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Prelims Wallah Udaan Geography
Prelims Wallah Udaan Geography
भूगोल
क्विक एवं कॉम्प्रिहेन्सिव रिवीज़न सीरीज़
भूिमका
प्रिय अभ््यर््थथियोों,
यह सर््वज्ञात है कि UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी मेें प्रिलिम््स परीक्षा एक महत्तत्वपूर््ण पड़ाव है। यद्यपि अंतिम चयन मेें प्रिलिम््स के
अंक नहीीं जड़ु ते परंतु प्रिलिम््स का दरवाजा पार किए बगैर आप मख्ु ्य परीक्षा तक पहुचँ भी नहीीं सकते। ऐसा कहा जा सकता है कि सिविल
सेवा मख्ु ्य परीक्षा मेें अर््ह होने के लिए स््ननातक की शैक्षिक योग््यता के साथ-साथ प्रिलिम््स परीक्षा का पास करना भी आवश््यक है।
कहने के लिए तो यह परीक्षा आपकी आधारभतू समझ की परख करती है परंतु यह आधारभतू समझ बहुस््तरीय होती है। इसमेें पछ ू े जाने
वाले प्रश्ननों का स््वरूप, उसकी गहनता तथा नियत समय सीमा मेें उसे हल करने की बाध््यता इसे और जटिल बनाती है। इस परीक्षा का कोई
एक पैटर््न तय नहीीं किया जा सकता है। अममू न हर वर््ष आयोग अपने नवाचारी प्रयोगोों से इसके स््वरूप को अद्यतित करता रहता है। फिर
भी पिछले वर्षषों के प्रश्न-पत्ररों का आकलन करने से विषय संबंधी एक सामान््य निष््कर््ष तक पहुचँ ा जा सकता है। यह पुस््तक उन््हीीं सामान््य
निष््कर्षषों का निचोड़ है।
पिछले 10-15 वर्षषों के प्रिलिम््स परीक्षा के प्रश्ननों का आकलन करेें तो हम इस निष््कर््ष पर पहुचँ ते हैैं कि सिविल सेवा के पाठ्यक्रम के कुछ
टॉपिक््स ऐसे हैैं जहाँ से प्रश्ननों के पूछे जाने की बारंबारता अधिक है जबकि कुछ टॉपिक््स से बहुत कम या नहीीं के बराबर प्रश्न पूछे जाते रहे हैैं।
इसके अलावा आयोग कई बार सीधे पाठ्यक्रम के टॉपिक से प्रश्न न पछ ू कर उसके पीछे की गहरी अवधारणाओ ं से संबंधित प्रश्न भी पछ ू ता है।
ऐसे टॉपिक््स, जो अक््सर न््ययूज मेें रहे हैैं उनसे जुड़े स््टटैटिक हिस््सोों को आधार बनाकर भी प्रश्न पूछता है। ऐसे मेें आवश््यक होता है कि प्रिलिम््स
से पहले हर विषय से संबंधित ऐसे टॉपिक््स की बुनियादी समझ तैयार की जा सके जिनसे प्रिलिम््स के प्रश्ननों को हल करना आसान हो सके ।
इसके अतिरिक्त प्रिलिम््स परीक्षा से पहले सभी विषयोों के महत्तत्वपूर््ण टॉपिक््स का एक साथ रिवीजन भी आसान नहीीं होता। 2 घंटे की परीक्षा
मेें सामान््य अध््ययन तथा करेें ट अफे यर््स से संबंधित सभी टॉपिक््स को एक साथ स््ममृति मेें रखना जटिल तो है ही।
इन सभी जटिलताओ ं को देखते हुए हमने ‘प्रिलिम््स वाला स््टटैटिक’ के नाम से एक सीरीज तैयार की है। इस सीरीज मेें प्रिलिम््स से संबंधित
स््टटैटिक विषयोों पर अलग-अलग बुकलेट्स प्रकाशित की जा रही है। यह सीरीज प्रिलिम््स के पाठ्यक्रम तथा पिछले वर्षषों मेें पूछे गए प्रश्ननों के
गहन विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है। यह पूरी सीरीज योग््य तथा अनुभवी विशषज्ञञों की टीम द्वारा किए गए गहन शोध का निचोड़
है। इससे जुड़े सभी सदस््योों को कई प्रिलिम््स तथा मख्ु ्य परीक्षा पास करने का अनुभव है तथा उन््होोंने इस परीक्षा को निजी तौर पर गहराई से
समझा है। यह पुस््तक बहुत बोझिल न हो और इसमेें सभी महत्तत्वपूर््ण टॉपिक््स का समावेश भी हो सके , यह भी एक चनु ौतीपूर््ण कार््य था। इसमेें
शामिल एक एक टॉपिक का चयन उसकी महत्ता पर गहन चर््चचाओ ं के बाद किया गया है। अब आपको पुस््तक सौौंपते हुए हम आशा कर रहे
हैैं कि यह पस्ु ्तक आपकी तैयारी को आसान करे गी।
उम््ममीद है हमारी यह पहल आपकी प्रिलिम््स परीक्षा की तैयारी मेें सहयोगी साबित होगी। आपके सुझावोों एवं प्रतिक्रियाओ ं का इतं जार रहेगा।
शुभकामनाएँ
पुस्तक की महत्त्वपूर््ण विशेषताएँ
तैयार किया गया; एडविन हबल के अवलोकनोों और पेनजियास और सौरमंडल एक खगोलीय प्रणाली है, जिसमेें एक तारा और कक्षा मेें घमू ने वाले
विल््सन द्वारा ब्रह््माांडीय माइक्रोवेव पष्ठृ भूमि विकिरण (CMB) की खोज ग्रह शामिल हैैं, जो गरुु त््ववाकर््षण से बँधे होते हैैं। हमारे सौर मंडल मेें सूर््य (केें द्रीय
से पष्ु टि हुई। तारा), 8 ग्रह, क्षुद्रग्रहोों और धूमके तुओ ं जैसे लाखोों छोटे पिंड और धल ू -कणोों
इसके अनस ु ार 13.8 अरब वर््ष पूर््व, ‘छोटा गोलक’ विस््फफोट हुआ जिससे और गैसोों की भारी मात्रा शामिल हैैं। यह मिल््ककी वे आकाशगंगा की परिक्रमा
बाद मेें ब्रह््माांड का विस््ततार हुआ। करता है और आकाशगंगा के बाहरी सर््पपिल भजु ा (ओरियन) मेें स््थथित है, जो
डिस््क के आकार का है।
विकास के दौरान ऊर््जजा, पदार््थ मेें बदल गई।
z आंतरिक या पार््थथि व ग्रह : उच््च घनत््व, आकार मेें छोटे , कम गरु ु त््ववाकर््षण
z स््थथिर अवस््थथा सक ं ल््पना : ब्रह््माांड के विस््ततार का एक विकल््प हॉयल की शक्ति के कारण इनसे निकलने वाली गैसेें रुक नहीीं सकीीं; सर््यू के निकट, गैसोों
स््थथिर अवस््थथा की अवधारणा थी। के ठोस कणोों मेें संघनन के लिए तापमान अधिक था। प्रचंड सौर वायु ने गैसोों
और धल ू को उड़़ा दिया, इस प्रकार, ठोस चट्टानी सतह का निर््ममाण हुआ।
तारोों का निर््ममाण उदाहरण के लिए– बधु , शक्र ु , पृथ््ववी और मगं ल।
z प्रारंभिक ब्रह््माांड मेें पदार््थ और ऊर््जजा का वितरण असमान था। गुरुत््ववाकर््षण z बाहरी या जोवियन ग्रह : कम घनत््व और बड़़े आकार; सर््य ू से दूर निर््ममित,
बलोों मेें इन प्रारंभिक घनत््व अंतरोों के कारण पदार््थ एक साथ आकर््षषित कम तीव्र सौर हवाओ ं के परिणामस््वरूप गैसोों का प्रतिधारण और धूल भरी
होकर एकत्रित हो गए। गैसीय सतह का निर््ममाण हुआ। उदाहरण के लिए– बृहस््पति, शनि, यरू े नस
z ये आकाशगंगाओ ं के विकास का आधार बने। एक आकाशगंगा मेें असंख््य और नेप््च्ययून।
तारे होते हैैं। z आठ ग्रह : बध ु , शक्र ु , पृथ््ववी, मगं ल, बृहस््पति, शनि, यरू े नस और नेप््च्ययून।
z बुध : सबसे छोटा और सर््यू के निकटतम। z पथ्ृ ्ववी की धुरी, जो एक काल््पनिक रे खा है, अपने कक्षीय तल के साथ 66½°
z शुक्र को पथ्ृ ्ववी का जुड़वा (समान आकार ) ग्रह माना जाता है। यह संभवतः का कोण बनाती है।
सबसे गर््म ग्रह है (वायमु डं ल मेें 90-95% कार््बन डाइऑक््ससाइड, सल््फ्ययूरिक अक््षाांश
एसिड के बादलोों के साथ होता है)।
अक््षाांश पृथ््ववी की सतह पर एक बिंदु की कोणीय दूरी है, जिसे पृथ््ववी के केें द्र
z बहृ स््पति सौर मडं ल का सबसे बड़़ा ग्रह है। इसके वायमु डं ल मेें हाइड्रोजन, से डिग्री मेें मापा जाता है; भमू ध््य रे खा के समानांतर इसलिए असमान व््ययास के
हीलियम, मीथेन और अमोनिया शामिल हैैं। साथ अक््षाांशोों के समानांतर कहा जाता है।
z शक्रु और यरू े नस के घर्ू न्ण अक्ष का झकाव ु इतना अधिक है कि ये ग्रह वास््तव z ध्रुवोों पर एक डिग्री अक््षाांश का रे खीय अंतर भूमध््य रे खा की तुलना मेें
मेें अन््य ग्रहोों के विपरीत दिशा मेें घमू ते हैैं। थोड़़ा लंबा होता है, क््योोंकि पृथ््ववी ध्रुवोों पर थोड़़ी चपटी होती है।
चंद्रमा महत््त््वपूर््ण अक््षाांश के समानांतर
चंद्रमा पृथ््ववी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। इसका व््ययास पृथ््ववी के व््ययास z कर््क रे खा (23½° N) उत्तरी गोलार््ध मेें। गजु रती है– उत्तरी अमेरिका : बहामास
का के वल एक चौथाई है। (द्वीपसमहू ), मेक््ससिको; अफ्रीका : मिस्र, लीबिया, नाइजर, अल््जजीरिया, माली,
z चद्रमा
ं पृथ््ववी से ज््ववारीय रूप से बँधा हुआ है, जिसका अर््थ है कि चद्रमा ं पश्चिमी सहारा, मॉरिटानिया; एशिया : ताइवान, चीन, म््ययाांमार, बांग््ललादेश,
लगभग 27 दिनोों मेें पृथ््ववी के चारोों ओर घूमता है, जो कि एक चक््कर परू ा भारत, ओमान, यएू ई, सऊदी अरब से।
करने मेें लगने वाला समय भी है। ज््ववारीय बंधन के परिणामस््वरूप, पृथ््ववी पर z मकर रे खा (23½° S) दक्षिणी गोलार््ध मेें। यह गजु रती है– दक्षिण अमेरिका
हमेें चद्रमा
ं का के वल एक ही पक्ष दिखाई देता है। : अर्जजेंटीना, ब्राजील, चिली, पराग््ववे; अफ्रीका : नामीबिया, बोत््स्ववाना, दक्षिण
z आमतौर पर यह माना जाता है कि चद्रमा ं का निर््ममाण विशाल टकराव या जिसे अफ्रीका, मोजाम््बबिक, मेडागास््कर; ऑस्ट्रेलिया से।
बिग स््प्ललैट कहा जाता है, का परिणाम है। z आर््कटिक वृत्त भमू ध््य रे खा के उत्तर मेें 66½° पर है।
z सप ु र मून : जब चद्रमा
ं पृथ््ववी से कम दूरी पर होता है; इसे पेरिगी या पूर््णणिमा अटार््कट
z ं िक वृत्त भमू ध््य रे खा के दक्षिण मेें 66½° पर है।
भी कहा जाता है। चद्रमा
ं 14% बड़़ा और 30% चमकदार दिखाई देता है। z सबसे बड़़ा वृत्त भमू ध््य रे खा (0° अक््षाांश) है जबकि ध्रुवोों पर वे एक बिंदु (90°
जीवन की उत््पत्ति N & S) पर मिल जाते हैैं।
z शरुु आत मेें पृथ््ववी का वायमु डं ल जीवन के विकास के लिए अनक ु ू ल नहीीं था। z भूमध््य रेखा गजु रती है– दक्षिण अमेरिका : इक््ववाडोर, कोलबि ं या, ब्राजील;
4.6 अरब साल पहले पृथ््ववी के निर््ममाण के समय वायमु डं ल लगभग नहीीं था। अफ्रीका : साओ टोमे और प््रििंसिपे, गैबॉन, कागं ो, डेमोक्रेटिक रिपब््ललिक ऑफ
z वायम ु डं ल ज््ययादातर ज््ववालामखियोों
ु द्वारा निकलने वाली गैसोों से बना था। इसमेें कागं ो, यगु ाडं ा, के न््यया, सोमालिया; एशिया : मालदीव, इडं ोनेशिया, किरिबाती से।
मीथेन, हाइड्रोजन सल््फफाइड और आज के वायमु डं ल मेें पाए जाने वाले दे शांतर (यामोत्तर)
कार््बन डाइऑक््ससाइड की मात्रा 10 से 200 गनु ा अधिक थी। [यूपीएससी किसी स््थथान का देशांतर प्रधान यामोत्तर (डिग्री मेें मापा गया- 0° से 180°)
2018] के पर्ू ्व या पश्चिम का कोणीय दरू ी है। वे उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक चलने
z जिस प्रक्रिया के माध््यम से गै से आंतरिक भाग से बाहर निकाली थी उसे गैस
वाले अर््धवृत्त हैैं। प्रत््ययेक डिग्री को आगे मिनटोों मेें और मिनटोों को सेकंडोों मेें
उत््सर््जन कहा जाता है। विभाजित किया जाता है।
z अलग-अलग अवधियोों मेें इस ग्रह पर मौजद ू जीवन का रिकॉर््ड चट्टानोों मेें z प्रधान यामोत्तर : 1884 मेें, प्रधान यामोत्तर के रूप मेें लंदन के पास ग्रीनविच
जीवाश््म के रूप मेें पाया जाता है। मेें रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब््जर्वेटरी से गजु रने वाले को शन्ू ्य यामोत्तर के रूप
z नील हरित शैवाल के वर््तमान रूप से निकट से संबंधित सक्ष ू ष्म संरचनाएँ 3,000 मेें चनु ने का निर््णय लिया गया था।
मिलियन वर््ष से भी अधिक परु ाने भवू ैज्ञानिक सरं चनाओ ं मेें पाई गई हैैं। यह यह यूरोप से गज ु रता है– ब्रिटेन, फ््राांस, स््पपेन; अफ्रीका : अल््जजीरिया,
माना जा सकता है कि जीवन की उत््पत्ति लगभग 3,800 मिलियन वर््ष पहले माली, बर््ककि
ु ना फासो, घाना, टोगो; अंटार््कटिका।
शरू
ु हुई थी। z अंतर््रराष्ट्रीय तिथि रे खा : 180° देशांतर को अत ं र््रराष्ट्रीय तिथि रे खा के रूप
मेें चनु ा गया है। दक्षिण प्रशांत मेें अतं र््रराष्ट्रीय तिथि रे खा बेरिंग जलडमरूमध््य,
पृथ््ववी
फिजी, टोोंगा और अन््य द्वीपसमहोों ू पर सामान््य 180° यामोत्तर से मड़क ु र चलती
पृथ््ववी सौर मंडल मेें पाँचवाँ सबसे बड़़ा ग्रह है; इसे ब््ललू प््ललेनेट भी कहा जाता है ताकि कुछ द्वीप समहोों ू मेें जहाँ यामोत्तर द्वारा काट जाता है वहाँ दिन और
है क््योोंकि दो-तिहाई सतह पानी से ढकी है। तिथि के भ्रम को रोका जा सके ।
z आकार : जियोइड (चपटा गोलाकार)– ध्रुवोों पर थोड़़ा चपटा और भम ू ध््य तिथि रे खा को पूर््व से पश्चिम की ओर पार करने वाला यात्री एक दिन
रे खा पर उभरा हुआ। खो देता है और तिथि रे खा को पश्चिम से पूर््व की ओर पार करते समय
z पृथ््ववी गोल््डडीलॉक जोन मेें स््थथित है– पानी तरल अवस््थथा मेें मौजद ू रह सकता एक दिन प्राप्त करता है।
है। रे खा का पश्चिमी भाग हमेशा पर् ू वी भाग से एक दिन आगे होता है।
z सौर मड ं ल का सबसे घना ग्रह। z भूमध््य रे खा से ध्रुवोों तक देशांतरोों के बीच की दूरी लगातार कम होती
z अक्ष के चारोों ओर घर् ू न्ण की गति भमू ध््य रे खा पर अधिकतम होती है और जाती है जब तक कि ध्रुवोों पर शून््य नहीीं हो जाती, जहाँ सभी यामोत्तर मिलते
ध्रुव की ओर घटती जाती है। हैैं (भमू ध््य रे खा पर अधिकतम)।
2 पृथ्वी की उत्पत्ति और व
z दिन को रात से अलग करने वाले चक्र को ग््ललोब पर प्रकाश का चक्र कहा अक्ष के झकाव
ु के कारण ऋतु परिवर््ततित होती हैैं। [यपू ीएससी 2013]
जाता है। यह चक्र अक्ष के साथ मेल नहीीं खाता है। आर््कटिक वृत्त से परे के स््थथान लगभग छह महीने तक लगातार दिन के
मानक समय उजाले का अनभु व करते हैैं।
विभिन््न यामोत्तर पर स््थथित स््थथानोों का स््थथानीय समय निश्चित रूप से भिन््न प
ृ वी का अपनी धुरी पर झुकाव
होगा, उदाहरण के लिए– भारत मेें, द्वारका (गुजरात) और डिब्रूगढ़ (असम) के क ा पृवी का चुंबकय ुव
स््थथानीय समय मेें लगभग 1 घंटे और 45 मिनट का अंतर होता है। का समकोण
z भारत मेें, 82½° पूर््व (82° 30’ पूर््व) के देशांतर को मानक यामोत्तर माना अ
10°
जाता है। इस यामोत्तर पर स््थथानीय समय को परू े देश के लिए मानक समय 23½° दि णी चुंबकय ुव
िवषुवतरेखीय अ
[भारतीय मानक समय (IST)] के रूप मेें लिया जाता है। उ री चुंबकय ुव
66½°
भूमय रेखा
का
पृवी क
भूम
य
रेखा
पृथ्वी की उत्पत्ति और व 3
ग्रहण
इसे एक खगोलीय घटना के रूप मेें परिभाषित किया जाता है जो तब होती है जब एक खगोलीय पिंड दूसरे खगोलीय पिंड की छाया के भीतर आ जाता है।
यह तब होता है जब तीन खगोलीय पिंड एक सीधी रे खा मेें होते हैैं जिसे युति-वियुति कहा जाता है।
हण के कार
आिं शक वलयकार
वािषक कपु ूर्ल्ण आिं शक कपु ल
ूर््ण
सयू , चं मा और पृवी सयू को चं मा के सयू चं मा ारा चं मा का एक भाग पृवी जब चं मा और सयू पृवी के
िबकुल एक पंि िकनारके आसपास पणू त या अवहै
क छाया म चला जाता है िबकुल िवपरीत िदशा म ह
म नह ह देखा जा सकता है
सयू , चं मा पृवी
सयू के काश का पणू छाया
एक सीधी रे खा पर
के वल एक भाग
ही अवहोता है
4 पृथ्वी की उत्पत्ति और व
2 पृथ््ववी की आंतरिक संरचना
और घनत््व = 2.7 ग्राम/घन सेमी; शैल प्रकार: ग्रेनाइट; खनिज - सिलिका + कोर
एल््ययूमिनियम = सियाल (SIAL) z 2,900 किलोमीटर की गहराई से शरू ु होता है।
z कॉनराड असम््बद्धता (Conrad Discontinuity): ऊपरी भू पर््पटी और z बाहरी कोर मख् ु ्य रूप से अपने उच््च तापमान के कारण तरल है, जबकि
निचली भू पर््पटी के बीच की सीमा। आतं रिक कोर इस गहराई पर बहुत अधिक दबाव के कारण अधिक तापमान
z महासागरीय भू पर््पटी (Oceanic Crust): महाद्वीपीय भू पर््पटी से पतली, के बावजदू ठोस रहता है।
औसत मोटाई = 5 किमी और घनत््व = 3 ग्राम/घन सेमी; शैल प्रकार: बेसाल््ट; z संरचना: मख् ु ्य रूप से भारी पदार्थथों से बना है, यानी "निफ़़े " परत (निकल
खनिज - सिलिका + आयरन + मैग््ननीशियम = सिमा (SIMA) और लोहा)
पृथ््ववी की आंतरिक संरचना
z गटु ेनबर््ग असम््बद्धता : निचले मैन््टल और बाहरी कोर के बीच का सक्र ं मण
घनत््व गहराई (किमी)
2-90 कॉनराड क्षेत्र।
असंततता 0
30 z लेहमन असम््बद्धता : बाहरी और आत ं रिक कोर के बीच का संक्रमण क्षेत्र।
3-3 मोहोरोविकिक
200
असंततता z पृथ््ववी के आत ं रिक भाग का अध््ययन करने के स्रोत:
रे पेटी 700
4-3 प्रत््यक्ष: सतही शैल , ज््ववालामख ु ी उदगार , गहरे समद्रु ड्रिलिंग परियोजना
असंतता
अप्रत््यक्ष: खनन गतिविधि, उल््ककापिंड, गरु ु त््ववाकर््षण, चबंु कीय क्षेत्र,
भक
ू ं पीय गतिविधि।
5-5
10-5 2900
पृथ््ववी का संघटन
गुटेनबर््ग
असंततता
z मोहो असम््बद्धता से 2,900 किलोमीटर की गहराई तक फै ली हुई है। सल््फर, तांबा, चांदी, सोना, ग्रेफाइट आदि जैसे एकल तत््व खनिज पाए जाते हैैं।
z ऊपरी मैन््टल को दर््ब
ु लतामडं ल कहा जाता है (मैग््ममा का मख्ु ्य स्रोत)। z सभी खनिजोों का मल ू स्रोत पृथ््ववी के आतं रिक भाग मेें गर््म मैग््ममा है।
कुछ प्रमुख खनिज z अवसादी चट्टानोों की तरह परतेें नहीीं होती है।
z फेल््डस््पर: पृथ््ववी की आधी भू पर््पटी फे ल््डस््पर से बनी है; सिलिकॉन और मैग््ममा के जमने के स््थथान के आधार पर वर्गीकरण:
ऑक््ससीजन सभी प्रकार के फे ल््डस््पपार के सामान््य तत््व हैैं; सिरे मिक तथा काँच 1. अंतर्भेदी आगनेय शैल
बनाने मेें उपयोग किया जाता है। ये पृथ््ववी की सतह के नीचे मैग््ममा के जमने से बनती हैैं। उदाहरण:
z क््ववार््टट््ज: रे त और ग्रेनाइट के सबसे महत्तत्वपर् ू ्ण घटकोों मेें से एक; यह सिलिका ग्रेनाइट: आम तौर पर स््थथूलकोश (बैथोलिथ); सिलिकिक
से बना होता है। फे ल््डस््पपार और क््ववार््टट््ज चट्टानोों मेें पाए जाने वाले सबसे गैब्रो: मैफिक आग््ननेय चट्टान जो लावा के रूप मेें निकलने वाले बेसाल््ट
आम खनिज हैैं। के समान है।
z पाइरोक््ससिन: कै ल््शशियम, एल््ययूमिनियम, मैग््ननीशियम, लोहा और सिलिका से
पे ग््ममेटाइट और डायराइट
बना होता है; अक््सर उल््ककापिंडोों मेें पाया जाता है।
2. बाह्य आगनेय शैल
z ऐम््फफीबोल: प्रमख ु तत््व- एल््ययूमिनियम, कै ल््शशियम, सिलिका, लोहा,
मैग््ननीशियम; एस््बबेस््टस उद्योग मेें उपयोग किया जाता है। यदि मैग््ममा सतह पर पहुचँ ता है और लावा के रूप मेें निकलता है, तो यह बाह्य
आग््ननेय चट्टान बनाता है। उदाहरण: बेसाल््ट, एंडेसाइट, रायोलाइट
z माइका: पोटेशियम, एल््ययूमिनियम, मैग््ननीशियम, लोहा, सिलिका आदि शामिल
हैैं; आग््ननेय और कायान््तरित चट्टानोों मेें आम तौर पर पाया जाता है; विद्युत रासायनिक संरचना के आधार पर वर्गीकरण
z उच््च सिलिका अनप ु ात वाली चट्टानोों को अम््ललीय शैल कहा जाता है।
उपकरणोों मेें उपयोग किया जाता है।
z उच््च क्षारीय ऑक््ससाइड अनप ु ात वाली शैल सघन और दिखने मेें गहरे रंग
z ऑलिविन: प्रमख ु तत््व- मैग््ननीशियम, लोहा और सिलिका; आभषण ू उद्योग मेें
उपयोग किया जाता है; अक््सर बेसाल््टटिक चट्टानोों मेें पाया जाता है। की होती हैैं, उन््हेें क्षारीय शैल कहा जाता है।
धात््वविक खनिज: इनमेें धातु तत््व होते है फेल््ससिक शैल और मै फिक शैल :
z कीमती धात:ु सोना, चांदी, प््ललैटिनम आदि। z फे ल््ससिक शैल सिलिकॉन, ऑक््ससीजन, एल््ययूमिनियम, सोडियम और पोटेशियम
z लौहधात:ु लोहा और अन््य धातए ु ँ जिन््हेें अक््सर लोहे के साथ मिलाकर विभिन््न से भरपरू होती हैैं।
प्रकार का स््टटील बनाया जाता है। z मैफिक शैल मैग््ननीशियम और लोहे से भरपरू होती हैैं।
z अलौह धात:ु इसमेें तांबा, सीसा, जस््तता, टिन, एल््ययूमिनियम आदि धातु शामिल z यदि चट्टान मेें मैग््ननीशियम और लोहे का बहुत अधिक प्रभत्ु ्व है, तो इसे
हैैं। पराक्षारीय कहा जाता है।
अधात््वविक खनिज: इनमेें धातु तत््व नहीीं होते है- 2. अवसादी शैल
z उदाहरण: सल््फर, फॉस््फफेट और नाइट्रेट सीमेेंट अधात््वविक खनिजोों का मिश्रण
बहिर््जनित कारकोों द्वारा चट्टानोों के टुकड़ों के जमा होने से बनती हैैं। ये
है।
जमाव संवहन के माध््यम से चट्टानोों मेें बदल जाते हैैं और इस प्रक्रिया को
शैलेें शिलिभवन(Lithification) कहा जाता है।
शैलेें एक अथवा अधिक खनिजोों के समच्ु ्चय होते हैैं जिनमेें निश्चित रासायनिक z यांत्रिक रूप से निर््ममित- बलआ
ु पत््थर, सम््ममिश्र चट्टान, शेल और, विमृद(लोएस)।
संरचना नहीीं होती है। वे कठोर या नरम, विविध रंगोों मेें हो सकते हैैं। पेट्रोलॉजी z जैविक रूप से निर््ममित- गीजराइट, चाक, चन ू ा पत््थर और कोयला।
शैलोों का विज्ञान है।
z रासायनिक रूप से निर््ममित - डोलोमाइट, सेेंधा नमक, चर््ट, हेलाइट और पोटाश।
चट्टानोों के प्रकार अवसादी चट्टानोों की विशेषताएँ:
1. आग्नेय शैल (Igneous Rocks) z परतोों से बनी होती हैैं, जिसमे जीवाश््म पाया जाता है।
मैग््ममा और लावा से जमनेें पर बनती हैैं। उदाहरण: ग्रेनाइट, गे ब्रो, पेग््ममेटाइट, z अधिकांश अवसादी शैल पारगम््य और पोरस होती हैैं।
बेसाल््ट, ज््ववालामुखी ब्रेशिया और टफ।
3. कायान््तरित शैल
z यदि पिघला हुआ पदार््थ बड़़ी गहराइयोों मेें धीरे -धीरे ठंडा होता है (अंतर्भेदी
आग््ननेय शैल ), खनिज कण बहुत बड़़े हो सकते हैैं (ग्रेनाइट)। सतह पर मौजूदा चट्टानोों से निर््ममित होती हैैं, जो पुनः क्रिस््टलीकरण से गुजरती हैैं।
अचानक ठंडा होने (बाह्य आग््ननेय शैल ) के परिणामस््वरूप छोटे कण कायान््तरित चट्टानोों को दो प्रमख ु समहोों
ू मेें वर्गीकृ त किया जाता है - पत्रित शैल
(बेसाल््ट) होते हैैं। मध््यवर्ती परिस््थथितियोों मेें शीतलन के परिणामस््वरूप और अपत्रित शैल। उदाहरण: नीस, स््ललेट, शिस््ट, संगमरमर, क््ववार््टजाइट
मध््यवर्ती आकार के कण होते हैैं। आदि।
आग््ननेय चट्टानोों के विशेषताएँ: z पत्रित कायान््तरित शै ल : जैसे नीस, फिलाइट, शिस््ट और स््ललेट, जिनमेें एक
z वे कठोर, दानेदार और क्रिस््टलीय होते हैैं। स््तरित अथवा बंधी हुई उपस््थथिति होती है, जो गर्मी और निर्देशित दबाव के
z इनमेें जीवाश््म नहीीं पाए जाते। सपं र््क मेें आने से उत््पन््न होती है।
z ये पानी को अपने मेें पार नहीीं होने देते। z अपत्रित कायान््तरित शै ल : जैसे संगमरमर और क््ववार््टजाइट, जिनमेें स््तरित
z रासायनिक अपक्षरण से कम प्रभावित होते हैैं। अथवा बंधी हुई उपस््थथिति नहीीं होती है।
भूगर््भभिक तरंगेें
पनु ः क्रिस््टलीकरण से गजु रती हैैं, साथ मेें उच््च तापमान या दबाव या
दोनोों का समावेश होता है। फै लाव प्रसार की दिशा
z कायांतरण की प्रक्रिया मेें कुछ चट्टानोों के दाने या खनिज परतोों अथवा रे ले तरंग लव तरंग
रे खाओ ं मेें व््यवस््थथित हो जाते हैैं। येें चट्टानोों मेें खनिजोों अथवा दानोों की
सतही तरंगेें
ऐसी व््यवस््थथा को पट्टिका या रे खांकन कहा जाता है।
z कभी-कभी विभिन््न समहोों ू के खनिजोों अथवा सामग्रियोों को बारी-बारी से प्रसार की दिशा प्रसार की दिशा
पतली से मोटी परतोों मेें व््यवस््थथित किया जाता है, जो हल््कके और गहरे रंगोों मेें
विभिन््न तरंगोों की गति: प्राथमिक तरंगेें > द्वितीयक तरंगेें > लव (L)
दिखाई देते हैैं। कायापलटित चट्टानोों मेें ऐसी संरचना को पट्टीबद्धन कहा जाता
तरंगेें > रै ले तरंगेें।
है। पट्टीबद्धन प्रदर््शशित करने वाली चट्टानोों को पट्टीबद्ध शैल कहा जाता है।
तरंग का
कायान््तरित चट्टानोों की विशेषताएँ: तरंग गति चाल माध््यम छाया क्षेत्र
प्रकार
z दाब और तापमान के कारण निर््ममित होती हैैं।
हाँ, अधिकेें द्र
z बनावट मेें बहुत चिकनी और कभी-कभी परतोों से बनी होती हैैं। भूगर््भभिक तरंग, एस-तरंगोों से ठोस, द्रव, से 105°
पी-तरंगेें
z विविध रंगोों मेें मिलती हैैं। अनुदैर््ध््य अधिक गैस और 145°
z जीवाश््म बहुत कम ही पाए जाते हैैं। के बीच
आग््ननेय शैल कायान््तरित शैल हाँ, अधिकेें द्र
भगू र््भभिक तरंग, पी-तरंगोों से
ग्रेनाइट नीस एस-तरंगेें ठोस से 105°
अनुप्रस््थ कम
बेसाल््ट हॉर््नब््लेेंड से परे
चनू ा पत््थर संगमरमर लव (एल- सतही तरंग, रे ले तरंगोों से
ठोस नहीीं
कोयला ग्रेफाइट तरंगेें) अनुप्रस््थ अधिक
बलुआ पत््थर क््ववार््टजाइट सतही तरंग, ठोस
रे ले (आर- लव तरंगोों से
शेल स््ललेट अनुप्रस््थ और (तेज़), द्रव नहीीं
तरंगेें) कम
अनुदर््ध््य
ै दोनोों (धीमा)
भूकंप
पृथ््ववी की सतह पर एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ कुछ भूकंप तरंगोों का पता नहीीं
भकू ं प पृथ््ववी का कंपन है, जो ऊर््जजा के मक्त
ु होने से उत््पन््न होता है, जो सभी लगाया जाता है।
दिशाओ ं मेें तरंगोों का प्रसारण करता है। सभी प्राकृतिक भक ू ं प स््थलमंडल के z भक ू ं प के केें द्र से 105° के भीतर के भूकंपमापी दोनोों पी और एस तरंगोों
भीतर, अर््थथात् पृथ््ववी की सतह से 200 कि.मी. की गहराई तक उत््पन््न होते हैैं।
का पता लगाते हैैं।
फोकस (हाइपोसेेंटर): पृथ््ववी के अंदर का बिंदु जहाँ भक ू ं प की उत््पत्ति होती
है। z 145° से परे, के वल पी-तरंगेें दर््ज की जाती हैैं।
अधिकेें द्र(Epicenter): पृथ््ववी की सतह पर वह बिंदु जो फोकस के ठीक z 105° और 145° के बीच का क्षेत्र दोनोों तरंगोों के लिए छाया क्षेत्र है;
ऊपर होता है। यह वह बिंदु है, जो सबसे पहले भक ू ं प की तरंगोों को महससू एस-तरंग छाया क्षेत्र (पृथ््ववी की सतह के 40% को कवर करता है) एक बड़़ा
करता है। क्षेत्र शामिल करता है।
15
0°
थ z दुर््बलतामंडल वह स्रोत है, जहाँ से पिघली हुई चट्टान सामग्री या मैग््ममा
णप
किर उत््पन््न होती है।
P- तरगं
कोर z जब मैग््ममा पृथ््ववी की भू पर््पटी की ओर बढ़ता है अथवा उसके माध््यम से टूटता
z पे लेयन विनाशकारी पायरोक््ललास््टटिक प्रवाह के साथ उदगार है। z सतह के नीचे आग््ननेय चट्टानोों को विभिन््न प्रकार के आतं रिक रूपोों मेें विभाजित
z प््ललिनियन, सबसे खतरनाक , स्ट्रैटोस््फफीयर तक पहुच ँ ने वाले उच््च गति किया जा सकता है:
वाले जेट उदगार पैदा करता है। बैथोलिथ: मै ग््ममाटिक सामग्री पर््पटी के अद ं र गहराई से ठंडा होकर
बड़़े गुंबदोों का निर््ममाण करती है, जिन््हेें बैथोलिथ (ग्रेनाइट निकाय) के
ज््ववालामुखी का वितरण रूप मेें जाना जाता है, यानी वे मैग््ममा कक्षषों के जमे अवशेष हैैं।
कई जगहोों पर ज््ववालामख ु ी का वितरण भक ू ं पीय गतिविधि से मेल खाता है। एक लै कोलिथ: लै कोलिथ गुंबद के आकार से मिलते-जल ु ते भूमिगत
ज््ववालामख ु ी गतिविधि क्षेत्र अभिसारी और अपसारी सीमाओ ं के साथ होता सरच
ं नाएँ हैैं
, जो एक सपाट नीचे की ओर और एक नाली के माध््यम
से जुड़़े हुए हैैं, सतह ज््ववालामखु ी गंबु दोों के समान लेकिन अधिक गहराई
है। उदाहरण: मध््य-महासागरीय कटक (अभिसारी ), पैसिफिक रिम/ रिंग ऑफ
पर स््थथित हैैं; कर््ननाटक पठार मेें पाए जाते हैैं।
फायर (अपसारी )।
फैकोलिथ: अभिनति के आधार पर या अपनति के शीर््ष पर आत ं रिक
z रिंग ऑफ फायर ज््ववालामख ु ी और अन््य टेक््टटोनिक रूप से सक्रिय संरचनाओ ं वाली चट्टानोों के बदलते द्रव््यमान, मैग््ममा कक्षषों से जड़़ेु हुए।
की एक लंबी ृंखला है, जो प्रशांत महासागर के चारो तरफ है। इनमेें से कई क्षैतिज आत ं रिक वाली आग््ननेय चट्टानोों को सिल््स (मोटे जमा) अथवा
ज््ववालामखु ी उप-संवहन की टेक््टटोनिक प्रक्रिया के माध््यम से बनाए गए थे। शीट (पतली परतेें) के रूप मेें वर्गीकृ त किया जाता है।
z सामान््य तौर पर, मध््य-महासागरीय रिज के भक ू ं प उथली गहराई पर होते हैैं, डाइक: लावा लगभग जमीन के लंबवत एक दीवार की तरह ठोस हो
जबकि अल््पपाइन-हिमालयन बेल््ट के साथ-साथ प्रशांत के रिम, भक ू ं प गहरे गया; पश्चिमी महाराष्टट्र क्षेत्र मेें बहुतायत मेें पाया जाता है।
बैठे होते हैैं। पृथ््ववी का भू-चुंबकीय क्षेत्र:
z रिंग ऑफ फायर दक्षिण और उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ चलता
यह एक चंबु कीय द्विध्रुवीय का क्षेत्र है, जो वर््तमान मेें पृथ््ववी के घर्ू ्णन अक्ष के
है, एशिया के पर्ू वी तट से न््ययूजीलैैंड के नीचे और अटार््कट
ं िका के उत्तरी तट संबंध मेें लगभग 11 डिग्री के कोण पर झका ु हुआ है, जैसे कि पृथ््ववी के केें द्र मेें
तक जाता है। उस कोण पर एक बार चंबु क रखा गया हो।
z चम्ु ्बकीय संवेदन: कुछ जानवर इस चब ंु कीय क्षेत्र का उपयोग लंबी दरू ी पर
पृथ््ववी का उत्तरी ध्रुव प्रवास करते समय नेविगेट करने के लिए कर सकते हैैं।
z परु ा-चम्ु ्बकत््व: परु ा-चम्ु ्बकत््व का अध््ययन हमेें भ-ू चम्ु ्बकत््व के पिछले रिकॉर््ड
और ग्रह की सतह पर चट्टानोों की उम्र के बारे मेें जानकारी प्रदान करता है।
z प््ललेट विवर््तनिकी सिद््धाांत: इसने समद्र ु तल प्रसार और प््ललेट विवर््तनिकी के
सिद््धाांतोों को विकसित करने मेें भी मदद की।
z मैग््ननेटोस््फफीयर: भ-ू चब ंु कीय क्षेत्र पृथ््ववी के चारोों ओर मैग््ननेटोस््फफीयर के निर््ममाण
का कारण है।
पृथ््ववी का दक्षिणी ध्रुव अरोरा ज््ययादातर ध्रुवोों के आसपास देखे जाते हैैं, क््योोंकि वहाँ भ-ू चंबु कीय क्षेत्र
की तीव्रता सबसे अधिक होती है।
भू-चुंबकीय क्षेत्र के कारण z उत्तरी गोलार््ध: अरोरा बोरे लिस
पृथ््ववी का चंबु कीय क्षेत्र पृथ््ववी के तरल बाहरी कोर मेें पिघले लोहे के मिश्र z दक्षिणी गोलार््ध: अरोरा ऑस्ट्रेलिस
उत्तर और चंबु कीय दक्षिण के स््थथान आपस मेें बदल जाते हैैं। यह कुछ सौ हजार चबंु कीय क्षेत्र है जिसे मैग््ननेटो-शीथ कहा जाता है।
वर्षषों के चक्र मेें होता है। z इसमेें वैन एलन विकिरण बेल््ट शामिल हैैं, जिसमेें उच््च ऊर््जजा वाले आवेशित
z भ-ू चब ंु कीय क्षेत्र की तीव्रता ध्रुवोों के पास सबसे अधिक और भमू ध््य रे खा के कण होते हैैं।
पास कमजोर होती है। निचले बेल््ट मेें इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन होते हैैं, जो पृथ््ववी के भम ू ध््य रे खा से
भू-चुंबकीय ध्रुव 1000 से 5000 कि.मी. तक फै ले होते हैैं।
भ-ू चंबु कीय ध्रुव पृथ््ववी की सतह और पृथ््ववी के केें द्र मेें काल््पनिक रूप से रखे ऊपरी बेल््ट मेें मख् ु ्य रूप से इलेक्ट्रॉन होते हैैं, जो भमू ध््य रे खा से 15000
गए एक बार चंबु क के अक्ष के प्रतिच््छछेदन हैैं। से 25000 कि.मी. तक फै ले होते हैैं।
z यदि पृथ््ववी का चब ंु कीय क्षेत्र एक पर्ू ्ण द्विध्रुवीय होता, तो फील््ड लाइन चुंबकीय तूफ़ान
भ-ू चबंु कीय ध्रुवोों पर सतह के लंबवत होतीीं है और वे उत्तर और दक्षिण
जब सौर विंड के तेज झोोंके पृथ््ववी के मैग््ननेटोस््फफीयर से टकराते हैैं, जिसके
चबंु कीय ध्रुवोों के साथ मेल खातीीं।
परिणामस््वरूप तेजी से चंबु कीय क्षेत्र मेें बदलाव होता है, इसे चंबु कीय तूफान
z हालाँकि अनमा ु न अपर्ू ्ण है और इसलिए चबंु कीय तथा भ-ू चबंु कीय ध्रुव कुछ कहा जाता है।
दरू ी पर स््थथित हैैं।
z यह नजदीकी अत ं रिक्ष मेें विद्युत धाराओ ं के उत््पपादन का परिणाम देता है, जो
भू-चुंबकीय क्षेत्र का महत््त््व हमारे कृत्रिम उपग्रहोों (जैसे जीपीएस) और लंबी दरू ी के रे डियो संचार को
z सरु क्षा कवच: यह क्षेत्र एक ढाल के रूप मेें कार््य करता है, जो सर््य
ू से निकलने नक ु सान पहुचँ ा सकते हैैं।
वाली सौर विंड को रोकता है, जिसमे अधिक ऊर््जजायक्त ु आवेशित कण होते हैैं, z चब ंु कीय तफा
ू न रिंग करंट के रूप मेें जाने जाते हैैं और वे ज््ययादातर भमू ध््य
जो ग्रह पर जीवन को गंभीर रूप से नक ु सान पहुचँ ा सकते हैैं। रे खा के ऊपर केें द्रित होते हैैं।
कल््पोों की
आयु (लाखोों
सापेक्ष महाकल््प कल््प युग जीवन के इतिहास की कुछ महत््वपूर््ण घटनाएँ
वर््ष पूर््व)
अवधि
फ़़ै न- अभिनव युग 0.01 ऐतिहासिक समय
चतुर््थ कल््प
अत््यन््त नूतन 1.8 हिम युगोों; होमो प्रजाति की उत््पत्ति
एरोज़़ोइक अतिनूतन 5.3 द्विपाद मानव पूर््वजोों की उत््पत्ति
नियोगीन स््तनधारियोों और आवृतबीजी पौधोों का निरंतर प्रसार;
अल््पनूतन 23
प्रारंभिक प्रत््यक्ष मानव पर्ू ्वज
नवजीवन अधिनूतन 33.9 अनेक प्राइमेट समहू की उत््पत्ति
एंजियोस््पर््म का प्रभत्ु ्व बढ़ता है; अधिकांश आधनिक ु
अदिनूतन 55.8
पेलियोजीन स््तनधारी समहोों ू का निरंतर प्रसार
स््तनधारियोों, पक्षियोों और परागण करने वाले कीड़ों का
पुरानूतन 65.5
प्रमखु प्रसार
फूल वाले पौधे (एंजियोस््पर््म) दिखाई देते हैैं, अधिकांश
प्रागजीव क्रीटेशियस 145.5 डायनासोर सहित जीवोों के कई समहू अवधि के अंत मेें
विलुप्त हो जाते हैैं
मध््यजीवी जिम््ननोस््पर््म प्रभावी पौधोों के रूप मेें; डायनसोरोों की
जुरेसिक 199.6
अधिकता और विविधता
शंकुधारी पौधे (जिमनोस््पर््म) भदृू श््य पर हावी हैैं;
ट्रियासिक 251
डायनासोर का प्रसार; स््तनपायी की उत््पत्ति
सरीसृपोों का प्रसार; कीड़ों के अधिकांश वर््तमान समहोों ू की
परमियन 299 उत््पत्ति; काल के अंत मेें कई समद्ु री और स््थलीय जीवोों
का विलुप्त होना
संवहनी पौधोों के विस््ततृत वन; पहले बीज वाले पौधे प्रकट
कार्बोनिफे रस 359.2
होते हैैं, सरीसृपोों की उत््पत्ति; उभयचर प्रभावी
हड्डीयुक्त मछलियोों की विविधता; पहला टेट्रापोड. और
परु ाजीव डेवोनियन 416
कीड़ो का उद्भव
सिलरियन 443.7 प्रारंभिक संवहनी पौधोों का विविधता
समद्ु री शैवाल की प्रचरु ता; विविध कवक, पौधोों और
ओर्डोविसयन 488.3
आर्थ्रोपोड द्वारा भमि ू का अच््छछादन
आद्य कई जंतु संघ की विविधता मेें अचानक वृद्धि (कै म्ब्रियन
कै म्ब्रियन 542
महाकल््प विस््फफोट)
600 विविध शैवाल और नरम शरीर वाले अकशेरुकी जंतु
एडियाकरण
2,100-2500 यूकेरियोटिक कोशिकाओ ं के सबसे पुराने जीवाश््म
वायुमंडलीय ऑक््ससीजन की सांद्रता बढ़ने लगती है
2,700
कोशिकाओ ं के सबसे पुराने जीवाश््म (प्रोकैरियोट्स) का
3,500
उद्भव
3,800
पृथ््ववी की सतह पर सबसे पुरानी ज्ञात चट्टानेें
App. 4,600
पृथ््ववी की उत््पत्ति
से अधस््तल पर टिलाइट के साथ गोोंडवाना अवसाद के समकक्ष अफ़््रीका, हेस ने इन तथ््योों और मध््य महासागरीय कटक के दोनोों ओर की चट्टानोों के
मेडागास््कर और अटार््कटं िका जैसे क्षेत्ररों मेें पाए जाते हैैं, जो साझा भवू ैज्ञानिक चंबु कीय गुणोों के विश्लेषण के आधार पर अपनी परिकल््पना का प्रस््तताव रखा।
इतिहास का संकेत देते हैैं। उनके अनुसार:
z मध््य महासागरीय कटक मेें लगातार ज््ववालामुखी विस््फफोटोों के कारण
z प््ललेसर निक्षेप: घाना के तट पर सोने के समृद्ध प््ललेसर निक्षेप हैैं, हालाँकि
महासागरीय भपू र््पटी का टूटना होता है।
सोने के स्रोत चट्टान का अभाव है। ब्राजील के पठार मेें सोनायक्त ु शिरायेें हैैं,
z इन विस््फफोटोों से निकलने वाला लावा भप ू र््पटी को अलग करता है, जिससे
जिनसे वे प्राप्त होते हैैं।
महासागर अधस््तल का विस््ततार होता है।
z जीवाश््मोों का वितरण: उदाहरण के लिए, लै मुर भारत, मेडागास््कर और
अफ़््रीका मेें पाए जाते हैैं, भले ही ये स््थथान अब महासागर से अलग हो गए हैैं। महासागरीय भपू र््पटी की युवावस््थथा को देखते हुए और इस तथ््य को देखते हुए
कि एक महासागर का चौड़़ा होना दसू रे को सिकोड़ता नहीीं है, हेस ने निष््कर््ष
महाद्वीपीय विस््थथापन के बाद का अध््ययन निकाला कि फैलता महासागर अधस््तल अंततः समुद्री गर्ततों मेें डूब जाता
है तथा अवशोषित हो जाता है।
आर््थर होम््स का संवहन-धारा सिद््धाांत
z होम््स का योगदान (1930 का दशक): पृथ््ववी के मेेंटल के भीतर सव
प्लेट विवर््तनिकी
ं हन
धाराओ ं के प्रभाव की सम््भभावना व््यक्त की, जो मेेंटल के भीतर मौजदू एक टेक््टटोनिक अथवा स््थलमंडलीय प््ललेट ठोस चट्टान का एक विशाल स््ललैब
रेडियोधर्मी तत््वोों के कारण ताप के अंतर के कारण उत््पन््न हुए हैैं। है। इसमेें महाद्वीपीय और महासागरीय दोनोों स््थलमंडल शामिल होते हैैं। ये
प््ललेटेें तरल दुर््बलमंडल के ऊपर मजबूत इकाइयोों के रूप मेें फिसलती हैैं। किसी z पृथ््ववी के भीतर गर्मी दो मख्ु ्य स्रोतोों से आती है: रेडियोधर्मी क्षय और अवशिष्ट
प््ललेट का ‘महाद्वीपीय’ अथवा ‘महासागरीय’ वर्गीकरण इस बात पर निर््भर ताप।
करता है कि किस प्रकार की प््ललेट उस पर हावी है। उदाहरण के लिए, प्रशांत z गर््म सामग्री सतह पर पहुचँ ती है, फै लती है और ठंडी होने लगती है और
प््ललेट महासागरीय है, जबकि यूरेशियन प््ललेट महाद्वीपीय है। फिर वापस गहरी गहराई मेें जाकर नष्ट हो जाती है। इस चक्र का बार-
बार पुनरावर््तन एक सवं हन सेल अथवा सवं हन प्रवाह उत््पन््न करता है।
चोटी 1930 के दशक मेें आर््थर होम््स ने पहली बार इस विचार पर विचार किया,
स््थलमंडल z
खाई जिसने बाद मेें हैरी हेस की समद्ु री अधस््तल के विस््ततार की अवधारणा को
खाई
एस््थथे
नोस््फफी
प्रभावित किया।
यर
आच््छछादन प्लेट सीमाएँ
700 किमी
चोटी
अपसारी प््ललेट
बाहरी परत
सीमा
भक ू ं प आते हैैं और
अभिसारी
ज््ववालामख ु ी विस््फफोट। प््ललेट सीमा
प्लेटोों का विभाजन
z माना जाता है कि स््थलमड ं ल अलग-अलग प््ललेटोों की एक ृंखला मेें विभाजित प््ललेटेें आपस मेें टकराती हैैं
है, जो ऊपरी मेेंटल मेें संवहन सेलओ ं से प्रेरित होकर चलती हैैं। चित्र: प््ललेट सीमा इटं रे क््शन के प्रकार
z पृथ््ववी के स््थलमड ं ल को सात मुख््य प््ललेटोों और कई छोटी प््ललेटोों मेें विभाजित z अपसारी सीमाएँ: जब प््ललेटेें एक-दसू रे से दरू हटती हैैं, तो नया भूपर््पटी बनता
है। है। उदाहरण के लिए मध््य-अटलांटिक कटक पर अमेरिकी प््ललेट यरू े शियाई और
z मुख््य प््ललेट : अटार््कट ं िका और उससे लगा हुआ महासागरीय प््ललेट; उत्तरी अफ़््रीकी प््ललेटोों से अलग हो जाती है।
अमेरिकी प््ललेट; दक्षिण अमेरिकी प््ललेट; प्रशांत प््ललेट; भारत-ऑस्ट्रेलिया- z अभिसरण सीमाए:ं एक प््ललेट, प्रविष्ठन क्षेत्र मेें दसू रे के नीचे धंस जाती है।
न््ययूजीलैैंड प््ललेट; अफ़््रीकी प््ललेट; यरू े शिया प््ललेट अभिसरण तीन तरीकोों से होता है:
z कुछ महत्तत्वपूर््ण छोटी प््ललेट: कोकोस प््ललेट: मध््य अमेरिका और प्रशांत प््ललेट महासागरीय-महासागरीय प््ललेट अभिसरण: द्वीप ृंखला का
के बीच; नाज़का प््ललेट: दक्षिण अमेरिका और प्रशांत प््ललेट के बीच; अरब निर््ममाण, भक ू ं प और ज््ववालामख ु ी गतिविधि।
प््ललेट: मख्ु ्य रूप से सऊदी अरब की भमि महासागरीय-महाद्वीपीय प््ललेट अभिसरण: महासागरीय प््ललेट का
ू ; फिलीपीन प््ललेट: एशियाई और
प्रशांत प््ललेट के बीच; कै रोलिन प््ललेट: फिलीपीन तथा भारतीय प््ललेट के बीच प्रविष्ठन(Subduction)और पहाड़ों का निर््ममाण (एडं ीज पर््वत)।
(न््ययू गिनी के उत्तर मेें); फूजी प््ललेट: ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पर्ू ्व मेें। महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प््ललेट अभिसरण:वलित पर््वतोों का निर््ममाण, भक ू ंप
प््ललेट का संचलन : महासागरीय प््ललेट महाद्वीपीय प््ललेट से हल््ककी होती है। गतिविधि और कोई ज््ववालामख ु ी गतिविधि नहीीं।
जब इन दोनोों प््ललेटोों के बीच अभिसरण होता है,तो महासागरीय प््ललेट नष्ट हो z अभिसरण सीमाए:ं प््ललेटेें क्षैतिज रूप से सरकती हैैं, न तो भूपर््पटी बनाती
जाती है। इसी तरह, दो महासागरीय प््ललेटोों के बीच अभिसरण होता है,तो हैैं और न ही नष्ट करती हैैं। पृथ््ववी के घर्ू न्ण का प््ललेट के अलग-अलग हिस््सोों
छोटी प््ललेट नीचे धंस जाती है। पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
महासागरों और महाद्वीपों का व 13
z भारत लगभग 40-50 मिलियन वर््ष पूर््व एशिया से टकराया, जिससे हिमालय
का तेजी से उत््थथान हुआ।
z यह प्रक्रिया जारी है और हिमालय की ऊँचाई आज भी बढ़ रही है।
z एशियाई प््ललेट को धीरे -धीरे धके लने वाली भारतीय प््ललेट के उत्तर की ओर गति
इस क्षेत्र मेें लगातार भक
ू ं पोों को जन््म देती है।
z भारतीय प््ललेट के एशियाई प््ललेट की ओर गति के दौरान, एक प्रमख ु घटना लावा
का निकलना और डक््कन ट्रै प का निर््ममाण था।
भारतीय प्लेट की सीमाएं
z उत्तरी सीमा: हिमालय महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव क्षेत्र को दर््शशाते हैैं।
z पूर्वी सीमा: राकिन््ययोमा पर््वत से जावा समद्ु री खाई तक फै ली हुई है, जिसमेें
दक्षिण-पश्चिम प्रशांत मेें ऑस्ट्रेलिया के पास एक फै लाव क्षेत्र है।
z पश्चिमी सीमा: किरथार पर््वत से शरू ु होती है, मकराना तट के साथ फै लती है
और चागोस द्वीपसमहू के माध््यम से लाल सागर दरार से जड़ु ती है।
z अंटार््कटिका के साथ दक्षिणी सीमा: एक महासागरीय कटक द्वारा परिभाषित
14 महासागरों और महाद्वीपों का व
4 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ
वालामख
ु ी भक
ू ंप भौितक रासायिनक जैिवक बहता पानी, भजू ल,
लेिशयर, लहरहवा
,
लंबवत ैितज
(महाीपीय भवन) (पवतीय भवन)
z धरातल के पदार्थथों पर अतं र््जनित एवं बहिर््जनिक बलोों द्वारा भौतिक दबाव तथा तनाव पैदा करती है तो भपू र््पटी मेें दरारे उत््पन हो जाती है, इन््हेें अपसारी
रासायनिक क्रियाओ ं के कारण भतू ल के विन््ययास मेें परिवर््तन को भ-ू आकृतिक बल भी कहा जाता है। जब बल एक-दसू रे की तरफ लगता है तो पर््वतोों
प्रक्रियाएँ कहते हैैं। का निर््ममाण होता है और इसे अबिसरी बल खा जाता है।
z अपक्षय, वहृ त क्षरण, अपरदन एव निक्षेपण बहिर््जनिक भ-ू आकृतिक z एपिरोजेनिक प्रक्रियाएँ (Epeirogenic Processes) : भपू र््पटी के झकाव ु
प्रक्रियाएँ हैैं। या ऊर््ध्ववाधर संचलन को कहते हैैं। यह एक महाद्वीपीय निर््ममाण प्रक्रिया है। इसमेें
भपू र््पटी के बड़़े हिस््ससे का उत््थथान या विरूपण शामिल होता है। यह महाद्वीप
z प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, ग््ललेशियर, हवा, लहरोों, धाराएँ इत््ययादि
निर््ममाण का कार््य करती है।
को भू-आकृतिक कारक है।
आकस््ममिक अंतर््जनित प्रक्रियाएँ
अंतर््जनित बल ऐसी गतिविधियाँ होती हैैं जो भमि ू के अंदर अचानक उत््पन हुए बलोों के कारण
पृथ््ववी के अंदर से निकलने वाली ऊर््जजा भ-ू आकृतिक प्रक्रियाओ ं के लिए प्रमख
ु होती हैैं। इसमेें भूकंप, ज््ववालामुखी और भूस््खलन शामिल हैैं।
बल स्रोत होती है। इसे दो भाग मेें विभाजित कर सकते हैैं। बहिर््जजात बल (विनाशकारी बल)
पलट विरूपण (Diastrophism) z वे बल जो पृथ््ववी की सतह पर उत््पन सौर ऊर््जजा और विवर््तनिक ढाल के कारण
यह धीमी गति से भपू र््पटी को संचलित, उत््थथापित तथा निर््ममित करती हैैं। होते हैैं, इन््हेें ऊर््जजा वायुमंडल से मिलती है।
यह कई तरीकोों से भपू र््पटी का निर््ममाण करते हैैं जिसमेें भपू र््पटी का मड़ु ना, z यह धीमे और क्रमिक बल हैैं और इन््हेें अनाच््छछादनात््मक/विनाशकारी/
फोल््डडििंग (चट्टान का मड़ु ना) फॉल््टटििंग (टूट जाना या दरारे पड़ना), भपू र््पटी का बहिर््जनिक प्रक्रियाएँ भी कहा जाता है।
ऊपर उठना (Uplifting) या धसना (Subsiding) शामिल है। z बाह्य शक्तियोों के क्रियाओ ं के परिणामस््वरूप, स््थल/उच््चचावचोों का कटाव
z पर््वत निर््ममाणकारी प्रक्रिया (Orogenic processes)
(क्षरण) और बेसिन का भराव होता है।
z पृथ््ववी के भभू ाग की विविधता के अपरदन को ग्रेडेशन (Gradation) कहा तापमान परिवर््तन और विस््ततार : सख ू े जलवायु और अधिक ऊँचाइयोों
जाता है। वाले क्षेत्ररों मेें यह सबसे प्रभावी है जहाँ दैनिक तापमान मेें बहुत परिवर््तन
z सभी बहिर््जनिक भ-ू आकृतिक प्रक्रियाओ ं को एक सामान््य शब््ददावली पाया जाता हैैं।
अनाच््छछादन (Denudation) के अतं र््गत रखा गया है। जिसमेें अपक्षय, वृहत हिमीकरण, विघलन और तुषार वेजिंग : उच््च ऊँचाइयोों वाले क्षेत्र
क्षरण, अपरदन, संचलन, परिवहन शामिल हैैं। मध््य अक््षाांशोों मेें जहाँ बर््फ का जमना और पिघलना प्रायः होता रहता है।
z चट्टान का प्रकार और सरच ं ना बहिर््जनिक प्रक्रियाओ ं की प्रबलता को हिमीकरण मेें, पानी को बर््फ मेें बदलता है।
संघटित रूप से प्रभावित करते हैैं। विगलन प्रक्रिया मेें बर््फ को पानी मेें बदला जाता है।
z जलवायुकीय कारक : तापमान, वर््षषा, सर््यू ताप, हवा के पैटर््न, आदि,
तुषार वेजिंग, बार-बार होने वाले हिमीकरण और विघलन के
जलवायुकीय प्रक्रियाओ ं को प्रभावित करते हैैं।
कारन चट्टानोों का टूटना।
अपक्षय (Weathering)
लवण अपक्षय : चट्टानोों मेें लवण तापमान, हाइड्रेशन और क्रिस््टलीकरण
z अपक्षय को मौसम एवं जलवायु क्रिया के माध््यम से शैलोों के यांत्रिक विखंडन (Crystallisation) के कारण फै ल जाता है। लवण क्रिस््टलीकरण सभी
(Mechanical) एवं रासायनिक वियोजन अपघटन (Decomposition) लवण वायरिंग प्रक्रियाओ ं मेें सबसे प्रभावी है।
के रूप मेें परिभाषित किया जा सकता है। यह एक स््वस््थथाने (In situ) या
बाह्यस््थने (On-site) प्रक्रिया है। अपशल््कन तब होती है जब तापमान से होने वाले विस््ततार और संकुचन के
कारण, चट्टानोों से या चट्टानोों से कुर््वदार परतेें अलग हो जाती हैैं।
z अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक : भवि ू ज्ञान, मौसम और जलवाय,ु
उच््चचावच, और जैविक कारक। अपशल््कन डोम््स बड़़े और गोलाकार गंबु द होते हैैं जो चट्टानोों की
भारविहीनीकारण और विस््ततारण के कारण बनते हैैं।
अपक्षय प्रक्रिया के विभिन प्रकार हैैं–
अपशल््कन टॉर समथित और गोलाकार छोटे से बड़़े आकार की चट्टानेें होती
1. रासायनिक अपक्षय
हैैं, जो तापमान के परिवर््तन और विस््ततारण के कारण बनती हैैं।
अपक्षय प्रक्रियाओ ं का एक समहू जैसे कि विलयन (Solution),
3. जैविक अपक्षय
कार्बोनीकरण (Carbonation), जलयोजन (Hydration), ऑक््ससीकरण
(Oxydation) तथा न््ययूनीकरण (Reduction)। इसमेें ऊष््ममा के साथ जल एवं ये जीवोों द्वारा होता है।
जै विक विकास : इसमेें प्राणियोों की गतिविधियाँ शामिल हैैं जैसे कि
वायु (ऑक््ससीजन तथा कार््बन डाईऑक््ससाइड) की विद्यमानता सभी रासायनिक
प्रतिक्रियाओ ं को तीव्र करते हैैं। केें चएु , दीमक, और कृं तक, जो मिट्टी या चट्टानोों को बदल देते हैैं।
विलयन : पानी या अम््ल मेें विघटन। जैसे की लाइमस््टटोन मेें मौजद ू कार््बनिक पदार््थ का क्षय : विघटन करते हुए पौध और जीव ह्यूमिक,
कै ल््शशियम कार्बोनेट और कै ल््शशियम मैग््ननीशियम बाइकार्बोनेट जैसे कार्बोनिक, और अन््य अम््ल उत््पन््न करते हैैं, जो कुछ तत््वोों के क्षरण
खनिज, कार्बोनिक अम््ल यक्त ु पानी मेें घल
ु जाते हैैं। और घल ु नशीलता को बढ़़ावा देती हैैं।
कार्बोनीकरण : वायम ु डं लीय कार््बन डाइऑक््ससाइड के प्रभाव से होने जड़ो द्वारा दबाव : पौधोों की जड़ेें चट्टानोों को तोड़ देती हैैं।
वाली विघटन प्रक्रिया; फेल््सपर और कार्बोनेट खनिजोों को बदलने मेें अपरदन एव निक्षेपण
मदद करने वाली सामान््य प्रक्रिया।
चट्टान के मलबा को अधिग्रहण और परिवहन करना (बहते पानी, भजू ल,
जलयोजन : खनिज पानी सोख ले ते हैैं और फै लते हैैं जिससे उनका
ग््ललेशियर, हवा और लहरेें) के द्वारा अपरदन कहलाता है। इन भौतिकीय एजेेंट्स
आयाम बढ़ता है (कै ल््शशियम सल््फफेट + पानी = जिप््सम)। यह बार-बार द्वारा ले जाए गए चट्टान मलबा के द्वारा हुए घर््षण (Abrasion) के कारण भी
होने से अपशल््कन (Exfoliation) और दानिक विघटन (Granular
अपरदन मेें सहायता मिलती है।
Disintegration) के माध््यम से भौतिक विघटन (Physical
z हालाँकि अपक्षय, अपरदन के लिए सहायक है, लेकिन यह अपरदन के
Weathering) होता है।
लिए आवश््यक नहीीं है। अपक्षय वहृ त क्षरण, और अपरदन विनाशात््मक
ऑक््ससीकरण और न््ययूनीकरण : ऑक््ससीकरण मेें, ऑक््ससीजन का योग
प्रक्रियाएँ हैैं।
से आये व््यवधान के कारण चट्टान टूटती है। जब ऑक््ससीकृ त खनिजोों को
वातावरण मेें रखा जाता है जहाँ ऑक््ससीजन अनपु स््थथित है (उदाहरण– भौम निक्षेपण, अपरदन का एक परिणाम है; जमाव बड़े से छोटे क्रम मेें होता है,
जल स््तर के नीचे / जलस््थल क्षेत्र), तो न््ययूनीकरण होता है। जिसमेें सबसे पहले बड़े पत््थर जमा होते हैैं।
निक्षेपण के कारक : वाहित जल, ग््ललेशियर, हवा, लहरेें, और भजू ल।
2. भौतिक या यांत्रिक अपक्षय प्रक्रियाएँ
भौतिक या यांत्रिक अपक्षय एक प्रक्रिया को दर््शशाता है जो कार््य करने वाले बलोों वृहत संचलन
पर निर््भर करती है। इनमेें से अधिकांश प्रक्रियाएँ तापमान के विस््ततार और दबाव
मक्ति
ु के कारण होती हैैं। ये बल गुरुत््ववाकर््ष ण बल, विस््ततारण बल, और वृहत संचलन वह प्रक्रिया है जिनमेें शैलोों का वृहत मलबा गुरुत््ववाकर््षण के
जल का दबाव हो सकते हैैं। सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स््थथानांतरित होता है। वृहत संचलन
भारविहीनीकारण और विस््ततारण : अपरदित भमि ू सतहोों के क्षेत्ररों मेें, को बढ़़ावा देने वाले कारक– कमजोर सामग्री, ढालोों की प्रवणता, वर््षषा, और
मेेंढ़़ी फ्रै क््चर््स मेें बड़़ी शीटेें या पत््थर की छादेें उत््पन््न होने की प्रवृत्ति होती पौधरोपण की कमी।
हैैं। इस प्रक्रिया का परिणाम है बड़़े समतल गोलाकार गम्ु ्फ, जिन््हेें विस््ततार z हीव (Heave) (जमीन की बर््फ के बढ़ने और अन््य कारणोों से होने वाले
गम्ु ्फ कहा जाता है। उत््थथान), फ््ललो और स््ललाइड– ये तीन प्रकार के गतियाँ हैैं।
16 भू-आकृतिक प्रक्रि
z वृहत संचलन धीरे हो सकते हैैं (क्रीप, हीव) या तेज (फ््ललो, स््ललाइड), जो भूस््खलन
उनकी गति के आधार पर वर्गीकृ त होते हैैं। भस्ू ्खलन अपेक्षाकृ त तीव्र एवं अवगम््य संचलन है। इसमेें स््खलित होने वाले
मंद संचलन (Slow Movements) पदार््थ अपेक्षतया शष्ु ्क होते हैैं। मलबा संचलन के आधार पर, इसके कई प्रकार
यह मध््यम ढलाव, मृदा आच््छछादित ढाल पर होता है; इसमेें अत््ययंत मंद और हैैं–
z स््ललंप : मलबे लढ़कक ु र और उल््टटा घमू ते ढाल पर गिरना।
अदृश््य सामग्री का स््थथानांतरण शामिल है।
z मलबा स््खलन : भमि ू के मलबे का शीघ्र गति से लढ़क ु ते हुए ढाल से गिरना
z विसर््पण (Creep) मध््य ढलानोों पर होता है; मलबे का स््थथानांतरण अत््ययंत
बिना घमू ।े
धीमा होता है; शामिल होने वाली सामग्री मृदा या चट्टानी मलबा हो सकता है।
z शै ल स््खलन : तनाव के कारण जब इक चट्टान का बड़ा टुकड़ा जमीन से
z मृदा मंद विसर््पण (Solifluction) : विसर््पण (Creep) का ही एक रूप है,
फिसल जाता है।
जिसमेें संतप्तृ मृदा या सक्षू ष्म कणीय चट्टानी मलबे का धीरे -धीरे नीचे की ओर z शै ल पतन : खड़ी ढलानोों पर बिना किसी अवरूपण विस््थथापन से मलबा
फिसलना; यह ठंडे जमीन के सतह के पिघलने और लंबे समय तक बारिश के का टूटकर गिरना।
कारण हो सकता है, जो आर्दद्र शीतोष््ण क्षेत्ररों मेें होता है। z हिमालय पर््वतमाला : अवसादी चट्टानोों से मिलकर बनी है इसमेें असंघटित
तीव्र संचलन (Rapid Movements) और आशिक ं -सघं टित जमाव भी शामिल है। इसकी ढाल तीव्र है इसलिए,
यह सर््ववाधिक ऊष््ममीय जलवायु क्षेत्ररों मेें होता है और यह निम््न से लेकर तीव्र यहाँ भस्ू ्खलन बहुत आम बात हैैं।
ढालोों पर होता है। z नीलगिरी पर््वतमाला स््थथिर है, यह मख् ु ्य रूप से ठोस चट्टानोों से बनी है।
z मृदा प्रवाह (Earth Flow) जब संतप्त ृ मृदा नीचे की ओर फिसलने लगती है। तापमान मेें परिवर््तन के कारण यह यांत्रिक अपक्षय सचु ारु रूप से होती है।
z मलबा अवधाव (Debris Avalanche) बहुत कम समय मेें बहुत अधिक मृदा
बहुत ही कम समय मेें अधिक मात्रा मेें बारिश होने के करण यह भस्ू ्खलन
से प्रभावित क्षेत्र है।
का गिरना, यह हिमस््खलन की तल ु ना से भी तेज हो सकते हैैं।
भू-आकृतिक प्रक्रि 17
5 भू-आकृतियाँ और उनका विकास
पृथ््ववी की सतह पर उपस््थथित लघु से मध््यम आकार के भू-भाग अथवा 2. जलरंध्र तथा अवंमित कुंड: जलरंध्र अपरदन और चट्टान के टुकड़ों के
खंडोों को भू-आकृतियाँ कहा जाता है और कई भू-आकृतियाँ एक साथ घर््षण के कारण चट्टानी जलधाराओ ं पर बने गोलाकार गड्ढे हैैं; इन छिद्ररों मेें
मिलकर ‘भूदृश््य’ कहलाती हैैं। भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) कंकड़-पत््थर एकत्रित हो जाते हैैं एवं अवसाद को चौड़़ा तथा गहरा बनाते हैैं।
पृथ््ववी के धरातलीय स््वरूपोों का अध््ययन होता है। विभिन््न भ-ू आकृतिक z अवनमित कंु ड, जल और विरल चट्टानोों के बल के कारण झरने के आधार
कारक विभिन््न प्रकार के अपरदनात््मक और निक्षेपणात््मक भ-ू आकृतियोों का पर निर््ममित होते हैैं।
निर््ममाण करते हैैं।
3. नदी विसर््प:
प्रवाहित जल z लप ू जैसे चैनलोों को विसर््प कहा जाता है। जल कम गतिज ऊर््जजा के कारण
अपना मार््ग परिवर््ततित करता रहता हैI
यह भारी वर््षषा वाले आर्दद्र क्षेत्ररों मेें एक महत्तत्वपूर््ण भ-ू आकृतिक कारक है।
z सक्रिय पार्शश्व क्षरण के कारण विरल ढलानोों पर बहने वाली विसर्पी धाराएँ
इसके 2 घटक होते हैैं:
क) स््थलगत प्रवाह अथवा परत और विकसित हो जाती हैैं ; बाढ़ के मैदानोों और डेल््टटा विछिन््न मैदानोों मेें
ख) घाटियोों मेें जलधाराओ ं और नदियोों के रूप मेें रैखिक प्रवाह। सामान््य रूप से विसर्पीय मार््ग होते है ;
z निक्षेपित विसर््प: बहुत गहरे और चौड़़े मोड़ कठोर चट्टानोों मेें भी कटे हुए
प्रवाहित जल के कारण निर््ममित भ-ू आकृतियाँ तीन चरणोों मेें विकसित होती
हैैं: युवा, परिपक््व और वृद्ध पाए जा सकते हैैं । वे समय के साथ चौड़़े एवं गहरे होते जाते हैैं तथा कठोर
z युवावस््थथा की विशे षताएँ: V-आकार की घाटियाँ, ऊर््ध्ववाधर कटाव के कारण
चट्टान वाले क्षेत्ररों मेें गहरी घाटियोों एवं घाटियोों के रूप मेें पाए जा सकते हैैं।
घाटियाँ; शीर््ष अपरदन द्वारा दसू री नदी का अपहरण; क्षिप्रिकाएँ, जलप्रपात z कुछ घमाव ु दार ढलानेें विकसित हो जाती हैैं, जो बाद मेें गोखुर झीलोों मेें
और अतं र्गग्रथित पर््वत प्रक्षेप I परिवर््ततित हो जाती हैैं।
z परिपक््व अवस््थथा की विशे षताएँ: लंबवत अपरदन के कारण घाटी का z विसर््प निर््ममाण के कारण: हल््ककी ढाल; कोरिओलिस बल और नदी तट
विस््ततारीकरण; बाढ़ के मैदान; नदी विसर््प, नदी भृगु विसर््प, रिवर टैरेस, पर अनियमितताएँ।
रोधिकाएँ, नदी वेदिका और मदं ढाल। 4. नदी वेदिकाएँ
z ओल््ड ऐज की विशे षताएँ विस््ततृत बाढ़ के मैदान; विसर््प और गोखरु झीलेें;
z आर्दद्र क्षेत्ररों के जलोढ़ पंखोों मेें हल््ककी ढलान होती है , जबकि शुष््क क्षेत्ररों
सकते हैैं ।
मेें खड़़ी, ऊँ चे शंकु दिखाई देते हैैं । 6. गंुफित जलमार््ग (Braided Channel) : जब घाटी मेें जल की मात्रा कम
2. डेल््टटा होती है और अवसाद का भार अधिक होता है , तो जलमार््ग की सतह
z यह झीलोों अथवा समद्ररों ु मेें प्रवेश करने वाली नदी के मुहाने पर एक त्रिकोणीय पर मार््ग रोधिकाएँ और बालू, बजरी तथा कंकड़ के द्वीप विकसित हो
निक्षेपण विशेषता है। जाते हैैं एवं जल का प्रवाह कई शाखाओ ं मेें विभाजित हो जाता है । ये
धागेनमा ु शाखाएँ एक गंथु े हुए पैटर््न का निर््ममाण करने के लिए बार-बार जड़ु ती
z नदी तलछट के सच ं य के कारण नदियोों और समद्रु के मिलन बिंदु पर होता है ।
और उप-विभाजित होती हैैं । इनके निर््ममाण के लिए तटोों का निक्षेपण और
z जलोढ़ पंखोों के विपरीत, डेल््टटा बनाने वाले निक्षेप स््पष्ट स््तरीकरण के साथ
पार्शश्व क्षरण आवश््यक है।
बहुत अच््छछी तरह से क्रमबद्ध होते हैैं।
7. गोखुर झीलेें: परित््यक्त घमावोों
ु द्वारा निर््ममित अर््धचद्ं राकार जल निकाय। इनके
z आदर््श परिस््थथितियाँ: उथला समद्र ु /झील तट, लंबे नदी मार््ग, मध््यम आकार
महु ाने पर स््थथित निक्षेपण इन््हेें मख्ु ्य चैनल से अलग करता है।
के अवसाद, आश्रयित समद्ु री स््थथितियाँ, पर््ययाप्त निक्षेपण आपर््तति ू , त््वरित
जलग्रहण क्षेत्र कटाव और स््थथिर तटीय/महासागर स््थथितियाँ। भौम जल
3. बाढ़ मैदान: नदी चैनलोों के हल््कके ढलानोों की ओर सक्र ं मण के रूप मेें होने
वाला निक्षेपण। बाढ़ के मैदानोों मेें एक सक्रिय बाढ़ का मैदान (नदी के भ-ू जल भभू ागोों के क्षरण और भ-ू आकृतियोों को आकार देने मेें, विशेष रूप से चनू ा
निक्षेपण से बना नदी तल) और एक निष्क्रिय बाढ़ का मैदान (तट के पत््थर एवं डोलोमाइट जैसी कै ल््शशियम कार्बोनेट यक्त
ु चट्टानोों वाले क्षेत्ररों मेें महत्तत्वपर्ू ्ण
ऊपर का बाढ़ का मैदान) शामिल होते हैैं। निष्क्रिय बाढ़ के मैदानोों मेें मल ू भमिका
ू निभाता है, प्रमखु भमि
ू गत जल प्रक्रियाओ ं मेें घुलनशीलता और निक्षेपण
रूप से दो प्रकार के निक्षेप होते हैैं- बाढ़ निक्षेप और मार्गीय निक्षेपण I शामिल है । भूमिगत जल गतिविधि चूना पत््थर युक्त क्षेत्ररों मेें एक विशिष्ट
डेल््टटा के भीतर बाढ़ के मैदानोों को डेल््टटा मैदान कहा जाता है । भ-ू आकृति का निर््ममाण करती है उस स््थलाकृति कार््स््ट के नाम से जाना जाता है।
z हिमरे खा उस ऊँचाई को दर््शशाती है जहाँ सबसे गर््म महीने के दौरान औसत आकार की झील होती है , जो आमतौर पर हिमनद गर््त मेें पाई जाती है।
तापमान शन्ू ्य से नीचे रहता है। z निलंबित घाटी: बर््फ पिघलने के बाद एक सहायक घाटी मख् ु ्य घाटी के ऊपर
हिमानी अपरदन वाली भू-आकृतियाँ: घर््ष ण, उत््पपाटन और पॉलिश करने लटक जाती है, जिससे उसकी धारा झरने के रूप मेें नीचे गिरती है। हिमनद
से बनती हैैं; इनके आधार पर स््थथित मोटा अवसाद आधारशिला तथा पार्शश्व के बाद, निलंबित घाटियोों से पिघला हुआ जल मख्ु ्य घाटी मेें शामिल होने
दीवार के क्षरण मेें सहायता करता है। पर प्रायः झरने का निर््ममाण करता है। उदाहरण-हर-की-दनू घाटी, उत्तराखडं I
rugged mountain wall z उच््च अक््षाांशोों मेें, समद् ु री जल से भरे गहरे हिमनद गर््त फ़़्ययोर््ड का निर््ममाण करते हैैं।
bergschrund 4. भेड़शिला (Roche Moutonnee): यह एक प्रतिरोधी अवशिष्ट रॉक
‘हम््ममॉक’ होती है। बर््फ़ के सचं रण से सतह धारीदार हो जाती है। इसके ऊपरी
हिस््ससे को घर््षण द्वारा चिकना किया जाता है और इसके निचले हिस््ससे को
crevasses उखाड़कर खुरदुरा किया जाता है ।
5. श््रृृंग पुच््छ: श््रृृंग एक कठोर चट्टान का बाहर निकला हुआ भाग है, जिसमेें
neve or firn ऊपर की ओर ढलान होती है ,जो बर््फ़ को नरम प्रतिवात ढलान से परू ी तरह
से घिसने से बचाती है।
6. गिरिश््रृृंग : गिरिश््रृृंग पिरामिडनमा ु अथवा त्रिकोणीय शिखर होते हैैं, जो तब
1. सर््क : ये हिमनदी घाटियोों के शीर््ष पर आरामकुर्सी के आकार के खड़़ी दीवारोों बनते हैैं, जब तीन अथवा अधिक चक्र एक दसू रे को काटते हैैं, जिससे शिखर
वाले निक्षेप होते हैैं। ये गहरे , लंबे और चौड़़े गर््त अथवा बेसिन होते हैैं, जिनके का ढलान और तीव्र हो जाता है।
सिरोों तथा किनारोों पर लंबवत रूप से गिरने वाली ऊँची दीवारेें होती हैैं। 7. नुनाटक : हिमानी बर््फ से घिरी अलग-थलग चोटियाँ अथवा टीले जो बर््फ
z हिमनदी घाटियोों के शीर््ष पर स््थथित है । इसे कोरी (Corrie) के नाम से
के द्रव््यमान के अतं र््गत छोटे द्वीपोों से मिलते जल ु ते हैैं और हिमानी पार्शश्व क्षरण
भी जाना जाता है । और ठंड के प्रभाव के कारण समय के साथ आकार मेें कमी आती है।
z सर््क मेें अक््सर झीलेें होती हैैं, जिन््हेें ‘सर््क या टार््न’ झील के नाम से जाना
हिमानी निक्षेपण भू-आकृतियाँ
जाता है । 1. हिमनद टिल: हिमनद टिल ग््ललेशियरोों के पिघलने के कारण पीछे छूटा हुआ
मोटा और महीन अवसाद होता है; इसमेें मख्ु ्य रूप से कोणीय से लेकर
z सर््क का निर््ममाण हिमनदोों के कटाव, मख् ु ्य रूप से घर््षण और उत््पपाटन से होता
उप-कोणीय चट्टानेें शामिल होती हैैं।
है। जैसे- चद्रं ताल, हिमाचल प्रदेश।
2. बहिर््ववाह निक्षेप: कुछ मात्रा मेें चट्टानी मलबा इतना छोटा होता है कि पिघली
2. अरेत (Aretes): जब दो पहाड़़ियाँ एक पर््वत के विपरीत किनारोों पर विभाजित
जलधाराओ ं द्वारा बहाकर ले जाया जा सकता है और जमा हो जाता है। ऐसे
करती हैैं, तो चाकू की धार के आकार के कटक का निर््ममाण होता है, जिन््हेें
हिमनद-प्रवाह निक्षेपोों को ‘आउटवॉश’ निक्षेप कहा जाता है।
अरे त कहा जाता है।
3. हिमोढ़: हिमोढ़ अथवा मोरे न हिमनदोों के अवसादोों तक की लंबी चोटियाँ
z जहाँ तीन अथवा अधिक चक्र एक साथ विभाजित होते हैैं, उनकी अतिम ं स््थथिति होती हैैं; उन््हेें स््थथानोों के आधार पर अलग-अलग नाम दिए गए :
एक कोणीय सर््क अथवा पिरामिड शिखर का निर््ममाण करेगी ।
हिमोढ़ के अंत मेें टर््ममिनल पाए जाते हैैं, जबकि पार्शश्व हिमोढ़ हिमनद
z हिमदर: हिमनद के शीर््ष पर, जहाँ यह कोरी (Corrie) के बर््फ के मैदान घाटियोों के समानांतर किनारोों पर बनते हैैं। ये हिमोढ़ मिलकर घोड़़े की
को छोड़ना शरू ु करता है, तो एक गहरी ऊर््ध्ववाधर दरार का निर््ममाण होता है, नाल के आकार की नलिकाएँ बना सकते हैैं।
जिसे ब्रस्क्रं ड (जर््मन मेें) अथवा रिमाये (फ्ररेंच मेें) कहा जाता है। अपनी घाटी के तल पर अनियमित परतेें छोड़ जाते हैैं, जिन््हेें ग्राउंड
Glacier Ice movement
plucking मोरेन कहा जाता है।
Abrasion, polishing मध््यवर्ती हिमोढ़ हिमनद घाटियोों के मध््य मेें पाए जाते हैैं ।
Glacier
4. एस््कर््स: ये हिमनद के पिघलने के नीचे बहने वाले जल से बनी टे ढ़़ी-मेढ़़ी
चोटियाँ हैैं । जब ग््ललेशियर पिघलते हैैं, तो जल उनके नीचे इकट्ठा हो जाता है
और मोटे अवसाद अपने साथ ले जाता है। जैसे ही हिमनद लप्तु हो जाते हैैं,
ये अवसाद एस््कर नामक पर््वतमालाओ ं का निर््ममाण करती हैैं।
z सक्ं षारण (मिश्रण का): तटीय चट्टानोों, विशेष रूप से कार्बोनेट चट्टानोों का
रासायनिक परिवर््तन।
z तट दो प्रकार के होते हैैं:
प्रभावी होती हैैं; अत््यधिक अनियमित समद्रु तट, भमि ू मेें जल के विस््ततार
के साथ समद्रु तट अत््यधिक अवनमन दिखाई देता है, जहाँ कई स््थथानोों पर
हिमनदी घाटियाँ (फियोर््ड) मौजदू होते हैैं। तटीय रोधिकाएं और निमज््जन
Depositional Features of Glaciers भमि ू को अवरुद्ध कर सकते हैैं, जिससे लैगनू बन सकते हैैं, जो समय के
5. हिमानी धौत मैदान: हिमानी पर््वतोों की तलहटी मेें मैदानी भाग चौड़़े सपाट साथ तटीय मैदान मेें परिवर््ततित हो सकते हैैं।
जलोढ़ पंखोों के रूप मेें हिमनदी-नदी निक्षेपोों से ढके होते हैैं, जो मिलकर
निम््न तलछटी तट (भारत का पूर्वी तट): यहाँ मख् ु ्य रूप से निक्षेपण होता
बजरी, गाद, रे त और मृदा के हिमानी धौत मैदान बनाते हैैं ।
है। तटीय मैदानोों, रोधिका, स््पपिट,लैगनू और डेल््टटा जैसी निक्षेपात््मक
6. ड्रमलिन: ये चट्टानोों और मृदा से निर््ममित चिकनी, अंडाकार आकार की
विशेषताएँ उपस््थथित होती हैैं। ये तट लैगून तथा ज््ववारीय खाड़़ियोों के
पहाड़़ियाँ हैैं। इन पहाड़़ियोों के दो छोर होते हैैं। एक सिरा, जिसे ‘स््टटॉस एडं ’
कहा जाता है , चपटा और सीधा होता है, जबकि दसू रा सिरा पच्ृ ्छ कहलाता साथ सहज दिखते हैैं । भमि ू धीरे -धीरे जल मेें दब सकती है एवं ये दलदल
है । वे आम तौर पर हिमनद निक्षेपण का परिणाम होते हैैं तथा समहोों ू मेें हो मेें परिवर््ततित हो सकती है।
सकते हैैं, जिससे “अंडोों की टोकरी” जैसी स््थलाकृति का निर््ममाण होता तटीय अपरदन भू-आकृतियाँ
है।
7. के टल झील: यह स््थथिर बर््फ के पिघलने से बने बाहरी मैदान मेें एक अवसाद
है। बड़़ी के तली मेें कई निचले श्रंग हो सकते हैैं, जिन््हेें ‘हम््ममॉक््स’ कहते हैैं ।
8. फ़़्ययोर््ड: फ़़्ययोर््ड समद्रु के गहरे , संकरे और लंबे प्रवेश द्वार हैैं, जो आमतौर पर
खड़़ी चट्टानोों अथवा ढलानोों से घिरे होते हैैं। यह हिमनद, भ-ू वैज्ञानिक तथा
जल विज्ञान प्रक्रियाओ ं के संयोजन से बनता है। इसकी विशेषता समद्रु मेें डूबी
U-आकार की हिमनद घाटियाँ हैैं।
z अतं रीप और खाड़़ियाँ विशेष रूप से उच््चचारित होती हैैं, जहाँ कठोर चट्टानेें- Sand spit
Offshore sand bar
जैसे ग्रेनाइट और चनू ा पत््थर, मुलायम चट्टानोों के साथ वैकल््पपिक आवति ृ
मेें पाई जाती हैैं । Tombolo
z अक््सर चट्टानेें इनले ट्स अथवा खाड़़ियोों मेें वापस घिस जाती हैैं और
of wind
सतहोों से टकराती है, तो वाला तीव्र बल उत््पन््न होता है।
flow
Direction
z पाँच विभिन््न प्रकार के मरुस््थलीय भू दृश््य:
Zeugen
w
flo
Butte
ind
fw
Mesa
no
tio
rec
Di
Transverse
8. अपवाहन गर््त: पवनेें असंगठित सामग्रियोों को उड़़ाकर भमि ू पर नीचे गिरा Parabolic
देती हैैं और छोटे -छोटे गड्ढे बन सकते हैैं। फिर जल रिसकर मरूद्यान अथवा
दलदल का निर््ममाण करता है, अपवाहन गर््त अथवा गड््ढढोों मेें।
9. छत्रक शैल अथवा गारा
पवन द्वारा कटाव से अपक्षयित प्रतिरोधी चट्टान के अवशेष विभिन््न आकार लेते
हैैं, जैसा कि-
छत्रक शै ल जिनमेें पतला स््ततंभ तथा नाशपाती के आकार की टोपी होती है।
बरखान: यह अर््धचंद्राकार टीले है ,जिनके पंख हवा की दिशा से दूर 2. बजादा: मध््यम ढलान वाले निक्षेपण मैदान जो प््ललाया और पेडिमेेंट के बीच
निर्देशित होते हैैं । स््थथित होते हैैं। जलोढ़ पंख मिलकर बजादा का निर््ममाण करते हैैं।
v v v
हेटेरोस््फफीयर
अरोड़ा बाह्य वायुमंडल
योण क्षेत्र
कर््मन रे खा
मेसोपॉज़
ऊं चाई (किमी)
उल््कका
तापमा
न मीसोस््फफीयर
होमोस््फफीयर
स्ट्रैटोपॉज़
ओजोनोस््फफीयर
स्ट्रैटोस््फफियर
अधिकतम ओजोन
ट्रोपोपॉज़
माउं ट एवरे स््ट क्षोभ मंडल
तापमान °C
मध््य मंडल की ऊपरी सीमा को मेसोपॉज़ (न््ययूनतम तापमान) के रूप
वायुमंडल की परतेें
मेें जाना जाता है।
पृथ््ववी का वायुमंडल अलग-अलग परतोों मेें विभाजित है।
उल््ककापिंड और टूटते तारोों की घटना इसी मंडल मेें घटित होती हैैं;
1. क्षोभ मंडल: 13 कि.मी. की औसत ऊँचाई वाली सबसे निचली परत। यह ग्रीन हाउस गैसेें अनपु स््थथित हैैं।
ध्रुवोों के पास लगभग 8 कि.मी. और भमू ध््य रे खा पर लगभग 18 कि.मी. तक
विस््ततृत है। 4. आयनमंडल : मध््यमडं ल से 80-400 कि.मी. ऊपर तक विस््ततृत है; इसमेें
सभी मौसमी परिवर््तन और जै विक गतिविधियाँ इसी परत मेें होती हैैं ।
विद्युत आवेशित कण होते हैैं और यह रेडियो तरंगोों को वापस पृथ््ववी पर
इस मड
परावर््ततित कर देता है।
ं ल मेें प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 डिग्री सेल््ससियस की दर से
इसमेें एक D-लेयर (निम््नतम), एक E-लेयर और एक F-लेयर होती है।
तापमान घट जाता है।
2. समताप मंडल: क्षोभ मंडल के ऊपर स््थथित है और 50 कि.मी. की ऊँचाई 5. बहिर्मंडल: वायमु डं ल की सबसे ऊपरी परत .
थर्मोस््फफीयर: पृथ््ववी की 90 से 500-1,000 कि.मी. तक विस््ततृत परत
तक विस््ततृत है। इसमेें ओजोन परत होती है , जो पराबैगनी किरणोों को
अवशोषित करती है। है। 500-1,000 कि.मी. पर थर्मोपॉज़ द्वारा चिह्नित। सौर ऊर््जजा चालित
ऊँ चाई के साथ तापमान बढ़ता है। तापमान भिन््नता; कम स््थथानिक घनत््व है; अरोरा की उपस््थथिति होती है।
ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलोों (ओजोन रिक्तीकरण के लिए जिम््ममेदार) यह सम मंडल और विषम मंडल मेें विभाजित है ।
को छोड़कर जल वाष््प और बादलोों की न््ययूनतम उपस््थथिति के कारण विमान सम मंडल, 60 मील तक, वायु का एक समान मिश्रण, अच््छछी
उड़़ान के लिए आदर््श । तरह से मिश्रित परतेें (क्षोभ मडं ल, समताप मडं ल)
उपोष््णकटिबंधीय और ध्रुवीय जेटस्ट्रीम से प्रभावित।
विषम मंडल, 60 मील से अधिक, न््ययूनतम मिश्रण के साथ अलग-
3. मध््यमंडल: 80 कि.मी. तक विस््ततृत है। अलग परतोों (थर्मोस््फफीयर, एक््ससोस््फफीयर) के साथ अलग-अलग
ऊँ चाई के साथ घटता तापमान । सरं चना, सौर विकिरण से प्रभावित और अतं रिक्ष मेें सक्र
ं मण।
है। इस प्रकार 3 जनवरी को वार््षषिक सर््यया ू तप 4 जल ु ाई की तल ु ना मेें थोड़़ा है, जिसके कारण यह गर््ममियोों मेें धीरे -धीरे गर््म होता है और सर््ददियोों मेें धीरे -धीरे
अधिक होता है। ठंडा होता है। इस वजह से, गर््ममियोों के दौरान महाद्वीपोों और महासागरोों
z पथ् ृ ्ववी की धुरी अपने कक्षीय तल के साथ 661/2° का कोण बनाती है के बीच तपांतर सर््ददियोों की तुलना मेें अधिक होता है।[यूपीएससी
जो विभिन््न अक््षाांशोों पर प्राप्त सर््यया
ू तप को प्रभावित करती है। 2013, 2023]
z सर््य ू की किरणोों का कोण किसी स््थथान के अक््षाांश पर निर््भर करता है - वायुमंडल का तापन और शीतलन
अक््षाांश जितना अधिक होता है, कोण उतना ही कम होता है, परिणामस््वरूप,
अक््षाांश के साथ इकाई क्षेत्रफल पर प्राप्त शद्ध वायमु डं ल के तापन और शीतलन के चार अलग-अलग तरीके हैैं:
ु ऊर््जजा कम हो जाती है। इसके
z चालन (Conduction): वह प्रक्रिया जिसमेें ऊष््ममा, आणविक गति के
अलावा, तिरछी किरणेें अधिक गहरे वायमु डं ल से होकर गजु रती हैैं, साथ ही
किरणेें अधिक क्षेत्रफल पर विस््ततृत होती है जिससे अधिक अवशोषण, प्रकीर््णन माध््यम से उच््च तापमान से कम तापमान की ओर प्रवाहित होती है। यह मख्ु ्य
और विसरण होता है। रूप से वायमु डं ल की निचली परतोों को गर््म करता है।
z सव ं हन (Convection): यह विभिन््न तापमान वाले क्षेत्ररों के बीच तरल
z वायुमंडल की पारदर््शशिता: उच््च पारदर््शशिता से उच््च सर््यया ू तप प्राप्त होता है।
पदार््थ (द्रव या गैस) की गति से ऊष््ममा का स््थथानांतरण है। गर््म होने पर
बादल, प्रदषक ू और वायमु डं लीय सरं चना सर््यया ू तप को प्रभावित करते हैैं। बादल
पृथ््ववी के संपर््क मेें आने वाली वायु ऊर््ध्ववाधर रूप से ऊपर उठती है, जिससे
सर््यू के प्रकाश को परावर््ततित, प्रकीर््णणित और अवशोषित करते हैैं। शष्ु ्क मौसम
धाराएँ बनती हैैं जो वायमु डं लीय ऊष््ममा सचं ारित करती हैैं। यह क्षोभमंडल
मेें बादल का आवरण कम हो जाता है, जिससे सर््यया ू तप प्रभावित होता है।
तक सीमित है।
z एल््बबिडो: किसी सतह के परावर््तक गण ु धर््म की माप (0 से 1 के पैमाने पर)।
z अभिवहन (Advection): वायु की क्षैतिज सच ं लन के माध््यम से ऊष््ममा
z भूमि का विन््ययास: यह पहलू (भमि ू का अभिविन््ययास) सर््यू के प्रकाश को ग्रहण का स््थथानांतरण। मध््य अक््षाांशोों मेें, दैनिक मौसम मेें अधिकांश दैनिक (दिन
करने को प्रभावित करता है; उत्तरी गोलार्दद्ध मेें दक्षिण-मख ु ी ढलानेें गर््म होती हैैं और रात) बदलाव और उष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें ‘ल’ू के प्रभाव अभिवहन
और उत्तरी-मख ु ी ढलानेें ठंडी होती हैैं। दक्षिणी गोलार्दद्ध मेें इसके विपरीत होता है। प्रक्रिया का परिणाम होते हैैं।
z स््थलीय विकिरण (Terrestrial Radiation): यह बिना किसी z ऊष््ममा बजट पृथ््ववी द्वारा अवशोषित होने वाली ऊष््ममा और विकिरण के रूप मेें
वास््तविक सपं र््क या गति के एक पिंड से दूसरे पिंड मेें ऊष््ममा का निष््ककासित होने वाली ऊष््ममा के बीच एक आदर््श संतल ु न है।
स््थथानांतरण है। पृथ््ववी लघु तरंग विकिरण (UV और विद्युत चबंु कीय
स््पपेक्टट्रम का दृश््य भाग) को अवशोषित करती है जिससे सतह (धरातल) गर््म अवशोषण पैटर््न
हो जाती है; यह दीर््घ तरंग विकिरण (अवरक्त किरणेें) का उत््सर््जन करती
है जो वायमु डं ल को गर््म करती है। [यपू ीएससी 2023]। जैसे-जैसे सर््यया
ू तप वायमु डं ल से गजु रता है, तो यह परावर््तन, प्रकीर््णन और अवशोषण
प््लैैंक का नियम कहता है कि गर््म पिंड अधिक ऊर््जजा और कम तरंगदैर््ध््य की प्रक्रियाओ ं से गजु रता है।
विकिरण उत््सर््जजित करते हैैं।
z पृथ््ववी की सतह तक पहुचँ ने से पहले सर््ययाू तप की 100 इकाई मेें से लगभग
पृथ््ववी ग्रह का ऊष््ममा बजट 35 इकाई धरातल पर पहुचँ ने से पहले ही अतं रिक्ष मेें परावर््ततित हो जाती हैैं।
इनमेें से 27 इकाई बादलोों के ऊपरी छोर से और 2 इकाई पथ्ृ ्ववी के हिम
पृथ््ववी यह सनिश्
ु चित करके एक स््थथिर तापमान बनाए रखती है कि उसे प्राप्त होने वाली
ऊष््ममा (सर््यया
ू तप) उसके द्वारा उत््सर््जजित ऊष््ममा (पार््थथिव विकिरण) के बराबर हो। इस और हिमाच््छछादित क्षेत्ररों से परावर््ततित होती हैैं। विकिरण की परावर््ततित मात्रा
प्रकार, समग्र रूप से पृथ््ववी न तो ऊष््ममा जमा करती है और न ही ऊष््ममा खोती है। को पृथ््ववी का एल््बबिडो कहा जाता है।
z समताप रे खाएँ समान तापमान वाले स््थथानोों को जोड़ने वाली रे खाएँ हैैं। भम ू ध््य
सामान््य नियम यह है कि भमि ू से समद्रु की ओर जाने वाली समताप रे खाएँ
रे खा से परे सर््यू की गति के साथ समताप रेखाओ ं मेें भी बदलाव आता है।
ध्रुव की ओर (सर््ददियोों मेें)/भूमध््य रेखा की ओर (गर््ममियोों मेें) मुड़ती हैैं।
उत्तरी गोलार्दद्ध मेें, समताप रे खाएँ अनियमित और निकट दूरी पर होती हैैं।
z तापमान विसगं ति (Temperature Anomaly) किसी स््थथान के
दक्षिणी गोलार्दद्ध मेें, समताप रे खाएँ अधिक नियमित और व््ययापक दूरी
करती है। ठंडी हवा (घनी और भारी) जो रात के दौरान बनती है, गरु ु त््ववाकर््षण के
z ढलान का पहलू: ढलानोों का उन््ममुखीकरण सर््यू के प्रकाश के संपर््क को प्रभाव मेें बहती है और ढलान से नीचे की ओर घाटियोों के निचले भाग
प्रभावित करता है, जिससे तापमान प्रभावित होता है। मेें गर््म हवा के नीचे जमा हो जाती है। इसे वायु अपवाह या वायु निकास
(Air Drainage) कहते हैैं।
z दिन-रात का चक्र: घर्ू न्ण -प्रेरित तापमान भिन््नताएँ।
पौधोों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाता है।
z शहरी ऊष््ममा द्वीप (Urban Heat Island-UHI) प्रभाव: मानवीय
गतिविधियाँ शहरी क्षेत्ररों मेें तापमान बढ़़ाती हैैं। वाताग्री व््ययुत्कक्रमण (अभिवहनीय प्रकार)
तापमान व््ययुत्कक्रमण या तापीय प्रतिलोमन ऐसा तब होता है जब ठंडी वायु-राशि, गर््म वायु-राशि के नीचे से गजु रती
है और उसे ऊपर उठा देती है।
यह क्षोभमंडल मेें तापमान के सामान््य व््यवहार (ऊँचाई बढ़ने पर तापमान यह व््ययुत्कक्रमण अस््थथिर होता है और मौसम बदलते ही नष्ट हो जाता है।
गिरता है) का उलट है, जिसमेें सतह पर ठंडी हवा की एक परत गर््म हवा की
एक परत से ढक जाती है। तापमान व््ययुत्कक्रमण के परिणाम
z तापमान व््ययुत्कक्रमण के लिए आदर््श परिस््थथितियाँ: z कोहरे का निर््ममाण: गर््म हवा, ठंडी हवा के ऊपर फै ल जाती है जो नीचे से
लंबी सर््द रात (बाहर जाने वाला विकिरण आने वाले विकिरण से अधिक गर््म हवा को ठंडा करके कोहरे का कारण बनती है।
होता है); z पाले का प्रभाव: जब गर््म हवा नीचे ठंडी हवा द्वारा ठंडा होने के कारण
साफ और बादल रहित आकाश; हिमांक तापमान पर संघनित हो जाती है; तब पाला पड़ता है। पाला, फसलोों
स््थथिर हवा (हवा की कोई नहीीं/धीमी क्षैतिज गति) जो हवा को मिश्रण
और बगीचोों को नक ु सान पहुचँ ाता है।
से बचाती है; z वायुमंडलीय स््थथिरता:
वायम ु डं लीय स््थथिरता एक अवस््थथा है जिसमेें वायु का ऊर््ध्ववाधर संचलन
जमीन की सतह के पास शुष््क हवा
कम होता है। इससे वर््षषा मेें कमी आती है और शष्ु ्क परिस््थथितियोों और
ध्रुवीय क्षेत्ररों मेें तापमान का व््ययुत्कक्रमण पूरे वर््ष सामान््य होना चाहिए।
मरुस््थलीकरण को बढ़़ावा मिलता है।
z सतही तापमान व््ययुत्कक्रमण के प्रभाव:
स््थथिर वायम ु डं ल मेें, गर््म हवा ऊपर नहीीं उठ पाती है। नतीजतन, नमी
निचला वातावरण स््थथिर हो जाता है; जिससे धआ ु ,ँ धलू और अन््य संघनित नहीीं हो पाती है और बादल नहीीं बनते हैैं। इससे वर््षषा की संभावना
कण व््ययुत्कक्रम परत के नीचे फँ स जाते हैैं, जिससे घना कोहरा बनता है। कम हो जाती है
v v v
तापमान, जल वाष््प और गरुु त््ववाकर््षण जैसे वायु घनत््व को नियंत्रित करने वाले अधिकतम और भूमध््य रेखा पर अनुपस््थथित होता है (इसलिए भमू ध््य
कारकोों मेें भिन््नता के कारण घटने की दर सभी स््थथानोों पर समान नहीीं रहती है। रे खा पर चक्रवात नहीीं बनते हैैं)।
z ऊर््ध्ववाधर दाब प्रवणता बल क्षैतिज दाब प्रवणता बल की तल ु ना मेें बहुत यह दाब प्रवणता बल के लंबवत कार््य करता है, जिससे चक्रवाती
अधिक होता है। परिस््थथितियाँ बनती है। दाब प्रवणता बल जितना अधिक होता है, हवा
z दाब प्रवणता (Pressure gradient) दो बिंदओ ु ं के बीच दाब अतं र और का वेग उतना ही अधिक होता है और हवा का विचलन भी उतना
वास््तविक क्षैतिज दरू ी का अनपु ात है। ही अधिक होता है।
z बढ़ता दाब स््थथिर मौसम का संकेत देता है, और गिरता दाब बादल तथा अस््थथिर
मौसम का सक ं े त देता है। वायुमंडल का सामान््य परिसंचरण
2. क्षैतिज भिन्नता: भूमंडलीय पवन की गति का पैटर््न भी समद्ु री जल परिसंचरण को गति प्रदान
z समदाब रे खाएँ (Isobars) (समान दाब वाले बिंदओ ु ं को जोड़ने वाली रे खा) करता है और वे मिलकर पथ्ृ ्ववी की जलवायु को प्रभावित करते हैैं। भमू डं लीय
बनाकर अध््ययन किया जाता है। पवनोों का पैटर््न काफी हद तक निम््न पर निर््भर करता है-
z समदाब रे खाओ ं के बीच कम दरू ी तीव्र दाब प्रवणता को व््यक्त करती है। z वायुमंडलीय तापन की अक््षाांशीय भिन््नता।
Convergence Zone-ITCZ) या तापीय भूमध््य रेखा (Thermal अभिसरित होकर चक्रवाती तूफान या निम््न दाब की स््थथिति बनाती हैैं।
Equator) के रूप मेें भी जाना जाता है क््योोंकि उपोष््ण कटिबंधीय उच््च अभिसरण के इस क्षेत्र को ध्रुवीय वाताग्र के रूप मेें भी जाना जाता है।
वायुदाब पेटियोों से चलने वाली वायु यहाँ मिलती हैैं। 4. ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी
z पेटी की स््थथिति सर््य ू की आभासी गति के साथ बदलती रहती है। 80°-90° उत्तरी और दक्षिणी अक््षाांशोों के बीच ध्रुवोों के निकट।
z कोरिओलिस बल ‘शून््य होता है , इसलिए भम ू ध््य रे खा पर कोई चक्रवात z ताप जनित वायुदाब पे टी, क््योोंकि यह पृथ््ववी के विभे दित तप के कारण
नहीीं आते है । बनती है।
z 0° अक््षाांश पर सतही हवाओ ं के लगभग पर् ू ्ण अभाव के कारण डोलड्रम (शांत z ध्रुवीय क्षेत्ररों मेें सर््य
ू की किरणेें हमेशा तिरछी होती हैैं, जिसके परिणामस््वरूप
हवा का क्षेत्र) का निर््ममाण संभव हो पाता है। तापमान कम होता है।
अंतः उष््णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter Tropical Convergence z कम तापमान के कारण वायु संपीड़़ित (संकुचित) होती है और उसका घनत््व
Zone-ITCZ) बढ़ जाता है। अतः यहाँ उच््च दाब पाया जाता है।
तीव्र सर््यू के प्रकाश से प्रेरित वायु सवं हन के कारण निम््न दाब बनता है; z इन पेटियोों से हवाएँ उपध्रुवीय निम््न वायुदाब पेटी की ओर चलती हैैं।
उष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों से आने वाली हवाएँ इस निम््न दाब वाले क्षेत्र मेें
अभिसरण करती हैैं, संवहन सेल के भीतर ऊपर उठती हैैं, क्षोभमडं ल की ऊपरी
सीमा (लगभग 14 किमी.) तक पहुचँ ती हैैं और बाद मेें ध्रुव की ओर चलती
हैैं तथा लगभग 30°N एवं 30°S अक््षाांशोों पर जमा होती हैैं।
2. उपोष््ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी (Subtropical
High-Pressure Belt) (वायु अपसरण का क्षेत्र)।
z 30° उत्तरी और 30° दक्षिणी अक््षाांश के साथ गतिशील रूप से प्रेरित दाब
सेल द्वारा प्रदान किया जाता है जो दोनोों तरफ घमू रहा है, जो फे रे ल सेल को
निर््ममाण एवं विशेषताएँ
अपने साथ खीींचता है।
जेट स्ट्रीम ताप भिन््नताओ ं के कारण बनती हैैं, अधिक अतं र होने पर हवा
3. ध्रुवीय सेल
z
की गति तीव्र हो जाती है।
z ध्रुवीय अक््षाांशोों पर, ठंडी सघन हवा ध्रुवोों के पास नीचे दबती है और मध््य
z उच््च अक््षाांशोों पर कोरिओलिस बल और कम घर््षण उनके निर््ममाण मेें
अक््षाांशोों (उप ध्रुवीय निम््न) की ओर बहती है, जिसे ध्रुवीय पूर्वी हवाएँ
योगदान करते हैैं।
कहा जाता है।
z जेट धाराएँ भू-विक्षेपी प्रवाह से गज़ु रती हैैं और वायुमंडलीय सेल बनाती हैैं।
z 60° अक््षाांश के निकट, हवा ऊपर उठकर क्षोभमंडल तक पहुच ँ ती है और
ध्रुव की ओर बढ़ती है। जैसे ही ऐसा होता है, ऊपरी स््तर का वायु द्रव््यमान प्रकार:
पर्ू ्व की ओर विचलित हो जाता है।
z स््थथायी जेट स्ट्रीम (Permanent Jet Streams)
z जब हवा ध्रुवीय क्षेत्ररों मेें पहुच ँ ती है, तो वह ठंडी हो चक
ु ी होती है और
ध्रुवीय जे ट स्ट्रीम (मध््य अक््षाांश): ध्रुवीय और फेरे ल सेलओ ं के बीच
अतं र््ननिहित हवा की तल ु ना मेें काफी सघन होती है। यह नीचे उतरती है और
एक ठंडा, शुष््क, उच््च दाब वाला क्षेत्र बनता है। बहती है; मध््य और उच््च अक््षाांशोों मेें लगातार साल भर प्रवाह; प्रबलता
तथा तीव्रता मौसम के साथ बदलती रहती है।
z ध्रुवीय सतह के स््तर पर, हवा का द्रव््यमान 60° अक््षाांश की ओर चला जाता
उपोष््णकटिबंधीय जे ट स्ट्रीम (Subtropical Jet Stream-STJ):
है, जिससे वहाँ ऊपर उठी हवा की जगह ले ली जाती है और ध्रुवीय परिसंचरण
सेल परू ा हो जाता है। हेडली और फेरेल सेलओ ं के बीच प्रवाह, दक्षिणी गोलार्दद्ध मेें निरंतर,
उत्तरी गोलार्दद्ध मेें गर््ममियोों के दौरान रुक-रुक कर चलती है; सर््ददियोों के दौरान
z सतह पर वायु के प्रवाह को ध्रुवीय पूर्वी पवन कहा जाता है।
दोनोों गोलार्द््धों मेें लगभग निरंतर; भारतीय मानसनू को प्रभावित करती है।
ध्रुवीय वाताग्र जे ट स्ट्रीम (Polar Front Jet Stream-PFJ): फेरे ल
POLAR FERREL HADLEY
Mirror Image
और ध्रुवीय सेलओ ं के बीच प्रवाह, उपोष््णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम की
CELL Cell CELL तलु ना मेें अधिक परिवर््तनशील स््थथिति; सर््ददियोों मेें मज़बतू और अधिक
in Southern
नियमित होती है।
Hemisphere
North Pole 60°N 30°N 0°N z अस््थथायी जे ट स्ट्रीम (Temporary Jet Streams) (उष््णकटिबंधीय)
(Polar High) (Subpolar Low) (Subtropical High) (ITCZ Low) उष््णकटिबंधीय पूर्वी जे ट स्ट्रीम (Tropical Easterly Jet Stream-
TEJ): उत्तरी गोलार्दद्ध मेें गर््ममियोों मेें प्रभावी; 5° से 20°N के बीच पायी
भू-विक्षेपी पवनेें जाती है; दक्षिण एशियाई मानसनू को प्रभावित करती है।
सोमाली जे ट स्ट्रीम: गर््ममियोों के दौरान उत्तरी मे डागास््कर और
वे सतह से 2-3 किमी. ऊपर ऊपरी वायुमंडल की हवाएँ हैैं, जो सतह के घर््षण सोमालिया के तट से आती है; जनू से अगस््त तक तीव्र होती है; दक्षिण
प्रभाव से मुक्त होती हैैं और मख्ु ्य रूप से दाब प्रवणता तथा कोरिओलिस बल एशियाई मानसनू पर प्रभाव; दक्षिणी हिंद महासागर से मध््य अरब सागर
द्वारा नियंत्रित होती हैैं। तक प्रमख ु क्रॉस-भमू ध््यरे खीय प्रवाह।
z ऊपरी क्षोभमंडल मेें कोरिओलिस बल द्वारा दाब प्रवणता बल को महत्तत्व: जेट धाराएँ वायु द्रव््यमान की गति, मौसम की गतिशीलता और तूफान
संतल
ु न करने के कारण वे समदाब रेखाओ ं के समानांतर बहती हैैं। के मार््ग को प्रभावित करती हैैं। ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम की प्रबलता मध््य
z ये हवाएँ चक्रवाती या प्रतिचक्रवातीय परिसचर ं ण मेें भी बन सकती हैैं। अक््षाांश के मौसम को निर््धधारित करती है, जिससे वर््षषा और चक्रवात प्रभावित
z यही कारण है कि विषव ु तीय पेटी से उठने वाली वायु सीधे ध्रुव की ओर न होते हैैं।
जाकर उपोष््ण कटिबंध मेें उतरती है। जेट स्ट्रीम मानसनू की शरुु आत और विकास मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमिका ू निभाती है
z प्रवणता पवन (Gradient Wind): यह वायु के घमाव ु दार रास््तते पर प्रवाह तथा उष््णकटिबंधीय, समशीतोष््ण एवं ध्रुवीय क्षेत्ररों मेें सामान््य परिसचर ं ण पैटर््न
को संदर््भभित करता है, जो सीधे और समानांतर समदाब रे खाओ ं के साथ चलने को प्रभावित करती हैैं।
वाली भ-ू विक्षेपी पवन की अवधारणा का ही विस््ततार करता है।
z भ-ू विक्षेपी पवन का एक महत्तत्वपर् ू ्ण प्रकार जेट स्ट्रीम है। पवनोों का वर्गीकरण
भूमंडलीय पवनेें
भमू डं लीय पवनोों के संचलन के पैटर््न को वायमु डं ल का सामान््य परिसंचरण कहा इन पवनोों की दिशाएँ मौसम के परिवर््तन के साथ परिवर््ततित होती रहती हैैं। मानसनू ी
जाता है। यह समद्ु री जल परिसंचरण को भी गति प्रदान करता है जो पृथ््ववी की पवनेें सबसे महत्तत्वपर्ू ्ण आवधिक पवनेें हैैं, उदाहरण के लिए, स््थल और सागर
जलवायु को प्रभावित करता है। समीर, पर््वत तथा घाटी समीर।
z परू े वर््ष एक ही दिशा मेें चलती हैैं। 1. स््थल समीर व सागर समीर: स््थल और जल के अलग-अलग ताप के कारण
भमू डं लीय पवनेें तीन प्रकार की होती है: दाब प्रवणता पैदा होती है, जिससे दिन के दौरान सागर समीर तथा रात के
दौरान स््थल समीर चलती है।
1. व््ययापारिक पवनेें या पूर्वी हवाएँ (Trade winds or Easterlies) :
z दिन का समय: स््थल सागर की तल ु ना मेें तेज़ी से गर््म होता है; जिससे दाब
उपोष््णकटिबंधीय उच््च वायुदाब पेटी से भमू ध््यरे खीय निम््न वायुदाब पेटी
प्रवणता सागर से स््थल की ओर होती है।
की ओर बहती हैैं।
z रात का समय: स््थल पर सागर की तल ु ना मेें तीव्र ऊष््ममा निष््ककासन होता है;
z कोरिओलिस प्रभाव के कारण, उत्तरी गोलार्दद्ध मेें व््ययापारिक हवाएँ उपोष््ण
जिससे दाब प्रवणता स््थल से सागर की ओर होती है।
कटिबंधीय उच््च वायदु ाब क्षेत्र से दरू हटकर भमू ध््यरे खीय निम््न वायदु ाब क्षेत्र
2. पर््वत समीर व घाटी समीर: पहाड़ों और घाटियोों के अलग-अलग ताप
की ओर उत्तर-पूर््व दिशा मेें बहती हैैं (उत्तर-पूर्वी व््ययापारिक हवाएँ)।
तथा रात मेें पर््वतीय ढलानोों से गर्मी के विकिरण सबं ंधी नुकसान के कारण,
z दक्षिणी गोलार्दद्ध मेें, वे उपोष््ण कटिबंधीय उच््च वायद ु ाब क्षेत्र से अलग होकर एक दाब प्रवणता का निर््ममाण होता है, जिससे दिन के दौरान घाटी समीर
भमू ध््यरे खीय निम््न वायदु ाब क्षेत्र की ओर दक्षिण-पूर््व दिशा मेें बहती हैैं तथा रात के दौरान पर््वत समीर चलती है।
(दक्षिण-पूर्वी व््ययापारिक हवाएँ)। z दिन के समय पहाड़़ी ढलानोों का गर््म होना और घाटी मेें उच््च दाब।
z व््ययापारिक हवाएँ मख् ु ्य रूप से पर्ू ्व से चलती हैैं, इसलिए उन््हेें उष््णकटिबंधीय z रात मेें , जैसे ही ढलान ठंडी होती है, सघन हवा घाटी मेें उतरती है।
पूर्वी हवाएँ (Tropical Easterlies) भी कहा जाता है।
2. पछुआ पवनेें (Westerlies): उपोष््णकटिबंधीय उच््च वायुदाब पेटी से उप स््थथानीय पवनेें
ध्रुवीय निम््न वायुदाब पेटी की ओर चलती हैैं। तापमान और दाब मेें स््थथानीय अतं र से स््थथानीय पवनेें उत््पन््न होती हैैं। ऐसी पवनेें
z उत्तरी गोलार्दद्ध मेें ये पृथ््ववी के घम ू ने के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित हो जाती स््थथानीय स््तर पर होती हैैं और क्षोभमडं ल के निम््नतम स््तर तक ही सीमित होती हैैं।
है जिससे दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पर्ू ्व की ओर प्रवाहित होती हैैं।
z दक्षिणी गोलार्दद्ध मेें बाई ं ओर विक्षेपित होती है जिसके कारण उत्तर-पश्चिम
1. लू: उत्तरी भारत और पाकिस््ततान के मैदानी इलाकोों मेें हानिकारक तथा गर््म पर विकसित होती है।
हवा। z बर््फ पिघलाकर जानवरोों को चराने मेें मदद करती है और अंगूर को पकाने
2. चिनूक: गर््म और लाभकारी हवा; रॉकीज (यू.एस.ए. और कनाडा) के मेें सहायक भी होती है।
पूर्वी ढलानोों से नीचे की ओर बहती है। यह चट्टानोों के पर्ू ्व मेें पशपु ालकोों के
लिए फायदेमदं है क््योोंकि यह सर््ददियोों के अधिकांश समय मेें घास के मैदानोों वायुराशि
को बर््फ से साफ रखता है। हवा का एक बड़़ा पिंड जिसमेें तापमान और आर्दद्रता के संदर््भ मेें थोड़़ी क्षैतिज
3. सिरोको: गर््म और हानिकारक हवा। भिन््नता के साथ विशिष्ट विशेषताएँ होती हैैं।
z एक भूमध््यसागरीय पवन जो सहारा मरुस््थल से आती है और उत्तरी
स्रोत क्षेत्र
जब हवा एक समरूप क्षेत्र पर पर््ययाप्त लंबे समय तक रहती है, तो वह उस क्षेत्र की विशेषताएँ प्राप्त कर लेती है। इन््हेें स्रोत क्षेत्र के रूप मेें जाना जाता है।
z यह ऊपरी वायु राशि को गर्मी और नमी की विशेषताएँ प्रदान करती है।
z यह विशाल महासागरीय सतह या विशाल मै दान और पठार हो सकते हैैं।
z मध््य अक््षाांशोों मेें कोई प्रमुख स्रोत क्षेत्र नहीीं हैैं क््योोंकि ये क्षेत्र चक्रवाती और अन््य विक्षोभोों से प्रभावित हैैं।
z शीत वाताग्र (Cold Front): संक्रमण क्षेत्र जहाँ आगे बढ़ती हुई ठंडी शष्ु ्क
की ओर चलती है।
वायु राशि तीव्रता से गर््म नम वायु राशि को विस््थथापित करती है; ठंडी हवा z यह परिसंचरण उष््ण और शीत वाताग्र के साथ एक अच््छछी तरह से विकसित
गर््म हवा की ओर बढ़ती है; अधिक तीव्र ढाल। बहिरूष््ण कटिबंधीय चक्रवात बनाता है।
z ठंडी हवा गर््म हवा को नीचे से ऊपर की ओर धके लती है, जिसके परिणामस््वरूप
क््ययूम््यलोनिम््बस बादल बनते हैैं जिसके परिणामस््वरूप भारी वर््षषा होती है।
बादल बनते हैैं और उष््ण वाताग्र के आगे वर््षषा होती है।
शीत वाताग्र के गर््म क्षेत्ररों मेें तड़ित झझ ं ा और बवंडर (उदाहरण के लिए
z जैसे ही शीत वाताग्र गर््म हवा को विस््थथापित करता है, अवरोध उत््पन््न होता
संयक्त
ु राज््य अमेरिका मेें) आम विशेषताएँ हैैं।
है, जिससे चक्रवात का अपव््यय/अतं हो जाता है।
z उष््ण वाताग्र (Warm Front): गर््म हवा ठंडी हवा की ओर बढ़ती है और
z चक्रवात के केें द्र मेें तल ु नात््मक रूप से हल््ककी हवाओ ं और साफ मौसम
चक्रवात एक बड़़ी वायु राशि है जो कम वायुमंडलीय दाब के मज़बतू केें द्र के वाला लगभग गोलाकार शांत क्षेत्र चक्रवात की आँख के रूप मेें जाना जाता
चारोों ओर घमू ती है। है। इसकी सतह पर सबसे कम दाब और सबसे गर््म तापमान होता है तथा
z चक्रवातोों को उनकी उत््पत्ति के आधार पर उष््णकटिबंधीय और बहिरूष््ण हवा केें द्र मेें उतरती है।
कटिबंधीय चक्रवातोों मेें वर्गीकृ त किया जा सकता है। चक्रवात की आँख का तापमान 12 किमी की ऊँचाई पर आसपास के
z निम््न दाब प्रणाली के चारोों ओर पवन परिसंचरण को चक्रवाती परिसचर
ं ण वातावरण की तुलना मेें 10°C या अधिक गर््म हो सकता है, लेकिन
कहा जाता है और उच््च दाब प्रणाली के आसपास पवन परिसंचरण को उष््णकटिबंधीय चक्रवात मेें सतह पर के वल 0-2°C अधिक गर््म होता है।
प्रति-चक्रवाती परिसचर
ं ण कहा जाता है। (यूपीएससी 2020)
z आँख चारोों ओर दीवार से घिरी होती है जिसमेें हवा का ते ज़ी से ऊपर
दबाव केें द्र मेें दबाव हवा की दिशा का पैटर््न
की ओर गमन होता है जहाँ हवा सबसे तेज़ बहती है जिसके परिणामस््वरूप
प्रणाली उत्तरी गोलार्दद्ध दक्षिणी गोलार्दद्ध मूसलाधार बारिश होती है।
z उष््णकटिबंधीय चक्रवात महासागरोों के ऊपर गर््म और नम हवा के उठने से
चक्रवात कम वामावर््त दक्षिणावर््त
संघनन के दौरान मक्त ु होने वाली वाष््पपीकरण की गुप्त ऊष््ममा के कारण
प्रतिचक्रवात उच््च दक्षिणावर््त वामावर््त उत््पन््न होते हैैं।
z वे व््ययापारिक हवाओ ं के प्रभाव मेें पश्चिम की ओर एक परवलयिक पथ क्षेत्ररों मेें, समद्रु की सतह का तापमान कम होने के कारण चक्रवात उत््पन््न
मेें आगे बढ़ते हैैं। नहीीं होते हैैं। [यूपीएससी 2015]
z उन््हेें विभिन््न नामोों से जाना जाता है: चक्रवात (हिंद महासागर), हरिके न प्रकार हवा की गति किमी/घंटा मेें
(अटलांटिक), टाइफून (पश्चिमी प्रशांत और दक्षिण चीन सागर; निम््न दबाव क्षेत्र (L) 31 से कम
फिलीपीींस द्वीप, पूर्वी चीन तथा जापान) एवं विली-विली (उत्तर पश्चिम अवसाद (D) 31-49
ऑस्ट्रेलिया)। गहरा अवसाद (DD) 50-61
z गठन के लिए अनुकूल परिस््थथितियाँ चक्रवाती तूफान (CS) 62-88
भीषण चक्रवाती तूफ़़ान (SCS) 89-118
तापमान > 27 डिग्री सेल््ससियस के साथ बड़़ी समद् ु री सतह; बहुत भयंकर चक्रवाती तूफ़़ान 119-165
कोरिओलिस बल की उपस््थथिति;
(VSCS)
ऊर््ध्ववाधर हवा की गति मेें कम बदलाव; अत््ययंत भीषण चक्रवाती तूफ़़ान 166-220
पहले से मौजूद कमज़ोर निम््न दाब क्षेत्र या निम््न स््तर का चक्रवाती (ESCS)
परिसंचरण और सुपर चक्रवाती तूफ़़ान (SupCS) 221 or more
v v v
की क्षमता होती है। पवन सतं प्तृ वायु को असतं प्तृ वायु से बदल देती है,
जो वाष््पपीकरण को बढ़़ावा देती है। नतीजतन, अधिक वायु सच ं लन के
परिणामस््वरूप वाष््पपीकरण की दर अधिक होती है।
z वाष््पपीकरण परिवर््तनशीलता: तापमान, वायद ु ाब, पवन और जल की
लवणता जैसे कारक वाष््पपीकरण दर को प्रभावित करते हैैं। विश्व स््तर पर, व््ययापक
आर्दद्रता क्षेत्रफल के कारण महासागरोों मेें वाष््पपीकरण अधिक होता है। भूमध््य रेखा
वायु मेें उपस््थथित जलवाष््प को आर्दद्रता कहते हैैं। से ध्रुवोों की ओर जाने पर वाष््पपीकरण की दर कम हो जाती है। पश्चिमी उत्तरी
z निरपे क्ष आर्दद्र ता: वायमु डं ल मेें मौजदू जलवाष््प की वास््तविक मात्रा; वायु की अटलांटिक क्षेत्र मेें यह दर सबसे अधिक देखी जाती है।
प्रति इकाई मात्रा मेें जल वाष््प के द्रव््यमान की उपस््थथिति है; इसे ग्राम
संघनन
प्रति घन मीटर मेें मापा जाता है। यह परू ी तरह से वायु के तापमान पर निर््भर
करता है (महासागर के ऊपर अधिक और महाद्वीप के ऊपर कम)। ऊष््ममा के ह्रास के कारण जलवाष््प के जल मेें परिवर््तन की प्रक्रिया।
z सापे क्ष आर्दद्र ता: किसी दिए गए तापमान पर इसकी परू ी क्षमता की तल z ऊर््ध््वपातन: जलवाष््प को सीधे ठोस रूप मेें संघनित करने की प्रक्रिया।
ु ना मेें
वातावरण मेें मौजदू आर्दद्रता का प्रतिशत। z सघ ं नन के लिए अवश््यक स््थथिति:
z विशिष्ट आर्दद्र ता: वायु के प्रति इकाई द्रव््यमान मेें जलवाष््प की मात्रा है। इसे वायु के तापमान को उसके ओस बिंद ु तक कम किया जाता है जबकि
निरपेक्ष आर्दद्रता से अधिक प्राथमिकता दी जाती है क््योोंकि यह तापमान और उसका आयतन स््थथिर रहता है।
दाब की स््थथिति मेें बदलाव के साथ परिवर््ततित नहीीं होती है। आयतन और तापमान दोनोों कम हो जाते हैैं।
z ओसांक: वह तापमान जिस पर वायु के एक दिए गए नमन ू े मेें सतं ृप्तता आर्दद्रता: उच््च आर्दद्रता सघ ं नन को बढ़़ावा देती है;
आती है। ऊँचाई और दाब मेें परिवर््तन।
संघनन के रूप VOG (ज््ववालामुखीय स््ममॉग): ज््ववालामख
ु ी विस््फफोट से; SO2 गैस
z जब ओसांक> हिमांक बिंदु: परिणाम ओस, कोहरा और बादल का और एरोसोल का धधंु ला मिश्रण।
निर््ममाण तथा जब ओसांक < हिमांक बिंदु : परिणाम सफेद तुषार , बर््फ , बादल
ओले एवं पक्षाभ मेघ का निर््ममाण होता हैैं।
z बादल छोटी जल की बँदोों ू या छोटे बर््फ के क्रिस््टल (0.02 मिमी.) का एक
ओस: जब नमी ठोस वस््ततुओ ं की ठंडी सतहोों पर जल की बूदो ँ ों के सग्रं ह है जो एक उचित ऊँचाई पर खल ु े वातावरण मेें जलवाष््प के सघं नन के
रूप मेें जमा होती है ( वायु मेें नाभिक के स््थथान पर ); परिणामस््वरूप बनते हैैं।
ओसांक बिंदु हिमांक बिंदु से ऊपर होता है ।
z बादल का दोहरा प्रभाव होता है: ठंडा करना (सर््य ू के प्रकाश को परावर््ततित
इसके निर््ममाण के लिए आदर््श परिस््थथितियाँ: बादलोों के रूप मेें साफ
करना) और गर््म करना (ऊष््ममा को रोककर रखना)।
आसमान पृथ््ववी की सतह से निकलने वाली लंबी तरंग विकिरणोों को
परावर््ततित कर देता है , जिससे पृथ््ववी गर््म रहती है, स््थथिर वायु, उच््च बादलोों के प्रकार
सापेक्ष आर्दद्रता और ठंडी और लंबी रात। (ओसांक < हिमांक बिंदु z पक्षाभ मे घ (Cirrus): वे पतले , पंख जै सी दिखने वाले , बिखरे हुए
लिए समान, सिवाय इसके कि वायु का तापमान हिमांक बिंदु पर या उससे हमेशा सफे द और बर््फ के क्रिस््टल से बना होता है।
नीचे होना चाहिए। z वर््षषा मे घ (Nimbus): मध््यवर्ती ऊँचाई पर या पृथ््ववी की सतह के बेहद करीब
z कोहरा(Fog): अनिवार््य रूप से एक बादल जो पथ् ृ ्ववी की सतह पर या बनता है जिसका कोई विशिष्ट आकार नहीीं होता।
उसके बेहद करीब बनता है।
गहरा काला या गहरा स््ललेटी रंग होते है।
ऐसा तब होता है जब पर््ययाप्त मात्रा मेें जल वाष््प के साथ वायु सह ं ति
असाधारण रूप से अधिक घनत््व और सर््य ू प्रकाश के लिये
अचानक गिर जाता है, जिससे वायु सहं ति के भीतर छोटे धल ू कणोों
अपारदर्शी होते हैैं।
पर सघं नन होता है
वे मोटी वाष््प के आकारहीन द्रव््यमान हैैं।
उन क्षेत्ररों मेें प्रचलित जहाँ वायु की गर््म धाराएँ ठंडी धाराओ ं के संपर््क मेें
कपासी वर््षषा मे घ, अपने मज़बत ू ऊर््ध्ववाधर गति (अपड्राफ््ट) के साथ,
आती हैैं; कुहासा से अधिक शुष््क
आदर््श स््थथितियाँ: उच््च आर्दद्रता, ओसांक, संघनन नाभिक की उपस््थथिति;
उच््च स््तर के बादलोों मेें अच््छछी तरह से फै लता है।
z स््तरी मे घ (Stratus): व््ययापक, स््तरित बादल जो आकाश के महत्तत्वपर् ू ्ण भागोों
कोहरे के प्रकार:
को ढक लेते हैैं। आम तौर पर या तो ऊष््ममा की हानि या विभिन््न तापमानोों
1. ठंडा कोहरा - विकिरण कोहरा: रात मेें ठंडक के कारण बनता है;
अभिवहन कोहरा: जब गर््म वायु ठंडी सतह पर चलती है; ढलान के साथ वायु संहति के मिश्रण के कारण बनता है।
वाला कोहरा: जब वायु ढलान से ऊपर उठती है, पर््वतीय उठाव। z कपासी मे घ (Cumulus): कपासी मे घ रूई की तरह दिखते हैैं और इनका
2. वाष््पपीकरण कोहरा - भाप कोहरा: गर््म जल के ऊपर बनता है, आधार सपाट होता है। आम तौर पर 4,000 - 7,000 मीटर की ऊँचाई पर
झीलोों के ऊपर सामान््यतः ; बनते हैैं और टुकड़ों मेें मौजदू होते हैैं।
z कुहासा (Mist): कोहरे से अधिक आर्दद्रता की मात्रा; नम वायु मेें होता है इन चार बनि ु यादी प्रकार के बादलोों का संयोजन निम््नलिखित प्रकार के बादलोों
(>75% आर्दद्रता); अल््पकालिक; पहाड़ों पर सामान््यतः को का निर््ममाण करता है:
z धुंध (Haze): दृश््यता मेें कमी; कम आर्दद्रता (<75%) से जड़़ा ु हुआ; असमान z उच््च बादल: पक्षाभ मेघ, पक्षाभ स््तरी, पक्षाभ कपासी;
प्रकाश अपवर््तन और औद्योगिक कणोों के कारण। z मध््य बादल: स््तरी मध््य और कपासी मध््य;
z स््ममॉग (SMOG): धुए ँ और कोहरे का सय ं ोजन; शहरी/औद्योगिक वायु z निम््न बादल: स््तरी कपासी मेघ और वर््षषा स््तरी मेघ;
प्रदषण
ू के कारण उत््पन््न; धसू र, भरू ी, धधंु ली उपस््थथिति; 3 प्रकार: क््ललासिकल z विस््ततृत ऊर््ध्ववाधर विकास वाले बादल: कपासी मे घ और कपासी वर््षषा
(लंदन), फोटोकै मिकल (ग्रीष््म/लॉस एजि ं ल््स) और VOG (ज््ववालामख ु ी स््ममॉग) मेघ
क््ललासिकल स््ममॉग: कोयले के दहन, सल््फर डाइऑक््ससाइड और
पार््टटिकुलेट मैटर की उच््च सांद्रता के कारण होता है; मौसम की अन््य बादल
स््थथिति: ठंडी तथा आर्दद्र जलवाय।ु z लेें सिक््ययूलर बादल (Lenticular Clouds): लेेंस या तश््तरी जैसी आकृति
फोटोके मिकल स््ममॉग: प्रदषकोों ू का मिश्रण जो तब बनता है जब और स््पष्ट किनारोों के साथ बाधाओ ं के चारोों ओर लहरदार वायु प्रवाह
नाइट्रोजन ऑक््ससाइड और वाष््पशील कार््बनिक यौगिक (VOCs) द्वारा निर््ममित; इनके निर््ममाण मेें हवा की तरंगोों का विकास, रुद्धोष््म शीतलन,
सर््यू के प्रकाश पर प्रतिक्रिया करते हैैं, जिससे भूरे रंग की धुंध पैदा सघं नन तथा वाष््पपीकरण शामिल है; पायलटोों के लिए बाधाओ ं के महत्तत्वपर्ू ्ण
होती है; द्वितीयक प्रदषक
ू बनाता है: ओजोन , PAN और एल््डडिहाइड। सक ं े तक।
40 वायुमंडल में ज
z ध्रुवीय समताप मंडली बादल (Polar Stratospheric Clouds- z ओलावष्टि ृ (Hailstones): तब बनते हैैं जब बारिश के जल की बँदेू ें ठंडी
PSCs): सर््ददियोों मेें ध्रुवीय समताप मडं ल (15,000-25,000 मीटर) मेें बर््फ परतोों से गज़ु रते हुए बर््फ के छोटे, गोल टुकड़ों मेें जम जाती हैैं; आमतौर पर
के क्रिस््टल और तरल बूदोँ ों की सरच ं ना के साथ बनते हैैं, जो एक इद्रं धनषु ी, बर््फ की कई संकेेंद्रित परतेें होती हैैं।
मोती जैसी उपस््थथिति प्रदर््शशित करते हैैं। z बर्फीली बारिश: 0°C से नीचे तापमान पर होने वाली बंदू ाबांदी या हल््ककी
z रात्रिचर बादल (Noctilucent Clouds-NLC): मीजोस््फफीयर (80-90 बारिश और ज़मीन पर पहुचँ ने से पहले जम जाना।
किमी.) मेें निर््ममित; पृथ््ववी के सबसे ऊँचे बादल; बर््फ के क्रिस््टल से बने; z शुष््क वर््षषा (Virage): वर््षषा की बँदेू ें शष्ु ्क वायु मेें पृथ््ववी तक पहुचँ ने से
के वल रात मेें दिखाई देता है और प्रकीर््णणित सर््यू प्रकाश से प्रकाशित होता है, पहले वाष््पपित हो जाती हैैं।
जिसे “रात मेें चमकने वाले बादल” के रूप मेें जाना जाता है।
घने, निचले बादल मख्ु ्य रूप से सौर विकिरण को परावर््ततित करके पृथ््ववी वर््षषा के प्रकार
की सतह को ठंडा करते हैैं। ऊँ चे, पतले बादल आने वाले सौर विकिरण उत््पत्ति के आधार पर
को संचारित करने के अलावा, पृथ््ववी द्वारा उत््सर््जजित अवरक्त ऊष््ममा का कुछ 1. सवं हनीय वर््षषा (Convectional Rainfall): सवं हन धाराओ ं के कारण
हिस््ससा भी रोककर रखते हैैं और इसे वापस नीचे की ओर परावर््ततित करते हैैं, गर््म वायु ऊपर उठती है, फै लती है, ठंडी होती है और बाद मेें संघनन से गज़ु रती
जिससे पथ्ृ ्ववी की सतह गर््म हो जाती है। [यूपीएससी 2022] है, जिसके परिणामस््वरूप कपासी वर््षषा बादलोों का निर््ममाण होता है और वर््षषा
होती है।
वर््षण
z गर््ममियोों के दौरान या दिन के गर््म घंटोों मेें प्रचलित।
वर््षषा से तात््पर््य जलवाष््प के संघनन के बाद होने वाली आर्दद्रता की मक्ति
ु से है। z विषुवतीय क्षेत्ररों और महाद्वीपोों के आंतरिक क्षेत्ररों मेें , विशे षकर उत्तरी
z वर््षषा : तरल जल के रूप मेें वर््षषा। गोलार््ध मेें आम है।
z हिमपात: जब तापमान हिमांक बिंद ु से नीचे होता है, तो वर््षषा महीन बर््फ के z गरज और बिजली के साथ भारी वर््षषा होती है, लेकिन इसकी अवधि कम
टुकड़ों का रूप ले लेती है। होती है।
z ओले के साथ वर््षषा (Sleet): जमी हुई वर््षषा की बँदोों ू या फिर से जमे हुए 2. पर््वतीय वर््षषा (उच््चचावच वर््षषा): तब होती है जब आर्दद्रता से संतप्तृ वायु
पिघले हुए बर््फ के जल से मिलकर बनता है; ऐसा तब होता है जब ज़मीन द्रव््यमान किसी पर््वत से टकराता है और ऊपर उठने के लिए मजबरू हो जाता है।
के पास एक उप-ठंडी परत के ऊपर हिमांक बिंदु से ऊपर तापमान वाली वायु आरोहण के साथ रुद्धोष््म विस््ततार और शीतलन होता है जिसके परिणामस््वरूप
की एक परत होती है। सघं नन तथा वर््षषा होती है।
वायुमंडल में ज 41
z वायु की ओर ढलानोों की (पवनाभिमुखी ढाल) ओर अधिक वर््षषा z अक््षाांशोों के बीच, पर्ू वी तटोों पर पूर्वी पवनोों के कारण भारी वर््षषा होती है,
होती है, जबकि पवनाविमख ु ढाल (वर््षषा छाया क्षेत्र ) पर, रुद्धोष््म तापन जो पश्चिम की ओर कम होती जाती है। 45° और 65° उत्तर और दक्षिण के
(तापमान मेें वृद्धि) होता है, जिससे आर्दद्रता का अधिक अवशोषण होता है बीच, पछुआ पवनोों पहले पश्चिमी महाद्वीपीय सीमा पर वर््षषा लाती हैैं, जो
और परिणामस््वरूप वर््षषा के बिना परिस््थथितियाँ उत््पन््न होती है। पूर््व की ओर घटती जाती हैैं।
z पवनाविमख ु ढाल की ओर स््थथित क्षेत्र को वर््षषा-छाया क्षेत्र के रूप मेें जाना
वर््षषा क्षेत्र
जाता है।
3. चक्रवाती वर््षषा: मौसम के उतार-चढ़़ाव और चक्रवातोों से जड़़ी 1. भारी वर््षषा (वार््षषिक 200 सेमी से अधिक): भमू ध््यरे खीय क्षेत्र; तटीय मानसनू
ु व््ययापक वर््षषा;
इसमेें उष््णकटिबंधीय तथा अतिरिक्त उष््णकटिबंधीय चक्रवाती वर््षषा क्षेत्र; तटीय पर््वतोों का पवनाभिमुखी भाग।
शामिल है। 2. मध््यम वर््षषा (वार््षषिक 100 से 200 सेमी के बीच): बहुत भारी वर््षषा वाले
क्षेत्ररों के निकटवर्ती क्षेत्र; गर््म शीतोष््ण क्षेत्र के तटीय क्षेत्र।
वर््षषा का वैश्विक वितरण 3. अपर््ययाप्त वर््षषा (वार््षषिक 50 से 100 सेमी. के बीच): समशीतोष््ण क्षेत्ररों मेें
z भूमध््य रेखा से ध्रुवोों की ओर वर््षषा लगातार कम होती जाती है। महाद्वीपोों का पर्ू वी भाग; उष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें महाद्वीपोों का आतं रिक भाग।
z भूमध््यरेखीय क्षेत्ररों मेें वर््ष भर लगातार वर््षषा होती है। 4. कम वर््षषा (वार््षषिक 50 सेमी. से कम): वर््षषा छाया क्षेत्र; उष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों
z तटीय क्षेत्ररों मेें अंतर्देशीय क्षेत्ररों की तुलना मेें अधिक वर््षषा होती है। मेें महाद्वीपोों का पश्चिमी भाग।
v v v
42 वायुमंडल में ज
10 वैश्विक जलवायु और
जलवायु परिवर््तन
z वर््षषा: परू े वर््ष भर भारी और समान रूप से वितरित वर््षषा होती है, औसत वर््षषा
वैश्विक जलवायु एवं उसका वर्गीकरण
200-250 सेमी से ऊपर होती है, अधिकांशत: संवहनीय वर््षषा (Convectional
90°
शीत क्षेत्र आर््कटिक या ध्रुवीय प्रकार Rain) और पर््वतोों मेें पर््वतीय वर््षषा (Orographic Rain) होती है ।
आर््कटिक
सर््क ल, 66 1° टुंडा वनस््पति, काई, लाइके न z शुष््क मौसम का स््पष्टतया अभाव होता है तथा सापेक्षिक आर्दद्रता 80%
2 65°उ.
मध््य महाद्वीप से भी अधिक होती हैैं।
ठंडा पश्चिमी मार््जजिन साइबेरियाई पूर्वी मार््जजिन
z अप्रैल और अक््टटूबर मेें विषवु के साथ भमू ध््यरे खीय जलवायु मेें वर््षषा के दो
समशीतोष््ण ब्रिटिश प्रकार प्रकार लरिंटियन प्रकार
क्षेत्र
पर््णपाती वन सदाबहार, मिधिन वन चरण अपने उच््चतम स््तर पर होते हैैं।
अंकुधारी वन वनस््पति
45°उ.
भमू ध््यसागरीय यहाँ सघन वनावरण (Canopy Cover) वाले उष््णकटिबंधीय सदाबहार वर््षषावन
गर््म स््टटेपी प्रकार
प्रकार चीन प्रकार ( इन््हेें ‘पृथ््ववी के फे फड़़े’ भी कहा जाता है ) पाएँ जाते हैैं (अमेज़़ॅन मेें सेल््ववास)
शीतोष््ण स््टटेपी शीतोष््ण
क्षेत्र भ म
ू ध््यसागरीय गर््म गीले जंगल जैसे: महोगनी, आबनूस, लताएँ- एपिफाइट्स (एपिफाइट एक पौधा या पौधे
घास का मैदान
वन एवं झाडियाँ 30°उ. जैसा जीव है जो दसू रे पौधे की सतह पर उगता है ), 'लानोस जैसे काष्ठ बेल
सड़ू ान प्रकार
कर््क रे खा गर््म रे गिस््ततान तथा लानोस (लंबी घास)।
1° सवाना, मानसूनी प्रकार
23 2 रे गिस््ततानी z वनोों मेें विशिष्ट संस््तरीय क्रम पायी जाती है।
गर््म क्षेत्र
उष््णकटिबंधीय मानसून वन
वनस््पति
घास का मैदान 10°उ.
z उच््च विविधता: शद्ध
ु रूप से वनोों मेें एक ही प्रजाति के वृक्ष नहीीं पाए जाते हैैं।
भमू ध््यरे खीय गर््म आर्दद्र भूमध््यरे खीय जलवायु आर्थिक गतिविधियाँ
क्षेत्र भमू ध््यरे खीय वर््षषा वन
0° z कम आबादी वाला क्षेत्र: आदिम जनजातियाँ आखेटक और सग्ं राहक के
उष््ण-आर्दद्र भूमध््यरे खीय जलवायु रूप मेें जीवन निर््ववाह करती हैैं।
भमू ध््य रे खा के 5° और 10° उत्तर और दक्षिण अक््षाांश तक (अमेज़़ॅन, कांगो, z यहाँ स््थथानान््तरित खेती का प्रचलन है,जैसे: लदांग (मलेशिया), ताउंग््यया
मलेशिया और ईस््ट इडं ीज के निचले इलाकोों मेें) स््थथित है। भमू ध््य रे खा से दरू , (बर््ममा), तमारी (थाईलैैंड), कैैं गिन (फिलीपीींस), हुमाह (जावा), चेना
तटवर्ती व््ययापारिक पवनोों का प्रभाव मानसूनी प्रभाव के साथ एक उपांतरित (श्रीलंका), मिल््पपा (अफ्रीका और मध््य अमेरिका), झमू (उत्तर-पूर््व भारत)।
(Modified) प्रकार की भमू ध््यरे खीय जलवायु को जन््म देता है। बेलुकर नामक एक कम प्रजातियोों की संख््यया/जैव विविधता वाले द्वितीयक
वन भी पाएँ जाते हैैं।
z यहाँ कोको उद्योग (घाना, नाइजीरिया), प्राकृतिक रबर और पाम ऑयल
(मलेशिया और इडं ोनेशिया) फल-फूल रहे हैैं।
z नारियल, चीनी, कॉफी, चाय, तंबाकू, मसाले और साबदू ाना जैसे फसलोों की
खेती की जाती है।
z कांगो (कोबाल््ट भडं ार), ब्राजील और पेरू के अमेज़़ॅन के जंगलोों मेें सोने का
खनन होता है।
जलवायु z अफ्रीका मेें पशधु न खेती सेत््ससे (Tsetse) मक््खखियोों के कारण बाधित हो गई
z तापमान - परू े वर््ष समान रूप से उच््च तापमान, औसत मासिक तापमान है, जो गाना (Ngana) नाम की घातक बीमारी का कारण बनती है।
18° C से ऊपर और औसत वार््षषिक तापमान 20° C के आसपास रहता है। z जनजातियाँ: यहाँ पिग््ममी (कांगो बेसिन) तथा ओरांग अस््लली (मलेशिया) पाई
z बादल और भारी वर््षषा से दैनिक तापमान को नियंत्रित करने मेें मदद करती है। जाती हैैं।
उष््णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु दक्षिणी अफ्रीका तथा कर््क रे खा के उत्तर के क्षेत्र शामिल हैैं। दक्षिणी अमेरिका मेें
इस क्षेत्र मेें हवाओ ं का पूर््ण मौसमी परिवर््तन देखने को मिलता है। यह भारतीय ओरिनाॅको बेसिन के लानोस, ब्राज़़ील के कै म््पपोस भी इसमेें शामिल हैैं।
उप-महाद्वीप, बर््ममा, थाईलैैंड, लाओस, कंबोडिया,वियतनाम के कुछ हिस््सोों तथा
दक्षिण चीन और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया (भमू ध््य रे खा के 50 उत्तरी अक््षाांश से 300
दक्षिणी अक््षाांश तक) मेें सबसे अधिक विकसित हुआ है।
व््ययापारिक पवनेें भमू ध््य रे खा को पार करने के बाद महाद्वीपीय निम््न-दाब क्षेत्र
की ओर आकर््षषित होती हैैं और दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप मेें भारतीय उप-
महाद्वीप तक पहुचँ ती हैैं।
जलवायु
z तापमान: औसत मासिक तापमान 180C से अधिक, अधिकतम तापमान
450C तक पहुचँ ता है, गर््ममियोों मेें औसत तापमान 300C और सर््ददियोों के दौरान
जलवायु
250C के आसपास रहता है।
z तापमान: औसत वार््षषिक तापमान 18°C से अधिक रहता है|
z ऋतुए:ँ शीत- शष्ु ्क मौसम (अक््टटूबर से फरवरी तक), ग्रीष््म- शष्ु ्क मौसम (मार््च
से मध््य जनू तक); वर््षषा ऋतु (मध््य जनू से सितम््बर तक)। z अत््यधिक दैनिक तापांतर (Extreme Diurnal Range of
ग्रीष््मकाल मेें सघन भारी वर््षषा होती है तथा औसत वार््षषिक वर््षषा लगभग
Temperature): दिन और रात के तापमान मेें बहुत अतं र अधिक होता है।
150 सेेंटीमीटर है, लेकिन इसमेें अस््थथायी और स््थथानिक भिन््नताएँ देखने दिन मेें गर््म हो सकता है, जबकि रातेें ठंडी हो सकती हैैं।
को मिलती हैैं। z वर््षषा (गर््म, बरसाती मौसम और ठंडे, शुष््क मौसम का चक्र): वर््षषा
वनस््पति अधिकांशत: गर््ममियोों के मौसम होती है, बाढ़ और सख ू ा सामान््य घटना है|
z चौड़़ी पत्ती वाले कठोर लकड़़ी के पेड़ों वाले शष्ु ्क-पर््णपाती वन,जैसे-सागौन। औसत वार््षषिक वर््षषा 80-160 सेमी होती है।
z उष््णकटिबंधीय वनोों की तलु ना मेें कम घने होते हैैं तथा प्रजातियोों की संख््यया/ z पवन : प्रचलित हवाएँ व््ययापारिक पवनेें हैैं। व््ययापारिक पवन पर्ू वी तटोों पर
जैव विविधता भी कम होती है। बारिश लाती हैैं लेकिन महाद्वीपोों के अदं रूनी हिस््सोों तक पहुचँ ते-पहुचँ ते शष्ु ्क
हो जाती हैैं।
आर्थिक गतिविधि
z उच््च-जनसख्ं ्यया घनत््व को प्रदर््शशित करता है। z हरमट्टन : इसका अर््थ है ‘डॉक््टर’ ,यह शष्ु ्क स््थथानीय हवाएँ हैैं, जो आतं रिक
अफ्रीका से गिनी के अटलांटिक तट की ओर चलती हैैं, जिसके परिणामस््वरूप
z सिंचाई सवि ु धाओ ं वाले क्षेत्ररों मेें गहन कृषि के साथ निर््ववाह कृषि भी की जाती है।
शीतलन प्रभाव के कारण वाष््पपीकरण की दर बढ़ जाती है, जो गर््म और आर्दद्र
z उत्तर-पर्ू ्व भारत और दक्षिण-पर्ू ्व के देशोों मेें स््थथानान््तरित कृषि प्रचलित है।
जलवायु से राहत देती हैैं।
z कृषि: बरसाती धान की खेती, तराई की नकदी फसलेें (गन््नना, जटू , नील,
कपास), उच््च भमि ू की बागानी फसलेें (चाय, कॉफी, मसाले)। वनस््पति (लंबी घास (हाथी घास) और छोटे पेड़)
z गोधन एवं भेेंड़ पालन प्रचलित है। z पर््णपाती वृक्षषों मेें आमतौर पर चौड़़े तने होते हैैं, जिनमेें जीवित रहने के लिए
जल-संचय करने वाले उपकरण होते हैैं (जैसे बबल ू का पेड़)।
उष््णकटिबंधीय समुद्री जलवायु
z घास के मैदानोों को ‘बुश-वेल््ड या पार््कलैैंड’ कहा जाता है।
जलवायु पूरे वर््ष तट पर चलने वाली व््ययापारिक पवनोों के प्रभाव मेें रहती है। यह
z ध्रुवोों की ओर जाने पर पेड़ों की ऊँचाई और घनत््व कम होते जाते हैैं।
उष््णकटिबंधीय भमू ध््यरे खीय भमि
ू के पूर्वी तटोों ,जैसे मध््य अमेरिका, वेस््ट इडं ीज,
उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, फिलीपीींस, पूर्वी अफ्रीका के कुछ हिस््ससे, मेडागास््कर, z जैसे-जैसे मरुस््थल की ओर बढ़ते हैैं, वर््षषा कम होती जाती है और सवाना कंटीली
गिनी तट और पूर्वी ब्राजील मेें अनुभव की जाती है। झाड़़ियोों मेें बदल जाता है। ऑस्ट्रेलिया मेें, इस झाड़़ीदार भमि ू का प्रतिनिधित््व
जलवायु कई प्रजातियोों द्वारा किया जाता है, जिसमेें मैली, मुल््गगा, स््पपिनिफेक््स घास
z वर््षषा: वर््षषा (पर््वतीय और सवं हनी दोनोों) बिना किसी विशिष्ट शष्ु ्क अवधि आदि शामिल हैैं।
के गर््ममियोों मेें अधिकतम होती है तथा इसमेें तटवर्ती व््ययापारिक पवनोों का z बहुत से पेड़ छाता-आकार के होते हैैं, जो मजबतू हवाओ ं के लिए के वल एक
प्रभाव रहता है। संकीर््ण किनारा प्रकट करते हैैं।
z प्रचडं उष््णकटिबंधीय चक्रवात, तफा ू न या टाइफून का खतरा। z लंबी सवाना घास (हाथी घास) की जड़ें गहरी होती हैैं, यह ठंडे, शष्ु ्क मौसम
वनस््पति के दौरान निष्क्रिय रहती है।
निरंतर गर्मी और नमी विभिन््न पौधोों की प्रजातियोों (वर््षषा वन, मैैं ग्रोव और तटीय वन््यजीव
वनस््पति) के विकास मेें योगदान करती है। सवाना को एक बड़े शिकारगाह वाले देश के रूप मेें जाना जाता है क््योोंकि
सवाना या सूडान तुल््य जलवायु यहाँ हर साल हजारोों जानवर फँ स जाते हैैं या मारे जाते हैैं। जानवरोों के दो मुख््य
सडू ान तुल््य जलवायु एक संक्रमणकालीन जलवायु है जो भमू ध््यरे खीय वनोों समूह पाए जाते हैैं - घास खाने वाले शाकाहारी जानवर और माँस खाने वाले
और व््ययापारिक पवन के गर््म मरुस््थलोों के बीच पाया जाता है। यह मख्ु ्य रूप से माँसाहारी जानवर।
सूडान मेें विकसित हुआ है, जिसमेें पश्चिम अफ्रीकी सूडान, पूर्वी अफ्रीका और जनजातियाँ: मसाई (के न््यया और तंजानिया), हौसा (नाइजीरिया)।
तुर््ककि स््ततान
45°N महान गोबी 45°N
कै लिफोर््ननिया बेसिन
वर््तमान मोहावे कै नरीज़ करंट
30°N थार 30°N
कर््क रे खा
15°N 15°N
सहारा ईरानी
भमू ध््य रे खा
अटाकामा अरबी
15°S कलाहारी 15°S
मकर रे खा के ऊष््णकटिबंधीय क्षेत्र आस्ट्रेलियन
30°S पेरूवियन नामीब पश्चिम आस्ट्रेलियाई धारा 30°S
धारा बेेंगुएला
धारा 45°S
45°S पेेंटागोनिया
गर््म रे गिस््ततान समशीतोष््ण रे गिस््ततान ठंडी धारा
पंपास प्रिटोरिया
चढ़़ाव
स््तपी
z घासेें न के वल छोटी होती हैैं बल््ककि रूखी और विरल भी होती हैैं। एशिया z उच््चभमियोों
ू मेें चीड़ और स्प्रूस जैसी शक ं ु धारी प्रजातियाँ।
के अदं रूनी महाद्वीपीय इलाकोों जैसे शष्ु ्क क्षेत्ररों मेें, कृषि योग््य खेती की तल
ु ना z कोई शष्ु ्क या ठंडा मौसम नहीीं, जिससे पौधोों का सदाबहार विकास हो सके ।
मेें कँ टीली घासेें पशपु ालन को अधिक बढ़ावा देती हैैं।
आर्थिक गतिविधि
z ध्रुवोों की ओर बढ़ने पर, वर््षषा मेें वद्धि
ृ के परिणामस््वरूप जंगली स््टटेपी बनती
हैैं, जहाँ धीरे -धीरे शंकुधारी पेड़ दिखाई देते हैैं। z गर््म शीतोष््ण पर्ू वी सीमांत मध््य अक््षाांशोों के सबसे अधिक उत््पपादक भाग हैैं।
आर्थिक गतिविधि z दनि
ु या के सबसे बड़़े चावल उगाने वाले क्षेत्र, उष््ण-आर्दद्र और तराई क्षेत्र चावल
व््ययापक मशीनीकृत गेहूँ की खेती, चलवासी पशचु ारण, पशपु ालन व चारागाह की खेती के लिए सर्वोत्तम हैैं।
आदि; व््ययापक, मशीनीकृ त गेहूँ की खेती के कारण उन््हेें ‘दुनिया के अन््न z गन््नना, कपास, तम््बबाकू, मक््कका, डेयरी उत््पपाद आदि।
भंडार’ के रूप मेें जाना जाता है। z इमारती लकड़़ी: चीन और दक्षिणी जापान मेें आर््थथिक मल्ू ्य (ओक, कपरू )
गर््म शीतोष््ण पूर्वी सीमा (चीन तुल््य) वाली ; पर्ू वी ऑस्ट्रेलिया मेें यक ू े लिप््टटिस के वन ; संयक्त
ु राज््य अमेरिका के
यह मानसूनी जलवायु का एक संशोधित रूप है, जो गर््म समशीतोष््ण अक््षाांशोों खाड़़ी राज््योों के तराई मेें पर््णपाती वन।
मेें महाद्वीपोों के पूर्वी किनारोों पर पाया जाता है। गर््ममियोों मेें क्षेत्र उपोष््ण-
स््थथानीय पवनेें
कटिबंधीय प्रति-चक्रवातीय (एटं ी-साइक््ललोनिक) हवाओ ं के नम, समुद्री
वायु प्रवाह के प्रभाव मेें होते हैैं। दक्षिणी बर््स््टर (ऑस्ट्रेलिया मेें ठंडी हवा) न््ययू साउथ वेल््स और विक््टटोरिया को
जलवायु: गर््म व आर्दद्र ग्रीष््मकाल और ठंडी व शुष््क सर्दी; व््ययापक समुद्री प्रभावित करती है; पैम््पपेरो (अर्जजेंटीना और उरुग््ववे मेें ठंडी शष्ु ्क हवा); बर््ग (दक्षिण
प्रभाव; छोटी वार््षषिक तापमान सीमा। अफ्रीका मेें गर््म और शष्ु ्क हवा) नेटाल मेें भारी वर््षषा लाती है, जिससे कृषि को
z गर््ममियोों मेें, क्षेत्र उपोष््ण-कटिबंधीय एट ं ी-साइक््ललोनिक हवाओ ं से नम, समद्ु री लाभ होता है।
वायु प्रवाह के प्रभाव मेें होते हैैं।
शीतोष््ण पश्चिमी क्षत्र (ब्रिटिश तुल््य)
z वर््षषा वर््ष भर (60 से 150 सेमी); परंपरागत स्रोतोों से या गर््ममियोों मेें पर््वतीय वर््षषा
के रूप मेें, या सर््ददियोों मेें डिप्रेशन से वर््षषा होती है। ब्रिटे न, उत्तर पश्चिम यूरोप, ब्रिटिश कोलंबिया (यूएसए), दक्षिणी चिली,
z स््थथानीय तूफान: टाइफून (उष््ण-कटिबंधीय चक्रवात) और तफा
तस््ममानिया और न््ययूजीलैैंड के अधिकांश हिस््सोों (उत्तरी गोलार््ध मेें 40° और
ू न भी आते हैैं।
65° अक््षाांश के बीच) मेें यह जलवायु पाया जाती है।
तीन प्रकारोों मेें विभाजित
जलवायु
z चीन तुल््य (मध््य और उत्तरी चीन, दक्षिण जापान): शीतोष््ण मानसनू ी;
साल भर मेें तापमान मेें भारी परिवर््तन; गर्मी और सर्दी मेें बारिश; गर््ममियोों के z वे परू े वर््ष पश्चिमी पवनोों के स््थथायी प्रभाव मेें रहते हैैं।
अतं मेें टाइफून की घटना। z वाताग्री चक्रवाती गतिविधि के क्षेत्र, मख्ु ्य रूप से ब्रिटेन के पश्चिमी तट के
z खाड़़ी तुल््य (दक्षिण पूर्वी सयं ुक्त राज््य अमेरिका): हल््कका मानसनू ी; कोई साथ पाए जाते हैैं, जहाँ ठंडी और गर््म हवा के बड़़े समहू मिलते हैैं। ये मिलन
स््पष्ट शष्ु ्क अवधि नहीीं; तफाू न और बवंडर की घटना। बिंदु वाताग्र बनाते हैैं, जो मौसम प्रणाली को प्रभावित करते हैैं तथा अक््सर
z नेटाल तुल््य: नेटाल, पर्ू वी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी ब्राजील, पैराग््ववे, उरुग््ववे और बादल, बारिश और हवादार परिस््थथितियोों का कारण बनते हैैं।
उत्तरी अर्जजेंटीना तथा दक्षिणी गोलार््ध के सभी गर््म पर्ू वी समशीतोष््ण गोलार््ध मेें z तापमान और वर््षषा पर अत््यधिक समद्ु री प्रभाव होता है।
समद्ु री प्रभाव का प्रभत्ु ्व होता है।
z तापमान: हल््ककी सर््ददियाँ और ठंडी गर््ममियाँ (औसत वार््षषिक तापमान - 5 से
वनस््पति
15°C)
पूरे वर््ष अच््छछी तरह से वितरित वर््षषा के कारण निचले इलाकोों मेें सदाबहार
चौड़़ी पत्ती वाले जंगलोों और पर््णपाती कठोर लकड़़ी के पेड़ों के साथ हरी-भरी z वर््षषा: वर््ष भर वर््षषा होती है, जिसमेें चक्रवाती स्रोतोों से सर्दी या शरद ऋतु मेें
वनस््पति होती हैैं। थोड़़ी अधिक वर््षषा होने की प्रवृत्ति होती है।
विश्व का 3/4 या 71% भाग जलमंडल से और शेष 29% भाग स््थलमडं ल से ढका हुआ है। सतह के जल का के वल 2.05% ही मीठा जल है; शेष 97% जल
महासागर मेें पाया जाता है।
z महासागरीय क्षैतिज क्षेत्र: मिजोपेलैजिक क्षेत्र: 200 मीटर से 1000 मीटर तक, अनक
ु ू लित समद्ु री
अंतर ज््ववारीय क्षेत्र: उच््च और निम््न ज््ववार के मध््य का तटीय क्षेत्र, यह जानवरोों और जैवदीप्ति (बायोल््ययूमिनिसेेंस) के साथ गोधलि
ू क्षेत्र।
विविध जीवोों का निवास स््थल है। बाथपेलैजिक क्षेत्र: 1000 मीटर से 4000 मीटर तक, अति तीव्र
ने रिटिक क्षेत्र: निम््न ज््ववार से लेकर महाद्वीपीय मग््नतट के महासागरीय
परिस््थथितियोों वाला गहरा क्षेत्र, गहरे महासागरीय वेेंट।
किनारे तक, महासागरीय जीवन से समृद्ध।
एबिसोपेलैजिक क्षेत्र: 4000 मीटर से 6000 मीटर तक, महासागरीय
महासागरीय क्षेत्र: महाद्वीपीय मग््नतट से परे , ऊर््ध्ववाधर क्षेत्ररों मेें विभाजित।
z महासागरीय ऊर््ध्ववाधर क्षेत्र: जीवोों की कम आबादी वाला क्षेत्र, समद्ु री हिमपात का जमाव।
एपिपे लैजिक क्षेत्र: सतह से 200 मीटर तक, सर््य ू का प्रकाश क्षेत्र जो हैडलपेलैजिक क्षेत्र: 6000 मीटर से अधिक गहरा; सबसे गहरे गर््त ;
प्रकाश संश्लेषण और विविध महासागरीय जीवन के विकास मेें सहायक। अत््यधिक दाब, ताप और अलगाव।
महासागर तल के उच्चावच
समद्रु के तल पर प्रमुख और लघु स््थलात््मक विशेषताएँ पाई जाती हैैं, जैसे- पर््वत ृंखलाएँ, गहरे गर््त, कटक, पहाड़़ियाँ, समुद्री पर््वत, गुयाट, खाइयाँ, घाटियाँ
आदि। ये विशेषताएँ टे क््टटोनिक, ज््ववालामुखीय और निक्षेपण प्रक्रियाओ ं द्वारा निर््ममित होती हैैं।
टक््कर से ज््ववालामख ु ीय द्वीपोों की ृंखलाएँ बनती हैैं। जैसे- जापान, इडं ोनेशिया।
z मध््य महासागर की चोटियोों को काटने वाले भ्रँश के साथ रै खिक
गहराई को प्रभावित करती हैैं; गर््ममियोों मेें उथली थर्मोक््ललाइन, सर््ददियोों मेें खाड़़ी मेें लवणता अधिक है।
अधिक गहरी। जल की लवणता, तापमान और घनत््व आपस मेें जुड़़े हुए हैैं। तापमान या
z निचली परत: बहुत ठंडी और गहरे समुद्र तल तक फैली होती है। घनत््व मेें कोई भी परिवर््तन किसी क्षेत्र मेें जल की लवणता को प्रभावित करता है।
आर््कटिक और अंटार््कटिक सर््क ल मेें , गहराई के साथ तापमान मेें बदलाव जल निकायोों मेें उच््चतम लवणता: तर्की
ु ये मेें वान झील (330 o/oo); मृत सागर
मामल ू ी होता है क््योोंकि सतह के जल का तापमान 0°C के करीब होता है। (238 o/oo); ग्रेट साल््ट झील (220 o/oo)
यहाँ, ठंडे जल की के वल एक परत मौजूद है, जो सतह से गहरे समद्रु तल
तक फै ली हुई है। लवणता का क्षैतिज वितरण
क्षैतिज तापमान भिन्नता z सामान््य खलु े महासागर की लवणता 33 o/oo और 37 o/oo के बीच होती
औसत सतह का तापमान लगभग 27°C है जो भूमध््य रेखा से धीरे-धीरे कम है। सामान््यतः ध्रुवोों की ओर लवणता धीरे-धीरे कम होती जाती है।
होता जाता है z भूमध््यरेखीय क्षेत्ररों मेें वाष््पपीकरण के कारण लवणता अधिक होती है,
z अक््षाांशीय प्रभाव: बढ़ते अक््षाांश (0.5°C प्रति अक््षाांश) के साथ तापमान लेकिन वर््षषा द्वारा इसे सतं ुलित किया जाता है।
घटता है। उपोष््णकटिबंधीय उच््च दाब वाले क्षेत्ररों मेें उच््च सर््यया
z ू तप (साफ आकाश)
z गोलार््ध विरोधाभास: भमि ू और जल के असमान वितरण के कारण उत्तरी और धीमी पवन के कारण कम वर््षषा के कारण उच््चतम लवणता का अनभु व
गोलार््ध मेें दक्षिणी गोलार््ध की तलु ना मेें अधिक तापमान दर््ज किया जाता है।
होता है।
z उष््णकटिबंधीय क्षेत्र उच््चतम तापमान रिकॉर््ड करते हैैं, न कि भूमध््य
रेखा, क््योोंकि भमू ध््य रे खा पर बादल होते हैैं और बढ़ती वायु धाराओ ं (सवं हन) z ध्रुवीय क्षेत्ररों और मध््य अक््षाांशोों मेें सतह की लवणता कम होती है।
के कारण वर््षषा होती है। z भूमि से घिरे सागर (लाल सागर) मेें जल का अधिक मिश्रण न होने के
z गर््म और ठंडी धाराएँ अक््षाांश के साथ तापमान परिवर््तन की दर को प्रभावित कारण यह ऊँ चा है गर््म एवं शुष््क क्षेत्र, जहाँ वाष््पपीकरण अधिक होता है।
करती हैैं। z आर््कटिक क्षेत्र से पिघले जल के प्रवाह के कारण उत्तरी गोलार््ध के पश्चिमी
महासागरीय जल की लवणता भागोों मेें लवणता कम हो जाती है।
लवणता समुद्री जल मेें घुले हुए लवणोों की कुल मात्रा है। इसे आमतौर पर
प्रति हज़ार भागोों (o/oo) या PPT के रूप मेें व््यक्त किया जाता है। समद्ु री जल
की औसत लवणता लगभग 35 ग्राम प्रति किलोग्राम (ग्राम/किग्रा) या 35 PPT है।
महासागर जल सरच ं ना: 77.7% सोडियम क््ललोराइड, 10.9% मैग््ननीशियम
क््ललोराइड, 4.7% मैग््ननीशियम सल््फफेट, 3.6% कै ल््शशियम सल््फफेट और 2.5%
पोटेशियम सल््फफेट।
महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
z वाष््पपीकरण से बढ़ती है और वर््षषा से लवणता कम हो जाती है। उदाहरण:
से की जा सकती है), जहाँ लवणता तेज़ी से बढ़ती है। धीमी तथा स््थथिर तरंगेें पुरानी होती हैैं एवं दूर के स््थथानोों से उत््पन््न
z सतह पर लवणता बर््फ मेें जल के कम होने या वाष््पपीकरण के साथ बढ़ती होती हैैं।
है या ताज़े जल के मिलने के साथ कम हो जाती है । z तरंग की ऊँचाई पवन की शक्ति द्वारा निर््धधारित होती है यानी वह कितनी
z कम लवणता वाला जल उच््च लवणता वाले उच््च जल के ऊपर रहता है, देर तक चलती है और वह किस क्षेत्र मेें एक ही दिशा मेें चलती है।
जिससे लवणता द्वारा स््तरीकरण होता है। तरं गोों के लक्षण
z लवणता गहराई के साथ परिवर््ततित होती है, लेकिन इसके परिवर््तन का तरीका z किसी तरंग के उच््चतम और निम््नतम बिंदओ ु ं को क्रमशः शिखर तथा गर््त
समद्रु के स््थथान पर निर््भर करता है । कहा जाता है।
उच््च अक््षाांश: गहराई के साथ बढ़ता है। z गर््त के नीचे से तरंग शिखर के शीर््ष तक की ऊर््ध्ववाधर दरू ी तरंग ऊँ चाई है।
मध््य अक््षाांश: 35 मीटर तक बढ़ता है और फिर घट जाता है। तरंग का आयाम तरंग की ऊँचाई का आधा होता है।
अधिक वर््षषा के कारण सतह की लवणता कम होती है और बादलोों z तरंग काल: दो क्रमिक तरंग शिखरोों या गर्ततों के बीच का समय अतं राल जब
के कारण वाष््पपीकरण कम होता है। वे एक निश्चित बिंदु से गज़ु रते हैैं।
सीमांत समुद्ररों की लवणता z तरंगदैर््ध््य: दो क्रमिक शिखरोों के बीच क्षैतिज दरू ी।
z उत्तरी सागर , उच््च अक््षाांशोों मेें स््थथित होने के बावजद
ू , उत्तरी अटलांटिक z तरंग गति: वह दर जिस पर रंग जल के माध््यम से चलती है।
बहाव द्वारा लाए गए अधिक खारे जल के कारण उच््च लवणता दर््ज z तरंग आवत्ति ृ : एक सेकंड के समय अतं राल के दौरान किसी दिए गए बिंदु से
करता है। गज़ु रने वाली तरंगोों की संख््यया।
z बड़़ी मात्रा मेें नदी जल के प्रवाह के कारण बाल््टटिक सागर मेें कम लवणता ज््ववार
दर््ज की जाती है।
z उच््च वाष््पपीकरण और सीमित मीठे जल के प्रवेश के कारण लाल सागर मेें
जाती है। हालाँकि, नदियोों द्वारा ताजे जल के भारी प्रवाह के कारण काला
सागर मेें लवणता बहुत कम है।
z बंगाल की खाड़़ी मेें नदी जल के प्रवाह के कारण लवणता कम है। इसके
महासागरीय जल संचरण
महासागरीय जल का संचलन
समद्ु री जल निकायोों मेें क्षैतिज और ऊर््ध्ववाधर गतियाँ आम हैैं। क्षैतिज गतियाँ: Fig.: Forces Acting on Tides
महासागरीय धाराएँ और तरंगेें ; ऊर््ध्ववाधर गतियाँ: ऊपर की ओर तथा नीचे z समुद्र के जल का दिन मेें दो बार आवधिक रूप से उठना और गिरना
की ओर तथा ज््ववार। मख्ु ्यतः सर््यू और चंद्रमा के आकर््षण के कारण होता है ।
तरं गेें z ज््ववार के कारण: सर््यू और चंद्रमा का गुरुत््ववाकर््षण बल तथा अपकेें द्रीय
तरंगेें वास््तव मेें ऊर््जजा हैैं, जो समद्रु की सतह पर चलती हैैं। जब कोई तरंग गज़ु रती बल पृथ््ववी पर दो प्रमख ु ज््ववारीय उभार बनाने के लिए ज़िम््ममेदार हैैं।
है तो जल के कण के वल एक छोटे वृत्त मेें गति करते हैैं। z के जिस ओर चंद्रमा के गुरुत््ववाकर््षण का प्रभाव होता है, उस ओर चद्रमा ं
z अधिकांश तरंगेें पवन के घर््ष ण बल के कारण होती हैैं, जो तरंगोों को के खिचं ाव के कारण ज््ववारीय उभार उत््पन््न होता है, जबकि विपरीत दिशा
ऊर््जजा प्रदान करती है । मेें, अपकेें द्रीय बल के कारण दसू री ओर ज््ववारीय उभार उत््पन््न होता है।
z समुद्र तट के निकट आते ही जल और समद्र ु तल के बीच होने वाले घर््षण [यूपीएससी 2015]
के कारण इसकी गति धीमी हो जाती है। जब जल की गहराई तरंग की z जब ज््ववार द्वीपोों के बीच या खाड़़ियोों और ज््ववारनदमुख मेें प्रवाहित होता
तरंगदैर््ध््य के आधे से कम होती है, तो तरंग टूट जाती है। है, तो उन््हेें ज््ववारीय धाराएँ कहा जाता है।
विषुवतरेखीय प्रति-धारा का पूर््व की ओर प्रवाह: व््ययापारिक पवनेें जल को गोलार््ध मेें वामावर््त। पाँच प्रमुख वलय: उत्तरी प्रशांत उपोष््णकटिबंधीय,
पश्चिम की ओर धके लती हैैं लेकिन पश्चिम की ओर स््थलखडं , प्रवाह मेें बाधा दक्षिण प्रशांत उपोष््णकटिबंधीय, उत्तरी अटलांटिक उपोष््णकटिबंधीय, दक्षिण
डालते है। वहाँ एक ढाल विकसित होती है और जल उसके प्रभाव से पर्ू ्व की
अटलांटिक उपोष््णकटिबंधीय और हिदं महासागर उपोष््णकटिबंधीय।
ओर प्रवाहित होने लगता है क््योोंकि डोलड्रम की उपस््थथिति के कारण पवनोों का
प्रभाव पर््ययाप्त नहीीं होता है। [यूपीएससी 2015] अटलांटिक महासागरीय धाराएँ
वलय (Gyres): समद्ु री धाराओ ं से बनी विशाल गोलाकार प्रणाली जो एक z नॉर्वेजियन जलधारा (गर््म): नॉर्वे के उत्तर मेें महासागरोों को बर््फ से मक्त
ु
केें द्रीय बिंदु के चारोों ओर घमू ती है। उत्तरी गोलार््ध मेें दक्षिणावर््त और दक्षिणी रखती है।
के लिए, पेरू धारा , जिसे हम््बबोल््ट धारा भी कहा जाता है, दक्षिण-पर्ू ्व प्रशांत
हिंद महासागर की धाराएँ
महासागर की ठंडे जल की धारा है और अटाकामा मरुस््थल की शुष््कता
गर््म एवं स््थथिर: दक्षिण विषवु तीय धारा; मोज़ाम््बबिक गर््म धारा; अगल
ु हास धारा
का कारण है। यह विश्व का सबसे शुष््क मरुस््थल है।
गर््म और अस््थथिर: दक्षिण पश्चिम मानसनू धारा; पर्ू वोत्तर मानसनू धारा; सोमाली
धारा महत््त््वपूर््ण शब््ददावली
ठंडी एवं स््थथिर: पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई धारा z खाड़़ी (Gulf): समुद्र का वह भाग जो भूमि मेें प्रवेश करता है; आम तौर
महासागरीय धाराओं का प्रभाव पर bay की तल ु ना मेें बड़़े और अधिक गहरे इडें ेंटेड; उत््ककृष्ट बंदरगाह स््थथान
z क्षेत्र की तापमान स््थथिति को प्रभावित करता है- बनाता है।
उष््णकटिबंधीय और उपोष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें महाद्वीपोों के पश्चिमी
z खाड़़ी (Bay): जल क्षेत्र जो आंशिक रूप से भूमि से घिरा हुआ है; आमतौर
तटोों की तरह, ठंडी धाराओ ं वाले तटोों पर शष्ु ्कता के संकेत के साथ कम
तापमान का अनभु व होता है। पर खाड़़ी से छोटा और कम घिरा हुआ। उदाहरण: हडसन की खाड़़ी, बंगाल
मध््य और उच््च अक््षाांशोों मेें महाद्वीपोों के पश्चिमी तट गर््म जल से की खाड़़ी, ग््ववाांतानामो खाड़़ी (कै रे बियन सागर मेें आश्रित प्रवेश द्वार)
घिरे हैैं, जो ठंडी गर््ममियोों तथा हल््ककी सर््ददियोों के साथ एक विशिष्ट समद्ु री z के प (Cape): जल मेें फै ला हुआ उच््चभमि
ू ; विविध आकार; भभू ाग का हिस््ससा
जलवायु का अनभु व करते हैैं।
z जलडमरूमध््य (Strait): दो बड़़े निकायोों को जोड़ने वाला एक संकीर््ण जल
z वे क्षेत्र जहाँ गर््म और ठंडी धाराएँ मिलती हैैं, दनि ु या मेें मछली पकड़ने के
सर्वोत्तम क्षेत्र होते हैैं [यूपीएससी 2013]। जैसे- जापान के आसपास के निकाय। उदाहरण के लिए, जिब्राल््टर जलडमरूमध््य, मलक््कका जलडमरूमध््य
समुद्र और उत्तरी अमेरिका का पूर्वी तट। इन क्षेत्ररों मेें कोहरे का मौसम z स््थलडमरूमध््य (Isthmus): दो बड़़े भभू ागोों को जोड़ने वाली एक संकीर््ण
भी रहता है जिससे नौवहन मश््ककि ु ल हो जाता है। भमिू पट्टी। जैसे- पनामा का इस््थमसु
z मरुस््थल का निर््ममाण: उष््णकटिबंधीय और उपोष््णकटिबंधीय महाद्वीपोों z ज््ववारनदमुख (Estuary): आशिक
ं रूप से घिरा हुआ तटीय जलाशय जिसमेें
के पश्चिमी तट क्षेत्ररों मेें ठंडी समुद्री धाराओ ं के कारण उच््च शुष््कता। उदाहरण
नदी का जल समद्ु री जल के साथ मिश्रित होता है।
v v v
भारतीय प््ललेट, जो कभी भमू ध््य रे खा के दक्षिण मेें स््थथित था और ऑस्ट्रेलियाई सिंधु -गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान
प््ललेट सहित एक बड़़ी इकाई का हिस््ससा था तथा विभाजित होकर उत्तर की ओर z मलू रूप से यह क्षेत्र एक भू-सन््नति धँसाव (Geo-synclinal depression)
स््थथानांतरित हो गया, जिससे भारत के निम््नलिखित भवू ैज्ञानिक विभाजनोों का था; ये मैदान धीरे -धीरे हिमालय और प्रायद्वीपीय नदियोों द्वारा लाए गए अवसाद
(जलोढ़ निक्षेप) से भर गए थे। यह भारत की सबसे नतू न भौगोलिक सरं चना है।
विकास हुआ।
प्रायद्वीपीय खंड
भारत के प्रमुख भूवैज्ञानिक विभाजन z उत्तरी सीमा: दिल््लली के पास अरावली रेेंज के पश्चिमी किनारे पर कच््छ से फै ली
z भआ ू कृतिक, भ-ू वैज्ञानिक संरचना का परिणाम, सतत प्रक्रियाओ ं और नामचा बरवा: दक्षिण पूर््व तिब््बत मेें स््थथित; नंदा देवी (कुमाऊँ हिमालय का
विकासात््मक चरण के साथ-साथ भारत की विविध भौतिक विशेषताओ ं को हिस््ससा) भारत की दसू री सबसे ऊँची चोटी है। [यूपीएससी 2023]
प्रदर््शशित करता है। मध््य अथवा लघु हिमालय (हिमाचल या निचला हिमालय)
z इन व््ययापक विविधताओ ं के आधार पर भारत को निम््नलिखित भौगोलिक यह वृहत हिमालय (उत्तर) और शिवालिक (दक्षिण) के बीच स््थथित है।
प्रभागोों मेें विभाजित किया जा सकता है: z समद्रु तल से ऊँचाई 3,500 से 4,500 मीटर तक होती है और इसमेें खड़़ी
(1) उत्तरी और उत्तर-पर्ू वी पर््वतमाला दक्षिणी ढलान और अधिक मदं उत्तरी ढलान (सामान््य हॉगबैक) हैैं।
(2) उत्तरी मैदान z पर््वतमालाएँ : पीर पंजाल, धौलाधार, मसरू ी पर््वतमाला, नाग टिब््बबा,
विस््ततार हैैं। [यूपीएससी 2017] z हिमाचल अथवा लघु हिमालय सबसे ऊबड़-खाबड़ पर््वतीय प्रणाली है।
(उत्तर-पर्ू ्व) पर अचानक समाप्त हो जाता है। z शिवालिक का दक्षिणी ढलान पंजाब और हिमाचल प्रदेश मेें वन आवरण
z चोटियाँ: सबसे ऊँची माउंट एवरे स््ट है ; ऊँचाई के घटते क्रम मेें अन््य
की अनुपस््थथिति के कारण, स््थथानीय रूप से चोस नामक कई मौसमी
महत्तत्वपर्ू ्ण चोटियाँ - कंचनजंगा, ल््हहोत््ससे, मकालू, धौलागिरी, मनास््ललु, नंगा धाराओ ं द्वारा अत््यधिक विच््छछेदित किया जाता है।
सोमोरीरी । z यह भूटान हिमालय के पूर््व से लेकर पर्ू ्व मेें दीफू दर्रे (भारत, चीन और
z तीर््थ स््थथान: वैष््णणो देवी, अमरनाथ गुफा, चरार-ए-शरीफ आदि।
म््ययाांमार की सीमा के पास) तक फै ला हुआ है और गहरी घाटियोों के साथ तेजी
से बहने वाली नदियोों द्वारा विच््छछेदित है।
z इसका सबसे दक्षिणी भाग अनुदैर््ध््य घाटियाँ हैैं जिन््हेें 'दून ' कहा जाता है ।
जैसे. जम््ममू दून और पठानकोट दून । z पर््वत चोटियाँ: कांगतो और नामचा बरवा ।
हिमाचल और उत्तराखंड हिमालय z जनजातीय समुदाय: मोनपा, डफला, अबोर, मिश््ममी, निशि और नागा (पश्चिम
z इस खडं मेें हिमालय की तीनोों श्रेणियाँ प्रमख ु हैैं - वृहत हिमालय, लघु हिमालय से पर्ू ्व)। उनमेें से अधिकांश स््थथानांतरण या स््ललैश एडं बर््न खेती (झमू खेती )
( हिमाचल प्रदेश मेें धौलाधार और उत्तराखडं मेें नाग टिब््बबा ) तथा शिवालिक का अभ््ययास करते हैैं।
z यह लगभग रावी और काली (घाघरा की एक सहायक नदी) के बीच स््थथित पूर्वी पहाड़ि याँ और पर््वत
है। यह सिंधु तथा गंगा नदी तंत्र द्वारा अपवाहित होता है। दिहांग गॉर््ज (ब्रह्मपुत्र) के पार , हिमालय तेजी से दक्षिण की ओर झक ु ता है। इन््हेें
z हिमाचल हिमालय का सबसे उत्तरी भाग लद्दाख शीत मरुस््थल- स््पपीति पर्ू ्वाांचल अथवा पर्ू वी पहाड़़ियोों और पर््वतोों के नाम से जाना जाता है। इसका
उप-खंड (लाहौल और स््पपीति) का विस््ततार है। सामान््य संरेखण उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर है।
z महत्तत्वपूर््ण हिल स््टटेशन: धर््मशाला, मसरू ी, कौसानी, शिमला, कसौली, z इन््हेें अलग-अलग नामोों से जाना जाता है (उत्तर से दक्षिण) - पटकाई बुम
अल््ममोडा, लैैंसडाउन और रानीखेत आदि। ( अरुणाचल प्रदेश और म््ययाांमार के बीच सीमा बनाती है) , नागा पहाड़़ियाँ
z महत्तत्वपूर््ण दून: चंडीगढ़-कालका दनू , नालागढ़ दनू , देहरादून , हरिके दनू ( भारत और म््ययाांमार के बीच जल विभाजक बनती है) , मणिपुर पहाड़़ियाँ
और कोटा दनू आदि। सभी दनू मेें से देहरादनू सबसे बड़़ा है
( मणिपरु और म््ययाांमार के बीच सीमा बनाती है) और मिज़़ो या लुशाई
z जनजातियाँ: भोटिया वहृ त हिमालय ृंखला की घाटियोों मेें निवास पहाड़़ियाँ (सबसे ऊँची चोटी- ब््ललू माउंटेन) , जहाँ झमू खेती करने वाले
करती हैैं । 'बुग््ययालोों' का उपयोग इन खानाबदोश समहोों ू (ऊपरी इलाकोों मेें आदिवासी समहू रहते हैैं।
ग्रीष््मकालीन घास के मैदान) द्वारा गर््ममियोों के दौरान किया जाता है और वे
z मिजोरम को 'मोलासिस बे सिन' के नाम से भी जाना जाता है। यह मल ु ायम/
सर््ददियोों (स््थथानांतरण) के दौरान घाटियोों मेें वापस लौट आते हैैं।
z प्रसिद्ध 'फूलोों की घाटी' भी इसी क्षेत्र मेें स््थथित है। नरम असंगठित निक्षेपोों से बना है।
z तीर््थ स््थथान: गगं ोत्री, यमनु ोत्री, के दारनाथ, बद्रीनाथ, हेमकंु ड साहिब, पांच नोकरे क मेघालय पठार पर स््थथित गारो हिल््स की सबसे ऊँची चोटी है।
प्रसिद्ध प्रयाग (नदी संगम)। [यूपीएससी 2023]
अभिसरण/संमिलन से उत््पन््न हुआ: सिंधु , गंगा और ब्रह्मपुत्र । यह 50-150 , टीलेदार पहाड़़ियोों की ृंखला और दीवार जैसी क््ववार््टजाइट भित्तियाँ
मीटर की सामान््य ऊँचाई वाली जलोढ़ मिट्टी से समृद्ध है। (जल भडं ारण के लिए प्राकृतिक स््थल)।
उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन खंडों में विभाजित किया गया है। z पाटलैैंड पठार: हजारीबाग पठार , पलामू पठार, रांची पठार, मालवा पठार,
z इस पठार का विस््ततार असम की कार्बी-आंगलोोंग पहाड़़ियोों मेें देखा जाता कोडाइकनाल (पलानी पहाड़़ी)
है ।
पूर्वी घाट
z मे घालय का पठार कोयला, लौह अयस््क, सिलिमे नाइट, चूना पत््थर
पूर्वी घाट नदियोों के कटाव के कारण असतत और निचली पहाड़़ियोों से बना है।
और यूरेनियम सहित खनिज संसाधनोों से समृद्ध है । इस क्षेत्र मेें दक्षिण- z ओडिशा, आध्र ं प्रदेश, तमिलनाडु और कर््ननाटक तथा तेलंगाना के कुछ हिस््सोों
पश्चिम मानसनू से अधिकतम वर््षषा होती है, जिसके परिणामस््वरूप सतह का से होकर गजु रता है।
अत््यधिक क्षरण होता है।
z पहाड़़ी ृंखलाएँ (उत्तर से दक्षिण): महेेंद्रगिरि पहाड़़ियाँ (ओडिशा ; पर् ू वी
चे रापूंजी ( मेघालय पठार) मेें भारी वर््षषा के कारण स््थथायी वनस््पति आवरण
घाट की सबसे ऊँची चोटी); नल््ललामलाई , वेलिकोोंडा और पालकोोंडा
के बिना नग््न चट्टानी सतह है। (आध्रं प्रदेश); जवादी पहाड़़ियाँ, शेवराय पहाड़़ियाँ, पचमलाई पहाड़़ियाँ
z कोपिली नदी मिकिर, रेेंग््ममा और बरै ल पहाड़़ियोों को मेघालय पठार से अलग
तथा सिरुमलाई पहाड़़ियाँ।
करती है।
पूर्वी और पश्चिमी घाट नीलगिरि पहाड़़ियोों पर मिलते हैैं ।
भारतीय मरुस््थल z अमरकंटक पहाड़़ियाँ विंध््य और सतपड़़ा ु पर््वतमाला के संगम पर स््थथित हैैं;
z अरावली पहाड़़ियोों के उत्तर पश्चिम मेें स््थथित; इसे मरुस््थली के नाम से भी बिलीगिरी रंगन पहाड़़ियाँ कर््ननाटक मेें स््थथित एक पहाड़़ी ृंखला है; शेषाचलम
जाना जाता है ; अनदु र््ध््य
ै टीलोों, बरखानोों और रे तीले मैदानोों के साथ लहरदार पहाड़़ियाँ (आध्रं प्रदेश) पर्ू वी घाट का हिस््ससा हैैं। [यूपीएससी 2023]
स््थलाकृति। बरखान अर््धचद्ं राकार टीले हैैं। z सत््यमग ं लम टाइगर रिजर््व (TN) पश्चिमी और पर्ू वी घाट के बीच एक
z औसत वार््षषिक वर््षषा 150 मिमी. प्रति वर््ष से कम। महत्तत्वपर्ू ्ण स््थथान पर स््थथित है। [UPSC 2017]
z मे सोजोइक युग के दौरान यह पानी के नीचे था , जिसके प्रमाण आकल मेें
के बीच स््थथित हैैं; परू ा समहू उत्तर मेें अंडमान द्वीप समूह और दक्षिण मेें
निकोबार द्वीप समूह मेें विभाजित है । अन््य महत्तत्वपर्ू ्ण द्वीप: रिची द्वीपसमूह
तथा लैब््रििंथ द्वीप
z पर्
ू ्व मेें अडं मान सागर और पश्चिम मेें बंगाल की खाड़़ी स््थथित है।
z ऐसा माना जाता है कि ये द्वीप समद् ु री पहाड़ों का एक उभरा हिस््ससा हैैं, जिनमेें
z विभाजन: कच््छ और काठियावाड़ तट (गजु रात), कोोंकण तट (महाराष्टट्र),
से कुछ छोटे द्वीप ज््ववालामख ु ीय हैैं।
गोवा तट (कर््ननाटक) तथा मालाबार तट (के रल)।
z विशे षताएँ : बैरेन द्वीप , भारत का एकमात्र सक्रिय ज््ववालामख ु ी [यूपीएससी
z पश्चिमी तट पर स््थथित प्राचीन द्वारका शहर जलमग््न हो गया है।
2018] ; पर््वत चोटियाँ - सैडल पीक (उत्तरी अडं मान-द्वीपोों की सबसे ऊँची
z महत्तत्वपर्ू ्ण प्राकृतिक बंदरगाह: कांडला, मझगांव, जेएलएन बंदरगाह न््हहावा चोटी), माउंट डियावोलो (515 मीटर, मध््य अडं मान), माउंट कोयोब (460
शेवा, मर््ममागाओ, मैैंगलोर, कोचीन आदि। मीटर, दक्षिण अडं मान) और माउंट थुइल््लर (642 मीटर, ग्रेट निकोबार)।
z पश्चिमी तटीय मैदान बीच मेें संकीर््ण और उत्तर तथा दक्षिण की ओर चौड़़ा है। z तटीय क्षेत्ररों मेें कोरल निक्षेप है।
z नदियाँ डेल््टटा नहीीं बनाती है । z परिवर््ततित नाम वाले द्वीप: रॉस द्वीप- ने ताजी सभ ु ाष चंद्र बोस द्वीप;
z मालाबार तट मछली पकड़ने और पर््यटन के लिए उपयोग किए जाने वाले हैवलॉक द्वीप - स््वराज द्वीप; नील द्वीप- शहीद द्वीप
"कायल" (बैकवाटर) के लिए जाना जाता है। z इन द्वीपोों मेें संवहनीय वर््षषा होती है और भम ू ध््यरे खीय वनस््पति पाई जाती है।
z नेहरू ट्रॉफी वल््लमकली (नाव दौड़) के रल के पन्ु ्नमदा कायल मेें आयोजित
की जाती है। अरब सागर द्वीप
इसमेें लक्षद्वीप और मिनिकॉय द्वीप शामिल हैैं, जो 8°N-12°N और 71°E
पूर्वी तटीय मैदान -74°E के बीच स््थथित हैैं। संपूर््ण समहू कोरल निक्षेपोों से निर््ममित है, जो के रल
ये मैदान उभरे हुए तट हैैं और पश्चिमी तटीय मैदानोों की तुलना मेें अधिक चौड़़े के तट पर स््थथित है
हैैं। z पहले लक्षद्वीप, मिनिकॉय और अमिंदिव के नाम से जाना जाता था ,
z उत्तरी भाग मेें उत्तरी सरकार और दक्षिणी भाग मेें कोरोमड ं ल तट है। 1973 मेें इनका नाम बदलकर लक्षद्वीप कर दिया गया। मिनिकॉय सबसे बड़़ा
z नदियोों के सविकसि
ु त डेल््टटा - महानदी , गोदावरी, कृष््णणा और कावेरी डेल््टटा। द्वीप है । अन््य द्वीप: अमिनी द्वीप और कन््ननानोर द्वीप
z चिल््कका झील (ओडिशा) , पर् ू वी तट के साथ, महानदी डेल््टटा के दक्षिण मेें z पर् ू वी समद्ु री तट पर कंकड़-पत््थर, विसर्पी छाजन, गोलाश््ममिकाये तथा गोलाश््म
स््थथित भारत की सबसे बड़़ी खारे पानी की झील है। वाले तफाू नी समद्रु तट हैैं।
z इसकी उभरती प्रकृति के कारण, इस तट पर बंदरगाह और हार््बर कम हैैं। चै नल विभाजन
यहाँ महाद्वीपीय शेल््फ समद्रु मेें 500 कि.मी. तक फै ला हुआ है, जो बंदरगाह 9 डिग्री चैनल मिनिकॉय द्वीप और लक्षद्वीप द्वीपसमहू
विकास के लिए एक चनु ौती है। 10 डिग्री चैनल अंडमान द्वीप और निकोबार द्वीप [यूपीएससी 2014]
ओडिशा का लुकाछिपी समुद्र तट: चांदीपुर समद्रु तट जहाँ समद्रु का पानी 11 डिग्री चैनल अमिनदीवी और कन््ननानोर द्वीप
हर दिन 1 कि.मी. से 5 कि.मी. तक समद्रु के अंदर चला जाता है और उच््च डंकन मार््ग ग्रेट अंडमान और लिटिल अंडमान
ज््ववार के दौरान यह फिर से धीरे -धीरे किनारे पर आ जाता है। [यूपीएससी सेेंट जॉर््ज चैनल लिटिल निकोबार और ग्रेट निकोबार
2017] ग््राांड चैनल ग्रेट निकोबार और सुमात्रा द्वीप (इडं ोनेशिया)
z ये अपनी ऊपरी क्षेत्ररों मेें काफी वेगवती व तीव्र होती हैैं और गहन कटाव
Centripetal Colinear Contorted Dendritic
सबं ंधी गतिविधि करती हैैं, जिससे गॉर््ज, झरने और V -आकार की घाटियाँ
बनती हैैं।
z मध््य और निचली मार््ग की विशे षताएँ : समतल घाटियाँ, मियांडर, गोखरु
Deranged Dichotomic Directional trellis Fault trellis
झीलेें, और उनके बाढ़ के मैदानोों मेें निक्षेपण सबं ंधी विशेषताएँ; नदी के
महु ाने के पास गंफु ित-धराएँ और डेल््टटा; अपने प्रवाह-मार््ग को बार-बार बदलते
हैैं। उदाहरणार््थ– कोसी नदी (बिहार का शोक)।
Joint trellis Parallel Pinnate Radial सिंधु नदी तंत्र
प्रतिशत, जिसमेें गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष््णणा आदि शामिल हैैं और बंगाल और बाल््टटिस््ततान से होकर गुजरती है। यह लद्दाख श्रेणी (रेेंज) को काटती
की खाड़़ी की ओर उन््ममुख हैैं। है, गिलगित के पास एक घाटी बनाती है और दर््ददिस््ततान क्षेत्र मेें पाकिस््ततान
मेें प्रवेश करती है।
2. जलविभाजक की आकृति के आधार पर
z दक्षिण की ओर बहती है और मिथनकोट (पाकिस््ततान) के पास ‘पंजनद’ (
z प्रमुख नदी बेसिन : 20,000 वर््ग किमी से अधिक जलग्रहण क्षेत्र; इसमेें
14 अपवाह तंत्र बेसिन शामिल हैैं– गंगा, ब्रह्मपत्रु , कृ ष््णणा, तापी, नर््मदा, सतलजु , ब््ययास, रावी, चिनाब और झेलम) बनाती है।
माही, पेन््ननार, साबरमती, बराक, आदि। z कराची के पर् ू ्व मेें अरब सागर मेें विलीन हो जाती है।
z मध््यम नदी बेसिन : 2,000-20,000 वर््ग किमी के बीच जलग्रहण क्षेत्र z जास््कर, नब्राु , श््ययोक और हुजं ा, कश््ममीर के क्षेत्र इसमेें शामिल होते हैैं।
इसमेें 44 नदी घाटियाँ शामिल हैैं– कालिंदी, पेरियार, मेघना, आदि। झेलम और रावी चिनाब मेें मिलती हैैं; ब््ययास सतलज मेें मिलती है; सतलज
z छोटी नदी घाटियाँ : 2,000 वर््ग किमी से कम जलग्रहण क्षेत्र, कम वर््षषा और चिनाब मिलती हैैं और फिर सिंधु मेें विलीन हो जाती हैैं। [यूपीएससी
वाले क्षेत्ररों मेें नदियाँ। 2021]
अपवाह प्रणाल 65
सिंधु नदी की सहायक नदियाँ शिपकी-ला (हिमाचल प्रदेश) के रास््तते भारत मेें प्रवेश करता है।
दायेें की ओर की सहायक नदियाँ : श््ययोक (उत््पत्ति-सियाचिन ग््ललेशियर); सहायक नदियाँ : रावी और ब््ययास; स््पपीति (दायाँ तट) हिमाचल प्रदेश
हुंजा; गिलगित (भारत मेें अंतिम सहायक नदी); कुर््रम, तोची, गोमल, मेें।
विबोआ और संगर (सभी सुलेमान पर््वतमाला मेें उत््पन््न होते हैैं)। बहुउद्देशीय परियोजनाएँ : भाखड़़ा नांगल परियोजना, हरिके , सरहिद ं,
z श््ययोक नदी उत्तरी काराकोरम पहाड़ों से निकलती है और उत्तर से एक प्रमख ु गोबिंद बल््लभ सागर, करछम वांगटू जलविद्युत संयंत्र, नापथा-झाकड़ी
सहायक नदी, नुब्रा (उत््पत्ति– सियाचिन ग््ललेशियर) नदी से मिलती है, और बाँध।
दोनोों नदियोों का संयक्त
ु रूप से पाक-अधिकृ त कश््ममीर मेें प्रवेश करता है। z सरू
ु नदी : देवसाई पहाड़ों से निकलती है और एक अनुगामी सहायक
बाएँ तट की ओर की सहायक नदियाँ नदी है। कारगिल इसके तट पर स््थथित है।
z झेलम को कश््ममीरी मेें व््यथ, संस््ककृ त मेें वितस््तता और ग्रीक मेें हाइडस््पपेस के z सिधं ु की अन््य सहायक नदियाँ : जास््कर, नुब्रा, शिगार, गैस््टटििंग और
नाम से जाना जाता है। द्रास।
उद्गम : वेरिनाग मेें एक झरना से, जो कश््ममीर घाटी के दक्षिण-पूर्वी भाग
गंगा नदी तंत्र
मेें, पीर पंजाल पर््वत शृख ं ला की तलहटी के पास स््थथित है। नदी की लंबाई 2,525 किमी है। यह उत्तराखंड (110 किमी) और उत्तर
श्रीनगर और वुलर झील से होकर गज ु रता है। [ यूपीएससी 2023] प्रदेश (1,450 किमी), बिहार (445 किमी) और पश्चिम बंगाल (520 किमी)
बारामल ू ा के पास पाकिस््ततान मेें प्रवेश करती है और पाकिस््ततान मेें झांग द्वारा साझा किया जाता है। गंगा नदी बेसिन मेें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध््य
के पास चिनाब से मिलती है। प्रदेश, राजस््थथान, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, छत्तीसगढ़,
सहायक नदियाँ : किशनगंगा (दाएँ), दध ू गंगा नदी, पोहरू, लिद्दर नाला, हिमाचल प्रदेश और केें द्र शासित प्रदेश दिल््लली के क्षेत्र शामिल होते है,
रामबियारा नाला, नाला सिंध। जिससे देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 26% पानी प्रवाहित होता है।
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ : मग ं ला बाँध, रसल ू बैराज, किशनगंगा। गंगा नदी अपवाह
z चिनाब : चिनाब (या चद्रं भागा) नदी का निर््ममाण दो धाराओ ं चंद्र और भागा के z गंगोत्री ग््ललेशियर से भागीरथी के रूप मेें निकलती है।
एक दूसरे के साथ विलय के बाद हुआ है जो क्रमशः लाहौल और स््पपीति z अलकनंदा का उद्गम बद्रीनाथ के ऊपर स््थथित सतोपंथ ग््ललेशियर से होता
घाटी (हिमाचल प्रदेश) मेें बारा-लाचा दर्रे के दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम है। इसका निर््ममाण जोशीमठ (विष््णणु प्रयाग) मेें धौली और विष््णणु गंगा के
मखोों
ु से निकलती हैैं।); बारा शिगरी ग््ललेशियर नदी को जल प्रदान करता है। सगं म से हुआ है; मंदाकिनी (उत््पत्ति– चोराबाड़ी ग््ललेशियर) अलकनंदा
सिध ं ु की सबसे बड़़ी सहायक नदी। की एक सहायक नदी है।
मरुसद ु र, चिनाब की सबसे बड़़ी सहायक नदी है। z पिंडर नदी कर््णप्रयाग मेें अलकनंदा से मिलती है।
हिमाचल प्रदेश और जम््ममू-कश््ममीर से होकर गज ु रती है। z देवप्रयाग मेें अलकनंदा और भागीरथी का मिलन होता है। जहाँ से इसे
सहायक नदियाँ : चद् ं रा, भागा और तवी। गंगा के नाम से जाना जाता है।
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ : सलाल परियोजना, दल ु हस््तती बाँध, बगलिहार z हरिद्वार मेें, गंगा पहाड़ों से मैदानोों की ओर निकलती है।
बाँध, त्रिम््ममू बैराज। z यह महु ाने के पास भागीरथी और पद्मा नामक दो सहायक नदियोों मेें
z रावी विभाजित हो जाती है।
उद्गम स््थल : कुल््ललू पहाड़़ियाँ (हिमाचल प्रदेश), रोहतांग दर्रे के पश्चिम मेें।
z सागर द्वीप के निकट बंगाल की खाड़़ी मेें विलीन हो जाती है।
चंबा घाटी (हिमाचल प्रदेश) और पीर पंजाल और धौलाधार के बीच
z पश्चिम बंगाल मेें फरक््कका गंगा डेल््टटा का सबसे उत्तरी बिंदु है।
बहती है। z अबं ाला सिधं ु और गगं ा नदी प्रणालियोों के बीच जल विभाजक पर स््थथित है।
सहायक नदियाँ : बधि ु ल, नाई/धोना। गंगा नदी की सहायक नदियाँ
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ : थीन (रंजीत सागर) बाँध।
z ब््ययास
उद्गम स््थल : रोहतांग दर्रे के पास ब््ययास कुंड।
बनाती है; पंजाब के मैदानी इलाकोों मेें प्रवेश करने पर यह हरिके के पास
सतलुज नदी मेें मिल जाती है।
सहायक नदी : पार््वती नदी। गंगा की बाएँ तट की सहायक नदियाँ
बहुउद्देशीय परियोजनाएँ : ब््ययास परियोजना, पोोंग बाँध, पंडोह बाँध। z गंडक
z सतलुज इसमेें दो धाराएँ शामिल हैैं– कालीगंडक और त्रिशूलगंगा।
उद्गम स््थल : मानसरोवर, तिब््बत के पास ‘राकस ताल’। तिब््बत मेें इसे उत््पत्ति : ने पाल हिमालय धौलागिरी और माउंट एवरे स््ट के बीच है
लांगचेन खम््बबाब के नाम से जाना जाता है। और नेपाल के मध््य भाग मेें जल प्रवाहित करती है।
66 अपवाह प्रणाल
चंपारण (बिहार) मेें गंगा के मैदान मेें प्रवेश करती है; पटना के निकट z सोन
गगं ा मेें मिल जाती है। उत््पत्ति : अमरकंटक पठार।
काँवर झील (गोखरु झील) गड ं क नदी द्वारा पोषित होती है। [यूपीएससी सहायक नदियाँ : रिहद ं , उत्तरी कोयल नदी।
2023] आरा के पास यह गंगा मेें मिल जाती है।
z घाघरा z दामोदर
उत््पत्ति : मपचाचुंगो (गरु ला मांधाता शिखर) के ग््ललेशियर; पहाड़ों से
हुगली नदी मेें मिलने से पहले छोटानागपुर पठार के पर्
ू वी किनारे पर एक
निकलकर यह शीशपानी मेें एक गहरी खाई बनाती है। भ्रंश घाटी से होकर बहती है।
सहायक नदियाँ : टीला, सेती और बेरी।
सहायक नदी : बराकर।
छपरा मेें गंगा से मिलने से पहले इसमेें शारदा नदी (काली या काली
बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण इसे ‘बंगाल का शोक’ कहा जाता है।
गंगा) मिलती है।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
सरयू शारदा नदी की सबसे बड़़ी सहायक नदी है। अयोध््यया सरयू नदी
z उद्गम स््थल : मानसरोवर झील के निकट कै लाश श्रेणी मेें चे मायुंगडुग ं
पर स््थथित है।
ग््ललेशियर।
z कोसी
z दक्षिणी तिब््बत मेें इसे सांगपो के नाम से जाना जाता है। रंगो त््ससाांगपो तिब््बत
यह एक पूर््ववर्ती नदी है।
मेें प्रमखु दाएं तट की सहायक नदी के रूप मेें जड़ु ती है।
उद्गम स््थल : तिब््बत मेें माउंट एवरे स््ट के उत्तर मेें जहाँ से इसकी मख् ु ्य
z नामचा बरवा मेें, यह ‘य’ू मोड़ लेती है और दिहांग के रूप मेें भारत मेें
धारा अरुण निकलती है।
प्रवेश करती है। यह सादिया के निकट असम के मैदानी भाग मेें प्रवेश
नेपाल मेें मध््य हिमालय को पार करने के बाद सोन कोसी (पश्चिम) और
करती है जहाँ से इसे ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है।
तमूर कोसी (पूर््व) से मिल जाती है; अरुण से मिलकर सप्त कोसी का
z धुबरी के निकट बांग््ललादेश मेें प्रवेश करती है। बांग््ललादेश मेें, यह तीस््तता (दायेें
निर््ममाण करती है।
तट) से मिलती है, जिसके बाद इसे जमुना कहा जाता है।
z रामगंगा : उद्गम स््थल गढ़वाल पहाड़़ियाँ हैैं; कन््ननौज के पास गंगा मेें
z जब यह गंगा मेें मिल जाती है तो इसे पद्मा के नाम से जाना जाता है।
मिल जाती है।
पद्मा नदी के मेघना नदी से मिलने के बाद इसे संयक्त ु रूप से मेघना के नाम
z शारदा या सरयू : उद्गम नेपाल हिमालय मेें मिलम ग््ललेशियर है जहाँ इसे से जाना जाता है।
गौरीगंगा के नाम से जाना जाता है। भारत-नेपाल सीमा पर, इसे काली या
z यह नदी तंत्र अरुणाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, मे घालय, नागालैैं ड
चौक के नाम से जाना जाता है और अतं तः घाघरा नदी मेें मिल जाती है।
और सिक््ककिम राज््योों मेें फै ला हुआ है।
z महानंदा : उद्गम दार््जजिलिंग पहाड़़ियोों मेें है; गंगा नदी मेें बायीीं ओर से मिलने
z यह दनि ु या का सबसे बड़़ा और सबसे तेजी से बढ़ने वाला डेल््टटा बनाती है।
वाली अतिमं सहायक नदी है, जो पश्चिम बंगाल मेें इसमेें मिलती है।
z बाढ़, प्रवाह-मार््ग परिवर््तन और तल- कटाव के लिए प्रसिद्ध है। कारण– बड़़ी
गंगा की दायेें तट की सहायक नदियाँ
सहायक नदियाँ, बड़़ी मात्रा मेें अवसाद और इसके जलग्रहण क्षेत्र मेें भारी वर््षषा।
z यमुना
गग ं ा की सबसे पश्चिमी और सबसे लंबी सहायक नदी; प्रयाग ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदियाँ
(इलाहाबाद) मेें गंगा से मिलती है।
उद्गम स््थल : मसरू ी श्रेणी मेें बंदरपूछ ँ चोटियोों के पास यमुनोत्री
ग््ललेशियर।
सहायक नदियोों : दायाँ तट– टोोंस (सबसे बड़़ा), चब ं ल, सिधं , बेतवा
और के न; बायाँ तट– हिडं न, रिंद, सेेंगर और वरुणा।
टोोंस (सबसे बड़़ी सहायक नदी) की ऊपरी भाग मेें कुछ जादई ु स््थथान
उपस््थथित हैैं। एल््डर और ब््ललू पाइन के जगं ल प्रसिद्ध हर-की-दून जलग्रहण
क्षेत्र की ओर ले जाते हैैं। z बायेें तट की सहायक नदियाँ : बढ़ू ी दिहिगं , दिसांग, दिखौ, धनसिरी और
गोबिंद पशु विहार अभयारण््य टोोंस के ऊपरी भाग मेें स््थथित है।
कोपिली।
z दायेें तट की सहायक नदियाँ : लोहित, दिबांग, सब ु नसिरी (उत््पत्ति– तिब््बत,
यह भारतीय हाथी का सीमांत क्षेत्र है। यमुना के पश्चिम मेें , पश्चिमी
हिमालय या उसकी तलहटी के 900 किमी मेें कोई हाथी नहीीं मिलती है प्रकृति मेें पर्ू ्ववर्ती), जिया भराली, कामेेंग, मानस (सीमापार नदी), तोर््ससा, सक
ं ोश
z चंबल और तीस््तता। [यूपीएससी 2016]
उद्गम : मालवा पठार (मध््य प्रदेश) मेें महू के पास; यमन ु ा मेें मिलती है; तीस््तता : उद्गम– तीस््तता कांगसे ग््ललेशियर; सिक््ककिम और पश्चिम बंगाल के
इस पर गांधी सागर बाँध (कोटा) निर््ममित है। बीच सीमा बनाती है; रंगीत नदी मख्ु ्य सहायक नदी है जो सिक््ककिम से
निकलती है; बंगाल की खाड़़ी मेें गिरने से पहले यह ब्रह्मपत्रु मेें विलीन हो
चब ं ल अपनी अनूठी उत््खखात भूमि (बैडलैैंड) स््थलाकृति के लिए
जाती है। [यूपीएससी 2017]
प्रसिद्ध है, जिसे चंबल बीहड़ों के नाम से जाना जाता है।
अपवाह प्रणाल 67
z कृष््णणा
प्रायद्वीपीय अपवाह प्रणाली उद्गम : सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) मेें महाबले श्वर।
प्रायद्वीपीय अपवाह प्रणाली हिमालयी अपवाह प्रणाली से भी पुरानी है। सहायक नदियाँ : दायाँ तट- कोयना, पंचगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा,
z विशे षताएँ : चौड़़ी, बड़़े पै माने पर श्रेणीबद्ध उथली घाटियाँ, निश्चित मार््ग, तंगु भद्रा (हम््पपी नदी के पास स््थथित है); बायाँ तट– भीमा, डिंडी, मसु ी,
विसर््प की अनुपस््थथिति और जल का गैर-बारहमासी प्रवाह। मन्ु ्ननेरु नदी।
z पश्चिमी घाट बंगाल की खाड़़ी मेें अपना जल प्रहवाहित करने वाली अपवाह द्रोणी : महाराष्टट्र मेें 27%, कर््ननाटक मेें 44% और आंध्र
नदियोों और अरब सागर मेें मिलने वाली नदियोों के बीच जल विभाजक प्रदेश और तेलंगाना मेें 29%।
के रूप मेें कार््य करता है। कोलेरु झील : गोदावरी और कृष््णणा के डेल््टटा के बीच स््थथित है। इसे
सिंधु नदी प्रणाली जलविभाजक: एक जल निकासी बेसिन को दसू रे से अलग सीधे तौर पर कृष््णणा नदी से जल नहीीं मिलता है। [यूपीएससी 2023]
करने वाली सीमा रे खा को जलविभाजक के रूप मेें जाना जाता है।
z कावेरी
प्रायद्वीपीय अपवाह प्रणाली का विकास उद्गम स््थल : ब्रह्मगिरि पहाड़़ियाँ (कर््ननाटक)।
भ-ू वैज्ञानिक घटनाएँ जिन््होोंने प्रायद्वीपीय भारत की वर््तमान अपवाह प्रणालियोों अपवाह द्रोणी : के रल मेें 3%, कर््ननाटक मेें 41% और तमिलनाडु
को प्रभावित किया– मेें 56%।
z पश्चिमी पार्शश्व का धंसाव : इसने मल ू जल-विभाजक के दोनोों ओर नदियोों सहायक नदियाँ : बायाँ तट– हेमावती, शिमशा; दायाँ तट– काबिनी,
की सममित ढाँचा को बाधित कर दिया। भवानी, नोय््यल, अमरावती।
z हिमालयी प्रोत््थथान : इसके कारण प्रायद्वीपीय खड ं के उत्तरी भाग का अवतलन शिवसमुद्रम जलप्रपात (कर््ननाटक) भारत का दस ू रा सबसे बड़़ा जलप्रपात
हुआ, जिससे भ्रंश द्रोणियोों का विकास हुआ। नर््मदा और तापी नदियाँ इन भ्रंश है। तिरुचिरापल््लली कावेरी नदी के किनारे स््थथित है।
द्रोणियोों (भ्रंश घाटियोों) मेें बहती हैैं और मल
ू दरारोों को अपने मलबे से भर रही
पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ
हैैं। परिणामस््वरूप, इन नदियोों मेें जलोढ़ एवं डेल््टटाई निक्षेपोों का अभाव है।
ये नदियाँ अपने महु ाने पर ज््ववारनदमुख बनाती हैैं।
z इसी अवधि के दौरान प्रायद्वीपीय खंड का उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर््व
z नर््मदा
की ओर झुकाव, इसने संपर्ू ्ण अपवाह तंत्र को बंगाल की खाड़़ी की ओर
उद्गम स््थल : अमरकंटक पठार।
उन््ममुख कर दिया।
मार््ग : सतपुड़़ा (दक्षिण) और विंध््य पर््वतमाला (उत्तर) के बीच एक
प्रायद्वीपीय अपवाह प्रणालियोों की नदी तंत्र भ्रंश घाटी से होकर बहती है; भरूच के दक्षिण मेें अरब सागर से मिलती
पूर््व की ओर बहने वाली नदियाँ है। [UPSC 2013]
ये नदियाँ अपने महु ाने पर डेल््टटा बनाती हैैं। जबलपरु (मध््य प्रदेश) के पास धुआध ँ ार जलप्रपात; सरदार सरोवर
z पर् ू ्व की ओर बहने वाली छोटी नदियाँ हैैं– स््वर््णरेखा (रांची पठार से निकलती बाँध।
हैैं), ऋषिकुल््यया (उत््पत्ति– नयागढ़ पहाड़़ियाँ) वैतरणी (गढ़जात पहाड़़ियोों सहायक नदियाँ : बायाँ तट– तवा नदी; दायाँ तट– बरना नदी, कोलार
से निकलती हैैं), ब्राह्मणी (शख ं और दक्षिण कोयल नदियोों का संगम; इन नदी।
दोनोों नदियोों का उद्गम छोटा नागपरु पठार है), वंशधारा और नागावली नदी z तापी
(उत््पत्ति– पर्ू वी घाट-ओडिशा), सवु र््णरेखा नदी (उत््पत्ति– रांची के पास) उद्गम स््थल : बैतल ू (मध््य प्रदेश), सतपड़़ा
ु पर््वतमाला।
पेन््ननार, पलार और वैगई। [यपू ीएससी 2021] अपवाह द्रोणी : महाराष्टट्र मेें 79%, मध््य प्रदेश मेें 15% और गुजरात
z महानदी मेें 6%।
उद्गम स््थल : छत्तीसगढ़ का रायपरु जिला। z लूनी
अपवाह द्रोणी : मध््य प्रदेश और छत्तीसगढ़ मेें 53%; शेष 47% ओडिशा उद्गम : राजस््थथान मेें पुष््कर के पास दो शाखाओ ं मेें अर््थथात् सरस््वती
मेें। और साबरमती जो आपस मेें मिलती हैैं।
सहायक नदियाँ: बायाँ तट– श््ययोनाथ, हसदो, मांड; दायाँ तट– तेल, कच््छ के रण (गुजरात) से प्रवाहित होती है।
जोोंक, ओगं । लन ू ी की संपर्ू ्ण नदी प्रणाली अल््पकालिक (मौसमी प्रवाह) है।
z गोदावरी z साबरमती : अरावली पर््वतमाला से निकलती है और खभ ं ात की खाड़़ी
उद्गम स््थल : महाराष्टट्र का नासिक जिला। (अरब सागर) मेें गिरती है।
प्रायद्वीपीय पठार मेें सबसे बड़़ी नदी तंत्र; इसे दक्षिण गंगा भी कहा z माही नदी (मध््य प्रदेश) के विंध््य से निकलती है और राजस््थथान से
जाता है। प्रवाहित के बाद गुजरात मेें प्रवेश करती है और अरब सागर मेें मिल
अपवाह द्रोणी : महाराष्टट्र मेें 49%, मध््य प्रदेश और छत्तीसगढ़ मेें 20% जाती है।
और शेष आध्रं प्रदेश मेें। z पे रियार, पंबा, भरतपुझा
सहायक नदियाँ: बायाँ तट– पेनगंगा, इद् ं रावती, प्राणहिता (वेनगंगा और के रल की नदियाँ; भरतपुझा सबसे लंबी नदी है और पे रियार के रल
वर््धधा के संगम से निर््ममित); दायाँ तट– मजं रा, मनेर। [यूपीएससी 2015] की दूसरी सबसे बड़़ी नदी है; पंबा नदी वेम््बनाड झील मेें गिरती है।
68 अपवाह प्रणाल
z पश्चिम की ओर बहने वाली अन््य नदियाँ : शेत््रुुँजी, भद्रा और ढाढ़र/ z भारत की सबसे लंबी झील– वेम््बनाड झील, के रल
धाधर (गुजरात); वैतरणा नदी (त्र्यंबक पहाड़़ियाँ; नासिक, महाराष्टट्र); z भारत मेें सबसे बड़़ी कृत्रिम झील– गोविंद वल््लभ पंत सागर (रिहंद
मंडोवी और जुआरी (गोवा); काली नदी (कारवार खाड़़ी मेें गिरती है), बाँध), यूपी
बेदती और श्रावस््तती (कर््ननाटक)। मीठे पानी की झील : कोलेरू (आंध्र प्रदेश); नागार््जजुन सागर (आंध्र प्रदेश);
गे रसोप््पपा (जोग) जलप्रपात श्रावस््तती नदी पर है। हाफलोोंग (असम); दीपोर बील (असम); लोकटक (मणिपरु ); डल झील
विश्व की सतह का 71% हिस््ससा पानी से ढका हुआ है, लेकिन उसमेें से (जम््ममू एवं कश््ममीर); वल ु र झील (जम््ममू-कश््ममीर); सस््थमकोट्टा (के रल);
97% खारा पानी है। मीठे पानी के रूप मेें उपलब््ध 3% मेें से तीन-चौथाई भोजताल (म.प्र.); सलीम अली (महाराष्टट्र); शिवसागर (महाराष्टट्र); हरिके
बर््फ के रूप मेें है। (पंजाब); कांजली (पंजाब); त््ससोमगो (सिक््ककिम)
हिमालय और खारे पानी की झील : पुलिकट (आंध्र प्रदेश); अष्टमडु ी कायल (के रल);
प्रायद्वीपीय नदी के कुट्टनाड (के रल); वेम््बनाड (के रल); चिल््कका झील (ओडिशा)
बीच तुलना गोखुर झील : चंदबु ी (असम); काँवर (बिहार)
पक्ष/पहलू हिमालय नदी प्रायद्वीपीय नदी कृत्रिम झील : हुसैन सागर (तेलंगाना); गोबिंद सागर झील (हिमाचल प्रदेश)
z अपवाह तंत्र : अपवाह तंत्र शब््द किसी क्षेत्र की नदी प्रणाली का वर््णन
उत््पत्ति का स््थथान हिमनदोों से आच््छछादित प्रायद्वीपीय पठार और
हिमालय पर््वत मध््य उच््चभमि ू करता है।
अपवाह तंत्र का मैदानी इलाकोों मेें वृक्ष आरोपित, नवानुवर्ती z अपवाह द्रोणी : एक नदी प्रणाली द्वारा जल निकास वाले क्षेत्र को अपवाह
निश्चित रूप से विसर््पपित नालोों और रिलोों को अक््सर वाटरशेड कहा जाता है।
और मार््ग मेें परिवर््तन z Regime : एक वर््ष मेें नदी चैनल मेें पानी के प्रवाह का पैटर््न।
होता है z बारहमासी : एक धारा या नदी जो अपने नदी तल से एक वर््ष तक लगातार
जलग्रह - क्षेत्र बहुत बड़़े बेसिन अपेक्षाकृ त छोटा बेसिन
बहती रहती है उसे बारहमासी नदी के रूप मेें जाना जाता है। उनके नदी तल
नदी की आयु तरुण और युवावस््थथा, क्रमिक संस््तर वाली
मेें परू े वर््ष पानी रहता है।
सक्रिय कटाव और पुरानी नदियाँ लगभग
z गार््ज : एक घाटी, या खाई, अपक्षय और भग ू र््भभिक समय के पैमाने पर एक
घाटी के गहरा होने का अपने आधार तल तक
साक्षष्य प्रस््ततुत करता है पहुचँ चकु ी हैैं नदी की कटाव गतिविधि के परिणामस््वरूप उत््पन््न ढलानोों या चट्टानोों के
बीच एक गहरी दरार है। नदियोों मेें अतं र््ननिहित सतहोों को काटने की स््ववाभाविक
झील प्रवृत्ति होती है, अतं तः नीचे की ओर अवसाद हटा दिए जाने के कारण चट्टान
z भारत मेें मीठे पानी की सबसे बड़़ी झील - वुलर झील, जम््ममू और कश््ममीर की परतेें नष्ट हो जाती हैैं।
z पूर््ववर्ती नदी : वे नदियाँ जो हिमालय की उभार से पहले अस््ततित््व मेें थीीं,
z मुहाने की विशेषता वाली खारे पानी की सबसे बड़़ी झील, भारत मेें
सबसे बड़़ा लैगून– चिल््कका झील, उड़़ीसा पर्ू ्ववर्ती नदियोों के रूप मेें जानी जाती हैैं और पहाड़ों मेें घाटियाँ बनाकर
z भारत की सबसे ऊँ ची झील– चोलामू झील, सिक््ककिम अपना मार््ग दक्षिण की ओर काटती हैैं।
अपवाह प्रणाल 69
15 जलवायु
जलवायु से तात््पर््य एक लंबी अवधि के लिए, एक विस््ततृत क्षेत्र मेें मौसम की
स््थथिति और बदलावोों के कुल योग से है। भारत की जलवायु "मानसूनी" (जो भारत मेें ऋतुएँ
कि एक अनूठी मौसमी पैटर््न का लक्षण प्रदर््शशित करती है) है जो मख्ु ्य रूप से भारत मेें ऋतुओ ं को मौसम विज्ञानियोों द्वारा निम््नलिखित चार प्रकार से विभाजित
दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर््व एशिया मेें पाई जाती है। मौसम किसी भी विशिष्ट किया गया है:
समय मेें, किसी क्षेत्र के वायुमंडल की स््थथिति को दर््शशाता है। z शीत ऋतु का काल (मध््य नवंबर से फरवरी)
कोरिओलिस बल: यह पृथ््ववी के घर्ू ्णन के कारण उत््पन््न एक आभासी बल
z ग्रीष््म ऋतु का काल (मार््च से मई)
है । कोरिओलिस बल पवनोों को उत्तरी गोलार्दद्ध मेें दाई ं ओर तथा दक्षिणी
z दक्षिण-पश्चिम मानसन ू का काल (जनू से सितंबर)
गोलार्दद्ध मेें बाई ं ओर विक्षेपित कर देता है। इसे 'फे रे ल का नियम' भी कहा
जाता है। z लौटते हुए मानसन ू का काल (अक््टटूबर-नवबं र)।
भाग को उष््णकटिबंधीय तथा समशीतोष््ण क्षेत्ररों मेें और दक्षिणी भाग क्षोभमंडल प्रतिचक्रवात
पामीर नॉट
को उष््णकटिबंधीय क्षेत्र मेें वर्गीकृ त करती है।
तिब््बत
z ऊँ चाई: ऊँ चाई के साथ तापमान मेें गिरावट के कारण, ऊँचाई वाले क्षेत्र
उच््च दबाव क्षेत्र निम््न दबाव क्षेत्र
की रक्षा करता है। हिमालय मानसनू ी पवनोों को रोकने मेें भी मदद करता है।
एँ
हवा
ही
धीरे -धीरे गर््म और ठंडा होता है) के कारण भारतीय उपमहाद्वीप मेें विभिन््न
उत्त
मौसमोों मेें अलग-अलग वायदु ाब क्षेत्र बनते हैैं, जो मानसनू ी हवाओ ं की दिशा
दक्षिण
-पर्ू
जलवायु 71
z उत्तर-पश्चिम भारत और हिमालयी प्रभाव:
अंतः उष््णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) भमू ध््य रे खा पर स््थथित एक
तीसरी शाखा अरावली के समानांतर चलते हुए सौराष्टट्र प्रायद्वीप और कच््छ
निम््न वायुदाब क्षेत्र है
जहाँ व््ययापारिक पवनेें मिलती हैैं और ऊपर की ओर उठती हैैं। जल ु ाई मेें, से टकराती है, जिससे सीमित वर््षषा होती है।
ITCZ 20°N-25°N अक््षाांशोों (गंगा के मैदान के ऊपर) के आसपास स््थथित पज ं ाब और हरियाणा मेें, यह बंगाल की खाड़़ी की मानसनू शाखा के
होता है, जिसे कभी-कभी मानसून गर््त भी कहा जाता है , जिससे उत्तर साथ मिलती है, जिससे पश्चिमी हिमालय मेें वर््षषा होती है।
और उत्तर-पश्चिम भारत मेें तापीय निम््न दाब का विकास होता है। ITCZ बंगाल की खाड़ी शाखा
के स््थथानांतरण के कारण दक्षिणी गोलार्दद्ध की व््ययापारिक पवनेें कोरिओलिस z शरुु आत मेें यह म््ययाांमार तट और दक्षिण-पर्ू ्व बांग््ललादेश के कुछ हिस््सोों से
बल के कारण भमू ध््य रे खा को पार करती है और दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर््व टकराती है।
की ओर बहना शरू ु कर देती हैैं। ITCZ सर््ददियोों मेें दक्षिण की ओर बढ़ता z म््ययाांमार के तट के साथ अराकान पहाड़़ियाँ, इस शाखा के एक महत्तत्वपर्ू ्ण
है, इसलिए पवनोों का उत्कक्रमण हो जाता है और वे उत्तर-पूर््व से दक्षिण और हिस््ससे को भारतीय उपमहाद्वीप की ओर पुनर््ननिर्देशित कर देती है। मानसनू
दक्षिण-पश्चिम की ओर चलने लगती है, इसे उत्तर-पूर्वी मानसून कहा जाता दक्षिण और दक्षिण-पर्ू ्व से पश्चिम बंगाल और बांग््ललादेश मेें प्रवेश करता है।
है। z हिमालय और उत्तर-पश्चिम भारत मेें तापीय निम््न दाब से प्रभावित होकर, यह
z ITCZ का अपनी स््थथिति स््थथानांतरण (हिमालय के दक्षिण) उत्तर भारतीय मैदान
मानसनू शाखा दो प्रमुख धाराओ ं मेें विभाजित हो जाती है: एक धारा
पर पश्चिमी जेट स्ट्रीम की वापसी से सबं ंधित है। पश्चिम की ओर गंगा के मैदान के साथ-साथ पंजाब के मैदान तक प्रसारित होती
z निम््न दाब का क्षेत्र (प्रकोष्ठ) भूमध््य रे खा के पार दक्षिण-पूर्वी व््ययापारिक है; दसू रा उत्तर की ओर जाता है, ब्रह्मपुत्र घाटी की ओर प्रवाहित होती हुए,
पवनोों को आकर््षषित करता है । ये पवनेें भमू ध््य रे खा को 40°E और 60°E इसकी उप-शाखा मेघालय मेें गारो और खासी पहाड़़ियोों को लक्षित करती है।
देशांतर के बीच पार करती हैैं। मासिनराम (खासी पहाड़ी) मेें सर््ववाधिक औसत वार््षषिक वर््षषा होती है।
z पर् ू वी जेट स्ट्रीम 15°N अक््षाांश पर स््थथापित होती है। इसे मानसनू के अचानक z तमिलनाडु तट क्रमशः बंगाल की खाड़़ी शाखा और अरब सागर शाखा के
आने के लिए जिम््ममेदार माना जाता है।
समानांतर और वृष्टि-छाया प्रदेश मेें स््थथित है। यहाँ मानसनू निवर््तन के समय
z भारत मेें मानसन ू का प्रवेश: के रल, कर््ननाटक, गोवा और महाराष्टट्र जैसे तटीय मानसनू ी पवनोों की उत्तर-पर्ू वी शाखा से वर््षषा होती है।
क्षेत्ररों मेें आमतौर पर जनू के पहले सप्ताह मेें इसको देखा जाता है, जबकि
z मानसनू मेें विच््छछेद: यदि दक्षिण-पश्चिम मानसनू अवधि के दौरान एक या
आतं रिक क्षेत्ररों मेें जल
ु ाई के पहले सप्ताह तक इसको देखा जाता है। मानसनू
अधिक सप्ताह तक बारिश नहीीं होती है, तो इसे मानसनू विच््छछेद के रूप मेें
दो शाखाओ ं मेें भभू ाग पर पहुचँ ता है:
जाना जाता है। इसके निम््न कारण है:
उत्तर भारत मेें मानसन ू ट्रफ या ITCZ के साथ बारिश वाले तफानोों ू की
आवृत्ति मेें कमी।
जब आर्दद्र पवनेें पश्चिमी तट के समानांतर चलती हैैं।
हो जाती है, तो उच््च दाब की स््थथिति बनी रहती है, जो मानसनू ी पवनोों
अरब सागर शाखा को भारत की ओर बहने से रोकती है।
z पश्चिमी घाट और वष्टि ृ -छाया प्रभाव: z पूर्वी जेट स्ट्रीम और उष््णकटिबंधीय चक्रवात: पर्ू वी जेट स्ट्रीम भारत मेें
अरब सागर से आने वाली मानसन ू ी पवनेें पश्चिमी घाट की पवनाभिमख ु ी उष््णकटिबंधीय अवदाबोों का मार््गदर््शन करती है, जो मानसनू वर््षषा वितरण
ढाल पर चढ़ती हैैं, इस प्रक्रिया मेें ठंडी होती हैैं जिसके कारण पर््वतीय को महत्तत्वपर्ू ्ण रूप से प्रभावित करती है। इन अवदाबोों के मार््ग उच््च वर््षषा
वर््षषा होती हैैं। वाले क्षेत्र हैैं । इन अवदाबोों की आवृत्ति, दिशा और तीव्रता भारत के मानसनू
पवनाभिमुखी ढाल को पार करने के बाद, पवनेें, पवनविमुखी ढाल
वर््षषा पैटर््न को आकार देती है।
पर नीचे आती है और गर््म हो जाती है और नमी खो देती है जिसके z तिब््बती पठार की भूमिका
परिणामस््वरूप पश्चिमी घाट के अनुवात दिशा मेें न््ययूनतम वर््षषा होती है। तिब््बत का पठार मानसन ू परिसंचरण शरू ु करने मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भमिका
ू
z मध््य भारत प्रभाव: निभाता है। इसकी विशाल ऊँचाई और विरल वातावरण के कारण, यहाँ
एक अन््य शाखा नर््मदा और तापी नदी घाटियोों से होकर गुजरती पड़़ोसी क्षेत्ररों की तल
ु ना मेें अधिक सर््यया
ू तप प्राप्त होता है।
है, जिससे मध््य भारत के विशाल क्षेत्ररों मेें वर््षषा होती है। अतं तः, ये पवनेें इन क्षेत्ररों के गर््म होने से मध््य क्षोभमड ं ल मेें पवन का संचार होता है जो
गंगा के मैदानी इलाकोों तक पहुच ँ ती हैैं और बंगाल की खाड़़ी की दक्षिण की ओर बहती है जिससे उष््णकटिबंधीय पूर्वी जेट धारा मेें
मानसनू ी पवनोों मेें मिल जाती हैैं । विकसित होती है (तिब््बती पठार से हिदं महासागर मेें मैस््करीन हाई
इस शाखा से छोटा नागपरु पठार मेें कुछ वर््षषा होती है। तक बहती है)
72 जलवायु
zसोमाली जेट धारा: गर््ममियोों के दौरान, सोमाली जेट धारा भी कम ऊँचाई z इस वापसी के दौरान, आसमान साफ हो जाता है और तापमान बढ़ जाता
पर बनती है। इस जेट धारा द्वारा मानसनू ी पवनेें भारत की ओर प्रवाहित होती है। जबकि दिन का तापमान अधिक होता है, रातेें ठंडी और सख ु द होती हैैं।
हैैं। जब सोमाली धारा मजबतू होती है तो मानसनू बेहतर होता है। उच््च तापमान और आर्दद्रता से 'अक््टटूबर हीट' उत््पन््न होती है।
z जे ट धारा: तेज पवनोों की एक संकीर््ण पट्टी जो आमतौर पर दनि ु या भर मेें z चक्रवाती प्रभाव: इस मौसम मेें वर््षषा मुख््य रूप से अंडमान सागर के ऊपर
पश्चिम से पर्ू ्व की ओर चलती है। दो सबसे स््थथिर जेट धाराएँ, मध््य अक््षाांश उत््पन््न होने वाले चक्रवाती अवदाबोों के कारण होती है जो गोदावरी,
और उपोष््णकटिबंधीय जेट धाराएँ हैैं। कृ ष््णणा और कावेरी जैसी नदियोों के डेल््टटाओ ं को प्रभावित करते हैैं, येें चक्रवात
z अल नीनो: इस प्रणाली मेें पर्
अरब सागर मेें कम प्रभावी हैैं। कोरोमडं ल तट पर मख्ु ्य रूप से इन चक्रवाती
ू वी प्रशांत क्षेत्र मेें पेरू के तट पर गर््म
घटनाओ ं से वर््षषा होती है।
धाराओ ं की उपस््थथिति के साथ समद्ु री और वायमु डं लीय परिघटनाएँ शामिल
हैैं । अल-नीनो गर््म भमू ध््यरे खीय धारा का विस््ततार है जो अस््थथायी रूप से मानसूनी वर््षषा की विशेषताएँ
ठंडी पेरुवियन धारा या हम््बबोल््ट धारा द्वारा प्रतिस््थथापित हो जाती है। इससे z दक्षिण-पश्चिम मानसन ू से होने वाली वर््षषा मौसमी (जनू से सितंबर) होती है।
पेरू तट पर पानी का तापमान बढ़ जाता है। अल-नीनो वर्षषों के दौरान, z मानसन ू ी वर््षषा मुख््य रूप से उच््चचावच या स््थलाकृति द्वारा नियंत्रित होती
दक्षिण-पश्चिम मानसनू की शरुु आत मेें विलंब होता है जिससे शुष््क और है (पर््वतोों पर पवनाभिमख ु ी ढाल पर अधिक वर््षषा होती है)।
कमजोर मानसनू की स््थथिति पैदा हो जाती है। z समुद्र से दूरी बढ़ने पर वर््षषा कम हो जाती है।
z ला-नीना: ला-नीना घटनाओ ं के दौरान, उष््णकटिबंधीय प्रशांत महासागर मेें z वर््षषा के बीच-बीच मेें वर््षषा रहित अंतराल ('ब्रेक') भी आते रहते हैैं। वर््षषा मेें
व््ययापारिक पवनेें और भी मजबतू हो जाती हैैं, जिससे भमू ध््यरे खीय प्रशांत ये रुकावटेें चक्रवाती अवदाबोों (मुख््य रूप से बंगाल की खाड़़ी मेें निर््ममित)
क्षेत्र मेें गर््म सतह के पानी का सामान््य पूर््व-से-पश्चिम प्रवाह तेज हो जाता के मार्गगों से सबं ंधित हैैं जो वर््षषा के स््थथानिक वितरण को निर््धधारित करती हैैं।
है। व््ययापारिक पवनोों के मजबतू होने से मध््य और पूर्वी भूमध््यरेखीय पारं परिक भारतीय मौसम
प्रशांत क्षेत्र मेें समुद्री सतह का तापमान औसत से कम हो जाता है। भारतीय परंपरा मेें, एक वर््ष को विशिष्ट रूप से छह ऋतुओ ं मेें विभाजित किया
यह दक्षिण-पश्चिम मानसनू को तीव्र करने मेें मदद करता है। गया है, जिनमेें से प्रत््ययेक दो महीने तक चलती है।
z हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD): पूर्वी और पश्चिमी हिंद महासागर ऋतु हिंदू मास अंग्रेजी माह (ग्रेगोरी मास)
के समुद्र सतही तापमान (SST) मेें अंतर। अल नीनो वर््ष के बावजदू ग्रीष््म ज््ययेष्ठ से आषाढ़ मई से जून
सकारात््मक हिंद महासागर द्विध्रुव, मानसनू के लिए अच््छछा होता है। वर््षषा श्रावण से भाद्रपद जुलाई से सितम््बर
[यूपीएससी 2017] शरद अश्विन से कार््ततिक अक््टटूबर से नवम््बर
z वॉकर परिसचर ं ण पश्चिमी और प ू र्वी उष््णकटिब ं प्रशांत महासागर
ध ीय हेमन््त मार््गशीर््ष से पौष दिसंबर से 15 जनवरी (लगभग)
पर सतह के दाब और तापमान मेें अंतर का परिणाम है। शिशिर माघ से फाल््गगुन 16 जनवरी (लगभग) से फरवरी
वसन््त चैत्र से वैशाख मार््च से अप्रैल
z वॉकर सेल: पर् ू ्व से पश्चिम की ओर दाब प्रवणता पूर्वी प्रशांत यानी
पेरू-चिली के तट से पश्चिमी प्रशांत (ऑस्ट्रेलिया-न््ययू गिनी) तक वायु वर््षषा का वितरण
परिसचर ं ण बनाती है। वॉकर सेल दक्षिणी दोलन से जड़़ा ु है और इसकी
शक्ति दक्षिणी दोलन सच z भारत मेें औसत वार््षषिक वर््षषा लगभग 125 सेमी. होती है जिसमेें व््ययापक
ू कांक (SOI) के साथ बदलती रहती है।
स््थथानिक भिन््नता होती है।
z दक्षिणी दोलन शब््द का प्रयोग प्रशांत और हिंद महासागर के बीच पवन
z उच््च वर््षषा वर््षषा वाले क्षेत्र 200 सेमी. से अधिक: पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट
के दबाव, तापमान और समुद्र की सतह के तापमान मेें परिवर््तन का
और उत्तर-पर्ू ्व मेें उप-हिमालयी क्षेत्र ; खासी और जयंतिया पहाड़़ियोों के कुछ
वर््णन करने के लिए किया जाता है। दक्षिणी दोलन की तीव्रता दक्षिणी
हिस््सोों मेें वर््षषा > 1,000 सेमी.; ब्रह्मपत्रु घाटी और आसपास की पहाड़़ियाँ
दोलन सच ू कांक, या SOD [पोर््ट डार््वविन (उत्तरी ऑस्ट्रेलिया) और थोड़़ी कम, 200 सेमी. से कम हो जाती हैैं।
ताहिती (फ़्रेंच पोलिनेशिया) के बीच दाब अतं र] द्वारा मापी जाती है। भारत
z मध््यम वर््षषा वाले क्षेत्र 100-200 सेमी. के बीच वर््षषा: दक्षिण गजु रात, पर्ू वी
मेें वर््षषा की भविष््यवाणी दक्षिणी दोलन सचू कांक (SOI) के सकारात््मक
तमिलनाडु, ओडिशा, झारखडं , बिहार, पर्ू वी मध््य प्रदेश, उत्तरी गंगा मैदान,
और नकारात््मक मानोों का विश्लेषण करके की जा सकती है, जिसकी गणना उप-हिमालय और मणिपरु के साथ कछार घाटी।
ताहिती से पोर््ट डार््वविन दाब को घटाकर की जाती है।
z कम वर््षषा वाले क्षेत्र 50-100 सेमी. के बीच वर््षषा; पश्चिमी उत्तर प्रदेश,
मानसून विवर््तन का मौसम (संक्रमण का मौसम): दिल््लली, हरियाणा, पंजाब, जम््ममू और कश््ममीर, पर्ू वी राजस््थथान, गजु रात और
z अक््टटूबर और नवंबर के महीने मानसनू के पीछे हटने के चरण को मानसनू दक््कन का पठार।
विवर््तन के रूप मेें चिह्नित करते हैैं। z अपर््ययाप्त वर््षषा वाले क्षेत्र 50 सेमी. से कम वर््षषा; प्रायद्वीप के कुछ हिस््ससे,
z सितंबर के अतं तक, सर््यू के दक्षिण दिशा की ओर बढ़ने के कारण गंगा के विशेष रूप से आध्रं प्रदेश, कर््ननाटक, महाराष्टट्र, लद्दाख और अधिकांश पश्चिमी
मैदान से कम दाब वाली गर््त का दक्षिण की ओर स््थथानांतरित होने के कारण राजस््थथान।
दक्षिण-पश्चिम मानसनू कमजोर हो जाता है। z बर््फ बारी: यह घटना हिमालय क्षेत्र तक ही सीमित है।
जलवायु 73
गर््म समशीतोष््ण जलवायु (C): सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान
18°C और -3°C के बीच होता है।
ठंडी समशीतोष््ण जलवायु (D): सबसे गर््म महीने का औसत तापमान
10°C से ऊपर होता है, जबकि सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान
-3°C से नीचे होता है।
बर्फीली जलवायु (E): सबसे गर््म महीने का औसत तापमान 10°C
से नीचे रहता है।
कोपेन की योजना के अनुसार, भारत मेें आठ अलग-अलग जलवायु क्षेत्र
शामिल हैैं
वर््षषा की परिवर््तनशीलता
z विचरण गुणांक के मान वर््षषा के औसत मान से परिवर््तन दर््शशाते हैैं।
z <25% विचलन वाले क्षेत्र: पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, उत्तर-पर्ू वी प्रायद्वीपीय
भाग, पर्ू वी गंगा के मैदान, उत्तर-पर्ू वी भारत, उत्तराखडं , हिमाचल प्रदेश और
दक्षिण-पश्चिमी जम््ममू और कश््ममीर। इन क्षेत्ररों मेें वार््षषिक वर््षषा > 100 सेमी.
होती है
z >50% विचलन वाले क्षेत्र: पश्चिमी राजस््थथान, उत्तरी जम््ममू और कश््ममीर और चित्र: भारत- कोपेन की योजना के अनुसार जलवायु क्षेत्र
आतं रिक दक््कन पठार जैसे क्षेत्र। इन क्षेत्ररों मेें वार््षषिक वर््षषा <50 सेमी. होती है
z 25%-50% विचलन वाले क्षेत्र: भारत के शेष हिस््सोों मेें 50-100 सेमी. जलवायु का प्रकार क्षेत्र
के बीच वर््षषा होती है। छोटे शष्ु ्क मौसम के साथ भारत का पश्चिमी तट गोवा के दक्षिण मेें
एएमडब््ल्ययू मानसून
भारत के जलवायु प्रदे श जैसे- शष्ु ्क ग्रीष््म ऋतु के साथ तमिलनाडु का कोरोमंडल तट
मानसून
z कोपेन का वर्गीकरण: यह विशिष्ट अक्षर प्रतीकोों पर आधारित है जैसे अधिकांश प्रायद्वीपीय पठार, कर््क रे खा
अर्दद्ध-शुष््क मरुस््थल के लिए 'S' और मरुस््थल के लिए 'W'। आगे ओह - त्रिपिकल सवाना
के दक्षिण मेें
के उप-विभाजनोों के लिए अतिरिक्त छोटे अक्षरोों का प्रयोग किया गया है
Bwhw - गर््म रे गिस््ततान चरम पश्चिमी राजस््थथान
जैसे पर््ययाप्त वर््षषा के लिए F या शुष््क मानसनू के मौसम वाले,वर््षषा वनोों
सीडब््ल्ययूजी - शष्ु ्क सर्दी के साथ गंगा का मैदान, पूर्वी राजस््थथान, उत्तरी
के लिए ‘M'।
मानसून मध््य प्रदेश। अधिकांश उत्तर-पूर््व भारत
z उन््होोंने पाँच प्राथमिक जलवायु प्रकारोों को रे खांकित किया: डीएफसी - कम गर्मी के साथ ठंडी अरुणाचल प्रदेश
उष््णकटिबंधीय जलवायु (A): परू े वर््ष औसत मासिक तापमान लगातार आर्दद्र सर्दी
18 डिग्री सेल््ससियस से ऊपर रहता है। जम््ममू और कश््ममीर, हिमाचल प्रदेश और
शुष््क जलवायु (B): तापमान की तल
ई - ध्रुवीय प्रकार
ु ना मेें वर््षषा काफी कम होती है। इन््हेें उत्तराखंड
आगे अर्दद्ध-शष्ु ्क (S) या शष्ु ्क (W) के रूप मेें वर्गीकृ त किया गया है। तालिका: कोएपपेन की योजना के अनुसार भारत के जलवायु क्षेत्र
74 जलवायु
16 प्राकृतिक आपदाएँ
आपदा को "समदु ाय या समाज के कामकाज मेें एक गंभीर व््यवधान के रूप 2. मर्के ली स््कके ल: जहाँ भकू ं प आता है वहाँ उसकी तीव्रता (वस््ततुतः प्रभाव)
मेें परिभाषित किया जाता है जिससे व््ययापक स््तर पर भौतिक, आर््थथिक, को मापता है; स््कके ल 1 से 12 तक होता है।
सामाजिक व पर््ययावरणीय नुकसान होता है जो प्रभावित समाज की अपने z तीव्रता किसी विशेष भक ू ं प के कारण किसी स््थथान पर झटकोों द्वारा हानि या
संसाधनोों का उपयोग करने की क्षमता से अधिक होता है।" यह जोखिम, क्षति की सीमा (या क्षमता) को इगि ं त करती है। सबसे अधिक उपयोग किए
भेद्यता और अपर््ययाप्त क्षमताओ ं की कमी के कारण होता है, जो जोखिम जाने वाले तीव्रता पैमाने हैैं: सश
ं ोधित मर्के ली (एमएम) तीव्रता स््कके ल और
की संभावनाओ ं को कम कर सकते हैैं। मेदवेदेव-स््पपॉन हेनर-कार््ननिक (एमएसके ) तीव्रता स््कके ल।
z आपदा को एक ऐसी घटना के रूप मेें परिभाषित किया जा सकता है जो z सश ं ोधित मर्के ली स््कके ल: यह मल ू मर्के ली तीव्रता स््कके ल का एक उन््नत और
जीवन के लिए खतरा या सपं त्ति और पर््ययावरण को नक ु सान पहुचँ ाती है या अधिक विस््ततृत संस््करण है जो एक विशिष्ट स््थथान पर भक ू ं प के प्रभावोों का
जिससे नक ु सान पहुचँ ने की संभावना होती है। बेहतर विवरण प्रदान करता है।
z भे द्यता को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है “किसी समद ु ाय, z भारतीय भक ू ं पीय कोड (आईएस:1893-1984) मेें पाँच भक ू ं पीय क्षेत्र I, II,
सरं चना, सेवाओ ं या भौगोलिक क्षेत्र को उनकी प्रकृति, निर््ममाण और खतरनाक III, IV और V उन क्षेत्ररों से मेल खाते हैैं जिनमेें V या उससे कम, VI, VII,
क्षेत्ररों या आपदा-प्रवण क्षेत्ररों से निकटता के कारण किसी विशेष खतरे के प्रभाव VIII और IX या अधिक MMI पैमाने पर झटकोों की तीव्रता की शक्ति है।
से किस हद तक क्षतिग्रस््त या बाधित होने की सभं ावना है।” भेद्यता को निम््न भारत मेें भूकंपोों का वितरण प्रतिरूप
प्रकार से वर्गीकृ त किया जा सकता है: z भक ू ं पीय क्षेत्र को निम््नलिखित पाँच भक ू ं प क्षेत्ररों मेें विभाजित किया गया
1. भौतिक भेद्यता मेें यह धारणा शामिल है कि प्राकृतिक खतरोों से किसे है: अति अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र; अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र; मध््यम क्षति
और क््यया नुकसान हो सकता है या क््यया नष्ट हो सकता है? यह लोगोों जोखिम क्षेत्र; कम क्षति जोखिम क्षेत्र; अति निम््न क्षति जोखिम क्षेत्र।
की शारीरिक स््थथिति और जोखिम वाले तत्तत्ववों, जैसे भवन, बनि
ु यादी ढाँचे z अति अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र: उत्तर-पर्ू ्व राज््य, बिहार मेें भारत-नेपाल सीमा
आदि पर आधारित है। के साथ दरभगं ा और अररिया के उत्तर के क्षेत्र, उत्तराखडं , पश्चिमी हिमाचल
2. सामाजिक-आर््थथिक भेद्यता उस अवस््थथा को संदर््भभित करती है जिस हद प्रदेश (धर््मशाला के आसपास) और हिमालय क्षेत्र मेें कश््ममीर घाटी और कच््छ
तक व््यक्ति और समदु ाय अपनी सामाजिक और आर््थथिक स््थथिति के कारण (गजु रात)।
आपदाओ ं से नक ु सान के प्रति संवेदनशील होते हैैं। z अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र: जम््ममू और कश््ममीर के कुछ हिस््ससे, लद्दाख,
z जोखिम किसी विशिष्ट समयावधि मेें किसी दिए गए क्षेत्र मेें होने वाली हिमाचल प्रदेश, पंजाब के उत्तरी हिस््ससे, हरियाणा के पर्ू वी हिस््ससे, दिल््लली,
खतरनाक घटना के कारण होने वाले अपेक्षित नक ु सान की एक माप है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार।
z देश के शेष हिस््ससे मध््यम से बहुत कम क्षति जोखिम क्षेत्र मेें आते हैैं ।
प्राकृतिक आपदाओं का वर्गीकरण भक ू ं प की दृष्टि से दक््कन के पठार के अधिकांश क्षेत्र सरु क्षित माने जाते हैैं।
भूकंप सुनामी
भक
ू ं प का तात््पर््य भपू र््पटी मेें आकस््ममिक कंपन से है। सुनामी, महासागरीय धरातल पर जल के अचानक विस््थथापन के कारण पर बड़़ी
भूकंप के कारण लहरोों की एक शृंखला को संदर््भभित करती है। इन््हेें उथली जल तरंगेें भी कहा
z प््ललेट विवर््तनिकी के कारण भूकंप जाता है।
z अन््य कारणोों से भूकंप: ज््ववालामख ु ी विस््फफोट, चट्टानोों का गिरना, भस्ू ्खलन, सुनामी के कारण:
धसाव- विशेष रूप से खनन क्षेत्ररों मेें, बाँधोों और जलाशयोों का अवरोधन आदि। सुनामी का कारण बनने वाली भवू ैज्ञानिक हलचलेें तीन प्रमुख तरीकोों से
भूकंप मापन उत््पन््न होती हैैं:
भूकंप का मापन दो अलग-अलग पैमानोों के उपयोग से किया जाता है: 1. समद्रु तल पर भ्रंश हलचलेें, भूकंप के साथ सनु ामी का कारण बनती हैैं।
1. रिक््टर स््कके ल: भक
ू ं प की तीव्रता (भूकंप से निकलने वाली शक्ति/प्रत््ययास््थ 2. भूस््खलन, जो या तो पानी के अदं र होता है या समद्रु के ऊपर उत््पन््न होता है।
ऊर््जजा) को मापता है। यह एक लघगु णकीय पैमाना है - परिमाण मेें 1 यनिट ू की 3. तट के पास या पानी के नीचे ज््ववालामुखीय गतिविधि। जैसे: इडं ोनेशिया मेें
वृद्धि भकूं पीय झटकोों के आयाम मेें 10 ग न
ु ा वृद्धि को दर््शशाती है
। इसे 0 से 10 हुए क्राकाटोआ विस््फफोट (वर््ष 1883 मेें) के कारण जावा और समात्राु मेें
तक संख््ययात््मक रूप से व््यक्त किया जाता है। सनु ामी आई थी।
सुनामी की सामान््य विशेषताएँ सूखा
z लहरोों की गति पानी की गहराई पर निर््भर करती है। लहरेें, गहरे समद्रु की सूखे के प्रकार
तल ु ना मेें उथले पानी मेें अधिक पाई जाती हैैं क््योोंकि उथले पानी मेें तरंग- मौसम-विज्ञान सबं ंधी सख
z ू ा: अपर््ययाप्त वर््षषा के कारण, जो समय और स््थथान
दैर््ध््य कम हो जाता है और आवर््तकाल अपरिवर््ततित रहता है, जिससे लहर की
के साथ इसके खराब वितरण के कारण होता है।
ऊँचाई बढ़ जाती है।
z जल-विज्ञान सबं ंधी सख ू ा: विभिन््न भंडारोों और जलाशयोों जैसे जलभृतोों,
z सन ु ामी का प्रभाव समद्रु के ऊपर कम और तट के पास अधिक होता है।
झीलोों, जलाशयोों आदि मेें पानी की उपलब््धता, वर््षषा द्वारा भरपाई की जा सकने
z सन ु ामी, प्रायः प्रशांत महासागर की रिंग ऑफ फायर पर देखी जाती है, वाली मात्रा से कम हो जाती है ।
खासकर अलास््कका, जापान, फिलीपीींस और दक्षिण-पर्ू ्व एशिया के अन््य द्वीपोों,
इडं ोनेशिया, मलेशिया, म््ययाांमार, श्रीलंका और भारत के तट पर। z कृषि सबं ंधी सख ू ा: इसे मिट्टी की नमी वाले सख ू े के रूप मेें भी जाना
जाता है, जिसमेें मिट्टी की नमी कम होती है जो फसलोों को बढ़ने के लिए
वर््ष 2004 की सुनामी आपदा के बाद भारत ने स््ववेच््छछा से अंतरराष्ट्रीय सुनामी
आवश््यक होती है। इसके अलावा, यदि किसी क्षेत्र मेें कुल फसल क्षेत्र का
चेतावनी प्रणाली मेें शामिल होने की पेशकश की थी।
30 प्रतिशत से अधिक सिचं ाई के अधीन है, तो उस क्षेत्र को सख ू ा-प्रवण श्रेणी
उष््णकटिबंधीय चक्रवात से बाहर रखा जाता है।
उष््णकटिबंधीय चक्रवात तीव्र निम््न दाब वाले क्षेत्र होते हैैं जो 30°N और z पारिस््थथितिक सख ू ा: जब एक प्राकृतिक पारिस््थथितिकी तंत्र की
30° S अक््षाांशोों के बीच स््थथित क्षेत्र मेें विकसित होते हैैं जिसके चारोों ओर तीव्र उत््पपादकता पानी की कमी के कारण नकारात््मक रूप से प्रभावित होती है
गति से पवनेें प्रवाहित होती हैैं। और पारिस््थथितिक संकट के परिणामस््वरूप, पारिस््थथितिकी तंत्र मेें क्षति होती है।
z यह सघ ं नन की गुप्त ऊष््ममा के निकलने से सक्रिय होता है जिसे हवा भारत मेें सूखा क्षेत्र
महासागरोों और समद्ररों
ु के ऊपर चलने के बाद एकत्रित करती है।
सख
ू े की गंभीरता के आधार पर भारत को निम््नलिखित क्षेत्ररों मेें विभाजित किया
उष््णकटिबंधीय चक्रवात के लिए स््थथिति जा सकता है:
z गर््म समुद्र की सतह का तापमान 27 डिग्री सेल््ससियस से ऊपर होना चाहिए। z अत््यधिक सख ू ा प्रभावित क्षेत्र: राजस््थथान के अधिकांश भाग, विशेष रूप
z उष््ण और आर्दद्र वायु की अधिक और निरंतर आपर््तति ू , जिसके कारण बड़ी से अरावली पहाड़़ियोों के पश्चिम के क्षेत्र, यानी गजु रात के मरुस््थलीय और
मात्रा मेें गप्तु ऊष््ममा निर््ममुक्त होती है। कच््छ क्षेत्र।
z तीव्र कोरिओलिस बल जो केें द्र मेें निम््न दबाव को भरने से रोकता है (भम ू ध््य z अधिक सख ू ा प्रभावित क्षेत्र: पूर्वी राजस््थथान के भाग, मध््य प्रदेश के
रे खा के पास कोरिओलिस बल की अनपु स््थथिति, 0°-5° अक््षाांश के बीच अधिकांश भाग, महाराष्टट्र के पूर्वी भाग, आंध्र प्रदेश और कर््ननाटक पठार
उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों को बनने से रोकती है)। के आतं रिक भाग, आतं रिक तमिलनाडु के उत्तरी भाग और झारखंड के
z क्षोभमण््डल मेें अस््थथिर स््थथितियाँ जिससे स््थथानीय स््तर पर निम््न दाब क्षेत्र दक्षिणी भाग और आतं रिक ओडिशा इस श्रेणी मेें शामिल हैैं।
विकसित हो जाते है जिसके आस-पास चक्रवात विकसित होता है। z मध््यम सख ू ा प्रभावित क्षेत्र: राजस््थथान के उत्तरी भाग , हरियाणा, उत्तर
मजबूत ऊर््ध्ववाधर पवन पच््चर (wind wedge) का अभाव, जो गप्तु ऊष््ममा के प्रदेश के दक्षिणी जिले, कोोंकण को छोड़कर गुजरात, महाराष्टट्र के शेष भाग,
ऊर््ध्ववाधर परिवहन को बाधित करता है। झारखंड और तमिलनाडु के कोयंबटूर पठार और आतं रिक कर््ननाटक।
भारत मेें उष््णकटिबंधीय चक्रवातोों का सामयिक-स््थथानिक
वितरण भूस््खलन
z अपने प्रायद्वीपीय आकार के कारण, भारत मेें उष््णकटिबंधीय चक्रवात बंगाल किसी ढलान से चट्टान, पत््थर, मिट्टी या मलबे के अचानक खिसकने
की खाड़़ी (अधिकांश चक्रवात) और अरब सागर मेें उत््पन््न होते हैैं। को भस्ू ्खलन कहा जाता है। भस्ू ्खलन मुख््यतः पहाड़़ी क्षेत्ररों मेें होते हैैं जहाँ
z अधिकांश चक्रवात मानसनू के मौसम के दौरान 10°-15° उत्तरी अक््षाांशोों मिट्टी, चट्टान, भौगोलिक स््थथिति और ढलान जैसी अनुकूल परिस््थथितियाँ उपस््थथित
के बीच उत््पन््न होते हैैं। हालाँकि, बंगाल की खाड़़ी मेें, चक्रवात ज््ययादातर होती हैैं।
अक््टटूबर और नवंबर के महीनोों के दौरान विकसित होते हैैं। भूस््खलन सुभेद्यता क्षेत्र
बाढ़ z अत््यधिक सभ ु ेद्यता क्षेत्र:
हिमालय तथा अंडमान और निकोबार मेें अत््यधिक अस््थथिर, अपेक्षाकृ त
भारत मेें बाढ़ का वितरण प्रतिरूप
यवा
ु पर््वतीय क्षेत्र।
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने भारत मेें 40 मिलियन हेक््टटेयर भमि ू की पहचान बाढ़-
पश्चिमी घाट और नीलगिरि, उत्तर-पूर्वी क्षेत्ररों मेें तीव्र ढलान वाले उच््च
प्रवण क्षेत्र के रूप मेें की है। सबसे ज््ययादा बाढ़ प्रभावित राज््य असम, पश्चिम
वर््षषा वाले क्षेत्र।
बंगाल और बिहार हैैं।
ऐसे क्षेत्र जहाँ भूकंप के कारण बार-बार भूसच ं लन होता है।
z पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी राज््योों की अधिकांश नदियाँ भी कभी-कभी
बाढ़ लाती हैैं। गहन मानवीय गतिविधियोों के क्षेत्र जैसे सड़कोों, बाँधोों आदि का निर््ममाण।
z कभी-कभी, तमिलनाडु मेें नवंबर-जनवरी के दौरान लौटते मानसन ू के कारण z अधिक सभ ु ेद्यता क्षेत्र: असम के मैदानी इलाकोों को छोड़कर सभी हिमालयी
बाढ़ आती है। राज््य और उत्तर-पर्ू वी क्षेत्ररों के राज््य, उच््च संवेदनशील क्षेत्ररों मेें शामिल हैैं।
76 प्राकृतिक आपदा
z मध््यम और कम सभ ु ेद्यता क्षेत्र: z अन््य क्षेत्र: भारत के शेष हिस््ससे, विशेष रूप से राजस््थथान, हरियाणा, उत्तर
ऐसे क्षेत्र जहाँ कम वर््षषा होती है जैसे लद्दाख और स््पपीति (हिमाचल प्रदेश) प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल (जिला दार््जजिलिंग को छोड़कर), असम (जिला
के ट््राांस-हिमालयी क्षेत्र। कार्बी आगं लोोंग को छोड़कर) और दक्षिणी राज््योों के तटीय क्षेत्र भस्ू ्खलन की
दृष्टि से सरु क्षित हैैं।
अरावली मेें लहरदार ले किन स््थथिर उच््चचावच और कम वर््षषा वाले
क्षेत्र। शब््दकोश
पश्चिमी और पूर्वी घाट मेें वृष्टि छाया क्षेत्र। z मौसम सबं ंधी आपदा: वायमु डं ल मेें पृथ््ववी द्वारा उत््पन््न मौसम के कारण
दक््कन के पठार मेें भी कभी-कभी भस् ू ्खलन होता है। होने वाली आपदा।
खनन और भक ू ं प के कारण भस्ू ्खलन की घटनाएँ झारखडं , ओडिशा, z भूवैज्ञानिक आपदा: किसी भवू ैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण होने वाली
छत्तीसगढ़, मध््य प्रदेश, महाराष्टट्र, आध्रं प्रदेश, कर््ननाटक, तमिलनाडु, गोवा प्राकृतिक आपदाओ ं को भवू ैज्ञानिक आपदा कहा जाता है। जैसे: भक ू ं प,
और के रल जैसे राज््योों मेें सामान््य हैैं। सनु ामी, ज््ववालामख
ु ी विस््फफोट और भस्
ू ्खलन।
प्राकृतिक आपदा 77
17 मृदा
मृदा शैल, मलबा और जैव पदार्थथों का समिश्रण होता है जो पृथ््ववी की सतह पर z जैविक गतिविधि : सक्रिय कारक; वनस््पति आवरण और मल ू पदार्थथों सक्षू ष्म-
विकसित होता है। जीव पर कार््य करते हैैं; जीवाणु सक्रियता आदि।
बजरी : 2 मिमी व््ययास से बड़़े कण। z समय : निष्क्रिय कारक; परिपक््व मृदा, मृदा बनाने की प्रक्रियाओ ं के गहन
मोटे रे त : 2 मिमी से कम और 0.2 मिमी से अधिक व््ययास वाले कण। कार््य का परिणाम है।
महीन रे त : 0.2 मिमी और 0.02 मिमी व््ययास के बीच के कण।
शिल््ट : 0.02 मिमी और 0.002 मिमी व््ययास के बीच के कण। मृदा का वर्गीकरण
मृत्तिका : 0.002 मिमी व््ययास से कम के कण।
ऐतिहासिक रूप से, मृदा को शरूु मेें के वल उपजाऊ (उर््वर) या बंजर (ऊसर)
मृदा की परतों की व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका (soil profile) के रूप में
के रूप मेें वर्गीकृत किया गया था।
जाना जाता है। मृदा परिच्छेदिका के विभिन्न परतों को संस्तर कहा जाता है।
जलोढ़ मृदा
z सस्ं ्तर O : सतही ह्यूमस और आशिक ं रूप से विघटित जैव पदार्थथों।
क्षेत्र : पंजाब, हरियाणा, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और
z सस्ं ्तर A : सबसे ऊपरी क्षेत्र जहाँ जैव पदार्थथों,खनिज पदार्थथों का संयोजन राजस््थथान के कुछ हिस््सोों मेें अंतर्देशीय जलोढ़, गंगा-ब्रह्मपुत्र, महानदी,
होता हैैं; इसमेें ह्यूमस, जीवित जीव और अकार््बनिक खनिज शामिल हैैं। गोदावरी, कृष््णणा और कावेरी के डेल््टटा मेें डेल््टटाई जलोढ़, प्रायद्वीपीय तटीय
z सस् ं ्तर E : निक्षालित संस््तर, निक्षालन का क्षेत्र। पट्टियोों के साथ तटीय जलोढ़।
z सस् ं ्तर B : लौह, एल््ययूमीनियम और ह्यूमिक यौगिक निक्षेप होते हैैं और मृदा विशेषताएँ
A और E संस््तर से नीचे की ओर निक्षालित हो जाती है; विनिक्षेपण क्षेत्र z ऊपरी और मध््य गंगा के मैदानोों मेें, दो अलग-अलग प्रकार, खादर (नवीन
(संचय); ‘संस््तर A’ और ‘संस््तर C’ के बीच संक्रमण क्षेत्र। जलोढ़) और बांगर (पुराना जलोढ़) पाए जाते हैैं। दोनोों प्रकार मेें कै ल््कके रियस
z सस् ं ्तर C : ढीली मल ू पदार््थ से बना है। यह परत मृदा निर््ममाण प्रक्रिया ठोस पदार््थ होते हैैं जिन््हेें ‘कंकड़’ के नाम से जाना जाता है।
का पहला चरण है। खादर प्रतिवर््ष बाढ़ निक्षेपोों से समृद्ध होती है।
भारतीय मृदा सर्वेक्षण की स््थथापना 1956 मेें हुई थी। बांगर बाढ़ के मैदानोों से दरू स््थथित होती है।
मृदा निर््ममाणकारी कारक z निचले और मध््य गंगा के मैदान और ब्रह्मपत्रु घाटी मेें अधिक दोमट और
चिकनी मृदा मिलती है; पश्चिम से पूर््व की ओर रे त की मात्रा कम हो जाती है।
z मलू पदार््थ मृदा के निर््ममाण मेें एक निष्क्रिय कारक है, जिसमेें यथास््थथान z रंग : जमाव की गहराई, सामग्री की बनावट और परिपक््वता समय के आधार
अपक्षयित चट्टानी मलबा (अवशिष्ट मृदा) या परिवहनित निक्षेप (परिवहित
पर हल््कके भरू े से राख भरू े तक; उनकी उर््वरता के कारण व््ययापक स््तर पर खेती
मृदा) शामिल है।
की जाती है।
z स््थलाकृति, एक अन््य निष्क्रिय कारक, सर््यू के प्रकाश के संपर््क और
z खनिज सरच ं ना : आम तौर पर पोटाश और चूने मेें समृद्ध लेकिन नाइट्रोजन,
अपवाह के माध््यम से मृदा के निर््ममाण को प्रभावित करता है। हल््ककी ढलानोों
ह्यूमस और फास््फफोरस की कमी होती है।
पर मृदा का निर््ममाण काफी अनक ु ू ल होता है।
z जलवायु एक महत्तत्वपर्ू ्ण सक्रिय कारक है– काली मृदा
वर््षषा मृदा को रासायनिक और जैविक गतिविधियोों के लिए महत्तत्वपर् ू ्ण क्षेत्र : लगभग 15% क्षेत्र मेें ; मख्ु ्य रूप से दक््कन पठार मेें पाई जाती है
नमी प्रदान करती है; जिसमेें महाराष्टट्र, मध््य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ
उच््च तापमान के साथ शुष््क जलवायु के कारण वाष््पपीकरण, वर््षषा
हिस््ससे शामिल हैैं, गोदावरी और कृष््णणा नदियोों की ऊपरी क्षेत्र और उत्तर-
से अधिक हो जाता है, जिससे नमक जमा हो जाता है जिसे हार््डपैन कहा पश्चिमी दक््कन पठार मेें काफी गहराई के साथ पाई जाती है।
जाता है; उच््च तापमान मेें रासायनिक गतिविधि बढ़ जाती है, ठंडे तापमान विशेषताएँ
मेें कम हो जाती है (कार्बोनेशन के अपवाद के साथ) और जमाव की z चिकनी, गहरी और अपारगम््य प्रकृति; ज््ववालामख
ु ी विदर के चट्टानोों के
स््थथिति मेें रुक जाती है; उच््च तापमान वाली उष््णकटिबंधीय मृदा गहरी अपक्षय के कारण गठित; इसे ‘रेगुर मृदा’ या ‘काली कपासी मृदा’ भी
प्रोफाइल दिखाती है। कहा जाता है। [यूपीएससी 2021]
z गीला होने पर फूल जाता है और चिपचिपा हो जाता है; और सख ू ने पर विशेषताएँ
सिकुड़ती है (जिससे बड़ी बड़ी दरारेें पड़ जाती हैैं), ‘स््वयं जुताई’; धीमी z निचले स््तर मेें ‘कंकड़’ परतेें पानी को अदं र जाने से रोकती हैैं जिसके कारण
गति से नमी धारण और हानि, अच््छछी जल धारण क्षमता। कै ल््शशियम की मात्रा बढ़ती है, लेकिन सिंचाई करने पर मृदा की नमी बनाए
z रंग : गहरा काला से भूरा। रखना सनिश् ु चित होता है।
z खनिज सरच ं ना : चूना, लोहा, मैग््ननीशिया और एल््ययूमिना से भरपूर, z बलईु सरच ं ना और लवणीय प्रकृति; ह्यूमस और कार््बनिक पदार््थ की कम
पोटाश की अच््छछी मात्रा के साथ; फास््फफोरस, नाइट्रोजन और कार््बनिक मात्रा के कारण उपजाऊ क्षमता कम होती है।
पदार्थथों की कमी। z रंग : लाल से पीला।
z खनिज सरच ं ना: नमी, ह्यूमस और कार््बनिक पदार््थ का अभाव; अपर््ययाप्त
लाल और पीली मृदा
नाइट्रोजन और फॉस््फफेट की सामान््य उपस््थथिति।
क्षेत्र : लाल मृदा कम वर््षषा वाले दक््कन पठार के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्ररों
मेें रवेदार आग््ननेय चट्टानोों पर विकसित होती है और पश्चिमी घाट के गिरिपाद लवणीय मृदा
क्षेत्र मेें लाल दोमट मृदा के रूप मेें फै ली हुई है। ओडिशा, छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्र : शुष््क और अर््ध-शुष््क क्षेत्र, और जल भराव और दलदली क्षेत्र। पश्चिमी
हिस््सोों और मध््य गंगा के मै दान के दक्षिणी क्षेत्ररों मेें भी मौजूद है। गुजरात, पूर्वी तट के डेल््टटा और पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्ररों मेें अधिक
पाई जाती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून कच््छ के रण मेें नमक के कण को परत
विशेषताएँ
के रूप मेें जमा करता है। डेल््टटा मेें समद्ु री जल के प्रवेश के परिणामस््वरूप
z शष्ु ्क ऊपरी क्षेत्ररों मेें पाई जाने वाली मोटे कणोों वाली मृदा मे सामान््यतः लवणीय मृदा का निर््ममाण होता है। हरित क््राांति के क्षेत्ररों मेें के शिका-कर््षण
उर््वरता की कमी होती है, बारीक कणोों वाली लाल और पीली मृदा आमतौर क्रिया के कारण उपजाऊ जलोढ़ मृदा लवणीय होती जा रही है। शष्ु ्क जलवायु
पर उपजाऊ होती है; मृदा अच््छछी तरह से सख ू ी होती है। परिस््थथितियोों मेें अत््यधिक सिंचाई के शिका-कर््षण क्रिया को बढ़़ावा देती है
z रंग : क्रिस््टलीय और रूपांतरित चट्टानोों मेें लोहे के व््ययापकता के कारण लाल जिससे ऊपरी परत मेें नमक जमा हो जाता है।
रंग; हाइड्रेटेड रूप मेें पीला। विशेषताएँ
z खनिज सरच ं ना : आमतौर पर नाइट्रोजन, फास््फफोरस और ह्यूमस की कमी z इसको ऊसर मृदा के नाम से भी जाना जाता है; संरचना रे तीली से लेकर दोमट
होती है। तक होती है; जिप््सम को मृदा की लवणता के विरुद्ध उपचारात््मक उपाय के
रूप मेें प्रयोग किया जाता है।
लैटेराइट मृदा
z खनिज सरच ं ना : नाइट्रोजन और कै ल््शशियम की कमी; इसमेें सोडियम,
क्षेत्र : प्रायद्वीपीय पठार के ऊँचे क्षेत्र, विशेष रूप से कर््ननाटक, के रल, तमिलनाडु,
पोटे शियम और मैग््ननीशियम की उच््च मात्रा मौजदू होती है।
मध््य प्रदेश और ओडिशा, रांची और असम के पहाड़़ी क्षेत्ररों मेें पाए जाते हैैं।
विशेषताएँ [यूपीएससी 2013] पीट मृदा
z उच््च तापमान और उच््च वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें विकसित, जिसके परिणामस््वरूप क्षेत्र : अच््छछी वनस््पति वृद्धि के साथ भारी वर््षषा और उच््च आर्दद्रता वाले
तीव्र निक्षालन होता है; चूना और सिलिका निक्षालित हो जाते हैैं, और क्षेत्ररों मेें प्रमख
ु रूप से पाया जाता है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तमिलनाडु
आयरन ऑक््ससाइड और एल््ययूमीनियम यौगिकोों से समृद्ध मृदा बची रह के तटीय हिस््सोों के साथ-साथ उत्तरी बिहार और दक्षिणी उत्तराखंड मेें व््ययापक
रूप से फै ला हुआ है।
जाती है।
विशेषताएँ
z ह्यूमस की कमी होती है (क््योोंकि बैक््टटीरिया की गतिविधि उच््च तापमान के
z भारी, काले रंग का और कई स््थथानोों पर क्षारीय गुण प्रदर््शशित करती है।
कारण जो मेें अच््छछी तरह पनपती है); अत््यधिक अम््ललीय और कम जल
z ह्यूमस और कार््बनिक सामग्री के साथ बड़़ी मात्रा मेें मृत कार््बनिक पदार््थ।
प्रतिधारक।
कार््बनिक पदार््थ 40-50 प्रतिशत तक पाया जा सकता है।
z खेती के लिए अनपु यक्त ु , उर््वरता बढ़़ाने के लिए खाद और उर््वरकोों की
आवश््यकता होती है। वन मृदा
z ईटं बनाने मेें व््ययापक रूप से उपयोग किया जाता है; लाल लैटेराइट मृदा क्षेत्र : पर््ययाप्त वर््षषा वाले वन क्षेत्र; हिमालय क्षेत्र, पश्चिमी और पूर्वी घाटोों के
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और के रल के क्षेत्ररों मेें काजू जैसी वक्ष ृ फसलोों साथ-साथ प्रायद्वीपीय पठार के कुछ हिस््सोों मेें पाया जाता है।
के लिए अनुकूल है। विशेषताएँ
खनिज सरच z घाटी के किनारोों पर दोमट और गाद-युक्त और ऊपरी ढलानोों पर मोटे
z ं ना : इसमेें कार््बनिक पदार््थ, नाइट्रोजन, फॉस््फफेट और
कणोों वाली होती हैैं।
कै ल््शशियम की कमी होती है; आयरन ऑक््ससाइड और पोटाश प्रचुर
मात्रा मेें होता है। z पर््वतीय वातावरण के आधार पर संरचना और बनावट भिन््न-भिन््न होती है;
विशेष रूप से हिमालय के बर््फ से ढके क्षेत्ररों मेें, ये मृदा अनाच््छछादन से
शुष््क मृदा गजु रती है, कम ह्यूमस पदार््थ के साथ अम््ललीय हो जाती है। निचली
क्षेत्र : मख्ु ्यतः पश्चिमी राजस््थथान मेें पाया जाता है। घाटियोों की मृदा उपजाऊ है।
मृदा 79
z नाली (रिल) अपरदन : यह तब होता है जब परत का प्रवाह भमि ू की सतह
पर केें द्रित होने लगता है; भदृू श््य पर पट्टी या खरु चते हुई दिखाई देती है।
z अवनालिका अपरदन : अवनालिका अपरदन, नाली (रिल) अपरदन मेें
से विकसित होता है। अवनालिका छोटी घाटियोों से मिलती-जल ु ती है और
खड़़ी ढलानोों पर आम है। वर््षषा के साथ अवनालिका गहरी हो जाती है, जिससे
कृषि भमि ू छोटे-छोटे टुकड़ों मेें कट जाती है और खेती के लिए अनपु यक्त ु हो
जाती है। बड़़ी सख्ं ्यया मेें गहरी अवनालिका या बीहड़ वाले क्षेत्र को उत््खखात
स््थलाकृति कहा जाता है। चंबल बेसिन मेें बीहड़ काफी देखने को मिलता है
और तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल मेें भी पाया जाता है।
मृदा संरक्षण
z खर-पतवार से ढंकना (मल््चचििंग) : पौधोों के बीच की खाली जमीन को भसू े
जैसे कार््बनिक पदार्थथों की एक परत से ढक दिया जाता है। यह मृदा की नमी
बनाए रखने मेें मदद करता है।
z समोच््च बाँध/बाधाएँ : समोच््चोों के साथ अवरोध बनाने के लिए पत््थर,
घास, मृदा का उपयोग किया जाता है। जल एकत्र करने के लिए अवरोधोों के
सामने खाइयाँ बनाई जाती हैैं।
z चट्टानी बाँध : पानी के प्रवाह को धीमा करने के लिए चट्टानोों का ढेर लगाया
जाता है। यह अवनालिका और आगे मृदा के क्षय को रोकता है।
z सीढ़़ीदार खेती : खड़़ी ढलानोों पर चौड़़ी सपाट सीढ़़ियाँ या छतेें बनाई जाती
हैैं ताकि फसल उगाने के लिए समतल सतह उपलब््ध हो और सतही अपवाह
चित्र: भारत की प्रमख
ु मिट्टी के प्रकार और मृदा के कटाव को कम किया जा सके । पश्चिमी और मध््य हिमालय मेें
सीढ़़ीनमा
ु खेती अच््छछी तरह से विकसित है।
मृदा अपरदन
z फसल चक्र : विभिन््न फसलोों को एकांतर पंक्तियोों मेें उगाया जाता है और मृदा
मृदा के ऊपरी-आवरण का नष्ट होना मृदा अपरदन कहलाता है। मृदा-निर््ममाण और को बारिश से क्षय होने से बचाने के लिए अलग-अलग समय पर बोया जाता है।
अपरदन प्रक्रियाओ ं के बीच असंतुलन का परिणाम है, जो प्राकृतिक या मानवीय z समोच््च जुताई : पहाड़़ी ढलान की रूपरे खा के समानांतर जतु ाई करके ढलान
कारकोों द्वारा तीव्र होता है। से नीचे की ओर पानी के प्रवाह के लिए एक प्राकृतिक अवरोध बनाया जाता है।
मृदा अपरदन के प्रकार z पट्टीदार फसल : बड़़े खेतोों को पट्टियोों मेें विभाजित किया जाता है। फसलोों
z जलीय अपरदन (Splash Erosion) : कटाव प्रक्रिया का पहला चरण जो के बीच घास की पट्टियाँ उगने के लिए छोड़ दी जाती हैैं। इससे हवा का प्रभाव
तब होता है जब बारिश की बँदेू ें खल
ु ी मृदा से पर गिरती हैैं। कम हो जाता है। इस विधि को स्ट्रिप क्रॉपिगं के नाम से जाना जाता है।
z परत अपरदन : भारी बारिश और मृदा हटाने के बाद वानस््पतिक आवरण z शेल््टर बेल््ट (वक्षषों
ृ की रक्षक मेखला बनाना) : आश्रय बनाने के लिए
से रहित समतल भूमि पर महीन और उपजाऊ ऊपरी मृदा की एक पतली परत पेड़ों की कतारेें लगाना शेल््टर बेल््ट कहलाता है; पश्चिमी भारत मेें रे गिस््ततान
का समान रूप से हटना, इसे आसानी से देखा नहीीं जा सकता है। को रोकने के लिए उपयोग किया जाता है।
80 मृदा
18 प्राकृतिक वनस््पति
जलवायु और मृदा मेें भिन््नता के कारण भारत मेें विविध प्राकृतिक वनस््पतियाँ जल की उपलब््धता के आधार पर वर्गीकरण:
पाई जाती है। भारतीय वनोों को विभिन््न समहोों
ू मेें वर्गीकृ त किया जा सकता है:
उष््णकटिबंधीय आर्दद्र उष््णकटिबंधीय शुष््क
z उष््णकटिबंधीय सदाबहार और अर्दद्ध-सदाबहार वन
पर््णपाती वन पर््णपाती वन
z उष््णकटिबंधीय आर्दद्र पर््णपाती वन
वर््षषा 100-200 सेमी. 70-100 सेमी.
z उष््णकटिबंधीय कांटेदार वन
अवस््थथिति हिमालय की तलहटी प्रायद्वीप और मैदान भाग के
z पर््वतीय वन
वाले पूर्वोत्तर राज््य, वर््षषा वाले क्षेत्र: उत्तर प्रदेश
z वेलांचली एवं अनप ू वन पश्चिमी घाट और और बिहार (आर्दद्र क्षेत्ररों पर
ओडिशा के पूर्वी ढलान, आर्दद्र पर््णपाती वनोों के रूप मेें
उष््णकटिबंधीय सदाबहार वन
छोटा नागपुर पठार, , जबकि शष्ु ्क क्षेत्ररों मेें कांटेदार
z ये वन 200 सेमी. से अधिक वर््षषा और 22° से ऊपर औसत वार््षषिक तापमान मणिपुर और मिजोरम। जंगलोों के रूप मेें)।
वाले गर््म और आर्दद्र क्षेत्ररों मेें पाए जाते हैैं। वनस््पति सागौन, साल, शीशम, हुर््ररा, तेेंद,ू पलास, अमलतास, बेल,
z अवस््थथिति: पश्चिमी घाट का पश्चिमी ढलान, लक्षद्वीप, अंडमान और महुआ, आँवला, सेमल, खैर, एक््सलवडु आदि।
निकोबार द्वीप तथा तमिलनाडु तट, पूर््वाांचल की पहाड़़ियाँ। कुसमु और चंदन आदि।
[यूपीएससी 2015] [UPSC 2015, 2023]
विशेषताएँ: अच््छछी तरह से स््तरीकृ त वन, जिसमेें जमीन के पास झाड़़ियोों
उष््णकटिबंधीय काँटेदार वन
z
और बेलोों से ढकी परतेें होती हैैं, जिसके बाद छोटे और ऊँचे पेड़ होते हैैं, जो
एक वृहद स््तरीय जंगल का निर््ममाण करते हैैं; गिरी हुई पत्तियाँ किसी भी अन््य z वर््षषा: यहाँ वर््षषा सन्ं ्यतः 50 सेमी. से कम होती है।
बायोम की तल ु ना मेें अत््ययंत तेजी से विघटित होती हैैं और परिणामस््वरूप z अवस््थथिति: दक्षिण पश्चिम पंजाब, हरियाणा, राजस््थथान, गुजरात, मध््य
मिट्टी की सतह प्रायः विलप्तु हो जाती है। [यूपीएससी 2013, 2021] प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अर्दद्ध-शष्ु ्क क्षेत्र ।
z वनस््पति: आबनूस, महोगनी, शीशम, रबर, ऐनी, कटहल और z विशेषताएँ:
एपिफाइट्स। [यूपीएससी 2023] जल संरक्षण के लिए शष्ु ्क क्षेत्ररों हेतु अनक ु ू ल परिस््थथितियोों का निर््ममाण,
उष््णकटिबंधीय अर्दद्ध सदाबहार वन जैसे - फूला हुआ तना, मोटी और छोटी पत्तियाँ, लंबी जड़ें मिट्टी मेें
गहराई तक प्रवेश करती हैैं [यूपीएससी 2013]।
z अवस््थथिति: पश्चिमी तट, असम, पूर्वी हिमालय की निचली ढलान, वर््ष के अधिकांश समय मेें पौधे पर््ण विहीन रहते हैैं और झाड़़ीदार
ओडिशा और अंडमान। वनस््पति के रूप मेें दिखते हैैं।
z विशेषताएँ: z वनस््पति: बबूल, बेर, जंगली खजूर, खैर, नीम, खेजड़़ी, पलास, बबूल,
ये वन कम वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें स््थथित हैैं। ताड़, यूफोर््बबिया, कै क््टटि आदि। इन वृक्षषों के नीचे लंबे गच्ु ्छ वाली घास
कम उगने वाले तथा ऊँची लता वाले वनोों की उपस््थथिति। उगती है।
ये वन उष््णकटिबंधीय सदाबहार और उष््णकटिबंधीय पर््णपाती वनोों के
मिश्रित रूप हैैं। पर््वतीय वन [यूपीएससी 2014]
यहाँ शष्ु ्क मौसम, उष््णकटिबंधीय सदाबहार वनोों की अपेक्षा अधिक लंबी
1. उत्तरी पर््वतीय वन
अवधि का होता है। उष््णकटिबंधीय से टुंड्रा तक की ऊँ चाई के साथ ये वनस््पति पाई जाती हैैं।
z वनस््पति: सफेद देवदार, होलक और कै ल। z हिमालय की गिरिपद मेें पर््णपाती वन-1,000-2,000 मीटर की ऊँचाई के बीच
आर्दद्र शीतोष््ण कटिबंधीय प्रकार के वन पाए जाते हैैं।
उष््णकटिबंधीय पर््णपाती वन
z ओक और चेस््टनट जैसे सदाबहार चौड़़ी पत्ती वाले वन उच््च पूर्वोत्तर
ये वन भारत मेें सबसे व््ययापक वन हैैं, इन््हेें मानसूनी वन भी कहा जाता है पहाड़़ी शंख
ृ लाओ,ं पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड के पहाड़़ी इलाकोों मेें
जिनमेें 70-200 सेमी. के बीच वर््षषा होती है। प्रमख
ु ता से पाए जाते हैैं।
z इस क्षेत्र मेें 1,500-1,750 मीटर के बीच चीड़ के जंगल है, चीड़ एक बहुत z बबूल: पत्तियोों का उपयोग आँखोों के घावोों के इलाज मेें किया जाता है तथा
ही उपयोगी व््ययावसायिक पेड़ है। देवदार मख्ु ्यतः हिमालय के पश्चिमी इसकी गोोंद का उपयोग टॉनिक के रूप मेें किया जाता है।
भाग मेें पाया जाता है । चिनार और वालन (कश््ममीर हस््तशिल््प मेें उपयोग) z नीम: एटं ीबायोटिक और जीवाणरु ोधी गणु ।
इस क्षेत्र से सबं ंधित हैैं।
z तुलसी: खाँसी और सर्दी को ठीक करती है।
z ब््ललू पाइन और स्प्रूस 2,225-3,048 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैैं । इस
z कचनार: यह अस््थमा ठीक करता है। इसकी कलियाँ और जड़ें पाचन
क्षेत्र मेें कई स््थथानोों पर शीतोष््ण घास के मैदान भी पाए जाते हैैं। अधिक
समस््ययाओ ं के लिए अच््छछी होती हैैं।
ऊँचे इलाकोों मेें अल््पपाइन वन और चरागाह पाए जाते है।
z सिल््वर फर, जुनिपर, पाइन, बर््च, रोडोडेेंड्रोन, आदि 3,000-4,000 मीटर पवित्र उपवन
के बीच पाए जाते हैैं।
पवित्र उपवन प्राकृतिक वनस््पति को संदर््भभित करते हैैं जो धार््ममिक कारणोों से
z गुज््जर, बकरवाल, भोटिया और गद्दी जैसी ऋतु प्रवास करने वाली एक निश्चित समदु ाय द्वारा संरक्षित होते हैैं। ये आमतौर पर एक स््थथानीय देवता
जनजातियाँ इन चरागाहोों का पशचु ारण हेतु उपयोग करती हैैं। को समर््पपित होते हैैं।
z 4,000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर , टुंड्रा वनस््पति जैसे मॉस और लाइके न z ये पवित्र उपवन हिमाचल प्रदेश, के रल, राजस््थथान, बिहार, मेघालय और
पाए जातेें हैैं। महाराष्टट्र मेें पाए जाते हैैं; हिमाचल प्रदेश मेें शिपिन को सबसे बड़़ा देवदार
z हिमालय के दक्षिणी ढलानोों पर वनस््पति आवरण अधिक घना है , क््योोंकि का वन माना जाता है। महाराष्टट्र मेें उपवनोों को देवराय कहा जाता है; उमंग
शष्ु ्क उत्तर-मख ु ी ढलानोों की तल ु ना मेें अपेक्षाकृ त अधिक वर््षषा होती है। लाई (पवित्र उपवन) मणिपुर मेें पाया जाता है । लाई हरोबा का त््ययौहार
2. दक्षिणी पर््वतीय वन (मणिपुर) विशेष रूप से इन पवित्र उपवनोों के संबंध मेें मनाया जाता है।
z प्रायद्वीपीय भारत के तीन अलग-अलग क्षेत्ररों मेें पाये जाते है: पश्चिमी घाट, राष्ट्रीय वन नीति, 1952 के अनुसार 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्ररों को वन
विंध््ययाचल और नीलगिरि पर््वत शंख ृ लाएँ। आवरण के अंतर््गत लाना है।
z शीतोष््ण वनस््पति (उच््च क्षेत्र) और उपोष््ण कटिबंधीय (निचले क्षेत्र) पश्चिमी सामाजिक वानिकी
घाट मेें, विशेष रूप से के रल, तमिलनाडु और कर््ननाटक मेें क््योोंकि वे उष््ण
कटिबंधीय क्षेत्र के करीब हैैं , और समद्रु तल से के वल 1,500 मीटर ऊपर हैैं। पर््ययावरण, सामाजिक और ग्रामीण विकास मेें मदद करने के उद्देश््य से वनोों
z शीतोष््ण कटिबंधीय वनोों को शोलास वन कहा जाता है जिन््हेें नीलगिरी, का प्रबंधन और संरक्षण तथा बंजर भमि ू पर वनीकरण, सामाजिक वानिकी के
अन््ननामलाई और पलानी पहाड़़ियोों मेें घुमावदार घास के मैदान के रूप अंतर््गत आते हैैं। राष्ट्रीय कृषि आयोग (1976) ने सामाजिक वानिकी को तीन
मेें भी जाना जाता है । श्रेणियोों मेें वर्गीकृ त किया है:
z इन वनोों मेें आर््थथिक महत्तत्व के पेड़: मगनोलिया, लौरेल, सिनकोना और 1. शहरी वानिकी: शहरी केें द्ररों मेें और उसके आसपास सार््वजनिक तथा निजी
वैटल। स््ववामित््व वाली भमि ू पर वनोों का रोपण और प्रबंधन।
2. ग्रामीण वानिकी: कृषि वानिकी अर््थथात एक ही भमि ू पर पेड़ और कृषि
मैैंग्रोव फसलेें उगाना; सामुदायिक वानिकी अर््थथात सार््वजनिक या सामुदायिक
z ये समद्ु री तटोों के किनारे नमक के दलदल, ज््ववारीय खाड़़ियोों, कीचड़ भूमि पर पेड़ उगाना।
के मैदानोों और मुहाने पर उगते हैैं और उनमेें नमक-सहिष््णणु पौधोों की 3. फार््म वानिकी: किसान अपने खेतोों पर व््ययापारिक और गैर व््ययापारिक महत्तत्व
प्रजातियाँ शामिल होती हैैं। वाले पौधे उगाता है।
z सरक्षि ं त वन: भारतीय वन अधिनियम या राज््य वन अधिनियमोों के प्रावधानोों
z क्षेत्र: गंगा, महानदी, कृष््णणा, गोदावरी और कावेरी के डेल््टटा; गंगा-ब्रह्मपत्रु
डेल््टटा मेें सदुं री के पेड़ पाए जाते हैैं, जो टिकाऊ कठोर लकड़़ी प्रदान करते हैैं। के तहत अधिसचि ू त क्षेत्र जिसमेें सीमित स््तर की सरु क्षा होती है। संरक्षित
वनोों मेें, जब तक निषिद्ध न हो, सभी गतिविधियोों की अनमति ु होती है।
औषधीय पौधे z आरक्षित वन: भारतीय वन अधिनियम या राज््य वन अधिनियमोों के
z सर््पगंधा: रक्तचाप का इलाज करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है; प्रावधानोों के तहत अधिसचि ू त क्षेत्र जो पूर््ण सरक्षि
ु त होते है। आरक्षित
यह के वल भारत मेें पाया जाता है। वनोों मेें, जब तक अनमति ु न हो, सभी गतिविधियाँ प्रतिबंधित होती हैैं।
z जामुन: इसके बीज के पाउडर का उपयोग मधमु हे को नियंत्रित करने के लिए z अवर्गीकृत वन: वह क्षेत्र जो वन के रूप मेें दर््ज है लेकिन आरक्षित
किया जाता है; रस का उपयोग सिरका तैयार करने के लिए किया जाता है, या सरक्षिं त वन श्रेणी मेें शामिल नहीीं है। ऐसे वनोों की स््ववामित््व स््थथिति
जो वात नाशक और मत्रू वर््धक है। इसमेें पाचन गणु होते हैैं। अलग-अलग राज््योों मेें अलग-अलग होती है।
z अर््जजुन: इसकी पत्तियोों का ताजा रस कान दर््द के इलाज हेतु उपयोग मेें z अक्षत या प्राकृतिक वनस््पति: वर््जजिन वनस््पति उन पादप समद ु ायोों को
लाया जाता है। रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए भी इसका उपयोग संदर््भभित करती है जो मानव हस््तक्षेप के बिना प्राकृतिक रूप से विकसित
किया जाता है। हुए हैैं और मानवीय गतिविधियोों से अछूते रहे हैैं।
82 प्राकृतिक वनस्प
19 संसाधन
भारत मेें परिचालन कृषि जोत
भूमि संसाधन और कृषि
भारत मेें औसत परिचालन जोत का आकार वर््ष 2010-11 के 1.15 हेक््टटेयर
भारत मेें दनिु या की लगभग 18% आबादी निवास करती है और 2.5% से घटकर वर््ष 2015-16 मेें 1.08 हेक््टटेयर हो गया है। इसका मतलब है कि
भूमि क्षेत्र पर दनि
ु या की सबसे बढ़ी पशधु न आबादी निवास करती है। भूमि पिछले पाँच वर्षषों मेें, देश मेें औसत कृषि जोत का आकार लगभग 6% कम
उपयोग रिकार््ड का रखरखाव भू-राजस््व विभाग द्वारा किया जाता है। हो गया है।
भारतीय सर्वेक्षण विभाग भारत की प्रशासनिक इकाइयोों के भौगोलिक क्षेत्र कृषि जनगणना 2015-16 (10वीीं जनगणना) रिपोर््ट
को मापने के लिए ज़िम््ममेदार है। z वर््ष 2010-11 के बाद से कुल परिचालन जोत की सख् ं ्यया मेें वद्धि
ृ हुई है
और कुल परिचालित क्षेत्र मेें कमी आई है।
भूमि उपयोग श्रेणियाँ
z वर््ष 2015-16 मेें महिला जोत धारकोों की प्रतिशत हिस््ससेदारी बढ़कर
1. वन: वन विकास के लिए सीमांकित क्षेत्र, जो ज़रूरी नहीीं कि वास््तविक 13.96% हो गई है परिचालित क्षेत्र मेें 11.72% तक।
वन आवरण का प्रतिनिधित््व करते होों। z सीमांत (0-1 हेक््टटेयर) और लघु (1-2 हेक््टटेयर) जोतोों को मिलाकर वर््ष
2. गैर-कृषि प्रयोजनोों मेें लगाई गई भूमि: बस््ततियोों के अतं र््गत भमि ू 2015-16 मेें कुल जोत का 86.08% हिस््ससा था , जबकि परिचालित क्षेत्र
(ग्रामीण और शहरी), बनि ु यादी ढाँचे (सड़केें, नहरेें आदि), उद्योग आदि। मेें उनकी हिस््ससेदारी 46.94% थी। वर््ष 2010-11 से दोनोों मेें वद्धिृ हुई है।
माध््यमिक और तृतीयक गतिविधियोों मेें विस््ततार से भमि ू उपयोग की इस z वर््ष 2015-16 मेें अर््ध-मध््यम (2-4 हेक््टटेयर) और मध््यम (4-10 हेक््टटेयर)
श्रेणी मेें वृद्धि होती है। परिचालन जोत 43.99% परिचालित क्षेत्र के साथ के वल 13.35% थी।
3. बंजर और कृषि अयोग््य भूमि: भमि ू जैसे बंजर पहाड़़ी इलाके , रे गिस््ततानी 2010-11 से दोनोों मेें कमी आई है ।
भमि ू , बीहड़, आदि; आम तौर पर इसे उपलब््ध तकनीक से खेती के z बड़़ी जोत (10.00 हेक््टटेयर और उससे अधिक) कुल जोत की सख् ं ्यया
अतं र््गत नहीीं लाया जा सकता। का 0.57% थी और परिचालित क्षेत्र मेें इसकी हिस््ससेदारी 9.07% थी। वर््ष
4. स््थथायी चरागाहोों और चराई भूमि के अंतर््गत आने वाला क्षेत्र: इस 2010-11 से दोनोों मेें कमी आई है ।
प्रकार की अधिकांश भमि ू का स््ववामित््व गाँव की 'पचं ायत' के पास होता कृषि के प्रकार
है, ज़््ययादातर 'सामान््य संपत्ति संसाधन' के रूप मेें, या सरकार के पास। इस शुष््क भूमि खेती है 75 सेमी से कम वार््षषिक वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें प्रचलित और
भमिू का के वल एक छोटा सा हिस््ससा निजी स््ववामित््व मेें है। वर््षषा ऋतु के दौरान अधिक वर््षषा वाले क्षेत्ररों मेें आर्दद्र भूमि खेती।
5. विविध वक्ष ृ फसलोों और उपवनोों के अधीन भूमि क्षेत्र (शुद्ध बोया कृषि के अन््य प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैैं-
गया क्षेत्र शामिल नहीीं है): बगीचोों और फलोों के पेड़ों के नीचे की भमि ू । 1. आदिम निर््ववाह कृषि: इसमेें स््थथानांतरित खेती शामिल है जिसमेें आग से
इस भमि ू का अधिकांश भाग निजी स््ववामित््व मेें है। वनस््पति को साफ करने की आवश््यकता होती है, जिससे मिट्टी की उर््वरता
6. कृषि योग््य बंजर भूमि: वह भमि ू जो पाँच वर््ष से अधिक समय से परती बढ़ती है।
(बिना खेती की) पड़़ी हो। इसे खेती के लिए पनु ः प्राप्त किया जा सकता है। राज््य ास््थथान
ंतरण खेती का नाम
उत्तर पूर्वी झूम कृषि
7. वर््तमान परती भूमि: एक कृषि वर््ष या उससे कम समय के लिए भमि ू को
मणिपरु पामलोउ (Pamlou)
बिना खेती के छोड़ दिया जाना, जिससे वह प्राकृतिक रूप से उर््वरता प्राप्त
छत्तीसगढ़ और अंडमान और निकोबार दीपा
कर सके ।
मध््य प्रदेश बेवर या डहिया (Dahiya)
8. वर््तमान परती के अतिरिक्त अन््य परती भूमि: खेती योग््य भमि ू जो एक आंध्र प्रदेश पोडु या पेेंडा
वर््ष से अधिक लेकिन पाँच साल से कम समय तक बंजर रह गई हो। ओडिशा पामा डाबी या कोमान या ब््रििंगा
9. शुद्ध बोया गया क्षेत्र: वह भमि ू जिस पर फसलेें बोई और काटी जाती हैैं। पश्चिमी घाट कुमारी
भारत मेें चीन की तुलना मेें अधिक कृषि योग््य क्षेत्र और सिंचाई योग््य भमि ू राजस््थथान वालरे या वाल््टरे
है, लेकिन भारतीय कृषि की प्रति हेक््टटेयर उत््पपादकता चीन की तुलना मेें कम हिमालय बेल््ट खिल
है। (यूपीएससी 2023) झारखंड कुरुवा
इसके अलावा, वैश्विक स््तर पर स््थथानांतरित खेती की भी अलग-अलग पहचान z भारत उत््पपादन मेें चीन और संयक्त
ु राज््य अमेरिका के बाद तीसरे स््थथान पर है।
की जाती है- उदाहरण के लिए, मध््य अमेरिका/मेक््ससिको मेें मिल््पपा, इडं ोनेशिया/ z अनाज के प्रकार: बारीक अनाज (चावल, गेहू)ँ और मोटा अनाज या
मलेशिया मेें लदांग , वेनेजुएला मेें कोनुको, ब्राजील मेें रोका, मध््य अफ्रीका बाजरा (ज््ववार, बाजरा, मक््कका, रागी)
मेें मसोले, वियतनाम मेें रे आदि।
z चावल
2. गहन निर््ववाह कृषि: किसान सरल उपकरण और अधिक श्रम का उपयोग
खरीफ की फसल ; उष््णकटिबंधीय आर्दद्र क्षेत्ररों की फसल मानी जाती है;
करके भमि ू के एक छोटे से भख ू डं पर खेती करता है।
तापमान: फूल आने और निषेचन के लिए 16 से 20°C और
3. वाणिज््ययिक कृषि: फसलेें उगाई जाती हैैं और जानवरोों को बाज़ार मेें
बिक्री के लिए पाला जाता है। पकने के दौरान 18 से 32°C ;
4. बागान कृषि: बड़़े पैमाने पर एक ही फसल की खेती। जैसे- चाय, कॉफी, वर््षषा: 150 से 300 सेमी. औसत वर््षषा;
रबर, गन््नना आदि। मिट्टी: चिकनी मिट्टी या जलोढ़ नमी धारण करने वाली मिट्टी आदर््श
5. मिश्रित कृषि: खेती की प्रणाली जिसमेें फसल उगाने के साथ-साथ होती है।
पशधु न का पालन-पोषण भी शामिल होता है। लगभग 1/4 भाग पर समाहित; भारत दनि ु या भर मेें चावल उत््पपादन मेें
6. सहकारी कृषि: इसमेें किसानोों को अधिक कुशल और लाभदायक कृषि 21.6% का योगदान देता है, वर््ष 2016 मेें चीन के बाद दूसरे स््थथान पर है।
के लिए ससं ाधनोों को एकत्रित करने के लिए एक सोसायटी बनाना शामिल समुद्र तल से लगभग 2,000 मीटर की ऊँचाई तक और पूर्वी भारत
है।
के आर्दद्र क्षेत्ररों से लेकर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा
भारत मेें फसल ऋतु उत्तरी राजस््थथान के शष्ु ्क लेकिन सिंचित क्षेत्ररों तक सफलतापर्ू ्वक उगाया
देश के उत्तरी और आंतरिक भागोों मेें तीन अलग-अलग फसल मौसम होते जाता है; दक्षिणी राज््योों और पश्चिम बंगाल मेें जलवायु परिस््थथितियाँ
हैैं: खरीफ, रबी और जायद। एक कृषि वर््ष मेें चावल की दो या तीन फसलेें उगाने की अनमति ु देती हैैं।
उगाई जाने वाली प्रमुख फसलेें पश्चिम बंगाल मेें चावल की तीन फसलेें: 'ओस', 'अमन' और 'बोरो';
फसल का मौसम
उत्तरी राज््य दक्षिणी राज््य हिमालय और देश के उत्तर-पश्चिमी भागोों मेें, इसे खरीफ फसल के रूप
ख़रीफ़ जून-सितंबर चावल, कपास. बाजरा। चावल, मक््कका. रागी.
मेें उगाया जाता है; अग्रणी उत््पपादक : पश्चिम बंगाल (13%) > उत्तर
मक््कका, ज््ववार, अरहर ज््ववार, मंगू फली
प्रदेश > पंजाब (आर््थथिक सर्वेक्षण : 2022-23)।
रबी गेहू,ं चना, रे पसीड और चावल, मक््कका. रागी.
अक््टटूबर-मार््च सरसोों, जौ मंगू फली, ज््ववार
ज़़ैद अप्रैल-जून सब््जजियाँ, फल, चारा चावल। सब््ज़़ियाँ। चारा
INDIA
z खरीफ का मौसम काफी हद तक दक्षिण-पश्चिम मानसन ू के साथ मेल (RICE)
खाता है; उष््णकटिबंधीय फसलेें उगाई जाती हैैं: चावल, कपास, जूट, ज््ववार, PAKISTAN
z जायद रबी फसलोों की कटाई के बाद शरू ु होने वाली एक छोटी अवधि की Tropic of Cancer
ग्रीष््मकालीन फसल का मौसम है। इस मौसम मेें सिंचित भमि ू पर तरबूज़, Myanmar
84 संसाधन
कुल फसली क्षेत्र का लगभग 5.3% ; मध््य और दक्षिणी भारत के
अर््ध-शुष््क क्षेत्ररों मेें मख्ु ्य खाद्य फसल; मख्ु ्य रूप से उत्तरी भारत मेें एक
INDIA खरीफ फसल जहाँ इसे ज़््ययादातर चारे की फसल के रूप मेें उगाया जाता
(RICE) है; दक्षिणी राज््योों मेें खरीफ और रबी दोनोों मौसमोों मेें बोया जाता है;
PAKISTAN कुल ज््ववार उत््पपादन का आधा हिस््ससा महाराष्टट्र मेें होता है। अन््य
प्रमुख उत््पपादक: कर््ननाटक, मध््य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना।
CHINA z बाजरा
(TIBET)
तापमान : 25 से 30°C
NEP
AL
BHUTAN
वर््षषा : 40-50 सेमी.
Myanmar
परिस््थथितियोों मेें बोया गया; कुल फसली क्षेत्र का लगभग 5.2% भाग
घेरता है;
प्रमुख उत््पपादक: महाराष्टट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस््थथान और
हरियाणा।
MAJOR AREA z मक््कका (Maize)
MINOR AREA
भोजन के साथ-साथ चारे की फसल; अर््ध-शुष््क परिस््थथितियोों और निम््न
गुणवत्ता युक्त मिट्टी पर उगाया जाता है।
ANDMAN & NICOBAR ISLANDS
LAKSHADWEEP (INDIA) कुल फसली क्षेत्र के लगभग 3.6% पर समाहित है; पूर्वी और उत्तर-
(INDIA)
SRI पूर्वी क्षेत्ररों को छोड़कर पूरे भारत मेें बोया जाता है; अग्रणी उत््पपादक:
LANKA
कर््ननाटक > मध््य प्रदेश > महाराष्टट्र (आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23);
z गेहूँ मक््कके की उपज का स््तर अन््य मोटे अनाजोों की तल ु ना मेें अधिक है। यह
दक्षिणी राज््योों मेें अधिक है और मध््य भागोों की ओर कम हो जाती है।
मख्ु ्य रूप से समशीतोष््ण क्षेत्र की फसल है, इसलिए भारत मेें इसकी खेती
दालेें
शीतकाल (रबी फसल) के दौरान की जाती है; विश्व उत््पपादन के लगभग
12.3% के साथ गेहूँ का दूसरा सबसे बड़़ा उत््पपादक। (2016 डेटा); फलियाँ वाली फसलेें जो नाइट्रोजन स््थथिरीकरण के माध््यम से मिट्टी की उर््वरता
मेें सुधार करती हैैं;
तापमान: बुआई के लिए 10 से 15°C और कटाई के दौरान
तापमान: 20 से 25°C ; वर््षषा : 50 से 75 सेमी. ; भारत दनि ु या मेें दालोों
20 से 25°C ;
का अग्रणी उत््पपादक है ; कुल फसली क्षेत्र के लगभग 11% पर समाहित ;
वर््षषा : 80 सेमी.
भारत मेें खेती की जाने वाली मख्ु ्य दालेें: चना और तुअर (अरहर); खेती
मिट्टी: अच््छछी जल निकास वाली दोमट और चिकनी मिट्टी। दक््कन के शष्ु ्क क्षेत्ररों तथा मध््य पठार एवं देश के उत्तर-पश्चिमी भाग मेें केें द्रित
कुल फसली क्षेत्र का लगभग 14% भाग गेहूँ की खेती के अतं र््गत आता है; अग्रणी उत््पपादक: मध््य प्रदेश (22%) > महाराष्टट्र > राजस््थथान (आर््थथिक
है; उत्तर और मध््य क्षेत्र यानी सिंध-ु गंगा का मैदान, मालवा का पठार सर्वेक्षण 2022-23)।
तथा 2,700 मीटर की ऊँचाई तक का हिमालय कुल गेहूँ खेती क्षेत्र का z चना (Gram)
लगभग 85% है; अग्रणी उत््पपादक: उत्तर प्रदेश (32%) > मध््य प्रदेश उपोष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें खेती की जाती है ; रबी मौसम के दौरान मख् ु ्य
> पंजाब (आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23)। रूप से मध््य, पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत मेें उगाया जाता है ; कुल
मोटे अनाज या मिलेट््स (Coarse cereals or millets) फसली क्षेत्र का लगभग 2.8% कवर करता है ; अग्रणी उत््पपादक:
महाराष्टट्र (24%) > मध््य प्रदेश (22%) > राजस््थथान (आर््थथिक सर्वेक्षण
तापमान: औसत 20°C- 30°C
2022-23)।
वर््षषा : 40 - 60 सेमी.; कुल फसली क्षेत्र के लगभग 16.50% पर समाहित;
अग्रणी उत््पपादक: कर््ननाटक (14.3%) > राजस््थथान (13.9%) > महाराष्टट्र हालाँकि दालेें खरीफ और रबी दोनोों सत्ररों मेें उगाई जाती हैैं, 60% से अधिक
(आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23)। दाल उत््पपादन रबी दालोों से होता है। काले चने को खरीफ और रबी
z ज््ववार (Sorghum)
फसल के रूप मेें उगाना संभव है ; कुल उत््पपादन मेें लगभग 40% हिस््ससेदारी
के साथ चना सबसे प्रमुख दाल है। [यूपीएससी 2020]
तापमान: अक ं ु रण के दौरान 27-32°C , 16°C से कम तापमान पर z तूर (अरहर)
फसल अच््छछी नहीीं होती;
लाल चना या अरहर के नाम से भी जाना जाता है ; मध््य और दक्षिणी
वर््षषा : 45 सेमी. से कम वर््षषा वाले शुष््क और अर््धशुष््क क्षेत्ररों मेें उगाया
राज््योों के शष्ु ्क क्षेत्ररों मेें उगाया जाता है ; भारत के कुल फसली क्षेत्र का
जा सकता है ; लगभग 2% भाग पर समाहित है। अग्रणी उत््पपादक : महाराष्टट्र (32%)
मिट्टी: चिकनी, बलुई सहित विभिन््न प्रकार की मिट्टी। > कर््ननाटक > उत्तर प्रदेश (ES 2022-23)।
संसाधन 85
2. तिलहन (Oilseeds) अर््ध-शुष््क क्षेत्ररों मेें खरीफ मौसम मेें उगाई जाने वाली उष््णकटिबंधीय
कुल फसली क्षेत्र का लगभग 14%; भारत के तिलहन उत््पपादक क्षेत्र: मालवा फसल
पठार, मराठवाड़़ा, गुजरात, राजस््थथान, ते लंगाना, आंध्र प्रदेश के रायलसीमा तापमान : 21°C- 30°C
क्षेत्र और कर््ननाटक पठार की शुष््क भूमि। वर््षषा : 50 - 75 सेमी.
z मूंगफली (Groundnut)
मिट्टी: काली मिट्टी; फूल आने की अवस््थथा के दौरान साफ आसमान
यह वर््षषा आधारित खरीफ फसल है , हालाँकि दक्षिणी भारत मेें इसे की आवश््यकता होती है; लगभग 210 पाले मुक्त दिवस और खनिज
रबी फसल के रूप मेें भी उगाया जाता है और कुल फसल क्षेत्र का समृद्ध काली लावा मिट्टी (रेगुर) की आवश््यकता होती है।
लगभग 3.6% क्षेत्र कवर करता है; वैश्विक कपास उत््पपादन मेें भारत दूसरे स््थथान पर है ( विश्व उत््पपादन का
तापमान: 20 से 25°C ; वर््षषा : 50 से 100 सेमी. ; 23.83% ; 2022-23)। छोटे रेशे वाले (भारतीय) कपास के साथ-साथ
मिट्टी: बलुई दोमट, दोमट और अच््छछी जल निकास वाली मिट्टी। लंबे रेशे वाले (अमेरिकी) कपास दोनोों को देश के उत्तर-पश्चिमी हिस््सोों
भारत विश्व के कुल मग ंू फली उत््पपादन का लगभग 16.6% उत््पपादन करता मेें 'नर््ममा' कहा जाता है; कुल फसली क्षेत्र के लगभग 4.7 % क्षेत्र पर
है। (2016); समाहित है; कपास उगाने वाले राज््योों को तीन विविध कृषि-पारिस््थथितिक
अग्रणी उत््पपादक: गुजरात (45%) > राजस््थथान > तमिलनाडु
क्षेत्ररों मेें बाँटा गया है:
(आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23)। (i) उत्तरी क्षेत्र - पंजाब, हरियाणा और राजस््थथान
z रे पसीड और सरसोों (ii) मध््य क्षेत्र - गजु रात, महाराष्टट्र और मध््य प्रदेश
तापमान: 10 से 20°C ; वर््षषा : 25 से 40 सेमी. ; (iii) दक्षिणी क्षेत्र - तेलंगाना, आध्रं प्रदेश और कर््ननाटक
मिट्टी: सरसोों के लिए भारी दोमट ; रे पसीड के लिए हल््ककी दोमट; तिलहन यह ओडिशा और तमिलनाडु राज््य मेें भी उगाया जाता है; भारत एकमात्र ऐसा
शामिल: राई, सरसोों, तोरिया और तारामीरा; रबी मौसम के दौरान देश है जो कपास की सभी चार प्रजातियाँ उगाता है: जी. आर्बोरियम और
उपोष््णकटिबंधीय फसल उगती है; पाले के प्रति सवं ेदनशील फसल जी. हर्बेशियम (G. Arboreum & G. Herbaceum )(एशियाई कपास ),
उत्तर-पश्चिमी और मध््य भागोों मेें उगाया जाता है तथा कुल फसली क्षेत्र
जी. बारबाडेेंस (G. Barbadense) ( मिस्र की कपास ) तथा जी. हिर््ससुटम
का लगभग 2.5% कवर करता है; अग्रणी उत््पपादक : राजस््थथान (47%) (G. Hirsutum) ( अमे रिकन अपलैैंड कपास )। जी. हिर््ससुटुम भारत मेें 90%
> मध््य प्रदेश > हरियाणा (आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23)। संकर कपास उत््पपादन का प्रतिनिधित््व करता है और सभी मौजूदा बीटी कपास
संकर जी. हिर््ससुटुइम ही हैैं।
z सोयाबीन
अग्रणी उत््पपादक: गुजरात (24%) > महाराष्टट्र (23%) > ते लंगाना
खरीफ फसल;
(आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23)।
तापमान: 13 से 24°C ;
z जूट (गोल््डन फाइबर)
वर््षषा : 40 से 60 सेमी.;
भारत मेें जट ू की प्रमुख किस््मेें टॉसा और सफेद जूट हैैं ; गर््म तथा
मिट्टी: भुरभुरी दोमट अम््ललीय। आर्दद्र जलवायु की आवश््यकता होती है ;
अग्रणी उत््पपादक : महाराष्टट्र (42%) >मध््य प्रदेश (41%) > राजस््थथान तापमान: 24 से 35°C ;
(ES 2022-23); महाराष्टट्र और मध््य प्रदेश मिलकर सोयाबीन के कुल वर््षषा : 90% सापेक्ष आर्दद्रता के साथ ~150 सेमी. ;
उत््पपादन का लगभग 90 प्रतिशत उत््पपादन करते हैैं।
मिट्टी : समृद्ध डेल््टटा या जलोढ़ मिट्टी, पेड़ों की तल ु ना मेें बहुत उच््च
z सरू जमुखी
कार््बन डाइऑक््ससाइड आत््मसात करने की क्षमता कई गनु ा अधिक।
तापमान: 26 से 30°C ;
इसमेें कुल फसली क्षेत्र का लगभग 0.5% हिस््ससा है और भारत विश्व
वर््षषा : <50 सेमी.; का लगभग 60% जूट पैदा करता है; अग्रणी उत््पपादक : पश्चिम बंगाल
मिट्टी: अच््छछी जल निकास वाली दोमट मिट्टी। (81%) > असम > बिहार (आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23); भारत मेें कुल
खे ती कर््ननाटक, आंध्र प्रदेश, ते लंगाना और महाराष्टट्र के आसपास जूट उत््पपादन का 3/4% बंगाल मेें उत््पपादित होता है।
के क्षेत्ररों मेें केें द्रित है; अग्रणी उत््पपादक : कर््ननाटक (54%) > तेलंगाना z रे शम (Silk)
> ओडिशा (आर््थथिक सर्वेक्षण 2022-23)। भारत रे शम की सभी महत्तत्वपर् ू ्ण किस््मेें उगाता है: शहतूत, तसर, ओक
आम, मध््य और दक्षिण भारत मेें उगाए जाते हैैं, सुपारी मख्ु ्य रूप से तसर, एरी और मुगा (असम) ; भारत दूसरा सबसे बड़़ा रेशम उत््पपादक
दक्षिणी क्षेत्र मेें उगाई जाती है तथा सोयाबीन ज़््ययादातर मध््य भारत मेें है; शहततू रे शम मख्ु ्य रूप से दक्षिणी राज््योों कर््ननाटक, तमिलनाडु, आंध्र
उगाए जाती हैैं । [यूपीएससी 2014] प्रदेश और मेें उगाया जाता है पश्चिम बंगाल एवं झारखंड; गैर शहततू
3. रे शेदार फसलेें रे शम मख्ु ्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और उत्तर पूर््व मेें
z कपास (सफेद सोना) उगाया जाता है।
86 संसाधन
4. अन््य फसलेें कुल कॉफी उत््पपादन का दो-तिहाई (70%) से अधिक उत््पपादन
z गन््नना कर््ननाटक मेें होता है।
गन््नना एक उष््णकटिबध z रबड़
ं ीय फसल है; वर््षषा आधारित परिस््थथितियोों मेें,
उप-आर्दद्र और आर्दद्र जलवायु मेें कृषि की जाती है, लेकिन भारत मेें यह भूमध््यरे खीय क्षेत्ररों मेें उगाया जाता है लेकिन इसे भारत के उष््णकटिबंधीय
काफी हद तक सिचि ं त फसल है; अत््यधिक जल अदक्ष फसल [यपू ीएससी और उपोष््णकटिबंधीय क्षेत्ररों मेें भी जगह मिल गई है ;
2021] । तापमान : 20°C- 26°C; वर््षषा: 100 - 150 सेमी. तापमान: 25°C-35°C ;
कुल फसली क्षेत्र का 2.4% कवर करता है; वर््ष 2018 मेें ब्राज़ील के बाद वर््षषा : 152 से 200 सेमी.;
भारत गन््नने का दूसरा सबसे बड़़ा उत््पपादक था; मिट्टी : अच््छछी जल निकासी वाली समृद्ध जलोढ़ या ले टराइट मिट्टी
क्षेत्र: सिन््धधु-गंगा का मै दान (उत्तर प्रदेश); पश्चिमी भारत (महाराष्टट्र आदर््श होती है।
और गुजरात); दक्षिणी भारत ( कर््ननाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और प्रमुख उत््पपादक : के रल, तमिलनाडु, कर््ननाटक, अंडमान और
आंध्र प्रदेश के सिचि ं त क्षेत्र ) ; अग्रणी कृषक : उत्तर प्रदेश (41%) निकोबार द्वीप समूह, साथ ही मेघालय की गारो पहाड़़ियाँ ।
> महाराष्टट्र (25%) > कर््ननाटक। फसल तीव्रता (Cropping intensity): इसे एक किसान द्वारा दिए गए
प्रवर््धन की विधि : रै टूनिंग कृषि वर््ष मेें एक ही खेत मेें उगाई जाने वाली फसलोों की संख््यया के रूप मेें
z चाय परिभाषित किया गया है तथा यह भमि ू के उसी भख ू ंड से उत््पपादन को बढ़़ाने
का एक और साधन है।
तापमान : 24°C- 30°C ;
मिट्टी: अच््छछी जल निकास वाली, भुरभुरी दोमट, वनस््पति फफूंद सोडियम नमक।
से भरपूर मिट्टी आदर््श होती है । z सतही चट्टानोों का अपघटन और घल ु नशील घटकोों को हटाना, जिससे
कॉफ़़ी की तीन किस््मेें हैैं यानी अरे बिका, रोबस््टटा और लाइबेरिका ; अयस््क यक्तु अपक्षयित सामग्री का एक अवशिष्ट द्रव््यमान निकल जाता है।
भारत मेें रोबस््टटा कॉफी का उत््पपादन अरे बिका कॉफी से अधिक है;
बॉक््ससाइट इस प्रकार बनता है।
यह पश्चिमी और पर्ू वी घाट की घनी प्राकृतिक छाया के नीचे उगाया जाता z प््ललेसर निक्षेप (Placer Deposits) रे त मेें जलोढ़ निक्षेप के रूप मेें होते हैैं:
है; कर््ननाटक, के रल, तमिलनाडु मेें पश्चिमी घाट प्रमख ु कॉफी उत््पपादक सोना, चाँदी, टिन और प््ललैटिनम ।
राज््य हैैं; भारत दनि
ु या का के वल 3.7% कॉफी पैदा करता है और इसका z सामान््य नमक, मै ग््ननीशियम, मैैं गनीज नोड्यूल और ब्रोमाइन बड़़े पैमाने
संसाधन 87
खनिजोों का वैश्विक वितरण z इस महाद्वीप मेें सोना, चाँदी, जस््तता, क्रोमियम, मैैंगनीज, बॉक््ससाइट,
अभ्रक, प््ललैटिनम, एस््बबेस््टस और हीरे के विशाल भंडार हैैं।
एशिया
z चीन, मलेशिया और इडं ोनेशिया टिन के प्रमुख उत््पपादक हैैं। अफ़़्ररीका
z लौह अयस््क, सीसा, सरु मा और टंगस््टन के उत््पपादन मेें भी चीन अग्रणी है। z अफ़््रीका हीरे, सोना और प््ललेटिनम का विश्व का सबसे बड़़ा उत््पपादक है।
z इस महाद्वीप मेें लोहा, मैैंगनीज, बॉक््ससाइट, निकल, जस््तता और ताँबे का z वर््तमान मेें, डेमोक्रेटिक रिपब््ललिक ऑफ कांगो (DRC) के पास दनि ु या भर
भंडार है तथा यह दुनिया के आधे से अधिक टिन का उत््पपादन करता है। मेें कोबाल््ट उत््पपादन का 70% से अधिक हिस््ससा है और यह दुनिया के
यूरोप
ज्ञात कोबाल््ट भंडार का आधा हिस््ससा है। [यूपीएससी 2023]
z रूस, यूक्रे न, स््ववीडन और फ््रााँस मेें लौह अयस््क के विशाल भडं ार हैैं । z दक्षिण अफ्रीका, जिम््बबाब््ववे और जायरे दनि ु या के सोने का एक बड़़ा
z ताँबा, सीसा, जस््तता, मैैंगनीज और निकल के भडं ार पूर्वी यूरोप तथा हिस््ससे का उत््पपादन करते हैैं।
यूरोपीय रूस मेें भी पाए जाते हैैं । z ताँबा, लौह अयस््क, क्रोमियम, यूरेनियम, कोबाल््ट और बॉक््ससाइट भी
उत्तरी अमेरिका पाए जाते हैैं।
z उत्तरी अमेरिका मेें खनिज भडं ार तीन क्षेत्ररों मेें स््थथित हैैं: z तेल नाइजीरिया, लीबिया और अंगोला मेें पाया जाता है।
z ग्रेट लेक््स के उत्तर मेें स््थथित कनाडाई क्षेत्र मेें लौह अयस््क, निकल, सोना, ऑस््ट्र रेलिया
यूरेनियम और ताँबा के निक्षेप हैैं। z ऑस्ट्रेलिया दनि ु या मेें बॉक््ससाइट का सबसे बड़़ा उत््पपादक है; यह सोना,
z एपलाशियन क्षेत्र मेें कोयला है । हीरा, लौह अयस््क, टिन और निक एल का अग्रणी उत््पपादक है। ताँबा,
z पश्चिमी कॉर््डडिलेरा मेें ताँबा, सीसा, जस््तता, सोना और चाँदी के विशाल सीसा, जस््तता और मैैंगनीज भी पाए जाते हैैं; कालगुर्ली तथा कूलगार्डी
भंडार हैैं। क्षेत्ररों मेें सोने का सबसे बड़़ा भडं ार है।
दक्षिण अमेरिका अंटार््कटिका
z ब्राज़़ील के पास है उच््च श्रेणी के लौह-अयस््क के विशाल भंडार। z ट््राांस अटार््कट
ं िका पर््वतोों मेें कोयले और पर्ू वी अटार््कट
ं िका के प््रििंस चार््ल््स पर््वतोों
z ब्राज़़ील और बोलीविया दनि ु या के सबसे बड़़े टिन उत््पपादकोों मेें से हैैं। के पास लोहे के भडं ार का पर्ू ्ववानमा
ु न लगाया गया है; लौह अयस््क, सोना,
z चिली और पेरू ताँबे के प्रमुख उत््पपादक हैैं । चाँदी तथा तेल भी व््ययावसायिक मात्रा मेें मौजदू हैैं।
88 संसाधन
भारत मेें खनिजोों का वितरण
संसाधन 89
दर््ल
ु भ खनिजोों का एक बड़़ा हिस््ससा प्रागैतिहासिक पेलियोजोइक युग से पहले का z गौण खनिज: कम मात्रा मेें पाए जाने वाले, अभ्रक, गार्नेट, बैराइट, टैल््क, बेरिल
बना है और मख्ु ्य रूप से प्रायद्वीपीय भारत की रूपांतरित तथा आग््ननेय चट्टानोों और सिलिका रे त जैसे लघु खनिजोों का आर््थथिक महत्तत्व सीमित है। छोटे पैमाने
से जुड़़ा हुआ है। उत्तरी भारत का विशाल जलोढ़ मैदानी क्षेत्र आर््थथिक उपयोग पर निकाले जाते है, इनको विशिष्ट अनप्रु योगोों के लिये उपयोग किया जाता है।
के खनिजोों से रहित है। धात््वविक पदार्थथों के आधार पर, खनिजोों को धात््वविक और अधात््वविक
z प्रायद्वीपीय चट्टानोों मेें कोयला, धात््वविक खनिज (भारत मेें अधिकांश खनिजोों मेें वर्गीकृ त किया जाता है :
भंडार यहाँ पुरानी क्रिस््टलीय चट्टानोों मेें पाए जाते हैैं), अभ्रक और कई z धात््वविक खनिज: मख् ु ्य रूप से उनकी धातु सामग्री के लिए मल्ू ्यवान, सोना,
अन््य गैर-धात््वविक खनिजोों के भडं ार हैैं। प्रायद्वीप के पश्चिमी और पूर्वी चाँदी, ताँबा, लौह अयस््क, जस््तता, सीसा और एल््ययूमीनियम जैसे धात््वविक
किनारोों पर अवसादी चट्टानोों, गुजरात तथा असम मेें, मुंबई तट (मुंबई हाई) खनिज एक विशिष्ट धात््वविक चमक, उच््च विद्युत तथा तापीय चालकता
के पास के तटीय क्षेत्ररों मेें अधिकांश पेट्रोलियम भंडार हैैं। प्रदर््शशित करते हैैं। वे आर््थथिक रूप से महत्तत्वपर्ू ्ण हैैं, निर््ममाण, विनिर््ममाण और
भारत मेें खनिज आम तौर पर तीन विस््ततृत पेटियोों मेें केें द्रित हैैं। ये पेटियाँ हैैं: परिवहन जैसे उद्योगोों मेें उपयोग किए जाते हैैं। निष््कर््षण मेें खनन और उसके
z उत्तर-पूर्वी पठारी क्षेत्र: छोटानागपुर (झारखंड), उड़़ीसा पठार, पश्चिम
बाद गलाने या शोधन की प्रक्रियाएँ शामिल होती हैैं।
बंगाल और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस््ससे z अधात््वविक खनिज: धात््वविक तत्तत्ववों और चमक की कमी के बावजद ू , क््ववार््टट््ज,
97% से अधिक कोयला भंडार दामोदर, सोन, महानदी और
फे ल््डस््पपार, अभ्रक, कै ल््ससाइट, टैल््क, जिप््सम तथा डायमडं जैसे गैर-धात््वविक
गोदावरी की घाटियोों मेें हैैं । खनिजोों का उपयोग निर््ममाण, चीनी मिट्टी की चीज़ें, काँच बनाने आदि मेें किया
जाता है। ये खनिज आम तौर पर भगं रु होते हैैं, इनमेें लचीलापन और तन््यता
इसमेें विभिन््न प्रकार के खनिज हैैं, जैसे- लौह अयस््क, कोयला, मैैंगनीज,
की कमी होती है तथा इनमेें विद्युत एवं तापीय चालकता कम होती है। वे
बॉक््ससाइट, अभ्रक; प्रमख ु लोहा और इस््पपात उद्योग इस क्षेत्र मेें स््थथित हैैं।
अक््सर विभिन््न भवू ैज्ञानिक संरचनाओ ं मेें व््ययापक रूप से वितरित होते हैैं।
z दक्षिण-पश्चिमी पठार क्षेत्र: यह बेल््ट कर््ननाटक, गोवा और निकटवर्ती
लौह तत्तत्व के आधार पर , धात््वविक खनिजोों को लौह और अलौह खनिजोों
तमिलनाडु के ऊपरी क्षेत्ररों तथा के रल तक फैली हुई है।
मेें वर्गीकृत किया जाता है:
लौह धातुओ ं और बॉक््ससाइट की अधिक उपलब््धता
z लौह खनिज: मख् ु ्य रूप से लौह, लौह अयस््क (हेमेटाइट, मैग््ननेटाइट),
उच््च श्रेणी का लौह अयस््क, मैैं गनीज और चूना पत््थर शामिल हैैं। मैैंगनीज, क्रोमियम और निकिल जैसे लौह खनिजोों से निर््ममित होते हैैं। वे
गोवा मेें लौह अयस््क के भडं ार हैैं। इस््पपात उत््पपादन जैसे उद्योगोों के लिए महत्तत्वपर्ू ्ण हैैं। वे चुंबकीय गुण प्रदर््शशित
ने वेली लिग््ननाइट को छोड़कर कोयला भंडार मिलता है । करते हैैं, मज़बतू और टिकाऊ होते हैैं लेकिन नमी के संपर््क मेें आने पर जंग
के रल मेें मोनाजाइट और थोरियम, बॉक््ससाइट मिट्टी के भड ं ार हैैं। लगने तथा संक्षारण के प्रति संवेदनशील होते हैैं।
z उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र: यह बेल््ट राजस््थथान मेें अरावली और गुजरात के हिस््ससे z अलौह खनिज: मख् ु ्य घटक के रूप मेें लोहे के बिना, ताँबा, सीसा, जस््तता,
तक फैली हुई है तथा खनिज चट्टानोों की धारवाड़ प्रणाली से जड़़ेु हैैं। एल््ययूमीनियम, सोना, चाँदी और टिन जैसे अलौह खनिजोों का उपयोग
ताँबा और जस््तता प्रमुख खनिज हैैं।
विद्युत, निर््ममाण तथा एयरोस््पपेस सहित विभिन््न उद्योगोों मेें किया जाता है। आम
तौर पर उनमेें चुंबकीय गुणोों की कमी होती है , वे ताकत और कठोरता मेें
राजस््थथान इमारती पत््थरोों अर््थथात बलुआ पत््थर, ग्रेनाइट, सग ं मरमर
भिन््न होते हैैं तथा जंग लगने एवं संक्षारण के प्रतिरोधी होते हैैं।
मेें समृद्ध है ।
उत््पत्ति के आधार पर, गैर-धातु खनिजोों को कार््बनिक और अकार््बनिक
जिप््सम और फुलर की मिट्टी के भंडार भी व््ययापक हैैं।
खनिजोों मेें वर्गीकृत किया जाता है:
डोलोमाइट और चूना पत््थर सीमेेंट उद्योग के लिए कच््चचा माल प्रदान
z कार््बनिक: पौधोों या जानवरोों के कार््बनिक पदार्थथों से प्राप्त; उदाहरणोों मेें कोयला,
करते हैैं। पेट्रोलियम और पीट शामिल हैैं; जीवाश््म यक्त ु जैविक अवशेषोों से सबं द्ध होते हैैं।
गुजरात अपने पे ट्रोलियम भंडार के लिए जाना जाता है। z अकार््बनिक : भव ू ैज्ञानिक प्रक्रियाओ ं के माध््यम से निर््ममित; उदाहरणोों मेें
गुजरात और राजस््थथान दोनोों मेें नमक के समृद्ध स्रोत हैैं। क््ववार््टट््ज, चनू ा पत््थर, ग्रेफाइट, फे ल््डस््पपार, जिप््सम और अभ्रक शामिल हैैं;
z हिमालयी पे टी: ताँबा, सीसा, जस््तता, कोबाल््ट और टंगस््टन पर् ू वी तथा पश्चिमी इनके पास जैविक उत््पत्ति का अभाव है।
दोनोों भागोों मेें पाए जाते हैैं। असम घाटी मेें खनिज तेल के भडं ार हैैं। लौह खनिज: ये धात््वविक खनिजोों के उत््पपादन के कुल मल्ू ्य का लगभग 3/4
हिस््ससा हैैं। भारत लौह खनिजोों के भंडार और उत््पपादन दोनोों मेें अच््छछी स््थथिति मेें
खनिज संसाधनोों के प्रकार
है। यह पर््ययाप्त मात्रा मेें लौह खनिजोों का निर््ययात करता है।
विशेषताओ ं के आधार पर , खनिजोों को प्रमुख और लघु खनिजोों मेें
वर्गीकृत किया गया है: लौह अयस््क
z प्रमुख खनिज: भू पर््पटी मेें प्रचरु मात्रा मेें मौजद z लौह अयस््क के प्रकार और उपयोग
ू ; कोयला, लौह अयस््क,
बॉक््ससाइट, ताँबा, सोना और चनू ा पत््थर जैसे प्रमखु खनिज अर््थव््यवस््थथा मेें मैग््ननेटाइट (Fe3O4): 72% लौह सामग्री; इलेक्ट्रॉनिक उद्योगोों मेें उपयोग
90 संसाधन
हेमटा े इट (Fe2O3): लौह सामग्री 60-70%; लौह एवं इस््पपात उद्योगोों मेें z हालाँकि, मैैंगनीज भडं ार लगभग सभी भवू ैज्ञानिक संरचनाओ ं मेें पाए जाते हैैं
उपयोग किया जाता है। मख्ु ्य रूप से धारवाड़ प्रणाली से जड़़ेु हैैं। निर््ममाता हैैं:
लिमोनाइट (FeO(OH)∙nH2O): लौह सामग्री 40-60%; पेेंट के लिए मध््य प्रदेश : बालाघाट-छिंदवाड़़ा-निमाड़-मड ं ला और झाबआ ु ज़िले
रंगद्रव््य (pigment) के रूप मेें कार््य करता है। उड़़ीसा: अग्रणी निर््ममाता ; उड़़ीसा मेें प्रमख ु खदानेें बोनाई, केें दुझार,
सीडेराइट (FeCO3): लौह सामग्री 40-50%; मैैंगनीज के स्रोत के रूप
सदुं रगढ़, गंगपुर, कोरापुट, कालाहांडी और बोलांगीर मेें स््थथित हैैं।
मेें कार््य करता है।
कर््ननाटक : खदानेें धारवाड़, बेल््ललारी, बे लगाम, उत्तरी के नरा,
z भारत मेें पाए जाने वाले दो मख्ु ्य प्रकार के लौह अयस््क हेमेटाइट और
चिकमगलूर, शिमोगा, चित्रदुर््ग और तुमकुर मेें स््थथित हैैं।
मैग््ननेटाइट हैैं।
महाराष्टट्र: खदानेें नागपुर, भंडारा और रत््ननागिरी ज़िलोों मेें हैैं।
z लौह अयस््क की खदानेें देश के उत्तर-पर्ू वी पठारी क्षेत्र मेें कोयला क्षेत्ररों के
ते लंगाना, गोवा और झारखंड मैैंगनीज के अन््य छोटे उत््पपादक हैैं।
करीब होती हैैं।
z लौह अयस््क के कुल भडं ार का लगभग 95% ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, भारत मेें राज््यवार वितरण: ओडिशा (44%); कर््ननाटक (22%); मध््य
कर््ननाटक, गोवा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु मेें स््थथित है। प्रदेश (13%); महाराष्टट्र (8%); आध्रं प्रदेश (4%); झारखडं और गोवा
z भारत मेें प्रमुख लौह अयस््क पेटियाँ हैैं : (प्रत््ययेक 3%); राजस््थथान, गजु रात तथा पश्चिम बंगाल (शेष 3%)
ओडिशा: सद ुं रगढ़, मयूरभंज और झार मेें पहाड़़ी ृंखलाओ ं की ृंखला। z वैश्विक भंडार: दक्षिण अफ्रीका, यक्रेू न और ऑस्ट्रेलिया के पास सबसे बड़़ा
महत्तत्वपूर््ण खदानेें : गुरुमहिसानी, सल ु ेपत, बादाम पहाड़ (मयूरभंज), भडं ार है; यक्रेू न, काके शस पर््वत, यरू ाल तथा जॉर््जजिया गणराज््य मेें प्रचरु मात्रा
किरुबुरु (केें दुझार) और बोनाई (सदुं रगढ़) मेें भडं ार ; चीन एवं भारत अग्रणी उत््पपादक हैैं; अन््य प्रमख ु उत््पपादकोों मेें
झारखंड: महत्तत्वपूर््ण खदानेें : नोआमुंडी, गुआ। ऑस्ट्रेलिया, घाना, गैबॉन, मोरक््कको और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैैं।
छत्तीसगढ़: दत ं ेवाड़़ा और बैलाडीला। दर््गु मेें दल््लली और राजहरा। अलौह खनिज
कर््ननाटक: बे ल््ललारी ज़िले का संदरु -होस््पपेट क्षेत्र, चिकमग ं लरू ज़िले मेें इनमेें लौह तत्तत्व नहीीं होता है, जैसे- ताँबा, बॉक््ससाइट, सीसा, जस््तता, सोना
बाबा बुदन पहाड़़ियाँ और कुद्रेमुख तथा शिवमोग््गगा, चित्रदुर््ग एवं आदि। बॉक््ससाइट को छोड़कर इन खनिजोों का भारत का भंडार और उत््पपादन
तुमकुर ज़िले।
बहुत संतोषजनक नहीीं है।
महाराष्टट्र: चद्र ं परु , भंडारा और रत््ननागिरी ज़िले ।
ताँबा (Copper)
ते लंगाना: करीमनगर और वारंगल ज़िला;
z भारत मेें ताँबे के भंडार और उत््पपादन दोनोों ही बहुत कम है।
आंध्र प्रदेश: कुरनूल, कडप््पपा और अनंतपुर ज़िले।
z लचीला, तन््यता और विद्युत का अच््छछा चालक होने के कारण ताँबे का
तमिलनाडु: सले म और नीलगिरी ज़िले ;
उपयोग मख्ु ्य रूप से विद्युत के बल, इलेक्ट्रॉनिक््स और रासायनिक उद्योगोों
राजस््थथान : भीलवाड़़ा;
मेें किया जाता है। आभूषणोों को मज़बूती प्रदान करने के लिए इसे सोने
गोवा भी एक महत्तत्वपर् ू ्ण उत््पपादक के रूप मेें उभरा है। के साथ भी मिलाया जाता है ।
z भारत का लौह अयस््क अधिकतर - हेमटा े इट प्रकार का है ; रूस के बाद भारत
z भारत मेें ताँबा समृद्ध क्षेत्र - झारखंड : राका खदानेें, मोसाबनी खदानेें; आंध्र
हेमटाे इट का दसू रा सबसे बड़़ा उत््पपादक देश है।
प्रदेश : कुरनल ू , गंटु ू र, नेल््ललोर; हिमाचल प्रदेश : कांगड़़ा घाटी, कुल््ललू घाटी;
z वैश्विक लौह अयस््क उत््पपादन
पश्चिम बंगाल : जलपाईगड़़ी ु , दार््जजिलिंग।
अफ्रीका: लाइबेरिया, दक्षिण अफ्रीका और अल््जजीरिया।
z वैश्विक स््तर पर ताँबे का भंडार: चिली और पेरू के पास दनि ु या के ताँबे
चीन: शेनयांग, मच ं रू िया, वहु ान, ताई-ये और हैनान द्वीप मेें भडं ार।
के भडं ार का एक तिहाई से अधिक हिस््ससा है; उत्तरी अमेरिका के ताँबा खनन
ऑस्ट्रेलिया: पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया मेें भड ं ार के साथ प्राथमिक उत््पपादक। क्षेत्र पश्चिमी कॉर््डडिलेरास के साथ-साथ मेक््ससिको, अमेरिका तथा कनाडा तक
दक्षिण अमेरिका: ब्राज़ील
फै ले हुए हैैं; यरू ोप के पास रूस एवं पोलैैंड मेें संसाधन हैैं व अर्मेनिया, जॉर््जजिया,
उत्तरी अमेरिका: सय ं क्त
ु राज््य अमेरिका और कनाडा, ग्रेट लेक््स क्षेत्र मेें उज््बबेकिस््ततान और कजाकिस््ततान मेें महत्तत्वपर्ू ्ण भडं ार हैैं।
समृद्ध भडं ार के साथ।
बॉक््ससाइट
रूस: प्रमख ु क्षेत्ररों मेें के र््च प्रायद्वीप, कुर््स््क क्षेत्र और यरू ाल पर््वत शामिल हैैं।
z बॉक््ससाइट से एल््ययूमिना और फिर एल््ययूमिनियम प्राप्त किया जाता है; एल््ययूमिनियम
यरू ोप: स््ववीडन और फ््रााँस मेें प्रमख ु भडं ार, राइन वैली (जर््मनी), लॉरे न,
नॉर्मंडी तथा पाइरे नीज़ (फ््रााँस) मेें प्रमख मेें लोहे जैसी धातओ ु ं की ताकत होती है, लेकिन यह अत््ययंत हल््कका होता है
ु केें द्र।
तथा इसमेें अच््छछी चालकता एवं महान लचीलापन होता है। बॉक््ससाइट का
मैैंगनीज
भडं ार विभिन््न प्रकार की एल््ययूमीनियम सिलिके ट से भरपरू चट्टानोों के विघटन
z लौह अयस््क को गलाने के लिए महत्तत्वपर्ू ्ण कच््चचा माल और इसका उपयोग
से बनता है।
इस््पपात निर््ममाण (1 टन स््टटील के लिए 10 किलोग्राम मैैंगनीज) तथा फेरो-
मैैंगनीज मिश्र धातुओ ं के लिए भी किया जाता है । इसका उपयोग ब््ललीचिंग z भारत मेें वितरण: बॉक््ससाइट मख्ु ्य रूप से लैटेराइट चट्टानोों से जड़़ेु तृतीयक
पाउडर, कीटनाशक और पेेंट के निर््ममाण मेें भी किया जाता है । निक्षेपोों मेें पाया जाता है।
संसाधन 91
उड़़ीसा: सबसे बड़़ा उत््पपादक; कालाहांडी और संबलपरु प्रमख ु उत््पपादक z शीर््ष उत््पपादक : मध््य प्रदेश मेें भारत के चनू ा पत््थर का 16% भडं ार पाया
क्षेत्र। जाता है,, जबलपरु , सतना, बैतल ू आदि प्रमख ु उत््पपादक क्षेत्र है।
झारखण््ड: लोहरदगा के पठारी क्षेत्ररों मेें उल््ललेखनीय उत््पपादन। जिप््सम
गजु रात: खेड़, अमरे ली, भावनगर, जामनगर। z कै ल््शशियम का हाइड्रेटेड सल््फफेट; सफे द अपारदर्शी या पारदर्शी।
छत्तीसगढ़: अमरकंटक पठार महत्तत्वपर्ू ्ण है। z चनू ा पत््थर, बलआ ु पत््थर और शेल््स जैसी अवसादी सरच ं नाओ ं मेें होता है ।
मध््य प्रदेश: अमरकंटक, बालाघाट। z अमोनिया सल््फफेट उर््वरक , सीमेेंट उद्योग (सीमेेंट का 4-5%) मेें उपयोग
महाराष्टट्र: कोलाबा, ठाणे, रत््ननागिरी, सतारा, पणु ,े कोल््हहापरु । किया जाता है ; प््ललास््टर ऑफ पेरिस, चीनी मिट्टी की वस््ततुएँ , टाइलेें,
लघु उत््पपादक: तमिलनाडु, कर््ननाटक, गोवा। प््ललास््टटिक; कृषि मेें सतह प््ललास््टर के रूप मेें उपयोग किया जाता है।
वैश्विक स््तर पर बॉक््ससाइट भंडार z राजस््थथान भारत के उत््पपादन मेें अग्रणी (99%), जोधपुर, नागौर, बीकानेर,
जैसलमेर और बाड़मेर मेें जमा है।
z ऑस्ट्रेलिया, गिनी, जमैका और ब्राज़ील प्रमख ु भडं ार हैैं; संयक्त
ु राज््य अमेरिका
के पास अर््काांसस, अलाबामा और जॉर््जजिया मेें जमा राशि है; रूसी निक्षेप क्रोमाइट
यरू ाल क्षेत्र मेें स््थथित हैैं। z आयरन और क्रोमियम का ऑक््ससाइड; क्रोमियम के लिए प्राथमिक अयस््क
z सोने के भंडार का विस््ततार: आध्र ं प्रदेश, बिहार (जमईु ), छत्तीसगढ़, z क्रोम प््ललेटिंग, मिश्रधातु, धातुकर््म और रासायनिक उद्योगोों मेें उपयोग
झारखडं , कर््ननाटक, के रल, मध््य प्रदेश, तमिलनाडु और राजस््थथान। किया जाता है।
अधात््वविक खनिज z भारत मेें अनमानि
ु त भडं ार 203 मीट्रिक टन है, 93% ओडिशा (कटक और
भारत मेें उत््पपादित अधात््वविक खनिजोों मेें अभ्रक सबसे महत्तत्वपूर््ण है। स््थथानीय जाजापुर मेें सकिु ं दा घाटी) मेें है।
उपभोग के लिए निकाले गए अन््य खनिज चनू ा पत््थर, डोलोमाइट और फॉस््फफेट z ओडिशा एकमात्र उत््पपादक (99%) है, क््ययोझर, कटक और ढेें कनाल मेें
92 संसाधन
भारी खनिज रे त बनाने वाले सात खनिज हैैं- गार्नेट, मोनाजाइट, झरने हैैं; हिमाचल प्रदेश के मणिकर््ण और लद्दाख की पुगा घाटी मेें दो
रूटाइल, जिरकोन, सिलिमे नाइट, इल््ममेनाइट और ल््ययूकोस््ककिन (ब्राउन प्रायोगिक परियोजनाएँ शरूु की गई है।
इल््ममेनाइट)। टाइटे नियम बनाने वाले दो मख्ु ्य खनिज रूटाइल (TiO2) जैव-ऊर््जजा (Bio-energy)
और इल््ममेनाइट (FeO.TiO2) हैैं। ये समद्रु तटीय रे त भंडार के महत्तत्वपूर््ण जैव-ऊर््जजा जैविक उत््पपादोों से प्राप्त ऊर््जजा को संदर््भभित करती है जिसमेें कृषि
घटक हैैं जो पर्ू ्व मेें ओडिशा के तट से लेकर पश्चिम मेें गजु रात के तट तक अवशेष, नगरपालिका, औद्योगिक और अन््य अपशिष्ट शामिल हैैं। इसे विद्युत
पाए जा सकते हैैं। [ यूपीएससी 2023 ] ऊर््जजा, ऊष््ममा ऊर््जजा या खाना पकाने के लिए गैस मेें परिवर््ततित किया जा सकता है।
ऊर््जजा संसाधन ऊर््जजा के पारं परिक स्रोत
कोयला
ऊर््जजा के गैर-पारं परिक नवीकरणीय स्रोत
कोयला मख्ु ्य रूप से दो भवू ैज्ञानिक युगोों अर््थथात गोोंडवाना और टर््शशियरी
गैर-पारंपरिक स्रोतोों मेें सौर, पवन, ज््ववारीय, भतू ापीय, बायोगैस और परमाणु
निक्षेपोों के चट्टान अनुक्रमोों मेें पाया जाता है। भारत मेें लगभग 80% कोयला
ऊर््जजा शामिल हैैं। ये ऊर््जजा स्रोत अधिक समान रूप से वितरित और पर््ययावरण-
भंडार बिटुमिनस प्रकार का है और गैर-कोकिंग ग्रेड का है।
अनुकूल सस््तती ऊर््जजा प्रदान करते हैैं।
कोयले के प्रकार और वर्गीकरण
z वर््तमान स््थथिति : दिसंबर 2023 तक कुल क्षमता 179.57 गीगावॉट (बड़़ी
z गोोंडवाना कोयला (धातुशोधन कोयला): 200 मिलियन वर््ष से अधिक
पनबिजली सहित, स्रोत: केें द्रीय विद्युत प्राधिकरण) तक पहुचँ गई है।
परु ाना; दामोदर घाटी (झारखडं -बंगाल) मेें पाया जाता है।
भारत का नवीकरणीय ऊर््जजा परिदश्
ृ ्य (दिसंबर 2023 तक)
z टर््शशियरी कोयला: 55 मिलियन वर््ष परु ाना; पर्ू वोत्तर राज््योों और हिमालय
z कुल क्षमता: 179.57 गीगावॉट (बड़़ी पनबिजली सहित)
की तलहटी मेें।
z ब्रेकडाउन: सौर: 73.32 गीगावॉट (56.92 गीगावॉट भमि ू पर स््थथापित, 11.08 z लिग््ननाइट: उच््च नमी वाला निम््न श्रेणी का भरू ा कोयला; बिजली उत््पपादन के
गीगावॉट ग्रिड से जड़़ाु रूफटॉप); पवन : 42.868 गीगावॉट; बायोमास/ लिए उपयोग किया जाता है; नेवेली, तमिलनाडु मेें प्रमख ु ।
Co-gen: 10.248 गीगावॉट; लघु जल विद्युत: 4.944 गीगावॉट; अपशिष्ट
भारत मेें वितरण
से ऊर््जजा: 554 मेगावाट; बड़़े हाइड्रो: 46.88 गीगावॉट
z गोोंडवाना कोयला क्षेत्र
z नवीकरणीय हिस््ससेदारी: कुल स््थथापित क्षमता का 42%।
दामोदर घाटी (झारखड ं -बंगाल कोयला बेल््ट) मेें स््थथित है । कोयला क्षेत्र:
सौर ऊर््जजा
रानीगंज, झरिया, बोकारो, गिरिडीह, कर््णपरु ा।
z भारत के पश्चिमी भाग गजु रात और राजस््थथान मेें सौर ऊर््जजा के विकास की
कोयले से जड़़ी ु अन््य नदी घाटियाँ गोदावरी, महानदी और सोन हैैं ।
अधिक सभं ावनाएँ हैैं।
महत्तत्वपर्ू ्ण कोयला खनन केें द्र: मध््य प्रदेश मेें सिगं रौली (सिंगरौली
z लाभ : प्रचरु सौर ऊर््जजा , कम रखरखाव, स््वच््छ बिजली, ग्रिड टाई-अप लाभ।
कोयला क्षेत्र का हिस््ससा उत्तर प्रदेश मेें स््थथित है); छत्तीसगढ़ मेें कोरबा ;
z चुनौतियाँ : ग्रिड एकीकरण, ऊर््जजा भडं ारण मेें सधु ार की आवश््यकता।
ओडिशा मेें तालचेर और रामपरु ; महाराष्टट्र मेें चदं ा-वर््धधा, कै म््पटी तथा
पवन ऊर््जजा बांदरे एवं तेलंगाना मेें सिगं रेनी और आंध्र प्रदेश मेें पाडुर ।
z वितरण: तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर््ननाटक, गुजरात (लांबा पवन ऊर््जजा z टर््शशियरी कोयला : टर््शशियरी कोयला असम , अरुणाचल प्रदेश, मे घालय
संयंत्ररों के लिए प्रसिद्ध है), के रल, महाराष्टट्र और लक्षद्वीप मेें महत्तत्वपर्ू ्ण पवन और नगालैैंड मेें पाया जाता है । इसे दारंगिरि, चेरापँजू ी, मेवलोोंग और लैैंग्रिन
फार््म हैैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश मेें पवन ऊर््जजा के प्रभावी उपयोग के (मेघालय) से निकाला जाता है; ऊपरी असम मेें मकुम, जयपरु तथा नाज़़िरा ,
लिए प्रसिद्ध हैैं। नामचिक-नामफुक (अरुणाचल प्रदेश) एवं कालाकोट (जम््ममू और कश््ममीर)।
z स््थथान : पवन ऊर््जजा क्षमता मेें विश्व स््तर पर 5वाँ स््थथान। z लिग््ननाइट (भूरा कोयला) क्षेत्र: तमिलनाडु, पांडिचेरी, गज ु रात, जम््ममू और
z गजु रात मेें ज़मीनी स््तर से 120 मीटर ऊँचाई पर सबसे अधिक पवन ऊर््जजा कश््ममीर के तटीय क्षेत्र।
क्षमता (GW मेें) है। कोयले को कार््बन की मात्रा और कोयले द्वारा उत््पपादित ऊष््ममा ऊर््जजा की मात्रा
ज््ववारीय और तरं ग ऊर््जजा (Tidal and Wave Energy) के आधार पर चार मुख््य प्रकारोों मेें वर्गीकृ त किया जाता है: एन्थ्रेसाइट,
खंभात की खाड़़ी, पश्चिमी तट पर गजु रात मेें कच््छ की खाड़़ी और पश्चिम बिटुमिनस, सब बिटुमिनस और लिग््ननाइट।
बंगाल के सुंदरबन क्षेत्ररों मेें गंगा के डेल््टटा, ज््ववारीय ऊर््जजा के उपयोग के लिए z एन्थ्रेसाइट मेें 86%-97% कार््बन होता है।
आदर््श स््थथितियाँ प्रदान करते हैैं। z बिटुमिनस कोयले मेें 45%-86% कार््बन होता है।
भूतापीय ऊर््जजा (Geothermal Energy) z लिग््ननाइट मेें 25%-35% कार््बन होता है।
भतू ापीय ऊर््जजा से तात््पर््य पृथ््ववी के आंतरिक भाग से निकलने वाली ऊष््ममा रै ट होल खनन: कोयला निष््कर््षण के लिए छोटी सुरंगेें खोदना शामिल है;
का उपयोग करके उत््पपादित ऊर््जजा और बिजली से है। भारत मेें कई सौ गर््म मेघालय मेें प्रचलित है।
संसाधन 93
z अफ़््रीकी महाद्वीप मेें कोयले के भडं ार अनपु स््थथित हैैं। z भारत मेें पेट्रोलियम रिफाइनिंग: असम के डिगबोई मेें वर््ष 1901 मेें
रिफाइनिंग शुरू हुई। भारत मेें दो प्रकार की रिफाइनरियाँ हैैं:
z स््वविट्ज़रलैैंड मेें कोई ज्ञात खनिज भडं ार नहीीं है।
1. क्षेत्र आधारित (डिगबोई)
z कोस््टल गजु रात पावर लिमिटेड एक कोयला आधारित बिजली संयंत्र है जो
2. बाज़ार आधारित (बरौनी)।
समद्ु री जल का उपयोग करता है; कोयला बिजली संयंत्ररों के उत्तरी और पर्ू वी
z रणनीतिक पेट्रोलियम रिज़र््व (Strategic Petroleum Reserve-
नदी घाटियोों मेें स््थथानांतरित होने के बाद से, इन नदी घाटियोों के जलग्रहण
SPR): विशाखापत्तनम (आध्रं प्रदेश), मैैंगलोर और पादुर (कर््ननाटक) मेें
क्षेत्र जल की कमी का सामना कर रहे हैैं; लेकिन सभी कोयला बिजली संयंत्र भारत की ISPRL द्वारा प्रबंधित की जाती हैैं। चाँदीखोल (ओडिशा)
सरकारी स््ववामित््व वाले नहीीं हैैं। [यूपीएससी 2023] और बीकानेर (राजस््थथान) के लिए अतिरिक्त भडं ार की योजना बनाई गई है।
भारतीय कोयले मेें राख की मात्रा अधिक, सल््फर की कम मात्रा और राख
अपरं परागत हाइड््र रोकार््बन
z
94 संसाधन
यूरेनियम: सिल््वर-ग्रे, स््ववाभाविक रूप से सपु रनोवा विस््फफोटोों मेें।
जल संसाधन
z
संसाधन 95
20 विनिर््ममाण उद्योग और सेवा क्षेत्र
बड़़े उद्योग: बड़़े पैमाने के उद्योगोों मेें पँजू ी का निवेश अधिक होता है और
उद्योगोों का वर्गीकरण उपयोग की जाने वाली तकनीक बेहतर होती है। जैसे: ऑटोमोबाइल उद्योग,
z कच््चचे माल पर आधारित भारी मशीनरी उद्योग आदि।
कृषि आधारित उद्योग: कच््चचा माल कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है। जैसे-
विनिर््ममाण उद्योगोों के प्रकार (MSME)
कपास, चीनी आदि। वर्गीकरण सूक्षष्म लघु मध््यम
खनिज आधारित उद्योग: खनन से प्राप्त कच््चचा माल। जैसे-लोहा एवं विनिर््ममाण उद्यम निवेश: संयंत्र निवेश: संयंत्र निवेश: संयंत्र
इस््पपात, सीमेेंट आदि। और सेवा उद्यम एवं मशीनरी या एवं मशीनरी या एवं मशीनरी या
वन आधारित उद्योग: कच््चचा माल वन से प्राप्त होता है। जैसे-कागज़
उपकरण मेें 1 उपकरण मेें 10 उपकरण मेें 50
उद्योग, इमारती लकड़़ी आदि। करोड़ रुपये से करोड़ रुपये से करोड़ रुपये से
अधिक नहीीं अधिक नहीीं अधिक नहीीं
z उत््पपाद के आधार पर वार््षषिक कारोबार: वार््षषिक कारोबार: वार््षषिक कारोबार:
बुनियादी या प्रमुख उद्योग: अपने माल को अन््य उद्योगोों को आपर््तति ू 5 करोड़ रुपये से 50 करोड़ रुपये 250 करोड़ रुपये
करते हैैं। जैसे-आयरन, स््टटील आदि। अधिक नहीीं से अधिक नहीीं से अधिक नहीीं
उपभोक्ता उद्योग: प्रत््यक्ष उपभोग के लिए वस््ततुओ ं का उत््पपादन करते हैैं।
उद्योगोों की अवस््थथिति
जैसे- टूथपेस््ट, टेलीविज़न आदि।
z स््ववामित््व के आधार पर उद्योगोों की अवस््थथिति कच््चचे माल, बिजली, बाज़ार, पूँजी, परिवहन और
सार््वजनिक क्षेत्र: सरकार द्वारा स््ववामित््व और संचालित। जैसे-भेल ,
श्रम तक पहुचँ जैसे कई कारकोों से निर््धधारित होती है।
z कच््चचा माल: भार ह्रासी कच््चचे माल का उपयोग करने वाले उद्योग उन क्षेत्ररों
सेल आदि।
मेें स््थथित होते हैैं जहाँ कच््चचे माल का उत््पपादन होता है। उदाहरण के लिए, चीनी
निजी क्षेत्र: निजी व््यक्तियोों द्वारा स््ववामित््व और संचालन। जैसे-टिस््कको,
मिलेें, लगु दी उद्योग, ताँबा गलाने और कच््चचा लोहा उद्योग आदि।
रिलायंस इडं स्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) आदि।
z विधुत /शक्ति : कुछ उद्योग, जैसे एल््ययूमीनियम और सिथ ं ेटिक नाइट्रोजन
सय ं ुक्त क्षेत्र: राज््य और निजी संचालकोों द्वारा संयक्तु रूप से चलाया जाता
है। जैसे-ऑयल इडि विनिर््ममाण उद्योग, विधुत के स्रोतोों के पास स््थथित होते हैैं, क््योोंकि वे शक्ति
ं या लिमिटेड(OIL)
गहन होते हैैं तथा उन््हेें भारी मात्रा मेें विद्धुत की आवश््यकता होती है।
सहकारी क्षेत्र: कच््चचे माल के उत््पपादकोों और आपर््ततिकर््तता
ू ओ,ं श्रमिकोों या
z बाज़ार: बाज़ार उन स््थथानोों के रूप मेें कार््य करते हैैं, जहाँ निर््ममित वस््ततुएँ बेची
दोनोों का स््ववामित््व और संचालित। जैसे-महाराष्टट्र मेें चीनी उद्योग।
सच जाती हैैं। बाज़ारोन््ममुख उद्योग-भारी मशीन, मशीन टूल््स; भारी रसायन; सतू ी वस्त्र
z ं ालन के तरीके के आधार पर
(गैर-भार ह्रासी कच््चचा माल) जैसे: मबंु ई, अहमदाबाद, सरू त, आदि; पेट्रोलियम
श्रम गहन उद्योग: बड़़ी संख््यया मेें कुशल, अकुशल या अर््ध-कुशल श्रमिकोों
रिफाइनरियाँ उदा. कोयली, मथरु ा और बरौनी रिफाइनरियाँ। तेल रिफाइनरियोों
को नियोजित किया जाता है। जैसे वस्त्र, चमड़़ा और जतू े।
की स््थथापना मेें बंदरगाह भी महत्तत्वपर्ू ्ण भमिका
ू निभाते हैैं।
पूज ँ ीगत सामान उद्योग: मशीन टूल््स, भारी विद्युत उपकरण, भारी
परिवहन वाहन, खनन और अर््थ मवि ू ंग उपकरण आदि का निर््ममाण करते हैैं। कृषि आधारित उद्योग
रणनीतिक महत्तत्व वाले उद्योग: ऐसे उद्योग जो विदेशी मद् ु रा अर््जजित करने,
अनसु ंधान और रक्षा के उद्देश््य से महत्तत्वपर्ू ्ण हैैं। जैसे एयरोस््पपेस, शिपिंग, वस्त्र उद्योग
इलेक्ट्रॉनिक््स और दरू संचार, रक्षा उपकरण आदि। z देश मेें पहली कपड़ा मिल वर््ष 1818 मेें कोलकाता के पास फोर््ट ग््ललोस््टर
z आकार के आधार पर मेें स््थथापित की गई थी; पहली सफल आधुनिक वस्त्र मिल वर््ष 1854 मेें
लघु उद्योग: कम पँज ू ी निवेश और निम््न प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैैं, मुंबई मेें स््थथापित की गई थी; अहमदाबाद को प्रायः 'भारत का मैनचेस््टर'
और कम मात्रा मेें उत््पपादन करते हैैं। जैसे: हस््तशिल््प, कुटीर उद्योग आदि। कहा जाता है।
सूती वस्त्र
खनिज आधारित उद्योग
z इसका कृषि से गहरा सबं ंध है।
z यद्यपि कताई महाराष्टट्र, गजु रात और तमिलनाडु मेें केें द्रीकृत है, लेकिन बुनाई लौह-इस््पपात उद्योग
को कपास, रे शम, जरी और कढ़़ाई जैसे कपड़ों मेें पारंपरिक कौशल और z कच््चचा माल
डिज़ाइन को शामिल करने के लिए अत््यधिक विकेें द्रीकृत किया गया है। लौह और इस््पपात उद्योग के थोक इनपट ु लौह अयस््क (सकल/वज़न घटने
z पश्चिम भारत के विशाल कपास उत््पपादक क्षेत्ररों से कच््चचे कपास की लगातार वाला कच््चचा माल), कोयला (ईधन), ं चूना पत््थर (फ््लक््स) और पानी
आपर््तति
ू ने अहमदाबाद (भारत का मैनचेस््टर), नागपुर, सरू त, इदं ौर और (शीतलन और श्रमिक सरु क्षा के लिए आवश््यक) हैैं।
अधिकतर बड़़े एकीकृ त इस््पपात सय ं ंत्र कच््चचे माल के स्रोतोों के नज़दीक
कोयंबटूर जैसे केें द्ररों मेें उद्योग को लाभान््ववित किया है।
स््थथित होते हैैं, क््योोंकि वे अधिक मात्रा मेें भारी और कच््चचा भार ह्रासी
z प्रमुख केें द्र: अहमदाबाद, भिवंडी, कानपुर, कोयंबटूर, सोलापुर,
माल का उपयोग करते हैैं।
कोल््हहापुर, नागपुर, इदं ौर और उज््जजैन; तमिलनाडु मेें सबसे अधिक
छोटा नागपुर क्षेत्र मेें लौह और इस््पपात उद्योग का संकेन्दद्रण - इस क्षेत्र मेें
संख््यया मेें मिलेें हैैं तथा उनमेें से अधिकांश कपड़़े के बजाय धागोों का उत््पपादन
लौह अयस््क और कोयले की उपस््थथिति के कारण है। उदाहरण के लिए,
करती हैैं। जमशेदपरु मेें टिस््कको (TISCO) ।
z विश्व कपास उत््पपादन मेें 18% की हिस््ससेदारी के साथ भारत दनि ु या का सबसे
बड़़ा कपास उत््पपादक देश है।
जूट उद्योग
z भारत कच््चचे जूट और जूट के निर््ममित वस््ततुओ ं का सबसे बड़़ा उत््पपादक
है तथा बांग््ललादेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर््ययातक भी है। अधिकांश
मिलेें पश्चिम बंगाल मेें, मख्ु ्यतः हुगली नदी के किनारे , एक संकीर््ण पट्टी मेें
स््थथित हैैं। जटू पैकेजिंग सामग्री अधिनियम,1987 के अनसु ार, 100% खाद्यान््न
और 20% चीनी को जटू की थैलियोों मेें पैक किया जाना चाहिए।
z अग्ं रेज़ोों ने भारत मेें पहला जूट उद्योग वर््ष 1855 मेें कोलकाता के पास
हुगली नदी के पास स््थथापित किया था।
z जूट के उत््पपादक: अके ला पश्चिम बंगाल ही भारत के जटू उत््पपादन का 90%
से अधिक उत््पपादन करता है।
चीनी उद्योग
z भारत गन््नना और चीनी दोनोों का सबसे बड़़ा उत््पपादक है। चीनी उद्योग
z उत्तर प्रदेश मेें, चीनी कारखाने दो क्षेत्ररों मेें केें द्रित हैैं - गंगा-यमुना दोआब
और तराई क्षेत्र।
z तमिलनाडु: कोयंबटूर, वेल््ललोर, तिरुवन््ननामलाई, विल््ललुपरु म और तिरुचिरापल््लली
विनिर्माण उद्योग और से वा 97
z पूर्वोदय पहल (2020): पर्ू वी भारत मेें इस््पपात संयंत्र स््थथापित करने के लिए पेट््ररो-रसायन उद्योग
शरू
ु की गई। z पे ट्रो-रसायन उद्योग कच््चचे तेल से प्राप्त रसायनोों के उत््पपादन से संबंधित उद्योग
वात भट्टी कच््चचा लोहा है। मुंबई को इस उद्योग का केें द्र माना जाता है।
लौह अयस््क को
पिघलाया जाता है. चनू ा पिघली हुई सामग्री को z इसे चार उप-समहोों ू मेें विभाजित किया गया है: (i) पॉलिमर, (ii) कृत्रिम रेशेें
संयंत्र तक कच््चचे माल
सांचोों मेें डाला जाता है
का परिवहन पत््थर फ््लक््ससििंग पदार््थ है
जिन््हेें सुअर कहा जाता है
, (iii) इलास््टटोमर््स, और (iv) पष्ठृ सस्क्ं रियक (सर्फे क््टेें ट इटं रमीडिएट)।
जिसे मिलाया जाता है।
स््ललैग हटा दिया जाता है. z पॉलिमर एथिलीन और प्रोपिलीन से बनाए जाते हैैं। पॉलीमर का उपयोग
अयस््क को गर््म करने के प््ललास््टटिक उद्योग मेें कच््चचे माल के रूप मेें किया जाता है; इनमेें से लगभग
लिए कोक को जलाया
जाता है। 75% इकाइयाँ लघु उद्योग क्षेत्र मेें हैैं।
सीमेेंट उद्योग
आकार देने वाली धातु इस््पपात बनाना
z सीमेें ट उद्योग को भारी और अधिक मात्रा मेें कच््चचे माल जै से चूना पत््थर,
पिग आयरन को अशद्धियोों
ु को पिघलाकर और
रोलिंग, प्रेसिंग, कास््टटििंग सिलिका और जिप््सम की आवश््यकता होती है, इसलिए यह कच््चचे माल
ऑक््ससीकरण करके और अधिक शद्ध ु किया जाता
और फोर््जििंग स्रोत क्षेत्ररों (चनू ा पत््थर समृद्ध क्षेत्ररों) के करीब स््थथित होता है।
है। मैगनीज, निके ल, क्रोमियम मिलाया जाता है
ऑटोमोबाइल उद्योग
चित्र: स््टटील के निर््ममाण की प्रक्रिया
z भारत मेें प्रमख
ु ऑटोमोटिव विनिर््ममाण केें द्ररों मेें दिल््लली, गुरुग्राम, मुंबई,
भारत कोकिंग कोयले का आयात करता है, क््योोंकि भारत मेें पाए जाने वाले
कोयले के भंडार उच््च गुणवत्ता के कोकिंग कोयले वाले नहीीं हैैं। पुणे, चेन््नई, कोलकाता, लखनऊ, इदं ौर, हैदराबाद, जमशेदपुर और
[यूपीएससी 2015] बेेंगलुरु शामिल हैैं।
एल््ययूमिनियम प्रगलन प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र
z यह हल््कका है, संक्षारण प्रतिरोधी है, ऊष््ममा का अच््छछा संवाहक है, लचीला है
और अन््य धातओ ु ं के साथ मिश्रित होने पर मज़बतू हो जाता है। z मबंु ई-पणु े क्षेत्र
z हुगली क्षेत्र
z इसका उपयोग विमान, बर््तन और तार बनाने मेें किया जाता है।
z भारत मेें एल््ययुमीनियम गलाने के संयंत्र ओडिशा, पश्चिम बंगाल, के रल, उत्तर z बेेंगलरु ु -तमिलनाडु क्षेत्र
प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्टट्र और तमिलनाडु मेें स््थथित हैैं। z गज ु रात क्षेत्र
उर््वरक उद्योग z छोटानागपरु क्षेत्र
z नाइट्रोजन उर््वरकोों का उत््पपादन करने वाली लगभग 70% इकाइयाँ बनि ु यादी z विशाखापट्टनम-गंट ु ू र क्षेत्र
कच््चचे माल के रूप मेें नेफ््थथा का उपयोग करती हैैं। इसीलिए वे तेल z गरु ु ग्राम-दिल््लली-मेरठ क्षेत्र
रिफाइनरियोों के पास स््थथित होते हैैं। z कोल््लम-तिरुवनंतपरु म क्षेत्र
z फॉस््फफेटिक उर््वरक संयंत्र खनिज फॉस््फफेट पर निर््भर होते हैैं जो बड़़े पैमाने पर
तृतीयक गतिविधियाँ (Tertiary Activities): यह सेवा उद्योग से
आयात किया जाता है, लेकिन इसके भंडार राजस््थथान, मध््य प्रदेश और
संबंधित है, जहाँ कुशल श्रमिक, पेशेवर रूप से प्रशिक्षित विशेषज्ञ और
झारखंड मेें भी पाए जाते हैैं।
सलाहकार मआ ु वज़े के बदले मेें अपनी विशेषज्ञता तथा सेवाएँ प्रदान करते हैैं।
z पोटाश पूरी तरह से आयात किया जाता है, क््योोंकि देश मेें किसी भी रूप
चतुर््थ क गतिविधियाँ (Quaternary Activities): यह आईटी और
मेें व््ययावसायिक रूप से उपयोग योग््य पोटाश या पोटे शियम यौगिकोों
का कोई भंडार नहीीं है। अनुसंधान जैसे ज्ञान-आधारित सेवाओ ं पर आधारित है, जिसके लिए विशेष
z गज
विशेषज्ञता की आवश््यकता होती है।
ु रात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब और के रल सामहिक ू रूप से कुल
उर््वरक उत््पपादन मेें आधे का योगदान देते हैैं। क््वविनरी गतिविधियाँ (गोल््ड कॉलर जॉब््स), उच््च-स््तरीय निर््णय लेने
z हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर गै स पाइपलाइन ने विजयपरु , जगदीशपरु ,
और मानव-केें द्रित भमिका ू ओ ं जैसे स््ववास््थ््य सेवा और नीति-निर््ममाण आदि
बबराला आदि स््थथानोों पर सयं ंत्ररों को निर््ममाण सभं व बनाया है। से सम््बबंधित होती हैैं, जो विशेष सेवा क्षेत्ररों के शीर््ष का प्रतिनिधित््व करते हैैं।
98 विनिर्माण उद्योग और से वा
21 व््ययापार, परिवहन और संचार
भारत मेें सड़क परिवहन z भारतमाला परियोजना राजमार््ग क्षेत्र के लिए एक छत्र कार््यक्रम है जो
आर््थथिक गलियारोों, अतं र गलियारोों और फीडर मार्गगों, राष्ट्रीय गलियारा
भारत मेें दनि ु या का दसू रा सबसे बड़़ा सड़क नेटवर््क है, जो लगभग 63.73 लाख दक्षता सधु ार, सीमा और अतं रराष्ट्रीय कनेक््टटिविटी सड़कोों, तटीय और
कि.मी. तक फै ला है, जिसमेें राष्ट्रीय राजमार््ग, राज््य राजमार््ग, जिला सड़केें और बंदरगाह कनेक््टटिविटी के विकास जैसे हस््तक्षेपोों के माध््यम से माल और
ग्रामीण सड़केें शामिल हैैं। यात्री आदं ोलन की दक्षता को अनक ु ू लित करने पर केें द्रित है। यह परियोजना
विभिन््न श्रेणियोों की सड़कोों की लंबाई - राष्ट्रीय राजमार््ग 1,44,634 सड़केें, ग्रीन-फील््ड एक््सप्रेसवे और शेष एनएचडीपी कार्ययों को परू ा करती है।
कि.मी., राज््य राजमार््ग 1,86,908 कि.मी. एवं अन््य सड़केें 59,02,539 कि.मी.
मेें फै ली हुई हैैं। z सीमा सड़क सगं ठन: वर््ष 1960 मेें उत्तरी और उत्तर-पर्ू वी सीमाओ ं पर
z सड़क परिवहन भारत के कुल यात्री यातायात का लगभग 87 प्रतिशत और
रणनीतिक रूप से महत्तत्वपर्ू ्ण सड़कोों के सधु ार के माध््यम से रक्षा तैयारियोों
माल ढुलाई का 60 प्रतिशत से अधिक वहन करता है। को मजबतू करने के लिए स््थथापित किया गया था। यह रक्षा मत्रा ं लय के
z स््वचालित मार््ग के तहत सड़कोों और राजमार्गगों मेें 100 प्रतिशत FDI की
अतं र््गत आता हैैं।
अनमति
ु है। भारत मेें रे लवे
z सड़क घनत््व प्रति 100 वर््ग कि.मी. क्षेत्र मेें सड़क की लंबाई है और यह देश
भर मेें भिन््न-भिन््न है। z इसे पहली बार वर््ष 1853 मेें गवर््नर-जनरल लॉर््ड डलहौजी के कार््यकाल के
दौरान बॉम््बबे से ठाणे के मध््य चलाया गया था।
भारत मेें सड़कोों का वर्गीकरण
z अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत के पास दनि ु या की चौथी सबसे बड़़ी
राष्ट्रीय राजमार््ग कुल सड़क नेटवर््क का 2 प्रतिशत हिस््ससा हैैं और कुल यातायात
का 40 प्रतिशत से अधिक परिवहन करते हैैं; केें द्र सरकार (NHAI) द्वारा रे लवे प्रणाली है।
राष्ट्रीय राजमार््ग का निर््ममाण और रखरखाव किया जाता है। NH44 श्रीनगर से z भारतीय रे लवे को 18 जोनोों मेें विभाजित किया गया है: उत्तरी रे लवे (सबसे
कन््ययाकुमारी तक भारत का सबसे लंबा राजमार््ग है। बड़़ा), उत्तर-पर्ू वी रे लवे, पर्ू वोत्तर सीमांत रे लवे (सबसे छोटा), पर्ू वी रे लवे और
z भारतीय राष्ट्रीय राजमार््ग प्राधिकरण (NHAI) सड़क परिवहन और राजमार््ग दक्षिण-पर्ू वी रे लवे, आदि है।
मत्रा
ं लय के तहत एक स््ववायत्त निकाय है, जिसका सचं ालन वर््ष 1995 मेें z रे लवे के बनि ु यादी ढाँचे मेें स््वचालित मार््ग के तहत 100 प्रतिशत एफडीआई
किया गया था। इसे राष्ट्रीय राजमार्गगों के विकास, रखरखाव और संचालन की की अनमति ु है।
जिम््ममेदारी सौौंपी गई है।
z ट्रैक की चौड़़ाई के आधार पर वर्गीकरण: ब्रॉड गेज (1.676 मीटर), मीटर गेज
NH4 बेेंगलरु ु -चेन््नई को जोड़ता है; NH6 सरू त-कोलकाता को जोड़ता है; (1 मीटर) और नैरो गेज (0.762 मीटर या 0.610 मीटर; आम तौर पर पहाड़़ी
NH15 असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ता है। [यपू ीएससी 2014]
क्षेत्ररों तक सीमित)
z स््वर््णणिम चतुर््भभु ज सप ु र हाईवे: यह सपु र हाईवे दिल््लली-कोलकाता-चेन््नई-
z भारतीय रे लवे के पास दो यनू ेस््कको विश्व धरोहर स््थल हैैं:
मबंु ई को छह लेन वाले सपु र हाईवे से जोड़ता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज टर््ममिनस, मब ंु ई (2004)
z उत्तर-दक्षिण गलियारा श्रीनगर (जम््ममू और कश््ममीर) और कन््ययाकुमारी
(तमिलनाडु) को जोड़ता है, और पर्ू ्व-पश्चिम गलियारा सिलचर (असम) भारत की पर््वतीय रे लवे (1999, 2005, 2008): दार््जजिलिंग हिमालयन
और पोरबंदर (गजु रात) को जोड़ता है। [यपू ीएससी 2023] रे लवे, नीलगिरि माउंटेन रे लवे और कालका-शिमला रे लवे।
z राज््य राजमार््ग राज््य की राजधानी को विभिन््न जिला मख् ु ्ययालयोों और अन््य भारत मेें रे लवे बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ
महत्तत्वपर्ू ्ण शहरोों से जोड़ते हैैं। वे देश मेें कुल सड़क लंबाई का 4 प्रतिशत हिस््ससा
z समर््पपित माल ढुलाई गलियारे (डीएफसी)
बनाते हैैं और राज््य सरकारोों द्वारा उनका निर््ममाण और रखरखाव किया जाता है।
पूर्वी डीएफसी (ईडीएफसी): लधि ु याना (पंजाब) से दानकुनी (पश्चिम
z जिला सड़केें जिला मख् ु ्ययालय और जिले के अन््य महत्तत्वपर्ू ्ण नोड्स के बीच
संपर््क लिंक के रूप मेें कार््य करती हैैं। ये देश की कुल सड़क लंबाई का 14 बंगाल) तक 1,856 कि.मी. लंबा; इसमेें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश,
प्रतिशत हिस््ससा बनाती हैैं और इनका रखरखाव जिला परिषद द्वारा किया बिहार, झारखडं और पश्चिम बंगाल शामिल हैैं।
जाता है। पश्चिमी डीएफसी (डब््ल्ययूडीएफसी): दादरी (यप ू ी) से जवाहरलाल नेहरू
z ग्रामीण सड़केें ग्रामीण क्षेत्ररों को लिंक प्रदान करती हैैं और भारत मेें सड़क बंदरगाह (महाराष्टट्र) तक 1,504 कि.मी. लंबा; इसमेें हरियाणा, राजस््थथान,
की कुल लंबाई का लगभग 80 प्रतिशत हिस््ससा बनाती हैैं। गजु रात, महाराष्टट्र और उत्तर प्रदेश शामिल हैैं।
डायमंड क््ववाड्रिलैटरल एक उच््च गति रे ल नेटवर््क स््थथापित करने के लिए एक हजीरा (गजु रात)-विजयपरु -जगदीशपरु (यपू ी) एचवीजे: गेल द्वारा निर््ममित
भारतीय रे लवे परियोजना है जो भारत के चार मेगा शहरोों - दिल््लली, मंबु ई, पहली अतं रराज््ययीय प्राकृतिक गैस पाइपलाइन, पश्चिमी और उत्तरी भारत मेें
कोलकाता और चेन््नई को जोड़़ेगी। विभिन््न उर््वरक, बिजली और औद्योगिक परिसरोों के साथ मबंु ई हाई और
बेसिन गैस क्षेत्ररों को जोड़ती है। यह परियोजना वर््ष 1986 मेें शरू
ु हुई थी।
ट््राांस-कॉन््टटिनेेंटल रे लवे लाइनेें
ट््राांस-साइबेरियाई रे लवे (रूस) सेेंट पीटर््सबर््ग (पश्चिम) से व््ललादिवोस््ततोक भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) की स््थथापना वर््ष 1984 मेें अपने
(पूर््व) तक आर््थथिक उपयोग के लिए प्राकृतिक गैस के परिवहन, प्रसंस््करण और विपणन
ट््राांस-कै नेडियन रे लवे हैलिफ़़ै क््स (पूर््व) से वैैंकूवर (पश्चिम) तक के लिए सार््वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप मेें की गई थी।
ऑस्ट्रेलियाई ट््राांस-कॉन््टटिनेेंटल रेलवे पर््थ (पश्चिमी तट) से सिडनी (पर्ू वी तट) तक ऑयल इडि ं या लिमिटेड (ओआईएल), पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस
ओरियन््ट एक््सप्रेस पेरिस से इस््तताांबुल तक मंत्रालय के प्रशासनिक ढाँचे के तहत, कच््चचे तेल और प्राकृतिक गैस की
खोज, उत््पपादन और परिवहन मेें लगी हुई है। इसकी स््थथापना वर््ष 1959 मेें
भारत मेें पाइपलाइन एक कंपनी के रूप मेें हुई थी।
z पानी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे तरल पदार््थ तथा गैसोों के परिवहन के जल परिवहन
लिए पाइपलाइनोों का बड़़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। पाइपलाइन बिछाने
की प्रारंभिक लागत अधिक है, लेकिन बाद मेें चलाने की लागत न््ययूनतम है। z जल परिवहन दो प्रकार का होता है-
समद्ु री जलमार््ग
z देश मेें पाइपलाइन परिवहन के तीन महत्तत्वपर्ू ्ण नेटवर््क हैैं:
अतं र-देशीय जलमार््ग
एशिया की पहली क्रॉस-कंट्री पाइपलाइन का निर््ममाण ओआईएल द्वारा
नहरकटिया तेल क्षेत्र (असम) से गवा ु हाटी होते हुए बरौनी रिफाइनरी महासागरीय जलमार््ग/समुद्री मार््ग
(बिहार) तक किया गया था। वर््ष 1966 मेें इसे आगे बढ़़ाकर कानपरु भारत मेें लगभग 7,517 कि.मी. की विशाल तटरे खा है, जिसमेें 12 प्रमख ु और
तक कर दिया गया। 205 अधिसूचित छोटे बंदरगाह वाले द्वीप शामिल हैैं जबकि प्रमख ु बंदरगाह
गज ु रात के सलाया से वीरमगाम, मथरु ा, दिल््लली और सोनीपत होते हुए जहाजरानी मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण मेें हैैं, गैर-प्रमख ु बंदरगाह संबंधित
पंजाब के जालंधर तक। राज््य समद्ु री बोर्डडों/राज््य सरकार के अधिकार क्षेत्र मेें हैैं।
अमृतसर
दिल््लली
कोलकाता
मंबु ई
दिल््लली मंबु ई औद्योगिक गलियारा (डीएमआईसी) 1504 किलोमीटर।
कन््ययाकूमारी
कश््ममीर, पश्चिम बंगाल, के रल, उत्तर प्रदेश, दिल््लली और लक्षद्वीप के कुछ z सबसे कम लिंगानप ु ात वाला राज््य: हरियाणा
हिस््सोों मेें पाए जाते है। z भारत मेें साक्षरता दर: परु ु ष-82.14 प्रतिशत; महिलाएँ-65.46 प्रतिशत; समग्र
ईसाई: ईसाई कुल जनसंख््यया का 2.3 प्रतिशत हैैं। उनकी आबादी मख् ु ्य साक्षरता-74 प्रतिशत
रूप से गोवा और के रल के आसपास के पश्चिमी तट और मेघालय, मिजोरम z सर््ववाधिक साक्षरता दर वाला राज््य: के रल (94.0)
तथा नागालैैंड जैसे पहाड़़ी राज््योों मेें पाई जाती है। z न््ययूनतम साक्षरता दर वाला राज््य: बिहार (61.80)
सिख: सिख कुल जनसख् ं ्यया का 1.7 प्रतिशत हैैं। वे मख्ु ्य रूप से पजं ाब, जनगणना, जनसंख््यया की समय-समय पर की जाने वाली आधिकारिक गणना
हरियाणा और दिल््लली मेें रहते हैैं। है। भारत मेें पहली जनगणना वर््ष 1872 मेें और पहली पूर््ण जनगणना वर््ष
जै न: जैन कुल जनसंख््यया का 0.4 प्रतिशत हैैं। वे बड़़े पैमाने पर राजस््थथान, 1881 मेें हुई थी। बाद की जनगणनाएँ प्रति 10वेें वर््ष होती रही हैैं।
गजु रात और महाराष्टट्र के शहरी क्षेत्ररों मेें रहते हैैं। शर्ततें परिभाषा
बौद्ध: बौद्ध कुल जनसंख््यया का 0.7 प्रतिशत हैैं। वे महाराष्टट्र, सिक््ककिम, अशोधित जन््म
अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, त्रिपरु ा तथा लाहौल और स््पपीति के क्षेत्ररों मेें प्रति 1,000 व््यक्तियोों पर जीवित जन््मोों की वार््षषिक संख््यया।
दर
पाए जाते हैैं। सामान््य प्रसव उम्र की प्रति 1,000 महिलाओ ं पर जीवित बच््चोों की
वर््ष 2011 की जनगणना (15वीीं जनगणना) प्रजनन दर वार््षषिक संख््यया (15 से 49 वर््ष तक)
z वर््ष 2011 की जनगणना के अनस
अशोधित मृत््ययु
ु ार कुल जनसंख््यया के 31.165 प्रतिशत भाग प्रति 1,000 लोगोों पर होने वाली मौतोों की वार््षषिक संख््यया।
को शहरी श्रेणी मेें रखा जा सकता है। दर
प्रति 1,000 जीवित जन््मोों पर 1 वर््ष से कम आयु के बच््चोों
गोवा सबसे अधिक शहरीकृ त राज््य है (62 प्रतिशत शहरी आबादी)। शिशु मृत््ययु दर
की मृत््ययु की वार््षषिक संख््यया।
हिमाचल प्रदेश मेें ग्रामीण जनसंख््यया का प्रतिशत सबसे अधिक है।
किसी निश्चित आयु मेें कोई व््यक्ति वर््तमान मृत््ययु दर पर
z सबसे कम जनसंख््यया वाला केें द्र शासित प्रदेश : लक्षद्वीप जीवन प्रत््ययाशा कितने वर्षषों तक जीने की उम््ममीद कर सकता है। भारत मेें
z सर््ववाधिक जनसंख््यया वाला केें द्र शासित प्रदेश: दिल््लली जीवन प्रत््ययाशा 69.16 वर््ष (वर््ष 2017 मेें) है।
z सर््ववाधिक जनसंख््यया वाला राज््य : उत्तर प्रदेश > महाराष्टट्र > बिहार कुल प्रजनन अपने प्रजनन जीवन के दौरान प्रति महिला जीवित जन््मोों
z सबसे कम जनसख् ं ्यया वाला राज््य: सिक््ककिम दर (TFR) की अपेक्षित संख््यया।
अधिक) की तुलना मेें बड़़ा होता है। कम-से-कम 75 प्रतिशत परु ु ष कामकाजी आबादी गैर-कृषि क्षेत्र
मेें लगी हुई है;
बस््ततियाँ जनसंख््यया का घनत््व कम-से-कम 400 व््यक्ति प्रति वर््ग कि.मी. हो।