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"श्री गनेशय नामः "

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'मंगल चरण'

छं द - भए प्रगट कृपाला ददनदयाला कौशल्या दितकारी।


िदषित मि्तारी मुदन मन िारी अद् भुत रुप दिचारी।।

लोचन अदभरामा तनु घन श्यामा दनज आयुध भुज चारी।


भूषण िनमाला नयन दिसाला सोमा दसन्धु खरारी।।

'सीता स्वयंवर'

प्राचीन समय मैं राजा जनक दमदिलाक राजा छलाि। ओदि समय में भयङ्कर अकाल परर गेल। प्रजा सभक
स्थिदि िहुत खराि भ गेल। राजपुरोदित राजा के सुझाव दे स्थखंि जे खेत में राजा िल् चलािैि। ओदि से पेिने
यज्ञ भेल। यग्योपरांत राजा जनक सीतामढी के पुनौरा गांव के खेत में िल् चलावल लेल गेलाि। िलक
'सीत' खेतक मादट में फंसी गेल। राजा जनक के नजैर पडलैंि सीत कलश में फंसी गेल अदछ,
कलश में

एकटा िच्ची छलैि। राजा जनक के कोनो िेटी (सन्तान) नदि छलैंि, तादि लेल एदि िच्ची के पादव गद्द गद्द भ
गेलाि। िच्ची के नाम सीता राखल गेल। जनक के पास दशव जी के दे ल "दपनाक धनुष" छलैंि जे घरक के एक
कोना राखल छल, जैड में दु दभ जनेम् गेल छल, आई
धरर ओदि दवशाल धनुष के कोनो मनुष्य या दे वता नैं दिला (उठा) सकल। दपनाक धनुष सं भगवान दशव
दिपुरासुरक संघार केने छलाि। जनक जी दे खलैन्ह सीता घर नीपा काल धनुष उठा क दु इभ साफ क क फेर
धनुष के ओिी ठाम ध दे लस्थखन्हा। ई दे ख राजा जनक प्रण केलाि
जे - जे पुरुष ई धनुष के प्रत्ांचा पर तीर चढा दे ताि हुनके सङ्ग सीता के दववाि िेतेन्ह
दपनाक धनुष के दवशेषता :- ई ददव्य दपनाक ब्रह्मस्थददया

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एकटा िच्ची छलैि। राजा जनक के कोनो िेटी (सन्तान) नदि छलैंि, तादि लेल एदि िच्ची के पादव गद्द गद्द भ
गेलाि। िच्ची के नाम सीता राखल गेल। जनक के पास दशव जी के दे ल "दपनाक धनुष" छलैंि जे घरक के एक
कोना राखल छल, जैड में दु दभ जनेम् गेल छल, आई
धरर ओदि दवशाल धनुष के कोनो मनुष्य या दे वता नैं दिला (उठा) सकल। दपनाक धनुष सं भगवान दशव
दिपुरासुरक संघार केने छलाि। जनक जी दे खलैन्ह सीता घर नीपा काल धनुष उठा क दु इभ साफ क क फेर
धनुष के ओिी ठाम ध दे लस्थखन्हा। ई दे ख राजा जनक प्रण केलाि
जे - जे पुरुष ई धनुष के प्रत्ांचा पर तीर चढा दे ताि हुनके सङ्ग सीता के दववाि िेतेन्ह

दपनाक धनुष के दवशेषता :- ई ददव्य दपनाक ब्रह्मस्थददया शस्थि स िनल छल , आ ओकरा केवल ओदि व्यस्थि
द्वारा उठायल जा सकैत छल जकरा में धमि आ धमि दनवािि करवाक क्षमता एवं अदद्वतीय शस्थि छै !
ऋदष दवश्वादमि अयोध्या के राजा दशरि के पास पहुंचलाि आ राम- लक्ष्मण के अपना संग ल राक्षस संघार िेतु
दवदा भेलाि।
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भरोली व उदजयारा (िदलया उत्तर प्रदे श ) पहुुँचलाि किावत छै :

मोर भरोली भए उदजयारा, िक्सर जाए तारका मारा।


वामनेश्वर मस्थिर (िक्सर) दििार चररि वन ( िक्सर दििार ) श्री राम जी अपन जीवन के प्रिम युध कलाि
आओर ताड़क वन में ताड़का वद्ध केलाि ओदि ठाम सं दवश्वादमि आश्रम (दसद्धाश्रम ) िक्सर पहुुँचलाि।

राम रे खा घाट िक्सर


रामेश्वर नाि िक्सर

किल जाइत अछी जे ताड़का वध केलाि के िाद श्री राम अपना के दोषी मिसूस क रिल छलाि, दकयक त
कोनो रघुवंशी ऐिी स पदिने कोनो
मदिला के ित्ा नै केने छलाि, तखन श्रीराम भगवान दशव के दवशेष पुजा केलैन्ह। ओदि ठाम स परे व (पटना)
कोइलवर पूल के पास
दिगना धार (पटना) राम चौरा मस्थिर (िादजपुर) ओत्त स गौतम आश्रम पहुुँचलाि , अदिल्य एक दशला रुप में
छलैि। भगवान राम अपन पैर स दशला के स्पशि क दे लैि ओदि के िाद एक सुिर स्त्री अदिल्या जी प्रकट
भेलेि ओर स्तुदत के लेि

4. Page - 07 (Ajay)

दोिा : मुदन श्राप जो दीन्हा अदत भल कीन्हा परम अनुग्रि मैं माना।
दे खेउुँ भरर लोचन िरर भव मोचन इिइ लाभ संकर जाना॥
दिनती प्रभु मोरी मैं मदत भोरी नाि न मागउुँ िर आना।
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना॥

दगररजा मस्थिर फूलिर (मधुिनी) माता जानकी वाल्याविा में ऐत्तॆय गौरी पुजन करे त छलस्थखन्ह।
धनुष भंग स पदिने माुँ सुनैना अपन िेटी सीता के दगररजा पुजन लेल एिी ठाम पठे लस्थखन्ह।

श्री राम आ लक्षमण गुरु दवश्वादमि के लेल पुजा वास्ते फूल (पुष्प) लेवे सिो गेल रि्दिन्ह , ओतदि राम आओर
सीता एक दोसर के दे ख्लैन्हा
सीता जी दगररजा पुजन काल पाविती संग दवनय स्ततुदत करै त छदतन।

दोिा : दिनय प्रेम िस भई भवानी। खसी माल मूरदत मुसुकानी॥


सादर दसयुँ प्रसादु दसर धरे ऊ। िोली गौरर िरषु दियुँ भरे ऊ॥

दगररजा जी सीता जी के दवनय आओर प्रेम के वश में भ गेलीि। हुनकर गला के माला स्थखसदक पदलैन्ह आओर
मुदति मुस्करा उठल। सीता जी

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