परुु एविं भरत तमलकर कुरु और तवु मि एविं तक्रतव था तथा वणें में कठोरता आने लगी थी।
तमलकर पािंचाल कहलाए।
 समाि में अनेक धातममक श्रेतणयों का उिय हुआ
 मगध व अिंग आयम क्षेत्र के बाहर थे। िो कठोर होकर तवतभन्न िाततयों में बिलने
लगी। व्यवसाय आनवु िंतिक होने लगे।
राजनीक्षतक‍व्यवस्थाः-
 ऐतरे य ब्राह्मण में चारों वणों के कत्तमव्यों का वणमन
 उपतनिि काल में अनेक रािा ऐसे हुए, िो ब्रह्म तमलता है।
ज्ञान तथा आध्यात्सम तचतिं न से िड़ु े थे। तिनमें  ब्राह्मण, क्षतत्रय तथा वैश्य इन तीनों को तद्वि कहा
प्रमखु थे:- िाता था ये उपनयन सिंस्कार के अतधकारी थे।

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 चौथा वणम (िूद्र) उपनयन सिंस्कार का अतधकरी  उत्तर वैतिक काल के लोगों में लाल मृिभाण्ि
नहीं था और यहीं से िद्रू ों को अपात्र या सबसे अतधक प्रचतलत था। िबतक तचतत्रत धसू र
आधारहीन मानने की प्रतक्रया िरू ु हो गई। मृिभाण्ि (PGW) इस युग की तविेिता थी।
 उत्सतर वैतिक काल में गौत्र प्रथा स्थातपत हुई तफर  वैतिक काल के लोगों ने तिन धातओ ु िं का प्रयोग
गोत्र वतहमतववाह की प्रथा चल पड़ी। तकया उनमें तााँबा पहला रहा होगा। तााँबे की
 सवमप्रथम िाबालोपतनिि में चारों आश्रमों का वस्तएु ाँ तचतत्रत धसू र मृिभाण्ि स्थलों में पाई गई
तववरण तमलता है। है।
 इस काल में तस्त्रयों के तलए उपनयन सिंस्कार
प्रततबतन्धत हो गया था। उद्योग:-
 ितपथ ब्राह्मण में अनेक तवििु ी कन्याओ िं का  कृ ति के अततररक्त तवतभन्न प्रकार के तिल्पों का
उल्लेख तमलता है, ये हैं:- गागी, गन्धवम, गृहीता, उिय भी उत्तर वैतिक कालीन अथमव्यवस्था की
मैत्रेयी आति। अन्य तविेिता थी।
 ब्राह्मण ग्रन्थों में श्रेष्ठी का भी उल्लेख तमलता है।
आक्षथिक‍जीवनः- श्रेतष्ठन श्रेणी का प्रधान व्यापारी होता था।
 कृ ति इस काल में आयों का मुख्य व्यवसाय था।  स्वणम तथा लोहे के अततररक्त इस यगु में आयम
ितपथ ब्राह्मण में कृ ति की चारों तक्रयाओ:िं - तटन, तााँबा, चााँिी सीसा आति धातओ ु िं से
ितु ाई, बआु ई, कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख पररतचत हो चक ु े थे।
हुआ है।  तैतत्तरीय सतिं हता में ऋण के तलए कुसीि िब्ि
 काठक सिंतहता में 24 बैलों द्वारा खीचें िाने वाले तमलता है।
हलों का उल्लेख तमलता है।
 ऋग्वैतिक लोग िौ (यव) पैिा करते थे, परन्तु इस व्यापार:-‍
काल में उनकी मख्ु य फसल धान और गेहूाँ हो  उत्तर वैतिक काल में मद्रु ा का प्रचलन हो चक ु ा
गयी। था। परन्तु सामान्य लेन-िेन में या व्यापार वस्तु
 उत्तर वैतिक काल के लोग चार प्रकार के बतमनों तवतनमय द्वारा ही होता है।
(मृिभाण्िों) से पररतचत थे:-  तनष्क, ितमान, पाि, कृ ष्णाल आति माप की
1. काले व लाल भाण्ि तभन्न-तभन्न इकाइयााँ थीं। तनष्क िो ऋग्वैतिक
2. काले रिंग के भाण्ि काल में एक आभिू ण था अब एक मद्रु ा माना
3. तचतत्रत धसू र मृिभाण्ि तथा िाने लगा।
4. लाल भाण्ि।

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 ितमान सम्भवतः चााँिी की मद्रु ा थी। ितपथ यज्ञ‍करने‍वाले‍ब्रह्माणों‍के ‍चार‍वगि‍थे-‍
ब्राह्मणों में ितक्षणा के रूप में इसका वणमन तमलता
है अथवमवेि में चााँिी का उल्लेख तमलता है। 1.‍होतृ‍(‍होता)‍:- यह ऋग्वेि का ज्ञाता था, यह
यज्ञ में अतग्न को आमिंतत्रत कर िेवताओ िं का
धाक्षमिक‍जीवनः- अह्वान करता था।
 उत्तर वैतिक काल में उत्तर िो-आब ब्राह्मणों के
प्रभाव में आयम सस्िं कृ तत का के न्द्र स्थल बन गया। 2. उद्गाता:-‍ यह सामवेि का ज्ञाता था, और यज्ञ
 यज्ञ इस सस्िं कृ तत का मल में सोम का गायन करता था।
ू था और यज्ञ के साथ-
साथ अनेकानेक अनष्ठु ान और मिंत्रतवतधयााँ
प्रचतलत हुई। 3.‍अध्‍वयि‍ु (याक्षज्ञक):-‍ यह यिवु ेि का ज्ञाता
था, िो यज्ञ के कममकाण्िों को सपिं न्न करवाता
 पिओ ु िं के िेवता रुद्र इस काल में एक महत्सवपणू म
था।
िेवता बन गये उत्तर वैतिक काल में इनकी पिू ा
तिव के रूप में होने लगी।
4.‍ब्रह्मा‍:-‍यह सारे वेिों का ज्ञाता था, यज्ञ में
 तवष्णु को सवम सिंरक्षक के रूप में पिू ा िाता था।
इसकी भतू मका तनरीक्षक (सपु रतविन) की होती
 पिू न िद्रू ों के िेवता के रूप में प्रचतलत थे थी। ‍
ऋग्वैतिक काल में वह पिओ ु िं के िेवता थे।
यज्ञ‍के ‍प्रकार‍:-‍
उत्‍तर‍वैक्षद‍क‍काल‍में‍तीन‍प्रकार‍के ‍ऋण‍बताये‍
गये‍हैं- िलू गव‍यज्ञ:-‍यह रुद्र (तिव) को प्रसन्न करने
के तलए तकया िाता था, लेतकन इसमें नन्िी की
(1)‍देव‍ऋण:-‍ िेवताओ िं की कृ पा से मानव िन्म बतल िी िाती थी यह यज्ञ अश्वत्सथामा द्वारा प्रारिंभ
तमला है अत: यज्ञ कर यह ऋण चक ु ाया िा सकता तकया गया था।
है।
परुु षमेघ‍यज्ञ:-‍ इसमें 25 यूप बनते थे तिसमें
(2)‍ऋक्षष‍ऋण:-‍ वेिों का अध्ययन- अध्यापन कर, 11 परुु िों की बतल िी िाती थी, इसका उल्लेख
गरुु से िो ज्ञान तमला है, उसे चक
ु ाया िा सकता है। ितपथ ब्राह्माण में है।
(3)‍क्षपतृ‍ऋण:-‍ धमम के अनसु ार तववाह कर सिंतान
उत्सपतत्त करके यह ऋण चक ु ाया िा सकता है। सोमयज्ञ:-‍ यह ऋग्वेतिक आयों का सबसे
महत्सवपूणम यज्ञ था, यह यज्ञ कभी-कभी 1000 विम

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
तक चलता था। इसमें सोम की आहुतत िी िाती प्रमख
ु ‍दििन‍एव‍ं रक्षचयता:-‍
थी।
दििन‍ रचक्षयता/‍प्रवतिक‍
राजसूय‍यज्ञ:-‍राज्यातभिेक के समय यह यज्ञ चावामक भौततकवािी चावामक
तकया िाता था, रािा इसमें चौसर और द्यतू सािंख्य कतपल
क्रीड़ा िैसे खेलों में भाग लेता था। इसी यज्ञ से योग पतिं ितल (योग सत्रू )
रत्सनहबसी सिंस्कार सिंबिंतधत है। तिसमें रािा सबसे न्याय गौतम (न्याय सत्रू )
पहले सेनानी के घर िाता था। पवू म मीमािंसा िैमनी
उत्सतर मीमािंसा बािरायण (ब्रह्म सत्रू )
अक्षग्नष्‍ट‍टोम‍ यज्ञ:-‍ यह यज्ञ प्रकृ तत पिू ा से वैितिकी कणाि या उलक ू
सबिं तिं धत है, िो तक पाचिं तिन चलता था।

अश्‍वमेघ‍यज्ञ‍:-‍ यह यज्ञ इस बात का प्रतीक स्मरणीय‍तथ्य‍


था, तक सबिं तिं धत रािा का अश्व तिस क्षेत्र से
 इस काल में मद्रु ा प्रणाली का आतवभामव नहीं
गिु रा है, आप उसके अधीन हो, इसमें यज्ञकताम
हुआ था। अतः बतल, िल्ु क, भाग आति िो रािा
अपना सबकुछ िान कर िेता था।
को तिये िाते थे वे वस्तओ ु िं के रूप में ही होंगे।
 पनु िमन्म का तसद्धान्त सवमप्रथम ितपथ ब्राह्मण में
व्रात्‍यस्‍टोम‍यज्ञ:-‍इसके द्वारा अनायम लोग आयम
तिखाई िेता है।
समिु ाय में िातमल तकये िाते थे, पिंचतवष्ट
ब्राह्मण में इस यज्ञ का उल्लेख है।  तीनों आश्रमों सवमप्रथम वणमन हमें छान्िोग्य
उपतनिि में तथा चारों आश्रमों का वणमन
सीता‍यज्ञ:-‍कृ ति प्रारिंभ करते समय हल चलाने िबालोपतनिि में तमलता है।
से पवू म तकया िाने वाला यज्ञ।  अश्वमेध, वािपेय, रािसयू आति यज्ञों के तवस्तृत
अध्ययन से पता चलता है तक मल ू तः इनका
पच ं महायज्ञ:-‍ इसमें ब्रह्म यज्ञ , तपतृ यज्ञ, िेव उद्देश्य कृ ति-उत्सपािन का बढ़ाना था।
यज्ञ, भूत यज्ञ एव अतततथ यज्ञ (मनष्ु य)  सबसे बड़ा तथा सवामतधक लोह पििंु
सतम्मतलत है। अिंतरिीखेड़ा से तमला है।
‍‍  इस काल में गौत्र व्यवस्था स्थातपत हुई।
 उत्तर वैतिक काल में ही मतू तम पिू ा का आरम्भ
हुआ।

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 तनष्क (सोने का तसक्का), ितमान (चााँिी का
तसक्का), पाि, कृ ष्णाल आति माप की तभन्न-
तभन्न इकाइयााँ थी।
 यम और नतचके ता और उनके बीच तीन वर प्राप्त
करने की कहानी कठोपतनिि में वतणमत है।
 आरुतण उद्दालक और श्वेतके तु के मध्य सिंवाि
छान्िोग्य उपतनिि में तमलता है।
 ‘यज्ञ एक ऐसी नौका है तिस पर भरोसा नहीं
तकया िा सकता’ मण्ु िकोपतनिि।
 कठोपतनिि में आचायम यम द्वारा नतचके ता को
ब्रह्म तवद्या का उपिेि तिया गया।
 उत्सतर वैतिक काल के स्थल भगवानपरु ा
(हररयाणा) से पक्की ईटोंिं से तनतममत तेरह कक्षीय
भवन प्रकाि में आये हैं।
 वेि में तक उल्लेख है तक गालव नामक ऋति ने,
िासराज्ञ यद्धु में पािंचाल नरे ि तिवोिास को लोहे
की तलवारें िेकर सहायता की थी।

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सगं म‍काल‍
सगिं म यगु से तात्सपयम ितक्षण भारत के आरिंतभक  इस सिंगम का एकमात्र ततमल व्याकरण ग्रिंथ
संस्थापक — श्री गप्ु त
इततहास का वह यगु है, िब ततमल कतवयों द्वारा बड़ी ‘तोलकातप्पयम्’ ही उपलब्ध है।
चन्द्रगुप्कतवताओ
सिंख्या में ततमल त प्रथमः- िं की (319-35 रचना कीई0)गई।
— गुप्त वंश का वास्तववक संस्थापक राजधानी – पाटलिपुत्र
तृतीय‍सगं म‍
 सिंगम िब्ि कतवयों के समागम319 अथामईत0 साथ आनेसंवत ‘गुप्
में नया त संआयोजन‍स्‍
वत’ चिाया थल: उत्सतरी मिरु ा
का स्थल है।  अध्‍
लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाहिक संबंध स्थावपत करने के य ि: नक्विकीरर
कारण अपने को “लिच्छनयः दौहित्र” किता था।
 परम्परागत रूप से एक के पिात 3 सिंगम  तीसरे सिंगम की यह तविेिता है तक इस समय की
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने के लसक्के” जारी ककया।
आयोतित तकए गए। सक िं तलत कतवतायें आि भी उपलब्ध हैं।
 तीनों सिंगम मिु रै के पाि सम् य ुर िासकों
गुप्तः- इसकी भी उपाधध
के सिंरक्षण में – लिच्छनयःदौहित्रस, “ंगकववराज” म‍साक्षहत्‍य‍
तवतभन्न स्थलों पर आयोतित तकए गए। सगम सातहत्सय मल ू सेरूप से ततमल भािा में तलखे गये।
ववजय अलभयानों की जानकारी — िं ‘प्रयाग प्रशास्स्त ’
 सगिं म सातहत्सय की कतवताएिं 2 तविय-वस्तु (प्रेम प्रमख ु ‍सगं म‍ग्रथ ं ‍क्षनम‍न‍क्षलक्षखत‍है-
ननंसेट आथथर ने इसे “भारत का नेपोलियन” किा िै ।
व यद्ध ु ) पर आधररत थी, इस सातहत्सय की तोलकाक्षप्पयम:् - यह एक व्याकरण ग्रिंथ है।
तविेिता तत्सकालीन ततमल लसक्को समािपर वीणा बजाते िुए धचत्रत्रत
का उत्तर  धमम ककया
, अथमगया
, काम,िै । मोक्ष की व्याख्या इस ग्रिंथ मे

सभ्यता (आयम) के साथ सामििं स्य का तववरण की गई है।


इसने भी अश्वमेघ यज्ञ कराए और “अश्वमेघ पराक्रमांक” की उपाधध धारण की।
था।  इसकी रचना तोलकातप्पयर ने की है।
प्रथम‍संगम राम ग प्
ु तः-

इसकी पत्नीआयोजन‍स्‍
ध्रुवस्वालमनी थल‍: को मि रु ा करने के लिए शकों का आक्रमण
प्राप्त एतुत्ि‍तु आौके। :‍यह
इस घटना
8 ग्रिंथकीों काजानकारी
सिंग्रह हैववशाखदत्त कृत “दे वी
, इसतलये इसको
 अध्‍यि: ऋति अगस्त्सय चन्द्रगुप्तम” नामक ग्रन्द्थ सेअष्प्राप्त ट सिंग्रिोती
ह भीिैकहते
। हैं।
 यह सिंगम सबसे अतधक समय तक चला, यह  इस अष्ट सिंग्रह का प्रमुख ग्रिंथ पररपािल है िो
सिंगम कुल 4400 चन्द्रग विों तक चला। ततमल सिंग्रह का प्रथम सिंगीत सिंग्रह है।
ुप्त द्ववतीय ‘ववक्रमाहदत्य’:- अन्द्य नाम-दे वराज या “दे वगुप्त”
 प्रथम सिंगम का कोई भी ग्रिंथ उपलब्ध नहीं है।  इस अष्ट सिंग्रह का िसू रा प्रमुख ग्रिंथ अहनारू है
परमभागवत की उपाधध उसके धमथननष्ठ वैष्णव िोने की पुस्ष्ट करता िै ।
िो तक मिरु ा तनवासी रुद्रिममन ने तलखा ।
क्षद्वतीय‍सचााँंगदमी की मुरा का प्रचिन करने वािा पििा गुप्त शासक
ू 
दस अयोजन‍स्‍
री राजधानी थल‍:‍कपाटप
— उज्जनयनी (ववद्या रु म/ अलवै पत्‍तुप्‍पातु‍:‍
एवं संस्कृनत का प्रलसद्ध केन्द्र) इससे पििे ववहदशा को दस ू री राजधानी बनाया
 अध्‍यि: अगस्त्सय ( बाि में तोलकातप्पयर  इसको िस गीत भी कहते हैं।
नवरत्नः-
अध्यक्ष बने)  यह तृतीय सिंगम का ग्रिंथ है।
 यह सिंगमअमरलसं 3700 िविों , वेताि भट्ट, धन्द्वंतरर, शंकु, घटकपरर, क्षपण, कालिदास, वरािलमहिर, वररूधच
तक चली।  यह चेर रािाओ िं की कहानी है।
शक ववजेता किा जाता िै ।

फाह्यानः-

चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की।
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COMPLET BATCH & STUDY NOTES चन्द्र के पाटलिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इस ग्रिंथ का प्रमखु भाग पतत्तनप्पालै है, तिसकी क्षिड‍पाक्षदकारम‍्
रचना रुद्रनकन्ननार ने की, इस कृ तत से प्रभातवत  लेखक: इल िं गोआतिगल
होकर चोल िासक कररकाल ने लेखक को 16  यह चेर िासक िेनगट्टु वन का भाई था।
लाख स्वणम मुद्रािंए ईनाम में िी थीं।  कहानी:-‍ इस ग्रिंथ का नायक कोवलम एविं
उसकी पत्सनी कन्नगिं ी है, कोवलन को पाण्िय
कुरल‍: िासक नेिुिेतलयन ने फािंसी िी थी, तिसके
 यह तीसरे सिंगम के प्रमख ु ग्रथिं कारण कन्नगी ने क्रोध से मिरु ा को िला िाला
पतिनेतकल्लकणक्कु के 18 भागों में से एक है, और चेर राज्य चली गई, और चेर राज्य में
इसके लेखक ततरुवल्लवु र हैं। कन्नगी सती की िेवी के रूप में स्थातपत हुई,
 कुरल को ततमल सातहत्सय का आधार ग्रिंथ माना तिल्पातिकारम् में कन्नगी पिू ा का उल्लेख
िाता है, इसकी गणना सातहतत्सयक तत्रवगम में की तमलता है।
गई है।  यह एक िैन कहानी है।
 इसे ततमल सातहत्सय का बाइबल और पिंचमवेि  तिल्पातिकारम् में 32 प्रकार के सतू ी वस्त्रों की
भी माना िाता है। चचाम है।
 इसमें ततमल रािओ िं द्वारा अपने तकले के द्वारपाल
संगम‍काल‍के ‍महाकाव्‍य‍ के रूप में यवनों की तनयतु क्त का उल्लेख है।
 सगिं म यगु में कुल 5 महाकाव्य हैं-  इस ग्रिंथ को ततमल सातहत्सय का इतलयि माना
 1. तिल्पातिकारम् िाता है ।
 2. मतणमेखलै  तकसी सातहत्सय की तल ु ना इतलयि से करने का
 3. िीवकतचतिं ामतण कारण-
 4. वलयपतत इक्षलयि
 5. कुण्िलके ति
 इनमें से प्रथम तीन ही उपलब्ध हैं, यद्यतप यह इतलयि या ईतलयि प्राचीन यनू ानी िास्त्रीय
सातहत्सय सिंगम सातहत्सय के अिंतगमत नहीं आते (क्लातसकल) महाकाव्य है, िो यरू ोप के
बतल्क यह सिंगम यगु के महाकाव्य हैं। आतिकतव होमर की रचना मानी िाती है। इसका
नामकरण ईतलयन नगर (राय) के यद्ध ु के वणमन के
कारण हुआ है। समग्र रचना 24 पस्ु तकों में तवभक्त
है इतलयि में राय राज्य के साथ ग्रीक लोंगो के
यद्ध
ु का वणमन है। इस महाकाव्य में राय के तविय

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
और ध्वसिं की कहानी तथा यनु ानी वीर एकतलस  कहानी:- इस कहानी का नायक 8 रातनयों से
के वीरत्सव की गाथाएिं हैं। तववाह कर सतु वधापवु मक िीवन तबताता था, िो
इसतलए िब भी तकसी ग्रिंथ को उसकी महानता बाि में िैन तभक्षु बन िाता है।
बतानी होती है तो पतिम की इतलयट से तल ु ना कर
िेते हैं ठीक उसी तरीके िैसे समद्रु गप्तु को वी ए  वलयपतत ओर कुण्िलके ति महाकाव्य उपलब्ध
तस्मथ भारत का नेपोतलयन कहते हैं अथामत उसकी नहीं है।
तलु ना नेपोतलयन से कर िी िाती है
संगम‍युग‍का‍राजनैक्षतक‍इक्षतहास‍
मक्षणमेखलै  सिंगम सातहत्सय से हमें ितक्षण के तीन प्रमख
ु राज्य
 लेखक:‍सीतलैसत्सतनार (बौद्ध अन्न व्यापारी) चोल, चेर और पाण्िय का रािनैततक इततहास
 इसे बौद्ध पस्ु तक माना िाता है। प्राप्त होता है।
 इसको तिल्पातिकारम् का िसू रा भाग कहते हैं
 ‍काहानी:-‍‍इसकी कथा वहािं से प्रारिंभ होती है, चोल‍राज्‍य:-‍
िहािं से तिल्पातिकारम् की समाप्त होती है, इस  राजधानी: पहु ार या कावेरीपत्सतनम
महाकाव्य की नातयका मतणमेखलै है िो  प्रारंक्षभ‍क‍राजधानी: उत्सतरी मनलरू एविं उरै यरू
कोवलम और उसकी िसू री प्रेतमका माधवी  राजक्षचन्‍ह: बाघ या चीता
(वैश्या) की पत्रु ी है, मतणमेखलै बाि में बौद्ध  सिंगम कालीन तीन प्रमख ु राज्यों में सवमप्रथम
तभक्षणु ी बन िाती है। चोलों का अभ्यिु य हुआ
 इस ग्रथिं को ततमल सातहत्सय का ओतिसी कहा
िाता है। उरवप्‍पहरेइलनजेक्षतचेन्न‍ ी:-‍‍
 इस महाकाव्य में कािंची में पड़े अकाल का वणमन  यह चोलों का पहला एततहातसक िासक था,
है।  इसी ने उरै यरू को रािधानी बनाया।
 इसके तविय में प्रतसद्ध था तक यह यद्ध
ु में सिंिु र
जीवक‍क्षचन्‍तामक्षण‍
रथों का प्रयोग करता था।
 लेखक: ततरुतक्किेवर
 यह एक िैन सन्यासी थे, िो सम्भवत एक चोल एलारा:-‍‍
रािकुमार था,  यह चोल राज्य का पहला िासक था, तिसने
श्रीलिंका पर तविय प्राप्त की और लगभग 50
विों तक वहा िासन तकया।

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उक्षदयनजेरल:-‍
कररकाल‍  यह चेर वििं का सस्िं थापक रािा था।
 इसके नाम का अथम था पािंव िला व्यतक्त अथामत  इसके तविय में कहा िाता है तक इसने महाभारत
तिसके पैर झल ु से हों, यह चोलो का सवामतधक के यद्ध
ु में भाग लेने वाले सभी योद्धाओ िं को
महत्सवपूणम िासक था। भोिन कराया था।
 इसने अपने िो प्रतसद्ध यद्धु ों से ख्यातत हातसल
की- नेदुजेरलआदन‍:-‍
 1. वेतण्ण का यद्धु  इसने तहमालय तक तविय तकया, और वहािं पर
 2. वाहइप्पारिंिलाई चेर राितचन्ह धनिु अिंतकत तकया।
 इसने अपनी रािधानी उरै यरू से कावेरीपत्सतनम्  इसने मालाबार तट पर यवन व्यापाररयों को बिंिी
स्थानातिंररत की। बना तलया था।

िेनगणान:-‍ िेनगुट्टुवन‍
 इसके बारे में प्रचतलत था तक यह पवू म िन्म में  यह चेर विंि का सबसे प्रतापी रािा था।
मकड़ा था।  इसको लाल चेर और भला चेर भी कहते थे।
 सगिं म यगु के चोल िासकों ने चौथी सिी तक  इसने चेर राज्य में पतत्सतनी पिू ा ( पत्सनी पिू ा)
िासन तकया, इसके बाि चोल िासन अिंधकार अथामत कण्णगी पिू ा प्रारिंभ की।
पणू म हो िाता है, तफर आगे चलकर 850 ई. में  इसने ‘समद्रु को पीछे हटाने वाला’ की उपातध
तवियालय के नेतत्सृ व में चोल सत्सता का धारण की ।
पनु रुत्सथान हुआ।  पेरुन्िेलन:- ितक्षण में गन्ने की खेती प्रारिंभ की।

चेर‍राज्‍य‍ पाण्‍ि्य‍राज्‍य‍
 रािधानी: वातिं ि या करुयरू  रािधानी: मिरु ै
 तद्वतीय रािधानी: तोंण्िी  प्रारिंतभक रािधानी: कोरकई
 राितचन्ह: धनिु  राितचन्ह: मछली
 सिंगम सातहत्सय में सवामतधक िानकारी चेर राज्य
की तमलती है। नेक्षियोन‍:-
 यह पाण्ि्य विंि का प्रथम िासक था।
 इसने समद्रु की पिू ा प्रािंरभ करवायी।

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 पल
ु ैन: रस्सी की चारपाई बनाने वाले
पलिालै‍मदु ु कुिुमी:-  किैतसयर: कृ िक मििरू
 यह पाण्ि्य विंि का प्रथम ऐततहातसक िासक  वेल्लालर: सम्पन्न तकसान
माना िाता है।
 इसके नाम का अथम है “अनेक यज्ञिालाएिं क्षववाह‍
बनाने” वाला।  तोलकातप्पयम् में 8 प्रकार के तववाह का उल्लेख
तमलता है।
नेंिुजेक्षलयन:-‍ 1. पंचक्षतणै: इसको प्रेम तववाह या गिंधवम तववाह
 सबसे प्रतसद्ध पाण्ि्य िासक था। भी कहते है।
 इसकी ख्यातत तलैयालिंगानम् का यद्ध ु िीतने के  2.‍ कै क्षक्कणै:‍ यह एकपक्षीय प्रेम है तिसमें
कारण है, यह यद्ध ु 290 ईस्वी में हुआ, इस यद्ध ु असरु , राक्षस और पैिाच तववाह होते थे।
में उसने चोल, चेर एविं पाचिं सामतों के गटु ों को  3.‍ पेरुक्षन्दणै: एक तरह का ‘अरें ि मैररि’
परातित तकया। अथामत् प्रिापत्सय सतहत िेि चारों तववाह इसमें
 प्रसतद्ध कतव नक्कीरर इसी के िरबार में थे। िातमल थे।
 समाि में तवधवा-तववाह एविं पनु मतववाह का
 इततहासकारों के अनुसार आगे चलकर कल्लभ्रों प्रचलन था।
ने तीनों ततमल रािाओ िं (चोल, चेर और पाण्ि्य)  िास प्रथा का अभाव था।
को बििं ी बना तलया था, कलभ्रों को िष्ु ट िासक
कहा िाता था। बाि में पािंण्ि्य पल्लव एविं संगम‍युद्ध‍के ‍बंदरगाह:
चालक्ु यों के हाथों उनका िमन हुआ।
चोलों‍के ‍बंदरगाह
संगम‍युगीन‍सामाक्षजक‍व्‍यवस्‍था  1. पहु ार:
समाि चार वगों मे तवभातित था,
 2. अररकामेिु ( पातण्िचेरी)
1. ििु ् िम वगम (ब्राह्मण एविं बतु द्धिीव वग)
 3. उरै यरू
2. अरसर वगम ( िासक एविं योद्धा वगम

3. बेतनगर वगम ( व्यापारी वगम)
पुहार‍(कावेरीपत्‍तनम)् :
4. वेल्लाल वगम (तकसान वगम )
 यह चोलों का प्रमखु बिंिरगाह था।
 परिवर: मछुआरे  टॉलमी ने कावेरीपत्सतनम् का उल्लेख ‘खबेररस’
नाम से तकया है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 यह मोती खोिने का सबसे बड़ा पत्सतन था,
अररकामेि‍(पाक्षण्िचेरी)‍:‍‍ तिसका उल्लेख तप्लनी एविं पेररप्लस के लेखक
 यह चोलों का िसू रा प्रमखु बिंिरगाह था। ने तकया है।
 यह भारत तथा रोम के व्यापार का प्रमख ु कें द्र था।
 पेररप्लस में इसका नाम ‘पेिोक’ तमलता है।
 यहािं से तविाल रोमन बस्ती के साक्ष्य तमले हैं।

उरैयूर
 यह सतू ी वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा कें द्र था, िो
तक चोलों की समृतद्ध का सबसे बिा कारण था।

चेर‍बंदरगाह‍
1. मि
ु रर ( मिु रीस)
2. करौरा
3. वािंति
4. बन्िर
5. तोण्िी
 यह सभी पतिमी तट पर तस्थत चेरों के बििं रगाह
थे।
 मि ु रर बिंिरगाह से यवन सोना भर कर लाते थे,
और भारत से गोल तमचम लेकर िाते थे, यहािं से
आगस्तस मतिं िर भी तमला है,

पाण्‍ि्य‍बंदरगाह‍
 1 कोकम ई (पवू ी तट)
 2. िातलयरू ( पवू ी तट)
 3. नेलतसण्िा (पतिमी तट)
 कोकम ई बिंिरगाह पाण्ि्य का सबसे महत्सवपणू म
बिंिरगाह था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
धाक्षमिक‍आन्दोलन
 छठी िताब्िी ई.प.ू को तद्वतीय नगरीय क्रािंतत  कुल तमलाकर उस समय समाि एक सिंक्रमण
कहकर सिंबोतधत तकया गया िहािं प्रथम नगररय काल से गिु र रहा था और इसी सिंक्रमण काल
क्रािंतत कािंस्य यगु ीन थी वहीं तद्वतीय नगररय क्रािंतत की कोख से िैन और बौद्ध धमम का उद्भव हुआ।
लौह यगु ीन थी।
 ध्यातव्य है तक नगरीय क्रातिं त िब्ि का प्रथम जैन‍और‍बौद्ध‍धमि‍ के ‍अक्षतररक्‍त‍छठी‍िताब्‍दी‍
प्रयोग गािमन चाइल्ि ने अपनी पस्ु तक “The ई.पू.‍के ‍अन्‍य‍महत्‍वपूणि‍संप्रदाय‍:-‍
urban revolution” में तकया है।
 छठी िताब्िी ई.प.ू गिंगा के मैिानों में अनेक (1)‍परू ण‍कश्‍यप:-‍‍‍
धातममक सप्रिं िायों का उिय हुआ, इसी समय मत‍:-‍ घोर अतक्रयावािी या अकममवािी
तवश्व के अनेक िेिों में भी बौतद्धक आिंिोलन के  इनका मानना था तक कमम का व्यतक्त पर कोई
प्रमाण तमलते है िैसे ईरान में िरथ्रष्ु ट, चीन में प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंतक न तो कमम होता है,
कन्फ्यतू ियस इत्सयाति। न ही पनु मिन्म।
 इन्होंने श्रावस्ती में िल समातध ली थी।
उद्भव‍का‍कारण:-‍‍
(1) वैतिक धमम कममकाण्ि और लगातार पष्ु ट हो (2)‍मक्‍खक्षलगोिाल:-
रही वणमव्यवस्था के तवरोध में धमम सधु ार  मत:-‍तनयततवािी या भाग्यवािी
आिंिोलन प्रारिंभ हुआ।  संस्‍थापक:-‍आिीवक सिंप्रिाय
(2) लोहे के आतवष्कार के कारण कृ ति में क्रािंतत  ये लोग तनयततवािी थे इसतलये कमम पर तवश्वास
आई, कृ ति में सवामतधक आवश्यकता पिओ ु िं की नहीं करते थे।
होती थी, इसके तवपरीत वैतिक कममकािंि में पिु
 यह नालिंिा में महावीर स्वामी से तमले और उनके
मारे िाते थे, अत: वैतिक कममकािंि खेती की
साथ लगातार छ: विम तप भी तकया, लेतकन उनसे
प्रगतत में बाधक तसद्ध हुए, इसी कारण िनता ने
तववाि हो िाने के कारण इन्होनें उनका साथ छोड़
इन अतहसिं ावािी आिंिोलनों को समथमन तिया।
तिया, और आिीवक सिंप्रिाय की िरुु आत की
(3) ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के तवरुद्ध क्षत्रीयों का
लेतकन यही मक्खतलगोिाल महावीर की
खड़ा होना भी धमम सधु ार आिंिोलनों का एक बड़ा
ज्ञानप्रातत के पहले उनके तिष्य थे, लेतकन बाि में
कारण बना
इन िोनों के बीच कई बार सिंघिम हुआ तिसकी
पतु ष्ट कई बौद्ध और िैन ग्रथिं करते हैं, िैन ग्रथिं

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तो यहािं तक भी तलखते हैं तक इनकी मृत्सयु (5)‍सज ं यवेलरिपुत्‍त‍:-
महावीर स्वामी की मिंत्र ितक्त के कारण हुई।  मत:- सििं हे वािी ( अतनतियवािी)
 मक्खतलगोिाल ने खिु को तीथंकर घोतित कर  सारीपत्रु एविं महामोगलान बौद्ध सघिं में िड़ु ने से
तलया था। पवू म इन्हीं के तिष्य थे।
 कौिल का रािा प्रसेनिीत आिीवक सिंप्रिाय
का सिंरक्षक था, अिोक एविं ििरथ ने आिीवकों (6)‍लोकायत‍:-
को गफ ु ायें िान िी थीं।  इस सिंप्रिाय के सिंस्थापक ब्रहस्पतत थे, लेतकन
 गौतम बद्ध ु मक्खतलगोिाल को अपना सबसे इस मत के प्रमख ु प्रततपािक चावामक थे, िो
बड़ा ित्रु मानते थे। ‍ भौततकवािी ििमन के प्रमुख प्रवतमक भी थे।
 आिीवक तिन में एकबार भोिन करते थे वह भी  यह ििमन मोक्ष, ब्रह्मा, ईश्वर इत्सयाति का तवरोधी
तसफम हथेली पर। है, यह तसफम उन्हीं को स्वीकार करते हैं तिनका
 आिीवकों ने अतहसिं ा पर बल तिया, लेतकन पि-ु अनभु व मानव की इतिं द्रयों द्वारा तकया िा सके ।
हत्सया पर तविेि रोक नहीं लगाई, क्योंतक वे
मािंसाहारी भोिन भी करते थे।

(3)‍अक्षजतके सकम‍बक्षलन:-‍‍
 मत:-‍भौततकवािी या उच्छे िवािी
 इनके अनसु ार पाप पण्ु य सत्सय असत्सय सब झठू है,
क्योंतक मृत्सयु के बाि कुछ नहीं होता, इसतलये
अपने आनन्ि के तलये िो इच्छा हो वही करना
चातहए।
 इस प्रकार इनका मत लोकायत अथवा चावामक
ििमन के बहुत करीब है।

(4)‍पकुधकच्‍चायन:-
 म‍त:-‍तनयततवािी
 यह मत भी भौततकवािी था, इनका कहना था तक
सिंसार में न कोई तकसी को मारता है, और न कोई
मारा िाता है।

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जैन‍धमि  24 वें तीथंकर महावीर स्वामी को िैन धमम को
सगिं तठत करने, तवकतसत करने एविं िैन आन्िोलन
िैन िब्ि सस्िं कृ त के ‘तिन’ िब्ि से बना है के प्रवतमक का श्रेय तिया िाता है।
तिसका अथम ‘तविेता’ होता है, महावीर से पहले
िैन धमम, तनग्रंथ मत कहलाता था, अिोक के ऋषभदेव/आक्षदनाथ
अतभलेख में भी िैन धमम हेतु तनग्रंथ िब्ि तमलता  ये िैन धमम के प्रवतमक एविं प्रथम तीथंकर थे।
है।  ऋग्वेि में इनका उल्लेख अयोध्या के िासक के
जैन‍धमि‍के ‍अन्‍य‍नाम‍:-‍‍‍‍ रूप में तमलता है। यिवु ेि में ऋिभिेव को धमम
 यातपनीय प्रवतमकों में श्रेष्ठ कहा गया है।
 कुरुचक  भगवत गीता में ऋिभिेव को भारत के लोगों को
 श्वेतपट सभ्यता का पाठ पढाने वाला कहा गया है।
 तनग्रंथ  भरत एविं बाहुबली (गोमतेश्वर/गोम्मट) को इनका
पत्रु बताया गया है।
‍तीथंकर‍:-  इन्हें के िरीयानाथ भी कहा िाता है।
 तीथम का िातब्िक अथम उन तनयमों एविं  भागवतपरु ाण में ऋिभिेव को नारायण तवष्णु का
उपतनयमों से है िो मनष्ु य को इस भव-सागर से अवतार माना गया है।
पार उतार िे, िबतक कर का अथम करनेवाला या  अथवमवेि एविं गोपथ ब्राह्मण में उतल्लतखत स्वयिं
बनाने वाला है। भक ू श्यप का तािाम्य ऋिभिेव से लगाया िाता
 िैन धमम के प्रथम तीथंकर ऋिभिेव/ आतिनाथ है।
थे। इन्हें ही िैन धमम की स्थापना का श्रेय िाता  इनका िन्म अयोध्या में हुआ था एविं मृत्सयु
है। (तनवामण) का स्थान कै लाि पवमत पर अष्टापि
 ऋिभिेव एविं अररष्टनेतम का उल्लेख ऋग्वेि मे बताया गया है।
तमलता है।
 िैन धमम में कुल 24 तीथंकर हुए थे तिनमे प्रथम अक्षजतनाथ
22 तीथंकरों की ऐततहातसकता सिंतिग्ध है। 23 वें  ये िैन धमम के िसू रे तीथंकर थे, इनका िन्म
तीथंकर पाश्वमनाथ एविं 24 वें तीथंकर महावीर अयोध्या में बताया िाता है।
स्वामी थे।  इनका उल्लेख यिवु ेि में तमलता है।

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वासपु ज्ू ‍य‍  ये बनारस के रािा अश्वसेन के पत्रु थे। इनकी माता
 यह िैन धमम के 12वें तीथंकर हैं, इनका तचन्ह का नाम वामा था, अनकी पत्सनी प्रभावती
भैंसा है, इनका िन्म और तनवामण चिंम्पापरु ी में अयोध्या अिंचल के कुिस्थल की रािकुमारी थी।
हुआ।  ये िैन धमम के 23 वें तीथंकर थे। इनका प्रतीक
मक्षडलनाथ तचह् सपम था।
 ये िैन धमम के 19 वें तीथंकर थे। इनका प्रतीक  िैकोबी ने पाश्वमनाथ को िैन धमम का वास्ततवक
तचन्ह कलि था। सिंस्थापक माना है।
 श्वेताम्बरों में मान्यता है तक मतल्लनाथ मतहला  इन्होंने सम्मेि तिखर पर 83 तिन कठोर तप तकया
पररव्रातिका थीं, वही तिग्म्बरों की मान्यता थी तक 84 वें तिन इन्हें ज्ञान प्राप्त हुई, ज्ञान प्राप्त करने के
मतहला तीथंकर नहीं हो सकती इसतलए वे पुरूि बाि ये तनग्रमन्थ कहलाए, सम्मेि तिखर को अब
थे। पारसनाथ पवमत नाम से िाना िाता है।
 इनकी प्रथम अनयु ायी इनकी मााँ वामा और िसू री
नेक्षमनाथ अनयु ायी इनकी पत्सनी प्रभावती थीं, इसके बाि
 ये िैन धमम के 21 वें तीथंकर थे। इनको तमतथला इनके अनयु ायी गािंगेय, कालासवेतसय और
के रािा िनक का पवू मि बताया गया है। पष्ु पचल ु ा हुई।िं
 िैन धमम में तनष्काम एविं अनासतक्तभाव इन्होंने ही  पष्ु पचल ु ा, पाश्वमनाथ के तभक्षणु ी सिंघ की अध्यक्ष
िोड़ा था। थीं।
 इनका सवमश्रेष्ठ अनयु ायी आयमित्त था, महावीर
स्वामी के माता- तपता भी पाश्वमनाथ के अनयु ायी
नेमी/‍अररष्टनेक्षम थे।
 ये िैन धमम के 22 वें तीथंकर थे। इनका उल्लेख  पाश्वमनाथ को सम्मेि पवमत तिखर पर तनवामण की
महाभारत में तमलता है। प्रातप्त हुई, पाश्वमनाथ ने 73 तिष्यों के साथ तनवामण
 महाभारत के अनसु ार, ये यािवु विंिी वासिु वे श्री प्राप्त तकया था।
कृ ष्ण के चचेरे भाई थें। (कृ ष्ण के समकालीन थे।)
 इनका तनवामण उिमयन्त नामक स्थान पर हुआ था। पार्श्िनाथ‍का‍चतुयािम/चाउज्जाम‍क्षसद्धांत‍–
पाश्वमनाथ के चतयु ामम तसद्धािंत में-
पार्श्िनाथ 1. अपररग्रह (सपिं तत्त का सग्रिं ह न करना)
 उपातधयााँ- परुु िािनीयम (महान परू
ु ि), तनग्रमन्थ, 2. अतहसिं ा
कोतटसािाणीय

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
3. सत्सय (सिा सत्सय बोलना) / अमृिा (झठू न  पुत्री- तप्रयििमना या अणौज्िा (इनका तववाह
बोलना) िमातल से हुआ था।)
4. अस्तेय (चोरी न करना) सतम्मतलत है।  महावीर स्वामी के बचपन का नाम वधममान था।
 महावीर स्वामी ने 30 विम की अवस्था में अपने
 महावीर स्वामी ने िैन धमम का पािंचवािं तसद्धािंत बड़े भाई नतन्िवधमन से आज्ञा लेकर गृहत्सयाग
ब्रह्मचयम िोड़ा। पाचिं वे तसद्धातिं के बाि इसे तकया था।
पिंचतसतक्खन कहा गया।  महावीर स्वामी ििवन नाम उद्यान में अिोक
‍महावीर‍स्वामी वृक्ष के नीचे अपने सभी अलिंकार उतार कर तभक्षु
 िन्म- 599 ई. प.ू में वैिाली के तनकट किंु िग्राम बने थे।
में ( नोट: परु ानी NCERT पस्ु तकों में महावीर  महावीर स्वामी ने गृहत्सयाग के 13 वें महीने में
स्वामी के िन्म का विम 545 ई. प.ू तिया था। स्वणमबालक ु ा निी के तट पर अपने वस्त्रों का
इसतलये कई पस्ु तकों में इनके िन्म का विम 540 त्सयाग तकया था।
ई.प.ू तमलता है, लेतकन नई NCERT पस्ु तकों में
 नालिंिा में महावीर स्वामी की भेंट
इनके िन्म का विम 599 ई.प.ू माना गया है अत:
मक्खतलपत्तु गोिाल से हुई थी। प्रारिंभ में वह
599 ई.प.ू को ही सही मानें)
महावीर स्वामी का तिष्य बन गया था तकन्तु 6
 महावीर स्वमी का कुल ज्ञातृक, गोत्र कश्यप, विंि विम बाि महावीर स्वामी का साथ छोड़कर
इक्ष्वाकु एविं प्रतीक तचह् तसिंह था। आिीवक नामक सिंम्प्रिाय की स्थापना की।
 क्षपता- तसद्धाथम (अन्य नाम – श्रेयािंस)  िैन ग्रिंथ आचारािंग सत्रू में उनकी कठोर तपस्या
 महावीर स्वामी के तपता वतज्ि सिंघ के 8 का वणमन तमलता है।
गणराज्यों में िातमल एक गणराज्य ज्ञातृक क्षतत्रय  महावीर स्वामी को 42 विम की अवस्था में
कुल के प्रधान थे। िृतम्भक ग्राम के समीप ऋिपु ातलका निी
 माता- तत्रिला (अन्य नाम- तप्रयकाररणी एविं (बराबर निी ) के तट पर समगा गृहस्थ के
तविेहित्ता) खतलहान में िाल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्रातप्त हुई
 महावीर स्वामी की माता तलतच्छवी नरे ि चेटक थी।
की बहन थी।
 पत्नी- यिोिा(कुण्िीनय गोत्र) ज्ञान‍प्राक्षप्त‍के ‍बाद‍महावीर‍स्वामी‍को‍क्षनम‍न‍
 भाई- नतन्िवधमन नामों‍से‍भी‍पक ु ारा‍गया‍:-‍
 बहन-सिु िमना 1.‍‍के वक्षलन:- सवोच्च ज्ञान तमलने के कारण

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2. क्षजन:- इतिं द्रयों को िीतने के कारण  महावीर स्वामी की प्रथम तिष्या चिंपा नरे ि
ितधवाहन की पत्रु ी चन्िना थी, यही महावीर
3. महावीर:- कतठन तपस्या करने के कारण स्वामी के तभक्षुणी सिंघ की प्रमुख थी।
 मृत्‍यु:- महावीर स्वामी की मृत्सयु (तनवामण) 72
4.‍अहित:- पज्ू य होने के कारण विम की अवस्था में िीपावली के तिन पावापरु ी में
मल्ल राज्य के िासक सतस्तपाल के रािप्रसाि
5. क्षनग्रिन्थ:- बिंधन रतहत होने के कारण में आत्समउपवास से हुई थी।

6.‍महान‍िरू :- ज्ञान के माध्यम से सख


ु -िख
ु पर जैन‍धमि‍के ‍पााँच‍महाव्रतः
तविय पा लेने के कारण।  अतहसिं ा तकसी िीव के साथ तहिंसा न करना
 सत्सय सिा सत्सय बोलना
 महावीर स्वामी ने प्रथम उपिेि रािगृह में
 अपररग्रह सिंपतत्त एकतत्रत न करना
तवतल ु ाचल/ तवपल ु ाचल पहाड़ी पर बराकर निी
 अस्तेय चोरी न करना
के तट पर तिया था। यह घटना वीर िायन उिय
के रूप में िानी िाती है।  ब्रहमचयम स्त्री के सिंपकम में न रहना (महावीर स्वामी
द्वारा िोड़ा गया था।)
 महावीर स्वामी ने अपने उपिेि अद्धम-मागधी
भािा में तिए थे, महावीर स्वामी ने 30 विों तक
जैन‍धमि‍का‍क्षत्ररत्न-
िैन धमम का प्रचार तकया था।
1.सम्यक ज्ञान
 महावीर स्वामी का प्रथम तिष्य उनका भािंिा एविं
2.सम्यक ििमन
िामाि िमातल था, िमातल, महावीर स्वामी की
3. सम्यक चररत्र
बहन सिु िमना का पत्रु था तथा महावीर स्वामी
की पत्रु ी तप्रयििमना (अणौज्िा) का पतत था।
(1)‍सम‍यक‍ज्ञान:-‍
 महावीर स्वामी प्रथम तवरोधी भी िमातल था एविं इस तत्ररत्सन के पािंच प्रकार हैं-
तद्वतीय तवरोधी ततसगप्तु था। (A) मतत ज्ञान:- इद्रिं ीयों द्वारा प्राप्त
 महावीर स्वामी का प्रथम विामवास अतस्तकाग्राम (B) श्रतु त ज्ञान:- सनु कर प्राप्त तकया गया।
में हुआ था। महावीर स्वामी का प्रथम तिष्य (C) मन: प्रायामय:- िसू रे के मन की बात िान लेना
िमातल था एविं प्रथम गणधर इद्रिं भतू त गौतम (D) अवतध ज्ञान :- तिव्य या अलौतकक ज्ञान
स्वामी था। (E) कै वल्य ज्ञान:- सवोच्च एविं पणू म ज्ञान िो के वल
 महावीर स्वामी का अिंततम विामवास पावापरु ी में तीथंकर को ही प्राप्त होगा।
हुआ था।

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(2)‍सम‍यक‍दििन:-‍ नहीं होता तथा तपछले व्याप्त कमम समाप्त होने लगते
इसके सात प्रकार हैं है। यह तस्थतत तनिमरा कहलाती है।
(1)‍जीव- िैन धमम के अनसु ार िीव चेतनरुपी एविं
ज्ञानयक्त
ु है, परन्तु िीव का अपना कोई स्वरुप नहीं (7)‍मोि/‍क्षनवािण-
होता है। िीव में तवद्यमान आत्समा स्वाभातवक रूप से िब िीव के कमों का अविेि पणू मतः समाप्त हो िाता
सवमितक्तमान एविं सवमज्ञाता होती है। है। तब उसे मोक्ष की प्रातप्त होती है। इस प्रकार, िैन
धमम में कमम का िीव से तवयोग ही मोक्ष कहा गया है।
(2)‍ अजीव- यह िड़रुपी एविं ज्ञानरतहत होता है, मोक्ष के पिात िीव पनु िमन्म के चक्र से मक्त
ु हो िाता
इसके पााँच भेि हैं- पिु गल, धमम, अधमम, आकाि, है तथा अनिंत चतष्टु य (अनिंत ज्ञान, अनिंत ििमन, अनिंत
काल। यहााँ पिु गल का अथम ऐसे तत्सव से हैं तिसका वीयम/ऊिाम का अनिंत सख ु ) की प्रातप्त कर लेता है।
तवभािन तकया िा सकता है, यह एक प्रकार का कमम
पिाथम है। (3)‍सम‍यक‍चररत्र:-‍
तत्ररत्सनों में सवामतधक बल सम्यक चररत्र पर तिया गया
(3)‍आस्रव‍- अज्ञानता के कारण कमम िीव की ओर है।
आकतिमत होने लगते है, यह तस्थतत आस्त्रव कहलाती जैन‍धमि‍के ‍चार‍क्षििा‍व्रतः
है।  गृहस्थों के तलए आवश्यक :-
(4)‍बन्धन-‍कमम का िीव के साथ सिंयक्तु हो िाना ही (1) देिक्षवरक्षत- तकसी िेि/प्रिेि की सीमा से आगे
बन्धन कहलाता है, िब िीव (आत्समा) में कमम घल ु न िाना
तमल िाते है, तो आत्समा एक प्रकार का रिंग उत्सपन्न
करती है, यह रिंग लेश्य कहा िाता है। लेश्य 6 रिंगों का (2) सामक्षयक‍व्रत- तिन में तीन बार ध्यान लगाना
होता है, काला, नीला, धसू र- बरु े चररत्र का सचू क,
पीला, लाल, सफे ि- अच्छे चररत्र का सचू क (3) प्रोपोद्योपवास- उपवास करना

(5)‍सवं र- तत्ररत्सनों (सम्यक ज्ञान, सम्यक ििमन एविं (4) वैया‍व्रत- िान िेना एविं पिू ा करना
सम्यक चररत्र) के अनसु ारण से कमों का िीव की ओर कायाक्‍लेि:-
बहाव रुक िाता है। यह तस्थतत सिंवर कहलाती है।  इसके अिंतगमत उपवास के द्वारा आत्समहत्सया का
तवधान है।
(6)‍क्षनजिरा- तत्ररत्सन के अनसु रण से कमों का िीव की  इस पद्धतत को सल िं ेखना पद्धतत या तनतिद्धी भी
ओर बहाव रुक िाता है। तिससे नए कमों का सिंचय कहा िाता है।

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 िैन ग्रिंथों के अनसु ार चद्रिं गप्ु त मौयम ने  िैन धमम ईश्वर के अतस्तत्सव को स्वीकार करता है
श्रवणबेलगोला (मैसरू ) में इसी पद्धतत से प्राण लेतकन उनका स्थान तिन के बाि आता है। िैन
त्सयागे थे। धमम के अनसु ार सृतष्ट आतिकाल से चलती आ
 पतिमी गिंग विंि के रािा नीततमागाम (870 ईस्वी) रही है, और अनिंत काल तक चलती रहेगी, िैन
ने भी सिंलेखना द्वारा प्राण त्सयागे थे। धमम के अनसु रा, सृतष्ट िास्वत तनयम के आधार
पर कायम करती है।
 िैन धमम आत्समा के अतस्तत्सव एविं मोक्ष की
जैन‍धमि‍की‍मान्यताए-ं अवधारणा को स्वीकार करता है।
 आतहसिं ा पर तविेि बल तिया गया है, इसी कारण
कृ ति कायों एविं यद्ध
ु में भाग लेने पर भी प्रततबिंध जैन‍धमि‍का‍दििन‍
लगाया गया है  अन्य ििमनो की भातिं त िैन ििमन का भी अतिं तम
 िैन धमम पनु िमनम एविं कमम में तवश्वास करता है, लक्ष्य तनवामण प्रातप्त (मोक्ष) ही है। िैन ििमन के
िैन धमम आठ प्रकार के कमम मानता है। अनसु ार, तनवामण का अथम िीव के भौततक अिंि/
 िैन धमम मनष्ु य को स्वयिं अपना भाग्य तवधाता कमम का नाि है, िैन धमम के अनसु ार कममफलों
मानता है, िैन धमम के अनुसार मनष्ु य की मृत्सयु का तनरोध करके ही तनवामण सिंभव है।
एविं पनु िमन्म का कारण कमम है।  िैन ििमन तहन्िू सािंख्य ििमन के अतधक तनकट
 िैन धमम के अनसु ार कमम का िीव से तवयोग ही है।
मोक्ष है।  िैन धमम के अनसु ार, इस सृतष्ट का तनमामण िीव
 िैन धमम के अनसु ार सृतष्ट का तनमामण ईश्वर ने नहीं एविं अिीव के सिंयोग से हुआ है, इसमें िीव को
तकया अतपतु सृतष्ट का तनमामण िीव एविं अिीव चेतनायक्त
ु एविं अिर- अमर माना गया है, िैन
के सिंयोग से हुआ है, िैन धमम के अनसु ार सृतष्ट धमम के अनसु ार िीव में िो तत्सव सिैव तवद्यमान
तनत्सय एविं िास्वत है। रहते है, आत्समा एविं भौततक तत्सव।
 िैन धमम ससिं ार की वास्ततवकता को स्वीकार  िैन धमम का मल ू ििमन अनेकािंतवाि स्यािवाि
करता है, िैन धमम के अनसु ार, सिंसार एविं अनीश्वरवाि है।
वास्ततवकता एविं सत्सय है।
 िैन धमम में वणमव्यवस्था की तनिंिा नहीं की गयी। स्यादवाद/‍अनेकान्तवाद‍का‍क्षसद्धांत-
 िैन धमम ईश्वर एविं वेिों की सत्ता को स्वीकार नहीं  यह तसद्धान्त िैन धमम की आधारतिला है इसके
करता। अनसु ार तत्सव ज्ञान को पृथक- पृथक दृतष्टकोण से
िेखा िाता है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 क्योंतक प्रत्सयेक काल में िीव का ज्ञान एक नहीं  िैन सिंघ के अध्यक्ष क्रमिः महावीर स्वामी –
हो सकता। ज्ञान की तवतभन्नताएिं सात प्रकार से सधु ममन/ सधु ममना – िम्बस्ू वामी (अतिं तम
हो सकती है। यहााँ स्याि का अथम सिंभावना से के वतलन)
होता है।  िैन मठ को बसति कहते हैं।
 िीव, एक काल में सत्सय के के वल एक ही स्वरुप संघ‍की‍संरचना-‍
को िेख पाता है उसी से पणू म सत्सय की धारणा बना तीथंकर अवतार‍परुु ष
लेता है। िबतक सत्सय के अनेक स्वरूप होते है, अहंत िो तनवामण के बहुत करीब थे
सत्सय/ज्ञान के इन्हीं स्वरूपों को सात क्रतमक आचायम िैन सन्यासी समहू का प्रधान
तसद्धान्त कहलाता है। उपाध्यक्ष िैन धमम के अध्यापक/ सिंत
 इस तसद्धान्त को वास्ततवकता की बहुलता का तभक्ष-ु सिंन्यास िीवन व्यतीत करने वाले
तसद्धान्त एविं ज्ञान की सापेक्षता भी कहते है। तभक्षणु ी
 इस तसद्धातिं के अनसु ार दृतष्टकोण की तभन्नता के श्रावक- गृहस्थ होकर भी सिंघ के सिस्य
कारण हर ज्ञान सात तवतभन्न स्वरुपों में व्यक्त श्रातवका
तकया िाता सकता है ये सात तवतभन्न स्वरूप तनष्क्रमण िैन सघिं में प्रवेि के तलए एक
तनम्नतलतखत है- तवतध सिंस्कार
 स्यात‍् अक्षस्त- िायि है
 स्यात‍् नाक्षस्त- िायि नहीं है।  महावीर स्वामी की मृत्सयु के बाि िैन सिंघ का
 स्यात‍् अक्षस्त‍च‍नक्षस्त- िायि है और नहीं है। पहला अध्यक्ष सधु ममन बना था। सधु ममन की मृत्सयु
के बाि िैन सिंघ का अध्यक्ष िम्बस्ू वामी बना था।
 स्यात‍् अव्यक्तन- िायि कहा नहीं िा सकता
 स्यात‍् अक्षस्त‍च‍अव्यक्तन- िायि है तकन्तु कहा
महावीर‍स्वामी‍के ‍गणधर
नहीं िा सकता
 महावीर स्वामी ने अपने 11 अनयु ातययों के एक
 स्यात‍् नाक्षस्त‍च‍अव्यक्तन- िायि नहीं हैं और
सिंघ की स्थापना की थी तिन्हें गणधर कहा िाता
कहा नहीं िा सकता
था इन्हें अलग अलग समहू ों का अध्यक्ष बनाया
 स्यात‍् अक्षस्त‍ च‍ नक्षस्त‍ च‍ अवयक्तन‍ च‍ – गया।
िायि है, िायि नहीं है और कहा नहीं िा सकता
 इन‍गणधरों‍के ‍नाम- इद्रिं भतू म (पहले गणधर)
जैन‍सघं -
अतग्नभतू त, वायभु तू त, व्यक्त, सधु ममन (सधु माम),
 महावीर स्वामी ने पावापरु ी में िैन सघिं की मिंतित, मोररयपत्रु , अिंकतपत, अचलभ्राता, मेतायम
स्थापना की थी। एविं प्रभाि था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इद्रिं भतू त गौतम एविं सधु ममन (सुधमाम) को छोड़कर (2)‍क्षद्वतीय‍जैन‍सगं ीक्षत-‍
अन्य सभी गणधरों की मृत्सयु महावीर स्वामी के  यह छठी िताब्िी ई. में गिु रात के वल्लभी में
िीवनकाल में हो गयी थी िबतक इद्रिं भतू त गौतम, आयोतित की गयी थी।
महावीर स्वामी के तनवामण के तिन ही के वतलन  इसका अध्यक्ष िेवऋतिगतण (क्षमाश्रमण) था।
हुए थे। इसी सिंगीतत में िैन सातहत्सय (आगामों का अिंततम रूप
 महावीर स्वामी की मृत्सयु के बाि के वल एक से सिंकलन कर उन्हें तलतपबद्ध तकया गया था।)
गणधर सधु ममन ही िीतवत बचा था।
जैन‍तीथंकर‍के ‍प्रतीक‍क्षचन्ह‍
िलाका‍परुु ष- क्रमांक तीथंकर‍नाम प्रतीक‍
 िैन धमम में कुल 63 तविेि िलाका परुु ि (महान क्षचह्न
परुु ि) की मान्यता है। इनमें 24 तीथंकर, 12 प्रथम ऋिभिेव/आतिनाथ वृिभ/बैल
चक्रवती, 9 बलभद्र, 9 नारायण एविं 9 तद्वतीय अतितनाथ गि/हाथी
प्रततनारायण सतम्मतलत हैं। तृतीय सम्भनाथ अश्व/घोड़ा
चतथु म अतभनन्िन नाथ कतप/बन्िर
जैन‍संगीक्षतयां पिंचम समु ततनाथ क्रौंच
(1)‍प्रथम‍जैन‍संगीक्षत- यह चतथु म िताब्िी ई. प.ू 10वें िीतलनाथ श्रीवत्सस
में, पाटतलपत्रु में आयोतित की गयी थी। इस समय 13 वें तवमलनाथ वराह
चन्द्रगप्तु मौयम मगध का िासक था। 15 वें धममनाथ बज्र
 इसका अध्यक्ष स्थल ू भद्र था। 19 वें मतल्लनाथ कलि
 इस सभा में िैन धमम के 12 अगिं ों का सवमप्रथम 21 वें नेतमनाथ नीलोत्सपल /
सिंकल्न हुआ था। इसी सभा में िैन धमम श्वेतािंबर नीलकमल
एविं तिगिंम्बर नामक िो सम्प्रिायों में तवभातित हो 22 वें अररष्टनेतम ििंख
गया था। 23 वें पाश्वमनाथ सपमफण
नोट- चौथी-पािंचवी ितातब्ियों में मथरु ा एविं 24 वें महावीर स्वामी तसहिं / िेर
वल्लभी में िो िैन सभाएिं बुलायी गयी थी मथरु ा
में आयोतित िैन सभा की अध्यक्षता खातन्िल्य
ने की थी एविं वल्लभी में आयोतित िैन सभा की जैन‍धमि‍के ‍समप्रदाय-
अध्यक्षता नागािमनु ने की थी।  तिगम्बर, श्वेताम्बर, यापनीय, श्वेतपत्सत, अद्धम-
स्पाटक एविं कुचकम िैन धमम के प्रमख
ु सिंप्रिाय है।

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र्श्ेतामबर क्षदगमबर (2) ‍स्थानकवासी-‍
स्थल ू भद्र के समथमक भद्रबाहु के समथमक ये मतू ी पिू ा नहीं करते।
अनयु ायी अनयु ायी
श्वेत वस्त्र धारण करने वाले वस्त्र ना धारण करने वाले क्षदगम‍बरों‍के ‍उप-समप्रदाय
(नग्न) बीसपंथी‍– मिंतिर में तीथमकरों की मतू तमयों के साथ
आगम (िैन ग्रथिं ों) में आगमों को मान्यता नहीं भैरव की मतू तमयों की भी पिू ा करते है।
तवश्वास करते है। िेते तेरा‍पंथी‍– ये के वल िैन मतू तमयों की पिू ा करते है।
इनके अनसु ार तस्त्रयािं मोक्ष इनके अनसु ार तस्त्रयों को तारण‍पथ ं ी‍– ये मतू ी पिू ा नहीं करते।
की अतधकारी हैं/ प्राप्त कर तनवामण/ मोक्ष प्रातप्त सभिं व
सकती है। नहीं यापनीय‍समप्रदाय- यह िैन धमम का एक सम्प्रिाय
इनके अनसु ार कै वल्य इनके अनसु ार कै वल्य के है िो श्वेताम्बरों एविं तिगम्बरों िोनों की मान्यताओ िं का
(ज्ञान प्रातप्त) के बाि भी बाि भोिन की पालन करता है। श्री कलि ने कल्याणगढ़ में यापनीय
भोिन की आवश्यकता आवश्यकता नहीं होती समप्रिाय की नींव िाली थी।
होती है। पचं स्‍तूप‍क्षनकाय‍:-‍
इनके अनसु ार महावीर इनके अनसु ार महावीर यह भी िैन धमम का एक उप सिंप्रिाय था िो तक
स्वामी तववातहत थे। स्वामी अतववातहत थे वाराणसी एविं मथरु ा में फै ला हुआ था, आति परु ाण के
इनके अनसु ार 19 वें 19 वें तीथंकर मतल्लनाथ लेखक तिनसेन इसी सिंप्रिाय के अनयु ायी थे।
तीथंकर मतल्लनाथ एक स्त्री परुु ि थे
थी
इनके अनसु ार मोक्ष प्रातप्त इनके अनसु ार मोक्ष प्रातप्त जैन‍धमि‍के ‍प्रमुख‍स्थल
के तलए वस्त्र त्सयाग के तलए वस्त्र त्सयाग  अयोध्या- िैन धमम के प्रथम तीथंकर ऋिभिेव
आवश्यक नहीं आवश्यक है। यहीं के थे।
यह सम्प्रिाय सचेलकत्सव यह सम्प्रिाय  सममेद‍क्षिखर- यहााँ पाश्वमनाथ को तनवामण प्राप्त
(वस्त्र सतहत) कहलाता है। अचेलकत्सव(वस्त्र रतहत) हुआ था।
कहलाता है।  पावापुरी- यहााँ महावीर स्वामी को तनवामण प्राप्त
हुआ था।
 कै लाि‍पवित‍– यहााँ ऋिभिेव को तनवामण प्राप्त
र्श्ेतामबरों‍के ‍उप-‍समप्रदाय-‍ हुआ था।
(1)‍पुजेरा/िेरावासी- इन्हें मिंतिरमागी भी कहते हैं। ये
िैन तीथंकरों की पिू ा करते है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 श्रवणबेलगोला- यहााँ चामिंिु राय ने गौमतेश्वर  अकबर के िरबार में हररतविय सरू र एविं तिनचन्द्र
बाहुबली की तविाल प्रततमा का तनमामण सरू र िैसे िैन तवद्वान थे। अकबर ने हररतविय को
करवाया था। िगतगरुु एविं तिनचन्द्र को यगु प्रधान की उपातध
 माउंट‍ आबू- यहााँ सफे ि सिंगमरमर से बने िी थी।
तिलवाड़ा िैन मिंतिर तस्थत हैं।  कनामटक में भद्रबाहु ने अपना उत्तरातधकारी
तविाख को चनु ा था।
जैन‍धमि‍का‍प्रसार  ितक्षण में िैन तचत्रकला का प्राचीनतम उिाहरण
 तबतम्बसार एविं अिातित्रु महावीर के अनयु ायी तििं ौर की तसत्तान्नवासल गफ ु ा से प्राप्त होता है।
थे  िनू ागढ़ के तगरनार की पहातड़यों में नेतमनाथ का
 वैिाली के तलतच्छवी नरे ि चेटक, चम्पा, नरे ि मिंतिर हैं। तगरनार श्वेताम्बर सम्प्रिाय का प्रमख ु
ितधवाहन महावीर स्वामी के अनयु ायी थे। कें द्र था।
 िैन धमम, तलतच्छवी विंि का रािधमम था।  खिरु ाहो में भी िैन मिंतिर तस्थत हैं। एलोरा में
 समस्त नन्ि िासक िैन धमम के अनयु ायी थे। इद्रिं सभा गफ ु ा एविं प्रयाग कौिाम्बी में फमोसा
 चन्द्रगप्तु मौयम ने अपने िीवन के अिंततम समय में गफ ु ाएिं िैन धमम की है।
िैन धमम ग्रहण कर तलया था।
 अिोक के पौत्र सम्पतत्त(िैन अनयु ायी) के समय जैन‍साक्षहत्य-
उज्िैन िैन धमम का प्रमख ु कें द्र एविं मथरु ा िसू रा  िैतनयों के धातममक ग्रन्थ प्रारिंभ में अद्धम- मागधी
कें द्र था। भािा में तलखे गए।
 खारवेल िैन धमम का पोिक खारवेल के हाथी  भद्रबाहु का कल्पसत्रू सस्िं कृ त में तलखा गया है।
गम्ु फा अतभलेख में िैन धमम में मतू तमपिू ा का  िैन धमम के प्राचीनतम ग्रथिं ों को पव्ू व कहा िाता
प्राचीनतम अतभलेखनीय साक्ष्य तमलता है। है इनकी सिंख्या 14 है।
 कुिाणों के समय मथरु ा िैन धमम का प्रमख ु कें द्र  िैन सातहत्सय को आगम (तसद्धान्त) कहा िाता है
था। ये अद्धम- मागधी, मागधी, या प्राकृ त भािा में
 गप्तु काल में िैन धमम उन्नत अवस्था में था। तलखे गए है इसके अिंतगमत 12 अिंग 12 उपािंग,
 ितक्षण में किम्ब, पतिमी गगिं एविं राष्रकूट िैन 10 प्रकीणम, 6 छे ि सत्रू , 4 मल
ू सत्रू एविं अनपु योग
मत के पोिक थे। सत्रू आते है।
 िैन तवद्धान राििेखर एविं तिन प्रभु सरू र महु म्मि
तबन तगु लक के िरबार में थे।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 अंग:-‍ िैन सातहत्सय में 12 अिंग का वणमन है (10) प्रकीणि- इनमें िैन धमम से सम्बतिं धत तवतध
तिनमें िैनों के तसद्धातिं , तनयमों आति का तवियों का वणमन है।
सिंकलन है। (11) छे द‍सूत्र- िैन तभक्षु- तभक्षतु णयों के तलए
 12 अिंगों को छोड़कर समस्त आगम (िैन तनयमों का सिंकलन
सातहत्सय) तद्वतीय िैन सिंगीतत की िेन है। (12) मूल‍सूत्र‍– िैन धमम के उपिेि, तभक्षओ ु िं
प्रमख
ु अिंग तनम्नतलतखत है- के तलए तनयमों का सिंकलन
अन्य‍जैन‍ग्रंथ-
(1) आचारांग‍ सुत्त- िैन तभक्षओ ु िं द्वारा ग्रंथ क्षििाएं
अनसु रण तकए िाने वाले तनयमों का वणमन नायाधम्मकहा महावीर स्वामी की तिक्षाएिं
(2) सत्रू ‍कृदगं - तवतभन्न िैन मतों का वणमन कुवलयमाला उद्दोतन सरू र द्वारा तलतखत (प्राकृ त
(3 ) स्नांग‍:-‍िैन धमम के तवतभन्न तसद्धािंतों का में)
वणमन तकया गया है। स्यािवाि मतल्लसेन िवारा तलतखत
(4)‍समवायांग‍–‍‍इसमें भी िैन धमम के तवतभन्न मििं री
तसद्धािंतों का वणमन कल्पसत्रू भद्रबाहु द्वारा तलतखत(सिंस्कृ त
(5) भगवती‍ सूत्र- महावीर स्वामी एविं ग्रन्थ)
समकालीन िैन मतु नयों की िीवन गाथाएिं। भारत थेरावतल िैन सम्प्रिाय के सिंस्थापकों की
के 16 महािनपिों का उल्लेख, स्वगम एविं नरक सचू ी
का वणमन भी भगवती सत्रू में ही है। नाति सत्रू एविं िैतनयों के िब्िकोि। इसमें
(6) उवासगदसाओ-ं 10 िैन व्यापाररयों का अनपु योग सत्रू तभक्षओ ु िं के तलए आचरण सिंबिंधी
वणमन तिन्होनें िैन तनयमों का पालन कर मोक्ष बाते सिंकतलत है।
प्राप्त तकया। पररतिष्टपवमन हेमचन्द्र द्वारा तलतखत
(7) अन्तकृदिा—उन िैन तभक्षओ ु िं का वणमन प्रभाकमल प्रभाचन्द्र द्वारा तलतखत
तिन्होंने तपस्या के द्वारा प्राण त्सयागे। मातमण्ि
(8) अनुत्तरोपपाक्षतक- मोक्ष प्राप्त करने वाले न्यायावतार तसद्धसेन तिवाकर द्वारा तलतखत
िैन मतु नयों का उललेख
(9) उपांग- प्रत्सयेक अिंग के साथ उपागिं सम्बद्ध हेमचद्रिं िैन, िैन लेखकों में सवमश्रेष्ठ था, प्रारिंभ में वह
हैं। उपािंगों में ब्रह्मण का वणमन, प्रातणयों का चालक्ु य िासक ियतसिंह के िरबार का प्रमख ु
वगीकरण, खगोल तवद्या, काल तवभािन एविं इततहासकार था, हेमचिंद्र ने रािा कुमारपाल चालक्ु य
मरणोत्तर िीवन का उल्लेख को िैन धमम में तितक्षत तकया था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बौद्ध‍धमि
पत्नी- यिोधरा (िाक्य कुल) अन्य नाम तबम्ब,
 बौद्ध धमम के सिंस्थापक एविं प्रवतमक गौतम बद्ध

(तसद्धाथम) थे। गोपा, भिकच्छना

गौतम‍बुद्ध‍का‍जीवन‍पररचयः पत्रु - राहुल (तववाह के 12 विम बाि राहुल का


िन्म हुआ)
उपाक्षधयाः-‍‍
प्रतीक- गभमस्थ होने का प्रतीक गि एविं िन्म का
 िाक्य तसिंह
प्रतीक कमल
 िाक्यमतु न
 एतिया का ज्योततपिंिु बद्ध
ु ‍के ‍जन्म‍के ‍समय‍भक्षवष्‍टवाणी-‍
 महावैद्य  कालिेव(िेवल), अतति एविं कौतण्िल नामक
 तथागत ब्राह्मण ने बद्ध
ु के िन्म के समय भतवष्वाणी की
 सवामथमतसद्ध थी तक यह बालक चक्रवती रािा अथवा
सन्यासी होगा।
जन्म- 563 ई. प.ू लतु म्बनी वन (आधतु नक  तसद्धाथम ने गरू
ु तवश्वातमत्र से वेि एविं उपतनिि की
रुतम्मनिेई) तिक्षा ली थी।

बचपन‍का‍नामः तसद्धाथम ,गोत्र:‍ गौतम चार‍दृश्य‍क्षजन्हें‍ देख‍कर‍क्षसद्धाथि‍ क्षवचक्षलत‍


हुए‍थे।
क्षपताः िद्ध
ु ोधन (कतपल वस्तु के िाक्य क्षतत्रय 1. एक वृद्ध व्यतक्त
कुल के िासक) 2. एक रोगग्रस्त व्यतक्त
3. एक मृतक
माताः‍महामाया (कोलीन गणराज्य की) 4. एक प्रसन्न सन्यासी
 इन चार दृश्यों को िेख कर तसद्धाथम बहुत
पालन‍पोषणः तसद्धाथम के िन्म के एक सप्ताह तवचतलत हो गए थे और अपने अिंतममन में उठ रहे
में ही उनकी माता महामाया की मृत्सयु हो गयी थी सवालों के िवाब खोि रहे थे। इसी क्रम में
इस कारण तसद्धाथम का पालन पोिण उनकी तसद्धाथम ने गृह त्सयाग कर सन्िं यास धारण करने का
सौतेली माता (मौसी) महाप्रिापतत गौतमी द्वारा मन बनाया।
तकया गया।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
महाक्षभक्षनष्‍टक्रमण-‍ ये पाचिं ों ब्राह्मण तसद्धाथम का साथ छोड़ कर
 तसद्धाथम ने 29 विम की अवस्था में गृह त्सयाग तकया ऋतिपत्तम (सारनाथ) आ गए।
इसे महातभतनष्क्रण कहा गया इसे अश्व द्वारा  इसके बाि तसद्धाथम ने अश्वत्सथ वृक्ष के नीचे
प्रितिमत तकया गया। समातध लगायी। तसद्धाथम को वैिाख पतू णममा के
 तसद्धाथम से बद्ध ु बनने की यात्रा (तसद्धाथम की ज्ञान तिन 35 विम की आयु में ज्ञान की प्रातप्त हुई।
प्रातप्त यात्रा)-  तपस्यारत बद्ध ु की तपस्या में कामिेव (मार) ने
 गृहत्सयाग के समय तसद्धाथम कन्थक नामक घोड़े तवघ्न िाला था तिसके ऊपर बद्ध ु ने तविय प्राप्त
और छन्िक नामक सारथी के साथ गए थे। की इस घटना को बद्ध ु कला में भतू मस्पिममद्रु ा के
 अनोमा निी के तट के अनवु ैया नामक स्थान पर रूप में प्रितिमत तकया गया है।
सारथी छन्िक और घोड़े कन्थक को वापस भेि  ज्ञान प्रातप्त के बाि अश्वत्सथ वृक्ष बोतध वृक्ष
तसद्धाथम तपस्वी का वेि धारण कर वैिाली आ कहलाया, तसद्धाथम बद्ध ु कहलाए एविं उरुवेला
गए। बोधगया कहलाया।
 वैिाली में साख्िं य ििमन के आचायम  ज्ञान प्रातप्त के बाि बद्ध
ु ने बोधगया में ही िी
आलारकलाम के तिष्य बने और उपिेि ग्रहण बिंिारों तपस्सु और भतल्लक को अपना सेवक
तकए।
 आलारकलाम से तसद्धाथम ने तप तक्रया, उपतनििों धमि‍चक्र‍प्रवतिन-
की ब्रह्म तवद्या की तिक्षा ली।  गौतम बद्ध ु को ज्ञान प्रातप्त के बाि प्रथम उपिेि
 तसद्धाथम, वैिाली से रािगृह आए यहााँ उद्रक एविं िीक्षा िेने की घटना को धममचक्रप्रवतमन कहा
रामपत्रु के आश्रम पहुचाँ े यहााँ उन्होंने योग का ज्ञान िाता है।
प्राप्त तकया।  बद्ध
ु ने ऋतिपतनम के मृगिाव (सारनाथ) में पााँच
 रािगृह से गया में तनरिंिना निी के तट पर तस्थत ब्राह्मणों (िो बद्ध
ु को छोड़कर गए थे।) को पहला
उरुवेला आए। उरुवेला में 5 ब्राह्मण सातथयों धमोपिेि िेकर धममचक्र प्रवतमन तकया। इसकों
आििं , अस्सति, भतद्धय, कौतण्िन्य एविं वप्प के बौद्ध कला में मृग सतहत चक्र द्वारा प्रितिमत तकया
साथ कठोर तप तकया। (इस घटना को बौद्ध कला िाता है। प्रथम उपिेि में ही बद्ध ु ने चार आयम
में पााँच हसिं ों को िाना चगु ते हुए प्रितिमत तकया सत्सयों को बताया था।
गया है।)
 उरुवेला में ही तपस्यारत तसद्धाथम ने सिु ाता बुद्ध‍की‍धमिचक्र‍प्रवतिन‍यात्रा-
नामक कन्या से आहार ग्रहण कर तलया इस बात सारनाथ-‍
से पािंचों सातथयों से बद्ध
ु का मतभेि हो गया और  बद्ध
ु ने अपना प्रथम उपिेि सारनाथ में तिया था
यह घटना धममचक्रप्रवतमन कहलायी।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 कतपलवस्तु राि- पररवार के सभी स्त्री परू
ु िों ने
वाराणसी-‍ बद्ध
ु से िीक्षा ग्रहण की।
 यि नामक श्रेतष्ठ पत्रु ने अपने पररवार सतहत 50
लोगों के साथ प्रवज्या ग्रहण की। यि की माता अनक्षु पय-‍
एविं पत्सनी बद्ध
ु की प्रथम उपातसकाएिं बनी  यहााँ रािा भतद्रक के नेतत्सृ व में आए आनिंि,
उपातल, अतनरुद्ध एविं िेवित्त को अपना तिष्य
सारनाथ-‍ बनाया।
 ज्ञान प्रातप्त के बाि बद्ध
ु का प्रथम विाम काल
सारनाथ में ही व्यतीत हुआ। वैिाली-‍
 यहााँ के तलतच्छवी रािविंि ने बद्ध ु को
उरूवेला-‍ कुटाग्रिाला तवहार, वैिाली की नगरवधु
 30 धनी यवु कों को उनके नेता भद्र सतहत िीक्षा आम्रपाली ने आम्रवातटका तवहार िान में तिया।
िी तीन ितटल कश्यपों और उनके हिारों
अनयु ातययों को िीक्षा िी। चुनार-‍
 यहााँ के िासक बोतधकुमार को तिष्य बनाया।
राजगहृ -‍
 यहााँ सारीपत्रु विं मौिगलयान को िीतक्षत तकया कौिमबी-‍
तबतम्बसार ने बौद्ध धमम स्वीकार कर तलया।  यहााँ का िासक वत्ससराि उियन बौद्ध तभक्षु
 तबतम्बसार का पत्रु अभय भी तिष्य बना तपण्िोला भारद्वाि के प्रभाव से बौद्ध बना।
तबतम्बसार न बद्ध ु को वेणवु न तवहार िान में तिया मथरु ा-‍
था।  बद्ध
ु ने मथरु ा के िासक अवतन्तपत्रु को अपना
प्रमख ु तिष्य बनाया। मथरु ा के बाि क्रमिः
लक्षु मबनी-‍ चम्पा- कििंगल – श्रावस्ती – रािगृह- वैिाली-
 अपने पररवार के लोंगों को उपिेि तिया। इनका कतपलवस्त-ु पावापरु ी- कुिीनगर
चचेरा भाई िेवित्त तिष्य बना।  बद्धु का प्रचार कें द्र तो मगध था तकन्तु सवामतधक
प्रचार श्रावस्ती में हुआ। बद्ध
ु ने सवामतधक उपिेि
राजगहृ -‍ श्रावस्ती में तिए थे।
 व्यापारी सिु ात्त को तिष्य बनाया।  बद्ध ु ने अपने उपिेि पाली भािा में तिए।

कक्षपलवस्त-ु ‍

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 बद्ध
ु ने 45 विम बौद्ध धमम का प्रचार तकया एविं  बद्ध
ु का िाह सिंस्कार रामसिंभार निी के तट पर
उपिेि तिए। हुआ था।

बुद्ध‍के ‍वषािवास- अविेषों‍के ‍क्षलए‍क्षववाद-


 बद्ध
ु ने एक तनयम बनाया था, तक वह विम क आठ  गौतम बद्ध ु के महापररतनवामण के बाि बद्ध ु की
माह धमम का प्रचार करें गे, और बाकी के 4 महीनों िरीर धातु के अविेिों के तलए िावेिारों के मध्य
में एक िगह तस्थर रहकर ध्यान करके विामवास तववाि उठा,। बद्ध ु के अविेिों के 8 िावेिार थे
व्यतीत करें गे। बाि मे द्रोण नामक ब्राह्मण की मध्यस्थता से बद्ध

 बद्धु का प्रथम विामवास सारनाथ के मल ू गन्धकुटी की िरीर धातु को 8 भागों में बााँट तिया गया।
तवहार में हुआ। िरीर धातु के 8 िावेिार तनम्नतलतखत थे-
 बद्ध ु का अिंततम विामवास वैिाली के वेलवु ग्राम  मगध नरे ि अिातित्रु
तवहार में हुआ।  कतपलवस्तु के िाक्य
 बद्ध ु के सवामतधक विामवास श्रावस्ती में हुए।  वैिाली के तलतच्छवी
 कुिीनारा के मल्ल
महापररक्षनवािण-  तपप्प्पतलवन के मौयम
 िीवन के अिंततम समय में बुद्ध पावापरु ी पहुचाँ ।े  वेठद्वीप के ब्राह्मण
यहााँ चन्ु ि नाम के लहु ार के घर रात के भोिन में  रामग्राम के कोतलय
सक ू रमद्यप खाया। तिससे बद्ध ु को अततसार हो
 अलकप्प के बतु ल
गया।
 पावापरु ी से बद्ध
ु कुिीनगर आ गए यहााँ कुिीनारा बुद्ध‍के ‍प्रमुख‍क्षिष्‍टय
के मल्लों के िालवन में अिंततम तवश्राम तकया महाकस्‍सप-‍
और सभु द्र/ सभु द्द को अपना अतिं तम उपिेि
 पररतनवामण के समय बद्ध ु ने महाकस्सप को अपना
तिया।
वस्त्र तिया था। प्रथम बौद्ध सगिं ीतत की अध्यक्षता
 483 ई. प.ू में 80 विम की अवस्था में वैिाख महाकस्सप ने ही की थी।
पतू णममा के तिन बद्ध
ु को महापररतनवामण की प्रातप्त
हुई। महाकच्चायन-‍
 बद्ध
ु कला में स्तपू बद्ध
ु के महापररतनवामण का ही  बद्ध
ु ने अवन्ती (उज्िैन) में बौद्ध धमम के प्रचार-
प्रतीक स्तपू है। प्रसार के तलए महाकच्चायन को भेिा था।

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अवन्ती के िासक चििं प्रद्योत को बौद्ध धमम में सघिं का अध्यक्ष बनने का असफल प्रयास तकया
इन्होंने ही िीतक्षत तकया था। था। इसने बद्ध
ु को मारने के तलए नालातगरर नामक
हाथी भेिा था।
साररपत्रु ‍(उपक्षतष्‍टय)-‍
 कतपलवस्तु में राहुल को प्रवज्या साररपत्रु ने ही जीवक-‍
िी थी, ये बद्ध
ु को महाश्रद्धालू तिष्य थे।  इसको बौद्ध सिंघ का आभिू ण कहा िाता था, यह
एक प्रतसद्ध आयवु ेिाचायम था, इसका आयमवु ेि
मौदगडयान‍(कोक्षलत)-‍ का ज्ञान अत्सयिंत उच्च कोतट का था, इसीतलये
 सााँची के स्तपू सिंख्या तीन में साररपत्रु एविं तबतम्बसार ने इसको अवतिं त के िासक चड़िं प्रद्दोत
मौिगल्यान की अतस्थयााँ सरु तक्षत हैं। के इलाि के तलए अविंतत (उज्िैन) भेिा था। इण

आनन्द- िद्ध
ु ोधन-‍
 ये बद्ध
ु का चचेरा भाई था यह बद्ध ु का व्यतक्तगत  ये एक मात्र ऐसे बौद्ध उपासक थे िो सिंघ की
सेवक था एविं तप्रय तिष्य था आनन्ि के अनरु ोध सिस्यता तलए तबना अहमता की तस्थतत को प्राप्त
पर ही बद्ध
ु सिंघ में मतहलाओ िं के प्रवेि की हुए थे।
अनमु तत िी गयी थी प्रथम बौद्ध सिंगीतत में आनन्ि
को धम्मधर की उपातध िी गयी थी। प्रसेनक्षजत-‍
 ये कोसल के रािा थे।
क्षबक्षमबसार-‍  बद्ध
ु की पहली लाल चन्िन की काष्ठ प्रततमा का
 ये मगध का िासक तथा बुद्ध का तमत्र और तनमामण करवाया था।
सिंरक्षक था। तबतम्बसार और इसकी पत्सनी छे मा
बद्ध
ु के तिष्य/तिष्या थे। अजातित्रु-‍
 यह तबतिं बसार के पत्रु और मगध के िासक थे।
सुभद्र‍(सुभद्द)-‍  प्रारिंभ में यह िैन धमम का अनयु ायी था तकन्तु
 बद्ध
ु ने अपना अिंततम उपिेि सभु द्द को ही तिया अन्त समय में इसने बौद्ध धमम स्वीकार कर तलया
था। था।

देवदत्त- अक्षनरुद्ध-‍
 ये बद्ध
ु का घोर तवरोधी था तफर भी बद्ध
ु ने इसको  यह एक धनी व्यापारी का पत्रु था बौद्ध बनने के
िीतक्षत तकया था इसने बद्ध
ु के िीवनकाल में ही बाि इसने सब त्सयाग तिया।

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उपाक्षल-  आम्रपाली- वैिाली की नगरवध,ु वैिाली की
 ये एक नाई का पत्रु था। गतणका थी आम्रपाली ने आम्रवातटका तवहार
सिंघ को िान में तिया था बद्ध
ु ने इसे आयाम अम्बा
सुनीक्षत-‍ कहा था यह तभक्षुणी सिंघ की अध्यक्षा भी बनी
 यह िातत का भिंगी था, यह बद्ध
ु का तप्रय तिष्य थी।
बना।  नन्दा- महाप्रिापतत गौतमी की पत्रु ी एविं बद्ध
ु की
बहन
अंगुक्षलमाल-‍  यिोधरा- बद्ध ु की पत्सनी
 ये श्रावस्ती का िाकू था बुद्ध ने इसका ह्िय  क्षविाखा- अगिं िनपि के श्रेतष्ठ की पत्रु ी
पररवतमन तकया था।  मक्षडलका-‍प्रसेनतित की पत्सनी
 खेमा/छे मा- तबतम्बसार की पत्सनी
छन्दक-‍
 सप्रु वासा- कोतलय गणराज्य की सप्रु तसद्ध
 ये बद्ध
ु का सारथी था, महापररतनवामण से पवू म उपातसका थी।
गौतम बद्ध
ु ने इस पर ब्रह्मिण्ि का तवधान तकया
था। बौद्ध‍संघ
स्थापना‍–‍गौतम बद्ध ु ने सारनाथ में बौद्ध सिंघ
अनाथ‍क्षपण्‍िक‍:-‍ की स्थपाना की थी।
 यह श्रावस्ती का प्रतसद्ध व्यापारी था, इसने  गौतम बद्ध ु ने आनन्ि के प्रबल आग्रह पर वैिाली
चेतकुमार से िेतवन/ िेठवन खरीि कर बद्ध ु को में तभक्षुणी सिंघ में िातमल होने वाली पहली
िान तकया था। मतहला महाप्रिापतत गौतमी थी।
 यह तवहार श्रावस्ती में तस्थत था।  बौद्ध सघिं का सगिं ठन गणतातिं त्रक पर आधाररत
 साचिं ी, अमरावती, भरहुत स्तुप में इस िान का था।
अिंकन तकया गया है।  तकसी प्रस्ताव पर मतभेि होने पर मतिान
करवाया िाता था। मतिान गप्तु एविं प्रत्सयक्ष िोनों
रूप में होता था।
बौद्ध‍धमि‍की‍अनुयायी‍प्रमख ु ‍क्षस्त्रयां-
 सिंघ की बैठक के तलए न्यनू तम गणपतू तम 20
 महाप्रजापक्षत‍ गौतमी- बद्ध
ु की तवमाता, बद्ध ु सिस्य होती थी।
सिंघ में िातमल होने वाली पहली मतहला।

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सघं ‍मे‍प्रवेि‍के ‍क्षनयम- 2.‍ उपासक- उपातसकाएिं- ये गृहस्थ िीवन में
 सघिं में प्रवेि पाने के तलए आयु कम से कम 15 रहकर बौद्ध धमम का अनसु रण करने वाले लोग
विम होना आवश्यक था माता- तपता की आज्ञा थे।
के तबना कोई भी सिंघ में िातमल नहीं हो सकता
था।  गौतम बद्धु ने तकसी को अपना उत्तरातधकारी
 बौद्धसिंघ में िासों, किमिारों, सैतनकों, तवकलािंगों तनयक्त
ु नहीं तकया था, उन्होंने घोिणा की थी तक
एविं पाच िं व्यातधयों से ग्रतसत व्यतक्तयों का प्रवेि धमम और सिंघ के तनधामररत तनयम ही मेरे
वतिमत था। उत्तरातधकारी है।
 बौद्ध सिंघ की सिस्यता सभी िाततयों के तलए
सल ु भ थी। संघ‍के ‍अक्षधकारी-
 चोर, िाकुओ िं (अपवाि- अिंगतु लमाल) एविं  नवकक्षममक- तनमामण से सिंबिंतधत अतधकारी
हत्सयारों का प्रवेि भी वतिमत था।  भण्िागाररक- खान-पान से सिंबिंतधत अतधकारी
 सघिं में प्रवेि के समय तत्ररत्सन मे तवश्वास करने की  कक्षप्पकारक- क्रय करने वाला आतधकारी
िपथ लेनी होती थी तथा 10 प्रततज्ञाओ िं को  चीवर- वस्त्रागार का अतधकारी
िोहराना आवश्यक होता था।  आरक्षमक- आराम से सिंबिंतधत अतधकारी
 20 विम की आयु पणू म करने के बाि पणू म सिस्यता
िी िाती थी। संघ‍से‍जुडे‍िब्द-
 तभक्षु मााँसाहार ग्रहण कर सकते थे। िब्‍द‍‍ अथि‍
 12 विम से कम तववातहता और 20 विम से कम तवनयधर- सिंघ का प्रमख

कुमारी को सघिं में प्रवेि नहीं तिया िा सकता नतत/नेतत/वृतत्त- बौद्ध सघिं में लाया िाने वाला
था। प्रस्ताव
 सिंघ में प्रतवष्ट होने को उपसम्पिा कहा िाता था। अनसु ावन- सिंघ की सभा में प्रस्ताव का पाठ
भमू तस्कम- बहुमत से पाररत प्रस्ताव
 ग्रहस्थ िीवन का त्सयाग प्रवज्या कहलाता था।
अतधकरण- तकसी प्रस्ताव पर मतभेि
 प्रवज्या ग्रहण करने वाले को श्रमनेर कहते थे।
आसन सभा में बैठने की व्यवस्था कनरे
प्रज्ञापक- वाला अतधकारी
संघ‍के ‍सदस्य‍2‍वगों‍में‍क्षवभाक्षजत‍थे।
उपसम्पिा- सिंघ की पणू म सिस्यता/ सिंघ में
1.‍क्षभि-ु ‍क्षभिण
ु ी- ये सन्यासी िीवन िीने वाले
प्रतवतष्ट
लोग थे।
समनेर/श्रमनेर- प्रवज्या ग्रहण करने वाला व्यतक्त

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सघं ‍के ‍दण्ि- उपोसत्थ‍समारोह-
 सघिं मे ब्रह्मिण्ि, माननत, पररवास एविं सतततवनय  इस समारोह का आयोिन तकसी तविेि अवसर
िण्ि के प्रकार थे। सिंघ का सबसे बड़ा एविं सबसे पर सभी तभक्षओ
ु िं द्वारा धमम पर चचाम करने के तलए
कठोर िण्ि ब्रह्मिण्ि था। तकया िाता था।
 ब्रह्मिण्ि के अिंतगमत, तभक्षु को बौद्ध समाि से
बतहष्कृ त कर तिया िाता था। महात्समा बद्ध ु ने बौद्ध‍धमि‍एव‍ं दििन‍की‍मान्यताएः
अपने पररतनवामण से पवू म अपने सारथी छन्िक को  बौद्ध ििमन क्षतणकवािी है बद्ध ु ने सृतष्ट को
ब्रह्मिण्ि तिया था। अतस्थर एविं क्षतणक बताया है।
 बौद्ध ििमन अन्तः ितु द्ध वािी है बौद्ध धमम में
चैत्य‍एव‍ं क्षवहार-‍ अन्तः ितु द्ध पर तविेि बल तिया गया है।
 चैत्य- ये एक प्रकार के समातध स्थल हैं। इन  बौद्ध ििमन तनतािंत कममवािी है बौद्ध धमम के
समातध स्थलों में बौद्ध महापरुु िों की मृत्सयु होने अनसु ार मनष्ु य अपने कमों के फल भोगता है
पर िविाह के बाि उनके में धातु अविेिों को बौद्ध धमम में ज्ञान प्रातप्त कमम पर आधाररत मानी
सरु तक्षत रखने के तलए भतू म के अन्िर गाढ़ तिया गयी है।
िाता था एविं ऊपर एक भवन का तनमामण तकया  बौद्ध ििमन अनीश्वरवािी है यह ईश्वर को सिंसार
िाता था। ये उपासना के कें द्र थे। का कताम, धताम स्वीकार नहीं करता।
 क्षवहार- चैत्सयों के पास ही अथवा अन्य िगह पर  बौद्ध धमम आत्समा में तवश्वास नहीं करता तकन्तु
बौद्ध धमम के तभक्षओ ु िं के तनवास के तलए आवास पनु िमन्म में तवश्वास करता है बौद्ध धमम के अनसु ार
स्थलों का तनमामण तकया िाता था। ये तनवास कममफल ही चेतना के रूप में पनु िमन्म का कारण
स्थान ही तवहार कहलाते है। ये आवास के कें द्र बनता है।
थे।  बौद्ध धमम अनात्समवािी है बौद्ध धमम आत्समा के
अतस्तत्सव को स्वीकार नहीं करता (बौद्ध धमम की
पवारना‍समारोह‍एवं‍उपोसत्थ‍समारोह- िाखा सातमत्सव ने आत्समा को माना है)
पवारना‍समारोह-
 बौद्ध धमम के मल ू ाधार चार आयम सत्सय हैं।
 विाम ऋतु में बौद्ध धमम के प्रचार का कायम नहीं
 बद्ध
ु की तिक्षाओ िं का सार प्रतीत्सयसमत्सु पाि है,
तकया िाता था। इस समय बौद्ध तभक्षु तवहारों में
इसी से क्षणभिंगरु वाि के तसद्धान्त की उत्सपतत्त हुई
ही रहते थे। विाम ऋतु की समातप्त के बाि पवारना
है।
समारोह का आयोिन तकया िाता था तिसमें
 बौद्ध धमम में िख ु ों का मल ू कारण अतवद्या (चार
सभी बौद्ध तभक्षु इन चार माह में तकए गए
आयम सत्सयों की अज्ञानता) एविं तृष्णा को माना है।
अपराधों को स्वीकार करते थे।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 बौद्ध धमम के अनसु ार तनवामण का अथम िीवन का 4.‍ दुख‍ क्षनरोधगाक्षमनी‍ प्रक्षतपदा-‍ चौथे आयम
तवनाि न होकर उसके िख ु ों का तवनाि है बौद्ध सत्सय में गौतम बद्ध
ु ने िखु तृष्णा के उन्मूलन का
ििमन के अनुसार तनवामण की प्रातप्त इसी िीवन में मागम बताया गया है। बद्ध
ु ने तृष्णा के तनवारण के
सिंभव है तकन्तु महापररतनवामण मृत्सयु के बाि ही आष्टािंतगक मागम बताए हैं इनके पालन से िख ु का
सिंभव है। तनवारण होता है।
 बौद्ध धमम में मानव व्यतक्तत्सव को पााँच स्किंधों से
तनतममत बताया गया है ये पााँच‍स्कंध‍हैं- आष्टांक्षगक‍मागि
1. रूप  इसका सम्बन्ध् चतथु म आयम सत्सय से है, ये वे मागम
2. वेिना हैं तिनका पालन कर िख ु से मतु क्त तमलता है ये
3. सज्ञिं ा आष्टािंतगक ही चतथु म आयम सत्सय िख ु
4. सिंस्कार तनरोधगातमनी प्रततपिा हैं इनके अनसु रण से
5. तवज्ञान व्यतक्त तनवामण की ओर अग्रसर होता है
आष्टािंतगक मागम तनम्नतलतखत है:-
चार‍आयि‍सत्य-‍
(1)‍दुखः बद्ध
ु के अनसु ार सिंसार में सभी वस्तएु िं (1)‍समयक‍दृक्षष्ट-‍
िःु खमय है िन्म, वृद्धावस्था, मरण, अतप्रय  वस्तओ
ु िं के वास्ततवक रूप का ध्यान करना
तमलन, तप्रय तवयोग इत्सयाति सभी िःु खमय है।
(2)‍दुखः‍समुदायः िःु ख समिु ाय का तात्सपयम (2)‍समयक‍संकडप-‍
उन कारणों से है तिनसे िःु ख उत्सपन्न होता है  आसतक्त, द्वेि एविं तहसिं ा से मक्त
ु तवचार रखना
गौतम बद्ध
ु ने सभी िख ु ों का मल ू कारण अतवद्या
(चार आयम सत्सयों की अज्ञानता ) एविं तृष्णा को (3)‍समयक‍वाक्-‍
बताया है बद्ध
ु के अनसु ार िख ु समिु ाय का मल ू  अतप्रय वचन ना बोलना
कारण अतवद्या एविं तृष्णा है क्योंतक तृष्णा से ही
आसतक्त एविं राग का उद्भव होता है िख ु के (4)‍समयक‍कमािन्त‍–‍
कारणों को प्रतीत्सयसमत्सु पाि कहा गया है।  िान, िया, करूणा, तवनय, सत्सय, अतहसिं ा आति
सत्सकमम करना
3.‍दुख‍क्षनरोध- बद्ध ु के अनसु ार िखु के तनरोध
या तनवारण के तलए तृष्णा का उन्मल ू न आवश्यक (5)‍समयक‍आजीव-‍
है तृष्णा को त्सयाग कर िख
ु तनरोध का मागम प्रिस्त
 सिाचार के तनयमों के अनसु ार िीवन िीना
होता है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
(6)‍समयक‍व्यायाम- ये िस िील बौद्ध तभक्षओ ु िं (सन्यासी िीवन िीने
 तववेकपणू म प्रयत्सन करना वालों) के तलए अतनवायम थे। इनमें प्रथम पााँच
गृहस्थों (उपासकों) के तलए अतनवायम थे तकन्तु
(7)‍समयक‍समृक्षत-‍ अिंततम पािंच गृहस्थों के तलए अतनवायम नहीं थे।
 गलत एविं झठू ी धारणाओ िं का त्सयाग कर सत्सय
धारणाओ िं की स्मृतत रखना बुद्ध‍की‍जीवन‍से‍जुिी‍घटनाओ‍ं के ‍प्रतीक‍
प्रतीक‍ अथि‍
(8)‍समयक‍समाक्षध-‍ गभम हाथी
 मन एविं तचत्त को एकाग्र कर ध्यान लगाना। िन्म कमल
यौवन सािंि
बद्ध
ु ‍के ‍जीवन‍की‍चार‍महत्वपण ू ि‍घटनाए-ं गृहत्सयाग अश्व
 गृहत्याग- महातभतनष्क्रमण प्रतीक अश्व समृतद्ध िेर
प्रथम उपिेि चक्र
 ज्ञान‍प्राक्षप्त- सम्बोतध प्रतीक बोतध वृक्ष
तनवामण पितचन्ह
 प्रथम‍धमोपदेि- धममचक्रप्रवतमन प्रतीक चक्र
महापररतनवामण स्तपू
 देहावसान- महापररतनवामण प्रतीक स्तपू
बौद्ध‍धमि‍के ‍क्षत्ररत्न-
बौद्ध‍अनयु ाक्षययों‍के ‍क्षलए‍आवश्यक‍‍10‍िील‍
 बद्ध

(क्षसद्धान्त)-
 सघिं
1. अतहसिं ा
2. सत्सय बोलना  धम्म
3. चोरी न करना बौद्ध‍संगीक्षतयां-‍
4. व्यतभचार न करना प्रथम‍बौद्ध‍संगीक्षत-‍
5. मािक द्रव्यों का त्सयाग ये तसद्धान्त पिंचिील  समय- 483 ई. प.ू बद्ध ु की मृत्सयु के तरु िं त बाि
कहलाते हैं। इन तसद्धान्तों का पालन करना  स्थान- रािगृह की सप्तपणी गुफा
गृहस्थ एवम तभक्षु िोनों के तलए अतनवायम था।  अध्यक्ष- महाकस्सप
6. नृत्सय सिंगीत का त्सयाग  सिंरक्षक- अिात ित्रु (हयमक विंि)
7. असत्सय (िोपहर बाि) भोिन का त्सयाग  कायम- सत्तु तपटक एविं तवनय तपटक की रचना
8. सगु तन्धत द्रव्यों का त्सयाग
 आनिंि और उपातल क्रमि: धमम और तवनय के
9. कोमल िैया (तबस्तर) का त्सयाग
प्रमाण माने गये।
10. आभिू णों का त्सयाग

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 सिंघभेि रोकने के तलये अत्सयिंत कड़े तनयम बना
क्षद्वतीय‍बौद्ध‍संगीक्षत-‍ तिये गये इसकी पतु ष्ट अिोक के साच िं ी, सारनाथ
 समय:- 383 ई. प.ू (बद्ध ु की मृत्सयु के 100 विम एविं कौिाम्बी के लघु स्तिंभ लेख से होती है।
बाि)  अिोक ने महात्समा बद्ध ु के अविेिों को उनके
 स्थान:- वैिाली ियन स्थल से खोिकर तनकलवाया और उनका
 अध्यक्ष:- सब्बकामी/ सबाकामी/ सबु क ु ामी/ पनु : तवभािन कर सिंम्पणू म भारत में 84000 स्तपू ों
सावकमीर का तनमामण करवाया, ध्यातव्य है तक नागविंि के
 सिंरक्षक:- कालािोक (तििनु ाग विंि) तीव्र तवरोध के कारण रामगािंव के िारीररक स्तपू
 कायम:- बौद्ध सिंघ स्थतवर (थेरावािी) एविं खल ु नहीं पाया।
महासतिं घकों में बटिं गया।
 स्‍थक्षवर‍/‍थेरवादी‍:-‍िो तभक्षु परिंपरागत तनयमों
चतुथि‍बौद्ध‍संगीक्षत‍
में आस्था रखते थे, उनको स्थतवर कहते थे,
इनका नेतत्सृ व महाकच्चायन ने तकया था।  समय:- 102 ई िं बद्ध ु की मृत्सयु के 585 विम के
बाि
 महासांक्षघक:-‍ यह तनयमों में पररवतमनों के
तहमायती थे, इनको पवू ी बौद्ध तभक्षु भी कहा  स्थान:- कुण्लवन कश्मीर
िाता था, इनके नेतत्सृ वकताम महाकस्सप थे और  अध्यक्ष:- वसतु मत्र
इनका प्रधान कें द्र मगध था।  उपाध्यक्ष:- अश्वघोि
 कालािंतर में और तवभेि बढ़ने से स्थतवर से  सिंरक्षक:- कतनष्क कुिाण विंि
हीनयान और महासिंतघक से महायान का उिय  इसी समय से बौद्धों ने सिंस्कृ त को एक भािा के
हुआ। रूप में अपना तलया था।
 इस सगिं ीतत में तवभािािास्त्र नामक एक ग्रथिं की
तृतीय‍बौद्ध‍संगीक्षत-‍ रचना हुई।
 समय:- 247 ई. प.ू बद्ध ु की मृत्सयु के 236 विम  इसी समय बौद्ध धमम हीनयान एविं महायान नामक
बाि िो सिंप्रिायों में तवभातित हो गया था।
 स्थान:- पाटतलपत्रु
 अध्यक्ष:- मोगतलपतु त्तततस्स
 सिंरक्षक:- अिोक (मौयम विंि)
 कायम:- अतभधम्मतपटक का सिंकलन

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बौद्ध‍धमि‍का‍क्षवभाजन‍एव‍ं सप्रं दाय:- हीनयान‍एव‍ं महायान‍के ‍उपसमप्रदाय-
हीनयान महायान हीनयान‍का‍उप‍समप्रदायः
स्थतवर सम्प्रिाय से उिय महासिंतघक सम्प्रिाय से  वैभाक्षषकः इसकी उत्सपतत कश्मीर में हुई थी
उिय इसका आधार तवभािािास्त्र था इसके प्रमख ु
यह व्यतक्तवािी धमम है इसके यह समतष्टवािी धमम है आचायम धममत्रात, घोिक, वसतु मत्र एविं बद्ध
ु िेव थे।
अनसु ार प्रत्सयेक व्यतक्त को तिसका उद्देश्य समस्त
अपने प्रयत्सनों से ही मोक्ष मानव िातत का कल्याण है।  सौत्राक्षन्तकः यह सत्तु तपटक पर आधाररत है
प्राप्त करना चातहए। इसके प्रवतमक कुमारलात /कुमारलब्ध थे।
यह गौतम बद्ध ु को महापरुु ि यह गौतम बद्ध ु को िेवता
मानता है िेवता नहीं मानता है। महायान‍के ‍उप‍समप्रदायः
इसमें बद्ध
ु की मतू ी पिू ा नहीं इसमें मतू तमपिू ा एविं तीथो को  माध्यक्षमक/‍िन्ू यवाद‍–‍इसके प्रवतमक नागािमनु
होती अतपतु बोतधवृक्ष, स्तपू महत्सव तिया िाता है। थे
आति की पिू ा का तवधान
 यह सम्प्रिाय िन्ू य को ही अिंततम सत्सय मानता है।
था।
 इसने सिंसार एविं तनवामण िोनों को तमथ्या माना है।
इनका सातहत्सय पाली भािा इनका सातहत्सय सस्िं कृ त
 इसको सापेक्षवाि भी कहते है।
में था। भािा में था।
इसकी साधना पद्धतत कठोर इनके तसद्धान्त सरल एविं
थी एविं तभक्षु िीवन का सल ु भ थे।  क्षवज्ञानवाद/योगाचार- इसके प्रवतमक मैत्रेय थे।
तहमायती था।  वसबु िंधु और असिंग ने इस सिंप्रिाय को प्रतसद्ध
इनमें तभक्षओु िं के साथ साथ इसमें पिु गल िन्ू यता एविं तकया।
उपासकों का भी महत्सव था। धममिन्ू यता िोनों का  योग पर तविेि बल िेने के कारण इस सिंप्रिाय को
इसमें में के वल उल्लेख है। योगाचायम भी कहते हैं।
पिु गलिन्ू यता का उल्लेख
है। अन्य‍समप्रदाय-
हीनयान के प्रमख ु ग्रन्थ महायान के प्रमख ु ग्रन्थ  वज्रयान‍ समप्रदाय- यह ज्ञान एविं आचार की
कथावस्त,ु तवितु द्धमग्ग, एविं लतलततवस्तार एविं िगह पिंचमकार (मद्य, मैथनु , मािंस, मत्ससय एविं
अविानितक आति हैं। वज्रछे तिका आति हैं। मद्रु ा) पर बल िेता है इसे हीरकयान भी कहा
िाता है।
 वज्रयान में महात्समा बद्ध
ु को आतिबद्धु कहा गया।
 9 वीं िताब्िी में नालिंिा वज्रयान का के द्र थ।

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 इसमें तारा िेवी को बद्ध ु या बोतधसत्सव की पत्सनी  भदयानीय‍संप्रदाय‍:-‍िातकणी विंि के समय
के रूप में माना िाता है यह िािईु ितक्त प्राप्त यह सप्रिं िाय नातसक और कन्हेरी में स्थातपत
करके मतु क्त की सिंकल्पना करता है। हुआ, वतिष्ठीपत्रु पल ु मु ावी के नातसक गहु ालेख
 इसके कें द्र नालिंिा, तवक्रमतिला, सोमपरु ी एविं में इस सिंप्रिाय का नाम आया है।
िगिल्ला थे।
 इसके मख्ु य अनयु ातययों को 84 तसद्ध /  वैवक्षतिनक‍ संघ‍ /‍ संप्रदाय‍ :-‍ यह सिंप्रिाय
तसद्धाचायम/ सरहपा कहा िाता है, आठवीं महायान से सबिं तिं धत था, िो तक गप्ु तोतर काल में
िताब्िी में पाल िासक धममपाल के समकालीन स्थातपत हुआ।
एक महान सरहपा राहुलभद्र हुए तिनका तसद्ध
कतवयों में महत्सवपणू म स्थान है। बौद्ध‍धमि‍के ‍बोक्षधसत्व-
 वज्रयान सम्प्रिाय ने ही बौद्ध धमम के पतन का  अवलोतकतेश्वर (पद्मपातण)
मागम प्रिस्त तकया था।  मििं ू श्री
 वज्रपातण
 सहजयान‍समप्रदाय- यह भी तािंतत्रक सम्प्रिाय  तक्षततगभम
ही था तकन्तु इसकी उत्सपतत वज्रयान के मिंत्रपाठ  अतमताभ (स्वातगमक बद्ध ु )
एविं कममकाण्ि के तवरोध में हुई थी, इसका मागम  मैत्रेय(भावी बोतधसत्सव, अभी िन्म लेना बाकी
योग तक्रया था, इसका उद्भव आठवीं िताब्िी में है)
हुआ था।
बौद्ध‍धमि‍के ‍संरिक‍राजा-
 कालचक्रयन‍समप्रदाय- इसके प्रवतमक मिंिश्रू ी  तबतम्बसार
को माना िाता है अन्य उपसम्प्रिायः भाियानीय
 अिातित्रु (हयमक विंि)
समप्रिाय, धममत्तरीय समप्रिाय, चेतकीय
 प्रसेनतित (कोसल नरे ि)
समप्रिाय आति।
 उियन (वत्सस नरे ि)
 पूवििैल‍संप्रदाय:-‍यह महासिंतघकों ( महायान)  प्रद्योत (अवन्ती नरे ि)
की िाखा थी, अिोक के अतभलेखों में इसका  अिोक एविं ििरथ (मौयम विंि)
वणमन है।  कतनष्क (कुिाण विंि)
 हिमवधमन, सहसी विंि और पाल विंि

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बौद्ध‍धमि‍के ‍आठ‍महास्थान- अतभधम्मकोि बौद्ध धमम की एक महत्सवपणू म
 लतु म्बनी- बद्ध
ु का िन्म स्थान पस्ु तक है इसे बौद्ध धमम का तवश्वकोि भी कहा
 बोधगया- बद्ध ु ने यहााँ सम्बोतध प्राप्त की िाता है।
 सारनाथ- बद्ध ु का प्रथम उपिेि (धममचक्र
प्रवतमन)  कुमारजीव- ये पािंचवी िताब्िी में चीन गए थे
 कुिीनगर- बद्ध और कई ग्रथिं ों का चीनी भािा में अनवु ाि तकया
ु का पररतनवामण
था इनकी मृत्सयु भी चीन में ही हुई थी इनका
 श्रावस्ती- बद्ध
ु ने चमत्सकार (ऋति प्रििमन) तकया
प्रतसद्ध कथन- मेरे कमों का अनसु रण करो तकन्तु
था
मेंरे िीवन का नहीं था।
 सिंतकसा/ सिंकश्य
 रािगृह
 नागाजिनु - ये रस िास्त्र/ रसायन िास्त्र के तवद्वान
 वैिाली थे। इन्होंने रस तचतकत्ससा एविं पारे की खोि की।
इन्होने िन्ू य के तसद्धान्त का प्रततपािन तकया था।
इन्हें भारत का आइन्स्टीन एविं प्राचीन भारत का
बौद्ध‍धमि‍की‍लोकक्षप्रयता‍के ‍कारण मातटमन लथू र भी कहा िाता है।
 धाक्षमिक‍वाद- तववाि से अलग रहा इस कारण  ये कुिाण िासक कतनष्क के िरबार से सम्बद्ध
िनसामान्य आकम तित थे।
 वणम व्यवस्था की तनिंिा करने से तनम्न वगों का  आयिदेव- नागिमनु ने इन्हें अपना उत्तरातधकारी
समथमन प्राप्त चनु ा था।
 बौद्ध सिंघ सभी िाततयों के तलए खल ु ा था  इनकी रचना चत:ु ितक है।
 ब्राह्मणवाि के तवरोधी लोगों की बौद्ध धमम की  अर्श्घोष- ये कतनष्क के िरबारी कतव थे ये एक
ओर रुतच िािमतनक भी थे इन्होंने वज्रसचू ी नामक ग्रन्थ की
 बद्ध
ु का व्यतक्तत्सव व उपिेि प्रणाली रचना की थी। इन्होने बद्ध ु चाररतिंम नामक ग्रन्थ
 उपिेि की भािा पातल(िनसाधारण की भािा) की भी रचना की थी।
 सिंघ की स्थापना, महत्सवपणू म िासकों का सहयोग  क्षदगनाग: इन्हें बौद्ध धमम में तकम िास्त्र का प्रवतमक
एविं मध्यकालीन न्याय का िनक माना िाता है
प्रक्षसद्ध‍बौद्ध‍क्षवद्वान
 वसुबन्ध-ु इन्होंने परमाथमसप्ततत, अतभधम्मकोि धमिकीक्षतिः इन्होंने न्याय से सम्बिंतधत
एविं वज्रछे तिका नामक पस्ु तकें तलखी प्रमाणवाततमका, न्यायतबििं ु िैसे ग्रन्थों की रचना
की थी इन्हें भारत का कािंट भी कहा िाता है।

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बुद्धपोष:- इन्होंने तविुतद्धमग्ग नामक ग्रन्थ की अन्य‍बौद्ध‍ग्रन्थ-


रचना की थी तिसे बौद्ध धमम का लघु तवश्वकोि प्रज्ञापारक्षमता- यह महायान सम्प्रिाय की
एविं तत्रपटकों की किंु िी कहा िाता है। महत्सवपूणम िािमतनक पस्ु तक है। इसके लेखक
नागािमनु है।
बौद्ध‍साक्षहत्य
जातक- यह सत्तु तपटक की खद्दु क तनकाय का
 क्षत्रक्षपटक‍– ये बौद्ध धमम के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। 10 वािं ग्रन्थ है। इसमें भगवान बद्ध ु के 84000 पवू म
1. सत्तु तपटक िन्मों की 500 से अतधक गाथाएिं है।
2. तवनयतपटक थेरगाथा‍एव‍ं थेरीगाथा-
3.अतभधम्मतपटक थेरगाथ- यह बौद्ध तभक्षओ ु िं द्वारा सकिं तलत ग्रन्थ
है।
 सत्त
ु क्षपटक-‍इसमें बद्धु के धातममक तवचारों एविं थेरीगाथा- यह बौद्ध तभक्षतु णयों द्वारा सिंकतलत
उपिेिों का सिंग्रह है। यह गद्य एविं पद्य का तमश्रण ग्रन्थ है।
है। यह तपटक पााँच तनकायों में तवभातित है।
 1. िीघतनकायः इसमें महात्समा बद्ध लक्षलतक्षवस्तार-‍
ु के िीवन के
आतखरी समय का वणमन तमलता है।  इसमें बद्ध
ु की िीवनी तमलती है। एितवन
2. मतज्झम तनकाय अनामल्ि ने लाइट आफ एतिया नामक पस्ु तक
3. सिंयक्त
ु तनकाय तलखने में इसकों आधार बनाया था।
4. अिंगत्तु र तनकायः इसमें 16 महािनपिों का
उल्लेख तमलता है। संस्‍कृत‍बौद्ध‍ग्रंथ
5. खद्दु क तनकाय महावस्‍त:ु -‍
 यह ग्रथिं सस्िं कृ त भािा में तलतखत है और महायान
 क्षवनय‍ क्षपटक- इसमें बौद्ध तभक्षओ ु िं के से सिंबिंतधत है।
अनि ु ासन सबिं धिं ी तनयम एविं सघिं की
कायमप्रणाली की व्याख्या है। बुद्धचररत‍:-
 अक्षभधमम‍ क्षपटक- इसमें महात्समा बद्ध ु के  इसकी रचना अश्वघोि ने की थी।
उपिेिों एविं तसद्धािंतों की िािमतनक व्याख्या की  इसमें बद्ध
ु के गभम में आने से लेकर आिोक के
गयी है। इस तपटक का सिंकलन अिोक के समय समय तक तववरण प्राप्त होता है।
तृतीय बौद्ध सगिं ीतत में तकया गया था।

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सारर‍पत्रु ‍प्रकरण‍:-‍  बौद्ध तवहारों में कुरीततयााँ एविं भोग तवलातसता में
 यह भी अश्वघोि द्वारा तलखा गया। वृतद्ध
 यह एक नाटक है तिसमें साररपत्रु के बौद्ध धमम में  कुछ िासकों का बौद्ध तवरोधी दृतष्टकोण
तितक्षत होने का तववरण है।  तक
ु ों के आक्रमण

सौन्‍दरानंद:-
 यह भी अश्वघोि द्वारा रतचत है।
 इसमें बद्धु बे सौतेले भाई सौन्िरानिंि के बौद्ध धमम
ग्रहण करने का काव्यात्समक वणमन है।

वज्रसचू ी:-‍
 यह भी अश्वघोि द्वारा रतचत है, इसमें
वणमव्यवस्था का खिंिन है, कुछ तवद्वान इसे
धममकीती की रचना मानते है।

अक्षभधम‍म‍कोष:-‍
 इसकी रचना वसबु धिं ने की थी।

क्षविुक्षद्धमग्‍ग:-
 यह हीनयान सिंप्रिाय का ग्रिंथ है तिसकी रचना
बद्ध
ु घोि द्वारा की गई।

बौद्ध‍धमि‍के ‍पतन‍के ‍कारण-


 बौद्ध धमम में कममकाण्ि का प्रभाव बढ़ गया था।
 पाली भािा त्सयाग कर सिंस्कृ त को अपनाना
 भारी मात्रा में िान प्रातप्त
 ब्राह्मण धमम का पनु रुु त्सथान

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वैष्‍टणव‍धमि‍(भागवत‍धमि)  ऐतरे य ब्राह्मण में तवष्णु का उल्लेख सवोच्च
 भागवत धमम के सिंस्थापक वासिु वे कृ ष्ण थे। िेवता के रूप में तकया गया है।
वासिु वे कृ ष्ण वृतष्ट विंिीय यािव थे इन्हें वैतिक  गप्तु काल में वैष्णव धमम चरमोत्सकिम पर था। तवष्णु
तवष्णु का अवतार माना िाता है। का वाहन गरुण गप्तु विंि का राितचन्ह था।
 तवष्णु का सबसे पहले उल्लेख ऋगवेि में तमलता  गप्तु काल में तवष्णु का सबसे लोकतप्रय अवतार
है। वराह अवतार था।
 छान्िोग्य उपतनिि में श्री कृ ष्ण का सवमप्रथम  स्कन्िगप्तु का िनू ागढ़ अतभलेख भगवान तवष्णु
उल्लेख तमलता है, इसमें वासिु वे कृ ष्ण को की स्ततु त से ही प्रारिंभ होता है।
िेवकी पत्रु एविं घोरा अिंतगरस का तिष्य बताया  चन्द्रगप्तु तवक्रमातित्सय ने महरौली लोहस्तिंभ के
गया है। रूप में तवष्णु धव्ि की स्थापना की थी।
 पातणतन कृ त अष्टाध्यायी से कृ ष्ण को भगवान के  गप्ु तकाल में वैष्णव धमम प्रधान धमम बन गया
रूप में पिू े िाने की िानकारी तमलती है। क्योंतक गप्ु त रािाओ िं ने वैष्णव धमम अपनाया
 भागवत धमम प्रथम सम्प्रिाय है तिसका उिय और उसे सिंरतक्षत तकया, खिु चिंद्रगप्ु त तद्वतीय,
ब्राह्मण धमम के ितटल कममकाण्ि एविं यज्ञीय कुमारगप्ु त प्रथम एव स्किंि गप्ु त ने परमभागवत
व्यवस्था के तवरूद्ध प्रतततक्रया स्वरूप हुआ था। की उपातध धारण की थी।
 वैष्णव धमम में नवधा भतक्त पर बल तिया।  कुमारगप्ु त के गगिं ाधर अतभलेख में तवष्णू को
 वैष्णव सम्प्रिाय सािंख्य एविं योग से सिंबिंतधत है, मधसु िू न कहा गया है।
इसमें वेिान्त, सािंख्य एविं योग के िािमतनक तत्सवों  स्किंिगप्ु त के भीतरी अतभलेख में िेवकी एविं
का समावेि तमलता है। कृ ष्ण का उल्लेख तकया गया है।
 भगवत धमम की पहली िानकारी हेतलयोिोरस के  पतिम चालक्ु यों का राितचन्ह वराह था, तवष्णु
बेसनगर गरुण स्तिंभ अतभलेख से तमलती है, इस उनके कुल िेवता थे।
स्तभिं को कतनघमिं ने खोिा था।  पल्लव िासक तसहिं तवष्णु ने मामल्लपरु म में
 सातवाहन काल में भागवत धमम की िानकारी आति वराह मिंतिर तथा नरतसिंह वमाम तद्वतीय ने
नानाघाट अतभलेख से तमलती है नानाघट कािंची में बैकुण्ठपेरुमाल मिंतिर बनवाया।
अतभलेख में वासिु वे एविं सिंकिमण (बलराम) की  प्रततहार नरे ि तमतहरभोि ने अपने ग्वातलयर
पिू ा का उल्लेख है। अतभलेख में स्वयिं को वराह घोतित तकया है।
 कुिाणकाल में हुतवष्क एविं वासिु वे द्वारा तवष्णु
पिू ा का पता चलता है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अलवार‍सतं ‍  कक्षडक
‍ ‍:- यह अवतार अभी होना बाकी है, और
 ितक्षण भारत में वैष्णव धमम के प्रमख ु सतिं ऐसी मान्यता है तक कलयगु में भगवान कतल्क
अलवार कहलाते थे, इनकी सिंख्या 12 थी। अवतार लेंगे और सफे ि घोड़े पर बैठकर आयेंगे। ‍
 सबसे प्रमख ु अलवार कुलिेखर अलवार था, िो
के रल का रािा था, इसकी पस्ु तक का नाम पांचरात्र‍क्षसद्धांत:-‍
‘मक ु िंु िमाला’ है।  यह सिंम्भवत: पािंच रातत्र और पािंच तिन तक
 अलवार सिंतों में एक मतहला सिंत भी हुई तिनका चलने वाला यज्ञ था।
नाम अििं ाल था, इन्हे ितक्षण की मीराबाई कहा  परिंतु सवामतधक तवचारकों का मानना है तक पाच िं
िाता है। वृतष्णवीरों ( वासिु वे , सिंकिमण, प्रद्यम्ु न, अतनरुद्ध,
 ततरुमिंगई भी प्रतसद्ध अलवार थे िो तक अलवार और साम्ब) की पिू ा करने के कारण इसे
सिंत बनने से पवू म एक िाकू थे , ये बौद्ध और िैन पाचिं रातत्र कहा गया।
धमों के प्रमख ु तवरोधी थे, इन्होंने श्रीरिंगम् मठ की
मरम्मत के तलए नागपट्टनम बौद्ध तवहार से स्वणम  वासुदेदव:- इनके छ: गणु हैं।
मतू ी चरु ा ली थी।
 संकषिण:- यह वासिु वे के रोतहणी से उत्सपन्न पत्रु
थे।
वैष्‍ट‍णव‍धमि‍के ‍प्रमुख‍क्षसद्धांत‍  प्रद्युम‍न:- यह कृ ष्ण के रुक्मणी से उत्सपन्न पत्रु थे।
 वैष्णव धमम के प्रमख ु तसद्धािंतों में अवतारवाि ,
पािंचरात्र तसद्धािंत एविं वीरपिू ा प्रमख
ु है।  अक्षनरुद्ध :- यह प्रद्यम्ु न के पत्रु थे।

 साम‍ब:- यह कृ ष्ण के िामवती से उत्सपन्न पत्रु थे।


अवतारवाद‍:-‍ िाम्बवती चाण्िाल कन्या थी।
 वैष्णव धमम की प्रमखु तविेिता अवतारवाि की
सकिं ल्पना है।
 अमरकोि एविं गीतगोतविंि में तवष्णु के 39 चतिव्ु ‍यूह‍क्षसद्धांत‍:-
अवतारों का उल्लेख है, परिंतु 10 अवतार
सवामतधक प्रचतलत हैं: -  पािंचरातत्र तसद्धािंत के पािंचवे िेवता साम्ब को
मत्ससय, कूमम, वराह, नरतसिंह, वामन, परिरु ाम, ईरानी सयू म सप्रिं िाय से सबिं द्ध कर तिया गया, और
राम, कृ ष्ण, बद्ध
ु एविं कतल्क।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बाकी बचे चार िेवताओ िं को वैष्णव धमम में
चतमव्ु यहू तसद्धािंत में मान्यता िी गई।

यह‍भी‍जाक्षनये:-‍
1. गािंधीिी ने गीता को तवश्व माता कहा है।

2. चाल्सम तवतल्किंस ने वारे न हेतस्टिंग्स के कहने पर गीता का


अनवु ाि अिंग्रेिी में तकया।

3. ततलक ने माण्िले िेल में मराठी भािा में गीता रहस्य


नामक पस्ु तक तलखी, इसी से प्रभातवत होकर मैक्समलू र ने
तब्रतटि सरकार से ततलक की सिा माफ करते हुए िया की
तसफाररि की थी।

4. हाल ही में अहमिाबाि के आिीि बारोट ने भगवि-


गीता का 39 भािाओ िं में अनुवाि करना प्रारिंभ तकया है िो
तक पणू म होने के बाि एक तवश्व ररकॉिम बनेगा।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िैव‍धमि िैव‍धमि‍के ‍सप्रं दाय‍
 िैव धमम भारत का प्राचीनतम धमम है। तिव के  वामन परु ाण में िैव मत के चार सप्रिं िायों का
उपासकों को िैव कहा िाता था। उल्लेख है-
 उत्तरवैतिक काल में तैत्तरीय सिंतहता में तिव नाम 1. पािपु त सिंप्रिाय
का उल्लेख तमलता है अथवमवेि एविं श्वेताश्वर 2. िैव
3. कापातलक
उपतनिि में तिव का नाम महािेव तमलता है चमम
धारण करने के कारण तिव को कृ तत्तवासन की 4. कालामुख
सिंज्ञा भी िी िाती है।
1.‍पािपु त‍सप्रं दाय:-‍
 मेगास्थनीि की इतिं िका में िैव धमम के उिय की
िानकारी तमलती है इतिं िका में िायनोतसस  यह िैव धमम का सबसे प्राचीन सप्रिं िाय है।
(तिव) एविं हेराक्लीि (कृ ष्ण) नामक िो भारतीय  स्थापना:- लकुलीि ने िसू री िताब्िी ई.प.ू में इस
िेवताओ िं का वणमन तमलता है। सिंप्रिाय की स्थापना की थी, लकुलीि को तिव
 रूद्र की पत्सनी के रूप में पावमती का नाम तैतत्तरीय का 18वािं अवतार माना िाता है, लकुलीि
गिु ारात के कायावरोहण के रहने वाले थे।
आरण्यक में तमलता है।
 के न उपतनिि में तहमालय की पत्रु ी उमा हेमावती  कुिाण िासक हुतवष्क के तसक्कों पर पािपु त
का उल्लेख तमलता है। सिंप्रिाय का सवमप्रथम उल्लेख तमलता है,
 तिव की तलिंग रूप में पिू ा का प्राचीनतम प्रमाण
2.‍कापाक्षलक‍संप्रदाय:-‍
तसन्धु घाटी सभ्यता से तमलता है।
 यह लोग भैरव को अपना ईष्ट िेव मानते हैं, इस
 तलिंग पिू ा का सवम प्रथम उल्लेख मत्सस्य परु ाण में
मत के अनयु ायी सरु ा, सििंु री और मासिं का सेवन
तमलता है।
करते हैं, एविं नरमण्ु ि धारण करते हैं।
 तिव की प्राचीनतम मतू ी मद्रास के तनकट रे नीगिंटु ा
 भवभतू त के मालतीमाधव के नाटक से पता
में प्रतसद्ध गतु िमल्लम तलगिं के रूप में प्राप्त हुई है।
चलता है तक श्री िैल नामक स्थान कापातलकों
 रामायण में तिव को ‘ह’ और वृिध्व उपातधयों
का प्रमख
ु कें द्र था।
से तवभतू ित तकया गया है नििं ी का सवमप्रथम
 इस सिंप्रिाय में मतहलाएिं भी िातमल हो सकती
उल्लेख रामायण में हुआ।
थीं।
 पौरातणक यगु में तिव की महत्ता परमब्रह्म के रूप
में स्थातपत हुई थी।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कालामखु ‍सप्रं दाय:- पच ं ायतन‍पज ू ा‍
 इस सप्रिं िाय के अनयु ायी कापातलकों के ही वगम  इसमें तवष्ण,ु तिव, ितक्त, सयू म और गणेि पिू ा
से थे, तकिंतु ये उनसे भी ज्यािा अततवािी थे, का तवधान है। ििंकराचायम को पिंचायतन पिू ा का
अततवािी होने के कारण ही तिव परु ाण में उन्हें प्रणेता मानते हैं।
महाव्रतधर कहा गया है। िाक्‍त‍सप्रं दाय

वीरिैव‍अथवा‍क्षलंगायत‍सप्रं दाय‍:-‍  यह पहला ऐसा सिंप्रिाय है िो ितक्त को ईष्ट िेवी


 इनको ििंगम सिंप्रिाय भी कहते हैं। मानकर पिू ा करता है,
 सिंस्थापक:- अल्लभप्रभु एविं उनके तिष्य वसव  यह एक वाममाग्री सप्रिं िाय है िो पच िं मकारों पर बल
िेता है।
 वसव को निंिी का अवतार माना िाता है, वसव
 वतममान में िम्मू एविं कश्मीर (वैष्णो िेवी) , काच िं ी तथा
कल्याणी के कलचरु ी नरे ि तवज्िल के मिंत्री थे। असम (कामाख्या मिंतिर) ितक्त उपासना के प्रमख ु कें द्र
 यह सिंप्रिाय ितक्षण भारत में स्थातपत हुआ। हैं।
 यह सिंप्रिाय इस्लाम से प्रभातवत था।  चौसठ योगतनयों का मिंतिर (भेड़ाघाट, िबलपरु ) भी
 अक्का महािेवी इस सिंप्रिाय की प्रतसद्ध मतहला िाक्त िेवी को समतपमत मतिं िर है।
िाक्‍तों‍के ‍दो‍प्रमुख‍उप‍संप्रदाय‍हैं-‍
सिंत थी।
1.‍कौलमागी‍:-‍
नाथ‍पथ ं ‍संप्रदाय‍(यौक्षग‍नी‍कौल‍मागि)‍:-‍  ये पच िं मक
िं ार की उपासना करते है तिनमें मद्य, मासिं ,
मत्सस्य, मद्रु ा, एविं मैथनु िातमल है
 इस सिंप्रिाय की स्थापना िसवीं िताब्िी में 2.‍समयाचारी:-‍
मत्सस्येंद्रनाथ अथवा मच्छन्िरनाथ ने की थी।
 यह सामान्य रूप से िेवी की पिू ा करते हैं, िेवी के नौ
 यह सिंप्रिाय सातहत्सय में बहुत रुतच रखता था। अवतारों की अवधारणा समयाचारी उपसिंप्रिाय में ही
और अपनी उलटवातसयों के कारण नाथ सातहत्सय तनतहत है।
में इनका तवतिष्ट स्थान है, ध्यातव्य है तक कबीर
भी नागपिंथ के अनयु ायी थे।
 गोरख नाथ 11वीं िताब्िी में नागपिंथ सिंप्रिाय के
प्रमखु आचायम हुए।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भारत‍के ‍षि्दििन वैिेक्षषक‍दििन-‍
 इसके प्रवतमक उलक ू कणाि थे।
सांख्य‍दििन-  इसकी मान्यता के अनसु ार, पााँच
 इसके प्रवतमक कतपलमतु न थे। पिाथम(पिंचमहाभतू ) पृथ्वी, आकाि, िल, पवन
 इस ििमन के अनसु ार, िगत की उत्सपतत्त ईश्वर से एविं अतग्न के मेल से ही नई वस्तओ
ु िं का तनमामण
नहीं हुई अतपतु मानव एविं प्रकृ तत के सिंयोग से होता है।
हुई है।  इस ििमन से ही भारत में परमाणवु ाि एविं भौततक
 यह सृतष्ट के तत्रगणु (सतगणु , रिगणु एविं तमगणु िास्त्र का आरम्भ माना िाता है।
को मानता है।  यह बहुत तनकटता के साथ न्याय ििमन से िड़ु ा
 यह ििमन िैन धमम के ििमन से प्रभातवत है।) हुआ है।
 यह सबसे प्राचीन िि्ििमन है।
मीमांसा‍दििन-
योग‍दििन-‍  इसके प्रवतमक िैतमनीय थे।
 इसके प्रवतमक पतिंितल थे।  इस ििमन से सम्बद्ध कुमाररल ने बौद्धों का खिंिन
 इसकी मान्यता है तक आसन एविं प्राणायाम के कर वेिों की प्रमातणकता स्थातपत की थी।
माध्यम से ईश्वर/मोक्ष की प्रातप्त होती है।  इसकी मान्यता के अनसु ार, वेि द्वारा तवतहत कमम
 अलबरूनी ने योग सत्रू का अरबी भािा में ही धमम है इसतलए यज्ञवाि का समथमन तकया, वेिों
अनवु ाि तकया था। को तनत्सय एविं अपौरुिेय माना तथा वैतिक
िेवताओ िं का मत्रिं ों से अलग कोई अतस्तत्सव नहीं
न्याय‍दििन- है।
 इसके प्रवतमक अक्षपाि गौतम थे। इन्होंने न्यायसत्रू
की रचना की थी। वेदान्त‍दििन-
 यह भारतीय तकम तवद्या का प्राचीनतम ग्रन्थ है।  इसके प्रवतमक बािायण थे।
 इसकी मान्यता है तक तकम के आधार पर ही तकसी  इन्होंने ब्रह्मसत्रू की रचना की थी।
बात को स्वीकार करे ।ाँ इस ििमन का मल ू उपतनिि है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
महाजनपद‍काल
 महािनपि प्राचीन भारत में राज्य या बड़ी
16‍महाजनपद‍एवं‍उनकी‍राजधाक्षनयां:-
प्रिासतनक इकाईयों को कहते थे।

 छठीं िताब्िी के उत्सतराद्धम में वैतिक काल के बड़े
महाजनपद‍ राजधानी
िनपि महािनपिों में बिल गये, इसके साथ ही
अिंग/ रािग्रह चिंपा
छठीं िताब्िी ई.प.ू में गगिं ा-यमनु ा िोआब एविं
तबहार में लोहे का प्रचरु प्रयोग होने के कारण मगध तगररब्रि/ रािगीर
अतधिेि उत्सपािन होने लगा और व्यापार अवतन्त उज्िैन/ महष्मतत
वातणज्य में बहुत वृतद्ध हुई, ये सभी कारण मल्ल कुिीनगर
महािनपिों के तनमामण में सहायक तसद्ध हुए। कािी वाराणसी
 16 महािनपिों में 14 राितिंत्रात्समक (वतज्ि व मत्सस्य तवराट नगर (बैराठ)
मल्ल) एविं िो गणतिंत्रात्समक थे। कौिल श्रावस्ती /कुिावती
वत्सस कौिाम्बी
महाजनपद‍काल‍के ‍स्रोत:-‍ कम्बोि हाटक
वतज्ि वैिाली
 बौद्ध सातहत्सय: अिंगुत्सतर तनकाय एविं महावस्तु से कुरु हतस्तनापरु
16 महािनपिों के तविय में िानकारी तमलती है। पाचिं ाल अतहतछत्र/ कातम्पल्य
गािंधार तक्षतिला
 िैन सातहत्सय भगवती सत्रू से 16 महािनपिों की
चेिी सोथीवतत /
िानकारी तमलती है।
सतु क्तवती
अश्मक पोटन / पैठान
 क्षवदेिी‍क्षववरण: तनयाकम स, ितस्टन, प्लटू ाकम ,
सरू सेन मथरु ा
कतटमयस, अररस्टोबल ु स एविं अनेतसक्रटस आति
तविेिी यातत्रयों की रचनाओ िं से महािनपि काल
नोट:-‍
के बारे में िानकारी तमलती है।
 16 महािनपिों में से 15 महािनपि नममिा घाटी
के उत्सतर में थे िबतक एकमात्र ‘अश्मक’
गोिावरी निी घाटी में तस्थत था।
 महावस्तु में तिन महािनपिों की सचू ी तमलती है
उनमें गािंधार एविं कम्बोि के स्थान पि क्रमि:

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
तितव (पििं ाब) एविं ििमना (मध्य भारत) का  मगध की प्रारिंतभक रािधानी तगररब्रि (रािगीर/
उल्लेख है। रािगृह) थी। यह पाच िं पहातड़यों ( वराह, वृिभ,
 महािनपि काल की सवामतधक महत्सवपूणम ऋतितगरर, चेत्सत्सयक एविं वैभार) से तघरा नगर था।
तविेिता ‘ आहत तसक्का’ या ‘पिंचमाकम  ऋगवेि में मगध के तलए ‘कीकट’ एविं अथवमवेि
तसक्का’ है। में मगध तनवातसयों के तलए ‘ब्रात्सय’ कहा गया है।
 महािनि काल में लोग ‘ उत्सतरी काले मृिभािंिों’  महाभारत तथा परु ाणों के मगध का सवमप्रथम
का उपयोग करते थे। विंि वृहद्रथ था, िरासिंघ, वृहद्रथ का पत्रु था,
िरासघिं ने तगररब्रि ( रािग्रह) को मगध की
महाजनपद‍एवं‍उनकी‍क्षविेषताए‍ं :-‍ पहली रािधानी बनाया था, िरासिंघ ने श्री कृ ष्ण
द्वारा किंस का वध करने के बाि मथरु ा पर
1.अंग:-‍ आक्रमण तकया था। भीम ने िरासघिं को द्वििं यद्ध ु
रािधानी – चिंम्पा ( प्राचीन नाम- मातलनी) में परातित कर मारा था।
 क्षेत्र: आधतु नक भागलपरु एविं मिंगु ेर ( तबहार)  तगररब्रि के अन्य नाम कुिाग्रपरु , वसमु तत,
 प्रमख ु नगर: चम्पा ( बिंिरगाह), अश्वपरु , भतद्रका मगधपरु , वृहद्रथपरु एविं तबतम्बसारपरु ी तमलते हैं।
 िासक: तबतम्बसार के समय यहािं का िासक  परु ाणों एविं तकिंवितिं तयों के अनुसार, वृहद्रथ विंि
ब्रह्मित्सत था। ब्रह्मित्सत को मगध के िासक में 10 रािा हुए थे। तिसे उसके मिंत्री पल ु क ने
तबतम्बसार ने परातित कर अगिं को मगध में मारकर अपने पत्रु को रािा बनाया था एक अन्य
तमलाया था। मिंत्री महीय ने पल ु क और उसके पत्रु की हत्सया कर
 इस नगर का वास्तक ु ार महागोतविंि था। िी एविं तबतम्बसार को गद्दी पर बैठाया।
 चिंम्पा के व्यापररयों का सिंबिंध सवु णमभूतम से था।  बौद्ध ग्रिंथों में मगध के पहले रािविंि को हयमक
वि िं एविं इसका सस्िं थापक तबतम्बसार को माना है।
2.‍मगध:-
रािधानी: तगररव्रि/ रािगीर/ रािगृह 3. वक्षज्ज:-
 इसके अिंतगमत वतममान तबहार का पटना एविं गया रािधानी: वैिाली
तिला तथा िाहाबाि का कुछ क्षेत्र िातमल थे। वतममान तस्थतत: तबहार व नेपाल में तवस्तृत
 वतज्ि सिंघ एविं मगध की सीमा रे खा का तनमामण  वतज्ि सिंघ की रािधानी वैिाली थी, तिसकी
गिंगा निी करती थी। पहचान आधतु नक बसाढ़ नाम से की िाती है,
यह तबहार के मज्ु िफरपरु तिले में तस्थत है।

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नोट्स हेतु
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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 िासक: वैिाली की स्थापना इक्ष्वाकु के पत्रु  वतज्ि सिंघ का गणराज्य तविेह, अपने िािमतनक
तविाल ने की थी। उसी के नाम पर इसका नाम रािाओ िं के तलए प्रतसद्ध था, तविेह की रािधानी
वैिाली पड़ा। तमतथला थी।
 यह 8 गणराज्यों का एक सिंघ था, यहािं का प्रमख ु  अिातित्रु ने अपने मिंत्री वस्सकार की सहायता
िासक चेटक था, वतज्ि सिंघ में िातमल 8 से वतज्ि सिंघ के सिस्यों में फूट िालकर उनकी
गणराज्य- तविेह, वतज्ि, तलच्छतव, ज्ञातृक, ितक्त को कमिोर कर वतज्ि सिंघ को मगध
किंु िग्राम, भोि, इक्ष्वाकू एविं कौरव थे। साम्राज्य में तमलाया था।
 वतममान ततरहुत प्रमििं ल में वतज्ियों का राज्य था।
 वतज्ि सघिं का तलच्छतव गणराज्य इततहास में 4.अवंक्षन्‍त:-
ज्ञात प्रथम गणतिंत्र राज्य था। रािधानी –
 तलच्छतवयों ने महात्समा बद्ध ु के तनवामण हेतु  उत्सतरी अवतिं त- उज्िैन
कतागारिाला का तनमामण करवाया था।  ितक्षणी अवतिं त मातहष्मती
 वतज्ि सिंघ के प्रधान चेटक की पत्रु ी चेलन (
छे लना) का तववाह मगध के रािा तबतम्बसार से वतममान क्षेत्र: उज्िैन, तिले से लेकर नममिा निी तक
हुआ था। ( मध्य प्रिेि)
 तलच्छतव सिंघ में ज्ञातृक कुल भी िातमल था  प्रमख ु नगर: कुरारगढ़, मक्करगढ़ एविं सिु िमनपरु
तिसके प्रमख ु तसद्धाथम थे। इन्हीं के यहािं किंु िग्राम  िासक: परु ाणों के अनसु ार अवतन्त के सिंस्थापक
स्थान पर 540 ई. प.ू में महावीर स्वामी का िन्म हैहय वि िं के लोग थे।
हुआ था।  महावीर स्वामी तथा गौतम बद्ध ु के समकालीन
 महावीर स्वामी की माता तत्रिाला तलच्छवी यहािं का िासक चिंि प्रद्योत था।
राज्य के प्रमख ु चेटक की बहन थी।  तबतम्बसार ने वैद्य िीवक को चिंि प्रद्योत के
 वैिाली की राज्यनृत्सयागिं ना आम्रपाली थी। तिसे उपचार के तलए उज्िैन भेिा था।
‘वैिाली की नगरवध’ु भी कहा िाता था।  लोहे की खान होने के कारण यह एक प्रमख ु एविं
आम्रपाली का प्रेम सिंम्बन्ध मगध के िासक ितक्तिाली महािनपि था।
तबतम्बसार से था। तबतम्बसार तलच्छतवयों से
आम्रपाली को िीतकर रािगृह लेकर आया था। 5.‍वत्‍स:-
 आम्रपाली को महात्समा बद्ध ु ने ‘आयाम अम्बा’ रािधानी – कौिाम्बी
कहकर सिंबोतधत तकया था।  वतममानक्षेत्र: इलाहाबाि एविं तमिामपरु तिला (
उत्सतर प्रिेि)

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 िासक: गौतम बद्ध ु एविं तबतम्बसार के  कािी सतू ी वस्त्र एविं अश्व व्यापार के तलए
समकालीन उियन यहािं का िासक था। प्रतसद्ध था।
 चििं प्रद्योत ने अपनी पत्रु ी वासित्सता का तववाह
उियन से तकया था, गौतम बद्ध ु के तिष्य
तपण्िोला ने उियन को बौद्ध धमम की िीक्षा िी थी, 7.‍कोिल:-
ध्यातव्य है तक यही उियन भास की रािधानी:
स्वप्नवासित्सत, हिम की रत्सनावली एविं  उत्सतरी रािधानी: श्रावस्ती
तप्रयितिमका इन तीनों सिंस्कृ त नाटकों का नायक  ितक्षणी रािधानी: कुिावती
था।  वतममान क्षेत्र: आधतु नक अवध ( फै िाबाि,
 कालान्तर में अवतन्त ने वत्सस पर अतधकार कर गोंड़ा, बहराइच) का सरयू निी के आसपास का
तलया एविं अतिं तम रूप से तििनु ाग ने वत्सस को क्षेत्र
मगध में तमला तलया।  िासक: बद्ध ु के समकालीन यहािं का िासक
 वत्सस महािनपि की रािधानी कौिाम्बी िैन एविं प्रसेनिीत था।
बौद्ध िोनों धमों का कें द्र थी।  श्रावस्ती की पहचान महेत से की िाती है, और
वहािं पर तस्थत िेतवन तवहार के अविेिों की
6.‍कािी:‍- पहचान सहेत से की िाती है, इन्हीं को सतम्मतलत
रािधानी- बनारस / वाराणसी रूप से ‘सहेत- महेत’ कहा िाता है।
 वतममान क्षेत्र: वाराणसी एविं समीपवती क्षेत्र  महाकाव्य काल में इसकी रािधानी अयोध्या थी।
 कािी, वरुणा एविं अस्सी नतियों के तकनारे बसा  प्रसेनिीत ने अपनी पत्रु ी वातिरा का तववाह
हुआ था। अिातित्रु से तकया था और कािी िहेि में तिया
 कािी को अतवमक्ु तक्षेत्र अतभधान भी कहा था।
िाता था।
 कािी का सवमप्रथम उल्लेख अथवमवेि में तमलता 8.‍कुरु:-
है। िातक के अनसु ार, रािा ििरथ एविं राम रािधानी: इन्द्रप्रस्थ एविं हतस्तनापरु
कािी के रािा थे।  क्षेत्र: मेरठ, तिल्ली एविं थानेश्वर के आसपास का
 िासक: इसकी स्थापना तिवोिास ने की थी। क्षेत्र
 कािी का प्रमख ु िासक अिातित्रु था।  िासक: बद्ध ु के समकालीन यहािं का िासक
अिातित्रु के समय ही कािी मगध का तहस्सा कौरणय था।
बना।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इसका उल्लेख महाभारत एविं अष्टध्यायी में 11.‍मड‍ल:‍-
तमलता है। रािधानी: कुिीनारा/ पावापरु ी
 वतममान क्षेत्र: िेवररया
9.‍पांचाल:-  िासक: यहािं का िासक ओक्काक था।
रािधानी:  यहािं का िासन गणतिंत्रात्समक था।
 उत्सतरी पािंचाल: अतहछत्र  इसी महािनपि के कुिीनगर में महात्समा बद्ध
ु को
 ितक्षण पािंचाल : कािंतम्पल्य महापररतनवामण प्राप्त हुआ था, िबतक इसी
 वतममानक्षेत्र: इसके अिंतगमत बरे ली, बिाय,िंू महािनपि के पावा स्थान पर महावीर की मृत्सयु
फरुमखाबाि आति क्षेत्र िातमल थे। हुई थी।
 िासक: यहािं का िासक चल ु ामी ब्रह्मित्सत था।
 इसका उल्लेख महाभारत एविं अष्टाध्यायी में 12.‍चेक्षद:-
तमलता है। रािधानी: ितु क्तमतत ( सोतत्सथवती)
 द्रोपिी पािंचाल महािनपि से ही सिंबिंतधत थी।  वतममान क्षेत्र: इस महािनपि में मध्यप्रिेि एविं
 प्रमख बिंिु ले खिंड़ का यमनु ा निी का क्षेत्र िातमल था।
ु ऐततहातसक नगर कान्यकुब्ि ( वतममान
कन्नौि) इसी महािनपि में था।  बद्ध ु के समय यहािं का रािा उपचर था।
 यहीं पर महाभारत कालीन रािा तििपु ाल राि
तकया करता था, तिसका वध श्री कृ ष्ण ने सिु िमन
10.‍सूरसेन:- चक्र द्वारा तकया था।
रािधानी: मथरु ा
 वतममान क्षेत्र: इसमें मथरु ा एविं आसपास का क्षेत्र
िातमल था। 13.‍मत्‍स्य‍ :-
 िासक: बद्ध रािधानी: तवराट नगर
ु के समय यहािं का िासक
चण्ड़प्रद्योत की कन्या का पत्रु अवतन्तपत्रु था, इस  वतममान क्षेत्र: इसमें रािस्थान के अलवर, ियपरु
प्रकार अिंवतत पत्रु की नतनहाल अवतन्त एविं भरतपरु का क्षेत्र िातमल था।
महािनपि थी।  मनस्ु मृतत में मत्सस्य, कुरुक्षेत्र, पािंचाल, एविं सरू सेन
 यहीं के िासक यिवु िंिी भगवान कृ ष्ण थे। को ब्राह्मण मतु नयों का अतधवास ब्रह्मिी िेि कहा
 मेगास्थनीि की पस्ु तक इतिं िका में िरू सेन का गया है।
उल्लेख तमलता है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
14. अश्‍मक:- ‍  यह गािंधार का पड़ोसी राज्य था।
रािधानी- पोटन: पैठान ( प्राचीन नाम-  यह श्रेष्ठ घोड़ों के तलए प्रतसद्ध था।
प्रततष्ठान)  महाभारत काल में यहािं के िो िासक चन्द्रवममन
 वतममान क्षेत्र: नममिा एविं गोिावरी नतियों के मध्य एविं सिु तक्षणा की चचाम तमलती है।
का भाग।
 यह एकमात्र महािनपि था िो ितक्षण भारत में
तस्थत था।
 िासक: इसकी स्थापना इक्ष्वाकु वि िं के िासक
मल ू क ने की थी।
 िातक के अनसु ार, यहािं के िासक प्रवर अरुण
ने कतलिंग पर तविय प्राप्त की एविं अपने राज्य में
तमलाया, कालान्तर में अवतन्त ने अश्मक राज्य
पर तविय प्राप्त की।

15.‍‍गांधार:- रािधानी: तक्षतिला


 वतममान क्षेत्र: इसमें पातकस्तान का पतिमी
(पेिावर, रावलतपििं ी) एविं अफगातनस्तान का
काबल ु घाटी िातमल था।
 इस महािनपि का िसू रा प्रमख ु नगर पष्ु कलावती
था।
 यहािं तबतम्बसार का समकालीन िासक
पष्ु करसरीन राि करता था।
 गाधिं ार के िासक दृतहवि िं ी थे।
 यह क्षेत्र ऊनी वस्त्र उत्सपािन के तलए प्रतसद्ध था।

16.‍कम‍बोज:- ‍
रािधानी: हाटक ( वैतिक यगु में- रािपरु )
 वतममानक्षेत्र: इसमें पातकस्तान का रावलतपिंिी,
पेिावर, काबल ु घाटी का क्षेत्र िातमल था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

मगध‍राज्‍य‍का‍उत्‍कषि‍

मगध‍के ‍उत्‍कषि‍/‍सिलता‍के ‍कारण:-‍ हयिक‍वंि:


(1) मगध की भौगोतलक तस्थतत:- मगध  बौद्ध ग्रिंथ के अनसु ार, मगध का पहला रािविंि
प्राकृ ततक रूप से अभेद्य था क्योंतक मगध की हयमक विंि ( तपतृहिंता विंि) था तकिंतु इसका
प्रारिंतभक रािधानी तगररब्रि पािंच पहातड़यों सस्िं थापक तबतम्बसार नहीं था। बौद्ध ग्रथिं ों के
(वराह, वृिभ, वैभार, ऋतितगरी और चैत्सतयक) अनसु ार, ‘तबतम्बसार के तपता ने उसका 15 विम
से चारों तरफ तघरी हुई थी, िबतक मगध की की आयु में राज्यातभिेक कर तिया था।
िसू री रािधानी पातटलीपत्रु तीन नतियों ( गिंगा,
गण्िक और सोन) से तघरी हुई थी, िो तक एक क्षबक्षमबसार‍(‍544‍ई.‍पू.‍से‍492‍ई.‍पू.)‍:-
िलिगु म का तनमामण कर रही थी।  िैन ग्रिंथों में तबतम्बसार को श्रेतणक कहा गया है।
(2) योग्य रािाओ िं की श्रख िं ला:- मगध को  तबतम्बसार ने मगध में हयमक विंि की स्थापना की
तबतम्बसार, अिातित्रु िैसे महान रािा तमले एविं तगररब्रि (रािगृह) को अपनी रािधानी
और बाि के रािा भी ितक्तिाली हुए। बनाया।
(3) लोहे के समृद्ध भड़िं ार:- लोहे के समृद्ध भििं ार
 तबतम्बसार ने अिंग की रािधानी चिंपा का उपरािा
होने के कारण मगध व्यापार वातणज्य का कें द्र
अपने पत्रु अिातित्रु को बनाया था।
बना और इसकी आतथमक तस्थतत सद्रु ण हुई।
 तबतम्बसार ने वैवातहक सबिं धिं ों के द्वारा मगध की
(4) कुिल यद्ध ु कला :- मगध ने कई प्रकार के
ितक्त में वृतद्ध की थी। तबतम्बसार द्वारा स्थातपत
नवीन अस्त्र िैसे महातिलाकिंण्टक, रथमसू ल
तकये गये वैवातहक सिंम्बध-
(अिातित्रु द्वारा) का प्रयोग तकया एविं मगध
1. तबतम्बसार ने कोसल नरे ि प्रसेनिीत की बहन
ऐसा पहला राज्य था, तिसने यद्ध ु में हातथयों का
महाकोसला से तववाह द्वारा तबतम्बसार को िहेि
प्रयोग करना प्रारिंभ तकया।
के रूप में कािी प्राप्त हुआ।
2. तबतम्बसार ने तलच्छतव गणराज्य के िासक
मगध‍का‍एक‍राज्‍य‍के ‍रूप‍में‍उत्‍कषि:-
चेटक की पत्रु ी चेलना (छे लना) से तववाह तकया,
 परु ाणों के अनसु ार मगध पर िासन करने वाला
अिातित्रु द्वारा तबतम्बसार को कारागार में रखने
पहला वि िं वृहद्रथ वि
िं था, इसका सस्िं थापक
पर यही तबतम्बसार के तलए भोिन लेकर िाती
वृहद्रथ था, लेतकन बौद्ध ग्रथों के अनसु ार मगध
थी।
का पहला विंि हयमक विंि था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
3. पििं ाब के मद्रकुल के प्रधान की पत्रु ी क्षेमा (  तबतम्बसार के बाि उसका पत्रु अिातित्रु मगध
खेमा) से तववाह तकया। के तसहिं ासन पर बैठा था। इसका अन्य नाम
‘कुतणक’ भी है इसे वैिते हपत्रु भी कहा िाता है।
 तबतम्बसार का अवतन्त (उज्िैन) के िासक चण्ि अजातित्रु‍द्वारा‍मगध‍साम्राज्‍य‍क्षवस्‍तार:-
प्रद्योत के साथ अतनणामयक युद्ध हुआ था, बाि में
िोनों में तमत्रता हो गयी थी। 1.‍ कोसल:- अिातित्रु ने सबसे पहला
 तबतम्बसार ने अपने रािवैद्य िीवक को चण्ि आक्रमण कोसल राज्य पर तकया और कोसल
प्रद्योत के पािंिू रोग (पीतलया) के उपचार के तलए रािा प्रसेनिीत को परातित तकया, िसु रे
अवतन्त ( उज्िैन) भेिा था। आक्रमण के समय प्रसेनिीत ने अपनी पत्रु ी
 तबतम्बसार को िैन एविं बौद्ध िोनों अपना वातिरा का तववाह अिातित्रु से कर तिया।
अनयु ायी बताते हैं। वास्तव में तबतम्बसार िोनों
मतों का पोिक था। 2.‍ वैिाली/‍ क्षलच्‍छवी‍ ‍ सघं ‍ से‍ यद्ध ु :-
 मगध का प्रतसद्ध वास्तक अिातित्रु ने अपने मिंत्री वस्सकार/ विमकार और
ु ार महागोतवन्ि को माना
िाता है, इसी के तनिेिन में रािधानी रािगृह का सनु ीध की सहायता से वतज्ि सिंघ के सिस्यों में
नवीन नगर के रूप में तनमामण हुआ था। फूट िालकर पहले उनकी ितक्त को कमिोर
तकया बाि में वैिाली पर आक्रमण तकया।
 इततहास में तबतम्बसार प्रथम िासक था तिसने
स्थायी सेना रखी थी।  वैिाली के तलच्छतवयों के साथ यद्ध ु में ही
अिातित्रु ने िो नए यद्ध ु तिंत्र रथमसू ल एविं
 तवनय तपटक के अनसु ार, िेवित्सत के उकसाने पर
महातिलाटिंक का प्रयोग तकया था।
अिातित्रु ने तबतम्बसार की हत्सया कर िी थी,
िबतक िैन ग्रिंथों के अनसु ार, अिातित्रु ने  आिीवक, मक्खलीगोिाल इसी यद्ध ु को िेखते
तबतम्बसार को कारागार में कै ि कर तिया था, और हुए मारे गये थे।
कारागार में तबतम्बसार ने िहर खाकर आत्समहत्सया
कर ली थी। 3.‍ मड‍ल‍ संघ:- अिातित्रु ने मल्लों पर
आक्रमण कर इसे भी मगध साम्राज्य में तमला
अजातित्रु‍(492‍ई.पू.‍से‍460‍ई.‍पू)‍:-‍ तलया।
 बौद्ध ग्रिंथों में अिातित्रु को तपतृहतिं ा कहा गया
4.‍ अवंक्षन्त:- अिातित्रु ने अवन्ती पर
है , िैन ग्रिंथों में नहीं।
आक्रमण कर इसे भी मगध साम्राज्य में तमला
तिया।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 अिातित्रु को कुल 36 गणराज्यों को नष्ट  यह िैन धमम का समथमक था िैतनयों के उपवास
करने का श्रेय तिया िाता है। रखता था, इसने पाटतलपत्रु में एक िैन चैत्सयाग्रह
 अिातित्रु ने पाटतलग्राम में एक िगु म का तनमामण का तनमामण करवाया था।
तकया था। तिसका उद्घाटन महात्समा बद्ध ु ने तकया  अवतन्त के िासक पालक द्वारा भेिे गये गप्ु तचर
था। महात्समा बद्ध ु ने भतवष्यवाणी की थी तक ने छुरा घोंप कर उितयन की हत्सया कर िी थी।
‘पाटलीपत्रु भारत का प्रधान नगर एविं व्यापार-  उितयन के बाि तीन पत्रु अतनरुद्ध, मण्ु िक एविं
वातणज्य का कें द्र बनेगा’। नागििक ने क्रमि: िासन तकया।
 अिातित्रु ने बद्धु के सामने अपने तपता की हत्सया  हयमक विंि का अिंततम िासक नागििक था। यह
का अपराध स्वीकार तकया था। अत्सयिंत तवलासी और तनबमल िासक था। इसके
 अिातित्रु ने िासनकाल के 8वें विम में गौतम िासनकाल में िनता में व्यापक असिंतोि फै ल
बद्धु के अविेिों पर स्तपू का तनमामण करवाया गया और तवद्रोह िरू ु हो गया। िनता ने योग्य
था। आमात्सय तििनु ाग को अपना रािा बनाया। मगध
 अिातित्रु की हत्सया इसके पत्रु उियन/ उितयन ने पर तििनु ाग विंि का िासन स्थातपत हुआ।
460 ई.प.ू ( लगभग 32 विम िासन) की थी।
 प्रथम बौद्ध सिंगीत:- इसका आयोिन अिातित्रु क्षििुनाग‍वंि‍(412‍ई.‍पू.‍से‍344‍ई.पू)‍
के समय में 483 ई. प.ू में रािगृह की सप्तकरणी  तििनु ाग विंि का सिंस्थापक तििनु ाग था।
गफ ु ा में हुआ था। इसके अध्यक्ष महाकसप थे।
इस सगिं ीतत में बद्ध
ु के उपिेिों को सत्सु ततपटक एविं क्षििुनाग‍(‍412‍ई.‍पू.‍से‍394‍ई.‍पू.):-‍‍
तवनयतपटक में सिंकतलत तकया गया था।  िासक बनने से पहले यह बनारस में गवमनर था।
 इसने अवन्ती राज्य को िीतकर मगध साम्राज्य
उदयन‍/‍उदयभद्र‍(460‍ई.प.ू ‍से‍445‍ई.प.ू ) तमलाया था, चिंतू क उस समय वत्सस पर अवतन्त
 इसका अन्य नाम उियभद्र तमलता है। यह का अतधकार था इसतलये अवन्ती एविं वत्सस िोनों
अिातित्रु एविं पद्मावती की सिंतान था। इसके अतधकार में आ गये।
 मगध की गद्दी पर बैठने से पहले ये चिंपा का  इसने अपने रािधानी पाटलीपत्रु से वैिाली में
उपरािा था। स्थानािंतररत की थी, इसने वैिाली की पनु :
 इसने गिंगा एविं सोन निी के सिंगम पर पाटतलपत्रु स्थापना की थी, िो इसकी मािं की िन्मस्थली
(कुसमु परु ा) नामक एक नये नगर का तनमामण थी।
करवाया एविं अपनी रािधानी को रािगृह से
पाटतलपत्रु स्थानािंतररत कर तिया।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कालािोक‍(‍394‍ई.‍प.ू ‍से‍366‍ई.‍प.ू )‍:-‍ गतणका से उत्सपन्न बताया गया है। परु ाणों में इसे
 इसका अन्य नाम काकवणम भी था। िद्रू िासक बताया गया है।
 यह अपनी रािधानी को पनु : पाटलीपत्रु ले गया
था। महापद्मानदं :-‍
 बाणभट्ट रतचत हिमचररत के अनसु ार कालािोक  परु ाणों में इसे सवमक्षत्रािंन्तक ( क्षतत्रयों का नाि
की हत्सया महापद्मानन्ि ने की थी। करने वाला), भागमव और अपरोपरिरु ाम (
 महाबोतधविंि के अनसु ार, कालािोक के पत्रु ों ने तद्वतीय परिरु ाम) कहा गया है।
मगध पर 22 विम राि तकया था।  महापद्मानन्ि ने एकच्छत्र एविं एकराट की उपातध
 तद्वतीय बौद्ध सिंगीतत:- तद्वतीय बौद्ध सिंगीतत का धारण की थी।
अयोिन 383 ई. प.ू कालािोक के िासन काल  महाबोतधविंि में इसका नाम उग्रसेन तमलता है।
में वैिाली में हुआ था। इसके अध्यक्ष  महापद्मनन्ि ने कतलिंग, कोसल, हैहय और
सब्बाकामी ( सवमकामी) थे। इस सिंगीतत में बौद्ध अश्मक पर तविय प्राप्त की थी।
धमम स्थतवर एविं महासिंतघक िो भागों में बट गया  अश्मक पर तविय प्रातप्त के उपलक्ष्य में इसने
था। सिंभवत: गोिावरी निी तट पर नवनन्ि िेहरा
 तििनु ाग विंि का अिंततम िासक नतन्िवद्यमन या (नान्िेड़) नगर का नामकरण तकया था।
महानन्िी था।  कतलिंग तविय की पतु ष्ट खारवेल के हाथी गम्ु फा
अतभलेख से होती है, महापद्मनिंि कतलिंग से
तिनसेन की प्रततमा को उठा लाया था, तिसे बाि
नदं ‍वंि‍‍(344‍ई.‍पू.‍से‍324‍ई.‍पू.)‍ में खारवेल वापस ले गया था।
राजधानी‍:-‍‍पातटलीपत्रु ‍  महापद्मानि ने कतलिंग में नहरों का तनमामण
 संस्‍थापक: महापद्मानन्ि करवाया था।
 इस विंि में कुल 9 रािा हुए, इसतलये इन्हें नवनन्ि  इसका मिंत्री कल्पक था, तिसने इसकी तवियों में
भी कहते हैं। भरपरू सहायता की थी।
 परु ाणों में नन्ि िासकों को अ-धतममक, अथमरुतच,  तविंध्य पवमत के ितक्षण में अपनी पताका फहराने
एविं नवनवततद्रव्यकोतटश्वर कहकर तनिंिा की गयी वाला वह प्रथम मगध िासक था।
है।  मििं श्रू ी मलू कल्प के अनसु ार पातणतन,
 बौद्ध ग्रिंथों में महापद्मानन्ि को अज्ञात कुल का महापद्मानिंि के तमत्र एविं िरबारी थे।
िैन ग्रिंथ पररतिष्टपवमन में नातपत िास और  निंन्ि विंि का अिंततम िासक घनानिंि था।

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घननन्‍द/‍घनानन्‍द:-‍
 यह नििं वि िं का अतिं तम िासक था।
 यनू ानी लेखकों ने इसे ‘अग्रमीि’ कहा है। परु ाणों
में इसे ‘औग्रसेन्य’ कहा गया है। इसका एक अन्य
नाम ‘ िैन्द्रीमीि’ भी तमलता है।
 इसका सैनापतत भद्दिाल था तिसे चन्द्रगप्ु त मौयम
ने परातित तकया था।
 इसके समय में तसकन्िर ने भारत पर आक्रमण
तकया था।
 नन्ि वि िं के िासक िैन धमम के उपासक थे।
 घनानििं के िैन आमात्सय िकटाल तथ स्थल ू भद्र
थे।
 मद्रु ाराक्षस के अनसु ार, नन्ि विंि के तवनाि में िैन
धमम की भतू मका थी।
 चन्द्रगप्ु त मौयम ने चाणक्य की सहायता से
घनानन्ि के सेनापतत भद्दिाल को परातित तकया
एविं घनानन्ि को मार कर मगध में मौय वि िं की
स्थापना की।

अन्‍य‍महत्‍वपण ू ि‍तथ्‍य:-‍
 विम, उपविम, वारुची, कात्सयायन एविं पतणतन िैसे
तवद्वान निंि विंि काल में थे।
 नन्ि विंि के िासकों ने माप की नई प्रणाली
निंिोपक्रमतनमानातप चलायी थी।
 नन्िविंि पहला विंि था तिसने बड़े पैमाने पर
आहत तसक्के िारी तकये थे।
 नन्ि विंि ने प्रथम वृहत मगध साम्राज्य की
स्थापना की थी। इन्होनें पाटतलपत्रु को समस्त
उत्सतर भारत का कें न्द्र बना तिया था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भारत‍पर‍क्षवदेिी‍आक्रमण
भारत पर सबसे पहला तविेिी आक्रमण पतिमया के  भारत में अतभलेख उत्सकीणम करने की प्रथा
ह्खामनी (ईरानी) िासक ने तकया और इनके बाि आरिंम्भ हुई।
िसू रा आक्रमण यनू ातनयों ने तकया था।
 ईरातनयों की क्षत्रप प्रणाली को भारत के िक एविं
कुिाण िासकों ने अपनाया था।
पारसी/‍ईरानी/‍हखामनी‍आक्रमण:-‍‍
 भारत पर आक्रमण करने वाला पहला ईरानी यूनानी‍आक्रमण‍(‍मकदूक्षनयाई‍आक्रमण):-‍
िासक साइरस- II ( कुरुि) था परिंतु इसका
 ईरान के बाि मकितू नया तनवासी तसकन्िर ने
आक्रमण असफल रहा।
भारत पर आक्रमण तकया। तसकन्िर ने भारत पर
 िेररयस- I (िारा) ने 516 ई. प.ू में भारत पर 326 ई. प.ू में आक्रमण तकया था। तसकन्िर के
आक्रमण तकया और तसिंधु निी के तटवती भ-ू आक्रमण के समय मगध पर नन्ि विंि के िासक
भाग सतहत कम्बोि एविं गािंधार पर अतधकार कर धनानन्ि का िासन था। तसकन्िर के साथ
तलया था। तनयाकम स( िलसेना अध्यक्ष), आनेतसक्टस और
 िेररयस- I के तीन अतभलेख तमले हैं। बेतहस्तनू , अररस्टोवल्ु स आये थे। तसकन्िर का सेनापतत
पतिमपोतलस, नक्ि-ए-रुस्तम तिसमें पतिमपोतलस सेल्यकू स तनके टर था।
और नक्ि-ए-रुस्तम में भारत पर आक्रमण का  326 ई.प.ू में तसकन्िर ने खैबर िरे से तसिंधु निी
उल्लेख है। को पार कर भारत की धरती पर किम रखा।
 िरकतसस इस ईरानी रािा ने यनू ातनयों के  तक्षतिला के िासक आम्भी ने आत्समसमपमण कर
तखलाफ भारतीयों को अपनी फौि में िातमल तसकन्िर की सहायता करने का वचन तिया।
तकया ( ध्यातव्य है तक हॉलीवुि की प्रतसद्ध
 तहन्िक
ु ु ि के िासक ितिगप्ु त ने भी
तफल्म ‘300’ में ईरानी रािा के रूप में इसी
आत्समसमपमण कर तिया था।
िरकतसस को तिखाया गया है।)
 झेलम/ तवतस्ता/ हाइिेस्पीि का यद्ध ु :-
 ईरान में इस विंि की रािधानी पतसमपोलस थी।
 यह यद्धु झेलम निी के तट पर पौरव / परुु / पोरस
तथा तसकन्िर के मध्य हुआ, इसमें परुु परातित
आक्रमण‍का‍प्रभाव‍:-‍
हुआ।
 भारत का पतिम के साथ सिंम्बध सदृु ढ हुआ।
 पोरस की वीरता से प्रसन्न होकर तसकन्िर ने
 तविेिी व्यापार को बल तमला।
पोरस का राज्य लौटा तिया एविं परुु से तमत्रता कर
 खरोष्ठी तलतप का िन्म अरमेइक तलतप की ली।
सहायता से।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 पोरस से यद्ध ु िीतने के बाि तसकन्िर आगे बढ़ा क्षसकन्‍दर‍‍द्वारा‍स्‍थाक्षपत‍नगर:-‍‍
तकिंन्तु तसकन्िर की सेना ने व्यास निी पार करने  तनकै या (तविय नगर)
से माना कर तिया।  बक ु े फाल/ बऊके फला ( झेलम के तट पर अपने
 तसकन्िर के भारत आक्रमण के समय अश्वक घोड़े की याि में)
राज्य (मसग) में सारे परुु िों के मारे िाने के बाि  तसकन्िररया नगर की स्थापना।
वहािं की मतहलाओ िं ने रानी तकलओतफस के
नेतत्सृ व में तसकन्िर से यद्ध
ु तकया था, तसकन्िर ने क्षसकन्‍दर‍की‍वापसी:-‍‍
सारी मतहलाओ िं को मरवा तिया था, यहीं से  तसकन्िर भारत में 19 महीने रहा
तसकन्िर को करीब ढाई लाख बैल प्राप्त हुए थे  तसकन्िर ने अपने तवतित प्रिेिों को चार
तिन्हें तसकन्िर ने अपने िेि यनू ान भेि तिया था। प्रिासतनक इकाईयों में बाटिं तिया और वापस
 आगालासोई िातत के लोगों ने तसकन्िर के चला गया, रास्ते में ही 323 ई. पवू म में तसकन्िर
सामने समपणम नहीं तकया और अपने बीवी बच्चों की मृत्सयू बेबीलोन में हो गई।
सतहत आग में कूिकर िान िे िी, इस घटना को
िौहर प्रथा का पवू ामनगु ामी माना िा सकता है। यूनानी‍आक्रमण‍का‍प्रभाव‍:-‍
 तसकन्िर की भारत में अिंततम तविय:- पटलेन  भारत में यनू ानी मद्रु ाओ िं की तरह उलक
ू िैली के
(पाटल) राज्य पर थी। तसक्के ढाले गये।
 गािंधार कला पर यनू ानी कला का प्रभाव स्पष्ट
क्षसकन्‍दर‍‍के ‍क्षवक्षजत‍प्रदेिों‍की‍प्रिासक्षनक‍ रूप से तिखाई पड़ता है।
इकाईयां:-
 भारत में यनू ानी िब्िों का प्रचलन प्रारिंभ हुआ,
 तसन्धु के उत्सतरी एविं पतिमी भागों का क्षत्रप िैसे नाटक के पिे को यवतनका कहा िाने लगा
तफतलप को तनयक्ु त तकया। एविं काली तमचम को यवनतप्रय कहा िाने लगा।
 तसन्धु तथा झेलम के बीच का भ-ू भाग का िासन  तसकन्िर के आक्रमण से 4 तभन्न-तभन्न स्थल
आम्भी को सौंप तिया। मागम एविं िलमागों के द्वार खुले।
 झेलम के पवू ी भाग से व्यास निी तक का क्षेत्र  पतिमोत्सतर भारत के अनेक छोटे-छोटे राज्यों का
पोरस को सौंप तिया। एकीकरण हुआ।
 तसिंधु निी के तनचले भाग पर तपथोन को क्षत्रप  प्राचीन यरू ोप को भारत के सपिं कम में आने का
तनयक्ु त कर तिया । अवसर तमला।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

मौयि‍काल (322‍ई.प.ू ‍से‍184‍ई.‍पू.)‍


कौक्षटड‍य‍की‍अथििास्‍त्र
मौयम सम्राज्य भारत का पहला कें द्रीय साम्राज्य था,
 मौयों का इततहास िानने के तलए सातहतत्सयकों
यह साम्राज्य पवू म में मगध में गगिं ा निी के मैिानों से स्त्रोतों में सबसे महत्सवपूणम तववरण कौतटल्य का
प्रारिंभ हुआ, और तेिी से पतश्चम की तरफ अपने क्षेत्र अथमिास्त्र है।
का तवस्तार तकया। चिंद्रगप्ु त मौयम ने कई छोटे-छोटे  अथमिास्त्र, रािनीतत और लोक प्रिासन पर तलखी
क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेिों का फायिा उठाया, गई पहली प्रमातणक पस्ु तक है।
316 ई.प.ू तक मौयम विंि ने परू े उत्सतरी पतिमी भारत  अथमिास्त्र में कुल 15 अतधकरण ( चैप्टर) तथा
पर अतधकार कर तलया था, सवामतधक सम्राज्य 6000 श्लोक हैं। ‍
तवस्तार सम्राट अिोक के समय में हुआ।  िा. िाम िास्त्री ने सवमप्रथम 1905 में मैसरू
सग्रिं हालय से खोिा और उसके बाि 1906-1909
मौयि‍इक्षतहास‍के ‍स्रोत:- तक उन्होंने इसका अिंग्रेिी अनवु ाि ‘इतिं ियन
एिंटीक्वेरी’ व ‘मैसरू ररव्य’ू में प्रकातित करवाया।
 क्षविाखदत्‍त‍की‍मुद्रारािस:- इसमें कौतटल्य
 इसकी िैली उपिेिात्समक और सलाहात्समक है।
की योिनाओ िं का उल्लेख है तक कै से उसने निंि
 कौतटल्य को भारत का मैतकयावेली भी कहा िाता
वििं की सत्सता को उखाड़ फें का। है।
 बौद्ध ग्रथिं िीपवि िं एविं महावि
िं , तिव्यवािान एविं
तमतलन्िप् न्हो मेगस्‍थनीज‍की‍इक्षं िका
 िैन ग्रिंथ: कल्पसत्रू  मेगस्थनीि सेल्यक ू स का रािितू था, िो चिंद्रगप्ु त
 तवष्णपु रु ाण मौयम के िरबार में 304 ई. प.ू से 299 ई.प.ू तक रहा,
उसके ग्रिंथ इतिं िका से चिंद्रगप्ु त मौयम के प्रिासन की
 पतिंितल का महाभाष्य
िानकारी प्राप्त होती है।
 सिंगमकालीन सातहत्सय: अहनारूर एविं परणार  यह ग्रिंथ अपने मल ू -रूप में उपलब्ध नहीं है, तफर भी
 क्षेमेन्द्र की वृहत्सकथामिंिरी इसके उद्धरण अनेक यनू ानी लेखकों एररयन, स्रैबो,
 सोमिेव की कथासररत्ससागर प्लटू ाकम , तप्लनी, ितस्टन एविं िायोिोरस के ग्रिंथों में
प्राप्त होते हैं।
 अिोक के अतभलेख
 िा. स्वान वेग ने सवमप्रथम 1846 में इन समस्त
 रुद्रिामन का िनू ागढ़ अतभलेख उद्धरणों को सिंग्रहीत करके प्रकातित करवाया।
 चन्द्रगप्ु त मौयम का सोहगौरा लेख  1891 में मैतक्रण्िल महोिय ने इसका अिंग्रेिी में
 महास्थान लेख अनवु ाि तकया।
 कौतटल्य की अथमिास्त्र

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
मौयि‍वि
ं ‍(322‍ई.प.ू ‍–‍184‍ई.प.ू )‍  1793 ईस्वी में सर तवतलयम िोन्स ने रॉयल
 स्‍थापना:- चन्द्रगप्ु त मौयम एतियातटक सोिायटी के सम्मख ु बताया तक ये
 राजधानी:- पाटतलपत्रु तीनों नाम चिंद्रगप्ु त मौयम के ही हैं।
 अंक्षतम‍िासक: वृहद्रथ
 राजक्षचह्र: मयरू ‍चंद्रगुप्‍त‍मौयि‍की‍उपाक्षधया:ं -‍
 पाटलीपत्रु
चंद्रगुप्‍त‍मौयि‍(322‍ई.‍पू.‍से‍298‍ई.‍पू.):-‍‍‍  प्रथम भारतीय साम्रज्य का सस्िं थापक
 मौयि‍कौन‍थे‍-‍  भारत का प्रथम एततहातसक सम्राट
 िूद्र: ब्राह्मण ग्रथिं , मद्रु ाराक्षस के अनसु ार  भारत का मतु क्तिाता / भारतीय स्वतिंत्रता सिंग्राम
 िक्षत्रय: बौद्ध एविं िैन ग्रथिं इसे मोररय क्षतत्रय विंि का प्रथम नायक: िेि को मकितू नयाई िासता से
से सिंम्बोतधत करते हैं। इसके अलावा लौरीया मक्ु त कराने के कारण।
निंिनगढ़ के स्तिंभ के नीचे मयरू की आकृ तत
उत्सकीणम है तिससे इस मत की पतु ष्ट होती है। चन्‍द्रगप्ु ‍त‍मौयि‍का‍प्रारंक्षभक‍जीवन:-‍
 पारसीक: स्पनू र का मत  चाणक्य की चन्द्रगप्ु त मौयम से प्रथम भेंट
तवन्ध्याचल के ििंगलों में हुई थी, उस समय
 मान्‍य‍मत: अतधकािंि इततहासकारों ने चिंद्रगप्ु त
चिंन्द्रगप्ु त ‘रािकीलम’ खेल खेल रहा था।
मौयम को क्षतत्रय माना है।
 चाणक्य ने चिंद्रगप्ु त को 1000 कािामपण में
 मद्रु ाराक्षस में चद्रिं गप्ु त मौयम को धनानन्ि का पत्रु
खरीिा था एविं उसको तिक्षा िीक्षा के तलए
बताया है, और इसे बृिल और कुलहीन कहा
तक्षतिला भेिा था।
गया है।
 चिंद्रगप्ु त नाम का प्रथम अतभलेखीय साक्ष्य
चंद्रगुप्‍त‍मौयि‍की‍राजनैक्षतक‍उपलक्षब्‍धयां:-‍
रुद्रिामन का िनू ागढ़ अतभलेख है।
 मगध‍पर‍आक्रमण:- चन्द्रगुप्त मौयम ने सबसे
पहले मगध पर आक्रमण तकया परिंन्तु परातित
चंद्रगुप्‍त‍मौयि‍के ‍अन्‍य‍नाम:-‍‍
हुआ।
1.‍ सैन्रकोट्स:‍ मेगास्थनीि, स्रैबो, एररयन एविं
ितस्टन ने चिंद्रगप्ु त मौयम को सैड्रकोट्स कहा।
2.‍ एरं ोकोप्‍टस: इसका प्रायोग एतप्पयानस और  उत्‍तर‍पक्षिम‍सीमा‍क्षवजय:- परातित होने के
प्लटू ाकम ने तकया। बाि, चिंन्द्रगप्ु त मौयम ने मगध के उत्सतर-पतिमी
3. सैन्र‍ ोकोप्‍ट्स‍: इस नाम का प्रयोग तनयाकम स ने राज्यों पर आक्रमण तकया और पििं ाब एविं तसधिं
तकया है। पर तविय प्राप्त की।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 सम‍पूणि‍ भारत‍ क्षवजय:- प्लटू ाकम के अनसु ार
 मगध‍ की‍ क्षवजय:- चन्द्रगप्ु त मौयम ने पवमतक चद्रिं गप्ु त मौयम ने 6 लाख की सेना लेकर सपिं णू म
नामक रािा से सहायता लेकर मगध के सेनापतत भारत को रौंि िाला। महाविंि में चिंद्रगप्ु त मौयम को
भद्दसाल को परातित तकया और मगध पर तविय सकल िम्बिू ीप का िासक बताया गया है।
प्राप्त की इस तविय के बाि 322 ई. प.ू में मद्रु ाराक्षस के अनसु ार, चिंद्रगुप्त का साम्राज्य
चन्िं द्रगप्ु त मौयम भारत का सम्राट बना। चत:ु समद्रु पयंत था। चनद्रगप्ु त का अतधकार
सौराष्र पर था इसकी पतु ष्ट रुद्रिामन के िनू ागढ़
 सेड‍यक ू स‍ से‍ युद्ध:- तसकिंिर का सेनापतत अतभलेख से होती है। चन्द्रगप्ु त के ितक्षण भारत
सेल्यक
ू स बेबीलोन का रािा बना एविं बैतक्रया पर अतधकार की पतु ष्ट सिंगमकालीन ग्रथिं
पर तविय प्राप्त की, भारत तविय की लालसा से अहनारूर से होती है।
सेल्यकू स भारत की ओर बढ़ा एविं तसिंधु निी पार
की यहािं उसका सामना चिंन्द्रगप्ु त मौयम से हुआ,  चंन्‍द्रगुप्‍त‍के ‍साम्राज्‍य‍की‍सीमांए:- पतिम में
इसमें सेल्यक ू स की परािय हुई। 303 ई.प.ू तहििं क
ु ु ि पवमत से लेकर परू ब में बगिं ाल तक। उत्सतर
सेल्यक ू स तनके टर एविं चिंद्रगप्ु त मौयम के मध्य एक में कश्मीर से लेकर ितक्षण में मैसरू ( कनामटक)
सिंतध हुई, ‘ यह भारत के इततहास की प्रथम तक चिंद्रगप्ु त मौयम पहला सम्राट था तिसने ितक्षण
अिंतरामष्रीय सिंतध है’ भारत पर तविय प्राप्त की थी।
 चिंद्रगप्ु त एक प्रिातहतैिी िासक था, इसके
महास्थान लेख एविं सोहगौरा लेख से ज्ञात होता
सतिं ध की ितें:- है तक यह पहला िासक था, तिसने अकाल से
 सेल्यक ू स ने अपनी पत्रु ी ‘हेलना’ का तववाह तनपटने के हेतु अन्नागार (राितनिंग प्रणाली)
चद्रिं गप्ु त मौयम के साथ तकया। स्थातपत की।
 चद्रिं गप्ु त मौयम को 4 प्रातिं :- एररया ( हेरात),
अराकोतिया ( किंधार), िेड्रोतिया ( मकरान चंद्रगुप्‍त‍मौयि‍का‍अंक्षतम‍समय:-‍
तट), एविं पेरीपेतनििाई (काबुल) िहेि में प्राप्त  िीवन के अिंततम विों में चिंद्रगप्ु त मौयम ने िैन धमम
हुए। स्वीकार कर तलया था। िैन ग्रथिं रािाबली कथा
 चिंद्रगप्ु त ने सेल्यकू स को 500 हाथी तिये थे। के अनसु ार, चिंद्रगप्ु त मौयम अपने बेटे तसिंहसेन
 सेल्यक ु स तनके टर ने मेगास्थनीि को चिंद्रगप्ु त (तबन्िसु ार) के तलए राितसिंहासन का त्सयाग कर
मौयम के िरबार में अपना रािितू था। अपने गरुु भद्रबाहु के साथ मैसरू आ गया था।
यहािं मैसरू में श्रवणबेलगोला में चद्रिं गप्ु त मौयम ने
सिंलेखना पद्धतत द्वारा अपने प्राण त्सयाग तिये थे।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
क्षबन्‍दुसार‍(298‍ई.पू.‍से‍273‍ई.पू.)‍:-  तबिंिसु ार ने सीररया के िासक एिंतटयोकि प्रथम
 पररचय:- यह चिंद्रगप्ु त मौयम और िधु मरा की को एक पत्र तलख कर तीन वस्तओ ु िं की मागिं की
सतिं ान था। थी-
 अन्‍य‍नाम:- इसके कई नाम तमलते हैं- 1. अिंगरू ी मतिरा
 क्षसंहसेन: कन्नड़ िैन ग्रिंथ रािा बली कथा में 2. सख ू े अिंिीर
3. एक सोतफस्ट ( िािमतनक)
 अक्षमत्रघात: पतिंितल के महाभाष्य में
 सीररया के िासक ने िािमतनक को छोड़कर
 भद्रसार: वायु परु ाण में
अिंगरू ी मतिरा एविं सख ू े अिंिीर तबिंिसु ार के पास
 बाररसार:‍परु ाणों में
भेि तिये थे।
 अक्षमत्रचेट्स/‍अक्षमत्रोके िीज: यनू ातनयों द्वारा  प्राचीन काल में सबसे बड़ी मिंत्रीपररिि तबिंिसु ार
 सािंची के एक अतभलेख में तबिंिसु ार का नाम की थी।
तमलता है।
 तबििं सु ार ब्रह्मण धमम का अनयु ायी था साथ में वह
धमम सतहष्णु भी था।
मुख्‍य‍तथ्‍य:-
 तबिंिसु ार के िरबार में तपिंगलवत्सस नामक
 पहले ‘चाणक्य’ तबिंिसु ार का प्रधानमिंत्री था इसके
आिीवक रहता था।
बाि ‘खल्लटक’ प्रधानमिंत्री बना।
 तक्षतिला में िनता ने तवद्रोह तकया वहा का सम्राट‍अिोक‍(273‍ई.प.ू ‍से‍236‍ई.‍प.ू )
गवनमर ससु ीम था िो तवद्रोह को िबा न सका
 अिोक, तबििं सु ार एविं सभु द्रागिं ी की सतिं ान था।
इतसतलये तबन्िसु ार उज्िैन के गवनमर अिोक को
सभु द्रािंगी के अन्य नाम धम्मा, धमाम, पासातिका
तवद्रोह िबाने के तलए तक्षतिला भेिा था।
एविं िनपि कल्याणी भी तमलते हैं।
 अिोक ने खस एविं नेपाल में व्याप्त अरािकता अिोक‍के ‍नाम:-‍
को भी िातिं तकया था।
 अिोकवद्धिन: तवष्णु परु ाण में
 सीररया के िासक एतिं टयोकि ने ‘िामेकस’ को
 बुद्ध‍िाक्‍य: मास्की अतभलेख में
तबिंिसु ार के िरबार में रािितू के रूप में तनयक्ु त
 मगधाक्षधराज: भ्राबू अतभलेख में
तकया था।
 देवानांक्षपय‍क्षप्रय‍ दिी‍: रुतम्मनिेई एविं तगरनार
 तमस्र के िासक टॉलमी तद्वतीय तफलािेल्फस ने
लेख में
‘िायनोतसस’ नामक रािितू को तबिंिसु ार के
िरबार में भेिा था।  अिोक: मास्की, गिु मरा, नेत्सतुर और उिेगोलन
अतभलेख में
 क्षप्रय‍ दिी: भब्रू अतभलेख, किंधार अतभलेख में

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 देवनांक्षप्रय‍ : 12वें और 13 वें तिलालेख में  कुणाल‍एवं‍महेंद्र: इन िो का नाम बौद्ध ग्रिंथों में
 धमाििोक: गहड़वाल रानी कुमारिेवी के तमलता है।
सारनाथ लेख में।  जलौक: इसका नाम राितरिंतगणी में तमलता है।
 राक्षसलेउस: यनू ानी अतभलेखों में  तीवर: इसके नाम का उल्लेख प्रयाग स्तिंभ लेख
में इसकी मािं कारुवाकी के साथ तमलता है।
अिोक‍की‍पक्षत्नयां:-‍
 महादेवी: अिोक की पहली पत्सनी, महेन्द्र और आिोक‍का‍राज्‍याक्षभषेक:-‍‍‍
सिंघतमत्रा की मािं  अिोक, तबिंिसु ार के समय अवतन्त (उज्िैन) का
 कारुवाकी: तीवर की मािं, कारुवाकी का नाम गवनमर था।
आिोक के प्रयाग स्तभिं लेख में प्राप्त होता है।  तबििं सु ार की मृत्सयु के बाि अिोक 273 ई. प.ू में
 क्षतष्‍ट‍यरक्षिता: इसी के कारण बोतधवृक्ष को हातन राधागप्ु त की सहायता से गद्दी पर बैठा।
पहुचिं ी।  अिोक 4 विम तक सत्सता प्रातप्त के तलए ससु ीम
 असंक्षधक्षमत्रा‍ से सिंघिम करता रहा।
 पद्मावती: कुणाल की मािं  अिोक का तवतधवत राज्यातभिेक गद्दी पर बैठने
के 4 विम बाि 269 ई. प.ू में हुआ था।
अिोक‍के ‍भाई:-‍‍  बौद्ध ग्रिंथों के अनसु ार, अिोक ने अपनी
 तिव्याविान में अिोक के िो भाई सुसीम एविं तवमाताओ िं से उत्सपन्न 99 भाईयों की हत्सया करके
तवगतािोक (ततष्य) का उल्लेख तमलता है। गद्दी प्राप्त की थी। ( ये बात इतसतलये सत्सय प्रतीत
 बौद्ध ग्रथिं ों में तबििं सु ार के 101 पत्रु ( अिोक के नहीं होती क्योंतक अिोक ने अपने पािंचवें
100 भाई) बताये हैं। तिलालेख में अपने िीतवत भाईयों एविं पररवार
 सत्सता का सिंघिम अिोक एविं सुसीम के मध्य हुआ का उल्लेख तकया है।)
था। बौद्ध ग्रिंथों के अनसु ार सुसीम, तबिंिसु ार का कक्षलंग‍का‍युद्ध‍(‍261‍ई.पू):-‍
सबसे बड़ा पत्रु था।  यह यद्ध ु अिोक के राज्य प्रातप्त के 13वें विम
अिोक‍की‍पुक्षत्रयां:- एविं राज्यातभिेक के 9वें विम ( 8 विम बाि)
हुआ था।
 बौद्ध ग्रथिं ों में अिोक की िो पतु त्रयािं- सघिं तमत्रा एविं
 िासक बनने के बाि अिोक ने के वल एक ही
चारुमतत का नाम तमलता है, चारुमतत, रुतम्मनिेई यद्धु (कतलिंग यद्ध ु ) तकया था। यही यद्ध
ु प्रथम
यात्रा के समय अिोक के साथ थी। एविं आतखरी था।
अिोक‍के ‍पत्रु :-‍  निंि विंि के पतन के बाि कतलिंग स्वतिंत्र हो गया
था, सरु क्षा की िृतष्ट से किंतलिंग को िीतना

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
आवश्यक था, रोतमला थापर का मत है तक ‘ सत्सयवातिता, पतवत्रता, मृितु ा, साधतु ा और
अिोक की निर समृद्ध व्यापार पर थी’। ितु चता बताया है।
 कतलगिं यद्ध
ु का उल्लेख अिोक के 13वें  अिोक ने अपने तीसरे स्तिंभलेख में 5 आसीनव
तिलालेख ( िाहबािगढ़ी रािाज्ञा) में तमलता ( पाप) बताए हैं- चण्िता, तनष्ठुरता, क्रोध,
है।
घमण्ि और ईष्याम ये धम्म के मागम में बाधक है।
 कतलिंग यद्धु में हुए भीिण नरसिंहार और
तवतित तकए गये िेि की िनता के कष्ट ने  अिोक ने अपने 12वें तिलालेख में धम्म की
अिोक को झकझोर कर रख तिया था। सारवृतद्ध पर िोर तिया है।
 इस यद्धु के बाि अिोक ने यद्ध
ु की नीतत को  धौली तिलालेख के अनसु ार धम्म का आििम ‘
त्सयाग तिया। रािा का तपता तल्ु य होना था’। 12वें तिलालेख
के अनसु ार धम्म का लक्ष्य – सभी सम्प्रिायों में
सार वृतद्ध था’।
अिोक‍का‍धमि‍पररवतिन:-‍  ब्रह्मतगरी, तसद्धपरु एविं ितटिंगरामेश्वर लघु
 अिोक प्रारिंभ में ब्राह्मण धमम का अनयु ायी था। तिलालेख में धम्म का सारािंि तिया गया है।
कल्हण की राितरिंतगणी के अनसु ार िैव धमम का
उपासक था। कतलगिं यद्ध ु के बाि वह बौद्ध हो क्षवक्षभन्‍न‍क्षवद्वानों‍का‍धम‍म‍पर‍मत:-‍
गया था।  फ्लीट‍महोदय:‍इन्होनें धम्म को एक रािधमम
 अिोक अपने भाई ससु ीम के पत्रु तनग्रोथ के माना है।
प्रवचन सनु कर बौद्ध धमम से प्रभातवत हुआ बाि  राधाकुमदु ‍ मख ु जी: धम्म को सभी धमों की
में मोगलीपत्तु ततस्स के प्रभाव से बौद्ध धमम साझी सिंपतत्त बताया
अपनाया।  मैकिे ल: बौद्ध धमम से प्रभातवत तहन्िु धमम
 उपगप्ु त ने अिोक को बौद्ध धमम की िीतक्षत  रोक्षमला‍थापर: प्रिासतनक तहतों को ध्यान में
तकया था। रखकर आिोक द्वारा तकया गया एक तनिी
अतवष्कार
अिोक‍का‍धम‍म:-‍  नीलकंठ‍िास्‍त्री: नैततक व्यवहार सिंतहता
 अिोक अपनी तवियों के कारण नहीं बतल्क  िी.‍आर.‍भण्‍िारकर: उपासक बौद्ध धमम
अपने धम्म के कारण इततहास में प्रतसद्ध हैं।
 अिोक ने अपने िसू रे स्तिंभ लेख में धमम का अथम ‍धम‍म‍का‍प्रचार:-‍‍
– अल्प पाप, अत्सयातधक कल्याण, िया- िान, अिोक ने धम्म के प्रचार के तलए कई िेिों में धमम
प्रचारक भेिे थे िो अग्रतलतखत हैं-

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
धम‍म‍प्रचारक‍ देि‍ अतभलेखों को पढ़वाने का असफल प्रयास तकया
महेंद्र एविं सिंघतमत्रा श्रीलिंका था।
मज्झातन्तक कश्मीर तथा गधिं ार  अिोक के अतभलेखों में एकमात्र लेखक
महारतक्षत यनू ान ‘चापड़’ का नाम तमलता है।
महाधममरतक्षत महाराष्र  अिोक के लेख सवामतधक सिंख्या में कनामटक एविं
महािेव मतहिमिंिल ( मैसरू ) आिंध्रप्रिेि से तमले हैं।
रतक्षत बनवासी (कनामटक)  अिोक के तिलालेखों की भािा प्राकृ त है िो
धममरतक्षत अपरान्तक चार तलतपयों – ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरामाइक एविं
मतज्झम तहमालय िेि यनू ानी में तलखे गये हैं।
सोन तथा उत्सतरा सवु णम भतू म  अिोक के स्तिंभलेखों एविं गुहालेखों में प्राकृ त
 महेंद्र को मोगलीपत्सु तततस्स ने बौद्ध धमम मे िीतक्षत भािा एविं के वल ब्राह्मी तलतप का प्रयोग हुआ है।
तकया था।  िी.आर. भण्िारकर महोिय ने के वल अतभलेखों
 महेंद्र ने श्रीलिंका के रािा ततस्स को बौद्ध धमम में के ही आधार पर अिोक का इततहास तलखने का
िीतक्षत तकया था, ततस्स ने िेवानािंतपय की उपातध प्रयास तकया।
धारण की थी।
 ततस्स ने अपने भतीिे अररट्ट के नेतत्सृ व में एक अिोक‍के ‍क्षिलालेख
तिष्टमिंिल अिोक के पास भेिा था। अिोक के अतभलेखों का तवभािन 3 प्रकार के लेखों
में तकया िाता है-
अिोक‍के ‍अक्षभलेख 1.‍क्षिलालेख‍
 अिोक के अतभलेखों को सबसे पहले 1750 ई. 2.‍स्‍तंभलेख‍
में तट.फै न्थेलर ने खोिा था, इन्होंनें सवमप्रथम 3.‍गुहालेख
तिल्ली- मेरठ अतभलेख खोिा था।
 अिोक के अतभलेखों को सवमप्रथम 1837 में 1.‍क्षिलालेख:-
कलकत्सता टकसाल के अतधकारी एविं इसको वृहि् तिलालेख एविं लघु तिलालेख िो भागों
एतियातटक सोसायटी के सतचव िेम्स तप्रसेंप ने में बािंटा िाता है।
पढ़ा था, इन्होंने सवमप्रथम तिल्ली- टोपरा यह‍14‍क्षवक्षभन्‍न‍लेखों‍का‍समूह‍है‍जो‍8‍अलग-
अतभलेख को पढ़ा था। अलग‍स्‍थानों‍से‍प्राप्‍त‍हुए‍हैं-
 िम्स-ए-तसराि अफीक के अनसु ार सवमप्रथम
तफरोि तगु लक ने तिल्ली के ब्राह्मणों से  प्रथम‍क्षिलालेख: िीव हत्सया/ पिु हत्सया तनिेध

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 क्षद्वतीय‍ क्षिलालेख: मानव एिंव पिु िोनों के पाण्ि्य, सततयपतु , के रलपत्रु , एविं ताम्रपतणम तक
तलए तचतकत्ससा का प्रबधिं , चोल, चेर, पाण्ि्य, हो चकु ी है।
सतीयपतु एविं ताम्रपतणम का वणमन।  चौदहवां‍ क्षिलालेख: अपने तिलालेखों में
 तृतीय‍क्षिलालेख: यक्ु त, रज्िक ु एविं प्रािेतिक तलखवाई गयी बातों का तिक्र एविं आगे भी
अतधकाररयों का उल्लेख तलखवाते रहने की सिंभावना व्यक्त की गयी है।
 चतुथि‍ क्षिलालेख: धम्मनीतत के कारण  धौली एविं िौगढ़ अतभलेखों में 11,12 एविं 13
धमामनि ु ान में वृतद्ध का उल्लेख क्रम सिंख्या का लेख नहीं है इसकी िगह िो
 पांचवां‍ क्षिलालेख‍ : धम्ममहामात्रों की पृथक लेख हैं-
तनयतु क्त का उल्लेख
 छठवां‍ क्षिलालेख‍ :‍ प्रततवेिकों को प्रिा के प्रथम‍पथ
ृ क‍लेख:‍
तविय में तरु िं त सचू ना िेने का आिेि इसमें अिोक कहता है तक सभी मनष्ु य मेरी
सिंतान है।
 सातवां‍ क्षिलालेख: सभी सम्प्रिायों के मानने
क्षद्वतीय‍पृथक‍लेख:-‍
वालों के प्रतत सद्भावना का सिंिि े
इसमें अिोक कहता है तक सभी मनष्ु य मेरी प्रिा है,
 आठवां‍क्षिलालेख: अिोक की धम्म यात्राओ िं
इसमें अिोक सीमािंत प्रिेिों की अतवतित िाततयों
का उल्लेख
को कहता है तक वह सम्राट से िरें नहीं उनमें तवश्वास
 नौवां‍ क्षिलालेख: धम्ममिंगल को सवमश्रेष्ठ रखें।
घोतित तकया गया है।
 दसवां‍ क्षिलालेख: यि और कीततम की िगह
धम्म पालन पर बल
 ग्‍यारहवां‍ क्षिलालेख: धम्मिान को सवमश्रेष्ठ
घोतित तकया गया।
 बारहंवा‍ क्षिलालेख‍ : अिोक की धातममक
सतहष्णतु ा को ििामता है। स्त्रयाध्यक्षों एविं
ब्रिभतू मकों की तनयतु क्त का उल्लेख
 तेरहवां‍ क्षिलालेख:‍ कतलिंग यद्ध ु का वणमन,
आटतवक िनिाततयों को धमकी, इसमें अिोक
यह भी बताता है तक उसकी धम्म तविय पािंच
यवन रािाओ िं और ितक्षण के पाचिं राज्यों चोल,

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 8‍स्‍थान‍जहां‍से‍यह‍14‍दीघि‍क्षिलालेख‍क्षमले‍
हैं।‍‍
वृहद‍क्षिलालेख‍ प्राक्षप्‍त‍स्‍थल खोजकताि‍
तगररनार तिलालेख िनू ागढ़ ( गिु रात) कनमल टाि
िाहवािगढ़ी पेिावर ( पातकस्तान) िनरल कोटम
मनसेहरा तिलालेख हिारा ( पातकस्तान) कतनिंघम
सोपारा तिलालेख थाणे (महाराष्र) .................
एरम गिु ी तिलालेख कुनमल ू (आिंध्र प्रिेि) अणघु ोि
कालसी तिलालेख िेहरािनू ( उत्सतराखिंि) फोरे स्ट
िौगड़ तिलालेख गिंिाम ( ओतििा) वाल्टर इतलयट
धौली तिलालेख परु ी (ओतििा) तकटो

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B. लघ‍ु क्षिलालेख:-‍‍
लघ‍ु क्षिलालेख‍ प्राक्षप्त‍स्‍थान‍ क्षविेष‍
भ्राब/ू बैराट ियपरु (रािस्थान) अिोक का नाम तप्रयििी तमला है। बौद्ध धमम के
तत्ररत्सन – बद्ध
ु , धम्म, एविं सिंघ का उल्लेख। इसमें 7
बौद्ध पस्ु तकों की सचू ी िी गयी है।
मास्की रायचरू (कनामटक) अिोक का नाम तमला है। सबसे पहले इसी
अतभलेख में अिोक नाम पढ़ा गया था। इसी
तिलालेख में अिोक ने अपने आप को ‘ बद्ध ु
िाक्य’ कहा है। इसे वीिेन ने खोिा था।
ब्रह्मतगरर तचत्सतलिगु म ( मैसरू )
तसद्धपरु कनामटक
एरम गतु ि कुनमलु , आध्रिं प्रिेि इस अतभलेख की लेखन िैली अन्य तिलालेखों
से तभन्न है- बािंये से िािंए एविं िायें से बायें
(बस्ू रोफे िन)
गोतवमठ मैसरू
अहरौरा तमिामपरु ( उत्सतर प्रिेि)
सारोमारो िहिोल ( मध्य प्रिेि)
नेत्सतरू मैसरू अिोक का नाम तमलता है
पनगिु ररया सीहोर ( मध्य प्रिेि)

सन्नाती गल
ु बगम, कनामटक

उिेगोलन बेल्लारी, कनामटक

रािलमिंिु तगरर कुनमल


ु , आिंध्रप्रिेि
गिु मरा मध्य प्रिेि के िततया तिले में इसमें भी अिोक नाम तमलता है।

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2.‍स्‍तभ
ं ‍लेख:- इन‍सात‍वहृ द‍स्‍तभ ं ों‍के ‍ऊपर‍सात‍लेख‍क्षलखे‍
हुए‍हैं‍जो‍क्षक‍क्षनम‍नक्षलक्षखत‍हैं-‍
 इसमें मख्ु य रूप से धम्म एविं प्रिासतनक बातों का
उल्लेख है। 1.‍प्रथम‍स्‍तभ
ं ‍लेख‍:- अिोक कहता है तक यह
 इन्हे भी िो भागों में वृहि् स्तिंभलेख एविं लघु स्तभिं धम्म लेख मेंनें राज्यातभिेक के 26 विम बाि
लेख में बाटिं ा गया है। तलखवाया, इसमें अिोक कहता है तक धमम के
अनसु ार लोगों का पोिण एविं िासन करो
A. वृहद्‍स्‍तंभ‍लेख‍:‍
2.‍क्षद्वतीय‍स्‍तंभ‍लेख:- इसमें अिोक ने खिु से एक
स्‍तंभ‍लेख‍ प्राक्षप्त‍स्‍थल‍ प्रश्न उठाया ‘तकयिं चु धम्मे’ ( धम्म क्या है?) तफर
तिल्ली- मेरठ स्तिंभ पहले मेरठ में था खिु ही इसका उत्सतर तिया ‘ अपातसनावे बहुकयाने,
तफरोििाह तगु लक द्वारा िया, िाने, सचे, सोचए, माधवे, साधवे, च’’ अथामत
तिल्ली लाया गया पाप से िरू रहना, अत्सयातधक कल्याण करना, िया,
िान, सत्सयता, पतवत्रता, मृितु ा और साधतु ा ही धम्म
तिल्ली-टोपरा स्तिंभ यह अिोक का अततिंम
लेख अतभलेख है, पहले है।
अम्बाला (हररयाणा) के 3.‍तीसरा‍स्‍तंभ‍लेख:- इसमें अिोक ने पािंच प्रकार
टोपरा गािंव में था के पाप बताये हैं।
तफरोििाह तगु लक द्वारा
तिल्ली लाया गया 4.‍चतुथि‍ स्‍तंभ‍लेख:- इसमें रज्िक
ु ों के कायों का
वणमन है, अिोक ने इसमें यह भी कहा तक तिन लोगों
लौररया- अरराि तबहार के चपिं ारण तिले में
स्तिंभलेख को मौत की सिा िी गई उन्हें तीन तिन की मोहलत
िी िाये
रामपरु वा स्तभिं लेख तबहार के चिंपारण तिले में
5.‍ पाचंवा स्‍तंभ‍ लेख:- इसमें यह वणमन है तक
लौररया निंिनगढ तबहार के चिंम्पारण तिले में अिोक ने अपने राज्यातभिेक के 26वें विम में िीव -
प्रयाग स्तभिं लेख यह पहले कौिाम्बी में था वध तनिेध कर तिया था।
बाि में अकबर के
6.‍छठां‍स्‍तंभ‍लेख‍:- अिोक इसमें कहता है िनता
िासनकाल में िहािंगीर
द्वारा इलाहाबाि लाया का तहत एविं सख ु तिसमें है मैं उसकी परीक्षा करता हू,िं
गया। एविं सभी सिंप्रिायों का सम्मान करता हू।िं

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7.‍सातवां‍ स्‍तभ‍लेख:-‍ यह लेख तसफम तिल्ली-
टोपरा स्तभिं लेख में तमलता है , इसमें अिोक के लोक
कल्याणकारी कायों का वणमन है। ‍
B.‍‍‍लघु‍स्‍तभ
ं ‍लेख:‍
लघु स्तभिं ों पर अिोक की राि घोिणायें खिु ी हुई हैं,
इसीतलये इनको “ROYAL STONE
LETTER” भी कहा िाता है।
लघ‍ु स्‍तभ ं ‍लेख क्षविेष खोजकताि‍
साच िं ी लघु स्तिंभ मध्य प्रिेि के रायसेन तिले में तस्थत
लेख
सारनाथ लघु स्तिंभ उत्सतर प्रिेि के वाराणसी िनपि मे तस्थत अलम स्टाइन
लेख
कौिाम्बी स्तभिं लेख इलहाबाि के समीप तस्थत इसमें अिोक की रानी कारुवाकी द्वारा बटम
िान तिये िाने का उल्लेख है। इसमें अिोक के पत्रु तीवर का नाम
भी तमलता है। इस स्तिंभलेख रानी का अतभलेख भी कहलाता है।
रुतम्मनिेई स्तभिं लेख - यह नेपाल की तराई में लम्ु बनी में तस्थत है फ्यरू र
- अिोक अपने राज्यातभिेक से मौयमकालीन कर व्यवस्था की
िानकारी तमलती है। इसतलए इसे आतथमक अतभलेख भी कहते हैं।
- इसमें अिोक ने कहा था तक बद्ध ु का िन्म स्थान होने के कारण
लम्ु बनी से उपि का आठवािं भाग तलया िाएगा।
इस लेख में बद्ध
ु को भगवान कहा गया है।
तनगाली सागर/ यह नेपाल की तराई में तस्थत है। इस अतभलेख से ज्ञात होता है तक फ्यरू र
तनग्लीवा अिोक ने बद्ध ु के पवू मिन्म को स्वीकार तकया था।
बराबर एविं नागािमनु ी हेररग्टिंन
मैसरू के तीन राइस
अतभलेख
रूपनाथ लेख स्तभिं यह मध्य प्रिेि के कटनी तिले में तस्थत हैं। कनमल एतलस
लेख

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3.‍गहु ालेख:-‍ वतममान में तबहार राज्य के िहानाबाि तिले में
तस्थत है।
 अिोक के गहु ालेख बराबर एिंव नागािमनु ी
पहातड़यों में तमले हैं। नागाजिनु ी‍पहाडी‍की‍गि
ु ांए:-‍
 सभी गहु ालेखों की भािा प्राकृ त एविं तलपी ब्राह्मी
 नागािमनु ी पहाड़ी पर 3 गफु ािंए तस्थत है। इन तीनों
है।
गफ
ु ाओ िं का तनमामण ििरथ ने करवाया था इन
 अिोक एविं ििरथ ने आिीवकों को कुल 7
गफु ाओ िं के नाम – गोक्षपका‍ गुिा, बक्षहयक‍
गफु ाएिं िान में िी थीं। गि ु ा, एव‍ं विक्षथका‍गिु ा‍हैं।

बराबर‍की‍गुिाए:ं -‍ मौयि‍कालीन‍अन्‍य‍अक्षभलेख
1.‍महास्‍थान‍अक्षभलेख:- पतिम बिंगाल के
 बराबर गहु ा, तबहार के गया तिले के पास
बोगरा तिले से प्राप्त अकाल से सिंबिंतधत
िहानाबाि तिले में तस्थत हैं।
अतभलेख।
 िैलकृ त वास्तक ु ला का सबसे प्राचीनतम 2.‍ सोहगौरा‍ ताम्रलेख:- उत्सतर प्रिेि के
उिाहरण बराबर की गफ ु ािंए हैं। गोरखपरु तिले में तस्थत इसमें भी अकाल के
 बराबर में 4 गफ
ु ािंओ िं का तनमामण तकया गया था समय अनाि तवतरण और सरु तक्षत रखने का
तिसमें 3 का तनमामण अिोक ने एविं 1 गहु ा का उल्लेख है।
तनमामण ििरथ ने करवाया था। ये 4 गफ ु ािंये 3.‍लंपक‍अक्षभलेख:-‍यह अतभलेख काबल ु
तनम्नतलतखत हैं- से प्राप्त हुआ है और सीररयाई भािा में तलखा
(1)‍सदु ामा‍की‍गि ु ा:- यह सबसे प्राचीन है। गया है।
इसका तनमामण अिोक ने राज्यातभिेक के 12वें 4.‍बनु ेर‍अक्षभलेख:- पेिावर के तनकट प्राप्त
विम में करवाया था। हुआ है, यह उत्सतर पतिम में प्राप्त ब्राह्मी तलपी
का अके ला अतभलेख है।
(2)‍ क्षवश्‍व‍ झोपडी‍ गुिा:- इसका तनमामण 5.‍बाहापुर‍लेख:- नई तिल्ली से प्राप्त लघु
अिोक ने राज्यातभिेक के 12वें विम में करवाया तिलालेख।
था।
(3)‍कणि‍चौपड‍गि ु ा‍:- इसका तनमामण अिोक
ने राज्यातभिेक के 19वें विम करवाया था।
(4)‍लोमि‍ऋक्षष‍गि ु ा:- यह गफु ा बराबर और
नागािमनु ी िोनों पहातड़यों पर तस्थत है, और

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अिोक‍के ‍बाद‍मौयि‍िासक मौयि‍प्रिासन‍‍
अिोक के बाि मौयम िासकों का क्रम स्पष्ट नहीं मौयि‍कालीन‍प्रिासक्षनक‍व्‍यवस्‍था:-‍
है।
कें द्र ( सवोच्च अतधकारी: रािा)
 मत्सस्य परु ाण के अनसु ार, अिोक के बाि 

उत्सतरातधकारी अिोक का पौत्र ििरथ हुआ था। → प्रािंत ( सवोच्च अतधकारी : गवनमर/ कुमार/
आयमपत्रु )
 तवष्णु परु ाण के अनसु ार, अिोक के बाि सयु िस 
गद्दी पर बैठा उसके बाि ििरथ गद्दी पर बैठा। → मििं ल ( सवोच्च अतधकारी: प्रािेतिक/
 तिव्यविान के अनसु ार, अिोक के बाि कुणाल महामात्सय/ प्रिेष्टा)
िासक बना 
 कुणाल:-‍यह अिंधा था, इसके नाम का िातब्िक → तविय/ आहार ( तिला {अतधकारी- तवियपतत}
अथम है, सिंिु र आिंखों वाला। इसकी उपातध 
धममतववधमन थी। → स्थानीय ( 800 ग्रामों का समहू )

 संप्रक्षत:-‍यह िैन धमम को मानने वाला था। → द्रोणमख
ु ( 400 ग्रामों का समहू )
 जालौक:-‍ िालौक िैव मतानयु ायी था, और 
बौद्धों से घृणा करता था, कल्हण इसे कश्मीर में → खावमतटक ( 200 ग्रामों का समहू )
अिोक का उत्सतरातधकारी बताते हैं। 
 दिरथ:-‍ अिोक की तरह इसकी उपातध → सिंग्रहण ( 10 ग्रामों का समहू ) {अतधकारी-
िेवनािंतप्रय थी, और यह आिीवक मत का गोप}
समथमक था। 
→ ग्राम {प्रमख
ु - ग्रामीण}
 वृहद्रथ:-‍ अिंततम मौयम िासक था, इसे, इसके
सेनापतत पष्ु यतमत्र ििंगु ने इसे मार कर ििंगु विंि
की स्थापना की थी।
कें द्रीय‍प्रिासन:-‍

 मौयम प्रिासन भारत की प्रथम कें द्रीकृ त प्रिासन


प्रणाली थी।
 प्रिासन का कें द्र तबिंिु रािा था, वह
कायमपातलका, व्यवस्थातपका एविं न्यायपातलका
का प्रमखु होता था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 रािा की एक मिंत्रीपररिि् होती थी, मिंत्रीपररिि के 18‍तीथि‍क्षनम‍नक्षलक्षखत‍हैं-‍
सिस्यों का चनु ाव अमात्सयों में से उपधा परीक्षण
तीथम/ अतधकारी अतधकार क्षेत्र
के बाि होता था।
प्रधानमिंत्री एविं परु ोतहत परु ोतहत प्रमख ु अतधकारी होते
 मेगस्थनीि बताता है, तक मौयम साम्राज्य में थे।
रािाओ िं की सरु क्षा के तलये अिंगरतक्षकायें तनयक्ु त
यवु राि रािा का उत्सतरातधकारी
की गई िंथीं।
सेनापतत यद्ध
ु तवभाग का मिंत्री
सतन्नधाता रािकीय कोिाध्याक्ष
राजा‍के ‍मंत्रीमंिल‍के ‍दो‍घटक‍थे- समाहताम रािस्व तवभाग का प्रधान
1. मतिं त्रण:- इसमें 4-5 सिस्य होते थे। यह व्यवहाररक िीवानी न्यायालय का
वतममान कै तबनेट के समान थी । इसके अिंतगमत न्यायाधीि
प्रिेष्ठा फौििारी न्यायालय का
यवु राि, प्रधानमिंत्री, सेनापतत, परु ोतहत एविं
न्यायाधीि
सतन्नधाता होते थे। इसका कायम अततमहत्सवपणू म
मतिं त्रपररििाध्यक्ष मिंतत्रपररिि का अध्यक्ष
तवियों में सलाह िेने का था। िण्िपाल सेना की सामग्री िटु ाने वाला
2. मतिं त्रपररिि:- यह आकार में मतिं त्रण से बड़ी अतधकारी
होती थी। इसके अिंतगमत सभी मिंत्री होते थे। िो िगु मपाल िेि के भीतरी िगु ों का प्रबधिं क
अमात्सय उपधा परीक्षण की परीक्षा में सफल होते नागरक नगर का प्रमख ु अतधकारी
आटतवक वन तवभाग का प्रधान अतधकारी
थे वहीं मत्रिं ी बनते थे।
कमामतन्तक उद्योग धिंधों का प्रधान तनरीक्षक
तीथम महामात्र :- यह उच्च स्तर के कममचारी/ नायक सेना का सिंचालक / नेतत्सृ वकताम
अतधकारी थे इन्हें महामात्र भी कहा िाता था। िौवाररक रािमहलों की िेखरे ख करने
प्रिासन के तवभाग भी तीथम कहे िाते थे। वाला
कौतटल्य के अथमिास्त्र में 18 तीथम का उल्लेख आिंतवतिमक सम्राट की अिंगरक्षक सेना का
तमलता है- प्रधान
अन्तपाल सीमावती िगु ों का रक्षक
प्रिस्ता रािकीय कागिों को सरु तक्षत
रखने वाला एविं रािकीय
आज्ञाओ िं को तलतपबद्ध करने
वाला अतधकारी

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अध्‍यि:- अथमिास्त्र में 26 अध्यक्षों का उल्लेख पौतवाध्यक्ष माप-तौल का अध्यक्ष
तमलता है िो तनम्नतलतखत है- मानाध्यक्ष िरू ी एविं समय से सिंबतिं धत
साधनों को तनयतिं त्रत करने
अध्‍यि क्षवभाग वाला अध्यक्ष
पण्याध्यक्ष वातणज्य तवभाग का अश्वाध्यक्ष घोड़ों का अध्यक्ष
अध्यक्ष हस्त्सयध्यक्ष हातथयों का अध्यक्ष
सरु ाध्यक्ष आबकारी तवभाग का सवु णमध्यक्ष सोने का अध्यक्ष
अध्यक्ष अक्षपटालाध्यक्ष महालेखाकार
सनू ाध्यक्ष बचू ड़खाने का अध्यक्ष
गतणकाध्यक्ष गतणकाओ िं का अध्यक्ष
सीताध्यक्ष रािकीय कृ ति तवभाग का प्रांतीय‍प्रिासन:-‍
अध्यक्ष
अकाराध्यक्ष खान तवभाग का अध्यक्ष  प्रांत:- कें द्र प्रािंन्तों में बिंटा था। अिोक के समय
कोष्ठागाराध्यक्ष कोष्ठगार का अध्यक्ष मौयम साम्राज्य पािंच बड़े प्रान्िं तों में बिंटा हुआ था।
कुप्याध्यक्ष वनों का अध्यक्ष ये प्रािंत तनम्नतलतखत थे-
आयधु ागाराध्यक्ष आयधु गार का अध्यक्ष प्रांत राजधानी
िल्ु काध्यक्ष व्यापार कर वसल ू ने वालों उत्सतरापथ तक्षतिला
का अध्यक्ष
लोहाध्यक्ष धातु तवभाग का अध्यक्ष ितक्षणापथ सवु णमतगरी
लक्षणाध्यक्ष छापेखाने का अध्यक्ष, मद्रु ा
अवतन्तराष्र उज्ितयनी
िारी करने वाला प्रमख ु
अतधकारी प्रािी / प्राची पाटतलपत्रु
गो- अध्यक्ष पिधु न तवभाग का अध्यक्ष
तवतवताध्यक्ष चारागाहों का अध्यक्ष कतलगिं तोसली
मद्रु ाध्यक्ष पासपोटम तवभाग का
अध्यक्ष  प्रािंतो को चक्र कहा िाता था। प्रािंतों का
नवाध्यक्ष िहाि रानी तवभाग का वायसराय रािविंि का कोई कुमार आयमपत्रु होता
अध्यक्ष था। अिोक के समय तक्षतिला, तोसली एविं
पत्सतनाध्यक्ष बिंिरगाहों का अध्यक्ष उज्ितयनी में कुमार तनयक्ु त थे।
सिंस्थाध्यक्ष व्यापाररक मागों का
 कम्बोि, भोि, पैत्सततनक, आटतवक राज्य और
अध्यक्ष
सौराष्र प्रािंन्त की तस्थतत अद्धमस्वतिंत्र राज्य की थी
िेवताध्यक्ष धातममक सिंस्थाओ िं का
अध्यक्ष

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 अिोक ने कतलिंग में िो प्रिासतनक कें द्र बनाये मौयिकाल‍के ‍प्रमख
ु ‍अक्षधकारी‍:-‍
थे-
अक्षधकारी‍ क्षवभाग‍
 उत्सतर कतलगिं की रािधानी तोसली एविं ितक्षण पतु लसानी िनसिंपकम अतधकारी
कतलिंग की रािधानी समापा थी।
पातटवेतिक सम्राट को प्रिा के तविय में सचू ना िेने
 मौयमकाल में प्रािंतों को मिंिलों में तवभक्त तकया वाला
गया था, और मििं लों को तिलों में तवभक्त तकया अतिं महामात्र असभ्य िनिाततयों में धमम प्रचारक
गया था, ये तिले आहार / तविय कहलाते थे। स्त्रध्यक्ष अिंन्त:परु एविं तस्त्रयों से सबिं िंतधत
 मंिल‍प्रिासन:- प्रािंतों का तवभािन मिंिल में तवभाग का अतधकारी
होता था, इसका सवोच्च प्रिासतनक अतधकारी ब्रिभतू मक पिओ ु िं की िेखभाल करने वाला
प्रािेतिक/ प्रिेि या महामात्सय होता था, ये रज्िक
ु िनपि का प्रमख ु अतधकारी, भू
अतधकारी समाहाताम के प्रतत उत्सतरिायी होते थे। रािस्व अतधकारी, बाि में न्यातयक
अतधकारी भी तिया गया
 क्षजला‍प्रिासन:- तिले को आहार या तविय नगर व्यवहाररक नगर का न्यायाधीि
कहते थे, और यह इस तिले का प्रिासतनक अमात्सय योग्य अतधकाररयों का एक समहू
अतधकारी तवियपतत/ आहारपतत होता था। प्रिेष्टा मििं ल का प्रमख ु अतधकारी
नागरक नगर का प्रमख ु अतधकारी
 मध्‍यवती‍स्‍तर:-‍तिले और ग्राम के बीच एक रूपििमक तसक्कों की िाच िं करने वाला
मध्यवती स्तर भी था, इस मध्यवती स्तर का पर अतधकारी
िो अतधकारी स्थातनक एविं गोप तनयक्ु त थे, िहािं गोप सिंग्रहण (10 ग्राम समहू ) का
स्थातनक कर वसल ू ता था, वहीं गोप की भतू मका अतधकारी, भ-ू रािस्व को तलखने
आधतु नक लेखपाल की भािंतत थी। वाला
स्थातनक ग्रामों से भ-ू रािस्व वसल ू ने वाला
 तिले के नीचे स्थानीय (800 ग्रामों का समहू ) था, अतधकारी
स्थानीय के नीचे द्रोणमख ु था, और द्रोणमख ु के धम्म महामात्र िनता में धम्म का प्रचार करने वाला
नीचे खावमतटक (200 ग्रामों का समहू ) था, एविं यक्ु त रज्िक ु के अधीन रािस्व
खावमतटक के नीचे सिंग्रहण (10 ग्रामों का समहू महामात्सयपसपम गप्ु तचरों का प्रमख

था।) सिंग्रहण के नीचे ग्राम था। एग्रानोमोई तिले एविं सड़क तनमामण का प्रमख ु
अतधकारी
 ग्राम‍ प्रिासन‍ :-‍ ‍ मौयम प्रिासन की सबसे एतस्टनोमोई नगर प्रिासन का प्रमख ु अतधकारी
तनचली इकाई ग्राम था इसका प्रिासक ग्रामणी
था। यह अवैततनक अतधकारी होता था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सैन्य‍ ‍व्‍यवस्‍था‍ नगर‍प्रिासन:-

 यनू ानी इततहासकारों के अनुसार चिंद्रगप्ु त मौयम  मेगास्थनीि की इतिं िका से पाटतलपत्रु के नगर
की सेना में 6 लाख पैिल, 30 हिार अश्वारोही, प्रिासन के सिंबिंध में िानकारी तमलती है। नगर
9 हिार हाथी, तथा सम्भवत: 9 हिार रथ थे। प्रिासन का प्रमख ु नागरक था, िबतक
 मेगस्थनीि के तववरण से स्पष्ट होता है तक सेना मेगास्थनीि ने इसे एतस्टनोमोई कहा।
का प्रबिंध छ: सतमततयों द्वारा होता था प्रत्सयेक  मेगास्थनीि के अनुसार, नगर का प्रिासन 6
सतमतत में 5-5 सिस्य थे। सतमततयों द्वारा चलाया िाता था। प्रत्सयेक सतमतत
 कौतटल्य ने भी सेना के चार अगिं ों का वणमन तकया में 5 सिस्य होते थे।
है, िो इस प्रकार है- सक्षमक्षत‍ कायि‍
1- मोलबल:- पैतक ृ या स्थायी सेना
2- भृटक:- श्रेतणयों की सेना। तिल्प कला सतमतत सिकों एविं भवनों का तनमामण,
3- क्षमत्र‍बल:- तमत्र राज्य की सेना। नगर की सफाई व्यवस्था
4- अक्षमत्र‍बल:- अतमत्र राज्य की सेना तविेि सतमतत तविेतियों के खाने, रहने, िवा
इत्सयाति की व्यवस्था
5- अटवी‍बल :- ििंगली िाततयों की सेना
िनसख्िं या सतमतत िन्म-मृत्सयु का रतिस्टर तैयार
 अथमिास्त्र में अतग्नबाण का तथा त्सवररत करना
तचतकत्ससा सेवा (एम्बल ु ेंस) का उल्लेख तमलता उद्योग व्यापार उद्योग एविं व्यापार पर तनयिंत्रण
है। सतमतत वस्तओ ु िं के मल्ू यों का तनधामरण
 अथमिास्त्र में तीन प्रकार के यद्ध ु ों का वणमन वस्तु तनरीक्षक तमलावटी वस्तुओ िं पर रोक
तमलता है। सतमतत
1.प्रकाि‍युद्ध:- िो लड़ाई खल ु े तौर कर तनरीक्षक तवभाग से प्राप्त करों का
पर आमने-सामने से लड़ी िाये। सतमतत तववरण रखना एिंव करों की
चोरी को रोकना
2. कूट‍ यद्ध ु :- इस यद्ध ु में कूट या
चालाकी का प्रयोग तकया िाये
3.तूष्‍ट‍णी‍ युद्ध‍ :- गप्ु तचरों द्वारा ित्रु न्‍याय‍प्रिासन:- ‍
राज्यों में अव्यवस्था पैिा की िाती थी
 सबसे बड़ा न्यायालय रािा का न्यायालय एविं
तिससे ित्रु राज्य स्वत: समाप्त हो
सबसे छोटा न्यायालय ग्राम न्यायालय होता था।
िाता था।
 धमिस्थ‍ ीय‍:- यह िीवानी न्यायालय था, इसका
 प्रमख
ु व्यावहाररक था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 कण्‍टकिोधन:- यह फौििारी न्यायालय था, मौयिकालीन‍कर‍व्‍यवस्‍था‍
इसका प्रमख
ु प्रिेष्टा था। कर‍ का‍ कर‍का‍उद्देश्‍य‍
नाम‍
 िनपि का मख्ु य न्यायधीि रज्िक ु था, िो प्रणय कर आपातकाल में वसूला िाने वाला कर
वतममान में तितस्रक्ट िि की भािंतत था।
तवतष्ट कर बेगार कर, एक प्रकार का धातममक कर
गुप्‍तचर‍व्‍यवस्‍था बतल
तहरण्य नगि कर
 इसका प्रथम तवस्तृत तववरण अथमिास्त्र में रज्िु कर भतू म की माप के समय तलया िाने वाला
तमलता है। कर
 परुु ि एविं मतहलायें िोनों गप्ु तचर होते थे, तववीत चारागाह कर
गतणकायें भी गप्ु तचर का काम करतीं थीं।
उियकभाग राज्य द्वारा तलया िाने वाला तसचािंई कर
 गप्ु तचर िो प्रकार के होते थे।
1.‍ संस्‍था:- यह स्थायी गप्ु तचर थे, इनके भी पाचिं प्रवेश्य कर आयात कर
भाग थे- तनष्क्राम्य तनयामत कर
(1) कापातटक:- तवद्याथी के भेि में रहने वाले गप्ु तचर कर
वतमनी कर सड़क कर
(2) वैिहे क:- व्यापारी के भेि में रहने वाले गप्ु तचर
परहीनक रािकीय भतू म में पिओ
ु िं को चराई का
(3) उिातस्थत:- सन्यासी के भेि में रहने वाले गप्ु तचर कर िमु ामना
(4) तापस:- तपतस्वयों के भेि में रहने वाले गप्ु तचर
पाश्वम कर व्यापारी के अतधक लाभ पर वसल
ू ा िाने
(5) गृहपततक:- तकसान के भेि में रहने वाले गप्ु तचर वाला कर
2.‍संचरा:-‍इसमें भ्रमणिील गप्ु तचर आते थे, इसके तरिेय कर पल
ु पार करने पर लगने वाला कर
चार भाग हैं- (1) पररव्रातिका:- तभक्षणु ी के भेि में
रहने वाली गप्ु तचर, इसमें मख्ु य रूप से वेश्याओ िं की िारिेय कर आयततत वस्तु पर अततररक्त व्यापार
तनयतु क्त की िाती थी। कर
(2) रिि:- क्रूर प्रवृतत्त के गप्ु तचर वतमनी कर व्यापाररयों से सड़कों का प्रयोग करने का
(3) सत्री:- तविेि प्रतिक्षण प्राप्त गप्ु तचर, तिनका कर ।
कोई पररवार नहीं होता था। पाश्वम कर व्यापार में अत्सयतधक लाभ होने पर
(4) तीक्ष्ण:- िरू वीर गप्ु तचर व्यापाररयों से तलया िाने वाला
अततररक्त कर ।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
राज्‍य‍के ‍क्षनयत्रं ण‍वाले‍उद्योग:-‍ 3. तीसरी सड़क मथरु ा से भृगक
ु च्छ को िोड़ती
थी।
 िराब उद्योग 4. चौथी सड़क कौिाम्बी से चिंम्पा को िोड़ती
 नमक उद्योग थी।
 खान उद्योग मौयिकालीन‍बंदरगाह
 हतथयार उद्योग
 िहािरानी उद्योग  मौयमकाल में िरू पतिम में तस्थत बेबीलोन के साथ
व्यापार एविं वातणज्य का अत्सयतधक तवकास
मौयिकालीन‍क्षसक्‍के
हुआ, एररयन भी कहता है तक भारतीय व्यापारी
 क्षनष्‍ट‍क‍(सुवणि):-‍सोने का तसक्का ( अभी तक सफे ि चमड़े के ितू े पहनते थे, और मोती बेचने
एक भी मौयमकालीन सोने का तसक्का प्राप्त नहीं यनू ान के बािारों में आते थे।
हआ)  पतिमी तट के बििं रगाह – भड़ौच/ भृगक ु च्छ एविं
 पण/‍धरण/‍काषािपण/‍रूप्‍यरूप/‍ितमान:-‍ सोपारा
चािंिी का तसक्का।
 पवू ी तट का बिंिरगाह - ताम्रतलतप्त या ताम्रलक

 पण मौयमकाल का प्रधान तसक्का एविं रािकीय
तसक्का था।
 माषक, काकणी:-‍ये तािंबे के तसक्के थे
मौयिकालीन‍भारतीय‍समाज‍
 द्रोण:- अनाि माप का एक पैमाना।
 तनवतमन :- भतू म माप का पैमाना मेगस्‍थनीज‍ की‍ इक्षं िका:-‍ मेगस्थनीि सेल्यक ू स
तनके टर का रािितू था िो चद्रिं गप्ु त मौयम के िरबार में
पररवहन‍‍साधन तनयक्ु त तकया गया था। मेगास्थनीि की तकताब
 सड़क एविं बिंिरगाह प्रमख
ु पररवहन साधन थे। इतिं िका की मल
ू प्रतत उपलब्ध नहीं है तकिंतु इसके
उद्धरण तविेिी लेखक िैसे एररयन, प्लटू ाकम , तप्लनी
चार‍प्रमुख‍सडक‍मागि‍थे-‍ एविं ितस्टन आति के तववरणों से प्राप्त होते हैं।
1.‍ उत्‍तरापथ:- ये परुु िपरु से ताम्रतलतप्त तक
िाती थी, इसका तनमामण चिंद्रगप्ु त मौयम ने करवाया मेगस्‍थनीज‍ के ‍ अनस
ु ार‍ मौयिकालीन‍ भारतीय‍
था, िेरिाह के समय इस सड़क को सड़क-ए- समाज-‍
आिम कहा िाता था, एविं ऑकलैण्ि के समय
यही सड़क िीटी रोि कहलायी।  व्यतक्त सिंपन्न थे, चोरी नहीं होती थी, घरों में ताले
नहीं लगते थे।
2. दक्षिणापथ:- यह सड़क श्रावस्ती से  अपराध कम था, न्यायालयों का प्रयोग कम होता
प्रततष्ठान तक िाती थी। था

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 भारतीय लोग ब्याि नहीं लेते थे।  हेरातक्लि ( श्री कृ ष्ण) और िायनोतनसस (तिव)
 सती प्रथा का प्रचलन नहीं था की पिू ा की िाती थी।
 िातत, समाि का मूलाधार थी। िातत व्यवस्था
का पालन अतनवायम था। मेगास्थनीि ने भारतीय
समाि की 7 िाततयािं बतायीं थी- िािमतनक, इक्षं िका‍के ‍अनस
ु ार‍भारत‍की‍राजनैक्षतक‍दिा:‍
तिल्पी, तकसान, चरवाहे (अहीर/ ग्वाले), योद्धा
 रािा अत्सयिंत ितक्तिाली था, रािा की अिंगरक्षक
(सैतनक), तनरीक्षक एविं अमात्सय ( सभासि)
तस्रयािं थी।
 िास प्रथा प्रचतलत नहीं थी। ( िबतक कौतटल्य ने
 अपराध कम होते थे। िििं के तवधान कठोर थे।
9 प्रकार के िासों का उल्लेख तकया है)
 रािकीय सिंपतत्सत को नक ु सान पहुचिं ाने पर मृत्सयु
मेगस्‍थनीज‍की‍इक्षं िका‍के ‍अनुसार‍भारत‍की‍ िण्ि का प्रावधान था।
अथिव्यवस्‍था-‍  रािा न्यायतप्रय था एविं राज्य िािंत सख
ु ी था।
 कृ िक धनी थे, अकाल नहीं पड़ता था (िबतक
अन्य स्रोतों से चिंद्रगप्ु त मौयम के िासन काल में
कौक्षटड‍य‍के ‍अथििास्‍त्र‍के ‍अनुसार‍समाज:-‍
अकाल का वणमन तमलता है), कृ ति मुख्य
व्यवसाय था।  यह मौयमकालीन इततहास का सबसे महत्सवपूणम
 पैतकृ व्यवसाय का प्रचलन था। ग्रिंथ है। इसकी रचना सिंस्कृ त भािा में की गयी थी
 मेगस्थनीि के अनसु ार रािा भ-ू रािस्व के रूप यह रािनीतत एविं लोक प्रिासन पर तलखी हुई
में उपि का ¼ भाग लेता था ( कौतटल्य ने भ-ू तकताब है। इसकी लेखन िैली महाभारत िैली
रािस्व की मात्रा 1/6 बतायी है। थी।
 मेगस्थनीि ने सोना खोिने वाली चीतटयों का  कौतटल्य ने समाि में अनेक वणमििंकर िाततयों
उल्लेख तकया है। का उल्लेख तकया है। कौतटल्य ने चण्िालों के
 भारतीय घोड़े एविं एक तविेि प्रकार के एक सींग अततररक्त अन्य सभी वणमििंकर िाततयों को िद्रू
वाले घोड़े का उल्लेख तकया है। उसका नाम कहा है। कौतटल्य ने िद्रू ों को वाताम का अतधकार
काटमिन था। तिया है और िद्रू ों को कृ िक कहा है।
 उसने एक निी की चचाम की है तिससे सोना  कौतटल्य के अनसु ार समाि में िास प्रथा प्रचतलत
तनकलता था। थी और नौ प्रकार के िास होते थे। वैश्यावृतत्सत
सम्मातनत व्यवसाय माना िाता था। कौतटल्य ने
इक्षं िका‍के ‍अनुसार‍भारत‍में‍धमि‍की‍क्षस्थक्षत:-‍
समाि में सती प्रथा का उल्लेख नहीं तकया।
 ब्राह्मण धमम की प्रधानता थी। लोग पनु मिन्म में  रूपािीवा: स्वतिंत्र वैश्यावृतत्त करने वाली मतहला
तवश्वास करते थे।  समरागिं तनया: चद्रिं गप्ु त की सरु क्षा में तनयक्ु त
मतहला अगिं रक्षक

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 कौतटल्य ने मतहलाओ िं को अतनष्कातसनी एिंव 1.‍ राजसभा:- फातहयान ने मौयों के रािसभा
असयू मपश्या कहा है। को िेवतनतममत बताया था।
 कौतटल्य कृ ति को सबसे अच्छा उद्योग मानता
2.‍स्‍तंभ:-
है और साल में तीन फसलों का उल्लेख करता
है, तकिंतु मेगास्थनीि साल में िो फसलों का  स्तिंभ मौयमकालीन वास्तक ु ला का सवोत्सतम
उल्लेख करता है। उिारहण है।
 कौतटल्य ने चावल को सवोत्सतम फसल एविं ईख  इन्हे अिोक की लाट कहा िाता है।
को सबसे तनकृ ष्ट फसल माना है।
 अिोक के स्तिंभों की सिंख्या 30 बतायी िाती है।
 मौयम काल का प्रधान उद्योग सतू काताना एविं
बननु े का था।  ये स्तिंभ मथरु ा और चनु ार की पहतड़यों से लाकर
 मौयमकाल में मतहलाओ िं की तस्थतत स्मृतत काल लाल और बलआ ु पत्सथरों से बनाये गये हैं।
से बेहतर थी।
स्‍तंभ‍का‍िीषि‍भाग‍

कला
 मौयम कला के िो भागों में बािंटा िाता है-
1. रािकीय कला
2. लोक कला

 कई तविेि तवद्वानों के अनसु ार अिोक के स्तिंभ


ईरानी स्तभिं ों से प्रेररत हैं।
 रुतम्मनिेई स्तिंभ सबसे छोटा स्तिंभ लेख है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 लौररया निंिन सबसे सरु तक्षत स्तिंभ लेख है।  धमेख स्तपू :- इसका तनमामण अिोक के समय
 पाटतलपत्रु (कुम्रहार) के स्तिंभ को फातहयान ने प्रारिंभ हुआ कुिाण काल में तवस्तार हुआ िबतक
िम्बिू ीप स्तभिं कहा। गप्ु त काल में यह पणू मत: तैयार हुआ।
 कुछ स्तभिं ऐसे भी हैं, तिनमें कुछ भी नहीं तलखा  तपपरहवा स्तपू प्राचीनतम स्तपू है।
है, ये लेखतवहीन स्तिंभ तनम्नतलतखत हैं-
1. सिंतकिा स्तिंभ ( िीिम पर हाथी की आकृ तत ) क्षवहार‍
:- उत्सतर प्रिेि के फरुमखाबाि तिले में तस्थत  अिोक ने पाटतलपत्रु में अिोकाराम तवहार, एविं
2. रामपरु वा स्तभिं ( िीिम पर बैल की आकृ तत ) कुक्कटाराम तवहार का तनमामण करवाया था,
3. बसाढ़ (वैिाली) स्तिंभ अिोक ने कुक्कटाराम तवहार को 100 करोड़
4. कोसम (कौिाम्बी) स्तिंभ स्वणम महु र िेने का सिंकल्प तलया था।

स्‍तूप‍ म‍ंक्षदर/‍नगर‍‍
 स्तपू बद्ध
ु के महापररतनवामण के प्रतीक हैं, यद्यतप  अिोक ने तवतस्ता निी के तट पर श्रीनगर की
स्तपू का प्रथम उल्लेख ऋग्वेि में तमलता है, स्थापना की, और यहािं पर उसने अिोके श्वर
 अिोक‍द्वारा‍क्षनक्षमित‍स्‍तूप:-‍ मिंतिर का तनमामण करवाया
 बौद्ध ग्रिंथ आिोक को 84000 स्तपू ों को बनाने  अिोक ने नेपाल में लतलतपतन नामक नगर
वाला मानते हैं, तिनमें कुछ प्रमख ु स्तपू तनम्न हैं- बसाया था।
1. सांची‍ महास्‍तूप:-‍ यह मध्य प्रिेि के
रायसेन तिले में तस्थत है, यह अिोक द्वारा
तीसरी िताब्िी में बनवाया गया था, बाि में मक्षू तिकला‍
अतग्नतमत्र िगिंु ने इसका िीणोंद्धार करवाया पत्‍थर‍की‍मूक्षतियां‍(‍लोक-कला)‍:-‍
था, इसकी खोि 1818 में तब्रतटि अफसर  परखम‍– ये यक्ष की मतू ी है तिसे मतणभद्र कहा
िनरल टेलर ने की थी। गया है, यह मथरु ा के परखम से प्राप्त हुई है,
2. देउर‍ कोठार‍ स्‍तूप:- मध्य प्रिेि के रीवा परखम कुबेर के कािोध्यक्ष है। ‍
तिले में तस्थत अिोक द्वारा तनतममत इस स्तपू
की खोि 1892 में की गई।  क्षवक्षदिा‍एवं‍ग्‍वाक्षलयर‍की‍मतू ी:-‍यहािं से यक्ष-
 2.‍सारनाथ‍के ‍स्‍तूप:- सारनाथ में कई प्रमख ु ों यतक्षणी की मूती प्राप्त हुई है।
स्तपू ों की श्रिंखला है, तिनमें धमेख स्तपू और
मलू गधिं कुटीर तवहार, धममरातिक स्तपू इत्सयाति
िातमल हैं,

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 दीदारगंज‍ की‍ मूती:-‍ तबहार के िीिारगिंि से
चामर ग्रहणी यक्षी की प्रततमा प्राप्त हुई है।
 लोहानीपुर‍की‍मूती‍:-‍ पटना के लोहानीपरु से
िो िैन तीथंकरों की मतू ी प्राप्त हुई है।

मद्भ
ृ भाण्‍ि‍
मौयम काल के सबसे प्रमखु मृद्भाभाण्ि उत्सतरी काले
पातलस वाले मृद्भाभाण्ि (नािमन ब्लैक पोतलस वेयर/
NBPW) हैं।

मौयों‍के ‍पतन‍के ‍प्रमख


ु ‍कारण:-‍

 तवत्सतीय िबु मलता


 प्रिासन का अततकें द्रीयकरण
 िरू वती क्षेत्रों में नए ज्ञान की पहुचिं
 तविेिी आक्रमण
 आयोग्य उत्सतरातधकारी
 साम्राज्य का तवभािन
 प्रािंतीय आमात्सयों का िमनकारी िासन इसके
कारण बराबर िनतवद्रोह

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
मौयोत्तर‍काल

शुंग वुंश (मूलत: उज्जैन के185 से 73 ई.पू.)


हिन्द्द यवन, शक, सातवािन वंश, चेहद
कण्व वुंश ( 73 से 28 ईस्वी) पह्िव, कुषाण वंश, वाकाटक वंश ,
इक्ष्वाकु वंश

मौयम साम्राज्य के तवघटन के पिात का लाभ  मेरुतगिंु की थेरावली


उत्तरी भारत में मख्ु यतः तविेिी आक्रमणकाररयों  गागी सतिं हता
ने और ितक्षण में स्थानीय राि विंिों ने उठाया ।
 मनस्ु मृतत
 मौयमविंि के अिंततम िासक वृहद्रथ की हत्सया करने
के बाि पष्ु यतमत्र ििंगु ने 185 ई. प.ू में ििंगु विंि
पष्‍टु ‍यक्षमत्र‍िुंग:-
की स्थापना की।
समय:‍185-149‍ई.प.ू ‍‍‍‍‍‍
िुंग‍वंि
 पष्ु यतमत्र के िासन काल की सबसे महत्सवपणू म
 ििंगु विंि का सिंस्थापक पष्ु यतमत्र ििंगु था।
घटना यवनों का भारत पर आक्रमण था।
 राजधानी: पातटलीपत्रु / तवतििा
 यवन तविय के उपलक्ष्य में पष्ु यतमत्र ने िो
 मलु त: िगिंु उज्िैन के तनवासी थे। अश्वमेघ यज्ञ कराए, यह िानकारी पष्ु यतमत्र ििंगु
के राज्यपाल धनिेव के अयोध्या अतभलेख से
तमलती है।
िगुं ‍वि
ं ‍के ‍ऐक्षतहाक्षसक‍स्‍त्रोत‍–‍  पष्ु यतमत्र िगिंु की धातममक नीतत सतहष्णतु ा की थी,
 धनिेव का अयोध्या अतभलेख लेतकन बौद्ध ग्रिंथ, उसे बौद्धों का घोर ित्रु बताते
 हेतलयोिोरस का बेसनगर लेख हैं, बौद्ध ग्रिंथ यह उल्लेख करते हैं तक उसने
 हिम चररत पातटलीपत्रु तस्थत कुक्कुटाराम तवहार को तीन
 मातलवाकतग्नतमत्रम बार नष्ट करने का असफल प्रयास तकया, उसके

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बाि वह िाकल पहुचिं ा और उसने घोिणा की, ‘ उसके अमात्सय वासिु वे ने कर िी तथा कण्व
िो मझु े एक बौद्ध तभक्षू का सर िेगा उसे मैं 100 रािविंि की स्थापना की।
िीनार िगिंू ा’, यहािं हमें यह भी ध्यान रखना होगा भरहुत‍स्‍तूप
तक पष्ु यतमत्र ििंगु इतना असतहष्णु होता तो वहा
 यह स्तपू सतना (मध्य प्रिेि ) के समीप
सािंची, भरहुत स्तपू का पनु मतनमामण सिंभव नहीं
तस्थत है।
होता, और पष्ु यतमत्र ििंगु के समय ही सािंची के
 खोजकताि:- अलेंक्िेंिर कतन्नघिं म
स्तपू का आकार िगु ना कराया िाना भी सिंभव
 इस स्तपू को मूलत: सम्राट अिोक के
नहीं होता। द्वारा बनवाया गया था और इसका
 पतिं ितल पष्ु यतमत्र िगिंु के परु ोतहत थे, तिन्होनें पनु मतनमामण पष्ु यतमत्र ििंगु के द्वारा करवाया
पातणनी की अष्टाध्यायी पर महाभाष्य की रचना गया।
की थी।

अक्षग्न‍ क्षमत्र‍:-‍  ििंगु काल में सिंस्कृ त भािा एविं ब्राह्मण व्यवस्था
 पष्ु यतमत्र के बाि अतग्नतमत्र िासक बना का पनु रूत्सथान हुआ। इसी काल में पहला स्मृतत
 कातलिास कृ त मातल्वकातग्नत्रम् के अनसु ार ग्रिंथ मनस्ु मृतत की रचना की गई।
पष्ु यतमत्र ििंगु का पौत्र (अतग्नतमत्र का पत्रु )
वसतु मत्र ने यवनों को परास्त तकया, ध्यातव्य है
तक कातलिास की मातलकातग्नतमत्र का नायक
यही अतग्नतमत्र ििंगु है।
भागभद्र‍
 यह इस विंि का नौंवा िासक था।
 इसी भागभद्र के तवतििा तस्थत िरबार में
तक्षतिला के यनू ानी िासक, एतटयालकीिस का
रािितू हेतलयोिोरस आया था, हेतलयोिोरस ने
भागभद्र से प्रभातवत होकर भागवत् धमम स्वीकार
कर तलया था, और भागवत् धमम की स्मृतत में
तवतििा में एक तवष्णु मतिं िर और गरुण ध्वि स्तभिं
बनवाया था।
 अंक्षतम‍ िुंग‍ िासक:-‍ ‍ ििंगु विंि का अिंततम
िासक िेवभतू त था। इसकी हत्सया 73 ई. प.ू में

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
मनस्ु ‍मक्षृ त कण्व‍वि ं ‍(75‍ई.‍प.ू ‍से‍30‍ई.प.ू
मनस्ु मृतत का रचनाकाल :-  इस वि िं में कुल चार िासक हुए।
 1000 ई.प.ू से लेकर ई.प.ू 2 िताब्िी तक माना  परु ाणों में कण्व विंि के िासकों को िगिंु भृत्सय कहा
िाता है, इसतलये यह माना िाता है तक यह स्मृतत गया है।
ििंगु काल में आकर पणू म हुई।
 कण्व विंि की स्थापना वासिु ेव ने ििंगु विंि के
 यह ग्रिंथ मल ू त: तहन्िू तवतध तवियक ग्रिंथ है इसे
अिंततम रािा िेववभतु त को मार कर की थी।
मानव धममिास्त्र भी कहा िाता है।
 मनस्ु मृतत के कई अिंग्रेिी अनवु ाि हुए, तिसमें  इस विंि के अिंततम िासक सुिमाम था, तिसकी
सबसे प्रतसद्ध अनवु ाि “ A Code of Zentoo हत्सया सातवाहन नरे ि तिमक ु ने कर िी, और
Laws” नाम से एन.बी.हेलहेक ने तकया था। सातवाहन वि िं की स्थापना की।
 मनस्ु मृतत के टीकाकार :-
1. मेघातततथ सातवाहन‍वंि
2. कुल्लक ु भट्ट  सातवाहन विंि का सिंस्थापक तिमक ु था, तिसने
3. गोंतवि राि कण्व वि िं के अतिं तम िासक सि ु माम की हत्सया कर
मनस्ु मृतत की मान्यातायें:- इस विंि की स्थापना की थी।
 मनु ने तलाक एविं तवधवा पनु मतववाह की अनमु तत  राजधानी:-‍ गोिावरी के तट पर प्रततष्ठान
नहीं िी थी।
(औरिंगाबाि, महाराष्र) थी, िबतक इनकी
 मनस्ु मृतत में 60 वणमसिंकर िाततयों का उल्लेख है।
प्रारिंतभक रािधानी धान्यकटक (अमरावती) थी।
 मनु ने पत्रु ों को तपता की सिंम्पतत्त में बराबर
तहस्सेिार माना है,  धमि:-‍ब्राह्मण
 मनु ने सात प्रकार के िास बताये हैं।  परु ाणों में इन्हें आिंध्रभृत्सय कहा गया है।
 मनु ने ब्राह्मण को िद्रू कन्या के साथ तववाह की  ऐतरे य ब्राह्मण में आिंध्रों को िस्यु िातत का बताया
अनमु तत िी है। गया है। ‍
 मनु ने तवधवाओ िं के तलए मििंु न का प्रावधान
तकया है, और तस्त्रयों को वेि पढ़ने से माना तकया िातकणी-I (27‍ई.पू.‍–‍17‍ई.पू.)
है।
 यह इस विंि का एक महान िासक था, तिसने िो
 मनु ने आिीतवका के चलाने के तलए अध्यापक
अश्वमेघ यज्ञ तथा एक रािसयू यज्ञ सिंपन्न कराये।
का कायम करने वालों को उपाध्याय, और
तन:िल्ु क तिक्षा िेने वालों को आचायम कहा है।  इसने चािंिी के तसक्कों पर ‘अश्व’ की आकृ तत
 अतधकाररयों को मनु ने भतू मिान के माध्यम से अतिं कत कराई।
भगु तान िेने का समथमन तकया।  िातकणी-I ने ितक्षणापथ का स्वामी की उपातध
धारण की थी।

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 िातकणी की पत्सनी नागतनका के ‘नानाघाट (1) आगमतनलय :- (वेिों का आश्रय िाता)
तिलालेख’ में िातकणी-I की उपलतब्धयों का (2) अतद्वतीय ब्राह्मण
वणमन तवस्तार से तकया गया है। (3) वणमव्यवस्था का रक्षक
 नानाघाट पहला अतभलेख है तिसमें भतु मिान की (4) वर-वरण-तवक्रम-चारु तवक्रम:
िानकारी तमलती है। (5) पवमतों का स्वामी
 िातकणी प्रथम की मृत्सयु के समय उसके िोनों  उसने िकों से मालवा एविं कतठयावाड़ भी छीन
पत्रु अवयस्क थे, इसतलये नागतनका ने सिंरतक्षका तलया।
के तौर पर िासन चलाया, इस प्रकार नागतनका  उसने क्षहरात विंि का नाि तकया, क्योंतक उसका
पहली भारतीय मतहला िातसका थी। ित्रु नहपान इसी विंि का था, तिसे गौतमीपत्रु ने
हराकर मार िाला था।
हाल-I (20‍ई.‍–‍24‍ई.):-‍  गौतमीपत्रु को नहपान की िोगलथम्बी से प्राप्त
 िातकणी प्रथम की मृत्सयु के बाि कई कमिोर कई हिार रित मद्रु ायें तमली, तिसे गौतमीपत्रु ने
सातवाहन रािा हुए लेतकन हाल के समय पनु : अपनी आकृ तत में ढाला।
सातवाहनों की कला सिंस्कृ तत का भरपरू तवकास  िक तविय के उपलध्य में गौतमीपत्रु िातकणी
हुआ। ने वेणाकटक नगर की स्थापना की और
 हाल सातवाहन विंि का 17 वॉ िासक था। वेणाकटक का स्वामी कहालाया।
 इसने प्राकृ त ग्रिंथ गाथासप्तिती (गाथाहासत्तसई)  नातसक अतभलेख में गौतमीपत्रु िातकणी की
की रचना की । तविय का उल्लेख है, इसी प्रितस्त में कहा गया
 हाल के िरबार में ही गणु ाढ्य तनवास करते थे है तक उसके घोड़े तीन समद्रु का पानी पीते थे।
तिन्होंने वृहत्तकथा की रचना की थी।
 इसी के समय में सिंस्कृ त व्याकरण के लेखक वक्षिक्षष्‍ट‍ठ‍पुत्र‍पुलमावी‍(130-154‍ईस्‍वी)‍:-‍
सवमवममन ने कातन्त्र नामक पस्ु तक सिंस्कृ त में  उपातध: ितक्षणापथेश्वर, आिंध्र का िासक
तलखी।  यह िो बार िक िासक रुद्रिामन से परातित
हुआ, लेतकन रुद्रिामन ने इसे मारा नहीं क्योंतक
यह िक िासक रुद्रिामन के भाई का िामाि था।
गौतमीपत्रु ‍िातकणी-I (106‍ई.‍–‍130‍ई.)
 सातवाहन विंि का पनु रूद्धार गौतमीपत्रु के समय यज्ञश्री‍िातकणी-I (165‍ई.‍–‍194‍ई)
में हुआ।
उपातधयािं:-

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 यह सातवाहन विंि का अिंततम ितक्तिाली िाततयों के सतम्मश्रण) को रोका अथामत् वणम
िासक था, तिसके तसक्कों पर मछली, िख िं और सिंकर कुप्रथा को रोकने के तलए चार वणों की
िहाि, नाव अिंतकत है। प्रथा को उसने पनु ः स्थातपत तकया।
 पातिमटर के अनसु ार यज्ञश्री की िेखरे ख में परु ाणों  ब्राह्मणों को भतू मिान या िागीर िेने वाले प्रथम
का पनु संस्करण तैयार तकया गया। िासक सातवाहन ही थे, तकन्तु उन्होंने अतधकतर
 सातवाहन विंि का अिंततम िासक पल ु वामी भतू मिान बौद्ध तभक्षओु िं को ही तिया।
चतथु म था।  भड़ौच सातवाहन काल का प्रमख ु अन्तरामष्रीय
क्षवक्षवध‍तथ्यः- बन्िरगाह एविं व्यापाररक के न्द्र था।
 सातवाहनों की रािकीय भािा प्राकृ त थी िो तक
ब्राही तलतप में थी, सातवाहन नरे ि हाल ने अपने सातवाहन‍कला‍
प्रतसद्द ग्रन्थ गाथा सप्तिती की रचना इसी भािा  सातवाहन कला में गफ ु ाए एविं स्तपू का तविेि
में की। महत्सव है।
 सातवाहन काल में चाििं ी व ताबिं े के तसक्कों का  सातवाहन विंि में पतिमोत्तर िक्कन या महाराष्र
प्रयोग होता था तिसे कािामपण कहा िाता था। में अत्सयिंत िक्षता और लगन के साथ ठोस चट्टानों
 सातवाहनों ने आतथमक लेन िेन के तलए सीसे के को काटकर कर चैत्सय एविं तवहार बनाये गए,
तसक्कों का भी प्रयोग तकया। वस्ततु : यह प्रतक्रया 200 ईसा पवू म के आस पास
 सातवाहन िासकों ने ही सवमप्रथम ब्राह्मणों को एक िताब्िी पहले ही आरिंभ हो चक ु ी थी
भतू मिान या िागीर िेने की प्रथा िरू
ु की।  चैत्सय – बौद्ध मिंतिर या प्राथमना स्थल
 सातवाहनों में मातृसत्तात्समक सामातिक व्यवस्था  तवहार - तभक्षु तनवास
थी।
 प्रमख गि
ु ायें
ु वास्तक ु ला-काले का चैत्सय (भोरघाट,
पनू ा), अििंता एविं एलोरा की गफ ु ाओ िं का  सातवाहन काल में नातसक, काले, कन्हेरी,
तनमामण, अमरावती एविं नागािमनु कोंि के स्तपू ों पीतलखोरा, भािा, िन्ु नार, इत्सयाति गफ
ु ाएिं
का तनमामण। महत्सवपूणम हैं-

सामाक्षजक‍संगठन (1)‍पीतलखोरा‍की‍गि ु ा:-


 गौतमी पत्रु िातकणी ने तवतच्छन होते चातवु मण्यम  यह 14 बौद्ध गफ ु ाओ िं का समहु है, िो महराष्र
(चार वणों वाली व्यवस्था) को तफर से स्थातपत के ओरिंगाबाि तिले में तस्थत है, इनका तनमामण
तकया और वणम सक िं र व्यवस्था (वणों और प्रततष्ठान के व्यापाररयों के द्वारा तकया गया था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
(2)‍भाजा‍की‍गि ु ा:-‍ अमरावती‍स्‍तूप
 भािा गफ ु ा 22 रॉक-कट का समहू है, िो  इसको धान्यकटक स्तपू भी कहते हैं, महाचैत्सय
महाराष्र के लोनावाला में तस्थत है, इनका भी कहते हैं।
तनमामण 2 िताब्िी ईसा पवू म में हुआ है, इन  तस्थतत:- गटिंु ू र
गफु ाओ िं में सयू म तथा इद्रिं िेवता को भी ििामया  खोिकताम:- कनमल मैकेंिी (1797)
गया है, लेतकन यह गफ ु ाएिं मख्ु य रूप से स्थतवर  उत्सखनन:- इतलयट (1840)
बौद्ध तभक्षओ ु िं पर कें तद्रत हैं।  अमरावती स्तपू का तनमामण लगभग 200 ईसा
(3)‍जुन्‍नार‍की‍गुिा:- पवू म में आरम्भ हुआ यह स्तपू तभतत्त-प्रततमाओ िं
से भरा हुआ है, इस स्तपू का तनमामण सम्राट
 िन्ु नार की गफ ु ा महाराष्र के पुणे में तस्थत बौद्ध अिोक ने करवाया था, उसके बाि सातवाहनों
गफ ु ाएिं हैं, ये 150 गफ ु ाओ िं का समहू है, ध्यातव्य ने इसका तवकास करवाया।
है तक क्षत्रपती तिवािी का िन्म इन्हीं िन्ु नार की  यह मुख्यत: बौद्ध स्तपू है, तिसमें िातक
गफ ु ाओ िं में तस्थत तिवनेरी िगु म में हुआ था। कथाओ िं का अक िं न है।
(4)‍काले‍की‍गि ु ा:-‍ नागाजिनु कोंि‍स्‍तूप
 यह गफ ु ाएिं महाराष्र के पणु ें में तस्थत हैं, काले एक  तस्थतत:- गिंटु ू र आिंध्र प्रिेि
आयताकार चैत्सय है, िो सबसे सिंिु र, सबसे  खोिकताम:- लॉग हस्टम (1926)
सरु तक्षत और सबसे बड़ा चैत्सय है, िसू री िताब्िी  इनका तनमामण पहले सातवाहन िासकों और
ईसा पवू म में इसका तनमाणम वतितष्ठ पत्रु पल ु वामी उसके बाि इक्ष्वाकुविंिीय िासकों की रातनयों
के भतू पाल नामक श्रेष्ठी ने तकया था। काले की द्वारा करवाया गया, इक्ष्वाकुविंिीय, सातवाहनों
एक गफ ु ा का िानकताम हरफान नामक पारसीक के सामिंत थे।
था।  व्हेनसािंग के अनसु ार यहािं के तवहार में बद्ध
ु की
(5)‍कन्‍हेरी‍की‍गि ु ा:-‍ बहुत बड़ी सोने की मतू ी थी।
 यह महाराष्र के बोरवली ( मम्िंु बई) में तस्थत  नागािमनी कोण्ि की सबसे बड़ी तविेिता उसका
गफ ु ाएिं हैं, यहािं से 11 तसर वाले अतवलोतक्तश्वर ‘आयमक स्तभिं ’ वाला मच िं था।
की प्रततमा तमली है, कन्हेरी से ही राष्रकूट
 नागािमनु कोंि से व्यायामिाला, अश्वमेघकिंु ि
िासक अमोघविम का एक लेख तमला है।
नहर, कातेकेय का मिंतिर एविं चार बौद्ध सिंप्रिायों
का उल्लेख तमलता है।
स्‍तूप
 सातवाहनों के समय अमरावती और
नागािमनु ीकोंि स्तपू कला के प्रमख
ु कें द्र थे।

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मोयोत्‍तर‍कालीन‍अन्‍य‍राजवंि‍
कक्षलगं ‍के ‍चेक्षद‍राजवि ं हाथीगुम‍िा‍अक्षभलेख
सिंस्थापक:- महामेघवाहन
खोिकताम:- तविप स्टतलंग (1825)
रािधानी :- कतलिंग
 चेति रािविंि को इसके सिंस्थापक के नाम के भािा : प्राकृ त
कारण महामेघवाहन विंि भी कहते हैं। तलतप: ब्राह्मी
खारवेल‍(प्रथम‍िताब्‍दी‍ई.पू.)‍:-
उपातध:- कतलिंगातधपतत, वृद्धराि, आयम महाराि,  अवतस्थतत: यह अतभलेख भवु नेश्वर तिले में
धममराि, तभक्षरु ाि। उियतगरी-खण्ितगरी पहातड़यों पर गफ ु ा सिंख्या 14
पर उत्सकीणम ( तलखा) है।
 ‘खारवेल महाराि’ की उपातध धारण करने वाला
 मतू तम पिू ा का प्रमाण िेने वाला यह पहला
पहला िासक था।
अतभलेख है, इसमें वणमन है तक महापिमनिंि तिन
 खारवेल िैन धमम का अनयु ायी था, खारवेल ने िैन आतितिन की मतू तम ले गया था उसे खारवेल
भवु नेश्वर में उियतगरी-खण्ितगरी गफ ु ाओ िं का अपनी रािधानी वापस लाया था।
तनमामण करवाया।  नहरों का वणमन करने वाला यह प्राचीनतम
 उियतगरी की गफ ु ाओ िं में रानी गफु ा सबसे बड़ी अतभलेख है, इसमें वणमन है तक खारवेल ने अपने
गफ राज्यातभिेक के पाच िं वें विम तनसतु ल से रािधानी
ु ा है, उियतगरी की अन्य गफ ु ाओ िं में गणेि
तक नहर का तवस्तार कराया।
गफ ु ा, हाथी गफ ु ा, स्वगमपरु ी गुफा, मिंचापरु ी गफ
ु ा
 इसमें िैन तभक्षओ
ु िं को ग्रामिान तिये िाने का पहला
इत्सयाति प्रतसद्ध हैं। अतभलेख है।
 अपने िासन काल के 11वें विम खारवेल ने सघिं  इसमें यह भी वणमन है तक खारवेल ने तफ ू ान से नष्ट
ततमरिेि सिंघातकम को परातित कर तपथण्ु ि हुए कतलिंग का पनु मतनमामण करवाया।
नगर में गधों द्वारा हल चलवाया।  इस अतभलेख में यह भी वणमन है तक यद्ध ु में िहािों
 खारवेल के बारे में तवस्तृत िानकारी उसके तनम्न का प्रयोग होता था।
िो अतभलेखों के माध्यम से तमलती है-
आभीर‍वंि
 (1) हाथी गम्ु फा अतभलेख
संस्‍थापक:-‍ईश्वरसेन
 (2) मिंचपरु ी गहु ा लेख
 ईश्वरसेन ने 248-49 ईस्वी में कलचरु र चेति
 इसमें हाथी गम्ु फा अतभलेख सवामतधक महत्सवपणू म
सिंवत् चलाया।
अतभलेख हैं-
 महाभाष्य कहता है तक आभीर तविेिी थे।

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इक्ष्व‍ ाकु‍वि
ं ‍ वाकाटक‍वि ं
 सस्िं थापक: श्रीिातिं मल ू  सस्िं थापक : तवन्ध्यितक्त
 रािधानी: नागािमनु कोण्िा  रािधानी: नन्िीवधमन (नागपरु ), प्रवरपरु
 इक्ष्वाकु िासक ब्राह्मण धमम के अनयु ायी थे तकिंतु  वाकाटकों के वैवातहक सिंम्बध गप्ु तों एविं नाग
उनकी रातनयािं बौद्ध धमम के प्रतत तविेि लगाव िासकों से थे।
रखती थीं। प्रवरसेन‍प्रथम‍(275-335) :-
 इसी विंि की मतहलाओ िं ने नागिु मनकोण्िा में  यह वाकाटकों का सबसे प्रतापी रािा था।
छायास्तभिं ों का तनमामण करवाया।  इसने कुल चार अश्वमेघ यज्ञ, एक वािपेय एविं
सोम यज्ञ तकये थे
भारक्षिव‍वंि‍ रुद्रसेन‍क्षद्वतीय‍(‍385‍–‍390):-‍
 भारतिव लोग मल ू त: बघेलखिंि के तनवासी थे,  यह गप्ु त वि िं का िामाि था, चद्रिं गप्ु त ने अपनी
यह नागरािा िैव विंि को मानने वाले थे इनके पत्रु ी प्रभावती का तववाह इसी से तकया था,
तकसी प्रमखु रािा ने तिव को प्रसन्न करने के रुद्रसेन की मृत्सयु के बाि 13 विों तक प्रभावती ने
तलये धातममक अनष्ु ठान करते हुए भारी-भरकम अपने िो अल्पवयस्क पत्रु ों (तिवाकरसेन एविं
तिवतलिंग को अपने तसर पर धारण तकया था इसी िामोिरसेन) की सिंरतक्षका के रूप में िासन
तलये ये भारतिव भी कहलाने लगे। तकया।
 प्रवरसेन‍क्षद्वतीय:-‍‍प्रवरसेन तद्वतीय ने प्रवरपरु
नामक नई रािधानी बनायी, इसी प्रवरसेन ने
सेतबु धिं नामक ग्रथिं की रचना की ध्यातव्य है तक
कातलिास ने इसी सेतबु िंध में सिंिोधन तकया था।
कोंकण‍का‍मौयि‍वंि
 इनकी रािधानी एलीफें टा के तनकट धारापरु ी थी।
 उन्होनें कुिाणों के पवू ी भाग पर अतधकार कर
तलया था, इस तविय के उपलक्ष में भारतिव नागों  इस विंि को एहोल अतभलेख में पतिमी समुद्र की
ने िस अश्वमेघ यज्ञ तकये थे। वही स्थान आि लक्ष्मी कहा गया है।
वराणसी में ‘ ििाश्वमेघ घाट’ नाम से प्रतसद्ध है।
पक्षिमी‍गंग‍राजवंि
 भारतिव विंि में सबसे प्रतापी रािा वीरसेन थे
तिन्होनें कुिाणों को परास्त कर अश्वमेघ यज्ञ  संस्‍थापक: कोंगवु ममन
तकया था इस प्रतापी रािा का एक तिलालेख  मैसरू में पतिमीगिंग रािविंि का उिय चौथी
उत्सतर प्रिेि के फरुमखाबाि तिले में तमला है। िताब्िी में हुआ।

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क्षवदेिी‍आक्रमण
 तमलिंिपन्हों में नागसेन और तमनािंिर के बीच
भारतीय‍यूनानी‍(इण्िो-ग्रीक) वातामलाप का उल्लेख है।
 उत्तर-पतिम से पतिमी तविेतियों के आक्रमण
मौयोत्तर काल की सबसे महत्सवपणू म रािनीततक यक्र
ू े टाइिीज‍वि ं ‍
घटना थी, इनमें सबसे पहले आक्रान्ता थे  यह तहन्ि यवनों की ही िसू री िाखा थी।
बैतक्रया के ग्रीक (यनू ानी) तिन्हें प्राचीन भारतीय  इस विंि का सबसे ितक्तिाली रािा
सातहत्सय में यवन कहा गया है। एिंतटयालक्रीिस था, इसने ििंगु िासक भागभद्र
 तसकिंिर के बाि भारतीय सीमा में सवमप्रथम प्रवेि के िरबार में अपने रािितू हेतलयोिोरस को भेिा
करने का श्रेय िेमेतरयस प्रथम को है। इसने 183 था।
ई0 प0ू के लगभग पिंिाब के कुछ भाग को
िीतकर साकल को अपनी रािधानी बनाया।  अततिंम तहििं -यूनानी रािा हतममयस था।
 िेमेतरयस ने भारततयों के रािा की उपातध धारण
की और यनू ानी तथा खरोष्ठी िोनों तलतपयों वाले
तसक्के चलाए।
 िेमेतरयस के उपरान्त यक्र ू े टाइि्स ने भारत कुछ
तहस्सों को िीतकर तक्षतिला को अपनी
रािधानी बनाया।

क्षमनांिर‍‍(160-120‍ई.पू.)‍—
 सबसे प्रतसद्ध यवन िासक था। उसने भारत में
यनू ानी सत्ता को स्थातयत्सव प्रिान तकया।
 तमनाििं र को नागसेन ने बौद्ध धमम की िीक्षा िी थी,
इसने बौद्ध तभक्षु नागसेन से वाितववाि के बाि
बौद्ध धमम स्वीकार कर तलया था।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िक‍वंि

‍‍
 यनू ातनयों के बाि भारत पर िकों का हमला  और इसी उपलक्ष्य में तवक्रमातित्सय ने तवक्रम
हुआ। सिंवत् (57 ई.प.ू ) चलाया था।
 िक भारत में िो िाखाओ िं में तवभातित थे-
पक्षिमी‍भारत‍के ‍िक‍
 1. उत्सतरी क्षत्रप:- इनमें तक्षतिला और मथरु ा के
 इनकी भी िो िाखाएिं थीं-
िक िासक िातमल थे,
 1. क्षहरात िक
 2. पतिमी क्षत्रप:- नातसक एविं उज्िैन के िक
िासक।  2. कािममक िक

‍‍‍‍‍तिक्षिला‍के ‍िक‍िासक िहरात‍िक‍


 तक्षतिला के तक्ष िासकों में मेउस प्रथम था और  सिंस्थापक: भमू क
यह भारत का प्रथम िक तविेता भी था।  नहपान इस विंि का सबसे प्रतापी रािा था।
 इसी नहपािंग को मारकर गौतमीपत्रु िातकणी ने
मथुरा‍के ‍िक िोंगलथम्बी तस्थत उसके खिाने पर अतधकार
 मथरु ा का पहला िक िासक रािल ु था, मथरु ा कर तलया था।
के िकों को मालवा में तवक्रमातित्सय ने खिेड़  नहपािंग की रािधानी तमन्ननगर थी।
तिया था,

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कादिमक‍िक‍ क्षहन्द-पाक्षथियन‍या‍पहलव‍वि ं
 सस्िं थापक: चष्टन  पतिमोत्तर भारत में िकों के आतधपत्सय के बाि
पातथमयाई लोगों का आतधपत्सय हुआ।
रुद्रदामन‍(130 -150‍ईस्‍वी)‍:-‍  पातथमयाई लोगों का मल ू तनवास स्थान ईरान था।
 उपातध: महाक्षत्रप  भारत पर आक्रमण करने वाले पातथमयन मल ू रूप
 यह सबसे ितक्तिाली िक रािा था। से अराके तसया (किंधार), सीस्तान (ईरान का एक
 इसके बारे में सवामतधक िानकारी इसके िनू ागढ प्रािंत) के तनवासी थे।
लेख से तमलती है,  सिंस्थापक:- मीथ्रेिेट्स प्रथम (तमथ्रिात तृतीय
रुद्रदामन‍का‍जूनागढ़‍अक्षभलेख 170- 130 ई.प.ू )

 इसको तगररनार अतभलेख भी कहते हैं।  गोन्दोिक्षनिस‍ (20-41‍ ई.):- पहलव विंि का
 तविद्ध ु गद्य सिंस्कृ त भािा में तलखा गया यह पहला सवामतधक ितक्तिाली िासक था।
अतभलेख है।  खरोष्ठी तलतप में उत्सकीणम तख्तेबही अतभलेख (
 सिु िमन झील का सवमप्रथम अतभलेख इसी पेिावर) में इसे गिु व्ु हर कहा गया है, फारसी में
अतभलेख में तमलता है, तिसमें तलखा है तक उसका नाम तबन्िफणम है तिसका अथम है ‘यि
रुद्रिामन ने अपने राज्यपाल सुतविाख के तनिेिन
में सिु िमन बािंध की मरम्मत करवायी। तवियी’।
 रुद्रिामन ने सातवाहन नरे ि वतिष्ठीपत्रु पल ु वामी  इसकी रािधानी तक्षतिला थी।
को िो बार हराया था।  गोन्िोफातनमस के िासन काल में सेंट टाइम ईसाई
धमम का प्रचार करने के तलए भारत आये थे,
पक्षिमी‍ भारत‍ का‍ अंक्षतम‍ िक‍ नरेि‍ :- रुद्रतसिंह तिनकी मद्रास के तनकट हत्सया कर िी गई थी।
तृतीय था, तिसे गप्ु त िासक चिंद्रगप्ु त तद्वतीय ने  िकों तथा पतथमयन िासकों ने सयिं क्ु त िासन का
परातित कर पतिमी क्षत्रपों के राज्य को अपने राज्य चलन प्रारिंभ तकया, तिसमें यवु राि सत्सता के
में तमलाया उपभोग में रािा का बाराबर का सहभागी होता
था।
 इस साम्राज्य का अन्त कुिाणों द्वारा हुआ।

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कुषाण
 पातथमयाई लोगों के बाि कुिाण आये, इनका मल ू  उसके कुछ तसक्कों पर यज्ञ करते हुए रािा की
तनवास स्थान चीन की सीमा पर तस्थत चीनी आकृ तत भी अिंतकत है।
ततु कम स्तान था।
 हमें कुिाणों के िो रािविंिों के बारे में िानकारी कक्षनष्‍टक‍(78-‍101‍ई.)-
तमलती है िो एक के बाि एक आये, पहला  यह कुिाण विंि का महानतम् िासक था।
रािविंि कितफसस कहलाता है।  उपातध:- िेवपत्रु , िाओनानोिाओ ( िहिं िाह),
तद्वतीय अिोक।
कुजल
ु ‍किक्षिसस‍प्रथमः-  इततहास में कतनष्क का नाम िो कारणों से प्रतसद्ध
 यह प्रारिंभ में हतममयस का सामिंत था। है, पहला उसने 78 ई. में एक सिंवत् चलाया िो
 इसके तसक्कों पर इसकी उपातध धममतथिस िक सविं त् कहलाता है आि भी यह सविं त् भारत
अिंतकत है। सरकार द्वारा प्रयोग में लाया िाता है, िसू रा उसने
 यह बौद्ध धमम को मानने वाला था। बौद्ध धमम का मक्त ु हृिय से सम्पोिण एविं सिंरक्षण
तकया।
क्षवम‍किक्षिसेस‍क्षद्वतीयः-  कतनष्क की िानकारी िेने वाला सबसे महत्सवपणू म
 उपातध :- महेश्वर, सवमलोके श्वर, महाराि, अतभलेख रै बातक अतभलेख है, िो तक
रािाततराि, िमअतम (सम्पणू म ब्रह्माण्ि का अफगातनस्तान के सख ु मकोतल से प्राप्त हुआ है।
तनयिंत्रण कताम)।  िसू रा महत्सवपणू म अतभलेख सारनाथ एविं
 सवमप्रथम तवम कितफसस ने ही भारत में कुिाण कौिाम्बी अतभलेख है, तिसमें कतनष्क के
सत्ता की वास्ततवक स्थापना की। पाटतलपत्रु पर आक्रमण कर, अश्वघोि, बद्ध ु का
 सवमप्रथम तवमकितफसेस ने ही भारत में स्वणम तभक्षापात्र एविं अद्भुत मगु ाम प्राप्त करने का
मद्रु ा का प्रचलन तकया, उसने बड़ी सख्िं या में सोने अतभलेख है।
के तसक्के चलवाए, उसके बाि कुिाणों ने सोने  इसके समय में कश्मीर के कुण्िलवन में वसतु मत्र
एविं तााँबे के तवतभन्न तसक्के िारी तकये। की अध्यक्षता में चौथी बौद्ध सगिं ीतत हुई इस
सिंगीतत में बौद्ध ग्रन्थों के ऊपर टीकाएिं तलखी िो
 यह िैव मत का अनयु ायी था, इसके कुछ तसक्कों तवभाििास्त्र कहलाती है।
पर तिव, नन्िी तथा तत्रिल ू की आकृ ततयााँ  कतनष्क की प्रथम रािधानी पेिावर (परुु िपरु )
तमलती है। एविं िसू री रािधानी मथरु ा थी, कतनष्क ने कश्मीर
को िीतकर वहााँ ‘कतनष्कपरु ’ नामक नगर

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बसाया, एविं तक्षतिला में तसरसख ु नामक नगर 4.‍ नागाजिनु :- यह िन्ू यवाि के प्रततपािक और
बसाया। माध्यतमक ििमन के आचायम थे।
 कक्षनष्‍ट‍क‍ का‍ सीमा‍ क्षवस्‍तार:-‍ कतनष्क का
साम्राज्य प्रथम अिंतमरामष्रीय साम्राज्य था, तिसमें 5.‍मथर:- कतनष्क का मिंत्री
चीनी, ततु कमस्तान, कािंधार, काबल ु , समरकिंि
इत्सयाति प्रिेि सतम्मतलत थे, पवू म में कतनष्क का 6. एक्षजक्षसलाओस:- ग्रीक इििं ीतनयर
साम्राज्य गिंगा घाटी एविं ितक्षण में मालवा क्षेत्र
तक फै ला हुआ था। 7.‍सगं रि:- कतनष्क के रािपरु ोतहत
 कतनष्क ने पेिावर में एक स्तूप और तवहार का
तनमामण कराया तिसमें बद्ध ु के अतस्थ-अविेिों कक्षनष्‍ट‍क‍द्वारा‍क्षसड‍क‍मागि‍पर‍अक्षधकार:-‍‍
को प्रतततष्ठत कराया।  कतनष्क ने चीन से रोम की तरफ िाने वाले
 बौद्ध धमम की महायान िाखा का अभ्यिु य और तसल्क मागम की तीनों मख्ु य िाखाओ िं पर अपना
प्रचार कतनष्क के समय में हुआ। तनयिंत्रण स्थातपत कर तलया, ये मागम थे:-
 कतनष्क के तसक्कों पर ईरानी, यनू ानी, बौद्ध एविं 1. कै तस्पयन सागर से होकर िाने वाला मागम।
ब्राह्मण कुल चार धमों के िेवताओ िं का अिंकन 2. मवम से फरात निी होते हुए रूम सागर पर बने
तमलता है। भारतीय िेवताओ िं में तिव, स्किंि और बिंिरगाह तक िाने वाला मागम।
गणेि का अिंकन है। 3. भारत से लाल सागर तक िाने वाला मागम।

कक्षनष्‍ट‍क‍‍के ‍दरबारी रेिम‍मागि‍(‍क्षसड‍क‍रूट)


रे िम मागम प्राचीनकाल और मध्यकाल में
1.‍वसुक्षमत्र‍:- यह चौथी बौद्ध सिंगीतत के अध्यक्ष थे। ऐततहातसक व्यापाररक-सािंस्कृ ततक मागों का
एक समहू था, तिसके माध्यम
2.‍ पाश्‍वि:- इन्हीं के कहने पर चौथी बौद्ध सिंगीतत से एतिया, यरू ोप और अफ्ीका िड़ु े हुए थे, इसका
बल सबसे िाना-माना तहस्सा उत्तरी रे िम मागम है
ु ाई गई थी।
िो चीन से होकर पतिम की ओर पहले मध्य
3.‍अश्‍वघोष‍:-‍यह चौथी बौद्ध सिंगीतत के उपाध्यक्ष एतिया में और तफर यरू ोप में िाता था और तिससे
एविं मुख्य अतततथ थे, इस सिंगीतत में िातमल होने के तनकलती एक िाखा भारत की ओर िाती थी। रे िम
तलए कतनष्क ने इनको साके त से बल मागम का िमीनी तहस्सा 6,500 तकमी लम्बा था और
ु वाया था।
इसका नाम चीन के रे िम के नाम पर पड़ा तिसका
व्यापार इस मागम की मुख्य तविेिता थी।

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वाक्षसष्‍ट‍क:-‍
इसने प्रारिंभ में कतनष्क के साथ कुछ विों तक सिंयक्ु त  कुिाण काल में िो नई प्रथाओ िं का प्रारिंभ हुआ-
िासन तकया था, तफर कतनष्क की मृत्सयु के पश्चात
यह स्वतिंत्र िासक बना, कामरालेख इसकी 1.‍अियनीक्षव:- भ-ू रािस्व का स्थायी िान
उपलतब्धयों के बारे में बताता है।
2.‍देवकुल‍:- रािा की मृत्सयु के बाि उसकी मतू तम
हुक्षवष्‍टक‍(106-138‍ई.):- बना कर उसे मिंतिर में स्थातपत करना।
 इसके समय कुिाण सत्ता का प्रमख ु के न्द्र पेिावर
से हटकर मथरु ा पहुचिं गया।
 हुतवष्क के तसक्कों पर तिव, स्कन्ि, उमा एविं
पािपु त, तवष्ण,ु कततमकेय आति की आकृ ततयााँ
उत्सकीणम तमलती हैं।
 कतनष्क कुल का अिंततम महान सम्राट वासिु वे -
II था, वहीं कुछ इततहासकार लगतममु ान को
कुिाण विंि का अिंततम िासक मानते हैं।
 कुिाण िासकों ने प्रािंतों में द्वैध िासन प्रणाली का
प्रचलन तकया।

मौयोत्सतर कालीन समाि, कला एव सिंस्कृ तत


समाज

 मौयोत्तर काल में तवके न्द्रीकरण तथा सामन्तवाि


का उिय हुआ।
 भारतीय समाि में तविेतियों का
आत्समसातीकरण तितना अतधक मौयोत्तर काल
में हुआ उतना प्राचीन के इततहास में और तकसी
भी काल में नहीं हुआ, यद्यतप इस काल के
तविेिी िासकों को म्लेच्छ कह कर पक ु ारा गया,
परिंतु उन्हे तनम्न क्षतत्रय वगम के रूप में मान्यता
प्रिान कर िी गई।

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मक्षू तिकला‍िैक्षलयां

आधार गांधार‍िैली मथरु ा‍िैली अमरावती‍िैली


बाह्र‍प्रभाव यनू ानी या हेलेतनतस्टक का मतू तमकला यह िैली स्विेिी रूप में यह िैली भी स्विेिी रूप में
पर भारी प्रभाव, अतः इसे भारतीय तवकतसत हुई और बाह्र तवकतसत हुई और वाह्य
यनू ानी कला के रूप में भी िाना िाता सस्िं कृ ततयों से प्रभातवत नहीं थी। सस्िं कृ ततयों से प्रभातवत नहीं
है। थी।
प्रयुक्त‍ प्रारिंतभक गिंधार िैली में नीले धसू र मथरु ा िैली की मतू तमयािं अमरावती िैली की मतू तमयािं
सामग्री बलआ ु -प्रस्तर का उपयोग तकया गया तचत्तीिार लाल बलआ ु प्लस्तर सफे ि सगिं मरमर का उपयोग
है, िबतक बाि की अवतध में तमट्टी का उपयोग करके बनाई गई थी। करके बनाई गई थी।
और प्लस्तर का उपयोग तकया गया
है।
धाक्षमिक‍ ग्रीक रोमन िेवताओ िं के मिंतिरों से तात्सकातलक तीनों धमों तहििं ,ू मख्ु य रूप से बौद्ध धमम से
प्रभाव प्रभातवत था। मख्ु य रूप से बौद्ध बौद्ध तथा िैन का प्रभाव था। प्रभातवत थी।
तचत्रकला पर इसका प्रभाव था।
संरिण कुिाण िासकों का सिंरक्षण प्राप्त कुिाण िासकों का सिंरक्षण प्राप्त सातवाहन िासकों का
हुआ। हुआ। सिंरक्षण प्राप्त हुआ।
क्षवकास‍ उत्तर-पतिम सीमातिं , आधतु नक किंधार मथरु ा, सोख तथा किंकाली कृ ष्णा-गोिावरी की तनचली
िेत्र क्षेत्र में तवकतसत हुई। टीला में और आसपास के क्षेत्रों घाटी में, अमरावती व
में तवकतसत हुई। नागािनमु कोंिा में और
आसपास के क्षेत्रों में
तवकतसत हुई।
बुद्ध‍की‍ गिंधार िैली में लहराते बालों के साथ बद्ध ु को मस्ु कुराते चेहरे के साथ अमरावती िैली में बद्ध ु की
मक्षू ति‍की‍ बद्ध
ु को आध्यातत्समक मद्रु ा में तिखाया प्रसन्नतचत्त तिखाया गया िो तगिं व्यतक्तगत तविेिताओ िं पर
क्षविेषताएं गया है, उन्होंने बहुत कम आभिू ण कपड़े पहने हुए हैं, िरीर ह्रष्ट-पष्टु कम बल तिया गया है,
धारण तकए हैं तथा योग मद्रु ा में बैठे है, चेहरा व तसर मिु ा हुआ है, मतू तमयािं सामान्यतः बद्ध ु के
हैं। आख िं ें आधी बििं हैं, िैसे ध्यान बद्ध
ु की तवतभन्न मद्रु ाओ िं और िीवन व िातक कथाओ िं की
मद्रु ा में हो तसर पर िटा बद्ध ु के उनका चेहरा तवनीत भाव को कहातनयों को ििामती है।
सवमज्ञता को प्रितिमत करता है। ििामता है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
मौयोत्तरकालीन‍साक्षहत्य  बाि में इसे नवीं िताब्िी ई. में एक कश्मीरी
पस्ु तक लेखक द्रधबल ने पनु : सिंिोतधत तकया और यही
महाभाष्य पिंतितल सिंस्करण अब हमें उपलब्ध है।
चरक सिंतहता चरक  पेररप्‍लस‍ऑि‍द‍एरीक्षरयन‍सी:- यह 80 से
नाट्यिास्त्र भरत 115 ईस्वी में अज्ञात ग्रीक नातवक द्वारा यनू ानी
सौन्िरानन्ि अश्वघोि भािा में तलतखत पस्ु तक है, िो मौयोत्सतर कालीन
बद्धु चररत अश्वघोि व्यापार पर सबसे ज्यािा प्रकाि िालती है।
स्वप्न्वासवित्ता भास  नेचुरल‍क्षहस्‍टोररका:-‍यह तप्लनी द्वारा 77 ईस्वी
गाथा सप्तिती हाल में लैतटन भािा में तलतखत पस्ु तक है।
कातिंत्र सवमवममन  ज्‍योग्रािी:-‍यह टॉल्मी द्वारा 150 ईस्वी में ग्रीक
भािा में तलतखत पस्ु तक है।
 कातिंत्र सिंस्कृ त व्याकरण पर आधाररत सवमवममन
की रचना है, सातवाहन रािा हाल की रानी
मलयवती ने हाल को सिंस्कृ त सीखने के तलये
प्रेररत तकया, तिसके फलस्वरूप यह तकताब
तलखी गई। व्यापार
 भास को सवमप्रथम सिंस्कृ त में नाटक तलखने का  आतथमक रूप से इस काल का उज्ज्वल पक्ष है
श्रेय प्राप्त है। वातणज्य व्यापार का तवकास एविं उन्नतत।
 चरक‍संक्षहता:-‍ चरक सिंतहता आि हमें तिस  इस काल के आतथमक िीवन की सबसे महत्सवपणू म
रूप में उपलब्ध है, सभिं वत: उसकी रचना मल ू त: तविेिता है, भारत का मध्य एतिया तथा पािात्सय
आत्रेय के एक तिष्य अतग्नवेि ने ईसापवू म / 7वीं तवश्व के साथ घतनष्ठ व्यापाररक सघिं की स्थापना।
अथवा 8वीं िताब्िी में की थी इसमें आत्रेय की  कुिाण कालीन भारत में व्यापार वातणज्य के क्षेत्र
तिक्षाओ िं का समावेि है, बाि में चरक ने इसमें में स्वणम तसक्कों का तनयतमत रूप से प्रचलन
तचतकत्ससा तवज्ञान से िड़ु े हुए कई तसद्धािंत हुआ, कालान्तर में गप्तु िासकों ने इन्हीं के
समावेतित तकए इस प्रकार वतममान चरक सिंतहता अनक ु रण पर तसक्के चलवाये।
की रचना िसू री िताब्िी से पूवम हुई थी। यह 8
 ईसा की पहली िती में तहप्पालस नाम ग्रीक
भागों में तवभक्त है तिन्हें ‘स्थान’ नाम तिया गया
नातवक ने अरब सागर से चलने वाली मानसनू
है ( िैसे: तनिानस्थान)। प्रत्सयेक ‘स्थान’ में कई
हवाओ िं की िानकारी िी, इससे पतिमी एतिया
अध्याय हैं तिनकी कुल सिंख्या 120 है।

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के बन्िरगाहों से व्यापार और अतधक सगु म हो चांदी‍के ‍क्षसक्‍के:-‍ितमान, द्रम्म।
गया। तांबे‍के ‍क्षसक्‍के:-‍कातकनी
 पतिमी के लोगों को भारतीय गोल तमचम इतनी काषािपण:-‍यह कई प्रकार की तमश्र धातएु िं िैसे
तप्रय थी तक सिंस्कृ त में गोल तमचम का नाम सोना, चािंिी, तािंबा, सीसा, रािंगा इत्सयाति का होता
यवनतप्रय पड़ गया। था।
 रोम की मद्रु ा में होने वाली कमी का अनभु व इतना  सबसे‍ तांबे‍ के ‍ क्षसक्‍के‍ जारी‍ करने‍ वाले:-‍‍
तेि हुआ तक अन्ततोगत्सवा रोम को भारत के साथ कुिाण
गोल तमचम और इस्पात के माल का व्यापार बन्ि  स्‍टेटर:-‍इण्िं िो ग्रीक िासकों के स्वणम तसक्के (
करने के तलए किम उठाना पड़ा। 130 ग्रेन)
 अररकामेिु में 1945 में हुई खुिाई से ई0 सन् की  ओबालका:-‍इण्िं िो ग्रीक िासकों के चािंिी के
प्रथम िो ितातब्ियों के रोमन मृिभाण्िों के अनेक तसक्के (11.6 ग्रेन)
टुकड़ों के साथ-साथ एक रोमन व्यापाररक के न्द्र  कुिाणों के स्वणम तसक्कों को िीनार भी कहा
(बस्ती) के अविेिों का पता चला है। िाता था, तिनका विन 124 ग्रेन था।
 उत्सखनन के आधार पर कहा िा सकता है तक  भारतीय यनू ानी िासकों ने सवमप्रथम ऐसे तसक्कों
अतधकतर नगर ईसा की पहली एविं िसू री सतियों को िारी तकया तिसमें िासकों के नाम और
कुिाण काल में फूले फले अथामत् नगरीकरण आकृ तत खिु ी होती थी।
कुिाण काल में चरमोत्सकिम पर था।  मौयमकाल के अन्त तक तसक्कों पर के वल कोई
 पेररप्लस आफ ति एररतथ्रयन सी नाम की पस्ु तक तचन्ह अतिं कत होता था, (िासकों का नाम आति
में भारत द्वारा रोमन साम्राज्य को तनयामत तकया तसक्कों पर नहीं होते थे।
िाने वाला सामान का तववरण तिया है।  सातवाहनों ने भारी मात्रा में पोटीन (पक्की तमट्टी)
 तप्लनी ने ‘नेचरु ल तहस्री’ नामक अपने तववरण तसक्के भी िारी तकये।
में िःु ख भरे िब्िों में कहा है। तक “भारत के साथ
व्यापार करके रोम अपना स्वणम भण्िार लटु ाता मोयोत्‍तर‍कालीन‍बंदरगाह
िा रहा है”।
 आररकामेिु में हुई हाल की खिु ाई से एक ऐसी पतिमी तट :- भड़ौच एविं सोपारा
रोमन बस्ती के तविय में िानकारी तमली है िो पवू ी तट:- अररकामेिु और ताम्रतलतप्त प्रतसद्ध
व्यापाररक के न्द्र के रूप में प्रतसद्ध थी। बन्िरगाह थे।
 ितक्षण में मालाबार तट पर मतु िररस और ततमल
मौयोत्‍तर‍कालीन‍क्षसक्‍के समद्रु तट पर कावेरीपत्तनम या पहु ार और
सोने‍के ‍क्षसक्‍के:- तनष्क, पल, स्वणम

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अररकामेिु रोमन व्यापार के तीन महत्सवपणू म कोरकई बििं रगाह:- यह पाण्िं ि्य वििं का प्रमख ु
व्यापाररक के न्द्र थे। बिंिरगाह था, यह मोततयों के तलये प्रतसद्ध बिंिरगाह
भड़ौच बिंिरगाह:- इन सभी बन्िरगाहों में भड़ौच सबसे था, पेररप्लस में इसका नाम कॉल्ची तमलता है।
महत्सवपूणम बन्िरगाह था, इसे भृगक
ु च्छ भी कहा िाता
था, यनू ानी इसे वेररगािा बिंिरगाह कहते थे, पतिमी
िेिों के साथ अतधकािंि व्यापार इसी बिंिरगाह से होता
था

बारबेररकम बिंिरगाह:- यह तसिंध के महु ाने के पर तस्थत


था, वतममान में यह कराची ( पातकस्तान ) के तनकट
है।

अररकमेिु बिंिरगाह:- आधतु नक पािंतण्िचेरी में यह


बििं रगाह तस्थत था, यहािं की सबसे बड़ी तविेिता
1945 में हुई खिु ाई के िौरान तमली रोमन बस्ती है,
पेररप्लस पस्ु तक में इस बिंिरगाह का नाम पेिोक
तमलता है।

मिु ररस बिंिरगाह:- यह वतममान के रल में तस्थत है,


और चेर साम्राज्य का तविेि बिंिरगाह था।

बिंिर बिंिरगाह:- यह भी चेर विंि का बिंिरगाह था।

सोपारा बििं रगाह:- यह आधतु नक महाराष्र में तस्थत


था।

सैतमतलया बिंिरगाह:- इसका प्रतसद्ध नाम चौल


बिंिरगाह है, यह महाराष्र में तस्थत था।

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गुप्त‍वंि‍
 गप्ु त रािविंि के साथ भारत का इततहास एकसंनये स्थापक — श्री गुप्त
चन्द्रगुप्त‍प्रथम‍(319-335 ई.)
यगु में प्रवेि करता है कुिाण साम्राज्य के पतन
चन्द्रगप्त प्रथमः- (319-35 ई0) — गुप्त वंश का वास्तववक
रािधानीसंस्–थापक राजधानी – पाटलिपुत्र
के बाि िेि मेंु एक सिी तक तवश्रृिंखलता फै ली पाटतलप त्रु
रही और इस अिान्त तस्थतत का319लाभई0उठाकर  गप्तु ववत’िंि चिाया
में नया संवत ‘गप्ु त सं
का वास्ततवक सिंस्थापक
उत्सतरी भारत में कई छोटे-छोटे स्वतिंत्र राज्य उठ  319 ई0 में नया सिंवत ‘गप्तु सविं त’ चलाया- इस
लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाहिक संबंध स्थावपत करने के कारण वि अपने को “लिच्छनयः दौहित्र” किता था।
खड़े हुए। सविं त् का सवमप्रथम प्रयोग चद्रिं गप्ु त तद्वतीय के
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने कमथ े लसक्क े ” जारीख ककया।
रु ा अतभले में हुआ है,
 मौयोत्सतर काल के बाि तिस विंि ने उत्सतर भारत
को एकता के सत्रू में बाधिं सम र
ु ग
ा वह वप्ु ि
िं तः-गप्ु इसकी
त वि
िं था,भी उपाधध –  तलच्छवी की, “रािक
लिच्छनयःदौहित्र कववराज” ु मारी कुमार िेवी के साथ
इसी यगु में आकर वृहत्सतर भारत (Greater वैवातहक सिंबिंध स्थातपत तकया, और इस तववाह
ववजय अलभयानों की जानकारी — ‘प्रयाग प्रशास्स्त से’
India) की अवधारणा पणू म हुई, इसी काल में के उपलक्ष्य में गप्ु तों का पहला तसक्का तववाह
ननंसेट आथथर ने इसे “भारत का नेप्रकार/ पोलियन” राििम्किा पततिै।प्रकार चलाया।
परु ाणों महाकाव्यों एविं ििििम न को अिंततम रूप
तिया गया। लसक्को पर वीणा बजाते िुए धचत्रत्रत ककया गया िै ।

 सवमप्रथम गप्ु तकाल को स्वणम यगु कहने वाले – ‍‍‍‍ समुद्रगुप्‍त‍(335-‍375‍ई.)‍


इसने भी अश्वमेघ यज्ञ कराए और “अश्वमेघ पराक्रमांक” की उपाधध धारण की।
के .एम. मिंि ु ी।  उपाक्षध‍– तलच्छनयः िौतहत्र, “कतवराि”,
राम गुप्तः- धममप्राचीरबध िं , सवमरािोच्छे ता।
इसकी पत्नी ध्रव गप्ु ‍तों‍की‍उत्‍
ु स्वालमनी पक्षत्त‍का‍क्ष
को प्राप्त करने स केद्धातं ‍ शकों का आक्रमण 
लिए िुआ।अन्‍इसय‍नाम:-‍
घटना की चद्रिं जानकारी
प्रकाि ववशाखदत्त कृत “देवी चन्द्रगप्ु तम”
 वैश्य :- रोतमला थापर, रमिरण िमाम गनामक  क्षिोती
प्ु तों कोग्रन्द्थ से प्राप्त िै । भयानों‍की‍जानकारी — ‘प्रयाग
वजय‍अक्ष
वैश्य मानते हैं। प्रितस्त से’
 क्षतत्रय:- आर.सी. मििंमू िार, गौरी ििंकर ओझा  तवसेंट आथमर ने इसे “भारत का नेपोतलयन” कहा
चन्द्रगुप्त द्ववतीय ‘ववक्रमाहदत्य’:- अन्द्य नाम-दे वराज या “दे वगुप्त”
 िद्रू :- कािी प्रसाि िायसवाल ( वतज्िका के है।
परमभागवत की उपाधध उसके धमथननष्ठ वैष्णव िोने की पुस्ष्ट करता िै ।
सिंस्कृ त नाटक कोंकणीं महोत्ससव के आधार पर )  तसक्को पर वीणा बिाते हुए तचतत्रत तकया गया
 ब्राह्मण:- हेमचिंि राय चौधरी चााँदी की मर ु ा का प्रचिन करने वािा है। पििा गप्ु त शासक
दस
 इसने भी अश्वमेघ यज्ञ कराएू और
ू री राजधानी — उज्जनयनी (ववद्या एवं संस्कृनत का प्रलसद्ध केन्द्र) इससे पििे ववहदशा को दस
“अश्वमेघ
री राजधानी बनाया
सस्ं थापक‍—‍श्री‍गप्तु ‍ पराक्रमाक िं ” की उपातध धारण की।
श्रीगप्ु त गप्ु त विंि का सिंस्थापक था, इसके बाि नवरत्नः-
घटोत्सकच रािा बना, सिंभिवत:
अमरलसं , वेतयह
ाि िोनों
भट्टस्, वत िंत्रतिासक
धन्द्वं रर, शंकु, घटकपरर, क्षपण, कालिदास, वरािलमहिर, वररूधच
नहीं थे।
शक ववजेता किा जाता िै ।

फाह्यानः-

चन्द्रगप्ु त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की।
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COMPLET BATCH & STUDY NOTES चन्द्र के पाटलिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
समद्रु गप्ु ‍त‍की‍यद्ध
ु नीक्षत:- 3.‍दक्षिणापथ‍की‍क्षवजय:-‍इस यद्ध ु में समद्रु
 1‍ .‍ अयािवति‍ (‍ उत्‍तर‍ भारत)‍ की‍ नीक्षत:-‍ गप्ु त ने कुल 12 राज्यों को परातित तकया, इन
प्रसभोद्धरण अथमत् पणू मतया उखाड़ फें कना, एविं राज्यों के प्रतत समद्रु गप्ु त द्वारा ग्रहणमोक्षानग्रु ह
तवलय करना। नीतत अपनायी गई।
 2.‍दक्षिणापथ‍नीक्षत:- ग्रहणमोक्षानग्रु ह अथामत्  ितक्षणापथ की तविय में सबसे महवपणू म
तवलय न करना, मात्र करि बनाकर छोड़ िेना, िासक काच िं ी का पल्लव िासक तवष्णगु प्ु त
वहीं िब परातित िासक के राज्य का साम्राज्य एरणपल्ल का िासक िमन, पालक्क का
का तवलय कर तलया िाता था, तो उसे तितग्विय िासक उग्रसेन, वेंगी का िासक हतस्तवमाम,
कहा गया है। कुिस्थलपरु का िासक धनििं य था।
 3.‍ आटक्षवक‍ नीक्षत:- परचाररकीकृ त अथामत  समद्रु गप्ु त की ितक्षण तविय को इततहासकार
सेवक बना िेना। राय चौधरी ने धममतविय की सिंज्ञा िी।

समुद्र‍गुप्‍त‍की‍क्षवजयें 4. आटक्षवक‍राज्‍यों‍की‍क्षवजय:- ये आटतवक


(1) आयािवति‍ का‍ प्रथम‍ युद्ध‍ :-‍ इसमें राज्य उत्सतर प्रिेि के गािीपरु तिले से लेकर मध्य
समद्रु गप्ु त ने तीन िासकों को हराया, प्रिेि के िबलपरु तक फै ले थे, समद्रु गप्ु त के द्वारा
A.‍अच्‍यतु ‍ इन राज्यों को अपना सेवक बना तलया गया।
B.‍नागसेन:-‍ग्वातलयर के पिमावती में िासन
था। ‍‍ 5.‍सीमावती‍राज्‍यों‍की‍क्षवजय:-‍इन राज्यों
C.‍कोतकुलज:-‍ पाटतलपत्रु में यद्ध ु तविय के को समद्रु गप्ु त द्वारा िीतकर इनसे कर तलया िाता
पश्चात िब समद्रु गप्ु त तविय की खि ु ी मना रहा था।
था, तब इन लोगों ने उसे कै ि कर तलया था, बाि  उत्सतरी व पवू ी सीमा पर तस्थत इन राज्यों की
में समद्रु गप्ु त ने इनको यद्ध ु में हराया। सिंख्या 5 थी-
(1) कतमपरु :- इसकी पहचान िालिंधर में
2.‍आयािवति‍ ‍का‍दूसरा‍यद्ध ु ‍:- इस अतभयान तस्थत करतारपरु से की िाती है।
में समद्रु गप्ु त ने कुल 9 रािाओ िं को हराया- 1. (2) समतट:- पवू ी बिंगाल अथवा आधतु नक
रुद्रिेव 2. मतत्तल 3. नगाित्सत 4. चिंद्रवमाम 5. बािंग्लािेि।
गणपततनाग 6. नागसेन 7. अच्यतु 8. निंतन्ि 9. (3) िवाक्:- इसकी पहचान असम के
बलवमाम। नवगॉव तिले से की िाती है।
(4) कामरूप:- वतममान असम
(5) नेपाल

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 समद्रु गप्ु त के समय श्रीलिंका में मेघवममन का की आकृ तत है, और पीछे मकर वातहनी गगिं ा की
सम्राज्य था, मेघवममन ने गया में बद्ध ु मतिं िर आकृ तत उत्सकीणम है।
बनाने की अनमु तत प्राप्त करने के तलये समद्रु गप्ु त के बारे में उपरोक्त सभी िानकाररयों
समद्रु गप्ु त के पास ितू भेिा था। का स्त्रोत प्रयाग प्रितस्त है।
 समद्रु गप्ु त को कभी परािय का सामना नहीं
करना पड़ा इसीतलये प्रतसद्ध इततहासकार प्रयाग‍प्रिक्षस्त‍अक्षभलेख
तवसेंट तस्मथ ने उसे भारत का नेपोतलयन क्षस्थक्षत:-‍मल ू रूप से कौिाम्बी में तस्थत थी,
कहा है। बाि में अकबर ने इसे इलाहाबाि के तकले में
स्थातपत करवाया।
समद्रु गप्ु ‍त‍के ‍क्षसक्‍के लेखक: हररिेण
भाषा:-‍सस्िं कृ त
1.‍परिुप्रकार‍:-‍इसके उपरी भाग पर समद्रु गप्ु त क्षलक्षप:-‍ब्राह्मी
बाएिं हाथ में धनिु तलये खड़ा है, और पीछे उसकी िैली‍:-‍चिंम्पू (गद्य-पद्य का तमश्रण)
उपातध कृ तान्त परिु अिंतकत है। कुल‍पक्षक्तया:-‍33
सविप्रथम‍पढने‍वाला:- कै प्टन ए.ड्रायर
2.‍ गरुड‍ प्रकार:-‍ इस प्रकार के तसक्के  प्रयाग प्रितस्त अिोकस्तिंभ पर उत्सकीणम है।
नागवििं ी रािाओ िं के ऊपर तविय का सक
िं े त है।  इसमें समद्रु गप्ु त की तवियों का उल्लेख है।
 प्रयाग प्रितस्त में गिंगाअवतरण का उल्लेख
3. धनिध ु ारी‍ प्रकार‍ :-‍ इसमें समद्रु गप्ु त की है।
उपातध अप्रततरथ: अतिं कत है, और इन तसक्कों में  प्रयाग प्रितस्त में पाटतलपत्रु को पष्ु प नगर
कहा गया है,
समद्रु गप्ु त धनिु बाण तलये खड़ा है।
 कई प्रकार के अस्त्र-िस्त्रों का उल्लेख इसमें
तिया गया है।
4.‍अश्‍वमेघ‍प्रकार:-‍यह तसक्के समद्रु गप्ु त द्वारा
 इस प्रितस्त पर िहािंगीर एविं बीरबल का भी
अश्वमेघ तकये िाने का प्रमाण है। लेख है।
 प्रयाग प्रितस्त में कोई भी तततथ नहीं िी गई
5.‍ वीणावादन‍ का‍ प्रकार:-‍ इन तसक्कों में है, न ही इसमें समद्रु गप्ु त द्वारा तकये गये
समद्रु गप्ु त वीणा बिाते हुए उत्सकीणम है, िो उसके अश्वमेघ यज्ञ का वणमन है।
सिंगीत प्रेमी होने का प्रमाण है।
6.‍व्‍याघ्र-हनन‍प्रकार:-‍इसके उपरी भाग पर
धनिु - बाण से व्याघ्र का तिकार करते हुए रािा

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
राम‍गप्तु  चााँिी की मद्रु ा का प्रचलन करने वाला पहला गप्तु
 इसकी पत्सनी ध्रवु स्वातमनी को प्राप्त करने के तलए िासक
िकों का आक्रमण हुआ, सिंतध की ितों के  दूसरी‍राजधानी — उज्िैनी (तवद्या एविं सस्िं कृ तत
अनसु ार रामगप्ु त को अपनी पत्सनी धव्रु स्वातमनी, का प्रतसद्ध के न्द्र) इससे पहले तवतििा को िसू री
िक रािा को िेना था तकिंतु छोटा भाई चिंद्रगप्ु त रािधानी बनाया।
ध्रवु स्वातमनी का भेिधारण कर स्वयिं िक रािा
के ियन कक्ष में चला गया और िक रािा को चंद्रगप्ु ‍त‍क्षद्वतीय‍के ‍वैवाक्षहक‍सबं ध
ं ‍‍
मार िाला, तफर उसने अपने भाई रामगप्ु त को भी  चद्रिं गप्ु त तवक्रमातित्सय ने यद्ध ु से ज्यािा वैवातहक
मार िाला तफर अपनी भाभी से तववाह कर तलया सिंबिंधों के द्वारा अपने राज्य की सीमा का तवस्तार
। इस घटना की िानकारी तविाखित्त कृ त “िेवी तकया-
चन्द्रगप्तु म” नामक ग्रन्थ से प्राप्त होती है। 1.‍नागवि ं :-‍चद्रिं गप्ु त ने नागविंि की रािकुमारी
 रामगप्ु त के कुछ तािंबे के तसक्के एरण एविं कुबेरनागा से तववाह तकया, तिससे कन्या
तभतलसा से प्राप्त हुए है इस प्रकार रामगप्ु त पहला प्रभावती गप्ु ता पैिा हुई। नागविंि का क्षेत्र मथरु ा
गप्ु त िासक था, तिसने तािंबे की मद्रु ाएिं चलायीं। अतहक्षत्र पद्मावती ( ग्वातलयर) तक फै ला हुआ
था।
चन्द्रगप्तु ‍क्षद्वतीय‍‘क्षवक्रमाक्षदत्य’ 2.‍कदमराजवंि:-‍तालगिंिु अतभलेख से पता
उपाक्षधयां:-‍ चलता है तक इस विंि के िासक ने अपनी पत्रु ी
 िेवराि – साचिं ी लेख में अिंतकत का तववाह चद्रिं गप्ु त तवक्रमातित्सय के पत्रु
 सहसाक िं – स्वयिं चद्रिं गप्ु त तद्वतीय ने यह उपातध कुमारगप्ु त प्रथम से तकया था। यह रािविंि
ली थी। कनामटक में िासन करता था।
 िकारी - िकों का ित्रु 3.‍वाकाटक‍वि ं :-‍ वाकाटकों का सहयोग
 िेवगप्ु त – प्रवरसेन के चमक लेख में यह उपातध प्राप्त करने के तलए चिंद्रगप्ु त ने अपनी पत्रु ी
अिंतकत है। प्रभावती गप्ु ता का तववाह वाकाटक नरे ि रुद्रसेन
तद्वतीय से तकया, ध्यातव्य है तक वाकाटक और
 परमभागवत – यह उपातध उसके धममतनष्ठ वैष्णव
गप्ु तों ने सिंयक्ु त होकर िकों का उन्मल ू न कर
होने की पतु ष्ट करता है।
िाला था।
 चिंद्र - मेहरौली लौह स्तिंभ में अिंतकत
 िेव िक‍क्षवजय:-
 तवक्रमातित्सय- िक तविय के पश्चात यह उपातध चिंद्रगप्ु त तवक्रमातित्सय ने उज्िैन के अिंततम िक
धारण की िासक रुद्रसेन तृतीय को 409 ई. में परातित तकया।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
इस तविय के उपलक्ष्य में उसने मालवा क्षेत्र में व्याघ्र िाह्यान‍
िैली के चािंिी के तसक्के चलाये।
 चन्द्रगप्तु तद्वतीय के िासन काल में यह चीनी
नवरत्न
यात्री भारत आया।
 काक्षलदास- सातहत्सयकार, नवरत्सनों में सबसे  प्रतसद्ध ग्रन्थ ‘फू-की-की’ की रचना की।
प्रमखु  यह उत्सतर पतिम के स्थल मागम से आया, परिंतु
 अमरक्षसंह‍ - कोिकार (Lexicographer) िाते समय िल-मागम से गया ( ताम्रतलप्ती)।
थे।‍  वह चीन के बाि खोतान एविं कासगर गया,
 वेताल‍भट्ट- िािगू र थे। खोतान में वह गोमती तवहार में ठहरा इस तवहार
में महायान सिंप्रिाय के 10000 हिार तभक्षु रहते
 धन्वतं रर- तचतकत्ससक थे।
थे।
 िक ं ु - वास्तक
ु ार( Architect) थे।  इसके बाि वह पिंिाब होता हुआ मध्य िेि (
 घटकपि- कूटनीततज्ञ थे। नॉथम इतिं िया) आया और इसी मध्य िेि का
 िपणक- फतलत ज्योतति के िानकार उसने तवस्तृत वणमन तकया है-
1. मध्य िेि ब्राह्मणों का िेि था।
 वराहक्षमक्षहर- फतलत ज्योतति के प्रणेता, खगोल
2. यहािं मृत्सयिु ििं नहीं तिया िाता था, आतथमक
तवज्ञानी
िििं अतधक प्रचतलत था।
 वररूक्षच‍–‍व्याकरण के ज्ञानकताम
3. मध्य िेि के लोग मािंस-मतिरा, प्याि
लहसनु का प्रयोग नहीं करते थे, के वल चािंिाल
िाह्यान
इसके अपवाि थे।
 मलू नाम- किंु ि 4. मध्य िेि के लोग क्रय-तवक्रय में कौतियों
 फाह्यान एक चीनी यात्री था, िो बौद्ध धमम का का प्रयोग करते थे।
अनयु ायी था, उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ  श्रावस्ती तस्थत िेतवन तवहार, तन:िल्ु क
तमत्रों हुई- तचिंग, ताओचेंग, हुई – तमिंग, के साथ तचतकत्ससालयों की उसने प्रििंसा की।
भारत यात्रा प्रारिंभ की।  पाटतलपत्रु में उसने अिोक का रािमहल िेखा
 फाह्यान की भारत यात्रा का उद्येश्य बौद्ध और उससे इतना प्रभातवत हुआ तक उसे
हस्ततलतपयों एविं बौद्ध स्मृततयों को खोिना था। िेवताओ िं द्वारा तनतममत बताया।
 यह कुल 15 विम ( 399- 414 ई. ) तक भारत
में रहा।
 इसकी पस्ु तक में तत्सकालीन गप्ु त िासक
चिंद्रगप्ु त का कोई उल्लेख नहीं है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
चंद्रगप्ु ‍त‍क्षवक्रमाक्षदत्‍य‍के ‍‍अक्षभलेख कुमारगप्तु ‍ प्रथम‍ (महेन्द्राक्षदत्य)‍ (414-455‍
मथुरा‍स्‍तभ
ं ‍लेख:-‍यह चिंद्रगप्ु त तद्वतीय का प्रथम ई0)
अतभलेख है।  कुमारगप्ु त चिंद्रगप्ु त की पत्सनी ध्रवु िेवी से उत्सपन्न
पत्रु था, सवामतधक समय तक िासन करने वाला
उदयक्षगरर‍गुहा‍लेख:- यह चिंद्रगप्ु त के सिंतधतवग्रहक गप्ु त नरे ि यही था, इसने कुल 40 विों तक राि
वीरसेन िैव का है, उियतगरी का िसू रा अतभलेख तकया।
चिंद्रगप्ु त के सनसातनक महाराि का है िो तक मालवा उपाक्षध:- महेंद्रातित्सय
का गवनमर था।  तबहार में पटना के तनकट “नालन्िा
तवश्वतवद्यालय” की स्थापना करवाया।
मेहरौली‍लौह‍स्‍तभ ं ‍लेख‍:-‍मल ू रूप से यह व्यास  नालिंिा तवश्वतवद्यालय की यात्रा ह्वेनसािंग ने की
निी की एक पहाड़ी पर तस्थत था, तिसे तिल्ली के थी। उस समय वहााँ का प्रधानाचायम िीलभद्र था।
रािा अनिंगपाल तोमर ने उसके मल ू - स्थान से हटाकर
 गप्ु त िासकों में सवामतधक (18) अतभलेख
तिल्ली के मेहरौली में स्थातपत करवाया, यह एक
कुमारगप्ु त के प्राप्त हुए हैं,
मरोणोत्सतर अतभलेख है अथामत चद्रिं गप्ु त तद्वतीय के
मरने के पश्चात् तलखा गया अतभलेख है, इसमें वणमन
कुमारगुप्‍त‍के ‍अक्षभलेख‍
है तक चिंद्रगप्ु त तद्वतीय ने तसिंधु निी को पार कर
 क्षबलसि‍अक्षभलेख- यह उत्सतर प्रिेि के एटा
बाहतलकों (परवती कुिाण) को हराया।
तिले में तस्थत है, और यह कुमारगप्ु त के
िासनकाल का प्रथम अतभलेख है, इसमें
सांची‍ लेख:- यह चिंद्रगप्ु त तद्वतीय के सेनापतत
ध्रवु िमाम ब्राह्मण के द्वारा काततमकेय भगवान का
आम्रकाद्धमव बौद्ध का है, इसमें ग्राम पिंचायतों का
मतिं िर बनवाने का उल्लेख है, इसमें गप्ु तों की
वणमन है।
विंिावली भी प्राप्त होती है।
गढ़वा‍ लेख:-‍ यह अतभलेख उत्सतर प्रिेि के  करमदण्ं ‍िाअक्षभलेख-‍ यह उत्सतर प्रिेि के
इलाहाबाि से प्राप्त हुआ है, यहािं से गप्ु तों के चार फै िाबाि तिले में तस्थत है, इसकी स्थापना
अतभलेख प्राप्त हुए तिनमें एक चिंद्रगप्ु त तद्वतीय का, कुमारगप्ु त के मत्रिं ी पृथ्वीसेन ने तिव की मतू तम के
िो कुमारगप्ु त के और एक सिंभवत: स्किंिगप्ु त का। नीचे भाग पर की थी।

 मंदसौर‍अक्षभलेख:-‍यह अतभलेख मध्य प्रिेि


में तस्थत है, तिसकी रचना कुमारगप्ु त के िरबारी
कतव वत्ससभरट्ट ने की थी, इस अतभलेख में
तिंतवु ाय श्रेतणयों ( रे िम बनु कर) द्वारा सयू म मिंतिर

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
का तनमामण कराये िाने का उल्लेख है, इस हूण
अतभलेख में गप्ु त सिंवत् के स्थान पर तवक्रम सिंवत्
का प्रयोग तकया गया है।  स्किंिगप्ु त के काल में मध्य एतियाई एक बबमर
िातत हूणों का आक्रमण हुआ ये मिंगोल िातत
 तुमैन‍अक्षभलेख-‍‍यह अतभलेख मध्य प्रिेि के
के थे िो सीतथयनों की एक िाखा थी
गनु ा तिले में तस्थत है, इसमें कुमारगप्ु त को
 काले हूणों का नेता-नेता एरट्टला
िरिकालीन सयू म की भातिं त बताया गया है।
 श्वेत हूण – एपथलाइट्स
 भारत में हूणों का प्रथम आक्रमण खुिनवाि के
 उदयक्षगरी‍गुहालेख-‍इसमें ििंकर नामक व्यतक्त नेतत्सृ व में हुआ इस समय रािा तो कुमारगप्ु त था
द्वारा तीथंकर पाश्वमनाथ की मूततम स्थातपत तकये लेतकन उसने हूणों का िमन करने के तलए
िाने का उल्लेख है।‍ स्किंिगप्ु त को भेिा, हूण तविय के उपलक्ष में
स्किंिगप्ु त ने एक तवष्णु स्तिंभ बनवाया
 मनकुवर‍अक्षभलेख-‍यह अतभलेख इलाहाबाि  करीब 30 विम पश्चात् हूणों ने िोबारा आक्रमण
तकया तिसका नेता तोरमाण था।
तिले में तस्थत है, और बद्ध
ु प्रततमा के नीचे भाग
 तोरमाण हूणों का प्रथम िासक था तिसने भारत
पर बद्ध
ु तमत्र नामक बौद्धतभक्षु द्वारा तलखवाया के मध्यवती भागों में अपना तविय अतभयान
गया। तकया था।
 तोरमाण का पत्रु तमतहरकुल था िो िैव धमम का
 गढ़वा‍के ‍दो‍क्षिलालेख-‍इलाहाबाि में तस्थत उपासक था, प्रारम्भ में बौद्ध धमम का तिज्ञासु
है इसमें स्वणम तसक्कों का उल्लेख आया है। व्यतक्त था बाि में कट्टर तवरोधी।
 कुमारगप्ु त बिंगाल से धनिैह, िामोिरपरु एविं तमतहरकुल को परातित करने का श्रेय — मालवा के
वैग्राम ताम्रपत्र तमले हैं, िामोिरपरु को उस समय िासक यिोवममन तथा मगध के िासक नरतसहिं गप्तु
पण्ु ड्रवधमन कहा िाता था, तिसका राज्यपाल बालातित्सय को िाता है।‍
तचरागित्सत था।
स्कंदगुप्त‍(‍455-‍467‍ई.)
 उपाक्षधयां-‍
क्रमातित्सय – तसक्कों पर।
तवक्रमातित्सय – तभतरी अतभलेख में प्राप्त
िक्रोपम – कहौम अतभलेख में प्राप्त

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
स्‍कंदगप्ु ‍त‍के ‍अक्षभलेख:-‍  कहौम स्तिंभ लेख- यह उत्सतर प्रिेि के गोरखपरु
 जनू ागढ‍अक्षभलेख‍– यह अतभलेख गिु रात से तिले से प्राप्त हुआ है इसमें वणमन है तक भद्र
प्राप्त हुआ है, इसमें वणमन है तक तगरनार के नामक एक व्यतक्त ने पािंच िैन तीथंकरों के प्रततमा
परु पतत चक्रपातलत के द्वारा सिु िमन झील के बािंध का तनमामण करवाया था।
का पनु तनममामण करवाया गया-  सुक्षपया‍का‍लेख‍– मध्य प्रिेि के रीवा तिले से
सुदििन‍झील‍का‍इक्षतहास प्राप्त, गप्ु त विंि को घटोत्सकच विंि कहा गया है।
 इन्ं ‍दौर‍ताम्रपत्र‍- यह उत्सतर प्रिेि के बल ु िंििहर
 सिु िमन झील का तनमामण चिंद्रगप्तु मौयम के तिले के एक स्थान से तमला है, इसमें सयू म पिू ा
िासन काल में सौराष्र के प्रातिं पतत पष्ु यगप्तु का उल्लेख है।
वैश्य द्वारा कराया गया था। परवती‍गुप्‍त‍िासक‍
 यह झील/ बाधिं , उिमयत ( तगरनार) में उिमयत
 परुु गप्ु त:- यह स्किंिगप्ु त के बाि रािा बना, इसने
पहाड़ी से तनकले सवु णमतसकता और
पालतसनी झरनों के िल को िमा करके वैष्णव धमम छोड़कर बौद्ध धमम ग्रहण कर तलया।
बनायी गई थी।  इसके बाि बद्ध ु गप्ु त, नरतसहिं गप्ु त बालातित्सय,
 बाि में िब यह झील िीणम अवस्था को प्राप्त भानगु गप्ु त, वैन्यगप्ु त, कुमारगप्ु त तृतीय और
हो गई, तब अिोक के महामात्सय तिु ास्प ने तवष्णगु प्ु त िासक बने।
इस झील का पनु तनममामण कराया।
 परवती गप्ु त िासकों में भानगु प्ु त का एरण
 िक रािा रुद्रिामन के समय यह झील सख ू अतभलेख (510 ई.) है, तिसमें हूण आक्रमण
गई, तफर इस बािंध को िोबारा बनवाने का
काम रुद्रिामन के मिंत्री सतु वसाख ने तकया। का उल्लेख है, तिनसे लड़ते हुए भानगु प्ु त का
 स्किंिगप्तु के िासन के पहले ही साल में इस सेनापतत गोपराि मारा गया, तफर गोपराि की
झील का बााँध टूट गया था, तिससे प्रिा को पत्सनी सती हो गई, यह सती प्रथा का प्रथम
बड़ा कष्ट हुआ पणमित्सत गप्ु त िासक अतभलेखीय साक्ष्य है।
स्किंिगप्ु त का रािकममचारी था, तिसने प्रतसद्ध  गप्तु वि िं का अतन्तम िासक — ‘तवष्णगु प्तु ’
सिु िमन झील का िीणोद्धार करवाया था।
पणमित्सत का पत्रु चक्रपातलत था तिसने इस
झील के तनकट तवष्णु मिंतिर स्थातपत तकया
था।

 तभतरी स्तभिं लेख – यह उत्सतर प्रिेि के गािीपरु


तिले में तस्थत है, इसमें पष्ु यतमत्रों ओर हूणों के
साथ स्किंिगप्ु त के यद्ध
ु का वणमन है।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
गप्तु कालीन‍प्रिासन‍पद्धक्षत  ग्राम सभा को पिंचमण्िली एविं ग्राम िनपि कहा
‍‍‍‍‍‍‍‍‍कें द्रीय िाता था
‍ ‍ कें द्रीय‍प्रिासन‍के ‍पदाक्षधकारी
‍‍‍‍‍प्रांत‍(‍देि, भुक्षक्त, अवक्षन)‍

‍‍‍‍‍क्षवषय‍(क्षजला)‍ सतन्धतवग्रहक सतिं ध व यद्ध
ु का मत्रिं ी
 कुमारामात्सय गप्तु साम्राज्य के सबसे बड़े
‍‍‍‍‍‍‍‍‍वीक्षथ‍(तहसील)‍ अतधकारी (IAS)
 खाद्यटपातकक रािकीय भोिनालय का
‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍पेठ‍
अध्यक्ष

‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ग्राम‍ महािण्िनायक न्यायाधीि
 गप्तु साम्राज्य की िासन व्यवस्था राितन्त्रात्समक िण्िपातिक पतु लस अतधकारी
थी। रािपि विंिानगु त था। लेतकन रािगद्दी हमेिा ध्रवु ातधकरण भतु मकर वसूलने वाला
ज्येष्ठ पत्रु को ही नहीं तमलती थी। गप्तु साम्राज्य महाक्षपटतलक प्रमख ु िस्तावेिों और
की रािधानी पाटतलपत्रु थी। अतभलेखों को तलतपबद्ध
करने वाला
 गप्तु रािाओ िं ने प्रातिं ीय एविं स्थानीय िासन की
तवनयतस्थतत धमम व नैततकता का
पद्धतत चलाई।
स्थापक अतधकारी
 राज्य कई भतु क्तयों अथामत प्रािंतों में तवभातित था
महाबलातधकृ त सेना का सवोच्च
और हर भतु क्त का प्रभारी उपररक होता था।
अतधकारी
 भतु क्तयााँ कई तवियों (तिलों) में तवभातित थी
महापीलपू तत हातथयों की सेना का
तिसका प्रभारी तवियपतत होता था।
अतधकारी
 प्रत्सयेक तविय को तवतधयों में बािंटा गया था और भटाश्वपतत घड़ु सवार सेना का प्रधान
तवतथयााँ ग्रामों में तवभातित थीं। परु पाल नगर का प्रधान अतधकारी
करतणक भतु मआलेखों को सरु तक्षत
पेठ — यह ग्राम समहू की इकाई थी। ग्राम रखने वाला, यह
प्रिासन की सबसे छोटी इकाई थी। माहक्षपटतलक के अधीन
ग्राम सभा — ग्राम का प्रिासन ग्राम सभा द्वारा होता था
सिंचातलत होता था, तिसका मतु खया ग्रातमक गोप्ता‍—‍यह िेि का प्रिासक था िो सम्राट
कहलाता था एविं अन्य सिस्य महत्तर कहलाते द्वारा सीधे तनयक्त
ु तकया िाता था
थे।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
राजस्व‍के ‍स्त्रोत  वास्तु — वास करने योग्य भतू म।
 गप्तु काल में सामान्यतः भतू म पर सम्राट का  तखल — िो भूतम िोती नहीं िाती थी।
स्वातमत्सव माना िाता था। वह भतू म से उत्सपन्न  अप्रहत — तबना िोती गई ििंगली भतू म।
उत्सपािक के 1/6 भाग का अतधकारी था। इस  चारागाह — पिओ ु िं के चारा योग्य भतू म।
प्रकार के कर को भाग कहा िाता था।
 अमरकोि में 12 प्रकार की भतू म का उल्लेख
कुछ‍प्रमुख‍करः-
तमलता है,
 भाग — भतू म उपि का लगभग 1/6 भाग।
 नारद‍स्‍मक्षृ त‍के ‍अनस
ु ार‍भक्षु म‍के ‍प्रकार-
 भोग — रािा को प्रतततिन िी िाने वाली फल-
 अद्धमतखल- तिस भतू म पर 1 विम से खेती न
फूल सब्िी आति की भेंट।
की गई हो।
 उद्रगिं — एक प्रकार का भतू मकर
 तखल – तिस भतू म पर 3 विम तक खेती न
 उपररकर — एक प्रकार का भतू मकर की गई हो।
 भतू ावात प्रत्सयाय — तविेिी वस्तओु िं के आयात  वन- तिस भतू म पर 5 विम से खेती न की गई
पर लगा कर। हो।
 िल्ु क — सीमा, तबक्री की वस्तओ ु िं आति पर  गप्ु त काल में तसिंचाई के साधनों में अरघट्ट
लगने वाला कर। (रहट) का वणमन है।
 तवतष्ट – यह बेगार या तन:िल्ु क श्रम था।
 बतल – गप्ु त काल का धातममक कर। भूक्षम‍माप‍की‍इकाईया:-‍‍

1. तनवमतन
 करों की अिायगी िोनों ही रूपों तहरण्य (नकि) 2. पाटक
तथा मेय (अन्न) में की िाती थी। 3. नड़
4. कुल्यावाप
आक्षथिक‍जीवन 5. द्रोणवाप
 गप्तु रािाओ िं का िासन काल आतथमक दृतष्ट से समृतद्ध 6. आढ़वाप
एविं सम्पन्नता का काल माना िाता है। इस काल में कृ ति
लोगों का मख्ु य व्यवसाय था। व्‍यापार‍एव‍ं वाक्षणज्‍य
 आतथमक उपयोतगता की दृतष्ट से भतू म के कई  गप्ु त यगु में व्यापार व वातणज्य में प्रगतत हुई,
प्रकार बताए गए हैं िैसे- लेतकन इसकी तल ु ना मौयोत्सतर काल के
 क्षेत्र — खेती के तलए उपयक्त
ु भतू म।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
व्यापर व वातणज्य से करें तो व्यापार में कमी  व्यापाररयों की एक सतमतत होती थी तिसे तनगम
आई। कहा िाता था, तनगम का प्रधान श्रेतष्ठ कहलाता
श्रेणी था, व्यापाररयों के समहू को साथम तथा उनके
 िब उद्योगों और व्यापार में लगे व्यतक्त नेताओ िं को साथमवाह कहा िाता था।
सिंगतठत होकर अपने तहतों की रक्षा करने के
तलये एक सस्िं था बनाते थे, तो श्रेणी का िन्म गप्ु ‍तकालीन‍क्षसक्‍के
होता था, अथामत् सिंगतठत व्यापररक एविं  गप्तु साम्राज्य के तवतभन्न भागों से तसक्कों के 16
औद्योतगक समहू को श्रेणी कहा िाता था। ढेर तमल है तिनमें से सबसे अतधक महत्सवपणू म
 इस प्रकार श्रेणी के तलए अनेक िब्ि प्रयक्ु त बयाना (भरतपरु क्षेत्र में) का पिंिु है।
होते थे। िैस-े कुल, पनू ा, गण, तनकाय सघिं  नगर श्रेतष्ठन बैंकरों एवम् साहूकारों के रूप में कायम
समहू , सम्भयू समत्सु थान, सिंव्यवहार, तनगम करते थे।
आति।  सोने के तसक्कों को गप्तु अतभलेखों में िीनार कहा
 मिंिसौर अतभलेख से पता चलता है तक रे िम िाता था, िो प्रारिंभ में कुिाण तसक्कों की भािंतत
बनु करों की श्रेणी ने एक भव्य सयू म मिंतिर का 124 ग्रेन के थे, लेतकन बाि में गप्ु तों ने उनका
तनमामण कराया था। विन 144 ग्रेन कर तिया।
 चााँिी के तसक्कों का प्रयोग स्थानीय लेन-िेन में
‍स्थान व्यापाररयों‍ की‍ तकया िाता था। चााँिी के तसक्कों का प्रचलन
श्रेणी चन्द्रगप्तु तद्वतीय की िकों के तवरूद्ध तविय के
पिात् आरम्भ हो गये थे, तिनका विन 33 ग्रेन
इन्िौर तैतलयों की श्रेणी हुआ करता था।
तवतििा हाथी िााँत के कारीगर  रामगप्तु को छोड़कर चन्द्रगप्तु तद्वतीय से पवू म के
तााँबे के तसक्के नहीं के बराबर हैं। कुिाणों के
उज्िैतयनी अनाि व्यापारी तवपरीत गप्तु ों के तााँबे के तसक्के बहुत ही कम
नातसक बनु कर तमलते हैं।
मििं सौर रे िम बनु कर  सबसे अतधक स्वणम तसक्के चलाने का श्रेय गप्ु तों
मथरु ा आटा पीसने वाले को ही प्राप्त है, यद्यतप सवामतधक िद्ध ु स्वणम
कारीगर तसक्के चलाने का श्रेय कुिाणों को है।
कौिाम्बी गतन्धक

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
गप्तु ‍कालीन‍सांस्कृक्षतक‍गक्षतक्षवक्षधयााँ‍‍‍‍‍ नचनाकुठारा‍का‍पाविती‍मक्षन्दरः-‍
 कला और सातहत्सय की दृतष्ट से — क्लातसकल क्षस्थक्षत‍- सतना (म. प्र.) में अियगढ़ के समीप
यगु तथा स्वणम यगु  क्षनमािण‍:-‍बलआ ु पत्सथर से ।
 प्राचीन भारत में मतन्िरों का तनमामण सवमप्रथम गप्तु  यह भी पिंचतायन िैली का मतन्िर है।
यगु में हुआ। क्षभतरगांव‍का‍म‍ंक्षदर:-‍
 पहले के मतन्िर सपाट थे बाि में तिखर यक्त ु  तस्थतत:- कानपरु (उत्सतर प्रिेि)
मतन्िर बनने लगे  यह गप्ु तकाल का ईटोंिं से तनतममत पहला मिंतिर है,
िो तक तवष्णु भगवान को समतपमत है।
गप्तु ‍कालीन‍मक्षन्दरों‍की‍क्षविेषताए:ं -‍ क्षसरपरु ‍का‍लक्ष्‍मण‍मक्षं दर:-‍
 अतधकािंि मतन्िर प्रस्तर से तनतममत है। इसका  तस्थतत: रायपरु (छत्सतीसगढ़)
अपवाि तभतरगााँव (कानपरु , उ0 प्र0) तसरपरु  यह भी के वल ईटों से तनतममत मिंतिर है।
(छत्सतीसगढ़) िो ईटों द्वारा तनतममत है।
 गप्तु कालीन मतन्िरों में द्वारपालों के स्थान पर — मक्षणयारमठ‍का‍मक्षन्दर
गिंगा और यमनु ा की मतू तमयााँ है।  क्षस्‍थ‍क्षत:- नालिंिा (तबहार) में
 गिंगा ‘मकरवातहनी’ व यमनु ा को ‘कूममवातहनी’  वृत्ताकार िैली का महत्सवपणू म मतन्िर, इसके
तिखलाया गया है। तनकट एक उमरूनुमा स्तपू बना है।
 इस मिंतिर को मतणनाग मिंतिर भी कहते हैं, कुछ
देवगढ़‍का‍दिावतार‍मक्षन्दर इततहासकार इसको महाभारत कालीन भी मानते
 क्षस्थक्षत:- लतलतपरु (उत्सतर प्रिेि) हैं।
 क्षनमािण‍:-‍सम्भवतः गप्तु काल के अतन्तम समय नागोद‍(भूमरा)‍का‍मक्षन्दर
में  क्षस्‍थ‍क्षत: म0 प्र0 में िबलपरु इटारसी रे लवे लाइन
 िेवगढ़ के ििावतार मिंतिर का तिखर 12 मीटर पर
ऊिंचा है िो भारतीय मिंतिर तनमामण में तिखर का  खोजकताि:‍राखलिास बनिी
पहला उिाहरण है।  पिंचतायन िैली का मतन्िर एविं यह मिंतिर तिव को
 मतू तमयों तथा पौरातणक कथाओ िं का तनरूपण, समतपमत है।
रामावतार एविं कृ ष्णावतार िोनों से सम्बतन्धत
दृश्य, इसके अततररक्त तवष्णु के ििाअवतारों का क्षतगुवा‍का‍क्षवष्‍ट‍णु‍मंक्षदर:‍
भी अिंकन  तस्थतत : िबलपरु (म.प्र.)

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बौद्धगहु ा‍मक्षं दर:‍ ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍अजन्ता‍की‍गि
ु ाएाँ
 अििं ता की गफ ु ा सिंख्या 16, 17 और 19 गप्ु त
 क्षस्थक्षत: महाराष्र के औरिंगाबाि तिले में
काल की मानी िाती हैं,
 खोजकताि:‍िेम्स अलेंक्िेिर
गुप्त‍कालीन‍क्षचत्रकला
 तनमामण:- कई विंिों द्वारा ( गप्ु त, राष्रकूट,
 वात्ससायायन ने अपने प्रतसद्ध ग्रन्थ ‘कामसत्रू ’ में वाकाटक, चालक्ु य, यािव विंि द्वारा)
तचत्रकला की गणना 64 कलाओ िं के अन्तगमत की  कुल — 29 गफ ु ाएाँ (16, 17, 19 गप्तु काल
है। से सम्बतन्धत)
 कातलिास ने इन्हें ‘तचगचायं’ कहकर पक ु ारा है।  गफ ु ा सिंख्या-16 में ही मरणासन्न रािकुमारी
 तचत्रकारी हेतु प्रयक्त ु रिंगः- (हरा, लाल, काला, का तचत्र अिंतकत है।
पीला, सफे ि, भरू ा)  गफ ु ा सिंख्या-17 में िातक कथाओ िं का सबसे
बेहतरीन प्रििमन हुआ है।
 इसके अलावा नीला, गिंिे हरे रिंग का प्रयोग तकया
 गफ ु ा-16 की एक िीवार पर ‘अिातित्रु और
िाता है। महात्समा बद्ध ु ’ की भेंट का तचत्र है।
 ‘Lapis lazuli’ रिंग को प्रिंिे फारस से आयात
तकया िाता था।
अिन्ता की गफ ु ाए मख्ु यतः “बौद्ध धमम से
सम्बतन्धत हैं।
क्षचत्रकारी‍की‍क्षवक्षधः-
फ्े स्को — तचत्रकारी गीले प्लास्टर पर तविद्ध ु रिंगो का
प्रयोग करके की िाती थी। बाघ‍की‍गुिाएाँ‍
टेम्पोरा — सखू े प्लातस्टक पर तमतश्रत रिंगों का प्रयोग
करके  गुिाओ‍ं की‍कुल‍संख्या — 9
 क्षस्थक्षत‍: म0 प्र0 के धार तिले में तवन्ध्याच
िं ल
पवमत के समीप नममिा की सहायक निी
माहामती से 2-3 तकमी0 िरू ी पर
 खोजकताि: िेंिरफील्ि ( 1818 ई.)
 बाघ गफ ु ा की िसू री गफु ा को पाण्िव गफ ु ा,
तीसरी को हाथीखाना गफ ु ा तथा चौथी को
रिंगमहल गफ ु ा कहा िाता है।
 यहीं पर बाघेश्वरी िेवी का प्राचीन मिंतिर है।
स्थानीय लोग इन्हें पचिं पाििं व के नाम से
पक ु ारते हैं ।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
गप्तु ‍कालीन‍मक्षू तिकला  समातध की मद्रु ा — इसमें बद्धु ध्यान मद्रु ा में है।
 गप्तु कालीन मतू तमकला का िन्म “मथरु ा कला उनके िोनों हाथ गोि में इस प्रकार रखे हैं तक
िैली” से हुआ है। उनकी हथेली एक िसू रे पर तटकी है।
 भतू म स्पिम की मद्रु ा — इस मद्रु ा का अतभप्राय है
गप्तु ‍कालीन‍मूक्षतिकला‍और‍मथुरा‍कला‍िैली‍में‍ तक वे काम के िेवता आए पर तविय प्राप्त करने
मल
ू भतू ‍अन्तरः- के प्रमाण में पृथ्वी को गवाह बना रहे हैं।
 मथरु ा कला िैली की मतू तमयों को सन्ु िर बनाने के  उपिेि की मद्रु ा — िोनों हाथ इस प्रकार सीने से
तलए नग्नता का प्रििमन हुआ है िबतक गप्तु लगे है तक िााँया हाथ का कतनष्ठा व अगिं ठू ा बाएाँ
कालीन मतू तमकारों ने अपनी मतू तमयों में मोटे हाथ की माध्यतमका को छू रहे हैं।
उत्तरीय वस्त्रों का प्रयोग तकया है।
 कुिाण कालीन मतू तमयों में प्रभामण्िल सािगी के बद्ध
ु ‍की‍खडी‍मक्षू तियााँ:-‍
तलए हुए है वही गप्तु काल में सुसतज्ित अभय‍मुद्रा:‍िािंया हाथ अभय की मद्रु में, िबतक
प्रभामिंिल बनाए गए हैं। बािंए हाथ से वस्त्र पकड़े हैं।
 गप्तु कालीन मतू तमकला के के न्द्र — मथरु ा, बरद‍मुद्रा:-‍उत्ससिमन की मद्रु ा है, बाल घाँघु राले
सारनाथ और पाटतलपत्रु है, चेहरे पर आध्यात्समवाि की स्पष्ट झलक है।

बौद्ध‍धमि‍से‍समबक्षन्धत‍मूक्षतियाः- ब्राह्मण‍धमि‍से‍समबक्षन्धत‍मक्षू तियााँ:-


 महात्समा बद्ध
ु की तवतभन्न मद्रु ाओ िं में धातु एविं  तिन िेवी िेवताओ िं की मतू तमयों का तनमामण हुआ
पािाण मतू तमयों का तनमामण हुआ है। उसमें तिव तथा तवष्णु का महत्सवपणू म स्थान है।
 सवामतधक प्रतसद्ध मतू तम — भागलपरु तिले में  िेवगढ़ के ििावतार मतन्िर में तवष्णु को िेिनाग
सल्ु तानगिंि नामक स्थान से प्राप्त 7½ फीट ऊाँ ची के ऊपर बैठा तिखलाया गया है।
कािंसे की बनी बद्ध
ु प्रततमा  तभल्सा (म0 प्र0) के नििीक उियतगरर गुफा के
 इस मतू तम को वतममान में ‘बतकम घम पैलेस’ में रखा महु ाने पर िािंतो से पृथ्वी उठाए वराह की प्रततमा
गया है। का तनमामण तकया गया है।

महात्मा‍बुद्ध‍की‍बैठी‍हुई‍मूक्षतियााँ:- मंक्षदर‍वास्तुकला‍की‍िैक्षलयााँ
 अभय की मद्रु ा — इसमें बद्ध ु पद्मासन मद्रु ा में बैठे  तिल्प िास्त्र नामक ग्रिंथ के अनसु ार मिंतिर
हैं, िायााँ हाथ अभय की मुद्रा में उठा है। इसे वास्तक ु ला की तीन श्रेतणयािं बतायी गई है। इसे
आिीवाि की मुद्रा कहा िाता है। मतिं िरों की िैलीगत बनावट के आधार पर तथा

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क्षेत्रीय तवतवधता के आधार पर तवभातित तकया आकृ तत पायी िाती है िो द्रतवड़ िैली की प्रमख ु
गया हैं:- तविेिताओ िं में से एक है।
 1. नागर िैली।  इस िैली के मिंतिर कृ ष्णा तथा तिंगु भद्रा निी से
 2. द्रतवड़ िैली। लेकर कुमारी अिंतरीप तक पाये िाते हैं।
 3. बेसर िैली।  इस िैली को चोल, पल्लव, राष्रकूट और पािंि्य
रािाओ िं द्वारा सिंरक्षण प्रिान तकया गया।
नागर‍िैली
नागर िैली के मतिं िरों के गभमगहृ तल तवन्यास में बेसर‍िैली
वगामकार होते थे तथा उध्वम तवन्यास में तिखर गोलाई बेसर िब्ि का अथम तमतश्रत होता है, यह तमश्रण नागर
तलए होते हैं, तिसकी रे खाएिं ततरछी और चोटी की िैली तथा द्रतवड़ िैली का तमतश्रत रूप है, इन िैतलयों
तरफ झक ु ी हुई होती है। इनके िीिम पर आमलक और के तमश्रण-स्वरूप तविंध्य पवमत तथा कृ ष्णा निी के बीच
कलि की व्यवस्था होती है। इनका तवकास हुआ।
 नागर िैली के मिंतिर तहमालय से लेकर तविंध्य  इस िैली में मिंतिर तवन्यास द्रतवड़ िैली में,
पवमत तक पाये िाते हैं। िबतक रूप नागर िैली में होता है।
 इस िैली में प्रािंतीय आधार पर भी तवतवधता  इस िैली को होयसल तथा चालक्ु य नरे िों द्वारा
पायी िाती है िैसे — उड़ीसा के मिंतिर तथा सिंरक्षण प्रिान तकया गया।
गिु रात के मतिं िर आति

द्रक्षवड‍िैली साक्षहत्य
इस िैली के मतिं िरों में वगामकार गभमगहृ पाया िाता है।  इस काल में अनेक स्मृततयों एविं सत्रू ों पर भाष्य
इसके उध्वम तवन्यास में तवमान सीढ़ीिार तथा तपरातमि तलखे गये अनेक परु ाणों तथा रामायण एविं
आकार के पाये िाते हैं। तवमान के ऊपर का िीिम भाग महाभारत को अिंततम रूप तिया गया। नारि,
स्ततू पका कहलाता है। कात्सयायन, पारािर, वृहस्पतत आति स्मृततयों की
 द्रतवड़ िैली के मतिं िरों की मुख्य तविेिता एक रचना हुई।
तविाल प्रािंगण का पाया िाना है, इसके अिंिर
मिंतिर स्थातपत होता था। इस प्रािंगण में प्रायः
िलकिंु ि पाये िाते हैं, साथ ही कई कक्ष और
अन्य मतिं िर भी होते हैं।
 प्रागिं ण का मख्ु य प्रवेि द्वार गोपरु म कहा िाता
था। इसके िीिम पर िोनों तरफ गाय के सींग िैसी

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गप्तु काल‍की‍महत्वपण ू ि‍रचनायें वाराहक्षमक्षहर ‍
पस्ु तक लेखक  िन्मस्थान : उज्िैन
ऋतु सिंहार कातलिास  पुस्‍तक:पिंचतसद्धातन्तका, वृहत्ससतिं हता,
मेघितू कातलिास लघिु ातक, तववाह पटल, योगमाया।
कुमार सिंभव कातलिास  वाराहतमतहर ने बताया चिंद्रमा पृथ्वी के चक्कर
मालतवकातग्नतमत्रम कातलिास लगाता है, और पृथ्वी सयू म के चक्कर लगाती है।
अतभज्ञान िाकुन्तलम कातलिास  पिंचतसद्धाततका गतणत ज्योतति सिंबिंतधत ग्रिंथ है।
मद्रु ाराक्षस तविाखित्त
िेवी चन्द्रगप्तु म् तविाखित्त आयिभट्ट‍प्रथम
हिमचररत बाणभट्ट
 जन्‍म: पाटतलपत्रु (476 ई.)
कािम्बरी बाणभट्ट
 पस्ु ‍तक:‍ सयु म तसद्धािंत, आयमभरट्टयम् ,
स्वप्नवासित्ता भास
ििगीततका
तकरातािमतु नयम भारतव
 आयमभट्ट का प्रथम ऐततहातसक खगोलिास्त्री
पिंचतसद्धान्त वराहतमतहर
कहा िाता है।
ब्रह्रा तसद्धान्त आयम भट्ट
आयमभरट्टयम आयम भट्ट  आयमभट्ट ने ही गणना की, ििमलव प्रणाली का
उल्लेख तकया है, ध्यातव्य है तक ििमलव
सयू म तसद्धान्त आयम भट्ट
प्रणाली का अतवष्कार एक अज्ञात भारतीय ने
पिंचतन्त्र तवष्णि ु माम
तद्वतीय िताब्िी ई.प.ू तकया था।
नीततिास्त्र कामन्िक
मृच्छकतटकम् िद्रू क  इन्होंने सवमप्रथम विम की लिंबाई 365 तिन बतायी।
तहतोपिेि नारायाण आयमभट्ट ने पाई () का तनकटतम मान 3.1416
बताया।
 आयमभट्ट पहले खगोलिास्त्री तिन्होंने सयू म ग्रहण
एविं चद्रिं ग्रहण को वैज्ञातनक कारण बताया।
गप्ु ‍तकालीन‍क्षवज्ञान‍एवं‍तकनीकी
 गप्ु तकाल में समाि एविं सिंस्कृ तत का तवकास तो
हुआ ही लेतकन सवामतधक तवकास तवज्ञान एविं ब्रह्मगप्ु ‍त‍
तकनीकी दृतष्ट से हुआ।  िन्म: उज्िैन
 पस्ु तक: ब्रह्म तसद्धािंत

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इन्होनें ही गरुु त्सवाकिमण तसद्धािंत की कल्पना की  पालकव्य नामक वेटरे नरी ( पितु चतकत्ससक) ने
और बताया तक पृथ्वी सभी वस्तओ ु िं को अपनी हस्त्सयायवु ेि नामक ग्रिंथ की रचना की।
ओर आकतिमत करती है।

भास्‍कर‍प्रथम‍
 पस्ु तक: महाभास्कयम, लघभु ास्कयम और भाष्य
 आयमभट्ट के तसद्धािंतों को आधार बनाकर
भास्कर प्रथम ने आयमभरट्टयम पर अश्मकतिंत्र
नाम से टीका तलखी।

भास्‍कराचायि‍(भास्‍कर‍क्षद्वतीय):
 िन्म: खानिेि, महाराष्र
 पस्ु तक: तसद्धािंततिरोमतण
 भास्कराचायम को कै लक ु लस का
अतवष्कारकताम माना िाता है।
 इनकी पस्ु तक तसद्धािंततिरोमतण के चार भाग हैं,
1. लीलावती
2. बीिगतणत
3. ग्रहगतणत
4. गोला
 लीलावती का फारसी अनवु ाि मगु लकाल में
फै िी ने तकया।

क्षचक्षकत्‍सािास्‍त्र
 िश्रु तु , गप्ु तकाल के िल्यतचतकत्ससक
(प्लातस्टक सिमन) थे, इन्होनें प्लातस्टक सिमरी
में प्रयक्ु त होने वाले 121 यिंत्रों का वणमन तकया
है।
 चिंद्रगप्ु त तवक्रमातित्सय के िरबार में आयमवु ेि के
प्रतसद्ध तचतकत्ससक धनवन्तरी थे, तिन्होन
तनघण्टु पस्ु तक तलखी।
 नवनीतकम् एक आयवु ेि ग्रिंथ है तिसकी रचना
गप्ु त काल में हुई।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

गप्ु ‍तोत्‍तर‍काल‍
राजनीक्षतक‍दिाः- तवके न्द्रीकरण के यगु का आरम्भ हुआ,
संस्थापक — श्री गप्ु त
• गप्तु काल के पतन के बाि भारतीय हिमवधमन के राज्यारोहण के साथ ही उसकी
चन्द्रगुप्त प्रथमः- (319-35 ई0) — गुप्त वंश का वास्तववक समातप्त
संस्थापक हुई।राजधानी – पाटलिपुत्र
रािनीततक इततहास में एक ऐसी प्रवृतत्त का
आतवभामव हुआ िो तवतभन्न ई0 मेंमेंलगभग
319रूपों नया संवत ‘गुप्त संवत’ चिाया

1000 ई0‍तक हावी रही। • हिम के पवू म वधमन विंि की रािधानी थानेश्वर
लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाहिक संबंध स्थावपत करने के कारण वि अपने को “लिच्छनयः दौहित्र” किता था।
• यह प्रवृतत्त थी — तवके न्द्रीकरण और थी। तकन्तु हिम ने कन्नौि को अपनी
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने के लसक्क े ” जारी ककया।
रािधानी बनाई।
क्षेत्रीयता की भावना।
• सातवीं सिी तक आते-आते पाटतलपत्रु के
समुर गुप्तः- इसकी भी उपाधध – लिच्छनयःदौहित्र, “कववराज”

गुप्त‍वंि‍के ‍पतन‍के ‍बाद‍क्षजववजय न‍नये‍अलभयानों


वंिों‍का‍उदय‍ बरु े तिन आ गये और कन्नौि का तसतारा
की जानकारी — ‘प्रयाग प्रशास्स्त से’
हुआ‍उनका‍क्षववरण‍क्षनमनक्षलक्षखत‍है- चमका। पाटतलपत्रु का रािनीततक पतन
ननंसेट आथथर ने इसे “भारत का नेपोलियन” किा िै ।
इसतलए हुआ क्योंतक इसकी सत्ता एविं महत्ता
पुष्‍ट‍यभुक्षत‍वंि‍(वधिन‍राजवि ‍)‍ पर वीणा बजाते िुए धचत्रत्रत ककया
ं लसक्को वातणज्यगया िैव्यापार
। और मुद्रा धन पर तटकी हुई
सिंस्थापक : नरवधमन थी। अतएव ज्योंही व्यापार में तगरवाट आई
इसने भी अश्वमेघ यज्ञ कराए और “अश्वमेघ पराक्रमांक” की उपाधध धारण की।
रािधानी : थानेश्वर ( बाि में कन्नौि ) मद्रु ा िलु मभ होती गई और अन्ततः पतन हो
राम गुप्तः- गया।
इसकी पत्नी ध्रुवस्वालमनी को प्राप्त करने के लिए शकों का आक्रमण ि•ु आ।हिम
प्रभाकरवद्धिन‍ इसके घटनािासनकीकाल का आरतम्भक
जानकारी ववशाखदत्तइततहास
कृत “दे वी
उपातध: हूणहररणके सरी, गिु मप्रिागर, तसन्ुप्धतम”
चन्द्रग रु ािज्नामक
वर ग्रन्द्थ से प्राप्त िोती
बाणभट्ट िै । से ज्ञात होता है।
अन्य नाम- प्रतापिील
• हिम ने कश्मीर िासक से बद्ध ु के िन्त
प्रभाकरवद्धमन की पत्सनी यिमु तत उसकी मृत्सयु के बाि
अविेि बल पवू मक प्राप्त तकये। वह महायान
चन्द्रगुप्त द्ववतीय ‘ववक्रमाहदत्य’:- अन्द्य नाम-दे वराज या “दे वगुप्त”
सती हो गई थी।
बौद्ध धमम का सिंरक्षक था।
प्रभाकरवद्धमन के बािपरमभागवत
थानेश्वर का िासक हिम का
की उपाधध उसके धमथननष्ठ वैष्णव िोने की पुस्ष्ट करता िै ।
बड़ा भाई राज्यवधमन तद्वतीय बनता है, इसकी हत्सया
चााँदी की मुरा का प्रचिन करने वािा • पििाहिमगकेुप्तकाल शासक में उच्च अतधकाररयों के वेतन
बिंगाल के गौि िासक ििािंक ने धोखे से कर िी थी।
दस
ू री राजधानी — उज्जनयनी (ववद्या एवं संस्कृनत का प्रलसद्ध केन्द्र) इससे पििे ववहदशा को दस
के रूप में िागीरें (भतू म ू अन िान) िी िाती
री ु राजधानी बनाया
थी। भतू म िेने की सामन्ती प्रथा हिम ने ही िरू ु
नवरत्नः-
की।
हषि‍वधिन(606-647‍ई0):-
अमरलसंि, वेताि भट्ट, धन्द्वंतरर, शंकु, घटकपरर, क्षपण •, कालिदास
हिम के िासन , वरािलमहिर
काल, कावररूधच
महत्सव चीनी यात्री
• गप्तु साम्राज्य के तवघटन के पिात उत्तरी
ह्वेनसागिं के भ्रमण को लेकर है। वह 629 ई0
भारत में तिस रािनीततक (पष्ु यभशक तू त वववजे
िंि)ता किा जाता िै।
फाह्यानः-

चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की।
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चन्द्र के पाटलिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
से लेकर 645 ई0 तक भारत में रहा। वह
नालन्िा के बौद्ध तवश्वतवद्यालय में पढ़ने के
तलए और भारत से बौद्ध ग्रन्थ बटोर कर ले
िाने के तलए आया था।
• वह सयू म, तिव एविं बद्ध
ु का उपासक था।
• हिम को तवद्वानों के सम्पोिक के रूप में नहीं
बतल्क तीन नाटकों तप्रयितिमका, रत्सनावली
तथा नागानन्ि के रतचयता के रूप में याि
तकया िाता है। उसे सातहत्सयाकार सम्राट
कहा गया है।
• हिम ितक्षण भारत में अपने साम्राज्य का
तवस्तार नहीं कर सका था। चालक्ु य नरे ि
पल
ु के तिन तद्वतीय से नममिा निी के तट पर
उसका यद्ध
ु हुआ था।
उपलक्षब्धः-
• गप्तु ोत्तर काल के नवेतित राज्यों पर सबसे
लम्बे समय तक िासन तकया।
• इन्होंने हूणों को परातित कर पवू ी भारत
को उनके आक्रमण से बचाया।
• गप्तु ों के उपरान्त उत्तर भारत में सबसे
तविाल राज्य स्थातपत तकया।

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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
राजवंि संस्‍थापक स्‍थान प्रमुख‍ क्षविेष/‍उप‍लक्षब्ध
िासक
मैत्रक‍ भट्टाकम वल्लभी भट्टाकम , • गप्ु तोत्सतर काल के नवोतित राज्यों पर सबसे
धवु मसेन- II लम्बे समय तक िासन तकया।
धममसेन-IV • चीनी यात्री इतत्ससिंग (671 ई.) ने यहािं तस्थत
वल्लभी तवश्वतवद्यालय की प्रि िं सिं ा की है।

यिोधमिन‍वंि‍ यिोधममन मालवा यिोधममन • इसका प्रतसद्ध अतभलेख मिंिसौर अतभलेख


है तिसका लेखक वासुल है
• मििं सौर प्रितस्त में उसे “िैनेन्द्र” कहा गया
है, क्योंतक इसने वाकाटकों, गप्ु तों एविं हूणों
को परातित तकया था।
मगध और कृ ष्ण गप्ु त मालवा िेवगप्ु त और • मधवु न और वसिं खेड़ा अतभलेख िेवगप्ु त से
मालावा के आतित्सयसेन सिंबिंतधत है, िेवगप्ु त ने बिंगाल के गौि
और
उत्सतर गप्ु त ििािंक के साथ तमलकर हिम के बिे भाई
मगध राज्यवधमन की हत्सया कर िी थी।
• आतित्सयसेन ने तीन अश्वमेघ यज्ञ तकये थे,
इसके समय चीनी रािितू वािंग-हुएन-त्ससे ने
िो बार भारत की यात्रा की।
• उत्सतर गप्ु त िासकों में िीतवत गप्ु त तद्वतीय
का नाम उल्लेख तमलता है, तिसकी सचू ना
‘िेव बणमक अतभलेख’ से तमलता है।
कन्‍नौज‍का‍ हररवमाम (510 कन्नौि हररवमाम, • इनकी मद्रु ाएिं उत्सतर प्रिेि के फै िाबाि तिले
मोखरर‍वंि‍ ई.) (मलू रूप आतित्सयवमाम के तभटौरा से तमली हैं।
से गया , ईिानवमाम, • इनके अतभलेखों में हरहा अतभलेख
के थे) सवमवमाम ( बाराबिंकी) सोनार अतभलेख ( िेवररया)
प्रमखु है।
गौड‍वंि‍ ----------- बिंगाल ििािंक • व्हेनसािंग के अनसु ार उसने बोधगया के
बोतधवृक्ष को कटवा कर गिंगा फे क तिया
था।
• यह िैव मत का पोिक था।

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महत्‍वपूणि‍प्राचीन‍ऐक्षतहाक्षसक‍संवत:-‍
संवत‍ संवत‍प्रवतिक‍ प्रारंक्षभक‍वषि‍
कतल्क सिंवत महाभारत यद्ध
ु के समय से प्रारिंम्भ 3102 ई.प.ू
सप्ततिम सिंवत लौतकक सिंवत के नाम से भी प्रतसद्ध इस सिंवत की 3076 ई.प.ू
िरुु आत कतल्क सिंवत के 25 विम बाि कश्मीर में हुई
तवक्रम सिंवत कुिाण नरे ि कतनष्क द्वारा प्रारिंभ इस सिंवत को भारत 58 ई. प.ू
सरकार ने 22 माचम 1957 को आतधकाररक राष्रीय
के लेण्िर घोतित तकया
िक सिंवत इस सिंवत को मालव सिंवत भी कहा िाता है, मालवागण 78 ई.
के सामतू हक प्रयासों से गिमतभल्ल के पत्रु द्वारा िकों की
परािय की स्मृतत में इस सिंवत को चलाया गया
कलचरु ी या चेिी सिंवत ईश्वर सेन ( आभीर िासक) 249 ई.
गप्ु त सिंवत चिंद्रगप्ु त प्रथम 319- 20 ई.
बल्लभी सिंवत/ गप्ु त महाराि बल्लभ 319 ई.
सविं त
हिम सिंवत हिम वधमन 606 ई.
चालक्ु य तवक्रम सिंवत तवक्रमातित्सय िष्ठ 1076 ई.
तहिरी सिंवत हिरत मोहम्मि के मक्का त्सयागकर मिीना िाने की 622 ई.
स्मृतत में

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प्राचीन‍भारत‍के ‍महापरुु षों‍के ‍उपनाम:-‍ ऐक्षतहाक्षसक‍स्थल‍और‍उनके ‍उपनाम‍:-
भारत का मैतकयावेली कौतटल्य उपनाम स्‍थल
भारत का आिंईस्टीन, मातटमन नागािमनु ताम्बवती आहाड़
लथू र
तपलोिान अतरिंतीखेड़ा
भारत का कान्ट धममकीततम
काकणाव सािंची
भारत का िेक्सतपयर कातलिास
पातलब्रोथा पाटतलपत्रु
भारत का नेपोतलयन समद्रु गप्ु त
धारापरु ी एलीफें न्टा
भारत का न्यटु न ब्रह्मगप्ु त
वेरुल एलोरा
भारत का सेंटपाल, कािंस्टेटाइन सम्राट
अतभमुक्त धाम वाराणसी
अिोक
पेिोक अररकामेिु
सस्िं कृ त नाटक का तपता अश्वघोि
योगनीपरु तिल्ली
तीथम यातत्रयों का रािकुमार ह्वेनसागिं
कुिनाभ, कुिलस्थल कन्नौि
भारत का तमल्टन, गेटे, अश्वघोि
वॉल्टेयर रुतम्मनिेई लतिंु म्बनी

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