Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 9

भ ा एवं उसके दोष नवारण योग

कसी भी मांग लक काय म भ ा का योग अशुभ माना जाता है। भ ा म


मांग लक काय का शुभारंभ या समापन दोन ही अशुभ माने गये ह। पुराण

n
के अनुसार भ ा भगवान सूय दे व व दे वी छाया क पु ी व राजा श न क

a
बहन है। श न क तरह ही इनका वभाव उ है। 'भ ा' भगवान सूय नारायण

h
क क या है। यह भगवान सूय क प नी छाया से उ प है तथा श न दे व क

t
सगी बहन है।

n s
यमलौ तु तत त यां जनयामास भा करः ।

a
शने र च भ ा च छायायाम मत ु तः ॥

v s
तथा च तेजसा व णो त य च मव यत् ।

v
तद तहते यु े दानवा त चक षया ।

s
त गनी मुखतो भ ा नयु ै वं वग हता ॥ अ नपुराण

a
वह काले वण, लंबे के श तथा बड़े-बड़े दांत वाली तथा भयंकर प वाली
क या है। ज म लेते ही भ ा य म व न, बाधा प ंचाने लगी और उ सव
तथा मंगल-या ा आ द म उप व करने लगी तथा संपूण जगत् को पीड़ा
प ंचाने लगी। उसके उ ं ◌्रखल वभाव को दे ख सूय दे व को उसके ववाह
के बारे म चता होने लगी और वे सोचने लगे क इस वे ा चा रणी, ा,
कु पा क या का ववाह कसके साथ कया जाय।

सूय दे व ने जस- जस दे वता, असुर, क र आ द से भ ा के ववाह का


आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
ताव रखा, सभी ने उनके ताव को मानने से इनकार कर दया। यहां तक
क भ ा ने सूय दे व ारा बनवाये गये अपने ववाह म डप, तोरण आ द सब
को उखाड़कर फक दया तथा सभी लोग को और भी अ धक क दे ने लगी।
उसी समय जा के ःख को दे खकर ा जी सूय दे व के पास आये। सूय
नारायण से अपनी क या को स माग पर लाने के लए ा जी से उ चत

n
परामश दे ने को कहा। तब ा जी ने व को बुलाकर कहा- 'भ े , बव,

a
बालव, कौलव आ द करण के अंत म तुम नवास करो और जो या ा,

h
गृह वेश तथा अ य मांग लक काय तु हारे समय म करे, उ ह म तुम व न

s t
करो, जो तु हारा आदर न करे, उनका काय तुम व त कर दे ना।'

a n
पंचांग म भ ा का मह व

v s
पंचांग के पांच मुख अंग होते ह- त थ, वार, न , योग व करण। करण

v
त थ का आधा भाग होता है। करण यारह होते ह। इसम ७ करण चर व ४

s
करण र होते ह। ७व चर करण का नाम ही व या भ ा है। बव, बालव,

a
कौलव, तै तल, गर, व णज और व (भ ा) चर करण ह और र करण ह
– शकु न, चतु पद, नाग, क तु न। भ ा तीन लोक म घूमती है, मृ युलोक,
भू-लोक एवं वग लोक। जब वह मृ युलोक म होती है तो आव यक काय म
बाधक होती है।
“ एकाद यां चतु या तु शेषा शु लप के ।
अ मीपौणमा यो तु पू बा व स वः ॥
कृ णप े तृतीयाया दश या परा तः ।
स त या चतु याः पू बा व री रता।।
आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
शु ल प म एकादशी और चतुथ को त थ उ राध म तथा अ मी पू णमा
को त थ पूवा म भ ा वास होता है। इसी कार कृ णप तृतीया तथा
दशमी के उ रा म तथा स तमी एवं प चमी के पूवा म व (भ ा) का
वास होता है।

n
भ ा के दोष का प रहार न नां कत चार तय म होता है-

a
1. वग या पाताल म भ ा का वास हो।

th
2. तकू ल-काल वाली भ ा हो।

s
3. दना के अन तर वाली भ ा हो।

n
4.भ ा का पु काल हो।

s a
v v
1. वग या पाताल म भ ावास:- जस भ ा के समय च मा मेष, वृष, मथुन,

s
वृ क रा शय म हो उस भ ा का वास वग म, जस भ ा के समय च मा

a
क या, तुला, धनु, मकर रा शय म हो उसका वास पाताल म होता है।
भ ा का भू मवास
जस भ ा के समय च मा कक, सह, कु , मीन रा शय म हो उस भ ा
का वास भू म पर माना जाता है। शा का नणय है क वही भ ा
दोषकारक है, जसका भू म पर वास हो। शेष ( वग या पाताल म वास करने
वाली) भ ा का काल शुभ माना गया है।
‘‘भूलोक ा सदा या या वग-पातालगा शुभा।’’
इससे है क मेष, वृष, मथुन, क या, तुला, वृ क, धनु और मकर रा श
म च मा क त के समय घ टत होने वाली (अथात् वग-पातालवासी)
आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
भ ाएं शुभ होने से मंगल काय के लए शुभ ह। है, प रहार के इस
नयम के अनुसार भ ा का 67 तशत काल, जसे हम अशुभ समझते ह,
मंगल काय के लए शुभ होता है।
2. तकू ल-काल वाली भ ाः-

n
त थ के पूवा म रहने वाली (यानी कृ ण प क 7, 14 और शु ल प क

a
8, 15 त थय वाली) भ ाएं रा क भ ाएं कहलाती ह।

th
य द दन क भ ा रा के समय और रा क भ ा दन के समय आ जाए

s
तो उसे ‘‘ तकू ल काल वाली भ ा कहा जाता है। तकू ल-काल वाली भ ा

n
को आचाय ने शुभ माना है-

a
रा भ ा यदाऽ याद् दवा भ ा यदा न श।

v s
न त भ ादोषः यात् सा भ ा भ दा यनी।।

v
य द ‘रा भ ा’ रा के समय और ‘ दनभ ा’ दन के समय घ टत हो तो उसे

s
‘अनुकूल काल वाली भ ा’ कहा जाता है, ऐसी भ ा को ही अशुभ माना गया

a
है।
3. दना के अन तर वाली भ ा:-
जो भ ा दना (म या ) से पूववत काल म हो उसे अशुभ और जो उसके
(म या ) के परवत काल म हो, उसे शुभ माना गया है-
व रंगारक ैव तीपात वैधृ तः।
य र-ज मन ं म या ात् परतः शुभम्।।

आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
दन अनुसार भ ा क सं ाएँ
भ ा को वार के अनुसार भी नाम दये गये ह-
सोमवार एवं शु वार क भ ा- क याणी,

n
श नवार क भ ा- वृ क ,

a
गु वार क भ ा- पु यवती,

th
र ववार, मंगलवार और बुधवार क भ ा- भ का

n s
4. भ ा का पु काल:

s a
मुखे पंच गले वेका व येकादश मृताः।

v
नाभौ चत ः षट् क ां त ः पु ा यना डकाः।।

s v
कायहा नः मुखे मृ युगले व ा स नः वता।

a
क ामु म ता नाभौ यु तः पु े वु ो जयः।। (क यप सं हता )
वहाय वषरो ा ण व स व वजयेत् ।
व शेषे द डे ह पु े का य जयावहम् ॥

अथात् भ ा क 30 घ ड़य म से पहली पांच घ ड़यां (कु ल काल का ष ांश)


उसका मुख, उसके बाद एक घड़ी गला, 11 घ ड़यां व , 4 घ ड़यां ना भ, 6
घ ड़यां कमर और तीन घ ड़यां (कु ल काल का दशमांश)उसक पु होती है-
ना तु प चवदनं गलक तथैका
आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
व ो दशैकस हता नयतं चत ः ।
ना भः क टः षडथ पु लता च त ो
व े वंु नग दतोऽ वभाग एषः ॥ ( यो त त वम्)

a n
मुखकाल म कायहा न, क ठकाल म मृ यु, व काल म नधनता, क टकाल

h
म पागलपन, ना भकाल म पतन और पु काल म न त वजय होती है-

s t
मुखे का य वंसो भव त मरण चाथ गलके

n
धन ला नव यथ क टतटै बु वलयः ।

a
क लनाभीदे शे वजयमथ पु े च जग ः

v s
शरीरे भ ायाः पृथ ग त फलं स वमुनयः ॥

v
य द भ ा 30 घड़ी से अ धक क हो तो मुख व अ य अंग भी ष ांश क

s
गणनानुसार बड़े ह गे। सभी मु त म भ ा के मुख काल को अशुभ और

a
पु काल को शुभ लखा गया है। भ ा स पणी क भां त अपना मुख पु
क ओर करके रहती है। अथात जहां पु समा त होती है वह मुख ारंभ
होता है ले कन व भ त थय म मुख का ारंभ काल अलग-अलग होता है।
व भ त थय वाली भ ा के मुख और पु का ारंभ काल, जो मु त
सं हता म बतलाया गया है।
तदनुसार कृ णप क तृतीया त थ वाली भ ा का मुख इस भ ा के चौथे
हर के ार म इस भ ा के ष ांश तु य समय तक और इसक पु
इसके तीसरे हर के अ त म इस भ ा के दशमांश तु य समय तक रहेगी।
सारांश -
आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
- वग और पातालवासी भ ाएं शुभ ह, भूवासी नह ।
– भूवासी भ ा भी शुभ हो जाती है, य द वह तकू ल काल वाली हो।
– य द भ ा भूवासी है, वह तकू ल काल वाली भी नह है, तब भी वह शुभ
होगी, य द वह दना के बाद हो।

a n
– अ याव यकता क त म भ ा के मुखकाल को छोड़कर शेष भाग म
शुभ काय कया जा सकता है। इस त म य द हो सके तो पु काल को

th
ाथ मकता द जानी चा हए।

s
काय ऽ याव यके व ेः मुखमा ं प र यजेत्।

n
–भ ा के पु काल येक त म शुभ ह। जो ातः काल भ ा के

s a
१२ नाम का मरण करता ह तो उसके सभी काय न व न संप होते ह।

v
ध या द धमुखी भ ा महामारी खरानना।

s v
कालरा महा ा व च कु ल पु का ।।

a
भैरवी च महाकाली असुराणां यंकरी ।
ादशैव तु नामा न ात ाय यः पठे त्।।
अथात् ध या, द ध मुखी, भ ा, महामारी, खरानना, कालरा , महा ा, व ,
कु लपु का, भैरवी, महाकाली, असुर यंकारी ादश नाम ातः लेने से भ ा
शुभ फलदायी होती है। जो इन बारह नाम का ातः मरण करता है
उसे कसी भी ा ध का भय नह होता और उसके सभी ह अनुकूल हो
जाते ह।
उसके काय म कोई व न नह होता। यु तथा राजकु ल म वह वजय ा त
करता है, जो व ध पूवक व का पूजन करता है, नःसंदेह उसके सभी काय
आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
स हो जाते ह।
भ ा त वध
जस दन भ ा हो, उस दन उपवास करना चा हए। य द रा के समय भ ा
हो तो दो दन तक उपवास करना चा हए। (एक भु ) त कर तो अ धक

n
उपयु होगा। ी अथवा पु ष त कर तो अ धक उपयु होगा। ी

a
अथवा पु ष त के दन सव ष ध यु जल से नान कर अथवा नद पर

h
जाकर व ध पूवक नान कर।

s t
दे वता तथा पतर का तपण एवं पूजन कर कु शा क भ ा क मू त बनाय

n
और गंध, पु प, धूप, द प, नैवे आ द से उसक पूजा कर। भ ा के बारह

a
नाम से 108 बार हवन करने के बाद ा ण को भोजन कराकर वयं भी

s
तल म त भोजन हण कर। फर पूजन के अंत म इस कार ाथना

v
करनी चा हए।

v
''छाया सूयसुते दे व व र ाथ दा यनी।

a s
पू जता स यथाश या भ े भ दा भव॥
इस कार स ह भ ा- त कर अंत म उ ापन कर। लोहे क पीठ पर भ ा
क मू त ा पत कर, काला व अ पत कर ग , पु प आ द से पूजन कर
ाथना कर। लोहा, बैल, तल, बछड़ा स हत काली गाय, काला कं बल और
यथाश द णा के साथ वह मू त ा ण को दान कर द अथवा वसजन
कर द।
इस कार जो भी भ ा त एवं तदं तर व ध पूवक तो ापन करता है
उसके कसी भी काय म व न नह पड़ता तथा उसे ेत, ह, भूत, पशाच,
डा कनी, शा कनी, य , गंधव, रा स आ द कसी कार का क नह दे ते।
उसका अपने य से वयोग नह होता और अंत म उसे सूय लोक क ा त
आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661
होती है।

a n
th
n s
s a
vv
as

आ दशंकर वै दक व ा सं ान
रभाष: 9044016661

You might also like